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BAJY - 301@ch0,0ts0okbZ0- 301

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iQSDl ua- 05946&264232] bZ&esy info@uou.ac.in
http://uou.ac.in



पाठयम सिमित

ो 0 00 शु ल ो 0 देवीसाद िपाठी


, मानिवक िवाशाखा यो  
0 0  0 0, ह ानी ी ला0000 0, नई िद ली

0 देवेश कुमार िम ोफे 0 वासुदेव शमा
सहायक आचाय,संकृ त िवभाग अ"य#, यो  
0 0  0 0, ह ानी 000 , भोपाल प%रसर

 
0 नद  
   , सं कृ       , यो  
0 0 0 0,
ह ानी उ(राख)ड म,ु त िव-विवालय , ह ानी

पाठ्यम सपा  


डॉ नद  
   , यो  
उ(राख)ड म,ु त िव-विवालय , ह ानी, 
   खड  सं या


0 नद   1 1, 2, 3, 4, 5, 6
  , यो  
उ(राख)ड म,ु त िव-विवालय , ह ानी

0 िवनय कुमार पा डे 2 1, 2, 3, 4, 5
 ोफे सर , यो 

काशी िहदू िव विव ालय, 

0 नद   3 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7
   , यो 

उराखड मु त िव विव ालय , हा 

0 नद   4 1, 2, 3, 4, 5
   , यो 

उराखड मु त िव विव ालय , हा 
 @ उतराखड म ु िविव ालय
काशन वष : 2014 /^EEŽ͘ͲϵϳϴʹϵϯʹϴϰϲϯϮʹϴϭͲϲ 

काशक : उराखड मु त िव विव ालय, ह ा


मु"क : उ$रायण काशन , ह'(ा , ! " उ$राख ड
 - : ( इस पु तक के समत इकाईय के लेखन तथा कॉपीराइट संबंधी िकसी भी मामले के िलये संबंिधत इकाई लेखक िजमे  
 
वाद का िनतारण नैनीताल िथत उ#च %यायालय अथवा ह()ानी स*ीय %यायालय म+ िकया जायेगा




अनुम
थम ख ड – वषकु ड! िनमाण प,ृ - 1

 1 : वष!वेश  2-11


 2 : भाव$प&ट एवं चिलत च+ 12-21
 3 : ,ह$प&ट एवं मु था 22-30
 4 : ल.न $प&ट 31-39
 5 : वश0ष िनणय 40-49
 6 : म2ु ा   50-56

ि(तीय ख ड - वषफल  पृ, 57

 1 :   58-73


 2 : मु था !" 74-83
 3 : #$ %& 84-93
 4 : अ4र&ट एवं अ4र&ट '( %& 94-103
 5 :  फल म6 िवशेष 104-114

तृतीय ख ड – &! पृ, 115

 1 : 1-3 '!" 116-127


 2 : 4-6 '!" 128-139
 3 : 7-9 '!" 140-153
 4 : 10-12 '!" 154-163
 5: पंचवग8 बल िनणय 164 ) 174



 6 :  !" 175 ) 185


 7 : दशा फल म6 िवशेष 186 ) 192

चतुथ ख ड - /न  पृ, 193

 1 : ! न !योजन 194-203


 2: ! न %% 204-212
 3: ! न ल.न िस=ात 213 ) 221
 4: ! ना>र िस=ात 222 - 229
 5 : $व िस=ात 230- 238



वष   BAJY- 301

0 0 योितष तृतीय वष


थम प
वष  

खड - 1
वषकुडली िनमाण

उराख ड मु त िवविवालय 1


वष   BAJY- 301
  1 वषवेश साधन

इकाई क  


1.1 तावना
1.2 उे

1.3 वष वेश परचय
1.4 वष वेश साधन
1.5 

1.6 पारभािषक शदावली
1.7 अया 
न के उ र
1.8 स!दभ "!थ सचू ी
1.9 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 2


वष   BAJY- 301
1.1 ता
तु  00 योितष तृतीय वष के थम प वषफल िवचार के थम इकाई
वषवेश साधन से स%बि'धत है । वष वेश साधन तािजक शा      !" # 
पवू  म0 आपने योितष के क'धय म0 गिणत एवं होरा क'ध6 का 7ान ा8त  $ !" #
 वष का वेश िकस कालख ड म0 ह9आ है % इसका 7ान िजस ि:या के अ'तगत !&
 !", उसे वषवेश कहा जाता है । वष वेश साधन का गिणतीय िवधान तािजक <'थ6 म0
उ=तृ है । तािजक <'थ मल ू >प से यवन6 का माना जाता है ।
इस इकाई म0 आप वषवेश से जड़ु े समत िवषय6 का िवतारपवू क
 अ@ययन कर0 गे ।
1.2 उे य
 इकाई के अ@य$( ( के पचात् आप जान सके ग0 िक )
1. वषवेश या !" #
2. वषवेश का साधन कै से होता है ।
3. वषवेश का या महBव !" #
4. वषवेश साधन के अ'तगत कौन ) कौन से तBव आवय !" #
5. वषवेश का योजन या !" #
1.3 वष वेश परचय
वषय वेशं वषवेशम् । सामा'यतया िकसी वष का वेश िजस कालख ड म0 होता
!", उस कालख ड म0 उस वष का वषवेश माना जाता है । तािजक <'थ6 म0 इसका िन>पण
िवतारपवू क
 िकया गया है । आचाय नीलकठ दैव व<'थ तािजकनीलकठी म0 िलखते
!"  )
: : 
: कृितन  
खवेदात घटीयु ता ज!मवारािदसयं ु ता: 
अ&दवेशे वारािद सत'टे( िनिदशेत् ##
अथात् गतवष संDया म0 उसी के चतथु ाEश जोड़ दे उसम0 िफर गत वष संDया - 1  (   40
का भाग देकर लHध घटी आिद जोड़ देना िफर उसम0 ज'म के वारािदक जोड़कर जो हो उसम0 7 
भाग देकर शेष वषवेश के वारािदक समझना चािहये । वषवेश 7ान के पवू  पाठक6 को रािश,
नM, -, भौगोिलक िथित, <ह6 कN कृ ित, रािशय6 कृ ित, इOटकाल 7ान, योितष शा 

उराख ड मु त िवविवालय 3


वष   BAJY- 301
क'धय का 7ान ा8त करना आवयक है । इन िवषय6 के 7ानाभाव म0 आप वषवेश को ठीक )
ठीक नहP समझ पाय0गे ।
1.4 वष वेश साधन
शभु स%व/ ) 2070, चैशु लपM, ितपदा ितिथ, -&, इOट 44 # 35, पOटसयू : - 11 #
12 # 22 # 17, 1(&(&/ ) 30 # 18, $&/ - 34 # 39, - : - 67 # 23,   48 # 53,
ऐ'R $- - 42 # 52, वृिSक लTन&/ ) 29 # 35 #
 ) इOटशाके म0 ज'मका 5 , अथवा इOट सवं त् ज'मकािलक संवत् घटाने से गतवष
कN संDया होती है । वष कN गणना सौर माण से होती है । इसिलए सौरमास से जब वष पूरा होता है
तभी अि<म वष का वेश होता है । अतएव ज'मकािलक पOटसयू  के राया1 &(  &$
8Oट सयू  के रायािद हो वही वातिवक वषवेश का समय होता है । अत: एक वष म0 सावन
िदनािद संDया (789#:9#7:#7;) = से तिUत करने पर (:#:9#7:#7;) एक वष कN िदनािदक
Vवु ा है । इस Vवु ा को गतवष संDया  न ाकर उसम0 ज'म 1 - = से तिUत करने से
वषवेश का वारािद होता है ।
तBस%ब'धी 1-! )
वष सवाया वार, पिु न घटी वष के आध ।
>$-? & @ - , वष Vवु ा लो साथ ।।
ज'म 1(1 - @ (, नगतिUत कWर शेष ।
 ) घटी पल म0 सदा, जानो वष वेश ।।
इसी आशय का सं कृ त प )
स*वां+य&दसमो वार*तथा&दाधसमा घटी स*वकाधा&दतु.यािन पला!येत0ुित1ुव: 
ज!मवारािदसयं ु तो 1ुव*सत: शेषतु.ये िवजानीयाद् िदना0े&द ##
अथ ) गत वष कN संDया िजतनी हो उसको सवाया करके िदनािदक वष संDया - AB 
घटयािद और उसी सDं या को डयोढ़ा कर पलािदक होता है । इन सभी को जोड़कर गत वष कN Vवु ा
!- !", उसम0 ज'म1 - 7 का भाग देने से वष वेश का वारािदक होता है ।

 
उपWरिलिखत लोक के अनसु ार यहॉं वषवेश साधन सोदाहरण बताया जा रहा है )
माना िक गत वष ) 36
  AB @ C( $, AB D >$-?
उराख ड मु त िवविवालय 4
वष   BAJY- 301
गतवष 36  $ 1( ) 45 # 00 # 00
गतवष 36  AB EF - 00 # 18 # 00
गतवष 36  >$-? @ - 00 # 00 # 54
जोड़ने से गतवष का Vवािदिदनािद- 45 # 18 # 54
ज'मेOट 1(1 - 1 # 44 # 35
$- ( @ = 47 # 3 # 29
िदन के थान म0 7   1(  5H = 5# 3 # 29 वषवेश का िदनािद पवू त [ु य ही ह9आ ।
वषवेशकािल  
िशवनो&द: *वखा2ी!दु ! : खाि3नशेषत: 
ज!मित4यि!वत*त( ितथाव&दवेशनम् ##
अथ ) गतवष को 11 से गणु ा कर गणु नफल म0 अपना 170 वॉं भाग जोड़कर उसम0 ज'म
ितिथसDं या & 30 का भाग देने से जो शेष बचे उस ितिथ म0 वषवेश होगा ।
5H ) इस कार ितिथ के आनयन म0 कदािचत् 1 ितिथ का अ'त  !-  !", $ 1
I A  JI पीछे वषवेश िदन म0 जो ितिथ हो वही <हण करनी चािहये, य6िक वषवेश
का िदन वात ! A !" #

 
गतवष 36 - 11  (  396 इसम0 इसी का 170 वॉं भाग लिHध 3 -(  398 इसम0
ज'मI (कृ OणपM कN दशमी कN संDया) 25 -(  423 इसम0 30   1 5H 3
शु लपM कN तृतीया ह9ई । परं च पंचांग म0 देखने से तृतीया बधु वार को है और वारानयन िविध से
ग>ु वार आया है उत िदन चतथु ] है, J: वषवेश कN ितिथ चतथु ] ही िस= ह9ई ।
उपपि5 
एक सौर वष म0 ितिथमाण 371#3#52#30 िश ं तातिUम् 11 # 3 # 52 # 30 अनपु ातेन गतसौरवष
ित^या1&/ )
गतवष - 11 # 3 # 52 # 30
गतवष ) 11 # 3 # 53 = गतवष 11 + 3 + 53 / 60 = 11 + 233 / 60
गतवष - (11 + 233 / 60 × 60) = (11 + 11 / 170 ) व[पा'तर से । शु लितपदािद से
N(  I (( !$ #
इस कार वषवेशकािलक ितिथ का आनयन करना चािहये ।

उराख ड मु त िवविवालय 5


वष   BAJY- 301
संगवश ज'मनM और योग पर से वष का नM और योग का 7ान )
अ&दो
 " #: खवेदाि6लवैिनजै: 
ि7धा ज!म "! " भत'टो&दे  "$ 
गतवष संDया - 10 से गणु ा कर उसम0 अपना 240 वॉं भाग घटा कर िफर उसे दो थान म0 रखकर
एक थान म0 ज'मनM, दसू रे थान म0 ज'मयोग कN सDं या - @OI/ ) @OI/ 27  
देकर जो शेष बचे वह वषवेश का नM तथा $- !- !" # 1/ 1 अ'त  !- !" #

 ) गतवष 36 - 10  (  360 इसम0 नM कN संDया 20 & 380 ह9आ इसम0
27   1 5H 2 वषवेश कािलक भरणी नM ह9आ ।
@( : उसी दशगिु णत वष संDया 360 म0 ज'मकािक योग कN संDया 19 - 27   1( 
1 वषवेश िदन का िवOक%भ योग ह9आ ।
जमल न से वषवेशकािलक ल न का ान 
खरामन!दनगता&दवृ!दात् ि(ना&दव*वंशयुतात् ि(ंश:या 
अवातरा;यािदयुतं *वज!मल3नं भवेद&दिवबेशल3न 
गतवष संDया - 930 से गणु ा कर उसम0 िगिु णत गतवष के अOट&P5 - 300  
देकर लHधरायािद को ज'मलTन म0 जोड़ने से वषकािलकलTन हो जाता है । यिद जोड़ने से सDं या
12  JB !- - C 12 से तिUत कर लेना चािहये ।

 ) गतवष संDया 36 - 930  N   33480 इसम0 िगिु णत गतवष 108 
अOट&P5 13 # 30 & 33493 # 30 म0 300 के भाग देकर राया1 111 # 19 # 21 # 00 म0
ज'मलTन संDया 8 - 119 # 19 # 21 # 00  12 से तिUत करने पर 11 # 19 # 21 # 00
वषकािलक लTन ह9आ । परं च पOटलTनानयन रीित से मेषलTन आता है । इससे पOट !" 
ज'मकािलक नM, योग और लTन से वषकािलक नM, योग और लTन म0 ितिथ के समान ही 1 !
अ'त !- !" । इसीिलये स_ू म कार से ही लTन A1 (  !( !$ #
ताकािलकपट हसाधन 
गतै'यिदवसा0ेन गितिननी खषड्>ता ।
ल&धमंशािदकं शो@यं योAयं *प'टो भवेद् Bह: ##
अथ - गत िदनािद तथा एOय िदनािद से <ह6 कN गित कला िवकला को गनु ाकर 60   1( 
लिHध अशं ािद को पिं `थ <ह6 म0 :म से ऋण चालन म0 घटाने और धन चालन म0 जोड़ने से
ताBकािलक पOट <ह होता है ।
उराख ड मु त िवविवालय 6
वष   BAJY- 301
 ) पंचांग म0 िजस समय का पOट<ह बना रहता है वह पंिDकाल ! !" # $1
पिं `काल ही इOटकाल भी हो तो वे ही <ह इOटकाल के भी होते है । यिद पिं `काल से इOट
आगे हो तो इOटकाल के िदनािद म0 पंि` के िदनािद को घटाकर शेष ऐOय 1(1 (B( ()
कहलाता है । यिद पंि`काल से पहले ही इOटकाल हो तो पिं ` िदनािद म0 इOट1(1 EF(  5H
 1(1 (QN () ! !" #

 )
क[प( $  - चैशु ल चतथु ] ग> ु वार इOट EF 3 # 29 है और चैशु ल तृतीया बुधवार कN
पंि` EF 45 # 7 !" । यहॉ पंि` से इOट A  !" # J: इOट  1(1 5 # 3 # 29 म0 पंि` के
1(1 4 # 45 # 7 - EF(  0 # 18 # 22 यह धन चालन एOयिदनािद ह9आ । अब एOय 1(1 0
# 8 # 22 से सयू  कN गित कला िवकला 59# 26 को गणु ाकर गोमिू का :म से अथात् िवकलात& ्
ख ड से गनु े ह9ये फल को एक थान आगे बढ़ाते ह9ये रखकर योग करने से 0 # 1062 # 1766 #
572, - 60 से सवण करने पर कलािद 18 # 11 इसम0 60   1(  J5 P 1 0 # 18 # 11
इसको धन चालन होने के कारण पंि`थ सयू  के अश ं ािद म0 जोड़ने से ताBकािलक पOट सयू  11 #
12 # 22 # 17 ह9आ, इसी कार मगं लािद <ह6 कN गित कला को चालन से गनु ाकर जोड़ने से पOट
!- !" #
अयास  न
1.@1$ : का अथ है )
. थमांश ख. चतथु ाEश ग. षOठां5 E. (&P5
2. R1S से ताBपय है -
. 50 R. 60 . 40 E. 30
3. वषय वेशं .............. #
. वषम् ख. वषवेशम् ग. दोन6 घ. कोई नहP
4. िशव शHद से <हण करते है )
. 12 R. 13 . 11 E. 14
5. पंचांग म0 िजस समय का पOट<ह बना रहता है वह .......................... ! !" )
. ( R. पिं `काल ग. पOट<ह घ. कोई नहP
6. ( !- !" -
. धनाBम R. ऋणाBम . दोन6 घ. कोई नहP
उराख ड मु त िवविवालय 7
वष   BAJY- 301
भयात भभोग ान 
गतEनाड़ी खरसेषु शुGा सूयIदयािद'टघटीषु यु ता 
भयात संा भवतीह त*य िनजEनाड़ी सिहतो भभोग: 
अथ )  1(  $ B( ( !-, उसके गत िदन के जो नM के घटी पल का मान हो,
उसको साठ म0 से घटाव0 । य6िक गत िदन के उदय से वतमान िदन के उदय तक साठ म0 घटाव0 ,
य6  1(  C1$  तमान िदन के उदय तक साठ घटी है उसम0 गत िदन के नM को घटाने
@ - 5H !, वह गत िदन म0 वतमान नM ही गत ख ड ह9आ । उसको वतमान िदन के सयू bदय
से जो इOट EF !-, C& - 1$ - , वतमान नM का ार%भ से इOट काल पय'त ख ड ह9A,
इसको भयात कहते है । और गत िदन के जो गत ख ड, उसम0 वतमान िदन के नM का - EF @
मान हो उसको जोड़ने पर भभोग होगा । अथात गत नMा'त से वतमान नMा'त पय'त ( $,
परू ा नM का मान हो गया इसीिलये इसका नाम भभोग ह9आ ।
वषवेश का आधार 
वषवेश का आधार सदैव और एकमा >प से ज'मकालीन पOट सयू  ही होता है । अथात् ज'म
समय म0 सयू  के पOट 5, J5 P , , िवकला िजतनी थP, T C( !  @( : होती हc वही
समय वातिवक वष वेश का होता है ।
सयू  िस=ा'तानसु ार सयू  एक थान से चलकर उसी थान पर लौटने म0 365 1(, 15 EF 31 @
लगाता है । लेिकन अब आधुिनक वेध य'6 dारा यह िस= हो चक ु ा है िक इस ि:या म0 वातव म0
सयू िस=ा'त के काल से साढ़े आठ पल के लगभग या पौने चार िमनट ा$: कम लगते हc । अत:
अब वेधिस= आधिु नक वषमान 365 1( 6 EFP  , 9 &(F 9 सेक0ड के लगभग है । इसी वषमान के
dारा वष वेश लTन का साधन करना चािहये । कारण यह है िक यिद आज भी परु ाने वेध से अिस=
वषमान को मानकर 38 वष के eयि` के कN वष कु डली बनाएगं े तो ितवष 3.5 &(F  !
 38 वष × 3.5 = 133 &(F $ 2 EFP  13 िमनट का अ'त @   # $1 D &( 
एक लTन  C1$  &( 2 घटं े भी मान ल0 तो लTन म0 महान अ'तर उपिथत हो जाएगा ।
आजकल सभी मा'यता ा8त पच ं ागं कार6 व िवdान योितिषय6 ने आधिु नक िविध से ही वष
साधन का समथनिकया है ।
वष वे
    
िजस वष का वेश समय जानना हो, उस वष, संवत् शक या ईसवी सन् म0 से अपने ज'म P / 5
या ईसवी सन् को घटाऍ ं । शेष गत वष ह6गे । अथात् उतने आयु वष स%बि'धत eयि` के बीत चक ुे
हc तथा उससे अि<म वष ार%भ !-  #

रणाथ ) जब िकसी का ज'म  (/ ( 2005 म0 ह9आ तो जनवरी 2014 म0 उसके
2014 ) 2005 = 09 वष बीत चक ु 0 गे तथा 10 वॉ वष ार%भ !-  #  (/  N( ( @

उराख ड मु त िवविवालय 8


वष   BAJY- 301
िवशेष सिु वधा होगी । इसी कार सािधत गत वष से आगे सारी ि:या कN जायेगी ।
U वष म0 365 1( 15 E 31 @ 30 िवपल होते हc । ये िदन सावन मान से बताए गए हc । दो
सयू bदय के बीच का समय सावन िदन कहलाता है, यह बात पOट !" # JI 365 1( 6 EFP , 12
&(F 36 सेके ड @ ( &(  !" #
$1 365 1( - 7 से भाग द0 तो शेष 1  !" # J: 1 1( 15 E 32 @ 30 @ 
अ'तर ितवष पड़ता है । इसीिलए गत वष संDया को यिद उत अ'तWरत समय से गणु ा कर,
गणु नफल को ज'मकालीन वार व इOट म0 जोड़ िदया जाए तो वतमान वष का वेश समय 7ात हो
जाता है । यह िविध सयू िस=ा'त के थल ू वषमान पर आधाWरत है । इसी आधार पर तािजक
नीलक ठी  : &:@1$ : कृ ितgन समागणात् इBयािद लोक कN या पि डत लोग6 म0
िस= उि` वार सवाए घिटका आधी पल ड्योढ़े कर लेय, आिद उपपि सयू िस=ा'त के उत
थल ू वषमान से ही िस= होती है । इस प=ित से िकतनी थ
ू  !  !", इस िवषय म0 पहले ही
कहा जा चक ु ा है । तब लTन म0 अ'तर स%भा !" #
वातव म0 वषवेश का िनयामक सयू पOट ! !", तथा वार से सवथा िनणय हो जाता है । अत: वष
वेश कN चा'RI A1  Bन eयथ का िवत डा ही हc । तािजक नीलक ठी के सु िस=व
सवमा'य टीकाकार िववनाथ दैव7 कहते हc -
त:काले वषवेशसमये करणो तरी:या : सयू I ज!मकालीन रिवणा सम*त.ु यो
रा;यंशकलािवकला:म" , इदमेव वषवेशसमये माणा 
J: िजस िदन व समय म0 ज'मकालीन सयू पOट सवथा त[ु य !- , वहP वषवेश है । ितिथ
साधन कN eयथता को उ'ह6ने बड़े शHद6 म0 ितपािदत िकया है )
अ*यां ितथौ वषवेशो भवतीित िनयमो नाि*त, कदािच:पवू ितथौ कदािचदिBमितथौ च
भव:य( वार*यैव ामायम् । ितिथ(य*य म@ये यि*मंि*तथौ पूवानीतवारो भवित सा एव
वषवेशे ितिथातOया 
इस कार पवू  ा8त , घटं ा िमनट के आधार पर जातक के वतमान नगर के सयू bदय से इषF

बनाकर या सा%पाितक काल साधन कर ज'म लTन साधन कN तरह वष वेशकालीन लTन,
<हपOट, भावपOट, भावचिलत व नवांशािद आवयक वगh का साधन कर लेना चािहये । इनकN
िविध िब[कुल ज'म लTन/ ! !" #
1.5   
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  - वषय वेशं वषवेशम् ।
सामा'यतया िकसी वष का वेश िजस कालख ड म0 होता है, उस कालख ड म0 उस वष का
वषवेश माना जाता है । तािजक <'थ6 म0 इसका िन>पण िवतारपवू क
 िकया गया है । वषवेश
का आधार सदैव और एकमा >प से ज'मकालीन पOट सयू  ही होता है । अथात् ज'म समय म0 सयू 

उराख ड मु त िवविवालय 9


वष   BAJY- 301
के पOट 5, J5
P , , िवकला िजतनी थP, T C( !  @( : होती हc वही समय
वातिवक वष वेश का होता है । तािजकोत वषवेश का 7ान पाठकगण इस इकाई म0 स%य`या
ा8त करे ग0 ।
1.6 पारभािषक शदा
वष*य ) वष का
कालखड ) काल का एक िनिSत िहसा
तािजकनीलकठी ) तािजक <'थ (योH )

) चतथु ाEश
कृित ) 1
अ&द ) वष
*क!ध(य ) िस=ा'त, P ! P !-
ज!म  - ज'म  &$ 
खाि3न ) 30
&
) 40
1.7 अया  न के उत
1. R
2.
3. R
4.
5. R
6.
1.8 सदभ थ 
तािजकनीलकठी ) & V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
Aयोितष सव*व ) F - सरु े श च'R िमi
तािजक नीलकठी ) F ) आचाय िवव(I
1.9 िनबधामक  न

उराख ड मु त िवविवालय 10


वष   BAJY- 301
1. वषवेश से आप या &W !" % पOट कNिजये ।
2. वषवेश का साधन कNिजये ।
3. वषवेश के आधार का पOटीकरण देते ह9ये कि[पत साधन कNिजये ।
4. भयात एवं भभोग का साधन कNिजये ।
5. ताBकािलक पOट <ह साधन कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 11


वष   BAJY- 301
  2 भाव पट एवं चिलत च

इकाई क 
2.1 तावना
2.2 उे

2.3 भावप(ट
बोध 

2.4 चिलतच+
2.5 

2.6 पारभािषक शदावली
2.7  
न के उ र
2.8 स!दभ "!थ सचू ी
2.9 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 12


वष   BAJY- 301
2.1 ता
तु  00 योितष तृतीय वष के थम प वषफल िवचार के िdतीय 
भाव*प'ट एवं चिलत चP से स%बि'धत है । भाव पOट से ताBपय dादशभाव से है । भाव पOट
के अ'तगत चिलत <ह6 का भी अ@य$( $  !" #
भाव6 कN संDया dादश है तथा चिलत का अथ होता है ) चलायमान । तािजक शा म0 भावपOट
एवं चिलत 7ान का िववेचन िकया गया है ।
dादश भाव6 का पOटीकरण के साथ चलायमान <ह6 का अ@ययन ततु इकाई म0
@T N (  ! !" # / स%बि'धत 7ान ततु इकाई म0 आपके समM तु !" #
2.2 उे य
 इकाई के अ@ययन करने के पचात् आप जान सके ग0 िक )
1. भावपHF/ से या ताBपय !" #
2. dादश भाव या !" #
3. चिलत च: का या अथ है #
4. चिलत च: का िनमाण कै से करते है #
5. भाव6 म0 <ह6 का पOटीकरण िकस कार िकया जाता है #
2.3 भावप$ट
ज'मकु डली म0 बनने वाले कोjक6 को S कहा जाता है। कु डली म0 बारह कोjक
अथात् भाव होते हc। इन कोjक6 को भाव, (, थान तो कहते ही हc, I ! (  (
वाले िवषय6 के नाम पर भी इनका नामकरण कर िदया जाता है। जैसे थम भाव को लTन, (, C1$
या ज'म, िdीय भाव को धन, कुटु%ब $ -5,   - !, परा:म,चतथु   - R  ,
पंचम भाव को िवा या सतु भाव, षOठ भाव को Wरपु या ऋण भाव, स8त&  - $, अOट&
भाव को मृBयु , नवम भाव को भाTय , दशम भाव को कम भाव , एकादश भाव म0 आय भाव,
dादश भाव को eय$  A1  कहते हc।
थम भाव से लेकर dादश भाव पय'त dादश भाव होते है ।  के अिधपित <ह को भावेश कहते
हc। जब हम आयेश कह0गे तो Tयारहव0 थान पर जो रािश है #
उसका वामी आयेश होगा। मान ल0 िक Tयारहव0 थान पर िसंह रािश का अिधपित सयू  है तो यहाँ
आयेश का अथ सयू  होगा #
ससिध %ादश भाव 
उराख ड मु त िवविवालय 13
वष   BAJY- 301
सषडभे ल3नखे जायातुयQ ल3नोनतुयत: 
ष'ठांशयु त: सि!धरBे ष'ठां " 
(य: सस!धयो भावा ष'ठांशोनैकयु सु& 
अBे (य: षडेवं ते भाधयु ता:  ' 
खेटे भावसमे पूणR फलं सि!धसमे तु खम् ।।
अ!व : - थमलTन = दशमलTने , HF/ = षlािशयु ते, तदा जायातयु m = स8तमचतथु भावौ
: # (अथात् लTनं षlािशयु तं स8त&: । दशमलTनं षlािशयु तं तदा चतथु भावो भवित। )
लTनोनतयु त: = थमलTनहीनचतथु भावात,् षOटा5 ं $ / (: = लTनशोिधतचतथु भावय षOठा5
ं (
यु तं लTनं , (: सि'ध = लTनसि'ध: या/ # -X<े षOठांशयोजनात् सस'ध$: य: =
ससि'धधनसहजसख ु भावा: य:ु । अथात् लTने षOठां5$-((न लTनसि'ध: । लTनस'धौ
षOठां5$-(( B(: । धनभावे तBषOठांशयोजनेन धनसि'ध: । धनस'धौ तBषOठां5$-(((
!: । सहजे षOठांशयोजननेन सहजसि'ध: । सहजस'धौ षOठां5$-(( R: # #
अथ पच ं मािदभावसाधनमnु य ) षOठाश ं ोनैकयु सखु ात् = षOठाशं एकराशौ िवशो@य: , शेषं येन
$ / = यु तं, R  P = चतुथभावो यो भवित तमा/ , अ<े = चतथु भावाBप , य: =
चतथु पंचमषOठ: भवि'त । एवं लTना/ H>/: िस=यि'त । ते = षट् लTनािदषOटा'त: ,
भाधयु ता: = Hlािशयु ता:, 1 @ = स8तमािदdादशा'ता: , J@ HF/  : # & =
<हे, पणू  जातकतािजकोतफलं सम<ं भवित । सि'धसमे खेटे खं = श'ू यं P  #
अथ ) लTन म0 छ: रािश जोड़ने से स8तमभाव होता है । दशम लTन म0 छ: रािश जोड़ने से चतथु 
भाव होता है । अब चतथु  भाव म0 लTन को घटाकर शेष का षOठां5 ((, उसको लTन म0 जोड़ने
से लTन कN सि'ध ह9ई । उसम0 िफर षOठां5 -(  B( , B(  म0 वही षOठां5 -( 
धन कN सि'ध बनी, िफर उसम0 षOठा5 ं -(  !  (, िफर उसम0 षOठा5 ं -( 
सहजसि'ध होगी । िफर षOठांश जोड़ने से चतथु  भाव ह9आ । तनु , B( , सहज ये तीन भाव ह9ये ।
चतथु  भाव तो 7ात ही है ।
अब उसी षOठां5 को एक रािश म0 घटाकर शेष को चतथु भाव म0 जोड़ा, तो चतथु  भाव कN सि'ध
ह9ई, िफर उसम0 वही शेष को जोड़ा तो पंचम भाव ह9आ । िफर उसम0 वही शेष को जोड़ा पंचम भाव
कN सि'ध ह9ई । िफर उसम0 शेष को जोड़ा तो षOठभाव ह9आ । िफर उसम0 वही शेष को जोड़ा, -
षOठभाव कN सि'ध ह9ई । षOठभाव कN सि'ध म0 उसी को जोड़ा तो स8त&  (, यहॉ स8त& -
7ात ही था, $ $ 5#6#7 तीन भाव बने । यहॉ यिद शेष जोड़ने से स8त& , पवू ि स= स8त&
के त[ु य ह9आ तो ठीक हc, नहP तो अश= ु समझना चािहये । तब पनु : -( !$ #
इस कार ये छ: भाव म0 छ: - Y: 5 -(  5H Y: जाया मृBयु धम कम आय eय$ $ 
हो जाय0ग।े

 

उराख ड मु त िवविवालय 14


वष   BAJY- 301
थमलTन - 3#27#7#4 इसम0 छ: 5 -, तो स8त&  9#27#7#4 ह9आ और दशम लTन
0#24#42#11 म0 छ: रािश जोड़ा तो चतथु  भाव 6#24 #42#11 ह9आ । अब )
3#27#7#4 इस थम लTन को चतथु भाव 6#24#42#11 म0 घटाया तो शेष बचा 2#27#35#7 
षOठां5 0#14#35#51 5H 1 !,
लTन 3#27# 7 # 4
जोड़ने से लTन सि'ध 4#11#42#55
िफर षOठां5-(  B(  4#26#18#46
एवं षOठाशं जोड़ने से धन सि'ध 5#10#54#37
एवं षOठां5 -(  !  5#25#30#29
षOठांश का शेष म0 अधािधक <हण से िफर षOठांश जोड़ने से सहज सि'ध - 6#10#6#20
इसम0 िफर षOठां5 -( @ R   - 6#24#42#11
यहॉ यह जोड़ा ह9आ चतथु भावगिणतागत चतथु भाव से िमल गया, T !" # J C
षOठा5 ं 0#14#35#51 - 30 अश ं म0 घटाया शेष 0#15#24#9 $!Z    H>P5 QN 5H
!", J: चतथु  थान म0 एक घट जायेगा । अधािधक िनयम से इस षOठां5 - )
00#15#24#9
06#24#42#11
चतथु  भाव म0 जोड़ा, तो सख
ु भाव कN सि'ध ह9ई 07#10#06#20
िफर उस शेष को जोड़न0 से सतु भाव 07#25#30#28
िफर उस शेष को जोड़ने से सतु सि'ध 08#10#54#37
िफर उस शेष को जोड़ने पर Wरपु भाव 08#26#18#46
@( : उस शेष को जोड़ने पर Wरपु सि'ध 09#11#42#55
 C 5H - -( @ $  09#27#7#4
यह सषडभ लTन  &( !- $, $ N T !" # J ( Y: ि'ध भाव6 म0 छ: Y:
-( @ 5H Y: भाव हो जाय0गे ।
िन%निलिखत च: म0 आप अवलोकन कर ससि'ध dादश भाव के गिणतीय पM को समझ सकते है ।
     सिध  

    सिध

 


  सिध  
    सिध   
  
  सिध 
 
रपु   सिध  

     सिध  

मृ यु    सिध 
 

उराख ड मु त िवविवालय 15


वष   BAJY- 301
धम 
  सिध   
कम    सिध  
  
  सिध  
 
य    सिध  

अथ भावकुडली चPम् 

B( eय$
5
! ( A$
0 &0P
0V 5(
R
 कम

 $   धम


ग>ु B
P0 Wरपु मृBयु

 कु डली म0 <हिनवेश िवचार पहले कु डली िलखकर उसम0 तन,ु B(, !,R  ,  , Wरप,ु
$, मृBयु, धम, कम, आय एवं eयय ये dादश भाव6 के नाम िलखकर िवचारना िक कौन <ह िकस
खाने म0 होगा % -
यथा सयू  ;;#:[#9=#9; , तो देिखये धम भाव कN सि'ध ;;#:;#8#[; इससे सयू  अिधक है,
और कम भाव ;;#[\#\[#:: से 'य(ू !", इसिलये कम भाव ही पड़ा । च'R& ]#9#7^#77 !"
$!Z $!    JB , सतु सि'ध से 'यनू है इसिलये सतु सि'ध म0 पड़ा ।
JI &P  :#[[#:7#97 !", यह भावच: देखने से कमसि'ध से आगे आय भाव के अ'द @,
इसिलये आय भाव म0 मगं ल ह9आ ।
B ::#[7#9^#;^ !", यह मृBयु के सि'ध से आगे और धम भाव के अ'दर पडा इसिलये धम भाव
म0 बधु ह9आ ।
एवं ग> ु ;;#;[#\^#] यह धम भाव से अिधक, तथा उसकN सि'ध से 'यनू है । इसिलये धम कN
सि'ध म0 पड़ा । श: ु ;:#[]#:^#:= !", $! A$   JB, आय भाव कN सि'ध से 'य(ू !"#
इसिलये आय कN सि'ध म0 श: ु पड़ा ।
5( ;;#:;#99#:7 !" , यह धम कN सि'ध से अिधक कम भाव से 'यनू है । इसिलये कमभाव म0
@ #
उराख ड मु त िवविवालय 16
वष   BAJY- 301
राह9 ;8#;;#9#9; !", $! !   JB, उसकN सि'ध से 'यनू है इसिलये सहज सि'ध म0
R #
  ;;#;;#9#9; , यह धमभाव से अिधक , उसकN सि'ध से 'य(ू !", J: सि'ध म0 पड़ा ।
&I ! ]#9#7\#:[ !", यह सतु सि'ध म0 पड़ी ।
  न 
1. ज'मकु डली म0 बनने वाले कोOठक6 को या !  !" )
. कु ड R.  . 5 E. नM
2. भाव6 कN संDया ( !" )
. 12 R. 14 . 16 E. 18
3. $    - ! !" )
. @P &  R. षOठ  . स8त&  E. अOट& 
4. लTन म0 छ: 5 -( @ !- !"-
. @P & R. स8त&  . अOट&  E. (& 
5. से ताBपय है )
.( R. <ह6 का चलना ग. R( E. कोई नहP
6. चिलत कु ड -  !  !" )
. चल कु ड R. भाव कु ड . नवमांश कु ड E. RेOकाण कु ड
7. चिलत कु डली के िनमाण का आधार है )
.  R. dादश भाव ग. ि'धdादश भाव घ. कोई नहP
अथ भावथहफल-
खेटे सि!ध7या!त:*थे फलं तTावजं भवेत् ।
#िधके ि7सि!धUयां भावे पवू ापरे फलम् ।।
अथ- आर%भसि'ध और िवराम सि'ध के बीच म0 <ह को रहने से उस भाव का फल देता है । यिद
आर%भ सि'ध से <ह कम हो तो पवू भ ाग का फल, या िवराम सि'ध से अिधक <ह हो तो
अगलेभाव म0 रहने का फल देता है ।
उदाहरणाथ यहॉ ससि'ध भावच: म0 सयू  ;;#:[#9=#9 है । यह आर%भ सि'ध धमभाव कN
सि'ध ;;#:;#:;#;;  JB !", और िवराम सि'ध कमभाव कN सि'ध :#:;#:;#;; से 'य(ू
!" $ T ) ठीक कमभाव म0 रहने का जो फल है उसको द0गे । यहॉ शिन आय कN सि'ध से
'यनू है इसिलये आय भाव का फल द0ग,े ऐसे ही बधु मृBयु भाव के सि'ध से अिधक है,
इसिलये धमभाव के फल द0गे ।
लTन को चतथु  भाव म0 घटाने से जो शेषांक हो, उनम0 छ: का भाग दे अथात् लTन व चतथु  के अ'त
उराख ड मु त िवविवालय 17
वष   BAJY- 301
का षOठांश <हण कर0 । वह षOठांश रायािद लTन म0 जोड़ दे तो लTन कN िवराम संिध और धन भाव
कN आरंभ संिध होती है । उस संिध म0 षOठांश यु त करने से धन भाव फुF !- !" # धन भाव म0
षOठा5ं जोड़ देने से धन भाव कN िवराम सिं ध और तृतीय भाव कN आरंभ सिं ध होती है । उस सिं ध
म0 षOठांश यु त ( @ O$  !- !", िफर तृतीय भाव म0 षOठांश यु त ( @ O$ 
कN िवराम संिध और चतथु  भाव कN आरं भ संिध होती है ओर तृतीय भाव संिध म0 एक जो 1 -
वह चतथु  भाव कN िवराम संिध होती है । तृतीय भाव म0 जोड़ देने से पंचम भाव फुF !- !" #
िdतीय भाव कN संिध म0 तीन जोड़नेसे पंचम भाव संिध होती है , धन भाव म0 चार यु त ( 
छठा भाग होता है । लTन कN सिं ध म0 पॉच यु त करने पर Wरपु भाव अथात् षOठ भाव कN सिं ध होती
है । संिध सिहत लTनािदक भाव6 म0 छ: - Y: रािश संयु त करने से स8तम आिदक सब भाव सि'ध
! !- !" #
2.4 चिलत च' परचय -
ससि'ध dादश भाव6 के पOट रायािद व <ह6 के पOट रायािद कN त ु ( 
(  या भाव कु डली का िनमाण िकया जाता है । लTन कु डली या च'R कु डली से हम0 यह
पता चलता है िक इOट समय म0 <ह िकस रािश म0 िथत है, जबिक चिलत कु डली से शेष <ह कN
स%यक् भाव िथित का 7ान होता है । चिलत कहने का ताBपय यह है िक ) इसम0 <ह6 कN िथित
, $&( !- !", R  !" , J: चिलत च: कहना साथक सं7ा है ।
भाव या !" % पवू  के अ@याय म0 कहा जा चक
ु ा है िक िकसी भाव कN िपछली सि'ध के रायाश
ं 6 से
लेकर अगली सि'ध के रायांश6 के भीतर यिद <ह पOट पड़ता हो तो उत <ह उसी भाव म0
माना जाता है । जब <हपOट के रायािद सि'ध के राया1   !-, 5H$ J5 P
सा%य ह6, कलाओ ं म0 समानता हो या न हो, तभी <ह सि'ध म0 माना जाएगा । जब <हपOट
आर%भ सि'ध से कम हो तो िपछले भाव म0 तथा िवराम सि'ध से अिधक हो तो अगले भाव म0
R $  #
चिलत कु डली वातव म0 भाव कु ड !", J: उसम0 ज'म लTन/ 5 V  J P R(
    , 1- , तीन आिद भाव सचू क रोमन अंक या 0 िdत0O A1  V 
आMर िलखना ठीक अिधक रहेगा । @या( R$, भाव चिलत के वल भाव िथत मा का
ही ोतक है, न िक रािश िथित का यिद कोई <ह चिलत म0 अगली या िपछली सि'धय6 के आर )
@  ला जाए तो उससे <ह कN रािश िथित नहP बदलती है । हमारे उदाहरण का ( 
चP िनVनां ) 

उराख ड मु त िवविवालय 18


वष   BAJY- 301

:[
ग>
ु , श:

7 : सयू 0 B
राह9 ::

5( \ :;

9 = &0P ^
8 P ]  

उदाहरणाथ माना िक यिद सयू पOट 4#270#50 !" # लTन कु डली म0 वह Tयारहव0 भाव म0 है । अब
भाव पOट च: म0 देखा िक एकादश भाव 3#280#58#40 से ार%भ !- 4#280#4#00  !" #
सयू  पOट उत दोन6 सि'धय6 के म@य होने से एकादश भाव म0 ही सयू  िदखाया गया है इसी कार
सब <ह6 को &W ( !$ #
*     
 म@य िकसी भी भाव का िशखर है । उस पर बैठा ह9आ <ह उस भाव का पणू  फल देता है तथा
B ) उधर रहने से उस भावफल म0 आनपु ाितक कमी आ जाती है तथा इधर ) CB !(  C
भावफल म0 आनपु ाितक कमी आ जाती है । कहा गया है िक सि'ध पर पहॅचु कर <ह सवथा
फलरिहत हो जाता है।अथात् सि'धगत <ह िकसी भी भाव का फल नहP देता है । इस बात को
याद रखने के िलये िन%निलिखत लो - (( !$ )
Bह: सि!ध7या!त: *थ: िदशे5Tावजं फलम् ।
भावांशतु.ये सVपूणR !यूनािध ये : 
आरVभस!धे: Eीणांश: पूवभावे Bहो मत: 
िवरामादिधकांश*तु थतेिBमभावजम् ।।
स!धे*तु.यां: &': सदा सि!धगतो भवेत् ।
तु.य:वं रािशलवयोिवचायR न कला:म 
भावािधप:यं सव( भावम@या : 
िवभेद:वे सदा ेयं रािशचPा0थाPमम् ।।
उराख ड मु त िवविवालय 19
वष   BAJY- 301
भावचPे तु ातOया खगानां भावसंि*थित: 
रािशि*थित*तु िवेया ज!मल3नमाणत: 
भावानामािधप:यं सकलखगभावसिं *थितं चािप ।
ा:वा िवबुधैरेवं भावांगे फलं िविनद;य 
<ह पOट च: िलखते समय यिद अवसर हो तो <ह6 के नM चरण भी िलख देना चािहये,
िक'तु <ह6 कN व:N माग] िथित तथा उदयात अवय R( !$ #
2.5   
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  कु डली म0 बारह कोjक अथात् भाव
होते हc। इन कोjक6 को भाव, (, थान तो कहते ही हc, साथ ही इनसे िवचार करने वाले िवषय6
 (& @  ( (&N  1$  !"# जैसे थम भाव को लTन, (, उदय या ज'म,
िdीय भाव को धन, कुटु%ब या कोश,   - !, परा:म,चतथु   - R  , @P&
भाव को िवा या सतु भाव, षOठ भाव को Wरपु या ऋण भाव, स8त&  - $, अOट& 
को मृBयु , नवम भाव को भाTय , दशम भाव को कम भाव , एकादश भाव म0 आय भाव, dादश
भाव को eय$  आिद भी कहते हc।
थम भाव से लेकर dादश भाव पय'त dादश भाव होते है ।  के अिधपित <ह को भावेश कहते
हc। जब हम आयेश कह0गे तो Tयारहव0 थान पर जो रािश है # ससि'ध dादश भाव6 के पOट राया1
व <ह6 के पOट रायािद कN तलु ना करके (  या भाव कु डली का िनमाण िकया जाता है ।
A5 है िक पाठकगण इस इकाई के अ@ययन से भावपOट एवं चिलत च: को समझ गये ह6गे ।
2.6 पारभािषक शदा
सत  Z
+  - &
  भाव के वा&
-   आय का वा&
षXािशयु त - Y: रािश यु त
(  - <ह6 कN िथित चल
रा;यं  5  J5 P
ल3न - लTन  &(
उ@व - C@
*    
.    J5P
उराख ड मु त िवविवालय 20
वष   BAJY- 301
&': - <ह
2.7   न के उत
1. R
2. 
3.
4. R
5. R
6. R
7.
2.8 सदभ थ 
तािजकनीलकठी ) & V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
Aयोितष सव*व ) F ) >Z0 सरु े श च'R िमi
तािजक नीलकठी ) F ) आचाय िवव(I
2.9 िनबधामक  न
1. भाव से आप या &W !" % पOट कNिजये ।
2. dादश भाव पOट कNिजये ।
3.   साधन कNिजये ।
4. चिलत च: से या ताBपय है % उदाहरण सिहत पOट कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 21


वष   BAJY- 301
  3 ह पट एवं मुथा

इकाई क  


3.1 तावना
3.2 उे

3.3 "हप(ट
3.4 म!ु था
अया 
न -
3.5 

3.6 पारभािषक शदावली
3.7 अयास 
न के उ र
3.8 स!दभ "!थ सचू ी
3.9 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 22


वष   BAJY- 301
3.1 ता
तु  00 योितष तृतीय वष से स%बि''धत है । इस इकाई का नाम Bह*प'ट
एवं मु!था !" # सिु विदतमेव सवqषां योितिवदानां Mायां <हाणां पOटीणं <हपOट&/ # (
A1 संकार6 dारा <ह6 कN पOटीN ( कN ि:या का नाम <हपOटS !" #
तािजक<'थ म0 म'ु थाS नाम से एक <ह होता है, िजसकN दैिनक गित 5 कला होती है । ज'म &$
म'ु था सदैव ज'म लTन म0 ही रहती है ।
इससे पवू  कN इकाईय6 म0 आपने चिलत च: एवं भाव6 का अ@य$(  $ !" , इस इकाई म0
आप <हपOट एवं म'ु था का अ@ययन कर0 गे ।
3.2 उे य
 इकाई के अ@ययन करने के पचात् आप जान सके ग0 िक )
1. <ह से या ताBपय है ।
2. <हपOट  B( "  !- !" #
3. भकMा या !- !" #
4. तािजकोत म'ु था या !" #
5. तािजकोत म'ु था  B( "  $  !" #
3.3 हप$ट
<ह6 कN मेषािद रािशय6 के सापेM पृ^वी कN पWर:मा को एक  NS कहते हc #
िस=ांत<थ6 म0 युग, या क[प<ह6, के म@य भगण िदए रहते हc # $ $ क[प के म@य सावन िदन6 कN
सDं या भी दी रहती है। यिद यगु या क[प के ारंभ म0 <ह मेषािद म0 ह6 तो बीच के िदन (अहगण)
7ात होने से म@यम <ह को ैरािशक से िनकाला जा सकता है # भगण कN पWरभाषा के अनुसार B
और श: ु कN म@यम गित सूय के समान ही मानी गई है । उनकN वातिवक गित के त[ु य उनकN
शीrोnच गित मानी गई है। ये <ह रे खादेश, अथात् उजियनी, के या%योर के आते हc, िज'ह0
देशांतर तथा चर संकार6 से अपने थान के मयम यV bदयास'नकािलक बनाया जाता है।
मद पटह -
पU सयू  और चंRमा कN पU गित िजस समय सबसे कम हो उस समय के पU सयू  और चRं मा का
िजतना भाग होगा उसे उनके मदं ोnच का भोग समझना ! । पU सयू  - चंR और म@यम सयू -
चंR के अतं र को मदं फल कहते हc # मदं ोnच से 180 कN दरू ी पर मदं नीच होता !" । मदं ोnच से छह
रािश तक पU सयू  चRं म@यम सयू  चRं से पीछे रहते हc। इसिलये मदं फल ऋण होता है। मदं ोnच से
उराख ड मु त िवविवालय 23
वष   BAJY- 301
म@यम <ह के अतं र कN मदं क0 R सं7ा है । मदं ोnच से 3 5  अतं र पर मदं फल परमािधक होता है।
उसे मदं ांBय फल कहते हc। मदं नीच से मदं ोnच तक पU <ह म@यम <ह से आगे रहता है, J:
&1P  B( !- !" । मदं पU रिव चRं के मदं फल को 7ात करने के िलये दो कार के Mे6 कN
क[पना है, िज'ह0 भिं ग कहते हc # @हली का नाम ितवृ P !" । भू को क0 R मानकर एक िया के
eयासाध से वृ खPचा, ! कMावृ ह9आ । इसके ऊ@वाधरeयास पर मदं अBयफल कN या के
त[ु य काटकर उस क0 R से एक िया eयास से वृ खPचा वह मदं ितवृ होगा। म@यम <ह को
मदं ितवृ म0 चलता कि[पत िकया। यिद कMा वृ म0 भी मदं क0 R के तु[य चाप काट0 तो वहाँ
कMावृ का म@यम <ह होगा। भक ू 0 R से ितवृ िथत <ह तक खPची गई रे खा कMावृ म0 !Z
लगे वह मदं पU <ह होगा। कMावृ के म@यम और मदं पU <ह का JP  &1P  !-  । नीचोnच
भिं ग के िलये कMावृ पर िथत म@यम <ह से मदं ांBयफलया त[ु य eयासाध से एक वृ खPच लेते
हc, िजसे मदं पWरिध वृ कहते हc। कMावृ के क0 R से म@यम <ह से जाती ह9ई रे खा जहाँ मदं पWरिधवृ
म0 लगे उसे मदं ोnच मानकर, मंद पWरिध म0 िवपरीत िदशा म0, क0 R के त[ु य अश ं 6 पर <ह कN क[पना
कN जाती है। <ह से भक ू 0 R को िमलानेवाली रे खा (मदं कण) िजस थान पर कMावृ को काटे !_
मदं पU <ह होगा । इस कार मदं पU िकए गए सयू  और चंR हम0 उन थान6 पर िदखलाई देते हc,
य6िक उनका tमण हम0 पृ^वी क0 R के सापेM िदखलाई पड़ता है। शेष <ह6 के िलये भी मदं फल
िनकालने कN वैसी ही क[पना है। उनका मदं ोnच पU <ह से िवलोमरीित dारा मदं पU का 7ान
करके 7ात करते हc। ये मदं पU <ह uय नहP होते, य6िक पृ^वी उनके tमण का क0 R नहP है। ऊपर
के िववेचन से पU है िक मदं पU <ह अपनी कMा म0 घमू ते <ह का भोग (longitude) !- !"#
अतएव भuू य बनाने के िलये पाँच <ह6 के िलये शीr फल कN क[पना कN गई !"#
हपट
&P , B , गvु , श:
ु , तथा शिन को पU करने के िलये शीrफल कN क[पना !" #  $ 
मदं ितवृ तथा मदं नीचोnच जैसी भिं गय6 कN क[पना कN जाती है, िजसके िलये मदं के थान पर
शीr शHद रख िदया जाता है # अतं <ह6 के िलये वातिवक म@यम<ह6 को ही शीrोnच कहते हc।
C( मा@य अिधकतम रिव<हांतर कोण (maxium elongation) को परमशीrफल,
परमशीrफल कN या को शीrाBं य फलया कहते हc । <ह (म@यमरिव) D शीrोnच का अतं र
शीrक0 R होता है। इसम0 मदं फल के िलये बनाई गई भिं गय6 कN तरह भिं गयाँ बनाकर शीrफल
(काला जाता है। इस कार के संकार से <ह का इU रिव<हांतर कोण करके <ह कN िथित 7ात
!- जाती है। बिह<ह6 के िलये रिवक0 िRक परमलंबन कN परमशीrफल तथा रिव को शीrोnच
मानकर शीrफल 7ात िकया जाता है। शीrफल के संकार कN िविध आचायh ने इस कार
िन=ाWरत कN है िक उपलHध <ह का भोग यथाथ आ सके ।
ह' क क(ाएँ -
<ह6 कN कMाएँ चंR, B , श:
ु , , U&, गvु , शिन के :म से उरोर पृ^वी से दरू हc। इनका क0 R
उराख ड मु त िवविवालय 24
वष   BAJY- 301
पृ^वी माना गया है # यिप <ह6 के साधन के िलये Bयेक कMा का अधeयास ियात[ु य कि[पत
$ !", तथािप उनकN अ'Bयफलया िभ'न होने के कारण उनकN दरू ी िविभ'न कार कN आती है।
शीrाBं यफलयाओ ं और ियाओ ं कN <हकMाeयासाधE और रिवकMाeयासाध से तल ु ना करने पर
B , श: ु , &P , बृहपित तथा शिन कN कMाओ ं के eयासाध पृ^वी से रिव कN दरू ी के सापेM
.3694, .7278, .1.5139, .5.1429 I 9.2308 आते हc। आधिु नक स_ू म मान .3871, .7233,
1.5237, 5.2028 I 9.5288 हc। <हकMा और :ांितवृ के संपात को पात कहते हc । <ह के
tमणमाग को िवमडं ल क! हc। :ांितवृ तथा िवमडं ल के बीच के कोण को परमिवMेप कहते हc #
( मान भक ू 0 िRक 7ात िकए गए हc। तमो<ह राह9 के तु सदा चRं मा के पात6 पर कि[पत िकए जाते हc
। पात कN गित िवलोम होती है #
<हणािधकार6 म0 सयू  तथा चRं के <हण6 का गिणत है। चंRमा का <हण भछू ाया म0 िवU होने से
तथा सयू <हण चंRमा dारा सयू  के ढके जाने से माना गया है। सयू <हण म0 लंबन के कारण भक ू 0 Rीय
चंR तथा हम0 िदखाई देनेवोल चंR म0 बह9त अतं र आ जाता है। अत:  $ P( का 7ान िकया
 !"#
PRशृगं ो'नित म0 चंRमा कN कलाओ ं को 7ात िकया जाता है। <हnछायािधकार म0 <ह6 के उदयात
काल तथा इUकाल म0 वेध कN िविध और पातािधकार म0 सयू  और चंRमा के :ांितसा%य का िवचार
िकया जाता है। िभ'न अयन तथा एक गोलाध म0 होने पर, सायन WरवचRं के $- 180°  &$
:ांितसा%य होने पर, eयितपात तथा एक अयन िभ'न गोलाध म0 होने पर वही योग 360° के त[ु य हो
तो :ािं तसा%य म0 वैधिृ त होती है। ये दोन6 शभु कायh के िलये विजत हc। <हयिु त म0 <ह6 के अित
साि'न@य कN िथितय6 का (य= ु समागम ) गिणत है। भ<हयिु त म0 नM6 के िनयामक िदए गए हc।
अिधंकाश पंचांग6 म0 ितिदन सयू bदय के समय कN <हिथित िलखी होती है । कुछ पंचांग6 म0
आधीरात कN <हिथित िलखी होती है । ाय: सभी पच ं ागं 6 म0 सयू , च'R, &P , B , वृहप,श: ु
5(, राह9 और के तु कN िथित िलखी रहती है । लेिकन कुछ पंचांगकार च'Rमा कN पOट िथित
नहP िलखते हc वहॉ नM6 के भयात और भभोग के आधार पर च'Rमा पOट ( !- !" #
योितष थम वष के पाठ्य:म म0 पOट च'R कN िविध बतलायी जा चक ु N है । यहॉ अ'य <ह6 का
पOटीN 1$  ! !" #
सयू पट 
वैशाख शु ल ितपदा मंगलवार को िदन म0 12 बजे िकसी बnच0 का ज'म ह9आ है । पOट सयू  का
B( ( !" )
माना कN इOट ) 15 EF 55 @ #
तथा उत ितिथ के अनसु ार पच ं ागं म0 मगं लवार को ात: 5#38 सयू bदयकाल का पOटसयू 
0#6#14#30 , बधु वार का सयू bदयकािलक पOटसयू  0#7#12#58 , दोन6 िदन6 के <ह6 का अ'त
कर यह पता करते हc िक 24 घ टे म0 सयू  कN िकतनी गित ह9ई % 0#7#12#58 ) 0#6#14#30 =

उराख ड मु त िवविवालय 25


वष   BAJY- 301
0#00#58#28 = 24 घ टे म0 गित = 58#28 !" # $ 24 घ टे = 60 EF !", - 60 घटी म0 गित
58#28 ह9ई । मगं लवार सयू bदय काल म0 सयू  कN पOटराया1 0#60#14#30 7ात है । बnचे 
ज'म सयू bदय के 15 EF 55 पल है । इतने समय म0 सयू  िकतना चलेगा यह 7ात करना है )
_V  60 घटी म0 58S # 28S  !" #
 1 घटी म0 58#28 / 60
15 EF 55 पल म0 58#28 × 15#55 /60 = 930 #35#40 /60 = 15S#30S#36S  &P  
सयू bदयकािलक पOटसयू  रायािद म0 जोड़ग0 तो ज'म !-  # " 0 #60#14#30 +
0#00#15#31 = 0 #60#30#1 यह ज'मकािलक पOट सयू  ह9आ । इसी आधार पर अ'य <ह6 का
ज'मकािलक पOट B( $  !" #
3.4 मुथा 
तािजक मत म0 म'ु था, म'ु थ!, इि'थहा आिद नाम6 से एक अ'य <ह (अकाशमान व भौितक िप ड
!) &( $ !" # इसकN दैिनक गित 5  !- !" # J: यह एक मास म0 30 × 5 = 150 $
20 30 चलने से वािषक गित 1 5 $ 300 के तु[य R !" #
ज'म समय म'ु था सदैव ज'म लTन म0 ही रहती है । अत: वतमान वष म0 म'ु था कN रायाBमक िथित
जानने के िलए ज'म लTन रािश म0 गत वष जोड़कर 12 का भाग देना चािहए । शेष अक ं के त[ु य
रािश म0 म'ु था !- !" #  <'थ म0 म'ु था साधन का लोक इस कार है -
*वज!मल3नात् ितवषमेकैकरारिशभोगान् मुथहाYमो: 
*वज!मल3नं रिवत'टयातशर0ुतं सा भमुखेि!थहा *या 
अथात् ज'म लTन म0 एक वष तक ज'मलTन म0 ही मथु हा रहती है । दसू रे वष म0 ज'म लTन  1V 
थान म0 इस :म से Bयेक वष म0 एक एक रािश भोग से मथु हा का tमण होता है । इसिलये
ज'मलTन म0 रािशथान म0 गत वष को जोड़कर 12 से भाग द0, तो शेष तु[य 5 D J5 P 1 -
लTन के अश ं ािदवत् इस कार वष म0 मथु हा होती है । अथात् सभी वषh म0 मथु हा के रािश ही
1 !" , अश ं ािद िथर ही रहता है ।
:यहं शरिलतािभवGते सा : 
साधमंश7यं मास इ:याहZ:   / : 
भाषाथ - Bयेक सौर िदन म0 5 कलाय0 , Bयेक एक मास म0 अढ़ाई अश ं अनपु ात से मथु हा बढ़ती
है । पOटता के िलये यह िकसी आचाय का कथन है । इसका योजन मासवेश और िदन वेश म0
पड़ता है । य6िक वषवेश कु डली म0 जो मथु हा है वह एक वष तक वहॉ ठहरती है, पर'तु
थममास वेश म0 भी वही मथु हा का मान ह9आ । अब दसू रे मास वेश बनाने म0 वषवेश कािलक
मथु हा म0 अढ़ाई अश ं जोड़ने से मथु हा होती है, तीसरे मास वेश बनाने म0 िdगिु णत अढ़ाई अश ं
अथात् पॉच अश ं जोड़ने से मथु हा होती है । ऐसे ही चौथे मास वेश म0 साढ़े सात अशं जोड़ने से
&I ! ( !" #
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वष   BAJY- 301
िदन वेश बनाने म0 ितिदन वेश म0 जो मथु हा है उसम0 5 , जोड़ने से अगले िदन वेश कN
&I ! ( !" #
यहॉ वषवेश म0 मथु हा मान जानने के िलये उदाहरण )
माना िक ज'म लTन ) 5#5#34#12 म0 रािश थान म0 गतवष 15 - 20#5#34#12 अब रािश था(
म0 12 !   1$ 5H 8#5#34#12 त[ु य म'ु था ह9ई । इब इसम0 अढ़ाई अश ं जोड़ा तो अि<म
िdतीय मास वेश म0 मथु हा ह9ई । 5 अंश जोड़ा तो तृतीय मास वेश म0 मथु हा ह9ई । एवं वषवेश के
थम िदन वेश कN मथु हा वही होती है जो वष वेश कN मथु हा है इसम0 पॉच कला जोड़ िदया तो
दसू रे िदन कN मथु हा बनी । इसी कार आगे का भी साधन करना चािहये ।
अया  न -
1. <ह6 कN मेषािद रािशय6 के सापेM पृ^वी कN पWर:मा को कहते है )
.5 R. नM ग.  N E. <ह
2. पOट सयू  ) च'R और म@यम सयू  ) च'R के अ'तर को या ! !" )
. &1P  R. शीrफल ग. म'दोnच E. शीrोnच
3. म'दोnच  ( 1V  @ &1P ( !- !" #
. 600 R. 1800 . 900 E. 1200
4. सयू  ) च'R पOटीकरण म0 आवय !- !" )
. &1P  R. शीrफल ग. म'दफल एवं शीrफल दोन6 घ. -
5. िवम ड और :ाि'तवृ के संपात - ! !" )
. P@ R. @ . िवकद%ब E. िवम ड

