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कुण्ड निर्माण, पूजन प्रयोग PDF
कुण्ड निर्माण, पूजन प्रयोग PDF
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1987
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इकाई — 1
म डप और कु ड िसि
इकाई क परेखा
1.1 तावना
1.2 उेय
1.7 भू-शुि
1.8 म डप िनमाण
1.11 सारां श
1.12 श दावली
1.16. स दभ थ
1.1 तावना
2. वतुल कु ड :- इनम वतुल कु ड , अधच कु ड तथा प कु ड होते है। सू यकु ड भी वतुलाकार होता
है ।
1.2 उ े य :-
1. कु ड-म डप क शा ीय िववेचन का ान ।
2. मु य कु ड के िनमाण िविध का ान ।
3. कमका ड के शा ीय ान से प रचय ।
य कता यजमान को दोन भुजाय ऊपर क ओर करके सीधा खड़ा होना चािहए, िफर उसके पैर क अङ् गुिलय
के अ भाग से लेकर ऊपर खड़े िकये गये हाथ क म यमा अङ् गुली पय त नापना चिहए। यह माप र सी, सू
या फ ते से क जा सकती है। वह नाप िजतनी भी हो, उसका पाँचवा भाग एक ह त (हाथ) का माप माना गया
है। इस कार यह माप यजमान के शरीर के अनुसार होगा, शासक य या राजक य मापसू के अनुसार नह ।
अत: इस माप म ित यि अ तर होना भी वाभािवक है, जो िक य कता को फल ाि हेतु आव यक भी है।
यजमान के माप के अनुसार िनि त ह त माण से ही म डप , कु ड , वज, पताका, तोरण, ार आिद के
प रमाण को नापा जाता है । एक हाथ का मान चौबीस (24) अङ् गुल के बराबर होता है। इस कार एक
अङ् गुल का माण एक हाथ का चौबीसवाँ भाग होता है, त प ात उस अङ् गुल का अ मां श यव होता है। यव
का अ मां श यूका तथा यूका का अ मां श िल ा या ली ा होता है। िल ा का अ मां श वाला , वाला का
अ मां श रथरे णु तथा रथरे णु का अ मां श मु ी बाँधे हए हाथ क जो ल बाई है, उसको रि न (21 अङ् गुल)
कहते है । कोहनी से लेकर म यमा/तजनी पय त यह माप ''अरि न (22 अङ् गुल) कहलाती है ।
8 ली ा = 1 यूका - 8 यूका = 1 यव
म डप हेतु भू िमपरी ण :-
वयं क भूिम पर ही य ािद कम करने चािहए तथािप अ य तीथ अथवा अ य िकसी थान पर य ािद कम कर
रहे है तो उस भूिम का उिचत शु ल भू वामी को दे देना चािहए अ यथा य ािद का फल भू वामी को ही िमलता
है । भूिम का परी ण करने हेतु चयिनत भूिम म एक वग-हाथ का चतु कोण खात बनाकर उस गत को सू या त
के समय जल से भर देना चािहए। यिद दूसरे िदन ात: काल उस गड् ढे म जल शेष रह जाये अथवा वह भूिम
गीली रह जाये तो वह शुभल ण होता है। यिद क चड़यु भूिम रहे तो म यफलदायी होता है । यिद उसका जल
पूण प से सू ख जाये तो उसम दरारे पड़ जाये तो उस भूिम को अशुभ फलदायी कहा जाता है । यथा -
नोट :- रे िग तान वाले देश म यह िविध उपयोगी नही ह, अत: े िवशेष का यान रखना चािहए ।
1. सु ग ध यु भूिम ा णी, र ग ध वाली भूिम ि या, मधुग ध वाली भूिम वै या, म ग ध वाली
भूिम शू ाभूिम कही गयी है , अ लरस यु वै या, ित रस यु शू ा, मधुरसयु भूिम ा णी और
कड़वी ग ध वाली भूिम ि यवणा होती है।
8. पूव िदशा म ऊँची भूिम पु का नाश करती है। अि कोण म ऊँची भूिम धन देती है। अि कोण म नीची
भूिम धन क हािन करती है। दि णिदशा म ऊँची भूिम वा य द होती है। नैऋ यकोण म ऊँची भूिम
ल मीदायक होती है। पि म म ऊँची भूिम पु द होती है। वाय यकोण म ऊँची भूिम य क हािन
करती है। उ रिदशा म ऊँची भूिम वा य द तथा ईशानकोण म ऊँची भूिम महा लेशकारक होती है।
9. हल के फाल से भूिम को खोदने पर यिद लकड़ी िमले तो अि नभय, ईटं िमले तो धन ाि , भूसा िमले
तो धनहािन, कोयला िमले तो रोग, प थर िमले तो क याणकारी, हड् डी िमले तो कु लनाश, सप या
िब छू आिद जीव िमले तो वे वयं ही भय का पयाय है ।
10. हल के फाल से भूिम को खोदने पर यिद लकड़ी िमले तो अि भय, ईटं िमले तो धन ाि , भूसा िमले तो
धनहािन, कोयला िमले तो रोग, प थर िमले तो क याणकारी, हड् डी िमले तो कु लनाश, सप या िब छू
आिद जीव िमले तो वे वयं ही भय का पयाय है।
11. फटी हई से मृ यु, ऊषर भूिम से धननाश, हड् डीयु भूिम से सदा लेश , ऊँची-नीची भूिम से श ु विृ ,
मशान जैसी भूिम से भय, दीमक से यु भूिम से सङ् कट, गड् ढ वाली भूिम से िवनाश और कू माकार
अथात् बीच म से ऊँची भूिम से धनहािन होती है।
12. आयताकार भूिम (िजसक दोन भुजाएँ बराबर एवं चार कोण सम हो) पर िनवास सविसि दायक,
चतु र भूिम (िजसक ल बाई चौड़ाई समान हो) पर य ािद शुभकम करने से धन का लाभ, गोलाकार
भूिम पर य ािद शुभकम करने से बुि बल क वृि , भ ासन भूिम पर सभी कार का क याण,
च ाकार भूिम पर द र ता, िवषम भूिम पर शोक, ि कोणाकार भूिम पर राजभय, शकट अथात् वाहन
