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• शूद्रो ब्राह्मणतामेतत

( *शूद्र कभी भी इसी जन्म में ब्राह्मण नह ीं होता*)

श्रीराम!

शूद्रो ब्राम्हणतामेतत ब्राह्मणश्चेतत शूद्रताम ्।।

क्षत्रियाज्जातमेवं तु ववद्यात ् वैश्यात्तथैव_च। (मनु स्म ृ १०:६५)।

इस श्लोकको लेकर अनेक लोग यह ससद्ध करते रहतेहैं कक शूद्र

ब्राह्मण हो जाताहै ,ब्राम्हण शूद्र हो जाताहै ।इन लोगोंने कभी ग्रन्थ भी

दे खाहै या पद पदान्तका कुछ पता भी है ,यह कहना मुश्श्कलहै । केवल

कह ीं से सुनकर बड़े जोर शोरसे इस श्लोकको उठाते रहते हैं। अस्तु कुछ

ववचार ककया जाता है -


मनु स्म.ृ में -इस अध्यायके ५७श्लोक-- #वणाापेतमववज्ञातीं" इत्याददसे

वणाशङ्करका प्रकरण आरम्भ होताहै । इसी सन्दभामें-- शूद्रायाीं

ब्राह्मणाज्जातः श्रेयसाचेत्प्रजायते।

अश्रेयान ् श्रेयसीीं जाततीं गच्छत्यासप्तमाद्युगात ्।।(मनु.१०: ६४)अथा:--

शूद्रामें ब्राह्मणसे उत्पन्न पारशवी ब्राह्मणसे पररणीत (वववादहत)हो

कर जो पुत्री उत्पन्न करतीहै वह भी यदद ब्राह्मणसे पररणीता हो कर

कन्याको ह जन्म दे तीहै ,इस प्रकार परीं परासे छठी कन्या श्जस पत्र
ु को

उत्पन करती है वह सप्तम पीढ़ श्रेयसी अथाात ब्राह्मण जाततको प्राप्त

कर लेताहै ।इससे पव
ू ा उत्पन्न सींतान नह ीं।

अब शूद्रो ब्राम्हणतामेतत इसका अथा करते हैं --शूद्र:

पारशव:।प्रकरणके अनुसार शूद्र का अथा यहााँ पारशव है ,अथाात ्

ब्रम्हाणीमें शूद्रसे उत्पन्न।।


ब्राम्हणका अथा भी यहााँ ब्राह्मणसे शूद्रामें उत्पन्न #पारशव ह है । वह

शूद्रामें ब्राह्मणसे उत्पन्न पारशव केवल शूद्रसे वववाह करके उसमें पुत्र

उत्पन्न करे ,वह पत्र


ु भी शूद्रासे ह वववाह करके पत्र
ु उत्पन्न करे ,इस

प्रकार #सप्तम जन्मा सींतान केवल शूद्रामें ह बीज वपन होनेसे वह

ब्राह्मण शूद्र हो जाताहै ।

इसी प्रकार #ब्राह्मणीमें शूद्र से उत्पन्न #पारशव का यदद ब्राह्मणीसे

वववाह ,उससे उत्पन्न पत्र


ु का पन
ु ः ब्राह्मणीसे ,इस क्रमसे #सप्तम

पीढ़ का #शूद्र #ब्राह्मण ह हो जाताहै ।इसी प्रकार वैश्य ,क्षत्रत्रय को भी

समझना चादहए।
इस प्रकार पूवाापर प्रकरणमें कह ीं यह नह ीं कहा गयाहै कक कमा करके

इसी जन्म में शूद्र ब्राम्हण तथा ब्राम्हण शूद्र हो जाताहै ; ऐसा अथा करना

दरु ाग्रह मात्रहै । जातत पररवतान सींभव होताहै ,यह १०:४२में स्पष्ट कहाहै -

तपो बीजप्रभावैस्तु ते गच्छन्तत युगे युगे।

अथाात ् तप,के प्रभावसे बीजके प्रभावसे युगों युगोंमें जाततमें उत्कर्ाता

प्राप्तहोतीहै । एकह जन्म या थोड़ेसे सत्यादद के बल पर जातत

पररवतान नह ीं हो जाता।अतत उग्र तपसे वीया शोधन हो जाताहै दोर्

नष्ट हो जातेहैं,अतः ववश्वासमत्र जैसे उत्कर्ा सींभवहै ।बीज प्रभावसे भी

ृ के सामान जातत बदल जाती है ककींतु यह सद्यः नह ीं हो


ऋष्य श्रींग

जाता।
व्यथा ह आज कल तथा कथथत साम्य वाद लोग गाल बजातेहै।तीन

ददन में शूद्र को ब्राह्मण ,ब्राह्मण को शूद्र बनानेमें लगे हैं।इससे अच्छा

तो यह होगा कक अपने अपने वणााश्रमके अनुसार ववदहत कमोंको करते

हुए कल्याण करने की प्रेरणादें ,जैसा कक स्वकमाणा तमभ्यच्या ससद्थधीं

ववन्दतत मानवः "गीता जीमें कहाहै । केवल जातत बदलनेसे कुछ नह ीं

होगा।कोई जाती घणृ णत या ह न नह ीं।जीवन का लक्ष्यय जातत नह ीं

परम कल्याहै ।श्रीराम।।

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