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Kulraaj
Kulraaj
पाठयम सिमित
0 नद 1 1, 2, 3, 4, 5, 6
, यो
उ(राख)ड म,ु त िव-विवालय , ह
ानी
0 िवनय कुमार पा डे 2 1, 2, 3, 4, 5
ोफे सर , यो
काशी िहदू िवविव
ालय,
0 नद 3 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7
, यो
उराखड मु त िवविव
ालय , हा
0 नद 4 1, 2, 3, 4, 5
, यो
उराखड मु त िवविव
ालय , हा
@ उतराखड म ु िविव
ालय
काशन वष : 2014 /^EEŽ͘ͲϵϳϴʹϵϯʹϴϰϲϯϮʹϴϭͲϲ
अनुम
थम ख ड – वषकु ड! िनमाण प,ृ - 1
वष BAJY- 301
इकाई क
2.1 तावना
2.2 उे
य
2.3 भावप(ट
बोध
न
2.4 चिलतच+
2.5
2.6 पारभािषक शदावली
2.7
न के उ र
2.8 स!दभ
"!थ सचू ी
2.9 िनब!धा&मक
न
सिध
सिध
सिध
सिध
रपु
सिध
सिध
मृयु
सिध
अथ भावकुडली चPम्
B( eय$
5
! ( A$
0 &0P
0V 5(
R
कम
कु डली म0 <हिनवेश िवचार पहले कु डली िलखकर उसम0 तन,ु B(, !,R , , Wरप,ु
$, मृBयु, धम, कम, आय एवं eयय ये dादश भाव6 के नाम िलखकर िवचारना िक कौन <ह िकस
खाने म0 होगा % -
यथा सयू ;;#:[#9=#9; , तो देिखये धम भाव कN सि'ध ;;#:;#8#[; इससे सयू अिधक है,
और कम भाव ;;#[\#\[#:: से 'य(ू !", इसिलये कम भाव ही पड़ा । च'R& ]#9#7^#77 !"
$!Z $! JB , सतु सि'ध से 'यनू है इसिलये सतु सि'ध म0 पड़ा ।
JI &P :#[[#:7#97 !", यह भावच: देखने से कमसि'ध से आगे आय भाव के अ'द @,
इसिलये आय भाव म0 मगं ल ह9आ ।
B ::#[7#9^#;^ !", यह मृBयु के सि'ध से आगे और धम भाव के अ'दर पडा इसिलये धम भाव
म0 बधु ह9आ ।
एवं ग> ु ;;#;[#\^#] यह धम भाव से अिधक, तथा उसकN सि'ध से 'यनू है । इसिलये धम कN
सि'ध म0 पड़ा । श: ु ;:#[]#:^#:= !", $! A$ JB, आय भाव कN सि'ध से 'य(ू !"#
इसिलये आय कN सि'ध म0 श: ु पड़ा ।
5( ;;#:;#99#:7 !" , यह धम कN सि'ध से अिधक कम भाव से 'यनू है । इसिलये कमभाव म0
@ #
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राह9 ;8#;;#9#9; !", $! ! JB, उसकN सि'ध से 'यनू है इसिलये सहज सि'ध म0
R #
;;#;;#9#9; , यह धमभाव से अिधक , उसकN सि'ध से 'य(ू !", J: सि'ध म0 पड़ा ।
&I ! ]#9#7\#:[ !", यह सतु सि'ध म0 पड़ी ।
न
1. ज'मकु डली म0 बनने वाले कोOठक6 को या ! !" )
. कु ड R. . 5 E. नM
2. भाव6 कN संDया ( !" )
. 12 R. 14 . 16 E. 18
3. $ - ! !" )
. @P & R. षOठ . स8त& E. अOट&
4. लTन म0 छ: 5 -( @ !- !"-
. @P & R. स8त& . अOट& E. (&
5. से ताBपय है )
.( R. <ह6 का चलना ग. R( E. कोई नहP
6. चिलत कु ड - ! !" )
. चल कु ड R. भाव कु ड . नवमांश कु ड E. RेOकाण कु ड
7. चिलत कु डली के िनमाण का आधार है )
. R. dादश भाव ग. ि'धdादश भाव घ. कोई नहP
अथ भावथहफल-
खेटे सि!ध7या!त:*थे फलं तTावजं भवेत् ।
#िधके ि7सि!धUयां भावे पवू ापरे फलम् ।।
अथ- आर%भसि'ध और िवराम सि'ध के बीच म0 <ह को रहने से उस भाव का फल देता है । यिद
आर%भ सि'ध से <ह कम हो तो पवू भ ाग का फल, या िवराम सि'ध से अिधक <ह हो तो
अगलेभाव म0 रहने का फल देता है ।
उदाहरणाथ यहॉ ससि'ध भावच: म0 सयू ;;#:[#9=#9 है । यह आर%भ सि'ध धमभाव कN
सि'ध ;;#:;#:;#;; JB !", और िवराम सि'ध कमभाव कN सि'ध :#:;#:;#;; से 'य(ू
!" $ T ) ठीक कमभाव म0 रहने का जो फल है उसको द0गे । यहॉ शिन आय कN सि'ध से
'यनू है इसिलये आय भाव का फल द0ग,े ऐसे ही बधु मृBयु भाव के सि'ध से अिधक है,
इसिलये धमभाव के फल द0गे ।
लTन को चतथु भाव म0 घटाने से जो शेषांक हो, उनम0 छ: का भाग दे अथात् लTन व चतथु के अ'त
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का षOठांश <हण कर0 । वह षOठांश रायािद लTन म0 जोड़ दे तो लTन कN िवराम संिध और धन भाव
कN आरंभ संिध होती है । उस संिध म0 षOठांश यु त करने से धन भाव फुF !- !" # धन भाव म0
षOठा5ं जोड़ देने से धन भाव कN िवराम सिं ध और तृतीय भाव कN आरंभ सिं ध होती है । उस सिं ध
म0 षOठांश यु त ( @ O$ !- !", िफर तृतीय भाव म0 षOठांश यु त ( @ O$
कN िवराम संिध और चतथु भाव कN आरं भ संिध होती है ओर तृतीय भाव संिध म0 एक जो 1 -
वह चतथु भाव कN िवराम संिध होती है । तृतीय भाव म0 जोड़ देने से पंचम भाव फुF !- !" #
िdतीय भाव कN संिध म0 तीन जोड़नेसे पंचम भाव संिध होती है , धन भाव म0 चार यु त (
छठा भाग होता है । लTन कN सिं ध म0 पॉच यु त करने पर Wरपु भाव अथात् षOठ भाव कN सिं ध होती
है । संिध सिहत लTनािदक भाव6 म0 छ: - Y: रािश संयु त करने से स8तम आिदक सब भाव सि'ध
! !- !" #
2.4 चिलत च' परचय -
ससि'ध dादश भाव6 के पOट रायािद व <ह6 के पOट रायािद कN त ु (
( या भाव कु डली का िनमाण िकया जाता है । लTन कु डली या च'R कु डली से हम0 यह
पता चलता है िक इOट समय म0 <ह िकस रािश म0 िथत है, जबिक चिलत कु डली से शेष <ह कN
स%यक् भाव िथित का 7ान होता है । चिलत कहने का ताBपय यह है िक ) इसम0 <ह6 कN िथित
, $&( !- !", R !" , J: चिलत च: कहना साथक सं7ा है ।
भाव या !" % पवू के अ@याय म0 कहा जा चक
ु ा है िक िकसी भाव कN िपछली सि'ध के रायाश
ं 6 से
लेकर अगली सि'ध के रायांश6 के भीतर यिद <ह पOट पड़ता हो तो उत <ह उसी भाव म0
माना जाता है । जब <हपOट के रायािद सि'ध के राया1 !-, 5H$ J5 P
सा%य ह6, कलाओ ं म0 समानता हो या न हो, तभी <ह सि'ध म0 माना जाएगा । जब <हपOट
आर%भ सि'ध से कम हो तो िपछले भाव म0 तथा िवराम सि'ध से अिधक हो तो अगले भाव म0
R $ #
चिलत कु डली वातव म0 भाव कु ड !", J: उसम0 ज'म लTन/ 5 V J P R(
, 1- , तीन आिद भाव सचू क रोमन अंक या 0 िdत0O A1 V
आMर िलखना ठीक अिधक रहेगा । @या( R$, भाव चिलत के वल भाव िथत मा का
ही ोतक है, न िक रािश िथित का यिद कोई <ह चिलत म0 अगली या िपछली सि'धय6 के आर )
@ ला जाए तो उससे <ह कN रािश िथित नहP बदलती है । हमारे उदाहरण का (
चP िनVनां )
:[
ग>
ु , श:
ु
7 : सयू 0 B
राह9 ::
5( \ :;
9 = &0P ^
8 P ]
