Krishna Stotras

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ज्ञानिदं पापहरं पवित्रं

1. बाल मुकुन्दाष्टकम् [ककककककककककक] विर्ं च विद्यां च र्शश्च मुच्चिम् ॥ 9 ॥


(शं कराचार्यकृतम्)
2. बाल कृष्णाष्टकम् [Neelaya kuchela]
करारविन्दे न पदारविन्दं
(शं कराचार्यकृतम्)
मुखारविन्दे विवनिेशर्न्तम् ।
िटस्य पत्रस्य पुटे शर्ानं Neelaya kuchela mouni palitam krupaakaram
Neela leela mindra neela neelakaanthi mohanam |
बालं मुकुन्दं मनसा स्मरावम ॥ 1 ॥
Balaneela chaaru komalalakam vilaasa-
संहृत्य लोकान् िटपत्र मध्ये Gopalabaalachaara chora Balakrishnamashraye | 1 |

शर्ानमाद्यन्त विहीन रूपम् । Indukunda Mandahasa Mindira Dharadharam


सिेश्वरं सिय वहताितारं Nandagopanandanam Sanandhanadhi vanditham |
Nandhagodanam Suraari Mardhanam Samastha-
बालं मुकुन्दं मनसा स्मरावम ॥ 2 ॥ Gopalabaalachaara chora Balakrishnamashraye | 2 |
आलोक्य मातु मुयखमादरे ण Vaari haara heera charu Keerthitham Viraajitham
स्तन्यं वपबन्तं सरसीरुहाक्षम् । Dwaraka vihaaramam bujaari surya lochanam |
Bhurime'ru dheeramadi karanam suse'rya
सच्चिन्मर्ं दे िमनन्तरूपं
Gopalabaalachaara chora Balakrishnamashraye | 3 |
बालं मुकुन्दं मनसा स्मरावम ॥ 3 ॥
Seshabhoga sayinam vishesha bhushanojwalam
इन्दीिरश्यामल कोमलाङ्गं Goshamaana kinkini vibhishanaadi poshanam |
इन्द्रावद दे िावचयत पादपद्मम् । SOshanakruthambudhim vibhisinarchitham padam
Gopalabaalachaara chora Balakrishnamashraye | 4 |
सन्तान कल्पद्रुममावितानां
बालं मुकुन्दं मनसा स्मरावम ॥ 4 ॥ Panditha-kilasthutham pundareeka baswaram
Kundalaprabhasamana tundagandamandalam |
कवलन्दजान्त च्चथित कावलर्स्य pundareeka sannutham jagannautham manogyakam
फणाग्र रङ्गे नटन विर्ं तम् । Gopalabaalachaara chora Balakrishnamashraye | 5 |

