Professional Documents
Culture Documents
शनि की ढईया और साढ़े साती
शनि की ढईया और साढ़े साती
शनि की ढईया और साढ़े साती
साढ़े -साती यानी शनन का आपकी रानश के आस-पास भ्रमण | शनन जब कुं डली में चुंद्रमा की स्थिनत से
12th, 1st और 2nd थिान पर होते हैं तब शनन की साढ़े -साती होती है ,शनन जब कुं डली में चुंद्रमा की
स्थिनत से 4th और 8th थिान पर होते हैं तब शनन की ढै य्या प्रारम्भ होती है ।
यगोुं-यगोुं से मनष्य को सत्कमम या दष्कमम करने पर नमलने वाले प्रनतसाद या दुं ड का बोध कराने वाले
शननदे व से सभी पररनचत हैं । एक ग्रह के रूप में शननदे व की गनत का यनद आुं कलन करें तो पता लगता है
नक अत्युंत मन्द गनत से नवचरण करने वाले शननदे व सू यम के चारोुं ओर 30 वर्षों में एक चक्कर लगाते हैं ।
स्पष्ट है नक नकसी मनष्य के पूणम जीवन काल में औसतन दो या तीन बार साढे -साती आ सकती है और
यही काल शननदे व द्वारा कमों के आधार पर मनष्य को पररणाम दे ने का समय होता है।
हमारी जन्मकुं डली में स्थित सभी 9 ग्रह 12 रानशयोुं में नवचरण करते रहते हैं । एक ग्रह एक रानश में नननित
समय के नलए ही रुकता है । चूुंनक शनन ग्रह सबसे मन्दगामी ग्रह है यह एक रानश में ढाई वर्षम रुकता
है ।सभी 12 रानशयोुं के भ्रमण में शनन को लगभग 30 वर्षम का समय लगता है ।शनन अपनी गोचर साढे -साती
के दौरान हर नपछले अच्छे और बरे कमों का नहसाब लेता है । वैनिकशास्त्ोुं के अनसार सवाम नधक महत्वपूणम
न्यायधीश का पद शननदे व को प्राप्त है । अत: शननदे व ही सबसे शस्िशाली और हमारे भाग्य नवधाता हैं ।
हमारे अच्छे -बरे कमों का फल शननदे व ही प्रदान करते हैं । ज्योनतर्ष के अनसार शननदे व साढ़े -साती और
ढै य्या के दौरान व्यस्ि को उसके कमों का फल प्रदान करते हैं । हर 30 साल में प्रत्येक जातक को
शननदे वके आगे हानजर होना पड़ता है । शननदे व ऐश्वयम के दाता हैं और गरीब वगम का प्रनतनननधत्व करते हैं ।
शनि का शाब्दिक अर्थ है -- ‘शनै: शनै: चरनत इनत शनैिर:’ अिाम त धीमी गनत से चलने के कारण यह
शनैिर कहलाए। नवग्रहोुं में शनन की सबसे मुंद गनत है । तला रानश में शनन उच्च के होते है और मेर्ष रानश
में नीच के होते है । चुंद्र के गोचर से शनन जब 12वी ुं रानश में आते है तब साढ़े -साती शरू होती है ।नजस
रानश में शनन होता है उससे आग़े रानश वाल़े जातक ों को साढ़े -साती का प्रर्म चरण चल रहा होता है
जबनकनपछली रानश वाल़े जातक ों को साढ़े -साती का अस्िरी चरण चल रहा होता है ।
शनन की ढईया और साढ़े -साती का नाम सनकर बड़े -बड़े महारनर्य ों केचेहरे की रुं गत उड़ जाती है । नवद्वान
ज्योनतर्षशास्स्त्योुं की मानें तोशनन सभी व्यस्ि के नलए कष्टकारी नही ुं होते हैं । शनन की दशा के दौरान