उदाहरणाथ माना िक यिद सयू पOट 4#270#50 !" # लTन कु डली म0 वह Tयारहव0 भाव म0 है । अब
भाव पOट च: म0 देखा िक एकादश भाव 3#280#58#40 से ार%भ !- 4#280#4#00 !" #
सयू पOट उत दोन6 सि'धय6 के म@य होने से एकादश भाव म0 ही सयू िदखाया गया है इसी कार
सब <ह6 को &W ( !$ #
*
म@य िकसी भी भाव का िशखर है । उस पर बैठा ह9आ <ह उस भाव का पणू फल देता है तथा
B ) उधर रहने से उस भावफल म0 आनपु ाितक कमी आ जाती है तथा इधर ) CB !( C
भावफल म0 आनपु ाितक कमी आ जाती है । कहा गया है िक सि'ध पर पहॅचु कर <ह सवथा
फलरिहत हो जाता है।अथात् सि'धगत <ह िकसी भी भाव का फल नहP देता है । इस बात को
याद रखने के िलये िन%निलिखत लो - (( !$ )
Bह: सि!ध7या!त: *थ: िदशे5Tावजं फलम् ।
भावांशतु.ये सVपूणR !यूनािध ये :
आरVभस!धे: Eीणांश: पूवभावे Bहो मत:
िवरामादिधकांश*तु थतेिBमभावजम् ।।
स!धे*तु.यां: &': सदा सि!धगतो भवेत् ।
तु.य:वं रािशलवयोिवचायR न कला:म
भावािधप:यं सव( भावम@या:
िवभेद:वे सदा ेयं रािशचPा0थाPमम् ।।
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भावचPे तु ातOया खगानां भावसंि*थित:
रािशि*थित*तु िवेया ज!मल3नमाणत:
भावानामािधप:यं सकलखगभावसिं *थितं चािप ।
ा:वा िवबुधैरेवं भावांगे फलं िविनद;य
<ह पOट च: िलखते समय यिद अवसर हो तो <ह6 के नM चरण भी िलख देना चािहये,
िक'तु <ह6 कN व:N माग] िथित तथा उदयात अवय R( !$ #
2.5
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( ( कु डली म0 बारह कोjक अथात् भाव
होते हc। इन कोjक6 को भाव, (, थान तो कहते ही हc, साथ ही इनसे िवचार करने वाले िवषय6
(& @ ( (&N 1$ !"# जैसे थम भाव को लTन, (, उदय या ज'म,
िdीय भाव को धन, कुटु%ब या कोश, - !, परा:म,चतथु - R , @P&
भाव को िवा या सतु भाव, षOठ भाव को Wरपु या ऋण भाव, स8त& - $, अOट&
को मृBयु , नवम भाव को भाTय , दशम भाव को कम भाव , एकादश भाव म0 आय भाव, dादश
भाव को eय$ आिद भी कहते हc।
थम भाव से लेकर dादश भाव पय'त dादश भाव होते है । के अिधपित <ह को भावेश कहते
हc। जब हम आयेश कह0गे तो Tयारहव0 थान पर जो रािश है # ससि'ध dादश भाव6 के पOट राया1
व <ह6 के पOट रायािद कN तलु ना करके ( या भाव कु डली का िनमाण िकया जाता है ।
A5 है िक पाठकगण इस इकाई के अ@ययन से भावपOट एवं चिलत च: को समझ गये ह6गे ।
2.6 पारभािषक शदा
सत Z
+ - &
भाव के वा&
- आय का वा&
षXािशयु त - Y: रािश यु त
( - <ह6 कN िथित चल
रा;यं 5 J5 P
ल3न - लTन &(
उ@व - C@
*
. J5P
उराख ड मु त िवविवालय 20
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&': - <ह
2.7 न के उत
1. R
2.
3.
4. R
5. R
6. R
7.
2.8 सदभ
थ
तािजकनीलकठी ) & V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
Aयोितष सव*व ) F ) >Z0 सरु े श च'R िमi
तािजक नीलकठी ) F ) आचाय िवव(I
2.9 िनबधामक न
1. भाव से आप या &W !" % पOट कNिजये ।
2. dादश भाव पOट कNिजये ।
3. साधन कNिजये ।
4. चिलत च: से या ताBपय है % उदाहरण सिहत पOट कNिजये ।
मु!था * (
1. म'ु था पर म'ु थेश कN uिU (तािजक uिU) !-( , :ूर <ह6 कN म'ु था से परपर के 'R िथित न होने
पर म'ु था वष म0 शभु होती है ।
2. शभु <ह6 व वामी <ह6 से uOट यु त 5 9,10,11 म0 म'ु था बह9त शभु फल देती है ।
1,2,3,5 म0 म@यम शभु अथात् पWरiम से लाभ एवं शेष 4,6 ,7,8,12 म0 बह9त अशभु होती है ।
सव :ूर व शभु <ह6 के योगािद से फल म0 तारत%य T( ! #
3. शभु <ह6 से इBथशाल करने पर म'ु था या अ'य कार से बली या शभु <ह6 से यतु uOट म'ु था,
5 - ? !" I J5 - & !" । इसके िवपरीत अशभु म'ु था
भाव के शभु फल को नOट करके अशभु फल कN वृि= करती है ।
4. ज'म लTन 4,6,7,8,12 रािशय6 म0 म'ु था रहने पर ाय: J5 ! 1 !" # J: ज'म
लTन व वषलTन दोन6 से अशभु होने पर िनच$ ! म'ु था अBय'त J5 1 !" #
ज!मे ) &P , मु!थे ) B , (ैराशीश ) &P , वष ल3ने ) च'R&, ) 5(,
वषपित ) N$ #
3.5
अ@ययन के पचा/ A@ ( ( <ह या !", उनकN सDं या ( !-
है तथा <ह6 के पOटीकरण िकस कार िकया जाता है । मदं फल, शीrफल या है । सयू ािद <ह6 के
पOटीकरण म0 मदं फल एवं शीrफल कN भिू मका या है । मंदफल कN आवय )
<ह6 म0 तथा शीrफल कN आवय ) <ह6 कN पOटीकरण म0 पड़ती है । <ह6 के
मलू भतु अ@य$( I ) साथ उनके पOटीकरण कN ि:या को उदाहरण सिहत आपने जाना ।
<हपOटीN I ) साथ इस इकाई म0 तािजकोत म'ु था पWरिचत ह9ये । म'ु था या !"
C B( िकस कार िकया जाता है आिद इBयािद का अ@ययन आपने इस इकाई म0 अ@य$(
कर िलया है । वतु: <हपOटीकरण योितष शा & V B &( !", C AB
पर जनमानस के िलये महु xािद िववेचन तथा उसके eयि`गत जीवन का शभु ाशभु फल बताया जाता
इकाई क
4.1 तावना
4.2 उे
य
4.3 ल.नप(ट
अया
न
4.4
4.5 पारभािषक शदावली
4.6 अया
न के उ र
4.7 स!दभ
"!थ सचू ी
4.8 सहायक पाठ्यसाम"ी
4.9 िनब!धा&मक
न
लTन साधन कN ि:या dारा ही दशम लTन का 7ान भी लहरी कN लTन साWरणी से दशम लTन
पृOठ $ !" #
8 EFP 40 &नट पर दशम लTन - 3.14.35
2 &(F 24 सेके ड का संका - + 0.0.36
3#150#11
इसम0 लTन कN तरह ही 45 का अयनाश ं सं कार करने से अभीOट दशम लTन $ 3.140.26 ा8त
ह9आ ।
यह लTन फल शभु <ह6 कN युित ) योगािद पर अवलि%बत है अ'यथा यिद लTन भाव पर पाप<ह6
कN यिु त व uिU हो अथवा लTन िनबल हो तो यह फल कम माण पर िमलेगा । यह पाठक को @या(
R( !- #
सू`म ल3न # )
लTन िस= करने के िलये सयू के उदय समय का 7ान होना अBय'त Aवय !", यह पOट !"
िक'तु पवू से पिSम के शहर6 म0 िभ'न - िभ'न समय पर सयू bदय होना स%भव है । ऐसे िथित म0
&H - 278 @ कक ) 323 @ ) 278 @ & ) 323 @
OH ) 299 @ !P - 299 @ वृिSक ) 299 @ कु%भ ) 299 @
&I( ) 323 @ क'या ) 278 @ B( ) 323 @ &( ) 278 @
िजस थान पर सयू bदय िनिSत करना हो उस शहर के पलभा पर से चरख ड जानकर उपर िदये ह9ये
तीन रािश म0 से घटाओ और कक से क'या रािश के के पल6 म0 जोड़ो, 5!