तत्पुच्छ हस्तं शरवदन्दु िक्त्रं Anjane'ya mukhya paala vaanarendra krunthanam


बालं मुकुन्दं मनसा स्मरावम ॥ 5 ॥ Kunjaraari bhanjanam niranjanam subhakaram |
Manju kanja patra netra raajitham virajitham
वशक्ये वनधार्ाज्य पर्ोदधीवन Gopalabaalachaara chora Balakrishnamashraye | 6 |
कार्ाय त्गतार्ां व्रज नावर्कार्ाम् । Ramaneya yagnya dhama bhamini varapradham
भुक्त्वा र्िे ष्टं कपटे न सुप्तं Manahoram gunaabhirama unnathonatham gurum |
बालं मुकुन्दं मनसा स्मरावम ॥ 6 ॥ saama gaana venu nadha lolamarjithastakam
Gopalabaalachaara chora Balakrishnamashraye | 7 |
लम्बालकं लच्चम्बत हारर्वष्टं Ranga dhindhi raangamangalaanga souryabasadha
शृङ्गार लीलाङ्कुर दं तपंच्चिम् । Sangadhasurotthamaanga bangaka pradaayakam |
वबम्बाधरापूररत िेणुनादं Tungavaira vaabhirama magalaamrutham sadhaa-
बालं मुकुन्दं मनसा स्मरावम ॥ 7 ॥
उलू खले बद्धमुदारचौर्ं
उत्तुङ्ग र्ुग्माजुय न भङ्गलीलम् ।
कककककककक कद्मार्त चारुनेत्रम्
बालं मुकुन्दं मनसा स्मरावम ॥ 8 ॥
एिं मुकुन्दाष्टकमादरे ण
सकृत् पठे द्यस्स लभते वनत्यम् ।
Gopalabaalachaara chora Balakrishnamashraye | 8 | िेणुमयधुरो रे णु मयधुरः
Balakrsna punyanaama lalitham subhastakam पावणमयधुरः पादौ मधुरौ ।
Ye patanthi sathwikothama sadha mudhachyutham| नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं
Rajamaana putra sampadhadhi sobhananithe'
मिु रावधपते रच्चखलं मधुरम् ॥ 3 ॥
Sadhayanthi vishnuloka mavyayam naraschate' | 9 |
गीतं मधुरं पीतं मधुरं
3. कृष्णाष्टकम् [िसुदेिसुतं दे िं] भुिं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
(शं कराचार्यकृतम्) रूपं मधुरं वतलकं मधुरं
मिु रावधपते रच्चखलं मधुरम् ॥ 4 ॥
िसुदेि सुतं दे िं कंस चाणू र मदय नम् ।
दे िकी परमानन्दं कृष्णं िन्दे जगद् गुरुम् ॥ 1 ॥ करणं मधुरं तरणं मधुरं
हरणं मधुरं रमणं मधुरम् ।
अतसी पुष्प सङ्काशं हार नूपुर शोवभतम् ।
िवमतं मधुरं शवमतं मधुरं
रत्नकङ्कण केर्ूरं कृष्णं िन्दे जगद् गुरुम् ॥ 2 ॥
मिु रावधपते रच्चखलं मधुरम् ॥ 5 ॥
कुवटलालक संर्ुिं पूणयचन्द्र वनभाननम् ।
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा
विलसत्कुण्डलधरं कृष्णं िन्दे जगद् गुरम् ॥ 3 ॥
र्मुना मधुरा िीची मधुरा ।
मन्दार गन्ध संर्ुिं चारुहासं चतु भुयजम् । सवललं मधुरं कमलं मधुरं
बवहय वपञ्छािचूडाङ्गं कृष्णं िन्दे जगद् गुरुम् ॥ 4 ॥ मिु रावधपते रच्चखलं मधुरम् ॥ 6 ॥
उत्फुल्ल पद्म पत्राक्षं नील जीमूत सविभम् । गोपी मधुरा लीला मधुरा
र्ादिानां वशरोरत्नं कृष्णं िन्दे जगद् गुरुम् ॥ 5 ॥ र्ुिं मधुरं मुिं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं वशष्टं मधुरं
रुच्चिणी केवल संर्ुिं पीताम्बर सुशोवभतम् ।
मधुरािु पते रच्चखलं मधुरम् ॥ 7 ॥
अिाप्त तुलसी गन्धं कृष्णं िन्दे जगद् गुरुम् ॥ 6 ॥
गोपा मधुरा गािो मधुरा
गोवपकानां कुचद्वन्द कुङ्कुमावङ्कत िक्षसम् ।
र्वष्टमयधुरा सृवष्टमयधुरा ।
िीवनकेतं महे ष्वासं कृष्णं िन्दे जगद् गुरुम् ॥ 7 ॥
दवलतं मधुरं फवलतं मधुरं
िीित्साङ्कं महोरस्कं िनमाला विरावजतम् । मिु रावधपते रच्चखलं मधुरम् ॥ 8 ॥
शङ्खचक्रधरं दे िं कृष्णं िन्दे जगद् गुरुम् ॥ 8 ॥
5. नन्दनन्दन कृष्णाष्टकम् [ककक
कृष्णाष्टकवमदं पुण्यं िातरुत्थार् र्ः पठे त् ।
कककककककककककक]
कोवटजन्म कृतं पापं स्मरणे न विनश्यवत ॥ 9 ॥
(शं कराचार्यकृतम्)
4. मधुराष्टकम् [कककक ककककक] भजे व्रजै क मण्डनं समस्त पाप खण्डनं
(िल्लभाचार्यकृतम् ) स्वभि वचत्त रञ्जनं सदै ि नन्द नन्दनम्
सुवपच्छ गुच्छमस्तकं सुनाद िेणु हस्तकं
अधरं मधुरं िदनं मधुरं
अनंग रं ग सागरं नमावम कृष्ण नागरम् 1
नर्नं मधुरं हवसतं मधुरम् ।
हृदर्ं मधुरं गमनं मधुरं मनोजगिय मोचनं विशाल लोल लोचनं
मिु रावधपते रच्चखलं मधुरम् ॥ 1 ॥ विधूत गोप शोचनं नमावम पद्म लोचनम्
करारविन्द भूधरं च्चस्मताि लोक सुन्दरं
िचनं मधुरं चररतं मधुरं
महे न्द्रमान दारणं नमावम कृष्ण िारणम् 2
िसनं मधुरं िवलतं मधुरम् ।
