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छहढाला - ढाल ३

प्रकाश छाबडा, यंग जैन स्टडी ग्रुप, इन्दौर


99260-40137
तीसरी ढाल में किसिा
वर्णन है?

सम्यग्दर्णन िा
प्रकाश छाबडा, यंग जैन स्टडी ग्रपु , इन्दौर
छांद 1

आतम िो हहत है सुख सो सुख आिु लता हिन िहहये।


आिु लता हर्वमाांहह न तातैं हर्वमग लाग्यो चहहये॥
सम्यग्दर्णन-ज्ञान-चरर् हर्वमग सो दुहवध हवचारो।
जो सत्यारथ-रूप सो हनश्चय, िारर् सो व्यवहारो॥१॥
आत्मा िा हहत सुख में है, वह सुख आिु लता रहहत िहा है।
 आिु लता मोक्ष में नहीं है, इसहलए मोक्षमागण में लगना चाहहये।
सम्यग्दर्णन-ज्ञान-चाररत्र इन तीनों िी एिता मोक्ष िा मागण
है। उस मोक्षमागण िा दो प्रिार से हवचार िरना चाहहये।
जो वास्तहवि स्वरूप है वह हनश्चय मोक्षमागण है और जो
उसिा िारर् है वह व्यवहार मोक्षमागण है।
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मोक्ष िा मागण क्या हैं ?

सम्यग्दर्णन, सम्यग्ज्ञान,
सम्यक्चाररत्र(रत्नत्रय) िी एिता
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मोक्षमागण कितने हैं ?
मोक्षमागण एि हैं ,उसिा
हवचार(हनरुपर्) दो प्रिार से है
हनश्चय व्यवहार
मोक्षमागण मोक्षमागण
वास्तहवि
िारर्
(सच्चा)
सत्याथण असत्याथण
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छांद 2

परद्रव्यनतैं हिन्न आप में, रुहच सम्यक्त्व िला है।


आप रूप िो जानपनो सो, सम्यक्ज्ञान िला है॥
आप रूप में लीन रहे हथर, सम्यक्चाररत सोई।
अि व्यवहार मोक्ष-मग सुहनये, हेतु हनयत िो होई॥२॥

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हनश्चय रत्नत्रय
पर द्रव्यों से पर द्रव्यों से
हिन्न अपनी हिन्न अपनी
आत्मा िी आत्मा िा
रुहच (श्रद्धा) ज्ञान

पर द्रव्यों से
हिन्न अपनी
आत्मा में
लीनता
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अि व्यवहार मोक्षमागण सुनो जो हनश्चय
मोक्षमागण िा हनहमत्त िारर् है ।

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छांद 3

जीव अजीव तत्त्व अरु आस्रव, िन्ध रु सांवर जानो।


हनजणर मोक्ष िहे हजन हतनिो, ज्यों िा त्यों सरधानो॥
है सोई समकित व्यवहारी, अि इन रूप िखानो।
हतनिो सुन सामान्य हवर्ेष,ैं कदढ़ प्रतीहत उर आनो॥३॥
हजनेन्द्रदेव ने जीव,अजीव,आस्रव,िन्ध,सांवर,हनजणरा और मोक्ष
ये सात तत्त्व िहे हैं।
उन सििी यथावत-यथाथणरूप से श्रद्धा िरो।
इस प्रिार श्रद्धा िरना,वह व्यवहार से सम्यग्दर्णन है।
अि, इन सात तत्त्वों िे स्वरूप िा वर्णन िरते हैं।
उसे सांक्षेप से तथा हवस्तार से सुनिर मन में अटल श्रद्धा िरो।
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जीव तत्त्व िा
वर्णन

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छांद 4

िहहरातम, अन्तर आतम, परमातम जीव हत्रधा है।


देह जीव िो एि हगनै, िहहरातम तत्त्व मुधा है॥
उत्तम मध्यम जघन हत्रहवध िे , अन्तर आतम ज्ञानी।
हिहवध सांग हिन र्ुध उपयोगी, मुहन उत्तम हनज ध्यानी॥४॥
 िहहरात्मा,अन्तरात्मा और परमात्मा-इस प्रिार जीव तीन प्रिार िे हैं।

