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CIK - 02

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पाठ् य म प रचय
इस नप म कु ल 13 इकाइय के मा यम से अ ययन हेतु तुत िवषय का वणन िकया गया है । कमका ड क
िवधा से स बि धत इस नप म म डप और कु ड िनमाण िविध से लेकर देव पूजन , याग , अनु ठान ,नव हपूजन
िवधान , िविभ न देवताओं क आरती इ यािद सिहत िविभ न ा ािद योग के यथा स भव वणन तुत िकये गये ह
। थम इकाई म म डप और कु ड िसि के िवधान से स बि धत योग के सिविध िच ण उपि थत ह । य को
स प न करवाने के िलए उसके अङ् ग (म डप तथा कु ड आिद) का ान आव यक है । वैिदक सू थ ,
ा ण थ , पुराण तथा ताि क थ म इन अङ् ग क िव तृत िववेचना क गयी है । इसम म डप तथा कु ड के
उपाङ् ग (खात, नािभ, क ठ, मेखला, योिन, तोरण आिद) का सु प वणन िमलता है । दस हाथ या कु छ यून से
लेकर एक सौ बीस (१२०) या इससे भी अिधक ल बे-चौड़े म डप क िनमाण िविध का माण भी िमलता है। भूिम के
िवभाग, त भ क सं या तथा विलका-का क सं या का भी उ लेख िमलता है। शा के अनुसार लगभग २७
कार के म ड़प का वणन िमलता है, ये म डप आकृ ितभेद तथा आयामभेद से िवपुल होते ह । ि तीय इकाई म डल
करण क है । म डल देवताओं का ही तीक है, इसम देवताओं क साङ् गोपाङ् ग पूजा क जाती है । म डल
देवताओं के अनुसार िनिद प म ही बनाय जाते ह । ाचीन काल से म डल का िनमाण वेदी पर िकया जाता है
।तृतीय इकाई म ारि भक पूजन के अ तगत आ मशुि , गु मरण, पिव धारण, पृ वी पूजन, सङ् क प, भैरव
णाम, दीप पूजन, शङ् ख-घ टा पूजन के प ात् ही देव पूजन करने के िवधान क चचा क गयी है । सभी देवताओं म
गणपित सव थम है, इनका पूजन सभी माङ् गिलक कम म करना चािहए । चौथी इकाई का यही व य िवषय है । इकाई
पॉ ंच पूजन म म षोड़शमातृकाओं का पूजन अिनवाय म है , इसके अ तगत गणपित, षोडश देिवय तथा स
वसो ारा देिवय का पूजन िकया जाता है , का मु य िवषय है । छठी इकाई ना दी ा के योग वणन क है । य ,
िववाह, ित ा, उपनयन, समावतन, पु ज म, गृह वेश, नामकरण, सीम तो नयन, स तान का मुख देखने से पूव और
वृषो सग म ना दी ा अव य करना चािहए , सातव का ितपा िवषय य ािद कतृक ा ण के पूजन एवं
पु याहवाचन कमािद ह । आठव वणन म म अि न थापन नव ह पूजा िविध का समुिचत उ ले ख िकया गया है ।
हशाि त करण म वा तु, योिगनी व े पाल पूजन का मह वपूण थान है । योिगिनय क सं या ६४ है । पूजन म
म १६ देिवयाँ व ७ घृतमातृकाय भी है, पर तु योिगिनय का िवशेष मह व है , यही सब नव इकाई का व य िवषय है
।दसव तथा यरहव इकाइयॉ ं मश: सवतोभ म डल के देवताओं के पूजन एवं हवन िवधान से स बि धत ह ।
आरती को '' आराितक अथवा '' नीराजन भी कहते है । पूजा के अ त म आरती क जाती है । पूजन म जो भी िु टयाँ
(म हीन/ि याहीन/अशुि आिद) रह जाती है, उनक पूित आरती के ारा क जाती है । क दपुराण के अनुसार :-
म हीनं ि याहीनं यत् कृ तंपूजनं हरे:। सव स पू णतामेित कृ ते नीराजनं िशवे ।।
िपतर का ऋण ा ारा चुकाया जाता है, आि नमास के कृ णप एवं मृ युितिथ को ा िकया जाता है। ा का
अथ है - या दीयते यत् तत् ा म् अथात् जो भी ा से िदया जाय । ये िवषय बारहव एवं तेरहव इकाई के ह ।
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इकाई — 1

म डप और कु ड िसि
इकाई क परेखा

1.1 तावना

1.2 उेय

1.3 म डप एवं कु ड के माप क िविध

1.4 म डप हेतु भूिमपरी ण

1.5 य कम म म डप -िनमाण हेतु शुभ भूिम के ल ण

1.6 य कम म म डप -िनमाण हेतु िदशा का चयन करते समय राहमुख का ान

1.7 भू-शुि

1.8 म डप िनमाण

1.9 कु ड िनमाण िविध

1.10 वेदी िनमाण

1.11 सारां श

1.12 श दावली

1.13 अितलघु रीय

1.15. लघु रीय


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1.16. स दभ थ

1.1 तावना

य को स प न करवाने के िलए उसके अङ् ग (म डप तथा कु ड आिद) का ान आव यक है । वैिदक


सू थ , ा ण थ , पुराण तथा ताि क थ म इन अङ् ग क िव तृत िववेचना क गयी है । इसम म डप
तथा कु ड के उपाङ् ग (खात, नािभ, क ठ, मेखला, योिन, तोरण आिद) का सु प वणन िमलता है । दस हाथ
या कु छ यून से लेकर एक सौ बीस (120) या इससे भी अिधक ल बे-चौड़े म डप क िनमाण िविध का माण
भी िमलता है। भूिम के िवभाग, त भ क सं या तथा विलका-का क सं या का भी उ लेख िमलता है।
शा के अनुसार लगभग 27 कार के म ड़प का वणन िमलता है, ये म डप आकृ ितभेद तथा आयामभेद से
िवपुल होते है ।

कु ड के भेद :- कु ड के मु यतया दो भेद है - आयामभेद तथा आकृ ितभेद । आयामभेद से कु ड


एकह ता मक, ि ह ता मक, चतु ह ता मक, षड् ह ता मक, अ ह ता मक तथा दशह ता मक होते है । अ य
कार से म डप क आकृ ितय के अनुसार भेद होते ह । आकृ ित के अनुसार कु ड तीन कार के होते ह :-

1. कोणा मक कु ड :- इनम ि कोण कु ड , चतु र कु ड , प चा कु ड , षड कु ड , स ा कु ड ,


अ ा कु ड , नवा कु ड , कु ड (एकादशा कु ड ), षट् ि श ं ा कु ड एवं अ च वा रं शा कु ड
होते ह ।

2. वतुल कु ड :- इनम वतुल कु ड , अधच कु ड तथा प कु ड होते है। सू यकु ड भी वतुलाकार होता
है ।

3. िविश कु ड :- इनम योिनकु ड , अिसकु ड , कु त कु ड , चापकु ड , मु रकु ड , शिनकु ड , राह कु ड


, के तु कु ड , च कु ड , गु कु ड , भौम कु ड , बुध कु ड , शु कु ड आिद होते है, िजनका वणन
ताि क थ म िमलता है ।

1.2 उ े य :-

1. कु ड-म डप क शा ीय िववेचन का ान ।

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2. मु य कु ड के िनमाण िविध का ान ।

3. कमका ड के शा ीय ान से प रचय ।

1.3 म डप एवं कु ड के माप क िविध

य कता यजमान को दोन भुजाय ऊपर क ओर करके सीधा खड़ा होना चािहए, िफर उसके पैर क अङ् गुिलय
के अ भाग से लेकर ऊपर खड़े िकये गये हाथ क म यमा अङ् गुली पय त नापना चिहए। यह माप र सी, सू
या फ ते से क जा सकती है। वह नाप िजतनी भी हो, उसका पाँचवा भाग एक ह त (हाथ) का माप माना गया
है। इस कार यह माप यजमान के शरीर के अनुसार होगा, शासक य या राजक य मापसू के अनुसार नह ।
अत: इस माप म ित यि अ तर होना भी वाभािवक है, जो िक य कता को फल ाि हेतु आव यक भी है।
यजमान के माप के अनुसार िनि त ह त माण से ही म डप , कु ड , वज, पताका, तोरण, ार आिद के
प रमाण को नापा जाता है । एक हाथ का मान चौबीस (24) अङ् गुल के बराबर होता है। इस कार एक
अङ् गुल का माण एक हाथ का चौबीसवाँ भाग होता है, त प ात उस अङ् गुल का अ मां श यव होता है। यव
का अ मां श यूका तथा यूका का अ मां श िल ा या ली ा होता है। िल ा का अ मां श वाला , वाला का
अ मां श रथरे णु तथा रथरे णु का अ मां श मु ी बाँधे हए हाथ क जो ल बाई है, उसको रि न (21 अङ् गुल)
कहते है । कोहनी से लेकर म यमा/तजनी पय त यह माप ''अरि न (22 अङ् गुल) कहलाती है ।

यहाँ विणत माप क इकाइयाँ िन न ह :-

8 परमाणु = 1 सरे णु - 8 सराणु = 1 रथरे णु

8 रथरे णु = 1 वाला - 8 वाला = 1 ली ा

8 ली ा = 1 यूका - 8 यूका = 1 यव

8 यव = 1 अङ् गुल - 24 अङ् गुल = 1 हाथ

21 अङ् गुल = 1 रि न - 22 अङ् गुल = 1 अरि न

म डप हेतु भू िमपरी ण :-

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वयं क भूिम पर ही य ािद कम करने चािहए तथािप अ य तीथ अथवा अ य िकसी थान पर य ािद कम कर
रहे है तो उस भूिम का उिचत शु ल भू वामी को दे देना चािहए अ यथा य ािद का फल भू वामी को ही िमलता
है । भूिम का परी ण करने हेतु चयिनत भूिम म एक वग-हाथ का चतु कोण खात बनाकर उस गत को सू या त
के समय जल से भर देना चािहए। यिद दूसरे िदन ात: काल उस गड् ढे म जल शेष रह जाये अथवा वह भूिम
गीली रह जाये तो वह शुभल ण होता है। यिद क चड़यु भूिम रहे तो म यफलदायी होता है । यिद उसका जल
पूण प से सू ख जाये तो उसम दरारे पड़ जाये तो उस भूिम को अशुभ फलदायी कहा जाता है । यथा -

ं ह तिमतं खनेिदह जलं पूण िनशा ये यसेत् ।

ात जलं थलं सदजलं म यं वस फािटतम्।।

नोट :- रे िग तान वाले देश म यह िविध उपयोगी नही ह, अत: े िवशेष का यान रखना चािहए ।

1.4 य कम म म डप -िनमाण हेतु शु भ भू िम के ल ण :-

1. सु ग ध यु भूिम ा णी, र ग ध वाली भूिम ि या, मधुग ध वाली भूिम वै या, म ग ध वाली
भूिम शू ाभूिम कही गयी है , अ लरस यु वै या, ित रस यु शू ा, मधुरसयु भूिम ा णी और
कड़वी ग ध वाली भूिम ि यवणा होती है।

2. ा णी भूिम सु खकारी, ि या रा यसु ख दाता, वै याभूिम धनधा य देने वाली और शू ा भूिम


या य होती है।

3. ा ण को सफे द भूिम, ि य को लालभूिम, वै य को पीली भूिम, शू को काली भूिम एवं अ यवण


के िलए िमि त रङ् ग क भूिम शुभ होती है।

4. ा ण आिद चार वण के िलए म से घी, र , अ न और म ग ध वाली भूिम शुभ होती है।

5. पूव िदशा क ओर भूिम ढालदार हो तो धन ाि , अि कोण म अि नभय, दि ण म मृ यु, नैऋ य म


धनहािन, पि म म पु हािन, वाय य म परदेश म िनवास, उ र म धन ाि , ईशान म िव ालाभ होता है।
भूिम म बीच म गड् ढा हो तो वह भूिम क दायक होती है।

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6. ईशान कोण म भूिम ढालदार हो तो य कता को धन, सु ख क ाि , पूव म हो तो वृि , उ र म हो तो


धनलाभ, अि कोण म हो तो मृ यु तथा शोक, दि ण म हो तो गृहनाश, नैऋ य म धनहािन, पि म म
मानहािन, वाय य म मानिसक उ ेग होता है।

7. ा ण को उ र, ि य को पूव , वै य को दि ण और शू को पि म क ओर ढालयु भूिम शुभ


होती है। मता तर से ा ण के िलए सभी कार क ढ़ालयु भूिम शुभ होती है। अ य वण के कोई
िनयम नह है।

8. पूव िदशा म ऊँची भूिम पु का नाश करती है। अि कोण म ऊँची भूिम धन देती है। अि कोण म नीची
भूिम धन क हािन करती है। दि णिदशा म ऊँची भूिम वा य द होती है। नैऋ यकोण म ऊँची भूिम
ल मीदायक होती है। पि म म ऊँची भूिम पु द होती है। वाय यकोण म ऊँची भूिम य क हािन
करती है। उ रिदशा म ऊँची भूिम वा य द तथा ईशानकोण म ऊँची भूिम महा लेशकारक होती है।

9. हल के फाल से भूिम को खोदने पर यिद लकड़ी िमले तो अि नभय, ईटं िमले तो धन ाि , भूसा िमले
तो धनहािन, कोयला िमले तो रोग, प थर िमले तो क याणकारी, हड् डी िमले तो कु लनाश, सप या
िब छू आिद जीव िमले तो वे वयं ही भय का पयाय है ।

10. हल के फाल से भूिम को खोदने पर यिद लकड़ी िमले तो अि भय, ईटं िमले तो धन ाि , भूसा िमले तो
धनहािन, कोयला िमले तो रोग, प थर िमले तो क याणकारी, हड् डी िमले तो कु लनाश, सप या िब छू
आिद जीव िमले तो वे वयं ही भय का पयाय है।

11. फटी हई से मृ यु, ऊषर भूिम से धननाश, हड् डीयु भूिम से सदा लेश , ऊँची-नीची भूिम से श ु विृ ,
मशान जैसी भूिम से भय, दीमक से यु भूिम से सङ् कट, गड् ढ वाली भूिम से िवनाश और कू माकार
अथात् बीच म से ऊँची भूिम से धनहािन होती है।

12. आयताकार भूिम (िजसक दोन भुजाएँ बराबर एवं चार कोण सम हो) पर िनवास सविसि दायक,
चतु र भूिम (िजसक ल बाई चौड़ाई समान हो) पर य ािद शुभकम करने से धन का लाभ, गोलाकार
भूिम पर य ािद शुभकम करने से बुि बल क वृि , भ ासन भूिम पर सभी कार का क याण,
च ाकार भूिम पर द र ता, िवषम भूिम पर शोक, ि कोणाकार भूिम पर राजभय, शकट अथात् वाहन
स श भूिम पर धनहािन, द डाकार भूिम पर पशुओ ं का नाश , सू प के आकार क भूिम पर गाय का
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नाश, जहाँ कभी गाय या हाथी बं धते हो वहाँ िनवास करने से पीड़ा तथा धनुषाकार भूिम पर िनवास
करने घोर सङ् कट आता है।

13. भूिम खोदते समय यिद वहाँ प थर िमल जाये तो धन एवं आयु क वृि होती है , यिद ईटं िमले तो
धनागम होता है। कपाल, हड् डी, कोयला, बाल आिद िमले तो रोग एवं पीड़ा होती है।

14. यिद गड् ढे म से प थर िमले तो वण ाि , ईटं िमले तो समृि , य से सु ख तथा ता ािद धातु िमले तो
सभी कार के सु ख क ाि होती है।

15. भूिम खोदने पर िचऊँटी अथात् दीमक, अजगर िनकले तो उस भूिम पर िनवास नह करे । यिद व ,
हड् डी, भूसा, भ म, अ डे, सप िनकले तो गृह वामी क मृ यु होती है। कौड़ी िनकले तो दु:ख और
झगड़ा होता है, ई िवशेष क कारक है। जली हई लकड़ी िनकले तो रोगकारक होती है, ख पर से
कलह ाि , लोहा िनकले तो गृह वामी क मृ यु होती है , इसीिलए कु भाव से बचने के िलए इन सभी
प पर िवचार करना चािहए।

1.5 य कम म म डप -िनमाण हेतु िदशा का चयन करते समय राहमु ख का ान :-

िदशा के चयन हेतु यथोपल ध साम ी यथा - िदशा सू चक य (क पास) से िदशा का िनणय करे ।

1.- देवालय के िनमाण म मीन-मेष-वृष का सूय हो तो ईशानकोण म, िमथुन -कक-िसं ह का सू य हो तो


वाय यकोण म क या-तु ला-वृि क का सू य हो तो नैऋयकोण म तथा धनु-मकर-कु भ का सूय हो तो
अि कोण म राह का मुख रहता है।

2. - गृहिनमाण म िसं ह-क या-तु ला का सू य हो तो ईशानकोण म, वृि क-धनु-मकर का सू य हो तो


वाय यकोण म, कु भ-मीन-मेष का सू य हो तो नैऋ यकोण म तथा वृष-िमथुन -कक का सू य हो तो
अि कोण म राह का मुख होता है।

3. - जलाशय के िनमाण म मकर-कु भ-मीन का सू य हो तो ईशानकोण म, मेष-वृष-िमथुन का सू य हो तो


वाय यकोण म, कक-िसं ह-क या का सू य हो तो नैऋ यकोण म तथा तुला-वृि क-धनुरािश का सू य हो
तो अि कोण म राह का मुख रहता है।

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राह के मुख से िपछले भाग म भूिम शोधन के िलए खात अथात् खड् ढा खोदना चािहए । उदाहरण के िलए
राहमुख ईशानकोण म हो तो खड् ढा आ नेयकोण म खोदना चािहए। वतमान म यही िविध चिलत है ।

1.6 भू-शु ि :-

1. दहनकम िजस भूिम पर य ािद कम हेतु म डप िनमाण करना हो, उसके खर-पतवार, काँटे आिद न
करने के िलए उसे यथास भव ि या से शु करना चािहए। य ािद कम हेतु चयनिनत भूिम पर यिद
वृ काटने पड़े (जहाँ तक स भव हो वृ ािद जीव पर िहंसा नह करे ) तो ाथनापूवक वृ काटने
चािहए तथा िजतने वृ काट रहे ह, उनसे अिधक यथासं या म वृ ारोपण करना चािहए।

यानीह भू तािन वसि त तािन, बिलं गृ ही वा िविधव यु म्।

अ य वासं प रक पय तु, म तु ते चा नमोऽ तु ते य:।।

अथात् जो ाणी इस वृ म िनवास करते है वे मेरे ारा दी गयी बिल अथवा भोग को हण करके
अ य िनवास कर, ऐसा कहते हए नम कार करे । आप सभी ाणी मुझे मा करे य िक म इस वृ करे काट
रहा हँ।

2. खननकम :- शुि के प ात् भूिम को समतल करने हेतु कु दाल, फावड़ा, हल आिद से खुदवाय,
िजससे भूिम चौरस तथा समतल हो जाये।

3. स लवानकम :- शुि , खनन के प ात् भूिम को जल से पू रत कर देवे , िजससे एक तो जल लवन के


कारण भूिम के ढलान का ान हो जायेगा तथा भूिम िछ एवं िववर से रिहत हो जायेगी, त प ात्
लीपने म सु िवधा होगी।

दहन-खनन-स लवन आिद ि याओं के प ात् थूल प से भूिम समान हो जायेगी, पर तु थकार के
अनुसार उसे ''समानां मुकुरजठरवत् बनाना चािहए अथात् िजस कार से दपण सपाट, िचकना एवं समतल होता
है, उसी कार भूिम को भी बना देना चािहए ।

उ कार से भू िम क परी ा करके भगवान गणेश, भगवती दु गा, े पाल तथा आठ िद पाल क
पु प, धू प तथा बिल आिद पू जन साम ी से पू जा करे।
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1.7 म डप िनमाण :-

म डप क भूिम को सामा य भूिम से एक हाथ या आधा हाथ माण ऊँचा रखना चािहए य िक य शाला को
सामा य भूिम से ऊँचा न रखने पर उसक पिव ता बािधत हो सकती है । देव ित ा आिद कम म य म डप के
अित र अ य म डप भी (अिधवासनम डप , नानम डप आिद) बनाने चािहए । अ य म ड़प को इतने
अ तर से बनाये िक वह अ तर म डप क ऊँचाई से यून न हो अथात् यिद म डप क ऊँचाई प ह (15) हाथ
हो तो कम से कम प ह हाथ के अ तर से ही अ य म डप बनाना चािहए। यथा -

म ड़पा तरमु सृ य कत यं म ड़पा तरमï। - वा तु शा

यिद थान का अभाव हो तो उस ि थित म एक म डप के समीप ही अ य म ड़ल बनाने का िवधान है । यथा -

गृ हे देवालये वािप सङ् क ण य यते ।

त काय म डप ै: सं ि ं म डप यम ï। - यामल

1. मदनर न के अनु सार म डप क िदशा :- अ य म ड़प क िदशा का िनधारण महाम डप से चार


ओर करना चािहए। महाम डप से इनक ऊँचाई भी कम रखनी चािहए। इन सहायक म ड़प क ऊँचाई
तो िवति तमा अथात् एक िब ाभर ही पया होती है। महाम डप या धान म डप या धान म डप
मयिद घर के समीप न बनाना हो तो उसे घर के पूव या उ र क ओर बनाना उिचत है ।

2. म डप का माप एवं फल :- 10 या 12 हाथ का म डप अधम, 12-14 हाथ का म डप म यम,


16-18 हाथ का म डप उ म होता है। यिद तुलादान करना हो तो बीस हाथ का म डप बनाना
चािहए। प चकु ड़ी या नवकु ड़ी होम एवं सभी कम म म ड़प का े फल आव यकता एवं
प रि थित के अनुसार िनि त करना चािहए । शीतकाल म अपे ाकृ त छोटे म डप म काय कर सकते
है, पर तु ी मकाल म अि का ताप अस हो जाता है, अत: ी मऋतु म तो यथास भव म डप
िवशाल ही होना चािहए ।

3. म डप भू िम के सम ि भाग :- म डप के उ र-दि ण तथा पूव -पि म म तीन-तीन सू देकर समान


िवभाग के वगाकार नौ ख ड़ बना लेने चािहए । इसके िलए म डप क एक भुजा के माप का सू ले

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तथा उसे ितहरा करने पर एक ख ड़ क माप होगी, उससे ईशानकोण से लेकर तीन बार नापकर
अि कोण तक पहँचे। अि कोण से नैऋ य कोण तक तीन सू ह गे। वाय यकोण से ईशानकोण तक
तीन सू क भूिम के नौ बड़े समान वगाकार बना ले। जहाँ पर उन ख ड़ के कोण पड़ते हो, वहाँ पर
त भ गाड़ देवे। इस कार चार त भ म यभाग म तथा शेष बारह त भ बाहर क ओर गाड़े जायगे।
यिद म डप प ह हाथ का होगा तो त भ क पर पर दूरी पाँच हाथ पर रहेगी। अठारह (18) हाथ के
म डप म त भ क पर पर दूसरी छ:-छ: हाथ तथा 21 हाथ के म डप म सात-सात हाथ रहेगी ।

4. ारिनमाण :- िकसी भी कार का म डप हो, उसके िदग तराल (पूव , दि ण, पि म, उ र) म चार


ार का िनमाण करना चािहए। इन ार क चौड़ाई दो हाथ होती है। म यम म डप म इसे चार अङ् गुल
तथा उ म म डप म आठ (8) अङ् गुल बढ़ा देना चािहए। अधम म डप म दो हाथ का चौड़ा ार,
म यम म डप म दो हाथ चार अङ् गुल का चौखटयु ार तथा उ म म डप म दो हाथ आठ अङ् गुल
का ार होना चािहए। ार क ऊँचाई तो म डप के उ ाय के तु य ही होनी चािहए य िक म डप के
बा त भ प चह त माण के होते है तथा एक हाथ भूिम म गड़े रहते है।

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5. त भिनवेशन :- म यवेदी के चार कोण पर चार त भ आठ हाथ प रमाण गाड़ने चािहए । त भ


क ऊँचाई का प चमां श अथात् (8/5) भाग (एक हाथ तथा चौदह अङ् गुल) भूिम म गाड़ देवे तथा
त भ के ऊपर चू ड़ा िनकाल देव,े ये चार त भ अ त: त भ कहलाते है।

त भ क थापना, िशला यास, सू योजना, क ल (शङ् कु ) िनवेशन, खननकाय आिद का ार भ अि कोण


से दि ण म से करे अथात् थम अि कोण से ार भ करे , त प ात् नैऋ यकोण तक जाये, िफर वाय य तक
तथा अ त म ईशानकोण होते हए अि कोण होते हए दि णा पूरी करे , इसे ही दि ण म कहते है। बाहर के
ादश त भ थािपत करे तथा भीतर के चार त भ इसी म म गाड़ने चािहए। थम म म बाहर के त भ
थािपत करे , त प ात् उनक थापना के बाद भीतरी चार त भ को गाड़ना चािहए। भीतर के चार त भ म
चू ड़ा होना आव यक है य िक उनम विलकाओं के िछ थािपत िकये जाते है।

6. बा त भ :- बाहर क ओर गाड़े जाने वाले बारह त भ पाँच हाथ माण के हो तथा उनका भी
प चमां श (एक हाथ) भूिम म िनिव करना चािहए। यथा -

प चमां शो खनेदï◌् भू मौ सवसाधारण िविध:।। - वा तु शा

7. य शाला म उपयोगी वृ :- त भ-िनमाणािद म य ीय वृ का योग ही समीचीन होता है,


िजसम बाँस, सु पारी, पलाश, फ गु (अ जीर), वट, ल (पाकर), अ थ (पीपल), िवकङ् कत,
उदु बर, िव व तथा च दन का योग े है।

8. य शाला म या य का :- जो वृ घर म लगकर टू ट गया हो, वत: सूख गया हो, टेढ़ा, पुराना
तथा अपिव थान पर उ प न हो, वह त भकम म या य है।

9. विलकाओं क सं या :- ऊपरविणत विलकाओं क सं या सोलह त भ के म डप हेतु िनधा रत


क गयी है। जहाँ और बड़े िवशाल म डप बनते है, वहाँ त भ क अिधकता के साथ विलकाय भी
अिधक लगती है, अठाइस हाथ के म डप म भूिम के पाँच िवभाग होते है। अत: 5 & 5 = 25 ख ड
बनते ह, िजनम छ ीस त भ लगते है तथा बह र विलकाय लगती है। इससे अिधक बड़े म डप म
जो िक पचह र हाथ तक हो सकता है, उसम सात िवभाग होने से 7 & 7 = 49 िवभाग हो जाते है
तथा उनम एक सौ अ_◌ाईस विलकाय सं योिजत क जाती है एवं त भ क सं या चौसठ हो जाती

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है । पचह र हाथ से अिधक बड़े म डप म दश िवभाग होते है, अत: 10 & 10 = 100 ख ड बनते है
तथा 11 & 11 = 121 त भ लगते है, िजसम दो सौ चालीस विलकाय लगती है।

10. विलका थापन िविध :- सव थम म यवेदी के चार कोण म जो चार बड़े त भ है, उनके चू ड़ा के
ऊपर दोन पा म िछ यु विलकाका लगाये । ये चार विलका दोन ओर िछ वाली होनी चािहए,
िजनके िछ म चू ड़ा त भ िव िकये जा सके , त प ात् इसी भाँित ादश त भ के दोन ओर बारह
विलकाका लगानी चािहए। इस कार कु ल सोलह विलकाका लग चुके ह गे और चार भीतरी
त भ आपस म सं यु हो चु के ह गे, शेष ादश त भ भी पर पर सं यु िदखाई दगे, इसम सोलह
विलका लग चु क ह गी।

त प ात् भीतर तथा बाहर के त भ को भी पर पर सं यु करना है, अत: दो-दो विलकाय येक
िदशा से म य के बा त भ से लेकर भीतरी त भ तक सं योिजत करे तथा कोण वाले त भ से भी
भीतर के त भ को सं योिजत करे तब बारह विलकाय और लग चु क ह गी। इस कार विलकाका
क सं या 16 + 12 = 28 हो जायेगी । कोने वाली चार विलकाय बड़ी होती है, िज ह ''कण कहते ह
। अब चार बड़ी विलकाय लेकर भीतर के चार बड़े त भ के ऊपर से म यवेदी के म यभाग म ऊँचाई
पर िशखर बनाने के िलए लगानी चािहए । इस कार कु ल ब ीस विलकाका का सं योजन त भ के
ऊपर करते है । कु छ िव ान विलकाओं क सं या छ ीस कहते ह, ता पय यह है िक िजतनी
विलकाओं एवं अ य का से म डप सु ढ़ हो जाये , उतनी सं या म का का योग करना चािहए ।

11. म डप का आ छादन :- म डप के ऊपरी भाग के म य म िशखर का िनमाण करे तथा उसे बाँस एवं
कट (कड़वी, सरपत, कु श आिद) से आ छािदत करे, के वल चारो ार को आ छािदत न करे । इस
म डप एवं त भ को व से भी वेि त करे । ना रयल के प , कदली त भ तथा प चप लवािद से
भी म डप को सु शोिभत करना चािहए। हय ीव पा चरा के अनुसार म डप म दपण, चामर, घट
आिद का उपयोग करने से शोभा बढ़ती है। म डप क शोभा बढ़ाने के िलए देवता, अवतार, महापु ष
एवं धािमक गु ओं के िच को म डप म लगाया जा सकता है ।

12. तोरण ार :- म डप के चार िदशाओं म पूवािद म से चार ार के बाहर तोरण का िनमाण करना
चािहए । इन तोरण का िनमाण ार से बाहर क ओर हटकर एक हाथ के अ तराल से करना चािहए,
तोरण बाहरी ार होता है। इन तोरण म येक िदशा म पृथक् -पृथक् वृ के का का उपयोग होता है ।
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पूव िदशा म वट अथवा पीपल, दि ण म ज तु फल (ऊमर), पि म म पीपल अथवा पाकर, उ रिदशा


म ल अथवा वट के का का योग करना चािहए। वतमान प रि थित म िजस देश म जो भी का
उपल ध हो, उसी का योग करे । देवता तोरण के प म य म डप के बाहर सं ि थत होकर िव का
िवनाश तथा य क र ा करते है, अत: पूवािद िदशाओं म य ोधािद का योग िकया जाता है। तोरण
क लकड़ी टेढ़ी-मेढ़ी नह होनी चािहए।

म डप ार से बाहर एक हाथ क दूरी पर यिद अधम म डप हो तो पाँच हाथ ऊँचा, म यम म डप हो तो छ:


हाथ तथा उ म म डप हो तो सात हाथ ऊँचा म डप बनाना चािहए। इनक चौड़ाई अधम म डप म दो हाथ,
म यमम डप म दो हाथ तथा छ: अङ् गुल अथात् सवा हाथ, उ म म डप म ढाई हाथ (2 हाथ 12 अङ् गुल)
रखनी चािहए । येक तोरण म तीन का लगते है। पा म दो त भ तथा ऊपर एक विलका लगती है । इन
त भ क मोटाई ार क भाँित दस अङ् गुल क होनी अपेि त है । इन तोरण त भ को भी प चमां श भूिम म
थािपत करना चािहए । तोरण त भ को पाटनेवाली चौड़ी काठ क पिटया (त ता / पटना / पाटना) को फलक
कहते है । फलक क ल बाई तोरण त भ क ऊँचाई से आधी हो अथात् यिद तोरण पाँच हाथ का ऊँचा है तो
ढाई हाथ का फलक होना चािहए । उस फलक म दोन ओर िछ बनवाना चािहए तथा िछ म तोरण- त भ
के चू ड़ को िव कर देना चािहए। फलक के म यभाग म ऊपर क ओर छोटे छे द म का िनिमत क ल लगा
देनी चािहए, िजस पर वै णव याग म शङ् खािद लगा िदये जाते है तथा शैवयाग म क ल के थान पर का िनिमत
ि शूल लगाये जाते है। उन क ल का चतु थाश फलक गाड़ना चािहए।

13. शैव एवं वै णव य के तोरण ार पर आयु ध, वज एवं पताकािद का थापन :-भगवान् शङ् कर,
ीगणेशजी एवं शि (देवी) से स बि धत य म ि शूल लगाये जाते है। अधम म डप म शूल नौ (9)
अङ् गुल ल बा तथा उसका चतु थाश (सवा 2 अङ् गुल) चौड़ा हो, उसका दो अङ् गुल भाग फलक म गाड़ना
चािहए। यिद म यमम डप हो तो शूल क ल बाई दो अङ् गुल बढ़कर यारह अङ् गुल हो जाती है तथा चौड़ाई
पौने तीन अङ् गुल (2 अङ् गुल 6 यव) हो जाती है। उसे एक अङ् गुल बढ़ाकर अथात् तीन अङ् गुल भाग फलक
म गाड़ना चािहए। उ र तोरण म ि शूल दो अङ् गुल और ल बा होकर तेरह अङ् गुल का हो जाता है तथा सवा
तीन अङ् गुल (3 अङ् गुल 2 यव) उसक चौड़ाई होती है एवं उसका चार अङ् गुल भाग फलक म िव रहता है
। ीिव णु, ीराम आिद से स बि धत य म पूव ार के तोरण पर शङ् ख, दि णी तोरण पर च , पि मी तोरण
पर गदा तथा उ री तोरण पर प लगाते है । उन क ल क मान-वृि िव णुयाग म एक-एक अङ् गुल होती है
अथात् अधम म डप म दशाङ् गुल , म यमम डप म ादशाङ् गुल तथा उ मम डप म चौदह अङ् गुल होती है

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। उनक चौड़ाई मश: सवा तीन, पौने चार तथा सवा चार होती है । साथ ही फलक म िवि मश: तीन,
चार तथा पाँच अङ् गुल होती है। त भ के मूल म दो-दो कलश क थापना करना भी अभी है ।

14. वजा :- वजा क ल बाई पाँच हाथ तथा चौड़ाई दो हाथ होनी चािहए। इनके रं ग पीत, र
(लाल/अ ण), कृ ण, नील, ेत, अिसत (धूम), ेत, िसत - ये पूवािद िदशाओं के िद पाल के अनुसार हो
तथा इनको दश हाथ ल बे बाँस पर लगाना चािहए ।

व ािद क यूनता के कारण वजा- माण एक हाथ ल बाई तथा आधा हाथ चौड़ाई का भी रख सकते है ।
यथा -

सवऽथवा बाहिमता वजा: यु : सू याङ् गु लैरायितका दशैव।

प े यदा िद िमता तदा तु र तु र ो दशमो िसत ।।

वजारोपण एक आव यक कम है य िक वजारिहत म डप म जो भी माङ् गिलक कृ य िकये जाते है, वे सभी


िन फल हो जाते है। यथा -

वजेन रिहते नम डपे तु वृथा भवेत ï।

पू जा होमािदकं सव जपा ं य कृ तं बु धै:।। - पा चरा

15. िदशाओं के अनु सार वण व वजाधीश (इन वजाओं पर िद पाल के वाहन का िच भी बनाकर इ ह
थािपत करना चािहए।) :-

िदशा वण वजाधीश वाहन

1. पूव पीत इ हाथी

2. अि नकोण अ ण (लाल) अि न बकरा

3. दि ण कृ ण यम मिहष

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4. नैऋ य नीला िनऋित िसं ह

5. पि म ेत वण म य/मकर

6. वाय य अिसत (धू ) वायु िहरण

7. उ र ेत सोम अ

8. ईशान ेत िशव वृषभ

9. ऊव ेत ा हंस

(ईशान तथा पूव के म य म)

10. अध: ेत अन त गड़

(िव णु के िलए नैऋ य और पि म के म य म)

16. पताका िनवेशन :- वजा-िनवेशन के प ात् पताका-िनवेशन भी करना चािहए। पताकाय भी लोके श
(िद पाल ) के वण के अनुसार हो, िजनक दीघता सात हाथ तथा आयित (चौड़ाई) एक हाथ होनी चािहए। उन
पताकाओं म लोके श के आयुध के िच बनाकर उ हे िद कर (10 हाथ) ल बे बाँस के शीष पर लगाकर उन
बाँस का प चमां श (10/5) भूिम म गाड़ देना चािहए ।

17. िदशाओं के अनु सार वण व पताकाओं के वामी :-

िदशा वज ि थित पताका ि थित

1. पूव ार इ ऐरावत वज उ री शाखा व पताका दि णी शाखा म

2. अि कोण पूव क ओर अि का उप वज दि ण क ओर शि पताका

3. दि ण पूवशाखा म यम का मिहष वज पि मीशाखा म द डपताका

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4. नैऋ यकोण दि ण क ओर िसं ह वज उ र क ओर खड् गपताका

5. वाय यकोण पि म क ओर मृग वज उ रीशाखा म पाशपताका/मीन वज

6. वाय यकोण पि म क ओर मृग वज उ र क ओर अङ् कु शपताका

7. उ री ार शाखा म मृग वज उ र क ओर अङ् कु शपताका

8. ईशानकोण उ री ओर वृष वज पूव म ि शूलपताका

9. पूव+ईशान उ रम ा का हंस वज दि ण क ओर कम ड़लु पताका के म य

10. नैऋ य दि ण क ओर ग ड़ वज उ र क ओर च पताका पि म के म य

18. महा वज :-इन सभी के अित र एक महा वज भी लगाये, िजसके अ भाग पर िकङ् िकणी, चँवर आिद
सु शोिभत होने चािहए। यह महा वज ब ीस हाथ के बाँस पर लगाये, असमथता म इसे दस हाथ या सोलह हाथ
या इ क स हाथ के बाँस पर योग करे । इस महा वज को िविच वण (प चवण) रखे तथा उस पर उस देवता
के वाहन का िच बनाय, िजसके िनिम वह य ािद कम िकये जा रहे है । कह वजा चौकोर तथा पताका
ि कोण बनाते है तथा अनेक िव ान वजा को ि कोण तथा पताका को चतु कोण बनाते है। अत: इनके आकार
थानीय लोकाचार से अनुसार बनाय ।

म डप क स जा म वजाओं, पताकाओं, वाहन , आयु ध , त भ , मेखलाओं आिद म योग िकये


जाने वाले रङ् ग के गु णधम :-

1.8 कु ड -िनमाण एवं उनक सं ाय

1. आहित के अनु सार कु ड -िनमाण :-

आहितसं या कु ड िनमाण का माण

1. 50-99 रि न माणकु ड (21 अङ् गुल)

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2. 100-999 अरि न माणकु ड (22 अङ् गुल)

3. 1,000-9,999 एक हाथ माणकु ड (24 अङ् गुल)

4. 10,000-99,999 दो हाथ माणकु ड ( 34 अङ् गुल )

5. 1,00000-9,99,999 चार हाथ माणकु ड ( 48 अङ् गुल )

6. 10,00000-1,0000000 छ: हाथ माणकु ड ( 58 अङ् गुल 6 यव )

7. एक करोड़ से अिधक आठ हाथ माणकु ड (67 अङ् गुल 7 यव) इसका उपयोग कोिटहोम म
होता है।

अ य मत :-1. एक लाख से दस लाख आहित एक हाथ से दस हाथ माणकु ड (24 अङ् गुल से 240
अङ् गुल)
त प ात् दस लाख तक आहितय के िलए '' ल ैक वृद् या अथात् एक-एक लाख पर एक-एक हाथ बढ़ा देना
चािहए । िजतने लाख आहितयाँ हो , उतने ही हाथ का कु ड बनाना चािहए ।
नोट :-हवनकु ड के आकार का िनधारण आचाय आहित के अनुसार विववेक से देशकाल प रि थित के
अनुसार करे ।

2. कु ड क सं ाएँ :-

यिद कु ड म पाँच या नौ मेखलाय बनायी जाये तो भी य म डप म अिधक अवकाश क आव यकता रहती


है। िव कम काश के अनुसार िविभ न म ड़प क सं ाय िन िलिखत है :-

1. पु पक 2. पु पभ 3. सु व ृ 4. अमृतन दन 5. कौश या

6. बुि सं क ण 7. गजभ 8. जय 9. ीवृ 10. िवजय

11. वा तु कोण 12. तु तधर 13. जयभ 14. िवलास 15. सं ि

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16. श ु मदन 17. भा यप च 18. न दन 19. भानु 20. मानभ क

21. सु ीव 22. हषण 23. किणकार 24. पदािधक 25. िसं ह

26. यामभ 27. श ु न

3. माप के अनु सार कु ड फल :-

िदशा कु ड फल

1. पूव चतु र कु ड कायिसि

2. आ ेय योिनकु ड पु ाि

3. दि ण अधच कु ड क याण

4. नैऋ य ि कोणकु ड श ु नाश

5. पि म वतुलकु ड शाि त

6. वाय य षड कु ड मारण या उ छे द कम हेतु े

7. उ र प कु ड वषाकारक

8. ईशान अ ा कु ड आरो यदायक

ऊपर विणत कु ड के अित र प चा तथा स ा कु ड का िनमाण भी कु ड़ाकािद थ म िनिद है।


प चा कु ड अिभचारकम क शाि त करता है तथा स कोणकु ड भूतदोष क शाि त कर देता है ।

4. कु डमानािद च :-

हाथ 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 16

अङ् गुल 24 33 41 48 53 58 63 67 72 75 96
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यव 0 7 4 0 5 6 3 7 0 7 0

यूका 0 4 4 0 2 2 7 0 0 1 0

िल ा 0 4 3 0 4 3 7 3 0 2 0

बाला 0 3 4 0 6 2 2 5 0 0 0

रथ 0 5 5 0 4 6 0 6 0 4 0

य 0 4 0 0 0 0 1 0 0 0 0

5. नवकु ड़ी य हेतु कु ड क ि थित :-आचाय ( धान) कु ड / धान वेदी/ धान पीठ कौन सा हो, यह
सं केत नह है, पर तु शारदाितलक एवं िस ा तशेखर के अनुसार आचायकु ड को ईशान तथा पूव के म य म
कहा गया है।

6. प चकु ड य :- प चकु ड़ी प म चार कु ड आशाओं (मु य िदशाओं) म बनते है तथा पाँचवा ईशान
म बनता है। प चकु डी प म यिद य हो तो आचाय कु ड को म य म ही रखना चािहए। ित ा म पूव एवं
ईशान के म य भी रख सकते है, ऐसा भी कु छ मूध य िव ान का अिभमत है।
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7. एककु डी य :-

''चैकं यदा पि मसोमशैवे अथात् एककु ड़ी प म उस कु ड को पि म िदशा म अथवा उ र िदशा म


ईशानकोण म बनाना चािहए। देव ित ा म उ र िदशा म ही कु ड िनमाण करना चािहए। अ य म िवक प से
काम कर सकते है। इन कु ड म िदशाओं का िनधारण म यवेदी से सवा हाथ क दूरी पर अभी िदशा म करना
चािहए (यहाँ म यवेदी से ता पय म यख ड स है) । सामा यत: नवकु ड़ी, प चकु ड़ी तथा एककु ड़ी होम - ये
तीन प है, पर तु याग म एकादश कु ड भी बनाये जा सकते है तथा चतु कु ड़ी य का िवधान भी िमलता
है। दानािदकाय म स कु ड का िवधान भी है ।

8. वणभेद एवं िलङ् गभेद से कु ड के आकार का िवचार :-

1. ा ण के िलए चतु र कु ड,

2. ि य के िलए वृ ाकार कु ड ,

3. वै य के िलए अधच कु ड ,

4. शू के िलए ि कोण कु ड ,

5. ि य के िलए योिनकु ड बनाना चािहए ।

अथवा सम त वण के िलए चतु र या वृ ाकार कु ड का िनमाण करना सदैव फलदायी होता है ।

9. आचाय कु ड :- जहाँ हवन धानकम होगा, वहाँ कु ड म य म भी बनाते है। अत: नवकु ड़ी तथा
प चकु ड़ी प म आचायकु ड म य म ही बनता है, पर तु दी ाकाय एवं ित ा म आचायकु ड पूव -ईशान
के म य म ही रहना चािहए।

नव ह य :- जब नव ह का हवन िकया जाये तो सूय क धानता से म य म जो सू यकु ड बनेगा, वही


आचायकु ड होगा । जहाँ म य म दो कु ड हो, वहाँ म यख ड़ के दो कु ड म दि ण िदशा का कु ड ही
आचायकु ड होगा ।

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शतमु ख य :- जहाँ एक सौ आठ (108) या इससे अिधक कु ड हो, वहाँ िवशेष वचन से आचायकु ड
होता है, िजनक योिन पूव म होती है ।

देव ित ा य :- नवकु डीप म पूव -ईशान के म य आचायकु ड होता है, पर तु प चकु ड़ी से ित ा


कराने पर आचायकु ड म डप के ईशानख ड़ म आचायकु ड रहता है। अ य मत से ईशान तथा पूव का कु ड
भी आचाय कु ड वीकार िकया गया है। ित ा म जहाँ एक ही कु ड बने, वहाँ उसे ईशान, पूव , उ र या
पि म म िवक प से बनाया जाता है ।

चतु कु ड़ी िवधान :- यिद ित ाकाय म चार कु ड का िनमाण हो तो पूव िदशा धान होने से उसी का कु ड
आचायकु ड होना चािहए ।

स कु ड़ी िवधान :- देव ित ा म यिद स कु ड़ी िवधान हो तो पूव िदशा का कु ड आचायकु ड होता है ।

योदश कु ड :- इसम थम प चकु ड़ी प क भाँित चारो मु य िदशाओं म एक-एक कु ड का िनमाण


कर प चम धान (आचाय) कु ड अि कोण म बनाते है। तदुपरा त सभी आठ िदशाओं म एक-एक कु ड
का िनमाण कर िदया जाता है। त सार म यह िवधान िमलता है ।

1.9 कु ड िनमाण

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िविध

देशकाल प रि थित के अनुसार तथा हवन क मा ा के अनुसार यिद आव यकता न हो तो कु ड न बनाकर


थि ड़ल ही बना लेना चािहए। सु नहरी या लालरङ् ग क िम ी अथवा अ य शु िम ी से एक हाथ ल बा, एक
हाथ चौड़ा तथा चार अङ् गुल ऊँचा एक समान चौकोर थि ड़ल बना लेवे। थि ड़ल म योिन भी बनानी
चािहए, पर तु क ठ नह बनावे य िक क ठ तो खात म ही बन सकता है ।

1. कु ड हेतु खात :- खात से ही कु ड अपना प धारण कर पाता है इसिलए खात का भी वत प म


कु ड के अङ् ग म थान है। खात मेखला के साथ ही े के समान आकार एवं आयाम का होना चािहए।
अ य िव ान ने मेखलाओं के िबना ही खात क गहराई िनधा रत क है ।

कु ड मान के िवभाजन :- कु ड मान के आठ भाग क िजये तो चौबीस अङ् गुल म (24/8 = 3) तीन
अङ् गुल या मक एक भाग होता है।

कु ड खात :- भूिमतल से पाँच भाग (5 & 3 = 15) अथात् प ह अङ् गुल नीचे तक खनन करना चािहए
और शेष तीन भाग म (3 × 3 = 9) अथात् नौ अङ् गुल क ऊँचाई तक तीन मेखलाओं का िनमाण करना
चािहए।

अ. - मेखलासिहत खात :- खात क कु ल गहराई एक हाथ के कु ड म एक हाथ (24 अङ् गुल) ही होनी
चािहए । मान लीिजये िक भूिम से मेखलाओं क ऊँचाई चार अङ् गुल हो तो कु ड क गहराई भूिम से नीचे क
ओर बीस अङ् गुल क जाती है। इस कार (20 + 4 = 24) कु ल चौबीस अङ् गुल का खात मान लेते है, यिद
मेखला का मान पाँच अङ् गुल हो तो भूिम से नीचे उ नीस (19) अङ् गुल खात िकया जाता है। छ: अङ् गुल (6)
मेखला क ऊँचाई हो तो अठारह (18) अङ् गुल का खात िकया जाता है। छ: अङ् गुल का मान लेते है। सात
अङ् गुल क मेखला म भूिम से नीचे स ह (17) अङ् गुल का ही खात करते है। आठ अङ् गुल मेखला होने पर
खात माण मा सोलह अङ् गुल होगा। नौ अङ् गुल क मेखला होने पर क ठ से नीचे खात का माण मा
प ह अङ् गुल ही होता है। इस कार कु ल चौबीस अङ् गुल मान लेते है । मेखलासिहत खात सू म होम य के
िलए होता है।

ब. - मेखलारिहत खात :- खात करने पर चौबीस अङ् गुल क गहराई म मेखलाओं क ऊँचाई को सि मिलत
नह करते है । इस गहराई के ऊपर क ठ रहता है, त प ात् मेखलाय बनायी जाती है । इसम भूिम म पूरा चौबीस
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अङ् गुल खोदते है। पायस, च (खीर), बेलफल, इ ुख ड़ आिद के िलए मेखलारिहत खात िकया जाता है।
इसम कु ड क गहराई अिधक होती है, िजससे थूल य को कु ड म यि थत होने म सु िवधा होती है।
शारदाितलक के अनुसार कु ड क ल बाई-चौड़ाई के अनुपात म खात भी उतनी ही ल बाई-चौड़ाई का होना
चािहए । जब सिमधा के साथ गोमयिप ड़ (छाणे/क ड़े) का उपयोग होता है, तब मेखलारिहत खात करना ही
उिचत होगा य िक वतमान का के अभाव गोमयिप ड का उपयोग सव अिधकमा ा म िकया जाता है ।

2. क ठ िनधारण :- कु ड म उसी के समान आकार का क ठ भी भूतल के तर पर बनाना चािहए। यिद एक


हाथ का कु ड है तो क ठ भी एकाङ् गुल ही बनाये। यिद कु ड दो हाथ का है तो क ठ दो अङ् गुल चौड़ा रखे।
कु ड के माण का 24वाँ भाग क ठ होना चािहए। भूिम के तर पर चार भुजाओं म एक अङ् गुल अवकाश
(यह अवकाश ही मेखलाएँ होती है ) छोड़कर मेखलाएँ बनानी चािहए । िस ा तशेखर के अनुसार क ठ एक ही
अङ् गुल चौड़ा माना है, इसे गल भी कहा गया है ।

सोमश भु के अनुसार क ठ का माण दो अङ् गुल है , उनके मतानुसार कु छ आगम म क ठ दो अङ् गुल भी
चौड़ा होता है, पर तु सवस मत एवं चिलत प एक अङ् गुल का ही है, वही सवमा य है। दो हाथ वाले कु ड
(34 अङ् गुल) म क ठ दो अङ् गुल बनाया जा सकता है ।

3. कु ड क मेखला का िनमाण :-

अ. - थम मेखला :- थम मेखला क ऊँचाई कु ड कृ ित का छठा भाग अथातï◌् (24/6 = 4) चार


अङ् गुल तथा चौड़ाई भी इतनी ही होनी चािहए।

ब. - ि तीय मेखला :- म य म ि तीय मेखला कु ड के े फल का गजां श (अ मां श) अथातï◌् तीन


अङ् गुल चौड़ी तथा तीन ही अङ् गुल ऊँची होनी अपेि त है।

स. - तृतीय मेखला :- यह सबसे नीचे बनती है, िजसक ऊँचाई कु ड े का अकाश अथातï◌् 12वाँ भाग
होती है। यह 2 अङ् गुल चौड़ी तथा 2 अङ् गुल ऊँची होती है।

एक हाथ को 24वाँ भाग अङ् गुल होता है, उसी के ारा मेखला, क ठ तथा नािभ का िनमाण करना चािहए।
कु ड क माप के िलए कु ड का रका म आज के फ ते या के ल क भाँित प का बनाने का िनदश है, िजस
काठ क पतली प ी पर बनाकर अङ् गुल तथा यव के िच लगते ह।
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द. पाँच या सात मेखलाएँ :- कु ड म पाँच तथा सात मेखलाएँ भी बनायी जाती है। ल णसं ह थ के
अनुसार पाँच मेखलाएँ मु य होती है तथा तीन मेखला म यम होती है। भिव यपुराण के अनु सार ल होम म
स मेखला मक कु ड का उपयोग होता है अथवा प चमेखला के कु ड को बनाना उिचत है । िजस कार का
कु ड हो उसी कार क मेखलाओं का िनमाण करना चािहए अथात् चतु र कु ड म मेखला भी चतु ाकार
ही होगी । ि कोण कु ड क मेखला ि कोण, प चा क प चभुज , षड क षड् भजु , स ा क स भुज एवं
अ ा क अ भुज आकार क होती है। योिनकु ड म मेखलाय यो याकार तथा वृ कु ड म मेखला वृ ाकार
होती है। प कु ड क मेखला भी प ाकार होती है । यिद कु ड िवषम षड या िवषम अ ा है तो मेखला
भी वैसी ही होनी चािहए।

मेखलाओं का फल :-

मेखला क सं या फल अ य मत

1. एक मेखला अधम अ य त अधम

2. दो मेखला म यम अधम

3. तीन मेखला उ म म यम

4. पाँच मेखला - उ म

वण के अनु सार मेखला :-

वण मेखला

1. ा ण तीन मेखलायु कु ड

2. ि य दो मेखलायु कु ड

3. वै य एक मेखलायु कु ड

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य कता यजमान के अनुसार मेखलाय एक-दो या तीन क सं या म रखी जा सकती है। इन मेखलाओं म थम
मेखला साि वक , दूसरी मेखला राजसी तथा तीसरी मेखला तामसी कही गयी है।

ि मेखला के देव :-

1. थम मेखला का वण ेत होता है, इसके देवता ाजी है, अत: इसम देव का पूजन िकया जाता है।
इसके ह च तथा शु है। 2. ि तीय मेखला का र वण है, इसके देवता िव णु (अ युत) है , इसके ह सूय
तथा मङ् गल है। 3. तृतीय मेखला कृ णवण क होती है, िजसके देव भगवान शङ् कर ( ) है तथा इसके ह
शिन तथा राह है। बुध तथा बृह पित क ठ के ह होते है।

4. कु ड म योिन-िनमाण :- पूव , आ ेय तथा दि णख ड़ म जो कु ड बनाये जाये, उनम दि ण िदशा म


योिन लगानी चािहए तथा योिन का अ भाग उ रिदशा म हो। त प ात् नैऋ य, पि म, वाय य, उ र तथा
ईशान के पाँच कु ड म योिन पि म िदशा म लगानी चािहए तथा उसका अ भाग पूव म होना चािहए। नवकु ड
(आचायकु ड ) ईशान तथा पूविदशा के म य म बनता है, उसम योिन दि ण िदशा क ओर तथा अ भाग उ र
क ओर रहेगा। योिनकु ड म योिन नह लगानी चािहए य िक वह पूरा कु ड ही योिन के आकार का होता है,
पर तु उस यो याकार कु ड का अ भाग उ र म रखना चािहए तथा होता कु ड के दि णिदशा म बैठकर हवन
करे गा। इस कार िकसी भी कु ड क भुजा म ही योिन बनानी चािहए। दो भुजाओं के कोण म योिन कभी नह
बनानी चािहए।

पूवा योिन के कु ड म होता पि म िदशा म बैठकर पूवािभमुख होकर हवन करते है तथा उ रा योिन वाले
कु ड म होता दि णिदशा क ओर पीठ करके तथा उ रािभमुख होकर बैठते है।

योिन :- सव थम कृ ित चतु र (24) अङ् गुल माण का आधा (12 अङ् गुल) दीघ तथा आठ अङ् गुल
िव तार वाला एक अङ् गुल ऊँचा चतु र बनाये। इस चतुर को कु ड क उस िदशा म बनाना चािहए, िजसम
योनी बनानी है। इसम छ: अङ् गुल के अ तर पर म य म ल बाई म एक रे खा ख च दे तथा उस रे खा को म य से
काटकर जाने वाली दूसरी रे खा भी ख च देवे , यह योिन आगे कु ड म झुक हई तथा कु ड म िव होती
िदखनी चािहए।

योिन बारह (12) अङ् गुल ल बी, आठ (8) अङ् गुल चौड़ी तथा एक (1) अङ् गुल ऊँची होनी चािहए। यह
कु ड म एक (1) अङ् गुल आगे िनकली हई तथा ढलान वाली होनी चािहए। इसक ऊँचाई आगे क ओर
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यारह (11) अङ् गुल तथा प भाग क ओर बारह अङ् गुल होनी चािहए। योिन का आकार पीपल के प े
अथवा पान के प े के स श होना चािहए।

यिद कु ड क मेखला ादश (12) अङ् गुल हो तो योिन-िनवेशन :- जब मेखलाएँ चार-चार अङ् गुल ऊँची
तथा इतनी ही चौड़ी होकर तीन क सं या म हो, तो उस ि थित म प ह अङ् गुल ल बी, दश अङ् गुल चौड़ी
तथा प ह अङ् गुल ऊँची योिन का िनमाण करना चािहए। योगसार के अनुसार ऊँचाई का माण तेरह
अङ् गुल बताया गया है। योिन का िकनार क ऊँचाई एक अङ् गुल ही होनी चािहए।

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योिन क आव यकता : ताि क य म योिन बनाने क पर परा है तथा कु ड म योिन न होने को दोष
(भाया िवनाशनं ो ं कु ड़े योिनिवना कृ ते) माना गया है। कह-कह यह भी बताया गया है िक यो यभाव म
अप मार तथा भग दर रोग होता है,एवं मानहीनता के कारण द र ता होती है । म य मेखला म योिन के पीछे
िछ बनाया जाता है, िजससे ल बी-पतली-गोल लकड़ी लगा दी जाती है। योिन बन जाने पर उसके ऊपर दोन
तरफ िम ी के दो गोल िप ड़ रख िदये जाते है, जो उ र तथा दि ण म रहते है ।

5. कु ड म नािभ :- नािभ का आकार कु ड के समान ही रखना चािहए। यिद कु ड समचतु र है तो नािभ


भी समचतु होगी। यिद ि कोण है तो नािभ भी ि कोण होगी, इसी कार यािनकु ड म नािभ यो याकार हआ
करती है। षड तथा अ ा कु ड म नािभ का आकार इसी कार होता है, पर तु जो नािभ कु ड़ाकार बनाई
जाये, उसे गहरी बनानी चािहए तथा उसका उ ाय विणत है, उसे कु ड भूतल से गहराई के प म बनानी
चािहए । मनु य म नािभ का आकार जैसा होता है , वैसी ही नािभ कु ड म बनानी चािहए। वह गत प (गड् ढे
के समान) या अ जाकार (कमल क भाँित) होती है, ता पय यह है िक नािभ को गहरा ही बनाना चािहए और
उसे कु ड का आकार देना चािहए।

अ. - अ जाकार नािभ :- कु ड तल म उभरी हई (ऊँची) होती है, गहरी नह । जब नािभ कमल क भाँित बने
तो उसे गत प नह बनाना चािहए, इसे ही प ाकार नािभ कहते है। अ य मत से सभी कु ड म नािभ बनाते है,
पर तु प कु ड म नािभ नह बनती है, य िक प कु ड म जो किणका होती है, वह वयं नािभ का थान
हण करती है।

ब. - नािभ िनमाण िविध :- कु ड तल के म य म दो अङ् गुल ऊँची तथा चार अङ् गुल ल बी एवं चार
अङ् गुल चौड़ी वगाकार (ऊँचाई के साथ घनाकार) सनी हई आ िम ी रखे। त प ातï◌् वृ ाकार व प
दान करे, उसम परकाल का सहयोग लेना चािहए। नािभ म आठ प दो अङ् गुल माण के बनाये। म य म
किणका तथा के सरम ड़ल को कि पत करे । 12वाँ भाग छोड़कर प का अ भाग बनाना चािहए। द ार भ म
चार ओर अङ् गुलािद 0.2.5.2 छोड़ (काट) देतो शेष े म तीन समान वृ मश: 0.4.7.1 यासाध,
1.1.6.2 यासाध तथा 1.6.5.3 यासाध का बनाकर नािभ स प न करे ।

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1.11 वेदी िनमाण

म डप को पूव से पि म तथा उ र से दि ण तीन-तीन भाग म िवभािजत करे तो उनके खड़े और ितरछे कटने
से कु ल नौ ख ड़ िनिमत हो जाते है, उनम से म यभाग को वेदी कहते है। म य म वेदी क ऊँचाई एक हाथ
माण क होनी चािहए। इस धान वेदी को ि व ा चतु कोण बनाना चािहए। य भगवानï◌् म य म िवरािजत
होकर आहित हण करते है, अत: म यख ड़ म वेदी बनाने का ावधान अनेक आचाय ने िकया है, पर तु
म यकु ड भी बना सकते है तथा धान वेदी ईशानकोण अथवा पूव म बनानी चािहए। शारदाितलक के
अनुसार वेदी म यभाग म उिचत है, वेदी म तीन व बनाने चािहए। यथा -

ततो म डप सू तु ि गु णीकृ य त विवतï◌्।

पू वािदषु मा य म यभागे तु वेिदका।।

यिद म य भाग म वेदी बनाई हो तो धान वेदी पूव म ही बनानी चािहए। यथा -

म ये तु म डप यािप कु डं कु यादï◌् िवच ण:।

अ ह त माणेन आयामेन तथैव च।।

कु ड य पू व य वेदी कु यादï◌् िवच ण:।

चतु ह तां समा चैव ह तमा ोि तां नृ प।।

1. वेदी के कार :-

अ. चतु र ा वेदी :- यह वगाकार होती है, यह सभी के िलए शुभफलदायी होती है।

ब. पि नी वेदी :- यह कमल के आकार क होती है, इसका उपयोग वापी, कू प, तड़ागािद क ित ा म होता
है।

स. ीधरी वेदी :- यह बीस (20) कोण वाली होती है, इसका िनमाण िववाह-काय म करना े है। इसका
उदर दपण क भाँित िनमल, चमकदार तथा सपाट होना चािहए।
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द. सवतोभ वेदी :- इसम चार िदशाओं म चार भ होते है, िजसका उपयोग अिभषेक म करना चािहए।
सवतोभ का िनमाण तो अिधसं य मङ् गलकाय म होता है।

2. अ कोण वेदी :- ीराघवभ ने अ कोण वेदी का िवधान शतच ड़ी, सह च ड़ी आिद शि याग हेतु
बताया है। म डप के म यभाग म चार त भ के म य एक वगाकार वेदी बनाये। यिद म डप सोलह (16)
हाथ का हो तो वेदी एक हाथ तथा अठारह अङ् गुल (पौन दो हाथ & पौन दो हाथ) क बनावे। यिद म डप
बीस हाथ माण वाला हो तो वेदी एक तथा चौबीस अङ् गुल अथात् दो हाथ (2 & 2 हाथ) क बनावे। चतु र
वेदी के दोन ओर के कोण को अङ् िकत करते हए सू देने पर अ ा अथात् अ कोण हो जाती है।

3. तु लादान हेतु म यवेदी :- इस हेतु िनिमत म यवेदी यिद अधम या म यम हो तो पाँच हाथ ल बी तथा पाँच
हाथ चौड़ी होनी चािहए। यिद उ म म डप हो तो वेदी सात हाथ ल बी तथा सात चौड़ी होनी चािहए। वेदी का
उ ाय सभी कार के म ड़प म एक हाथ होना चािहए।

4. हवेदी :- सभी कार के म ड़प एवं काय म हवेदी (नव ह वेदी) का िनमाण ईशान कोण म करना
चािहए । यह हाथ ऊँची, एक हाथ ल बी तथा एक हाथ चौड़ी हो अथात् वह एक घन ह त होना चािहए। साथ
ही उसम तीन व भी हो अथात् तीन सीिढ़याँ या मेखला लगी हो इसिलए इसे ि िव ा कहा गया है।

महा यागािद म ईशानकोण म ही धान वेदी का िनमाण करते है य िक क िदशा ईशान है, पर तु नव ह
वेदी उसके दि ण म होनी चािहए ।

5. वेदी-प रिध का माण :- थम मेखला/प रिध दो अङ् गुल ऊँची, िजसके ऊपर तीन अङ् गुल ऊँचा
मेखला हो, िफर उसके ऊपर भी तीन अङ् गुल क मेखला हो। व क चौड़ाई दो अङ् गुल होती है।

6. अ य वेिदयाँ :- य म अ य वेिदय का िनमाण भी होता है । िवक प से कु छ िव ान् अि कोण म ही


मातृकावेदी के साथ ही योिगनीवेदी भी बना देते है। अि कोण म ही स घृतमातृका क थापना भी हो जाती है ,
िजसे एक का के प े पर कर देते है। मातृका वेदी का अि कोण म होना म थानभैरव थ के माणानुसार है ।
उसी के अनुसार शेष वेिदय को एक हाथ ल बा, एक हाथ चौड़ा तथा आधा हाथ ऊँचा बनाना चािहए।
देव ित ा म देव के नान हेतु जो वेदी बनायी जाती है, वह दो हाथ ल बी तथा दो हाथ चौड़ी होनी चािहए ।

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6. हवन कु ड /वेदी म िवकार आने पर उसका फल - माप से अिधक गहरे कु ड म हवन करने से मनु य
रोगी होता है, होता के दोषयु होने से धेनु (गाय) और धन का य , टेढ़ा कु ड स तापकारक, मेखला से िभ न
आकृ ित मरणकारक, मेखला से रिहत होने से शोककारक, इि का (ईट)ं क अिधकता से िव का सं शय,
कु डयोिन के न होने से भाया का िवनाश तथा क ठ से विजत कु ड स तान का वं स (िवनाश) कारक फल देता
है अतएव कु डिनमाण मे अनेक कार के दोष क स भावना होने के कारण यून और अिधकता दोन कार
के दोष वण से थि डल (वेदी) का िनमाण अिधक ेय कर है इसिलए शा म उ लेख है:- ''नाि त य समो
रपु:

1.12 सारां श

इस इकाई के अ ययन के प ात् छा को कु ड एवं म डप के िनमाण क समुिचत िविध का ान हो पायेगा ।


िकसी भी य ीय कम म सव थम म डप का िनमाण होता है, िजसके िलए शा ने िविध-िवधान का उ लेख
िकया है। इसके अ तगत म डप िनमाण हेतु भूिमपरी ण, िदशा का चयन, दहन, खनन, स लावन आिद
िविधय का उ लेख िकया गया है । कु ड िनमाण के अ तगत इस इकाई म नवकु ड व प चकु डीय य म
कु ड का िवधान भी िदया गया है । आहित सं या के अनुसार कु ड का माण सिहत िविभ न कु ड का
सिच िववरण इस इकाई के अ ययन से छा को ा हआ ।

1.13 श दावली

1. म डप = य हेतु िनिमत अ थायी भवन

2. एक हाथ = 24 अङ् गुल

3. रि न = मु ी बां धे हए हाथ क ल बाई अथवा 21 अङ् गुल प रमाप

4. चतु र = िजसक चार भुजाय समान हो अथवा ल बाई व चौड़ाई समान हो।

5. दहन = जलाना

6. खनन = खोदना

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7. स लावन = जल भरना

8. मेखला = कु ड के बाहरक प रिध

9. तोरण ार = मु य ार

10. अधच = आधे च के समान

1.14 अितलघु रा मक :-

-1: आकृ ितभेद से कु ड़ो के कार बताइये ?

उ र: कोणा मक, वतुल व िविश ।

-2: सामा यत: एक हाथ का मान िकतना अङ् गुल होता है ?

उ र: सामा यत: 24 अङ् गुल का एक हाथ का माण होता है ।

-3: म ड़न िनमाण से पूव सव थम या करना चािहए ?

उ र: सव थम भूिमपरी ण करना चािहए ।

-4: प चकु ड़ीय य म िकतने कु ड का िनमाण िकया जाता है ?

उ र: प चकु ड़ीय य म पाँच कु ड का िनमाण िकया जाता है ।

-5: 50 से 99 आहितय तक िकतने अङ् गुला मक वेदी अथवा कु ड का िनमाण करना चािहए ?

उ र: 50 से 99 आहितय तक 21 अङ् गुला मक वेदी अथवा कु ड का िनमाण करना चािहए ।

1.15 लघु रा मक :-

-1: म डप एवं कु ड िनमाण म एक हाथ से कम माप का वणन क िजये ?

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-2: म डप एवं कु ड िनमाण से पूव करणीय कृ य का वणन क िजये ?

-3: म डप पर िविवध िदशाओं म थािपत क जाने वाली वजाओं का प रचय दीिजये ?

-4: नवकु ड़ीय य म नवकु ड क ि थित का िववेचन क िजये ?

-5: आहित सं या के अनुसार एक करोड़ आहितय तक कु ड िनमाण हेतु माप का माण


बताइये ?

-6: िकसी भी एक कु ड का साङ् गोपाङ् ग सिच िववेचन क िजए ?