मु!था * ( 
1. म'ु था पर म'ु थेश कN uिU (तािजक uिU) !-( , :ूर <ह6 कN म'ु था से परपर के 'R िथित न होने
पर म'ु था वष म0 शभु होती है ।
2. शभु <ह6 व वामी <ह6 से uOट यु त  5  9,10,11 म0 म'ु था बह9त शभु फल देती है ।
1,2,3,5 म0 म@यम शभु अथात् पWरiम से लाभ एवं शेष 4,6 ,7,8,12 म0 बह9त अशभु होती है ।
सव :ूर व शभु <ह6 के योगािद से फल म0 तारत%य T( ! #
3. शभु <ह6 से इBथशाल करने पर म'ु था या अ'य कार से बली या शभु <ह6 से यतु uOट म'ु था,
  5  - ? !" I J5  - &  !" । इसके िवपरीत अशभु म'ु था
भाव के शभु फल को नOट करके अशभु फल कN वृि= करती है ।
4. ज'म लTन   4,6,7,8,12 रािशय6 म0 म'ु था रहने पर ाय: J5  ! 1 !" # J: ज'म
लTन व वषलTन दोन6 से अशभु होने पर िनच$ ! म'ु था अBय'त J5  1 !" #

उराख ड मु त िवविवालय 27


वष   BAJY- 301
5. राह9 के मखु म0 िवमान म'ु था शभु होती है । यिद ग>
ु श: ु का योग या uिU भी हो तो िनच$ 
पद ितOठा िदलाती है । लेिकन राह9 के पnु छ भाग म0 िवमान म'ु था यिद िवशेषतया पाप<ह6 के
योग या uिU म0 हो तो अचल स%पि, B( ) धा'य व सख ु कN हािन करती है ।
वषqश होने के पॉच अिधकाWरय6 का िनणय ) ज'मलTन का वा&, वष लTन का वा&, म'ु था कN
रािश का वा&, ैरािशश व समयेश ये पॉच <ह पंचािधकारी कहलाते हc । इ'हP पॉच6 म0 से कोई
एक सवािधक बली होकर लTन को देखता हो तो वही वषपित या वषqश होता है । वषqश कN िथित
से भी वष का स%पणू  शभु ाशभु फल भािवत होता है । तदनुसार पहले तीन अिधकाWरय6 का िनणय
सरल ही है । शेष दो का िनणय इस कार होता है ।
समयेश व ैराशीश )
िदन म0 वष वेश हो तो सयू  कN रािश का वामी एवं राि म0 वषवेश हो तो च'Rमा कN रािश कN
वा& &$5 ! !" #
ैराशीश भी बारह6 लTन6 के पृथक् पृथक् िदन राि लTन  1  24 होते हc । अथात् िदन म0 वेश
हो तो वष लTनानसु ारी िदन का ैराशीश व राि म0 वष वेश होने पर राि का ैराशीश वष लTन कN
5  1R( !-  #
(ैराशीश चP 
&0 O0 &0 कक !P क'या    वृिSक B( &0 0 &(
1( 0V श: ु 5( श: ु ग> ु च'R B &P  5( &P  ग> ु च'R
राि ग> ु च'R B &P  सयू  श: ु 5( श: ु 5( &P  ग> ु च'R

ज!मे ) &P , मु!थे ) B , (ैराशीश ) &P  , वष ल3ने ) च'R&,   ) 5(,
वषपित ) N$ #
3.5   
   अ@ययन के पचा/ A@ ( (  <ह या !", उनकN सDं या ( !-
है तथा <ह6 के पOटीकरण िकस कार िकया जाता है । मदं फल, शीrफल या है । सयू ािद <ह6 के
पOटीकरण म0 मदं फल एवं शीrफल कN भिू मका या है । मंदफल कN आवय  ) 
<ह6 म0 तथा शीrफल कN आवय  )  <ह6 कN पOटीकरण म0 पड़ती है । <ह6 के
मलू भतु अ@य$(  I ) साथ उनके पOटीकरण कN ि:या को उदाहरण सिहत आपने जाना ।
<हपOटीN  I ) साथ इस इकाई म0 तािजकोत म'ु था   पWरिचत ह9ये । म'ु था या !"
C B( िकस कार िकया जाता है आिद इBयािद का अ@ययन आपने इस इकाई म0 अ@य$(
कर िलया है । वतु: <हपOटीकरण योितष शा  & V B &(  !", C  AB
पर जनमानस के िलये महु xािद िववेचन तथा उसके eयि`गत जीवन का शभु ाशभु फल बताया जाता

उराख ड मु त िवविवालय 28


वष   BAJY- 301
है । तािजकोत म'ु था का 7ान भी परमावयक है । वतु : म'ु था के वल तािजक शा म0 ही पाया
 !", योितष के अ'य <'थ6 म0 म'ु था का समावेश नहP है । ।
3.6 पारभािषक शदा
  रािशय6 का समहू
क.प - 1 ! &!$  
अहगण  िदन6 का समहू

 &H, OH, िमथनु ािद dादश रािशयॉ
(ैरािशक - गिणत साधन कN वैिदक रीित
सूयIदयास!नकािलक - सयू bदय के आस ) @  &$
परमा!त  सवािधक अ'त
कEावृ5 - <ह जहॉ tमण करते है
लVब - सयू  ) च'R के गभ]य पृOठीय का अ'त
/0   पृ^वी कN छाया
उदया*त  उदय और अत
.(.  पंचांग िनमाण कता

)  ) ितिदन कN गित


मु!था - तािजकोत <ह
3.7 अया  न के उत
1.
2. 
3. R
4. 
5. R
3.8 सदभ थ 
तािजकनीलकठी ) & V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
Aयोितष सव*व ) F - सरु े श च'R िमi
 # ठी ) F ) आचाय िवव(I
3.9 िनबधामक  न
उराख ड मु त िवविवालय 29
वष   BAJY- 301
1. <हपOट से आप या &W !" %
2. म'दफल एवं शीrफल को समझाइये #
3. ज'मकािलक <हपOट साधन कNिजये #
4. म'ु था से या ताBपय है % पOट कNिजये #

उराख ड मु त िवविवालय 30


वष   BAJY- 301
  4 लन पट

इकाई क 
4.1 तावना
4.2 उे

4.3 ल.नप(ट
अया 
न 
4.4 

4.5 पारभािषक शदावली
4.6 अया 
न के उ र
4.7 स!दभ "!थ सचू ी
4.8 सहायक पाठ्यसाम"ी
4.9 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 31


वष   BAJY- 301
4.1 ता
तु  00 योितष तृतीय वष के थम प वषफल िवचार के चतथु  
ल3न*प'ट से स%बि'धत है । लगतीित लTनम् । लTन ज'मकु डली का ाण माना जाता है।
लTन का अथ होता है ) लगना । उदयिMितज वृ :ाि'त वृ म0 पवू  िदशा म0 जहॉ लगता है,C
लTन ! !" #
 पवू  कN इकाई म0 आपने <हपOट एवं म'ु था का अ@य$(  $ !" $!Z लTन
संबंिधत िवषय6  J@ययन ततु इकाई म0 (  ! !" # / स%बि'धत 7ान ततु इकाई म0
आपके समM तु !" #
4.2 उे य
 इकाई के अ@ययन करने के पचात् आप जान सके ग0 िक )
1. लTन से या ताBपय है ।
2. लTन  B( "  !- !" #
3. लTन के कार िकतने !" #
4. तािजकोत लTन या !" #
5. लTन का योितष म0 या महBव !" #
4.3 ल*नप$ट
लTनानयन कN सै=ाि'तक रीित के िलये कहा गया है )
त:का   क *य भु तभो3यां .  
*वोदया:खाि3न ल&धं यद् भु तं भो3यं रवे*:य 
इ'टनाड़ी पलेUय;च गतगVयाि!नजोदयान् ।
. ख[या . भ तमशुGेन 
 
अशुGशुGभे हीन यु तनुOय . 
अथात् ताBकािलक पOटसयू  म0 अयनांश जोड़ने से सायन सयू  होता है । सायन सूय के भु त $
भोTयांश6 को सायन सयू  कN रािश के वोदय मान से गणु ा कर0 । तब गणु नफल म0 30   1( 
लिHध भोTय या भु त काल होती है । इस भोTय भु त काल को इOटकाल के पल6 म0 से घटाकर जो
5H रहे उसम0 से आगे कN रािशय6 के भु त कार कार म0 िपछली रािशय6 के वो1$ &( -
EF m #  ( EF - 5H - 30 से गणु ाकर अश= ु रािशमान से भाग देने से लिHध अशं
कलािद होती है । उस अश ं कला के पहले अश =
ु रािश म0 से एक घटाकर रखने से 1सायन ल3 न 

उराख ड मु त िवविवालय 32


वष   BAJY- 301
उसम0 से अयनांश घटाने पर िनरयण ल3न1 !- !" # उदाहरणाथ -
ल ना -
&(  सूय*प'ट ) 4#270#50#0 राया1 !" , + . - 230#45#35 !", पवू  अ@या$ 
अनसु ार पलभा एवं चरख ड का <हण कर लेते है, इOट 8#20 घटयािद है तो लTना($(
लोकानसु ार इस कार से होगा )
*प'ट सूय - 4#270#50#0
+ . - + 230#45#35
5 # 210# 35 #35 - सायन सूय
300# 00 #00
- 210 # 35 #35 EF( @
80 # 24 # 25 भोTयां5
लTन साधन भु त या भोTय कार से िकया जा सकता है, यहॉ भोTय   $  ! !" #
सायन सयू  क'या 5  !" J: क'या 5  C1$ &( 345 से भोTयां5 - N  $ #
N ( 2898 # 11 # 25 A$ # & 30   1( @ 96#36#22 पलाBम &( A$ -
भोTय !" #
हमारा इOट 8#20 घटयािद है तथा उसका पलाBम &( 8 × 60 + 20 = 500 पल ह9आ ।
अब इOट पल6 म0 से भोTय - EF$ )
500 # 00 # 00
- 96 # 36 # 22
403 # 23 # 38 @ & #
इन पल6 म0 से जहॉ तक का पलाBम &( EF  , EF( @ )
403 # 23 # 38
- 345 # 00 #00    5  &( - 
  श=
ु रािश
58 # 23 # 38
अश= ु रािश वृिSक ह9ई, (नहP घटने के कारण ) #
शेष पल6 को 30  N  $ )
58#23#38
× 30
1740# 690 # 1140
इसम0 अश= ु रािश वृिSक के उदय मान 352   1$ ,  1( @ 4 J5 P 56  36
 A$, J: 7 # 4 # 56 # 36 सायन लTन !" #
0

इनम0 से पवू  यु त अयनांश घटाने से िनरयण लTन !-  J: -

उराख ड मु त िवविवालय 33


वष   BAJY- 301
7 # 40 # 56 # 36
- 230 # 45 # 35 - J$(P5
6  110  11  01  ल3न *प'ट 
इसी लTन पOट के आधार पर हम ज'मांग च: का भी िनमाण करते है । ज'मांग च: म0 जातक का
िजस समय म0 ज'म ह9आ होता है, उस समय को हम पचं ांग म0 दैिनक लTन साWरणी म0 देख लेते है ।
पचा/ Cस लTन को ज'मांग च: म0 िलखकर ताBकािलक न कु डली का िनमाण कर लेते है ।
िक'तु ज'मांग च: म0 गिणतीय रीित से लTनपOट का साधन कर ज'मांग च: म0 लTन - R !"#
सयू bदय के समय सयू  िजस रािश म0 हो वही रािश लTन !- , यह िनिSत है । लTन शHद से ही तीत
होता है िक एक वतु का दसू रे वतु म0 लगना । इसीिलए कहा गया है िक - लगतीित ल3न #
वतु : लTन म0 यहP होता है य6 इOटकाल म0 :ाि'तवृ का जो थान उदयिMितज म0
!Z   !" , वही राया1 (5, J5 P ,  , ) लTन !- !" # $I - )
भव5 ृ ं ा कुजे य( ल3नं ल3नं तदु\य 
प;चा  *त ल3नं *यात् तुयR याVयो5रे :व: 
उ@वR याVयो5रे य( ल3नं त]शमािभधम् ।
रा;या0 जातकादौ तद् गृ^ते Oय . 
अथात् :ाि'तवृ उदयिMितज वृ म0 पवू  िदशा म0 जहॉ पश करता है, उसे लTन कहते है । पिSम
िदशा म0 जहॉ पश करता है,उसे स8तम लTन I JB: िदशा म0 चतथु  लTन और उ@व िदशा म0
दशम लTन !- !"। लTन कN यह पWरभाषा सै=ाि'तक गोलीय रीित से कहा गया है । पच ं ांग म0 भी
दैिनक लTन साWरणी िदया होता है । उसम0 एक लTन 2 घ टे का होता है । इस कार से 24 घ टे म0
 12 लTन होता है । यह लTन पंचांग म0 महु xh के िलये िदया गया होता है । िकस लTन म0 कौन सा
काय शभु होता है तथा कौन अशभु , इसका िववेचन पच ं ागोत लTन  J(  ! $  !" #
िजस िदन सयू  अपनी रािश का सं:मण करते है अथात् सयू  सं:ाि'त के िदन ात: काल सयू bदय
का समय व सयू  कN अिधिjित रािश के लTन का ार%भ ाय: एक ही होता है अथात् मेष रािश म0
सयू  14 अैल को जाता है । अत: िजस समय सयू bदय होगा, उसी समय मेष लTन का ार%भ !-  #
तBपचा/ OH, &I( , कक ,P!, क'या,  , वृिSक, B( , & , कु%भ एवं मीन आिद dादश
लTन !- !" #
सा,पाितक काल से ल नपट 
सा%पा इOटकाल बनाकर उसी के मा@यम से सा%पितक लTनपOट होता है । @यातeय !- 
सा%पाितक लTनानयन के िलये एफे मेWरज सारणी का योग िकया जाता है । सवथम टै0 F0
9:30 A.M को थानीय समय बनाये । एतदथ टै0 अ'त 21 &(F 8 सेके ड को टै0 F0 म0
 EF$ - 9.30.00 - 0.21.08 = 9.08.52 A.M था($ &$ $ LMT ह9आ । यह
&$ 1-@! 12   ( @! !" $! ((  $  12 बजे म0 से घटाया तो 12:00 -
उराख ड मु त िवविवालय 34
वष   BAJY- 301
9.08.52 = 02.51.08 घ टे अ'तर ा8त ह9आ । इसे ितघ टा 10 0 कN दर से बढ़ाया, य6
पृ^वी tमण के 24 घ टे × 10 सेके ड = 24 ×60 ×60 × 10  ड = 24 × 36000 सेके ड =
864000 सेके ड वाले भेद को िमटाना आवयक है । इसके िलये लहरी कN लTन साWरणी के पृOठ
5 @  N  1  !" #
2घ टे का संका = 20 सेके ड
51 िमनट का संका = + 08 सेके ड  
28 सेके ड
J: श= ु व काय योTय अ'त 2.51.08 EFP  + 0.00.28 EFP  -(  2.51.36 ह9आ । इसे 12
बजे के सा%पा  11.34.00 म0 से घटाया )
11.34.00 EFP  12 बजे का सा%पा 
2 .51.36 घटं े संकृ त का अ'त
8.42.24 अभीOट कालीन सा%पा 
हमने िद[ली के अMांश 280. 39 पर िनिमत लTनसाWरणी लहरी कN पु त  J-( $#
हमारा सा%पाितकइOट 8.42.24 EFP  !" #
0JP00
8 EFP  40 िमनटपर लTन 6 . 11. 56
2 िमनट का सं का 0. 0. 26
24 सेके ड  अ'त + 6#120# 27
उत लTन ा8त ह9आ । इसम0 अभी अयनांश संकार करना शेष है । लहरी कN सभी लTन
साWरिणयॉ 23 अश ं अयनाश ं के आधार पर बनी हc । वतमान म0 अयनाशं 230 .45 !" # J: 45
इसम0 से घटाना आवय !",तब हमारा अभीOट िनरयण लTन !-  #
6.120.27 ह9आ 23 अयनांश पर लTन
45
6.11 .42 ह9आ 230 45 अयनांश पर लTन #
0

लTन साधन कN ि:या dारा ही दशम लTन का 7ान भी लहरी कN लTन साWरणी से दशम लTन 
पृOठ  $   !" #
8 EFP  40 &नट पर दशम लTन - 3.14.35
2 &(F 24 सेके ड का संका - + 0.0.36
3#150#11
इसम0 लTन कN तरह ही 45 का अयनाश ं सं कार करने से अभीOट दशम लTन $ 3.140.26 ा8त
ह9आ ।

उराख ड मु त िवविवालय 35


वष   BAJY- 301
 कार से हम लTनायन को जानकर ज'मांग च: का भी िनमाण कर लेते है, और ज'मांग च: को
पOट <ह6 के आधार पर कु डली का िनमाण कर लेते है । ज'मांग च: म0 िथत <ह6 के अनसु ार
िन%न कार से फलादेश आिद कतeय  !" -
ज'मांग च: के dादश भाव म0 dादश रािश िथत कर ज'मांग च: का िनमाण िकया जाता है, $!
पOट हो चक ु ा है । थम भाव म0 जो रािश िलखी जाती है,उसे लTन कहते है । Bयेक लTन  
िभ'न ) िभ'न हc और वह िन%नR अनसु ार हc । जैस:े -
मेष ल3न - इस लTन म0 ज'म िलया ह9आ जातक च ड J&(, N (, :ोधी , िम िवरोधी,
दOु टP  , अपने परा:म से यश ा8त करने वाला व अBय'त रोषयु त !- !" #
वृष ल3न - वृष लTन वाला जातक बह9त गणु वान, धन से पणू , NB, 5V , शा'त िच ,
ियवचन बोलने वाला ग> ु जन6 का भत !- !" #
िमथुन ल3न - िमथनु लTन   - , iेOठ अनेक पु व िमवाला,ग8ु त बात को ग8ु त
R( ,B((, सश ु ील और राजा के समान उसकN िथित होती है ।
कक ल3न - कक लTन वाला जातक साधजु न6 का भत , नy व, िनर'तर उदार िच,
1(5, ! (  , कामी व िमOठा'न -( (  !- !" #
िसहं ल3न - िसहं लTन वाला जातक दबु ल शरीर, महापरा:मी, - , अ[प पु 6वाला,अ[प
-( ( , बिु =मान व अिभमानी होता है ।
क!या ल3न - क'या लTन वाला जातक उम 7ानी, N , बल व भलाई से यु त, 1"
स'निच, िनBय ल_मी ा8त (  !- !" #
तुला ल3न - तल ु ा लTन   JB N , धनलाभयु त, eयापार काय म0 अित िनपणु ,
उसके गृह म0 ल_मी िनBय वास करती हc और वह अपने कुल का iेOठ  HV N !- !" #
वृि_क ल3न - वृिSक लTन वाला जातक अनेक िवा म0 िनपणु , सदा कलहिय, शरू वीर वृि का
!- !" #
धनु ल3न ) धनु लTन वाला जातक सBय1 ,   , बिु =मान, दसू र6 के मन कN बात
जानने म0 िनपणु , 7ानवान, धनिु वा म0 िनपणु व कलाकुशल होता है ।
मकर ल3न - मकर लTन   T- &(, जो मन म0 आये वह काम करनेवाला, T,
अनेक स'तान6 वाला, अित चतरु होते ह9ये बह9त लोभी होता है ।
कुVभ ल3न - चंचल व , J&, लोग6 से िमता रखनेवाला, द%भी और धा'य 
यु त !- !" #
मीन ल3न - मीन लTन वाला जातक बह9त चतरु , अ[प&, उम रBन AHV N BN (,
P, धतू , िश[पशा म0 िनपणु होता है ।
अयास  न -
1. ताBकािलक पOट सयू  + J$(P5 = %
उराख ड मु त िवविवालय 36
वष   BAJY- 301
. पOट सयू  ख. म@यम सयू  ग. सायन सयू  घ. िनरयण सयू 
2. सायन का शािHदक अथ है )
. J$(5 P ! R. J$(5 P ! . J$(5 P E. कोई नहP
3. :ाि'तवृ उदयिMितज वृ म0 पवू  िदशा म0 जहॉ पश करता है, C ! !" )
. लTन R. दशम लTन . चतथु  लTन E. स8तम लTन
4. 1 लTन म0 िकतने घ टे !- !" )
. 2 R. 3 . 4 E. 5
5. लTन6 कN संDया !- !" )
. 10 R. 11 . 12 E. 13

यह लTन फल शभु <ह6 कN युित ) योगािद पर अवलि%बत है अ'यथा यिद लTन भाव पर पाप<ह6
कN यिु त व uिU हो अथवा लTन िनबल हो तो यह फल कम माण पर िमलेगा । यह पाठक को @या(
R( !-  #
सू`म ल3न  # )
लTन िस= करने के िलये सयू  के उदय समय का 7ान होना अBय'त Aवय !", यह पOट !" 
िक'तु पवू  से पिSम के शहर6 म0 िभ'न - िभ'न समय पर सयू bदय होना स%भव है । ऐसे िथित म0
&H - 278 @ कक ) 323 @   ) 278 @ & ) 323 @
OH ) 299 @ !P - 299 @ वृिSक ) 299 @ कु%भ ) 299 @
&I( ) 323 @ क'या ) 278 @ B( ) 323 @ &( ) 278 @
िजस थान पर सयू bदय िनिSत करना हो उस शहर के पलभा पर से चरख ड जानकर उपर िदये ह9ये
तीन रािश म0 से घटाओ और कक से क'या रािश के के पल6 म0 जोड़ो,    5! 
सयू bदय का पलाBमक उदय का 7ान होगा व तल ु ा से धन रािश के पल6 म0 जोड़ने और मकर से मीन
रािश के पल6 म0 घटाने से dादश रािश का पलाBमक रिव उदय समय 7ात िकया जा सकता है ।
पलभा आनयन कN िविध पवू  के अ@याय6 म0 कN जा चक ु N है । J: उसी आधार पर िजस शहर कN
@  A($( ( !-, करके उसी आधार पर उस शहर का अभीOट समय का 7ान िकया जा
सकता है । इसी आधार पर उस शहर म0 ज'मे िकसी जातक का अभीOट लTन  A($( (
!$ #
लTन म0 रिव से शिन तक स8त <ह म0 जो <हिथित हो उसका फल िन%न J(  ( !$ )
1. ल3न मa सूय का फल - म@य& q_ 5, लाल गौर वण, &, B, उBसा!,
िपकृ ित, & -(  #
2. ल3न मa च!2  * ) >पवान, गोरा वण, स'ु द 5, &H, तेज ऑख0 ,
चंचल व, 1  ) @ 5, कफ वात िप कृ ित, ि{य6 को िय ।

उराख ड मु त िवविवालय 37


वष   BAJY- 301
3. ल3न मa मंगल का फल - O 5 5, लाल वण ने, ! @ &  1 ,धैयवान,
C1 , चंचल व, :ूरuिU , उ< व, &, :ोधी ।
4. ल3न मa बुध का फल ) स'न&R  , (-1 HN,&V 5  बुि=मान,बोलने म0
वीण, िपंगल ने, )  )िप कृ ित ।
5. ल3न मa गुb का फल ) - , थ ू 1!, ल%बी ( , qrचा मत, गोल ने ,
1,िवdान,िथर िच, ग%भीर व, <'थपठन ेमी ।
6. ल3न मa शP ु का फल ) - , कोमल स'ु द 5,तेजवी काि'त,पानीदार ऑख0,
EEP  , sTP , पोशाक का शौकNन, eयविथतकारभारिय, ीिय व
सगु ि'धत पदाथh का शौकNन ।
7. ल3न मa शिन का फल - O 5 5,  P , पीले ने,म'दबिु =, !(,
O @N,A, &H पर'तु :ोधी,  , उBसाही व वात कृ ित ।
4.4   
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  :ाि'तवृ उदयिMितज वृ म0 पवू 
िदशा म0 जहॉ पश करता है, उसे लTन कहते है । पिSम िदशा म0 जहॉ पश करता है,उसे स8तम लTन
I JB: िदशा म0 चतथु  लTन और उ@व िदशा म0 दशम लTन होता है। लTन कN यह पWरभाषा
सै=ाि'तक गोलीय रीित से कहा गया है । पंचांग म0 भी दैिनक लTन साWरणी िदया होता है । उसम0 एक
लTन 2 घ टे का होता है । इस कार से 24 घ टे म0  12 लTन होता है । यह लTन पच ं ागं म0
महु xh के िलये िदया गया होता है । िकस लTन म0 कौन सा काय शभु होता है तथा कौन अशभु ,
इसका िववेचन पंचागोत लTन  J(  ! $  !" #
िजस िदन सयू  अपनी रािश का सं:मण करते है अथात् सयू  सं:ाि'त के िदन ात: काल सयू bदय
का समय व सयू  कN अिधिjित रािश के लTन का ार%भ ाय: एक ही होता है अथात् मेष रािश म0
सयू  14 अैल को जाता है । अत: िजस समय सयू bदय होगा, उसी समय मेष लTन का ार%भ !-  #
तBपचा/ OH, &I( , कक ,P!, क'या, 
 , वृिSक, B( , & , कु%भ एवं मीन आिद dादश
लTन !- !" #
4.5 पारभािषक शदा
सायन सूय  अयनांश सिहत सयू 
भो3यां - भोगा ह9आ अश
ं मान
 *  गणु ा करने पर ा8त 
इ'ट  अभीOट &$
अशुG रािशमान - - 5&( EF ( !-
ल3ना  - लTन का आनयन अथात् पOटीN
उराख ड मु त िवविवालय 38
वष   BAJY- 301
भवृ5  :ाि'तवृ
ाक् - पवू 
उ@व - C@
+:  (
पंचांगो त  पंचांग म0 कहे गये
संPमण  पWरवतन
4.6 अया  न के उत
1.
2. R
3. 
4. 
5.
4.7 सदभ थ 
तािजकनीलकठी ) & V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
Aयोितष सव*व ) F - सरु े श च'R िमi
तािजक नीलकठी ) F ) आचाय िवव(I
4.8 सहायक पाठ्यसाम ी
जातकपाcरजात ) आचाय वैनाथ ) चौख%भा िवाकाशन
वृह:पराशर होरा शा*( ) चौख%भा िवाकाशन
वृहAजा ) !&! ) चौख%भा काशन
*
#  ) चौख%भा िवाकाशन
4.9 िनबधामक  न
1. लTन से आप या &W !" % पOट कNिजये ।
2. लTनपOट कNिजये ।
3. लTन  R$ #

उराख ड मु त िवविवालय 39


वष   BAJY- 301
  5 वशष िनणय

इकाई क  


5.1 तावना
5.2 उे

5.3 वष1श िनण य
अया 
न -
5.4 

5.5 पारभािषक शदावली
5.6 अयास 
न के उ र
5.7 स!दभ "!थ सचू ी
5.8 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 40


वष   BAJY- 301
5.1 ता
तु  00 योितष तृतीय वष के थम प वषफल िवचार के पंचम 
वषdश िनणय से स%बि'धत है । वषqश िनणय तािजक <'थ का एक महBवपणू  िवषय है ।
तािजकनीलक ठी म0 सं7ात' के अ'तगत इसका िववेचन िकया गया है ।
पंचािधकाWरय6 म0 सवािधक बली को वषqश कN सं7ा दी जाती है । वषqश 7ान हेतु पंच अिधकारी का
 $  !" #
 पवू  कN अ@याय6 म0 आपने <हपOट, म'ु था एवं लTनपOट - &W $ !" # $!Z
आइये अब हम वषqश िनणय का अ@य$(  !" #
5.2 उे य
 इकाई के अ@ययन करने के पचात् आप जान सके ग0 िक )
1. वषqश से या ताBपय है ।
2. वषqश िनणय "  !- !" #
3. वषqश िनणय के िलए आवयक तBव या !" %
4. तािजकोत वषqश  या महBव !" #

5.3 वश.ष िनण य


वष-श
 योजन 
ि(रािशपा: सूयिसतािक शुPा िदने िनशीAये!दुबुधEमाजा: 
मेषा\चतुणI हcरभाि7लोमं िन:यं परे'वािक कुजेAयच!2ा: 
अथात् िदन म0 वेश हो, तो मेष का सयू , वृष का श:ु , &I(  B , कक का मगं ल िराशीश
होते हc । िसंहािद चार रािशय6 म0 िदन म0 वषवेश होने से, मेषािद चार रािशय6 के जो राि के
िराशीश, वे :म से िराशीश होते हc । मेषािद चार रािशय6 के जो िदन के िराशीश वे िसंहािद चार
रािशय6 के राि म0 होते हc । शेष धनु, &, कु%भ, मीन इन रािशय6 के िदन या राि म0 :म से शिन,
&P , ग> ु और च'Rमा िराशीश होते हc #
वषdशाथ िदनिनशािवभागो तािeरािशपा: 
पंचवगfबला0थd 2े'काणेशाि!विच!त  
अथ ) िरािशपा: सयू िसतािक श: ु ा इस लोक से जो िराशीश , िदन राि िवभाग करके किथत हc
उराख ड मु त िवविवालय 41
वष   BAJY- 301
! के वल वषqशिनणय के िलए ही हc । पंचवग]यबल साधन  िलये आा: कुजाा रिवतोX@
म@य&: । इस लोक के अनसु ार जो RेOकाN5 िथत है वह <हण करना चािहए ।
िन%निलिखत च: dारा आप िराशीश को समझ सकते है )
 . 6. . . . .  . 6. . .  . #.

 .V 5. 5. 5. O. P. . &.P 5. &.P O. P.
रा(ौ O. P. . &.P .V 5. 5. 5. 5. &.P O. P.

वषdशिनणयाथ पच ं ािध# 
ज!मल3नपितर&दल3नपो मु!थहािधप इतिeरािशप: 
सूयरािशपितरिg च!2माधी;वरो िनिश िवमृ;य .( 
बली य एषां तनुमीEमाण: स वषपो ल3नमनीEमाण: 
नैवा&दपो h'ट : *या7ल*य साVये िवदुरेवमा0ा: 
अथ ) ज'मकािलक लTन का वा&, वषकािलकलTनका वा&,मथु हा का वा&, िराशीश, 1(
म0 वषवेश होने से सयू  िजस रािश म0 हो उसका वामी राि म0 वषवेश होने से च'R& 
रािश म0 हो, उसका वा&, इन पॉच6 को िवचार कर उसम0 जो सवािधक बली हो और वष लTन -
 1R !-, वही वषqश होता है । जो वष लTन को नहP देखता हो वह सवािधक बलवान होने पर
भी वषqश नहP होता है । यिद उन पचं ािधकाWरय6 म0 सभी या चार, ( JI 1-  & 5
ह6 तो िजनकN uिU लTन @ 5H !-, वह वषqश होता है ।
hिiसाVये Oयव*था 
hगािदसाVयेय िनबल:वे वषािधप: *या!मुथहे;वर*तु 
पंचािप चे!नो तनुमीEमाणा वीयािधको&द*य िवभुिविच!:य: 
भाषाथ ) यिद पॉच6 अिधकारी <ह6 के बल तथा लTन के उपर uिU समान हो या सब िनबल ह6 तो
मथु हा के वामी <ह ही वषqश होता है । अगर पंचािधकारी <ह6 म0 कोई भी लTन को नहP देखे तो उन
पॉच6 म0 जो सबसे अिधक बली हो वही वषqश जानना चािहए ।
अथ वषवेशिनणय: -
यहॉ ज'मलTन@ - B
वषलTन@ ) च'R
&I !5 ) ग> ु

उराख ड मु त िवविवालय 42


वष   BAJY- 301
िरािशपित ) श: ु
सयू राशीश: - &P 
बलदशक चP 
Bह च!2 . 7
गुb शP

7 :;#79 =#[= ^#:^ ::#\] :7#9]
hिi ;; ;;#\; ;;#\9 ;;#:9 ;;#\;
संjया

$!Z ज'मलTने5 B , वषलTनेश च'R& , मथु हेश वृहप, िराशीश श: ु , सयू राशीश मगं ल हc,
इन <ह6 म0 सबसे अिधक बलवान श: ु ही है, वह लTन - 1R !", इसिलये श:ु ही वषqश ह9आ ।
पंचािधकाWरय6 म0 सबसे बलवान <ह यिद लTन को नहP देख,े तो उससे आस'न 'यनू बली जो लTन
को देखे वही वषqश होता है । वषqश होने म0 बल और uिU दोन6 कN आवय !" #
अ!य मत मa hिiबलह साVये वषdशिनणय 
बलािदसाVये  "िg िनशी!दुराशीिडित के िचदाहZ: 
येने:थ "&द : शशी स वषािधप;च!2 "!यथा:वे 
भाषाथ ) बल और uिU कN समता म0 िदन म0 वषवेश होने से सयू  िजस रािश म0 ह6, उसके वा&
वषqश होते हc, राि म0 च'Rमा िजसके रािश म0 ह6 वह वषqश होता है । उत िनयम से यिद च'R&
वषqश हो और वह पंचािधकाWरय6 म0 िकसी से इBथ5  !-, तो वह इBथशाल करनेवाला <ह
ही वषqश होता है । यिद च'Rमा इBथ5   (  !-, तो च'Rमा िजस रािश म0 हो, C
रािश का वा& वषqश होता है । यहॉ इस िनयम से च'Rमा वषqश नहP िस= ह9आ, लेिकन रात म0
वषवेश हो , और च'Rमा अपने ही रािश म0 िथत हो तो उस हालत म0 च'Rराशीश वयं च'R& !
ह9आ, J: वही वषqश होगा ।
वषqश िनणय ) वषqश बनने के पॉच अिधकाWरय6 ) ज'मलTने5, वष लTने5 , म'ु थे5 &$5 
ैराशीश म0 से िकसे वषqश माना जाय,इस का  &W   !" )
1. पॉच6 म0 से जो <ह सबसे अिधक पंचवग] बल से यु त हो और वष लTन - 1R !- -
वही वषqश होगा ।
2. यिद बलानसु ार सवािधक बली होने पर भी वह <ह लTन को न देखता हो तो वषqश नहP हो
 #

उराख ड मु त िवविवालय 43


वष   BAJY- 301
3. ऐसी िथित म0 वह <ह जो सवािधक बली <ह से कम बली भी हो, लेिकन लTन - 1R
हो तो वही वषqश होगा ।
4. यिद कभी संयोगवशात् सभी <ह6 का पंचवग] बल समान हो जाए तो जो <ह लTन -
अिधक कला uिU से देखता हो, वही वषqश होगा ।
5. यिद सयं ोगवशात् सभी िवचारणीय <ह6 कN uिU भी समान हो और बल भी समान हो या
पॉच6 म0 से िकसी कN भी uिU लTन पर न हो तो ऐसी िथित म0 सवबली <ह को वषqश माना
  #
6. यिद पॉच6 म0 से िकसी कN भी uिU लTन पर न हो तो ऐसी िथित म0 सवबली <ह को वषqश
&(   #
uिU व बलानसु ार िनणय न हो सके तो कुछ आचाय म'ु थेश को व कुछ आचाय ैराशीश को वषqश
मानने का पM रखते है । ैरािशश को वषqश मानने पर एक समया D CT R !- !" # C
िथित म0 च'Rमा भी वषqश हो सकता है । ाय: आचाय च'Rमा को वषqश मानने के पM म0 नहP है ।
च'Rमा को यिद वषqश ा8त !-, जैसा िक राि के वषवेश म0 कक रािशथ च'R& !-( @ -
च'Rमा भी पंचािधकाWरय6 म0 थान पा जाएगा । तब च'Rमा िजस <ह से इBथ5  , उसे वषq5
&(( ! #
िवचारणीय है िक च'R& P$- 5/ इBथशाल न करे तब या !-  % तब तो च'R& - !
वषqश मानना पड़ेगा । अत: ल%बे पWरवतन के बजाय यही माना जाए िक जो बलवान <ह लTन -
देखे या पवू bत अ'य िनयम6 से सात6 <ह6 म0 से जो भी वषqश आता हो, उसे ही वषqश माना जाए
तथा िववाद कN िथित म0 म'ु थेश को वषqश माना जाए । यिद ऐसा न होता तो तािजकनीलक ठी म0
च'Rमा के वषqश होने का फल भला य6 R  % J: च'Rमा भी वषqश हो सकता है ।
म'ु थेश के पM म0 यह बात भी रहती है िक म'ु थेश सदैव ज'म लTन से सदु शन िविध म0 चलने वाली
वािषक दशा का अिधपित या सदु शनपित भी होता है ।
वष-.व िनणय -
ज!मल3नपितर&दल3न " मु!थहािधप इित ि(रािशप: 
सूयरािशपितरिg च!2भाधी;वरो िनिश िवमृ;य .( 
बली य एषां तनुमीEमाण: स वषपो ल3नमनीEमाण: 
नवा&दपो h'ट : *याद् बल*य साVये िवदेरेवमा0ा: 
hगािदसाVयेयथ िनबल:वे वषािधप: *या!मुथहे;वर*तु 
.( नो चे5नुमीEमाण वीयािधको&द*य िवभुिविच!:य: 
उराख ड मु त िवविवालय 44
वष   BAJY- 301
अथात् ज'म लTन का वा& :, वषलTने5 [ , &I !5 7, िराशीश \ िदन म0 वषवेश होने से
सयू  िजस रािश म0 हो उसका वा&, रात म0 वषवेश होने से च'Rराशीश अथात् च'R िजस रािश म0
!-, उसका वा& 9, इन पॉच6 को िवचार कर के , कौन सा <ह िकसका अिधकारी है % $! 
( !$,इन पॉच6 म0 जो सबसे बलवान हो और लTन को भी देखता हो वही वषqश होगा ।
सवािधक बली होकर भी अगर लTन को नहP देखता तो वह वषqश नहP होता ।
J र पॉच6 अिधकारी समान बल वाले ह6 , तो जो <ह लTन को अिधक uिU से देखे , वही वषqश
!-  #
अयास  न
1. िदन म0 वेश हो तो कक का िराशीश होता है )
. सयू  ख. &P  . B E. ग> ु
2. वष िनणय म0 योगाथ होता है )
. िअिधकारी ख. @P B . H>/JB E. कोई नहP
3. जो वष लTन - 1R !- !  !" )
. वषqश ख. 55 . िराशीश घ. &I !5
4. &I !5 !" )
. रािश का वा& R. मथु हा का वा& . लTन का वा& E. नM का वा&
5. पणू ब ली वषqश सयू  हो तो )
. 1: R R. R  . !( E. कोई नहP

यिद पंचािधकाWरय6 के बल और uिU भी समान हो, और पॉच6 दबु ल ही ह6 ऐसी िथित म0 मथु हेव
जो <ह है, उसी को वषqश समझना चािहये । अगर पॉच6 म0 एक भी <ह लTन को नहP देख,े तो जो <ह
सब से पच
ं ािधकाWरय6 म0 अिधक बलवान हो वही वषqश होता है ।
वष-श फल 
अ&दािधपो Oययषड'टमिभ!नसं*थो ल&धो
"&द ": सhशो बलेन् ।
:शेषमु5मफलं िवदधाित काये नैbAयराAयबललि&धरतीव सौjय 
बलपूणd&दपे पूणR शुभं म@ये च म@य 
+
:खशोकाcरभयािन िविवधा:  (: 
अथात् यिद वषqश 8#]#:[ इन थान6 से अ'य ह6 , C1 !-, वषवेश और ज'मकाल म0 भी
बलवान ह6 तो सभी फल उम होते हc । शरीर म0 आरोTय, , पिु U, रायाि| और अBय'त R 
!- !" #
पणू ब ली सयू  वषqश होने से, रायR
 , पु , B( , 5
P  J(  &  JB, पWरजन
R  , पणू य श, !O R
 , अनेक कार कN ितOठा, शनु ाश आिद फल होते हc । यहॉ ज'म 
उराख ड मु त िवविवालय 45
वष   BAJY- 301
<ह6 के बलाबल समझते ह9ये फल िवषय म0 िवचार करना चािहये । जैसे ) ज'म और वष समय म0
पणू  बली हो तो परू ा शभु फल होगा । यिद दोन6 काल म0 एक म0 पणू ब ली, दसू रे म0 म@य -
अपेMाकृ त कम शभु फल होता है । य1, एक काल म0 पणू ब ली दसू रे काल म0 हीनबली हो, -
म@य&, यिद दोन6 समय म0 म@य&  ! !-, तो म@य& ! !( !$ # $1  
म0 म@यमबली दसू रे म0 Mीणबली हो तो 'यनू शभु फल कहना चािहये । यिद दोन6 काल म0 हीनबली ही
!-, तो अBय'त 'य(ू 5 , Bयु 5H J5 !  !( !$ # " ) शभु फल कN
माा घटेगी, वैसे अशभु फल कN माा बढ़ेगी यह समझना चािहये ।
म1य बली सयू  का वष-श फल
*या!म@य फलिमदं िनिखलं तु म@यं
*व.पं सुखं *व"िप िवषादमाहZ: 
*थान\युितन च सखु ं कृशता शरीरे
भीितनृपा!मुथिशलो न शुभेन चे:*या 
अथात् पॉच - दश के बीच बल वाले म@यम बली सयू  यिद वषqश ह6 तो यह जो पणू ब ली वषqश म0
सभी फल कह0 गये है वे साधारण फल है ऐसा समझना चािहये । और अ[प R, अपने पWरजन से
 1 !-, और था( (5, सख ु नहP , शरीर म0 दबु लता,   $ !-, यिद शभु <ह से वषqश
का इBथशाल नहP होता हो तो ऐसा समझना चािहये अथात् म@यबली होता ह9आ भी यिद शभु <ह से
इBथ5  !-, - 5  ! !( !$ #
हीनबली सूय का वष-श फल 
सयू d बलेन रिहते&दपतौ िवदेशयानं धनEयशुचोcरभयं च त!2ा: 
लोकापवादभयमुBbजो
:खं िप(ािदतोिप न सख ु ं सतु िम(भीित: 
अथात् बलहीन पॉच से 'यनू बल यु त सयू  यिद वषqश हो, - @15 &(, B((5,5-, - ,
शभु य, आलय , -@1, T( - , अBय'त ले5, िपता आिद ेमी पWरजन6 से भी सख ु
नहP, Bयतु पु दोत   > !- !" # s &W( !$ #
च5 वष-श फल 
च!2े &द  मुथिशलं येनासाव&द "*य ( 
कVबूलिम!दुना ज!म िनिश वषd तदो5मम् ।।
अथात् च'Rमा वषqश होकर िजस िकसी <ह से इBथ5  , वही वषqश होता है यह कह आये हc,
अब वह वषqश यिद च'Rमा से कबल ू योग करता है और रात का ज'म हो तो वह वष उम होता है ।
पूणबली च5
 वष-श  
वीयाि!वते शिशिन िव5कल(पु(
िम(ालय*य िविवधं सख ु माहZराया: 
e3ग!धमौिDकदुकूलसुखानुभूित
उराख ड मु त िवविवालय 46
वष   BAJY- 301
लाभ: कुलोिचतपद*b 6 ): सिख:व 
पणू ब ली 10 से अिधक बल वाला च'Rमा यिद वषqश हो, - B( , ी ) पु मकान के अनेक
कार का सख ु होगा ऐसा फल कहना चािहये । &, सगु ि'धत Reय, &- , व}, सखु 6 का
अनभु व हो । अपने कुलोिचत पद का थानािधकार का लाभ हो । राजाओ ं से िमता होगी । ऐसा
 !( !$ #
म1यमबली च5 का वष-श फल 
वषािधपे शिशिन म@य7  * 
म@या!यमूिन cरपुता सतिम(वगk
ु :
*थाना!त " 6 #
;ले'मोTव;च 
 6*: 
भाषाथ - यिद म@यबली च'Rमा वषqश हो तो पणू ब ली च'Rमा वषqश होने से जो फल कहा है, 
सभी साधारण चािहये और पु िम वगh से भी शतु ा, दसू रे जगह म0 जाना , शरीर म0 दबु लता होना
आिद फल मDु य >प से होता है । यिद वैसा म@यबली च'Rमा वषqश होकर पाप<ह से ईसराफ योग
करता हो तो कफ का कोप होता है ।
(ीणबली च5 का वष-श  
न'टे&दपदे शिशिन शीतकफािदरोग;चौयािदभी: *वजनिवBहमयुशि!त ।

/ : सुतकल(सुखEय;च *या!मृ:युतु.य#7  . 
अथात् अतंगत च'Rमा वषqश होने से शीत, , य_मा, RP, रोग होता है । वजन6 से चोरी
आिद का भय होता है । यिद अितहीन बल च'Rमा वषqश ह6 तो दरू देश म0 जाना पड़ता है अथात्
िवदेश वास , पु , ी का सख
ु नOट होता है तथा मृBयुत[ु य कOट !- !" # s  !- ,
&W( !$ #
इसी कार सभी <ह6 का वषqश फल िवचार िकया गया है ।
5.4   
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  िदन म0 वेश हो, तो मेष का सयू , OH
का श:ु , &I(  B , कक का मगं ल िराशीश होते हc । िसहं ािद चार रािशय6 म0 िदन म0 वषवेश
!-( , मेषािद चार रािशय6 के जो राि के िराशीश, वे :म से िराशीश होते हc । मेषािद चार
रािशय6 के जो िदन के िराशीश वे िसंहािद चार रािशय6 के राि म0 होते हc । शेH B(, &, कु%भ,
मीन इन रािशय6 के िदन या राि म0 :म से शिन, &P , ग> ु और च'Rमा िराशीश होते हc । uिU व
बलानसु ार िनणय न हो सके तो कुछ आचाय म'ु थेश को व कुछ आचाय ैराशीश को वषqश मानने
का पM रखते है । ैरािशश को वषqश मानने पर एक समया और उठ खड़ी होती है । उस िथित म0
च'Rमा भी वषqश हो सकता है । ाय: आचाय च'Rमा को वषqश मानने के पM म0 नहP है । च'R& -

उराख ड मु त िवविवालय 47


वष   BAJY- 301
यिद वषqश ा8त !-, जैसा िक राि के वषवेश म0 कक रािशथ च'Rमा होने पर तो च'R& 
पंचािधकाWरय6 म0 थान पा जाएगा । तब च'Rमा िजस <ह से इBथ5  , उसे वषqश मानना
! # इसी कार वषqश का बोध करना चािहए ।
5.5 पारभािषक शदा
ि(राशीश  तीन रािशय6 का वा&
 - श: ु
   &P 
अिक  5(
वषवेश - वष का वेश
. 
- िसहं रािश आिद म0 हो िजसके
.(#  वषqश िनणयाथ
वषल3न  - वष लTन  JB@
ज!मल3न  - ज'म लTन  JB@
   मथु हा का वा&
ससि!ध  सि'ध सिहत
&': - <ह
5.6 अया  न के उत
1.
2. R
3. 
4. R
5. R
5.7 सदभ थ 
तािजकनीलकठी ) & V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
Aयोितष सव*व ) F - सरु े श च'R िमi
तािजक नीलकठी ) F ) आचाय िवव(I
5.8 िनबधामक  न
1. वषqश से आप या &W !" % पOट कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 48


वष   BAJY- 301
2. तािजक शा किथत वषqश िनणय कNिजये #
3. उदाहरण dारा वषqश को समझाइये #

उराख ड मु त िवविवालय 49


वष   BAJY- 301
  6 मु"ा दशा साधन

इकाई क  


6.1 तावना
6.2 उे

6.3 मु ा दशा परचय
6.4 मु ा दशा  
अयास 
न -
6.5 

6.6 पारभािषक शदावली
6.7 अयास 
न के उ र
6.7 स!दभ "!थ सचू ी
6.8 िनब!धा&म 

उराख ड मु त िवविवालय 50


वष   BAJY- 301
6.1 ता
तु  00 योितष तृतीय वष के थम प वषफल िवचार के षOठ  मु]ा

  से स%बि'धत है । तािजक शा के मािणत <'थ तािजकनीलक ठी म0 म~ु ा दशा का


िवचार नहP िकया गया है ।
म~ु ा दशा भी तािजक शा का ही एक भाग है िजसका साधन िवश
ं ोरी दशा के समान ही होता है ।
 पवू  कN इकाईय6 म0 आपने लTनपOट, वषqश िनणय का अ@य$( $ !", A$ J 
इकाई म0 म~ु ा दशा को समझते है ।
6.2 उे य
 इकाई के अ@य$( करने के पचात् आप जान सके ग0 िक )
1. म~ु ा से या ताBपय है ।
2. म~ु ा दशा  B( "  !- !" #
3. तािजकोत म~ु ा या !" #
4. म~ु ा दशा साधन का तािजक म0 या C@$- !" #

6.3 मुा दशा साधन


वष स%ब'धी बह9चिलत व ामािणक <'थ तािजक नीलक ठी म0 म~ु ा दशा का कहP
भी उ[लेख नहP है । मल ू <'थ म0 इसका िववेचन नहP ह9आ है । वहॉ हीनाश ं पाBय5
ं 15  
है । लेिकन आजकल या ाचीन समय से िवश ं ोरी दशा प=ित पर आधाWरत वष म0 म~ु ा दशा या
मTु धा दशा या गौरी दशा सव चिलत है । यहॉ उसकN िविध बताई जा रही है । आजकल समत
वष दशा फल म~ु ा दशा पर ही आधाWरत है ।
मु]ा
  ) कृ िका से पवू ाफा[ग(ु    9-9 नM6 म0 सयू , च'R, &P , राह9 ,
वृहप, 5(, B , के तु एवं श:
ु वाले आधार से ही िवश
ं ोरी  J(  आवृियॉ दशेश6 कN
!- !" #
अिनी से आरंभ करके ज'म ) नM कN सDं या म0 आयु के बीते वष या गत वष जोड़े । उसम0 से 2
EF  9 का भागदेने पर शेष उपरोत :म से दशेश होता है । इसी बात को इस लोक म0 कहा
$ !" )
ज!मEसंjयासिहतागता&दै: ने(ोिनता न!द>तावशेषात् ।

उराख ड मु त िवविवालय 51


वष   BAJY- 301
आचंकुराजीशबुकेशु पूवा मु]ादशा *यात् िकल वष  
उदाहरणाथ  माना िक बालक का ज'म नM मृगिशरा है । इसकN संDया अिनी से गणना करने
@ 5 आया है । इसम0 गत वष 10 - A$ 15 म0 से 2 EF 5H 13 म0 9   1$ -
5H  # J: चौथी राह9 कN दशा वष वेश के समय िवमान ह9ई ।
दशा क अविध ) िवशं ोरी दशा म0 <ह6 के जो दशा वष हc, उस वष सDं या - (  N 
करने पर जो सDं या &, उतने ही िदन कN म~ु ा दशा होती है । जैसे सयू  कN िवश
ं ोरी दशा 6 वष
कN है तो 6 × 3 = 18 िदन कN सयू  कN म~ु ा रहेगी । इसी कार अ'य <ह6 कN दशा के िदन होते हc ।
Bह िवंशो5री वष मु]ा
 

सयू  6 6 × 3 = 18
च'R 10 10 × 3 = 30
&P  7 7 × 3 = 21
राह9 18 18 × 3 = 54
ग>ु 16 16 × 3 = 48
5( 19 19 × 3 = 57
B 17 17 × 3 = 51
  7 7 × 3 = 21
श: ु 20 20 × 3 = 60
" 120 वष 360 1( (U)
 िवश ं ोरी दशा कN तरह ही म~ु शा दशा च: िलखना चािहये । मु तावली के अनसु ार म~ु ा
दशा म0 भी िवश ं ोरी कN तरह वषqOट  $, भभोग वष वेश नM का जानकर उससे ज'म/
म~ु ा दशा म0 भु त भोTय भी िनकालने के पM म0 है, लेिकन कई आचायh का मत यही है िक वषवेश
म0 परू ी म~ु ा दशा, िबना भु त ) भोTय B(  !   $ #
मु]ा दशा मa अ!तदशा - स_ू मता के आ<ह पर म~ु ा दशा म0 अ'तदशा भी िवश ं ोरी आिद कN
! A !" # 360 िदन म0 सयू  कN दशा 18 1( - 18 िदन म0 सयू ा'त ( % इस कार
J(@  ( @ -
18 × 18
360
= 18 1( $ 9 1( $ 54 घटी सयू  म~ु ा दशा म0 सयू  कN अ'तदशा रहेगी ।
20 10

उराख ड मु त िवविवालय 52


वष   BAJY- 301
लेिकन अ'तदशा िदन घटी पल6 $ 1( EFP , िमनट6 म0 रहेगी । तब च: म0 तारीख के साथ ) I
वषवेश का घटं ा िमनट भी िलखना चािहये ) $I )
सूय मु8ातदशा 

 सयू  च!2 . राहZ गbु  7   शPु

 0 1 1 2 2 2 2 1 3
9'# 54 30 3 42 24 51 33 3 0
0 0 0 0 0 0 0 0 0

च5 मु8ातदशा

 च!2 . राहZ गुb  7   शPु सयू 

 2 1 4 4 4 4 1 5 1
9'# 30 45 30 0 45 15 45 0 30
0 0 0 0 0 0 0 0 0

 मु8ातदशा


 . राहZ गुb  7   शPु सयू  च!2

 1 3 2 3 2 1 3 1 1
9'# 13 9 48 19 58 13 30 3 45
30 0 0 30 30 30 0 0 0

राह9 मु8ातदशा

 राहZ गुb  7   शPु सयू  च!2 .

