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सर वती वंदना

मात सर वती पावन वर दो, हम अ छे इ सान बने,


स य, अ हसा, ेम माग पर, त पर ह ,बलवान बन | ान
बीना पशुवत जीवन , अपना भ व य न जाने ह, या है
ल य, दशा या हो, रह य नही पहचाने ह| वीणावा दनी
तान वह् छे ड़ो, जग का कण-कण झंकार करे, अ वरल
बहे ान क धारा, मन म फैला अंधकार हरे। व छ-
धवल ही दय हमारा, खले कमल सी बु हमारी,
वीणा के वर मन म गूंज,े कला पूण हो सोच हमारी ।
व ा के अंकुर मन म फूटे , दे श म ान- व ान बढ़े ,
कृ त को हम दे वी समझे ,वृ कर,आनंद बढ़े । व ान
रह य समझाओ माता, बु - ववेक के ार खुले
मानवता धरती पर उतरे ,जन क याण के द प जल।
वागे री दे वी कृपा करो, ज हा अमृत पश करे,
पावन,मधुर वचन हम बोल, रचना सबमे उ साह भरे।
ान दे वी!अ तमन् खोलो, श द्-श द् का भाव बताओ,

राजे जाटव
(* श क*)

"https://hi.wikipedia.org/w/index.php?
title=सर वती_वंदना&oldid=3795765" से लया गया

Last edited 1 day ago by RAJENDRA…


साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख
ना कया गया हो।

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