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उनमें जो र्रीर
और आत्मा िो
एि मानता है,
वह िहहरात्मा है,
वह िहहरात्मा
यथाथण तत्त्वों से
अज्ञान अथाणत
तत्त्वमूढ -
हमथ्यादृहि है।
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आत्मा िो परवस्तुओं से
हिन्न जानिर यथाथण हनश्चय
िरने वाले अन्तरात्मा
िहलाते हैं।
(जो अपने में ही अपनापन
मानें)
वे उत्तम मध्यम और जघन्य-
ऎसे तीन प्रिार िे हैं।

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उनमें -
अांतरां ग-िहहरां ग ऎसे
दो प्रिार िे पररग्रह
रहहत
र्ुद्ध उपयोगी
आत्मध्यानी
कदगम्िर मुहन उत्तम
अन्तरात्मा हैं।
(अरहांत िनने से तुरांत
पहले)
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छांद 5

मध्यम अन्तर-आतम हैं जे देर्व्रती अनगारी।


जघन िहे अहवरत-समदृहि, तीनों हर्वमगचारी॥
सिल हनिल परमातम िैहवध, हतनमें घाहत हनवारी।
श्री अररहांत सिल परमातम, लोिालोि हनहारी॥५॥
 मध्यम अांतरात्मा व्रती श्रावि और गृहत्यागी (र्ुिोपयोगी) मुहनराज है।

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जघन्य
अांतरात्मा अव्रती
सम्यग्दृहि है ।
(ज्ञानी तो है,पर
व्रती नहीं)
ये तीनों
अांतरात्मा
मोक्षमागण में
चलने वाले है।
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परमात्मा सिल और हनिल दो प्रिार िे है।
उनमें घाहत िमण िा नार् िरने वाले अरहांत र्रीर सहहत
परमात्मा है, जो लोि-अलोि िो जानते-देखते है।
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छांद 6

ज्ञानर्रीरी हत्रहवध िमण मल-वर्जणत हसद्ध महन्ता।


ते हैं हनिल अमल परमातम िोगैं र्मण अनांता॥
िहहरातमता हेय जाहन तहज, अन्तर आतम हूजै।
परमातम िो ध्याय हनरां तर, जो हनत आनन्द पूजै॥६॥
ज्ञान मात्र हजनिा र्रीर है, एसे ज्ञानावरर्ाकद
द्रव्य िमण, रागाकद िाव िमण, र्रीराकद नोिमण
– तीन प्रिार िे िमण मल से रहहत
महान हसद्ध जो र्रीर रहहत, हनमणल परमात्मा
है।
वे अपररहमत सुख िोगते है।
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इन तीनों में
िहहरात्मपने िो
हेय जानिर
छोडना चाहहये
और अांतरात्मा
होना चाहहये
और सदा परमात्मा िा ध्यान
िरना चाहहये, हजसिे िारा अनांत
आनांद प्राप्त किया जाता है ।
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अजीव तत्त्व
िा वर्णन

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छांद 7

चेतनता हिन सो अजीव है, पांच िेद तािे हैं।


पुद्गल पांच वरन-रस, गांध दो फरस वसू जािे हैं॥
हजय पुद्गल िो चलन सहाई, धमण-द्रव्य अनरूपी।
हतष्ठत होय अधमण सहाई, हजन हवन मूर्तण हनरूपी॥७॥

जो चेतनता रहहत हैं वे अजीव हैं;


हजनिे पााँच िेद हैं।

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हजनमें पुद्गल िे पााँच वर्ण और
रस, दो गांध और आठ स्पर्ण
होते हैं।
जीव और पुद्गल िो गमन में
हनहमत्त और अमूर्तणि है, वह
धमणद्रव्य है।

तथा गहतपूवणि हस्थहत में हनहमत्त


होता है, वह अधमणद्रव्य है। हजनेन्द्र
िगवान ने उसे अथाणत् अधमणद्रव्य
िो िी अमूर्तणि िहा है।
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छांद 8

सिल-द्रव्य िो वास जास में, सो आिार् हपछानो।


हनयत वतणना हनहर्कदन सो, व्यवहार िाल पररमानो॥
यों अजीव, अि आस्रव सुहनये, मन-वच-िाय हत्रयोगा।
हमथ्या अहवरत अरु िषाय, परमाद सहहत उपयोगा॥८॥

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हजसमें समस्त द्रव्यों िा
हनवास है, वह आिार्
द्रव्य जानना।

स्वयां पररवर्तणत हो और
दूसरों िो पररवर्तणत होने
में हनहमत्त हो, वह
हनश्चयिाल है तथा राहत्र,
कदवस आकद, वह व्यवहार
िाल जानो।
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इस प्रिार अजीवतत्त्व िा वर्णन
पूर्ण हुआ।
अि, आस्रव तत्त्व िा स्वरूप सुनो।

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आस्रव क्या है?