स श भूिम पर धनहािन, द डाकार भूिम पर पशुओ ं का नाश , सू प के आकार क भूिम पर गाय का
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नाश, जहाँ कभी गाय या हाथी बं धते हो वहाँ िनवास करने से पीड़ा तथा धनुषाकार भूिम पर िनवास
करने घोर सङ् कट आता है।
13. भूिम खोदते समय यिद वहाँ प थर िमल जाये तो धन एवं आयु क वृि होती है , यिद ईटं िमले तो
धनागम होता है। कपाल, हड् डी, कोयला, बाल आिद िमले तो रोग एवं पीड़ा होती है।
14. यिद गड् ढे म से प थर िमले तो वण ाि , ईटं िमले तो समृि , य से सु ख तथा ता ािद धातु िमले तो
सभी कार के सु ख क ाि होती है।
15. भूिम खोदने पर िचऊँटी अथात् दीमक, अजगर िनकले तो उस भूिम पर िनवास नह करे । यिद व ,
हड् डी, भूसा, भ म, अ डे, सप िनकले तो गृह वामी क मृ यु होती है। कौड़ी िनकले तो दु:ख और
झगड़ा होता है, ई िवशेष क कारक है। जली हई लकड़ी िनकले तो रोगकारक होती है, ख पर से
कलह ाि , लोहा िनकले तो गृह वामी क मृ यु होती है , इसीिलए कु भाव से बचने के िलए इन सभी
प पर िवचार करना चािहए।
िदशा के चयन हेतु यथोपल ध साम ी यथा - िदशा सू चक य (क पास) से िदशा का िनणय करे ।
राह के मुख से िपछले भाग म भूिम शोधन के िलए खात अथात् खड् ढा खोदना चािहए । उदाहरण के िलए
राहमुख ईशानकोण म हो तो खड् ढा आ नेयकोण म खोदना चािहए। वतमान म यही िविध चिलत है ।
1.6 भू-शु ि :-
1. दहनकम िजस भूिम पर य ािद कम हेतु म डप िनमाण करना हो, उसके खर-पतवार, काँटे आिद न
करने के िलए उसे यथास भव ि या से शु करना चािहए। य ािद कम हेतु चयनिनत भूिम पर यिद
वृ काटने पड़े (जहाँ तक स भव हो वृ ािद जीव पर िहंसा नह करे ) तो ाथनापूवक वृ काटने
चािहए तथा िजतने वृ काट रहे ह, उनसे अिधक यथासं या म वृ ारोपण करना चािहए।
अथात् जो ाणी इस वृ म िनवास करते है वे मेरे ारा दी गयी बिल अथवा भोग को हण करके
अ य िनवास कर, ऐसा कहते हए नम कार करे । आप सभी ाणी मुझे मा करे य िक म इस वृ करे काट
रहा हँ।
2. खननकम :- शुि के प ात् भूिम को समतल करने हेतु कु दाल, फावड़ा, हल आिद से खुदवाय,
िजससे भूिम चौरस तथा समतल हो जाये।
दहन-खनन-स लवन आिद ि याओं के प ात् थूल प से भूिम समान हो जायेगी, पर तु थकार के
अनुसार उसे ''समानां मुकुरजठरवत् बनाना चािहए अथात् िजस कार से दपण सपाट, िचकना एवं समतल होता
है, उसी कार भूिम को भी बना देना चािहए ।
उ कार से भू िम क परी ा करके भगवान गणेश, भगवती दु गा, े पाल तथा आठ िद पाल क
पु प, धू प तथा बिल आिद पू जन साम ी से पू जा करे।
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1.7 म डप िनमाण :-
म डप क भूिम को सामा य भूिम से एक हाथ या आधा हाथ माण ऊँचा रखना चािहए य िक य शाला को
सामा य भूिम से ऊँचा न रखने पर उसक पिव ता बािधत हो सकती है । देव ित ा आिद कम म य म डप के
अित र अ य म डप भी (अिधवासनम डप , नानम डप आिद) बनाने चािहए । अ य म ड़प को इतने
अ तर से बनाये िक वह अ तर म डप क ऊँचाई से यून न हो अथात् यिद म डप क ऊँचाई प ह (15) हाथ
हो तो कम से कम प ह हाथ के अ तर से ही अ य म डप बनाना चािहए। यथा -
त काय म डप ै: सं ि ं म डप यम ï। - यामल
तथा उसे ितहरा करने पर एक ख ड़ क माप होगी, उससे ईशानकोण से लेकर तीन बार नापकर
अि कोण तक पहँचे। अि कोण से नैऋ य कोण तक तीन सू ह गे। वाय यकोण से ईशानकोण तक
तीन सू क भूिम के नौ बड़े समान वगाकार बना ले। जहाँ पर उन ख ड़ के कोण पड़ते हो, वहाँ पर
त भ गाड़ देवे। इस कार चार त भ म यभाग म तथा शेष बारह त भ बाहर क ओर गाड़े जायगे।
यिद म डप प ह हाथ का होगा तो त भ क पर पर दूरी पाँच हाथ पर रहेगी। अठारह (18) हाथ के
म डप म त भ क पर पर दूसरी छ:-छ: हाथ तथा 21 हाथ के म डप म सात-सात हाथ रहेगी ।
6. बा त भ :- बाहर क ओर गाड़े जाने वाले बारह त भ पाँच हाथ माण के हो तथा उनका भी
प चमां श (एक हाथ) भूिम म िनिव करना चािहए। यथा -
8. य शाला म या य का :- जो वृ घर म लगकर टू ट गया हो, वत: सूख गया हो, टेढ़ा, पुराना
तथा अपिव थान पर उ प न हो, वह त भकम म या य है।
है । पचह र हाथ से अिधक बड़े म डप म दश िवभाग होते है, अत: 10 & 10 = 100 ख ड बनते है
तथा 11 & 11 = 121 त भ लगते है, िजसम दो सौ चालीस विलकाय लगती है।
10. विलका थापन िविध :- सव थम म यवेदी के चार कोण म जो चार बड़े त भ है, उनके चू ड़ा के
ऊपर दोन पा म िछ यु विलकाका लगाये । ये चार विलका दोन ओर िछ वाली होनी चािहए,
िजनके िछ म चू ड़ा त भ िव िकये जा सके , त प ात् इसी भाँित ादश त भ के दोन ओर बारह