1.16 स दभ थ -

1. हवना मक दुगास शती - स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।
2. कु ड िनमाण िविध- सङ् कलनकता - वैिदक पं . अशोक कु मार गौड़ शा ी काशक - सािव ी ठाकु र
काशन, वाराणसी ।
3. अनु ान काश स पादक - पि डत चतु थ लाल शमा काशक - खेमराज ीकृ णदास, मु बई।
4. िव कमा काश स पादक - गणेशद पाठक काशक - ठाकु साद पु तक भ डार, वाराणसी।

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इकाई — 2

म डल करण
इकाई क परेखा

2.1 तावना

2.2 उेय

2.3 िवषय वेश

2.4 सारां श

2.5 श दावली

2.6 अितलघु रा मक

2.7 लघु रा मक

2.8 स दभ थ

2.1 तावना :-

म डल देवताओं का ही तीक है, इसम देवताओं क साङ् गोपाङ् ग पूजा क जाती है । म डल देवताओं के
अनुसार िनिद प म ही बनाय जाते है। ाचीन काल से म ड़ल का िनमाण वेदी पर िकया जाता है। वतमान
म यह चौक पर िकया जाने लगा है। म डल आकार क ि से ि भुजाकार, वगाकार, आयताकार, वृ ाकार
िनिमत िकये जा सकते है। म ड़ल म देवताओं को थािपत िकया जाता है, म डल सा ातï◌् देवतु य है तथा
म से उनक ाण ित ा कर दी जाती है। म डल सा ात् देव थान है, जहाँ पूजन के म म देवताओं का
आवाहन व पूजन िकया जाता है। इनके िनमाण म िविवध धा य (चावल, गेह,ँ मूं ग, मसू र, उड़द, जौ, चने क
दाल, ितल आिद), व (लाल, सफे द, पीला, काला, हरा आिद) का उपयोग होता है। देवताओं के िलए म डल
म िनिद वण के अनुसार ही धा य का उपयोग होता है। धा य व व के अभाव म अथवा भौगोिलक
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प रि थितय के अनुसार अ त को ही गुलाल अथवा क चे रं ग से रं गकर म ड़ल का िनमाण िकया जाता है।


कह -कह के वमा गुलाल व रं ग के ारा भी म ड़ल का िनमाण िकया जाता है । ईशानकोण म नव ह-म डल
का, अि कोण म योिगिन-म डल का, नैऋ यकोण म वा तु म डल का, वाय य कोण म े पाल म डल का,
ईशान और अि के म य अथात् म यपूव म धानम डल का िनमाण करना चािहए। म यपूव से अि कोण के
म य गणेश तथा षोड़श मातृकाओं के म डल का िनमाण करना चािहए तथा म यूपव से ईशान के म य म
व ण-िपतृ म डल का िनमाण करना चािहए । धान चौक पर सबसे उ च थान पर िजस भी देवता का अनु ान
िकया जा रहा है, उसी देवता का म ड़लिनमाण करना चािहए। म डल िनमाण के प ात् ईशान, अि , नैऋ य,
वाय यािद चार कोण म चार त भ का रोपण करके उपर लाल अथवा पीले व से म ड़ल पर आ छान कर
देना चािहए।

2.2 उ े य :-इस इकाई के अ ययन के प चात् आप -

1. म ड़ल के िनमाण िविध का ान कर सकगे ।

2. देवताओं के म ड़ल म उपयोग व व वणािद का ान करा सकगे।

3. म ड़ल म अभी देव का थान व िदशा का ान कराते हए देवता के ित भावना जागृत करने म सहायता
करगे ।

2.3. िवषय वेश :-

सभी माङ् गिलक काय म म ड़ल का िनमाण िकया जाता है। सव थम गणपित म डल का िनमाण िकया जाता
है, शा ीय िनदश के अनुसार गणपित भ म डल का िनमाण गणपित पूजन हेतु सव े है तथािप वि तक भी
इ ह का तीक है अथात् देशकाल प रि थित के अनुसार के वलमा वि तक का िनमाण भी िकया जा सकता
है। त प ात् षोड़श मातृकाओं व स वसो ् धारा मातृकाओं के म डल का िनमाण िकया जाता है। त प ात्
नव ह, ािद प चदेव, िपतर, व ण, योिगनी, े पाल आिद म ड़ल के िनमाण के प ातï◌् म य म धान
चौक /वेदी पर पूजन के अनुसार धान देव का थापन िकया जाता है। कम के अनुसार म डल िनमाण भी
िभ न-िभ न होता है।

2.3.1. गणपित म डल :-
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सव थम चौक /वेदी पर लाल व िबछाकर गेह ँ अथवा यथोिचत धा य से वि तक का िनमाण करना चािहए।
वि त के म य म चार िब दु बनाने चािहए। वि तक के दाय-बाय दो-दो खड़ी रे खाय बनानी चािहए।

2.3.1.1. गणपित म डल पर आवािहत देवतओं का पू जन :-

गणेश व अि बका का पूजन :- हाथ म अ त लेकर इस मं को पढ़ते हए गणपित को आवाहन कर


उॅ ं गणाना वा गणपित गु ँ हवामहे िनिधना वा िनिधपित गु ँ हवामहे । वसोमम आहमजाने
ग बभधमा वमजािस ग बभधम् ।। गणपतये नम:। गणपितम् आवाहयािम थापयािम पूजयािम । गणेश जी
के ऊपर अ त छोड़े -
ऊँ अ बेऽअि बके ऽ बािलके नमा नयित क न ।
सस य क: सु भि काङ् का पीलवािसनीम् ।। ऊँ अि बकायै नम:, अि बकाम् आवाहयािम
थापयािम पूजयािम । गौरी जी के ऊपर अ त छोड़े -
त प ात् वि तक म डल पर ही षड् िवनायक का पूजन कर
1. ऊँ मोदायनम:, मोदमावाहयािम ।
2. ऊँ मोदाय नम:, मोदमावाहयािम ।

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3. ऊँ सु मु खाय नम:, सु मु खमावाहयािम ।

4. ऊँ दु मुखाय नम:, दु मुखमावाहयािम ।

5. ऊँ अिव नाय नम:, अिव न मावाहयािम ।

6. ऊँ िव नकरेनम:, िव नकतारमावाहयािम ।

हाथ म अ तपु प लेकर गणपित क थापना करे - ऊँ मनोजूित.। ऊँ भूभव:ु व: मोदािदषड् िवनायका: सु
िति ता वरदा भव तु । ऊँ मोदािदषड् िवनायके यो नम: - यथोपचार पूजन करे ।अनया पूजया
मोदािदषड् िवनायका: ीय ताम्। इस कार गणपित म डल का िनमाण करके उस पर गणपित सिहत अि बका
क थापना करनी चािहए।

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षोड़श मातृका म डल एवं स घृतमातृका म डल का िनमाण :-

मातृका म डल का िनमाण म यपूव और अि कोण के म य म वेदी अथवा का क चौक पर लाल व


िबछाकर यथोिचत धा य अथवा रं ग से पि म से पूव क ओर समानभाग पर पाँच खड़ी रे खाय बनानी चािहए
तथा दि ण से उ र क ओर समान भाग से पाँच रे खाय बनाकर चतु र बना लेना चािहए। इन सोलह को क
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पर एक हाथ म िजतना धा य आ जाये, उतनी मा ा का एक-एक को क म एक-एक पु ज प म मातृका का


थापन करना चािहए । गौरी के साथ म गणेश का थापन भी नैऋ यकोण म करना चािहए । स घृतमातृकाओं
म सव थम ऊपर कु मकु म अथवा घृतिमि तिस दूर से का अथवा व छ िशला पर ‘‘।। ी।।’’ िलखकर
उपरो विणत िच के अनुसार स घृतमातृकाओं क थापना कर ।

गौयािदमातृका

1. ऊँ गणपतये नम:। 2. ऊँ गौय नम:। 3. ऊँ प ायै नम:।

4. ऊँ श यै नम:। 5. ऊँ मेधायै नम:। 6. ऊँ सािव यै नम:।

7. ऊँ िवजयायै नम:। 8. ऊँ जयायै नम:। 9. ऊँ देवसेनायै नम:।

10. ऊँ वधायै नम:। 11. ऊँ वाहायै नम:। 12. ऊँ मातृ य: नम:।

13. ऊँ लोकमातृ य: नम:। 14. ऊँ धृ यै नम:। 15. ऊँ पु ् यै नम:।

16. ऊँ तु ् यै नम:। 17. ऊँ आ मकु लदे यै नम:।

स घृतमातृका

1. ऊँ ि यै नम:। 2. ऊँ ल यै नम:। 3. ऊँ धृ यै नम:।

4. ऊँ मेधायै नम:। 5. ऊँ वाहायै नम:। 6. ऊँ ायै नम:।

7. ऊँ सर व यै नम:।

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नव ह म डल का िनमाण :-

ईशान कोण म का क चौक अथवा समचतु र वेदी पर सफे द व िबछाकर अ त अथवा ह के वण


(उपरो िच के अनुसार) के अनुसार धा य से म डल का िनमाण करना चािहए। समचतु र को नौ भाग म
िवभािजत करके उनम यथो िविध से िच ानुसार आकृ ित एवं रं ग से ह क थापना करनी चािहए। सू यािद
ह के को क म अिधपित एवं ह के यािधपित देवताओं का भी थापन एवं अचन करना चािहए। यिद
उपरो आकृ ित के अनुसार बनाने म असमथ हो तो अ तपु ज से भी नव हम डल का िनमाण िकया जा
सकता है।

हम डल-देवता

1. ऊँ सू याय नम:। 2. ऊँ च मसे नम:। 3. ऊँ भौमाय नम:।

4. ऊँ बुधाय नम:। 5. ऊँ गुरवे नम:। 6. ऊँ शु ाय नम:।

7. ऊँ शनै राय नम:। 8. ऊँ राहवे नम:। 9. ऊँ के तवे नम:।

अिधपित देवता :-

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1. ऊँ ई राय नम:। 2. ऊँ उमायै नम:। 3. ऊँ क दाय नम:।

5. ऊँ िव णवे नम:। 5. ऊँ णे नम:। 6. ऊँ इ ाय नम:।

ब- 7. ऊँ यमाय नम:। 8. ऊँ कालाय नम:। 9. ऊँ िच गु ाय नम:।

यािधपित देवता :-

1. ऊँ अ नये नम:। 2. ऊँ अद् य: नम:। 3. ऊँ धरायै नम:।

5. ऊँ िव णवे नम:। 5. ऊँ इ ाय नम:। 6. ऊँ इ ा यै नम:।

7. ऊँ जापतये नम:। 8. ऊँ नागे य: नम:। 9. ऊँ णे

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योिगनी म डल का िनमाण :-

आ नेय कोण म का क चौक अथवा समचतु र वेदी पर लाल अथवा हरा व िबछाकर मसू र क दाल
अथवा अ त को गुलाल म रं गकर (उपरो िच के अनुसार के अनुसार) धा य से म डल का िनमाण करना
चािहए । 64 को क का िनमाण करके उन पर ीमहाकाली, ीमहाल मी, ीमहासर वती सिहत अधोिखत
म से 64 योिगिनय क थापना करनी चािहए

1. ऊँ महाका यै नम:। 2. ऊँ महाल यै नम:। 3. ऊँ महासर व यै नम:।

1. ऊँ िद ययोिग यै नम:। 2. ऊँ महायोिग यै नम:। 3. ऊँ िस योिग यै नम:। 4. ऊँ गणे य नम:।

5. ऊँ ेता यै नम:। 6. ऊँ डािक यै नम:। 7. ऊँ का यै नम:।8. ऊँ कालरा यै नम:।

9. ऊँ िनशाचय नम:। 10. ऊँ हकाय नम:।

11. ऊँ वैतािलकायै नम:। 12. ऊँ खपय नम:।

13. ऊँ भूतयािम यै नम:। 14. ऊँ ऊ वके यै नम:।

15. ऊँ िव पा यै नम:। 16. ऊँ शु कां यै नम:।

17. ऊँ मां सभोज यै नम:। 18. ऊँ फे काय नम:।

19. ऊँ वीरभ ायै नम:। 20. ऊँ धू ा यै नम:।

21. ऊँ कलहि यायै नम:। 22. ऊँ र ायै नम:।

23. ऊँ घोरर ायै नम:। 24. ऊँ िव पायै नम:।

25. ऊँ भयङ् कय नम:। 26. ऊँ चि डक़ायै नम:।

27. ऊँ मा रकायै नम:। 28. ऊँ च ड् यै नम:।

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29. ऊँ वारा ै नम:। 30. ऊँ मु ड़धा र यै नम:।

31. ऊँ भैर यै नम:। 32. ऊँ च पािण यै नम:।

33. ऊँ ोधायै नम:। 34. ऊँ दुमु यै नम:।

35. ऊँ ेतवािह यै नम:। 36. ऊँ क ट यै नम:।

37. ऊँ दीघल बो यै नम:। 38. ऊँ मािल यै नम:।

39. ऊँ मं योिग यै नम:। 40. ऊँ काला यै नम:।

41. ऊँ मोिह यै नम:। 42. ऊँ च ायै नम:।

43. ऊँ कङ् का यै नम:। 44. ऊँ भुवनै य नम:।

45. ऊँ कु ड़ला यै नम:। 46. ऊँ लु ै नम:।

47. ऊँ ल यै नम:। 48. ऊँ यमदू यै नम:।

49. ऊँ करािल यै नम:। 50. ऊँ कौिश यै वाहा।

51. ऊँ भि यै नम:। 52. ऊँ य यै नम:।

53. ऊँ कौमाय नम:। 54. ऊँ य वािह यै नम:।

55. ऊँ िवशालायै नम:। 56. ऊँ कामु यै नम:।

57. ऊँ या यै नम:। 58. ऊँ यि यै नम:।

59. ऊँ ेतभूिष यै नम:। 60. ऊँ धूजटायै नम:।

61. ऊँ िवकटायै नम:। 62. ऊँ घोरायै नम:।

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63. ऊँ कपालायै नम:। 64. ऊँ लाङ् ग यै नम:।

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े पाल म डल का िनमाण :-

वाय यकोण म का क चौक अथवा समचतु र वेदी पर काले अथवा लाल व िबछाकर उड़द क दाल
अथवा अ त को गुलाल म रं गकर (उपरो िच के अनुसार के अनुसार) धा य से म डल का िनमाण करना
चािहए । 49 को क का िनमाण करना चािहए। समानभाग से नौ को क बनाकर म य म एक धा यपु ज तथा
शेष आठ को क म येक म छ: पु ज का िनमाण करते हए अधोिलिखत म से उनम देवाताओं का
आवाहन- थापन करना चािहए:-

1. ऊँ अजराय नम:। 2. ऊँ आपकु भाय नम:।

3. ऊँ इ तु तये नम:। 4. ऊँ इडाचाराय नम:।

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5. ऊँ उ सं ाय नम:। 6. ऊँ ऊ मादाय नम:।

7. ऊँ ऋिषसू दनाय नम:। 8. ऊँ मु ाय नम:।

9. ऊँ लृ के शाय नम:। 10. ऊँ िल काय नम:।

11. ऊँ एकदंताय नम:। 12. ऊँ ऐरावताय नम:।

13. ऊँ ओधवं धवे नम:। 14. ऊँ ओषधीषाय नम:।

15. ऊँ अ जनाय नम:। 16. ऊँ अ वाराय नम:।

17. ऊँ क बलाय नम:। 18. ऊँ ख खानलाय नम:।

19. ऊँ गामु याय नम:। 20. ऊँ घ टादाय नम:।

21. ऊँ डमनसे नम:। 22. ऊँ च ड़वारणाय नम:।

23. ऊँ घ टारोपाय नम:। 24. ऊँ जटालाय नम:।

25. ऊँ झङ् घीवाय नम:। 26. ऊँ चड राय नम:।

27. ऊँ टङ् कपाणये नम:। 28. ऊँ ष व धते नम:।

29. ऊँ डामराय नम:। 30. ऊँ ढ कारवाय नम:।

31. ऊँ नवाणवाय नम:। 32. ऊँ तिड हे ाय नम:।

33. ऊँ िथराय नम:। 34. ऊँ द तु राय नम:।

35. ऊँ धनदाय नम:। 36. ऊँ नि ाय नम:।

37. ऊँ च डकाय नम:। 38. ऊँ फट् कराय नम:।

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39. ऊँ वीरसङ् घाय नम:। 40. ऊँ भृङ्गाय नम:।

41. ऊँ मेघभासु राय नम:।42. ऊँ युगा ताय नम:।

43. ऊँ रा वाय नम:। 44. ऊँ ल बो ाय नम:।

45. ऊँ वसवाय नम:। 46. ऊँ शुकन दाय नम:।

47. ऊँ षडालाय नम:। 48. ऊँ सु ना ने नम:। 49. ऊँ ह बुकाय नम:।

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गृ हवा तु म डल का िनमाण :-

नैऋ यकोण म का क चौक अथवा समचतु र वेदी पर काले अथवा यथोपल ध व िबछाकर यथोिचत
धा य अथवा अ त को गुलाल म रं गकर (उपरो िच के अनुसार के अनुसार) धा य से म डल का िनमाण
करना चािहए। 81 को क का िनमाण करना चािहए। पि म से पूव तथा उ र से दि ण क ओर 10-10
रे खाओं को खीचकर उनम यथोिचत रं ग के पु ज का िनमाण करना चािहए ।

चार लोहे क नागफणी क क ल को आ नेयािद िविदशाओं म शङ् कु रोपण, बिलदानािद कम करना चािहए ।

शङ् कु रोपण :- ऊँ िवश तु भू तले नागा लोकपाला सवत:।

अि मन् गृ हे/म ड़ले अवित तु आयु बलकरा: सदा ।।

बिलदान :-

1. ऊँ अ ये नम: इमं बिलं समपयािम,

2. ऊँ नैऋ ये नम: इमं बिलं समपयािम,

3. ऊँ वाय यै नम: इमं बिलं समपयािम,

4. ऊँ ईशानाय नम: इमं बिलं समपयािम।

रेखापू जन :- पि म से पूव क ओर :-

1. ऊँ शा यै नम:, 2. ऊँ यशोव यै नम:,

3. ऊँ िवशालाय नम:, 4. ऊँ ाणवािह यै नम:,

5. ऊँ स यै नम:, 6. ऊँ सु म यै नम:,

7. ऊँ न दाय नम:, 8. ऊँ सु भ ाय नम:,

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9. ऊँ सु रथाय नम:,

रेखापू जन :- दि ण से उ र क ओर :-

1. ऊँ िहर यायै नम:, 2. ऊँ ल यै नम:,

3. ऊँ िवभू यै नम:, 4. ऊँ िवमलाय नम:,

5. ऊँ ि याय नम:, 6. ऊँ जयाय नम:,

7. ऊँ वालाय नम:, 8. ऊँ िवशालाय नम:, 9. ऊँ ईड़ाय नम:।

वा तु पू जन :-

1. ऊँ िशिखने नम:। 2. ऊँ प ज याय नम:।

3.ऊँ जय ताय नम:। 4. ऊँ कु िलशायुधाय नम:।

5. ऊँ सू याय नम:। 6. ऊँ स याय नम:।

7. ऊँ भृशाय नम:। 8. ऊँ आकाशाय नम:।

9. ऊँ वायवे नम:। 10. ऊँ पू णे नम:।

11. ऊँ िवतथाय नम:। 12. ऊँ गृह ताय नम:।

13. ऊँ यमाय नम:। 14. ऊँ ग धवाय नम:।

15. ऊँ भृङ्गराजाय नम:। 16. ऊँ मृगाय नम:।

17. ऊँ िपतृ य: नम:। 18. ऊँ दौवा रकाय नम:।

19. ऊँ सु ीवाय नम:। 20. ऊँ पु पद ताय नम:।

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21. ऊँ व णाय नम:। 22. ऊँ असु राय नम:।

23. ऊँ शेषाय नम:। 24 ऊँ पापाय नम:।

25. ऊँ रोगाय नम:। 26. ऊँ अहये नम:।

27. ऊँ मु याय नम:। 28. ऊँ भ लाटाय नम:।

29. ऊँ सोमाय नम:। 30. ऊँ नागे य: नम:।

31. ऊँ अिदतये नम:। 32. ऊँ िदतये नम:।

33. ऊँ अद् य: नम:। 34. ऊँ सिव े नम:।

35. ऊँ जयाय नम:। 36. ऊँ ाय नम:।

37. ऊँ अय णे नम:। 38. ऊँ सिव े नम:।

39. ऊँ िवव वते नम:। 40. ऊँ िवबुधािधपाय नम:।

41. ऊँ िम ाय नम:। 42. ऊँ राजय मणे नम:।

43. ऊँ पृ वीधराय नम:। 44. ऊँ आपव साय नम:।

45. ऊँ ïणे नम:। 46. ऊँ चर यै नम:।

47. ऊँ िवदाय नम:। 48. ऊँ पूतनायै नम:।

49. ऊँ पापरा यै नम:। 50. ऊँ क दाय नम:।

51. ऊँ अय णे नम:। 52. ऊँ जृ भकाय नम:।

53. ऊँ िपिलिप छाय नम:। 54. ऊँ इ ाय नम:।

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xzg’kkfUr izdj.k CIK - 02

55. ऊँ अ ये नम:। 56. ऊँ यमाय नम:।

57. ऊँ िनऋ यै नम:। 58. ऊँ व णाय नम:।

59. ऊँ वायवे नम:। 60. ऊँ सोमाय नम:।

61. ऊँ ई राय नम:। 61. ऊँ णे नम:।

62. ऊँ अन ताय नम:।

ऊँ वा तो पते ितजानी मा वावेशो ऽ अनमी वो भवान:।

य वे महे ितत नो जु ष व श नो भवि पदे शं चतु पदे।ऊँ भूभव:


ु व: वा तु पु षाय नम:।

पूजन के प ात् वा तु के िलए वा तु म डल के देवताओं के िलए पायस अथवा यथोपल ध साम ी से बिल देनी

चािहए ।

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पदीय वा तु म डल का िनमाण :-

नैऋ यकोण म का क चौक अथवा समचतु र वेदी पर यथोिचत व िबछाकर अथवा अ त को गुलाल म
रं गकर (उपरो िच के अनुसार के अनुसार) धा य से म डल का िनमाण करना चािहए । 64 को क का
िनमाण करना चािहए। समानभाग से पि म से पूव तथा दि ण से उ र िनमाण करना चािहए । ईशान से नैऋ य
तथा अि से वाय य कोण तक धागा अथवा सू के मा यम से को क को म डलानुसार िवभािजत करके
चतु :ष ीपदा मक वा तु म डल का िनमाण करना चािहए । पूवापर रे खा पूजन : ऊँ ल यै नम:, यशोव यै नम:,
का तायै नम:, सु ि यायै नम:, यशै नम:, िशवायै नम:, शोभनायै नम:, साधनायै नम:, ईड़ायै नम:।

या यो र रेखा पू जन : ऊँ धा यायै नम:, धरायै नम:, िवशालायै नम:, ि थराय नम:, पायै नम:, गदायै नम:,
िनशायै नम:, िवभवायै नम:, भवायै नम:। शेष पूजन पूववत् करे ।

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सवतोभ म डल का िनमाण :-

पूविदशा म का क चौक अथवा समचतु र वेदी पर पीत व िबछाकर यथोिचत धा य अथवा अ त को


गुलाल म रं गकर (उपरो िच के अनुसार के अनुसार) धा य से म डल का िनमाण करना चािहए। 324
को क का िनमाण करना चािहए । समानभाग से पि म से पूव तथा दि ण से उ र 18-18 को क का िनमाण
करना चािहए । त प ात् अधोिलिखत म से उनम देवाताओं का वण (रं ग) के अनुसार थापन करके
आवाहन- थापन करना चािहए:-

1. ऊँ णे नम:। 2. ऊँ सोमाय नम:।

3. ऊँ ईशानाय नम:। 4. ऊँ इ ाय नम:।

5. ऊँ अ नये नम:। 6. ऊँ यमाय नम:।

7. ऊँ िनऋतये नम:। 8. ऊँ व णाय नम:।

9. ऊँ वायवे नम:। 10. ऊँ अ वसु य: नम:।

11. ऊँ एकादश े य: नम:। 12. ऊँ ादशािद ये य: नम:।

13. ऊँ अि यां नम:। 14. ऊँ िव े यो देवे य: नम:।

15. ऊँ िपतृ यो नम:। 16. ऊँ स य े य: नम:।

17. ऊँ प चभूते यो नम:। 18. ऊँ अ कु लनागे य: नम:।

19. ऊँ गं धव यो नम:। 20. ऊँ अ सरे यो नम:।

21. ऊँ क दाय नम:। 22. ऊँ नि दने नम:।

23. ऊँ शूलकाला यां नम:। 24. ऊँ द ािदस गणे य: नम:।

25. ऊँ दुगायै नम:। 26. ऊँ िव णवे नम:।


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27. ऊँ वधायै नम:। 28. ऊँ मृ यवे नम:।

29. ऊँ रोगाय नम:। 30. ऊँ गणपतये नम:।

31. ऊँ अद् य: नम:। 32. ऊँ म द् य: नम:।

33. ऊँ पृिथ यै नम:। 34. ऊँ गं गािदनदी य: नम:।

35. ऊँ स सागरे य: नम:। 36. ऊँ मेरवे नम:।

37. ऊँ गदायै नम:। 38. ऊँ ि शूलाय नम:।

39. ऊँ व ाय नम:। 40. ऊँ श ये नम:।

41. ऊँ द डाय नम:। 42. ऊँ खड् गाय नम:।

43. ऊँ पाशाय नम:। 44. ऊँ अं कुशाय नम:।

45. ऊँ गौतमाय नम:। 46. ऊँ भर ाजाय नम:।

47. ऊँ िव ािम ाय नम:। 48. ऊँ क यपाय नम:।

49. ऊँ जगद ये नम:। 50. ऊँ विश ाय नम:।

51. ऊँ अ ये नम:। 52. ऊँ अ ध यै नम:।

53. ऊँ ऐ यै नम:। 54. ऊँ कौमाय नम:।

55. ऊँ ा यै नम:। 56. ऊँ वारा ै नम:।

57. ऊँ चामु डायै नम:। 58. ऊँ वै ण यै नम:।

59. ऊँ माहे य नम:। 60. ऊँ वै ण यै नम:।

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गौरीितलक म डल का िनमाण :- पूविदशा म का क चौक अथवा समचतु र वेदी पर लाल व


िबछाकर यथोिचत धा य अथवा अ त को गुलाल म रं गकर ( उपयु त िच के अनुसार के अनुसार) धा य से
म डल का िनमाण करना चािहए। 289 को क का िनमाण करना चािहए। समानभाग से पि म से पूव तथा
दि ण से उ र 17-17 को क का िनमाण करना चािहए। देवी से स बि धत सभी अनु ान म गौरी ितलक
म डल का िनमाण करना चािहए । त प ात् अधोिलिखत म से उनम देवाताओं का वण (रं ग) के अनुसार
थापन करके आवाहन- थापन करना चािहए ।
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कलशसमीपे पीतको ेषु चतु रोदेवान् िशरोङ् गशि ं पूजयेत् -

1 (ऐशा.) ऊँ महािव णवे नम: 2 (नैऋ यां ) ऊँ महाल यै नम: 3 (आ ने यां ) ऊँ महे राय नम: 4 (वाय यां )ऊँ
महामायायै नम:।

दयाङ् गम ये चतु षु को ेषु चतु वदा पू जयेत-् 5 ऊँ ऋ वेदाय नम: 6 ऊँ यजुवदाय नम: 7 ऊँ सामवेदाय
नम: 8 ऊँ अथववेदाय नम: पूवादीशानपय तं ेतको ेषु अ देवान् पूजयेत् -

9 ऊँ अद्ï यो नम: 10 ऊँ जलो वाय नम: 11 ऊँ ïणे नम: 12 ऊँ जापतये नम: 13 ऊँ िशवाय नम:

अि कोणे ेतको यो: -14 ऊँ अन ताय नम: 15 ऊँ परमेि ने नम:

अि कोणे चतु को ेष-ु 16 ऊँ धा े नम: 17 ऊँ िवधा े नम: 18 ऊँ अ य णे नम: 19 ऊँ िम ाय नम:

दि ण ेतको ेषु -20 ऊँ व णाय नम: 21 ऊँ अं शमु ते नम: 22 ऊँ भगाय नम: 23 ऊँ इ ाय नम: 24 ऊँ
िवव वते नम:

नैऋ यकोणे ेतको यो:-25 ऊँ पू णे नम: 26 ऊँ पय याय नम:

नैऋ यकोणे ेतको ेष-ु 27 ऊँ व ् यै नम: 28 ऊँ द य ाय नम: 29 ऊँ देववसवे नम: 30 ऊँ महासु ताय नम:

पि मे ेतको ेष-ु 31 ऊँ सु धमणे नम: 32 ऊँ शङ् गïपदे नम: 33 ऊँ महाबाहवे नम: 34 ऊँ वपु मते नम: 35
ऊँ अन ताय नम:

वाय ये ेतको ेष-ु 36 ऊँ महेरणाय नम: 37 ऊँ िव ावसवे नम: 38 ऊँ सु पवणे नम: 39 ऊँ िव ïराय नम: 40
ऊँ दैवताय नम: 41 ऊँ वु ाय नम:

उ रे ेतको ेषु- 42 ऊँ धरायै नम: 43 ऊँ सोमाय नम: 44 ऊँ आपव साय नम: 45 ऊँ नलाय नम: 46 ऊँ
अिनलाय नम:

ईशा ये ेतको ेष-ु 47 ऊँ यूषाय नम: 48 ऊँ भासाय नम:

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ईशानकोण ेतको ेष-ु 49 ऊँ आव ताय नम: 50 ऊँ साव ताय नम: 51 ऊँ ोणाय नम: 52 ऊँ पु कराय
नम:

अथ िशर गशि ं पू जयेत्- 53 ऊँ ी काय नम: 54 ऊँ ि यै नम: 55 ऊँ का याय यै नम: 56 ऊँ चामु डायै
नम: 57 ऊँ महािद यायै नम: 58 ऊँ महाश दायै नम: 59 ऊँ िसि दायै नम: 60 ऊँ ऐं नम: 61 ऊँ ि यै नम:
62 ऊँ ी ि यै नम:।

ईशानकोणे पीतको ेष-ु 63 ऊँ ल यै नम: 64 ऊँ ि यै नम: 65 ऊँ सु धनायै नम: 66 ऊँ मेधायै नम: 67 ऊँ


ायै नम: 68 ऊँ म यै नम: 69 ऊँ वाहायै नम: 70 ऊँ सर व यै नम:।

अि कोणे ह र को ेष-ु 71 ऊँ गौय नम: 72 ऊँ प ायै नम: 73 ऊँ श यै नम: 74 ऊँ सु मेधायै नम: 75 ऊँ


सािव यै नम: 76 ऊँ िवजयायै नम: 77 ऊँ देवसेनायै नम: 78 ऊँ वाहायै नम: 79 ऊँ वधायै नम: 80 ऊँ
मातृ यो नम: 81 ऊँ गाय यै नम:।

अि कोणे पीतको ेष-ु 82 ऊँ लोकमातृ यो नम: 83 ऊँ धृ यै नम: 84 ऊँ पु ् यै नम: 85 ऊँ तु ् यै नम: 86 ऊँ


आ मदेवतायै नम: 87 ऊँ गणे य नम: 88 ऊँ कु लमा ै नम: 89 ऊँ शा यै नम:

ईशानकोणे वा यां कृ णको े ेतेषु -90 ऊँ जय यै नम: 91 ऊँ मङ् गïलायै नम: 92 ऊँ का यै नम: 93 ऊँ
भ का यै नम: 94 ऊँ कपािल यै नम:

अि कोणे वा यां कृ णको े ेतेषु -495 ऊँ दुगायै नम: 96 ऊँ मायै नम: 97 ऊँ िशवायै नम: 98 ऊँ धा यै
नम: 99 ऊँ वाहा वधा यां नम:

(अथ िशखां गदेवपू जनम्) नैऋ यकोणे ह र को ेष-ु 11- 100 ऊँ दी यमानायै नम: 101 ऊँ दी ायै ऊँ 102
ऊँ सू मायै नम: 103 ऊँ िवभू यै नम: 104 ऊँ िवमलायै नम: 105 ऊँ परायै नम: 106 ऊँ अमोघायै नम: 107
ऊँ वै तु ायै नम: 108 ऊँ सवतोमु यै नम: 109 ऊँ आन दायै नम: 110 ऊँ नि द यै नम:।

नैऋ यकोणे पीतको ेष-ु 8 111 ऊँ श यै नम: 112 ऊँ महासू मायै नम: 113 ऊँ करािल यै नम: 114 ऊँ
भार यै नम: 115 ऊँ योितषम यै नम: 116 ऊँ ा यै नम: 117 ऊँ माहे य नम: 118 ऊँ कौमाय नम:।

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वायुकोणे ह र को ेष-ु 11 119 ऊँ वै ण यै नम: 120 ऊँ वारा ै नम: 121 ऊँ इ ा यै नम: 122 ऊँ
चि डकायै नम: 123 ऊँ बुद् यै नम: 124 ऊँ ल जायै नम: 125 ऊँ वपु म यै नम: 126 ऊँ शा यै नम: 127 ऊँ
का यै नम: 128 ऊँ र यै नम: 129 ऊँ ी यै नम:।

वायु कोणे पीतको ेषु-8130 ऊँ क यै नम: 131 ऊँ भायै नम: 132 ऊँ का यायै नम: 133 ऊँ का तायै नम:
134 ऊँ ऋद् यै नम: 135 ऊँ दयायै नम: 136 ऊँ िशवदू यै नम: 137 ऊँ ायै नम: ।

नैऋ यवा यां कृ णको े 1 ेतेषु 4- 138 ऊँ मायै नम: 139 ऊँ ि यायै नम: 140 ऊँ िव ायै नम: 141 ऊँ
मोिह यै नम: 142 ऊँ यशोव यै नम:।

वाय यवा यां कृ णको ेषु 1 ेतेषु 4- 143 ऊँ कृ पाव यै नम: 144 ऊँ सिललायै नम: 145 ऊँ सु शीलायै
नम: 146 ऊँ ई य नम: 147 ऊँ िस े य नम:।

कवचां गेषु ऋषी पू जयेत्पू वऽ णपीतको ेष-ु 4-148 ऊँ ैपायनाय नम: 149 ऊँ भार ाजाय नम: 150 ऊँ
िम ाय नम: 151 ऊँ सनकाय नम: 152 ऊँ गौतमाय नम: 153 ऊँ सु म तवे नम: 154 ऊँ व ् यै नम: 155 ऊँ
सन दाय नम:।

पि मेऽ णपीतको ेषु 4- 156 ऊँ देवलाय नम: 157 ऊँ यासाय नम: 158 ऊँ वु ाय नम: 159 ऊँ
सनातनाय नम:।

उ रेऽ णपीतको ेषु-4- 160 ऊँ विस ाय नम: 161 ऊँ यवनाय नम: 162 ऊँ पु कराय नम: 163 ऊँ
सन कु माराय नम:।

ईशाने, अि कोणे, नैऋ यकोणे, वायु कोणे कृ णको े च एकै कम्- 164 ऊँ क वाय नम: 165 ऊँ मै ाय
नम: 166 ऊँ कवये नम: 167 ऊँ िव ािम ाय नम:।

म ये पीतको ेष-ु 8- 168 ऊँ वामदेवाय नम: 169 ऊँ सुम ताय नम: 170 ऊँ जैिमनये नम: 171 ऊँ तवे नम:
172 ऊँ िप पलादाय नम: 173 ऊँ गगाय नम: 174 ऊँ पराशराय नम: 175 ऊँ वैशं पायनाय नम:।

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म ये कृ णको ेषु ईशानत:-10- 176 ऊँ माक डेयाय नम: 177 ऊँ मृकंडाय नम: 178 ऊँ लोमशाय नम:
179 ऊँ पुलहाय नम: 180 ऊँ पुल याय नम: 181 ऊँ बृह पतये नम: 182 ऊँ जमद ये नम: 183 ऊँ
जामद याय नम: 184 ऊँ दाल याय नम: 185 ऊँ गालवाय नम:।

म ये ह र को ेषु ईशानत:-16- 186 ऊँ या व याय नम: 187 ऊँ दुवाससे नम: 188 ऊँ सौभरये नम: 189
ऊँ जावालये नम: 190 ऊँ वा मीकये नम: 191 ऊँ ब ृचाय नम: 192 ऊँ इ िमतये नम: 193 ऊँ देविम ाय
नम: 194 ऊँ जाजलये नम: 195 ऊँ शाक याय नम: 196 ऊँ मु लाय नम: 197 ऊँ जातु क याय नम: 198 ऊँ
बलाकाय नम: 199 ऊँ कृ पाचायाय नम: 200 ऊँ कौश याय नम: 201 ने ाङ् गपूजनम् ।

ईशानकोणेऽ णको ेषु-12- 202 ऊँ ा नये नम: 203 ऊँ गाह प या ये नम: 204 ऊँ ई रा ये नम: 205
ऊँ दि णा ये नम: 206 ऊँ वै णवा ये नम: 207 ऊँ आहवनीया ये नम: 208 ऊँ स िज ा ये नम: 209 ऊँ
इ मिज ा ये नम: 210 ऊँ व या ये नम: 211 ऊँ वडवा ये नम: 212 ऊँ जठरा नये नम: 213 ऊँ
लौिकका ये नम:।

अि कोणे अ णको ेष-ु 12- 214 ऊँ सू याय नम: 215 ऊँ वेदाङ् गाय नम: 216 ऊँ भानवे नम: 217 ऊँ
इ ाय नम: 218 ऊँ खगाय नम: 219 ऊँ गभि तने नम: 220 ऊँ यमाय नम: 221 ऊँ अं शमु ते नम: 222 ऊँ
िहर यरे तसे नम: 223 ऊँ िदवाकराय नम: 224 ऊँ िम ाय नम: 225 ऊँ िव णवे नम:।

नैऋ यकोणे अ णको ेष-ु 12- 226 ऊँ श भवे नम: 227 ऊँ िग रशाय नम: 228 ऊँ अजैकपदे नम: 229 ऊँ
अिहबु याय नम: 230 ऊँ िपनाकपाणये नम: 231 ऊँ अपरािजताय नम: 232 ऊँ भुवनाधी राय नम: 233 ऊँ
कपािलने नम: 234 ऊँ िवशां पतये नम: 235 ऊँ ाय नम: 236 ऊँ वीरभ ाय नम: 237 ऊँ अि नीकु मारा यां
नम:।

वायु कोणे अ णको ेष-ु 11-238 ऊँ आवहाय नम: 239 ऊँ वहाय नम: 240 ऊँ उ हाय नम: 241 ऊँ
सं वहाय नम: 242 ऊँ िववहाय नम: 243 परीवहाय नम: 244 ऊँ धरायै नम: 245 ऊँ अद् यो नम: 246 ऊँ
अ नये नम: 247 ऊँ वायवे नम: 248 ऊँ आकाशाय नम:।

ऋषीन् पू जयेत् ईशानादीशपय तं बा पं ौ कृ णको ेषु- 249 ऊँ िहर यनाभाय नम: 250 ऊँ पु प जयाय
नम: 251 ऊँ ोणाय नम: 252 ऊँ शृंिगणे नम: 253 ऊँ बादरायणाय नम: 254 ऊँ अग याय नम: 255 ऊँ
मनवे नम: 256 ऊँ क यपाय नम: 257 ऊँ धौ याय नम: 258 ऊँ भृगवे नम: 259 ऊँ वीितहो ाय नम: 260 ऊँ
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मधु छं दसे नम: 261 ऊँ वीरसेनाय नम: 262 ऊँ कृ तवृ णवे नम: 263 ऊँ अ ये नम: 264 ऊँ मेधाितथये नम:
265 ऊँ अ र ïनेमये नम: 266 ऊँ अङ् िगरसाय नम: 267 ऊँ इ मदाय नम: 268 ऊँ इ मवाहवे नम: 269 ऊँ
िप पलादाय नम: 270 ऊँ नारदाय नम: 271 ऊँ अ र ïसेनाय नम: 272 ऊँ अ णाय नम: 273 ऊँ किपलाय
नम: 274 ऊँ कदमाय नम: 275 ऊँ मरीचये नम: 276 ऊँ तवे नम: 277 ऊँ चेतसे नम: 278 ऊँ उ माय नम:
279 ऊँ दधीचये नम: 280 ऊँ ा देवे यो नम: 281 ऊँ गणदेवे यो नम: 282 ऊँ िव ाधरे यो नम: 283 ऊँ
अ सरे यो नम: 284 ऊँ य े यो नम: 285 ऊँ र ो यो नम: 286 ऊँ ग धव यो नम: 287 ऊँ िपशाचे यो नम:
288 ऊँ गु के यो नम: 289 ऊँ िस देवे यो नम: 290 ऊँ औषधी यो नम: 291 ऊँ भूत ामाय नम: 292 ऊँ
चतु िवधभूत ामाय नम: ।।

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एकिलङ् गतोभ िवशेष देवता -

1. ऊँ अिसताङ् ग भैरवाय नम:। 2. ऊँ भैरवाय नम:।

3. ऊँ च डभैरवाय नम:। 4. ऊँ ोधभैरवाय नम:।

5. ऊँ उ म भैरवाय नम:। 6. ऊँ कपालभैरवाय नम:।

7. ऊँ भीषण भैरवाय नम:। 8. ऊँ सं हार भैरवाय नम:।

2.4 सारां श :-

इस इकाई के अ ययन के प ात् पूजन िविध के मह वपूण अङ् ग म डल- करण का ान िकया । इसके
अ तगत गणपित, षोड़श मातृका, वसो ् धारा, नव ह, चतु :ष ी योिगनी, े पाल, गृहवा तु म ड़ल,
चतु :षि पद वा तु म ड़ल, सवतोभ म ड़ल, गौरीितलक म ड़ल, एकिलङ् गतोभ एवं चतु िलङ् गतोभ
म ड़ल के रं गीन िच के साथ उनम देवताओं के थापन क िविध भी बताई गयी है । वतमान म म डल
िनमाण हेतु वेदी के थान पर चौक का भी उपयोग होने लगा है, पर तु बड़े य ािद अनु ान म वेदी पर ही
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म ड़ल का िनमाण करना चािहए। इस इकाई के अ ययन के प ात् आप वयं अपने तर पर म ड़ल का


िनमाण कर पायगे ।

2.5 श दावली -

1. आवाहन = पूजन म देवताओं को आमि त करना,


2. िशला = प थर,
3. का = लकड़ी
4. कु मकु म = रोली
5. िमि त = िमलाना
6. म ड़ल = देवतओं क थापना हेतु थान,
7. ईशान = पूव व उ र का कोण
8. आ ेय = पूव व दि ण का कोण
9. नैऋ य = दि ण व पि म को कोण
10. वाय य = पि म व उ र का कोण
10. े पाल = े का र ण करने वाले देव
11. गृहवा तु = घर का वा तु
12. अ तपु ज = चावल क मुि माण ढेरी
2.6 अितलघु रीय :-

- 1 : वि तक िच का उपयोग िकस देवता के म ड़ल-िनमाण हेतु िकया जाता है ?


उ र : वि तक िच का उपयोग गणपित के म ड़ल-िनमाण हेतु िकया जाता है ।
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- 2 : षोड़श-मातृका म डल म िकतने को क का िनमाण िकया जाता है ?


उ र : षोड़श-मातृका म डल म षोड़श को क का िनमाण िकया जाता है।
- 3 : नव ह म डल म बुध क आकृ ित िकस कार क है ?
उ र : नव ह म डल म बुध क धनुष के आकार क है ।
- 4 : योिगनी-म डल का िनमाण िकस कोण म िकया जाता है ?
उ र : योिगनी-म डल का िनमाण आ ये -कोण म िकया जाता है ।
- 5 : सवतोभ म डल का िनमाण िकस िदशा म करना चािहए ?
उ र : सवतोभ म डल का िनमाण पूव -िदशा के म य म करना चािहए ।
2.7 लघु रीय :-

- 1 : गणपित, षोड़शमातृका व वसो ् धारा म ड़ल का सिच वणन क िजये ?


- 2 : नव ह-म डल का सिच वणन क िजये ?
- 3 : चतु :षि योिगनी-म डल का सिच वणन क िजये ?
- 4 : सवतोभ -म डल का सिच वणन क िजये ?
- 5 : एकिलङ् गतोभ -म डल का सिच वणन क िजये ?
2.8 स दभ थ -

1. हवना मक दुगास शतीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर ।
2. शु लयजुवदीय ा यायी स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अ. भा. ा. यो. शो. सं ., जयपुर ।
3. अनु ान काश स पादक - पि ़डत चतु थ लाल शमा काशक - खेमराज ीकृ णदास, मु बई ।

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इकाई — 3

ारि भक पूजनकम
इकाई क परेखा

3.1 तावना

3.2 उेय

3.3 िवषय- वेश

3.4 सारां श

3.5 श दाविल

3.6 अितलघु रीय

3.7 लघु रीय

3.8 स दभ थ

3-1 तावना :

येक पूजन के ार भ म आ मशुि , गु मरण, पिव धारण, पृ वी पूजन, सङ् क प, भैरव णाम, दीप
पूजन, शङ् ख-घ टा पूजन के प ात् ही देव पूजन करना चािहए । तो ापन एवं िवशेष अनु ान के समय
य पीठ क थापना का िवशेष मह व होता है, अत: धान देवता क पीठ रचना पूव िदशा के म य म क जाये
। पीठ रचना हेतु िविवध रं ग के अ त या अ नािद िलये जाते है। सभी तो ापन म सवतोभ पीठ िवशेष प
से बनाया जाता है । पूजन के अनेक कार चिलत है और शा म प चोपचार, षोडशोपचार, शतोपचार
आिद िविवध व तु ओ ं से अचना के िविध िवधान क िव तार से चचा है। ा भि के अनुसार उनका सं ह
करना चािहए।

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3.2 उ े य :

1. पूजन के आव यक िनयम का ान ।

2. पूजन म उपयु सामि य का ान ।

3. ारि भक पूजन क िविध का ान ।

3.3 िवषय- वेश :

देवाचन हेतु िविश साम ी :-

पं चामृ त :- घी, दूध, दही, बूरा, शहद।

पं चग य :- गोबर, गौमू , गौदु ध , गाय का घी, गाय का दही ।

पं चर न :- मािण य, प ना, पुखराज, वाल (मूँगा), मोती ।

पं चप लव :- पीपल, आम, गूलर, बड़, अशोक

स मृ ि का :- हाथी का थान, घोड़ा, व मीक, दीमक, नदी का सं गम, तालाब, गोशाला+राज ार ।

स धा य :- उड़द, मूँग , गेह,ँ चना, जौ, चावल, कङ् गनी।

स धातु :- सोना, चाँदी, ता बा, लोहा, राँगा, सीसा, आरकु ट।

अ महादान :- कपास, नमक, घी, स धा य, वण, लोहा, भूिम, गोदान ।

अ ां गअ य :- जल, पु प, कु शा का अ भाग, दही, चां वल, के सर (कु मकु म/रोली), दूवा, सु पारी, दि णा।

दशमहादान :- गौ, भूिम, ितल, वण, घी, व , धा य, गुड़ , चाँदी, नमक ।

पं चोपचार :- ग ध, पु प, धूप , दीप, नैवे ।

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पं चदेव :- सू य, गणेश, शि , िशव, िव णु ।

सात पाताल :- तल, अतल, सु तल, िवतल, तलातल, रसातल, पाताल ।

स ीप :- ज बु, ल , शा मिल, कु श, च, शाक, पु कर ।

ज बु ीप :- इलावृ , भ ा , ह रवष, के तु माल, र यक, िहर यमय, कु , िकं पु ष, भारतवष ।

बासी जल, पु प का िनषेध :- जो फू ल, प े और जल बासी हो गये ह उ ह देवताओं पर नह चढ़ाएँ, के वल


तु लसीदल और गङ् गाजल कभी बासी नह होते ह। तीथ का जल भी बासी नह होता है। व , य ोपवीत और
आभूषण म भी िनमा यदोष नह लगता है। माली के घर म रखे हए फू ल म बासी का दोष नह लगता है। फू ल
को जल म डु बोकर धोना मना है, के वल जल से इसका ो ण कर देना चािहए। कमल क किलय को छोड़कर
दूसरी किलय को चढ़ाना मना है। फू ल, फल और प े जैसे उगते है उ ह वैसे ही चढ़ाना चािहए । उ प न होते
समय इनका मुख ऊपर क ओर होता है, अत: चढ़ाते समय इनका मुख ऊपर क ओर ही होना चािहए । दूवा
एवं तुलसीदल को अपनी ओर तथा िब वप को नीचे मुख करके चढ़ाना चािहए। इससे िभ न प को िकसी
भी कार से चढ़ा सकते ह। दािहने हाथ के करतल को उ ान कर म यमा, अनािमका और अं गठू े क सहायता
से फू ल चढ़ाना चािहए। चढ़े हए फू ल को अं गठू े व तजनी क सहायता से उतारना चािहए।

देवताओं क पू जा तथा थान :- प चदेव (सू य, गणेश, दुगा, िशव, िव णु) क पूजा सभी काय म करनी
चािहए। गृह थी एक मूित क पूजा नह करे , अिपतु अनेक देवमूितय क पूजा करे । इससे कामना पूरी होती है।
घर म दो िशविलङ् ग, तीन गणेश, दो शङ् ख, दो सू य, तीन दुगा, दो गोमती च और दो शािल ाम क पूजा
करने से गृह थी मनु य का क याण कभी नह होता है। शािल ाम क ाण ित ा नह होती है। बाण िलङ् ग
तीन लोक म िव यात है, उनक ाण ित ा, सं कार या आ ान कु छ भी नह होता है । प थर, लकड़ी, सोना
या अ य धातु ओ ं क मूितय क ित ा घर या मि दर म करनी चािहए। कु मकु म, के सर और कपूर के साथ िघसा
हआ च दन, पु प आिद हाथ म तथा च दन ता पा म रखे । तृण, का , प ा, प थर, ईटं आिद से ढके
सोमसू का लङ् घन िकया जा सकता है। पूजन म िजस साम ी का अभाव हो उसक पूित मानिसक भावना से
करनी चािहए अथवा उस साम ी के िलए अ त, पु प या जल चढ़ा दे, ''त द् यं तु सङ् क प य
पु पैवािप समचयेत् । अचनेषु िवहीनं यत् त ोयेन क पयेत॥् के वल नैवे चढ़ाने से अथवा के वल
च दनपु प चढ़ाने से भी पूजा मान ली जाती है ।

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''के वलनैवे समपणेव पू जािसि रित...।

ग धपु पसमपणमा ेण पू जािसि र यिप पू व:॥

पू जा करते समय योग के िलए उपयु आसन

कु श, क बल, मृगचम, या चम और रे शम का आसन जपािद के िलए उ म है। बाँस, िम ी, प थर, तृण,


गोबर, पलाश और पीपल िजसम लोहे क क ल लगी हो ऐसे आसन पर नह बैठना चािहए तथा गृह थ को
मृगचम के आसन पर नह बैठना चािहए। नान, दान, जप, होम, स या और देवाचन कम म िबना िशखा बाँधे
कभी कम नह करना चािहए ।

गणेश, िव णु, िशव, देवी के पू जन हेतु िविश िनयम :-

1. अङ् गु से देवता का मदन नह करना चािहए और न ही अधम पु प से पूजन करना चािहए , कु श के


अि म भाग से जल नही ो ण करना चािहए, ऐसा करना व पात के समान होता है ।
2. अ त से िव णु क , तु लसी से गणेश क , दूवा से दुगा क और िव वप से सू य क पूजा नह करनी
चािहए ।
3. अधोव म रखा हआ तथा जल ारा िभगोया हआ पु प िनमा य हो जाता है, देवता उस पु प को
हण नह करते ह ।
4. िशव पर कु द, िव णु पर ध रू ा, देवी पर अक तथा सू य पर तगर अिपत नह करना चािहए ।
5. प या पु प उलटकर नह चढ़ाना चािहए, प या पु प जैसा ऊ व मुख उ प न होता है , वैसे ही अिपत
करना चािहए । के वल िव वप ही उलटकर अिपत करना चािहए ।
6. प े के मूलभाग को, अ भाग को, जीणप को तथा िशरायु को चढ़ाने पर मश: यािध, पाप,
आयुष य एवं बुि का नाश होता है ।
7. नागरबेल के प े क ड डी यािध और अ भाग से पाप होता है, सड़ा हआ पान आयु और िशरा बुि
को न करती है । अतएव ड डी, अ भाग और िशरा को िनकाल देवे।

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8. सं ाि त ादशी, अमाव या, पूिणमा, रिववार, और स या के समय तु लसी को तोड़ना िनिष है ।


यिद िवशेष आव यक (भगवान् िव णु के पूजन हेतु ) हो तो नीचे िलखे म अथवा भगवान िव णु का
मरण करते हए तोड़ सकते ह :-
वदङ् गस भवेन वां पूजयािम यथा ह रम।
तथा नाशय िव नं मे ततो याि त पराङ् गितम।।
चरणामृ त हण (तीन बार) िविध :- बाय हाथ पर दोहरा व रखकर दािहना हाथ रख दे, त प ात् चरणामृत
लेकर पान कर । चरणामृत हण करने समय उ चारणीय म :-
कृ ण! कृ ण! महाबाहो! भ ानामाितनाशनम ।
सवपाप शमनं पादोदकं य छ मे ।।

चरणामृत पान करते समय उ चारणीय म :-


अकालमृ यु हरणं सव यािधिवनाशनम।
िव णु पादोदकं पी वा पु नज म न िव ते ।।
दु :खदौभा यनाशाय सवपाप याय च ।
िव णो: प चामृ तं पी वा पु नज म न िव ते।।
देव पू जन म िवशेष :-
1. ोण पु प का मह व :- ा, िव णु और िशव आिद को ोणपु प अ य त ि य है। यह पु प दुगा को
सवकामना और अथ क िसि के िलए दान करना चािहए ।
2. िकस देवता क िकतनी बार दि णा करे ? :- च डी क एक प र मा, सू य क सात प र मा,
गणेश क तीन, िव णु क चार तथा भगवान िशव क आधी दि ण करनी चािहए।
3. दीप िनवाण का दोष :- देवताओं के पूजन म ि थत दीपक को शा त (बुझाना) या हटाना नह चािहए
य िक दीपक को हरण करे वाला यि अ धा हो जाता है तथा उसे बुझाने वाला यि काणा हो
जाता है ।
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4. देवताओं को ि य प -पु प :- भगवान िशव को िब वप बहत ि य है, िव णु को तु लसी, गणेश को


दूवा (घास), अ बाजी को िविभ न कार के पु प तथा भगवान सू य को लाल रं ग का करवीर पु प बहत
ि य है ।
एक लकड़ी क चौक के ऊपर गणेश, षोडशमातृका, स मातृका थािपत करे । दूसरी चौक पर
नव ह, प चलोकपाल आिद थापित करे । तीसरी चौक को बीच म थािपत करके उस पर धान देवता को
थािपत करे । ईशान कोण म घी का दीपक रखे और अपने दाय हाथ म पूजा साम ी रख लेवे । शु नवीन व
पहनकर पूवािभमुख बैठे। कुं कु म (रोली) का ितलक करके अपने दाय हाथ क अनािमका म सु वण क अं गठु ी
पहनकर आचमन ाणायाम कर पूजन आर भ करे ।

भू िमपरी ण :-

वयं क भूिम पर ही य ािद कम करने चािहए तथािप अ य तीथ अथवा अ य िकसी थान पर य ािद कम कर
रहे है तो उस भूिम का उिचत शु ल भू वामी को दे देना चािहए अ यथा य ािद का फल भू वामी को ही िमलता
है । भूिम का परी ण करने हेतु चयिनत भूिम म एक वग-हाथ का चतु कोण खात बनाकर उस गत को सू या त
के समय जल से भर देना चािहए। यिद दूसरे िदन ात: काल उस गड् ढे म जल शेष रह जाये अथवा वह भूिम
गीली रह जाये तो वह शुभल ण होता है। यिद क चड़यु भूिम रहे तो म यफलदायी होता है । यिद उसका जल
पूण प से सू ख जाये तो उसम दरारे पड़ जाये तो उस भूिम को अशुभ फलदायी कहा जाता है। यथा -

ं ह तिमतं खनेिदह जलं पू ण िनशा ये यसेत।्


ात जलं थलं सदजलं म यं वस फािटतम्।।
नोट :- रे िग तान वाले देश म यह िविध उपयोगी नही ह, अत: े िवशेष का यान रखे ।
य कम हेतु म डप -िनमाण हेतु शु भ भू िम के ल ण :-

1. सु ग ध यु भूिम ा णी, र ग ध वाली भूिम ि या, मधुग ध वाली भूिम वै या, म ग ध वाली
भूिम शू ाभूिम कही गयी है , अ लरस यु वै या, ित रस यु शू ा, मधुरसयु भूिम ा णी और
कड़वी ग ध वाली भूिम ि यवणा होती है।

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2. ा णी भूिम सु खकारी, ि या रा यसु ख दाता, वै याभूिम धनधा य देने वाली और शू ा भूिम


या य होती है।
3. ा ण को सफे द भूिम, ि य को लालभूिम, वै य को पीली, शू को काली भूिम एवं अ यवण के
िलए िमि त रङ् ग क भूिम शुभ होती है।
4. ा ण आिद चार वण के िलए म से घी, र , अ न और म ग ध वाली भूिम शुभ होती है।
5. पूव िदशा क ओर भूिम ढालदार हो तो धन ाि , अि कोण म अि नभय, दि ण म मृ यु, नैऋ य म
धनहािन, पि म म पु हािन, वाय य म परदेश म िनवास, उ र म धन ाि , ईशान म िव ालाभ होता है।
भूिम म बीच म गड् ढा हो तो वह भूिम क दायक होती है।
6. ईशान कोण म भूिम ढालदार हो तो य कता को धन, सु ख क ाि , पूव म हो तो वृि , उ र म हो तो
धनलाभ, अि कोण म हो तो मृ यु तथा शोक, दि ण म हो तो गृहनाश, नैऋ य म धनहािन, पि म म
मानहािन, वाय य म मानिसक उ ेग होता है।
7. ा ण को उ र, ि य को पूव , वै य को दि ण और शू को पि म क ओर ढालयु भूिम शुभ
होती है। मता तर से ा ण के िलए सभी कार क ढ़ालयु भूिम शुभ होती है। अ य वण के कोई
िनयम नह है।
8. पूव िदशा म ऊँची भूिम पु का नाश करती है । अि कोण म ऊँची भूिम धन देती है। अि कोण म नीची
भूिम धन क हािन करती है। दि णिदशा म ऊँची भूिम वा य द होती है। नैऋ यकोण म ऊँची भूिम
ल मीदायक होती है। पि म म ऊँची भूिम पु द होती है। वाय यकोण म ऊँची भूिम य क हािन
करती है। उ रिदशा म ऊँची भूिम वा य द तथा ईशानकोण म ऊँची भूिम महा लेशकारक होती है ।
9. हल के फाल से भूिम को खोदने पर यिद लकड़ी िमले तो अि भय, ईटं िमले तो धन ाि , भूसा िमले तो
धनहािन, कोयला िमले तो रोग, प थर िमले तो क याणकारी, हड् डी िमले तो कु लनाश, सप या िब छू
आिद जीव िमले तो वे वयं ही भय का पयाय है ।
10. हल के फाल से भूिम को खोदने पर यिद लकड़ी िमले तो अि भय, ईटं िमले तो धन ाि , भूसा िमले तो
धनहािन, कोयला िमले तो रोग, प थर िमले तो क याणकारी, हड् डी िमले तो कु लनाश, सप या िब छू
आिद जीव िमले तो वे वयं ही भय का पयाय है ।

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11. फटी हई से मृ यु, ऊषर भूिम से धननाश, हड् डीयु भूिम से सदा लेश , ऊँची-नीची भूिम से श ु विृ ,
मशान जैसी भूिम से भय, दीमक से यु भूिम से सङ् कट, गड् ढ वाली भूिम से िवनाश और कू माकार
अथात् बीच म से ऊँची भूिम से धनहािन होती है ।
12. आयताकार भू िम (िजसक दोन भु जाएँ बराबर एवं चार कोण सम हो) पर िनवास
सविसि दायक, चतु र भू िम (िजसक ल बाई चौड़ाई समान हो) पर य ािद शुभकम करने से
धन का लाभ, गोलाकार भूिम पर य ािद शुभकम करने से बुि बल क वृि , भ ासन भूिम पर सभी
कार का क याण, च ाकार भूिम पर द र ता, िवषम भूिम पर शोक, ि कोणाकार भूिम पर राजभय,
शकट अथात् वाहन स श भूिम पर धनहािन, द डाकार भूिम पर पशुओ ं का नाश , सू प के आकार क
भूिम पर गाय का नाश, जहाँ कभी गाय या हाथी बं धते हो वहाँ िनवास करने से पीड़ा तथा धनुषाकार
भूिम पर िनवास करने घोर सङ् कट आता है।
13. भूिम खोदते समय यिद वहाँ प थर िमल जाये तो धन एवं आयु क वृि होती है, यिद ईटं िमले तो
धनागम होता है। कपाल, हड् डी, कोयला, बाल आिद िमले तो रोग एवं पीड़ा होती है ।
14. यिद गड् ढे म से प थर िमले तो वण ाि , ईटं िमले तो समृि , य से सु ख तथा ता ािद धातु िमले तो
सभी कार के सु ख क ाि होती है।
15. भूिम खोदने पर िचऊँटी अथात् दीमक, अजगर ( अजगर क 16 प क िन ा होती है) िनकले तो उस
भूिम पर िनवास नह करे । यिद व , हड् डी, भूसा, भ म, अ डे, सप िनकले तो गृह वामी क मृ यु
होती है। कौड़ी िनकले तो दु:ख और झगड़ा होता है , ई िवशेष क कारक है । जली हई लकड़ी िनकले
तो रोगकारक होती है, ख पर से कलह ाि , लोहा िनकले तो गृह वामी क मृ यु होती है , इसीिलए
कु भाव से बचने के िलए इन सभी प पर िवचार करना चािहए ।
16. य कम हेतु म डप -िनमाण हेतु कायार भ हेतु िदशाका चयन करते समय राहमु ख का ान :-
िदशा के चयन हेतु यथोपल ध साम ी यथा - िदशा सू चक य (क पास) से िदशा का िनणय
करे।

म बोलते हए पूजन साम ी पर जल छोड़े


ऊँ अपिव : पिव ो वा सवाव थां गतोऽिप वा।
य: मरे पु डरीका ं स बा ा य तर: शु िच:।।
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ऊँ पु न तु मां देवजना: पु न तु मनसािधय:।


पु न तु िव ाभू तािन जातवेद: पु नीिहमा।।
ऊँ पु डरीका : पु नातु (तीन बार उ चारण करे)

यजमान बाय हाथ म जल लेकर तीन बार आचमन करे :- ऊँ के शवाय नम:। ऊँ नारायणाय नम:। ऊँ
माधवाय नम:। पुन: गोिव दाय नम: बोलकर हाथ धोवे और यिद यादा ही कर सके तो तीन बार पूरक (दाय
हाथ के अं गठू े से नाक का दायाँ छे द ब द करके बाय छेद से ास अ दर लेवे), कु भक (दाय हाथ क छोटी
अं गलु ी से दूसरी अं गलु ी ारा बाया छे द भी ब द करके ास को अ दर रोके ), रे चक (दाय अं गठू े को धीरे -धीरे
हटाकर ास बाहर िनकाले) करे ।

सव थम गु का मरण करे :-गु मरण (िन म से गु का य अथवा मानिसक यान करते हए


पूजन करे ) गुं गु यो नम:, लं पृिथ या मकं ग धं समपयािम। (किनि कु ा याम्)

गुं गु यो नम:, हं आकाशा मकं पु पं समपयािम।

गुं गु यो नम:, यं वा वा मकं धू पं आ ापयािम।

गुं गु यो नम:, रं वङ् घया मकं दीपं स दशयािम ।

गुं गु यो नम:, वं अमृ ता मकं नैवे ं समपयािम।

गुं गु यो नम:, सं सवा मकं ता बू लं समपयािम।

ॐ र सरसी होदरे िन यल नमवदातम ु तम् ।

कु डलीकनकका डमि डतं ादशा तसरसी हं भजे ।।1।।

त य क दिलतकिणकापु टे लृ प मकथािदरेखया।

कोणलि तहल म डलं भावल यमनलालयं भजे ।।2।।

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त पु टे पटु तिड कडा रम पधमानप रपाटल भम्।

िच तयािम िद िच मयं सदा िब दु नादमिण पीठम डलम् ।।3।।

ऊ वम य हतभु ि शखा णं िचि लासप रबृं हणा पदम्।

िव घ मरमह छटो कटं यामृशािम यु गमािदहं सयोः ।।4।।

त नाथचरणारिव दयोः सं िवदामृ तझरीमर दयोः।

िम दु करक दशीतलं मानसं मरतु मला पदम्।।5।।

िनष मिणपादु कं िनयिमताघकोलाहलं,

फु रि कसलया णं नखसमु ि मष चि कम् ।

परामृ तसरोवरोिदतसरोजरोिच णु तद्,

भजािम िशरिस ि थतं गु पदारिव द यम् ।।6।।

योमा बु जे किणकम यसं थं सहासने सं ि थत िद यमू ितम्।

यायेद् गु ं च िशला काशं िच यु तकाभीितवरा दधानम्।।7।।

ेता बरं ेतिवभू षणाढ् यं मु ािवभू षं मु िदतं ि ने म्।

वामा‘पीठि थतर शि ं म दि मतं पू णकृ पािनधानम्।।8।।

पादु काप चक तो ं प चव मु खो तम्।

षडा नाय म ाि ः प चे चाितदु लभम्।।9।।

तो ानेतान् पठे तु वे वे थानेऽचन मे ।

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सिवधू यािखलान् िव नानभी ं लभतेऽिचरात् ।।10।।

ाथयेत् - हाथ म पु प लेकर इस मं को बोलते हए

ॐ िविहतं िवदधेनाथ! िवधेयं य कृपाकर ।

अिव ं भव व तत् वदीय सादत: ।।

नमािम स ु ं शा तं य ं िशव िपणम्।

िशरसा योगपीठ थं मुि कामाथिस ये ।।

ािननां ान पाय काशाय कािशनाम् ।

िववेिकनां िववेकाय िवमशाय िवमिशणाम् ।।

पुर तात् पा वयो: पृ े नम कु यामुपयध: ।

सदा िच य पेण िवधेिह भवदासनम् ।। इित ीगु ं ण य त चरणयुगलिवगलदमृतधारया आ मानं लु तं


सु स नं च िवभा य मनसा तदा ां गृही वा वामे ीगु पqङ् द े गणपqत स मुखे ीइ देवं यायेत् ।

पिव ीधारणम् – पिव ीधारण कर -

ॐ पिव े थो वै ण यौसिवतुव सवऽउ प नुना यि छद् ेण प िव ेण सू य य रि मिभ:। त य ते पिव पते


पिव पूत य य काम: पुनेत छके यम् ।।

यथा व ं सु रे य यथा च ं हरे तथा।

ि शूलं च ि ने य तथा मम पिव कम् ।।

सप नीक: यजमानभाले वि तितलकम् :- (यजमान का ितलक करे) :-

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ऊँ वि त नऽइ ो वृ वा: वि त न: पूषा ि व वेदा:।

वि त न ता योऽअ र नेिम: वि तनो बृह पितदधातु ।।

ऊँ ी ते ल मी प या वहोरा े पा े न ािण पमि नौ या म्।

इ णि नषाणामु मऽइषाण स वलोकं म ऽइषाण।।

ि पु डधारण (ि पु ड़ का ितलक करे) :-

यायुष जमद े क यप य यायुषम् ।

य वे ेषु यायुष त नोऽ अ ु यायुषम् ॥

ा माला धारण (माला धारण करे) :-

य बकँ यजामहे सुगि ध पुि व नम् ।

उ वा किमव ब धना मृ यो मु ीय मामृतात् ।

िशखा ब धन (िशखा का ब धन करे तथा िसर पर व रख देवे) :-

मा न ोके तनये मानऽआयुिष मा नो गोषु मा नोऽअ ेषु -री रष ।

मा नो वीरा ु भािमनो वधीहिव म त: सदिम वा हवामहे ॥

थीब धन (लोकाचार से यजमान का सप नीक ि थब धन करे) :-

ऊँ त प नीिभरनुग छे म देवा: पु ै ातृिभ तवा िहर यै:।

नाकङ् गृ णाना: सु कृत यलोके तृतीयपृ ेऽअिधरोचने िदव:।।

भू िमपू जन :- मं बोलते हए ग धा त पु प से भूिम का पूजन कर

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ऊँ योना पृिथिव नो भवानृ रािनवेशिन । य छा न: श म स था:।। ऊँ कमभू यै नम:।। (सव पचाराथ


ग धा तपु पािण समपयािम)

आसनपू जन (आसन क पू जा करे) :-

ऊँ पृि व वया धृता लोका देिव वं िव णुना धृता ।

वं च धारय मां देिव ! पिव ं कु चासनम् ॥ ऊँ कू मासनाय नम:। ऊँ अन तासनाय नम:। ऊँ


िवमलासनाय नम:। (सव पचाराथ ग धा तपु पािण समपयािम)

भू तापसारण (बाय हाथ म सरस लेकर उसे दािहने हाथ से ढककर िन म पढ़े) -

र ोहणं वलगहनं वै णवीिमदमह तं वलगमुि करािम मे िन ् योममा यो िनचखानेदमह तं वलगमुि करािम


मे समानोमसमानो िनचखानेदमह तं वलगमुि करािम मे सब धुम सब धुि नचखानेदमह तं वलगमुि करािम
मे सजातो मसजातो िनचखानो कृ याङ् िकरािम ॥

ऊँ अपसप तु ते भूता ये भूता भूिमसं ि थता : ।

ये भूता िव नकतार ते न य तु िशवा या ।।

अप ाम तु भूतािन िपशाचा: सवतो िदशम् ।

सवषामवरोधेन पूजाकम समारभे ।।

िन म से सरस का सभी िदशाओं म िविकरण करे :-

ा यैिदशे वाहा वा यै िदशे वाहा दि णायै िदशे वाहा वा यै िदशे वाहा ती यै िदशे वाहा वा यै िदशे
वाहोदी यै िदशे वाहा वा यै िदशे वाहो वायै िदशे वाहा वा यै िदशे वाहा वा यै िदशे वाहा वा यै
िदशे वाहा ॥

पूव र तु गोिव द आ े यां ग ड़ वज:।

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दि णे र तु वाराहो नारिसं ह तु नैऋत।।

पि मे वा णो र ेद् वाय यां मधुसू दन:।

उ रे ीधरो र ेद् ऐशा ये तु गदाधर:।।

ऊ व गोवधनो र ेद् अध ताद् ि िव म:।

एवं दश िदशो र ेद् वासु देवो जनादन:।।

भैरवनम कार (भैरव को नम कार करके पूजन क आ ा लेवे) :-

ऊँ ती णदं महाकाय क पा तदहनोपम

भैरवाय नम तु यम् अनु ां दातु महिस।

कमपा पू जन (ताँबे के पा म जलभरकर कलश को अ तपु ज पर थािपत करते हए पूजन करे ) :-

ऊँ त वािम णा व दमान तदाशा ते यजमानो हिवि भ:।

अहेडमानो व णे हबोद् यु श œ समानऽ आयु: मोषी:।। ऊँ व णाय नम:। पूव ऋ वेदाय नम:।
दि णे यजुवदाय नम:।पि मे सामवेदाय नम: । उ रे अथववेदाय नम: । म ये साङ् गव णाय नम:।
सव पचाराथ च दन अ तपु पािण समपयािम ।

अं कुशमु या सू यम डला सवािण तीथािन आवाहयेत् (दाय हाथ क म यमा अङ् गुली से जलपा म सभी तीथ
का आवाहन करे ) :-

गङ् गे च यमुने चैव गोदावरी सर वित ।

नमदे िस धुकावे र जलेि म सि निधं कु ।।

कलश य मुखे िव णु क ठे : समाि त: ।

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मूले त ि थतो ा म ये मातृगणा: मृता: ।।

कु ौ तु सागरा: सव स ीपा वसु धरा।

ऋ वेदोऽथ यजुवद: सामवेदो थवण: ।।

अं गै च सिहता: सव कलशा बु समाि ता:।

गाय ी चा सािव ी शाि त: पुि करा तथा।

आया तु मम शा यथ दु रत यकारका:।।

गे च यमुने चैव गोदावरी सर वती ।

नमदे िस धु कावेरी जलेऽि म सि नध कु ।।

ा डोदर तीथािन करै : पृ ािन ते रवे ।

तेन स येन मे देव तीथ देिह िदवाकर ।।

ऊँ जलिब बाय िव हे नीलपु षाय धीमिह। त नो अ बु चोदयात् । ''वं मूलेन अ वारमिभम य, धेनमु ु या
अमृतीकृ य, म यमु या आ छा । उदके न पूजासाम वा मानं च स ो येत् (पा के जल से पूजन साम ी
एवं वयं का ो ण करे ) :-

ऊँ आपो िह ामयोभु व तानऽऊ जदधातन। महेरणायच से ।।

यो व: िशवतमोरस त यभाजयते हन:। उशती रवमातर: ।।

त माऽअरङ् गमामवोय य यायिज वथ आपोजनयथाचन: ।।

दीपपू जन (देवताओं के दािहने तरफ घी एवं िवशेष कम म बाय हाथ क तरफ तेल का दीपक जाकर पूजन
करना चािहए) :-

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1. अि वता वातो देवता सू य देवता च मा देवता वसवो देवता ा देवतािद यादेवता म तो देवता
िव े देवादेवता बृह पित वते ो देवता व णो देवता ॥

2. ऊँ अि न योित योितरि : वाहा सू योित योित: सू: वाहा । अि न व च योितव च:


वाहा सू य वच योित वच: वाहा । योित: सू: सू योित: वाहा ।
ऊँदीपनाथायनम:।सव पचाराथ ग धा त पु पािण समपयािम ।

सू य नम कार (िदन म पूजन कर रहे ह तो सूय को नम कार करे ) :-

ऊँ त च ु विहत पुर ा छु मु चरत् । प येम शरद: शत जीवेम शर : शतं णृ यु ाम


शर :शत वाम शर : शतमदीना याम शर : शत भूय च शर शतात् ॥

च नम कार ( राि म पूजन कर रहे ह तो च मा को नम कार करे ) :-

ऊँ इम देवा ऽ असप नœ सु व व महते ायमहते यै ् याय महते जानरा याये येि याय ।इमममु य
पु ममु यै पु म यै िवशऽएषवोमीराजासोमोऽ माकं ा णाना œ राजा ।।

ाथना :- हाथ म पु प लेकर मं बोलते हए ाथना कर -

ऊँ भो दीप देव प वं कमसा ी िव नकृ त् ।

याव कमसमाि : या ावद ि थरो भव ।।

शं ख पूजन - शं ख का पूजन कर-

1. ऊँ अि ऋिष पवमान पा चज य पुरोिहत । तमीमहेमहागयम् ।

ऊँ पा चज याय िव हे पावमानाय धीमिह । त नोशं ख: चोदयात् ॥

ऊँ भूभव:
ु व: शं ख थ देवतायै नम:। सव पचाराथ ग धा त पु पािण समपयािम।

घ टा पू जन - हाथ म पु प लेकर मं बोलते हए घ टा पूजन कर-

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आगमनाथ तु देवानां गमनाथ तु र साम्।

घ टानादं कु व त् त मात् घ टां पूजयेत ॥

1. ऊँ आशु िशशानो वृषभो न भीमो घनाघन ोभण चषणीनाम् । सङ् दनोिनिमषऽएकवीर शत


सेनाऽअजय सा किम : ॥ 1॥ ऊँ भूभव:
ु व: सववा मयी वृषघ टायै नम:।

2. ऊँ सु प ण िस ग माँि वृ े िशरोगाय च ुबृह थ तरे प ौ । तोमऽआ मा छ दाœ यङ् गािन


जूœ िषनाम । साम ते तनू वामदे यँ ा यि यं पु छि ध याशफा । सु प ण िस ग माि दवङ् ग छ
पत ॥ 2॥ ऊँ भूभव:
ु व: घ ट थ ग ड़ाय नम:। सव पचाराथ ग धा त पु पािण समपयािम ।

‘रिमित जलधारया वङ् िघ ाकारं िविच य उ ानौ करौ कृ वा ‘सोऽहिमितङ् क जीवा मानं
दय थ दीपकिलकाकारं मूलाधारि थत कु लकु डिल या सह सु षु नाव मना मूलाधार वािध ान
मिणपूरकानाहत िवशु ा ार य षट् च ािण िभ वा िशरोऽवि थताधोमुख
सह दलकमलकिणका तगतपरमा मिन सं यो य पृिथ य ेजोवाय याकाशग धरस प पशश द नािसकािज ा
च ु व ो वा पािणपादपायूप थ कृ ितमनोबुद् यह र प-चतु िवशितत वािन िवलीनािन िवभा य ‘यिमङ् क
ित वायुबीजं धू वण वामनासापुटे िविच य त य षोडशवारजपेन वायुना देहमापूय (अगु ानािमका
किनि कािभ:) नासापुटौ धृ वा त य चतु :षि वारजपेन कु भकं कृ वा वामकु ि ि थत र वणपापपु षेण सह
देहं सं शो य त य ाि श ारजपेन दि णनासया वायुं रे चयेत् । ततो दि णनासापुटे ‘रिमङ् कितवङ् बीजं र वण
या वा त य षोडशवारजपेन वायुना देहमापूय नासापुटौ धृ वा त य चतु :षि वारजपेन कु भकं कृ वा पापपु षेण
सह देहं मूलाधारि थत वङ् ि ना द वा त य ाि श ारजपेन वामनासया भ मना सह वायुं रेचयेत् । तत:
‘ठिमङ् कित च बीजं शु लवण वामनािसकायां या वा त य षोडशवारजपेन ललाटे च ं नी वा नासापुटौ
धृ वा ‘विमङ् क ित व णबीज य चतु : षि वारजपेन त मा ललाट थच ाद् गिलतसु धया मातृकावणाि मकया
सम तं देहं िवर य ‘लिमङ् कित पृ वीबीज य ाि श ारजपेन देहं सु ढं िविच य दि णेन वायुं रे चयेत।् ।। इित ।

अश ेत् सं ेपेण भू तशु ि : ाण ित ा च काया-

ॐ भूत डृ गाि छर: सु षु नापथेन जीविशवं परमिशवपदे योजयािम वाहा ।

ॐ यं िल ड़शरीरं शोषय शोषय वाहा । ॐ रं सकड़ोचशरीरं दह दह वाहा ।


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ॐ परमिशवसु षु नापथेन मूल ृ लसो लस वल वल वल वल सोहं हंस: वाहा ।

अथवा

स णवमायाबीजं अ ो रशतं जपेत् । आं सोहं मम ाणा इह ाणा इह ि थता:।आं सोहं मम जीव


इह जीव इह ि थत:। आं सोहं मम सवि यािण वा न: च ु ो ाणािन इहाग य सु खं िचरं ित तु वाहा ।
एवं व िद ाणा था यदेवता पमा मानं भावयेत् ।। इित भू तशु ि :।।

अथ आ म ाण ित ा (इ देव क वशरीर म ाण ित ा करे )-

ॐ अ य ाण ित ा िव णुमहे रऋषय: ऋ यजु: सामािन छ दां िस ाणषि दवता आं बीजं शि :


क लकं वशरीरे ाण ित ा िविनयोग (जल िगराये)

अथ ऋ यिद यास

ॐ िव णुमहे रऋिष यो नम: िशरिस। ॐ ऋ यजु: सामछ दो यो नम: मुखे। ॐ ाणश यै नमो िद । ॐ
आं बीजाय नमो गु े। ॐ श ये नम: पादयो:। ॐ क लकाय नम: सवा ।

अथ कर यास: -

ॐ ङं कं खं घं गं नाभौ वा वि नवाभू या मने अगु ा या नम:। ( दयाय नम:)

ॐ ञं चं छं झं जं श द पश परसग धा मने तजनी या नम:। (िशरसे वाहा)

ॐ णं टं ठं ढं डं ो वङ् नयनिज ा ाणा मने म यमा या नम:। (िशखायै वषट् )

ॐ नं तं थं धं दं वा पािणपादपायूप था मने अनािमका या नम:।(कवचायहम्)

ॐ मं पं फं भं बं व यादानगमनिवसगान दा मने किनि का या नम:। (ने याय वौषट् )

ॐ शं यं रं वं लं हं षं ं सं लं बुि मनोहंकारिच ा मने करतलकरपृ ा या नम:। (अ ाय फट् )

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एवं दयािद करषड‘ यासान् कृ वा नाभेरार य पादा तम् (आँ ) इित पाशबीजं मरे त् । दयार य ना य तम् ( )
इित शि बीजं यसेत् । म तकादार य दया तम् ( ) इित सृिणबीजं मरे त् ।

ॐ यं वगा मने दयाय नम:। ॐ रं असृगा मने दोमूला यां नम: ।

ॐ लं मांसा मने ीवायै नम:। ॐ वं मेदा मने कु ि यां नम:।

ॐ शं अ या मने दि णकराय नम:। ॐ षं म जा मने वामकराय नम: ।

ॐ सं शु ा मने दि णपादाय नम:। ॐ हं ाणा मने वामपादाय नम: ।

ॐ लं श या मने जठराय नम:। ॐ ं बीजा मने आ याय नम: ।

ॐ यं रं लं वं शं षं सं हं लं ं इित मू ् धािदचरणाविध यापकं कु यात् ।तत: म डू कािद परत वा त पीठदेवता यो


नम:।

जयािदशि यो नम:। (इित न वा) ॐ आं पीठाय नम:।

पीठे ाणशि देव यायेत् :-

पाशं चापा सृ कपाले शृणीषू छू लं ह तैिव त र वणाम्।

र ोद व पोतर ां बजु थां देव याये ाणशि ि ने ाम्।।

दये ह तं िनधाय (हाथ को दयािद अग पर रखकर मं पाठ कर) :-

ॐ आं यं रं लं वं शं षं सं हं लं ं हंस: सोहं मम ाणा इह ाणा:।

ॐ आं यं रं लं वं शं षं सं हं लं ं हंस: सोहं मम जीव इह ि थत:।

ॐ आं यं रं लं वं शं षं सं हं लं ं हंस: सोहं मम सवि यािण वा न ु: ो


िज ा ाणपादपायूप थािन इहैवाग य सु खं िचरं ित तु वाहा।

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इित वार येण वशरीरे ाणान् ित ा य ॐ इित णवेन प चदशावृ कृ वा अनेन मम देह था बटु कभैरव य
(अमुकदेव य) गभाधानािदप चदशसं कारा सं पादयािम । । इित ाण ित ा ।

(अ जिल म अ तपु प लेकर इ देव का मरण करते हए भ सू का पाठ कर) -

ॐ आनो न भ ा: त नवोय तु ि व तो द धासोऽअप नरीतासऽउि द: ।

देवानायथासदिम धृ े ऽअस न ा नयुवो रि तारोिदवेिदवे ।।1।।

देवानां भद् ा सु मितऋजूय ता देवानाराितरिभनािनवतताम् ।

देवानांस यमुप नसेिदमा व यं देवा नऽआयु: ित नर तु जीवसे ।2।।

ता पू नवया िन िवदा न हमहे वयं भग नि म मिदित द मि ध म ।

अयमण व णंसोममि ना सर वती न: सु भगामय करत् ।।3।।

त नो वातो मयो भु वातु भेष जं त माता पृिथवी ति पता ौ : ।

तद् ावाण: सोमसु तो मयो भुव तदि ना शृणतु ं िध यायुवम् ।।4।।

तमीशान जगत त थुष पित नि धयञ्िज नमवसे हमहे वयम् ।

पूषा नो यथा वेदसामस धृ े रि ता पायुरद ध: व तये ।।5।।

वि त न ऽइ ो न वृ वा: वि त न: पूषाि व वेदा : ।

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वि तन ता यो ऽअ र नेिम: वि तनोबृह पितदधातु ।।6।।

पृषद ा म त पृि मातर: शुभं यावानो ि वदथेषु ज मय: ।

अि निज ामनव: सू रच सो ि व े नो देवाऽअवसा गमि नह ।।7।।

भद् ं कणिभ: शृणयु ाम देवा भ द् ं प येमा िभयज ा: ।

ि थरै रंगै: तु वा गुसं तनूिभ यशेमिह देविहतं यदायु:।।8।।

शतिम नुश रदोऽअि त देवा य ा न ा जरस तनूनाम् ।

पु ासोय िपतरो भवि त मानो मद् या री रषतायुग तो :।।9।।

अिदित ् यौरिदितर त र मिदित मा ता स िपता स पु :।

िव े नदेवाऽअिदित प चजना ऽ अिदितजातमिदितजिन वम् ।।10।।

यतो यत: समीहसे ततोनोऽअभयं कु । श न : कु जा योभय: पशु य: ।।11।।

ौर शाि तर त र गुं शाि त: पृिथवी शाि तराप: शाि तरोषधय :शाि त :। वन पतय :शाि तिव ेदेवा: शाि त
शाि त: सव गुं शाि त : शाि तरे व शाि त: सामाशाि तरे िध ।।12।। सु शाि तभवतु ।।

गणपित मरण :-

अ जिल म अ तपु प लेकर गणपित का मरण करते हए िन म का पाठ कर :-

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ॐ सु मख
ु ैकद त किपलो गजकणक: ।

ल बोदर िवकटो िव ननाशो िवनायक:।।1।।

धू के तु गणा य ो भालच ो गजानन: ।

ादशैतािन नामािन य: पठे छृ णुयादिप ।।2।।

िव ार भे िववाहे च वेशे िनगमे तथा ।

सङ् ामे स‘टे चैव िव न त य न जायते ।।3।।

शु ला बरधरं देवं शिशवण चतुभजम्


ु ।

स नवदनं याये सविव नोपशा तये ।।4।।

अभीि सताथिसद् यथ पूिजतो य: सु रासु रै: ।

सविव नहर त मै गणािधपतये नम: ।। 5।।

सवमंगलमं ग ये िशवे सवाथ सािधके ।

शर ये य बके गौ र नारायिण नमोऽ तु ते ।।6।।

सवदा सवकायषु नाि त तेषाममं गलम् ।

येषां िद थो भगवान् मंलायतनं ह र:। ।7 ।।

तदेव ल नं सु िदनं तदेव ताराबलं च बलं तदवे ।

िव ाबलं दैवबलं तदेव ल मीपते तऽि युगं मरािम ।।8।।

लाभ तेषां जय तेषां कु त तेषां पराजय:।

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येषािम दीवर यामो दय थो जनादन: ।। 9 ।।

य योगे र: कृ णो य पाथ धनुधर:।

त ीिवजयोभूित वा
ु नीितमितमम ।।10।।

सव वार भकायषु यि भुवने रा: ।

देवाः िदश तु न: िसि ं ेशानजनादना: ।।11।।

िवनायकं गु ं भानुं िव णुमहे रान् ।

सर वत ण यादौ सवकायाथिस ये।।12।।

दुगा य ं गणपितं ीगोिव दं िशले र ।

तारके शं महादेवं हनुम तं महाबिलम् ।।

भैरवं हषनाथ च पुनीतं गालवा मम् ।

पूषणं सततं व दे सवकायाथिस ये ।। 13।।

ॐ ीम महागणािधपतये नम: -

ॐ ल मीनारायणा यां नम: -

ॐ उमामहे रा यां नम: -

ॐ वाणीिहर यगभा यां नम: -

ॐ शचीपुर दरा यां नम:

ॐ मातृिपतृचरणकमले यो नम: -

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ॐ इ देवता यो नम: -

ॐ कु लदेवता यो नम: -

ॐ ामदेवता यो नम: -

ॐ वा तु दवे ता यो नम: -

ॐ थानदेवता यो नम: -

ॐ सव यो देवे यो नम:

ॐ सव यो ा णे यो नम:

ॐ एत कम धानदेवता यो नम: - िनिव नम तु

सं क प: - ऊँ िव णु िव णु िवणु : ीम गवतो महापु ष य िव णोरा या वतमान य अिखल ा डा तगत


भूम डल म ये स ीप म यवितनी ज बू ीपे भारतवष भरतख डे आयावता तगत ावतकदेशे गं गायमुनयो:
पि मभागे नमदाया उ रे भागे अबुदार ये पु कर े े राज थान देशे गालवा म उप े े (जयप ने) अि मन्ï
देवालये (गृह)े देव- ा ïणानां सि नधौ ïणो ि तीयपराध रथ तरािद ाि ं श क पानां म ये अ मे
ी ेतवाराहक पे वायं भवु ािद म व तराणां म ये स मे वैव वतम व तरे चतु णा युगानां म ये वतमाने
अ ािवं शिततमे किलयुगे थमचरणे बौ ावतारे भवािद षि ïस व सराणां म येऽि मन् वतमाने अमुकनाि न
स व सरे अमुकवै मा दे िव मािद यरा यात् ï शािलवाहनशके अमुकायने अमुकऋत अमुकमासे अमुकप े
अमुकितथौ अमुकवासरे अमुकरािशि थ ते च े अमुकरािशि थते ीसू य अमुकरािशि थते देवगुरौ शेषेषु हेषु
यथायथा रािश थान ि थतेषु स सु एवं गुणगणिवशेषेण िविश ायां शुभपु य बेलायां अमुकगो :
(शमा/वमा/गु /दास) अमुकोऽहं ममा मन: िु त मृितपुराणो फल ा यथ ऐ यािभ वृद् यथ अ ा ल मी
ा यथ ा ल याि रकाल सं र णाथ सकलमनईि सत कामना सं िस यथ लोके सभायां राज ारे वा सव
यशोिवजयलाभािद ा यथ इह ज मिन ज मा तरे वा सकलदु रतोपशमनाथ मम सभाय य सपु य सबा धव य
अिखलकु टु बसिहत य सम तभय यािध जरापीड़ा-मृ यु प रहार ारा आयुरारो यै यािभवृद् ï यथ मम
ज मराशे: नामराशे: वा सकाशा े के िचि चतु था ïम ादश थानि थत ू र हा तै: सू िचतं सू चिय यमाणं च
य सवा र ं ति नाश ारा एकादश थान-ि थतव छु भफल ा यथ पु पौ ािद स ततेरिवि छ न वृद्ï यथ
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आिद यािदनव हानुकूलतािस यथ ि िवधतापोपशमनाथ चतु िवध पु षाथ िस यथ अमुकदेवता


अमुकामुकपूजनकम क र ये ।

येक कम म इसी कार ारि भ पूजन करे , त प ात् गणप यािद देवतओं का पूजनािद म ार भ कर ।

3.5 सारां श :-

इस इकाई के अ ययन के प ात् छा को पूजनकम से स बि धत सभी आव यक कम का ान हो जायेगा ।


पूजन के िलए उपयु य कम हेतु भूिम का चयन, िविश िनयम, आसन, पु प, पूजन साम ी आिद का चयन
एवं वैिदक पूजन का ान भी हो जायेगा । इसके अ तगत भूिमपूजन , भूतशुि , आ म ाण ित ा, भ सू का
पाठ, भूतापसारण, दीप पूजन, घ टा व शङ् ख पूजन, व ण (जल) पूजन, गु मरण, ितलक, गणपित मरण
तथा सङ् क प आिद िविधय का ान िमलेगा। ाय: सभी पूजन प ितय म यही ारि भक पूजन योग म
आता है, के वलमा कह -कह धान पूजन के अनुसार कु छ अं शो क िभ नता पायी जाती है। इस इकाई के
अ ययन के प ात् छा इन सभी काय को करने म वत: स म हो जायेगा ।

3.5 श दावली -

1. देवाचन = देवतओं का पूजन

2. िविश = िवशेष

3. िनमा य = चढ़ा हआ/अनुपयोगी

4. चरणामृत = चरण का जल,

5. खात = खड् ढा करना/खोदना

6. सङ् क प = ित ा

3.6 अितलघु रीय :-

- 1 : प चामृत के य िलिखये ?
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उ र : प चामृत के य - दूध, दही, घी, शहद, बूरा ।

- 2 : प चग य के य िलिखये ?

