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अ स

इस लेख म अनेक सम याएँ ह। कृपया इसे सुधारने म मदद कर या


वाता पृ पर इन सम या पर चचा कर। Learn more

अ म स का सं कृत मे ोक इस कार है।

अ णमा म हमा चैव ल घमा ग रमा तथा |

ा तः ाका यमी श वं व श वं चा स यः ||

अथ - अ णमा , म हमा, ल घमा, ग रमा तथा ा त


ाका य इ श व और व श व ये स यां "अ स "
कहलाती ह.|
'स ' श द का ता पय सामा यतः ऐसी पारलौ कक
और आ मक श य से है जो तप और साधना के
ारा ा त होती ह | ह धम शा म अनेक कार
क स यां व णत ह जन मे आठ स यां अ धक
स है ज ह 'अ स ' कहा जाता है और जन का
वणन उपयु ोक म कया गया है | इनका ववरण
इस कार है :- 1. अ णमा - अपने शरीर को एक अणु
के समान छोटा कर लेने क मता |. 2. म हमा - शरीर
का आकार अ य त बडा करने क मता | 3. ग रमा -
शरीर को अ य त भारी बना दे ने क मता | 4. ल घमा
- शरीर को भार र हत करने क मता | 5. ा त -
बना रोक टोक के कसी भी थान को जाने क मता |
6. ाका य - अपनी येक इ छा को पूण करने क
मता| 7. इ व- येक व तु और ाणी पर पूण
अ धकार क मता| 8, व श व - येक ाणी को वश
म करने क मता | स यां वे स याँ ह, ज ह
ा त कर कसी भी प और दे ह म वास करने म
स म हो सकता है। वह सू मता क सीमा पार कर
सू म से सू म तथा जतना चाहे वशालकाय हो सकता
है।

१. अ णमा : अ स य म सबसे पहली स


अ णमा ह, जसका अथ! अपने दे ह को एक अणु के
समान सू म करने क श से ह। जस कार हम अपने
न न आंख एक अणु को नह दे ख सकते, उसी तरह
अ णमा स ा त करने के प ात सरा कोई
स ा त करने वाले को नह दे ख सकता ह। साधक
जब चाहे एक अणु के बराबर का सू म दे ह धारण करने
म स म होता ह।

२. म हमा : अ णमा के ठ क वपरीत कार क स ह


म हमा, साधक जब चाहे अपने शरीर को असी मत
वशालता करने म स म होता ह, वह अपने शरीर को
कसी भी सीमा तक फैला सकता ह।

३. ग रमा : इस स को ा त करने के प ात साधक


अपने शरीर के भार को असी मत तरीके से बढ़ा सकता
ह। साधक का आकार तो सी मत ही रहता ह, पर तु
उसके शरीर का भार इतना बढ़ जाता ह क उसे कोई
श हला नह सकती ह।

४. ल घमा : साधक का शरीर इतना ह का हो सकता है


क वह पवन से भी तेज ग त से उड़ सकता ह। उसके
शरीर का भार ना के बराबर हो जाता ह।

५. ा त : साधक बना कसी रोक-टोक के कसी भी


थान पर, कह भी जा सकता ह। अपनी इ छानुसार
अ य मनु य के सनमुख अ य होकर, साधक जहाँ
जाना चाह वही जा सकता ह तथा उसे कोई दे ख नह
सकता ह।

६. का य : साधक कसी के मन क बात को ब त


सरलता से समझ सकता ह, फर सामने वाला
अपने मन क बात क अ भ कर या नह ।

७. ईश व : यह भगवान क उपा ध ह, यह स ात


करने से प ात साधक वयं ई र व प हो जाता ह,
वह नया पर अपना आ धप य था पत कर सकता ह।

८. व श व : व श व ा त करने के प ात साधक कसी


भी को अपना दास बनाकर रख सकता ह। वह
जसे चाह अपने वश म कर सकता ह या कसी क भी
पराजय का कारण बन सकता ह।
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title=अ _ स &oldid=4204421" से लया गया

Last edited 1 month ago by an anon…

साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख


ना कया गया हो।

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