विलकाका लगानी चािहए। इस कार कु ल सोलह विलकाका लग चुके ह गे और चार भीतरी
त भ आपस म सं यु हो चु के ह गे, शेष ादश त भ भी पर पर सं यु िदखाई दगे, इसम सोलह
विलका लग चु क ह गी।
त प ात् भीतर तथा बाहर के त भ को भी पर पर सं यु करना है, अत: दो-दो विलकाय येक
िदशा से म य के बा त भ से लेकर भीतरी त भ तक सं योिजत करे तथा कोण वाले त भ से भी
भीतर के त भ को सं योिजत करे तब बारह विलकाय और लग चु क ह गी। इस कार विलकाका
क सं या 16 + 12 = 28 हो जायेगी । कोने वाली चार विलकाय बड़ी होती है, िज ह ''कण कहते ह
। अब चार बड़ी विलकाय लेकर भीतर के चार बड़े त भ के ऊपर से म यवेदी के म यभाग म ऊँचाई
पर िशखर बनाने के िलए लगानी चािहए । इस कार कु ल ब ीस विलकाका का सं योजन त भ के
ऊपर करते है । कु छ िव ान विलकाओं क सं या छ ीस कहते ह, ता पय यह है िक िजतनी
विलकाओं एवं अ य का से म डप सु ढ़ हो जाये , उतनी सं या म का का योग करना चािहए ।
11. म डप का आ छादन :- म डप के ऊपरी भाग के म य म िशखर का िनमाण करे तथा उसे बाँस एवं
कट (कड़वी, सरपत, कु श आिद) से आ छािदत करे, के वल चारो ार को आ छािदत न करे । इस
म डप एवं त भ को व से भी वेि त करे । ना रयल के प , कदली त भ तथा प चप लवािद से
भी म डप को सु शोिभत करना चािहए। हय ीव पा चरा के अनुसार म डप म दपण, चामर, घट
आिद का उपयोग करने से शोभा बढ़ती है। म डप क शोभा बढ़ाने के िलए देवता, अवतार, महापु ष
एवं धािमक गु ओं के िच को म डप म लगाया जा सकता है ।
12. तोरण ार :- म डप के चार िदशाओं म पूवािद म से चार ार के बाहर तोरण का िनमाण करना
चािहए । इन तोरण का िनमाण ार से बाहर क ओर हटकर एक हाथ के अ तराल से करना चािहए,
तोरण बाहरी ार होता है। इन तोरण म येक िदशा म पृथक् -पृथक् वृ के का का उपयोग होता है ।
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13. शैव एवं वै णव य के तोरण ार पर आयु ध, वज एवं पताकािद का थापन :-भगवान् शङ् कर,
ीगणेशजी एवं शि (देवी) से स बि धत य म ि शूल लगाये जाते है। अधम म डप म शूल नौ (9)
अङ् गुल ल बा तथा उसका चतु थाश (सवा 2 अङ् गुल) चौड़ा हो, उसका दो अङ् गुल भाग फलक म गाड़ना
चािहए। यिद म यमम डप हो तो शूल क ल बाई दो अङ् गुल बढ़कर यारह अङ् गुल हो जाती है तथा चौड़ाई
पौने तीन अङ् गुल (2 अङ् गुल 6 यव) हो जाती है। उसे एक अङ् गुल बढ़ाकर अथात् तीन अङ् गुल भाग फलक
म गाड़ना चािहए। उ र तोरण म ि शूल दो अङ् गुल और ल बा होकर तेरह अङ् गुल का हो जाता है तथा सवा
तीन अङ् गुल (3 अङ् गुल 2 यव) उसक चौड़ाई होती है एवं उसका चार अङ् गुल भाग फलक म िव रहता है
। ीिव णु, ीराम आिद से स बि धत य म पूव ार के तोरण पर शङ् ख, दि णी तोरण पर च , पि मी तोरण
पर गदा तथा उ री तोरण पर प लगाते है । उन क ल क मान-वृि िव णुयाग म एक-एक अङ् गुल होती है
अथात् अधम म डप म दशाङ् गुल , म यमम डप म ादशाङ् गुल तथा उ मम डप म चौदह अङ् गुल होती है
। उनक चौड़ाई मश: सवा तीन, पौने चार तथा सवा चार होती है । साथ ही फलक म िवि मश: तीन,
चार तथा पाँच अङ् गुल होती है। त भ के मूल म दो-दो कलश क थापना करना भी अभी है ।
14. वजा :- वजा क ल बाई पाँच हाथ तथा चौड़ाई दो हाथ होनी चािहए। इनके रं ग पीत, र
(लाल/अ ण), कृ ण, नील, ेत, अिसत (धूम), ेत, िसत - ये पूवािद िदशाओं के िद पाल के अनुसार हो
तथा इनको दश हाथ ल बे बाँस पर लगाना चािहए ।
व ािद क यूनता के कारण वजा- माण एक हाथ ल बाई तथा आधा हाथ चौड़ाई का भी रख सकते है ।
यथा -
15. िदशाओं के अनु सार वण व वजाधीश (इन वजाओं पर िद पाल के वाहन का िच भी बनाकर इ ह
थािपत करना चािहए।) :-
3. दि ण कृ ण यम मिहष
5. पि म ेत वण म य/मकर
7. उ र ेत सोम अ
9. ऊव ेत ा हंस
10. अध: ेत अन त गड़
16. पताका िनवेशन :- वजा-िनवेशन के प ात् पताका-िनवेशन भी करना चािहए। पताकाय भी लोके श
(िद पाल ) के वण के अनुसार हो, िजनक दीघता सात हाथ तथा आयित (चौड़ाई) एक हाथ होनी चािहए। उन
पताकाओं म लोके श के आयुध के िच बनाकर उ हे िद कर (10 हाथ) ल बे बाँस के शीष पर लगाकर उन
बाँस का प चमां श (10/5) भूिम म गाड़ देना चािहए ।
18. महा वज :-इन सभी के अित र एक महा वज भी लगाये, िजसके अ भाग पर िकङ् िकणी, चँवर आिद
सु शोिभत होने चािहए। यह महा वज ब ीस हाथ के बाँस पर लगाये, असमथता म इसे दस हाथ या सोलह हाथ
या इ क स हाथ के बाँस पर योग करे । इस महा वज को िविच वण (प चवण) रखे तथा उस पर उस देवता
के वाहन का िच बनाय, िजसके िनिम वह य ािद कम िकये जा रहे है । कह वजा चौकोर तथा पताका
