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सं कृत सा ह य काशन
नई द ली
ISBN 81-87164-97-2
व. .- 535.5H15*
सं कृत सा ह य काशन के लए
व बु स ा. ल.
एम-१२, कनाट सरकस, नई द ली-११०००१
ारा वत रत
सरा कांड
सू वषय मं
१. और आ मा का वणन १-५
२. के प म सूय क आराधना १-५
३. ाव वरोधी ओष ध का वणन १-६
४. जं गड़ वृ से न मत जं गड़ म ण का वणन १-६
५. इं क तु त १-७
६. अ न दे व क तु त १-५
७. पाप का वनाश करने वाली म ण का गुणगान १-५
८. य मा और कु रोग से मु करने वाले तारे १-५
९. वन प तय से न मत म ण का वणन १-५
१०. ावा और पृ वी का व भ रोग म क याणकारी होना १-८
११. तलक वृ से न मत म ण १-५
१२. ावा, पृ वी और अंत र के अ धप त दे व
मशः अ न, वायु और सूय का वणन १-८
१३. अ न, बृह प त और व े दे व का गुणगान १-५
१४. अ न, भूतप त तथा इं क तु त १-६
तीसरा कांड
सू वषय मं
१. अ न, म त् व इं दे व क तु त १-६
२. अ न, इं और म त् से श ु का
वनाश करने का अनुरोध १-६
३. अ न क तु त १-६
४. इं दे व से राजा, रा य पुनः ा त होना १-७
५. ओष धय क सार प पणम ण का वणन १-८
पांचवां कांड
सू वषय मं
१. व ण क तु त १-९
२. इं क म हमा का वणन १-९
३. अ न दे व क शंसा १-११
भारती, सर वती और पृ वी क तु त ७
इं क तु त ८
४. कु ओष ध का वणन १-१०
५. लाख ओष ध का वणन १-९
६. क तु त १-१४
सूय क तु त ४
अ न क तु त ११
७. अरा त क तु त १-१०
८. अ न दे व से य म सभी दे व को
लाने का आ ह १-९
इं को य म आने का नमं ण २
अ य दे व से य म आने का आ ह ३
इं से श ु को मारने का आ ह ९
९. पृ वी, वग और आकाश से ाथना १-८
१०. प थर से बने घर क तु त १-८
चं मा, वायु, सूय, अंत र और पृ वी क तु त ८
११. व ण दे व क तु त १-११
१२. अ न क तु त १-११
१३. सप वषनाशन वणन १-११
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१४. ओष ध से ाथना १-१३
१५. मधुला ओष ध का वणन १-११
१६. लवण को संतानो प के लए उ सा हत करना १-११
१७. जाया का वणन १-१८
१८. ा ण क गाय का वणन १-१५
१९. ा ण के साथ बुरे वहार के फल का वणन १-१५
२०. ं भ क म हमा का वणन १-१२
२१. ं भ क म हमा का वणन १-१२
२२. दे ह को न कर दे ने वाले वर का वणन १-१४
२३. इं क तु त १-१३
२४. स वता, अ न, ावा और पृ वी, व ण,
म , वायु दे व, चं मा आ द क तु त १-१७
२५. अ न, व ण, म आ द क तु त १-१३
२६. अ न, स वता दे व, इं व अ नीकुमार
क तु त १-१२
२७. अ न सभी दे व म े १-१२
२८. उषा दे वी, आ द य आ द का वणन १-१४
२९. जातवेद अ न दे व क तु त १-१५
३०. यम, आयु और अ न से ाथना १-१७
३१. कृ या का तहरण १-१२
छठा कांड
सू वषय मं
१. स वता दे व क तु त १-३
२. इं के लए सोमरस का बंध १-३
३. इं और पूषा दे व क तु त १-३
४. व ा क तु त १-३
अ द त क तु त २
अ नीकुमार क तु त ३
५. अ न और इं क तु त १-३
६. ण प त व सोम क शंसा १-३
७. सोम से क याण क याचना १-३
८. कामा मा का वणन १-३
९. कामा मा का वणन १-३
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१०. अ न और वायु क तु त १-३
११. पुंसवन कम का वणन १-३
१२. वष नवारण वणन १-३
१३. मृ यु क तु त १-३
१४. े मा रोग का नवारण १-३
१५. वन प तय म उ म पलाश वृ का वणन १-३
१६. खाई जाने वाली सरस का वणन १-४
१७. नारी के गभ म थत रहने क कामना १-४
१८. ई या वनाशन १-३
१९. दे व से शु के लए ाथना १-३
२०. बल प वर से छु टकारे क कामना १-३
२१. धनवती ओष धय का वणन १-३
२२. आ द य, र म व म त् क तु त १-३
२३. जल क शंसा १-३
२४. जल का वणन १-३
२५. म यु वनाशन १-३
२६. पा मा क तु त १-३
२७. यम क पूजा अचना १-३
२८. यम क शंसा १-३
२९. यम क तु त १-३
३०. जौ सौभा य सूचक शमी का वणन १-३
३१. गौ अथात् सूय क करण का वणन १-३
३२. अ न क तु त १-३
३३. इं क तु त १-३
३४. अ न क तु त १-५
३५. वै ानर अ न क तु त १-३
३६. वै ानर अ न क आराधना १-३
३७. इं क तु त १-३
३८. तेज व पा दे वी क तु त १-४
३९. इं क तु त १-३
४०. ावा, पृ वी व इं क आराधना १-३
४१. ाण के अ ध ाता दे व एवं द गुण क शंसा १-३
४२. पु ष के लए उपदे श १-३
४३. ोध को शांत करना १-३
४४. गाय के स ग ारा वषाण रोग का इलाज १-३
सातवां कांड
सू वषय मं
१. जाप त ारा संसार के लोग को
अपने अपने कम करने क ेरणा दे ना १-२
२. जाप त क तु त १
३. जाप त क तु त १
४. वायु दे व क तु त १
५. य प जाप त क शंसा १-५
६. पृ वी एवं दे वमाता का वणन १-२
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७. अ द त क तु त १-२
८. अ द त के पु अथात दे व का वणन १
९. बृह प त क तु त १
१०. सब के पोषक सूय दे व क तु त १-४
११. सर वती क तु त १
१२. पज य दे व क तु त १
१३. जाप त क दोन पु य ,
सभा तथा सभासद क तु त १-४
१४. े ष करने वाले पु ष के तेज का वनाश १-२
१५. स वता दे व क तु त १-४
१६. सब के ेरक स वता दे व क तु त १
१७. बृह प त एवं स वता दे व क तु त १
१८. धाता दे व क तु त १-४
स वता व जाप त क तु त ४
१९. धाता क शंसा १-२
२०. जाप त और धाता क तु त १
२१. अनुम त नामक दे वी क शंसा १-६
सुख ा त करने का अनु ह ३
सु णी त दे वी से य पूण करने का आ ह ४
२२. पुरातन सूय क शंसा १
२३. स कम क ेरणा दे ने के लए सूय दे व क तु त १-२
२४. ः व वनाश क कामना १
२५. स वता व जाप त दे व क आराधना १
२६. व णु और व ण क शंसा १-२
२७. व णु के वीरतापूण कम का वणन १-८
२८. इडा क तु त १
२९. काम म आने वाले उपकरण क शंसा १
३०. अ न और व णु क तु त १-२
३१. दे व से य के यूप को रंगने क कामना १
३२. धनवान एवं शौय संप इं क शंसा १
३३. अ न दे व क तु त १
३४. म त् आ द दे वगण से सुखसमृ क कामना १
३५. अ न दे व व अद ना दे वमाता क शंसा १
३६. अ न से श ु के वनाश क कामना १-३
व े ष करने वाली ी २
संतान र हत नारी ३
आठवां कांड
सू वषय मं
१. मृ यु दे व क तु त १-२१
पाप दे वता के बंधन से उ ार ३
मृ यु से छु टकारा ६
अंधकार से काश क ओर ८
वाडव आ द अ नय ारा र ा ११
मृ यु से छ नने वाले इं , धाता एवं स वता १५
नौवां कांड
सू वषय मं
१. मधुकशा गौ क तु त व वणन १-२४
सोमरस १३
अ न क तु त १५
अ नीकुमार क तु त १७
२. वृषभ पी काम क तु त १-२५
काम दे व से द र ता र करने क ाथना ४
काम दे व क तु त १०
अ न, इं और सोम १३
काम दे व क तु त २५
३. शाला का वणन १-३१
शाला क पूव दशा को नम कार २५
४. श शाली ऋषभ का वणन १-२४
जड़ीबू टय के रस का प रचय ५
बैल का दान १८
५. अज का वणन १-३८
अज ही अ न है और अज ही यो त है ७
अ न क शंसा १७
पंचौदन ३१
६. अ त थ स कार का वणन १-१७
७. अ त थ स कार का वणन १-१३
८. अ त थ स कार का वणन १-९
९. अ त थ स कार का वणन १-१०
१०. अ त थ स कार का वणन १-१०
११. अ त थ स कार का वणन १-१४
१२. गो म हमा वणन १-२६
१३. सवशीषामय रीकरण तथा सभी
दसवां कांड
सू वषय मं
१. कृ या का प र याग १-३२
२. मनु य के शरीर का नमाण १-३३
दे व क नगरी का वणन ३१
३. वरणम ण का वणन १-२५
सम त रोग क ओष ध ३
सोमपीथ और मधुपक य २१
४. दे व के रथ का वणन १-२६
ेत पद ारा सप का वनाश ३
इं क शंसा १७
५. जल क तु त तथा वणन १-५०
स तऋ षय का अनुवतन ३९
द जन और अ न दे व से ाथना ४६
६. वन प तफला म ण का वणन १-३५
अ न का आ ान ३५
७. अंग क मह ा का बखान १-४४
वह जगदाधार कौन है ४
े परमा मा को नम कार ३६
८. क तु त १-४४
बारह अरे तथा तीन ने मयां ४
परमा मा संसार के म य थत है १५
आ म त व एक है २५
९. शतौदना गो का वणन व तु त १-२७
१०. वशा गौ का वणन व तु त १-३४
तेरहवां कांड
सू वषय मं
१. सूय दे व क तु त १-६०
अ न क तु त १५
वाच प त क शंसा १७
य क वृ ६०
२. सूय दे व क तु त १-४६
रो हत दे व का वणन और शंसा ४१
३. रो हत दे व क तु त १-२६
४. सूय क तु त १-१३
५. एक वृ अथात् के ाता १-७
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६. के ाता का वणन १-७
७. के ाता का वणन १-१७
८. इं क तु त १-६
९. वचस दान करने क कामना १-५
चौदहवां कांड
सू वषय मं
१. सोम क तु त १-६४
अ नीकुमार क शंसा १४
इं क शंसा १८
चं का वणन २४
गाय क तु त ३२
बृह प त, इं और स वता दे व क शंसा ६२
२. अ न दे व क तु त १-७५
सर वती क शंसा १५
ी के लए सुखकारी उपदे श २६
वंशवृ ३१
बृह प त दे व का वणन ५३
प त और प नी का ेम ६४
स वता दे व से द घजीवन क कामना ७५
पं हवां कांड
सू वषय मं
१. समूह का हत करने वाले समूह प त का वणन १-८
२. ा य का वणन १-२८
शरीर पी रथ का वणन ७
३. ा य का वणन १-११
आसंद और बैठने क चौक २
ऋ वेद के मं और यजुवद के मं
आसंद बुनने के तंतु ६
४. ा य का वणन १-१८
ऋतु के र क ४
५. भव अथात् महादे व का वणन १-१६
ुव दशा के र क १२
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६. ा य का वणन १-२६
पृ वी, अ न, वन प त और ओष धयां २
साम, यजु, और ८
७. ा य का वणन १-५
८. ा य का वणन १-३
९. ा य का वणन १-३
१०. ानी ा य का वणन १-११
बल और ा बल ४
आकाश और पृ वी ६
११. ा य क तु त और वणन १-११
१२. ा य क तु त और वणन १-११
व ान् तधारी क आ ा से हवन ४
१३. ा य क तु त और वणन १-१४
ा य अ त थ के प म ५
१४. ा य क तु त तथा वणन १-२४
१५. ा य क तु त तथा वणन १-९
१६. ा य का वणन १-७
१७. ा य का वणन १-१०
१८. ा य का वणन १-५
सोलहवां कांड
सू वषय मं
१. जल क तु त और वणन १-१३
जल के े भाग को सागर क
ओर े रत करना ६
२. जाप त से ाथना १-६
३. आ द य का वणन १-६
४. आ द य का वणन १-७
५. व क उप १-१०
व मृ यु है २
व नधनता का पु ६
६. ः व का नाश १-११
७. ः व का नाश १-१३
८. बुरे व का नाश १-३३
श ु बृह प त के बंधन से मु न हो १०
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श ु का वध करके लाए ए पदाथ हमारे १६
मृ यु के पाश ३२
९. जाप त दे व क तु त १-४
स हवां कांड
सू वषय मं
१. इं प सूय क तु त १-३०
सूय क श यां अनेक ह ८
परम ऐ य वाले सूय का वणन १३
सूय दे व सब के क याणकारी २६
अठारहवां कांड
सू वषय मं
१. यमयमी संवाद एवं अ न आ द दे व क तु त १-६१
भाई और बहन पर आ ेप १२
दे व ने जल, वायु और ओष ध त व को
पृ वी पर था पत कया १७
सोमा न के स होने पर अ न ोम आ द कम २१
अ न क शंसा २२
आकाश तथा पृ वी मु य तथा स यवाणी ह २९
म एवं व ण दे वता से ाथना ३९
पतर ारा सर वती का आ ान ४१
दाह सं कार ६१
२. यम आ द क तु त १-६०
जातवेद अ न क तु त ५
ेत का वणन ७
कु े यमपुर के र क १२
अनंत ा ऋ ष १८
सूय के पु यम ३२
यम का वचन ३७
मशान भू म ३८
मृतक का ा ५०
३. यम क तु त १-७३
काई और बत म जल का सार ५
अ नय का वणन ६
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े का वणन
त ७
पतृ याग नामक कम १४
मह षय से सुख क कामना १६
दे वमाता अ द त क शंसा २७
भू दे वता क शंसा ५०
शीतका रणी जड़ीबू टयां और मंडूकपण
ओष ध से ा त पृ वी ६०
वन प त म अ थ प पु ष ढांचा ७०
४. अ न क तु त १-८९
अ न, वायु और सूय का वग म नवास ४
ेत का सं कार १६
वै ानर अ न ारा पतर का पोषण ३५
दाह सं कार करने वाले पु ष ारा
सर वती का आ ान ४५
सोमरस ा त करने वाले अ धकारी पतर ६३
अ न, पतर और यम के लए नम कार ७२
काशमान अ न क तु त ८८
उ ीसवां कांड
सू वषय मं
१. दे व के उ े य से य म आ त १-३
आ तय से य क र ा क कामना २
२. क याणकारी जल का वणन १-५
जल क वंदना ३
३. अ न दे व क तु त १-४
अ न हर व तु म व मान है २
अ न क म हमा ३
४. अ न क तु त १-४
सर वती क कामना २
बृह प त का आ ान ३
५. दे वता के वामी इं क तु त १
६. नारायण नाम के पु ष क तु त १-१६
य पु ष क क पना ५
ा ण, य, वै य और शू क उ प ६
चं मा और सूय क उ प ७
अंत र लोक, वगलोक,
भू म और दशा क उ प ८
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वराट् क उ प ९
घोड़ आ द क उ प १२
अ मेध य १५
७. न क तु त १-५
वभ न के अनुकूल होने क कामना २
८. न क तु त १-७
अट् ठाईस न २
न के दे वता का अ भनंदन ३
इं क तु त ६
९. दे व क तु त १-१४
ान य का वणन ५
शां त क कामना ९
१०. इं और अ न क तु त १-१०
सभी दे व से सुख क याचना ४
सोम ७
११. स य पालक दे व और पतर क तु त १-६
१२. उषा क शंसा १
१३. इं क शंसा १-११
इं क सहायता से श ु वजय क कामना ३
श ु को न करने वाले बृह प त ८
१४. ावा और पृ वी क तु त १
१५. अभय करने वाले इं आ द क शंसा १-६
कम क स हेतु इं से ाथना २
१६. स वता दे व क तु त १-२
अ नीकुमार क तु त २
१७. पृ वी क तु त १-१०
अंत र का थायी दे वता २
सोम व क तु त ३
१८. श ु के वनाश क कामना १-१०
वायु से श ु वनाश क कामना २
१९. म नाम वाले अ न आ द दे व क तु त १-११
वायु ारा पुर क र ा २
२०. इं , अ न, स वता आ द दे व क तु त १-४
सभी ा णय के पालनकता जाप त २
२१. छं द के लए आ त १
२२. अं गरा गो वाले ऋ षय के लए आ त १-२१
छठे के लए आ त २
२३. ऋ षय के लए आ त १-३०
पांच ऋचा क रचना करने करने
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वाले ऋ षय को आ त २
ा का वणन ३०
२४. श ु वनाशकता ण प त क तु त १-८
इं क तु त २
दे व से ाथना ४
२५. श शाली अ क कामना १
२६. अ न से उ प वण को धारण करने
वाले पु ष का वणन १-४
२७. ववृत नामक म ण का वणन १-१५
सोम आ द दे व क तु त २
म णधारक पु ष ८
आ द य नाम के दे व क शंसा ११
२८. दभम ण का वणन व तु त १-१०
े ष करने वाल के वनाश के लए ाथना २
२९. दभम ण क तु त तथा वणन १-९
सेना एक करने वाल के नाश क कामना २
३०. दभम ण क तु त १-५
दभम ण क गांठ म सुर ा कवच २
३१. औ ं बरम ण क तु त १-१४
पु ष , पशु , अ तथा ओष धय
क अ धकता क कामना ४
सर वती दे वी क तु त १०
३२. उ ओष ध दभ का वणन १-१०
३३. सौ गांठ वाली दभ ओष ध क तु त १-५
दभ नाम का र ा साधन श संप ४
३४. जं गड़ नामक जड़ीबूट का वणन १-१०
जं गड़ म ण क म हमा २
३५. महा रोग नाशक जं गड़ म ण का वणन १-५
३६. राजय मा अथात् ट बी रोग नाशक शतवार
ओष ध का वणन १-६
पागलपन व अ यरोग का नवारण ६
३७. अ न क तु त १-४
स ता के लए य ४
३८. गु गुलु नाम क ओष ध का वणन १-३
३९. कूठ नामक वशेष ओष ध का वणन १-१०
वग म दे व का घर पीपल वृ ६
४०. दोष को र करने के लए बृह प त क तु त १-४
जल दे वता क शंसा २
बीसवां कांड
सू वषय मं
१. इं से सोम पीने का अनुरोध १-३
वेद मं ारा अ न दे व क तु त ३
२. अ न, म त एवं इं दे व क तु त १-४
वणोदा से सोमपान करने का अनुरोध ४
३. इं क तु त १-३
४. इं से सोमरस पीने का अनुरोध १-३
५. इं से सोम ा त करने का अनुरोध १-७
इं से य म आने का आ ह ७
६. कामना क वषा करने वाले इं से मधुर
सोम पान करने का आ ह १-९
म त के वामी इं क तु त ३
७. इं क तु त १-४
८. इं से सोम पीने का आ ह १-३
९. दशनीय और ःख वनाशक इं क तु त १-४
उ म अ क याचना ३
१०. इं क तु त १-२
११. इं के काय का वणन १-११
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इं वग ा त कराने श ु
का वनाश करने वाले ह ४
तु त कता को धन दे ने वाले इं ७
इं ारा वन प तय एवं दवस क रचना १०
१२. इं क तु त १-७
१३. बृह प त दे व और इं से य शाला
म आने के लए आ ह १-४
अ न से य म आने का आ ह ४
१४. र ा क कामना से इं का आ ान १-४
१५. इं क तु त १-६
इं के य का थान सारा जगत् २
१६. बृह प त दे व क शंसा १-१२
बृह प त ने छपी ई गाएं बाहर नकाल ४
१७. इं क तु त १-१२
इं से सोमरस पीने का आ ह २
बृह प त दे व क शंसा ११
१८. व धारी इं क तु त १-६
१९. इं क तु त १-७
२०. इं क तु त १-७
पांच वण म ा त बल क कामना २
२१. इं क तु त १-११
२२. वषा करने वाले इं क शंसा १-६
२३. इं से य म आने का आ ह १-९
२४. इं क तु त १-९
इं को सोम पान के लए बुलावा ४
धन के वजेता इं ६
२५. इं क म हमा का गान १-७
अ वनाशी इं का पूजन ५
२६. इं क तु त १-६
अ ानी को ान दे ने वाले सूय का उदय ६
२७. इं क तु त १-६
२८. इं के काय का वणन १-४
२९. इं क तु त तथा वणन १-५
३०. इं के अ का वणन १-५
इं के सुंदर शरीर व श का वणन ३
इं के केश ५
३१. अ ारा इं को य म लाया जाना १-५
इं का नवास ५
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३२. इं क म हमा १-३
३३. इं के लए सोम रस का सं कार १-३
३४. इं के बल क म हमा १-१८
शंबर असुर का वध ११
३५. इं क तु त १-१६
महान् इं के असाधारण कम का वणन ७
३६. इं क तु त १-११
धन क याचना ३
३७. इं क तु त का वणन १-११
इं का व ३
३८. इं से सोम रस पीने का आ ह १-६
इं का पूजन ४
३९. इं का आ ान १-५
४०. इं क म हमा का गुणगान १-३
४१. बलशाली इं का वणन १-३
४२. इं क श १-३
४३. इं से श ु वनाश क कामना १-३
४४. इं क तु त १-३
४५. इं को पास बुलाने का आ ह १-३
४६. इं क म हमा १-३
४७. इं का वणन व तु त १-२१
इं के रथ म घोड़ को जोड़ना ११
४८. इं क तु त १-६
सूय क करण के तीस मु त द त ६
४९. इं क तु त १-७
५०. इं क म हमा का गुणगान १-२
५१. इं के आयुध का वणन १-४
५२. सोमरस १-३
५३. इं से य म आने का अनुरोध १-३
५४. इं से य म आने का अनुरोध १-३
५५. इं को य म बुलाने का संक प १-३
५६. इं क तु त और वणन १-६
५७. र ा के लए इं का आ ान १-१६
५८. इं क म हमा क शंसा १-४
५९. इं क तु त १-४
इं का य भाग ३
६०. अ एवं धन के वामी इं क शंसा १-६
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इं को य लगने वाली तु तयां ६
६१. इं क ह व से पूजा १-६
६२. इं से र ा क कामना १-१०
इं क तु त ४
६३. इं क तु त १-९
६४. वग के वामी इं क तु त १-६
६५. इं क तु त १-३
६६. इं का य म बैठना १-३
६७. इं क म हमा का गुणगान १-७
अ न क तु त ३
६८. र ा के लए इं का आ ान १-१२
य शाला म इं का गान ११
६९. इं का चतन १-१२
सूय प इं ११
७०. इं क तु त १-२०
इं क म हमा १२
७१. इं क म हमा का वणन १-१६
श ु ारा इं के बल क शंसा १६
७२. इं क तु त और वणन १-३
७३. इं क शंसा १-६
ह व प अ का सेवन ३
इं ारा कम करने वाल का वध ६
७४. इं क तु त १-७
पाप वृ वाले रा स के वध क कामना ५
७५. गोदान के अवसर पर अ क कामना १-३
७६. अ नीकुमार क तु त १-८
इं क शंसा ३
७७. इं क शंसा १-८
इं हेतु मं के समूह का उ चारण २
मं के ारा दशनीय वग का ान ३
७८. सोमरस का सं कार और इं क तु त १-३
७९. इं क तु त १-२
८०. इं क तु त १-२
८१. इं के समान कोई महान नह १-२
८२. इं क तु त १-२
८३. इं से मंगलकारी घर क कामना १-२
८४. इं क तु त का परामश १-३
सू -२ दे वता—पज य
वद्मा शर य पतरं पज यं भू रधायसम्.
वद्मो व य मातरं पृ थव भू रवपसम्.. (१)
सू -३ दे वता—पज य
वद्मा शर य पतरं पज यं शतवृ यम्.
तेना ते त वे ३ शं करं पृ थ ां ते नषेचनं ब ह े अ तु बा ल त.. (१)
हम सैकड़ साम य वाले एवं बाण के पता पज य अथात् बादल को जानते ह. हे
मू रोगी! म तेरे मू ा द रोग को समा त करता ं. शरीर म रखा आ मू बाहर नकल कर
पृ वी पर गरे. (१)
वद्मा शर य पतरं म ं शतवृ यम्.
तेना ते त वे ३ शं करं पृ थ ां ते नषेचनं ब ह े अ तु बा ल त.. (२)
हम सैकड़ साम य वाले एवं बाण के पता म अथात् सूय को जानते ह. हे रोगी
मनु य! इसी बाण से म तेरे मू ा द रोग को न करता ं. तेरे पेट म का आ मू बाहर
नकल कर पृ वी पर गरे. (२)
वद्मा शर य पतरं व णं शतवृ यम्.
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तेना ते त वे ३ शं करं पृ थ ां ते नषेचनं ब ह े अ तु बा ल त.. (३)
हम सैकड़ साम य से संप एवं बाण के पता व ण को जानते ह. हे रोगी मनु य!
इसी बाण से म तेरे मू ा द रोग को र करता ं. तेरे पेट म का आ मू बाहर नकल कर
धरती पर गरे. (३)
वद्मा शर य पतरं च ं शतवृ यम्.
तेना ते त वे ३ शं करं पृ थ ां ते नषेचनं ब ह े अ तु बा ल त.. (४)
हम सैकड़ श य वाले एवं बाण के पता चं को जानते ह. हे रोगी मनु य! म उसी
बाण से तेरे मू ा द रोग को समा त करता ं. तेरे पेट म का आ मू बाहर नकले और
धरती पर गरे. (४)
वद्मा शर य पतरं सूय शतवृ यम्.
तेना ते त वे ३ शं करं पृ थ ां ते नषेचनं ब ह े अ तु बा ल त.. (५)
हम सैकड़ श य वाले एवं बाण के पता सूय को जानते ह. हे रोगी! म इसी बाण से
तेरे मू ा द रोग को न करता ं. उदर (पेट) म सं चत तेरा मू बाहर नकल कर धरती पर
गरे. (५)
यदा ेषु गवी योय ताव ध सं तम्.
एवा ते मू ं मु यतां ब हबा ल त सवकम्.. (६)
जो मू तेरी आंत म, मू नाड़ी म एवं मू ाशय म का आ है, वह तेरा सारा मू श द
करता आ शी बाहर नकल आए. (६)
ते भन द्म मेहनं व वेश या इव.
एवा ते मू ं मु यतां ब हबा ल त सवकम्.. (७)
हे मू ा ध से पी ड़त रोगी! म तेरे मू नकलने के माग का उसी कार भेदन करता
ं, जस कार जलाशय का जल बाहर नकालने के लए नाली खोदते ह. तेरा सारा मू
श द करता आ बाहर नकले. (७)
व षतं ते व त बलं समु योदधे रव.
एवा ते मू ं मु यतां ब हबा ल त सवकम्.. (८)
हे मू रोग से ःखी रोगी! जस कार सागर, जलाशय आ द का जल नकलने के
लए माग बना दया जाता है, उसी कार म ने तेरे के ए मू को बाहर नकालने के लए
तेरे मू ाशय का ार खोल दया है. तेरा सारा मू श द करता आ बाहर नकले. (८)
सू -४ दे वता—जल
अ बयो य य व भजामयो अ वरीयताम्. पृंचतीमधुना पयः.. (१)
य करने के इ छु क जन अपनी माता और बहन के समान जल, सोमरस, ध एवं
घृत आ द य साम ी ले कर आते ह. (१)
अमूया उप सूय या भवा सूयः सह. ता नो ह व व वरम्.. (२)
जो जल सूय मंडल म थत है अथवा सूय जस जल के साथ थत है, वह जल हमारे
य को फल दे ने म समथ बनाए. (२)
अपो दे वी प ये य गावः पब त नः. स धु यः क व ह वः.. (३)
म व छ एवं दे वता प जल का आ ान करता ं. जल से पूण जलाशय अथात्
न दय और तालाब म हमारी गाएं जल पीती ह. (३)
अ व १ तरमृतम सु भेषजम्.
अपामुत श त भर ा भवथ वा जनो गावो भवथ वा जनीः.. (४)
जल म अमृत है. जल म ओष धयां नवास करती ह. इन जल के भाव से हमारे
घोड़े बलवान बन, हमारी गाएं श संप बन. (४)
सू -५ दे वता—जल
आपो ह ा मयोभुव ता न ऊज दधातन. महे रणाय च से.. (१)
हे जल! आप सभी कार का सुख दे ने वाले ह. अ आ द सुख का उपभोग करने के
इ छु क हम सब को आप उन के उपभोग क श दान कर. आप हम महान एवं रमणीय
आनंद व प के सा ा कार का साम य द. (१)
यो वः शवतमो रस त य भाजयतेह नः. उशती रव मातरः.. (२)
जस कार माताएं अपनी इ छा से ध पला कर बालक को पु करती ह, उसी
सू -६ दे वता—जल
शं नो दे वीर भ य आपो भव तु पीतये. शं योर भ व तु नः.. (१)
द गुण वाला जल सभी ओर से हमारा क याण करने वाला हो. जल हमारे चार
ओर क याण क वषा करे एवं पीने के लए उपल ध हो. (१)
अ सु मे सोमो अ वीद त व ा न भेषजा. अ नं च व श भुवम्.. (२)
मुझे सोम ने बताया है क सारी ओष धयां एवं अ न जल म नवास करती ह. अ न
सारे संसार का क याण करने वाली है. (२)
आपः पृणीत भेषजं व थं त वे ३ मम. योक् च सूय शे.. (३)
हे जल! तुम मेरे रोग का नवारण करने के लए ओष धयां दान करो. अ धक समय
तक सूय के दशन करने के लए तुम मेरे शरीर को पु करो. (३)
शं न आपो ध व या ३: शमु स वनू याः.
शं नः ख न मा आपः शमु याः कु भ आभृताः शवा नः स तु वा षक ः..
(४)
जल हम म भू म म सुखकारी ह . जन थान म जल क ा त सुलभ है, वहां के
जल हमारा क याण कर. कुआं, बावड़ी आ द खोद कर ा त कए गए जल हमारे लए
क याणकारी ह . घड़े म भर कर लाया गया जल हम सुख दे . वषा से ा त होने वाला जल
हमारे लए सुखकारी हो. (४)
सू -७ दे वता—अ न और इं
सू -८ दे वता—बृह प त
इंद ह वयातुधानान् नद फेन मवा वहत्.
यं इदं ी पुमानक रह स तुवतां जनः.. (१)
मेरे ारा अ न आ द दे व को दया आ घृत आ द ह व रा स को यहां से उसी
कार र हटा दे , जस कार नद क धारा फेन को एक थान से सरे थान तक ले जाती
है. मेरे त अ भचार, जा , टोना, टोटका करने वाले ीपु ष अपने मनोरथ म असफल हो
कर यहां मेरी शरण म आएं और मेरी तु त कर. (१)
अयं तुवान आगम दमं म त हयत.
बृह पते वशे ल वा नीषोमा व व यतम्.. (२)
हे बृह प त आ द दे वो! आप क तु त करता आ जो यह मनु य आप क शरण म
आया है, यह हमारा वरोधी श ु है. हे बृह प त, अ न एवं सोम! इन उप वका रय को वश
म कर के अनेक कार से दं डत करो. (२)
यातुधान य सोमप ज ह जां नय व च.
न तुवान य पातय परम युतावरम्.. (३)
हे सोमरस पीने वाले अ न दे व! तुम रा स क संतान के समीप प ंच कर उ ह
समा त कर दो और हमारी संतान क र ा करो. हमारे जो श ु तुम से भयभीत हो कर
तु हारी ाथना करते ह, तुम उन क दा और बा दोन आंख बाहर नकाल लो. (३)
य षै ाम ने ज नमा न वे थ गुहा सताम णां जातवेदः.
तां वं णा वावृधानो ज ेषां शततहम ने.. (४)
हे सब के वषय म जानने वाले अ न! तुम गुहा म नवास करने वाले रा स को जानते
हो. हे मं ारा वृ पाते ए अ न! इन रा स ारा सैकड़ कार क हसा को रोको एवं
संतान स हत इन का वनाश करो. (४)
सू -९ दे वता—वसु
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अ मन् वसु वसवो धारय व ः पूषा व णो म ो अ नः.
इममा द या उत व े च दे वा उ र मन् य यो त ष धारय तु.. (१)
भां तभां त क धन संप क कामना करने वाले इस पु ष को वसु, इं , पूषा, व ण,
म , अ न एवं व े दे व धन दान कर तथा ये दे व इसे उ म यो त संप बनाएं. (१)
अ य दे वाः द श यो तर तु सूय अ न त वा हर यम्.
सप ना अ मदधरे भव तू मं नाकम ध रोहयेमम्.. (२)
हे इं ा द दे वो! ामा द सुख के इ छु क इस पु ष के अ धकार म सूय, अ न, चं ,
वग आ द क यो त पूण प से रहे. इस के कारण श ु हमारे अ धकार म रह. तुम हम
सभी कार के ःख से हीन वग म प ंचाओ. (२)
येने ाय समभरः पयां यु मेन णा जातवेदः.
तेन वम न इह वधयेमं सजातानां ै ् य आ धे ेनम्.. (३)
हे सब कुछ जानने वाले अ न! आप ने जन उ म मं ारा इं के लए ध, घृत
आ द रस ह व के प म ा त कराए, हे अ न! उ ह मं के ारा इस पु ष क वृ करो
एवं इसे अपनी जा त वाल म े बनाओ. (३)
ऐषां य मुत वच ददे ऽ हं राय पोषमुत च ा य ने.
सप ना अ मदधरे भव तू मं नाकम ध रोहयेमम्.. (४)
हे अ न! तु हारी कृपा से म इन श ु के वग आ द लोक के साधक य , कम, तेज,
धन एवं च का हरण करता ं. मेरे श ु मुझ से न न थ त म रह. आप मुझ यजमान को
सभी ःख से र हत एवं उ म वग म प ंचा दो. (४)
सू -१० दे वता—व ण
अयं दे वानामसुरो व राज त वशा ह स या व ण य रा ः.
तत प र णा शाशदान उ य म यो दमं नया म.. (१)
इं ा द दे व म व ण पा पय को दं ड दे ने वाले ह. इस कार के यह व ण सब से उ कृ
ह. सभी पदाथ तेज वी व ण दे व के वश म ह. इस लए म व ण क तु त संबंधी मं से
श ा त कर के व ण दे व के चंड कोप के कारण उ प जलोदर रोग वाले इस पु ष को
रोगमु करता ं. (१)
नम ते राजन् व णा तु म यवे व ं न चके ष धम्.
सह म यान् सुवा म साकं शतं जीवा त शरद तवायम्.. (२)
सू -११ दे वता—पूषा आ द
वषट् ते पूष म सूतावयमा होता कृणोतु वेधाः.
स तां नायृत जाता व पवा ण जहतां सूतवा उ.. (१)
हे पूषा दे व! सुख उ प करने वाले इस य कम म ा ण समूह के ेरक दे व अयमा
होता बन कर आप को ह व दान कर. संपूण जगत् के नमाता वेधा दे व आप को वषट् कार
के ारा ह व दान कर. आप क कृपा से यह ग भणी नारी सव संबंधी क से छु टकारा पा
कर जी वत संतान को ज म दे . सुखपूवक सव के लए इस के सं ध बंध श थल हो जाएं.
(१)
चत ो दवः दश त ो भू या उत.
दे वा गभ समैरयन् तं ूणव
ु तु सूतवे.. (२)
ुलोक से संबं धत ाची आ द चार दशा एवं भूलोक क आ नेयी आ द चार
दशा ने एवं इन दशा के अ ध ाता इं आ द दे व ने पहले गभ को पूण कया था. वे
सभी दे व इस समय गभ को गभाशय से बाहर नकाल एवं जरायु के आ छादन से मु कर.
(२)
सूषा ूण तु व यो न हापयाम स.
थया सूषणे वमव वं ब कले सृज.. (३)
सू -१४ दे वता—यम
भगम या वच आ द य ध वृ ा दव जम्.
महाबु न इव पवतो योक् पतृ वा ताम्.. (१)
मनु य जस कार वृ से माला बनाने हेतु फूल तोड़ता है, उसी कार म इस ी के
भा य और तेज को वीकार करता ं. धरती म भीतर तक धंसा आ पवत जस कार थर
रहता है, उसी कार यह बुरे भा य वाली ी चरकाल तक पता के घर रहे अथात् यह कभी
प त का मुख न दे खे. (१)
एषा ते राजन् क या वधू न धूयतां यम.
सा मातुब यतां गृहे ऽ थो ातुरथो पतुः.. (२)
हे सुशो भत सोम! यह क या आप क प नी है, य क इस ने पहले आप को वीकार
कया है, इस लए यह प तगृह से नकाल द जानी चा हए. यह क या चरकाल तक अपने
पता एवं भाई के घर पड़ी रहे. (२)
एषा ते कुलपा राजन् तामु ते प र दद्म स.
योक् पतृ वासाता आ शी णः शमो यात्.. (३)
हे सुशो भत सोम! यह ी प त ता होने के कारण आप के कुल का पालन करने वाली
है, इस लए हम इसे र ा के लए आप को दे ते ह. यह तब तक अपने पता के घर पर रहे. यह
धरती पर सर गरने तक अथात् मरण पयत अपने पता के घर रहे. (३)
अ सत य ते णा क यप य गय य च.
अ तःकोश मव जामयो ऽ प न ा म ते भगम्.. (४)
हे ी! म तेरे भा य को अ सत, ा, क यप एवं गय ऋ षय के मं से इस कार
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सुर त करता ं, जस कार यां घर म अपना धन, व आ द छपा कर रखती ह. (४)
सू -१६ दे वता—अ न, व ण आ द
ये ऽ मावा यां ३ रा मु थु ाजम णः.
अ न तुरीयो यातुहा सो अ म यम ध वत्.. (१)
मनु य का भ ण करने वाले जो रा स अमाव या क अंधेरी रात म इधर उधर घूमते
ह. चौथे अ न दे व उन रा स एवं चोर का संहार कर के हमारी र ा कर. (१)
सीसाया याह व णः सीसाया न पाव त.
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सीसं म इ ः ाय छत् तद यातुचातनम्.. (२)
व ण दे व ने फेन के वषय म कहा है. सीसे ज ते के वषय म अ न ने भी यही कहा है.
परम ऐ ययु इं ने मुझे सीसा दान कया है. इं ने कहा है क हे य! यह सीसा रा स
का संहार करने वाला है. (२)
इदं व क धं सहत इदं बाधते अ णः.
अनेन व ा ससहे या जाता न पशा याः.. (३)
यह सीसा रा स, पशाच आ द ारा डाले जाने वाले व न को समा त करने वाला है.
यह मनु य का भ ण करने वाले रा स को न करता है. म इस सीसे के ारा सभी रा स
को परा जत करता ं. वे रा स पशाची से उ प ह. (३)
य द नो गां हं स य ं य द पू षम्.
तं वा सीसेन व यामो यथा नो ऽ सो अवीरहा.. (४)
हे श ु! य द तू हमारी गाय , घोड़ एवं सहायता करने वाले सेवक क ह या करता है
तो म सीसे से तुझे मा ं गा. तू मेरे वीर क ह या नह कर सकेगा. (४)
सू -१८ दे वता—सा व ी आ द
नल यं लला यं १ नररा त सुवाम स.
अथ या भ ा ता न नः जाया अरा त नयाम स.. (१)
हम ललाट के असौभा य सूचक च को श ु के समान अपने शरीर से र करते ह. जो
सौभा य सूचक च ह, वे हमारी संतान को ा त ह . हम ने अपने शरीर से बुरे च र
कए ह, वे हमारे श ु को ा त ह . (१)
नरर ण स वता सा वषक् पदो नह तयोव णो म ो अयमा.
नर म यमनुमती रराणा ेमां दे वा असा वषुः सौभगाय.. (२)
सब को ेरणा दे ने वाले स वता दे व, व ण दे व, म एवं अयमा दे व हमारे हाथ और
पैर म थत असौभा य सूचक ल ण को र कर द. अनुम त दे वी, ‘भय मत करो’, कहती
ई हमारे शरीर म वतमान सभी बुरे ल ण को नकाल द. इं आ द दे व ने इस अनुम त
दे वी को हम सौभा य दे ने के लए े रत कया है. (२)
य आ म न त वां घोरम् अ त य ा केशेषु तच णे वा.
सव तद् वाचाप ह मो वयं दे व वा स वता सूदयतु.. (३)
हे पु ष! तेरे अपने शरीर, केश एवं ने के जो बुरे ल ण ह, हम मं पी वाणी से
उन सभी बुरे ल ण का वनाश करते ह. स वता दे व तुझे क याण क ेरणा द. (३)
र यपद वृषदत गोषेधां वधमामुत.
वलीढ् यं लला यं १ ता अ म ाशयाम स.. (४)
हम से संबं धत जो ी ह रण के समान पैर वाली, बैल के समान दांत वाली, गाय के
समान ग त वाली एवं वकृत श द बोलने वाली है; हम मं के भाव से उस के इन ल ण
को र करते ह. जस ी के माथे पर ल ण के तीक उलटे रोम ह, उ ह भी हम अपने
मं के भाव से र करते ह. (४)
सू -२० दे वता—सोम, म त् आ द
अदारसृद ् भवतु दे व सोमा मन् य े म तो मृडता नः.
मा नो वदद भभा मो अश तमा नो वदद् वृ जना े या या.. (१)
हे सोम दे व! हमारा श ु अपने थान से भागा आ होने के कारण कभी भी अपनी ी
के पास न प ंच सके. हे म त् दे व! इस य म आप हमारी र ा कर. सामने से आता आ
तेज वी श ु मुझे ा त न कर सके. क त और उ त के माग म व न डालने वाले पाप भी
हम न पा सक. (१)
सू -२१ दे वता—इं
व तदा वशां प तवृ हा वमृधो वशी.
वृषे ः पुर एतु नः सोमपा अभयङ् करः.. (१)
वनाश र हत, ोभ न दे ने वाले, सभी जा के पालनकता, वृ नामक रा स अथवा
जल के आधार मेघ को न करने वाले, श ु क वशेष प से हसा करने वाले, सभी
ा णय को वश म रखने वाले, मनोकामना क वषा करने वाले एवं सोमरस को पीने वाले
इं दे व हमारे लए अभय करने वाले बन कर सं ाम म हमारे नेता बन. (१)
व न इ मृधो ज ह नीचा य छ पृत यतः.
अधमं गमया तमो यो अ माँ अ भदास त.. (२)
हे परम ऐ य यु इं दे व! हमारी वजय के लए हम से सं ाम करने वाले श ु का
वनाश करो. जो यु का य न करने वाले श ु ह, उन को परा जत करो. हमारे खेत, धन
आ द छ न कर हम हा न प ंचाने वाले श ु को अवन त पी अंधकार म प ंचाओ. (२)
व र ो व मृधो ज ह व वृ य हनू ज.
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व म यु म वृ ह म या भदासतः.. (३)
हे वृ रा स को मारने वाले इं ! तुम रा स का वनाश करो एवं सं ाम म वजय
ा त करो. तुम वृ के समान श शाली हमारे श ु के कपोल को वद ण करो. (३)
अपे षतो मनो ऽ प ज यासतो वधम्.
व मह छम य छ वरीयो यावया वधम्.. (४)
हे परम ऐ य वाले इं दे व! हम से े ष करने वाले श ु के हसक मन को न क जए.
जो श ु हम समा त करने का इ छु क है, उस के आयुध का वनाश करो. हम महान सुख
दान करो एवं मं योग के कारण असफल न होने वाले श को हम से र रखो. (४)
सू -२३ दे वता—वन प त
न ं जाता योषधे रामे कृ णे अ स न च.
इदं रज न रजय कलासं प लतं च यत्.. (१)
हे ह र ा! हलद नामक ओष ध! तू रात म उ प ई है. इस लए तू शरीर क सफेद
र करने म समथ है. हे भृंगराज (भागरा) नामक ओष ध! रंग काला कर दे ने वाली
इं ावा ण नामक ओष ध! एवं अ सत वण करने वाली नील नामक ओष ध! तुम कु रोग
के कारण वकृत रंग वाले इस अंग को अपने रंग म रंग दो. वृ ाव था के कारण जो बाल
ेत हो गए ह, उ ह भी अपने रंग म रंग दो. (१)
कलासं च प लतं च न रतो नाशया पृषत्.
आ वा वो वशतां वणः परा शु ला न पातय.. (२)
हे ओष ध! कु रोग और असमय म केश ेत होने के रोग को शरीर से र कर के न
करो. हे रोगी! तु ह अपने बाल का पहले वाला रंग पुनः ा त हो. हे ओष ध! तू इस के ेत
रंग को र कर दे . (२)
अ सतं ते लयनमा थानम सतं तव.
अ स य योषधे न रतो नाशया पृषत्.. (३)
हे नील नामक ओष ध! तेरे उ प होने का थान काले रंग का होता है. तू काले रंग क
होती है, इस लए तू कु रोग के कारण षत अंग के सफेद रंग और बाल के पकने को र
कर. (३)
अ थज य कलास य तनूज य च यत् व च.
या कृत य णा ल म ेतमनीनशम्.. (४)
ह ड् डय से उ प , वचा से उ प एवं इन दोन के म यवत मांस से उ प कु रोग
के कारण जो ेत च शरीर पर उ प हो गए ह, उ ह म मं के भाव से न करता ं.
(४)
सू -२४ दे वता—आसुरी वन प त
सुपण जातः थम त य वं प म् आ सथ.
तद् आसुरी युधा जता पं च े वन पतीन्.. (१)
हे ओष ध! सब से पहले ग ड़ उ प ए. तू उन के शरीर म प दोष के प म थी.
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आसुरी माया ने ग ड़ से यु कर के प को जीत लया एवं वजय के कारण ा त उस
प को ओष ध का प दे दया. (१)
आसुरी च े थमेदं कलासभेषजम् इदं कलासनाशनम्.
अनीनशत् कलासं स पाम् अकरत् वचम्.. (२)
आसुरी माया पी ी ने सब से पहले कु रोग र करने क ओष ध बनाई थी. नीली
आ द ओष धय ने कु रोग को न कर के वचा को पहले के समान व थ बनाया. (२)
स पा नाम ते माता स पो नाम ते पता.
स पकृत् वमोषधे सा स प मदं कृ ध.. (३)
हे ओष ध! तेरी माता तेरे समान ही काले रंग वाली है. तेरा पता आकाश भी तेरे ही
समान नीले रंग का है. हे नील नामक ओष ध! तू अपने संपक म आने वाले पदाथ को अपने
समान रंग वाला बना दे ती है. इस लए कु रोग से षत इस अंग को अपने समान रंग वाला
अथात् काला कर दे . (३)
यामा स पंकरणी पृ थ ा अ युदभृ
् ता.
इदमू षु साधय पुना पा ण क पय.. (४)
हे काले रंग क एवं अपने संपक म आने वाले को अपने समान बना दे ने वाली ओष ध!
तू आसुरी माया ारा धरती से उ प क गई है. तू कु रोग से आ ांत इस अंग को पुनः
पहले के समान रंग वाला बना दे . (४)
सू -२६ दे वता—इं आ द
आरे ३ साव मद तु हे तदवासो असत्. आरे अ मा यम यथ.. (१)
हे दे वो! आप क कृपा से श ु ारा यु खड् ग आ द आयुध हमारे शरीर से र हो
जाएं. हे श ुओ! तुम यं आ द के ारा जो प थर फकते हो, वे भी हम से र रह. (१)
सखासाव म यम तु रा तः सखे ो भगः स वता च राधाः.. (२)
आकाश म दखाई दे ते ए सूय दे व हमारे म ह . संप दे ने वाले स वता दे व हमारे
म ह . स वता दे व अनेक कार के धन के वामी ह. वे तथा इं दे व हमारे म ह. (२)
यूयं नः वतो नपा म तः सूय वचसः. शम य छाथ स थाः.. (३)
हे सूय ारा पृ वी से सोखे ए जल को न गराने वाले पज य दे व! हे सात गण वाले
म त् दे व! आप सब सूय के समान तेज वाले ह. आप सब हमारा व तार से क याण कर.
(३)
सुषूदत मृडत मृडया न तनू यो मय तोके य कृ ध.. (४)
हे इं आ द दे वो! आप श ु ारा छोड़े जाने वाले आयुध को हम से र करो तथा
हम सुख दो. हे इं आ द दे वो! आप हमारे शरीर को सुख द एवं हमारी संतान को सुखी
बनाएं. (४)
सू -२८ दे वता—अ न
उप ागाद् दे वो अ नी र ोहामीवचातनः.
दह प या वनो यातुधानान् कमी दनः.. (१)
सू -२९ दे वता— ण पत
अभीवतन म णना येने ो अ भवावृधे.
तेना मान् ण पते ऽ भ रा ाय वधय.. (१)
हे ण प त! समृ एवं श दान करने वाली जस म ण को धारण कर के इं
उ म ए ह, उसी म ण के ारा श ु से पी ड़त हमारे रा क संप ता बढ़ाओ. आप क
कृपा से हम संप जन ारा सुर त रा म श ु के भय से र हत ह . (१)
अ भवृ य सप नान भ या नो अरातयः.
अ भ पृत य तं त ा भ यो नो र य त.. (२)
हे अभीवत म ण! तुम हमारे श ु के सामने डट कर उ ह परा जत करो. जो हमारे
रा , धन आ द का अपहरण कर के हमारे त श ुता का वहार करते ह, उन के सामने
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डट कर तुम उन को परा जत करो. जो हम से यु करने के लए सेना सजाते ह अथवा हमारे
त अ भचार (जा टोने) के प म श ुता करते ह, तुम उ ह भी परा जत करो. (२)
अ भ वा दे वः स वता भ सोमो अवीवृधत्.
अ भ वा व ा भूता यभीवत यथास स.. (३)
हे अभीवत म ण! स वता दे व ने तु हारी वृ क है और सोम दे व ने तु ह समृ बनाया
है. हे म ण! सभी ा णय ने तु हारी वृ क है. जो तु ह धारण करता है, वह सभी
साधन से संप हो जाता है. (३)
अभीवत अ भभवः सप न यणो म णः.
रा ाय म ं ब यतां सप ने यः पराभुवे.. (४)
श ु क पराजय करने वाली एवं रा स का वनाश करने वाली अभीवत म ण रा
क समृ और श ु के वनाश के लए मेरे हाथ म बांधो. (४)
उदसौ सूय अगा ददं मामकं वचः.
यथाहं श ुहो ऽ सा यसप नः सप नहा.. (५)
आकाश मंडल म दखाई दे ने वाले एवं सभी ा णय के ेरक सूय दे व उ दत हो गए ह.
अपनी वजय क एवं श ु क पराजय क कामना करने वाली मेरी वेद पी वाणी भी
कट हो गई है. अभीवत म ण को धारण करने वाला म जस कार श ु को मारने वाला
बनूं, ऐसा सुयोग उप थत हो. म श ुर हत हो जाऊं. य द मेरा कोई श ु हो भी तो उसे म
परा जत क ं . (५)
सप न यणो वृषा भरा ो वषास हः.
यथाहमेषां वीराणां वराजा न जन य च.. (६)
हे म ण! म तु हारे भाव से श ु का नाशक, जा का पालक, अपने रा का
वामी एवं श ु को वश म करने वाला बनूं. म श ु सेना के वीर एवं उन क जा पर
शासन करने म समथ बनूं. (६)
सू -३० दे वता— व े दे व
व े दे वा वसवो र तेममुता द या जागृत यूयम मन्.
मेमं सना भ त वा यना भममं ापत् पौ षेयो वधो यः.. (१)
हे व े दे व! वसु एवं आ द य दे वो! द घ आयु क कामना करने वाले इस पु ष क
र ा करो एवं द घ आयु क कामना करने वाले इस पु ष के वषय म सावधान रहो. इस का
सजातीय अथवा वजातीय श ु इस के पास तक न आ सके. कोई भी इस क हसा करने म
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समथ न हो. (१)
ये वो दे वाः पतरो ये च पु ाः सचेतसो मे शृणुतेदमु म्.
सव यो वः प र ददा येतं व ये नं जरसे वहाथ.. (२)
हे दे वो! आप के जो पतर एवं पु ह , वे भी इस पु ष के वषय म क गई मेरी ाथना
पर यान द. द घ आयु क कामना करने वाले इस पु ष को म आप सब को स पता ं. इस
क वृ ाव था तक आप इस का क याण कर. (२)
ये दे वा द व ये पृ थ ां ये अ त र ओषधीषु पशु व व१ तः.
ते कृणुत जरसमायुर मै शतम यान् प र वृण ु मृ यून्.. (३)
जो दे व वग म एवं पृ वी पर नवास करते ह, वायु आ द जो दे व अंत र म गमन
करते ह तथा जो दे व ओष धय , पशु एवं जल म थत ह, वे सब दे व इस द घ आयु क
कामना करने वाले पु ष को वृ ाव था पयत आयु दान कर एवं इसे मृ यु से बचाएं. (३)
येषां याजा उत वानुयाजा तभागा अ ताद दे वाः.
येषां वः प च दशो वभ ा तान् वो अ मै स सदः कृणो म.. (४)
जस दे व के न म पंचयाग कए जाते ह, वह अ न दे व; जन दे व के न म बाद
वाले तीन य कए जाते ह, वह इं आ द दे व; जो ब ल का अपहरण करते ह, दशा के
वामी दे व ह, इन सब को एवं इन के अ त र जो दे व ह, उन को भी म इस द घ आयु चाहने
वाले पु ष के समीप बैठने के लए नयु करता ं. (४)
सू -३३ दे वता—जल
हर यवणाः शुचयः पावका यासु जातः स वता या व नः.
या अ नं गभ द धरे सुवणा ता न आपः शं योना भव तु.. (१)
सोने के रंग क शु अ नयां एवं स वता जन जल से उ प ए ह, बादल म थत
जन जल म व ुत पी अ न तथा सागर म थत जन जल म वाडवा न उ प ई है,
जन शोभन रंग वाले जल ने अ न को गभ के प म धारण कया है, वे जल हमारे लए
रोग नाशक और सुखकारक ह . (१)
यासां राजा व णो या त म ये स यानृते अवप यन् जनानाम्.
या अ नं गभ द धरे सुवणा ता न आपः शं योना भव तु.. (२)
राजा व ण जन जल के म य म थत हो कर मनु य के स य और अस य को जानते
ए चलते ह, जन शोभन वण वाले जल ने अ न को गभ के प म धारण कया है, वे जल
हमारे लए रोग के नाशक और सुखकारक ह . (२)
यासां दे वा द व कृ व त भ ं या अ त र े ब धा भव त.
या अ नं गभ द धरे सुवणा ता न आपः शं योना भव तु.. (३)
इं आ द दे व जन जल के सार प अमृत को ुलोक म भ ण करते ह तथा जो जल
अनेक कार से थत रहते ह, जन शोभन वण वाले जल ने अ न को गभ के प म धारण
कया है, वे जल हमारे लए रोग के नाशक और सुखकारक ह . (३)
शवेन मा च ुषा प यतापः शवया त वोप पृशत वचं मे.
घृत तः शुचयो याः पावका ता न आपः शं योना भव तु.. (४)
हे जल के अ भमानी दे व! मुझे सुखकर से दे खो तथा अपने क याणकारी शरीर से
मेरी दे ह का पश करो. जो जल अमृत को टपकाने वाले तथा प व करने वाले ह, वे हमारे
लए रोग वनाशक और सुखकारी ह . (४)
सू -३४ दे वता—मधु, वन प त
इयं वी माधुजाता मधुना वा खनाम स.
मधोर ध जाता स सा नो मधुमत कृ ध.. (१)
यह सामने वतमान लता मधुर रस से यु भू म म उ प ई है. म इसे मधुर प वाले
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फावड़े आ द क सहायता से खोदता ं. तू मुझ से उ प ई है. तू हम भी मधु रस से यु
बना. (१)
ज ाया अ े मधु मे ज ामूले मधूलकम्.
ममेदह तावसो मम च मुपाय स.. (२)
हे मधु लता! तू मेरी जीभ के अ भाग पर शहद के समान थत हो तथा जीभ क जड़
म मधु रस वाले मधु नामक जल वृ के फूल के प म वतमान रह. तू केवल मेरे शरीर
ापार म लग तथा मेरे च म आ. (२)
मधुम मे न मणं मधुम मे परायणम्.
वाचा वदा म मधुमद् भूयासं मधुस शः.. (३)
हे मधु लता! तु ह धारण करने से मेरा नकट गमन सर को स करने वाला हो तथा
मेरा र गमन सर को स करे. म वाणी से मधुयु हो कर तथा सम त काय के ारा
मधु के समान बन कर सब के ेम का पा बनूं. (३)
मधोर म मधुतरो म घा मधुम रः.
मा मत् कल वं वनाः शाखां मधुमती मव.. (४)
हे मधु लता! म तुझ से उ प होने वाले शहद से भी अ धक मधुर ं. म शहद टपकाने
वाले पदाथ से भी अ धक मधुर ं. तुम न य ही केवल मुझे उसी कार ा त हो जाओ,
जस कार शहद वाली डाल के पास लोग प ंच जाते ह. (४)
प र वा प रत नुने ुणागाम व षे.
यथा मां का म यसो यथा म ापगा असः.. (५)
हे प नी! म तुझे सभी ओर ा त एवं ईख के समान मधुर मधु के ारा आपस म ेम
के लए ा त आ ं. (५)
सू -३५ दे वता— हर य
यदाब नन् दा ायणा हर यं शतानीकाय सुमन यमानाः.
तत् ते ब ना यायुषे वचसे बलाय द घायु वाय शतशारदाय.. (१)
हे यजमान! द क संतान मह षय ने सौमन य को ा त हो कर राजा शतानीक के
लए जस नद ष वण को बांधा था, वही वण म तेरी द घ आयु, तेज, बल, एवं सौ वष क
आयु पाने के लए तुझे बांधता ं. (१)
नैनं र ां स न पशाचाः सह ते दे वानामोजः थमजं े ३ तत्.
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यो बभ त दा ायणं हर यं स जीवेषु कृणुते द घमायुः.. (२)
वण बंधे ए इस पु ष को रा स और पशाच परा जत नह कर सकते, य क यह
दे व का थम उ प आ ओज है. द पु से संबं धत इस वण को जो बांधता है, वह
ा णय के म य सौ वष क आयु ा त करता है. (२)
अपां तेजो यो तरोजो बलं च वन पतीनामुत वीया ण.
इ इवे या य ध धारयामो अ मन् तद् द माणो बभर र यम्..
(३)
म जल के तेज, यो त, ओज और बल तथा वन प तय का वीय उसी कार धारण
करता ,ं जस कार इं म इं य के असाधारण च वतमान ह. इसी लए वृ ात
करता आ यह पु ष हर य धारण करे. (३)
समानां मासामृतु भ ् वा वयं संव सर य पयसा पप म.
इ ा नी व े दे वा ते ऽ नु म य ताम णीयमानाः.. (४)
हे संप चाहने वाले पु ष! म तुझे संव सर क , महीन क , ऋतु क एवं काल
संबंधी ध क धार से पूण करता ं. इं और अ न तथा सम त दे व ोध न करते ए तुझे
संप ता क अनुम त द. (४)
सू -२ दे वता—गंधव अ सराएं
द ो ग धव भुवन य य प तरेक एव नम यो व वी ः.
तं वा यौ म णा द दे व नम ते अ तु द व ते सध थम्.. (१)
द सूय पृ वी आ द लोक का पालनकता है. सम त जा के ारा वही अकेला
नम कार करने एवं तु त के यो य है. हे द सूय दे व! म के प म आप क आराधना
करता ं. आप को मेरा नम कार है. आप का आवास वग म है. (१)
द व पृ ो यजतः सूय वगवयाता हरसो दै य.
मृडाद् ग धव भुवन य य प तरेक एव नम यः सुशेवाः.. (२)
आकाश म थत, य करने यो य, सूय के समान वण वाले एवं दे व संबंधी ोध को
न करने वाले गंधव हम सुखी बनाएं. वे पृ वी आ द लोक के वामी, एकमा नम कार
करने यो य एवं शोभन सुख दे ने वाले ह. (२)
अनव ा भः समु ज म आ भर सरा व प ग धव आसीत्.
समु आसां सदनं म आ यतः स आ च परा च य त.. (३)
सूय पी गंधव नदा के अयो य करण पी अ सरा से मल गया था. समु इन
अ सरा का नवास थान कहा गया है, जहां से ये सूय दय के साथ ही यहां आती ह और
सूया त के साथ चली जाती ह. (३)
अ ये द ु ये या व ावसुं ग धव सच वे.
ता यो वो दे वीनम इत् कृणो म.. (४)
हे आकाश म ज म लेने वाली, काशयु एवं न पणी करणो! तुम म से जो
व ावसु गंधव अथात् चं मा के साथ संयु होती ह, हे द करणो! म तु हारे लए
नम कार करता ं. (४)
याः ल दा त मषीचयो ऽ कामा मनोमुहः.
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ता यो ग धवप नी यो ऽ सरा यो ऽ करं नमः.. (५)
जो करण मनु य को लाने वाली, श संप , इं य को न य करने क इ छु क
एवं मन को मोहने वाली ह, उन गंधव प नी अ सरा को म नम कार करता ं. (५)
सू -४ दे वता—जं गड़ म ण
द घायु वाय बृहते रणाया र य तो द माणाः सदै व.
म ण व क ध षणं ज डं बभृमो वयम्.. (१)
हम द घ जीवन के लए तथा महान् रमणीय कम के लए रा स, पशाच आ द को
भगाने वाली इस म ण को धारण करते ह, जो वाराणसी म स जं गड़ वृ से बनती है.
इस के कारण हम ह सत न होते ए अपना पालन करते ह. (१)
ज डो ज भाद् वशराद् व क धाद् द अ भशोचनात्.
म णः सह वीयः प र णः पातु व तः.. (२)
असी मत साम य वाली जं गड़ म ण रा स के दांत ारा खाए जाने से, शरीर के
खंडखंड हो कर बखरने से, रोग आ द प व न से, उ चत अनु चत काय के सोच वचार से
एवं ज हाई आ द सब से हम बचाएं. (२)
अयं व क धं सहते ऽ यं बाधते अ णः.
अयं नो व भेषजो ज डः पा वंहसः.. (३)
जं गड़ वृ से न मत यह म ण सर को परा जत करती है, कृ या आ द भ क को
न करती है तथा सम त रोग क ओष ध है. यह जं गड़ म ण हम पाप से बचाए. (३)
दे वैद न
े म णना ज डेन मयोभुवा.
व क धं सवा र ां स ायामे सहामहे.. (४)
अ न आ द दे व के ारा द ई एवं सुख दे ने वाली जं गड़ म ण से हम व न करने
वाले सभी रा स को अपने घूमने फरने के दे श म परा जत करते ह. (४)
शण मा ज ड व क धाद भ र ताम्.
अर याद य आभृतः कृ या अ यो रसे यः.. (५)
म ण को बांधने वाले सू का कारण सन एवं यह जं गड़ म ण मुझ को व न से बचाएं.
इन म से एक अथात् जं गड़ म ण वन से लाई गई है और अ य अथात् कृ ष से संबं धत सन
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रस से लाया गया है. (५)
कृ या षरयं म णरथो अरा त षः.
अथो सह वान् ज ङ् गडः ण आयूं ष ता रषत्.. (६)
यह म ण सर के ारा कए गए जा टोने से उ प पीड़ा क नवारक एवं श ु को
न करने वाली है. श संप यह जं गड़ म ण हमारी आयु को बढ़ाए. (६)
सू -५ दे वता—इं
इ जुष व वहा या ह शूर ह र याम्.
पबा सुत य मते रह मधो कान ा मदाय.. (१)
हे परम ऐ य वाले इं ! तुम हम पर स हो जाओ एवं हम मनचाहा फल दान करो.
हे शूर इं ! अपने घोड़ क सहायता से तुम मेरे य म आओ तथा इस य म नचोड़े गए
सोमरस को पयो. यह सोमरस शंसनीय एवं मधुर है. पीने पर यह सोमरस तृ त और उ म
मादकता का कारण बनता है. (१)
इ जठरं न ो न पृण व मधो दवो न.
अ य सुत य व १ ण प वा मदाः सुवाचो अगुः.. (२)
हे इं ! तुम नवीन के समान सोमरस से अपना पेट उसी कार भर लो जस कार वग
के अमृत से पूण करते हो. इस नचोड़े गए सोमरस के मद से संबं धत उ म तु त तथा वग
के समान आनंद तु ह यहां भी ा त हो. (२)
इ तुराषा म ो वृ ं यो जघान यतीन.
बभेद वलं भृगुन ससहे श ून् मदे सोम य.. (३)
श ु वनाशक एवं सम त ा णय के म इं ने वृ रा स को आसुरी जा के
समान मार डाला. जस कार य करते ए अं गरा गो ीय भृगु के य का आधार गौ का
हरण करने वाले बल नामक असुर को मार डाला था, उसी कार इं ने वृ का हनन कया.
इं ने सोमरस के मद म श ु को परा जत कया. (३)
आ वा वश तु सुतास इ पृण व कु ी व श धये ा नः.
ुधी हवं गरो मे जुष वे वयु भम वेह महे रणाय.. (४)
हे इं ! नचोड़ा गया सोमरस तु हारे उदर म वेश करे. तुम इस से अपनी दोन कोख
को भर लो. तुम हमारा आ ान सुन कर यहां आओ तथा हमारी तु तयां सुनो एवं उ ह
वीकार करो. हे इं ! तुम इस य म अपने म म त् आ द दे व के साथ सोमरस पी कर
तृ त बनो तथा हमारे य कम को संप बनाओ. (४)
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इ य नु ा वोचं वीया ण या न चकार थमा न व ी.
अह हम वप ततद व णा अ भनत् पवतानाम्.. (५)
म व धारी इं के उन वीरता पूण काय का वणन करता ं जो उ ह ने पूव काल म
कए ह. उ ह ने वृ ासुर का हनन कया तथा उस के बाद उस के ारा रोके गए जल को
नकाल दया एवं पवत से नकलने वाली न दय को बहाया. (५)
अह ह पवते श याणं व ा मै व ं वय तत .
वा ा इव धेनवः य दमाना अ ः समु मव ज मुरापः.. (६)
पवत पर सोते ए इस वृ ासुर का इं ने वध कया. वृ के पता व ा ने इं के लए
सुगमता से चलाया जाने वाला तथा तेज धार वाला व बनाया. इस के बाद जल सागर क
ओर इस कार बहने लगा, जस कार रंभाती ई गाएं दौड़ती ह. (६)
वृषायमाणो अवृणीत सोमं क के व पबत् सुत य.
आ सायकं मघवाद व मह ेनं थमजामहीनाम्.. (७)
बैल के समान आचरण करते ए इं ने जाप त के पास से सोम पी अ ात
कया. उस ने तीन सोम याग म नचोड़े गए सोमरस का पान कया. इस के प ात इं ने
अपना श ुघातक व हाथ म लया एवं असुर म सव थम उ प ए वृ क ह या क . (७)
सू -६ दे वता—अ न
समा वा न ऋतवो वधय तु संव सरा ऋषयो या न स या.
सं द ेन द द ह रोचनेन व ा आ भा ह दश त ः.. (१)
हे अ न! संव सर, ऋ षगण एवं पृ वी आ द त व तु हारी वृ कर. इन सब के ारा
बढ़े ए तुम काश यु शरीर से द त बनो तथा पूव आ द चार दशा को और आ नेय
आ द चार व दशा अथात् दशा कोण को का शत करो. (१)
सं चे य वा ने च वधयेममु च त महते सौभगाय.
मा ते रष ुपस ारो अ ने ाण ते यशसः स तु मा ये.. (२)
हे अ न! तुम वयं द त बनो एवं इस यजमान क इ छाएं पूण करते ए इसे समृ
बनाओ एवं उस के सौभा य के हेतु उ सा हत बनो. तु हारे सेवक ऋ वज् आ द न न ह . हे
अ न! तु हारे ऋ वज् ा ण ही यश वी ह, अ य नह . (२)
वाम ने वृणते ा णा इमे शवो अ ने संवरणे भवा नः.
सप नहा ने अ भमा त जद् भव वे गये जागृ यु छन्.. (३)
सू -७ दे वता—वन प त
अघ ा दे वजाता वी छपथयोपनी.
आपो मल मव ाणै ीत् सवान् म छपथाँ अ ध.. (१)
पाप का वनाश करने वाली, दे व के ारा बनाई गई एवं पाप का नवारण करने वाली
वा मुझ से सभी पाप को इस कार धो कर र कर दे , जस कार पानी मैल को धो
डालता है. (१)
य साप नः शपथो जा याः शपथ यः.
ा य म युतः शपात् सव त ो अध पदम्.. (२)
े ष करने वाले श ु से संबं धत एवं बहन से संबं धत जो आ ोश है तथा ा ण ने
ो धत हो कर जो शाप दया है—ये तीन कार के शाप मेरे पैर के नीचे रह. (२)
दवो मूलमवततं पृ थ ा अ यु तम्.
तेन सह का डेन प र णः पा ह व तः.. (३)
हे म ण! हम वग क जड़ के समान व तृत एवं पृ वी के ऊपर व तृत असी मत पाप
से बचाओ और सभी कार से हमारी र ा करो. (३)
प र मां प र मे जां प र णः पा ह यद् धनम्.
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अरा तन मा तारी मा न ता रषुर भमातयः.. (४)
हे म ण! मेरी, मेरी संतान क एवं मेरे धन क र ा करो. श ु हमारा अ त मण न करे
अथात् हम परा जत न करे. हमारी ह या करने के इ छु क पशाच आ द हमारी हसा न कर.
(४)
श तारमेतु शपथो यः सुहा न नः सह.
च ुम य हादः पृ ीर प शृणीम स.. (५)
मुझे दया आ शाप उसी के पास लौट जाए, जस ने मुझे शाप दया है. जो पु ष
शोभन दय वाला है, उस म के साथ हम सुखी रह. हम चुगली करने वाले दय वाले
क आंख एवं पसली क हड् डी को न करते ह. (५)
सू -८ दे वता—य मा, कु आ द
उदगातां भगवती वचृतौ नाम तारके.
व े य य मु चतामधमं पाशमु मम्.. (१)
तेज वी एवं बंधन से छु ड़ाने वाले तारे उ दत ह . वे तारे पु , पौ आ द के शरीर म होने
वाले य मा, कु आ द रोग एवं उन के फंद से हम छु ड़ाएं जो हमारे शरीर के नीचे एवं ऊपर
के भाग म ह. (१)
अपेयं रा यु छ वपो छ व भकृ वरीः.
वी त् े यनाश यप े यमु छतु.. (२)
यह ातःकाल के समीप वाली रात उसी कार हमारे शरीर से ा धय को समा त
करे, जस कार काश के कारण अंधकार का वनाश होता है. रोग क शां त करते ए
आ द य दे व आएं. न त ओष ध भी रोग का वनाश करे. (२)
ब ोरजुनका ड य यव य ते पला या तल य तल प या.
वी त् े यनाश यप े यमु छतु.. (३)
मटमैले वण के अजुन वृ के काठ से, जौ क भूसी से एवं तल क मंजरी से न मत
म ण तेरा रोग र करे. े ीय ा धय , अ तसार, य मा आ द का वनाश करने वाली
ओष ध सम त रोग को र करे. (३)
नम ते ला ले यो नम ईषायुगे यः.
वी त् े यनाश यप े यमु छतु.. (४)
हे रोगी! तेरे रोग को शांत करने के लए म बैल जुते ए हल को एवं हरण तथा जुए
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को नम कार करता ं. े ीय ा धय अथात् अ तसार, य मा आ द रोग का वनाश करने
वाली ओष ध सम त रोग र करे. (४)
नमः स न सा े यो नमः संदे ये यः
नमः े य पतये वी त् े यनाश यप े यमु छतु.. (५)
ऐसे सूने घर को नम कार है, जन के ार एवं खड़क पी ने खुले ए ह. ऐसे
गड् ढ के लए नम कार है, जन क म नकाल द गई है. सूने घर आ द प े के प त
को नम कार है. े ीय ा धय अथात् अ तसार, य मा आ द रोग का वनाश करने वाली
ओष ध सभी रोग र करे. (५)
सू -९ दे वता—वन प त
दशवृ मु चेमं र सो ा ा अ ध यैनं ज ाह पवसु.
अथो एनं वन पते जीवानां लोकमु य.. (१)
हे ढाक, गूलर आ द दस वृ से बनी ई म ण! रा स और रा सी से पकड़े ए
इस पु ष को छु ड़ाओ. उस रा सी ने इसे शरीर के जोड़ म पकड़ा आ है. हे वन प त
से न मत म ण! तू इसे जी वत ा णय के लोक म प ंचा अथात् इसे पुनः जी वत कर. (१)
आगा दगादयं जीवानां ातम यगात्.
अभू पु ाणां पता नृणां च भगव मः.. (२)
हे म ण! तेरे भाव से यह पु ष गृह से यु हो कर इस लोक म आ गया है. इस ने
जी वत मनु य के समूह को ा त कर लया है. यह पु का पता बन गया है तथा इस ने
मनु य के म य अ तशय भा य पा लया है. (२)
अधीतीर यगादयम ध जीवपुरा अगन्.
शतं य भषजः सह मुत वी धः.. (३)
ह से छू टा आ यह पु ष पूव म अ ययन कए गए वेद आ द शा को मरण
करे तथा जीव के आवास थान को जाने, य क ह से गृहीत इस पु ष क च क सा
करने वाले सौ वै ह और हजार जड़ीबू टयां ह. (३)
दे वा ते ची तम वदन् ाण उत वी धः.
ची त ते व े दे वा अ वदन् भू याम ध.. (४)
हे म ण! ह वकार से रोगी को छु ड़ाने से तेरे भाव को इं आ द दे व जानते ह.
ा ण एवं वृ भी तेरे इस भाव को जानते ह. हे रोगी! तुझ मू छत को चेतना ा त होने
क बात धरती पर सभी दे व जानते ह. (४)
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य कार स न करत् स एव सु भष मः.
स एव तु यं भेषजा न कृणवद् भषजा शु चः.. (५)
वधान को जानने वाले जस मह ष ने इस म ण का बंधन कया है, वह ह वकार को
शांत करे. वही वै म सव म है. नमल ान वाले वे ही वै तेरे लए ओष धय का नमाण
कर. (५)
सू -१५ दे वता— ाण
यथा ौ पृ थवी च न बभीतो न र यतः. एवा मे ाण मा बभेः.. (१)
जस कार ौ और पृ वी न कसी से भयभीत और आशं कत होते ह और न न होते
ह, हे मेरे ाणो! उसी कार तुम भी श ,ु ह, रोग आ द से मत डरो. (१)
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यथाह रा ी च न बभीतो न र यतः. एवा मे ाण मा बभेः.. (२)
जस कार दन और रात न कसी से भयभीत और आशं कत होते ह तथा न न होते
ह, हे मेरे ाणो! उसी कार तुम भी श ु, ह, रोग आ द से मत डरो. (२)
यथा सूय च न बभीतो न र यतः. एवा मे ाण मा बभेः.. (३)
जस कार सूय और चं न कसी से भयभीत होते ह, न आशं कत होते ह और न न
होते ह, हे मेरे ाणो! इसी कार तुम भी श ु, ह, रोग आ द से डरो मत. (३)
यथा च ं च न बभीतो न र यतः. एवा मे ाण मा बभेः.. (४)
सू -१७ दे वता—ओज आ द
ओजो ऽ योजो मे दाः वाहा.. (१)
हे अ न! तुम ओज हो. इसी लए मुझ म ओज धारण करो. यह ह व भलीभां त हवन
कया आ हो. (१)
सहो ऽ स सहो मे दाः वाहा.. (२)
हे अ न! तुम श ु को परा जत करने म समथ तेज हो, इसी लए तुम मुझे तेज दान
करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (२)
बलम स बलं मे दाः वाहा.. (३)
हे अ न! तुम बल हो, इसी लए मुझे बल दान करो. यह ह व भलीभां त हवन कया
आ हो. (३)
आयुर यायुम दाः वाहा.. (४)
हे अ न दे व! तुम आयु हो, इसी लए मुझे आयु दान करो. यह ह व भलीभां त हवन
कया आ हो. (४)
ो म स ो ं मे दाः वाहा.. (५)
हे अ न दे व! तुम ो हो, इसी लए मुझे ो अथात् सुनने क श दान करो. यह
ह व भलीभां त हवन कया आ हो. (५)
च ुर स च ुम दाः वाहा.. (६)
सू -१८ दे वता—अ न
ातृ यणम स ातृ चातनं मे दाः वाहा.. (१)
हे अ न दे व! तुम मांस भ ण करने वाले पशाच का नाश करने वाले हो, इसी लए
मुझे भी पशाच का वनाश करने क श दान करो. यह ह व भलीभां त हवन कया
आ हो. (४)
सदा वा यणम स सदा वाचातनं मे दाः वाहा.. (५)
हे अ न दे व! तुम आ ोश करने वाली पशा चय का वनाश करने वाले हो, इसी लए
मुझे भी पशा चय के वनाश क श दान करो. यह ह व भलीभां त हवन कया आ हो.
(५)
सू -१९ दे वता—अ न
सू -२० दे वता—वायु
वायो यत् ते तप तेन तं त तप यो ३ मान् े यं वयं मः.. (१)
हे वायु दे व! तु हारी जो संताप प च
ं ाने क श है, उस से उ ह संताप प ंचाओ जो
हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (१)
वायो यत् ते हर तेन तं त हर यो ३ मान् े यं वयं मः.. (२)
हे वायु दे व! तु हारी जो छ नने क श है, उस का योग उन लोग के त करो जो
हम से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (२)
वायो यत् ते ऽ च तेन तं यच यो ३ मान् े यं वयं मः.. (३)
हे वायु दे व! तु हारा जो वेग है, उस का योग उन के त करो जो हम से े ष रखते ह
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अथवा हम जन से े ष रखते ह. (३)
वायो यत् ते शो च तेन तं त शोच यो ३ मान् े यं वयं मः.. (४)
सू -२१ दे वता—सूय
सूय यत् ते तप तेन तं त तप यो ३ मान् े यं वयं मः.. (१)
हे सूय दे व! आप क जो त त करने क श है, उस से उ ह संताप प ंचाओ, जो हम
से े ष करते ह अथवा हम जन से े ष करते ह. (१)
सूय यत् ते हर तेन तं त हर यो ३ मान् े यं वयं मः.. (२)
हे सूय दे व! आप क जो सुख, शां त एवं श हरण करने वाली श है, उस से उन
लोग क सुख, शां त एवं श का हरण करो जो हम से े ष करते ह अथवा हम जन से
े ष करते ह. (२)
सूय यत् ते ऽ च तेन तं यच यो ३ मान् े यं वयं मः.. (३)
सू -२४ दे वता—आयुध
शेरभक शेरभ पुनव य तु यातवः पुनह तः कमी दनः.
य य थ तम यो वः ाहैत् तम वा मांसा य .. (१)
हे रा स के गांव के मु खया और रा स के वामी! तुम ने हमारी ओर जो द र ता
दान करने वाली रा सी भेजी है तथा जो रा स भेजे ह, वे हमारी ओर से लौट जाएं. तु हारे
जो आयुध ह, वे भी लौट जाएं. तु हारे अनुचर चोर भी लौट जाएं. तुम हमारे जस श ु के हो,
उसी के पास चले जाओ तथा उसे खा डालो. जस योग करने वाले ने तु ह मेरे पास भेजा
है. तुम उसी को खाओ. तुम उसी का मांस भ ण करो. (१)
शेवृधक शेवृध पुनव य तु यातवः पुनह तः कमी दनः.
य य थ तम यो वः ाहैत् तम वा मांसा य .. (२)
हे अपने आ त का सुख बढ़ाने वाले एवं गांव के मु खया के वामी! तुम ने हमारी
ओर जो द र ता दान करने वाली रा सी भेजी है तथा जो रा स भेजे ह, वे हमारी ओर से
लौट जाएं. तु हारे जो आयुध ह वे भी लौट जाएं. तु हारे अनुचर चोर भी लौट जाएं. तुम
हमारे जस श ु के हो, उसी के पास चले जाओ तथा उसे खा डालो. जस योग करने वाले
ने तु ह मेरे पास भेजा है, तुम उसी को खाओ. तुम उसी का मांस भ ण करो. (२)
ोकानु ोक पुनव य तु यातवः पुनह तः कमी दनः.
य य थ तम यो वः ाहैत् तम वा मांसा य .. (३)
हे धन आ द छ न कर छपे प म चलने वाले एवं उस का अनुसरण करने वाले चोरो!
सू -२५ दे वता—पृ पण
शं नो दे वी पृ प यशं नऋ या अकः.
उ ा ह क वज भनी तामभ सह वतीम्.. (१)
चमकती ई पृ पण नाम क जड़ीबूट हम सुख दान करे तथा रोग उ प करने
वाली पाप दे वता नऋ त को ःख दे . म ने अ य धक श शाली, पापना शनी एवं रोग को
परा जत करने वाली जड़ी पृ पण को खाया है. (१)
सहमानेयं थमा पृ प यजायत.
तयाहं णा नां शरो वृ ा म शकुने रव.. (२)
रोग को परा जत करने वाली पृ पण सभी जड़ीबू टय म मुख बन कर उ प ई
है. इस के ारा म दाद, खुजली, कोढ़ आ द रोग के कारण को इस कार समा त करता ,ं
जस कार खड् ग से प ी का सर काटा जाता है. (२)
अरायमसृ पावानं य फा त जहीष त.
गभादं क वं नाशय पृ प ण सह व च.. (३)
हे पृ पण नामक जड़ी! मेरे शरीर के र को गराने वाले कु आ द रोग को, शरीर
वृ को रोकने वाले सं हणी आ द रोग को तथा गभ को न करने वाले रोग के उ पादक
क व नामक पाप को न करो एवं मेरे श ु को परा जत करो. (३)
ग रमेनाँ आ वेशय क वान् जी वतयोपनान्.
तां वं दे व पृ प य न रवानुदह ह.. (४)
हे पृ पण नाम क बूट ! ाण का नाश करने वाले एवं कु आ द रोग को उ प
करने वाले पाप क व को पवत क गुफा म घुसा दो. जस कार अ न वन म रहने वाले
पशु को जला दे ती है, उसी कार तू पवत क गुफा म घुसे ए पाप को जलाती ई जा.
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(४)
पराच एनान् णुद क वान् जी वतयोपनान्.
तमां स य ग छ त तत् ादो अजीगमम्.. (५)
हे पृ पण ! ाण का नाश करने वाले एवं कोढ़ आ द रोग को उ प करने वाले
क व नामक पाप को पीछे क ओर जाने को ववश कर. म भी कु आ द रोग को वहां
भेजता ं, जहां सूय दय के बाद अंधकार चला जाता है. (५)
सू -२६ दे वता—पशुगण
एह य तु पशवो ये परेयुवायुयषां सहचारं जुजोष.
व ा येषां पधेया न वेदा मन् तान् गो े स वता न य छतु.. (१)
जो पशु कभी न लौटने के लए चले गए ह, वे मेरी इस गोशाला म आ जाएं. वायु जन
क र ा के लए साथ चलती है एवं व ा जन के गभाशय के बछड़ का प जानते ह, उन
सम त पशु को स वता दे व इस गोशाला म इस कार था पत कर क वे कभी न भाग.
(१)
इमं गो ं पशवः सं व तु बृह प तरा नयतु जानन्.
सनीवाली नय वा मेषामाज मुषो अनुमते न य छ.. (२)
गाय आ द पशु मेरी इस गोशाला म आएं. उ ह यहां लाने का ढं ग जानते ए बृह प त
दे व उ ह यहां लाएं. हे सनीवाली अथात् पू णमा और अमाव या क दे वयो! तुम इन पशु
के पीछे चलती हो. तुम गोशाला म आए ए इन पशु को रोको. (२)
सं सं व तु पशवः समा ाः समु पू षाः.
सं धा य य या फा तः सं ा ण ह वषा जुहो म.. (३)
गाय आ द पशु, घोड़े, सेवक आ द पु ष तथा गे ,ं जौ आ द अ क वृ मेरे पास
आए. इस के न म म घृत से हवन करता ं. (३)
सं स चा म गवां ीरं समा येन बलं रसम्.
सं स ा अ माकं वीरा ुवा गावो म य गोपतौ.. (४)
म पहली बार ब चा दे ने वाली गाय के ताजा ध म घी मलाता ं तथा घी म श दे ने
वाला अ और जल मलाता ं. मेरे पु , पौ आ द घी से शरीर चुपड़ कर ढ़ गा वाले
बन. इस के न म मुझ गो वामी के पास गाएं थत रह. (४)
आ हरा म गवां ीरमाहाष धा यं १ रसम्.
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आ ता अ माकं वीरा आ प नी रदम तकम्.. (५)
म गाय का ध लाता ं तथा अ एवं जल भी लाता ं. म पु , पौ एवं प नी को ले
आया ं. इन सब से मेरा घर पूण रहे. (५)
सू -२७ दे वता—ओष ध, इं ,
ने छ ःु ाशं जया त सहमाना भभूर स.
ाशं त ाशो ज रसान् कृ वोषधे.. (१)
हे वारपाठा नामक जड़ी! तु हारा सेवन करने वाले व ा को उस का वरोधी न जीत
सके. तु हारा वभाव श ु को सहन करने का है, इसी लए तुम तवाद को परा जत कर
दे ती हो. मुझ पूछने वाले से जो वरोधी त पूछते ह, उन को तुम परा जत करो. हे
ओष ध! मेरे वरोधी व ा का गला सुखा दो, जस से वे बोल न सक. (१)
सुपण वा व व दत् सूकर वाखन सा.
ाशं त ाशो ज रसान् कृ वोषधे.. (२)
हे वारपाठा नामक जड़ी! सुंदर पंख वाले ग ड़ ने वष र करने के लए तु ह खोज
कर ा त कया था. आ द वाराह ने अपनी थूथन से तु ह खोदा था. मुझ पूछने वाले से
जो वरोधी त पूछते ह, उ ह तुम परा जत करो. हे ओष ध! मेरे वरोधी व ा का
गला सुखा दो, जस से वे बोल न सक. (२)
इ ो ह च े वा बाहावसुरे य तरीतवे.
ाशं त ाशो ज रसान् कृ वोषधे.. (३)
हे वारापाठा नामक जड़ी! इं ने असुर क हसा करने के लए तु ह अपनी भुजा
म धारण कया था. मुझ पूछने वाले से जो वरोधी त पूछते ह, उ ह तुम परा जत
करो तथा मेरे वरोधी व ा का गला सुखा दो, जस से वे बोल न सक. (३)
पाटा म ो ा ादसुरे य तरीतवे.
ाशं त ाशो ज रसान् कृ वोषधे.. (४)
इं ने असुर क हसा करने के लए वारपाठा नाम क जड़ी को खाया था. हे
वारपाठा! मुझ पूछने वाले से जो वरोधी त पूछते ह, उ ह तुम परा जत करो तथा
मेरे वरोधी व ा का गला सुखा दो, जस से बोल न सक. (४)
तयाहं श ू सा इ ः सालावृकाँ इव.
ाशं त ाशो ज रसान् कृ वोषधे.. (५)
सू -३१ दे वता—मही
इ य या मही षत् मे व य तहणी.
तया पन म सं मीन् षदा ख वाँ इव.. (१)
सभी क ड़ को मारने वाली जो इं क शला है, उसी शला के ारा म शरीर के भीतर
थत क टाणु को उसी कार मारता ं, जस कार सलबट् टे से चने पीसे जाते ह. (१)
सू -३२ दे वता—आ द य
उ ा द यः मीन् ह तु न ोचन् ह तु र म भः.
ये अ त मयो ग वः.. (१)
उदय होते ए तथा अ त होते ए सूय अपनी फैलने वाली करण के ारा उन
क टाणु का वनाश करे जो गाय के शरीर के भीतर थत ह. (१)
व पं चतुर ं म सार मजुनम्.
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शृणा य य पृ ीर प वृ ा म य छरः.. (२)
म नाना आकार वाले, चार आंख वाले, चतकबरे रंग के एवं धवल वण के क टाणु
का वनाश करता ं. म उन क टाणु क पीठ और शीश का भी वनाश करता ं. (२)
अ वद् वः मयो ह म क वव जमद नवत्.
अग य य णा सं पन यहं मीन्ः.. (३)
हे क टाणुओ! म तु ह उसी कार पुनः उ प न होने के लए न करता ं, जस
कार अ न, क व और जमद न ऋ ष ने मं क श से तु हारा वनाश कया था. म
अग य ऋ ष के मं ारा सभी क टाणु का वनाश करता ं. (३)
हतो राजा मीणामुतैषां थप तहतः.
हतो हतमाता महत ाता हत वसा.. (४)
क टाणु का राजा मारा गया एवं इन का स चव भी मारा गया. जन क टाणु क
माता, भाई और बहन भी मारी गई थ , वे न हो गए. (४)
हतासो अ य वेशसो हतासः प रवेशसः.
अथो ये ु लका इव सव ते मयो हताः.. (५)
इन क टाणु के कुल के नवास थान न हो गए एवं इन के घर के आसपास के घर
भी न हो गए. इस के अ त र जो क टाणु बीज अव था म थे, वे भी न हो गए. (५)
ते शृणा म शृ े या यां वतुदाय स.
भन द्म ते कुषु भं य ते वषधानः.. (६)
हे क टाणु! म तेरे उन स ग को तोड़ता ं, जन के ारा तू था प ंचाता है. म तेरे
कुषुंभ नामक अंग वशेष को भी वद ण करता ं जो वष को धारण करने वाला है. (६)
सू -३६ दे वता—अ न आ द
आ नो अ ने सुम त संभलो गमे दमां कुमार सह नो भगेन.
जु ा वरेषु समनेषु व गुरोषं प या सौभगम व यै.. (१)
हे अ न दे व! हमारी मा यता के अनुसार, सव ल ण से यु एवं क या चाहने वाला
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वर हम ा त हो तथा सौभा य के कारण हमारी इस कुमारी को वर ा त हो, यह कुमारी
समान दय वाले वर को पा कर वयं स हो और उसे भी स करे. प त के साथ नवास
थान इस के लए सौभा यदायक हो. (१)
सोमजु ं जु मय णा संभृतं भगम्.
धातुदव य स येन कृणो म प तवेदनम्.. (२)
सोमदे व के ारा से वत, से अथवा गंधव से यु , ववाह क अ न से वीकृत
क या पी भा य को दे व क आ ा के अनुसार यथाथ वचन से म मनु य अथात् वर को
ा त कराता ं. (२)
इयम ने नारी प त वदे सोमो ह राजा सुभगां कृणो त.
सुवाना पु ान् म हषी भवा त ग वा प त सुभगा व राजतु.. (३)
हमारी यह क या प त को ा त करे, जस से सोम राजा इसे सौभा यशा लनी बनाएं.
ववाह के प ात यह पु को ज म दे ती ई े प नी स हो. इस कार यह प त को पा
कर सौभा ययु एवं सुशो भत हो. (३)
यथाखरो मघवं ा रेष यो मृगाणां सुषदा बभूव.
एवा भग य जु ेयम तु नारी स या प या वराधय ती.. (४)
जस कार शंसनीय भो य पदाथ से यु , शोभन एवं पशु के आवास वाला यह
दे श य एवं सुखद होता है, उसी कार यह क या प त के साथ स ता दे ने वाली व तुएं
बनाती ई सुख समृ ा त करे. (४)
भग य नावमा रोह पूणामनुपद वतीम्.
तयोप तारय यो वरः तका यः.. (५)
हे क या! तू भा य के साधन से पूण एवं वनाशर हत नाव पर सवार हो. इस नाव के
सहारे तू अपने मनचाहे प त को ा त कर. (५)
आ दय धनपते वरमामनसं कृणु.
सव द णं कृणु यो वरः तका यः.. (६)
हे धनप त कुबेर! प त के ारा यह कहलवाओ क यह क या मेरी प नी बने. इस वर
को क या क ओर अ भमुख करो तथा सभी ा णय को इस के ववाह के अनुकूल काय
करने वाला बनाओ. यह क या अपना मनचाहा प त ा त करे. (६)
इदं हर यं गु गु वयमौ ो अथो भगः.
एते प त य वाम ः तकामाय वे वे.. (७)
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सोने के आभूषण, धूपन का गूगल, लेपन का तथा औ अलंकार के
अ ध ाता दे व भग ने तुझे गंधव तथा अ न ारा अ भल षत प त को ा त करने के हेतु दए
ह. (७)
आ ते नयतु स वता नयतु प तयः तका यः.
वम यै धे ोषधे.. (८)
हे क या! सब के ेरक स वता दे व तेरे लए मनचाहे वर को लाएं. वह भी तुझ से
ववाह कर के तुझे अपने घर ले जाए. हे जड़ीबूट ! तुम इस कुमारी के लए प त दान करो.
(८)
सू -२ दे वता—अ न, इं आ द
अ नन तः येतु व ान् तदह भश तमरा तम्.
स च ा न मोहयतु परेषां नह तां कृणव जातवेदाः.. (१)
सब कुछ जानने वाले और दे व त अ न हमारे श ु को जला डाल और सामने क
ओर से आते ए हसक श ु के मन को ककत वमूढ़ कर द. जातवेद अ न उ ह इस
यो य न रख क वे हाथ से श उठा सक. (१)
अयम नरमूमुहद् या न च ा न वो द.
व वो धम वोकसः वो धमतु सवतः.. (२)
हे श ुओ! तु हारे दय म जो हम पर आ मण करने संबंधी वचार ह, उ ह समा त
करते ए अ न दे व तु हारे दय को मो हत कर. वे तु ह तु हारे नवास से पूरी तरह नकाल
द एवं तु हारे थान को न कर द. (२)
इ च ा न मोहय वाङाकू या चर.
अ नेवात य ा या तान् वषूचो व नाशय.. (३)
हे इं ! तुम हमारे श ु के दय को मत करते ए एवं अपने मन म उ ह न करने
का संक प लए ए श ुसै य के सामने जाओ. तुम अ न और वायु के सहयोग से भ म
करने हेतु वकराल बनी ई अपनी ग त से श ु सेना को यु से मुंह मोड़ कर भागने पर
ववश कर के न कर दो. (३)
ाकूतय एषा मताथो च ा न मु त.
अथो यद ैषां द तदे षां प र नज ह.. (४)
हे व संक पो! तुम श ु के दय म जाओ. हे श ु के दयो! तुम मत हो
जाओ. यु करने के लए उ त हमारे श ु के दय म जो काय करने क इ छा है, उसे
पूण प से न कर दो. (४)
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अमीषां च ा न तमोहय ती गृहाणा ा य वे परे ह.
अ भ े ह नदह सु शोकै ा ा म ां तमसा व य श ून्.. (५)
हे सुख और ाण को न करने वाली अ या नाम क पापदे वी! तुम हमारे श ु के
दय को मत करती ई उन के शरीर म ा त हो जाओ. तुम हम से मुंह मोड़ कर हमारे
श ु क ओर जाओ और रोग, भय आ द से उ प शोक से उन के दय को संत त करो.
तुम अ ान प पशाची के सहयोग से हमारा अ हत चाहने वाले श ु को मार डालो. (५)
असौ या सेना म त्ः परेषाम मानै य योजसा पधमाना.
तां व यत तमसाप तेन यथैषाम यो अ यं न जानात्.. (६)
हे म तो! श ु क यह सेना अपने बल क अ धकता के कारण हमारे साथ संघष
करती ई हमारी ओर आ रही है. इसे अपने ारा े रत माया से कत ान शू य बना करके
न कर दो. इन श ु को ऐसा बना दो क इन म से कोई भी एक सरे को न पहचान सके.
(६)
सू -३ दे वता—अ न
अ च दत् वपा इह भुवद ने च व रोदसी उ ची.
यु तु वा म तो व वेदस आमुं नय नमसा रातह म्.. (१)
हे अ न! अपने रा य से युत आ यह राजा पुनः रा य पाने के लए तु हारी ाथना
कर रहा है. तु हारी कृपा से यह अपने रा य म जा का पालक बने. हे ापनशील
अ न! इस के न म तुम धरती और आकाश म ा त हो जाओ. व े दे व और उनचास
म त् तु हारी सहायता कर. तु ह नम कार करने वाले एवं ह व दे ने वाले इस राजा को इस का
रा य पुनः ा त कराओ. (१)
रे चत् स तम षास इ मा यावय तु स याय व म्.
यद् गाय बृहतीमकम मै सौ ाम या दधृष त दे वाः.. (२)
हे ऋ वजो! आप लोग वग म नवास करने वाले मेधावी इं को राजा क सहायता
करने हेतु बुलाएं. दे व ने गाय ी और बृहती छं द तथा इं संबंधी सौ ामणी य के ारा इं
को अ तशय श शाली बना दया है. (२)
अ य वा राजा व णो यतु सोम वा यतु पवते यः.
इ वा यतु वड् य आ यः येनो भू वा वश आ पतेमाः.. (३)
हे राजन्! आप का रा य श ु ने छ न लया है. आप को आप के रा य पर था पत
करने के लए व ण अपने से संबं धत जल से, सोम अपने आ य थान पवत से तथा इं
सू -४ दे वता—इं
आ वा गन् रा ं सह वचसो द ह ाङ् वशां प तरेकराट् वं व राज.
सवा वा राजन् दशो य तूपस ो नम यो भवेह.. (१)
हे राजन्! आप का रा य आप को पुनः ा त हो गया. इस कारण आप तेज के साथ
पुनः स ह तथा जापालक और श ु वनाशक बन. सभी दशा के दे व और उन म
नवास करने वाले जाजन आप को अपना वामी वीकार कर. आप के रा य के सभी
नवासी आप क सेवा कर और आप का अ भवादन कर. (१)
वां वशो वृणतां रा याय वा ममाः दशः प च दे वीः.
व मन् रा य ककु द य व ततो न उ ो व भजा वसू न.. (२)
हे राजन्! जाएं रा य शासन के लए आप का वरण कर. पूव आ द चार और
म यवत पांचव दशा आप के लए तेज वनी बन कर आप का वरण करे. आप अपने दे श
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के उ च सहासन पर वराजमान ह . उस के प ात आप श ु से अपरा जत रहते ए हम
सेवक को यथायो य धन दान कर. (२)
अ छ वा य तु ह वनः सजाता अ न तो अ जरः सं चरातै.
जायाः पु ाः सुमनसो भव तु ब ं ब ल त प यासा उ ः.. (३)
हे राजन्! आप के सजातीय अ य राजा आप के बुलाने पर आएं. आप का त अ न
के समान नबाध हो कर सव वचरण करे. आप क प नयां तथा पु आप क पुनः रा य
ा त से स ह . आप पया त श शाली बन कर अनेक कार के उपायन अथात् भट म
आई ई व तुएं अपने सामने आई दे ख. (३)
अ ना वा े म ाव णोभा व े दे वा म त् वा य तु.
अधा मनो वसुदेयाय कृणु व ततो न उ ो व भजा वसू न.. (४)
हे राजन्! अ नीकुमार, दोन म -व ण, व े दे व एवं म त् आप को रा य म वेश
करने के लए बुलाएं. आप अपना मन, धन दान करने म लगाएं. इस के प ात आप श ु
से अपरा जत रहते ए हम सेवक को यथायो य धन दान कर. (४)
आ व परम याः परावतः शवे ते ावापृ थवी उभे ताम्.
तदयं राजा व णा तथाह स वायम त् स उपेदमे ह.. (५)
हे रदे श म थत राजन्! र दे श से अपने रा य म शी आइए. अपने रा य म वेश
के समय धरती और आकाश दोन आप के लए मंगलकारी बन. व ण आप को बुला रहे ह.
आप अपने रा म आओ. (५)
इ े मनु या ३: परे ह सं ा था व णैः सं वदानः.
स वायम त् वे सध थे स दे वान् य त् स उ क पयाद् वशः.. (६)
हे परम ऐ य संप इं ! हम मनु य के समीप आओ. हे राजन्! व ण के साथ एकमत
हो कर इं आप को बुला रहे ह, इस लए आप अपने रा य म वेश कर एवं वहां रह कर इं
आ द दे व के न म य कर तथा जा को अपनेअपने काम म लगाएं. (६)
प या रेवतीब धा व पाः सवाः स य वरीय ते अ न्.
ता वा सवाः सं वदाना य तु दशमीमु ः समुना वशेह.. (७)
धनवती एवं माग म हतका रणी दे वयां आप का क याण कर. हे राजन्! अनेक प
वाली जल दे वयां एक हो कर आप के लए ेय कर बन एवं एकमत हो कर आप को आप
के रा म बुलाएं. वहां आप सश और स रह कर सौ वष का जीवन भोग. (७)
सू -६ दे वता—अ थ
पुमान् पुंसः प रजातो ऽ थः ख दराद ध.
स ह तु श ून् मामकान् यानहं े म ये च माम्.. (१)
अ यंत श संप वृ पीपल से तथा गाय ी के सार से उ प सहयोग से न मत
अ थ म ण धारण करने पर मेरे उन श ु का वनाश कर, जन से म े ष करता ं और
जो मुझ से े ष करते ह. (१)
तान थ नः शृणी ह श ून् वैबाधदोधतः.
इ े ण वृ ना मेद म ेण व णेन च.. (२)
हे ख दर वृ म उ प पीपल से न मत अ थम ण! तू मेरे श ु का पूण प से
नाश कर दे . वृ का नाश करने वाले इं और व ण के साथ तेरी म ता है. (२)
यथा थ नरभनो ऽ तमह यणवे.
एवा ता सवा भङ् ध यानहं े म ये च माम्.. (३)
हे म ण के उपादानकारण अ थ! तुम जस कार, ख दर वृ के कोटर को भेद कर
उ प ए हो, उसी कार मेरे सभी श ु का वनाश कर दो. (३)
यः सहमान र स सासहान इव ऋषभः.
तेना थ वया वयं सप ना स हषीम ह.. (४)
पीपल उसी कार सरे वृ को परा जत करता आ बढ़ता है, जस कार बैल अपने
सू -७ दे वता—ह रण आ द
ह रण य रघु यदो ऽ ध शीष ण भेषजम्.
स े यं वषाणया वषूचीनमनीनशत्.. (१)
तेज दौड़ने वाले काले ह रण के सर म जो स ग पी रोग नवारक ओष ध है, वह
माता पता से आए ए य, कु , मरगी आ द का पूणतया नाश करे. (१)
अनु वा ह रणो वृषा प तु भर मीत्.
वषाणे व य गु पतं यद य े यं द.. (२)
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हे मृगशृंग! तु ह े ीय रोग का वनाश करने के लए म ने म ण के प म धारण
कया है. इस रोगी के दय म जो रोग बसे ए ह, तुम उन का वनाश करो. (२)
अदो यदवरोचते चतु प मव छ दः.
तेना ते सव े यम े यो नाशयाम स.. (३)
यह चार कोन वाला मृगचम चौकोरी चटाई के समान सुशो भत हो रहा है. हे रोगी! इस
के ारा म तेरे य, कु आ द रोग का नाश करता ं. (३)
अमू ये द व सुभगे वचृतौ नाम तारके.
व े य य मु चतामधमं पाशमु मम्.. (४)
आकाश म थत वचृत नामक दो तारे य, कु , मरगी आ द े ीय रोग का वनाश
कर. (४)
आप इद् वा उ भेषजीरापो अमीवचातनीः.
आपो व य भेषजी ता वा मु च तु े यात्.. (५)
जल ही ओष ध है. जल ही सब रोग का नाश करने वाला है. जल कसी एक रोग क
नह , सम त रोग क ओष ध है. हे रोगी! जल तुझे य, कु , मरगी आ द े ीय रोग से
छु ड़ाएं. (५)
यदासुतेः यमाणायाः े यं वा ानशे.
वेदाहं त थ भेषजं े यं नाशया म वत्.. (६)
हे रोगी! अ का यथा व ध उपयोग न करने के कारण तेरे शरीर म जो य, कु ,
मरगी आ द े ीय रोग उ प हो गए ह, म च क सक उन क जौ आ द के प म ओष ध
जानता ं. उस ओष ध के ारा म तेरे े ीय रोग का वनाश करता ं. (६)
अपवासे न ाणामपवास उषसामुत.
अपा मत् सव भूतमप े यमु छतु.. (७)
तार के छपने के समय अथात् उषाकाल से पूव और उषाकाल के समय कए गए
नान आ द न य कम के भाव से रोग का कारण र हो जाए. इस के प ात हमारे य,
कु , मरगी आ द े ीय रोग न हो जाएं. (७)
सू -८ दे वता— म आ द व े दे व
आ यातु म ऋतु भः क पमानः संवेशयन् पृ थवीमु या भः.
अथा म यं व णो वायुर नबृहद् रा ं संवे यं दधातु.. (१)
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मृ यु से र ा करने म समथ और म वत् सब के उपकारी म दे वता अथात् सूय वसंत
आ द ऋतु के ारा हमारी आयु को द घ करने म समथ ह . वे अपनी करण से पृ वी को
ा त कर. सूय दे व के आगमन के प ात व ण, वायु और अ न हम शासन करने यो य
वशाल रा य दान कराएं (१)
धाता रा तः स वतेदं जुष ता म व ा त हय तु मे वचः.
वे दे वीम द त शूरपु ां सजातानां म यमे ा यथासा न.. (२)
सब के वधाता धाता दे व, दानशील अयमा और सब के ेरक स वता दे व मेरी ह व
हण कर. इन के साथसाथ इं और व ा दे व भी मेरी तु तयां सुन. म वीर पु क माता
अ द त का आ ान करता ं, जस से म अपने समान य म स मान पा सकूं. (२)
वे सोमं स वतारं नमो भ व ाना द याँ अहमु र वे.
अयम नद दायद् द घमेव सजातै र ो ऽ त ुव ः.. (३)
म यजमान को े पद ा त करने के लए सोम का, स वता का तथा सम त अ द त
पु का नम कारा मक मं के ारा आ ान करता ं. सब के आधारभूत अ न दे व अपनी
द त बढ़ाएं. म अपने अनुकूलवत बंधु बांधव के साथ चरकाल तक े ता ा त क ं .
(३)
इहेदसाथ न परो गमाथेय गोपाः पु प तव आजत्.
अ मै कामायोप का मनी व े वो दे वा उपसंय तु.. (४)
हे का म नयो! तुम सब क या के समीप ही रहो. इस के सामने से र मत जाओ. माग
क ेरणा दे ने वाले एवं पालन कता पूषा दे व तु ह ेरणा द. इस वर क इ छा पू त के लए
व े दे व तुझ कामना करने वाली ी को उस के समीप जाने क ेरणा द. (४)
सं वो मनां स सं ता समाकूतीनमाम स.
अमी ये व ता थन तान् वः सं नमयाम स.. (५)
हे हमारे वरोधी जनो! हम तु हारे च , कम और संक प को अपने अनुकूल बनाते
ह. इन म जो नयम के व काम करने वाले ह , उ ह हम तु हारे सामने ही दं ड द. (५)
अहं गृ णा म मनसा मनां स मम च मनु च े भरेत.
मम वशेषु दया न वः कृणो म मम यातमनुव मान एत.. (६)
हे मेरे वरोधी जनो! म अपने मन के ारा तुम सब के मन को और अपने च के ारा
तुम सब के च को अपने वश म करता ं. आओ और तुम सब भी अपने दय को मेरे
वश म करो. तुम सब भी मेरी इ छा के अनुसार मेरा अनुगमन करो और मेरे अनुकूल बनो.
(६)
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सू -९ दे वता— ावा, पृ वी, व े दे व
कशफ य वशफ य ौ पता पृ थवी माता.
यथा भच दे वा तथाप कृणुता पुनः.. (१)
जो नाखून और खुर वाले बाघ आ द पशु ह, जो बना खुर वाले सप आ द जंतु ह तथा
जो फटे ए खुर वाले गाय, बैल, भस आ द पशु ह उन का पता ुलोक है और माता पृ वी
है. हे दे वो! इन व नकारी पशु और जीवजंतु को आप ने जस कार हमारे अ भमुख
कया है, उसी कार इ ह हम से अलग करो. (१)
अ े माणो अधारयन् तथा त मनुना कृतम्.
कृणो म व व क धं मु काबह गवा मव.. (२)
षत शरीर से र हत दे व ने अ भमत काय म आने वाले व न क शां त के लए अरलू
वृ से बने दं ड को धारण कया है. मनु य क सृ करने वाले मनु ने भी यही कया था.
बैल को जस कार जनन म असमथ बनाया जाता है, उसी कार म सूखे चमड़े क र सी
से व न को न य कर रहा ं. (२)
पश े सू े खृगलं तदा ब न त वेधसः.
व युं शु मं काबवं व कृ व तु ब धुरः.. (३)
पीले रंग के धागे जस कार कवच को धारण करते ह, उसी कार साधक अरलू म ण
को अथात् अरलू वृ से बने डंडे को धारण करते ह. हमारे ारा धारण क ई अरलू म ण
व यु, शोधक और कबरे रंग के ू र ा णय से संबं धत व न को समा त करे. (३)
येना व यव रथ दे वा इवासुरमायया.
शुनां क प रव द्षणो ब धुरा काबव य च.. (४)
हे श ु को जीत कर यश क इ छा करने वाले मनु यो! जस कार दे वगण असुर
क माया से मो हत थे, उसी कार तुम श ु ारा डाले गए व न से मो हत हो. जस
कार बंदर कु को भगा दे ता है, उसी कार तु हारे ारा धारण कया आ खड् ग व न
को र भगा दे . (४)
् यै ह वा भ या म ष य या म काबवम्.