बहुतसे लोगोुं को अपेक्षा से बढ़कर लाभ-सम्मान व वै भव की प्रास्प्त होती है जबनककछ लोगोुं को शनन की
इस दशा के दौरान काफी परे शानी औरकष् ों का सामना करना पड़ता है । इस तरहदे िा जाय तो शनन
केवल कष्ट ही नही ुं दे ते बस्ि शभ फलभीप्रदान करते हैं । शनन का प्रभाव सभी व्यस्ि परउनकी जन्म-
कण्डली/रानश-कण्डली मेंनवद्यमाि नवनभन्न तत्वोुं व कमम पर ननभम र करता है ।साढ़े -साती केप्रभाव के नलए
कण्डली में लग्न व लग्ने श की स्थिनत के साि ही शनन औरचन्द्र की स्थिनत पर भी नवचार नकया जाता है ।
शनन की दशा के समय चन्द्रमाकी स्थिनत बहुत मायने रिती है । अगर कण्डली में चन्द्रमा उच्च रानश में
होता है तो जातकमें अनधक सहन शस्ि आ जाती है और कायम क्षमता बढ़ जाती है जबनककमजोर व नीच
परे शानी और बढ़ जाती है ।जन्म-कण्डलीमें चन्द्रमा की स्थिनत का आुं कलन करने के साि ही शनन की स्थिनत
का आुं कलनकरिाभी जरूरी होता है । अगर जातकका लग्न वृ र्ष, नमिन, कन्या, तला, मकर अिवा कम्भहै
तो शनन नकसान नही ुं पहुुं चाते हैं बस्ि जातकको उनसे लाभ व सहयोगनमलता है |
शनि की साढ़े साती: जब शनन नकसी रानश में ढाई वर्षम रुकता है तो उस रानश के आगे और पीछे वाली
रानश पर भी सीधा प्रभाव डालता है । यानन शनन एक रानश को साढ़े सात वर्षम तक प्रभानवत करता है । इस
साढ़े सात साल के समय को ही शनन की साढ़े -साती कहा जाता है । उदाहरण कुण्डलीमें शनन तला रानश में
है । अत: तला रानश के पहले वाली रानश कन्या और बाद वाली रानश वृ निक पर शनन की साढ़े साती का
प्रभाव है ।
शनि की ढै य्या:शनन की ढै य्या का अिम है नक नजस रानश में शनन रहता है उस रानश से ऊपर की ओर
वाली चौिी रानश पर और नीचे की ओर वाली छठी रानश पर शनन की ढै य्या रहती है ।उदाहरण कुण्डली
मेंमीन रानश है । ज नकतला रानश से नीचे की ओर छठी रानश है । अत: मीन रानश पर शनन की ढै य्या का
प्रभाव है ।
शनन की साढ़े -साती सभी रानशयोुं को एक समान फलिही ों दे ती है । नजनका जातक ों का जन्मकालीन शनन
योगकारक होता है उनके नलए साढ़े -साती का दौर एक बे हतरीन और सनहरा मैदान तै यार करता है । उनमें
रात-नदन पररश्रम करने की शस्ि और यस्ि का सुं चार होता है । नजन जातक ों का जन्मकालीन शनन िराब
है , उनके नलए साढ़े साती बहुत ही िराब होती है । शद्ध और पनवत्र आचरण से जीवनयापन करने वाले
चररत्रवान लोगोुं पर भी शनन का कछ दष्प्रभाव जरूर होता है , लेनकन समयानसार उन्हें अपने कष्ट से मस्ि
शनि क़े चार पाय़े-- पाद लौह, ताम्र, स्वणम , और रजत होते हैं । गोचर में नजन रानशयोुं पर शनन सोना या
स्वणम और लोहपाद से चल रहा है , उनके नलए शनन का प्रभाव अच्छा नही ुं माना जाता। नजन पर शनन चाुं दी
या ताुं बे के पाये से चल रहा है , उनको फल कछ अच्छे और कछ बरे रूप से नमलते हैं ज नकजन्म-