ि कोण बनाते है तथा अनेक िव ान वजा को ि कोण तथा पताका को चतु कोण बनाते है। अत: इनके आकार
थानीय लोकाचार से अनुसार बनाय ।
7. एक करोड़ से अिधक आठ हाथ माणकु ड (67 अङ् गुल 7 यव) इसका उपयोग कोिटहोम म
होता है।
अ य मत :-1. एक लाख से दस लाख आहित एक हाथ से दस हाथ माणकु ड (24 अङ् गुल से 240
अङ् गुल)
त प ात् दस लाख तक आहितय के िलए '' ल ैक वृद् या अथात् एक-एक लाख पर एक-एक हाथ बढ़ा देना
चािहए । िजतने लाख आहितयाँ हो , उतने ही हाथ का कु ड बनाना चािहए ।
नोट :-हवनकु ड के आकार का िनधारण आचाय आहित के अनुसार विववेक से देशकाल प रि थित के
अनुसार करे ।
2. कु ड क सं ाएँ :-
1. पु पक 2. पु पभ 3. सु व ृ 4. अमृतन दन 5. कौश या
िदशा कु ड फल
2. आ ेय योिनकु ड पु ाि
3. दि ण अधच कु ड क याण
5. पि म वतुलकु ड शाि त
7. उ र प कु ड वषाकारक
4. कु डमानािद च :-
हाथ 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 16
अङ् गुल 24 33 41 48 53 58 63 67 72 75 96
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यव 0 7 4 0 5 6 3 7 0 7 0
यूका 0 4 4 0 2 2 7 0 0 1 0
िल ा 0 4 3 0 4 3 7 3 0 2 0
बाला 0 3 4 0 6 2 2 5 0 0 0
रथ 0 5 5 0 4 6 0 6 0 4 0
य 0 4 0 0 0 0 1 0 0 0 0
5. नवकु ड़ी य हेतु कु ड क ि थित :-आचाय ( धान) कु ड / धान वेदी/ धान पीठ कौन सा हो, यह
सं केत नह है, पर तु शारदाितलक एवं िस ा तशेखर के अनुसार आचायकु ड को ईशान तथा पूव के म य म
कहा गया है।
6. प चकु ड य :- प चकु ड़ी प म चार कु ड आशाओं (मु य िदशाओं) म बनते है तथा पाँचवा ईशान
म बनता है। प चकु डी प म यिद य हो तो आचाय कु ड को म य म ही रखना चािहए। ित ा म पूव एवं
ईशान के म य भी रख सकते है, ऐसा भी कु छ मूध य िव ान का अिभमत है।
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7. एककु डी य :-
1. ा ण के िलए चतु र कु ड,
2. ि य के िलए वृ ाकार कु ड ,
3. वै य के िलए अधच कु ड ,
4. शू के िलए ि कोण कु ड ,
9. आचाय कु ड :- जहाँ हवन धानकम होगा, वहाँ कु ड म य म भी बनाते है। अत: नवकु ड़ी तथा
प चकु ड़ी प म आचायकु ड म य म ही बनता है, पर तु दी ाकाय एवं ित ा म आचायकु ड पूव -ईशान
के म य म ही रहना चािहए।
शतमु ख य :- जहाँ एक सौ आठ (108) या इससे अिधक कु ड हो, वहाँ िवशेष वचन से आचायकु ड
होता है, िजनक योिन पूव म होती है ।
चतु कु ड़ी िवधान :- यिद ित ाकाय म चार कु ड का िनमाण हो तो पूव िदशा धान होने से उसी का कु ड
आचायकु ड होना चािहए ।
1.9 कु ड िनमाण
िविध
कु ड मान के िवभाजन :- कु ड मान के आठ भाग क िजये तो चौबीस अङ् गुल म (24/8 = 3) तीन
अङ् गुल या मक एक भाग होता है।
कु ड खात :- भूिमतल से पाँच भाग (5 & 3 = 15) अथात् प ह अङ् गुल नीचे तक खनन करना चािहए
और शेष तीन भाग म (3 × 3 = 9) अथात् नौ अङ् गुल क ऊँचाई तक तीन मेखलाओं का िनमाण करना
चािहए।
अ. - मेखलासिहत खात :- खात क कु ल गहराई एक हाथ के कु ड म एक हाथ (24 अङ् गुल) ही होनी
चािहए । मान लीिजये िक भूिम से मेखलाओं क ऊँचाई चार अङ् गुल हो तो कु ड क गहराई भूिम से नीचे क
ओर बीस अङ् गुल क जाती है। इस कार (20 + 4 = 24) कु ल चौबीस अङ् गुल का खात मान लेते है, यिद
मेखला का मान पाँच अङ् गुल हो तो भूिम से नीचे उ नीस (19) अङ् गुल खात िकया जाता है। छ: अङ् गुल (6)
मेखला क ऊँचाई हो तो अठारह (18) अङ् गुल का खात िकया जाता है। छ: अङ् गुल का मान लेते है। सात
अङ् गुल क मेखला म भूिम से नीचे स ह (17) अङ् गुल का ही खात करते है। आठ अङ् गुल मेखला होने पर
खात माण मा सोलह अङ् गुल होगा। नौ अङ् गुल क मेखला होने पर क ठ से नीचे खात का माण मा
प ह अङ् गुल ही होता है। इस कार कु ल चौबीस अङ् गुल मान लेते है । मेखलासिहत खात सू म होम य के
िलए होता है।
ब. - मेखलारिहत खात :- खात करने पर चौबीस अङ् गुल क गहराई म मेखलाओं क ऊँचाई को सि मिलत
नह करते है । इस गहराई के ऊपर क ठ रहता है, त प ात् मेखलाय बनायी जाती है । इसम भूिम म पूरा चौबीस
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अङ् गुल खोदते है। पायस, च (खीर), बेलफल, इ ुख ड़ आिद के िलए मेखलारिहत खात िकया जाता है।
इसम कु ड क गहराई अिधक होती है, िजससे थूल य को कु ड म यि थत होने म सु िवधा होती है।
शारदाितलक के अनुसार कु ड क ल बाई-चौड़ाई के अनुपात म खात भी उतनी ही ल बाई-चौड़ाई का होना
चािहए । जब सिमधा के साथ गोमयिप ड़ (छाणे/क ड़े) का उपयोग होता है, तब मेखलारिहत खात करना ही