उ र : प चग य के य - गाय का गोबर, गौमू , गौदु ध , गाय का घी, गाय का दही ।

- 3 : तु लसीदल िकस देवता क पूजन म विजत तथा िकस देवता को ि य है ?

उ र : तु लसीदल गणपित-पूजन म विजत तथा भगवान िव णु को ि य है ।

- 4 : भगवान िशव क िकतनी दि णा करनी चािहए ?

उ र : भगवान िशव क अ - दि णा करनी चािहए ?

- 5 : पूजन के पूव िकतने आचमन िकये जाते ह ?

उ र : पूजन के पूव तीन बार आचमन िकया जाता ह ।

3.7 लघु रीय :-

- 1 : य ािदकम हेतु भूिमपरी ण क िविध बताइये ?

- 2 : पूवािद दस िदशाओं म ढलानयु भूिम का फल बता इये ?

- 3 : भूतापसारण क िविध बताइये ?

- 4 : तीथ-आवाहन क िविध का वण क िजये ?

- 5 : पूजनकम हेतु सङ् क प िलिखये ?

3.8 स दभ थ -

1. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर ।

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2. शु लयजुवदीय ा यायीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अिखल भारतीय ाय


योितष शोध सं थान, जयपुर।

3. िन यकम पूजा काश स पादक - परमाचाय पं. रामभवनजी िम , पं . लालिबहारी िम काशक -


गीता ेस, गोरखपुर ।

4. म महोदिध स पादक - ीशुकदेव चतुवदी स पादक - मुकु दव लभ योितषाचाय

5. कमठगु काशक - ा य काशन वाराणसी । काशक - मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।

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इकाई — 4

गणपित पू जन
इकाई क परेखा

4.1 तावना

4.2 उेय

4.3 िवषय वेश

4.4 गणपित पूजन

4.5 षड् िवनायक पूजन

4.6 सारां श

4.7 श दावली

4.8 अितलघु रीय

4.9 लघु रीय

4.10 स दभ थ

4.1 तावना

मानव आर भ से ही िच तन, मनन व अ वेषण का अ य त रहा है, वह के वल थूल जगत क चमक-दमक से


स तु नह ह, सू म जगत के अ त तल तक के रह य को काश म लाने के िलए कृ तसं क प रहता आया है ।
अन तकाल से अनुस धान करते करते वह कई उपयोगी त य को ा कर चु का ह, जो य जगत म
कायाि वत होने वाली घटनाओं के कारण प ह । इन उपलि धय म मानव जीवन पर ह- भाव क अवगित

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सवािधक मह वपूण ह। दाशिनक ने यह िस कर िदया ह। ''यथा िप डे तत् ा डे अथात् ा ड थ ह


क ितकृ ितयां ाणीमा के शरीर म भी िव मान ह। दोन के सं चार-िनयमन म एक पता होने के कारण मानव
क िविवध गितिविधयाँ भी ह के ारा िनयि त होती ह, िक तु उठता ह िक ' या ह वे छानुसार
मनु य के भिव य का िवधान िनधा रत करते ह ? नह , स पूण , थूल एवं सू म जगत के अिध ाता परमिपता
परमा मा के िनदशानुसार ाणी के ार ध से होने वाली भा य क यूह रचना का ितिनिध व ही ज मकािलक
हि थित करती ह । अत: '' हा: वै कमसूचका: ह तो के वल कमाधीन भिवत य क सूचना देते ह । सभी
देवताओं म गणपित सव थम है, इनका पूजन सभी माङ् गिलक कम म करना चािहए ।

4.2. उ े य

1. गणपित पूजन क िविध का ान ।


2. गणपित के िविश म का ान ।
3. गणपित के वैिदक म , वैिदक अथवशीष आिद का ान ा करना ।
4. गणेश पूजन से होने वाले लाभ ।
5. हनानुसार गणेशानु ान क िविध
6. गणपित तवन का ान

4.3. िवषय वेश

ऋिषय ने मं गलकामना के िलए िकये जाने वाले येक देवपूजा कम के आर भ म गणेशाचन का अिनवाय प
से सं योिजत करने का िनदश िदया ह । गणेश पूजन का िवधान पुरातन ह। शु ल य जुवद सं िहता के ''गणाना वा
गणपित ठ हवामहेमै ायणीय सं िहता के 'त कराटाय िव हे ह तीमुखाय धीमिह । त नो द ती चोदयात् ।। एवं
तै रीय आर यक अ तगत नारायणोपिनषद के 'त पु षाय िव हे व तु डाय धीमिह त नो द ती चोदयात ।।
आिद म इस पर परा के य माण ह अतैव यह िनिववाद िस ह िक िन य नैिमि क एवं का य गणेश
उपासना के आचरण म ही मानवमा का िहत िनिहत ह । िकसी देवता क उपासना को साङ् गोपाङ् ग,
यथासमय एवं हानुकूलतापूवक स पािदत करना ही उसक साथकता का साधक ह, एति षयक िवषद
ानिनिध एकमा योितिव ान म ही सं िचत ह तथा वेद के छ: अं ग म इसे मूध य (ने प) माना गया ह।
अत: गणेशोपासना िवषयक कु छ उपयोगी त य को ि क धा मक योित थ से एकि त करके यहाँ तु त
िकया जा रहा ह। योितष शा के सं िहता थ म विणत गणपित ित ोपयु काल इस कार ह ।
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मास :- वैशाख, ये तथा फा गुनािद उ रायण गत सू य के मास। भा पद मास म कृ णप क गणेश चतुथ


भी ा ह।

ितिथ :- उपयु मास क शु लप ीय 2-3-4-5-6-7-8-10-11-12

वार :- रिव, मं गल, शु व शिन। मता तरे ण बुधवार भी वीकृ त ह।

न :- सामा य प से सवदेव ित ा म हण िकये हए न के साथ ही गणेश ित ा आ ा, ह त,


अनुराधा, वण, पूवाफा गुनी, उ राफा गुनी तथा रे वती म िवशेष प से कही गयी ह।

ल :- िमथुन , िसं ह तथा कु भ रािश ल वािधपित एवं शुभ ह से यु या होने पर। पुन के , ि कोण
म शुभ ह ष म पाप ह, 3-11 म कोई ह तथा अ म एवं ादश म ह का अभाव अपेि त ह।

िवशेष :- ित ापक के च बल के साथ अ यशुभ योग ित ा क साथकता के ोतक ह ,िक तु देवशयन,


मलमास, गु -शु ा त, दा, पात, तारा का िनबल व, ितिथ य, ितिथवृि , ाकृ ितक कोप, मासा त एवं
ज म-मरण अशौच क िव मानता ित ा को िन फल करते ह।

गणेशोपसना का मु ह त :- सं कट, िनवारण, अथ पाजन, आरो यता- ाि , वं शवृि और वाथ िसि आिद
िकसी भी उ े य क पूित हेतु क र यमान गणेश क अराधना का शुभार भ िन िलिखत कालशुि मे वां िछत
एवं फलद है।

मास :- चै (मेषाक एवं शु ल प से सं यु ) वैशाख, ावण, आि न (शु ल) माघ तथा फा गुन गु शु


का उिदत होना आव यक है ।

ितिथ :- भ ा आिद कु योग विजत शु ल प क 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13

वार :- रिव, च , बुध , गु , शु ।

न :- अि नी, रोिहणी, मृगिशरा, आ ा, पुनवसु , पु य, उ राफालगुनी, उ राषाढा, उ राभा पद, ह त,


वाती, अनुराधा वण, धिन ा, शतिभषा एवं रेवती तथा हणयु न या य है ।

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ल :- वृष, िमथुन , िसं ह, क या, वृि क, धनु, कु भ, मीन आिद िकसी रािश के उिदत होने पर जब के
ि कोण मे सौ य ह 3,6,11 व पाप ह तथा 8,12 ह ह-िवहीन हो। पुन , नवमभाव शुभ ह से यु
अथवा हो तथा भा येश िन कलं क एवं िम े ीय हो।

िवशेष :- 'गणेश चतु थ िविश ा ह तथा उपासना का बल हीन च सवथा या य है। पूव िनि त मुहत के
िदन यिद कोई बाधा रोग, उ पात अथवा कोई अि य घटना उपि थत हो जाए तो उपासना थिगत कर दे। भ ा
म गणपित पूजन का िवशेष मह व है।

ीगणेश के िविवध म - ी महागणपित व प णव म -ऊँ ी महागणपित का णव स पुिटत बीज


म - ऊँ गं ऊँ सबीज गणपित म - गं गणपतये नम: णवािद सबीज गणपित म - ऊँ गं गणपतये
नम:

नाम म -ऊँ नमो भगवते गजाननाय :- 12 अ र का म , ीगणेशाय नम: :- 07 अ र का म ,ऊँ


ीगणेशाय नम: :- 08 अ र का म । उि छ गणपित नवाण म -ऊँ हि त िपशािच िलखे वाहा ।

िविनयोग - ऊँ अ य ीउि छ गणेशनवाणम य कङ् कोल ऋिष:, िवराट छ द:, उि छ गणपितदवता,


अिखलावा ये जपे िविनयोग:। (हाथ म जल लेकर िगराय )

ादशा र उि छ गणपित म - ऊँ गं हि त िपशािच िलखे वाहा ।

िविनयोग - ऊँ अ य ीर ादशा रोि छ गणपित म य मनु: ऋिष:, िवराट छ द:, उि छ गणपितदवता, गं


बीजम्, वाहा शि :, क लकम् अिखलावा ये जपे िविनयोग:। (हाथ म जल लेकर िगराये)

एकोनिवं श य रोि छ गणपितम - ऊँ नम उि छ गणेशाय हि त िपशािच िलखे वाहा ।

िविनयोग - ऊँ अ य ीउि छ गणेशम य कङ् कोल ऋि ष:, िवराट छ द:, उि छ गणपितदवता,


अिखलावा ये जपे िविनयोग:। (हाथ म जल लेकर िगराये)

37 अ र का उि छ गणपित म - ऊँ नमो भगवते एकदं ाय हि तमुखाय ल बोदराय उि छ महा मने


आं गं थे थे वाहा ।

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िविनयोग - ऊँ अ य ीउि छ गणेशम य गणक ऋिष:, गाय ी छ द:, उि छ गणपितदवता, गं बीजम,


शि :, आं क लकम् ममाभी िस यथ जपे िविनयोग:।। (हाथ म जल लेकर िगराये)

32 अ र का ह र ागणेश म -ऊँ हं गं ल ह र ागणपतये वर वरद सवजन दयं त भय त भय वाहा ।

िविनयोग - अ य ीह र ागणनायकम य मदन ऋिष, अनु प छ द:, ह र ागणनायको देवता,


ममाभी िस ये जपे िविनयोग:। (हाथ म जल लेकर िगराये) ।

06 अ र का व तु ड म - ऊँ व तु डाय हम् ।

िविनयोग - ऊँ अ य ीगणेशम य भागव ऋिष:, िनचृत अनु प छ द:, िव ेशो देवता , वं बीजम्, यं शि :,
ममाभी िस यथ जपे िविनयोग:। (हाथ म जल लेकर िगराये)

31 अ र का व तु ड म - राय पोष य दाता िनिधदाता नदो मत:। र ोहणो वो बलगहनो व तु डाय हम्
।।

िविनयोग - ऊँ अ य ीव तु डगणेशम य भागव ऋिष:, अनु प छ द:, िव ेशो देवता, वं बीजम्, यं


शि :, ममाभी िस यथ जपे िविनयोग:। (हाथ म जल लेकर िगराये) ।

शि िवनायक 04 अ र का म - ऊँ

िविनयोग - अ य शि िवनायक म य (शि गणािधपम य वा) भागव ऋिष: िवराट छ द:


शि गणािधपो देवता (शि िवनायको देवता वा) बीजम शि : ममाभी िस ये जपे िविनयोग:। (हाथ म
जल लेकर िगराये)

28 अ र का ल मीिवनायक म - ऊँ गं सौ याय गणपतये वर वरद सवजनं मे वशमानय वाहा ।।

िविनयोग - ऊँ अ य ील मीिवनायकम य अ तयामी ऋिष:, गाय ी छ द:, ल मीिवनायको देवता


बीजम वाहा शि : ममाभी िस ये जपे िविनयोग:। (हाथ म जल लेकर िगराये)

33 अ र का ैलो यमोहनकर गणेश म - व तु डैकंद ाय ल गं गणपते वर वरद सवजनं मे


वशमानय वाहा ।
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िविनयोग - ऊँ अ य ी ैलो यमोहन कर गणेशम य गणक ऋिष: गाय ी छ द: ैलो यमोहन करो गणेशो
देवता ममाभी िस यथ जपे िविनयोग:। (हाथ म जल लेकर िगराये)।

िसि िवनायक म - ऊँ नमो िसि िवनायकाय सवकायक सविव न शमनाय सवरा य वशकरणाय
वजनसव ीपु षाकषणाय ी ऊँ वाहा।

ऋणहतृगणेशम -

ऊँ गणेश ऋणं िछि ध वरे य हं नम: फट् ।

ऊँ ल ग ग: ीम महागणािधपये नम:।

ऊँ ल ग वरदमूतये नम:।

ऊँ ल नमो भगवते गजाननाय ।

ऊँ ल गणेशाय नम: पाय चारवे ।

सविस देशाय िव ेशाय नमो नम:।।

बीजाय भालच ाय गणेश परमा मने । णत लेशनाशाय हेर बाय नमो नम:। ।

आपदामपहतारं दातारं सु खस पदाम्। ि सादनं देवं भूयो भूयो नमा यहम् ।।

नमो गणपते तु यं हेर बायैकदि तने। वान दवािसने तु यं ण पतये नम:।।

शु ला बरधरं देवं शिशवण शिशसू यिनभाननम्।

स नवदनं यायेत् सविव ोपशा तये ।।

नम त मै गणेशाय िव ा दाियने य याग यायते नाम िव नसागरशोषणे ।।

यद् भू ्रण िणिहतां ल म लभ ते भ कोटय:। वत मेकं नेतारं िव राजं नमा यहम्।।

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ी गजानन जय गजानन । ी गजानन जय गजानन जय जय गजानन गं गणपतये नम: ऊँ


व तु डाय नम:।

ी गणेश गाय ी - महाकणाय िव हे व तु डाय धीमिह । त नो द ती चोदयात ।

4.4. गणपित पू जन -

पीठ-देवता- मं म डू काय नम:। आं आधारश यै नम:। मूं मूल कृ यै नम:। कं कालाि ाय नम:। आं
आिदकू माय नम:। अं अन ताय नम:। आं आिदवराहाय नम:। पं पृिथ यै नम:। इ ु अणवाय नम:। रं र न ीपाय
नम:। हं हेमिगरये नम:। नं न दनो ानाय नम:। कं क पवृ ाय नम:। मं मिणभूतलाय नम:। दं िद यम डपाय नम:।
सं वणवेिदकायै नम:। रं र निसं हासनाय नम:। धं धमाय नम:। ां ानाय नम:। व वैरा याय नम:। ऐं ऐ याय
नम:। सं स वाय नम:। ं बोधा मने नम:। रं रजसे नम:। ं कृ या मने नम:। तं तमसे नम:। मं मोहा मने नम:।
स सोमम डलाय नम:। सं सू यम डलाय नम:। वं वि म डलाय नम:। मां मायात वाय नम:। िवं िव ात वाय
नम:। शं िशवत वाय नम:। ं ïणे नम:। मं महे राय नम:। आं आ मने नम:। अं अ तरा मने नम:। पं
परमा मने नम:। जं जीवा मने नम:। ं ाना मने नम:। कं क दाय नम:। नं नीलाय नम:। पं प ाय नम:। मं
महाप ाय नम:। रं र ने य: नम:। क के सरे य: नम:। कं किणकायैनम:।

ऊँ म डू कािदपीठदेवता यो नम:। सव पचाराथ ग धा तपु पािण समपयािम। (हाथ म अ त लेकर मं बोलते


हए छोड़े)

नवशि पू जनम् :- ऊँ ती ायै नम:। ऊँ वािल यै नम:। ऊँ न दायै नम:। ऊँ मोदायै नम:। ऊँ काम िप यै नम:।
ऊँ उ ायै नम:। ऊँ तेजोव यै नम:। ऊँ स यायै नम:। ऊँ िव नािश यै नम:। सव पचाराथ ग धा तपु पािण
समपयािम । (हाथ म अ त लेकर मं बोलते हए छोड़े ) ।

ततः कलश थापनम् :

ऊँ त वािम णा व दमान तदाशा ते जमानो हिविभ:। अहेडमानो व णे हबोद् यु श œ समानऽ आयु:


मोषी:।।

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ततः ॐ भूभवः ु वः व णा ावािहतदेवता यो नमः अि मन् कलशे सु िति ता वरदा भव तु । ग धा त


पधूपदीपनैवे ैः स पू य ।

अ यु ारणम् :-

देशकालौ सं क य अ य गणपितदेवता नूतन वण-पाषाण-मृदािद य -मूित अि नतपनताडन अवघातािद


दोषप रहाराथम यु ारणं क र ये। इित संक य ।

वणािद िनिमतं मूित ता पा े िनधाय घृतेना य य उप र दु धिमि त जलधारां कु यात् ।

ॐ समु य वावकया ने प र ययामिस । पावकोऽअ म येषिशवो भव ।। ॐ िहम य वा जरायुणा ने


प र ययामिस । पावकोऽअ म यषिशवो भव ।। उप म नुपवेत सेवतर नदी वा । इ यािद म के ारा ।
ऊँ भूभव:
ु व: गणपतये नम: , गणपितमावाहयािम थापयािम । ततः वणािद ितमां करे ण
सं पृ य ाण थापनमाचरेत् :-

ॐ आं यं रं लं वं शं षं सं हं सः सोऽहं अ यां मूत ाणा इह ाणाः। ॐ आं अ यां मूत जीव इह


ि थतः। ॐ आं अ यां मूत सवि यािण वाड् मन व च ु ो िज ा ाणपािण पादपायूप थािन,
इहैवाग य सु खं िचरं ित तु वाहा ।

अ यै ाणा ित तु अ यै ाणा: र तु च ।

अ यै देव वमचायै मामहेित च क न ।।

ॐ गं गणपतये नमः (दशधा/प चदश मूलम ं जपेत् ) ।

गणपित यानम् (हाथ म पु प लेकर ोक बोलते हए गणेश जी का यान कर)

े भाय िसि बुि तदनु सहचरौ वृि िसि ि यौ च,

ौ पु ौ ल लाभौ वसुदलरिचते म डले क पवृ : ।

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गेहे य य भूता मृगमदितलका: िस य: ो लसि त,

भूयात् भू यै गणेश: किलवनदहनो िव निव छे दको न: ।।

1. गणपित :- (हाथ म पु प लेकर ोक बोलते हए गणेश जी का आवाहन कर)

ऊँ गणाना वा गणपित∞हवामहेि याणा वाि यपित∞हवामहे िनधीना वा िनिधपित∞ हवामहे वसोमम ।


आहम जािनग भधमा वमजािसग भधम् ॥ ऊँ भूभव:
ु व: गणपतये नम: , गणपितमावाहयािम
थापयािम।

2. अि बका :- (हाथ म पु प लेकर ोक बोलते हए अि बका आवाहन कर)

ऊँ अ बेऽअि बके बािलके नमानयित क न । सस य क: सु भि काङ् का पीलवािसनीम् ।। ऊँ भूभव:



व: अि बकायै नम:, अि बकां आवाहयािम थापयािम । आवाहनािद यथोपचारै : स पू य ।

हेमाि तनयां देव वरदां शङ् करि याम्।

ल बोदर य जनन गौरीमावाहया यहम् ॥

ऊँ आयङ् गौ: पृि र मीदद मातर पुर:। िपतर च य व:।।

ऊँ भूभव:
ु व: गौ य नम: गौरी आवाहयािम थापयािम ।

3. कू म :-धरां ध े पृ े सकल चलन थावर युतां,महाबाहय ऽयं सु र-दनुज -म यरिभनुत:।

याम तं कू म कृ तवपुषमीशं मखममु,ं कृ ताथ कतु भो वरद! समुपे ेिह भगवन! ।।

ऊँ य कू म गृहे हिव तम ने व या व म ।त मै देवाऽिध वु नय च ण पते ।।ऊँ भूभव:


ु व: कू मायै नम:
कू म आवाहयािम थापयािम ।

4. अन त :- धराधारो वाताशन-कु लपित-दवमिहत:,सु खं ध े िव णुं सुमदृ ुलिनजाभोगशयने।

फणावृ दैयु ं तिमह मनसाऽन तममरं , याम: पूजाथ मखिमममुपे ेिह भगवन ।।
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ऊँ नमो तु स प यो ये के च पृिथवीमनु । येऽअ त र े ये िदिव ते य़ सप यो न ॥ऊँ भूभव:


ु व:
अन ताय नम: अन तं आवाहयािम थापयािम।

5. पृ वी :- सदा सवान् लोकान् िनजवपुिष मातेव ससु खं, िबभिष वं कृ वा समुपहतशोकान्


िनजरसै:।

याम वां भ या जनिन िनज पं गुणमयं, गृही वा य ेऽि मन् धरिण समुपे ेिह
कृ पया ।।

ऊँ योना पृिथिव नो भवानृ रािनवेशिन। छा न: श म स था:।। ऊँ भूभव:


ु व: पृिथ यै नम: पृ व
आवाहयािम थापयािम ।

ित ापनम् :- (हाथ क अ जिल म अ त पु प लेवे)

ऊँ मनोजूित जुषतामा य य बृह पित िमम तनो व र ं œ सिमम दधातु ।िव ेदवा स ऽ इह मादय तामो 3
ित ।।

ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:।

आसनम् -

र यं सु शोभनं िद यं सवसौ यकरं शुभम् । आसनं च मया द ं गृहाण परमे रः ।।ऊँ पु ष ऽ एवेदं œ
स व ू तँय च भा यम् । उतामृत व येशानो यद नेनाितरोहित ।। ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प च देवता यो नम:।
आसनाथ पु पािण समपयािम ।

पा म् –गौरीसु त नम ते तु श‘रि यसू नवे ।पा ं गृहाण देवेश ग धपु पा तै: फलै:।।

ऊँ एतावान य मिहमातो याँ पू ष:। पादो य ि व ा भूतािन ि पाद यामृति दिव।।

ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। पाद ालनाथ पा ं समपयािम ।

अ यम् - ता पा ि थतं तोयं ग धपु पफलाि वतम् ।


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सिहर यं ददा यघ गृहाण परमे रः।। ऊँ धाम तेि व भुवनमिधि तम त: समुद् े त


रायुिष ।

अपामनीके सिमथेय ऽ आभृत तम याम मधुम त त ऽ ऊिमम् ।। ऊँ भूभव:


ु व: गणेशािद प चदेवता यो
नम:। ह तयो: अ य समपयािम।

आचमनीयम् -

सवतीथ समायु ं सु गि धिनमलं जलम् ।

आच याथ मया द ं गृहाण गणनायक ।।

ऊँ इम मे व ण शुधीहवमद् ा च मृडय। वामव युराचके ।।

ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। मुखे आचमनीयं समपयािम।

जल नानम् - कावेरी नमदा वेणी तु‘भ ा सर वती ।

गंगा च यमु नातोयं नानाथ ितगृ ताम्।।

ऊँ व ण यो भनमिस व ण य क भस जनी थो व ण य ऽ ऋतसद यिस व ण य ऽ


ऋतसदनमिस व ण य ऽ ऋतसदनमासीद ।। ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम :। नानाथ जलं
समपयािम ।।

प चामृ त नानम् - पयो दिधघृतं चैव मधुं च शकरायु तम्।

पं चामृ तं मयाद ं नानाथ ितगृ ताम्।।

ऊँ प चन : सर वतीमिपय तस ोतस:। सर वती तु प चधासो देशेभव स रत् ।ऊँ भूभव:


ु व: गणेशािद
प चदेवता यो नम:। िमिलतप चामृत नानं समपयािम।

शु ोदक नानम् – ( मं बोलते हए शु जल चढ़ावे)

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नानाथ तव देवेश पिव ं तोयमु मम् ।

तीथ य समानीतं गृ हाण गणनायक ।। ऊँ शु वाल: सव शु वालो मिणवाल त ऽ आि ना:


येत: येता ो ण ते ायपशुपतये क णामा अविल ायामा रौद् ानभो पा: पा ज या:।।

ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। शु ोदक नानं समपयािम।

अिभषेक: (ग धािदिभ: स पू य) – (हाथ म अ त,पु प, ग ध् मं बोलते हए गणेशजी के उपर छोड़े)

अथगणप यथवशीषम्

ऊँ नम ते गणपतये ॥ वमेव य ं त वमिस ॥ वमेव के वलं क ािस ॥ वमेव के वलं ध ािस॥ वमेव के वलं
ह ािस॥ वमेव सव खि वदं ािस॥ वं सा ादा मािस िन यम्॥1॥

ऋतं वि म॥ स यं वि म॥2॥ अव वं माम् ॥ अव व ारम् ॥ अव ोतारम् ॥ अव दातारम् ॥ अव धातारम् ॥


अव अनूचानम्। अव िश यम्॥ अव प ा ात् ॥ अव पुर तात् ॥ अवो रा ात् ॥ अव दि णा ात् ॥ अव
चो वा ात् ॥ अवाधरा ात् ॥ सवतो मां पािह पािह सम तात्॥3 ॥

वं वा य वं िच मय:॥ वमान दमय वं मय:॥ वं सि चदान दाि तीयोऽिस॥ वं य ं ािस ॥ वं


ानमयो िव ानमयोऽिस॥4॥

सव जगिददं व ो जायते॥ सव जगिददं व ि त ित॥ सव जगिददं विय लयमे यित।। सव जगिददं विय
येित॥ वं भूिमरापोऽनलोऽिनलो नभ:॥ वं च वा र वा पदािन॥ 5॥

वं गुण यातीत:॥ वं काल यातीत:।। वं देह यातीत:॥ वं मूलाधारि थतोऽिस िन यम्॥ वं शि या मक:॥
वां योिगनो यायि त िन यम्॥ वं ा वं िव णु वं वम् इ वम् अि न वं वायु वं सू य वं
च मा वम ◌्॥ भूभव: ु वरोम्॥ 6॥

गणािदं पूवमु चाय वणािदं तदन तरम्॥ अनु वार: परतर:॥ अध दुलिसतम्॥ तारे ण म्॥ एत व मनु व पम्।।
गकार: पूव पम्।। अकारो म यम पम्॥ अनु वार ा य पम्॥ िब दु र पम्॥ नाद: स धानम्॥ सं िहता

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सि ध:॥ सैषा गणेशिव ा॥ गणकऋिष: िनचृ ाय ी छ द:॥ गणपितदवता॥ ऊँ गं गणपतये नम:॥7॥ एकद तं
चतु ह तं पाशमं कुशधा रणम्। रदं च वरदं ह तैिब ाणं मूषक वजम्॥

र ं ल बोदरं शूपकणकं र वाससम्। र ग धानुिल ाङ् गं र पु पै: सु पिू जतम् ॥ भ ानुकि पनं देवं
जग कारणम युतम्। आिवभूतं च सृ ् यादौ कृ ते: पु षा परम्॥

एवं यायित यो िन यं । स योगी योिगनां वर:॥ 9॥ नमो ातपतये नमो गणपतये नम: मथपतये नम तेऽ तु
ल बोदरायैकद ताय िव ननािशने िशवसु ताय ीवरदमूतये नम: ॥10॥ऊँ अमृ तािभषेकोऽ तु ॥ऊँ भूभव:
ु व:
िसि 0 महा0 अिभषेक नानं सम0। शु ोदक नानम् ।

व ोपव म् – (मं बोलते हए गणेश जी के उपर र ा सू चढ़ावे)

र व िमदं देव देवा‘स श भो।

सव दं गृ हाण वं ल बोदर हरा मज।।

ऊँ सु जातो योितषा सहश म व थमासद व:।

वासो ऽ अ े िव प œ सँ यय वि वभावसो।। ऊँ भूभव:


ु व: गणेशािद प चदेवता यो
नम:। व ोपव ाथ र सू ं समपयािम ।

य ोपवीतम् – (मं बोलते हए गणेश जी के उपर जेनउ चढ़ावे)

र व िमदं देव वाड़गस श भो। सव दं गृहाण वं ल बोदर हरा मज।।

ऊँ ानं थमं पुर ताि सीमत: सु चो वेनऽआव:।

सबुद् याऽउपमा अ यि व ा: सत चयोिनमसत ि वव: । ऊँ भूभव:


ु व: गणेशािद
प चदेवता यो नम:। य ोपवीतं समपयािम ।

च दनम् – (मं बोलते हए गणेश जी के उपर च दन चढ़ावे)

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ीख डं च दनं िद यं ग धाढ् यं सु मनोहरम्।

िवलेपनं सु र े च दनं ितगृ ताम्।।

ऊँ अ œ शु ना ते अ œ शु : पृ यतां प षा प :।

ग ध ते सोममवतु मदायरसोऽअ यु त:। ऊँ भूभव:


ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:।
च दनकुं कु म च समपयािम ।

अ ता: - (मं बोलते हए गणेश जी के उपर अ त चढ़ावे)

र ा तां देवेश गृहाण ि रदानन ।

ललाटपटले च त योपयवधायताम् । ।

ऊँ अ नमीमद त वि याऽअधू षत ।अ तोषत वभानवो ि व ा निव यामती योजाि व ते हरी


।।

ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। अलङ् करणाथम् अ तान् समपयािम ।

पु पािण (पु पमालां )- (मं बोलते हए गणेश जी के उपर पु प चढ़ावे)

सु ग धीिन च पु पािण ध रू ादीिन च भो । िवनायक नम तु यं गृहाण परमे र ।। ऊँ ओषिध: ितमोदद् वं


पु पवती: सूवरी:। अ ाऽ इव सिज वरी व ध: पारिय णव:।। ऊँ भूभव: ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:।
पु पािण समपयािम ।

अथ गणेशाङ् गपू जनम् – (हाथ म अ त,पु प, ग ध् मं बोलते हए गणेशजी के उपर छोड़े)

गणे राय नम: पादौ पूजयािम। िव नराजाय नम: जानुन पूजयािम । आखुवाहनाय नम: ऊ ं पूजयािम।
हेर बाय नम: कट पूजयािम। कामा रसू नवे नम: नािभं पूजयािम । ल बोदराय नम: उदरं पूजयािम ।
गौरीसु ताय नम: तनौ पूजयािम। गणनायकाय नम: दयं पूजयािम । थूलक ठाय नम: क ठं पूजयािम।
क दा जाय नम: क धौ पूजयािम। पाशह ताय नम: ह तौ पूजयािम । गजव ाय नम: व ं
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पूजयािम । िव ह नम: ललाटं पूजयािम। सव राय नम: िशर: पूजयािम । गणािधपाय नम: सवाङ् गं
पूजयािम।

दु वाङ् कु रम् - (मं बोलते हए गणेश जी के उपर दु वा चढ़ावे)

दूवाकु रान् सुह रतानमृता म : दान् ।

आनीताँ तव पूजाथ गृहाण गणनायक ।।ऊँ का डा का डा रोह ती प ष: प ष प र । एवा नो दू व तनु


सह ेण शतेन च ।। ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। दूवाङ् कु रािण समपयािम ।

िब वप म् – (मं बोलते हए गणेश जी के उपर िब वप चढ़ावे)

ि शाखैिब वप ै अिछ ै: कोमलै: शुभै:।

तव पूजां क र यािम गृहाण परमे र ।।

ऊँ नमो िबि मने च कविचने च नमो विमणे च व िथने च नम:

तु ाय च तु सेनाय च नमो दु दु याय चाहन याय च ।।

ऊँ भूभव:
ु व: गणेशा िद प चदेवता यो नम:। िब वप ािण समपयािम ।

शमीप म् - – (मं बोलते हए गणेश जी के उपर शमी चढ़ावे)

ऊँ अ ने तनूरिस वाचो ि वस जन देववीतये वा गृािम बृहद् ावािस वान प य: सऽइद देवे यो हिव:
शमी व सु शिम शमी व हिव कृ देिह हिव कृ देिह ।।ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। शमीप ािण
समपयािम।

सु गि धत यम् - (मं बोलते हए गणेश जी के उपर इं चढ़ावे)

नेहं गृहाण नेहने लोके र दयािनधे ।

भ या द ं मयादेव नेहं ते ितगृ ताम् ।।


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ऊँ य बकं यजामहे सुगि ध पुि व नम् ।

उ वा किमव ब धना मृ यो मु ीयमामृतात् ।। ऊँ भूभव:


ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:।
सु गि धत यं समपयािम ।

िस दू रम् - (मं बोलते हए गणेश जी के उपर िस दू र चढ़ावे)

उ ा करसं काशं स यावद ण भो ।

वीराल‘णं िद यं िस दूरं ितगृ ताम् ।।

ऊँ िस धो रव ाद् वने शूघनासो वात िमय: पतयि त य ा:।

घृत य धाराऽ अ षो न वाजी का ािभ द नू िमिभ: िप वमान:।। ऊँ भूभव:


ु व: गणेशािद
प चदेवता यो नम:। िस दूरं समपयािम ।

नानाप रमल यािण – (मं बोलते हए गणेश जी के उपर अवीर चढ़ावे)

अबीरं च गुलालं च चोवा च दनमेव च ।

अबीरे णािचतो देव अत: शाि तं य छ मे ।। ऊँ अिह रव भोगै: पित बाह याया हेितं
प रबाधमान:।ह त नो ि व ा वयुनािन ि व ा पुमा पुमा œ स प रपातु ि व त: ।। ऊँ भूभुव: व: गणेशािद
प चदेवता यो नम:। प रमल यािण समपयािम ।

धू पम् - (मं बोलते हए गणेश जी के उपर धू प चढ़ावे)

दशां गु गुलं धूपमु मं गणनायक ।

गृहाण सव देवेश उमापु नमो तु ते।।

धूरिस धू वधू व तं धू व तं मान् धूवितत धू वयं व यं धू वाम:।

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देवानामिस वि तम œ सि नतमं पि तमं जु तमं देवहतमम्। ऊँ भूभव:


ु व: गणेशािद
प चदेवता यो नम:। धूपम् आ ापयािम ।

दीपम् -

सव सवलोके श सवषाि तिमरापह।

गृहाण म‘लं दीपं ि य नमो तु ते।।

ऊँ अि न य ित य ितरि न: वाहा सू योित योित: सू: वाहा।

अि वच योित व च: वाहासू व च योितव च: वाहा।

योित: सू: सू योित: वाहा ।ऊँ भूभव:


ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। दीपकं दशयािम। ह तौ
ा य।

नैवे म् – (मं बोलते हए गणेश जी को िम ान आिद का भोग लगाव)

नमो मोदकह ताय भालच ाय ते नम: ।

नैवे ं गृ तां देव स‘टं मे िनवारय ।।

नैवे पा ं पुरतो िनधाय च दनपु पा यां सम य च। धेनमु ु या अमृतीकृ य देव य अ े दि ण भागे वा


िनधाय ासमु ां दशयेत् - ऊँ ाणाय वाहा। ऊँ अपानाय वाहा। ऊँ यानाय वाहा। ऊँ उदानाय वाहा। ऊँ
समानाय वाहा।

ऊँ ना याऽआसीद त र œ शी णो ौ: समव त।

पद् यां भूिमिदश: ो ा था लोकाँ 2ऽ अक पयन् ।। ऊँ भूभव:


ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:।
नैवे ं िनवेदयािम। म ये जलं िनवेदयािम ।

ऋतु फलम् – (मं बोलते हए गणेश जी के उपर ऋतु फल चढ़ावे)

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ना रके ल च नारं कद बं मातु िलकम्।

ा ाखजूरदािड बं गृहाण गणनायक ।।

ऊँ या: फलीन याऽअफलाऽअपु पाया पुि पणी:।

बृह पित सू ता तानो मु च व œ हस:।।

ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। फलं िनवेदयािम। पुन: आचमनीयं िनवेदयािम ।

ता बू लम् - (मं बोलते हए गणेश जी के उपर ता बू ल चढ़ावे)

पूगीफलं महि यं नागव लीदलैयतम्


ु ।।

एलािदचू ण सं यु ं ता बूलं ितगृ ताम् ।।

ऊँ उत मा यद् वत तु र यत: प ण नवेरनुवाित गि न:।

येन ये वद् जतो ऽ अङ् क स प रदिध ा ण: सह त र त: वाहा ।ऊँ भूभव:


ु व: गणेशािद
प चदेवता यो नम:। ता बूलं समपयािम।

दि णा - (मं बोलते हए गणेश जी के उपर दि णा चढ़ावे)

िहर यगभगभ थं हेमबीजं िवभावसोः।

तेन ीतो गणा य भव सवफल द ।

ऊँ यँ परादानँ पू या दि णा:।

तद ने व क मण: व वेषु नो दधत् ।ऊँ भूभव:


ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। दि णां समपयािम।

पु पा जली - ((हाथ म पु प लेकर मं बोलते हए गणेश जी यान कर))

वां िव नश ु दलनेित च सु दरे ित भ ि येित सु खदेित फल देित।


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िव ा दे यघहरे ित च ये तुवि त ते यो गणेश वरदो भव िन यमेव।।1।।

ेताङ् गं ेतव ं िसतकु सु मगणै: पूिजतं ेतग धै:, ीरा धौ र नदीपै: सु रनरितलकं र निसं हासन थम्।

दोिभ: पाशाङ् कु शा जाभयवरदधतं च मौिलं ि ने ं, याये शा यथमीशं गणपितममलं ीसमेतं स नम्।।2।।

ऊँ भूभव:
ु व: ीगणेशाि बका यां नम: पु पा जिलं समपयािम। (हाथ म िलए हए पु प लेकर छोड़ दे)

नम कार -िवनायको योऽिखललोकनायक:, यो िव नराजोऽिपिह िव ननाशक:।

अनेक द तािचत पादयु मकं , तमेकद तं णमािम स ततम् ।।

िवशेषाघम् – ( एक दीपक म जल, अ त , पु प, य दुवा रखकर ोक बोलते हए तथा दीपक सिहत सा को


हाथ म लेकर सर से पश कराकर गणेश जी के उपर िगरा दे) ।

र र गणा य ो र ैलो यर क ।

भ ानामभयं क ा ाता भव भवाणवात् ।।

ैमातु रकृ पािस धो षा मातु र ज भो।

वरद वं वरं देिह वाि छतं वाि छताथद।।

गृहाणा यिममं देव सवदेव नम कृ त: ।

अनेन सफला यन फलदोऽ तु सदा मम ।।अनेन कृ ताऽचनेन ीगणेशाि बके ीयेतां न मम

4.5. षड् िवनायक पू जन

गोधूमािदधा यपू रते ह र ािदरि जतेमृ मये िव ना य -कलशे मोदािदषड् िवनायकानां ितमा: कुं कु मािदना
िलिख वा आवाहयेत-्

1. ऊँ भूभव:
ु व: मोदायनम: , मोदमावाहयािम थापयािम।

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2. ऊँ भूभव:
ु व: मोदाय नम:, मोदमावाहयािम थापयािम।

3. ऊँ भूभव:
ु व: सु मख
ु ाय नम:, सु मख
ु मावाहयािम थापयािम।

4. ऊँ भूभव:
ु व: दुमुखाय नम: , दुमुखमावाहयािम थापयािम।

5. ऊँ भूभव:
ु व: अिव नाय नम:, अिव नमावाहयािम थापयािम।

6. ऊँ भूभुव: व: िव नक नम:, िव कतारमावाहयािम थापयािम।

ित ापनम् :- (हाथ क अ जिल म अ त पु प लेव )

ऊँ मनोजूित जुषतामा य य बृह पित िमम तनो व र ं œ सिमम दधातु ।

िव ेदवा सऽ इह मादय ताम 3 ित ।।ऊँ भूभव:


ु व: मोदािदषड् िवनायका: सु िति ता वरदा
भवत:।

ऊँ मोदािदषड् िवनायके यो नम: इित पंचोपचारै : षोडशोपचारै : वा सं पू य । अनया पूजया मोदािदषड् िवनायका:
ीय ताम् ।

4.6. सारां श

इस इकाई के अ ययन के प ात् छा को गणपित पूजन क िविध का ान िमलेगा । इसके अ तगत गणपित
पूजन का मुह , िविवध म का ान, नूतन गणपित मूित का थापन-िविध, ाण- ित ा, अङ् गपूजन,
अथवशीष का पाठा यास, षड् िवनायक पूजन सिहत गणपित क स पूण पूजन िविध का ान छा को िमलेगा।
गणपित को थमपू य का आशीवाद सभी देवताओं से ा है अतएव कोई भी माङ् गिलक काय इनके पूजन
के िबना पूणता को ा नह होता है ।

4.7. श दावली

1. ऋणहतृ = ऋण का नाश करने वाले

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2. गजानन = हाथी के समान मुख

3. व तु ड़ = टेढ़ी सू ड़

4. ह र ा = ह दी

5. ितमा = मूित

6. कू म = कछु आ

7. अन त = सपिवशेष

8. आखु = चू हा

9. थूल = मोटा

10. िव नराज = िव न के वामी

11. नैवे = भोजन

12. धेनमु ु ा = गाय के थन के समान

4.8. अितलघु री

- 1 : गणेश चतु थ कब मनायी जाती है ?

उ र : भा पद मास म कृ णप क चतु थ को गणेश चतुथ मनायी जाती है ।

- 2 : गणपित क िकतनी शि य का पूजन ार भ म िकया जाता है ?

उ र : गणपित क नवशि य का पूजन ार भ म िकया जाता है ।

- 3 : गणपित पूजन म िकस अथवशीष का पाठ िकया जाता है ?

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उ र : गणपित पूजन म गणपित-अथवशीष का पाठ िकया जाता है।

- 4 : गणपित के साथ िकन देवताओं का पूजन िकया जाता है ?

उ र : गणपित के साथ म गौरी, कू म, अन त व पृ वी का का पूजन िकया जाता है ।

- 5 : भ ा म िकस देवता के पूजन का िवशेष मह व है?

उ र : भ ा म गणपित-पूजन का िवशेष मह व है ।

4.9. लघु रा मक

- 1 : गणपित-पूजन म िकन नवशि य का पूजन िकया जाता है ? सभी के नाम बताईये ?

- 2 : गणपित अथवशीष का उ लेख क रये ?

- 3 : गणपित के अङ् गपूजन का उ लेख क रये ?

- 4 : गणपित के यान सिहत िवशेषा य का म िलिखये ?

- 5 : षड् िवनायक पूजन बताइये

4.10. स दभ थ

1. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।

2. शु लयजुवदीय ा या यी स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अिखल भारतीय ाय


योितष शोध सं थान, जयपुर ।

3. कमठगु :लेखक - मुकु द व लभ योितषाचाय काशक - मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।

4. म महोदिध

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स पादक - ी शुकदेव चतु वदी काशक - ा य काशन, वाराणसी ।

4. गणपित तु ित क प ु म स पादक - डॉ. राजे साद शमा काशक - जगदीश सं कृ त पु तकालय,


जयपुर ।

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इकाई — 5

षोड़श मातृ का पू जन िवधान


इकाई क परेखा

5.1 तावना

5.2. उ े य

5.3. अथ मातृका तु ित

5.4. सगणेशषोडशमातृका पूजन

5.5. ि यािद स मातृका पूजन

5.6. अथ ीसू

5.7. सारां श

5.8. श दावली

5.9. अितलघु री

5.10. लघु रीय

5.11. स दभ थ

5.1. तावना

पूजन म म षोड़शमातृकाओं का पूजन अिनवाय म है , इसके अ तगत गणपित, षोड़श देिवय तथा स
वसो ारा देिवय का पूजन िकया जाता है। वेद म इ , व ण, यम, सू य, िव णु, अि एवं आिद देव से
स ब सू के साथ इ ाणी, व णानी, यमी, उषस्, ी एवं ाणी क भी उपासना क गयी है, साथ ही वाहा
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को अि क प नी के प म वीकार िकया गया है। देव हो या देिवयाँ - सभी क तु ित म शि क आराधना


ही उसका मूल आधार है य िक शि एवं शि मान का पर पर गाढ़ स ब ध है। ा क सजकता (सृजन
करने शि ), िव णु क जापालकता, िशव क सं हारकता मा शि के ही कारण है। शि के िबना कु छ भी
स भव नह है । शि श द शक् धातु से ि न् यय करने पर िन प न होता है, िजसका ता पय उस साधन से है
िजससे कोई भी यि कु छ भी करने म समथ हो पाता है इसीिलए पृथक् -पृथक् पा म यह शि पृथक् -पृथक्
अि त व का बोध भी कराती है । शि क उपासना के वतमान व प म महाकाली, महाल मी व
महासर वती मुख है ।

पौरािणक सािह य के अ तगत शि कह देवप नी, कह काली, दुगा, माया, सीता, सािव ी तथा त ािद
सािह य म ल मी, अ नपूणा, सर वती, ल मी, पृ वी, राि , पीता बरा, बगलामुखी, ि पुर सु दरी, भुवने री
आिद दशमहािव ाओं के प म पूिजत है। इसक यापकता इसी से िस है िक यह के वल िकसी थानिवशेष
म ही नह अिपतु गाँव-गाँव, घर-घर म कु लदेवी आिद के प म पूिजत है ।भगवती के उपासक ने दस
महािव ाओं को कालीकु ल एवं ीकु ल दो भाग म िवभािजत िकया है। दस देिवयाँ अपने-अपने वभाव, वण,
िच एवं काय के आधार पर भ के ारा पृथक् -पृथक् प म पूिजत है, िजनम गौरी, प ा, शची, मेधा,
सािव ी, िवजया, जया आिद देिवय सिहत मु य प से कु लदेवी का पूजन िकया जाता है ।

5.2. उ े य

1. षोड़शमातृकाओं व वसा ारा देिवय क पूजन िविध का ान ा करना ।

2. देिवय के आवाहन का ान ा करना ।

3. देवी से स बि धत सू का पाठा यास।

5.3. अथ मातृका तु ित

जय जय देिव परापर िपिण, जय जय जगतां जनियि , जय जय लीलाभािसतसकले जज सवा य पे।

जय जय सव लयिवभािविन, जय जय सवा तर पे, जय जय िव ािवलिसतदेह,े जय जय शक र नः पािह ।।1।।

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परापर व िपणी अथवा परापरा िव ा िपणी, लोक को उ प न करनेवाली, से चराचर प सं सार को


कािशत करने वाली, स पूण पदाथा क आ यभूता ( कृ ित पा) स पूण भूत के bय को कट करनेवाली,
सबक अ तयािमनी, िव ाओं से देदी यमान शरीरवाली , देवी तु हारी जय हो । हे क याणका रणी
िशवशि पे देवी ! तु म हमारी र ा करो ।।1।।

तदनु ानमया मिवभ ान्, म यमभावान् क य ती,

म यम पानाहतवािसिन, िमि त पे बु ि मिय ।

वसु िवधशि बिह कृ तभावे पीठिवभेदिविच कृ ते,

जय जय िव ािविसतदेहे, जय जय शंक र नः पािह ।।।

पराप य ती प से मातृका िवभाग के अन तर ान व प से िवभागवाली बौ पदाथा को वीकृ त करती हई


मूलाधार और र इन दोन के म यदेश प अनाहत नाम के थान म रहनेवा वाली या म यमा वाणी प
और अनाहत थान म रहने वाली प य ती और वैखरीधम से यु अ यवसाय िपणी आठ कार क शि य
से पदाथा को वीकार करनेवाली , थानभेद से िवल ण यापारवाली, िव ाओं से भासु र शरीरवाली, हे देवी !
तु हारी जय हो । हे क याणका रणी िशवशि िपणी ! हमारी र ा करो ।।3।।

अ यसं िव मा शरीरं, स यभावे क य ती,

जातानु रमु खशरिकरणैिमथु निवभेदादिप दशधा।

आ ा त परपरसं योगाद्, भू य ािप चतु िवधता,

जय जय िव ािवकिसतदेहे, जय जय शंक र नः पािह ।।

उपािधरिहत ान प शरीर को ैत प पि म प रणत करती हई, अकारािद पाँच वर के कार से अपने-


अपने व प के स ब ध म दस कार को ा त हई अकार प आिदमा ा । इकार और एकार तथा उकार और
ओकार के सं योग से चार कार को ा त हई िव ाभूिषतशरीरवाली देवी, तु हारी जय हो। हे क याणका रणी !
हमारी र ा करो ।।
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अ ते भेदाभेदिवभेदादिप नृ पसं य वर पा,

पंचिवधं त पंचकमा ं य यययोगा ेदिवधा ।

तदनु चतु धा म यमहीना िमथु नि तयं क य ती,

जय जय िव ािवकिसतदेहे, जय जय शंक र नः पािह ।।5।।

स य र के अ त म भेद (िब दु िवसग प से) और भेद (अकार प से) िवभाग से सोbह व पवाली,
आ पंचकवग (पाँच कार का) अ त थ वणा के योग से चार कारवाली (उसके अन तर ऊ म वणा से चार
कार क है)– म यम वण से रिहत वण य के सं योग को करती हई हे िव ाशोिभतशरीरे देवी ! तेरी जय हो। हे
क याणका रणी ! हमारी र ा करो ।।

एवं भू शरिमतभेदाढा, िव ारा ी माता वं,

त सं भेदादिखं िभ नं भावयिस वं श दमयी।

व कया यिद नोसि भ नं, गगनमयं यादिखिमदं,

जय जय िव ािवविसतदेहे, जय जय शंक र नः पािह ।।6।।

इस तरह 51 भेदयु तू माता िव ाओं क रानी है, श द प तू ही उन वणा के सं भेद से स पूण जगत् को िम
प से कट करती है । नाम पा मक यह सं सार अगर तेरी मा ा से यु न हो तो आकाश के समान शू य ही
हो जावे। िव ाओं से देदी यमान शरीर को धारण करनेवाली हे देवी ! तु हारी जय हो। हे क याणका रणी ! तु म
हमारी र ा करो ।।

थान यमिपकया हीनं, तव यिद मातन िकं िचत्,

परमं चािप पदं िवकचे छपथोपेतं नेतरथा।

तÎवं यातकया त पं या य सदा फु रिस,

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जय जय िव ािविसतदेहे, जय जय शंक र नः पािह ।।7 ।।

मिणपूरक, अनाहत, िवशु यही तीन थान अगर तेरी क णा से रिहत ह तो सं सार का यवहार ही ब द हो
जाये और तो या वह परमपद (अथात् मो ) भी न हो; यह म शपथ के साथ कहता हँ, अ यथा नह । इस
कार ा ड का नाश हो जायगा । इसीिलए तू अकारािद हकारा त वण को बतानेवाली, उपािध रिहत पद को
या त करके हमेशा कािशत हो रही है । हे िव ािवकिसत शरीरवाली देवी, तु हारी जय हो, हे क याणका रणी
! हमारी र ा करो ।।7।।

वयिमह लोके सजनमु ये, कृ ये यु ा वी या,

व पदप भवाः काये, सीद त वामिवद तः।

का काले पाद णतान्, भीता मू ढानितदीनान्,

जय जय िव ािवकिसतदेहे, जय जय शंक र नः पािह ।।8।।

इस लोक म तेरे भय से हम लोग उ पि , ि थित, सं हार प काय म लगे हए ह । तेरे पद-कम से उ प न हए समय
पर तु झ को नह जानते हए अथात् अहंकार से अ ान को ाá हए दुःखी हो रहे ह। समय-समय पर अथात्
िवपि आने पर तेरे चरण म णाम करनेवाले भययु मूढ दीन हम लोग क तू र ा कर । हे िव ाओं से
देदी यमान शरीरवाली क याणका रणी िशवशि पा देवी ! तु हारी जय हो। ।।8।।

मेधा वाणी भारती वं, िव ा माता सर वती

ा ी भाषा वणमयी, परा ाकृ ितर यया ।।9।।

बुि पा, वाणी पा, भारती पा, म ािद िव ा पा, प र छे ी पा, सर वती ा ी भाषा वण पा
आ म काश पा तू ही है। सं सार क आिदमूहै, कृ ित पा है, अिवनािशनी है।।9।।

िवक पा िनिवक पाजा, कामा नादमयी ि या ।

कालशि ः, सव पा, िशवा िु तरनु रा ।।10।।

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तू ही िवक प है, तू ही िनिवक प है, तू ही अजा है, तू ही काम है, तू ही नाद पा है, तू ही ि या है, तू ही काम
क साम य पा है, तू ही सव ाणी पा है, तू ही क याण िपणी है, तू ही िु त है, तू ही सव मा है ।।10।।

र ा मां वं महादेिव, सवलोकमहे र।

पिततां वरणयोः, र देिव नमो तु ते ।।11।।

सवलोक क ई री महादेवी ! तू हमारी र ा कर। हे देवी ! तेरे चरण म िगरे हए हमारी र ा कर, हम आपको
नम कार करते ह।।11।।

इित तु ता सा परमा, मातृका िव िपणी ।

ाह देवाि विधमु खान्, स ना त कृ ताचना ।।12।।

इस कार से तु ित क गई सं सार िपणी वह मातृका ( ािद देवताओं क ) पूजा से स न होकर उन ( ािद


देव ) से कहने लेगी ।।12।।

शृ णु वं िविधमु या मे, वचोिभलिषता पदम् ।

तवेनानेन तु ाि म, े ेयं म तु ितः कृ ता ।।13।।

हे ािद देव ! तु म मेरे अभी वचन को सु नो । म आप लोग क इस तुित से स न हँ । आप लोग ने यह


मेरी े तु ित क है ।।13।।

गूढाथगिभता चेय,ं मातृकावणस भवा । मातृका तु ित र येषा, िव याता तु सम ततः ।।14।।

गोपनीय अथ से यु मातृकावणा से उ प न हई यह तु ित मातृका तु ित के नाम से सव िस होगी।।14।।

ि स यं यः पठे देनां, त याहं वा मयी यिद ।

ादु भवािम का यािदमयी िव ा व िपणी ।।15।।

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जो मनु य तीन काल म इसे पढ़ेगा, उसके öदय म श द व िपणी म का यािदमयी िव ा पा कट होती
रहँगी।।15।।

एतां तु ितं पठतो, निह िव ा िवहीयते ।

समो वा पितना भू या ादेषु िवजयी तथा ।।16।।

इस तु ित को पढ़नेवाले क िव ा न नह होगी और वह बृह पित के समान होगा तथा वाद-िववाद (शा ाथ)
म भी िवजय को ा त होता रहेगा ।।16।।

चतु िवशित नामािन, भवि ः पिठतािन तु ।

यहं ि षु कालेषु पठे त् वेदाि वारकम् ।।17।।

आप लोग से पढ़े हए चौबीस नाम को ितिदन तीन काb चौबीस बार पढ़ना चािहए।।17।।

ततो धारयित लोकान्, सहानिप यहम् ।

बु ि ः कु शा स शी, सू माथ िवभेिदनी ।

जायते ना सं देहः, स यमेत मये रतम् ।।18।।

ऐसा करने से ितिदन हजार लोक को याद कर सकता है। उसक बुि सू माथ को हण करनेवाली तथा
कु शा स श हो जाती है । इसम कोई स देह नह है, यह मने सच कहा है ।।18।।

5.4. सगणेशषोडशमातृका पू जन

एक लकड़ी क चौक अथवा समतल भूिम पर वेदी का िनमाण करते हए उस पर लालव िबछाकर
षोड़शमातृका व स मातृका क गणपित सिहत पूव व अि कोण के म य म थािपत (16 पु ज गेह ँ अथवा
सु पारी से भी बना सकते है) करे । शु नवीन व पहनकर उ रािभमुख अथवा पूवािभमुख बैठे । कुं कु म (रोली)
का ितलक करके अपने दाय हाथ क अनािमका म सु वण क अं गठु ी पहनकर आचमन ाणायाम कर पूजन

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आर भ करे। 16वी मातृका कु लदेवी होती है, इस म म यजमान अपने ाम/नगर/कु ल क आरा य देवी का
पूजन करे । यिद अपनी कु लदेवी के िवषय म ान नह हो तो दुगा देवी का पूजन करे ।

ऊँ गौरी प ा शची मेधा सािव ीिवजया जया ।

देवसेना वधा वाहा मातरो लोकमातर: ।।

धृित:पु ि तथा तु ि रा मनकु लदेवता ।

गणशेनािधका वृ ौ पू या तु षोडश ।।

गणपित :- (हाथ म अ त पु प लेकर गणपित का आवाहन पूजन कर।)

तु व नेिह वं जलजजपमालां कुशगदा,

वहन् ह ता भोजै रभमु ख! मु खे मोदकवरम ◌्।

ि ने ं वां ल बोदरममरपू यैकरवदनं,

याम: पू जाथ मखभु वमु पे ेिह भगवन्।।

अथात् हे गणेश! चतु भजु व प चार भुजाओं म मश: जप-माला-अं कुश व गदा को धारण करने वाले, सू ड
म कमल को धारण करने वाले, हाथी के समान मुखवाले , मुख म े मोदक धारण करने वाले , तीन ने से
यु , ल बोदर, देवताओं के पू य, एकद त, ीगणेशजी म आपको आवाहन करता हँ, पूजन के िलए इस
य भूिम म पधार।

आग छ भगव दिव व थानात् रमि र ।

अहं वां पू जये सामे सदा वं स मु खो भव ।।

ऊँ गणाना वा गणपित œ हवामहे ि याणा वा ि यपित œ हवामहे

िनधीना वा िनिधपित œ हवामहे वसोमम। आहमजािनग भधमा वमजािसग भधम् ।


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ऊँ भूभव:
ु व: गणपतये नम: , नैऋ यको े अ भागे गणपितमावाहयािम थापयािम।

1. गौरी :- (हाथ म अ त पु प लेकर गौरी का आवाहन पूजन कर ।)

इमां गौरी देव िहमिग रसु तां श भु ललनां,

सु रैर या लोके णतजनसं र णपराम ◌्।

उमामा ां शि ं जलजनयनां च वदनां,

याम: पू जाथ मखभु वमु पे ेिह िशवदे।।

अथात् िहमाचल क पु ी, भगवान िशवश भु क ि या, देवताओं ारा अचनीय, इस सं सार म णाम करने
वाले जन क र ा म त पर रहने वाली, आिदशि , कमल के समान ने वाली, च के समान मुखवाली, उमा
व गौरी नाम से िव यात, हे देिव! हम आपका आवाहन करते है, आप इस य भूिम म पूजन के िलए आवे और
क याण करे

िहमाि तनयां दिव वरदां भैरव ि याम् ।

ािदर य जनन गौरीमावाहया यहम् ।। ऊँ आयङ् गौ: पृि र मीदसद मातर पु र:।
िपतर च य व:।।

ऊँ भूभव:
ु व: गौय नम:, गणेशा पूव गौरीमावाहयािम थापयािम ।

2. प ा :- (हाथ म अ त पु प लेकर प ा का आवाहन पूजन कर।)

िहर याभां प ां सरिसजकरां वामघहरां,

परां देव िव णो रिस िवलस त ि मतमु खीम्।

याम: पू जाथ ि भु वननु तां ीरिधसु त,ां

सपया वीकतु मखभु वमु पे ेिह सु भगे।।


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अथात् वण के समान आभायु , हाथ म कमल धारण करने वाली, पाप को हरने वाली, िव णु के दय पर
िवलास करने वाली, स नमुख परादेवी, तीन भुवन क व दनीय, समु क पु ी, पूजा वाकार करने के िलए
हे प ा देिव! य भूिम म पधारे और सु दर सौभा य को दान करे ।

ऊँ िहर य पा ऽ उषसोि वरोकऽउभािव ाऽउिदथ: सू ।

आरोहतं व णिम ग तत ाथामिदिति दित चिम ोिस व णोिस ।ऊँ भूभव:


ु व: प ायै नम:,
गौया पूव प ामावाहयािम थापयािम ।

3. शची :- (हाथ म अ त पु प लेकर शची का आवाहन पूजन कर।)

कदािचद् या देवी ि दश रपुनाशं कु ते, कदािच सु ा णा िवलसित च या न दनवने ।

याम तामैरावतसमिध ढां ि नयनां,सपया वीकतु शिच! मखमुपे ेिह कृ पया ।।

अथात् जो देवी कभी इ के श ओ


ु ं का नाश करती है और कभी न दनवन म िवलास करती है, ऐरावत गज के
ऊपर आ ढ़़ तीन ने से यु हे देिव शची! पूजा वीकार करने के िलए कृ पापूवक य भूिम म पधारे ।

िद य पां िद यव ां िद यालं काररसं यु ताम् ।

शत तो महोर थां शचीमावाहया यहम् ।।

ऊँ कदाचन तरीरिसने स िसदाशु षे।

उपापे नु मघव भू यऽइ नु ते दान देव यपृ यते ।। ऊँ भूभव:


ु व: श यै नम:, प ाया: पूव
शच आवाहयािम थापयािम।

4. मेधा :- (हाथ म अ त पु प लेकर मेधा का आवाहन पूजन कर।)

सु मेधां मे देिह हर जडतां हं सगमने,

वरा कपु ता-भयलिसतह ते! सु रनु ते!।

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याम वां मेधे! मखभु िव समाग य वरदे!,

गृ हाणाचा मातभगवित! शु भं य छ सततम्।।

अथात् हंस पर िवराजमान, हंस के समान चालवाली जडबुि को समा करने वाली , देवताओं के ारा
नम कृ त, अभयमु ा से यु ह तवाली, े ा माला व पु तक को धारण करनेवाली हे मेधा देिव! मुझे
सु दर मेधा दान करे, म आपका आवाहन करता हँ, य भूिम म पधारकर वर दे और हे माता भगवित! इस पूजा
को वीकार कर और िनर तर हमको शुभफल दान करे ।

आवाहया यहं मेधां मेधाशि व ् िधनीम्।

वर दां सौ य पां जरां िनजरसेिवताम्।।

ऊँ मेधा मे व णो ददातु मेधामि : जापित:।

मेधािम वायु मेधा धाता ददातु मे वाहा। ऊँ भूभव:


ु व: मेधायै नम:, श या: पूव
मेधां आवाहयािम थापयािम।

5. सािव ी :- (हाथ म अ त पु प लेकर सािव ी का आवाहन पूजन कर।)

उपायाम: से यां जगदु दयहेतुं सु रनु त,ां

सािव लोकानां वु -वर-करां ललनाम ◌्।

याम: सािव ु ितिनकरगभा मखमय ,

सपया वीकतु भगवित समायािह वरदे ।।

अथात् सारे सं सार क उ पि के िलए सेवनीय देवताओं ारा नम कृ त व और वरमु ा हाथ म धारण करने
वाली, ा क पु ी, अपने गभ म वेद को धारण करने वाली य व प, हे सािव ी! आप हमारी सपया
(िवशेष पूजा) वीकार करने के िलए पधारे , हम आपका आवाहन करते है, पधारकर हम वर दान करे ।

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जग सृि कर धा देव णवमातृकाम् ।

वेदगभा य मय सािव थापया यहम् ।।

ऊँ उपयामगृ हीतोिस सािव ोिस चनोधा नोधाऽअिसचनोमियधेिह ।

िज व ि ज व पितं भगाय देवाय वा सिव े।। ऊँ भूभव:


ु व: सािव यै नम: , गौयादु रे सािव
आवाहयािम थापयािम ।

6. िवजया :-

अहो य या िव यं धनु रिप जयं य छित सदा,

वभ ानां र ाकरणिविधद ा जगित या।

याम तां देव सकल सु रसे यां भगवत,

सपया वीकतु मखभु वमु पे ेिह िवजये!।।

अथात् िजसका धनुष िवजय पी जय को सदा दान करता है, जो इस सं सार म अपने भ क र ा करने क
िविध म द है। ऐसी देवी भगवती देवताओं से वि दत िवजया का आवाहन करते है, हे िवजया! य भूिम म
हमारी सपया (सेवा) को वीकार करने के िलए पधारे ।

आवाहया यहं देव िवजयां देवसं तु ताम्।

सवा धा रणी व ां सवाभरणभू िषताम् ।।

ऊँ ि व य धनु : कपि नोि वश यो बाणवाँ 2ऽ उत।

अनेश न य याऽइषवऽ आभु र य िनषङ् गिध:।। ऊँ भूभव:


ु व: िवजयायै नम:, सािव या पूव िवजयां
आवहयािम थापयािम।

7. जया :-
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जयाथ देवानामसु रकु लनाशाय च यया,

धृतो िद यो देहि भु वननु त तािमह जयामï◌्।

दधानां ह ता जैरभयवरशू लािसिनकरं,

यामोऽचाथ भो मखभु वमु पे ेिह वरदे।।

अथात् देवताओं क जय के िलए, असु रकु ल के नाश के िलए िजस देवी ने िद यदेह ( व प) धारण क है, ऐसी
ि भुवन (तीन भुवन के ारा नम कृ त) हाथ म कमल, अभयमु ा, वरमु ा, शूल , खड् ग धारण करने वाली हे
देिव जया! अचन करने के िलए हम आपका आवाहन करते है, हे वर देने वाली भगवती! आप य भूिम म
पधारकर हम वर दे।

सु रा रमिथन देव देवानामभय दाम् ।

ैलो यवि दतां देव जयामावाहया यहम् ।।

ऊँ याते िशवातनू रघोरा पापकािशनी।

तयान त वाशं तमयािग रश तािभ चाकशीिह ।। ऊँ भूभव:


ु व: जयायै नम:,
िवजयाया: पूव जयां आवाहयािम थापयािम ।

8. देवसेना :-

सु देवानां भ ा सु मितरथ पुं सां कृ तिधयां,

सु रारातीनां या लयरजनी क दरमणी।

मयू रा ढां तां मनिस सु रसेनािमह नु म,ो

याम ाचाथ भगवित समायािह सु खदे।।

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अथात् े देवताओं का क याण करने के िलए सु मित (सु दर बुि प) और िकये हए का उपकार मानने वाले
पु ष के िलए बुि प , देवताओं के श ु ओ ं के िलए कालराि और क द ( वामी काितके य) के साथ रमण
करने वाली, मोर पर सवारी करने वाली, हे देवसेना! तु मको हम मन से नम कार करते है और पूजा के िलए
आवाहन करते है। हे भगवित! आप पधारे और हम सु ख दे ।

आवाहया यहं देव देवसेनां महाबलाम्।

तारकासु र सं हार का रण बिहवाहनाम्।।

ऊँ देवानां भद् ासु मितऋजूयता देवानाœ राितरिभनो िनव ताम्।

देवाना œ स यमु पसेिदमा वय देवानऽआयु : ितर तु जीवसे। ऊँ भूभव:


ु व : देवसेनायै
नम:, जयाया: पूव देवसेनाम् आवाहयािम थापयािम।

9. वधा :-

िपतृ यो या क यं िवतरित सदा लोकमिहता,

दयामू ित: पुं सामिभलिषतपू ितभगवती।

वधां तामारा यामिखलमनु जै: वगिनलयां,

याम: पू जाथ मखभु वमु पे ेिह िवमले ।।

अथात् िपतर के िलए जो क य ( ा म द साम ी) का िवतरण करती है। सारा सं सार िजसक मिहमा का
गुणगान करता है, दया क मूित है और पु ष को अिभलिषत मनोरथ क पूित करने वाली , वग म िनवास
करने वाली सम त मनु य क आरा य, हे े िवमल व प वधा! हम आपका पूजन के िलए आवाहन करते
है, आप इस य भूिम म पधारे ।

अ जा सवदेवानां क याथ या िति ता ।

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िपतॄणां तृि दां देवी वधामावाहया यहम् ।। ऊँ िपतृ य: वधािय य: वधानम: िपतामहे य:
वधािय य: वधा नम:

िपतामहे य: वधािय य: वधानम: ।

अ ि पतरोमीमद त िपतरोतीतृप त िपतर: िपतर: शु ध वम् । ऊँ भूभव:


ु व: वधायै नम: ,
सािव या: उ रे वधां आवाहयािम थापयािम ।

10. वाहा :-

हिवभ देव दनु जकु लह तु भु जां,

हर ती स तापं जगित िवहर त भगवतीम ◌्।

समारा यां वाहां हतवहसमाराधनपरां,

याम: पू जाथ मखभु वमु पे ेिह वरदे! ।।

अथात् देवताओं को हिव (हवनीय य) दान करने वाली दै यकु ल का िवनाश करने वाली, य भाग ा
करने वाल के स ताप को हरने वाली तथा य का भाग ा करने वाली, इस सम त जगत् म िवहार करने
वाली, देवताओं ारा आराधन म त पर, अ छी कार आराधना करने यो य, हे वाहा देिव! हम पूजन के िलए
आपका आवाहन करते है, य भूिम म पधारकर हमको वर दान कर ।

हिवगृही वा सततं देवे यो या य छित।

तां िद य पां वरदां वाहामावाहया यहम्।।

ऊँ वाहा मनस: वाहोरोर त र ा वाहाद् ावा

पृिथवी या œ वाहा वातादारभे वाहा । ऊँ भूभव:


ु व: वाहायै नम:, वधाया: पूव वाहां
आवाहयािम थापयािम ।

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11. मातृ :-

िस ा या लोके सु रदनु जयो: श य: इमा:,

जनै: से या ा ी भृ ितिनज पेषु सततमï◌्।

सम ता ता मातॄजगदु दयक मखभु िव,

यामोऽचाथ ''भो दु ् रतिमह समायात सु खदा:।।

अथात् जो सम त सं सार म देवता व दानव दोन क शि के प म िस है। अनेक जन से सेिवत है, ा


क शि है और ा ी आिद अनेक प म िवराजमान है, सम त जगतï◌् को उ प न करने वाली है और
सभी के िलए माता व प है, ऐसी हे मातॄका देवी! आप शी यहाँ पधारे , हम सु ख दे, हम पूजन के िलए
आपका आवाहन करते है।

आवाहया यहं मातॄः सकला लोकपू िजताः।

सवक याण िप यो वरदा िद यभू षणाः।।

ऊँ आपोऽअ मा मातर: शु धय तु घृतेन नो घृत व: पु न तु ।

ि व œ िह र वहि त देवी िददा य: शु िचरा पूतऽएिम ।

दी ातपसो तनू रिस ता वा िशवा œ श मा प रदधे भद् वण पु यन्।। ऊँ भूभव:


ु व:
मातृ यो नम:, वाहाया: पूव मातृ : आवाहयािम थापयािम ।

12. लोकमातृ :-

सदा नो भ ाथ वहिस बह पािण दयया,

जय ती यादीिन िभलिषतपू ित च कु षे।

िसता भोजाभे वं ह ररमिण! भो लोकजनिन!,


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यामोऽचाथ वां मखभु वमु पे ेिह वरदे!।।

अथात् जो सभी के क याण के िलए जय ती इ यािद बहत से प को दयापूवक धारण करती है और


अिभलिषत मनोकामनाओं क पूित करती है , ेत कमल के समान िजनक आभा है, भगवान ह र के साथ रमण
करने वाली, सम त सं सार क माता, आपको पूजन के िलए आवािहत करते है, य भूिम म पधारकर हम वर
दान करे ।

आवाहये लोकमातृजय ती मु खाः शु भाः।

नानाभी दाः शा ताः सवलोकिहतावहाः।।

ऊँ वाहा ं व ण: सु ो भेषजं करत्।

अित छ दाऽइि य बृ हद् ऋषभो गौ वयो: दधु :।। ऊँ भूभव:


ु व: लोकमातृ यो नम: , मातृपवू
लोकमातृ: आवाहयािम थापयािम।

13. धृित :-

धृितं हे तुं भवजलिधसेतुं सु मनसां,

चेतुं स तोषं जगित िविकर त शमसु धाम।

महाके तुं क तिदितज-यमके तुं गु णवत,

याम: पू जाथ मखभु वमु पे ेिह सु धतृ े!।।

अथात् धम के थमल ण धैय को धारण करने वाली, इस भवसागर क सेतु व प सु दरमनवाले जन को


स तोष दान करने वाली स नता (हष) का कारण प, जगत् म शाि त प, अमृत का िवतरण करने वाली,
क ित के िलए महान् वजा प, दै य के यम क वजा व प, अनेक गुण से यु अ छी कार से धैय को
धारण करने वाली हे धृित देिव! हम पूजा के िलए आपका आवाहन करते है, य भूिम म पधारे ।

सवहषकर देव भ ानामभय दाम् ।


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हष फु ला यकमलां धृितमावाहया यहम् ।।

ऊँ ानमु तचेतो धृित य योितर तरमृ त जासु ।

मा नऽऋते िक चनक मि य ते त मे मन: िशवसङ् क पम तु ।। ऊँ भूभव:


ु व: धृ यै नम:,
वहाया: उ रे धृितं आवाहयािम थापयािम ।

14. पु ि :-

जनानां पु ् यथ सकलिवधम नं ु धमथ,

भु वं पू ण वं िविधहतमखैया िवतनु ते।

िशवां पु ि ं देवीम णवसनां पु सु खदां,

यामोऽचाथ तां ''मखभु वमु पे ेिह जनिन!।।

अथात् सम त सं सार क पुि (शरीर को पोषण करने के िलए), सभी कार के अ न को देने वाली, भूख को
भोजन देने वाली, िविधिवधानपूवक िकये हए य से भुता व पूणता दान करने वाली , लालव धारण करने
वाली, पु को सु ख देने वाली, सम त सं सार का क याण करने वाली हे पुि देिव! हम आपका पूजन के िलए
आवाहन करते है, आप य भूिम म हे माता! पधारे ।

पोषय ती जग सव वदेह भवैनवैः ।

शाकै ः फलैजलैः र नैः पु ि मावाहया यहम् ।।

ऊँ रिय मे राय मे पु च मे पु ि मे ि वभु चमे भु च मे

पू ण च मे पू णतर च मे कु यव च मे ि त च मे न चमे ु चमे ेनक प ताम् ।ऊँ भूभव:


ु व:
पु ् यै नम:, धृ या: पूव पुि ं आवाहयािम थापयािम ।

15. तु ि :-

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गदां शि ं प ं वरमिप दधाना िनजकरै-

रभी ा धीराणां ु ितिविधपराणां सु मनसाम।

प नानां पुं सािमह जगित या क पलितका,

याम तां तु ि ं मखभु वमु पे ेिह वरदे!।।

अथात् गदा-शि -कमल और वरमु ा को अपने हाथ म धारण करने वाली, िविधिवधान पूवक य करने वाले ,
वेद-िविध का पालन करने वाले, सु दर मन से यु , धीर पु ष को अभी दान करने वाली, प न (सभी
साधन से यु होने पर भी दु:खी रहना) पु ष को कामनापूित करने वाली क पलता के समान हे तु ि देिव!
आप य भूिम म पधारे , हम वर दे, हम आपका आवाहन करते है।

देवैरारािधतां देव सदास तोषका रणीम् ।

सादसु मु ख देव तु ि मावाहया यहम्।।

ऊँ व ातु रीपो ऽअ ु त ऽइ ा नी पु ि व ना।

ि पदा छ द ऽइि यमु ागौ न वयोदधु : ।।ऊँ भूभव:


ु व: तु ् यै नम:, पु ् या: पूव तु ि ं आवाहयािम
थापयािम ।

16. कु लदेवी :-

नृ-दै याऽऽिद यानां िविवधकु लम ये बहिवधं,

यया िद यं पं वजनकु लविध णु िवधृतम्।

नु म ताम माकं मिहतकु लदेवीिमह मु दा,

याम: पू जाथ जनिन! समु पे वरभु वम।।

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अथात् मनु य-दै य-देवताओं के िविवध कु ल के म य म िज ह ने िद य प धारण िकया है, वजन के कु ल को


बढ़ाने वाली, स नतापूवक हे कु लदेिव! हम यहाँ आपको नम कार करते है, हे जनिन! आप इस य भूिम म
पधारे , हम आपका आवाहन करते है ।

प ने नगरे ामे िविपने पवते गृ हे ।

नानाजाित कु लेशान दु गामावाहया यहम् ।।

ऊँ अ बेऽअि बके बािलके नमानयित क न ।

सस य क: सु भि काङ् का पीलवािसनी ।। ऊँ भूभुव: व: कु लदै यै नम:, तु ् या: पूव कु लदे यां


अवाहयािम थापयािम । मनोजूित रित ित ापनम् । ॐ भूभवः
ु वः सगणािधप गौयािदकु लदेवता ताः
षोडशमातरः सु िति ता वरदा भव तु ।

यथोपचारैः स पू य ाथयेत् :-

आयु रारो यमै य दद वं मातरो मम ।

िनिव नं सवकायषु कु वं सगणािधपाः।।

म पु पम् :- तं वोऽअ ब धामािनसह मु तवो ह ।

अधा शत वोयिमम मेऽ अगदङ् कृ त ।।

गौरी प ा शची मेधा सािव ी िवजया जया ।

देवसेना वधा वाहा मातरो लोकमातर: ॥

धृित: पु ि तथा तु ि ïरा मन: कु लदेवता:।

गणेशेनाऽिधका ेता वृ ौ पू या तु षोड़श ॥

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अनया पू जया गणप यािद कु लदेवता तमातर: ीय ताम्।

अनयापू जया षोडशमातरः ीय ताम् न मम ।

5.5. ि यािद स मातृका पू जन

1. ी: :-

िहर याभां देवीम णकमल थां ि मतमु ख ,

वह त ह ता जैरभयवरमु ेऽ जयु गलम्।

िविच ालं कारािमह जलजमालां ि यमहो,

याम: पू जाथ मखभु वमु पे ेिह सु खदे!।।

अथात् वण के समान आभायु , लालकमल के आसन पर ि थत, स नमुख वाली, हाथ म कमलयुगल,
अभय और वरमु ा धारण करने वाली िविच कार के अलङ् कार (आभूषण इ यािद) धारण िकये हए
कमलपु प क माला धारण करने वाली ी देिव! हम आपका पूजन के िलए आवाहन करते है , य भूिम म
पधारकर हम सु ख दान करे ।

सु वणप ह तां तां िव णोव थले ि थताम्।

ैलो यव लभां देव ि यमावाहया यहम् ।।

ऊँ मनस: काममाकू ितं वाच: स यमशीमिह ।

पशू ना œ पम न य रसो यश: ी: यता मिय वाहा ।। ऊँ भूभव:


ु व: ि ये नम:, ि यं
आवाहयािम थापयािम ।

2. ल मी :-

शु िच: प ा ढा पृथु किटतिट प नयना,


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गजे ैया िद यै: कनककलशै: नािपततनु :।

जग ां ल म तनभरनतां शु वसनां,

यामोऽचाथ तां जनिन! मखमे ेिह धनदे!।।

अथात् पिव कमल पर आ ढ़, िव तृत किट देश से यु , कमल के समान नयनवाली, गजे ारा िद य
वणकलश के जल से नान करते हए शरीर से यु सम त सं सार क व दनीय, शु व धारण िकये हए,
तन के भार से नत हे ल मीमाता! हम आपको अचन के िलए आवाहन करते है, इस य म पधारो और हम
धन दो ।

शु भल णस प नां ीरसागरस भवाम्।

च य भिगन सौ यां ल मीमावाहया यहम्।।

ऊँ ी ते ल मी प या वहोरा े पा े न ािण पमि

नौ या म्। इ णि नषाणामु मऽइषाण स वलोकं म ऽइषाण।।

ऊँ भूभव:
ु व: ल यै नम:, ल म आवाहयािम थापयािम।

3. धृित :-

ऋते य ानं भु िव भवित काय िकमिप नो,

िशवं सङ् क पं या मनिस मनु जानां िवतनु ते।

मोदो फु ला यां कमलनयनां तां धृितिमह,

याम: पू जाथ मखभु वमु पे ेिह वरदे!।।

अथात् िजनका ान हो जाने पर स य का सा ा कार हो जाता है और कोई भी काय िस हए िबना नह रहता,


जो सम त मनु य के क याण के िलए मन म सङ् क प िलए रहती है। स नता के कारण िजनका मुखकमल
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सदा िवकिसत रहता है, ऐसी कमल के समान धृित देिव का पूजन के िलए आवाहन करते है , हे देिव! य भूिम म
पधारकर हम वरदान दे।

सं सारधारणपरां धैयल णसं यु ताम्।

सविसि कर देव धृितमावाहया यहम्।।

ऊँ स यऽऋि र यग म योितरमृ ताऽअभू म।

िदव पृिथ याऽअद् या हामािवदामदेवा व य ित:।ऊँ भूभव:


ु व: धृ यै नम: , धृितं आवाहयािम
थापयािम ।

4. मेधा :-

सु मेधां नो िन यं दधतु व णा ा: सु मनस:,

स ना सा भू याद् वरजलजपु ताभयकरा।

मराला या ढां मखभु िव मु दा पीतवसनां,

याम तां मेधां जनिन! समु पे ेिह मितदे!।।

अथात् िजस मेधा देिव का व ण आिद देवता अ छे मन से िन य यान करते रहते है, जो चार हाथ म मश:
वरमु ा, कमल, पु तक और अभयमु ा धारण करती है , जो कमल के म य म िवराजमान है, पीले व धारण
करती है, ऐसी मेधामाता का हम य भूिम म आवाहन करते है। हे मेधा! आप यहाँ आकर हम बुि दान करे ।

सदस कायकरण मां बु ि िवशािलनीम् ।

मम काय शु भकर मेधामावाहया यहम् ।।

ऊँ या मेधा देवगणा: िपतर ोपासते।

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तया माम मेधया ने मेधािवनं कु वाहा ।ऊँ भूभव:


ु व: मेधायै नम:, मेधां आवाहयािम
थापयािम ।

5. वाहा :-

ग भ वं पुं यो िवतरित सदाऽऽदाय करयो:,

सरोजं स पा ं िवबु धरसना े िवहरित।

वल ौमाढ् या णवजननी याऽितचपला,

याम तां ां मखभु वमु पे ेिह वरदे!।।

अथात् जो देिव दोन हाथ से सभी पु ष को ग भता दान करती है तथा देवताओं के िज ा पर सदा िवहार
करती है। कमल पी पा को िलए रहती है, णव (ऊँकार) क जननी है, जो शु रे शमी व से ढक रहती है
तथा जो अ य त च चल है, ऐसी ा का हम आवाहन करते है, वो हमे य भूिम म पधारकर वर दान करे ।

अि नम ये हिवगृही वा देवे यो या य छित ।

वङ् िघि यां तु सा देव वाहामावाहया यहम्।।

ऊँ ाणाय वाहा पानाय वाहा यानाय वाहा च ु षे वाहा ो ाय

वाहा वाचे वाहा मनसे वाहा ।ऊँ भूभव:


ु व: वाहायै नम: , वाहां आवाहयािम थापयािम।

6. ा :-

शु भै र नैयु ाम णपृथु ने ं ि भु वने,

समेषां पु ् यथ धृतिवबु धदेहां शिशमु खीम्।

जग ां देवीम णवसनां िव जनन,

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यामो भो पु े! मखभु वमु पे ेिह बलदे! ।।

अथात् शुभर न से यु , लाल बड़े-बड़े ने से यु , तीन भुवन म सभी को पुि देने के िलए शरीर धारण
करने वाली च मुखी, सम त जगत् क व दनीय, सम त िव क जननी, लालव धारण करने वाली हे पुि
देिव! य भूिम म पधारकर हम बल दान करो, हम आपका आवाहन करते ह ।

आवाहया यहं देव ां वाि वभव दाम् ।

िव ाधारां जग ां महाघौघिवनािशनीम् ।।

ऊँ ानमु तचेतोधृित य योितर तरमृ त जासु ।

मा न ऽ ऋते िक चन क मि यते त मे मन: िशवसङ् क पम तु ।। ऊँ भूभव:


ु व: ायै
नम:, ां आवाहयािम थापयािम ।

7. सर वती :-

सु रैव ै! देिव! दु ् रिहणतनये! शु वसने, !