प्रिमचरण में जातक का माननसक सुं तलन नबगड़ जाता है , इसे मनतभ्रम कहा जा सकता है तिा वह अपने
उद्दे श्य से भटक कर चुंचल वृ नत धारण कर लेता है । जातककी आनिमक स्थिनत प्रभानवत होती है . ननद्रा में
नद्वतीयचरण में माननसक कष्ट के साि-साि शारीररक कष्ट भी जातक घेरने लगते हैं । उसके सारे प्रयास
असफल होते जाते हैं । जातक अपने को तन-मन-धन से ननरीह और दयनीय अवथिा में महसू स करता है।
पाररवाररक तिा व्यवसानयक जीवन में अनेक उतार-चढाव आते है । सुं बस्ियोुं से भी कष्ट होते है , घर-
भी हो जाती है । अगर जातकने अच्छे कमम नकए होुं, तो इस दौरान उसके कष्ट भी धीरे -धीरे कम होने
लगते हैं । अगर दू नर्षत कमम नकए हैं तो साढ़े साती का दू सरा चरण घोर कष्टप्रद होता है । इसकी अवनध भी
ढाई साल होती है ।इस अवनध में मे र्ष, ककम, तला,वृ निक और मकर रानश के जातकोुं कोनवशेर्षसावधानी
बरतनी चानहये ।
तीसऱे चरण मेंजातक के भौनतक सिोुं में कमी होती है । आय की तलना में व्यय अनधक होते है । स्वाथिय
सुं बिी परे शाननयाुं आती है । वाद-नववाद के योग बनते है ।जातक पूणम रूप से अपने सुं तलन को िो चका
होता है तिा उसमें क्रोध की मात्रा बढ़ जाती है । पररणामस्वरूप हर कायम का उल्टा ही पररणाम सामने
आता है तिा उसके शत्रओुं की वृ स्द्ध होती जाती है । मनतभ्रम और गलत ननणम य ले ने से फायदे के काम भी
हाननप्रद हो जाते हैं । स्वजनोुं और पररजनोुं से नवरोध बढ़ता है । छनव िराब होने लगती है । अतः नजन रानशयोुं
पर साढ़े साती तिा ढै य्या का प्रभाव है , उनके शनन की शस्न्त के उपचार करने पर अशभ फलोुं की कमी
होने लगती है और धीरे -धीरे वे सुं कट से ननकलने के रास्ते प्राप्त कर सकते हैं ।इस अवनध में नमिन, ककम,
शननदे व का नाम या स्वरूप ध्यान में आते ही मनष्य भयभीत अवश्य होता है लेनकन, कष्टतम समय में जब
शननदे व से प्रािम ना कर उनका स्मरण करते हैं तो वे ही शननदे व कष्टोुं से मस्ि का मागम भी प्रश्स्स्त भी करते
हैं ।शनन के नलए काले द्रव्योुं से पूजा होती है और काली वस्तएँ दान दी जाती हैं । नतल, ते ल और लोहा
शनन के नलए दान की नप्रय वस्तएँ हैं । शनन का पूजा-पाठ, शनन का दशमन और जन्मपनत्रका के ननणम य के
आधार पर शनन के रत्न नीलम का धारण करना अच्छा रहता है । शनन ननम्न वगम के प्रनतनननध हैं अत:
गरीब, मजदू र, ननबम ल और बे सहारा लोगोुं की से वा करने पर शननदे व प्रसन्न होते हैं । छोटे कममचारी वगम के
ग्रह भी शनन ही हैं अत: इन वगो की से वा करने या उन्हें सि दे ने या दान दे ने से शनन प्रसन्न होते हैं ।
1. प्रनतनदन घर मे गग्गल-धू प जलाएुं और सायुं काल के समय लोबान यि बत्ती सरसोुं ते ल के दीये में
3.बन्दरोुं को गड़-चना, भैं से को उड़द के आटे की रोटी और दू ध में आटा गूुं ि कर रोटी बनाकर मोरोुं
को स्िलाएुं ।