 8 7 8 7 3 9 2 4 3
9'# 6 12 33 31 9 0 42 30 9
0 0 0 0 0 0 0 0 0

ग:
ु मु8ातदशा

उराख ड मु त िवविवालय 53


वष   BAJY- 301

 गुb  7   शPु सयू  च!2 . राहZ

 6 7 6 2 8 2 4 2 7
9'# 24 36 48 48 0 24 0 48 12
0 0 0 0 0 0 0 0 0

 मु8ातदशा

  7   शPु सयू  च!2 . राहZ गुb

 9 8 3 9 2 4 3 8 0
9'# 1 4 19 30 51 45 19 33 36
30 30 30 0 0 0 30 0 0

 मु8ातदशा


 7   शPु सयू  च!2 . राहZ गुb 

 7 2 8 2 4 2 7 6 8
9'# 13 58 30 33 15 58 39 48 4
30 30 0 0 0 30 0 0 30

  मु8ातदशा

   शPु सयू  च!2 . राहZ गbु  7

 1 3 1 1 1 3 2 3 2
9'# 13 30 3 45 13 9 48 19 58
30 0 0 0 30 0 0 0 30

शु; मु8ातदशा

 शPु सयू  च!2 . राहZ गुb  7  

 10 3 5 3 9 8 9 8 3
9'# 0 0 0 30 0 0 30 30 30
0 0 0 0 0 0 0 0 0
उराख ड मु त िवविवालय 54
वष   BAJY- 301
अयास  न
1. म~ु ा दशा को भी कहते है )
. िवश ं ोरी दशा ख. अOटोरी दशा ग. मTु धा 15 E. कोई नहP
2. राह9 का म~ु ा दशा िदन है )
. 21 R. 54 . 57 E. 51
3. ने से या ताBपय है )
. 2 R. 3 . 4 E. 5
4. स%ित वष दशा फल आधाWरत है )
. $- ( 15 @ R. अOटोरी दशा पर ग. म~ु ा दशा पर घ. कोई नहP
5. श:
ु का म~ु ा दशा िदन है )
. 21 R. 51 . 57 E. 60
6.5   
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  वष स%ब'धी बह9चिलत व
ामािणक <'थ तािजक नीलक ठी म0 म~ु ा दशा का कहP भी उ[लेख नहP है । मल ू <'थ म0 इसका
िववेचन नहP ह9आ है । वहॉ हीनाश ं पाBय5ं 15   !" # ( Aल या ाचीन समय
से िवश
ं ोरी दशा प=ित पर आधाWरत वष म0 म~ु ा दशा या मTु धा दशा या गौरी दशा सव चिलत है
। यहॉ उसकN िविध बताई जा रही है । आजकल समत वष दशा फल म~ु ा दशा पर ही आधाWरत है
कृ िका से पवू ाफा[ग(ु    9-9 नM6 म0 सयू , च'R, &P , राह9 , वृहिपत, 5(, B ,  
एवं श:ु वाले आधार से ही िवश ं ोरी के अनसु ार आवृियॉ दशेश6 कN होती है ।
6.6 पारभािषक शदा
मु]ा  तािजकोत 15
ज!मE - ज'म समय का नM
गता&द  गत वष
ने(ोिनता  2 सDं या EF(
मु ता # - िटका <'थ
अ!तदशा - दशा के अ'त 15
वषd'ट - अभीOट वष
िवंशो5री - 120 वष कN दशा
उराख ड मु त िवविवालय 55
वष   BAJY- 301
सू`म  छोटा >प
आBह  िवनय पवू क िकया गया (1(
वषवेश - वष का वेश
6.7 अया  न के उत
1.
2. R
3. 
4.
5. E
6.8 सदभ थ 
तािजकनीलकठी ) & V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
Aयोितष सव*व ) F - सरु े श च'R िमi
तािजक नीलकठी ) F ) आचाय िवव(I
6.9 िनबधामक  न
1. म~ु ा से आप या &W !" % पOट कNिजये ।
2. म~ु ा दशा साधन कNिजये ।
3. म~ु ा दशा अ'तदशा को पOट कNिजये #

उराख ड मु त िवविवालय 56


वष   BAJY- 301

खड - 2
वष फल िवचार

उराख ड मु त िवविवालय 57


वष   BAJY- 301
  1  

इकाई क  


1.1 तावना
1.2 उे

1.3  
अया 

1.4 

1.5 पारभािषक शदावली
1.6 अयास 
न के उ र
1.7 स!दभ "!थ सचू ी
1.8 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 58


वष   BAJY- 301
1.1 ता
तु  000 योितष तृतीय वष थम प के िdतीय ख ड का थम इकाई
": " से स%बि'धत है । तािजकशा I H->5 $- - के आधार पर वषफल िवचार
$  !" #
षोडश योग से ताBपय तािजकनीलक ठी म0 कहे गये इकबाल आिद :8 कार के योग है ।
षोडशयोगा@याय नाम से एक वत' अ@याय तािजकनीलक ठी नामक <'थ म0 किथत है ।
 पवू  कN इकाईय6 म0 आपने वषवेश,वषqश िनणय, म~ु ािद का अ@य$(  $ !", A$
अब इस इकाई म0 षोडश योग का अ@य$(  !" #
1.2 उे य
 इकाई के अ@ययन करने के पचात् आप जान सके ग0 िक )
1. षोडश योग या !" #
2. षोडश योग6 के नाम या !" #
3. H->5 $-  B( "  $  !" #
4. H->5 $-   शा म0 या C@$- !" #
5. वषफल िवचार म0 षोडश योग का या महBव !" #

1.3  


वषप िनिमत करने हेतु <हभाव पOट, लTन कु डली व पंचािधकारी िनणय करने के पचा/
उसम0 म~ु ा दशा िलखा जाता है । उसी :म म0 वष लTन से िवशेष फल िनणय करने के िलये तािजक
शा म0 H->5 $- S ! $ !" )
ािग कवालो पर इ!दुवार*तथे:थ "  ;*: 
न तं : *या0मया मणा< क&बल ू तो गैcरकबलू मु त 
ख.लासरं र]मथो दुफािलकु:थं च दु:थो
#
 
तVबीरकु:थौ दुरफ;च ": *यु: षोडशैषां कथयािम ल`म 
इस लोक म0 षोडश योग6 का नाम कहा गया है । यथा ) , इ'दु , इBथ5, ,
नत, $&$, &Nq, कHबल ू , गैWरकबलू , ख[लासर, र~, दफ
ु ािलकुBथ, दBु थोBथा1, त%बी, कुBथ,
1  # इन षोडश योग6 म0 इकवाल, इ'दवु ार एवं इBथशाल ये तीन योग मDु य हc । इनके ही
सि%मiण से ाय: शेष योग बनते हc ।
उराख ड मु त िवविवालय 59
वष   BAJY- 301
इ<कवाल इदु  
चे:कट * ( &: सम*ता: 
*यािद कबाल इित राAयसख ु ािlहेतु: 
आपोि लमे यिद खगा: स िकले!दु"
न *या\छु: व च न तािजकशा*(#: 
अथ ) यिद समत <ह लTन  :,\,=,:; $ [,9,],:: इन थान6 म0 ह6, तो इकवाल योग होता
!", वह राय, सखु के ाि| का कारण होता है या दसू रे शHद6 म0 वषकु डली म0 सभी <ह के 'R D
पणफर थान म0 होने पर ही इकवाल योग होता है । यह समृि= व ितjादायक होता है ।
समत <ह6 कN िथित आपोिलम (7,8,^,:[ ) थान6 म0 होने पर इ'दु  $- !- !" # $! $-
J5 !- !" #
के 'Rािदक6 का अ@ययन आपने िdतीय वष म0 ा8त  $ !", तथािप संMेप म0 आपको बताया
 ! !" )
के !2चतु'टयकटकसंा ल3ना*तदशमचतुथानाम् 
त*मा : * " लीमं च त:प: 
:,\,=,:; व0 था( - के !2 , [,9,],:: व0 था( - * P 7,8,^,:[ व0 था( -
आपोि लम ! !" #

 )
उ5म इ कवाल योग

[ :[
: ::
7 .V . 5

. :;
P.
\
=
9 5.&. ^

8 ]

उराख ड मु त िवविवालय 60


वष   BAJY- 301
म1यम इ<कवाल योग
.V . 5
[ :[
: ::
7 P

:;
P.
\
. =
9 ^
5. &.P
8 ]

इदु  
5.
[ :[
P. &.P : ::
7

:;

\
= .
9 ^
.V . 5.
8 ]

उराख ड मु त िवविवालय 61


वष   BAJY- 301
इथ   
शी+ो.पभागैघनभागम!देB*थे .   

# 
*यािद:थ "यमथो िविलता िलताधहीनो यिद पण ू मेतत् ।।
इBथ5 योग िक'हP दो uिU कारक <ह6 म0 देखा जाता है । एक <ह म'द   (  
दसू रा अपेMाकृ त ती€ चलने वाला होगा । च'R&, B , श:
ु , सयू , &P , ग>
ु एवं शिन ये :मश:
उरोर म'द गित वाले <ह हc ।
इBथशाल वातव म0 परप 1ने का ही नाम है । यह तभी स%भव होता है जब िवचारणीय <ह परप
uिU रखते ह6 या एक ही रािश म0 िथत ह6 । तािजक शा  J(  :-= थान म0 अशभु uिU
!- !" #
जब शीr गित <ह म'द गित <ह से पीछे हो, अथात् अलग रािशय6 म0 होने पर भी परपर uिU होने
से जब शीrगित <ह के भु तांश कम ह6 व म'दगित के अिधक ह6 तो अ[प समय म0 ही शीrगित
<ह म'दगित के त[ु य या दी8ताश ं 6 के भीतर पहॅच
ु कर अपना भाव म'दगित <ह को देगा । वही
इBथ5 $- !" #
$1 दोन6 <ह6 म0 दी8तांश6 के बराबर अ'तर हो तो इBथशाल योग है । अथात् इBथ5 $- 
! !" #
यिद दोन6 <ह6 म0 से शीrगित <ह के वल 7; िवकला पीछे हो तो पणू  इBथशाल होता है। अथात्
इBथ5 @V  !-    !", J: योग शत ितशत फलदायी है । यिद रािश के अि'तम अश ं 6 म0
शीrगित <ह व अगली रािश म0 िथत म'द गित <ह दी8तांश6 के भीतर हो तो भी इBथ5 $-
!- !" #
भिवOयत् इBथशाल तब होता है जब शीrगित <ह म'दगित <ह से पीछे हो और दी8ताश ं 6 के बीच म0
वेश करने !  ! !- #
एतदथ शीrगित <ह पOट म0 उसके दी8तांश6 को जोड़कर देख0 । यिद वह योगफल दोन6 <ह6 के
दी8तांश6 के योगफल  AB @ @ - इBथ5 !- !" #
इस तरह इBथशाल से तीन6 काल6 का फल िवdान6 ने न एवं वष म0 देखना बताया !" #
िजस भाव से स%बि'धत न या फल िवचार करना अभीOट !-, !  काय *था P C
वा& कायdश ! !" #
वष लTनेश या वषqश का िजस कायqश से इBथशाल वष प म0 होता हो, वह काय उस वष म0 अवय
V !- !", यिद ज'म प म0 भी ऐसी स%भा( !- #
8,],:[ भावेश6 म0 इBथशाल नहP होना चािहए, वह अशभु होता है । जहॉ इBथ5 !- !Z 
अवय !-  #
इथशाल योग का ल(ण ) िजस िकसी दो <ह6 म0 इBथशाल होना िवचारना हc, उन म0 जो
अिधक गित वाला <ह हो वह शीrगित <ह कहलाता है । जो 'यनू गित वाला <ह हो, वह म'द 

उराख ड मु त िवविवालय 62


वष   BAJY- 301
<ह कहलाता है । वहॉ यिद म'दगित <ह से शीr गित <ह 'यू( !-, परपर uिU स%भव हो और दोन6
के अ'तर करने से अश
ं थान म0 दी8तांशा से 'यनू संDया !-, तो इBथ5 $- !- !" #
एक रािश म0 या िभ'न - िभ'न रािशय6 म0 भी लTनाB5, कायाधीश रह0 और दी8ताश ं ा के अ'द
रहकर परपर uिU स%ब'ध होता हो तो इBथ5 $- !- !" #
इथशाल योग का तव 
जब uिU संयोग स%ब'ध पवू क <ह6 के संयोग ही को इBथ5 ! !", तो अिधक चलने वाला <ह
@Y !-, अ[प गित वाला <ह आगे हो , दोन6 यिद माग] हो इस दशा म0 पीछे से तेज चलने वाला
<ह, B ) B चलते ह9ए आगे के म'द गित <ह को अवय  (  @  ! # "
वतमान काल म0 िकसी एक था(   - @  -  A1&  ! !", - B ) 2
चलता है । और दसू रा आदमी तभी उसी था(  C JB   , - A   -
पीछे वाला राते म0 अवय पकड़ेगा । यहॉ लTनेश ह9आ काय करने वाला eयि`, कायqश ह9आ उस
काय  वा&, J: उन दोन6 कN मेल !-(  & !- !" #
इथ  
  
यथा राय लाभ न म0 वृिSक लTन !", तो लTने5 &P , कायqश दशमेश सयू  ह9आ । लTनेश लTन म0
:8 अंश से हो । कायqश सयू  िसंह म0 दो अश
ं से हो, तो यहॉ सयू  और मगं ल म0 शीrगित<ह सयू  पीछे
!", म'दगित <ह मगं ल आगे है, दोन6 का अश ं ा'त :\ दी8तांश के अ'दर ह9आ, परपर uिU पड़ रही
!", इसिलये इBथ5 $- EF !" # उदाहरणाथ 

5.
^ &.P =
P. &.P ] :8 8
:;
लTन
9
.V
::
[ .
:[ \
.V . 5.
: 7

उराख ड मु त िवविवालय 63


वष   BAJY- 301
   
शी+ो यदा भा!:यलवि*थत: सन् म!देBभ*थे िनGाित तेज: 
*यािद:थ "यमथैष शी+दीतांशकांशैcरह म!दप'ृ ठे 
तदा भिव'यnणनायिम:थशालं ि(धैवं मुथशीलमाहZ: 
ल3नेशकायािधकपयोयथैष योग*तथा कायमुशि!त स!त: 
 5  अि'तम अंश 7; म0 वतमान शीrगित<ह यिद अि<म रािश म0 िथत म'दगित<ह पर
J@(  R !-, अथात् शीrगित<ह से आगे दी8ताश ं ा के अ'दर ही म'दगित<ह हो तो
इBथ5 $- होता है । यह समा'य लMण है ।
यिद शीrगित<ह, म'दगित <ह से पीछे दी8तांशा से अिधक अश ं के अ'तर पर हो जैसे च'R& [#
[^#9]#;[ B 7#:\#[9#\; यहॉ च'Rमा से आगे च'Rमा के दी8तां5 :[ से अिधक अ'त @
B !", तो अवय A  &I 5 !-( ला है । यह भिवOयत इBथशाल का योग है । इस कार तीन
कार के इBथ5 !  !" # िजस कार लTनाधीश का योग हो उसी कार काय कहना
चािहये अथात् वतमान योग म0 वतमान काय िसि= । पणू Bq थशाल म0 काय पणू  ह6गे, s !(
! #
अयास  न -
1. तािजक शा म0 मख ु योग6 कN सDं या ( !" #
. 15& R. dादश ग. H->5 E. 5 P 
2. यिद समत <ह लTन  :,\,=,:; भाव6 म0 िथत हो तो )
. इ'दु  $- !- !" #
R. इक $- !- !" #
.  $- !- !" #
E. नत $- !- !" #
3. 7,8,^,:[ व0 था( - ! !" )
. के 'R R. @N . आपोिलम घ. कोई नहP
4. B - श:ु म0 अपेMाकृ त म'दगित वाला <ह है )
. श: ु ख. B . दोन6 घ. इनम0 से कोई नहP
5. यिद शीr और म'दगित वाले <ह6 म0 दी8तांश6 के बराबर अ'त !-, - !- !" )
. इBथ5 $- R. &Nq $- .  V $- E. ख[ला $-
6. इBथशाल योग िकतने कार के होते है )
. 2 R. 3 . 4 E.
7. तािजकनीलक ठी  $ !" )
. भाकराचाय ख. कमलाकर भ ग. नीलक ठ दैव7 घ. कोई नहP
उराख ड मु त िवविवालय 64
वष   BAJY- 301
ईसराफ व क,बू  
शी+ो यदा म!दगतेरथैकम'यंशमUये 
*: 
कायEयो मूसcरफे खलो:थे सौVये न िह.लाजमतेन िच!:य 
यिद शीrगित <ह म'दगित <ह से : अश ं भी आगे हो गया हो तो इसका योग ईसराफ या eय
इBथ5 !- !", यह कायनाशक होता है #
आचायh के मतानसु ार कम से कम 8;S $ :0 का अ'तर होने पर ही eयतीत इBथ5 &((
चािहए । इसके िलए अश ं कलाओ ं का अ'तर करके देख0 । के वल गतांश6 से नहP देखना ! #
यिद इBथशाल कारक दोन6 <ह6 के साथ या िकसी एक के साथ च'Rमा भी इBथ5  - $!
योग क%बल ू योग कहलाता है । एक कार से ये सभी इBथशाल के ही >पा'तर हc । तीन6 <ह6 कN
शभु रािश िथित से यह उम क%बू S व नीचािद गत होने से अधम क%ब ू !  !" #
यिद इBथशाल कारक <ह िनबल, नीचातंगत या शु Mेी आिद ह6 तो इBथशाल का फल नहP
& !" #
न<त   
ल3नेशकायािधपयोन hि;टिमथोथ त!म@य"िप शी+: 
आदाय तेजो यिद प'ृ ठस*ं था!नयसेदथा!य( िह न त 
अ!त:ि*थतो म!दगित*तु प;ये]ीतांशकै 7ावथ शी+त*तु 
नी:वा महो य\छित म!दगाय काय*य िसGयै यमय: िद'ट: 
यिद दो िवचारणीय <ह6 लTने5  कायqश म0 परपर uिU न हो, लेिकन उन दोन6 के बीच म0 िथत
कोई अ'य शीrगित <ह उनसे इBथशाल कर रहा हो या दी8ताश ं 6 के भीतर हो तो वह म@यथ <ह
िपछले शीrगित <ह से भाव लेकर आगामी म'द गित <ह को देता है । इसका नाम नत $- !" #
यह ाय: 5 &(  !" #
इसी कार दोन6 िवचारणीय <ह6 के बीच म0 uिU न रहने पर बीच म0 कोई म'दगित <ह दी8तांश6 के
 !- -  J@( आगे पीछे वाले <ह6 म0 परपर स%ब'ध ( 1 !" I 5 1$
&(  !" #  (& $&$ $- !" #
 
राAयािlपृ\छातुलल3ननाथो मेषे िसत*:विiलवैवृष*थ: 
च!2ो रसांशैयिद राAयनाथो hिi*तयोनाि*त गb
ु *तु म!द: 

.) : कक गत*तु प;य!नुभौ महो दीत ): स चा!2 

$   पद*b "मा:येन भावीित िवमृ;य वा\य 

उराख ड मु त िवविवालय 65


वष   BAJY- 301

] 8
= 9
^
लTन
\
.
:;
:
:: 5. 7
.P
:[ [

च: के राय लाभ न म0 यथा तल ु ा लTन है लTन का वामी श: ु सोलह अंश से मेष म0 है । राय
  15&  !- !", इसिलये तल ु ा से दशम कक ह9आ, J: Y: अश ं से वृष रािश म0 है,
इन दोन6 म0 एक से दसू रा दसू रे बारहव0 होने से uिU नहP है । और इन दोन6 से म'द गित <ह ग> ु दश
अशं से कक रािश म0 होकर, लTनेश कायqश को देखता ह9आ च'Rमा का तेज दी8ता5 ं    5
को देता है । इसिलये म'ी के dारा पद का लाभ भावी है, $!   !( !$ # $! $&$
$-  C1!N !" #
  
वP: शिनवा यिद शी+खेटा:प;चा:पुरि*तिoित तुयh'ट  
एकEसतEभुवा hशा वा प;य!नथांशैरिधकोनकै ;चे 
तेजो हरे:कायपदे:थशाली ि*थतो "  <  "
&Nq योग एक कार से इBथशाल का भगं योग है । दो इBथशाल कता <ह6 के उपर यिद शिन या
मगं ल कN शuु िU हो अथात् इBथशाल कारक6 से के 'R म0 मंगल या शिन हो और दी8तांश6 के भीतर
हो तो काय का नाश होता है । इस योग का नाम &NqS है । यह कायनाशक है #
 
*(ीलाभपृ\छा तनुरि*त क!या( ो िदगंशैि*तिथिभ: सुरेAय: 
कल(ग: &" .): पूवd बुधो भौम>त*त: 
जीवेन प;चाि!मलतीित लाभो नाया*तु नो पृ'ठि*मन् ।।
ी लाभ के न म0 जैसे क'या लTन है उसका वा& B , उसी रािश म0 दश अंश का हो और यहॉ

उराख ड मु त िवविवालय 66


वष   BAJY- 301
कायाधीश ग>ु :9 अश ं से सातव0 मीन रािश म0 हो दोन6 को परपर शु uिU है और मगं ल :: JP5
से दशव0 िमथनु रािश म0 ह6, तो पहले मगं ल से हरण हो गया है तेज ऐसे जो बधु वह वृहप 
िमलते हc अथात् वृहपित से बधु शीrगित<ह है, इसिलये माग]बधु अवय वृहपित से िमल0गे
इसिलये ी का लाभ नहP होगा ऐसा समझना चािहये ।

= 9
8 . \
]
लTन
7
&.P
^
:[
:; ग>
ु [

:: :

गैर क,बू 
यदी!दु: *वगृहो\च*थ*ताhशौ ल3नकायपौ ।
इ:थशाली कबल ू ं तदु5मो5ममु\य 
ल3नकायdशयोcर:थशाले शू!या@व: # 
उ\चािदपदशू!य:वा!ने:थ "*य  ( 
य0!यEd िव;यैष *वEा\च*थे:थ  
गैcरकVबूलमे5 पदोनेनाशुभं *मृ 
इBथशाल करने वाले <ह6 म0 से िकसी एक पर या दोन6 पर च'Rमा का भी इBथशाल हो तो क%ब ू
योग होता है । इसी से िमलता जल
ु ता यह योग है । जब च'Rमा इBथशाल कारक6 से वयं इBथ5
न करता हो तथा च'Rमा वMेोnचािद म0 या वनीचशM ु े म0 भी न हो, ऐसी िथित म0 च'R&
$1 5  अि'तम अंश म0 िवमान हो, अथात् अगली रािश म0 वेश करना ही चाहता हो तथा
उस अगली रािश म0 िथत बलवान <ह से च'Rमा इBथशाल करे तो गैर क%ब ू $- !- !" # $!
कायसाधक होता है ।
म1यमो?म कबूल का उदाहरण 
उराख ड मु त िवविवालय 67
वष   BAJY- 301
*वीयह]ा2ेकाणा=भाग*थे:थ : 
म@यमो5मकVबल ू ं हीनािधकृितनो5मम् ।।
च'Rमा अपने गृह म0 उnच का हो तथा िनज ह~ा RेOकाण नवमाश ं म0 िथत लTनेश या कायqश से
इBथशाल करता हो तो उमपM का म@यम कबल ू होता है । यिद वैसे ही च'R& J@( JB 
!( लTनेश या कायqश के साथ इBथ5  !-, -   उम कबूल होता है ।

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= 9
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लTन P. :]
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5. :;
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:: B :\0 7

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च: म0 तल ु ा लTन !", लTनेश श:


ु कक म0 :; अशं म0 अपनी ह~ा म0 है । भाTयेश बधु मेष म0 :\ JP5
म0 है, इन दोन6 म0 इBथशाल होता है । कमqश च'Rमा कक म0 :] अंश से रहकर दोन6 लTनेश कमqश से
इBथ5 $-  !", इसिलये उम पM का म@यम कबल ू ह9आ ।
नीचे के च: म0 उम कबूल योग का उदाहरण भी आप समझ सकते है )
िमथनु लTन कN कु ड !", लTनेश बधु समगृही म0 है । दशमेश ग>ु भी समगृही क'या म0 है । च'R&
वृष म0 है इन दोन6 के इBथशाल होने से उम कबूल योग ह9आ ।

उराख ड मु त िवविवालय 68


वष   BAJY- 301

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9
लTन
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 परम उ?म कबल


ू ल(णम् 
इ!दु:
": *वEI\चि*थते नायु5मं तु तत् ।
*वह]ािदगतेनािप पूवव!म@यमु\य 
च'Rमा अपने उnच !O A1 JB  ! !- J@( गृह उnचगत लTनेश से या कायqश से
इBथशाल करता हो तो उम कबल ू होता है । यिद उसी कार से च'Rमा अपनी ह~ािद पद गत
लTनेश व कायqश से इBथशाल करता हो तो पहले के ऐसा म@य& 
V !- !" । उदाहरणाथ -

] 8
= 5. 9
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लTन
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:[ [
उराख ड मु त िवविवालय 69
वष   BAJY- 301
कु डली म0 धन लाभ के न म0 तल
ु ा लTन है य यहॉ लTनेश श: ु लTन म0 ही है और कायqश (B(5)
&P  & (उnच) म0 है , च'Rमा िमथनु म0 सम <ह के RेOकाण म0 है , इन सभी म0 एक से दसू रे को
इBथ5 !- !" , इस से म@यमोम कबल ू होता है ।यहॉ भाTयो1$ !-  s !( !$ #
म1य

! 
  

] 8
= 9
^ 5.
लTन
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:: .P 7

:[ [

यहॉ कु डली म0 धन लाभ के न म0 तल


ु ा लTन ! !", उसका वामी श: ु िसंह रािश म0 अपनी ह~ा
म0 दस अशं पर है और धनेश (कायqश) मंगल अपनी ह~ा म0 च'R& &I(  1 J5 P @ &
RेOकाण म0 है, इन सभी को इBथशाल होने से म@य&  V !- !" # $!Z B(  BN !- 
s !( !$ #
खCला  
श!ू ये@वनी!दुbभयोनd:थ "   : 
ख.ला"  
: कVबू * : 
यह भी इBथशाल पर ही आधाWरत योग है । यिद िकसी भी इBथशालकता <ह से च'R& $- ,
इBथ5, uिU आिद न रखता हो, अथात् क%ब ू $-  - 1 न बनता हो तो ख[ला $-
होता है । लेिकन उत कार का च'Rमा श'ू य माग म0 गया ह9आ होना चािहए । जब कोई <ह
वMेोnच व ह~ा , RेOकाण आिद म0 या नीच शM ु े , ह~ा RेOकाण नवाश
ं म0 कहP भी न हो तब
वह श'ू य मागगत कहा जाता है । यह योग इBथशाल का नाश नहP करता, अिपतु क%ब ू $- 
(5  !" #

उराख ड मु त िवविवालय 70


वष   BAJY- 301
र8 योग )
अ*तनीचcरपुवPहीनभा दुबलो मुथिशलं करोित ( 
नेतुमेष न िवभुयतो महो!ते /& न स कायसाधक: 
जब इBथशाल कारक <ह अBय'त दबु ल हो अथात् व:N, !(, अतं  , ( , शM
ु ेी हो
तो इBथशाल योग बनने पर भी वह उसका फल नहP दे पाता । यह इBथशाल योग को र~ करने
वाला होने से र~ योगकहलाता है ।
दुफािलकुथ  
म!द: *वभो\चािदपदे ि*थत;चेत् पदोनशी+ेण कृते:थ : 
त(ािप कायR भवतीित वा\यं वPािदिनवfयपदे न चे:*या 
जब इBथ5 योग होने पर म'द गित <ह वोnचािद Mे, ह~ा, RेOकाणािद म0 हो और शीrगित
<ह वोnचािद म0 न होता ह9आ भी दबु ल न हो तो यह शभु दOु फािलकुBथ योग कायB $-
!- !" #
दुथोथ"  
वीयIिनतौ कायिवल3ननाथौ *वEािदगेना!यतरो युनिD ।
अ!यौ यदा 7ौ बिलनौ तदा!यसाहाpयत: कायमुशि!त स!त: 
इBथशाल कारक <ह दोन6 ही दबु ल ह6 , लेिकन उनम0 से कोई एक भी अ'य बलवान <ह से
वMेािदगत इBथशाल करे तो यह दBु थोBथिदबीर योग होता है । अथवा अ'य कोई दो बलवान <ह
लTनेश व कायqश से इBथशाल कर0 तो भी यही योग होता है । इस योग म0 दसू रे कN सहायता से काय
िसि= होती है ।
कुथ    
ल3नेथ के !2े '  *य िवल3नदशf *वगृहो\चh के 
मुस.लहे *वे नीचह]गो वा बली Bहो म@यगित*:वशी+: 
कुBथ का अथ है बलवान । अत: लTनेश कायqश से कोई भी उत योग कायसाधक न (  1R(
है िक वे जातक करणोत था(, उnच, ह~ाबल, (5 P , िदTब, िदनरािबल,
पMबल, J$(, चेOटा, आिद से यु त हc या नहP । यिद उनम0 से कोई भी <ह पंचवग] या
dादशवग] म0 या षड्बलैय म0 बली हो तो कुBथ $- !" I ! कायसाधक होता है ।
यिद उत कार के अितWरत के वल हषबली भी हो तो भी वह काय साधक कुBथ $- (  #
इसके िवपरीत लTनेश व कायqश म0 से कोई िनबल हो अथात् कुBथ कN िवपरीत िथित म0 हो तो
द>
ु ‚फ योग होता है । यह सवथा कायनाशक है ।
1.5   
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  वषप िनिमत करने हेतु <हभाव

उराख ड मु त िवविवालय 71


वष   BAJY- 301
पOट, लTन कु डली व पंचािधकारी िनणय करने के पचात् उसम0 म~ु ा दशा िलखा जाता है । उसी
:म म0 वष लTन से िवशेष फल िनणय करने के िलये तािजक शा म0 षोडश योग कहे गये है )
, इ'दु , इBथ5, , नत, $&$, &Nq, कHबल ू , गैWरकबल
ू , ख[लासर, र~,
दफ
ु ािलकुBथ, दBु थोBथा1, त%बी, कुBथ, दरु फ । इन षोडश योग6 म0 इक, इ'दु  P
इBथशाल ये तीन योग मDु य हc । इनके ही सि%मiण से ाय: शेष योग बनते हc । तािजकनीलक ठी
नामक <'थ म0 इन षोडश योग6 का िवतारपवू क  उ[लेR $ $ !" #
1.6 पारभािषक शदा
इ कवाल  तािजकोत षोडश योग म0 एक योग
के !2 - :,\,=,:; व0 था( -
*  [,9,],:: व0 था( -
आपोि लम  7,8,^,:[ व0 था( -
मु ता # - िटका <'थ
( # - िवचार करने योTय
म!द - अ[प 
कायdश - काय का वा&

  दशम का वा&


-#  A( 
म@य*थ -  
इ:थ ) षोडश योग म0 एक योग
1.7 अया  न के उत
1.
2. R
3.
4. 
5. 
6. R
7.
1.8 सदभ थ 
तािजकनीलकठी ) &
V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन

उराख ड मु त िवविवालय 72


वष   BAJY- 301
तािजक नीलकठी ) F ) आचाय िवव(I
1.9 िनबधामक  न
1. षोडश योग या !" % पOट कNिजये ।
2. , इ'दु  $- - C1!N ! $ #
3. इBथशाल योग का िवतारपवू क वणन कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 73


वष   BAJY- 301
  2 मुथा 

इकाई क  


2.1 तावना
2.2 उे

2.3 म!ु था परचय
2.4 म!ु था   !

अया 
न -
2.5 

2.6 पारभािषक शदावली
2.7 अयास 
न के उ र
2.8 स!दभ "!थ सचू ी
2.9 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 74


वष   BAJY- 301
2.1 ता
तु  000 - 301 के िdतीय ख ड कN िdतीय  मु!था *  
स%बि'धत है । तािजकशा किथत म'ु था एक <ह है िजसका वषकु डली म0 फलादेश  >प म0
C@$- $  !" #
 शा म0 म'ु था एक अकाशमान व भौितक िप ड रिहत <ह है । म'ु था को इि'थहा के नाम
  (  !" #
 पवू  कN इकाई म0 आपने षोडश योग का अ@य$(  $ !", आइये अब इस इकाई म0 म'ु था
 का अ@य$(  !" #
2.2 उे य
 इकाई के अ@ययन करने के पचात् आप जान सके ग0 िक )
1. म'ु था या !" #
2. म'ु था B( "  $  !" #
3. म'ु था   शा म0 या योजन !" #
4. म'ु था का महBव या !" #
5. वषकु डली िवचार म0 म'ु था का या C@$- !" #

2.3 मुथा परचय


तािजक मत म0 म'ु थाS म'ु थ!S इि'थहाS आिद नाम6 से एक अ'य <ह (अकाशमान व
भौितक िप ड !) माना गया है । इसकN दैिनक गित 9  !- !" # J: इसके एक मास म0
7; × 9 = :9;S $ [7; चलने से वािषक गित : 5 $ 7; के त[ु य होता है । ज'म &$
म'ु था सदैव ज'म लTन म0 रहती है । अत: वतमान वष म0 म'ु था कN रायाBमक िथित जानने के िल
ज'म लTन रािश म0 गत वष जोड़कर :[ का भाग देना चािहए । शेष अक ं के त[ु य रािश म0 म'ु था
होती है । म'ु था साधन का लो !" )
ज!मल3ना:समारUय गतवषािण योजयेत् ।
7ादशिभहरेTागं शेषा मु!था  7 ): 
2.4 मुथा
 
म'ु था पर म'ु थेश कN uिU (तािजक uिU) !-( , :ूर <ह6 कN म'ु था से परपर के 'R िथित न होने
उराख ड मु त िवविवालय 75
वष   BAJY- 301
पर म'ु था वष म0 शभु होती है ।
 शभु <ह6 व वामी <ह6 से uOट यु त  5  ^,:;,:: थान6 म0 म'ु था JB 5
 1 !" # :,[,7,9 थान6 म0 म@यम शभु अथात् पWरiम से लाभ एवं शेष
\,8,=,],:[ थान6 म0 अिधक अशभु होती है । सव :ूर व शभु <ह6 के योगािद से फल
से तारत%य था@ ( ! #
 शभु <ह6 से इBथशाल करने पर म'ु था या अ'य कार से बली या शभु <ह6 से यतु uOट
म'ु था,   5  - ? !" I J5  - &  !" #  @
अशभु म'ु था भाव के फल को नOट करके अशभु फल को वृि= करती है ।
 ज'म लTन   \,8,=,],:[ रािशय6 म0 म'ु था रहने पर ाय: J5  ! 1 !" #
J: ज'म लTन व वष लTन दोन6 से अशभु होने पर म'ु था अBय'त अशभु फल िनच$ !
1 !" #
 राह9 के मख ु म0 िवमान म'ु था शभु होती है । यिद ग>
ु , श:
ु का योग या uिU भी हो तो
िनच$ से पद ितOठा िदलाता है । लेिकन राह9 के पnु छ भाग म0 िवमान म'ु था $1
िवशेषतया पाप<ह6 के योग या uिU म0 हो तो अचल स%पि, B( ) धा'य व सख ु कN हािन
 !" #
किCपत उदाहरण 
iी शभु सवं त् [;\^, शकाHद: :^:\, मागशीषमासे शु लपMे स8त%यां U& , धिनOठा
नMे देह[यां $P ]:\= IST समये वृिSकाक गतांशा: :9 / 97 त iी सयू bदयािदOट:
7\:[=, सा%पा : :.].\8 घटं ािद कक लTनोदये लTनपOट: 7.7.:8 0 वष
वेश एकादश: # गताHदा: :; # वषल3न -
9 7
8 \ &.P  . [
O म'ु था
= :
] .V . :; 5. :[
5. ^ P. ::

उराख ड मु त िवविवालय 76


वष   BAJY- 301
जम ल न # 

^ 5. =
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:; &.P .V 5. O. . 8
::
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ताकािलक हा: -
सयू  = :9 97
च'R :; ;] 9\
&P  7 7 \^
B 8 [] []
ग>ु 9 :8 ;[
श: ु ] [= \^
5( ^ :^ 9;
राह9 = [= \]

म'ु था साधनाथ ज'म लTन म0 वृिSक म0 गत :; वष जोड़े तो :] ा8त ह9आ इसम0 :[   1(
@ 5H 8 अथात् क'या रािश म0 म'ु था !" #
वष म0 म'ु था से अनेक बात0 देखी जाती हc । इसका महBव इससे भी पOट है िक यह वषqश बनने वाले
@Z अिधकाWरय6 म0 से एक है ।
राहZ का मुख पु\छ ान  सदा व:N रहने के कारण राह9 के भोTय अंश6 को राह9 मख ु व भु तांश6
को पnु छ कहते हc । अत: राह9 पOट म0 िजतने अश ं ािद ह6 वे भोTयांश है । अथात् अभी भोगना शेष है#
राह9 पOट =#[= #\]  JP51 [= \] ही भोTय !", I 7; ) [=# \] = ;[ # :[ #
 

उराख ड मु त िवविवालय 77


वष   BAJY- 301
भु तांश है । हमारे उदाहरण म0 राह9 यु त म'ु था ( !-(  $! N$ (! !" #
वषdश होने के पॉच अिधकाcरयr का िनणय ) ज'मलTन का वा& , वष लTन का वा&, म'ु था
कN रािश का स&,
् ैराशीश व समयेश ये पॉच <ह पंचािधकारी कहलाते हc । इ'हP पॉच6 म0 से
कोई एक सवािधक बली होकर लTन को देखता हो तो वही वषपित या वषqश होता है । वषqश कN
िथित से भी वष का स%पणू  शभु ाशभु फल भािवत होता है । तदनसु ार पहले तीन अिधकाWरय6 
िनणय सरल ही है । शेष दो का िनणय इस कार होता है ।
समयेश व (ैराशीश ) िदन म0 वष वेश हो तो सयू  कN रािश का वामी एवं राि म0 वष वेश हो
तो च'Rमा कN रािश कN वा& &$5S ! !" #
ैराशीश भी बारह6 लTन6  @OI/ ) पृथक् िदन राि लTन  1  [\ होते है । अथात् िदन म0
वेश हो तो वष लTनानसु ारी िदन का ैराशीश व राि म0 वषवेश होने पर राि का ैराशीश वष
लTन कN रािश से देखना होगा ।
(ैराशीश चP )
&. O. &. . P. . . O. B. &. . &.
1( .V 5. 5. 5. . P. . &.P 5. &.P . P.
राि . .P . &.P .V 5. 5. 5. 5. &.P . .P
पवू bत उदाहरण म0 पंचािधकारी इस कार ह6गे )
ज'मे5 ) &P , म'ु थे5 - B , ैराशीश ) &P , वष लTने5 ) च'R&, &$5 ) 5(, वषपित
) N$ #
आप पूव मa ही जान चुके है िक मु!था वषdश भी होता है । वषdशिनणयाथ पंचािधकारी 
ज!मल3नपितर&दल3नपो मु!थहािधप इतिeरािशप: 
सूयरािशपितरिg च!2माधी;वरो िनिश िवमृ;य .( 
बली य एषां तनमु ीE : स वषपो ल3नमनीEमाण: 
नैवा&दपो h'ट : *या7ल*य साVये िवदुरेवमा0ा: 
अथ  ज'मकािलक लTन का वा&, वषकािलक लTन का वा&, मथु हा का वा&, िराशीश,
िदन म0 वषवेश होने से सयू  िजस रािश म0 हो उसका वा& राि म0 वषवेश होने से च'R& 
रािश म0 हो, उसका वा&, इन पॉच6 को िवचार कर (िकस अिधकार म0 कौन <ह है िलखकर) उसम0
जो सब से अिधक बली हो और वष लTन -  1R !-, वही वषqश होता है । जो वष लTन -
नहP देखता हो वह सवािधक बलवान होने पर भी वषqश नहP होता है । यिद उन पंचािधकाWरय6 म0
सब या चार या तीन या दो भी सम बलशाली ह6 तो िजनकN uिU लTन @ 5H !-, वह वषqश होता

उराख ड मु त िवविवालय 78


वष   BAJY- 301
!"#
hिiसाVये Oयव*था 
hगािदसाVयेयथ िनबल:वे वषािधप: *या!मुथहे;वर*तु 
sचािप चे!नो तनुमीEमाणा वीयािधको&द*य िवभुिविच!:य: 
अथात् यिद पॉच6 अिधकारी <ह6 के बल तथा लTन के उपर uिU समान हो या सब िनबल ह6 तो
मथु हा के वामी <ह ही वषqश होता है । अगर पंचािधकाWर <ह6 म0 कोई भी लTन को नहP देखे तो उन
पॉच6 म0 जो सबसे अिधक बली हो वही वषqश जानना चािहये ।
अयास  न -
1. म'ु था !" )
. एक अकाशमान व भौितक िप ड रिहत <ह
R.  $-
. !&
E. कोई नहP
2. म'ु था कN दैिनक गित होती है )
. :;  R. ]  . 9  E. [; 
3. शभु <ह6 से uOट व यु त म'ु था ( ) िकन थान6 म0 अिधक शभु फल देती है )
. :,[,7,9 R. ^,:;,:: . \,8,=,],:[ E. 7,8,^
4. राह9 के मख ु म0 िवमान म'ु था !- !" )
. 5 R. J5 . 5 5 E. कोई नहP
5. िदन म0 वषवेश हो तो िकस रािश का वा& &$5 ! !" )
. च'R R. सयू  ग. &P  E. B
   
*वज!मल3नात् ितवषमेकैकरािशभोगान् मुथहाYमो: 
*वज!मल3नं रिवत'टयातशर0ुतं सा भमुखेि!थहा *या 
अथात् ज'म काल म0 एक वष तक ज'मलTन म0 ही मथु हा रहती है । दसू रे वष म0 ज'म लTन  1V 
थान म0, तीसरे वष म0 तीसरे थान म0 इस :म से Bयेक वष म0 एक )  5 -  &I ! 
tमण होता है । इसिलये ज'मलTन म0 रािशथान म0 गत वष को जोड़कर :[   1, तो शेष त[ु य
रािश और अंशािदक तो लTन  J5 P 1/ ,इस कार इOट वष म0 मथु हा होती है । अथात् 
वषh म0 मथु हा के रािश ही बदलती है, अश ं ािद िथर ही रहता है ।
उराख ड मु त िवविवालय 79
वष   BAJY- 301
:य. शरिलतािभवGते सा : 
साधमंश7यं मास इ:याहZ:   / : 
Bयेक सौर िदन म0 9 कलाय0 , मास म0 अढ़ाई अंश अनपु ात से मथु हा बढ़ती है । पOट  $
आचाय का कथन है ) इसका योजन मासवेश और िदन वेश म0 पड़ता है, य6 वषवेश
कु डली म0 जो मथु हा है वह Bयेक वष तक वहॉ िथर रहती है, पर'तु थम मास वेश म0 भी वही
मथु हाका मान होता है । दसू रे मास वेश बनाने म0 वषवेश कािलक मथु हाम0 अढ़ाई अंश जोड़ने से
&I ! !- !", तीसरे मास वेश बनाने म0 िdगिु णत अढ़ाई अश ं अथात् @Z J5P -(  &I !
होती है । ऐसे ही चौथे मास वेश म0 साढे सात अंश जोड़ने से मथु हा बनती है । इसी कार अ'य
 &W( !$ #
िदन वेश बनाने म0 ितिदन वेश म0 जो मथु हा है उसम0 9 , जोड़ने से अगले िदन वेश कN
&I ! ( !" #
यहॉ वषवेश म0 मथु हा मान जानने के िलये ) क[पना िकया िक ज'मलTन 9#9#7\#:[ है इसम0
रािश थान म0 गत वष :9 - [;#9#7\#:[ अब रािशथान म0 :[ से भाग िदया शेO7
]#9#7\#:[ त[ु य मथु हा ह9ई । अब इसम0 अढ़ाई अंश जोड़ा तो अि<म मास वेश म0 मथु हा ह9ई । 9
अश ं जोड़ा तो तृतीय मास वेश म0 मथु हा ह9ई, एवं वष वेश के थम िदन वेश कN मथु हा वही
होती है जो वषवेश कN मथु हा है इसम0 पॉच कला जोड़ िदया तो दसू रे िदन कN मथु हा बनी । ऐसे ही
A   &W( !$ #
राहZ   &पृ'ठपु\छ लEण 
भो3या राहोलवा*त*य मुखं पृ'ठं  : 
: सतभं प\ु छं िवमृ;ये * . 
 
राह9 का जो भोTय अंश होता है वह उसका मख ु होता है और जो भु त अश ं होता है वो पृOठ J5 P
स7ं क है । राह9 से सातवॉ रािश उसका पnु छ !- !" # $! &W C  !( !$ #
5H ) राह9 कN िवलोम गित होने से वह पहले िकसी रािश के अ'त म0 आकर म@य म0, 1 A1
म0 आते हc । इसिलये िजस रािश म0 जहॉ पर वह िथत हो, उस िब'दु से उस रायािद तक जो कN राह9
नहP भाग िकया है लेिकन रायािद िलखने म0 वहP अश ं ािद िलखे जाते हc, य6िक पवू ािभमख

रािश:म गणना होने से, तो राह9 के रायािद जो पंचांग म0 िलखते हc, उसम0 अंशािद भोTय ! !,
C- 7; म0 घटाने से शेष भु त होते हc । वहॉ राह9 के वल राय'त से रायािद के तरफ जो आते हc
वही पिSम मख ु होकर नहP, सख ु तो पवू ािभमख
ु ही रहता है पृOठ पिSम तरफ रहती है,  

उराख ड मु त िवविवालय 80


वष   BAJY- 301
िब'दु म0 रहता है तब उससे पिSम अथात् िलखे ह9ये अश
ं ािद, वतु : भु तांशािद पृOठ सं7क होता
!"#
उदाहरणाथ - राह9 9#=#:\#\; !", $!Z =#:\#\; ये पृOठ हc और [[#\9#[; $! &R  !", &(
 =#:\#\; इनम0 पnु छ !" #
पंचवगf बल िनणय 
वष म0 <ह6 के बलाबल का िनणय करने के िलये पंचवग] बल का साधन करना आवय !", 
हम बलवान <ह, म@यबली <ह आिद का और िवशेषतया वषqश का िनणय कर सके ग0 ।
!O , उnच, ह~ा, देOकाN, नवमांश के बल6 को पंचवग] बल कहा जाता है । इन पॉच6 को इस उत
:मानसु ार ही िलखना चािहये ।
<ह6 कN रािशयॉ गृह , उnच व नवमांश वही हc जो जातक शा म0 होते है । ह~ा इसम0 नवीन है ।
RेOकाण के िवषय म0 @यान रखना चािहये िक पंचवग] बल साधन म0 RेOकाN  I- J !" #
यह के वल पच ं वग] म0 ही <हण करना । अ'य सभी थल6 म0 जातक शा/ ! RेOकाN@:
थमपंचनB@(&S/  &  ! $   #
पंचवगf मa 2े'का ( 
. . . . . . . . . . . .
0-10 0
". #. $. %. %. .& '". ". #. #. %. %.
10-200 .& '." ." #. $. %. %. .& '." ." #. .
21-300 %. %. .& '". ". #. $. %. %. .& '". ".

थम RेOकाN &P  , दसू रा RेOकाण सयू  से तीसरा RेOकाण श: ु से सीधे वार :म से गणना पर
होते हc अथवा मेष के नीचे मगं ल िलखकर बधु , O!. श: ु , 5(, रिव इBयािद :म से गणना करते
जाने पर तो RेOकाणेश ा8त !-  !" #
ह~ा िवचार )
Bयेक रािश म0 िनिSत अश ं 6 तक ह~ेश माने गये हc । इनके पीछे तक या !", यह पOट नहP है ।
Bयेक रािश म0 अंशमान अलग ) अलग हc । एक रािश म0 पॉच ह~ा होती हc । ह~ा च: म0 अक ं 6 म0
अशं मान िदये गये हc )
. . . . . . . . . . . .
. %. #. ." $.  #. %. ." $. #. %. %.
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उराख ड मु त िवविवालय 81
वष   BAJY- 301

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%
मत मD िनसग मैEी 
सयू , च'R&, मगं ल व वृहपित ये चार6 <ह एक दसू रे के िम है । इसी कार शिन, B , श:
ु ये
तीन6 परपर िम होते हc । अ'य <ह शु होते है । िनसग मैी म0 सम <ह नहP होते है ।
%
मत मD ताकािलम मैEी 
सभी <ह अपने अिधिjत था(  7,9,^,:: म0 िथत <ह6 को िम समझते हc । परप :,\,=,:;
भाव6 म0 िथत सभी <ह शु होते हc, 5H [,8,],:[ म0 िथत <ह परप & ! !" #
वष गिणत म0 इसी मैी का योग होता है । जातक ख ड म0 बताई गई मैी के अनसु ार यहॉ िमािम
(णय करना सवथा असगं त है ।
2.5   
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  तािजक मत म0 म'ु थाS म'ु थ!S
इि'थहाS आिद नाम6 से एक अ'य <ह (अकाशमान व भौितक िप ड !) माना गया है । इसकN
1"(  9  !- !" # J: इसके एक मास म0 7; × 9 = :9;S $ [7; ( 
वािषक गित : 5 $ 7; के त[ु य होता है । ज'म समय म'ु था सदैव ज'म लTन म0 रहती है ।
J: वतमान वष म0 म'ु था कN रायाBमक िथित जानने के िलए ज'म लTन रािश म0 गत वष जोड़कर
:[ का भाग देना चािहए । शेष अक ं के त[ु य रािश म0 म'ु था !- !" # म'ु था पर म'ु थेश कN uिU
(तािजक uिU) !-( , :ूर <ह6 कN म'ु था से परपर के 'R िथित न होने पर म'ु था वष म0 शभु होती है
2.6 पारभािषक शदा
अकाशमान  काशहीन

)  - एक िदन कN गित


वािषक गित  एक वष कN गित
रा;या:म  रािश के त[ु य
Pूर - पाप <ह
तारतVय - &
सव( - - D
+  - R

उराख ड मु त िवविवालय 82


वष   BAJY- 301
वषपित  वष का वा&
राहZ का मुख  भोTया5 ं 
राहZ का पु\छ - भु तां5 
2.7 अया  न के उत
1. 
2.
3. R
4. 
5. R
2.8 सदभ थ 
तािजकनीलकठी ) & V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
Aयोितष सव*व ) F - सरु े श च'R िमi
तािजक नीलकठी ) F ) आचाय िवव(I
2.9 िनबधामक  न
1. म'ु था  A@ या &W !" % पOट कNिजये ।
2. C1!N ! म'ु था साधन कNिजये #
3. म'ु था   R$ #

उराख ड मु त िवविवालय 83


वष   BAJY- 301
  3  

इकाई क  


3.1 तावना
3.2 उे

3.3 "#  !

3.4 "#  
अया 
न -
3.5 

3.6 पारभािषक शदावली
3.7 अयास 
न के उ र
3.8 स!दभ "!थ सचू ी
3.9 िनब!धा&मक 

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3.1 ता
तु  000वाई योितष तृतीय वष  िdतीय ख ड कN तृतीय  
( से स%बि'धत है । तािजकशा म0 50 सहम6 का उ[लेख िकया गया है ।
प ु य A1 9; सहम6 का साधन <हपOट व लTन पOट  AB @ $  !" # !& 
तािजक शा का महBवपणू  अगं है ।
 पवू  कN इकाईय6 म0 आपने षोडश योग एवं म'ु था B( A1 का अ@य$(  $ !",
आइये अब इस इकाई म0 !&  का अ@य$(  !" #
3.2 उे य
 इकाई के अ@ययन करने के पचात् आप जान सके ग0 िक )
1. !& योग या !" #
2. !& $- का या योजन !" #
3. !& $-  B( "  $  !" #
4. !& $- का तािजक शा म0 या C@$- !" #
5. H->5 $- म0 सहम का या औिचBय !" #

3.3 ! "
प ु य A1 9; सहम6 का साधन <ह पOट व लTन पOट  AB @ $  !"#
इनको भी वष कु डली के साथ थािपत करके शभु ाशभु योग व सहमेश के बलानसु ार वष म0 उन
चीज6 कN वृि= या हािन देखी जाती है । जैसे प ु य से प ु य वृि=, िवा सहम से िवावृि= इBया1 #
पुयं गुb ान यशोथ िम(ं माहा:Vय माशा च समथता च ।
Yाता ततो गौरव राज तात माता सतु ो जीिवतमVबु कम ।।
मा!0ं च म!म  # : Eमो ता 
शा*(ं सब!धुसहमं :वथ व!द. ( 
मृ:यो;च सt परदेश धना!य
 
*याद!यकम सविणक :वथ कायिसिG: 
उ7ाह सूित स!ता : uGा ीितबलं तनु: 
जाडय Oयापारसहमे पानीयपतनं cरपु: 
शौयIपाय दcर2:वं गुbतां7  

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ब!ध.
ऽ;व;च sचाश:स  
प ु यािद सहम6 कN संDया 9; !", उनके नाम इस कार है )
:. प ु य [. ग>ु 7. 7ान \. $5 9. िम 8. माहाB%य =. A5 ]. समथ ^. tाता
:;. U ::. राय :[.  :7. & :\.  :9.  :8. अ%बु :=.
कम :]. मा' :^. म'मI [;.  [:. Mमा [[. शा [7. ब'धु [\. ब'द
[9. मृBयु [8. @15 [=. B( []. अ'य1 [^. अ'यकम 7;. N/ 7:.
कायिसि= 7[. उdाह 77. V 7\. स'ता@ 79. i=ा 78. ीित 7=.  7]. (
7^. >/$ \;. eया@ \:. @($@( \[. Wरपु \7. शौय \\. J@I!& \9.
दWरR \8. U \=. अ%ब@ु I \]. ब'ध( \^. 1 ! 9;. अव #
इस कार तािजक शा म0  9; !& ! $ !" #
3.4 !  
पुय 
सयू Iनच!2ाि!वतमिg ल3नं वी!7क यु तं िनिश पु यसं म् ।
शो@यEशुद्@याuयभा!तराले ल3नं न चे :सैकभमेतदु त 
अथात् िदन म0 वष वेश हो तो रिव को च'Rमा म0 घटाकर शेष को लTन म0 जोड़े, रात म0 वषवेश हो
तो च'Rमा को सयू  म0 घटाकर लTन म0 जोड़े । यहॉ जो <ह घटाया जाय वह शो@य !" , िजसम0 घटाया
जाय वह श= ु @याiय है, यिद शो@यM श=ु याiय रािश के बीच म0 लTन ( !-, -  5 - 1,
तो यह प ु य !& !- !" #
उदाहरणाथ ) क[पना िकया िक सयू  ;;#:[#9=#9;, च'R& ]#9#7^#77, लTन 7#[=#=#\
यहॉ िदन म0 वष वेश ह9आ है, इसिलये च'R& ]#9#7^#77 म0 सयू  को घटाकर शेष =#[[#\:#\7
म0 लTन 7#[=#=#\ - - ::#:^#\]#\= इतना ह9आ, यहॉ शो@यM (- EF !" ) D
श=ु ाiय (िजसम0 घटाते हc) इन दोन6 के म@य लTन !", $ सैकता िविध न करने से ही प ु य !&
::#:^#\]#\8 ह9आ । यिद उतने ही इOट रािगत है, मान लीिजये तो सयू  ;#:[#9=#9; म0
च'R& ]#9#7^#77 - EF$, \#=#:]#:= लTन -, ]#\#[9#[: यहॉ शो@यM शो@याiय
के बीच म0 लTन !", $ : 5 -( @ प ु य !& ^#\#[9#[; यह रात का प ु य सहम ह9आ
एक रािश जोडने को सैकता कहते है । यह संकार सब सहम6 म0 समान >प से िवचारणीय है ।
िव0ा गुb व यश सहम 
Oय:य*तम*माnुbिव0यो*तु संसाधनं पुयितयु सुरेAय: 
उराख ड मु त िवविवालय 86
वष   BAJY- 301
िदवा िवलोमं िनिश पूवव5ु यशोिभधं त:सहमं वदि!त ।।
( B( प ु य सहम से िवलोम होता है। अथात् िदन म0 वषवेश हो तो सयू  म0 से च'R& - 
राि म0 वष वेश होने पर च'R म0 से सयू  को घटाकर पवू व त् लTन जोड़0 व आवय !-( @ "
कर0 ।
उदाहरणाथ - यहॉ िदन म0 वषवेश ह9आ है, इसिलये कि[पत सयू  ;#:[#9=#9; म0 च'R&
]#9#7^#77 - EF 5H \#=#:]#:= म0 लTन 7#[=#=#\ - - ]#\#[9#[: ह9आ, $!Z
शो@य श= ु याiयरािश के बीच लTन नहP है, J: : 5 D - 1$ ^#:\#[9#[: यही ग> ु
सहम वा िवा सहम ह9आ ।
और िदन म0 इOट !", J: प ु य !& ::#:^#\]#\8 को वृहप ;#[#\^#] म0 घटाया शेष
;#:7#;#[[ इसम0 लTन 7#[=#=#\ - \#:;#=#78 यहॉ शो@य श= ु याiय के बीच लTन नहP
!", J: " $ - $5 !& 9#:;#=#[8 ह9आ ।
िम( सहम 
पु यसt गb ु सtत*:यजेद्Oय:ययो िनिश िसताि!वतं च तत् ।
सैकता तनुवदु तरीिततो िम(नाम सहमं िवदुबुधा: 
भाषाथ ) िदन म0 वष वेश हो, तो ग> ु सहम म0 प ु य !& - EF$, रात म0 उ[टी रीित अथात्
प ु य सहम म0 ही ग> ु सहम को घटाये, और श: ु को जोड़े । लTन का ऐसे पवू क  थनानुसार ि:या कर0 ,
अथात् जैसे पहले शो@यM श@ु याiय इनके बीच लTन ( !-(   -( ! $, " $!Z
शो@यM श= ु याiय के म@य म0 श:ु को न रहने से एक जोड़ना चािहेये । ा8त लिHध को सहम के
(&  ( !" #
माहा:Vय  -  
पुयाTौमं शोधयेदु तव:*या!माहा:Vयं त!न तम*माि7लोमम् ।
शुPं म!दादिg न तं िवलोममाशाjयं *यादु तव\छे षमू^म् ।।
अथात् िदन म0 वषवेश हो तो प ु य सहम म0 कि[पत कर मंगल को घटाये, रात म0 िवलोम अथात्
मगं ल म0 प ु य !& - EF$, पवू क िथत लTन - ->, िफर उसम0 एक जोड़े तो महाB%य !&
!- !" # 1( म0 शिन म0 श: ु को, रात म0 श: ु म0 शिन को घटाना शेषकाय पवू व त् अथात् लTन
-(, " (  A5 (& !& !- !" #
साम4य व Yातृसहम 
साम4यमारा5नुपं िवशो@य न तं  ".      