उदाशवो रथा इव शपथे भः स र यथ.. (५)
हे म ण! म श ु ारा डाले गए व न को समा त करने के लए तुझे धारण करता ं.
इसी कार म काबव नाम के व न को र करता ं. हे मनु यो! तुम दौड़ने के लए व तृत
घोड़ वाले रथ के समान श ु ारा उ प व न से र हत हो कर अपने काय म लगो.
सू -१० दे वता—इ का
थमा ह ु वास सा धेनुरभवद् यमे.
सा नः पय वती हामु रामु रां समाम्.. (१)
सृ के आ द म उ प एका का उषा ने अंधकार र कर दया था. यह हमारे पूवज
के लए ध दे ने वाली ई थी. यह हमारे लए भी ध दे ने वाली हो और अ भमत फल दान
करे. (१)
यां दे वाः तन द त रा धेनुमुपायतीम्.
संव सर य या प नी सा नो अ तु सुम ली.. (२)
जस एका का संबंधी रा को धेनु के प म समीप आती ई दे ख कर ह व का भोग
दे ने वाले दे वगण, उस क शंसा करते ह. वह एका का रा संव सर क प नी है. वह हमारे
लए क याण करने वाली हो. (२)
संव सर य तमां यां वा रा युपा महे.
सा न आयु मत जां राय पोषेण सं सृज.. (३)
हे रा ! तुम संव सर क तमा हो. हम तु हारी उपासना करते ह. तुम हमारे पु , पौ
आ द को लंबी आयु वाला बनाओ तथा हम गाय आ द धन से संप करो. (३)
इयमेव सा या थमा ौ छदा वतरासु चर त व ा.
महा तो अ यां म हमानो अ तवधू जगाय नवग ज न ी.. (४)
यह आज क एका क ल णा वह थम उ प उषा है, जस ने सृ के आरंभ म
उ प हो कर अंधकार का वनाश कया था. वही उषा इन दखाई दे ने वाली अ य उषा म
अनुगत हो कर उ दत होती है. इस उषा म असी मत म हमा है. इस म सूय, अ न और सोम
का नवास है. सूय क प नी, यह उषा ा णय को काश दे ती ई सब से उ म रहे. (४)
वान प या ावाणो घोषम त ह व कृ व तः प रव सरीणम्.
एका के सु जसः सुवीरा वयं याम पतयो रयीणाम्.. (५)
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हे एका क वृ से बने ऊखल! मूसल आ द ने तथा प थर ने संव सर म तैयार होने
वाले जौ, धान आ द कूटतेपीटते ए श द कया है. तु हारी कृपा से हम उ म पु , पौ ,
श शाली सेवक तथा धन के वामी बन. (५)
इडाया पदं घृतवत् सरीसृपं जातवेदः त ह ा गृभाय.
ये ा याः पशवो व पा तेषां स तानां म य र तर तु.. (६)
हे जातवेद अ न! तुम ह हण करो. तु हारी कृपा से ध, घी दे ने वाली गाएं, तेज
दौड़ने वाले घोड़े तथा गांव म होने वाले बकरी, भेड़, गधा, ऊंट आ द नाना आकार वाले सात
कार के पशु मुझ से ेम रख. (६)
आ मा पु े च पोषे च रा दे वानां सुमतौ याम.
पूणा दव परा पत सुपूणा पुनरा पत.
सवान् य ा संभु तीषमूज न आ भर.. (७)
हे रा ! मुझे समृ धन और पु , पौ आ द का वामी बनाओ. तु हारी कृपा से म
दे व का भी कृपापा बनूं. हे दव अथात् हवन के साधन पा ! तू ह व से पूण हो कर दे व के
पास जा और वहां से हमारे मन चाहे फल ले कर हमारे समीप आ. तू ह व से सभी य का
पालन करता आ दे व के पास से अ और बल ला कर हम दान कर. (७)
आयमग संव सरः प तरेका के तव.
सा न आयु मत जां राय पोषेण सं सृज.. (८)
हे एका का! यह संव सर आ गया है. यह तेरा प त है. तू अपने प त संव सर के स हत
हमारी संतान को अ धक आयु वाली करती ई हम धन संप बना. (८)
ऋतून् यज ऋतुपतीनातवानुत हायनान्.
समाः संव सरान् मासान् भूत य पतये यजे.. (९)
हे एका का! म वसंत आ द ऋतु को और उन के अ ध ाता दे व को दय के ारा
स करता ं. म ऋतु संबंधी, दनरात संबंधी और बारह मास से संबं धत य करता ं. म
चराचर ा णय के वामी काल के न म भी तेरे ारा य करता ं. (९)
ऋतु य ् वातवे यो मा यः संव सरे यः.
धा े वधा े समृधे भूत य पतये यजे.. (१०)
हे एका का! म वसंत आ द ऋतु , ऋतु संबंधी दनरात, बारह मास , संव सर के
धाता वधाता दे व और सभी चराचर ा णय के वामी काल के न म तेरा य करता ं.
(१०)
सू -११ दे वता—इं , अ न आ द
मु चा म वा ह वषा जीवनाय कम ातय मा त राजय मात्.
ा हज ाह य ेतदे नं त या इ ा नी मुमु मेनम्.. (१)
हे ा ध त मनु य! म ह व के अ ारा तुझे उस य मा रोग से मु करता ं जो मेरे
जाने बना ही तेरे शरीर म वेश कर गया है. राजा सोम को जस राजय मा ने गृहीत कया
था, द घ जीवन के लए उस से भी म तुझे मु करता ं. हे इं और अ न! जस पशा चनी
ने इस बालक को पकड़ लया है, आप दोन उस से इस बालक को छु ड़ाइए. (१)
य द तायुय द वा परेतो य द मृ योर तकं नीत एव.
तमा हरा म नऋते प थाद पाशमेनं शतशारदाय.. (२)
यह ा ध त मनु य चाहे ीण आयु वाला हो गया हो अथवा इस लोक को छोड़ कर
मृ यु के दे व यमराज के समीप चला गया हो अथात् चाहे उस क च क सा असंभव हो-इस
कार के पु ष को भी म मृ यु के पास से वापस ला कर सौ वष जी वत रहने के लए
श शाली बनाता ं. (२)
सह ा ेण शतवीयण शतायुषा ह वषाहाषमेनम्.
इ ो यथैनं शरदो नया य त व य रत य पारम्.. (३)
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जो ह व दे खने क श दान करती है तथा जस से सुनने आ द क सैकड़ श यां
ा त होती ह, उस ह व क श से म इस रोगी को मृ यु से लौटा लाया ं. उस ह व म सौ
वष जीने का फल दान करने क श है. म ह व के ारा इं को इस कारण स करता
ं क ये इस पु ष को सैकड़ वष तक क आयु का वनाश करने वाले पाप से छु टकारा
दलाएं. इस कार यह सौ वष तक जी वत रह सके. (३)
शतं जीव शरदो वधमानः शतं हेम ता छतमु वस तान्.
शतं त इ ो अ नः स वता बृह प तः शतायुषा ह वषाहाषमेनम्.. (४)
हे रोग से मु पु ष! तुम त दन वृ ा त करते ए सौ शरद ऋतु , सौ हेमंत
ऋतु और सौ वसंत ऋतु तक जी वत रहो. इं , अ न, स वता और बृह प त तु ह सौ
वष क आयु दान कर. सैकड़ वष क आयु दान करने वाले ह व के ारा म इसे मृ यु के
पास से लौटा लाया ं. (४)
वशतं ाणापानावनड् वाहा वव जम्.
१ ये य तु मृ यवो याना रतरा छतम्.. (५)
हे ाण और अपान वायु! जस कार वृषभ अपनी पशुशाला म वेश करता है, उसी
कार तुम इस य रोग से त रोगी के शरीर म वेश करो. इस राजय मा के अ त र , जो
मृ यु के हेतु सैकड़ रोग कहे गए ह, वे भी इस रोगी से वमुख हो जाएं. (५)
इहैव तं ाणापानौ माप गात मतो युवम्.
शरीरम या ा न जरसे वहतं पुनः.. (६)
हे ाण और अपान वायु! तुम इस के शरीर म ही रहो, इस के शरीर से अकाल म ही
मत नकलो. इस रोगी के शरीर के ह त, चरण आ द अंग को तुम वृ ाव था तक मत
यागो. (६)
जरायै वा प र ददा म जरायै न धुवा म वा.
जरा वा भ ा ने १ ये य तु मृ यवो याना रतरा छतम्.. (७)
हे रोग मु पु ष! म तुझे वृ ाव था को दे ता ं अथात् तुझे वृ ाव था तक जी वत
रहने वाला बनाता ं. म वृ ाव था तक रोग से तेरी र ा करता ं. वह वृ ाव था तुझे
क याण ा त कराए. (७)
अ भ वा ज रमा हत गामु ण मव र वा.
य वा मृ युर यध जायमानं सुपाशया.
तं ते स य य ह ता यामुदमु चद् बृह प तः.. (८)
हे रोग मु पु ष! जस कार गभाधान म समथ बैल को र सी से बांधा जाता है, उसी
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कार म तुझे वृ ाव था से बांधता ं. अथात् तुझे वृ ाव था तक जी वत रहने वाला बनाता
ं. तुझे ज म लेते ही अकाल म मृ यु ने अपने फंदे म कस लया है. उस फंदे को बृह प त
ा के हाथ के ारा कटवा द. (८)
सू -१२ दे वता—शाला, वा तो प त
इहैव ुवां न मनो म शालां ेमे त ा त घृतमु माणा.
तां वा शाले सववीराः सुवीरा अ र वीरा उप सं चरेम.. (१)
म इसी दे श म खंभ आ द के कारण थर रहने वाली शाला बनाता ं. वह शाला मुझे
अ भमत फल दे ती ई कुशलतापूवक थर रहे. हे शाला! म अनेक पु पौ , शोभन गुण
वाली संतान एवं रोग आ द बाधा से हीन प रवार वाला हो कर तुझ म नवास क ं . (१)
इहैव ुवा त त शालेऽ ावती गोमती सूनृतावती.
ऊज वती घृतवती पय व यु य व महते सौभगाय.. (२)
हे शाला! तू ब त से घोड़ , गाय , य बालक क मधुर वाणी, पया त अ , घृत एवं
ध से पूण हो कर इसी दे श म थर हो और हमारे महान क याण के लए य नशील बन.
(२)
ध य स शाले बृह छ दाः पू तधा या.
आ वा व सो गमेदा कुमार आ धेनवः सायमा प दमानाः.. (३)
हे शाला! तू ब त से भोग को धारण करने वाली है. अनेक वेद मं से और पके होने
के कारण सुगं धत बने व वध कार के अ से यु तुझ म बछड़े और बालक आएं तथा
गाएं सं या काल म थन से ध टपकाती ई आएं. (३)
इमां शालां स वता वायु र ो बृह प त न मनोतु जानन्.
उ तूदना् म तो घृतेन भगो नो राजा न कृ ष तनोतु.. (४)
इं और बृह प त खंभ को था पत कर के इस शाला का नमाण कर. म त् इस शाला
को जल से स च तथा भग दे व इस के आसपास क भू म को कृ ष के यो य बनाएं. (४)
मान य प न शरणा योना दे वी दे वे भ न मता य े.
तृणं वसाना सुमना अस वमथा म यं सहवीरं र य दाः.. (५)
हे शाला! तू धा य आ द का पोषण करने वाली, सुखकरी, र का एवं तेज वनी है.
दे व ने सृ के आरंभ म तेरा नमाण कया था. तनक से ढक ई तू उ म आशा वाली
हो कर हम पु , पौ आ द से यु धन दान कर. (५)
सू -१५ दे वता—इं , अ न
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इ महं व णजं चोदया म स न ऐतु पुरएता नो अ तु.
नूद रा त प रप थनं मृगं स ईशानो धनदा अ तु म म्.. (१)
य करने वाला म इं को वा ण य करने वाला समझ कर तु त करता ं. वे इं यहां
आएं और मेरे स मुख ह . इं मेरे वा ण य म बाधा प ंचाने वाले श ु तथा माग रोकने
वाले चोर और बाघ क हसा करते ए अ सर ह तथा मुझ ापारी को धन दे ने वाले बन.
(१)
ये प थानो बहवो दे वयाना अ तरा ावापृ थवी संचर त.
ते मा जुष तां पयसा घृतेन यथा वा धनमाहरा ण.. (२)
ापार के जो ब त से माग ह और धरती तथा आकाश के म य म लोग जन माग पर
गमन करते ह, वे माग घी, ध से हमारी सेवा कर, जस से हम ापार कर के लाभ स हत
मूल धन ले कर अपने घर आ सक. (२)
इ मेना न इ छमानो घृतेन जुहो म ह ं तरसे बलाय.
यावद शे णा व दमान इमां धयं शतसेयाय दे वीम्.. (३)
हे अ न! ापार से लाभ क कामना करता आ म शी गमन क श पाने के
न म घी के साथ ह क आ त दे ता ं. म मं से तु हारी तु त करता आ अपनी
वहार कुशल बु को असं य धन वाला होने के लए होम म लगाता ं. (३)
इमाम ने शर ण मीमृषो नो यम वानमगाम रम्.
शुनं नो अ तु पणो व य तपणः फ लनं मा कृणोतु.
इदं ह ं सं वदानौ जुषेथां शनुं नो अ तु च रतमु थतं च.. (४)
हे अ न! हम से र तक चलने से जो हसा ई है और हमारे त का लोप आ है, उसे
मा करो. ापार क व तु का य और व य दोन ही मुझे लाभकारी ह . हे इं और
अ न! तुम एकमत हो कर इस ह को वीकार करो. तुम दोन क कृपा से मेरा य व य
और उस से लाभ के प म ा त धन मेरे लए सुखकारी हो. (४)
येन धनेन पणं चरा म धनेन दे वा धन म छमानः.
त मे भूयो भवतु मा कनीयो ऽ ने सात नो दे वान् ह वषा न षेध.. (५)
हे दे वो! जस मूल धन से लाभ पी धन क इ छा करता आ म ापार करता ं, वह
मेरे लए सुखकारी हो. हे अ न! इस हवन कए जाते ए ह से लाभ म बाधा डालने वाले
दे व को संतु कर के रोको. हे दे वो, तु हारे भाव से मेरा धन बढ़े , कम न हो. (५)
येन धनेन पणं चरा म धनेन दे वा धन म छमानः.
त मन् म इ ो चमा दधातु जाप तः स वता सोमो अ नः.. (६)
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जस मूल धन से म लाभ पी धन क इ छा करता आ ापार करता ,ं इं ,
स वता, सोम, जाप त और अ न दे व मेरा मन उस धन क ओर े रत कर. (६)
उप वा नमसा वयं होतव ानर तुमः.
स नः जा वा मसु गोषु ाणेषु जागृ ह.. (७)
हे दे व का आ ान करने वाले अ न दे व! हम ह ले कर तु हारी तु त करते ह. तुम
हमारे पु , पौ , गाय और ाण क र ा के लए सावधान रहो. (७)
व ाहा ते सद म रेमा ायेव त ते जातवेदः.
राय पोषेण स मषा मद तो मा ते अ ने तवेशा रषाम.. (८)
हे जातवेद अ न! हमारे घर म न य नवास करने वाले तु ह हम त दन उसी कार
ह व दे ते ह, जस कार हम अपने घर म रहने वाले घोड़े को समयसमय पर घास आ द
खलाते ह. हे अ न! तु हारे सेवक हम धन और अ क समृ से स होते ए कभी न
न ह . (८)
सू -१६ दे वता—इं , अ न
ातर नं ात र ं हवामहे ात म ाव णा ातर ना.
ातभगं पूषणं ण प त ातः सोममुत ं हवामहे.. (१)
हम श और बु ा त करने के न म ातःकाल अ न, इं , म , व ण, भग,
उषा, बृह प त, सोम और का आ ान करते ह. (१)
ात जतं भगमु ं हवामहे वयं पु म दतेय वधता.
आ द् यं म यमान तुर द् राजा चद् यं भगं भ ी याह.. (२)
जो आ द य वषा आ द के ारा सब के धारण कता और पोषण करने वाले ह. द र भी
ज ह अपने अ भमत फल का साधन जानता आ पूजा करता है तथा राजा भी ज ह पूजने
का इ छु क रहता है, हम ातःकाल उन अ द त पु एवं अपरा जत श वाले सूय का
आ ान करते ह. (२)
भग णेतभग स यराधो भगेमां धयमुदवा दद ः.
भग णो जनय गो भर ैभग नृ भनृव तः याम.. (३)
हे सूय! तुम सारे जगत् के नेता हो. तु हारा धन कभी न नह होता. हमारी तु त को
तुम सफल करो. हे भग! हम गाय और घोड़ से संप करो. हम पु , पौ , सेवक आ द
मनु य वाले बन. (३)
सू -१७ दे वता—सीता
सीरा यु त कवयो युगा व त वते पृथक्.
धीरा दे वेषु सु नयौ.. (१)
बु मान लोग बैल को हल म जोतते ह. दे व को सुखकर अ ा त क इ छा से वे
बैल के कंध पर जुआ रखते ह. (१)
युन सीरा व युगा तनोत कृते योनौ वपतेह बीजम्.
वराजः ु ः सभरा अस ो नेद य इत् सृ यः प वमा यवन्.. (२)
हे कसानो! हल को जु से यु करो और जु को बैल के कंध पर था पत करो.
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अंकुर उगने यो य इस जुते ए खेत म गे ं, जौ आ द बीज को बोओ. हमारे अ के पौधे
दान के भार वाले ह . शी ही वे पौधे पक कर दरांती का पश पाने यो य हो जाएं. (२)
ला लं पवीरवत् सुशीमं सोमस स .
उ दद् वपतु गाम व थावद् रथवाहनं पीबर च फ म्.. (३)
लोहे के फाल वाला हल कृ ष यो य खेत को सुख दे ता है. गे ं, जौ आ द धा य क
उ प का कारण होने से यह हल सोमयाग का कता है. हल का भाग फाल भू म के भीतर
रह कर ग त करता है. यह हल गाय आ द पशु क समृ का कारण बने. (३)
इ ः सीतां न गृहणातु
् तां पूषा भ र तु.
सा नः पय वती हामु रामु रां समाम्.. (४)
इं हल ारा खेत म बनाई गई रेखा अथात् कूंड़ को हण कर तथा पूषा दे व उस क
र ा कर. हल से जुती ई भू म हम अ भमत फल दे ने वाली बन कर सभी वष म जौ, गे ं
आ द अ दे . (४)
शुनं सुफाला व तुद तु भू म शुनं क नाशा अनु य तु वाहान्.
शुनासीरा ह वषा तोशमाना सु प पला ओषधीः कतम मै.. (५)
सुंदर फाल अथात् हल के लोहे वाले भाग हम सुख दे ते ए भू म को जोत. कसान हम
सुख दे ते ए बैल के पीछे चल. हे सूय और वायु! तुम हमारे ारा दए गए ह व से संतु होते
ए इस यजमान के लए जौ, गे ं आ द के पौध को शोभन बा लय से यु करो. (५)
शुनं वाहाः शुनं नरः कृषतु ला लम्.
शुनं वर ा ब य तां शुनम ामु द य.. (६)
बैल और कसान सुखपूवक हल जोत. हल सुखपूवक धरती को फाड़े. र सयां
सुखपूवक बांधी जाएं. हे शुनः अथात् वायु दे व! तुम बैल के हांकने के लए यु होने वाले
चाबुक को सुखपूवक ेरणा दो. (६)
शुनासीरेह म मे जुषेथाम्. यद् द व च थुः पय तेनेमामुप स चतम्..
(७)
हे सूय और वायु दे व! तुम इस खेत म मेरा ह व हण करो. सूय और वायु दोन ने
आकाश म बादल के प म जो जल प ंचाया है, उस से वषा के प म इस जुती ई भू म
को स च . (७)
सीते व दामहे वावाची सुभगे भव.
यथा नः सुमना असो यथा नः सुफला भुवः.. (८)
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हे जुती ई भू म! हम तुझे नम कार करते ह. हे सुंदर भा य वाली भू म! तू हमारे
अनुकूल बन. तू जस कार से हमारे अनुकूल मन वाली हो, उसी कार हम शोभन फल दे ने
वाली हो जा. (८)
घृतेन सीता मधुना सम ा व ैदवैरनुमता म ः.
सा नः सीते पयसा याववृ वोज वती घृतवत् प वमाना.. (९)
हे जुती ई भू म! तू मधुर वाद वाले जल से भली कार सची ई हो कर तथा व े
दे व और म त ारा अनुम त पा कर जल स हत हमारे सामने आ. तू श संप हो कर घी
से मले ए अ को स चने वाली है. (९)
सू -१८ दे वता—वन प त
इमां खना योष ध वी धां बलव माम्.
यया सप न बाधते यया सं व दते प तम्.. (१)
पाठा नाम क इस लता पी जड़ीबूट को म खोदता ं जो सभी जड़ीबू टय से
अ धक बलवान है. इस जड़ीबूट के ारा सौत को बाधा प ंचती है तथा इसे धारण करने
वाली ी प त को ा त करती है. (१)
उ ानपण सुभगे दे वजूते सह व त.
सप न मे परा णुद प त मे केवलं कृ ध.. (२)
हे ऊपर क ओर मुख वाले प से यु जड़ीबूट पाठा! तू इं आ द दे व क कृपा से
मुझे ा त ई है. तू मेरी सौत को परा जत करने वाली है. तू मेरी सौत को मेरे प त से र ले
जा और मेरे प त को केवल मेरा बना. (२)
न ह ते नाम ज ाह नो अ मन् रमसे पतौ.
परामेव परावतं सप न गमयाम स.. (३)
हे सौत! म तेरा नाम कभी नह लेना चाहती. मेरे प त के साथ तू रमण मत कर. म तुझे
ब त र भेज रही ं. (३)
उ राहमु र उ रे रा यः. अधः सप नी या ममाधरा साधरा यः.. (४)
हे सभी जड़ीबू टय म े पाठा! म अ धक े बनूं. लोक म जो अ धक े यां
ह, म उन से भी अ धक े बनूं. मेरी जो सौत है, वह अ त नीच ना रय से भी नीच बने. (४)
अहम म सहमानाथो वम स सास हः.
उभे सह वती भू वा सप न मे सहावहै.. (५)
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हे पाठा नामक जड़ीबूट ! म तेरी कृपा से अपनी सौत को परा जत करने वाली बनूं
और तू भी श ु का तर कार करने म समथ हो. इस कार हम दोन श ु को परा जत
करने वाली बन. म अपनी सौत को परा जत क ं . (५)
अ भ ते ऽ धां सहमानामुप ते ऽ धां सहीयसीम्.
मामुन ते मनो व सं गौ रव धावतु पथा वा रव धावतु.. (६)
हे सौत! म तेरे पलंग के चार ओर तथा पलंग के ऊपर इस परा जत करने वाली पाठा
नाम क जड़ीबूट को रखती ं. थन से ध टपकाती ई गाय जस कार बछड़े क ओर
दौड़ती है तथा जल जस कार नीचे क ओर बहता है, उसी कार तू मेरे पीछे पीछे चल.
(६)
सू -१९ दे वता—इं
सं शतं म इदं सं शतं वीय १ बलम्.
सं शतं मजरम तु ज णुयषाम म पुरो हतः.. (१)
मेरा ा ण व जा त से प तत करने वाले दोष का वनाश करने म बल हो. मं के
भाव से उ प मेरी श और मेरा शारी रक बल अमोघ अथात् कभी असफल न होने
वाला बने. म जस का पुरो हत ,ं वह य जा त जय ा त करने वाली तथा वृ ाव था से
र हत बने. (१)
समहमेषां रा ं या म समोजो वीय १ बलम्.
वृ ा म श ूणां बा ननेन ह वषाहम्.. (२)
म जस राजा के रा य म नवास करता ,ं उस रा य को म समृ बनाता ं. म अपने
मं के भाव से अपने राजा को शारी रक श तथा हाथी, घोड़ा आ द से यु बनाता ं.
अ न म हवन कए जाते ए इस ह व के ारा म अपने राजा के श ु क भुजा को
छ भ करता ं. (२)
नीचैः प तामधरे भव तु ये नः सू र मघवानं पृत यान्.
णा म णा म ानु या म वानहम्.. (३)
हमारे राजा काय और अकाय को जानने वाले तथा अ धक धन वाले ह. जो श ु हमारे
ऐसे राजा को परा जत करने क इ छा से सेना एक करते ह, हमारे राजा के वे श ु नीचे क
ओर मुंह कर के गर और पैर से कुचले जाएं. इस योजन क स के न म म असफल
न होने वाले मं के ारा अपने राजा के श ु को ीण करता ं और अपने राजा को
वजय दलाता ं. (३)
सू -२० दे वता—अ न
अयं ते यो नऋ वयो यतो जातो अरोचथाः.
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तं जान न आ रोहाधा नो वधया र यम्.. (१)
हे अ न दे व! यह अर ण अथवा यजमान तेरी उ प का कारण बने. जस से उ प
हो कर तुम द त होते हो, अपने उस उ प कारण को जानते ए उस म वेश करो. इस के
प ात तुम हमारे धन क वृ करो. (१)
अ ने अ छा वदे ह नः यङ् नः सुमना भव.
णो य छ वशां पते धनदा अ स न वम्.. (२)
हे अ न दे व! हमारे सामने हो कर हम ा त होने वाले फल को य कहो तथा हमारे
सामने आ कर स मन वाले बनो. हे वै ानर प से जापालक अ न! हम अपे त धन
दान करो, य क तुम ही हमारे धनदाता हो. (२)
णो य छ वयमा भगः बृह प तः.
दे वीः ोत सूनृता र य दे वी दधातु मे.. (३)
अयमा, भग और बृह प त दे व, हम धन दान कर. इं ाणी आ द दे वयां तथा य
वाणी वाली सर वती दे वी हम धन दान कर. (३)
सोमं राजानमवसे ऽ नं गी भहवामहे.
आ द यं व णुं सूय ाणं च बृह प तम्.. (४)
हम तेज वी सोम और अ न को तु त पी वचन के ारा यहां बुलाते ह. वे हमारा
मनचाहा फल दे कर हमारी र ा कर. हम अ द त के पु , म और व ण को, सब के ेरक
सूय को तथा इन सभी दे व को बनाने वाले ा को तथा दे व के हतकारक बृह प त को
बुलाते ह. (४)
वं नो अ ने अ न भ य ं च वधय.
वं नो दे व दातवे र य दानाय चोदय.. (५)
हे अ न! तुम अ य अ नय के साथ मल कर हमारी मं वाली तु त को और
तु तय ारा सा य य को सफल करो. हे अ न दे व! ह व दे ने वाले हमारे यजमान को हम
धन दे ने के लए े रत करो. (५)
इ वायू उभा वह सुहवेह हवामहे.
यथा नः सव इ जनः संग यां सुमना असद् दानकाम नो भुवत्.. (६)
इं और अ न सुखपूवक बुलाए जा सकते ह, इस लए हम इस य म उन का आ ान
करते ह. हम इस कारण उन का आ ान करते ह क हमारे सभी जन उन क संग त से
शोभन मन वाले बन तथा हम दान दे ने क इ छा करे. (६)
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अयमणं बृह प त म ं दानाय चोदय.
वातं व णुं सर वत स वतारं च वा जनम्.. (७)
हे तोता! तुम अयमा, बृह प त, इं , वाणी पी सर वती एवं वेग वाले स वता दे व को
हम धन दे ने के लए े रत करो. (७)
वाज य नु सवे सं बभू वमेमा च व ा भुवना य तः.
उता द स तं दापयतु जानन् र य च नः सववीरं न य छ.. (८)
हम अ उ प करने वाले कम को शी ा त करे. दखाई दे ने वाले सभी ाणी वाज
सव अथात् वृ ारा अ पैदा करने वाले दे व के म य नवास करते ह. सभी ा णय के
दय के अ भ ाय को जानने वाले वाज- सव दे व दान न करने वाले मुझ पु ष को धन दान
करने क ेरणा द तथा हमारे धन को पु , पौ आ द से यु कर. (८)
ां मे प च दशो ामुव यथाबलम्.
ापेयं सवा आकूतीमनसा दयेन च.. (९)
पूव, प म, उ र, द ण एवं इन क म यवत दशा—इस कार पांच दशाएं, पृ वी,
आकाश, दन, रात, जल, तथा जड़ीबू टयां मुझे अ भमत फल द. म दय और अंतःकरण से
उ प संक प को ा त क ं . (९)
गोस न वाचमुदेयं वचसा मा यु द ह.
आ धां सवतो वायु व ा पोषं दधातु मे.. (१०)
म सभी कार के धन दे ने वाली वाणी का उ चारण करता ं. हे वाणी पी दे वी! तुम
अपने तेज से मेरा मनचाहा फल दे ने के लए आओ. वायु सभी ओर से मेरे ाण को
आ छा दत करे तथा व ा दे व मेरे शरीर को पु बनाएं. (१०)
सू -२१ दे वता—अ न
ये अ नयो अ व १ तय वृ े ये पु षे ये अ मसु.
य आ ववेशोषधीय वन पत ते यो अ न यो तम वेतत्.. (१)
मेघ म रहने वाली व ुत पी अ न को, जल म वाडव के प म नवास करने वाली
अ न को, मनु य के शरीर म वै ानर के प म रहने वाली अ न को, सूयकांत आ द
म णय म गे ,ं जौ, आ द फसल म तथा वृ म रहने वाली अ न को यह ह व ा त हो.
(१)
यः सोमे अ तय गो व तय आ व ो वयःसु यो मृगेषु.
य आ ववेश पदो य तु पद ते यो अ न यो तम वेतत्.. (२)
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जो अ न सोमलता म अमृत रस का प रपाक करने के लए रहती है, जो अ न गाय,
भस आ द पशु म नवास कर के उन के ध को प रप व करती है, जो अ न प य और
पशु म व है तथा जो अ न मनु य और चौपाय म ा त है. मेरे ारा दया आ ह व
उसे ा त हो. (२)
य इ े ण सरथं या त दे वो वै ानर उत व दा ः.
यं जोहवी म पृतनासु सास ह ते यो अ न यो तम वेतत्.. (३)
दान आ द गुण वाले जो अ न दे व इं के साथ एक रथ म बैठ कर गमन करते ह, जो
अ न मनु य म वै ानर तथा व को जलाने वाले दावा न ह, जो अ न दे व यु म श ु
को परा जत करने वाले ह, उन सभी अ नय को मेरा ह व ा त हो. (३)
यो दे वो व ाद् यमु काममा य दातारं तगृह्ण तमा ः.
यो धीरः श ः प रभूरदा य ते यो अ न यो तम वेतत्.. (४)
जो अ न दे व सब का भ ण करने वाले ह, ज ह कामना करने यो य तथा मनचाहा
फल दे ने वाला कहा जाता है, जो अ न दे व, बु मान, सभी काय करने म समथ, श ु को
परा जत करने वाले तथा कसी से परा जत न होने वाले ह, उ ह मेरी आ त ा त हो. (४)
यं वा होतारं मनसा भ सं व योदश भौवनाः प च मानवाः.
वच धसे यशसे सूनृतावते ते यो अ न यो तम वेतत्.. (५)
जस से ाणी स ा ा त करते ह, उस संव सर के तेरह महीने, मनु के ारा सृ क
आ द म क पत वसंत, ी म, वषा, शरद, हेमंत, पांच ऋतुएं तु ह दे व का आ ान करने
वाला जानते ह, उस तेज वी, यश वी और य वाणी वाले अ न को यह ह व ा त हो. (५)
उ ा ाय वशा ाय सोमपृ ाय वेधसे.
वै ानर ये े य ते यो अ न यो तम वेतत्.. (६)
वृषभ जन के ह व पी अ ह, बांझ गाएं जन का ह व ह, सोम जन क पीठ पर
रहता है तथा जो आ त के ारा सारे जगत् के वधाता ह और वै ानर अ न जन म सब से
बड़े ह, उन सभी अ नय को मेरा ह ा त हो. (६)
दवं पृ थवीम व त र ं ये व त
ु मनुसंचर त.
ये द व १ तय वाते अ त ते यो अ न यो तम वेतत्.. (७)
जो अ न दे व आकाश, पृ वी और इन के म य भाग म ा त ह, जो बादल म थत
बजली म संचरण करते ह, जो अ न तीन लोक म ा त दशा म वतमान ह तथा सारे
जगत् के आधार वायु म संचरण करते ह, उन सभी को मेरी आ त ा त हो. (७)
सू -२२ दे वता— व े दे व
ह तवचसं थतां बृहद् यशो अ द या यत् त वः संबभूव.
तत् सव सम म मेतद् व े दे वा अ द तः सजोषाः.. (१)
हम म हाथी के समान अपराजेय एवं स बल हो. दे वमाता अ द त के शरीर से जो
महान एवं स तेज उ प आ है, सभी दे व, अ द त के साथ मल कर मुझे वह तेज और
यश दान कर. (१)
म व ण े ो चेततु.
दे वासो व धायस ते मा तु वचसा.. (२)
दन के वामी इं , रा के वामी व ण, वग के अ धप त इं और सब का संहार
करने वाले मुझे अनु ह करने यो य समझ. सारे संसार का पोषण करने वाले म आ द
दे व मुझे तेज वी बनाएं. (२)
येन ह ती वचसा संबभूव येन राजा मनु ये व व १ तः.
येन दे वा दे वताम आयन् तेन माम वचसा ने वच वनं कृणु.. (३)
जस तेज से हाथी वशालकाय बनता है, जस तेज से राजा मनु य म तेज वी होता है,
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जस तेज से जल म ाणी तेज वी बनते ह अथवा जस तेज से आकाश म गंधव आ द
तेज वी बनते ह तथा सृ के आ द म जस तेज के कारण इं आ द ने दे व व ा त कया, हे
अ न, उस संपूण तेज से इस समय मुझे तेज वी बनाओ. (३)
यत् ते वच जातवेदो बृहद् भव या तेः.
यावत् सूय य वच आसुर य च ह तनः.
ताव मे अ ना वच आ ध ां पु कर जा.. (४)
हे ज म लेने वाले ा णय के ाता तथा आ तय ारा हवन कए जाते ए अ न
दे व! तुम म जतना तेज है, सूय म जतना तेज है तथा असुर के हाथ म जतना तेज है,
उतना ही तेज कमल क माला से सुशो भत अ नीकुमार मुझ म धारण कर. (४)
याव चत ः दश ुयावत् सम ुते.
तावत् समै व यं म य त तवचसम्.. (५)
चार दशाएं जतने थान को ा त करती ह तथा प को हण करने वाले ने
जतने न को दे खते ह, परम ऐ य वाले इं का असाधारण च तथा पूव दे व का
तेज हम ा त हो. (५)
ह ती मृगाणां सुषदाम त ावान् बभूव ह.
त य भगेन वचसा ऽ भ ष चा म मामहम्.. (६)
वन म वे छा से रहने वाले ह रण आ द पशु के म य जंगली हाथी अपने बल क
अ धकता के कारण राजा होता है. उस हाथी के भा य पी तेज से म अपनेआप को स चता
ं. (६)
सू -२३ दे वता—यो न
येन वेहद् बभू वथ नाशयाम स तत् वत्.
इदं तद य वदप रे न द म स.. (१)
हे ी! जस पाप से ज नत रोग के कारण तू बांझ ई है, उस पाप को हम तुझ से र
करते ह. यह पाप रोग तुझे बारा न हो जाए, इस लए हम इसे र दे श म प ंचाते ह. (१)
आ ते यो न गभ एतु पुमान् बाण इवेषु धम्.
आ वीरो ऽ जायतां पु ते दशमा यः.. (२)
हे ी! बाण जस कार वाभा वक प से तरकश म प च ं जाता है, उसी कार
पु ष के वीय से यु गभ तेरे जननांग म प ंचे. वह गभ दस मास के प ात पु के प म
प रव तत हो कर तथा सश बन कर ज म ले. (२)
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पुमांसं पु ं जनय तं पुमाननु जायताम्.
भवा स पु ाणां माता जातानां जनया यान्.. (३)
हे ी! तू पु को ज म दे . उस पु क प नी से पु ही उ प हो. इस कार अ व छ
प से उ प पु क भी तू माता होगी. उन के जो पु ह गे, उन क भी तू माता होगी. (३)
या न भ ा ण बीजा यृषभा जनय त च.
तै वं पु ं व द व सा सूधनुका भव.. (४)
हे नारी! बैल जस कार अपने अमोघ वीय से गाय म बछड़े उ प करता है, उसी
कार तू अमोघ वीय से उ प पु को ा त कर. तू सूता हो कर पु के साथ वृ को
ा त हो. (४)
कृणो म ते ाजाप यमा यो न गभ एतु ते.
व द व वं पु ं ना र य तु यं शमस छमु त मै वं भव.. (५)
हे ी! ा ने वृषभ संबंधी जो व था क है, उस के अनुसार म तेरे लए
संतानो प संबंधी कम करता ं. गभ तेरी यो न म जाए. उस के प ात तू पु ा त करे,
वह पु तेरे लए सुख दान करे तथा तू भी उस के लए सुख का कारण बने. (५)
यासां ौ पता पृ थवी माता समु ो मूलं वी धां बभूव.
ता वा पु व ाय दै वीः ाव वोषधयः.. (६)
जन वृ का पता आकाश और माता पृ वी है, जलरा श उन क वृ का मूल कारण
है. वृ के प म वे द जड़ीबू टयां पु लाभ के लए तेरी र ा कर. (६)
सू -२४ दे वता—वन प त
पय वतीरोषधयः पय व मामकं वचः.
अथो पय वतीनामा भरे ऽ हं सह शः.. (१)
मेरे जौ, गे ं आ द अ सारयु ह तथा मेरा वचन भी सारयु हो. म उन सार वाली
फसल से उ प धा य को अनेक कार से ा त क ं . (१)
वेदाहं पय व तं चकार धा यं ब .
स भृ वा नाम यो दे व तं वयं हवामहे यो यो अय वनो गृहे.. (२)
म उस सार वाले दे व को जानता ं. उस ने जौ, गे ं आ द क वृ क है. भ रे के
समान सं ह करने वाले जो दे व ह, उन का म तु तय के ारा आ ान करता ं. य करने
वाले के घर म जो जौ, गे ं आ द धा य है, दे व उसे एक कर के मुझे दान कर. (२)
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इमा याः प च दशो मानवीः प च कृ यः.
वृ े शापं नद रवेह फा त समावहान्.. (३)
पूव, प म, उ र, द ण और इन क म यवत —ये पांच दशाएं तथा ा ण, य,
वै य, शू और नषाद—ये पांच जा तयां इस यजमान के धनधा य क उसी कार वृ कर,
जस कार वषा का जल वाह म पड़े ए जल को एक थान से सरे थान पर ले जाता
है. (३)
उ सं शतधारं सह धारम तम्.
एवा माकेदं धा यं सह धारम तम्.. (४)
जल क उ प का थान सौ अथवा हजार धारा वाला होने पर भी कभी ीण नह
होता है, इसी कार हमारा यह धा य अनेक कार से हजार धारा वाला हो कर य र हत
बने. (४)
शतह त समाहर सह ह त सं कर.
कृत य काय य चेह फा त समावह.. (५)
हे सौ हाथ वाले दे व! तुम अपनी भुजा से धन एक करो तथा हजार हाथ से ला
कर हम धन दो. इस के प ात अपने ारा दए ए धन से मुझे समृ बनाओ. (५)
त ो मा ा ग धवाणां चत ो गृहप याः.
तासां या फा तम मा तया वा भ मृशाम स.. (६)
व ावसु आ द गंधव क संप ता के कारण ह—उन क तीन कलाएं. उन क चार
अ सरा पी प नयां ह. हे धा य! प नय म जो अ तशय समृ है, उस से हम तेरा पश
कराते ह. (६)
उपोह समूह ारौ ते जापते.
ता वहा वहतां फा त ब ं भूमानम तम्.. (७)
हे जाप त! उपोह नाम का दे व और धन क वृ करने वाले दे व का समूह—ये दोन
तु हारे सारथी ह. अनेक कार के तथा य र हत धन धा य को एवं समृ को ये हमारे
समीप लाएं. (७)
सू -२५ दे वता—कामेषु
उ ुद वोत् तुदतु मा धृथाः शयने वे.
इषुः काम य या भीमा तया व या म वा द.. (१)
सू -३० दे वता—सौमन य
स दयं सांमन यम व े षं कृणो म वः.
अ यो अ यम भ हयत व सं जात मवा या.. (१)
हे ववाद करने वाले पु षो! म तु हारे लए सौमन य कम करता ं जो व े ष र हत एवं
पर पर ेम कराने वाला है. जस कार गाय अपने बछड़े से ेम करती है. उसी कार तुम
भी पर पर ेम करो. (१)
अनु तः पतुः पु ो मा ा भवतु संमनाः.
जाया प ये मधुमत वाचं वदतु श तवाम्.. (२)
पु पता के अनुकूल कम करने वाला हो. माता पु आ द के त सौमन य वाली बने.
प नी प त से मधुर एवं सुखकर वचन कहे. (२)
मा ाता ातरं मा वसारमुत वसा.
स य चः स ता भू वा वाचं वदत भ या.. (३)
भाई अपने सगे भाई से उ रा धकार को ले कर तथा बहन अपनी सगी बहन से े ष न
करे. यह सब समान ग त वाले एवं समान कम वाले हो कर क याणकारी वचन कह. (३)
सू -३१ दे वता—अ न आ द
व दे वा जरसावृतन् व वम ने अरा या.
१हं सवण पा मना व य मेण समायुषा.. (१)
हे अ नीकुमारो! तुम इस बालक को आयु क हा न करने वाली वृ ाव था से र
रखो. हे अ न! तुम इसे दान न दे ने के वभाव से और श ु से र रखो. म इसे रोग आ द
ःख को उ प करने वाले पाप तथा य मा रोग से पृथक् कर के चर जीवन से संयु
करता ं. (१)
सू -२ दे वता—आ मा
य आ मदा बलदा य य व उपासते शषं य य दे वाः.
यो ३ येशे पदो य तु पदः क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (१)
जो जाप त सभी ा णय को ाण एवं शां त दे ने वाले ह, सभी ाणी एवं दे व भी
जन का शासन मानते ह तथा दो पैर वाले मनु य और चार पैर वाले पशु के वामी ह.
हम ह व ारा इस कार के जाप त दे व क पूजा करते ह. (१)
यः ाणतो न मषतो म ह वैको राजा जगतो बभूव.
य य छायामृतं य य मृ युः क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (२)
जो जाप त अपने माहा य से सांस लेने वाले और पलक झपकाने वाले सम त
ग तशील ा णय के एकमा वामी ह, जीवन और मृ यु छाया के समान जन के अधीन ह,
म ह व के ारा उन जाप त दे व क पूजा करता ं. (२)
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यं दसी अवत कभाने भयसाने रोदसी अ येथाम.
य यासौ प था रजसो वमानः क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (३)
संसार क र ा के लए धरती और आकाश अपने थान पर थर ह. जाप त ने उ ह
नराधार दे श म धारण कया है. नीचे गरने क आशंका से भयभीत धरती और आकाश के
म य व मान वे जाप त रोए थे, इस लए इन दोन का नाम रोदसी आ. जस जाप त
का आकाश म थत माग वषा के जल का नमाण करता है, हम ह व ारा उन जाप त क
पूजा करते ह. (३)
य य ौ व पृ थवी च मही य याद उव १ त र म्.
य यासौ सूरो वततो म ह वा क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (४)
जन जाप त क म हमा से आकाश व तीण और पृ वी व तृत ई है, जन क
म हमा से अंत र अथात् आकाश और पृ वी के म यवत भाग का व तार आ है तथा
आकाश म य दखाई दे ने वाला सूय व तीण आ है, हम ह ारा उस जाप त क
पूजा करते ह. (४)
य य व े हमव तो म ह वा समु े य य रसा मदा ः.
इमा दशो य य बा क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (५)
जस जाप त दे व क म हमा से हमालय आ द सभी पवत उ प ए ह, सागर म
सभी स रताएं जस क म हमा से समा जाती ह—पूव, प म, उ र एवं द ण चार दशाएं
जस जाप त क भुजाएं ह, हम ह व के ारा उस क पूजा करते ह. (५)
आपो अ े व मावन् गभ दधाना अमृता ऋत ाः.
यासु दे वी व ध दे व आसीत् क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (६)
सृ के आ द म जन बल ने सारे जगत् क र ा क , अ वनाशी और जगत् के कारण
हर यगभ को जन द जल ने गभ के प म धारण कया, उन जल को अपने म य
धारण करने वाले जाप त क हम ह व के ारा पूजा करते ह. (६)
हर यगभः समवतता े भूत य जातः प तरेक आसीत्.
स दाधार पृ थवीमुत ां क मै दे वाय ह वषा वधेम.. (७)
सृ के आ द म हर यगभ उ प ए तथा उ प होते ही सभी ा णय के वामी हो
गए. उ ह ने इस धरती और आकाश को धारण कया. हम ह व ारा उन जाप त क पूजा
करते ह. (७)
आपो व सं जनय तीगभम े समैरयन्.
त योत जायमान यो ब आसी र ययः क मै दे वाय ह वषा वधेम..
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(८)
ई र के ारा सब से थम न मत जल ने हर यगभ को ज म दे ने के लए ई र के
वीय को धारण कया. उस उ प होने वाले जाप त के उ ब अथात् गभ को घेरने वाली
झील वणमय थी. हम ह ारा उस जाप त क पूजा करते ह. (८)
सू -३ दे वता— ा
उ दत यो अ मन् ा ः पु षो वृकः.
ह घ य त स धवो ह ग् दे वो वन प त ह ङ् नम तु श वः.. (१)
बाघ, चोर मनु य और भे ड़ए—ये तीन इस थान से भाग कर र चले जाएं. जस
कार स रताएं गूढ़ प म बहती ह, उसी कार बाघ आ द भी दखाई न द. वन प तय के
अ ध ाता दे व जस कार वन प तय म छपे रहते ह, उसी कार बाघ आ द भी लु त हो
जाएं. बाघ आ द के जो श ु ह, वे उ ह र भगा द. (१)
परेणैतु पथा वृकः परमेणोत त करः.
परेण द वती र जुः परेणाघायुरषतु.. (२)
जंगली हसक पशु भे ड़या हमारे चलने फरने के माग से र चला जाए. चोर भे ड़ए से
भी अ धक र चला जाए. दांत वाले, र सी के आकार वाले एवं सरे क हसा करने वाले
सांप के अ त र अ य हसक ाणी भी हमारे संचरण माग से र चले जाएं. (२)
अ यौ च ते मुखं च ते ा ज भयाम स.
आत् सवान् वश त नखान्.. (३)
हे बाघ! म तेरी दोन आंख और मुख को न करता ं. इस के अ त र म तेरे चार
पैर के बीस नाखून को भी न करता ं. (३)
ा ं द वतां वयं थमं ज भयाम स.
आ न े मथो अ ह यातुधानमथो वृकम्.. (४)
हम दांत से हसा करने वाले पशु म सब से पहले बाघ का नाश करते ह. इस के
प ात हम चोर, सप, य , रा स आ द तथा भे ड़ए का नाश करते ह. (४)
यो अ तेन आय त स सं प ो अपाय त.
पथामप वंसन
े ै व ो व ेण ह तु तम्.. (५)
आज जो चोर आता है, वह हमारे ारा कुट पट कर र भागे. वह माग म से
क दायक माग से जाए और इं अपने व से उस क हसा कर. (५)
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मूणा मृग य द ता अ पशीणा उ पृ यः.
न ुक् ते गोधा भवतु नीचाय छशयुमृगः.. (६)
बाघ आ द हसक पशु के दांत भोथरे अथात् खाने म असमथ हो जाएं. उन के स ग
और पस लय क ह ड् डयां भी पैनी न रह. हे प थक! वह तेरे माग म दखाई न दे और सोने
वाले पशु भी पछले माग से र चले जाएं. (६)
यत् संयमो न व यमो व यमो य संयमः.
इ जाः सोमजा आथवणम स ा ज भनम्.. (७)
जहां मं के साम य से इं और सोम से संबं धत संयमन कभी वपरीत भाव नह
डालता. हे याकलाप! तू अथवा मह ष ारा दया आ है, इस लए तू बाघ आ द
ा णय का हसक बन. (७)
सू -४ दे वता—वन प त आ द
यां वा ग धव अखनद् व णाय मृत जे.
तां वा वयं खनाम योष ध शेपहषणीम्.. (१)
हे क प थ अथात् कैथ नाम के वृ एवं फल! व ण का पौ ष न होने पर उ ह वह
श पुनः ा त कराने के लए गंधव ने तुझे खोद कर ा त कया था. उसी श वधक
ओष ध को हम खोदते ह. (१)
उ षा उ सूय उ ददं मामकं वचः.
उदे जतु जाप तवृषा शु मेण वा जना.. (२)
सूयप नी उषा श शाली वीय से यु हो तथा सूयदे व उसे उ कृ वीय संप कर. मेरा
यह मं भी श शाली हो तथा जगत् के ा जाप त दे व भी इसे अपने बल वीय से उ त
कर. (२)
यथा म ते वरोहतोऽ भत त मवान त.
तत ते शु मव र मयं कृपो वोष धः.. (३)
हे वीय के इ छु क पु ष! पु , पौ आ द के प म वरोहण के कारण तेरी पु ष इं य
ो धत सांप के फन के समान चे ा कर सके, इसी कारण म तुझे यह ओष ध दान करता
ं. (३)
उ छु मौषधीनां सार ऋषभाणाम्.
सं पुंसा म वृ यम मन् धे ह तनूव शन्.. (४)
सू -५ दे वता—वृषभ
सह शृ ो वृषभो यः समु ा दाचरत्.
तेना सह येना वयं न जना वापयाम स.. (१)
कामना एवं जल क वषा करने वाले सूय उदयाचल के समीपवत सागर से उदय
होते ह. उ दत एवं श ु को वश म करने वाले सूय के ारा हम अपने सामने थत
य को न ा-परवश बनाते ह. (१)
न भू म वातो अ त वा त ना त प य त क न.
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य सवाः वापय शुन े सखा चरन्.. (२)
भू म पर वायु अ धक न चले अथात् तेज हवा के कारण लोग क न द न टू टे. सोए ए
य म से कोई भी सर को न दे ख सके. हे इं के म वायु! तुम ाण वायु के प म
शरीर म वतमान रह कर सभी समीपवत य और कु को सुला दो. (२)
ो ेशया त पेशया नारीया व शीवरीः.
यो याः पु यग धय ताः सवाः वापयाम स.. (३)
जो यां आंगन म अथवा पलंग पर सो रही ह अथवा जो यां झूले आ द म सोने
क अ य त ह और उ म गंध वाली ह, उन सब को म सुलाता ं. (३)
एजदे जदज भं च ुः ाणमज भम्.
अ ा यज भं सवा रा ीणाम तशवरे.. (४)
सभी ग तशील ा णय को म ने सुला दया. उन के ने और ना सका न ा ारा गृहीत
ह. उन के ह त, चरण आ द को भी म ने न ा म न करा दया है. यह सब म य रा के समय
कया है, जब अंधकार क अ धकता होती है. (४)
य आ ते य र त य त न् वप य त.
तेषां सं द मो अ ी ण यथेदं ह य तथा.. (५)
हमारे संचरण के समय जो माग म बैठा है तथा जो ठहर कर दे ख रहा है, म उन सब क
आंख इस कार बंद करता ,ं जस कार दखाई दे ने वाला यह भवन दे खने म असमथ है.
(५)
व तु माता व तु पता व तु ा व तु व प तः.
वप व यै ातयः व वयम भतो जनः.. (६)
जस ी को न त कर के हम वश म करने के इ छु क ह, उस क माता सब से पहले
सो जाए. इस के प ात उस का पता, घर क र ा करने वाला कु ा और घर का वामी उस
का प त भी सो जाए. उस के बंधुबांधव एवं उस के घर क र ा के लए नयु चार ओर
थत जन भी सो जाएं. (६)
व व ा भकरणेन सव न वापया जनम्.
ओ सूयम या वापया ुषं जागृतादह म इवा र ो अ तः.. (७)
हे व के दे व! श या आ द पर सोने वाले इन जन को तथा अ य य को सूय दय
तक न ा म न रखो. सब के सो जाने पर हसा और य से र हत हो कर इं के समान म
भोग म संल न र ं एवं जागरण क ं . (७)
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सू -६ दे वता— ा ण आ द
ा णो ज े थमो दशशीष दशा यः.
स सोमं थमः पपौ स चकारारसं वषम्.. (१)
सप म सब से पहले त क उ प आ, जो मनु य म ा ण के समान सप म पू य
था. उस के दस शीश और दस मुख थे. य आ द जा तय वाले सप से पहले उ प होने
के कारण त क ने सब से पहले वगलोक म थत अमृत पया. सोम अथात् अमृत पीने
वाला ा ण त क कंद मूल आ द से उ प रस को वष के भाव से हीन बनाए. (१)
यावती ावापृ थवी व र णा यावत् स त स धवो वत रे.
वाचं वष य षण ता मतो नरवा दषम्.. (२)
धरती और आकाश का जतना व तार है तथा सागर जतने प रमाण म थत है, म
इन दोन थान म थत कंद, मूल, फल से उ प वष को न करने वाले मं से यु वाणी
का उ चारण करता ं. (२)
सुपण वा ग मान् वष थममावयत्.
नामीमदो ना प उता मा अभवः पतुः.. (३)
हे वष! सब से पहले सुंदर पंख वाले ग ड़ ने तु ह खाया था. इस कारण तू इस पु ष
को मतवाला मत बना एवं वमूढ़ मत कर. हे वष! तू इस के लए अ बन जा. (३)
य त आ यत् प चाङ् गु रव ा चद ध ध वनः.
अप क भ य श या रवोचमहं वषम्.. (४)
पांच अंगु लय वाले जस हाथ ने डोरी चढ़े ए होने के कारण झुके ए धनुष के ारा
पु ष के शरीर म वष को प ंचाया है, उस हाथ को म सुपारी वृ के टु कड़े से मं क
सहायता से भावहीन करता ं. (४)
श याद् वषं नरवोचं ा ना त पणधेः.
अपा ा छृ ात् कु मला रवोचमहं वषम्.. (५)
बाण म लगे फल से जस वष ने शरीर म वेश कया, उसे म मं बल से बाहर
नकालता ं. वषैले प वाले वृ से, लेप से, प से, पशु के स ग से एवं मल से जो वष
उ प आ है, उसे म अपने मं बल से शरीर से अलग करता ं. (५)
अरस त इषो श यो ऽ थो ते अरसं वषम्.
उतारस य वृ य धनु े अरसारसम्.. (६)
सू -७ दे वता—वन प त
वा रदं वारयातै वरणाव याम ध.
त ामृत या स ं तेना ते वारये वषम्.. (१)
वारण वृ जहां उ प होते ह, उस वारणावती का वषहारी जल हम मनु य के वष
को र करता है. उस जल म वग थत अमृत का वषनाशक भाव व मान है. इस कारण
म उस अमृतमय जल से तेरे कंद, मूल आ द से उ प वष को र करता ं. (१)
अरसं ा यं वषमरसं य द यम्.
अथेदम रा यं कर भेण व क पते.. (२)
मेरी मं श से पूव दशा और उ र दशा म उ प होने वाला वष भावहीन हो
जाए. द ण, प म तथा नीचे क दशा म उ प होने वाला वष करंभ (भात) से
साम यहीन हो जाए. (२)
कर भं कृ वा तय पीब पाकमुदार थम्.
ुधा कल वा नो ज वा स न पः.. (३)
हे शरीर वाले वष! बना जाने ए खाया आ तू चरबी को जलाने वाला और उदर
संबंधी रोग का जनक है. इस पु ष ने तुझे करंभ (भात) समझ कर खाया था. तू इस पु ष
को मू छत मत बना. (३)
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व ते मदं मदाव त शर मव पातयाम स.
वा च मव येष तं वचसा थापयाम स.. (४)
हे मू छत करने वाली जड़ीबूट ! तेरे मू छा लाने वाले वष को म शरीर से इस कार
र करता ं, जस कार धनुष से छू टा आ बाण र गरता है. हे वष! तू गु त प से जाने
वाले त के समान शरीर के अंग म ा त हो जाता है. म अपनी मं श से तुझे शरीर से
नकाल कर र करता ं. (४)
प र ाम मवा चतं वचसा थापयाम स.
त ा वृ इव था य खाते न पः.. (५)
हे खोदने से ा त होने वाली जड़ीबूट ! जनसमूह के समान भावशाली तेरे वष को
भी हम अपनी मं श के ारा शरीर से नकाल कर र था पत करते ह. तू अपने थान
पर वृ के समान न ल रह तथा इस पु ष को मू छत मत कर. (५)
पव तै वा पय णन् श भर जनै त.
र स वमोषधे ऽ खाते न पः.. (६)
हे वषमूलक जड़ीबूट ! मह षय ने तुझे झाड के तनक के बदले खरीदा है. तू ह रण
आ द पशु के चम के बदले य क गई है. तू बड़े प र म से खरीद गई है, इस लए यहां
से र हो जा और इस पु ष को मू छत मत कर. (६)
अना ता ये वः थमा या न कमा ण च रे.
वीरान् नो अ मा दभन् तद् व एतत् पुरो दधे.. (७)
हे पु षो! तु हारे तकूल आचरण करने वाले श ु ने पहले जो य आ द कम कए
ह, उन कम के ारा वे हमारे पु , पौ आ द को इस थान पर ह सत न कर. कया जाता
आ यह च क सा कम म उन क र ा के लए तु हारे सामने उप थत करता ं. (७)
सू -८ दे वता—जल
भूतो भूतेषु पय आ दधा त स भूतानाम धप तबभूव.
त य मृ यु र त राजसूयं स राजा रा यमनु म यता मदम्.. (१)
अ भषेक ारा ऐ य ा त करने वाला राजा ही समृ जनपद म भो य साम ी
प ंचाता है. इस कार वह ा णय का वामी आ. मृ यु के दे व यमराज को दं ड
दलाने और स जन का पालन करने के लए ही राजा का राजसूय य कराते ह. वह राजा
इस रा य को तथा न ह और स जन प रपालन के कम को वीकार करे. (१)
अ भ े ह माप वेन उ े ा सप नहा.
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आ त म वधन तु यं दे वा अ ुवन्.. (२)
हे राजा! तुम सहासन तथा हाथी, रथ, घोड़ा आ द सवा रय के त अ न छा मत
करो. तुम श शाली एवं काय अकाय का ान रखने वाले हो. तुम श ु हंता हो,
राज सहासन पर बैठ कर तुम म का क याण करो. इं आ द दे व तु ह अपना कह. (२)
आ त तं प र व े अभूषञ् यं वसान र त वरो चः.
महत् तद् वृ णो असुर य नामा व पो अमृता न त थौ.. (३)
सहासन पर बैठे ए राजा क सब लोग सेवा कर. राजा भी सहासन पर बैठ कर
रा यल मी को धारण करे, तेज वी बने तथा जा पालन म त पर हो. अ भषेक से उ प
रा यतेज दस दशा म फैल जाए. श ु को र भगाने वाले राजा के नाममा से श ु
भयभीत होने लग. यह राजा श ु, म , प नी आ द के त व वध कार का वहार करता
आ दं ड, यु , अ ययन आ द कम करे. (३)
ा ो अ ध वैया े व म व दशो महीः.
वश वा सवा वा छ वापो द ाः पय वतीः.. (४)
हे राजा! तुम ा चम पर बैठ कर और बाघ के समान अपराजेय हो कर पूव आ द
वशाल दशा को जीतो. तेज वी होने के कारण सारी जाएं तु हारी कामना कर तथा
द जल तु हारे रा य को ा त हो, जस से तु हारे रा य म अकाल न पड़े. (४)
या आपो द ाः पयसा मद य त र उत वा पृ थ ाम्.
तासां वा सवासामपाम भ ष चा म वचसा.. (५)
हे राजा! आकाश से बरसने वाले जो जल अपने रस से, ा णय को तृ त करते ह,
अंत र और पृ वी पर जो जल थत ह, म तीन लोक म थत इन जल से तु हारा
अ भषेक करता ं. (५)
अ भ वा वचसा सच ापो द ाः पय वतीः.
यथासो म वधन तथा वा स वता करत्.. (६)
हे राजा! द जल अपने तेज से तु ह स चे, जस से तुम म के बढ़ाने वाले बनो.
सब को ेरणा दे ने वाले स वता दे व तु ह साम य द. (६)
एना ा ं प रष वजानाः सहं ह व त महते सौभगाय.
समु ं न सुभुव त थवांसं ममृ य ते पनम व १ तः.. (७)
नद के प म जल जस कार सागर को स करते ह, उसी कार द जल राजा
को श शाली बनाएं. जस कार माता पु का आ लगन करती है, उसी कार महान
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सौभा य ा त करने के लए जल राजा को श पूण बनाते ह. जल म वतमान गडे के समान
अपराजेय राजा को सेवक जन अ भषेक के ारा और व ाभूषण से अलंकृत कर. (७)
सू -९ दे वता— ैककुदांजन
ए ह जीवं ायमाणं पवत या य यम्.
व े भदवैद ं प र धज वनाय कम्.. (१)
हे अंजन म ण! तू ककुद नामक पवत से जी वत ा णय क र ा के लए आ. तू
ककुद पवत क आंख है. इं आ द सभी दे व ने रोग र हत रहने के लए तुझे चहारद वारी
के प म दान कया है. (१)
प रपाणं पु षाणां प रपाणं गवाम स.
अ नामवतां प रपाणाय त थषे.. (२)
हे ककुद पवत पर उ प अंजन म ण! तू पु ष , गाय , घोड़ और घो ड़य क र ा
के लए थत है. (२)
उता स प रपाणं यातुज भनमा न.
उतामृत य वं वे थाथो अ स जीवभोजनमथो ह रतभेषजम्.. (३)
हे अंजन! तू रा स, पशाच आ द से उ प पीड़ा का नाश करने वाला है. तू अमृत का
सार जानता है. तू अ न नवारण करने के कारण जीव का पालक है. तू पांडु रोग से उ प
कालेपन को र करने वाला है. (३)
य या न सप य म ं प प ः.
ततो य मं व बाधस उ ो म यमशी रव.. (४)
हे अंजन! तू जस पु ष के शरीर के सभी अंग और अंग क सं धय म वेश कर के
ा त होता है, उस के शरीर से तू य मा रोग को इस कार र करता है, जस कार
श शाली वायु मेघ के जल को णमा म र ले जाती है. (४)
नैनं ा ो त शपथो न कृ या ना भशोचनम्.
नैनं व क धम ुते य वा बभ या न.. (५)
हे अंजन! जो पु ष तुझे धारण करता है, उस तक सरे के ारा ा त कया आ पाप
नह प ंचता तथा सरे य ारा कए गए अ भचार से उ प कृ या नाम क रा सी
भी उस तक न प ंचे. कृ या से उ प शोक भी तुझे ा त न हो तथा व न भी उस तक न
प ंचे. (५)
सू -११ दे वता—इं के प म
अनड् वान
अनड् वान् दाधार पृ थवीमुत ामनड् वान् दाधारोव १ त र म्.
अनड् वान् दाधार दशः षडु व रनड् वान् व ं भुवनमा ववेश.. (१)
गाड़ी ढोने म समथ बैल हल जोतने आ द के कारण पृ वी का पोषक है. वही बैल च ,
पुरोडाश आ द क उ प म सहायक होने के कारण आकाश और अंत र को भी धारण
करता है. पूव आ द महा दशा का पोषण कता भी यही धम पी बैल है. इस कार ा
ारा बनाया गया यह बैल पृ वी आ द सभी लोक क र ा के लए उन म वेश कर के
थत रहता है. (१)
अनड् वा न ः स पशु यो व च े या छ ो व ममीते अ वनः.
भूतं भ व यद् भुवना हानः सवा दे वानां चर त ता न.. (२)
यह बैल इं है. इस लए सभी पशु क अपे ा अ धक तेज वी है. जस कार बैल
अव छ प से संतान उ प करता है, इं उसी कार भूत, भ व य और वतमान व तु
को उ प करता आ अ य दे व के काय करता है. (२)
इ ो जातो मनु ये व तघम त त र त शोशुचानः.
सु जाः स स उदारे न सषद् यो ना ीयादनडु हो वजानन्.. (३)
मनु य म वह बैल इं के समान है. वह बैल धम है. वह सूय के प म सारे जगत् को
ऊजा एवं काश दे ता आ वचरण करता है. जो हमारे ारा बैल को दया गया मह व
वशेष प से जानता है, वह सभी सुख को भोगता है और शोभन संतान यु हो कर दे ह
याग करने के बाद संसार म नह आता. (३)
अनड् वान् हे सुकृत य लोक ऐनं यायय त पवमानः पुर तात्.
पज यो धारा म त ऊधो अ य य ः पयो द णा दोहो अ य.. (४)
इं दे व पी यह बैल य आ द पु य से ा त लोक म अ धक फल दे ता है. य के
आरंभ म शोधन कया गया यह अमृतमय सोम इस बैल को रस से भर दे ता है. वृ ेरकदे व
ध क धारा है. उनचास पवन ऐन ह, सभी कार का य इस का ध है और य म द गई
द णा ही हने क या है. इस कार इस इं और धम पी बैल का दोहन अ य होता
है. (४)
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य य नेशे य प तन य ो ना य दातेशे न त हीता.
यो व जद् व भृद ् व कमा घम नो ूत यतम तु पात्.. (५)
यजमान इस दे वता प बैल का वामी नह है. य , दान दे ने वाला और दान हण
करने वाला भी इस का वामी नह है. यह व को जीतने वाला तथा व का भरणपोषण
करने वाला है. सम त व इसी का काय है. चार चरण वाला यह वृषभ हम तेज वी सूय का
व प बताता है. (५)
येन दे वाः वरा ह वा शरीरममृत य ना भम्.
तेन गे म सुकृत य लोकं घम य तेन तपसा यश यवः.. (६)
इस वृषभ प धम क सहायता से दे वगण शरीर याग कर वग को ा त ए ह. वह
वग अमृत क ना भ है. इस वृषभ क सहायता से हम पु य के फल के प म ा त भूलोक
पर वजय करते ह. द त वाले सूय से संबं धत वृ के ारा हम आ द य के सुख क इ छा
करते ह. (६)
इ ो पेणा नवहेन जाप तः परमे ी वराट् .
व ानरे अ मत वै ानरे अ मतानडु मत.
सो ऽ ं हयत सो ऽ धारयत.. (७)
यह वृषभ आकृ त से इं तथा अपने कंधे से अ न के समान है. इस कार यह वृषभ
जाप त प है. (७)
म यमेतदनडु हो य ैष वह आ हतः.
एतावद य ाचीनं यावान् यङ् समा हतः.. (८)
इस वृषभ के शरीर म जाप त व ह. उ ह ने इस के शरीर के म य भाग को
भार वहन करने यो य बनाया है. इस के म य भाग म भार रखा है. इस के अगले और पछले
दोन भाग समान ह. (८)
यो वेदानडु हो दोहा स तानुपद वतः.
जां च लोकं चा ो त तथा स तऋषयो व ः.. (९)
जो पु ष इस बैल के य र हत जौ आ द प सात दोहन को जानता है, वह पु , पौ
आ द संतान तथा वग आ द लोक को ा त करता है. इस बात को स त ऋ ष जानते ह.
(९)
प ः से दमव ाम रां जङ् घा भ खदन्.
मेणानड् वान् क लालं क नाश ा भ ग छतः.. (१०)
सू -१३ दे वता— व े दे व
उत दे वा अव हतं दे वा उ यथा पुनः.
उताग ु षं दे वा दे वा जीवयथा पुनः.. (१)
हे दे वो! य ोपवीत सं कार वाले इस बालक को धम पालन के वषय म सावधान करो.
इसे अ ययन से उ प ान आ द फल ा त कराओ. हे दे वो! इस ने अनु ान न करने के
प म जो पाप कया है, उस से इस क र ा करो. तुम इसे सौ वष तक जी वत रखो. (१)
ा वमौ वातौ वात आ स धोरा परावतः.
द ं ते अ य आवातु १ यो वातु यद् रपः.. (२)
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सागर और उस से भी र दे श से आने वाली दोन कार क हवाएं चल. ाण और
अपान वायु इस के शरीर म ग त कर. हे उपनयन सं कार वाले पु ष! ाण वायु तुझे बल
दान करे तथा अपान वायु तेरे पाप को र करे. (२)
आ वात वा ह भेषजं व वात वा ह यद् रपः.
वं ह व भेषज दे वानां त ईयसे.. (३)
हे वायु! सभी रोग का वनाश करने वाली जड़ीबूट लाओ तथा रोग उ प करने वाले
पाप का वनाश करो. हे वायु! तुम सभी ा धय को र करने वाली हो, इसी लए तु ह इं
आ द दे व का त कहा जाता है. (३)
ाय ता ममं दे वा ाय तां म तां गणाः.
ाय तां व ा भूता न यथायमरपा असत्.. (४)
इं आ द दे व इस उपनयन सं कार वाले चारी क र ा कर. उनचास म त् इस क
र ा कर. सभी ाणी इस क इस कार र ा कर, जस से यह पाप र हत हो सके. (४)
आ वागमं श ता त भरथो अ र ता त भः.
द ं त उ माभा रषं परा य मं सुवा म ते.. (५)
हे उपनयन सं कार वाले चारी! म सुख दे ने वाले मं और क याणकारी कम के
साथ तेरे पास आया ं. म तेरे लए उ एवं समृ दे ने वाला बल लाया ं. म य मा रोग को
तुझ से र भगाता ं. (५)
अयं मे ह तो भगवानयं मे भगव रः.
अयं मे व भेषजो ऽ यं शवा भमशनः.. (६)
मुझ ऋ ष का यह हाथ भा य वाला एवं भा यवा लय से भी अ धक उ म है. मेरा यह
हाथ सभी रोग को र करने वाली ओष ध है. इस का पश सुख दे ने वाला हो. (६)
ह ता यां दशशाखा यां ज ा वाचः पुरोगवी.
अनाम य नु यां ह ता यां ता यां वा भ मृशाम स.. (७)
हे उपनयन सं कार वाले बालक! जाप त के दस उंग लय वाले हाथ के ारा न मत
जीभ श द के आगेआगे चलती है. सर वती का उस म अ ध ान है. जाप त के उ ह
रोगनाशक हाथ से म तेरा पश करता ं. (७)
सू -१४ दे वता—अ न, आ य
अजो १ नेरज न शोकात् सो अप य ज नतारम े.
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तेन दे वा दे वताम आयन् तेन रोहान् म यासः.. (१)
बकरा अ न के ताप से उ प आ था. उस ने सभी पशु क सृ करने वाले
जाप त को सब से पहले दे खा. सृ के आ द म इं आ द दे व उसी बकरे के कारण दे व व
को ा त ए. उसी बकरे को साधन बना कर अ य ऋ ष भी वग आ द लोक म प ंचे. (१)
म वम नना नाकमु यान् ह तेषु ब तः.
दव पृ ं वग वा म ा दे वे भरा वम्.. (२)
हे मनु यो! तुम य के न म व लत अ न के ारा ःख र हत वग म प ंचो.
अंत र क पीठ के समान वग म प ंच कर तुम दे व के समान ऐ य ा त करो तथा वह
नवास करो. (२)
पृ ात् पृ थ ा अहम त र मा हम त र ाद् दवमा हम्.
दवो नाक य पृ ात् व १ य तरगामहम्.. (३)
म पृ वी क पीठ अथात् भूलोक से अंत र लोक पर और अंत र से वगलोक पर
चढ़ता ं. ःख र हत वग क पीठ से म सूयमंडल म थत हर यगभ पी यो त को ा त
करता ं. (३)
व १ य तो नापे त आ ां रोह त रोदसी.
य ं ये व तोधारं सु व ांसो वते नरे.. (४)
य के फल से ा त होने वाले वग को जाने वाले लोग पु , पशु आ द संबंधी सुख क
इ छा नह करते ह. जो यजमान व को धारण करने वाले य को भलीभां त जानते ए
उस का व तार करते ह, वे वग को जाते ह. (४)
अ ने े ह थमो दे वतानां च ुदवानामुत मानुषाणाम्.
इय माणा भृगु भः सजोषाः वय तु यजमानाः व त.. (५)
हे अ न दे व! तुम दे व म मु य होने के कारण य करने यो य थान पर प ंचो. अ न
दे व ह व प ंचाने के कारण इं आ द दे व को ने के समान य ह तथा मनु य को य के
ारा पु यलोक का दशन कराते ह. अ न के काश म य करने के इ छु क एवं य करने
वाले भृगुवंशी मह षय के साथ समान ी त वाले बन कर य के फल के प म वग ा त
कर. (५)
अजमन म पयसा घृतेन द ं सुपण पयसं बृह तम्.
तेन गे म सुकृत य लोकं वरारोह तो अ भ नाकमु मम्.. (६)
ुलोक के यो य एवं यजमान को वग म प ंचाने वाले बकरे को म रसयु घी से
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चुपड़ता ं. इस कार के बकरे क सहायता से पु य के फल के प म मलने वाले
वगलोक को जाएं तथा ःख के पश से शू य हो कर उ म सूय यो त को ा त कर. (६)
प चौदनं प च भरङ् गु ल भद र प चधैतमोदनम्.
ा यां द श शरो अज य धे ह द णायां द श द णं धे ह पा म्..
(७)
हे पाचक! पांच भाग म कटे ए इस बकरे को अपनी पांच उंग लय क सहायता से
पकड़ी ई कलछ के सहारे बटलोई से नकाल कर कुश पर रखो. पांच भाग म वभा जत
इस बकरे के पके ए सर को पूव दशा म रखो तथा इस के शरीर के दाएं भाग को द ण
दशा म था पत करो. (७)
ती यां द श भसदम य धे र यां द यु रं धे ह पा म्.
ऊ वायां द य१ज यानूकं धे ह द श ुवायां धे ह पाज यम त र े
म यतो म यम य.. (८)
इस बकरे क कमर के पके ए मांस को प म दशा म तथा इस के बाएं भाग के मांस
को उ र दशा म रखो. इस क पीठ के मांस को ऊपर क दशा म तथा पेट के मांस को नीचे
क दशा म रखो. इस के शरीर के म यवत मांस को आकाश म था पत करो. (८)
शृतमजं शृतया ोणु ह वचा सवर ै ः स भृतं व पम्.
स उत् त ेतो अ भ नाकमु मं प तु भः त त द ु.. (९)
अपने सभी अंग से पूण बने बकरे को सभी दशा म ा त करो. हे बकरे! तुम इस
लीक से चार पैर के ारा वगलोक म चढ़ते ए चार दशा को ा त करो. (९)
सू -१६ दे वता—व ण
बृह ेषाम ध ाता अ तका दव प य त.
य ताय म यते चर सव दे वा इदं व ः.. (१)
महान व ण इन श ु का नयं ण करते ए इन के सभी अ यायी जन को समीप से
दे खते ह. व ण जगत् क थावर एवं जंगम सभी व तु को जानते ह. अत य ान के
कारण दे वगण थर और न र सभी त व को जानते ह. (१)
य त त चर त य व च त यो नलायं चर त यः तङ् कम्.
ौ सं नष य म येते राजा तद् वेद व ण तृतीयः.. (२)
जो श ु सामने खड़ा होता है, जो चलता है, जो कु टलतापूवक ठगता है, जो छप कर
तकूल आचरण करता है तथा जो श ु क मय जीवन पा कर वरोध करता है, महान व ण
इन सभी श ु को समय से दे खते ह. दो एकांत म बैठ कर जो गु त मं णा करते ह,
उसे राजा व ण तीसरे के प म जानते ह. (२)
उतेयं भू मव ण य रा उतासौ ौबृहती रेअ ता.
उतो समु ौ व ण य कु ी उता म प उदके नलीनः.. (३)
यह भू म भी का न ह करने वाले वामी व ण के वश म रहती है. समीप और र
तक फैली ई धरती भी उ ह के अ धकार म है. पूव और प म म वतमान सागर व ण क
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कोख म है. इस कार व प जल म भी सारा जगत् छपा आ है. (३)
उत यो ाम तसपात् पर ता स मु यातै व ण य रा ः.
दव पशः चर तीदम य सह ा ा अ त प य त भू मम्.. (४)
जो अनथकारी श ु पु य कम से ा त होने वाले वग का अ त मण कर के कुमाग
पर चलता है, वह राजा व ण के पाश से न छू टे . वगलोक से नकलने वाले व ण के
गु तचर पृ वी पर घूमते ह. वे हजार आंख वाले होने के कारण भूलोक के सारे वृ ांत को
दे खते ह. (४)
सव तद् राजा व णो व च े यद तरा रोदसी यत् पर तात्.
सं याता अ य न मषो जनानाम ा नव नी न मनो त ता न.. (५)
धरती और आकाश के म य म तथा राजा व ण के सामने जो ाणी रहते ह, उ ह वे
वशेष प से दे खते ह. उन के भलेबुरे कम क गणना करने वाले व ण उन के कम के
अनुसार ऐसा दं ड न त करते ह, जस कार जुआरी अपनी वजय के लए पासे फकता
है. (५)
ये ते पाशा व ण स तस त ेधा त त व षता श तः.
छन तु सव अनृतं वद तं यः स यवा त तं सृज तु.. (६)
हे व ण! तु हारे उ म, म यम एवं अधम ेणी के सातसात पा पय के न ह के
न म जहांतहां बंधे ए ह. वे पाश पा पय क हसा करते ए थत ह, वे पाश अस य
भाषण करने वाले हमारे श ु को काट द और जो स यवाद है, उसे छोड़ द. (६)
शतेन पाशैर भ धे ह व णैनं मा ते मो यनृतवाङ् नृच ः.
आ तां जा म उदरं ंश य वा कोश इवाब धः प रकृ यमानः.. (७)
हे व ण! अपने सौ पाश से इस अस यवाद को बांधो. हे मनु य के भलेबुरे कम को
दे खने वाले! अस य बोलने वाला तुम से छू टने न पाए. बना वचारे काम करने वाला अपने
उदर को जलोदर रोग से षत पा कर तलवार क यान के समान झूलता रहे. (७)
यः समा यो ३ व णो यो ो यो ३ यः संदे यो ३ व णो यो वदे यः.
यो दै वो व णो य मानुषः.. (८)
व ण के सामा य पाश समान प से एवं वशेष पाश व ध प से मनु य को रोगी
बनाते ह. व ण का जो पाश समान दे श म तथा जो वदे श म बांधने वाला है, जो पाश दे व से
संबं धत और जो मनु य से संबं धत है, म उन सब पाश से तुझे बांधता ं. (८)
तै वा सवर भ या म पाशैरसावामु यायणामु याः पु .
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तानु ते सवाननुसं दशा म.. (९)
हे अमुक श ु, अमुक गो वाले एवं अमुक के पु , म तुझे व ण के इन सभी पाश से
बांधता ं. (९)
सू -१७ दे वता—अपामाग, वन प त
ईशानां वा भेषजानामु जेष आरभामहे.
च े सह वीय सव मा ओषधे वा.. (१)
हे सहदे वी! तू जड़ीबू टय क वा मनी है. म श ु ारा कए गए अ भचार के दोष को
शांत करने के लए तेरा पश करता ं. म अ भचार से उ प दोष को र करने के लए तुझे
साम य वाली बनाता ं. (१)
स य जतं शपथयावन सहमानां पुनःसराम्.
सवाः सम ोषधी रतो नः पारया द त.. (२)
वा तव म अ भचार आ द दोष को र करने वाली स य जत, सरे के आ ोश को
मटाने वाली शपथ यो गनी, सब को परा जत करने वाली सहमाना, बारबार ा ध का
वनाश करने वाली पुनःसरा नामक जड़ीबूट को अ य जड़ीबू टयां अ भचार दोष का नाश
करने के लए ा त होती ह. (२)
या शशाप शपनेन याघं मूरमादधे.
या रस य हरणाय जातमारेभे तोकम ु सा.. (३)
जस पशाची ने आ ोश म भर कर हम शाप दया है, जस ने मू छा दान करने वाला
पाप हमारी ओर भेजा है और जो शरीर के र आ द का हरण करने के लए मेरे पु आ द
का आ लगन करती है, वह मेरे ऊपर अ भचार करने वाले श ु के पु को खा जाए. (३)
यां ते च ु रामे पा े यां च ु न ललो हते.
आमे मांसे कृ यां यां च ु तया कृ याकृतो ज ह.. (४)
हे कृ या नाम क रा सी! अ भचार करने वाल ने तुझे मट् ट के बना पके पा म
धुआं उगलती ई नीली और लाल वाला वाली अ नय म तथा बना पके मांस म
अ भमं त कया है, तू उन का वनाश कर. (४)
दौ व यं दौज व यं र ो अ वमरा यः.
णा नीः सवा वाच ता अ म ाशयाम स.. (५)
हम अ भचार ारा सताए ए इस पु ष से बुरे व संबंधी भय को, जीवन वाले
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लोग संबंधी भय को, रा स संबंधी भय को और महान अ भचार से उ प भय के कारण
को न करते ह. द र ता के कारण पाप ल मयां, छे दका, भे दका आ द नाम वाली जो
पशा चयां ह, म उ ह भी इस के शरीर से र भगाता ं. (५)
ु ामारं तृ णामारमगोतामनप यताम्.
ध
अपामाग वया वयं सव तदप मृ महे.. (६)
हे अपामाग! हम तेरी सहायता से भूख क पीड़ा से पु ष को मारने वाले एवं यास क
अ धकता से पु ष क मृ यु करने वाले अ भचार का वनाश करते ह. हम तेरी सहायता से
गाय के अभाव को और संतानहीनता को भी समा त करते ह. (६)
तृ णामारं ुधामारमथो अ पराजयम्.
अपामाग वया वयं सव तदप मृ महे.. (७)
हे अपामाग! हम तेरी सहायता से यास क पीड़ा से पु ष को मारने वाले, भूख क
पीड़ा से पु ष को मारने वाले अ भचार एवं जुए म पराजय को र भगाना चाहते ह. (७)
अपामाग ओषधीनां सवासामेक इद् वशी.
तेन ते मृ म आ थतमथ वमगद र.. (८)
हे अ भचार के दोष से गृहीत पु ष! एकमा अपामाग ही सब जड़ीबू टय को वश म
करने वाला है. हम अपामाग क सहायता से तुझ म अ भचार ारा उ प रोग आ द को र
करते ह. इस के प ात तू रोग र हत हो कर वचरण कर. (८)
सू -१८ दे वता—अपामाग, वन प त
समं यो तः सूयणा ा रा ी समावती.
कृणो म स यमूतये ऽ रसाः स तु कृ वरीः.. (१)
सूय से उस का यो तमंडल कभी अलग नह होता. रा दन के समान व तार वाली
होती है, उसी कार म यथाथ कम करता ं. म अ भचार से पी ड़त पु ष क र ा के लए
वनाश करने वाली कृ या को काय करने म असमथ बनाता ं. (१)
यो दे वाः कृ यां कृ वा हराद व षो गृहम्.
व सो धा रव मातरं तं यगुप प ताम्.. (२)
हे दे वो! जो मनु य मं और ओष ध के ारा पीड़ा प ंचाने वाली कृ या के नमाण हेतु
उस के घर जाता है. जस कार बछड़ा गाय के पीछे पीछे जाता है, उसी कार वह कृ या
अ भचार करने वाले पु ष के समीप जाए. (२)
सू -१९ दे वता—अपामाग वन प त
उतो अ यब धुकृ तो अ स नु जा मकृत्.
उतो कृ याकृतः जां नड मवा छ ध वा षकम्.. (१)
हे अपामाग अथवा सहदे वी! तू श ु और वरो धय का वनाश करने म समथ है. तू
कृ या का योग करने वाले के पु , पौ आ द को वषा ऋतु म उ प होने वाली नड नाम
क घास के समान काट कर न कर दे . (१)
ा णेन पयु ा स क वेन नाषदे न.
सेनेवै ष वषीमती न त भयम त य ा ो याषधे.. (२)
हे सहदे वी अथवा अपामाग नषाद के पु कण नामक मं ा ा ण ने तेरा योग
कया है. यजमान क र ा के लए तू सेना के समान गमन करती है. तू जस दे श म ा त
होती है, वहां अ भचार संबंधी भय नह रहता. (२)
अ मे योषधीनां यो तषेवा भद पयन्.
उत ाता स पाक याथो ह ता स र सः.. (३)
हे सहदे वी अथवा अपामाग! तू सभी जड़ीबू टय म उसी कार े है, जस कार
काश करने वाल म सूय! तू बल क र क और उसे बाधा प ंचाने वाले रा स क
वनाशक है. (३)
यददो दे वा असुरां वया े नरकुवत.
तत वम योषधे ऽ पामाग अजायथाः.. (४)
हे ओष ध! ाचीन काल म इं आ द दे व ने तेरे ारा ही रा स को परा जत कया
था. इसी कारण तू ने अपामाग नाम ा त कया था. (४)
व भ दती शतशाखा व भ दम् नाम ते पता.
यग् व भ ध वं तं यो अ मां अ भदास त.. (५)
हे अपामाग! तू सैकड़ शाखा वाली हो कर व भदती नाम ा त करती है. तूझे
उ प करने वाला व भद कहलाता है. जो श ु हमारा वनाश करना चाहता है, तू उस क
वरोधी बन कर उस का वनाश कर. (५)
सू -२० दे वता—जड़ीबूट
आ प य त त प य त परा प य त प य त.
दवम त र माद् भू म सव तद् दे व प य त.. (१)
हे सदापु पा नाम क जड़ीबूट ! यह पु ष तेरी म ण को धारण करने वाला होने से आने
वाले भय के कारण को, वतमान भय के कारण को तथा भ व य काल म होने वाले भय के
कारण को दे खता है और र करना जानता है. यह वग, अंत र एवं पृ वी पर नवास करने
वाले सभी ा णय को म ण धारण के कारण दे खता है. (१)
त ो दव त ः पृ थवीः षट् चेमाः दशः पृथक्.
वयाहं सवा भूता न प या न दे ोषधे.. (२)
हे सदापु पा जड़ीबूट ! तेरी म ण को धारण करने के भाव से म तीन वग , तीन
पृ वय , छह दशा , अथात् पूव, प म, उ र, द ण, ऊपर, नीचे तथा इन सब म रहने
वाले सभी ा णय को जानता ं. (२)
द य सुपण य त य हा स कनी नका.
सा भू ममा रो हथ व ं ा ता वधू रव.. (३)
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हे सदापु पा जड़ीबूट ! तू द ग ड़ क कनी नका अथात् आंख क पुतली के समान
है. तू ग ड़ के ने से नकल कर धरती पर उसी कार उगी है, जस कार थकान के कारण
चलने म असमथ वधू सवारी पर बैठ जाती है. (३)
तां मे सह ा ो दे वो द णे ह त आ दधत्.
तयाहं सव प या म य शू उतायः.. (४)
हजार आंख वाले इं दे व ने उस सदा पु पा को मेरे दा हने हाथ म धारण कराया है. तेरे
भाव से म सब को दे खता और वश म करता ं, चाहे वह शू हो अथवा आय अथात्
ा ण, य और वै य. (४)
आ व कृणु व पा ण मा मानमप गूहथाः.
अथो सह च ो वं त प याः कमी दनः.. (५)
हे ओष ध! तू अपने रा स, पशाच आ द को र करने वाले प को का शत कर
तथा अपने व प को मत छपा. हे जड़ीबूट ! हमारी र ा के लए उन रा स क ती ा
कर जो छपे ए प से यह खोजते ए घूमते ह क यह या है, यह या है? (५)
दशय मा यातुधानान् दशय यातुधा यः.
पशाचा सवान् दशये त वा रभ ओषधे.. (६)
हे सदापु पा जड़ी! मुझे रा स एवं रा सय के दशन कराओ. वे गूढ़ प से मुझे
बाधा न प ंचा सक. म तु ह इसी लए धारण करता ं क तुम मुझे सभी पशाच को
दखाओ. (६)
क यप य च ुर स शु या चतुर याः.
वी े सूय मव सप तं मा पशाचं तर करः.. (७)
हे सदापु पा जड़ी! तू मह ष क यप एवं चार आंख वाली दे वशुनी सरमा क आंख है
अथात् उन क आंख के समान आकृ त वाली है. अंत र म सूय जस कार वचरण करते
ह, उसी कार चलते फरते पशाच को तू मुझ से मत छपा. (७)
उद भं प रपाणाद् यातुधानं कमी दनम्.
तेनाहं सव प या युत शू मुतायम्.. (८)
खोज करने के लए घूमते ए रा स को म ने अपनी र ा क से वश म कर लया
है. उस पशाच क सहायता से म शू एवं ा ण जा त वाले ह को दे खता ं. (८)
यो अ त र ेण पत त दवं य ा तसप त.
भू म यो म यते नाथं तं पशाचं दशय.. (९)
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जो पशाच अंत र से गरता है, जो वगलोक से ऊपर गमन करता है और धरती को
अपने अ धकार म मानता है, उस पशाच को भी मुझे दखा, जस से म उस का नराकरण
कर सकूं. (९)
सू -२१ दे वता—गाएं
आ गावो अ म त ु भ म सीद तु गो े रणय व मे.
जा ऽ वतीः पु पा इह यु र ाय पूव षसो हानाः.. (१)
गाएं हमारी ओर आएं, हमारा क याण कर, हमारी गोशाला म बैठ तथा हम ध आ द
दे कर स कर. ेत, कृ ण आ द अनेक वण क गाएं अ धक संतान वाली हो कर यजमान
के घर म समृ बन तथा अ धक समय तक इं के न म ध दे ती रह. (१)
इ ो य वने गृणते च श त उपेद ् ददा त न वं मुषाय त.
भूयोभूयो र य मद य वधय भ े ख ये न दधा त दे वयुम्.. (२)
इं तु त करने वाले यजमान को गाय ा त करने का उपाय बताते ह तथा उ ह ब त
सी गाएं दान करते ह. इं उस यजमान के धन का अपहरण नह करते. वे उस तोता और
यजमान के धन को अ धक मा ा म बढ़ाते ए उसे वग म थान दलाते ह, जस म ःख
नह होता. (२)
न ता नश त न दभा त त करो नासामा म ो थरा दधष त.
दे वां या भयजते ददा त च यो गत् ता भः सचते गोप तः सह.. (३)
इं के ारा द गई गाएं न न ह तथा उ ह चोर न चुरा सक. श ु के आयुध उन
गाय को पीड़ा न प ंचाएं. जन गाय के ध और घी के ारा य कया जाता है और ज ह
य क द णा के प म दया जाता है, उन गाय के साथ यजमान अ धक समय तक रहे,
उन से वयु न हो. (३)
न ता अवा रेणुककाटो ऽ ुते न सं कृत मुप य त ता अ भ.
उ गायमभयं त य ता अनु गावो मत य व चर त य वनः.. (४)
हसक एवं कमर के टु कड़े करने वाले बाघ आ द पशु उन गाय तक न प ंच. वे
गाएं मांस पकाने वाले के समीप न जाएं एवं यजमान के भय र हत थान को ा त ह . (४)
गावो भगो गाव इ ो म इ छाद् गावः सोम य थम य भ ः.
इमा या गावः स जनास इ इ छा म दा मनसा च द म्.. (५)
गाएं ही पु ष का धन और सौभा य ह. इं ऐसी इ छा कर, जस से मुझे गाएं मल
सक. छाना गया सोमरस गाय के ध और दही म ही स कया जाता है. हे मनु यो! ये जो
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गाएं दखाई दे ती ह, वे ही इं ह. इस हेतु म गाय के ध, घी आ द ह व के ारा दय और
ान से इं का य करना चाहता ं. (५)
यूयं गावो मेदयथा कृशं चद ीरं चत् कृणुथा सु तीकम्.
भ ं गृहं कृणुथ भ वाचो बृहद् वो वय उ यते सभासु.. (६)
हे गायो! तुम अपने ध, घी आ द से बल मनु य को भी मोटाताजा बनाओ तथा
अशोभन अंग वाले को शोभन अवयव वाला बनाओ. हे क याणी वाणी वाली गाय! हमारे
घर को अलंकृत बनाओ. तु हारे ध, दही, घी आ द से बना भोजन सभा म अ धक शंसा
पाता है. (६)
जावतीः सूयवसे श तीः शु ा अपः सु पाणे पब तीः.
मा व तेन ईशत माघशंसः प र वो य हे तवृण ु .. (७)
हे गाय! तुम उ म घास वाली भू म म चलती ई व छ जल पयो और उ म संतान
वाली बनो. चोर तु ह न चुरा सके. बाघ आ द पशु तु हारी हसा न कर. का आयुध
तु हारा पश न करे. (७)
सू -२३ दे वता—अ न
अ नेम वे थम य चेतसः पा चज य य ब धा य म धते.
वशो वशः व शवांसमीमहे स नो मु च वंहसः.. (१)
म मु य वशेष ानी एवं दे वय , पतृय , सूतय , मनु यय और बृहत्य नामक
पांच य करने वाले अ न दे व का मह व जानता ं. उ ह अनेक कार से व लत कया
जाता है. सभी जा म जठरा न के प म वेश करने वाले अ न दे व से म याचना करता
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ं क वह मुझे पाप से बचाएं. (१)
यथा ह ं वह स जातवेदो यथा य ं क पय स जानन्.
एवा दे वे यः सुम त न आ वह स नो मु च वंहसः.. (२)
हे जातवेद अ न! तुम जस कार च , पुरोडाश आ द ह को दे व तक प ंचाते हो
तथा जस कार ान रखते ए य पूण करते हो, उसी कार हमारे वषय म दे व क उ म
बु को लाओ. इस कार के अ न हम पाप से छु ड़ाएं. (२)
याम याम प
ु यु ं व ह ं कम कम ाभगमम नमीड़े.
र ोहणं य वृधं घृता तं स नो मु च वंहसः (३)
होम के आधार पर होने के कारण अनेक फल ा त कराने म नयु , ढोने वाल म
े , अनेक य कम के ारा सेवनीय, रा स के वनाश कता, य क वृ करने वाले
एवं घृत क आ तय से द त अ न क म तु त करता ं. इस कार के अ न मुझे पाप से
छु ड़ाएं. (३)
सुजातं जातवेदसम नं वै ानरं वभुम्.
ह वाहं हवामहे स नो मु च वंहसः.. (४)
शोभन ज म वाले, उ प होने वाले ा णय के ाता, संसार के मनु य के हतैषी,
ापक एवं ह वहन करने वाले अ न का म आ ान करता ं. वह पाप से मेरी र ा कर.
(४)
येन ऋषयो बलम ोतयन् युजा येनासुराणामयुव त मायाः.
येना नना पणी न ो जगाय स नो मु च वंहसः.. (५)
ऋ षय ने जन म बने ए अ न क सहायता से अपना साम य बढ़ाया, दे व ने जन
क सहायता से असुर क माया को न कया तथा जन अ न क सहायता से इं ने प णय
को परा जत कया, वे अ न मुझे पाप से बचाए. (५)
येन दे वा अमृतम व व दन् येनौषधीमधुमतीरकृ वन्.
येन दे वाः व १ राभर स नो मु च वंहसः.. (६)
जस अ न क सहायता से दे व ने अमृत ा त कया, जन अ न क सहायता से
जड़ीबू टय ने मधुर रस ा त कया तथा जन क सहायता से वग ा त कया जाता है, वह
अ न दे व मुझे पाप से छु ड़ाएं. (६)
य येदं द श यद् वरोचते य जातं ज नत ं च केवलम्.
तौ य नं ना थतो जोहवी म स नो मु च वंहसः.. (७)
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जस अ न के शासन म सारा जगत् वतमान है, अंत र म ह, न आ द का शत
ह, उ प ए और उ प होने वाले सभी ाणी जन के शासन म ह, म उन अ न क तु त
करता ं तथा फल क कामना से बार-बार हवन करता ं. ऐसे अ न दे व मुझे पाप से
छु ड़ाएं. (७)
सू -२४ दे वता—इं
इ य म महे श दद य म महे वृ न तोमा उप मेम आगुः.
यो दाशुषः सुकृतो हवमे त स नो मु च वंहसः.. (१)
म बारबार इं का मह व वीकार करता ं. वृ क ह या करने वाले इं के ये तो मेरे
समीप आ कर मुझे तोता बनाते ह. जो इं च , पुरोडाश आ द दे ने वाले एवं उ म य
करने वाले यजमान का आ ान वीकार करते ह, वह इं मुझे पाप से बचाएं. (१)
य उ ीणामु बा ययुय दानवानां बलमा रोज.
येन जताः स धवो येन गावः स नो मु च वंहसः.. (२)
जो इं ऊपर हाथ उठा कर श ु सेना को भगा दे ते ह, ज ह ने दानव के बल को
सभी ओर से न कर दया है, जन इं ने मेघ म थत जल को जीता था तथा ज ह ने
प णय के ारा चुराई ई गाएं ा त क , वह हम पाप से छु ड़ाएं. (२)
य ष ण ो वृषभः व वद् य मै ावाणः वद त नृ णम्.
य या वरः स तहोता म द ः स नो मु च वंहसः.. (३)
जो इं मनु य को मनचाहा फल दे कर पूण करने वाले, बैल के समान श शाली और
वग ा त करने वाले ह, जन इं के लए प थर सोमरस दान करते ह एवं सात होता से
यु जन इं से संबं धत सोमयाग स करने वाला होता है, वह हम पाप से बचाएं. (३)
य य वशास ऋषभास उ णो य मै मीय ते वरवः व वदे .
य मै शु ः पवते शु भतः स नो मु च वंहसः.. (४)
जन इं के य के न म बांझ गाएं, बैल एवं सांड़ लाए जाते ह, वग ा त करने
वाले जन इं के न म य म गांठ वाले खंभे गाड़े जाते ह तथा जन इं के न म
नचोड़ने के साधन से यु एवं नमल सोमरस छाना जाता है, वह इं हम पाप से बचाएं.
(४)
य य जु सो मनः कामय ते यं हव त इषुम तं ग व ौ.
य म कः श ये य म ोजः स नो मु च वंहसः.. (५)
सोमरस वाले यजमान जन क ी त क कामना करते ह तथा जन आयुध धारी इं
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को प णय ारा चुराई गई गाय क खोज के लए बुलाया जाता है तथा जन इं के वषय
म अचना के साधन मं आ त ह, वह इं हम पाप से बचाएं. (५)
यः थमः कमकृ याय ज े य य वीय थम यानुबु म्.
येनो तो व ो ऽ यायता ह स नो मु च वंहसः.. (६)
जो इं मुख प से यो त ोम आ द य करने के लए उ प ए थे, जन मुख
इं का वृ हनन संबंधी शौय कम स है तथा जन के ारा उठाया गया व सभी ओर
हसा करता है, वह इं दे व मुझे पाप से बचाएं. (६)
यः सङ् ामान् नय त सं युधे वशी यः पु ा न संसृज त या न.
तौमी ं ना थतो जोहवी म स नो मु च वंहसः.. (७)
जो वतं इं हार करने के लए यु करते ह, जो पु ीपु ष के जोड़े बनाते ह, म
फल क कामना से उ ह इं क तु त करता ं और उन के न म बारबार हवन करता ं.
वह मुझे पाप से छु ड़ाएं. (७)
सू -२७ दे वता—म त्
म तां म वे अ ध मे ुव तु ेमं वाजं वाजसाते अव तु.
आशू नव सुयमान ऊतये ते नो मु च वंहसः.. (१)
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म उनचास म त का माहा य जानता ं. वे म त मुझे अपना कह. अ के लाभ का
अवसर आने पर वे इस अ क मेरे लए र ा कर. म घोड़ क लगाम के समान संय मत
म त को अपनी र ा के लए बुलाता ं. वे मुझे पाप से छु ड़ाएं. (१)
उ सम तं च त ये सदा य आ स च त रसमोषधीषु.
पुरो दधे म त्ः पृ मातॄं ते नो मु च वंहसः.. (२)
जो म त सदै व वषा क धारा से यु एवं वनाश र हत मेघ को आकाश म फैलाते ह
तथा गे ं, जौ, वृ आ द म रस स चते ह. म यमा वाणी जन क माता ह, ऐसे म त को म
अपने सामने रखता ं. वे मुझे पाप से बचाएं. (२)
पयो धेनूनां रसमोषधीनां जवमवतां कवयो य इ वथ.
श मा भव तु म तो नः योना ते नो मु च वंहसः.. (३)
हे म तो! तुम ांतदश हो कर गाय के ध को, जड़ीबू टय के रस को तथा घोड़ के
वेग को बढ़ाते हो. सभी काय करने म समथ वे म त् हमारे लए सुखकारी ह तथा हम पाप
से बचाएं. (३)
अपः समु ाद् दवमुद ् वह त दव पृ थवीम भ ये सृज त.
ये अ रीशाना म त र त ते नो मु च वंहसः.. (४)
जो म त्, सागर के जल को मेघ के ारा अंत र म प ंचाते ह, इस के प ात उसी
जल को अंत र से धरती पर छोड़ते ह, उ ह जल के वामी बन कर जो म त् वचरण
करते ह, वे हम पाप से छु ड़ाएं. (४)
ये क लालेन तपय त ये घृतेन ये वा वयो मेदसा संसृज त.
ये अ रीशाना म तो वषय त ते नो मु च वंहसः.. (५)
म त् वषा से उ प अ के ारा एवं जल के ारा जन को तृ त करते ह. जो प य
को चरबी से यु करते ह, जो म त् मेघ के ईश बन कर वचरण करते ह, वे हम पाप से
बचाएं. (५)
यद ददं म तो मा तेन य द दे वा दै ेने गार.
यूयमी श वे वसव त य न कृते ते नो मु च वंहसः.. (६)
हे म तो! य द मेरा ःख अथवा ःख का कारण पाप मुझे म त् संबंधी अपराध के
कारण ा त आ है, हे इं आ द दे वो! य द मुझे यह ःख दे व संबंधी अपराध के कारण
ा त आ है तो हे म तो! इस ःख अथवा पाप को मटाने म तुम समथ हो. तुम मुझे पाप
से छु ड़ाओ. (६)
सू -२८ दे वता—भव, शव
भवाशव म वे वां त य व ं ययोवा मदं द श यद् वरोचते.
याव येशाथे पदो यौ चतु पद तौ नो मु चतमंहसः.. (१)
हे भव और शव! म तु हारा मह व जानता ं. मेरे ारा कहा जाता आ अपना मह व
तुम जानो. तुम दोन के शासन म यह सारा व का शत होता है. भव और शव श ु को
अपने व से संयु करते ह, इस समय या उ प आ है, ऐसी खोज करने वाले रा स
को भी अपने आयुध से मारो. जो भव और शव इस व के दो पैर वाले मनु य और चार
पैर वाले पशु के वामी ह, वे हम पाप से बचाएं. (१)
ययोर य व उत यद् रे चद् यौ व दता वषुभृताम स ौ.
याव येशाथे पदो यौ चतु पद तौ नो मु चतमंहसः.. (२)
जन भव और शव के माग के समीप अथवा र जो कुछ भी है, वह उ ह के अ धकार
म है, जो भव और शव सब के ारा ात, वपुषधारी और बाण फकने म कुशल है, जो इस
संसार के दो पैर वाले मनु य तथा चार पैर वाले पशु के वामी ह, वे हम पाप से बचाएं.
(२)
सह ा ौ वृ हणा वे ऽ हं रेग ूती तुव े यु ौ.
याव येशाथे पदो यौ चतु पद तौ नो मु चतमंहसः.. (३)
म हजार आंख वाले वृ का त करता ं एवं र दे श म वतमान भव और शव का
आ ान करता ं. म उ ह श शा लय क शंसा करता ं जो भव और शव इस संसार के
दो पैर वाले मनु य और चार पैर वाले पशु के वामी ह, वे हम पाप से बचाएं. (३)
यावारेभाथे ब साकम े चेद ा म भभां जनेषु.
याव येशाथे पदो यौ चतु पद तौ नो मु चतमंहसः.. (४)
हे भव और शव! तुम ने सृ के आ द म ब त से ा णय के समूह का नमाण कया
है. इस के प ात उन म वीय क पया त मा ा म रचना कर, जो भव और शव इस व के दो
पैर वाले मनु य और चार पैर वाले पशु के वामी ह, वे हम पाप से छु ड़ाएं. (४)
सू -२९ दे वता— म , व ण
म वे वां म ाव णावृतावृधौ सचेतसौ णो यौ नुदेथे.
स यावानमवथो भरेषु तौ नो मु चतमंहसः.. (१)
हे ऋत् अथात् स य, जल अथवा य को बढ़ाने वाले एवं समान ान वाले म और
व ण! म तुम दोन के मह व क तु त करता ं. तुम ोह करने वाल का हनन कर दे ते हो.
तुम स य त पु ष क सं ाम म र ा करते हो. ऐसे म और व ण मुझे पाप से बचाएं.
(१)
सचेतसौ णो यौ नुदेथे स यावानमवथो भरेषु.
यौ ग छथो नृच सौ ब ुणा सुतं तौ नो मु चतमंहसः.. (२)
हे समान ान वाले म और व ण! तुम दोन ोह करने वाल का पतन करते हो और
स य त जन क यु म र ा करते हो. तुम दोन पीले रंग के रथ के ारा चल कर नचोड़े
गए सोमरस को ा त करते हो एवं मनु य के कम के सा ी हो. तुम दोन हम पाप से
बचाओ. (२)
सू -३० दे वता—वाक्
अहं े भवसु भ रा यहमा द यै त व दे वैः.
अहं म ाव णोभा बभ यह म ा नी अहम नोभा.. (१)
अंभृण मह ष क वा दनी पु ी वाक् ने वयं को समझ कर तु त क है. म
और वसु के साथ संचरण करती ं. म आ द य और व े दे व के साथ संचरण करती ं.
म और व ण को म ही धारण करती ं. इं , अ न तथा दोन अ नीकुमार को भी म ने
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ही धारण कया है. (१)
अहं रा ी स मनी वसूनां च कतुषी थमा य यानाम्.
तां मा दे वा दधुः पु ा भू र था ां भूयावेशय तः.. (२)
म ही दखाई दे ने वाले व का नयं ण करने वाली, उपासक को फल के प म धन
दलाने वाली, पर का सा ा कार करने वाली तथा य के यो य दे व म मुख ं. अनेक
भाग से पंच म थत मुझ को उपासक को फल दे ने वाले दे व ब त से साधन म नधा रत
करते ह. (२)
अहमेव वय मदं वदा म जु ं दे वानामुत मानुषाणाम्.
यं कामये त तमु ं कृणो म तं ाणं तमृ ष तं सुमेधाम्.. (३)
म ही वयं अनुभव कए गए के वषय म लोक हत क से कह रही ं. वह
दे व और मनु य का य है. म जस जस पु ष क र ा करना चाहती ,ं उसउस को
बलवान बना दे ती ं. म उसे , ऋ ष और उ म बु वाला बना दे ती ं. (३)
मया सो ऽ म यो वप य त यः ाण त य शृणो यु म्.
अम तवो मां त उप य त ु ध ुत े यं ते वदा म.. (४)
भोग करने वाला जो मनु य अ खाता है, वह मुझ श पा के ारा ही अ खाता
है. जो मनु य व को दे खता है, सांस लेता है अथवा सुनता है, ये सब ापार श थान
म म ही करती ं. मुझे न मानते ए वे संसार म ीण होते ह. हे सखा! मेरी कही ई बात
सुन. म तुझे ा के यो य का उपदे श करती ं. (४)
अहं ाय धनुरा तनो म षे शरवे ह तवा उ.
अहं जनाय समदं कृणो यहं ावापृ थवी आ ववेश.. (५)
म ा ण के े षी एवं हसक को मारने के लए महादे व का धनुष तानती ं अथात्
उस क डोरी ख चती ं. म ही तोता जन के लए सं ाम करती ं तथा ावा और पृ वी म
म ही व ं. (५)
अहं सोममाहनसं बभ यहं व ारमुत पूषणं भगम्.
अहं दधा म वणा ह व मते सु ा ा ३ यजमानाय सु वते.. (६)
नचोड़ने यो य सोमरस को अथवा श ु का वनाश करने एवं वग म थत सोम को
म ही धारण करती ं. व ा, पूषा और भव को भी म ही धारण करती ं. ह व लए ए, दे व
को ह व ा त कराने वाले एवं सोमरस नचोड़ने वाले यजमान के लए य के फल के प म
धन म ही धारण करती ं. (६)
सू -३१ दे वता—म यु
वया म यो सरथमा ज तो हषमाणा षतासो म वन्.
त मेषव आयुधा सं शशाना उप य तु नरो अ न पाः.. (१)
हे ोध के अ भमानी दे व म यु! तेरे ारा रथ वाले श ु को पी ड़त करते ए, स एवं
ोध म भरे, तेज बाण वाले तथा आयुध क धार तेज करते ए हमारे मनु य तेरी कृपा से
वायु के समान वेग वाले एवं अ न के समान अपरा जत बन कर श ु के पास जाएं. (१)
अ न रव म यो व षतः सह व सेनानीनः स रे त ए ध.
ह वाय श ून् व भज व वेद ओजो ममानो व मृधो नुद व.. (२)
हे म यु! तुम आग के समान द त हो कर श ु को परा जत करो. हे सहनशील म यु!
तुम हमारी सेना के सेनाप त बन कर बुलाए जाने पर आओ और हमारे श ु को मार कर
उन का धन हम दान करो. तुम श का दशन करते ए सं ामकारी श ु का वध
करो. (२)
सह व म यो अ भमा तम मै जन् मृणन् मृणन् े ह श ून्.
उ ं ते पाजो न वा र े वशी वशं नयासा एकज वम्.. (३)
हे म यु! इस राजा के श ु क सेना के हाथी, घोड़े आ द को कुचलते ए एवं न करते
ए श ु को परा जत करने के लए आओ. हे अ धक श शाली म यु! तु हारे बल को
कोई रोक नह सकता. हे बना सहायक के काय करने वाले एवं सब को वश म करने वाले
म यु! तुम सभी जन को वाधीन बनाते हो. (३)
एको ब नाम स म य ई डता वशं वशं यु ाय सं शशा ध.