चवलतं मधुरं भ्रवमतं मधुरं कदम्बसून कुण्डलं सुचारुगण्ड मण्डलं
मिु रावधपते रच्चखलं मधुरम् ॥ 2 ॥ व्रजाङ्गनैक िल्लभं नमावम कृष्ण दु लयभम्
र्शोदर्ा समोदर्ा सगोपर्ा सनन्दर्ा तदीर्ेवषत ज्ञेषु भिैर् वजतत्वं
र्ुतं सुखैक दार्कं नमावम गोप नार्कम् 3 पुनः िेमतस् तं शतािृवत्त िन्दे ॥ 3 ॥
िरं दे ि मोक्षं न मोक्षािवधं िा
सदै ि पाद पङ्कजं मदीर्मानसे वनजं
न चन्यं िृणे ‘हं िरे षाद् अपीह
दधानमुत्तमालकं नमावम नन्द बालकम्
इदं ते िपुर् नाि गोपाल बालं
समस्त दोष शोषणं समस्त लोक पोषणं
सदा मे मनस्य् आविरास्तां वकम् अन्यै ः ॥4॥
समस्त गोप मानसं नमावम नन्द लालसम् 4
इदं ते मुखाम्भोजम् अत्यन्त नीलै र्
भुिोभराितारकं भिाच्चि कणय धारकं
िृतं कुन्तलै ः विग्ध रिैश् च गोप्या
र्शोमती वकशोरकं नमावम वचत्त चोरकम्
मुहुश् चुच्चम्बतं वबम्ब रिाधरं मे
दृगन्तकान्त भवङ्गनं सदासदालसवङ्गनं
मनस्य् आविरास्ताम् अलं लक्ष लाभैः ॥ 5 ॥
वदने वदने निं निं नमावम नन्द संभिम् 5
नमो दे ि दामोदरानन्त विष्णो
गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं
िसीद िभो दु ःख जालाच्चि मग्नम्
सुरवद्वषविकन्दनं नमावम गोप नन्दनम्
कृपा दृवष्ट िृष्ट्यावत दीनं बतानु
निीन गोप नागरं निीन केवललं पटं
गृहाणे ष माम् अज्ञम् एध्य् अवक्ष दृश्यः ॥ 6॥
नमावम मेघ सुन्दरं तवटत्प्रभालसत्पटम् 6
कुिेरात्मजौ बद्ध मूत्यैि र्द्वत्
समस्त गोप नन्दनं हृदं बुजैक मोदनं
त्वर्ा मोवचतौ भच्चि भाजौ कृतौ च
नमावम कुञ्ज मध्यगं िसि भानु शोभनम्
तिा िेम भच्चिं स्वकां मे िर्च्छ
वनकामकाम दार्कं दृगन्त चारु सार्कं
न मोक्षे ग्रहो मे ‘च्चस्त दामोदरे ह ॥ 7 ॥
रसाल िेणु गार्कं नमावम कुञ्ज नार्कम् 7
नमस् ते ‘स्तु दाम्ने स्फुरद् दीच्चप्त धाम्ने
विदग्ध गोवपकामनो मनोज्ञ तल्प शावर्नं
त्वदीर्ोदरार्ाि विश्वस्य धाम्ने
नमावम कुञ्ज कानने ििृद्ध िवि पावर्नम्
नमो रावधकार्ै त्वदीर् विर्ार्ै
र्दा तदा र्िा तिा तिैि कृष्ण सत्किा
नमो ‘नन्त लीलार् दे िार् तु भ्यम् ॥ 8 ॥
मर्ा सदै ि गीर्तां तिा कृपा विधीर्ताम् 8
िमावणकाष्टकद्वर्ं जपत्यधीत्य र्ः पुमान् 7. कृष्णमङ्गलम् [कककककक
भिेत्स नन्द नन्दने भिे भिे सुभच्चिमान् 9 कककककककककककक]
मङ्गलं र्ादिेन्द्रार् महनीर् गुणात्मने
6. दामोदराष्टकम् [नमामीश्वरं ]
िसुदेि तनूजार् िासुदेिार् मङ्गलम् 1
(सत्यव्रतमुवनिोिं)
वकरीट कुण्डल भ्राजदलकैर्यन्मुखविर्े
नमामीश्वरं सच्-वचद् -आनन्द-रूपं
िीित्स कौस्तुभोद्भावस िक्षसे चास्तु मङ्गलम् 2
लसत् कुण्डलं गोकुले भ्राजमनम्
र्शोदा वभर्ोलू खलाद् धािमानं नीलां बुद वनकाशार् विद् र्ुत्सदृश िाससे
परामृष्टम् अत्यन्ततो द्रुत्य गोप्या ॥ 1 ॥ दे िकी िसुदेिाभ्यां संस्तुतार्ास्तु मङ्गलम् 3
रुदन्तं मुहुर् नेत्र र्ुग्मं मृजन्तम् ताभ्यां संिाविय तार्ाि िाकृताभयकरूवपणे
कराम्भोज र्ुग्मेन सातङ्क नेत्रम् र्शोदार्ा गृहं वपत्रा िावपतार्ास्तु मङ्गलम् 4
मुहुः श्वास कम्प वत्ररे खाङ्क कण्ठ
पूतनाऽसुपर्ःपानपेशलार्ासुरारर्े
च्चथित ग्रैिं दामोदरं भच्चि बद्धम् ॥ 2 ॥
शकटासुर विध्वंवस पादपद्मार् मङ्गलम् 5
इतीदृक् स्व लीलावभर् आनन्द कुण्डे
र्शोदाऽऽलोवकते स्वास्ये विश्वरूप िदवशय ने
स्व घोषं वनमज्जन्तम् आख्यापर्न्तम्
मार्ा मानुष रूपार् माधिार्ास्तु मङ्गलम् 6 जर् भि जनािर् वनत्य सुखालर्
अच्चन्तम बान्धि दे वह पदम् ।
तृ णाितय दनूजासुहाररणे शु भकाररणे
जर् दु जयन शासन केवल परार्ण
ित्सासुर िभेत्रे च ित्स पालार् मङ्गलम् 7
कावलर् मदय न दे वह पदम् ॥ 4 ॥
दामोदरार् िीरार् र्मलाजुय न पावतने
जर् वनत्य वनरामर् दीन दर्ामर्
धात्रा हृतानां ित्सानां रूपधत्रेऽस्तु मङ्गलम् 8
वचन्मर् माधि दे वह पदम् ।
ब्रह्मस्तुतार् कृष्णार् कालीर्फण नृत्यते जर् पामर पािन धमय परार्ण
दािावग्न रवक्षताशे ष गो गोपालार् मङ्गलम् 9 दानि सूदन दे वह पदम् ॥ 5 ॥
गोिधयनाचलोद्धत्रे गोपीक्रीडावभलावषणॆ जर् िेद विदां िर गोप िधूविर्
अञ्जल्याहृत िस्त्राणां सुिीतार्ास्तु मङ्गलम् 10 िृन्दािन धन दे वह पदम् ।
जर् सत्य सनातन दु गयवत भञ्जन
कंसहन्त्रे जरासन्ध बलमदय न काररणे
सज्जन रञ्जन दे वह पदम् ॥ 6 ॥
मिु रापुर िासार् महा धीरार् मङ्गलम् 11
