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चक्र एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है पजहया।

मानव शरीर में छोटे , मध्यम एवं प्रमख कुुु ल जमलाकर


41 चक्र हैं , ये चक्र लगातार चक्कर लगाते हुए ऊिाथ
केंद्र हैं िो औरा (प्रभामंडल) के अत्यंत महत्वपूर्थ
अंग हैं ।
शरीर में कुल सात प्रमुख चक्र हैं एवं प्रत्येक चक्र
करीब 4 इं च व्यास के होते हैं । स्र्ूल शरीर में सात
अंतः स्राजवत ग्रंन्थियां (इन्डोक्राइन ग्लैंड) हैं िो शरीर
के रासायजनक कारखाने के रूप में कायथ करती हैं ।
प्रत्येक अंतः स्राजवत ग्रंजर्यों के ऊपर एक प्रमुख चक्र
है िो शरीर के संवेदनशील एवं प्रमुख अंगों के कायों
को जनयंजित एवं ऊिाथ न्थित उसी प्रकार करते हैं िैसे
जवद् युत-उत्पादन केंद्र (पावर स्टे शन) जवद् युत ऊिाथ
की आपूजतथ कर कल-कारखानों को चलाते हैं ।
ये चक्र संपूर्थ स्र्ूल शरीर को जनयंजित करते हुए उन्हें
ऊिाथ न्थित करते हैं । अगर अंतः स्राजवत ग्रंजर्यों में कोई
खराबी आ गई है तो संबंजित चक्र को जक्रयान्थित कर
उस खराबी को दू र जकया िा सकता है । चक्रों के
दू जित हो िाने पर स्र्ूल शरीर में तत्काल अत्यंत
प्रजतकूल प्रभाव पड़ता है ।
शरीर के प्रमुख सात चक्र: Û मूलािार: यह चक्र
पुरुिों की रीढ़ की सबसे नीचे की जतकोनी हड्डी एवं
मजहलाओं के अंडाशय के मध्य क्षेि में अवन्थस्र्त है ।
यह चक्र शरीर में भौजतक िीवन शन्थि का स्र्ान है
िो िीवन के जलए प्रेररत करता है । यह कुंडजलनी
शन्थि के िागरर् एवं प्रचतुरता का पररचायक है ।
संबंजित अंग: सुपरारीनल गंु्रजर्, जकडनी एवं सुिुम्ना,
तत्व-पृथ्वी, रं ग-लाल, कायथ-भौजतक शन्थि, सृिन। चक्र
का यंि-चतुष्कोर् ग्रह, ग्रह-शजन, लोक-भू चक्र का
बीि तत्व-लं, चक्र के कमल दल-चार, चक्र का ध्यान-
गुदा, वाहन-ऐरावत, चक्रदल-चार, चक्र के ध्यान का
फल-विा, मनुष्ों में श्रेष्ठ, सवथ जवद्याओं का ज्ञाता,
आरोग्य, आनंद जचŸुा वाला, काव्य शन्थि संपन्न।
प्रजतकूल प्रभाव- उदासी, भारीपन, शारीररक िड़ता,
अन्थस्र् रोग। Û स्वाजिष्ठान चक्र: नाजभ के करीब तीन
इं च नीचे यह चक्र अवन्थस्र्त है । यह चक्र संबंजित
अंग-ग्रोनड गंु्रजर्, प्रिनन अंग एवं दोनों पां , आकार-
अर्द्थ चंद्राकार, रं ग-संतरी, कायथ-जकसी व्यन्थि के प्रजत
मनोभाव सीिे चक्र के द्वारा प्राप्त होते हैं , भावनात्मक
जवचार, तत्व-िल, ग्रह-गुरु, चक्र का बीि तत्व-वं, चक्र
का यंि- अर्द्थ चंद्राकार, लोक-भूजम, चक्र दल-6 (छः),
चक्र का वाहन-मगरमच्छ, चक्र के अजिष्ठाता दे वता-
भगवान जवष्णु , चक्र के ध्यान का फल- ऐसा मनुष्
श्रेष्ठ योगी, काव्य रचना करने वाला एवं अहं कार से परे
होता है । प्रजतकूल प्रभाव- कफ, खां सी, श्वास, मूि रोग।
Û मजर्पुर चक्र: नाजभ से करीब तीन अंगुल ऊपर
वास्तजवक केंद्र है , िहां से भौजतक ऊिाथ का जवतरर्
होता है । यह चक्र ‘शन्थि एवं बुन्थर्द्मानी’ का प्रतीक
है । अगर हम जकसी बात से बहुत डर िाते हैं तो
इस अंग में स्वतः कड़ापन आ िाता है तो भूख बंद
हो िाती है । संबंजित अंग-लीवर, पैन्थरक्रयाि, पेट, पाचन
शन्थि, एपेन्थन्डक्स, फेफड़े , गाुलब्लाडर। तत्व-अजि, रं ग-
पीला, कायथ-शन्थि एवं बुन्थर्द्, चक्र का लोक-स्वः, चक्र
के कमल दल-10, , चक्र का बीि तत्व रं , चक्र का
यंि- जिकोर्ाकार, चक्र का वाहन-मेि अर्वा मेढ़ा,
ग्रह-मंगल, चक्र के अजिष्ठाता दे वता-वृन्थर्द् रुद्र। चक्र के