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अकृ क् वया युजा वयं ुम तं घोषं वजयाय कृ म स.. (४)
हे म यु! हमारे ारा तुत तुम अकेले ही ब त से श ु का वनाश करने म समथ हो.
तुम सभी जा म वेश कर के उ ह यु के लए े रत करो. हे अ व छ द त वाले
म यु! तु हारी सहायता से हम वजय के लए सहनाद के समान घोष करते ह. (४)
वजेषकृ द इवानव वो ३ माकं म यो अ धपा भवेह.
यं ते नाम स रे गृणीम स व ा तमु सं यत आबभूथ.. (५)
हे म यु! वजय करने वाले तुम इं के समान वजय के ाचीन उपाय के बताने वाले
बन कर इस सं ाम म हमारा पालन करो. हे सहनशील म यु! हम तु ह स करने वाली
तु तयां बोल रहे ह. जस थान से तुम कट होते हो, हम उस अमृत धारा वाले थान को
जानते ह. (५)
आभू या सहजा व सायक सहो बभ ष सहभूत उ रम्.
वा नो म यो सह मे े ध महाधन य पु त संसृ ज.. (६)
हे व के समान अकुं ठत श वाले! हे श ु का अंत करने वाले एवं श ु के
पराजय के साथ उ प म यु! तुम उ म बल धारण करते हो. तुम हमारे य के साथ चकने
बनो. हे ब त से यजमान ारा बुलाए गए म यु! धन ा त वाले सं ाम म हमारे सहायक
बनो. (६)
संसृ ं धनमुभयं समाकृतम म यं ध ां व ण म युः.
भयो दधाना दयेषु श वः परा जतासो अप न लय ताम्.. (७)
व ण और म यु अपना धन ला कर हम द. हमारे श ु दय म भय धारण करते ए
परा जत ह तथा भयभीत हो कर भाग जाएं. (७)
सू -३२ दे वता—म यु
य ते म यो ऽ वधद् व सायक सह ओजः पु य त व मानुषक्.
सा ाम दासमाय वया युजा वयं सह कृतेन सहसा सह वता.. (१)
हे म यु! जो पु ष तु हारी सेवा करता है, हे व के समान अकुं ठत श वाले एवं
श ु का अंत करने वाले! वह पु ष न य श ु को परा जत करने वाला अपना बल
संपूण प से बढ़ाता है. तुम बल उ प करने वाले, हराने वाले और श दे ने वाले हो.
तु हारी सहायता से हम असुर एवं उन के श ु दे व को भी परा जत कर. (१)
म यु र ो म युरेवास दे वो म युह ता व णो जातवेदाः.
म युं वश ईडते मानुषीयाः पा ह नो म यो तपसा सजोषाः.. (२)
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म यु ही इं ह और म यु ही सम त दे व ह. म यु दे व का आ ान करने वाले, व ण एवं
जातवेद अ न ह. जो मानुषी जाएं ह, वे भी म यु क ही तु त करती ह. हे म यु! तुम तप से
संयु हो कर हमारी र ा करो. (२)
अभी ह म यो तवस तवीयान् तपसा युजा व ज ह श ून्.
अ म हा वृ हा द युहा च व ा वसू या भरा वं नः.. (३)
हे म यु! हमारे सामने आओ एवं महान से भी महान बन कर अपने संताप क सहायता
से हमारे श ु का वनाश करो. नेह न करने वाले के हंता, श ु वधकारक एवं द यु
वनाशकारी तुम हमारे लए सभी धन को लाओ. (३)
वं ह म यो अ भभू योजाः वयंभूभामो अ भमा तषाहः.
व चष णः स रः सहीयान मा वोजः पृतनासु धे ह.. (४)
हे म यु! तु हारा बल परा जत करने वाला है. तुम वयंभू, ोधी, श ु को सहन करने
वाले, व के ा, सहनशील एवं सहने वाल म े हो. तुम सं ाम म हम बल दान करो.
(४)
अभागः स प परेतो अ म तव वा त वष य चेतः.
तं वा म यो अ तु जहीडाहं वा तनूबलदावा न ए ह.. (५)
हे उ म ान वाले म यु! तु हारे महान य म भाग न लेने वाला अथात् तु हारा
यजमान न बनने वाला म यु से भाग आया ं. तु हारे संतोष के कम न करने वाले म ने तु ह
ो धत बना दया. इस समय तुम मेरे बलदाता बन कर आओ. (५)
अयं ते अ युप न ए वाङ् तीचीनः स रे व दावन्.
म यो व भ न आ ववृ व हनाव द यूं त बो यापेः.. (६)
हे म यु! म तु हारा य कम करने वाला हो गया .ं तुम मेरे समीप आओ और मेरे
सामने हो कर श ु क ओर चलो. हे सहनशील एवं सभी फल दे ने वाले! हे वजनशील
आयुधधारी म ! हमारे सामने रहो. हम दोन अपने श ु का वनाश करगे. तुम हम अपना
बंधु जानो. (६)
अ भ े ह द णतो भवा नो ऽ धा वृ ा ण जङ् घनाव भू र.
जुहो म ते ध णं म वो अ मुभावुपांशु थमा पबाव.. (७)
हे म यु! हमारे सामने आओ और हमारी दा हनी ओर रह कर हमारे स चव का काम
करो. इस के प ात हम ब त से श ु का वनाश करगे. हम तु हारे लए धारण करने वाले
मधुर सोमरस का सार अंश दे ते ह. हम दोन सब से पहले इस कार सोमरस पएं क कसी
को पता नह चले. (७)
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सू -३३ दे वता—अ न
अप नः शोशुचदघम ने शुशु या र यम्. अप नः शोशुचदघम्.. (१)
हे अ न! तुम सभी ओर मुख वाले एवं सव ापक हो. तुम हमारे पाप न करो. (६)
षो नो व तोमुखा त नावेव पारय. अप नः शोशुचदघम्.. (७)
हे सभी ओर मुख वाले अ न! जस कार लोग नाव के ारा उस पार प ंच जाते ह,
उसी कार हमारे श ु को हम से र करो तथा हमारे पाप को न करो. (७)
स नः स धु मव नावा त पषा व तये. अप नः शोशुचदघम्.. (८)
हे उ गुण वाले अ न! जस कार नाव के ारा सागर को पार करते ह, उसी कार
हमारे श ु को हम से र करो एवं हमारे पाप को न करो. (८)
सू -३७ दे वता—जड़ीबूट आ द
वया पूवमथवाणो ज नू र ां योषधे.
वया जघान क यप वया क वो अग यः.. (१)
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हे जड़ीबू टयो! ाचीन काल म तु ह साधन बना कर अथववेद संबंधी मह षय ने
रा स को मारा था. तु हारे ारा क यप, क व और अग य ऋ षय ने रा स का वध
कया. (१)
वया वयम सरसो ग धवा ातयामहे.
अजशृङ् यज र ः सवान् ग धेन नाशय.. (२)
हे अजशृंगी नाम क जड़ी! तुझे साधन बना कर हम उप व करने वाली अ सरा और
गंधव का नाश करते ह. तू रा स को यहां से र भगा तथा अपनी गंध से सभी रा स का
वनाश कर. (२)
नद य व सरसो ऽ पां तारमव सम्.
गु गुलूः पीला नल ौ ३ ग धः म दनी.
तत् परेता सरसः तबु ा अभूतन.. (३)
गंधव क प नयां अ सराएं अपने वास थान पर उसी कार चली जाएं, जस कार
नद पार करने वाले म लाह के समीप प ंचते ह. हे अ सराओ! गु गुलु, पीला, नलवी,
ओ गं ध एवं मं दनी के हवन से भयभीत हो कर अपने नवास थान को चली जाओ तथा
वह रहो. (३)
य ा था य ोधा महावृ ाः शख डनः.
तत् परेता सरसः तबु ा अभूतन.. (४)
जहां अ थ, य ोध आ द महावृ एवं मोर होते ह, हे अ सराओ! वहां से अपने
नवास थान को चली जाओ तथा वह क रहो. (४)
य वः ेङ्खा ह रता अजुना उत य ाघाटाः ककयः संवद त.
तत् परेता सरसः तबु ा अभूतनः.. (५)
हे अ सराओ! तु हारे खेलने के लए जहां झूले पड़े ह, उन झूल का रंग हरा और सफेद
है. जहां ककरी नाम के बाजे बजाए जाते ह, वहां से भाग कर अपने नवास थान को चली
जाओ तथा वह रहो. (५)
एयमग ोषधीनां वी धां वीयावती.
अजशृङ् यराटक ती णशृ ृषतु.. (६)
जड़ीबू टय एवं वृ म सब से अ धक श वाली अजशृंगी, अराटक तथा ती ण
शृंगी नाम क जड़ीबू टयां आ गई ह. इस थान से रा स भाग जाएं. (६)
आनृ यतः शख डनो ग धव या सरापतेः. भन द्म मु काव प या म
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शेपः.. (७)
म मोर के समान नाचते ए अ सरा के प त गंधव के अंडकोष को फोड़ता ं तथा उस
के पु ष जननांग को न य बनाता ं. (७)
भीमा इ य हेतयः शतमृ ीरय मयीः.
ता भह वरदान् ग धवानवकादान् ृषतु.. (८)
इं का आयुध भयंकर, सौ धार वाला एवं लोहे का बना आ है. उसी से वह ह व न
दे ने वाले एवं शैवाल खाने वाले गंधव को मार. (८)
भीमा इ य हेतयः शतमृ ी हर ययीः.
ता भह वरदान् ग धवानवकादान् ृषतु.. (९)
इं के आयुध भयंकर, सौ धार वाले एवं सोने के बने ह. इं उ ह से ह व न दे ने वाले
तथा शैवाल भ ण करने वाले गंधव का वध कर. (९)
अवकादान भशोचान सु योतय मामकान्.
पशाचा त् सवानोषधे मृणी ह सह व च.. (१०)
हे अजशृंगी जड़ी! शैवाल खाने वाले, सभी को शोक प च
ं ाने वाले उन गंधव को जल
म का शत करो, जो यु से संबं धत ह. तुम सभी पशाच को मारो तथा परा जत करो.
(१०)
ेवैकः क प रवैकः कुमारः सवकेशकः.
यो श इव भू वा ग धवः सचते य त मतो नाशयाम स णा
वीयावता.. (११)
मायावी होने के कारण एक गंधव कु े के समान, सरा बंदर के समान है. गंधव सारे
शरीर पर बाल उगे होने पर भी बालक ही होता है. गंधव दे खने म य प बना कर य
से मलते ह. म अ य धक श शाली मं क सहायता से उ ह यहां से भगाता ं. (११)
जाया इद् वो अ सरसो ग धवाः पतयो यूयम्.
अप धावताम या म यान् मा सच वम्.. (१२)
हे गंधव ! ये अ सराएं तु हारी प नयां ह और तुम इन के प त हो. तुम गंधव जा त के
हो, इस लए मनु य से र भाग जाओ, इन से मत मलो. (१२)
सू -४० दे वता—जातवेद
ये पुर ता जु त जातवेदः ा या दशोऽ भदास य मान्.
अ नमृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (१)
हे जातवेद अ न! जो श ु पूव दशा म हवन करते ए हम पर जा टोने तथा पूव दशा
से हमारी हसा करना चाहते ह, अ न म गर कर हमारे वे वरोधी ःखी ह . हम उन के ारा
कए गए जा टोने को वापस लौटा कर उ ह मारते ह. (१)
ये द णतो जु त जातवेदो द णाया दशो ऽ भदास य मान्.
यममृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (२)
हे जातवेद अ न! जो श ु हमारे नवास थान क द ण दशा म हवन कर के
जा टोना कर रहे ह, वे द ण दशा से हमारी हसा करते ह. वे श ु हमारी ओर से मुंह फेर
कर जल जाएं. इन जा टोना करने वाल को हम उन के जा टोने को उ ह क ओर लौटा
कर मारते ह. (२)
ये प ा जु त जातवेदः ती या दशो ऽ भदास य मान्.
व णमृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (३)
हे जातवेद अ न! जो श ु हमारे नवास थान क प म दशा म हवन कर के
जा टोना कर रहे ह, वे प म दशा से हमारी हसा करते ह. वे श ु हमारी ओर से मुंह फेर
कर जल जाएं. उन जा टोना करने वाल को हम उन के जा टोने को उ ह क ओर लौटा
कर मारते ह. (३)
य उ रतो जु त जातवेद उद या दशो ऽ भदास य मान्.
सोममृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (४)
हे जातवेद अ न! जो श ु हमारे नवास थान क उ र दशा म हवन कर के जा टोना
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कर रहे ह, वे उ र दशा से हमारी हसा करते ह. वे श ु हमारी ओर से मुंह फेर कर जल
जाएं. उन जा टोना करने वाल को हम उन के जा टोने उ ह क ओर लौटा कर मारते ह.
(४)
ये ३ ऽ ध ता जु त जातवेदो वु ाया दशो ऽ भदास य मान्.
भू ममृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (५)
हे जातवेद अ न! जो श ु हमारे नवास से नीचे क दशा म हवन कर के जा टोना कर
रहे ह, वे नीचे क दशा से हमारी हसा करते ह. वे श ु हमारी ओर से मुंह फेर कर जल
जाएं. उन जा टोना करने वाल को हम उन के जा टोने उ ह क ओर वापस कर के मारते
ह. (५)
ये ३ ऽ त र ा जु त जातवेदो वाया दशो ऽ भदास य मान्.
वायुमृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (६)
हे जातवेद अ न! जो श ु हमारे नवास थान से अंत र क दशा म हवन कर के
जा टोना कर रहे ह, वे अंत र क दशा से हमारी हसा करते ह, वे श ु हमारी ओर से मुंह
फेर कर जल जाएं. उन जा टोना करने वाल को हम उन के जा टोने उ ह क ओर वापस
कर के मारते ह. (६)
य उप र ा जु त जातवेदः ऊ वाया दशो ऽ भदास य मान्.
सूयमृ वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (७)
हे जातवेद अ न! जो श ु हमारे नवास थान से ऊपर क दशा म हवन कर के
जा टोना कर रहे ह, वे ऊपर क दशा से हमारी हसा करते ह. वे श ु हमारी ओर से मुंह फेर
कर जल जाएं. उन जा टोना करने वाल को हम उन के जा टोने उ ह क ओर वापस कर
के मारते ह. (७)
ये दशाम तदशे यो जु त जातवेदः सवा यो द यो ऽ
भदास य मान्.
वा ते परा चो थ तां यगेनान् तसरेण ह म.. (८)
हे जातवेद अ न! जो श ु अ त दशा म आ त डालकर जा टोने ारा दशा के
कोण से हम न करना चाहता, वह श ु परा जत होते ए क भोगे. अपने श ु को हम
तसर कम से न करते ह. (८)
सू -२ दे वता—व ण
त ददास भुवनेषु ये ं यतो ज उ वेषनृ णः.
स ो ज ानो न रणा त श ूननु यदे नं मद त व ऊमाः.. (१)
इं संसार म धनवान एवं बली होने के कारण े माने जाते ह. इं ने ज म लेते ही
श ु का संहार करना आरंभ कर दया था, इसी लए इन के सै नक इन क र ा करते ह एवं
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स रहते ह. (१)
वावृधानः शवसा भूय जाः श ुदासाय भयसं दधा त.
अ न च न च स न सं ते नव त भृता मदे षु.. (२)
बढ़ता, श शाली एवं ओज वी श ु अपने दास को भयभीत करता है. चर और अचर
सारा व हम म लीन हो जाता है. वेतन पाने वाले स चे वीर यु म परमा मा क ाथना
करते ह. (२)
वे तुम प पृ च त भू र यदे ते भव यूमाः.
वादोः वाद यः वा ना सृजा समदः सु मधु मधुना भ योधीः.. (३)
हे इं ! ज म, सं कार और यु क द ा से तीन बात मनु य के ज म के साथ ही
न त हो जाती ह एवं वशाल य को तुम तक प ंचाती ह. तुम सभी पदाथ को उ म
वाद वाला बनाने वाले हो तुम हमारे पदाथ को भी वा द बनाओ एवं सुंदर री त से यु
करो. (३)
य द च ु वा धना जय तं रणेरणे अनुमद त व ाः.
ओजीयः शु म थरमा तनु व मा वा दभन् रेवासः कशोकाः.. (४)
हे बलशाली इं ! तुम सभी यु म वजय ा त करते हो. य द ा ण तु हारी तु त
कर तो तुम उ ह थर रहने वाला बल दान करो. जो मु य सुखमय वातावरण को ःखमय
बना दे ते ह अथवा जन क ग त बुरी है, वे तुम तक न आ सक. (४)
वया वयं शाशद्महे रणेषु प य तो यधे या न भू र.
चोदया म त आयुधा वचो भः सं ते शशा म णा वयां स.. (५)
हे इं ! तु हारी सहायता से हम यु म अपने सभी वरो धय को समा त कर दे ते ह. म
तप या ारा स अपनी वाणी से तु हारे श को ेरणा दान करता ं तथा तु हारी
ग तशील वाणी को तीखा बनाता ं. (५)
न तद् द धषेऽवरे परे च य म ा वथावसा रोणे.
आ थापयत मातरं जग नुमत इ वत कवरा ण भू र.. (६)
जस घर म उ म एवं साधारण ा णय का पालन आ तथा जस घर म अ ारा
उन क र ा क गई, उस घर म का लका माता क ग तशील श क थापना करो. इस
कार वह घर अद्भुत पदाथ से पूण हो जाएगा. (६)
तु व व मन् पु व मानं समृ वाण मनतममा तमा यानाम्.
आ दश त शवसा भूय जाः स त तमानं पृ थ ाः.. (७)
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हे शरीरधारी पु ष! तू उस राजा क तु त कर जो वचरण करने वाला, तेज वी, वामी
एवं उन गुण से यु है, जो आ त जन म होते ह. राजा पृ वी का त प है एवं यु म
जुटा आ है. (७)
इमा बृह द्दवः कृणव द ाय शूषम यः वषाः.
महो गो य य त वराजा तुर द् व मणवत् तप वान्.. (८)
यह राजा वग ा त क अ भलाषा से महान तो ारा इं को स कर रहा है.
वग के वामी इं मेघ के ारा जल वषा कर के व को जल से पूण करते ह. (८)
एवा महान् बृह द्दवो अथवावोचत् वां त व १ म मेव.
वसारौ मात र वरी अ र े ह व त चैने शवसा वधय त च.. (९)
अपने शरीर को इं मान कर मह ष अथवा ने कहा था क पाप र हत भ ग नयां इसे
बल के ारा बढ़ाती ई स करती ह. (९)
सू -३ दे वता—अ न
ममा ने वच वहवे व तु वयं वे धाना त वं पुषेम.
म ं नम तां दश त वया य ेण पृतना जयेम.. (१)
हे अ न दे व! यु म हम वच वी बन. हम तु ह कट करते ए अपने शरीर को
श शाली बनाएं. चार दशाएं और दशाएं हमारे सामने तथा आप के संर ण म श ु
क इस सेना पर वजय ा त कर. (१)
अ ने म युं तनुदन् परेषां वं नो गोपाः प र पा ह व तः.
अपा चो य तु नवता र यवो ऽ मैषां च ं बुधां व नेशत्.. (२)
हे अ न दे व! तुम हजार श ु का ोध समा त करते ए सभी ओर से हमारी र ा
करो. हम ःख दे ने के इ छु क लोग हमारे सामने न बन तथा हमारे सामने से चले जाएं. (२)
मम दे वा वहवे स तु सव इ व तो म तो व णुर नः.
ममा त र मु लोकम तु म ं वातः पवतां कामाया मै.. (३)
इं के साथ म त्, व णु और अ न आ द सभी दे व यु भू म म मेरे अनुकूल बन.
अंत र म मेरा यशोगान गूंजे तथा वायु क ग त मेरे अनुकूल हो. (३)
म ं यज तां मम यानी ाकू तः स या मनसो मे अ तु.
एनो मा न गां कतम चनाहं व े दे वा अ भ र तु मेह.. (४)
सू -४ दे वता—कु , त मा-नाशन
यो ग र वजायथा वी धां बलव मः.
कु े ह त मनाशन त मानं नाशय तः.. (१)
हे पवत म उ प होने वाली तथा श शाली ओष ध कु ! तू कोढ़ नामक क ठन रोग
का नाश करने वाली है. तू हम क दे ने वाले रोग को न करती ई यहां आ. (१)
सुपणसुवने गरौ जातं हमवत प र.
धनैर भ ु वा य त व ह त मनाशनम्.. (२)
ग ड़ को उ प करने वाले हमवंत पवत के ऊपर उ प होने वाली इस ओष ध के
वषय म हम ने लोग से सुना और अ ले कर वहां गए. इस कार हम ने इस ओष ध को
ा त कया. (२)
अ थो दे वसदन तृतीय या मतो द व.
त ामृत य च णं दे वाः कु मव वत.. (३)
यहां तीसरे दे व थान म अ थ अथात् पीपल वराजमान है. यहां दे व ने अमृत के
समान गुण वाले कूठ को जाना. (३)
हर ययी नौरचर र यब धना द व.
त ामृत य पु पं दे वाः कु मव वत.. (४)
दे व ने सोने के र से से बंधी ई वग क नौका के ारा अमृत के पु प के समान कूठ
को ा त कया. (४)
हर ययाः प थान आस र ा ण हर यया.
नावो हर ययीरासन् या भः कु ं नरावहन्.. (५)
सोने के बने ए माग से वण क नाव के ारा कूठ को लाया गया. उन नाव क
पतवार भी सोने क थ . (५)
सू -५ दे वता—ला ा
रा ी माता नभः पतायमा ते पतामहः.
सलाची नाम वा अ स सा दे वानाम स वसा.. (१)
हे लाख नामक ओष ध! तू चं मा क करण से पु होती है. इस लए रा तेरी माता
है. तू वषा काल म उ प होती है, इस लए आकाश तेरा पता है. आकाश म मेघ को उ प
करने के कारण सूय तेरा पतामह है. तेरा नाम सलाची है और तू दे व क बहन है. (१)
य वा पब त जीव त ायसे पु षं वम्.
भ ह श ताम स जनानां च य चनी.. (२)
सू -६ दे वता—
ज ानं थमं पुर ताद् व सीमतः सु चो वेन आवः.
स बु या उपमा अ य व ाः सत यो नमसत व वः.. (१)
संपूण सृ का कारण सृ के आरंभ म सूय के प म कट आ. उस का तेज
सीमा र हत है, जो सभी दशा और लोक म ा त होता है. वह अनुपम है. सत् इसी से
उ प आ है और असत् इसी म समा जाता है. (१)
अना ता ये वः थमा या न कमा ण च रे.
वीरान् नो अ मा दभन् तद् व एतत् पुरो दधे.. (२)
हे मनु यो! तु हारे वरोधी श ु ने जो उ म कम कए ह, उन कम से वे हमारी
संतान तथा वीर का वनाश न कर, इस लए म वह अ भचार कम तु हारे सामने तुत कर
रहा ं. (२)
सह धार एव ते सम वरन् दवो नाके मधु ज ा अस तः.
त य पशो न न मष त भूणयः पदे पदे पा शनः स त सेतवे.. (३)
आकाश म थत एवं हजार माग वाले वग म वनाश करने वाले यह घो षत कर चुके
ह. जो लोग यु म जाने के लए आनाकानी करते ह, उ ह बांधने के लए यम त पाश लए
ए सदा त पर रहते ह एवं अपनी आंख कभी बंद नह करते. (३)
पयू षु ध वा वाजसातये प र वृ ा ण स णः.
ष तद यणवेनेयसे स न सो नामा स योदशो मास इ य गृहः.. (४)
हे सूय! तुम अ उ पादन के न म मेघ के समीप जाते हो और उ ह ता ड़त कर के
सागर के पास प ंचाते हो. इसी कारण तु हारा नाम स न त है. वष का तेरहवां महीना जो
इं का घर है, तुम उस म भी वषा करने को त पर हो. (४)
वे ३ तेनारा सीरसौ वाहा.
त मायुधौ त महेती सुशेवौ सोमा ा वह सु मृडतं नः.. (५)
इसी अ भचार कम ारा इस पु ष ने स ा त क थी. यह अ भचार कम सुंदर
आ त वाला हो. हे सोम और ! तुम तीखे अ वाले हो. तुम हम इस यु म वजयी
बना कर सुख दान करो. (५)
सू -७ दे वता—अरा त
आ नो भर मा प र ा अराते मा नो र ीद णां नीयमानाम्.
नमो वी साया असमृ ये नमो अ वरातये.. (१)
हे अरा त! हम को धन संप बना. तू हमारे चार ओर थत मत हो और हमारे ारा
लाई गई द णा को भा वत मत कर. यह ह व हम दान हीनता क अ ध ा ी दे वी को वृ
न होने क इ छा से दे रहे ह. यह तुझे ा त हो. (१)
यमराते पुरोध से पु षं प ररा पणम्.
नम ते त मै कृ मो मा व न थयीमम.. (२)
हे अरा त! हम उस पु ष को र से णाम करते ह, जो तु हारे स मुख रहता है एवं
केवल बोलने वाला है, काम नह करता. तुम हमारी इस इ छा को ठु कराना मत. (२)
णो व नदवकृता दवा न ं च क पताम्.
अरा तमनु ेमो वयं नमो अ वरातये.. (३)
सू -८ दे वता—अ न
वैकङ् कतेने मेन दे वे य आ यं वह.
अ ने ताँ इह मादय सव आ य तु मे हवम्.. (१)
हे अ न! तुम श शाली ओष ध के धन से दे व के हेतु घृत का वहन करो. इस कम
से तुम दे व को स करो. मेरे यह म सभी दे व आएं. (१)
इ ा या ह मे हव मदं क र या म त छृ णु.
इम ऐ ा अ तसरा आकू त सं नम तु मे.
ते भः शकेम वीय १ जातवेद तनूव शन्.. (२)
हे इं ! मेरे इस य म आओ और म जो तु त कर रहा ं, उसे सुनो. सभी ऋ वज् मेरी
इ छा के अनुसार काय कर. हे ज म लेने वाल के ाता इं ! जन ऋ वज का म ने वणन
कया है, उन के य न से हम श शाली बन. (२)
यदसावमुतो दे वा अदे वः सं क ष त.
मा त या नह ं वा ी वं दे वा अ य मोप गुममैव हवमेतन.. (३)
हे दे वगण! जो भ हीन पु ष य करना चाहता है, उस के ह को अ न तु हारे पास
तक न प ंचाएं. दे वगण उस भ हीन पु ष के य म न जा कर मेरे य म पधार. (३)
अ त धावता तसरा इ य वचसा हत.
अ व वृक इव म नीत स वो जीवन् मा मो च ाणम या प न त.. (४)
हे मनु यो! तुम इं के वचन से वृ ा त करो और श ु का वनाश करो. तुम श ु
को इस कार मथो, जस कार भे ड़या भेड़ को मथता है. वह जी वत न रहने पाए. तुम उसे
न कर दो. (४)
यममी पुरोद धरे ाणमपभूतये. इ स ते अध पदं तं य या म
मृ यवे.. (५)
हे इं ! इन श ु ने हमारी ग त के न म य म जसे अपना पुरो हत बनाया है,
उस का अधःपतन हो जाए. म उसे मृ यु के समीप फक रहा ं. (५)
सू -९ दे वता—वा तो प त
दवे वाहा.. (१)
ुलोक के अ ध ाता दे व के लए हमारी यह ह व सम पत है. (१)
पृ थ ै वाहा.. (२)
पृ वी के अ ध ाता दे व के लए हमारी यह ह व सम पत है. (२)
अ त र ाय वाहा.. (३)
आकाश के अ ध ाता दे व के लए हमारी यह ह व सम पत है. (३)
अ त र ाय वाहा.. (४)
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अंत र अथात् धरती और आकाश के अ ध ाता दे व के लए यह ह व सम पत है. (४)
दवे वाहा.. (५)
सू -१० दे वता—वा तो प त
अ मवम मे ऽ स यो मा ा या दशो ऽ घायुर भदासात्. एतत् स
ऋ छात्.. (१)
हे प थर के बने घर! तू मेरा है. जो पापी ह यारा मुझे पूव दशा क ओर से न करना
चाहता है, वह नाश को ा त हो. (१)
अ मवम मे ऽ स यो मा द णाया दशो ऽ घायुर भदासात्. एतत् स
ऋ छात्.. (२)
हे प थर के बने ए घर! तू मेरा है. जो ह या करने का इ छु क पापी द ण दशा से
मुझे न करने का इ छु क है, वह यहां आतेआते वयं न हो जाए. (२)
अ मवम मे ऽ स यो मा ती या दशो ऽ घायुर भदासात्. एतत् स
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ऋ छात्.. (३)
सू -११ दे वता—व ण
कथं महे असुराया वी रह कथं प े हरये वेषनृ णः.
पृ व ण द णां ददावान् पुनमघ वं मनसा च क सीः.. (१)
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हे श शाली व ण! तुम ने जगत् के पालन करने वाले सूय से या कहा था? तुम सूय
को द णा दे ते हो एवं मन से च क सा करते हो. (१)
न कामेन पुनमघो भवा म सं च े कं पृ मेतामुपाजे.
केन नु वमथवन् का ेन केन जातेना स जातवेदाः.. (२)
म इ छा मा से ही संप शाली नह बन गया ं, अ पतु सूय दे व से ाथना करता .ं म
यह सुख ा त करता र ं. हे ऋ वज्! तुम कस व ा और चातुय के ारा सभी ज म लेने
वाल के ाता बन गए हो? (२)
स यमहं गभीरः का ेन स यं जातेना म जातवेदाः.
न मे दासो नाय म ह वा तं मीमाय यदहं ध र ये.. (३)
यह स य बात है क म का अथात् अथव के ारा ा त चतुरता से ानी बन गया ं
तथा अ न के समान सब का मागदशन करता ं. म जस त को धारण क ं गा, उसे कोई
भंग नह कर सकता. (३)
न वद यः क वतरो न मेधया धीरतरो व ण वधावन्.
वं ता व ा भुवना न वे थ स च ु व जनो मायी बभाय.. (४)
हे वधा वाले व ण! तु हारे अ त र कोई भी सरा व ान् मेधावी और वीर नह है.
तुम सभी भुवन को जानते हो, इस लए सब लोग तुम से भयभीत रहते ह. (४)
वं १ व ण वधावन् व ा वे थ ज नमा सु णीते.
क रजस एना परो अ यद येना क परेणावरममुर.. (५)
हे सुधा के पा एवं नी त पालक व ण! तुम ा णय के सभी ज म को जानते हो. तुम
सभी से मोह रखते हो. इस रजोगुण यु धन से े कौन सी व तु है. इस से े कुछ भी
नह है. (५)
एकं रजस एना परो अ यद येना पर एकेन णशं चदवाक्.
तत् ते व ान् व ण वी यधोवचसः पणयो भव तु नीचैदासा उप
सप तु भू मम्.. (६)
इस रजोगुण यु धन से े गुण यु धन है. सतोगुण यु से े है. हे व ण
दे व! तुम इस वषय के जानने वाले हो, इस लए म तुम से नवेदन करता ं क बुरा वहार
करने वाले लोग मेरे सामने नकृ वचन न बोल और दास जन झुक कर चल. (६)
वं १ व ण वी ष पुनमघे वव ा न भू र.
मो षु पण र ये ३ तावतो भू मा वा वोच राधसं जनासः.. (७)
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हे व ण दे व! तुम बारबार धन ा त के अवसर के वषय म बताते हो. तुम इन
वहार करने वाल क उपे ा मत करो. अ यथा ये तु ह धनहीन समझने लगगे. (७)
मा मा वोच राधसं जनासः पुन ते पृ ज रतददा म.
तो ं मे व मा या ह शची भर त व ासु मानुषीषु द ु.. (८)
लोग बारबार तु ह धनहीन अथवा कंजूस न समझ ल, इस लए म तु ह यह थोड़ा सा
धन भट करता ं. मेरी इ छा है क तु हारी यह तु त सारे संसार म फैल जाए और सभी
दशा म मनु य इसे गाएं. (८)
आ ते तो ा यु ता न य व त व ासु मानुषीषु द ु.
दे ह नु मे य मे अद ो अ स यु यो मे स तपदः सखा स.. (९)
हे व ण! मनु य से यु सभी दशा म तु हारी तु तयां फैल जाएं. तुम मुझे यह
व तु दो जो अब तक नह द है. तुम मेरे स तदा अथात् सात कदम साथ चलने वाले सखा
हो. (९)
समा नौ ब धुव ण समा जा वेदाहं त ावेषा समा जा.
ददा म तद् यत् ते अद ो अ म यु य ते स तपदः सखा म.. (१०)
हे बंधु व ण! हम और तुम दोन समान ह. हमारी संतान भी समान हो. इन बात को म
जानता ं. म ने तु ह अब तक जो नह दया है, वह अब दे रहा ं. म तु हारा स तदा सखा ं.
(१०)
दे वो दे वाय गृणते वयोधा व ो व ाय तुवते सुमेधाः.
अजीजनो ह व ण वधाव थवाणं पतरं दे वब धुम्.
त मा उ राधः कृणु ह सु श तं सखा नो अ स परमं च ब धुः.. (११)
हे अ धारक व ण दे व! दे वगण दे व क तु त करते ह तथा बु मान ा ण ा ण
क तु त करते ह. हे सुधा के पा व ण! तुम ने दे व को बंधु एवं हमारे पता के समान
अथव को जानने वाले को उ प कया है. तुम मुझे े धन म था पत करो. तुम हमारे सब
से बड़े बंधु एवं सखा हो. (११)
सू -१२ दे वता—अ न
स म ो अ मनुषो रोणे दे वो दे वान् यज स जातवेदः.
आ च वह म मह क वान् वं तः क वर स चेताः.. (१)
हे उ प को जानने वाले अ न! तुम आज मनु य के य म व लत ए हो और
दे व का यजन कर रहे हो. तुम म क पूजा करने वाले एवं ाता हो. तुम दे व का आ ान
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करो. तुम दे व के त, ानवान और ांतदश हो. (१)
तनूनपात् पथ ऋत य यानान् म वा सम वदया सु ज .
म मा न धी भ त य मृ धन् दे व ा च कृणु वरं नः.. (२)
हे शरीरर क एवं उ म ज ा वाले अ न! तुम स यलोक को ा त कराने वाले माग
को मधुर बना कर उन का आ वादन करो एवं मेरे य को बढ़ाते ए इसे दे व को ा त
कराओ. (२)
आजु ान ई ो व ा या ने वसु भः सजोषाः.
वं दे वानाम स य होता स एनान् य ी षतो यजीयान्.. (३)
हे अ न! तुम पू य व वंदना करने यो य हो. तुम म भलीभां त हवन कया जाता है.
हमारे इस य कम म तुम वसु के स हत आओ. तुम दे व के होता हो. तुम हमारी ेरणा से
दे व क पूजा करो. (३)
ाचीनं ब हः दशा पृ थ ा व तोर या वृ यते अ े अ ाम्.
ु थते वतरं वरीयो दे वे यो अ दतये योनम्.. (४)
वेद पी भू म को ढकने वाले आ नीय अ न पूवा म व तृत होते ह. अ न अ य
यो तय क अपे ा े , धनवान तथा पृ वी को सुख दे ने वाले ह. (४)
च वती वया व य तां प त यो न जनयः शु भमानाः.
दे वी ारो बृहती व म वा दे वे यो भवत सु ायणाः.. (५)
अ न क वाला ह व को वहन करने वाली और ा धय को रोकने वाली है. इस
कारण वह ार के समान है. हे अ न क काशमान वाला! जस कार यां प तय का
आदर करती है, उसी कार तुम दे व को सुख दे ने वाली बनो. तुम ह व को ा त करने वाली
हो. (५)
आ सु वय ती यजते उपाके उषासान ा सदतां न योनौ.
द े योषणे बृहती सु मे अ ध यं शु पशं दधाने.. (६)
अ न क द त उषा और य क द त से यु है. वह य का संपादन करती एवं
दे व से संयु होती है. वह द , पर पर मलने वाली एवं उ म द त यजमान के हेतु
अ न क थापना करे. (६)
दै ा होतारा थमा सुवाचा ममाना य ं मनुषो यज यै.
चोदय ता वदथेषु का ाचीनं यो तः दशा दश ता.. (७)
सू -१४ दे वता—ओष ध
सुपण वा व व दत् सूकर वाखन सा.
द सौषधे वं द स तमव कृ याकृतं ज ह.. (१)
हे ओष ध! सुपण अथात् ग ड़ या सूय ने तु ह ा त कया था. सुअर ने अपनी नाक से
तु ह खोदा था. हे कृ या से संबं धत ओष ध! तुम कृ या का योग करने वाले और हम मारने
का य न करने वाले का नाश करो. (१)
अव ज ह यातुधानानव कृ याकृतं ज ह.
अथो यो अ मान् द स त तमु वं ज ोषधे.. (२)
हे ओष ध! तुम याततुधान अथात् रा स और कृ या का नमाण करने वाले का
सू -१५ दे वता—मधुला ओष ध
एका च मे दश च मे ऽ पव ार ओषधे.
ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (१)
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हे य के न म उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे एक और दस अथात्
यारह ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना. य क तू मधुर है. (१)
े च मे वश त च मे ऽ पव ार ओषधे.
ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (२)
हे ऋतु के अनुसार उ प होने वाली ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे दो और बीस
अथात् बाईस ह , परंतु तू मेरे श द को मधुर बना, य क तू मधुर है. (२)
त मे श च च मे ऽ पव ार ओषधे.
ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (३)
हे ऋतु के अनुसार उ प होने वाली ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे तीन और तीस
अथात् ततीस ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (३)
चत मे च वा रश च च मे ऽ पव ार ओषधे.
ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (४)
हे ऋतु के अनुसार उ प होने वाली ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे चार और
चालीस अथात् चवालीस ह , परंतु तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (४)
प च च मे प चाश च च मे ऽ पव ार ओषधे.
ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (५)
हे ऋतु के अनुसार ऊ प होने वाली ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे पांच और
पचास अथात् पचपन ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (५)
षट् च मे ष च मे ऽ पव ार ओषधे.
ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (६)
हे ऋतु के अनुसार उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे छः और साठ अथात्
छयासठ ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (६)
स त च मे स त त च मे ऽ पव ार ओषधे.
ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (७)
हे ऋतु के अनुसार उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे सात और स र अथात्
सतह र ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (७)
अ च मे ऽ शी त मे ऽ पव ार ओषधे.
ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (८)
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हे ऋतु के अनुसार उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले आठ और अ सी अथात
अ ासी ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (८)
नव च मे नव त मे ऽ पव ार ओषधे.
ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (९)
हे ऋतु के अनुसार उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे नौ और न बे अथात्
न यानवे ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (९)
दश च मे शतं च मे ऽ पव ार ओषधे.
ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (१०)
हे ऋतु के अनुसार उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे दस और सौ अथात एक
सौ दस ह , परंतु तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (१०)
शतं च मे सह ं चापव ार ओषधे.
ऋतजात ऋताव र मधु मे मधुला करः.. (११)
हे ऋतु के अनुसार उ प ओष ध! मेरी नदा करने वाले चाहे सौ और हजार अथात्
यारह सौ ह , पर तू मेरी वाणी को मधुर बना, य क तू मधुर है. (११)
सू -२० दे वता—वान प य
उ चैघ षो भः स वनायन् वान प यः संभृत उ या भः.
वाचं ुणुवानो दमय सप ना संह इव जे य भ तं तनी ह.. (१)
हे ं भ! तू वन प तय से बनाई गई है तथा उ च वर करती है. तू श शाली जन के
समान आचरण कर तथा उ च घोष से श ु का मान मदन कर. (१)
सह इवा तानीद् वयो वब ोऽ भ द ृषभो वा सता मव.
वृषा वं व य ते सप ना ऐ ते शु मो अ भमा तषाहः.. (२)
हे ं भ! तू सह के समान गजन कर. हे वृ के समान अ धक आयु वाली ं भी! तू
गाय को दे ख कर रंभाने वाले बैल के समान श द करती है. वशेष प से बंधी ई तू वीय
वषा करने वाली है, इस कारण तेरे श ु श र हत हो जाते ह. तेरा बल इं के समान है,
इस लए उसे वीय ही सहन कर पाता है. (२)
वृषेव यूथे सहसा वदानो ग भ व स धना जत्.
शुचा व य दयं परेषां ह वा ामान् युता य तु श वः.. (३)
जस कार गाय क कामना करने वाला बैल अपने श द के कारण झुंड म भी पहचान
लया जाता है, उसी कार हे ं भी! श ु को जीतने क इ छा से श द कर के उन के
दय म संताप भर दे . वे श ु हमारे गांव को छोड़ कर चले जाएं. (३)
सू -२१ दे वता—वान प य
व दयं वैमन यं वदा म ष
े ु भे.
व े षं क मशं भयम म ेषु न द म यवैनान् भे जा ह.. (१)
हे ं भ! तू श ु म वैमन य फैला एवं उन के दय म एक सरे के त े ष भर दे .
हम अपने श ु म े ष क भावना फैलाना चाहते ह. तू उन का तर कार करती ई उ ह
समा त कर दे . (१)
उ े पमाना मनसा च ुषा दयेन च.
धाव तु ब यतो ऽ म ाः ासेना ये ते.. (२)
हमारे ारा होम कए गए घृत से हमारे श ु कं पत ह और मन, ने तथा दय से
भयभीत हो कर भाग जाएं. (२)
वान प यः संभृत उ या भ व गो यः.
ासम म े यो वदा येना भघा रतः.. (३)
हे वन प त से बनी ई ं भी! तू चमड़े से मढ़ ई है तथा मेघ घटा के समान घोर
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श द करती है. घी से चुपड़ी ई तू श ु को भय उ प करने वाला श द कर. (३)
यथा मृगाः सं वज त आर याः पु षाद ध.
एवा वं भे ऽ म ान भ द ासयाथो च ा न मोहय.. (४)
हे ं भ! वनचारी शकारी पु ष से जस कार वन के पशु भयभीत होते ह, उसी
कार तू अपने गजन से श ु को भयभीत करती ई, उन के च को मो हत बना. (४)
यथा वृकादजावयो धाव त ब ब यतीः.
एवा वं भे ऽ म ान भ द ासयाथो च ा न मोहय.. (५)
जस कार भेड़ और बक रयां भे ड़ए के कारण अ धक भयभीत हो कर भागती ह,
उसी कार तू गड़गड़ाहट करती ई श ु को भयभीत कर के उन का च मो हत कर.
(५)
यथा येनात् पत णः सं वज ते अह द व सह य तनथोयथा.
एवा वं भे ऽ म ान भ द ासयाथो च ा न मोहय.. (६)
हे ं भ! जस कार बाज से सभी प ी और सह से सभी ाणी भयभीत रहते ह,
उसी कार तू श ु के त गड़गड़ाहट कर के उ ह भयभीत कर के उन के च को
मो हत कर. (६)
परा म ान् भना ह रण या जनेन च.
सव दे वा अ त सन् ये सं ाम येशते.. (७)
जो सं ाम के दे वता ह, उ ह ने हरण के चमड़े से मढ़ ई ं भ बजा कर श ु को
भयभीत कर के परा जत कया. (७)
यै र ः डते पद्घोषै छायया सह.
तैर म ा स तु नो ऽ मी ये य यनीकशः.. (८)
इं जन पदघोष से खेलते ह, उन से अ धक सं या वाले श ु भयभीत ह . (८)
याघोषा भयो ऽ भ ोश तु या दशः.
सेना परा जता यतीर म ाणामनीकशः.. (९)
श ु क परा जत सेनाएं जस ओर भाग रही ह, हमारे बाण क डोरी और ं भ का
श द मल कर उधर ही उन को भयभीत कर और हरा द. (९)
आ द य च ुरा द व मरीचयो ऽ नु धावत.
प स नीरा सज तु वगते बा वीय.. (१०)
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हे सप! तुम श ु के ने क दे खने क श छ न लो. हे सूय करणो! तुम दौड़ते
ए श ु क पीठ पर पड़ो. भुजा क श ीण होने पर जब श ु भागने लगे तो उन
का साथ मत दो. (१०)
यूयमु ा म तः पृ मातर इ े ण युजा मृणीत श ून्.
सोमो राजा व णो राजा महादे व उत मृ यु र ः.. (११)
हे म तो! तुम उ कम करने वाले हो. तुम इं के साथ मल कर श ु का मदन करो.
सोम राजा, व ण राजा, महादे व और मृ युदेव इं का सहयोग कर. (११)
एता दे वसेनाः सूयकेतवः सचेतसः.
अ म ान् नो जय तु वाहा.. (१२)
ये दे व सेनाएं समान च वाली ह और इन के झंडे म सूय वराजमान ह. ये सेनाएं
श ु पर वजय ा त कर. मेरी यह आ त हण करने यो य हो. (१२)
सू -२३ दे वता—इं
ओते मे ावापृ थवी ओता दे वी सर वती.
ओतौ म इ ा न म ज भयता म त.. (१)
ावा पृ वी, सर वती दे वी, इं और अ न मुझ म ओत ोत ह. वे कृ मय का वनाश
कर. (१)
अ ये कुमार य मीन् धनपते ज ह.
हता व ा अरातय उ ेण वचसा मम.. (२)
हे धन के वामी इं ! इस बालक के श ु प कृ मय का वनाश करो. इ ह मेरे उ
वचन के साथ पूरी तरह न करो. (२)
यो अ यौ प रसप त यो नासे प रसप त.
दतां यो म यं ग छ त तं म ज भयाम स.. (३)
जो कृ म आंख म घूमते ह जो नाखून म चलते फरते ह तथा जो दांत के म य नवास
करते ह, उन कृ मय को हम न करते ह. (३)
सू -२५ दे वता—यो न
पवताद् दवो योनेर ाद ात् समाभृतम्.
शेपो गभ य रेतोधाः सरौ पव मवा दधत्.. (१)
पवत क ओष ध, वग के पु य और अंग क श से पु वीय धारण करने वाला
पु ष जल म प े के समान गभाधान करता है. (१)
यथेयं पृ थवी मही भूतानां गभमादधे.
एवा दधा म ते गभ त मै वामवसे वे.. (२)
जस कार वशाल पृ वी सभी भूत अथात् ा णय का गभ धारण करती ह, उसी
कार म तेरा गभ धारण करती ं और उस क र ा के न म तुझे बुलाती ं. (२)
गभ धे ह सनीवा ल गभ धे ह सर वती.
गभ ते अ नोभा ध ां पु कर जा.. (३)
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हे सनीवाली एवं सर वती! मेरे गभ को पु बनाओ. फूल क माला धारण करने वाले
अ नीकुमार मेरे गभ क र ा कर. (३)
गभ ते म ाव णौ गभ दे वो बृह प तः.
गभ त इ ा न गभ धाता दधातु ते.. (४)
म , व ण, बृह प त दे व, इं , अ न और धाता दे व तेरे गभ को पु कर. (४)
व णुय न क पयतु व ा पा ण पशतु.
आ स चतु जाप तधाता गभ दधातु ते.. (५)
व णु तेरी यो न क क पना कर, व ा तेरे प क रचना कर, जाप त तेरा सचन
कर और धाता तेरे गभ को पु कर. (५)
यद् वेद राजा व णो यद् वा दे वी सर वती.
य द ो वृ हा वेद तद् गभकरणं पब.. (६)
राजा व ण, दे वी सर वती एवं वृ नाशक इं जस गभपोषक व तु को जानते ह, उसे
तू पी ले. (६)
गभ अ योषधीनां गभ वन पतीनाम्.
गभ व य भूत य सो अ ने गभमेह धाः.. (७)
हे अ न! तुम ओष धय के, वन प तय के तथा सभी ा णय के गभ हो. अतएव तुम
मेरे गभ को पु करो. (७)
अ ध क द वीरय व गभमा धे ह यो याम्.
वृषा स वृ यावन् जायै वा नयाम स.. (८)
हे वृषण अथवा अंडकोष वाले! तू वषण अथात् सेचन करता है. तू यो न म गभ
था पत कर. तू ऊपर हो कर चलता आ वीरता का दशन कर. हम तुझे जा के न म
हण करते ह. (८)
व जही व बाह सामे गभ ते यो नमा शयाम्.
अ े दे वाः पु ं सोमपा उभया वनम्.. (९)
हे सां वनामयी सा वी! तू वशेष ग त वाली हो. म तुझ म गभाधान करता ं. सोमपान
करने वाले दे व ने इस लोक म और परलोक म र ा करने वाला पु दान कया है. (९)
धातः े ेन पेणा या नाया गवी योः.
पुमांसं पु मा धे ह दशमे मा स सूतवे.. (१०)
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हे धाता! इस नारी क आंत से नकले मू को मू ाशय म ले जाने वाली जो ना लयां
दोन पस लय क ओर थत ह, उन म थत पु गभ को पु करो, जस से यह दसव मास
म सव कर सके. (१०)
व ः े ेन पेणा या नाया गवी योः.
पुमांसं पु मा धे ह दशमे मा स सूतवे.. (११)
हे व ा! इस नारी क आंत से नकले मू को मू ाशय म ले जाने वाली जो ना ड़यां
दोन पस लय क ओर थत ह, उन म थत पु गभ को पु करो. जस से यह दसव मास
म सव कर सके. (११)
स वतः े ेन पेणा या नाया गवी योः.
पुमांसं पु मा धे ह दशमे मा स सूतवे.. (१२)
हे स वता! इस नारी क आंत से नकले मू को मू ाशय म ले जाने वाली जो ना लयां
दोन पस लय क ओर थत ह, उन म थत पु गभ को पु करो, जस से यह दसव मास
म सव कर सके. (१२)
जापते े ेन पेणा या नाया गवी योः.
पुमांसं पु मा धे ह दशमे मा स सूतवे.. (१३)
हे जाप त! इस नारी क आंत से नकले मू को मू ाशय तक ले जाने वाली जो
ना ड़यां दोन पस लय क ओर थत ह, उन म थत पु गभ को पु करो, जस से यह
दसव मास म सव कर सके. (१३)
सू -२६ दे वता—अ न
यजूं ष य े स मधः वाहा नः व ा नह वो युन ु .. (१)
यजुवद के मं ो और स मधाओ! सब कुछ जानने वाले अ न दे व इस य म तुम से
मल. (१)
युन ु दे वः स वता जान मन् य े म हषः वाहा.. (२)
सब को उ प करने वाले स वता दे व इस य म तुम से मल. उन के लए यह आ त
सुंदर हो. (२)
इ उ थामदा य मन् य े व ान् युन ु सुयुजः वाहा.. (३)
हे उ कम करने वालो! सब कुछ जानने वाले इं इस य म तुम से मल. उन के
सू -२७ दे वता—अ न
ऊ वा अ य स मधो भव यू वा शु ा शोच य नेः.
ुम मा सु तीकः ससूनु तनूनपादसूरो भू रपा णः.. (१)
अ न क स मधाएं ऊंची और वीय तेजयु होते ह. यह अ यंत द त, सुंदर एवं सूय
के समान है. ाणदाता अ न का य म ब त सहयोग रहता है. (१)
दे वो दे वेषु दे वः पथो अन म वा घृतेन.. (२)
अ न दे व सभी दे व म े ह और मधु से माग का शोधन करते ह. (२)
म वा य ं न त ैणानो नराशंसो अ नः सुकृद् दे वः स वता व वारः.
(३)
सुंदर कम करने वाले तथा सभी मनु य ारा शंसनीय स वता दे व तथा संसार के
ारा वरण करने यो य अ न दे व य को मधुयु करते ए ा त होते ह. (३)
अ छायमे त शवसा घृता चद डानो व नमसा.. (४)
घृत एवं ह अ के स हत तु तय को ा त करने वाले अ न दे व सामने से आते ह.
(४)
अ नः ुचो अ वरेषु य ु स य द य म हमानम नेः.. (५)
य म दे व क संग त करने वाले अ न दे व इस य क म हमा और ुव को अपने से
यु कर. (५)
तरी म ासु य ु वसव ा त न् वसुधातर .. (६)
दे व क संग त करने वाले एवं हष उ प करने वाले य म तारक और धन को बढ़ाने
वाले व ण दे वता नवास करते ह. (६)
ारो दे वीर व य व े तं र त व हा.. (७)
सू -२८ दे वता— वृ अ न
नव ाणा व भः सं ममीते द घायु वाय शतशारदाय.
ह रते ी ण रजते ी यय स ी ण तपसा व ता न.. (१)
हम सौ वष क आयु पाने के लए नव ाण को इन तीन से संयु करते ह. इन नौ म
सोने, चांद और लोहे के तीनतीन धागे अथात् तार ह जो उ णता लए ए ह. (१)
अ नः सूय मा भू मरापो ौर त र ं दशो दश .
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आतवा ऋतु भः सं वदाना अनेन मा वृता पारय तु.. (२)
अ न, चं , सूय, पृ वी, जल, आकाश, अंत र , दशाएं और उप दशाएं इस वृ
अथात् नौ कम से मुझे ऋतु स हत ा त हो कर पार कर. इस म ऋतु के अंश भी
सहायता कर. (२)
यः पोषा वृ त य तामन ु पूषा पयसा घृतेन.
अ य भूमा पु ष य भूमा भूमा पशूनां त इह य ताम्.. (३)
तीन पु कारक इस वृ के आ त ह . उषा दे वी ध और घी से इस य कम को
बढ़ाएं. इस के आ य म अ , पु ष और पशु क अ धकता रहे. (३)
इममा द या वसुना समु तेमम ने वधय वावृधानः.
इम म सं सृज वीयणा मन् वृ यतां पोष य णु.. (४)
आ द य इस बालक को धन से पूण कर. हे अ न, तुम वयं बढ़ते ए इस बालक क
भी वृ करो. हे इं ! तुम इसे वीय यु करो. पोषण करने वाला वृ इस का आ त हो.
(४)
भू म ् वा पातु ह रतेन व भृद नः पप वयसा सजोषाः.
वी े अजुनं सं वदानं द ं दधातु सुमन यमानम्.. (५)
पृ वी वग के ारा तेरी र ा करे. व का भरणपोषण करने वाले अ न दे व लोहे के
ारा तेरा पालन कर तथा तुझ म लता से ा त जल के ारा बल धारण कर. (५)
े ा जातं ज मनेदं हर यम नेरेकं यतमं बभूव सोम यैकं ह सत य
ध
परापतत्.
अपामेकं वेधसां रेत आ तत् ते हर यं वृद वायुषे.. (६)
ज म से ही यह वण तीन कार से उ प आ है. अ न को उस वण का एक ज म
य आ. वह सोम के पी ड़त होने पर गरा. व ान् लोग एक को जल का वीय कहते थे. हे
चारी! वह वण तेरी आयु वृ के हेतु वृ अथात् तगुना हो जाए. (६)
यायुषं जमद नेः क यप य यायुषम्.
ेधामृत य च णं ी यायूं ष ते ऽ करम्.. (७)
जमद न ऋ ष क तीन आयु ह—बचपन, यौवन और वृ ाव था. मह ष क यप क भी
यही तीन अव थाएं ह. अमृत के नदशन प म तीन आयु म तुझे दे ता ं. (७)
यः सुपणा वृता यदाय ेका रम भसंभूय श ाः.
सू -३० दे वता—आयु
आवत त आवतः परावत त आवतः.
इहैव भव मा नु गा मा पुवाननु गाः पतॄनसुं ब ना म ते ढम्.. (१)
म समीप के दे श से और र के दे श से तेरे ाण को ढ़ता से बांधता ं. तू यह रह
और अपने पूववत पतर का अनुकरण मत कर. (१)
यत् वा भचे ः पु षः वो यदरणो जनः.
उ मोचन मोचने उभे वाचा वदा म ते.. (२)
पतृऋण को न चुकाने वाले जस पु ष ने तुझ पर अ धकार कया है, म उस से छू टने
का उपाय अपने मं बल से तुझे बताता ं. (२)
यद् ो हथ शे पषे यै पुंसे अ च या.
उ मोचन मोचने उभे वाचा वदा म ते.. (३)
तूने जस ी अथवा पु ष के त वैरभाव रखते ए इस पापपूण अ भचार का योग
कया है, म तुझे उस से मु करने से संबं धत बात बताता ं. (३)
यदे नसो मातृकृता छे षे पतृकृता च यत्.
उ मोचन मोचने उभे वाचा वदा म ते.. (४)
तू अपने पता अथवा माता ारा कए गए पाप के कारण रोगी हो कर श या पर पड़ा
है. म अपनी वाणी से उस रोग से उ मोचन और मोचन क बात तुझे बताता ं. (४)
सू -२ दे वता—सोम
इ ाय सोममृ वजः सुनोता च धावत. तोतुय वचः शृणव वं च मे..
(१)
हे अ वयु आ द ऋ वजो! इं के लए सोम को नचोड़ो और नचोड़े गए सोम का
दशाप व के ारा सभी कार शोधन करो. वे इं मुझ तोता के तु त ल ण आ ान को
सुन तथा आदरपूवक जान. (१)
आ यं वश ती दवो वयो न वृ म धसः.
वर शन् व मृधो ज ह र वनीः.. (२)
जस कार प ी अपने नवास वाले वृ पर वे छा से शी प ंच जाते ह, उसी कार
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सोम इं के शरीर म श उ पादक के प म वयं प च ं जाते ह. हे महान इं ! सोम पान से
उ े जत हो कर हम बाधा प ंचाने वाले सै नक से यु एवं यु करती ई श ु सेना का
वनाश करो. (२)
सुनोता सोमपा ने सोम म ाय व णे. युवा जेतेशानः स पु ु तः.. (३)
हे अ वयुगण! सोमपान के लए उ सुक एवं हाथ म व धारण करने वाले इं के लए
सोमरस नचोड़ो. वे इं न य त ण, वजयी, सारे संसार के समीप तथा ब त से यजमान
ारा शं सत ह. (३)
सू -३ दे वता—इं , पूषा
पातं न इ ापूषणा द तः पा तु म तः.
अपां नपात् स धवः स त पातन पातु नो व णु त ौः.. (१)
हे इं और पूषादे व! हमारी र ा करो. दे वमाता अ द त हमारी र ा कर. उनचास
म द्गण हमारी र ा कर. अपानपात अथात् जल को धन बनाने वाले अ न दे व एवं सात
सागर हमारी र ा कर. व णु एवं आकाश हमारी र ा कर. आ नीय अ न और अ न क
सुखकर तथा रा स ारा दए ए ःख से र क करण हमारी र ा कर. (१)
पातां नो ावापृ थवी अ भ ये पातु ावा पातु सोमो नो अंहसः.
पातु नो दे वी सुभगा सर वती पा व नः शवा ये अ य पायवः.. (२)
ावा और पृ वी अ भमत फल पाने के लए हमारी र ा कर. सोमरस कुचलने का
प थर और सोमरस पाप से हमारी र ा करे. सौभा ययु दे वी सर वती हमारी र ा करे.
अ न हमारी र ा करे, जनक करण हम प व करती ह. (२)
पातां नो दे वा ना शुभ पती उषासान ोत न उ यताम्.
अपां नपाद भ ती गय य चद् दे व व वधय सवतातये.. (३)
हे दाना द गुणयु एवं द त तेज वाले अ नीकुमारो! हे दन और रात के अ ध ाता
दे वो! हमारी र ा करो. अपानपात अथात् मेघ के जल को बढ़ाने वाले अ न रा स आ द
क हसा से हम बचाएं. हे व ा दे व! सभी फल क ा त के लए हम बढ़ाओ. (३)
सू -४ दे वता— व ा
व ा मे दै ं वचः पज यो ण प तः.
पु ै ातृ भर द तनु पातु नो रं ायमाणं सहः.. (१)
व ा एवं ण प त अथात् इस मं के अ धप तदे व मेरे तु त ल ण वचन को सुन.
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अ द त अपने पु और ाता के साथ हमारे र क एवं श ु ारा अ त मण र हत बल
क शी र ा कर. (१)
अंशो भगो व णो म ो अयमा द तः पा तु म तः.
अप त य े षो गमेद भ तो यावय छ ुम ततम्.. (२)
अ द त और उन के भग, व ण, म और अयमा नामक पु और उनचास म त का
समूह मेरी र ा कर. इन का े ष कम हम से र चला जाए. तुम हम से े ष रखने वाले श ु
को हम से पृथक् करो. (२)
धये सम ना ावतं न उ या ण उ म यु छन्.
ौ ३ पयावय छु ना या.. (३)
हे अ नीकुमारो! अ नहो आ द उ म कम करने क सद्बु के लए हमारी र ा
करो. हे व तीण गमन वाले वायु दे व! तुम माद न करते ए हमारी र ा करो. हे पता के
समान ुलोक! कु े के समान आ मण करने वाली पाप क दे वी को हमारे पास से भगाओ.
(३)
सू -५ दे वता—अ न, इं
उदे नमु रं नया ने घृतेना त. समेनं वचसा सृज जया च ब ं कृ ध.. (१)
हे घृत के ारा बुलाए गए अ न दे व! तुम इस यजमान को उ म पद ा त कराओ.
उ म पद ा त कराने के प ात तुम इस यजमान को शारी रक तेज से यु करो तथा पु ,
पौ आ द से समृ बनाओ. (१)
इ े मं तरं कृ ध सजातानामसद् वशी.
राय पोषेण सं सृज जीवातवे जरसे नय.. (२)
हे इं ! इस यजमान क अ तशय वृ करो. तु हारी कृपा से यह अपने बंधु के म य
सब को वश म करने वाला तथा वयं वतं बने. तुम इसे धन संप बनाओ तथा इस के
जीवन को वृ ाव था तक प ंचाओ. (२)
य य कृ मो ह वगृहे तम ने वधया वम्.
त मै सोमो अ ध वदयं च ण प तः.. (३)
हे अ न दे व! हम जस यजमान के घर म य कर रहे ह, उस यजमान को तुम समृ
बनाओ. सोम दे व एवं ण प त दे व इसे अपना कह. (३)
सू -७ दे वता—सोम
येन सोमा द तः पथा म ा वा य य हः. तेना नो ऽ वसा ग ह.. (१)
हे सोम! जस माग से, अ द त म एवं उस के बारह पु अनु ह करते ए सरंचना
करते ह, उसी माग से हमारा क याण करते ए आओ. (१)
येन सोम साह यासुरान् र धया स नः. तेना नो अ ध वोचत.. (२)
हे सोम! जस बल के ारा तुम हमारे श शाली श ु का वनाश करते हो, उसी
श के ारा हम आशीवाद वचन सुनाओ. (२)
येन दे वा असुराणामोजां यवृणी वम्. तेना नः शम य छत.. (३)
हे दे वो! तुम अपने जस बल से श ु क श अपने म मला लेते हो, उसी बल के
ारा हमारे लए सुख दान करो. (३)
सू -८ दे वता—कामा मा
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यथा वृ ं लबुजा सम तं प रष वजे.
एवा प र वज व मां यथा मां का म यसो यथा म ापगा असः.. (१)
हे प नी! जस कार लता चार ओर से वृ को लपेटती है, उसी कार तू मेरा
आ लगन कर. जस कार तू मेरी कामना करती ई मेरे समीप से कह न जाए, उसी कार
म तुझे अपने वश म करता ं. (१)
यथा सुपणः पतन् प ौ नह त भू याम्.
एवा न ह म ते मनो यथा मां का म यसो यथा म ापगा असः.. (२)
हे का मनी! जस कार ग ड़ अपने नवास थान से उड़ता आ धरती पर अपने दोन
पंख को पटकता है, उसी कार म तेरे दय को पी ड़त करता ं. जस कार तू मेरी
कामना करती ई मेरे समीप से कह न जाए, उसी कार म तुझे अपने वश म करता ं. (२)
यथेमे ावापृ थवी स ः पय त सूयः.
एवा पय म ते मनो यथा मां का म यसो यथा म ापगा असः.. (३)
हे नारी! सब का ेरक सूय जस कार इस आकाश और धरती को शी ा त कर
लेता है, उसी कार म तेरे मन को ा त क ं गा. जस कार तू मेरी कामना करती ई मेरे
समीप से कह न जाए, उसी कार म तुझे अपने वश म करता ं. (३)
सू -९ दे वता—कामा मा
वा छ मे त वं १ पादौ वा छा यौ ३ वा छ स यौ.
अ यौ वृष य याः केशा मां ते कामेन शु य तु.. (१)
हे का मनी! तू मेरे शरीर, पैर , ने और जंघा क कामना कर. तू ऐसे पु ष क
कामना करती है, जो तुझे संतु कर सके. तेरी सुंदर आंख और केश मेरे मन को ाकुल
करते ह. (१)
मम वा दोष ण षं कृणो म दय षम्.
यथा मम तावसो मम च मुपाय स.. (२)
हे प नी! म तुझे अपनी बांह और दय म आ य लेने वाली बनाता ं. इस कार तू
मेरे संक प के अधीन होगी और मेरे च को ा त करेगी. (२)
यासां ना भरारेहणं द संवननं कृतम्.
गावो घृत य मातरो ऽ मूं सं वानय तु मे.. (३)
जन के अंग आनंद ा त के साधन होते ह और जन के दय म वधाता ने वशीकरण
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क श दान क है; घी, ध दे ने वाली गाएं मेरे ऐसे अ धकार म रह. (३)
सू -११ दे वता—वीय
शमीम थ आ ढ त पुंसुवनं कृतम्.
तद् वै पु य वेदनं तत् ी वा भराम स.. (१)
शमी वृ ी है और अ थ अथात् पीपल का वृ पु ष है. अ न प पु उ प
करने के लए वह शमी वृ पर आ ढ़ है. उसी पीपल वृ से अर णयां बनाई जाती ह, जो
अ न उ पादन के काम आती ह. इस कार के अ थ पर पुंसवन कया गया है. वह पुंसवन
अथात् पु ा त कम हम य म करते ह. (१)
पुं स वै रेतो भव त तत् यामनु ष यते.
तद् वै पु य वेदनं तत् जाप तर वीत्.. (२)
पु षमय बीज प वीय होता है. वह गभाधान कम के ारा नारी के गभाशय म डाला
जाता है. वही पु ा त का साधन बनता है. यह पुंसवन कम जाप त ने बताया है. (२)
जाप तरनुम तः सनीवा य ची लृपत्.
ैषूयम य दधत् पुमांसमु दध दह.. (३)
जाप त ने, अमाव या क दे वी सनीवाली ने और पूणमासी के दे वता ने गभाशय म
थत वीय के अंश से हाथ, पैर आ द क रचना क है. उ ह ने ी के सव संबंधी न म
सू -१३ दे वता—मृ यु
नमो दे ववधे यो नमो राजवधे यः.
अथो ये व यानां वधा ते यो मृ यो नमो ऽ तु ते.. (१)
इं आ द के हनन साधन व आ द को नम कार है, जस से वे हमारा याग कर द.
राजा से संबं धत आयुध को नम कार है. हे मृ यु! वै य जा तय के वध के जो साधन ह, उन
से बचाने के लए हम तुझे नम कार करते ह. (१)
नम ते अ धवाकाय परावाकाय ते नमः.
सुम यै मृ यो ते नमो म यै त इदं नमः.. (२)
हे मृ यु! तेरा प पात कर के वचन बोलने वाले त को तथा पराभव का वणन करने
वाले के लए नम कार है. हे मृ यु! तेरी अनु हका रणी बु के लए एवं न ह करने वाली
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बु के लए नम कार है. (२)
नम ते यातुधाने यो नम ते भेषजे यः.
नम ते मृ यो मूले यो णे य इदं नमः.. (३)
हे मृ यु! तुझ से संबं धत रा स को नम कार है, जो लोग को पीड़ा प ंचाते ह. तुझ से
र ा करने वाली ओष धय को नम कार है. तुझ से संबं धत मूल पु ष तथा शापानु ह
समथ ा ण के लए नम कार है. (३)
सू -१४ दे वता—बलास
अ थ ंसं प ंसमा थतं दयामयम्.
बलासं सव नाशया े ा य पवसु.. (१)
मं क श से ह ड् डय को कं पत करने वाले, शरीर के जोड़ को ढ ला करने वाले
तथा सारे शरीर म ा त े मा ारा कए ए दय रोग क श का वनाश करे. वह रोग
खांसी और सांस से संबं धत है. (१)
नबलासं बला सनः णो म मु करं यथा.
छनद् य य ब धनं मूलमुवावा इव.. (२)
जस कार सरोवर से कमल उखाड़ा जाता है, उसी कार म इस रोगी पु ष के े मा
रोग को जड़ से न करता ं. जस कार पक ई ककड़ी अपने नाल से अपनेआप अलग
हो जाती है, उसी कार म इस रोगी के े मा रोग का बंधन तोड़ता ं. (२)
नबलासेतः पताशु ः शशुको यथा.
अथो इट इव हायनो ऽ प ा वीरहा.. (३)
हे े मा रोग! जस कार भागा आ शुंशु क ह रण र चला जाता है तथा गया आ
संव सर फर वापस नह आया, उसी कार हमारे वीर के वनाशकारी तू इस रोगी को छोड़
कर बुरी दशा म चला जा. (३)
सू -१५ दे वता—वन प त
उ मो अ योषधीनां तव वृ ा उप तयः.
उप तर तु सो ३ माकं यो अ मां अ भदास त.. (१)
हे सोमपण से उ प पलाश वृ ! तू वन प तय म उ म है. सभी वृ तेरे उपासक
अथात् तुझ से न न थ त वाले ह. तेरी कृपा से हमारा वह श ु हमारा उपासक बने जो हम
न करना चाहता है. (१)
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सब धु ासब धु यो अ माँ अ भदास त.
तेषां सा वृ ाणा मवाहं भूयासमु मः.. (२)
हमारे गो वाला अथवा हमारे गो से भ जो श ु हम ीण करना चाहता है, उन सब
म म उसी कार उ म बनूं, जस कार तू सभी वृ म े है. (२)
यथा सोम ओषधीनामु मो ह वषां कृतः.
तलाशा वृ ाणा मवाहं भूयासमु मः.. (३)
जस कार पुरोडाश के योग के लए सोमलता सभी लता और वन प तय म े
मानी जाती है, उसी कार म अपने गो वाल म े बनूं. (३)
सू -१६ दे वता—मं म उ
आबयो अनाबयो रस त उ आबयो. आ ते कर भम स.. (१)
हे रोग नवृ के लए खाई जाने वाली सरस एवं न खाए जाने वाले सरस के तने!
तेरा रस अथात् तेल रोग नवारण म स म है. हे सरस ! हम तेरा कर भ (साग) मं से यु
कर के खाते ह. (१)
वहह्लो नाम ते पता मदावती नाम ते माता.
स ह न वम स य वमा मानमावयः.. (२)
हे सरस के साग! तेरा पता वह ल तथा माता मदावती नाम क है. तू अपना साग
मनु य को खाने के लए दे दे ती है, इस लए तू अपने माता पता के समान नह रहती. (२)
तौ व लके ऽ वेलयावायमैलब ऐलयीत्. ब ु ब ुकण ापे ह नराल..
(३)
हे तौ व लक नाम क पशाची! तू रोग का कारण है. तू हमारे रोग को परा जत कर के
लौटा दे . तेरे ारा होने वाला ऐलय नाम का ने रोग र चला जाए. हे ब ,ु ब ुवण तथा
नराल नामक रोग! तुम इस पु ष के शरीर से भाग जाओ. (३)
अलसाला स पूवा सला ाला यु रा. नीलागलसाला.. (४)
पौध क मंजरी अलसाला थम उ प होने के कारण पूव है और बाद म उ प होने
के कारण सलांजाला उ रा है. नीलागलसाला इन के म य वाली है. (४)
सू -१९ दे वता—मं म उ
पुन तु मा दे वजनाः पुन तु मनवो धया.
पुन तु व ा भूता न पवमानः पुनातु मा.. (१)
दे वगण मुझे प व कर. मनु य मुझे बु अथवा कम के ारा प व कर. सभी ाणी
मुझे प व कर और अंत र म वचरण करने वाली वायु मुझे प व करे. (१)
पवमानः पुनातु मा वे द ाय जीवसे. अथो अ र तातये.. (२)
नचोड़ा जाता आ सोम मुझे य कम के लए, बल ा त के लए, जीवन के लए
तथा अ हसा करने के लए प व करे. (२)
उभा यां दे व स वतः प व ेण सवेन च. अ मान् पुनी ह च से.. (३)
हे सब के ेरक स वता दे व! तु हारा तेज प व करने का साधन है. अपने तेज और
ेरणा से हम इहलोक और परलोक के सुख के साधन य के लए शु करो. (३)
सू -२१ दे वता—चं मा
इमा या त ः पृ थवी तासां ह भू म मा.
तासाम ध वचो अहं भेषजं समु ज भम्.. (१)
ये जो पृ वी आ द तीन लोक ह, उन म यह पृ वी उ म है, जस पर हम थत ह. पृ वी
क वचा के समान ऊपर वतमान जो भू म है, म उस पर उ प ओष धय का सं ह करता
ं. (१)
े म स भेषजानां व स ं वी धानाम्.
सोमो भग इव यामेषु दे वेषु व णो यथा.. (२)
हे ह र ा! तू अमोघ श के कारण अ य भेषज म उसी कार शंसनीय है तथा
वी ध म मु य है, जैसे रा और दन के काल वभाग के कारण चं मा एवं सूय मु य ह.
(२)
रेवतीरनाधृषः सषासवः सषासथ. उत थ केश ं हणीरथो ह
केशवधनीः.. (३)
हे धनवती ओष धयो! तुम कसी के ारा ह सत नह हो. तुम आरो य दे ने के लए
इ छु क हो, इस लए मुझे आरो य दान करो. तुम केश को ढ़ बनाने वाली हो, इस लए मेरे
केश को ढ़ करो. (३)
सू -२२ दे वता—आ द य र म, म त्
कृ णं नयानं हरयः सुपणा अपो वसाना दवमुत् पत त.
त आववृ सदना त या दद् घृतेन पृ थव ू ः.. (१)
कृ ण वण अंत र को पा कर सूय क करण पृ वी के पदाथ का रस हण करती ई
ुलोक म प ंच जाती ह. वे सूय करण जल को सूय मंडल से वृ के प म लाती ह और
बाद म धरती को जल से गीला कर दे ती ह. (१)
पय वतीः कृणुथाप ओषधीः शवा यदे जथा म तो मव सः.
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ऊज च त सुम त च प वत य ा नरो म त्ः स चथा मधु.. (२)
हे म द्गण! वण से बने आभूषण व थल पर धारण कर के तुम जब चलते हो तो
जल को रसमय और ओष धय को सुखकारी बनाते हो. हे नेता म द्गण! तुम जहां पर वषा
का जल गराते हो, उस दे श म बल कारक अ और बु यु जा का पोषण करो. (२)
उद ुतो म त ताँ इयत वृ या व ा नवत पृणा त.
एजा त लहा क येव तु ै ं तु दाना प येव जाया.. (३)
हे म द्गण! तुम जल बरसाने वाले उन मेघ को े रत करो, जन से संबं धत वषा
सभी फसल को और स रता को पु करती है. जस कार द र माता पता अपनी क या
को दे ख कर ःखी होते ह, मेघ उसी कार अपनी गजना से लोग को भयभीत और कं पत
करते ह. प नी जस कार प त से बातचीत करती ई उसे अ आ द दान करती है, मेघ
गजन पी वाणी उसी कार गमनशील मेघ से बात करती है. (३)
सू -२३ दे वता—जल
स ुषी तदपसो दवा न ं च स ुषीः. वरे य तुरहमपो दे वी प ये..
(१)
उ म कम करने वाला म सभी ा णय के जीवन का प ा त करने वाले, जगत् के
र क एवं सदै व बहने वाले जल को अपने समीप बुलाता ं. (१)
ओता आपः कम या मु च वतः णीतये. स कृ व वेतवे.. (२)
सदै व बहने वाले, लौ कक और वै दक कम के साधन जल हम उ म फल शी पाने
के लए सभी पाप से बचाएं. (२)
दे व य स वतुः सवे कम कृ व तु मानुषाः. शं नो भव वप ओषधीः
शवाः.. (३)
का शत होने वाले एवं सब के ेरक सूय क ेरणा होने पर मनु य लौ कक और
वै दक कम करे. जल हमारे लए क याणकारी ह और ओष धयां हमारे पाप को शांत कर.
(३)
सू -२४ दे वता—जल
हमवतः व त स धौ समह संगमः.
आपो ह म ं तद् दे वीददन् द् ोतभेषजम्.. (१)
सू -२६ दे वता—पा मा
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अव मा पा म सृज वशी सन् मृडया स नः.
आ मा भ य लोके पा मन् धे व तम्.. (१)
हे पाप के अ भमानी दे व! मुझे छोड़ दो. तुम सब को वश म करने वाले हो. तुम मुझे
सुख दो. हे पा मा! पीड़ार हत मुझ को पु य के फल के प म ा त होने वाले लोक म
था पत करो. (१)
यो नः पा मन् न जहा स तमु वा जा हमो वयम्.
पथामनु ावतनेऽ यं पा मानु प ताम्.. (२)
हे पा मा! य द मुझे नह छोड़ोगे तो म इस अनु ान ारा तु ह बलपूवक चार माग के
संगम प चौराहे पर छोडू ंगा. वहां छोड़ा आ पाप हमारे श ु म वेश करे. (२)
अ य ा म यु यतु सह ा ो अम यः.
यं े षाम तमृ छतु यमु म त म ज ह.. (३)
इं के समान अमर रहने वाला एवं बली पाप उसी को ा त हो, जस से हम े ष करते
ह. हे पाप! जो हमारा श ु है, तू उसी के पास जा. (३)
सू -२७ दे वता—यम
दे वाः कपोत इ षतो य द छन् तो नऋ या इदमाजगाम.
त मा अचाम कृणवाम न कृ त शं नो अ तु पदे शं चतु पदे .. (१)
हे दे वो! पाप दे वता ारा भेजा गया त कबूतर हम को पी ड़त करने क इ छा करता
आ हमारे घर आया है. उसे लौटाने के लए हम ह व के ारा तु हारी अचना करते ह. हमारे
पाय अथात् उ रा धका रय और चौपाय अथात् पशु का क याण हो. (१)
शवः कपोत इ षतो नो अ वनागा दे वाः शकुनो गृहं नः.
अ न ह व ो जुषतां ह वनः प र हे तः प णी नो वृण ु .. (२)
हे दे वो! पाप दे वता ारा भेजा आ कबूतर हमारे लए सुखकारी हो तथा घर को
पी ड़त न करे, य क यह अनपराधक है. इस के लए मेधावी अ न हमारे ह व को वीकार
कर. उस क कृपा से पंख वाला कबूतर नाम का आयुध हम छोड़ दे . (२)
हे तः प णी न दभा य माना ी पदं कृणुते अ नधाने.
शवो गो य उत पु षे यो नो अ तु मा नो दे वा इह हसीत् कपोतः.. (३)
पंख वाला आयुध अथात् कबूतर हम न मारे. वह दावा न से ा त वन म चला जाए.
हे दे वो! वह कबूतर हमारी गाय और पु ष को सुख दे ने वाला हो. वह कबूतर हमारी हसा
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न करे. (३)
सू -२८ दे वता—यम
ऋचा कपोतं नुदत णोद मषं मद तः प र गां नयामः.
संलोभय तो रता पदा न ह वा न ऊज पदात् प थ ः.. (१)
हे दे वो! इस मं के ारा कबूतर को हमारे घर से र जाने के लए े रत करो. हम अ
को पा कर तृ त होते ए धरती पर गाय को सभी ओर चराएं. हम कबूतर के पंज के च
को भली कार धोएं और वह कबूतर हमारी पाकशाला के अ को याग कर प य म े
हो तथा उड़ जाए. (१)
परीमे ३ नमषत परीमे गामनेषत.
दे वे व त वः क इमां आ दधष त.. (२)
हे ऋ वज्! लोग कबूतर के वेश के दोष क शां त के लए अ न को मेरे घर म ले
आए ह और घर म गाय को सभी ओर घुमा रहे ह. इ ह ने अ न आ द दे व को ह व प म
अ पत कया है. अब हमारे पु ष को कौन परा जत कर सकता है. (२)
यः थमः वतमाससाद ब यः प थामनुप पशानः.
यो ३ येशे पदो य तु पद त मै यमाय नमो अ तु मृ यवे.. (३)
यह आज मरने यो य है, यह कल मरने यो य है, इस कार क गणना करते ए दे व म
मु य यमराज ने उ म माग ा त कया है. वे यम इस यजमान के दो पैर वाले मनु य और
चार पैर वाले पशु के वामी ह. मृ यु को े रत करने वाले उन यम को नम कार है. (३)
सू -२९ दे वता—यम
अमून् हे तः पत णी येकतु य लूको वद त मोघमेतत्.
यद् वा कपोतः पदम नौ कृणो त.. (१)
यह पंख वाला आयुध हमारे र थ श ु के पास जाए. यह उ लू जो कहता है, वह
अस य हो. कबूतर ने अशुभ क सूचना के लए जो हमारे चू हे क अ न के समीप पंजे का
च बनाया है, वह भी भावहीन हो जाए. (१)
यौ ते तौ नऋत इदमेतो ऽ हतौ हतौ वा गृहं नः.
कपोतोलूका यामपदं तद तु.. (२)
हे पाप दे वता नऋ त! तेरे ारा भेजे ए जो कबूतर और उ लू ह. वे मेरे घर म आ कर
भी आ य न पा सक. (२)
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अवैरह यायेदमा पप यात् सुवीरताया इदमा सस ात्.
पराङे व परा वद पराचीमनु संवतम्.
यथा यम य वा गृहे ऽ रसं तचाकशानाभूकं तचाकशान्.. (३)
कबूतर और उ लू के आने का जो अपशकुन है, वह हमारे वीर क हसा न करे तथा
हमारे वीर के सद्भाव के न म वह अपशकुन र चला जाए. हे यम के त कबूतर! तेरे
वामी के घर म ाणी जस कार तुझे भावहीन समझते ह, उसी कार तुझे हम भी दे ख.
(३)
सू -३० दे वता—शमी
दे वा इमं मधुना संयुतं यवं सर व याम ध मणावचकृषुः.
इ आसीत् सीरप तः शत तुः क नाशा आसन् म तः सुदानवः.. (१)
दे व ने सर वती नद के समीप मनु य को शहद से यु जौ दए. उस समय जोतने से
भू म म अ उ प करने के लए इं हल के वामी और शोभन दान वाले म त् कसान बने
थे. (१)
य ते मदो ऽ वकेशो वकेशो येना भह यं पु षं कृणो ष.
आरात् वद या वना न वृ वं श म शतव शा व रोह.. (२)
हे शमी नामक वृ ! तेरा जो मद मन चाहे केश को उ प करने वाला और वृ करने
वाला है तथा जस के ारा तुम पु ष को सभी कार स करते हो, म भी तुम से र थत
वन को काटता ं. हे शमी! तू सौ शाखा वाला हो कर बढ़े . (२)
बृहत्पलाशे सुभगे वषवृ ऋताव र.
मातेव पु े यो मृड केशे यः श म.. (३)
हे बड़ेबड़े प वाली, केवल वषा के जल से बढ़ने वाली एवं सौभा य सूचक शमी!
माता जस कार पु को बढ़ाती है, तू उसी कार हमारे केश क वृ कर. (३)
सू -३१ दे वता—गौ
आयं गौः पृ र मीदसद मातरं पुरः. पतरं च य वः.. (१)
ये अगमनशील और तेज वी सूय उदयाचल पर प ंच कर पूव दशा म दखाई दे रहे ह
और अपनी करण से सभी ा णय क माता भू म को ा त कर रहे ह. इ ह ने वग और
अंत र को ढक लया है. ये सूय वषा का जल दे ने के कारण गौ कहे जाते ह. (१)
अ त र त रोचना अ य ाणादपानतः. य म हषः वः.. (२)
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ाण वायु हण करने के प ात अपान वायु छोड़ते ए इस ा णसमूह के शरीर म सूय
क भा वतमान है. वह महान सूय वग तथा सभी ऊपर वाले लोक को का शत करता है.
(२)
शद् धामा व राज त वाक् पत ो अ श यत्. त व तोरह ु भः..
(३)
दवस एवं रात के अवयव तीस मु त तेज के थान ह और इस सूय क चमक से
वराजमान रहते ह. तीन वेद के प वाली वाणी भी सूय के आ य म ही रहती है. (३)
सू -३२ दे वता—अ न
अ तदावे जु ता वे ३ तद् यातुधान यणं घृतेन.
आराद् र ां स त दह वम ने न नो गृहाणामुप तीतपा स.. (१)
हे ऋ वजो! रा स का वनाश करने वाले इस ह व को घी के साथ अ न म हवन
करो. हे अ न! उप व करने वाले इन रा स को भ म करो तथा हमारे घर को संताप यु
मत करो. (१)
ो वो ीवा अशरैत् पशाचाः पृ ीव ऽ प शृणातु यातुधानाः.
वी द् वो व तोवीया यमेन समजीगमत्.. (२)
हे पशाचो! तु हारी गरदन को दे व काट. हे यातुधानो! तु हारी पीठ क ह ड् डय
का ही वनाश कर. सभी कार क श वाली ओष ध तुम यातुधान को मृ यु से मला दे .
(२)
अभयं म ाव णा वहा तु नो ऽ चषा णो नुदतं तीचः.
मा ातारं मा त ां वद त मथो व नाना उप य तु मृ युम.् . (३)
हे म और व ण! इस दे श म हम भय नह रहे. तुम अपने तेज से मानव भ ी रा स
को हम से पराङ् मुख करो. र भागे ए वे मुझ ानी को ा त न कर तथा मेरी आवास भू म
को ा त न कर सक. वे एक सरे पर हार करते ए मृ यु को ा त कर. (३)
सू -३३ दे वता—इं
य येदमा रजो युज तुजे जना वनं वः. इ य र यं बृहत्.. (१)
हे मनु यो! जस इं का स ताकारक काश श ु वनाश के लए त पर करता है,
उस इं के रमणीय एवं सेवा के यो य तेज को तुम हण करो. (१)
सू -३४ दे वता—अ न
ा नये वाचमीरय वृषभाय तीनाम्. स नः पषद त षः.. (१)
हे तोता! मनु य क कामनाएं पूरी करने वाले तथा रा स के हंता अ न क तु त
करो. वे अ न हम रा स, पशाच आ द से छु ड़ाएं. (१)
यो र ां स नजूव य न त मेन शो चषा. स नः पषद त षः.. (२)
जो अ न, अपने ती ण तेज से रा स का वनाश करते ह, वह अ न हम रा स,
पशाच आ द से बचाएं. (२)
यः पर याः परावत तरो ध वा तरोचते. स नः पषद त षः.. (३)
जो अ न अ यंत र दे श से जल र हत म भू म म छप जाते ह और ब त सुंदर लगते
ह, वह अ न हम रा स, पशाच आ द से छु ड़ाएं. (३)
यो व ा भ वप य त भुवना सं च प य त. स नः पषद त षः.. (४)
जो अ न सभी भुवन को संपूण प से दे खते ह और सूय पी एक साधन से
का शत करते ह, वह हम रा स, पशाच आ द से बचाएं. (४)
यो अ य पारे रजसः शु ो अ नरजायत. स नः पषद त षः.. (५)
इस भूलोक के ऊपर जो अंत र है, उस म जो नमल सूय पी अ न उ प ई थी,
वह हम श ु से बचाए. (५)
सू -३६ दे वता—अ न
ऋतावानं वै ानरमृत य यो तष प तम्.
अज ं घममीमहे.. (१)
हम य ा मक यो त के वामी एवं सतत द तशाली वै ानर अ न क आराधना
करते ह. हम उन से उ म फल क याचना करते ह. (१)
स व ा त चा लृप ऋतूं त् सृजते वशी.
य य वय उ रन्.. (२)
वै ानर अ न सभी जा को सभी फल दे ने म समथ ह. वतं अ न सूय के पम
वसंत आ द ऋतु का नमाण करते ह. वे य का अ दे व को ा त कराते ह. (२)
अ नः परेषु धामसु कामो भूत य भ य.
स ाडेको व राज त.. (३)
उ म थान म अ न स ाट् , भूत और भ व यत काल म कामनापूण करने वाला हो
कर वराजता है. (३)
सू -३७ दे वता—चं मा
सू -३८ दे वता—बृह प त
सहे ा उत या पृदाकौ व षर नौ ा णे सूय या.
इ ं या दे वी सुभगा जजान सा न ऐतु वचसा सं वदाना.. (१)
सह, बाघ और सप म जो आ मण के प म तेज है, अ न म दाह के प म, ा ण
म शाप के प म और सूय म ताप के प म जो तेज है, उसी सौभा यशाली तेज ने इं को
ज म दया है. वह तेज व प दे वी हमारे तेज से एक होती ई हमारे समीप आए. (१)
या ह त न प न या हर ये व षर सु गोषु या पु षेषु.
इ ं या दे वी सुभगा जजान सा न ऐतु वचसा सं वदाना.. (२)
जो तेज गज म बल क अ धकता के प म, चीते म हसा के प म तथा सोने म
आ ाद के प म है, जल म, गाय म और मनु य म जो तेज है, उसी सौभा यशाली तेज ने
इं को ज म दया है. वह तेज व पा दे वी हमारे तेज से एक होती ई हमारे समीप आए.
(२)
रथे अ े वृषभ य वाजे वाते पज ये व ण य शु मे.
इ ं या दे वी सुभगा जजान सा न ऐतु वचसा सं वदाना.. (३)
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गमन के साधन रथ म, उस के प हय म, गभाधान करने म समथ बैल के शी गमन म,
वायु म, वषा करने वाले जल म एवं व ण के बल म जो तेज है, उसी सौभा यशाली तेज ने
इं को ज म दया है. वह तेज पा दे वी हमारे तेज से एक होती ई हमारे समीप आए. (३)
राज ये भावायतायाम य वाजे पु ष य मायौ.
इ ं या दे वी सुभगा जजान सा न ऐतु वचसा सं वदाना.. (४)
राजकुमार म, बजाई जाती ई ं भी म, घोड़े के शी गमन म एवं पु ष क उ च
घोषणा म जो तेज है, उसी सौभा यशाली तेज ने इं को ज म दया है. वह तेज पी दे वी
हमारे तेज से एक होती ई हमारे समीप आए. (४)
सू -३९ दे वता—बृह प त
यशो ह ववधता म जूतं सह वीय सुभृतं सह कृतम्.
स ाणमनु द घाय च से ह व म तं मा वधय ये तातये.. (१)
हमारे ारा इं के उ े य से द ई अप र मत साम य से यु , भलीभां त वतमान एवं
हजार को परा जत करने वाले बल को दे ने वाली ह व क वृ हो. हे इं ! उस ह व क वृ
के प ात मुझ ह व दे ने वाले यजमान को चरकाल तक होने वाले दशन और े ता के लए
बढ़ाओ. (१)
अ छा न इ ं यशसं यशो भयश वनं नमसाना वधेम.
स नो रा व रा म जूतं त य ते रातौ यशसः याम.. (२)
सामने वतमान, यश दे ने वाले एवं अ धक यश वी इं को हम नम कार आ द के ारा
पूजते ए उन क सेवा करते ह. हे इं ! तुम हम अपने ारा े रत रा य दान करो. तु हारे
उस दान से हम यश वी बन. (२)
यशा इ ो यशा अ नयशाः सोमो अजायत.
यशा व य भूत याहम म यश तमः.. (३)
इं , अ न और सोम यश क इ छा करते ए उ प ए. यश का इ छु क म भी सम त
ा णय क अपे ा अ तशय यश वी बनूं. (३)
सू —४० दे वता—इं
अभयं ावापृ थवी इहा तु नो ऽ भयं सोमः स वता नः कृणोतु.
अभयं नो ऽ तूव १ त र ं स तऋषीणां च ह वषाभयं नो अ तु.. (१)
हे ावा पृ वी! तु हारी कृपा से हम नभय ह. चं मा एवं सूय हम नभय कर. ावा
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और पृ वी के म य म वतमान अंत र हमारे लए अभय करे. हमारे ारा स त ऋ षय को
दया जाता आ ह व हम अभय दे ने वाला हो. (१)
अ मै ामाय दश त ऊज सुभूतं व त स वता नः कृणोतु.
अश व ो अभयं नः कृणो व य रा ाम भ यातु म युः.. (२)
सूय दे व हमारे नवास के गांव म और उस क चार दशा म अ उ प कर एवं
कुशल दान कर. हमारे म इं हम अभय दान कर तथा राजा का ोध हम याग कर
हम से र चला जाए. (२)
अन म ं नो अधरादन म ं न उ रात्.
इ ान म ं नः प ादन म ं पुर कृ ध.. (३)
हे इं ! हमारी द ण दशा को श ुर हत करो. हमारी उ र दशा को श ु वहीन
बनाओ. हमारी प म और पूव दशा को भी श ुहीन बनाओ. (३)
सू -४१ दे वता—मन
मनसे चेतसे धय आकूतय उत च ये.
म यै ुताय च से वधेम ह वषा वयम्.. (१)
हे पु ष! सुख का अनुभव कराने वाले मन के लए, ान के साधन च के लए, यान
के साधन बु के लए, मृ त के साधन संक प के लए, ान के साधन चेतना के लए,
अतीत क मृ त के कारण म त के लए, सुनने से उ प ान के लए एवं च ु से उ प
ान के लए हम आ य से सेवा करते ह. (१)
अपानाय ानाय ाणाय भू रधायसे.
सर व या उ चे वधेम ह वषा वयम्.. (२)
अपान वायु को, ान वायु को, ाण वायु को, ाणापान ान वायु को धारण करने
वाले ा णय क , अ य धक ा त वाली सर वती क हम आ य आ द के ारा सेवा करते
ह. (२)
मा नो हा सषुऋषयो दै ा ये तनूपा ये न त व तनूजाः.
अम या म या भ नः सच वमायुध तरं जीवसे नः.. (३)
ाण के अ ध ाता दे व एवं द गुण वाले स त ऋ ष हम नह याग. शरीर के र क
ऋ ष हम सभी ओर से ा त ह . वे हम जीवन के लए अ य धक आयु दान कर. (३)
सू -४२ दे वता—म यु
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अव या मव ध वनो म युं तनो म ते दः.
यथा संमनसौ भू वा सखाया वव सचावहै.. (१)
हे पु ष! धनुधारी जस कार धनुष पर चढ़ ई डोरी को उतारता है, उसी कार म
तेरे दय से ोध को र करता ं. (१)
सखाया वव सचावहा अव म युं तनो म ते.
अध ते अ मनो म युमुपा याम स यो गु .. (२)
म के समान हम एकमत हो कर र ा काय कर. हे ु पु ष! म तेरे ोध को भारी
प थर के नीचे दबाता ं. (२)
अ भ त ा म ते म युं पा या पदे न च.
यथावशो न वा दषो मम च मुपाय स.. (३)
हे वृ पु ष! म तेरे ोध को अपने अधीन करने के लए पैर के ऊपर और नीचे के
भाग से खड़ा होता ं. जस कार तुम परवश हो कर मेरा वरोध करने म समथ न बनो
तथा जस कार तुम मेरे मन के अनुकूल बनो, म वैसा ही उपाय करता ं. (३)
सू -४४ दे वता—मं म उ
अ थाद् ौर थात् पृ थ थाद् व मदं जगत्.
अ थुवृ ा ऊ व व ा त ाद् रोगो अयं तव.. (१)
हे रोगी पु ष! जस कार गृह न से यु ुलोक म थत है, जस कार सब क
आधार बनी ई पृ वी थत है, जस कार यह दखाई दे ता आ जगत् थत है, जस
कार खड़े एवं सोने वाले वृ ऊपर क ओर थत ह, उसी कार तेरा यह र बहने का
रोग थत हो, अथात् तेरा र वाह क जाए. (१)
शतं या भेषजा न ते सह ं संगता न च.
े मा ावभेषजं व स ं रोगनाशनम्.. (२)
हे रोगी पु ष! जो सैकड़ अथवा हजार सं या वाली ओष धयां रोग शांत करती ह,
यह कम उन सब म े एवं र ाव र करने वाला है. (२)
य मू म यमृत य ना भः.
वषाणका नाम वा अ स पतॄणां मूला थता वातीकृतनाशनी.. (३)
हे गाय के स ग से नकले ए जल! तू का मू तथा अमृत का बंधक है. हे गाय के
स ग! तू वषाण नाम के रोग को शां त क सूचना दे ता है. तू पतर के मूल से उ प तथा
र ाव के आधार पाप का नाश करने वाला है. (३)
सू -४७ दे वता—अ न
अ नः ातःसवने पा व मान् वै ानरो व कृद् व शंभूः.
स नः पावको वणे दधा वायु म तः सहभ ाः याम.. (१)
सभी ा णय का हत करने वाले, जगत् के कता एवं सब को सुख दे ने वाले अ न
ातःसवन नामक सोम य म हमारी र ा कर. सब को प व करने वाले अ न दे व हम य
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के फल व प धन म था पत कर. अ न दे व क कृपा से हम अपने पु , पौ आ द के साथ
भोजन करने वाले बन. (१)
व े दे वा म त् इ ो अ मान मन् तीये सवने न ज ः.
आयु म तः यमेषां वद तो वयं दे वानां सुमतौ याम .. (२)
सभी दे श, दान आ द गुण वाले उनचास म त् और उन के वामी इं म या सवन
नामक सोमयाग म हम ऋ वज को न छोड़. हम उन दे व को स करने वाली तु तयां
बोलते ए दे व क अनु ह बु म थत ह . (२)
इदं तृतीयं सवनं कवीनामृतेन ये चमसमैरय त.
ते सौध वनाः व रानशानाः व नो अ भ व यो नय तु.. (३)
तृतीय सवन नाम का यह सोम याग उन ऋभु का है, ज ह ने अपने श प कम से
चमस क रचना क थी. आं गरस के पु वे सुध वा रथ, चमस आ द बनाने के कारण दे व व
को ा त ए ह. वे ऋभु उ म फल का यान कर के हम को य पू त का अ धकारी बनाएं.
(३)
सू -४९ दे वता—अ न
न ह ते अ ने त वः ू रमानंश म यः.
क पबभ त तेजनं वं जरायु गौ रव.. (१)
हे अ न! तु हारे वाला प शरीर के ती ण तेज को मरणधमा पु ष ा त नह कर
सकता. ये बंदर के समान चंचल वभाव वाली और शरीर के जल को पीने वाली तु हारी
वालाएं इस दे ह को उसी कार भ म कर दे ती ह, जस कार पहली बार ब चा दे ने वाली
गाय अपनी जेर को खा जाती है. (१)
मेष इव वै सं च व चोव यसे य र ावुपर खादतः.
शी णा शरो ऽ ससा सो अदय ंशून् बभ त ह रते भरास भः.. (२)
हे अ न! मेढ़ा जस कार अ धक घास वाले थान पर जाता है और घास चरने के
प ात उस थान से अ य चला जाता है, उसी कार तुम पहले जलाने यो य पु ष शरीर के
अंग से मलते हो और बाद म उसे जलाने के बाद अ य चले जाते हो. वन को जलाने वाली
दावा न और शव को जलाने वाली शवा न-ये दोन अ नयां वृ अथवा शव को भ म
करती ई अपनी वाला से लता आ द को भी जला दे ती ह. (२)
सुपणा वाचम तोप ाखरे कृ णा इ षरा अन तषुः.
न य य युपर य न कृ त पु रेतो द धरे सूय तः.. (३)
हे अ न! तु हारी वालाएं बाज प ी के समान शी ापक होने वाली ह. काला
ह रण जस कार अपने नवास थान म ग त करता है, उसी कार तु हारी वालाएं समीप
आ कर नृ य करती है. धुआं उ प करने के कारण तु हारी वालाएं मेघ का नमाण करती
ह. हे अ न! तु हारी द तयां सूय मंडल को पा कर सभी ा णय के जीवन के आधार जल
को उ प करती ह. (३)
सू -५१ दे वता—सोम
वायोः पूतः प व ेण यङ् सोमो अ त तः. इ य यु यः सखा.. (१)
वायु से संबं धत दशाप व के ारा शो धत सोमरस मुख से चल कर ना भ दे श म
प ंचता है. वह इं का यो य म है. (१)
आपो अ मान् मातरः सूदय तु घृतेन नो घृत वः पुन तु.
व ं ह र ं वह त दे वी ददा यः शु चरा पूत ए म.. (२)
संसार क माता जलदे वी हम शु करे तथा अपने व प रस से हम प व करे,
य क दे वता प जल नान, आचमन एवं ेपण आ द करने वाले के सभी पाप को धोते
ह, इसी लए ऐसे जल म नान कर के म प व हो कर य कम के हेतु उप थत होता ं.
(२)
यत् क चेदं व ण दै े जने ऽ भ ोहं मनु या ३ र त.
अ च या चेत् तव धमा युयो पम मा न त मादे नसो दे व री रषः.. (३)
हे जल के वामी व ण दे व! मनु यगण जो पाप करते ह तथा हम सब भी अ ान के
कारण तुम से संबं धत धम के वपरीत जो काय करते ह, उस अ ान ज नत पाप के कारण
हमारी हसा मत करो. (३)
सू -५३ दे वता—पृ वी आ द
ौ म इदं पृ थवी च चेतसौ शु ो बृहन् द णया पपतु.
अनु वधा च कतां सोमो अ नवायुनः पातु स वता भग .. (१)
पृ वी और आकाश मेरे त अनु ह वाले बन कर मुझे मनचाहा फल द. द तशाली
और महान सूय द ण दशा से मेरी र ा कर. पतर से संबं धत एवं वधा क अ ध ा ी
दे वी मुझ पर अनु ह कर. सोम, अ न, वायु स वता और भग मेरी र ा कर. (१)
पुनः ाणः पुनरा मा न ऐतु पुन ुः पुनरसुन ऐतु.
वै ानरो नो अद ध तनूपा अ त त ा त रता न व ा.. (२)
मुख और ना सका ारा शरीर म वेश करने वाला ाण वायु तथा जीवा मा हम पुनः
ा त हो. च ु और जीवन हम पुनः ा त ह . संसारभर के मनु य के हतैषी, रोग आ द से
परा जत न होने वाले एवं शरीर के पालक अ न हमारे शरीर म थत रहते ह. वे रोग के
कारण होने वाले सभी पाप का वनाश कर. (२)
सं वचसा पयसा सं तनू भरग म ह मनसा सं शवेन.
व ा नो अ वरीयः कृणो वनु नो मा ु त वो ३ यद् व र म्.. (३)
सू -५५ दे वता— व े दे व
ये प थानो बहवो दे वयाना अ तरा ावापृ थवी संचर त.
तेषाम या न यतमो वहा त त मै मा दे वाः प र ध ेह सव.. (१)
जन माग से केवल दे व ही जाते ह, वे ब त से माग पृ वी और आकाश के म य
वतमान ह. उन माग म जो समृ लाने वाला है, मुझे सभी दे व उसी माग पर था पत कर.
(१)
ी मो हेम तः श शरो वस तः शरद् वषाः वते नो दधात.
आ नो गोषु भजता जायां नवात इद् वः शरणे याम.. (२)
ी म, हेमंत, श शर, वसंत, शरद और वषा—इन छः ऋतु के अ ध ाता दे व हम
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सरलता से ा त होने वाले धन म था पत कर. हे ऋतु के अ भमानी दे वो! तुम हम गाय
एवं पु , पौ आ द से यु करो. हम तु हारे ऐसे घर म रह, जहां सभी ःख के कारण का
अभाव हो. (२)
इदाव सराय प रव सराय संव सराय कृणुता बृह मः.
तेषां वयं सुमतौ य यानाम प भ े सौमनसे याम.. (३)
हे मनु यो! इदाव सर, प रव सर और संव सर को बारबार नम कार कर के स करो.
हम य के यो य इदाव सर आ द के अ ध ाता दे व क अनु ह बु म ह तथा उन क
कृपा का फल ा त कर. (३)
सू -५६ दे वता— व े दे व,
मा नो दे वा अ हवधीत् सतोका सहपू षान्.
संयतं न व परद् ा ं न सं यम मो दे वजने यः.. (१)
हे वष को शांत करने वाले दे वो! सांप हम और हमारे पु , पौ आ द क एवं सेवक
क हसा न करे. हम काटने के लए सांप का मुंह न खुले. उस का खुला आ मुख मं श
के कारण बंद न हो. सप वष शांत करने म समथ दे व को नम कार है. (१)
नमो ऽ व सताय नम तरर राजये.
वजाय ब वे नमो नमो दे वजने यः.. (२)
अ सत, तर राजी, बबे और वज नामक सप को नम कार है. सप के वष को
शमन करने म समथ दे व को नम कार है. (२)
सं ते ह म दता दतः समु ते ह वा हनू.
सं ते ज या ज ां स वा नाह आ यम्.. (३)
हे सांप! म तेरे ऊपर वाले और नीचे वाले दांत को मलाता ं. म तेरी कौड़ी के ऊपर
और नीचे वाले भाग को भी मलाता ं. म तेरी एक जीभ से सरी जीभ को मलाता ं. म
तेरे मुख के ऊपर और नीचे वाले भाग को भी मलाता ं. (३)
सू -५८ दे वता—इं आ द
यशसं मे ो मघवान् कृणोतु यशसं ावापृ थवी उभे इमे.
यशसं मा दे वः स वता कृणोतु यो दातुद णाया इह याम.. (१)
धन के वामी इं मुझे यश वी बनाएं. ये दोन धरती और आकाश मुझे यश वी बनाएं.
स वता दे व मुझे यश वी बनाएं. म यश वी बन कर ाम, नगर आ द म द णा दे ने वाले का
य बनूं. (१)
यथे ो ावापृ थ ोयश वान् यथाप ओषधीषु यश वतीः.
एवा व ष
े ु दे वेषु वयं सवषु यशसः याम.. (२)
इं जस कार धरती और आकाश के म य वषा करने के कारण यश वी ह, जस
कार जल धान, जौ आ द क वृ के कारण यश वी ह. उसी कार हम सम त दे व तथा
मनु य म यश वी बन. (२)
यशा इ ो यशा अ यशाः सोमो अजायत.
यशा व य भूत याहम म यश तमः.. (३)
इं , अ न और सोम यश क इ छा करते ए उ प ए. यश का इ छु क म भी सम त
ा णय क अपे ा अ धक यश वी बनूं. (३)
सू -६० दे वता—अयमा
अयमा या ययमा पुर ताद् व षत तुपः.
अ या इ छ ुवै प तमुत जायामजानये.. (१)
जन क करण वशेष प से उजली ह, वह सूय पूव दशा म उग रहे ह. वह इस प त
र हत क या को प त और ीहीन पु ष को प नी दान करने क इ छा से उदय हो रहे ह.
(१)
अ म दयमयम यासां समनं यती.
अ ो वयम या अ याः समनमाय त .. (२)
हे अयमा दे व! अ य प त ता ना रय ने प तय को पाने के उपाय के प म शां त पाने
के लए जन कम को कया था, उ ह प त क अ भलाषा करने वाली यह क या कर चुक है
तथा प त को ा त न करने के कारण ःखी है. अ य यां इस प तकामा क शां त के
उपाय कर रही ह. (२)
धाता दाधार पृ थव धाता ामुत सूयम्.
धाता या अ ुवै प त दधातु तका यम्.. (३)
सू -६१ दे वता—
म मापो मधुमदे रय तां म ं सूरो अभर यो तषे कम्.
म ं दे वा उत व े तपोजा म ं दे वः स वता चो धात्.. (१)
जल के अ ध ाता दे व अपना मधुर रस मेरे लए लाएं. सभी के ेरक सूय ने मेरे लए
अपना सुखकारी और का शत तेज दया है. के तप से उ प सभी दे व मुझे मनचाहा
फल द. (१)
अहं ववेच पृ थवीमुत ामहमृतूंरजनयं स त साकम्.
अहं स यमनृतं यद् वदा यहं दै व प र वाचं वश .. (२)
मं ा अपने सवगत भाव क खोज करता आ कहता है क म ने व तृत धरती
और आकाश को पृथक् कया है. म ने सात ऋतु को ज म दया है. सात ऋतु का
ता पय वसंत आ द छः ऋतु और एक अ धक मास से है. स य और अस य के प म जो
लोक स वा य ह, उ ह म ही बोलता ं. दै वीय वाणी को म ने ही ा त कया है. (२)
अहं जजान पृ थवीमुत ामहमृतूंरजनयं स त स धून्.
अहं स यमनृतं यद् वदा म यो अ नीषोमावजुषे सखाया.. (३)
म ने धरती और आकाश को उ प कया है. म ने ही छः ऋतु और गंगा आ द सात
न दय और सात सागर का नमाण कया है. म अ न और सोम को सागर के नमाण म
सहयोग के प म ा त करता ं. (३)
सू -६३ दे वता— नऋ त
यत् ते दे वी नऋ तराबब ध दाम ीवा व वमो यं यत्.
तत् ते व या यायुषे वचसे बलायादोमदम म सूतः.. (१)
हे पु ष! अ न का रणी दे वी ने तेरे सभी अंग म पाप पी फंदा डाला है और तेरी
गरदन म ऐसी र सी बांधी है, जस से छू टना असंभव है. म उस नऋ त पी फंदे से तुझे
चर काल तक जी वत रहने के लए, बल के लए एवं तेज के लए छु ड़ाता ं. मेरे ारा
छु ड़ाया आ तू मेरी ेरणा से सदा अ का भ ण कर. (१)
नमो ऽ तु ते नऋते न मतेजो ऽ य मयान् व चृता ब धपाशान्.
