कामाख्या

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ततत: तततत-तत-ततततततततततत तततत

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तततततततत तततत तत ततततत:-


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कामाख्याये वरदे दे वी नीलपववतावासिनी


त्व दे वी जगत माता योसनमुद्रे नमोस्तुते|
तततततततत ततत-तततततततत, ततततततततत! तत-
तततततत!
तततततत तततत तत तततततत, ततततततततत!
तततततततत तततत
ततततत ततत-ततततततत, ततततत ततत-तततततत!
ततततत तततततत तततततत:, तततत-ततततततत-
ततततततततत

इिके असतररक्त कामाख्या दे वी का एक महत्वपूर्व मंत्र 22 अक्षरों का है , सजिे कामाख्या


तंत्र कहा जाता है । वह मंत्र है ैः-

त्र ीं त्र ीं त्र ीं हीं हीं स्त्र ीं स्त्र ीं कामाख्ये प्रसरद स्त्र ीं स्त्र ीं हीं हीं त्र ीं त्र ीं त्र ीं
स्वाहा !!

िववमंगल मां गल्ये सिवे िवाव र्व िासिके।


िरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायसर् नमोऽस्तुते।।
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपासलनी।
दु गाव क्षमा सिवा िात्री स्वाहा स्विा नमोऽस्तुते।।

या दे वी िववभूतेषु िक्तक्तरूपेर् िंक्तथर्ता,


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमैः।।
या दे वी िववभूतेषु लक्ष्मीरूपेर् िंक्तथर्ता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमैः।।
या दे वी िववभूतेषु मातृरूपेर् िंक्तथर्ता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमैः।।
या दे वी िववभूतेषु दयारूपेर् िंक्तथर्ता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमैः।।

कामाख्या स्तोत्
जय कामेशि चामुण्डे जय भूतापहारिशि ।
जय सर्व गते दे शर् कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
शर्श्वमूते िुभे िुद्धे शर्रुपाशि शत्लोचने ।
भरमरुपे शिर्े शर्द्ये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
मालाजये जये जम्भे भूताशि िुशभतेऽिये ।
महामाये महेिाशन कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
काशल किाल शर्क्रान्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
काशल किाल शर्क्रान्ते कामेश्वरि हिशप्रये ।
सर्व्विास्त्सािभूते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कामरुप – प्रदरपे च नरलकूट – शनर्ाशसशन ।
शनिुम्भ – िु म्भमथशन कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कामाख्ये कामरुपस्थे कामेश्वरि हरिशप्रये ।
कामनाीं दे शह में शनत्यीं कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
र्पानाढ्यर्क्त्रे शत्भुर्ने श्वरि ।
मशहषासुिर्धे दे शर् कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
छागतुष्टे महाभरमे कामख्ये सु िर्न्दिते ।
जय कामप्रदे तुष्टे कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
भ्रष्टिाज्यो यदा िाजा नर्म्ाीं शनयतः िुशचः ।
अष्टम्ाच्च चतु ददव श्यामुपर्ासर निोत्तमः ॥
सींर्त्सिे ि लभते िाज्यीं शनष्कण्टकीं पुनः ।
य इदीं श्रृ िुर्ादभक्त्या तर् दे शर् समुदभर्म् ॥
सर्वपापशर्शनर्म्ुव क्तः पिीं शनर्ाविमृच्छशत ।
श्ररकामरुपेश्वरि भास्किप्रभे , प्रकाशिताम्भोजशनभायतानने ।
सुिारि – ििः – स्तुशतपातनोत्सुके, त्यरमये दे र्नुते नमाशम ॥
शसतशसते िक्तशपिङ्गशर्ग्रहे , रुपाशि यस्ाः प्रशतभान्दन्त ताशन ।
शर्कािरुपा च शर्कन्दिताशन, िु भािुभानामशप ताीं नमाशम ॥
कामरुपसमुदभूते कामपरठार्तींसके ।
शर्श्वाधािे महामाये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
अव्यक्त शर्ग्रहे िान्ते सन्तते कामरुशपशि ।
कालगम्े पिे िान्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
या सु ष्मुनान्तिालस्था शचन्त्यते ज्योशतरुशपिर ।
प्रितोऽन्दि पिाीं र्रिाीं कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
दीं ष्टराकिालर्दने मुण्डमालोपिोशभते ।
सर्व्वतः सर्ंव्गे दे शर् कामेश्वरि नमोस्तु ते ॥
चामुण्डे च महाकाशल काशल कपाल – हारििर ।
पािहस्ते दण्डहस्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
चामुण्डे कुलमालास्े तरक्ष्िदीं ष्टर महाबले ।
िर्यानन्दस्थते दे शर् कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥

कामाख्या चालरसा
॥ दोहा ॥
सुशमिन कामाख्या करुुँ, सकल शसन्दद्ध कर खाशन ।
होइ प्रसन्न सत किहु माुँ, जो मैं कह ीं बखाशन ॥