ध्यान का फल- ऐसा मनुष् वाक्य रचना में जनपुर्
होता है , जिसकी जिह्वा पर साक्षात् सरस्वती जनवास
करती है । वह संसार पालन में समर्थ होता है ।
प्रजतकूल प्रभाव-रि संबंिी जवकार, अजतसार, वायु -
जवकार, पीठ की तकलीफ और स्फूजतथ में कमी। Û
हृदय चक्र या अनाहत चक्र: जदल के करीब सीने के
बीच में यह चक्र अवन्थस्र्त है । संबंजित अंग-र्ाईमस
ग्रंजर्, हृदय, फेफड़े , रि प्रवाह। यह चक्र जनश्चल प्रेम,
अपनापन, आध्यान्थत्मक जवकास, भन्थि, सािना एवं प्रेम
का प्रतीक है । हमारे ऋजि-मुजनयों ने इस चक्र को
िाग्रत करने पर जवशेि बल जदया है । जबना जकसी शतथ
के प्यार करना इस चक्र की उच्च न्थस्र्जत है । इस चक्र
का कायथ-प्रेम और प्रजवि भावना है । तत्व-वायु , रं ग-
हरा, चक्र का तत्व बीि-यं, चक्र का वाहन- मृग, चक्र
का गुर्- स्पशथ, चक्र का कमल दल-द्वादश। ग्रह-शुक्र,
चक्र के ध्यान का फल- ऐसा मनुष् योगीश्वर होता है ।
वाक्य रचना में सामथ्र्यवान, इं द्र के समान जवियी एवं
परकाया प्रवेश में समर्थ होता है । प्रजतकूल प्रभाव-
शारीररक पीड़ा, जनराशा, प्रेम का अभाव, अकेलापन। Û
जवशुर्द् चक्र: यह संचार का चक्र है । अपनी
अजभव्यन्थि एवं जक्रयाशीलता, अपने मनोभावों को दू सरों
तक पहुं चाने का महत्वपूर्थ जवभाग है । िो सच है , सत्य
है उसकी अजभव्यन्थि करते रहने से इस चक्र का
सतत जवकास होता है । वार्ी में ओि एवं प्रभाव होता
है । इस चक्र द्वारा अंतरात्मा की आवाि एवं उच्च स्तर
से आने वाले संदेश गृहीत होते हैं । संबंजित अंग-
र्ाईराइड ग्रंजर्, गला, फेफड़े , वायु प्रवाह, रि प्रवाह,
हृदय। तत्व-आकाश, चक्र का तत्व बीि- हं , चक्र का
वाहन- हार्ी, चक्र के ग्रह-बुि, चक्र के स्वामी-
सदाजशव, चक्र का रं ग-हल्का आकाशीय नील, चक्र के
कमल दल-सोलह। प्रजतकूल प्रभाव-जपŸुा, कफ एवं
बाल संबंिी रोग। Û आज्ञा चक्र: यह चक्र ललाट, दोनों
भौहों के मध्य िरा ऊपर अवन्थस्र्त है । यह चक्र बाह्य
ज्ञान का केंद्र है । व्यन्थि के अंतज्र्ञान (इन्टयूिन)
का जवकास इसी चक्र से होता है । इस चक्र से भजवष्
में होने वाली घटनाओं की सूक्ष्म िानकारी प्राप्त होती
है एवं इसके जवकजसत और िाग्रत होने से लोग
प्रभाविाली रहते हैं । अध्यान्थत्मक जवकास के जलए आज्ञा
चक्र का बहुत महत्व है । संबंजित अंग सुिुम्ना नाड़ी,
बायीं आं ख, नाक, कान, नाड़ी संस्र्ान इत्याजद। यह चक्र
जवद् युत के प्रकाश की भां जत उज्जवल है । इस चक्र का
रं ग गहरा नीला है , तत्व-महः, चक्र का बीि तत्व ऊँ,
वाहन-नाद, चक्र के अजिष्ठाता दे वता- अर्द्थ नारीश्वर, चक्र
का ग्रह-पूर्थ चंद्रमा, चक्र के कमल दल-दो। चक्र के
ध्यान का फल- ऐसा मनुष् वाक् जसर्द् हो िाता है ।
यह अंतःप्रेरर्ा और इच्छाओं का चक्र। Û सहस्रार
चक्र: जसर के ऊपर मध्य में यह चक्र अवन्थस्र्त है ।
यह चक्र उच्चतम आध्यान्थत्मक सािना का स्र्ल है ,
उच्चतम न्थस्र्जत में ज्ञान को प्राप्त कर समाजि की
अवस्र्ा होती है । जनजवथकार, कोई भाव नहीं, कोई जवचार
नहीं- उच्चतम न्थस्र्जत है । संबंर्द् अंग- ऊपरी जदमाग,
दायीं आं ख, रं ग-िामुनी, जपजनयल गंु्रजर्, आध्यान्थत्मक
प्रगजत, चक्र का तत्व- तत्वातीत, तत्व बीि जवसगथ , ग्रह-
सूयथ, वाहन- जबंदू, दे वता-परं ब्रह्म। ऐसा व्यन्थि अमरत्व
को प्राप्त करता है । वह आकाशगामीुे व समाजियुि
होता है । इस चक्र के कमल दल हिार हैं जिसे
सहस्ररं ध्र भी कहते हैं ।

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