सयू bदय का पलाBमक उदय का 7ान होगा व तल ु ा से धन रािश के पल6 म0 जोड़ने और मकर से मीन
रािश के पल6 म0 घटाने से dादश रािश का पलाBमक रिव उदय समय 7ात िकया जा सकता है ।
पलभा आनयन कN िविध पवू के अ@याय6 म0 कN जा चक ु N है । J: उसी आधार पर िजस शहर कN
@ A($( ( !-, करके उसी आधार पर उस शहर का अभीOट समय का 7ान िकया जा
सकता है । इसी आधार पर उस शहर म0 ज'मे िकसी जातक का अभीOट लTन A($( (
!$ #
लTन म0 रिव से शिन तक स8त <ह म0 जो <हिथित हो उसका फल िन%न J( ( !$ )
1. ल3न मa सूय का फल - म@य& q_ 5, लाल गौर वण, &, B, उBसा!,
िपकृ ित, & -( #
2. ल3न मa च!2 * ) >पवान, गोरा वण, स'ु द 5, &H, तेज ऑख0 ,
चंचल व, 1 ) @ 5, कफ वात िप कृ ित, ि{य6 को िय ।
वषdशिनणयाथ पच ं ािध#
ज!मल3नपितर&दल3नपो मु!थहािधप इतिeरािशप:
सूयरािशपितरिg च!2माधी;वरो िनिश िवमृ;य .(
बली य एषां तनुमीEमाण: स वषपो ल3नमनीEमाण:
नैवा&दपो h'ट: *या7ल*य साVये िवदुरेवमा0ा:
अथ ) ज'मकािलक लTन का वा&, वषकािलकलTनका वा&,मथु हा का वा&, िराशीश, 1(
म0 वषवेश होने से सयू िजस रािश म0 हो उसका वामी राि म0 वषवेश होने से च'R&
रािश म0 हो, उसका वा&, इन पॉच6 को िवचार कर उसम0 जो सवािधक बली हो और वष लTन -
1R !-, वही वषqश होता है । जो वष लTन को नहP देखता हो वह सवािधक बलवान होने पर
भी वषqश नहP होता है । यिद उन पचं ािधकाWरय6 म0 सभी या चार, ( JI 1- & 5
ह6 तो िजनकN uिU लTन @ 5H !-, वह वषqश होता है ।
hिiसाVये Oयव*था
hगािदसाVयेय िनबल:वे वषािधप: *या!मुथहे;वर*तु
पंचािप चे!नो तनुमीEमाणा वीयािधको&द*य िवभुिविच!:य:
भाषाथ ) यिद पॉच6 अिधकारी <ह6 के बल तथा लTन के उपर uिU समान हो या सब िनबल ह6 तो
मथु हा के वामी <ह ही वषqश होता है । अगर पंचािधकारी <ह6 म0 कोई भी लTन को नहP देखे तो उन
पॉच6 म0 जो सबसे अिधक बली हो वही वषqश जानना चािहए ।
अथ वषवेशिनणय: -
यहॉ ज'मलTन@ - B
वषलTन@ ) च'R
&I !5 ) ग> ु
$!Z ज'मलTने5 B , वषलTनेश च'R& , मथु हेश वृहप, िराशीश श: ु , सयू राशीश मगं ल हc,
इन <ह6 म0 सबसे अिधक बलवान श: ु ही है, वह लTन - 1R !", इसिलये श:ु ही वषqश ह9आ ।
पंचािधकाWरय6 म0 सबसे बलवान <ह यिद लTन को नहP देख,े तो उससे आस'न 'यनू बली जो लTन
को देखे वही वषqश होता है । वषqश होने म0 बल और uिU दोन6 कN आवय !" #
अ!य मत मa hिiबलह साVये वषdशिनणय
बलािदसाVये "िg िनशी!दुराशीिडित के िचदाहZ:
येने:थ "&द: शशी स वषािधप;च!2 "!यथा:वे
भाषाथ ) बल और uिU कN समता म0 िदन म0 वषवेश होने से सयू िजस रािश म0 ह6, उसके वा&
वषqश होते हc, राि म0 च'Rमा िजसके रािश म0 ह6 वह वषqश होता है । उत िनयम से यिद च'R&
वषqश हो और वह पंचािधकाWरय6 म0 िकसी से इBथ5 !-, तो वह इBथशाल करनेवाला <ह
ही वषqश होता है । यिद च'Rमा इBथ5 ( !-, तो च'Rमा िजस रािश म0 हो, C
रािश का वा& वषqश होता है । यहॉ इस िनयम से च'Rमा वषqश नहP िस= ह9आ, लेिकन रात म0
वषवेश हो , और च'Rमा अपने ही रािश म0 िथत हो तो उस हालत म0 च'Rराशीश वयं च'R& !
ह9आ, J: वही वषqश होगा ।
वषqश िनणय ) वषqश बनने के पॉच अिधकाWरय6 ) ज'मलTने5, वष लTने5 , म'ु थे5 &$5
ैराशीश म0 से िकसे वषqश माना जाय,इस का &W !" )
1. पॉच6 म0 से जो <ह सबसे अिधक पंचवग] बल से यु त हो और वष लTन - 1R !- -
वही वषqश होगा ।
2. यिद बलानसु ार सवािधक बली होने पर भी वह <ह लTन को न देखता हो तो वषqश नहP हो
#
यिद पंचािधकाWरय6 के बल और uिU भी समान हो, और पॉच6 दबु ल ही ह6 ऐसी िथित म0 मथु हेव
जो <ह है, उसी को वषqश समझना चािहये । अगर पॉच6 म0 एक भी <ह लTन को नहP देख,े तो जो <ह
सब से पच
ं ािधकाWरय6 म0 अिधक बलवान हो वही वषqश होता है ।
वष-श फल
अ&दािधपो Oययषड'टमिभ!नसं*थो ल&धो
"&द": सhशो बलेन् ।
:शेषमु5मफलं िवदधाित काये नैbAयराAयबललि&धरतीव सौjय
बलपूणd&दपे पूणR शुभं म@ये च म@य
+
:खशोकाcरभयािन िविवधा: (:
अथात् यिद वषqश 8#]#:[ इन थान6 से अ'य ह6 , C1 !-, वषवेश और ज'मकाल म0 भी
बलवान ह6 तो सभी फल उम होते हc । शरीर म0 आरोTय, , पिु U, रायाि| और अBय'त R
!- !" #
पणू ब ली सयू वषqश होने से, रायR
, पु , B( , 5
P J( & JB, पWरजन
R , पणू य श, !O R
, अनेक कार कN ितOठा, शनु ाश आिद फल होते हc । यहॉ ज'म
उराख ड मु त िवविवालय 45
वष BAJY- 301
<ह6 के बलाबल समझते ह9ये फल िवषय म0 िवचार करना चािहये । जैसे ) ज'म और वष समय म0
पणू बली हो तो परू ा शभु फल होगा । यिद दोन6 काल म0 एक म0 पणू ब ली, दसू रे म0 म@य -
अपेMाकृ त कम शभु फल होता है । य1, एक काल म0 पणू ब ली दसू रे काल म0 हीनबली हो, -
म@य&, यिद दोन6 समय म0 म@य& ! !-, तो म@य& ! !( !$ # $1
म0 म@यमबली दसू रे म0 Mीणबली हो तो 'यनू शभु फल कहना चािहये । यिद दोन6 काल म0 हीनबली ही
!-, तो अBय'त 'य(ू 5 , Bयु 5H J5 ! !( !$ # " ) शभु फल कN
माा घटेगी, वैसे अशभु फल कN माा बढ़ेगी यह समझना चािहये ।
म1य बली सयू का वष-श फल
*या!म@य फलिमदं िनिखलं तु म@यं
*व.पं सुखं *व"िप िवषादमाहZ:
*थान\युितन च सखु ं कृशता शरीरे
भीितनृपा!मुथिशलो न शुभेन चे:*या
अथात् पॉच - दश के बीच बल वाले म@यम बली सयू यिद वषqश ह6 तो यह जो पणू ब ली वषqश म0
सभी फल कह0 गये है वे साधारण फल है ऐसा समझना चािहये । और अ[प R, अपने पWरजन से
1 !-, और था( (5, सख ु नहP , शरीर म0 दबु लता, $ !-, यिद शभु <ह से वषqश
का इBथशाल नहP होता हो तो ऐसा समझना चािहये अथात् म@यबली होता ह9आ भी यिद शभु <ह से
इBथ5 !-, - 5 ! !( !$ #
हीनबली सूय का वष-श फल
सयू d बलेन रिहते&दपतौ िवदेशयानं धनEयशुचोcरभयं च त!2ा:
लोकापवादभयमुBbजो
:खं िप(ािदतोिप न सख ु ं सतु िम(भीित:
अथात् बलहीन पॉच से 'यनू बल यु त सयू यिद वषqश हो, - @15 &(, B((5,5-, - ,
शभु य, आलय , -@1, T( - , अBय'त ले5, िपता आिद ेमी पWरजन6 से भी सख ु
नहP, Bयतु पु दोत > !- !" # s &W( !$ #
च5 वष-श फल
च!2े &द मुथिशलं येनासाव&द "*य (
कVबूलिम!दुना ज!म िनिश वषd तदो5मम् ।।
अथात् च'Rमा वषqश होकर िजस िकसी <ह से इBथ5 , वही वषqश होता है यह कह आये हc,
अब वह वषqश यिद च'Rमा से कबल ू योग करता है और रात का ज'म हो तो वह वष उम होता है ।
पूणबली च5
वष-श
वीयाि!वते शिशिन िव5कल(पु(
िम(ालय*य िविवधं सख ु माहZराया:
e3ग!धमौिDकदुकूलसुखानुभूित
उराख ड मु त िवविवालय 46
वष BAJY- 301
लाभ: कुलोिचतपद*b 6 ): सिख:व
पणू ब ली 10 से अिधक बल वाला च'Rमा यिद वषqश हो, - B( , ी ) पु मकान के अनेक
कार का सख ु होगा ऐसा फल कहना चािहये । &, सगु ि'धत Reय, &- , व}, सखु 6 का
अनभु व हो । अपने कुलोिचत पद का थानािधकार का लाभ हो । राजाओ ं से िमता होगी । ऐसा
!( !$ #
म1यमबली च5 का वष-श फल
वषािधपे शिशिन म@य7 *
म@या!यमूिन cरपुता सतिम(वगk
ु :
*थाना!त " 6 #
;ले'मोTव;च
6*:
भाषाथ - यिद म@यबली च'Rमा वषqश हो तो पणू ब ली च'Rमा वषqश होने से जो फल कहा है,
सभी साधारण चािहये और पु िम वगh से भी शतु ा, दसू रे जगह म0 जाना , शरीर म0 दबु लता होना
आिद फल मDु य >प से होता है । यिद वैसा म@यबली च'Rमा वषqश होकर पाप<ह से ईसराफ योग
करता हो तो कफ का कोप होता है ।
(ीणबली च5 का वष-श
न'टे&दपदे शिशिन शीतकफािदरोग;चौयािदभी: *वजनिवBहमयुशि!त ।
/ : सुतकल(सुखEय;च *या!मृ:युतु.य#7 .