उिचत होगा य िक वतमान का के अभाव गोमयिप ड का उपयोग सव अिधकमा ा म िकया जाता है ।
सोमश भु के अनुसार क ठ का माण दो अङ् गुल है , उनके मतानुसार कु छ आगम म क ठ दो अङ् गुल भी
चौड़ा होता है, पर तु सवस मत एवं चिलत प एक अङ् गुल का ही है, वही सवमा य है। दो हाथ वाले कु ड
(34 अङ् गुल) म क ठ दो अङ् गुल बनाया जा सकता है ।
3. कु ड क मेखला का िनमाण :-
स. - तृतीय मेखला :- यह सबसे नीचे बनती है, िजसक ऊँचाई कु ड े का अकाश अथातï◌् 12वाँ भाग
होती है। यह 2 अङ् गुल चौड़ी तथा 2 अङ् गुल ऊँची होती है।
एक हाथ को 24वाँ भाग अङ् गुल होता है, उसी के ारा मेखला, क ठ तथा नािभ का िनमाण करना चािहए।
कु ड क माप के िलए कु ड का रका म आज के फ ते या के ल क भाँित प का बनाने का िनदश है, िजस
काठ क पतली प ी पर बनाकर अङ् गुल तथा यव के िच लगते ह।
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द. पाँच या सात मेखलाएँ :- कु ड म पाँच तथा सात मेखलाएँ भी बनायी जाती है। ल णसं ह थ के
अनुसार पाँच मेखलाएँ मु य होती है तथा तीन मेखला म यम होती है। भिव यपुराण के अनु सार ल होम म
स मेखला मक कु ड का उपयोग होता है अथवा प चमेखला के कु ड को बनाना उिचत है । िजस कार का
कु ड हो उसी कार क मेखलाओं का िनमाण करना चािहए अथात् चतु र कु ड म मेखला भी चतु ाकार
ही होगी । ि कोण कु ड क मेखला ि कोण, प चा क प चभुज , षड क षड् भजु , स ा क स भुज एवं
अ ा क अ भुज आकार क होती है। योिनकु ड म मेखलाय यो याकार तथा वृ कु ड म मेखला वृ ाकार
होती है। प कु ड क मेखला भी प ाकार होती है । यिद कु ड िवषम षड या िवषम अ ा है तो मेखला
भी वैसी ही होनी चािहए।
मेखलाओं का फल :-
मेखला क सं या फल अ य मत
2. दो मेखला म यम अधम
3. तीन मेखला उ म म यम
4. पाँच मेखला - उ म
वण मेखला
1. ा ण तीन मेखलायु कु ड
2. ि य दो मेखलायु कु ड
3. वै य एक मेखलायु कु ड
य कता यजमान के अनुसार मेखलाय एक-दो या तीन क सं या म रखी जा सकती है। इन मेखलाओं म थम
मेखला साि वक , दूसरी मेखला राजसी तथा तीसरी मेखला तामसी कही गयी है।
ि मेखला के देव :-
1. थम मेखला का वण ेत होता है, इसके देवता ाजी है, अत: इसम देव का पूजन िकया जाता है।
इसके ह च तथा शु है। 2. ि तीय मेखला का र वण है, इसके देवता िव णु (अ युत) है , इसके ह सूय
तथा मङ् गल है। 3. तृतीय मेखला कृ णवण क होती है, िजसके देव भगवान शङ् कर ( ) है तथा इसके ह
शिन तथा राह है। बुध तथा बृह पित क ठ के ह होते है।
पूवा योिन के कु ड म होता पि म िदशा म बैठकर पूवािभमुख होकर हवन करते है तथा उ रा योिन वाले
कु ड म होता दि णिदशा क ओर पीठ करके तथा उ रािभमुख होकर बैठते है।
योिन :- सव थम कृ ित चतु र (24) अङ् गुल माण का आधा (12 अङ् गुल) दीघ तथा आठ अङ् गुल
िव तार वाला एक अङ् गुल ऊँचा चतु र बनाये। इस चतुर को कु ड क उस िदशा म बनाना चािहए, िजसम
योनी बनानी है। इसम छ: अङ् गुल के अ तर पर म य म ल बाई म एक रे खा ख च दे तथा उस रे खा को म य से
काटकर जाने वाली दूसरी रे खा भी ख च देवे , यह योिन आगे कु ड म झुक हई तथा कु ड म िव होती
िदखनी चािहए।
योिन बारह (12) अङ् गुल ल बी, आठ (8) अङ् गुल चौड़ी तथा एक (1) अङ् गुल ऊँची होनी चािहए। यह
कु ड म एक (1) अङ् गुल आगे िनकली हई तथा ढलान वाली होनी चािहए। इसक ऊँचाई आगे क ओर
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यारह (11) अङ् गुल तथा प भाग क ओर बारह अङ् गुल होनी चािहए। योिन का आकार पीपल के प े
अथवा पान के प े के स श होना चािहए।
यिद कु ड क मेखला ादश (12) अङ् गुल हो तो योिन-िनवेशन :- जब मेखलाएँ चार-चार अङ् गुल ऊँची
तथा इतनी ही चौड़ी होकर तीन क सं या म हो, तो उस ि थित म प ह अङ् गुल ल बी, दश अङ् गुल चौड़ी
तथा प ह अङ् गुल ऊँची योिन का िनमाण करना चािहए। योगसार के अनुसार ऊँचाई का माण तेरह
अङ् गुल बताया गया है। योिन का िकनार क ऊँचाई एक अङ् गुल ही होनी चािहए।
योिन क आव यकता : ताि क य म योिन बनाने क पर परा है तथा कु ड म योिन न होने को दोष
(भाया िवनाशनं ो ं कु ड़े योिनिवना कृ ते) माना गया है। कह-कह यह भी बताया गया है िक यो यभाव म
अप मार तथा भग दर रोग होता है,एवं मानहीनता के कारण द र ता होती है । म य मेखला म योिन के पीछे
िछ बनाया जाता है, िजससे ल बी-पतली-गोल लकड़ी लगा दी जाती है। योिन बन जाने पर उसके ऊपर दोन
तरफ िम ी के दो गोल िप ड़ रख िदये जाते है, जो उ र तथा दि ण म रहते है ।
अ. - अ जाकार नािभ :- कु ड तल म उभरी हई (ऊँची) होती है, गहरी नह । जब नािभ कमल क भाँित बने