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जीवाि7शु@ये:सततं पुरावद् Yातािकंहीनाnुbत: सदो^: 
िदन म0 वषवेश हो तो मगं ल म0 लTने5 - EF$, रात म0 लTनेश ही म0 मगं ल को घटावे, लTन -,
शो@यM श= ु याiय रािशय6 के बीच यिद लTन ( !- -  5 D -, तो यह साम^य !&
होता है ।यहॉ यिद लTने5 &P  ही हो जाय तो िदन के साथ रात म0 भी वृहपित म0 मगं ल को घटाये ।
लTन जोड़ना तथा पवू ानसु ार सैकतािविध करने पर साम^य सहम होता है । और िदन व राि म0
वषवेश हो तो वृहपित म0 शिन को घटाये, पवू  अनसु ार लTन -( " करने से tातृसहम होता
!" #
$ - -   
िदने गुरो;च!2मपा*य न तं रिवं Pमादक िवधू च देयौ ।
री:यो तया गौरधमक माकd रपा*य .  $ ##
1( म0 वषवेश हो तो वृहपित म0 च'R& - EF$, सयू  को जोड़े , वृहपित च'Rमा के बीच लTन
नहP पड़े तो एक रािश जोड़ना यह गौरव सहम होता है, रात म0 वृहपित म0 सयू  को घटावे, च'R&
-, च'Rमा वृहपित के म@य म0 लTन नहP पड़े तो एकरािश और जोड़ना !$  रात म0 गौरव
!& !- !" #
िदन म0 शिन म0 सयू  को, रात को सयू  म0 शिन को घटाना, लTन -(, पवू व त् सैक (  $! 
!& P  !& !- !" #
6   - जीिवताVबु  
माते!दुतोपा*य िसतं िवलोमं न तं  "हिनशिम!दुमीAया 
*याAजीिवताjयं गुbमािक तोिg वामं िनशीदं सममVब .7 
अथात् िदन म0 च'Rमा म0 श: ु को, रात म0 श: ु ही म0 च'R& - EF, लTन P 5 -( 
िनयम पवू व  तो माता सहम होता है और िदन ) रात म0 कभी भी वषवेश हो तो ) वृहपित म0
च'R& - EF$, लTन जोड़े पवू व त् सैक करने पर पु सहम होता है । िदन म0 शिन म0 वृहप - ,
रात म0 वृहपित म0 शिन को घटाकर एक जोड़ना सैक करना पवू व त् तो जीिवत सहम होता है । यश
माता सहम के बराबर ही अ%बु !& !- !", य6िक दोन6 चतथु  थान ही हc ।
कम  "  म!म  
कम माराि!निश वाममु तं रोगाjयिम!दुं  : 
) 
*या!म!मथो ल3नपिम!दु"िg वामं िनशी!दुं  . 
कात् ।
िदन म0 मगं ल म0 बधु , रात म0 बधु म0 मगं ल को घटाकर लTन जोड़ना पवू व त् सैक करना तब कम सह&

उराख ड मु त िवविवालय 88


वष   BAJY- 301
होता है । िदन और रात म0 भी लTन म0 च'Rमा को घटाकर शेष कम पवू व त् करने से रोग सहम होता है
और िदन म0 च'Rमा म0 लTने5 -, रात म0 लTनेश म0 च'Rमा को घटाकर लTन $- ( !$ I
पवू व त् सैक करने से म'मI !& !- !" #
J  च'Rमा ही लTने5 !-, तो िदन और रात म0 सयू  म0 ही लTनेश को घटाने पर तथा शेष ि:या
पवू व त् करने पर म'मI !& !- !" #
अयास  न -
1. तािजक ग'थ म0 िकतने कार के सहम कहे गये है ।
. 30 R. 40 . 50 E. 60
2. सयू bनच'Rा का अथ है )
. सयू  + च'R R. सयू  ) च'R . सयू  × च'R E. सयू / च'R
3. िवा ग> ु व यश सहम साधन िकसके िवलोम होता है ।
. प ु य !&  R. समथ सहम के ग. U !&  E. कोई नहP
4. िदन म0 वषवेश होने पर ग> ु सहम म0 प ु य !& - EF( @ !- !" )
. िम सहम ख. A5 !& . साम^य !& E.  !&
5. िदन या रात म0 श: ु म0 सयू  को घटाकर लTन -, और रिव श: ु के बीच म0 लTन नहP होने
 : 5 D -(  vvv.. !& !- !" #
. U R. अ'य1 . राय E. िम
किलEमाशाe सहम )
किलEमे *तो गुbतो िवशG ु े कुजे िवलोमं िनिश पूवरी:या 
शा*(ं िदने सौcरमपारय जीवाद् वामं िनिश *य :  
अथात् िदन म0 वृहपित म0 मगं ल को, रात म0 मगं ल म0 वृहप - EF$, लTन -, पवू व त् सैक
(   !&, और Mमा सहम होता है और िदन म0 वृहपित म0 शिन को , रात म0 शिन म0
वृहपित को घटाय0 बधु जोड़े, और वृहपित से मगं ल तक इसके बीच म0 यिद बधु नहP हो तो सैक
करने से शा !& !- !" #
ब!धु ब!दक मृ:यु  
िदवािनशं ा\छिशनं िवशो@य ब!@वाjयमेति!निश व!दकं *या 
वामं िदवैत!मृितर'टमEािद!दुं िवशो@यो त
 " 
अथात् िदन म0 या रात म0 वषवेश होने से बधु म0 से च'Rमा को घटाकर लTन जोड़े उसम0 पूवव त्
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वष   BAJY- 301
" रने से ब'धसु हम होता है । यहॉ यही ब'धु सहम रात म0 ब'दक सहम होता है । िदन म0 च'R&
म0 बधु को घटाकर लTन -, पवू व त् सैक िकया पवू व त् समझना तब ब'द !& !- !" #
िदन या रात म0 िकसी समय वषवेश होने से अOट%भाव म0 से च'R& - EF B -(,
च'Rमा से अOटमेश तक बीच म0 लTन होने से एक और जोड़ना तो मृBयु !& !- !" #
देशा!त एवं अथ  
देशा!तराjयं नवमाि7शो@य धमd;वरं स!ततमु तव:*या 
अहिनशं िव5पमथभावाि7शो@य पूवI तवदथसt ।।
अथात् िदन या रात म0 वषवेश हो तो नवम भाव म0 नवम भावेश को ही घटाकर, लTन -(
!$, और नवमेश एवं नवम भाव इन दोन6 के बीच लTन न होने से एक रािश जोड़ने से देशा'त
!& !- !" #
और िदन म0 या रात म0 धन भाव म0 से धनेश को घटाकर लTन -( !$, B(5 JI B(,
इन दोन6 के बीच म0 लTन नहP होने से एक रािश और जोड़ने से अथ !& !- !" #
अ!य
, अ!यकम, ब!दक एवं वािणAय  )
िसतादपा*याक मथा!यदाराwयं सदा ा3वदथा!यकम ।
च!2ा\छिन वाममथो िनशायां श;व7िणAयं िदनब!दको :या 
अथात् िदन या रात म0 श:ु म0 सयू  को घटाकर लTन -, और रिव श: ु के बीच म0 लTन नहP होने से
: 5 D -(  अ'य1S !& !- !" # और िदन म0 च'Rमा म0 शिन को रात म0 शिन म0
च'Rमा को घटाकर उसम0 लTन जोड़ना पवू व त सैक करना तब अ'यकम सहम होता है । िदन म0 और
रात म0 भी िदन म0 जो ब'द !& ! $ !", अथात् च'Rमा म0 बधु को घटाकर लTन - I
$1 B - च'Rमा के बीच लTन नहP पड़े तो एक और जोड़ने से वािणय !& !- !" #
कायिसिG    )
शनेिदवाकR िनिश च!2माकd िवशो@य सूयd!दु " 
*या:कायिसिG: सततं िवशो@य म!दं िसता:*या5ु िववाहसt ।।
िदन म0 शिन म0 सयू  को घटाकर सयू  रािश के वा& - -( " (, रात म0 शिन म0 च'R -
घटाकर च'Rरािश को जोड़ना सैक करना तो कायिसि= सहम होता है । िदन म0 या रात म0 वषवेश
होने से श:
ु म0 से शिन को घटाकर लTन -, शिन श: ु के बीच लTन ( !-(   5 D
जोड़ने से कायिसि= सहम होता है । िदन म0 या रात म0 वषवेश होने से श: ु म0 से शिन को घटाकर
लTन जोड़कर शिन श: ु के बीच लTन ( !-(   5 -(  ! !& !- !" #

उराख ड मु त िवविवालय 90


वष   BAJY- 301
सव  स!ता  
 "बुधं ोAझय भवे:सूितवामं िनशी!दुं शिनतो िवशो@य 
ष'ठं िEपेदु त
 
) स!तापसtारमपा*bशुPात् ।।
uGा सदा ो त
थ पुयं िव0ाjय: ोAझय सदा पुरो त  
ी:याjयमु तं बलदेहसंे यश: डयमपा*य $ 
शिन िवलोमं िनिश चाि!2योगाद् OयापारमाराAमपा*य श;व 
# : शिशनं िवशो@य सौरेिवलोमं िनिश पूवव:*या 
अथात् िदन म0 वृहपित म0 बुध को, रात म0 बधु म0 वृहपित को घटाकर लTन जोड़ने और पवू व त
सैक करने से सिू त सहम होता है । िदन म0 और रात म0 भी शिन म0 च'R& - EF YT 
-( , उसम0 लTन  $- ( , @( : पवू व त् सैक करने से स'ता@ !& !- !" # 1( D
रात म0 भी श: ु से मगं ल को घटाकर लTन$-  , उसम0 सैकता करने से i=ा सहम होता है ।
cरपु, शौयIपायदcर2गुbता सहम 
म!दं कुजा:ोAझय cरपिु वलोमं रा(ौ भवेTौमिवहीनपु या 
शौयR िवलोमं िनिश पूवव:*यादुपाय ईAयं शिनतो िवशो@य 
वामं िनिश ं तु िवशो@य पु याAं युि3वलोमं िनिश त]cर2म् ।
सूयI\च: सूयमपा*य न तं च!2ं तदु\चाद् गुbता पुरो :या 
अथात् िदन म0 वषवेश होने से मगं ल म0 शिन को, रात म0 शिन म0 मगं ल को घटाकर लTन -( 
तथा पवू व त सैक करने से Wरपु सहम होता है ।
िदन म0 प ु य सहम म0 मगं ल को घटाकर, रात म0 मगं ल ही म0 प ु य सहम को घटाकर पवू व त् लTन$-
सैकता करने से शौय सहम होता है । िदन म0 शिन म0 वृहप, रात म0 वृहपित म0 शिन घटाकर, उसम0
लTन$-  @( : " (  C@$ !& !- !", िदन म0 प ु य सहम म0 बधु को, रात म0 बधु म0
प ु य सहम को घटाकर बधु जोड़ने तथा सैकता िविध को अपनाने से दWरR सहम होता है । िदन म0
सयू bnच म0 सयू  को, रात म0 च'Rोnच म0 च'R& - EF$, उसम0 लTन जोड़ने व पवू व त् सैकता करने
से ग>ु ता सहम होता है ।
जलपथब!ध  
ककाधत: ोAझय शिनं *याAजला@वा!य  
पुया\छिनं िवशो@यािg वामं िनिश तु ब!ध 
अथात् िदन म0 वषवेश होने से ककाध 7#:9 म0 शिन को घटाये, रात म0 शिन म0 ही ककाध को

उराख ड मु त िवविवालय 91


वष   BAJY- 301
घटाकर लTन जोड़े उसम0 पवू व त् सैक करने से जलाgव सहम होता है । छा6 को यह जानना चािहये
िक आजकल जहाजी याा नौका याा का िवचार होता है ।
िदन म0 वषवेश होने से प ु य !& म0 शिन को घटाये, रात को शिन म0 ही प ु य !& - EF,
उसम0 लTनयोग तथा पवू वत् सैकता करने से ब'ध( !& !- !" #
क!या अ;व  
च!2: िसतादपा*यो तं सदा क!याjयमु त 
पुयादक मपा*याययोगाद;वो!य  
1( D  म0 भी श: ु म0 च'R& -, घटाकर लTन योग करने से तथा उसम0 सैकता कम करने से
क'या सहम होता है । तथा िदन म0 प ु य सहम म0 सयू  को रात म0 सयू  ही म0 से प ु य !& - EF
आय भाव जोड़ने से तथा पवू व त् सैकता करने से अव !& !- !" #
इस कार तािजक <'थ म0 प ु या1 9; सहम कहे गये है । इनके 7ान से हम0 वषकु ड 151
कतeय म0 सहायता िमलती है । अत: पाठको को इसका 7ान परमावय !" #
3.5   
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  तािजक मत म0 प ु य A1 9; सहम6
का साधन <ह पOट व लTन पOट के आधार पर िकया जाता है। इनको भी वष कु ड  I
थािपत करके शभु ाशभु योग व सहमेश के बलानसु ार वष म0 उन चीज6 कN वृि= या हािन देखी जाती
है । जैसे प ु य से प ु य वृि=, िवा सहम से िवावृि= इBया1 । प ु य, ग>
ु , 7ान, $5, िम,
माहाB%य, A5, समथ, tाता, U, राय, , &,  , , अ%बु , कम, मा', म'मI,
, Mमा, शा, ब'ध,ु ब'द, मृBय,ु @15, B(, अ'य1, अ'यकम, N/, कायिसि=,
उdाह, V , स'ता@, i=ा, ीित, , (, >/$, eया@, @($@(, Wरप,ु शौय, J@I!&,
दWरR, U, अ%ब@ु I, ब'ध(, दिु हता तथा अव तािजक शा म0 $ 9; !& ! $ !" #
3.6 पारभािषक शदा
    5 D J5
िव0ावृिG - िवा कN वृि=
)   5 -(
शो@य  जो घटाया जाये वह शो@य !"
शG ु याuय - िजसम0 घटाया जाये वह श=
ु याiय है
 - श: ु

उराख ड मु त िवविवालय 92


वष   BAJY- 301
 - राि
पवू किथत - पवू  म0 कहा गया
पूववत्  @!  &(
 "  उ[टा
महा:म - महा
3.7 अया  न के उत
1.
2. R
3. 
4. 
5. R
3.8 सदभ थ 
तािजकनीलकठी ) & V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
Aयोितष सव*व ) F - सरु े श च'R िमi
तािजक नीलकठी ) F ) आचाय िवव(I
3.9 िनबधामक  न
1. !& या !" % पOट कNिजये ।
2. प ु यािद सहम6 का नाम िलखते ह9ये उसका वणन कNिजये #

उराख ड मु त िवविवालय 93


वष   BAJY- 301
  4 अ%रट एवं अ%रट  

इकाई क 
4.1 तावना
4.2 उे

4.3 अर(ट एवं अर(ट $   !

अया 
न -
4.4 

4.5 पारभािषक शदावली
4.6 अयास 
न के उ र
4.7 स!दभ "!थ सचू ी
4.8 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 94


वष   BAJY- 301
4.1 ता
तु  000वाई योितष तृतीय वष के िdतीय ख ड  चतथु   अcर'ट
एवं अcर'ट . ( से स%बि'धत है । तािजकशा I अWरOट एवं अWरOट P  
वणन इस अ@याय म0 िकया जा रहा है ।
अWरOट का अथ होता है ) अशभु एवं अWरOट भगं का अथ होता है ) J5  &B( # 
कार अWरOट एवं अWरOट भगं योग के आधार पर तािजक शा म0 शभु ाशभु फलादेशािद कतeय
$  !" #
 पवू  कN इकाईय6 म0 आपने H->5 $- , म'ु था , !& $- 1 का अ@य$(  $ !",
आइये अब इस इकाई म0 अWरOट एवं अWरOट P  का अ@य$(  !" #
4.2 उे य
 इकाई के अ@ययन करने के पचात् आप जान सके ग0 िक )
1. अWरOट योग या !" #
2. अWरOट P या !" #
3. अWरOट एवं अWरOट P  B( "  $  !" #
4. अWरOट एवं अWरOट P का तािजक शा म0 या C@$- !" #
5. अWरOट एवं अWरOट भगं का योजन या !" #

4.3 अर$ट एवं अर$ट #  "


आचाय नीलक ठदैव7 ने तािजकनीलक ठी म0 अcर'ट >. अcर'ट. के नाम से अ@याय6
का सू पात िकया है । अWरOट का अथ होता है ) अशभु । आइए सवथम यहॉ अWरOट कN चचा
 !" )
ल3ने'ट'टे शे तन*ु थे वा कुजेिEते ।
जीवयोर*त ": श*(घातो िवप!मृ: 
अथात् लTनेश अOटमथान म0, अOटमेश लTन म0 हो और मगं ल dारा देखा जाता हो अथवा बधु ,
वृहपित अतं  !-, तो श का आघात और िवपि, &N A1  !- !" #
अ&दल3नेशर!1े$ Oयया'ट7 " $ 
मुथहासंयुतौ मृ:युदौ तGातुकोपत: 

उराख ड मु त िवविवालय 95


वष   BAJY- 301
अथात् वषलTनेश और अOट&5 $1 \,],:[ इन थान6 म0 हो, मथु हा से यतु ह6, - J@( B 
कोप से मृBयु द होते हc ।
ज!मल3ना "वीयI मृतीशो ल3न"
 
सूयh'टो भृितं द5े कु'ठं कडूं 
: 
अथात् ज'मलTनेश वषकाल म0 दबु ल ह6, अOटमेश लTन म0 हो और सयू  से uOट !- - &N,
कुOठ- , खजु ली और िवपिदायक होते है ।
अ*तगौ मुथहाल3ननाथौ म!देिEतौ यदा ।
सवनाशो मृित: क'टमािधOयािधभयं bज: 
अथात् $1 &I !5, वषलTनेश अत ह6 शिन से Mतु uिU से देखा जाता हो तो सवनाश, &N, कOट,
मनोeयI, eयािध रोग ये सब होते हc ।
Pूरमूसcरफो&देशो ज!मे:Pूcरित:  ): 
कVबू िप िवप!मृ:युcर:थम!या: 
यिद वषqश पाप<ह से ईसराफ योग कर !-, ज'मलTनेश पापयतु uOट !-, वहॉ शभु <ह6 से क%ब ू
योग होने पर भी िवपि, &N !- !", इस कार दसू रे <ह के अिधकार से भी यह िवचार करना
!$ #
Pूरा वीयािधका: सौVया िनबला cरपुर!1: 

िधOया#: *या:किलहािन*त   
पाप<ह (Mीणच'R&, , &P  P 5() बलवान ह6, शभु <ह पापरिहत बधु , ग> ु , श:
ु िनबल
ह6 और छठे , आठव0 थान म0 हो, - AB- eयाB $, !, !(, िवपि ये सब अWरOट !-
हc।
नीचे शुPो गुb: श(ुभागे सौjय "  
ल3ने'ट'टे  $  6
 
अथात् श: ु नीच म0 अथात् क'यारािश म0 तथा वृहपित शु के नवमांश म0 हो - R   5 
नहP हो अथवा वषलTनेश अOटम थान म0 और अOटमेश लTन म0 हो तो मरण होगा । ऐसा अWरOट
 !( !$ #
िनबलौ धमिव5ेशौ दु'टखेटा*तनौ ि*थता: 
ल`मीि_रािजता न;ये0िद शPोपरिEता ।।
भाTये5, धनेश यिद बलहीन ह6, पाप<ह लTन म0 हो, तो इ'R से भी सरु िMत बह9त िदन6 से जमा कN

उराख ड मु त िवविवालय 96


वष   BAJY- 301
गयी स%पि नOट हो जाती है । ऐसा अWरOट  &W( !$ #
नीचे च!2े*त: सौVया  ":*व:  
शरीरपीडा मृ:युवा सािधOयािधभयं 2ुतम् 
अथात् यिद च'Rमा नीच रािश म0 हो, शभु <ह अतंगत ह6 तो अपने पWरजन6 से भी िवयोग होता है,
देह कN पीड़ा, शीr &N, मनता@, I eयाB A1  $ !- !" # तािजक शा  J( 
ऐसा अWरOट  &W( !$ #
अ&दल3नं ज!मल3नरािशUयाम'ट.
 
क'टं महाOयािधभयं मृ:यु: पापयुतेEणात् ।।
यिद ज'मलTन से या ज'मरािश से वषलTन आठव0 थान म0 पड़े तो कOट, महाeयाB  $ !-,
वहॉ यिद पाप<ह के योग और uिU पड़ती हो तो मरण कहना चािहये । ऐसा अWरOट $- !- !" #
ज!म!य'ट: पापो वषल3ने bगािधद: 
च!2ा&दल3नपौ न'टबलौ चे:*या5दा मृित: 
ज'म कु डली म0 यिद अOट& था( म0 कोई पाप<ह हो, वही <ह यिद वष लTन म0 िथत हो तो रोग,
मनता@ - 1 !", $ च'R& और वषलTनेश Mीणबली ह6 तो मरण होता है । ऐसा अWरOट
&W( !$ #
ज!मा&दल3नपौ पापयु तौ पिततभि*थतौ ।
रोगािधदौ मृ:युकराव*तगौ नेिEतौ शुभै: 
यिद ज'मलTनेश और वषलTनेश पाप<ह6 से यतु हो, D \,8,],:[ ( थान6 म0 हो तो रोग,
&(-1: ख को देते हc । यिद वे दोन6 अतंगत ह6 I शभु <ह6 से uOट नहP ह6, तो मृBयदु ायक होते हc ।
OययाVबिु नधनाcर*था ज!मेशा&दपमु!थ: 
एकEगा*तदा मृ:यु: पापEुतhशा 1ुवम् ।।
यिद एक रािश म0 गत ज'मलTने5, वषqश, &I ! $1 \,8,],:[ थान6 म0 ह6, - &N !- !" #
वहॉ यिद पाप<ह कN Mतु :,\,=,:; uिU से देखा जाता हो तो िनच$ &N !- !" #
च!2ो Oय   :  : ष'ठोथनाशकृत् ।
िच5वैक.यमशुभभेसराफा!न शुभेEणात् ।।
यिद शिनयु त च'Rमा eययभाव म0 हो, शभु <ह छठ0 थान म0 हो, - B(  (5  !" # $1
!Z @@   $- !- !-, तो मन कN िवकलता होती है । यिद शभु <ह कN uिU पड़ती हो,
तो वैसे नहP होता अथात् B((5, िच वैकल'य नहP होता है । तािजक शा म0 s अWरOट $-

उराख ड मु त िवविवालय 97


वष   BAJY- 301
! $ !" #
च!2ोऽक मड " cरपुcर:फा'टब!धु: 
ि(दोषत*त*य bजा िविवधेAयhशा शभ ु म् ।।
यिद अतंगत च'Rमा छठ0 , बारहव0, आठव0 चौथ0 थान6 म0 िकसी म0 हो, तो िदोष से अनेक कार
 - !- !", वहॉ यिद ग>
ु कN uिU हो, - 5 !- !" #
अयास  न 
1. अWरOट का अथ होता है )
. 5 R. J5 . 5 5 E. कोई नहP
2. तनु कहते हc )
. लTन - R.  - . 5 - E. नM को
3. अHदS से ताBपय है %
. &I ! R. वष ग. !& E. वषवेश
4. ज'म रािश से वषलTन आठव0 थान म0 पड़े तो होता है )
. R  R. कOट . कOट और महाeयाB  $ E. कोई नहP
5. लTनाB@- ................... शभु िे MतयुतोX@  #
के 'RिकोणगोWरOटं नाशयेBसख ु िवद: ##
. िकोणे ख. $ : . शभु िे Mत: E. 15/

ह]ाहायनल3नेशौ सता'टा!:ये खलाि!वतौ ।


*वदशायां िनधनदौ शुभh'ट   . 
 
यिद पाप<ह से यु त वषलTन के ह~ेश तथा वषलTने5, $ $1 =,],:[ इन थान6 म0 ह6, - &N
को देते हc । शभु uिU हो तो शभु समझना चािहये । ऐसा तािजकोत अWरOट $- &W( !$ #
अ&दल3नाhAवनृजू Oययाथ*थौ bजा तदा ।
एवं वषा&दल3नेशज!मेशैरिप ब!ध 
यिद वषलTन से माग] <ह बारहव0 थान म0 ह6 तथा व:N<ह दसू रे थान म0 ह6, - - !- !" # 
कार वषqश, वषलTने5, ज'मलTनेश6 से योग होने से ब'ध( !- !" #
नीचे ि(रािशपे पापh'टे कायR िवन;य 
इि!थहेशे&द  cरमे*तं याते bजा िवपत् ।।
उराख ड मु त िवविवालय 98
वष   BAJY- 301
यिद लTन के िरािशप नीचरािश म0 हो, पाप से uOट !-, तो काय का नाश होता है या मथु हेश या
वषqश, शरु ािश म0 ह6 , अत भी ह6 तो रोग और िवपि होती है ।
च!2ाcर'ट -
च!2ो cर:फषड'टभू0ुनगतो h'टोशुभैनI शुभै: 
सोcर'टं िवदधाित मृ:युमथवा भौमेEणािद3न#: 
श*(ा7ा शिनराहZकेतुिभररेभfित bजं वायुजां ।
दाcर2यं रिवणा शुभं शुभhशेAया "

 
यिद च'Rमा वष लTन  \,8,=,],:[ थान6 म0 हो, पाप<ह6 से uOट !-, शभु <ह से uOट ( !-, -
अWरOट या मरण देता है । वहॉ मगं ल कN uिU से अिTनभय, 5(, राह9 के तओ ु ं से देखे जाने पर
श$, शभु य, वायु के कोप से रोग उBप'न  !" । रिव से uOट हो तो दWरR बनाता है । यिद
शभु <ह6 कN uिU च'Rमा पर पड़े या वृहप कN uिU पड़े तो शभु होता है ।
Pूराि!वतेिEतयुता शिननेि!थहािधOयािधदा जनुिषcर:फसुखाcरर!1े 
0नू े च वषतननु ैधनगा मृितं सा द5े खलेिEतयुते:यिप िच!:यमायk: 
अथात् पाप<ह से यतु या uOट मथु हा यिद शिन से भी uOट !- - &(-1: R D - 1 !" JI
ज'मलTन  \,8,],^,:[ इनम0 से िकसी थान म0 िथत होकर यिद वषलTन  ] व0 थान म0 ा8त
हो और पाप<ह से uOट यतु हो तो मृBयु 1 !" #
अब तक आपने जाना िक तािजक शा म0 अWरOट $- U( ) कौन से है । आइए अब अWरOटP
योग का अ@य$(  !" # अWरOटभगं का अथ होता है ) कु डली म0 जो अशभु योग होते हc,
उनका नाश करने वाले और शभु फल देने वाले । तािजकनीलक ठी म0 आचाय नीलक ठदैव7 ने जो
अWरOटभगं कN बात कN है, उसका वणन करते है ।
ल3ना " 7 : शुभेिEतयुतो  
के !2ि(कोणगोcर'टं नाशये:सु&5द: 
अथात् बल से संयतु वषलTनेश के 'R या िकोण :,\,9,=,^,:; थान6 म0 हो, शभु <ह से यतु या
uOट !- - J5   (5  !", और शभु फल अथात् सख ु एवं धन को देता है ।
गुb: के !2े ि(कोणे वा पापाh'ट: शुभेिEत: 
ल3न(!2ेि!थहाcर'टिवनाशाथसख ु ं 
 
अथात् वृहपित के 'R या िकोण म0 ह6, पाप<ह6 से देखा नहP जाता हो, िक'तु शभु <ह से देखा
 !-, तो वषकाल म0 लTनO , च'R&O , मथु हाजिनत अशभु फल6 को नाश करते हc और

उराख ड मु त िवविवालय 99


वष   BAJY- 301
B( - सख ु को देने वाले होते हc ।
सुखं *वािमयुतं सिTh'टं सौjय "थदम् 
ल3ने 6# थ गb ु ज!मेट सौjयाथद: &  
चतथु  भाव अपने वा&  $ !-, शभु <ह6 से uOट !-, - R  , $5 I B( - 1 !" #
अथवा वृहपित वषलTन म0 या तीसरे म0 हो, अथवा वषलTन का वामी होकर चौथे थान म0 हो, -
R , $5, B( - 1 !" #
ल3ने 0ुनेश*त : सुरेAय: Pूरैरh'ट: शुभिम(h'ट: 
cर'टं िनह:ं यथयश: सुखािlं िदशे:*वपाके नृपितसादम् ।।
वषलTन म0 स8तमेश और वृहपित ा8त होकर पाप<ह6 से देखा न जाता हो शभु <ह और िम<ह से
uOट हो अथवा शभु <ह6 कN िम uिU से देखा जाता हो, तो अWरOट6  (5  !" # B(, $5,
और सख ु कN ाि| करता है एवं अपनी दशा म0 राजा कN स'न  !" #
बलाि!वतो धमधनािधनाथा Pूरैरh'टो  $
*ता 
राAयं गजा;वाVबरर:नपण ू R cर'ट*य "यतुलं यश;च 
भाTयेश और धनेश बल से यु त ह6, पाप<ह6 से देखा नहP जाता हो और लTन म0 गया हो, - !I ,
E-,व}, रBन6 से पणू  राय & !", D J5  (5, JB $5  !- !" #
ि(ष'ठलाभोपगतैरसौVयै: के !2ि(कोणोपगतै;च सौVयै : 
र:नाVबर*वणयश:सुखािlनाशोयcर'ट*य तनो;च पुिi: 
सभी पाप<ह 7,8,:: थान6 म0 ह6, और सभी शभु <ह :,\,9,=,^,:; थान6 म0 ह6, तो रBन,
व}, सवु ण, यश कN ाि| होती है और कOट  (5, तथा शरीर कN भी पिु U होती है ।
यदा सवीया मुथहािधनाथो ल3ना " ज!मिवल3न "  
के !2ि(कोणायधनि*थता*ते सुखाथहेमाVब 
: *यु: 
$1 &I !5 ( !-, वषलTनेश वा ज'मलTनेश के 'R (:,\,=,:;) , िकोण (9,^) D [,::
थान6 म0 हो तो सख ु , B(, सवु ण, व}6 के लाभ को देते हc ।
तुंगे शिनवा भृगुजो गुbवा शुभे:थशाला0वनाGनािlम् ।
बली कुजो िव5गतो यशोथतेजां*यक*मा\च सुखािन द0ात् ।।
अथात् शिन तल ु ा म0, श:
ु मीन रािश म0, वृहपित कक म0 ह6, वहॉ यिद शभु <ह से इBथ5 !-
!-, तो यवन जाित से धन लाभ होता है या बलवान मंगल िdतीय थान म0 हो तो यश, B( P
J( R  - 1 !" #

उराख ड मु त िवविवालय 100


वष   BAJY- 301
सूयdAयशुPा िमथ इ:थशालं कुयु*तदा राAय :सुखाथा: 
सूय: कुजो वोपचये ददाित भ2ं यशो मंगलिमिथहाया: 
$1 , वृहप, श: ु ये एक दसू रे से इBथशाल करते ह6, तो राय, $5, R  , तथा धन सभी कN
ाि| होती है, या यिद सयू  या मगं ल मथु हा था(  7,8,:;,:: इन थान6 म0 हो तो कुशल, $5
उBसव और आन'दािद को देते हc ।
शुPच!2ा ह]े *वे पापा*(  

*वबाहZबलतो हेमसुखकzतfनरो;नु 
श: ु , B , च'Rमा ये सभी <ह यिद अपनी ) अपनी ह~ा म0 ह6, पाप<ह (5(, , P &P )
यिद तीसरे Tयारहव0 थान म0 ह6 तो मनOु य अपने बाह9बल से सोना, R  , I $5 - -  !" #
बधु शPु ौ मूसरीफौ गb ु िवPमभावग: 
तदा राAयशोहेममु तािव2ुमल&ध : 
यिद बधु श: ु मसू रीफ योग करते ह6, वृहपित तीसरे भाव म0 ह6 , - , $5, सवु ण, मु ता, &PV 
$    !- !"#
भौमो िम(गृहे&दे: कVबूली *व6
): 
गजा;वहेमाVबरभूलाभं ध5े सुखािदकम् ।
यिद मगं ल वषqश होकर िमगृह म0 गया हो, तथा अपने रािश म0 िथत <ह6 से क%ब ू $-  !-,
- !I, E-, सवु ण, व}, जमीन6 का लाभ और सख ु - क[याण होता हc ।
इ:थं ज!मिन वषd च योगकतुबला7  
िवमृ;य कथये2ाजयोगं तTगं मेव च ।।
इस कार से ज'मकाल म0 तथा वषकाल म0 भी योगकारक <!     $- $
P $- ! $ !" #
. " 
अ&देि!थहेशािदखगा: खलै;चे0तु ेिEता अ*त#(  
सौVया बलोना नृपयोगभंगं तदा वदेि75सुखEयां;च 
अथात् वषqश, &I !5, ज'मलTने5, वषलTनेश ये सभी यिद पाप<ह6 से यतु uOट ह6 या अत ह6,
नीच रािश म0 ह6 अथवा शभु <ह बलहीन ह6 तो राजयोग का भी ख ड( !- !" D B( ) R  
नाश भी होता है । ऐसा तािजकोत P $- !" #
4.4   
उराख ड मु त िवविवालय 101
वष   BAJY- 301
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  अWरOट का अथ होता है ) J5 #
अWरOट एवं अWरUभगं योग नामक अ@याय6 कN चचा आचाय नीलक ठदैव7 ने व<'थ
िजकनीलक ठी म0 िकया है । उ'ह6ने अWरOट योग को बताते ह9ये कहा है िक लTनेश अOटमथान म0,
अOटमेश लTन म0 हो और मगं ल dारा देखा जाता हो अथवा बधु , वृहपित अतं  !-, तो श 
आघात और िवपि, मरण आिद फल होते है । अWरOट6 के शमनाथ उ'होन0 कहा है िक बल से सयं तु
वषलTनेश के 'R या िकोण :,\,9,=,^,:; थान6 म0 हो, शभु <ह से युत या uOट !- - J5 
 (5  !", D 5 फल अथात् सख ु एवं धन को देता है । इस कार से उ'ह6ने अWरOट P
अWरOट भगं का वणन िकया है ।
4.5 पारभािषक शदा
अcर'ट  J5
अcर'ट. - J5  (5 ( ( 
   &P 
  लTन
 - B
# - वृहप
7  - चतथु  भाव
Pूर - पाप<ह
के !2  :,\,=,:;
ि(कोण  9,^
? - वृहप
4.6 अया  न के उत
1. R
2. 
3. R
4.
5. R
4.7 सदभ थ 
तािजकनीलकठी ) &
V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन

उराख ड मु त िवविवालय 102


वष   BAJY- 301
Aयोितष सव*व ) F - सरु े श च'R िमi
तािजक नीलकठी ) F ) आचाय िवव(I
4.8 िनबधामक  न
1. अWरOट योग या !" % पOट कNिजये ।
2. अWरOटP $- - C1!N ! $ #
3. अWरOट एवं अWरOट P $- का िवतारपवू क
 वणन कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 103


वष   BAJY- 301
  5 दशा फल म( िवशेष

इकाई क  


5.1 तावना
5.2 उे

5.3 %   !

5.4 दशा फल म6 िवशेष


अया 
न -
5.5 

5.6 पारभािषक शदावली
5.7 अयास 
न के उ र
5.8 स!दभ "!थ सचू ी
5.9 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 104


वष   BAJY- 301
5.1 ता
तु  000वाई योितष तृतीय वष थम प के िdतीय ख ड  @P & 
दशा फल मa िवशेष से स%बि'धत है । तािजकशा म0 दशा फल का िववेचन िकया गया है ।
तािजकोत दशा फल के अ'तगत <ह6 कN दशाओ ं म0 शभु ाशभ फल का िववेचन िकया गया है ।
दशा फल म0 िवशेष या !" % इसका अ@ययन आप ततु इकाई म0 करने जा रहे है
 पवू  कN इकाईय6 म0 आपने H->5 $- , म'ु था , सहम िवचार तथा अWरOट एवं अWरOट P
 का अ@य$(  $ !", आइये अब इस इकाई म0 दशा फल म0 िवशेष का अ@य$(  !"
5.2 उे य
 इकाई के अ@ययन करने के पचात् आप जान सके ग0 िक )
1. 15  या !" #
2. दशा फल म0 िवशेष का या अिभाय !" #
3. दशा फल म0 िवशेष िवचार या ) या !- !" #
4. दशा फल का योजन या !" #
5. 15  का या महBव !" #

5.3 $ % "


तािजक <'थ म0 दशा फल का िवतृ ( $ $ !" # दशा फल के अ'तगत सयू ,
च'R&, &P , B , ग>
ु , श:
ु , शिन <ह6 का पणू ब ली, म@यमबली एवं व[प  15  
वणन िकया गया है । दशा फल के साथ ) साथ दशा फल म0 िवशेष या !" % इसका भी स%य/
िववेचन िकया गया है । दशा फल म0 िवशेष जानने के पवू  सिं M8त म0 <ह दशा फल को समझने का
यास करते है । सवथम दशा :म िवचार िकस कार करते है )
*प'टा!सल3नाखचराि!वधाय राशीि!वना:य.पलवं तु पवू म् ।
िनवे;य त*मादिधकाकांशPमादयं *या5ु दशाPमो&दे 
<. िवशो@या: Pमेण शो@यं िवशुGांशकशेषकै य 
सवािधकांशोि!मतमेव त:*यादनेन वष*य िमित*तु भाAया 
शुGांशकां*ता!गुणयेदनेन ल&ध1ुवांकेन भवे]शाया: 
मानं िदना0ं खलु तद्Bह*य फला!यथासां िनगदे5ु शा*(ा 

उराख ड मु त िवविवालय 105


वष   BAJY- 301
शुGांशसाVये बिलनो दशा0ा बल*य साVये.पगते*तु पूवा ।
साVये िवल3न*य खगेन िच!:या बलािदका ल3नपतेिविच!:या ##
सवथम लTन और सयू ािद सात <ह6 को पOट ( उनम0 रािश को छोड़कर के वल अश ं ािदक
रखना । अब उनम0 जो सबसे छोटा अश ं वाला होगा उसको पहली पंि` म0 िलखना चािहये, J
उससे भी जो आस'नवत] अिधक अश ं वाला है । उसके दसू री पिं ` म0 िलिखये, s !   -
JB J5 P  !- C- R( @ $ #. ! !" #
इसके बाद थम पाBयंशा थम, तब दसू री हीनांशा म0 थम को घटाना चािहये, तीसरी म0 दसू री को
EF( !$, चौथी िहनांश म0 तीसरी िहनांश को घटाना चािहये, इसी :म से सभी <ह6 का पाBयं5
बनाना चािहये । यहॉ सभी पाBयं5w P  $- , सब से अिधक हीनांश अथा/  ( 
आठवP हीनांश के समान ही होती है ।
तब एक वष के जो िदनाBमक मान उसको उस सवािधक हीनांश (आठवP)  भाग देना जो लिHध
A$ , वह Vवाक ं कहलाता है । अब Bयेक पाBयश ं को इस Vवु ाक ं से गणु ा कर देने पर गणु नफल
C - उस <ह के िदनािदक दशामान ह6गे । इन 15w P  AB @ 15 ( !$ #
यिद दैववशात् दो या तीन <ह6 कN पाBयंश बराबर ही ह6, तो उन <ह6 म0 जो सबसे अिधक बली <ह
!- , उसकN दशा पहली होगी, उसके पचात् उससे 'यनू बल <ह6 कN । यिद दो <ह6 कN पाBय5 ं
और बल भी बराबर ह6, तो उन म0 जो अ[प गित वाला <ह होगा उसकN पहली दशा होगी ।
यिद लTन और कोई <ह समान पाBयंश वाला हो जाये तो लTनेश कN गित और बल के
'यनू ािधकतारत%य  @! @Y 15 !-  s &W( !$ #
ल न   
हेममु ताफल2Oयलाभमारो3यमु5मम् ।
कुbते *वािमस!मानं दशा ल3न*य " 
लाभं h'टे न िव5*य मानहीन*य  
मनसो िवकृितं कुया]शा ल3न*य म@य 
िवदेशगमनं लेशो बुिGनाशं कदOय  
मानहािनं करो:येव क'टा ल3न
 *  
Pूरल3नदशा म@या सौjयं *व.पं धनOय  
अंगपीडां :वपुिiं च कुbते मृ:युिवBहम् ।।
लTन कN अnछी 15 -(, &-, धनReय6  , आरोTय P J@( &  स%मा(
1 !" #

उराख ड मु त िवविवालय 106


वष   BAJY- 301
लTन कN म@यम दशा धन को देखने पर लाभ मानहीन लोग6 कN सेवा मन के िवकार को उBप'न
 !" #
लTन कN अधम दशा परदेश याा, ले5, बिु =नाश, अपeय$, J@&( - करती है । :ूरलTन कN
दशा यिद म@य& बली हो तो अ[प R  , धन का eय$, 5@, देह दौब[य, &N D -B
उBप'न  !" #
पूणबली, म@य बली एवं अ.प7 # सूय दशा फल -

 : पणू बल*य लाभं गजा;वहेमाVबरर:नपण ू  म् ।
मानोदयं भूिमपतेददाित यश;च देवि7जपूजनादे: 
पणू ब ली सयू  कN दशा हाथी, E-, -(, व}, रBन6 के पूण लाभ और राजा से स%मा( D 1
ƒा„ण6 कN पजू ा से यश को देती है ।
दशा रवेम@यबल*य पूविमदं फलं म@यममेव द5े ।
BामािधकारOयवसायधैयk: कुलानुमाना\च  &
: 
म@यबली रिव कN दशा पवू bत पणू ब ली सयू  का जो दशाफल !", उसी को साधारण >प म0 देती है
और <ाम के शासन, पंचायती आिद कायh के अिधकार, eया@, धैय से कुल के अनसु ार सख ु , B(
जन6 का लाभ इBया1   !- !" #
दशा रवेर.पबल*य  . .


:खं *व)
 
मितYमं िप5bजं *वतेजोिवनाशनं घषणम@यcरUय: 
व[पबली सयू  कN दशा प> ु ष6 को अपने लोग6 से द:ु ख देती है । मितtम, िप का रोग, J@(
परा:म का नाश, शओ ु ं से संघष को कराती है ।
5.4 दशा फल म3 िवशेष
सूय क दशा फल मD िवशेष )
ल3ना2िव: षट्ि(दशायसं*थो िन!0ो द5े शुभमधमेव ।
म@य:व/: शुभतां च म@यो याती:थम:य!त :  : *या 
वषलTन  $1 7,8,:;,:: इन थान6 म0 िन' सयू   !- - शभु ही फल देते हc । हीनबली
म@य, म@यबली उम फल को देते हc । यिद शभु रिव ह6 अथात् पणू  बली ह6 तो वह अBय'त
शभु फल को देते हc ।
च!2
 * 
इ!दोदशा पण ू बल*य द5े शु लाVबरe{िणमौिDका0म् ।
*(ीसंगमं राAय &. ( / . : काि!तबलािभवृिGम् ।।
उराख ड मु त िवविवालय 107
वष   BAJY- 301
अथात् पणू ब ली च'Rमा कN दशा म0 वnछ व}, वnछ & &N &- A1, ीP , रायR  ,
V &, यश और काि'त कN वृि= होती है ।
म@यबली च!2
 * 
इ!दोदशा म@यबल*य सविमदं फलं म@यममेव द5े ।
वािणAयिम(ाVबरगेहसौjयं धमd मितं कषणतोऽ!न  
म@यबली च'Rमा कN दशा पणू ब ली च'Rदशा के फल को म@यम >प से देती है और :य िव:य,
िम, व}, !O R  , धम म0 बुि=, खेती से अ'नलाभ आिद फल ा8त !- !" #
इ!दोदशा *व.पबल*य द5े कफामयं काि!तिवनाशमाहZ: 
िम(ािदवैरं जननं कुमाया धमाथनाशं सुखम.पम( ।।
अ[पबली च'Rमा कN दशा, - , काि'तनाश, िमािद इOट जन6 से भी िवरोध, क'या का ज'म,
धम -धन6 का नाश तथा अ[प R  - 1 !" #
च5 दशा फल मD िवशेष )
ष'ठा'टमा!:येतररािशसं*थो िन!0ोिप द5ेथसुखं दशायाम् ।
म@य:व/: शुभतां च म@यो याती:थिम!दु:   :  : *या 
यिद िनि'दत $ हीन बली च'R& 8,],:[ थान6 से िभ'न थान6 म0 हो, तो अपनी दशा म0 धन सख ु
को देते हc । यिद उन थान6 से िभ'न थान6 म0 च'Rमा ह6 तो हीनबली भी म@य&, म@य&  5 ,
शभु भी िवशेष शभु होते हc ।
 
 * 

 : पूणबलो महीज: सेनापित:वं     
जयं रणे िव2ुमहेमर:नवeािदलाभं ियसाहस:व 
यिद पणू ब ली मगं ल दशापित हो, तो मनOु य6 को सेनापित बनाते हc और सं<ाम म0 जय, &PV , -(
रBनािद तथा व}लाभ और िय काय के िलये साहस होता है ।
म@य7 #   * 
दशापितम@य7 " #:    .

 
"यथ त:पर:वं तेजि*वताकाि!तबलािभविृ Gम् ।।
अथात् यिद म@यबली मंगल दशापित ह6, -   J(  Bन को देते हc । राजा के यहॉ
अिधकार हो और राजा से अभेद …दय हो !", I ! उBकष  भाव होता है एवं काि'त और
बल कN वृि= होती है ।

उराख ड मु त िवविवालय 108


वष   BAJY- 301
अयास  न 
1. लव का शािHदक अथ है )
. 5 R. J5 P . लTन E. <ह
2. लTन कN अnछी 15 15 !-, -
. B(   !- !" #
R. शरीर आरोTय ! !" #
. &क से स%मा( & !" #
E. उपयु त 
3. वष लTन से िकन थान6 पर िन' सयू  भी शभु फल देते हc ।
. :,\,=,:; R. [,9,],:: . 7,8,^,:[ E. 7,8,:;,::
4. िनि'दत च'R& ( ) िकन थान6 से इतर हो तो अपनी दशा म0 सख
ु देता है ।
. :,9,= R. 8,],:[ . [,9,^ E. 7,9,:;
5. नOटबली मगं ल िकन थान6 पर हो, - AB 5  1 !" )
. :,\,8 R. 7,8,:: . [,9,] E. ^,:;,::
कुज दशा फल मD िवशेष 
ि(षडायगतो भौमो न'टवीय: शुभाधद: 
म@यो #: शुभो म@य:  ":य!तं  : 
यिद नOट &P  7,8,:: थान6 म0 ह6, तो आधा शभु फल को देते हc,यिद हीन बली ह6 तो
म@य, यिद म@यबली ह6 तो शभु , शभु हो तो अBय'त शभु होते हc ।
7 
 * 

 : पूणबलो बुध;चे0शोिभवृिGं गिणता:सुिश.पा 
" . * . नपृ ादेदQ:यं ( वैदू'य "
. ( 
यिद पणू ब ली बधु दशापित हो, तो गिणत तथा उम िश[प िवा से यश कN वृि= होता है । राजा
आिद के सेवा म0 सफल होता है साथ ही वह राजदतू होता है एवं पाि डBय6 कN वृि= होती है ।
दशापितम@यबलो बध ु ;चे
  ": स>ु दUयो िलिपकाOयिश.पै: 
धनािlदायी सुतिम(ब!धु!म@यममेव सौjय 
यिद म@य B 15@ !-, तो ग> ु , िम6, R )  P    B(  !- !"

उराख ड मु त िवविवालय 109


वष   BAJY- 301
और पु , िम बा'धव6 के समागम से सामा'य R
 - 1 !" #
दशापतौ *व.पबले बुधे *या!मान*य : *व 
: 
अकायकोप*खलना0िन'टं धनOययं रोगभयं च िव!0ा 
यिद अ[प( B 15@ !-, - J@&(, अपने लोग6 म0 कलंक, िबना कारण काय म0 :ोध,
िगरने आिद का अिनOट !- !" D B(!(, रोगभय भी उBप'न !- !" #
बुध दशा फल मD िवशेष 
षड'टा!:येतरE*थो न'टो ोधशुभद: 
म@यो #: शभ ु ो म@य:  ":य!तं  : 
नOटबली बधु छठ0 , आठव0 तथा बारहव0 थान6 म0 िथत नहP हो, - AB 5  - 1 !" #
और हीन बली हो तो म@यम फल देता है । यिद म@य !- - 5  1 !" # 5 !- -
अBय'त 5  1 !" #
गुb दशा फल 
गुरोदशा पूणबल*य द5े मानोदयं राजसु>दगुbUय: 
कz:यथलाभोपचयं सख ु ािन राAयं सतु ािlं cरपरु ोगनाशम् ।।
पणू ब ली वृहसि8त कN दशा राजा, िम, ग>ु ओ ं से गौरवलाभ और यश, B(, लाभ कN वृि=, R
 ,
राय, पु लाभ, शनु ाश, - (5 - 1 !" #
म@यबली गुb दशा फल 
गुरोदशा म@यबल*य धमd मितं सिख:वं नृपमि!(वगk: 
तनोित मानाथसुखािभलाषं िसिGं सदु:सा7  
म@यबली वृहपित कN दशा धम म0 बिु =, राजा या मि'य6 से िमता, स%मा(, B(, सख ु कN
अिभलाषा और अnछे उBसाह और बल से काय िसि= आिद कराती है ।
दशा गुरोर.पबल*य द5े रोगं दcर2:वमथाcरभीितम् ।
कणामयं धमधनणाशं वैरा3यमथR च गुणं न िकंिचत् ।।
अ[पबली वृहपित कN दशा रोग, दWरRता, शभु य, कणरोग,धमनाश, B((5, वैराTय I ( -
Y B(, ( - Y N ! - 1 !" #
गुb दशा फल मa िवशेष 
षड'टcर: फे तरगो गुbिन!0ोधस:फ : 
म@यो #: शुभो म@य:  ":य!तं  : 

उराख ड मु त िवविवालय 110


वष   BAJY- 301
नOट वृहप $1 8,],:[ थान6 से िभ'न थान6 म0 ह6 तो आधा शभु फल ही देते हc । यिद
हीन बली भी ह6 तो म@यम फल को देते हc । यिद म@यमबली ह6 तो शभु फल देते हc । यिद शभु रहते
हc तो अBय'त शभु फल को देते हc ।
शुP दशा फल 

 6": पूणबल*य सौjयं e3ग!धहेमाVबरकािमनीUय: 
 
: सुतकzिततोषा!नैbAयगा!धवरित: पदािl: 
पणू ब ली श:ु कN दशा म0 माला, सवु ण, व}, ी इन सभी से सख ु और घोड़े आिद सवाWरय6 का
, पु , कNित, स'तोH  , AरोTय, संगीत ेम, थान कN ाि| आिद फल होते है ।
दशाभृगोम@यबल*य द5े वािणAय"थागमनं कृषे;च 
िम'ठा!नपानाVबरभोगलाभं िम(ां;च योिष:सतु सौjय  
म@यबली श: ु कN दशा eयापार और खेती से भी धन लाभ कराती है और मीठे अ'न् पदाथh के भोग
सख ु और अnछे व6 के भोग सख ु को देती है । िम6 से िमलाती है । ी पु सख
ु 6 को भी कराती
!" #
अ.पबली शुP दशा फल 
दशा भृगोर.पबल*य द5े मितYमं ानयशोथनाशम् ।
कद!नभोAयं Oयसनामयाित *(ीपEवैरं किलरयcरUय: 
अ[प बली श: ु कN दशा बिु =, 7ान, यश और धन6 का नाश करती है, कुिBसत अ'न  -(,
WWP F, रोग6 से पीड़ा को देती है, ी पM से िवरोध, I शु से झगड़ा कराती है ।
हीनबली शुP दशा फल 
दशा भृगोन'टबल*य द5े िवदेशयानं *वजनैिवरोधम् ।
पु(ाथभायािवपदो bज;च मितYमोिप Oयसनं मह\च ।।
नOटबली श: ु कN दशा परदेश याा, अपने ब'धु ) बा'धव6 से िवरोध, पु ) B(, ी िवपि, -
तथा बिु = के tम को उBप'न  !" #
शु; दशा फल मD िवशेष 
षड'टcर:फे तरगो भृगुिन!0ोधस:फ : 
म@यो #: शुभो म@य:  ":य!तं  : #
8,],:[ से अितWरत थान6 म0 यिद श: ु िनि'दत भी ह6 तो आधा शभु फल देते हc । यिद उत 
िभ'न थान म0 हीन भी ह6 तो म@य, म@यम ह6 तो शभु , शभु ह6 तो अBय'त 5  !- !" #

उराख ड मु त िवविवालय 111


वष   BAJY- 301

 * 

 : पूणबल*य द5े नवीनवे;माVबरभूिमसौjय 
आरामतोयाuयिनिमित;च Vले\छाितसगं ा!नृपितधनािl: 
पणू ब ली शिन कN दशा नवीन मका(, नवीन व}, (( &(  R  1 !" D  , r A,
@-R, तालाब का िनमाण कराती है और %लेnछ जन6 कN अिधक सगं ित से तथा राजा से धन लाभ
 !" #
म@य7 # 
 * 
दशा शनेम@यबल*य द5े खरो'|पाखडजतो धनािlम् ।
वृGांगनासंगमदुगरEािधकार िच!तािवरसा!न": 
म@यबली शिन कN दशा म0 गधा, :मेलक, पाख डी लोग6 से धन लाभ होता है । वृ= ी  P ,
िकला कN रMा कN िच'ता, रसहीन कद'न भोजन भी होते हc ।
#7 # 
 * 

 : *व.पबल*य  . . "
:खं cरपतु *करेUय: 
दाcर2यमा:मीयजनापवादं रोगं च शीतािनलकोपमुBम् ।।
हीनबली शिन कN दशा म0 प> ु ष को शु , चौर6 से द:ु ख होता है । दWरRता आती है । अपने लोग6 से
P !- !", रोग और सद], वायु के उ< कोप भी होते हc ।
न'ट7 # 
 * 
दशा शनेन'टबल*य पुंसामनेकधातुOयसनािन द5े ।
*(ीपु(िम(*वजनैिवरोधं रोगािभवृिGं मरणेन तु.य 
नOटबली शिन कN दशा लोग6 को अनेक कार के द:ु ख को देती है या िदोष के कोप से ले5
देती है । ी ) पु , िम पWरजन6 से िवरोध, रोग कN वृि= और मृBयतु ु[य कOट - 1 !" #
शिन दशा फल मD िवशेष 
ि(ष'ठलाभोपगतो म!दो िन!0ोधस:फ : 
म@यो #: शभ ु ो म@य:  ":य!तं  : 
7,8,:: थान6 म0 िथत शिन यिद िन' अथात् हीन बली भी ह6 तो शभु फल देते हc । यिद हीन
वीय भी ह6, तो म@य, म@य भी ह6, - 5 , शभु भी ह6 तो अBय'त 5  !- !" #
ल3न
 * )

 ": *वािमबलेन तु.यं फलं ददाती:य " : 

उराख ड मु त िवविवालय 112


वष   BAJY- 301
चरे शुभा म@य* धमा च ि7मूितमे*माि7परीतमू^म् ।।
लTन कN दशा अपने वा&  (   - 1 !", D $!Z Y D 5H !" ) चर लTन
म0 RेOकाण भेद से शभु म@य अिनOट फल होता है । िd:वभाव रािश के RेOकाN 1   
िवपरीत अथात् अशभु , म@य, शभु फल होते हc । िवशेष पOटता के िलये च: िलखता हॅूं । यहॉ यह
भी यिु ` है िक )
5  िथर िd:व
थम RेOकाN 5 अिनOट JB&
िdतीय RेOकाN म@य 5 म@य&
तृतीय RेOकाN J5 & 5

वगbमा नवांशाचरािदषु थमम@या'Bया:S । इस वचन के अनसु ार चर रािश का थमनवमांश,


िथर का म@य (&P5, िd:वभाव का अ'Bयनवमाश ं ये वगbम हc । ऐसे ही चर म0 थम, िथर म0
िdतीय, िd:वभाव म0 अि'तम नवमांश ये वगbम RेOकाण हc । इसिलये इन RेOकाण6 कN लTन15
अnछी !- !" #
िथररािश म0 RेOकाN 1  5 5 &(  !- !", इस कार RेOकाण6 के भेद से शभु ाशभु
फल ाचीनाचाय dारा कहा गया है । यहॉ शभु <ह और वामी के योग uिU से शभु और पाप<ह6 कN
uिU और योग से अशभु लTनदशाफल <हण करना चािहये ।
5.5   
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  तािजक <'थ म0 दशा फल का िवतृ
( $ $ !" # दशा फल के अ'तगत सयू , च'R&, &P , B , ग>
ु , श: ु , शिन <ह6 का
पणू ब ली, म@यमबली एवं व[प बली दशा फल का वणन िकया गया है । दशा फल के साथ ) I
दशा फल म0 िवशेष या !" % इसका भी स%यक् िववेचन िकया गया है । जैसे सयू  दशा फल म0 िवशेष
म0 वषलTन  $1 7,8,:;,:: इन थान6 म0 ह6 तो िन' भी सयू  शभु ही फल देते हc । हीनबली
म@य, म@यबली उम फल को देते हc । यिद शभु रिव ह6 अथात् पणू  बली ह6 तो वह अBय'त
शभु फल को देते हc । इसी कार च'Rािद समत <हदशा फल म0 िवशेष का अ@ययन आप तु
अ@याय म0 कर0 गे ।
5.6 पारभािषक शदा
पण
ू 7 #  पणू  >प से बलवान
उराख ड मु त िवविवालय 113
वष   BAJY- 301
सVय - अnछा
&(  आकाश म0 िवचरण करने वाला
&  <ह से
 - -(
अVब - व}
वािणAय - eया@
कुमाया - &
  ज'म
धमाथ  धम के िलये
अ.प - &
5.7 अया  न के उत
1. R
2. E
3. E
4. R
5. R
5.8 सदभ थ 
तािजकनीलकठी ) & V R आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
Aयोितष सव*व ) F - सरु े श च'R िमi
तािजक नीलकठी ) F ) आचाय िवव(I
5.9 िनबधामक  न
1. षोडश योग या !" % पOट कNिजये ।
2. , इ'दु  $- - C1!N ! $ #
3. इBथशाल योग का िवतारपवू क वणन कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 114


वष   BAJY- 301

खड - 3
 

उराख ड मु त िवविवालय 115


वष   BAJY- 301
  1 1 - 3 

इकाई क :परे खा
1.1 ता 
1.2 उे

1.3 1-3 $   !