माशीले! लीलालिलतगितहं सासनगते!।

शशाङ् का ये! वागी र! सु मनसां मोदजनिन!,

याम वां य े भगवित! समायािह शु भदे!।।

अथात् सम त देव क व दनीया, हे ा क पु ी, शु ( ेत) व धारण करने वाली, माशील, लीलामय


लिलतगित से चलने वाली, हंस के आसन पर िवराजमान, च मा के समान मुखवाली, वाणी क अिध ा ी,
सु दर मन वाले मनु य को स नता देने वाली हे भगवित सर वित! यहाँ य म पधारो, हमे शुभफल दो, हम
तु हारा आवाहन करते है।

णव यैव जनन रसना ि थतां सदा ।

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ग भदा चपलां वाणीमावाहया यहम् ।।

ऊँ पावकान: सर वती वाजेिभ वािजनीवती। ं व िधयावसु :।। ऊँ भूभव:


ु व: सर व यै
नम:, सर वतीमावाहयािम थापयािम।

त प ात् मनोजूित... म से अ जिल करते हए प -पु प दे वी को अिपत करे ।

ऊँ मनोजू ितजुषतामा य य बृ ह पित िमम तनो व र ं œ सिमम दधातु ।

िव ेदवा स ऽ इह मादय तामो 3 ित ।।

त प ात् पृथक् -पृथक् म अथवा देवीसू अथवा ीसू का पाठ करते हए मातृकाओं क षोड़शोपचार
पूजन करे ।

ॐ िहर यवणािमित प चदशच य सू य आन दकदमिच लीतेि दरासु ताः ॠषयः ीदवता


आ ाि त ोऽनु भः चतु थ बृहती पंचमीष ् यौ ि भौ ततोऽअ ावनु भः अ या तारपङ् ि ः
ीदवता ी यथ जपे िवनयोगः ।

ॐ िहर यवणा ह रण सु वणरजत जाम् ।

च ां िहर मय ल म जातवेदो म आ वह ।।1।।

भावाथ :- हे अि नदेव! आप सुवण समान काि तमय ह र ण क कनक-रजत पु प के हार को धारण करने
वाली च स श दीि मान् और अशेषजन को च मा के समान मुिदत करने वाली वणमयी ल मी को मेरे
िलए अभी िसि हेतु ा कराय।

ॐ तां म आ वह जातवेदो ल मीमनपगािमनीम् ।

य यां िहर यं िव देयं गाम ं पु षानहम्।2। ।।

भावाथ :- हे अि नदेव! आप चं चलता िवरिहत अथात् अ य गमन न करने वाली ल मी ा कराय िजनके
आगमन से म वण, गौ, अ और पु -िम ािद प म अनेक मनु य को ा क ं ।
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ॐ अ पू वा रथम यां हि तनाद मोिदनीम्।

ि यं देवीमु प ये ीमा देवी जु षताम्।।3।।

भावाथ :- िजस सेना व पा ल मी जी के आगे अ चल रहे हं, िजसका म यभाग य दन से प रपूण है ,


हािथय के बृहद नाद से जो बोिधत होती है, उस राजल मी व पा ी ल मी को म अपने िलए आवाहन
करता हँ, वह देदी यमान ी ल मी मुझे ा हो ।

ॐ कां सोि मतां हर य ाकारामा ् रां वल त तृ ां तपय तीम्।

प े ि थतां प वणा तािमहोप ये ि यम् ।4।

भावाथ :- वाणी और मन से अिनवचनीय व प धा रणी, म दहा य से यु वण आभा के समान, आ ् र


िच वाली, योित व पा, पूणकामा, भ क अिभलाषा पूण करने वाली कमल पर िवराजमान, सू य के
समान तीत होती हई उस ील मी को म अपने समीप आवािहत करता हँ ।

ॐ च ां भासां यशसा वल त ि यं लोके देवजु ामु दाराम्।

तां पि नीम शरणं प े ऽल मीम न यतां वां वृणे ।।5।।

भावाथ :- च के समान आ ािदत करने वाली िद य आभा से यु सं सार म उ वलक ित से कािशत,


इ ािद देवताओं से सेिवत प व पा, ईकार पदवा य, ल मी क शरण म हण करता हँ। मेरी अल मी न
हो जाये, म ल मी का आ य हण करता हँ।

ॐ आिद यवण तपसोऽिधजातो वन पित तव वृ ोऽथ िब वः।

त य फलािन तपसा नु द तु या अ तरा या बा ा अल मीः।।6।।

भावाथ :- हे सू य के समान काि तमान देवी आपके िनयमािद तप से वन पित और हाथ से िब व वृ उ प न


हआ । उस िब व वृ के फल और आपक कृ पा या तप या से मेरे बाहर और भीतर क अल मी दूर हो ।

ॐ उपैतु मां देवसखः क ित मिणना सह ।


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ादु भूतोऽि म रा े ऽि मन् क ितमृ ददातु मे ।।7।।

भावाथ :- हे ी ल मी! मुझे क ितमान द जापित क क या और कोषा य मिणभ या िच तामिण के साथ


महादेव के िम कु बेर ा हो । म इस देश म उ प न हआ हँ अतः वे मेरे िलए यश और सम ऐ य साधन
ॠि को दान करे ।

ॐ ु ि पपासामलां ये ामल म नाशया यहम्

अभू ितमसमृ ि ं च सवा िनणुद मे गृ हात्।।8।।

भावाथ :- हे माँ ल मी! भूख और यास से कृ िशत शरीर वाली ये ा अल मी को म नाश चाहता हँ, आप मेरे
घर से सभी अभूित और असमृि को दूर कर।

ॐ ग ध ारां दु राधषा िन यपु ां करीिषणीम्।

ई र सवभू तानां तािमहोप ये ि यम्।।9।।

भावाथ :- सम त पृ वी पा िकसी अ य से घिषत न होन वाली सवदा स यािद से समृ गाय, अ ािद प
अनेक पशुओ ं से पूण सम त ािणय क वािमनी िव ाधा रत उस ल मी को म यहाँ अपने समीप आने के
िलए आवाहन करता हँ।

ॐ मनसः काममाकू qत वाचः स यमशीमिह।

पशू नां पम न य मिय ीः यतां यशः।।10।।

भावाथ :- हे महाल मी! आपक कृ पा से अशेष मनोरथ क ाि , स तोष और वाणी क स यता मुझे ा हो।
पशुओ ं के प म दु ध -दिध आिद अ न के प म चतु िवध (भ य, भो य, ले , चौ य) प पदाथ को म ा
क ं । ल मी और क ित मेरे म आ य हण करे िजससे म ीयुत और क ितवान बनूं ।

ॐ कदमेन जा भू ता मिय स भव कदम ।

ि यं वासय मे कु ले मातरं प मािलनीम् ।।11।।


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भावाथ :- हे ल मीपु महिष कदम! आप मुझ पर अनु ह कर मेरे यहाँ िनवास कर य िक माता ल मी आपसे
ही पु वती है । आप मेरे कु ल म प माला धारण करने वाली माता ल मी को ित ािपत करे ।

आपः सृ ज तु ि धािन िच लीत वस मे गृ हे ।

िन च देव मातरं ि यं वासय मे कु ले ।।12।।

भावाथ :- जलािभमानी देवता नेहयु पदाथ को उ प न करे । हे ीपु ! िच लीत आप मेरे घर म िनवास कर
और िद य गुण वाली माता ल मी को भी मेरे वं श म वास कराय ।

आ ् रां पु क रण पु ि ं िप‘लां प मािलनीम् ।

च ां िहर मय ल म जातवेदो म आ वह ।।13।।

भावाथ :- हे अि नदेव! आ ् रग ध वाली भ के िलए दया ् र िच वाली िद गज के शु डा से अिभिष


होती हई पुि पी सव ि थत पीतवणा कमलहार को धारण करने वाली च व पा अमृतवषण या काि त
से आ ािदत करने वाली वण पा ल मी को मेरे गृह म िनवास करे ।

आ ् रां यः क रण यि ं सु वणा हेममािलनीम्।

सू या िहर मय ल म जातवेदो म आ वह ।।14।।

भावाथ :- हे अि नदेव! आ ् रग ध से यु , दया ् र िच वाली, हाथ म वे धारण करने वाली, दु के िलए


द ड व पा, सु दर वण वाली वणमाला धारण करने वाली, सू य व पा, वण पा ल मी देवी को आप मेरे
घर म िनवास कराय।

तां म आ वह जातवेदो ल मीमनपगािमनीम् ।

य यां िहर यं भू तं गावो दा योऽ ाि व देयं पु षानहम्।।15।।

भावाथ :- हे वङ् िघदेव! आप मेरे घर म उस ल मी को िनवास कराय िजससे म बहत वण, गौ, मिहष आिद
पशुधन, अनुचर, तु रगािद वाहन और पु -िम व कल ािद पु षजन को ा क ं ।
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यः शु िचः यतो भू वा जु ह यादा यम वहम्।

सू ं प चदशच च ीकामः सततं जपेत।् ।16।।

भावाथ :- जो भी मनु य ल मी क इ छा करता है वह पिव और सावधान िच होकर ीसू के प ह म


से ितिदन गाय के घी से हवन करे और ीसू का िनर तर जाप व पाठ कर ।

षोड़शोपचार पू जन के प ात् देवी को पु पा जिल अिपत करे ।

गौया ा: सु कला: सदािशवनु तामाङ् ग यमू ला: िशवा:,देवानामिप मातर: िकमु मनु याणां सदा
सौ यदा:।

ीरा ा घृतमातरौ गणपितं ौड़ेवह योभृ शम्,तासां पादनवा बु ज य सु िचरंपु पा जल राजताम् ।।1।।

मु खे ते ता बू लं नयनयु गले क जलकला,ललाटे का मीरं िवलसित गले मौि कलता ।

फु र का ची शाटी पृथु किटतटी हाटकमयी,भजािम वां गौर नगपित िकशोरीमिवरतम् ।।2।।

ाथना -

जन यो गौया ा गणपितयु ता ी भृ ितिभ,घृता बािभयु ा: णतजनसं र णचणा:।

सपया वीकतु मखभु िव सीद तु कृ पया,िनिषद तु ी या जगित फलदा स तु वरदा: ।

आयु यम (देवी से दीघायु क ाथना करे) -

ऊँ आयु यं व च य œ राय पोषमौि दम् ।इद œ िहर यं व च व जै ाया िवशतादु माम्।

नतद् ा œ िसनिपशाचा तरि त देवानामो: थम œ ेतत् ।

िबिभितदा ायण œ िहर य œ सदेवेषु कृणु ते दीघमायु : समनु येषु कृ णु ते दीघमायु :।

दाबद् ् र दा ायणा िहर य œ शतानीकायसु मन यमाना:।।

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त मऽ आबद् नािम शतशारदायायु मा जरदि यथासम्।।

अनेन अचनेन सगणेशमातर: ीय ताम् न मम । (जल का याग कर)

5.7. सारां श

इस इकाई के अ ययन के प ात् छा को पूजन म के अ तगत पूिजत षोड़श मातृकाओं के अ तगत गौरी के
साथ म गणपित, प ा, शची, मेधा, सािव ी, िवजया, जया, देवसेना, वधा, वाहा, मातृ, लोकमातृ, धृित, पुि ,
तु ि व आ मकु लदेवता अथात् कु लदेवी तथा स वसो ाराओं के अ तगत Ÿ ी, ल मी, धृित, मेधा, वाहा,
ा व सर वती के पूजन क िविध का ान करते हए इनसे स बि धत म का ान तथा मातृशि म िव ास
एवं वतमान प र े य म नारी शि का स मान करने क ेरणा िमलेगी । इस इकाई म मातृका तु ित व ीसू
का पाठा यास भी भावाथ सिहत छा के ानाजन हेतु िदया गया है ।

5.8. श दावली

1. सजकता = सृजन करने क शि

2. सं हाकरता = न करने क शि

3. यापकता = सभी म िव मान रहने क शि

4. गौरी = िहमाचल क पु ी/महोदव क शि अथवा प नी

5. गणपित = िशवगण म थम

6. शची = इ क आ ाशि

7. प ा = हाथ म कमल पु प धारण करने वाली देवी

8. मेधा = जड़बुि को समा करने वाली (बुि ) देवी

9. सािव ी = सू य क शि
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10. िवजया = िवजय दान करने वाली देवी

11. जया = जय दान करने वाली देवी

12. देवसेना = वामी काितके य के साथ रमण करने वाली देवी

13. वधा = िपतर के िलए क य दान करने वाली देवी

14. वाहा = देवताओं को हवनीय य से स तु करने वाली देवी

15. मातर: = माता के प आ शि देवी

16. लोकमातर := जगत क याण करने वाली माता

17. धृित = धैय को धारण करने वाली देवी

18. पुि = पोषण करने वाली देवी

19. तु ि = कामना पूण करने वाली देवी

20. षोड़शोपचार = 16 य से पूजन

5.9. अितलघु रीय

- 1 : षोड़श मातृकाओं के नाम िलिखये ?

उ र : षोड़श मातृकाओं के नाम - गौरी, प ा, शची, मेधा, सािव ी, िवजया, जया, देवसेना, वधा, वाहा,
मातृ, लोकमातृ, धृित, पुि , तु ि व आ मकु लदेवता अथात् कु लदेवी।

- 2 : स वसो ारा के नाम िलिखये ?

उ र : स वसो ारा के नाम - ी, ल मी, धृित, मेधा, वाहा, ा व सर वती ।

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- 3 : ीसू म िकतने ोक है ?

उ र : ीसू म मूल प ह (15) है तथा अि तम सोलहवां (16) ोक महा य है।

- 4 : षोड़श मातृकाओं के म ड़ल का िनमाण िकस िदशा म िकया जाता है ?

उ र : षोड़श मातृकाओं के म ड़ल का िनमाण पूव व अि कोण के म य िकया जाता है।

- 5 : शि श द से आप या समझते ह ?

उ र : शि श द शक् धातु से ि न् यय करने पर िन प न होता है, िजसका ता पय उस साधन से है िजससे


कोई भी यि कु छ भी करने म समथ हो पाता है ।

5.10. लघु रीय

- 1 : षोड़श मातृका का सिच वणन क िजये ?

- 2 : स वसो ारा का सिच वणन क िजये ?

- 3 : ीसू से आप या समझते क िजये ? िववेचना क िजये।

- 4 : गणपित, गौरी एवं कु लदेवी के म का उ लेख क िजये ?

- 5 : आयु यम को उ लेख क िजये ?

5.11. स दभ थ

1. आवाहन दीप: स पादक - रिव शमा काशक - हंसा काशन, जयपुर ।

2. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।

3. शु लयजुवदीय ा यायी स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अिखल भारतीय ाय


योितष शोध सं थान, जयपुर ।
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4. कमठगु :लेखक - मुकु द व लभ योितषाचाय काशक - मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।

5. म महोदिधस पादक - ीशुकदेव चतुवदी काशक - ा य काशन वाराणसी ।

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इकाई — 6

ना दी ा
इकाई क परेखा

6.1. तावना

6.2. उ े य

6.3. ना दी ा अथवा वृि ा (आ युदियक कम)

6.4. सारां श

6.5. श दाविल

6.6. अितलघु रीय

6.7. लघु रीय

6.8. स दभ थ

6.1. तावना

पूजनकम म ना दी ा का िवशेष मह व है, इस पूजन के हमारा अ युदय होता है। माङ् गिलक काय म यिद
आशौचािद क स भावना हो तो ना दी ा का पूजन कर लेना चािहए। सभी माङ् गिलक काय से पूव
ना दी ा िवशेष पूजन है तथािप आशौचािद के िकि चत् प रहार हेतु तो यह परम आव यक है ।

य , िववाह, ित ा, उपनयन, समावतन, पु ज म, गृह वेश, नामकरण, सीम तो नयन, स तान का मुख देखने
से पूव और वृषो सग म ना दी ा अव य करना चािहए । य ार भ से 21 िदन पूव , िववाह से 10 िदन पूव ,
चू ड़ाकम और उपनयन से 18 िदन पूव ना दी ा करना चािहए ।

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6.2. उ े य

1. इस इकाई के मा यम से हम िपतर के पूजन क िवशेष ि या का ान होगा ।

2. ना दी ा से माता, िपता, दादा-दादी व प रवार के अ य िपतर क तृि होती है ।

3. ना दी ा से कु ल क वृि हेतु िपतर से ाथना क जाती है।

4. ना दी ा से प रवार का अ युदय होता है तथा हमारे अनुज म भी िपतर का स मानभाव उ प न होता है।

6.3. ना दी ा अथवा वृि ा (आ यु दियक कम)

ात: काल वेला के पूव शयन से उठकर शौचािद से िनवृ होकर िकसी नदी, सरोवर या कु एँ पर ही अपनी
सु िवधा के अनुसार नान करके शु उ वल व धारण करके पूवािभमुख हो कु शासन पर बैठकर ा कर ना
चािहए। वण, चाँदी, तां बा, काँसे का पा िपतर के ा हेतु े बताया गया है। िम ी तथा लोहे का पा
सवथा विजत है ।त प ात् तीन बार आचमन, पिव ीधारण (दािहने हाथ क अनािमका म दो कु शा क पिव ी
धारण करे तथा बाय हाथ क अनािमका म तीन कु शा क पिव ी धारण करके ), ाणायाम आिद करे :-

ऊँ अपिव : पिव ो वा सवाव थां गतोऽिप वा।

य: मरे पु डरीका ं स बा ा य तर: शु िच:।।

ऊँ पु न तु मा देवजना: पु न तु मनसािधय:।

पु न तु िव ाभू तािन जातवेद: पु नीिहमा।।

ऊँ पु डरीका : पु नातु (तीन बार उ चारण करे)

बाय हाथ म जल लेकर तीन बार आचमन करे :-

ऊँ के शवाय नम:। ऊँ नारायणाय नम:। ऊँ माधवाय नम:। पुन: गोिव दाय नम: बोलकर हाथ धोवे और यिद
यादा ही कर सके तो तीन बार पूरक (दाय हाथ के अं गठू े से नाक का दायाँ छे द ब द करके बाय छे द से ास
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अ दर लेवे), कु भक (दाय हाथ क छोटी अंगलु ी से दूसरी अं गलु ी ारा बाया छे द भी ब द करके ास को
अ दर रोके ), रे चक (दाय अं गठू े को धीरे-धीरे हटाकर ास बाहर िनकाले) करे ।

शु आसन पर बैठकर कमकता आसन पूजन , िशखाब धन, व ण पूजन, ितलकधारण आिद करके ना दी ा
हेतु स पूण साम ी को सं िहत करके सङ् क प करे - ऊँ िव णुिव णुिव णु: ीम गवतो महापु ष य
िव णोरा या वतमान य अिखल ा डा तगत भूम डल म ये स ीप म यवितनी ज बू ीपे भारतवष
भरतख डे आयावता तगत ावतकदेशे गं गायमुनयो: पि मभागे नमदाया उ रे भागे अबुदार ये पु कर े े
राज थान देशे गालवा म उप े े (जयप ने) अि मन्ï देवालये (गृह)े देव- ा ïणानां सि नधौ ïणो
ि तीयपराध रथ तरािद ाि ं श क पानां म ये अ ïमे ी ेतवाराहक पे वायं भवु ािद म व तराणां म ये स मे
वैव वतम व तरे चतु णा युगानां म ये वतमाने अ ï◌ािवं शिततमे किलयुगे थमचरणे बौ ावतारे भवािद
षि ïस व सराणां म येऽि मन्ï वतमाने अमुकनाि न स व सरे अमुकवै मा दे िव मािद यरा यात्
शािलवाहनशके अमुकायने अमुकऋत अमुकमासे अमुकप े अमुकितथौ अमुकवासरे अमुकरािशि थते च े
अमुकरािशि थते ीसू य अमुकरािशि थते देवगुरौ शेषेषु हेषु यथायथा रािश थान ि थतेषु स सु एवं
गुणगणिवशेषेण िविश ायां शुभपु य बेलायां अमुकगो : (शमा/वमा/गु /दास) अमुकोऽहं ममा मन:
िु त मृितपुराणो फल ा यथ ऐ यािभवृद् ï यथ अ ा ल मी ा यथ ा ल याि रकाल सं र णाथ
सकलमनईि सत कामना सं िस यथ लोके सभायां राज ारे वा सव यशोिवजयलाभािद ा यथ इह ज मिन
ज मा तरे वा सकलदु रतोपशमनाथ मम सभाय य सपु य सबा धव य अिखलकु टु बसिहत य
सम तभय यािध जरापीड़ा-मृ यु प रहार ारा आयुरारो यै यािभवृद् यथ मम ज मराशे: नामराशे: वा सकाशा े
के िचि चतु था ïम ादश थानि थत ू र हा तै: सू िचतं सूचिय यमाणं च य सवा र ं ति नाश ारा
एकादश थान-ि थतव छु भफल ा यथ पु पौ ािद स ततेरिवि छ न वृद् यथ
आिद यािदनव हानुकूलतािस यथ ि िवधतापोपशमनाथ चतु िवध पु षाथ िस यथ वसु ािद य व पाणां
िपतृिपतामह िपतामहानां सप नीकानां तथा अमुकगो ाणाममुकामु कश मणां सप नीकानां
मातामह मातामहवृ मातामहानाम् ीगणेशाि बकयो: साङ् कि पक ना दी ा महंक र ये।

ा काले गयां या वा, या वा देवं गदाधरम ।

मनसा च िपतृन् या वा ना दी ा समारभे ।।

आवाहन :- ऊँ देवता य: िपतृ य महायोिग य एव च ।


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नम: वाहायै वधायै िन यमेव नमोनम:।।


ऊँ िपतृ य: वधािय य: वधानम: िपतामहे य: वधािय य: वधानम: िपतामहे य:
वधािय य: वधानम:। अ ि पतरोमीमद तिपतरोतीतृप त िपतर: िपतर: शु ध वम् । ऊँ भूभव:
ु व:
िद यिपतृ यो नम:।

पा म् ( थम पा पा ) कमकता रजत, ता , कां य, मृ मय अथवा का पा म दिध, कुं कु म, यव, अ त,


जल डालकर दूवा अथवा कु शा से उ पदाथ को िमलाय तथा वृि श द पर िपतृ आसन पर अथवा अ य
पा म उ िमि त पदाथ को कु शा क पिव ी ारा अनािमका व अङ् गु से िहलाकर आलोड़न करते हए
ो ण करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः,ॐ भू भवः


ु वः इदं वः पा ं पादावनेजनं पाद ालनं
वृि ः

वृि श द का उ चारण करते हए िव ेदवे ा के िलए पूव िदशा क ओर उ रा कु शा आसन पर व ि तीय पा


म पैर धोने के िलए पा जल यु पदाथ को कु शा क पिव ी से छ टा देवे अथवा छोड़े।

ि तीय पा थापनम् :-

पादोदक अथवा पा पा को एक तरफ रखकर ि तीय पा के थापन हेतु दूवाङ् कु र, दभा या पलाश आिद का
प आसन के िलए कु श पर रखकर ि तीय पा का थापन करे, उसम जल-यवा त-दिध-च दन-पु प-
दूवाङ् कु र अथवा दभा क पिव ी डाले।

जल :- ऊँ श नोदेवीरिभ ् यऽआपोभव तु पीतये। शँयोरिभ व तु न:।।

च दन :- ऊँ अ œ शु ना ते अ œ शु : पृ यतां प षा प :। ग ध ते सोममवतु मदायरसोऽअ यु त:।

पु प :- ऊँ ओषिध: ितमोदद् वं पु पवती: सू वरी:। अ ाऽ इव सिज वरी व ध: पारिय णव:।।

दिध :- ऊँ दिध ा णो ऽ अका रषि ज णोर य वािजन:। सु रिभनो मु खाकर णऽआयू œ िषता रषत्

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यव :- ऊँ यवोऽिसयवया म ेशोयवयाराती:।।

कु श :- ऊँ पिव े थो वै ण यो सिवतु व: सव:। उ पु ना यि छदे ् रण पिव ेण सू य य रि मिभ: त य ते


पिव पते पिव पू त य य काम: पु नेत छके यम ◌्।।

हाथ म अ त लेकर पूवािद िदशाओं म उ चारण करते हए अ त छोड़े :-

ऊँ वि त नऽइ ो वृ वा: वि त न: पू षा ि व वेदा: ।

वि त न ता योऽअ र नेिम: वि तनो बृ ह पितदधातु ।।

इस म को पढ़ता हआ ा के नाशक रा स क िनवृि के िलए अपने चार ओर डालते हए ाथना करे िक


इन सभी िदशाओं म आवािहत देव हमारी र ा करे :-

पूव र तु गोिव द - इससे पूव को णाम कर ।

आ े यां ग ड़ वज: - इससे आ ेय को णाम कर ।

दि णे र तु वाराहो - इससे दि ण को णाम कर ।

नारिसं ह तु नैऋत- इससे नैऋ य को णाम कर।

पि मे वा णो र ेद - इससे पि म को णाम कर ।

वाय यां मधुसू दन: - इससे वाय य को णाम कर।

उ रे ीधरो र ेद् - इससे उ र को णाम कर ।

ऐशा ये तु गदाधर: - इससे ईशान को णाम कर।

ऊ व गोवधनो र ेद - इससे आकाश को णाम कर।

अध ताद् ि िव म: - इस म को बोल अपने आगे क भूिम पर जहां ा करना है छोड़ द।

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एवं दश िदशो र ेदï◌् वासु देवो जनादन:।।- इस म से सभी िदशाओं म णाम करे ।

य पिव ीकरण :- आ युदियक ा हेतु एकि त िकये गये पदाथ , उपहारािद का पा थ जलािद य से
पिव ी ारा पिव करना चािहए।

सङ् क पिविधना आ युदियक ा ोपहाराणां पिव ा तु -

देश: (उ चारण करते हए भूिम पर छ टा देवे)

काल: (उ चारण करते हए आकाश पर छ टा देवे)

पाकपा : (उ चारण करते हए पाक-पा पर छ टा देवे)

उपहार: (उ चारण करते हए उपहारािद पर छ टा देवे)

य (उ चारण करते हए य अथवा धन पर छ टा देवे)

ा (उ चारण करते हए वयं पर छ टा देवे)

स पदा (उ चारण करते हए स पि आिद का यान करते हए छ टा देवे) अ तु ।।

पुन: पा थ य से आसन आिद पदाथ अथवा अ य पा पर छ टा देवे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐभूभवः ु वः इमे आसने वो नम:। ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए कु शा का आसन समिपत करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः अ आप: पा तु वो नम:। ( वाहा


नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए जल समिपत करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः इमे वासिस सु वासिस। ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव े दवे ा के िलए व समिपत करे ।

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 149


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ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः इमािन य ोपवीतािन सु य ोपवीतािन


( वाहा नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदेवा के िलए य ोपवीत समिपत करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः य ोपवीता ते आचमनीयं सु आचमनीयम्


( वाहा नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदेवा के िलए य ोपवीत समिपत करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः अयं वो ग ध: सु ग ध: ( वाहा नामयं च


वृि :) - इससे स यवसु िव े दवे ा के िलए ग ध/च दन समिपत करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वःइमे अ ता: - सु अ ता: ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए अ त समिपत करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः इमािन पु पािण - सु पु पािण ( वाहा नामयं
च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए पु प समिपत करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वःअयं वो सु गि धत इ ं - सु इ ं ( वाहा नामयं


च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए इ समिपत करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः वः अयं वो धूप: - सु धूप: ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए धूप समिपत करे।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः अयं वो सु गि धत दीप: - सु दीप: ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए दीप समिपत करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवःु वःइदं नैवे ं - सु नैवे ं ( वाहा नामयं च वृि :)
- इससे स यवसु िव ेदेवा के िलए नैवे समिपत करे।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः इदं आचमनीयम् - सु आचमनीयम् ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए आचमन हेतु जल समिपत करे ।

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 150


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ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वःइमािन ऋतु फलािन - सु ऋतु फलािन ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए ऋतु फल समिपत करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः इदं पुन: आचमनीयम् सु आचमनीयम्
( वाहा नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदेवा के िलए पुन: जल समिपत करे।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः इदं ता बूलं - सु ता बूलं ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए ता बूल समिपत करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वःइदं दि णां - सु दि णां ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए दि णा समिपत करे ।

ॐ मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः

ॐ भू भवः
ु वः इदं वः पा ं पादावनेजनं पाद ालनं वृि ः

वृि श द का उ चारण करते हए मातृिपतामह और िपतामह के िलए पूव िदशा क ओर उ रा कु शा आसन


पर व ि तीय पा म पैर धोने के िलए पा जल यु पदाथ को कु शा क पिव ी से छ टा देवे अथवा छोड़े ।

ि तीय पा थापनम् :-

पादोदक अथवा पा पा को एक तरफ रखकर ि तीय पा के थापन हेतु दूवाङ् कु र, दभा या पलाश आिद का
प आसन के िलए कु श पर रखकर ि तीय पा का थापन करे, उसम जल-यवा त-दिध-च दन-पु प-
दूवाङ् कु र अथवा दभा क पिव ी डाले।

जल :- ऊँ श नोदेवीरिभ ् य ऽ आपोभव तु पीतये। शँयोरिभ व तु न:।।

च दन :- ऊँ अ œ शुना ते अ œ शु: पृ यतां प षा प :। ग ध ते सोममवतु मदायरसोऽअ युत:।

पु प :- ऊँ ओषिध: ितमोदद् वं पु पवती: सू वरी:। अ ाऽ इव सिज वरी व ध: पारिय णव:।।

दिध :- ऊँ दिध ा णो ऽ अका रषि ज णोर य वािजन:। सु रिभनो मुखाकर णऽआयू œ िषता रषत् ॥
o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 151
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यव :- ऊँ यवोऽिसयवया म श
े ोयवयाराती:।।

कु श :- ऊँ पिव े थो वै ण यो सिवतुव: सव:। उ पुना यि छदेर् ण पिव ेण सू य य रि मिभ: त य ते पिव पते


पिव पूत य य काम: पुनेत छके यम ◌्।।

हाथ म अ त लेकर पूवािद िदशाओं म उ चारण करते हए अ त छोड़े :-

ऊँ वि त नऽइ ो वृ वा: वि त न: पू षा ि व वेदा:।

वि त न ता योऽअ र नेिम: वि तनो बृ ह पितदधातु ।।

ऊँ ा यै वाहा - पूव

ऊँ अवा यै वाहा - दि ण

ऊँ ती यै वाहा - पि म

ऊँ उदी यै वाहा - उ र

य पिव ीकरण :- आ युदियक ा हेतु एकि त िकये गये पदाथ , उपहारािद का पा थ जलािद य से
पिव ी ारा पिव करना चािहए।

सङ् क पिविधना आ युदियक ा ोपहाराणां पिव ा तु -

देश: (उ चारण करते हए भूिम पर छ टा देवे)

काल: (उ चारण करते हए आकाश पर छ टा देवे)

पाकपा : (उ चारण करते हए पाक-पा पर छ टा देवे)

उपहार: (उ चारण करते हए उपहारािद पर छ टा देवे)

य (उ चारण करते हए य अथवा धन पर छ टा देवे)

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 152


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ा (उ चारण करते हए वयं पर छ टा देवे)

स पदा (उ चारण करते हए स पि आिद का यान करते हए छ टा देवे) अ तु ।।

पुन: पा थ य से आसन आिद पदाथ अथवा अ य पा पर छ टा देवे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: व: इमे आसने वो नम:। ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए कु शा का आसन समिपत करे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: व: अ आप: पा तु वो नम:।


( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए जल समिपत करे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: व: इमे वासिस सु वासिस। ( वाहा


नामयं च वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए व समिपत करे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: व: इमािन य ोपवीतािन सु य ोपवीतािन


( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए य ोपवीत समिपत करे।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातृ,
िपतामही और िपतामही के िलए य ोपवीत समिपत करे।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: व: अयं वो ग ध: सु ग ध: ( वाहा नामयं च


वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए ग ध/च दन समिपत करे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इमे अ ता: - सु अ ता: ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए अ त समिपत करे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इमािन पु पािण - सु पु पािण ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए पु प समिपत करे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: अयं वो सु गि धत इ ं - सु इ ं ( वाहा नामयं च


वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए इ समिपत करे ।
o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 153
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ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: अयं वो धूप: - सु धूप: ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए धूप समिपत करे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: अयं वो सु गि धत दीप: - सु दीप: ( वाहा


नामयं च वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए दीप समिपत करे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इदं नैवे ं - सु नैवे ं ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए नैवे समिपत करे।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: आचमनीयम् - सु आचमनीयम् ( वाहा नामयं


च वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए आचमन हेतु जल समिपत करे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इमािन ऋतु फलािन - सु ऋतु फलािन ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए ऋतु फल समिपत करे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इदं पुन: आचमनीयम् सु आचमनीयम् ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए पुन: जल समिपत करे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इदं ता बूलं - सु ता बूलं ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए ता बूल समिपत करे ।

ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इदं दि णां - सु दि णां ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए दि णा समिपत करे ।

ॐ मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः

ॐ भू भवः
ु वः इदं वः पा ं पादावनेजनं पाद ालनं वृि ः

वृि श द का उ चारण करते हए िपतृिपतामह और िपतामहा के िलए पूव िदशा क ओर उ रा कु शा


आसन पर व ि तीय पा म पैर धोने के िलए पा जल यु पदाथ को कु शा क पिव ी से छ टा देवे अथवा
छोड़े।

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ि तीय पा थापनम् :-

पादोदक अथवा पा पा को एक तरफ रखकर ि तीय पा के थापन हेतु दूवाङ् कु र, दभा या पलाश आिद का
प आसन के िलए कु श पर रखकर ि तीय पा का थापन करे, उसम जल-यवा त-दिध-च दन-पु प-
दूवाङ् कु र अथवा दभा क पिव ी डाले।

जल :- ऊँ श नोदेवीरिभ ् यऽ आपोभव तु पीतये। शँयोरिभ व तु न:।।

च दन :- ऊँ अ œ शुना ते अ œ शु: पृ यतां प षा प :। ग ध ते सोममवतु मदायरसोऽअ युत:।

पु प :- ऊँ ओषिध: ितमोदद् वं पु पवती: सू वरी:। अ ाऽ इव सिज वरी व ध: पारिय णव:।।

दिध :- ऊँ दिध ा णो ऽ अका रषि ज णोर य वािजन:। सु रिभनो मुखाकर णऽआयू œ िषता रषत् ॥

यव :- ऊँ यवोऽिसयवया म ेशोयवयाराती:।।

कु श :- ऊँ पिव े थो वै ण यो सिवतु व: सव:। उ पुना यि छदेर् ण पिव ेण सू य य रि मिभ: त य ते पिव पते


पिव पूत य य काम: पुनेत छके यम ।।

हाथ म अ त लेकर पूवािद िदशाओं म उ चारण करते हए अ त छोड़े :-

ऊँ वि त नऽइ ो वृ वा: वि त न: पूषा ि व वेदा:।

वि त न ता योऽअ र नेिम: वि तनो बृह पितदधातु ।।

ऊँ ा यै वाहा - पूव

ऊँ अवा यै वाहा - दि ण

ऊँ ती यै वाहा - पि म

ऊँ उदी यै वाहा - उ र

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 155


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य पिव ीकरण :- आ युदियक ा हेतु एकि त िकये गये पदाथ , उपहारािद का पा थ जलािद य से
पिव ी ारा पिव करना चािहए।

सङ् क पिविधना आ युदियक ा ोपहाराणां पिव ा तु -

देश: (उ चारण करते हए भूिम पर छ टा देवे)

काल: (उ चारण करते हए आकाश पर छ टा देवे)

पाकपा : (उ चारण करते हए पाक-पा पर छ टा देवे)

उपहार: (उ चारण करते हए उपहारािद पर छ टा देवे)

य (उ चारण करते हए य अथवा धन पर छ टा देवे)

ा (उ चारण करते हए वयं पर छ टा देवे)

स पदा (उ चारण करते हए स पि आिद का यान करते हए छ टा देवे) अ तु ।।

पुन: पा थ य से आसन आिद पदाथ अथवा अ य पा पर छ टा देवे।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इमे आसने वो नम:। ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए कु शा का आसन समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवःु वः अ आप: पा तु वो नम:। ( वाहा नामयं


च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए जल समिपत करे।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः


ु वः इमे वासिस सु वासिस। ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए व समिपत करे।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इमािन य ोपवीतािन सु य ोपवीतािन


( वाहा नामयं च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए य ोपवीत समिपत करे ।

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ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः य ोपवीता ते आचमनीयं सु


आचमनीयम् ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए य ोपवीत समिपत करे।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः अयं वो ग ध: सु ग ध: ( वाहा नामयं च


वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए ग ध/च दन समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः


ु वः इमे अ ता: - सु अ ता: ( वाहा नामयं
च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए अ त समिपत करे।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इमािन पु पािण - सु पु पािण ( वाहा


नामयं च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए पु प समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः अयं वो सु गि धत इ ं - सु इ ं ( वाहा


नामयं च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए इ समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः अयं वो धूप: - सु धूप: ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए धूप समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः अयं वो सु गि धत दीप: - सु दीप: ( वाहा


नामयं च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए दीप समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इदं नैवे ं - सु नैवे ं ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए नैवे समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इदं आचमनीयमï◌् - सु


आचमनीयमï◌् ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए आचमन हेतु जल
समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इमािन ऋतु फलािन - सु ऋतु फलािन
( वाहा नामयं च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए ऋतु फल समिपत करे ।

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ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इदं पुन: आचमनीयम् सु आचमनीयमï◌्


( वाहा नामयं च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए पुन: जल समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमु खाः ॐ भूभवः ु वः इदं ता बूलं - सु ता बूलं ( वाहा नामयं
च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए ता बूल समिपत करे।

ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवःु वः इदं दि णां - सु दि णां ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए दि णा समिपत करे ।

ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः

ॐ भू भवः
ु वः इदं वः पा ं पादावनेजनं पाद ालनं वृि ः

वृि श द का उ चारण करते हए मातामह और वृ मातामहा के िलए पूव िदशा क ओर उ रा कु शा


आसन पर व ि तीय पा म पैर धोने के िलए पा जल यु पदाथ को कु शा क पिव ी से छ टा देवे अथवा
छोड़े।

ि तीय पा थापनम् :-

पादोदक अथवा पा पा को एक तरफ रखकर ि तीय पा के थापन हेतु दूवाङ् कु र, दभा या पलाश आिद का
प आसन के िलए कु श पर रखकर ि तीय पा का थापन करे, उसम जल-यवा त-दिध-च दन-पु प-
दूवाङ् कु र अथवा दभा क पिव ी डाले।

जल :- ऊँ श नोदेवीरिभ ् य ऽ आपोभव तु पीतये। शँयोरिभ व तु न:।।

च दन :- ऊँ अ œ शुना ते अ œ शु: पृ यतां प षा प :। ग ध ते सोममवतु मदायरसोऽअ युत:।

पु प :- ऊँ ओषिध: ितमोदद् वं पु पवती: सू वरी:। अ ाऽ इव सिज वरी व ध: पारिय णव:।।

दिध :- ऊँ दिध ा णो ऽ अका रषि ज णोर य वािजन:। सु रिभनो मुखाकर णऽआयू œ िषता रषत् ॥

यव :- ऊँ यवोऽिसयवया म ेशोयवयाराती:।।
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कु श :- ऊँ पिव े थो वै ण यो सिवतु व: सव:। उ पुना यि छदेर् ण पिव ेण सू य य रि मिभ: त य ते पिव पते


पिव पूत य य काम: पुनेत छके यम्।।

हाथ म अ त लेकर पूवािद िदशाओं म उ चारण करते हए अ त छोड़े :-

ऊँ वि त नऽइ ो वृ वा: वि त न: पूषा ि व वेदा:।

वि त न ता योऽअ र नेिम: वि तनो बृह पितदधातु ।।

ऊँ ा यै वाहा - पूव

ऊँ अवा यै वाहा - दि ण

ऊँ ती यै वाहा - पि म

ऊँ उदी यै वाहा - उ र

य पिव ीकरण :- आ युदियक ा हेतु एकि त िकये गये पदाथ , उपहारािद का पा थ जलािद य से
पिव ी ारा पिव करना चािहए।

सङ् क पिविधना आ युदियक ा ोपहाराणां पिव ा तु -

देश: (उ चारण करते हए भूिम पर छ टा देवे)

काल: (उ चारण करते हए आकाश पर छ टा देवे)

पाकपा : (उ चारण करते हए पाक-पा पर छ टा देवे)

उपहार: (उ चारण करते हए उपहारािद पर छ टा देवे)

य (उ चारण करते हए य अथवा धन पर छ टा देवे)

ा (उ चारण करते हए वयं पर छ टा देवे)

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 159


xzg’kkfUr izdj.k CIK - 02

स पदा (उ चारण करते हए स पि आिद का यान करते हए छ टा देवे) अ तु।।

पुन: पा थ य से आसन आिद पदाथ अथवा अ य पा पर छ टा देवे।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इमे आसने वो


नम:। ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए कु शा का आसन समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः अ आप: पा तु


वो नम:। ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए जल समिपत करे।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इमे वासिस सु


वासिस। ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए व समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इमािन


य ोपवीतािन सु य ोपवीतािन ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए
य ोपवीत समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः


ु वः य ोपवीता ते
आचमनीयं सु आचमनीयमï◌् ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए
य ोपवीत समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः अयं वो ग ध:


सु ग ध: ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए ग ध/च दन समिपत करे।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इमे


अ ता: - सु अ ता: ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए अ त समिपत
करे ।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इमािन पु पािण -


सु पु पािण ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए पु प समिपत करे ।

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 160


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ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः अयं वो सु गि धत


इ ं - सु इ ं ( वाहा नामयं च वृि :)- इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए इ समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः अयं वो धूप: - सु


धूप: ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए धूप समिपत करे।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः अयं वो सु गि धत


दीप: - सु दीप: ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए दीप समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इदं नैवे ं - सु


नैवे ं ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए नैवे समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः


ु वः इदं आचमनीयम् -
सु आचमनीयमï◌् ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए आचमन हेतु जल
समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इमािन


ऋतु फलािन - सु ऋतु फलािन ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए ऋतु फल
समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इदं पुन:


आचमनीयम् सु आचमनीयमï◌् ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए पुन:
जल समिपत करे।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इदं ता बूलं - सु


ता बूलं ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए ता बूल समिपत करे ।

ॐ अमुकगो ा: मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इदं दि णां - सु


दि णां ( वाहा नामयं च वृि :)- इससे मातामह और वृ मातामहा के िलए दि णा समिपत करे ।

मता तर :-
o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 161
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5 ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इदं वः पा ं पादावनेजनं पाद ालनं वृि ः

वृि श द का उ चारण करते हए गणेश और अि बका के िलए पूव िदशा क ओर उ रा कु शा आसन पर व


ि तीय पा म पैर धोने के िलए पा जल यु पदाथ को कु शा क पिव ी से छ टा देवे अथवा छोड़े ।

ि तीय पा थापनम् :-

पादोदक अथवा पा पा को एक तरफ रखकर ि तीय पा के थापन हेतु दूवाङ् कु र, दभा या पलाश आिद का
प आसन के िलए कु श पर रखकर ि तीय पा का थापन करे, उसम जल-यवा त-दिध-च दन-पु प-
दूवाङ् कु र अथवा दभा क पिव ी डाले।

जल :- ऊँ श नोदेवीरिभ ् य ऽ आपोभव तु पीतये। शँयोरिभ व तु न:।।

च दन :- ऊँ अ œ शुना ते अ œ शु: पृ यतां प षा प :। ग ध ते सोममवतु मदायरसोऽअ युत:।

पु प :- ऊँ ओषिध: ितमोदद् वं पु पवती: सू वरी:। अ ाऽ इव सिज वरी व ध: पारिय णव:।।

दिध :- ऊँ दिध ा णो ऽ अका रषि ज णोर य वािजन:। सु रिभनो मुखाकर णऽआयू œ िषता रषत् ॥

यव :- ऊँ यवोऽिसयवया म ेशोयवयाराती:।।

कु श :- ऊँ पिव े थो वै ण यो सिवतु व: सव:। उ पुना यि छदेर् ण पिव ेण सू य य रि मिभ: त य ते पिव पते


पिव पूत य य काम: पु नेत छके यम ।।

हाथ म अ त लेकर पूवािद िदशाओं म उ चारण करते हए अ त छोड़े :-

ऊँ वि त नऽइ ो वृ वा: वि त न: पूषा ि व वेदा:।

वि त न ता योऽअ र नेिम: वि तनो बृह पितदधातु ।।

ऊँ ा यै वाहा - पूव

ऊँ अवा यै वाहा - दि ण
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ऊँ ती यै वाहा - पि म

ऊँ उदी यै वाहा - उ र

य पिव ीकरण :- आ युदियक ा हेतु एकि त िकये गये पदाथ , उपहारािद का पा थ जलािद य से
पिव ी ारा पिव करना चािहए।

सङ् क पिविधना आ युदियक ा ोपहाराणां पिव ा तु -

देश: (उ चारण करते हए भूिम पर छ टा देवे)

काल: (उ चारण करते हए आकाश पर छ टा देवे)

पाकपा : (उ चारण करते हए पाक-पा पर छ टा देवे)

उपहार: (उ चारण करते हए उपहारािद पर छ टा देवे)

य (उ चारण करते हए य अथवा धन पर छ टा देव)े

ा (उ चारण करते हए वयं पर छ टा देवे)

स पदा (उ चारण करते हए स पि आिद का यान करते हए छ टा देवे) अ तु।।

पुन: पा थ य से आसन आिद पदाथ अथवा अ य पा पर छ टा देवे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: इमे आसने वो नम:। ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे
गणेश और अि बका के िलए कु शा का आसन समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: अ आप: पा तु वो नम:। ( वाहा नामयं च वृि :) -
इससे गणेश और अि बका के िलए जल समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: इमे वासिस सु वासिस। ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे
गणेश और अि बका के िलए व समिपत करे।
o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 163
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ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: इमािन य ोपवीतािन सु य ोपवीतािन ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे गणेश और अि बका के िलए य ोपवीत समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः ु वः इसे आसने वो नम: य ोपवीता ते आचमनीयं सु आचमनीयमï◌् ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे गणेश और अि बका के िलए य ोपवीत समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: अयं वो ग ध: सु ग ध: ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे
गणेश और अि बका के िलए ग ध/च दन समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: इमे अ ता: - सु अ ता: ( वाहा नामयं च वृि :) -
इससे गणेश और अि बका के िलए अ त समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: इमािन पु पािण - सु पु पािण ( वाहा नामयं च वृि :) -
इससे गणेश और अि बका के िलए पु प समिपत करे।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: अयं वो सु गि धत इ ं - सु इ ं ( वाहा नामयं च वृि :)-
इससे गणेश और अि बका के िलए इ समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: अयं वो धूप: - सु धूप: ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे
गणेश और अि बका के िलए धूप समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: अयं वो सु गि धत दीप: - सु दीप: ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे गणेश और अि बका के िलए दीप समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: इदं नैवे ं - सु नैवे ं ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे
गणेश और अि बका के िलए नैवे समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभुवः वः इसे आसने वो नम: इदं आचमनीयम् - सु आचमनीयम् ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे गणेश और अि बका के िलए आचमन हेतु जल समिपत करे ।

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 164


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ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: इमािन ऋतु फलािन - सु ऋतु फलािन ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे गणेश और अि बका के िलए ऋतु फल समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: इदं पुन: आचमनीयम् सु आचमनीयम् ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे गणेश और अि बका के िलए पुन: जल समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: इदं ता बूलं - सु ता बूलं ( वाहा नामयं च वृि :) -
इससे गणेश और अि बका के िलए ता बूल समिपत करे ।

ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः


ु वः इसे आसने वो नम: इदं दि णां - सु दि णां ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे गणेश और अि बका के िलए दि णा समिपत करे ।

सं क प: - (हाथ म अ त जल लेकर सं क प को पढ़े)

ऊँ िव णुिव णुिव णु: ीमद् ïभगवतो महापु ष य िव णोरा या वतमान य अिखल ा डा तगत भूम डल
म ये स ीप म यवितनी ज बू ीपे भारतवष भरतख डे आयावता तगत ावतकदेशे गंगायमुनयो: पि म भागे
नमदाया उ रे भागे अबुदार ये पु कर े े राज थान देशे गालवा म उप े े (जयप ने) अि मन् ï देवालये
(गृह)े देव- ा ïणानां सि नधौ ïणो ि तीयपराध रथ तरािद ाि ं श क पानां म ये अ ïमे ी ेतवाराहक पे
वायं भवु ािद म व तराणां म ये स मे वैव वतम व तरे चतु णा युगानां म ये वतमाने अ ािवं शिततमे किलयुगे
थमचरणे बौ ावतारे भवािद षि स व सराणां म येऽि मन् वतमाने अमुकनाि न स व सरे अमुकवै मा दे
िव मािद यरा यात्ï शािलवाहनशके अमुकायने अमुकऋत अमुकमासे अमुकप े अमुकितथौ अमुकवासरे
अमुकरािशि थते च े अमुकरािशि थते ीसू य अमुकरािशि थते देवगुरौ शेषेषु हेषु यथायथा रािश थान
ि थतेषु स सु एवं गुणगणिवशेषणे िविश ायां शुभपु य बेलायां अमुकगो : (शमा/वमा/गु /दास) अमुकोऽहं
ममा मन: िु त मृितपुराणो फल ा यथ ऐ यािभवृद् ï यथ अ ा ल मी ा यथ ा ल याि रकाल
सं र णाथ सकलमनईि सत कामना सं िस यथ लोके सभायां राज ारे वा सव यशोिवजयलाभािद ा यथ इह
ज मिन ज मा तरे वा सकलदु रतोपशमनाथ मम सभाय य सपु य सबा धव य अिखलकु टु बसिहत य
सम तभय यािध जरापीड़ा-मृ यु प रहार ारा आयुरारो यै यािभवृद् यथ मम ज मराशे: नामराशे: वा सकाशा े
के िचि चतु था ïम ादश थानि थत ू र हा तै: सू िचतं सूचिय यमाणं च य सवा र ं ति नाश ारा
एकादश थान-ि थतव छु भफल ा यथ पु पौ ािद स ततेरिवि छ न वृद् यथ

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 165


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आिद यािदनव हानुकूलतािस यथ ि िवधतापोपशमनाथ चतु िवध पु षाथ िस यथ वसु ािद य व पाणां
िपतृिपतामह िपतामहानां सप नीकानां तथा अमुकगो ाणाममुकामु कश मणां सप नीकानां
मातामह मातामहवृ मातामहानाम् ीगणेशाि बकयो: साङ् कि पकिविधना ना दी ा कमाङ् िगभूतं
यु म ा ण भोजनसिहतदि णािददानमहं क र ये।

ॐ स यवसुसं काः िव ेदवे ाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः


ु वः इदं यु म ा ण भोजन पया दा यमानम ं
यथाशि सोप करं िन यभूतं यं वाहा नामय च वृि ः।

ॐ मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ॐ भूभवः


ु वः इदं यु म ा ण भोजन पया दा यमानम ं
यथाशि सोप करं िन यभूतं यं वाहा नामय च वृि ः।

ॐ िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः


ु वः इदं यु म ा ण भोजन पया दा यमानम ं यथाशि
सोप करं िन यभूतं यं वाहा नामय च वृि ः।

ॐ मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः


ु वः इदं यु म ा ण भोजन पया
दा यमानम ं यथाशि सोप करं िन यभूतं यं वाहा नामय च वृि ः।

ा ामलकिन यीभूत यदानम् — दां ख, आं वला, दि णा का दान

ॐ स यवसुसं काः िव ेदेवाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः


ु वः इदं व: इदं व: ा ामलकिन यीदि णां मुखवास:
ीय तां वाहा नामय च वृि

ॐ मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ॐ भूभवः


ु वः व: इदं व: ा ामलकिन यीदि णां मुखवास:
ीय तां वाहा नामय च वृि

ॐ िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः


ु वः इदं व: इदं व: ा ामलकिन यीदि णां मुखवास:
ीय तां वाहा नामय च वृि

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 166


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ॐ मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः


ु वः इदं व: इदं व:
ा ामलकिन यीदि णां मुखवास: ीय तां वाहा नामय च वृि

ॐ मातामह मातामह वृ मातामहाः सप नीकाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः


ु वः इदं व: इदं व:
ा ामलकिन यीदि णां मुखवास: ीय तां वाहा नामय च वृि

पु पा जिल :- हाथ म अ त जल लेकर मं बोलते हए ाथना कर।

हे मातृवं शा! भुदावतारा! हे िपतृवं शा! मम पावना ।

पु पा जली मे सु मनोवदातु,ं गृ तु िद यिपतर:! पुनीता ।।1।।

वगि थता ये िपतर यु िद या:, े ै: सु भावै सु रपूिजता ते।

आयु यमारो यमिभ दाय गृ तु िद यिपतर:! पुनीता ।।2।।

ाथयेत् - हाथ म अ त जल लेकर मं बोलते हए ाथना कर।

ऊँ उपा मैगायतानर: पवमानायये दवे अिभदेवा2 इय ते।।1।।

ये वािहह येमघव नुव योशं वरे ह रवोयगिव ौये वानूनमनुमदि त ि व ा:।

िपबे सोम सगणोम ि :।।2।।

जिन ाऽउ : सहसेतु रायम ओिज ोबहलािभमान अव ि नं

म ति द मा ताय ीर दधिन िन ा ।।3।।

आतू नऽइ वृ ह न माकम ् धमागिह। महा महीिभ ितिभ:।।4।।

विम तू ित विभि व ाऽअिस पृध:।

अशि तहाजिनताि व तू रिस व तू यत यत:।।5।।

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 167


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अनुतेशु म तु रय तमीयतु ोणी: िशशु नमातरा।

ि व ा ते पृध: थय तम यवे वृ ं यिद तू विस ।।6।।

य ोदेवाना येित सु नमािद यासोभवतामृडय त:।

आवो वाचीसु मित वावृ याद होि ा व रवोि वतरासत् ।।7।।

अद धेिभ: सिवत: पायुिभ ् व िशवोिभर पा रपािहनोगयम् ।

िहर यिज : सु िवतायन यसेर ामािक न अघश सऽईशत ।।8।।

मातािपतामही चैव तथैव िपतामही ।

िपतािपतामह ैव तथैव िपतामहाः ।।

मातामह ति पता च मातामहकादयः ।

एते भव तु सु ीताः य छ तु च म‘लम्।।

इस कार ना दी ा स प न करके िपतर का आशीवाद हण करे –

गो नो व ् धतां हमारे गो क वृि करे ।


दातारो नोऽिभ व ् ध ताम् - हम दाता (दानकता) बनाओं ।
वेदाः स तितरे व च - हमारी स तित वेद म िशि त हो ।
ा च नो मा यगमत् मेरे कु ल क िपतर म ा बनी रहे ।
बहदेयं च नोऽ तु - सदा देने के िलए हमारे पास धन हो ।
अ नं च नो बहभवेत् - हमारे यहाँ अ न-धन चु र मा ा म हो ।

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अितथ लभेमिह - सदा हम अितिथय का स कार करे ।


यािचतार नः स तु - हमारा कु ल दान हेतु साम यवान बने ।
मा च यािच म क चन एताः स याः हमारा कु ल कभी याचक नह बने ।
- आिशषः स तु - इस कार का हम आशीष दान करे ।
ा णः स वेता स या आिशषः - ा ण आशीवाद देवे - आपक मनोकामनाय पूण हो ।
म पाठः (पा टार मु ापणम् च - :- य से पा को बजाकर मु ा का याग करे )

ॐ इडाम ने पु दषसषसनो श मषहवमानाय साध । या न सूनु तनयो ि वजावा ने सा ते सु मित भू व मे ।।


उपा मै गायता नरल पवमानाये दवेअिभदेवा 2।। ऽइय ते ।।

यजमान - अनेन ना दी ा ं स प नम् । ा णाः - सु स प नम् इित ।

िवसजनम् :- वाजेवाजे वत वािजनो नो धनेषु ि व ाऽअमृताऽॠत ाल । अ य मद् व िपबत


मादयद् व तृ ात पिथिभ ् देवयानैइ ।।

अनु जनम् :-आमा वाज य सवो जग यादेमे ावापृिथवी ि व पे । आ मा ग तां िपतरा मातरा चा मा
सोमोऽअमृत वेन ग यात् ।। िव ेदवे ाः ीय तािमित। अि म ना दी ा े यूनाित र ो यो िविधः स उपिव
ा णानां वचनात् ना दीमुख सादात् सव प रपूण ऽ तु । अ तु प रपूणः इित ा णाः।

त प ात् कम म यूनता क पूित के िलए िन ाङ् िकत लोक को पढ़ते हए भगवान् से ाथना करे :-

ऊँ मादा कु वतां कम यवेता वरेषु यत ।

मरणादेव ति णो: स पू ण यािदित ु ित:।। ऊँ िव णवे नम: .... 3।।

।। ऊँ वृि :, वृि :, वृि ।। ऊँ िशवम्, िशवम्, िशवम् ।। ऊँ क याणम्, क याणम्, क याणम् ।।


o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 169
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6.4. सारां श

माङ् गिलक सं कार म पूजन के पूव ना दी ा पूजन अव य करना चािहए। ा श द ा का पयायवाची


है, ना दी िपतर का पयायवाची है । ना दी ा म हम अपने पूवज क अपनी ा भावना य करते है,
उनका मरण करते है। शुभकाय म उनका आशीवाद हण करते है य िक वे परो प से सभी कम म अपनी
उपि थित रखते है तथा अपने कु ल के दीपक से पूजन व तु ि क आकां ा करते है, उनक सभी आकां ाओं
क पूित हेतु ना दी ा ही सव म उपादान है। वैसे तो ा कम म पूवज का िप ड़दान इ यािद िकया जाता है,
िक तु माङ् गिलक काय से पूव ना दी ा के अ तगत िपतर के ित िप ड़दान आिद के िबना ा कम,
दि णािद दान/ ा णभोजन/आमा नदान का सङ् क प करके िकया जा सकता है। ना दी ा म स यवसु,
िव ेदेव, नाना-नानी, दादा-दादी आिद का पूजन िकया जाता है। ना दी ा से हमारे कु ल म वृि होती है, सु ख-
शाि त बनी रहती है तथा हम सभी का क याण का होता है ।

6.5. श दावली

1. ा = ा

2. अशौच = अशुि काल

3. ता = ताँबा

4. मृ मय = िम ी का पा

5. आलोड़न = िहलाना

6. यव = जौ

7. दिध = दही

8. पादोदक = पैर धोने का जल

9. मातामह: = परनाना

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10. मातामह = नाना

11. वृ मातामह = वृ परनाना

12. मातामही = नानी

13. मातामही = परनानी

14. वृ मातामही = वृ परनानी

15. िपतामह = दादा

16. िपतामह = परदादा

17. िपतामही = दादी

18. िपतामही = परदादी

6.6. अितलघु रीय

- 1 : दािहने हाथ क िकस अङ् गुली म पिव ी को धारण करनी चािहए ?

उ र : दािहने हाथ क अनािमका म दो कु शा क पिव ी धारण करनी चािहए ।

- 2 : ना दी ा म पा थ य को आलोड़न पिव ी ारा िकस अङ् गुली से करना चािहए ?

उ र : ना दी ा म पा थ य को आलोड़न पिव ी ारा अनािमका व अङ् गु से करना चािहए ।

- 3 : पा पा म डालने वाले य का उ लेख क िजये ?

उ र : पा पा म डालने वाले य - दही, कुं कु म, जौ, अ त, जल, दूवा अथवा कु शा ।

- 4 : ना दी ा म िकस िव ेदेवा का अचन िकया जाता है ?

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उ र : ना दी ा म स यवसु सं क िव ेदेवा का अचन िकया जाता है ।

- 5 : ना दी ा म आसनािद अपण हेतु य के नाम बताईये ?

उ र : ना दी ा म आसनािद अपण हेतु य - दही, च दन, जौ, अ त, जल, दूवा अथवा कु शा ।

6.7. लघु रीय

- 1 : ना दी ा म पा अपण क स पूण िविध का उ लेख क िजये ?

- 2 : ना दी ा म ि तीय पा थापन क िविध बताईये ?

- 3 : मातामह, मातामह व वृ मातामह के ना दी ा क िविध बताइये ?

- 4 : िपतर क ाथना का म िलिखये ?

- 5 : ना दी ा के प ात् पा टङ् कारण-म का उ लेख क िजये ?