अथात् अतंगत च'Rमा वषqश होने से शीत, , य_मा, RP, रोग होता है । वजन6 से चोरी
आिद का भय होता है । यिद अितहीन बल च'Rमा वषqश ह6 तो दरू देश म0 जाना पड़ता है अथात्
िवदेश वास , पु , ी का सख
ु नOट होता है तथा मृBयुत[ु य कOट !- !" # s !- ,
&W( !$ #
इसी कार सभी <ह6 का वषqश फल िवचार िकया गया है ।
5.4
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( ( िदन म0 वेश हो, तो मेष का सयू , OH
का श:ु , &I( B , कक का मगं ल िराशीश होते हc । िसहं ािद चार रािशय6 म0 िदन म0 वषवेश
!-( , मेषािद चार रािशय6 के जो राि के िराशीश, वे :म से िराशीश होते हc । मेषािद चार
रािशय6 के जो िदन के िराशीश वे िसंहािद चार रािशय6 के राि म0 होते हc । शेH B(, &, कु%भ,
मीन इन रािशय6 के िदन या राि म0 :म से शिन, &P , ग> ु और च'Rमा िराशीश होते हc । uिU व
बलानसु ार िनणय न हो सके तो कुछ आचाय म'ु थेश को व कुछ आचाय ैराशीश को वषqश मानने
का पM रखते है । ैरािशश को वषqश मानने पर एक समया और उठ खड़ी होती है । उस िथित म0
च'Rमा भी वषqश हो सकता है । ाय: आचाय च'Rमा को वषqश मानने के पM म0 नहP है । च'R& -
च5 मु8ातदशा
च!2 . राहZ गुb 7 शPु सयू
2 1 4 4 4 4 1 5 1
9'# 30 45 30 0 45 15 45 0 30
0 0 0 0 0 0 0 0 0
मु8ातदशा
. राहZ गुb 7 शPु सयू च!2
1 3 2 3 2 1 3 1 1
9'# 13 9 48 19 58 13 30 3 45
30 0 0 30 30 30 0 0 0
राह9 मु8ातदशा
राहZ गुb 7 शPु सयू च!2 .
8 7 8 7 3 9 2 4 3
9'# 6 12 33 31 9 0 42 30 9
0 0 0 0 0 0 0 0 0
ग:
ु मु8ातदशा
मु8ातदशा
7 शPु सयू च!2 . राहZ गुb
9 8 3 9 2 4 3 8 0
9'# 1 4 19 30 51 45 19 33 36
30 30 30 0 0 0 30 0 0
मु8ातदशा
7 शPु सयू च!2 . राहZ गुb
7 2 8 2 4 2 7 6 8
9'# 13 58 30 33 15 58 39 48 4
30 30 0 0 0 30 0 0 30
मु8ातदशा
शPु सयू च!2 . राहZ गbु 7
1 3 1 1 1 3 2 3 2
9'# 13 30 3 45 13 9 48 19 58
30 0 0 0 30 0 0 0 30
शु; मु8ातदशा
शPु सयू च!2 . राहZ गुb 7
10 3 5 3 9 8 9 8 3
9'# 0 0 0 30 0 0 30 30 30
0 0 0 0 0 0 0 0 0
उराख ड मु त िवविवालय 54
वष BAJY- 301
अयास न
1. म~ु ा दशा को भी कहते है )
. िवश ं ोरी दशा ख. अOटोरी दशा ग. मTु धा 15 E. कोई नहP
2. राह9 का म~ु ा दशा िदन है )
. 21 R. 54 . 57 E. 51
3. ने से या ताBपय है )
. 2 R. 3 . 4 E. 5
4. स%ित वष दशा फल आधाWरत है )
. $- ( 15 @ R. अOटोरी दशा पर ग. म~ु ा दशा पर घ. कोई नहP
5. श:
ु का म~ु ा दशा िदन है )
. 21 R. 51 . 57 E. 60
6.5
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( ( वष स%ब'धी बह9चिलत व
ामािणक <'थ तािजक नीलक ठी म0 म~ु ा दशा का कहP भी उ[लेख नहP है । मल ू <'थ म0 इसका
िववेचन नहP ह9आ है । वहॉ हीनाश ं पाBय5ं 15 !" # ( Aल या ाचीन समय
से िवश
ं ोरी दशा प=ित पर आधाWरत वष म0 म~ु ा दशा या मTु धा दशा या गौरी दशा सव चिलत है
। यहॉ उसकN िविध बताई जा रही है । आजकल समत वष दशा फल म~ु ा दशा पर ही आधाWरत है
कृ िका से पवू ाफा[ग(ु 9-9 नM6 म0 सयू , च'R, &P , राह9 , वृहिपत, 5(, B ,
एवं श:ु वाले आधार से ही िवश ं ोरी के अनसु ार आवृियॉ दशेश6 कN होती है ।
6.6 पारभािषक शदा
मु]ा तािजकोत 15
ज!मE - ज'म समय का नM
गता&द गत वष
ने(ोिनता 2 सDं या EF(
मु ता # - िटका <'थ
अ!तदशा - दशा के अ'त 15
वषd'ट - अभीOट वष
िवंशो5री - 120 वष कN दशा
उराख ड मु त िवविवालय 55
वष BAJY- 301
सू`म छोटा >प
आBह िवनय पवू क िकया गया (1(
वषवेश - वष का वेश
6.7 अया न के उत
1.
2. R
3.
4.
5. E
6.8 सदभ
थ
तािजकनीलकठी ) & V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
Aयोितष सव*व ) F - सरु े श च'R िमi
तािजक नीलकठी ) F ) आचाय िवव(I
6.9 िनबधामक न
1. म~ु ा से आप या &W !" % पOट कNिजये ।
2. म~ु ा दशा साधन कNिजये ।
3. म~ु ा दशा अ'तदशा को पOट कNिजये #
खड - 2
वष फल िवचार
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*यािद:थ "यमथो िविलता िलताधहीनो यिद पण ू मेतत् ।।
इBथ5 योग िक'हP दो uिU कारक <ह6 म0 देखा जाता है । एक <ह म'द (
दसू रा अपेMाकृ त ती चलने वाला होगा । च'R&, B , श:
ु , सयू , &P , ग>
ु एवं शिन ये :मश:
उरोर म'द गित वाले <ह हc ।
इBथशाल वातव म0 परप 1ने का ही नाम है । यह तभी स%भव होता है जब िवचारणीय <ह परप
uिU रखते ह6 या एक ही रािश म0 िथत ह6 । तािजक शा J( :-= थान म0 अशभु uिU
!- !" #
जब शीr गित <ह म'द गित <ह से पीछे हो, अथात् अलग रािशय6 म0 होने पर भी परपर uिU होने
से जब शीrगित <ह के भु तांश कम ह6 व म'दगित के अिधक ह6 तो अ[प समय म0 ही शीrगित
<ह म'दगित के त[ु य या दी8ताश ं 6 के भीतर पहॅच
ु कर अपना भाव म'दगित <ह को देगा । वही
इBथ5 $- !" #
$1 दोन6 <ह6 म0 दी8तांश6 के बराबर अ'तर हो तो इBथशाल योग है । अथात् इBथ5 $-
! !" #
यिद दोन6 <ह6 म0 से शीrगित <ह के वल 7; िवकला पीछे हो तो पणू इBथशाल होता है। अथात्
इBथ5 @V !- !", J: योग शत ितशत फलदायी है । यिद रािश के अि'तम अश ं 6 म0
शीrगित <ह व अगली रािश म0 िथत म'द गित <ह दी8तांश6 के भीतर हो तो भी इBथ5 $-
!- !" #
भिवOयत् इBथशाल तब होता है जब शीrगित <ह म'दगित <ह से पीछे हो और दी8ताश ं 6 के बीच म0
वेश करने ! ! !- #
एतदथ शीrगित <ह पOट म0 उसके दी8तांश6 को जोड़कर देख0 । यिद वह योगफल दोन6 <ह6 के
दी8तांश6 के योगफल AB @ @ - इBथ5 !- !" #
इस तरह इBथशाल से तीन6 काल6 का फल िवdान6 ने न एवं वष म0 देखना बताया !" #
िजस भाव से स%बि'धत न या फल िवचार करना अभीOट !-, ! काय *था P C
वा& कायdश ! !" #
वष लTनेश या वषqश का िजस कायqश से इBथशाल वष प म0 होता हो, वह काय उस वष म0 अवय
V !- !", यिद ज'म प म0 भी ऐसी स%भा( !- #
8,],:[ भावेश6 म0 इBथशाल नहP होना चािहए, वह अशभु होता है । जहॉ इBथ5 !- !Z
अवय !- #
इथशाल योग का ल(ण ) िजस िकसी दो <ह6 म0 इBथशाल होना िवचारना हc, उन म0 जो
अिधक गित वाला <ह हो वह शीrगित <ह कहलाता है । जो 'यनू गित वाला <ह हो, वह म'द
5.