जर् सेिक ित्सल करुणा सागर
मुचुकुन्द महानन्द दावर्ने परमात्मने
िाच्चञ्छत पूरक दे वह पदम् ।
रुच्चिणी पररणे त्रे च सबलार्ास्तु मङ्गलम् 12
जर् पूत धरातल दे ि परात्पर
द्वारकापुर िासार् हारनू पुर धाररणे सत्त्व गुणाकर दे वह पदम् ॥ 7 ॥
सत्यभामा समेतार् नरकघ्नार् मङ्गलम् 13
जर् गोकुल भूषण कंस वनषूदन
बाणासुर करच्छे त्रे भूत नािस्तुतार् च सात्वत जीिन दे वह पदम् ।
धमाय हूतार् र्ागािं शमयदार्ास्तु मङ्गलम् 14 जर् र्ोग परार्ण संसृवत िारण
ब्रह्म वनरञ्जन दे वह पदम् ॥ 8 ॥
कारवर्त्रे जरासन्ध िधं भीमेन राजवभः
मुिैः स्तुतार् तत्पुत्र राज्य दार्ास्तु मङ्गलम् 15
9. कृष्णलहरीस्तोत्रम् [ककक
चैद्यतेजोऽपहत्रे च पाण्डि विर्काररणे ककककककककककक]
कुचेलार् महाभाग्य दावर्ने ते ऽस्तु मङ्गलम् 16
कदा बृन्दारण्ये विपुल र्मुनातीर पुवलने
चरन्तं गोविन्दं हलधर सुदामावद सवहतम्
8. मदनमोहनाष्टकम् [जर् शं खगदाधर]
अहो कृष्ण स्वावमन् मधुर मुरली मोहन विभो
जर् शं ख गदा धर नील कले िर िसीदे त्याक्रोशन् वनवमषवमि नेष्यावम –
पीत पटाम्बर दे वह पदम् । वदिसान् 1
जर् चन्दन चवचयत कुण्डल मच्चण्डत
कदा कावलन्दीर्े हरर चरण मुद्रावङ्कत तटे
कौस्तुभ शोवभत दे वह पदम् ॥ 1 ॥
स्मरन् गोपी नािं कमल नर्नं सच्चस्मत मुखम्
जर् पंकज लोचन मार विमोहन अहो कृष्णानन्दाम्बुज िदन भिैक सुलभ
पाप विखण्डन दे वह पदम् । िसीदे त्याक्रोशन् वनवमषवमि नेष्यावम –
जर् िेणुवननादक रास विहारक वदिसान् 2
बवङ्कम सुन्दर दे वह पदम् ॥ 2 ॥
कदावचत् खेलन्तं व्रज पररसरे गोप तनर्ैः
जर् धीर धुरन्धर अद् भुत सुन्दर किवित् संिाप्तं वकमवप भजतं कञ्ज नर्नम्
दै ित सेवित दे वह पदम् । अर्े राधे वकल हरवस रवसके कञ्चुकर्ुगं
जर् विश्व विमोहन मान समोहन िसीदे त्याक्रोशन् वनवमषवमि नेष्यावम –
संच्चथिवत कारण दे वह पदम् ॥ 3 ॥ वदिसान् 3
कदावचत् गोपीनां हवसत चवकतं विग्ध नर्नं इहै ि जीिन्मुिश्च परं र्ावत परां गवतम् ॥ 9 ॥
च्चथितं गोपी िृन्दे नटवमि नटन्तं सुलवलतम्
हरर भच्चिं हरे दाय स्यं गोलोकं च वनरामर्म् ।
सुराधीशै ः सिैः स्तुतपदममुं िीहररवमवत
पाषयद ििरत्वं च लभते नात्र संशर्ः ॥ 10 ॥
िसीदे त्याक्रोशन् वनवमषवमि नेष्यावम –
वदिसान् 4
11. जगिािाष्टकम् [कदावचत् कावलन्दी]
कदावचत् कावलन्द्यां तटतरुकदं बे च्चथितममुं (ककककककककककककककक)
स्मर्न्तं साकूतं हृतिसन गोपीस्तनतटम् कदावचत् कावलन्दी तट विवपन सङ्गीत तरलो
अहो शक्रानन्दाम्बुज िदन गोिद्धय न धर मुदाभीरी नारी िदन कमला स्वाद मधुपः
िसीदे त्याक्रोशन् वनवमषवमि नेष्यावम – रमा शम्भु ब्रह्मामरपवत गणेशावचयत पदो
वदिसान् 5 जगिािः स्वामी नर्न पि गामी भितु मे ॥ 1 ॥
कदावचत् कान्तारे विजर् सखवमष्टं नृपसुतं भुजे सव्ये िेणुं वशरवस वशच्चखवपच्छं कवटतटे
िदन्तं पािे न्द्रं नृप सुत सखे बन्धुररवत च दु कूलं नेत्रान्ते सहचर कटाक्षं विदधते ।
भ्रमन्तं वििान्तं वितमुरवस रम्यं हररमहो सदा िीमद् ्‍िृन्दािन िसवत लीला पररचर्ो
िसीदे त्याक्रोशन् वनवमषवमि नेष्यावम – जगिािः स्वामी नर्न पि गामी भितु मे ॥ 2 ॥
वदिसान् 6
महाम्भोधेस्तीरे कनक रुवचरे नील वशखरे
10. राधाकृष्णस्तोत्रम् [िन्दे निघनश्यामं] िसन् िासादान्तः सहज बलभद्रे ण बवलना ।
(नारदपािरात्रान्तगयतम्) सुभद्रा मध्यथिः सकलसुर सेिािसरदो
जगिािः स्वामी नर्न पि गामी भितु मे ॥ 3 ॥
िन्दे नि घनश्यामं पीत कौशे र् िाससम् ।
सानन्दं सुन्दरं शु द्धं िीकृष्णं िकृते ः परम् ॥ 1 ॥ कृपा पारािारः सजल जलद िेवणरुवचरो
रमा िाणी रामः स्फुरद् अमल पङ्केरुह मुखः ।
राधेशं रावधका िाण िल्लभं िल्लिी सुतम् । सुरेन्द्रैर् आराध्यः िुवतगण वशखा गीत चररतो
राधा सेवित पादाब्जं राधा िक्षथिल च्चथितम् ॥ 2 ॥ जगिािः स्वामी नर्न पि गामी भितु मे ॥ 4 ॥
राधानुगं रावधकेष्टं राधापहृत मानसम् । रिारूढो गच्छन् पवि वमवलत भूदेि पटलै ः
राधाधारं भिाधारं सिाय धारं नमावम तम् ॥ 3 ॥ स्तुवत िादु भाय िम् िवतपदमुपाकण्यय सदर्ः ।
राधा हृत्पद्म मध्ये च िसन्तं सन्ततं शुभम् । दर्ा वसन्धुबयन्धुः सकल जगतां वसन्धु सुतर्ा
राधा सहचरं शश्वत् राधाज्ञा परर पालकम् ॥ 4 ॥ जगिािः स्वामी नर्न पि गामी भितु मे ॥ 5 ॥