यमो म ं पुन रत् वां ददा त त मै यमाय नमो अ तु मृ यवे.. (२)
हे ती ण द त वाली एवं अ न का रणी दे वी नऋ त! तुझे नम कार है. नम कार से
स हो कर तू लोहे के बने बंधन के फंद से हम छु ड़ा. हे साधक पु ष! पाप से मु होने
पर यम ने तु ह इसी लोक को दे दया है. मृ यु के दे व उन यम को नम कार है. (२)
अय मये पदे बे धष इहा भ हतो मृ यु भय सह म्.
यमेन वं पतृ भः सं वदान उ मं नाकम ध रोहयेमम्.. (३)
हे नऋ त! लोहे क शृंखला म अथवा लकड़ी के बने चरण बंधन म जब तुम कसी
पु ष को बांधती हो, तब वह इस लोक म मृ यु के ारा बंधा हो जाता है. स वर आ द
रोग और रा स, पशाच आ द मृ यु के हजार कारण ह. हे नऋ त! तुम मृ यु दे व यम से
और दे वता, पतर आ द से तालमेल कर के इस पु ष को उ म सुख दान करो. (३)
संस मद् युवसे वृष ने व ा यय आ.
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इड पदे स म यसे स नो वसू या भर.. (४)
हे अ भलाषाएं पूण करने वाले अ न दे व! तुम सम त कार के धन ा त कराते हो.
तुम य वेद म व लत होते हो. तुम हम धन दो. (४)
सू -६४ दे वता—सौमन य
सं जानी वं सं पृ य वं सं वो मनां स जानताम्.
दे वा भागं यथा पूव संजानाना उपासते.. (१)
हे सौमन य के इ छु क जनो! तुम समान ान वाले बनो और समान काय म संल न हो
जाओ. ान क उ प के न म तु हारे अंतःकरण समान ह . इं आ द दे व जस कार
एक ही काय को जानते ए यजमान ारा दए गए ह व को हण करते ह, उसी कार तुम
भी वरोध याग कर इ छत फल पाओ. (१)
समानो म ः स म तः समानी समानं तं सह च मेषाम्.
समानेन वो ह वषा जुहो म समानं चेतो अ भसं वश वम्.. (२)
हमारा गु त भाषण एक प हो. हमारे काय म वृ समान हो. हमारा कम भी
एक प हो तथा हमारा अंतःकरण भी इसी कार का हो. उ फल पाने के लए हे दे वो!
हम एकता उ प करने वाले आ य आ द से आप के न म हवन कर. इस से आप सब
एक च ता को ा त करो. (२)
समानी व आकू तः समाना दया न वः.
समानम तु वो मनो यथा वः सुसहास त.. (३)
हे सौमन य चाहने वालो! तु हारा संक प समान हो. तु हारे संक प को उ प करने
वाले दय समान ह . तु हारा मन एक प हो, जस से तुम सब सभी काय ठ क से कर
सको. (३)
सू -६५ दे वता—इं
अव म युरवायताव बा मनोयुजा.
पराशर वं तेषां परा चं शु ममदयाधा नो र यमा कृ ध.. (१)
हमारे श ु का ोध शांत हो तथा उस का तर कार न हो. उस के ारा ताने गए
आयुध वफल ह . हमारे श ु क भुजाएं आयुध उठाने म असमथ ह . हे श ुनाशक इं !
तुम उन श ु के बल को वमुख करो. इस के प ात उन श ु का धन हमारे समीप
लाओ. (१)
सू -६६ दे वता—इं
नह तः श ुर भदास तु ये सेना भयुधमाय य मान्.
समपये महता वधेन ा वेषामघहारो व व ः.. (१)
हम पी ड़त करने वाला श ु हाथ क श से हीन हो जाए. हे इं ! जो श ु अपनी
सेना क सहायता से हम यु के लए ललकारते ह, उ ह अपने हनन साधन वशाल व
से संयु करो. इन शूर म जो मुझे मृ यु पी ःख प ंचाने वाला है, वह अ धक घायल हो
कर बुरी दशा को ा त हो. (१)
आत वाना आय छ तो ऽ य तो ये च धावथ.
नह ताः श वः थने ो वो ऽ पराशरीत्.. (२)
हे श ुओ! तुम धनुष पर डोरी चढ़ाते ए, धनुष को ख चते ए और बाण फकते ए
हमारे सामने आ रहे हो. तुम सब अश हाथ वाले बन जाओ. आज इं तु ह आहत कर.
(२)
नह ताः स तु श वो ऽ ै षा लापयाम स.
अथैषा म वेदां स शतशो व भजामहै.. (३)
हमारे श ु हाथ क श से हीन ह . हम उन के अंग को हष र हत करगे. हे इं ! इस
के प ात हम तु हारी कृपा से उन श ु के धन को वभा जत कर के ा त कर. (३)
सू -६७ दे वता—इं
प र व मा न सवत इ ः पूषा च स तुः.
मु व ऽ मूः सेना अ म ाणां पर तराम्.. (१)
सू -६९ दे वता—बृह प त
गरावरगराटे षु हर ये गोषु यद् यशः.
सुरायां स यमानायां क लाले मधु त म य.. (१)
हमालय पवत म जो यश है, रथ म बैठ कर चलने वाले राजा म, वण म और गाय
म जो यश है, वह मुझे ा त हो. पा म ढाली जाती ई म दरा म और अ म जो मधुर रस
पी यश है, वह मुझे ा त हो. (१)
अ ना सारघेण मा मधुनाङ् ं शुभ पती.
यथा भग वत वाचमावदा न जनाँ अनु.. (२)
हे सुंदर सूया के प त अ नीकुमारो! मुझे मधुम खय ारा एक कए गए मधु से
स चो, जस से म मनु य को ल य कर के, मधुर वाणी बोलूं. (२)
म य वच अथो यशो ऽ थो य य यत् पयः.
त म य जाप त द व ा मव ं हतु.. (३)
जाप त जस कार अंत र म यो तमंडल को ढ़ करते ह, उसी कार मुझ
यजमान म तेज, यश और य का फल धारण कर. (३)
सू -७० दे वता—सं या
यथा मांसं यथा सुरा यथा ा अ धदे वने.
यथा पुंसो वृष यत यां नह यते मनः.
एवा ते अ ये मनो ऽ ध व से न ह यताम्.. (१)
मांसभ ी को मांस, शराबी को शराब और जुआरी को पासे जस कार य होते ह
तथा जस कार सुरत चाहने वाले पु ष का मन ी म लगा रहता है, हे गौ! उसी कार तेरा
मन तेरे बछड़े म लगा रहे. (१)
यथा ह ती ह त याः पदे न पदमु ुजे.
यथा पुंसो वृष यत यां नह यते मनः.
एवा ते अ ये मनो ऽ ध व से न ह यताम्.. (२)
हाथी जस कार अपने पैर से ेम के साथ ह थनी का पैर मोड़ता है तथा जस कार
सुरत के इ छु क पु ष का मन ी म लगा रहता है, हे गौ! उसी कार तेरा मन तेरे बछड़े म
लगा रहे. (२)
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यथा धयथोप धयथा न यं धाव ध.
यथा पुंसो वृष यत यां नह यते मनः.
एवा ते अ ये मनो ऽ ध व से न ह यताम्.. (३)
हे गौ! जस कार रथ के प हए क ने म अर से संबं धत रहती है और सुरत के इ छु क
पु ष का मन जस कार नारी म लगा रहता है, उसी कार तेरा मन अपने बछड़े म लगा
रहे. (३)
सू -७१ दे वता— व े दे व, अ न
यद म ब धा व पं हर यम मुत गामजाम वम्.
यदे व क च तज हाहम न ोता सु तं कृणोतु.. (१)
भूख क पीड़ा के वशीभूत हो कर म व वध कार का जो अ अनेक कार से खाता
,ं अ के अ त र म द र ता के कारण जो सोना, घोड़े और गाएं हण करता ,ं मुझ
यजमान को वह सब अ , सोना आ द अ न दे व भली कार हवन कया आ बनाएं. (१)
य मा तम तमाजगाम द ं पतृ भरनुमतं मनु यैः.
य मा मे मन उ दव रारजी य न ोता सु तं कृणोतु.. (२)
होम के ारा सं कार वाला और इस से वपरीत जो धन मुझे ा त आ है, वह पतृ
दे व ारा मुझे उपभोग के लए दया गया है. मनु य ने उस के उपभोग क अनुम त द है.
जस धन के कारण मेरा मन हष क अ धकता से उ त रहता है, अ न दे व क कृपा से वह
धन मुझ यजमान के लए दोषर हत हो. (२)
यद मद् यनृतेन दे वा दा य दा य त
ु संगृणा म.
वै ानर य महतो म ह ना शवं म ं मधुमद व म्.. (३)
हे दे वो! अस य भाषण के ारा सर का जो अ अपहरण कर के म खाता ं, उसे म
अ के मा लक को चाहे दे ता रहा ं अथवा नह दे ता रहा ं, पर म उसे दे ने क त ा
करता ं. वै ानर दे व क अ य धक म हमा से वह अ मेरे लए सुखकर और मधुर हो. (३)
सू -७२ दे वता—शेप, अक
यथा सतः थयते वशाँ अनु वपूं ष कृ व सुर य मायया.
एवा ते शेपः सहसायमक ऽ े ना ं संसमकं कृणोतु.. (१)
जैसे बंधा आ पु ष अपने वशवत पु ष को ल त कर के आसुरी माया के ारा
अपने शरीर को सा रत करता है, उसी कार अकौआ के वृ से बनी यह ओष ध अथात्
सू -७३ दे वता—व ण
एह यातु व णः सोमो अ नबृह प तवसु भरेह यातु.
अ य यमुपसंयात सव उ य चे ुः संमनसः सजाताः.. (१)
व ण, सोम एवं अ न दे व कम के न म यहां आएं. बृह प त दे व आठ वसु के
साथ यहां आएं. हे समान ज म वाले बांधवो! तुम सब समान मन वाले हो कर इस
श शाली एवं कायअकाय जानने वाले यजमान के अधीन हो जाओ. (१)
यो वः शु मो दये व तराकू तया वो मन स व ा.
ता सीवया म ह वषा घृतेन म य सजाता रम तव अ तु.. (२)
हे बांधवो! तु हारे दय म जो शीषक बल है और तु हारे मन म जो सब कुछ ा त
करने क अ भलाषा है, म हवन कए जाते ए इस ह व के ारा बल और उस अ भलाषा को
पर पर संबं धत करता ं. तु हारी अनुकूल वृ मुझ सौमन य के इ छु क पु ष को ा त
हो. (२)
इहैव त माप याता य मत् पूषा पर तादपथं वः कृणोतु.
वा तो प तरनु वो जोहवीतु म य सजाता रम तव अ तु.. (३)
हे बांधवो! आप मेरे घर म ेम से नवास कर तथा यहां से कह न जाएं. य द तुम मेरे
तकूल आचरण करो तो स वता दे व तु हारा माग रोक. घर के पालक दे व वा तो प त तु ह
मेरे लए बुलाएं. सौमन य के इ छु क मुझ यजमान के त तु हारी अनुकूल वृ हो. (३)
सू -७५ दे वता—इं
नरमुं नुद ओकसः सप नो यः पृत य त.
नैबा येन ह वषे एनं पराशरीत्.. (१)
जो श ु सेना ले कर हम से यु करने आता है, हम उसे अपने नवास थान से
नकालते ह. हमारे श ु को मारने म समथ ह व के ारा इं इस श ु क हसा कर, जस
से यह लौट कर न आए. (१)
परमां तं परावत म ो नुदतु वृ हा.
यतो न पुनराय त श ती यः समा यः.. (२)
वृ ासुर का वध करने वाले इं उस श ु को अ य धक र दे श म जाने क ेरणा द. वह
ब त वष तक वापस न आए. (२)
सू -७६ दे वता—सायंतन अ न
य एनं प रषीद त समादध त च से. सं े ो अ न ज ा भ दे तु
दयाद ध.. (१)
जो रा स आ द इस के चार ओर बैठते ह तथा हसा करने के लए त पर हो जाते ह,
उन के दय से उ प च लत अ न उ ह जला दे . (१)
अ नेः सांतपन याहमायुषे पदमा रभे.
अ ा तय य प य त धूममु तमा यतः.. (२)
अ धक तपन वाले उन अ न दे व के जीवन के लए म उप म करता ं, जन के मुख
से नकलते ए धूम को अ ा त नाम के ऋ ष दे खते ह. (२)
यो अ य स मधं वेद येण समा हताम्.
ना भ ारे पदं न दधा त स मृ यवे.. (३)
वजय के इ छु क य जा त के पु ष के ारा था पत अ न और द त करने वाली
आ तय को जो पु ष जानता है, वह मृ यु का कारण बनने वाले ऐसे थान म पैर नह
रखता है, जहां हाथी, बाघ आ द घूमते ह. (३)
नैनं न त पया यणो न स ां अव ग छ त.
अ नेयः यो व ा ाम गृ यायुषे.. (४)
क याण क कामना करने वाले को श ु नह मार पाते. वह अपने समीपवत श ु
को भी नह जानता. जो य इस कार से महा मा अ न को जानता आ, अ न का नाम
चरकाल तक जी वत रहने के लए उ चारण करता है, श ु उस का वध नह कर पाते. (४)
सू -७७ दे वता—जातवेद
अ थाद् ौर थात् पृ थ थाद् व मदं जगत्.
आ थाने पवता अ थु था य ां अ त पम्.. (१)
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नयंता ई र क आ ा से जस कार आकाश और पृ वी अपने थान पर थत ह,
उन के म य म थत जगत् भी अपने थान पर वतमान है.
मे , मंदार आ द पवत भी ई र के ारा बनाए गए थान पर थत ह. हे नारी! उसी
कार म तुझे घर क थूनी से बांधता ं. बांधने का कार वही है, जस कार घुड़सवार
घोड़ को र सी से बांधता है. (१)
य उदानट् परायणं य उदान यायनम्.
आवतनं नवतनं यो गोपा अ प तं वे.. (२)
म उस दे वता का आ ान करता ,ं जो पीछे गमन करने वाल म ा त है. जो नीचे
गमन करने वाल म ा त है और जो भागने वाल के लौटने क ग त को रोकता है. (२)
जातवेदो न वतय शतं ते स वावृतः.
सह ं त उपावृत ता भनः पुनरा कृ ध.. (३)
हे जातवेद अ न! इस भागने वाली ी को घर म था पत करो. तु हारे पास इसे
लौटाने के सैकड़ उपाय ह. तुम इसे मेरे पास लौटाने के लए हजार उपाय जानते हो. उन के
ारा तुम इस ी को पुनः मेरी ओर आक षत करो. (३)
सू -७८ दे वता—चं मा
तेन भूतेन ह वषा ऽ यमा यायतां पुनः.
जायां याम मा आवा ु तां रसेना भ वधताम्.. (१)
स एवं समृ करने वाले ह व से यह प त पुनः जा और पशु आ द से समृ हो.
ववाह करने वाले पता आ द जस प नी को इस के समीप लाए थे, उस प नी क द ध, मधु,
घृत आ द से हवन कए जाते ए अ न दे व वृ कर. (१)
अ भ वधतां पयसा ऽ भ रा ेण वधताम्.
र या सह वचसेमौ तामनुप तौ.. (२)
यह वर एवं वधू गाय के ध से समृ ह . इ ह गाय आ द क समृ ा त हो. ये
प तप नी असी मत तेज और धन के ारा पूण काम बन. (२)
व ा जायामजनयत् व ा ऽ यै वां प तम्.
व ा सह मायूं ष द घमायुः कृणोतु वाम्.. (३)
हे वर! व ा दे व ने ी को ज म दया एवं व ा ने ही तु ह इस ी का प त बनाया है.
व ा दे व तुम दोन अथात् प तप नी क हजार वष क द घ आयु दान कर. (३)
सू -८० दे वता—चं मा
अतर ण े पत त व ा भूतावचाकशत्.
शुनो द य य मह तेना ते ह वषा वधेम.. (१)
कौआ, कबूतर आ द घात करने क इ छा से बारबार दे खते ए इस पु ष के शरीर पर
गरते ह. हे अ न! इस दोष को शांत करने के लए हम वग म रहने वाले ान के तेज क
ह व से तु हारी सेवा करते ह. (१)
ये यः कालका ा द व दे वा इव ताः.
ता सवान ऊतये ऽ मा अ र तातये.. (२)
कालकांज नाम के जो तीन असुर उ म कम के कारण दे व के समान वग म वतमान
ह, म इस पु ष क र ा के लए तथा कौए, कबूतर आ द प य के आघात संबंधी दोष क
भी त के न म सभी कालकांज असुर का आ ान करता ं. (२)
अ सु ते ज म द व ते सध थं समु े अ तम हमा ते पृ थ ाम्.
शुनो द य य मह तेना ते ह वषा वधेम.. (३)
हे अ न, वाडवा न के प म तु हारा ज म सागर म आ था तथा सूय के प म
तु हारी थ त आकाश म रही है. सागर और धरती के म य तु हारी म हमा दे खी जाती है. हे
सू -८१ दे वता—आ द य
य ता ऽ स य छसे ह तावप र ां स सेध स.
जां धनं च गृ ानः प रह तो अभूदयम्.. (१)
हे अ न! तुम गभ को न करने वाले रा स आ द को वश म करने म समथ हो,
इसी लए अपने दोन हाथ फैलाओ तथा उन के ारा गभ का नाश करने वाले रा स का
वनाश करो. पु आ द प जा और उन के भोग के लए धन दान करते ए अ न अपने
हाथ फैला कर र ा कर. (१)
प रह त व धारय यो न गभाय धातवे.
मयादे पु मा धे ह तं वमा गमयागमे.. (२)
हे कंकण! तुम गभ धारण करने के लए गभाशय को व तृत करो. हे प नी! तुम अपने
गभाशय म पु को धारण करो तथा प त के आगमन पर मेरे मनचाहे पु को ज म दो. (२)
यं प रह तम बभर द तः पु का या.
व ा तम या आ ब नाद् यथा पु ं जना द त.. (३)
पु क इ छा से दे वता अ द त ने जस कंकण को धारण कया, वही कंकण व ा दे व
मेरी इस प नी के हाथ म बांध, जस से यह पु को ज म दे सके. (३)
सू -८२ दे वता—इं
आग छत आगत य नाम गृ ा यायतः.
इ य वृ नो व वे वासव य शत तोः.. (१)
म अपने समीप आए ए इं को स करने वाले नाम वृ हंता का उ चारण करता ं.
ववाह क इ छा वाला म वृ का वध करने वाले, वसु ारा उपासना कए गए और श
क स करने वाले सौ कम के वामी इं क उपासना अ भमत फल को पाने के लए
करता ं. (१)
येन सूया सा व ीम नोहतुः पथा.
तेन माम वीद् भगो जायामा वहता द त.. (२)
जस कार अ नीकुमारो ने स वता क पु ी सूया से ववाह कया, उसी कार से भग
ने मुझ से कहा क प नी ले आओ. (२)
सू -८३ दे वता—सूय दय
अप चतः पतत सुपण वसते रव.
सूयः कृणोतु भेषजं च मा वो ऽ पो छतु.. (१)
हे गंडमालाओ! जस कार बाज प ी अपने नवास थान से उड़ता है, उसी कार
तुम मेरे शरीर से नकल जाओ. सूय मेरी च क सा कर और चं मा मेरे शरीर से तु ह र कर.
(१)
ए येका ये येका कृ णैका रो हणी े .
सवासाम भं नामावीर नीरपेतन.. (२)
एक गंडमाला लाल रंग क , सरी ेत वण क तथा तीसरी काले रंग क है. इन के
अ त र दो गंडमालाएं लाल रंग क ह. म इन सब को स करने वाले नाम का उ चारण
करता ं. इस से स हो कर तुम इस पु ष को याग कर अ य चली जाओ. (२)
असू तका रामाय यप चत् प त य त.
लौ रतः प त य त स गलु तो न श य त.. (३)
पीब बहाने वाली तथा घाव के प वाली गंडमाला इस पु ष के शरीर से र जाएगी.
इस के घाव के कारण होने वाला ःख न हो जाएगा तथा चं मा गंडमाला क पीड़ा को
शेष नह रखेगा. (३)
वी ह वामा त जुषाणो मनसा वाहा मनसा य ददं जुहो म.. (४)
हे घाव रोग के अ भमानी दे व! तुम अपनी आ त का भ ण करो. सेवा कए जाते ए
तुम आ त का भ ण करो. म भी मन से यह ह व दे ता ं. (४)
सू -८४ दे वता— नऋ त
य या त आस न घोरे जुहो येषां ब ानामवसजनाय कम्.
भू म र त वा भ म वते जना नऋ त र त वाहं प र वेद सवतः.. (१)
हे रोगा भमा ननी पाप क दे वी! घाव के रोग से उ प बंधन से छू टने के लए म
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तु हारे भयानक मुख म ह व डालता ं तथा घाव को धोने के लए यह ह व ओष ध यु जल
योग करता ं. तु ह ानहीन जन पृ वी समझते ह. तु हारा व प जानता आ म सभी
कार नऋ त अथात् सभी रोग का कारण जानता ं. (१)
भूते ह व मती भवैष ते भागो यो अ मासु. मु चेमानमूनेनसः वाहा.. (२)
हे सव व मान नऋ त! तुम हमारे ारा दया आ आ य वीकार करो. यह तु हारा
भा य है जो इस समय हम ने न त् कया है. तुम हम रोग के कारण पाप से बचाओ. हमारा
यह ह व उ म आ त वाला हो. (२)
एवो व १ म ऋते ऽ नेहा वमय मयान् व चृता ब धपाशान्.
यमो म ं पुन रत् वां ददा त त मै यमाय नमो अ तु मृ यवे.. (३)
हे पाप दे वता नऋ त! तुम हम बाधा न प ंचाती ई अ यंत ढ़ बंधन वाले र सी के
फंद को हम से र करो. ये फंदे रोगा मक ह. हे रोगी! यमराज तु ह मेरे लए दे ते ह. मृ यु के
दे वता उस यम को नम कार है. (३)
अय मये पदे बे धष इहा भ हतो मृ यु भय सह म्.
यमेन वं पतृ भः सं वदान उ मं नाकम ध रोहयेमम्.. (४)
हे नऋ ! लोहे क शृंखला से अथवा लकड़ी के बने चरण बंधन से जब तुम कसी
पु ष को बांधती हो, तब वह इस लोक म मृ यु के ारा ब हो जाता है. स वर आ द
रोग और रा स, पशाच आ द मृ यु के हजार कारण ह. हे नऋ त! तुम मृ यु के दे व यम से
और दे वता, पतर आ द से तालमेल कर के इस पु ष को उ म सुख दान करो. (४)
सू -८५ दे वता—वन प त
वरणो वारयाता अयं दे वो वन प तः.
य मो यो अ म ा व तमु दे वा अवीवरन्.. (१)
यह द गुण यु वरण नाम क वन प त से बनी ई म ण राजय मा रोग का
नवारण करे. इस पु ष म जस य मा रोग का नवास है, उस रोग का नवारण इं आ द दे व
कर. (१)
इ य वचसा वयं म य व ण य च.
दे वानां सवषां वाचा य मं ते वारयामहे.. (२)
हे रोगी पु ष! तेरे हाथ म वरण वृ से बनी ई म ण बांधने वाले हम सब इं , म
और व ण क आ ा से य मा रोग का नवारण करते ह. हम सभी दे व क आ ा से तेरे
य मा रोग को तेरे शरीर से नकालते ह. (२)
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यथा वृ इमा आप त त भ व धा यतीः.
एवा ते अ नना य मं वै ानरेण वारये.. (३)
व ा का पु वृ ासुर जस कार थावर और जंगम व का पोषण करने वाले इन
मेघ के जल क ग त रोकता है, हे रोगी! म वै ानर अ न क सहायता से तेरे य मा रोग का
उसी कार नवारण करता ं. (३)
सू -८७ दे वता— ुव
आ वाहाषम तर भू ुव त ा वचाचलत्.
वश वा सवा वा छ तु मा व ा म ध शत्.. (१)
हे राजन्! हम तु ह अपने रा म लाए ह! तुम हमारे म य हमारे वामी बनो. तुम
चंचलता र हत हो कर रा य के अ धकार पर ढ़ बनो. सभी जाएं तु ह चाह. यह रा
तु हारे अ धकार से न हो. (१)
इहैवै ध मा ऽ प यो ाः पवत इवा वचाचलत्.
इ इवेह ुव त ेह रा मु धारय.. (२)
सू -८८ दे वता— ुव
ुवा ौ ुवा पृ थवी ुवं व मदं जगत्.
ुवासः पवता इमे ुवो राजा वशामयम्.. (१)
आकाश जस कार थत है, यह पृ वी जस कार ुव दखाई दे ती है. यह दखाई
दे ता आ व जस कार ुव है तथा ये सभी पवत जस कार थर ह, जा का
वामी यह राजा भी उसी कार थर हो. (१)
ुवं ते राजा व णो ुवं दे वो बृह प तः.
ुवं त इ ा न रा ं धारयतां ुवम्.. (२)
हे राजन्! राजा व ण तु हारे रा य को थर कर. काश करते ए बृह प त तु हारे
रा को ुव बनाएं. इं और अ न तु हारे रा को थर बनाएं. (२)
ु ो ऽ युतः मृणी ह श ून्छ ूयतो ऽ धरान् पादय व.
व
सवा दशः संमनसः स ीची ुवाय ते स म तः क पता मह.. (३)
हे राजन्! तुम इस रा म थर और अ युत रह कर श ु का वनाश करो तथा
श ु के समान आचरण करने वाले अ य जन को भी अधोमुख गराओ. सभी दशाएं
सौमन य वाली बन कर तु हारी सेवा म लग. तु हारा यह आयोजन सभी दशा म तु ह
थरता दान करने म समथ हो. (३)
सू -९० दे वता—
यां ते इषुमा यद े यो दयाय च.
इदं ताम वद् वयं वषूच व वृहाम स.. (१)
हे रोगी! तेरे हाथ, पैर और दय आ द अंग को बेधने के लए दे व ने जो बाण
अपने धनुष पर चढ़ा कर फका है, आज म उस का तकार करने के लए उस बाण को तुझ
से वमुख करने के लए शरीर से र फकता ं. (१)
या ते शतं धमनयो ऽ ा यनु व ताः.
तासां ते सवासां वयं न वषा ण याम स.. (२)
हे शूल रोगी! तेरे हाथ, पैर आ द अंग म जो सैकड़ धमनी ना ड़यां थत ह, उन के
लए म वषर हत एवं शूलहीन ओष धयां बनाता ं. (२)
नम ते ा यते नमः त हतायै. नमो वसृ यमानायै नमो नप ततायै..
(३)
हे ा ध प अ चलाने वाले ! तुम को नम कार है. धनुष पर चढ़े ए तु हारे
बाण को नम कार है. धनुष से छोड़े जाते ए तु हारे बाण को नम कार है. ल य पर गरने
वाले तु हारे बाण को नम कार है. (३)
सू -९३ दे वता—यम
यमो मृ युरघमारो नऋथो ब ुः शव ऽ ता नील शख डः.
दे वजनाः सेनयो थवांस ते अ माकं प र वृ तु वीरान्.. (१)
पा पय क हसा के लए यम, मृ यु, अघमार, नऋ त, ब ,ु शव एवं नील शखंड आ द
दे वगण, अपने प रवार जन के साथ अपनेअपने थान से चल दए ह. वे हमारे पु , पौ
आ द को छोड़ द. (१)
मनसा होमैहरसा घृतेन शवाया उत रा े भवाय.
नम ये यो नम ए यः कृणो य य ा मदघ वषा नय तु.. (२)
शव के लए, े के लए एवं उन सब के वामी महादे व के लए म मन से, तेज से, घृत
और आ य से नम कार करता ं. ये सभी नम कार के यो य ह. स हो कर ये पाप पी
वष से पूण कृ या को हम से र ले जाएं. (२)
ाय वं नो अघ वषा यो वधाद् व े दे वा म तो व वेदसः.
अ नीषोमा व णः पूतद ा वातापज ययोः सुमतौ याम.. (३)
हे सब कुछ जानने वाले म दगण एवं व े दे व! तुम कृ या क मारक श से
हमारी र ा करो. हम अ न, सोम, व ण, शु बलशाली म , वायु एवं पज य के कृपा पा
रह. (३)
सू -९५ दे वता—वन प त
अ थो दे वसदन तृतीय या मतो द व.
त ामृत य च णं दे वाः कु मव वत.. (१)
तीसरे आकाश म दे व का थान पीपल है. वहां दे व ने अमृत के गुण वाले वन प त
कूठ को जाना. (१)
हर ययी नौरचर र यब धना द व.
त ामृत य पु पं दे वाः कु मव वत.. (२)
दे व ने सोने के बंधन वाली वग क ना भ के ारा कूठ वन प त को ा त कया, जो
अमृत का पु ष है. (२)
गभ अ योषधीनां गभ हमवतामुत. गभ व य भूत येमं मे अगदं
कृ ध.. (३)
सू -९७ दे वता— म , व ण
अ भभूय ो अ भभूर नर भभूः सोमो अ भभू र ः.
अ य १ हं व ाः पृतना यथासा येवा वधेमा नहो ा इदं ह वः.. (१)
वजय क कामना करने वाले हम लोग के ारा कया आ य श ु का पराभव
करने वाला हो. य को पूण करने वाले अ न एवं य के साधन सोम श ु को परा जत
कर. इं एवं सभी श ु सेना को परा जत करने के इ छु क हम श ु क सभी सेना को
जस कार परा जत कर, उसी के न म सं ाम म वजय के इ छु क हम ह व का हवन
करते ह. (१)
वधा ऽ तु म ाव णा वप ता जावत् ं मधुनेह प वतम्.
बाधेथां रं नऋ त पराचैः. कृतं चदे नः मुमु म मत्.. (२)
हे मेधावी म और व ण! तु हारे लए दया गया वह ह व प अ तु ह तृ त दे . तुम
इस राजा पर जा से यु बल एवं मधुर रस स चो. तुम पराजय करने वाली पाप दे वी
नऋ त को हम से वमुख कर के र दे श म ले जाओ. तुम हमारे श ु के ारा कया आ
पाप हम से र ले जाओ. (२)
इमं वीरमनु हष वमु म ं सखायो अनु सं रभ वम्.
ाम जतं गो जतं व बा ं जय तम म मृण तमोजसा.. (३)
हे सै नको! अ धक बलशाली एवं परम ऐ य यु इस वीर राजा क वीरता से स
बनो एवं इस के लए यु हेतु त पर रहो. हे म तो! गांव को एवं श ु क गाय को जीतने
वाले तथा हाथ म व धारण करने वाले इं क वीरता से स बनो. इं श ु को जीतने
सू -९८ दे वता—इं
इ ो जया त न परा जयाता अ धराजो राजसु राजयातै.
चकृ य ई ो व ोपस ो नम यो भवेह.. (१)
इस सं ाम म इस राजा क सहायता के लए आए ए इं वजयी ह . वह कसी से
परा जत न ह . सभी राजा के वामी इं इन राजा म सुशो भत ह . श ु को
अ य धक काटने वाले ये तु य एवं वंदनीय ह. हे सब के ारा सेवा करने यो य इं ! तुम इस
सं ाम म हमारे ारा पू जत बनो. (१)
व म ा धराजः व यु वं भूर भभू तजनानाम्.
वं दै वी वश इमा व राजायु मत् मजरं ते अ तु.. (२)
हे इं ! तुम राजा के राजा एवं यश वी हो. तुम अपने तेज से सभी ा णय को
परा जत करते हो. ये दे व संबं धनी जाएं तु ह शोभा दे ती है. हे राजन्! तु हारा बल चरकाल
तक जीवन से यु एवं वृ ाव था से वहीन हो. (२)
ा या दश व म ा स राजोतोद या दशो वृ ह छ ह
ु ोऽ स.
य य त ो या त जतं ते द णतो वृषभ ए ष ह ः.. (३)
हे इं ! तुम पूव दशा के राजा हो. हे वृ रा स को मारने वाले इं ! तुम उ र दशा के
भी वामी तथा श ु के हंता हो. हमारी इ छाएं पूण करने वाले तुम हमारे ारा बुलाए जाने
पर यु के समय हमारे द ण भाग म वतमान रहो. (३)
सू -९९ दे वता—इं
अ भ वे व रमतः पुरा वां रणा वे.
या यु ं चे ारं पु णामानमेकजम्.. (१)
हे इं ! व तीण शरीर के कारण म तुझे सं ाम म बुला रहा ं. म सं ाम म पराजय से
बचने के लए तु हारा आ ान पहले ही करता ं. हे इं ! तुम अ य धक श शाली, जय के
उपाय जानने वाले, अनेक श ु को जीतने वाले एवं अकेले ही यु जीतने वाले हो. (१)
सू -१०० दे वता—वन प त
दे वा अ ः सूय अदाद् ौरदात् पृ थ दात्.
त ः सर वतीर ः स च ा वष षणम्.. (१)
इं आ द सभी दे व ने एकमत हो कर मुझे थावर और जंगम वष को र करने वाली
ओष ध दान क है. सूय, आकाश एवं पृ वी ने मुझे वष नाशक ओष ध द है. इड़ा,
सर वती और भारती—इन तीन दे वय ने एकमत हो कर मुझे वष नाशक ओष ध दान क
है. (१)
यद् वो दे वा उपजीका आ स चन् ध व युदकम्.
तेन दे व सूतेनेदं षयता वषम्.. (२)
हे दे वो! तुम से संबं धत और व मीक का नमाण करने वाले उपजीक नामक ा णय
ने जलहीन थान म तु हारा वरदान पा कर जो जल बरसाया, दे व ारा दए ए उस जल से,
इस वष का भाव न करो. (२)
असुराणां हता स सा दे वानाम स वसा.
दव पृ थ ाः संभूता सा चकथारसं वषम्.. (३)
हे व मीक क म ! तुम दे व वरोधी असुर क पु ी और दे व क बहन हो. आकाश
और धरती से उ प व मीक क यह म थावर और जंगम ा णय से उ प वष को
भावहीन करे. (३)
सू -१०१ दे वता—बृह प त
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आ वृषाय व स ह वध व थय व च.
यथा ं वधतां शेप तेन यो षत म ज ह.. (१)
हे पु ष! तू सांड़ के समान गभाधान समथ हो एवं जी वत रहे. तेरे अंग का वकास हो
और तेरा शरीर व तीण हो. जैसे तेरी जनन य बढ़े , वैसे ही तू संभोग क इ छु क नारी के
समीप जा. (१)
येन कृशं वाजय त येन ह व यातुरम्.
तेना य ण पते धनु रवा तानया पसः.. (२)
जस रस के ारा वीयर हत पु ष को जनन समथ बनाया जाता है, जस रस के ारा
रोगी पु ष को स कया जाता है, हे मं समूह के पालक दे व! उसी रस वशेष से इस पु ष
क इं य को धनुष के समान व तृत करो. (२)
आहं तनो म ते पसो अ ध या मव ध व न.
म वश इव रो हतमनव लायता सदा.. (३)
हे वीय के इ छु क! हम तेरी पु ष य को धनुष क डोरी के समान व तृत करते ह. तू
गभाधान म समथ बैल के समान स मन से अपनी प नी पर आ मण कर. (३)
सू -१०३ दे वता—बृ ण प त
संदानं वो बृह प तः संदानं स वता करत्.
संदानं म ो अयमा संदानं भगो अ ना.. (१)
हे श ु सेनाओ! बृह प त दे व इन फके ए पाश के ारा तु हारा बंधन कर. सब के
ेरक स वता दे व तु हारा बंधन कर. म तथा अयमा दे व तु हारा बंधन कर. भग और
अ नीकुमार तु हारा बंधन कर. (१)
सं परमा समवमानथो सं ा म म यमान्.
इ तान् पयहादा ना तान ने सं ा वम्.. (२)
म श ु क र दे श व तनी तथा समीप व तनी सेना को पाश के ारा बांधता ं. म
समीप और र के म य थान म वतमान सेना को भी पाश से बांधता ं. इस कार क
सेना एवं सेनाप तय को सं ाम के वामी इं याग द. हे अ न! इं ारा यागे ए इन
य को तुम पाश से बांधो. (२)
अमी ये युधमाय त केतून् कृ वानीकशः.
इ तान् पयहादा ना तान ने सं ा वम्.. (३)
हमारे त स बने ए इं दे व और अ न दे व हमारे उन श ु को बंधन म बांध.
(३)
सू -१०४ दे वता—इं
आदानेन संदानेना म ाना ाम स.
अपाना ये चैषां ाणा असुनासू सम छदन्.. (१)
आदान नाम के पाश यं वशेष के ारा तथा संधान नाम के पाश यं के ारा हम
श ु को बांधते ह. इन श ु क ाण एवं अपान वायु को म अपने ाण के ारा
भलीभां त छ करता ं. (१)
इदमादानमकरं तपसे े ण सं शतम्.
अ म ा ये ऽ नः स त तान न आ ा वम्.. (२)
म ने तप के ारा बांधने का साधन यह पाश यं न मत कया है. इसे इं ने पहले ही
तेज कर दया है. इस सं ाम म हमारे जो श ु ह, हे अ न! उन सब को पाश बंधन से बांधो.
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(२)
ऐनान् ता म ा नी सोमो राजा च मे दनौ.
इ ो म वानादानम म े यः कृणोतु नः.. (३)
हमारे ारा दए गए ह व से स होने वाले इं और अ न हमारे इन श ु को बांध
तथा राजा सोम इ ह बांध. म द्गण के स हत इं हमारे श ु का पाश बंधन कर. (३)
सू -१०५ दे वता—कास
यथा मनो मन केतैः परापत याशुमत्.
एवा वं कासे पत मनसोऽनु वा यम्.. (१)
जस कार मन के ारा जाने जाते ए र थ वषय के साथ पु ष शी ता से ुव
मंडल तक जाता है, उसी कार हे खांसी और कफ रोग वाली कृ वा! तू मन के वेग से पु ष
के शरीर से नकल कर र दे श म चली जा. (१)
यथा बाणः सुसं शतः परापत याशुमत्.
एवा वं कासे पत पृ थ ा अनु संवतम्.. (२)
जस कार अ छ तरह तेज कया आ बाण धनुष से छू ट कर शी ही भू म को
छे दता आ गरता है. हे खांसी! तू उसी कार बाण से बधी ई पृ वी को ल य कर के इस
पु ष से र चली जा. (२)
यथा सूय य र मयः परापत याशुमत्.
एवा वं कासे पत समु यानु व रम्.. (३)
जस कार सूय क करण लोक परलोक तक शी जाती ह. हे खांसी! तू उस दे श को
ल य कर के चली जा, जस दे श म सागर के जल के व वध वाह ह. (३)
सू -१०६ दे वता— वा
आयने ते परायणे वा रोहतु पु पणीः.
उ सो वा त जायतां दो वा पु डरीकवान्.. (१)
हे अ न! तु हारे अ भमुख जाने म अथवा पराङ् मुख जाने म हमारे दे श म पु प यु
कोमल वा उ प हो. हमारे घर और खेत म पानी के सोते उ प ह तथा कमल वाला
सरोवर न मत हो. (१)
अपा मदं ययनं समु य नवेशनम्.
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म ये द य नो गृहाः पराचीना मुखा कृ ध.. (२)
हमारा वह घर जल का थान एवं सागर का नवेश बने. हमारे घर गहरे तालाब के म य
म ह . हे अ न! तुम अपने वाला पी मुख हमारी ओर से फेर लो. (२)
हम य वा जरायुणा शाले प र याम स.
शीत दा ह नो भुवो ऽ न कृणोतु भेषजम्.. (३)
हे शाला! हम तुझे हमालय के शीतल जल से इस कार घेरते ह, जस कार जरायु
गभ को तथा शैवाल जल को घेरता है. हे शाला! तू हमारे लए शीतल जल वाली बन जा.
हमारी ाथना सुन कर अ न हमारे घर को जलने से बचाने वाली ओष ध बन. (३)
सू -१०७ दे वता— व जत
व जत् ायमाणायै मा प र दे ह.
ायमाणे पा च सव नो र चतु पाद् य च नः वम्.. (१)
हे व जत् दे व! जगत् का पालन करने वाली दे वी के लए र ा के हेतु मुझ व ययन
इ छु क को दो. हे ायमाणा नामक दे वी! हमारे दो पैर वाले सभी पु , पौ आ द क र ा
करो तथा मेरे सभी चौपाय क भी र ा करो. (१)
ायमाणे व जते मा प र दे ह.
व जद् पा च सव नो र चतु पाद् य च नः वम्.. (२)
हे पालन करने वाली दे वी ायमाणा! मुझे व जत् नाम के दे वता को दे दो. हे सब को
जीतने वाले! हमारे दो पैर वाले पु , पौ आ द और सभी चौपाय क र ा करो. (२)
व जत् क या यै मा प र दे ह.
क या ण पा च सव नो र चतु पाद् य च नः वम्.. (३)
हे व जत्! मुझे सवमंगलका रणी दे वी को दे दो. हे क याणी! हमारे सभी दो पैर
वाले पु , पौ आ द और चौपाय क र ा करो. (३)
क या ण सव वदे मा प र दे ह.
सव वद् पा च सव नो र चतु पाद् य च नः वम्.. (४)
हे क याणी! मुझे सब कुछ जानने वाले दे व को दे दो. हे सव हत! हमारे सभी दो पैर
वाले पु , पौ आ द और चौपाय क र ा करो. (४)
सू -१०८ दे वता—मेधा, अ न
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वं नो मेधे थमा गो भर े भरा ग ह.
वं सूय य र म भ वं नो अ स य या.. (१)
हे दे व और मनु य आ द के ारा उपासना क जाती ई मेधा दे वी! तुम हम दे ने के लए
गाय और अ के साथ आओ. तुम सूय क करण के समान अपनी ा त क साम य के
साथ हमारे समीप आओ. तुम हमारे लए य के यो य हो. (१)
मेधामहं थमां वत जूतामृ ष ु ताम्.
पीतां चा र भदवानामवसे वे.. (२)
म वेद से यु एवं दे व, मनु य आ द के ारा पूजी जाती ई मेधा दे वी का आ ान
करता ं. ा ण के ारा से वत, ऋ षय के ारा तु त क गई और चा रय ारा
से वत मेधा दे वी को म इं आ द क र ा पाने के लए बुलाता ं. (२)
यां मेधामृभवो व या मेधामसुरा व ः.
ऋषयो भ ां मेधां यां व तां म या वेशयाम स.. (३)
ऋभु नाम के दे व जस मेधा को जानते थे, जस मेधा को रा स जानते थे तथा व स
आ द ऋ ष वेद शा वषयक जस मेधा को जानते थे, उसे हम अपने म था पत करते ह.
(३)
यामृषयो भूतकृतो मेधां मेधा वनो व ः.
तया माम मेधया ने मेधा वनं कृणु.. (४)
जस मेधा को पृ वी आ द त व का नमाण करने म समथ, मं ा एवं स ऋष
जानते ह. हे अ न! उसी मेधा के ारा तुम मुझे मेधावी बनाओ. (४)
मेधां सायं मेधां ातमधां म य दनं प र.
मेधां सूय य र म भवचसा वेशयामहे.. (५)
म ातःकाल, सायंकाल और म या काल म मेधा दे वी क तु त करता ं. म सूय क
करण के साथ दन म तु त वचन के ारा उस महानुभावा मेधा को अपने म था पत
करता ं. (५)
सू -११० दे वता—अ न
नो ह कमी ो अ वरेषु सना च होता न स स.
वां चा ने त वं प ाय वा म यं च सौभगमा यज व.. (१)
सभी दे व क आ मा होने के कारण ये अ न चरंतन ह. ये तु त के यो य एवं य म
दे व को बुलाने वाले ह. हे अ न! इस कार तुम नवीन बने रहते हो. तुम अपने शरीर को घृत
आ द से पूण करो तथा हमारे लए सौभा य दान करो. (१)
ये यां जातो वचृतोयम य मूलबहणात् प र पा ेनम्.
अ येनं नेषद् रता न व ा द घायु वाय शतशारदाय.. (२)
ये ा न म उ प पु पता, बड़े भाई आ द का हंता होता है. मूल न मउप
पु पूरे कुल क हसा करता है. इस लए इस कुमार के यम ारा कए जाने वाले संतान के
मूलो छे द से र ा करो. सौ वष तक जी वत रहने के द घ जीवन के लए सभी पाप इस
कुमार से र चले जाएं. (२)
ा ेऽ यज न वीरो न जा जायमानः सुवीरः.
स मा वधीत् पतरं वधमानो मा मातरं मनी ज न ीम्.. (३)
बाघ के समान ू र एवं पाप न म वीर पु ने ज म लया. न म उ प यह
पु ज म लेते ही उ म श वाला बने. यह पु बड़ा हो कर पता का वध न करे तथा ज म
दे ने वाली माता क हसा न करे. (३)
सू -११२ दे वता—अ न
मा ये ं वधीदयम न एषां मूलबहणात् प र पा ेनम्.
स ा ाः पाशान् व चृत जानन् तु यं दे वा अनु जान तु व े.. (१)
हे अ न! यह वेदना इन पता, माता, ाता आ द के म य बड़े भाई का वध न करे. तुम
जड़ उखाड़ने के अथात् बड़े भाई से पहले ववाह करने वाले दोष के कारण भी इस क र ा
करो. हे अ न! तुम इस को छु ड़ाने के उपाय जानते हो, इसी लए इसे पकड़ने वाली पशाची
के बंधन से छु ड़ाओ. इस के बंधन छु ड़ाने के लए सभी दे व तु ह अनुम त द. (१)
सू -११३ दे वता—पूषा
ते दे वा अमृजतैतदे न त एन मनु येषु ममृजे.
ततो य द वा ा हरानशे तां ते दे वा णा नाशय तु.. (१)
अपने बड़े भाई से पहले ववाह करने से संबं धत पाप को ाचीन काल के दे व ने त
म वस जत कर दया था. त ने अपने म वस जत पाप को मनु य म था पत कर दया. हे
बड़े भाई से पहले ववाह करने वाले! इस कारण य द हणशील पाप दे वता ाही ने तु ह
ा त कया है, उसे दे वगण मं से न कर द. (१)
मरीचीधूमान् वशानु पा म ुदारान् ग छोत वा नीहारान्.
नद नां फेनाँ अनु तान् व न य ूण न पूषन् रतान मृ व.. (२)
हे बड़े भाई से पहले ववाह करने से उ प पाप दे वता! तू प र व ी अथात् बड़े भाई से
पहले ववाह करने वाले को याग कर अ न, सूय आ द म, चमस म अथवा अ न से उ प
धुएं म अथवा उस से बने बादल म वेश कर जा अथवा तू कोहरे म मल जा. हे पाप दे वता!
तू न दय के जल म वेश कर के व वध कार से ग त कर. (२)
ादशधा न हतं त यापमृ ं मनु यैनसा न.
ततो य द वा ा हरानशे तां ते दे वा णा नाशय तु.. (३)
त के पाप को बारह थान पर रखा गया. पहले मनु य म, उस के बाद तीन आ तय
म, इस के प ात सूय दय क आठ दशा म—इस कार वह पाप बारह थान पर रखा
सू -११४ दे वता— व े दे व
यद् दे वा दे वहेडनं दे वास कृमा वयम्.
आ द या त मा ो यूयमृत यतन मु चत.. (१)
हे अ न आ द दे वो! इं य के वशीभूत हो कर हम ने जो पाप कया है, हे अ द त पु
दे वो! तुम य संबंधी स य के ारा उस पाप से हम बचाओ. (१)
ऋत यतना द या यज ा मु चतेह नः.
य ं यद् य वाहसः श तो नोपशे कम.. (२)
हे अ द त पु दे वो! तुम य के ारा स करने यो य हो. तुम य संबंधी स य के
ारा इस य काय ारा हम सभी पाप से मु करो. (२)
मेद वता यजमानाः ुचा या न जु तः.
अकामा व े वो दे वाः श तो नोप शे कम.. (३)
चरबी वाले पशु से य पूण करते ए यजमान ुच (चमस) के ारा य म आ य
डालते ह. हे व े दे व! हम कामना र हत हो कर और पाप से डरते ए पाप के वश म न ह .
(३)
सू -११५ दे वता— व े दे व
यद् व ांसो यद व ांस एनां स चकृमा वयम्.
यूयं न त मा मु चत व े दे वाः सजोषसः.. (१)
हे व े दे वो! पाप का न म जानते ए अथवा न जानते ए हम ने जो पाप कया,
हमारे साथ स होते ए तुम हम उस पाप से छु ड़ाओ. (१)
य द जा द् य द वप ेन एन यो ऽ करम्.
भूतं मा त माद् भ ं च पदा दव मु चताम्.. (२)
पाप को ेम करने वाले हम ने जा त अव था म अथवा सोते ए जो पाप कए, उन से
व े दे व हम भूतकाल और भ व यकाल म काठ के चरण बंधन के समान छु ड़ाएं. (२)
पदा दव मुमुचानः व ः ना वा मला दव.
पूतं प व ेणेवा यं व े शु भ तु मैनसः.. (३)
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काठ के चरण बंधन से छू टने अथवा पसीने से भीगा आ नान कर के मैल से मु
होने से प व होता है अथवा घी जस कार कपड़े से छानने पर शु होता है, उसी कार
व े दे व मुझे पाप से छु ड़ाएं. (३)
सू -११७ दे वता—अ न
अप म यम ती ं यद म यम य येन ब लना चरा म.
इदं तद ने अनृणो भवा म वं पाशान् वचृतं वे थ सवान्.. (१)
म ही इस कार का ऋणी ं जो ऋण लेने के बाद धनी को नह लौटाता ं. उसी
श शाली ऋण के कारण म शासक यम के वश म रहता ं. हे अ न, तु हारे भाव से म
उस ऋण से छू ट गया ं. म ऋण न चुकाने के कारण होने वाले पारलौ कक पाश से छू ट
जाऊंगा. (१)
इहैव स तः त दद्म एन जीवा जीवे यो न हराम एनत्.
सू -११८ दे वता—अ न
य ता यां चकृम क बषा य ाणां ग नुमुप ल समानाः.
उ ंप ये उ जतौ तद ा सरसावनु द ामृणं नः.. (१)
इं य के वषय —श द, पश, प आ द को ा त करने के लए हम ने जो पाप कए
ह, हे उ ंप या एवं उ जता नाम क अ सराओ! आज हमारा ऋण अनुकूल प से धनी को
चुकाओ, जस से हम उऋण हो सक. (१)
उ ंप ये रा भृत् क बषा ण यद वृ मनु द ं न एतत्.
ऋणा ो नणमे समानो यम य लोके अ धर जुरायत्.. (२)
हे उ ंप या और रा भी त नामक अ सराओ! हम ने जो पाप कए ह जैसे इं य का
न ष वषय म जाना; हमारे ऊपर ऋण के प म चढ़ा आ जो पाप है, उसे हमारे
अनुकूल हो कर समा त कर दो. इस से हमारे ऋणी होने के कारण यमराज इस लोक म पाश
ले कर हम पकड़ने न आ सक. (२)
य मा ऋणं य य जायामुपै म यं याचमानो अ यै म दे वाः.
ते वाचं वा दषुम रां मद्दे वप नी अ सरसावधीतम्.. (३)
म जस धनी का ऋण धारण करता ं, म कामुक बन कर जस क प नी के पास
जाता ं अथवा जस पु ष के पास म ऋण के प म धन मांगने के लए जाता ,ं हे दे व! वे
सब मुझ से तकूल बात न कह. हे अ सराओ! मेरी यह बात अपने मन म धारण करो. (३)
सू -१२० दे वता—अंत र आ द
यद त र ं पृ थवीमुत ां य मातरं पतरं वा ज ह सम.
अयं त माद् गाहप यो नो अ न द या त सुकृत य लोकम्.. (१)
म ने अंत र म रहने वाले, पृ वी पर रहने वाले तथा वगलोक म रहने वाले जन क
हसा के प म जो पाप कया है, म ने अपने माता पता के तकूल आचरण कर के जो
हसा पी पाप कया है, गृह थ ारा से वत यह अ न मुझे उन पाप से छु ड़ा कर उन
लोक को ा त कराएं जो पु य कम करने वाल को ा त होते ह. (१)
भू ममाता द तन ज न ं ाता ऽ त र म भश या नः.
ौनः पता प या छं भवा त जा ममृ वा माव प स लोकात्.. (२)
पृ वी हमारी माता है और दे वमाता अ द त हमारे ज म का कारण है. अंत र हमारा
भाई है. यह मुझे म या भाषण पी पाप से बचाए. आकाश हमारा पता है. वह पता से
आए दोष से हम बचाए एवं हम सुखी बनाए. म थ ही ाण याग कर के तथा य आ द न
कर के वगलोक से अधोग त ा त न क ं . (२)
य ा सुहादः सुकृतो मद त वहाय रोगं त व १: वायाः.
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अ ोणा अ ै र ताः वग त प येम पतरौ च पु ान्.. (३)
य आ द करने वाले स दय जन अपने शरीर के वर आ द रोग को याग कर वग
आ द लोक म स होते ह. हम भी कु आ द रोग से हीन अंग के ारा सरल ग त से
चलते ए वगलोक म अपने पता, माता और पु से मल. (३)
सू -१२१ दे वता—अ न आ द
वषाणा पाशान् व या ऽ य मद् य उ मा अधमा वा णा ये.
व यं रतं नः वा मदथ ग छे म सुकृत य लोकम्.. (१)
हे बंधन क दे वी नऋ त! हमारे शरीर के माग को बांधने वाले फंदे क र सय को हम
से छु ड़ाती ई हम मु करो. जो पाश उ म, अधम और व ण से संबं धत ह, उ ह हम से
अलग करो. बुरे व से उ प पाप के फंद को भी हम से अलग करो. इन फंद से छू ट कर
हम पु य के फल के प म मलने वाले लोक को ा त कर. (१)
यद् दा ण ब यसे य च र वां यद् भू यां ब यसे य च वाचा.
अयं त माद् गाहप यो नो अ न द या त सुकृत य लोकम्.. (२)
हे पु ष! तुम काठ के बंधन म, र सी म अथवा धरती के गड् ढे म राजा क आ ा से
बांधे गए हो. यह गाहप य अ न तु ह उन बंधन से छु ड़ा कर वह लोक ा त कराएं, जो
उ म कम करने के फल के प म मलता है. (२)
उदगातां भगवती वचृतौ नाम तारके.
ेहामृत य य छतां ैतु ब कमोचनम्.. (३)
वचृत अथात् मूल न म उदय या उ प होने वाली वचृत नाम क ता रकाएं इस
बंधे ए पु ष को मरने से बचाएं तथा साथ ही बंधन से मु कर. (३)
व जही व लोकं कृणु ब धा मु चा स ब कम्.
यो या इव युतो गभः पथः सवा अनु य.. (४)
हे बंधन से संबं धत दे वता! तुम अनेक कार से आओ और इस थान पर बंधे ए
पु ष को उसके बंधन से छु ड़ाओ. हे पु ष! जस कार माता के गभ से ब चा बाहर नकल
आता है, उसी कार तू बंधन से छू ट कर व छं द प से सभी माग पर चल. (४)
सू -१२३ दे वता— व े दे व
एतं सध थाः प र वो ददा म यं शेव धमावहा जातवेदाः.
अ वाग ता यजमानः व त तं म जानीत परमे ोमन्.. (१)
हे वग म यजमान के साथ बैठने वाले दे वो! म यह ह व भाग तु ह दे ता ं. यह व ध
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पी भाग अ न तुम सब को ा त कराते ह. यह यजमान उस ह व पी व ध का अनुगमन
करता आ आएगा. इस यजमान को तुम वगलोक म जानना. (१)
जानीत मैनं परमे ोमन् दे वाः सध था वद लोकम .
अ वाग ता यजमानः व ती ापूत म कृणुता वर मै.. (२)
हे यजमान के साथ वग म बैठने वाले दे वो! उस वग म इस यजमान को जानना. यह
यजमान उस ह व पी व ध का अनुगमन करता आ आएगा. इस यजमान को तुम
वगलोक म पहचान लेना. (२)
दे वाः पतरः पतरो दे वाः. यो अ म सो अ म.. (३)
सू -१२४ दे वता— द जल
दवो नु मां बृहतो अ त र ादपां तोको अ यप तद् रसेन.
स म येण पयसा ऽ हम ने छ दो भय ैः सुकृतां कृतेन.. (१)
ुलोक से अथवा वशाल मेघ र हत आकाश से जल क बूंद मेरे ऊपर गरी. हे अ न!
तु हारी कृपा से म इं दे व के च जल से संयु बनूं. म वेदमं और य के मा यम से
पु यवान जन ारा कए गए कम क सहायता से उ म फल ा त क ं . (१)
य द वृ ाद यप तत् फलं तद् य त र ात् स उ वायुरेव.
य ा पृ त् त वो ३ य च वासस आपो नुद तु नऋ त पराचैः.. (२)
वृ से पानी क जो बूंद मेरे ऊपर गरी, वह उस वृ का फल ही है. मेघ र हत आकाश
सू -१२५ दे वता—वन प त
वन पते वीड् व ो ह भूया अ म सखा तरणः सुवीरः.
गो भः संन ो अ स वीडय वा थाता ते जयतु जे वा न.. (१)
हे वृ से बने ए रस! तेरे अंग ढ़ ह . तू हमारा सखा, श ु से हम पार करने वाला
और शोभन वीर से यु है. तू गाय के चम से बनी ई र सय से बंधे होने के कारण ढ़ हो.
तुझ पर बैठा आ पु ष श ु को जीतने वाला हो. (१)
दव पृ थ ाः पय ज उ तं वन प त यः पयाभृतं सहः.
अपामो मानं प र गो भरावृत म य व ं ह वषा रथं यज.. (२)
हे रस! तेरा बल आकाश के पास से ा त आ है. सार वाले वृ से ा त बल ही यह
रथ है. जल का बल एवं गाय के चम से बनी र सय से ढका आ यह रथ इं के व के
समान ग त वाला हो. हे होता! इस कार के रथ का ह से यजन करो. (२)
इ यौजो म तामनीकं म य गभ व ण य ना भः.
स इमां नो ह दा त जुषाणो दे व रथ त ह ा गृभाय.. (३)
हे द गुण से यु रथ! तुम इं के बल, म त क सेना, म अथात् सूय के गभ
और व ण क ना भ हो. इस कार के तुम हमारी य या क सेवा करते ए ह व को
हण करो. (३)
सू -१२६ दे वता— ं भ
उप ासय पृ थवीमुत ां पु ा ते व वतां व तं जगत्.
स भे सजू र े ण दे वै राद् दवीयो अप सेध श ून्.. (१)
हे ं भ! तू अपने घोष से पृ वी और आकाश को भर दे . अनेक कार से थत ाणी
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अनेक दे श म तेरा जय घोष सुन. इस कार का तू सं ाम के दे व इं और उन के अनुचर
म त के ारा हमारे श ु को र से भी र थान पर भगा दे . (१)
आ दय बलमोजो न आ धा अ भ न रता बाधमानः.
अप सेध भे छु ना मत इ य मु र स वीडय व.. (२)
हे ं भ! तू अपने श द से श ु क सेना अथात् रथ, घोड़े हाथी और पैदल सै नक को
परा जत कर के हमारे बल को बढ़ा. तू पराजय के कारण और श ु ारा दए ए ःख
को र करता आ ऐसा वण कटु श द कर, जस से श ु के दय फट जाएं. तू इस यु
थल से श ु क सेना को भगा दे . तू इं दे व क मुट्ठ के समान श ु नाशकारी है,
इस लए तू ढ़ हो. (२)
ामूं जयाभी ३ मे जय तु केतुमद् भवावद तु.
सम पणाः पत तु नो नरो ऽ माक म र थनो जय तु.. (३)
हे इं ! तुम र दखाई दे ने वाली श ु सेना को इस कार परा जत करो क वह दोबारा
हम पर आ मण न कर सके. हमारे यो ा श ु सेना पर वजय ा त कर तथा वजय सूचक
ं भ बजाएं. हमारे सेनानायक घोड़ पर सवार हो कर यु भू म म जाएं तथा हमारे अमा य
और राजा वजयी ह . (३)
सू -१२७ दे वता—वन प त
व ध य बलास य लो हत य वन पते.
वस पक योषधे मो छषः प शतं चन.. (१)
हे पलाश वृ एवं हे वसप ा ध क ओष ध! खांसी और सांस से र बहाने वाले
वसपक रोग से संबं धत मांस, र आ द को हम से र करो. (१)
यौ ते बलास त तः क े मु कावप तौ.
वेदाहं त य भेषजं चीपु र भच णम्.. (२)
हे खांसी और सांस रोग! तेरे वसपक आ द प कांख अथात् बगल म वद नाम के
वशेष घाव के प म थत रहते ह तथा अंडकोष म आ य लेते ह. म उन क ओष ध
जानता ,ं चीपु नाम का वशेष वृ इसे मटाने वाली ओष ध है. (२)
यो अङ् यो यः क य यो अ यो वस पकः.
व वृहामो वस पकं व धं दयामयम्.
परा तम ातं य ममधरा चं सुवाम स.. (३)
हमारे हाथ, पैर आ द अंग म, कान म और आंख म जो वसपक ह, उ ह म जड़ से
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उखाड़ता ं. म वद को, दय रोग को तथा अ ात व प वाले य मा रोग को भी नीचे
क ओर वमुख करता ं. (३)
सू -१२९ दे वता—भग
भगेन मा शांशपेन साक म े ण मे दना. कृणो म भ गनं माप
ा वरातयः.. (१)
म गाय एवं भस के खुर क आकृ त वाले दे व के ारा अपनेआप को सौभा यशाली
बनाता ं. म अपनी सेवा से संतु इं के ारा अपने को सौभा यशाली बनाता ं. हमारे श ु
हमारे समीप से र चले जाएं और बुरी दशा को ा त ह . (१)
येन वृ ाँ अ यभवो भगेन वचसा सह.
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तेन मा भ गनं कृ वप ा वरातयः.. (२)
हे ओष ध! तुम जस सौभा य दान करने वाले दे व से तेज ा त कर के समीपवत
वृ का तर कार करती हो, उसी सौभा य से मुझे सौभा यशाली बनाओ. हमारे श ु हम से
र चले जाएं और बुरी ग त को ा त ह . (२)
यो अ धो यः पुनःसरो भगो वृ े वा हतः.
तेन मा भ गनं कृ वप ा वरातयः.. (३)
जो भग नामक दे व, अंधे होने के कारण आगे चलने म असमथ ह और माग म थत
वृ को नह छोड़ते ह, हे ओष ध! मुझे उस भा य से भा यशाली बनाओ. हमारे श ु हम से
र चले जाएं और बुरी दशा को ा त ह . (३)
सू -१३० दे वता— मर
रथ जतां राथ जतेयीनाम सरसामयं मरः.
दे वाः हणुत मरमसौ मामनु शोचतु.. (१)
हे रथ जता अथात् माष नाम क जड़ीबूट ! अपने वाहन रथ से व को जीतने वाली
एवं वशेष वैरा य उ प करने वाली अ सरा से संबं धत मर अथात् कामदे व को र करो.
हे दे व! उस कामदे व को इस नारी के समीप भेजो. मुझ से वमुख यह ी कामदे व से पी ड़त
हो कर मेरी याद कर के ःखी हो. (१)
असौ मे मरता द त यो मे मरता द त.
दे वाः हणुत मरमसौ मामनु शोचतु.. (२)
यह पु ष मेरा मरण करे तथा मेरे त अनुराग पूण हो कर मेरा मरण करे. हे दे व!
इस के त कामदे व को भेजो, जस से यह मेरा मरण करे और मेरे मरण के कारण ःखी
हो. (२)
यथा मम मरादसौ नामु याहं कदा चन.
दे वाः हणुत मरमसौ मामनु शोचतु.. (३)
जस कार यह ा ी मेरा मरण करती है, उस कार आत हो कर म कभी भी इस
ी का मरण नह करता ं. हे दे वो! कामदे व को इस क ओर भेजो, जस से यह मेरा
मरण करे और मेरे मरण के कारण ख का अनुभव करे. (३)
उ मादयत म त उद त र मादय.
अ न उ मादया वमसौ मामनु शोचतु.. (४)
सू -१३१ दे वता— मर
न शीषतो न प त आ यो ३ न तरा म ते.
दे वाः हणुत मरमसौ मामनु शोचतु.. (१)
हे प नी! म तेरे सर से ले कर सारे शरीर म चता का वेश कराता !ं दे वगण तेरे
त कामदे व को भेज, जस से ःखी हो कर तू मेरा चतन करे. (१)
अनुमते ऽ वदं म य वाकूते स मदं नमः.
दे वाः हणुत मरमसौ मामनु शोचतु.. (२)
हे सब कम क अनुम त दे ने वाली दे व प नी! मुझ पर कृपा करो. हे संक प क दे वी
आकू त! तुम मेरे इस नम कार को वीकार करो. हे दे वो! इस के त कामदे व को भेजो,
जस से ःखी हो कर यह मेरा मरण करे. (२)
यद् धाव स योजनं प चयोजनमा नम्.
तत वं पुनराय स पु ाणां नो असः पता.. (३)
हे पु ष! य द तू यहां से भाग कर तीन योजन र चला जाता है, पांच योजन र चला
जाता है अथवा उतनी र चला जाता है, जतनी र घोड़ा दनभर म प ंच सकता है, तू वहां
से भी मेरे पास आ जा और मेरे पु का पता बन. (३)
सू -१३२ दे वता— मर
यं दे वाः मरम स च व १ तः शोशुचानं सहा या.
तं ते तपा म व ण य धमणा.. (१)
सभी दे व ने कामदे व को उस क प नी, आ ध अथात् चता के साथ जल म डु बो दया,
य क वह उस के वयोग म संत त था. हे नारी! म तेरे लए उस कामदे व को जल के वामी
व ण क धारण श से संत त करता ं. (१)
यं व े दे वाः मरम स च व १ तः शोशुचानं सहा या.
तं ते तपा म व ण य धमणा.. (२)
व े दे व नामक दे व ने कामदे व को उस क प नी आ ध अथात् चता के साथ जल म
डु बो दया, य क वह उस के वयोग म संत त था. हे नारी! म तेरे लए उस कामदे व को
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जल के वामी व ण क धारण श से संत त करता ं. (२)
य म ाणी मरम स चद व १ तः शोशुचानं सहा या.
तं ते तपा म व ण य धमणा.. (३)
इं प नी ने कामदे व को उस क प नी आ ध अथात् चता के साथ जल म डु बो दया,
य क वह उस के वयोग म संत त था. हे नारी! म तेरे लए उस कामदे व को जल के वामी
व ण क धारण श से संत त करता ं. (३)
य म ा नी मरम स चताम व १ तः शोशुचानं सहा या.
तं ते तपा म व ण य धमणा.. (४)
इं और अ न दे व ने कामदे व को उस क प नी आ ध अथात् चता के साथ जल म
डु बो दया, य क वह उस के वयोग म संत त था. हे नारी! म तेरे लए उस कामदे व को
जल के वामी व ण क धारण श से संत त करता ं. (४)
यं म ाव णौ मरम स चताम व १ तः शोशुचानं सहा या.
तं ते तपा म व ण य धमणा.. (५)
म और व ण दे व ने कामदे व को उस क प नी आ ध अथात् चता के साथ जल म
डु बो दया, य क वह उस के वयोग म संत त था. हे नारी! म तेरे लए उस कामदे व को
जल के वामी व ण क धारण श से संत त करता ं. (५)
सू -१३३ दे वता—मेखला
य इमां दे वो मेखलामाबब ध यः संननाह य उ नो युयोज.
य य दे व य शषा चरामः स पार म छात् स उ नो व मु चात्.. (१)
श ु को मारने म कुशल दे व ने अपने श ु को मारने के लए यह मेखला बांधी है, जो
इस समय भी सर क मेखला को बांधता है, जस ने मेखला के ारा हम अ भचार कम म
लगाया है तथा जस दे व क आ ा से हम चलते फरते ह, वह हमारे ारा ारंभ कए गए
अ भचार क समा त क इ छा करे. वही हम श ु से छु ड़ाए. (१)
आ ता य भ त ऋषीणाम यायुधम्.
पूवा त य ा ती वीर नी भव मेखले.. (२)
हे मेखला! तुम आ तय के ारा सं कार क गई तथा बंधन हेतु बुलाई गई हो, जस
से वे श ु का बंधन करते थे. तुम ारंभ कए गए कम से पहले होने वाली तथा श ु के
वीर का वनाश करने वाली हो. (२)
सू -१३४ दे वता—व
अयं व तपयतामृत यावा य रा मप ह तु जी वतम्.
शृणातु ीवाः शृणातू णहा वृ येव शचीप तः.. (१)
मेरे ारा धारण कया गया, यह दं ड इं के व के समान स य और य के साम य से
तृ त हो. यह व हमारे े षी राजा के रा का वनाश करे तथा उस क गले क ह ड् डयां
काट दे . यह गले क धम नय को भी उसी कार काट दे , जस कार शचीप त इं ने वृ के
गले क धम नयां काट थी. (१)
अधरो ऽ धर उ रे यो गूढः पृ थ ा मो सृपत्.
व ेणावहतः शयाम्.. (२)
अ धक ऊंच क अपे ा, अ तशय अधोग त वाला एवं धरती म छपा आ धरती से
बाहर न नकले, वह इस व के ारा घायल हो कर सोता रहे. (२)
यो जना त तम व छ यो जना त त म ज ह.
जनतो व वं सीम तम व चमनु पातय.. (३)
सू -१३५ दे वता—व
यद ा म बलं कुव इ थं व मा ददे .
क धानमु य शातयन् वृ येव शचीप तः.. (१)
म जो भोजन करता ,ं उस से मुझे बल ा त होता है. उस बल से म व पकड़ता ं.
हे व ! इं ने जस कार रा स के शरीर के अवयव को काट डाला था, उसी कार तू मेरे
श ु के शरीर को काट डाल. (१)
यत् पबा म सं पबा म समु इव सं पबः.
ाणानमु य संपाय सं पबामो अमुं वयम्.. (२)
म जो जल पीता ं, उस के ारा मानव श ु को पकड़ कर उस का रस पीता ं. जस
कार सागर नद मुख से पूरा जल हण कर के पी जाता है, उसी कार म श ु का रस पीता
ं. म पहले इस श ु के ाण को रस बना कर पीता ं और बाद म इस पूरे श ु का वनाश
कर दे ता ं. (२)
यद् गरा म सं गरा म समु इव सं गरः.
ाणानमु य संगीय सं गरामो अमुं वयम्.. (३)
म जो कुछ नगलता ं, उस के ारा अपने मानव श ु को ही नगल जाता ं. जस
कार सागर नद के जल को नगल जाता है, उसी कार म श ु के अंग को नगलता ं. म
पहले इस श ु के अंग को नगलता ं और बाद म इसे समा त कर दे ता ं. (३)
सू -१३६ दे वता—वन प त
दे वी दे ाम ध जाता पृ थ ाम योषधे.
तां वा नत न केशे यो ं हणाय खनाम स.. (१)
हे काश करती ई, कालमाची नामक जड़ीबूट ! तू द पृ वी म उ प ई है. हे
नीचे क ओर जाने वाली जड़ीबूट ! म तुझे अपने केश को ढ़ करने के लए खोदता ं. (१)
ंह नान्जनयाजातान्जातानु वष यस कृ ध.. (२)
हे जड़ीबूट ! तू मेरे केश को ढ़ बना तथा मेरे जो केश उ प नह ए, उ ह उ प
कर. मेरे जो केश उ प हो गए ह, उ ह तू अ धक वशाल बना दे . (२)
सू -१३७ दे वता—वन प त
यां जमद नरखनद् ह े केशवधनीम्.
तां वीतह आभरद सत य गृहे यः.. (१)
जमद न ऋ ष ने अपनी पु ी के केश को बढ़ाने वाली जस ओष ध को खोदा था, उसे
वीतह मह ष ने अपने केश बढ़ाने के लए अ सत केश नामक मु न के घर से जसे चुराया
था. (१)
अभीशुना मेया आसन् ामेनानुमेयाः.
केशा नडा इव वध तां शी ण ते अ सताः प र.. (२)
हे केश को बढ़ाने के इ छु क पु ष! पहले तेरे केश अंगुल म (दो अंगुल, चार अंगुल
आ द प म) नापने यो य थे. इस के प ात वे दोन हाथ फैला कर नापने यो य हो गए. हे
पु ष! तेरे शीश के चार ओर केश नड नामक घास के समान बढ़. (२)
ं ह मूलमा ं य छ व म यं यामयौषधे.
केशा नडा इव वध ता शी ण ते अ सताः प र.. (३)
हे ओष ध, मेरे बाल क जड़ को ढ़ बना तथा उन के ऊपरी भाग को लंबा बना. इस
के अ त र तू मेरे केश के म य भाग को ढ़ बना. हे पु ष! तेरे शीश के चार ओर केश नई
घास के समान बढ़. (३)
सू -१३८ दे वता—वन प त
वं वी धां े तमा ऽ भ ुता ऽ योषधे. इमं मे अ पू षं
लीबमोप शनं कृ ध.. (१)
हे श हीन करने वाली जड़ीबूट ! तू सभी लता म े एवं सभी ओर स है.
आज मेरे इस श ु पु ष को नपुंसक तथा ी के समान बना दे . (१)
लीबं कृ योप शनमथो कुरी रणं कृ ध.
अथा ये ो ाव यामुभे भन वा ौ.. (२)
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हे जड़ीबूट ! मेरे श ु को नपुंसक तथा ी के समान बना दे . तू इसे ी के समान
बड़ेबड़े केश वाला बना दे . इस के प ात इं इस के दोन अंडकोष को प थर से फोड़
डाल. (२)
लीब लीबं वा ऽ करं व े व वा ऽ करमरसारसं वा ऽ करम्.
कुरीरम य शीष ण कु बं चा ध नद म स.. (३)
हे नपुंसक! म ने तुझे इस अनु ान के ारा नपुंसक बना दया है. हे षंढ अथात्
ज मजात नपुंसक! म ने तुझे षंढ बना दया है. हे वीयहीन! म ने तुझे वीय र हत बना दया
है. म नपुंसक बने ए इस पु ष के शीश पर ना रय के शृंगार बने ए केश समूह को उ प
करता ं. (३)
ये ते ना ौ दे वकृते ययो त त वृ यम्.
ते ते भन द्म श यया ऽ मु या अ ध मु कयोः.. (४)
तेरी ये ना ड़यां वधाता ारा बनाई गई ह, जन म वीय आ य लेता है. म अंडकोष पर
थत तेरी उन वीयवा हनी ना ड़य को प थर पर रख कर डंडे से तोड़ता ं. (४)
यथा नडं क शपुने यो भ द य मना.
एवा भन ते शेपोऽमु या अ ध मु कयोः.. (५)
यां चटाई बनाने के लए जस कार नड नामक घास को प थर से कूटती ह, हे
श !ु म तेरे अंडकोष को उसी कार प थर के ऊपर रख कर सरे प थर से फोड़ता ं. (५)
सू -१३८ दे वता—वन प त
य तका रो हथ सुभगंकरणी मम. शतं तव ताना य ंश तानाः.
तया सह प या दयं शोषया म ते.. (१)
हे शंखपु पी! तू भा य के ल ण को पूरी तरह नगलती ई उ प होती है. तू मेरे
सौभा य का नमाण करती है. हे जड़ीबूट ! तेरी सौ शाखाएं तथा ततीस जड़ ह. हे नारी! इस
हजार प वाली शंखपु पी के ारा म तेरे दय को कामा न से संत त करता ं. (१)
शु यतु म य ते दयमथो शु य वा यम्.
अथो न शु य मां कामेनाथो शु का या चर.. (२)
हे का मनी! मेरे वषय म तेरा दय संत त हो. तेरा मुख भी सूख जाए इस के अ त र
तू मेरे त अ भलाषा करती ई अ य धक संत त हो. तू सूखे मुंह वाली बन कर मेरे समीप
आ. (२)
सू -१४० दे वता— ण पत
यौ ा ावव ढौ जघ सतः पतरं मातरं च.
यौ द तौ ण पते शवौ कृणु जातवेदः.. (१)
हे ण प त और हे जातवेद अ न! बाघ के समान जो दो दांत ऊपर क पं म
अतर प से नीचे क ओर मुंह कर के थत ह, वे माता पता को खाना चाहते ह. वे दांत
माता पता का क याण करने वाले ह . (१)
ी हम ं यवम मथो माषमथो तलम्.
एष वां भागो न हतो र नधेयाय द तौ मा ह स ं पतरं मातरं च.. (२)
हे पहले नकले ए, ऊपर वाले दो दांतो! तुम गे ं, जौ, उरद और तल खाओ. तु हारे
रमणीय फल के लए ही गे ,ं जौ आ द का भाग रखा गया है. तुम माता और पता क हसा
मत करो. (२)
उप तौ सयुजौ योनौ द तौ सुम लौ.
अ य वां घोरं त व १: परैतु द तौ मा ह स ं पतरं मातरं च.. (३)
दोन ऊपर वाले दांत दे व के ारा अनुम त ा त, म बने ए, सुखकारक एवं शोभन
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ह . हे दोन दांतो! नरमादा का संकेत करने वाला च बनाओ. वह च पु , पौ आ द के
प म समृ करने वाला हो. (३)
सू -१४२ दे वता—वायु
उ य व ब भव वेन महसा यव.
मृणी ह व ा पा ा ण मा वा द ाश नवधीत्.. (१)
हे जौ अ ! तू उगता आ ऊंचा हो तथा अनेक कार का बन. तू अपने तेज से कुसूल,
को आ द सभी पा को भर दे . आकाश से गरने वाला व तेरी हसा न करे. (१)
आशृ व तं यवं दे वं य वा छा ऽ वदाम स.
त य व ौ रव समु इवै य तः.. (२)
सामने हो कर हमारी बात सुनते ए जौ नामक दे व क म इस भू म म ाथना करता ं.
तू धरती पर आकाश के समान ऊंचा हो तथा सागर के समान य र हत हो कर बढ़. (२)
सू -२ दे वता—आ मा
अथवाणं पतरं दे वब धुं मातुगभ पतुरसुं युवानम्.
य इमं य ं मनसा चकेत णो वोच त महेह वः.. (१)
जा के पालक दे व क सृ करने वाले, माता के गभ से ज म लेने वाले बालक को
युवा बनाने वाले एवं गभ के जनक को ाण यु करने वाले जाप त से म अपनी
अ भलाषा क स के लए याचना करता ं. उस ने इस यो तहोम आ द य को मन से
जाना है. हे ! उस जाप त को मुझे बताओ. इस बात क अ भलाषा पूण करने वाले य
कम म बताओ. (१)
सू -३ दे वता—आ मा
अया व ा जनयन् कवरा ण स ह घृ ण वराय गातुः.
स युदैद ् ध णं म वो अ ं वया त वा त वमैरयत.. (१)
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इस माया के ारा व आ मा के प म थत यह जाप त य आ द कम को
उ प करता है. वह द तशाली उ म कम फल के लए महान माग है. वह थायी एवं
चरकाल तक रहने वाले मधुर जल को उ प करता है. उस ने अपने वराट् शरीर के ारा
सभी ा णय के शरीर को े रत कया है. (१)
सू -४ दे वता—वायु
एकया च दश भ ा सु ते ा या म ये वश या च.
तसृ भ वहसे शता च वयु भवाय इह ता व मु च.. (१)
हे शोभन आ ान वाले वायु दे व! सब के ेरक जाप त अपने रथ म जुड़े ए यारह
घोड़ के सहारे हमारे य म आएं. तुम बाईस तथा ततीस अ के ारा वहन कए जाते हो.
हे वायु! हमारे य म आ कर अपने घोड़ को यह रोके रहो अथात् हमारे य से सरी जगह
मत जाओ. (१)
सू -५ दे वता—आ मा
य ेन य मयज त दे वा ता न धमा ण थमा यासन्.
ते ह नाकं म हमानः सच त य पूव सा याः स त दे वाः.. (१)
दे व व को ा त यजमान ने अ न के ारा य पूण कया. अ न के कम उन के मुख
कम थे. वे मह व यु दे व वग को ा त ए. वहां ाण के अ भमानी ाचीन दे व नवास
करते ह. (१)
य ो बभूव स आ बभूव स ज े स उ वावृधे पुनः.
स दे वानाम धप तबभूव सो अ मासु वणमा दधातु.. (२)
य प जाप त, व आ मा के प म स एवं सब के कारण ए. वे स ए
तथा वे आज भी जगत् क आ मा के प म बारबार बढ़ते ह. वे इं आ द दे व म मुख ए.
यह य हम सेवक को अ धक धन दान करे. (२)
यद् दे वा दे वान् ह वषा ऽ यज ताम यान् मनसा ऽ म यन.
मदे म त परमे ोमन् प येम त दतौ सूय य.. (३)
कम से दे व व को ा त जन ने न मरने वाले इं आ द दे व के हेतु दे व वषयक मन से
च , पुरोडाश आ द के ारा य कया. हम यजमान उस वशाल वग म स ह एवं जब
तक सूय का काश रहे, तब तक इस य का फल रहे. (३)
यत् पु षेण ह वषा य ं दे वा अत वत.
सू -६ दे वता—अ द त
अ द त र द तर त र म द तमाता स पता स पु ः.
व े दे वा अ द तः प च जना अ द तजातम द तज न वम्.. (१)
खंड न होने यो य जो पृ वी एवं दे वमाता है, वही वग और अंत र है. वही संसार क
नमा ी माता और उ प करने वाला पता है. वही माता और पता से उ प पु है. ा ण,
य, वै य, शू एवं नषाद—ये पांच जा तय वाले जन भी अ द त ह. जा क उ प
और ज म का अ धकरण भी अ द त है. (१)
महीमू षु मातरं सु तानामृत य प नीमवसे हवामहे.
तु व ामजर तीमु च सुशमाणम द त सु णी तम्.. (२)
महती एवं शोभन कम वाली माता को स य और य का पालन करने वाली माता के
उ े य से हम अपनी र ा के लए य करते ह. अ धक बल एवं श संप , वनाश र हत,
अ त र तक जाने वाली, शोभन सुख वाली एवं उ म कम से स होने वाली दे व माता
अ द त को हम अपनी र ा के लए बुलाते ह. (२)
सू -७ दे वता—अ द त
सु ामाणं पृ थव ामनेहसं सुशमाणम द त सु णी तम्.
दै व नावं व र ामनागसो अ व तीमा हेमा व तये.. (१)
भलीभां त र ा करती ई, व तीण, प ंचने यो य, पाप र हत, सुख वाली सुखमय
कम क ेरणा एवं अखंडनीय दै वी नाव म हम सवार ह . उस शोभन डांड वाली एवं छ
र हत दै वी नाव पर अपराध न करने वाले हम क याण ा त करने के लए सवार ह . (१)
वाज य नु सवे मातरं महीम द त नाम वचसा करामहे.
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य या उप थ उव १ त र ं सा नः शम व थं न य छात्.. (२)
हम अ क उ प के लए, अ का नमाण करने वाली वशाल एवं अखंडनीय
अ द त क तु त करते ह. जस अ द त क गोद म व तृत आकाश है, वही अ द त हम तीन
मं जला और तीन क वाला घर दान करे. (२)
सू -८ दे वता—अ द त
दतेः पु ाणाम दतेरका रषम् अमव दे वानां बृहतामनमणाम्.
तेषां ह धाम ग भषक् समु यं नैनान् नमसा परो अ त क न.. (१)
म द त के पु अथात् दै य का थान छ न कर अ द त के पु अथात् दे व को दे ता
ं. वे दे व गुण से महान एवं श ु ारा परा जत न होने वाले ह. उन का सागर अथवा
आकाश म थत नवास थान सर के लए जय और गम है. इन दे व से महान कोई भी
नह है. (१)
सू -९ दे वता—बृह प त
भ ाद ध ेयः े ह बृह प तः पुरएता ते अ तु.
अथेमम या वर आ पृ थ ा आरेश ुं कृणु ह सववीरम्.. (१)
हे व , धन आ द का लाभ चाहने वाले पु ष! तू उ रोतर क याणकारी संप ात
कर. लाभ के हेतु जाते ए तेरे आगेआगे बृह प त चल. हे बृह प त! तुम पृ वी के उस उ म
थान पर इस पु ष को था पत करो, जहां धन आ द लाभ ा त ह . इस के सभी पु , पौ
आ द वीर ह एवं इस के श ु इस से र रह. (१)
सू -१० दे वता—पूषा
पथे पथामज न पूषा पथे दवः पथे पृ थ ाः.
उभे अ भ यतमे सध ते आ च परा च चर त जानन्.. (१)
माग र क सूय दे व, माग के आरंभ म र ा करने के लए उप थत होते ह. सूय दे व
पृ वी एवं आकाश के वेश ार म उप थत होते ह. अ य धक ेम करने वाले एवं पर पर
एक साथ थत धरती और आकाश दोन को ल त कर के यजमान ारा कए गए कम
और उस का फल जानते ए सूय आकाश से पृ वी पर आते ह और पृ वी से आकाश पर
जाते ह. (१)
पूषेमा आशा अनु वेद सवाः सो अ माँ अभयतमेन नेषत्.
व तदा आघृ णः सववीरो ऽ यु छन् पुर एतु जानन्.. (२)
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सब के पोषक सूय दे व सभी दशा को जानते ह. वे हम भयर हत माग से ले चल.
क याण के दाता, द तपूण एवं पु , पौ आ द वीर से यु तथा माद न करते ए और
हम पूण प से जानते ए आगेआगे चल. (२)
पूषन् तव ते वयं न र येम कदा चन. तोतार त इह म स.. (३)
हे पूषा! अथात् सूय दे व! तु हारे य प कम म संल न हम कभी भी न न ह . इस
कम म हम सदा तु हारे तु तकता बन. (३)
प र पूषा पर ता तं दधातु द णम्.
पुनन न माजतु सं न ेन गमेम ह.. (४)
पोषक सूय दे व अ धक र दे श से भी धन दे ने के लए अपना दा हना हाथ फैलाएं.
हमारा न आ धन पुनः हमारे पास आए. हम अपने न ए धन से पुनः मल जाएं. (४)
सू -१३ दे वता—सभा, स म त आ द
सभा च मा स म त ावतां जापते हतरौ सं वदाने.
येना संग छा उप मा स श ा चा वदा न पतरः संगतेषु.. (१)
सू -१४ दे वता—सूय
यथा सूय न ाणामु ं तेजां याददे .
एवा ीणां च पुंसां च षतां वच आ ददे .. (१)
उदय होता आ सूय जस कार तार का काश छ न लेता है, उसी कार म े ष
करने वाले ीपु ष के तेज का अपहरण करता ं. (१)
याव तो मा सप नानामाय तं तप यथ.
उ सूय इव सु तानां षतां वच आ ददे .. (२)
श ु के म य म जन श ु को म यु के लए आता आ दे ख रहा ,ं उन के तेज
का अपहरण म उसी कार करता ं, जस कार सूय उदय के समय सोने वाले पु ष का
तेज छ न लेते ह. (२)
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सू -१५ दे वता—स वता
अ भ यं दे वं स वतारमो योः क व तुम्.
अचा म स यसवं र नधाम भ यं म तम्.. (१)
धरती और आकाश का नमाण करने वाले स वता दे व क म तु त करता ं. ये स वता
दे व कमनीय कम करने वाले, यथाथ के ेरक, र न को धारण करने वाले एवं सब का य
करने वाले ह, इस लए सब के माननीय ह. (१)
ऊ वा य याम तभा अ द ुतत् सवीम न.
हर यपा णर ममीत सु तुः कृपात् वः.. (२)
जन स वता दे व क ा त करने वाली द त उ कृ है तथा सारे जगत् को का शत
करती है उन क आ ा होने पर शोभन कम वाले ा हाथ म सोना ले कर क पना के ारा
सुख दे ने वाले सोम का नमाण करते ह. (२)
सावी ह दे व थमाय प े व माणम मै व रमाणम मै.
अथा म यं स वतवाया ण दवो दव आ सुवा भू र प ः.. (३)
हे स वता दे व! इस मुख एवं पु क कामना करने वाले यजमान को पु , पौ आ द
संतान क ेरणा दो. इस पु चाहने वाले यजमान को उ मता दान करो. हे स वता दे व!
इस के प ात हमारे लए त दन वरण करने यो य फल एवं अ धक मा ा म पशु दान
करो. (३)
दमूना दे वः स वता वरे यो दधद् र नं द ं पतृ य आयूं ष.
पबात् सोमं ममददे न म े प र मा चत् मते अ य धम ण.. (४)
दान दे ने क इ छा रखने वाले, े एवं सब के ेरक स वता दे व धन एवं बल दान
करते ए तथा पूवज के पास से सौ वष क आयु दे ते ए नचोड़े गए सोम का पान कर.
पया आ यह सोम स वता दे व से संबं धत याग म स वता दे व को स करे. सभी ओर
ा त होने वाला वह सोम स वता दे व के पेट म नवास करे. (४)
सू -१८ दे वता—धाता आ द
धाता दधातु नो र यमीशानो जगत् प तः.
स नः पूणन य छतु.. (१)
सभी साधन से यु एवं जगत् के पालक धाता दे व हमारे लए धन दान कर. वे धाता
दे व हम पूण और समृ कर. (१)
धाता दधातु दाशुषे ाच जीवातुम तात्.
वयं दे व य धीम ह सुम त व राधसः.. (२)
धाता दे व ह व दे ने वाले मुझ यजमान को हमारे अ भमुख आने वाली, जीवनदा यनी
एवं ीण न होने वाली सुम त दान कर. हम भी ीण न होने वाले धन को धारण करने वाले
धाता दे व क अनु ह बु धारण कर. (२)
धाता व ा वाया दधातु जाकामाय दाशुषे रोणे.
त मै दे वा अमृतं सं य तु व े दे वा अ द तः सजोषाः.. (३)
धाता दे व वरण करने यो य सम त फल को धारण कर. वे फल ा त क इ छा करने
वाले यजमान के हेतु ह . उस यजमान के लए इं आ द अमृत दान कर. वे सभी दे व एवं
दे वमाता अ द त पर पर मल कर य नशील ह . (३)
धाता रा तः स वतेदं जुष तां जाप त न धप तन अ नः.
व ा व णु जया संरराणो यजमानाय वणं दधातु.. (४)
सभी क याण के दे ने वाले धाता, कम के ेरक स वता और वेद के र क जाप त,
अ न, प के नमाता व ा, ापक दे व व णु—ये सभी हमारे ह व को वीकार कर एवं
य करने वाले यजमान के लए धन द. (४)
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सू -१९ दे वता—पृ थवी, पज य
नभ व पृ थ व भ ३ दं द ं नभः.
उद्नो द य नो धातरीशानो व या तम्.. (१)
हे पृ वी! बादल फसल क वृ के लए तुझ पर महती वषा करगे. उस वषा के कारण
तू ढ़ बन. आकाश म उ प होने वाला यह बादल पृ वी को वद ण करे. हे धाता! आकाश
म होने वाले जल का भाग हम दान करो. तुम वषा दान करने म समथ मेघ पी जलपूण
मशक को छोड़ो अथात् महती वषा करो. (१)
न ं तताप न हमो जघान नभतां पृ थवी जीरदानुः.
आप द मै घृत मत् र त य सोमः सद मत् त भ म्.. (२)
ी म ऋतु हम संताप न दे और शीत ऋतु हम कांपने क बाधा न प ंचाए. अ य धक
दान दे ने वाली पृ वी वषा से भीग जाए. इस यजमान के लए जल भी स ता कारक ह .
जहां सोम नामक दे व ह, उस दे श म सदा ही क याण होता है. (२)
सू -२१ दे वता—अनुम त
अ व नो ऽ नुम तय ं दे वेषु म यताम्.
अ न ह वाहनो भवतां दाशुषे मम.. (१)
सभी कम क अनुम त दे ने वाली पौणमासी क दे वी हमारा य इस समय दे व को
बताएं. अ न दे व भी मुझ यजमान क ह व दे व को ा त कराने वाले ह . (१)
अ वदनुमते वं मंससे शं च न कृ ध.
जुष व ह मा तं जां दे व ररा व नः.. (२)
हे अनुम त नामक दे वी! तुम हम अनुम त दो तथा हम सुख ा त कराओ. तुम सामने
आ कर अ न म डाला आ हमारा ह व वीकार करो. हे दे व! पु , पौ आ द प हमारी
जा क र ा करो. (२)
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अनु म यतामनुम यमानः जाव तं र यम ीयमाणम्.
त य वयं हेड स मा ऽ प भूम सुमृडीके अ य सुमतौ याम.. (३)
हे अनुम त नामक दे वी! मुझे पु , पौ आ द से यु एवं कभी समा त न होने वाले धन
को ा त कराओ. हम तेरे ोध के वषय न बन. हम इस अनुम त दे वी क सुख दे ने वाली
और अनु ह करने वाली बु म रह. (३)
यत् ते नाम सुहवं सु णीते ऽ नुमते अनुमतं सुदानु.
तेना नो य ं पपृ ह व वारे र य नो धे ह सुभगे सुवीरम्.. (४)
हे यजमान को धन दे ने वाली सु णी त दे वी एवं हे अनुम त! हमारे य को इस कार
पूण करो क तु हारा हवन स हो सके. यह स करने यो य एवं अ भमत फल दे ने वाला
है. (४)
एमं य मनुम तजगाम सु े तायै सुवीरतायै सुजातम्.
भ ा याः म तबभूव सेमं य मवतु दे वगोपा.. (५)
अनुम त दे वी हमारे ारा दए जाते ए य म आएं. वे हम उ म फल दे ने वाली ह . हे
व धारा तथा हे सुभगा अनुम त! हम उ म संतान वाला धन दान करो. (५)
अनुम तः सव मदं बभूव यत् त त चर त य च व मेज त.
त या ते दे व सुमतौ यामानुमते अनु ह मंससे नः.. (६)
अनुम त दे वी ही यह सारा दखाई दे ता आ संसार है. वह जगत् म थावर, जंगम
आ द के प म वतमान है एवं बना वचारे ये ता करती ह. यह सारा संसार बु पूवक
चे ा करता है. हे अनुम त दे वी! हम तेरी अनु ह बु म ह . हे अनुम त! तुम हम अनुम त
दो. (६)
सू -२२ दे वता—आ मा
समेत व े वचसा प त दव एको वभूर त थजनानाम्.
स पू नूतनमा ववासत् तं वत नरनु वावृत एक मत् पु .. (१)
हे सब बांधवो! आकाश के वामी सूय क तु त मं के ारा करो. वे सूय ा णय के
मु य वामी एवं न य चलते रहने वाले ह. वे पुरातन सूय इस नूतन पु ष क सेवा कर. ब त
से स कम उस एकमा सूय के माग का अनुवतन करते ह. (१)
सू -२३ दे वता— न
अयं सह मा नो शे कवीनां म त य त वधम ण.. (१)
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यह दखाई दे ता आ सूय हजार वष तक हम दखाई दे ता रहे. ांतदश पु ष के ारा
मनन करने यो य, सब को अपनेअपने कम म लगाने वाले ये सूय हम त दन स कम करने
क ेरणा दे ते रह. (१)
नः समीची षसः समैरयन्.
अरेपसः सचेतसः वसरे म युम मा ते गोः.. (२)
पाप र हत, समान ान वाले एवं दन के समय अ तशय द तशाली सूय हम पूजा
आ द कम म े रत कर. (२)
सू -२६ दे वता— व णु
ययोरोजसा क भता रजां स यौ वीयव रतमा श व ा.
यौ प येते अ तीतौ सहो भ व णुमगन् व णं पूव तः.. (१)
जन व णु और व ण के बल के ारा पृ वी आ द थान ढ़ कए गए ह, जो व णु
और व ण अपने वीरतापूण कम के ारा अ तशय श शाली ऐ य ा त कर चुके ह, उन
व णु और व ण को सभी दे व से पहले कया गया आ ान ा त हो. (१)
य येदं द श यद् वरोचते चान त व च च े शची भः.
पुरा दे व य धमणा सहो भ व णुमगन् व णं पूव तः.. (२)
व णु और व ण क आ ा म यह जगत् वशेष प से द त है, सांस लेता है और
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अपनेअपने काय का फल दे खता है. इस के अ त र जगत् को का शत करने वाले व णु
और व ण के धारक कम और बल के साथ ाचीन काल म चे ा करता था. इस कार के
व णु और व ण को फल चाहने वाले लोग अपने थम आ ान से जोड़. (२)
सू -२७ दे वता— व णु
व णोनु कं ा वोचं वीया ण यः पा थवा न वममे रजां स.
यो अ कभाय रं सध थं वच माण ेधो गायः.. (१)
म उन व णु के कन वीरतापूण कम का वणन क ं , ज ह ने पृ वी के प म लोक
का नमाण कया है. व णु ने इस से भी ऊंचे तर के थान वग को धारण कया है.
महापु ष ारा तु त कए गए व णु ने पृ वी, अंत र और आकाश म चरण रखते ए यह
नमाण कया है. (१)
तद् तवते वीया ण मृगो न भीमः कुचरो ग र ाः.
परावत आ जग यात् पर याः.. (२)
वीरतापूण कम के कारण व णु क तु त क जाती है. व णु सह के समान भयानक,
भू म पर वचरण करने वाले एवं पवत म थत ह. वे व णु मेरी तु त सुन कर र दे श से भी
यहां आएं. (२)
य यो षु षु व मणे व ध य त भुवना न व ा.
उ व णो व म वो याय न कृ ध.
घृतं घृतयोने पब य प त तर.. (३)
उन व णु के तीन व तृत चरण व ेप म सभी भुवन एवं ाणी नवास करते ह. हे
ापक व णु! तीन लोक म अपने तीन चरण रखने का परा म करो तथा हमारे नवास
थान को धन संयु बनाओ. हे घृत के कारण प व णु! यह हवन कया जाता आ घृत
पयो तथा य के वामी यजमान क वृ करो. व णु ने इस व म व म का दशन
कया है. उ ह ने तीन बार अपने चरण था पत कए ह. इन व णु के तीन चरण व ेप म
सारा व था पत है. (३)
इदं व णु व च मे ेधा न दधे पदा. समूढम य पांसुरे.. (४)
सब के र क और सर के ारा परा जत न होने वाले व णु ने इस पृ वीलोक से
आरंभ कर के ा णय को धारण करने वाले तीन लोक धारण कए. (४)
ी ण पदा व च मे व णुग पा अदा यः. इतो धमा ण धारयन्.. (५)
सू -२८ दे वता—इडा
इडैवा मां अनु व तां तेन य याः पदे पुनते दे वय तः.
घृतपद श वरी सोमपृ ोप य म थत वै दे वी.. (१)
गहन पा इडा ही हमारे ारा कए जाते ए यह कम को फल दे ने वाला बनाएं. उस
इडा के चरण म दे व क कामना करने वाले यजमान अपनेआप को प व करते ह. हम
जहांजहां चरण रख वहांवहां घृत टपकाने वाली, फल दे ने म समथ एवं पीठ पर सोम लए
ए इडा नाम क बहन हमारे य को व तृत कर. (१)
सू -२९ दे वता—झंडा
वेदः व त घणः व तः परशुव दः परशुनः व त.
ह व कृतो य या य कामा ते दे वासो य ममं जुष ताम्.. (१)
वेद (दभ समूह) हमारे लए अ वनाश का कारण बने. पेड़ काटने के काम आने वाली
कु हाड़ी हमारा क याण करे. घास काटने का साधन वे द अथात् खुरपी तथा परशु हमारा
क याण करे. ह व का नमाण करने वाले, य के यो य एवं य क कामना करते ए मुझ
यजमान का य वे दे व वीकार कर. (१)
सू -३२ दे वता—इं
इ ो त भब ला भन अ याव े ा भमघव छू र ज व.
यो नो े धरः स पद यमु म तमु ाणो जहातु.. (१)
हे इं ! आज ब त सी र ा अथात् र ा साधन के ारा हमारा पालन करो. हे
धनवान एवं शौय संप इं ! शंसनीय र ा साधन के ारा हम पूणतया स करो. जो
श ु हम से े ष करते ह, वे अधोमुख हो कर गर. जस श ु से हम े ष करते ह, उसे तु हारा
ाण याग दे . (१)
सू -३३ दे वता—आयु
सू -३४ दे वता—पूषा
सं मा स च तु म तः सं पूषा सं बृह प तः.
सं मायम नः स चतु जया च धनेन च द घमायुः कृणोतु मे.. (१)
म त् आ द दे वगण मुझ फल चाहने वाले यजमान को पु आ द प जा से और धन
से यु कर. अ न मेरे व ाथ क आयु लंबी कर. (१)
सू -३५ दे वता—जातवेद
अ ने जातान् णुदा मे सप नान् यजातान्जातवेदो नुद व.
अध पदं कृणु व ये पृत यवोऽनागस ते वयम दतये याम.. (१)
हे अ न! मेरे उ प श ु को मुझ से ब त र जाने क ेरणा दो. हे जातवेद अ न!
मेरे जो श ु उ प नह ए ह, उन का वनाश करो. जो श ु सेना ले कर मुझ से यु करने
के इ छु क ह. उ ह अपने पैर के नीचे कुचल दो. हे खंड न करने यो य पृ वी अथवा अद ना
दे वमाता! हम पापर हत हो कर तु हारे कृपा पा बन. (१)
सू -३६ दे वता—जातवेद
ा या सप ना सहसा सह व यजाता ातवेदो नुद व.
इदं रा ं पपृ ह सौभगाय व एनमनु मद तु दे वाः.. (१)
हे अ न! मेरे उ प श ु को ब त र भगा दो. हे उ प को जानने वाले अ न दे व!
मेरे ऐसे श ु का वनाश करो, ज ह म नह जानता. हमारे इस रा को तुम सौभा य से
पूण करो. सभी दे व श ु वनाश का योग करने वाले इस यजमान को स कर. (१)
इमा या ते शतं हराः सह ं धमनी त.
तासां ते सवासामहम मना बलम यधाम्.. (२)
हे मुझ से व े ष करने वाली ी! तेरी जो गभधारण संबंधी सौ से अ धक ना ड़यां ह
तथा हजार धम नयां ह, म उन सब का मुख प थर से ढक कर तुझे बांझ बनाता ं. (२)
सू -३७ दे वता—अ , मन
अ यौ नौ मधुसंकाशे अनीकं नौ सम नम्.
अ तः कृणु व मां द मन इ ौ सहास त.. (१)
हे प नी! मेरी और तेरी आंख शहद के समान मधुर ह अथात् हम एक सरे के त
अनुर ह . हमारी आंख का अ भाग काजल से यु हो. तू मुझे दयंगम कर अथात् ऐसा
य न कर, जस से म तेरा य बन सकूं. हम दोन का मन समान काय करने वाला हो. (१)
सू -३८ दे वता—व
अ भ वा मनुजातेन दधा म मम वाससा.
यथा ऽ सो मम केवलो ना यासां क तया न.. (१)
ी अपने प त से कहती है—हे प त! म तुम को अपने मं से यु व से बांधती ं.
इस कार तुम केवल मेरे ही हो सकोगे तथा सरी ना रय का नाम भी नह लोगे. (१)
सू -३९ दे वता—वन प त
इदं खना म भेषजं मां प यम भरो दम्. परायतो नवतनमायतः
तन दनम्.. (१)
म वश म करने वाली इस सौवचा नामक जड़ी को खोदता ं. यह मेरे प त को मेरे
अनुकूल बनाए और मेरे प त का अ य ना रय से संबंध रोके. यह जड़ी मुझे छोड़ कर जाते
ए प त को वापस लाए तथा मेरी ओर आते ए प त को आनं दत करे. (१)
येना नच आसुरी ं दे वे य प र.
तेना न कुव वामहं यथा ते ऽ सा न सु या.. (२)
असुर क माया ने जस जड़ी के बल से इं के अ त र सभी दे व को यु म अपने
अधीन कया था, हे प त! उसी जड़ी के ारा म तुझे अपने वश म करती ं. म ऐसा इसी लए
सू -४३ दे वता—सोम
सोमा ा व वृहतं वषूचीममीवा या नो गयमा ववेश.
बाधेथां रं नऋ त पराचैः कृतं चदे नः मुमु म मत्.. (१)
हे सोम एवं दे व! सभी ओर फैलने वाले उस अमीवा नामक रोग का वनाश करो जो
हमारे शरीर म वेश कर गया है. इस के अ त र अमीवा रोग का कारण बनी ई पशाची
को वमुख कर के र ले जाओ, जस से वह हमारे पास न आ सके. हमारे ारा कए ए
पाप को भी हम से र करो. (१)
सोमा ा युवमेता य मद् व ा तनूषु भेषजा न ध म्.
अव यतं मु चतं य ो असत् तनूषु ब ं कृतमेनो अ मत्.. (२)
हे सोम एवं दे व! तुम दोन हमारे शरीर म रोग को नकालने वाली जड़ीबू टय को
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था पत करो. हमारे शरीर म थत हमारे ारा कया आ जो पाप है, उसे भी हम से अलग
करो और न कर दो. (२)
सू -४४ दे वता—वाक्
शवा त एका अ शवा त एकाः सवा बभ ष सुमन यमानः.
त ो वाचो न हता अ तर मन् तासामेका व पपातानु घोषम्.. (१)
हे अकारण न दत पु ष! तेरे वषय म कुछ वा णयां तु त पा एवं क याणी ह तथा
कुछ वा णयां तेरे वषय म नदापूण ह. सौमन य का आचरण करती ई इन दो कार क
वा णय के अ त र तीन वा णयां अथात् परा, प यंती और म यमा-इस श द योग म
शरीर के भीतर छपी रहती ह. केवल एक अथात् वैखरी वाणी व न के प म नकलती है.
(१)
सू -४५ दे वता—इं
उभा ज यथुन परा जयेथे न परा ज ये कतर नैनयोः.
इ व णो यदप पृधेथां ेधा सह ं व तदै रयेथाम्.. (१)
हे इं और व णु! तुम दोन सवदा वजयी बनो और कसी से कभी परा जत न होओ.
इन दोन म से एक भी सरे से परा जत नह होता. हे इं और व णु! तुम दो असुर के साथ
जस व तु क पधा करते हो, वह व तु लोक, वेद और वाणी के प म थत हो कर हजार
से भी बढ़कर हो. (१)
सू -४६ दे वता—ई या
जनाद् व जनीनात् स धुत पयाभृतम्.
रात् वा म य उद्भृतमी याया नाम भेषजम्.. (१)
ई या समा त करने वाली जड़ीबूट को संबो धत कर के कहा जा रहा है— सभी जन
के हतकारक जनपद से तथा सागर से लाई ई को एवं र दे श से उखाड़ कर लाई तुझ,
स ु मंथ नामक जड़ीबूट को म ोध का नवारण करने वाली मानता ं. (१)
सू -४७ दे वता—ई या
अ ने रवा य दहतो दाव य दहतः पृथक्.
एतामेत ये यामुदना
् न मव शमय.. (१)
जस कार अ न व तु को जलाती है, उसी कार ोध के कारण मेरे काय
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बगाड़ने वाले तथा दावा न के जलाने के समान ोध करते ए सामने वाले पु ष को मेरे
वषय म योग क जाती ई ई या को इस कार शांत करो, जस कार शीतल जल डालने
से अ न शांत कर द जाती है. (१)
सू -४९ दे वता—कु
कु ं दे व सुकृतं व नापसम मन् य े सुहवा जोहवी म.
सा नो र य व वारं न य छाद् ददातु वीरं शतदायमु यम्.. (१)
कु अथवा चं मा दखाई न दे ने वाली अमाव या दे वी को म इस य म बुलाता ं
अथवा ह व से होम करता ं. शोभन कम करने वाली, व दत कम वाली एवं शोभन आ ान
वाली वह अमाव या हम सब के ारा वरणीय धन दे तथा अ धक धन दे ने वाला, शंसनीय
एवं वीर पु दान करे. (१)
कु दवानाममृत य प नी ह ा नो अ य ह वषो जुषेत.
सू -५२ दे वता—इं
यथा वृ मश न व ाहा ह य त. एवाहम कतवान ैब यासम त..
(१)
बजली क आग अ तीय है तथा वह जस कार वृ का वनाश करती है, उसी
कार म भी अ तीय हो कर आज जुआरी पु ष का वध क ं . म जुआ रय का वध पास
से क ं गा अथात् उ ह पास से हराऊंगा, परा जत क ं गा. (१)
तुराणामतुराणां वशामवजुषीणाम्. समैतु व तो भगो अ तह तं कृतं
मम.. (२)
जुआ खेलने म चाहे जुआरी शी ता करे अथवा दे री करे, म ही उस से जुए म जीतूंगा.
जो जुआरी हार जाने पर भी इस आशा से जुआ खेलना बंद नह करता क म ही जीतूंगा,
ऐसे जुआरी लोग का धन सभी ओर से मेरे ही पास आए. जुए के पासे मेरे ही हाथ म रह.
(२)
ईडे अ नं वावसुं नमो भ रह स ो व चयत् कृतं नः.
रथै रव भरे वाजय ः द णं म तां तोममृ याम्.. (३)
जो अ न दे व अपना धन अपने तु तकता को दे ते ह, म उन क तु त करता ं. इस
ूत कम के अ धप त अ न दे व हम जुआ रय के लाभ के लए कृपा कर. अ न दे व रथ के
समान थत पास से हार कर. इस के प ात म सभी दे व क म से तु त ारंभ क ं .
(३)
वयं जयेम वया युजा वृतम माकमंशमुदवा भरेभरे.
अ म य म वरीयः सुगं कृ ध श ूणां मघवन् वृ या ज.. (४)
हे इं ! तु हारी सहायता से हम अपने वरोधी जुआरी को जीत ल. तुम येक ूत
ड़ा म हम जीत के इ छु क का अंश सुर त करो. इस के अ त र तुम हम अ य धक
धन ा त कराओ. हे धनवान इं ! तुम मेरे वरोधी जुआ रय को जीतने क श को समा त
कर दो. (४)
अजैषं वा सं ल खतमजैषमुत सं धम्.