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च: के राय लाभ न म0 यथा तल ु ा लTन है लTन का वामी श: ु सोलह अंश से मेष म0 है । राय
15& !- !", इसिलये तल ु ा से दशम कक ह9आ, J: Y: अश ं से वृष रािश म0 है,
इन दोन6 म0 एक से दसू रा दसू रे बारहव0 होने से uिU नहP है । और इन दोन6 से म'द गित <ह ग> ु दश
अशं से कक रािश म0 होकर, लTनेश कायqश को देखता ह9आ च'Rमा का तेज दी8ता5 ं 5
को देता है । इसिलये म'ी के dारा पद का लाभ भावी है, $! !( !$ # $! $&$
$- C1!N !" #
वP: शिनवा यिद शी+खेटा:प;चा:पुरि*तिoित तुयh'ट
एकEसतEभुवा hशा वा प;य!नथांशैरिधकोनकै ;चे
तेजो हरे:कायपदे:थशाली ि*थतो "
< "
&Nq योग एक कार से इBथशाल का भगं योग है । दो इBथशाल कता <ह6 के उपर यिद शिन या
मगं ल कN शuु िU हो अथात् इBथशाल कारक6 से के 'R म0 मंगल या शिन हो और दी8तांश6 के भीतर
हो तो काय का नाश होता है । इस योग का नाम &NqS है । यह कायनाशक है #
*(ीलाभपृ\छा तनुरि*त क!या( ो िदगंशैि*तिथिभ: सुरेAय:
कल(ग: &" .): पूवd बुधो भौम>त*त:
जीवेन प;चाि!मलतीित लाभो नाया*तु नो पृ'ठि*मन् ।।
ी लाभ के न म0 जैसे क'या लTन है उसका वा& B , उसी रािश म0 दश अंश का हो और यहॉ
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गैर क,बू
यदी!दु: *वगृहो\च*थ*ताhशौ ल3नकायपौ ।
इ:थशाली कबल ू ं तदु5मो5ममु\य
ल3नकायdशयोcर:थशाले शू!या@व: #
उ\चािदपदशू!य:वा!ने:थ "*य (
य0!यEd िव;यैष *वEा\च*थे:थ
गैcरकVबूलमे5 पदोनेनाशुभं *मृ
इBथशाल करने वाले <ह6 म0 से िकसी एक पर या दोन6 पर च'Rमा का भी इBथशाल हो तो क%ब ू
योग होता है । इसी से िमलता जल
ु ता यह योग है । जब च'Rमा इBथशाल कारक6 से वयं इBथ5
न करता हो तथा च'Rमा वMेोnचािद म0 या वनीचशM ु े म0 भी न हो, ऐसी िथित म0 च'R&
$1 5 अि'तम अंश म0 िवमान हो, अथात् अगली रािश म0 वेश करना ही चाहता हो तथा
उस अगली रािश म0 िथत बलवान <ह से च'Rमा इBथशाल करे तो गैर क%ब ू $- !- !" # $!
कायसाधक होता है ।
म1यमो?म कबूल का उदाहरण
उराख ड मु त िवविवालय 67
वष BAJY- 301
*वीयह]ा2ेकाणा=भाग*थे:थ :
म@यमो5मकVबल ू ं हीनािधकृितनो5मम् ।।
च'Rमा अपने गृह म0 उnच का हो तथा िनज ह~ा RेOकाण नवमाश ं म0 िथत लTनेश या कायqश से
इBथशाल करता हो तो उमपM का म@यम कबल ू होता है । यिद वैसे ही च'R& J@( JB
!( लTनेश या कायqश के साथ इBथ5 !-, - उम कबूल होता है ।
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उराख ड मु त िवविवालय 69
वष BAJY- 301
कु डली म0 धन लाभ के न म0 तल
ु ा लTन है य यहॉ लTनेश श: ु लTन म0 ही है और कायqश (B(5)
&P & (उnच) म0 है , च'Rमा िमथनु म0 सम <ह के RेOकाण म0 है , इन सभी म0 एक से दसू रे को
इBथ5 !- !" , इस से म@यमोम कबल ू होता है ।यहॉ भाTयो1$ !- s !( !$ #
म1य
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अया
न -
2.5
2.6 पारभािषक शदावली
2.7 अयास
न के उ र
2.8 स!दभ
"!थ सचू ी
2.9 िनब!धा&मक
न
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ताकािलक हा: -
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श: ु ] [= \^
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राह9 = [= \]
म'ु था साधनाथ ज'म लTन म0 वृिSक म0 गत :; वष जोड़े तो :] ा8त ह9आ इसम0 :[ 1(
@ 5H 8 अथात् क'या रािश म0 म'ु था !" #
वष म0 म'ु था से अनेक बात0 देखी जाती हc । इसका महBव इससे भी पOट है िक यह वषqश बनने वाले
@Z अिधकाWरय6 म0 से एक है ।
राहZ का मुख पु\छ ान सदा व:N रहने के कारण राह9 के भोTय अंश6 को राह9 मख ु व भु तांश6
को पnु छ कहते हc । अत: राह9 पOट म0 िजतने अश ं ािद ह6 वे भोTयांश है । अथात् अभी भोगना शेष है#
राह9 पOट =#[= #\] JP51 [= \] ही भोTय !", I 7; ) [=# \] = ;[ # :[ #
थम RेOकाN &P , दसू रा RेOकाण सयू से तीसरा RेOकाण श: ु से सीधे वार :म से गणना पर
होते हc अथवा मेष के नीचे मगं ल िलखकर बधु , O!. श: ु , 5(, रिव इBयािद :म से गणना करते
जाने पर तो RेOकाणेश ा8त !- !" #
ह~ा िवचार )
Bयेक रािश म0 िनिSत अश ं 6 तक ह~ेश माने गये हc । इनके पीछे तक या !", यह पOट नहP है ।
Bयेक रािश म0 अंशमान अलग ) अलग हc । एक रािश म0 पॉच ह~ा होती हc । ह~ा च: म0 अक ं 6 म0
अशं मान िदये गये हc )
. . . . . . . . . . . .