बोध 

1.4 

1.5 पारभािषक शदा &
1.6 बोध 
न के उ&त

1.7 स!दभ "!थ !' &


1.8 सहायक पाठ्यसाम"ी
1.9 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 116


वष   BAJY- 301
1.1 ता
तु  000 301 के तृतीय ख ड के थम इकाई से स%बि'धत है । इस
इकाई के अ'तगत तािजक शा  J(  1-3 भावफल िवचार6 का उ[लेR $  ! !" #
इससे पवू  कN इकाईय6 म0 आपने वषफल व तािजकशाोत H->5 $-ग का 7ान ा8त  $ !"
यहॉं इस इकाई म0 आप थम भाव से लेकर तृतीय भाव तक के फल का अ@ययन करे ग0 ।
1-3 से ताBपय थम भाव से लेकर तृतीय भाव तक से है । इन भाव6 म0 िथत <ह6 का फल तािजक
शा के अनसु ार िकस कार होगा, "  !-  % इन िवषय6 कN जानकारी ा8त करे ग0 ।
इस इकाई म0 आप मDु य >प से 1-3   से स%बि'धत िवषय6 का स%यक् अ@य$(
ा8त करे ग0 ।
1.2 उे य
 इकाई के अ@ययन के पचात् आप जान पायेग0 िक )
1.  या !" #
2. भावफल या !" #
3. भाव6 म0 िथत <ह6 के फल या !" #
4. थम भाव से लेकर तृतीय भाव तक के <हफल या !" #
5. भावफल का या महBव !" #
1.3 1-3 #% "
ज'माx/ च: म0 1   12 तक dादश भाव होते है । उनम0 िथत <ह6 के अनसु ार ही
उनका फलादेश आिद काय िकया जाता है । आइये हम तािजक शा के अ'तगत वषफल
स%बि'धत भाव6 के फल का   !" -
थम भाव का िवचार 
" : *वािमसौVयाUयां h'टो यु तो  
पापh'ट $ " िमuैिमuफलं वदेत् ।।
$: किSदिप भाव: वािमशभु <हा†यां uOट:, वा यु त:, / -X$P : B ) वधते । यिद
पापuOटयतु तदा नाशत‡ावफलMयो भवित । िमiै: = पापशभु यै ुतuOटतदा िमiफलं = 5 &5 P
 1/ #

उराख ड मु त िवविवालय 117


वष   BAJY- 301
अथ ) - कोई भाव अपने वामी से या शभु <ह से यतु $ uOट !-, - C    ? !" #
यिद पाप<ह से यतु uOट हो तो उस भाव का फल नाश हो जाता है । यिद पाप<ह, शभु दोन6 से यतु
या uOट हो तो शभु अशभु दोन6 कार के फल होते है । यह सामा'य रीित सभी भाव6 म0 समझना
!$ #
ल3नािधपे वीययुते सुखािन नैbAयमथागमनं िवलास: 
*या!म@यवीयd.पसुखाथलाभ: लेशािधक:वं िवपद.पवीयd ।।
अथ  यिद वष लTनेश पणू ब ली हो, - R
 , आरोTय, B(, &(-(-1 $  !- !" # $1
वषलTनेश म@यबली हो तो अ[प R  , धन6 का लाभ होता है यिद वषलTने5 !( !- - 5H
लेश और िवपि होती है ।
ज!मा&दांगपतीि!थहापितसमानाथा0धीकारवान ् ।
सूयI न'टबल*:वगिEिवलयं कुयाि!!ाb:सा 
नीच:वं  66"यिभभव;च!2ेिEकायEयो ।
दाcर2यं च पराभवो गहृ किलव@यािधभीित*त
 
अथ ) यिद ज'मलTने5, वषलTने5, &I !5, वषqश िराशीश इन सभी म0 कोई अिधकार वाला
होकर सयू  यिद हीनबल हो, तो Bव  - (R , R, 11 A1 ) ने रोग (&N, V,
रोहा रत6धी आिद ) को करते है । और उBसा!!( (आलय), नीचता MRु वृि से िनवाह,
िपतामाता से भी ले5, फल को देते है । यिद पवू bत अिधकारी होकर च'R& !( !-, -
नेनाश, कायनाश, दWरRता, @, गृह म0 कलह, रोगभय मनता@ $   !- !" #
$ चल:वं भीb:वं 7   $ 
शPु े धमEय: क'टफला जीवनव:ृ त : 
शुPे िवलाससौjया. : *(ी: सम किल: 
सौरे भृ:यजना]ु:खं bजो वातकोपत: 
अथ  उत JB !-कर यिद मगं ल दबु ल् हो तो चच ं लता और कायरता होती है वैसे बधु म0
मितtम और ले5 !- !", ऐसे वृहपित अिधकारी होकर यिद िनबल हो तो धम का नाश, D
जीवन म0 अि'तम समय ले5 5H !-, इसी तरह श: ु म0 मनोद:ु ख और लेश भी होता है । ि{य6
 I ! !- !", और इसी कार शिन होने से नौकर से द:ु R !- !", वायु के कोप से रोग
होने कN आशक ं ा बनी होती है ।
ल3नं पापयुतं सौVयैरh'टं . 6  

उराख ड मु त िवविवालय 118


वष   BAJY- 301
िववादं वंचनां दु'ट. ( िव!द 
अथ ) वषलTन यिद पाप<ह6 से यतु हो, शभु <ह6 से न तो uOट !-, ( - $ ! !-, तो मनOु य -
1, तारण और कद'न-(  !- !" #
ज!मा&दा=पर!1पा&दमुथहानाथा बलाढया*त
 
रVयं वषमुशि!त सवमतुलं सौjयं "थागम: 
ष'ठा'टा!:यगता न चेिदह पुन*ते
:खभीितदा
िनवfया यिद वषमेतदशुभं वा\यं शुभेEां िवना ।।
$1 ज'मलTने5, वषलTने5, अOट&5, वषqश, मथु हेश ये चार6 <ह बलयु त !- D 8,],:[ (
थान6 म0 नहP ह6, तो स%पणू  वष 5 ! !- !" D R, $5, I B( !- !" # $1 
सभी <ह िनबल हो D 8,],:[ इन थान6 म0 हो, - 1: R $ - 1 !", यहॉं शभु <ह कN uिU
नहP होने से यह स%पणू  वष अशभु ही कहना चािहये ।
सूतौ धनद: खेटो धनाधीश;च $ 

वष न'टौ िव:त"!य:`े  

$ 
भाषाथ - ज'म काल म0 धनयोग करने वाला <ह, और धन भावेश ये दोन6 <ह अतं  !- -
धननाश और दसू रे के रिMत धन का कलx/ !- !" #
एवं सम*त भावानां सूतौ नाथा;च ": 
अ&दे न'टबला*ते.  "^ा िवचEण: 
भाषाथ ) इसी कार ज'मकु डली म0 सभी भाव6 के जो वामी तथा Bयेक भाव6 के पोषक जो <ह
!",   $1 !( !-, तो उन भाव6 के नाश के िलये होते है, यह योितिवद6 को समझना
!$ #
ल नथहाणां फलिन या थम भाव मD िथत सभी ह' का फल -
सयू ारम!दा*त  Aवाराित धनEयं पापयुिग!दुcर:थ 
शुभाि!वत: पु'टतनु;च सौjयं जीवशुPा धनधा!य  
भाषाथ  सयू  मगं ल शिन ये तीन6 या हर एक <ह लTन म0 िथत हो तो वर कN पीड़ा हो और
धनMय होता है । यहॉ सयू  लTन म0 रहने से िपBतव, मगं ल लTन म0 रहने से रतिपBत शीतला व
हो । यिद शिन लTन म0 हो तो वायमु ल ू क व !-, तो व  !- !", धनMय होता है । यिद
शभु युत शभु uOट पणू ि ब%ब च'R& Tन म0 हो तो सख
ु देते है और वृहप, B , श:ु ये तीन6 या
हर एक लTन म0 हो, - B(  - धा'य   !" #

उराख ड मु त िवविवालय 119


वष   BAJY- 301
 शा के अनसु ार इसी कार थम (1 )  - &W( !$ #
अथ ि%तीय (2) (  -
िव:ता " ज!मिन िव:त"&दे जीवो यदा ल3नपती:थ # 
तदा धनािl:  िप वषd Pूरेसराफे धनधा!य: 
ज'मकु ड[यां िवBताB@: : अHदे िवBत : ज'मलTनादिdतीयेशो ग> ु वषल Tनादि् dतीयगत
इBयथ: । अथवा य ज'मलTनं वृिSककु%भ$-(यतर / ं याBतैव िdतीयेशो ग> ु भिवतंु शय #
ताuशो जीवो लTनपतीBथशाली वषलTने5( ! &I 5, 1 Xिप वषq धनाि|भवित । अथ
ताuशय जीवय :ूरे सराफे पाप<हकृ तेसराफे धनधा'य!(: या/ #
भाषाथ - ज'मकु डली म0 वृिSक या कु%भ इन दोन6 म0 कोई एक लTन हो तब िdतीयेश ग> ु यिद
वषवेश कु डली म0 दसू रे भाव म0 हो, तो वष भर धन लाभ होता है । यिद वैसे ग> ु को पाप<ह से
 $- !- !-, तो धनधा'य  (5 !- !" #
ज!म!यथावलोकzAयो&दे&देशो बलवा!य
 
तदा धनािlबहZला     
भाषाथ ) ज'मकु डली म0 वृहपित लTन - 1R, और वष काल म0 बली होकर वषqश हो, - (
वास से अनेक कार से धनलाभ होता है ।
एवं यTावपो ज!म!य&दे तTावगो गुb: 
ल3नेशेने:थशाली चे5Tावजसुखं भवेत् ।।
अथ ) इस कार ज'मकु डली म0 वृहपित िजस भाव का वामी हो वषकु डली म0 यिद उसी भाव
म0 िथत हो जाय और वषलTनेश से इBथ5 !- !- - C   R  !- !" #
 जनुषी यं प;येTावम&दे&दपो गुb: 
तदा तTावजं सौjयमु तं 
: 
अथ ) ज'मकाल म0 िजस भाव को ग> ु देखे, वष म0 वषqश हो तो उस भाव से जायमान सख ु होता है,
यह तािजक वेाओ ं ने कहा है ।
ज!मष'ठा : सौVय: ष'ठो&दे *व.प 
: 
पापािदते गुरौ र!1ेथd वा दड: पतेद् 1ुवम् ।।
अथ ) ज'म काल म0 षOठे श बधु वषकाल म0 यिद षOठथान म0 हो तो अ[प  - 1 !" # ($!
योग िजसका मेष या मकर रािश ज'म लTन !", उसी के ज'म कु डली म0 हो सकता है, और म0 नहP )

उराख ड मु त िवविवालय 120


वष   BAJY- 301
या वृहपित वष काल म0 पाप<ह से पीिडत
़ होकर आठव0 दसू रे थान म0 हो तो िनचय करके द ड
@ !" #
बोध  न
िनVन & ;नr मa सही िवक.प (   
1. - भाव अपने वा&  $ शभु <ह से यतु या uOट हो तो उस भाव का फल िन%न म0 या
!- !" )
. EF !" R. ? !" . EF ) बढ़ता दोन6 है E. कोई नहP
2. ज'म काल म0 धनयोग करने वाला <ह, और धन भावेश ये दोन6 <ह अतं  !- - !-
!"-
. B((5 R. धनवृि= . समान >प से धना & E. $ 
3. लTनेश का अथ होता है )
. लTन R. लTन पOट . लTन का वा& E. लTनाक
4. मथु हेश या !" )
. तािजकोत $- R. $- . मथु हा का वा& E. $ 
5. कु डली म0 6,8,12 था( !- !" )
. J5 R. 5 . 5 5 E. कोई नहP

गुbिव5े शुभैh'टयुतो वा राAयसौjय


: 
ज!म!य&दे च मुथहारािश प;य: 
अथ ) वृहपित िdतीय भाव म0 हो और शभु <हो से uOट यतु ा हो तो राय R  - 1 !" $
ज'मकाल म0 वषकाल म0 भी मथु हा के रािश को देखता हो तो िवशेष>प से राय R
 - 1 !" #
>. &दपे भूcर 2Oयं धा!यं (   
िव5ल3नेशसंयोगो िव5सौjय
: 
वृहपित के समान यिद श:ु वषqश हो तो बह9 Reय और धा'य होता है । वषकु डली म0 धनेश लTने5
 $- !-  $- $1 !- !-, - B(R   (5 !- !" #
एवं बुधे सवीयd *याि.लिपानो0मैधनम् ।
ज!मल3न: सौVया वषdथd धनलाभदा: 

उराख ड मु त िवविवालय 121


वष   BAJY- 301
इस कार बधु यिद बलवान होकर धन भाव म0 हो, तो लेख काय से या 7ान के उोग से धन होता है
या शभु <ह सभी ज'मTन म0 हो, वषकाल म0 दसू रे भाव म0 पड़े तो धनलाभ को देते है ।
मालसtिन िव5े वा बध ु ेAय .  
तैवा h'टे धनं भूcर *वकुले राAयमानु  
अथ ) अथ सहम बधु श: ु वृहपित से यतु या uOट होकर यिद धनभाव म0 ही हो तो िवशेष धन
होता है ओर अपने कुल म0 राय @ !" #
अथाथसहमेशौ चे\छुभैिम(दशेिEतौ ।
बिलनौ सुखतो लाभदौ य:नादरेदशा ।।
अथ ) धन सहमेश धनभावेश ये दोन6 यिद शभु <ह6 से िम uिU से देखा जाता हो तो िबना यास
लाभद होते है । यिद वे दोन6 शभु <ह6 से शु uिU से देखे जाय तो यास से धनद होते है ।
िम(h'ट्या   था= ":  &"  
तयोमूसcरफे िव5नाशदुनयभीतय: 
अथ ) Tनेश और धनेश कN िम 7,9,^R,/ :: uिU से इBथ5 !-( @ J($ B( !-
है । उन दोन6 (लTने5 D B(5) म0  $- !-( @ B((5, अ'या$  $ $  !- !" #
ज!मनीAयोि*त य2ाशौ स रािशवषल3न: 
शुभ*वामीिEतयुतो नैbAय*वाVयिव5द: 
अथ ) ज'मकु डली म0 वृहपित िजस रािश म0 हो, वह रािश यिद वष कु डली म0 लTन !- D
शभु <ह से अपने वामी से uOट यतु हो तो आरोTय, आिधपBय D B( - 1 !" #
सूतौ ल3ने रिववषd धन*थो धनसौjय
: 
$ िव5े कायनाशो लाभो.पोथ धनOय : 
अथ ) ज'म कु डली म0 सयू  लTन म0 हो, वष कु डली म0 दसू रे भाव म0 हो, - B( R
 - 1 !" #
अथवा शिन वष कु डली म0 दसू रे भाव म0 हो, तो काय का नाश और अ[प  D B( !(
!- !" # s  !( !$ #
Yातृसौjयं गुbयुते भूतय: *यु: शुभेEणात् ।
PूरयोगेEणा:सवR िवपरीतं फलं भवेत् ।।
अथ ) िdतीयथान िथत शिन यिद वृहप  $ !-, तो tातृसख ु होता है । यिद ग> ु यु त
िdतीयथान िथत शिन पर शभु <ह6 कN uिU पड़ती हो, तो बह9त ऐवय होते है और पाप<ह6 के
सयं ोग से uिU से सब किथत फल िवपरीत अथात् J5 !-  !" # s  &W(

उराख ड मु त िवविवालय 122


वष   BAJY- 301
!$#
िव5ेशो ज!मिन गुbवषR वषdशतां दधत् ।
यTावग*तमािu:य लाभदो ल3न आ:म: 
अथ ) ग> ु ज'मकु डली म0 धन भाव गत हो, वषवेशकाल म0 वषqश होकर िजस भाव म0 हो उस
भाव का आiय लेकर लाभद होता है । जैसे लTन म0 हो तो अपने लोग6 से ही धनागम होता है,
य6िक लTन से आBमा का िवचार होता है । ऐसे धन भाव म0 हो तो कुटु%ब , तीसरे म0 हो तो सहज
, चौथे म0 माता से, !( , !O  D   B(  A &( !- , s  !( !$ #
िव5े सुवणbयादेYा(ादे: सहजEग: 
िपतृमातृEमािदUयो िव5ं स>ु िद पंचमे ।।
स>ु 5नय: ष'ठे cरवगाGािनभीितद: 
*(ीUयो 0ूने'टमे मृ:युरथहेतु: "= 
खे नृपादेनृपकुलादाये!:ये Oय
"  
इ:थं िवमृ;य सिु धया वा\यिम:थं  : 
भाषाथ ) ज'मकाल म0 धनेश और वष वेश काल म0 वषqश होकर ग> ु यिद धन भाव म0 हो तो
-( ZP1  , 3 भाव म0 भाई से लाभ, 4 भाव म0 माता, !( P V &  , 5 व0 
म0 िम और पु से लाभ, 6 व0 भाव म0 शओ ु ं से लाभ, 7 व0 भाव म0 ी  , 8 व0 भाव म0
&N, 9 व0 भाव म0 धन लाभ का राता, 10 व0 म0 राजा से, 11 व0 भाव म0 राजा के वश
ं से, I 12 व0
भाव म0 eयय कराता है । इस तरह भाव6 का फल समझना चािहये ।
ि%तीय (3) भाव मD िथत समत ह' का भाव फल 
च!2जीवा*फु" न*था धनागमं राAयसुखं च द0ु: 
पापा धन*था धनहािनदा *युनृपाTयं कायिवघातमािक : 
भाषाथ ) च'R&, B , श: ु ये तीन6 <ह िdतीय भाव म0 हो तो धन लाभ, रायसख ु दान करते है
और सयू  , &P  P 5(, राह9, के तु ये सभी <ह िdतीय भाव म0 हो, - B(!( (  !- !" #
शिन यिद दसू रे भाव म0 हो तो राजा से भय और कायहािन को करते है । ऐसा भावफल योितिवद6
- !( !$ #
 * " (3) (   
अ&देकd िसते वािप सबले पापविजते ।
सौjयं : सोदराणां Oय:यया7य:य . 
 

उराख ड मु त िवविवालय 123


वष   BAJY- 301
भाषाथ ) सबल सयू  या सबल श: ु वषqश हो और पाप<ह6 से uOट यतु नहP हो तो सहोदर6 म0
परपर सख ु होता है । िवपरीत से िवपरीत फल कहे । अथात् दबु ल रिव या श: ु वषqश होकर
पाप<ह6 से यतु या uOट !-, शभु <ह से युत uOट नहP हो तो भाइय6 म0 एक को दसू रे से कलह !- !",
s   !( !$ #
द3धे  :  &देपतौ तयोवा जीवे बलेन रिहते सहजे सहो:थै: 
वैरं तृतीयभवनािधपतीसराफे मा!य किलं *वजनसोदरत;च िव0ात् ।।
भाषाथ ) यिद वष लTन से सहजेश वषqश होकर अतं  !-, - ! !- !" JI , श: ु
म0 से एक <ह सहजेश तथा वषqश होकर अतं  !-, तो कलह होता है । अथवा हीनबल वृहप
तृतीय थान म0 हो, तो सहोदर6 से िवरोध होता है । अथवा वषqश - !5   $- !-
!", तो शारीWरक ले5, अपने पWरजन और सहोदर से भी झगड़ा होता है, s  !( !$ #
यदे:थ : सहजे;वरेण गुb*तृतीये सहजा:सुखािl: 
सारे िवधौ *या:कलह*तृतीये h'टौ युतौ नो गुbणा यदा तौ ।।
भाषाथ ) यिद ग> ु को तृतीयेश से इBथ5 $- !- !-, - !  R  !-, अथवा बली ग> ु
तीसरे थान म0 हो तो सहज से सख ु होता है अथवा मगं ल यु त च'Rमा तीसरे भाव म0 हो और
वृहप  ( - $ !-, न तो uOट !- - !  ! !- !" # s  &W( !$ #
 #िधकाcरिण समापते : 
ल3न "    : सौjयं सहो:थ ": 
भाषाथ ) वषqश के अिधकारी होकर यिद तृतीयेश तृतीय भाव म0 हो अथवा वषलTने5 - C
इBथ5 $- !- !", तो सहोदर परप R  !- !" # s   !( !$ #
Pूरेसराफे कलह: शनौ भौमEगे bज: 
EdसृAयनुजे मा!0ं वदे:सहजगे *फु' 
म!दEगेसृिज बुधे कुजEd सहजे शुभै: 
युते िEते सोदराणां िमथ: सौjयं सख ु ं बहZ ।।
भाषाथ ) सहजेश को पाप <ह से ईसराफ योग !- !-, सहज थान म0 िथत हो, - ! !- !"
शिन यिद मेष या वृिSक म0 होकर सहज म0 हो तो सहोदर को रोग होता है । यिद मगं ल िमथनु या
क'या म0 रहकर तीसरे भाव म0 हो तो सहज को िनच - !( !$ #
मगं ल मकर या कु%भ म0 होकर तृतीय भाव म0 हो, अथवा बधु मेष या वृिSक म0 होकर तृतीय भाव म0
!-, इन दोन6 योग6 म0 शभु <ह6 का योग या uिU हो तो सहोदर6 से परपर आन'द D D J(

उराख ड मु त िवविवालय 124


वष   BAJY- 301
कार के सख ु होते है ।
ज!मा&दपौ बुधिसतौ सबलौ तृतीये सौ!दयब!धुगणसौjयकरौ गुb;च 
वीयाि!वतेनद् ु गृहगो भृगजु ो अिधकारी स:ू य&द : सहजब!धगु ण*य वृGयै ।।
भाषाथ  ज'म लTनेश और वष लTनेश बधु और श: ु हो,  !-, तीसरे थान म0 िथत हो और
ग>
ु बलवान हो, तो सहोदर ब'धु ) बा'धव को सख ु करते हc और श: ु यिद सबल च'Rमा कN रािश
म0 हो और ज'म वष काल म0 पंच अिधकारी म0 हो तो सहज ब'धु गण कN वृि= होती है ।
पापाि!वते तु सहजे सहमेशभावनाथेEणेन रिहते सहज*य
:& 
एवं सहो:थिप वदे5दीशौ द3धौ यदा सहजनाशकरौ िविच!:यौ 
षाथ ) सहज थान यिद पाप<ह से यु त !-, D !जेश तथा tातृसहमेश कN uिU सहज पर
नहP पड़ती हो, - !-1 - 1: ख होता है । इसी तरह tातृ सहम म0 पाप<ह हो, C @ !5
तथा tातृसहमेश कN uिU नहP पड़ती हो, तो भी सहज को ले5 !- !" # JI $1 !5
tातृसहमेश थे दोन6 अतगं त हो तो सहज6 का नाश होगा ऐसा कहना चािहये ।
तृतीयपाद&दपतौ 0नु *थे ल3ने;वरे वा सहजैिववाद: 
तृतीयपो ज!मिन ताhग&दे शभ ु ेिEत*त( सहो:थतु'ट ) 
भाषाथ ) तृतीय थान के वामी िजस थान म0 हो, वहॉं से वषqश यिद स8तम थान म0 हो, 
वषलTने5, सहजेश से स8तम म0 हो तो सहोदर6 से िववाद हो, और ज'मकाल म0 सहजेश सहज भाव
म0 हो , वष म0 भी वैसे सहज म0 हो शभु <ह से uOट !-, तो सहोदर6 के स'तोH  $ !- !" #
*" 3 भाव मD समत ह' का भावफल 
दुि_ य: खलखगा धनधमराAय
लाभहदा बलयुता: िEितलाभदा: *यु: 
सौVया: सख ु ाथसतु मानयशोिवलास 
लाभाय हषमतुलं िकल त( च!2: 
यिद सयू  , शिन और मगं ल तीसरे भाव म0 हो, - B(, धमलाभ, राय !- !" # $1 
पाप<ह बलयु त ह6 , तो भिू मलाभ होता है । यिद शभु <ह ये सब तीसरे भाव म0 हो तो सुख, B(,
पु समान यश और िवनोद लाभ के िलये होते है और यिद च'Rमा तीसरे थान म0 हो तो पणू  हष को
1 !" #
1.4   
तािजक शा के अ'तगत वषवेश साधन कर उसी पर आधाWरत वषकु ड म0 भावफल िवचार

उराख ड मु त िवविवालय 125


वष   BAJY- 301
का वणन िकया गया है । भाव फल के अ'तगत तािजकोत भाव6 म0 िथत <हफल का िवचार िकया
गया है । षोडश योग के मा@यम से भावफल को और िवताWरत िकया जाता है । इस इकाई के
अ@ययन के पचात् पाठकगण तािजकोत वषकु डली म0 िथत थम से तृतीय <हभावफ 
अ@ययन स%यक् >प से करे ग0 # थम (1)   O$ (3) भावफल के 7ान आधार पर आप
यह िनणय करे ग0 िक थम से लेकर तृतीय भाव म0 िथित <ह6 का फल जातक के िलये कै सा होगा ।
जातक के जीवन म0 उस कार के िथत <हभाव फल या !-  % A1 .... A1 #
इस इकाई म0 उपरोत समत िवषय6 का स%य/ &5 $ $ !" #
1.5 पारभािषक शदा
ल3न ) ज'मकु डली म0 िथत थम भाव
वषdश ) वष का ईश अथात् वष का वा&
 ) भाव का वा&
* )   
 ) तृतीय भाव का वा&
;* ) तािजकोत षोडश योग म0 एक योग
? ) षोडश योग म0 एक योग
इ:थ - षोडश योग म0 एक योग
1.6 बोध  न के उत
1. R
2. 
3.
4. E
5. 
1.7 सदभ थ 
तािजकनीलक ठी ) आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
1.8 सहायक पाठ्यसाम ी
जातकपाWरजात ) आचाय वैनाथ ) चौख%भा िवाकाशन
वृहBपराशर होरा शा ) चौख%भा िवाकाशन
वृहजा ) !&! ) चौख%भा काशन
उराख ड मु त िवविवालय 126
वष   BAJY- 301
1@ ) चौख%भा िवाकाशन
1.9 िनबधामक  न
1. थम एवं तृतीय भाव म0 िथत <हभाव फल का िवतारपवू क
 वणन कNिजये #
2. भावफल से या ताBपय है तािजकोत भावफल का उ[लेख कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 127


वष   BAJY- 301
  2 4 - 6 

इकाई क :परे खा
2.1 ता 
2.2 उे

2.3 4-6 $ 
बोध 

2.4 

2.5 पारभािषक शदा &
2.6 बोध 
न के उ&त

2.7 स!दभ "!थ !' &


2.8 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 128


वष   BAJY- 301
2.1 ता
तु  000 301 के तृतीय ख ड के िdतीय इकाई से स%बि'धत है । इस
इकाई के अ'तगत तािजक शा  J(  4-6 भावफल िवचार6 का उ[लेR $  ! !" #
इससे पवू  कN इकाईय6 म0 आपने 1 -3 भावफल का 7ान ा8त कर िलया है । यहॉं इस इकाई म0 आप
चतथु  (4) भाव से लेकर षOठ (6) भाव तक के फल का अ@ययन करे ग0 ।
4-6 से ताBपय ज'मकु डली के चतथु  भाव से लेकर षOठ भाव तक से है । इन भाव6 म0 िथत <ह6
का फल तािजक शा के अनसु ार िकस कार होगा, "  !-  %
इस इकाई म0 आप 4-6   का स%यक् अ@ययन ा8त करे ग0 ।
2.2 उे य
 इकाई के अ@ययन के पचात् आप जान पायेग0 िक )
1. फल या !" #
2. तािजकोत 4-6 िथत भावफल या !" #
3. चतथु  एवं षOठ था( U( !" #
4. तािजक शाोत 4-6 िथत <ह6 के फल या !- !"#
5. वषकु डली म0 4-6 िथत भावफल िवचार िकस कार करना चािहये ।
2.3 4-6 #% "
वषकु ड  भाव6 म0 िथत <ह6 के फल को भावफल कहते है । आइये तािजक शा  J( 
वषकु डली म0 चतथु  से षOठ भावफल िवचार कN जानकारी ा8त  !" )
 चतथ
ु  (4) ( 
तुयd रवी!दू िपतृमातृपीडा पापाि!वतो पापिनरीिEतो च ।
ज!म*थसूयEगतेक पु(ेवमानना वैरकली च िप(ा ।।
पापाि'वतौ ) @@$ U, पापिनरीिMतौ ) पाप<हuOटौ रवी'दू यिद तयु q - चतथु q, P, तदा :मेण
िपतृमातृपीडा वाnया । पापयतु uOटे रवौ चतथु थे सित िपतृपीडा ताuशे च'Rे चतथु q सित
मातृपीडेBयथ: # Xक पु े ) 5(U, ज'मथसयू M्7यतु े ज'मकु ड[यां यिम'नाशौ सयू तRािशगते
सित । अ वषगणनाया: सौरमानेन करणात् तथा तBकाXकb ज'मकालरिवणा यादा सम: #
तदैवाHदवेश: यािदित िनयमेन च ज'मवOर7् कालयोरिप रिवेरकरािशिBवात् ज'मथसूयMयतु े )

उराख ड मु त िवविवालय 129


वष   BAJY- 301
इBययाथ: शनौ रिवसिहते सतीित 7ेयम् । त अवमानना ) J@&(P, िपा ) ( ( ! "
 : #
भाषाथ ) पाप यतु uOट सयू  यिद चौथे म0 हो, तो िपता को पीड़ा हो तथा पापयतु uOट च'R& $1
चौथे म0 हो, - & - @ !- !" , D $1 5( यV  के साथ हो तो िपता से अपमान तथा
शतु ा कलह होता है ।
च!2े ज!!यैवमुशि!त ब!धौ सुखािधपे ीितसुखािन िप(ो: 
तुयािधपे ल3नपती:थशाले वीयाि!वते सौjयमुशि!त िप(ो: 
भाषाथ - इस कार च'Rमा ज'मकाल म0 िजस रािश म0 हो, उस रािश म0 यिद वषकाल म0 शिन हो,
- &  I -B / ! !-  s !( !$, और यिद सख ु श े सखु भाव म0 हो तो
माता िपता को सख ु होता है या बलवान् चतथु qश लTनेश से इBथ5  !-, & @ - R 
!- !" #
सौjयािधपो जनुिष न'ट7 "&दसू:यो: िप(ोरिन'टकृदधो सहमे तयो*तु 
द3धे तुरीयगहृ गे च यदीि!थहाया नाश*त ": सहमयोरिप द3ध ": *या 
भाषाथ ) वषकाल और ज'मकाल म0 चतथु qश यिद बलहीन हो तो माता और िपता को अिनOट
 !" $ &O!!&, िपतृसहम पाप<ह से यतु या uOट !-, मथु हा से चौथे थान म0 हो, - & )
िपता का नाश होता है और यिद मातृसहमेश अतं  !-, पाप<ह से यतु या uOट !- - & )
@  (5 !- !" # इस कार भावफल समझना चािहये ।
ज!म!यVबुगृहं य\च त:पित*त:प
" $ 
श!यारौ लेशदौ िप(ोन चे:सौVयिनरीिEतौ ।।
भाषाथ ) ज'मकाल म0 जो चतथु  थान म0 रािश वह चतथु  भाव का पद कहलाता है और चतथु भाव
का वामी िजस रािश म0 हो, वह उसका पद कहलाता है । वहॉ वषकाल म0 शिन और मगं ल उन दोन6
पद म0 िथत हो, शभु <ह6 से यिद इOट नहP हो तो माता िपता को ले5 1 !" #
 : िपतु;च सहमे तनपु े:थशाले तुयdिप चे:थमवग\छ सख ु ािन िप(ो: 
चेद'टमािधपितना कृतिम:थशालं िप(ोिवपTयमिन'ट6* 
भाषाथ ) मातृसहम वा िपतृहसहम लTनेश से इBथ5  !-, - & ) @ - R  (-
D &O ) सहम या िपतृसहम चौथे थान म0 हो, -  & @ - R  !- , s ((
चािहये । यिद मातृसहम या िपतृसहम पाप<ह से इBथशाल करता हो तो माता िपता को िवपि होती
है । यिद शु से ईसराफ योग करता हो तो भय होता है ।

उराख ड मु त िवविवालय 130


वष   BAJY- 301
चतुथ थान मD िथत सयू ािद समत ह' का भावफल 
च!2: सुखे खलयुतो Oयसनं bजं च पु'ट:   :  &" 
सौVया: सुखं िविवधम( खला: सुखाथनाशं bजं Oयसनमय .  . ( 
R$ : - पापयतु uOटच'R: R   ) चतथु भावे िथततदा eयसनं >जं ) रोगं च दBते । यिद पOु ट:,
शभु ने यतु uOटच'Rचतथु q िथतत1 R  &/ A(- ) सवतोभावेन ददाित । सौ%या: - 5 :
चतथु थानिथता:, तदा िविवधं सख ु ं द:ु # R: - 5($: अ ) चतथु q िथतात1
सख ु ाथनाशं, >जं ) - ,P J
 &/ ) J&P, eय(P ) लेशं अतल ु ं भयं च द:ु #
भाषाथ ) पाप यतु uOट दबु ल  च'Rमा यिद चौथे भाव म0 हो तो ले5 , - - 1 !" # $1
पOु टशरीर शभु यतु uOट च'Rमा चतथु भाव म0 हो तो सख ु को देता है । यिद शभु <ह (B , ग>
ु , श:
ु )
चौथे थान म0 हो तो नाना कार के सख ु को देता है । यिद पाप<ह ( 5( ) चतथु थान म0 हो
- R  (5, B((5, - , WWP F I JB $ - 1 !" # s   ( !$ #
J@  )
": पीडनं तुयसं*थे $  6: कमणो हािनर:य!त #: 
नृपाTीितक'टं भवे!मातृपीडो >0िप *यात् पीडा&दम@ये 
= चतुथd च भूपाAAयं( 6: कमणो लाभवान् *या  &# ( 
धनािl Pये िवPये वा&दम@ये  &. . cरपोनाशनं च ।
चतुथd कुजे विgपीडा तथाित पशो: पीडनं OयBतां लेशक'ट 
6: कमणो हािनमयेव कुयात् Pये िवPये चा&दम@ये ) 
बुध;चतुथ: करोित सौjयं 2Oयागमं िम(समागमं च ।।
गोभूिहरयािद लभेत सौjयं मह:सुखं वाहनम( वषd ।
सरु ेAये सखु *थे सखु ं वाहनानां Pये िवPये लाभकारी जन*य 
भवेTूपपEAAयो  ि*मन् महालाभद: *या 6: कमणा च ।।
थमदेवगुb सुखगो यदा सख ु कर: कृिषवाहनयो*त
 
धरिणवािजसवु णसमागमो भवित भूपसमो मनज ु : 
 
ब!धु*था" 
 : *याGायने क'ट
" 
भीित हािनमुपPमे च कुbते ने(ोदरे पीडनम् ।।
ब!धूनामथ पीडनं कुbते लोकापवादं वृथा ।
वgे sचािप भयं पशो;च  .  6# .  

उराख ड मु त िवविवालय 131


वष   BAJY- 301
बोध  न
1. तयु  शHद से ताBपय है )
. @ P & R. षOठ . चतथु  E. स8त&
2. अक पु िकसे कहते है )
. &P  R. 5( . ग>
ु E. B
3. चतथु qश बलहीन हो तो )
. & ) @ - R  !- !"
R. & ) िपता का अिनOट !- !"
. & ) िपता कN उ'न !- !" #
E. कोई नहP
4. षOठे 5 !" )
. षOठ  R. षOठ भाव का वा& . षOठां5 E. 6
5. :,\,=,:; - ! !" )
. के 'R R. @N . आपोिलम E. िषडाय
 , (   
प(ु ायगो वषपितगुb;चे:सूयारसौVयो"थवे:थ 
स:पु(सौjयायखलािदता*ते
:खदा: पु(त एव िच!:या: 
/ ) $1, वषपित: - वषqश:, ग> ु : ) वृहप:, पु ायग: - @‰चमैकादशिथतत1
सBपु सौDयाय भवित । अथवा इBथममनु ां कारे ण सयू ारसौ%यो5(: - रिवकुजबधु श: ु ा:, वषq
वषqशा भBू वा @‰चमैकादशथानिथतातदा पु सौDयाय भवि'त । अथ ते ) रिवकुजबधु श: ु ा:
Rिदता: - @@@>: - पापा:ानतयतु uOटातदा पु त एव द:ु खदािS'Bया 7ातeया: #
यिद वृहपित वषqश होकर पंचम एकादश थान6 म0 हो, तो पु सख ु के िलये होता है , JI $1
, , B , श:ु भी ऐसे ही वषqश होकर पंचम एकादश थान म0 हो तो पु सख
ु के िलये होता है
# $1 5#11 थान म0 रहकर पाप <ह6 से पीिडत़ (यतु uOट इBथ5) हो तो पु से ही द:ु खद होते
हc । अथात् पु सख
ु नहP होता ।
पु(े सुत*य सहमे सबले सुतािl: सौVयेिEतेयितसुखं यिद त( वषdट ।
सौVयेिEत: शुभगृहे सकुजो बुध;चे:पु(ायग:   &. 7 : सुताितम् ।।

उराख ड मु त िवविवालय 132


वष   BAJY- 301
भाषाथ ) पंचम भावबली हो या पु सहम बली हो, या बली पु सहम पंचम भाव म0 हो, तो पु का
लाभ होता है । यिद पच ं म भाव म0 वषqश शभु <ह से uOट होकर िथत हो, तो पु का अBय'त R 
होता है । यिद मगं ल से यतु बधु शभु <ह कN रािश म0 िथत होकर वष लTन  9#:: थान म0 हो तो
पु सखु होता है पर'तु ऐसा बधु यिद िनबल हो तो पु पीड़ा करता है । s  &W(
!$ #
जीवो ज!मिन य2ाशाव&दे$  " 7 # 
पु(सौjयाय भौमो ो वषdशो( सुतािlद: 
भाषाथ ) वृहपित ज'मकु डली म0 िजस रािश म0 हो, वह रािश वषकु डली म0 पंचम भाव म0 हो
D  !-, तो पु सख ु के िलये होता है अथवा मगं ल या बधु वषqश होकर पचं म भाव म0 हो, -
पु लाभ को देता है । ऐसा भावफल जानना चािहये ।
य(ेAयो जनुिष गहे िवल3नमेत:पु(ा:Vयै बुधिसतयोरपी:थमू^म् ।
2ाशौजनुिषशिन: कुज;च"&दे पु(ािl तनुसुतग: " / 
भाषाथ ) ज'मकु डली म0 वृहपित िजस रािश म0 हो, वह रािश वष कु डली म0 वषलTन !- -
पु लाभ के िलये !- !" # s B , श:
ु से भी समझना चािहये । जैसे ) ज'मकाल म0 जहॉं बधु हो
वह रािश वषलTन !-, वा ज'मकाल म0 श: ु िजस रािश म0 हो वह यिद वषलTन !-, तो पु लाभ होता
है । ऐसे शिन या मगं ल ज'म काल म0 िजस रािश म0 हो वह रािश वषवेश कु डली म0 लTन, $ @P&
भाव म0 हो, तो िनचय पु लाभ को  !" #
पु(े पुय*य सहमं पु(ा:यै शुभhिiयुक् ।
ल3नपु(े;वरौ पु(े पु(दौ बिलनौ यिद ।।
भाषाथ ) यिद प ु य सहम पचं म भाव म0 हो, शभु <ह से uOट $ !-, तो पु लाभ होता है, $ $1
बली लTनेश पंचमेश ये दोन6 पंचमभाव म0 हो तो पु को देते है ।
च!2ो #"थवा शुP: *वो\च:  
:   
वPz $: सतु *थ;चेदु:प!न : 
भाषाथ ) च'R&, ग> ु या श: ु अपने ) अपने उnच म0 गत होकर यिद पंचम भाव म0 हो तो पु को
देते है । यिद मगं ल व:N होकर पच ं मभाव म0 हो, तो उBप'न पु का भी नाश करता है । s 
&W( !$ #
सुतािधपो ज!मिन भागवो&दे पु(े िवल3नािधपती:थ # 
पु(दो म!दपद*थपु(े पापािधकारीिEत आ:म: 

उराख ड मु त िवविवालय 133


वष   BAJY- 301
भाषाथ ) ज'मकु डली म0 श: ु पंचमेश होकर वषकाल म0 पंचमभावगत हो और लTने5 
इBथशाल योग करता हो तो पु देता है , या ज'मकाल म0 शिन जहॉं हो, वह रािश वषकाल म0 यिद
पु भाव म0 हो और पाप<ह के अिधकारी <ह से uOट हो तो पु पीड़ा होती है ।
य2ािशगो Bह: सूतौ स रािश*त:प
: 
बली ज!मो:थसौjयाय वषd त]ु:&
"!य 
भाषाथ ) ज'मकाल म0 जो <ह िजस रािश म0 रहता है, वह रािश उस <ह का पदसं7क है । वह
पदस7ं क रािश वष म0 यिद बली हो, तो ज'म म0 वह रािश िजस भाव म0 रहता है, उस भाव स%ब'धी
शभु फल देता है । यिद वष म0 वह रािश िनबल हो, - J5  1 !" #
पच
ं म भाव िथत सयू ािद समत ह' के भावफल -
प(ु िव5सुखसsच .  : पु(गा भृगुसुतोितहषद: 
प(ु िव5धनबिु Gहारका*त*करामयकिलदा: & : 
भाषाथ  यिद शभु <ह (B , ग>ु , श:
ु एवं पणू च 'R&) @P& भाव म0 िथत हो तो पु सखु
धनलाभ करते हc और आन'द भी देते है । यिद पाप<ह (सयू , 5(, मगं ल एवं Mीणच'R& ) @
P &
भाव म0 हो तो पु नाश, धन धा'य (5, बिु =नाश और चौर का उपRव रोग का चार लोग6 से
-B -  !" # s 15 !( !$ #
अथ षठ ( : -
म!दे&द नृजुगतौ पितते bगाित : *या:सि!नपातभवभीरcरगे( शूलम् ।
गु.मािEरोगिवषमAवरभीगरु ौ तु पापािदतेिनलbजोिप कबूलशू!ये 
भाषाथ ) व:N और पापा:ा'त, शिन वषqश होकर यिद छठे थान म0 हो, - - , @ !-, िदोष
( -  $ !-, 5 V (पेट म0 दद) !- !", और ग[ु म - , ने रोग, िवषम व  $ !- #
ऐसे ही व:N पापपीिडत ग> ु वषqश हो कर यिद छठे थान म0 हो और च'Rमा से कबूल योग नहP
 !-, - $ - !- !" #
*या:कामलाjयbगपी:थमसAृ यस3ृ भी: 
िप5ं च cर:फगरवौ hिश शूलरोग: 
िप5ं पुना cरपुगृहे( भृगौ नृभे$
;ले'मा भपेिEतयुते *"cरगे!दौ 
भाषाथ ) s &P  $1 !- तो कमला रोग होता है । रत् िवकार भी होता है । िपकोप भी
होता है यिद वैसा ही सयू  dादश भाव म0 गया हो तो ने शल ू रोग होता है, और वैसा ही श:ु होकर
उराख ड मु त िवविवालय 134
वष   BAJY- 301
यिद शु गृह म0 हो तो िप से रोग होता है, और वैसे ही श:
ु यिद प>
ु ष रािश म0 हो, छठ0 थान म0 हो
और राशीश से uOट $ $ !-, तो कफ रोग होता है । ऐसा ही च'Rमा यिद छठे थान म0 हो, - 
- !- !" #
>. 7   &द रौ वातो :थरोगो जिनल3न: 
 "&दपेन Eुतhिih'टो रोगदो मृ:यु:   : 
भाषाथ ) इस कार यिद पापयु त, वषqश होकर बधु छठे थान म0 हो तो वात से उBप'न - !-
है और ज'मलTनेश वयं पाप<ह हो, वषqश से Mतु uिU से देखा जाये तो भी रोगद होता है और वैसा
ही ज'मलTनेश पापयु त हो तो मृBयु - 1 !" # s  !( !$ #
सू:यािक मे ल3नगते bEशोतो'णb3भ  
शनीिEते या'यता *या:सपापे मृ:यु
 
भाषाथ - ज'मकाल म0 िजस रािश म0 शिन हो, वह रािश यिद वष लTन !-, तो >Mता रोग, 5
िप रोग होता है । यिद जनमकािलक शिन रािश शिन से uOट हो तो कुछ कम भा !- !" # $1
पाप<ह यु त हो तो मृBय1ु $ !- !" #
एवं भौमे Eतु hशा र तिप5bजोि3नभी: 
"!ये बहZला रोगा: शुभh'टौ bग.प 
भाषाथ ) इसी कार मगं ल ज'मकाल म0 िजस रािश म0 हो, वह रािश यिद वषलTन हो और Mतु uिU
:,\,=,:;  1R $, तो रत िप रोग होता है, अिTनभय होता है । उस से और भी रोग होते हc ।
यिद शभु <ह कN uिU पड़ती हो, तो रोग कN अ[प !- !" #
ल3नािधपा&दपितष'ठपती:थशालो रोगद: &( : *या 
का!दिपकामयभयं पितते िसतेक *थाथ ष'ठ इह b स.    
भाषाथ ) वषलTने5, वषqश, इन दोन6 को षOठे श से यिद इBथशाल योग होता हो तो उन <ह6 के जो
B, उसके िवकार से रोग होता है । इसी कार श: ु ज'म काल म0 िजस रािश म0 हो, वह रािश वष
लTन से छठे था( म0 हो और सयू  उसी म0 हो और रोगसहम पाप यु त  !-, तो का'दिपक
क'दपस%बि'ध अथात् वीय दोष से राग होता है ।
सपापे गुरौरं1गे ल3न आरे सत!2ाि*त मू\छा=: सच!2े 
& : सिू तके !2े&दल3ने bगा:यै कफो 7िय+गं ैरी`यमाणे िसते *या 
भाषाथ ) पाप<ह से सिहत ग> ु यिद अOटम थान म0 हो, मगं ल यिद लTन म0 हो तो आलय $
मnू छा - , 1!-5 (& ) - !- !", और च'Rमा से यतु वृहपित आठव0 थान म0 हो, $

उराख ड मु त िवविवालय 135


वष   BAJY- 301
च'Rयतु मगं ल लTन म0 हो, तो अगं का नाश होता है तथा ज'मकाल म0 :,\,=,:; इन थान6 म0
िथत पाप<ह यिद वषलTन म0 हो, तो रोगाि| के िलये होते है और वैसे ही श: ु यिद िवषम
:,7,9,=,^,:: रािश म0 िथत पाप<ह6 से देखा जाये तो कफ रोग होता !" #

&दवेशो िवल3ने&दसू:योयदा h कहदागृहा0ो: 
रवेवा कुज*या( पीडा Aवरा:*या]ृशा सौVयखेटो:थ !ते सुखािl: 
भाषाथ ) िदन म0 वष वेश हो और वषकािलक ज'मकािलक लTन म0 सयू  का अथवा मगं ल का
RेOकाN (&P5 A1 JB !-, तो वर से पीड़ा होती है । यिद शभु <ह कN uिU वषलTन @
@, तो वषा'त म0 सख
ु लाभ होता है । ऐसा भावफल समझना चािहये ।
िनिश सूतौ वधमाने च!2े भौमे:थ : 
b=;येदेधते म!दे:थशाला7य:य "!य 
भाषाथ ) रात म0 वषवेश हो, ज'मकाल म0 च'R& C@$ &( !-, वहॉं यिद मगं ल से इBथ5
!- !-, तो रोग का नाश होता है और वैसे ही च'Rमा को यिद शिन से इBथ5 !- - - ?
है । इससे िवपरीत म0 उ[टा  !( !$ #
रवावी]िश िव:के  &दं & . 
: 
अिधकारी बली सूताव&दे के तुयुक् तथा ।।
भाषाथ ) ऐसे ही बधु के तु यु त , मगं ल से इBथ5  !-, तो परू े वष रोग होता है या
ज'मकाल म0 लTनेश अिधकार ा8त कोई <ह यिद के तु बधु यु त !-, तो परू े वष रोग होता ही है ।
चतुथd*ते च मुथहा Eुतh'टया शनीिEता ।
शूलपीडा पापखगैh'टे त:पcरणामजम् ।।
भाषाथ ) यिद मथु हा चौथे सातव0 म0 होकर शिन कN Mतु uिU से देखी जाय, - 5 V @ !- !" #
यिद चौथे सातव0 म0 िथत मथु हा पाप<ह6 से uOट हो तो पWरणाम शल ू रोग होता है । ऐसा तािजकोत
 ! $ !" #
ज!म*थ# #
सूयाRशुगे िपटकशी कािदमा!0 
शीतो'णगडभवb सबुधे च से!दौ
कु'ठं भग!दरbजोिप सगड : 
भाषाथ  ज'मकु डली म0 वृहपित और श: ु िजस रािश म0 हो, उसी रािश म0 वषकाल म0 मगं ल हो,
अतं   !-, तो िप[ही, 5 A1 - होते हc । और शीतिप या सद], गम] के रोग,

उराख ड मु त िवविवालय 136


वष   BAJY- 301
गलग ड रोग होते है । इसी कार च'Rमा यतु बधु ज'मकािलक ग> ु श:ु के रािश म0 हो, तो कुOठ
और ग डमाला भग'द - !- !" #
ज!मल3नेि!थहानाथौ ष'ठौ पापाि!वतेिEतौ ।
िनबलौ Aव #:=वैकल0िवक'ट
$ 
भाषाथ ) ज'मलTन के वामी और मथु हेश ये दोन6 छठ0 थान म0 हो, पाप<ह से यतु या uOट !-
िनबल हो, तो वर और शरीर कN िवकलता आिद अBय'त कOट को देते हc ।
मुथहाल3न!नाथा पापा!त:*था*तु "
: 
ष'ठे शे ष'ठगे सौVये ि~या: ािlcरतीयते ।।
भाषाथ ) &I !  लTन &I !5, वषलTनेश ये सब यिद पाप<ह6 के बीच म0 हो तो रोगद होते हc या
षOठे श शभु <ह हो षOठथान म0 हो, तो ी के कारण रोगाि| होती है ।
रोगकता य( राशावंशे *यादनयोबली ।
त:*थानं त*य रोग*य वा\यं रािश*वbपत: 
भाषाथ ) रोगकारक <ह िजस रािश म0 िजस नवमाश ं म0 हो, उन म0 जो बली हो, उसका रािशव>प
से जो था( !-, वही रोग का था( !( !$ #
ज!मष'ठा  $ वषd ष'ठगते bजा ।
Pूरे:थ   : शुभh3योगत*त : 
भाषाथ ) ज'मकु डली म0 मगं ल षOठभाव का वामी वषकु डली म0 छठ0 भाव म0 हो तो रोग होता है
। यिद वैसे ही मगं ल को पाप<ह से इBथशाल होता हो तो महान् रोग होता है । शभु <ह कN uिU और
P$-  E - !- !" #
षठ भाव मD िथत समत ह' का भावफल )
ष'ठे पाप िव5लाभं सख ु ािlं भौमो:य!तं हषद: श(नु ाशम् ।
सौVया भीितं िव5नाशं किलं च च!2ो रोगं पापयु त: " 
भाषाथ ) यिद पाप<ह षOठथान म0 हो, - B( , सख ु लाभ करते हc उस म0 मगं ल षOठथान म0
हो तो अBय'त हष को और शनु ाश को करता है । शभु <ह षOठथान म0 होने से भय, B((5,
कलह को करते हc । उसम0 Mीणच'Rमा यिद छठ0 थान म0 हो तो कफ, व RPसी को उBप'न 
!" # s  (( !$ #
2.4   

उराख ड मु त िवविवालय 137


वष   BAJY- 301
तािजक शा के अ'तगत वषकु डली िनमाण करने कN पर%प !" # वषकु डली म0 चतथु  (\) 
से लेकर षOठ  (8) पय'त षोडश योग के आधार पर फलादेश आिद कम कहे गये है ।  
जीवन म0 वािषक तर पर िवचार करने पर उसकN कु डली म0 चतथु  से लेकर षOठ भाव तक िविभ'न
<ह एवं योग6 के आधार पर तािजकोत भावफल या ) या !" % उनके िथत होने कN दशा म0
जातक के उपर या ) या भाव पड़ेगा, इन समत िवषय6 का अ@ययन आप ततु अ@याय म0
करे ग0 ।
इस इकाई म0 उपरोत समत िवषय6 का स%य/ &5 $ $ !" #
2.5 पारभािषक शदा
वषकुड # ) िजसम0 वािषक िथित का िववेचन हो
वषdश ) वष का ईश अथात् वष का वा&
िव5लाभ ) B(  
तािजको त ) तािजक शा म0 कहा गया
ज!म*थ ) ज'म के समय म0 िथत
इ:थ ) तािजकोत षोडश योग म0 एक योग कN सं7ा
. )  5  (ZP 
रोगद - रोग को दान करने वाला
2.6 बोध  न के उत
1.
2. R
3. R
4. R
5. 
2.7 सदभ थ 
तािजकनीलक ठी ) आचाय नीलक ठ दैव7 ) चौख%भा िवा काशन
2.8 िनबधामक  न
1. चतथु  एवं षOठ भाव म0 िथत <हभाव फल का िवतारपूवक
 वणन कNिजये #

उराख ड मु त िवविवालय 138


वष   BAJY- 301
2. तािजक शा म0 कहे गये @P&  का उ[लेख कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 139


वष   BAJY- 301
  3 7 - 9 

इकाई क :परे खा
3.1 ता 
3.2 उे

3.3 स7त# (7) $ 
3.4 अ(ट# (8) $ 
3.5  # (9) $ 
बोध 

3.6 

3.7 पारभािषक शदा &
3.8 बोध 
न के उ&त

3.9 स!दभ "!थ !' &


3.10 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 140


वष   BAJY- 301
3.1 ता
तु  000 301 के तृतीय ख ड के तृतीय इकाई से स%बि'धत है । इस
इकाई के अ'तगत तािजक शा  J(  7-9 भावफल िवचार6 का उ[लेR $  ! !" #
 पवू  कN इकाईय6 म0 आपने 4 - 6 भावफल का 7ान ा8त कर िलया है । यहॉं इस इकाई म0
आप स8त& (7)    (& (9) भाव तक के फल का अ@ययन करे ग0 ।
7-9 से ताBपय ज'मकु डली के प&   र नवम भाव तक से है । इन भाव6 म0 िथत <ह6
का फल तािजक शा के अनुसार िकस कार होगा, "  !-  %
इस इकाई म0 आप 7-9 भावफल िवचार का स%यक् अ@ययन ा8त करे ग0 ।
3.2 उे य
 इकाई के अ@ययन के पचात् आप जान पायेग0 िक )
1. फल या !" #
2. तािजकोत 7-9 िथत भावफल या !" #
3. स8तम एवं नवम था( U( !" #
4. तािजक शाोत 7- 9 िथत <ह6 के फल या !- !"#
5. वषकु डली म0 7-9 िथत भावफल िवचार िकस कार करना चािहये ।
3.3 स5त! (7) #% "
तािजकोत भावफल िवचार के अ'तगत यहॉ स8तम भाव से लेकर नवम भाव तक का उ[लेR
$  ! !" # A$ J !& 7-9 भावफल का 7ान करते है )
अथ सHत (  : -
7 # "&दा : *मर*थ: *(ीपEत: सौjयकरो िविच!:य: 
ईAयेिEतो:य!त &.  िधकाcरणा ीितकरो िमथ: *या 
भाषाथ  यिद बलवान वषqश श: ु सातव0 थान म0 हो, तो ीपM से सखु करता है, या वैसे ही श:

पंचािधकार6 म0 कोई अिधकारी होकर मगं ल से देखा जाय, तो ी प>
ु ष को परपर ेम कराता है ।
s  &W( !$ #
बुधेिEते जारता *या.लObा म!देन वृGया ।
गbु h'टया नवा भाया स!तित*:वcरत!त: 

उराख ड मु त िवविवालय 141


वष   BAJY- 301
भाषाथ - वषqश होकर श: ु यिद स8तम थान म0 हो, बधु से uOट !-, तो थोड़ी उy वाली ी 
eयिभचार होता है । यिद ऐसे ही श: ु शिन से uOट !-, तो वृ= ी से eय !- !" # $1 "
श: ु वृहप  1R  !- -, तो नयी अपनी िववािहता ी !-, उससे शीr ही स'तान ाि|
 !- !" #
ज!मल3ना *त*थे दारसौjयं बलाि!वते ।
ज!मशुPEम*ते *(ी  &द  
भाषाथ ) ज'मलTनेश बलयुत होकर वषलTन से स8तम थान म0 हो, तो ी R  !- !", D
ज'म काल म0 श: ु िजस रािश म0 हो, वह यिद वषकाल म0 सातव0 थान म0 हो और श: ु वषqश हो तो
ी  !- !" # s  &W( !$ #
ल3ना*तनाथयोcर:थशाले *(ी 
 
सहमेशो भावपो वा िवन'ट: क'ट
: ि~या: 
भाषाथ ) लTनेश स8तमेश म0 इBथ5 !- !-, तो ी लाभ कहना चािहये । यिद ी !&5
और स8तमभावेश अतगंत हो पापयु त uOट हो तो ी को कOट 1 !" # s  !- !" #
न'टे !दौ शुPपदगे मैथुनं *व.प
 
ज!मशुPEगो भौम: *(ीसुखो:स6
 7 # 
भाषाथ  यिद Mीणच'R ज'मकािलक श: ु के रािश म0 हो, तो अ[प ी सगं या अ[प ी R 
कहना चािहये । यिद बलवान मगं ल श: ु के ज'मकािलक रािश म0 ह6, तो ीसख ु और उBस -
 !" #
ज!मा*त &दपिसतेन युगोिEते *bा:*(ी." बहZिवलाससुखधान: 
के !2ि(कोणगगरु ौ जिनशP ु भ*थे *(ीसौjयमु तितितह]िववाहयो;च 
भाषाथ ) ज'मकाल के स8तमेश यिद वषqश श: ु से युत या uOट !-, तो बह9त िवलास सुख से यु त
ी सगं हो अथवा वषलTन से के 'R 1,4,7,10 िकोण 5,9 म0 होकर ज'मकाल म0 श: ु िजस रािश
म0 ह6, उस रािश म0 ग> ु हो, तो ी R !( !$ #   $ ऐसे ज'मलTन के ह~ेश
D ! !&5    ( !$ #
अिधकाcरपद*थेकd *(ीUयो Oया  
इि!थहा6*थाने गb ु h'ट  6 
भाषाथ ) यिद सयू  पंचािधकाWरय6 म0 िकसी के थान म0 हो, तो ी के हेतु eय<ता रहती है और
मथु हा यिद पचं ािधकाWरय6 म0 िकसी के थान म0 ह6 अथात् यतु हो और वृहप  1R  !-,

उराख ड मु त िवविवालय 142


वष   BAJY- 301
- ! $- (  !- !" , अथात् $! ! $- !- !" #
इि!थहाकारयुग् 0ूने Pूcरते सहमे ि~या: 
*(ीप(ु ेUयो भवे:क'टं पापh'ट्या : 
भाषाथ  , कुज से यु त मथु हा यिद वषलTन से स8तम म0 हो तो ी, पु से कOट हो या ी
!& @@  $ !-, तो ी पु से कOट !-, वहॉं पाप कN uिU यिद पड़ती हो तो िवशेष >प से ी
पु से कOट !- !" # s  &W( !$ #
/$ 0ूनािधप: शुPो&दे 0ूने बलवा!भ 
ल3नेशेने:थशाल;चे:*(ीलाभं कुbते 1ुवम् ।।
भाषाथ  ज'मकाल म0 स8तमेश श: ु ही हो, वह वषकु डली म0 स8तम थान म0 ह6 और बलवान
भी हो और लTनेश से इBथ5 !- !-, तो ी लाभ को िनिSत ही ा8त  !" # s 
&W( !$ #
$&दपे िसतhशा शुPे&देशे कुजेEया ।
त]ृ'टे दारसहमे *(ीलाभो भवित 1ुवम् ।।
भाषाथ ) मगं ल वषqश होकर श: ु से देखा जाता हो, ी लाभ होता है या श: ु वषqश होकर मगं ल
 1R $, तो ी लाभ होता है । ीसहम मगं ल श: ु से देखा जाय, तो ीलाभ िनिSत कहना
!$ #
सूतौ वा दारसहमे त]ृ'टे योिषदा'य 
*वािमh'टं *(ीसहमं शुPh'टं 6 
भाषाथ ) ज'मकाल म0 दारसहम यिद श: ु , मगं ल से uOट हो तो ी ाि| होती है या ी !&
अपने वामी <ह से uOट हो और श: ु से भी देखा जाता हो, - ! !- !" # s 
&W( !$ #
सूतौ 0ूनािधपे वषd सहमेशे ि~या:  & 
ज!मा*तपेि!थहानाथवषdशा: खे 0नु े त 
भाषाथ ) ज'मकािलक स8तमेश वषकाल म0 दारसहमेश हो तो ीसख ु होता है । अथवा ज'म
का स8त&5, वषकाल का मथु हेश, वषqश ये सभी यिद दशम यर स8तम भाव म0 हो, तो ी R 
!- !" #
मुथहातो 0ूनसं*थ: *वगृहो\च: # 
िवदेशगमनं कुया: ले: पापेEणाTवेत् ।।

उराख ड मु त िवविवालय 143


वष   BAJY- 301
भाषाथ ) व !O (कक ) उnच (OH ) म0 िथत च'Rमा मथु हा से सातव0 घर म0 िथत हो, अथात्
मथु हा मकर म0 हो, च'Rमा कक म0 हो , या मथु हा वृिSक म0 हो च'Rमा वृषरािश म0 हो, - 15
याा होती है । यहॉं पाप <ह6 कN uिU पड़ने से लेश होता है । शभु <ह कN uिU से सख
ु पूवक
 याा
eयतीत होती है । च'Rमा के कक म0 रहने से जलयाा, वृष म0 हो तो थलयाा होगी ऐसा भावफल
!( !$ #
अथ सHत (7) भावथ समतहफलम् )
  : शशी सतमो Oया# & : *(ीिवनाशं किल भृ:य# 
 : कुवते िव5लाभं सख ु ािlं यशो राजमानोदयं ब!धस ु ौjय 
भाषाथ ) यिद पाप यु त uOट च'Rमा स8तम म0 हो, तो रोग भय करता है । यिद पाप<ह (, &P ,
5() स8त& भाव म0 हो तो ीनाश ीकOट कलह तथा नौकर से भय होता है । शभु <ह यिद
स8तम म0 हो तो धनलाभ, R  , यश राज स%मान पWरवार सख ु करते है ।
3.4 अ$ट! (8) # % " 
$&दपे Pूरहतेयसा घातो बलोिAझते ।
अि3नभीरि3नभे Pूरनराद्ि7पदभे मृित: 
भाषाथ  मगं ल वषqश होकर यिद पाप यतु uOट !-, िनबल हो तो लोह कN चोट से €ण होता है ।
वैसे ही मगं ल यिद अिTनतBव वाले रािश म0 हो अथात् मेष, P!, धनु रािशय6 म0 हो, A  (
का भय होता है । वैसे ही मगं ल िdपद अथात् &I( , क'या,  , धनु के पवू ाध म0 हो तो :ूर नर
dारा मरण होता है । ऐसा भावफल समझना चािहये ।
िवय:विनपामातयcरपुत*क.   
तुयd मातु: िपतृOया7ा मातुलाि:पतृतो गुरो: 
भाषाथ ) िनबल मगं ल वषqश होकर यिद दशम थान म0 हो, -   , म'ी , शु से, U 
भय होता है । अथवा वैसा ही मगं ल यिद चौथे थान म0 हो तो, & ,  , $ &&  , @
से तथा ग>ु से भय होता है । ऐसा तािजकोत  &W( !$ #
महामृ:यु " 
ल3नेि!थहापितसमापतयो मतृ ीशा;चेिद:थशािलन इमे िनधनदा: *यु: 
चे:पाकcर'टसमये मृितरेव त( साकd कुजे नृपभयं िदवसे&द 
भाषाथ - यिद लTने5, &I !5, वषqश ये अOटमेश हो या अOटमेश से इBथ5 $-  !- -

उराख ड मु त िवविवालय 144


वष   BAJY- 301
मरणद होते हc । यिद ज'मकािलक द<ु ह मारक<ह6 कN दशा, या अ'तदशा के समय म0 उत $-
घिटत हो तो मरण ही होता है अथवा िदन म0 वषवेश हो और शिन से यु त &P  !- - $
!- !" #
बोध  न : -
1. S का शािHदक अथ है )
. &P  R.  . 5  E. B
2. वषqश से ताBपय है )
. वष R. वष कN गणना . वष का फल E. वष का वा&
3. 1  ! !" )
. @ - R. ी - . पBनी - E. कोई नहP
4. िन%निलिखत म0 अHदS !" )
. & R. वष . 1( E. स8ता!
5. िनबल मगं ल वषqश होकर यिद दशम भाव म0 िथत हो तो )
.   R
 !- !" #
R.   $ !- !" #
. राजा dारा धन कN ाि| होती है ।
E. राजा dारा स%मा( & !" #
सूयd मूसcरफे िसतेन जनने वषd# 
के !2े राजगदाTयं च bगसृ *थािधकारी!दु 
सौVये Pूरhशा कुज*य bगसृ3दोषो िदनांशुि*थते
द3धे ब!वमृती िवदेशत इित ाहZबध ु े ताhशे ।।
भाषाथ ) ज'मकाल म0 यिद सयू , श: ु से मसू Wरफ योग करे, और वषकाल म0 पंचािधकार6 म0
अिधकारी हो और के 'R :,\,=,:; म0 हो, -  , - ,  -  $ !- !", D
ज'मकाल म0 बधु यिद मंगल के रािश म0 हो, वषकाल म0 अिधकारी हो तो रोग होता है,   "
बधु अतं  !-, पाप से हत हो तो िवदेश से ब'धन मरण होता है । ऐसा तािजक के भावफल म0
! $ !" #
भौम*थािधकारीदौ गु तं नृपभयं bज: 
म!दो# & ": #:: *मृ: 
उराख ड मु त िवविवालय 145
वष   BAJY- 301
भाषाथ ) ज'मकाल म0 जहॉं पर मगं ल िथत हो, उस रािश म0 च'Rमा वषकाल म0 रहे D
JB  !-, तो ग8ु त $ !- !" D -  !- !" $ 5( JB !- $1 15&
म0 हो, तो लोह के हार से पीड़ा करने वाला होता है ।
$'टमे भयं वg: हारो वा नृपाTयम् ।
आरे ख*थे चतु'पादUय: "
:खं bजो6 
भाषाथ  मगं ल यिद वषलTन से अOटम म0 हो, - A  $ !-, शा1  AE !-, 
राजा से भय होता है । मगं ल यिद दशम म0 हो, तो चतOु पद से िगर पड़े और रत   - !-
!" #
िव5ा'टगेAयो धनहा य0&दे"शुभेिEत: 
म!दे 0नु े दुवचनापवादकिलभ:स 
भाषाथ ) वषलTन से िdतीय अOटम थान िथत वृहपित यिद वषqश हो और पाप<ह से uOट !- -
धननाश करता है और यिद शिन स8तम म0 हो, तो दवु च न आिद सनु ता है तथा व जन6 से कलिं कत
W  D ‰ज(  !- !" #
पितते े Pूर]शारे:थ  6. 
 
