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Govind Damodar Stotra
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भगवान का नाम िकतना पावन है , उसम िकतनी शा , कैसी श और िकतनी काम दता है , यह कोई नहीं बतला
सकता। अथाह की थाह कौन ले सकता है । िजसके माहा का ान बु से परे है , उसका वाणी से वणन कैसे हो
सकता है ?
एक साधु से िकसी ने पूछा–’महाराज! नाम लेने से ा होता है ?’ साधु ने उ र िदया–’ ा होता है ? नाम से ा नहीं
होता? िजस माया ने जगत् को मोिहत कर रखा है , अ ानी बना रखा है , नाम के भाव से वह माया भी मोिहत हो जाती
है , अपना भाव खो दे ती है । चाहने से कहीं ब त अिधक ा होता है । मनु का चाहना-पाना दोनों िमट जाते ह।
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7/29/2019 ीगोिव दामोदर ो एवं भ िब मंगल - Aaradhika.com
ीगोिव दामोदर ो म् की रचना ीिब मंगल ठाकुर ारा की गयी है िज ‘ ीलीलाशुक’ कहा जाता है ।
यह ो ७१ ोकों का है िक ु यहां इसके कुछ चिलत ोक ही िह ी अनुवाद सिहत िदए जा रहे ह।
बालकृ का ान
िज ोंने अपने करकमल से चरणकमल को पकड़ कर उसके अंगूठे को अपने मुखकमल म डाल रखा है और जो
वटवृ के एक पणपुट (प े के दोने) पर शयन कर रहे ह, ऐसे बाल मुकु का म मन से रण करता ँ ।
ीगोिव दामोदर ो म्
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7/29/2019 ीगोिव दामोदर ो एवं भ िब मंगल - Aaradhika.com
हे िज े ! तू ‘ ीकृ ! गोिव ! हरे ! मुरा र ! हे नाथ ! नारायण ! वासुदेव ! तथा गोिव ! दामोदर ! माधव !’–इस
नामामृत का ही िनर र ेमपूवक पान करती रह।
िजनकी िच वृि मुरा र के चरणकमलों म लगी ई है , वे सभी गोपक ाएं दू ध-दही बेचने की इ ा से घर से चलीं।
उनका मन तो मुरा र के पास था; अत: ेमवश सुध-बुध भूल जाने के कारण ‘दही लो दही’ इसके थान पर जोर-जोर
से ‘गोिव ! दामोदर ! माधव !’ आिद पुकारने लगीं।
ज के ेक घर म गोपां गनाएं एक होने का अवसर पाने पर झुंड-की-झुंड आपस म िमलकर उन मनमोहन माधव
के ‘गोिव , दामोदर, माधव’ इन पिव नामों को िन पढ़ा करती ह।
अपने घर म ही सुख से श ा पर शयन करते ए भी जो लोग ‘हे गोिव ! हे दामोदर ! हे माधव !’ इन िव ुभगवान
के पिव नामों को िनर र कहते रहते ह, वे िन य ही भगवान की त यता ा कर लेते ह।
हे िज े ! तू सदा ही ीकृ च के ‘हे गोिव ! हे दामोदर ! हे माधव !’ इन मनोहर मंजुल नामों को, जो भ ों के
सम संकटों की िनवृि करने वाले ह, भजती रह।
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7/29/2019 ीगोिव दामोदर ो एवं भ िब मंगल - Aaradhika.com
सुख के अंत म यही सार है , दु :ख के अंत म यही गाने यो है और शरीर का अंत होने के समय भी यही म जपने
यो है , कौन-सा म ? यही िक ‘हे गोिव ! हे दामोदर ! हे माधव !’
हे रसों को चखने वाली िज े ! तुझे मीठी चीज ब त अिधक ारी लगती है , इसिलए म तेरे िहत की एक ब त ही
सु र और स ी बात बताता ँ । तू िनर र ‘हे गोिव ! हे दामोदर ! हे माधव !’ इन मधुर मंजुल नामों की आवृि
िकया कर।
हे िज े ! तू ‘ ीकृ ! राधारमण ! जराज ! गोपाल ! गोवधन ! नाथ ! िव ो ! गोिव ! दामोदर ! माधव !’–इस
नामामृत का िनर र पान करती रह।
ो पाठ से लाभ
िवपि के समय ाभ पूवक इस ो का पाठ िकया जाए तो मनु के सारे दु :ख यं भगवान हर लेते ह।
भगवान ीकृ के इस ो का िन पाठ करने से भगवान साधक के िच म वेश कर िवराजने लगते ह िजससे
उसके सम क ष धुल जाते ह, िच व अ :करण पी दपण हो जाता है और जो आन ामृत दान करने
के साथ मनु को मो भी दान करता है ।
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7/29/2019 ीगोिव दामोदर ो एवं भ िब मंगल - Aaradhika.com
Archana Agarwal
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