6.8. स दभ थ

1. कमठगु :लेखक - मुकु द व लभ योितषाचाय काशक - मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।

2. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर ।

3. शु लयजुवदीय ा यायीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अिखल भारतीय ाय


योितष शोध सं थान, जयपुर ।

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इकाई — 7

ा ण वरण और पु याहवाचन
इकाई क परेखा

7.1. तावना

7.2. उ े य

7.3. ा णवरण

7.4. वि तवाचन-कलश थापन

7.5. पु याहवाचन

7.6. सारां श

7.7. श दाविल

7.8. अितलघु रीय

7.9. लघु रीय

7.10. स दभ थ

7.1. तावना

भारतीय पर परा म मातृदेवो भव, िपतृदेवो भव, आचाय देवो भव, अितिथ देवो भव क पर परा रही है। इसी का
अनुसरण करते हए आगत अितिथय का यथोिचत स कार येक गृह थी को करना चािहए, िजसके
फल व प गृह थी क सामािजक- ित ा म वृि होती है। जब देवािद पूजन का समय हो तो ा ण को शा
ने पूजा-दान-य आिद काय के स पादन के िलए उपयु माना है। येक शुभकाय करने से पूव माता-िपता,

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ा ण , अपने से बड़े यि य का आशीवाद लेना चािहए, इनके शुभाशीवाद से आयु, क ित, यश, बल आिद
म वृि होती है। साथ ही उिचत-अनुिचत काय ारा उपािजत धन का सदुपयोग भी होता है तथा सामािजक
ि याशीलता भी बनी रहती है। इसके िबना काय म सफलता नह िमलती है। शा म िविध-िवधान िनि त
िकया है, िजसका ान सभी िज ासुओ ं को इस इकाई म िमलेगा ।

धान काय के अनुसार पु याहवाचन सव थम (पूजनपू व) या बाद (उ रपूजन) म कर सकते ह- धमकमिण


मा्ग ये सं ामेऽ ु दशनेस पू य ग धमा यादे र् ा णा वि त वाचयेत् ।।

7.2. उ े य

1. आग तु क ा ण का शा ीय िविध से पूजन का ान ा करना ।

2. ा ण के काय-िवभाजन अथवा उनक काय हेतु िनयुि करने के िविध का ान ा करना ।

3. ा ण ारा िकये गये काय का फल ा करना ।

4. ा ण का प रचय ा करने क िविध का ान ।

5. येक माङ् गिलक काय के अ तगत पु याहवाचन का वैिदक रीित से ान ा करना ।

7.3. ा णवरण

यजमान पूवािभमुख बैठे हए ा ण को स बोधन करता हआ यह कहे :-

िविनयोग :- ऊँ साधु भवाना तािमित जापितऋिष ा देवता यजु छ दो िव ाचने िविनयोग:।

यजमान ाथना करे :- ऊँ साधु भवाना तामचिय यामो भव तम् ।

ा ण :- ऊँ अचय ।

िव र :-यजमान :- ऊँ िव रो िव रो िव र:। (प चीस कु शा के समूह को ी क वेणी अथात् चोटी क तरह


गूँथ करके उसके अगले भाग को बाय ओर से मोड़कर ितरछी गाँठ लगा देते है। इस कार बने हए कु श के
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व प िवशेष को िव र कहते है। कु छ िव ान ने कु श क सं या का िनदश नह िकया है, वे अप रिमत मानते


है, कु श के अभाव म काश का भी िव र बनाया जा सकता है। यह पर परा अितिथ के वागत हेतु आराम के
िलए आसन देने से स बि धत है ।)

यजमान :- ऊँ िव रं ितगृ ताम् । ा ण :- ऊँ िव रं गृ ािम ।

ा ण िविनयोग करे :- ऊँ व म मी यथवण ऋिषरनु पछ दो िव रो देवता उपवेशने िविनयोग:।

ा ण म पढ़े :- ऊँ व म ऽि म समानानामु तािमव सू य:।

इमं तमिभ ित ािम यो मा क ािभदासित।।

यजमान से दोन हाथ से िव र लेकर ा ण उ रा आसन के नीचे रख ऊपर बैठते हए यह म बोले।

पा पा :-पैर धोने के िलए उपयोगी जल को पा कहते है। अ य के आसन पर बैठ जाने के बाद पैर धोना
चािहए, इसीिलए कां यपा म जल भरकर उसका अचन करके यजमान सप नीक खड़ा हो जाये एवं ा ण से
पैर धुलवाने क ाथना करे।

ा ण िन म का पाठ करे :-

वि त नऽइ ो वृ वा वि त ऩ पू षाि व वेदा

वि त न ता योऽ अ र ïनेिम वि त नो बृ ह पित धातु ॥

पय़ पृिथ या पयऽओषधीषु पयो िद य त र े पयोधा ।

पय वती िद स तु मह्ï यïïयम्॥

ि व णो रराटमिस ि व णो े थो ि व णो यू रिस-

ि व णो ् ु वोिस। वै णवमिस ि व णवे वा ॥

अि वता वातो देवता सू या◌े देवता च मा देवता वसवो


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देवता द्ï ा देवतािद या देवता म तो देवता िव े देवा देवता

बृ ह पित वते ो देवता व णो देवता ॥

ौ शाि तर त र शाि त़ पृिथवी शाि तराप शाि तरोषधय शाि त।


वन पतय शाि तवव े देवा शाि त म शाि त स व

शाि त शाि तरेव शाि त सा मा शाि तरेिध॥

यजमान :- ऊँ पा ं पा ं पा म्।

यजमान :- ऊँ पा ं ितगृ ताम्।

ा ण :- ऊँ पा ं ितगृ ािम।

यजमान (सपि न) पैर धोते हए बोले :-

य फलं किपलादाने काित यां ये पु करे।

त फलं पा ड़व े : िव ाणां पादशोचने।।

िव पाद तले धृ : ि यमाण तु ये करा:।

स करा: करिव ेय: शेषा िह अकराकरा:।।

पृिथ यािन यािन तीथािण तािन तीथािण सागरे।

स सागरािण तीथािन िव य दि णकरे।

ा ण यजमान क अ जिल से पा पा हण करके भूिम पर रख अ जिल से पा के जल से यजमान ा ण


का पहले दायाँ पैर िफर बायाँ पैर धोवे।

िविनयोग :- ऊँ िवराजो दोहोऽसीित जापितऋिषयजु छ द आपो देवता िव पाद ालने िविनयोग:।


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म :- ऊँ िवराजो दोहोऽिस ि वराजो दोहमशीयमिय पा ायै ि वराजो दोह:।।

यजमान दू सरा िव र लेकर कहे :- ऊँ िव रो िव रो िव र:।

यजमान :- ऊँ िव र: ितगृ ताम् । ा ण :- ऊँ िव रं ितगृ िम।

ा ण यजमान के पास से िव र उ रा पैर के नीचे रखे और यह म बोले :-

ऊँ व म ऽि म समानानामु तािमव सू य:।

इमं तमिभ ित ािम यो मा क ाऽिभदासित।।

अ य :-यजमान एक पा म दूवा, अ त, फल, पु प, च दन और जल लेवे :- मृ मय अथवा कां य के


अ यपा (दिध-दूवा-कु शा -पु प-अ त-कुं कु म-दि णा-सु पारी िमि त जल) म जल, दूवा, अ त, फल, पु प,
च दन रखकर अ य के प म ा ण के स मुख खड़ा होकर ा ण से हण करने क ाथना करे।

त प ात ा ण शाि तपाठ करे :-

॥ ह र: ऊँ ॥

आशु िशशानो वृषभो न भीमो घनाघन ोभण च-षणीनाम्।

सङ् ï दनोिनिमषऽएकवीर शत सेनाऽअज-य सा किम द् ऱ ॥ 1॥

सङ् ï दनेना िनिमषेण िज णु ना यु कारेण दु य-वनेनधृ णु ना।

तिद ेण जयतत सहद् वँ यु धोनरऽ-इषु ह ेन वृ णा॥ 2॥

सऽइषु ह ै सिनषङ् िगïिभ वशीसœ ासयु धऽ इ ोग-णेन ।

स सृ ï िज सोमपाबाह श ् यु ध वा ितिह-तािभर ा॥ 3॥

बृ ह पते प रदीया रथेन र ोहािम ा 2॥ ऽअपबाधमान ।

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भ ज सेना मृ णो यु धा जय न माकमेद् यिवता रथानाम्॥4॥

बलिव ाय थिवर वीर सह वा वाजी सहमानऽउ ।

अिभवीरोऽ अिभस वा सहोजा जै िम रथमाितष् गोिवत्॥ 5॥

गो िभदङ् गोिवदँ व बाह जय तम म मृ ण तमोजसा।

इम सजाताऽ अनु वीरयद् व िम सखायोऽ अनु सरभद् वम्॥6॥

अिभ गो ािण सहसा गाहमानोदयो वीर शतम यु र द् ऱ।

दु यवन पृतनाषाडयु द् यो माक सेनाऽअवतु यु सु ॥7॥

इ ऽआसा नेता बृ ह पित ि णा य पु रऽएतु सो ।

देवसेनानामिभभ जतीना जय तीना म तो य व म्॥ 8॥

इ य वृ णो व ण य रा ऽआिद याना म ताœ श ऽउ म्।

महामनसा भु वन यवानाङ् घोषो देवाना जयता मु द थात्॥9॥

उ षय मघव नायु धा यु स वना मामकाना मनाœिस।

उ ृ ह वािजनाँ वािजना यु दï् थाना जयताँ य तु घोषा॥10॥

अ माकिम समृ तेषु द् वजे व माकँ याऽ इषव ा जय तु ।

अ माकँ वीराऽउ रे भव व मा 2॥ऽउ देवाऽअवता हवेषु ॥11॥

अमीषा ि च ितलोभय ती गृ हाणाङ् गï◌ा य वे परेिह।

अिभ े िहिन ह सु शोकै र धेना िम ा मसा सच ताम्॥12॥

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अवसृ ा परापत शर ये ïस िशते ।

ग छािम ा पद् व मामीषाङ् क चनोि छष ॥13॥

ेता जयता नरऽइ ो व श म य छतु ।

उ ा स तु बाहवोनाधृ या यथासथ॥ 14॥

असौ या सेना म त परेषाम यैित नऽओजसा प माना।

ताङ् हततमसा प तेन यथामीऽअ योऽअ य न जानन् ॥15॥

य बाणा स पति त कु मारा ि विशखाऽइव ।

त नऽइ ो बृ ह पितरिदित श म य छतु ि व ाहा श मय छतु ॥16॥

म मािणते व मणा छादयािम सोम वा राजामृ त-े नानु व ताम्।

उरो वरीयो व ण े कृ णोतु जय त वानु देवा मद तु ॥ 17॥

गणाना वा गणपित हवामहे ि याणा वा ि यपित

हवामहे िनधीना वा िनिधपित हवामहे वसोमम ।

आहम जािनग भधमा वमजािसग भधम्॥

त प ात् यजमान ा ण से ाथना करे (अ य के प म ा ण के स मुख खड़ा होकर ा ण से हण करने


क ाथना करे ।) :-

आयु आरो य पु ािद सु ख ी ा ये मम आपदिव िवनाशाय श ु बुि याय च िवशेष: का य होमेन सु हतं
सिमधािदिभ: नव हमखं य ं कतु यूयं सीदत वागतं भो ि ज े मदनु हकारका: इदं अघ भवान्
ितगृ ताम्।

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यजमान :- ऊँ अघ अघ अघ:।

यजमान :- ऊँ अघ ितगृ ताम्।

ा ण :- ऊँ अघ ितगृ ािम।

ा ण यजमान के हाथ से अ यपा को हण करता हआ म तक के लगाकर यह म पढ़े :-

िविनयोग :- ऊँ आप: थ यु मािभ रित म य िस धु ीप ऋिषरनु पछ द-

आपो देवता अघ हणे िविनयोग:।

म :- ऊँ आप: थ यु मािभ: सवा कामानवा नवािन ।

पा थ जल को ईशान िदशा (अ यपा म) म छोड़ता हआ यह म पढ़े :-

िविनयोग :-

ऊँ समु ं व इ यािद म याथवण ऋिषबृहती छ दो व णो देवता अघजल वाहे िविनयोग:।

म :- ऊँ समु ं व: िहणोिम वां योिनमिभग छत।

अ र ाम माकं वीरा मा पराऽसेिच म पय:।

आचमनीय -

यजमान आचमनीय पा लेवे :- सु िवधापूवक आचमन करने के िलए उपयोगी पा िवशेष म आचमन के िलए
रखा गया जल आचमनीय कहलाता है और इसे ा ण को पा के बाद िदया जाता है, इसम कपूर, अगर, पु प,
जातीफल, लवङ् ग व कङ् कोल को डालने (कपूरमग ं पु पं द ात् जाितफलं मुन।े लवङ् गमिप कङ् कोलं
श तमाचमनीयके ।।) का िवधान है। ा ण आचमनीय पा लेकर जल से आचमन करे।

यजमान :- ऊँ आचमनीयं आचमनीयं आचमनीयम्।

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यजमान :- ऊँ आचमनीयं ितगृ ताम्।

ा ण :- ऊँ आचमनीयं ितगृ ािम।

यजमान के हाथ से ा ण आचमनीय पा लेकर अपने बाय हाथ म रखकर दाय हाथ से दो बार आचमन करे ।

िविनयोग :- ऊँ आमाऽगि नित परमे ी ऋिषबृहतीछ द आपो देवता आचमने िविनयोग:।

म :- ऊँ आमाऽग यशसा स œ सृ ज वचसा।

तं मा कु ि यं जानामिधपितं पशू नाम रि ं तनू नाम्।

यजमान काँसी क कटोरी म शु दही, शहद व घी िमलावे और दूसरी काँसी क कटोरी से ढँक लेवे।

मधु पक :-

यजमान :- ऊँ मधुपक मधुपक मधुपक:।

यजमान :- ऊँ मधुपक: ितगृ ताम्।

ा ण :- ऊँ मधुपक ितगृ ािम ।

यजमान के हाथ म ि थत मधुपक को खोलकर ा ण देखे और यह म पढ़े :-

पदाथिवशेषबोधक मधुपक श द पुि लङ् ग है और कमिवशेषवाचक मधुपक नपुं सकिलङ् ग है, यहाँ पूजनिविध
को यान म रखकर िवचार िकया जा रहा है। पदाथिवशेषवाचक मधुपक श द से भी दो तरह के पदाथ का
सङ् के त िमलता है - दही, घी, शहद के िम ण को मधुपक (दिधसिपजलं ौ ं शीतं तािभ तु प चिभ:। ो यते
मधुपक तु सवदेवोपतु ये ।। अथवा आ यं दिध मधु िम ं मधुपक िवदुबुधा:। मधुपक दिधमधुघतृ मिपिहतं
कां येन।।) कहते है तथा दही, शहद, घी के िम ण को भी मधुपक कहते है। काँसे के कटोरे म रखकर काँसे के
कटारे से ढक करके ा ण को देना चािहए ।

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मधु पक का माण :- घृत एक पल, दिध तीन पल व शहद एक पल िमलाने पर मधुपक बनता है अथात् आठ
तोला का पल मानने पर आधा सेर तथा चार तोला का पल मानने पर पावभर के बराबर दही आिद से बने हए
पदाथ का वजन होता है ।

म ो चारपूवक ा ण मधुपक को बाय हाथ म लेकर दाय हाथ के अङ् गु व अनािमका अङ् गुली से दि ण
म से तीन बार िमलाकर भूिम पर थोड़ा-थोड़ा छोड़े, इसके बाद तीन बार ाशन करे, ित ाशन म म का
पाठ करे त प ात् ाशन के बाद दो बार आचमन करे ।

िविनयोग :- ऊँ िम येित जापितऋिष: पं ि छ दो िम ो देवता मधुपकदशने िविनयोग:।

म :- ऊँ िम य वा च ुषा ती े।

ा ण दोन हाथ से हण करता हआ यह म पढ़े :-

िविनयोग :- ऊँ देव य वेित ा ऋिषगाय ी छ द: सिवता देवता मधुपक हणे िविनयोग:।

म :- ऊँ देव य वा सिवतु : सवेऽि नोबाह यां पू णो ह ता या ितगृ ािम ।

त प ात् बाय हाथ म रखकर ऊपर क कटोरी हटाकर दाय हाथ क अनािमका अं गलु ी से तीन बार चलाकर
अनािमका और अं गठू े से थोड़ा सा भूिम पर पर िगराये :-

िविनयोग :- ऊँ नम: यावेित जापितऋिषगाय ी छ द: सिवता देवता मधुपकालोडने िविनयोग:

म :- ऊँ नम: यावा याया नशने य ऽआिव ं त े िन कृ तािम।

इस म से तीन बार ेप करके तीनबार िफर नीचे के म से मधुपक का सेवन करता हआ तीन बार य मधुनो
म का उ चारण करे :-

िविनयोग :- ऊँ य मधुन इित कौ सऋिषमधुपक देवता जगतीछ दो मधुपक ाशने िविनयोग:।

म :- ऊँ य मधुनो मध यं परम œ पम ना म्।

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तेनाहं मधुनो मध येन परमेण पेणा ना ेन परमो मध योऽ नादोऽसािन। .... 3

िफर मधुपक को ा ण वयं ाशन करे (उि छ /शेष) तथा मधुपक को अपने पु /िश य को देवे/अस चरे
िनधाय :-

िफर ा ण तीन बार आचमन करके तजनी म यमा व अनािमका अं गलु ी से मुख का पश करे :-

म ो चापूवक ा ण दाय हाथ क अनािमका, म यमा अङ् गुली व अङ् गु से से सव थम मुख का पश करे
एवं इसी कार मश: नाक, आँख, कान का पश करते हए बाय हाथ से दाय हाथ का तथा दाय हाथ से बाय
हाथ का पश करे त प ात् घुटने का पश करते हए सभी अङ् ग का पश करे ।

ऊँ वा ऽआ ये अ तु ।

त प ात् तजनी व अंगु से नािसका का पश करे :- ऊँ नसोम ाण: अ तु।

त प ात् अनािमका व अं गु से ने का पश करे :- ऊँ अ णोम च ु: अ तु ।

त प ात् म यमा व अं गु से कान का पश करे :- ऊँ कणयोम ो म तु ।

त प ात् हाथ के अ भाग से दोन भुजाओं का पश करे :-ऊँ बा ोम बलम् अ तु।

त प ात् दोन हाथ से जं घाओं का पश करे :- ऊँ ऊव म ओज: अ तु।

त प ात् दोन हाथ से स पूण अंग का पश करे :-

ऊँ अ र ािन मे अङ् गािन तनू त वा म सह स तु।

यजमान ा ण के साथ दूवादल पकड़कर तीन बार यह कहे (तृण याग : - यजमान य या तृण को खड़ा करे ,
पुन: ा ण उसे पकड़े , त प ात् म ो चारपूवक उस तृण को तोड़कर ईशानकोण म याग देवे।) :-

ऊँ गौग ग :।

ा ण-िविनयोग :- ऊँ माता ाणाम् इित वामदेव ऋिषयजु छ दो गौदवता अिभम ेण िविनयोग:।


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म :-

ऊँ माता ाणां दु िहता वसू नाœ वसाऽऽिद यानाम मृ त य नािभ:।

नु वोचं िचिकतु षे जनाय मागामनागामिदितं विध ।

अथात् हे गौमाता! आप क माता, वसु ओ ं क पु ी, अिदितपु क बिहन और घृत प अमृ त का खजाना


हो, आप अव य एवं पूजनीय हो, अत: आप मेरा व मेरा यजमान जीवन मङ् गलमय करते हए हमारे सभी
पूवकृ त् पाप को न करे।

मम ( व य) चामु य (अमु क शमणो यजमान य) च पा मा हत:।

ऊँ उ सृ जत तृणाम य ु । उ च वर से यह कहकर दू वादल (तृण) को ईशान कोण मछोड़ देवे ।

अ अ ाऽऽचारात् गोदानम् :-

अङ् ग यास एवं तृण याग के बाद आचाय ने गोदान का िनदश िकया है, इसिलए मधुपक के अन तर गोदान
यथाशि अव य करना चािहए। वतमान म कु छ ही यजमान गोदान कर पाते है य िक गाय इतनी मँहगी आती
है िक हर यि गाय दान नह कर सकता और गोदान सभी ा ण िभ न-िभ न कारण से ले भी नह सकते है,
अत: गोदान म ा ण अपने िववेक से काम करे।

सङ् क प :-

ऊँ िव णु िव णु िव णु : ीमद्ïभगवतो महापु ष य िव णोरा या वतमान य अिखल ा डा तगत भूम डल


म ये स ीप म यवितनी ज बू ीपे भारतवष भरतख डे आयावता तगत ावतकदेशे गंगायमुनयो: पि मभागे
नमदाया उ रे भागे अबुदार ये अमुक े े/ देश/नगरे / थाने (पु कर े े राज थान देशे गालवा म उप े े -
जयप ने) अि मन् देवालये (गृह)े देव- ा ïणानां सि नधौ ïणो ि तीयपराध रथ तरािद ाि ं श क पानां
म ये अ ïमे ी ेतवाराहक पे वायंभवु ािद म व तराणां म ये स मे वैव वतम व तरे चतु णा युगानां म ये
वतमाने अ ािवं शिततमे किलयुगे थमचरणे बौ ावतारे भवािद षि ïस व सराणां म येऽि मन्ï वतमाने
अमुकनाि न स व सरे अमुकवै मा दे िव मािद यरा यात् ï शािलवाहनशके अमुकायने अमुकऋत
अमुकमासे अमुकप े अमुकितथौ अमुकवासरे अमुकरािशि थते च े अमुकरािशि थते ीसू य
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अमुकरािशि थते देवगुरौ शेषेषु हेषु यथायथा रािश थान ि थतेषु स सु एवं गुणगणिवशेषेण िविश ï◌ायां
शुभपु य बेलायां अमुकगो : (शमा/वमा/गु /दास) अमुकोऽहं ममा मन: िु त मृितपुराणो फल ा यथ
ऐ यािभवृद् यथ अ ा ल मी ा यथ ा ल याि रकाल सं र णाथ सकलमनईि सत कामना सं िस यथ
लोके सभायां राज ारे वा सव यशोिवजयलाभािद ा यथ इह ज मिन ज मा तरे वा सकलदु रतोपशमनाथ मम
सभाय य सपु य सबा धव य अिखलकु टु बसिहत य सम तभय यािध जरापीड़ा-मृ यु प रहार ारा
आयुरारो यै यािभवृद् यथ मम ज मराशे: नामराशे: वा सकाशा े
के िचि चतु था ïम ादश थानि थत ू र हा तै: सू िचतं सूचिय यमाणं च य सवा र ं ति नाश ारा
एकादश थान-ि थतव छु भफल ा यथ पु पौ ािद स ततेरिवि छ न वृदï् यथ
आिद यािदनव हानुकूलतािस यथ ि िवधतापोपशमनाथ चतु िवध पु षाथ िस यथ मधुपक पयोिगनो
गो सगकमण: सा ु याथ सव सा गौ/गोिन यीभूतम् इदं (गोतृ यथ तृणिनि य यं वा) यम्
अमुकगो ाय अमुकशमणे ा णाय दातु महम् उ सृ ये।

यहाँ ा ण कहे :- ऊँ वि त। (क याण)

यजमान वरण हेतु य पास म रखकर ा ण से ाथना करे :-

पावना: सववणानां ा णा िपण:।

अनु गöृ तु माम ..... (सङ् कि पत कम) पू जनकमिण।।

य ा यामृ तसं िस ा वृि ं याि त नर ु मा:।

अङ् गीकु व तु म कम क प ु मसमािशष:।।

ा ण के ितलक करे :-

नमोऽ व ताय सह मू तये, सह पादाि िशरो बाहवे।

सह ना ने पु षाय शा ते, सह कोटीयु गधा रणे नम:।।

ा ण के दाय हाथ म मोली (र ासू ) बाँधे :-

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ऊँ दाबद् दा ायणािहर य œ शतानीकायसु मन यमाना:।

त मऽआबद् नािमशतशारदायायु मा जरदि थासम्।।

यजमान अपने दाय हाथ म वण यािद लेकर बोले ( ा ण को देने हेतु य :- धो ी, दुप ा, कु ा, तौिलया,
बिनयान, माला, जनेऊ, गोमुखी, आसन, लोई, छाता, पु तक, दि णा, पा , प चपा , वणमय/रजतमय
कु डल, वणमय/रजतमय मुि का आिद अ त-पु प सिहत) :-

ा ण के गो :-

गो ािद वर वरसं या

1. भार ाज भार ाज, अङ् िगरस, बाह प य 3

2. कौिशक कौिशक, अघमषण, िव ािम 3

3. अि अचन, अनस, शयावा ेित 3

4. का यप का यप, वतसारन , वु 3

5. अि (आ ेय) अचन, अनस, यावा ेित 3

6. कौ स अङ् िगरस, कौ स, सां यायन 3

7. किपल अङ् िगरस, बाह प य, भार ाज 3

8. गग अङ् िगरस, भार ाज, बाह प य, वत, गग 5

9. गौतम गौतम, अङ् िगरस, औत य 3

10. जमदि जमदि , औवत, विस 3

11 जैिमनी जैिमनी, औत य, सां कृ य 3

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12. भागव भागव, यवन, आ नवान, औव, जमदि 5

13. मरीिच भागव, वैतह य, सावयस 3

14. सां यायन सां यायन, वाच पित, अङ् िगरस, वत, गग 5

15. मु ल मु ल, अङ् िगरस, बाह प य 3

(मौ य/बाविलया)

16. व स औव यवन, भागव, जमदि 3

17. विस विस , अि , सां कृ य 3

18. िव ािम िव ािम , बृह पित, वृषगुणा 3

19. शाि ड़ य शाि ड़ य, अिसत, दैवत 3

20. हा रत अङ् िगरस, अ बरीष, यौवन 3

21. अगि त अग य, दादय युत , ऐहमवाह 3

22. पराशर शि , विस , पराशर 3

23. पै पलाद विस , मे ाव ण, पै पलाद 3

24. सां कृ य (ि वेदी) सां कृ य, अङ् िगरस, वृषगुण 3

25. कौ स अङ् िगरस, कौ स, सां यायन 3

अमुकगो : अमुक वराि वत अमुकवेदशाखा याियन अमुकशमण: ............ ( ा ण का नाम - पि ड़त ी


आ माराम) अि म कमिण एिभवरण यै: अमुकामुक गो वरशाखा अमुकशमाऽहं (शमा/वमा/गु ोऽहं)
पूजनस पादनाथमहं ............ (आचाय/ ा/ऋि वक् /होता/उ ाता) कम कमिण वां अहं वृणे ।

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ा ाथना :-

यथा चतु मखो


ु ा वगलोके िपतामह तथा वं मम् य ेि मन् ाभव ि जो म:।

आचाय ाथना :-

आचाय िह यथा वग श ादीनां बृह पित:।

तथा वं मम् य ेि मन् आचाय भव: सु त:।।

आचाय म पाठ करे :-

ऊँ बृह पते ऽ अित यद ऽ अहा मु ि भाित तु म जनेषु ।

ीदय छवसऽऋत जाततद मासु िवणं धेिह िच म् ।। अनेन अचनेन य आचाय: ि यताम् न
मम्।

ऋि वक ाथना :-

य ािदकमकायषु ऋि वक् श मखे यदा ।

तथा य ािदकाय अि मन् ऋि वक् वं मे मखे भव ।।

ऋि वक् म पाठ करे :-

ऊँ ान थमं पुर ताि सीमत: सु चो वेनआव:।

सबु याऽ उपमाऽ अ यिव ा: सत योिनमसत ि वव:।।

भद् ङ् कणिभ: शृणयु ाम देवा भद् ं प येमा िभयज ा:।

ि थरै रङ् गै तु वा œ स तनूिभ यशेमिह देविहतं यदायु:।।अनेन अचनेन ा ण (ऋि वक् ) ि यताम् न
मम्।

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ा ण बोले :- 'वृतोऽि म बोले ।

इस कार सभी ा ण का यथाशि यथोिचत देशकाल प रि थित के अनुसार वरण कर ।

7.4. वि तवाचन-कलश थापन

वपुरत: त डु लै: अ दलं कृ वा (पूव-ईशान के म य 24 अङ् गुल माण से चतु र वेदी बनावे अथवा का क
चौक पर शु नवीनव पर अ दल अथवा व ण का म ड़ल वि तवाचन/पु याहवाचन हेतु बनाकर िन
िविध से पूजन करे ) -

भू िमं पृ ् वा (भू िम का पश करे) :-

ऊँ मिहद् ौ: पृिथवीचनऽइमँ ि मिम ताम्। िपतृता नोभरीमिभ :।।

धा य पश (धा य से म ड़ल बनावे) :-

ऊँ धा यमिस िधनुिह देवान् ाणाय वो दानाय वा यानाय वा ।

दीघामनु िसितमायुषे धा देवो व:।

सिवता िहर यपािण: ितगृ णा विछ ेण पािणना च ुषे वा महीना पयोऽिस ।

धा योप र ता कलश थापयेत् (ताँबे के कलश क थापना करे ) :-

ऊँ आिज कलश म ा वा ि वशि व दव: पुन जािनव व सा न:।

सह धु वो धारा पय वती पुन माि वशता िय:।।

कलशेजल पूरयेत् (कलश को जल से पू रत करे ) :-

ऊँ व ण यो भनमिस व ण य क भसनी थो

व ण य ऽ ऋतसद यिस व ण य ऽ ऋतसदनमिस व ण य ऽ ऋतसदनमासीद।।


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कलशेग ध ेप: (जलपू रत कलश म ग ध डाले) :-

ऊँ वां ग धवा ऽ अखनँ वािम वा बृह पित:।

वामोषधेसोमोराजाि व ा य मादमु यत् ।।

कलशे सव षिध ेप: (जलपू रत कलश म सव षिध डाले) :-

ऊँ या ऽ ओषधी: पू वाजाता देवे यि युगं पुरा।

मनैनबु णू ामह œ शतं धामािन स च।।

कलशे दूवाङ् कु रािण ेप: (जलपू रत कलश म दूवा डाले) : -

ऊँ का डा का डा रोह ती प ष: प ष प र।

एवानो दू व तनु सह णे शतेन च।।

कलशे प चप लव (पीपल, आम, गूलर, बड़, अशोक) ेप: (जलपू रत कलश म प चप लव लगाये):-

ऊँ अ थे वो िनषदन पणवो वसित कृ ता ।

गोभाज ऽ इि कलासथ य सनवथ पू षम् ।।

कलशे स मृि का (हाथी- थान, अ - थान, व मीक- थान, दीमक, नदी-सं गम, तालाब, गौशाला) ेप:
(जलपू रत कलश म स मृि का डाले) :-

ऊँ योना पृिथिव नो भवा नृ रा िनवेशिन। छा: न: श म स था:।।

कलशे फलं पूगीफलं वा ेप: (जलपू रत कलश म सु पारी डाले) :-

ऊँ : फलीन या ऽ अफला ऽ अपु पाया पुि पणी:।

बृह पित सू ता तानो मु च व œ हस:।।


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कलशे िहर य यं ेप: (जलपू रत कलश म य/दि णा डाले) :-

ऊँ िहर यग भ: समव ता े भूत यात: पितरे क ऽ आसीत् ।

सदाधार पृिथवी ामुतेमाङ् क मै देवाय हिवषा ि वधेम।।

कलशे प चर न ेप: (जलपू रत कलश म प चर न डाले) :-

ऊँ प रवापित: किवरि नह य य मीत् । दधद् नािनदाशुषे ।।

कलशे र सू ेण वे येत् (जलपू रत कलश के क ठ पर मोिलकासू बाँधे) :-

ऊँ ◌ुवासुवासा: प रवीत ऽ आगा स ऽ उ ेयान् भवित जायमान:।

तं धीरा स: कवय उ नयि त वा यो मनसा देवय त:।।

पूणपा ं थापयेत् (जलपू रत कलश के ऊपर पूणपा थािपत करे ) :-

ऊँ पू णादि व परापतसु पू णा पुनरापत।

व नेवि व णावहा ऽ इषमूज œ शत तो ।।

कलशेसपूणपा ोप र ीफलं थापयेत् (पूणपा पर ना रयल थािपत करे ) :-

ऊँ ी ते ल मी प या वहोरा े पा े न ािण पमि नौ या म् ।

इ णि नषाणामु मऽइषाण स वलोकं म ऽइषाण ।।

कलशं व ेणावे येत् (कलश पर ि थत ना रयल को यथोिचत व ािद से अलं कृत करे ) :-

ऊँ सु जातो योितषा सहश म व थमासद व: ।

वासो ऽ अ ने ि व प œ सं यय वि वभावसो ।।

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कलशे व णं यायेत् (कलश म व ण का आवाहन करे ) :-

ऊँ त वािम णा व दमान तदाशा ते यजमानोहिवि भ:।

अहेडमानो व णे हवोद् यु श œ समानऽआयु: मोषी:।।

ऊँ भूभव:
ु व: कलशे व णाय नम:। व णमावाहयािम थापयािम ।

पूववत् आसनपा ािद पूजयेत् ।

यथोपचार साम ी से पूव थािपत कलश का षोड़शोपचार पूजन करे ।

पु पा जिल -

नमो नम ते फिटक भाय सु ेतहाराय सु म‘लाय ।

सु पाशह ताय झषासनाय जलािधनाथाय नमो नम ते ।।

पाशपाणे नम तु यं पि नी जीवनायक ।

पु याहवाचनं यावत् ताव वं सि नधो भव ।।

ऊँ भूभव:
ु व: वि तकलशेव णाय नम: पु पा जिलं समपयािम।

ाथना - क ठे य य महे रो मुखतटे िव णुिवधाता ि थतौ,

म ये मातृगणा: स र पितगण: पा िव ं तथा।

स ीपा वसु धािधपां िणिधपो वेदानव ा तथा,

साङ् गा त कलशि थतं सु मनसैर भ: पितं भावये।।अनेन पूजनेन साङ् गव ण: ीय ताम् न मम।।

7.5. पु याहवाचन

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इस पूजन म यजमान ा ण को अपने व अपने प रवार के मङ् गल हेतु ाथना करता है त प ात् ा ण
यजमान के िलए पु य लोक का उ चारण करता है, यही पु याहवाचन (पु य का वाचन) है। इसके अ तगत
ा ण यजमान के प रवार हेतु दीघायु, सु ख-समृि , बल-पुि , आरो यता, वि त आिद क कामना करते हए
म का उ चारण करता है तथा अपने िकये गये काय (अभी पूजन) का फल यजमान को दान करता है

स पू य गं धमा या ै र् ा णा वि त वाचयेत।्

धमकमिणमा ये सं ामेऽ ु तदशने ।।1।।

पु याहवाचनं दैवं ा ण यिवधीयते।

एत देव िनर कारं कु या ि यवै ययोः।।2।।

यमजानः अविनकृ त जानुमं डलः कमलमुकुलस शमं जqल िशर याधाय (आचायः व) दि णेन पािणना वण
(जल) पूणकलशं (यजमाना जलौ) धारिय वा आिशषः ाथयेत् । (इस म से कलश को यजमान अपने िसर
से पश करवाकर अपनी प नी के िसर व चू‹डे का पश करवाय, इसके बाद ा ण कलश को व थान
थािपत कर । इस म का उ चारण तीन बार कर ।)

यजमान-

1. दीघा नागा न ो िगरय ीिण िव णु पदािन च ।

तेनायु ः माणेन पु यं पु याहं दीघमायु र तु।

िव ाः - ॐ अ तु दीघमायु।

ॐ ीिण पदा ि वच मे ि व णुग पाऽअदा यः।

अतोध मािण धारयन्। (इित म ेण कलशं विशरिस सं यो य)

यजमान- 2. दीघा नागा न ो िगरय ीिण िव णुपदािन च ।

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तेनायुः माणेन पु यं पु याहं दीघमायुर तु ।

िव ाः - ॐ अ तु दीघमायु ।

ॐ ीिण पदा ि वच मे ि व णुग पाऽअदा यः।

अतोध मािण धारयन् । (इित म ेण कलशं व दये सं यो य)

यजमान-

3. दीघा नागा न ो िगरय ीिण िव णुपदािन च।

तेनायुः माणेन पु यं पु याहं दीघमायुर तु ।

िव ाः - ॐ अ तु दीघमायु : ।

ॐ ीिण पदा ि वच मे ि व णुग पाऽअदा यः।

अतोध मािण धारयन् । (इित म ेण कलशं वदि णवाम क धे सं यो य)

िव ा :- अ तु इित यू ःु । ततः कलशं व थाने थापयेत् । यजमानः ा णानां करे षु सु ोि तं कु यात् ।

यजमान :- अपां म ये ि थता देवाः सवम सु िति तम् ।

ा णानां करे य ताः िशवा आपो भव तु ते ।।

यजमान :- स तु िशवा आपः स तु - ा ण के हाथ अथवा पा म जल छोड़े

िव ा :- स तु िशवा आपः। (एवं सव यजमान य वचनो रं ा णवचनम्)

यजमान :- ल मीवसित पु पेषु ल मीवसित पु करे।

सा मे वसतु वै िन यं, सौमन यं तथाऽ तु नः।। ॐ सौमन यम तु । ा ण के हाथ


अथवा पा म पु प छोड़े
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िव ाः- अ तु सौमन यम् ।

यजमान :-

अ तं चा तु मे पु यं दीघमायु यशोबलम्।

य े य करं लोके त द तु सदा मम।। ा ण के हाथ अथवा पा म अ त छोड़े

ॐ अ तं चा र ं चा तु इित । अ तु अ तम र म् इित ा णाः।

यजमान :-ॐ ग धाः पा तु मा‘ यं चा तु । ा ण के हाथ अथवा पा म ग ध छोड़े

िव ाः- अ तु मां ग यम् इित ।

यजमानः - पुनः अ ता द ात् । ा ण के हाथ अथवा पा म अ त छोड़े

िव ाः- ॐ अ ताः पां तु आयु यम तु । अ तु आयु यम् इित ा णाः।

यजमान :-

ॐ पु पािण पा तु सौि यम तु ा ण के हाथ अथवा पा म पु प छोड़े

िव ाः :- अ तु सौि यं ।

यजमान :- ॐ ता बूलािन पा तु ऐ यम तु ा ण के हाथ अथवा पा ता बुल रख

िव ाः :- अ तु ऐ यम् ।

यजमान :- ॐ दि णाः पा तु आरो यम तु । ा ण के हाथ अथवा पा दि णा रख

िव ाः :- अ तु आरो यम् ।

यजमान :-

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ॐ दीघमायुः ेयः शाि तः पुि तु ि ः ीयशोिव ािवनयो िव ं बहपु ं बहधनं चारो यं चायु य चा तु।

िव ाः- ॐ बहपु ं बहधनं चारो यं चायु य चा तु।

यजमान :-

यं कृ वा सवदेवय ि याकरण कमार भाः शुभाः शोभनाः वत ते।

तमहम कारमाद कृ वा ॠ यजुसामाथवाशीवचनं बहॠिषस मतं समनु ातं

भवि रनु ातः पु यं पु याहं वाचिय ये ।

िव ाः- (वा यतां ) ।

ॐ िवणोदाः िपपीषित जुहोत च ित त । ने ा तु िभ र यत ।।1।।

ॐ सिवता वा सवाना ठ. सु वतामि नगृहपतीना उ सोमो वन पतीनाम्।

बृह पित वाच ऽ इ ो यै ् याय ः पशु यो-िम ः स यो व णो ध मपतीनाम् ।।2।।

ॐ नतद् ा उ िसनिपशा-चा तरि तदेवाना मोजः थमजउ ेतत् ।

िवभित दा यण उ िहर य उ सदेवेषु कृ णुते दीघमायुः स मनु येषकु ृ णुते दीघमायुः।। 3।।

ॐ उ चातेजातम धसो िदिवस ू याददे । उ उ श ममिह वः। ।4।।

यजमान :-

तजपिनयमतपः वा याय तु शमदमदयादानिविश ानां सवषां ा णानां मनः समाधीयताम्।

िव ाः- समािहत मनसः मः।।

यजमान :- सीद तु भव तः।

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िव ाः- स नाः मः।

यजमान मूधिन पा े वा दूवा ...कलशजलसेचनम् -

ॐ शाि तर तु । ॐ पुि र तु । ॐ तु ि र तु । ॐ वृि र तु।ॐ अिव नम तु। ॐ आयु यम तु । ॐ


आरो यम तु ।ॐ िशवम तु ।ॐ िशवं कमा तु ।ॐ कमसमृि र तु ।ॐ धमसमृि र तु ।ॐ वेदसमृि र तु । ॐ
शा समृि र तु ।ॐ धनधा य समृि र तु।ॐ पु पौ समृि र तु । ॐ इ स पद तु । िव ाः सव अ तु
वदेयःु ( ा ण यहां पर अ तु का उ चारण कर)

(त पा ा िह र ः पा ा तरे भूमौ वा जलं पातयेत् ) त प ात भूिम /पा /मुि ं म जल का ो ण करे ।

ॐ अ र िनरसनम तु ।

ॐ य पापं रोगं ऽशुभमक याणं त ू रे ितहतम तु।

पुनः पा े - ॐ य े य तद तु ।

ॐ उ रे कमिण िनिव नम तु ।

ॐ उ रो रमहरहरिभवृि र तु ।

ॐ उ रो राः ि याः शुभाः (शोभनाः) स प ताम् ।

ितिथकरणमुहतन हल नािद स पद तु ।

ॐ ितिथकरणे समुहत सन े स हे सल ने सािधदेवते ीयेताम् ।

ॐ दुगापा चा यौ ीयेताम् ।

ॐ अि नपुरोगा िव ेदेवाः ीय ताम् ।

ॐ इ पुरोगा म णाः ीय ताम्।

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ॐ माहे रीपुरोगा उमामातरः ीय ताम् ।

ॐ विश पुरोगा ॠिषगणाः ीय ताम् ।

ॐ अ धतीपुरोगा एकप यः ीय ताम् ।

ॐ पुरोगा सववेदाः ीय ताम् ।

ॐ िव णुपरु ोगा सवदेवा ीय ताम् ।

ॐ आिद यपुरोगाः सव हाः ीय ताम् ।

ॐ च ा णा ीय ताम् ।

ॐ अि बकासर व यौ ीयेताम् ।

ॐ ामेधे ीयेताम् ।

ॐ भगवती का यायनी ीयताम् ।

ॐ भगवती माहे री ीयताम्।

ॐ भगवती ॠि करी ीयताम्।

ॐ भगवती वृि करी ीयताम्।

ॐ भगवती पुि करी ीयताम्।

ॐ भगवती तु ि करी ीयताम्।

ॐ भगव तौ िव निवनायकौ ीयेताम् ।

ॐ सवाः कु लदेवताः ीय ताम् ।

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 198


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ॐ सवाः ामदेवताः ीय ताम् ।

ॐ सवाः इ देवताः ीय ताम् ।

(बिहः पा ा तरे उ रतः वा िनिहते पा े जलं पातयेत् ।) त प ात भूिम अथवा पा म जल छोड़े।

ॐ हता ि षः। ॐ हता प रपं िथनः । ॐ हता िव नक तारः।

ॐ श वः पराभवं या तु । ॐ शा य तु घोरािण । ॐ शा य तु पापािन ।

ॐ शा य वीतयः ।

पु नः पा े -

ॐ शुभािन व ् ध ताम्। ॐ िशवा आपः स तु । ॐ िशवा ॠतवः स तु ।

ॐ िशवा ओषधयः स तु । ॐ िशवा वन पतयः स तु । ॐ िशवा अितथयः स तु ।

ॐ िशवा अ नयः स तु । ॐ िशवा आहतयः स तु । ॐ अहोरा े िशवे याताम् ।

िव ाः :- ॐ िनकामे िनकामे नः प ज यो वषतु फलव यो न ऽ ओषधयः प य तां योग ेमो नः क पताम् ।

ॐ शु ारकबुधबृह पितशनै रराहके तु सोमसिहताः आिद यपुरोगाः सव हाः ीय ताम्।

ॐ भगवा नारायणः ीयताम्। ॐ भगवान् प ज यः ीयताम्। ॐ भगवान् वामी महासेनः ीयताम्। ॐ


पुरोनुवा यया य पु यं तद तु । ॐ या यया य पु यं तद तु । ॐ वषट् कारे ण य पु यं तद तु । ॐ ातः सू य दये
य पु यं तद तु।

यजामन :- एत क याणयु ं (पु यं ) पु याहं वाचिय ये।

िव ाः :- वा यताम्।

यजमान :- ॐ ा यं पु यमह य च सृ ् यु पादनकारकम् ।

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 199


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वेदवृ ो वं िन यं त पु याहं वु तु नः।।

भो िव ाः! म ं सकु टु ि बने महाजना नम कु वाणाय आशीवचनमपे माणाय मया ि यमाण य ................
कमण ''पु याहं भव तो बु ्रव तु ि वारं यू ात् ।

िव ाः –

ॐ पु याहम्, ॐ पु याहम्, ॐ पु याहम् ।

ॐ पुन तु मा देवजनाः पुन तु मनसािधयः ।

पुन तु ि व ा भूतािन जातवेदः पुनीिह मा ।।

यजमान :-

पृिथ यामु तृ ायां तु य क याणं पुराकृ तम्।

ॠिषिभः िस ग धव त क याणं बु ्रव तु नः।।

भो िव ाः! म ं सकु टु ि बने महाजना नम कु वाणाय आशीवचनमपे माणाय मया ि यमाण य ................
कमण 'क याणं भव तो बु ्रव तु'' ि वारं वदेत् ।

िव ाः :- ॐ क याणम्, ॐ क याणम्, ॐ क याणम्।

ॐ थेमां वाचं क याणीमावदािन ने यः।।

राज या या उ शू ाय चाय च वायचारणाय च ।

ि योदेवानां दि णायै दातु रह भूयासमयं मे कामः समृद् यतामुपमादोनमतु ।।

यजमान :- सागर य यथा वृि महाल यािदिभः कृ ता।

स पूणा सु भावा च तां च ॠq वु तु नः।।

o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 200


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भो िव ाः! म ं सकु टु ि बने महाजना नम कु वाणाय आशीवचनमपे माणाय मया ि यमाण य ................
कमण ऋि भव तो बु ्रव तु'' इित ि वारं वदेत् ।

िव ाः :- ॐ ॠद् यताम् , ॐ ॠद् यताम् , ॐ ॠद् यताम् ।

ऊँ स यऽऋि र यग म योितरमृताऽअभूम ।

िदव पृिथ याऽअद् या हामािवदामदेवा व य ित:।

यजमान :- वि त तु याऽिवनाशा या पु यक याणवृि दा ।

िवनायक ि या िन यं तां च वि तं वु तु नः।।

भो िव ाः! म ं सकु टु ि बने महाजना नम कु वाणाय आशीवचनमपे माणाय मया ि यमाण य ................
कमण वित भव तो बु ्रव तु'' इित ि वारं वदेत् ।

िव ाः :- ॐ आयु मते वि त, ॐ आयु मते वि त, ॐ आयु मते वि त

ऊँ वि त नऽइ ो वृ वा: वि त न: पूषा ि व वेदा:।

वि त न ता योऽअ र नेिम: वि तनो बृह पितदधातु

यजमान :- ॐ मृक डसू नोरायुयद् वु लोमशयो तथा।

आयुषा तेन सं यु ा जीवेम शरदः शतम्।।

िव ाः :- ॐ शतं जीव तु भव तः।

ॐ शतिम नुशरदो ऽ अि त देवा ान ा जरस तनूनाम्।

पु ासो य िपतरो भवि त मा नो म यारी रषता युग तोः।।

यजमान :- ॐ िशवगौरीिववाहे या या ीरामे नृपा मजे।

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धनद य गृहे या ीर माकं साऽ तु स िन।।

िव ाः :- ॐ अ तु ीः।

ऊँ मनस: काममाकू ितं वाच: स यमशीमिह।

पशूना œ पम न य रसो यश: ी: यता मिय वाहा।।

यजमान :- ॐ जापितल कपालो धाता ा च देवराट् ।

भगवान् शा तो िन यं स नो र तु सवतः।।

िव ाः :- ‘‘ॐ भगवान् जापितः ीयताम् । (पा े जलं ि पेत् ।) त प ात भूिम अथवा पा म जल


छोड़े।/पा /मुि ं म जल छोड़े

ॐ जापते न वदेता य यो िव ा पािण प रताबभूव। य कामा ते जुहम त नो ऽ अ वयममु य िपतासाव य


िपता वय ल याम पतयो रयीणा ल वाहा ।

यजमान :- ॐ आयु मते वि तमते यजमानाय दाशुषे ।

ि ये द ाऽऽिशषः स तु ॠि वि भवदपारगैः।।

देवे य यथा वि त यथा वि त गुरोगृहे ।

एकिल यथा वि त तथा वि त सदा मम ।।

िव ाः :- ॐ आयु मते वि त।

ॐ ितप थामप िह वि तगामनेहसम्।

येन िव ाः प रि षो वृणि ि व दते वसु ।।

ॐ िव ािनदेव सिवतदु रतािन परासु व । य ं त न आसुव ।।

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म ाथाः सफलाः स तु पूणाः स तु मनोरथाः।

श ू णां बुि नाशोऽ तु िम ाणामुदयोऽ तु नः।।

ॠ वेदोऽथ यजुवदः सामवेदो थवणः।

व े ि थता िन यं िन न तु तव शा वान्।।

अ ताि व ह ता ु िन यं गृ ि त ये नराः।

च वा र तेषां व ् ध ते आयुः क ितः यशोबलम् ।।

ॐ ीवच वमायु यमारो यमािवधा पवमानं महीयते ।

धा यं धनं पशुं बहपु लाभं शत स व सरं दीघमायुः।।

कृ तेऽि म पु याहवाचने उपिव ा णानां वचनात् ी गणेशाि बकयोः सादा च सव िविधः प रपूण ऽ तु ।

अ तु प रपूणः ितवचनम्।

ततोिभषेक (त प ात् पा म छोड़े गये शेष जल/पु याहवाचन पा के जल से यजमान का सप रवार दूवा से
अिभषेक करे । अिभषेक के समय प नी को वामाङ् ग (बाय हाथ) म कर देना चािहए।)

कतुवामतः प न उपिव य पा पािततकलशोदके न दूवा प लवैः सप नीक यजमानमिभिष चेयःु ।

ॐ आपोिह ामयोभुव तानऽऊ जेदधातन। महेरणायच से।।

ॐ योवः िशवतमोरस य भाजयतेहनः। उशती रवमातरः।।

ॐ त माऽ अर‘मामवोय य यायिज नवथ। आपोजनयथाचनः।।

शतिम नुशरदो ऽ अि त देवा ा न ा जरसं तनूनाम्।

पु ासो िपतरो भवि त मानो मद् या री रषतायुग तो:।।


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यतो यत: समीहसे ततो नो ऽ अभयं कु । श न: कु जा योभय न: पशु य:।।

ॐ ौः शाि तर त र ल शाि तः पृिथवीशाि तरापः शाि तरोषधयः शाि तः।

वन पतयः शाि ति व ेदवे ाः शाि त शाि तः स व ल शाि तः शाि तरे वशाि तः सामाशाि तरे िधŸ।।

ॐ शाि तः शाि तः शाि तर तु । यजमान व थाने उपिव य ह ते जलं गृही वा पूजनं कतृके यो ा णे यो
यथो साहं दि णां दा ये। (यजमान अपने थान पर बैठकर हाथ म जल लेकर ा ण को यथोिचत दि णा
देवे।)

तेन ी कमा‘देवताः ीयताम् ।

7.6. सारां श

इस इकाई के अ ययन के प ात् छा को पूजनिविध के अ तगत ा ण के वरण क समुिचत िविध का ान


होगा। यजमान अभी काय क िस के िलए ा ण को आमि त करना तथा अपने काय के सु स पादन हेतु
ा ण का आसन, पा अथात् पैर धोने का जल के जल देना, अघ के ारा स मान करना, मधुपक के ारा
पुि क कामना करना, तथा पूवकृ त् पाप का गौदान के ारा ायि करना, आग तु क ा ण को अपने
अभी काय क िसि हेतु काय का आ ह करना तथा उनका यथोिचत यािद से स मान करना तथा
पु याहवाचन के अ तगत ा ण ारा अपने और अपने प रवार के िलए पु य-क याण-ऋि - वि त आिद
क कामना हेतु ा ण से आशीवचन हण करना आिद इस इकाई म समािहत है ।

7.7. श दावली

1. िव र = 25 कु शाओं का आसन-िवशेष

2. साधु = स जन

3. पा पा = पैर धोने का जल पा

4. तृण = ितनका

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5. मधुपक = दही, शहद व घी का िम ण

6. ा ण = को जानने वाला

7. िव = वेदपाठ करने वाला

8. यजमान = पूजन करने वाला कता

9. अ त = चावल

10. वरण = िनयु करना

7.8. अितलघु रीय

- 1 : िव र िकतनी कु शाओं से िनिमत होता है ?

उ र : िव र प चीस (25) कु शाओं से िनिमत होता है।

- 2 : अ यपा क साम ी का उ लेख क रये ?

उ र : अ यपा क साम ी - दिध-दूवा-कु शा -पु प-अ त-कुं कु म-दि णा-सु पारी िमि त जल।

- 3 : मधुपक क साम ी का उ लेख क रये ?

उ र : मधुपक क साम ी - दही, शहद व घी।

- 4 : कलश थापन म िकस देवता का पूजन िकया जाता है ?

उ र : कलश थापन म व ण देवता का पूजन िकया जाता है।

- 5 : पु याहवाचन म यजमान ा ण से आशीवचन म या अपे ा करता है ?

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उ र : पु याहवाचन के अ तगत यजमान ा ण ारा अपने और अपने प रवार के िलए पु य-क याण-ऋि -
वि त-दीघायु-वं शवृि आिद क कामना करता है ।

7.9. लघु रीय

- 1 : ा णवरण के अ तगत िव र-पा -अ य-आचमन-मधुपक क िववेचना क िजये ?

- 2 : यजमान ारा ा, आचाय व ऋि वग् के ित क जाने वाली ाथना का उ लेख क िजये ?

- 3 : कलश थापना क िववेचना क िजये ?

- 4 : पु याहवाचन म ा ण को दी जाने वाली साम ी क िववेच ना क िजये ?

- 5 : पु याहवाचन म ा ण ारा उ चा रत पु य-क याण-ऋि - वि त-दीघायु-वं शवृि के म का


उ लेख क िजये ?

7.10. स दभ थ

1. िववाह सं कार - ि तीय सं करण स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - हंसा काशन, जयपुर।

2. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।

3. शु लयजुवदीय ा यायी स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अिखल भारतीय ाय


योितष शोध सं थान, जयपुर

4. कमठगु :लेखक - मुकु द व लभ योितषाचाय काशक - मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।

5. म महोदिध स पादक - ीशुकदेव चतु वदी काशक - ा य काशन वाराणसी ।

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इकाई — 8

अि थापन एवं नव ह
इकाई क परेखा

8.1. तावना

8.2. उ े य

8.3. िवषय वेश

8.4. कु शकि डका

8.5. नव ह पूजन

8.6. प चदेव पूजन

8.7. सारां श

8.8. श दावली

8.9. अितलघु रीय

8.10. लघु रीय

8.11. स दभ थ

8.1. तावना

अि न पूजन अथवा आराधना ाचीनकाल से चिलत है अि न के ारा ही देवताओं क पुि के िलए हिव यान
पहंचाया जाता है। अि न को सभी देव ने आ ग य एवं पिव माना है। िजसके मा यम से िव णु इ , ािद
देव के िलए अ न दान िकया जाता है। काय के अनुसार अि न िविवध िविवध नाम से जानी जाती है ।
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हशाि त करण म अि थापन एवं नव ह अ य त मह वपूण िवषय है। लोकाचार के अनुसार कमका ड़ का
म िभ न-िभ न ( मुखतया जयपुरी म एवं काशीय म) हो सकता है, पर तु िवधान वही रहता है। अि
थापन के प ात् ह- थापन का म आता है। ह मनु य के जीवन को ज म से लेकर मृ युपय त भािवत
करते है। ह क कृ पा तो मनु य को सदैव चािहए। यिद कु ड ली म ह िनबल है, तो उनक पुि के िलए
हपूजन िकया जाता है तथा यिद कु ड ली म पु है तो उनक शुभता को बढ़ाने के िलए भी हपूजन िकया
जाता है। ह का भाव सा ातï◌् मनु य पर पड़ता है । उदाहरणतया हम देख सकते है पूिणमा के िदन जब
च मा पूणकलाओं से यु होता है , तो समु म वार, मानिसक रोगी क उि ता म वृि आिद कई प रवतन
देखने म आते है। इस इकाई म सभी िज ासुओ ं को हशाि त करण के अ तगत अि न थापन एवं हपूजन के
साथ-साथ अपने जीवन म आये क के िनवारण अथवा अशुभ समय के ताप को कम करने हए ह के
िविभ न पूजन म एवं हवनािद म शा ने बताये है। मा यता है िक हवन म म अि थापन के प ात् सू यािद
ह का अचन िकया जाना चािहए। हवन हेतु थि ड़ल अथवा का कु ड का िनमाण आव यक है। सामा यत:
कु ड एक हाथ अथात् 24 अङ् गुला मक (18 इ च) चतु र बनाना चािहए ।

8.2. उ े य

1. अि थापन क िविध का छा को ान होगा।

2. नव ह के िविभ न म का ान

3. ह के पूजन म पारङ् गत ।

8.3. िवषय वेश

पं चभू सं कारा: (कु डे थं िडले वा) -:

होमे कु ड़ाभावे बालु कािभ: समेखलं थि डलं (होमसं यानुसारे ण) एकह ता मकं (ह त
चतु िवशाङ् गुला मकम्) ि ह ता मकं वा कु यात । (यथोिचत कु ड अथवा थि ड़ल का िनमाण करे ।)

गौरसषपान् िविकरयेत् (पीली सरस का िविकरण करे।) -

अप ाम तु भूतािन िपशाचा: सवतो िदशम्।


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सवषामवरोधेन हवनकम समारभे।।

पिव ीकरणम् (कु ड अथवा थि ड़ल का जल से ो ण करे ) :-

ऊँ आपो िह ामयोभुव तान ऽऊ जदधातन .... 0।।

1. प रसमूहनम् - किन ाङ् गु म यत: मूलधृतैि िभदभा ै: दि णत: उद सं थं ि : प रसमु ।


(कु श से वेदी को साफ कर)

ता कु शानैशा यां प र यजेत् । (उस कु श को ईशान कोण म फक दे।)

2. गोमयोदके न उपलेपनम् - दि णत: उद सं थं गोमयो-दके न ि पलेपयेत् । (वेदी के उपर गोबर तथा


जल से लेप करे)

3. उ लेखनम् - वु मूलेन ादशाङ् गुला ाग ा ित ो रे खा: उ लेखयेत् । ( वु ा के मूल भाग से तीन रेखा
खीचे)

4. उ रणम् - ितरे खात: अं गु ानािमका यां अं गु ात् अनािमकापय तं ि वारं पां सू नु ृ य।

ऐशा यां प र यजेत् ।

5. अ यु णम् - ितरे खां यु जमुि ना ाजाप यतीथन उदके न ि र यु ेत ।

8.4. कु शकि डका

सव थम चौसठ (64) कु शापा ले। इनम से सोलह कु शा लेकर अि नकोण से ईशानकोण तक वेदी के पास
रखे। िफर सोलह कु शाएँ नैऋ यकोण से वाय यकोण तक फै ला देवे। इसके प ात् अि न के उ रभाग से पि म
िदशा म तीन कु शा और दो कु शा पिव ी के िलए थािपत करे । अब ो णीपा , घी के िलए भगोनी अथवा
कचौला रखे। िफर वु ा, प छने के िलए तीन कु शाएँ, हाथ म रखने के िलए तीन कु शाएँ, तीन सिमधाएँ, घी,
चावल के पूण पा पूव -पूव म से रखे। पिव ी के िलए रखे गये दो कु शापा को आगे से आठ अङ् गुल नाप
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कर तीन कु शाओं से तोड़ लेवे और आगे के कु शापा से पिव ी बनाकर धारण करके इसी पिव ी से यु हाथ
से णीता के जल को तीन बार ो णीपा म डाल। िफर अनािमका एवं अङ् गु से पिव ी हण करके जल को
तीन बार ऊपर क ओर उछाल। िफर णीता का जल ो णी म िमलावे । इसके बाद ो णी पा थािपत
करके घृत के पा म घृत डाले। घी के पा को अि न पर गम करे। िफर कु शा को जलाकर घी ऊपर घुमाकर
अि न म छोड़ देवे। इसके बाद अधोमुख वु ा को अि पर गमकरके स माजन हेतु रखे। िफर तीन कु शाओं को
लेकर उन के अ भाग से वु ा के भीतरी एवं मूल भाग से वु ा के मूल म बाहर से प छकर णीता के जल से
वु ा को स चे। पुन: वु ा को तपाव और उसे दि ण क त रफ रख देवे, त प ात् घी के पा को अि न के ऊपर
से हटाकर जैसे ो णी म से उछाला गया था वैसे ही कु शा से उछालकर उसम यिद तृण, लोम, क ट आिद कोई
व तु यिद िगर गयी हो तो उसे िनकालकर ो णी के समान घी उछाले। िफर उपयमन हेतु रखे हए तीन कु शा
लेकर खड़े होकर ा का मन म मरण करते हए घी यु तीन सिमधाओं को अि न म छोड़े , िफर बैठकर अि न
के चार ओर तीन बार जलिस चन करे, त प ात् दािहना घुटना मोड़कर ा से अपने तक कु शा रखकर
विलत अि न म वु ा से घी क आहित दे तथा वाहा कहते ही अि न म आहित देव और इदम् कहते ही
ो णी पा म शेष घी डाल देवे।

दि णतो ासनम्। (वेदी/कु ड के दि ण िदशा म ा का आसन लगाय ।)

तदुप र ाग ान् कु शाना तीय तदुप र ाणम् ï थापयेत् । पूजयेत । (उ र क ओर कु शा का अ भाग रखते
हए उस पर ा क थापना करके ग धािद से पूजन करे ।)

ाथयेत् :-

याव कम समाि : यात् ताव वं ा भव। (काय क समाि पय त पूजन- थल पर ा से ि थर रहने क


ाथना करे ।)

उ रत: णीतासनम्ï - (उ र क ओर णीता व ो णी-पा क थापना करे ।)

मृ मयं वा णीतापा ं ि वारं वा रणापू य। (तीन बार जल डाले)

ऊँ णय ऊँ णय ऊँ णय,

ïणो मुखमवलो य आल य वा । ( ाजी को उपयमनकु शा से पश करे )


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प र तरणम् -

तत: बिहष चतु रोभागाि वधायैकैकभागेन चतु िद ु अ णे मूलमा छा वार यं प र तरे त् :- (बिहष के चार भाग
करके एक-एक भाग से वेदी/कु ड क प रिध पर कु शाओं से प र तरण करे आ छािदत करे ।)

1. आ ेयादीशा तम्ï (अि कोण से ईशानकोण तक)

2. ïणोऽि ं पय तं ( ा से अि कोण तक)

3. नैऋ याद्ï वाय या तं (नैऋ य से वाय य तक)

4. अि त: णीतापय तम्ï (अि कोण से णीतापा तक)

पा सादनम्ï ( णीता, ो णीपा तथा घी का पा , खीर बनाने का पा , उपयमन कु शा, तीन सिमधा, नव ह-
सिमधा, वु ा, चु ी, शु घी, चावल, पूणपा , ितल-जौ आिद हवनीय सामि य को एकि त करके वेदी/कु ड
के पास मश: रखे तथा बाय हाथ म ो णीपा लेकर दो प क कु शा से शु जल से ो ण करते हए पिव
करे ।) :-

अ े रत: पि मिदिश कु शोप र पिव छे दनािन ीिण तृणािन, पिव े े, ो णीपा म्


आ य थाली, च थाली, स माजनकु शा प च ीिण वा उपयमन कु शा: स , सिमध: ित :, ु व:,
ु क्, आ यं, त डु ला:, पू णपा म्, ितल-यव, हसिमध अ यद् हवनीयं च आसादयेत् - तत: कु श यं
ादेशमा ं वामह ते धृ वा त कु श यं दि णह तेन कु श योप र िनधाय, कु श यं कु श योप र
दि णीकृ य िछ ात् । कु शप यं ा म्, कु श यमु रत: ि पेत् ।

ो णीसं कार: ( णीता-पा के जल से िन कार ो ण करे ) :-

णीतासि नधौ ो णीपा ं िनधाय, सपिव ह तेन ि : िणतोदकमािस य अनािमकाङ् गु यामु रा े पिव े
धृ वा ि पवनम्ï।

तत: ो णीपा ं स यह ते कृ वा अनािमकाङ् गु ा यां सपिव ं ह तेन ि िदङ् गनम्(जलो छालनम्)।

आसािदत यािण ो णं कृ वा अि णीतयोम ये ो णीपा ं िनद यात् ।


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अिध यणम् (घी के पा को यथा थान रखकर चावल को तीन बार णीता के जल से धोकर अि के म य म
खीर का पा रखे तथा दि ण क ओर घी के पा को रखे ) :-

आ य था यामा यं िनवा य, च था यां त डु लान् ि : ा य,

णीतोदके नआिसं य, अि म ये च ं दि णे आ यं च िनद यात् ।

वु -सं कार: ( णीता के जल से वु ािद का ो ण करे तथा बनी हई खीर व िपघले हए घी को िनरी ण करके
यथा थान रखे, बाय हाथ म उपयमन कु शा तथा दािहने हाथ म तीन सिमधा को लेकर अि म ''सिमधौ याधाय
म से अि म छोड़े। ो णी के जल को वेदी/कु ड के अि कोण से ार भ करके ईशान से णीता पा तक
जल िगराय तथा वाय यकोण म (सं व हेतु ) थािपत करे ) :-

अधोमुख वु ं ि : त य वामकरे उ ानं कृ वा, दि णकरे ण सं माजनकु शा ैमलतोऽ


ू पय तं, मूलैबा त: सं मृ य,
णीतोदके ना यु य, पुन: त य दि णत: कु शोप र िनद यात् । तत: आ यं चरो: पूवणानीय अ े धृ वा , आ य
पि मेन च मानीय, आ य यो रतो िनद यात् । पिव ा यामा यो पवनम् । अप यिनरसनम्। पुरतो िनद यात् ।
पिव यो: ो णी पा े िनधानम्। उपमयनकु शान्ï वामकरे गृही वा ित ो घृता ा: पाला य: सिमधादाय
जापितं मनसा या वा उ थाय ऊँ सिमधोऽ याधाय वाहा इ य ौ ि पेत् । तत: उपिव य दि ण चु लकु गृहीतेन
सपिव ेण ो युदके न अ े ईशानादार य ईशानपय तं दि णा मेण पयु णम् इतरथावृि :। पिव े
णीतापा े िनधाय सं वधारणाथ ो णीपा ं णीता योम ये वाय ये वा सं था य।

अि थापनम् – (अि न क थापना कर)

कां यपा थं िनधूमवि ं ि तीयपा ेण िपिहतं कु डे/ थि ड़ले वा ( थि डलाद्) बिहरा ेयां िदिश िनधाय।
यादां शं नैऋ या िदिश प र य य।

अि ं सं था य -

ऊँ च वा र शृङ्गा योऽअ य पादा े शीष स ह तासोऽअ य।

ि धा ब ो वृषभो रोरवीित महो देवो म या आिवशेष।।

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अथ दि णजानुं पातिय वोपिव ो, िद स यह तं द वा णा वार ध: वु ेणा यं जुहयात् ।

1. ऊँ जापतये वाहा (मनसा) इदं जापतये न मम ।

2. ऊँ इ ाय वाहा इदं इ ाय न मम ।

3. ऊँ अ ये वाहा इदं अ ये न मम ।

4. ऊँ सोमाय वाहा। इदं सोमाय न मम ।िकं िच घृतं ो णीपा े ेप ।

अि पू जनम् :- (अि न का पूजन करे इस मं के ारा)

ऊँ अि दूत पुरोदधे ह यवाहमुप वु े । देवा2 ॥ऽ आसाद-यािदह ॥

ऊँ भूभव:
ु व: .... अ ये नम:।। ग धािदिभ: स पू य ।

िविवध कम म आवािहत अि य के नाम :-

कम अि कम अि

1. गभाधान मत 2. पुं सवन पवमान्

3. सीम त मङ् गल 4. जातकम बल

5. नामकरण पािथव 6. अ न ाशन शुिच

7. चौल सय 8. तब धन समु व

9. गौदान सू य 10. िववाह योजक

11. आव य िज 12. वै देव मक:

13. ायि त िवटप 14. पाकय पावक

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15. देवकम हय 16. िपतृकम कय

17. शाि तकम वरद 18. पौि ककम बलव न

19. पूणाहित मृड़ 20. अिभचारकम ोध

21. व यकम कामद 22. वनदाहक दूषक

23. पाचनकम जठर 24. मृतदाह याद

25. ल होम वि 26. कोिटहोम हताशन

27. वृषो सग अ वर 28. पिव ता ा ण

29. समु वाड़व 30. य सव क

31. कम गाहप य 32. ई रकम दि णाि

33. िव णुकम आवाहन 34. च ड़ीकम शतमङ् गल।

व णाहित: :- (इस मं को पढ़ते हए घी का आहती देवे)

1. ऊँ व ण यो भनमिस वाहा ।

2. ऊँ व ण य क भस जनी थो वाहा ।

3. ऊँ व ण य ऽऋतसद यिस वाहा ।

4. ऊँ व ण य ऽऋतसदनमिस वाहा ।

5. ऊँ व ण य ऽऋतसदनमासीद वाहा। अनेन हवनेन व ण: ीयताम् ।

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8.5. नव ह पू जन

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बाय हाथ म अ त लेकर दाय हाथ से अ त समिपत करते हए नव ह क पूजा करे :-

सू य :-

किलङ् गो ू तं वां ि भु जम ण छ म णं,

हा य ं स ा रथमिध ढं सक णम ।
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सह ां शु सू य धृतजिनममुं क यपकु ले,

यामो राज यं वरद मखमे ेिह भगवन ।।1।।

िह दी :- किलङ् ग देश म उ प न, दो भुजा वाले , लालछ से यु , लालशरीर वाले, ह के अ य , सातअ ो


से यु , रथ पर आ ढ़, क णा से यु , सह िकरण वाले, क यपकु ल म ज म लेने वाले ि य, हे भगवन्!
हम आपका आवाहन करते है, यहाँ य म पधारो, वरदान दो ।

जपाकु सु मसाशं का यपेयं महा ु ितम्।

तमोऽ रं सवपाप नं सू यमावाहया यहम्।।

म :- ऊँ आकृ णेनरजसा वतमानो िनवेशय नमृ त म य च ।

िहर ययेन सिवता रथेना देवो याित भु वनािन प यन् ।।

ऊँ भूभव:
ु व: सू याय नम:, म ये सू यमावाहयािम थापयािम।

च मा :-

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इमं देवं च ं ह रणमिध ढं रसिनिधं,

गदापािणं मु ा जिमनसु तातीरिवषयम।

याम: स ो े सु रजननु ता ेि जकु ले,

समु ू तं 'देव! विमहमखभु येिह भगवन ।।2।।

िह दी :- ह रण पर सवार, सम त रस के वामी, हाथ म गदा धारण करने वाले, खुले के शवाले , देवताओं ारा
णत, अि ऋिष के ा णकु ल म स ो म उ प न हे च देव! आप यहाँ य भूिम म पधारे ।

दिधशङ् कतु षाराभं ीरोदाणवस भवम् ।

यो नापqत िनशानाथं सोममावाहया यहम् ।।

म :- ऊँ इम देवा ऽ असप न œ सु व व महते ायमहते यै ् याय महते जानरा याये येि याय

इमममु य पु ममु यै पु म यै िवशऽएषवोमीराजासोमोऽ माकं ा णाना ठ0 राजा ।।

ऊँ भूभव:
ु व: च मसे नम:, आ ेयां च मसमावाहयािम थापयािम।

मङ् गल :-

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कु मारं श ु नं धरिणसु तमार वपु षं,

कु ले भार ाजे धृतजिनमव यामृ िषनु तम ।

गदां शू लं शि ं वरिमह वह तं िनजभु ज- ै

यामोऽचाथ भो कु ज मखमु पे ेिह भगवन्।।3।।

िह दी :- पृ वी के पु , लालशरीर वाले, श ु ओ ं का िवनाश करने वाले, भार ाज कु ल म अव ती नगरी म ज म


लेने वाले, ऋिषय के ारा नम कृ त, चार भुजाओं म गदा, शूल , शि , वरमु ा धारण करने वाले हे कु जदेवता!
हम पूजन के िलए आपका आवाहन करते है, इस य भूिम म पधारकर हम वर दान करे ।

धरणीगभस भू तं िव ु ेजसम भम्।

कु मारं शि ह तं च भौममावाहया यहम्।।

म :- ऊँ अि मू ािदव: ककु पित: पृिथ या ऽ अयम्। अपा œ रे ता œ िसिज वित ।।

ऊँ भूभव:
ु व: भौमाय नम: , दि णे भौममावाहयािम थापयािम।

बु ध :-

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गदां खड् गं खेटं वरमिप दधानं िनजकरै-

मुदा शादू ल थं ह रतवसनं हेमवपु षम्।

विण वण देवं मगधभवमा ेयसकु लं,

यामोऽचाथ भो बु ध मखमु पे ेिह भगवन ।।4।।

िह दी :- चार भुजाओं म गदा, खड् ग, खेट और वरमु ा धारण करने वाले , िसं ह पर स नमुख होकर ि थत, हरे
व धारण िकये हए, वण के समान शरीर वाले वै यवण, मगध देश म उ प न, आ ेयकु ल म ज म लेने वाले हे
बुध देवता! आपको पूजन के िलए आवाहन करते है , हे भगवन! य म पधारो ।

ि यु किलकाभासं पेणा ितमं बु धम्।

सौ यं सौ यगु णोपेतं बु धमावाहया यहम्।।

म :- ऊँ उ ु य वा ने ितजागृ िह विम ापू त सœ सृ जेथा मय च ।

अि म सध थे ऽ अ यु रि मि व ेदेवा यजमान सीदत ।

ऊँ भूभव:
ु व: बुधाय नम: , ईशाने बुधमावाहयािम थापयािम ।

गु :-

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कम ड व वर िचरद डान् िनजकरै -

दधानं हेमाभं सु िवमलमितं िस धु िवषयम।

हया ढं िव ाङ् िगरसकु लर नं सु रगु ं,

याम वां भ या मखभु वमु पे ेिह भगवन्।।5।।

िह दी :- कम डलु, ा माला, वरमु ा और सु दरद ड अपने हाथ म धारण िकये हए वण क आभावाले,


सु दर िवमल बुि से यु , समु के समान िवशाल, अ पर आ ढ़, अङ् िगरस के ा ण कु ल म र न व प
देवताओं के गु हम तु ह भि पूवक बुलाते है , हे भगवन! य भूिम म पधारे ।

देवानां च मु नीनां च गु ं का चनसि नभम्।

व भू तं ि लोकानां गु मावाहया यहम्।।

म :- ऊँ बृ ह पते ऽ अित यद ऽ अहा ु मि भाित तु म जनेषु।

ीदय छवसऽऋत जाततद मासु िवणं धेिह िच म् ।।

ऊँ भूभव:
ु व: गुरवे नम: , उ रे गु मावाहयािम थापयािम ।

शु :-

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समु प नं पु ये भृ गु मु िनकु ले भोजकटके,

कम ड व वर प रघह तं ि मतमु खम ◌्।

ि जं दै याचाय धवलहययानं खगमनं,

यामोऽचाथ वां मखभु वमु पे ेिह भगवन ।।6।।

िह दी :- पु य से यु , भृगऋ
ु िष के कु ल म उ प न, भोजकटक देश म ज मलेने वाले, कमल डलु,
ा माला, वरमु ा और प रघ हाथ म िलए हए स नमुख ा णवण, दै य के आचाय, ेत अ पर
िवराजमान, आकाश म गमन करने वाले, हम आपका पूजन के िलए आवाहन करते है, हे भगवन शु ! य भूिम
म पधारे ।

िहमकु दमृ णालाभं दै यानां परमं गु म्।

सवशा व ारं शु मावाहया यहम् ।।

म :- ऊँ अ ना प र ु तो रसं णा यिपब ं पय: सोमं जापित:।

ऋतेन स यिमि यं ि वपान œ शु म धस ऽ इ येि यिमदं पयोऽमृ त मधु। ।

ऊँ भू भव:
ु शु ाय नम:, पू व शु मावाहयािम थापयािम।

शिन :-

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शिनं कृ णं कृ णािजनधरमथािद यतनयं,

ि शू लेि व वासान् वरिमहवह तं िनजभु जै:।

जातं सौरा े दु रतशमनं गृ गमनं,

यामो म दारं वरद मखमे ेिह भगवन्।।7।।

िह दी :- काले वण वाले, काले मृग का चम धारण करने वाले, आिद य (सू य) भगवान के पु , ि शूल , बाण,
धनुष , वरमु ा, धारण करने वाले, सौरा म उ प न, सम त दु रत (अशुभफल) का शमन करने वाले , गृ पर
गमन करने वाले, म दगित से चलने वाले हे शिनदेव! हम आपका आवाहन करते है, हे भगवनï! य भूिम म
आओ और हमे वर दो।

नीला बु जसमाभासं रिवपु ं यमा जम्।

छायामा त ड स भू तं शिनमावाहया यहम् ।।

म :- ऊँ श नोदेवीरिभ ् य ऽ आपोभव तु पीतये। शँयोरिभ व तु न: ।।

ऊँ भूभव:
ु व: शनै राय नम:, पि मे शनै रमावाहयािम थापयािम।

राह :-

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कराला यं राहं मृ गपितरथा ढमिसतं,

सु रैर य पैठीनसकु लमिणं बबरभवम ।

िवव व ाके श सनरिसकं कायरिहतं

याम वां राहो! वरद! मखमे ेिह भगवन ।।8।।

िह दी :- कराल-िवकराल मुखवाले , िसं ह के रथ पर िवराजमान, कृ णवण, देवताओं ारा पू य, पैठीनस कु ल


के मिण, बबर देश म उ प न, सू य और च मा को सने के ेमी, शरीर से रिहत हे राह! हम तु हारा आवाहन
करते है, आप यहाँ य भूिम म पधारे और हमे वर दे ।

अधकायं महावीय च ािद यिवम ् दनम् ।

सिहकागभस भू तं राहमावाहया यहम्।।

म :- ऊँ कयानि ऽआभु वदू ती सदावृध: सखा। कयाशिच या वृता।।

ऊँ भूभव:
ु व: राहवे नम:, नैऋ यां राहं आवाहयािम थापयािम।

के तु :-

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महाकायं के तुं भगणदलनं जैिमिनकु लं,

कपोत थं धू ं मलयिग रजातं भयहरम्,

करालं नीलाभ वजवरकरं िच वसनं,

याम वां के तो वरद मखमे ेिह भगवन ।।9।।

िह दी :- महान् शरीर वाले, रािशय के समूह का दलन करने वाले , जैिमनी कु ल म उ प न, कबूतर पर ि थत,
धुएँ के समान वण वाले , मलयपवत पर उ प न, भयहरण करने वाले, िवकराल, नीलेवण का वज और वरमु ा
हाथ म िलए हए िविच व को धारण करने वाले हे के तु ! हम तु हारा आवाहन करते है, भगवन आप
य भूिम म पधारे और हमे वर दे।

पलाशधू साशं तारका हम तकम् ।

रौ ं रौ ा मकं घोरं के तु मावाहया यहम् ।।

म :- ऊँ के तुं कृ व नके तवे पेशो मा ऽ अपेशसे । समु षि रजायथा:।।

ऊँ भूभव:
ु व: के तवे नम:, वाय यां के तु मावाहयािम थापयािम ।

नमोऽ तु वो हाः सव इहाग छत ित त ।

ईशान पू वयोम ये गृ तां मम पू जनम्।।

ऊँ भूभव:
ु व: नव हे यो नम:।

8.5.1. अिधपित देवानां पू जन :-

01. ऊँ भूभव:
ु व: ई राय नम:। ई रम् आवाहयािम थापयािम।

02. ऊँ भूभव:
ु व: उमायै नम:। उमा आवाहयािम थापयािम।

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03. ऊँ भूभव:
ु व: क दाय नम:। क दमावाहयािम थापयािम।

04. ऊँ भूभव:
ु व: िव णवे नम:। िव णुं आवाहयािम थापयािम।

05. ऊँ भूभव:
ु व: णे नम:। ाणमावाहयािम थापयािम।

06. ऊँ भूभव:
ु व: इ ाय नम:। इ मावाहयािम थापयािम।

07. ऊँ भूभव:
ु व: यमाय नम:। यम आवाहयािम थापयािम।

08. ऊँ भूभु व: व: कालाय नम:। काल आवाहयािम थापयािम।

09. ऊँ भूभव:
ु व: िच गु ाय नम:। िच गु ं आवाहयािम थापयािम।

8.5.2. यािधपित देवानां वाहाकार :-

01. ऊँ अ नये नम:। अि म् आवाहयािम थापयािम।

02. ऊँ अद् य: नम:। अद् य: आवाहयािम थापयािम।

03. ऊँ धरायै नम:। धरामावाहयािम थापयािम।

04. ऊँ िव णवे नम:। िव णुं आवाहयािम थापयािम।

05. ऊँ इ ाय नम:। इ ं आवाहयािम थापयािम।

06. ऊँ इ ा यै नम:। इ ाणी आवाहयािम थापयािम।

07. ऊँ जापतये नम:। जापितम् आवाहयािम थापयािम ।

08. ऊँ नागे य: नम:। नाग आवाहयािम थापयािम।

09. ऊँ ïणे नम:। ाणम आवाहयािम थापयािम ।

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8.6. प चदेव पू जन

ा :-

अ मालां ु वं चैव धारय तं कम डलु म।्

प ासन थं जिटलं िविधमावाहया यहम् ।।

म :- ऊँ ान थमं पु र ताि सीमत: सु चो वेनआव:।

सबु याऽ उपमाऽ अ यिव ा: सत योिनमसत ि वव:।।

ऊँ भूभव:
ु व: णे नम: , ाणमावाहयािम थापयािम ।

िव णु :-

मा कौमोदक प शङ् कच धरं िवभु म् ।

भ क प ु मं शा तं िव णु मावाहया यहम्।।

म :- ऊँ इदं िव णु िवच मे ेधा िनदधेपदम्। समू ढम यपा œ सु रे वाहा।।

ऊँ भूभव:
ु व: िव णवे नम:, िव णुमावाहयािम थापयािम ।

िशव :-

प चव ं वृषा ढं ितव ं ि लोचनम्।

खट् वा‘धा रणं व ं िशवमावाहया यहम् ।।

म :- ऊँ नम: श भवाय च मयोभवाय च नम: शङ् कराय च मय कराय

च नम: िशवाय िशवतराय च ।।

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ऊँ भूभव:
ु व: िशवाय नम:, िशवमावहयािम थापयािम।

ल मी :-

अ सू ं च कमलं दपणं च कम डलु म।्

ह तेषु धारय त तामु मामावाहया यहम् ।।

म :- ऊँ ी ते ल मी प या वहोरा े पा े न ािण पमि नौ या म् ।

इ णि नषाणामु मऽइषाण स वलोकं म ऽइषाण ।।

ऊँ भूभव:
ु व: ल यै नम:, ल मीमावाहयािम थापयािम।

सर वती :-

णव यैव जनन रसना ि थतां सदा ।

ग भदा चपलां वाणीमावाहया यहम् ।।

म :- ऊँ प चन : सर वतीमिप यि त स ोतस: ।

सर वती तु प चधा सो देशेऽभव स रत् ।।

ऊँ भूभव:
ु व: सर व यै नम:, सर वतीमावाहयािम थापयािम।।

कलश - ईशानकोण म ताँबे का या िम ी का कलश थािपत करे :-

म :- ऊँ असं याता सह ािणे ाऽअिधभू याम् ।

तेषा œ सह योजनेव ध वािनत मिस ।

ऊँ भूभव:
ु व: असं यात े यो नम:, असं यात ान् आवाहयािम थापयािम ।।

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इस म से कलश पर अ त चढ़ाएँ ।

ऊँ मनोजू ितजुषतामा य य बृ ह पितय िमम तनो व र ं œ सिमम दधातु ।

िव ेदवा स ऽ इह मादय तामो 3 ित ।।

ऊँ भू भव:
ु व: आिद यािदनव हा: ािदप चदेवा: कलशे असं यात ाय नम:। सु िति ता:
वरदा: भव तु ।

यथोिचत िविवध म से/मै सू ारा पृथक् -पृथक् षोड़शोपचार पूजन कर ।

॥ अथ मै सू ॥

॥ ह र: ऊँ ॥

ि व ाड् बृ हि पबतु सो य मद् वायु धद् पता-विव ु तम्।

वातजू तो योऽअिभर ित मना जा पु पोष पु धा ि वराजित॥ 1॥

उदु य जातवेदस देवँ वहि त के त ।

द्ï शेि व ाय सू यम् ॥ 2॥

येना पावक च सा भु र य त जना2॥ऽ अनु ।

वँ व णप यिस॥ 3॥

दै यावद् व यूऽआगत रथेन सू य वचा । मद् वा य सम जाथे ।

त थायँ वेनि च देवानाम् ॥ 4॥

त था पू वथा ि व थेमथा ये ता ित बिहषदœ वि वदम्।

तीचीनँ वृजन दोहसे धु िनमा शु जय तमनु यासु व से॥ 5॥


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अयँ वेन चोदय पृि नग भा योित जरायू रजसो ि वमाने।

इममपाœ सङ् गमे सू य य िशशु न ि व ा मितभी रहि त॥ 6॥

िच देवानामु दगादनीक च ुि म य व ण या े।

आ ा द्ï ावापृिथवीऽअ त र सू यऽआ मा जगत थु ष च॥ 7॥

आ नऽइडािभि वदथे सु शि ि व ानर सिवता देवऽएतु ।

अिप यथा यु वानो म सथा नो ि व जगदिभ िप वे मनीषा॥ 8॥

यदद्ï क च वृ ह नु दगाऽ अिभ सू य।

स व तिद ते वशे॥ 9॥

तरिणि व दशतो योित कृ दिस सू य।

ि व माभािस रोचनम्॥ 10॥

त सू य य देव व त मिह व मद् या क ि वतत स जभार।

यदेदयु ह र सध थादाद् ा ी वास नु ते िसम मै॥11॥

ति म य व ण यािभच े सू य पङ् कृ णु ते द् ो प थे।

अन तम यद् ु शद य पाज़ कृ ण-म य रत स भरि त॥ 12॥

ब महा2ऽअिस सू य बडािद य महा2ऽअिस ।

मह े सतो मिहमा पन यते ा देव महा2ऽ अिस ॥ 13॥

बट् सू य वसा महाऽ अिस स ा देव महा2ऽ अिस ।

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म ा देवानामसु य़ पु रोिहतो ि वभु योितरदा यम्॥14॥

ाय तऽइव सू यय ँि व ेिद य भ त।

वसू िन जाते जनमानऽओजसा ित भाग न दीिधम ॥ 15॥

अद्ï ा देवाऽउिदता सू य य िनर हस िपपृता िनरवद्ï ात् ।

त नो िम ो व णो मामह तामिदित िस धु ़पृिथवीऽउत द् ौ ॥ 16॥

आ कृ णेन रजसा व मानो िनवेशय न मृ त म य च ।

िहर ययेन सिवता रथेना देवो याित भु वनािन प यन् ॥ 17॥

नव हाणां पु पा जिल :-

सू य: शौयमथे दु चपदव स मङ् गलं मङ् गल: ।

स ुि बुधो गु गु तां शु : सु खं शं शिन:॥

राहबाहबलं करोतु सततं के तु : कु ल यो नितम् ।

िन यं ीितकरा भव तु मम ते सवऽनु कूला हा: ॥1 ॥

सू य भगवान सभी को शौय दान कर, च मा उ चपद दान कर, मङ् गल ह मङ् गलकाय िस कर, बुध
स िु दान कर, गु े ता दान कर, शु सु ख-शाि त दान कर, शिन क याण कर, राह बाहबल दान
कर, के तु िनर तर कु ल क उ नित दान कर और सभी ह िन य स नता दान कर तथा सभी ह हमारे व
सभी के अनुकूल रह।

सू य य छतु भू पतां ि जपित: ीितं परां त वताम्।

माङ् ग यं िवदधातु भू िमतनयो बु ि ं िवध ां बु ध:॥

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गौरं गौरवमातनोतु च गु : शु : स शु ाथद:।

सौ रव रिवनाशनं िवतनु ते रोग यं सिहक: ॥2 ॥

सू य पृ वीपित व, च मा ेम, मं गल मां ग य, बुध स ु ि , गु गौरव, शु वीय (बल) और धन, शिन श -ु नाश
तथा राह-के तु रोग का िवनाश कर।

प चदेव पु पा जिल :-

पु पा जिलं सकलप चसु रा: मदीय, भ यािपतं सु मधुरग धयुतं सारम् ।

दीनेिवधाय क णामिय हे सु रे ा! वीकृ य दीनजनव सलता िकर तु । ।

असं यात ा: पु पा जिल

ा इमे िव नहरा वरे या:, भूमौ तथा खे िदिव सं चर त ।

पु पा जिलम जुलके सराढ् यं , िकरािम त पादवरा बुजेष।ु ।

ाथना

ऊँ आयु िव च तथा सु ख च धमाथलाभौ बहपु तां च ।

श ु यं राजसु पू यता च तु ा हा: ेमकरा: भव तु॥ 1 ॥

सभी ह हम पर स न होकर हमारा क याण कर और आयु, धन, सु ख, धम, अथ इन सबका लाभ कराय,
बहत सी स तान (पु ) द, श ु ओ ं का नाश कर और राजाओं म पू यता उ प न करे ।

हा: रा यं य छि त हा: रा यं हरि त च ।

है या िमदं सव ैलो यं सचराचरम् ॥ 2 ॥ ह ही रा य देने वाले तथा ह ही रा य हरने वाले होते


है, ह से ही सचराचर ैलो य या है । अनेन अचनेन सू या ावािहत देवता: प चलोकपाला: असं यात ा:
ीय ताम् न मम । । त प ात् षोड़शोपचार पूजन करे ।
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8.7. सारां श

इस इकाई के अ तगत छा को हवनािद काय म वेदी अथवा कु ड के िनमाण के प ातï◌् अि थापन क


िविध का ान दान िकया गया है, िजसम वेदी अथवा कु ड प चभूसं कार - प रसमूहन, उपलेपन, उ लेखन,
उ रण व अ यु ण क िविध अि न थापन तथा दि ण िदशा क ओर ा का आसन तथा उ र क ओर
णीता व ो णी का थापन, प र तरण, हवनीय य का पिव ीकरण, सं हण करते हए यथोिचत अि न का
अचन तथा सूयािद नव ह अिधपित एवं यािधपित देवताओं का अचन करने क िविध का साङ् गोपाङ् ग
वणन िकया गया है।

8.8. श दाविल

1. ासन = ा के बैठने का थान

2. णीता = वेदी अथवा कु ड के उ र िदशा म रखा हआ जलपा

3. प र तरण = वेदी अथवा कु ड के चार ओर कु शाओं का आ छादन

4. पा सादन = पा को यथोिचत थान पर थािपत करना

5. प चभूसं कार = (पाँच सं कार) प रसमूहन, उपलेपन, उ लेखन, उ रण व अ यु ण

8.9. अितलघु रीय

- 1 : वेदी अथवा कु ड के िकस िदशा म ा का आसन थािपत िकया जाता है ?

