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नवकार के - रंग
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“रं
नवकार के ग”
“रं
नवकार के ग”
*********
“जीवन” के
सभी “रं
ग” दे क “इ छा” करने
खने वाले
“नवकार” के
“रं
ग” दे क “इ छा” नह करते
खने .
(नवकार का “कलड” फोटो ज र दे )
खा है
अब आगे
पढ़:
*******
“अ रहं
त” का रं “सफ़े
ग है द”
और
“साधू
” का रं “काला.”
ग है
काफ “ वचारणीय” है
ये .
( चतन खु
द को ही करना होगा,
“ज म” नह दे
बहस को यहाँ ना चाहता).
रं
ग के
बारे
म जब भी बात होती है
:
तो यही कहा जाता है
लाल, पीला और हरा !
सफ़े
द और काले
क बात नह होती.
कारण?
****
“काले
पन” म तो हमसेयादा “अनु
भवी” सरा नह है
और “सफ़े
द” होने
का हम सोचते
नह ह.
(“सफ़े )!
द” हो कर करना या है
हम मा “सु
नकर” “ ा यान” का “मजा” ले .
ना है
क “वै
करने यारी “मन” म ही नह है
सी” तै !
तो अब “ रज ट” कै
से ?
आये
“नवकार” केग तो “बरस” रहे
रं ह
द ही “इतने
पर हम खु ” काले
ह क
“ सरा” रं
ग हम पर “चढ़ता” ही नह है
.
तब या कर?
********
जाप कर :
अहम~ नम: ||
:
***
हमारी “ व मानता” कस “अ र” म है
,
“ चतन” का वषय है
ये .
“उ कृ यान” का “ वषय” है
.
“ जसे
” इस बात का ान है
,
उसे
और ान ले
ने .
क ज रत नह है
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जनक “ ह दशा” बगड़ी है
, उनकेलए जै
न मंये
है
“आ या म” या “धम?”
“रं
नवकार के ग”
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