कुजह]ाि*थते नाश: सौVय]ृ'ट्या  .  
भाषाथ ) पाप<ह से पीिडत बधु यिद :ूरuिU से मगं ल से इBथ5  !-, - &N !( D
पितत बधु यिद मगं ल कN ह~ा म0 हो तो धननाश होता है । उत योगाdय म0 शभु <ह कN िम uिU से
5 !- !" #
ल3नािधपे न'टद3धे योिष7ादोशुभाि!वते ।
ज!म!य'ट" #" #  :  6 : 
भाषाथ ) वष लTनेश दबु ल तथा अतं , @@$ !-, तो ि{य6 से िववाद होता है, या ज'म लTन
से अOटम भाव म0 िथत वृहपित यिद वषकाल म0 प‰चािधकार6 म0 अिधकारी नहP हो, - 
W  !- !" #
 : शुPेEणादु त: :यु5रवशेन तु ।
$!:यगे धने सूयd वदा: लेशं िविनिदशेत् ।।
भाषाथ ) ज'म लTन से अOटमथान िथत वृहपित पर यिद श: ु कN uिU !-, - 1  $
होता है या मगं ल वषलTन से dादश थान म0 हो, सयू  दसू रे थान म0 हो, तो वाद से ले5 !- , s
 &W( !$ #

उराख ड मु त िवविवालय 146


वष   BAJY- 301
cरपुगो(किलभfित: संjये  &द  
द3धो ज!मा=पो वषd'ट" " # 
 
भाषाथ ) वषqश यिद मगं ल से पीिडत हो, तो शु से या अपने वश ं ज6 से कलह होता है,  
भय होता है अथवा ज'मलTनेश पाप से दTध !- !", वषलTन से अOट& भाव म0 हो तो रोग एवं
कलह उBप'न !- !", s  !( !$ #
सू:य&दयोरिधकृतो भौम*थाने गुbहत: 
पापैवाद: *फु'"येवं ता]शी!दौ :
 
भाषाथ ) यिद ज'मकाल और वषकाल म0 अिधकार पाया ह9आ वृहपित ज'म &P  
थान म0 हो, पाप6 से हत हो, तो लोग6 से िववाद होता है । इसी कार ज'म वषकाल का अिधकार
पाया ह9आ च'Rमा यिद शिन के पद म0 हो तो पOट >प से िववाद होता है ।
सू:य&द "रिधकृते च!2 7 
  
Pूरैिवदेशगमनं वाद: *bाि7मन*क 
भाषाथ  ज'म और वषकाल म0 अिधकार पाया ह9आ च'Rमा यिद ज'मकािलक बधु ािiतरािश म0
हो और पाप6 से हत हो, तो परदेशगमन होता है । लोग6 से िववाद और वैमनय !- !" # s
 &W( !$ #
मेषे िसहं े धनु'यारे वषृ े र!1े"   
मृतौ मृतीशल3नेशौ मृ:युदौ पापh3यु$ 
भाषाथ ) यिद मगं ल मेष म0 या िसंह म0 , धनु म0, वृष म0 होकर वषलTन से आठव0 थान म0 हो, -
तलवार से भय होता है । पाप से uOट और यतु अOटमेश और लTनेश यिद अOटमथान म0 हो तो मृBयु
- 1 !" #
य(Ed ज!म  : "&दे ल3नो "
 
बुधो वषपितन'टबल*त( न शोभनम् ।।
भाषाथ ) ज'मकु डली म0 मगं ल िजस रािश म0 हो, वही यिद वषलTन !- $, और बधु यिद वषqश
!-, तो वह वष अnछा नहP होता है ।
साकd शनौ भौमयुते खा'ट*थे वाहनाTयम् ।
साकd भौमे'टम*थे तु पतनं वाहनाTवेत् ।।
भाषाथ  , , शिन यिद दसव0 , आठव0 थान म0 हो तो सवारी से िगरने का भय होता है या
$1 , मगं ल ही अOटम म0 हो तो भी सवारी का भय होता है ।

उराख ड मु त िवविवालय 147


वष   BAJY- 301
&द 'टमे मृ:यु;च!2े!:याcरमृतौ मृित: 
उिदते मृितसtेशे िनबले जीिवते मृित: 
भाषाथ ) मगं ल यतु वषqश यिद अOटम थान म0 हो तो मृBयु होती है या मगं ल यतु च'R& 8,],:[
व0 थान6 म0 हो तो मरण होता है या मृBयु !&5 C1 !-, िनबल हो, जो जीिवत जीवन म0 मरण
समान कOट -  !", s  !( !$ #
पुयसtे;व: पुयमाद'ट"
 
सू:य'ट: पुय*थो 6
: पापh3यु: 
भाषाथ ) प ु य सहम का वामी यिद प ु यसहम से आठव0 थान म0 हो और पाप<ह6 से uOट $ !-,
तो मरण को देता है या ज'मलTन से अOटमेश <ह यिद प ु य सहम म0 िथत हो, पाप<ह6 से यतु uOट
हो मृBयु - 1 !" # s  !( !$ #
सू:य'ट" : पुयसtािन नाथयुक् ।
अ&दल3ना'टमEd वा चेिद:थं *या!मृित*त
 
भाषाथ ) ज'मलTन से अOटम रािश यिद वष म0 प ु य !& !-, प ु य!&5  $ !-, तो मृBयु !-
!", या वषलTन से अOटम रािश म0 प ु यसहम और प ु य !&5  !-, तो भी मृBयु !- !" #
पुयसtाशुभाPा!तं 6#"!:याcरर!1: 
 "&दपो वािप मृ:युं त( िविनिदशेत् ।।
भाषाथ - प ु य!&5 @@ से यतु और अOट&5 8,],:[ इन थान6 म0 हो तो मृतयु होती है अथवा
मथु हेश या वषqश पाप से यतु होकर 8,],:[ इन थान6 म0 हो, तो भी मृBयु !- !", s 
!( !$ #
सPूरे ज!मपे मृ:यो मृित;चेिदि!थहािक युक् ।
भौमEुतेEणे त( मृ:यु: *यादा:म9: 
भाषाथ ) पापयु त ज'मलTनेश यिद वषलTन से अOटमथान म0 हो, तो मृBयु !- !" $ $1 &I !
शिन से यु त !-, तो भी मृBयु होती है अथवा उत दोन6 योग म0 मगं ल कN Mतु uिU पड़ती हो, -
आBमE  &N !- !" #
म!दो'टमे मृताशे:थशाला!मृ:यु: *मृ: 
शभ ु े:थशाला:सवd " 
 : 
भाषाथ ) शिन अOटम थान म0 हो अOटमेश से इBथशाल करता हो तो मृBयक ु र होता है । शभु <ह से
इBथशाल होने से सब अशभु योग अिनOटकाल देने वाले नहP होते है ।

उराख ड मु त िवविवालय 148


वष   BAJY- 301
सूितर!1पितम!दो'ट"&दे ल3न  ( 
इ:थशाली Pूर]शा त:कालं मृ:यु
 : 
भाषाथ ) ज'मकाल के अOटमेश शिन होकर यिद वषकाल म0 लTनेश से :ूरuिU से इBथ5 $-
 !-, तो तBMण ही मृBय1ु $ !- !" # s  &W( !$ #
पुयसtिन िवधु*त$ *ते खलो मृितरथाथcर'फ$ 
मृ:युदौ खलखगावथो जनुव'र्  $ 6$ 6: 
भाषाथ ) यिद च'Rमा प ु य सहम म0 लTन म0 हो, सातव0 थान म0 पाप<ह हो तो मBयु !- !" D
यिद दो पाप<ह दसू रे बारहव0 म0 हो, तो भी मृBयु !- , ऐसा जानना चािहये और ज'मलTने5
वषलTनेश यिद अOटम थान म0 गत ह6, - &N !- !" #
अटम भाव िथत समत ह' का भावफल 
च!2ो'ट 
: खलखेटयु त: पपा;च त( मृिततु.यफलं च िव0ात् ।
सोVया: *ववातुवशतो bजमथहािन मानEयं       sच 
भाषाथ  पापयतु च'Rमा अOटम म0 हो तो मरण करता है । पाप<ह अOटम म0 हो तो मरण समान
कOट होता है और शभु <ह अOटम म0 हो, तो अपने धातवु श िजस <ह के जो धातु हc, C & V  -
!- !", B((5, स%मान का नाश होता है । जहॉ यिद शभु <ह से इBथ5 !-, - 5 !- !" #
3.5 ! (9) #% " 
$&दपे ि(नवगे Pूरायु ते बलाि!वते ।
गुणावह*तदा मागि_रं कायR ि*थरं तत: 
भाषाथ ) यिद मगं ल वषqश होकर 7,^ थान म0 हो, पाप<ह6 से यु त ( !-,  !-, तो माग
चलना शभु द लाभजनक होता है, और कोई भी काय अिधक समय तक िथर रहता है ।
ि(धम*थो&द : सूय: कVबल ू ी मागसौjय
: 
अ!येषणयानं *या:स चे!ना6"  
भाषाथ ) वषqश सयू  7,^ था( म0 रहकर यिद क%ब
ू $-  !-, तो माग म0 सुख लाभ को देता
है । यिद पच
ं ािधकाWरय6 म0 वह अिधकारी नहP होता है तो अ'य प>
ु ष के भेजने पर परदेश कN याा
 !" # s  &W( !$ #
शुPे&दपे ि(नवगे मागd सौjयं  " 
अ*ते   : सौVये देवया(ा तथािवधे ।।

उराख ड मु त िवविवालय 149


वष   BAJY- 301
भाषाथ ) वषqश श: ु यिद 7,^ थान म0 हो, तो माग म0 सख
ु होता है । यिद वषqश श:
ु व:N हो, $
अतं  !-, तो मागगमन ठीक नहP होता है । यिद बधु वषqश तथा बलवान भी होकर 7,^ थान म0
!-, तो देव तीथ स%बि'धनी याा होती है ।
Pूरािदते कुयानं *याnुरावेवं िविच!त  
इ:थशाले ल3नधमप:योया(ा*:य(. 
भाषाथ ) यिद वैसे बधु वषqश होकर पाप से पीिडत हो, तो अशभु याा होती है । इस कार यिद
वृहपित बली होकर वषqश भी होकर 7,^ थान म0 गत हो, पाप से यतु uOट नहP हो, तो धमयाा
होती है । यिद दबु ल वषqश ग>
ु पाप से पीिडत होकर 7,^ थान म0 हो तो कुयाा होती है और सभी
योग6 म0 लTने5 (&5 को इBथ5 !- !-, तो आकिमक याा होती है ।
ल3नेशो धमपं य\छन् *वं महि_ि!तता@व
: 
एवं ल3ना&दपोयIगे मुथहांगपयोरिप ।।
भाषाथ  लTने5 $1 (&5 - J@(  1 !-, अथात् कालांश के अ'द !-, तो िचि'तत
मागगमन होता !", अथात् राता म0 समया उBप'न होती है एवं यिद लTनेश वषqश को इBथ5 !-
हो या मथु हेश वषलTनेश को इBथ5 !- !-, तो माग म0 िच'ता !- !" #
गुb*थाने कुजे धमd स0ा(ा भृ:यिव5दा ।
*थाने ल3नपो भौमो h'ट: स0ानसौjय
: 
भाषाथ  ज'मकािलक वृहपित िजस रािश म0 हो, उस रािश म0 यिद वष काल म0 मगं ल हो और
वषलTन से नवम थान म0 हो, तो नौकर और धन िमलाने वाली याा होती है । यिद लTने5 &P 
बधु के थान म0 अथात् ज'म कु डली म0 िजस रािश म0 बधु हो, उस रािश म0 होकर शभु <ह से uOट 
!-, तो अnछे सख ु को देने वाली याा होती है ।
*व*थानगो वा बलवान ल3नदशf सुयानद:
ज!मािधकारी ो म!द*थाने Pूरयुतो यदा ।
प!था cरपोझकटकाnुbर@वे!दु# ":
धमd शिननािधकारी प!था . 
 
भाषाथ - यिद बलवान मंगल ज'म तथा वष काल म0 भी अपने रािश म0 हो, लTन - 1R !-,
वषलTन से नवम0 थान म0 हो, तो अnछी याा होती है । वैसे बधु यिद ज'मकाल म0 अिधकारी होकर
वषकाल म0 शिन के थान म0 हो, @@$ !-, तो जातक शु के कलह से >ठकर पददेश याा करता
है और यिद च'Rमा या वृहपित ज'मकािलक शिन के रािश म0 हो, नवम0 थान म0 हो तो ल%बी $ा

उराख ड मु त िवविवालय 150


वष   BAJY- 301
होती है । यिद अिधकार रिहत शिन नवम थान म0 हो, तो अशभु याा होती है ।
इ:थं गुरौ दूरया(ा नृपसंग*त"  : 
 &दपे न'टबले *वजना]ूरतो गित: 
भाषाथ  इस कार यिद अिधकार रिहत वृहपित नवम थान म0 िथत हो, तो दरू देश कN याा
होती है । वहॉं राजा से िमलन उस से लाभ ितOठा होती है । ऐसे ही यिद मगं ल वषqश होकर
हीनबली और नवम थान म0 िथत हो तो अपने पWरजन को छोड़कर दरू देश जाना पड़ता है ।
0ूनेि!थहा धम इ!दो 7 @वा 
: 
वषdशो बलवा!पा  : के !2े 
+ : संjये सेनाप:ये  
 
>. 7    # ऽकाि!नगते  : 
परसै!योपcर गितजय: jया &:
जीवा!नवमगे भौमे शुभा या(ा नृणां भवेत् ।।
भाषाथ ) यिद मथु हा स8तम थान म0 हो, और सबल च'Rमा नवम थान म0 हो तो परदेश जाना
होता है या वषqश कोई भी <ह बली हो, पाप से यतु uOट नहP हो और के 'R :,\,=,:; म0 हो तथा
पच
ं ािधकाWरय6 म0 िकसी भी अिधकार म0 हो तो िकसी काम काज के अिधकार म0 गमन हो । या य= ु
म0 या सेना@यM के पद पर जाना पड़े । इस कार बधु और मगं ल ये बलवान ह6 , ग> ु से यु त !-,
सयू  से दरू अथात् अत नहP हो, तो शसु ेना के आ:मण के िलये जाना पड़े और यश सख ु देने
वाला जय हो एवं यिद वृहपित से नवम थान म0 मगं ल हो, तो मनOु य6 कN याा अnछी !- !" #
अथ नवम भावथ समत (  
  "
#:  #:. & &ितमुदा रिवर( चेत् ।
शभु खगा धनधमिवविृ Gदा: & &िप शभ ु े :य  : 
भावाथ  पाप<ह नवम थान म0 सहोदर को भय, पशओ ु ं कN पीड़ा, होती है । यिद वहॉ रिव नवम म0
ह6, तो अBय'त हष को देते हc । यिद शभु <ह नवम थान म0 ह6, तो धन धम को बढ़ाते हc, D
आचाय कहते है िक नवम म0 पाप रहने से शभु ही होता है ।
3.6   
 शा म0 समत भावफल षोडश योग6 के आधार पर किथत है । वषकु डली म0
स8तम से लेकर नवम भाव तक िजतनी भी <ह6 कN पWरिथितयॉ बनती है, C AB @ C(

उराख ड मु त िवविवालय 151


वष   BAJY- 301
भावफल6 का िववेचन िकया गया है । इस इकाई के अ@ययन के पचात् आप स8त&   (&
   व फल िवचार6 का अ@ययन स%यक् >प से कर सके ग0 । तािजक कN पर%परा म0
वािषक फलादेश आिद का सम'वय है । तािजक शा कN िवशेष जानकारी हेतु पाठक6 को तािजक
के मल
ू <'थ का भी अ@य$( ( !$ #
3.7 पारभािषक शदा
7 # ) (
; ) वृहप
 ) सहम का वा&
अ&द ) वष
सत ) स8तम भाव का वा&
& ) A5

 ) 15 (
यु त )  I
  ) &P 
अ*तं ) <ह का उसके नीच थान म0 जाना
"
 ) !-1
": ) -!
  ) पाप<ह6 के साथ होना
*व*था ) अपना था(
6 ) 
मागगमन ) माग म0 जाना
3.8 बोध  न के उ6र
1.
2. E
3.
4. R
5. R
उराख ड मु त िवविवालय 152
वष   BAJY- 301
3.9 सदभ थ
1. तािजक नीलक ठी
3.10 िनबधामक  न
1. स8तम भाव फल िवचार को पOट कNिजये ।
2. तािजकोत अOटम भाव फल िवचार का वणन कNिजये ।
3. नवम भाव फल िवचार का उ[लेख कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 153


वष   BAJY- 301
  4 10 - 12 

इकाई क :परे खा
4.1 ता 
4.2 उे

4.3 10-12 $ 
4.4 बोध 

4.5 

4.6 पारभािषक शदा &
4.7 बोध 
न के उ&त

4.8 स!दभ "!थ !' &


4.9 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 154


वष   BAJY- 301
4.1 ता
तु  000 301 के तृतीय ख ड के चतथु  इकाई से स%बि'धत है । इस
इकाई के अ'तगत तािजक शा  J(  10-12 भावफल िवचार6 का उ[लेR $  ! !"
। इससे पवू  कN इकाईय6 म0 आपने 7 -9 भावफल का 7ान ा8त कर िलया है । यहॉं इस इकाई म0
A@ 15& (10) भाव से लेकर dादश (12) भाव तक के फल का अ@ययन करे ग0 ।
10-12 से ताBपय ज'मकु ड  15&   र dादश भाव तक से है । इन भाव6 म0 िथत
<ह6 का फल तािजक शा के अनसु ार िकस कार होगा, "  !-  %
इस इकाई म0 आप 10-12 भावफल िवचार का स%यक् अ@ययन ा8त करे ग0 ।
4.2 उे य
 इकाई के अ@ययन के पचात् आप जान पायेग0 िक )
1.  या !" #
2. तािजकोत 10-12 िथत भावफल या !" #
3. दशम एवं dादश था( U( !" #
4. तािजक शाोत 10-12 िथत <ह6 के फल या !- !"#
5. वषकु डली म0 10-12 िथत भावफल िवचार िकस कार करना चािहये ।
4.3 10-12 #% "
J तक पाठक6 ने थम भाव से लेकर नवम भाव तक के भावफल िवचार का 7ान कर िलया है,
अब आप इस इकाई म0 दशम (10)  (12) तक के भावफल का 7ान ा8त करे ग0 । आइये दशम
भाव से आर%भ  !" )
7 &दपतौ ख*थे राAयाथसख ु कzतय: 
*थाना!तरािlर!यि*म!के !2े गृहसुखात : 
भाषाथ ) ( वषqश दशम थान म0 हो तो राज लाभ, B( , $5   !- !", $
सबल वषqश दशम को छोड़कर और के 'R था( (:,\,=,:;) म0 हो तो दसू रे था(   D
गृह के सख
ु 6 कN ाि| हो !" #
इ:थ बला रिवभू*थ: पूवािजतपदािlकृत् ।
>
ि*म!सjयं *या!नृपामा:यगणो5मै: 
भाषाथ ) इस कार बलवान सयू  वषqश होकर चौथे थान म0 हो तो पवू  के उपािजत थान कN ाि|
उराख ड मु त िवविवालय 155
वष   BAJY- 301
!- !", या बली वषqश सयू  एकादश थान म0 हो, तो राजा से अथवा उनके मि'य6 से िमता होती
!" #
रिव*थानेि!थहा ल3ने खे वा राAयािlसौjय
 
#(क : पापसयु तो भूपा!ध. 
 
भाषाथ ) यिद मथु हा रिवयु त् !-, या लTन म0 दशम म0 हो तो रायलाभ सख
ु को देती है । यिद सयू 
पापयु त !- ( (  ) रािश म0 हो, - राजा से ब'ध(, ाणद ड & !" । िजस का ज'म
काितक म0 है उसी के िलये यह योग हो सकता है । रिव के उnच को फिलत म0 मेषरािश म0 ही िथर
&( !" #
. रिवबलो ख*थ: *थानलाभो नृपाuय: 
*थाना!तरािधकारािlcर!दु
 7 # 
भाषाथ ) सयू  बली होकर िसंहरािश म0 वषलTन से दशम थान म0 हो, था(    
आiय होता है , या बली च'R&, ज'मकािलक मगं ल के आिiत रािश म0 हो, तो दसू रे था( 
 !- !" #
खेशल3नेशवषdशे:थशालो राAय
 : 
वषdशे राAयकd :थ  6 : 
भाषाथ ) 15&5, लTने5, वषqश इन सब <ह6 म0 यिद इBथ5 !- !-, तो राय 1$ !- !" #
अथवा वषqश राय सहम म0 हो सयू  से इBथ5 $-  !-, - &! !- !" #
शिन*था  : प;य!मुथहां पापकमत: 
नृपभीितं िव5नाशं द0ा]शमगो यिद ।।
भाषाथ - यिद मगं ल ज'मकािलक शिन के रािश म0 रहकर वषलTन से दशम थान म0 हो और मथु हा
- 1R, तो पापकम, 1 , eय, -, डकै ती करने से राजद ड D B((5 !- !" #
s  !( !$ #
ई]श ि(नव*थेि*म!द3धन'ट9.( : 
म!दो&द "िधकारी ि(धमगो धमवृिGद: 
भाषाथ ) ऐसे ही ज'मकािलक शिन के रािश म0 िथत मगं ल 7,^ थान म0 हो अतंगत पापयतु uOट
!-, !( !-, तो पाप कN वृि= होती है, या शिन पंचािधकाWरय6 म0 अिधकारी होकर वषqश हो,
7,^ थान म0 हो, तो धम कN वृि= होती है ।
ति*म!द3धे िवन'टे च पापकGमिन!द: 

उराख ड मु त िवविवालय 156


वष   BAJY- 301
ई]शे] फलं सूयd गुरािव:थं नयाथभाक् ।।
भाषाथ - यिद वषqश शिन अत !-, िनबल हो, पापयु त !-, -  @@ (  I
नाितक होता है । यिद वैसे Mीणबल पापयतु uOट होकर सयू  वषqश हो, - @!  &( !-
अथात् पाप करने वाला, धम िन'दक होता है । यिद वृहप s !-, (  B( - @ !", s
  ( ! !" #
त(*था मुथहा पुयागमं पापं खलाuयात् ।
सूतौ खेशे रवौ ख*थे वषd मुथिशलं यिद ।।
ल3नािधपेन राAयािlb ता वीयानुसारत: 
धमकमािधपौ द3धौ धमराAयEयावहौ ।।
अथ ) $1 &I ! 7,^ थान6 म0 हो तो शभु के आiय से प ु य का आगम पाप के आiय से पाप
का आगम होता है । ज'म काल म0 सयू  दशमेश हाकर अथात् ज'मलTन वृिSक हो, वषकाल म0
वषलTन से दशम म0 हो और लTनेश से इBथशाल योग करता हो तो बल के अनसु ार राय  
!- !", और यिद धमqश कमqश ये दोन6 अतंगत ह6, तो धमMय राय(5 !- !" #
अथ दशम भावथ 
 ( : -
" : पशुिव5हा रिवकुजौ OयवसायपराPमौ ।
धनसुखािन परे च धना:मजाविनपसंगसुखािन िवत!व 
 ) दसव0 थान म0 शिन हो, - @5 B( (5 !- !", D , मगं ल दशम थान म0 ह6, -
eयापार उोग को करते हc और शभु <ह यिद दशम म0 हो तो B(R  , पु सख
ु , &  R 
करते हc ।
 .
 (11) (  : -
अ&दपेेथगे लाभो वािणAया\छुभh3यु 
सेि!थहेि*मँ.ल3न : @ & 
 ) वषqश होकर बधु दसू रे थान म0 हो, शभु <ह से यतु uOट !-, तो eया@   !- !" 
मथु हा यतु बधु वषqश हो और लTन म0 िथत हो तो पढ़ने िलखने से लाभ होता है ।
अि*म!ष'ठा'टा!:यगते सPूरे नीचकमकृत् ।
Pूरे`    "*तं  &
: 
 ) वषqश बधु यिद 8,],:[ इन थान6 म0 हो पाप से यतु हो, - Y-F &  !", D "
ही वषqश बधु पाप<ह से uOट हो तो लाभ नहP होता है, और वैसे ही वषqश बधु यिद अतं  !- -
उराख ड मु त िवविवालय 157
वष   BAJY- 301
िलखने पढ़ने से लाभ नहP होता है ।
#&दपे Pूरहते ल3ने हािनभयं नृपात् ।
अि*म!निधकृते 0नू े OयवहाराGनात : 
 ) वृहपित वषqश होकर पाप<ह6 से पीिडत हो और वषलTन म0 हो तो धन कN हािन होती है,
राजा से भय होता है और यिद ऐसा वृहपित पच ं ािधकाWरय6 म0 अिधकारी हो स8तम म0 हो तो खरीद
) िव:N से धन लाभ होता है ।
ल3नायेशे:थशाले *या.लाभ: *व$ 
सवdिप लाभ िव5ा':यै सबला िनबला न तु ।।
 ) लTनेश और लाभेश को इBथ5 !- !-, तो धन लाभ अपने पWरजन6 म0 iेOठ !- !"
#  :: थान म0 बलवान् सभी शभु <ह या बलवान् सब पाप<ह हो, - B(  $ !
होता है और दबु ल शभु <ह या पाप<ह लाभ (::) म0 हो तो हािन के िलये होते है ।
सवीयI : समुथहो ल3नेथसहमे शुभा: 
तदा िनखात2Oय*य : पापhशा न तु ।।
 ) बली बधु <ह मथु हा से यु त होकर यिद लTन म0 हो, और शभु <ह सभी अथसहम म0 ह6, -
गाड़ी ह9ई दौलत िमलती है । यिद उन योगकारक <ह6 के उपर पाप<ह6 कN uिट पड़ती है, - 
नहP होता है ।
अथ एकादश भाव िथत सकल भावफल िवचार: -
लाभे धनोपचयसौjय "िभवृिG सि!म(संगबलपुिiकरा;च सवd ।
Pूरा बलेन रिहता: सुतिव5बुिGनाशं शुभा*तु तनुतां *वफल*य कुयु: 
भाषाथ  सकल पाप<ह या शभु <ह लाभ थान म0 ह6, तो धनवृि=, यशोवृि=, अnछे िम6 के संग,
बलपिु U को करते हc । बलहीन पाप<ह यिद लाभ थान म0 ह6, पु नाश, B((5, बिु =नाश को करते
हc और बलहीन शभु <ह अपने शभु फल के भाव को कम करते है ।
अथ %ादश भावफल िवचार )
ल3ना&दपौ हतबलौ Oययषमृित*थौ य2ािशगौ तदनुसाcर फलं िविच!:य 
ष'ठे &द  6
 थ िवन'टवीयd h'ट & ): Eतु ]शा ि7पदEस*ं थे 
भृ:यEित*तुरगहा चतुरंि+भ*थे!यि*म!नपीदमुिदतं फलम&द 
ख*थे      
: *या7याकुल:वमशुभोपहते Oय   
भाषाथ ) लTनेश और वषqश हीन बली हो 8,],:[ थान6 म0 गया हो, तो जैसे रािश म0 गत ह6,

उराख ड मु त िवविवालय 158


वष   BAJY- 301
उसी के अनसु ार फल समझना चािहये । जैसे उत थान म0 चतOु प15 @, तो चौपाइय6 का नाश,
ऐस िdपदरािश म0 हो, तो आिiत मनOु य  (5, जलचर रािश उत थान म0 हो, -  
का नाश होता है । इस कार भावफल समझना चािहये । यिद नOटबल वषqश श: ु षOठथान चतOु प1
रािश म0 हो और पाप<ह6 से Mतु :,\,=,:; uिU से देखा जाता हो, - E-  (5 !- !", s
उत योग म0 छठ0 थान म0 और रािशय6 का भी फल सोच( !$ # 5( $ &P  $1 15&
थान म0 हो, तो घोड़6 का नाश होता है । वहॉ यिद पाप<ह6 से हत (यतु uOट ) 5(, कुज dादश
थान म0 ह6, तो घोड़ा आिदय6 कN िख'नता eया !- !" #
बोध न 
1. $1 बलवान वषqश दशम थान म0 िथत हो तो )
. B(   !- !"
R. धन कN हािन होती है
. B( !- !" #
E. धन कN पिू त होती है ।
2. यिद सयू  पापयु त होकर तलु ा रािश म0 गये हो तो )
. राजा से स%मा( & !" #
R. राजा से ाणद ड & !" #
.   B(  & !" #
E. राजा का िय होता है ।
3. 15&5, लTने5, वषqश इन सभी <ह6 म0 यिद इBथ5 !- !- - )
. राय नOट !- !" #
R. राय1$ !- !" #
. राय म0 अशाि'त फै लती है ।
E. कोई नहP
4. $1 वषqश शिन अत !-, िनबल हो, पापयु त !- - )
.  नाितक !- !" #
R.  आितक !- !" #
.  1 !- !" #
E.  1V  !- !" #
उराख ड मु त िवविवालय 159
वष   BAJY- 301
5. दसव0 थान म0 शिन हो तो )
. @5 B((5 !- !" #
R. पशु धन वृि= करने वाला होता है ।
. दोन6
E. कोई नहP
ष'ठे रवौ खलहते चतुरंि+भ*थे भृ:यै: समं किलरथा'ठमcर:* 
च!2े &दपे बलयुते cरपुcर:फसं*थे भूवासन2ुमजलाशयिनिमित;च 
भाषाथ - यिद सयू  वषqश होकर वषलTन से छठ0 थान म0 हो और पाप6 से यतु uOट ह6 चतOु प1 (&H,
OH, P!, धनु के उराध, मकर के पवू ाध ) रािशय6 म0 हो अथवा ],:[ थान म0 हो, - नौकरी म0
W  !- !", या च'Rमा बलयु त होकर वषqश हो, छठे बारहव0 थान म0 हो, नयी जमीन म0 बसे,
@  , बावड़ी आिद का िनमाण करता है । ऐसा भावफल समझना चािहये ।
*वEI\चगे कमिण सूयपु(े नैbAयमथािधगम;च # 
सयू d नपृ ा7ाहZबला:कुथI बध ु े िभष3AयौितषकाOयिश.पै: 
भाषाथ ) शिन वषqश होकर अपने रािश मकर, कु%भ म0 या उnच म0 ही और वषलTन से दशम म0 ह6,
तो आरोTय और धनागम होता है । ऐसे ही वृहपित वषqश होकर अपने रािश (B(, &( ) उnच कक
म0 हो, तो नै>य अथागम यही फल होता है । सयू  यिद वषqश होकर िसंह म0 मेष म0 हो, - D
वषलTन से दशम म0 हो, तो राजा से धनागम होता है और मंगल वषqश होकर मेष या वृिSक रािश म0
ह6 और दशम थान म0 ह6, तो अपने बाह9बल से धनागम हो और यिद बधु वषqश होकर िमथनु क'या
म0 हो, और वषलTन से दशम थान म0 पड़े तो वैक योH, किवता और िश[प  B( & !-
!"#
म!दे&दपे गतबले नैरा;ये दौ*4य
 
सूयd&दपे रािश*थाने म!दे&दजनुषोहते ।।
सवकमसु वक.यं वPे *ते (   : 
कमकमdशसहमनाथा: शिनयुतेिEत:  
भाषाथ ) हीन बली शिन वषqश होकर दशमथान म0 हो, तो बरु ी िथित होती है । यिद हीनबली सयू 
वषqश होकर ज'मकु डली के च'Rरािश म0 हो और शिन ज'मकाल और वषकाल म0 भी पाप<ह6 से
@> !-, तो सभी कमb म0 अप…ता होती है, अथवा शिन<ह व:N हो, या अत !- -  " !
फल कहना चािहये । यिद दशम भाव दशम भावेश तथा कमसहम ये सभी शिन से यतु uOट !- -

उराख ड मु त िवविवालय 160


वष   BAJY- 301
" !  !( !$ #
षड'टOय &देशे कमdशे च बलोिAझते ।
सतू ाव&दे च न शभ ु ं त(ा&दे 6   
भाषाथ ) वषqश वषलTन  8,],:[ इन थान6 म0 हो, ज'मकाल और वषकाल म0 भी बलहीन हो,
तो शभु नहP होता है, अथवा वष काल म0 अOटमेश िनबल हो, D 8,],:[ इन थान6 म0 हो, -
शभु नहP होता है ।
य( भावे शुभफलो दु'टो वा ज!मिन Bह: 
वषd तTावग*ताhक् त:फलं य\छित 1ुवम् ।।
भाषाथ ) ज'मकाल म0 अnछा $   / को देने वाला <ह िजस थान म0 हो उसी थान म0 यिद
वषकाल म0 हो तो िनच वह अnछा या बरु ा फल अवय 1 !" #
ये ज!मिन *यु: सबला िववीया वषd शुभं ा चरमे :विन'ट 
द0ुिवलोमं िवपरीततायां तु.यं फलं *bादुभय( साVये 
भाषाथ ) जो <ह ज'मकाल म0 सबल ह6, िक'तु वषकाल म0 दबु ल ह6 तो पहले शभु फल, @Y
अशभु फल को देते हc । जो ज'मकाल म0 दबु ल ह6 वही वषकाल म0 यिद सबल ह6 तो पहले अशभु
फल पीछे शभु फल देते हc । यिद ज'मकाल और वष काल म0 भी सबल ही ह6, - 5  !
दोन6 समय म0 देते हc । यिद दोन6 समय म0 िनबल ही ह6, तो दोन6 समय म0 भी अशभु ही देते है ।
 Iययभावथसकलहफलं िवचार: -
पापा Oयये ने(bजं िववादं हािन धनानां नृपत*क
: 
सौVया Oययं सद्Oयवहारमागd कुयु: शिनहष िववृिGम( ।।
भाषाथ ) यिद eययभाव म0 पाप<ह ह6 तो नेरोग, 1, राजा से चोर से धन6 कN हािन करते हc
और eययभाव म0 यिद शभु <ह ह6 तो अnछे कायh म0 eयय होता है । शिन eययभाव म0 रह( 
हषविृ = करते हc ।
4.4   
 शा म0 समत भावफल षोडश योग6 के आधार पर किथत है । वषकु डली म0
दशम से लेकर dादश भाव तक िजतनी भी <ह6 कN पWरिथितयॉ बनती है, C AB @ C(
भावफल6 का िववेचन िकया गया है ।   के अ@ययन के पचात् आप दशम से लेकर dादश
भाव तक के भाव फल िवचार6 का अ@ययन स%यक् >प से कर सके ग0 । तािजक कN पर%परा म0

उराख ड मु त िवविवालय 161


वष   BAJY- 301
वािषक फलादेश आिद का सम'वय है । तािजक शा कN िवशेष जानकारी हेतु पाठक6 को तािजक
के मल
ू <'थ का भी अ@य$( ( !$ #
4.5 पारभािषक शदा
7 )  !
उपािजत ) उBप'न (
राAयाथ ) राय  $
के !2 ) :,\,=,:;
#("क : ) सयू  नीच रािश का हो
नृपाuय: ) राजा का आिiत
राAय
  ) राय - 1( 
इ:थ ) षोडश योग म0 एक योग
पापकमत: ) पाप कम से
शिन*था ) शिन थान म0
ि(कोण ) 9,^
पुया. ) प ु य  A &
खलाuयात् ) पाप के आiय से
*व*था ) अपने थान म0
6 ) 
मागगमन ) माग म0 जाना
4.6 बोध  न के उ6र
1. 
2. R
3. R
4. 
5. 
4.8 सदभ थ
उराख ड मु त िवविवालय 162
वष   BAJY- 301
1. तािजक नीलक ठी
4.9 िनबधामक  न
1. भाव फल िवचार को पOट कNिजये ।
2. 15& P 15 भाव फल िवचार का वणन कNिजये ।
3. dादश भाव फल िवचार का उ[लेख कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 163


वष   BAJY- 301
*+,  5 पंचवग8 बल िनण य

इकाई क :परे खा
5.1 ता 
5.2 उे

5.3 पंचवग9 बल िनण य
बोध 

5.4 

5.5 पारभािषक शदा &
5.6 बोध 
न के उ&त

5.7 स!दभ "!थ !' &


5.8 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 164


वष   BAJY- 301
5.1 ता
तु  000 301 कN तृतीय ख ड  @P& (5) इकाई से स%बि'धत है ।
इस इकाई के अ'तगत तािजक शा के अनसु ार पंचवग] बल िनणय का उ[लेR $  ! !" #
इससे पवू  कN इकाईय6 म0 आपने <ह6 के समत भावफल िवचार का 7ान ा8त  $ !" # $!ZP
इस इकाई म0 आप पंचवग]बल िनणय का अ@य$न करे ग0 ।
पंचवग]बल िनणय का ताBपय <ह6 के बलाबल से है । <ह6 के पंचवग]बल तािजक शा 
अनसु ार िकस कार होगा, "  !-  %
इस इकाई म0 आप पंचवग] बल िनणय िवचार का स%यक् अ@ययन ा8त करे ग0 ।
5.2 उे य
 इकाई के अ@ययन के पचात् आप जान पायेग0 िक )
1. पंचवग] बल या !" #
2. पंचवग] बल िनणय िकस कार िकया जाता है ।
3. तािजक शा के अनसु ार पंचवग] बल या !" #
4. तािजक शाोत <ह6 के पंचवग] बल का िनणय िकस कार होता है।
5. वषकु डली म0 पच
ं वग] बल का या अिभाय है ।
5.3 पंचवग8 बल िनण य
@T N A@( J  भाव फल िवचार के अ'तगत थम भाव से लेकर dादश भाव पय'त
तक का अ@य$( $, अब आप यहॉ पंचवग] बल का अ@ययन कNिजये । तािजककार ने
पचं वग]य बल साधनाथ कहा है िक )
ि(श ं :*वमे िवशं ितरा:मतुंगे ह]ेEच!2ा दशकं ]ृकाणे ।
मुस.ल sच : िद'टा ."  
): क.या: 
अ!व : - व = ( !O , िंशत् ) िंशBसंDय (7;) JP5 &/ । आBमP  = वोnचे
िथतय <हय , 5 P : = िवश ं Bयं5 P, ह~े = वह~ायां , अMच'Rा: = @P 15, J5 P  &/
। ~ृकाणे = वuकाणे , 15P = दशभागा बलम् । मसु [ल! = व(P5, @P: - @P&
अश ं ा िदOटा: उता: # HP (P 1": = चतथु ाEश:ै ,5
P -@: - िवश
ं Bयास'न 
x/: क[8या: #
भाषाथ ) J@( 5 ( !O ) म0 <ह होने से तीस अश ं बलवान होता है । अपने उnच म0 वीस अश ं
उराख ड मु त िवविवालय 165
वष   BAJY- 301
, अपनी ह~ा म0 प'R! J5 P , अपने ~क
ृ ाण म0 दस अशं , अपने नवमांश म0 पॉच अश
ं बल होता
है। िकसी <ह का गृह ) उnच ह~ा, ~क
ृ ाण, नवमांश के बल6 का योग कर चार से भाग देने पर, ा8त
लिHध िवश ं ोपक बल होगा ।
पटाथ 
व !O  = 7; JP5
वोnचे = [; J5 P
वह~ायां = :9 JP5
व~काणे = :; JP5
व(P5 = 9 J5
P
" = BC +.
अ पंचवग]य बलयोगाx/(&BBवाBसवqषां <हाणां बलसंDया अक
ं लाघवाथE चतिु भभता:
O  : । पOट& #
ह' के उनके वथान से िभन थ ,   
*व*वािधकरो तबलं सु>दभे पादोनमधR समभेcरभेि+ं: 
एवं समानीय बलं तदै ये वेदोGृते हीनबल: ": 
भाषाथ  J@( !O , ह~ा, RेOकाN, नवमांश म0 जो - -  ! $ !", वह सब िम के गृह,
…द, RेOकाN, नवमांश म0 पौने होकर होता है । सम <ह के गृह आिद म0 आधा होता है । शु के गृह
आिद म0 चौथाई होता है । इस कार सभी थान6 के बल ले आकर योग कर चार भाग देने से बल
(5
P -@ ) !- !" # ! $1 @Z से थोड़ा हो तो <ह बलहीन होता है ।
व !O  7;# .... वह~ायां :9 # .... व~काणे :;# .... व(5P  9 # ......
िमगृहे [[#7; ... िमह~े ::#:9 ... िम ~काणे =#7; ... िम नवांशे 7#\9....
!O  :9# ...... समह~े =#7; ..... सम ~काणे 9 # ... &(P5 [#7; ..
शगु हृ े =#7; .... शहु ~े 7#\9 .... शु ~के [ #\9 ... शनु वांशे :#:9 ....

व+", -./... उ:चे 0. / ..... हे 12 काणे  , 2


1.

%
 मD िमE शEु िवचार 
उराख ड मु त िवविवालय 166
वष   BAJY- 301
िम(ं ि(कोणि(भवि*थत;चेद्7यय'टcर'फे षु समो Bह: *या 
के !2ेषु श(ु: किथतो मुनी!2ैवषािद वेशे फल िनणयाय ।।
भाषाथ - जैसे जातक6 म0 िम सम शु का िनणय िलखा है । वैसे तािजक <'थ6 म0 नहP, $!Z -
िजस <ह को जो <ह िम uिU से देखता है, वह िम है, जो शु uिU से देखता हो, वह शु होता है,
इन दोन6 से िभ'न <ह सम होते हc । वहॉ 7,9,^,:: थान6 म0 वमान <ह िम uिU से देखता है,
इसिलये िम होता है, :,\,=,:; ( थान6 म0 िथत <ह शु uिU से देखता है, इस िलये शु होते
हc । इनसे िभ'न [,8,],:[ थान6 म0 िथत <ह सम होते हc । यह िनणय के वल तािजक <'थ म0
वषqश िनणयाथ तथा फल िवचाराथ है । नीचे देिखये वषकु ड -, यहॉ पहले था(5  िम
शु च: है )
वषा= चPम्

2 -
3 4 # .5 0
6
, . .' 1
7 1. .+ . 10
! 8 11 .5

 
िम(*था 7 9 ^ ::
सम*था [ 8 ] :[
श(ु*था : \ = :;

अथ तािजकमतेन व?मानोदाहरणे िमEसमशEच


ु ;म् 

उराख ड मु त िवविवालय 167


वष   BAJY- 301
Bहा: सूय: च!2:  : 7 : गुb: शुP: :
िम(ािण P. .V O. 5. . &.P 5. P. . .
: &.P . 5. &.P 5. .V O. 5. .V O. 5. &.P 5. . .V O. &.P . 5.
.P 5. .P
श(व: O. 5. . 5. P. .V 5. &.P .V O.

वषकु डली म0 यहॉ सयू  के साथ वृहप, शिन हc । ये शु ह9ये । दसू रे थान म0 मगं ल, श: ु ये सम
ह9ये । नवम म0 , च'Rमा हc वह िम ह9ये । बारहव0 थान म0 बधु है, वह सम ह9ये । अथात् सयू  को
&( $!Z   च'Rमा ही िम ह9ये, D B , &P , श: ु सम ह9ये और ग> ु , शिन शु
ह9ये । ऐसे ही च'R&  \ चौथे म0 बधु शु । पंचम म0 सयू , ग>
ु , 5(, िम ह9ये । षOठ म0 कुज, श:ु
सम ह9ये । मगं ल के साथ : थान म0 श: ु है, यह श,ु अOटम म0 च'R& &, एकादश म0 बधु िम,
बारहव0 म0 रिव, ग>ु सम ह9ये । ऐसे ही और <ह6 के भी िम सम शु समझने चािहये । यहॉ जो - -
<ह एक थान म0 साथ िथत हc । उनके िम , सम एक ही समान होग0 । शु म0 भी और <ह यथावत्
रहेग0 । के वल िम सम शु से कौन <ह िम के या सम के या शु के थान होरा आिद म0 है, $!
 ( !$ #
बोध  न -
1. J@( रािश म0 <ह िथत होने से िकतना बलवान होता है ।
. 20 J5 P R. 30 J5 P . 40 J5 P E. 50 J5 P
2. <ह 5 अश ं बलवान िकस पWरिथित म0 होता है ।
. अपने गृह म0 ख. अपने RेOकाण म0 ग. अपने नवमांश म0 घ. कोई नहP
3. सम <ह के गृह आिद म0 होता है )
. AB R. पणू  ग. न आधा न पणू  घ. JBV 
4. िन%निलिखत म0 सयू  का शु है )
. &P  R. च'R& . 5( E. श: ु
5. के 'Rेषु का या अथ है )
. के 'R R. के 'R D H . के 'R म0 घ. कोई नहP
ह' के चतुवगे.वर च; िवचार 

उराख ड मु त िवविवालय 168


वष   BAJY- 301
Bहा: सूय: च!2: $: 7 : गुb: शुP: :
6: &.P O. 5. O. &.P 5. &P .
ह]ेशा: . O. 5. &.P O. &.P 5.
]काणेशा: .V . 5. &.P &.P 5. .V
.: P. 5. P. 5. &.P . P.
यथा सयू  ;#:[#9=#9; हc । यहॉ मेष रािश म0 होने से, सयू  का गृहशे मगं ल ह9ये । मेष के :[ J5 P
-  :7 व0 अश ं के 9=  - $ !", $ &H  :7 व0 अंश बधु कN ह~ा म0 पड़ा,
J: सयू  के ह~ेश बधु ह9ये, और मेष के तेरह अश
ं दसू रा RेOकाण ह9आ, उसका वामी सूय वयं ह9ये
D :7 अश ं चतथु  नवमांश ख ड म0 पड़ा मेष म0 मेष ही से नवांश गणना होती है, $ &H 
चतथु  कक रािश, उसका वामी च'Rमा नवांशेश मसु लŠहेश ह9ये । ऐसे और <ह6 के भी िवचार कर
उ@विलिखत च: के कोOठ से भर0 ।
अब िवचार करना है िक कौन <ह िमMेािद म0 पड़ा इBया1 # J: यहॉ सयू  मगं ल के गृह म0 पड़ा,
&P  C(- & !", J: गृहश े सम ह9आ । सयू  का ह~श बधु हc, वह उनका सम हc, J: सयू  का
ह~ेश भी सम ही ह9आ । सयू  का RेOकाणेश सयू  ही अत: वRेOकाण म0 सयू  पड़े । सयू  का नवमाश ं ेश
च'Rमा हc, वह सयू  का िम हc, J: सयू  का नवांशश
े िम ह9आ । ऐसे ही और <ह6 के िवचार कर
अधोिलिखत च: िलिखये )
Bहा: सूय: च!2: $: 7 : गुb: शुP: :
गृहेशसVब!ध: & िम शु & & व &
ह]ेश स0ं & िम & िम ( शु &
]काणेश सं0 ( शु & िम & & शु
. .0 िम & & & & िम िम

J  िश ं त् वभे िवश


ं ितराBमx /  इBया1 S पवू  लोक के अनसु ार ववािधकारोतP
सŠु दभे इBयािद लो  !$  $!Z & !O    7; / [ = :9 । िमनवमाश ं का बल
7#\9 इतने ह9ये । ऐसे ही सभी <ह6 के िवचार कर बलबोधक च: िलखना, यहॉ चतवु ग  स%ब'धी
बल साधन ह9आ है । उnच  7[ व0 लोक म0 साधन िकया है । वह वहॉ से <हण करना चािहये ।
तब च: ठीक ह9आ, s &W( !$ #
  ) एक <ह के गृह, उnच, ह~ा, RेOकाN , नवमाश ं 6 के बल6 के योग कर सवबल योग:
छठे कोOठ म0 िलखना । उसके बाद योग बल का चतथु ाEश करके चतभु  तबलम् सातव0 कोOठ म0

उराख ड मु त िवविवालय 169


वष   BAJY- 301
िलखना । यही बलबोधक संDया !- !" #
अथ %ादशवगJय बलम् 
Eे(ं होरा[यि&धपsचा=सतव*व=शेशाक भागा:  #: 
िवातOया ल3नस*ं था: शभ ु ानां वगा: uे'ठा: पापवगा*:विन'टा: 
भाषाथ ) !O , !-, O$P5, चतथु ाEश, @P&P5, षOठां5, स8त&P5 , अOट&P5, (&P5,
15&5 P , 155
P , dादशाश ं , इतने लTन आिद भाव6 म0 तथा <ह6 म0 भी समझना चािहये । यहॉ
शभु <ह6 के वग शभु होते हc, पाप <ह6 के वग अिनOट बल देते हc । यिद सकल वगqश शभु <ह ही ह6
तो पणू  शभु फल होगा । यिद सकल वगqश अशभु <ह ही ह6 तो पणू  अशभु फल । यिद आधे से
JB शभु वग, तो शभु ािधय, आधे से अिधक पाप<ह वग हो तो अशभु ािधक । बराबर होने से न
- 5 , ( - J5 , सामा'य  1 !" #
नीचे के च: को अवलोकन कNिजये )
पंचवगJयबलबोधक च;म्
हा: सयू : च : : 
 : ग
ु : शु:
:
       

उचबलम्  
 
    

  

हाबलम्      
 
े का       

  
     
 

सवबलयोग: 


  
 


 
  

चतुभत  

   
 
  
 
 :   मय  मय    मय


अथ होरे शतृतीयांशेशचतुथाशेश 
आजे रवी!7ो: सम इ!दुरOयोहIरे गहृ ाधिमते िविच!:ये 
2े काणपा: *वेषुनवEनाथा*तुयाRशपा: *वEजके !2: 
भाषाथ - िवषम रािशय6 म0 पहली होरा सयू  कN, दसू री च'Rमा कN, सम रािशय6 म0 पहली च'R&
कN, दसू री सयू  कN होरा होती है । रािश का आधा अथात् :9 अश
ं कN होरा होती है । रािश के
उराख ड मु त िवविवालय 170
वष   BAJY- 301
िभाग को RेOकाण कहते हc । जैसे हर एक रािशय6 म0 तीस अश ं , C ! 1 ) 1 J5P !-
!", ये RेOकाण कहलाते हc । उसम0 :-:; अश ं तक थम, ::-:[ िdतीय, [:-7;  O$
RेOकाण समझना चािहये । वहॉ िजस रािश म0 िवचार करते हc, उसी का वामी <ह थम RेOकाN5
तथा उस रािश से पंचम रािश के वामी िdतीय RेOकाण का वा& I C 5  (& 5 
वामी तृतीय RेOकाN5 !- !" #

 ) " &H का थम RेOकाN5 &P , िdतीय RेOकाणेश सयू , तृतीय RेOकाN5 B( 55
(ग>ु )होते हc । वृष रािश म0 थम RेOकाN5, OH5 (श: ु ) , िdतीय RेOकाN @ , क'ये5 (B ),
तृतीय RेOकाN5 & 5 (5() होते हc । ऐसे ही और रािशय6 म0 समझना चािह$ #
चतथ ु ाLशेश िवचार  िजस रािश म0 चतथु ाEश िवचार करना हो, उसका वामी थम चतथु ाEशशे ,
उसी रािश के चौथे रािश का वामी िdतीय चतथु ाEशश े , उस रािश से स8तम रािश के वा& O$
चतथु ाEशशे , उस रािश से दशमेश चतथु  चतथु ाEशश
े होते हc ।
) - मेष के थम चतथु ाEशश े मगं ल, िdतीय चतथु ाEशश े च'R&, तृतीय चतथु ाEशश
े श:
ु , चतथु 
चतथु ाEशश े शिन, इस कार सभी रािशय6 म0 समझना चािहये -
: . =#7;
[. :9#;;
7. [[#7;
\. 7;# ;;
अथ पंचमांशेश %ादशांशेश 
ओजEd पच ं मांशेशा कुजाकfAयभागवा: 
समभे Oय:ययाAेया 7ादशांशा: *वभा:*मृ: 
अ!व : - ओजMq = H&5&1 $, कुजाक]य7भागवा: = मंगलशिनग> ु बुधश:
ु ा:,
@P&P55  : , भवि'त = & = &5&1 $, eयBय$/ = िवलोमात् अथात्
श:ु बधु ग> ु शिनमगं ला पंचमांशश े ा भवि'त ।
भाषाथ ) िवषम रािशय6 म0 थम पंचमांशश े मगं ल, िdतीय पंचमांशशे शिन, O$ @P&P55
वृहप, चतथु  पंचमांशश े बुध , पंचम पंचमांशश े श: ु होते हc । सम रािशय6 म0 उB:&  ((
!$, जैसे थम पंचमांशश े श: ु , िdतीय पंचमांशशे बधु , तृतीय पंचमांशश े ग>ु , चतथु 
@
P &5
P 5 5(, पच ं म पचं माशं शे मगं ल होते है और हर एक रािशय6 म0 उसी रािश से dादशाश ं ा
&W( !$, जैसे मेष म0 मेष से, वृष म0 वृष से आिद इBया1 #
उराख ड मु त िवविवालय 171
वष   BAJY- 301
चP दशनम् 

 ( 0 (
1- 3 .5 1-3 #
6-10 .5 6-10 .
1--17 .+ 1--17 .+
18- 04 . 18-04 .5
02 - -. # . 02--. .5
%ादशांश -
1. ..... 0/-.
0. ..... 2/..
-. ...... 6/-.
4. ...... 1./..
2. ...... 10/-.
3. ...... 12/..
6. ..... 16/-.
7. ..... 0./..
8. ..... 00/-.
1.. 02/..
11. 06/-.
10. -./..