अ व वृको यथा मथदे वा म ना म ते कृतम्.. (५)
सू -५४ दे वता—सौमन य
सं ानं नः वे भः सं ानमरणे भः. सं ानम ना युव महा मासु न
य छतम्.. (१)
अपने लोग के साथ हमारा एकमत हो तथा अनुकूल न बोलने वाले अथात् तकूल
पु ष के साथ हम समान ान वाले ह . हे अ नीकुमारो! तुम दोन इस समय इस वषय म
अपने और पराय के साथ हम एकमत बनाओ. (१)
सं जानामहै मनसा सं च क वा मा यु म ह मनसा दै ेन.
मा घोषा उ थुब ले व नहते मेषुः प त द याह यागते.. (२)
हम अपने मन के साथ सर के मन को संयु कर और जाग कर सर के काय से
संगत बन. हम दे व संबंधी मन अथात् दे व के त ा रखने वाले मन के कारण सर से
अलग न ह . अ धक कु टलता संबंधी श द न उठ. दन नकलने पर इं के व के समान
ममवेधी वाणी हम सुनाई न दे . (२)
सू -५५ दे वता—आयु
अमु भूयाद ध यद् यम य बृह पतेअ भश तेरमु चः.
यौहताम ना मृ युम मद् दे वानाम ने भषजा शची भः.. (१)
हे बृह प त! परलोक म भवन वाले यमराज के शाप से तुम इस चारी को छु ड़ाते
हो. यमराज का शाप मरण का कारण है. हे अ न! तु हारी कृपा से अ नीकुमार अपनी
या के ारा हमारे चारी को मृ यु के कारण से छु ड़ाएं. (१)
सं ामतं मा जहीतं शरीरं ाणापानौ ते सयुजा वह ताम्.
शतं जीव शरदो वधमानो ऽ न े गोपा अ धपा व स ः.. (२)
हे ाण और अपान वायु! तुम दोन आयु क कामना करने वाले मनु य के शरीर म
सं मण करो तथा उस के शरीर का याग मत करो. हे आयु क कामना करने वाले पु ष!
तेरे इस शरीर म ाण और अपान वायु संयु रह. इस के प ात तू सौ वष तक जी वत रहे.
जी वत रहते ए तेरे ह व आ द से समृ होते ए अ न दे व तेरी र ा करने वाले, तुझे अपना
समझने वाले तथा नवास थान दे ने वाले ह . (२)
सू -५६ दे वता—इं
ऋचं साम यजामहे या यां कमा ण कुवते.
एते सद स राजतो य ं दे वेषु य छतः.. (१)
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हे धन दे ने वाले इं ! तु हारे जो माग ुलोक से नीचे वतमान ह, उन व ेरक माग के
ारा हम सुख म था पत करो. अथात् हम सुख दान करो. (१)
सू -५७ दे वता—इं
ऋचं साम यद ा ं ह वरोजो यजुबलम्.
एष मा त मा मा हसीद् वेदः पृ ः शचीपते.. (१)
हम ऋ वेद और सामवेद को ह व के ारा पूजते ह. यजमान ऋ वेद और सामवेद के
ारा य कम करते ह. ये दोन वेद सदस नामक मंडप म शोभा दे ते ह तथा य को दे व तक
प ंचाते ह. (१)
ये ते प थानो ऽ व दवो ये भ व मैरयः. ते भः सु नया धे ह नो वसो.. (२)
म ने ऋ वेद से ह व, सामवेद से ओज और यजुवद से बल के वषय म पूछा था. अथात्
ऋ वेद आ द म ह व आ द का अ ययन कया था. हे शची के प त और ाकरण के नयम
बनाने वाले इं ! इस कार सु वचा रत ऋ वेद, सामवेद और यजुवद मुझ अ यापक के
अ ययनअ यापन म बाधा न डाल कर मनचाहा फल द. (२)
सू -५८ दे वता— ब छू
तर राजेर सतात् पृदाकोः प र संभृतम्.
तत् कङ् कपवणो वष मयं वी दनीनशत्.. (१)
तर राजी अथात् तरछ रेखा वाले काले और पृदाकू अथात् अपने ारा काटे ए
ा णय को लाने वाले सप के वष को तथा कंकपव नामक काटने वाले वषैले जंतु के
वष को यह मधु नाम क जड़ीबूट न करे. (१)
इयं वी मधुजाता मधु मधुला मधूः.
सा व त य भेष यथो मशकज भनी.. (२)
यह योग क जाती ई ओष ध मधु अथात् शहद से न मत है, इस लए इस से शहद
टपकता है. मधु यु तथा मधूक नाम वाली यह जड़ीबूट कु टलता करने वाले वष का नाश
करने वाली तथा म छर को समा त करने वाली है. (२)
यतो द ं यतो धीतं तत ते न याम स.
अभ य तृ दं शनो मशक यारसं वषम्.. (३)
वषैले जंतु ारा काटे गए पु ष से कहा जा रहा है—हे सप ारा काटे गए पु ष!
तु हारे जस अंग म वषैले सप ने काटा है अथवा तु हारे जस अंग को सप आ द ने पया है,
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उस अंग से म सप का वष नकालता ं तथा मुख, पूंछ और चरण-इन तीन अंग से काटने
वाले म छर के वष को भी म भावहीन बनाता ं. (३)
अयं यो व ो वप ो मुखा न व ा वृ जना कृणो ष.
ता न वं ण पत इषीका मव सं नमः.. (४)
हे ण प त! सप आ द के ारा काटा आ जो यह पु ष अंग को सकोड़ता है, इस
के अंग के जोड़ ढ ले पड़ गए ह, इस के अवयव ववश हो गए ह तथा इस के मुख आ द
अंग टे ढ़े पड़ गए ह. तुम इस के सभी अंग को उसी कार सीधा बनाओ, जस कार टे ढ़
स क को सरल बनाया जाता है. (४)
अरस य शक ट य नीचीन योपसपतः. वषं १ या द यथो
एनमजीजभम्.. (५)
वष र हत, नीचे क ओर मुंह कए ए एवं तेरे समीप आते ए शक टक नाम के सांप
के म ने टु कड़े कर दए ह अथात् म ने इस का वष समा त कर दया है तथा इस सप को म
ने न कर दया है. (५)
न ते बा ोबलम त न शीष नोत म यतः.
अथ क पापया ऽ मुया पु छे बभ यभकम्.. (६)
ब छू को संबोधन कर के कहा जा रहा है – हे ब छू ! तेरे हाथ म सर को पीड़ा
प ंचाने वाला बल नह है. तेरे सर म भी बल नह है. तेरे म य भाग अथात् कमर म भी बल
नह है. तू अपनी, परपीड़ाका रणी बु के ारा थोड़ा वष अपनी पूंछ म य धारण करता
है? (६)
अद त वा पपी लका व वृ त मयूयः.
सव भल वाथ शक टमरसं वषम्.. (७)
हे सप! तुझे ची टयां खा लेती ह और मोर नयां तेरे टु कड़ेटुकड़े कर दे ती ह. हे सप का
वष र करने म समथ जड़ीबू टयो! तुम शक टक सप के वष को साम यहीन कर दे ती हो,
यह बात भलीभां त कही जाती है. (७)
य उभा यां हर स पु छे न चा ये न च.
आ ये ३ न ते वषं कमु ते पु छधावसत्.. (८)
हे ब छू ! तू पूंछ और मुख दोन के ारा ा णय को बाधा प ंचाता है तेरे म य भाग
और मुख म वष नह है. तेरे रो वाले भाग अथात् पूंछ म वष य हो. (८)
सू -६० दे वता—इं , व ण
इ ाव णा सुतपा वमं सुतं सोमं पबतं म ं धृत तौ.
युवो रथो अ वरो दे ववीतये त वसरमुप यातु पीतेय.. (१)
हे नचोड़े गए सोमरस को पीने वाले एवं त धारण करने वाले इं और व ण! मद
करने वाले एवं हमारे ारा नचोड़े गए सोमरस को पयो. श ु के ारा परा जत न होने
वाला तु हारा रथ तुम दोन को सोमरस पीने और य कम करने के लए यजमान के घर के
समीप ले जाए. (१)
इ ाव णा मधुम म य वृ णः सोम य वृषणा वृषेथाम्.
इदं वाम धः प र ष मास ा मन् ब ह ष मादयेथाम्.. (२)
हे मनचाहा फल दे ने वाले इं और व ण! तुम दोन अ य धक मधुर और मनचाहा फल
दे ने वाले सोमरस को पयो. यह सोमल ण अ हम ने चमस आ द पा म रख दया है,
इसी लए इस कुशासन पर बैठ कर सोमरस पयो और तृ त हो जाओ. (२)
सू -६२ दे वता—गुहा
ऊज ब द् वसुव नः सुमेधा अघोरेण च ुषा म येण.
गृहानै म सुमना व दमानो रम वं मा बभीत मत्.. (१)
हे घरो! अ धारण करता आ और धन का वामी म शोभन बु वाला हो कर तु ह
अनुकूल और मै ी पूण से दे खूं. म तु हारी तु त करता आ तु हारे पास आऊं. मेरे
अ धकार म तुम सुखी रहो, इस लए जब म सरे थान से तु हारे पास आऊं तो तुम मुझे
पराया समझ कर भय मत करो. (१)
इमे गृहा मयोभुव ऊज व तः पय व तः.
पूणा वामेन त त ते नो जान वायतः.. (२)
यह घर सुख दे ने वाले, अ एवं रस से यु , ध आ द एवं धन से समृ रहे ह. सामने
दखाई दे ते ए ये घर वास से आते ए हम वामी के प म जान. (२)
येषाम ये त वसन् येषु सौमनसो ब ः.
गृहानुप यामहे ते नो जान वायतः.. (३)
वास करता आ पु ष जन घर का मरण करता है तथा जन घर म सौमन य
वाला पदाथ अ धक मा ा म है, म ऐसे घर पाने के लए ाथना करता ं. हमारे ये घर वास
से आते ए हम वामी के प म जान. (३)
उप ता भू रधनाः सखायः वा संमुदः.
अ ु या अतृ या त गृहा मा मद् बभीतन.. (४)
हे घरो! अनुम त हेतु ाथना करने पर तुम अ धक धन यु , मै ीपूण तथा वा द और
मधुर पदाथ से यु बनो. तुम सदा भूख और यास से र हत अथात सभी कार तृ त जन
वाले बनो. हे घरो! जब हम बाहर से आएं, तब तुम हम पराया समझ कर भयभीत मत बनो.
(४)
उप ता इह गाव उप ता अजावयः.
अथो अ य क लाल उप तो गृहेषु नः.. (५)
हमारे घर म गाएं, बक रयां और भेड़ बुलाई जाएं. इस के अ त र हमारे घर म अ
का सारभूत अंश भी चाहा जाए. (५)
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सूनृताव तः सुभगा इराव तो हसामुदाः.
अतृ या अ ु या त गृहा मा मद् बभीतन.. (६)
हे घरो! तुम म यारी और स ची बात कही जाएं, तुम शोभन भा य वाले बनो. सदा तुम
म अ भरा रहे. तुम लोग क हंसी से मुख रत रहो. हम जब बाहर से आएं तो तुम हम
पराया समझ कर भयभीत मत होना. (६)
इहैव त मानु गात व ा पा ण पु यत.
ऐ या म भ े णा सह भूयांसो भवता मया.. (७)
हे घरो! तुम इसी थान पर सुखी रहो. वास करते ए मुझ गृह वामी के पीछे मत
आओ. तुम पशु आ द सभी प वाले का पोषण करो. म धन ले कर पुनः तु हारे समीप
आऊंगा. दे शांतर से वापस आते मुझे पराया समझ कर तुम भयभीत मत होना. (७)
सू -६३ दे वता—अ न
यद ने तपसा तप उपत यामहे तपः.
याः ुत य भूया मायु म तः सुमेधसः.. (१)
हे अ न दे व! तु हारे समीप स मदाधान आ द प कम के ारा जो तप कया जा
सकता है, वह तप हम करते ह. उस तप के ारा हम अ ययन कए ए वेदमं के य,
अ धक आयु वाले और उ म धारण श से संप बन. (१)
अ ने तप त यामह उप त यामहे तपः.
ुता न शृ व तो वयमायु म तः सुमेधसः.. (२)
हे अ न दे व! तु हारे समीप ही हम शरीर को सुखाने वाला तप कर. हम इस का तप
कसी सरे थान पर न कर. हम अ ययन कए गए वेदमं को सुनते ए अ धक आयु वाले
और उ म बु वाले बन. (२)
सू -६४ दे वता—जातवेद
अयम नः स प तवृ वृ णो रथीव प ीनजयत् पुरो हतः.
नाभा पृ थ ां न हतो द व ुतदध पदं कृणुतां ये पृत यवः.. (१)
यह अ न दे व दे व का पालन करने वाले तथा अ धक श संप ह. रथ म बैठा आ
जस कार सरे क प नी अथवा जा को अपने अ धकार म कर लेता है, उसी
कार जा को हम अपने वश म कर. य थल क ना भ अथात् उ रवेद म था पत तथा
अ य धक द त होते ए अ न सं ाम म हम जीतने वाले श ु को हमारे पैर के नीचे
सू -६५ दे वता—अ न
पृतना जतं सहमानम नमु थैहवामहे परमात् सध थात्.
स नः पषद त गा ण व ा ामद् दे वो ऽ त रता य नः.. (१)
सं ाम म श ु को जीतने वाले, श ु को परा जत करने वाले एवं अर ण पी
उ म थान से ज म लेने वाले अ न का आ ान हम मं के ारा करते ह. वह हमारे सभी
क का वनाश कर. द त वाले अ न हमारे सभी पाप को द ध कर. (१)
सू -६६ दे वता—जल, अ न
इदं यत् कृ णः शकु नर भ न पत पीपतत्.
आपो मा त मात् सव माद् रतात् पा वंहसः.. (१)
काले प ी अथात् कौए ने आकाश से नीचे आते ए, जो पंख से मेरे अंग पर चोट क
है, उस से होने वाले सम त पाप से अ भमं त जल मेरी र ा करे. (१)
इदं यत् कृ णः शकु नरवामृ ऋते ते मुखेन.
अ नमा त मादे नसो गाहप यः मु चतु.. (२)
हे मृ युदेवता! काले प ी अथात् कौए ने जो अपने मुख से मेरे अंग को पश कया है,
उस से होने वाले पाप से मुझे गाहप य नामक अ न बचाएं. (२)
सू -६७ दे वता—अपामाग
तीचीनफलो ह वमपामाग रो हथ.
सवान् म छपथाँ अ ध वरीयो यावया इतः.. (१)
हे अपामाग अथात् चर चटा के झाड़! तुम सामने क ओर मुख वाले फल के पम
उगे हो, इस कारण मेरे सभी दोष को मुझ से अ य धक र करो. (१)
यद् कृतं य छमलं यद् वा चे रम पापया.
वया तद् व तोमुखापामागाप मृ महे.. (२)
हमने जो कम, पाप एवं म लन आचरण कया है, हे सभी ओर शाखा वाले
अपामाग अथात् चर चटा के झाड़! तेरे ारा हम उसे र करते ह. (२)
यावदता कुन खना ब डेन य सहा सम.
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अपामाग वया वयं सव तदप मृ महे.. (३)
हम ने काले दांत वाले, बुरे नाखून वाले एवं नपुंसक पु ष के साथ भोजन कया है. हे
अपामाग अथात् चर चटा के झाड़! तेरे ारा उस से होने वाले पाप का हम नवारण करते
ह. (३)
सू -६८ दे वता— ा
य त र े य द वात आस य द वृ ेषु य द वोलपेषु.
यद वन् पशव उ मानं तद् ा णं पुनर मानुपैतु.. (१)
आकाश के मेघा छ होने पर, आंधी चलने पर, वृ क छाया म, फसल म, ामीण
एवं जंगली पशु के समीप म ने जो वेदा ययन कया है अथवा वेदपाठ सुना है, वह भी मेरे
लए फलदायक हो. (१)
सू -६९ दे वता—आ मा
पुनम व यं पुनरा मा वणं ा णं च.
पुनर नयो ध या यथा थाम क पय ता महैव.. (१)
इं के ारा दया आ वीय अथवा द ई च ु आ द इं य क श मेरे पास पुनः
आए. आ मा, धन एवं वेद का अ ययन मुझे पुनः ा त हो. य आ द कम म था पत
अ नयां इसी थान म पुनः वृ ह . (१)
सू -७२ दे वता—सुख
शं नो वातो वातु शं न तपतु सूयः.
अहा न शं भव तु नः शं रा ी त धीयतां शमुषा नो ु छतु.. (१)
बाहर चलती ई वायु हमारे लए सुख दे ती ई बहे. सब के रे क सूय हमारे लए सुख
दे ते ए तप. दन हमारे लए सुख दे ने वाले ह तथा रात भी हम सुख दान करे. उषाकाल
इस कार वक सत ह , जस से हम सुख मल सके. (१)
सू -७४ दे वता—अ न
प र वा ऽ ने पुरं वयं व ं सह य धीम ह.
धृष ण दवे दवे ह तारं भंगुरावतः.. (१)
हे अर ण मंथन से उ म अ न! तुम कम फल को पूण करने वाले एवं मेधावी हो. हम
रा स का हनन करने के लए तु ह चार ओर धारण करते ह. तुम घषक प वाले एवं
रा स का त दन वनाश करने वाले हो. (१)
सू -७५ दे वता—इं
उत् त ता ऽ व प यते य भागमृ वयम्.
य द ातं जुहोतन य ातं मम न.. (१)
ऋ वजो! उठो, अथात् अपने आसन पर बैठे मत रहो. वसंत आ द ऋतु म इं को
दे ने के लए पकाए जाने वाले ह व के भाग को दे खो. य द वह ह व पक गया है तो उसे इं के
न म अ न म हवन कर दो. य द वह नह पका है तो उसे पकाओ. (१)
ातं ह वरो व या ह जगाम सूरो अ वनो व म यम्.
प र वासते न ध भः सखायः कुलपा न ाजप त चर तम्.. (२)
सू -७६ दे वता—इं
ातं म य ऊध न ातम नौ सुशृतं म ये त तं नवीयः.
मा य दन य सवन य द नः पबे व न् पु कृ जुषाणः.. (१)
ह व गाय के थन म ध के प म पका है और थन से काढ़ा आ ध अ न पर तपा
कर पकाया जाता है. म मानता ं क यह ह व भलीभां त पक चुका है, इस लए यह ह व
स य एवं अ धक नवीन है. हे व धारी एवं ब त से कम करने वाले इं ! तुम स होते ए,
मा यं दन सवन अथात् य म सोमरस से संबं धत द ध म त सोमरस नामक ह व का पान
करो. (१)
सू -७९ दे वता—गौ
जावतीः सूयवसे श तीः शु ा अपः सु पाणे पब तीः.
मा व तेन ईशत माघशंसः प र वो य हे तवृण ु .. (१)
हे गायो! तुम संतान से यु , शोभन घास वाले दे श म घास चरती हो तथा सुख से
जल पीने यो य तालाब आ द म जल पीती हो. तु ह कोई चोर न चुरा सके. बाघ आ द
पशु भी तु ह न खा सक. वर के दे व के आयुध तु ह याग द. (१)
पद ा थ रमतयः सं हता व ना नीः.
उप मा दे वीदवे भरेत.
इमं गो मदं सदो घृतेना मा समु त.. (२)
हे गायो! तुम अपनी सहचरी गाय के खुर के च को जानो. बछड़ एवं सरी गाय
के साथ मल कर तुम अनेक नाम वाली बनो. हे द तशा लनी धेनुओ! तुम दे व के स हत
मुझ पु के इ छु क के समीप आओ तथा यहां आ कर मेरी गोशाला, घर एवं मुझ गृह वामी
को घी और ध से स चो. (२)
सू -८० दे वता—अप चत ओष ध आ द
आ सु सः सु सो असती यो अस राः.
सेहोररसतरा लवणाद् व लेद यसीः.. (१)
अ य धक पीब टपकाने वाली और बाधा प ंचाने वाले रोग के ल ण से भी अ धक
क प ंचाने वाली गंडमालाएं सभी ओर से बहने वाली बन. ता पय यह है क मं तथा
ओष ध के योग से गंडमालाएं समा त हो जाएं. गंडमालाएं ई से भी अ धक नीरस तथा
नमक से भी अ धक भीगने वाली बन. (१)
या ै ा अप चतो ऽ थो या उपप याः.
सू -८१ दे वता—इं
व वै ते जाया य जानं यतो जाया य जायसे.
कथं ह त वं हनो य य कृ मो ह वगृहे.. (१)
हे य रोग! हम तेरी उ प के उस थान को जानते ह, जहां से तू ज म लेता है. तेरी
उप के थान को जानते ए हम यजमान के घर म इं आ द दे व के लए तुझे दे ते ह. (१)
धृषत् पब कलशे सोम म वृ हा शूर समरे वसूनाम्.
मा य दने सवन आ वृष व र य ानो र यम मासु धे ह.. (२)
हे श ु को द लत करने वाले इं ! ोण कलश म थत सोमरस का पान करो. हे शूर
एवं वृ का हनन करने वाले इं ! तुम धन संबंधी यु के न म अथात् हम धन ा त
कराने के लए सोमपान करो. तुम हमारे मा यं दन य म भरपेट सोमरस पयो. तुम धन के
अ ध ान हो, इसी लए हम धन दान करो. (२)
सू -८२ दे वता—म त्
सांतपना इदं ह वम त त जुजु न. अ माकोती रशादसः.. (१)
हे संतपन अथात् सूय से संबं धत अथवा संताप के समय अथात् दोपहर म य करने
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यो य म तो! यह ह व तु हारे न म बनाया गया है, इसी लए इसे सेवन करो. श ु को
बाधा प ंचाने वाले तुम हमारी र ा के लए ह व का सेवन करो. (१)
यो नो मत म तो णायु तर ा न वसवो जघांस त.
हः पाशान् त मु चतां स त प ेन तपसा ह तना तम्.. (२)
हे धन दे ने वाले म तो! जो मनु य हम से छप कर हमारे मन को ु ध करता है,
वह श ु पा पय से ोह करने वाले व ण के पाश को धारण करे. हे म तो! हम मारने क
इ छा करने वाले मनु य को अपने आयुध से मार डालो. (२)
संव सरीणा म तः वका उ याः सगणा मानुषासः.
ते अ मत् पाशान् मु च वेनसः सांतपना म सरा माद य णवः.. (३)
तवष उ प होने वाले, शोभन मं ारा तुत, व तृत आकाश के नवासी,
अपनेअपने संघ से यु , वषा के ारा सब के हतकारी, श ु को संताप दे ने वाले, स
होते ए और सब को संतु करने वाले म त् पाप के कारण होने वाले दोष को हम से र
रख. (३)
सू -८३ दे वता—अ न
व ते मु चा म रशनां व यो ं व नयोजनम्. इहैव वमज ए य ने..
(१)
हे अ न दे व! म तु हारे ारा न मत एवं रोगी के गल को बांधने वाली र सी को
खोलता ं. म रोगी क कमर को बांधने वाली तथा रोगी के पैर को बांधने वाली र सय को
खोलता ं. हे अ न! इसी ण शरीर म तुम सदै व वृ ा त करो. (१)
अ मै ा ण धारय तम ने युन म वा णा दै ेन.
द द १ म यं वणेह भ ं ेमं वोचो ह वदा दे वतासु.. (२)
हे अ न दे व! इस यजमान के लए बल धारण करने वाले तुम को म दे व संबंधी मं के
ारा ह व वहन करने के लए यु करता ं. इस समय हम धन एवं पु आ द क ा त का
सुख दान करो. ह व दे ने वाले इस यजमान के वषय म अ न, इं आ द दे व को बताओ.
(२)
सू -८४ दे वता—अमाव या
यत् ते दे वा अकृ वन् भागधेयममावा ये संवस तो म ह वा.
तेना नो य ं पपृ ह व वारे र य नो धे ह सुभगे सुवीरम्.. (१)
सू -८६ दे वता—सा व ी
पूवापरं चरतो माययैतौ शशू ड तौ प र यातो ऽ णवम्.
व ा यो भुवना वच ऋतूँर यो वदध जायसे नवः.. (१)
सूय और चं आगेपीछे चलते ए आकाश म साथसाथ गमन करते ह. ये शशु के प
म सागर के पास जाते ह. इन म से एक आ द य अथात् सूय सम त ा णय को दे खता है
तथा सरा चं मा ऋतु , मास एवं प का नमाण करता आ नवीन होता रहता है. (१)
नवोनवो भव स जायमानो ऽ ां केतु षसामे य म्.
भागं दे वे यो व दधा यायन् च म तरसे द घमायुः.. (२)
हे चं मा! तू शु ल प क तपदा आ द त थय म उ प होता आ नवीन बनता है.
झंडे के समान दन का प रचय कराता आ तू रा य के आगेआगे चलता है. हे चं मा! इस
कार ास और वृ के ारा पखवाड़े के अंत को ा त आ तू ह व का वभाग करता है.
इस कार तू द घ आयु धारण करता है. (२)
सोम यांशो युधां पतेऽनूनो नाम वा अ स.
अनूनं दश मा कृ ध जया च धनेन च.. (३)
हे सोम अथात् चं मा के अंश प पु अथात् बुध एवं यो ा के पालक! तुम सवदा
तेज वी हो, इस लए हे बुध! ह व के ारा तु हारी पूजा करने वाले मुझ को पु आ द
जा एवं धन से संप बनाओ. (३)
दश ऽ स दशतो ऽ स सम ो ऽ स सम तः.
सम ः सम तो भूयासं गो भर ैः जया पशु भगृहैधनेन.. (४)
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हे चं ! तुम अमाव या के साथ ही सूय के भी दे खने यो य हो. इस के बाद तृतीया आ द
त थय म भी तुम कला प से दखाई दे ते हो. इस के प ात अ मी आ द त थय म इस से
भी अ धक प दखाई दे ते हो. पौणमासी त थ म तुम संपूण कला से यु हो जाते हो.
इसी कार म भी गाय आ द से समृ और संपूण बनूं. (४)
यो ३ मान् े यं वयं म त य वं ाणेना याय व.
आ वयं या सषीम ह गो भर ैः जया पशु भगृहैधनेन.. (५)
हे सोम! जो श ु हम से े ष करता है अथवा जस श ु से हम े ष करते ह, तुम उस
श ु के ाण का अपहरण करो. हम गाय , अ , जा , पशु , धन और घर से यु
ह . (५)
यं दे वा अंशुमा यायय त यम तम ता भ य त.
तेना मा न ो व णो बृह प तरा यायय तु भुवन य गोपाः.. (६)
जस सोम को दे वगण शु ल प म त दन एकएक कला दे कर बढ़ाते ह तथा जस
सोम को संपूण प म सभी दन म ीणता र हत पतर आ द पीते ह. उस सोम के साथ
इं , व ण, बृह प त एवं सभी ा णय के र क दे व ह व आ द से स करने वाले हम को
बढ़ाएं. (६)
सू -८७ दे वता—अ न
अ यचत सु ु त ग मा जम मासु भ ा वणा न ध .
इमं य ं नयत दे वता नो घृत य धारा मधुमत् पव ताम्.. (१)
गाय के समूह आ द क से जन क शोभन तु त क जाती है, उन अ न क
अचना करो. वह हम भ धन दान कर तथा हमारे इस य म अ य दे व को लाएं. इस लए
घृत क मधुवण धाराएं दे व को ा त ह . (१)
म य े अ नं गृ ा म सह ेण वचसा बलेन.
म य जां म यायुदधा म वाहा म य नम्.. (२)
म सब से पहले अर ण मंथन से उ प अ न को धारण करता ं. म अ न को य
संबंधी तेज, बल और साम य के साथ ह व दे ता ं. (२)
इहैवा ने अ ध धारया र य मा वा न न् पूव च ा नका रणः.
ेणा ने सुयमम तु तु यमुपस ा वधतां ते अ न ् टतः.. (३)
हे अ न! तु हारी प रचया करने वाले हम ह. हम ही धन दो. हम से पहले जो लोग
तु हारे त आक षत थे और हमारे अपकारी थे, वे तु ह वाधीन न बनाएं. हे अ न! तु हारा
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व प बल के साथ थर हो, तु हारा प रचारक यह यजमान अपनी कामनाएं ा त करे
तथा कसी से भी परा जत न हो. (३)
अ व न षसाम म यद वहा न थमो जातवेदाः.
अनु सूय उषसो अनु र मीननु ावापृ थवी आ ववेश.. (४)
अ न दे व ातःकाल के पूव से ही का शत होते ह. महान जातवेद अ न इस के प ात
दनभर का शत रहते ह. ये सूया मक अ न ातःकाल के प ात ापक करण के ारा
का शत होते ह. अ न का यह काश धरती और आकाश दोन म वेश कर के का शत
करता है. (४)
य न षसाम म यत् यहा न थमो जातवेदाः.
त सूय य पु धा च र मीन् त ावापृ थवी आ ततान.. (५)
अ न दे व ातःकाल से पूव ही का शत होते ह. महान जातवेद अ न इस के प ात
दन भर का शत रहते ह. अ न अनेक प से वृ होने के कारण सूय क करण के प
म वयं ही का शत होते ह. इस कार अ न दे व धरती और आकाश म सभी जगह
का शत होते ह. (५)
घृतं ते अ ने द े सध थे घृतेन वां मनुर ा स म धे.
घृतं ते दे वीन य १ आ वह तु घृतं तु यं तां गावो अ ने.. (६)
हे अ न! तुम से संबं धत ह व दे व के साथ उन के नवास थान अथात् वग म है. इस
समय हम तु ह घृत के ारा भलीभां त तृ त करते ह. हे अ न! तु ह द जल ा त हो तथा
गाएं तु हारे लए घृत दान कर. (६)
सू -८८ दे वता—व ण
अ सु ते राजन् व ण गृहो हर ययो मथः.
ततो धृत तो राजा सवा धामा न मु चतु.. (१)
हे सम त दे व के वामी व ण! जल के म य तु हारा वण न मत नवास थान है,
जहां सरे नह प ंच सकते. इस कारण स चे कम वाले राजा व ण हमारे शरीर के सभी
थान को याग द अथात् हम जलोदर आ द रोग न हो. (१)
धा नोधा नो राज तो व ण मु च नः.
यदापो अ या इ त व णे त य चम ततो व ण मु च नः.. (२)
हे राजा व ण! इन सभी रोग थान से हम याग दो तथा उन से संबंधी पाप से हम
बचाओ. हे जल के वामी एवं हसा र हत व ण! हम ने स दे व का नाम न ले कर जो
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पाप कया है, उस से भी हम बचाओ. (२)
उ मं व ण पाशम मदवाधमं व म यमं थाय.
अधा वयमा द य ते तवानागसो अ दतये याम.. (३)
हे व ण! हमारे शरीर के ऊपरी भाग म थत अपने पाश को श थल करो तथा हमारे
शरीर के म य भाग म थत अपने पाश को भी श थल करो. इस के प ात हे अ द त पु
व ण! सभी पाप से छू ट कर हम तु हारे कम म पापर हत होने के लए स म लत ह . (३)
ा मत् पाशान् व ण मु च सवान् य उ मा अधमा वा णा ये.
व यं रतं न वा मदथ ग छे म सुकृत य लोकम्.. (४)
हे व ण! तु हारे जो उ म और अधम पाप ह, उन सब पाप से हम छु ड़ाओ. ः व म
होने वाले पाप को भी हम से र करो. पापहीन हो कर हम पु य के लोक म प ंच. (४)
सू -८९ दे वता—अ न, इं
अनाधृ यो जातवेदा अम य वराड ने भृद ् द दहीह.
व ा अमीवाः मु चन् मानुषी भः शवा भर प र पा ह नो गमय्.. (१)
हे अ न! कोई तु ह त नक भी परा जत नह कर सकता. हे जातवेद! अमर, वराट्
और बल को धारण करने वाले व ण हमारे इस य थल म अ तशय द त बन तथा
सभी रोग का वनाश कर के इस समय सभी मनु य संबंधी क याण से हमारे घर क र ा
कर. (१)
इ म भ वाममोजो ऽ जायथा वृषभ चषणीनाम्.
अपानुदो जनम म ाय तमु ं दे वे यो अकृणो लोकम्.. (२)
हे इं ! तुम क से ाण करने वाले बल को धारण कर के उ प ए हो. हे अ भमत
फल दे ने वाले! जो हम मनु य क उ प के प ात श ु के समान आचरण करता है, उस
को हम से र कर के तुम ने दे व के लए वग नाम का व तीण लोक बनाया है. (२)
मृगो न भीमः कुचरो ग र ाः परावत आ जग यात् पर याः.
सृकं संशाय प व म त मं व श ून् ता ढ व मृधो नुद व.. (३)
इं बुरे चरण वाले एवं पवत नवासी सह के समान भयानक ह. वह अ य धक रवत
आकाश से आएं. आने के प ात वे अपने ग तशील व को भलीभां त तेज कर के हमारे
श ु को मार तथा सं ाम के लए उ त अ य श ु का भी वनाश कर. (३)
सू -९० दे वता—ग ड़
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यमू षु वा जनं दे वजूतं सहोवानं त तारं रथानाम्.
अ र ने म पृतना जमाशुं व तये ता य महा वेम.. (१)
हम य कम क पू त के न म ग ड़ का आ ान करते ह. वह बलशाली, दे व के ारा
सोम लाने हेतु े रत तथा सब को परा जत करने वाले ह. उन के रथ पर कोई आ मण नह
कर सकता. वह सं ाम म श ु को न करने वाले ह. ग ड़ श ु सेना के वजेता एवं
शी गामी है. (१)
सू -९१ दे वता—इं
ातार म म वतार म ं हवेहवे सुहवं शूर म म्.
वे नु श ं पु त म ं व त न इ ो मघवान् कृणोतु.. (१)
हम ाण एवं र ा करने वाले इं का आ ान करते ह. हम अपने आ ान के ारा शूर
इं को बुलाते ह. हम श शाली एवं पु त इं को बुलाते ह. श शाली इं हम वा य
दान कर. (१)
सू -९२ दे वता—इं
यो अ नौ ो यो अ सव १ तय ओषधीव ध आ ववेश.
य इमा व ा भुवना न चा लृपे त मै ाय नमो अ व नये.. (१)
जो दे व य करने यो य होने के कारण अ न म वेश कर गए ह तथा ज ह ने
व ण के प म जल म वेश कया है, ज ह ने वृ , लता और जड़ीबू टय म थान
ा त कया है, इन सभी ा णय का नमाण करने म समथ ए ह, उन अ न प
को नम कार है. (१)
सू -९४ दे वता—अ न
सू -९८ दे वता—इं
इ े ण म युना वयम भ याम पृत यतः. न तो वृ ा य त.. (१)
सू -९९ दे वता—सोम
ु ं ुवेण ह वषा ऽ व सोमं नयाम स. यथा न इ ः केवली वशः
व
संमनस करत्.. (१)
हम सोमरस को रथ म आसीन कर के ह व के साथ लाते ह, जस से इं हमारी संतान
को असाधारण एवं पर पर सौमन य वाली बनाएं. (१)
सू -१०१ दे वता—प ी
असदन् गावः सदने ऽ प तद् वस त वयः.
आ थाने पवता अ थुः था न वृ काव त पम्.. (१)
गाय जस कार गोशाला म बैठती है, प ी जस कार अपने घ सले म जाते ह और
पवत जस कार अपने थान पर थत रहते ह, म अपने श ु के घर म उसी कार भे ड़य
को था पत करता ं. (१)
सू -१०२ दे वता—इं , अ न
यद वा य त य े अ मन् होत क व वृणीमहीह.
ुवमयो ुवमुता श व व ान् य मुप या ह सोमम्.. (१)
सू -१०३ दे वता—इं
सं ब हर ं ह वषा घृतेन स म े ण वसुना सं म ः.
सं दे वै व दे वे भर म ं ग छतु ह वः वाहा.. (१)
ु आ द पा पुरोडाश और आ य से पूण हो कर इं के साथ, वसु के साथ
क
म द्गण के साथ तथा व े दे व के साथ संप ए. इस कार का पा इं को ा त हो
तथा यह ह व शोभन आ त वाला हो. (१)
सू -१०४ दे वता—वेद
प र तृणी ह प र धे ह वे द मा जा म मोषीरमुया शयानाम्.
होतृषदनं ह रतं हर ययं न का एते यजमान य लोके.. (१)
हे दभ घास के फूल! तुम य वेद के चार ओर व तीण हो कर उसे ढक लो. तुम इस
वेद पर सोते ए यजमान के सहयो गय का एवं संतान का वनाश मत करो. हे होता के
बैठने के थान ह रत वण वाले एवं वग के समान रमणीय दभ! तुम य वेद पर फैल
जाओ. ये फैले ए दभ यजमान के लोक म सोने के अलंकार ह . (१)
सू -१०८ दे वता—आ मा
को अ या नो हो ऽ व व या उ े य त यो व य इ छन्.
को य कामः क उ पू तकामः को दे वेषु वनुते द घमायुः.. (१)
हम नवास थान दे ने का इ छु क कौन य राजा इस समय बाधा प ंचाने वाली एवं
अ हतका रणी पशाची से हमारा उ ार करेगा? हमारे ारा कए जाते ए य क कामना
करता आ एवं हम धन क आपू त क इ छा करता आ कौन सा दे व दे व के म य
चरकाल तक होने वाले जीवन को ा त करता है. (१)
सू -१०९ दे वता—आ मा
कः पृ धेनुं व णेन द मथवणे सु घां न यव साम्.
बृह प तना स यं जुषाणो यथावशं त वः क पया त.. (१)
लाल आ द रंग वाली, सरलता से ही जाने वाली, सवदा बछड़े दे ने वाली एवं अथवा
ऋ ष के लए व ण ारा द गई गाय को बृह प त दे व के साथ म ता का भाव रखता आ
कौन सा दे व इ छानुसार क पत कर सकता है. आशय यह है क केवल बृह प त दे व ही
ऐसा कर सकते ह. (१)
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सू -११० दे वता— चारी
अप ामन् पौ षेयाद् वृणानो दै ं वचः.
णीतीर यावत व व े भः स ख भः सह.. (१)
हे चारी! तू पु ष के हतकारी लौ कक कम याग कर दे व संबंधी वा य अथात् वेद
मं के वा याय को वीकार करता आ संयमी बन तथा सभी चा रय के साथ नवास
कर. (१)
सू -१११ दे वता—जातवेद
यद मृ त चकृम क चद न उपा रम चरणे जातवेदः.
ततः पा ह वं नः चेतः शुभे स ख यो अमृत वम तु नः.. (१)
हे अ न दे व! हम ने तु हारे मरण से र हत जो कम कया है तथा इस य के अनु ान
म जो कमी रह गई है, हे उ म कम जानने वाले अ न दे व! तुम उस पाप से हमारी र ा करो.
इस के प ात म अपने य य के शोभन य कम म संल न र ं. (१)
सू -११२ दे वता—सूय
अव दव तारय त स त सूय य र मयः.
आपः समु या धारा ता ते श यम स सन्.. (१)
क यप नामक धान सूय से संबं धत सात ापक करण वाले आरो य आ द सूय ह.
वे आकाश म उ प धारा पी जल को आकाश से नीचे उतारते ह. हे रोगी! वे जल श य
के समान तेरे य मा रोग को न कर द. (१)
सू -११३ दे वता—अ न
यो न तायद् द स त यो न आ वः वो व ानरणो वा नो अ ने.
ती ये वरणी द वती तान् मैषाम ने वा तु भू मो अप यम्.. (१)
हे अ न! जो श ु हम छ प से मारना चाहता है, जो श ु हम काश प म
मारना चाहता है तथा सरे को बाधा प ंचाने के उपाय जानता आ आ मीय बंधु हम मारना
चाहता है – इन तीन को दांत वाली तथा क का रणी रा सी ा त हो. अथात् वह अपने
दांत से खाने के लए उन के समीप आए. हे अ न! उ तीन का घर एवं संतान न हो
जाए. (१)
यो नः सु तान्जा तो वा भदासात् त तो वा चरतो जातवेदः.
सू -११४ दे वता—अ न
इदमु ाय ब वे नमो यो अ ेषु तनूवशी.
घृतेन क ल श ा म स नो मृडाती शे.. (१)
अ धक बलशाली एवं मटमैले रंग वाले उस दे व को नम कार है जो जुए म वजय ा त
कराता है. वह जुए म पास से इ छानुसार वजय दलाने वाला है. मं यु घृत के ारा म
क ल अथात पराजय दे ने वाले पांच अंक को न करता ं. नम कार से स जुए का दे व
इस कार के जय ल ण फल के ारा हम सुखी कर. (१)
घृतम सरा यो वह वम ने पांसून े यः सकता उप .
यथाभागं ह दा त जुषाणा मद त दे वा उभया न ह ा.. (२)
हे अ न! तुम हमारी वजय के लए अंत र म घूमने वाली अ सरा को आ य
अथात् घृत प ंचाओ तथा हमारे वरोधी जुआ रय के लए सू म धूल के कण, शकर और
जल प ंचाओ, जस से वे परा जत ह . अपनेअपने भाग के अनुसार ह व ा त करते ए दे व
दो कार के ह व से अथात् सोम और घृत से तृ त होते ह. (२)
अ सरसः सधमादं मद त ह वधानम तरा सूय च.
ता मे ह तौ सं सृज तु घृतेन सप नं मे कतवं र धय तु.. (३)
जुए क दे वयां अ सराएं भूलोक और अंत र लोक म एक साथ स होती ह. वे
अ सराएं मेरे दोन हाथ को जय ल ण फल से संयु कर तथा मेरे वरोधी जुआरी को मेरे
वश म कर. (३)
आ दनवं तद ने घृतेना माँ अ भ र.
वृ मवाश या ज ह यो अ मान् तद त.. (४)
म अपने वरोधी जुआरी को जीतने के लए पास के ारा जुआ खेलता ं. हे जुए से
संबं धत दे वयो! मुझे सारपूण वजय से यु कराओ. जो जुआरी मुझे जीतने के लए मेरे
वरोध म जुआ खेलता है, उस का उसी कार वनाश करो, जस कार बजली सूखे वृ
का वनाश कर दे ती है. (४)
सू -११५ दे वता—इं , अ न
अनइ दाशुषे हतो वृ ा य त. उभा ह वृ ह तमा.. (१)
हे अ न और इं ! तुम ह व दे ने वाले यजमान के पाप को पूण प से न करो,
य क तुम दोन अथात् अ न और इं ने वृ का वध कया है. (१)
या यामजय व १ र एव यावात थतुभुवना न व ा.
चषणी वृषणा व बा अ न म ं वृ हणा वे ऽ हम्.. (२)
पूवज ने जन अ न और इं क सहायता से वग को अपने अधीन कया है, जन
अ न और इं ने सारे लोक को अपनी म हमा से ा त कर लया है तथा जो अपने
उपासक के कम के फल को वशेष प से दे खते ह, उ ह मनचाहा फल दे ने वाले, हाथ म
व धारण करने वाले तथा वृ हंता अ न और इं को म वजय पाने के लए बुलाता ं.
(२)
उप वा दे वो अ भी चमसेन बृह प तः.
इ गी भन आ वश यजमानाय सु वते.. (३)
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हे इं ! तु ह बृह प त दे व ने सोमपान के ारा अ य जाने से रोक दया है. हे इं ! तुम
सोम नचोड़ने वाले यजमान को धन आ द से पु करने के लए हम तोता क तु तयां
सुन कर आओ. (३)
सू -११६ दे वता—वृषभ
इ य कु र स सोमधान आ मा दे वानामुत मानुषाणाम्.
इह जा जनय या त आसु या अ य ेह ता ते रम ताम्.. (१)
हे छोड़े गए बैल! तुम सोम के आधार और इं के उदर हो. तुम दे व और मनु य के
शरीर हो. तुम इस लोक म संतान उ प करो. सामने उप थत इस गांव म अथवा तु हारे
न म जो गाएं अ य व मान ह, उन म तु हारी जाएं सुख से वहार कर. (१)
सू -११७ दे वता—जल
शु भनी ावापृ थवी अ तसु ने म ह ते.
आपः स त सु व ु ुदवी ता नो मु च वंहसः.. (१)
शोभाका रणी, ावा पृ वी के म य जो अ ानावृत जन चेतन और अचेत क म यवत
दशा म वतमान ह, वे सात कार के द जल बरसाते ह. ऐसे ावा पृ वी हम पाप कम से
बचाएं. (१)
मु च तु मा शप या ३ दथो व या त.
अथो यम य पड् वीशाद् व माद् दे व क बषात्.. (२)
जल अथवा ओष धयां मुझे ा ण के आ ोश से उ प पाप से तथा अस य भाषण
के कारण लगने वाले पाप से छु ड़ाएं. वे यम के पाश से तथा दे व संबंधी सभी पाप से मुझे
बचाएं. (२)
सू -११८ दे वता—तृ का
तृ के तृ व दन उदमूं छ ध तृ के. यथा कृत ासो ऽ मु मै
शे यावते.. (१)
हे तृ का अथात् दाह उ प करने वाली वाणाप य नामक जड़ीबूट तथा हे दाह
उ प करने वाली तृ वंदना नामक जड़ीबूट ! इस ी को भो ा पु ष से बलपूवक र
करो. हे कोक उ प करने वाली जड़ीबूट तृ का! जनन एवं संभोग म स म इस पु ष के
लए तू े ष करने वाली बन. (१)
सू -१२१ दे वता—चं मा
नमो राय यवनाय नोदनाय धृ णवे.
नमः शीताय पूवकामकृ वने.. (१)
शरीर का पसीना गराने वाले, ेरक एवं सहन करने वाले, उ णक् वर से संबं धत दे व
को नम कार है. अ भलाषा का वनाश करने वाले शीत वर से संबं धत दे व को नम कार
है. (१)
यो अ ये ु भय ुर येतीमं म डू कम ये व तः.. (२)
जो वर सरे अथवा चौथे दन आता है, वह नयमहीन वर मेढक के पास चला जाए.
(२)
सू -१२२ दे वता—इं
आ म ै र ह र भया ह मयूररोम भः.
मा वा के चद् व यमन् व न पा शनो ऽ त ध वेव तां इ ह.. (१)
हे इं ! तु त करने वाले यो य एवं मोर के समान रोम वाले घोड़ क सहायता से यहां
आओ. हे इं ! कोई भी तोता अपनी तु तय के ारा तु ह उस कार न रोके, जस कार
प य को पकड़ने वाला चड़ीमार प य को रोकता है. जस कार यासा या ी जल वाले
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थान पर जाता है, उसी कार सरे तु तकता का अ त मण कर के तुम शी हमारे
पास आओ. (१)
सू -१२३ दे वता—सोम, व ण
ममा ण ते वमणा छादया म सोम वा राजा ऽ मृतेनानु व ताम्.
उरोवरीयो व ण ते कृणोतु जय तं वा ऽ नु दे वा मद तु.. (१)
हे वजय के इ छु क राजा! म तेरे मम थान को कवच से ढकता ं. सोम राजा तुझे
अपने अ वनाशी तेज से आ छा दत कर. व ण दे व तेरे लए अ धक सुख द. इं आ द सभी
दे व श ु सेना को भयभीत करते ए तुझे ह षत कर. (१)
सू -२ दे वता—आयु
सू -३ दे वता—अ न
र ोहणं वा जनमा जघ म म ं थ मुप या म शम.
शशानो अ नः तु भः स म ः स नो दवा स रषः पातु न म्.. (१)
म रा स का हनन करने वाले एवं बल के साधन अ से यु अ न के लए हवन
करता ं. य के ारा म म बने ए व तार को ा त अ न क शरण जाता ं. ती ण
वाला वाले वे अ न दे व आ य आ द के ारा व लत ह . इस कार के अ न दे व दन
म हसा करने वाले से हमारी र ा कर. (१)
अयोदं ो अ चषा यातुधानानुप पृश जातवेदः स म ः.
आ ज या मूरदे वान् रभ व ादो वृ ् वा प ध वासन्.. (२)
हे ज म लेने वाल के ाता अ न दे व! हमारे ारा कए ए घृत आ द से भलीभां त
व लत हो कर तुम लोहे के दांत के समान अपनी वाला के ारा रा स को जला दो.
जा टोने के ारा जो सर क ह या का खेल खेलते ह, उ ह तुम अपनी जीभ से पश करो
तथा मांस भ क रा स पशाच आ द का वनाश कर के अपना मुख बंद कर लो. (२)
उभोभया व ुप धे ह दं ौ ह ः शशानो ऽ वरं परं च.
उता त र े प र या ने ज भैः सं धे भ यातुधानान्.. (३)
यह र ा करने यो य है और यह मारने यो य है—इन दो कार के ान वाले हे अ न
दे व! तुम हसक एवं तीखी वाला वाले हो. तुम हमारे श ु एवं हमारे ारा े ष कए गए
पु ष को अपनी दोन दाढ़ के बीच म रख लो. इस के प ात तुम आकाश म वचरण करो.
हे अ न दे व! मुझे बाधा प ंचाने के न म घूमते ए रा स को दांत से चबा डालो. (३)
अ ने वचं यातुधान य भ ध ह ा ऽ श नहरसा ह वेनम्.
पवा ण जातवेदः शृणी ह ात् व णु व चनो वेनम्.. (४)
हे अ न दे व! तुम रा स क वचा का छे दन करो. तु हारा हसक व अपने ताप से
इन रा स क ह या करे. हे जातवेद अ न! रा स के जोड़ को अलगअलग कर दो. इस के
प ात भ क भे ड़या मांस क इ छा करता आ इ ह ख च कर ले जाए. (४)
य ेदान प य स जातवेद त तम न उत वा चर तम्.
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उता त र े पत तं यातुधानं तम ता व य शवा शशानः.. (५)
हे जातवेद अ न दे व! तुम कह बैठे ए और कह चलते फरते ए रा स को दे खते
हो. वे इस दे श म हमारे त उप व करते ह. आकाश म भी जाते ए उस रा स को ख च
लेने वाले तुम ती ण हो कर अपनी वाला से मारो. (५)
य ै रषूः संनममानो अ ने वाचा श याँ अश न भ दहानः.
ता भ व य दये यातुधानान् तीचो बा न् त भङ् येषाम्.. (६)
हे अ न! तुम हमारे य के ारा अपने बाण को सीधा करते ए एवं हमारी तु तय
के ारा उन के फल को तेज करते ए उन बाण को रा स के दय म चुभा दो. इस के
प ात हमारे वध के लए उठ रा स क भुजा को भ न कर दो. (६)
उतार धा पृणु ह जातवेद उतारेभाणाँ ऋ भयातुधानान्.
अ ने पूव न ज ह शोशुचान आमादः वङ् का तमद वेनीः.. (७)
हे जातवेद अ न दे व! हम तु हारी तु त करते ह. तुम हमारा पालन करो तथा ह ला
करने वाले रा स का अपने आयुध के ारा वध करो. तुम श ु को उस के आ मण के पूव
ही मार डालो. उस मारे ए का भ ण क चा मांस खाने वाले प ी कर. (७)
इह ू ह यतमः सो अ ने यातुधानो य इदं कृणो त.
तमा रभ व स मधा य व नृच स ुषे र धयैनम्.. (८)
हे अ न दे व! इस शां त कम म जो रा स हमारे शरीर को पीड़ा दे ने वाला काम करता
है, उन से कह दो क वह तु हारे ारा हार करने यो य है. हे अ धक युवा अ न दे व, उस
पापी को अपनी जलाने वाली वाला से पश करो. हे अ न दे व! तुम पु या मा और पा पय
को सा ी प हो कर दे खते हो. तुम इस पापी को अपनी के ारा वश म कर लो. (८)
ती णेना ने च ुषा र य ं ा चं वसु यः णय चेतः.
ह ं र ां य भ शोशुचानं मा वा दभन् यातुधाना नृच ः.. (९)
हे अ न दे व! अपने भयंकर एवं उ तेज के ारा हमारे य क र ा करो. हे दयालु
मन वाले अ न दे व! हमारे इस य को दे व तक प ंचाओ और य क र ा करते ए तुम
रा स को मारो. वे तु ह अपने वश म न कर सक. (९)
नृच ा र ः प र प य व ु त य ी ण त शृणी ा.
त या ने पृ ीहरसा शृणी ह ेधा मूलं यातुधान य वृ .. (१०)
हे अ न दे व! मनु य का जो दं ड एवं अनु ह काय है, उस के ा तुम ही हो. जो
रा स जा को पीड़ा प ंचाते है, तुम उन के ऊपर से तीन अंग अथात् दो हाथ और तीसरे
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शीश को काट दो. तुम अपने तेज से उन रा स क पस लय तथा पैर के तीन भाग को भी
काट दो. (१०)
यातुधानः स त त ए वृतं यो अ ने अनृतेन ह त.
तम चषा फूजयन्जातवेदः सम मेनं गृणते न युङ् ध.. (११)
हे अ न दे व! रा स तु हारी वाला को तीन बार ा त कर. अथात् अ न उ ह तीन
बार ातः, दोपहर और शाम को जलाएं. जो मेरे स य य को छल से न करता है, उसे
पकड़ कर मेरे सामने ही अपनी वाला से न कर दो. (११)
यद ने अ मथुना शपातो यद् वाच तृ ं जनय त रेभाः.
म योमनसः शर ा ३ जायते या तया व य दये यातुधानान्.. (१२)
हे अ न दे व! जस रा स के कारण ी और पु ष आ ोश से भरे ए ह तथा य के
ोता कटु वाणी से मं का उ चारण कर रहे ह, उस रा स पर अपने वाला यु मन का
हार करो. (१२)
परा शृणी ह तपसा यातुधानान् परा ने र ो हरसा शृणी ह.
परा चषा मूरदे वान्छृ णी ह परासुतृपः शोशुचतः शृणी ह.. (१३)
हे अ न दे व! अपने तेज से रा स का वनाश करो तथा अपने ाणनाशक तेज से उ ह
मार डालो. ह या कम के ारा पीड़ा करने वाले उन रा स को अपनी वाला से जला दो.
जो सरे के ाण से अपनेआप को तृ त करते ह, ऐसे रा स को तुम अपनी वाला से जला
दो. (१३)
परा दे वा वृ जनं शृण तु यगेनं शपथा य तु सृ ाः.
वाचा तेनं शरव ऋ छ तु ममन् व यैतु स त यातुधानः.. (१४)
आज दे वगण रा स एवं पाप दे वता को ऐसा मार क वे लौट कर न आएं. रा स
अथवा पाप को संतु करने वाले जो लोग हम शाप दे ते ह वह उ ह क ओर चला जाए.
अस य वचन के ारा जो हार करता है, दे व के बाण उस के मम थल म लग. वह रा स
संसार को ा त करने वाले अ न दे व क वाला म गरे. (१४)
यः पौ षेयेण वषा समङ् े यो अ ेन पशुना यातुधानः.
यो अ याया भर त ीरम ने तेषां शीषा ण हरसा प वृ .. (१५)
जो रा स पु ष के मांस से अपना पोषण करता है तथा घोड़े और बकरी आ द के
मांस से पु होता है, हे अ न दे व! जो रा स गाय का ध चुराता है. उन सब के सर को
अपनी वाला से काट दो. (१५)
सू -४ दे वता—मं म बताए गए इं
आद
इ ासोमा तपतं र उ जतं यपयतं वृषणा तमोवृधः.
परा शृणीतम चतो यो षतं हतं नुदेथां न शशीतम णः.. (१)
हे इं और सोम! रा स को संत त करो तथा मार डालो. हे अ भलाषाएं पूण करने
वालो! अंधकार म बढ़ने वाले ानहीन रा स को न न ग त दान करो तथा अ य धक
जलाओ. मनु य का भ ण करने वाले रा स को मारो तथा मारे ए रा स को हम से र
ले जाओ. इस कार उन क सं या कम करो. (१)
इ ासोमा समघशंसम य १ घं तपुयय तु च र नमाँ इव.
षे ादे घोरच से े षो ध मनवायं कमी दने.. (२)
हे इं और सोम! अनथ बोलने वाले एवं पापी रा स को परा जत करो. वह रा स
संताप को ा त हो तथा अ न म डाले गए अ के समान जल जाए. तुम दोन ा ण से
े ष करने वाले मांसाहारी एवं अब कसे, अब कसे खाऊं कहते ए रा स के पीछे े ष और
वरोध धारण करो. (२)
इ ासोमा कृतो व े अ तरनार भणे तम स व यतम्.
यतो नैषां पुनरेक नोदयत् तद् वाम तु सहसे म युम छवः.. (३)
हे इं और सोम! तुम कम करने वाले रा स को ढकने वाले तथा बना सहारे वाले
अंधकार म धकेलो, जस से अंधकार म पड़े ए रा स म से एक भी बाहर न आ सके. तुम
दोन का यह बल रा स को हराने के लए ोध यु हो. (३)
इ ासोमा वतयतं दवो वधं सं पृ थ ा अघशंसाय तहणम्.
उत् त तं वय १ पवते यो येन र ो वावृधानं नजूवथः.. (४)
हे इं एवं सोम! अंत र से वध का साधन आयुध एक बार ही चलाओ. पाप क बात
करने वाले रा स के वध के लए अपना आयुध पृ वी से भी एक बार ही चलाओ. उन के
वध के लए अपने हसक व को तेज करो तथा श द करते ए जस आयुध व से तुम ने
मेघ से जल ा त कया है, उस से रा स का वध करो. (४)
इ ासोमा वतयतं दव पय नत ते भयुवम मह म भः.
तपुवधे भरजरे भर णो न पशाने व यतं य तु न वरम्.. (५)
सू -५ दे वता—मं म बताए गए
अयं तसरो म णव रो वीराय ब यते.
वीयवा सप नहा शूरवीरः प रपाणः सुम लः.. (१)
तलक वृ से न मत यह म ण कृ या रा सी को उसी के पास लौटा दे ती है, जो उसे
कसी पर जा टोने के प म भेजता है. यह वीरकम करने वाले श ु को भगाने म समथ
है. यह म ण अ तशय श शा लनी, श ु घातक एवं यजमान क र ा करने वाले पुरो हत
का मंगल करने वाली है. (१)
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अयं म णः सप नहा सुवीरः सह वान् वाजी सहमान उ ः.
यक् कृ या षय े त वीरः.. (२)
तलक वृ से न मत म ण श ु घातक, संतान दे ने वाली, श शा लनी, वेगवती,
श ु को परा जत करने वाली, उ तथा सरे के ारा भेजी गई कृ या रा सी को उसी के
वरोध म भेजने वाली है. श ु को अनेक कार से षत करने वाली यह म ण हमारे
सामने आती है. (२)
अनेने ो म णना वृ मह नेनासुरान् पराभावय मनीषी.
अनेनाजयद् ावापृ थवी उभे इमे अनेनाजयत् दश त ः.. (३)
कसी भी उपाय से वृ ासुर को मारने म असफल होने पर इं ने इसी म ण को बांधने
के भाव से वजय के उपाय जाने एवं रा स को परा जत एवं न कया था. इं ने इसी
म ण के भाव से धरती और आकाश पर वजय ा त क है. इसी म ण के भाव से इं ने
पूव, प म, उ र एवं द ण-चार दशा को जीता है. (३)
अयं ा यो म णः तीवतः तसरः.
ओज वान् वमृधो वशी सो अ मान् पातु सवतः.. (४)
तलक वृ से न मत यह म ण, वरो धय को लौटाने वाली तथा रोग आ द का वनाश
करने वाली है. श ु वनाशक तेज से यु , श ु को भगा कर यु का अभाव करने वाली
एवं सब को वश म करने वाली यह म ण सभी से हमारी र ा करे. (४)
तद नराह त सोम आह बृह प तः स वता त द ः.
ते मे दे वाः पुरो हताः तीचीः कृ याः तसरैरज तु.. (५)
उस अ न दे व ने कृ या रा सी को वापस लौटाने वाली म ण के वषय म मुझे बताया
है. सोम, बृह प त, स वता एवं इं ने भी म ण के वषय म यही कहा है. अ य स दे व
एवं पुरो हत ने भी इस म ण के ारा कृ या रा सी को वापस लौटाया है. (५)
अ तदधे ावापृ थवी उताह त सूयम्.
ते मे दे वाः पुरो हताः तीचीः कृ याः तसरैरज तु.. (६)
म धरती और आकाश को तथा दवस और सूय को अपने तथा कृ या रा सी के म य
म था पत करता ं. धरती, आकाश आ द दे व एवं यजमान को कृ या से बचाने वाले
पुरो हत तलक वृ से म ण के ारा कृ या रा सी को वापस कर. (६)
ये ा यं म ण जना वमा ण कृ वते.
सूय इव दवमा व कृ या बाधते वशी.. (७)
सू -७ दे वता—आयु य ओष धयां
या ब वो या शु ा रो हणी त पृ यः.
आ स नीः कृ णा ओषधीः सवा अ छावदाम स.. (१)
जो जड़ीबू टयां व भ आकार तथा शु ल, लाल आ द रंग क ह, उन सभी के सामने
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उप थत हो कर म रोग नवारण क ाथना करता ं. (१)
ाय ता ममं पु षं य माद् दे वे षताद ध.
यासां ौ पता पृ थवी माता समु ो मूलं वी धां बभूव.. (२)
पृ वी जन क माता, आकाश जन का पता और सागर जन का मूल है, वे
जड़ीबू टयां भा य के कारण उ प इस राजय मा रोग से इस पु ष क र ा कर. (२)
आपो अ ं द ा ओषधयः. ता ते य ममेन य१म ाद ादनीनशन्.. (३)
हे रोगी पु ष! जो प व जल और द जड़ीबू टयां ह, वे तेरे शरीर के येक अंग से
य मा रोग का वनाश कर द. (३)
तृणती त बनीरेकशु ाः त वतीरोषधीरा वदा म.
अंशुमतीः का डनीया वशाखा या म ते वी धो वै दे वी ाः
पु षजीवनीः… (४)
हे य मा रोग से सत पु ष! म तेरे वा य लाभ के न म फैली ई, ब त सी
टह नय वाली, एक टहनी वाली, गांठ वाली, प य वाली, शाखा से र हत एवं नस
वाली जो जड़ीबू टयां तुझे जीवन दे ने वाली ह, उन सभी अ य धक भावशा लनी एवं सम त
दे व के नवास वाली जड़ीबू टय को तेरे लए हण करता ं. (४)
यद् वः सहः सहमाना वीय १ य च वो बलम्.
तेनेमम माद् य मात् पु षं मु चतौषधीरथो कृणो म भेषजम्.. (५)
हे रोग का वनाश करने वाली जड़ीबू टय ! तुम म जो रोग नाश करने वाली श ,
वीय और बल है, उस के ारा इस पु ष क य मा रोग से र ा करो. म सभी ओष धय को
मं से यु बनाता ं. (५)
जीवलां नघा रषां जीव तीमोषधीमहम्.
अ धतीमु य त पु पां मधुमती मह वे ऽ मा अ र तातये.. (६)
क याण के न म म जीवन दे ने वाली एवं ोध न करने वाली जीवंती एवं अ ं धती
नामक जड़ी बू टय का आ ान करता ं. ये जड़ीबू टयां ऊपर क ओर बढ़ने वाली, पु प से
यु एवं मधु स हत ह. (६)
इहा य तु चेतसो मे दनीवचसो मम.
यथेमं पारयाम स पु षं रताद ध.. (७)
मेरे मं के भाव से चेतनायु जड़ीबू टयां यहां आएं तथा इस रोग के कारण प
सू -८ दे वता—इं
इ ो म थतु म थता श ः शूरः पुरंदरः.
यथा हनाम सेना अ म ाणां सह शः.. (१)
श ु का दलन करने वाले, श शाली, वीर एवं वरो धय के नगर को उजाड़ने वाले
इं इस य म अर ण मंथन कर के अ न व लत कर, जस के भाव से हम अपने श ु
क हजार सै नक वाली सेना का वनाश कर सक. (१)
पू तर जु प मानी पू त सेनां कृणो वमूम्.
धूमम नं परा या ऽ म ा वा दधतां भयम्.. (२)
अ न म गरने वाली पुरानी र सी श ु क सेना को श हीन करे. इस य अ न का
धुआं दे ख कर ही श ु भयभीत ह और अपना धन छोड़ कर भाग जाएं. (२)
अमून थ नः शृणी ह खादामून् ख दरा जरम्.
ताज इव भ य तां ह वेनान् वधको वधैः.. (३)
हे पीपल के वृ ! तुम इन श ु को समा त करो. हे खैर के वृ तुम इन सभी
गमनशील श ु को खा डालो. श ु अरंडी के वृ के समान टू ट जाएं. तुम अपने का के
हार से इन का वध करो. (३)
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प षानमून् प षा ः कृणोतु ह वेनान् वधको वधैः.
ं शर इव भ य तां बृह जालेन सं दताः.. (४)
प ष नाम का काठ इन श ु को कठोर अथात् ग तहीन बनाए तथा वधक नाम का
काठ अपने हार से इन का वध करे. वृहत् जाल से टू टने वाले बाण के समान ये श ु भी
शी टू ट जाएं. (४)
अ त र ं जालमासी जालद डा दशो महीः.
तेना भधाय द यूनां श ः सेनामपावपत्.. (५)
इं ने आकाश का जाल बनाया और पृ वी क दशा को डंडा बना कर उसे ताना.
इं ने रा स क सेना को ललकार कर इसी जाल से न कर दया. (५)
बृह जालं बृहतः श य वा जनीवतः.
तेन श ून भ सवान् यु ज यथा न मु यातै कतम नैषाम्.. (६)
सेनाप त इं का आकाश पी जाल अ य धक वशाल है. हे इं ! इस जाल म फंसा
कर श ु को इस कार मारो क उन म से एक भी न बचे. (६)
बृहत् ते जालं बृहत इ शूर सह ाघ य शतवीय य.
तेन शतं सह मयुतं यबुदं जघान श ो द यूनाम भधाय सेनया.. (७)
हे सूय एवं इं ! तु हारा जाल वशाल है. तुम हजार के आधे अथात् पांच सौ सै नक के
वामी हो, जन म से येक सौ मनु य के समान श शाली है. श शाली इं ने ललकार
कर अपनी सेना क सहायता से रा स के सौ हजार, दस हजार एवं एक अरब सै नक को
अंधकार से ढक दया था. (७)
अयं लोको जालमासी छ य महतो महान्.
तेनाह म जालेनामूं तमसा भ दधा म सवान्.. (८)
यह वशाल लोक ही महान इं का जाल था. म इं के इसी जाल क सहायता से इन
सभी श ु को अंधकार से ढकता ं. (८)
से द ा ृ रा त ानपवाचना.
मत मोह तैरमून भ दधा म सवान्.. (९)
म सु ती, ाकुलता, धनहीनता, ःख, वचन का अभाव, थकान, तं ा और बेहोशी के
ारा इन सभी श ु को आ छा दत करता ं. (९)
मृ यवे ऽ मून् य छा म मृ युपाशैरमी सताः.
सू -९ दे वता—मं म बताए गए
कुत तौ जातौ कतमः सो अधः क मा लोकात् कतम याः पृ थ ाः.
व सौ वराजः स लला दै तां तौ वा पृ छा म कतरेण धा.. (१)
वराट् के दोन व स कहां से उ प ए? उन म से एक कसी लोक से उ प आ. उन
म से पृ वी से कौन सा व स उ प आ? वराट् के दोन व स जल से नकले. म तुम से
पूछता ं क तुम ने इ ह कस कार समझा है. (१)
यो अ दयत् स ललं म ह वा यो न कृ वा भुजं शयानः.
व सः काम घो वराजः स गुहा च े त वः पराचैः.. (२)
जस ने जल को मह व दे ते ए, ं दन कया और जल को भुज बना कर सोता रहा.
वराट् का यह व स अ भलाषा पूण करने वाला है. उस ने सर के शरीर को अपनी गुफा
बनाया है. (२)
या न ी ण बृह त येषां चतुथ वयुन वाचम्.
ैनद् व ात् तपसा वप द् य म ेकं यु यते य म ेकम्.. (३)
इन म से तीन बृहती एवं मह वपूण ह तथा चौथी वाणी है. व ान् ा ने इस वाणी
को तप या के ारा जाना. एकाक रहने वाला ही इन म से एक को जान सकता है. (३)
बृहतः प र सामा न ष ात् प चा ध न मता.
बृहद् बृह या न मतं कुतो ऽ ध बृहती मता.. (४)
बृहती से पांच सोम न मत ए. इन म छठे से पांच का नमाण आ. अथात् से
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पांच त व—पृ वी, जल, तेज, वायु और आकाश क उ प ई. बृहत् बृहती से उ प आ
तो बृहती न मत कैसे ई? (४)
बृहती प र मा ाया मातुमा ा ध न मता.
माया ह ज े मायाया मायाया मातली प र.. (५)
बृहती मा ा अथात् पंचत मा ा से बढ़ कर है, य क पंच त मा ाएं अपनी माता
कृ त से ज मती ह. ये माया से ही उ प . इस कार मातली माया से महान है. (५)
वै ानर य तमोप र ौयावद् रोदसी वबबाधे अ नः.
ततः ष ादामुतो य त तोमा उ दतो य य भ ष म ः.. (६)
यह ौ वै ानर अ न पर ही थत है. धरती और आकाश जहां तक ह, वह तक अ न
दे व बाधा प च
ं ा सकते ह. दन के छठे भाग से तोत उ प आ. उस छठे भाग से ये आते
ह. (६)
षट् वा पृ छाम ऋषयः क यपेमे वं ह यु ं युयु े यो यं च.
वराजमा णः पतरं तां नो व धे ह य तधा स ख यः.. (७)
हे क यप ऋ ष! आप यु और यो य को संयु करते ह. हम छः ऋ ष तुम से पूछते ह
क वराट् को का पता य कहा जाता है. इन सखा को उस का उपदे श करो.
(७)
यां युतामनु य ाः यव त उप त त उप त मानाम्.
य या ते सवे य मेज त सा वराडृ षयः परमे ोमन्.. (८)
जस के अनुप थत होने पर य नह होते तथा जस के उप थत होने पर य का
अनु ान होता है, जस से संबं धत त होने पर य ा त होता है, उसी वराट् के परम ोम
म होने क बात कही जाती है. (८)
अ ाणै त ाणेन ाणतीनां वराट् वराजम ये त प ात्.
व ं मृश तीम भ पां वराजं प य त वे न वे प य येनाम्.. (९)
हे ऋ षयो! ाण वायु से हीन वराट् ाण वायु का सेवन करने वाली जा के ाण
के प म वेश करता है. इस के प ात वह वराज को ा त होता है. अनु प एवं जी वत
व म वराट् को दे खा जाता है तथा नह भी दे खा जाता. (९)
को वराजो मथुन वं वेद क ऋतून् क उ क पम याः.
मान् को अ याः क तधा व धान् को अ या धाम क तधा ु ीः..
(१०)
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जाप त वराट् के मथुन को जानते ह. ऋतु और क प के जानने वाले भी वे ही ह.
जाप त ही इस के म को जानते ह क वे कतने ह तथा वे ही इस के थान क सं या
जानते ह. (१०)
इयमेव सा या थमा ौ छदा वतरासु चर त व ा.
महा तो अ यां म हमानो अ तवधू जगाय नवग ज न ी.. (११)
वह वराट् ही है, जो सब से पहले उषा के प म उ प आ था तथा उसी ने सृ का
अंधकार मटाया था. वराट् से संबं धत उषा ही सम त उषा म वेश कर के काश करती
है. सोम, सूय, अ न आ द सभी दे व वराट् के अधीन ह. वराट् प उषा ही सूय क प नी है.
(११)
छ दः प े उषसा पे पशाने समानं यो नमनु सं चरेते.
सूयप नी सं चरतः जानती केतुमती अजरे भू ररेतसा.. (१२)
वृ ाव था को ा त न होने वाले छं द प ी उषा पी वराट् के कट होते ही समान
कारण का अनुसरण करते ह. सूय क प नी उषा यो त के वीय को जानती है. (१२)
ऋत य प थामनु त आगु यो घमा अनु रेत आगुः.
जामेका ज व यूजमेका रा मेका र त दे वयूनाम्.. (१३)
सूय, चं एवं अ न—ये तीन स य के माग पर चलते एवं श के अनुसार अपने धम
का पालन करते ह. इन तीन म से एक क श ऋ वज को ा त करती है. सरी श
बल क वृ करती है और तीसरी श रा क र ा करती है. (१३)
अ नीषोमावदधुया तुरीयासीद् य य प ावृषयः क पय तः.
गाय ु भं जगती्मनु ु भं बृहदक यजमानाय व राभर तीम्.. (१४)
अ न तथा सोम ने एवं य क क पना करते ए ऋ षय ने उस श को धारण
कया जो चौथी थी. इस के प ात उस के गाय ी, ु प,् जगती्, अनु ु प् और अक नामक
प बनाए गए. (१४)
प च ु ीरनु प च दोहा गां प चना नीमृतवो ऽ नु प च.
प च दशः प चदशेन लृ ता ता एकमू न र भ लोकमेकम्.. (१५)
पांच श य के अनुकूल पांच दोहन, पांच गाएं एवं पांच ऋतुएं बनाई ग . पांच दशाएं
इन पं ह अथात् पांच दोहन , पांच गाय और पांच ऋतु के ारा समथ . ये योगी के
लए एक लोक के प म बन . (१५)
षड् जाता भूता थमजत य षडु सामा न षडहं वह त.
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ष ोगं सीरमनु सामसाम षडा ावापृ थवीः षडु व ः.. (१६)
ऋतु अथात् स य से पहलेपहल छः ने ज म लया. छः साम दन के छः वभाग को
वहन करते ह. छः साम पृ वी का अनुगमन करते ह. धरती, आकाश एवं छः मास ये सब
उ णता से संबं धत ह. (१६)
षडा ः शीतान् षडु मास उ णानृतुं नो त
ू यतमो ऽ त र ः.
स त सुपणाः कवयो न षे ः स त छ दां यनु स त द ाः.. (१७)
छः मास शीत ऋतु के और छः मास ी म ऋतु के कहे गए ह. हम स य बताओ क उन
के अ त र कौन है. व ान् लोग सात सुंदर पण , सात छं द और सात द ा को जानते
ह. (१७)
स त होमाः स मधो ह स त मधू न स ततवो ह स त.
स ता या न प र भूतमायन् ताः स तगृ ा इ त शु ुमा वयम्.. (१८)
सात होम क सात स मधाएं, सात मधु और सात ऋतुएं ह. पु ष को सात कार के
घृत ा त होते ह. हम ने ऐसा भी सुना है क इसी कार गृ भी सात ह. (१८)
स त छ दां स चतु रा य यो अ य म या पता न.
कथं तोमाः त त त तेषु ता न तोमेषु कथमा पता न.. (१९)
सात छं द और चार उ र अथात् वेद पर पर संबं धत ह. ये दोन कार के सात
एक सरे म थत ह. तोम उन म कस कार थत रहते ह तथा वे तो म कस कार
समा हत ह? (१९)
कथं गाय ी वृतं ाप कथं ु प् प चदशेन क पते.
य ंशेन जगती् कथमनु ु प् कथमेक वशः.. (२०)
ववृत म गाय ी कस कार ा त तथा ु प् पं ह वण से कस कार न मत होता
है. जगती् छं द ततीस वण से कस कार बनता है और अनु ु प् म इ क स वण कस कार
होते ह. (२०)
अ जाता भूता थमजत या े वजो दै ा ये.
अ यो नर द तर पु ा म रा म भ ह मे त.. (२१)
ऋतु से सव थम आठ भूत अथात् त व उ प ए. हे इं ! वे आठ द ऋ वज् ह.
आठ यो नय और आठ पु वाली अ द त अ मी त थ क रात म ह हण करती ह.
(२१)
हे ऊजा! यहां आओ. हे वधा! हमारे समीप आओ. हे सूनृता! यहां आओ. हे इरावती!
हमारे समीप आओ. (४)
त या इ ो व स आसीद् गाय य भधा य मूधः.. (५)
इं उस का बछड़ा बना, गाय ी उस क र सी बनी और मेघ उस के थन बन. (५)
बृह च रथ तरं च ौ तनावा तां य ाय यं च वामदे ं च ौ.. (६)
बृहत् साम और रथंतर साम उस गाय के दो थन थे. उस गाय के शेष दो थन—
य ाय य और वामदे . (६)
ओषधीरेव रथ तरेण दे वा अ न् चो बृहता.. (७)
व वा ऋ ष के पु कुबेर उस के व स थे और म का क चा पा उस का पा था.
(१०)
तां रजतना भः काबेरकोऽधोक् तां तरोधामेवाधोक्.. (११)
रजत ना भ काबेरक ने उस का दोहन कया और उस से तरोधा को हा. (११)
तां तरोधा मतरजना उप जीव त तरो ध े सव पा मानमुपजीवनीयो
भव त य एवं वेद.. (१२)
अ य जन तरोधा को जीवन का सहारा बनाते ह. जो इस बात को जानता है, वह सब
के पाप को तरो हत करता है और सब को जीवन का सहारा दे ने वाला बनता है. (१२)
सोद ामत् सा सपानाग छत् तां सपा उपा य त वषव येही त.. (१३)
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उस वराट ने उ मण कया और वह सप के समीप प ंचा. सप ने उस का आ ान
करते ए कहा—“हे वषवाले आओ.” (१३)
त या त को वैशालेयो व स आसीदलाबुपा ं पा म्.. (१४)
वैशालेय त क उस का व स और अलाबु उस का पा था. (१४)
तां धृतरा ऐरावतो ऽ धोक् तां वषमेवाधोक्.. (१५)
ऐरावत संबंधी सप ने उस का दोहन कया और वष का दोहन कया. (१५)
तद् वषं सपा उप जीव युपजीवनीयो भव त य एवं वेद.. (१६)
सू -२ दे वता—काम
सप नहनमृषभं घृतेन कामं श ा म ह वषा येन.
नीचैः सप नान् मम पादय वम भ ु तो महता वीयण.. (१)
म श ु वनाशक वृषभ पी काम को ह व एवं आ य से स करता ं. हे वृषभ!
तु हारी तु त करने वाले मुझ तोता के श ु को तुम अपने महान परा म से नीचे गराओ.
(१)
य मे मनसो न यं न च ुषो य मे बभ त ना भन द त.
तद् व यं त मु चा म सप ने कामं तु वोदहं भदे यम्.. (२)
जो बुरा व न मुझ को अ छा लगता है और न मेरे ने को सुहाता है, जो मुझे भ ण
करता आ मालूम होता है और मुझे स नह करता, उस बुरे व को काम क तु त
करने वाला म श ु क ओर छोड़ता ं. वह बुरा व पी श ु का भेदन करे. (२)
व यं काम रतं च कामा ज ताम वगतामव तम्.
उ ईशानः त मु च त मन् यो अ म यमं रणा च क सात्.. (३)
हे उ एवं वामी कामदे व! तुम अपने व पी पाप को जा अथात् संतान क
हीनता को एवं नधनता को उसी और भेजो जो पराजय कर के हम वप म डालने क
चे ा करता है. (३)
नुद व काम णुद व कामाव त य तु मम ये सप नाः.
तेषां नु ानामधमा तमां य ने वा तू न नदह वम्.. (४)
हे कामदे व! द र ता को उन क और जाने के लए े रत करो जो मेरे श ु ह. वे ही मेरी
द र ता को ा त कर. हे अ न! वे अंधकार म पड़े रह. तुम उन के घर क व तु को भ म
कर दो. (४)
सा ते काम हता धेनु यते यामा वाचं कवयो वराजम्.
तया सप नान् प र वृङ् ध ये मम पयनान् ाणः पशवो जीवनं वृण ु ..
(५)
हे कामदे व! सभी जसे ओजपूण वाणी कहते ह, वह तु हारी पु ी है. तुम उस के ारा
मेरे श ु का नाश करो. ाण, पशु और जीवन उन के पास न रह. (५)
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काम ये य व ण य रा ो व णोबलेन स वतुः सवेन.
अ नेह ेण णुदे सप ना छ बीव नावमुदकेषु धीरः.. (६)
जस कार पतवार धारण करने वाला म लाह नौका चलाता है, उसी कार म कामदे व
के, इं के, राजा व ण के, व णु के और स वता के बल से तथा दे व के य से श ु को
र भगाता ं. (६)
अ य ो वाजी मम काम उ ः कृणोतु म मसप नमेव.
व े दे वा मम नाथं भव तु सव दे वा हवमा य तु म इमम्.. (७)
सभी दे व मेरे इस य म आएं एवं मेरे वामी, श शाली कामदे व मेरी आंख के सामने
ही इसे पूण कर तथा मुझे श ु र हत बनाएं. (७)
इदमा यं घृतव जुषाणाः काम ये ा इह मादय वम्.
कु व तो म मसप नमेव.. (८)
हे कामदे व को अपने से बड़ा मानने वाले दे वो! मेरे घृत वाले आ य का सेवन करते ए
तुम सुखी रहो. (८)
इ ा नी काम सरथं ह भू वा नीचैः सप नान् मम पादयाथः.
तेषां प ानामधमा तमां य ने वा तू यनु नदह वम्.. (९)
हे कामदे व! इं और अ न रथ पर सवार हो कर मेरे श ु को नीचे गराते ह. हे
अ न! उन गरे ए श ु को अंधकार कट कर के न करो एवं उन के घर क सभी
व तु को जला डालो. (९)
ज ह वं काम मम ये सप ना अ धा तमां यव पादयैनान्.
न र या अरसाः स तु सव मा ते जी वषुः कतम चनाहः.. (१०)
हे कामदे व! तुम मेरे श ु का संहार करो तथा उ ह घने अंधकार म गराओ. वे सब
इं य र हत एवं श हीन हो जाएं तथा वे कुछ ही दन जी वत रह. (१०)
अवधीत् कामो मम ये सप ना उ ं लोकमकर म मेधतुम्.
म ं नम तां दश त ो म ं षडु व घृतमा वह तु.. (११)
कामदे व ने मेरे श ु का वनाश कर डाला तथा मेरी वृ के लए उस ने महान लोक
का नमाण कया. चार दशा के ाणी मुझे नम कार कर तथा छः पृ वयां मेरे लए घृत
दान कर. (११)
ते ऽ धरा चः लव तां छ ा नौ रव ब धनात्.
सू -३ दे वता—शाला
उप मतां त मतामथो प र मतामुत.
शालाया व वाराया न ा न व चृताम स.. (१)
उप मता, त मता और प र मता जो शालाएं ह, उन म से कसी भी शाला को खोलते
ए हम सब के लए वरण करने यो य शाला के ार खोलते ह. (१)
यत् ते न ं व वारे पाशो थ यः कृतः.
बृह प त रवाहं बलं वाचा व ंसया म तत्.. (२)
हे वरण करने यो य शाला! तुझ म जो बंधन है, जो पाश है और जो गांठ ह, उ ह
बृह प त के समान श शाली म अपने मं बल से खोलता ं. (२)
आ ययाम सं बबई थ कार ते ढान्.
पं ष व ा छ तेवे े ण व चृताम स.. (३)
हे शाला! बनाने वाले ने तु ह ब त लंबा बनाया है. उस ने तुझ म मजबूत गांठ लगाई ह.
उन कठोर गांठ को जानता आ म इं क श से उ ह खोलता ं. (३)
वंशानां ते नहनानां ाणाह य तृण य च.
प ाणां व वारे ते न ा न व चृताम स.. (४)
हे सब के ारा वरण करने यो य शाला! तेरे बांस के बंधन क , लक ड़य क , तनक
क तथा वृ क जो गांठ ह, म उ ह खोलता ं. (४)
संदंशानां पलदानां प र व य य च.
इदं मान य प या न ा न व चृताम स.. (५)
म मान क प नी अथात् शाला के ारा बांधे गए संदेश के, पलद के, प र यंद के तथा
सू -४ दे वता—ऋषभ
साह वेष ऋषभः पय वान् व ा पा ण व णासु ब त्.
भ ं दा े यजमानाय श न् बाह प य उ य त तुमातान्.. (१)
सू -५ दे वता—अज मा
आ नयैतमा रभ व सुकृतां लोकम प ग छतु जानन्.
ती वा तमां स ब धा महा यजो नाकमा मतां तृतीयम्.. (१)
इस अज को लाओ और य कम आरंभ करो. जानता आ यह पु या मा के लोक
सू -६ दे वता—अ त थ, व ा
यो व ाद् य ं प ं ष य य संभारा ऋचो य यानू यम्.. (१)
जो को य प म जानता है, उस क गांठ ही संभार ह तथा ऋचाएं उस का
अनू य ह. (१)
सामा न य य लोमा न यजु दयमु यते प र तरण म वः.. (२)
सामवेद के मं जस के रोम ह और प र तरण जस का ह व है. (२)
यद् वा अ त थप तर तथीन् तप य त दे वयजनं े ते.. (३)
अथवा जो अ त थय का वामी और अ त थय को दे खता है, वह दे व य को ही
दे खता है. (३)
यद भवद त द ामुपै त य दकं याच यपः णय त.. (४)
अ त थ से जो बोलता है, वही द ा है. जल क याचना ही उस को लाना है. (४)
सू -७ दे वता—अ त थ, व ा
यजमान ा णं वा एतद त थप तः कु ते
यदाहाया ण े त इदं भूया ३ इदा ३ म त.. (१)
जो यजमान को अथवा ा ण को अ त थ प त अथात् अ त थ का पालन करने वाला
बनता है, वह आहाय अथात् य संबध
ं ी को दे खता आ कहता है क यह होना चा हए.
(१)
यदाह भूय उ रे त ाणमेव तेन वष यांसं कु ते.. (२)
जो अ त थ से बारबार भोजन करने क बात कहता है, वह ाण श क वृ करता
है. (२)
उप हर त हव या सादय त.. (३)
सू -८ दे वता—अ त थ, व ा
इ ं च वा एष पूत च गृहाणाम ा त यः पूव ऽ तथेर ा त.. (१)
जो अ त थ से पहले भोजन कर लेता है, वह अपने म होने वाले इ ापूत कम का फल
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खा लेता है. सं या आ द न य कम इ और कसी योजन से कए जाने वाले य आ द
कम आपूत कहलाते ह. (१)
पय वा एष रसं च गृहाणाम ा त यः पूव ऽ तथेर ा त.. (२)
जो अ त थय से पहले भोजन करता है, वह अपने घर के ध और रस को न करता
है. (२)
ऊजा च वा एष फा त च गृहाणाम ा त यः पूव ऽ तथेर ा त.. (३)
जो अ त थ से पहले भोजन कर लेता है, वह अपने घर के बल और समृ का
नाश करता है. (३)
जां च वा एष पशूं गृहाणाम ा त यः पूव ऽ तथेर ा त.. (४)
जो अ त थ से पहले भोजन करता है, वह अपने घर क संतान और पशु का भ ण
करता है. (४)
क त च वा एष यश गृहाणाम ा त यः पूव ऽ तथेर ा त.. (५)
जो अ त थ से पूव भोजन करता है, वह अपने घर क क त और यश को समा त
करता है. (५)
यं च वा एष सं वदं च गृहाणाम ा त यः पूव ऽ तथेर ा त.. (६)
जो अ त थ से पूव भोजन करता है, वह अपने घर क ी और सौमन य का वनाश
करता है. (६)
एष वा अ त थय ो य त मात् पूव ना ीयात्.. (७)
ो य ा ण ही वा तव म अ त थ है. यजमान को चा हए क उस से पूव भोजन नह
करे. (७)
अ शताव य तथाव ीयाद् य य सा म वाय य या व छे दाय तद्
तम्.. (८)
अ त थ के भोजन कर लेने पर ही यजमान भोजन करे. य के नवाह एवं य का
व छे द न होने के लए ही यह त है. (८)
एतद् वा उ वाद यो यद धगवं ीरं वा मांसं वा तदे व ना ीयात्.. (९)
सू -९ दे वता—अ त थ, व ा
स य एवं व ान् ीरमुप स योपहर त.. (१)
जो इस बात को जानता है, वह ध का उपसेचन कर के अ त थ के लए भोजन लाता
है. (१)
यावद न ोमेने ् वा सुसमृ े नाव े तावदे नेनाव े .. (२)
सू -१० दे वता—अ त थ, व ा
त मा उषा हङ् कृणो त स वता तौ त.. (१)
उषा उस के लए ंकार करती है और सूय उस क तु त करता है. (१)
बृह प त जयोद् गाय त व ा पु ा त हर त व े दे वा नधनम्..
(२)
अ के रस से उ प ऊजा से बृह प त उदगायन करते ह, व ा पु दान करते ह
और व े दे व पूणता दान करते ह. (२)
नधनं भू याः जायाः पशूनां भव त य एवं वेद.. (३)
सू -११ दे वता—अ त थ, व ा
यत् ारं य या ावय येव तत्.. (१)
जो ा अथात् इ छत काय करने वाले का आ ान करता है, वह ु त को ही सुनाता
है. (१)
यत् तशृणो त या ावय येव तत्.. (२)
जो त ा करता है, वही ु त को सुनाने का आ ह करता है. (२)
सू -१२ दे वता—गौ
जाप त परमे ी च शृ े इ ः शरो अ नललाटं यमः कृकाटम्.. (१)
इस गाय के दोन स ग जाप त और परमे ी ह. इं ही इस का सर, अ न ललाट और
यम कृकाट अथात् गले के नीचे लटकता आ भाग है. (१)
सोमो राजा म त को ौ रहनुः पृ थ धरहनुः.. (२)
सोम राजा गाय का म तक है, ौ ऊपर क ठोड़ी और धरती ठोड़ी का ऊपर वाला
भाग है. (२)
व ु ज ा म तो द ता रेवती वाः कृ का क धा घम वहः.. (३)
बजली गाय क जीभ, म द्गण, दांत, रेवती न गरदन, कृ का न कंधा और
धम र का वाह है. (३)
व ं वायुः वग लोकः कृ ण ं वधरणी नवे यः.. (४)
व वायु, वगलोक तथा कृ णा वधरणी (धारक श ) नवे य (पृ भाग) है. (४)
येनः ोडो ३ त र ं पाज यं १ बृह प तः ककुद् बृहतीः क कसाः..
(५)
येन गाय का ोड अथात् कोख अथवा बगल, अंत र पाज य (उदर), बृह प त
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ककुद, अथात् ठाट तथा बृहती छं द ह ड् डयां ह. (५)
दे वानां प नीः पृ य उपसदः पशवः.. (६)
सू -१४ दे वता—आ द य, अ या म
अ य वाम य प लत य होतु त य ाता म यमो अ य ः.
तृतीयो ाता घृतपृ ो अ या ाप यं व प त स तपु म्.. (१)
आ ान करने यो य सूय तु त कता का पालन करते ह. उन सूय के म यम ाता वायु
दे व ह जो आकाश म जल ले जाते ह. इन सूय दे व के तीसरे ाता अ न ह. इस कार म सूय
को ही मुख एवं आ यजनक समझता ं. (१)
स त यु त रथमेकच मेको अ ो वह त स तनामा.
ना भ च मजरमनव य ेमा व ा भुवना ध त थुः.. (२)
सूय के एक प हए वाले रथ म सात करण जुड़ जाती ह जो सरकने वाली ह एवं अ य
यो तय को परा जत करने वाली ह. सात ऋ षय ारा नम कार करने यो य उन सूय के रथ
को एक घोड़ा ख चता है. सूय के रथ के प हए म ी म, वषा एवं शीत ऋतु पी तीन
ना भयां ह. यह जजर न होने वाला प हया सदै व घूमता रहता है. सूय के ारा काल नधारण
म ही सम त व आ त है. (२)
सू -१५ दे वता—गौ
यद् गाय े अ ध गाय मा हतं ै ु भं वा ै ु भा रत त.
य ा जग जग या हतं पदं य इत् तद् व ते अमृत वमानशुः.. (१)
गाय म गाय छपा आ है और ै ु भ म ै ु भ ा त है. जो लोग जगती् म छपे ए
जगत् को जानते ह, वे अमृत का उपभोग करते ह. (१)
गाय ेण त ममीते अकमकण साम ै ु भेन वाकम्.
वाकेन वाकं पदा चतु पदा ऽ रेण ममते स त वाणीः.. (२)
गाय से अक अथात् सूय का नमाण होता है. अक से साम का और ै ु भ से वाक का
नमाण होता है. वाक् से वाक् को तथा पदा एवं चतु पदा तथा अ वनाशी से
स तवाणी अथात् सात कार के वेद के छं द न मत होते ह. (२)
जगता् स धुं द कभायद् रथंतरे सूय पयप यत्.
गाय य स मध त आ ततो म ा र रचे म ह वा.. (३)
संसार के ारा सधु को लोक क ओर े रत कया गया. ा नय ने रथंतर म सूय
का दशन कया. उ ह ने गाय य क तीन स मधाएं बता . इस के प ात वे अपनी मह ा
से ही वृ को ा त ए. (३)
उप ये सु घां धेनुमेतां सुह तो गोधुगुत दोहदे नाम्.
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े ं सवं स वता सा वष ो ऽ भी ो घम त षु वोचत्.. (४)
शोभन हाथ से गाय को दोहने वाला म सरलता से ही जाने वाली गाय का ध हता
आ उसे अपने समीप बुलाता ं. स वता ने मुझे े गौ दान क है. उ ह म तेज वी धम
का कथन कया गया है. (४)
हङ् कृ वती वसुप नी वसूनां व स म छ ती मनसा ऽ यागात्.
हाम यां पयो अ येयं सा वधता महते सौभगाय.. (५)
ं ार करती ई, धन से पालने यो य एवं बछड़े क इ छा करती ई गौ धनवान के
क
समीप प ंची. हसा न करने यो य यह गाय अ नीकुमार के न म ध दे ती ई हम महान
सौभा य के लए ा त हो. (५)
गौरमीमेद भ व सं मष तं मूधानं हङ् ङकृणो मातवा उ
सृ वाणं घमम भ वावशाना ममा त मायुं पयते पयो भः.. (६)
ंकार करती ई गाय उस बछड़े के समीप जा कर उसे सूंघती है जो उस क ओर
ताकता है. यह बताने के लए क यह बछड़ा मेरा ही है, यह गौ रंभाती है और अपने ध से
उसे बढ़ाती है. (६)
अयं स शङ् े येन गौरभीवृता ममा त मायुं वसनाव ध ता.
सा च भ न ह चकार म यान् व ु व ती त व मौहत.. (७)
गरजते ए मेघ ने वाणी को ढक लया है. मेघ ारा ढक ई वाणी श द करती है. यही
वाणी मेघ से बजली के प म कट हो कर मनु य को भयभीत करती है. (७)
अन छये तुरगातु जीवमेजद् ुवं म य आ प यानाम्.
जीवो मृत य चर त वधा भरम य म यना सयो नः.. (८)
यमलोक क पीड़ा के भय से कांपते ए ाणी के दय म जीव सांस लेता है.
मरणशील जीव अ य मरणधमा ा णय का सयो न अथात् समान शरीर वाला है एवं वधा
का भ ण करता है. (८)
वधुं द ाणं स लल य पृ े युवानं स तं प लतो जगार.
दे व य प य का ं म ह व ऽ ा ममार स ः समान.. (९)
दमनशील एवं युवा चं मा को सूय नगल जाता है. परमे र क सृ क मह ा दे खो
क आज जो मर जाता है, कल वही जी वत हो कर सांस लेने लगता है. ता पय यह है क
आज छप जाने वाला चं मा सरे दन फर नकल आता है. (९)
सू -२ दे वता— - काशन
केन पा ण आभृते पू ष य केन मांसं संभृतं केन गु फौ.
केना लीः पेशनीः केन खा न केनो छ् लङ् खौ म यतः कः त ाम्.. (१)
मनु य क ए ड़य को, टखन को और मांस को कस ने पु बनाया? मनु य क सुंदर
उंग लय को कस ने पु कया? उंग लय के म य म नस को कस ने थत कया? (१)
क मा ु गु फावधरावकृ व ीव तावु रौ पू ष य.
जङ् घे नऋ य यदधुः व व जानुनोः स धी क उ त चकेत.. (२)
नीचे के टखन को कस से बनाया गया? पु ष के घुटन को, जांघ को तथा चरण के
म य को कस से बनाया गया? घुटन का जोड़ कहां है और उसे कौन जानता है? (२)
चतु यं यु यते सं हता तं जानु यामू व श थरं कब धम्.
ोणी य क उ त जजान या यां कु स धं सु ढं बभूव.. (३)
घुटन के ऊपर चार भाग ह— श थल, धड़, कंधे और जंघाएं. इ ह कस ने बनाया,
जस से शरीर का भाग धड़ ढ़ आ? (३)
क त दे वाः कतमे त असन् य उरो ीवा युः पू ष य.
क त तनौ दधुः कः कफोडौ क त क धान् क त पृ ीर च वन्.. (४)
वे दे व कतने थे, ज ह ने पु ष के दय को और गरदन को बनाया? कतने दे व ने
पु ष के तन बनाए. फेफड़ को कस ने बनाया? कंध क रचना कतने दे व ने क ? पीठ
क रचना कतने दे व ने क ? (४)
को अ य बा समभरद् वीय करवा द त.
अंसौ को अ य तद् दे वः कु स धे अ या दधौ.. (५)
कस दे व ने मनु य के बा को श से भर दया और कस ने उस म वीय क रचना
क ? पु ष के कंध क रचना करने वाला दे व कौन है? इसे धड़ पर कस ने था पत कया?
(५)
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कः स त खा न व ततद शीष ण कणा वमौ ना सके च णी मुखम्.
येषां पु ा वजय य म न चतु पादो पदो य त यामम्.. (६)
मनु य के सर म सात छे द अथात् दो कान, दो नथुन,े दो आंख और एक मुख कस दे व
ने बनाया? इ ह दे व क म हमा से दो पैर और चार पैर वाले ाणी अनेक थान म ग त
करते ए यमराज के थान पर जाते ह. (६)
ह वो ह ज मदधात् पु चीमधा महीम ध श ाय वाचम्.
स आ वरीव त भुवने व तरपो वसानः क उ त चकेत.. (७)
अनेक थल को छू ने वाली जीभ को ठोड़ी म कस ने था पत कया? जीभ म वाणी
क थापना कस ने क . अपने शरीर के भीतर जल को धारण करता आ कौन सा दे व
ा णय म ा त है? उस का जानने वाला कौन है? (७)
म त कम य यतमो ललाटं कका टकां थमो यः कपालम्.
च वा च यं ह वोः पु ष य दवं रोह कतमः स दे वः.. (८)
इस का म त क, ललाट और जबड़ के जोड़ एवं कपाल कस ने बनाया? वह दे व
कौन सा है? पु ष क ठोड़ी क ह य को जोड़ कर जो वग को गया था, वह दे व कौन सा
है? (८)
या या ण ब ला व ं संबाधत यः.
आन दानु ो न दां क माद् वह त पू षः.. (९)
मनु य के य और अ य व को, संबं धत इं य को, आनंद को तथा ःख को
कौन सा दे व धारण करता है? (९)
आ तरव त नऋ तः कुतो नु पु षे ऽ म तः.
रा ः समृ र ृ म त दतयः कुतः.. (१०)
पु ष म पाप, आजी वका वरोधी त व, कम आ द कहां से ा त होते ह? इसे ऋ ,
स , समृ , बु एवं उ त कहां से ा त होती है. (१०)
को अ म ापो दधाद् वषूवृतः पु वृतः स धुसृ याय जाताः.
ती ा अ णा लो हनी ता धू ा ऊ वा अवाचीः पु षे तर ीः.. (११)
इस पु ष म सव व मान सागर को और सदा तेजी से बहने वाले जल को कस ने
व कया है जो लाल, लो हत, तांबई एवं धुमेले रंग के ह? इन जल को ऊपर, नीचे और
तरछा जाने क श कस ने दान क ? (११)
सू -३ दे वता—वरणम ण, वन प त
अयं मे वरणो म णः सप न यणो वृषा.
तेना रभ व वं श ून् मृणी ह र यतः.. (१)
यह मेरी वरण वृ क म ण श ु का नाश करने वाली और अ भलाषा पूरक है. इसे
धारण कर के तू उ ोग कर और ता करने वाले श ु का वनाश कर. (१)
ै ा छृ णी ह मृणा रभ व म ण ते अ तु पुरएता पुर तात्.
ण
अवारय त वरणेन दे वा अ याचारमसुराणां ः ः.. (२)
तू इन श ु का वनाश कर, इ ह मसल दे और स बन. यह म ण तेरे आगेआगे
चले. वरण वृ से न मत इस म ण क सहायता से दे व ने असुर ारा कए गए जा टोन
का सरे दन ही नवारण कर दया था. (२)
अयं म णवरणो व भेषजः सह ा ो ह रतो हर ययः.
स ते श ूनधरान् पादया त पूव तान् द नु ह ये वा ष त.. (३)
वरण वृ से न मत यह म ण सम त रोग क ओष ध है. यह म ण हजार आंख वाले
इं के समान श शा लनी, हरे रंग क और हर यमय है. यह म ण तेरे श ु को मार
डाले, उस से पहले ही तू उन का वनाश कर दे . (३)
सू -४ दे वता—सप, वषापकरण
इ य थमो रथो दे वानामपरो रथो व ण य तृतीय इत्.
अहीनामपमा रथः थाणुमारदथाषत्.. (१)
इं का रथ पहला, दे व का सरा और व ण का तीसरा है. सप का रथ अपमा अथात्
न न ग तशील नामक है, जो थाणु अथात् सूखे वृ से अ धक रमणीय है एवं तेज चलता
है. (१)
दभः शो च त णकम य वारः प ष य वारः. रथ य ब धुरम्.. (२)
दभ सप को शोक दे ने वाला है, यह त णक एवं अ नामक सप के वष का नरोधक
है. प ष नामक सप के वष का नवारण करने वाला दभ रथ का बाधक है. (२)
सू -५ दे वता—जल
इ यौज थे य सह थे य बलं थे य वीय १ थे य नृ णं
थ.
ज णवे योगाय योगैयव युन म.. (१)
हे जलो! तुम इं के ओज, बल एवं वीय हो. तुम ही इं को नवीन बनाने वाली श हो
तथा तुम ही इं के ऐ य हो. म तु ह योग से यु कर के वजय दलाने वाले योग क
मता वाला बनाता ं. (१)
इ यौज थे य सह थे य बलं थे य वीय १ थे य नृ णं
थ.
ज णवे योगाय योगैव युन म.. (२)
हे जलो! तुम इं के ओज, बल एवं वीय हो. तुम ही इं को नवीन बनाने वाली श हो
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तथा तुम ही इं के ऐ य हो. म तु ह य संबंधी योग से यु कर के वजय दलाने वाले
योग क मता वाला बनाता ं. (२)
इ यौज थे य सह थे य बलं थे य वीय १ थे य नृ णं
थ.
ज णवे योगाये योगैव युन म.. (३)
हे जलो! तुम इं के ओज, बल एवं वीय हो. तुम ही इं को नवीन बनाने वाली श
एवं तुम ही इं के ऐ य हो. म तु ह इं संबंधी योग से यु कर के वजय दलाने वाले योग
क मता वाला बनाता ं. (३)
इ यौज थे य सह थे य बलं थे य वीय १ थे य नृ णं
थ.
ज णवे योगाय सोमयोगैव युन म.. (४)
हे जलो! तुम इं के ओज, वीय एवं बल हो. तुम ही इं को नवीन बनाने वाली श
एवं ऐ य दान करने वाले हो. म तु ह जल संबंधी योग से यु करता ,ं जस से म वजय
ा त कर सकूं. (४)
इ यौज थे य सह थे य बलं थे य वीय १ थे य नृ णं
थ.
ज णवे योगाया सुयोगैव युन म.. (५)
हे जलो! तुम इं के ओज, बल एवं वीय हो. तुम ही इं को नवीन बनाने वाली श हो
एवं तुम ही इं के ऐ य हो. म वजय ा त करने वाले योग के हेतु तु ह अपने समीप रखना
चाहता ं. सम त ाणी मेरे समीप रह. (५)
इ यौज थे य सह थे य बलं थे य वीय १ थे य नृ णं
थ.
ज णवे योगाय व ा न मा भूता युप त तु यु ा म आप थ.. (६)
हे जलो! तुम अ न के भाग हो. जल से मु भाग को एवं द तेज को हम म धारण
करो. अ न का भाग इस लोक के जाप त के तेज से यु हो. (६)
अ नेभाग थ.
अपां शु मापो दे वीवच अ मासु ध .
जापतेव धा ना ऽ मै लोकाय सादये.. (७)
हे जलो! तुम इं के भाग को, जल के वीय एवं द तेज को हम म थत करो. लोक
का क याण करने के लए जाप त का तेज हम म धारण करो. (७)
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इ य भाग थ.
अपां शु मापो दे वीवच अ मासु ध .
जापतेव धा ना ऽ मै लोकाय सादये.. (८)
हे द वाह वाले जलो! तुम इं के अंश हो. तेज जल का वीय है. तुम हम म तेज
था पत करो. तुम जाप त के नवास थान से पधारे हो. हम तु ह इस लोक म न त
थान दान करते ह. (८)
सोम य भाग थ.
अपां शु मापो दे वीवच अ मासु ध .
जापतेव धा ना ऽ मै लोकाय सादये.. (९)
हे जलो! तुम सोम के भाग हो, तुम जल का वीय एवं द तेज हम म धारण करो.
लोक के क याण के लए जाप त का तेज हम म थत हो. (९)
व ण य भाग थ.
अपां शु मापो दे वीवच अ मासु ध .
जापतेव धा ना ऽ मै लोकाय सादये.. (१०)
हे जलो! तुम व ण के भाग हो. तुम जल का वीय एवं द तेज हम म धारण करो.
तुम लोक के क याण के लए जाप त का तेज हम म थत हो. (१०)
म ाव णयोभाग थ.
अपां शु मापो दे वीवच अ मासु ध .
जापतेव धा ना ऽ मै लोकाय सादये.. (११)
हे जलो! तुम म और व ण के भाग हो. तुम जल का वीय और द तेज हम म
धारण करो. तुम लोक के क याण के लए जाप त का तेज हम म थत करो. (११)
यम य भाग थ.
अपां शु मापो दे वीवच अ मासु ध .
जापतेव धा ना ऽ मै लोकाय सादये.. (१२)
हे जलो! तुम यम के भाग हो. तुम जल का वीय और द तेज हम म धारण करो. तुम
लोक क याण के लए जाप त का तेज हम म थत करो. (१२)
पतॄणां भाग थ.
अपां शु मापो दे वीवच अ मासु ध .
जापतेव धा ना ऽ मै लोकाय सादये.. (१३)
सू -६ दे वता—वन प तफला म ण
अरातीयो ातृ य हाद षतः शरः. अ प वृ ा योजसा.. (१)
बंधु म जो मेरा श ,ु दय वाला और े ष करने वाला है, उस का शीश भी म वेग
से तोड़ता ं. (१)
वम म मयं म णः फाला जातः क र य त.
पूण म थेन मागमद् रसेन सह वचसा.. (२)
फाल से उ प यह म ण मेरे लए कवच बन कर र ा करेगी. मंथन क साम य एवं रस
बल से यु होने के कारण समथ यह म ण मेरे पास आई है. (२)
यत् वा श वः परा ऽ वधीत् त ा ह तेन वा या.
आप वा त मा जीवलाः पुन तु शुचयः शु चम्.. (३)
कुशल बढ़ई जो तुझे औजार स हत हाथ से मारता है अथात् छ ल कर तेरा नमाण
करता है, इसी कारण जीवन दे ने वाले एवं प व जल तुझे शु कर और प व बनाएं. (३)
हर य गयं म णः ां य ं महो दधत्. गृहे वसतु नो ऽ त थः.. (४)
सुवण क माला से यु यह म ण ा, य एवं तेज को धारण करती ई हमारे घर म
अ त थ बन कर नवास करे. (४)
त मै घृतं सुरां म व म ं दामहे.
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स नः पतेव पु े यः ेयः ेय क सतु भूयोभूयः ः ोः दे वे यो
म णरे य.. (५)
हम इस अ त थ के लए घृत, म दरा, शहद और अ दे ते ह. जस कार पता पु को
परम क याण दे ता है, उसी कार यह म ण मुझे क याण दे . यह म ण दे व के समीप से मेरे
पास आ कर बारबार और त दन मुझे सुख दान करे. (५)
यमब नाद् बृह प तम ण फालं घृत तमु ं ख दरमोजसे.
तम नः यमु चत सो अ मै ह आ यं भूयोभूयः ः तेन वं षतो
ज ह.. (६)
यह म ण फाल से उ प , घृत टपकाने वाली, बल यु एवं ख दर अथात् खैर वृ क
लकड़ी से बनी है. बृह प त ने बल ा त के लए इसे बांधा था. अ न ने यह म ण मुझे द है.
हे यजमान! यह म ण तुझे बारबार और त दन बल दान करे, जस से तू त दन एवं
बारबार श ु का वनाश कर सके. (६)
यमब नाद् बृह प तम ण फालं घृत तमु ं ख दरमोजसे.
त म ः यमु चतौजसे वीयाय कम्.
सो अ मै बल मद् हे भूयोभूयः ः तेन वं षतो ज ह.. (७)
यह म ण फाल से उ प , घृत टपकाने वाली, बल यु एवं ख दर अथात् खैर वृ क
लकड़ी से बनी है. बृह प त ने बल ा त के लए इसे बांधा था. इं ने बल, वीय और सुख
दान करने हेतु इस म ण को मुझे दया है. हे यजमान! यह म ण बारबार और त दन तुझे
बल दान करे. उस बल क सहायता से तू श ु का वनाश करे. (७)
यमब नाद् बृह प तम ण फालं घृत तमु ं ख दरमोजसे.
तं सोमः यमु चत महे ो ाय च से.