उ र : वेदी अथवा कु ड के दि ण िदशा म ा का आसन थािपत िकया जाता है ।

- 2 : वेदी अथवा कु ड के िकस िदशा म णीता व ो णी का आसन थािपत िकया जाता है ?

उ र : वेदी अथवा कु ड के उ र िदशा म णीता व ो णी का आसन थािपत िकया जाता है ।

- 3 : प र तरण या होता है ?
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उ र : वेदी अथवा कु ड के चार ओर कु शाओं का आ छादन करने को प र तरण कहते है ।

- 4 : नव ह के नाम बताइये ?

उ र : सू य, च , मङ् गल, बुध , गु , शु व शिन - ये नव ह शा ो ह ।

- 5 : िववाह क अि न का नाम बताइये ?

उ र : िववाह क िअ न का नाम योजक है ।

8.10. लघु रीय

- 1 : प चभूसं कार का उ लेख क िजये ?

- 2 : कु शकि ड़का से आप या समझते ह ?

- 3 : पा सादन क िववेचना क िजये ?

- 4 : अि पूजन से आप या समझते ह ? िववेचना क िजये ।

- 5 : नव ह क थापन िविध का उ लेख क िजये ?

8.11. स दभ थ

1. कमठगु :लेखक - मुकु द व लभ योितषाचाय काशक - मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।

2. हवना मक दुगास शतीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।

3. शु लयजुवदीय ा यायी स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अिखल भारतीय ाय


योितष शोध सं थान, जयपुर।

4. योितष स ाट् प चाङ् ग, स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अिखल भारतीय ाय
योितष शोध सं थान, जयपुर।
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5. म महोदिधस पादक - ीशुकदेव चतुवदी काशक - ा य काशन वाराणसी ।

सू यािद नव ह के दान पदाथ, जपनीय मं , जप सं या, सिमधा, औषिध, र न उपर न, धातु र न धारण
करने क अङ् गुली, न वार, समय, पुराणो तवन साम ी :-

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इकाई — 9

वा तु, योिगनी, े पाल


इकाई क परेखा

9.1. तावना

9.2. उ े य

9.3. िवषय व तु

9.4 चतु :षि योिगनीम डल पूजन

9.5. े पाल म डल पूजन

9.6. सारां श

9.7. श दावली

9.8. अितलघु रीय

9.9. लघु रीय

9.10. स दभ थ

9.1. तावना

हशाि त करण म वा तु, योिगनी व े पाल पूजन का मह वपूण थान है। योिगिनय क सं या 64 है। पूजन
म म 16 देिवयाँ व 7 घृतमातृकाय भी है, पर तु योिगिनय का िवशेष मह व है। इनके अ तगत ीमहाकाली,
ीमहाल मी, ीमहासर वती तथा इनक गजाननािद 64 देिवय का पूजन िकया जाता है। साधना भेद से इनके
पूजन म म िविवध नाम से पाठभेद य -त उपल ध है । योिगनी के म ड़ल िनमाण हेतु वेदी का िनमाण

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आ ेयकोण म िकया जाता है, नवीन व पर धा य से 64 को का मक म ड़ल बनाना चािहए। म ड़ल के


देवताओं के पूजन से पूव महाकाली महाल मी महासर वती का आवाहन करना चािहए। म ड़ल पूजन क
षोड़शोपचार पूजन के प ात् योिगनी के देवताओं के िलए पृथक् -पृथक् य से अथवा पायस (दूध अथवा
दूधिनिमत िम ा न) से बिल देनी चािहए। बिल देते समय येक देवता हेतु पृथक् -पृथक् दीप भी विलत
करके देवता के िलए दीपदान करना चािहए।

े पाल के पूजन के अ तगत भैरव का पूजन िकया जाता है । भैरव (भैरव (भय+रव) अथात् िजसक वेश
विन िवशेष अनुभिू त को ा कराती है ।) सम त सृि के लोकपाल है । साधना म शि के साथ-साथ भैरव
एवं भैरवी परम असा य है।

े पाल के म ड़ल िनमाण हेतु वेदी का िनमाण वाय यकोण कृ णव पर िकया जाता है, नवीन व पर धा य
से 49 को का मक म ड़ल बनाना चािहए। म ड़ल पूजन क षोड़शोपचार पूजन के प ात् े पाल (भैरव) के
देवताओं के िलए पृथक् -पृथक् य से अथवा पायस (दूध अथवा दूधिनिमत िम ा न) से बिल देनी चािहए।
बिल देते समय येक देवता हेतु पृथक् -पृथक् दीप भी विलत करके देवता के िलए दीपदान करना चािहए ।

वा तु :- याकरण शा के अनुसार वस् — िनवासे धातु उणािद सू वसे तु न सू से तु न् यय से वा तु श द


तथा अगारे िणथ सू से िण ाव होने पर वा तु श द िन प होता है । स ययुग के आर भ म एक महान ाणी
उ प न हआ, जो अपने िवशाल शरीर से सम त लोक म या था, इसको देखकर देवराज इ सिहत सभी
देवता भय एवं आ य से चिकत थे, त प ात् उ ह ने ोिधत होकर उस असु र को पकड़कर उसका िसर नीचे
करके भूिम म गाड़ िदया और वयं वहाँ खड़े रहे, इसी का नाम ाजी ने 'वा तु पु ष रखा । योितिव ान के
िवभाग म आज सवािधक लोकि य तथा जनसामा य को सही िदशा और उ म दशा दान करने वाला मुख
है वा तु िव ानŸ। ‘वा तु ङ्क के नाम से हमारे सामने आजकल यावसाियक वा तु शाि य का भयावह मुख
कट हो जाता है, जबिक वा तव म तो यह िव ा अ य त सै ाि तक, स तु िलत तथा आ याि मक ऊजा से
स प न है । लोग ने इसे इतना सहज बना िदया है िक वे आज वा तु के नाम पर जन-सामा य को डराने लगे है
तथा अ यावहा रक प से उनके भवन को व त कराकर नये भवन बनाने तक का परामश दे डालते है ।
अ य त िन नवग का यि तो सहम जाता है तथा िनराशा से िघर कर आ मदाह तक कर लेता है जातक के
जीवन का सबसे मह वपूण अ‘ है, वा तु । इसके िबना जीवन क क पना िनरथक ही होती है। मनु य क यही
कामना होती है िक गृह सदैव क याणकारी व िचर थायी हो । सभी ाणी सुख तथा सु र ा क ि से अपने
यो य िनवास थान क यव था करते है। उन सभी म मानव बुि - धान ाणी है, िजसका जीवन म धािमक
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थ क छ छाया म अनुशािसत होता है । ‘‘वा तु पु ष क उ पि हमारे शा के अनुसार वा तु क उ पि


आिदकाल म बतायी गयी है। यथा-

िकमिप िकल भू तमभव ु धानं रोदसी शरीरेण।

तदमरगणेन सहसा िविनगृ ाधोमु खं य तम् ।।

य च येन गृ हीतं िवबु धेनािधि तः स त ैव।

तदमरमयं िवधाता वा तु नरः क पयामासः।।

ी-पु आिद के भोग, सु ख, धम, अथ व काम को देने वाला ािणय के सु ख का थान और सद , वायु और
गम जैसे मौसमी क से र ा करने वाला 'घर ही है। िविधवत् गृहिनमाणकता को बावड़ी, देवालय आिद के
िनमाण का पु य भी ा होता है, इसिलए िव कमा आिद देविशि पय ने सव थम गृहिनमाण का िनदश िदया
है ।

घर बनाने का फल ौत व मात आिद कम का फल

गृह फल गृह फल

प थर अन तगुणा तीथ (गङ् गािद) अन तगुणा

ईटं सौ करोड़ गुणा मि दर सौ करोड़ गुणा

िम ी दस करोड़ गुणा सरोवर/कु आँ दस करोड़ गुणा

पणशाला करोड़ गुणा वघर करोड़ गुणा

अपने कु ल के अित र अ य यि य के घर अथवा मि दर आिद म िबना शु क िदये रहकर विहत म िकये


गये सभी ौत मा आिद शुभकाय अपने िलए िन फल हो जाते है , य िक उनका फल भू वामी को ा होता
है। अत: विहत म िकये गये काय का शु क अव य देना चािहए ।

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9.2. उ े य

1. वा तु दवे ता के म का स वर पाठा यास।

2. योिगनी के म का स वर पाठा यास।

3. े पाल के म का स वर पाठा यास ।

9-3 िवषय व तु

वा तु पू जनम्

वा तु देवता के म ड़ल िनमाण हेतु वेदी का िनमाण नैऋ यकोण म िकया जाता है, नवीन व पर धा य से 49,
64, 81 अथवा कायिवशेष के अनुसार यथासं यक को का मक म ड़ल बनाना चािहए। म ड़ल पूजन से पूव
अि कोण से ार भ करके ईशान पय त चार नागफणी क क लो क पूजन-बिल सिहत थापना क जाती है।
म ड़ल पूजन क षोड़शोपचार पूजन के प ात् वा तु के देवताओं के िलए पृथक् -पृथक् य से अथवा पायस
(दूध अथवा दूधिनिमत िम ा न) से बिल देनी चािहए । बिल देते समय येक देवता हेतु पृथक् -पृथक् दीप भी
विलत करके देवता के िलए दीपदान करना चािहए तथा पूजन के उपरा त धानदेवता वा तु के िलए
सदीपबिल देनी चािहए । शा के अनुसार खात म िगरिगट के व प म वा तु दवे ता क क पना क गयी है ।
रजत अथवा वणमयी मूित क म ड़ल पर थापना करके िन म से पूजन करना चािहए: -

सं क प - हाथ म अ त जल लेकर सं क प बोले देशकालौ सं क यै मया पूव चा रतसं क पाऽङ् गतया


वा तु म डले शङ् कु रोपणसिहत देवानामावाहनपूवकं पूजनं बिलदान च क र ये ।

शङ् कु रोपण :-

चार लोहे क नागफणी क क ल को आ नेय, नैऋ य, वाय य व ईशानकोण म मश: शङ् कु रोपण,
बिलदानािद कम करना चािहए।

ऊँ िवश तु भू तले नागा लोकपाला सवत:।

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अि मन् गृ हे/म ड़ले अवित तु आयु बलकरा: सदा ।।

बिलदान :-

1. ऊँ अ ये नम: इमं बिलं समपयािम,

2. ऊँ नैऋ य नम: इमं बिलं समपयािम,

3. ऊँ वाय यै नम: इमं बिलं समपयािम,

4. ऊँ ईशानाय नम: इमं बिलं समपयािम।

रेखापू जन :- पि म से पूव क ओर :- हाथ म अ त लेकर मं बोलते हए रे खा पर छोड़े

1. ऊँ शा यै नम:, 2. ऊँ यशोव यै नम:,

3. ऊँ िवशालाय नम:, 4. ऊँ ाणवािह यै नम:,

5. ऊँ स यै नम:, 6. ऊँ सु म यै नम:,

7. ऊँ न दाय नम:, 8. ऊँ सु भ ाय नम:,

9. ऊँ सु रथाय नम:,

रेखापू जन :- दि ण से उ र क ओर :- हाथ म अ त लेकर मं बोलते हए रे खा पर छोड़े

1. ऊँ िहर यायै नम:, 2. ऊँ ल यै नम:,

3. ऊँ िवभू यै नम:, 4. ऊँ िवमलाय नम:,

5. ऊँ ि याय नम:, 6. ऊँ जयाय नम:,

7. ऊँ वालाय नम:, 8. ऊँ िवशालाय नम:,

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9. ऊँ ईड़ाय नम:।

रेखापू जन :- पि म से पूव क ओर :- हाथ म अ त लेकर मं बोलते हए रे खा पर छोड़े

वा तु म डल थदेवा: नम: सु िति ता भव तु । यथािमिलतोपचार यै: सं पू य ।

त म डलम ये चतु :पदे पीतवण को ोप र ता ािदकलश य थापनं कु यात्।

तदुप र ाण ित ापूवकं वा तु मिू त सं था य। आवाहयेत् -

ऊँ वा तो पते ितजानी मा वावेशो ऽ अनमी वो भवान:।

य वे महे ितत नो जुष व श नो भवि पदे शं चतु पदे ।

ऊँ भूभव:
ु व: वा तु पु षाय नम:। वा तु पु षमावा0 था0॥

पूजनं कु यात् -

आसनाथ पु पािण समपयािम। पादयो: पा ं समपयािम। ह तयो: अ य समपयािम। मुखे आचमनं


समपयािम। सवागे नानं समपयािम। िमिलतपंचामृत नानं समपयािम । शु ोदक नानं समपयािम। व ं
समपयािम। य ोपवीतं । व य ोपवीता ते आचमनं समपयािम। गं धं समपयािम। अ तान् समपयािम। पु पमालां
समपयािम। प रमल यािण समपयािम। सु गि ध यं समपयािम। धूपं आ ापयािम। दीपं दशयािम।
ह त ालनम । नैवे ं समपयािम। म ये आचमनं समपयािम। फलं समपयािम। पुन: आचमनं समपयािम।
ता बूलं समपयािम। यदि णां समपयािम।

पु पा जिल :-

ऊँ िश यािद कामे खलु वा तु देवा,

गृöव तु पु पा जिलम शी म्।

पीड़ाहरा भ यकरा िवशाला,

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भव तु भूपालन त परा ।। पु पा जिल समपयािम।

म डला े बिलं द ात् :- ऊँ अमीवहा वा तो पते िव ा पा यािवशन्ï। खा सुशेव ऽ एिधन: वाहा। ऊँ


वा तु पु षाय बिल याय नम:। सं पू य । भो िश यािदगणसिहत वा तु पु ष इमं बिलं समपयािम। जलमु सृजेत।्

ाथना - भो वा तु पु ष इमं बिलं गृहाण मम (यजमान य) गृहे आयु: कता ेम कता शाि तकता पुि ï कता
तु ि कता िनिव नकता क याणकता भव।

नम कार :-नमािम वा तु पु ष सिश यािदगणवृत:।

पूजां बिलं गृहाणेमां सौ यो भवतु सवदा॥

अनेन पूजाबिलदानेन िश यािदवा तु म डल थदेवै: सह वा तु पु ष: ीयताम् ॥

9.4 चतु :षि योिगनीम डल पू जन

योिगनी के म ड़ल िनमाण हेतु वेदी का िनमाण आ ेयकोण म िकया जाता है, नवीन व पर धा य से
64 को का मक म ड़ल बनाना चािहए। म ड़ल के देवताओं के पूजन से पूव महाकाली महाल मी
महासर वती का आवाहन करना चािहए। म ड़ल पूजन क षोड़शोपचार पूजन के प ात् योिगनी के देवताओं के
िलए पृथक् -पृथक् य से अथवा पायस (दूध अथवा दूधिनिमत िम ा न) से बिल देनी चािहए। बिल देते समय
येक देवता हेतु पृथक् -पृथक् दीप भी विलत करके देवता के िलए दीपदान करना चािहए । रजत अथवा
वणमयी मूित क म ड़ल पर थापना करके िन म से पूजन करना चािहए: -

अ तपु पािण गृ ही वा -

ऊँ भूभवु : व: महाल यै नम:। महाल मीमावाहयािम थापयािम ।

पू जनं कु यात्-

आसनाथ पु पािण समपयािम। पादयो: पा ं समपयािम। ह तयो: अ य समपयािम। मुखे आचमनं


समपयािम। सवागे नानं समपयािम। िमिलतपंचामृत नानं समपयािम। शु ोदक नानं समपयािम। व ं
समपयािम। य ोपवीतं । व य ोपवीता ते आचमनं समपयािम। गं धं समपयािम। अ तान् समपयािम। पु पमालां
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समपयािम । प रमल यािण समपयािम। सु गि ध यं समपयािम। धूपं आ ापयािम। दीपं दशयािम।


ह त ालनम्। नैवे ं समपयािम । म ये आचमनं समपयािम। फलं समपयािम। पुन: आचमनं समपयािम।
ता बूलं समपयािम। यदि णां समपयािम ।

9.5. े पाल म डल पूजन

े पाल के म ड़ल िनमाण हेतु वेदी का िनमाण वाय यकोण कृ णव पर िकया जाता है, नवीन व
पर धा य से 49 को का मक म ड़ल बनाना चािहए। म ड़ल पूजन क षोड़शोपचार पूजन के प ात् े पाल
(भैरव) के देवताओं के िलए पृथक् -पृथक् य से अथवा पायस (दूध अथवा दूधिनिमत िम ा न) से बिल देनी
चािहए। बिल देते समय येक देवता हेतु पृथक् -पृथक् दीप भी विलत करके देवता के िलए दीपदान करना
चािहए । कलश थापन करते हए उस पर रजत अथवा वणमयी मूित क म ड़ल पर थापना करके िन म
से पूजन करना चािहए:-

सं क प - देशकालौ सं क य मया पूव चा रतसं क पा ऽङ् गतया अजरािद पावनपय तानां


े पालम डल थ देवानामावाहनपूवकं पूजनं बिलदान च क र ये।

ऊँ भूभव:
ु व: यापकाय नम:, यापकमावाहयािम थापयािम ॥2॥

ऊँ भूभव:
ु व: वटु काय नम:, वटु कमावाहयािम थापयािम ॥2॥

ऊँ भूभव:
ु व: िवमु ाय नम: , िवमु मावाहयािम थापयािम ॥3॥

ऊँ भूभव:
ु व: िल काय नम:, िल कमावाहयािम थापयािम ॥4॥

ऊँ भूभव:
ु व: लीलाकाय नम:, लीलाकमावाहयािम थापयािम ॥5॥

ऊँ भूभव:
ु व: एकदं ाय नम:, एकदं मावाहयािम थापयािम ॥6॥

दि णको े -

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ऊँ अ यो हि त पं ज वाया पं पु ् यै गोपा लं वी ् व ट् वायािवपा लं तेजÞसेजपा लिमरायै क नाशं


क लालाय सु राका ं भ द् ाय गृह प œ ेयसे ि व धमाद् यायानु ारम् ॥

ऊँ भूभव:
ु व: ऐरावतराय नम:, ऐरावतमावाहयािम थापयािम॥1॥

ऊँ भूभव:
ु व: ओषधी ाय नम: , ओषधी मावाहयािम थापयािम॥2॥

ऊँ भूभव:
ु व: ब धनाय नम: , ब धनमावाहयािम थापयािम॥3॥

ऊँ भूभव:
ु व: िद यकायाय नम:, िद यकायमावाहयािम थापयािम॥4॥

अजरािदपावना त े पालम डल थदेवा: सह े ािधपतये नम: सु िति ता भव तु ।

यथािमिलतोपचार यै: सं पू य।

पू जनं कु यात् -

आसनाथ पु पािण समपयािम । पादयो: पा ं समपयािम। ह तयो: अ य समपयािम। मुखे आचमनं


समपयािम। सवागे नानं समपयािम। िमिलतपंचामृत नानं समपयािम। शु ोदक नानं समपयािम । व ं
समपयािम । य ोपवीतं । व य ोपवीता ते आचमनं समपयािम । गं धं समपयािम। अ तान् समपयािम।
पु पमालां समपयािम। प रमल यािण समपयािम। सु गि ध यं समपयािम । धूपं आ ापयािम। दीपं दशयािम ।
ह त ालनम । नैवे ं समपयािम । म ये आचमनं समपयािम। फलं समपयािम। पुन: आचमनं समपयािम।
ता बूलं समपयािम। यदि णां समपयािम ।

पु पा जिल :-

नीला जनाि िनभमू विपशं गके श,

वृ ो लोचनमुपा गदाकपालम् ।

र ा बरं भुजगभूषणमु दं ं

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े ािधपा कु सु मपु ज गृहाण शी म् ॥ पु पा जिल समपयािम।

नम कार :- े पाल महाबाहो महाबल परा म:।

े ाणां र णाथाय णमािम पुन: पुन:॥

म डला ेपायस बिलद ात् -

ऊँ े य पितनां वयं िहतेनेव जयामिस। गाम पोषिय वा स नो मृलाती शे।

े पाल बिल याय नम:। भो े पाल इमं बिलं समपयािम। जलमु सृजेतï् ।

भो े पाल इमं बिलं गृहाण मम सकु टु ब य सविव ा नाशय नाशय सव मनोरथान् पू रय पू रय


वाहा।

अनेन पूजाबिलदानेन े पालम डल थदेवा: सह े ािधपित ीयताम्।

9.6. सारां श

इस इकाई के अ तगत पूजन म के मह वपूण अङ् ग वा तु , योिगनी व े पाल के पूजन हेतु सर वर म िदये
गये ह। पूजन म म के वलमा नाम से भी पूजन िकया जा सकता है तथािप िवशेष मह व तो समि क पूजन का
ही है। वा तु म ड़ल का िनमाण नैऋ यकोण म करते हए सव थम म ड़ल के चार कोण पर शङ् कु रोपण करते
हए पि म से पूव तथा दि ण से उ र क ओर रे खादेवताओं का आवाहन-पूजन करने के साथ कलश थापन
करते हए िश यािद वा तु म ड़ल देवताओं का पूजन तथा बिलदानािद क िविध तथा महाकाली, महाल मी व
महासर वती सिहत 64 योिगनीय का अि कोण म पूजन, बिलदान एवं वाय यकोण म े पाल म ड़ल के
अजरािद देवताओं का पूजन, बिलदान साङ् गोपाङ् ग इस इकाई म िदया गया है ।

9.7. श दावली

1. वा तु = िनवािसत भूिम का देवता

2. शङ् कु = आगे से न क वाली क ल


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3. रोपण = थापना करना

4. नैऋ य = दि ण-पि म का कोना

5. पायस = दूध

6. वणयमी = वण से िनिमत

7. अि कोण = पूव -दि ण का कोना

8. रजत = चाँदी

9. वाय य = उ र-पि म का कोना

10. े पाल = े का पालक/र क

9.8. अितलघु रीय

- 1 : वा तु म ड़ल का िनमाण िकस कोण म िकया जाता है ?

उ र : वा तुम ड़ल का िनमाण नैऋ यकोण म िकया जाता है।

- 2 : नागफणी क क ल क थापना कहां क जाती है ?

उ र : नागफणी क क ल क थापना वा तु म डल के चार कोण पर क जाती है।

- 3 : योिगिनय क सं या िकतनी होती है ?

उ र : योिगिनय क सं या 64 होती है।

- 4 : े पालम ड़ल का िनमाण िकस कोण म िकया जाता है ?

उ र : े पालम ड़ल का िनमाण वाय यकोण म िकया जाता है।

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- 5 : े पाल म ड़ल के िकतने देवता होते ह ?

उ र : े पाल म ड़ल के 49 देवता होते ह।

9.9. लघु रीय

- 1 : वा तु म ड़ल क िववेचना क िजये ?

- 2 : े पाल म ड़ल क िववेचना क िजये ?

- 3 : योिगनी म ड़ल क िववेचना क िजये ?

- 4 : वा तु म ड़ल म रे खा देवताओं से आप या समझते ह ?

- 5 : वा तु, योिगनी, े पाल म ड़ल देवताओं क बिलदान-िविध क िववेचना क िजये ?

9.10. स दभ थ

1. कमठगु :लेखक - मुकु द व लभ योितषाचाय काशक - मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।

2. हवना मक दुगास शतीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा. सं सा. के ., जयपुर।

3. शु लयजुवदीय ा यायीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अ. भा. ा. यो. शो. सं .,
जयपुर।

4. म महोदिध स पादक - ीशुकदेव चतु वदी काशक - ा य काशन वाराणसी ।

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इकाई — 10

सवतोभ
इकाई क परेखा

10.1. तावना

10.2. उ े य

10.3. सवतोभ म डल पूजन

10.4. धान पूजन

10.5. सारां श

10.6. श दावली

10.7. अितलघु रा मक

10.8. लघु रा मक

10.9. स दभ थ

10.1. तावना

य , याग, होम, त, अनु ान आिद धािमक कमका ड़ म देवताओं के अनुसार िविवध भ म ड़ल क रचना
करना आव यक होता है । इनका उ लेख ताि क थ , पुराण आिद म िमलता है । म साधना हेतु
भ म ड़ल का िनमाण आव यक बताया गया है। यथा -

साधक: साधये म ं देवतायतनािदके ।

शु भू मौ गृ हे ा य म ड़ले ह रमी रम ।।
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इन भ म ड़ल का िनमाण सदैव िकसी समचतु भूिम या चौक पर ही करना चािहए । यथा -

चतु र ीकृ ते े े म ड़लादीिन वै िलखेत ।

रसबाणाि को ेषु सवतोभ मािलखेत ।।

भ म ड़ल का वग करण :-

1. सामा य भ म ड़ल :- सवतोभ म ड़ल सामा य भ है, इसका उपयोग सभी याग एवं अनु ान म
िकया जाता है।

2. शैवभ :- इसका उपयोग शैवयाग तथा तािद म करते है, िजनम एकिलङ् गतोभ , चतु िलङ् गतोभ ,
अ िलङ् गतोभ तथा ादशिलङ् गतोभ मुख है।

3. शा भ :- गौरी त, देवी स ब धी अनु ान एवं य म मुखतया गौरीितलकािद भ म ड़ल का


उपयोग िकया जाता है ।

4. गणपितम ड़ल :- ीगणेशोपासना एवं यागािद म इसका उपयोग होता है ।

5. सू यभ :- इसका उपयोग सूयस ब धी अनु ान म होता है।

6. नव हम ड़ल :- नव ह क पीठ सामा य है, तथा उनके िवशेष पीठ भी बनते है ।

7. ीरामािद के भ म ड़ल :- यह ीराम के य म बनता है।

इसी कार सभी देवताओं के मुख म ड़ल उनसे स बि धत अनु ान एवं य म बनाये जाते है ।

10.2. उ े य

1. धान देवता के पूजन हेतु म का ान ा करना।

2. भ म ड़ल के देवताओं के पूजन क िविध का ान ा करना।

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3. म का स वर पाठा यास।

10.3. िवषय व तु

सवतोभ म डल पू जन

पूविदशा म का क चौक अथवा समचतु र वेदी पर पीत व िबछाकर यथोिचत धा य अथवा अ त को


गुलाल म रं गकर धा य से 324 को क का िनमाण करते हए म ड़ल का िनमाण करना चािहए। समानभाग से
पि म से पूव तथा दि ण से उ र 18-18 को क का िनमाण करना चािहए त प ात् अधोिलिखत म से
उनम देवाताओं का आवाहन- थापन करना चािहए:-

त सद - अि मन कमिण महावे ां सवतोभ म डले ािददेवतानां थापनं पूजनं च क र ये।

ऊँ वैनाय यै नम:। वैनायक मावाहयािम थापयािम।

धानपीठ पर ािद सवतोभ म डल थ देव का आवाहन करके ग धािद से प चोपचार अचन (ग धािदिभ:
स पू य) करके व ण कलश का थापन करना चािहए।

10.4. धान पूजन

िजस िकसी भी कम के धान देवता का अचन करना हो, उस देवता का म ड़ल पूवम य म बनाना चािहए तथा
धान देवता क मूित आिद का कलश पर थापनािद पूजन करना चािहए। पूजन से पूव मूित का अ यु ारण ,
ाण ित ा आिद सं कार करना चािहए।

उपरो म का उ चारण करते हए धान मूित को शु जल से नान करवाय :-

ऊँ शु वाल: सव शु वालो मिणवाल तऽआि ना: येत: येता ो -

ण ते ायपशुपतये क णामा अविल ा रौद् ानभो पा: पा ज या:।।

ऊँ भूभव:
ु व : ............... (अमुकदेव) शु ोदक नानं समपयािम।

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त प ात् ितमा का हाथ/कु शा/दूवा से पश करते हए देवता के ाण का मूित म थापन/आवाहन करे।

ॐ आं यं रं लं वं शं षं सं हं सः सोऽहं अ यां मूत ाणा इह ाणाः।

ॐ आं अ यां मूत जीव इह ि थतः।

ॐ आं अ यां मूत सवि यािण वाड् मन व च ु ो िज ा ाणपािण पादपायूप थािन,

इहैवाग य सु खं िचरं ित तु वाहा।

मू ित म आवाहन :-

अ यै ाणा ित तु अ यै ाणा: र तु च।

अ यै देव वमचायै मामहेित च क न।।

िजस भी देवता का धान पूजन करना हो, उसी देवता का म / यान आिद से षोड़शोपचार/प चोपचार पूजन
करे । पूव ित ािपत मूितय /देवताओं का

1. गणपित का आवाहन :-

ेताङ् गं ेतव ं िसतकु सु मगणै: पूिजतं ेतग धै:,

ीरा धौ र नदीपै: सु रनरितलकं र निसं हासन थम्।

दोिभ: पाशाङ् कु शा जाभयवरदधतं च मौिलं ि ने ं,

याये शा यथमीशं गणपितममलं ीसमेतं स नम्।।

ऊँ गणाना वा गणपित हवामहे ि याणा वा ि यपित हवामहे िनधीना वा

िनिधपित हवामहे वसोमम । आहमï जािनग भधमा वमजािसग भधम्॥

ऊँ भूभव:
ु व: गणपतये नम: , गणपितमावाहयािम थापयािम।
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2. िव णु का आवाहन/ यान :-

शा ताकारं भुजगशयनं प नाभं सु रेशम्,

िव ाधारं गगन स शं मेघवण शुभाङ् गम्।

ल मीका तं कमलनयनं योिगिभ यानग यम्,

व दे िव णुं भवभयहरं सवलोकै कनाथम ।।

ऊँ इदं िव णुिवच मे ेधा िनदधेपदम्। समूढम यपा œ सु रे वाहा ।।

ऊँ भूभव:
ु व: िव णवे नम:, साङ् गाय सप रवाराय सायुधाय सशि काय सवाहनाय िव णुं
आवाहयािम/ यायािम।

3. िशव का आवाहन/ यान :-

ऊँ यायेि न यं महेशं रजतिग रिनभं चा च ावतं सम्,

र नाक पो वलाङ् गं परशुमगृ वराभीितह तं स नम्।

प ासीनं सम ता तु तममरगणै या कृ ि ं वसानम्,

िव ा ं िव व ं िनिखलभयहरं प चव ं ि ने म◌्।।

ऊँ नम: श भवाय च मयोभवाय च नम:

शङ् कराय च मय कराय च नम: िशवाय िशवतराय च ।।

ऊँ भूभव:
ु व: िशवाय नम:, साङ् गाय सप रवाराय सायुधाय सशि काय सवाहनाय िशवम्
आवाहयािम/ यायािम ।

4. महाकाली का आवाहन/ यान :-

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खड् गं च -गदेषु चाप-प रघा छू लं भुशु ड िशरः,

शङ् कं सं दधत करै ि नयनां सवा‘-भूषावृताम्।

नीला म- िु तमा य-पाद-दशकां सेवे महा-कािलकां,

याम तौ विपते हरौ कमलजो ह तुं मधुं कै टभम्।।

ऊँ अ बेऽअि बके बािलके नमानयित क न ।

सस य क: सुभि काङ् का पीलवािसनीम्। ।

ऊँ भूभव:
ु व: महाका यै नम:, साङ् गाय सप रवाराय सायुधाय सशि काय सवाहनाय महाकाली
आवाहयािम/ यायािम।

5. महाल मी का आवाहन/ यान :-

अ - परशुं गदेष-ु कु िलशं प ं धनुः कु ि डकां,

द डं शि मqस च चम जलजं घ टां सु र-ाभाजनम्।

शूलं पाश-सु दशने च दधत ह तैः स नाननाम्,

सेवे सै रभ-मिदनीिमह-महा-ल म सरोज-ि थताम् ।।

ऊँ ी ते ल मी प या वहोरा े पा े न ािण पमि नौ या म् ।

इ णि नषाणामु मऽइषाण स वलोकं म ऽइषाण।।

ऊँ भूभव:
ु व: ल यै नम: , साङ् गाय सप रवाराय सायुधाय सशि काय सवाहनाय ल मीम्
आवाहयािम/ यायािम।

6. महासर वती का आवाहन/ यान :-

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घ टा-शूल -हलािन शङ् क-मुसले च ं धनुः सायकं ,

ह ता जैदधत घना त-िवलस छीतां शु-तु य- भाम्।

गौरी-देह-समु वां ि -जगतामाधार-भूतां महा-

पूवाम सर वतीमनुभजे शु भािद -दै यािदनीम् ।।

ऊँ प चन : सर वतीमिप यि त स ोतस:। सर वती तु प चधा सो देशेऽभव स रत् ।।

ऊँ भूभव:
ु व: सर व यै नम:, साङ् गाय सप रवाराय सायुधाय सशि काय सवाहनाय सर वतीम्
आवाहयािम/ यायािम।

7. दु गा का आवाहन/ यान :-

या माया मधुकैटभ िमिथनी, या मािहषो मू िलनी,

या धू े णच डमु डमिथनी, या र बीजाशनी।

शि शुं भिनशुं भदै यदलनी, या िसि ल मीपरा,

सा च डी नवकोिटशि सिहता, मां पातु िव े री॥

ऊँ अ बेऽअि बके बािलके नमानयित क न।

सस य क: सुभि काङ् का पीलवािसनीम्।।

ऊँ भूभव:
ु व: ीमहाकाली ीमहाल मी ीमहासर वती ि गुणाि मकायै दुगादै यै नम: , साङ् गाय सप रवाराय
सायुधारय सशि काय सवाहनाय दुगाम् आवाहयािम/ यायािम।

8. ीराम का आवाहन/ यान :-

ॐ रामाय रामच ाय रामभ ाय वेधसे।

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रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।।

ना या पृहा रघुपते दयेऽ मदीये ,

स यं वदािम च भवानिखला तरा मा।

भि ं य छ रघुप‘ु व िनभरां मे,

कामािददोषरिहतं कु मानसं च ।।

काला भोधरकाि तका तमिनशं वीरासना यािसनं,

मु ां ानमय दधानमपरं ह ता बुजं जानुिन ।

सीतां पा वगतां सरो हकरां िव िु नभं राघवं,

प य तं मुकुटा‘दािदिविवधाक पो वला भजे ।।

एवं या वा मानसोपचारै ः स पू य तदुप र ‘‘ॐ नमो भगवते ीरामाय सवभूता तरा मने वासु देवाय
सवा‘सं योग योग पीठा मने नमः।

9. भैरव का आवाहन/ यान :-

करकिलतकपाल: कु डलीद डपािण-

त णितिमरनील यालय ोपवीती।

तु समयसपयािव िव छे दहेत-ु

जयित बटु कनाथ: िसि द: साधकानाम ॥

ऊँ निह शमिवद न यम माद् वै ानरा पुरऽएतारम ने ।

एमेनमवृध नमृताऽअम यं वै ानरङ् ै िज याय देवा ॥


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ऊँ भूभव:
ु व: भै रवाय नम:, साङ् गाय सप रवाराय सायुधाय सशि काय सवाहनाय भैरवम्
आवाहयािम/ यायािम।

त प ात् धानपीठ थ देव का षोड़शोपचार/यथोपचार पूजन करे ।

आसनम् -

ऊँ पु ष ऽ एवेद œ स व ू तँ च भा यम्।

उतामृत व येशानो यद नेनाितरोहित।।

ऊँ भूभव:
ु व: .... ..... ( धान देव का नाम) आसनाथ पु पं समपयािम।

पा म् -

ऊँ एतावान य मिहमातो याँ पू ष:।

पादो य ि व ा भूतािन ि पाद यामृति दिव।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) पाद ालनाथ पा ं समपयािम।

अ यम् -

ऊँ धाम तेि व भुवनमिधि तम त: समुद् े त रायुिष।

अपामनीके सिमथेय ऽ आभृत तम याम मधुम त त ऽ ऊिमम्।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) ह तयो: अ य समपयािम।

आचमनीयम् -

ऊँ इम मे व णशुधीहवमद् ा च मृडय। वामव युराचके ।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) मुखे आचमनीयं समपयािम।
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जल नानम् -

ऊँ व ण यो भनमिस व ण य क भस जनी थो

व ण य ऽ ऋतसद यिस व ण य ऽ ऋतसदनमिस व ण य ऽ ऋतसदनमासीद ।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) नानाथ जलं समपयािम ।।

प चामृ त नानम् -

ऊँ प चन : सर वतीमिपय तस ोतस:।

सर वती तु प चधासो देशेभव स रत् ।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) िमिलतप चामृत नानं समपयािम।

शु ोदक नानम् -

ऊँ शु वाल: सव शु वालो मिणवाल तऽआि ना:

येत: येता ो ण ते ायपशुपतये क णामा

अविल ा रौद् ानभो पा: पा ज या:।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) शु ोदक नानं समपयािम।

अिभषेक: (ग धािदिभ: स पू य) -

िजस देवता का पूजन कर रहे है, उसी देव के तो /अथवशीष आिद का उ चारण करते हए दु ध अथवा
यथोिचत पदाथ से से अिभषेक करे।

ऊँ भूभव:
ु व: िसि 0 महा0 अिभषेक नानं सम0। शु ोदक नानम्।

व ोपव म् -
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ऊँ सु जातो योितषा सहश म व थमासद व:।

वासो ऽ अ े िव प œ सँ यय वि वभावसो।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) व ोपव ाथ र सू ं समपयािम।

य ोपवीतम् -

ऊँ ानं थमं पुर ताि सीमत: सु चो वेनऽआव:।

सबुद् याऽउपमा अ यि व ा: सत चयोिनमसत ि वव:।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) य ोपवीतं समपयािम।

च दनम् -

ऊँ अ œ शुना ते अ œ शु: पृ यतां प षा प :।

ग ध ते सोममवतु मदायरसोऽअ युत:।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) च दनकुं कु म च समपयािम।

अ ता: -

ऊँ अ नमीमद त वि याऽअधूषत।

अ तोषत वभानवो ि व ा निव यामती योजाि व ते हरी ।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) अलङ् करणाथम् अ तान् समपयािम।

पु पािण (पु पमालां )-

ऊँ ओषिध: ितमोदद् वं पु पवती: सूवरी:।

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अ ाऽ इव सिज वरी व ध: पारिय णव:।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) पु पािण समपयािम ।

अथ अङ् गपू जनम् -

िजस देवता का पूजन कर रहे है, उसी देव के अङ् ग का पूजन करे ।

दु वाङ् कु रम् -

ऊँ का डा का डा रोह ती प ष: प ष प र।

एवा नो दू व तनु सह ेण शतेन च।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) दूवाङ् कु रािण समपयािम।

िब वप म् -

ऊँ नमो िबि मने च कविचने च नमो विमणे च व िथने च

नम: तु ाय च तु सेनाय च नमो दु दु याय चाहन याय च।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) िब वप ािण समपयािम।

शमीप म् -

ऊँ अ ने तनूरिस वाचो ि वस जन देववीतये वा गृ ािम

बृहद् ावािस वान प य: स ऽ इद देवे यो हिव: शमी व सुशिम

शमी व हिव कृ देिह हिव कृ देिह ।।

ऊँ भूभुव: व: ......... ( धान देव का नाम) शमीप ािण समपयािम।

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सु गि धत यम् -

ऊँ य बकं यजामहे सुगि ध पुि व नम् ।

उ वा किमव ब धना मृ यो मु ीयमामृतात् ।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम)सु गि धत यं समपयािम।

िस दू रम् -

ऊँ िस धो रव ाद् वने शूघनासो वात िमय: पतयि त ा:।

घृत य धारा ऽ अ षो न वाजी का ािभ द नू िमिभ: िप वमान:।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) िस दूरं समपयािम।

नानाप रमल यािण -

ऊँ अिह रव भोगै: पित बाह याया हेितं प रबाधमान:।

ह त नो ि व ा वयुनािन ि व ा पुमा पुमा œ स प रपातु ि व त:।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) प रमल यािण समपयािम।

धू पम् -

धूरिस धू वधू व तं धू व तं यो मान् धूवितत धू वयं वयं धू वाम:।

देवानामिस वि तम œ सि नतमं पि तमं जु तमं देवहतमम्।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) धूपम् आ ापयािम।

दीपम् -

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ऊँ अि न य ित य ितरि न: वाहा सू योित योित: सू: वाहा।

अि वच योित व च: वाहासू व च योितव च: वाहा।

योित: सू: सू योित: वाहा ।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) दीपकं दशयािम। ह तौ ा य।

नैवे म् - ऊँ ना याऽआसीद त र œ शी णो ौ: समव त ।

पद् यां भूिमिदश: ो ा था लोकाँ 2ऽ अक पयन् ।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) नैवे ं िनवेदयािम। म ये जलं िनवेदयािम ।

ऋतु फलम् -

ऊँ या: फलीन ऽअफलाऽअपु पाया पुि पणी:।

बृह पित सू ता तानो मु च व œ हस:।।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) फलं िनवेदयािम। पुन: आचमनीयं िनवेदयािम ।

ता बू लम् -

ऊँ उत मा यद् वत तु र यत: प ण नवेरनुवाित गि न:।

येन ये वद् जतो ऽ अङ् क स प रदिध ा ण: सह त र त: वाहा ।

ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) ता बूलं समपयािम ।

दि णा - ॐ िहर यग भर समवतता े भूत य जातइ पितरे कऽआसीत् ।

सदाधार पृिथवी ामुतेमा‘ मै देवाय हिवषा ि वधेम ।।

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ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) दि णां समपयािम ।

पु पा जिल -

िजस देवता का पूजन कर रहे है, उसी देव के तो / यान म का उ चारण करते हए पु पा जिल अिपत करे ।

ऊँ राजािधराजाय स सािहने नमो वयं वै वणाय कु महे। स मे कामान् काम कामाय म ं कामे रो वै वणो
ददातु । कु बेराय वै वणाय महाराजाय नम:॥

ऊँ वि त सा ा यं भौ यं वारा यं वैरा यं पारमे ïयं रा यं महारा यमािधप यमयं सम त पयायी यात्


सावभौम: सावायुष आ तादापरा ात् ï पृिथ यै समु पय ताया एकरािडित। तद येष शोकोिभगीतो म त:
प रवे ारो म त यावसन् गृह।े आवीि त य काम ेिव े देवा: सभासद इित ।

ऊँ िव त ु त िव तो मुखो िव तो बाह त िव त पात् ।

स बाह यां धमित स पत ै ावा भूमी जनयन् देव एक:॥

ऊँ एक द ताय िव हे व तु डाय धीमिह। त नो द ती चोदयात्: ॥

ऊँ त पु षाय िव हे महादेवाय धीमिह। त नो : चोदयात् ॥

ऊँ गणाि बकायै िव हे कमिसद् यै च धीमिह। त नो गौरी चोदयात् ॥

ऊँ का यािय यै िव हे सवश यै च धीमिह। त नो देिव चोदयात् ॥

ऊँ दशरथाय िव हे सीताव लभा च धीमिह। त नो राम् चोदयात् ॥

वमेव माता च िपता वमेव, वमेव ब धु सखा वमेव।

वमेव िव ा िवणं वमेव, वमेव सव मम देवदेव ॥

दि णा - यािन कािन च पापािन ाता ातकृ तािन च।

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तािन सवािण न यि त दि ण पदे पदे ॥

णाम - यो ऩ िपता जिनता यो ि वधाता धामािन वेदभुवनािन ि व ा ।

यो देवाना नामधाऽएकऽएव त स न भुवना य य या ॥

मा ाथना -

आवाहनं न जानािम न जानािम िवसजनम्।

पूजां चैव न जानािम म व परमे र ॥

अ यथा शरणं नाि त वमेव शरणं मम ।

त मात् का य भावेन र मां परमे र ॥

म समो नाि त पािप ïï व समो नाि त पापहा ।

इित म वा दयािस धो यथे छिस तथा कु ॥

म ेणा र हीनेन पु पेण िवकलेन च ।

पूिजतोऽिस महादेव त सव यतां मम ॥

अयं दानकाल वहं दानपा ं भवानेव दाता वद यं न याचे ।

भव ि म त: ि थरां देिह म ïं कृ पाशीलश भो कृ ताथ ऽि म य मात् ॥

य य मृ या च नामो या तपोय ि यािदषु ।

यूनं स पूणतां यातु स ो व दे तम युतम् ॥

अनेन पूजनेन सा बसदा िशव: ीयताम् ।

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िवसजनम् -

या तु देवगणा: सव पूजामादाय मामिकम् ।

इ ï काम समृद् यथ पुनरागमनाय च ॥

ितलकाशीवाद :-

ीवच वमायु यमारो यमािवधा पवमानं महीयते ।

धा यं धनं पशुं बह पु लाभं शतस व सरं दीघमायु:॥

म ाथा: सफ ला: स तु पूणा: स तु मनोरथा:।

श ू णां बुि नाशो तु िम ाणामुदय तव॥

व य तु ते कु शलम तु िचरायुर तु,

गोवािजहि त धनधा य समृि र तु ।

श ु योऽ तु िनजप महोदयोऽ तु,

वं शे सदैव भवतां ह रभि र तु॥

लोकाचार से यजमान का आरता करवाकर ि थिवसजन करावे ।

काय समाि के प ात् ा ण को भोजन करवाकर दि णा देकर सभी का आशीवाद लेवे ।

10.5. सारां श

इस इकाई के अ ययन के प ात् छा को येक माङ् गिलक काय म धान पूजन के िवषय िवशद् ान ा
हआ। साथ ही साथ सवतोभ म ड़ल के देवताओं क पूजनिविध के ान सिहत धान देवता के अचन के िलए
व ण कलश का थापन तथा धान देवता के मूित, य ािद के िनमाण समय म अि , तपन, ताड़न, अवघातािद
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दोष क िनवृि के िलए अ यु ारण तथा मूित को देवता के प म थािपत करने हेतु उसम ाण ित ा तथा
शा ीय िविध से उसका अचन करने तथा अचन से ा फल को पूणतया ा करने क िविध का ान ा
हआ।

10.6. श दावली

1. सवतोभ = सभी देवताओं क पूजन हेतु उपयोगी म ड़ल

2. शैव = िशव से स बि धत

3. शा = देवी से स बि धत

4. अ यु ारण = अि न ारा शुि करण

5. पं चप लव = पीपल, आम, गूलर, बड़, अशोक

6. स मृि का = हाथी का थान, घोड़ा, व मीक, दीमक, नदी का सं गम, तालाब, गौशाला+राज ार।

10.7. अितलघु रीय

- 1 : सवतोभ म ड़ल का िनमाण िकस िदशा म िकया जाता है ?

उ र : सवतोभ म ड़ल का िनमाण पूव िदशा म िकया जाता है ।

- 2 : सामा यतया सभी देवताओं के अचन म िकस म ड़ल का पूजन िकया जा सकता है ?

उ र : सामा यतया सभी देवताओं के अचन म सवतोभ म ड़ल का पूजन िकया जा सकता है ।

- 3 : सवतोभ म ड़ल म िकतने को क का िनमाण िकया जाता है ?

उ र : सवतोभ म ड़ल म 324 को क का िनमाण िकया जाता है ।

- 4 : सवतोभ म ड़ल म िकतने सू य का आवाहन िकया जाता है ?


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उ र : सवतोभ म ड़ल म ादश (12) सू य का आवाहन िकया जाता है ।

- 5 : नवीन मूित का शुि करण य िकया जाता है ?

उ र : अि नतपन, ताड़न, अवघातनािद दोष को दूर करने के िलए नवीन मूित का शुि करण िकया जाता है।

10.8. लघु रीय

- 1 : भ म ड़ल से आप या समझते है ? िववेचना क िजये ?

- 2 : सवतोभ म ड़ल म देवता के कौन-कौन से आयुध का पूजन िकया जाता है ?

- 3 : सवतोभ म ड़ल पर कलश थापन क िविध का वणन क िजये ?

- 4 : धान मूित अथवा य के अ यु ारणािद िविध का वणन क िजये ?

- 5 : धान पूजन क िविध बताइये ?

10.9. स दभ थ

1. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।
2. शु लयजुवदीय ा यायी स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अिखल भारतीय ा य
योितष शोध सं थान, जयपुर।
3. कमठगु : काशक - ा य काशन वाराणसी।
4. म महोदिधलेखक - मुकु द व लभ योितषाचायस पादक - ीशुकदेव चतुवदी काशक -
मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।
5. य मीमां सा स पादक - पं . वेणीराम शमा, काशक - चौख बा िव ाभवन, वाराणसी।

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इकाई — 11

हवन — करण
इकाई क परेखा

11.1. तावना

11.2. उ े य

11.3. िवषय वेश

1.4. सारां श

11.5. श दावली

11.6. अितलघु रीय

11.7. लघु रीय

11.8. स दभ थ

11.1. तावना

'यज् धातु से यज-याच-यत-िव छ- छ-र ो नङ् (3-3-30) । इस पािणनीय सू से 'नङ् यय करने पर 'य
श द बनता है । 'नङ त इस पािणनीय िलङ् गानुशासन से य श द पुि लङ् ग भी होता है । 'नङ् यय भाव
अथ म होता है िक तु 'कृ युटो बहलम् सू पर 'बहल हणं कृ मा याथ यिभचाराथम् इस िस ा त से कृ द त
के सभी यय का अथ आव यकतानुसार प रवितत िकया जा सकता है । धातु पाठ म 'यज् धातु का पाठ
िकया गया है 'धातव: अनेकाथा: इस वैयाकरण िस ा त के अनुसार कितपय आचाय ने 'यज
देवपूजासङ् गितकरणदानेषु इस पािणनीय सू के अनुसार 'यज् धातु का देवपूजा सङ् गितकरण और दान इन
तीन अथ म योग िकया गया है अथात् य म देवपूजा होती है, देवतु य तु ि महिषय का सङ् गितकरण होता
है ।
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11.2. उ े य

1. य के मह व का ान ा करना ।

2. य के वैिदक म के उ चारण का ान ा करना ।

3. य को स पािदत करने क यवहा रक िविध का ान ा करना ।

11.3. िवषय वेश

इ ािद देव का पूजन तथा स कार य कहा जाता है । िजस कम िवशेष म देवताओं के िलए अनु ान िकया
जाए उसे य कहते है । पूजा िकये जाने वाले अथात् भगवान िव णु को य कहते है। िजस काय म देवगण
पूिजत होकर तृ ह , उसे य कहते है।

धम, देश, जाित, वणा म क मयादा क र ा के िलए महापु ष को एकि त करना य कहलाता है । िव
क याण के िलए जगद् मण करके महापु ष ारा बड़े -बड़े िव ान, वैिदक मूध य या यानर नाकर लोग जहाँ
िनमि त ह , उसे य कहते है। िजस सदनु ान म अपने ब धु बा धव आिद नेिहय को पर पर सि मलन के
िलए आमि त िकया जावे तो उसे य कहते है। यथाशि देशकाल, पा ािद िवचारपुर सर यो सग करने को
य कहते है । िजसम ापूवक देवताओं के उ े य से य का याग िकया जाये उसे य कहते है। िजस कम
म याचक को स तु िकया जाये उसे य कहते है ।

य से ता पय :-

1. िजस सदनु ान ारा इ ािद देवगण स न होकर सु विृ दान करे, उसे य कहते है। िजस सदनु ान
ारा वगािद क ाि सु लभ हो, सं सार का क याण हो, आ याि मक, आिधदैिवक, आिधभौितक
िवपि याँ दूर हो, यागाङ् ग समूह के एक फल साधनाथ अपूव से यु कमिवशेष को वैिदक म के
ारा देवताओं को उ े य करके िकये हए य के दान को य कहते ह ।

2. जहाँ पर देवताओं को उ े य करके अि म य का ेप िकया जाए उसे य कहते है।

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3. यज् धातु का अथ देवपूजा आिद लोक और वेद म िस ही है, ऐसा िन के िव ान् कहते है अथवा
िजस कम म लोग यजमान से अ नािद क याचना करते ह अथवा यजमान ही देवताओं से वषा आिद
मनोकामना हेतु ाथना करता है, यजुवद के म क धानता रहती है , उसे य कहते है ।

4. देवता के ित अपने य उ सजन करना य कहलाता है ।

5. िजस कम म देवता, हवनीय य, वेदम , ऋि वज व दि णा का सं योग हो, उसे य कहते ह।

य व महाय :- य के दो भेद होते ह, एक य व दूसरा महाय । जो अपने ऐिहक व पारलौिकक क याण


के िलए पु ेि याग व िव णुयाग आिद करते ह, उसे य कहते ह तथा जो िव क याणाथ पाँच महाय आिद
करते ह, उसे महाय कहते ह। य और महाय के व प तथा इसक िवशेषता का वणन महिष भार ाज ने
इस कार िकया है। 'य : कमसु कौशलम् समि स ब धा महाय । कु शलतापूवक जो अनु ान िकया जाये उसे
'य कहते है। प ात् समि स ब ध होने पर उसी को महाय कहते है। इसी बात को महिष अङ् िगरा ने भी कहा
है-'य महाय ौ यि समि स ब धात् । यि समि से य महाय कहे जाते है।

य के भेद :- धानतया य दो कार के होते ह, ौत व मा । िु त ितपािदत य को ौतय और मृित


ितपािदत य को मा य कहते ह। ौतयाग म के वल िु त ितपािदत म का योग होता है और मा
य म वैिदक पौरािणक ताि क म का योग होता है। वेद म अनेक कार के य का वणन िमलता है ।

गौतम धमसू (8-98) म य का उ लेख िन िलिखत है । औपासन होम:, वै देवम्, पावणम्, अ का,
मािसक ा , वण, शलगव इित स पाकय सं था:। अि हो म् दशपूणमासौ, आ ग यम् चातु मा यािन
िव ढ़पशुब ध सौ ामिण िप डिपतृ य दयो हिवहोम इित स हिवय सं था:। अि ोम अ यि ोम, उ य:,
षोडशी, बाजपेय:, अितरा :, आ ोयिम इित स सोम सं था:। गौतमधम सू कार ने पाकय , हिवय , सोमय
भेद से तीन कार के य का भेद बताकर येक के सात-सात भेद बताकर 21 कार के य का उ लेख
िकया है। वतमान समय म ौत य का चार नह के बराबर है। गृ सू ो पाक य का चार िकसी न
िकसी प म अव य चिलत है। उपयु 14 वैिदक य व 7 पाकय के अित र गृ सू और धमसू म
प चमहाय , य , िपतृय , देवय , भूतय और मनु यय प चमहाय के अ तगत ही आते ह ।

य क ाचीनता :- सनातन धम (िह दू जाित का) ाचीन धम थ वेद है। वेद म कमका ड, उपासनाका ड
व ानका ड, इन तीन िवषय का मु यत: वणन िमलता है िक तु इन तीन म धान थान 'कमका ड को ही
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ा है। इसिलए वेद म य यागािद िविवध ि या कलाप को ही य थान ा है । वेद म के िबना य नह


हो सकते ह और य के िबना वेदम का ठीक-ठीक सदुपयोग भी नह हो सकता है , अत: प है िक वेद है
तो य है और य है तो वेद है । ऋ वेद के थम म 'अि मीले पुरोिहतम् म 'य पद आया है अत: िस होता
है िक वेद से ाचीन य है । अब अनेक ऋिष महिषय के उन वचन को उ तृ करते है िजनसे य के मह व का
सु दर प से प रचय हो सके गा ।

''अ ना वि त भू तािन पज याद नस भव:।

य ा वित पज यो य : कमसमु व:॥ (गीता, 3-14)

अथात् सम त ाणी अ न से उ प न होते है और अ न क उ पि वषा से होती है, वषा य से होती है तथा य


कम से होता है।

''अ ौ ि ाहित: स यगािद यमु पित ते।

आिद या जायते वृि : वृ ेर नं तत: जा।। (मनु मृित, 3-17)

अथात् अि म िविध-िवधान पूवक दी गयी आहित सू यदेव को ा होती है, बाद म उससे वृि होती है। वृि से
अ न होता है तथा अ न से जा क उ पि होती है।

य कता श े लोके वसते शा ती समा:।

दानी चा ीमसं तीसौरं व यलम् ।।

अथात् य करने वाला यि इ लोक म सैकड़ , हजार वष पय त िनवास करता है, दान करने वाला मनु य
सू यलोक को ा करता है।

य ेन देवा िवमलिवभाि त, य ेन देवा अमृ त वामा यु ु :।

य ेन पापैबहिभिवमु : ा ोित लोकान् परम य िव णो:।। (महिष हारीत)

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अथात् य से सभी लोको म िनमलता व सु दरता को ा करता है। य से देवगण अमर व को ा करते ह।
य से अनेक कार के पाप को ालन करके ाणी भगवान िव णु के परम वै णवधाम को ा करते है ।

य ािदिभदवा: शि सु खािदनाम् ।। (महिष अङ् िगरा) अथात् य करने से देवगण स तु होते है, उनक स तु ता
से मनु य शि व सु खािद ा करता है ।

कु ड व थि ड़ल के अभाव म लौहपा म हवन का िवधान :-

अथाि काय व यािम कु ड़े वा थि ड़लेऽिप वा ।

वे ां वा यायसे पा े मृ मये वा नवे शु भे ।।

यिद हवन के िलए कु ड - थि ड़लािद स भव न हो तो लोहे के पा म या िम ी के नये पा म हवन कराने क


भी शा म स मित है ।

हवन म अि का िवचार :- हवन के काय म अरिण से उ प न, सू यका तमिण से उ प न और ोि य के घर


क अि उ म मानी गयी है, अपने घर क अि म यमफलदायी होती है ।

देवल के मतानु सार अि वलन :- हवन म अि को प ा, हाथ, छाजला, कपड़ा और पंखे से विलत
नह करना चािहए। प े से रोग, हाथ क हवा से मृ यु, शूप से धननाश, व से यथता ओर पं खे से दु:ख ा
होता है ।

हवन यो य अि :- छो दो योप रिश के अनुसार वालाहीन और अङ् गारहीन अि न म हवन नह करना


चािहए। अ विलत अि म हवन करने से यजमान रोगी और द र हो जाता है । कािपल मृित का भी यही मत
है िक दी वालायु अि म ही हवन करना चािहए ।

ु क् से ही आहित देवे :-

चु ् के िबना हाथ से आहित देने पर होता अपने यजमान को वगलोक से युत कर देता है। अत: कु ् से ही
हवन करे । अि कु ड म हत िकया गया पुरोड़ाश कु ड से अ य नह िगरना चािहए ।

अि निज ाओं के नाम, िदशा एवं उनम का य कम :-


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अि िज ा िदशा का य कम

काली पूव शाि तक और पौि क कम

कराली अि नकोण शाि तक और पौि क कम

मनोजवा दि ण अिभचा रक कम

सु लोिहता नैऋ य उ चाटन

धू वणा पि म -

फु िलङ् िगनी वाय य -

िव िच उ र सवकाय िसि दायक

चलायमाना - -

अ य मत से वाच पित के अनुसार कराली, धूिमनी, ेता, लोिहता, नीललोिहता, सु पणा और प रागा ये अि
क सात िज ाय है ।

सं हकार के मतानुसार िववाह म पि म क िज ा, उपनयन म उ रिदशा क िज ा, िपतृकम म दि णिदशा क


िज ा, सभी काय म अि कोण क और उ अनु ान म ईशानकोण क अि िज ा का उपयोग श त है ।

य म ा घृत :-

गाय का घृत य म उ म माना गया है, भस का म यम तथा बकरी का घृत िनकृ बताया गया है ।

आ य के अभाव म अ य (िपङ् गल के मत से) :-

भर ाज ऋिष का मत है िक सव घृत ही काम म लेना चािहए, तैल कभी नह तथािप कायिवशेष के अनुसार
आ य के अभाव म ितल का तैल लेना चािहए । यिद यह भी नह िमले तो यव, ीिह या यामक धा य के

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आटे को जल म िमलाकर उससे काम िनकाल लेना चािहए। वृ के भी तैल िलए जा सकते है, िक तु पु नाग,
अरीठा व एर ड़ का तैल िनिष है।

पू णपा :- भोजन पया मा ा म िजस पा म हो जाये, उसके समान पा को पूणपा के प म हण करना


चािहए। यह पूणपा यव या ीिह से भरना चािहए । सामा यत: य क पूणता हेतु चार पूणपा का उपयोग
होता है, घृत-चावल-बूरा-ितल से पू रत चार पूणपा जो िक आचाय , ा आिद को िदये जाते ह ।

य साम ी लाने हेतु िनयम :- शङ् ख मृित के अनुसार य क सिमधाय, पु प-कु शा आिद को ा ण वयं
ही लावे, अ य ( ि य,वै य के अित र - पूवकाल म जाित का िनधारण कम से होता था, न िक ज म से) के
लाने पर कमफल न हो जाता है। यिद कोई अ य जाित का यि ले भी आता है, तो उन दभा-सिमधा आिद
व तु ओ ं का वेदो पवमान सू से ो ण करना चािहए ।

िबना दभाधारण िकये हए स या करना, िबना जल िलये हए दान-सङ् क प करना और िबना िगनती िकये हए
जप करना िन फल हो जाता है।

ौत- मात य म हरे रं ग क दभा, िक तु प चमहाय म पीतवण वाली दभा, वै देव कम म क माष दभाय
और िपतृकम म जड़वाली दभाय लेनी चािहए। दभा के अभाव म दूवा

दभा, कृ णमृगचम, म , ा ण, हिव, य ाि याँ सदैव पिव रहते है, इ ह बार बार काम म ले सकते है।

िजन दभाओं म से अ य अं कुर न िनकले हो, वे दभा कहलाती है, िजनम से अ य अं कुर िनकल गये हो, वे कु शा
मानी गयी है। जड़ सिहत को कु तपा कहते है और िजनक नोक टू ट गयी हो, वे घास के समान है।

कु शिनिमत ा, िव र और पिव का माण :-

पचास (50) कु शा का ा बनाया जाता है और प चीस (25) कु शा का िव र होता है। दि णावत वाला ा
बनता है और वामाव वाला िव र। अन तगभ वाला, सा भागवाला तथा ि दलवाला ादेशमा का
कु शिनिमत पिव बनता है ।

य ायु ध :-

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वु ा, चु ी, उपयमन कु शा, य, णीता, ो णी, अि हो हवनी, शूप , कृ णचम, श या, ऊखल, मूसल, षत्
और उपल, अरिण, म था, ओबली, र जु, द ड़, बिह, कू च, धरमास दी, स भरणी, शङ् कु , यूप , चमस, अ ी,
ऊखल, मुसल, इड़ापा ी आिद ौतय म काम म आने वाले पा िवशेष य ायुध है।

1. ु क् अथवा वु :- खैर या वरना क लकड़ी का वु , बनाना चािहए । इसके 24 अङ् गुल म छ: देवताओं
(अि , , यम, िव णु, श और जापित) का माण है ।

सं हकार के अनुसार शमी (सफे द क कर) का वु होना चािहए । इसके अभाव म अ य वृ का बनाया जाये,
िक तु खैर का वु सविसि दायक होता है। शौनकऋिष के अनुसार वु खैर क लकड़ी का और जुह पलाश
क लकड़ी क होती हे । वु के अभाव म पलाश से भी हवन कर सकते है और यिद पलाश (छीला) का भी
प ा न िमले तो पीपल के प से भी हवन कर सकते है ।

वु के 24 अङ् गुल म नीचे से चार-चार अङ् गुल म मश: अि , , यम, िव णु, श और जापित का
थान माना गया है। इन सभी म िव णु का थान ही सवकम म े फलदायी माना गया है।

2. ु ची :- यह 36 अङ् गुल ल बी होती है, इसका मुख इसका गौमुख के समान पु कल होता है। चु ी के
अ भाग के छठे िह से के माप के बराबर चु ीमुख क गहराई होती है। खैर क लकड़ी क चु ी बनानी चािहए
। खिदर के अभाव म पलाश, पीपल या अ य हवनीय सिमधा के वृ क का से चु ी का िनमाण िकया जा
सकता है । चु ी से हवना त म पूणाहित म गोलािग र/बताश/सु पारी को थािपत करके अि म िु च क
सहायता से घृतसिहत समिपत िकया जाता है ।

4. णीता :- बारह (12) अङ् गुल ल बा व चौकार णीता पा होता है और उसको गहराई इतनी ही होनी
चािहए िक िजसम एक थ जल भर जाये।

5. ो णीपा :- वरण लकड़ी का बना हआ बारह (12) अङ् गुल िव तृत कमलाकार ो णी पा होता है।
वरण वृ को व ण (वरना/िविल/वायवरणा/भाटवरणा/वरणी) कहते ह।

6. आ य थाली :- यह कां य क होनी चािहए तथािप उसके िवक प म िम ी के पा का भी िवधान (अित


आव यकता म) बताया गया है।

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7. च थाली :- च थाली िम ी या उदु बर क बनानी चािहए। एक भा यकार ने उदु बर क थाली को ता


क बताई है।

हिव या न :- िभ न-िभ न थ म अनेक हिव या न बताये गये है, िजनम कई जगह िवरोध भी तीत होता है
िक तु पय, यवागू, घृत, ओदन, दही, त डु ल, मधु, ीिह, यव हिव या न के प म ा है । हिव या न म ीिह
उ म माना गया है, उनके अभाव म दही या दूध से हवन का उ लेख िमलता है।

हिव के िजतने य पदाथ है, उ ह वु े से तथा कठोर य का हाथ से हवन करना चािहए।

भूख , यास या ोध से आ ा त होकर या म रिहत तथा अ विलत एवं अ यिधक धुआँ वाली अि म
हवन करना िनषेध है। कम खी िच गा रयाँ िजस अि म से िनकल रही हो, बाय ओर िजसक लपट जा रही
हो, देखने पर भयावह तीत होती हो, देखने पर काली लपटे, दुग ध यु अि म हवन करना भी िनषेध है ।

शाक य िनमाण (उदाहरणतया) :-

साम ी मा ा

ितल (कृ ण/ ेत) 1000 ाम

चावल 500 ाम

यव 250 ाम

बूरा 500 ाम अथवा ितल के समान मा ा तक

अय य गु गुल , अगर, तगर, इ जौ, कपूर काचरी, सफे द व लाल च दन का बुरादा, च दन, दशाङ् ग
धूप , मरोड़फली, िब विग र, प चमेवा, जटामां सी, भोजप , नागरमोथा, कमलग ा इ यािद।

नोट :- धान पूजन के हवन के अनुसार साम ी का चयन करे ।

हवन क मु ाय :- सामा यतया हवन के समय मृगीमु ा ारा आहित देनी चािहए ।

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मु ाय कम सं ा

1. िमली हई अनािमका-म यमा-अङ् गु से शाि तकाय म मृगी

2. तजनी रिहत यु ज हाथ से फलमूल हवन म मयूरी

3. अङ् गु यि त उ ान अङ् गुिलय से प पु प-हवन, जारण-मारण-कम


कु कु टी

4. किनि का रिहत हाथ से यव-ितल हवन, पौि क कम हंसी

5. पाँच अङ् गुिलय को एक साथ िमलाकर वशीकरण-उ चाटन सू करी

पं चभू सं कारा: (कु ड अथवा थि ड़ल म अि विलत करने से पू व प च सं कार करने चािहए -


1. प रसमू हन, 2. उपलेपन, 3. उ लेखन, 4. उ रण, 5. अ यु ण) -

गौरसषपान् िविकरयेत् (बाय हाथ म पीली सरस लेकर दाय हाथ से कु ड / थि ड़ल म िविकरण करे।) -

अप ाम तु भू तािन िपशाचा: सवतो िदशम् ।

सवषामवरोधेन हवनकम समारभे ।।

पिव ीकरणम् (कु ड / थि ड़ल म जल से िछं टा लगावे) :-

ऊँ आपो िह ामयोभुव तान ऽऊ जदधातन .... 0 ।।

1. प रसमूहनम् (दभा लेकर तीन बार कु ड / थि ड़ल पर अ यो य सामि य को ईशान क ओर हटा देवे


तथा उस कु शा को ईशान म याग देवे) - किन ाङ् गु म यत: मूलधृतैि िभदभा ै: दि णत: उद सं थं
ि : प रसमु ï। ता कु शानैशा यां प र यजेत् ।

2. गोमयोदके न उपलेपनम् (गाय का गोबर व गोमू से कु ड / थि ड़ल का लेपन करे ) - दि णत:


उद सं थं गोमयो-दके न ि पलेपयेत् ।

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3. उ लेखनम् ( वु के मूलभाग से कु ड / थि ड़ल म ादेशमा तीन रे खाय ख चे) - वु मूलेन


ादशाङ् गुला ाग ा ित ो रे खा: उ लेखयेत् ।

4. उ रणम् ( येक रे खा पर अनािमका अङ् गु से िकि चत् िम ी को पृथक् -पृथक् उठाकर ईशान क
ओर याग देवे) - ितरे खात: अं गु ानािमका यां अं गु ात् अनािमकापय तं ि वारं पां सू नु ृ य। ऐशा यां
प र यजेत् ।

5. अ यु णम् (हाथ म जल लेकर येक रेखा पर उ टे हाथ से जल डाले) - ितरे खां यु जमुि ना
ाजाप यतीथन उदके न ि र यु ेत ।

कु शकि डका

दि णतो ासनम् । (वेदी/ थि ड़ल के दि ण िदशा क ओर ासन पर कु शा से िनिमत ाजी क


थापना करते हए ाजी का '' ानं ... इ यािद म से पूजन करे )

ाणम् थापयेत।् पू जयेत।्

ाथयेत् :- याव कम समाि : यात् ताव वं ा भव ।

उ रत: णीतासनम (उ र िदशा क ओर णीता- ो णी क थापना करे ) - मृ मयं वा णीतापा ं ि वारं


वा रणापू य ।

ऊँ णय ऊँ णय ऊँ णय (बोलते हए पा म जल डाले)