ध्यार्न्ते र्ोवगनो र्ोगान् वसद्धाः वसद्धे श्वराश्चर्म् । परं ब्रह्मापीडः कुिलर् दलोत््‍फुल्ल नर्नो
तं ध्यार्ेत् सततं शुद्धं भगिन्तं सनातनम् ॥ 5 ॥ वनिासी नीलाद्रौ वनवहत चरणोऽनन्त वशरवस ।
रसानन्दी राधा सरस िपु रावलङ्गन सुखो
वनवलय प्तं च वनरीहं च परमात्मानमीश्वरम् । जगिािः स्वामी नर्न पिगामी भितु मे ॥ 6 ॥
वनत्यं सत्यं च परमं भगिन्तं सनातनम् ॥ 6 ॥
न िै र्ाचे राज्यं न च कनक मावणक्य विभिं
र्ः सृष्टेरावदभूतं च सियबीजं परात्परम् । न र्ाचेऽहं रम्यां सकल जन काम्यां िरिधूम् ।
र्ोवगनस्तं िपद्यन्ते भगिन्तं सनातनम् ॥ 7 ॥ सदा काले काले िमि पवतना गीतचररतो
बीजं नानािताराणां सिय कारण कारणम् । जगिािः स्वामी नर्न पि गामी भितु मे ॥ 7 ॥
िेदिेद्यं िेदबीजं िेद कारण कारणम् ॥ 8 ॥ हर त्वं संसारं द्रुततरम् असारं सुरपते
र्ोवगनस्तं िपद्यन्ते भगिन्तं सनातनम् । हर त्वं पापानां वितवतम् अपरां र्ादि पते ।
गन्धिेण कृतं स्तोत्रं र्ः पठे त् िर्तः शु वचः । अहो दीनेऽनािे वनवहत चरणो वनवश्चतवमदं
जगिािः स्वामी नर्न पि गामी भितु मे ॥ 8 ॥ कालत्रर्गवतहे तुं िणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 7