सो अ मै वच इद् हे भूयोभूयः ः तेन वं षतो ज ह.. (८)
बृह प त ने जस फाल से उ प , घी टपकाने वाली, श शा लनी एवं खैर वृ क
लकड़ी से बनी म ण को बल ा त करने के लए बांधा था, उसे सोम ने मह व, सुनने क
श और उ म पाने के लए मुझे दान कया है. हे यजमान! यह म ण तुझे बारबार
एवं त दन तेज दान करे, जस क सहायता से तू अपने श ु का वनाश कर सके. (८)
यमब नाद् बृह प तम ण फालं घृत तमु ं ख दरमोजसे.
तं सूयः यमु चत तेनेमा अजयद् दशः.
सो अ मै भू त मद् हे भूयोभूयः ः तेन वं षतो ज ह.. (९)
बृह प त ने फाल से उ प , घी टपकाने वाली, श शा लनी एवं खैर वृ क लकड़ी
सू -७ दे वता— कंभ, अ या म
क म े तपो अ या ध त त क म ऋतम या या हतम्.
व तं व ऽ य त त क म े स यम य त तम्.. (१)
इस मनु य के कस अंग म तप या करने क श थत है? इस मनु य के कस अंग
म स य भाषण क मता थत है? इस मनु य के कस अंग म त अथात् ढ़ न य और
ा, कस अंग म थत रहती है? इस मनु य के कस अंग म स य त त है? (१)
क माद ाद् द यते अ नर य क माद ात् पवते मात र ा.
क माद ाद् व ममीते ऽ ध च मा मह क भ य ममानो अ म्.. (२)
इस परमे र के कस अंग से अ न द त होती है? इस के कस अंग से वायु चलती है?
चं मा का नमाण इस के कस अंग से आ है? वह चं मा इस व ाधार से कस अंग को
नापता है? (२)
क म े त त भू मर य क म े त य त र म्.
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क म े त या हता ौः क म े त यु रं दवः.. (३)
इस परमा मा के कस अंग म भू म थत रहती है? इस के कस अंग म अंत र होता
है? यह ढ़ ौ इस के कस अंग म थत है? ऊंचा वग इस के कस अंग म थत है? (३)
व १ े सन् द यत ऊ व अ नः व १ े सन् पवते मात र ा.
य े स तीर भय यावृतः क भं तं ू ह कतमः वदे व सः.. (४)
ऊपर क ओर चलने वाली अ न, कहां जाने क इ छा से व लत होती है? वायु कहां
जाने क इ छा करती ई चलती ह? आवागमन के च कर म पड़े ए ाणी जहां जाने क
इ छा से ग तशील ह, उस जगदाधार का वणन करो क वह कौन है. (४)
वाधमासाः व य त मासाः संव सरेण सह सं वदानाः.
य य यृतवो य ातवाः क भं तं ू ह कतमः वदे व सः.. (५)
संव सर के साथ मलते ए अधमास अथात् प एवं मास कहां चले जाते ह? ये ऋतुएं
और ऋतु से संबं धत पदाथ कहां चले जाते ह? उस परमा मा के वषय म बताओ क वह
या है? (५)
व १ े स ती युवती व पे अहोरा े वतः सं वदाने.
य े स तीर भय यापः क भं तं ू ह कतमः वदे व सः.. (६)
पर पर वरोधी प वाले युवा दन और युवती रात कहां जाने क इ छा से एकमत हो
कर जाते ह. जल जहां जाने क इ छा से चले आ रहे ह, उसी परमा मा के वषय म बताओ
क वह कौन है? (६)
य म त वा जाप तल का सवा अधारयत्.
क भं तं ू ह कतमः वदे व सः.. (७)
जस म थत रह कर जाप त सम त लोक को धारण करता है, उस परमा मा के
वषय म बताओ क वह कौन है? (७)
यत् परममवमं य च म यमं जाप तः ससृजे व पम्.
कयता क भः ववेश त य ा वशत् कयत् तद् बभूव.. (८)
जाप त ने उ म, अधम और म यम के प म संसार क सभी व तु और ा णय
को बनाया है. इस संसार के कतने पदाथ जाप त म वेश कर चुके ह? जो वेश नह
करता, वह कौन है? (८)
कयता क भः ववेश भूतं कयद् भ व यद वाशये ऽ य.
सू -८ दे वता—अ या म
यो भूतं च भ ं च सव य ा ध त त.
सू -९ दे वता—शतौदना गौ
अघायताम प न ा मुखा न सप नेषु व मपयैतम्.
इ े ण द ा थमा शतौदना ातृ नी यजमान य गातुः.. (१)
यह धेनु पा पय के मुख को बंद करे और श ु पर इस व को गराए. इं के ारा
द ई यह सब से पहली शतौदना गाय श ु वना शनी एवं यजमान का मागदशन करने वाली
है. (१)
वे द े चम भवतु ब हल मा न या न ते.
एषा वा रशना भीद् ावा वैषो ऽ ध नृ यतु.. (२)
हे शतौदना गौ! तेरे रोम कुश के प म ह और य वेद तेरा चम है. यह र सी तुझे
बांध रही है. यह प थर तेरे ऊपर नृ य करे. (२)
बाला ते ो णीः स तु ज ा सं मा ् व ये.
शु ा वं य या भू वा दवं े ह शतौदने.. (३)
हे हसा के अयो य गौ! तेरे बाल य का ो णी नामक पा बन तथा तेरी जीभ य
वेद का माजन करे अथात् सफाई करे. हे शतौदना गौ! तू इस कार शु और य के यो य
बन कर वग को गमन कर. (३)
यः शतौदनां पच त काम ण
े स क पते.
ीता य वजः सव य त यथायथम्.. (४)
सू -१० दे वता—वशा गौ
नम ते जायमानायै जाताया उत ते नमः.
बाले यः शफे यो पाया ऽ ये ते नमः.. (१)
हे हसा न करने यो य गौ! तुझ ज म लेती ई को एवं उ प होती ई को नम कार है.
तेरे बाल के लए, खुर के लए तथा प के लए नम कार है. (१)
यो व ात् स त वतः स त व ात् परावतः.
शरो य य यो व ात् स वशां त गृ यात्.. (२)
जो वशा गौ के समीप रहने वाली सात व तु और र रहने वाली सात व तु को
जानता हो तथा य का शीश जानता हो, वही वशा गौ का दान वीकार करे. (२)
वेदाहं स त वतः स त वेद परावतः.
शरो य याहं वेद सोमं चा यां वच णम्.. (३)
म वशा गौ के समीप रहने वाली सात व तु और र रहने वाली सात व तु को
जानता ं. म य के शीश को जानता ं तथा वशा गौ म होने वाले काशशील सोम को भी
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जानता ं. (३)
यया ौयया पृ थवी ययापो गु पता इमाः.
वशां सह धारां णा छावदाम स.. (४)
जस के ारा ौ, जस के ारा पृ वी तथा जस के ारा ये जल सुर त ह, ध क
हजार धाराएं बहाने वाली वशा क हम वेद मं ारा शंसा करते ह (४)
शतं कंसाः शतं दो धारः शतं गो तारो अ ध पृ े अ याः.
ये दे वा त यां ाण त ते वशां व रेकधा.. (५)
इस वशा गौ क पीठ पर ध पा लए ए सौ ध काढ़ने वाले एवं सौ र क ह. जो
दे व इस गौ के कारण सांस लेते ह अथात् जी वत ह, एकमा वे ही इस गौ को जानते ह. (५)
य पद रा ीरा वधा ाणा महीलुका. वशा पज यप नी दे वां अ ये त
णा.. (६)
जस वशा गौ को य म थान ा त है, जो अ य धक ध दे ती है, वधा जस के ाण
ह तथा जो धरती पर परम स है, उस का वषा के कारण उ प घास से पालनपोषण
होता है, वह वशा गौ य के ारा दे व को तृ त करती है. (६)
अनु वा नः ा वशदनु सोमो वशे वा.
ऊध ते भ े पज यो व ुत ते तना वशे.. (७)
हे वशा गौ! अ न ने तुझ म वेश कया था तथा सोम भी तुझ म व आ था.
पज य अथात् बादल ने तेरे एन म और बजली ने तेरे थन म नवास कया था. (७)
अप वं धु े थमा उवरा अपरा वशे. तृतीयं रा ं धु े ऽ ं ीरं वशे
वम्.. (८)
हे वशा गौ! सब से पहले तू जल को दोहन के प म दान करती है. इस के प ात
भू म को उपजाऊ बना कर हम अ दे ती है. तीसरे तू रा को श पी ीर दान करती
है. (८)
यदा द यै यमानोपा त ऋताव र. इ ः सह ं पा ा सोमं वापाययद्
वशे.. (९)
हे ऋतावरी अथात् ध दे ने वाली गौ! तू आ द य ारा बुलाए जाने पर समीप आई थी.
हे वशा गौ! तब इं ने हजार पा ले कर तुझे सोमरस पलाया था. (९)
यदनूची मैरात् व ऋषभो ऽ यत्.
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त मात् ते वृ हा पयः ीरं ु ो हरद् वशे.. (१०)
हे वशा गौ! जब तू अनुकूल बन कर इं के समीप जाती है, तब बैल तुझे समीप से
बुलाता है. इस कारण इं ो धत हो कर तेरे मधुर ध को हता है. (१०)
यत् ते ु ो धनप तरा ीरमहरद् वशे. इदं तद नाक षु पा ेषु
र त.. (११)
हे वशा गौ! जब ोध म भरा आ धनप त अथात् कुबेर तेरा ध लेता है, तो उसे वग
तीन पा म सुर त रखता है. (११)
षु पा ेषु तं सोममा दे हरद् वशा.
अथवा य द तो ब ह या त हर यये.. (१२)
जहां द ा धारण करने वाला अथववेद यजमान वणमय कुश के आसन पर बैठा
था, वहां द गुण वाली वशा गौ ने तीन पा म सोमरस को भर दया. (१२)
सं ह सोमेनागत समु सवण प ता.
वशा समु म य ाद् ग धवः क ल भः सह.. (१३)
वह वशा गौ चरण वाले सभी मनु य के साथ सोमरस ले कर आई. वह गौ कलह करने
वाले गंधव के साथ सागर म त ा पाती रही. (१३)
सं ह वातेनागत समु सवः पत भः.
वशा समु े ानृ य चः सामा न ब ती.. (१४)
ऋचा और सामवेद के मं को धारण करती ई वशा गौ सभी प य के साथ वायु
के पास गई और सागर पर नृ य करने लगी. (१४)
सं ह सूयणागत समु सवण च ुषा.
वशा समु म य यद् भ ा योत ष ब ती.. (१५)
सभी ने के साथ वशा गौ सूय से मली. क याणका रणी उस गौ ने काश को धारण
करते ए सागर से भी अ धक स ा त क . (१५)
अभीवृता हर येन यद त ऋताव र.
अ ः समु ो भू वा ऽ य क दद् वशे वा.. (१६)
हे ऋतावरी अथात् अ धक मा ा म ध दे ने वाली गौ! तू जब सोने के आभूषण से
ढक ई खड़ी थी, तो हे वशा गौ! सागर घोड़ा बन कर अथात् घोड़े के समान तेज चाल से
तेरे समीप आ गया था. (१६)
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तद् भ ाः समग छ त वशा दे यथो वधा.
अथवा य द तो ब ह या त हर यये.. (१७)
य म द त अथववेद के मं का ाता ा ण जहां वणमय कुश के आसन पर
बैठता है, वहां भ पु ष अथवा क याणकारी त व एक होते ह, वहां वशा गौ अ दे ने
वाली एवं य के साधन के प म उप थत होती है. (१७)
वशा माता राज य य वशा माता वधे तव.
वशाया य आयुधं तत मजायत.. (१८)
हे वशा गौ! तू य क माता है. हे वधा अथात् अ ! वशा गौ तेरी माता है. य वशा
गौ का आयुध है. वशा गौ म ही च अथात् बु उ प ई है. (१८)
ऊ व ब दचरद् णः ककुदाद ध.
तत वं ज षे वशे ततो होताजायत.. (१९)
के ककुद अथात् ऊपर वाले भाग से एक बूंद उछली. हे वशा गौ! तू उसी बूंद से
उप ई है तथा उसी बूंद से हवन करने वाले होता उ प ए ह. (१९)
आ न ते गाथा अभव ु णहा यो बलं वशे.
पाज या ज े य तने यो र मय तव.. (२०)
हे वशा गौ! तेरे मुख से गाथाएं उ प तथा तेरी गरदन से बल क उ प ई. तेरे
ऐन से य उ प आ तथा तेरे थन से करण उ प . (२०)
ईमा यामयनं जातं स थ यां च वशे तव.
आ े यो ज रे अ ा उदराद ध वी धः.. (२१)
हे वशा गौ! तेरे बा अथात् अगली टांग और पछले पैर से तेरा चलना होता है.
तेरी आंत से अनेक पदाथ उ प ए तथा तेरे पेट से वृ उ प ए. (२१)
य दरं व ण यानु ा वशथा वशे.
तत वा ोद यत् स ह ने मवेत् तव.. (२२)
हे वशा गौ! व ण के उदर म तेरा वेश आ. इस के प ात ने तेरा आ ान कया.
वही तेरा ने जानता है. (२२)
सव गभादवेप त जायमानादसू वः.
ससूव ह तामा वशे त भः लृ तः स या ब धुः.. (२३)
ाणहीन उ प होने वाले गभ से सभी कांपने लगे. उस ने कहा क हे वशा! तू ब चे
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को ज म दे . ा ण ने उसी को वशा का बंधु न त कया. (२३)
युध एकः सं सृज त यो अ या एक इद् वशी.
तरां स य ा अभवन् तरसां च ुरभवद् वशा.. (२४)
एक यो ा इस के समीप आता है, जो एक मा एक गौ को वश म करने वाला है. य
ही पार करने वाले बने. वशा गौ ही पार करने वाल क आंख बनी. अथात् वशा गौ के पीछे
चल कर ही सब ने ःख को पार कया. (२४)
वशा य ं यगृहणाद्
् वशा सूयमधारयत्.
वशायाम तर वशदोदनो णा सह.. (२५)
वशा गौ ने य को वीकार कया तथा सूय को धारण कया. अथात् ान के साथ
ओदन अथात् भात वशा गौ म व आ. (२५)
वशामेवामृतमा वशां मृ युमुपासते.
वशेदं सवमभवद्दे वा मनु या ३ असुराः पतर ऋषयः.. (२६)
वशा गौ को ही अमृत कहा गया है. मृ यु समझ कर भी वशा गौ क उपासना क जाती
है. वशा ही यह सब ई जैसे—दे व, मनु य, असुर, पतर और ऋ ष. (२६)
य एवं व ात् स वशां त गृह्णीयात्.
तथा ह य ः सवपाद् हे दा े ऽ नप फुरन्.. (२७)
जो इस बात को जानता है, वही वशा गौ का दान वीकार करेगा. यश सभी चरण से
ग त करता आ अथात् थर हो कर वशा गौ का दान दे ने वाले को सभी पु य फल दान
करता है. (२७)
त ो ज ा व ण या तद यास न.
तासां या म ये राज त सा वशा त हा.. (२८)
व ण के मुख म तीन ज ाएं द त ह. उन के म य म जो वराजमान है, वही वशा है.
उस को दान के प म वीकार करना क ठन काम है. (२८)
चतुधा रेतो अभवद् वशायाः.
आप तुरीयममृतं तुरीयं य तुरीयं पशव तुरीयम्.. (२९)
वशा गौ का वीय अथात् बल चार भाग म वभा जत आ. जल, अमृत, य और पशु
उस के चौथे भाग ह. (२९)
वशा ौवशा पृ थवी वशा व णुः जाप तः.
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वशाया धम पब सा या वसव ये.. (३०)
वशा गौ ौ, पृ वी, व णु और जाप त ह. जो सा य और वायु ह, उ ह ने वशा गौ का
ध पया. (३०)
वशाया धं पी वा सा या वसव ये.
ते वै न य व प पयो अ या उपासते.. (३१)
जो सा य और वसु थे, वे वशा गौ का ध पी कर वग के थान म प ंचे और सदा वशा
गौ का ध पीते ह. (३१)
सोममेनामेके े घृतमेक उपासते.
य एवं व षे वशां द ते गता दवं दवः.. (३२)
कुछ ने इस वशा गौ से सोम का दोहन कया. कुछ ने इस के घृत क उपासना क
अथात् घृत ा त कया. जो इस कार जानने वाले को वशा गौ का दान करते ह, वे दे व के
वग म जाते ह. (३२)
ा णे यो वशां द वा सवा लोका सम ुते.
ऋतं यामा पतम प ाथो तपः.. (३३)
मनु य ा ण को वशा गौ दे कर सभी लोक का सुख भोगता है. वशा गौ म स य,
ान एवं तप आ त है. (३३)
वशां दे वा उप जीव त वशां मनु या उत.
वशेदं सवमभवद् यावत् सूय वप य त.. (३४)
दे वगण एवं मनु य वशा गौ के सहारे जी वत रहते ह. जहां तक सूय का काश है, वहां
तक यह वशा गौ ही है. (३४)
सू -२ दे वता—मं मउ भव आ द
भवाशव मृडतं मा भ यातं भूतपती पशुपती नमो वाम्.
त हतामायतां मा व ा ं मा नो ह स ं पदो मा चतु पदः.. (१)
हे संसार क सृ करने वाले भव एवं संसार क हसा करने वाले शव! हम सुखी करो
तथा हमारी र ा के लए हमारे सामने आओ. ा णय एवं पशु के पालक तुम दोन को
नम कार है. अपने धनुष क डोरी पर रखा आ बाण हमारी ओर मत छोड़ो. हमारे मनु य
एवं पशु क हसा मत करो. (१)
शुने ो े मा शरीरा ण कतम ल लवे यो गृ े यो ये च कृ णा अ व यवः.
म का ते पशुपते वयां स ते वघसे मा वद त.. (२)
हे भव एवं शव! तुम हमारे शरीर को कु े और सयार के खाने यो य मत बनाओ.
कातर न होने वाले ग एवं मांस क इ छा करने वाले कौ को भी हमारे शरीर मत खाने
दो. हे पशुप त ! म खयां और तु हारे प ी भी भोजन क इ छा से हमारे शरीर को
ा त न कर. (२)
दाय ते ाणाय या ते भव रोपयः.
नम ते कृ मः सह ा ायाम य.. (३)
हे भव! हम तु हारे श द और ाण वायु को नम कार करते ह. हम तु हारे मोहक शरीर
को नम कार करते ह. हे ! हे सह ा एवं मृ यु र हत! हम तु ह नम कार करते ह. (३)
पुर तात् ते नमः कृ म उ रादधरा त.
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अभीवगाद् दव पय त र ाय ते नमः.. (४)
हे ! हम तु ह सामने से, उ र दशा से एवं द ण दशा से नम कार करते ह.
काशपूण आकाश के ऊपर वाले भाग म वतमान तु हारे लए नम कार है. (४)
मुखाय ते पशुपते या न च ूं ष ते भव.
वचे पाय सं शे तीचीनाय ते नमः.. (५)
हे पशुप त! तु हारे मुख को नम कार है. हे भव! तु हारे तीन ने को नम कार है.
तु हारे चम को, प को एवं स यक दशन क श को नम कार है. (५)
अ े य त उदराय ज ाया आ याय ते. दद् यो ग धाय ते नमः.. (६)
हे पशुप त! तु हारे हाथ, पैर आ द अंग को नम कार है. तु हारी जीभ को, मुख को,
दांत को और तु हारी गंध ाहक इं य नाक को नम कार है. (६)
अ ा नील शख डेन सह ा ेण वा जना.
े णाधकघा तना तेन मा समराम ह.. (७)
हम अ फकने वाले, नीले रंग के शखंड अथात् मोर के पंख से यु , हजार आंख
वाले, वेगशाली एवं सेना के आधे भाग का वध करने वाले के ारा ःखी न ह . (७)
स नो भवः प र वृण ु व त आप इवा नः प र वृण ु नो भवः.
मा नो ऽ भ मां त नमो अ व मै.. (८)
बताए ए भाव वाले भव हम सभी उप व से बचाएं. जस कार जलती ई अ न
जल का प र याग करती है, उसी कार भव हम याग द. वे हम बाधा न प ंचाएं. इस भव के
लए नम कार है. (८)
चतुनमो अ कृ वो भवाय दश कृ वः पशुपते नम ते.
तवेमे प च पशवो वभ ा गावो अ ाः पु षा अजावयः.. (९)
शव को चार बार और भव को आठ बार नम कार है. हे पशुप त! तु ह दस बार
नम कार है. हे पशुप त! भ भ जा त वाले पांच पशु अथात् गाय, घोड़े, पु ष, बक रयां
और भेड़ तु हारे ही ह. इन क र ा करो. (९)
तव चत ः दश तव ौ तव पृ थवी तवेदमु ोव १ त र म्.
तवेदं सवमा म वद् यत् ाणत् पृ थवीमनु.. (१०)
हे अ तशय बलशाली ! पूव आ द चार दशाएं तु हारे अ धकार म ह. ौ, पृ वी,
वशाल अंत र तथा आ मा के ारा भो ा के प म वतमान सारे शरीर तु हारे अ धकार
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म है. पृ वी पर जतने सांस लेने वाले ह, वे भी तु हारे अ धकार म ह. इन सब पर कृपा करने
के लए तु ह नम कार है. (१०)
उ ः कोशो वसुधान तवायं य म मा व ा भुवना य तः.
स नो मृड पशुपते नम ते परः ो ारो अ भभाः ानः परो य वघ दो
वके यः.. (११)
हे पशुप त! व तीण एवं पापपु य प कम को धारण करने वाला यह कोष ांड
एवं कटाह तु हारा है. सभी इसी कोष के अंदर व मान ह. हे पशुप त! तुम हम सुखी
बनाओ. तु ह नम कार है. तु हारी कृपा से हम परा जत करने वाले सयार एवं कु े हम से
र दे श म चले जाएं. अमंगल पूण रोदन करने वाली पशा चयां भी हम से र चली जाएं.
(११)
धनु बभ ष ह रतं हर ययं सह न शतवधं शख डन्.
येषु र त दे वहे त त यै नमो यतम यां दशी ३ तः.. (१२)
हे ! तुम व के संहार के लए धनुष धारण करते हो. जो हरे रंग का, वण न मत,
एक बार म एक हजार जन को ता पत करने वाला तथा सौ ा णय का वध करने वाला है.
हे मोरपंख से न मत मुकुट वाले ! तु हारे उस धनुष के लए नम कार है. दे व का बाण
बना के सव जाता है. यह दे व का हनन साधन है. यह बाण जस दशा म है, उसी दशा
म इस बाण को नम कार है. (१२)
यो ३ भयातो नलयते वां न चक ष त.
प ादनु युङ् े तं व य पदनी रव.. (१३)
हे ! जस पु ष पर तुम आ मण करते हो, वह तु हारे सामने नह ठहर पाता एवं
तु हारी हसा करने क इ छा करता है. हे दे व! इस कार के अपकारी पु ष को तुम उस के
अपराध के अनुसार उसी कार दं ड दे ते हो, जस कार घायल के पद च के
अनुसार प ंच कर श ु उस पर वार करता है. (१३)
भवा ौ सयुजा सं वदानावुभावु ौ चरतो वीयाय.
ता यां नमो यतम यां दशी ३ तः.. (१४)
भव और म बने ए, एक मत को ा त एवं श ु ारा अपराजेय हो कर
अपना शौय कट करने के लए सव घूमते ह. इन दोन के लए नम कार है. हमारे नवास
थान से वे जस दशा म वतमान ह , वह उन को नम कार है. (१४)
नम ते ऽ वायते नमो अ तु परायते.
नम ते त त आसीनायोत ते नमः.. (१५)
सू -३ दे वता—बृह प त का भोजन
त यौदन य बृह प तः शरो मुखम्.. (१)
इस कार महा भाव से पके ए ओदन के ारा य से ा त होने वाले सभी लोग
पाए जा सकते ह. (१९)
य म समु ो ौभू म यो ऽ वरपरं ताः.. (२०)
इस ओदन म सागर, ौ और भू म ऊपरनीचे थत है. (२०)
य य दे वा अक प तो छ े षडशीतयः.. (२१)
य द तुम ने पराङ् मुख हो कर ौदन खाया है, तो ाण तु ह याग दगे. ऐसे ओदन
खाने वाले क म हमा को व ान् बताएं. (२८)
य चं चैनं ाशीरपाना वा हा य ती येनमाह.. (२९)
य द तुम ने आ मा भमुख हो कर ौदन खाया है तो अपान वायु तु ह याग दे गी.
ऐसा ओदन खाने वाले क म हमा को व ान् बताएं. (२९)
नैवाहमोदनं न मामोदनः.. (३०)
न म ने ओदन खाया है और न ओदन ने मुझे खाया है. (३०)
ओदन एवौदनं ाशीत्.. (३१)
ओदन ने ही ओदन को खाया है. (३१)
सू -४ दे वता—मं म बताए गए
तत ैनम येन शी णा ाशीयन चैतं पूव ऋषयः ा न्.
ये त ते जा म र यती येनमाह.
तं वा अहं नावा चं न परा चं न य चम्. बृह प तना शी णा.
तेनैनं ा शषं तेनैनमजीगमम्. एष वा ओदनः सवा .: सवप ः सवतनूः.
सवा एव सवप ः सवतनूः सं भव त य एवं वेद.. (१)
‘हे दे वद ! पूववत अनु ान करने वाल ने जस शीश से इस ओदन को खाया था, तुम
ने य द उस से भ शीश के ारा खाया है तो तु हारी संतान ये म से मरेगी अथात् सब
से पहले बड़ा लड़का मरेगा, उस के प ात उस से कम आयु वाला’—ऐसा श य से गु कहे.
श य कहे क इस ओदन को म ने न पराङ् मुख हो कर खाया था और न आ मा भमुख हो
कर खाया है. बृह प त से संबं धत ओदन का जो शीश है, उस ओर से म ने ओदन को खाया
था तथा उसी शीश से ओदन को वहां प ंचाया है, जहां उसे प ंचना चा हए. यह ओदन सभी
अंग से यु , सभी जोड़ से यु एवं संपूण शरीर वाला है. जो पु ष ऊपर बताए ए ढं ग से
ओदन को खाना जानता है, वही संपूण अंग से यु , सभी जोड़ से यु एवं संपूण शरीर
वाला होता है. (१)
तत ैनम या यां ो ा यां ाशीया यां चैतं पूव ऋषयः ा न्.
ब धरो भ व यसी येनमाह.
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तं वा अहं नावा चं न परा चं न य चम्.
ावापृ थवी यां ो ा याम्. ता यामेनं ा शषं ता यामेनमजीगमम्.
एष वा ओदनः सवा ः सवप ः सवतनूः.
सवा ः एव सवप ः सवतनूः सं भव त य एवं वेद.. (२)
‘हे दे वद ! इन पूववत अनु ान कता ऋ षय ने जन कान क ओर से इस ओदन को
खाया था, तुम ने य द उस से भ ओर से उस को खाया तो तुम बहरे हो जाओगे.’—गु
श य से इस कार कहे. श य कहे क म ने इस ओदन को न पराङ् मुख हो कर खाया, न
सामने हो कर खाया और न आ मा भमुख हो कर खाया. म ने ओदन को ावा, पृ वी प
कान क ओर से खाया है. उ ह के ारा म ने ओदन खाया है और उसे वहां प ंचा दया,
जहां उसे प ंचना था. यह ओदन सभी अंग से यु , सभी जोड़ वाला और संपूण शरीर के
प म है. जो इस ओदन को इस प म जानता है, वही सम त अंग वाला, सभी जोड़
स हत एवं संपूण शरीर यु होता है. (२)
तत ैनम या याम ी यां ाशीया यां चैतं पूव ऋषयः ा न्.
अ धो भ व यसी येनमाह.
तं वा अहं नावा चं न परा चं न य चम्. सूयाच मसा या म ी याम्.
ता यामेनं ा शषं ता यामेनमजीगमम्.
एष वा ओदनः सवा ः सवप ः सवतनूः.
सवा एव सवप ः सवतनूः सं भव त य एवं वेद.. (३)
‘हे दे वद ! पूववत अनु ान कता ऋ षय ने जन आंख क ओर से इस ओदन को
खाया था, तुम ने य द उस से भ उस क आंख क ओर से खाया तो तुम अंधे हो
जाओगे’—गु इस कार अपने श य से कहे. श य कहे क म ने इस ओदन को न
पराङ् मुख हो कर खाया और न सामने हो कर खाया और न आ मा भमुख हो कर खाया है.
म ने इस ओदन को सूय और चं मा पी आंख क ओर से खाया है. म ने इसे उ ह के ारा
खाया है और इसे वह प ंचा दया है, जहां इसे प ंचना चा हए. यह ओदन सभी अंग से
यु , सभी जोड़ स हत एवं संपूण शरीर वाला है. जो इस ओदन को इस प म खाना
जानता है, वही सम त अंग से यु , सभी जोड़ स हत एवं संपूण शरीर वाला है. (३)
तत ैनम येन मुखने ाशीयन चैतं पूव ऋषयः ा न्.
मुखत ते जा म र यती येनहमा.
तं वा अहं नावा चं न परा चं न य चम्.
णा मुखेन. तेनैनं ा शषं तेनैनमजीगमम्.
एष वा ओदनः सवा ः सवप ः सवतनूः.
सवा एव सवप ः सवतनूः सं भव त य एवं वेद.. (४)
‘हे दे वद ! पूववत अनु ान कता ऋ षय ने जस मुख से इस ओदन को खाया था,
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य द तुम ने उस से भ उस के मुख क ओर से खाया तो तु हारी संतान मर जाएगी’—गु
इस कार अपने श य से कहे. श य कहे क म ने इस ओदन को न पराङ् मुख हो कर खाया
और न सामने हो कर खाया और न आ मा भमुख हो कर खाया. म ने इसे पी मुख क
ओर से खाया. म ने इस ओदन को इसी मुख से खाया और वह प ंचाया है, जहां इसे
प ंचना चा हए था. यह ओदन सभी अंग से यु , सभी जोड़ वाला एवं संपूण शरीर से यु
है. जो पु ष ऊपर बताई ई व ध से इस ओदन को खाना जानता है, वही संपूण अंग से
यु , सभी जोड़ स हत और संपूण शरीर वाला होता है. (४)
तत ैनम यया ज या ाशीयया चैतं पूव ऋषयः ा न्.
ज ा ते म र यती येनमाह.
तं वा अहं नावा चं न परा चं न य चम्.
अ ने ज या. तयैनं ा शषं तेयैनमजीगमम्.
एष वा ओदनः सवा ः सवप ः सवतनूः.
सवा एव सवप ः सवतनूः सं भव त य एवं वेद.. (५)
‘हे दे वद ! पूववत अनु ान कता ऋ षय ने जस जीभ क ओर से इस ौदन को
खाया है, तुम ने य द उस से भ उस क जीभ क ओर से खाया तो तु हारी जीभ मर
जाएगी अथात् तुम गूंगे हो जाओगे’— गु अपने श य से इस कार कहे. श य कहे क म
ने इस ओदन को न पराङ् मुख हो कर खाया और न सामने से खाया और न आ मा भमुख हो
कर खाया. म ने इसे अ न क जीभ से खाया है. म ने इसे वह प ंचा दया है, जहां इसे
प ंचना चा हए था. यह ओदन सम त अंग स हत, सभी जोड़ स हत और संपूण शरीर
वाला है. इस व ध से जो इस ओदन को खाना जानता है, वही सब अंग से यु , पूरे जोड़
स हत एवं संपूण शरीर वाला होता है. (५)
तत ैनम यैद तैः ाशीय ैतं पूव ऋषयः ा न्. द ता ते
श य ती येनमाह.
तं वा अहं नावा चं न परा चं न य चम्.
ऋतु भद तैः तैरेनं ा शषं तैरेनमजीगमम्.
एष वा ओदनः सवा ः सवप ः सवतनूः.
सवा एव सवप ः सवतनूः सं भव त य एवं वेद.. (६)
‘हे दे वद ! पूववत अनु ान कता ऋ षय ने जन दांत क ओर से इस ौदन को
खाया था, तुम ने य द उस से भ उस के दांत क ओर से इसे खाया तो तु हारे दांत गर
जाएंगे.’ गु अपने श य से इस कार कहे. श य कहे क म ने इस ओदन का न पराङ् मुख
हो कर खाया, न सामने से खाया और न आ मा भमुख हो कर खाया. म ने इसे वसंत आ द
ऋतु पी दांत से खाया है. म ने इसे उ ह के ारा खाया है और इसे जहां जाना चा हए
था, वह प ंचा दया है. यह ओदन सम त अंग से यु सभी जोड़ स हत और संपूण शरीर
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वाला है. इस व ध से जो इस ओदन को खाना जानता है, वही सम त अंग वाला, सभी
जोड़ स हत एवं संपूण शरीर वाला है. (६)
सू -५ दे वता—मं म बताए गए
एतद् वै न य व पं यदोदनः.. (१)
यह जो पूव ओदन अथात् भात है, वह सूय मंडल के म यवत ई र के आकाश म
थत मंडल ह. (१)
नलोको भव त न य व प यते य एवं वेद.. (२)
सू -६ दे वता— ाण
ाणाय नमो य य सव मदं वशे.
यो भूतः सव ये रो य म सव त तम्.. (१)
इस ाण के लए नम कार है, जस के वश म यह सम त चराचर जगत् है. यह ाण
सब का ई र है और इसी म सारा जगत् थत है. (१)
नम ते ाण दाय नम ते तन य नवे.
नम ते ाण व ुते नम ते ाण वषते.. (२)
हे व न करते ए ाण! तु हारे लए नम कार है, मेघ घटा म घुस कर वषा करने वाले
तु हारे लए नम कार है. बजली के प म का शत एवं वषा करते ए तु ह नम कार है.
(२)
यत् ाण तन य नुना भ द योषधीः.
वीय ते गभान् दधतेऽथो ब व जाय ते.. (३)
जब ाण अथात् सूया मक दे व वषा काल म मेघ व न के ारा जौ, गे ं, एवं जंगली
वृ को ल य कर के गरजते ह, तब सभी फसल गभ धारण करती ह एवं अनेक कार से
उ प होती ह. (३)
यत् ाण ऋतावागते ऽ भ द योषधीः.
सव तदा मोदते यत् क च भू याम ध.. (४)
जब ाण अथात् सूया मक दे व वषा ऋतु आने पर फसल को ल य कर के गजन
करते ह, तब भू म पर जतने भी ाणी ह, वे सब स होते ह. (४)
यदा ाणो अ यवष द् वषण पृ थव महीम्.
पशव तत् मोद ते महो वै नो भ व य त.. (५)
जस समय ाण अथात् सूय दे व, पृ वी को वषा के जल से सभी ओर गीला कर दे ते ह,
उस समय गाय आ द पशु स होते ह क घास क अ धकता से हमारे लए उ सव होगा.
(५)
अ भवृ ा ओषधयः ाणेन समवा दरन्.
आयुव नः ातीतरः सवा नः सुरभीरकः.. (६)
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ाण अथात् सूय दे व के ारा वषा के जल से स ची गई फसल और जड़ीबू टयां सूय से
संभाषण करने लगती ह—“हे ाण अथात् सूय दे व! तुम हमारा जीवन बढ़ाओ तथा हम
शोभन गंध वाली बनाओ.” (६)
नम ते अ वायते नमो अ तु परायते.
नम ते ाण त त आसीनायोत ते नमः.. (७)
हे ाण दे व! तुझ आते ए को नम कार है और वापस जाते ए को नम कार है. हे
ाण दे व! तुझ थर रहने वाले को तथा बैठे ए को नम कार है. (७)
नम ते ाण ाणते नमो अ वपानते.
पराचीनाय ते नमः तीचीनाय ते नमः सव मै त इंद नमः.. (८)
हे ाण दे व! सांस लेने का ापार करने वाले तु ह नम कार है तथा अपान वायु छोड़ने
वाले तु ह नम कार है. अ धक कहने से या लाभ है, सम त ापार अथात् याएं करने
वाले तु ह नम कार है. (८)
या ते ाण या तनूय ते ाण ेयसी.
अथो यद् भेषजं तव त य नो धे ह जीवसे.. (९)
हे ाण दे व! तु हारा य जो शरीर है एवं ाण, अपान अथात् अ न और सोम पी
तु हारी जो दो याएं ह तथा जो तु हारी अमरता दान करने वाली ओष ध है, इन सब से
हम जीवन के अमृत का साधन ओष ध दान करो. (९)
ाणः जा अनु व ते पता पु मव यम्.
ाणो ह सव ये रो य च ाण त य च न.. (१०)
हे ाण दे व! सम त जा के शरीर म तुम इस कार नवास करते हो, जस कार
पता अपने व से य पु को ढकता है. ाण उन सब के वामी ह, जो सांस लेते ह
अथवा सांस नह लेते ह. (१०)
ाणो मृ युः ाण त मा ाणं दे वा उपासते.
ाणो ह स यवा दनमु मे लोक आ दधत्.. (११)
ये ाण दे व ही मृ यु करने वाले ह एवं यही जीवन को क मय बनाने वाले वर ह. शरीर
के म य म वतमान इ ह ाण क दे वगण उपासना करते ह. (११)
ाणो वराट् ाणो दे ी ाणं सव उपासते.
ाणो ह सूय माः ाणमा ः जाप तम्.. (१२)
सू -७ दे वता— चारी
चारी णं र त रोदसी उभे त मन् दे वाः संमनसो भव त.
स दाधार पृ थव दवं च स आचाय १ तपसा पप त.. (१)
वेद का अ ययन करने वाला अपने तप से धरती और आकाश दोन म ा त होता है.
इं आ द सभी दे व इस चारी के त अनु ह करते ह. यह चारी अपने तप से धरती
और वग को धारण करता है तथा स माग पर चलता आ अपने आचाय का पालन करता
है. (१)
चा रणं पतरो दे वजनाः पृथग् दे वा अनुसंय त सव.
ग धवा एनम वायन् य ंशत् शताः षट् सह ाः सवा स दे वां तपसा
पप त.. (२)
पतर, दे वजन एवं इं आ द सभी दे व चारी क र ा के लए उस के पीछे चलते ह.
गंधव भी चारी का अनुगमन करते ह. चारी अपने तप से ततीस, तीस और छह हजार
सं या वाले सभी दे व का पालन करता है. (२)
सू -८ दे वता—अ न
अ नं ूमो वन पतीनोषधी त वी धः.
इ ं बृह प त सूय ते नो मु च वंहसः.. (१)
हम अ न क , वन प तय क , जड़ीबू टय और फसल क , वृ क , इं क,
बृह प त क तथा सूय क तु त करते ह. वे हम सभी पाप से मु कर. (१)
ू ो राजानं व णं म ं व णुमथो भगम्.
म
अंशं वव व तं ूम ते नो मु च वंहसः.. (२)
हम तेज वी व ण क , म क , व णु क , भग क , अंश और वव वान अथात् सूय
क तु त करते ह. वे हम पाप से मु कर. (२)
ू ो दे वं स वतारं धातारमुत पूषणम्.
म
व ारम यं ूम ते नो मु च वंहसः.. (३)
हम दाना द गुण से यु स वता, धाता, पूषा, व ा और अ न क तु त करते ह. वे
हम पाप से मु कर. (३)
ग धवा सरसो ूमो अ ना ण प तम्.
अयमा नाम यो दे व ते नो मु च वंहसः.. (४)
हम थम गने जाने वाले गंधव क , अ सरा क , अ नीकुमार क , व ा क
तु त करते ह. वे हम पाप से मु कर. (४)
अहोरा े इदं ूमः सूयाच मसावुभा.
व ाना द यान् ूम ते नो मु च वंहसः.. (५)
हम दनरात तथा सूय चं मा दोन क तु त करते ह. हम सभी आ द य क तु त
करते ह. वे हम पाप से मु कर. (५)
वातं ूमः पय यम त र मथो दशः.
सू -१० दे वता—म यु
य म युजायामावहत् संक प य गृहाद ध.
क आसं ज याः के वराः क उ ये वरो ऽ भवत्.. (१)
माया के अ भमुख उसी कार ा त आ, जस कार प त प नी के सामने जाता
है. ने माया को उसी कार ा त कया, जस कार प त अपनी प नी को घर से ा त
करता है. ा क सृ रचना क इ छा म वधू प के बंधन कौन थे? क या का वरण करने
वाले कौन थे? उस समय धान वर अथात् ववाह करने वाला कौन था? (१)
तप ैवा तां कम चा तमह यणवे.
त आसं ज या ते वरा ये वरो ऽ भवत्.. (२)
उस सृ रचना के समय सृ क रचना करने वाले परमे र का तप और कम ही उस
समय थत थे. यह तप और कम लय काल के सागर का मं था. ववाह के मु त पर जो
क या प वाले बंधन थे, वे ही ववाह करने वाले थे. उन म सब से बड़ा वर था. (२)
दश साकमजाय त दे वा दे वे यः पुरा.
यो वै तान् व ात् य ं स वा अ महद् वदे त्.. (३)
अ न आ द दे व क उ प से पहले ही ान यां और कम यां उ प . जो
उपासक उन दे व को जान सकेगा, वह य ही का उपदे श करेगा. (३)
ाणापानौ च ुः ो म त त या.
ानोदानौ वाङ् मन ते वा आकू तमावहन्.. (४)
ाण और अपान वायु, नयन, कान, ीण होने वाली या श , य र हत ,
ान और उदान वायुए,ं वाणी और मन ने दे वकृत संक प को धारण कया. (४)
अजाता आस ृतवो ऽ थो धाता बृह प तः.
इ ा नी अ ना त ह कं ते ये मुपासत.. (५)
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सृ रचना के समय वसंत आ द ऋतुएं उ प नह ई थ . धाता, बृह प त, इं , अ न
तथा दो अ नीकुमार भी उस समय उ प नह ए थे. धाता आ द वे दे व अपने ज मदाता
क उपासना कर रहे थे. (५)
तप ैवा तां कम चा तमह यणवे.
तपो ह ज े कमण तत् ते ये मुपासत.. (६)
लय काल के महासागर म तप और कम ही थे. तप कम से उ प आ था. वे धाता
आ द सृ के कारण बने ए क उपासना कर रहे थे. (६)
येत आसीद् भू मः पूवा याम ातय इद् व ः.
यो वै तां व ा ामथा स म येत पुराण वत्.. (७)
सामने वतमान इस भू म से पहले जो भू म थी. उसे तप के भाव से श ा त करने
वाले ऋ ष जानते थे. जो अतीत काल के क प म थत उस भू म को जो जानेगा, वह
ाचीन अथ को जानने वाला माना जाएगा. (७)
कुत इ ः कुतः सोमः कुतो अ नरजायत.
कुत व ा समभवत् कुतो धाताजायत.. (८)
कहां से इं , कहां से सोम और कहां से अ न उ प ई? व ा कहां से उ प आ
तथा धाता क उ प कहां से ई? (८)
इ ा द ः सोमत् सोमो अ नेर नरजायत.
व ा ह ज े व ु धातुधाताजायत.. (९)
पूव काल म जो इं थे, उन से इन वतमान काल के इं क उ प ई. इसी सोम से
सोम, अ न से अ न, व ा से व ा और धाता से धाता उ प ए. (९)
ये त आसन् दश जाता दे वा दे वे यः पुरा.
पु े यो लोकं द वा क मं ते लोक आसते.. (१०)
ाचीन काल म दे व से जो दस दे व उ प ए, वे अपने पु को यह लोक दे कर भी
वयं कस लोक म नवास करते ह? (१०)
यदा केशान थ नाव मांसं म जानमाभरत्.
शरीरं कृ वा पादवत् कं लोकमनु ा वशत्.. (११)
जस सृ रचना के समय रचना करने वाले ने केश को, अ थय को, नायु अथात्
नस को, मांस को और म जा अथात् चरबी को एक कया. हाथपैर वाले शरीर क रचना
सू -११ दे वता—अबु द
ये बाहवो या इषवो ध वनां वीया ण च.
असीन् परशूनायुधं च ाकूतं च यद्धृ द.
सव तदबुदे वम म े यो शे कु दारां दशय.. (१)
हमारे यो ा के जो बाण, जो भुजाएं और बल है, तलवार और फरसा पी आयुध,
च म संक पत श ु को मारना काय है, हे अबुद ऋ ष के पु षाथ! तुम यह सब हमारे
श ु को दखलाओ. श ु को डसने के लए हम अंत र म वचरण करने वाले रा स
और पशाच को दखाओ. (१)
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उ त सं न वं म ा दे वजना यूयम्.
सं ा गु ता वः स तु या नो म ा यबुदे .. (२)
हे म ो अथात् हमारी वजय के दानशील दे वगणो! तुम सेना क इस छावनी से
वजय ा त के लए ाथना करो. आप के ारा दए ए हमारे यो ा आप के ारा र त
ह. हे अबुद सप! हमारे जो म ह जो हमारे श ु के साथ यु करने के लए आए ह, उन
के तुम अंग बनो. (२)
उ तमा रभेथामादानसंदाना याम्. अ म ाणां सेना अ भ ध मबुदे ..
(३)
हे अबु द सप! तुम और नबुद इस थान से चले जाओ. तुम यहां से र जाओ. तथा
यु करो. तुम आदान और संदान नाम क र सय से श ु क सेना को बांधो. (३)
अबु दनाम यो दे व ईशान यबु दः.
या याम त र मावृत मयं च पृ थवी मही.
ता या म मे द यामहं जतम वे म सेनया.. (४)
अबु द, ईशान और यबु द नाम के जो दे व है, उन के ारा आकाश और वशाल पृ वी
को ढक लया है. वग और धरती को ा त कर के थत एवं इं के म अबु द और
यबु द के ारा जीती ई सेना का म अनुगमन क ं . (४)
उ वं दे वजनाबुदे सेनया सह.
भ म ाणां सेनां भोगे भः प र वारय.. (५)
हे दे व जा त से संबं धत अबु द नाम के सप! तुम अपनी सेना के साथ उठो. इस के बाद
तुम श ु क सेना का वध करते ए अपने सप शरीर के ारा उन क आंख बंद कर
लो. (५)
स त जातान् यबुद उदाराणां समी यन्.
ते भ ् वमा ये ते सव सेनया.. (६)
हे यबु द नाम के सप! पहले बताए ए आंख को बंद करने वाले सब शरीर के शु
को दखाते ए तुम घृत एवं आ य के होने पर उन सब के ारा जाते ए श ु को उन सब
को दखाओ जो उन क आंख को बंद कर दे ते ह. तुम उन सब के साथ हमारी सेना के संग
उठो. (६)
त नाना मु ुखी कृधुकण च ोशतु.
वकेशी पु षे हते र दते अबुदे तव.. (७)
सू -१२ दे वता— षं ध
उ त सं न वमुदाराः केतु भः सह.
सपा इतरजना र ां य म ाननु धावत.. (१)
हे उदार गुण वाले सेनानायको! अपने झंड के साथ उठो और यु के लए चलो. तुम
कवच आ द पहन कर यु के लए तैयार हो जाओ. हे सप क आकृ त वाले दे वो! हे
रा सो! तुम भी हमारे श ु के पीछे दौड़ो. (१)
ईशां वो वेद रा यं ष धे अ णैः केतु भः सह.
ये अ त र े ये द व पृ थ ां ये च मानवाः.
ष धे ते चेत स णामान उपासताम्.. (२)
हे श ुओ! व के अ भमानी दे व षं ध तु हारा रा य छ न कर अपने अ धकार म
कर. हे व ा मक दे व! तु हारे जो लाल झंडे आकाश म उ पात के प म उ प होते ह तथा
भूलोक म मनु य संबंधी ह, तुम उन के साथ आओ. (२)
अयोमुखाः सूचीमुखा अथो वकङ् कतीमुखाः.
ादो वातरंहस आ सज व म ान् व ेण ष धना.. (३)
लोहे के समान मुख वाले, सूई के आकार के मुंह वाले, ब त से कांट जैसे पंख वाले
प ी, ग आ द मांस भ ी प ी और हवा के समान तेजी से उड़ने वाले प ी, हमारे जस
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श ु के आसपास मंडराते ह, वे व से मारे जाएं. (३)
अ तध ह जातवेद आ द य कुणपं ब .
ष धे रयं रोना सु हता तु मे वशे.. (४)
हे जातवेद अ न! आ द य दे व अथात् सूय को आकाश म गरते ए शव के शरीर के
ारा ढक दो. षं ध नामक दे व से संबंध रखने वाली यह सेना भलीभां त मेरे वश म हो,
जस से म श ु को मार सकूं. (४)
उ वं दे वजनाबुदे सेनया सह.
अयं ब लव आ त ष धेरा तः या.. (५)
हे दे व जा त के अबु द नाम के सप! तुम अपनी सेना के साथ उठो. हमारा यह ब ल
काय तु हारी तृ त करने वाला हो. षं ध दे व क जो सेना है, वह भी ब ल ा त होने के
कारण श ु का वनाश करे. (५)
श तपद सं तु शर े ३ यं चतु पद .
कृ ये ऽ म े यो भव ष धेः सह सेनया.. (६)
े चरण वाली गाय, चार चरण वाली हो कर तथा बाण का समूह बना कर हमारे
त
श ु को ा त हो. हे कृ या पणी गौ! तू षं ध दे व के समान हमारे श ु का संहार
करने वाली बन. (६)
धूमा ी सं पततु कृधुकण च ोशतु.
ष धेः सेनया जते अ णाः स तु केतवः.. (७)
हमारे श ु क सेना माया से उ प धुएं से ढके ए नयन वाली हो जाए. हमारे रण
के बाज के कारण उन के कान बहरे हो जाएं. इस कार षं ध नामक दे व के ारा श ु क
सेना को जीत लए जाने पर दे व सेना के झंडे लाल रंग को हो जाएं. (७)
अवाय तां प णो ये वयां य त र े द व ये चर त.
ापदो म काः सं रभ तामामादो गृ ाः कुणपे रद ताम्.. (८)
जो प ी मरी ई श ु सेना का मांस खाने के लए नीचे क ओर मुंह कर के आकाश म
उड़ते ह तथा ुलोक अथात् वग म जो प ी उड़ते ह, वे तथा मांसभ ी सह, गीदड़ आ द
पशु और मांस भ णी नीले रंग क म खयां शव का मांस खाने के लए श ु सेना म
वचरण कर. मांस भ क ग श ु सेना के शरीर को अपनी च च से नोच. (८)
या म े ण संधां समध था णा च बृह पते.
तया ऽ ह म संधया सवान् दे वा नह व इतो जयत मामुतः.. (९)
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हे बृह प त दे व! इं और जाप त दे व के साथ जो आपने त ा क है. म उस दे व
सेना को उस सं ाम म बुलाता ं. हे बुलाए गए दे व! हमारी सेना को वजय दान करो.
हमारे श ु सै नक को वजय मत दान करो. (९)
बृह प तरा रस ऋषयो सं शताः.
असुर यणं वधं ष धं द ा यन्.. (१०)
अं गरा ऋ ष के पु बृह प त जो दे व के मं ी ह, वेद मं के अ यास से श शाली
बन अ य ऋ षय ने असुर का नाश करने वाले आयुध व को ल ु ोक अथात् वग म थत
कया है. (१०)
येनासौ गु त आ द य उभा व त तः.
ष धं दे वा अभज तौजसे च बलाय च.. (११)
जस व के ारा दखाई दे ने वाले आ द य अथात् सूय को वग म पाला गया है,
जस व क श के कारण आ द य और इं दोन अपनेअपने थान पर थत ह, उस
षं ध नाम के दे व अथात् व क सभी दे व ने तेज और बल क ा त के लए सेवा क है.
(११)
सवा लोका समजयन् दे वा आ यानया.
बृह प तरा रसो व ं यम स चतासुर यणं वधम्.. (१२)
अं गरा ऋ ष के पु एवं दे व के मं ी बृह प त ने तथा इं आ द दे व ने इस आ त के
ारा असुर को मार कर सभी लोक को ा त कया है. बृह प त ने असुर का वनाश करने
के साधन उस व को इस आ त के ारा ही बनाया है. (१२)
बृह प तरा रसो व ं यम स चतासुर यणं वधम्.
तेनाहममूं सेनां न ल पा म बृह पते ऽ म ान ह योजसा.. (१३)
अं गरा ऋ ष के पु एवं दे व के मं ी बृह प त ने तथा इं आ द दे व ने असुर का वध
करने वाले जस व क रचना घृत क आ त से क है, हे दे वो! उस व के ारा म अपनी
श ु सेना का वनाश करता ं. सेना के वनाश के कारण म अपने श ु का वनाश अपने
बल से क ं . (१३)
सव दे वा अ याय त ये अ त वषट् कृतम्.
इमां जुष वमा त मतो जयत मामुतः.. (१४)
इं आ द सभी दे व हमारे श ु को छोड़ कर हमारे सामने आएं. वे दे व वषट् श द के
साथ दए गए ह व का भोग करते ह. वे सब हमारी उस आ त का सेवन कर. उस आ त से
स सभी दे व हमारी सेना को वजयी बनाएं. हमारे श ु क सेना को वजयी न
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बनाएं. (१४)
सव दे वा अ याय तु ष धेरा तः या.
संधां महत र त यया े असुरा जताः.. (१५)
इं आ द सभी दे व हमारे श ु क सेना को छोड़ कर हमारे पास आएं. सेना को
मो हत करने वाले दे व को हमारी यह आ त स करने वाली हो. हे दे वो! अपनी असुर
वजय क महती त ा क र ा करो. इस षं ध क आ त ने पहले असुर को जीत
लया था. (१५)
वायुर म ाणा म व ा या चतु.
इ एषां बा न् त भन ु मा शकन् तधा मषुम्.
आ द य एषाम ं व नाशयतु च मा युतामगत य प थाम्.. (१६)
वायु दे व श ु के बाण के आगे जाएं. ता पय यह है क तकूल हवा के कारण उन
के बाण अपना ल य ा त न कर सक. इं दे व उन क घायल भुजा को आयुध पकड़ने
के अयो य बनाएं. सूय उन श ु के आयुध का वनाश कर. चं मा हमारे श ु को उस
माग से अलग कर जो हमारे समीप तक आता है. (१६)
य द ेयुदवपुरा वमा ण च रे तनूपानं
प रपाणं कृ वाना य पो चरे सव तदरसं कृ ध.. (१७)
हे दे व! हमारे श ु ने तनूपान एवं प रमाण नामक कम के समय अपने मं मय कवच
को स कर लया है. तुम इन कम से संबं धत मं को असफल बनाओ. (१७)
ादानुवतयन् मृ युना च पुरो हतम्.
ष धे े ह सेनया जया म ान् प व.. (१८)
हे षं ध दे व! हमारे सामने थत श ु के पीछे मांसभ ी पशु चल. तुम हमारी सेना के
साथ जाओ और हमारे श ु का वनाश करने के लए उन म घुसो. (१८)
ष धे तमसा वम म ान् प र वारय.
पृषदा य णु ानां मामीषां मो च क न.. (१९)
हे षं ध! तुम हमारे श ु को अंधकार के ारा घेर लो. हमारे य काय म तुम दही
से मले भात को खाने के लए बुलाए गए हो. तुम हमारे श ु म से एक को भी जी वत मत
छोड़ो. (१९)
श तपद सं पत व म ाणाममूः सचः.
मु व ामूः सेना अ म ाणां यबुदे .. (२०)
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े चरण वाली गौ हमारे श ु क उस सेना को शोक दान करने के लए जाए
त
और हमारे बाण से पी ड़त उस सेना पर टू ट पड़े. हे यबु द! सामने दखाई दे ने वाली यह
सेना आज यु के समय मोह को ा त हो जाए. (२०)
मूढा अ म ा यबुदे ज ेषां वरंवरम्. अनया ज ह सेनया.. (२१)
हे यबु द! तुम हमारे श ु को अपनी माया के कत और अकत जानने के लए
मूख बना दो. तुम इस सेना के े को न कर दो. तु हारी कृपा से हमारी सेना वजय ा त
करे. (२१)
य कवची य ाकवचो ३ म ो य ा म न.
यापाशैः कवचपाशैर मना भहतः शयाम्.. (२२)
हमारा जो श ु कवच धारण कए है अथवा जो कवच र हत है, हमारे जो श ु रथ म
बैठे ह, वे अपनेअपने पाश से बंधे ए सो जाएं. (२२)
ये व मणो ये ऽ वमाणो अ म ा ये च व मणः.
सवा ताँ अबु दे हतांछ्वानो ऽ द तु भू याम्.. (२३)
हमारे जो श ु कवच धारण करने वाले, कवचहीन और कवच के अ त र अ य श
से र ा करने वाले साधन से यु ह, हे यबु द! तु हारे ारा मारे गए उन श ु को कु े
आ द मांसभ ी पशु खाएं. (२३)
ये र थनो ये अरथा असादा ये च सा दनः.
सवानद तु तान् हतान् गृ ाः येनाः पत णः (२४)
हमारे जो श ु रथ म बैठे ह, जो रथहीन ह, जो घोड़े पर सवार ह और जो बना घोड़े
वाले ह, उन सब को ग , बाज तथा अ य मांसभ ी प ी खाएं. (२४)
सह कुणपा शेतामा म ी सेना समरे वधानाम्. व व ा ककजाकृता..
(२५)
हमारे श ु क सेना हमारी सेना को ा त कर के आयुध साधन क यु म भड़ंत
होने पर मरी ई एवं अन गनती लाश वाली हो. (२५)
ममा वधं रो वतं सुपणरद तु तं मृ दतं शयानम्.
य इमां तीचीमा तम म ो नो युयु स त.. (२६)
शोभन पतन वाले बाण के ारा मम थल म व एवं अ य धक रोते ए ःख से
पूण, चूण कए ए और धरती पर पड़े ए श ु सै नक को गीदड़ आ द मांसभ ी पशु खाएं.
सू -२ दे वता—अ न तथा मृ यु
नडमा रोह न ते अ लोक इदं सीसं भागधेयं त ए ह.
यो गोषु य मः पु षेषु य म तेन वं साकमधराङ् परे ह.. (१)
हे ाद अ न! तू नड अथात् सरकंडे पर आरोहण कर. जो य मा रोग मनु य म
अथवा जो य मा गौ म है, तू उस के साथ यहां से र चली जा. तू अपने भा य क सीमा पर
आ. (१)
अघशंस ःशंसा यां करेणानुकरेण च.
य मं च सव तेनेतो मृ युं च नरजाम स.. (२)
पाप और भावना का नाश करने वाले कर तथा अनुकर से म य मा रोग को पृथक्
करता ं. म मृ यु को भी र भगाता ं. (२)
न रतो मृ युं नऋ त नररा तमजामा स.
यो नो े तम ने अ ाद् यमु म तमु ते सुवाम स.. (३)
सू -४ दे वता—वशा
ददामी येव ूयादनु चैनामभु सत.
वशां यो याच य तत् जावदप यवत्.. (१)
म मांगने वाले ा ण को दे ता ं, ऐसा कह कर उ र दे , फर वे ा ण कह क यह
कम यजमान को संतान आ द से संप कराने वाला हो. (१)
जया स व णीते पशु भ ोप द य त.
य आषये यो याच यो दे वानां गां न द स त.. (२)
जो पु ष ऋ षय स हत मांगने वाले ा ण को दे वता के न म गोदान नह
करता, वह अपनी संतान व य करने वाला होता आ पशु से हीन हो जाता है. (२)
सू -५ दे वता— गवी
मेण तपसा सृ ा णा व त ता.. (१)
तप के ारा वर चत तथा पर म आ त इस धेनु को ा ण ने यम से ा त कया
है. (१)
स येनावृता या ावृता यशसा परीवृता.. (२)
यह धेनु स य, संप और यश से प रपूण है. (२)
सू -६ दे वता— गवी
ओज तेज सह बलं च वाक् चे यं च ी धम . (१)
च ं च रा ं च वश व ष यश वच वणं च. (२)
आयु पं च नाम च क त ाण ापान च ु ो ं च. (३)
पय रस ा ं चा ा ं चत च स यं चे ं च पूत च जा च पशव . (४)
ता न सवा यप ाम त गवीमाददान य जनतो ा णं य य.
(५)
सू -७ दे वता— गवी
सैषा भीमा ग १ घ वषा सा ात् कृ या कू बजमावृता.. (१)
ा ण क यह धेनु वराजमान होती है. कू बज पाप से ढके ए हसा करने वाले वष
से यु ई यह धेनु कृ या के समान हो जाती है. (१)
सू -८ दे वता— गवी
वैरं वकृ यमाना पौ ा ं वभा यमाना.. (१)
यह ा ण क अप त अथात् चुराई ई गाय है. यह पु , पौ आ द का बंटवारा कर
उन का वनाश करने वाली है. (१)
दे वहे त यमाणा ृ ता.. (२)
ा ण क यह गाय हरण करते समय अथात् चुराते समय अ प है और चुराने के
बाद चुराने वाले को ीण करने वाली होती है. (२)
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पा मा धधीयमाना पा यमवधीयमाना.. (३)
पाप प होने वाली ा ण क यह गाय कठोरता उ प करती है. (३)
वषं य य ती त मा य ता.. (४)
ा ण क चुराई ई गाय य द ध दे ती है तो इस का ध और मांस वष के समान
होता है तथा यह चुराने वाले का जीवन संकट म डालने का कारण बनती है. (४)
अघं प यमाना व यं प वा.. (५)
ा ण क यह गाय पकाते समय सन अथात् बुरी लत को बढ़ाने वाली है तथा पक
जाने पर बुरे व का कारण बनती है. (५)
मूलबहणी पया यमाणा तः पयाकृता.. (६)
ा ण क चुराई ई गाय को अगर बेचा जाए तो चुराने वाले को जड़ से उखाड़ दे ती
है. बेचने के बाद यह चुराने वाले को ीण करती है. (६)
असं ा ग धेन शुगुद ् यमाणाशी वष उद्धृता.. (७)
य द ा ण क गाय को उठाया तो उठाते समय यह शोक दान करती है और उठाने
के बाद उठाने वाले के लए सप के वष के समान बन जाती है. यह अपनी गंध से चुराने वाले
क चेतना न कर दे ती है. (७)
अभू त प यमाणा पराभू त प ता.. (८)
य द ा ण क गाय चुरा कर कसी को उपहार म द जाए तो यह पराभव अथात् हार
का कारण बनती है. उपहार म दे ने के बाद यह उपहार दे ने वाले क समृ न करती है.
(८)
शवः ु ः प यमाना श मदा प शता.. (९)
य द ा ण क गाय को लेश दया जाए तो यह ोध म भरे शव शंकर के समान बन
जाती है. य द इस का र नकाला जाए तो यह र नकालने वाले को मृ यु दे ने वाली होती
है. (९)
अव तर यमाना नऋ तर शता.. (१०)
य द ा ण क गाय का मांस खाया जाए तो यह खाने वाले को द र बना दे ती है.
मांस खाने के बाद यह खाने वाले को बुरी ग त दान करती है. (१०)
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अ शता लोका छन गवी यम मा चामु मा च.. (११)
य द ा ण को हा न प ंचाई जाए तो ा ण क गाय इहलोक और परलोक दोन को
बगाड़ दे ती है. (११)
सू -९ दे वता— गवी
त या आहननं कृ या मे नराशसनं वलग ऊब यम्. (१)
ा ण क गाय को मारना मरणास बन जाता है. इस को हनन करना कृ या रा सी
है. इस का गोबर यु आधा पका आ चारा शपथ के समान है. (१)
अ वगता प रह्णुता.. (२)
ा ण क अपहरण क गई गाय अपने वश म नह रहती है. (२)
अ नः ाद् भू वा गवी यं व या . (३)
मारी ई ा ण क गाय मांसाहारी पशु बन कर मारने वाले को खाती है. (३)
सवा या पवा मूला न वृ त. (४)
य द ा ण क गाय को कोई मारता है तो यह मारने वाले के शरीर के सभी जोड़ को
छ भ कर दे ती है. (४)
छन य य पतृब धु परा भावय त मातृब धु. (५)
यह ा ण क गाय चुराने वाले के पता के बांधव का छे दन करती है और माता के
बांधव को अपमा नत करती है. (५)
ववाहां ाती सवान प ापय त गवी यय
येणापुनद यमाना. (६)
य ारा ा ण क गाय न लौटाई जाने पर उस के सभी बंधु को न कर दे ती
है. (६)
अवा तुमेनम वगम जसं करो यपरापरणो भव त ीयते. (७)
ा ण क गाय को अगर य न लौटाए तो वह य को गृहहीन तथा संतानहीन
कर दे ती है. ा ण क गाय चुराने वाला य अपरा रोग से सत हो कर न हो जाता है.
(७)
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य एवं व षो ा ण य यो गामाद े.. (८)
ऊपर बताई गई दशा उस य क होती है, जो व ान् क गौ का अपहरण करता है.
(८)
हे अ या! तू सौ पैर वाले एवं तेज धार वाले व से अपने अपहरणकता का वध कर.
(५)
क धान् शरो ज ह.. (६)
हे अ या! तू अपने अपहरणकता को न कर दे . (६)
लोमा य य सं छ ध वचम य व वे य.. (७)
हे अ या! तू अपने अपहरणकता के लोम को न कर उस का चमड़ा उधेड़ दे . (७)
मांसा य य शातय नावा य य सं वृह.. (८)
हे अ या! तू अपने अपहरणकता के मांस को काट कर उस क नस को सुखा दे . (८)
अ थी य य पीडय म जानम य नज ह.. (९)
सू -२ दे वता—अ या म रो हत
उद य केतवो द व शु ा ाज त ईरते.
आ द य य नृच सां म ह त य मीढु षः.. (१)
महान कम करने वाले, सेचन करने वाले और समथ एवं सा ी प सूय क नमल
र मयां आकाश म चमकती ह और सूय को ऊपर उठाती ह. (१)
दशां ानां वरय तम चषा सुप माशुं पतय तमणवे.
तवाम सूय भुवन य गोपां यो र म भ दश आभा त सवाः.. (२)
हम ानमयी दशा म अपने तेज से श द भरने वाले, सुंदर पंख वाले, अपनी
र मय से काश दे ने वाले तथा लोक के र क सूय क तु त करते ह. (२)
सू -३ दे वता—अ या म रो हत
य इमे ावापृ थवी जजान यो ा प कृ वा भुवना न व ते.
य मन् य त दशः षडु व याः पत ो अनु वचाकशी त.
त य दे व य ु यैतदागो य एवं व ांसं ा णं जना त.
उद् वेपय रो हत णी ह य य त मु च पाशान्.. (१)
इस आकाश और पृ वी को उ ह ने कट कया जो सभी लोक को आ छा दत करते
ह, जन म छह उ वयां और दशाएं नवास करती ह. जन दशा को वे ही का शत करते
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ह, उन ोधपूण सूय का जो अपमान करता है अथवा व ान् ा ण क हसा करता है
अथवा क दे ता है, हे रो हत दे व! तुम उस को कं पत करो तथा उसे ीण करते ए बंधन म
डाल दो. (१)
य माद् वाता ऋतुथा पव ते य मात् समु ा अ ध व र त.
त य दे व य ु यैतदागो य एवं व ांसं ा णं जना त.
उद् वेपय रो हत णी ह य य त मु च पाशान्.. (२)
जस दे वता के भाव से वायु ऋतु के अनुसार चलती है तथा समु भा वत होते ह,
ोध म भरे ए सूय का जो अपमान करता है अथवा व ान् ा ण क हसा करता है, हे
रो हत दे व! उस घाती को कं पत करते ए ीण करो और बंधन म डाल दो. (२)
यो मारय त ाणय त य मात् ाण त भुवना न व ा.
त य दे व य ु यैतदागो य एवं व ांसं ा णं जना त.
उद् वेपय रो हत णी ह य य त मु च पाशान्.. (३)
जो मनु य म ाण भरते ह, जो मनु य क हसा करते ह, उन के ारा सभी ाणी ास
लेते और ास के प म छोड़ते ह, ोध म भरे उस दे वता का जो अपमान करता है अथवा
व ान् ा ण क हसा करता है, उस घाती को कं पत करते ए हे रो हत दे व! ीण
करो एवं बंधन म डालो. (३)
यः ाणेन ावापृ थवी तपय यपानेन समु य जठरं यः पप त.
त य दे व य ु यैतदागो य एवं व ांसं ा णं जना त.
उद् वेपय रो हत णी ह य य त मु च पाशान्.. (४)
जो दे वता ाण, आकाश और पृ वी को तृ त करता है तथा अपमान से समु के पेट
को पालता है, ोध म भरे उस के अपराधी और व ान् ा ण के हसक को हे रो हत दे व
कं पत करते ए ीण बनाओ एवं बंधन म डालो. (४)
य मन् वराट् परमे ी जाप तर नव ानरः सह पङ् या तः.
यः पर य ाणं परम य तेज आददे .
त य दे व य ु यैतदागो य एवं व ांसं ा णं जना त.
उद् वेपय रो हत णी ह य य त मु च पाशान्.. (५)
जस म वराट् परमे ी वै ानर पं , जा और अ न स हत नवास करते ह, जस ने
उ कृ ाण के महान तेज को धारण कया है, उन ोधवंत दे वता के अपराधी तथा व ान्
ा ण के हसक को हे रो हत दे व! कं पत करते ए ीण करो तथा अपने बंधन म बांध
लो. (५)
सू -४ दे वता—अ या म
स ए त स वता व दव पृ े ऽ वचाकशत्.. (१)
वे सूय आकाश क पीठ पर दमकते ए आते ह. (१)
र म भनभ आभृतं महे ए यावृतः.. (२)
सूय ने अपनी र मय से आकाश को ढक दया है. सूय र मय से यु ह. (२)
स धाता स वधता स वायुनभ उ तम्.
र म भनभ आभृतं महे ए यावृतः.. (३)
वह धाता है, वधाता है तथा वही वायु है, जस ने आकाश को ऊंचा बनाया है. (३)
सो ऽ यमा स व णः स ः स महादे वः.
र म भनभ आभृतं महे ए यावृतः.. (४)
वही अयमा, वही व ण, वही और वही महादे व है. (४)
सो अ नः स उ सूयः स उ एव महायमः.
र म भनभ आभृतं महे ए यावृतः.. (५)
वही अ न, वे ही सूय तथा वे ही महान यम ह. (५)
तं व सा उप त येकशीषाणो युता दश.
र म भनभ आभृतं महे ए यावृतः.. (६)
एक शीश वाले दस व स उ ह क आराधना करते ह. (६)
प ात् ा च आ त व त य दे त व भास त.
र म भनभ आभृतं महे ए यावृतः.. (७)
वे उदय होते ही दमकने लगते ह तथा उन के पीछे उन क पूजनीय र मयां उन के चार
ओर छा जाती ह. (७)
त यैष मा तो गणः स ए त श याकृतः.. (८)
छ के के आकार वाला उन का ही एक गण मा त उनके पीछे आ रहा है. (८)
सू -५ दे वता—अ या म
क त यश ा भ नभ बा णवचसं चा ं चा ा ं च
य एतं दे वमेकवृतं वेद.. (१)
क त, यश, आकाश, जल, वचस् अथात् तेज अ और अ को पचाने क
या उसे ही ा त होती है, जो इन एकवृत अथात् का ाता है. (१)
न तीयो न तृतीय तुथ ना यु यते. य एतं दे वमेकवृतं वेद.. (२)
इन एकवृत अथात् का ाता तीय, तृतीय चतुथ नह कहलाता. (२)
न प चमो न ष ः स तमो ना यु यते. य एतं दे वमेकवृतं वेद.. (३)
इन एकवृत अथात् का ाता पंचम, ष अथवा स तम नह कहलाता है. (३)
ना मो न नवमो दशमो ना यु यते. य एतं दे वमेकवृतं वेद.. (४)
जो इन एकवृत अथात् का ाता है वह अ म, नवम नह कहलाता है. (४)
स सव मै व प य त य च ाण त य च न. य एतं दे वमेकवृतं वेद.. (५)
सू -६ दे वता—अ या म
च तप क त यश ा भ नभ ा णवचसं चा ं चा ा ं च. य एतं
दे वमेकवृतं वेद.. (१)
भूतं च भ ं च ाच च वग वधा च.. (२)
य एतं दे वमेकवृतं वेद.. (३)
, तप, क त, यश, जल, आकाश, चय, अ और अ को पचाने क श व
भूत, भ व य, ा, च, वग और वधा—ये सभी उस एक वृत अथात् के ाता को
ा त होते ह. (१-३)
य एव मृ युः सो ३ मृतं सो ३ वं १ स र ः. (४)
वे ही मृ यु, अमृत, अ व ह तथा वही रा स ह. (४)
स ो वसुव नवसुदेये नमोवाके वषट् कारो ऽ नु सं हतः.. (५)
सू -७ दे वता—अ या म
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स वा अ ो ऽ जायत त मादहरजायत.. (१)
उस से दन कट आ और वह दन से कट आ. (१)
स वै रा या अजायत त माद् रा रजायत.. (२)
रा उह से कट ई और वे रा से उ प ए. (२)
स वा अ त र ादजायत त माद त र मजायत.. (३)
अंत र उन से कट आ और वे अंत र से कट ए. (३)
स वै वायोरजायत त माद् वायुरजायत.. (४)
वायु उन से कट ई और वे वायु से कट ए. (४)
स वै दवो ऽ जायत त माद् ौर यजायत.. (५)
आकाश उन से कट आ और वे आकाश से कट ए. (५)
स वै द यो ऽ जायत त माद् दशो ऽ जाय त.. (६)
दशाएं उन से कट और वे दशा से कट ए. (६)
स वै भूमेरजायत त माद् भू मरजायत.. (७)
पृ वी उन से कट और वे पृ वी से कट ए. (७)
स वा अ नेरजायत त माद नरजायत.. (८)
अ न उन से कट ई और वे अ न से कट ए. (८)
स वा अ यो ऽ जायत त मादापो ऽ जाय त.. (९)
जल उन से कट आ और वे जल से कट ए. (९)
स वा ऋ यो ऽ जायत त मा चो ऽ जाय त.. (१०)
ऋचाएं उन से कट और वे ऋचा से कट ए. (१०)
स वै य ादजायत त माद् य ो ऽ जायत.. (११)
य उन से कट आ और वे य से कट ए. (११)
सू -८ दे वता—अ या म रो हत
भूया न ो नमुराद् भूया न ा स मृ यु यः.. (१)
सू -९ दे वता—अ या म रो हत
उ ः पृथुः सुभूभुव इ त वोपा महे वयम्.
नम ते अ तु प यत प य मा प यत.
अ ा ेन यशसा तेजसा ा णवचसेन.. (१)
तुम हम अ , यश, तेज और वचस दान करो. तु हारी हम उपासना करते है. (१)
थो वरो चो लोक इ त वोपा महे वयम्.
नम ते अ तु प यत प य मा प यत.
अ ा ेन यशसा तेजसा ा णवचसेन.. (२)
आप महान, व तृत, उ म होने वाले एवं साम य प ह. हे शोभन! आप को नम ते,
हे दशनीय! आप मुझे दे ख, आप हम अ , यश तेज तथा वचस दान कर. हम आप क
उपासना करते ह. (२)
भव सु रद सुः संय सुराय सु र त वोपा महे वयम्.. (३)
हम तु ह भागमु , संबंध को एक करने वाले, संबंध को ा त करने वाले मान कर
तु हारी उपासना करते ह. (३)
सू -२ दे वता—अ या म, ा य
स उद त त् स ाच दशमनु चलत्.. (१)
वह उठ कर पूव दशा म चल दया. (१)
तं बृह च रथ तरं चा द या व े च दे वा अनु चलन्.. (२)
बृहत् साम, रथंतर साम, सूय तथा सभी दे वता उस के पीछे पीछे चले. (२)
बृहते च वै स रथ तराय चा द ये य व े य दे वे य आ वृ ते य एवं
व ांसं ा यमुपवद त.. (३)
उस का स कार करने वाला बृहत् साम, रथंतर, सूय और सब दे वता क य पूव
दशा म अपना य धाम बनाता है. (३)
बृहत वै स रथ तर य चा द यानां च व ेषां च दे वानां यं धाम भव त
त य ा यां द श.. (४)
जो ऐसे व ान् तचारी को अपश द कहता है, वह बृहत्, रथंतर, आ द य और व े
दे व का अपराधी होता है. (४)
ा पुं ली म ो मागधो व ानं वासोऽह णीषं रा ी केशा ह रतौ
वत क म लम णः.. (५)
ा पुं ली, म अथात सूय तु त करने वाला, व ान व , दन पगड़ी, रा केश,
करण कुंडल तथा तारे म ण के समान होते ह. (५)
भूतं च भ व य च प र क दौ मनो वपथम्.. (६)
भूत और भ व यत—ये दोन काल उस के र क ह तथा मन उस का यु संबंधी रथ
है. (६)
मात र ा च पवमान वपथवाहौ वातः सारथी रे मा तोदः.. (७)
सू -३ दे वता—अ या म, ा य
सं संव सरमू व ऽ त त् तं दे वा अ ुवन्न ा य क नु त सी त.. (१)
वह एक वष तक खड़ा रहा, तब दे वता ने उस से पूछा—“हे ा य! यह तप य कर
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रहे हो?” (१)
सो ऽ वीदास द मे सं भर व त.. (२)
उस के दो पाए ी म और वसंत ऋतुएं तथा शेष दो पाए शरद और वषा नामक ऋतुएं
. (४)
बृह च रथ तरं चानू ये ३ आ तां य ाय यं च वामदे ं च तर ये.. (५)
बृहत् और रथंतर उस चौक के बाजू अथात् अगलबगल के फलक या त ते थे.
य ाय य और वामदे उस के तरछे फलक अथात् त ते थे. (५)
ऋचः ा च त तवो यजूं ष तय चः.. (६)
ऋ वेद के मं उसे बुनने के लए लंबाई के तंतु और यजुवद के मं तरछे तंतु थे. (६)
वेद आ तरणं ोपबहणम्.. (७)
वेद उस का बछौना था और उस के ओढ़ने का व था. (७)
सामासाद उद्गीथो ऽ प यः.. (८)
सू -४ दे वता—अ या म, ा य
त मै ा या दशः.
वास तौ मासौ गो तारावकुवन् बृह च रथ तरं चानु ातारौ.. (१-२)
दे वता ने उस के लए वसंत ऋतु के दो महीन को पूव दशा म र क नयु कया.
बृहत्साम और रथंतर को उस का अनु ान करने वाला बनाया. (१-२)
वास तावेनं मासौ ा या दशो गोपायतो बृह च
रथ तरं चानु त तो य एवं वेद.. (३)
जो यह बात जानता है, वसंत ऋतु के दो महीने, पूव दशा क ओर से उस क र ा
करते ह. बृहत् साम और रथंतर उस के अनुकूल हो जाते ह. (३)
त मै द णाया दशः
ै मौ मासौ गो तारावकुवन् य ाय यं च वामदे ं चानु ातारौ.. (४-५)
द ण दशा क ओर दे वता ने ी म ऋतु के दो महीन को उस का र क बनाया
तथा य ाय य और वामदे को उस का अनु ान करने वाला नयु कया. (४-५)
ै मावेनं मासौ द णाया दशो गोपायतो य ाय यं च वामदे ं चानु
त तो य एवं वेद.. (६)
जो इस बात को जानता है, द ण दशा क ओर से ी म ऋतु के दो महीने उस क
र ा करते ह तथा य ाय य और वामदे व उस के अनुकूल होते ह. (६)
त मै ती या दशः.. (७)
वा षकौ मासौ गो तारावकुवन् वै पं च वैराजं चानु ातारौ.. (८)
दे वता ने प म दशा म वषा ऋतु के दो महीन को उस का र क नयु कया
तथा वै प और वैराज को उस का अनु ान करने वाला नयु कया. (७-८)
वा षकावेनं मासौ ती या दशो गोपायतो वै पं च वैराजं चानु त तो य
एवं वेद.. (९)
जो इस बात को जानता है, वह प म दशा क ओर से वषा ऋतु के दो महीन ारा
र त रहता है तथा वै प और वैराज उस के अनुकूल रहते ह. (९)
त मा उद या दशः.. (१०)
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शारदौ मासौ गो तारावकुव छ् यैतं च नौधसं चानु ातारौ.. (११)
दे वता ने उ र दशा क ओर से शरद ऋतु के दो महीन को उस का र क नयु
कया तथा येत और नौधस को उस का अनु ान करने वाला बनाया. (१०-११)
शारदावेनं मासावुद या दशो गोपायतः यैतं च नौधसं चानु त तो य
एवं वेद.. (१२)
जो यह बात जानता है, उ र दशा क ओर से उस क र ा शरद ऋतु के दो महीने
करते ह तथा नौधस और येत उस के अनुकूल बन जाते ह. (१२)
त मै ुवाया दशः.. (१३)
हैमनौ मासौ गो तारावकुवन् भू म चा नं चानु ातारौ.. (१४)
दे वता ने ुव दशा अथात् पृ वी क अथवा नीचे क ओर से हेमंत ऋतु के दो महीन
को उस का र क नयु कया तथा पृ वी और अ न को उस का अनु ान करने वाला
बनाया. (१३-१४)
हैमनावेनं मासौ ुवाया दशो गोपायतो भू म ा न ानु त तो य एवं
वेद.. (१५)
जो इस बात को जानता है, ुव दशा क ओर से हेमंत ऋतु के दो महीने उस पु ष क
र ा करते ह. पृ वी और अ न उस के अनुकूल हो जाते ह. (१५)
त मा ऊ वाया दशः.. (१६)
शै शरौ मासौ गो तारावकुवन् दवं चा द यं चानु ातारौ... (१७)
दे वता ने ऊ व दशा अथात् ऊपर क ओर से श शर ऋतु के दो महीन को उस का
र क नयु कया और आकाश तथा सूय को उस का अनु ान करने वाला बनाया.
(१६-१७)
शै शरावेनं मासावू वाया दशो गोपायतो ौ ा द य ानु त तो य एवं
वेद.. (१८)
जो इस बात को जानता है. वह ऊपर क दशा क ओर से श शर ऋतु के दो महीन
के ारा र त होता है. आकाश तथा सूय उस के अनुकूल हो जाते ह. (१८)
सू -५ दे वता—
त मै ा या दशो अ तदशाद् भव म वासमनु ातारमकुवन्.. (१)
सू -६ दे वता—अ या म, ा य
स ुवां दशमनु चलत्.. (१)
वह ा य ुव दशा क ओर चल पड़ा. (१)
तं भू म ा न ौषधय वन पतय वान प या वी ध ानु चलन्..
(२)
पृ वी, अ न, ओष ध, वन प त तथा ओष धयां उस के पीछे चले. (२)
भूमे वै सो ३ ने ौषधीनां च वन पतीनां च वान प यानां च
वी धां च यं धाम भव त य एवं वेद.. (३)
जो इस बात को जानता है, वह पृ वी, अ न, ओष ध एवं वन प तय का य होता है.
(३)
स ऊ वा दशमनु चलत्.. (४)
वह ऊपर क दशा क ओर चला. (४)
तमृतं च स यं च सूय च न ा ण चानु चलन्.. (५)
ऋतु, स य, सूय, चं और न उस के पीछे चले. (५)
ऋत य च वै स स य य च सूय य च च यचन ाणां च
यं धाम भव त य एवं वेद.. (६)
जो इस बात को जानता है वह सूय, चं मा तथा न का य थान होता है. (६)
सू -७ दे वता—अ या म, ा य
स म हमा स भू वा तं पृ थ ा अग छत् स समु ो ऽ भवत्.. (१)
सू -८ दे वता—अ या म, ा य
सो ऽ र यत ततो राज यो ऽ जायत.. (१)
वह अनुर आ. उस के बाद वह राजा बन गया. (१)
स वशः सब धून म ा म युद त त्.. (२)
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वह जा के, बंधु के अ के और खानपान के अनुकूल वहार करने लगा. (२)
वशां च वै स सब धूनां चा य चा ा यच यं धाम भव त य एवं
वेद.. (३)
जो पु ष इस कार जानता है, वह जा ,अ और खानपान का य धाम होता है.
(३)
सू -९ दे वता—अ या म, ा य
स वशो ऽ नु चलत्.. (१)
सू -१० दे वता—अ या म, ा य
तद् य यैवं व ान् ा यो रा ो ऽ त थगृहानाग छे त्.. (१)
ेयांसमेनमा मनो मानयेत् तथा ाय ना वृ ते तथा रा ाय ना वृ ते..
(२)
ऐसा वशेष ानी ा य जस राजा का अ त थ हो, राजा उस का स मान करे. ऐसा
करने से ा य रा को तथा श को न नह करता. (१-२)
अतो वै च ं चोद त तां ते अ ूतां कं वशावे त.. (३)
इस के बाद बल और ा श को हम कस म वेश कर. (३)
अतो वै बृह प तमेव ा वश व ं ं तथा वा इ त.. (४)
बल बृह प त म और ा बल इं म वेश करे. (४)
अतो वै बृह प तमेव ा वश द ं म्.. (५)
सू -११ दे वता—अ या म, ा य
तद् य यैवं व ान् ा यो ऽ त थगृहानाग छे त्.. (१)
वयमेनम युदे य ूयाद् ा य वा ऽ वा सी ा योदकं ा य तपय तु
ा य यथा ते
यं तथा तु ा य यथा ते वश तथा तु ा य यथा ते
नकाम तथा व त.. (२)
इस कार का वशेष ानी ा य जस घर म अ त थ हो, उसे वयं आसन दे कर कहे
—हे ा य! तुम कहां नवास करते हो? यह जल है. हमारे घर के तु ह संतु कर. तु ह
जो य हो, जैसा तु हारा वश हो और जैसा तु हारा काम हो उसी कार का रहे. (१-२)
यदे नमाह ा य वा ऽ वा सी र त पथ एव तेन दे वयानानव े .. (३)
यह कहने पर क हे ा य! तुम कहां रहोगे? दे वयान माग ही खुल जाता है. (३)
यदे नमाह ा योदक म यप एव तेनाव े .. (४)
ा य से यह कहने वाला क हे ा य! यह जल है, अपने लए जल को ही खोल लेता
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है. (४)
यदे नमाह ा य तपय व त ाणमेव तेन वष यांसं कु ते.. (५)
यह कहने वाला क जैसा तु हारा व है वैसा ही हो, अपने हेतु व को खोल लेता है.
(७)
यदे नमाह ा य यथा ते वश तथा व त वशमेव तेनाव े .. (८)
यह कहने वाला क जैसा तु हारी इ छा है, वैसा ही हो, अपने लए इ छा को ही
खोल लेता है. (८)
ऐनं वशो ग छ त वशी व शनां भव त य एवं वेद.. (९)
इस बात को जानने वाला वश को ा त करता है. वह वश म करने वाल को भी वश म
कर लेता है. (९)
यदे नमाह ा य यथा ते नकाम तथा व त नकाममेव तेनाव े ..
(१०)
यह कहने वाला क तु हारा नवास जैसा है, वैसा ही हो, अपने लए कामना का ार
खोल लेता है. (१०)
ऐनं नकामो ग छ त नकामे नकाम य भव त य एवं वेद.. (११)
इस कार जानने वाला अभी को ा त करता है. (११)
सू -१२ दे वता—अ या म, ा य
तद् य यैवं व ान् ा य उद्धृते व न व ध ते ऽ नहो े ऽ
त थगृहानाग छे त्.. (१)
वयमेनम युदे य ूयाद् ा या त सृज हो यामी त.. (२)
सू -१३ दे वता—अ या म, ा य
तद् य यैवं व ान् ा य एकां रा म त थगृहे वस त.. (१)
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ये पृ थ ां पु या लोका तानेव तेनाव े .. (२)
जस के घर म ऐसा व ान् ा य रा म अ त थ होता है, वह उस के आने के फल से
पृ वी के सभी पु य लोक पर वजय ा त करता है. (१-२)
तद् य यैवं व ान् ा यो तीयां रा म त थगृहे वस त.. (३)
ये३ त र े पु या लोका तानेव तेनाव े .. (४)
जस गृह थ के घर म ऐसा व ान् ा य रा म नवास करता है, वह गृह थ उस के
फल के प म अंत म थत सभी पु य लोक को जीत लेता है. (३-४)
तद् य यैवं व ान् ा य तृतीयां रा म त थगृहे वस त.. (५)
ये द व पु या लोका तानेव तेनाव े .. (६)
य द ऐसा व ान् ा य अ त थ के प म गृह थ के घर म तीसरी रा म भी नवास
करता है तो उस के फल से वह गृह थ आकाश म थत सम त पु य लोक को अपने लए
मु कर लेता है. (५-६)
तद् य यैवं व ान् ा य तुथ रा म त थगृहे वस त.. (७)
ये पु यानां पु या लोका तानेव तेनाव े . (८)
जस गृह थ के घर म ऐसा ा य चौथी रात नवास करता है तो उस के फल के पम
वह गृह थ पु या मा के सभी लोक को अपने लए मु कर लेता है. (७-८)
तद् य यैवं व ान् ा यो ऽ प र मता रा ीर त थगृहे वस त.. (९)
य एवाप र मताः पु या लोका तानेव तेनाव े .. (१०)
जस गृह थ के घर म ऐसा व ान् ा य अनेक रात तक नवास करता है तो उस के
फल के प म वह गृह थ अनेक पु य लोक को अपने लए मु कर लेता है. (९-१०)
अथ य या ा यो वा य ुवो नाम ब य त थगृहानाग छे त्.. (११)
कषदे नं न चैनं कषत्.. (१२)
जस के घर अपनेआप को ा य बताने वाला कोई अ ा य आए तो या गृह थ उसे
अपने घर से भगा दे . नह , उस को भी भगाना नह चा हए. (११-१२)
अ यै दे वताया उदकं याचामीमां दे वतां वासय इमा ममां
दे वतां प र वेवे मी येनं प र वे व यात्.. (१३)
म इस दे वता को अपने घर म नवास दे ता .ं म इस से जल हण करने क ाथना
करता ं. म इस दे वता के लए भोजन परोसता ं. ऐसा वीकार करता आ उस के लए
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भोजन परोसना आ द काय करे. (१३)
त यामेवा य तद् दे वतायां तं भव त य एवं वेद.. (१४)
सू -१४ दे वता—अ या म, ा य
स यत् ाच दशमनु चल मा तं शध भू वानु चल मनो ऽ ादं
कृ वा.. (१)
सू -१५ दे वता—अ या म, ा य
त य ा य य.. (१)
स त ाणाः स तापानाः स त ानाः.. (२)
इस ा य के सात ाण, सात अपान तथा सात ही ान ह. (१-२)
त य ा य य. यो ऽ य थमः ाण ऊ व नामायं सो अ नः.. (३)
इस वा य का पहला ऊ व ाण अ न है. (३)
त य ा य य. यो ऽ य तीयः ाणः ौढो नामासौ स आ द यः.. (४)
इस ा य का तीय ौढ़ ाण आ द य है. (४)
त य ा य य. यो ऽ व तृतीयाः ाणो ३ यू ढो नामासौ स च माः..
(५)
इस का जो तृतीय ाण है, वह अ ूढ़ नाम का चं मा है. (५)
त य ा य य. यो ऽ व चतुथः ाणो वभूनामायं स पवमानः.. (६)
इस का चतुथ ाण वभु पवमान है. (६)
त य ा य य. यो ऽ य प चमः ाणो यो ननाम ता इमा आपः.. (७)
इस ा य का पांचवां ाण यो न जल है. (७)
त य ा य य. यो ऽ य ष ः ाणः यो नाम त इमे पशवः.. (८)
इस का छठा ाण य नाम वाला पशु है (८)
त य ा य य. यो ऽ य स तमः ाणो ऽ प र मतो नाम ता इमाः जाः..
(९)
इस के स तम ाण का नाम अप र मत है. यह जा है. (९)
सू -१६ दे वता—अ या म, ा य
त य ा य य. यो ऽ य थमो ऽ पानः सा पौणमासी.. (१)
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इस ा य का थम अपान पूणमासी है. (१)
त य ा य य. यो ऽ य तीयो ऽ पानः सा का (२)
सू -१७ दे वता—अ या म, ा य
त य ा य य. यो ऽ य थमो ानः सेयं भू मः.. (१)
इस ा य का थम ान भू म है. (१)
त य ा य य. यो ऽ य तीयो ान तद त र म्.. (२)
इस का तीय ान अंत र है. (२)
त य ा य य. यो ऽ य तृतीयो ानः सा ौ:.. (३)
इस का तृतीय ान ौ है. (३)
त य ा य य. यो ऽ य चतुथ ान ता न न ा ण.. (४)
इस का चतुथ ान न है. (४)
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त य ा य य. योऽ य प चमो ान त ऋतवः.. (५)
इस का पांचवां ान ऋतु ह. (५)
त य ा य य. यो ऽ य ष ो ान त आतवाः.. (६)
इस का छठा ान आतव है. (६)
त य ा य य. यो ऽ य स तमो ानः स संव सरः.. (७)
इस का सातवां ान संव सर है. (७)
त य ा य य. समानमथ प र य त दे वाः संव सरं वा
एत तवो ऽ नुप रय त ा यं च.. (८)
दे वगण इस के समान अथ को ा त होते तथा संव सर और ऋतुएं भी इस का अनुमान
करते ह. (८)
त य ा य य. यदा द यम भसं वश यमावा यां चैव तत् पौणमास च..
(९)
त य ा य य. एकं तदे षाममृ व म या तरेव.. (१०)
अमाव या और पू णमा आ द य म वेश करती ह. आ त ही इन का अ वनाशी होना
है. (९-१०)
सू -१८ दे वता—अ या म, ा य
त य ा य य.. (१)
इस ा य का द ण च ु आ द य है. (१)
यद य द णम यसौ स आ द यो यद य स म यसौ स च माः.. (२)
इस का वाम च ु चं मा है. (२)
यो ऽ य द णः कण ऽ यं सो अ नय ऽ य स ः कण ऽ यं स
पवमानः.. (३)
इस का दा हना कान अ न और बायां कान पवमान है. (३)
अहोरा े ना सके द त द त शीषकपाले संव सरः शरः.. (४)
सू -२ दे वता— जाप त
न रम य ऊजा मधुमती वाक्.. (१)
म षत चमरोग से मु र ं. मेरी वाणी श शा लनी तथा मधुयु हो. (१)
मधुमती थ मधुमत वाचमुदेयम्.. (२)
हे ओष धयो! तुम मधुरस से पूण रहो. मेरी वाणी भी मधुररस से पूण हो. (२)
उप तो मे गोपा उप तो गोपीथः.. (३)
मेरे कान क याण करने वाली बात सुन. म मंगलपूण एवं शंसाभरी बात सुनूं. (३)
सु ुतौ कण भ ुतौ कण भ ं ोकं ूयासम्.. (४)
मेरे कान भलीभां त तथा नकट से सुनना कभी न छोड़. मेरे ने ग ड़ के समान ह
तथा सदै व दे खने क श से स प रह. (४)
सु ु त मोप ु त मा हा स ां सौपण च ुरज ं यो तः.. (५)
मेरे कान ठ क से सुनना और पास से सुनना न छोड़. मेरी आंख ग ड़ क दे खने क
श से पूण रह. (५)
ऋषीणां तरो ऽ स नमो ऽ तु दै वाय तराय.. (६)
सू -३ दे वता—आ द य
मूधाहं रयीणां मूधा समानानां भूयासम्.. (१)
म धन का शीष प र ं. जो मेरे समान ह, उन म म म तक के समान उ च र ं.
(१)
ज मा वेन मा हा स ां मूधा च मा वधमा च मा हा स ाम्.. (२)
रज, य , मूधा अथात् शीश और वशेष धम मेरा याग न कर. (२)
उव मा चमस मा हा स ां धता च मा ध ण मा हा स ाम्.. (३)
उव अथात् पकाने वाला पा , चमस अथात् चमचा धारण करने वाले और आधार मुझ
से अलग न ह . (३)
वमोक मा प व मा हा स ामा दानु मा मात र ा च मा
हा स ाम्.. (४)
मु करने वाला तथा गीला आयुध, आ दानु और मात र ा अथात् पवन मुझ से
अलग न हो. (४)
बृह प तम आ मा नृमणा नाम ः.. (५)
हष दे ने वाले, अनु ह करने वाले तथा मन को लगाने वाले बृह प त मेरी आ मा ह. (५)
असंतापं मे दयमु ग ू तः समु ो अ म वधमणा.. (६)
दो कोस तक क भू म मेरे अ धकार म हो. मेरा दय कभी संत त न रहे. म धारण
करने क श के ारा सागर के समान गंभीर बनूं. (६)
सू -४ दे वता—आ द य
ना भरहं रयीणां ना भः समानानां भूयासम्.. (१)
म धन क ना भ के समान बनूं. जो पु ष मेरे समान ह, उन म भी म ना भ प बनूं.
(१)
वासद स सूषा अमृतो म य वा.. (२)
सू -५ दे वता— ः व नाशन
वद्म ते व ज न ं ा ाः पु ो ऽ स यम य करणः.. (१)
हे व ! तू ाहय पशाच से उ प आ है तथा यम को ा त करने वाला है. म तेरी
उ प जानता ं. (१)
अ तको ऽ स मृ युर स.. (२)
हे व ! तू जीवन का अंत करने वाली मृ यु है. (२)
तं वा व तथा सं वद्म स नः व व यात् पा ह.. (३)
सू -६ दे वता— ः व नाशन
अजै मा ासनामा ाभूमानागसो वयम्.. (१)
हम आज वजय ा त कर. हम आज खा पदाथ ा त कर. आज हम पाप र हत हो
जाएं. (१)
उषो य माद् व यादभै माप त छतु.. (२)
हे उषा दे वी! जस बुरे व से हम डरते ह, वह बुरा व समा त हो जाए. (२)
षते तत् परा वह शपते तत् परा वह.. (३)
हे दे व! आप उसे भय को ा त कराएं जो हमसे े ष करता है तथा हमारी न दा करता
है. (३)
यं मो य नो े त मा एनद् गमयामः.. (४)
हम जससे े ष करते ह और जो हमसे े ष करता है, हम इस भय को उस के पास
भेजते ह. (४)
उषा दे वी वाचा सं वदाना वाग् दे ु १ षसा सं वदाना.. (५)
सू -७ दे वता— ः व नाशन
तेनैनं व या यभू यैनं व या म नभू यैनं व या म पराभू यैनं
व या म ा ैनं व या म तमसैनं व या म.. (१)
म इस अथात् बुरे व को अ भचार कम अथात् जा टोने से, ग त से, द र ता से
तथा रोग से व करता ं. (१)
दे वानामेनं घोरैः ू रैः ैषैर भ े या म.. (२)
म इस बुरे व को दे वता क भयंकर आ ा के सामने उप थत करता ं. (२)
वै ानर यैनं दं योर प दधा म.. (३)
म इस बुरे व को वै ानर अथात् अ न क दाढ़ म डालता ं. (३)
एवानेवाव सा गरत्.. (४)
वै ानर इस बुरे व को नगल जाएं. (४)
यो ३ मान् े तमा मा े ु यं वयं मः स आ मानं े ु .. (५)
जो हम से े ष करता हो, उस से आ मा े ष करे. जस से हम े ष करते ह, वह आ मा
से े ष करे. (५)
न ष तं दवो नः पृ थ ा नर त र ाद् भजाम.. (६)
जो हम से े ष करता है, उसे हम आकाश, पृ वी और अंत र से र भगाते ह. (६)
सू -८ दे वता—बुरे व का नाश
जतम माकमु म माकमृतम माकं तेजो ऽ माकं ा माकं
वर माकं
य ो ३ ऽ माकं पशवो ऽ माकं जा अ माकं वीरा अ माकम्.. (१)
हमारा उदय हो. हम स य को ा त कर, हमारा तेज बढ़े . हमारा ान बढ़े तथा हमारे
उ म काश म वृ हो. हमारे य सफल ह , हमारे अ धकार म पशु ह , हमारी संतान क
वृ हो. हमारे लोग वीर ह . (१)
त मादमुं नभजामो ऽ मुमामु यायणममु याः पु मसौ यः.. (२)
इस अपराध के कारण हम श ु पर आ मण करते ह. इस गो वाला तथा इस का पु
हमारा श ु है. (२)
स ा ा: पाशा मा मो च.. (३)
वह रोग के पाश से न छू ट सके. (३)
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त येदं वच तेजः ाणमायु न वे यामीदमेनमधरा चं पादया म.. (४)
उस के तेज, बल, ाण और आयु को म घेरता ं. म इसे नीचे गराता ं. (४)
जतम माकमु म माकमृतम माकं तेजो ऽ माकं ा माकं
वर माकं
य ो ३ ऽ माकं पशवो ऽ माकं जा अ माकं वीरा अ माकम्.
त मादमुं नभजामो ऽ मुमामु यायणममु याः पु मसौ यः.
स नऋ याः पाशा मा मो च.
त येदं वच तेजः ाणमायु न वे यामीदमेनमधरा चं पादया म.. (५)
श ु को मार कर लाए ए तथा जीते ए सभी पदाथ हमारे ह. स य, तेज, ,
वग, पशु, जा तथा सभी वीर हमारे ह. अमुक गो वाले और अमुक ी के पु को, हम
इस लोक से र करते ह. म उस के तेज, बल, ाण और आयु को घेरता ं. वह ग त के
पाश से न छू ट सके. (५)
जतम माकमु म माकमृतम माकं तेजो ऽ माकं ा माकं
वर माकं
य ो ३ ऽ माकं पशवो ऽ माकं जा अ माकं वीरा अ माकम्.
त मादमुं नभजामो ऽ मुमामु यायणममु याः पु मसौ यः.
सो ऽ भू याः पाशा मा मो च.
त येदं वच तेजः ाणमायु न वे यामीदमेनमधरा चं पादया म.. (६)
श ु को मार कर लाए ए तथा जीते ए सभी पदाथ हमारे ह. स य, तेज, ,
वग, पशु, जा तथा सभी वीर हमारे ह. अमुक गो वाले और अमुक ी के पु को, हम
इस लोक से र करते ह. म उस के तेज, बल, ाण और आयु को घेरता ं. वह द र ता के
पाश से न छू टने पाए. (६)
जतम माकमु म माकमृतम माकं तेजो ऽ माकं ा माकं
वर माकं
य ो ३ ऽ माकं पशवो ऽ माकं जा अ माकं वीरा अ माकम्.
त मादमुं नभजामो ऽ मुमामु यायणममु याः पु मसौ यः.
स नभू याः पाशा मा मो च.
त येदं वच तेजः ाणमायु न वे यामीदमेनमधरा यं पादया म.. (७)
श ु को मार कर लाए ए तथा जीते ए सभी पदाथ हमारे ह. स य, तेज, ,
वग, पशु, जा तथा सभी वीर हमारे ह. अमुक गो वाले और अमुक ी के पु को, हम
इस लोक से र करते ह. म उस के तेज, बल, ाण और आयु को घेरता ं. वह बुरी अव था
सू -९ दे वता— जाप त
जतम माकमु म माकम य ां व ाः पृतना अरातीः.. (१)
श ु को घायल कर के लाए ए पदाथ तथा जीते ए पदाथ हमारे ह. हम श ु क
सेना पर अ धकार कर. (१)
तद नराह त सोम आह पूषा मा धात् सुकृत य लोके.. (२)
सू -३ दे वता—यम
इयं नारी प तलोकं वृणाना न प त उप वा म य ेतम्.
धम पुराणमनुपालय ती त यै जां वणं चेह धे ह.. (१)
यह ी धम का पालन करने के लए तेरे दान आ द क इ छा करती ई तेरे समीप
आती है. इस कार तेरा अनुकरण करने वाली इस ी को तू अगले ज म म भी संतान वाली
बनाना. (१)
उद व नाय भ जीवलोकं गतासुमेतमुप शेष ए ह.
ह त ाभ य द धषो तवेदं प युज न वम भ सं बभूथ.. (२)
हे नारी! तू इस ाणहीन प त के पास बैठ है. अब तू इस के पास से उठ. तू अपने प त
से उ प ए पु , पौ आ द को ा त हो गई है. (२)
अप यं युव त नीयमानां जीवां मृते यः प रणीयमानाम्.
अ धेन यत् तमसा ावृतासीत् ा ो अपाचीमनयं तदे नाम्.. (३)
म त ण अव था वाली जी वत गौ को मृतक के समीप ले जाई जाती ई दे खता .ं यह
भी अ ान से ढक ई है, इस लए म इसे शव के पास से हटा कर अपने सामने लाता ं. (३)
जान य ये जीवलोकं दे वानां प थामनुसंचर ती.
अयं ते गोप त तं जुष व वग लोकम ध रोहयैनम्.. (४)
हे गौ! तू पृ वीलोक को भलीभां त जानती तथा य माग को दे खती है. तू ध, दही
आ द से यु हो कर जा. तू अपने उस वामी का सेवन कर जो गाय का वामी है. तू इस
मृतक को वग क ा त करा. (४)
उप ामुप वेतसमव रो नद नाम्. अ ने प मपाम स.. (५)
जल म उगी ई काई और बत म जल का सार अंश है जो उन का र क है. हे अ न! तू
जल संबधी प है. इस लए म तुझे बत क शाखा, नद के फेन और ब आ द से शांत
सू -४ दे वता—अ न
आ रोहत ज न जातवेदसः पतृयाणैः सं व आ रोहया म.
अवाड् ढ े षतो ह वाह ईजानं यु ाः सुकृतां ध लोके.. (१)
हे अ नयो! तुम अपनी उ प करने वाली के पास प ंचो. म तु ह पतृयान माग से
वहां भलीभां त प ंचाता ं. ह के वाहक अ न ह को वहन करते ह. हे अ नयो! तुम
मल कर य कता को े कम करने वाल के लोक म प ंचाओ. (१)
दे वा य मृतवः क पय त ह वः पुरोडाशं ुचो य ायुधा न.
ते भया ह प थ भदवयानैयरीजानाः वग य त लोकम्.. (२)
दे वगण और वसंत आ द ऋतुएं अनेक कार के य क रचना करते ह. इस य म
डालने के लए घृत आ द से बनाए ए पदाथ को अ न म डालने के लए चमचे क आकृ त
के अनेक पा बनाते ह. हे मनु य! उन दे वयान माग अथात् य करने क व धय से तू
न य त य कर. इन दे वयान माग से य करने वाले जन वगलोक जाते ह. (२)
ऋत य प थामनु प य सा व रसः सुकृतो येन य त.
ते भया ह प थ भः वग य ा द या मधु भ य त तृतीये नाके अ ध व
य व.. (३)
हे ेत! तू स य के कारण प माग को भलीभां त जानता आ मह ष अं गरस आ द
के वग को जा, जस माग म अ द त के पु दे वगण अमृत का सेवन करते ह. तू उस तीसरे
वग म नवास कर. (३)
यः सुपणा उपर य मायू नाक य पृ े अ ध व प ताः.
वगा लोका अमृतेन व ा इषमूज यजमानाय ाम्.. (४)
अ न, वायु और सूय उ म व ध से गमन करने वाले ह. वायु तथा पज य मेघ के
समान श द करते ह. ये सभी वगलोक से ऊपर व प म नवास करते ह. अपने कम से
ा त होने वाला यह वगलोक अमृत से संप है. यह वग य कम का अनु ान करने वाले
ेत को मनचाहा अ तथा रस दे ने वाला है. (४)
जु दाधार ामुपभृद त र ं ुवा दाधार पृ थव त ाम्.
तीमां लोका घृतपृ ाः वगाः कामंकामं यजमानाय ाम्.. (५)
होम के पा जु ने आकाश को पु कया, उपभूत नाम के य पात ने अंत र को
धारण कया तथा ुवा नाम के य पा ने पृ वी का पालन कया. यह ुवा पा पृ वी का
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यान करते ए ऊपर थत वगलोक म यजमान को मनचाहा फल दान करे. (५)
ु आ रोह पृ थव व भोजसम त र मुपभृदा म व.
व
जु ां ग छ यजमानेन साकं ुवेण व सेन दशः पीनाः सवा
धु वा णीयमानः.. (६)
हे ुवा नामक च मच! तू पृ वी पर आरोहण कर और यजमान भी पृ वी पर त त
रहे. हे उपभृत नाम के पा ! तू अंत र पर आरोहण कर. हे जु नामक पा ! तू यजमान के
साथ ुलोक अथात् वग को गमन कर तथा सभी दशा से मनचाहे फल का दोहन कर.
(६)
तीथ तर त वतो मही र त य कृतः सुकृतो येन य त.
अ ादधुयजमानाय लोकं दशो भूता न यदक पय त.. (७)
लोग तीथ तथा य ा द कम के ारा बड़ीबड़ी वप य से पार हो जाते ह. इस कार
वचार करने वाले तथा य कम करते ए पु ष जस माग से वग को जाते ह, उस माग को
खोजते ए य कता इस यजमान के लए वह माग खोल. (७)
अ रसामयनं पूव अ नरा द यानामयनं गाहप यो द णानामयनं
द णा नः.
म हमानम ने व हत य णा सम ः सव उप या ह श मः.. (८)
आं गरस का माग पूव के नाम क अ न है. आ द य का माग गाहप य अ न है. य
काय म द जन का माग द णा अ न है. वेदमं के ारा य म था पत क गई अ न
क म हमा को ढ़ अंग तथा पूण शरीर वाला तू ा त कर. (८)
पूव अ न ् वा तपतु शं पुर ता छं प ात् तपतु गाहप यः. द णा न े
तपतु
शम वम रतो म यतो अ त र ाद् दशो दशो अ ने प र पा ह घोरात्..
(९)
हे भ म होते ए ेत! पूव क अ न तुझे आगे से सुखपुवक संत त करे. गाहप य
अ न तुझे पीछे से सुखपूवक तपाए. द णा न तेरे लए सुख प हो तथा तेरा कवच बन
कर तुझे तपाए. हे अ न! तू उ र दशा से, दशा के बीच से, अंत र से तथा येक
दशा से आने वाले हसक से हमारी ठ क से र ा करे. (९)
यूयम ने शंतमा भ तनू भरीजानम भ लोकं वगम्.