तो उसे गत प नह बनाना चािहए, इसे ही प ाकार नािभ कहते है। अ य मत से सभी कु ड म नािभ बनाते है,
पर तु प कु ड म नािभ नह बनती है, य िक प कु ड म जो किणका होती है, वह वयं नािभ का थान
हण करती है।
ब. - नािभ िनमाण िविध :- कु ड तल के म य म दो अङ् गुल ऊँची तथा चार अङ् गुल ल बी एवं चार
अङ् गुल चौड़ी वगाकार (ऊँचाई के साथ घनाकार) सनी हई आ िम ी रखे। त प ातï◌् वृ ाकार व प
दान करे, उसम परकाल का सहयोग लेना चािहए। नािभ म आठ प दो अङ् गुल माण के बनाये। म य म
किणका तथा के सरम ड़ल को कि पत करे । 12वाँ भाग छोड़कर प का अ भाग बनाना चािहए। द ार भ म
चार ओर अङ् गुलािद 0.2.5.2 छोड़ (काट) देतो शेष े म तीन समान वृ मश: 0.4.7.1 यासाध,
1.1.6.2 यासाध तथा 1.6.5.3 यासाध का बनाकर नािभ स प न करे ।
म डप को पूव से पि म तथा उ र से दि ण तीन-तीन भाग म िवभािजत करे तो उनके खड़े और ितरछे कटने
से कु ल नौ ख ड़ िनिमत हो जाते है, उनम से म यभाग को वेदी कहते है। म य म वेदी क ऊँचाई एक हाथ
माण क होनी चािहए। इस धान वेदी को ि व ा चतु कोण बनाना चािहए। य भगवानï◌् म य म िवरािजत
होकर आहित हण करते है, अत: म यख ड़ म वेदी बनाने का ावधान अनेक आचाय ने िकया है, पर तु
म यकु ड भी बना सकते है तथा धान वेदी ईशानकोण अथवा पूव म बनानी चािहए। शारदाितलक के
अनुसार वेदी म यभाग म उिचत है, वेदी म तीन व बनाने चािहए। यथा -
यिद म य भाग म वेदी बनाई हो तो धान वेदी पूव म ही बनानी चािहए। यथा -
1. वेदी के कार :-
अ. चतु र ा वेदी :- यह वगाकार होती है, यह सभी के िलए शुभफलदायी होती है।
ब. पि नी वेदी :- यह कमल के आकार क होती है, इसका उपयोग वापी, कू प, तड़ागािद क ित ा म होता
है।
स. ीधरी वेदी :- यह बीस (20) कोण वाली होती है, इसका िनमाण िववाह-काय म करना े है। इसका
उदर दपण क भाँित िनमल, चमकदार तथा सपाट होना चािहए।
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द. सवतोभ वेदी :- इसम चार िदशाओं म चार भ होते है, िजसका उपयोग अिभषेक म करना चािहए।
सवतोभ का िनमाण तो अिधसं य मङ् गलकाय म होता है।
2. अ कोण वेदी :- ीराघवभ ने अ कोण वेदी का िवधान शतच ड़ी, सह च ड़ी आिद शि याग हेतु
बताया है। म डप के म यभाग म चार त भ के म य एक वगाकार वेदी बनाये। यिद म डप सोलह (16)
हाथ का हो तो वेदी एक हाथ तथा अठारह अङ् गुल (पौन दो हाथ & पौन दो हाथ) क बनावे। यिद म डप
बीस हाथ माण वाला हो तो वेदी एक तथा चौबीस अङ् गुल अथात् दो हाथ (2 & 2 हाथ) क बनावे। चतु र
वेदी के दोन ओर के कोण को अङ् िकत करते हए सू देने पर अ ा अथात् अ कोण हो जाती है।
3. तु लादान हेतु म यवेदी :- इस हेतु िनिमत म यवेदी यिद अधम या म यम हो तो पाँच हाथ ल बी तथा पाँच
हाथ चौड़ी होनी चािहए। यिद उ म म डप हो तो वेदी सात हाथ ल बी तथा सात चौड़ी होनी चािहए। वेदी का
उ ाय सभी कार के म ड़प म एक हाथ होना चािहए।
4. हवेदी :- सभी कार के म ड़प एवं काय म हवेदी (नव ह वेदी) का िनमाण ईशान कोण म करना
चािहए । यह हाथ ऊँची, एक हाथ ल बी तथा एक हाथ चौड़ी हो अथात् वह एक घन ह त होना चािहए। साथ
ही उसम तीन व भी हो अथात् तीन सीिढ़याँ या मेखला लगी हो इसिलए इसे ि िव ा कहा गया है।
महा यागािद म ईशानकोण म ही धान वेदी का िनमाण करते है य िक क िदशा ईशान है, पर तु नव ह
वेदी उसके दि ण म होनी चािहए ।
5. वेदी-प रिध का माण :- थम मेखला/प रिध दो अङ् गुल ऊँची, िजसके ऊपर तीन अङ् गुल ऊँचा
मेखला हो, िफर उसके ऊपर भी तीन अङ् गुल क मेखला हो। व क चौड़ाई दो अङ् गुल होती है।
6. हवन कु ड /वेदी म िवकार आने पर उसका फल - माप से अिधक गहरे कु ड म हवन करने से मनु य
रोगी होता है, होता के दोषयु होने से धेनु (गाय) और धन का य , टेढ़ा कु ड स तापकारक, मेखला से िभ न
आकृ ित मरणकारक, मेखला से रिहत होने से शोककारक, इि का (ईट)ं क अिधकता से िव का सं शय,
कु डयोिन के न होने से भाया का िवनाश तथा क ठ से विजत कु ड स तान का वं स (िवनाश) कारक फल देता
है अतएव कु डिनमाण मे अनेक कार के दोष क स भावना होने के कारण यून और अिधकता दोन कार
के दोष वण से थि डल (वेदी) का िनमाण अिधक ेय कर है इसिलए शा म उ लेख है:- ''नाि त य समो
रपु:
1.12 सारां श
1.13 श दावली
4. चतु र = िजसक चार भुजाय समान हो अथवा ल बाई व चौड़ाई समान हो।
5. दहन = जलाना
6. खनन = खोदना
7. स लावन = जल भरना
9. तोरण ार = मु य ार
1.14 अितलघु रा मक :-
-5: 50 से 99 आहितय तक िकतने अङ् गुला मक वेदी अथवा कु ड का िनमाण करना चािहए ?