जगिािाष्टकं पुन्यं र्ः पठे त् िर्तः शु वचः ।
सियपाप विशु द्धात्मा विष्णु लोकं स गच्छवत ॥ 9 ॥ बृन्दािनभुवि बृन्दारकगणबृन्दारावधतिन्दे हम् ।
कुन्दाभामलमन्दस्मेरसुधानन्दं सुहृदानन्दम् ।
12. गोविन्दाष्टकम् [सत्यं ज्ञानमनन्तं] िन्द्याशे ष महामुवन मानस िन्द्यानन्दपदद्वन्द्वम् ।
(शं कराचार्यकृतम्) िन्द्याशे षगुणाच्चिं िणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 8

सत्यं ज्ञानमनन्तं वनत्यमनाकाशं परमाकाशम् ।
गोष्ठिाङ्गणररङ्खणलोलमनार्ासं परमार्ासम् । गोविन्दाष्टकमेतदधीते गोविन्दावपयतचेता र्ः ।
मार्ाकच्चल्पतनानाकारमनाकारं भुिनाकारम् । गोविन्दाच्युत माधि विष्णो गोकुलनार्क कृष्णेवत ।
क्ष्मामानािमनािं िणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 1 गोविन्दाङ्वि सरोजध्यानसुधाजलधौतसमस्ताघः ।
॥ गोविन्दं परमानन्दामृतमन्तथिं स तमभ्येवत ॥
मृत्स्नामत्सीहे वत र्शोदाताडनशै शि सन्त्रासम् ।
13. रावधकावधपाष्टकम् [ककककककककककक
व्यावदतिक्त्रालोवकतलोकालोकचतुदयशलोकावलम्
कककककककक] (वनम्बाकाय चार्यकृतम् )

लोकत्रर्पुरमूलस्तम्भं लोकालोकमनालोकम् । चतु मुयखावद संस्तुतं समस्त सात्वतानुतम्
लोकेशं परमेशं िणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 2 ॥ हलार्ुधावद संर्ुतं नमावम रावधकावधपम् 1
त्रैविष्टपररपुिीरघ्नं वक्षवतभारघ्नं भिरोगघ्नम् । बकावद दै त्य कालकं सगोप गोवप पालकम्
कैिल्यं निनीताहारमनाहारं भुिनाहारम् । मनोहरावस तालकं नमावम रावधकावधपम् 2
िैमल्यस्फुटचेतोिृवत्तविशे षाभासमनाभासम् ।
सुरेन्द्र गिय भञ्जनं विरवि मोह भञ्जनम्
शै िं केिलशान्तं िणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 3
व्रजाङ्गनानुरञ्जनं नमावम रावधकावधपम् 3