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उराख ड मु त िवविवालय 81
वष BAJY- 301
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मत मD िनसग मैEी
सयू , च'R&, मगं ल व वृहपित ये चार6 <ह एक दसू रे के िम है । इसी कार शिन, B , श:
ु ये
तीन6 परपर िम होते हc । अ'य <ह शु होते है । िनसग मैी म0 सम <ह नहP होते है ।
%
मत मD ताकािलम मैEी
सभी <ह अपने अिधिjत था( 7,9,^,:: म0 िथत <ह6 को िम समझते हc । परप :,\,=,:;
भाव6 म0 िथत सभी <ह शु होते हc, 5H [,8,],:[ म0 िथत <ह परप & ! !" #
वष गिणत म0 इसी मैी का योग होता है । जातक ख ड म0 बताई गई मैी के अनसु ार यहॉ िमािम
(णय करना सवथा असगं त है ।
2.5
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( ( तािजक मत म0 म'ु थाS म'ु थ!S
इि'थहाS आिद नाम6 से एक अ'य <ह (अकाशमान व भौितक िप ड !) माना गया है । इसकN
1"( 9 !- !" # J: इसके एक मास म0 7; × 9 = :9;S $ [7; (
वािषक गित : 5 $ 7; के त[ु य होता है । ज'म समय म'ु था सदैव ज'म लTन म0 रहती है ।
J: वतमान वष म0 म'ु था कN रायाBमक िथित जानने के िलए ज'म लTन रािश म0 गत वष जोड़कर
:[ का भाग देना चािहए । शेष अक ं के त[ु य रािश म0 म'ु था !- !" # म'ु था पर म'ु थेश कN uिU
(तािजक uिU) !-( , :ूर <ह6 कN म'ु था से परपर के 'R िथित न होने पर म'ु था वष म0 शभु होती है
2.6 पारभािषक शदा
अकाशमान काशहीन
3.4 "#
अया
न -
3.5
3.6 पारभािषक शदावली
3.7 अयास
न के उ र
3.8 स!दभ
"!थ सचू ी
3.9 िनब!धा&मक
न
3.3 ! "
प ु य A1 9; सहम6 का साधन <ह पOट व लTन पOट AB @ $ !"#
इनको भी वष कु डली के साथ थािपत करके शभु ाशभु योग व सहमेश के बलानसु ार वष म0 उन
चीज6 कN वृि= या हािन देखी जाती है । जैसे प ु य से प ु य वृि=, िवा सहम से िवावृि= इBया1 #
पुयं गुb ान यशोथ िम(ं माहा:Vय माशा च समथता च ।
Yाता ततो गौरव राज तात माता सतु ो जीिवतमVबु कम ।।
मा!0ं च म!म # : Eमो ता
शा*(ं सब!धुसहमं :वथ व!द. (
मृ:यो;च सt परदेश धना!य
*याद!यकम सविणक :वथ कायिसिG:
उ7ाह सूित स!ता : uGा ीितबलं तनु:
जाडय Oयापारसहमे पानीयपतनं cरपु:
शौयIपाय दcर2:वं गुbतां7
इकाई क
4.1 तावना
4.2 उे
य
4.3 अर(ट एवं अर(ट $ !
अया
न -
4.4
4.5 पारभािषक शदावली
4.6 अयास
न के उ र
4.7 स!दभ
"!थ सचू ी
4.8 िनब!धा&मक
न
:खं *व)
मितYमं िप5bजं *वतेजोिवनाशनं घषणम@यcरUय:
व[पबली सयू कN दशा प> ु ष6 को अपने लोग6 से द:ु ख देती है । मितtम, िप का रोग, J@(
परा:म का नाश, शओ ु ं से संघष को कराती है ।
5.4 दशा फल म3 िवशेष
सूय क दशा फल मD िवशेष )
ल3ना2िव: षट्ि(दशायसं*थो िन!0ो द5े शुभमधमेव ।
म@य:व/: शुभतां च म@यो याती:थम:य!त: : *या
वषलTन $1 7,8,:;,:: इन थान6 म0 िन' सयू !- - शभु ही फल देते हc । हीनबली
म@य, म@यबली उम फल को देते हc । यिद शभु रिव ह6 अथात् पणू बली ह6 तो वह अBय'त
शभु फल को देते हc ।
च!2
*
इ!दोदशा पण ू बल*य द5े शु लाVबरe{िणमौिDका0म् ।
*(ीसंगमं राAय&. ( / . : काि!तबलािभवृिGम् ।।
उराख ड मु त िवविवालय 107
वष BAJY- 301
अथात् पणू ब ली च'Rमा कN दशा म0 वnछ व}, वnछ & &N &- A1, ीP , रायR ,
V &, यश और काि'त कN वृि= होती है ।
म@यबली च!2
*
इ!दोदशा म@यबल*य सविमदं फलं म@यममेव द5े ।
वािणAयिम(ाVबरगेहसौjयं धमd मितं कषणतोऽ!न
म@यबली च'Rमा कN दशा पणू ब ली च'Rदशा के फल को म@यम >प से देती है और :य िव:य,
िम, व}, !O R , धम म0 बुि=, खेती से अ'नलाभ आिद फल ा8त !- !" #
इ!दोदशा *व.पबल*य द5े कफामयं काि!तिवनाशमाहZ:
िम(ािदवैरं जननं कुमाया धमाथनाशं सुखम.पम( ।।
अ[पबली च'Rमा कN दशा, - , काि'तनाश, िमािद इOट जन6 से भी िवरोध, क'या का ज'म,
धम -धन6 का नाश तथा अ[प R - 1 !" #
च5 दशा फल मD िवशेष )
ष'ठा'टमा!:येतररािशसं*थो िन!0ोिप द5ेथसुखं दशायाम् ।
म@य:व/: शुभतां च म@यो याती:थिम!दु: : : *या
यिद िनि'दत $ हीन बली च'R& 8,],:[ थान6 से िभ'न थान6 म0 हो, तो अपनी दशा म0 धन सख ु
को देते हc । यिद उन थान6 से िभ'न थान6 म0 च'Rमा ह6 तो हीनबली भी म@य&, म@य& 5 ,
शभु भी िवशेष शभु होते हc ।
*
: पूणबलो महीज: सेनापित:वं
जयं रणे िव2ुमहेमर:नवeािदलाभं ियसाहस:व
यिद पणू ब ली मगं ल दशापित हो, तो मनOु य6 को सेनापित बनाते हc और सं<ाम म0 जय, &PV , -(
रBनािद तथा व}लाभ और िय काय के िलये साहस होता है ।
म@य7 # *
दशापितम@य7 " #: .
"यथ त:पर:वं तेजि*वताकाि!तबलािभविृ Gम् ।।
अथात् यिद म@यबली मंगल दशापित ह6, - J( Bन को देते हc । राजा के यहॉ
अिधकार हो और राजा से अभेद
दय हो !", I ! उBकष भाव होता है एवं काि'त और
बल कN वृि= होती है ।
खड - 3
इकाई क :परे खा
1.1 ता
1.2 उे
य
1.3 1-3 $ !
बोध
न
1.4
1.5 पारभािषक शदा &
1.6 बोध
न के उ&त
$
भाषाथ - ज'म काल म0 धनयोग करने वाला <ह, और धन भावेश ये दोन6 <ह अतं !- -
धननाश और दसू रे के रिMत धन का कलx/ !- !" #
एवं सम*त भावानां सूतौ नाथा;च ":
अ&दे न'टबला*ते. "^ा िवचEण:
भाषाथ ) इसी कार ज'मकु डली म0 सभी भाव6 के जो वामी तथा Bयेक भाव6 के पोषक जो <ह
!", $1 !( !-, तो उन भाव6 के नाश के िलये होते है, यह योितिवद6 को समझना
!$ #
लनथहाणां फलिन या थम भाव मD िथत सभी ह' का फल -
सयू ारम!दा*त Aवाराित धनEयं पापयुिग!दुcर:थ
शुभाि!वत: पु'टतनु;च सौjयं जीवशुPा धनधा!य
भाषाथ सयू मगं ल शिन ये तीन6 या हर एक <ह लTन म0 िथत हो तो वर कN पीड़ा हो और
धनMय होता है । यहॉ सयू लTन म0 रहने से िपBतव, मगं ल लTन म0 रहने से रतिपBत शीतला व
हो । यिद शिन लTन म0 हो तो वायमु ल ू क व !-, तो व !- !", धनMय होता है । यिद
शभु युत शभु uOट पणू ि ब%ब च'R& Tन म0 हो तो सख
ु देते है और वृहप, B , श:ु ये तीन6 या
हर एक लTन म0 हो, - B( - धा'य !" #
इकाई क :परे खा
2.1 ता
2.2 उे
य
2.3 4-6 $
बोध
न
2.4
2.5 पारभािषक शदा &
2.6 बोध
न के उ&त
इकाई क :परे खा
3.1 ता
3.2 उे
य
3.3 स7त# (7) $
3.4 अ(ट# (8) $
3.5 # (9) $
बोध
न
3.6
3.7 पारभािषक शदा &
3.8 बोध
न के उ&त
इकाई क :परे खा
4.1 ता
4.2 उे
य
4.3 10-12 $
4.4 बोध
न
4.5
4.6 पारभािषक शदा &
4.7 बोध
न के उ&त
इकाई क :परे खा
5.1 ता
5.2 उे
य
5.3 पंचवग9 बल िनण
य
बोध
न
5.4
5.5 पारभािषक शदा &
5.6 बोध
न के उ&त
%
मD िमE शEु िवचार
उराख ड मु त िवविवालय 166
वष BAJY- 301
िम(ं ि(कोणि(भवि*थत;चेद्7यय'टcर'फे षु समो Bह: *या
के !2ेषु श(ु: किथतो मुनी!2ैवषािद वेशे फल िनणयाय ।।
भाषाथ - जैसे जातक6 म0 िम सम शु का िनणय िलखा है । वैसे तािजक <'थ6 म0 नहP, $!Z -
िजस <ह को जो <ह िम uिU से देखता है, वह िम है, जो शु uिU से देखता हो, वह शु होता है,
इन दोन6 से िभ'न <ह सम होते हc । वहॉ 7,9,^,:: थान6 म0 वमान <ह िम uिU से देखता है,
इसिलये िम होता है, :,\,=,:; ( थान6 म0 िथत <ह शु uिU से देखता है, इस िलये शु होते
हc । इनसे िभ'न [,8,],:[ थान6 म0 िथत <ह सम होते हc । यह िनणय के वल तािजक <'थ म0
वषqश िनणयाथ तथा फल िवचाराथ है । नीचे देिखये वषकु ड -, यहॉ पहले था(5 िम
शु च: है )
वषा= चPम्
2 -
3 4 # .5 0
6
, . .' 1
7 1. .+ . 10
! 8 11 .5
िम(*था 7 9 ^ ::
सम*था [ 8 ] :[
श(ु*था : \ = :;
वषकु डली म0 यहॉ सयू के साथ वृहप, शिन हc । ये शु ह9ये । दसू रे थान म0 मगं ल, श: ु ये सम
ह9ये । नवम म0 , च'Rमा हc वह िम ह9ये । बारहव0 थान म0 बधु है, वह सम ह9ये । अथात् सयू को
&( $!Z च'Rमा ही िम ह9ये, D B , &P , श: ु सम ह9ये और ग> ु , शिन शु
ह9ये । ऐसे ही च'R& \ चौथे म0 बधु शु । पंचम म0 सयू , ग>
ु , 5(, िम ह9ये । षOठ म0 कुज, श:ु
सम ह9ये । मगं ल के साथ : थान म0 श: ु है, यह श,ु अOटम म0 च'R& &, एकादश म0 बधु िम,
बारहव0 म0 रिव, ग>ु सम ह9ये । ऐसे ही और <ह6 के भी िम सम शु समझने चािहये । यहॉ जो - -
<ह एक थान म0 साथ िथत हc । उनके िम , सम एक ही समान होग0 । शु म0 भी और <ह यथावत्
रहेग0 । के वल िम सम शु से कौन <ह िम के या सम के या शु के थान होरा आिद म0 है, $!
