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कामाख्या
कामाख्या
कामाख्या
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त्र ीं त्र ीं त्र ीं हीं हीं स्त्र ीं स्त्र ीं कामाख्ये प्रसरद स्त्र ीं स्त्र ीं हीं हीं त्र ीं त्र ीं त्र ीं
स्वाहा !!
कामाख्या स्तोत्
जय कामेशि चामुण्डे जय भूतापहारिशि ।
जय सर्व गते दे शर् कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
शर्श्वमूते िुभे िुद्धे शर्रुपाशि शत्लोचने ।
भरमरुपे शिर्े शर्द्ये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
मालाजये जये जम्भे भूताशि िुशभतेऽिये ।
महामाये महेिाशन कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
काशल किाल शर्क्रान्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
काशल किाल शर्क्रान्ते कामेश्वरि हिशप्रये ।
सर्व्विास्त्सािभूते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कामरुप – प्रदरपे च नरलकूट – शनर्ाशसशन ।
शनिुम्भ – िु म्भमथशन कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कामाख्ये कामरुपस्थे कामेश्वरि हरिशप्रये ।
कामनाीं दे शह में शनत्यीं कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
र्पानाढ्यर्क्त्रे शत्भुर्ने श्वरि ।
मशहषासुिर्धे दे शर् कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
छागतुष्टे महाभरमे कामख्ये सु िर्न्दिते ।
जय कामप्रदे तुष्टे कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
भ्रष्टिाज्यो यदा िाजा नर्म्ाीं शनयतः िुशचः ।
अष्टम्ाच्च चतु ददव श्यामुपर्ासर निोत्तमः ॥
सींर्त्सिे ि लभते िाज्यीं शनष्कण्टकीं पुनः ।
य इदीं श्रृ िुर्ादभक्त्या तर् दे शर् समुदभर्म् ॥
सर्वपापशर्शनर्म्ुव क्तः पिीं शनर्ाविमृच्छशत ।
श्ररकामरुपेश्वरि भास्किप्रभे , प्रकाशिताम्भोजशनभायतानने ।
सुिारि – ििः – स्तुशतपातनोत्सुके, त्यरमये दे र्नुते नमाशम ॥
शसतशसते िक्तशपिङ्गशर्ग्रहे , रुपाशि यस्ाः प्रशतभान्दन्त ताशन ।
शर्कािरुपा च शर्कन्दिताशन, िु भािुभानामशप ताीं नमाशम ॥
कामरुपसमुदभूते कामपरठार्तींसके ।
शर्श्वाधािे महामाये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
अव्यक्त शर्ग्रहे िान्ते सन्तते कामरुशपशि ।
कालगम्े पिे िान्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
या सु ष्मुनान्तिालस्था शचन्त्यते ज्योशतरुशपिर ।
प्रितोऽन्दि पिाीं र्रिाीं कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
दीं ष्टराकिालर्दने मुण्डमालोपिोशभते ।
सर्व्वतः सर्ंव्गे दे शर् कामेश्वरि नमोस्तु ते ॥
चामुण्डे च महाकाशल काशल कपाल – हारििर ।
पािहस्ते दण्डहस्ते कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
चामुण्डे कुलमालास्े तरक्ष्िदीं ष्टर महाबले ।
िर्यानन्दस्थते दे शर् कामेश्वरि नमोऽस्तु ते ॥
कामाख्या चालरसा
॥ दोहा ॥
सुशमिन कामाख्या करुुँ, सकल शसन्दद्ध कर खाशन ।
होइ प्रसन्न सत किहु माुँ, जो मैं कह ीं बखाशन ॥
॥ दोहा ॥
कहे गोपाल सुशमि मन, कामाख्या सुख खाशन ।
जग शहत माुँ प्रगटत भई, सके न कोऊ खाशन ॥
कामाख्या आितर
आितर कामािा दे र्र कर ।
जगत् उधािक सुि से र्र कर ॥ आितर……….
गार्त र्ेद पु िान कहानर ।
योशनरुप तु म हो महािानर ॥
सुि ब्रह्माशदक आशद बखानर ।
लहे दिस सब सुख लेर्र कर ॥ आितर………
दि सुता जगदम्ब भर्ानर ।
सदा िीं भु अधं ग शर्िाशजनर ।
सकल जगत् को तािन किनर ।
जै हो मातु शसन्दद्ध दे र्र कर ॥ आितर………….
तरन नयन कि िमरु शर्िाजे ।
टरको गोिोचन को साजे ।
तरनोीं लोक रुप से लाजे ।
जै हो मातु ! लोक सेर्र कर ॥ आितर…………..
िक्त पु ष्प कींठन र्नमाला ।
केहरि र्ाहन खींग शर्िाला ।
मातु किे भक्तन प्रशतपाला ।
सकल असुि जरर्न लेर्र कर ॥ आितर…………
कहैं गोपाल मातु बशलहािर ।
जाने नशहीं मशहमा शत्पुिािर ।
सब सत होय जो कह्यो शर्चािर ।
जै जै सबशहीं कित दे र्र कर ॥ आितर…………