 मोह, राग, िेष


िावों िे हनहमत्त
से िमों िा आना
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आस्रव िे िेद
हमथ्यात्व • अतत्त्वश्रद्धान

अहवरहत • इहन्द्रय हवषयों व प्रार्ी हहांसा िा त्याग न होना

प्रमाद • अच्छे िायों में अनुत्साह/ स्वरुप िी असावधानी

िषाय • जो आत्मा िो िसे अथाणत दुुःख दे

• मन वचन व िाय िे हनहमत्त से आत्म प्रदेर्ों िा


योग
पररस्पांदन(िम्पन)
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छांद 9

ये ही आतम िे दु:खिारर्, तातैं इनिो तहजये।


जीव प्रदेर् िाँधे हवहध सों सो, िांधन ििहूाँ न सहजये॥
र्म-दमतैं जो िमण न आवैं, सो सांवर आदररये।
तप-िलतैं हवहध-झरन हनरजरा, ताहह सदा आचररये॥९॥

यह हमथ्यात्वाकद आस्रव ही आत्मा


िो दु:ख िे िारर् हैं, इसहलए इन
हमथ्यात्वाकद िो छोड देना चाहहए ।
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िांध तत्त्व िा
वर्णन

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िांध क्या है?

रागाकद िावों िे
हनहमत्त से िमों िा
आत्मा िे साथ सांिांध
होना प्रकाश छाबडा, यंग जैन स्टडी ग्रपु , इन्दौर
सांवर क्या है?

वीतरागी (र्ुद्ध) िावों


िे िारा नवीन िमों िा
आना रुिना
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सांवर िे िारर्
र्म दम
िषायों िा इहन्द्रयों िा
अिाव जीतना
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हनजणरा क्या है?

वीतरागी (र्ुद्ध) िावों


िी वृहद्ध से पूवण िांधे िमों
िा एिदेर् हखरना
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हनजणरा िा िारर्
तप है
इच्छाओं िा रुिना
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• दु:ख िा िारर् जान
आस्त्रव िो
छोडना चाहहए
िांध • ििी नहीं िरना चाहहए

सांवर • ग्रहर् िरना चाहहए

हनजणरा • प्राप्त िरना चाहहए


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छांद 10

सिल-िमणतैं रहहत अवस्था, सो हर्वहथर सुखिारी।


इहहवहध जो सरधा तत्त्वन िी, सो समकित व्यवहारी॥
देव हजनेन्द्र, गुरु पररग्रह हिन, धमण दयाजुत सारो।
येहु मान समकित िो िारर्, अि-अांग-जुत धारो॥१०॥

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मोक्ष क्या है?

सवण िमण से रहहत आत्मा िी


हस्थर र्ुद्ध हनरािु ल अवस्था
वीतरागता िी पूर्णता
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छांद 10

 इस प्रिार जो सात तत्त्वों िी श्रद्धा है, वह व्यवहार सम्यग्दर्णन है ।


देव हजनेन्द्र हजन्होने इहन्द्रयों और मोह राग
िेष िो जीता हो
गुरु पररग्रह २४ प्रिार िे अांतरां ग व िहहरां ग
रहहत पररग्रह से रहहत
धमण दया युक्त स्व व पर िी दया

इन देव, गुरु, धमण िो सम्यक्त्व िा हनहमत्त िारर् जानना ।


सम्यग्दर्णन िो आठ अांग सहहत धारर् िरना चाहहए।
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छांद 11

वसु मद टारर हनवारर हत्रर्ठता, षट् अनायतन त्यागो।


र्ांिाकदि वसु दोष हिना, सांवेगाकदि हचत पागो॥
अि अांग अरु दोष पचीसों, हतन सांक्षेपै िहहये।
हिन जाने तैं दोष-गुननिों, िै से तहजये गहहये॥११॥
 आठ मद िा त्याग िरिे , तीन प्रिार िी मूढता िो हटािर, छह
अनायतनों िा त्याग िरना चाहहए।
 र्ांिाकद आठ दोषों से रहहत होिर सांवेग, अनुिम्पा, आहस्तक्य, और
प्रर्म िावना में मन िो लगाना चाहहए।
 अि, सम्यक्त्व िे आठ अांग और पच्चीस दोषों िो सांक्षेप में िहा जाता
है क्योंकि उन्हें जाने हिना दोषों िो किस प्रिार छोडें और गुर्ों िो
किस प्रिार ग्रहर् िरें ।
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व्यवहार सम्यग्दर्णन
क्या है ?
सात तत्त्वों िा श्रद्धान
देव, र्ास्त्र गुरु िा श्रद्धान
स्व - पर िेद हवज्ञान
8 अांग सहहत
25 दोष रहहत
सांवेगाकद िावना सहहत
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सम्यक्त्व िे