अ ा भू वा पृ वाहो वहाथ य दे वैः सधमादं मद त.. (१०)
हे गाहप य आ द अ नयो! तुम पीठ से वहन करने वाले घोड़ के समान बन कर अपने
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सुखकारी शरीर से य करने वाले को वगलोक क ओर ले जाओ. य करने वाले लोग
उस वग म दे व के साथ आनंद का भोग करते ए तृ त होते ह. (१०)
शम ने प ात् तप शं पुर ता छमु रा छमधरात् तपैनम्.
एक ेधा व हतो जातवेदः स यगेनं धे ह सुकृतामु लोके.. (११)
हे अ न! तुम प म, पूव, उ र, द ण आ द दशा से इस मृतक को सुखपूव भ म
करो. तुम एक हो, पर यजमान ने तु ह तीन प म था पत कया था. तुम इस यजमान को
े जन के लोक म भलीभां त था पत करो. (११)
शम नयः स म ा आ रभ तां ाजाप यं मे यं जातवेदसः.
शृतं कृ व त इह माव च पन्.. (१२)
व धपूवक का शत क गई अ नयां तथा उ प पदाथ म वतमान अ नयां जाप त
को दे वता मानने वाले इस प व यजमान को सुखपूवक य काय के हेतु उ सुक बनाएं. इस
लोक म वे अ नयां यजमान को पूण बनाएं तथा उसे य काय से वमुख न होने द. (१२)
य ए त वततः क पमान ईजानम भ लोकं वगम.
तम नयः सव तं जुष तां ाजाप यं मे यं जातवेदसः.
शृतं कृ व त इह माव च पन्.. (१३)
व तृत य समथ हो कर य कता को वगलोक म प ंचाता है. सव व होम करने वाले
य कता को अ नयां संतु कर. इस लोक म वे अ नयां यजमान को पूण बनाएं. अ नयां
यजमान को इस य काय से वमुख न होने द. (१३)
ईजान तमा द नं नाक य पृ ाद् दवमु प त यन्.
त मै भा त नभसो यो तषीमा वगः प थाः सुकृते दे वयानः.. (१४)
वग के ऊपर थत ुलोक जाने क इ छा करता आ य कता पु ष चयन क ई
अ न को कट करता है. अथात् व लत करता है. उस उ म कम करने वाले यजमान के
लए आकाश को का शत करने वाले जस माग से जाते ह, उसी कार का सुख दे ने वाला
माग का शत होता है. (१४)
अ नह ता वयु े बृह प त र ो ा द णत ते अ तु.
तो ऽ यं सं थतो य ए त य पूवमयनं तानाम्.. (१५)
हे ेत! तेरे पतृमेघ य म अ न होता बने, बृह प त अ वयु का काय करे और इं
ा हो. इस कार पूण कया आ यह य पहले कए गए अनेक य का थान ा त
करता है. (१५)
सू -२ दे वता—आप अथात् जल
शं त आपो हैमवतीः शमु ते स तू याः.
शं ते स न यदा आपः शमु ते स तु व याः.. (१)
हे यजमान! हमवान पवत से आए ए जल, झरन के जल तथा सदा बहने वाले जल
तेरे लए सुख करने वाले ह . वषा के जल भी तेरा क याण करने वाले ह . म आप दे व के
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उ े य से घृत, ीर आ द से यु ह व क अ न म आ त दे ता ं. (१)
शतं त आपो ध व या ३: शं ते स वनू याः
शं ते ख न मा आपः शं याः कु भे भराभृताः.. (२)
हे यजमान! म थल के जल तथा जल वाले दे श के जल तेरे लए क याणकारी ह .
कुएं, तालाब आ द के जल तुझे सुख दे ने वाले बन. घड़ के ारा लाए गए जल भी तेरा
क याण कर. (२)
अन यः खनमाना व ा ग भीरे अपसः.
भष यो भष रा आपो अ छा वदाम स.. (३)
खोदने के साधन म कुदाल आ द से र हत एवं लकड़ी, हाथ और पैर से खोदने म
समथ एवं असा य कम को भी मं के बल से स करने वाले हम मेधावी ा ण वै से
बढ़ कर वै ह. हम जल क वंदना करते ह. (३)
अपामह द ानामपां ोत यानाम्.
अपामह णेजने ऽ ा भवथ वा जनः.. (४)
हे ऋ वजो! तुम आकाश से बरसने वाले, न दय म बहने वाले तथा अ य कार के
जल और तेज दौड़ने वाले घोड़ के समान इस जल श वाले य कम म शी ता करने
वाले बनो. (४)
ता अपः शवा अपो ऽ य मंकरणीरपः.
यथैव तृ यते मय ता त आ द भेषजीः.. (५)
हे ऋ वजो! स , क याण करने वाले तथा य मा आ द रोग से छु टकारा दलाने
वाले ओष ध प जल को मेरे सुख क वृ के लए यहां ले आओ. (५)
सू -३ दे वता—अ न
दव पृ थ ाः पय त र ाद् वन प त यो अ योषधी यः.
य य वभृतो जातवेदा तत तुतो जुषमाणो न ए ह.. (१)
हे अ न दे व! आकाश से पृ वी से अंत र से, वन प तय से, ओष धय से तथा
जहांजहां तुम वशेष प से पूण हो, वहांवहां से हम स करते ए यहां आओ. (१)
य ते अ सु म हमा यो वनेषु य ओषधीषु पशु व व१ तः.
अ ने सवा त व १: सं रभ व ता भन ए ह वणोदा अज ः.. (२)
सू -४ दे वता—अ न
यामा त थमामथवा या जाता या ह मकृणो जातवेदाः.
तां त एतां थमो जोहवी म ता भ ु तो वहतु ह म नर नये वाहा.. (१)
हे अ न! अथवा प परमा मा ने सृ से पूव अपने ारा रचे ए दे वता को स
करने के लए तुम म जो आ त द थी और तुम ने उस आ त को दे वगण तक प ंचने यो य
बनाया, हे अ न! म सब यजमान से पहले उस आ त को तु हारे मुख म डालता ं. ह व
ा त कराने वाले त प, दे वता प एवं ह व ेप के आधार प तीन प से तु त
कए गए अ न मेरा यह ह व दे व को ा त कराएं. (१)
आकू त दे व सुभगां पुरो दधे च य माता सुहवा नो अ तु.
यामाशामे म केवली सा मे अ तु वदे यमेनां मन स व ाम्.. (२)
म ता पय प, का शत होने वाली एवं शोभन भा य से यु वाणी अथात् सर वती
क सेवा करता ं. पु जस कार माता के वश म होता है, उसी कार मेरे मन को वश म
रखती ई हमारे आ ान से हमारे अनुकूल हो. म जो कामना करता ं, वह केवल मेरी हो,
कसी अ य को ा त न हो. म अपनी कामना को सदा ा त क ं . (२)
सू -५ दे वता—इं
इ ो राजा जगत् षणीनाम ध म वषु पं यद त.
ततो ददा त दाशुषे वसू न चोदद् राध उप तुत दवाक्.. (१)
तीन लोक म नवास करने वाले मनु य एवं दे वता के वामी इं ह व दे ने वाले
यजमान को धन ला कर द. धरती पर जो अनेक प वाला धन है, उसे मुझे दान कर.
तु त कए गए इं धन को हमारे सामने े रत कर, हम दान कर. (१)
सू -६ दे वता—पु ष
सह बा ः पु षः सह ा ः सह पात्.
स भू म व तो वृ वा य त द् दशाङ् गुलम्.. (१)
अनंत भुजा , अनंत ने और अनंत चरण वाले य का अनु ान करने वाले
नारायण नाम के पु ष ह, वे सात समु और सात प वाली भू म को अपनी म हमा से
सभी ओर से कर के दश अंगुल वाले दय प आकाश म थत ए. (१)
भः प ामरोहत् पाद येहाभवत् पुनः.
तथा ामद् व वङशनानशने अनु.. (२)
य के अनु ाता वे नारायण नाम के पु ष अपने तीन चरण से वगलोक पर आ ढ़
ए. उन का चौथा चरण इस भूलोक म बारबार कट होता है. यह चौथा चरण भोजन करने
वाले मनु य, पशु आ द और भोजन न करने वाले दे व, वृ आ द सभी म ा त है. (२)
सू -७ दे वता—न
च ा ण साकं द व रोचना न सरीसृपा ण भुवने जवा न.
तु मशं सुम त म छमानो अहा न गी भः सपया म नाकम्.. (१)
अनेक प वाले जो काश यु न आकाश म चमकते ह, वे त ण त ग त से
सरकने वाले ह. म उन न क मं प वाली तु त करता ं, य क म उन क बाधा
नवारण करने वाली क याणमयी बु क इ छा करता ं. (१)
सुहवम ने कृ का रो हणी चा तु भ ं मृग शरः शमा ा.
पुनवसू सुनृता चा पु यो भानुरा ेषा अयनं मघा मे.. (२)
हे अ न! कृ का न हमारे आ ान के अनुकूल हो. हे जाप त! रो हणी न
हमारे सुंदर आ ान के यो य हो. हे सोम! मृग शरा न हमारे लए मंगलदायक तथा
आ ान के यो य हो. हे ! आ ा न हमारे लए सुखकारी हो. हे अ द त! पुनवसु न
हम स य वाणी दे ने वाला हो. बृह प त संबंधी पु य न हमारे लए ेय दे ने वाला हो. सप
दे वता वाला आ ेषा न हम द त दान करे. पतृ दे वता वाला मघा न मेरा गंत
थान हो. (२)
पु यं पूवा फ गु यौ चा ह त ा शवा वा त सुखो मे अ तु.
राधे वशाखे सुहवानुराधा ये ा सुन म र मूलम्.. (३)
अयमा दे व का पूवाफा गुनी न , भग दे व का उ रा फा गुनी न , स वता दे व का
हतन तथा इं दे व का च ा न मुझे पु य से भरा आ सुख दे . वायु दे व का वा त
न , इं दे वता वाला राधा अथवा वशाखा न और म दे व का अनुराधा न हमारे
लए सुख से आ ान यो य हो. इं दे व का ये ा न हम सुखी बनाए. पतर दे व का
सू -८ दे वता—न
या न न ा ण द १ त र े अ सु भूमौ या न नगेषु द ु.
क पयं मा या ये त सवा ण ममैता न शवा न स तु.. (१)
जो न अंत र अथात् आकाश म, जल म, भू मय तथा पवत पर एवं दशा म
ह तथा चं मा जन न को कट करता आ उदय होता है, वे न मुझे सुख दे ने वाले
ह . (१)
अ ा वशा न शवा न श मा न सह योगं भज तु मे.
योगं प े ेमं च मे ं प े योगं च नमो ऽ होरा ा याम तु.. (२)
दे खने म सुख दे ने वाले तथा सुख दान करने वाले जो अट् ठाईस न ह, वे एकसाथ
मल कर मुझे ा त ह एवं मुझे सुख दान कर. म न क कृपा से अ ा त व तु को
ा त क ं तथा ा त व तु क सुर ा कर सकूं. दन और रात को मेरा नम कार है. (२)
व ततं मे सु ातः सुसायं सु दवं सुमृगं सुशकुनं मे अ तु.
सुहवम ने व य १ म य ग वा पुनराया भन दन्.. (३)
ातःकाल मुझे सुख दान कर, सायं काल मुझे सुख दान करे तथा दनरात मुझे
सुखी बनाएं. म जस योजन संबंधी न म थान क ं , उस म ह रण आ द शुभ शकुन
के प मेरे अनुकूल ग त वाले ह . हे अ न! सभी न के दे वता का अ भनंदन करने
वाले एवं अ वन र ुलोक म जा कर ह व दे ने वाले हम यजमान और ऋ वज को स
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करने के हेतु पुनः यहां आओ. (३)
अनुहवं प रहवं प रवादं प र वम्.
सवम र कु भान् परा ता स वतः सुव.. (४)
हे स वता दे व! काय के न म जाते ए मुझ को तुम सभी न म अनुभव नाम ले
कर पीछे से बुलाना, प रहव नाम ले कर दोन ओर से पुकारना. प रवाद अथात् कठोर
भाषण, प र व अथात् व जत थल म वेश व खाली घड़े आ द दे खना—अपशकुन से
बचाओ. (४)
अपपापं प र वं पु यं भ ीम ह वम्.
शवा ते पाप ना सकां पु यग ा भ मेहताम्.. (५)
अ हत करने वाली छ क हम से र हो. धन ा त के लए जाते ए पु ष को गीदड़ी
का दशन, उस का श द सुनना तथा नपुंसक का दशन—ये सभी हमारे पाप को शांत करने
वाले ह . (५)
इमा या ण पते वषूचीवात ईरते.
स ीची र ा ताः कृ वा म ं शवतमा कृ ध.. (६)
हे ण प त इं ! ये सभी दशाएं आंधी के कारण धुंधली हो जाती ह तथा पता नह
चलता क यह कौन सी दशा है. उन अंधकार से ढक ई दशा को मेरे अनुकूल करते
ए क याण करने वाली बनाओ. (६)
व त नो अ वभयं नो अ तु नमो ऽ होरा ा याम तु.. (७)
हमारा क याण हो तथा हमारा भय र हो. दन और रात के लए हमारा नम कार हो.
(७)
सू -९ दे वता—मं म बताए ए
शा ता ौः शा ता पृ थवी शा त मदमुव१ त र म्.
शा ता उद वतीरापः शा ता नः स वोषधीः.. (१)
अपने कारण से उ प दोष को शांत करता आ ुलोक हम सुख दान करे. वशाल
अंत र और पृ वी हम सुख दान कर. सागर के जल तथा ओष धयां हम सुख दे ने वाले
ह . (१)
शा ता न पूव पा ण शा तं नो अ तु कृताकृतम्.
शा तं भूतं च भ ं च सवमेव शम तु नः.. (२)
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काय से पहले होने वाले कारण मेरे लए शांत ह . मेरे ारा कए गए और न कए गए
कम मुझे शां त दान करने वाले ह . भूतकाल के काय और भ व यत् काल के काय मेरे
लए शां त द ह . भूत, भ व यत् और वतमान काल से संबं धत सभी काय मेरे लए शां त
दे ने वाले ह . (२)
इयं या परमे नी वाग् दे वी सं शता.
ययैव ससृजे घोरं तयैव शा तर तु नः.. (३)
उ म थान म रहने वाली अथवा ा क प नी, मं के ारा भलीभां त उ े जत एवं
व ान के ारा वयं अनुभव क गई जो वा दे वी अथवा सर वती ह, ये शाप दे ने आ द म भी
उ चारण क जाती ह—ये हमारे लए शां त दे ने वाली ह . (३)
इदं यत परमे नं मनो वां सं शतम्.
येनैव ससृजे घोरं तेनैव शा तर तु नः.. (४)
परमे ी ने सृ के आ द म मन क रचना क , जो संसार का मूल कारण है. ऐसा
ने कहा है. जस मन के ारा कम कया जाता है, उसी मन के ारा हम शां त ा त हो. (४)
इमा न या न प चे या ण मनःष ा न मे द णा सं शता न.
यैरेव ससृजे घोरं तैरेव शा तर तु नः.. (५)
जो पांच ान यां, (आंख, कान, नाक, ज ा और वचा) ह, इन के अ त र मन
छठ ान य है. ये मेरे दय म थत ह और चेतन आ मा इन पर नयं ण करता है. इ ह
के ारा घोर कम कया जाता है. इ ह के ारा हम शां त ा त हो. (५)
शं नो म ः शं व णः शं व णुः शं जाप तः.
शं न इ ो बृह प तः शं नो भव वयमा.. (६)
म अथात् सूय, व ण, व णु, जाप त, इं , बृह प त और अयमा हम शां त दान
करने वाले ह . (६)
शं नो म ः शं व णः शं वव वा छम तकः.
उ पाताः पा थवा त र ाः शं नो द वचरा हाः.. (७)
म , व ण, सूय तथा अंतक हम शां त दान कर. पृ वी और अंत र म होने वाले
उ पात एवं ुलोक म संचरण करने वाले गृह हम शां त दान कर. (७)
शं नो भू मव यमाना शमु का नहतं च यत्.
शं गावो लो हत ीराः शं भू मरव तीयतीः.. (८)
सू -१२ दे वता—उषा
उषा अप वसु तमः सं वतय त वत न सुजातता.
अया वाजं दे व हतं सनेम मदे म शत हमाः सुवीराः.. (१)
उषा आते ही अपनी बहन रा के अंधकार को र कर दे ती है. इस के प ात उषा
लौ कक और वै दक माग को पूण प से खोलती है. इस उषा के ारा हम दे व ारा भली
कार दए ए एवं हतकारी अ को ा त कर. कम करने म कुशल पु एवं पौ वाले हम
सौ वष तक स ह . (१)
सू -१३ दे वता—इं
इ य बा थ वरौ वृषाणौ च ा इमा वृषभौ पार य णू.
तौ यो े थमो योग आगते या यां जतमसुराणां व१यत्.. (१)
इं क भुजाएं दे व से वैर करने वाले रा स पर वजय ा त करने वाली, थूल तथा
अ भमत फल दे ने वाली ह. म अपने क याण के लए इन भुजा का पूजन करता ं. ये
भुजाएं सब के ारा शंसनीय, सांड़ के समान सबल तथा श ु का हनन करने म समथ
ह. परम ऐ य संप इं क दोन भुजाएं सभी उपासक के लए पूव न त है. म अ ा त
क ा त अथात् योग और ा त के र ण अथात् ेम के लए इन क पूजा करता ं. इन
भुजा ने वग के नवासी दे व को बाधा प ंचाने वाली सेना को परा जत कया है. (१)
आशुः शशानो वृषभो न भीमो घनाघनः ोभण षणीनाम्.
सं दनो ऽ न मष एकवीरः शतं सेना अजयत् साक म ः.. (२)
सू -२१ दे वता—इं
गाय यु १ णुगनु ु ब् बृहती पङ् ु ब् जग यै.. (१)
गाय ी, उ णक, अनु ु प, बृहती, पं , ु प तथा जगती् नाम के छं द के लए यह
आ त भलीभां त ा त हो. (१)
सू -२५ दे वता—वाजी
अ ा त य वा मनसा युन म थम य च.
उ कूलमु हो भवो त धावतात्.. (१)
हे अ ! म तुझे श ु सेना पर आ मण करने म भी न थकने वाला तथा सृ के आ द
म उ प घोड़े के मन से यु करता ं. शरीर क ढ़ता, शी गमन तथा श ु सेना को
परा जत करने वाली साम य वाले तुम गव ले बनो. जस कार स रता का वाह तट को
न कर के चलता है, उसी कार तुम भी यु के लए तुत हो. इस कार के अ से म
मन चाहे फल ा त क ं . हे अ ! तुम जीतने यो य थान क ओर शी दौड़ो. (१)
सू -२६ दे वता—अ न
अ नेः जातं प र य र यममृतं द े अ ध म यषु.
य एनद् वेद स इदे नमह त जरामृ युभव त यो बभ त.. (१)
अ न से उ प वण तथा मरणधमा मनु य म अमृत अथात् आ मा के प म ा त
सुवण के प को जानने वाला पु ष ही वण को धारण करने का अ धकारी है. इस सुवण
का आभूषण जो धारण करता है, वह वृ ाव था म मृ यु को ा त करता है. (१)
य र यं सूयण सुवण जाव तो मनवः पूव ई षरे.
तत् वा च ं वचसा सं सृज यायु मान् भव त यो बभ त.. (२)
ावान मनु ने सूय से उ प जस सुवण को ा त कया था, मनु य ारा धारण
कया गया वह सुवण स ता प ंचाने वाले तेज से तु ह संयु करे. जो पु ष इस सुवण को
धारण करता है, वह चरजीवी होता है. (२)
आयुषे वा वचसे वौजसे च बलाय च.
यथा हर यतेजसा वभासा स जनाँ अनु.. (३)
सू -२८ दे वता—दभम ण
इमं ब ना म ते म ण द घायु वाय तेजसे. दभ सप नद भनं षत तपनं
सू -२९ दे वता—दभम ण
न दभ सप नान् मे न मे पृतनायतः.
न मे सवान् हाद न मे षतो मणे.. (१)
हे दभम ण! मेरे श ु तथा मेरे व सेना एक करने वाल को चूम ले. जो मेरे त
भावना रखते ह तथा जो मेरे े षी ह, तुम उ ह चूम लो. (१)
तृ दभ सप नान् मे तृ मे पृतनायतः.
तृ मे सवान् हाद तृ मे षतो मणे.. (२)
हे दभम ण! मेरे श ु का तथा मेरे व सेना एक करने वाल का नाश करो. मेरे
त भावना रखने वाले सभी मनु य का तथा मुझ से े ष करने वाल का नाश करो. (२)
दभ सप नान् मे मे पृतनायतः.
मे सवान् हाद मे षतो मणे.. (३)
सू -३२ दे वता—दभ
शतका डो यवनः सह पण उ रः.
दभ य उ औष ध तं ते ब ना यायायु पे… (१)
हे मृ यु के भय से ःखी पु ष! म सौ गांठ वाली, ःख म चबाने यो य, हजार पु
वाली एवं उ म दभ उ ओष ध अथात् जड़ीबूट है, उसे म द घ आयु ा त करने के लए
बांधता ं. (१)
ना य केशान् वप त नोर स ताडमा नते.
य मा अ छ पणन दभण शम य छ त.. (२)
उस के केश को मृ यु त नह ख चते ह तथा रा स, पशाच आ द दय म चोट प ंचा
कर उसी क हसा नह करते, जसे यो ा बना कटे ए प वाले दभ से बनी म ण सुख
प ंचाती है. (२)
द व ते तूलमोषधे पृ थ ाम स न तः.
वया सह का डेनायुः वधयामहे.. (३)
हे सौ गांठ वाली दभ नामक ओष ध! तेरा ऊपर वाला भाग ुलोक अथात् वग म है
तथा तू पृ वी पर थत है. इस कार पृ वी से वग तक ा त होने वाली तथा हजार गांठ
वाली दभ नाम क ओष ध के ारा म तेरी आयु को बढ़ाता ं. (३)
त ो दवो अ यतृणत् त इमाः पृ थवी त.
वयाहं हाद ज ां न तृण द्म वचां स.. (४)
हे हजार गांठ वाली ओष ध दभ! तू तीन वग का अ त मण गई है तथा तूने इन तीन
पृ वय का अ त मण कया है. म तेरे ारा उस क जीभ को लपेटता ं जो मेरे त
भावना रखता है तथा उस के वचन को बांधता ं. (४)
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वम स सहमानो ऽ हम म सह वान्.
उभौ सह व तौ भू वा सप ना स हषीव ह.. (५)
हे सौ गांठ वाली ओष ध दभ! तुम श ु को वश म करने वाली हो तथा म श ु क
हसा के साधन और बल से यु ं. हम दोन श ु को दबा के वभाव वाले हो कर अपने
श ु को परा जत कर. (५)
सह व नो अ भमा त सह व पृतनायतः.
सह व सवान् हादः सुहाद मे ब न् कृ ध.. (६)
हे सौ गांठ वाली ओष ध दभ! हमारे श ु अथवा पाप को परा जत करो. जो लोग
हमारे व सेना एक कर रहे ह, उन को भी परा जत करो. मेरे त भावना रखने वाले
य का वनाश करो और मेरे म क सं या बढ़ाओ. (६)
दभण दे वजातेन द व भेन श दत्.
तेनाहं श तो जनाँ असनं सनवा न च.. (७)
दे व के समीप से उ प , ुलोक अथात् वग म थत रहने वाले दभ के ारा म सवदा
द घजीवी जन को ा त क ं . (७)
यं मा दभ कृणु राज या यां शू ाय चायाय च.
य मै च कामयामहे सव मै च वप यते.. (८)
हे दभ! मुझ धारणकता को ा ण, य, शू तथा े जन का य बनाओ.
अनुलोम और तलोम जा त के म य जन लोग को म अपना य बनाना चा ं, पाप
अ वेषण करने वाले उस पु ष को मेरा य बनाओ. (८)
यो जायमानः पृ थवीम ं हद् यो अ त नाद त र ं दवं च.
यं ब तं ननु पा मा ववेद स नो ऽ यं दभ व णो दवा कः.. (९)
जस दभ ने उ प होते ही पृ वी को ढ़ कया था तथा जस ने अंत र और ल
ु ोक
अथात् वग को थर कया, उस दभ को जानने वाले को पाप पश नह करता. इस कार
का अंधकार नवारक दभ हम काश दे . (९)
सप नहा शतका डः सह वानोषधीनां थमः सं बभूव.
स नोऽयं दभः प र पातु व त तेन सा ीय पृतनाः पृत यतः.. (१०)
श ु का वनाश करने वाला, सौ गांठ से यु एवं श शाली दभ सभी ओष धय
अथात् जड़ीबू टय से पहले उ प आ है. इस कार का दभ सभी दशा के भय से
हमारी र ा कर. उस दभम ण क सहायता से म उस सेना को परा जत क ं , जसे मेरा श ु
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एक करता है. (१०)
सू -३३ दे वता—दभ
सह ाघः शतका डः सह वानपाम नव धां राजसूयम्.
स नो ऽ यं दभः प र पातु व तो दे वो म णरायुषा सं सृजा त नः.. (१)
ब मू य, सौ गांठ वाली, श संप , जल क अ न अथात् वाडवा न, राजसूय कम
के समान यह दभ चार ओर से हमारी र ा करे. यह दे व के ारा न मत म ण हम आयु से
मलाए. (१)
घृता लु तो मधुमान् पय वान् भू म ं होऽ युत याव य णुः.
नुद सप नानधरां कृ वन् दभा रोह महता म येण.. (२)
हवन करने से शेष बचे घृत से चकना बना आ, मधुरता से यु , अ धक ध वाला,
अपनी जड़ से धरती को ढ़ करने वाला, अपने थान से प तत न होने वाला, सर का
पतन कराने वाला, श ु को र भगाता आ और श हीन बनाता आ दभ अ य
अ धक बल यु ओष धय अथात् जड़ीबू टय म इं के ारा द साम य से थत बने.
(२)
वं भू मम ये योजसा वं वे ां सीद स चा र वरे.
वां प व मृषायो ऽ भर त वं पुनी ह रता य मत्.. (३)
हे दभम ण! तुम अपने बल से भू म का अ त मण करते हो. तुम य म सुंदर वेद पर
थत होते हो. ऋ षय ने तु ह प व करके आहरण कया है. तुम पाप को हम से र
भगाओ. (३)
ती णो राजा वषासही र ोहा व चष णः.
ओजो दे वानां बलमु मेतत् तं ते ब ना म जरसे व तये.. (४)
ती ण, सभी ओष धय म े , वशेष प से श ु नाशक, रा स का हनन करने
वाला, सारे संसार को दे खने वाला, दे व का बल तथा सर के ारा असहनीय श संप
यह दभ नाम का र ा साधन है. हे र ा क इ छा करने वाले पु ष! इस कार क दभम ण
को म तेरी वृ ाव था र करने एवं क याण के लए तेरे हाथ म बांधता ं. (४)
दभण वं कृणवद् वीया ण दभ ब दा मना मा थ ाः.
अ त ाया वचसाधा या सूय इवा भा ह दश त ः.. (५)
हे पु ष! तुम दभम ण पी साधन के ारा वीरता पूण कम करो. श के साधन इस
दभम ण को धारण करते ए तुम ःखी मत होओ. तुम अपने शरीर के बल से श ु को
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थत कर के सूय के समान चार दशा को का शत करो. (५)
सू -३४ दे वता—जं गड़ वन प त
ज डो ऽ स ज डो र ता स ज डः.
पा चतु पाद माकं सव र तु ज डः.. (१)
हे जं गड़ नाम क ओष ध अथात् जड़ीबूट ! तुम कृ या नाम क रा सी को तथा उस
के ारा कए ए कम को नगल लेती हो. इस आधार पर तुम सभी भय से र ा करने वाली
होती हो. हे जं गड़! तुम हमारे दो पैर वाले पु , पौ आ द क तथा चार पैर वाले गाय, अ
आ द पशु क र ा करो. (१)
या गृ य प चाशीः शतं कृ याकृत ये.
सवान् वन ु तेजसो ऽ रसांज ड करत्.. (२)
तरेपन कार क जो हा न प ंचाने वाली रा सयां, कृ याएं है तथा पुत लयां बनाने
वाले जो सैकड़ जा टोना करने वाले ह, जं गड नाम क ओष ध से बनी ई म ण उन सभी
को न श वाला तथा रसहीन करे. (२)
अरसं कृ मं नादमरसाः स त व सः.
अपेतो ज डाम त मषुम तेव शातय.. (३)
अ भचार अथात् जा टोना करने वाले के ारा उ प क गई हा न को यह जं गड म ण
सारहीन करे. सात छे द —नाक, ने , कान तथा मुख म उ प कए गए अ भचार कम को
यह जं गड म ण न करे. बाण फकने वाला श ु को जस कार न कर दे ता है, उसी
कार जं गड म ण हम से बु और द र ता को र करे. (३)
कृ या षण एवायमथो अरा त षणः.
अथो सह वा डः ण आयूं ष ता रषत्.. (४)
यह जं गड़ म ण श ु के ारा उ प कृ या रा सी का नराकरण करने वाली है तथा
श ु को न करने का साधन है. यह जं गड़ म ण ऊपर बताए ए काय क श से यु है.
यह हमारी आयु को बढ़ाए. (४)
स ज ड य म हमा प र णः पातु व तः.
व क धं येन सासह सं क धमोज ओजसा.. (५)
जं गड़ म ण का यह मह व सभी ओर से हमारी र ा करे. यह म ण व कंद नाम के
वातरोग को अपने बल से न करती है. (५)
सू -३५ दे वता—जं गड़ वन प त
इ य नाम गृ त ऋषयो ज डं द ः.
दे वा यं च ु भषजम े व क ध षणम्.. (१)
ाचीन ऋ षय ने इं का नाम लेते ए र ा के इ छु क मनु य को जं गड़ म ण द .
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सृ को आ द म इं आ द दे व ने जं गड़ ओष धय को व कांध नाम के महारोग न करने
वाली बनाया था. (१)
स नो र तु ज डो धनपालो धनेव.
दे वा यं च ु ा णाः प रपाणमरा तहम्.. (२)
राजा का धना य जस कार धन क र ा करता है, उसी कार जं गड म ण हमारी
र ा करे. जं गड म ण को दे व तथा ा ण ने सभी कार से र क और श ु का वनाश
करने वाला बनाया है. (२)
हादः संघोरं च ःु पापकृ वानमागमम्.
तां वं सह च ो तीबोधेन नाशय प रपाणो ऽ स ज डः.. (३)
हे जं गड़ म ण! तुम दय वाले श ु का नाश करो. तुम अ त भयानक का
नाश करो. हसा आ द पाप करने वाले का तुम नाश करो. हे हजार ने वाली जं गड़ म ण!
तुम उन श ु को अपनी तकूल बु से न करो. हे जं गड़! तुम सभी कार से र ा
करने वाली हो. (३)
प र मा दवः प र मा पृ थ ाः पय त र ात् प र मा वी द् यः.
प र मा भूतात् प र मोत भ ाद् दशो दशो ज डः पा व मान्.. (४)
यह जं गड़ म ण मुझे ुलोक अथात् वग से होने वाले भय से, पृ वी से होने वाले भय
से, अंत र के रा स आ द के भय से तथा वृ से होने वाले भय से बचाएं. यह जं गड़
म ण मुझे अतीत काल के ा णय से एवं भ व य म होने वाले ा णय से बचाए. जं गड़
म ण सभी दशा म होने वाले भय से हमारी र ा करे. (४)
य ऋ णवो दे वकृता य उतो ववृते ऽ यः.
सवा तान् व भेषजो ऽ रसां ज ड करात्.. (५)
दे व के ारा बनाए ए जो हसक पु ष ह तथा मनु य आ द के ारा े रत जो बाधक
ह, उन सभी भेषज अथात् ओष धय को जं गड़ म ण श हीन करे. (५)
सू -३६ दे वता—शतवार
शतवारो अनीनशद् य मान् र ां स तेजसा.
आरोहन् वचसा सह म ण णामचातनः.. (१)
शतवार नाम क वशेष ओष ध अथात् जड़ीबूट अपनी म हमा से य मा अथात् ट .
बी. रोग को न करे. यह म ण रा स का भी वनाश करे. वचा के दोष को न करने वाली
शतवार म ण अपनी द त के साथ पु ष क भुजा पर वराजमान हो. (१)
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शृ ा यां र ो नुदते मूलेन यातुधा यः.
म येन य मं बाधते नैनं पा मा त त त.. (२)
यह शतवार म ण! अपने स ग अथात् अगले भाग से अंत र म थत रा स को
भगाती है तथा अपनी जड़ अथात् नीचे वाले भाग से रा सय को र करती है. यह म ण
अपने म य भाग से य मा अथात् ट . बी. रोग को र करती है. पाप इस का अ त मण नह
कर पाता. (२)
ये य मासो अभका महा तो ये च श दनः.
सवान् णामहा म णः शतवारो अनीनशत्.. (३)
जो उ प ए अथात् ारं भक अव था वाले य मा अथात् ट . बी. रोग ह, जो बढ़े ए
य मा तथा जो क से च क सा यो य य मा रोग ह, इन सभी बुरे नाम वाले रोग को शतवार
म ण न कर दे ती है. (३)
शतं वीरानजनय छतं य मानपावपत्.
णा नः सवान् ह वाव र ां स धृनुते.. (४)
धारण क जाती ई यह शतवार म ण सौ वीर पु को ज म दे ती है तथा य मा नाम के
सौ रोग को र भगाती है. यह सभी बुरे नाम वाले रा स को न कर के ऐसा कर दे ती है
क ये पुनः उप व न कर सक. (४)
हर यशृ ऋषभः शातवारो अयं म णः.
णा नः सवा तृ ढ्वाव र ां य मीत्.. (५)
सोने के समान चमकने वाले अ भाग वाली शतवार ओष ध अथात् जड़ीबूट सभी
ओष धय म े है. यह सभी अयश वाले जन को तनके के समान न कर के रा स पर
आ मण करे. (५)
शतमहं णा नीनां ग धवा सरसां शतम्.
शतं श वतीनां शतवारेण वारये.. (६)
म कोढ़, दाद आ द सौ ा धय , सौ गंधव तथा सौ अ सरा को र करता ं.
बारबार पीड़ा दे ने के लए आने वाली सैकड़ अप मार अथात पागलपन आ द ा धय को
शतवार ओष ध से र करता ं. (६)
सू -३७ दे वता—अ न
इदं वच अ नना द मागन् भग यशः सह ओजो वयो बलम्.
य ंशद् या न च वीया ण ता य नः ददातु मे.. (१)
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अ न दे व के ारा द ई यह द त आए. तेज एवं यश के साथ ओज, यौवन और बल
आए. ततीस कार के जो काय अथात् वीरतापूण साम य ह, अ न उ ह मुझे दान कर. (१)
वच आ धे ह मे त वां ३ सह ओजो वयो बलम्.
इ याय वा कमणे वीयाय त गृ ा म शतशारदाय.. (२)
हे अ न! मेरे शरीर म श ु को परा जत करने वाला तेज हो तथा तेज के साथ मुझे
पूण आयु और बल दान करो. म ान य तथा कम य क ढ़ता के लए तुझे वीकार
करता ं. म अ नहो आ द कम के लए वायु पर वजय ा त करने वाले काय के लए तथा
सौ वष का जीवन ा त करने के लए तुझे हण करता ं. (२)
ऊज वा बलाय वौजसे सहसे वा.
अ भभूयाय वा रा भृ याय पयूहा म शतशारदाय.. (३)
हे वीकार कए गए पदाथ! म तु ह अ ा त के लए, बल ा त के लए, तेज ा त
के लए, धन ा त के लए, श ु जय के लए तथा रा य के भरणपोषण के लए सौ वष क
अव ध हेतु हण करता ं. (३)
ऋतु य ् वातवे यो मा यः संव सरे यः.
धा े वधा े समृधे भूत य पतये यजे.. (४)
हे पदाथ! म तुझे ी म आ द ऋतु को स करने के लए, ऋतु संबंधी दे वता
को स करने के लए, चै आ द मास को स करने के लए, संव सर को स करने
के लए, धाता और वधाता तथा सभी ा णय के वामी समृध को स करने के लए य
करता ं. (४)
हे गु गुलु! म तुझे दोन कार के रोग का नाम बताता ं. ःख दे ने वाले वतमान रोग
के वनाश हेतु म तुझ से ाथना करता ं. (३)
सू -३९ दे वता—कु
ऐतु दे व ायमाणः कु ो हमवत प र.
त मानं सव नाशय सवा यातुधा यः.. (१)
कूठ नाम क वशेष ओष ध ुलोक म उ प ई है. यह हमारी र ा करती ई
हमवान पवत से आए. वह सभी लेशकारी रोग का नाश करे तथा सभी रा सय को न
करे. (१)
ी ण ते कु नामा न न मारो न ा रषः.
न ायं पु षो रषत्.
य मै प र वी म वा सायं ातरथो दवा.. (२)
हे कु ! तु हारे तीन नाम न मार, न ा रष और न ह. तु हारा नाम लेने के अभाव म
यह पु ष ह सत आ है. म रोग से ःखी पु ष के लए तु हारा नाम मं के प म बता रहा
ं. वह सायंकाल, ातः और दन म तु हारे नाम का उ चारण करे. (२)
जीवला नाम ते माता जीव तो नाम ते पता.
न ायं पु षो रषत्.
य मै प र वी म वासायं ातरथो दवा.. (३)
हे कु नाम क ओष ध! जीवला तेरी माता है और जीवंत तेरे पता ह. तु हारा नाम न
लेने के कारण इस पु ष क हसा ई है. म रोग से ःखी पु ष को तु हारा नाम मं के प
म ातः, सायं और दन म उ चारण हेतु बताता ं. (३)
उ मो अ योषधीनामनड् वान् जगता् मव ा ः पदा मव.
न ायं पु षो रषत्.
य मै प र वी म सायं ातरथो दवा.. (४)
हे कु ओष ध! जस कार ग त करने वाला बैल े है उसी कार ओष धय म तुम
े हो. जंगली पशु म बाघ जस कार े है. उसी कार तुम ओष धय म े हो.
(४)
सू -४१ दे वता—तप
भ म छ त ऋषयः व वद तपो द ामुप नषे र े.
ततो रा ं बलमोज जातं तद मै दे वा उपसंनम तु.. (१)
सृ के आ द म सब के क याण क इ छा करते ए ऋ षय ने वग ा त करते ए
तप क द ा ा त क . उस से रा , बल और ओज उ प ए. दे व उस रा आ द को इस
पु ष के लए दान कर. (१)
सू -४२ दे वता—
होता य ा णा वरवो मताः.
अ वयु णो जातो णो ऽ त हतं हवः.. (१)
जगत् क उ प का कारण होता है, ही य है. ने उदा , अनुदा ,
व रत आ द वर का गमन न त कया है. से ही अ वयु उ प ए. य का साधन
हव म ही थत है. (१)
ुचो घृतवती णा वे द ता.
य य त वं च ऋ वजो ये ह व कृतः. श मताय वाहा.. (२)
घृत से पूण तथा होम का साधन ुवा भी है. ने ही य वेद को खोदा है.
य का त व है. ह व तैयार करने वाले ऋ वज् भी ही ह. अभेद को ा त के लए
आ त उ म हो. (२)
अंहोमुचे भरे मनीषामा सु ा णे सुम तमावृणानः.
इम म त ह ं गृभाय स याः स तु यजमान य कामाः.. (३)
पाप से छु टकारा दलाने वाले तथा भलीभां त र ा करने वाले इं के लए म उ म
तु त बोलता आ उपासना पूण करता ं. हे इं ! तुम मेरा ह वीकार करो. तु हारी कृपा
से यजमान क इ छाएं पूण ह . (३)
अंहोमुचं वृषभं य यानां वराज तं थमम वराणाम्.
अपां नपातम ना वे धय इ येण त इ यं द मोजः.. (४)
य के यो य दे व म े , पाप से मु कराने वाले तथा य म मुख प म
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वराजमान इं का म आ ान करता ं. जल क वषा करने वाले अ न तथा अ नीकुमार
का म आ ान करता ं. वे अ नीकुमार इं य क साम य से तु ह बु , ओज और बल
दान कर. (४)
सू -४४ दे वता—आंजन, व ण
आयुषो ऽ स तरणं व ं भेषजमु यसे.
तदा न वं शंताते शमापो अभयं कृतम्.. (१)
हे आंजन! तुम सौ वष क आयु दे ने वाले हो. तुम स करने वाली ओष ध कहे जाते
हो, इस लए हे आंजन! तुम सुख प कहे जाते हो. हे जल के ल ण आंजन! तुम और जल
दे वता मुझे सुख दान कर तथा अभय दान कर. (१)
यो ह रमा जाया यो ऽ भेदो वस पकः.
सव ते य मम े यो ब ह नह वा नम्.. (२)
हलद के समान पीले रंग का जो पांडु रोग क ठनता से च क सा करने यो य है, वह
अंग को भ करता है और अनेक कार के घाव कर दे ता है. यह आंजन के अंग से सभी
रोग को बाहर नकाल कर न करे. (२)
आ नं पृ थ ां जातं भ ं पु षजीवनम्.
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कृणो व मायुकं रथजू तमनागसम्.. (३)
पृ वी पर उ प आ आंजन क याण करने वाला तथा पु ष को जी वत करने वाला
है. यह आंजन हम मरण र हत, रथ के समान ती ग त वाला तथा पाप र हत करे. (३)
ाण ाणं ाय वासो असवे मृड. नऋते नऋ या नः पाशे यो मु च..
(४)
हे ाण प आंजन! तुम मेरे ाण क र ा करो तथा अकाल म न न होने वाला
बनाओ. हे ाण प आंजन! तुम ाण को सुखी बनाओ. हे नऋ त प आंजन! हम
नऋ त के फंद से छु ड़ाओ. (४)
स धोगभ ऽ स व ुतां पु पम्.
वातः ाणः सूय ु दव पयः.. (५)
हे आंजन! तुम सागर के गभ और बजली के फूल हो. तुम वायु के ाण, सूय के ने
और आकाश के जल हो. (५)
दे वा न ैककुद प र मा पा ह व तः.
न वा तर योषधयो बा ाः पवतीया उत.. (६)
हे ककुद पवत पर उ प एवं दे व के ारा अपनी र ा के लए धारण कए जाते ए
आंजन! सभी ओर से हमारी र ा करो. पवत से अ धक ऊंचे थान पर उ प ओष धयां
अथात् जड़ीबू टयां तु हारे भाव को नह लांघ सकत . (६)
वी ३ दं म यमवासृपद् र ोहामीवचातनः.
अमीवाः सवा ातयन् नाशयद भभा इतः.. (७)
रा स का वनाश करने वाला तथा रोग को न करने वाला यह आंजन सभी रोग का
वनाश करता आ तथा सभी रोग को परा जत करता आ स हो. (७)
ब ३ दं राजन् व णानृतमाह पू षः.
त मात् सह वीय मु च नः पयहसः.. (८)
हे राजा व ण! यह मनु य सवेरे से शाम तक अनेक कार का अस य भाषण करता है.
इस के अस य भाषण को मा करो. हे हजार कार क श वाले आंजन! इस अस य
भाषण प बाण से हम सभी ओर से छु ड़ाओ. (८)
यदापो अ या इ त व णे त य चम.
त मात् सह वीय मु च नः पयहसः.. (९)
सू -४५ दे वता—आंजन
ऋणा ण मव संनयन् कृ यां कृ याकृतो गृहम्.
च ुम य हादः पृ ीर प शृणा न.. (१)
हे आंजन! जस कार ऋण लेने वाला धन ऋण दाता को लौटा दे ता है, उसी तरह मुझे
पीड़ा प ंचाने वाली कृ या नाम क रा सी को उसी के घर भेज दो, जस ने उसे मेरे पास
भेजा है. हे आ द य के च ु आंजन! दय वाल के समीपव तय का भी वनाश करो.
(१)
यद मासु व यं यद् गोषु य च नो गृहे.
अनामग तं च हादः यः त मु चताम्.. (२)
हमारे पु , पौ आ द म जो बुरा व है, हमारी गाय से संबं धत जो बुरा व है,
हमारे घर म थत दास आ द का जो बुरा व है, उसे नाम र हत श ु के लए छोड़ दो.
(२)
अपामूज ओजसो वावृधानम नेजातम ध जातवेदसः.
चतुव रं पवतीयं यदा नं दशः दशः कर द छवा ते.. (३)
हे जल के सार, ओज को बढ़ाने वाले तथा जातवेद अ न से उ प तथा ककुद नाम
के पवत पर ज म लेने वाले आंजन! मेरे लए दशा और दशा को मंगलकारी
बनाओ. (३)
चतुव रं ब यत आ नं ते सवा दशो अभया ते भव तु.
ुव त ा स स वतेव चाय इमा वशो अ भ हर तु ते ब लम्.. (४)
हे र ा पी फल क कामना करने वाले पु ष! तेरे हाथ म चार दशा म श का
दशन करने वाली आंजन म ण पी ओष ध अथात् जड़ी बांधी जाती है. इस म ण को
धारण करने से तेरी दशाएं और दशाएं भय र हत हो जाएं. हे अ धकार संप आंजन! तुम
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सूय के समान चार दशा को का शत करते ए थर प म रहो. ये सभी दशाएं तु ह
बल दान कर. (४)
आ वैकं म णमेकं कृणु व ना ेकेना पबैकमेषाम्.
चतुव रं नैऋते य तु य ा ा ब धे यः प र पा व मान्.. (५)
हे पु ष! एक आंजन को अपनी आंख म धारण करो तथा सरे आंजन को म ण
बनाओ. एक आंजन से नान करो. इस कार पवत क तीन चो टय पर उ प तीन आंजन
का उपयोग करो. ये तीन वहां धारण क जाएं. इस का ान न कर के इ छानुसार इन का
योग करो. चार श य वाले इस आंजन को हण करने के यो य ओष ध अथात् जड़ीबूट
के साथ नऋ त दे वता से संबं धत बंधन से हमारी र ा करो. (५)
अ नमा ननावतु ाणायापानायुषे वचस ओजसे तेजसे व तये सुभूतये
वाहा.. (६)
अ न अपने अ न व धम के ारा मेरी र ा कर. अ न ाण क थरता के लए,
अपान क थरता के लए, आयु क वृ के लए, वेद के अ ययन से उ प तेज के लए,
बल के लए, शरीर क कां त के लए, कुशल के लए तथा शोभन संप के लए मेरी र ा
कर. यह आ त भलीभां त अ न को ा त हो. (६)
इ ो मे येणावतु ाणायापानायायुषे वचस ओजसे तेजसे व तये
सुभूतये वाहा.. (७)
इं अपनी असाधारण श से मेरी र ा कर. इं ाण क थरता के लए, अपान क
थरता के लए, आयु क वृ के लए, शरीर क कां त के लए, कुशल के लए तथा
शोभन संप के लए मेरी र ा कर. यह आ त भलीभां त इं को ा त हो. (७)
सोमो मा सौ येनावतु ाणायापानायायुषे वचस ओजसे तेजसे व तये
सुभूतये वाहा.. (८)
सोम अपनी श ाण क थरता के लए, अपान क थरता के लए, आयु क
वृ के लए, शरीर क कां त के लए, कुशल के लए तथा शोभन संप के लए मेरी र ा
कर. यह आ त सोम को भलीभां त ा त हो. (८)
भगो मा भगेनावतु ाणायापानायायुषे वचस ओजसे तेजसे व तये
सुभूतये वाहा.. (९)
भग दे व अपनी श से ाण क थरता के लए, अपान क थरता के लए, आयु
क वृ के लए, शरीर क कां त के लए, कुशल के लए तथा शोभन संप के लए मेरी
सू -४७ दे वता—रा
आ रा पा थवं रजः पतुर ा य धाम भः.
दवः सदां स बृहती व त स आ वेषं वतते तमः.. (१)
हे रा ! तुम ने अपने अंधकार से पृ वीलोक तथा पतर के लोक वग को पूण कर
दया है. महती रा ुलोक के थान को वशेष प ये ा त करती है. नील वण का
अंधकार सब को ा त करता है. (१)
न य याः पारं द शे न योयुवद् व म यां न वशते यदे ज त.
अ र ास त उ व तम व त रा पारमशीम ह भ े पारमशीम ह.. (२)
रात का पार दखाई नह दे ता है. लोक ा पनी रा म चराचर व एकाकार ही हो
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जाता है, अलगअलग दखाई नह दे ता है. जगत् कांपता है, तथा ाणी इस रा म इधरउधर
जाने म असमथ हो जाते ह. हे अंधकार वाली रा ! सप, बाघ, चोर आ द क बाधा से र हत
हम तेरे अं तम नाम अथात् ातःकाल को ा त कर. हे क याणका रणी रा ! हम क याण
को ा त कर. (२)
ये ते रा नृच सो ारो नव तनव.
अशी तः स य ा उतो ते स त स त तः.. (३)
हे रा ! मनु य के कम फल के दे खने वाले तु हारे जो न यानवे गण दे वता ह, अठासी
गण दे वता ह तथा सतह र गण दे वता ह, वे तु हारी म हमा का व तार करते ह. (३)
ष षट् च रेव त प चाशत् प च सु न य.
च वार वा रश च य ंश च वा ज न.. (४)
हे धन दान करने वाली रा ! छयासठ और पचपन जो गण दे वता ह, हे सुख दे ने
वाली रा ! चवालीस जो गण दे वता ह, हे अ दान करने वाली रा ! ततीस जो गण दे वता
ह, वे तु हारी म हमा का व तार करते ह. (४)
ौ च ते वश त ते रा येकादशावमाः.
ते भन अ पायु भनु पा ह हत दवः.. (५)
हे रा ! तु हारे जो बाईस और यारह गण दे वता ह तथा इस से कम सं या वाले जो
गण दे वता ह, हे ुलोक क पु ी रा ! इस समय उन र क गण दे व के साथ हमारी र ा
करो. (५)
र ा मा कन अघशंस ईशत मा नो ःशंस ईशत.
मा नो अ गवां तेनो मावीनां वृक ईशत.. (६)
हे रा ! हमारा पालन करो, पाप कम करने क बात कहने वाला कोई भी हम बाधा
प ंचाने म समथ न हो. ता पूण वचन बोलने वाला हम बाधा न प ंचाए. हे रा ! आज
चोर हमारी सभी गाय को चुराने म समथ न हो. भे ड़या हमारी भेड़ का बलपूवक अपहरण
करने म समथ न हो. (६)
मा ानां भ े त करो मा नृणां यातुधा यः.
परमे भः प थ भ तेनो धावतु त करः.
परेण द वती र जुः परेणाघायुरषतु.. (७)
हे भली रा ! चोर हमारे घोड़ को चुराने म समथ न हो तथा यातुधान हमारे पु आ द
के वामी न बन सक. चोर और त कर अ त र माग से अपने साधन ारा र भाग जाएं.
दांत वाली र सी के समान वशाल सप र भाग जाएं. सर क हसा करने के इ छु क हम
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से र चले जाएं. (७)
अध रा तृ धूममशीषाणम ह कृणु.
हनू वृक य ज भया तेन तं पदे ज ह.. (८)
हे रा ! यास उ प करने वाले तथा धुआं छोड़ने वाले सप को तुम बना शीश वाला
बनाओ अथात् मार डालो. ढ़ दाढ़ के कारण सर का भ ण करने वाले भे ड़य को टू ट
ई ठोड़ी वाला बना कर न करो. हे सव ा त रा उस भे ड़ए को मारो. (८)
व य रा वसाम स व प याम स जागृ ह.
गो यो नः शम य छा े यः पु षे यः.. (९)
हे रा ! हम तुझ म नवास करते ह. हम रा के समय सोते ह, पर तुम जा त रहो.
तुम हमारी गाय को, घोड़ को तथा प रवारी जन को सुख दान करो. (९)
सू -४८ दे वता—रा
अथो या न च य मा ह या न चा तः परीण ह.
ता न ते प र दद्म स.. (१)
मुझ से संबं धत जो बाहरी व तुएं गोचर तथा खुले दे श म ह तथा जो आसपास के
घर म व मान ह, म वे सभी व तुएं तुझे दे ता ं. (१)
रा मात षसे नः प र दे ह.
उषा नो अ े प र ददा वह तु यं वभाव र.. (२)
हे माता रा ! हम उषाःकाल को दान करो तथा उषाःकाल हम दन को दान करे. हे
रा ! दन हम तुम को दान कर. (२)
यत् क चेदं पतय त यत् क चेदं सरीसृपम्.
यत् क च पवतायास वं त मात् वं रा पा ह नः.. (३)
जो प ी आ द आकाश म संचरण करते ह, जो धरती पर सरकने वाले सप आ द ह,
जो पवत संबंधी जीव—जंतु ह, हे रा उन से हमारी र ा करो. (३)
सा प ात् पा ह सा पुरः सो रादधरा त.
गोपाय नो वभाव र तोतार त इह म स.. (४)
हे पूव उ ल ण वाली रा ! तुम प म दशा म, पूव दशा म, उ र दशा म तथा
द ण दशा म हमारी र ा करो. हे रा ! हमारी र ा करो. हम इस समय तु हारी तु त
सू -४९ दे वता—रा
इ षरा योषा युव तदमूना रा ी दे व य स वतुभग य.
अ भा सुहवा संभृत ीरा प ौ ावापृ थवी म ह वा.. (१)
सब के ारा ाथनीय, यौवन वाली तथा े मन वाली रा सभी के ेरक स वता
और भग दे व क प नी है. यह अपने वषय म च ु आ द इं य का तर कार करती है. यह
उ म हवन करने यो य तथा संपूण कां त वाली रा अपने मह व से ावा और पृ वी को
पूण करती है. (१)
अ त व ा य हद् ग भीरो व ष म ह त व ाः.
उशती रा यनु सा भ ा भ त ते म इव वधा भः.. (२)
जस म वेश करना क ठन है, ऐसी रा सभी चराचर व तु को ा त कर के
वतमान है. इस अ तशय अ वाली रा क सब तु त करते ह. यह वन, पवत, सागर आ द
को ा त कर के थत है. यजमान आ द के ारा द अ आ द साधन से सूय जस
कार अपने तेज से त ण व को आ ांत करते ह, उसी कार यह रा भी जगत् पर
छा जाती है. (२)
वय व दे सुभगे सुजात आजगन् रा सुमना इह याम्.
अ मां ाय व नया ण जाता अथो या न ग ा न पु ा.. (३)
हे न कने वाले भाव वाली, सभी के ारा तु त क गई, सौभा य वाली तथा
भलीभां त उ प रा ! तुम आ गई हो. तु हारे आने पर म सुंदर मन वाला बनूं. मेरा पालन
करो तथा उ प व तु को, मनु य क हतकारी व तु को तथा पु करने वाली गाय
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आ द जो हतकारी व तुएं ह, उन क र ा करो. (३)
सहं य रा युशती प ष य ा य पनो वच आ ददे .
अ य नं पू ष य मायुं पु पा ण कृणुषे वभाती.. (४)
इ छा करती ई यह रा सह, हाथी, गडा, बाघ आ द के तेज का अपहरण करती है.
यह अ के वेग को तथा पु ष के श द को ख च लेती है. हे रा ! तुम द तमती हो कर
नाना कार के प धारण करती हो. (४)
शवां रा मनुसूय च हम य माता सुहवा नो अ तु.
अ य तोम य सुभगे न बोध येन वा व दे व ासु द ु.. (५)
हे रा ! म क याण करने वाली तेरी तथा सूय क वंदना करता ं. तुषार क माता रा
हमारे उ म आ ान का वषय हो. हे सौभा यशा लनी रा ! तुम इस समय कए जाते ए
हमारे तो को जानो. इस तो के ारा हम सभी दशा म तेरी वंदना करते ह. (५)
तोम य नो वभाव र रा राजेव जोषसे.
आसाम सववीरा भवाम सववेदसो ु छ तीरनूषसः.. (६)
हे का शत होती ई रा ! जस कार राजा तोता के ारा क जाती ई तु त
को यानपूवक सुनता है, उसी कार तुम हमारी तु तय को सावधान हो कर सुनो. अंधकार
का वनाश करती ई एवं उषाःकाल के प ात आती ई रा क कृपा से हम वीर पु ,
पौ और सेवक वाले बन तथा सभी कार के धन से संप ह . (६)
श या ह नाम द धषे मम द स त ये धना.
रा ी ह तानसुतपा य तेनो न व ते यत् पुनन व ते.. (७)
हे रा ! तुम श या अथात् श ु के बल को शांत करने वाला नाम धारण करती हो. जो
श ु मेरे धन का अपहरण करने क इ छा करते ह, हे रा ! तुम उन श ु के ाण को
संत त करती ई आओ. मेरा वरोधी जो दखाई दे रहा है, वह पुनः दखाई न दे . (७)
भ ा स रा चमसो न व ो व वङ् गो पं युव त बभ ष.
च ु मती मे उशती वपूं ष त वं द ा न ाममु थाः.. (८)
हे रा ! तुम च मच के समान क याण पा हो. तुम सव ा त यौवन वाली गाय का
प धारण करती हो. हमारा पोषण करने क कामना करती ई एवं दे खने क श से
संप तुम मेरे तथा मेरे पु आ द के शरीर क र ा करो. जस कार द पु ष शरीर का
याग नह करते, उसी कार तुम धरती को मत छोड़ो. (८)
यो अ तेन आय यघायुम य रपुः.
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रा ी त य ती य ीवाः शरो हनत्.. (९)
इस समय जो चोर, हसा करने वाला तथा मरणधमा श ु आता है, हे सुंदर प वाली
रा ! मेरे समीप आने वाले श ु के समीप जा कर उस क ज ा और शीश को काट दो. (९)
पादौ न यथाय त ह तौ न यथा शषत्.
यो म ल लु पाय त स सं प ो अपाय त.
अपाय त वपाय त शु के थाणावपाय त.. (१०)
हे रा ! तुम मेरे श ु के पैर को इस कार काट दो क वह फर आने यो य न रहे. तुम
उस के हाथ को इस कार काट दो जस से वह मेरा आ लगन न कर सके. जो चोर मेरे
समीप आता है. उसे इस कार पीस दो क वह मुझ से र चला जाए. वह भलीभां त पूण
प से चला जाए. वह मेरे पास से जा कर सूखे खंभे का आ य ा त करे. (१०)
सू -५० दे वता—रा
अध रा तृ धूममशीषाणम ह कृणु.
अ ौ वृक य नज ा तेन तं पदे ज ह.. (१)
हे रा ! जस सप क धुएं के समान सांस क दायक है, उस का सर काट दो. भे ड़ए
को ने हीन कर के वृ के नीचे मार डालो. (१)
ये ते रा यनड् वाह ती णशृ ाः वाशवः.
ते भन अ पारया त गा ण व हा.. (२)
हे रा ! तु हारे वाहन जो नुक ले स ग वाले तथा अ य धक शी चलने वाले बैल ह,
उन के ारा हम सभी रा य के सभी अनथ से पार कराओ. (२)
रा रा म र य त तरेम त वा वयम्.
ग भीरम लवा इव न तरेयुररातयः.. (३)
सभी रा य म गमन करते ए हम शरीर से पुनः पौ आ द के साथ रा को पार कर.
हमारे श ु नद पार करने के साथ नाव आ द से हीन पु ष के समान रा को पार न कर
पाएं अथात् रा म ही न हो जाएं. (३)
यथा शा याकः पत पवान् नानु व ते.
एवा रा पातय यो अ माँ अ यघाय त.. (४)
जस कार सवां अ पकने पर गरता आ सारहीन हो जाता है तथा बलकुल नह
बचता, हे रा ! जो हमारे त हसा करने क इ छा रखता है, उसे उसी कार गरा दो. (४)
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अप तेनं वासो गोअजमुत त करम्.
अथो यो अवतः शरो ऽ भधाय ननीष त.. (५)
जो चोर हमारे व , गाय तथा बक रयां ले जाना चाहते ह तथा जो हमारे घोड़ के सर
को र सी से बांध कर ले जाना चाहते ह, उ ह र भगाओ. (५)
यद ा रा सुभगे वभज ययो वसु.
यदे तद मात् भोजय यथेद यानुपाय स.. (६)
हे सौभा यशा लनी रा ! आज जो चोर वण आ द धातु का अपहरण करते ह, उस
धन को हमारे उपभोग का साधन बनाओ. इस से श ु ारा छ ने गए हमारे घोड़े, हाथी भी
हम ा त हो जाएं. (६)
उषसे नः प र दे ह सवान् रा यनागसः.
उषा नो अ े आ भजादह तु यं वभाव र.. (७)
हे रा ! हम सभी तु तकता तथा पशु , पु , म आ द को र ण के लए उषा
को दान करो. हे वभावरी! उषः हम सब को दन दान करे तथा दन पुनः तु ह ा त करे.
(७)
सू -५२ दे वता—काम
काम तद े समवतत मनसो रेतः थमं यदासीत्.
स काम कामने बृहता सयोनी राय पोषं यजमानाय धे ह.. (१)
सू —५३ दे वता—काल
कालो अ ो वह त स तर मः सह ा ो अजरो भू ररेताः.
तमा रोह त कवयो वप त त य च ा भुवना न व ा.. (१)
सात करण अथवा र सय वाला, हजार ने वाला, वृ ाव था र हत तथा अ य धक
वीय से यु काल पी घोड़ा रथ को ख चता है. सभी लोक उस के च अथात् प हए ह.
व ान् पु ष उस रथ पर सवार होते ह. (१)
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स त च ान् वह त काल एष स ता य नाभीरमृतं व ः.
स इमा व ा भुवना य त् कालः स ईयते थमो नु दे वः.. (२)
यह काल प परमा मा म से प हय के समान सात ऋतु को धारण करता है. इस
संव सर प काल क सात ना भयां ह और इस के अ अथात् अरे न न होने वाले ह. वह
संव सर प काल उन सात भुवन तथा इन म रहने वाले ा णय को करता आ सब
से पहले उ प एवं द है. (२)
पूणः कु भो ऽ ध काल आ हत तं वै प यामो ब धा नु स तम्ः.
स इमा व ा भुवना न यङ् कालं तमा ः परमे ोमन्.. (३)
यह ांड प भरा आ कुंभ अथात् घड़ा संव सर पी काल पर रखा आ है. संत
अथात् ानी पु ष उस काल के दवस, रा आ द अनेक प को दे खते ह. यह काल प
परमा मा सभी उप थत ा णय के सामने कट होता है तथा उ ह अपने म मला लेता है.
इस काल को आकाश के समान नलप कहा जाता है. (३)
स एव सं भुवना याभरत् स एव सं भुवना न पयत्.
पता स भवत् पु एषां त माद् वै ना यत् परम त तेजः.. (४)
वही काल सब भुवन को उ प करता है. वही काल सब भुवन म ा त होता है. वही
काल इन भुवन को उ प करने वाला पता होता आ पु भी होता है. उस काल के
अ त र कोई भी तेज महान नह है. (४)
कालोऽमूं दवमजनयत् काल इमाः पृ थवी त.
काले ह भूतं भ ं चे षतं ह व त ते.. (५)
काल प परमा मा ने इस ुलोक अथात वग को ज म दया. काल ने उन पृ वय
को उ प कया. काल म ही यह भूत, भ व य एवं वतमान व चे ा करता है. (५)
कालो भू तमसृजत काले तप त सूयः.
काले ह व ा भूता न काले च ु व प य त.. (६)
काल ने भवन वाले संसार को उ प कया है. काल क रे णा से ही सूय संसार को
का शत करता है. सभी ाणी काल म ही वतमान रहते ह. च ु आ द इं यां अपना काम
करती ह. (६)
काले मनः काले ाणः काले नाम समा हतम्.
कालेन सवा न द यागतेन जा इमाः.. (७)
काल म मन, ाण तथा नाम ा त ह. ये सब जाएं वसंत आ द प काल के कारण
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स रहती है. (७)
काले तपः काले ये ं काले समा हतम्.
कालो ह सव ये रो यः पतासीत् जापतेः.. (८)
काल म तप, काल म संसार का कारण हर य गभ ा त है. काल म ही अंग स हत
वेद ा त था. काल ही सब का वामी है. काल ही जा का ई र और पता था. (८)
तेने षतं तेन जातं त त मन् त तम्.
कालो ह ब भू वा बभ त परमे नम्.. (९)
काल ने इस संसार को बनाने क इ छा क . काल से उ प जगत् काल म ही त त
आ. काल ही बल बन कर परमे ी को धारण करता है. (९)
कालः जा असृजत कालो अ े जाप तम्.
वय भूः क यपः कालात् तपः कालादजायत.. (१०)
काल ने जा को उ प कया. काल ने सृ के आरंभ म जाप त को उ प
कया. काल से ही वयंभू ा और क यप ऋ ष उ प ए. तेज भी काल से ही उ प
आ. (१०)
सू —५४ दे वता—काल
कालादापः समभवत् कालाद् तपो दशः.
कालेनोदे त सूयः काले न वशते पुनः.. (१)
काल से जल क उ प ई. काल से अथात् य आ द कम, चां ायण आ द तप
तथा पूव आ द दशाएं उ प . काल के कारण ही सूय उदय होता है तथा काल म ही
अ त हो जाता है. (१)
कालेन वातः पवते कालेन पृ थवी मही. ौमही काल आ हता.. (२)
काल के कारण वायु चलती है. काल के कारण पृ वी म हमामयी है. ुलोक काल से
म हमामय है तथा काल के आ त है. (२)
कालो ह भूतं भ ं च पु ो अजनयत् पुरा.
काला चः समभवन् यजुः कालादजायत.. (३)
पहले काल से भूत, भ व य, पु तथा ऋचाएं उ प . काल से ही यजुवद का ज म
आ. (३)
सू —५५ दे वता—अ न
रा रा म यातं भर तो ऽ ायेव त ते घासम मै.
राय पोषेण स मषा मद तो मा ते अ ने तवेशा रषाम (१)
हे अ न दे व! तुम य के साधन के प म गाहप य आ द य शाला म वतमान हो.
जस कार घोड़े को घास द जाती है, उसी कार तु हारे लए हम यह खाने यो य ह व
रात दन दान करते ए अ और धन से स होते ए तु हारा सामी य ा त कर तथा हम
नाश क ा त न हो. (१)
या ते वसोवात इषुः सा त एषा तया नो मृड.
रास पोषेण स मषा मद तो मा ते अ ने तवेशा रषाम.. (२)
हे नवास करने वाले अ न दे व! तु हारी तथा अ य दे व क जो कृपामयी बु है,
अपनी इस बु से हमारी र ा करो. धन और अ से स होते ए हम तु हारा सामी य
ा त कर और हम नाश को ा त न ह . (२)
सायंसायं गृहप तन अ नः ातः ातः सौमनस य दाता.
वसोवसोवसुदान ए ध वयं वे धाना त वं पुषेम.. (३)
गृहप त ारा आधान क गई अ न सायं और ातः तथा सभी काल म सुख को दे ने
वाली हो. हे अ न! तुम सभी कार के धन को दे ने वाली बनो. तु ह ह व के ारा द त
करते ए हम पु , म आ द सभी के शरीर को पु कर. (३)
ातः ातगृहप तन अ नः सायंसायं सौमनस य दाता.
वसोवसोवसुदान एधी धाना वा शतं हमा ऋधेम.. (४)
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हे गृहप त ारा आधान क गई अ न! तुम सायं और ातः हम सुख दे ने वाली बनो. हे
धन दान करने वाली अ न! तुम वृ दान करो. हम तु ह ह व ारा द त करते ए सौ
वष तक जी वत रह. (४)
अप ा द धा य भूयासम्.
अ ादाया पतये ाय नमो अ नये.
स यः सभां मे पा ह ये च स याः सभासदः.. (५)
बटलोई के नचले भाग म जले ए भोजन को ा त करने वाला म न बनूं. ता पय यह
है क म अ धक भोजन ा त क ं . अ दान करने वाले अ न और अ के वामी के
लए नम कार है. हे सभा के यो य अ न! तुम मेरी सभा अथात् पु , म , पशु आ द के
समूह क र ा करो. जो उस समूह म थत रहने वाले ह, हे अ न दे व! उन क र ा करो.
(५)
व म ा पु त व मायु वत्.
अहरहब ल म े हर तो ऽ ायेव त ते घासम ने.. (६)
हे ब त के ारा आ ान कए गए इं और ऐ य वाले अ न! तुम हम संपूण अ
और जीवन ा त कराओ. बंधे ए घोड़े को जस कार घास ा त कराई जाती है, उसी
कार तु ह त दन ह व दान करते ए हम पूण आयु ा त कर. (६)
सू —५९ दे वता—अ न
वम ने तपा अ स दे व आ म य वा. वं य े वी ः.. (१)
हे अ न! तुम य कम का पालन करने वाली हो. तुम मनु य म जठरा न के पम
सभी ओर ा त हो. तुम दश, पौणमास आ द य क तु त के यो य हो. (१)
यद् वो वयं मनाम ता न व षां दे वा अ व ारासः.
अ न द् व ादा पृणातु व ा सोम य यो ा णाँ आ ववेश.. (२)
हे दे वो! अपने त को न जानने वाले हम जानने वाल को न करते ह. उस लु त कम
को जानती ई अ न पूण करे. वह अ न सोम के संबंध से ा ण के स मुख जाती है. (२)
आ दे वानाम प प थामग म य छ नवाम तदनु वोढु म्.
अ न व ा स यजात् स इ ोता सो ऽ वरा स ऋतून् क पया त.. (३)
जस माग पर चल कर दे व को ा त कया जाता है, हम उस माग पर चल. हम जो
अनु ान कर सकते ह, उसे करने के हेतु दे व के माग पर गमन कर. जानने वाली अ न उस
माग को दे व को ा त कराएं. वही अ न दे व और मनु य का आ ान करने वाली है. अ न
य तथा ऋतु को सुर त कर. (३)
सू —६० दे वता—याग आ द
वाङ् म आस सोः ाण ुर णोः ो ं कणयोः.
अप लताः केशा अशोणा द ता ब बा ोबलम्.. (१)
मेरे मुख म वाणी हो. मेरी ना सका म ाण रह. मेरी आंख म दे खने क श रहे. मेरे
कान म सुनने क श हो. मेरे केश ेत न ह . मेरे दांत कभी न टू ट. मेरी भुजा म
अ धक बल रहे. (१)
ऊव रोजो जङ् घयोजवः पादयोः.
त ा अ र ा न मे सवा मा नभृ ः.. (२)
मेरे उ म ओज रहे, जंघा म वेग रहे तथा चरण म चलने क श रहे. मेरी
आ मा अ ह सत रहे तथा मेरे सभी अंग पाप र हत ह . (२)
सू —६२ दे वता— ण पत
यं मा कृणु दे वेषु यं राजसु मा कृणु.
यं सव य प यत उत शू उताय.. (१)
हे अ न! तुम मुझे दे व का य बनाओ. मुझे राजा का भी य करो. म सभी दे खने
वाल का, शू का और आय का य बनूं. अथात् सब का य बनूं. (१)
सू —६३ दे वता— ण पत
उत् त ण पते दे वान् य ेन बोधय.
आयुः ाणं जां पशून् क त यजमानं च वधय.. (१)
हे ण प त! उठो और दे व को मेरे य का ान कराओ. तुम इस यजमान क
आयु, ाण, जा, पशु तथा क त को बढ़ाओ. तुम इस यजमान क वृ करो. (१)
सू —६४ दे वता—अ न
अ ने स मधमाहाष बृहते जातवेदसे.
स मे ां च मेधां च जातवेदाः य छतु.. (१)
म महान और जातवेद अ न के लए व लत होने का साधन स मधाएं लाया ं.
स मधा से वृ को ा त जातवेद अ न मुझे ा और बु दान कर. (१)
इ मेन वा जातवेदः स मधा वधयाम स.
तथा वम मान् वधय जया च धनेन च.. (२)
हे जातवेद अ न! हम व लत होने के साधन स मधा के ारा तु ह बढ़ाते ह. तुम
हम जा और धन से बढ़ाओ. (२)
यद ने या न का न चदा ते दा ण द म स.
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सव तद तु मे शवं त जुष व य व .. (३)
हे अ न! म तु हारे लए जो य के यो य और य के अयो य का (लकड़ी) दान
करता ,ं वह सब मेरे लए क याणकारी हो अथात् उन से मेरा क याण हो. हे अ तशय युवा
अ न! तुम मेरे ारा दए गए का (लकड़ी) को वीकार करो. (३)
एता ते अ ने स मध व म ः स मद् भव.
आयुर मासु धे मृत वमाचायाय.. (४)
हे अ न! म तु हारे लए ये स मधाएं लाया ं. उन स मधा के ारा तुम व लत
होओ. तुम हम सब म आयु और जीवन का आधान करो. तुम हमारे उपा याय के लए अमृत
दान करो. (४)
सू —६७ दे वता—सूय
प येम शरदः शतम्.. (१)
हे सूय! हम सौ वष तक दे खते रह. (१)
सू —७० दे वता—मं म क थत इं
आद
इ जीव सूय जीव दे वा जीवा जी ासमहम्. सवमायुज ासम्.. (१)
हे इं ! तुम जी वत रहो. हे सूय! तुम जी वत रहो. हे इं आ द दे वो! तुम जी वत रहो. म
भी आप क कृपा से जी वत र ं. म पूण आयु अथात् सौ वष तक जी वत र ं. (१)
सू —७१ दे वता—गाय ी
तुता मया वरदा वेदमाता चोदय तां पावमानी जानाम्.
आयुः ाणं जां पशुं क त वणं वचसम्.
म ं द वा जत लोकम्.. (१)
वेद का अ ययन करने वाले अथवा गाय ी का जप करने वाले म ने इ छा को पूण
करने वाली, पाप से छु ड़ाने वाली एवं वेद क माता सा व ी क तु त क है. ा ण को
प व करने वाली सा व ी हम े रत करे. वह सा व ी दे वी मुझे आयु, ाण, जा, पशु,
क त और तेज दे कर लोक को गमन करे. (१)
सू —७२ दे वता—परमा मा और दे व
य मात् कोशा दभराम वेदं त म तरव द म एनम्.
कृत म ं णो वीयण तेन मा दे वा तपसावतेह.. (१)
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हम ने मूल आधार प कोश से वेद का उ ार कया है, हम ने वेद का उ ार य
काय के हेतु कया है. हम वेद को उसी थान पर था पत करते ह. परमा मा क श प
वेद से हम ने जो य ा द कम कए ह, हे दे वो! उस मन चाहे कम के फल के ारा तुम मेरा
पालन करो. (१)
सू —२ दे वता—म त्, अ न, इं ,
वणोदा
म तः पो ात् सु ु भः वका तुना सोमं पब तु.. (१)
म द्गण होता के सुंदर तो वाले तथा सुंदर मं से यु य कम म सं कार कए
गए अथात् कूटे और नचोड़े गए सोम का पान कर. (१)
अ नरा नी ात् सु ु भः वका तुना सोमं पबतु.. (२)
अ न दे व! अ न को व लत करने वाले ऋ वज् के कम से स होते ए सोम रस
का पान कर. यह कम सुंदर तो और सुंदर मं वाला है. (२)
इ ो ा ा णात् सु ु भः वका तुना सोमं पबतु.. (३)
ा मा इं ! ा ण नाम के ऋ वज् क सुंदर तु तय से पूण य कम म सं कार
सू —३ दे वता—इं
आ या ह सुषुमा ह त इ सोमं पबा इमम्. एदं ब हः सदो मम.. (१)
हे इं ! आओ. तु हारे न म सोम नचोड़ा गया है, इस का पान करो तथा मेरे ारा
बछाए गए कुश पर बैठो. (१)
आ वा युजा हरी वहता म के शना. उप ा ण नः शृणु.. (२)
हे इं ! मं के ारा रथ म जुड़ने वाले तथा अभी थान पर प ंचने वाले ह र नाम के
घोड़े तु ह हमारे समीप लाएं. तु हारे घोड़े लंबे बाल वाले ह. तुम हमारे य म आ कर हमारी
तु तय को सुनो. (२)
ाण वा वयं युजा सोमपा म सो मनः. सुताव तो हवामहे.. (३)
हे इं ! हम यजमान तुम को तु हारे यो य तो के ारा बुलाते ह. हे इं ! तुम सोम को
पीने वाले हो. हम सोमरस तैयार करने वाले ह तथा हम ने सोम रस को नचोड़ा है. (३)
सू —४ दे वता—इं
आ नो या ह सुतावतो ऽ माकं सु ु ती प. पबा सु श धसः.. (१)
सू —७ दे वता—इं
उद् घेद भ ुतामघं वृषभं नयापसम्. अ तारमे ष सूय.. (१)
हे सूय! य करने वाल अथवा तु त करने वाल के लए इं के ारा धन दया जाना
स है. इं अभी फल क वषा करने वाले ह. उन के कम मनु य के लए हतकारी ह.
अ न को र करने तथा श ु को दबाने के काय को यान म रख कर तुम उ दत होते हो.
(१)
नव यो नव त पुरो बभेद बा ो जसा. अ ह च वृ हावधीत्.. (२)
जन इं ने शंबर असुर क माया के लए न यानवे नगर को अपने बा बल से तोड़
डाला था, उ ह इं ने वृ ासुर का वध कया था. (२)
स न इ ः शवः सखा ावद् गोमद् यवमत्. उ धारेव दोहते. (३)
इं हमारे लए क याणकारी तथा हमारे म ह. वे हम घोड़े, गाएं और जौ नाम का
अ दान कर. इं अ धक ध दे ने वाली गाय के समान धन दे ते ह. (३)
इ तु वदं सुतं सोमं हय पु ु त. पबा वृष व तातृ पम्.. (४)
सू —८ दे वता—इं
एवा पा ह नथा म दतु वा ु ध वावृध वोत गी भः.
आ वः सूय कृणु ह पी पहीषो ज ह श ूँर भ गा इ तृ ध.. (१)
हे इं ! तुम ने जस कार ाचीन काल म अं गरा आ द ऋ षय के य म सोमपान
कया था, उसी कार हमारे इस य म भी करो. पया आ सोम तु ह स करे. तुम हमारे
मं प तो को सुनो. तुम हमारी तु तय के ारा वृ को ा त करो. तुम सूय को
का शत करो. तुम अ को हमारे उपभोग का साधन बनाओ तथा हमारे श ु का वनाश
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करो. हे इं ! पा णय ारा चुराई गई हमारी गाय को हम लाकर दो. (१)
अवाङे ह सोमकामं वा रयं सुत त य पबा मदाय.
उ चा जठर आ वृष व पतेव नः शृणु ह यमानः (२)
हे इं ! तु ह सोम क इ छा करने वाला कहा जाता है, तुम हमारे सामने आओ. यह
नचोड़ा आ सोम तुम अपनी स ता के लए पयो. तुम वशाल कोख वाले अपने उदर
को इस सोम से भर लो. हे इं ! पता जस कार पु का वचन सुनता है, उसी कार तुम
हमारे आ ान को सुनो. (२)
आपूण अ य कलशः वाहा से े व कोशं स सचे पब यै.
समु या आववृ न् मदाय द णद भ सोमास इ म्.. (३)
इं के लए यह पूण कलश सोम रस से भरा आ है. जस कार जल छड़कने वाला
मशक को जल से भरता है, उसी कार अ वयु इं के पीने के लए सोमरस नचोड़ता है. ये
सोम इं क स ता के लए इं क ओर जाते ह. (३)
सू —९ दे वता—इं
तं वो द ममृतीषहं वसोम दानम धसः.
अ भ व सं न वसरेषु धेनव इ ं गी भनवामहे.. (१)
हे यजमानो! तु हारे य क पूणता तथा तु हारे अभी फल क ा त के लए हम
तु तय के ारा इं से ाथना करते ह. इं दशनीय और ःख वनाशक ह. इं सोम पीने के
हष से पूण रहते ह. गाएं सायं और ातःकाल रंभाती जस कार अपने बछड़ के पास
जाती ह, उसी कार हम भी तु त करते ए इं क ओर जाते ह. (१)
ु ं सुदानुं त वषी भरावृतं ग र न पु भोजसम्.
ुम तं वाजं श तनं सह णं म ू गोम तमीमहे.. (२)
जस कार भ पड़ने पर लोग कंद, मूल, फल आ द से संप पवत क ाथना
करते ह, उसी कार हम सुंदर दान वाले, जा के पोषक, द त यु , तु त करने यो य
एवं गाय आ द से संप धन क ाथना करते ह. (२)
तत् वा या म सुवीय तद् पूव च ये.
येना य त यो भृगवे धने हते येन क वमा वथ.. (३)
हे इं ! म तुम से शोभन बल यु एवं उ म अ क याचना करता ं. तुम ने जो धन
य कम न करने वाल से छ न कर भृगु ऋ ष को शां त दान क थी और जस धन से तुम
ने क व के पु क व का पालन कया, वही धन हम तुम से मांगते ह. (३)
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येना समु मसृजो महीरप त द वृ ण ते शवः.
स ः सो अ य म हमा न संनशे यं ोणीरनुच दे .. (४)
हे इं ! जस बल से तुम ने सागर को भरने वाले भूत जल का नमाण कया था,
तु हारा वह बल सब को अभी फल दे ता है. हम भूलोकवासी तु हारी जस म हमा का गान
करते ह, उसे सरे अथात् श ु भलीभां त नह जान सकते. (४)
सू —१० दे वता—इं
उ ये मधुम मा गर तोमास ईरते.
स ा जतो धनसा अ तोतयो वाजय तो रथा इव.. (१)
जो तु तयां कट हो रही ह, वे गाए जाने वाले मं से सा व और न गाए जाने वाले
मं से असा य ह. ये तु तयां अ दान करती ह और र ा करने म समथ ह. जैसे रथ
रथारोही के अ भ ाय के अनुसार गमन करता है, उसी कार ये तु तयां इं को स करने
के लए गमन करती ह. (१)
क वा इव भृगवः सूया इव व मद् धीतमानशुः.
इ ं तोमे भमहय त आयवः यमेधासो अ वरन्.. (२)
मनु य तो के ारा इं को उसी कार ा त होते ह, जस कार क व गो ीय ऋ ष
तीन लोक के वामी एवं फल क कामना करने वाल के ारा पू जत इं को तु तय के
कारण ा त ए थे. जस कार सूय अपने नयंता इं को ा त होते ह, उसी कार भृगवंश
के ऋ ष इं को ा त होते ह. (२)
सू —११ दे वता—इं
इ ः पू भदा तरद् दासमक वद सुदयमानो व श ून्.
जूत त वा वावृधानो भू रदा आपृणद् रोदसी उभे.. (१)
इं दे व ने श ु के नगर को अपने पूजनीय बल से न कर दया है और श ु क
पूण प से हसा कर द है. इं ने करण के ारा अंधकार का नाश करने वाले दन को
बढ़ाया है. इं ने श ु का धन ा त कया है तथा उन के पु आ द क वशेष प से हसा
क है. पया त तो के कारण वृ को ा त शरीर ारा धन संप इं ने धरती और
आकाश दोन को ा त कया है. (१)
मख य ते त वष य जू त मय म वाचममृताय भूषन्.
इ तीनाम स मानुषीणां वशां दै वीनामुत पूवयावा. (२)
सू —१२ दे वता—इं
उ ा यैरत व ये ं समय महया व स .
आ यो व ा न शवसा ततानोप ोता म ईवतो वचां स.. (१)
हे ऋ वजो! तुम अ ा त क इ छा से तो का उ चारण करो. हे यजमान व स !
अपने ऋ वज के साथ ह व आ द साधन से इ दे व क पूजा करो. जस इं ने अपने बल
से सभी ा णय का व तार कया है, वे इं प रचया करते ए मुझ व स के वचन को यहां
आ कर सुने. (१)
अया म घोष इ दे वजा म रर य त य छु धो ववा च.
न ह वमायु कते जनेषु तानीदं हां य त प य मान्.. (२)
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हे इं ! म उस तो का उ चारण करता ं जो दे व को बंधु के समान य है. इस तो
के ारा उस सोम क वृ होती है जो यजमान को वग का फल दे ने वाला है. मनु य के
म य रहने वाला यह यजमान अपनी आयु नह जानता है. हम इतनी द घ आयु दान करो,
जस से यह तु हारे लए य आ द का अनु ान कर सके. आयु का नाश करने वाले जो पाप
ह, उ ह इस से र रखो. (२)
युजे रथं गवेषणं ह र यामुप ा ण जुजुषाणम थुः.
व बा ध य रोदसी म ह वे ो वृ ा य ती जघ वान्.. (३)
इं गौ को ा त कराने वाले अपने रथ म ह र नाम के अ को जोड़ते ह. हमारे
तो सभी के ारा सेवा कए जाते ए इं को ा त होते ह. इं ने अपनी म हमा से धरती
और आकाश को आ ांत कया है. इं ने अपने श ु अथात् वृ आ द रा स को इस
कार मारा है क वे शेष नह रहे ह. (३)
आप त् प यु तय ३ न गावो न ृतं ज रतार त इ .
या ह वायुन नयुतो नो अ छा वं ह धी भदयसे व वाजान्.. (४)
हे इं ! यह नचोड़ा गया सोमरस गाय के समान वृ को ा त हो रहा है. हे इं !
तु हारी तु त करने वाले ऋ वज् य मंडप म प ंच चुके ह, इस लए तुम हमारे तो को
सुनने के लए आओ. वायु दे व य थल म जाने के लए जस कार अपने अ क ओर
जाते ह, तुम भी उसी कार संतु हो कर हम अ दे ने के लए आओ. (४)
ते वा मदा इ मादय तु शु मणं तु वराधसं ज र े.
एको दे व ा दयसे ह मतान म छू र सवने मादय व.. (५)
हे इं ! सं कार कए गए सोम तु ह मदयु कर. तुम बलशाली और तोता को
अ धक धन दे ने वाले हो. दे व के म य अकेले तु ह ऐसे हो जो मनु य पर दया करते हो. हे
इं ! इस य म मनचाहा फल दे कर हम स करो. (५)
एवे द ं वृषणं व बा ं व स ासो अ यच यकः.
स न तुतो वीरवद् धातु गोमद् यूयं पात व त भः सदा नः.. (६)
व स कुल के ऋ ष कामना क वषा करने वाले और हाथ म व धारण करने वाले
इं क पूजा तो से करते ह. वे इं हमारे तो के ारा पू जत हो कर हम पु एवं गाय
से यु धन दान कर. हे दे वो! आप भी इं का अनुकरण करते ए ेम से सदा हमारी
र ा कर. (६)
ऋजीषी व ी वृषभ तुराषाट् छु मी राजा वृ हा सोमपावा.
यु वा ह र यामुप यासदवाङ् मा यं दने सवने म स द ः.. (७)
सू —१३ दे वता—इं
इ सोमं पबतं बृह पते ऽ मन् य े म दसाना वृष वसू.
आ वां वश वव दवः वाभुवो ऽ मे र य सववीरं न य छतम्.. (१)
हे बृह प त दे व! तुम और इं इस य म स होने वाले तथा धन क वषा करने वाले
हो. तुम दोन सोमरस का पान करो. उ म सोमरस ने तुम दोन के शरीर म वेश कया है.
तुम हम सभी पु से यु धन दान करो. (१)
आ वो वह तु स तयो रघु यदो रघुप वानः जगात बा भः.
सीदता ब ह वः सद कृतं मादय वं म तो म वो अ धसः.. (२)
हे म तो! मंद ग त वाले अ तु ह य शाला म लाएं. तुम भी शी गमन के साधन
ारा यहां आओ. हम ने तु हारे बैठने के लए य वेद के प म वशाल थान बनाया है. उस
पर हम ने कुश बछाए ह. तुम उन कुश पर बैठो. वहां बैठ कर तुम सोमरस पयो और स
होओ. (२)
इमं तोममहते जातवेदसे रथ मव सं महेमा मनीषया.
भ ा ह नः म तर य संस ने स ये मा रषामा वयं तव.. (३)
रथकार जस कार रथ बनाता है, उसी कार हम पू य अ न के लए अपनी ती
बु से बनाए गए तो से अ न दे व क पूजा करते ह. अ न के नवास थान अथात्
य शाला म हमारी उ म बु क याणका रणी हो. हे अ न दे व! तु हारे बंधुभाव को
ा त कर के हम कसी के ारा परा जत न ह . (३)
ऐ भर ने सरथं या वाङ् नानारथं वा वभवो ाः.
प नीवत ंशतं दे वाननु वधमा वह मादय व.. (४)
हे अ न! तुम ततीस दे वता के साथ एक रथ पर बैठ कर हमारे य म आओ. तुम
चाहो तो अनेक रथ म बैठ कर आओ. तु हारे अ अ य धक श शाली ह. इस लए तुम
जबजब सोमरस पान के लए बुलाए जाओ, तबतब उन दे व को प नय स हत यहां लाओ
और सोमपान से उ ह आनं दत करो. (४)
सू —१४ दे वता—इं
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वयमु वामपू थूरं न क चद् भर तो ऽ व यवः. वाजे च ं हवामहे..
(१)
हे सदा नवीन रहने वाले इं ! तुम पू य हो और अपने उपासक का पोषण करने वाले
हो. हम र ा क कामना करते ए तु ह बुलाते ह. तुम हमारे कसी वरोधी के पास मत
जाओ. हम तु ह उसी कार बुलाते ह, जैसे कसी अ य धक श शाली राजा को वजय के
हेतु बुलाया जाता है. (१)
उप वा कम ूतये स नो युवो ाम यो घृषत्.
वा म वतारं ववृमहे सखाय इ सान सम्.. (२)
हे इं ! हम यु ारंभ होने पर र ा के लए तु हारे समीप जाते ह. जो इं न य युवा
और श ु को परा जत करने वाले तथा अ य धक श शाली ह, वे हमारी र ा के लए
आएं. हे इं ! हम तु ह अपना सखा मानते ह, इस लए हम अपनी र ा के हेतु तु हारी ही
इ छा करते ह. (२)
यो न इद मदं पुरा व य आ ननाय तमु व तुषे. सखाय इ मूतये.. (३)
हे म बने ए यजमान! म तु हारी र ा के लए इं क तु त करता ं. जस इं ने
पहले हम नदश कर के गाय आ द धन दया था, हम उसी इं क तु त करते ह. (३)
हय ं स प त चषणीसहं स ह मा यो अम दत.
आ तु नः स वय त ग म ं तोतृ यो मघवा शतम्.. (४)
इन मनु य के र क इं के अ हरे रंग के ह. जो इं मनु य पर नयं ण रखते ह तथा
तु तयां सुन कर स होते ह, म उ ह इं क तु त करता ं. वे इं हम तोता को सौ
गाएं तथा सौ घोड़े दान कर. (४)
सू —१५ दे वता—इं
मं ह ाय बृहते बृह ये स यशु माय तवसे म त भरे.
अपा मव वणे य य धरं राधो व ायु शवसे अपावृतम्.. (१)
म अ तशय महान, गुण म बढ़े ए, अ य धक धन वाले एवं स ची साम य वाले इं क
तु त बल ा त करने के लए करता ं. उन इं का धन सभी मनु य का पोषण करने म
समथ है. जस कार जल नीचे क ओर जाता है, उसी कार इं का धन बल दान करने
के लए वृ होता है. (१)
अध ते व मनु हास द य आपो न नेव सवना ह व मतः.
सू —१६ दे वता—बृह प त
उद ुतो न वयो र माणा वावदतो अ य येव घोषाः.
ग र जो नोमयो मद तो बृह प तम य १ का अनावन्.. (१)
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जस कार जल म गमन करते ए तथा ाध आ द से अपनी र ा करते ए प ी
उ च व न करते ह, जस कार मेघ समूह गजन करता है तथा जस कार मेघ से बरसने
वाला जल फसल आ द को तृ त करता है, उसी कार तोता अपनी तु तय से बृह प त
दे व क शंसा करते ह. (१)
सं गो भरा रसो न माणो भग इवेदयमणं ननाय.
जने म ो न द पती अन बृह पते वाजयाशूँ रवाजौ.. (२)
मह ष अं गरस जस कार भगदे व के समान ववाह के समय प तप नी को गोघृत
आ द स हत अयमा दे व क शरण ा त कराते ह, उसी कार अं गरस ऋ ष इस प तप नी
को अयमा दे व क शरण ा त कराएं. सूय जस कार काश के न म अपनी करण को
एक करते ह, उसी कार अं गरस ऋ ष इन प तप नी को एक कर. (२)
सा वया अ त थनी र षरा पाहाः सुवणा अनव पाः.
बृह प तः पवते यो वतूया नगा ऊपे यव मव थ व यः.. (३)
जस कार को ठय से अ नकालते ह, उसी कार स जन पु ष को ा त होने
वाले, अ त थय को तृ त करने वाले, सब के ारा चाहे गए, सुंदर रंग वाले एवं शंसनीय
प वाले बृह प त दे व पवत से नकाल कर गाएं तु त करने वाल को दान करते ह. (३)
आ ष ु ायन् मधुन ऋत य यो नमव प क उ का मव ोः.
बृह प त र मनो गा भू या उद्नेव व वचं बभेद.. (४)
बृह प त दे व ने जल से धरती को सभी ओर से स चते ए जल के समूह मेघ को
आकाश से उसी कार नीचे गराया, जस कार सूय आकाश से उ का गराते ह. जस
कार जल धरती को कोमल बना दे ते ह, उसी कार बृह प त दे व प णय के ारा चुरा कर
पवत म रखी गई गाय को बाहर नकाल कर उन के खुर से धरती को खुदवाते ह. (४)
अप यो तषा तमो अ त र ा द्नः शीपाल मव वात आजत्.
बृह प तरनुमृ या वल या मव वात आ च आ गाः.. (५)
वायु जस कार जल से काई को अलग कर दे ते ह, उसी कार बृह प त ने अपने
काश से पवत क गुफा के उस अंधकार का वनाश कर दया था जो गाय को छपाए
ए था. वायु जस कार बादल को सभी ओर बखरा दे ती है, बृह प त दे व ने उसी कार
बल नामक असुर ारा चुरा कर पवत क गुफा म रखी गई गाय को नकाल कर सभी ओर
फैला दया था. (५)
यदा वल य पीयतो जसुं भेद ् बृह प तर नतपो भरकः.
द न ज प र व माददा व नध रकृणो याणाम्.. (६)
सू —१७ दे वता—इं
अ छा म इ ं मतयः व वदः स ीची व ा उशतीरनूषत.
प र वज ते जमयो यथा प त मय न शु युं मघवानमूतये.. (१)
म सुंदर हाथ और वाणी वाला ं. मेरी तु तयां इं दे व क शंसा करती ह. ये तु तयां
वग ा त करने म सहायक एवं पर पर मली ई ह. इं क कामना करती ई ये तु तयां
इस कार आपस म लपट ई ह, जस कार पु क कामना करने वाली यां प त से
लपटती ह. जस कार पता आ द को आता आ दे ख कर पु अपनी र ा के लए उन से
लपट जाते ह, उसी कार मेरी तु तयां इं से लपटती ह. (१)
न घा व गप वे त मे मन वे इत् कामं पु त श य.
राजेव द म न षदो ऽ ध ब ह य म सु सोमेवपानम तु ते.. (२)
हे इं ! मेरा मन कभी तुम से अलग नह होता और सदा तु हारी ही कामना करता रहता
है. हे श ु का वनाश करने वाले इं दे व! जस कार राजा सहासन पर बैठता है, उसी
कार तुम इन कुश पर बैठो तथा भलीभां त सं कार कए गए इस सोम धारा म सोमरस का
पान करो. (२)
वषूवृ द ो अमते त ुधः स इ ायो मघवा व व ईशते.
त ये दमे वणे स त स धवो वयो वध त वृषभ य शु मणः.. (३)
सू —१८ दे वता—इं
वयमु वा त ददथा इ वाय तः सखायः. क वा उ थे भजर ते.. (१)
हे इं ! हम क व गो वाले मह ष सखा के समान तु हारी कामना करते ए तुम से
संबं धत तो से तु हारी तु त करते ह. (१)
न घेम यदा पपन व पसो न व ौ. तवे तोमं चकेत.. (२)
हे व धारी इं ! य पी नवीन कम क इ छा पर हम इस समय तु हारे अ त र
कसी अ य दे व क तु त नह करते ह. हम केवल तु हारी तु त को जानते ह. (२)
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इ छ त दे वाः सु व तं न व ाय पृहय त. य त मादमत ाः.. (३)
इं आ द दे व सोमरस नचोड़ने वाले यजमान क कामना करते ह. वे उदासीनता नह
करते ह. वे अ यंत मदकारी सोम रस के लए आल य र हत हो कर जाते ह. (३)
वय म वायवो ऽ भ णोनुमो वृषन्. व व १ य नो वसो.. (४)
हे कामना को पूण करने वाले इं ! तु हारी इ छा करते ए हम तु हारे सामने तु हारी
तु त करते ह. तुम भी हमारे तो क कामना करो. (४)
मा नो नदे च व वे ऽ य र धीररा णे. वे अ प तुमम.. (५)
सू —१९ दे वता—इं
वा ह याय शवसे पृतनाषा ाय च. इ वा वतयाम स.. (१)
हे इं ! हम वृ हनन के समान बल दशन और श ु सेना को अपमा नत करने जैसे
कम के न म तु ह अपने सामने बुलाते ह. (१)
अवाचीनं सु ते मन उत च ुः शत तो. इ कृ व तु वाघतः.. (२)
सू —२० दे वता—इं
शु म तमं न ऊतये ु नन पा ह जागृ वम्. इ सोमं शत तो.. (१)
हे इं ! तुम हमारी र ा के न म अ तशय बल कारक, बुरे व का नाश करने वाले
तथा तेज से दमकते ए सोमरस का पान करो. (१)
इ या ण शत तो या ते जनेषु प चसु. इ ता न त आ वृणे.. (२)
हे इं ! तु हारा जो बल ा ण, य, वै य, शू और नषाद—पांच वण म है, हम
उसी बल क याचना करते ह. (२)
अग वो बृहद् ु नं द ध व रम्. उत् ते शु मं तराम स.. (३)
सू —२१ दे वता—इं
यू ३ षु वाचं महे भरामहे गर इ ाय सदने वव वतः.
नू च र नं ससता मवा वद ु त वणोदे षु श यते.. (१)
हम इन इं के लए शोभन तु तयां दान करते ह. उपासना करने वाले यजमान के
य मंडप म इं के लए तु तयां क जा रही ह. जस कार चोर सोते ए लोग का धन शी
ा त कर लेता है, उसी कार इं असुर का धन ा त करते ह. धन दे ने वाले पु ष के त
बुरी तु त योग नह क जाती. (१)
रो अ य र इ गोर स रो यव य वसुन इन प तः.
श ानरः दवो अकामकशनः सखा स ख य त मदं गृणीम स.. (२)
हे इं ! तुम अ , गज आ द वाहन , गाय, भस आ द पशु तथा जौ, गे ं आ द अ
के दे ने वाले हो. तुम वण, म ण, मोती आ द धन के वामी एवं र क हो. तुम दान के नेता,
अपने सेवक क इ छा बढ़ाने वाले तथा अपने ऋ वज के म हो, इस लए तु हारे त हम
इस तु त का उ चारण करते ह. (२)
शचीव इ पु कृद् ुम म तवे ददम भत े कते वसु.
अतः संगृ या भभूत आ भर मा वायतो ज रतुः काममूनयीः.. (३)
हे इं ! तुम बु मान, परम ऐ य यु तथा ब त से कम करने वाले हो. सव व मान
धन के तु ह वामी हो. हे श ु को बारबार परा जत करने वाले इं ! इस लए तुम पूरे धन
का सं ह कर के मुझे दान करो. म तु हारी कामना करता आ तु हारी तु त करता ं. मुझे
तुम अपूण मत रहने दो. (३)
ए भ ु भः सुमना ए भ र भ न धानो अम त गो भर ना.
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इ े ण द युं दरय त इ भयुत े षसः स मषा रभेम ह.. (४)
हे इं ! हमारी अ धक ह व और सोमरस से स होते ए तुम गाय और अ आ द
धन दे कर हमारी द र ता समा त करो. हे शोभन मन वाले इं ! हमारे ारा दए ए सोमरस
से स हो कर तुम श ु क हसा करते ए हम श ु वहीन बनाओ. हम इं के ारा दए
ए अ से संप ह . (४)
स म राया स मषा रभेम ह सं वाजे भः पु ै र भ ु भः.
सं दे ा म या वीरशु मया गोअ या ऽ ाव या रभेम ह.. (५)
हे इं ! हम सब के ारा चाहे गए धन से संप ह . हम जा को स करने वाले
बल से यु ह . हम तु हारी कृपामयी बु ा त हो. वह बु हम गाय को दे ने वाली तथा
हमारे लेश का नवारण करने वाली हो. (५)
ते वा मदा अमदन् ता न वृ या ते सोमासो वृ ह येषु स पते.
यत् कारवे दश वृ ा य त ब ह मते न सह ा ण बहयः.. (६)
हे स जन के र क इं ! श ु के हनन कम म स एवं मादक आ य, पुरोडाश
आ द तु ह स कर. हमारे स तो भी स ता के साधन होने के कारण तु ह ह षत
कर. स सोमरस भी तु ह स कर. तु त करते ए यजमान के दस सह पाप को
तुम समा त करो. (६)
युधा युधमुप घेदे ष धृ णुया पुरा पुरं स मदं हं योजसा.
न या य द स या पराव त नबहयो नमु च नाम मा यनम्.. (७)
हे इं ! तुम अपने हार के साधन व के ारा श ु के आयुध पर आ मण करते
हो. तुम श ु के नगर म नवास करने वाले वीर को अपने म द्गण आ द वीर के ारा
न कराते हो. तुम ने मायावी नमु च का संहार कया था, इस लए हम तु हारी तु त करते ह.
(७)
वं कर मुत पणयं वधी ते ज या त थ व य वतनी.
वं शता वङ् गृद या भनत् पुरो ऽ नानुदः प रषूता ऋ ज ना.. (८)
हे इं ! तुम ने अपनी अ तशय तेज यु वतनी नाम क श से अ त थ अ त थ व के
राजा के श ु करंज एवं पणय असुर का वध कया था. तुम ने ऋ ज ा राजा के श ु
वंगृदासुर के सौ नगर का भी व वंस कया था. (८)
वमेतां जनरा ो दशाब धुना सु वसोपज मुषः.
ष सह ा नव त नव ुतो न च े ण र या पदावृणक्.. (९)
सू —२२ दे वता—इं
अ भ वा वृषभा सुते सुतं सृजा म पातये. तृ पा ुही मदम्.. (१)
हे वषा करने वाले इं ! सोम के नचोड़ लए जाने पर एवं शु हो जाने पर हम उसे
पीने के लए तु ह बुलाते ह. उस हषदायक सोम को पी कर तुम तृ त बनो. तुम उस स
करने वाले सोम रस को वशेष प से ा त करो. (१)
मा वा मूरा अ व यवो मोपह वान आ दभन्. माक षो वनः.. (२)
हे इं ! तु हारी कृपा से हम अपने पालन क इ छा करते ह. अपनी र ा का उपाय न
जानते ए मूख तु हारी हसा न कर. जो ा ण से े ष करने वाले ह, तुम उन क सेवा को
वीकार मत करो. (२)
इह वा गोपरीणसा महे म द तु राधसे. सरो गौरो यथा पब.. (३)
हे इं ! ऋ वज् धन ा त के लए तु ह गाय के ध से म त सोमरस दे कर स
कर. गौर मृग अ य धक यासा होने पर जस कार जल पीता है, तुम उसी कार सोमरस
को पयो. (३)
अभ गोप त गरे मच यथा वदे . सूनुं स य य स प तम्.. (४)
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हे तोता! तुम इं क पूजा उस कार करो, जस से वे हम अपना मान ल. इं स य के
पु और स य क र ा करने वाले ह. (४)
आ हरयः ससृ रेऽ षीर ध ब ह ष. य ा भ संनवामहे.. (५)
इं के सुंदर अ उन के रथ को हमारे य म बछे ए कुश के समीप लाएं. (५)
इ ाय गाव आ शरं ेव णे मधु. यत् सीमुप रे वदत्.. (६)
व धारी इं के लए गाएं उस समय मधुर ध हाती ह जस समय पास म रखे ए
मधुर एवं वा द सोमरस को इं पीते ह. (६)
सू —२३ दे वता—इं
आ तू न इ म य
् घुवानः सोमपीतये. ह र यां या वः.. (१)
हे व धारी इं ! हमारे ारा आ ान करने पर तुम सोमरस का पान करने के लए
अपने अ ारा हमारे य म आओ. (१)
स ो होता न ऋ वय त तरे ब हरानुषक्. अयु न् ातर यः.. (२)
हे इं ! हमारे य म होता नाम का ऋ वज् समय पर उप थत हो कर बैठे. हमारे य
म कुश एक सरे से मले ए बछ. सोमरस कूटने के लए ातः व म प थर एक सरे से
मल. (२)
इमा वाहः य त आ ब हः सीद. वी ह शूर पुरोळाशम्.. (३)
हे इं ! हम तु हारी तु त कर रहे ह. तुम इन कुशा पर बैठो. हे वीर! कुशा पर बैठ
कर तुम हमारे ारा दए गए पुरोडाश का भ ण करो. (३)
रार ध सवनेषु ण एषु तोमेषु वृ हन्. उ थे व गवणः.. (४)
हे तु तय ारा सेवा करने यो य तथा वृ ासुर का वध करने वाले इं ! हमारे तीन
सवनो म क जाती ई तु तय से स बनो. (४)
मतयः सोमपामु ं रह त शवस प तम्. इ ं व सं न मातरः.. (५)
हमारी तु तयां महान सोमरस का पान करने वाले तथा बल के वामी इं को उसी
कार ा त होती ह, जस कार गाय अपने बछड़े को चाटती है. (५)
स म द वा धसो राधसे त वा महे. न तोतारं नदे करः.. (६)
सू —२४ दे वता—इं
उप नः सुतमा ग ह सोम म गवा शरम्. ह र यां य ते अ मयुः.. (१)
हे इं ! हमारा सोम गाय के ध से यु है. तुम उसे पीने के लए हमारे पास आओ.
तु हारे जन रथ म घोड़ को जोड़ दया गया है, वे रथ हमारे य म आना चाहते ह. (१)
तम मदमा ग ह ब ह ां ाव भः सुतम्. कु व व य तृ णवः.. (२)
सू —२५ दे वता—इं
अ ाव त थमो गोषु ग छ त सु ावी र म य तवो त भः.
त मत् पृण वसुना भवीयसा स धमापो यथा भतो वचेतसः… (१)
हे इं ! जो पु ष तु हारे ारा र त होता है, वह ब सं यक अ वाले यु म तथा
अ ारो हय म मुख बन जाता है. वह गाय वाले पु ष म भी े होता है. जस कार
जल सब ओर से सागर को भरते ह, उसी कार तुम भी उसे अनेक कार से ा त होने वाले
धन से पूण करते हो. (१)
आपो न दे वी प य त हो यमवः प य त वततं यथा रजः.
ाचैदवासः णय त दे वयुं यं जोषय ते वरा इव.. (२)
हे इं ! जस कार जल नीचे क ओर बहता आ सागर म जाता है, उसी कार
तु तयां तुम से जा कर मल जाती ह. जस कार मनु य सूय के काश क चकाच ध के
हे मनु यो! अंधकार म छपे पदाथ को अपने काश से आकार दे ने वाले तथा अ ानी
को ान दान करने वाले सूय अपनी करण के साथ उदय हो गए ह. तुम इन के दशन करो.
(६)
सू —२७ दे वता—इं
य द ाहं यथा वमीशीय व व एक इत्. तोता मे गोषखा यात्.. (१)
हे इं ! तुम ऐ यवान हो. जस कार तुम दे व म े तथा धन के वामी हो, उसी
कार म भी धन का वामी बनूं. जस कार तु हारी तु त करने वाला गाय का म हो
जाता है, उसी कार मेरी शंसा करने वाला भी गौ आ द धन ा त करे. (१)
सू —२८ दे वता—इं
१ त र म तर मदे सोम य रोचना. इ ो यद भनद् वलम्.. (१)
सोमपान से उ प श के ारा जब इं ने मेघ को वद ण कया, तब वषा के जल से
अंत र क वृ क . (१)
उद्गा आजद रो य आ व कृ वन् गुहा सतीः. अवा चं नुनुदे वलम्..
(२)
इं ने अं गरा गो वाले ऋ षय के लए गुफा म छपी गाय को कट कया तथा उ ह
नकाल कर उन का अपहरण करने वाले रा स को अधोमुख कर के मटा दया. (२)
इ े ण रोचना दवो ढा न ं हता न च. थरा ण न पराणुदे.. (३)
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जो ह और न आकाश म थत ह, उ ह इं ने ढ़ कया है, इसी लए उ ह कोई
नीचे नह गरा सकता. (३)
अपामू ममद व तोम इ ा जरायते. व ते मदा अरा जषुः.. (४)
हे इं ! तु हारा तो वषा के जल से सागर आ द को ह षत करता आ तथा रस के
समान हमारे मुख से कट होता है. सोमपान के बाद तु हारी श व श हो जाती है. (४)
सू —२९ दे वता—इं
वं ह तोमवधन इ ा ऽ यु थवधनः. तोतॄणामुत भ कृत्.. (१)
सू —३० दे वता—इं
ते महे वदथे शं सषं हरी ते व वे वनुषो हयतं मदम्.
घृतं न यो ह र भ ा सेचत आ वा वश तु ह रवपसं गरः.. (१)
हे इं ! तु हारे अ शी ता से गमन करने वाले ह. इस वशाल य म म उन क शंसा
करता ं. तुम श ु का वध करने वाले हो. सोमपान से उ प ईश वाले इं से म
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अपना अभी फल मांगता ं. जैसे अ न म घृत स चा जाता है, उसी कार इं अपने ही
नाम के अ स हत आते ए धन क वषा करते ह. (१)
ह र ह यो नम भ ये सम वरन् ह व तो हरी द ं यथा सदः.