1.15 लघु रा मक :-
1.16 स दभ थ -
1. हवना मक दुगास शती - स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।
2. कु ड िनमाण िविध- सङ् कलनकता - वैिदक पं . अशोक कु मार गौड़ शा ी काशक - सािव ी ठाकु र
काशन, वाराणसी ।
3. अनु ान काश स पादक - पि डत चतु थ लाल शमा काशक - खेमराज ीकृ णदास, मु बई।
4. िव कमा काश स पादक - गणेशद पाठक काशक - ठाकु साद पु तक भ डार, वाराणसी।
इकाई — 2
म डल करण
इकाई क परेखा
2.1 तावना
2.2 उेय
2.4 सारां श
2.5 श दावली
2.6 अितलघु रा मक
2.7 लघु रा मक
2.8 स दभ थ
2.1 तावना :-
म डल देवताओं का ही तीक है, इसम देवताओं क साङ् गोपाङ् ग पूजा क जाती है । म डल देवताओं के
अनुसार िनिद प म ही बनाय जाते है। ाचीन काल से म ड़ल का िनमाण वेदी पर िकया जाता है। वतमान
म यह चौक पर िकया जाने लगा है। म डल आकार क ि से ि भुजाकार, वगाकार, आयताकार, वृ ाकार
िनिमत िकये जा सकते है। म ड़ल म देवताओं को थािपत िकया जाता है, म डल सा ातï◌् देवतु य है तथा
म से उनक ाण ित ा कर दी जाती है। म डल सा ात् देव थान है, जहाँ पूजन के म म देवताओं का
आवाहन व पूजन िकया जाता है। इनके िनमाण म िविवध धा य (चावल, गेह,ँ मूं ग, मसू र, उड़द, जौ, चने क
दाल, ितल आिद), व (लाल, सफे द, पीला, काला, हरा आिद) का उपयोग होता है। देवताओं के िलए म डल
म िनिद वण के अनुसार ही धा य का उपयोग होता है। धा य व व के अभाव म अथवा भौगोिलक
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3. म ड़ल म अभी देव का थान व िदशा का ान कराते हए देवता के ित भावना जागृत करने म सहायता
करगे ।
सभी माङ् गिलक काय म म ड़ल का िनमाण िकया जाता है। सव थम गणपित म डल का िनमाण िकया जाता
है, शा ीय िनदश के अनुसार गणपित भ म डल का िनमाण गणपित पूजन हेतु सव े है तथािप वि तक भी
इ ह का तीक है अथात् देशकाल प रि थित के अनुसार के वलमा वि तक का िनमाण भी िकया जा सकता
है। त प ात् षोड़श मातृकाओं व स वसो ् धारा मातृकाओं के म डल का िनमाण िकया जाता है। त प ात्
नव ह, ािद प चदेव, िपतर, व ण, योिगनी, े पाल आिद म ड़ल के िनमाण के प ातï◌् म य म धान
चौक /वेदी पर पूजन के अनुसार धान देव का थापन िकया जाता है। कम के अनुसार म डल िनमाण भी
िभ न-िभ न होता है।
2.3.1. गणपित म डल :-
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सव थम चौक /वेदी पर लाल व िबछाकर गेह ँ अथवा यथोिचत धा य से वि तक का िनमाण करना चािहए।
वि त के म य म चार िब दु बनाने चािहए। वि तक के दाय-बाय दो-दो खड़ी रे खाय बनानी चािहए।
6. ऊँ िव नकरेनम:, िव नकतारमावाहयािम ।
हाथ म अ तपु प लेकर गणपित क थापना करे - ऊँ मनोजूित.। ऊँ भूभव:ु व: मोदािदषड् िवनायका: सु
िति ता वरदा भव तु । ऊँ मोदािदषड् िवनायके यो नम: - यथोपचार पूजन करे ।अनया पूजया
मोदािदषड् िवनायका: ीय ताम्। इस कार गणपित म डल का िनमाण करके उस पर गणपित सिहत अि बका
क थापना करनी चािहए।
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गौयािदमातृका
स घृतमातृका
7. ऊँ सर व यै नम:।
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नव ह म डल का िनमाण :-
हम डल-देवता
अिधपित देवता :-
यािधपित देवता :-
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62 54 46 38 30 22 14 6
61 53 45 37 29 21 13 5
60 52 44 36 28 20 12 4
59 51 43 35 27 19 11 3
58 50 42 34 26 18 10 2
57 49 41 33 25 17 9 1
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योिगनी म डल का िनमाण :-
आ नेय कोण म का क चौक अथवा समचतु र वेदी पर लाल अथवा हरा व िबछाकर मसू र क दाल
अथवा अ त को गुलाल म रं गकर (उपरो िच के अनुसार के अनुसार) धा य से म डल का िनमाण करना
चािहए । 64 को क का िनमाण करके उन पर ीमहाकाली, ीमहाल मी, ीमहासर वती सिहत अधोिखत
म से 64 योिगिनय क थापना करनी चािहए
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े पाल म डल का िनमाण :-
वाय यकोण म का क चौक अथवा समचतु र वेदी पर काले अथवा लाल व िबछाकर उड़द क दाल
अथवा अ त को गुलाल म रं गकर (उपरो िच के अनुसार के अनुसार) धा य से म डल का िनमाण करना
चािहए । 49 को क का िनमाण करना चािहए। समानभाग से नौ को क बनाकर म य म एक धा यपु ज तथा
शेष आठ को क म येक म छ: पु ज का िनमाण करते हए अधोिलिखत म से उनम देवाताओं का
आवाहन- थापन करना चािहए:-
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गृ हवा तु म डल का िनमाण :-
नैऋ यकोण म का क चौक अथवा समचतु र वेदी पर काले अथवा यथोपल ध व िबछाकर यथोिचत
धा य अथवा अ त को गुलाल म रं गकर (उपरो िच के अनुसार के अनुसार) धा य से म डल का िनमाण
करना चािहए। 81 को क का िनमाण करना चािहए। पि म से पूव तथा उ र से दि ण क ओर 10-10
रे खाओं को खीचकर उनम यथोिचत रं ग के पु ज का िनमाण करना चािहए ।
चार लोहे क नागफणी क क ल को आ नेयािद िविदशाओं म शङ् कु रोपण, बिलदानािद कम करना चािहए ।
बिलदान :-
रेखापू जन :- पि म से पूव क ओर :-
5. ऊँ स यै नम:, 6. ऊँ सु म यै नम:,
9. ऊँ सु रथाय नम:,