( !$ #
बोध न -
1. J@( रािश म0 <ह िथत होने से िकतना बलवान होता है ।
. 20 J5 P R. 30 J5 P . 40 J5 P E. 50 J5 P
2. <ह 5 अश ं बलवान िकस पWरिथित म0 होता है ।
. अपने गृह म0 ख. अपने RेOकाण म0 ग. अपने नवमांश म0 घ. कोई नहP
3. सम <ह के गृह आिद म0 होता है )
. AB R. पणू ग. न आधा न पणू घ. JBV
4. िन%निलिखत म0 सयू का शु है )
. &P R. च'R& . 5( E. श: ु
5. के 'Rेषु का या अथ है )
. के 'R R. के 'R D H . के 'R म0 घ. कोई नहP
ह' के चतुवगे.वर च; िवचार
अथ होरे शतृतीयांशेशचतुथाशेश
आजे रवी!7ो: सम इ!दुरOयोहIरे गहृ ाधिमते िविच!:ये
2े काणपा: *वेषुनवEनाथा*तुयाRशपा: *वEजके !2:
भाषाथ - िवषम रािशय6 म0 पहली होरा सयू कN, दसू री च'Rमा कN, सम रािशय6 म0 पहली च'R&
कN, दसू री सयू कN होरा होती है । रािश का आधा अथात् :9 अश
ं कN होरा होती है । रािश के
उराख ड मु त िवविवालय 170
वष BAJY- 301
िभाग को RेOकाण कहते हc । जैसे हर एक रािशय6 म0 तीस अश ं , C ! 1 ) 1 J5P !-
!", ये RेOकाण कहलाते हc । उसम0 :-:; अश ं तक थम, ::-:[ िdतीय, [:-7; O$
RेOकाण समझना चािहये । वहॉ िजस रािश म0 िवचार करते हc, उसी का वामी <ह थम RेOकाN5
तथा उस रािश से पंचम रािश के वामी िdतीय RेOकाण का वा& I C 5 (& 5
वामी तृतीय RेOकाN5 !- !" #
) " &H का थम RेOकाN5 &P , िdतीय RेOकाणेश सयू , तृतीय RेOकाN5 B( 55
(ग>ु )होते हc । वृष रािश म0 थम RेOकाN5, OH5 (श: ु ) , िdतीय RेOकाN @ , क'ये5 (B ),
तृतीय RेOकाN5 & 5 (5() होते हc । ऐसे ही और रािशय6 म0 समझना चािह$ #
चतथ ु ाLशेश िवचार िजस रािश म0 चतथु ाEश िवचार करना हो, उसका वामी थम चतथु ाEशशे ,
उसी रािश के चौथे रािश का वामी िdतीय चतथु ाEशश े , उस रािश से स8तम रािश के वा& O$
चतथु ाEशशे , उस रािश से दशमेश चतथु चतथु ाEशश
े होते हc ।
) - मेष के थम चतथु ाEशश े मगं ल, िdतीय चतथु ाEशश े च'R&, तृतीय चतथु ाEशश
े श:
ु , चतथु
चतथु ाEशश े शिन, इस कार सभी रािशय6 म0 समझना चािहये -
: . =#7;
[. :9#;;
7. [[#7;
\. 7;# ;;
अथ पंचमांशेश %ादशांशेश
ओजEd पच ं मांशेशा कुजाकfAयभागवा:
समभे Oय:ययाAेया 7ादशांशा: *वभा:*मृ:
अ!व: - ओजMq = H&5&1 $, कुजाक]य7भागवा: = मंगलशिनग> ु बुधश:
ु ा:,
@P&P55 : , भवि'त = & = &5&1 $, eयBय$/ = िवलोमात् अथात्
श:ु बधु ग> ु शिनमगं ला पंचमांशश े ा भवि'त ।
भाषाथ ) िवषम रािशय6 म0 थम पंचमांशश े मगं ल, िdतीय पंचमांशशे शिन, O$ @P&P55
वृहप, चतथु पंचमांशश े बुध , पंचम पंचमांशश े श: ु होते हc । सम रािशय6 म0 उB:& ((
!$, जैसे थम पंचमांशश े श: ु , िdतीय पंचमांशशे बधु , तृतीय पंचमांशश े ग>ु , चतथु
@
P &5
P 5 5(, पच ं म पचं माशं शे मगं ल होते है और हर एक रािशय6 म0 उसी रािश से dादशाश ं ा
&W( !$, जैसे मेष म0 मेष से, वृष म0 वृष से आिद इBया1 #
उराख ड मु त िवविवालय 171
वष BAJY- 301
चP दशनम्
( 0(
1- 3 .5 1-3 #
6-10 .5 6-10 .
1--17 .+ 1--17 .+
18- 04 . 18-04 .5
02 - -. #. 02--. .5
%ादशांश -
1. ..... 0/-.
0. ..... 2/..
-. ...... 6/-.
4. ...... 1./..
2. ...... 10/-.
3. ...... 12/..
6. ..... 16/-.
7. ..... 0./..
8. ..... 00/-.
1.. 02/..
11. 06/-.
10. -./..
5.4
शा म0 वषकु डली िवचार के अ'तगत पंचवग] बल िनणय का उ[लेR $
गया है । पचं वग] बल से ताBपय इतना ही है िक कोई <ह अपने गृह म0 , अपने उnच म0 , अपने ह~ा
म0 , अपने RेOकाण म0 , अपने नवमांश म0 िकतना ) ( J5P ( !" # उसकN गिणतीय रीित
इकाई क :परे खा
6.1 ता
6.2 उे
य
6.3 % ,!