आ यं पृण त ह र भन धेनव इ ाय शूषं ह रव तमचत.. (२)
ाचीन मह षय ने इं को अपने य म शी ता से बुलाने के लए उन के अ को
े रत कया. उन का तो मूल प से इं के ही न म था. नव सूता गाय जैसे ध दे कर
अपने वामी को तृ त करती है, उसी कार यजमान सोमरस के ारा इं को तृ त करते ह.
हे ऋ वजो! श ु वनाशक, श शाली तथा ह र नामक अ वाले इं का पूजन करो. (२)
सो अ य व ो ह रतो य आयसो ह र नकामो ह ररा गभ योः.
ु नी सु श ो ह रम युसायक इ े न पा ह रता म म रे.. (३)
इं का लौह न मत व हरा है. इं का सुंदर शरीर भी हरे रंग का है. इं के पास हरे
रंग का ही बाण रहता है. इं क पूरी साजस जा हरे रंग क है. (३)
द व न केतुर ध धा य हयतो व चद् व ो ह रतो न रं ा.
तुदद ह ह र श ो य आयसः सह शोका अभव रभरः.. (४)
इं का व सूय के समान अंत र म थत है. जस कार सूय के अ वेग से
आकाश को ा त होते ह, उसी कार इं का व गंत थान पर प ंच जाता है. इं ने
अपने हरे व से वृ ासुर को संत त कया तथा उस के सह सा थय को शोक म डाल
दया. (४)
वं वमहयथा उप तुतः पूव भ र ह रकेश य व भः.
वं हय स तव व मु य १ मसा म राधो ह रजात हयतम्.. (५)
हे इं ! तु हारे केश हरे रंग के ह. जहां सोम प ह व होता है, वहां तुम उप थत होते
हो. तुम तु तयां सुन कर ह व क इ छा करते रहे हो और अब भी कर रहे हो. तुम अपने ह र
नाम के अ स हत य म आते हो. हे इं ! ये सोम, अ और उ थ तु हारे लए ही ह. (५)
सू —३१ दे वता—इं
ता व णं म दनं तो यं मद इ ं रथे वहतो हयता हरी.
पु य मै सवना न हयत इ ाय सोमा हरयो दध वरे.. (१)
सोमरस से उ प श ा त करने के लए इं के अ उ ह हमारे य म ला रहे ह.
तीन सवन म नचोड़े गए सोम इं को धारण करते ह. (१)
सू —३२ दे वता—इं
आ रोदसी हयमाणो म ह वा न ंन ं हय स म म नु यम्.
प यमसुर हयतं गोरा व कृ ध हरये सूयाय.. (१)
हे इं ! तुम अपनी म हमा से आकाश और धरती को ा त करते हो. तुम सदा नवीन
रहते हो. तुम हमारे य तो क इ छा करते हो. तुम प णय ारा चुराई गई गाय को रखने
का थान सूय को बता दे ते हो. ऐसी कृपा करो क सूय तु त करने वाल को वह गो अथात्
गाय को रखने का थान दे द. (१)
सू -३३ दे वता—इं
अ सु धूत य ह रवः पबेह नृ भः सुत य जठरं पृण व.
म म ुयम य इ तु यं ते भवध व मदमु थवाहः.. (१)
हे इं ! अ वयु जन ने इस सोम का सं कार कया है. तुम इसे पी कर अपना पेट भर
लो. जस सोम को प थर कूट चुके ह, उसे पीते ए तुम हष यु बनो. (१)
ो ां पी त वृ ण इय म स यां यै सुत य हय तु यम्.
इ धेना भ रह मादय व धी भ व ा भः श या गृणानः.. (२)
हे इं ! तुम इ छत फल क वषा करते हो. म तु ह सोम क चंड श ा त करने के
लए े रत करता ं. तुम य काय म आ कर तु तय से शं सत और ह व से तृ त बनो.
(२)
ऊती शचीव तव वीयण वयो दधाना उ शज ऋत ाः.
जाव द मनुषो रोणे त थुगृण तः सधमा ासः.. (३)
हे इं ! तु हारे ारा पु आ द प संतान तथा अ से यु स य के ाता तथा तु ह
चाहने वाले ऋ वज् यजमान के घर म तु हारी तु त करते ए बैठ. (३)
सू -३४ दे वता—इं
यो जात एव थमो मन वान् दे वो दे वान् तुना पयभूषत्.
य य शु माद् रोदसी अ यसेतां नृ ण य म ा स जनास इ ः.. (१)
सू -३५ दे वता—इं
सू -३९ दे वता—गोसू
इ ं वो व त प र हवामहे जने यः. अ माकम तु केवलः.. (१)
हम व के सभी ा णय क ओर से इं का आ ान करते ह. वे इं हमारे ही ह . (१)
१ त र म तर मदे सोम य रोचना. इ ो यद भनद् वलम्.. (२)
सू -४० दे वता—इं
इ े ण सं ह से संज मानो अ ब युषा. म समानवचसा.. (१)
हे इं ! तुम म त के साथ रहते हो और अपने उपासक को अभय दान करते हो.
म त के साथ रहते ए तुम स होते हो. म त का और तु हारा तेज समान है. (१)
अनव ैर भ ु भमखः सह वदच त. गणै र य का यैः.. (२)
यह य इं क कामना करने वाल से अ य धक सुशो भत हो रहा है. इं अ य धक
तेज वी और न पाप अथात् पाप र हत ह. (२)
आदह वधामनु पुनगभ वमे ररे. दधाना नाम य यम्.. (३)
ह व वीकार कर के इं श शाली बनते ह और या क नाम ा त करते ह. (३)
सू -४१ दे वता—इं
इ ो दधीचो अ थ भवृ ा य त कुतः. जघान नवतीनव.. (१)
सू -४२ दे वता—इं
वाचम ापद महं नव मृत पृशम्. इ ात् प र त वं ममे.. (१)
म ने इस वाणी को इं से अपने शरीर म धारण कया है जो स य का पश करने वाली
है. उस वाणी के आठ चरण और नौ शीष ह. (१)
अनु वा रोदसी उभे माणमकृपेताम्. इ यद् द युहा ऽ भवः.. (२)
हे इं ! जब तुम ने असुर का वनाश कया था, तब तु हारी श को दे ख कर ावा
अथात् वग और पृ वी ने तुम पर कृपा क थी. (२)
उ ोजसा सह पी वी श े अवेपयः. सोम म चमू सुतम्.. (३)
हे इं ! भलीभां त तैयार कए गए सोमरस को पी कर तुम अपनी ठोड़ी चलाते ए
उठो. (३)
सू -४३ दे वता—इं
भ ध व ा अप षः प र बाधो जही मृधः. वसु पाह तदा भर.. (१)
हे इं ! तुम हमारे श ु को काट कर हमारी यु संबंधी बाधा र करो. तुम हम वह
धन दान करो, जसे सभी पाना चाहते ह. (१)
यद् वीला व यत् थरे यत् पशाने पराभृतम्. वसु पाह तदा भर.. (२)
हे इं ! तुम हम वह धन दान करो जो थर के पास रहता है और जसे बसनी
अथात् कमर म बांधी जाने वाली कपड़े क बनी लंबी थैली म भरा जाता है. (२)
सू -४४ दे वता—इं
स ाजं चषणीना म ं तोता न ं गी भः. नरं नृषाहं मं ह म्.. (१)
म ऐसे इं क तु त करता ं, जो मनु य के त सहनशील, अ ग य, पूजने के यो य,
मनु य के वामी और दयालु ह. (१)
य म ु था न र य त व ा न च व या. अपामवो न समु े .. (२)
जस कार नीचे क ओर बहने वाले जल सागर म जाते ह, उसी कार उ थ मं के
ारा अ क इ छा से कए जाने वाले य इं को ा त होते ह. (२)
तं सु ु या ववासे ये राजं भरे कृ नुम्. महो वा जनं स न यः.. (३)
म इं को अपनी तु त से स करता ं. इं तेज वी श ु का भी हनन करने वाले
ह. वे तु त करने वाल को अ तथा यश दान करते ह. म इं को ह व भी दान करता ं.
(३)
सू -४५ दे वता—इं
अयमु ते समत स कपोत इव गभ धम्. वच त च ओहसे.. (१)
हे इं ! कबूतर जस कार गभ धारण करने वाली कबूतरी के समीप जाता है, उसी
कार तुम हमारी तु तय को सुन कर हमारे पास आओ. (१)
तो ं राधानां पते गवाहो वीर य य ते. वभू तर तु सूनृता.. (२)
हे धन के वामी इं ! तु हारा यह नाम स य हो. हमारी तु तयां तु ह हमारे पास लाने म
समथ ह. (२)
ऊ व त ा न ऊतये ऽ मन् वाजे शत तो. सम येषु वावहै.. (३)
हे सैकड़ कम करने वाले इं ! तुम हमारी र ा करने के लए ऊंचे थान पर खड़े हो
जाओ. अ य पु ष हम से े ष करते ह. हम तु हारी तु त करते ह. (३)
सू -४७ दे वता—इं
त म ं वाजयाम स महे वृ ाय ह तवे. स वृषा वृषभो भुवत्.. (१)
कामना क वषा करने वाले इं सभी दे व से े बन. हम वृ रा स का नाश करने
के लए इं को श शाली बनाते ह. (१)
इ ः स दामने कृत ओ ज ः स मदे हतः. ु नी ोक स सो यः.. (२)
इं शंसनीय, सौ य, तेज वी, बलवान तथा सर को स करने वाले ह. (२)
गरा व ो न संभृतः सबलो अनप युतः. वव ऋ वो अ तृतः.. (३)
इं अ छे लोग को धन दे ते ह. व धारी इं श शाली एवं अ वनाशी ह. (३)
इ मद् गा थनो बृह द मक भर कणः. इ ं वाणीरनूषत.. (४)
तोता क वाणी इं क तु त करती ह, सामगान के इ छु क कस के यश का गान
करते ह? पूजा संबंधी मं के ारा इं का ही पूजन कया जाता है. (४)
इ इ य ः सचा सं म आ वचोयुजा. इ ो व ी हर ययः.. (५)
इं के घोड़े सदा उन के साथ रहते ह. ऋ वज के मं के उ चारण के साथ ही उ ह
सू -४८ दे वता—गौ
अ भ वा वचसा गरः स च या राचर युवः. अ भ व सं न धेनवः.. (१)
वचरण करने वाली गाएं, जस कार अपने बछड़ के पास जाती ह, उसी कार
हमारी वाणी तु ह ा त होती है और तु ह स चती ह. (१)
ता अष त शु यः पृ च तीवचसा यः. जातं जा ीयथा दा.. (२)
जस कार माता ज म लेने वाले ब चे को अपने दय से लगा लेती है, उसी कार
सुंदर तु तयां इं को तेज से सुशो भत करती ह. (२)
व ापवसा यः क त यमाणमावहन्. म मायुघृतं पयः.. (३)
ये व धारी इं मुझे यश, आयु, घृत और ध दान कर. (३)
आयं गौः पृ र मीदसद मातरं पुरः. पतरं च य वः.. (४)
ये सूय पी इं उदयाचल पर प ंच गए ह. इ ह ने पूव दशा म दशन दे कर सभी
ा णय को अपनी करण से ढक लया है. इस के लए उ ह ने वग और अंत र को वषा
के जल से ख च कर ा त कर लया है. वषा का जल अमृत के समान है. उस को हने के
कारण ही इं को गौ कहा जाता है. (४)
अ त र त रोचना अ य ाणादपानतः. य म हषः व :.. (५)
जो ाणी ाण अथात् सांस लेने और अपान वायु यागने का काय करते ह, उन के
शरीर म सूय क भा ाण के प म वचरण करती है. सूय ही सब लोक को का शत
करते ह. (५)
शद् धामा व राज त वाक् पत ो अ श यत्. त व तोरह ु भः..
(६)
सूय क करण से तीस मु त द त होते ह. वे ही दन और रात के अंग बनते ह. वेद
क वाणी सूय का उसी कार आ य लेती है, जस कार प ी वृ का आ य लेते ह. (६)
सू -४९ दे वता—इं
य छ ा वाचमा ह त र ं सषासथः. सं दे वा अमदन् वृषा.. (१)
सू -५१ दे वता—इं
अ भ वः सुराधस म मच यथा वदे .
यो ज रतृ यो मघवा पु वसुः सह ेणेव श त.. (१)
हे तोताओ! उन तो का उ चारण करो जो इं को मेरे समीप लाने के कारण बन. वे
इं सह सं या वाला वशाल धन दे ते ह. (१)
शतानीकेव जगा त धृ णुया ह त वृ ा ण दाशुषे.
गरे रव रसा अ य प वरे द ा ण पु भोजसः.. (२)
ह व दे ने वाले जो यजमान अपने श ु पर वजय ा त कर के उन का वध करते ह,
उन यजमान के लए इं का वण प धन इस कार बरसता है, जस कार पवत से जल
नकलता है. (२)
सु ुतं सुराधसमचा श म भ ये.
यः सु वते तुवते का यं वसु सह ेणव
े मंहते.. (३)
जो तोता य म अ भषव करता है, इं उसे हजार सं या वाला धन दे ते ह. हे तोता!
तुम उ ह इं क भलीभां त पूजा करो. (३)
शतानीका हेतयो अ य रा इ य स मषो महीः.
ग रन भु मा मघव सु प वते यद सुता अम दषु.. (४)
सू -५२ दे वता—इं
वयं घ वा सुताव त आपो न वृ ब हषः.
पव य वणेषु वृ हन् प र तोतार आसते.. (१)
हे इं ! हमारे पास वह सोमरस है जो तैयार करने पर जल के समान तरल हो गया है.
हम तु हारी तु त करते ह. (१)
वर त वा सुते नरो वसो नरेक उ थनः.
कदा सुतं तृषाण ओक आ गम इ व द व वंसगः.. (२)
हे इं ! सोमरस तैयार करने के बाद यजमान तु हारा आ ान करते ह. तुम बैल के
समान यासे हो कर इस सोमरस को पीने के लए हमारे य म कब आओगे? (२)
क वे भधृ णवा धृषद् वाजं द ष सह णम्.
पश पं मघवन् वचषणे म ू गोम तमीमहे.. (३)
हे इं ! तुम श शाली मनु य को भी मार डालते हो तथा उस के धन पर अ धकार कर
लेते हो. हम तुम से धन मांगते ह, जो गौ आ द से यु हो. (३)
सू -५३ दे वता—इं
क वेद सुते सचा पब तं कद् वयो दधे.
अयं यः पुरो व भन योजसा म दानः श य धसः.. (१)
तो को सुन कर सुंदर ठु ड्डी वाले इं स होते ह और श ु के नगर का वनाश
कर दे ते ह. इस बात को कौन नह जानता है क सोम के तैयार होने पर इं कौन सा वैभव
धारण करते ह. (१)
दाना मृगो प वारणः पु ा चरथं दधे.
न क ् वा न यमदा सुते गमो महां र योजसा.. (२)
हे इं ! रथ म बैठ कर तुम ह षत मृग के समान अनेक कार से गमन करते हो. तु हारे
गमन को रोकने म कोई भी समथ नह है. तुम अपनी श के कारण महान हो. हमारे ारा
सोमरस तैयार कए जाने पर तुम यहां आओ. (२)
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य उ ः स न ृ त थरो रणाय सं कृतः.
य द तोतुमघवा शृणव वं ने ो योष या गमत्.. (३)
श ु जन क हसा नह कर पाते, वे यु भू म म डटे रहते ह. जस कार प त प नी के
पास जाता है, उसी कार इं हमारे आ ान को सुन कर इस य म आएंगे. (३)
सू -५४ दे वता—इं
व ाः पृतना अ भभूतरं नरं सजू तत ु र ं जजनु राजसे.
वा व र ं वर आमु रमुतो मो ज ं तवसं तर वनम्.. (१)
सभी सेना ने श ु को मू छत करने वाले इं का वरण कया है. वे इं अ य धक
श शाली और उ ह. (१)
सम रेभासो अ वर ं सोम य पीतये.
वप त यद वृधे धृत तो ेजसा समू त भः.. (२)
ये तोता सोमरस पीने के बाद इं क तु त करते ह. यह सोमरस अपनीअपनी र ा
श के साथ इन तोता क ओर जाता है. (२)
ने म नम त च सा मेषं व ा अ भ वरा.
सुद तयो वो अ होऽ प कण तर वनः समृ व भः.. (३)
इं के व पर पड़ते ही तोता उ ह णाम करते ह. हे तोताओ! ऋ व नाम वाले
पतर स हत, इस व क धमक तु हारे कान को थत न बनाए. (३)
सू -५५ दे वता—इं
त म ं जोहवी म मघवानमु ं स ा दधानम त कुतं शवां स.
मं ह ो गी भरा च य यो ववतद् राये नो व ा सुपथा कृणोतु व ी.. (१)
म ऐसे इं को अपने य म बुलाता ं जो श शाली, व धारण करने वाले, यु म
आगे रहने वाले, उ , बल धारक एवं तु त के यो य ह, वे इं हमारे धन ा त के माग को
सुंदर बनाएं. (१)
या इ भुज आभरः ववा असुरे यः.
तोतार म मघव य वधय ये च वे वृ ब हषः.. (२)
हे इं ! तुम वग के वामी हो. तुम रा स का वध करने के लए अपनी जन भुजा
को उठाते हो, उ ह भुजा के ारा यजमान और तोता क वृ करो. जो ऋ वज् तु हारे
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त ा परायण है, तुम उसी को बढ़ाओ. (२)
य म द धषे वम ं गां भागम यम्.
यजमाने सु व त द णाव त त मन् तं धे ह मा मणौ.. (३)
हे इं ! तुम जस गौ, अ आ द को पु बनाते हो, उसे सोमरस तैयार करने वाले और
द णा दे ने वाले यजमान को दो, प णय के समान श ु को मत दो. (३)
सू -५६ दे वता—इं
इ ो मदाय वावृधे शवसे वृ हा नृ भः.
त म मह वा जषूतेमभ हवामहे स वाजेषु नो ऽ वषत्.. (१)
वृ असुर का वध करने वाले इं को श और स ता के लए बड़ा कया जाता है.
हम उ ह बड़े और छोटे सभी कार के यु म बुलाते ह. वे यु के अवसर पर हमारे साथ
मल जाएं. (१)
अ स ह वीर से यो ऽ स भू र पराद दः.
अ स द य चद् वृधो यजमानाय श स सु वते भू र ते वसु.. (२)
हे वीर इं ! तुम श ु और खंडन करने वाले को दं ड दे ते हो. य म जो तु हारे
न म सोमरस तैयार करता है उसे तुम परम ऐ य दे ते हो. (२)
य द रत आजयो धृ णवे धीयते धना.
यु वा मद युता हरी कं हनः कं वसौ दधो ऽ माँ इ वसौ दधः (३)
हे इं ! यु के अवसर पर तुम डराने वाले पु ष से धन छ नने का य न कर रहे
होओगे उस समय तुम हरे रंग वाले अथवा ह र नाम के अपने घोड़ के ारा कस का वध
करोगे तथा कसे धन दे कर त त करोगे? उस समय तुम अपना धन हम दान करना.
(३)
मदे मदे ह नो द दयूथा गवामृजु तुः.
सं गृभाय पु शतोभयाह या वसु शशी ह राय आ भर.. (४)
हे इं ! तु हारा यश सरलता से सभी ओर फैल जाता है. तुम स हो कर हम गाएं
दान करते हो. तुम हम उ म धन दो. (४)
मादय व सुते सचा शवसे शूर राधसे.
वद्मा ह वा पु वसुमुप कामा ससृ महे ऽ था नो ऽ वता भव.. (५)
सू -५७ दे वता—इं
सु पकृ नुमूतये सु घा मव गो हे. जु म स व व.. (१)
जस कार गाय को हने के लए गोदोहक को बुलाया जाता है, उसी कार येक
अवसर पर अपनी र ा के लए हम इं का आ ान करते ह. (१)
उप नः सवना ग ह सोम य सोमपाः पब. गोदा इद् रेवतो मदः.. (२)
सदा ह षत रहने वाले एवं धनवान इं गाएं दान करने वाले ह. हे इं हमारे सोमयाग
म आ कर तुम सोमरस का पान करो. (२)
अथा ते अ तमानां व ाम सुमतीनाम्. मा नो अ त य आ ग ह.. (३)
हे इं ! हम तु हारी उ म बु को जानते ह. तुम सर के ारा हमारी नदा मत
कराओ तथा हमारे य म पधारो. (३)
शु म तमं न ऊतये ु ननं पा ह जागृ वम्. इ सोमं शत तो.. (४)
सू -५८ दे वता—इं
ाय त इव सूय व े द य भ त.
वसू न जाते जनमान ओजसा त भागं न द धम.. (१)
न य त सूय के साथ रहने वाली करण जल के वामी इं के साथ भी रहती ह. हम
यह कामना करते ह क इं के जल पी मेघ व तृत ह . जस कार इं भूत, वतमान और
भ व य तीन काल के धन का वभाजन करते ह, उसी कार हम उस धन के भाग पर
यान दे ते ह. (१)
अनशरा त वसुदामुप तु ह भ ा इ य रातयः.
सो अ य कामं वधतो न रोष त मनो दानाय चोदयन्.. (२)
हे तोताओ! तुम धन दे ने वाले इं का स चे दय से आ य लो. इं का दान मंगलमय
है, इस लए तुम उन क तु त करो. इं अपने उपासक क कामना पूण करते ह. तु त कर
के धन मांगने वाला पु ष इं के मन को धन दे ने के लए आक षत करता है. (२)
ब महाँ अ स सूय बडा द य महाँ अ स.
मह ते सतो म हमा पन यते ऽ ा दे व महाँ अ स.. (३)
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हे सूय पी इं ! हे आ द य! तु हारे महान होने क बात स य है. तुम स य प वाले
हो. तु हारी म हमा क शंसा क जाती है, इस लए तु हारे म हमावान होने क बात यथाथ
है. (३)
बट् सूय वसा महाँ अ स स ा दे व महाँ अ स.
म ा दे वानामसुयः पुरो हतो वभु यो तरदा यम्.. (४)
हे सूय! तुम वयं महान हो. हमारे ह व प अ से तु हारी म हमा क वृ हो. तुम
अपनी म हमा के कारण ही रा स से संघष करते हो. तुम ापक हो. कोई तु हारी हसा
नह कर सकता. (४)
सू -५९ दे वता—इं
उ ये मधुम मा गर तोमास ईरते.
स ा जतो धनसा अ तोतयो वाजय तो रथा इव.. (१)
ये तो एवं गायन यो य वा णयां उ प हो रही ह. धन दे ने वाली वाणी श ु पर
वजय पाती है. अ दे ने वाली तोता क सदा र ा करती है. जस कार रथ अपने वामी
को गंत पर प ंचाने के लए चलता है, उसी कार हमारी ये वा णयां इं को स करने
के लए उन के पास जाएं. (१)
क वा इव भृगवः सूया इव व म तमानशुः.
इ ं तोमे भमहय त आयवः यमेधासो अ वरन्.. (२)
क व गो के ऋ षय क तु त जस कार तीन लोक के वामी इं को ा त होती
है, जस कार ावा, अयमा आ द सूय अपने ेरणा द इं से मलते ह, उसी कार भृगु
वंश के ऋ ष इं का आ य लेते ह और य बु वाले मनु य इं क तु त करते ह. (२)
उ द व य र यत ऽ शो धनं न ज युषः.
य इ ो ह रवा दभ त तं रपो द ं दधा त सो म न.. (३)
इं का य भाग जीते ए धन के समान होता है. ह र नाम के अथवा हरे रंग के घोड़
वाले इं क हसा नह कर सकते. जो यजमान इं को सोमरस दे ता है, इं उस म बल को
था पत करते ह. (३)
म मखव सु धतं सुपेशसं दधात य ये वा.
पूव न सतय तर त तं य इ े कमणा भुवत्.. (४)
हे तोताओ! ऐसे य संबंधी मं का उ चारण करो जो सुंदर, तेज और प दान
करने म समथ ह . इं क सेवा करने वाला मनु य सभी बंधन से छु टकारा पा जाता है. (४)
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सू -६० दे वता—इं
एवा स वीरयुरेवा शूर उत थरः. एवा ते रा यं मनः.. (१)
सू -६१ दे वता—इं
तं ते मदं गृणीम स वृषणं पृ सु सास हम्. उ लोककृ नुम वो ह र यम्..
(१)
हे व धारी, श ु को परा जत करने वाले, अ क शोभा से यु एवं मनचाहे
पदाथ के वषक इं ! हम तु हारे ह व क पूजा करते ह. (१)
येन योत यायवे मनवे च ववे दथ. म दानो अ य ब हषो व राज स..
(२)
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हे इं ! जस सोमरस के भाव से तुमने आयु और मन को तेज ा त कराया था, उसी
सोमरस से पु हो कर तुम उस यजमान के कुशा से बने आसन पर बैठो. (२)
तद ा च उ थनो ऽ नु ु व त पूवथा. वृषप नीरपो जया दवे दवे..
(३)
हे इं ! उ थ नाम के मं के ये गायक तु हारी म हमा का गान कर रहे ह. तुम धम
काय करते ए येक अवसर पर वजय ा त करो. (३)
तवभ गायत पु तं पु ु तम्. इ ं गी भ त वषमा ववासत.. (४)
सू -६२ दे वता—इं
वयमु वामपू थूरं न क चद् भर तोऽव यवः. वाजे च ं हवामहे..
(१)
हे सदा नवीन रहने वाले इं ! अ ा त के अवसर पर हम तु हारी र ा क कामना
करते ह और तु ह बुलाते ह. तुम हम वजय ा त कराने के लए हमारे समीप आओ, हमारे
वरो धय क ओर मत जाओ. जस कार वजय क कामना से राजा यो ा को बुलाता
है, उसी कार हम तु ह बुलाते ह. (१)
उप वा कम ूतये स नो युवो ाम यो धृषत्.
वा म वतारं ववृमहे सखाय इ सान सम्.. (२)
सू -६३ दे वता—इं
इमा नु कं भुवना सीषधामे व े च दे वाः.
य ं च न त वं च जां चा द यै र दः सह ची लृपा त.. (१)
यह इं , व े दे व और भुवन सुख पाने का य न करते ह. वे इं आ द य स हत आ
कर हमारे य , शरीर और संतान को श दान कर. (१)
आ द यै र ः सगणो म र माकं भू व वता तनूनाम्.
ह वाय दे वा असुरान् यदायन् दे वा दे व वम भर माणाः.. (२)
जन दे वता ने वग क र ा के लए रा स का वनाश कया था, वे इं आ द य
और म त् हमारे शरीर क र ा के लए हमारे य म पधार. (२)
य चमकमनयंछची भरा दत् वधा म षरां पयप यन्.
अया वाजं दे व हतं सनेम मदे म शत हमाः सुवीराः.. (३)
जन इं ने अपनी श से सूय को य कया तथा पृ वी को अ वाली बनाया,
उ ह इं से हम दे वता का हतकारी अ ा त कर तथा वीर से यु रहते ए सौ वष
क आयु ा त कर. (३)
य एक इद् वदयते वसु मताय दाशुषे. ईशानो अ त कुत इ ो अ ..
(४)
इं ह व दे ने वाले यजमान को अ दे ते ह. इस काय म कोई भी इं क सहायता नह
कर सकता. (४)
कदा मतमराधसं पदा ु प मव फुरत्. कदा नः शु वद् गर इ ो अ ..
(५)
वे इं य न करने वाल पर अपने चरण का हार कर के उ ह कब ताड़ना दगे तथा
सू -६४ दे वता—इं
ए नो ग ध यः स ा जदगो ः. ग रन व त पृथुः प त दवः.. (१)
सू -६५ दे वता—इं
एतो व ं तवाम सखाय तो यं नरम्.
कु ीय व ा अ य येक इत्.. (१)
हम तु त के यो य एवं अपने सखा के समान इं से इधर आने के लए तु त करते ह.
ये इं सभी कम के फल दान करते ह. (१)
अगो धाय ग वषे ु ाय द यं वचः.
घृतात् वाद यो मधुन वोचत.. (२)
हे तोताओ! इन तेज वी, दे खने यो य वाणी पी अ वाले तथा गाय को न रोकने
वाले इं के त शहद और घी से भी अ धक मधुर वाणी का उ चारण करो. (२)
य या मता न वीया ३ न राधः पयतवे. यो तन व म य त द णा..
(३)
काय साधन के हेतु असी मत श वाले इं द तमती द णा के प ह. (३)
सू -६६ दे वता—इं
तुही ं श चवदनू म वा जनं यमम्. अय गयं मंहमानं व दाशुषे.. (१)
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हे ऋ वजो! जो इं अपने रथ से घोड़ को खोल कर शांत भाव से य म बैठते ह,
उ ह शंसा के यो य इं क तु त यजमान क क याण कामना के लए करो. (१)
एवा नूनमुप तु ह वैय दशमं नवम्. सु व ांसं चकृ यं चरणीनाम्.. (२)
जो इं सदा नवीन, महान और मेधावी ह, हे यजमान! तुम उ ह इं क पूजा करो. (२)
वे था ह नऋतीनां व ह त प रवृजम्. अहरहः शु युः प रपदा मव..
(३)
हे व धारी इं ! जस कर आ द य अपने सहयो गय को जानते ह, उसी कार तुम
भी संत त करने वाले और श शाली असुर को जानते हो. (३)
सू -६७ दे वता—इं
वनो त ह सु वन् यं परीणसः सु वानो ह मा यज यव षो दे वानामव
षः सु वान इत् सषास त सह ा वा यवृतः.
सु वानाये ो ददा याभुवं र य ददा याभुवम्.. (१)
सोमरस नचोड़ने वाला यजमान अपने श ु के साथसाथ दे वता के श ु का भी
पराभव करता है. वह ब त से घर को ा त करता है तथा व वध पदाथ के दान क इ छा
करता है. वह श ु से घरा आ नह रहता तथा अ का वामी बनता है. इं उसे पृ वी
संबंधी सभी धन दे ते ह. (१)
मो षु वो अ मद भ ता न प या सना भूवन् ु ना न मोत जा रषुर मत्
पुरोत जा रषुः.
यद् व ं युगेयुगे न ं घोषादम यम्.
अ मासु त म तो य च रं दधृता य च रम्.. (२)
हे म तो! तु हारा तेज संताप दे ने वाला है. वह हमारे सामने आ कर हम जीण न करे.
तुम अपने नवीन, चयन यो य और अ वनाशी उस बल को हम म था पत करो, जसे श ु
कभी ा त नह कर सकते. (२)
अ नं होतारं म ये दा व तं वसुं सूनुं सहसो जातवेदसं व ं न
जातवेदसम्.
य ऊ वया व वरो दे वो दे वा या कृपा.
घृत य व ा मनु व शो चषाजु ान य स पषः.. (३)
अ न दे व बल दे ने वाले, दे व के होता, उ प के जानने वाले तथा बल के अनुज
सू -६८ दे वता—इं
सु पकृ नुमूतये सु घा मव गो हे. जु म स व व.. (१)
जस कार सरलता से गाय का ध हने के लए दोहनकता को बुलाया जाता है,
उसी कार र ा का अवसर आने पर हर बार इं का आ ान करते ह. (१)
उप नः सवना ग ह सोम य सोमपाः पब. गोदा इद् रेवतो मदः.. (२)
ऐ य संप इं सदा स रहते ह और यजमान को गाएं दे ते ह. हे इं ! ातःकाल,
सू -६९ दे वता—इं
स घा नो योग आ भुवत् स राये स पुरं याम्. गमद् वाजे भरा स नः.. (१)
सू -७० दे वता—इं
वीलु चदा ज नु भगुहा च द व भः. अ व द उ या अनु.. (१)
हे इं ! तुम ने उषा काल के बाद ही अपनी यो त वाली श य के ारा गुफा म छपे
धन को ा त कया था. (१)
दे वय तो यथा म तम छा वदद् वसुं गरः. महामनूषत ुतम्.. (२)
हे तु तयो! हम तोता दे वता क इ छा करते ह. हम इं के सामने अपनी उ म
बु को तुत करगे. इस कार उन म हमा वाले इं क तु त क जाएगी. (२)
सू -७१ दे वता—इं
महाँ इ ः पर नु म ह वम तु व णे. ौन थना शवः.. (१)
े और महान इं म हमा वाले ह. उन का परा म आकाश के समान वशाल हो. (१)
समोहे वा य आशत नर तोक य स नतौ. व ासो वा धयायवः.. (२)
सू -७३ दे वता—इं
तु ये दमा सवना शूर व ा तु यं ा ण वधना कृणो म.
वं नृ भह ो व धा ऽ स.. (१)
हे वीर इं ! य के सभी सवन तु हारे न म ह . तु हारे न म ही म उन मं का पाठ
करता ं. तुम सब के पोषक एवं आ ान के यो य हो. (१)
नू च ु तो यमान य द मोद ुव त म हमानमु .
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न वीय म ते न राधः.. (२)
हे इं ! तुम उ हो. तु हारा सुंदर प, श , धन और म हमा को सरा कोई भी ा त
नह कर सकता. (२)
वो महे म हवृधे भर वं चेतसे सुम त कृणु वम्.
वशः पूव ः चरा चष ण ाः.. (३)
हे यजन करने वालो! तुम अपनी ह वय के ारा इं को स करो. इं मनु य को
मन चाहे फल दान करते ह. हे इं ! तुम मेरे ह व प अ का सेवन करो. (३)
यदा व ं हर य मदथा रथं हरी यम य वहतो व सू र भः.
आ त त मघवा सन ुत इ ो वाज य द घ वस प तः.. (४)
इं के हरे रंग के घोड़े इं के व णम व को एवं रथ बंधी र सय के सहारे रथ को
ख चते ह. उस अवसर पर अ य धक तेज वाले इं उस रथ पर बैठते ह. (४)
सो च ु वृ यू या ३ वा सचां इ ः म ू ण ह रता भ ु णुते.
अव वे त सु यं सुते मधू द नो त वातो यथा वनम्.. (५)
सोमरस के नचोड़े जाने पर इं हमारे य मंडप म आते ह. वायु जस कार वन को
कं पत करता है, इं उसी कार मेघ को कं पत कर दे ते ह. (५)
यो वाचा ववाचो मृ वाचः पु सह ा शवा जघान.
त दद य प यं गृणीम स पतेव य त वष वावृधे शवः.. (६)
इं कम करने वाल का वध करते ह एवं वकृत वाणी वाल क वाणी को मधुरता
दान करते ह. पता जस कार बल क वृ करता है, इं उसी कार अपने भ का
बल बढ़ाते ह. ऐसे परा मी इं क हम तु त करते ह. (६)
सू -७४ दे वता—इं
य च स य सोमपा अनाश ता इव म स.
आ तू न इ शंसय गो व ेषु शु षु सह ेषु तुवीमघ.. (१)
हे सोमरस का पान करने वाले इं ! हमारे हजार क सं या वाले घोड़े, गाय और
शु य के अमृत होने क बात कहो; य क तुम अमृत व को ा त कर चुके हो. (१)
श न् वाजानां पते शचीव तव दं सना.
आ तू न इ शंसय गो व ेषु शु षु सह ेषु तुवीमघ.. (२)
सू -७५ दे वता—इं
व वा तत े मथुना अव यवो ज य साता ग य नःसृजः स त
इ नःसृज.
यद् ग ता ा जना व १ य ता समूह स.
आ व क र द् वृषणं सचाभुवं व म सचाभुवम्.. (१)
सू -७६ दे वता—इं
वने न वा यो यधा य चाकंछु चवा तोमो भुरणावजीगः.
य ये द ः पु दनेषु होता नृणां नय नृतमः पावान्.. (१)
हे अ नीकुमारो! तुम दे वता का भरणपोषण करने वाले हो. यह नद ष तथा इं क
कामना करने वाला तो ह. इं इस क कामना ब त दन से करते ह. वे इं मनु य के े
सोमरस को ा त करने वाले ह. यह तो अथात् मं समूह उ ह क ओर अ सर होता है.
(१)
ते अ या उषसः ापर या नृतौ याम नृतम य नृणाम्.
अनु शोकः शतमावह ृन् कु सेन रथो यो असत् ससवान्.. (२)
हम वीर म े इं के व ास पा सेवक रह तथा सरी उषा को भी पार कर.
लोक ऋ ष ने हम सैकड़ उषाएं ा त करा . कु स ऋ ष ने संसार पी रथ को अ से
यु कया. (२)
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क ते मद इ र यो भूद ् रो गरो अ यु१ ो व धाव.
कद् वाहो अवागुप मा मनीषा आ वा श यामुपमं राधो अ ैः.. (३)
हे इं ! हम वह तोम अथात् मं समूह कौन दे गा जो तु ह स कर सके? कौन सा
अ तु ह मेरे पास लाएगा? तुम मेरा तोम सुनने के लए आओ. तुम उपमेय हो, म तु ह
ह वय ारा स करने म सफलता ा त क ं गा. (३)
क ु न म वावतो नॄन् कया धया करसे क आगन्.
म ो न स य उ गाय भृ या अ े सम य यदस मनीषाः.. (४)
हे इं ! तुम कस बु से अपने आ त को यश वी बनाते हो? तुम महान क त वाले
हो, इस लए स चे साथ के समय इस य को अ क वृ से संप करो. (४)
रे य सूरो अथ न पारं ये अ य कामं ज नधा इव मन्.
गर ये ते तु वजात पूव नर इ त श य ैः.. (५)
हे इं ! जो र मयां इस यजमान क इ छा पू त के लए माता के समान मलती ह, उन
र मय म हम अथ के समान पार करो. पवन दे व इसे अ दान कर. हे इं ! तुम अपनी
ाचीन तु तयां इस क बु म लाओ. (५)
मा े नु ते सु मते इ पूव ौम मना पृ थवी का ेन.
वराय ते घृतव तः सुतासः वाद्मन् भव तु पीतये मधू न.. (६)
हे इं ! घृत मला आ सोमरस तु हारे लए उ म वाद वाला तीत हो. पृ वी और
आकाश अपने म समथ एवं उ म का रचना के लए उ म बु वाला हो. (६)
आ म वो अ मा अ सच म म ाय पूण स ह स यराधाः.
स वावृधे व रम ा पृ थ ा अ भ वा नयः प यै .. (७)
इं के लए यह पा मधुर रस से पूण कया गया है. वे इं अपने बल से ही पृ वी पर
बु होते ह तथा स य के ारा उ ह क पूजा होती है. (७)
ान ळ ः पृतनाः वोजा आ मै यत ते स याय पूव ः.
आ मा रथं न पृतनासु त यं भ या समु या चोदयासे.. (८)
इं का बल े है. इं सेना म ा त होते ह. अन गनत वीर इन के मै ीभाव क
कामना करते ह. हे इं ! तुम जस सुम त के ारा ेरणा दे ते हो, रथ के समान उसी सुम त से
तुम हमारे वीर म ा त होओ. (८)
सू -७७ दे वता—इं
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आ स यो यातु मघवां ऋजीषी व व य हरय उप नः.
त मा इद धः सुषुमा सुद महा भ प वं करते गृणानः.. (१)
इं के घोड़े हमारी ओर आएं. धन के वामी, स य के त न ा रखने वाले एवं
सोमपायी इं यहां आगमन कर. तु त करने वाला व ान् इसी कारण नान आ द कम कर
रहा है तथा हम सोम का सं कार कर रहे ह. (१)
अव य शूरा वनो ना ते ऽ मन् नो अ सवने म द यै.
शंसा यु थमुशनेव वेधा कतुषे असुयाय म म.. (२)
हे वीर इं ! हमारे इस य को ा त करो तथा अपना माग हमारे समीप बनाओ. ये
व ान् उशना अथात् शु ाचाय के समान इं के हेतु उ थ अथात् मं के समूह का
उ चारण करते ह. (२)
क वन न यं वदथा न साधन् वृषा यत् सेकं व पपानो अचात्.
दव इ था जीजनत् स त का न ा च च ु वयुना गृण तः.. (३)
इं फल के वषक अथात् सब को य का फल दे ने वाले ह. ये वषा के जल के ारा
पृ वी को श य अथात् फसल से संप बनाते ए आगमन कर. ऋ वज् य काय कर रहा
है. सात तोता शोभन तो ारा इं क तु त कर रहे ह. (३)
व १ यद् वे द सु शीकमकम ह यो त चुय व तोः.
अ धा तमां स धता वच े नृ य कार नृतमो अ भ ौ.. (४)
इन मं के ारा दशनीय वग का ान होता है. ये मं सूय को का शत करते ह तथा
इन मं के ारा सूय पी इं र से भी अंधकार को हटा दे ते ह. अ तशय श शाली इं
कामना क वषा करते ह. (४)
वव इ ो अ मतमृजी यु १ भे आ प ौ रोदसी म ह वा.
अत द य म हमा व रे य भ यो व ा भुवना बभूव.. (५)
सोमरस पीने वाले इं असी मत धन हमारी ओर भेजते ह. इं सभी लोक म ा त
होने के कारण म हमा वाले ह. उ ह इं क म हमा पृ वी और आकाश को पूण करती है.
(५)
व ा न शु ो नया ण व ानपो ररेच स ख भ नकामैः.
अ यानं चद् ये ब भ वचो भ जं गोम तमु शजो व व ुः.. (६)
वे छा से चलने वाले मेघ के ारा इं दे व ने हतकारी जल क वृ क है. ये जल
अपने श द से पाषाण को भी तोड़ दे ते ह तथा इ छा होने पर गोचर भू म पर छा जाते ह.
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(६)
अपो वृ ं व वासं पराहन् ावत् ते व ं पृ थवी सचेताः.
ाणा स समु या यैनोः प तभव छवसा शूर धृ णो.. (७)
हे इं ! यह पृ वी सावधानी से तु हारे व क र ा करती है. यही समु क भी र का
है. रोकने वाले वृ को जल ने छ भ कर दया है. हे इं ! तुम अपने बल के ारा ही
पृ वी के वामी हो. (७)
अपो यद पु त ददरा वभुवत् सरमा पू ते.
स नो नेता वाजमा द ष भू र गो ा ज रो भगृणानः.. (८)
हे इं ! तुम अनेक यजमान के ारा बुलाए जा चुके हो. तुम जस जल को हम दान
करते हो, वह जल तुरंत कट हो कर बहने लगता है. तुम अं गरस ारा तु त कए गए मेघ
को चीरते ए हम अप र मत अ दान करते हो. (८)
सू -७८ दे वता—इं
तद् वो गाय सुते सचा पु ताय स वने. शं यद् गवे न शा कने.. (१)
हे तोता! सोमरस का सं कार हो जाने पर इं दे व क तु त करो, जस से वे हम
सोमरस दे ने वाल के लए गौ के समान क याणकारी ह . (१)
न घा वसु न यमते दानं वाज य गोमतः. यत् सीमुप वद् गरः.. (२)
ये इं य द हमारी तु तय को सुन लेते ह तो गौ से यु अ दे ने म वलंब नह करते.
(२)
कु व स य ह जं गोम तं द युहा गमत. शची भरप नो वरत्… (३)
हे इं ! तुम वृ रा स का वध करने वाले हो तथा सभी को अप र मत अ दे ते हो. तुम
गौ से सुशो भत थान पर आ कर हम को बल से पूण बनाओ. (३)
सू -७९ दे वता—इं
इ तुं न आ भर पता पु े यो यथा.
श ा णो अ मन् पु त याम न जीवा यो तरशीम ह.. (१)
हे इं ! जस कार पता अपने पु को इ छत व तु दान करता है, उसी कार तुम
भी हम हमारी मनचाही व तुएं दान करो. हे पु त! इस संसार या ा म तुम हम इ छत
सू -८० दे वता—इं
इ ं ये ं न आ भरं ओ ज ं पपु र वः.
येनेमे च व ह त रोदसी ओभे सु श ाः.. (१)
हे इं ! तुम अपने महान और ओज वी धन से हम संप बनाओ. हे व धारी इं ! तुम
ने अपने जस धन से आकाश तथा पृ वी को पूण कया है, वही धन हम दान करो. (१)
वामु मवसे चषणीसहं राजन् दे वेषु महे.
व ा सु नो वथुरा प दना वसोऽ म ान् सुषहान् कृ ध.. (२)
हे इं ! तुम उ हो. तुम हमारे भय के सभी कारण को र करो तथा हम श ु को
वश म करने वाले बल से संप बनाओ. हम अपनी र ा के हेतु तु हारा आ ान करते ह. (२)
सू -८१ दे वता—इं
यद् ाव इ ते शतं शतं भूमी त युः.
न वा व सह ं सूया अनु न जातम रोदसी.. (१)
हे इं ! हे भु! सैकड़ आकाश और पृ वी भी य द तु हारी समानता करना चाह, तब
भी तु हारे समान महान नह हो सकते. (१)
आ प ाथ म हना वृ या वृषन् व ा श व शवसा.
अ माँ अव मघवन् गोम त जे व च ा भ त भः.. (२)
हे व धारी इं ! हमारे गोचर थान म अपने र ा साधन के ारा हमारी र ा करो तथा
अपनी म हमा से हमारी वृ करो. (२)
सू -८२ दे वता—इं
यद यावत वमेतावदहमीशीय.
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तोतार मद् द धषेय रदावसो न पाप वाय रासीय.. (१)
हे इं ! म तु हारे समान भु व ा त क ं तथा तु त करने वाल को धन दे ने वाला
बनूं. पाप कम करने वाले धनी मुझे थत न कर. (१)
श य े म महयते दवे दवे राय आ कुह च दे .
न ह वद य मघवन् न आ यं व यो अ त पता चन.. (२)
हे इं ! म जहां से चा ं, वह से धन ा त कर सकूं. जो मुझ से उ कृ होना चाहे, उसे
म वण का दं ड ं . हे इं ! मुझे इस कार क श दे ने वाला तु हारे अ त र सरा कौन
र क हो सकता है? (२)
सू -८३ दे वता—इं
इ धातु शरणं व थं व तमत्.
छ दय छ मघवद् य म ं च यावया द ुमे यः.. (१)
हे इं ! मुझे मंगलकारी घर दो तथा हसा करने वाली श य को यहां से र भगाओ.
(१)
ये ग ता मनसा श ुमादभुर भ न त धृ णुया.
अध मा नो मघव गवण तनूपा अ तमो भव.. (२)
हे इं ! तु हारे जो बल श ु को संत त करते और मारते ह, तुम अपने उ ह बल से
हमारे शरीर क र ा करो. (२)
सू -८४ दे वता—इं
इ ा या ह च भानो सुता इमे वायवः. अ वी भ तना पूतासः.. (१)
हे इं ! यहां आओ. यह तैयार कया गया सोमरस तु हारे लए ही है. (१)
इ ा या ह धये षतो व जूतः सुतावतः. उप ा ण वाघतः.. (२)
हे इं ! ये व ान् ा ण तु ह अपने से े वीकार करते ह. इन मं से संप ा ण
और सोमरस वाले ऋ वज के समीप आओ. (२)
इ ा या ह तूतुजान उप ा ण ह रवः. सुते द ध व न नः.. (३)
हे इं ! तुम अ के वामी हो, इस लए हमारे तो को सुनने के लए हमारे समीप
शी आओ तथा हमारे तैयार सोमरस के पास अपने अ को रोको. (३)
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सू -८५ दे वता—इं
मा चद यद् व शंसत सखायो मा रष यत.
इ मत् तोता वृषणं सचा सुते मु था च शंसत.. (१)
हे तोताओ! तुम अ य कसी दे वता का आ य मत लो. तुम कसी अ य दे वता क
तु त मत करो. हे तैयार कए गए सोमरस वाले होताओ! तुम इं क तु त करते ए
बारबार उ थ का गान करो. (१)
अव णं वृषभं यथा ऽ जुरं गा न चषणीसहम्.
व े षणं संवननोभयंकरं मं ह मुभया वनम्.. (२)
इं सांड़ के समान घूमने वाले, संघषशील, अवक ी, श ु के े षी, अजर, अ तशय
म हमाशाली, सेवा के यो य तथा दोन लोक के र क ह. (२)
य च वा जना इमे नाना हव त ऊतये.
अ माकं े म भूतु ते ऽ हा व ा च वधनम्.. (३)
द
हे इं ! तु हारा संर ण पाने के लए ब त से पु ष तु ह बुलाते ह. हमारा यह तो भी
तु हारी वृ करने वाला है. (३)
व ततूय ते मघवन् वप तो ऽ य वपो जनानाम्.
उप म व पु पमा भर वाजं ने द मूतये.. (४)
हे इं ! तुम यहां शी आ कर वशाल प धारण करो. इन व ान् मनु य और
यजमान क उंग लयां शी ताकारी ह. तुम हमारे पालन के लए अ हमारे समीप लाओ
तथा हम दान करो. (४)
सू -८६ दे वता—इं
णा ते युजा युन म हरी सखाया सधमाद आशू.
थरं रथं सुख म ा ध त न् जानन् व ां उप या ह सोमम्.. (१)
हे इं ! म कमवान मं के ारा तु हारे रथ म अ को जोड़ता ं. हे व ान् इं ! इस
सुखदायक रथ पर चढ़ कर तुम हमारे इस सोमरस के पास आओ. (१)
सू -८८ दे वता—बृह प त
य त त भ सहसा व मो अ तान् बृह प त षध थो रवेण.
तं नास ऋषयो द यानाः पुरो व ा द धरे म ज म्.. (१)
जन बृह प त ने अपने घोष से पृ वी के छोर को भी तं भत कया, ाचीन ऋ ष उन
का बारबार यान करते ह. वे बृह प त स करने वाली ज ा के वामी ह. व ान् ा ण
बृह प त को थम थान दे ते ह. (१)
धुनेतयः सु केतं मद तो बृह पते अ भ ये न तत े.
पृष तं सृ मद धमूव बृह पते र ताद य यो नम्.. (२)
हे बृह प त! जो ऋ वज् तु ह हमारी ओर आक षत करते ह उन गमनशील, अ हसक
तथा घृत क बूदं धारण करने वाले ऋ वज क तुम र ा करो. (२)
बृह पते या परमा परावदत आ त ऋत पृशो न षे ः.
तु यं खाता अवता अ धा म व ोत य भतो वर शम्.. (३)
हे बृह प त! मृत का पश करने वाले ऋ वज् तु हारी र ा साधन वाली महान र ा के
न म बैठे ए, पवत से एक कए ए उ म मधु क तुम पर वषा करते ह. (३)
बृह प तः थमं जायमानो महो यो तषः परमे ोमन्.
स ता य तु वजातो रवेण व स तर मरधमत् तमां स.. (४)
बृह प त महान यो तष च से परम ोम म आ वभूत अथात् कट होते ह. वे
बृह प त स त र म वाले बन कर अंधकार को मटा दे ते ह. (४)
स सु ु भा स ऋ वता गणेन वलं रोज फ लगं रवेण.
बृह प त या ह सूदः क न दद् वावशती दाजत्.. (५)
ऋचा वाले गण के ारा वे बृह प त मेघ को चीरते ह. वे ह से े रत हो कर इ छा
करने वाली गाय को ा त होते ह और बारबार श द करते ह. (५)
एवा प े व दे वाय वृ णे य ै वधेम नमसा ह व भः.
बृह पते सु जा वीरव तो वयं याम पतयो रयीणाम्.. (६)
हे बृह प त! हम सुंदर और वीर संतान से संप धन के वामी बन. हम उन बृह प त
सू -८९ दे वता—इं
अ तेव सु तरं लायम यन् भूष व भरा तोमम मै.
वाचा व ा तरत वाचमय न रामय ज रतः सोम इ म्.. (१)
हे ा णो! तुम इं के लए तोम का गान करो. तुम मं प वाणी के पार जाओ. हे
तु त करने वालो! तुम इं को सोमरस से यु बनाओ. (१)
दोहेन गामुप श ा सखायं बोधय ज रतजार म म्.
कोशं न पूण वसुना यृ मा यावय मघदे याय शूरम्.. (२)
हे तोताओ! वाणी तु हारी म है. उस का दोहन करो तथा जो इं श ु को ीण
करते ह, उ ह बुलाओ. जो सोमरस धन से यु कोष के समान शु है, उसे इं के लए
तैयार करो. (२)
कम वा मघवन् भोजमा ः शशी ह मा शशयं वा शृणो म.
अ वती मम धीर तु श वसु वदं भग म ा भरा नः.. (३)
हे इं ! तुम भो ा हो. तुम श ु को ीण कर दे ते हो. तुम मुझे ीण मत करना. तुम
मुझे धन ा त करने वाला सौभा य दो. मेरी बु कम क ओर अ सर हो. (३)
वां जना ममस ये व संत थाना व य ते समीके.
अ ा युजं कृणुते यो ह व मा ासु वता स यं व शूरः.. (४)
हे इं ! मेरे पु ष तु ह को बुलाते ह. जो वीर तु हारी म ता क कामना करते ह तथा
ह व वाला अनु ान करते ह, वे सोमरस का सं कार भी करते ह. (४)
धनं न प ं ब लं यो अ मै ती ा सोमाँ आसुनो त य वान्.
त मै श ू सुतुकान् ातर ो न व ान् युव त ह त वृ म्.. (५)
ह व धारण करने वाला जो पु ष इं के न म सोमरस का सं कार नह करता, उस
का धन सरकता जाता है. इं उसे अपने श ु म स म लत कर के उस पर व का हार
करते ह. (५)
य मन् वयं द धमा शंस म े यः श ाय मघवा कामम मे.
आरा चत् सन् भयताम य श ु य मै ु ना ज या नम ताम्.. (६)
जो इं हमारी इ छा को पूण करने वाले ह, जन इं क हम शंसा करते ह, उन इं
सू -९० दे वता—बृह प त
यो अ भत् थमजा ऋतावा बृह प तरा रसो ह व मान्.
बह मा ाघमसत् पता न आ रोदसी वृषभो रोरवी त.. (१)
सू -९१ दे वता—बृह प त
इमां धयं स तशी ण पता न ऋत जातां बृहतीम व दत्.
तुरीयं व जनयद् व ज यो ऽ या य उ थ म ाय शंसन्.. (१)
बृह प त ने स य के ारा उ प सात सर वाली बु को ा त कया है. व से
उ प अया य ने इं से कह कर तुरीय को उ प कराया. (१)
ऋतं शंस त ऋजु द याना दव पु ासो असुर य वीराः.
व ं पदम रसो दधाना य य धाम थमं मन त.. (२)
स य कथन ारा ाण के वीय से उ प ए अं गरा य शाला म थम अथात् उ म
समझे जाते ह. (२)
हंसै रव स ख भवावद र म मया न नहना यन्.
बृह प तर भक न दद् गा उत ा तौ च व ां अगायत्.. (३)
गजन करने वाले मेघ का उद्घाटन करते ए बृह प त तु त करते ह. इसी कारण वे
व ान् समझे जाते ह. (३)
अवो ा यां पर एकया गा गुहा त तीरनृत य सेतौ.
बृह प त तम स यो त र छ ु ा आक व ह त आवः.. (४)
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पहले दो से, फर एक से दय पी गुफा म थत वा णय को बाहर नकालते ए
तथा अंधकार म काश क कामना करने वाले बृह प त काश को कट करते ह. (४)
व भ ा पुरं शयथेमपाच न ी ण साकमुदधेरकृ तत्.
बृह प त षसं सूय गामक ववेद तनय व ौः.. (५)
बृह प त पुर का वनाश कर के प म दशा म सोते ह. वे सागर के भाग का याग
नह करते तथा आकाश म कड़कते ए उषा, सूय तथा स य गौ को ा त करते ह. (५)
इ ो वलं र तारं घानां करेणेव व चकता रवेण.
वेदा भरा शर म छमानो ऽ रोदयत् प णमा गा अमु णात्.. (६)
इं कामधेनु के पालक मेघ को छ भ कर दे ते ह. उ ह ने द ध क इ छा से गाय
को चुराने वाले प णय को थत कया था. (६)
स स ये भः स ख भः शुच ग धायसं व धनसैरददः.
ण प तवृष भवराहैघम वेदे भ वणं ानट् .. (७)
इं धन दे ने वाले तथा धरती को पु करने वाले मेघ को वद ण करते ह. ण पत
आपस म टकराने वाले मेघ के ारा धन म ा त होते ह. (७)
ते स येन मनसा गोप त गा इयानास इषणय त धी भः.
बृह प त मथोअव पे भ या असृजत वयु भः.. (८)
ये मेघ बैल और गाय के समीप जाने क कामना करते ए अपनी वृ य के ारा
उ ह ा त करते ह. श द का पालन करते ए बृह प त मेघ के ारा गाय से संयु होते ह.
(८)
तं वधय तो म त भः शवा भः सह मव नानदतं सध थे.
बृह प त वृषणं शूरसातौ भरेभरे अनु मदे म ज णुम्.. (९)
उस यु म सह के समान गजन करने वाले बृह प त को हम अपनी उ म बु य से
बढ़ाते ह. (९)
यदा वाजमसनद् व पमा ाम रा ण सद्म.
बृह प त वृषणं वधय तो नाना स तो ब तो यो तरासा.. (१०)
बृह प त दे व जस समय संसार से संबं धत सभी ह का सेवन करते ह. तब वे
आकाश के ऊपर जा कर उ म लोक म त ा पाते ह. उस समय श संप बृह प त दे व
को शेष सभी दे व अपने वचन से उ साह दान करते ह. कामना को पूण करने वाले
सू -९२ दे वता—इं
अभ गोप त गरे मच यथा वदे . सूनुं स य य स प तम्.. (१)
हे तोता! म गाय के वामी इं को जस कार ा त कर सकूं, तुम उसी कार उन
का पूजन करो. (१)
आ हरयः ससृ रे ऽ षीर ध ब ह ष. य ा भ संनवामहे.. (२)
जन कुश पर हम इं का पूजन कर रहे ह, उन पर इं के घोड़े उनके रथ को प ंचाएं.
(२)
इ ाय गाव आ शरं ेव णे मधु. यत् सीमुप रे वदत्.. (३)
सू -९३ दे वता—इं
उत् वा म द तु तोमाः कृणु व राधो अ वः. अव षो ज ह.. (१)
हे व धारी इं ! यह तु त तु ह स करने वाली हो. तुम े षय को न करो
तथा हम धन दो. (१)
पदा पण रराधसो न बाध व महाँ अ स. न ह वा क न त.. (२)
सू -९४ दे वता—इं
आ या व ः वप तमदाय यो धमणा तूतुजान तु व मान्.
व ाणो अ त व ा सहां यपारेण महता वृ येन.. (१)
जो इं धम के ई र एवं वभाव से शी ता करने वाले ह, वे हष ा त करने के लए
यहां आएं तथा अपनी श से हमारे उन श ु को सभी कार ीण कर जो हम दबाना
चाहते ह. (१)
सु ामा रथः सुयमा हरी ते म य व ो नृपते गभ तौ.
शीभं राज सुपथा या वाङ् वधाम ते पपुषो वृ या न.. (२)
हे इं ! तुम अपने हाथ म व धारण करते हो. तु हारे घोड़े सभी कार से तु हारे
अधीन रहते ह. तु हारे रथ म बैठने का थान े है. तुम सुंदर माग ारा वग से आओ. हम
सोमपान क कामना वाली तु हारी श को बढ़ाते ह. (२)
ए वाहो नृप त व बा मु मु ास त वषास एनम्.
व सं वृषभं स यशु ममेम म ा सधमादो वह तु.. (३)
इं व धारी, राजा, भयंकर श ु का वनाश करने वाले, स य के कारण श शाली
तथा कामना क वषा करने वाले ह. इं के श शाली घोड़े उ ह ले कर हमारे य म
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आएं. (३)
एवा प त ोणसाचं सचेतसमूज क भं ध ण आ वृषायसे.
ओजः कृ व सं गृभाय वे अ यसो यथा के नपाना मनो वृधे.. (४)
हे ऋ वज्! ानी एवं श शाली ोण पा से सुसंगत होने वाले कंभ को जल म
ख चो. म श य को बढ़ाने के हेतु तु हारे साथ र ं. तुम मुझे बल और आ य दो. (४)
गम मे वसू या ह शं सषं वा शषं भरमा या ह सो मनः.
वमी शषे सा म ा स स ब ह यनाधृ या तव पा ा ण धमणा.. (५)
हे इं ! इस तोता को तुम शुभ आशीवाद दो तथा इस यजमान म धन को त त
करो. हे वामी इं ! इस सोम के गृह म आ कर कुश के इस आसन पर वराजमान हो जाओ.
तु हारे पा धारण श के कारण अपमान करने यो य नह ह. (५)
पृथक् ायन् थमा दे व तयो ऽ कृ वत व या न रा.
न ये शेकुय यां नावमा हमीमव ते य वश त केपयः.. (६)
हे इं ! जो जन अपने ान और कम के अनुसार दे वयान आ द माग म जाने क
कामना करते ह तथा जो सवसाधारण के लए क सा य दे व त आ द कम करते ह, वे
तु हारी कृपा के अभाव म य पी नौका पर नह चढ़ पाते. इस कारण से वे साधारण कम
करते ए मृ युलोक म ही के रहते ह. (६)
एवैवापागपरे स तु ढू ो ऽ ा येषां युय आयुयु े.
इ था ये ागुपरे स त दावने पु ण य वयुना न भोजना.. (७)
जन अ को युज नाम का सारथी रथ म जोड़ता है, वे कभी वृ न ह . जो दाता को
ब त से भो य पदाथ से यु बनाते ह, वे मेघ ह. (७)
गर र ान् रेजमानाँ अधारयद् ौः दद त र ा ण कोपयत्.
समीचीने धषणे व कभाय त वृ णः पी वा मद उ था न शंस त.. (८)
सोमरस से ह षत ए इं पवत को धारण करते ह, अंत र के पदाथ को कु पत
करते ह तथा ुलोक को कुंदनमय बनाते ह. (८)
इमं बभ म सुकृतं ते अङ् कुशं येना जा स मघवंछफा जः.
अ म सु ते सवने अ वो यं सुत इ ौ मघवन् बो याभगः.. (९)
हे इं ! म तु हारे अंकुश को धारण करता ं. तुम अपने इस अंकुश के ारा नख वाले
पीड़ा दाता ा णय को न करते हो. इस सवन म तुम जा ा त करो तथा सोमरस न प
सू -९५ दे वता—इं
क केषु म हषो यवा शरं तु वशु म तृपत् सोमम पबद्
व णुना सुतं यथावशत्.
स ममाद म ह कम कतवे महामु ं
सैनं स द् दे वो दे वं स य म ं स य इ ः.. (१)
वे इं क क नाम के सोम पा म सोमरस पीते ह और जौ आ द म ण से तृ त
ा त करते ह. इं व णु ारा तैयार कए गए सोमरस पर अ धकार करते ह, य क वह
सोमरस उ ह बल दान करता है और उन म सुसंगत होता है. (१)
ो व मै पुरोरथ म ाय शूषमचत.
अभीके च लोककृत् संगे सम सु
वृ हा ऽ माकं बो ध चो दता नभ ताम यकेषां याका अ ध ध वसु.. (२)
हे ऋ वजो! इं के बल क पूजा करो तथा इं क आराधना करो. इं यु म श ु
को मारते ह. अ य पु ष क यंचाएं उन के धनुष पर न चढ़ पाएं. ेरणा करने वाले ये इं
हमारी तु त को जान गए ह. (२)
वं स धूँरवासृजो ऽ धराचो अह हम्.
अश ु र ज षे व ं पु य स
वाय तं वा प र वजामहे नभ ताम यकेषां याका अ ध ध वसु.. (३)
हे इं ! तुम ने मेघ का वध कर के स रता को द ण दशा क ओर बहने वाला
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बनाया. तुम सब वरणीय पदाथ को पु करते तथा श ु का नाश करते हो. हम तु ह दय
से लगाते ह. अ य पु ष क यंचाएं उन के धनुष पर न चढ़ सक. (३)
व षु व ा अरातयो ऽ य नश त नो धयः.
अ ता स श वे वधं यो न इ
जघांस त या ते रा तद दवसु नभ ताम यकेषां याका अ ध ध वसु.. (४)
हे वामी इं ! हमारे सभी श ु क बु यां न ह . जो श ु हमारी हसा क कामना
करते ह, तुम उन पर मृ यु का साधन अपना व चलाओ तथा हम धन दान करो. अ य
पु ष क यंचाएं उन के धनुष पर न चढ़ पाएं. (४)
सू -९६ दे वता—इं
ती या भवयसो अ य पा ह सवरथा व हरी इह मु च.
इ मा वा यजमानासो अ ये न रीरमन् तु य ममे सुतासः.. (१)
हे इं ! यह जो ह व प अ दे ने वाला यजमान है, तुम इस के र थय क र ा करो. हे
इं ! सोमरस का सं कार कया जा चुका है, इस लए अपने घोड़ को छोड़ कर यहां आओ
और सरे यजमान के यहां गमन मत करो. (१)
तु यं सुता तु यमु सो वास वां गरः ा या आ य त.
इ े दम सवनं जुषाणो व य व ां इह पा ह सोमम्.. (२)
हे इं ! इस सोमरस को तु हारे लए ही छाना गया है. ये तु तयां तु हारा ही आ ान
करती ह. तुम सब को जानने वाले हो. हमारे य म आ कर तुम सोमरस का पान करो. (२)
य उशता मनसा सोमम मै सव दा दे वकामः सुनो त.
न गा इ त य परा ददा त श त म चा म मै कृणो त.. (३)
दे व क कामना करने वाला जो पु ष सोमरस को तैयार करता है, उस के ोत को इं
वीकार कर लेते ह तथा मधुर वचन के ारा उसे संतु करते ह. (३)
अनु प ो भव येषो अ य यो अ मै रेवान् न सुनो त सोमम्.
नरर नौ मघवा तं दधा त षो ह यनानु द ः.. (४)
जो पु ष सोम का सं कार नह करता, वह इं के हार के यो य होता है. उस े षी
और ह व का दान न करने वाले को इं न कर दे ते ह. (४)
अ ाय तो ग तो वाजय तो हवामहे वोपग तवा उ.
आभूष त ते सुमतौ नवायां वय म वा शुनं वेम.. (५)
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हे इं ! अ , गौ और अ क कामना करने वाले हम तु हारा आ य पाने के लए
नवीन तथा उ म बु से संगत हो कर तु ह बुलाते ह. (५)
मु चा म वा ह वषा जीवनाय कम ातय मा त राजय मात्.
ा हज ाह य ेतदे नं त या इ ा नी मुमु मेनम्.. (६)
हे रोगी पु ष! म तेरे जीवन के हेतु ह व दे ता आ तुझे य आ द रोग से मु करता
ं. हे इं और अ न! य द इस पु ष को पशाची ने पकड़ लया हो तो इसे उस के पाप से
छु ड़ाओ. (६)
य द तायुय द वा परेतो य द मृ योर कं नीत एव.
तमा हरा म नऋते प थाद पाशमेनं शतशारदाय.. (७)
यह पु ष ग त को ा त हो गया है और इस क आयु ीण हो गई है. यह मृ यु के
समीप प ंच गया है, तब भी म इस को, नऋ त के अंक को ख चता ं. म ने इस का पश
इस हेतु कया है क यह सौ वष क आयु ा त करे. (७)
सह ा ेण शतवीयण शतायुषा ह वषाहाषमेनम्.
इ ो यथैनं शरदो नया य त व य रत य पारम्.. (८)
म ह व के ारा इस रोगी पु ष को हजार सू म य , सैकड़ वीय तथा सौ वष क
आयु के लए मृ यु से छ न लाया ं. इसे इं पूरी आयु के लए पाप के पार लगाएं. (८)
शतं जीव शरदो वधमानः शतं हेम ता छतमु वस तान्.
शतं त इ ो अ नः स वता बृह प तः शतायुषा ह वषाहाषमेनम्.. (९)
हे रोगी! तू सौ वष तक जी वत रहता आ वृ ा त कर. तू सौ हेमंत तथा सौ वसंत
तक जी वत रह. इं , अ न, स वता तथा बृह प त तुझे शतायु बनाएं. इस ह व के ारा म
तुझे शतायु बना कर ले आया ं. (९)
आहाषम वदं वा पुनरागाः पुनणवः.
सवा सव ते च ुः सवमायु ते ऽ वदम्.. (१०)
हे रोगी पु ष! तू लौट आ तथा पुनः नव जीवन ा त कर. इस कम के ारा म ने तुझे
दशन श तथा पूण आयु दे ने म सफलता ा त कर ली है. (१०)
णा नः सं वदानो र ोहा बाधता मतः.
अमीवा य ते गभ णामा यो नमाशये.. (११)
अ न दे वता रा स को न करने वाले मं से यु हो कर तेरे षत रोग को रोक द.
सू -९८ दे वता—इं
वा म हवामहे साता वाज य कारवः.
वां वृ े व स प त नर वां का ा ववतः.. (१)
हे इं ! तु त करने वाले हम अ ा त से संबं धत य म तु ह ही बुलाते ह. तुम
स जन के र क और जल को े रत करने वाले हो. (१)
स वं न व ह त धृ णुया मह तवानो अ वः.
गाम ं र य म सं कर स ा वाजं न ज युषे.. (२)
हे इं ! तुम हमारे ारा पू जत हो कर वजय क इ छा करने वाले नरेश के अ , रथ,
गाय आ द दान करो. हे इं ! तुम अपने हाथ म व धारण करने वाले हो. (२)
सू -९९ दे वता—इं
अ भ वा पूवपीतय इ तोमे भरायवः.
समीचीनास ऋभवः सम वरन् ा गृण त पू म्.. (१)
हे इं ! तुम ने पहले सोमरस पया था, उसी कार सोमरस पीने के लए ऋभु और
सू -१०० दे वता—इं
अधा ही गवण उप वा कामान् महः ससृ महे. उदे व य त उद भः..
(१)
हे इं ! जस कार जल क कामना करते ए मनु य जल म जल को मलाते ह, उसी
कार तु हारी कामना करने वाले मनु य तु ह सोम पी जल से मलाते ह. (१)
वाण वा य ा भवध त शूर ा ण. वावृ वांसं चद वो दवे दवे..
(२)
हे व धारी इं ! तुम येक तु त पर अपनी वृ क कामना करते हो, इस लए ये मं
तु ह जल क भां त वृ यु बनाते ह. (२)
यु त हरी इ षर य गाथयोरौ रथ उ युगे. इ वाहा वचोयुजा.. (३)
यु के लए थान करने वाले इं के यशोगान संबंधी मं से रथ म जुड़ने वाले इं
के घोड़े रथ म जुड़ते ह. (३)
सू -१०१ दे वता—अ न
अ नं तं वृणीमहे होतारं व वेदसम्. अ य य य सु तुम्.. (१)
म सब के ाता, होता और य को उ म बनाने वाले अ न का वरण करता ं. (१)
अ नम नं हवीम भः सदा हव त व प तम्. ह वाहं पु यम्.. (२)
ह वाहक, ब त के य तथा जाप त अ न को यजमान ह व दान करते ह. इस
कारण हम भी अ न को ह व दे ते ह. (२)
अ ने दे वाँ इहा वह ज ानो वृ ब हषे. अ स होता न ई ः.. (३)
हे अ न! ऋ वज् के हेतु द त होते ए तुम हमारे होता हो, इस लए तुम दे व को
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हमारे इस य म ले कर आओ. (३)
सू -१०२ दे वता—अ न
ईळे यो नम य तर तमां स दशतः. सम न र यते वृषा.. (१)
अ न तु तय और नम कार के यो य ह. कामना क वषा करने वाले एवं दशनीय
ह. अ न अपने धूम को तरछा करते ए व लत होते ह. (१)
वृषो अ नः स म यते ऽ ो न दे ववाहनः. तं ह व म त ईळते.. (२)
कामना क वषा करने वाले अ न दे वता को वहन करने वाले अ के समान
द त होते ह. ह व दे ने वाले यजमान उन द त अ न क पूजा करते ह. (२)
वृषणं वा वयं वृषन् वृषणः स मधीम ह. अ ने द तं बृहत्.. (३)
हे कामना क वषा करने वाले अ न! ह व क वषा करने वाले हम कामना क
वषा करने वाले तुम को भलीभां त व लत करते ह. इस लए तुम भलीभां त द त बनो.
(३)
सू -१०३ दे वता—अ न
अ नमी ळ वावसे गाथा भः शीरशो चषम्.
अ नं राये पु मी ह ुतं नरो ऽ नं सुद तये छ दः.. (१)
हे मनु य! तू अ ा त के लए अ न क गाथा के ारा अ न क तु त कर. तू
ऐसे अ न क पूजा कर जो धन दान के लए स , द त और शोभायमान ह. (१)
अ न आ या न भह तारं वा वृणीमहे.
आ वामन ु यता ह व मती य ज ं ब हरासदे .. (२)
हे अ न! हम ोतागण तु ह य म बुलाते ह. तुम अपनी सभी श य के साथ इस
य म आओ. भली कार तुत कए गए, ह व प से यु ब ह तु हारे साथ सुसंगत बन.
(२)
अ छा ह वा सहसः सूनो अ रः च ु र य वरे.
ऊज नपातं घृतकेशमीमहे ऽ नं य षे ु पू म्.. (३)
हे अं गरा गो वाले अ न! तुम जल के पु के समान हो. य के ुच अथात् ुवा नाम
के पा तु हारे सामने ग त करते ह. हम य म सदा नवीन और श शाली अ न क तु त
सू -१०४ दे वता—इं
इमा उ वा पु वसो गरो वध तु या मम.
पावकवणाः शुचयो वप तो ऽ भ तोमैरनूषत.. (१)
हे इं ! तुम अप र मत ऐ य वाले हो. अ न के समान प व हमारी वा णयां तु हारी
वृ कर. हे तोताओ! तुम इं के लए शंसा मं का उ चारण करो. (१)
अयं सह मृ ष भः सह कृतः समु इव प थे.
स यः सो अ य म हमा गृणे शवो य ेषु व रा ये.. (२)
जल के ारा बढ़े ए सागर के समान ये अ न ऋ षय ारा द गई ह वय से हजार
गुना बढ़ते ह. म इन अ न क म हमा का यथाथ प म बखान कर रहा ं. इन अ न का बल
य म दे खने यो य होता है. (२)
आ नो व ासु ह इ ः सम सु भूषतु.
उप ा ण सवना न वृ हा परम या ऋचीषमः.. (३)
हे इं ! तुम ह व ा त करने यो य हो. तुम हम सभी य म सुशो भत करो. वृ रा स
को मारने वाले इं ऋचा के अनुसार अपना प कट करते ह. वे इं हमारे सू , ह वय
तथा मं को सुशो भत बनाएं. (३)
वं दाता थमो राधसाम य स स य ईशानकृत्.
तु व ु न य यु या वृणीमहे पु य शवसो महः.. (४)
हे धन को दे ने वाले अ न! तुम सब को भुता दान करते हो. तुम जल के पु हो.
हम द त अ न का वरण करते ह. (४)
सू -१०५ दे वता—इं
वम तृ त व भ व ा अ स पृधः.
अश तहा ज नता व तूर स वं तूय त यतः.. (१)
हे इं ! तुम अश के नाशक, क याणकारी तथा हसापूण यु म त पधा करने
वाले हो. तुम सब क अपे ा शी ता करने वाले हो. (१)
अनु ते शु मं तुरय तमीयतुः ोणी शशुं न मातरा.
व ा ते पृधः थय त म यवे वृ ं य द तूव स.. (२)
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हे इं ! तु हारे शी ता करने वाले व के पीछे पीछे आकाश और पृ वी उसी कार
जाते ह, जस कार पता और माता पु के पीछे पीछे चलते ह. जब तुम वृ रा स का नाश
कर रहे थे, उस समय उस क े ष पूण वृ यां तु हारे नाश क कामना कर रही थ . (२)
इत ऊती वो अजरं हेतारम हतम्.
आशुं जेतारं हेतारं रथीतममतूत तु यावृधम्.. (३)
जब तुम वृ का नाश कर रहे थे, उस समय यहां े रत होने वाली र क श यां तु ह
अ त हत म होने वाला, वृ ाव था से र हत, र थय म उ म, शी वजय ा त करने वाला,
अपराजेय एवं वृ करने वाला बना रही थ . (३)
यो राजा चषणीनां याता रथे भर गुः.
व ासां त ता पृतनानां ये ो यो वृ हा गृणे.. (४)
जो इं मनु य के राजा, सेना को परा जत करने वाले, वृ के हंता, ये एवं रथ
के ारा मं कता के सामने जाने वाले ह, म ऐसे इं क तु त करता ं. (४)
इ ं तं शु भ पु ह म वसे य य ता वधत र.
ह ताय व ः त धा य दशतो महो दवे न सूयः.. (५)
हे पु ह म ऋ ष! इं क स ा वग और अंत र म है. ड़ा के लए हाथ म लया
आ इं का व सूय के समान दशनीय है. तुम इस य म उ ह इं को सुशो भत करो. (५)
सू -१०६ दे वता—इं
तव य द यं बृहत् तव शु ममुत तुम्. व ं शशा त धषणा वरे यम्..
(१)
सू -१०८ दे वता—इं
वं न इ ा भरँ ओजो नृ णं शत तो वचषणे. आ वीरं पृतनाषहम्.. (१)
हे सैकड़ कम करने वाले इं ! तुम हम धन, बल तथा ऐसी संतान दो, जो हमारे श ु
को हरा सके. (१)
वं ह नः पता वसो वं माता शत तो बभू वथ. अधा ते सु नमीमहे..
(२)
हे इं ! तुम हमारे पता और माता हो. इसी कारण हम तुम से सुख क याचना करते ह.
(२)
वां शु मन् पु त वाजय तमुप ुवे शत तो. स नो रा व सुवीयम्.. (३)
हे इं ! तुम ह व पी अ क कामना करते हो. म तु हारी बारबार तु त करता ं. तुम
मुझे वीर से यु धन दान करो. (३)
सू -१०९ दे वता—इं
वादो र था वषूवतो म वः पब त गौयः.
या इ े ण सयावरीवृ णा मद त शोभसे व वीरनु वरा यम्.. (१)
तो पी वा णयां वषूवत नाम के य के वा द मधु का इस कार पान करती ह,
सू -११० दे वता—इं
इ ाय म ने सुतं प र ोभ तु नो गरः. अकमच तु कारवः.. (१)
सेवा के यो य इस य म हमारी वा णयां सोमरस से यु हो कर इं क तु त करती
ई उन क पूजा कर. (१)
य मन् व ा अ ध यो रण त स त संसदः. इ ं सुते हवामहे.. (२)
वभू तमयी सभी सभाएं ज ह ा त होती ह, उन इं को उस समय बुलाते ह, जब
सोमरस तैयार हो जाता है. (२)
क केषु चेतनं दे वासो य म त. त मद् वध तु नो गरः.. (३)
यह ान दे ने वाला य क क ने आरंभ कया. हमारी वा णयां इस य क वृ
कर. (३)
सू -१११ दे वता—इं
यत् सोम म व ण व य ा घ त आ ये.
य ा म सु म दसे स म भः.. (१)
हे इं ! त और आ य य म जो तुम ह षत होते हो, उस हष का कारण जल पूण
सोमरस ही है. (१)
सू -११२ दे वता—इं
यद क च वृ ह ुदगा अ भ सूय. सव त द ते वशे.. (१)
हे सूय क उपासना करने वाले इं ! तुम ने वृ असुर का नाश कया था. तुम जस
समय नं दत होते हो, वह समय तु हारे ही अधीन है. (१)
य ा वृ स पते न मरा इ त म यसे. उतो तत् स य मत् तव.. (२)
हे इं ! तुम जस क यह मृ यु चाहते हो, यह कामना स य हो जाती है. (२)
ये सोमासः पराव त ये अवाव त सु वरे. सवा तां इ ग छ स.. (३)
जो सोमरस समीप अथवा र कह भी सं का रत कया जाता है, उस के समीप इं
वयं प ंच जाते ह. (३)
सू -११३ दे वता—इं
उभयं शृणव च न इ ो अवा गदं वचः.
स ा या मघवा सोमपीतये धया श व आ गमत्.. (१)
इं दोन लोक म हतकारी काय करते ह. वे इं हमारा वचन वीकार करने के लए
सुन. इं दे व सोमपान करने आ रहे ह. (१)
तं ह वराजं वृषभं तमोजसे धषणे न त तुः.
उतोपमानां थमो न षीद स सोमकामं ह ते मनः.. (२)
वे इं कामना क वषा करने वाले तथा अपने तेज से तेज वी ह. वे आकाश और
पृ वी को लघु बनाते ह. हे इं ! तुम उपमान म सव े होने के साथ ही सोमरस क कामना
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करते हो. (२)
सू -११४ दे वता—इं
अ ातृ ो अना वमना प र जनुषा सनाद स. युधेदा प व म छसे..
(१)
हे इं ! तुम कट होते ही मलने क कामना करते हो तथा यु म वजय क इ छा
करते हो. तु हारा कोई भी श ु शेष नह है. (१)
नक रेव तं स याय व दसे पीय त ते सुरा ः.
यदा कृणो ष नदनुं समूह या दत् पतेव यसे.. (२)
हे इं ! सुरा अथात् म दरा पीने वाले तु ह ःखी करते ह. तुम जब गजन करने लगते
हो, तब पता के समान कहे जाते हो. तुम धनी मनु य को म ता के लए ा त करते हो.
(२)
सू -११५ दे वता—इं
अह म पतु प र मेधामृत य ज भ. अहं सूय इवाज न.. (१)
म सूय के समान उ प आ ं. म ने अपने पता ा क बु ा त क है. (१)
अहं नेन म मना गरः शु भा म क ववत्. येने ः शु म मद् दधे.. (२)
म ाचीन तो के ारा अपनी वा णय को सुस जत करता आ इं को श शाली
बनाता ं. (२)
ये वा म न तु ु वुऋषयो ये च तु ु वुः. ममेद ् वध व सु ु तः.. (३)
हे इं ! जन ऋ षय ने तु हारी तु त नह क है, उन से उदासीन रहते ए तुम मेरी
तु त से ही वृ ा त करो. (३)
सू -११६ दे वता—इं
मा भूम न ा इवे वदरणा इव.
वना न न ज हता य वो रोषासो अम म ह.. (१)
हे इं ! हम तु हारा ऋण नह चुका सके ह, इस कारण तुम हम श ु के समान मत
मानना. तु हारे ारा या य व तु को हम भी दावानल के समान या य समझ. (१)
सू -११७ दे वता—इं
पबा सोम म म दतु वा यं ते सुषाव हय ा ः.
सोतुबा यां सुयतो नावा.. (१)
हे इं ! हम जस सोमरस को प थर के ारा सं का रत करते ह, वह तु ह तृ त करे.
इस का सं कार करने वाले के हाथ म प थर है. हे इं ! तुम इस सोमरस का पान करो. (१)
य ते मदो यु य ा र त येन वृ ा ण हय हं स.
स वा म भूवसो मम ु.. (२)
हे ह र नाम वाले घोड़ के वामी एवं समृ दान करने वाले इं दे व! जस सोमरस
से ा त ए उ साह के ारा आप असुर का वध करते ह, वह सोमरस आप को अ य धक
मादकता दान करे. (२)
बोधा सु मे मघवन् वाचमेमां यां ते व स ो अच त श तम्.
इमा सधमादे जुष व.. (३)
हे इं ! जस शंसा क व स पूजा करते ह, उस मं समूह वाली मेरी वाणी को यश
के साथ वीकार करो. (३)
सू -११८ दे वता—इं
श यू ३ षु शचीपत इ व ा भ त भः.
भगं न ह वा यशसं वसु वदमनु शूर चराम स.. (१)
हे इं ! म यह चाहता ं क म तु हारे सभी र ा साधन के ारा यश और सौभा य
ा त करने के हेतु तु हारा अनुयायी बनूं. (१)
पौरो अ य पु कृद् गवाम यु सो दे व हर ययः.
न क ह दानं प रम धषत् वे य ा म तदा भर.. (२)
हे इं ! तुम नगरवा सय के लए अ के समान हो तथा धन को अप र मत बनाते हो.
तुम गाय क वृ करने वाले तथा वण से पूण और मनचाहा दान दे ने वाले हो. म जन
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व तु को पाने के लए तु हारे आ य म आया ं, उन व तु को मुझे दान करो. (२)
इ मद् दे वतातय इ ं य य वरे.
इ ं समीके व ननो हवामह इ ं धन य सातये.. (३)
हम इं क सेवा करने वाले ह. सं ाम उप थत होने पर हम धन ा त के लए इं को
बुलाते ह. (३)
इ ो म ा रोदसी प थ छव इ ः सूयमरोचयत्.
इ े ह व ा भुवना न ये मरे इ े सुवानास इ दवः.. (४)
इं ने सूय को तेजोमय तथा आकाश और पृ वी को अपनी म हमा से व तृत कया है.
इन इं ने सब भुवन को अपने आ य म लया है. ये सोमरस इं के लए न प कए जाते
ह. (४)
सू -११९ दे वता—इं
अ ता व म म पू े ाय वोचत.
पूव ऋत य बृहतीरनूषत तोतुमधा असृ त.. (१)
हे ऋ वजो! म ने ाचीन तो के ारा इं क तु त क है. अब तुम भी य क
ाचीन ऋचा से इन क तु त करो. तोता क बु मं से संप हो गई है. (१)
तुर यवो मधुम तं घृत तं व ासो अकमानृचुः.
अ मे र यः प थे वृ यं शवोऽ मे सुवानास इ दवः.. (२)
इस यजमान का धन बढ़ता है और इस के लए बल ा त होता है. इं के लए सोमरस
स कया जाता है. शी ता करने वाले ा ण पूजा संबंधी मं से इं क शंसा करते ह.
(२)
सू -१२० दे वता—इं
यद ागपागुदङ् य वा यसे नृ भः.
समा पु नृषूतो अ यानवे ऽ स शध तुवशे.. (१)
हे इं ! तुम चार दशा म थत मनु य के ारा बुलाए जाते हो. तुम श ु का पूण
प से नाश कर दे ते हो. तुम इस यजमान के य म आओ. (१)
य ा मे शमे यावके कृप इ मादयसे सचा.
क वास वा भ तोमवाहस इ ा य छ या ग ह.. (२)
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हे इं ! क वगो वाले ऋ ष तु ह ह व दान करते ह. म, शम और कृप राजा म
एक साथ आनंद कट करते हो. तुम इस य म पधारो. (२)
सू -१२१ दे वता—इं
अ भ वा शूर नोनुमो ऽ धा इव धेनवः.
ईशानम य जगत्ः व मीशान म त थुषः.. (१)
हे वीर इं ! हम तु ह उस गौ के समान े रत करते ह, जस का ध हा नह गया है.
तुम संसार के वामी तथा वग के ा हो. (१)
न वावाँ अ यो द ो न पा थवो न जातो न ज न यते.
अ ाय तो मघव वा जनो ग त वा हवामहे.. (२)
हे इं ! कोई भी पा थव और द ाणी तु हारी समानता नह कर सकता. (२)
सू -१२२ दे वता—इं
रेवतीनः सधमाद इ े स तु तु ववाजाः. ुम तो या भमदे म.. (१)
य म इं का आगमन होने पर हम अ क व भ वभू तय से संप होते ए सुख
ा त कर. (१)
आ घ वावान् मना त तोतृ यो धृ ण वयानः. ऋणोर ं न च योः.. (२)
हे इं ! तु हारी दया ा त करने वाला पु ष तोता के अनु ह से चलने वाले रथ के
दोन प हय के अ अथात् धुरे के समान ढ़ हो जाता है. (२)
आ यद् वः शत तवा कामं ज रतॄणाम्. ऋणोर ं न शची भः.. (३)
हे इं ! तु हारा उपासक तुम से बल ा त करता आ चलने वाले रथ के समान ढ़
होता है. (३)
सू -१२३ दे वता—इं
तत् सूय य दे व वं त म ह वं म या कत वततं सं जभार.
यदे दयु ह रतः सध थादा ा ी वास तनुते सम मै.. (१)
वे सूय जब अपनी म हमा से र मय को अपने म समेट लेते ह, तब लोग फैले ए
अपने सब काय को भी समेट लेते ह. उस समय अंधकार को सब ओर से समेटती ई पृ वी
सू -१२४ दे वता—इं
कया न आ भुव ती सदावृधः सखा. कया श च या वृता.. (१)
सदा वृ करने वाले ये सखा कस र ा साधन से हमारी र ा करगे? उन क र ा मक
वृ कस कार पूरी होगी? (१)
क वा स यो मदानां मं ह ो म सद धसः. हा चदा जे वसु.. (२)
हे इं ! हष उ प करने वाली ह वय म सोम प अ का कौन सा अंश े है, जस
के ारा स होते ए तुम धन को अपने भ म वक ण कर दे ते हो. (२)
अभी षु णः सखीनाम वता ज रतॄणाम्. शतं भवा यू त भः.. (३)
हे इं ! तुम हम तु तकता के सखा के समान हो. तुम हमारे सामने सैकड़ बार
कट ए हो. (३)
इमा नु कं भुवना सीषधामे व े च दे वाः.
य ं च न त वं च जां चा द यै र ः सह ची लृपा त.. (४)
ऋ वज् तथा सभी दे वता के साथ इं हमारे उस य को पूण कर. (४)
आ द यै र ः सगणो म र माकं भू व वता तनूनाम्.
ह वाय दे वा असुरान् यदायन् दे वा दे व वम भर माणाः.. (५)
दे व व क र ा के लए जन दे व ने रा स को न कया, वे इं आ द य और म त
स हत हमारे शरीर क र ा कर. (५)
य चमकमनयंछची भरा दत् वधा म षरां पयप यन्.
अया वाजं दे व हतं सनेम मदे म शत हमाः सुवीराः.. (६)
वे दे व अपने बल से सूय को सब के सामने उदय करते ह. उ ह ने पृ वी को ह वय से
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यु कया है. दे वता के सेवक हम उ ह के ारा अ ा त कर तथा वीर से सुसंगत रहते
ए सौ वष क आयु ा त कर. (६)
सू -१२५ दे वता—इं
अपे ाचो मघव म ानपापाचो अ भभूते नुद व.
अपोद चो अप शूराधराच उरौ यथा तव शमन् मदे म.. (१)
हे धन के वामी इं ! तुम पूव, प म, उ र, द ण—चार दशा से हमारे श ु
को रोको. इस कार हम तु हारे ारा दए ए सुख से सुखी हो सकगे. (१)
कु वद यवम तो यवं चद् यथा दा यनुपूव वयूय.
इहेहैषां कृणु ह भोजना न ये ब हषो नमोवृ न ज मुः.. (२)
हे अ न! जस कार संप कृषक जौ के ब त से पौध को मला कर काटते ह, उसी
कार तुम ह व से यु कुश का सेवन करो. (२)
न ह थूयृतुथा यातम त नोत वो व वदे संगमेषु.
ग त इ ं स याय व ा अ ाय तो वृषणं वाजय तः.. (३)
यु म हम अ ा त नह आ. फसल पकने के समय भी हम आव यकता के
अनुसार अ ा त नह आ. इस कारण हम अपने म इं क कामना करते ए अ , गौ
तथा अ मांगते ह. (३)
युवं सुरामम ना नमुचावासुरे सचा.
व पपाना शुभ पती इ ं कम वावतम्.. (४)
हे अ नीकुमारो! नमु च रा स के साथ इं का यु होते समय तुम ने आनं दत करने
वाला सोमरस पी कर इं क र ा क थी. (४)
पु मव पतराव नोभे ावथुः का ैदसना भः.
यत् सुरामं पबः शची भः सर वती वा मघव भ णक्.. (५)
हे इं ! तुम ने शोभा धारण करने वाला सोमरस पया है. सर वती दे वी अपनी वभू तय
से तु ह स चे. (५)
इ ः सु ामा ववाँ अवो भः सुमृडीको भवतु व वेदाः.
बाधतां े षो अभयं नः कृणोतु सुवीय य पतयः याम.. (६)
र क एवं ऐ य वाले इं अपने र ा साधन से हम सुख दान कर. ये श शाली इं
सू -१२६ दे वता—इं
व ह सोतोरसृ त ने ं दे वममंसत.
य ामदद् वृषाक परयः पु ेषु म सखा व मा द उ रः.. (१)
वृषाक प दे व ने इं को दे वता के समान समझा. वे वृषाक प पु य के पालनकता तथा
मेरे म ह. हे इं ! इस कारण म उ म ं. (१)
परा ही धाव स वृषाकपेर त थः.
नो अह व द य य सोमपीतये व मा द उ रः.. (२)
हे इं ! तुम वृषाक प क अपे ा अ धक वेग वाले हो. तुम श ु को थत करने म
समथ हो. जहां सोमपान का साधन नह होता, वहां तुम नह जाते हो. इस कार इं सब से
बढ़ कर ह. (२)
कमयं वा वृषाक प कार ह रतो मृगः.
य मा इर यसी व १ य वा पु मद् वसु व मा द उ रः.. (३)
हे इं ! इन वृषाक प ने तु ह हरे रंग का मृग य बनाया है? तुम इ ह पु कारक अ
दान करते हो. इस कार इं सब से बढ़ कर ह. (३)
य ममं वं वृषाक प य म ा भर स.
ा व य ज भषद प कण वराहयु व मा द उ रः.. (४)
हे इं ! तुम जन वृषाक प का पालन करते हो, या वाराह पर आ मण करने वाला
कु ा उस के कान पर काट लेता है? इस कार इं सब से बढ़ कर ह. (४)
या त ा न मे क प ा षत्.
शरो व य रा वषं न सुगं कृते भुवं व मा द उ रः.. (५)
वृषाक प ने मेरे नेही जन को बल बनाया है तथा ा ने उ ह दोषी कया है. बुरे
सू -१२७
वशेष : यहां से अथववेद के बीसव कांड के दस सू को सायण आचाय ने कुंताप
सू कहा है. इन के ऋ ष, दे वता एवं छं द का सायण ने कोई संकेत नह कया है.
इदं जना उप ुत नराशसं त व यते.
ष सह ा नव त च कौरम आ शमेषु दद्महे.. (१)
हे नराशस तोताओ सुनो! हम साठ हजार न बे (६०.०९०) शम नाम क मु ा दान
करते ह. (१)
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उ ा य य वाहणो वधूम तो दश.
व मा रथ य न जहीडते दव ईषमाणा उप पृशः.. (२)
जस वधू वाले रथ को बारह ऊंट ख चने वाले ह, वह आकाश का पश करता आ
चलता है. (२)
एष इषाय मामहे शतं न कान् दश जः.
ी ण शता यवतां सह ा दश गोनाम्.. (३)
अ ा त के न म म न क नाम क सौ वण मु ाएं, तीन सौ घोड़े, दस हजार गाएं
और दस मालाएं दे ता ं. (३)
व य व रेभ व य व वृ े न प वे शकुनः.
न े ज ा चचरी त ुरो न भु रजो रव.. (४)
हे तु तकताओ! पके ए फल वाले वृ पर बैठा आ प ी जस कार का मधुर
श द करता है, तुम भी उसी कार का श द करो. जस कार हाथ म पकड़ा आ छु रा नह
कता, उसी कार तु हारी जीभ भी न के अथात् तुम उ चारण करते रहो. (४)
रेभासो मनीषा वृषा गाव इवेरते.
अमोतपु का एषाममोत गा इवासते.. (५)
यह मनीषी तोता यहां श शाली वृषभ अथात् बैल के समान वतमान है. इन के घर
म पु , गाएं आ द ह. (५)
रेभ ध भर व गो वदं वसु वदम्.
दे व ेमां वाचं ीणीहीषुनावीर तारम्.. (६)
हे तोता! बाण जस कार मनु य क र ा करता है, उसी कार वाणी तेरी र ा करे.
तू गौ तथा धन ा त कराने वाली बु को ा त करे. (६)
रा ो व जनीन य यो दे वो ऽ म या अ त.
वै ानर य सु ु तमा सुनोता प र तः.. (७)
य द दे वता जा के मनु य का अ त मण करे तो वै ानर क मंगलमयी तु त करनी
चा हए. (७)
प र छ ः ेममकरोत् तम आसनमाचरन्.
कुलायन् कृ वन् कौर ः प तवद त जायया.. (८)
मंगल करने वाला दे वता आसन का व तार करता है. कौर प त इस कार क श ा
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दे ता आ अपनी प नी से कहता है. (८)
कतरत् त आ हरा ण द ध म थां प र त ु म्.
जायाः प त व पृ छ त रा े रा ः प र तः.. (९)
राजा परी त के रा य म प नी अपने प त से पूछती है क म तेरे लए थाली म परोसा
आ कतना दही लाऊं. (९)
अभीव वः जहीते यवः प वः पथो बलम्.
जनः स भ मेध त रा े रा ः प र तः.. (१०)
राजा परी त के रा य म मनु य इस कार सुखी ह क उ ह अपने उदर पी बल को
भरने के लए जौ ा त हो जाता है. (१०)
इ ः का मबूबुध व चरा जनम्.
ममे य चकृ ध सव इत् ते पृणाद रः.. (११)
तु त करने वाल से इं ने कहा—उठ कर खड़ा हो जा और मनु य म घूम. तू मेरी
कृपा से कम करने वाला बने. तेरा श ु तेरे पास अपना सव व छोड़ दे . (११)
इह गावः जाय व महा ा इह पू षाः.
इहो सह द णो ऽ प पूषा न षीद त.. (१२)
यहां मनु य और घोड़े उ प ह तथा गाएं सव कर. हजार सं या वाली द णा के
दाता पूषन यहां वराजमान ह . (१२)
नेमा इ गावो रषन् मो आसां गोप री रषत्.
मासाम म युजन इ मा तेन ईशत.. (१३)
हे इं ! ये गाएं न न ह . इन का पालन करने वाला भी ह सत न हो. इन पर श ु और
चोर का कोई भाव न पड़े. (१३)
उप नो न रम स सू े न वचसा वयं भ े ण वचसा वयम्.
वनाद ध वनो गरो न र येम कदा चन.. (१४)
हे इं ! हम तु ह सू के ारा स करते ह. तुम हमारी वा णयां अंत र म सुनो.
हमारा कभी नाश न हो. (१४)
सू -१२८
यः सभेयो वद यः सु वा य वाथ पू षः.
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सूय चामू रशादस तद् दे वाः ागक पयन्.. (१)
अ भषव अथात् सोमरस नचोड़ने का काम करने वाला, य कता एवं स य पु ष
सूयलोक को भेद कर उस से ऊपर वाले लोक म जाता है. इस क क पना दे वता ने पहले
कर ली थी. (१)
यो जा या अ थय तद् यत् सखायं धूष त.
ये ो यद चेता तदा रधरा ग त.. (२)
जा य ने जसे व तृत कया, वह म को सुशो भत करता है. जो ये चेता है, उसे
लोग अधराक् कहते ह. (२)
यद् भ य पु ष य पु ो भव त दाधृ षः.
तद् व ो अ वी तद् ग धवः का यं वचः.. (३)
जस ा ण का पु धारण करने वाला होता है. वह ा ण अभी वचन करने म
समथ है. ऐसा गंधव कहते ह. (३)
य प ण रघु ज ो य दे वां अदाशु रः.
धीराणां श तामहं तदपा ग त शु ुम.. (४)
जो व णक् दे वता को ह व दान नह करता, वह शा त वीर का सेवक बनता है.
ऐसा सुना जाता है. (४)
ये च दे वा अयज ताथो ये च पराद दः.
सूय दव मव ग वाय मघवा नो व र शते.. (५)
जो तोता एवं परा गौ का दान करने वाले ह, वे सूय के समान वग म जाते ह. (५)
योना ा ो अन य ो अम ण वो अ हर यवः.
अ ा णः पु तोता क पेषु सं मता.. (६)
जो भ नह है, जो आ अद नह है, जो म णवान नह , जो हरपाप नह है तथा
जो ा ण नह है; वह पु तोता क प म मा य है. (६)
य आ ा ः सु य ः सुम णः सु हर यवः.
सु णः पु तोता क पेषु सं मता.. (७)
जो आ अ ह, जो सुभ ह, जो सुंदर म ण वाले ह; ऐसे पु तोता ह, यह
क प अथात् कला ंथ म माना गया है. (७)
सू -१२९ दे वता—
एता अ ा आ लव ते.. (१)
यह घोड़ी अ छ तरह उछलती है. (१)
तीपं ा त सु वनम्.. (२)
ुवा तीप को संप करता है. (२)
तासामेका ह र नका.. (३)
उन म एक ह र नका है. (३)
ह र नके क म छ स.. (४)
हे ह र नका! तेरी या इ छा है? (४)
साधुं पु ं हर ययम्.. (५)
हे पु ! साधु को वण दो. (५)
वाहतं परा यः.. (६)
अवाहत अथात् घायल आ परा य कहां है? (६)
य ामू त ः शशपाः.. (७)
सू -१३०
को अय ब लमा इषू न.. (१)
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ब त से बाण पर अ धकार करने वाला कौन है? (१)
को अ स ाः पयः.. (२)
सगउप आ. (१३)
मा वा भ सखा नो वदन्.. (१४)
मेरा म मुझे और तुझे मले. (१४)
वशायाः पु मा य त.. (१५)
सू -१३१
आ मनो न त भ ते.. (१)
यह परम त व कहा जाता है. (१)
त य अनु नभ नम्.. (२)
उस के बाद वभाजन है. (२)
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व णो या त व व भः.. (३)
व ण रा के साथ जाते ह. (३)
शतं वा भारती शवः.. (४)
वाणी के सौ बल ह. (४)
शतमा ा हर ययाः.
शतं र या हर ययाः. शतं कुथा हर ययाः. शतं न का हर ययाः.. (५)
सुनहरे रंग के सौ घोड़े, सोने के बने सौ रथ, सोने के बने सौ गछे और सोने के सौ न क
अथात् स के या आभूषण ह. (५)
अहल कुश व क.. (६)
उ म कुश वतमान है. (६)
शफेन इव ओहते.. (७)
वह शफ अथात् खुर से वहन करता है. (७)
आय वनेनती जनी.. (८)
आप झुकने वाली माता क तरह आएं. (८)
व न ा नाव गृ त.. (९)
जल म थत नाव हण क जाती है. (९)
इदं म ं म र त.. (१०)
यह मुझे स करता है. (१०)
ते वृ ाः सह त त.. (११)
वे वृ के साथ बैठते ह. (११)
पाक ब लः.. (१२)
ब ल पक गई है. (१२)
शक ब लः.. (१३)
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ब ल सश है. (१३)
अ थ ख दरो धवः.. (१४)
सू -१३२ दे वता—
आदलाबुकमेककम्.. (१)
एक अलाबुक अथात् रामतोरई है. (१)
अलाबुकं नखातकम्.. (२)
रामतोरई खोद गई है. (२)
कक रको नखातकः.. (३)
ककड़ी को खोदा गया. (३)
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तद् वात उ मथाय त.. (४)
वह वायु को उखाड़ता है. (४)
कुलायं कृणवा द त.. (५)
घ सला बनाता है. (५)
उ ं व नषदाततम्.. (६)
व तृत उ क सेवा करता है. (६)
न व नषदनाततम्.. (७)
जस का व तार नह है, उस क सेवा नह करता. (७)
क एषां ककरी लखत्.. (८)
इन म से कौन ककरी को लखता है. (८)
क एषां भ हनत्.. (९)
इन म ं भ रा स को कस ने मारा. (९)
यद यं हनत् कथं हनत्.. (१०)
य द यह वध करती है तो कस कार करती है. (१०)
दे वी हनत् कुहनत्.. (११)
सू -१३३
वततौ करणौ ौ तावा पन पू षः.
न वै कुमा र तत् तथा यथा कुमा र म यसे.. (१)
हे कुमारी! तू उसे जैसा समझती है, वह वैसा नह है. दो करण फैली ई ह. पु ष उ ह
पीसने वाला है. (१)
मातु े करणौ ौ नवृ ः पु षानृते.
न वै कुमा र तत् तथा यथा कुमा र म यसे.. (२)
हे पु ष! तू जस अस य से मु आ है, वह तेरी माता क दो करण ह. हे कुमारी!
उसे तू जैसा समझती है, वह उस तरह का नह है. (२)
नगृ कणकौ ौ नराय छ स म यमे.
न वै कुमा र तत् तथा यथा कुमा र म यसे.. (३)
हे म यमा! तू दोन कान को पकड़ कर उसे नयु करती है. तू उसे जैसा समझती है,
वह उस कार का नह है. (३)
उ ानायै शयानायै त ती वाव गूह स.
न वै कुमा र तत् तथा यथा कुमा र म यसे.. (४)
हे कुमारी! तू सोने जाती है. तू उसे जैसा समझती है, वह वैसा नह है. (४)
णायाँ णकायां णमेवाव गूह स.
न वै कुमा र तत् तथा यथा कुमा र म यसे.. (५)
हे कुमारी! तु आ लगन म अपना शरीर छपाती है. तू उसे जैसा समझती है वह उस
तरह का नह है. (५)
अव ण मव ंशद तल मम त दे .
न वै कुमा र तत् तथा यथा कुमा र म यसे.. (६)
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आ लगन के समय टू टे ए दांत और रोम सरोवर म है. (६)
सू -१३४
इहे थ ागपागुदगधराग् अरालागुदभ सथ.. (१)
यहां चार दशा से घरे ए को भयभीत करो. (१)
इहे थ ागपागुदगधराग् व साः पु ष त आसते.. (२)
यहां चार दशा से घरे थान म बालक युवक बनने क इ छा से बैठे ह. (२)
इहे थ ागपागुदगधराग् थालीपाको व लीयते.. (३)
यहां चार दशा से घरे ए थान म थालीपाक अथात् बटलोई म पकाया आ
पदाथ समा त हो जाता है. (३)
इहे थ ागपागुदगधराग् स वै पृथु लीयते.. (४)
यहां चार दशा से घरे थान म वह समा त हो जाता है. (४)
इहे थ ागपागुदगधराग् आ े लाह ण लीशाथी.. (५)
यहां चार दशा से घरे थान म युवती जीवन धारण करती है. (५)
इहे थ ागपागुदगधराग् अ लली पु छलीयते (६)
चार दशा से घरे इस थान म ावहा रक बु पूछ जाती है. (६)
सू -१३५
भु ग य भगतः श ल यप ा तः फ ल य भ तः.
भमाहनना यां ज रतरो ऽ थामो दै व.. (१)
खाने वाला चला गया, ग तशील जीव भाग गया है तथा उसका शरीर रखा है. हे तु त
करने वालो! तुम इस के बाद ं भ जन दो डंड से बजाई जाती है, उस से खेलो. (१)
कोश बले रज न थेधानमुपान ह पादम्.
उ मां ज नमां ज यानु मां जनीन् व म यात्.. (२)
पैर के जूते म, धान क कु टया म तथा उ म धरती से उ प पदाथ को माग म रखो.
सू -१३६
यद या अं भे ाः कृधु थूलमुपातसत्.
मु का वद या एजतो गोशफे शकुला वव.. (१)
पाप का वनाश करने वाली ओष ध को ोध हो गया है. इस के सूखे ए शकुल गाय
के खुर के गड् ढे म भरे पानी म कांपते ह. (१)
यथा थूलेन पससाणौ मु का उपावधीत्.
व व चा व या वधतः सकता वेव गदभौ.. (२)
जब थूल पसस् के ारा मनु य म अणु का हार कया गया, तब धूल म लोटने वाले
गध के समान आ छादनी अथात् छ पर म मु क बढ़ते ह. (२)
सू -१३८ दे वता—इं
महाँ इ ो य ओजसा पज यो वृ माँ इव. तोमैव स य वावृधे.. (१)
इं महान ह. वे वषा के जल से पूण मेघ के समान व स के तोम अथात् मं समूह
ारा वृ ा त करते ह. (१)
जामृत य प तः यद् भर त व यः. व ा ऋत य वाहसा.. (२)
हे अ नीकुमारो! तुम उस जा का पालन करो जो स य को धारण करती है. अ नयां
उस जा को पु करती ह तथा ा ण य का वहन करने वाले अ न दे व के ारा उस जा
क र ा करते ह. (२)
क वा इ ं यद त तोमैय य साधनम्. जा म ुवत आयुधम्.. (३)
क व ने अपने तोम अथात् मं के समूह के ारा इं के य को पूण कया. जा म
उसी को आयुध कहती है. (३)
सू -१४१ दे वता—इं
यातं छ द पा उत नः पर पा भूतं जग पा उत न तनूपा.
व त तोकाय तनयाय यातम्.. (१)
हे अ नीकुमारो! तुम हमारे र क के प म आओ. तुम हमारे घर क र ा करते ए
हम मलो. तुम हमारे पु , पौ आ द के प म हम ा त होओ तथा संसार क र ा करने
वाले हो कर हम से मलो. (१)
य द े ण सरथं याथो अ ना यद् वा वायुना भवथः समोकसा.
यदा द ये भऋभु भः सजोषसा यद् वा व णो व मणेषु त थः.. (२)
हे अ नीकुमारो! तुम इं के रथ म उन के साथ बैठ कर चलते हो. तुम वायु के साथ
चलने वाले, आ द य और ऋभु , नेही तथा व णु के व मण अथात् डग से भी यु
हो. (२)
यद ा नावहं वेय वाजसातये.
यत् पृ सु तुवणे सह त े म नोरवः.. (३)
हे अ नीकुमारो! तुम यजमान को शी ता से ा त होते ही यु म अपनी उ म र ण
श से श ु का वध करते हो. म तु ह अ ा त करने के लए बुलाता ं. (३)
आ नूनं या म नेमा ह ा न वां हता.
इमे सोमासो अ ध तुवशे यदा वमे क वेषु वामथ.. (४)
हे अ नीकुमारो! यह ह तु हारे लए हतकारी है. यह सोमरस तुवश, य तथा क व
ऋ ष का है. तुम यहां अव य आगमन करो. (४)