प र तरणािद कम -

पहले चौसठ कु शापा ले । इनम से सोलह कु शापा लेकर अि कोण से ईशानकोण तक वेदी के पास रखे ।
िफर सोलह कु शाएँ नैऋ यकोण से वाय यकोण तक फै ला देवे। इसके प ात् अि के उ रभाग से पि म िदशा
म तीन कु शा और दो कु शा पिव ी के िलए थािपत करे । अब ो णीपा , घी के िलए कां यपा (भगोनी
अथवा कचौला) रखे। िफर वु ा, प छने के िलए तीन कु शाएँ, हाथ म रखने के िलए तीन कु शाएँ, तीन सिमधाएँ,
घी, चावल के पूण पा पूव पूव म से रखे। पिव ी के िलए रखे गये दो कु शापा को आगे से आठ अङ् गुल

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नाप कर तीन कु शाओं से तोड़ लेवे और आगे के कु शापा से पिव ी बनाकर धारण करके इसी पिव ी से यु
हाथ से णीता के जल को तीन बार ो णीपा म डाल। िफर अनािमका एवम् अङ् गु से पिव ी हण करके
जल को तीन बार ऊपर क ओर उछाल। िफर णीता का जल ो णी म िमलावे। इसके बाद ो णी पा
थािपत करके घृत के पा म घृत डाले । घी के पा को अि पर गम करे । िफर कु शा को जलाकर घी ऊपर
घुमाकर अि म छोड़ देवे। इसके बाद अधोमुख वु ा को अि पर गमकरके स माजन हेतु रखे। िफर तीन
कु शाओं को लेकर उन के अ भाग से वु ा के भीतरी एवं मूल भाग से वु ा के मूल म बाहर से प छकर णीता
के जल से वु ा को स चे। पुन: वु ा को तपाव और उसे दि ण क तरफ रख देवे, त प ात् घी के पा को अि
के ऊपर से हटाकर जैसे ो णी म से उछाला गया था वैसे ही कु शा से उछालकर उसम यिद तृण, लोम, क ट
आिद कोई व तु यिद िगर गयी हो तो उसे िनकाल कर ो णी के समान घी उछाले। िफर उपयमन हेतु रखे हए
तीन कु शा लेकर खड़े होकर ा का मन म मरण करते हए घी यु तीन सिमधाओं को अि म छोड़े , िफर
बैठकर अि के चार ओर तीन बार जलिस चन करे , त प ात् दािहना घुटना मोड़कर ा से अपने तक कु शा
रखकर विलत अि म वु ा से घी क आहित दे तथा वाहा कहते ही अि म आहित देव और इदम् कहते
ही ो णी पा म शेष घी डाल देवे।

तत: बिहष चतु रोभागाि वधायैकैकभागेन चतु िद ु अ ेण मूलमा छा वार यं प र तरे त्

1. आ ेयादीशा तम् 2. णोऽि ं पय तं

3. नैऋ याद्ï वाय या तं 4. अि त: णीतापय तम् ।

पा सादनम् -

अ े रत: पि मिदिश कु शोप र पिव छे दनािन ीिण तृणािन, पिव े ,े ो णीपा म्ï आ य थाली,
च थाली, स माजनकु शा प च ीिण वा उपमयन कु शा: स , सिमध: ित :, वु :, कु ् , आ यं, त डु ला:,
पूणपा म् , ितल-यव, हसिमध अ यद् हवनीयं च आसादयेत् - तत: कु श यं ादेशमा ं वामह ते धृ वा त
कु श यं दि णह तेन कु श योप र िनधाय, कु श यं कु श योप र दि णीकृ य िछ ात् । कु शप यं ा म्,
कु श यमु रत: ि पेत् ।

ो णीसं कार: -

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णीतासि नधौ ो णीपा ं िनधाय, सपिव ह तेन ि : िणतोदकमािस य अनािमकाङ् ग ा यामु रा े पिव े
धृ वा ि पवनम् । तत: ो णीपा ं स यह ते कृ वा अनािमकाङ् ग ा यां सपिव ं ह तेन ि िदङ् गनम्
(जलो छालनम् ) । आसािदत यािण ो णं कृ वा अि णीतयोम ये ो णीपा ं िनद यात् ।

अिध यणम्ï - आ य था यामा यं िनवा य, च था यां त डु लान् ि : ा य, णीतोदके नआिसं य,


अि म ये च ं दि णे आ यं च िनद यात् ।

ु व-सं कार: - अधोमुख वु ं ि : त य वामकरे उ ानं कृ वा, दि णकरे ण सं माजनकु शा ैमलतोऽ


ू पय तं,
मूलैबा त: सं मृ य, णीतोदके ना यु य, पुन: त य दि णत: कु शोप र िनद यात् ï। तत: आ यं चरो:
पूवणानीय अ े धृ वा, आ य पि मेन च मानीय, आ य यो रतो िनद यात् । पिव ा यामा यो पवनम् ।
अप यिनरसनम् । पुरतो िनद यात् । पिव यो: ो णी पा े िनधानम्। उपमयनकु शान् वामकरे गृही वा ित ो
घृता ा: पाला य: सिमधादाय जापितं मनसा या वा उ थाय ऊँ सिमधोऽ याधाय वाहा इ य ौ ि पेत् । तत:
उपिव य दि ण चु लकु गृहीतेन सपिव ेण ो युदके न अ े ईशानादार य ईशानपय तं दि णा मेण पयु णम्
इतरथावृि :। पिव े णीतापा े िनधाय सं वधारणाथ ो णीपा ं णीता योम ये वाय ये वा सं था य।

सङ् क प - हाथ म अ त पु प दवा लेकर सं क प कर

ऊँ िव णु िव णु िव णु : ीमद्ïभगवतो महापु ष य िव णोरा या वतमान य अिखल ा डा तगत भूम डल


म ये स ीप म यवितनी ज बू ीपे भारतवष भरतख डे आयावता तगत ावतकदेशे गंगायमुनयो: पि मभागे
नमदाया उ रे भागे अबुदार ये पु कर े े राज थान देशे गालवा म उप े े (जयप ने) अि मन् देवालये (गृह)े
देव- ा ïणानां सि नधौ ïणो ि तीयपराध रथ तरािद ाि ं श क पानां म ये अ ïमे ी ेतवाराहक पे
वायं भवु ािद म व तराणां म ये स मे वैव वतम व तरे चतु णा युगानां म ये वतमाने अ ािवं शिततमे किलयुगे
थमचरणे बौ ावतारे भवािद षि स व सराणां म येऽि मन् वतमाने अमुकनाि न स व सरे अमुकवै मा दे
िव मािद यरा यात् शािलवाहनशके अमुकायने अमुकऋत अमुकमासे अमुकप े अमुकितथौ अमुकवासरे
अमुकरािशि थते च े अमुकरािशि थते ीसू य अमुकरािशि थते देवगुरौ शेषेषु हेषु यथायथा रािश थान
ि थतेषु स सु एवं गुणगणिवशेषणे िविश ायां शुभपु य बेलायां अमुकगो : (शमा/वमा/गु /दास) अमुकोऽहं
ममा मन: िु त मृितपुराणो फल ा यथ ऐ यािभवृद् यथ अ ा ल मी ा यथ ा ल याि रकाल
सं र णाथ सकलमनईि सत कामना सं िस यथ लोके सभायां राज ारे वा सव यशोिवजयलाभािद ा यथ इह
ज मिन ज मा तरे वा सकलदु रतोपशमनाथ मम सभाय य सपु य सबा धव य अिखलकु टु बसिहत य
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सम तभय यािध जरापीड़ा-मृ यु प रहार ारा आयुरारो यै यािभवृद् यथ मम ज मराशे: नामराशे: वा सकाशा े
के िचि चतु था ïम ादश थानि थत ू र हा तै: सू िचतं सूचिय यमाणं च य सवा र ं ति नाश ारा
एकादश थान-ि थतव छु भफल ा यथ पु पौ ािद स ततेरिवि छ न वृद् यथ
आिद यािदनव हानुकूलतािस यथ ि िवधतापोपशमनाथ चतु िवध पु षाथ िस यथ हवनकम कमाङ् िगभूतं
आवािहतदेवतानां हम डल थ देवानां गौयािदमातृका स घृतमातृका वा तु-म डल थदेवतानां योिगनी-
म डल थ-देवतानां े पाल-म डल थ-देवानां भ म डल थदेवानां धानहवनं ीसू होम: ि व कृ ोम:
िद पालपूजनबिलदान च पूणाहित: सिहत वसो ारासिहत दि णादानािदसङ् क पािद च कम च अहं क र ये।

अि थापन -कां यपा थं िनधूमवि ं ि तीयपा ेण िपिहतं कु डे/ थि डले वा ( थि डलाद् बिहरा ेयां िदिश
िनधाय। यादां शं नैऋ या िदिश प र य य ।

अि ं सं था य -

ऊँ च वा र शृ ङ्गा योऽ यपादा ेशीष स ह तासो ऽ अ य।

ि धाव ो वृषभोरोरवीित महोदेवो म या 2 आिववेश॥

अि से ाथना करे :- अि के सात हाथ है, चार स ग है, सात िज ाये है, दो िसर है, तीन पैर है, स न मुख है,
सु खासन से बैठी है, उसम से ऊपर क ओर देदी यमान वालाय िनकल रही है । दािहनी ओर वाहा और बाई ं
और वधा देवी िवरािजत है, दािहने हाथ म शि , अ न, वु ा औ गु ् िलए हए है तथा बाय हाथ म तोमर,
यजन और घृतपा धारण िकये हए है, वृषभ पर सवार है, जटाधारी है, गौरवण है, धू वण क उसके वजा है ,
ने लाल है, स ािच है और अपनी ओर मुख करके मानो बैठा है - ऐसे अि देव का नम कार है।

अथ दि णजानुं पातिय वोपिव ो, िद स यह तं द वा ïणा वार ध: वु ेणा यं जुहयात् (दि ण घुटना


झुकाकर तथा बायाँ घुटना ऊपर करके बैठे तथा ाजी का अ वार ध करके वु े से घृत क आहित देवे)।

1. ऊँ जापतये वाहा (मनसा) इदं जापतये न मम ।

2. ऊँ इ ाय वाहा इदं इ ाय न मम ।

3. ऊँ अ ये वाहा इदं अ ये न मम ।
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4. ऊँ सोमाय वाहा। इदं सोमाय न मम ।

िकं िच घृत ो णीपा े ेप (अि म घृत क आहित देने के प ात् वाय यकोण म ि थत ो णीपा म
आहित प ात् वु े म शेष घी का याग करे ।) :-

अि पूजनम् :- ऊँ अि दूत पुरोदधे ह यवाहमुप वु े। देवा 2ऽ आसाद-यािदह ॥

ऊँ भूभव:
ु व: .... अ ये नम:।। ग धािदिभ: स पू य ।

व णाहित: (व णदेव के के िलए के वल घृत क आहितयाँ देवे) :-

1. ऊँ व ण यो भनमिस वाहा ।

2. ऊँ व ण य क भस जनी थो वाहा ।

3. ऊँ व ण य ऽऋतसद यिस वाहा ।

4. ऊँ व ण य ऽऋतसदनमिस वाहा ।

5. ऊँ व ण य ऽऋतसदनमासीद वाहा । अनेन हवनेन व ण: ीयताम् ।

आवािहतïदेवतानां वाहाकार: - (आवािहत देवताओंका वाहाकार)

गणेशािदप चदेवानां हवनम(गणेश सिहत पां च देवताओंका हवन)

1. ऊँ गणाना वा गणपित हवामहे ि याणा वा ि यपित हवामहे िनधीना वा

िनिधपित हवामहे वसोमम । आहम जािनग भधमा वमजािसग भधम् ॥

ऊँ भूभव:
ु व: गणपतये वाहा। गणपतये न मम ।

2. ऊँ आयङ् गौ: पृि र मीदसद मातर पुर:। िपतर च य व:।।

ऊँ भूभव:
ु व: गौ य वाहा। गौ य न मम्।
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3. ऊँ य कू म ....0।। ऊँ भूभव:
ु व: कू मायै वाहा। कू मायै न मम।

4. ऊँ नमो तु ...0॥ ऊँ भूभव:


ु व: अन तायै वाहा। अन ताय न मम्।

5. ऊँ योना ....0।। ऊँ भूभव:


ु व: पृिथ यै वाहा पृ व न मम ।

अनेन हवनेन गणप यािद देवा: ीय तां न मम ।

हम डल थ देवानां वाहाकार: ( हम डल देवताओं का वाहाका)

नव हाणां वाहाकार: (नव ह का वाहाकार)

1. ऊँ आकृ णेनरजसा वतमानो िनवेशय नमृत म य च। िहर ययेन सिवता रथेना देवो याित भुवनािन
प यन्।। - ऊँ सूयाय वाहा। (अक-सिमधा क आहित देवे)

2. ऊँ इम देवा ऽ असप न œ सु व व महते ायमहते यै ् याय महते जानरा याये येि याय।
इमममु य पु ममु यै पु म यै िवशऽएषवोमीराजासोमोऽ माकं ा णाना ठ 0 राजा।। - ऊँ च मसे
वाहा। (पलाश-सिमधा क आहित देवे)

3. ऊँ अि मू ािदव: ककु पित: पृिथ या ऽ अयम्। अपा œ रे ता œ िसिज वित।। - ऊँ भौमाय वाहा।
(खिदर-सिमधा क आहित देवे)

4. ऊँ उ ु य वा ने ितजागृिह विम ापूतस œ सृजेथामय च । अि म सध थेऽअ यु रि मि व ेदवे ा


यजमान सीदत। - ऊँ बुधाय वाहा। (अपामाग-सिमधा क आहित देवे)

5. ऊँ बृह पते ऽ अितयद ऽअहा मु ि भाित तु म जनेषु । ीदय छवसऽऋत जाततद मासु िवणं धेिह
िच म् ।। - ऊँ गुरवे वाहा। (पीपल-सिमधा क आहित देवे)

6. ऊँ अ ना प र तु ो रसं णा यिपब ं पय: सोमं जापित:। ऋतेन स यिमि यं ि वपान œ


शु म धस ऽ इ येि यिमदं पयोऽमृत मधु ।। - ऊँ शु ाय वाहा। (उदु बर -सिमधा क आहित देवे)

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7. ऊँ श नोदेवीरिभ ् यऽआपोभव तु पीतये । शँयोरिभ व तुन:।। - ऊँ शनै राय वाहा । (शमी-सिमधा


क आहित देवे )

8. ऊँ कयानि ऽआभुवदूती सदावृध: सखा । कयाशिच या वृता ।। - ऊँ राहवे वाहा । (दूवा क


आहित देवे)

9. ऊँ के तुं कृ व नके तवे पेशो माऽअपेशसे। समुषि रजायथा:।। - ऊँ के तवे वाहा। (कु शा क आहित
देवे)

अिधपित देवानां वाहाकार: (अिधपित का वाहाकार)

01. ऊँ ई राय वाहा । 02. ऊँ उमायै वाहा । 03. ऊँ क दाय वाहा ।

04. ऊँ िव णवे वाहा । 05. ऊँ ïणे वाहा । 06. ऊँ इ ाय वाहा ।

07. ऊँ यमाय वाहा। 08. ऊँ कालाय वाहा। 09. ऊँ िच गु ाय वाहा।

यािधपित देवानां वाहाकार: ( यािधपित का वाहाकार)

01. ऊँ अ नये वाहा। 02. ऊँ अद् य: वाहा। 03. ऊँ धरायै वाहा।

04. ऊँ िव णवे वाहा। 05. ऊँ इ ाय वाहा। 06. ऊँ इ ा यै वाहा।

07. ऊँ जापतये वाहा। 08. ऊँ नागे य: वाहा। 09. ऊँ णे वाहा।

िद पालानां वाहाकार: :- (िदकपाल का वाहाकार)

01. ऊँ इ ाय वाहा । 02. ऊँ अ ये वाहा । 03. ऊँ यमाय वाहा ।

04. ऊँ िनऋतये वाहा । 05. ऊँ व णाय वाहा । 06. ऊँ वायवे वाहा ।

07. ऊँ सोमाय वाहा । 08. ऊँ ईशानाय वाहा । 09 ऊँ ïणे वाहा ।

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10. अन ताय वाहा । ऊँ असं यात देर् य: वाहा ।

अनेन हवनेन हम डल थदेवतािभ: सह असं यात ा: ीय ताम् न मम।

गौयािदमातृका- वाहाकार: (गौरी आिद मातृकाओं का वाहाकार)

1. ऊँ गणपतये वाहा। 2. ऊँ गौय वाहा । 3. ऊँ प ायै वाहा।

4. ऊँ श यै वाहा। 5. ऊँ मेधायै वाहा । 6. ऊँ सािव यै वाहा।

7. ऊँ िवजयायै वाहा। 8. ऊँ जयायै वाहा । 9. ऊँ देवसेनायै वाहा।

10. ऊँ वधायै वाहा। 11. ऊँ वाहायै वाहा । 12. ऊँ मातृ य: वाहा ।

13. ऊँ लोकमातृ य: वाहा । 14. ऊँ धृ यै वाहा । 15. ऊँ पु ïï◌्यै वाहा ।

16. ऊँ तु ् यै वाहा । 17. ऊँ आ मकु लदे यै वाहा ।

स घृतमातृका वाहाकार: - (स घृत मातृकाओं का वाहाकार)

1. ऊँ ि यै वाहा । 2. ऊँ ल यै वाहा । 3. ऊँ धृ यै वाहा ।

4. ऊँ मेधायै वाहा । 5. ऊँ वाहायै वाहा । 6. ऊँ ायै वाहा ।

7. ऊँ सर व यै वाहा ।

अनेन हवनेन सगणेशगौयािदषोड़शस मातृका सिहता ीय ताम् न मम ।

वा तु-म डल थदेवतानां वाहाकार: (वा तु म डल देवताओं का वाहाकार)

1. ऊँ िशिखने वाहा । 2. ऊँ प ज याय वाहा । 3.ऊँ जय ताय वाहा ।

4. ऊँ कु िलशायुधाय वाहा । 5. ऊँ सू याय वाहा । 6. ऊँ स याय वाहा ।

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7. ऊँ भृशाय वाहा । 8. ऊँ आकाशाय वाहा । 9. ऊँ वायवे वाहा।

10. ऊँ पू णे वाहा । 11. ऊँ िवतथाय वाहा । 12. ऊँ गृह ताय वाहा ।

13. ऊँ यमाय वाहा । 14. ऊँ ग धवाय वाहा । 15. ऊँ भृङ्गïराजाय वाहा ।

16. ऊँ मृगाय वाहा । 17. ऊँ िपतृ य: वाहा । 18. ऊँ दौवा रकाय वाहा ।

19. ऊँ सु ीवाय वाहा । 20. ऊँ पु पद ताय वाहा । 21. ऊँ व णाय वाहा ।

22. ऊँ असु राय वाहा । 23. ऊँ शोषाय वाहा । 24 ऊँ पापाय वाहा ।

25. ऊँ रोगाय वाहा । 26. ऊँ अिहबु याय वाहा । 27. ऊँ मु याय वाहा ।

28. ऊँ भ लाटाय वाहा । 29. ऊँ सोमाय वाहा । 30. ऊँ नागे य: वाहा।

31. ऊँ अिदतये वाहा । 32. ऊँ िदतये वाहा । 33. ऊँ अदï◌् य: वाहा।

34. सिव े वाहा । 35. ऊँ जयाय वाहा । 36. ऊँ ाय वाहा।

37. ऊँ अय णे वाहा । 38. ऊँ सिव े वाहा । 39. ऊँ िवव वते वाहा।

40. ऊँ िवबुधािधपाय वाहा । 41. ऊँ िम ाय वाहा । 42. ऊँ राजय मणे वाहा।

43. ऊँ पृ वीधराय वाहा। 44. ऊँ आपव साय वाहा । 45. ऊँ ïणे वाहा।

46. ऊँ चर यै वाहा। 47. ऊँ िवदाय वाहा । 48. ऊँ पूतनायै वाहा।

49. ऊँ पापरा यै वाहा । 50. ऊँ क दाय वाहा । 51. ऊँ अय णे वाहा।

52. ऊँ जृ भकाय वाहा । 53. ऊँ िपिलिप छाय वाहा। 54. ऊँ इ ाय वाहा।

55. ऊँ अ ये वाहा । 56. ऊँ यमाय वाहा । 57. ऊँ िनऋ य वाहा ।

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58. ऊँ व णाय वाहा । 59. ऊँ वायवे वाहा । 60. ऊँ सोमाय वाहा ।

61. ऊँ ई राय वाहा । 6 1. ऊँ ïणे वाहा । 62. ऊँ अन ताय वाहा ।

ऊँ वा तो पते ितजानी मा वावेशोऽअनमीवो भवान:। य वे महे ितत नो जुष व शं नो भव ि पदे शं


चतु पदे । ऊँ वा तो पतये वाहा । अनेन हवनेन वा तु म डल थदेवता: ीय ताम ।

योिगनी-म डल थ-देवतानां वाहाकार: (योिगनी-म डल थ देवताओं का वाहाकार)

1. ऊँ महाका यै वाहा । 2. ऊँ महाल यै वाहा। 3. ऊँ महासर व यै वाहा ।

4. ऊँ िद ययोिग यै वाहा । 5. ऊँ महायोिग यै वाहा। 6. ऊँ िस योिग यै वाहा ।

7. ऊँ माहे य वाहा । 8. ऊँ ेता यै वाहा। 9. ऊँ डािक यै वाहा।

10. ऊँ का यै वाहा । 11. ऊँ कालरा यै वाहा। 12. ऊँ िनशाकय वाहा ।

13. ऊँ हँकाय वाहा । 14. ऊँ िसि वैतािलकायै वाहा। 15. ऊँ काय वाहा ।

16. ऊँ भूतडामरायै वाहा । 17. ऊँ ऊ वके यै वाहा। 18. ऊँ िव पा यै वाहा।

19. ऊँ शु कां यै वाहा । 20. ऊँ नरभोज यै वाहा। 21. ऊँ फे काय वाहा ।

22. ऊँ वीरभ ायै वाहा । 23. ऊँ धू ा यै वाहा। 24. ऊँ कलहि यायै वाहा ।

25. ऊँ रा यै वाहा । 26. ऊँ घोरर ा यै वाहा। 27. ऊँ िवशाला यै वाहा ।

28. ऊँ कौमाय वाहा । 29. ऊँ च ड् यै वाहा । 30. ऊँ वारा ै वाहा ।

31. ऊँ मु डधा र यै वाहा । 32. ऊँ भैर यै वाहा । 33. ऊँ वीरायै वाहा ।

34. ऊँ भयङ् कïय वाहा । 35. ऊँ व धा र यै वाहा। 36. ऊँ ोधायै वाहा।

37. ऊँ दुमु यै वाहा। 38. ऊँ ेतवािह यै वाहा। 39. ऊँ ककटायै वाहा ।


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40. ऊँ दीघल बो ïयै वाहा। 41. ऊँ मािल यै वाहा। 42. ऊँ मं योिग यै वाहा ।

43. ऊँ काला यै वाहा। 44. ऊँ मोिह यै वाहा। 45. ऊँ च ायै वाहा ।

46. ऊँ कु डिल यै वाहा। 47. ऊँ बालु कायै वाहा। 48. ऊँ कौबेय वाहा ।

49. ऊँ यमदू यै वाहा। 50. ऊँ करािल यै वाहा। 51. ऊँ कौिश यै वाहा ।

52. ऊँ यि यै वाहा। 53. ऊँ भि यै वाहा। 54. ऊँ कौमाय वाहा ।

55. ऊँ मं वािह यै वाहा। 56. ऊँ िवशालायै वाहा । 57. ऊँ कामु यै वाहा ।

58. ऊँ या ै वाहा। 59. ऊँ महारा यै वाहा । 60. ऊँ ेतभि यै वाहा ।

61. ऊँ धूजटï◌्यै वाहा। 62. ऊँ िवकटायै वाहा। 63. ऊँ घोर पायै वाहा।

64. ऊँ कपािलकायै वाहा। 65. ऊँ िनकलायै वाहा। 66. ऊँ अमलायै वाहा।

67. ऊँ िसि दायै वाहा। 68. ऊँ जयायै वाहा। 69. ऊँ िवजयायै वाहा।

70. ऊँ अिजतायै वाहा। 71. ऊँ अपरािजतायै वाहा। 72. ऊँ ेमक र्यै वाहा।

73. ऊँ ल यै वाहा। 74. ऊँ वै ण यै वाहा। 75. ऊँ पाव यै वाहा।

ऊँ योगेयोगे तव तरं वाजे वाजे हवामहे। सखाय ऽ इ मूतये ॥

अनेन हवनेन महाकालीमहाल मीमहासर वती सिहता िद यािदचतु :षि ïयोिग य: ीय ताम ।।

े पाल-म डल थ-देवानां वाहाकार: ( े पाल-म डल थ देवताओं का वाहाकार)

1. ऊँ अजराय वाहा। 2. ऊँ यापकाय वाहा। 3. ऊँ इ चौराय वाहा।

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4. ऊँ इ मू ये वाहा। 5. ऊँ उ ाय वाहा। 6. ऊँ कू मा डाय वाहा।

7. ऊँ व णाय वाहा। 8. ऊँ बटु काय वाहा। 9. ऊँ िवमु ाय वाहा।

10. ऊँ लृ काय वाहा। 11. ऊँ लीलाकाय वाहा। 12. ऊँ एकदं ï◌्राय वाहा।

13. ऊँ ऐरावताय वाहा। 14. ऊँ ओषधी ाय वाहा। 15. ऊँ ब धनाय वाहा।

16. ऊँ िद यकायाय वाहा। 17. ऊँ क बलाय वाहा। 18. ऊँ भीषणाय वाहा।

19. ऊँ गवये वाहा । 20. ऊँ घ टािभधाय वाहा। 21. ऊँ यालाय वाहा।

22. ऊँ अणु व पाय वाहा । 23. ऊँ च वा णाय वाहा। 24. ऊँ पटाटोपाय वाहा।

25. ऊँ जटालाय वाहा । 26. ऊँ तवे वाहा । 27. ऊँ घ टे राय वाहा ।

28. ऊँ िवटङ् काय वाहा । 29. ऊँ मिणमानाय वाहा । 30. ऊँ गणब धाय वाहा ।

1. ऊँ डामराय वाहा । 32. ऊँ ढु ि ढकणाय वाहा । 33. ऊँ थिवराय वाहा ।

34. ऊँ द तु राय वाहा । 35. ऊँ धनदाय वाहा। 36. ऊँ नागकणाय वाहा ।

37. ऊँ महाबलाय वाहा । 38. ऊँ फे काराय वाहा। 39. ऊँ चीकराय वाहा ।

40. ऊँ िसं हाय वाहा । 41. ऊँ मृगाय वाहा। 42. ऊँ य ि याय वाहा ।

43. ऊँ मेघवाहनाय वाहा । 44. ऊँ ती णो ाय वाहा । 45. ऊँ अनलाय वाहा ।

46. ऊँ शु लतु डाय वाहा । 47. ऊँ सु धालापाय वाहा । 48. ऊँ बबरकाय वाहा ।

49. ऊँ पवनाय वाहा । 50. ऊँ पावनाय वाहा ।

ऊँ निह पशमिवद न यम मा ै ानरा पुरऽएतारम ने:।

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एमेनमवृध नमृता ऽअम य वै ानर ै िज यायदेवा:। ऊँ े ािधशाय वाहा ।

अनेन हवनेन े पालम डल थदेवता: ीय ताम न मम।

अथ भ म डल थदेवानां वाहाकार: (भ म डल थ देवताओं का वाहाकार)

1. ऊँ ïणे वाहा। 2. ऊँ सोमाय वाहा। 3. ऊँ ईशानाय वाहा ।

4. ऊँ इ ाय वाहा। 5. ऊँ अ ये वाहा । 6. ऊँ यमाय वाहा ।

7. ऊँ िनऋतये वाहा । 8. ऊँ व णाय वाहा । 9. ऊँ वायवे वाहा ।

10. ऊँ अ ïवसु य: वाहा । 11. ऊँ एकादश देर् य: वाहा। 12. ऊँ ादशािद ये य: वाहा ।

13. ऊँ अि यां वाहा । 14. ऊँ िव े यो देवे य: वाहा । 15. ऊँ स य े य: वाहा ।

16. ऊँ अ कु लनागे य: वाहा । 17. ऊँ गं धवा सरो य: वाहा । 18. ऊँ क दाय वाहा ।

19. ऊँ नि दने वाहा । 20. ऊँ शूलकाला यां वाहा । 21. ऊँ द ािदस गणे य: वाहा ।

22. ऊँ दुगायै वाहा । 23. ऊँ िव णवे वाहा । 24. ऊँ वधायै वाहा ।

25. ऊँ मृ युरोगा यां वाहा । 26. ऊँ गणपतये वाहा । 27. ऊँ अद् य: वाहा ।

28. ऊँ म द् य: वाहा । 29. ऊँ पृिथ यै वाहा । 30. ऊँ गं गािदनदी य: वाहा ।

31. ऊँ स सागरे य: वाहा । 32. ऊँ मेरवे वाहा । 33. ऊँ गदायै वाहा ।

34. ऊँ ि शूलाय वाहा । 35. ऊँ व ाय वाहा । 36. ऊँ श ये वाहा ।

37. ऊँ द डाय वाहा । 38. ऊँ खड् गाय वाहा । 39. ऊँ पाशाय वाहा ।

40. ऊँ अं कुशाय वाहा । 41. ऊँ गौतमाय वाहा । 42. ऊँ भर ाजाय वाहा।

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43. ऊँ िव ािम ाय वाहा। 44. ऊँ क यपाय वाहा । 45. ऊँ जगद ये वाहा ।

46. ऊँ विश ाय वाहा। 47. ऊँ अ ये वाहा। 48. ऊँ अ ध यै वाहा ।

49. ऊँ ऐ यै वाहा। 50. ऊँ कौमाय वाहा। 51. ऊँ ा ह यायै वाहा ।

52. ऊँ वारा ै वाहा। 53. ऊँ चामु डायै वाहा। 54. ऊँ वै ण यै वाहा ।

55. ऊँ माहे य वाहा । 56. ऊँ वैनाय यै वाहा ।

नोट :- त प ात् धानपीठ थ देवता क यथोिचत सं या मक (108, 1008 इ यािद) आहितयाँ मूलम या
नामाविल से करवानी चािहए ।

ीसू होम: (चावल व दूध से िनिमत खीर अथवा पायसिनिमत िम ा न से ल मीहोम करवाय) -

ऊँ िहर यवणािमित प चदशच य सू य आन दकदम- िच लीतेि दरासु ता: ऋषय: ीदवता


आ ाि त ोऽनु भ: चतु थ बृहती पंचमीष ् यौ ि भौ ततोऽअ ावनु भ: अ या तारप–पं ि :
ीदवता ी यथ पायस-घृत यै: होमे िविनयोग:।

ऊँ िहर यवणा ह रण सुवणरजत जाम् ।

च ां िहर यमय ल म जातवेदोम आवह ॥1॥ ऊँ महाल यै वाहा।

ऊँ तां म आवह जातवेदो ल मीमनपगािमनीम् ।

य यां िहर यं िव देयं गाम ं पु षानहम्॥2॥ ऊँ महाल यै वाहा।

ऊँ अ पूवा रथम यां हि तनाद बोिधनीम्।

ि यं देवीमुप ये ीमादेवी जुषताम्॥ 3॥ ऊँ महाल यै वाहा ।

ऊँ कां सोि मतां िहर य ाकारामा ा वल त तृ ां तपय तीम्ï।

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प े ि थतां प वणा तािमहोप ïयेि यम्ï ॥4॥ ऊँ महाल यै वाहा।

ऊँ च ां भासां यशसा वल त ि यं लोके देवजु ामुदाराम् ।

तां पि नीम शरणमहं प े अल मीम न यतां वां वृणे ॥5॥ ऊँ महाल यै वाहा ।

ऊँ आिद यवण तपसोऽिधजातो वन पित तव वृ ोऽथ िब व:।

त य फलािन तपसा नुद तु माया तराया बा ा अल मी:॥6॥ ऊँ महाल यै वाहा।

ऊँ उपैतु मां देवसख: क ित मिणना सह।

ादुभूतो ऽि म रा ेऽि मन् क ितमृि ं ददातु मे ॥7॥ ऊँ महाल यै वाहा।

ऊँ ुि पपासामलां ये ामल म नाशया यहम् ।

अभूितमसमृि च सवाि नणुद मे गृहात् ॥8॥ ऊँ महाल यै वाहा।

ऊँ ग ध ारां दुराधषा िन यपु ां करीिषणीम्।

ई र सवभूतानां तािमहोपïये ि यम् ॥9॥ ऊँ महाल यै वाहा।

ऊँ मनस: काममाकू ितं वाच: स यमशीमिह ।

पशूनां पम न य मिय ी: यतां यश:॥10॥ ऊँ महाल यै वाहा ।

ऊँ कदमेन जाभूता मिय स भव कदम।

ि यं वासय मे कु ले मातरं प मािलनीम्ï॥11॥ ऊँ महाल यै वाहा ।

ऊँ आप: सृज तु ि न धािन िच लीत वस मे गृह।े

िन च देव मातरं ि यं वासय मे कु ले॥12॥ ऊँ महाल यै वाहा।

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ऊँ आ ा पु क रण पुि ं िपं गलां प मािलनीम् ।

च ां िहर यमय ल म जातवेदो म आवह॥13॥ ऊँ महाल यै वाहा ।

ऊँ आ ा य क रण यि ं सुवणा हेममािलनीम् ï।

सू या िहर यमय ल म जातवेदो म आवह ॥14॥ ऊँ महाल यै वाहा।

ऊँ तां म आवह जातवेदो ल मीमनपगािमनीम् ।

य यां िहर यं भूतं गावो दा यो ऽ ाि व देयं पु षानहम्॥15॥ ऊँ महाल यै वाहा।

ऊँ य: शुिच: यतो भू वा जुहयादा यम वहम्।

सू ं प चदशच च ीकाम: सततं जपेत् ॥16॥ ऊँ महाल यै वाहा।

''ऊँ ह कमले कमलालये सीद सीद ह ऊँ महाल यै वाहा ।।'' इित म ेण अ ो शतं 108
यथासं या मकं वा जुहयात् । अनने हवनेन ीमहाल मीदेवता ीयतां न मम।। जलमु सृजेत् ।।

अनेन हवनेन ीमहाल मीदेवता ीयतां न मम ॥ जलमु सृजेत ।

ि व कृ ोम:

धान यजमान अविश हवन-साम ी (शाक य) को खड़े होकर अि म ऊँ अ ये ि व कृ ते वाहा म से


समिपत करे । आ येन नवाहतय: णाऽ वार ध: (त प ात् दािहना घुटना झुकाकर घृत क आहित देकर वु े
म ि थत अविश घृत को ो णीपा म यागे) ।

1. ऊँ भू: वाहा । इदं अ ये न मम ।

2. ऊँ भुव: वाहा। इदं वायवे न मम ।

3. ऊँ व: वाहा । इदं सू याय न मम ।

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4. ऊँ व नोऽअ े व ण यि व ान् देव य हेडोऽअवयािससी ा:।

यिज ो वि हतम: शोशुचानो ि व ा ेषा िस मुमु य मत् वाहा । इदं अि व णा यां न मम।

5. ऊँ स व नो अ े ऽ वमोभवोतीनेिद ोऽअ याऽउषसो यु ौ ।

अवय वनो व ण रराणो वीिह मृडीक सु हवोनऽएिध वाहा । इदं अि व णा यां न मम।

6. ऊँ अया ा े य निभशि कतपा स यिम वमयाऽअिस।

अयानो य ं वह यया नो धेिह भेषज वाहा। इदं अ नये अयसे न मम।

7. ऊँ ये ते शतं व णये सह ं यि या: पाशािवतता महा त:।

तेिभन ऽअ सिवतोतिव णुिव े मु च तु म त: व का: वाहा।

इदं व णाय सिव े िव णवे, िव े यो देवे यो म द् य: वक य न मम।

8. ऊँ उदु मं व णपाशम मदवाधमं ि वमद् यम थाय।

अथा वयमािद य तेतवानागसोऽअिदतये याम वाहा।

इदं व णाय आिद याय अिदतये च न मम ॥

9. ऊँ जापतये वाहा । इदं जापतये न मम॥ होमा ते हपूजनम्।

िद पालपू जनबिलदान च (दश — िदशाओं म ि थत िद पाल के पूजन और बिलदान)

वेदी/ थि ड़ल के पूवािद दश िदशाओं म ि थत िद पाल के िलए दिध-माषािद पदाथ से सदीप बिलदान करना
चािहए।

1. पूव - ऊँ ातारिम मिवतारिम ठ. हवे हवे सु हव ठ. शूरिम म् ।

यािमशकं र पु हतिम œ वि तनो मघवा धाि व :। इ ाय नम:।


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2. आ ेयां - ऊँ अि दूतं पुरोदधे ह यवाहमुप वु े। देवा2ऽआसादयािदह ॥

सू यवामपा ऊँ भूभव:
ु व: सूयवामपा अ ये नम:। अ ये नम:।

3. दि णे - ऊँ माय वाङ् िगïïर वते िपतृमते वाहा। वाहा घ माय वाहा घम: िप े ।

शिन दि ण पा ऊँ भूभवु व: शिनदि णपा यमाय नम:। यमाय नम:।

4. नैऋ या - ऊँ असु व तमयजमानिम छ तेन ये यामि विह त कर य।

अ यम मिद छसात ऽ इ यानमो देिविनऋत तु यम तु ॥ नैऋित नम:।

5. पि मे - ऊँ त वायािम ïणा व दमान तदाशा ते जमानो हिविभ:।

अहेडमानो व णेहवो यु श ठ. समान ऽ आयु: मोषी:॥ व णाय नम:।

6. वाय यां - ऊँ आनो िनयुि : शितनीिभर वर ठ. सहि णीिभ- पयािह म् ।

वायो ऽ अि म सवने मादय व यूय पात वि तिभ: सदा न:॥ वायवे नम:।

7. उ रे - ऊँ वय ठ. सोम ते तवमन तनूषु िब त:। जाव त: सचेमिह ।

उ रे ऊँ भूभव:
ु व: सोमाय नम:। कु बेराय नम:।

8. ईशाने - ऊँ तमीशानं जगत त थुष पितं िधयि ज वमवसे हमहे वयम् ।

पूषा नो था वेदसामस धृ े रि ता पायुरद ध: व तये ॥ शं कराय नम:।

9. ऊ व (ईशानपूवयोम ये) -

ऊँ ान थमं पुर ताि सीमत: सु चो वेनऽआव:।

सबु या ऽ उपमा ऽ अ यिव ा: सत चोिनमसत च ि वव:॥ णे नम:।

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10. अध: (िनऋितपि मयोम ये) -

ऊँ योना पृिथिवनोभवा नृ रा िनवेशनी। च्ïछा न: शम स था:॥

अन ताय नम:।

इ ािददशिद पाला: ग धािदिभ: स पू य। (ग धा त से पूजन करे )

भो इ ािददशिद पाले य: एता सदीपान् दिधमाषा नभ बलीन् समपयािम । जलमु सृजेत् ।

ाथयेत् - भो इ ािददशिद पाला: िदशं र त बिलं भ त मम गृहे आयु: कतार: ेमकतार: शाि तकतार:
पुि कतार: फलदो वरदो भव:। एिभबिलदानै: इ ादयो दशिद पाला: ीय ताम् । जलमु सृजेत् ।

थान े पाल: (वेदी/ थि ड़ल के नैऋ यकोण म प ल अथवा पा म िस दूर से िब दु षट् कोणयु य


बनाकर यथोिचत बिलदान साम ी (यथा - कचौरी, पकौड़ी, नमक न, दही, उड़द, मालपुय , कं गन, िम ा न
आिद ) ितल के तेल से पू रत चौमुखा वाला दीपक लगाकर उसे चौराहे पर पूजन करके रख देवे ।) -

म :- ऊँ निह पशमिवद न यम माद् ै ानरा पुरऽएतारम नेड्ड ।

एमेनमवृध नम यं वै यानरङ् ै िज याय देवा:।ऊँ भूभुव: व: े ाधीशाय नम:।

ाथयेत् -

कौलीरे िच कू टे िहमिग रिशखरे, का तजाल धरे वा,

सौरा े िस धुदेश मगधपुरवरे कौशले वा किलङ् गे ।।

कणाटे कौङ् कणे वा भृगषु पु रु वरे का यकु जे ि थता वा ।।

ते सव य र ाकरणकृ तिधय: पा तु व: े पाला:।।

भो े पाल! इमं चतु वितकासिहतं सदीपदिधमाषा नबिलं गृहाण। मम गृहे आयुकता ेमकता शाि तकता
पुि कता फलदो वरदो भव:। अनेन बिलदानेन े पाल: ीयताम । बिलं चतु पदे ग छे त ।
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पू णाहित: (बताशा/सु पारी/गोलािग र से यथोिचत घी-बूरा भरकर नागरबेल के पान के प े को ऊपर लगाकर
िु च म रखकर घी डालते हए म ो चारपूवक पूणाहित करवाये) -

ऊँ अ नयस पथारा ये ऽअ माि व ािन देव व युनािन ि व ान्

योद् य मजुहरा णमेनाभ् भूिय ् ïठा तभ् नमऽउि ं ि वधेम ।

ऊँ भूभव:
ु व: पूणाह यां मृडना े वै ानराय नम: गं धािदिभ: सं पजू येत् ।

वु ेण चतु वारमा यं िु च गृही वा । त यां ना रके लफलं (सा य गोलािग र:) ता बूलं पूगीफलं वा िनधाय
पु पमालां र व ेणवेि ïतं चु ोऽप र अधोमुख वु छ नं ।

एकोनप चाशत् म णे यो नम: गं धािदिभ: सं पू य, पािण येन शंखमु या सु ्रवं सु ्रचमादाय उ थाय एवं पूणाहितं
जुहयात् । घृतेनािवि छ नधाराम ौ पातयेत् ।

ऊँ मू ानि दवोऽअरितं पृिथ या वै ानरमृतऽआजातमि म् । किव स ाजमितिथ जनानामास ना


पा जनय त देवाड् ड ॥1॥ पू णा दि वपरापत सु पू णा पुनरापत। व नेव ि व णावहा ऽ इषमू ज
शत तो वाहा॥2॥ िचि ं जुहोिम मनसा घृतेन यथा देवा इहा गमि वित।

हो ाऽऋतावृध: प येिव य भूमनो िव कमणो ि व ाहा: दा य हिव:।।3॥ ऊँ स तेऽअ ेसि मधभ्


स िज ाड् ड स ऽऋषयड् ढ स धाम ि यािण । स हो ाड् ढ स धा वा जि त स ोनीभ् रापृण व
घ तेनभ् वाहा ॥ श योित िच योित स य योित भ् योित माँ । श ऋत पा ा य
हाड् ढ॥4॥ इ ङ् या ङ् च स ङ् चभ् ितस ङ् च । िम त भ् सि मÞत भ् सभराड् ढ ॥5॥ ऋ त
स य ध व ध णु । ध ा चि वध ा च ि वधार यड् ड ॥6॥ ऋ ति ज च स यि ज च सेनि ज च
स षेण । अि तिम दभ्ऽअिम ग णड् ड ॥7॥ इभ ासऽ एता ासऽऊ षुणभ् स ास ड् ढ
ितस ासभ्ऽएतन। िम तास भ् सि मÞतासोनो अ सभरसोम तो य ेऽअि मन्॥8॥ वतवाँ घा सी
च सा तप न गृहम धी च। डी चशा क चो ज षी ॥ 9॥ उ च भी म चभ् द् व ् व ् वा त चभ्
धुिन च। सा स ाँ ािभय वा चÞ ि वि पभ् वाहा ॥ 10॥ पुन वािद या ा वसव:
सिम धता पुन ाणो वसु नीथ ै:। घृतेन व त वं व य व स या: स तु जमान य कामा:॥11॥ ना रके लफलं
(सा य गोलािग र:) ता बूलं पूगीफलं अ ौ समपयेत् । सं व ेप:॥ इदम ये वै ानराय न मम।
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वसो ारा-होम: (पूणाहित के प ात् कु ् को हटाकर िु च से शेष बचे घृत से वसो ारा हवन करवाये) -

चु ौ घृतधारां पातयेत् :- ऊँ वसोड् ढ पि व मिस श तधारभ्ं वसोड् ढ पि व मिस स ह धारम् ।

द व वा सिव ता पुनातु वसोड् ढ पि व ेण श तधारे ण स व कामधु ड् ढ ॥1॥ वाहा॥ कलशे


िकि चत् घृतं पे :।

भ मधारणम् (ऐशा यां वु ेण भ मानीय) (ऐशान कोण से सुवा के ारा भ म लेर मं के ारा यजमान को
लगाव।)

1. ऊँ यायुषं जमद ने रित ललाटे। (ललाट म भ म लगावे)

2. ऊँ क प य यायुषिमित ीवायाम्। ( ीवा म भ म लगावे)

3. ऊँ देवेषु यायुषिमित द वामबाहमूले । (दािहने हाथ म भ म लगावे)

4. ऊँ त नोऽ तु यायुषिमित िद। ( दय म लगावे)

ततोऽअ युप थानम्ï (ह तयो: अ तपु पकदलीफलं दि णा-सिहतेन गृही वा ाथयेत)् -


च वा र ा य ऽ यपादा ेशीष स ह तासोऽअ ये ि धाव ो वृषभोरोरवीित महोदेवो म या 2।।
आिववेक।।

च वा रभ् शृङ्गाभ् योऽ य पादाभ् ेशी ष स ह तासोऽअ य।

ि धाव ो वृष भोरोरवीित म होदे वो म याभर् 2॥ आिववेश॥2॥

चतु िभ चतु िभ ा यां पंचिभरे व च।

हयते च पुन ा यां त मै य ा मने नम:॥

ानतोऽ ानतो वािप म कमि यािविध:।

स पूण कु य ेश गाहप य नमोऽ तु ते॥


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यथा श हाराणां कवचं भवित वारणम् ।

त देवापघातानां शाि तभवित वारणम् ॥

वि त ां यश: ां िव ां बुि ं ि यं बलम्।

आयु यं तेजआरो यं देिह मे वाि छतं फलम् ॥ य पु षाय नम: समपयेत् ।

सं क प: (हाथ म अ त, जल, सु पाडी, पु प , दुवा लेकर सं क प बोले)

आ यकां यपा े जलं दु धं च पातयेत् वु ेण आलोड़येत् :- ( वु े जलं दु धं च आदाय)

ऊँ देशकालौ सं क य त सद मया आघारािदपूणाहितपय तं य द् यं याव ाव सं याके न येन येन मं ेण यया


यया कामनया य यै य यै देवतायै हतं सा सा देवता ीय ताम्। ते देवा: शाि तदा: पुि दा तु ि दा वरदा भव तु ।

सं व ाशनम् - ो णीपा े ि थत आ य य सप नीकयजमान: ाशनं कु यात् । तत: आचमनम्ï। ह तौ


ा य।

णीतापा े ि थतजलेन यजमान यिशरिस स ो येत् ।

ऊँ सु िम ायानऽआप ओषधय स तु ॥ (पिव े अ ौ ि पेत)्

ऊँ दुि मि या त मै स तु मान् ेि यं च वयं ि म:॥ ( णीताया ऐशा यां यु जीकरणम्)

ïणे पूणपा दानम् -

ऊँ त सद अि मन् ...... कमिण कृ ताकृ तावे ण प ïकम ित ाथ त स पूणफल ा ये च इदं त डु ल1घृत2-


शकरा3ितल4पू रतं पूणपा ं सदि णां अमुकामुक गो अमुकामुकशमणे ा णाय आचाय ासिहतेन
ïणाय तु यमहं स ददे ।

ि थ-िवमोक :-

ऊँ उि ण पते देवयं त वे महे।


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उप य तु म त: सु दानव ऽ इ ाशूभवा स चा ॥

बिहहोम :-

ऊँ देवा गातु िवदोगातुं िव वागातु िमत।

मनस पत इमं देव य ठ. वाहा वातेधाड् ढ वाहा ॥

सं क प: :- सं क प बोले

ऊँ त सद कृ तैतत् ....... (कम का नाम) कमण: साङ् गïतािसद् यथ आचायाय आचायदि णा: णे
दि णां अ यवृते य: ा णे य: स ददे।

त सद अ य ........ (कम का नाम) कमण: साङ् गï विस यथ यूनाित र दोषप रहाराथ गो य: तृणं
कपोते य: अ नं वानरे य: फलं दीनानाथे य: भूयस दि णामहं स ददे।

त सद अ य ........ (कम का नाम) कमण: साङ् गï विस यथ ा णान् ा णी वजाित अ यजाित बटु कान्
क यान यथा अ नेन् भोजिय ये।

तेन ी: कमाङ् गदेवता: ....... (कम के धान देवता) ीय तां न मम्।

कायेन वाचा मनसेि येवा, बुद् या मना वानुसतृ वभावात्।

करोिम य त् सकलं पर मै नारायणायेित समपयेत।् ।

य या मृ या च नामो या तपोय ि यािदिभ:।

यूनं स पूणतां याित स ो व दे तम युतम् ।।

मादात् पूवतां कम यवेदात् वरे षु यत्।

मरणात् देव ति णु: स पूण यािदित िु त:।।

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देविवसजनम् :- या तु देवगणा: सव पूजामादाय मामक म् ।

इ काम समृद् यथ पुनरागमनाय च ॥

अि िवसजनम् :- ग छ ग छ सु र े व थाने परमे र:।

याव तयो देव: त ग छ हताशन:।।

लोकाचारात् :- सु हािसन ा णैवा सप नीकयजमान य आराित यं (आरता) कु यात ◌्। ि थब धनं च


िवमोक:। (िववािहता ी यजमान का आरता करने के प ात् ि थब ध को मङ् गल (खोल) कर देवे।)

आशीवाद :-

ऊँ ीवच वमायु यमारो यमािवधा पवमानं महीयते।

धा यं धनं पशुं बहपु लाभं शतस व सरं दीघमायु:॥

म ाथा: सफला: स तु पूणा: स तु मनोरथा:।

श ू णां बुि नाशो तु िम ाणामुदय तव ॥

व य तु ते कु शलम तु िचरायुर तु ।

गोवािजहि त धनधा य समृि र तु ।

श ु योऽ तु िनजप महोदयोऽ तु ।

वं शे सदैव भवतां ह रभि र तु ॥

त प ात् यजमान सभी देवताओं को णाम करके सभी का आशीवाद हण करे ।

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11.4. सारां श

इस इकाई के अ ययन के प ात् छा का य ािद क समुिचत िविध का ान ा होगा। य के अ तगत


सव थम कु ड के प चभूसं कार - प रसमूहन, उपलेपन, उ लेखन, उ रण व अ यु ण क िविध अि न
थापन तथा दि ण िदशा क ओर ा का आसन तथा उ र क ओर णीता व ो णी का थापन,
प र तरण, हवनीय य का पिव ीकरण, सं हण करते हए ाजी का पू जन करते हए यथोिचत अि न का
अचन सङ् क प के साथ पूजन करण म आवािहत देवताओं के िलए शाक य (हवन-साम ी) से सव थम
गणेशाि बका, नव ह, गौ यािदमातृका, वा तु म ड़ल, योिगनीम ड़ल, े पाल, भ म ड़ल के देवताओं, िव णु
एवं िशव का यथोिचत म से हवन के साथ ीसू ारा ल मी का हवन, ि वि कृ ोम, िद पालािद पूजन व
बिलदान, े पाल पूजन करने के साथ ही पूणाहित, वसो ारा सिहत आरती व भ मधारण क िविध का ान
ा हआ।

11.5. श दावली

1. य = (यजन्) देवताओं को हवनीय य देने क िविध ।

2. चतुवद = ऋ वेद, यजुवद, सामवेद व अथवेद ।

3. कु ् = ( वु ) हवन म घी डालने का उपकरण।

4. ा = 50 कु शाओं का ि थयु ा का तीक।

5. चु ी = 36 अङ् गुला मक का िनिमत उपकरण

6. य = हवन करते समय वामह त म धारण करने हेतु खडï◌्ग पी

का िनिमत उपकरण

7. शाक य = हवनीय य

8. आ य थाली = आहित हेतु घी का काँ यपा

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9. णीतापा = कु ड अथवा वेदी के उ रिदशा म रखा जाने वाला का पा

10. हवनीय मु ा = आहित देते समय हाथ क अङ् गुिलय क मु ािवशेष

11.6. अितलघु री

- 1 : य श द से या ता पय है?

उ र : जहाँ पर देवताओं को उ े य करके अि म य का ेप िकया जाए उसे य कहते है।

- 2 : कु ् ( वु ) क ल बाई िकतने अङ् गुल क होनी चािहए ?

उ र : कु ् ( वु ) क ल बाई चौबीस (24) अङ् गुल क होनी चािहए ।

- 3 : सामा यतया हवन के समय िकस मु ा से आहित देनी चािहए ?

उ र : सामा यतया हवन के समय मृगी मु ा से आहित देनी चािहए।

- 4 : प चभूसं कार के नाम बताइये ?

उ र : प चभूसं कार - 1. प रसमूहन, 2. उपलेपन, 3. उ लेखन, 4. उ रण व 5. अ यु ण।

- 5 : पूणाहित के प ात् भ मधारण हेतु भ म िकस कोण से ली जाती है ?

उ र : पूणाहित के प ात् भ मधारण हेतु भ म ईशानकोण से ली जाती है ।

11.7. लघु रीय

- 1 : य श द क िववेचना क िजये ?

- 2 : य म यु उपकरण (आयुध) का वणन क िजये ?

- 3 : ीसू के अ तगत िकन-िकन म से आहित दी जाती है ?

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- 4 : ि व कृ ोम के प ात् दी जाने वाली घी क नवाहितय क िववेचना क िजये ?

- 5 : पूणाहित क िविध का िव तार से िववेचन क िजये ?

11.8. स दभ थ

1. हवना मक दुगास शतीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर ।

2. शु लयजुवदीय ा यायीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अिखल भारतीय ाय


योितष शोध सं थान, जयपुर।

3. कमठगु : स पादक - ी शुकदेव चतुवदी काशक - मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।

4. म महोदिध लेखक - मुकु द व लभ योितषाचाय काशक - ा य काशन, वाराणसी ।

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इकाई — 12

आरती का मह व
इकाई क परेखा

12.1. तावना

12.2. उ े य

12.3. िवषय वेश

12.4. म पु पा जिल

12.5. सारां श

12.6. श दावली

12.7. अितलघु रीय

12.8. लघु रीय

12.9. स दभ थ

12.1. तावना

आरती को ''आराितक अथवा ''नीराजन भी कहते है। पूजा के अ त म आरती क जाती है । पूजन म जो भी
ु िटयाँ (म हीन/ि याहीन/अशुि आिद) रह जाती है, उनक पूित आरती के ारा क जाती है। क दपुराण के
अनुसार :-

म हीनं ि याहीनं यत् कृ तं पू जनं हरे:। सव स पू णतामेित कृ ते नीराजनं िशवे।।

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भगवान् ी नारायण च धारी िव णु क आरती को देखने मा से ही परमपु य िमलता है तथा वह जातक अ य


सात ज म तक के वल ा ण योिन म ही ज म लेता है । यथा -

नीराजनं च य: प येद देवदेव य चि ण:। स ज मिन िव : याद ते च परमं पदम ।।

जो सदा धूप और आरती को देखता है और दोन हाथ से आरती लेता है , वह अपने वं श का उ ार करता है।
आरती म मूलम (िजस देवता का िजस म से पूजन िकया हो) के ारा तीन बार पु पा जिल देनी चािहए
और मृदङ् ग, शङ् ख, घिड़याल आिद वा य सिहत जयकार के उ चश द व मधुर श द से शुभपा म घी या
कपूर से िवषम सं या क अनेक बि य से आरती करनी चािहए ।

तत मू लम ेण द वा पु पा जिल यम् । महानीराजनं कु या महावा जय वनै : ।।

वलयेत् तदथ च कपूरेण घृतेन वा । आराितकं शु भे पा े िवषमानेकवितकम् ।।

सामा यतया पाँच बि य से आरती क जाती है, इसे ''प च दीप भी कहते है। एक, सात या उससे भी अिधक
बि य से भी आरती क जाती है। के वलमा कपूर से भी आरती क जाती है।

कु ङ् कु मागु कपूरघृतच दनिनिमता:। वितका: स वा प च कृ वा वा दीपवितकाम् ।।

कु यात् स दीपेन शङ् खघ टािदवा कै :।

कुं कु मï, अगर, कपूर, घृत, च दन अथवा ई क सात या पाँच वितका बनाकर शङ् ख-घ टा आिद मधुर व
उ च विनय से आरती करनी चािहए ।

आरती पूजन के अ त इ देव क स नता हेतु क जाती है । इसम इ देव को दीपक िदखाने के साथ ही उनका
तवन तथा गुणगान िकया जाता है ।

मु यत: आरितय का समयानुसार िवभाजन :-

1. मङ् गला 2. धूप 3. शृङ्गार 4. राजभोग

5. वाल 6. स या 7. शयन
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आरती के दो भाव है जो ''नीराजन और ''आरती से य हये है। नीराजन (िन:शेषेण राजनम् काशनम्) का
अथ है - '' शेष प से कािशत करना। अनेक दीपवितका विलत करके िव ह के चार ओर घुमाने का
अिभ ाय यही है िक स पूण िव ह नख से िशख तक कािशत हो उठे , अङ् ग यङ् ग प प से उ ािषत हो
जाये, िजसम दशक या उपासक भलीभाँित देवता का व प िनहार सके , दयङ् गम कर सके ।

आरती श द सं कृ त के आितक का ाकृ त प है, िजसका अथ है अ र । आरती का अथ है - आितिनवारण,


अिन से अपने ि यतम भु को बचाना, इस प म यह एक ताि क ि या है, िजससे विलत दीपक अपने
इ देव के चार ओर घुमाकर सारी िव -बाधा शा त क जाती है । आरती लेने से भी यही ता पय है िक उनक
''आित (क ) को अपने ऊपर लेना। बलैया लेना, बिलहारी जाना, यौछावर होना आिद सभी योग इसी भाव
के ोतक है। इसी प म आज भी येक धािमक सं कार म यजमान का भी आरता िकया जाता है।

12.2. उ े य

1. आरती से स बि धत िवषय का ान ा करना ।

2. मुख देवताओं क वैिदक व लौिकक आरितय का अ यास करना ।

3. पूजन म होने वाली ु िटय क पूित करना ।

4. पूजन का स पूण फल ा करना ।

12.3. िवषय वेश

आरती के पाँच अङ् ग होते है :-

प च नीराजनं कु यात् थमं दीपमालया। ि तीयं सोदका जेन तृतीयं धौतवाससा ।।

चतु ता थािदप ै चतु थ प रक िततम् । प चमं िणपातेन सा ाङ् गेन यथािविध ।।

आरती करने का िवधान :-

1. दीपमाला के ारा, 2. जलयु शङ् ख से ,


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3. धुले हए व से, 4. आम व पीपल के प से,

5. सा ाङ् ग द डवत् से आरती करे ।

दीपमाला से आरती उतारते समय :-

आदौ चतु : पादतले च िव णो-

नािभदेशे मुखिब ब एकम् ।

सवषु चाङ् गेषु च स वारा-

नाराि कं भ जन तु कु यात् ।।

1. सव थम भगवान् क ितमा के चरण म उसे चार बार घुमाये ,

2. दो बार नािभदेश म,

3. एकबार मुखम ड़ल पर,

4. सात बार सम त अङ् ग पर घुमाय ।

12.3.1. वैिदक आरितयाँ

(1)

ऊँ ये देवासो िद येकादश थ पृिथ यामद् येकादश थ ।

अ सु ि तो मिहनैका दश थते देवासो य िमम जुषद् वम् ॥

(2)

ऊँ आ राि पाि थव रज़ िपतु र ािय धामिभ ।

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िदव सदाœ िस बृहती ि वित सऽआ वेषँ व ते त ॥

(3)

ऊँ अि वता वातो देवता सू य देवता च मा देवता वसवो देवता द् ा

देवतािद या देवता म तो देवता िव े देवा देवता बृह पित वते ो

देवता व णो देवता ॥

(4)

ऊँ ौ: शाि तर त र ठ. शाि त: पृिथवीशि तराप: शाि त- रोषधय: शाि त:।

वन पतय: शाि तिव ेदवे ा: शाि त- ïशाि त:।

सव ठ. शाि त: शाि तरे वशाि ते सामाशाि तरे िध ि पदे चतु पदे य: शुभशाि तभवतु ॥

लौिकक आरितयाँ

1. गणेश जी क आरती

िव ने राय वरदाय सु रि याय, ल बोदराय सकलाय जगि ताय ।

नागाननाय िु तय िवभूिषताय , गौरीसु ताय गणनाथ नमो नम ते।।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।

माता जाक पावती िपता महादेवा॥

लड् डु अन को भोग लगे स त करे सेवा ।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥

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एकद त दयाव त चारभुजाधारी।

म तक िस दूर सोहे मूसे क सवा री ॥ जय गणेश0॥

अ धन को आँख देत कोिढ़न को काया ।

बाँझन को पु देत िनधन को माया॥ जय गणेश 0॥

पान चढ़े फू लचढ़े और चढ़े मेवा।

सभी काय िस करे ी गणेश देवा ॥ जय गणेश0॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।

िव िवनाशक वामी सु ख स पि देवा ॥ जय गणेश0॥

पावती के पु कहावो शङ् करसु त वामी ।

गजान द गणनायक भ न के वामी ॥ जय गणेश0॥

ऋि िसि के मािलक मूषक असवारी।

करजोड़े िवनती करे आन द उरभारी ॥ जय गणेश0॥

दीनन क लाज रखो श भुसु तवारी।

कामना को पूरी करो जग बिलहारी ॥ जय गणेश0॥

गणपितजी क आरती जो कोई नर गावे ।

तब बैकु ठ परमपद िन य ही पावै ॥ जय गणेश0॥

2 माता महाल मी क आरती

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या ी: वयं सु कृितनां भवने वल मी:

पापा मनां कृ तिधयां दयेषु बुि :।

ा सतां कु लजन भव य ल जा

तां वां नता: म प रपालय देिव िव म्॥

ऊँ जय ल मीमाता, (मै या) जय ल मी माता ।

तु मको िनिशिदन यावत, हर िव णु धाता ॥ ऊँ जय ॥

उमा, रमा, ाणी, तु म ही जग-माता ।

सू य-च मा यावत, नारद ऋिष गाता ॥ ऊँ जय ॥

दुगा प िनर जनी, सु ख-स पि -दाता ।

जो कोई तु मको यावत, ऋि -िसि धन पाता ॥ ऊँ जय ॥

तु म पाताल-िनवािसनी, तु म ही शुभदाता ।

कम- भाव- कािशनी, भविनिध क ाता॥ ऊँ जय॥

िजस घर तु म रहती, तहँ सब स ुण आता।

सब स भव हो जाता, मन नह घबराता ॥ ऊँ जय ॥

तु मिबन य न होते, व न हो पाता ।

खान-पान का वैभव सब तु मसे आता॥ ऊँ जय ॥

शुभ -गुण -मि दर सु दर, ीरोदिध-जाता।

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र न चतु दश तु म िबन कोई नह पाता॥ ऊँ जय ॥

या आरती ल मीजी क जो कोई नर गाता,

उर आन द अित उमगे पाप उतर जाता॥ ऊँ जय॥

3. अ बे मै या क आरती

मेधािस देिव िविदतािखलशा सारा

दुगािस दुगभवसागरनौरसङ् गा ।

ी: कै टभा र दयैककृ तािधवासा

गौरी वमेव शिशमौिलकृ त ित ा ॥

जय अ बे गौरी, मै या जय यामा गौरी ।

तु मको िनिशिदन यावत ह र ा िशवजी ॥

माँग िस दूर िवराजत, टीको मृगमद को ।

उ वल से दोऊ नैना, च वदन नीको ॥

कनकसमान कलेवर, र ा बर राजै ।

र पु पगले माला, क ठन पर साजै ॥

के ह रवाहन राजत, खडग ख परधारी ।

सु र-नर-मुिनजन सेवत, ितनके दु:खहारी ॥

कानन कु ड लशोिभत, नासा ेमोती ।

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कोिटकच िदवाकर, राजत सम योित ॥

शु भिनशु भ िवड़ारे , मिहषासु रघाती ।

धू िवलोचन नैना, िनिशिदन मदमाती ॥

च ड़मु ड़ सं हारे, शोिणतबीज हरे ।

मधुकैटभ दोऊ मारे , सु रभयहीन करे ॥

ाणी ाणी, तु म कमलारानी ।

आगमिनगम बखानी, तु मिशव पटरानी ॥

च सठयोिगनी गावत, नृ यकरत भैर ।

बाजत तालमृदङ् गा अ बाजत डम ॥

तु म ही जग क माता, तु म ही हो भरता ।

भ न क दु:ख हरता, सु ख स पि करता ॥

भुजाचार अितशोिभत, वरमु ाधारी ।

मनवाि छत फलपावै, सेवत नरनारी ॥

क चनथाल िवराजत, अगर कपूरबाती ।

ीमालके तु म राजत कोिटरतन योित ॥

माँ अ बेभवानी क आरती, जो कोई नर गावे ।

कहत िशवान द वामी, सु खस पि पावै ॥

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4. आरती ीदु गा जी

दुग मृता हरिस भीितमशेषज तो:

व थै: मृता मितमतीव शुभां ददािस।

दा रद् दु:ख भयहा रिण का चद या

सव पकारकरणाय सदा िच ा॥

जगजननी जय! जय!! (मा! जगजननी जय! जय!!)

भयहा रण, भवता रणी, भवभािमनी

जय! जय!! जग0 तू ही सत-िचत-सु खमय शु पा।

स य सनातन सु दर पर-िशव-सु र-भूपा ।।1।। ।। जग0।।

आिद अनािद अनामय अिवचल अिवनाशी।

अमल अन त अगोचर अज आनँदराशी ।।2।। ।। जग0।।

अिवकारी, अघहारी, अकल, कलाधारी।

कता िविध, भ ता ह र, हर सँहारकारी ।।3।। ।। जग0।।

तू िविधवधू, रमा, तू उमा, महामाया ।

मूल कृ ित िव ा तू, तू जननी, जाया ।।4Ÿ।। ।। जग0।।

राम, कृ ण तू, सीता, जरानी राधा।

तू वा छाक प ु म, हा रिण सब बाधा ।।5।। ।। जग0।।

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दश िव ा, नव दुगा, नानाश करा।

अ मातृका, योिगनी, नव नव प धरा ।।6।। ।। जग0।।

तू परधामिनवािसनी, महािवलािसनी तू ।

तू ही मशानिवहा रणी, ता डवलािसनी तू ।।7।। ।। जग0।।

सु र-मुिन-मोिहनी सौ या तू शोभाऽऽधारा ।

िववसन िवकट-स पा, लयमयी धारा ।।8।। ।। जग0।।

तू ही नेह-सु धामिय, तू अित गरलमना ।

र निवभूिषत तू ही, तू ही अि थ-तना ।।9।। ।। जग0।।

मूलाधारिनवािसिन, इह-पर-िसि दे ।

कालातीता काली, कमला तू वरदे । ।10।। ।। जग0।।

शि शि धर तू ही िन य अभेदमयी ।

भेद दिशिन वाणी िवमले! वेद यी ।।11।। ।। जग0।।

हम अित दीन दुखी मा! िवपत-जाल घेरे ।

ह कपूत अित कपटी, पर बालक तेरे ।12।। ।। जग0 ।।

िनज वभाववश जननी! दया ि क जै ।

क णा कर क णामिय! चरण-शरण दीजै।।13।। ।। जग0।।

अथ जगद बा जयवादः

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जय जगद बकद बिवहा रिण! म‘लका रिण! कामकले!

जय तनुशोभाकि पतश पे ! लसदनुक पे काि तिनधे !

जय िजतकामेऽिप जिनतकामे! धूजिटवामे। वामगते !

जय जाल धरपीठिवलािसिन! दुःख िवनािशिन! भि वशे ।।1।

नानालङ् कृ ितझङ् कृ ितशािलिन! मौि कमािलिन! के िलपरे ।

मुिनजन दयागार िनवािसिन! िव ा वािमिन! बोधघने!

सा ान दसु धारसभािसिन! वीणावािदिन! वेदनुते

जय जाल धरपीठिवलािसिन! दुःख िवनािशिनŸ भि वशे ।2।

आप लू महानलक ले ! पालनशीले! भूितखने !

िु तिजतच पकदामकलापे ! मधुरालापे ! हंसगते !

िव मरि जतश‘र दये! कृ तजगदुदये! शैलसु ते!

जय जाल धरपीठ िवलािसिन! दुःखिवनािशिन! भि वशे ।।3।।

मूले दीपककिलकाकारे ! िव ासारे ! भविस परा!

त मादपसृितकलनावृ े! मिणपुर म ये प य ती!

वा ते म यमभावाकू ता क ठे िवतता वैख रका!

जय जाल धरपीठिवलािसिन! दुःख िवनािशिन। भि वशे ।।4।।

प ादािवभवदनव े ! ेयः प े! य िददम्!

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श द तया खलु गेयं खिमवामेयं िकमिपघनम्!

प चाशि लिपभेदिविच ं वा यमा ं वमिस परे!

जय जाल धरपीठ िवलािसिन! दुःख िवनािशिन! भि वशे ।।5।।

भवभविवभवप राभवहेतो! िग रकु लके तो! भ िहते!

नानािवधवृिजनो करवा रिण! क णासा रिणाशा ततरे !

सहसो सािदतसाधक िव ने! ािन ने! सु खकिलके !

जय जाल धरपीठ िवलािसिन! दुःख िवनािशिन! भि वशे ।।6

िस दूर व चु ि बतभाले ! सेिवतहाले ! ेमभरे !

माति तामिणभवना तोिनभरका ते । िवततततम्।

सो कं गायिस िक नरदारै ः साकमुदारै ः पित च रतम्!

जय जाल धरपीठिवलािसिन! दुःखिवनािशिन! भि वशे ।7।

लेशं भ जय र जयिच ं िव ं फारी कु वरदे!

श ंु मदय वधय शि ं भि ं सा ीकु सरले!

नाि त कृ पािनिधर ब! व ो म ो म तमो न िशवे!

जय जाल धरपीठ िवलािसिन! दुःखिवनािशिन भि वशे ।।8।

व ाल‘रणायाः व ातिटनी िवहारशीलायाः!

