Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 3

Note : If you would like to view or download the entire book please go through home

page of Jain eLibrary Website – www.jainelibrary.org and register your e-mail id


(or sign in if previously registered).

Leshya aur Manovigyan


Folder No. 003048
Granth Name Leshya aur Manovigyan
Author Shanta Jain
Publisher Jain Vishwa Bharti Prakashan Ladnun
Edition 1
Year 1996
Pages 240

लेश्या और मनोविज्ञान

फोल्डर नं. ००३०४८


ग्रन्थ लेश्या और मनोविज्ञान
लेखक शान्ता जैन
प्रकाशक जैन विश्वभारती प्रकाशन लाडनूूँ
आिृवि १
प्रकाशन िर्ष १९९६
पृष्ठ २४०

मुख्य टाइटल
आशीिषचन
प्रकाशकीय
आभार प्रस्तुवत
विर्य सूची
प्राथवमकी --------------------------------------------------------------------------------------------------------- १-१८
लेश्या का सैद्धावन्तक पक्ष --------------------------------------------------------------------------------------- १९-५२
जैन दशषन का द्वैतिाद और लेश्या का प्रत्यय
लेश्या पररभार्ा के आलोक में
लेश्या और योग के सन्दभष में विमशष
लेश्या वििेचन के विविध कोण
द्रव्यलेश्या और भािलेश्या
लेश्या और गुणस्थान
लेश्या और भाि
गवत और लेश्या
लेश्या की शुभ-अशुभ अिधारणा
मनोिैज्ञावनक पररप्रेक्ष्य में लेश्या ------------------------------------------------------------------------------- ५३-८०
चेतना के विविध स्तर
मूलप्रिृवियाूँ और संज्ञाएूँ
मनोिृवियों की प्रशस्तता-अप्रशस्तता
कर्ाय(संिेग)की विविध पररणवतयां

Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
लेश्या-स्थूल और सूक्ष्म चेतना का सम्पकष सूत्र
अचेतन मन के स्तर पर कमषबन्ध
वबना भाि बदले मन नहीं बदलता
अध्यिसाय लेश्या और पररणाम
रं गों की मनोिैज्ञावनक प्रस्तुवत -------------------------------------------------------------------------------- ८१-११०
रं ग का भौवतक पक्ष
मानवसक भूवमका पर रं गप्रभाि
रं ग के विविध आयाम
रं ग की गुणात्मकता और प्रभािकता
विविध उपमाओं के साथ लेश्यारं ग
लेश्या-समय, लम्बाई एिं िजन
लेश्या और ऐवन्द्रयक विर्य
रं गों का प्रतीकिाद
रं ग वचककत्सा
लेश्या और आभामण्डल ------------------------------------------------------------------------------------ १११-१२४
तैजस शरीर, तैजस समुद्घात और तेजोलवधध
सूक्ष्म चेतना के स्तर
रं गों की अनेक छवियाूँ
भािों के साथ जुडा आभामण्डल
िणष-व्यवित्ि की गुणात्मक पहचान
क्या आभामण्डल दृश्य है
व्यवित्ि और लेश्या ---------------------------------------------------------------------------------------- १२५-१४४
वतित्ि की पररभार्ा
व्यवित्ि वनमाषण के घटक
व्यवित्ि प्रकार
संभि है व्यवित्ि बदलाि ---------------------------------------------------------------------------------- १४५-१६१
उिरदायी कौन
पररपक्व व्यवित्ि
लेश्याविशुवद्ध-व्यवित्ि बदलाि
मूर्चछाष का आििष टू टे
आत्मना युद्धस्ि
वत्रसूत्री अभ्यास
धमषध्यान में प्रिेश
दमन नहीं-शोधन
जैन साधना पद्धवत में ध्यान -------------------------------------------------------------------------------- १६३-१९४
ध्यान क्या
ध्यान के भेद-प्रभेद
ध्यान की पूिष तैयारी
प्रेक्षाध्यान
रं गध्यान और लेश्या ---------------------------------------------------------------------------------------- १९५-२०७
आिरणशुवद्ध और करणशुवद्ध
बुराइयाूँ कहाूँ पैदा होती हैं
मवस्तष्क के श्रेष्ठ रं ग

Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
रं गध्यान का मुख्य उद्देश्य
वनर्ेधात्मक भािों का वनर्ेधक-रं गध्यान
शुभलेश्या का ध्यान
उपसंहार ---------------------------------------------------------------------------------------------------- २०९-२२१
सन्दभष ग्रन्थसूची -------------------------------------------------------------------------------------------- २२३-२२८

Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

You might also like