बोध
न
6.4
6.5 पारभािषक शदा &
6.6 बोध
न के उ&त
:खं *व)
मितYमं िप5bजं *वतेजोिवनाशनं धमणम'यcरUय:
भाषाथ व[प बली सयू कN दशा प> ु ष6 को अपने लोग6 से द:ु ख देती है । मितtम, िप का
- , अपने परा:म का नाश , शओ ु ं से संघष को कराती है ।
नटबलसूयय -
रवेन'टबल*य पुंसां नृपाि2पोवा भयमथनाशम् ।
*(ीपु(िम(ािदजनैिववादं करोित बुिGYम. (
नOट बल सयू कN दशा लोग6 को राजा से या शु से भय , धन कN हािन, ी ) पु िम आिद से
-B, बिु = वैष%य D - 1 !" #
पूणबली च5
इ!दोदशा पूणबल*य द5े शु लाVबरe{िणमौिDका0म् ।
*(ीसंगमं राAय&. ( / . : काि!तबलािभविृ Gम् ।।
भाषाथ पणू ब ली च'Rमा कN दशा म0 वnछ व} , वnछ & &N &- A1, ीP ,
रायR
, V &, यश और काि'त कN वृि= होती है ।
म1य" च5
इ!दोदशा म@यबल*य सविमदं फलं म@यममेव द5े ।
"यथ त:पर:वं तेजि*वताकाि!तबलािभविृ Gम् ।।
भाषाथ - यिद म@यबली मगं ल दशापित ह6 , तो कुल के अनसु ार धन को देते हc । राजा के यहॉ
अिधकार हो और राजा से अभेद
दय हो , उBकष भाव होता है तथा चेहरे पर काि'त और बल कN
वृि= होती है ।
:खािन bजं कफाितम् ।
कल(पु(*वजनाcरभीितं धमाथनाशं तनुपीडनं च ।।
भाषाथ ) नOटबली वृहपित कN दशा म0 मनOु य को Bयेक कार का द:ु R !- !", - ,
कोप, ी ) पु - िम ) ब'धु तथा शओ ु ं से भय, धमनाश , B((5, शारीWरक पीड़ा >पी
फल दान करता है ।
अथ शुP दशाफलम्
6": पूणबल*य सौjयं e3ग!धहेमाVबरकािमनीUय:
: सुतकzिततोषा!!ैbAयगा!धवरित: पदािl:
भाषाथ ) पणू ब ली श:
ु कN दशा म0 माला, सवु ण, व}, ी ( R D E- A1
सवाWरय6 का लाभ, पु , कNित, 'तोH , आरोTय, गान िवा म0 ेम, थान कN ाि|
A1 !- !" #
म1यमबली श;
ु दशा फलम् -
दशा भृगोम@यबल*य द5े वािणAय"थागमनं कृषे;च
िम'ठा!नपानाVबरभोगलाभं िम(ां;च योिष:सतु सौjय
भाषाथ ) म@यबली श: ु कN दशा eयापार और खेती से भी धन लाभ कराती है और मीठे अ'न
पदाथh के भोग सखु और अnछे व}6 के भोग ) सखु को दान करती है, साथ ही िम6 से , ी P
पु 6 का सख
ु भी दान करती है ।
अCपबली शु; दशाफल
दशा भृगोर.पबल*य द5े मितYमं ानयशोथनाशम् ।
कद!नभोAयं Oयसनामयाित *(ीपEवैरं किलरयcरUय: ##
भाषाथ ) अ[प बली श: ु कN दशा बिु = के tम, 7ान, यश और धन6 का नाश करती है,
I ) साथ कुिBसत अ'न -( , WWP F, रोग6 से पीड़ा, ी पM से िवरोध, और शु से कलह
आिद समया उBप'न !" #
हीनबली श; ु दशा फल )
दशा भृगोन'टबल*य द5े िवदेशयानं *व)"
पु(ाथभायािवपदो bज;च मितYमोिप Obसनं मह\च ।।
भाषाथ ) नOटबली श: ु कN दशा, परदेश याा, अपने ब'धु - बा'धव6 से िवरोध, पु , B(, ी
िवपि, रोग तथा बिु = के tम आिद िथितय6 को उBप'न !" #
उराख ड मु त िवविवालय 182
वष BAJY- 301
अथ पूणबली शिन दशा फल
: पूणबल*य द5े नवीनवे;माVबरभूिमसौjय
आरामतोयाuयिनिमित;च Vले\छाितसंगा!नृपतेधनािl:
भाषाथ पणू ब ली शिन कN दशा नवीन मकान , नवीन व}, नई जमीन के सख
ु को दान करती है
D , , y , @-R, तालाब आिद का िनमाण कराती है । इसके साथ ही
%लेnछ जन6 कN अिधक सगं ित से तथा राजा से धन लाभ कराती है ।
म1य"
दशा शनेम@यबल*b द5े खरो'|पाखडजतो धनािlम् ।
वG
ृ ांगनासगं मदुगरEािधकारिच!तािवरसा!!भो:
भाषाथ ) म@यमबली शिन कN दशा म0 गधा, C_F, पाख डी लोग6 से धनलाभ होता है , I !
वृ= ी P , िकला कN रMा कN िच'ता , रसहीन कद'न -( !" #
" " -
: *व.पबल*य . . "
:खं cरपतु *करेUय:
दाcर2यमा:मीयजनापवादं रोगं च शीतािनलकोपमुBम् ।।
भाषाथ ) म@यमबली शिन कN दशा म0 प> ु ष को शु , चौर6 से द:ु R !- !" , दWरRता आती है ।
वजन6 से कलंक होता है, - D 1, वायु के उ< कोप भी उBप'न होते हc ।
नट" #
दशा शनेन'ट7 यपस ुं ामनेकधातुOयसनािन द5े ।
*(ीपु(िम(*वजनैिवरोधं रोगािभवृिGं मरणेन तु.य
भाषाथ ) नOटबली शिन कN दशा लोग6 को अनेक कार के द:ु ख को देती है या िदोष के कोप
से लेश देती है । ी , पु िम पWरजन6 से िवरोध, रोग कN वृि= और मरण के त[ु य कOट - 1
!" #
6.4
शा म0 वषकु डली िवचार के अ'तगत 15 C[लेR $ $ !" #
15 से ताBपय इतना ही है िक िकस जातक के उपर तािजकोत वािषक दशाफल का भाव
िकस कार पड़ता !" # दशाफल िवचार के अ'तगत हम यह जानते है िक जातक का चिलत दशा
का िकस कार भाव उसके जीवन पर पड़ता है । इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@ )
इकाई क :परे खा
7.1 ता
7.2 उे
य
7.3 दशा फल म6 िवशेष
बोध
न
7.4
7.5 पारभािषक शदा &
7.6 बोध
न के उ&त
खड - 4
न
इकाई क :परे खा
1.1 ता
1.2 उे
य
1.3
न योजन
बोध
न
1.4
1.5 पारभािषक शदा &
1.6 बोध
न के उ&त
इकाई क :परे खा
2.1 ता
2.2 उे
य
2.3
न
बोध
न
2.4
2.5 पारभािषक शदा &
2.6 बोध
न के उ&त
इकाई क :परे खा
3.1 ता
3.2 उे
य
3.3
न ल.न िस<ा!त
बोध
न
3.4
3.5 पारभािषक शदा &
3.6 बोध
न के उ र
3.7 स!दभ
"!थ !' &
3.8 िनब!धा&मक
न
इकाई क :परे खा
4.1 ता
4.2 उे
य
4.3
ना=र िस<ा!त
बोध
न
4.4
4.5 पारभािषक शदा &
4.6 बोध
न के उ&त
इकाई क :परे खा
5.1 ता
5.2 उे
य
5.3 वर िस<ा!त
बोध
न
5.4
5.5 पारभािषक शदा &
5.6 बोध
न के उ&त
तथा व व ज'म1 =[ 1( ) एक मास क[पना करके पॉच मास एक वष म0 होते है
। ये ही मास :म से उिदतािद वर6 के दशामान होते हc ।
ित4यािद *था
एवं Pमेण दातOयो वष पूणR यथा भवेत् ।
: ितपदािद;च कुजािदवारिनण:
न!दा भ2ा जया cर ता पूणा;चािप यथा Pमम् ।
J यहॉ अ व ( U& 8; EF I B [\ घटी । इ वर के नीचे बधु कN शेष 78
घटी तथा ग>ु वार कN \] घटी । उ वर के नीचे ग>
ु वार कN :[ श:
ु वार कN 8; शिनवार कN :[
घटी । ए वर के नीचे शिनवार कN \] रिववार कN 78 घटी । ओ वर के नीचे रिववार कN शेH [\
घटी और च'Rवार कN 8; EF # ! ) एक व ( ]\ घटी के भाग होते हc ।
अ!तदशा फल
उिदतािदि(कं चे:*याद!यो!यं भाग संि*थतम् ।
तदा शभ ु ं िवजानीयान् म@यं स!@यािद सिं *थतम् ।।
अ!यो!यभागसं*थं चे:स!@या*तेcर.
तदा लेशं िवजानीयादुिदतािदि(के समम् ।।
उिदतािद तीन6 वर6 कN परपर अ'तदशाय0 शभु फलदायक होती हc अथात् उिदत वर म0 उिदत )
tिमत और tा'त वर कN अ'त15 , tिमत वर म0 tिमत tा'त तथा उिदत वर कN अ'तद5 P
tा'त वर म0 उिदत tिमत tा'त कN अ'तदशाय0 शभु फलकारक होती हc । स@ं या और अत वर म0
उिदतािद तीन6 वर6 कN अ'तदशाय0 म@य& !- !" #
5.4
इस इकाई के अ@ययन के पचात् आपने समझ िलया है वरशा जातक शा !
एक क'ध है । इस शा म0 व AB @ ) !( , $ ) @$ , ( &N
िवलेHN $ $ !" # > ) @P ) सषु %ना नाडीवर संचारण वश काय कN िसि=
अिसि= का िनधारण िकया जाता है । नाडीवर से स%बि'धत िशववरोदय आिद <'थ हc । व (
J, , C, , w ) शा म0 ही नरपितजयचया नामक एक िस= <'थ है िजसकN रचना सभं वत:
:;^8 शकाHद म0 ह9ई थी । इस <'थ म0 पॉच6 वर6 अ, , C, , ओ के आधार पर ही मनOु य (
के समत शभु ाशभु कायh का समय साधन िकया गया है । वर िस=ा'त (
तािजकनीलक ठी म0 नहP िकया गया है ।