मर्ूर वपच्छ मण्डनं गजेन्द्र दन्त खण्डनम्
गोपालं िभुलीलाविग्रहगोपालं कुलगोपालम् ।
नृशंसकंस दण्डनं नमावम रावधकावधपम् 4
गोपीखेलनगोिधयनधृवतलीलालावलतगोपालम् ।
गोवभवनयगवदत गोविन्दस्फुटनामानं बहुनामानम् । िदत्तविि दारकं सुदामधाम कारकम्
गोपीगोचरदू रं िणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 4 ॥ सुरद्रुमापहारकं नमावम रावधकावधपम् 5
गोपीमण्डलगोष्ठीभेदं भेदािथिमभेदाभम् । धनञ्जर् जर्ािहं महाचमूक्षर्ािहम्
शश्वद्गोखुरवनधूयतोद्गत धूलीधूसरसौभाग्यम् । वपतामहव्यिापहं नमावम रावधकावधपम् 6
िद्धाभच्चिगृहीतानन्दमवचन्त्यं वचच्चन्ततसद्भािम् ।
मुनीन्द्र शाप कारणं र्दु िजापहारणम्
वचन्तामवणमवहमानं िणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥
धराभराितारणं नमावम रावधकावधपम् 7
5॥
सुिृक्ष मूल शावर्नं मृगारर मोक्ष दावर्नम्
िानव्याकुलर्ोवषद्वस्त्रमुपादार्ागमुपारूढम् ।
स्वकीर् धाम मावर्नं नमावम रावधकावधपम् 8
व्यावदत्सन्तीरि वदग्वस्त्रा दातु मुपाकषयन्तं ताः
वनधूयतद्वर्शोकविमोहं बुद्धं बुद्धेरन्तथिम् । इदं समावहतो वहतं िराष्टकं सदा मुदा
सत्तामात्रशरीरं िणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ 6 ॥ जपञ्जनो जनुजयरावदतो द्रुतं िमुच्यते 9
कान्तं कारणकारणमावदमनावदं कालधनाभासम् ।
14. कृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम् (शं कराचार्यकृतम्)
कावलन्दीगतकावलर्वशरवस सुनृत्यन्तम् मुहुरत्यन्तम्
। हृदम्भोजे कृष्णस्सजलजलदश्यामलतनुः
कालं कालकलातीतं कवलताशे षं कवलदोषघ्नम् । सरोजाक्षः स्रग्वी मकुटकटकाद्याभरणिान्
शरद्राकानाििवतमिदनः िीमुरवलकां सचूणं ताम्बूलं मुखशु वचकरं भक्षर् हरे
िहन् ध्येर्ो गोपीगणपररिृतः कुङ्कुमवचतः 1 फलं स्वादु िीत्या पररमलिदास्वादर् वचरम्
सपर्ाय पर्ाय प्त्यै कनकमवणजातं च्चथितवमदं
पर्ोम्भोधेद्वीपान्मम हृदर्मार्ावह भगिन्
िदीपैरारावतं जलवधतनर्ाच्चिष्ट रचर्े 7
मवणव्रातभ्राजत्कनकिरपीठं भज हरे
सुवचिौ ते पादौ र्दु कुलज नेनेच्चि सुजलै ः विजातीर्ैः पुष्पैरवतसुरवभवभवबयल्वतुलसी-
गृहाणे दं दू िाय दलजलिदर्घ्यं मुरररपो 2 र्ुतैश्चेमं पुष्पाञ्जवलमवजत ते मूवनय वनदधे
ति िादवक्षण्यक्रमणमघविद् ध्वंवस रवचतं
त्वमाचामोपेन्द्र वत्रदशसररदम्भोऽवतवशवशरं
चतु िाय रं विष्णो जवनपिगवतिाच्चन्तद विभो
भजस्वेमं पिामृतरवचतमाप्लािमघहन्
(िान्तविदु षाम्) 8
द् र्ुनद्याः कावलन्द्या अवप कनककुम्भच्चथितवमदं
जलं ते न िानं कुरु कुरु कुरुष्वाचमनकम् 3 नमस्कारोऽष्टाङ्गस्सकलदु ररतध्वंसनपटु ः
कृतं नृत्यं गीतं स्तुवतरवप रमाकान्त सततम्
तवटद्वणे िस्त्रे भज विजर्कान्तावधहरण
(तत इर्म्)
िलम्बाररभ्रातः मृदुलमुपिीतं कुरु गले
ति िीत्यै भूर्ादहमवप च दासस्ति विभो
ललाटे पाटीरं मृगमदर्ुतं धारर् हरे
कृतं विद्रं पूणं कुरु कुरु नमस्तेऽस्तु भगिन् 9
गृहाणे दं माल्यं शतदलतुलस्यावदरवचतम् 4
सदा सेव्यः कृष्णस्सजलघननीलः करतले
दशाङ्गं धूपं सद्वरद चरणाग्रेऽवपयतवमदं
दधानो दध्यिं तदनु निनीतं मुरवलकाम्
मुखं दीपेनेन्दु िभ विरजसं दे ि कलर्े
कदावचत् कान्तानां कुचकलशपत्रावलरचना-
इमौ पाणी िाणीपवतनुत सुकपूयररजसा
समासिः विग्द्द्धैस्सह वशशु विहारं विरचर्न् 10
विशोध्याग्रे दत्तं सवललवमदमाचाम नृहरे 5
मवणकणीच्छर्ा जातवमदं मानसपूजनम्
सदातृ प्ताऽिं षडरसिदच्चखलव्यञ्जनर्ुतं
र्ः कुिीतोषवस िाज्ञः तस्य कृष्णः िसीदवत 11
सुिणाय मत्रे गोघृतचषकर्ुिे च्चथितवमदम्
र्शोदासूनो तत् परमदर्र्ाऽशान सच्चखवभः
िसादं िाञ्छच्चद्भः सह तदनु नीरं वपब विभो 6
15. कृष्णाष्टकम् [विर्ाच्चिष्टो विष्णु ः] (शं कराचार्यकृतं )
विर्ाच्चिष्टो विष्णु ः च्चथिरचरिपुिेदविषर्ो
वधर्ां साक्षी शु द्धो हरररसुरहन्ताब्जनर्नः ।
गदी शङ्खी चक्री विमलिनमाली च्चथिररुवचः
शरण्यो लोकेशो मम भितु कृष्णोऽवक्षविषर्ः ॥ 1 ॥
र्तः सिं जातं विर्दवनलमुख्यं जगवददं
च्चथितौ वनःशे षं र्ोऽिवत वनजसुखांशेन मधुहा ।