8 अांग 25 दोष

6 4 र्ांिाकद
8 मद 3 मूढता
अनायतन दोष
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सम्यग्दर्णन िे 25 दोष

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सांवेगाकद िावना
सांवेग
• धमण और धमण िे फल में अनुराग
प्रर्म
• िषायों िी मांदता
अनुिम्पा
• दया
आहस्तक्य
• हजन वचनों में आस्था / श्रद्धा
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छांद 12

हजन वच में र्ांिा न धार वृष, िव-सुख-वाांछा िानै।


मुहन-तन महलन न देख हघनावै, तत्त्व िु तत्त्व हपछानै॥
हनजगुर् अरु पर औगुर् ढााँिे, वा हनज-धमण िढ़ावै।
िामाकदि िर वृषतैं हचगते, हनज पर िो सु कदढ़ावै॥१२॥
१. सवणज्ञ देव िे िहे हुए तत्त्वों में सांर्य-
सांदह
े नहीं िरना, हन:र्ांकित अांग है;
२. धमण िो धारर् िरिे साांसाररि सुखों
कि इच्छा नहीं िरना, हन:िाांहक्षत अांग है;
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३. मुहनयों िे र्रीराकद
मैले देखिर घृर्ा नहीं
िरना, हनर्वणहचत्सा अांग
है;

४. सच्चे और झूठे तत्त्वों


िी पहहचान िरना,
अमूढदृहि अांग है;
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५. अपने गुर्ों िो और
दूसरे िे अवगुर्ों िो
हछपाना तथा अपने
आत्मधमण िो हनमणल
िनाना, उपगूहन अांग है;
६. िाम-हविाराकद िे
िारर् धमण से च्युत होते
हुए अपने िो तथा पर िो
उसमें पुन: दृढ िरना,
हस्थहतिरर्
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अां ग है ।
छांद 13

धमीसों गौ-वच्छ-प्रीहत सम, िर हजन-धमण कदपावै।


इन गुर्तैं हवपरीत दोष वसु, हतनिों सतत हखपावै॥
हपता िूप वा मातुल नृप जो, होय न तो मद ठानै।
मद न रूप िो, मद न ज्ञान िो, धन िल िो मद िानै॥१३॥

७. साधमीजनों से िछडे


पर गाय िी प्रीहत िे
समान प्रेम रखना,
वात्सल्य अांग है, और
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८. जैनधमण िी र्ोिा
में वृहद्ध िरना,
प्रिावना अांग है ।

इन आठ गुर्ों से उल्टे
आठ दोष हैं,उन्हें
सम्यग्दृहि जीव िो
दूर िरना चाहहए ।
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सम्यग्दृहि यकद हपता आकद हपतृपक्ष िे स्वजन
राजाकद हों तथा यकद मामा आकद मातृपक्ष िे
स्वजन राजाकद हों तो अहिमान नहीं िरता ।
र्ारीररि सौन्दयण िा अहिमान नहीं िरता;
हवद्या िा अहिमान नहीं िरता;
लक्ष्मी िा अहिमान नहीं िरता;
र्हक्त िा अहिमान नहीं िरता ।

8
मद

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छांद 14

तप िो मद न मद जु प्रिुता िो, िरै न सो हनज जानै।


मद धारै तो यही दोष वसु, समकित िो मल ठानै॥
िु गुरु-िु देव-िु वृष-सेवि िी, नहहां प्रर्ांस उचरै है।
हजनमुहन हजनश्रुत हवन िु गुराकदि,हतन्हें न नमन िरै है।१४।
 सम्यग्दृहि जीव तप िा अहिमान नहीं िरता,
और, ऎश्वयण - िडप्पन िा अहिमान नहीं िरता,वह
अपने आत्मा िो जानता है ।
यकद जीव उनिा अहिमान रखता है तो ऊपर िहे हुए
मद आठ दोषरूप होिर सम्यग्दर्णन िो दूहषत िरते हैं ।
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छांद 14