व े याः तवमेतं पठतां स‘ छतां ेयः ।।9।।

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िशवजी क आरती

कपूर गौरं क णावतारं सं सार सारं भुजगे हारम्।

सदा वस तं दयारिव दे भवं भवानी सिहतं नमािम॥

ऊँ जय िशव ओङ् कारा हो िशव पावती यारा

ा िव णु सदा िशव अ ाङ् गी धारा ॥ 1॥ ऊँ हर हर हर महादेव ॥

एकानन चतु रानन प चानन राजै।

हंसासन ग ड़ासन वृषवाहन साजै॥ 2॥ ऊँ हर0॥

दोयभुज चार चतुभजु दशभुज ते सोहै।

तीनो प िनरखता ि भुवनजन मोहै॥ 3॥ ऊँ हर0॥

अ माला वनमाला डमाला धारी।

च दन मृगमद च दा भाले शुभकारी ॥4॥ ऊँ हर0॥

ेता बर पीता बर बाघ बर अं ग।े

सनकािदक भुतािदक भूतािदक सं गे॥ 5॥ ऊँ हर0॥

कर म ये कम डलु च ि शूल धरता।

जगकता जगहता जगपालनकता ॥ 6॥ ऊँ हर0॥

ा िव णु सदािशव जानत अिववेका।

णवा र ऊँ म ये ये तीन एका ॥ 7॥ ऊँ हर0॥

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काशी मे िव नाथ िवराजत न दी ïचारी।

िनत उठ भोग लगावत मिहमा अितभारी॥ 8॥ ऊँ हर0॥

ि गुण वामी क आरती जो कोई नर गावे।

भणत िशवान द वामी मनवाि छत फ ल पावै॥ 9॥ ऊँ हर0॥

ऊँ जै िशव ओङ् कारा, हो मन भज िशव ऊँकारा, हो मन रट िशव ओङ् कारा, हो िशव गल डन माला,
हो िशव ओढ़त मृगछाला, हो िशव पीते भं ग याला, हो िशव रहते मतवाला, हो िशव पावती यारा, हो िशव
ऊपर जलधारा, जटा म गङ् ग िवराजत, म तक पे च िवराजत रहते मतवाला ॥ ऊँ हर.॥

7. िशव—आराित यम्

ऊँ यायेि न यं महेशं रजतिग रिनभं चा च ावतं सम्,

र नाक पो वलाङ् गं परशुमगृ वराभीितह तं स नम् ।

प ासीनं सम ता तु तममरगणै या कृ ि ं वसानम्,

िव ा ं िव व ं िनिखलभयहरं प चव ं ि ने म्।।

ऊँ जय गङ् गाधर हर जय िग रजाधीशा,

िशव जय िग रजा धीशा

वं मां पालय िन यं-2 कृ पया जगदीशा,

ऊँ हर हर हर महादेव ॥

कै लाशे िग र िशखरे क प ु म िविपने ।

गु जित मधुकर पु जे -2 कु जवने गहने ॥ ऊँ हर हर हर महादेव॥

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कोिकल कू जित खेलित हंसावन लिलता ।

रचयित कला कलापं नृ यित मुद सिहता ॥ ऊँ हर हर हर महादेव ॥

ति मं लिलत सु देशे शाला मिण रिचता ।

त म ये हर िनकटे गौरी मदु सिहता ॥ ऊँ हर हर हर महादेव ॥

डा रचयित भूषा रि जत िनजमीशम् ।

ािदक सु र सेिवत णमित ते शीषम् ॥ ऊँ हर हर हर महादेव ॥

िबबुधवधूबहनृ यित दये मुद सिहता ।

िक नर गानं कु ते स वर सिहता ॥ ऊँ हर हर हर महादेव ॥

िधनकत थै थै िधनकत मृदङ् ग वादयते।

वण वण लिलता वेणु मधुरं नादयते ॥ ऊँ हर हर हर महादेव॥

णु णु चरणे रचयित नूपरु मु विलता।

च ावत मयित मयित कु तेतां िधक् ताम् ॥ ऊँ हर0॥

तां तां लु पचु प तां तां डम वादयते।

अङ् गु ाङ् गिल नादं ला यकतां कु ते ॥ ऊँ हर हर हर महादेव॥

कपूर िु त गौरं प चानन सिहतम्।

ि नयन शिशधर मौिलं िवषधर क ठयुतम् ॥ ऊँ हर हर हर महादेव॥

सु दर जटा कलापं पावक युत भालम्।

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डम ि शूल िपनाकं करधृत नृकपालम् ॥ ऊँ हर हर हर महादेव ॥

शं ख िननादं कृ वा झ लरी नादयते।

नीराजयते ा वेद ऋचां पठते ॥ ऊँ हर हर हर महादेव ॥

इित मृद ु चरण सरोजं िद कमले धृ वा ।

अवलोकयित महेशं ईशं अिभन वा ॥ ऊँ हर हर हर महादेव ॥

ख ड रिचत उरमाला प नगमुपवीतम्।

वामिवभागे िग रजा पं अित लिलतम् ॥ ऊँ हर हर हर महादेव ॥

सु दर सकल शरीरे कृ त भ माभरणम्।

इित वृषभ वज पं ताप य हरणम् ॥ ऊँ हर हर हर महादेव ॥

यानं आरित समये दये इित कृ वा।

रामं ि जटानाथं ईशं अिभन वा ॥ऊँ हर हर हर महादेव ॥

सं िगतमेवं ितिदन पठनं य: कु ते ।

िशव सायु यं ग छित भ या य: णृ तु े ॥ ऊँ हर हर हर महादेव॥

8- ी जगदीश वामी क आरती

शा ताकारं भुजगशयनं प नाभं सु रेशम्,

िव ाधारं गगन स शं मेघवण शुभाङ् गम ।

ल मीका तं कमलनयनं योिगिभ यानग यम्,

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व दे िव णुं भवभयहरं सवलोकै कनाथम ।।

ऊँ जय जगदीश हरे भु! जय जगदीश हरे ।

भ जन के सङ् कट ण म दूर करे ॥ ऊँ॥

जो यावे फलपावै, दु:ख िवनसै मनका॥ भु॥

सु ख स पि घर आवे, क िमटे तन का॥ ऊँ॥

मात-िपता तु म मेर,े शरणगहँ िकसक ॥ भु ॥

तु मिबन और न दूजा, आस क िकसक ॥ ऊँ ॥

तु म पूरण परमा मा, तु म अ तयामी ॥ भु ॥

पार परमे र, तु म सबके वामी ॥ ऊँ ॥

तु म क णा के सागर, तु म पालनक ा ॥ भु ॥

म मूरख खलकामी, कृ पाकरो भ ा ॥ ऊँ ॥

तु म हो एक अगोचर, सबके ाणपित ॥ भु ॥

िकसिविध िमलूँ दयामय! तु मको मै कु मित ॥ ऊँ॥

दीनब धु दु:खह ा तु म ठाकु र मेरे ॥ भु॥

अपने हाथ उठाओ, ार पड़ा तेरे ॥ ऊँ॥

िवषय िवकार िमटाओ, पापहरो देवा ॥ भु ॥

ाभि बढ़ाओ, स तनपद सेवा ॥ ऊँ॥

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तन, मन, धन सबकु छ है तेरा।

तेरा तु झको अपण, या लागे मेरा ॥ ऊँ ॥

ीजगदीश वामीक आरती जो कोई नर गावे,

कहत िशवान द वामी मनवाि छत फलपावै ॥ ऊँ ॥

9 आरती कु जिबहारी क

आरती कु जिबहारी क । ीिगरधर कृ णमुरा र क ।। टेक।।

गले मे वैजय तीमाला, बजावे मुरिल मधुर बाला ।

वन म कु डल झलकाला, न द के आनँद नँदलाला ।। ीिगरधर 0।।

गगन सम अङ् ग काि त काली, रािधका चमक रही आली, लतन म ठाढ़े बनमाली,

मर-सी अलक, क तू री-ितलक, च -सी झलक,

लिलत छब यामा यारी क । ीिगरधर कृ णमुरा र क ।।

कनकमय मोर मुकुट िबलसै, देवता दरसन को तरसै,

गगन स सु मन रािस बरसै,

बजे मुरचङ् ग, मधुर िमरदङ् ग, वािलनी सँग,

अतु ल रित गोपकु मारी क । ीिगरधर कु णमुरारी क ।।

जहाँ ते गट भई गङ् गा, सकल-मल-हा रणी ीगङ् गा,

मरन ते होत मोह-भङ् गा,

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बसी िसव सीस, जटा के बीच, हरै अघ क च,

चरन छिब ीबनवारी क । ीिगरधर कृ णमुरारी क ।।

चमकती उ वल तट रे न,ू बज रही बृ दावन बेन,ू

चहँ िदिस गोिप वाल धेन,ू

हँसत मृद ु म द, चाँदनी च द, कटत भव-फ द,

टेर सु नु दीन दुखा र क । ीिगरधर कृ णमुरा र क ।।

आरती कु जिबहारी क । ीिगरधर कृ णमुरा रक ।।

10 भगवान् स यनारायण क आरती

नमोऽ व ताय सह मूतये , सह पादाि िशरो बाहवे ।

सह ना ने पु षाय शा ते , सह कोटीयुगधा रणे नम:।।

जय ल मीरमणा, ील मीरमणा ।

स यनारायण वामी जन-पातक-हरणा ।। जय0।। टेक।।

र नजिटत िसं हासन अ ु त छिब राजै।

नारद करत िनराजन घ टा विन बाजै।। जय0।।

कट भये किल कारण, ि जको दरस िदयो।

बूढ़े ा ण बनकर क चन महल िकया।। जय0।।

दुबल भील कठारो, िजनक िवपि हरी।। जय0।।

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वै य मनोरथ पायो, ा तज दी ह ।

सो फल भो यो भुजी िफर अ तु ित क ह ।। जय0।।

भाव-भि के कारण िछन िछन प धय ।

ा धारण क नी, ितनको काज सय ।। जय0।।

वाल-बाल सँग राजा, वन म भि करी ।

मनवाि छत फल दी ह दीनदयालु हरी ।। जय0।।

चढ़त साद सवायो कदलीफल, मेवा ।

धूप -दीप-तु लसी से राजी स यदेवा ।। जय0।।

स यनारायणजी क आरती जो कोई नर गावै ।

तन-मन-धन स पित मन-वाि छत फल पावै ।। जय0।।

11- जानक जी क आरती -

आरती क जै जनक-ललीक । राममधुपमन कमल-कलीक । ।

रामच मुखच चकोरी । अ तर साँवर बाहर गोरी ।

सकल सु मङ् गल सु फल फलीक ।।

िपय गमग जुग ब धन डोरी। पीय ेम रस-रािश िकशोरी ।

िपय मन गित िव ाम थलीक ।।

प-रास-गुनिनिध जग वािमनी। ेम बीन राम अिभरािमनी ।

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सरबस धन ह रच द अलीक ।।

12. भगवान् जानक नाथजी क आरती -

जय जानिकनाथा, जय ीरघुनाथा ।

दोउ कर जोर िबनवौ भु! सु िनये बाता ।। टेक।।

तु म रघुनाथ हमारे ान, िपता-माता ।

तु म ही स जन सङ् गी भि -मुि दाता ।। जय0।।

लख चौरासी काटो मेटो यम- ासा।

िनिसिदन भु मोिह रािखये अपने ही पासा ।। जय0।।

राम भरत लिछमन सँग श ु हन भैया।

जगमग योित िवराजै, सोभा अित लिहया ।। जय0।।

हनुमत नाद बजावत, नेवर झमकाता ।

वणथाल कर आरती कौस या माता ।। जय0।।

सु भग मुकुट िसर, धनु सर कर सोभा भारी ।

मनीराम दशन क र पल-पल बिलहारी ।। जय0।।

13 ीरामच जी क आरती

आपदामपहतारं दातारं सवस पदाम् ।

लोकािभरामं ीरामं भूयो भूयो नमा यहम् ।।

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रामाय रामभ ाय रामच ाय वेधसे ।

रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।।

ॐ जय जानक नाथा, वामी जय ी रघुनाथा ।

दोउ कर जोरे िवनवौ, भु सु िनये बाता।। टेक।।

तु म रघुनाथ हमारे, ाणिपता माता ।

तु म ही स जन सं गी, भि -मुि दाता ।। टेक ।।

लख चौरासी काटो, मेटो यम ासा ।

िनसिदन भु मोिह रिखयो, अपने ही पासा।। टेक ।।

राम ल मण भरत श ु न, सं ग चार ाता

जगमग योित िवराजत, शोभा अित भाता ।। टेक ।।

हनुमत ताल बजावत, नेवर ठु मकाता ।

वणथाल भर आरित, करत कौस या माता ।। टेक।।

सु भग मुकुट िसर धनु, सर-कर शोभाकारी ।

राजाराम दशन कर, होवे बिलहारी ।।

जानक नाथ क आरित, जो कोई नर गाता ।

मनोवां िछत फल पाता, पाप उतर जाता ।। टेक ।।

14. ीहनु मानजी क आरती

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उ लङ् कय िस धोः सिललं सलीलं

यः शोकवङ् िघ जनका मजायाः।

आदाय तेनैव ददाहलं कां,

नमािम तं ा जिलरा जनेयम्।।

आरती क जै हनुमान लला क । दु दलन रघुनाथ कला क ।। टेक।।

जाके बल से िग रवर काँपै। रोग-दोष जाके िनकट न झाँपै।।1।।

अं जिन पु महा बलदाई। सं तन के भु सदा सहाईŸ।।2।।

दे बीरा रघुनाथ पठाये। लं का जा र सीय सु िध लाये।।3।।

लं का सो कोट समु सी खाई। जात पवनसु त बार न लाई।।4।।

लं का जा र असु र सं हारे । िसयारामजी के काज सँवारे ।।5।।

ल मण मूिछत प‹डे सकारे । आिन सजीवन ान उबारे ।।6।।

पैिठ पताल तो र जम-कारे । अिहरावन क भुजा उखारे ।।7।।

बाय भुजा असु र दल मारे । दािहने भुजा सं तजन तारे ।।8।।

सु र-नर-मुिन जन आरती उतारे । जै जै जै हनुमान उचारे ।।9।।

कं चन थार कपूर लौ छाई । आरित करत अं जना माई।।10।।

जो हनुमानजी क आरती गावै। बिस बैकु ठ परमपद पावै।।11।।

13. भगवान् सू य क आरती

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जय क यप-न दन, ऊँ जय क यप न दन।

ि भुवन-ितिमर-िनक दन भ - दय-च दन ।। टेक।।

स -अ रथ रािजत एक च धारी ।

दुखहारी, सु खकारी, मानस-मल-हारी । । जय0।।

सु र-मुिन-भूसु र-वि दत, िवमल िवभवशाली ।

अघ-दल-दलन िदवाकर िद य िकरण माली ।। जय0।।

सकल-सु कम- सिवता सिवता शुभकारी ।

िव -िवलोचन मोचन भव-ब धन भारी ।। जय0।।

कमल-समूह -िवकासक, नाशक य तापा ।

सेवत सहज हरत अित मनिसज सं तापा ।। जय0।।

ने - यािध-हर सु रवर भू-पीड़ा-हारी।

वृि -िवमोचन स तत परिहत- तधारी ।। जय0।।

सू यदेव क णाकर अब क णा क जै ।

हर अ ान-मोह सब त व ान दीजै ।। जय0।।

14. गङ् गा मैया क आरती

जय गङ् गा मैया-माँ जय सु रस र मैया ।

भव-वा रिध उ ा रिण अितिह सु ढ़ नैया ।।

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ह र-पद-प - सू ता िवमल वा रधारा ।

व भागीरिथ शुिच पु यागारा ।।

शङ् कर-जटा िबहा रणी हा रणी सकल पापा ।।

गङ् गा-गङ् गा जो जन उ चारत मुखस ।

दूर देश म ि थत भी तु रत तरत सु खस ।।

मृतक अि थ तिनक तुव जल-धारा पावै ।

सो जन पावन होकर परमधाम जावै ।।

तव तटबासी त वर, जल-थल-चर ाणी ।

प ी-पशु-पतङ् ग गित पाव िनवाणी ।।

मातु ! दयामिय क जै दीननपर दया ।

भु-पद-प िमलाकर ह र लीजै माया ।।

15. गौ माता क आरती

आरती ीगैया-मैया क । आरती-हरिन िव धैया क ।। टेक ।।

अथकाम-स म- दाियनी, अिवचल अमल मुि पददाियनी।

सु र-मानव सौभा यिवधाियनी, यारी पू य न द-छै याक ।। आरित0।।

अिखल िव ितपािलिन माता, रोग-शोक-सङ् कट प र ाता,

भवसागर िहत ढ़ नैया क ।। आरित0।।

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आयु-ओज-आरो यिवकािशिन, दु:ख-दै य-दा र ् य-िवनािशनी ।

सु षमा-सौ य-समृि - कािशनी, िवमल िववेक-बुि -दैयाक ।। आरित0।।

सेवक हो, चाहे दुखदाई, सम पय-सु धा िपयावित माई ।

श -ु िम सबको सु खदाई, नेह- वभाव-िव -जैया क ।। आरित0।।

16- ीम ागवत् क आरती

आरित अितपावन पुरानक , धम-भि -िव ान-खान क ।। टेक।।

महापुराण भागवत िनमल। शुक -मुख -िवगिलत िनगम-क प-फल।

परमान दसु धा-रसमय कल। लीला-रित-रस-रसिनधान क ।। आरित 0।।

किलमल-मथिन ि ताप-िनवा रिण। ज ममृ यु भव-भयहा रिण।

सेवत सतत सकल सु खका रिण। सु महौषिध ह र-च रत गानक ।। आरित 0।।

िवषय-िवलास-िवमोह-िवनािशनी। िवमल िवराग िववेक िवकािशनी।

भगवतï◌्-त व-रह य- कािशनी। परम योित परमा म ानक ।। आरित 0।।

परमहंस -मुिन-मन-उ लािसनी। रिसक- दय रस-रास-िवलािसनी।

भुि -मुि -रित- ेम-सु दािसनी। कथा अिक चन ि य सु जानक ।। आरित 0।।

17. ीम ग ीताजी क आरती

य योगे र: कृ णो य पाथ धनुधर:।

त ीिवजयो भूित वा
ु नीितमितमम ॥

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जय भगव ीते, माँ जय भगव ीते।

ह र-िहय-कमल-िवहा रणी सु दर सु पनु ीते।। टेक।।

कम-सु मम- कािशनी कामासि हरा।

त व- ान-िवकािशनी िव ा -परा ।। जय0।।

िन ल-भि -िवधाियनी िनमल मलहारी।

शरण-रह य- दाियनी सब िविध सु खकारी।। जय0।।

राग- ेष-िवदा रणी का रणी मोद सदा।

भव-भय-हा रिण ता रिण परमान द दा।। जय0।।

आसु र-भाव-िवनािशनी नािशिन तम-रजनी।

दैवी-स ु णदाियनी ह र-रिसका सजनी।। जय0।।

समता याग-िसखाविन, ह रमुखक बानी।

सकलशा क वािमनी, िु तय क रानी ।। जय0।।

दया-सु धा-बरसाविन मातु ! कृ पा क जै ।

ह र-पद- ेम दानकर अपनो कर लीजै ।। जय0।।

20. आरती ीरामायणजी क

आदौ रामतपोवनािधगमनं ह वा मृगं का चनं,

वैदेहीहरणं जटायुमरणं सु ीवस भाषणम्।।

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वालीिनमथनं समु तरणं लं कापुरीदाहनं ,

प ा ावणकु भकणहननं चैति रामायणम् ।।

आरती ीरामायनजी क । क रित किलत लिलत िसय पी क ।।

गावत ािदक मुिन नारद, बा मीक िब यान िबसारद ।

सु क सनकािद सेष अ सारद, बरिन पवनसु त क रित नीक ।।

गावत बेद पुरान अ दस, छओ सा सब ं थन को रस ।

मुिन जन धन सं तन को सरबस, सार अं स सं मत सबही क ।

गावत सं तत सं भु भवानी, अ घटसं भव मुिन िब यानी ।।

यास आिद किबबज बखानी, कागभुसु ि ड ग ड के ही क ।।

किलमल हरिन िबषय रस फ क , सु भग qसगार मुि जुबती क ।।

दलन रोग भव मू र मुि अमी क । तात मात सब िविध तुलसी क ।।

21. आरती ीबटु कभैरव

ॐ च डं ितच डं करधृतद डं कृ त रपुख डं सौ यकरं,

लोकं सु खय तं िवलिसतस तं किटतद तं नृ यकरम्।

डम विनम तं तरलतरं तं मधुरहस तं लोकभरं,

भज भज भूतेशं कटमहेशं भैरववेषं क हरम्।।

जय भैरव देवा भु जय भैरव देवा ।

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जय काली और गौरा देवी कृ त सेवा ।। जय0।।

तु ही पाप उ ारक दुःखिस धुतारक ।

भ के सु खकारक भीषण वपुधारक ।। जय0।।

वाहन ान िवराजत कर ि शूलधारी ।

मिहमा अिमत तु हारी जय जय भयहारी ।। जय0।।

तु म िबन देवा सेवा सफल नही होवे।

चौमुख दीपक दशन दुःख नह होवे ।। जय0।।

तेल चटिक दिध िमि त माषाबिल तेरी ।

कृ पा क िजए भैरव क रए नही देरी ।। जय0।।

पाँव घुं घ बाजत अ डम डमकावत ।

बटु क नाथ बन बालकजन मन हरषावत ।। जय0।।

बटु कनाथ क आरती जो कोई नर गावे ।

कहे धरणीधर नर मनवाि छत फल पावे ।। जय0।।

12.4. म पु पा जिल

यजमान क ह ता जली म पु पािद देकर सभी ा ण िन म का जाप करे :-

ऊँ य ेनय मयज तदेवा तािनध मािण थमा यासन ।

तेहनाक मिहमान: सच तय पूवसा या: सि तदेवा:॥

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ऊँ राजािधराजाय स सािहने नमो वयं वै वणाय कु महे ।

स मे कामान् काम कामाय म ं कामे रो वै वणो ददातु ।

कु बेराय वै वणाय महाराजाय नम:॥

ऊँ वि त सा ा यं भौ यं वारा यं वैरा यं पारमे ् यं रा यं

महारा यमािधप यमयं सम तपयायी यात् सावभौम: सावायुष

आ तादापरा ात् पृिथ यै समु पय ता या एकरािड़ती ।

तद येष ोकोिभगीतो म त: प रवे ारो म त यावसन् गृहे ।

आवीि त य काम ेिव े देवा: सभासद इित ॥

ऊँ िव त ु तिव तो मुखो िव तो बाह त िव त पात् ।

स बाह यां धमित स प ै ावा भूमी जनय देव एक:॥

ऊँ एकद ताय िव हे व तु डाय धीमिह। त नो दि त: चोदयात् ॥

ऊँ त पु षायिव हे महादेवाय धीमिह। त नो : चोदयात् ॥

ऊँ गणाि बकायै िव हे कमिसद् यै धीमिह । त नो गौरी चोदयात् ॥

सेवि तका बकु लच पक पाटला जैपनागजाितकरवीररसालपु


ु पै:।

िब व वाल तु लसीदलम जरीिभ वां पूजयािम जगदी र! मे सीद ॥

म दारमालाकु िलतालकायै कपालमालाङ् िकतशेखराय ।

िद या बरायै च िदग बराय, नम: िशवायै च नम: िशवाय ॥

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वमेव माता च िपता वमेव, वमेव ब धु सखा वमेव ।

वमेव िव ा िवणं वमेव, वमेव सव मम देव देव ॥

प ं पु पं फलं तोयं, र नािनिविवधािन च।

गृहाणा य मयाद ं देिह मे वाि छतं फलं ॥

पं देिह जयं देिह, भा यं भगवन् देिह मे।

पु ान देिह धनं देिह, सवान् कामां देिह मे॥

फलेन फिलतं सव ैला यं सचराचरम्।

फल या य दानेन सफला: स तु मनोरथा:॥

ऊँ साङ् गाय सायुधाय सावाहनाय सप रवाराय सशि काय।

ऊँ नमो ........... नम:। म पु पा जिलं समपयािम।

दि णा (च डी क एक प र मा, सू य क सात प र मा, गणेश क तीन, िव णु क चार तथा भगवान िशव


क आधी दि ण करनी चािहए।) :-

एक मै वाहा द् ा या वाहा शताय वाहैकशताय

वाहा यु यै वाहा व गाय वाहा ॥

यािन कािन च पापािन ाता ातकृ तािन च।

तािन सवािण न यि त दि ण पदे पदे॥

णाम :-

यो न िपता जिनता यो ि वधाता धामािन वेदभुवनािन ि व ा।


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यो देवाना नामधाऽएकऽएव तश् स न भुवना य य या॥

िवसजन :-

या तु देवगणा: सव पूजामादाय मामक म् ।

इ काम समृद् यथ पुनरागमनाय च ॥

ितलकाशीवाद (आचाय यजमान को सप रवार आशीवाद देवे) :-

ऊँ ीवच वमायु यमारो यमािवधा पवमानं महीयते।

धा यं धनं पशुं बहपु लाभं शतस व सरं दीघमायु:॥

म ाथा: सफला: स तु पूणा: स तु मनोरथा:।

श ू णां बुि नाशो तु िम ाणामुदय तव ॥

व य तु ते कु शलम तु िचरायुर तु।

गोवािजहि त धनधा य समृि र तु ।

श ु योऽ तु िनजप महोदयोऽ तु ।

वं शे सदैव भवतां ह रभि र तु ॥

आरती के प ात् देवताओं को णाम करके सभी का आशीवाद हण करे।

12.5. सारां श

इस इकाई के अ तगत छा को पूव म क गयी िविवध देवताओं क पूजा म मन - म-वचन-धन व साम ी के


अभाव म अथवा ात-अ ात ु िटय क पूित को पूण करने अथवा मा याचना के प म देवता क िविविध
कार से आरती का ान ा हआ। इस इकाई के मा यम से दीपक, जल, शु व , िविवध प लव, णाम के
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प म मङ् गला, धूप , शृङ्गार, राजभोग, वाल, स या एवं शयन के समय म देवताओं को स न करने के िलए
एवं अपने क के िनवारण हेतु देव ितमा के चरण पर चार बार, नािभ देश म दो बार, मुखम ड़ल पर एक बार
तथा सम त अङ् ग पर सात बार आरती करने क िविध सिहत लौिकक एवं वैिदक आरितय के अ यास का
ान ा हआ ।

12.6. श दावली

1. आरती = पूजन क ु िटय को दूर करने क िविध

2. कपूर = वलनशील पदाथ

3. मङ् गला आरती = मुह म क जाने वाली मङ् गल आरती

4. वाल आरती = गोधुिल के समय क जाने वाली आरती

5. वितका = ई से बनी हई ब ी

6. वा य = आरती के समय बजाने यो य य (मृदङ् ग, शङ् ख, घिड़याल, घ टा आिद)

7. आतिनवारण = क से मुि

12.7. अितलघु रीय

- 1 : आरती य क जाती है ?

उ र : पूजन म जो भी ु िटयाँ रह जाती है, उनक पूित के िलए आरती क जाती ह ।

- 2 : आरती के समय बजाने जाने वाले मु य वा य कौन-कौन से ह?

उ र : आरती के समय बजाने जाने वाले मु य वा य - मृदङ् ग, शङ् ख, घिड़याल, घ टा, नगाड़ा आिद।

- 3 : आरती के पाँच अङ् ग कौन-कौन से है ?

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उ र : आरती के पाँच अङ् ग - 1. दीपमाला, 2. जलयु शङ् ख, 3. धुले हए व , 4. आम व पीपल के


प ,े 5. सा ाङ् ग द डवत् ।

- 4 : देवताओं के सम त अङ् ग पर िकतनी बार आरती करनी चािहए ?

उ र : देवताओं के सम त अङ् ग पर सात (7) बार आरती करनी चािहए।

- 4 : भगवा गणेश क आरती के प ात् िकतनी दि णा करनी चािहए ?

उ र : भगवान गणेश क आरती के प ात् तीन (3) दि णा करनी चािहए।

12.8. लघु रीय

- 1 : आरती श द क िववेचना क िजये ?

- 2 : िकस-िकस समय म आरती िकस कार क जाती है ? िववेचना क िजये ?

- 3 : वैिदक आरितयाँ बताईये ?

- 4 : िकसी भी एक देवता क लौिकक आरती का वणन क िजये ?

- 5 : म पु पा जिल क िववेचना क िजये ?

12.9. स दभ थ

1. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।

2. शु लयजुवदीय ा यायी स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अिखल भारतीय ाय


योितष शोध सं थान, जयपुर ।

3. आरती सं ह काशक - कमिसं ह अमरिसं ह, ह र ार ।

4. आरती सं ह - सं ह थ सं ह - हनुमान साद पो ार काशक - गीता ेस, गोरखपुर।


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इकाई — 13

ा प रचय
इकाई क परेखा

13.1. तावना

13.2. उ े य

13.3. िवषय वेश

13.5. सारां श

13.6. श दावली

13.7. अितलघु रीय

13.8. लघु रीय

13.9. स दभ थ

13.1. तावना

िपतर का ऋण ा ारा चु काया जाता है, आि नमास के कृ णप एवं मृ युितिथ को ा िकया जाता है।
ा का अथ है - या दीयते यत् तत् ा म् अथात् जो भी ा से िदया जाये। िपतृप म ा तो मृ यु
ितिथ को ही होता है, िक तु तपण ितिदन िकया जाता है । देवताओं तथा ऋिषय को जल देने के प ात् िपतर
को जल देकर तृ िकया जाता है। य िप येक अमाव या िपतर क पु यितिथ है तथािपत आि न क
अमाव या िपतर के िलए परम फलदायी है। इसी कार िपतृप क नवमी को माता के ा के िलए पु यदायी
माना गया है। ा के िलए गयातीथ सव म तीथ माना गया है । ा सं कार न होकर एक आव यक कम है।
ा िपतर के ित हमारी िन ा को कट करता है। आि न मास का कृ णप िपतृप के नाम से िस है,
िपतृप म होने वाले ा पावण एवं महालय ा के नाम से जाने जाते है। जब क या के सू य भा पद
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शु लप म पूिणमा से अमाव या तक सोलह िदन तक जो ा से पूवज के ित कम िकया जाता है , उसे


ा कहते है। िपतृप म ितल-कु श-जल-भोजन इ यािद जो भी दान म िदया जाता है, वह अमृत प होकर
िपतर को ा होता है। पूिणमा से अमाव या तक िपतृप के सोलह िदन ा प के नाम से जाने जाते है,
इनम िपतृतपण व ा करने से सु ख एवं समृि कमकता को ा होती है।

आि न म सू य दि णायन के म य म ि थत होता है, इसी कारण ा के िलए आि नकृ णप को िवशेष


माना गया है। इस प म सू य क या रािश म होने से क यागत अथवा कनागत भी इसका एक अपर नाम है।
िपतरलोक म कृ णप क अ मी को सू य दय, शु लप क अ मी को सू या त, अमाव या को म या तथा
पूिणमा को अ राि होती है।

1. क यागत ा :- पूिणमा से अमाव या तक 16 ा ।

1. सौभा यवती मृतक का ा 2. मृतक स यािसय का ा

3. िवष-श ािद से मृतक का ा 4. सविपतृ ा

5. न के अनुसार ा यथा भरणी-कृ ितका व मघा का ा

2. पावण ा :- महालय व अमाव या िवधान से जो ा िकया जाता है, उसे पावण ा कहते है।

3. वृि ा :- िववाह, स तान आिद माङ् गिलक काय म जो ा िकया जाता है, उसे वृि ा कहते
है।

4. सिप ड़न ा :- ेत को िपतर के साथ िमलाने के िलए जो ा िकया जाता है, उसे सिप ड़न ा
कहते है।

5. िन य ा :- ितिदन जो ा िकया जाता है, उसे िन य ा कहते है।

6. नैिमि क ा :- िकसी िवशेष उ े य से जो एकोि ा िकया जाता है, उसे नैिमि क ा कहते
है।

7. का य ा :- िवशेष कामना के िलए जो ा िकया जाता है, उसे का य ा कहते है।


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13.2. उ े य

1. ा िविध-िवधान का प रचय ।

2. ा से स बि धत ाि तय का िनराकरण ।

3. ा म ा का मह व ।

13.3. िवषय वेश

िप ये रा यहनी मास: िवभाग तु प यो:।

कमचे ा वह: कृ ण: शु लं व ाय शवरी।।

मनु य का एक मास िपतर का एक िदन-रात होता है। कृ णप िपतर के काय के िलए होता है, अत: वह
िपतर का एक िदन होता है और शु लप सोने के िलए है , अत: वह िपतर क रात होती है। यह सनातन धम
का िस ा त वै ािनक होने से मा य एवं स य िस हआ है। इस लोक से मरकर गये हमारे िपतर क अवि थित
िपतृलोक म होती है। हमे उनके म या काल म उ हे भोजन पहँचना है। उसमे दो कार है-एक तो यह िक हम
उनके नाम से अि न म हिवका हवन करना चािहए, य िक अथववेद सं िहता म मृत िपतर के िखलाने के िलए
अि न से ाथना क गई है :-

ये िनखाता ये परो ा ये द धा ये चेि ता:।

सवा तान आ वह िपतृन हिवषे अ वे।।

अथात्-अि नदेव! जो पृ वी म गाडे गये है, जो जल म वािहत िकए गए है जो िचता मे जलाए गए है अथवा
अ त र म न हो गए है, उन सभी िपतर को आप इस ा काय मे बुला कर लाय। महाभारत आिद पव मे
अि न क उि है :-

वेदो े न िवधानेन मिय यद् हयते हिव:।

देवता: िपतर ैव तेन तृ ा भवि त च ।।


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देवानो िपतृणां च मु खमेतद् हं मृ तम्।

अमाव या िह िपतर: पौणमा यां िह देवता ।

म मु खेन हय ते भु ज ते न हतं हिव:।।

(वेदा िवधान से मुझ अि म िजस हिवका हवन होता है , उससे देवता तथा िपतर तृ हो जाते है। देवताओं
तथा िपतरो का मुख म (अि न) हँ । अमाव या म िपतर तथा पूिणमा म देवता मेरे मुख से ही हिव खाते है।) दूसरा
कार यह है िक- अि न के सहोदर ा ण क जठराि न म ा ण के मुख ारा उन देव एवं िपतरो के नाम से
ह य-क य समिपत िकया जावे। यथा - िव ातप: समृ ेषु हतं िव तुखाि षु ।(िव ा एवं तप से समृ ा ण के
मुख वा अि म आहित डाली जाए।) अि न और ा ण क सहोदरता म माण यह है िक ा ण तथा अि न
दोनो क िवराट् पु ष के मुख से उ पि वेदािद शा म कही गयी है , जैसा िक -

ा णो य मु खमासी ाह राज य़ कृ त ।

ऊ तद य य ै य़ पद् याœ शू दï् ोऽअजायत॥

' ा णोऽ यमु खमाद् (यजु0 मा यं0 सं0 31/11)

'मु खादि रजायत (मा यं0 11/12)

इसिलए शा म ा णो का आ ेय वा अि न कहा गया है, तभी मीमां सा दशन के 3/4/24 सू के ी


शं कराचाय भा य म 'आ ेयो वै ा णम् िु त पर काश डालते हए इस कार ो र ि या आई है । ( )
अना नेय ा णो म आ नेय आिद श द िकस स ब ध से कहे जाते है ? (उ र) वे दोनो एक जाित वाले है, जैसे
िक कृ णयजुवद सं िहता मे है िक जापित ने जाओ क सृि सोची, उसम अि न ने योग िदया, मनु यो म
ा ण क एक जातीयता प श द मे कही गई है, य िक दोनो क उ पि मुख से हई है।

कु छ अ य माण भी देख लेने चािहए। मनु मृित म कहा गया है-

- अि न हो, तो (िपतृदान) ा ण को ही दे दे ।

'अ यभावे तु िव य पाणौ एवोपपादयेत् यह कहकर वहाँ हेतु िदया गया है-
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यो ि न: स ि जो िव ैम दिशिभ यते यहाँ म ाओं ारा अि न को ा ण माना गया है । कठोपिनषद्


म कहा है- वै ानर: िवशित अितिथ ा णो गृहान् ।

यहां पर ा ण को वै ानर अि न माना गया है। यहां वामी ी शं कराचाय ने भा य म कहा है-

वै ानरोऽि रेव सा ात् िवशित अितिथ:

सन् ा णो गृहान् भिव य पुराण मे भी कहा है - ' ा णा ि देवा तु िन कष यह िक थम कार से सा ात्


अि और दूसरे कार से ा ण थ वै ानर अि क य को सू म करके िपतर को पहँचाते है। वे िपतर उस
सू म क य से तृ हो जाते है, योिक - वे वयं सू म शरीरा मक होते है। इसी कारण उनके िलए थूल से
सू मभूत भोजन क आव यकता होती है। उसी से उनक तृि होती है, िजसे इस कार समझना चािहए - हम
अपने मुख ारा थूल भोजन को अपने पेट म भेजते है , परं तु हमारी आ मा सू म है, उसके िलए सू म भोजन
अपेि त है। उस समय उस थूल भोजन को हमारी जठराि न सू म करके हमारी सू म आ मा को स प देती है।
उस सू म त व से हमारी सू म अ तरा मा तृ हो जाती है। यहाँ पर वह वयं ही यह काय करती रहती है, हमे
वहाँ कोई िच ता नह करनी पडती। इस कार सू म िपतर भी हमारे िदए हए थूल भोजन के अि एवं
ा णाि ारा िकए गए सू म त व को ा करके तृ हो जाया करते है। यहाँ पर ा ण क अि यापक-
महाि के साथ िमलकर वयं ही उस काय को करती जाती है। वहाँ पर उसके िलए ा ण को कोई िच ता नही
करनी पडती । य से स न हए देवता वृि करते है, जैसा िक ीमनुजी ने कहा है -

'अ ौ ा ताहित स यगािद यतु पित ते: आिद या जायते वृि :।

इसी कार ा -अ न (िपतृहिव) को अि न का सहोदर ा ण एवं अि न ा करते है, तब ा ण क अि


उस क य को सू म करके वयं भी सू म हो कर यापक महाि के साथ िमलकर आकाशािभमुख च लोक थ
िपतरो को सौप देती है। इससे वे िपतर तृ होकर अपने माहा य से ा करने वाले के धा य, स तानािद को देते
है ।

जैसे देवताओं को 'सोमाय वाहा, 'व णाय वाहा आिद म से दी हई हिव को सू य ख चते ह, वैसे ही िपतर
के उ े य से दी हई हिव को सू य ख चकर अपनी सु षु णा रि म से कािशत च लोक म भेज देते है, वह च
अपने मे ि थत िपतर को उ हिव पहँचा देता है। उस ा भोग को ा ण क अि म द न पड जाए, िजससे
महाि से उसका मेल न हो सके , इसिलए शा ने उस िदन कई िविभिषकाएँ देकर उसे पूव राि म सं यमी रहने
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के िलए आिद िकया है- यही उसम रह य है। शेष ा ण को भ मीभूत कहा गया है । इसिलए िपतृ ा मे
दोषहीन िविश ा ण को बुलाने को मनु मृित आिद म कहा है। कई लोग देवताओं को जड़ मानते है, तब सू य
च ािद िकरण के भी जड होने से वे उस िपतर को िदया हआ क य कै से पहँचा सकते है- यह होता है, इस
पर उ र यह है- हमलोगो के कम भी तो जड हआ करते है? जैसे कम के अिध ाता परमा मा जड नही है, िकं तु
सव यापक एवं चेतन है, वे ही देव और िपतर के कम के भी यव थापक है। वे ही सब यव थाएँ पूरी करा
िदया करते है। जैसे हजार गौओ मे बछड़ा अपनी माता को ा कर िलया करता है, वैसे ही पु कृ त ा भी
िपतर के पास उपि थत हो जाता है । यही मृतक ा का रह य है, अि न िपतृलोक थ िपतर को सू म क य
समिपत करती है- इसमे कई वेद-म क सा ी भी है, यथा -

ये अि द धा ये अनि द धा म ये िदव: वधा मादय ते।

वं तान् वे थ यिद ते जातवेद: वधया य े विधितं जु ष तम्।।

इससे िस है िक वेद म ा के सङ् ग म यु 'िपतृ श द मातृ िपतृवाचक होता है । इसीिलए वेद मे कहा है-
िपतृणां लोकमिप ग छ तु ये मृता: अ वधा मृता: िपतृषु सं भव तु इस कार मृतक ा क वैिदकता िस हो
गई। मृतक के मािसक ा करने का यही रह य है। शारिदक वािषक ा तो िविश होता है। भा पद पूिणमा
से ार भ होकर आि न क अमाव या तक सब ितिथय मे िभ न-िभ न िपतर भोजन पाते है। जैसे हम कभी
िववाहािद िवशेष भोजन ा करते है, ज मा मी आिद के अवसर पर भ गण आधी रात के समय भी पारण
करते है, उसी कार अपवाद होने से िपतर के िवषय मे शु ल प ीय यािद ितिथ मे जान लेना चािहए। वे
िपतर उस ितिथ मे उस माग म होते है। ितिथय का स ब ध च मा से होता है, शारिदक ा भी पावण होने से
िवशेष िपतर का िवशेष पव ही समझना चािहए । ा म ा ण-भोजन का उ लेख आप त बधम बोधनीय
िपतृमेध एवं बोधनीय गृ सू और िहर यके शीय गृ सू म तो आया ही है, मानवगृ सू म भी कहा गया है
िक ' ा मपरप ेिपतृ यो द् ात् अनुगु म ने ा णान् भोजयेत् । नावेदिवद् भु जीत् इित िु त इ यािद। इसी
कार-यां ते धेनंु िवपृ ्रणािम यमुते ीरमोदनम् इ यािद से मृतक के िनिम गोदान तथा खीर का िवधान है-
इममोदनं िन े ा णेषु महाभारत के वन पव मे भी कहां है- ा णा एव स पू या:
पु य वगमभी सता ।।

ा काले तु य नेन भो या जु गु ि सता:।

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इस कार मृतक ा और ा ण भोजन जहाँ वेदािदशा स मत हआ, वहाँ पर वै ािनक िस हआ ।


अि न वता: िपतर एह (आइह) ग छत सद:-सद: सु णीतय:। अ ा हवािष यतािन यहा मृतको को ही िपतर
और हिव के भ णाथ बुलाकर मृतक िपतृ- ा को वैिदक िस िकया गया है । 'यान् अि रे व दहन् वदयित ते
िपतरो अि वाता: जीिवत िपतर अि दध नह होते । वम न ईिडत: क यवाहनवाड् ढ यािन सु रभीिण कृ वी ।
ादा: िपतृ य: ते वधया अ नि । इस म म कहा गया है िक िपतर ने उस अ न को हण िकया और खा
िलया। ा भो ा ज म से ा ण, वेद-िव ान् और सदाचारी होना चािहए । िपतृलोक च लोक के ऊपर होता
है। 'िस ा तिशरोमिण-मे िलखा है -

िवधू वभागे िपतरो वस त: वाध: सु धादीिधितमामनि त।

प यि त तेऽक िनजम तको व दश यतोऽ माद् तदैषाम्।।

इससे िपतृलोक च लोक के ऊपर िस होता है। जब च मा शु लप म इस लोक म अपना काश करते
रहते है, तब वे सू य से दूसरे कोने मे होते है, तब िपतृ लोक मे 15 िदन तक िनर तर एक राि होती है। जब कृ ण
प होता है, तब इस लोक म रात को चाँदनी नही होती । उस समय च लोक सू य के िनकट होता है, तब
िपतृलोक क जा िनर तर (कृ ण अ मी से शु ल अ मी तक) सू य को देखता है। इस कार िनर तर उसका
एक िदन ात: 6 से सायं 6 तक होता है। अमाव या जब सू य-च एक रािश मे होते है, तब हमारे अपरा काल
म सू य के च लोक के िसर पर होने से च लोक के उ व थ िपतर का भोजन काल (म या ) होता है। हमारी
जब पूिणमा होती है , तब सू य च लोक 6 रािश के अ तर से बहत दूरी होते है। तब च लोक म राि होती है।
हमारा 30 िदन का एक मास होता है। परं तु च लोक के ऊपर रहते हए िपतर का वह 24 घं टे का िदन-रात होता
है । इस गणना से हमारी ितिथ िपतर क म यमान से 48 िमनट का समय होता है। इससे अमाव या िपतर का
म या है। इसिलए अमाव या के ा का अिधक मह व माना गया है। ा शा ीय अव यकरणीय कत य
और पूवजो मे ा का प रचायक अनु ेय कत य है। िपतृप म तपण करना तथा ा करना येक आि तक
धािमक का पावन कत य है ।

महालया (िपतृिवसजनी अमाव या) :-

आि न कृ ण अमाव या को िपतृिवसजनी अमाव या को महालया कहते है। जो यि िपतृप के प ह िदन


तक ा -तपण नह करते है, वे अमाव या को ही अपने िपतर के िनिम ा ािद स प न करते है, िजन िपतर

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क मृ युितिथ याद न रहे , उनके िनिम , ा , तपण, दान आिद इसी अमाव या को िकया जाता है। इसी िदन
िपतर अपने पु ािदक के ार पर िप ड़दान एवं ा ािद क आशा म आते है, यिद वहाँ उ ह िप ड़दान या
ितला जिल नह िमलती है तो वे शाप देकर चले जाते है। अतएव एकदम ा का प र याग नह करे , िपतर
को यथाशि स तु अव य करे ।

ा म ा पु प :-

ा म मु य प से सफे द पु प ा है , सफे द म सु गि धत पु प क िवशेष मिहमा है। मालती, जूही, च पा-


ाय: सभी सु गि धत ेत पु प, कमल तथा तुलसी और भृङ्गराज आिद पु प श त है। मृितसार के अनुसार
अग यपु प, भृङ्गराज, तु लसी, शतपि का, च पा, ितलपु प - ये छ: िपतर को ि य होते है।

ा हेतु थान :- गया, पु कर, कु शावत (ह र ार) आिद तीथ म ा क िवशेष मिहमा है। सामा यत: घर
म, गौशाला म, देवालय, यमुना, नमदा आिद पिव निदय के तट पर ा करने का अ यिधक मह व है। ा
थान को गोमय िम ी से लेपन करके शु कर लेना चािहए। दि ण िदशा क ओर ढाल वाली भूिम श त
मानी गयी है।

ा म यो य ा ण :- सम त ल ण से स प न, िव ा, शील एवं स ु ण से स प न, तीन पीिढ़य से


िव यात, ा से यु सदाचारी, स याव दन एवं गाय ी-म का जप करनेवाले ोि य ा ण के ारा ा
स प न करना चािहए। तप, धम, दया, दान, स य, ान, वेद ान, का य, िव ा, िवनय तथा अ तेय (अचौय)
आिद गुण से यु ा ण इसका अिधकारी है।

ा म श त आसन :- रे शमी, नेपाली क बल, ऊन, का , तृण, पण, कु श आिद के आसन े है।
का ासन म भी शमी, का मरी, श ल, कद ब, जामुन , आम, मौलिसरी एवं व ण के आसन े है। ये सभी
आसन लोहे क क ल से यु नह होने चािहए।

भोजन के समय आचरण :- ा म भोजन के समय मौन रहना चािहए, माँगने या ितषेध का सं केत हाथ से
ही करना चािहए। भोजन करते समय ा ण से अ न क शं सा अथवा िन दा के िवषय म चचा नह करनी
चािहए।

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िप ड़ का माण (अ न, ितल, जल, दू ध, घी, मधु, धू प और दीप का सि म ण) :- एकोि तथा


सिप ड़न ा म कै थ (किप थ) के फल के समान, मािसक तथा वािषक ा म ना रयल के समान, तीथ एवं
दश ा म मुग के अ ड़े के समान तथा गया एवं िपतृप म आँवल के माण के समान िप ड़िनमाण करना
चािहए।

ा म विजत ा ण व परी ा का िनषेध :- लं गड़ा, काना, दाता का दास, चोर, पितत, नाि तक, मूख ,
धूत , मां सिव यी, यापारी, कु नखी, काले दाँतयु , गु ेषी, शू ापित, शु क लेकर पढ़ाने या पढ़ने वाला,
जुआरी, अ धा, कु ती िसखाने वाला, नपुं सक, अङ् गहीन एवं अिधक अङ् गवाला ा ण ा म विजत है।
देवकाय, पूजा-पाठ आिद म ा ण क परी ा न करे , िक तु िपतृकाय म अव य करे।

ा म श त अ न :- ा म गाय का दूध, दही और घी काम म लेना चािहए। जौ, धान, ितल, मूँग , साँवां,
सरस का तेल, ित नी का चावल, कँ गनी आिद से िपतर को तृ करना चािहए। आम, अमड़ा, बेल, अनार,
िबजौरा, पुराना आँवला, खीर, ना रयल, फालसा, नारं गी, खजूर , अं गरू , नीलकै थ, परवल, िचर जी, बेर, जं गली
बेर, इ जौ और भतु आ - ये सभी ा म श त माने गये है।

अ य मत से जौ, कङ् गनी, मूँग , गेह,ँ धान, ितल, मटर, कचनार और सरस भी े है।

ा म विजत अ न :- िजस म बाल, क ड़े पड़ गये हो, िजसे कु ने देख िलया हो, जो बासी एवं दुगि धत
हो, ऐसी व तु ओ ं का ा म उपयोग न करे । बगन और शराब को भी याग करे । िजस अ न पर पहने हए व
क हवा लग जाये, वह भी िनिष है। राजमाष, मसू र, अरहर, गाजर, कु हड़ा, गोल लौक , बगन, शलजम,
ह ग, याज, लहसु न, काला नमक, काला जीरा, िसं घाड़ा, जामुन , िप पली, कु लथी, कै थ, महआ, अलसी, चना
ये सभी विजत है।

ा कता के िलए विजत काय :- जो ा करने के अिधकारी है, उ ह प ह िदन तक ौरकम नह करना
चािहए। पूण चय का पालन करना चािहए। ितिदन नान के बाद तपण करना चािहए। तेल , उबटन आिद
का उपयोग नह करना चािहए। दातु न करना, पान का सेवन, तेल लगाना, उपवास, ी-िवहार, औषिध सेवन,
अ य का अ न खाना आिद भी ा कता के िलए विजत है ।

ा म पिव :- दौिह (पु ी का पु ) , कु तप (म या का समय) और ितल ा म अ य त पिव होते है।


ोध, अ वगमन एवं आतु रता ा कम म विजत है
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ा नह करने का फल तथा ा करने के अिधकारी :- िजस देश म ा ि या का स पादन नह होता


ह वहाँ वीरपु ष, रोगरिहत मनु य तथा शतायु मनु य उ प न नह होते है और न ही िकसी का क याण होता है।
अत: िव ान पु ष का चािहए िक ा का स पादन ा पूवक करना/करवाना चािहए ।

पु , प नी, सहोदर भाई आिद ा करने के अिधकारी होते है अथात् सबसे पूव मृतक का पु ा करे , यिद
पु नह हो तो प नी ा करे । प नी के भी न होने पर सहोदर भाई आिद मश: ा करे । पु , पौ , पौ ,
पु ी का पु , प नी का भाई, भाई का पु , िपता, माता, बह, बिहन सिप ड सोदक इनम पूव के न होने से िपछले -
िपछले िप ड के दाता कहे गये है।

बालक के ा क यव था :-

1. दो वष के पूव बालक का कोई ा तथा जला जिल आिद ि या करने क आव यकता नही होती है।

2. दो वष पूण हो जाने पर छ: वष के पूव तक के वल ा क पूवि या अथात् मिलनषोड़शी तक क


ि या करनी चािहए । इसके बाद क एकादशाह तथा ादशाह क ि या करने क आव यकता नही है।

3. छ: वष के बाद ा क स पूण ि या अथात् मिलनषोड़शी, एकादशाह तथा सिप ड़न आिद ि याएँ


करनी चािहए ।

4. क या का दो वष से लेकर दस वष (अथवा रजोधम से पूव) तक पूवि या अथात् मिलनषोड़शी क


ि या करनी चािहए तथा िववाह के अन तर दस वष के बाद स पूण ि या मिलनषोड़शी, एकादशाह
तथा सिप ड़न करना चािहए ।

ा म महादान :- ा म िपतर के िनिम दस/आठ महादान अव य करने चािहए :-

व तु अिध ाता देवता व तु अिध ाता देवता

1. सव सा गाय 1. सव सा गाय

2. भूिम िव णु 2. भूिम िव णु

3. ितल जापित 3. ितल जापित


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4. लवण भैरव 4. लोहा भैरव

5. वण अि न 5. वण अि न

6. घी मृ यु जय 6. कपास वन पित

7. व बृह पित 7. लवण सोम

8. स धा य जापित 8. स धा य जापित

9. गुड़ सोम

10. रजत च मा

धमशा के अनु सार ा म तपण का िनदश (िकन-िकन का तपण ा म िकया जाना चािहए) :-

1. िपता 2. िपतामह (दादा) 3. िपतामह (परदादा)

4. माता 5. िपतामही (दादी) 6. िपतामही (परदादी)

7. िवमाता (सौतेली माँ ) 8. मातामह (नाना) 9. मातामह (परनाना)

10. वृ मातामह (वृ परनाना) 11. मातामही (नानी) 12. मातामही (परनानी)

13. वृ मातामही (वृ परनानी) 14. ी (प नी) 15. पु /पु ी (स तान)

16. ातृ य (चाचा) 17. चाची 18. चेचरा भाई/बहन

19. मामा 20. मामी 21. मामा का पु /पु ी

22. व ाता 23. भाभी 24. भाई का पु /पु ी

25. फू फा 26. बुआ 27. बुआ का पु /पु ी

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28. मौसा 29. मौसी 30. मौसा का पु /पु ी

31. वभिगनी 32. बहनोई 33. बहन का पु

34. सु र 35. सास 36. गु

37. गु क प नी 38. िश य 39. सं र क

40. िम 41. सेवक

गया ा कब करे ? :- मीन, मेष, क या, धनु, और कु भ रािश के सूय के होने पर गया म िप डदान करना
चािहए। यह तीन लोक म दुलभ व पु यकारी योग होता है। मकर के सू य म तथा सू य व च हण के समय म
भी गया म िप डदान करना चािहए। येक सं ाि त के आिद म गया ा िकया जा सकता है। माता-िपता के
मृ युिदन म महालय, गया ा , िप डदान आिद यथािविध करना चािहए। मृताह म सगोि य का िप डदान,
गया ा महाफलदायक होता है।

ा करने का समय तथा गया म ा का मह व :- ा के िलए ात: काल दैिवक, म या काल म


मानुष , अपरा काल म िपतर का, सायं काल के समय रा स का काल कहलाता है, पर तु गया े म सभी
काल म िप डदान िकया जा सकता है। इसम अिधमास, ज मिदन और गु व शु के अ त का िवचार भी
आव यक नह है।

दैिवक, पावण, एकोि व नैिमि क ा िकस समय करे ? :- पूवा म दैिवक ा करना चािहए,
अपरा म पावण ा करना चािहए, म या म एकोि ा करना चािहए तथा ात: काल वृि ा करना
चािहए।

ना दी ा िकस समय करे ? :- शु ल प के पूवा म ना दी ा करना चािहए तथा कृ णप के अपरा


म रोिहणी न के बाद ा नह करना चािहए।

मागशीष शु ल ि तीया को िपतृपू जन का मह व :- वृि क रािश म ि थत सू य (मागशीष मास) म शु ल


प क ि तीया को जो मनु य िपतर का पूजन नह करता है उसके सात ज म तक भाईय का नाश हो जाता है ।

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धन के अभाव म ा क स प नता :- 1. यिद अ न-व ािद के दान हेतु पया धन न हो तो उस प रि थित


म शाक से भी ा कर सकते है। यथा - त मा ा ं नरो भ या शाकै रिप यथािविध।

2. यिद शाक खरीदने के िलए भी पैसे न हो तो तृण-का आिद को बेचकर धन एकि त करे और उन पैस
से शाक खरीदकर ा कर सकते है।

3. प पुराण के अनुसार देशकाल के अनुसार लकिड़याँ भी नह िमले तो घास काटकर गाय को िखला
दीिजये, तब भी आपका ा कम पूण हो जायेगा।

4. यिद घास भी नह िमले तो ा कता एका त म जाकर दोन भुजाओं को उठाकर िन िलिखत ाथना
करे :- न मेऽि त िव ं न धनं च ना य ा ोपयो यं विपतृ नतोऽि म।

तृ य तु भ या िपतरो मयैतौ कृ तौ भु जो व मिन मा त य।।

अथातï◌् हे िपतृगण! मेरे पास ा के उपयु न तो धन है, न धा य आिद। हाँ, मेरे पास आप के िलए ा
और भि है, म इ ह के ारा आपको तृ करना चाहता हँ, आप तृ हो जाये।

ा के भेद :- म यपुराण के अनुसार तीन (1. िन य, 2. नैिमि क, 3. का यभेद) कार के ा बताये गये
है :- िन यं नैिमि कं का यं ि िवधं ा मु यते।।

य मृित म पाँच कार के ा का उ लेख है :-

1. िन य, 2. नैिमि क, 3. का य, 4. वृि , 5. पावण ।

ितिदन िकये जाने वाले ा को िन य ा कहते है, इसम िव ेदेव नह होते तथा अश ाव था म के वल
जल दान से भी इस ा क पूित हो जाती है। एकोि ा को नैिमि क ा कहते है , इसम भी िव ेदवे
नह होते। िकसी कामना क पूित के िनिम िकये जाने वाले ा को का य ा कहते है। वृि काल म
पु ज म तथा िववाहािद मङ् गल काय म जो ा िकया जाता है , उसे वृि ा (नाि द ा ) कहते है।
िपतृप , अमाव या अथवा पव क ितिथ आिद पर जो सदैव (िव ेदवे सिहत) ा िकया जाता है, उसे
पावण ा कहते है।

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िव ािम मृित तथा भिव यपुराण के अनुसार ादश कार के ा बताये गये है :- 1. िन य, 2. नैिमि क, 3.
का य, 4. वृि , 5. पावण, 6. सिप ड़न, 7. गो ी, 8. शुद् यथ , 9. कमाङ् ग, 10. दैिवक, 11. या ाथ तथा 12.
पु ् यथ। ाय: सभी ा का अ तभाव उपरो प च ा म हो जाता है ।

िजस ा म ेतिप ड़ का िपतृिप ड़ म स मेलन िकया जाता है, उसे सिप ड़न ा कहते है। समूह म जो ा
िकया जाता है, उसे गो ी ा कहते है। शुि के िनिम िजस ा म ा ण को भोजन करवाया जाता है , उसे
शुद् यथ कहते है। गभाधान , सीम तो नयन तथा पुं सवन आिद सं कार म जो ा िकया जाता है, उसे कमाङ् ग
ा कहते है। स मी आिद ितिथय म िविश हिव य के ारा देवताओं के िनिम जो ा िकया जाता है, उसे
दैिवक ा कहते है। तीथ के उ े य से देशा तर जाने के समय घृत ारा जो ा िकया जाता है, उसे या ाथ ा
कहा जाता है। शारी रक अथवा आिथक उ नित के िलए जो ा िकया जाता है, वह पु ् यथ ा कहलाता है।
उपयु सभी कार के ा ौत व मात-भेद से दो कार के होते है। िप ड़िपतृयाग को ौत ा कहते है
और एकोि , पावण तथा तीथ ा से लेकर मरण तक ा को मात ा कहते है। ा के 96 अवसर है :-

1. बारह महीन क बारह अमाव याएँ (12)

1. चै कृ ण अमाव या 2. वैशाखकृ ण अमाव या

3. ये कृ ण अमाव या 4. आषाढ़कृ ण अमाव या

5. ावणकृ ण अमाव या 6. भा पदकृ ण अमाव या

7. आि नकृ ण अमाव या 8. काितककृ ण अमाव या

9. मागशीषकृ ण अमाव या 10. पौषकृ ण अमाव या

11. माघकृ ण अमाव या 12. फा गुनकृ ण अमाव या

2. स ययुग , ेतािदयुग क ारि भक चार युगािद ितिथयाँ (4)

ितिथयाँ यु गािद

काितकशु ल नवमी सत् युगािद


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वैशाख शु ल तृतीया ेतायुगािद

माघकृ ण अमाव या ापरयुगािद

ावणकृ ण योदशी किलयुगािद

3. मनुओ ं के ार भ क चौदह म वािद ितिथयाँ (14)

ितिथयाँ :- चै शु ल तृतीया व पूिणमा , काितशु ल पूिणमा व ादशी, आषाढ़शु ल दशमी व पूिणमा, ये व


फा गुनशु ल पूिणमा , आि नशु ल नवमी, माघशु ल स मी, पौषशु ल एकादशी, भा पद शु ल तृतीया,
ावणकृ ण अमाव या व अ मी।

4. बारह सं ाि तयाँ (12)

5. बारह वैधिृ तयोग (12)

6. बारह यितपात योग (12)

7. प ह महालय ा (िपतृप ) (15)

8. पाँच अ का ा (5)

9. पाँच अ व का ा (5)

10. पाँच पूव :ु ा ( 5), इस कार कु ल िमलाकर 96 ा के अवसर वषभर म आते है।

ा िविध :- सामा य प से कम से कम वष म दो बार ा करना अिनवाय है। इसके अित र अमाव या,
यितपात, सं ाि त आिद पव क ितिथय म भी ा करने का िवधान है।

1. यितिथ :- िजस िदन यि क मृ यु होती है , उस ितिथ पर वािषक ा करना चािहए। शा म य


ितिथ पर एकोि ा करने का िवधान है (कु छ थान पर पावण ा भी करते है) । एकोि का

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ता पय है िक के वल मृत यि के िनिम एक िप ड़ का दान तथा एक ा ण ( यूनतम) को भोजन


करवाया जाये और अिधक से अिधक से अिधक तीन ा ण को भोजन करवाया जाये।

2. िपतृप :- िपतृप म मृत यि क ितिथ आये, उस ितिथ पर मु य प से पावण ा करने का


िवधान है। यथास भव िपता क मृ यु पर इसे अव य करना चािहए । पावण ा म िपता, िपतामह
(दादा), िपतामह (परदादा) सप नीक अथात् मातामह (नाना), मातामह (परनाना), वृ मातामह
(वृ परनाना) सप नीक अथात् नानी, परनानी तथा वृ परनानी- यहाँ भी तीन चट म छ: लोग का
ा स प न होगा। इसके अित र एक चट और लगाया जाता है, िजस पर अपने िनकटतम
स बि धय के िनिम िप ड़दान िकया जाता है। इसके अित र दो िव ेदवे के चट लगते है। इस कार
नौ चट लगाकर पावण ा स प न होता है। पावण ा म नौ ा ण को भोजन करवाना चािहए। यिद
कम कराना हो तो तीन ा ण को ही भोजन कराया जा सकता है। यिद अ छे ा ण उपल ध न हो
तो कम से कम एक स याव दन आिद करने वाले साि वक ा ण को भोजन अव य करवाये ।

ी, अनु पनीत, ि ज तथा ि जेतर के ारा ा करने क यव था :-

ि य तथा अनुपनीत ि ज िज ह ने य ोपवीत नह िलया एवं ि जेतर उनके िलए भी शा ानुसार ा क जो


ि या यहाँ िलखी गयी है, उ ह के वल िन िलिखत बात पर यान देने क आव यकता है :-

1. सङ् क प म '' णव (ऊँ) के थान पर ''नम: का उ चारण करना चािहए।

2. सङ् क प म अपने ''नाम-गो के आगे ''शमा/वमा/गु ोऽहं के थान पर ''दासोऽहम का उ चारण करना
चािहए तािक गो म ''क यप गो कहना चािहए। ी करे तो ''अमुक देवी कहे ।

3. जहाँ वैिदक म है, उनका उ चारण नह करना चािहए। उनके थान पर नाम-म को बोलकर
ि या पूरी कर लेनी चािहए।

4. जहाँ वैकि पक पौरािणक म न हो, वहाँ आम क सभी िकयाएँ होगी अथात् िबना म बोले ा
क स पूण ि या स प न होगी ।

5. प वा न क जगह अमा न से ा करना चािहए। िप ड़दान आिद का काय भी आमा न (जौ के आटे
अथवा चावल आिद से करने क िविध है) तथा ा ण-भोजन म भी आमा न (अप व भोजन साम ी)
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ा ण को देने से यह ि या पूरी हो जाती है । शा ानुसार इस ि या से ा के फल म कोई यूनता


नह है।

ा म प चबिल क िविध :- ा प म मृ यु ितिथ को पावण ा करना चािहए- 'पविण भव: पावण:


महालय म एकोिद ा नह होता ह। जो पावण ा न कर सके , वह कम से कम प चबिल िनकालकर
ा ण-भोजन ही कराये, िजसका िवधान हम यहाँ बता रहे है। बहत से यि पावण ा नह कराकर के वल
ा ण-भोजन ही करा देते ह, हम सभी को प चबिल अव य ही करनी चािहए, उसका िनयम इस कार है :-

ा के िनिम भोजन तैयार होने पर एक थाली म पाँच जगह थोड़े-थोड़े सभी कार के भो य-पदाथ परोसकर
हाथ म जल, अ त, पु प, च दन लेकर िन िलिखत सङ् क प करे :-

ऊँ िव णु िव णु िव णु : ीम गवतो महापु ष य िव णोरा या वतमान य अिखल ा डा तगत भूम डल


म ये स ीप म यवितनी ज बू ीपे भारतवष भरतख डे आयावता तगत ावतकदेशे गंगायमुनयो: पि मभागे
नमदाया उ रे भागे अबुदार ये पु कर े े राज थान देशे गालवा म उप े े (जयप ने) अि मन् देवालये (गृह)े
देव- ा ïणानां सि नधौ णो ि तीयपराध रथ तरािद ाि ं श क पानां म ये अ मे ी ेतवाराहक पे
वायं भवु ािद म व तराणां म ये स मे वैव वतम व तरे चतु णा युगानां म ये वतमाने अ ािवं शिततमे किलयुगे
थमचरणे बौ ावतारे भवािद षि स व सराणां म येऽि मन् वतमाने अमुकनाि न स व सरे अमुकवै मा दे
िव मािद यरा यात् शािलवाहनशके अमुकायने अमुकऋत अमुकमासे अमुकप े अमुकितथौ अमुकवासरे
अमुकरािशि थते च े अमुकरािशि थते ीसू य अमुकरािशि थते देवगुरौ शेषेषु हेषु यथायथा रािश थान
ि थतेषु स सु एवं गुणगणिवशेषणे िविश ायां शुभपु य बेलायां अमुकगो : (शमा/वमा/गु /दास) अमुकोऽहं
ममा मन: िु त मृितपुराणो फल ा यथ ऐ यािभवृद् यथ अ ा ल मी ा यथ ा ल याि रकाल
सं र णाथ सकलमनईि सत कामना सं िस यथ लोके सभायां राज ारे वा सव यशोिवजयलाभािद ा यथ इह
ज मिन ज मा तरे वा सकलदु रतोपशमनाथ मम सभाय य सपु य सबा धव य अिखलकु टु बसिहत य
सम तभय यािध जरापीड़ा-मृ यु प रहार ारा आयुरारो यै यािभवृद् यथ मम ज मराशे: नामराशे: वा सकाशा े
के िचि चतु था म ादश थानि थत ू र हा तै: सू िचतं सू चिय यमाणं च य सवा र ं ति नाश ारा
एकादश थान-ि थतव छु भफल ा यथ पु पौ ािद स ततेरिवि छ न वृद् यथ
आिद यािदनव हानुकूलतािस यथ ि िवधतापोपशमनाथ चतु िवध पु षाथ िस यथ ममोपा दु र यपूवकं
ीपरमे र ी यथ मम िपतु : (मातु : ातु : िपतामह य वा) वािषक ा े (महालय ा े) कृ त य पाक य
शुद् यथ प चसू नाजिनतदोषप रहाराथ च प चबिलदानं क र ये ।
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1. गाय हेतु बिल (प े पर) :- म डल के बाहर पि म क ओर िन िलिखत म (यिद म याद न रहे तो


'गो यो नम: आिद म से बिल दान कर सकते ह ।) पढ़ते हए स य (दि णािभमुख) होकर गोबिल
प े पर देवे -ऊँ सौरभे य: सविहता पिव ा: पु यराशय:।

ितगृ तु मे ासं गाव ैलो यमातर: ॥इदं गो यो न मम ।

2. ान हेतु बिल (प े पर) :- जनेऊ को क ठी करके िन िलिखत म से कु े को बिल देवे -

दौ ानौ यामशबलौ वैव वतकु लो वौ।

ता याम नं य छािम यातामेताविहं सकौ ॥इदं ा यां न मम ।

3. काक हेतु बिल (पृ वी पर) :- अपस य (उ रािभमुख) होकर िन निलिखत म पढ़कर कौओं को भूिम
पर अ न देवे -

ऊँ ऐ वा णवाय या या या वै नैऋता तथा ।

वायसा ितगृ तु भू मौ िप डं मयोि झतम् ॥ इदम् अ नं वायसे यो न मम।

4. देवताओं हेतु बिल (प े पर) :- स य होकर िन निलिखत म पढ़कर देवता आिद के िलए अ न देवे -

ऊँ देवा मनु या: पशवो वयां िस, िस ा: सय ोरगदै यसङ् घा:।

ेता: िपशाचा तरव: सम ता:, ये चा निम छि त मया द म् ॥ इदं देवािद यो न मम।

5. िपपीिलका हेतु बिल (प े पर) :- इसी कार िन िलिखत म से च टी आिद को बिल देवे -

िपपीिलका: क टपतङ् गका ा, बु भु ि ता: कमिनब धब ा:।

तेषां िह तृ यथिमदं मया नं, ते यो िवसृ ं सु िखनो भव तु ॥इदं िपपीिलकािद यो न मम ।

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प चबिल देने के बाद एक थाली म सभी पकवान परोसकर अपस य और दि णािभमुख होकर िन सङ् क प
करे - अ अमुक गो : अमुक शमाऽहममुकगो य मम िपतु : (िपतामह य मातु : वा) वािषक ा े
(महालय ा े वा) अ यतृ यथिमदम नं त मै (त यै वा) वधा ।

उपयु सङ् क प करने के बाद 'ऊँ इदम नम्, 'ऊँ इमा आप:, 'ऊँ इदमा यम्, 'ऊँ इदं हिव: इस कार बोलते हए
अ न, जल, घी तथा पुन: अ न को दािहने हाथ के अङ् गु से पश करे ।

स य पू वािभमु ख होकर आशीवाद के िलए िन निलिखत ाथना करे :-

गो ा व ् रत् ां । दातारो ना5िभ व ् वनाम्। वेदा: स तितरे व च। ा च नो मा यगमत् । बहदेयं च नो5 तु । अ ं च


नो बहभवेत् । अितथ लभेमिह । यािचतार न: स तु । मा च यािच म क जन। एता: स या: आिशष: स तु
ा ा: स वेता स या आिशष:।

त प ात् दािहने हाथ म जल, अ त आिद लेकर िन सङ् क प करे -

ा ण भोजन का सङ् क प :- अ अमुकगो : अमुकोऽहं मम िपतु : (मातु : वा) वािषक ा े यथासं यकान्
ा णान् भोजिय ये।

प चबिल िनकालकर कौओं के िनिम िनकाला गया अ न कोएं को, कु े का अ न कु े को, देवताओं का
अ न देवताओं को, च िटय का अ न च िटय को तथा गाय का अ न गाय को देने के बाद िन िलिखत म से
ा ण के पैर धोकर भोजन कराय।

यत् फलं किपलादाने काित यां ये पु करे।

त फलं पा डव े िव ाणां पादसेचने ॥

इसके बाद उ ह अ न, व और य-दि णा देकर ितलक करके नम कार करे , त प ात् नीचे िलखे वा य
यजमान व ा ण दोन बोले -

यजमान :- शेषा नेन िकं क यम्। ( ा म बचे अ न का या क ं ?)

ा ण :- इ :ै सह भो यम्। (अपने इ -िम के साथ भोजन कर।)


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इसके बाद अपने प रवार वाल के साथ वयं भी भोजन करे तथा िन म ारा भगवान को नम कार कर -

मादात् कु वतां कम यवेता वरेषु यत्।

मरणादेव ति णो: स पू ण यािदित ु ित:।।

13.4. पा रभािषक श दावली

1. अ योदक दान :- ा ा त म अ यतृि के िलए िदया जाने वाला अ न जलािद का दान ।

2. अ यु ारण :- अवघातािद दोषिनवारण के िलए िकया जाने वाला ितमा का सं कार ।

3. अ नौकरण :- अ नप रवेषण के पूव जल म दी जाने वाली दो आहितयाँ ।

4. अघदान :- पूजा अङ् ग प म जल दान करना ।

5. अघसं योजन :- िपतर के अघ का पर पर मेलन ।

6. अनुक प :- िवक प ।

7. अ तजानु :- हाथ को घुटने क भीतर करना ।

8. अपकषण :- आगे होने वाले कृ य को पहले ही कर लेना ।

9. अपरा :- िदन म 01 बजकर 12 िमनट से 03 बजकर 26 िमनट तक का समय ।

10. अपस य :- जनेऊ तथा उपव को दािहने क धे के ऊपर डालकर बाय हाथ के नीचे कर लेना ।

11. अवगाहन :- ा म परोसे हए अ न आिद का अङ् गुषइ् से पश करना।

12. अवनेजन :- ा म िप ड़ थान को पिव करने के िलए िपतृतीथ से वेदी पर िदया जाने वाला जल ।

13. अहोरा :- एक सू य दय से लेकर दूसरे सू य दय तक का समय ।

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14. आ युदियक ा :- िववाह आिद माङ् गिलक अवसर पर ार भ म िकया जाने वाला ा , यह
वृि ा या ना दी ा भी कहलाता है ।

15. आमा न :- क चा अ न (अनि न पाका न)।

16. आलोड़न :- जल को घुमाना ।

17. उ मषोडशी :- सिप ड़न के पूव तथा एक वष पय त िदये जाने वाले ऊनमािसकािद सोलह िप ड़।

18. उ रापोशन :- नैवे अपण के प ात् आचमन के िलए जल दान करना।

19. उदकाल भन :- जल पश ।

20. उ ापन :- त आिद स कम क स प नता के िलए िकया जाने वाला पूजा-अनु ान।

21. एकत :- एकजातीय अनेक ि याओं का एक साथ स पादन ।

22. एकोि :- िपता आिद के वल एक यि के उ े य से िकया जाने वाला ा , यह िव ेदवे रिहत होता
है । इसम आवाहन तथा अ नौकरण ि या नह होती है। एक िप ड़, एक अघ तथा एक पिव क होता है

23. औ वदैिहक कम :- देहा त के बाद स ित के िलए िकया जाने वाला कम।

24. करो तन :- पूजा म नैवे -अपण के बाद दोन हाथ क अनािमका-अङ् गु से च दन का समपण ।

25. कमपा :- पा म म ारा जल को सं का रत करके पूजन यो य बनाना ।

26. क य :- िपतर के उ े य से िदया जाने वाला य।

27. का य :- िकसी कामना क पूित के उ े य से िकया जाने वाला कम ।

28. कु भक ( ाणायाम) :- ास रोकना।

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29. कु तप :- िदनमान म कु ल 15 मुह होते है, उनम कु तप आठवाँ मुह है। कु - कु ि सत (पाप) + तप
(स त ) अथात् पाप को स त करने के कारण यह समय कु तप (िदन म 11 बजकर 36 िमनट से 12
बजकर 24 िमनट तक का समय) कहलाता है। खड् गपा (गडे के स ग से बना पा ), नेपाली क बल,
रजत, कु श, ितल, जौ और दोिह (पु ी का पु ) - ये आठ कु तप कहलाते है ।

30. कु शकि ड़का :- हवन से पूव वेदी का िकया जाने वाला कु शा तरण आिद सं कार ।

31. कु शवटु :- पावण आिद ा म िपतृ ा ण के ितिनिध के प म आसन पर रखने के िलए ि थ


लगा हआ कु श य ।

32. कु शा तारण :- वेदी पर आवरण के प म कु श िबछाना।

33. गज छाया योग :- जब ह त न पर सू य हो और मघायु योदशी हो तो ऐसे योग को वैव वती या


गजकु जर (गज छाया) योग बनता है । इसम ा करने का िवशेष फल होता है ।

34. गोपु छोदक :- गाय क पुं छ के मा यम से तपण आिद म िदया जाने वाला जल ।

35. घटी :- 24 िमनट का समय, इसको नाड़ी अथवा द ड़ भी कहते ह ।

36. च दन दान :- िपतर को सदैव तजनी से ही च दन समिपत करना चािहए ।

37. जा वा य :- बायाँ घुटना मोड़कर बैठना ।

38. तपण :- शा ो िविध से देवता, ऋिष तथा िपतर को जल दान करना ।

39. ितलतोयपूण पा :- ितल से यु जल भरा हआ पा ।

40. ितलतोया जिल :- मृ यु के उपरा त ाणी के िनिम अ जिल ारा ितलसिहत जल दान करना ।

41. दशोपचार :- पा , अघ, आचमन, नान, व , ग ध, पु प, धूप , दीप और नैवे ।

42. दश :- अमाव या ।

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43. दुमरण :- शा ीय िविध से िवपरीत अव था म मृ यु ।

44. देवतीथ :- अङ् गुिलय के आगे का भाग, यह देवकाय म श त है ।

45. दौिह :- पु ी का पु , खड् गपा तथा किपला गाय का घी ।

46. नारायण बिल :- शा ो िविध से मृ यु न होने पर दुगित से बचने के िलए िकया जाने वाला ायि
अनु ान ।

47. िन य :- िकसी व तु के मू य के प म िदया जाने वाला य।

48. िनवीती (मा यवत् ) :- जनेऊ को गले म माला क तरह कर लेना ।

49. नीबी ब धन :- ा म र ा के िलए ितल, कु श य को प े म रखकर ा कता ारा किट म बाँधना ।

50. यु जीकरण :- ा म अघपा को उलटा रखना ।

51. प च भूसं कार :- भूिम का ो ण आिद पाँच कार का सं कार ।

52. प चोपचार :- ग ध, पु प, धूप , दीप और नैवे ।

53. पिव ी :- कु शा से बनायी हई िवशेष कार क अं गठू ी जो िक अनािमका म धारण क जाती है।

54. पिव क :- अघपा म थािपत िकया जाने वाला ि थ लगा हआ कु शप ।

55. प रवेषण :- िप ािदक के िलए भोजन परोसना।

56. पाितत वामजानु :- बाय घुटने को िटकाकर जमीन म लगाकर बैठना।

57. पा ाल भन :- ा म अ न प रवेषण के अन तर िकया जाने वाला अ नपा का पश।

58. पा ासादन :- कृ य के पूव पा को यथा थान रखना ।

59. पा :- पूजन म पाद- ालन के तीक के प म िदया जाने वाला जल ।


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60. िपतृतीथ :- अं गठू े और तजनी अङ् गुली के बीच का थान िपतृतीथ कहलाता है। िपतर के उ े य से
य याग इसी िपतृतीथ से िकया जाता है।

61. पूरक :- ास ख चना।

62. यवनेजन :- िप ड़दान के प ात् पोषणाथ िप ड़ पर िदया जाने वाला जल।

63. ाजाप यतीथ :- किनि का अङ् गुली मूल के पास का थान, इसका उपयोग ऋिष तपण म होता है ।

64. म यषोड़शी :- एकादशाह के िदन िव णु आिद देवताओं तथा ेत के िनिम िकया जाने वाला सोलह
िप ड़दान ।

65. म या :- ात: 10:48 से दोपहर 01:12 तक का समय ।

66. मिलनषोड़शी :- मृ यु के प ात् दस िदन के भीतर अशौचकाल म िदये जाने वाले िप ड़।

67. महालय :- भा पद शु ल पूिणमा से आर भ होकर आि न कृ ण अमाव या तक का समय।

68. महैकोि ा :- एकादशाह के िदन िकया जाने वाला आ ा ।

69. माजन :- जल का छ टा देकर पिव करना।

70. मोटक :- िपतृकाय म यु होने वाला दोहर बं टा हआ कु शिवशेष (ि गुण भु कु श य)।

71. य पा :- णीता, ो णी, वु ा आिद हवन के पा िवशेष , पूणपा ( ा को देने का पा ),


च थाली (च पकाने का पा ), आ य थाली (हवन के िलए घृत रखने का पा ) आिद।

72. रे चक :- ास छोड़ना।

73. रौिहण :- िदन का नवम् मुह (िदन म 12:24 से 01:12 अथातï◌् 48 िमनट)।

74. लेपभागभुक् िपतर :- तीन पीिढ़यो से पूव के िपतर।

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75. वरण :- यजमान के ितिनिध के प म काय करने के िलए ा ण का शा ीय िविध से मनोनयन।

76. िविकरदान :- िजन क जलने से मृ यु हो गयी हो अथवा िजनका दाह-सं कार नह हआ हो, उनके
िनिम ा म िदया जाने वाला अ न।

77. षोड़शोपचार :- पा , अघ, आचमन, नान, व , आभूषण, ग ध, पु प, धूप , दीप, नैवे , आचमन,
ता बूल , तवपाठ और नम कार ।

78. सङ् गव :- ात: काल के प ात् तीन मुह तक (िदन म 08:24 से 10:48 तक अथात् 02 घ टा 24
िमनट) ।

79. सिप ड़ :- वयं से लेकर पूव क सात पीढ़ी तक के पूवपु ष ।

80. सोदक :- पूव क आठव पीढ़ी से लेकर चौदहव पीढ़ी तक के पूवपु ष ।

81. स य (उपवीती) :- जनेऊ को बाय क धे पर डालकर दािहने हाथ के नीचे करना ।

82. सिप ड़ीकरण :- मृत ाणी को िपतर क पं ि म सि मिलत करने हेतु िवशेष कार क िप डदान
ि या ।

83. सिमधा :- हवन के िलए य ीय का (आम, पलाश, पीपल आिद) ।

84. साङ् गतािसि :- कम के सभी अङ् ग क पूणता के िलए िकया जाने वाला सङ् क प ।

85. िस ा न :- अि पर पकाया गया अ न ।

86. व ययन :- वि तवाचन ।

13.5. सारां श

इस इकाई के अ तगत छा को ा का मह व बताया गया है। इसके अ तगत क यागत ा , पावण ा ,


वृि ा , सिप ड़न ा , िन य-नैिमि क एवं का य ा तथा ा का समय, यो य व अयो य ा ण,

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यो य व अयो य कमकता, ा म िकये जाने वाले महादान, प चसू नाजिनत दोष प रहार के िलए प चबिल का
िवधान तथा ा कम म पा रभािषक श द का ान ा हआ। ा म तपण आिद के प ात् िपतर को भोग
लगाकर वेदपाठी ा ण, ऋि वग्, दामाद, िश य आिद को ापूवक भोजन कराना चािहए, यह
अ यफलदायी होता है।

13.6. श दावली

1. िन य ा = ितिदन िकया जाने वाला ा

2. सौभा यवती = िजसका पित जीिवत हो

3. पूिणमा = शु लप का प हवाँ िदन

4. अमाव या = कृ णप का प हवाँ िदन

5. ा प = क यागत सू य के पूिणमा से अमाव या तक

6. म या = दोपहर के सायं काल के बीच का समय

7. सव सा = बछड़े सिहत गाय

8. अनुपनीत = िजनका य ोपवीत सं कार न हआ हो।

9. आमा न = िबना पका हआ अ न/भोजन साम ी

13.7. अितलघु रीय

- 1 : ा िकसे कहते ह ?

उ र: ा से पूवज के ित जो कम िकया जाता है, उसे ा कहते ह ।

- 2 : क यागत श द से या ता पय है ?

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उ र : सू य जब क या रािश म मण करता है, वह काल क यागत अथवा कनागत कहलाता है।

- 3 : सिप ड़न ा िकसे कहते है ?

उ र : ेत को िपतर के साथ िमलाने के िलए जो ा िकया जाता है, उसे सिप ड़न ा कहते है।

- 4 : िपतर काय के िलए सव म ितिथ कौनसी मानी गयी है ?

उ र : िपतर काय के िलए सव म ितिथ अमाव या को माना गया है ।

- 5 : वृि ा कब िकया जाता है ?

उ र : िववाह, स तान आिद माङ् गिलक काय से पूव वृि ा िकया जाता है ।

13.8. लघु रीय

- 1 : ा क िववेचना क िजये ?

- 2 : ा म िकये जाने वाले महादान का उ लेख क िजये ?

- 3 : प चबिल का िवधान बताइये ?

- 4 : ा म ा पु प व अ नािद का वणन क िजये ?

- 5 : बालक के ा क यव था का वणन क िजये ?

13.9. स दभ थ

1. ा पा रजात स पादक - डॉ. मधुसू दन पा डेय काशक - राखी काशन, गया ।

2. ा िववेक स पादक - पं . अन तराम डोगरा काशक : चौख बा सं कृ त सं थान, वाराणसी ।

3. अ येि ा कम प ित स पादक - पं . चतु थ लाल शमा काशक - खेमराज ीकृ णदास, मु बई ।

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