5.4   
 शा म0 वषकु डली िवचार के अ'तगत पंचवग] बल िनणय का उ[लेR $
गया है । पचं वग] बल से ताBपय इतना ही है िक कोई <ह अपने गृह म0 , अपने उnच म0 , अपने ह~ा
म0 , अपने RेOकाण म0 , अपने नवमांश म0 िकतना ) ( J5P ( !" # उसकN गिणतीय रीित

उराख ड मु त िवविवालय 172


वष   BAJY- 301
से 7ान कराना ही इस इकाई का मDु य योजन है । इस इकाई म0 वषकु डली dारा यह समझाने का
यास िकया गया है िक पच ं वग] बल या !" % उसे िकस कार जाना व समझा जा सकता है ।
वतु : इस इकाई म0 तािजकोत पंचवग] बल िनणय को समझाया $ !", I@ $1 @T N
िवशेष >प से तािजक <'थ म0 उ=तृ िवषय6 को समझना चाहते हc, तो उ'ह0 उसका मल ू <'थ  
J-( ( !$ #
5.5 पारभािषक शदा
ि(शं त् ) 7;
. ) [;
hकाणे ) RेOकाण म0
अE ) 9
ह]े ) ह~ा म0
.( : ) 9 J5 P
चतुथाRश ) UI J5 P

" )  !
वेदोGृत ) वेद6 म0 कहा गया
सम Bह ) समान <ह
िनणयाय ) िनणय के िलये
िवचाराथ )   $
>
 ) :: संDया
2े'का  ) RेOकाण का वा&
उ@व & ) उपWरिलिखत
7ादशांशेश ) dादशांश का वा&
5.6 बोध  न के उ6र
1. R
2.
3. 
4.
उराख ड मु त िवविवालय 173
वष   BAJY- 301
5.
5.7 सदभ थ
1. तािजक नीलक ठी
5.8 िनबधामक  न
1. पंचवग] बल या !" % पOट कNिजये ।
2. तािजक मत म0 िम, शु िवचार का उ[लेख कNिजये #
3. पच
ं माश
ं श
े एवं dादशाश
ं ेश को उदाहरण सिहत िलिखये #

उराख ड मु त िवविवालय 174


वष   BAJY- 301
  6 " 

इकाई क :परे खा
6.1 ता 
6.2 उे

6.3 %   ,!
बोध 

6.4 

6.5 पारभािषक शदा &
6.6 बोध 
न के उ&त

6.7 स!दभ "!थ !' &


6.8 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 175


वष   BAJY- 301
6.1 ता
तु  000 301 कN तृतीय ख ड के षOठ (8) इकाई से स%बि'धत है ।
इस इकाई के अ'तगत तािजक शा के अनसु ार दशा फल का उ[लेख िकया जा रहा है । इससे पवू 
कN इकाईय6 म0 पाठकगण <ह6 के पचं वग] बल िनणय का अ@य$(  $ !" , $!Z J 15 
कN चचा करते है ।
दशा फल से ताBपय Bये <ह6 कN दशा म0 जातक का उनके उपर पड़ने वाला <ह6 के भाव6 से है,
 ( 15 फल का िववेचन अपने <'थ6 म0 जो िकया है, उसी का आप िवतारपवू क
 7ान
ा8त करे ग0 ।
6.2 उे य
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@ )
1. दशा फल या !", जान लेग0 ।
2. <ह6 के दशा फल का भाव िकस कार पड़ता है, इसका 7ान कर सके ग0 ।
3. तािजकोत दशा फल का अ@ययन करे ग0 ।
4. िकस दशा म0 या  !- !", का अ@ययन करे ग0 ।
5. दशा फल से जड़ु ी अ'य िवषय6 का 7ान ा8त करे ग0 ।
6.3 $ % "-
दशा;म िवचार: -
*प'टा!सल3ना!खचराि!वधाय राशीि!वना:य.पलवं तु पवू म् ।
िनवे;य त*मादिधकािधकांशPमादयं *या:तु दशाPमो&दे 
<नं िवशो@या: Pमेण शो@यं िवशुGांशकशेषकै य 
सवािधकांशोि!मतमेव त:Vयादनेन वष*य िमित*तु भाAया 
शुGांशकां*ता!गुणयेदनेन ल&ध1ुवांकेन भवे]शाया: 
मानं िदना0ं खलु तद्Bह*य फला!यथासां िनगदे:तु शा*(ा 
शुGांशसाVये बिलनो दशा0ा बल*य साVये.पगते*तु पूवा ।
साVये िवल3न*य खगेन िच!:या बलािदका ल3नपतेिविच!:या ##
भाषाथ ) सवथम लTन और सयू ािद सात <ह6 को पOट बनाकर उनम0 रािश को िमलाकर
के वल अशं ािदक रखना । अब उनम0 जो सबसे छोटा अश ं वाला होगा उसको पहली पिं ` म0
उराख ड मु त िवविवालय 176
वष   BAJY- 301
R$, अब उससे भी जो आस'नवत] अिधक अश ं वाला है । उसके दसू री पंि` म0 िलिखये, s
!   - JB J5 P  !- C- R( @ $ !(P5 ! !" #
इसके बाद पहली पाBय5 ं  @!,  1V  !(5P  म0 पहली को घटाइये, तीसरी म0 दसू री को
EF$, चौथी हीनांशा म0 तीसरी हीनांशा को घटाइये, इसी :म से पाBयंशा सब <ह6 कN बन
जायेगी। यहॉं सभी पाBयं5w P  $- , सब से अिधक हीनांशा अथात् सबसे नीचे वाली आठवP
के समान ही होती है । तब एक वष के जो िदनाBमक मान उसको उस सवािधक हीनांशा से भाग देना
जो लिHध आवेगी, वह Vवु ांक कहलाता है । अब Bयेक पाBयंशा को इस Vवु ांक से गणु ा करने पर
N (  C ) उस <ह के िदनािदक दशामान ह6गे ।
यिद उनम0 से दो या तीन <ह6 कN पाBयंशा बराबर ही ह6, तो उन <ह6 म0 जो सबसे अिधक बली <ह
!- , C 15 @! !- , उसके बाद उससे 'यनू बल <ह6 कN । यिद दो <ह6 कN पाBय5 ं  D
बल भी बराबर ह6, तो उन म0 जो अ[प गित वाला <ह होगा, उसकN पहली दशा होगी । यिद लTन
और कोई <ह समान पाBयंशा वाले हो जाय0, तो लTनेश कN गित और बल के 'यनू ािधकतार%य 
@! @Y 15 !- , s &W( !$ #
अथ ल न   # 
हेममु ताफल2Oयलाभमारो3यमु5मम् ।
कुbते *वािमस!मानं दशा ल3न*य " 
लाभं h'टे न िव5*य मानहीन*य  
मनसो िवकृितं कुया]शा ल3न*य म@य 
िवदेशगमनं लेशो बिु Gनाशं कदOय  
िनं करो:येव क'टा ल3न
 *  
Pूरल3नदशा म@या सौjयं *व.पं धनOय  
अंगपीडां :वपिु iं च कुbते मृ:युिवBहम् ।।
भाषाथ  लTन कN शभु दशा सोना, &- , धनReय6 का लाभ और आरोTय, J@( & 
स'मान को करती है । लTन कN म@यम दशा धन को देखने पर लाभ मानहीन लोग6 कN सेवा मन के
िवकार को करती है । लTन कN अधमदशा परदेश याा, ले5 , बिु =नाश , अपeय$, J@&( -
करती है । :ूर लTन कN दशा यिद म@यबला हो तो अ[प R  , B(  eय$, 5@, देह दौब[य
, &N D -B -  !" #
पूणबली सूयदशाफल )

उराख ड मु त िवविवालय 177


वष   BAJY- 301

 : पूणबल*य लाभं गजा;वहेमाVबरर:नपूणम् 
"
. / ददाित दश;च देवि7जपूजनादे: 
भाषाथ - पणू ब ली सयू  कN दशा हाथी, E-, -(, व} , रBन6 के पणू  लाभ और राजा से स%मा(
और ƒा„ण देवता कN पजू ा से यश दान करती है ।
म1यमबली सयू  दशाफल 
दशा रवdम@यबल*य पूविमदं फलं म@यममेव द5े ।
BामािधकारOयवसायधैयk: कुलानुमाना\च  &
: 
भाषाथ ) म@यमबली रिव कN दशा पवू bत पणू ब ली सयू  का जो दशाफल उस के साधारण >प म0
1 !", और <ाम के शासन, पंचायती आिद कायh के अिधकार , eया@, धैय से कुल के अनसु ार
R , धन जन6 का लाभ होता है ।
वCपबली सयू  दशाफल 
दशा रवेर.पबल*य  . .


:खं *व)
 
मितYमं िप5bजं *वतेजोिवनाशनं धमणम'यcरUय: 
भाषाथ  व[प बली सयू  कN दशा प> ु ष6 को अपने लोग6 से द:ु ख देती है । मितtम, िप का
- , अपने परा:म का नाश , शओ ु ं से संघष को कराती है ।
नटबलसूयय   -

 रवेन'टबल*य पुंसां नृपाि2पोवा भयमथनाशम् ।
*(ीपु(िम(ािदजनैिववादं करोित बुिGYम . ( 
नOट बल सयू  कN दशा लोग6 को राजा से या शु से भय , धन कN हािन, ी ) पु िम आिद से
-B, बिु = वैष%य D - 1 !" #
 पूणबली च5 
    
इ!दोदशा पूणबल*य द5े शु लाVबरe{िणमौिDका0म् ।
*(ीसंगमं राAय &. ( / . : काि!तबलािभविृ Gम् ।।
भाषाथ  पणू ब ली च'Rमा कN दशा म0 वnछ व} , वnछ & &N &- A1, ीP ,
रायR
 , V &, यश और काि'त कN वृि= होती है ।
म1य " च5 
    
इ!दोदशा म@यबल*य सविमदं फलं म@यममेव द5े ।

उराख ड मु त िवविवालय 178


वष   BAJY- 301
वािणAयिम(ाVबरगेहसौjयं धमd मितं कषणतो!न  
भाषाथ ) म@यमबली च'Rमा कN दशा पणू ब ली च'Rदशा के फल को म@य& >प से देती है और
:य ) िव:य, िम, व}, E (   R  , धम म0 बिु =, खेती से अ'न  $   1
!"#
वCपबली च5 
    
इ!दोदशा *व.पबल*य द5े कफामयं काि!तिवनाशमाहZ: 
िम(ािदवैरं जननं कुमाया धमाथनाशं सुखम.पम( ।।
भाषाथ - अ[पबली च'Rमा कN दश, - , काि'त(5, िमािद इOट जन6 से भी िवरोध ,
क'या का ज'म , धम, धन का नाश तथा अ[प सख
ु को दान करती है ।
नटबलय च5     
इ!दोदशा न'टबल*य लोकापवादभीित धनधमनाशम् ।
शीतामयं *(ीसतु िम(वैरं दौ:*4यं च द5े िवरसा!नभुिDम् ।।
भाषाथ ) नOटबल च'Rमा कN दशा लोग6 के अपवाद से भय, B((5, धमनाश , व ,  ,
RP  A1 - , ी , पु , िम से िवरोध , ितकूल पWरिथित, कद'न का भोजन आिद फल6
को दान करती है ।
अथ पूणबली मंगल दशा फलम् -

 : पूणबलो महीज: सेनापित:वं     
जयं रणे िव2ुमहेमर:नवeािदलाभं ियसाहस:व 
भाषाथ ) यिद पणू ब ली मगं ल दशापित हो तो मनOु य6 को सेनापित बनाता हc , और सं<ाम म0 िवजय
1 !",  I ) I &PV  , -( , रBन व} आिद के लाभ और िय काय के िलये साहस
!- !" #
म1य "     # 
दशापितम@य7 " #:    .

 
"यथ त:पर:वं तेजि*वताकाि!तबलािभविृ Gम् ।।
भाषाथ - यिद म@यबली मगं ल दशापित ह6 , तो कुल के अनसु ार धन को देते हc । राजा के यहॉ
अिधकार हो और राजा से अभेद …दय हो , उBकष भाव होता है तथा चेहरे पर काि'त और बल कN
वृि= होती है ।

उराख ड मु त िवविवालय 179


वष   BAJY- 301
बोध  न 
1. खचर शHद का अथ है )
. A5 R. <ह ग. 5 E. नM
2. पणू ब ली सयू  का दशा फल होता है )
. 5 R. J5 . म@य& E. कोई नहP
3. पसंु ां से ताBपय है )
. ी R. प> ु ष ग. िप कृ ित घ. ली
4. िन%निलिखत म0 व[पबली च'R&   !" )
. िप रोग ख.  - .  - E. अ'न 
5. &!: ! !" -
. &P  R. श: ु ग. B E. 5(
" 
   

 : *व.पबलो महीजो ददाित िप5ो'णbजं शरीरे ।
cरपोभयं ब!धनमा*य"सृकeवं च वैरं *वजनै;च श;व 
भाषाथ) व[पबली मगं ल दशापित हो तो शरीर म0 िपरोग, गम] के रोग को भी देता है । शु से
भय और ब'धन होता है । मख
ु से रत@, अपने पWरजन6 से िवरोध भी होता है ।
नट 
   
दशापितन'टबलो महीजो िववादमुBं जनये2णं वा ।
चाराTयं र तbजं Aवरं च िवपि5म!य*व>ितं च खजूम् ।।
भाषाथ  नOट &P  $1 15@ !-, - T( 1,  ) W  , -  $ , रत
   - , व , िवपि , @$  B( !N ( D R R  !- #
अथ पण
ू बली बध
ु दशा फल 

 : पूणबलो बुध;चे0शोिभवृिGं गिणता:सुिश.पा 
तनोित सेवां सफलं नपृ ादेदQ:यं च वैदू'य "
. ( 
भाषाथ ) यिद पणू ब ली बधु दशापित हो, तो गिणत तथा उम िश[प िवा से यश कN वृि= हो
है तथा राजा आिद कN सेवा म0 सफल , 1V Dर िवdान होता है #
म1य     

उराख ड मु त िवविवालय 180


वष   BAJY- 301
दशापितम@यबलो बुध;चे
  ": सु>दUयो िलिपकाOयिश.पै: 
धनािlदायो सुतिम(ब!धस ु मागमा!म@य सौjय 
भाषाथ - यिद म@य B 15@ !-, तो ग> ु से , िम6 से, R ,    B( 
होता है और पु , िम, बा'धव6 के समागम से सामा'य सखु को ा8त  !" #
वCप " 
    
दशापतौ हीनबले बुधे *या!मान*य : *व 
: 
अकायकोप*खलना0िन'टं धनOययं रोगभयं च िव!0ा 
भाषाथ - यिद अ[प( B 15@ !- , - J@&(, अपने लोग6 से कलक ं , िबना काय के
िनरथक :ोध उBप'न !- !", िगरने आिद का अिनOट !- !" D B(!( I - $ !- !",
s 15 &W( !$ #
"" 
   
दशापतौ हीनबले बधु े *यात् *वबिु Gदोषो वधब!ध#: 
दूरे गितवातकफामयाि5िनखातिव5*य (  : 
भाषाथ ) $1 !( B 15@ !-, तो अपने बिु = का दोष होता है, ाण भय और ब'ध( 
$, देशा'तर जाना पड़ता है । वातरोग तथा कफरोग कN उBपि होती है । ग8ु त धन का लाभ नहP
!- !" #
अथ पण
ू बली ग:
ु दशा फल 
गुरादशा पूणबल*य द5े मानोदयं राजसु>दगुbUय: 
कz:यथलाभोपचयं सुखािन राAयं सुतािlं cरपुरोगनाशम् ।।
भाषाथ ) पणू ब ली वृहपित कN दशा राजा, िम , ग>
ु ओ ं से गौरव लाभ और यश, B(, लाभ कN
वृि=, R
 , राय, पु लाभ, शु नाश, - (5  !" #
वCप बली ग:
ु दशाफल 
दशा गुरोर.पबल*य द5े रोगं दcर2:वमथाcरभीितम् ।
कणामयं धमधनणाशं वैरा3यमथR च गण ु ं न िकंिचत् ।।
भाषाथ ) अ[पबली वृहपित कN दशा रोग, दWरRता , शुभय , कणरोग, धमनाश, वैराTय I (
तो अ[प धन को और न तो अ[प N - ! 1 !" #
हीनबली गु: दशाफल 

उराख ड मु त िवविवालय 181


वष   BAJY- 301
गुरोदशा न'टबल*य ..


:खािन bजं कफाितम् ।
कल(पु(*वजनाcरभीितं धमाथनाशं तनुपीडनं च ।।
भाषाथ ) नOटबली वृहपित कN दशा म0 मनOु य को Bयेक कार का द:ु R !- !", - ,  
कोप, ी ) पु - िम ) ब'धु तथा शओ ु ं से भय, धमनाश , B((5, शारीWरक पीड़ा >पी
फल दान करता है ।
अथ शुP दशाफलम् 

 6": पूणबल*य सौjयं e3ग!धहेमाVबरकािमनीUय: 
 
: सुतकzिततोषा!!ैbAयगा!धवरित: पदािl: 
भाषाथ ) पणू ब ली श:
ु कN दशा म0 माला, सवु ण, व}, ी (   R D E- A1
सवाWरय6 का लाभ, पु , कNित, 'तोH  , आरोTय, गान िवा म0 ेम, थान कN ाि|
A1  !- !" #
म1यमबली श;
ु दशा फलम् -
दशा भृगोम@यबल*य द5े वािणAय"थागमनं कृषे;च 
िम'ठा!नपानाVबरभोगलाभं िम(ां;च योिष:सतु सौjय  
भाषाथ ) म@यबली श: ु कN दशा eयापार और खेती से भी धन लाभ कराती है और मीठे अ'न
पदाथh के भोग सखु और अnछे व}6 के भोग ) सखु को दान करती है, साथ ही िम6 से , ी P
पु 6 का सख
ु भी दान करती है ।
अCपबली शु; दशाफल 
दशा भृगोर.पबल*य द5े मितYमं ानयशोथनाशम् ।
कद!नभोAयं Oयसनामयाित *(ीपEवैरं किलरयcरUय: ##
भाषाथ ) अ[प बली श: ु कN दशा बिु = के tम, 7ान, यश और धन6 का नाश करती है, 
I ) साथ कुिBसत अ'न  -( , WWP F, रोग6 से पीड़ा, ी पM से िवरोध, और शु से कलह
आिद समया उBप'न  !" #
हीनबली श; ु दशा फल )
दशा भृगोन'टबल*य द5े िवदेशयानं *व)" 
पु(ाथभायािवपदो bज;च मितYमोिप Obसनं मह\च ।।
भाषाथ ) नOटबली श: ु कN दशा, परदेश याा, अपने ब'धु - बा'धव6 से िवरोध, पु , B(, ी
िवपि, रोग तथा बिु = के tम आिद िथितय6 को उBप'न  !" #
उराख ड मु त िवविवालय 182
वष   BAJY- 301
अथ पूणबली शिन दशा फल 

 : पूणबल*य द5े नवीनवे;माVबरभूिमसौjय 
आरामतोयाuयिनिमित;च Vले\छाितसंगा!नृपतेधनािl: 
भाषाथ  पणू ब ली शिन कN दशा नवीन मकान , नवीन व}, नई जमीन के सख
ु को दान करती है
D  ,   , y , @-R, तालाब आिद का िनमाण कराती है । इसके साथ ही
%लेnछ जन6 कN अिधक सगं ित से तथा राजा से धन लाभ कराती है ।
म1य"     
दशा शनेम@यबल*b द5े खरो'|पाखडजतो धनािlम् ।
वG
ृ ांगनासगं मदुगरEािधकारिच!तािवरसा!!भो: 
भाषाथ ) म@यमबली शिन कN दशा म0 गधा, C_F, पाख डी लोग6 से धनलाभ होता है , I !
वृ= ी  P , िकला कN रMा कN िच'ता , रसहीन कद'न -(  !" #
" "     -

 : *व.पबल*य  . . "
:खं cरपतु *करेUय: 
दाcर2यमा:मीयजनापवादं रोगं च शीतािनलकोपमुBम् ।।
भाषाथ ) म@यमबली शिन कN दशा म0 प> ु ष को शु , चौर6 से द:ु R !- !" , दWरRता आती है ।
वजन6 से कलंक होता है, - D 1, वायु के उ< कोप भी उBप'न होते हc ।
नट"   # 
दशा शनेन'ट7  यपस ुं ामनेकधातुOयसनािन द5े ।
*(ीपु(िम(*वजनैिवरोधं रोगािभवृिGं मरणेन तु.य 
भाषाथ ) नOटबली शिन कN दशा लोग6 को अनेक कार के द:ु ख को देती है या िदोष के कोप
से लेश देती है । ी , पु िम पWरजन6 से िवरोध, रोग कN वृि= और मरण के त[ु य कOट - 1
!" #
6.4   
 शा म0 वषकु डली िवचार के अ'तगत 15   C[लेR $ $ !" #
15  से ताBपय इतना ही है िक िकस जातक के उपर तािजकोत वािषक दशाफल का भाव
िकस कार पड़ता !" # दशाफल िवचार के अ'तगत हम यह जानते है िक जातक का चिलत दशा
का िकस कार भाव उसके जीवन पर पड़ता है । इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@  )

उराख ड मु त िवविवालय 183


वष   BAJY- 301
भॉित इन िवषय6 का 7ान ा8त कर0 गे । वतु : इस इकाई म0 तािजकोत 15  - &W$
$ !", तथािप यिद पाठकगण िवशेष >प से तािजक <'थ म0 उ=तृ िवषय6 को समझना चाहते हc,
तो उ'ह0 उसका मलू <'थ   J-( ( !$ #
6.5 पारभािषक शदा
सल3न ) लTन  I
< ) EF(
& ) <ह से
िमतOय # ) अनावयक धन खच करना
गजा;व ) !I ) E-
*व" ) अपने धम का नाश
 6 ) 
इ!दोदशा ) च'Rमा कN दशा
कुमाया ) क'या
ितकूल ) िवपरीत िथित
पूणबली ) @V  ! (
अ.प7 # ) &-
cरपु ) शु
खजूर ) R ) R 
  ) पु
मागगमन ) माग म0 जाना
6.6 बोध  न के उ6र
1. R
2. 
3. R
4.
5. 

उराख ड मु त िवविवालय 184


वष   BAJY- 301
6.7 सदभ थ
1. तािजक नीलक ठी
6.8 िनबधामक  न
1. दशा फल से या &W !" % पOट कNिजये ।
2. सयू , च'R P &P   15 फल िवचार का वणन कNिजये ।
3. ग>
ु , श: ु एवं शिन के दशा फल िवचार का उ[लेख कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 185


वष   BAJY- 301
  7 दशाफल म( िवशेष

इकाई क :परे खा
7.1 ता 
7.2 उे

7.3 दशा फल म6 िवशेष
बोध 

7.4 

7.5 पारभािषक शदा &
7.6 बोध 
न के उ&त

7.7 स!दभ "!थ !' &


7.8 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 186


वष   BAJY- 301
7.1 ता
तु  000 301 कN तृतीय ख ड के स8त& (=) इकाई से स%बि'धत है ।
इस इकाई के अ'तगत तािजक शा के अनसु ार दशा फल म0 िवशेष या होता है इसका उ[लेR
िकया जा रहा है । इससे पवू  कN इकाईय6 म0 पाठकगण <ह6 के दशा फल िवचार का अ@य$( 
$ !" , यहॉ अब दशा फल म0 िवशेष कN चचा करते है ।
दशा फल म0 िवशेष से ताBपय Bयेक <ह6 कN दशा फल म0 िवशेष >प से या - !- !", 
अ@य$( ( !"  ( 15 फल िवशेष का िववेचन अपने <'थ6 म0 जो िकया है, C 
आप िवतारपवू क  7ान ा8त करे ग0 ।
7.2 उे य
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@ )
1. दशा फल या !", जान लेग0 ।
2. दशा फल म0 िवशेष का या अिभाय है, समझ लेग0 ।
3. तािजकोत 15  5H का अ@ययन करे ग0 ।
4. िकस दशा म0 या  !- !", और उस फल म0 िवशेष या !", का अ@ययन करे ग0 ।
5. 15  म0 िवशेष से जड़ु ी अ'य िवषय6 का 7ान ा8त करे ग0 ।
7.3 दशा फल म3 िवशेष
सूय दशा फल मD िवशेष 
ल3ना2िव: षट्ि(दशायस*ं थो िन!0ोिप द5े शभ ु मधमेव ।
म@य:व/: शुभतां च म@यो याती:थम:य!त : *या 
भाषाथ ) वषलTन  $1 7,8,:;,:: इन थान6 म0 ह6 तो िन' भी सयू  शभु ही फल को देते हc ।
हीनबली म@य, म@यबली उमफल, को देते हc । यिद शभु रिव ह6 अथात् पणू  बली ह6, - !
अBय'त 5  - 1 !" #
च5 दशा फल मD िवशेष 
ष'ठा'टमा!:येतररािशसं*थो िन!0ोिप द5ेथसुखं दशायाम् ।
म@य:व/: शभ ु तां च म@यो याती:थिम!दु:   : 
: *या 
भाषाथ ) यिद िनि'दत हीन बली भी च'R& 8,],:[ इन थान6 से िभ'न थान6 म0 हो, - J@(
दशा म0 धन सखु को देते हc । यिद उन थान6 से िभ'न थान6 म0 च'Rमा ह6 , तो हीनबली भी म@य&,
उराख ड मु त िवविवालय 187
वष   BAJY- 301
म@य&  5 , शभु भी िवशेष शभु होते हc ।
 दशा फल मD िवशेष 
ि(षडायगतो भौमो न'टवीय: शभ ु ाधद: 
म@यो #: शुभो म@य:  ":य!तं  : 
भाषाथ ) यिद नOट &P  7,8,:: थान6 म0 हो, तो आधा शभु फल को देते हc, $1 !( 
हो तो म@य& , यिद म@यबली ह6 तो शभु , शभु हो तो अBय'त शभु होते हc । ऐसा दशा फल
&W( !$ #
 दशा फल मD िवशेष 

न'टा!:येतरE*थो न'टो "धशुभद: 
म@यो #: शभ ु ो म@य:  ":य!तं  : 
भाषाथ - नOटबली बधु छठ0 , आठव0 तथा बारहव0 थान6 म0 िथत न हो तो आधा शभु फल और हीन
बली हो तो म@यम फल देता है । यिद म@यबली हो तो शभु फल देता है तथा शभु हो तो अBय'त
शभु फल दान करता है ।
गु: दशा फल मD िवशेष 
षड'टcर:फे तरगो गbु िन!0ोधस:फ : 
म@यो #: शुभा म@य:  ":य!तं  : 
भाषाथ  नOटबली वृहप $1 8,],:[ इन थान6 से िभ'न थान6 म0 हो तो आधा शभु फल ही
देते हc । यिद हीन बली भी ह6 तो म@यम फल को देते हc । यिद म@यमबली ह6 तो शभु फल देते हc ।
यिद शभु रहते है तो अBय'त शभु फल को दान करते है ।
श;
ु दशा फल मD िवशेष 
षड'टcर:फे तरगो भृगुिन!0ोधस:फल: 
म@यो #: शुभो म@य:  ":य!तं  : 
भाषाथ ) 8,],:[ थान6 से अितWरत थान म0 यिद श: ु िनि'दत भी ह6 तो आधा शभु फल को
देते हc । यिद उत से िभ'न थान म0 हीन भी ह6 तो म@य , म@यम ह6 तो शभु , शभु ह6 तो अBय'त
शभु होता हc ।
अथ शिन दशा फल मD िवशेष 
ि(ष'ठलाभोपगतो म!दो िन!0ोधस:फ : 
म@यो #: शुभो म@य:  ":य!तं  : 
उराख ड मु त िवविवालय 188
वष   BAJY- 301
भाषाथ ) 7,8,:: थान6 म0 िथतशिन यिद िन' अथात् हीन बली भी ह6 तो शभु फल देते हc ।
यिद हीन वीय भी ह6 तो म@य, म@य भी ह6 तो शभु , शभु भी हो तो अBय'त 5  !- !" #
अथ ल न    

 ": *वािमबलेन तु.यं फलं ददाती:य " : 
चरे शुभा म@य* धमा च ि7मूितमे*माि7परीतमू^म् ।।
भाषाथ ) लTन कN दशा अपने व&  (   - 1 !" D $!Z Y D 5H !" )
चर लTन म0 RेOकाण भेद से शभु म@य अिनOट फल होता है । िd:वभाव रािश के RेOकाN 1  5
म@य अिनOटफल होता है । िd:वभाव रािश के RेOकाण भेद से िवपरीत अथात् अशभु , म@य ,
शभु फल होते हc । िवशेष >प से आप इसे िन%न च: dारा &W  !" )
 : ( ि*थर ि7:*व
थम2े'का 5  अिनOटा JB&
ि7तीय2े'का म@या 5  म@य&
तृतीय2े'का J5  & 5 

E   11वगI5मा नवांशा;चरािदषु थमम@या!:या:  SS (  J(   5


का थम नवांश , िथर का म@य(P5 , िd:वभाव का अ'Bयनवांश ये वगbम हc । ऐसे ही चर म0
थम , िथर म0 िdतीय , िd:वभाव म0 अि'तम नवांश ये वगbम RेOकाण हc । इसिलये इन RेOकाण6
कN लTनदशा अnछी !- !" #
अिन'टिम'टं च समं ि*थरEd Pमा]काणै: फलमु तमा0ै: 
स:*विमयोगेEणत: शुभं *bा:पापे`णा:क'टफलं च वा\य 
भाषाथ ) िथररािश म0 RेOकाN 1  J5 , 5 &(  !- !", इस कार RेOकाण6 के भेद
 शभु ाशभु फल ाचीनाचाय कहे हc । वहॉ शभु <ह और वामी के योग uिU से शभु और पाप<ह6
कN uिU और योग से अशभु लTन15 &W( !$ #
बोध  न 
1. लTनाRिव: से ताBपय है )
. लTन म0 रिव ख. लTन   . लTन P  E. लTन $ 
2. षट्िदशाय था( !" )
. 7,8,],:: R. 7,8,:;,:: . 7,8,^,:[ E. कोई नहP
उराख ड मु त िवविवालय 189
वष   BAJY- 301
3. िक् था( !- !" )
. 7,8,^ R. 8,^,:[ . 8,], :[ E. [,=
4. नOटबली बधु िक् थान6 म0 गया हो तो )
. पणू  शभु फल देता है ख. AB 5  1 !" . J5  1 !" E. कोई नहP
5. 11 का अथ है )
. R !" R. 1 !" . 1 !" E.  !"
अतदशा साधन तथा उसके शुभ   (    
दशामानं समामानं क.यो तेन व:म 
अ!तदशा: # : ा पा:यां  
आदाव!तदशा पाकपते*तत् Pमतो : 
शभ
ु ेEणा!वया!मै(या5फलं पcरिचंतयेत् ।।
च!2ा#: सौVयेAयशुPा रिविवधू तथा ।
म!देAयशुPा: सूयd!दु$: सौVयेAयसूयजा: 
जीवशP ु ा: सयू ादे: शभ
ु ा अ!तदशा इमा: 
अ!येषामशुभा ेया इित वामनभािषतम् ।।
भाषाथ  िजस <ह का जो दशामान आया है उस को महादशा मान कर िवश ं ोरी अOटोरी म0 जैसे
अ'तदशा साधन करते हc , वैसे यहॉ भी अ'तदशा साधन करना चािहये । जैसे ) जैसे <ह6 के
दशामान योग म0 यिद पृथक् ) 2 सभी <ह6 के दशामान पाते हc , तो एक िकसी <ह के (िजस दशा म0
अ'तदशा साधन इOट !") दशामान म0 या % इस कार दशा दशाहता कायाS  ! @!
पाBया5
ं ओ ं के वश से अ'तदशा साधन करना चािहये । उसम0 पहली अ'तदशा दशेश कN होगी ।
उसके बाद िजस :म से <ह6 कN दशा है , उसी :म से अ'तदशा का भी :म समझना चािहये । वहॉ
शभु <ह6 के योग uिU से शभु , पाप <ह6 के योग, uिU से अशभु कहना चािहये । अब िकसकN दशा
म0 साधारणत: िकसकN अ'तदशा अnछी !- !", उसकN जानकारी कWरये -
रिव कN दशा म0 च'R , मगं ल और ग> ु इनकN अ'तदशा अnछी होती है । च'Rमा कN दशा म0 बधु ,
ग>ु और श: ु कN अ'तदशा , मगं ल कN दशा म0 रिव और च'Rमा कN , अ'तदशा , बधु कN दशा म0
5( , ग>ु और श: ु कN अ'तदशा , शिन कN दशा म0 वृहप , B , श:
ु कN अ'तदशा अnछी
होती है और6 कN अ'तदशा अnछी नहP होती है । यह वामनाचाय ने कहा है ) वष म0 िकसका कै सा
 !" , िकस भाव का वा&, िकस भाव म0 िथत है िकस से देखा जाता है । िकस से संयु त !" ,

उराख ड मु त िवविवालय 190


वष   BAJY- 301
िकससे इBथ5 A1 $-  !" , $    5 $ J5 !( !$ # ( 
के वल साधारण >प से रिव कN दशा म0 च'Rमा कN अ'तदशा अnछी होगी । यिद च'R& ( 
D 8,],:[ थान6 म0 हो ,  A1 $- !- !", तो शभु फल कभी नहP होगा । ऐसे ही
 -  ( !$ #
7.4   
 शा म0 वषकु डली िवचार के अ'तगत दशा फल म0 िवशेष  C[लेR $
गया है । दशा फल म0 िवशेष से ताBपय इतना ही है िक कोई <ह अपने गृह म0 , अपने उnच म0 , J@(
ह~ा म0 , अपने RेOकाण म0 , अपने नवमांश म0 िकतना ) िकतना अश ं बलवान है । उसकN गिणतीय
रीित से 7ान कराना ही इस इकाई का मDु य योजन है । इस इकाई म0 वषकु डली dारा यह समW(
का यास िकया गया है िक पंचवग] बल या !" % उसे िकस कार जाना व समझा जा सकता है ।
वतु : इस इकाई म0 तािजकोत पंचवग] बल िनणय को समझाया गया है, I@ $1 @T N
िवशेष >प से तािजक <'थ म0 उ=तृ िवषय6 को समझना चाहते हc, तो उ'ह0 उसका मल ू <'थ  
J-( ( !$ #
7.5 पारभािषक शदा
7 )  !
उपािजत ) उBप'न (
राAयाथ ) राय  $
के !2 ) :,\,=,:;
#("क : ) सयू  नीच रािश का हो
नृपाuय: ) राजा का आिiत
राAय
  ) राय - 1( 
इ:थ ) षोडश योग म0 एक योग
पापकमत: ) पाप कम से
शिन*था ) शिन थान म0
ि(कोण ) 9,^
पुया. ) प ु य  A &
खलाuयात् ) पाप के आiय से

उराख ड मु त िवविवालय 191


वष   BAJY- 301
*व*था ) अपने थान म0
6 ) 
मागगमन ) माग म0 जाना
7.6 बोध  न के उ6र
1. R
2. R
3.
4. R
5.
7.7 सदभ थ
1. तािजक नीलक ठी
7.8 िनबधामक  न
1. दशा फल म0 िवशेष फल को पOट कNिजये ।
2. अ'तदशा के शभु ाशभु फल का िववेचन कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 192


वष   BAJY- 301

खड - 4
न 

उराख ड मु त िवविवालय 193


वष   BAJY- 301
  1 )न योजन

इकाई क :परे खा
1.1 ता 
1.2 उे

1.3 
न योजन
बोध 

1.4 

1.5 पारभािषक शदा &
1.6 बोध 
न के उ&त

1.7 स!दभ "!थ !' &


1.8 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 194


वष   BAJY- 301
1.1 ता
तु  000 301 के चतथु  ख ड के थम इकाई से स%बि'धत है । इस
इकाई के अ'तगत तािजक शा  J(  न योजन के िवचार6 का उ[लेR $  ! !" #
इससे पवू  कN इकाईय6 म0 आपने दशा फल एवं दशाफल म0 िवशेष का 7ान ा8त  $ !" $!ZP
इस इकाई म0 आप न योजन का अ@ययन करे ग0 ।
न योजन से ताBपय जातक के जीवन स%बि'धत न6 से है । इन न6 के आधार पर योH
जातक के जीवन स%बि'ध 5 5   (  !" #
इस इकाई म0 आप मDु य >प से न योजन कN पर%परा से अवगत हो पाय0गे , I C
स%बि'धत िवषय6 का स%यक् अ@ययन ा8त करे ग0 ।
1.2 उे य
 इकाई के अ@ययन के पचात् आप जान पायेग0 िक )
1. न या !" #
2. न के योजन या !" #
3. तािजकोत न योजन कN पर%प या !" #
4. न योजन कN िविध या !" #
5. न योजन का या महBव !" #
1.3  न योजन
योितष के कई <'थ6 के अ@ययन से यह बोध होता है िक पवू ाचायh ने <'थ  आर%भ म0
न करने कN पर%प ! !", बाद म0 उसका समाधान कहा है । आरि%भक न योजन दैव76 कN
िवशेषता रही है । सामा'य >प से हम भी िवचार करे तो यह पाते हc िक िकसी भी न  (
C &B( "  !-  !" % J: न योजन दैव76 के मत म0 भी ासांिगक था, A 
है । इसी :म म0 ततु इकाई तािजक <'थ6 के न योजन से जड़ु ा है । न योजन को बताते
ह9ये आचाय का कथन है िक )
दैव*य  दैवेन सदस:फलवाsछया 
अव;यं गोचरे म:य: सव:  #  
अuौषी\च पुरा िव'णाानाथR समुपि*थत: 
( ""िप ‚ƒा ;नािदिनणयम् ।।
उराख ड मु त िवविवालय 195
वष   BAJY- 301
योितषीय6 के मत से दैव (भावी ारHध कम) से ेWरत सभी लोग अवय ही गोचर म0 शभु ाशभु
फल कN इnछा से ा8त होते हc । अथात् लोग6 को गोचर और न6    5 5  !-
हc ।
ऐसा माना जाता है िक ाचीन काल म0 लोकवामी ƒ„ाजी भी न िनणय 7ान के हेतु iी भगवान
Oणु के पास गये थे । यह दशाता है िक देव काल से ही न योजन कN पर%प ! !" #
आचाय भाकराचाय भी िस=ा'तिशरोमिण म0 न योजन को बताते ह9ये कहते है िक )
ौिढं ौढसभासु नैित गणक: ;नैिवना ायशो -
त*ताम् वि\म िविच(:.ग चतुरीितदानाय यान् ।
आकयािप सुवणवणवदनं वैवयमेित Eणात् ।
त*याखवकुगवपवतिशर: ौढयािधbढो( य: 
पाटया च बीजेन च कु„के न वगकृ:या च तथो5रािण ।
गोलेन य!(ै: किथतािन तेषां बालावबोधे कितिच\च वि\म 
अथात् योितष कN पWरपव बिु = वाला गणक िकसी भी योितष76 कN सभा म0 न 7ान के िबना
ौढ़ योितष िव7 नहP कहला सकता । इसिलए आचाय िविच ) िविच कार के न6 - 
बिु =वाल6 को स'नता दान करने के िलए यहॉ कह0गे । इन न6 को सनु कर िजहन योितिषय6 के
चेहरे तथा शरीर कN कांित सवु ण कN आभा के समान है उनके चेहरे का रंग Mणभर म0 Mीण हो जाता
है तथा उनका भी जो योितष के 7ान म0 अपंग समान तथा छोटे कद के होते ह9ए भी िजनका कुिBसत
गव अथात् E&>P  पवत के समान िसर qr करके ौढ़ योितषी के पद पर आ>ढ़ है ।
गोल व य'6 , @F N, बीजगिणत और कुक तथा वग कृ ित से संबंिधत कुछ न6 I
उर6 को भी कह0गे ।
आपने देखा िक उपयु त लोक म0 कै से आचाय ने न योजन के महBव - $ !" #
महु xि च'तामिणकार रामदैव7 भी न योजन को इस कार कहते है )
11आदौ सVपAू य र:नािदिभरथ गणकं वेदये:*व*थिच5 ।
अथात् सवथम गणक को पOू प एवं रBना1 (Reय6) को अिपत करके स'निच होता ह9आ देखकर
ही नकता को उसके सामने अपने न R( !$ #
उ5मफिलतAयोितलEण 
दशभेदं Bहगिणतं जातकमवलो य  
: कथयित शुभमशुभं त*य न िम4या भवे7ाणी ।।

उराख ड मु त िवविवालय 196


वष   BAJY- 301
जो योितषी दस कार के भेद वाले <हगिणत को और सभी जातक <'थ को देखकर िन !
अ@ययन मनन कर शभु ाशभु फल को कहता है उसका फलादेश कभी असBय नहP होता है ।
समरसार म0 कहा है िक ) ($($ 1$माना । भवेBक[पलतेव सBफ$ ##
अथात् योितष िवा िवनय नyता वाले को ही दी जाने पर सफल होती है । कुपा6 को इस िवा
को नहP देना चािहये।
योH शा म0 न योजन कN ाचीनकाल से पर%परा रही है । इसके अ'तगत ाचीन आचायh
ने व ) व <'थ6 म0 जातको के 7ानाथ न एवं उसके समाधान करने का वणन िकया है #
योितष के न िवधान म0 यह भी कहा गया है िक िकसी eयिBा - J@( समया  &B(
अथात् समाधान >पी न लेकर गणक के पास िवनyतापवू क  यथासाम^य उसको Reया1 1
उसके समM अपना न R( !$ #
 शा*( के अ!तगत वष मa ;न ( 
सामा'यतया आमजनमानस को यह िज7ासा होती है िक उसके वतमान वष म0 िववाह, स%मा(,
राजयोग या अ'य 5  JI J5  ( !-  % एतदथ मल ू >प से न शाखा म0
बताई गई िनयमावली का योग िकया जाता है । उसम0 भी िवशेषतया लTनेश व कायqश का परप
uिU स%ब'ध, उन पर च'Rमा कN िवशेष uिU, उनकN शभु भाव िथित व बलवा कायिसि= बताती
है । अ'यथा होने पर कायहािन कहनी चािहए ।
उदाहरणाथ 
िकसी ने वष म0 िवशेषतया धन ) लाभ पर िवचार करने के िलए कहा है तो म'ु था कN शभु ता व वषqश
कN बलवा एवं शभु थान िथित, सामा'यतया ज'म डली के िनयमानसु ार लTन व भाव6 कN
श= ु ता का िवचार करना चािहये ।
इसके बाद भी धानतया लTनेश व लाभेश तथा लTनेश व धनेश कN uिU का, इBथ51 
िवशेष िवचार करके तथा इन पर च'Rयोग uिU या इBथशाल हो तो परू े वष म0 व इनकN दशा म0 िवशेष
भ कहना चािहए । यही िविध अ'य न6 @   V !-  #
योितष के आचायh का म'तeय है िक जातक शा के सभी िनयम6 का योग न शाखा म0 भी
$   !" # $I )
ज!मसमये यदु तं शभ ु ाशभ
ु ं िदOयhि3भराचायk: 
पृ\छा िप नृणां तदेव भवतीित िवेयम् ।।
J: पहले ज'मप के स%ब'ध म0 फल िवचार जो मल ू भतू बात0 कही गई हc,उ'ह0 …दयगं म करने के

उराख ड मु त िवविवालय 197


वष   BAJY- 301
पचात् न शाखा का अ†यास करना चािहए । जातक शाखा म0 पWरiम िकए िबना ही जो eयि`
न शा म0 यBन  !" , मानो वह छे द वाले बतन म0 पानी समेटना का eयथ पWरiम कर रहा
!- #
;न #@ 
1. भाव6 के िवचारणीय िवषय एवं <ह6 का कारकBव पवू व त् मितOक म0 िबठाना चािहए ।
2. N$ , भावेशBव व कारक का िस=ा'त $!Z   V ( !$ #
3. िजक शा  H->5 $- , म'ु था फल तथा वषफल का स%यक् 7ान रखना चािहये ।
4. के 'R , िकोण म0 शभु <ह व 7,8,:: म0 पाप<ह सदैव न कता कN सफलता बताते हc ।
5. ],:[ भाव6 म0 <ह न हो तो अnछा !", अ'यI, शभु <ह भी म@य& !-  !" #
सामा'यतया न म0 अOटम व dादश म0 सभी <ह WरOट होते हc । सवq नेOटा eययाOट& : s
!  !"#
6. िवचारणीय भाव को लTनवत् मान कर उससे भी अिनOट व इOट भाव6 का िवचार करना है ।
7.    [,:[,\,:;  = व0 म0 शभु <ह6 का योग हो उस भाव कN वृि= होगी । यिद
उत थान6 म0 पाप<ह ह6 तो बाधा होगी । ऐसा समझना चािहये ।
वैिदक योितष कN अनेक शाखाएं हc िजनके dारा फिलत का िवचार िकया जाता !"# इसम0 से एक
5R … शा~ (&  !"  एक महBवपणू  था( !" # $! िकसी eयि` िवशेष के अचानक
पछू े गए ‹ के आधार पर िक  !"# ‹ शा{ एक ऎसी िवा है जो समय के अभाव म0 भी एक
महBवपूण फिलत देने म0 समथ होती है। ‹ का उर उस समय पछ ू े गए ‹ कN कु डली बना कर
1$  !"#
सं कृ त भाषा म0 समय - J!-ी के >प म0 दशाया जाता है। J!-  अथ होता है िदन I
राी का अथ होता है रात। इसी कार अहो से हो तथा राि से रा लेकर िनमाण होता है होरा का
यही दो भाग6 म0 िवभ` !- !"  1(  होरा व रात कN होरा कहा जाता है। $! 1( D 
-  !"# यह और कुछ नहP के वल रात और िदन कN ि:या को अिभय` करने कN प=ित
!- !"#
 H$ के बारे म0 ऋिष पराशर जी ने िवतार पवू क अपनी पु तक बृहतपराशरहोरा म0 बताया है।
इसी के साथ ही क[याण वमा, !&! D 1 जी ने भी इस पर काफN Y R !"#
कई पाSाBय िवdान6 जैसे लािडयस टॉलमी, $& , ( ओ ने भी इसम0 अपना
$- 1( 1$ #
‹ शा{ म0 फिलत के िलए eयि` dारा पछ ू े गए ‹ से ही  $  !" # @P Y
योितषी इसके साथ ज'म कु डली और वष कु डली -  - देखते हc िजसके dारा वह कम

उराख ड मु त िवविवालय 198


वष   BAJY- 301
कN अवधारणा को समझकर eयि` का भिवOय कथन करते हc #
‹ कु डली एक बह9त ही भावी फिलत कथन है यिद इसका @यान पवू क  िवे षण िकया जाए तो
$! काफN सटीक भिवOयवाणी करने म0 सहायक बनती है।  योH - @शरी िस=ात6 के
I-साथ तािजक योितष व योग6 कN भी पणू  ( !-( !. उसे <ह6 कN िथित, िड<ी,
लTन इBयािद का पणू  7ान होना चािहए #
‹ शा{ के अनसु ार ‹ पछ ू ने वाले eयि` का थान एवं उसके dारा पछू े गए ‹ का समय उतना
! महBवपणू  होता है िजतना कN ज'म कु डली म0 िदया आपका ज'म समय। eयि` का ज'म उसके
कमh dारा िनधाWरत होता है  C ज'म समय का बह9त महBव होता है।   J@(
भिवOय जानने हेतु िकसी योितषी के पास जाता है तो उस समय जो दैिवय शि` और समय 
संयोजन होता है वह बह9त महBवपणु  होता है इसिलए ज'म कु डली और प‹ शा{ कN अिभeयि`
म0 कुछ न कुछ अतं र अवय देखा जा  !" #
… कुडली िनमाण -
जो eयि` ‹ पछ ू ता है वह ‹कता या वे5( वेरी !  !". जब एक eयि` ‹ @Y V  !"
तो उस िवशेष पल म0 <ह6 कN िथित कN गणना करके ‹ कंु डली का िनमाण होता है. !P,
‹ शा{ म0 चौदह कार के ल_ण6 से इसे समझा जाता है जो इस कार से हc-:F &$, 15
अथात ‹कता का थान), जातक कN सासं कN कृ ित, उसकN हालत या िथित, पश, आ>ढा, ़
15, ‹ाMर, िथित(‹कता कN चाल - z), चेjा,  (&( "$), J-(,
उसकN पोशाक और िनिम (C &$  5 , अशभु सक ं े त िचŽ) #
… कुडली मa कारक त:वr का िनधारण
‹ कु डली का लTन ‹कता का ितिनिधBव करता है। ‹ या समया को eयि` िवशेष का
 !  !", तो जातक के पछ ू े गए ‹ के भाव एवं उसके वामी dारा उसका िनधारण
$  !" #
‹कता का ‹ Wरते, िवीय िनवेश, कै Wरयर म~ु 6, पाWरवाWरक मामल6, संघष और मक ु दम6,
वतओ ु ं के खोने या लापता लोग6 आिद के बारे म0 हो सकता है। C1!N   $1 @ $
पBनी से संबंिधत ‹ हो तो स|म भाव को देखा जाएगा तथा स|मेश उसका कारक होगा।
इसी कार से िबजनेस या काम से सबं ंिधत ‹ हो तो दशम भाव एP 15&5  J-( $
 !". इस कार ‹कता कN समया म0 कारक <ह भािवत होता है. िवशेष >प से उस भाव म0
िथत िकसी भी अ'य <ह6 का होना भी हो सकता है जो आगे वणनाBमक जानकारी दान कर
 !", ( समया के   !  $ ( ! #
JBP5: चंRमा अनेक िथित के िलए एक सामा'य कारक रहता है.  dारा शनकता कN
िथित का अदं ाजा लगाया जा सकता है. य6िक घटना या सवाल से तरु ं त पU नहP हो सकता है
िक मामले कN गहराई से संबंिधत म~ु 6 को कै से समझ0 इसिलए, चंRमा कN अनदेखी नहP कN जानी

उराख ड मु त िवविवालय 199


वष   BAJY- 301
! य6िक यह एक महBवपणू  सामा'य कारक है।
‹ कंु डली म0 चंRमा कN िथित ‹ के िवषय म0 काफN कुछ बताने म0 सहायक होती है @P !&5
यह त^य कारगर िस= नहP हो पाता य6िक कु डली म0 कई अनेक बात0 भी होती हc िज'ह0 ((
आवयक होता है तभी !& ! त कर पाने म0 सMम हो सकते हc #
य*माद् वा Oय : शुभाjया 
*तदविृ G: खलखचरै *त
# 7 
एवं दशमचतथु िथतैतdत् कहकर भोBप ( \,:; भाव6 का भी िवचार कहा है ।
1. $- $- : वािमuOटो $ -  ) फल िवचार कN नPव इसी सू पर खड़ी है । िजस भाव
को उसका भावेश या शभु <ह देख0 या वहॉ पर योग कर0 तथा अशभु <ह न देख,0 न योग कर0
तो उस भाव कN सदैव वृि= होती है । अथात् उस भाव से स%बि'धत न म0 सफलता
& है । यिद उत कार से पापयोग या uिU हो तो वह भाव अपना भाव खोता जाता
!" #
2. nयिु तिवलTना/ ) nयिु त अथात् tश ं , (, !F(, @(, टपकना या थान पWरवतन
आिद का िवचार न लTन  ( !$ # J: थान पWरवतन, आवास पWरवतन,
1, उ'नित आिद िवचार पWरवतन, आरोTय , B(, ,P A1
का िवचार न लTन  5H$ ( !- !" #
3. िहबक ु ाnच वृि= ) लTन से िवचारणीय बात6 के िवपरीत सभी बात6 का िवचार ाय: चतथु 
से भी करना चािहए । बढ़ोरी, िथरता, वृि= , J P  N, A  ?(, , R  ,
- , $5 , कNित , स%पि, आिद िथर बात6 का िवचार चतथु  से होगा ।
4. म@याB-Xतमयाि'नवृि - याा व वास होगा िक नहP %   15& 
से तथा स8तम भाव से याा िनवृि का िवचार करना योTय हc । दशम म0 यिद चर रािश हो
तथा दशम भाव अ'यथा बली हो तो वास या याा होती है तथा स8त&  @
शभु uTययोTय हो तो वासी आने का उप:म करता है तथा चतथु  भाव बली हो तो &W
िक वासी गृह लौट ही गया है ।
5. शीषbदयेसमिभवांिछत कायिसि= ) यिद न लTन म0 शीषbदय रािश हो तो कायिसि= का
पWरचायक है तथा इसके िवपरीत पृOठोदय रािश न लTन म0 हो तो काय म0 हािन होती है ।
यहॉ यह पOट है िक िdव Tन म0 काय िसि= पWरiम व यBनपवू क  होती है ।
तािजकनीलकठी मa 'टु: पcरचय 
ऋजुरयमनज ृ ुवायं 'टा पवू R परी`य ल3न7  
उराख ड मु त िवविवालय 200
वष   BAJY- 301
गणके न फलं वा\यं दैवं ति\च5गं *फु 
ल3न*थे शिशिन शनौ के !2*थे े िदनेशरि;मगते 
भौमयो: समhशा ल3नगच!2े6 : 'टा 
ल3ने शुभBहयुते सरल: Pूराि!वते भवे:कु' : 
ल3ने*ते सौVयhशा िवधुगb ु h'ट्या (  "  
यिद गुbबुधयोरेक: प;य:य*तािधपंच cरपुh'ट्या 
त:कु' : 'टा ख.वनयोरेक*त ":  : 
अथात् नकता सीधा या €क है,  H$ - लTनवश पहले परीMा करके तब शभु ाशभु फल को
योितषी को कहना चािहये । य6िक उस योितषी के …दय म0 उत् िवषय कN फूित होती है ।
यिद च'R& Tन म0 शिन के 'R :,\,=,:; म0 हो, बधु अत हो और मगं ल या बधु कN समान uिU से
लTन िथत च'R& 1R $, - @Y V (  F &W( !$ #
अथवा लTन शभु <ह से यतु हो, तो Oटा को सीधा समझना चािहये । यिद लTन पाप<ह से यतु तो
F !( या लTन तथा स8तम था( B , च'R&, वृहप  1R $ -  !(
चािहये या यिद बधु और वृहपित म0 एक कोई <ह शु uिU से स8तमेश को देखे तो कुिटल Oट
कहना चािहये । यिद उन दोन6 म0 कोई एक िमuिU से स8तमेश को देखे तो सजन नकता कहना
!$ #
आिदमं ल3न" ानं च!2*थानाद्ि7तीयकम् ।
सूय*थाना5ृतीयं *या5ुयR जीवगृहाTवेत् ।।
बुधभृ3वोबली य: *या5nृहा:पं(. : 
अथात् यिद नकता अनेक न एक ही साथ और एक ही काल म0 कर0 तो लTन से थम, च'R&
से िdतीय, सयू  के था(  O$, वृहपित के थान से चतथु , I B ) श:
ु 6 म0 जो िवशेष
बलवान् हो उसके रािश से पाच ं व0 न   ( !$ #
सVयि3वचाय ल3नं ‚यू ा:;नं सकृ0थाशा*( 
य*:वेकं ‚ूतेसौ त*य न िम4या भवे7ाणी ।।
अथात् जो योितषी शा के अनसु ार अnछी तरह लTन को िवचार करके एक काल म0 एक ही
न को बताता है उसकN वाणी कभी असBय नहP होती है ।
बोध  न 
1. दैव7य िह दैवने सदसBफ‰छ$ #
उराख ड मु त िवविवालय 201
वष   BAJY- 301
अवयं ............. मBय: सव: &@ ($ ##
. लTने R. - . नMे घ. वषवेशे
2.न शा  !" )
. िस=ा'त क'ध  R. होरा क'ध 
. सिं हता क'ध  E. कोई नहP
3. न िस=ा'त म0 मDु याB !" )
. 5 R. <ह ग. लTन E. न
4. गिणत शा  ( 1 !" #
. 3 R. 10 . 15 E. 20
5. न @Y V (  ! !" )
. B R. @ये . नकता घ. धता
1.4   
 इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  योितष के कई <'थ6 के अ@य$( 
यह बोध होता है िक पवू ाचायh ने आर%भ म0 न करने कN पर%प ! !", बाद म0 उसका समाधान
कहा है । आरि%भक न योजन दैव76 कN िवशेषता रही है । सामा'य >प  !&    -
यह पाते हc िक िकसी भी न  ( C &B( "  !-  !" % J: न योजन
दैव76 के मत म0 भी ासांिगक था, आज भी है । इसी :म म0 ततु इकाई तािजक <'थ6 के न
योजन से जड़ु ा है । योितषीय6 के मत  1" (भावी ारHध कम) से ेWरत सभी लोग अवय !
गोचर म0 शभु ाशभु फल कN इnछा से ा8त होते हc । अथात् लोग6 को गोचर और न6   
शभु ाशभु फल होते हc । ऐसा माना जाता है िक ाचीन काल म0 लोकवामी ƒ„ाजी भी न िनणय
7ान के हेतु iी भगवान िवOणु  @ $ I #
1.5 पारभािषक शदा
ासांिगक ) संग के अनसु ार
दैव ) योH
स:फ ) 5 
समुपि*थत ) बराबर >प से उपिथत
लोक*वा# ) ƒ„ा

उराख ड मु त िवविवालय 202


वष   BAJY- 301
   ) अnछा D  
सुवण ) -(
वण ) P
ौढ़ ) पWरपव
कुि:सत ) 1 H
आbढ़ ) "T(
-
$ ) सवथम
कु„क ) बीजगिणत कN गिणतीय ि:या
इ:थ ) षोडश योग म0 एक योग
;नकता ) न @YV ( 
ितिनिध:व ) eयि` के थान पर उसका ितिनिध
1.6 बोध  न के उ6र
1. R
2. R
3. E
4. R
5.
1.7 सदभ थ
1. तािजक नीलक ठी ) नीलक ठ दैव7
2. िस=ा'त5-&N ) आचाय भाक:
3. HF/@P5 ) आचाय पृथयु शस
1.8 िनबधामक  न
1. न  - पOट कNिजये ।
2. तािजक शा के अनसु ार न (  B( R$ #
3. सामा'यतया न योजन के मलू भतू तBव6 - R$ #

उराख ड मु त िवविवालय 203


वष   BAJY- 301
  2 )न #

इकाई क :परे खा
2.1 ता 
2.2 उे

2.3 
न  
बोध 

2.4 

2.5 पारभािषक शदा &
2.6 बोध 
न के उ&त

2.7 स!दभ "!थ !' &


2.8 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 204


वष   BAJY- 301
2.1 ता
तु  000 301 के चतथु  ख ड के िdतीय इकाई से स%बि'धत है । इस
इकाई के अ'तगत तािजक शा  J(  ;न  का उ[लेख िकया जा रहा है । इससे पवू 
कN इकाईय6 म0 आपने न योजन का 7ान ा8त कर िलया है यहॉं इस इकाई म0 आप न B
का अ@ययन करे ग0 #
तािजक शा म0 न करने कN िविध या !" % उसका योजन या !" % उसका महBव या !" % (
सभी िवषय6 से स%बि'धत जानकारी आपको ततु इकाई म0 होगी ।
इस इकाई म0 आप मDु य >प  न B स%बि'धत िवषय6 का स%यक् अ@ययन ा8त करे ग0 ।
2.2 उे य
 इकाई के अ@ययन के पचात् आप जान पायेग0 िक )
1. न B या !" #
2. न िविध का योजन या !" #
3. न B के फल या !" #
4. न िविध के महBव या !" #
5. तािजकोत न िविध का ताBपय या !" #
2.3  न "" "
योितष शा के न स%बि'धत <'थ निच'ता&NS म0 िलखा है िक )
रािशचPं समUय\य * ): पु'पै: सर:न) : 
'टा सुभूमौ दैवानेकं पृ\छे : " 
अथात् न कता को चािहये िक सवथम नकु डली को पिव थान म0 फल, Reय, फूल6 से
पजू न करके एक काल म0 एक ही योजन को योH  @Y
V #
दशभेदं Bहाणां च गिणतं भावजं तथा ।
6;यैsच कथये!नानेकं ाह पtभू: 
<ह6 के दस कार के गिणत और dादशभाव के गिणत को िवचार करके एक समय म0 एक ही न
को कहना चािहये । अनेक न को एक काल म0 नहP कहना चािहये ऐसा भगवान ƒ„ा का कथन
!"#
दीता0ं दशभेदं च Bहाणां भांशजं फलम् ।
उराख ड मु त िवविवालय 205
वष   BAJY- 301
िवचाय वदे0*तु त*यो तं ना!य:  
<ह6 के दी8त आिद दस कार जो रािश अश
ं से िस= दशा हो उसके वश से िवचार करके जो फल
!, उसकN बात असBय नहP होती है ।
.न  
वnछ मनोभाव6 के साथ, हाथ म0 भ0ट पजू ा लेकर, स'निच से , सश ु ा'त था( @, पOट शHद6 म0
अपने न दैव7 के सामने रखने चािहये । कभी भी दिMणा के बीना दैव7 से न नहP पछ ू ना
!$ #  फल नहP िमलता । िजस योितषी पर i=ा हो, Cसी योितषी से न @Y V ( !$
# िबना ना( $, शरीर म0 तेल लगाकर, @(  >/z  @, अपिव थान म0, दैव7 को राते
म0 रोककर, ज[दबाजी म0 , कठु कठोर वचन6 म0, अशा'त &( , & ) :ोध कN अवथा म0 कभी
न नहP करना चािहये ।
आ:ढ़ %ारा .न ान 
यिप उदय लTन से न िवचार का चलन अिधक है, तथािप दिMण भारत म0 आ>ढ़ dारा न
7ान का भी चलन है । आ>ढ़ से ताBपय नकता dारा अिधिjत िदशा से है । नकता िकस
िदशा या िविदशा म0 बैठकर न  !", यह बात न िनणय म0 िवशेष महBव R !" #
आया स8तित म0 नकता dारा िकए गए न के थम अMर से लTन िनणय कN बात कही गई है ।
न कता िजस वग से स%बि'धत अMर का उnचारण करे उसी वग के अिधपित <ह कN रािश को
आ>ढ़ लTन &W   ( ! #
अवग सयू  तवग ग>