लर्े सिं स्वच्चस्मन् हरवत कलर्ा र्स्तु स विभुः
शरण्यो लोकेशो मम भितु कृष्णोऽवक्षविषर्ः ॥ 2 ॥
असूनार्म्यादौ र्मवनर्ममुख्यैः सुकरणै ः
वनरुध्येदं वचत्तं हृवद विलर्मानीर् सकलम् ।
र्मीड्यं पश्यच्चन्त ििरमतर्ो मावर्नमसौ
शरण्यो लोकेशो मम भितु कृष्णोऽवक्षविषर्ः ॥ 3 ॥
पृविव्यां वतष्ठन् र्ो र्मर्वत महीं िेद न धरा
र्वमत्यादौ िेदो िदवत जगतामीशममलम् ।
वनर्न्तारं ध्येर्ं मुवनसुरनृणां मोक्षदमसौ
शरण्यो लोकेशो मम भितु कृष्णोऽवक्षविषर्ः ॥ 4 ॥
महे न्द्रावददे िो जर्वत वदवतजान्यस्य बलतो
न कस्य स्वातन्यं क्ववचदवप कृतौ र्त्कृवतमृते ।
बलाराते गयिं पररहरवत र्ोऽसौ विजवर्नः
शरण्यो लोकेशो मम भितु कृष्णोऽवक्षविषर्ः ॥ 5 ॥
विना र्स्य ध्यानं व्रजवत पशु तां सूकरमुखाम्
विना र्स्य ज्ञानं जवनमृवतभर्ं र्ावत जनता ।
विना र्स्य स्मृत्या कृवमशतजवनं र्ावत स विभुः
शरण्यो लोकेशो मम भितु कृष्णोऽवक्षविषर्ः ॥ 6 ॥
नरातङ्कोत्तङ्कः शरणशरणो भ्राच्चन्तहरणो
घनश्यामो िामो व्रजवशशु िर्स्योऽजुय नसखः ।
स्वर्ंभूभूयतानां जनक उवचताचारसुखदः
शरण्यो लोकेशो मम भितु कृष्णोऽवक्षविषर्ः ॥ 7 ॥
र्दा धमयग्लावनभयिवत जगतां क्षोभणकरी
तदा लोकस्वामी िकवटतिपुः सेतुधृगजः ।
सतां धाता स्वच्छो वनगमगणगीतो व्रजपवतः
शरण्यो लोकेशो मम भितु कृष्णोऽवक्षविषर्ः ॥ 8 ॥
इवत हरररच्चखलात्मारावधतः शङ्करे ण
िुवतविशदगुणोऽसौ मातृ मोक्षाियमाद्यः ।
र्वतिरवनकटे िीर्ुि आविबयभूि
स्वगुणिृत उदारः शङ्खचक्राब्जहस्तः ॥ 9 ॥
16. नन्दकुमाराष्टकम् [सुन्दरगोपालं ] (िल्लभाचार्यकृतं )
सुन्दरगोपालं उरिनमालं नर्नविशालं दु ःखहरम्
िृन्दािनचन्द्रमानन्दकन्दं परमानन्दं धरवणधरम् ।
िल्लभघनश्यामं पूणयकामं अत्यवभरामं िीवतकरम्
भज नन्दकुमारं सियसुखसारं तत्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥ 1 ॥
सुन्दरिाररजिदनं वनवजयतमदनं आनन्दसदनं मुकुटधरम्
गुञ्जाकृवतहारं विवपनविहारं परमोदारं चीरहरम् ।
िल्लभपटपीतं कृतउपिीतं करनिनीतं विबुधिरम्
भज नन्दकुमारं सियसुखसारं तत्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥ 2 ॥
शोवभतमुखधूलं र्मुनाकूलं वनपटअतू लं सुखदतरम्
मुखमच्चण्डतरे णुं चाररतधेनुं िावदतिेणुं मधुरसुरम् ।
िल्लभमवतविमलं शु भपदकमलं नखरुवचअमलं वतवमरहरम्
भज नन्दकुमारं सियसुखसारं तत्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥ 3 ॥
वशरमुकुटसुदेशं कुवितकेशं नटिरिेषं कामिरम्
मार्ाकृतमनुजं हलधरअनुजं िवतहतदनुजं भारहरम् ।
िल्लभव्रज्पालं सुभगसुचालं वहतमनुकालं भाििरम्
भज नन्दकुमारं सियसुखसारं तत्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥ 4 ॥
इन्दीिरभासं िकटसुरासं कुसुमविकासं िंवशधरम्
हृतमन्मिमानं रूपवनधानं कृतकलगानं वचत्तहरम् ।
िल्लभमृदुहासं कुञ्जवनिासं विविधविलासं केवलकरम्
भज नन्दकुमारं सियसुखसारं तत्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥ 5 ॥
परमििीणं पावलतदीनं भिाधीनं कमयकरम्
मोहनमवतधीरं फवणबलिीरं हतपरिीरं तरलतरम् ।
िल्लभव्रजरमणं िाररजिदनं हलधरशमनं शैलधरम्
भज नन्दकुमारं सियसुखसारं तत्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥ 6 ॥
जलधरद् र्ुवतअङ्गं लवलतवत्रभङ्गं बहुकृतरङ्गं रवसकिरम्
गोकुलपररिारं मदनाकारं कुञ्जविहारं गूढतरम् ।
िल्लभव्रजचन्द्रं सुभगसुिन्दं कृतआनन्दं भ्राच्चन्तहरम्
भज नन्दकुमारं सियसुखसारं तत्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥ 7 ॥
िच्चन्दतर्ुगचरणं पािनकरणं जगदु द्धरणं विमलधरम्
कावलर्वशरगमनं कृतफवणनमनं घावततर्मनं मृदुलतरम् ।
िल्लभदु ःखहरणं वनमयलचरणम् अशरणशरणम् मुच्चिकरम्
भज नन्दकुमारं सियसुखसारं तत्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥ 8 ॥

Venugopala ashtakam venugopalam eedae


Balakrishna ashraye sanskrit

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