4.जटायि कच्चे नाररयल नसर के ऊपर से 11 बार उतार कर 11 नाररयल बहते जल में प्रवानहत करें ।
5.काले वस्त् कम्बल सतनाजे से तलादान एवुं छाया पात्र दान करें ।
7.आनिमक हानन अिवा रोग से बचने के नलए शननयुं त्र यि बाधामस्ि ताबीज और घर में अनभमुंनत्रत
9. शननवार के नदन पष्पव नक्षत्र होने पर नबछआ बू टी की जड़ एवुं शमी (छोकर) की जड़ को काले धागे
में बाुं धकर दानहनी भजा में धारण करने से शनन का प्रभाव कम होता है ।
9. शनन की शाुं नत के नलए कछ वै नदक बीज मुंत्र भी हैं , जो नक ननयनमत रूप से सुं ध्या पूजा में शानमल
नकए जा सकते हैं ।
शनि का बीज मों त्र: ऊुं प्राुं प्री ुं प्रौुं सः शनये नमः।। ऊुं शुं शनैिराय नमः।। ऊुं शन्नो दे वी रनभष्टये आपो
शनि शाों नत का स्त त्र: नीलाुं जन समाभासुं रनवपत्रुं यमाग्रजमृ्। छाया मात्र्तण्ड सम्भू तुं तुं नमानम शनैिरमृ्।।
सवाथ ररष् ग्रह शाों नत का स्त त्र: ऊुं नमस्ते कोणसुं थिाय नपुंगलाय नमोऽस्त ते । नमस्ते वभररूपाय
ृ् कृष्णाय च
नमोऽस्तते ।। नमस्ते रौद्रदे हाय नमस्ते चान्तकाय च। नमस्ते यमसुं ज्ञाय नमस्ते शौरये नवभो।। नमस्ते मन्दसुं ज्ञाय
शनैिरः नमोऽस्त ते । प्रसादुं करू दे वेश दीनस्य प्रणतस्य च।।
11. पीपल में सभी दे वताओुं का ननवास कहा गया है इस हे त पीपल को आघम दे ने अिाम त जल दे ने से शनन
दे व प्रसन्न होते हैं । अनराधा नक्षत्र में नजस नदन अमावस्या हो और शननवार का नदन हो उस नदन आप ते ल,
नतल सनहत नवनध पूवमक पीपल वृ क्ष की पूजा करें तो शनन के कोप से आपको मस्ि नमलती है ।
13. शनन के कोप से बचने हे त आप हनमान जी की आराधाना कर सकते हैं , क्ोुंनक शास्त्ोुं में हनमान
15. नाव के तले में लगी कील और काले घोड़े का नाल भी शनन की साढ़े साती के कप्रभाव से आपको
16. लोहे से बने बतम न, काला कपड़ा, सरसोुं का ते ल, चमड़े के जूते, काला सरमा, काले चने, काले
नतल, उड़द की साबू त दाल ये तमाम चीजें शनन ग्रह से सम्बस्ित वस्तएुं हैं , शननवार के नदन इन वस्तओुं
का दान करने से एवुं काले वस्त् एवुं काली वस्तओुं का उपयोग करने से शनन की प्रसन्नता प्राप्त होती है ।
नबगड़े हुए शनन अिवा इसकी साढ़े सातीऔर ढै य्या के दष्प्रभाव को दू र करने के नलए अनेक सरल
मनोवै ज्ञाननक उपाय भी हैं । जैसे अपना काम स्वयुं करना, नफजूल िचम से बचना, बजगों का आदर
करना, कसुं गनत से दू र रहना, दान पण्य के तौर पर दीन दिी की सहायता करना, अन्न- वस्त् दान
समाज से वा व परोपकार से अनभप्रेररत होकर शनन का दष्प्रभाव घटजाता है । शननवार के नदन ते ल, स्िचड़ी,
फल-सब्जी आनद का भी दान कर सकते हैं ।शनन दान, जप आनद करने से साढ़े -साती और ढै य्या के फल
पीडादायक नही ुं होते हैं । गरूद्वारा, मुंनदर दे वालय तिा सावम जननक थिलोुं की स्वयुं साफ सफाई करने, रोगी
Agra-282003 (U.P.)