कवग मगं ल पवग शिन
चवग श: ु यवग च'R&
टवग बधु शािदवग च'R&
िजस <ह को दो रािशय6 का वािमBव ा8त !-, उस समय वग का िवषमाMर होने से िवषम रािश व
समाMर होने होने से सम रािश समझना चािहये ।
उरकालामृत म0 एक अ'य दिMण भारतीय िविध लTन िनणय के स%ब'ध म0 बताई गई है । तदनसु ार
लTन को 7ात करके पवू व त् उससे नकता का शु 5  !( ! #
नकता से :  :;] तक िकसी एक संDया को पछ ू ल0 । बताई गई संDया - ^ से भाग द0 जो
लिHध हो, वह मेषािद गतलTन रािश है । शेष सDं या उस लTन म0 eयतीत नवांश6 कN होती है । इस
लTन म0 वतमान <ह6 को थािपत करके फल कह0 । उदाहरणाथ कोई eयि` हमसे न  !" I
उराख ड मु त िवविवालय 206
वष   BAJY- 301
@Y
V ( @ ^^ संDया  !" # ^^/^ = :: लिHध , 5H ; !" # J: आ>ढ़ लTन या न लTन म0
:: 5$Z   !", J: मीन लTन &(   # 5H ; से समझा िक उस लTन म0 थम
नवांश ही वतमान है ।
.न 
 1  ) तBकालीन लTन मा से न का िवचार करना सवाEगीण नहP है ।
के वल न लTन से न फल कहने कN प=ित म0 भी चक ू रहने कN स%भावना बनी रहती है । एतदथ
कुछ बात6 का @यान रखना आवय !" #
1. ताBकालीक लTन 2. आ>ढ़ लTन 3. न का था( 4. दैव7 का नािसका व 5.
नकता dारा िनज अगं पश अथात् पृnछक कN चेOटा 6. तBका( 5(
स'ु दर थान6 पर िकया गया न सफल एवं अिनOट थान एवं महु x ख ड म0 बताए अशभु काल6 म0
िकया गया न िनOफल होता है । न िवषय से स%बि'धत वतु का दशन होने से अभीOट 
होता है । शभु सचू क शHद 5 फल कारक होते हc ।
उदाहरणाथ कोई eयि` स'तान िवषयक न करे और बालक का दशन या बालक कN @व(
अथवा स'ु दर फल िदखे तो अभीOट लाभ होता है । इस कार समझना चािहए । शकुनािद िवचार के
िलए पाठक6 को वृहBसं!, नमाग एवं वृ=यवन जातक का अ@ययन करना योTय !" #
Bहr कz अव*था )
दीतो
#"  
: *व*थ: सुता  #:: 
 : पcरहीन;च सुवीय;चािधवीयक: 
*वो\चे दीत: समाjया" #(
#: कzितत: 
मुिदतो िम(गेह*थ: *व*थ;च *वगृहे ि*थत: 
श(ुगेहि*थत: सुतो !ये  #:: 
#( &" #  "*त=तो Bह: 
सुवीय: : ाै: *वो\चािभमुखसंि*थत: 
अिधवीयI िनगिदत: सुरि;म: शुभवगज: 
दी8त, 1(, & 1, वथ, स8ु त, (@>, & H, पWरहीन, सवु ीय, अिधवीय, ये दस कार के <ह
होते हc । उसम0 अपने उnच म0 रहने से दी8त नीच म0 रहने से 1(S िमगृही मिु दत अपने गृह म0
वथ शु रािश म0 रहने से स8ु तS दसू रे <हसे परािजत होने पर S (&R  (  !(S
अतंगत <ह मिु षत और उnचािभमख ु रहने से सवु ीय और उिदत, शभु वग िथत <ह अिधवीय
! !" #

उराख ड मु त िवविवालय 207


वष   BAJY- 301
Bहr के अव*था  * 
दीते िसिG;च कायाणां दीने दु:&: 
*व*थे कzितसतथा
् ल`मीरान!दो  
  
सुते cरपुभयं दु:खं धनहािनिनपीिडते ।
सुपीते पcरहीने च कायनाशोथस= : 
गजा;वकनकावािl: सवु ीयd र:नसVप
: 
अिधवीयR राAयलि&धBहैिम(ाथस=: 
दी8त <ह रहने से कायh कN िसि= होती है । दीन <ह रहने से द:ु ख कN ाि|, वथ <ह रहने से कNित
$5, मिु दत<ह रहने से ल_मी और आन'द !- !" # स8ु त<ह म0 शुभय, 1: R, िनपीिडत<ह म0
B(!(, मिु षत<ह म0 तथा पWरहीन<ह म0 कायनाश, धननाश होता है । सवु ीय <ह म0 !I E-
सोना कN ाि| और रBन स%पि भी होती है । अिधवीय <ह योगकारक होने से राय ाि|, िम
सगं म और धनस<ं ह होता है ।
बोध  न 
1. OटाS ! !" )
. न - R. नकता को ग. न6  &!V - E. नोर करने वालो को
2. पभ:ू से ताBपय है )
. िवOणु R. ƒ„ा ग. >R घ. &
3. दशभेदं <हाणां च ............... P I #
िवमृयै‰च कथये'नानेकं ाह पभ:ू ##
. योH&/ R. न&/ . N&/ E. नMम्
4. आ>ढ़ से ताBपय है )
. नकता के बैठने से ख. नकता dारा अिधिjत िदशा से
. नकता dारा न  E. कोई नहP
5. पवग का वा& !" )
. &P  R. 5( . च'R& E. B
6. तवग का वा& !" )
. ग>ु ख. 5( . च'R& E. &P 

उराख ड मु त िवविवालय 208


वष   BAJY- 301
रिवBह*वbप -
पूव: स:वं नृप*ता: E(ं Bी'मोbण;च : 
मधhु क् पैि5को धातु: / : स`ू म(" : 
रिव पवू  िदशा के वा&, सBवगणु धान, , िपतृ<ह, Mियजाित, गमव, रत वण,
 P , मधसु मान ने वाला, िपदोषधान, परा:मी, &!(  5  !- !" #
च!2*वbप 
कफz वषामुदुमाता पयो गौर;च साि:वक: 
जीवो व;य;चरो वृ5ो माbतांशो िवधु: सुhक् ।।
च'Rमा कफाBम , वषा ऋतु के वा&, कोमल और मातृ <ह, दधू का िय, गौर वण , सBव N ,
जीव6 के वा&, वैयजाित का वा&, शीrगित <ह, -, $ J5 P , स'ु द yR
  !", च'Rमा कN कMा सबसे नीचे है इससे इनकN गित सबसे अिधक है, J: $! 1"
शीrगित कहलाता है । शिन कN कMा सबसे उपर होने से उसकN गित म'द है इसिलये उसे म'द 
<ह कहते है ।
कुज *वbप
Bी'म: E(तमो र तो याVय: सेनाBणी;व: 
युवा धातु;च िपगं ाE: Pूर: िप5ं िशखी कुज: 
मगं ल <ह <ीOमऋतु का वा&, Mिय जाित, लालवण, दिMणिदशा का वा&, (($, P
व, समथ, गैWरकािद धातु का वा&, पीली ऑख0, :ूर<ह, िप धान तथा िशखावान होता है
बुध *वbप 
शरदीशो हcरदीघ: षढो / .  : 
िलिप उ5रेश;च शू2: सौVयिeधातुक: 
बधु <ह, शरदऋतु का वा&, यामवण, ल%बे 1 , (@P , मल ू क'द का वा&, & ,
लेख म0 पटु, उर िदशा का वा&, शRू जाित का वा&,  ) @ ) कफ के कोप वाला है ।
गुb *वbप 
स:वं िव5ो िहम: ;ले'म: दीघI म!(ी ि7जो नर: 
म@यैशानी कफz जीवो मधिु पगं लhक तथा ।।
वृहपित सBव N , B((, शीतल व , कफाBम, ल%बे 1 , इ'R का म'ी,
ƒा„णवण, प> ु ष<ह, म@याŽ बली, ईशान कोण का वा&, कफN और मधसु मान uिU वाला है ।

उराख ड मु त िवविवालय 209


वष   BAJY- 301
शुP *वbप 
शुP: शा!तो ि7जो नारी व;यो म!(ी (: : 
आ3नेयीिद कफ;चाVल: कुिटलािसतमूधज: 
शा'तव, ƒा„N, ी<ह, वय, राMस6 के म'ी , PP , गौरवण, अिTनकोण का
वा&,कफाBम, खे रस का िय और काला के श वाला होता है ।
शिन *वbप 
कृ'ण*त: 6" G: 6 षढो मूला!:य : 
: : Pूर: पि_मो वातुल: : 
5( , पाप<ह, दबु ल, zV , (@P , मलू 6 के वा&, %लेnछ6 के वा&, A, 55
ऋतु का वा&, वायतु Bव, :ूरकृ ित वाला,पिSम िदशा का वामी और वाताBम !" #
राहZ *वbप 
राहZधातु: िशखी मूलं शेषम!य\च म!द 
िच!तनीयं िवल3ने ात के !2गा7ा बलािधकात् ।।
राह9 गैWरकािदधातु का वा& !", 5R(, मलू क'द6 के वामी है और बांकN रंग >प सब शिन के
समान ही होता है । लTन से बधु से या के 'Rगत <ह से या सब से िवशेष बल वाले <ह से वण कहना
!$ #
इस कार निविध को समझकर वषकु डली के आधार पर <ह6 के व>प एवं उनकN अवथा
आिद के आधार पर फलोदशािद कम करने चािहये ।
2.4   
इस इकाई के अ@ययन के पचात् आपने जाना िक न कता को चािहये िक सवथम
नकु ड को पिव थान म0 फल, Reय, फूल6 से पजू न करके एक काल म0 एक ही योजन को
योितषी से पछू ना चािहये । तBकालीन लTन मा से न का िवचार करना सवाEगीण नहP है । के वल
न लTन से न फल कहने कN प=ित म0 भी चक ू रहने कN स%भा( ( रहती है । एतदथ कुछ
बात6 का @यान रखना आवय !" # 1.ताBकालीक लTन 2. आ>ढ़ लTन 3. न का था( 4.
दैव7 का नािसका व 5. नकता dारा िनज अगं पश अथात् पृnछक कN चेOटा 6. तBका(
5( । स'ु दर थान6 पर िकया गया न सफल एवं अिनOट थान एवं महु x ख ड म0 बताए अशभु
काल6 म0 िकया गया न िनOफल होता है । न िवषय से स%बि'धत वतु का दशन होने से अभीOट
लाभ होता है । शभु सचू क शHद शभु फल कारक होते हc ।
उराख ड मु त िवविवालय 210
वष   BAJY- 301
2.5 पारभािषक शदा
;निच!ता ) न शा कN पु त  (&
पृ\छा ) नकता
Bहाणां ) <ह6 म0
स!निच5 - R5   &(
सुशा!त: ) अnछे कार से शा'त
िवषमाEर ) िवषम अMर
*वािम:व ) &(
+  ) वा&

  ) C J( 
उदाहरणाथ ) C1!N  $
ि7ज ) ƒा„ण
6 ) 1  @
 ) षड् ऋतओ ु ं म0 एक
 ) !
6 ) 
मागगमन ) माग म0 जाना
2.6 बोध  न के उ6र
1. R
2. R
3.
4. R
5. R
6. 
2.7 सदभ थ
1. तािजक नीलक ठी ) नीलक ठ दैव7

उराख ड मु त िवविवालय 211


वष   BAJY- 301
2. योितष सवव ) सरु े श च'R िमi
2.8 िनबधामक  न
1. न िविध या !" # R$ #
2. <ह6 के व>प का वणन कNिजये #

उराख ड मु त िवविवालय 212


वष   BAJY- 301
  3 )न लन िस,ात

इकाई क :परे खा
3.1 ता 
3.2 उे

3.3 
न ल.न िस<ा!त
बोध 

3.4 

3.5 पारभािषक शदा &
3.6 बोध 
न के उ र
3.7 स!दभ "!थ !' &
3.8 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 213


वष   BAJY- 301
3.1 ता
तु  000 301 के चतथु  ख ड  O$ इकाई से स%बि'धत है । इस
इकाई के अ'तगत तािजक शा  J(  ;नल3न िसGा!त का उ[लेR $  ! !" #
इससे पवू  कN इकाईय6 म0 आपने न योजन एवं नB  7ान ा8त  $ !" $!ZP 
इकाई म0 आप न लTन िस=ा'त का अ@ययन करे ग0 ।
तािजक शा म0 न करने कN िविध या !" % उसका योजन या !" % उसका महBव या !" % (
सभी िवषय6 से स%बि'धत जानकारी आपको ततु इकाई म0 होगी ।
इस इकाई म0 आप मDु य >प से न लTन िस=ा'त स%बि'धत िवषय6 का स%यक् अ@ययन ा8त
करे ग0 ।
3.2 उे य
 इकाई के अ@ययन के पचात् आप जान पायेग0 िक )
1. न लTन िस=ा'त या !" #
2. न लTन िस=ा'त का योजन या !" #
3. न लTन िस=ा'त के फल या !" #
4. न लTन िस=ा'त के महBव या !" #
5. न लTन िस=ा'त म0 या ) या !" #
3.3  न ल*न िस:ात
योितष शा म0 न लTन का अBय'त महBवपणू  योगदान है । गोचर के अनसु ार <ह6 कN
िथित जानकर न कु डली के आधार पर जातक शा के अ'तगत फलादेश करने कN पर%प
योितषीय6 को सिु विदत है । न कु डली म0 न लTन होता है । तािजकनीलक ठी म0 भी
षटपंचािशका के आधार पर न लTन को समझाया गया है । षट्पंचािशका एक न <'थ !", 
98 लोक है तथा इसके रचियता आचाय पृथयु शस है । न लTन का िवचार करते ह9ये C(
I( !" -
" " : *वािमh'टो युतो वा सौVयैवा *या5*यत*याि*त विृ G ।
पापैरेवं त*य भाव*य हािनिनदd'टOया पृ\छतो ज!म"  
न लTन से या ज'म लTन से जो जो भाव अपने वामी या शभु <ह6 से यतु uOट ह6, C( ) उन भाव6
कN वृि= होती है और िजन ) िजन भाव6 पर पा<ह ह6 या उनकN uिU पड़ती हो, C( ) उन भाव6 कN
उराख ड मु त िवविवालय 214
वष   BAJY- 301
हािन होती है । इस कार सभी भाव6 का िवचार करना चािहये ।
सौVये िवल3ने यिद वा *ववगd शीषIदये िसिGमुपैित कायम् ।
अतो िवपय*तमिसिGहेतु: कृ\ˆे ण सिं सिGकरं िविमuम् ।।
अथ ) लTन म0 शभु <ह हो, या लTन म0 शभु <ह का वग हो, या लTन म0 शीषbदय रािश (&I( , P!,
क'या,  ,वृिSक एवं कु%भ ) हो तो काय िसि= होती है । इससे िवपरीत रहने से कायहािन होती है
यिद पाप शभु दोन6 से लTन यु त uOट हो तो लेश से कायिसि= होती है ।
;न ल3न से कायिसिG 
ल3नपितयिद ल3नं कायािधपित;च वीEते कायम् ।
ल3ना#: कायR कायdश: प;यित िवल3न 
ल3ने: कायdशं िवलोकये.ल3नपं तु कायdश: 
शीतगुh'टौ स:यां पcरपूणा कायसंिसिG: 
यिद लTनेश लTन - 1R !-, कायqश कायभाव को देखता हो या लTनेश काय को, कायqश लTन
को देखता हो अथवा लTनेश कायqश को, कायqश लTन - 1R !- !Z C(- च'R& 1R -
कायिसि= होती है ।
कथयि!त पादयोगं प;यित सौVयो न ल3नपो ल3न 
ल3नािधपं च प;यित शुभBह;चाधयोगो( ।।
>: शुभो Bहो यिद प;यित ल3नािधपं िवल3नं  
पादोनयोगमाहZ*त
 7 : कायसंिसGो ।।
ल3न $
 सित शुभBहौ 7ौ (योथवा ल3न 
प;यि!त यिद तदानीमाहZयIगं ि(भागोनम् ।।
ल3नेशदशने सित प;य!त: पूणयोगकरा: 
यिद शभु <ह या लTनेश लTन को नहP देखता हो तो कायिसि= का एक चतथु ाEश योग होता है । यिद
शभु <ह लTने5 - 1R -, कायिसि= का दो चतथु ाEश योग होता है । यिद एक शभु <ह लTने5 -
वा लTन को देखता हो तो तीन चरण योग होता है । यिद लTनेश दो शभु <ह6 को देखता हो या तीन
शभु <ह लTन को देखता हो तो तृतीयाश ं ोन योग होता है । यिद लTन को लTने5 1R !- $ (
शभु <ह लTन को वा लTने5 - 1R !- -, कायिसि=योग पणू  होता है ।
PूरावेEणवAय;च!2: सौVया;च खेचरा ल3न 
च'Rमा पाप<ह कN uिU से बचा हो, शभु <ह लTन को देखता हो तो कायिसि= योग पणू  होता है ।

उराख ड मु त िवविवालय 215


वष   BAJY- 301
PूराPा!त: Pूरयुत: Pूरh'ट;च यो Bह: 
िवरि;मतां प!न;च "िन'ट*
 : 
जो कोई <ह पाप से परािजत, पाप<ह से यतु , या uOट !-, अतंगत हो वह <ह अिनOटफल देते हc ।
ल3न  कायिसिG;न ( 
अमुकं गदेित कायR कदा भिव'य:यमु( पृ\छा  
ल3ना : कायR ल3नं कायािधप: प;ये 
ल3न*थ: कायdश: प;यित चे.ल3न . 
)  
त:कायR य0!यि*थतं तदा स:वरं न *या 
प;यित तदा च ल3नं 2`यित च!2ं िवल3न . (
 
ल3ने कायd च यदा 7यो;च योगे तदा िसिG: 
यिद कोई पछू ता हो िक हमारा अमक ु काय कब िस= होगा % न के उर म0 यह देखना चािहये
िक यिद लTनेश कायभाव को देख,0 कायqश लTन को देखे तो कायिसि= होती है अथवा कायqश लTन
म0 होकर लTनेश को देखता हो तो उसी Mण म0 कायिसि= होती है या कायqश लTन से िभ'न थान म0
रहकर लTनेश को देखता हो तो िवल%ब से कायिसि= होती है । यिद कायqश लTन -,च'R& -
और लTनेश को भी देखता हो तो कायिसि= होती है । यिद लTन म0 या कायभाव म0 लTने5  $P -
होता हो अथात् लTन ही म0 लTनेश कायqश दोन6 हो , या कायभाव ही म0 लTनेश कायqश दोन6 ह6 , -
कायिसि= होती है ।
ल3न से कायहािन यो ( -
यिद ल3नपं न प;यित कायाधीशो िवल3नमथ त*य 
काय*य हािनb ता ल3नमृते िकमिप नो वा\य 
यिद कायqश लTनेश को वा लTन को नहP देखता हो तो काय कN िसि= नहP होती है । यहॉ
कायिसि=न म0 लTन के िबना कुछ भी नहP !( !$ #
ल3न;न िनbपणम् 
भूतं भविद्Uव'य!मम िकं कथयेित जातपृ\छा  
ल3न  : शिशनो वा बलम!वे'यं 7  
h'टवा नवांशकबलं शभ ु h3योगं च सवकालेषु ।
'टु: शुभमादे;यं िवपरीतं Oय:य 
 
ल3नेशो मूसcरफो य*मादतीतमाjये  

उराख ड मु त िवविवालय 216


वष   BAJY- 301
येन युत*त*माTवदे'यं यो यो`यते त*मा 
यिद ल3ने ल3न : सौVय "   ": सौVयै: 
त:'टुOयाकुलता शरीरदोषा िवन;यि!त ।
पापो यिद ल3नपित*तदा किलOया: 
सौVये िनवृितबिु G2Oयािl: सौjय . ( 
यिद कोई िकाल स%बि'धत न  !- D $! (( ! !-  & V , वतमान या
भिवOय म0 या 5 5  !", इसका िववेचन करने इस कार करना चािहये )
इस न म0 लTनेश और च'Rमा का बल साधन करना चािहये । उन दोन6 के िनबल रहने से काय का
(5 !-  s !( !$ #
सवकाल म0 नवांश का बल और शभु <ह कN uिU, शभु <ह का योग नका का शभु करता है ।
पाप<ह के योग से, uिU से िवपरीत फल !( !$ #
िजस <ह से लTनेश मसू Wरफ (इBथ5)  !-, उससे भतू फल कहना चािहये । िजस <ह से
लTने5 $ !-, C वतमान फल कहना चािहये । िजस <ह से लTनेश इBथ5   C 
फल कहना चािहये । यिद लTनेश लTन म0 हो, शभु <ह से यतु हो, - नकता कN िच'ता खBम !-
है । शरीर के सभी दोष समा8त !-  !" #
यिद लTनेश पाप<ह हो तो कलह, - , धननाश होते हc । यिद शभु <ह लTनेश हो तो िथर बिु = होता
!", धनलाभ होता है तथा िवशेष सख ु भी ा8त !- !" #
ि7तीय *थान का ;न ( 
धनलाभ*य ;ने ल3नेशेने!दु : 
कुbते यदी:थशालं शभ ु युितh'ट्यां भवे.ला: 
PूरBहैधन*थैदूरे लाभो!यद'य  
Pूरमुथिशले धनेशे 'टा ि‰यतेथवा िवल3ने 
धनधनपतीथशाले मंदगितय( भावानाम् ।
तनुधनसहजादीनां 'ट*तद्7ारतो लाभ: 
धन लाभ के न म0 धन भावेश यिद लTनेश से या च'Rमा से इBथ5 $-  !-, शभु <ह का
योग होता हो या uिU हो तो धन लाभ होता है । यिद पाप<ह धन भाव म0 हो तो दरू देश जाने पर लाभ
होता है और भी अिनOटफल होता है । यिद धनेश को पाप<ह से इBथ5 !- !-, तो नकता
का मरण होता है या लTने5, धन भाव से या धनभावेश से इBथशाल करता हो तो लTना1  

उराख ड मु त िवविवालय 217


वष   BAJY- 301
म0 म'दगित <ह हो उस भाव के dारा लाभ होता है ।
बोध  न 
1.न लTन !- !" )
. न कु डली म0 ख. नवमांश कु डली म0 ग. RेOकाण कु डली म0 घ. वष कु डली म0
2. HF/@P5  $ !" )
. !&! R. @OI$ 5 . गणेश दैव7 घ. भाकराचाय
3. शीषbदय रािशयॉ है )
. 7,9,8,= R. 7,9,8,=,],:: . :,\,=,] E. [,=,],^
4. 55S ! !" )
. सयू  को ख. च'R& - . & P - E. 5( -
5. स8तम था(    $  !" )
. 5  R. पBनी  . A$  E. कोई नहP
तृतीय *था  ( -
O$ भावेश यिद तृतीय भाव को देखता हो या यिद तृतीयेश तृतीयभाव को शभु <ह सब देख0 तो
नकता के भाई नीरोग रहता है, सख ु ी रहता है । यिद पाप<ह देख0 तो भाई रोगी ह6 ऐसा कहना
!$ #
तृतीयेश षOठथान म0 हो, षOठे श से इBथ5 $-  !- -  - - !-  s !(
!$ #
षOठे श तीसरे थान म0 हो, तृतीयेश पापयतु uOट !- -  - - !-  s !( !$ #
चतुथ *था  ( )
लTनेश और च'Rमा इन दोन6 से जो चतथु  था(, उसम0 उन दोन6 म0 मथु िशल हो, या वहॉ कोई अnछे
<ह ह6, तो नकता को कहP याा करने म0 भिू मलाभ होता है ।
यिद िकसान न पछ ू े िक मझु े खेती से लाभ होगा या नहP % तो उस समय का जो लTन !- C-
( &W(, लTन से चतुथ रािश को खेत समझना, लTन से स8त& 5 - O H &W(
!$, एवं लTन से दशम को वनपित स%बि'धत समझना चािहये ।
पंचम *था  ( 
यिद कोई ी न पछ ू े िक मझु े स'तान होगा या नहP % ऐसी पWरिथित म0 कु डली म0 लTन D
च'Rमा को पचं मेश से इBथशाल योग होने से स%भ !( !$ # I @P &5 लTन म0 हो, $
उराख ड मु त िवविवालय 218
वष   BAJY- 301
लTने5, च'Rमा पंचम भाव म0 ह6, तो शीr स'तान होगा ऐसा कहना चािहये । नत $- !- !-, -
िवल%ब से स'ता( !( !$ # $1 िd:वभाव भावरािश लTन !-, शभु <ह से यतु uOट !-, -
एक ही बार दो स'ता(  $- !- !" # $1 लTन  @P&5, या लTने5, @P&5, प> ु ष म0 हो तो
गभ म0 लड़का होगा ऐसा कहना चािहये ।
पंचम भाव का िवचार इस कार से भी करना चािहये 
च'Rमा यिद िवषम रािशय6 म0 हो और प> ु ष<ह (सयू , मगं ल एवं वृहप) म0 िकसी से इBथ5
करता हो तो गभ म0 लड़का कहना चािहये या च'Rमा िदन म0 बारह बजे बाद सयू  के पीछे हो तो
क'या होगी । यह योग कृ OणपM म0 सा= स8तमीितिथ से अमावस तक स%भ !" #
या नलTन कN होरा के वामी सयू  होकर यिद िवषम रािश म0 हो, तो गभ म0 लड़का ही होगा या
@P&  , वा पचं मेश च'Rमा से यतु uOट हो या शभु <ह से यतु या uOट हो तो धमाBमा स'ता(
!- !", अथवा पंचमेश अपने उnच म0 ह6, उिदत ह6 तो भी धमाBमा स'ता( !- !" #
ष'ठ *था ( 
- &(H य/ रोग से छुटकारा का न पछ ू ता हो तो इस न म0 लTन रािश से वै या डाट 
, स8तम थान से eयािध का िवचार और दशम था( - -  &W( , अथात् दशमथा(
से रोगी का वभाव लMण समझना तथा चतथु  था( - DHB &W   ( !$ #
यहॉ @यातeय हो िक लTन म0 पाप<ह हो, या पापयतु uOट लTन हो तो वैकN दवाई से गणु नहP
मालमू पड़ेगा अथात् लाभ नहP होगा, बि[क उसकN दवाई से बीमारी और बढ़ सकती है । सभी
पाप<ह दशम थान म0 हो अपने कुप^य A1 1-H  1  N (हP होता वा स8तम म0 पाप<ह
हो तो एक रोग से दसू रा रोग हो जाता है । इस कार चतथु  थान म0 भी पाप<ह होता है तो भी वैसे
!  !( !$ #
इसी कार से स8तम थान से ी , अOटम था(  A$, नवम थान से भाTय एवं धम, 15&
था(  (U , एकादश से लाभ एवं dादश से हािन का िवचार करना चािहये ।
3.4   
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  योितष शा म0 न लTन का अBय'त
महBवपूण योगदान है । गोचर के अनसु ार <ह6 कN िथित जानकर न कु ड  AB @
जातक शा के अ'तगत फलादेश करने कN पर%परा योितषीय6 को सिु विदत है । न कु डली म0
न लTन होता है । तािजकनीलक ठी म0 भी षटपंचािशका के आधार पर न लTन - &W$
गया है । षट्पंचािशका एक न <'थ !",  98 लोक है तथा इसके रचियता आचाय पृथयु शस
उराख ड मु त िवविवालय 219
वष   BAJY- 301
!" । न लTन से या ज'म लTन से जो जो भाव अपने वामी या शभु <ह6 से यतु uOट ह6, C( ) C(
भाव6 कN वृि= होती है और िजन ) िजन भाव6 पर पा<ह ह6 या उनकN uिU पड़ती हो, C( ) C(
भाव6 कN हािन होती है । इस कार सभी भाव6 का िवचार करना चािहये ।
3.5 पारभािषक शदा
जातक शा*( ) फिलत शा
' .( ) योितष का न <'थ
*वािमh'ट: ) वा&  1R  !-
": ) -
सौVय ) 5
शीषIदय ) 7,9,8,=,],:: 5$Z
कायिसिG ) काय कN पणू त ा
ल3न  ) लTन का वा&
चतुथाRश ) UI J5 P
&( ) आकाश म0 चलने वाला
 ) भाव का वा&
पापBह ) अशभु <ह
धमा:मा ) धम धारण करने वाला
*व*था ) अपने थान म0
पुbषBह ) सयू , मगं ल एवं वृहप
मागगमन ) माग म0 जाना
3.6 बोध  न के उ6र
1. 
2. R
3. R
4. R
5. R

उराख ड मु त िवविवालय 220


वष   BAJY- 301
3.7 सदभ थ
1. तािजक नीलक ठी ) नीलक ठ दैव7
2. योितष सवव ) सरु े श च'R िमi
3.8 िनबधामक  न
1. न लTन या !" # R$ #
2. न लTन िस=ा'त का िवतृत वणन कNिजये #
3. उदाहरण सिहत समझाइये िक न कु डली का िनमाण कै से होता है ।

उराख ड मु त िवविवालय 221


वष   BAJY- 301
  4 )ना-र िस,ात

इकाई क :परे खा
4.1 ता 
4.2 उे

4.3 
ना=र िस<ा!त
बोध 

4.4 

4.5 पारभािषक शदा &
4.6 बोध 
न के उ&त

4.7 स!दभ "!थ !' &


4.8 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 222


वष   BAJY- 301
4.1 ता
तु  000 301 के चतथु  ख ड के चतथु  इकाई से स%बि'धत है । इस
इकाई के अ'तगत तािजक शा  J(  ;नाEर िसGा!त1 का उ[लेR $  ! !" #
इससे पवू  कN इकाईय6 म0 आपने नयोजन, नB, नलTनिस=ा'त का 7ान ा8त  $
!" यहॉं इस इकाई म0 आप नाMर िस=ा'त का अ@ययन करे ग0 ।
तािजक शा म0 नाMर िस=ा'त या !" % उसका योजन या !" % उसका महBव या !" % (
सभी िवषय6 से स%बि'धत जानकारी आपको ततु इकाई म0 होगी ।
इस इकाई म0 आप मDु य >प से नाMर िस=ा'त स%बि'धत िवषय6 का स%यक् अ@ययन ा8त
करे ग0 ।
4.2 उे य
 इकाई के अ@ययन के पचात् आप जान पायेग0 िक )
1. नाMर िस=ा'त या !" #
2. नाMर िस=ा'त का योजन या !" #
3. नाMर िस=ा'त के अ'तगत या ) 2 A !" #
4. नाMर का महBव या !" #
4.3  ना;र िस:ात
मनOु य वभाव से ही िज7ासु ाणी !", uय एवं अuय गितिविधय6 को जानने के िलये
मानव मितOक मे सदैव उBसुकता रहती है, य6 कै से और या हो रहा है और या होगा आिद#
उसकN यह िज7ासा वृि उसके सामने अनेक ‹6 को उBप'न करती है,  को जानने कN
उसकN बल इnछा रहती !", C बारे म0 परू ी जानकारी हो जाने पर उसे असीम आन'द िमलता है।
यिप मन-मितOक म0 उBप'न होने वाली इnछा आकांMा उBसक ु ता शंका या िच'ता का 7ान और
&B( ( 1: सा@य है तथािप हमारे पवू ज 6 महाऋिषओ ं और आचायh ने मानव कN इस
वाभािवक िज7ासा कN पिू त के िलये ‹-शा{ कN रचना कN । ईशा कN पांचवP शताHदी से लेकर
A   िवषय म0 सैकड़6 मौिलक <ंथ6 कN रचना ह9यी,भाषा एवं अपनी शा{ीय जिटलता के
कारण यिप ये <'थ आज जनसाधारण के िलये रहय बने ह9ये है,तथािप इनमे मनOु य कN िज7ासा
D 7ान िपपासा को शा'त करने के िलये पया| साम<ी िवमान है।

उराख ड मु त िवविवालय 223


वष   BAJY- 301
N शाO
‹ शा{ योितष िवा का एक महBवपणू  अंग है,यह तBकाल फ (  शा{ है,&
हम तBकािलक लTन एवं <ह िथित के आधार पर eयि` के मितOक म0 उBप'न होने वाले ‹ और
C( 5 5 {    !"#  , रमल और वरशा{ इसके अगं है,इन शाखाओ ं म0
‹ाMर अक ं एवं वर के आधार पर ‹ के शभु या अशभु फ़ल का िनSय िकया जाता है। इस
शा{ म0 मDु यत: तीन िस=ा'त6 का चलन है:-
D.;नल3निसGा!त
E.…ाEरिसGा!त
F.*वरिसGा!त
 अलावा अक ं तथा चचा चेUा या हाव भाव के dारा भी मनोगत भाव6 का स_ू म िवे षण
$  !",उपय`ु सभी िस=ा'त6 के अ'दर लTन िस=ा'त <ह िथित का कथन करता है,D
<ह िस=ा'त uय  !", उसकN गित भी िनिSत है, इसिलये ही <ह िस=ा'त सबसे लोकिय
िस=ा'त माना जाता है।
;नाEर िवचार 
-थ ातौ      
cरपुनाशे वा काले पृ\छायां िनि_तं ‚ूयात् ।।
अकचटतपयशवगा रिवकुजिसतसौVय#$  
च!2*य च िनिद'टा*तै: *यु: थमोTवेवणk: 
ा:वा त*मा.ल3नं िवाय शुभाशुभं च वदेत् ।
वगािदम@यमा!:यैवणk: ;नोTवैिवषमरािश: 
रा(ौ ल3नं वदे:प\ृ छायु3मं कुजजीवानाम् ।
िसतरिवजयो;च नैवं रिवशिशनोरकरािश:वा 
त*मा:ा3व:वदे:पृ\छासमये शुभाशुभं सवम् ।
काल*य च िवानादेति\च!:यं बहZ;ने 
गभ न म0 धन लाभ के न म0, या आने जाने के न म0, तथा जय पराजय के न म0 या शनु ाश
के न म0, या िकसी भी न म0 उत रीित से काल 7ान करके कहना चािहये )
अब यहॉ रिव का अवग, मगं ल का कवग, श: ु का चवग, B का टवग और वृहपित का तवग,
शिन का पवग, च'Rमा का यवग और शवग किथत है । यहॉ न करने वाले के मख ु से जो थम

उराख ड मु त िवविवालय 224


वष   BAJY- 301
शHद (, उस का जो पहला अMर हो वह िजसके वग म0 पड़े , उस <ह का रािश लTन &W
शभु ाशभु फल कहना चािहये अथात् शभु <ह के लTन  5 , पाप<ह के लTन  J5 !(
!$ #
और यिद दैवात् न वाय का थम वण वग के आिद या म@य या अ'Bय  !- - H& 5
और राि लTन समझना चािहये अथात् सयू  ) च'Rमा को छोड़कर Bयेक <ह के दो ) दो रािश हc,
उस म0 एक सम दसू रा िवषम, $I &P   &H (H&) तो वृिSक (&), I B  &I(
(H&) तो क'या (&) , श: ु का वृष (&), -   (H&) !", वही न  &W( !$ #
 ) च'R&   )  5 !", इसिलये इन दोन6 के वग से एक ही न !( !$ D
&P , B , वृहप, श:
ु , 5( ( <ह6 के वग होने से दो ) दो न !( !$ #
N िवचार
 &$ - ‹ पंछ ू ने आये,उस समय का इUकाल बनाकर लगन पU भाव पU और (&P5
के आधार पर ‹ कु'डली भावचिलत च: और नमांश कु'डली बना लेनी !$,बह9धा देखा गया
!"  योितषी आलयवश पच ं ाग से लगन के आधार पर कु'डली बनाकर फ़लादेश करने लगते
!",िक'तु फ़ल का िनSय करने कN ि:या म0 लगन आिद भाव एवं नवमांश भी िनणायक होते हc,J:
इनकN उपेMा करने से िनणय एक पMीय हो जाता है,और ‹ का फ़ल या पWरणाम यथाथ >प से
कट नही घटता अतु # dादश भाव ‹ कु'डली म0 लगन से ार%भ करके :[ भाव6 कN गणना कN
 !", $! :[ भाव इस कार है:-
D.तनु या थम भाव
 भाव से शरीर शरीर का >प शरीर म0 िच'ह शरीर के सखु दखु शरीर का वभाव शरीर के अ'दर
िववेक शरीर म0 मितOक कN ि:याशीलता आिद का िवचार िकया  !",इस भाव म0 िमथनु क'या
तलु ा और कु%भ रािशयां बलवान होती है,D  भाव का पWरणाम बताने वाला सूय ही कारक
!- !"#
E. धन या ि7तीय भाव
 भाव से जो शि` शरीर के अ'दर होती है,या शरीर को बाहर कN दिु नया से & !",D 
शि` से शरीर को इस संसार म0 िनवाह करने कN Mमता & !" C  & !",पWरवार कN
शि`,आख ं 6 कN शि` नाक कN शि` वाणी कN शि` वाणी म0 आवाज कN शि` शरीर म0 >प कN
शि` गाने कN शि` हावभाव कट करने कN शि` ेम करने कN शि` संसार dारा दान िकये $
भोग6 कN शि`,चल स%पि कN शि` िजसके अ'दर सोना चांदी vपया ! ! R1( D

उराख ड मु त िवविवालय 225


वष   BAJY- 301
बेचने कN कला आिद कN शि` को जानने के कारक िमलते !",इस भाव का मािलक गvु होता
!",और गvु जो इन सबके बारे म0 7ान देने   !",- 1R  भाव कN शि`य6 का महBव
(  !"#
F.  # 
5 को इस ससं ार म0 कट करने के िलये और ससं ार म0 अपना परा:म कट करने का भाव इस
  1R  !",भाई बिहन6 का साथ,- Y-F !" D D शरीर कN आ7ानसु ार काम करते
!",शरीर कN ताकत का भाव िजसके dारा संसार के सामने समयाओ ं से लडने कN ताकत होती
!",आभषू ण6 का पिहनना और अपने बारे म0 शरीर के dारा अपनी स†यता कला और संकृ ित को
कट करना, काय करने कN िह%मत शरीर म0 होना,िह%मत और धैय कN माा का !-(, 
कार कN आय को ा| करने कN िशMा का होना,@z  dारा ली जाने वाली िड<ी
िड8लोमा,काय और परा:म को कट करने के िलये कम दरू ी कN यााय0 करना,शरीर के अ'दर बल
नही होने से और िदमाग म0 साधन6 को ा| करने कN चालाकN और छल का होना,अपने dारा साहस
- 1R(,मीिडया और लेखन dारा अपनी योTयता को कट करना,! !  5 - (
उसके dारा लोग6 का मनोरंजन करना,शरीर के अवयव6 का कमाल 1R(,A1   
अ'दर आजाते है।
बोध  न 
1. नाMर से ताBपय है )
. न अMर ख. न का आिद अMर ग. न E. कोई नहP
2. न शा  JP !" )
. िस=ा'त योH  R. जातक क'ध  . संिहता क'ध  E. त'
3. न शा के मDु य ( JP !" )
. 2 R. 3 . 5 E. 8
4. पवग का वा& !" )
. &P  R. 5( . B E. ग> ु
5. िdतीय था(   $  !" )
. B(  R. स'ता(  . !  E. (U 
2.सुPद या चौथा (

उराख ड मु त िवविवालय 226


वष   BAJY- 301
 शरीर के कट करने का थान चौथा भाव कहलाता है,िपता कN वीय और माता कN
-R,िजसके dारा इस शरीर कN ाि| स%भव ह9यी,@"1 !-(  1  5 - BN ( 
थान यानी माता कN गोद,और पालने वाली माता या दाई कN -1,5  > !-(  1 5
कN गम],सद] और बरसात से रMा करने का थान यानी रहने वाला मकान,&( - BN (
 P D P - BN करने वाला शहर और शहर को धारण करने वाला ातं और ातं
- BN (  15,उस देश कN सीमा,िवतार,और देश कN राजनीितक हालत,5 -
@(  $ योग िकये जाने वाले अ'न,और उस अ'न को पैदा करने का थान,5 कN पालना
म0 अ'य योग होने वाले कारक जैसे फ़ल सिHजयां दधू दही चावल @( D  A1,शरीर म0
अnछे पानी कN माा होने से शरीर का िनरोगी होना D (-  !-(  1 &(  R  ,5
म0 ग1ं  @(  !-( D 5  & !(  1 &(  1R  ,शरीर कN पानी कN माा के
J(  शरीर के ‘दय कN हालत,सांस के अ'दर जाने वाली नमी कN माा,D 5  !
छोडी जाने वाली सासं के साथ जाने वाली पानी कN माा तथा उस सासं को Y( @ 5
 J'दर जाने वाली हवा कN माा,शरीर के अ'दर पानी कN साफ़ माा के अनसु ार शरीर म0 िमलने
 1$,जो अ'य िकसी को भी अपने अनसु ार सुखी देखने कN क[पना,दसू र6 को अपने dारा िदये
(  सहायताय0,शरीर मे गदं े पानी के वाह से मितOक म0 कत होने वाले छ @F,दोत6
और बडे भाई के dारा िकये जाने वाले कजा दु मनी और बीमारी के भाव,माता कN पिहचान िपता
कN वैवािहक िथित,Y-F  !(-  B(, िशMा के ित िकये जाने वाले खचq, बीमाWरय6 का
R -R,( I  @  !,जीवन साथी के dारा िकये जाने वाले अपने कै Wरयर के
$ यास,A1      $  !",इस भाव म0 कक मकर और मीन 5$P
( !- !",बधु और च'Rमा इस भाव का संदेशा देते है।
G.पु( या पंचम भाव
िवा बिु = मं कN िसि= िवनय नीित eयवथा शासन देव भि` J( B( लाभ गभ और
गिभणी का हाल,स'तान कN संDया,पेट म0 अ'न या भोजन को पचाने कN शि`,ि{य6 के अ'दर
गभाशय का िवचार इस भाव से िकया जाता !",इस भाव का मािलक भी गvु होता है,और गvु के
अनसु ार ही शरीर म0 इस भाव का 7ान िमलता है।
H.cरपु या छठा भा
-B 1 !-( दु मन माया िच'ता शक ं ा रोग दघु ट ना चोट षडय' िवपि और शारीWरक दबु लता
  $  !",    &P  D 5( - &(  !"#

उराख ड मु त िवविवालय 227


वष   BAJY- 301
इसी कार से स8त&, अOट&, (&, 15&, एकादश एवं dादश था(   भाव6 का िववेचन िकया
 !"#
4.4   
इस इकाई के अ@ययन के पचा/ A@( (  ‹ शा{ योितष िवा का एक
महBवपूण अगं है,यह तBकाल फ (  शा{ है,इसमे हम तBकािलक लTन एवं <ह
िथित के आधार पर eयि` के मितOक म0 उBप'न होने वाले ‹ और उनके शभु ाशभु फ़ल का
  है। के रल रमल और वरशा{ इसके अंग है,इन शाखाओ ं म0 ‹ाMर अक ं एवं वर के
आधार पर ‹ के शभु या अशभु फ़ल का िनSय िकया जाता है। मनOु य वभाव से ही िज7ासु ाणी
!", uय एवं अuय गितिविधय6 को जानने के िलये मानव मितOक मे सदैव उBसक ु ता रहती है, य6
कै से और या हो रहा है और या होगा आिद# उसकN यह िज7ासा वृि उसके सामने अनेक ‹6
को उBप'न करती है, बात को जानने कN उसकN बल इnछा रहई है,उसके बारे म0 परू ी जा(
!- जाने पर उसे असीम आन'द िमलता है। यिप मन-मितOक म0 उBप'न होने वाली इnछा
आकाM ं ा उBसक
ु ता शक ं ा या िच'ता का 7ान और समाधान करना 1: सा@य है तथािप हमारे पवू ज 6
महाऋिषओ ं और आचायh ने मानव कN इस वाभािवक िज7ासा कN पिू त के िलये ‹-शा{ कN
रचना कN #
4.5 पारभािषक शदा
िजासु ) (( 
अh;य ) - 1R ( @
बल ) अिधक बलपवू क 
आकांEा ) !
ानिपपासा ) 7ान कN ाि| करने कN बल इnछा
;नाEर ) न का आिद अMर
cरपु ) शु
ा:वा ) (
 ) A( (
 ) श: ु
काल*य )  

उराख ड मु त िवविवालय 228


वष   BAJY- 301
पुया. ) प ु य  A &
h;य ) - 1R 1
*वरशा*( ) पच ं वर पर आधाWरत शा
6 ) 
4.6 बोध  न के उ6र
1. R
2. R
3. R
4. R
5. 
4.7 सदभ थ
1. तािजक नीलक ठी ) नीलक ठ दैव7
2. योितष सवव ) सरु े श च'R िमi
4.8 िनबधामक  न
1. न शा पर िट8पN R$ #
2. नाMर िस=ा'त कN िवतृत लेखन कNिजये #

उराख ड मु त िवविवालय 229


वष   BAJY- 301
  5 वर िस,ात

इकाई क :परे खा
5.1 ता 
5.2 उे

5.3 वर िस<ा!त
बोध 

5.4 

5.5 पारभािषक शदा &
5.6 बोध 
न के उ&त

5.7 स!दभ "!थ !' &


5.8 िनब!धा&मक 

उराख ड मु त िवविवालय 230


वष   BAJY- 301
5.1 ता
तु  000 301 के चतथु  ख ड कN @P& इकाई से स%बि'धत है । इस
इकाई के अ'तगत तािजक शा  J(  *वर िसGा!त का उ[लेR $  ! !" # 
पवू  कN इकाई म0 आपने नाMर िस=ा'त का 7ान ा8त  $ !" यहॉं इस इकाई म0 आप व
िस=ा'तS का अ@ययन करे ग0 ।
वर िस=ा'त या !" % उसका योजन या !" % उसका महBव या !" % इन सभी िवषय6 से
स%बि'धत जानकारी आपको ततु इकाई म0 होगी ।
इस इकाई म0 आप मDु य >प से वर िस=ा'त स%बि'धत िवषय6 का स%यक् अ@ययन ा8त करे ग0 ।
5.2 उे य
 इकाई के अ@ययन के पचात् आप जान पायेग0 िक )
1. व या !" #
2. वर िस=ा'त का योजन या !" #
3. वर िस=ा'त के फल या !" #
4. व िस=ा'त  महBव या !" #
5. वर िस=ा'त के अ'तगत या ) या A !" #
5.3 वर िस:ात
वरशा जातक शा का ही एक क'ध है । इस शा म0 व  AB @  )
!( , $ ) @$ , जीवन मरण का िवलेHN $ $ !" #  > ) @P  ) सषु %ना
नाडीवर सचं ारण वश काय कN िसि= अिसि= का िनधारण िकया जाता है । नाडीवर से स%बि'धत
िशववरोदय आिद <'थ हc । व ( J, , C, , w ) शा म0 ही नरपितजयचया नामक एक
िस= <'थ है िजसकN रचना संभवत: :;^8 शकाHद म0 ह9ई थी । इस <'थ म0 पॉच6 वर6 अ, , C,
, ओ के आधार पर ही मनOु य जीवन के समत शभु ाशभु कायh का समय साधन िकया गया है ।
वर िस=ा'त का िववेचन तािजकनीलक ठी म0 नहP िकया गया है ।
अ'य &(  योितष म0 वर 7ान नािसका के आधार पर माना गया है । नािसका का बांया वर
च'R तथा दािहना वर सयू  स7ं क होता है,च'R वर याा करना शभु और सयू  वर म0 अशभु मानते
!",जो वर बह रहा !-,उसी ओर का पैर पहले उठाकर याा करने से िवजय ा| होती है, 1-(-
वर एक साथ चलते ह6 तो श'ू य वर कहलाता है,उस समय म0 याा करना !( !- !",$!
उराख ड मु त िवविवालय 231
वष   BAJY- 301
याा शHद का बोध दैिनक जीवन याा से भी जडु ा होता !",$(  !&  @! J@(
रोजाना कN जीवन याा से भी मानकर चलते !",D  !  कर िबतर से पैर को नीचे रखने से
ही याा का शभु ार%भ हो  !"#
योितष िव7ान इस बात को वीकारता है िक eयि` के जीवन तथा चWर को मल ू तBव िकस कार
भािवत करते हc। जहाँ योितष के अनसु ार तBव एक ƒ„ाडं ीय कंपन के लMण बताते हc वहP (वर)
योग िस=ांत के अनसु ार ये तBव एक ख़ास शारीWरक लMण को बताते हc। िशव वरोदय <ंथ मानता
!" िक ास का <ह6, सयू  और चंR कN गितय6 से संबंध होता है।
योितष के िस= <'थ पंचवS म0 पॉच कार के व ! $ !" # $I )
उिदतं Yिमतं Yा!तं स!@या*तं तदन!त 
ज!म कम तथाधानं िपडं िछ2ं तत:  
पंच बालािदकाव*था नामा0Eरत*त 
आ0ो बाल: कुमार;च युवा वृGो मृतोिप वा ।।
<'थकार आचाय जापितदास ने वणवर :म से उिदत ) tिमत तथा tा'त वरािद सं7ा कN
क[पना कN है पर'तु कौन सा पंचवर है तथा िकस नामािद अMर से िकस कार ये सं7ाय0 कि[पत
कN जाय0गी इसको नहP कहा है । वणवर च: म0 ज'म नM का जो नामािद वण हो उसका जो ( J,
, C, , w ) इन पॉच6 वर6 म0 से जो व !- ! C 
 वर होता है । उिदत व  1V 
वर कN Yिमत सं7ा, तीसरे कN Yा!त , चौथे कN सं@या और पॉचव0 कN अ*त सं7ा होती है । ज'म
नM वश नामाMर के वश वणवर म0 बालािद अवथा होती है । जैसे थम बालाव*था िdतीय
कुमाराव*था O$ युवाव*था चतथु  वृGाव*था I @P & मृताव*था !- !" #
5H -
पंचवरा नामक <'थ म0 मDु य: आयदु ाय का िवचार है अतएव यहॉ ज'मनM के अनुसार वर6
का िवचार िकया गया है अ'यथा याा, य= ु , !1 I 1(, देवाचन, !1 5 5
कायh के िवचार म0 eयवहार नाम वाले वर6 का ही िवचार करना चािहये य6िक नरपितजयचया
नामक <'थ म0 eयवहार नाम से ही वर6 का िवचार िकया गया है जैसे नरपितजयचया म0 कहा गया है
 )
सु तो भाषते येन येनाग\छित शि&दत: 
त( नामा0 वणd या मा(ा मा(ा*व:   
िजसके eयवहार नाम अनेक ह6 उनके िलय िकस नाम से िवचार होगा । इसका िनणय िन%न लो 

उराख ड मु त िवविवालय 232


वष   BAJY- 301
पOट !" -
संा!तर सिहत वण*वर चP 
+ ?  > I पच
ं *व
  $ * ' वण
+  , - . //
0 1  2 3 //
 4 5 # //
6   7 8 //
 % 9   //
:3 िमत ात संया अत संा
जम कम   िपड िछ सं ात7
#8 7   वृ  सं ात7

बहŠिन य*य नामािन नर*य *यु sच 


: प;चाTवो नाम Bा^ं *व
: 
इससे भी पOट िस= है िक के वल आयदु ाय को छोड़कर अ'य सभी eयवहार6 के िलये eय! (&
ही <हण करना चािहये ।
किथत *वरr के फल 
उिदते िवजयो िन:यं Yिमते लाभ एव च ।
Yा!ते च िसिGमानोित स!@या*ते मरणं 1ुवम् ।।
अथात् C1त वर म0 काय करने से िवजय, tिमत वर म0 लाभ, tा'त वर म0 िसि= और स@ं या
तथा अत वर म0 िनिSत ही मरण होता है ।
दशा *व  
य( नामाEरं ातं त( चैवोिदत: *व: 
त*मा7षR िवजानीया7षा!मासो भवे:पु: 
मास7यं िवधातOयं िदनं च 7ादशो5रम् ।
एवं Pमेण बोधOयो वषभाग*तु .( 
काितक*य परे भागे नव Bा^ा यथा तथा ।
मागपौषो तथा देयं माघ*य च िदन(यम् ।।
वणवर च: म0 िजस वर के नीचे का नामाMर ा8त हो वही उिदत व !- है । उसी उिदत व

उराख ड मु त िवविवालय 233


वष   BAJY- 301
से वषार%भ होता है एवं वहP से वष का पॉच भाग कर पॉच मास कN अथात् C1 ) tिमत ) tा'त
) स@ं या तथा अत स7ं क मास0 कN क[पना आचाय के dारा कN गई है ।
   dादशोरिदनमासdयS अथात् बहर ) बहर िदन के :म से वष म0 पॉच भाग कर
के उिदतािद पॉच6 वर होते हc । इस तरह एक वष म0 पॉच कि[पत मास होते हc ।
इस <'थ म0 काितका'त (!(S इBयािद से वषार%भ िनधाWरत िकया गया है अतएव यहॉ भी
वषभागतु @PB ! C AB @ स को पOट िकया गया है जैसे काितक शु ल पM के
अ'त का नव िदन और मागशीष पौष स%पणू  तथा माघ के तीन िदन अथात् ( =[ िदन6 को JS
व  ( # &E  5H [= िदन फा[ग(ु  7; िदन चै के :9 1( ( =[ िदन6 को S व
के नीचे । चै के 5H :9 1( "5R  7; िदन येOठ  [= 1( ( =[ िदन6 को CS व 
नीचे। येOठ  5H 7 1( AH?  7; िदन iावण के 7; िदन और भाRपद के ^ 1( ( =[
िदन6 को S वर के नीचे तथा भाRपद के [: िदन आिन के 7; िदन और काितक के [: 1(
( =[ िदन6 को wS वर के नीचे थािपत करने से पॉच मास होते हc । यहॉ पर अकारािद व
उपलMण मा है वतु : वणवर से िजसका जो वर उिदत हो उसी से वष भाग कN क[प( !-
!" #
मासामक दशावर च; 
     पच
ं व
.  .  ';.
!ये.  6.  मासिदन स ं या
.%.  5.  ;.  .  आि$न. मासिदन स ं या

4<.  चै(
!ये.  )ा.  .  मासिदन स ं या
.    6.   मासिदन स ं या
 3     सपण
ू  िदनस ं या

तथा व व ज'म1  =[ 1(   ) एक मास क[पना करके पॉच मास एक वष म0 होते है
। ये ही मास :म से उिदतािद वर6 के दशामान होते हc ।
ित4यािद *था   
एवं Pमेण दातOयो वष पूणR यथा भवेत् ।
: ितपदािद;च कुजािदवारिनण : 
न!दा भ2ा जया cर ता पूणा;चािप यथा Pमम् ।

उराख ड मु त िवविवालय 234


वष   BAJY- 301
Pमेणा=: दातOया Bा^;चा=समु\च : 
च!2ा'टौ थमे देया नग नागा ि7तीयके ।।
तृतीये चाि3ननवकं चतुथd च नवBहा: 
पंचो5रशतं देयं पंचमे पंचसुPमात् ।।
+
*वरे'वेवं ित4य=;च दापयेत् ।
पवू bत :म से अकारािद वर6 के नीचे ितपदािद ितिथ तथा भौमािद वार को देना चािहये िजससे
िक वष पणू  हो जाये । ितिथ दान म0 अ वर के नीचे न'दा, इ वर के नीचे भRा, उ व  ( $,
ए वर के Wरता तथा ओ वर के नीचे पणू ा ितिथ देकर :म से ितिथ के अक ं 6 का योग करना
!$ #
बोध  न 
1. नाड़ी िकतने कार के होते है )
. 2 R. 3 . 4 E. 5
2. पचं व !" )
. , R, , E, >. R. J, , C,  P w . J, ,,F, E. कोई नहP
3. नािसका का बॉया वर िन%न म0 िकसका सं7क होता है )
. सयू  स7ं क ख. च'R स7ं क ग. मगं ल सं7क घ. शभु स7ं क
4. पंचव:  $ !" )
. आचाय नरपित ख. जापित दास ग. भाकराचाय घ. गणेश दैव7
5. वर शा स%बि'ध !" )
. योH  R. $-  . दोन6 से घ. कोई नहP
योग करने पर अ व  ( ]: , इ व  ( ]= ,उ व  ( ^7, ए व  ( ^^,
ओ व  ( :;9 होते हc । कुजािदवार िनणय म0 सातवार कN घटी 8; × = = \[; 
@Z   1$ - \[; ÷ 9 = ]\ घटी । एक वर का मान ह9आ ।
ित^यािद वर च: )
J  C  w पंचव
:#8#:: [#=#:[ 7#]#:7 \#^#:\ 9#:;#:9 5. पMित.
:8#[:#[8 :=#[[#[= :]#[7#[] :^#[\#[^ [;#[9#7; O . पMित.
न'दा भRा $ Wरता पणू ा न'दा
उराख ड मु त िवविवालय 235
वष   BAJY- 301
]: ]= ^7 ^^ :;9 . $-
&.P 8; . 78 O. :[ 5. \] . [\ 1
. [\ O. \] 5. 8;, 5. . 78 P. 8; EF
:[
]\ E. ]\ E. ]\ E. ]\ E. ]\ E. $-

J यहॉ अ व  ( U& 8; EF I B  [\ घटी । इ वर के नीचे बधु कN शेष 78
घटी तथा ग>ु वार कN \] घटी । उ वर के नीचे ग>
ु वार कN :[ श:
ु वार कN 8; शिनवार कN :[
घटी । ए वर के नीचे शिनवार कN \] रिववार कN 78 घटी । ओ वर के नीचे रिववार कN शेH [\
घटी और च'Rवार कN 8; EF #  !  ) एक व  ( ]\ घटी के भाग होते हc ।
अ!तदशा फल 
उिदतािदि(कं चे:*याद!यो!यं भाग संि*थतम् ।
तदा शभ ु ं िवजानीयान् म@यं स!@यािद सिं *थतम् ।।
अ!यो!यभागसं*थं चे:स!@या*तेcर .  
तदा लेशं िवजानीयादुिदतािदि(के समम् ।।
उिदतािद तीन6 वर6 कN परपर अ'तदशाय0 शभु फलदायक होती हc अथात् उिदत वर म0 उिदत )
tिमत और tा'त वर कN अ'त15 , tिमत वर म0 tिमत tा'त तथा उिदत वर कN अ'तद5 P
tा'त वर म0 उिदत tिमत tा'त कN अ'तदशाय0 शभु फलकारक होती हc । स@ं या और अत वर म0
उिदतािद तीन6 वर6 कN अ'तदशाय0 म@य&   !- !" #
5.4   
इस इकाई के अ@ययन के पचात् आपने समझ िलया है वरशा जातक शा  !
एक क'ध है । इस शा म0 व  AB @  ) !( , $ ) @$ , ( &N 
िवलेHN $ $ !" #  > ) @P  ) सषु %ना नाडीवर संचारण वश काय कN िसि=
अिसि= का िनधारण िकया जाता है । नाडीवर से स%बि'धत िशववरोदय आिद <'थ हc । व (
J, , C, , w ) शा म0 ही नरपितजयचया नामक एक िस= <'थ है िजसकN रचना सभं वत:
:;^8 शकाHद म0 ह9ई थी । इस <'थ म0 पॉच6 वर6 अ, , C, , ओ के आधार पर ही मनOु य (
के समत शभु ाशभु कायh का समय साधन िकया गया है । वर िस=ा'त  (
तािजकनीलक ठी म0 नहP िकया गया है ।

उराख ड मु त िवविवालय 236


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5.5 पारभािषक शदा
?: ) नाडी का कार
नरपितजयचया ) वर शा का <'थ

 ) वर के कार
Yिमत ) वर के कार
सं@या ) वर के कार
अ*त ) वर के कार
बा.याव*था ) बालक कN 5 वष से 10 वष कN अवथा
मृताव*था ) मरने कN अवथा
युवाव*था ) 16 वष से 25 वष कN अवथा
पचं *व ) वर शा का <'थ
ि(कोण ) 9,^
पुया. ) प ु य  A &
" ) &
9'# ) योितष म0 काल माक
जापितदास ) पंचव  $
मागगमन ) माग म0 जाना
5.6 बोध  न के उ6र
1. R
2. R
3. R
4. R
5.
5.7 सदभ थ
1. तािजक नीलक ठी ) नीलक ठ दैव7
2. पच
ं व: ) आचाय जापित दास

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वष   BAJY- 301
5.8 िनबधामक  न
1. वर या !" % पOट कNिजये ।
2. वर िस=ा'त कN िवतृत eयाDया कNिजये #
3. &, ितिथ वर का िववेचन कNिजये ।

उराख ड मु त िवविवालय 238

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