जै जै कामाख्या महािानर । दात्र सब सु ख शसन्दद्ध भर्ानर ॥


कामरुप है र्ास तुम्हािो । जहुँ ते मन नशहीं टित है टािो ॥
ऊुँचे शगरि पि किहुुँ शनर्ासा । पुिर्हु सदा भगत मन आसा ।
ऋन्दद्ध शसन्दद्ध तुितै शमशल जाई । जो जन ध्यान धिै मनलाई ॥
जो दे र्र का दिवन चाहे । हदय बरच याहर अर्गाहे ॥
प्रेम सशहत पींशित बुलर्ार्े । िुभ मुहतव शनशित शर्चािर्े ॥
अपने गुरु से आज्ञा लेकि । यात्ा शर्धान किे शनिय धि ।
पूजन ग रि गिेि किार्े । नािरमुख भर श्राद्ध शजमार्े ॥
िुक्र को बाुँयें र् पाछे कि । गुरु अरु िु क्र उशचत िहने पि ॥
जब सब ग्रह होर्ें अनुकूला । गुरु शपतु मातु आशद सब हला ॥
न ब्राह्मि बुलर्ाय शजमार्े । आिरर्ाव द जब उनसे पार्े ॥
सबशहीं प्रकाि िकुन िुभ होई । यात्ा तबशहीं किे सुख होई ॥
जो चह शसन्दद्ध किन कछु भाई । मींत् लेइ दे र्र कहुँ जाई ॥
आदि पूर्वक गुरु बुलार्े । मन्त्र लेन शहत शदन ठहिार्े ॥
िुभ मुहतव में दरिा लेर्े । प्रसन्न होई दशििा दे र्ै ॥
ॐ का नमः किे उच्चािि । मातृका न्यास किे शसि धािि ॥
षिङ्ग न्यास किे सो भाई । माुँ कामािा धि उि लाई ॥
दे र्र मन्त्र किे मन सुशमिन । सन्मुख मुद्रा किे प्रदिवन ॥
शजससे होई प्रसन्न भर्ानर । मन चाहत र्ि दे र्े आनर ॥
जबशहीं भगत दरशित होइ जाई । दान दे य ऋन्दिज कहुँ जाई ॥
शर्प्रबींधु भोजन किर्ार्े । शर्प्र नारि कन्या शजमर्ार्े ॥
दरन अनाथ दरिद्र बु लार्े । धन कर कृपिता नहर ीं शदखार्े ॥
एशह शर्शध समझ कृतािथ होर्े । गुरु मन्त्र शनत जप कि सोर्े ॥
दे र्र चिि का बने पु जािर । एशह ते धिम न है कोई भािर ॥
सकल ऋन्दद्ध – शसन्दद्ध शमल जार्े । जो दे र्र का ध्यान लगार्े ॥
तू हर दु गाव तू हर कालर । माुँ ग में सोहे मातु के लालर ॥
र्ाक् सिस्वतर शर्द्या ग िर । मातु के सोहैं शसि पि म िर ॥
िुधा, दु ित्यया, शनद्रा तृष्णा । तन का िीं ग है मातु का कृष्णा ।
कामधेनु सु भगा औि सुििर । मातु अुँगुशलया में है मुींदिर ॥
कालिाशत् र्ेदगभाव धरश्वरि । कींठमाल माता ने ले धरि ॥
तृषा सतर एक र्रिा अििा । दे ह तजर जानु िहर नश्विा ॥
स्विा महा श्रर चण्डर । मातु न जाना जो िहे पाखण्डर ॥
महामािर भाितर आयाव । शिर्जर कर ओ िहर ीं भायाव ॥
पद्मा, कमला, लक्ष्मर, शिर्ा । तेज मातु तन जैसे शदर्ा ॥
उमा, जयर, ब्राह्मर भाषा । पुि शहीं भगतन कर अशभलाषा ॥
िजस्वला जब रुप शदखार्े । दे र्ता सकल पर्वतशहीं जार्ें ॥
रुप ग रि धरि किशहीं शनर्ासा । जब लग होइ न तेज प्रकािा ॥
एशह ते शसद्ध परठ कहलाई । जउन चहै जन सो होई जाई ॥
जो जन यह चालरसा गार्े । सब सुख भोग दे शर् पद पार्े ॥
होशहीं प्रसन्न महेि भर्ानर । कृपा किहु शनज – जन असर्ानर ॥

॥ दोहा ॥
कहे गोपाल सुशमि मन, कामाख्या सुख खाशन ।
जग शहत माुँ प्रगटत भई, सके न कोऊ खाशन ॥

तततततततत ततत ततततत


क्र ीं क्र ीं कामाख्या क्र ीं क्र ीं नमः |

कामाख्या आितर
आितर कामािा दे र्र कर ।
जगत् उधािक सुि से र्र कर ॥ आितर……….
गार्त र्ेद पु िान कहानर ।
योशनरुप तु म हो महािानर ॥
सुि ब्रह्माशदक आशद बखानर ।
लहे दिस सब सुख लेर्र कर ॥ आितर………
दि सुता जगदम्ब भर्ानर ।
सदा िीं भु अधं ग शर्िाशजनर ।
सकल जगत् को तािन किनर ।
जै हो मातु शसन्दद्ध दे र्र कर ॥ आितर………….
तरन नयन कि िमरु शर्िाजे ।
टरको गोिोचन को साजे ।
तरनोीं लोक रुप से लाजे ।
जै हो मातु ! लोक सेर्र कर ॥ आितर…………..
िक्त पु ष्प कींठन र्नमाला ।
केहरि र्ाहन खींग शर्िाला ।
मातु किे भक्तन प्रशतपाला ।
सकल असुि जरर्न लेर्र कर ॥ आितर…………
कहैं गोपाल मातु बशलहािर ।
जाने नशहीं मशहमा शत्पुिािर ।
सब सत होय जो कह्यो शर्चािर ।
जै जै सबशहीं कित दे र्र कर ॥ आितर…………

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