सम्यग्दृहि जीव िु गुरु, िु देव और िु धमण और उनिे


सेवि िी प्रर्ांसा नहीं िरता ।
हजनेन्द्रदेव, वीतरागी मुहन, और हजनवार्ी िे
अहतररक्त जो िु गुरु, िु देव, िु धमण हैं, उन्हें नमस्िार
नहीं िरता।

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अनायतन किसे िहते हैं
धमण िा अस्थान
अनायतन िौन-२ से है
िु गुरु िु देव िु धमण

िु गुरु िु देव िु धमण


सेवि सेवि सेवि
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छांद 15

दोषरहहत गुर्सहहत सुधी जे, सम्यग्दरर् सजै हैं।


चररतमोह वर् लेर् न सांजम, पै सुरनाथ जजै हैं॥
गेही, पै गृह में न रचै ज्यों, जलतैं हिन्न िमल है।
नगरनारर िो प्यार यथा, िादे में हेम अमल है॥१५॥

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जो िुहद्धमान पुरुष ऊपर िहे हुए पच्चीस
दोषरहहत तथा हन:र्ांिाकद आठ गुर्ों सहहत
सम्यग्दर्णन से िूहषत हैं
उन्हें चाररत्रमोहनीय िमण िे उदयवर् किां हचत
िी सांयम नहीं है

तथाहप देवों िे स्वामी इन्द्र


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िारा प्रर्ां स ा पाते हैं ।

यद्यहप वे गृहस्थ हैं तथाहप घर में नहीं
रचते । हजस प्रिार िमल जल से हिन्न
रहता है ।

सम्यग्दृहि िा घर में वेश्या िे प्रेम िी िााँहत


प्रेम होता है ।
तथा हजस प्रिार िीचड में स्वर्ण र्ुद्ध रहता
है उसी प्रिार सम्यग्दृहि घर में रहता है ।
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छांद 16

प्रथम नरि हवन षट् िू ज्योहतष वान िवन षांड नारी।


थावर हविलत्रय पर्ु में नहहां, उपजत सम्यि् धारी॥
तीनलोि हतहुाँ िाल माहहां नहहां, दर्णन सो सुखिारी।
सिल धरम िो मूल यही, इस हिन िरनी दु:खिारी॥१६॥

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सम्यग्दृहि जीव पहले नरि
िे अहतररक्क्त र्ेष छ्ह नरिों
में
ज्योहतषी देवों में, व्यन्तर
देवों में, िवनवासी देवों में,
नपुांसिों में, हस्त्रयों में,
पााँच स्थावरों में, िीहन्द्रय,
त्रीहन्द्रय और चतुररहन्द्रय
जीवों में
तथा िमणिूहम िे पर्ुओं में
उत्पन्न नहीं होते ।
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तीन लोि तीन िाल में
सम्यग्दर्णन िे समान
सुखदायि अन्य िु छ नहीं है।
यह सम्यग्दर्णन ही समस्त
धमों िा मूल है; इस
सम्यग्दर्णन िे हिना समस्त
कियाएाँ दु:खदायि हैं।
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छांद 17

मोक्षमहल िी परथम सीढ़ी, या हिन ज्ञान-चररत्रा।


सम्यिता न लहै सो दर्णन, धारो िव्य पहवत्रा॥
‘दौल’ समझ सुन चेत सयाने, िाल वृथा मत खोवै।
यह नरिव कफर हमलन िरठन है, जो सम्यि् नहहां होवै॥१७॥

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छांद 17

यह सम्यग्दर्णन मोक्षरूपी महल िी


प्रथम सीडी है ।
इस सम्यग्दर्णन िे हिना ज्ञान और
चाररत्र सम्यक्पने िो प्राप्त नहीं िरते;
इसहलए हे जीवों! ऎसे पहवत्र सम्यग्दर्णन
िो धारर् िरो ।
हे हववेिी समझदार दौलतराम ! सुन
समझ और सावधान हो; समय िो व्यथण
न गाँवा क्योंकि यकद सम्यग्दर्णन नहीं
हुआ तो यह मनुष्य पयाणय पुन: हमलना
प्रकाश छाबडा, यंग जैन स्टडी ग्रपु , इन्दौर दुलणि है।

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