स य, अ हसा, ेम माग पर, त पर ह ,बलवान बन | ान बीना पशुवत जीवन , अपना भ व य न जाने ह, या है ल य, दशा या हो, रह य नही पहचाने ह| वीणावा दनी तान वह् छे ड़ो, जग का कण-कण झंकार करे, अ वरल बहे ान क धारा, मन म फैला अंधकार हरे। व छ- धवल ही दय हमारा, खले कमल सी बु हमारी, वीणा के वर मन म गूंज,े कला पूण हो सोच हमारी । व ा के अंकुर मन म फूटे , दे श म ान- व ान बढ़े , कृ त को हम दे वी समझे ,वृ कर,आनंद बढ़े । व ान रह य समझाओ माता, बु - ववेक के ार खुले मानवता धरती पर उतरे ,जन क याण के द प जल। वागे री दे वी कृपा करो, ज हा अमृत पश करे, पावन,मधुर वचन हम बोल, रचना सबमे उ साह भरे। ान दे वी!अ तमन् खोलो, श द्-श द् का भाव बताओ,
राजे जाटव (* श क*)
"https://hi.wikipedia.org/w/index.php? title=सर वती_वंदना&oldid=3795765" से लया गया
Last edited 1 day ago by RAJENDRA…
साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख ना कया गया हो।