रेखापू जन :- दि ण से उ र क ओर :-
वा तु पू जन :-
पूजन के प ात् वा तु के िलए वा तु म डल के देवताओं के िलए पायस अथवा यथोपल ध साम ी से बिल देनी
चािहए ।
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पदीय वा तु म डल का िनमाण :-
नैऋ यकोण म का क चौक अथवा समचतु र वेदी पर यथोिचत व िबछाकर अथवा अ त को गुलाल म
रं गकर (उपरो िच के अनुसार के अनुसार) धा य से म डल का िनमाण करना चािहए । 64 को क का
िनमाण करना चािहए। समानभाग से पि म से पूव तथा दि ण से उ र िनमाण करना चािहए । ईशान से नैऋ य
तथा अि से वाय य कोण तक धागा अथवा सू के मा यम से को क को म डलानुसार िवभािजत करके
चतु :ष ीपदा मक वा तु म डल का िनमाण करना चािहए । पूवापर रे खा पूजन : ऊँ ल यै नम:, यशोव यै नम:,
का तायै नम:, सु ि यायै नम:, यशै नम:, िशवायै नम:, शोभनायै नम:, साधनायै नम:, ईड़ायै नम:।
या यो र रेखा पू जन : ऊँ धा यायै नम:, धरायै नम:, िवशालायै नम:, ि थराय नम:, पायै नम:, गदायै नम:,
िनशायै नम:, िवभवायै नम:, भवायै नम:। शेष पूजन पूववत् करे ।
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सवतोभ म डल का िनमाण :-
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1 (ऐशा.) ऊँ महािव णवे नम: 2 (नैऋ यां ) ऊँ महाल यै नम: 3 (आ ने यां ) ऊँ महे राय नम: 4 (वाय यां )ऊँ
महामायायै नम:।
दयाङ् गम ये चतु षु को ेषु चतु वदा पू जयेत-् 5 ऊँ ऋ वेदाय नम: 6 ऊँ यजुवदाय नम: 7 ऊँ सामवेदाय
नम: 8 ऊँ अथववेदाय नम: पूवादीशानपय तं ेतको ेषु अ देवान् पूजयेत् -
9 ऊँ अद्ï यो नम: 10 ऊँ जलो वाय नम: 11 ऊँ ïणे नम: 12 ऊँ जापतये नम: 13 ऊँ िशवाय नम:
दि ण ेतको ेषु -20 ऊँ व णाय नम: 21 ऊँ अं शमु ते नम: 22 ऊँ भगाय नम: 23 ऊँ इ ाय नम: 24 ऊँ
िवव वते नम:
नैऋ यकोणे ेतको ेष-ु 27 ऊँ व ् यै नम: 28 ऊँ द य ाय नम: 29 ऊँ देववसवे नम: 30 ऊँ महासु ताय नम:
पि मे ेतको ेष-ु 31 ऊँ सु धमणे नम: 32 ऊँ शङ् गïपदे नम: 33 ऊँ महाबाहवे नम: 34 ऊँ वपु मते नम: 35
ऊँ अन ताय नम:
वाय ये ेतको ेष-ु 36 ऊँ महेरणाय नम: 37 ऊँ िव ावसवे नम: 38 ऊँ सु पवणे नम: 39 ऊँ िव ïराय नम: 40
ऊँ दैवताय नम: 41 ऊँ वु ाय नम:
उ रे ेतको ेषु- 42 ऊँ धरायै नम: 43 ऊँ सोमाय नम: 44 ऊँ आपव साय नम: 45 ऊँ नलाय नम: 46 ऊँ
अिनलाय नम:
ईशानकोण ेतको ेष-ु 49 ऊँ आव ताय नम: 50 ऊँ साव ताय नम: 51 ऊँ ोणाय नम: 52 ऊँ पु कराय
नम:
अथ िशर गशि ं पू जयेत्- 53 ऊँ ी काय नम: 54 ऊँ ि यै नम: 55 ऊँ का याय यै नम: 56 ऊँ चामु डायै
नम: 57 ऊँ महािद यायै नम: 58 ऊँ महाश दायै नम: 59 ऊँ िसि दायै नम: 60 ऊँ ऐं नम: 61 ऊँ ि यै नम:
62 ऊँ ी ि यै नम:।
ईशानकोणे वा यां कृ णको े ेतेषु -90 ऊँ जय यै नम: 91 ऊँ मङ् गïलायै नम: 92 ऊँ का यै नम: 93 ऊँ
भ का यै नम: 94 ऊँ कपािल यै नम:
अि कोणे वा यां कृ णको े ेतेषु -495 ऊँ दुगायै नम: 96 ऊँ मायै नम: 97 ऊँ िशवायै नम: 98 ऊँ धा यै
नम: 99 ऊँ वाहा वधा यां नम:
(अथ िशखां गदेवपू जनम्) नैऋ यकोणे ह र को ेष-ु 11- 100 ऊँ दी यमानायै नम: 101 ऊँ दी ायै ऊँ 102
ऊँ सू मायै नम: 103 ऊँ िवभू यै नम: 104 ऊँ िवमलायै नम: 105 ऊँ परायै नम: 106 ऊँ अमोघायै नम: 107
ऊँ वै तु ायै नम: 108 ऊँ सवतोमु यै नम: 109 ऊँ आन दायै नम: 110 ऊँ नि द यै नम:।
नैऋ यकोणे पीतको ेष-ु 8 111 ऊँ श यै नम: 112 ऊँ महासू मायै नम: 113 ऊँ करािल यै नम: 114 ऊँ
भार यै नम: 115 ऊँ योितषम यै नम: 116 ऊँ ा यै नम: 117 ऊँ माहे य नम: 118 ऊँ कौमाय नम:।
वायुकोणे ह र को ेष-ु 11 119 ऊँ वै ण यै नम: 120 ऊँ वारा ै नम: 121 ऊँ इ ा यै नम: 122 ऊँ
चि डकायै नम: 123 ऊँ बुद् यै नम: 124 ऊँ ल जायै नम: 125 ऊँ वपु म यै नम: 126 ऊँ शा यै नम: 127 ऊँ
का यै नम: 128 ऊँ र यै नम: 129 ऊँ ी यै नम:।
वायु कोणे पीतको ेषु-8130 ऊँ क यै नम: 131 ऊँ भायै नम: 132 ऊँ का यायै नम: 133 ऊँ का तायै नम:
134 ऊँ ऋद् यै नम: 135 ऊँ दयायै नम: 136 ऊँ िशवदू यै नम: 137 ऊँ ायै नम: ।
नैऋ यवा यां कृ णको े 1 ेतेषु 4- 138 ऊँ मायै नम: 139 ऊँ ि यायै नम: 140 ऊँ िव ायै नम: 141 ऊँ
मोिह यै नम: 142 ऊँ यशोव यै नम:।
वाय यवा यां कृ णको ेषु 1 ेतेषु 4- 143 ऊँ कृ पाव यै नम: 144 ऊँ सिललायै नम: 145 ऊँ सु शीलायै
नम: 146 ऊँ ई य नम: 147 ऊँ िस े य नम:।
कवचां गेषु ऋषी पू जयेत्पू वऽ णपीतको ेष-ु 4-148 ऊँ ैपायनाय नम: 149 ऊँ भार ाजाय नम: 150 ऊँ
िम ाय नम: 151 ऊँ सनकाय नम: 152 ऊँ गौतमाय नम: 153 ऊँ सु म तवे नम: 154 ऊँ व ् यै नम: 155 ऊँ
सन दाय नम:।
पि मेऽ णपीतको ेषु 4- 156 ऊँ देवलाय नम: 157 ऊँ यासाय नम: 158 ऊँ वु ाय नम: 159 ऊँ
सनातनाय नम:।
उ रेऽ णपीतको ेषु-4- 160 ऊँ विस ाय नम: 161 ऊँ यवनाय नम: 162 ऊँ पु कराय नम: 163 ऊँ
सन कु माराय नम:।
ईशाने, अि कोणे, नैऋ यकोणे, वायु कोणे कृ णको े च एकै कम्- 164 ऊँ क वाय नम: 165 ऊँ मै ाय
नम: 166 ऊँ कवये नम: 167 ऊँ िव ािम ाय नम:।
म ये पीतको ेष-ु 8- 168 ऊँ वामदेवाय नम: 169 ऊँ सुम ताय नम: 170 ऊँ जैिमनये नम: 171 ऊँ तवे नम:
172 ऊँ िप पलादाय नम: 173 ऊँ गगाय नम: 174 ऊँ पराशराय नम: 175 ऊँ वैशं पायनाय नम:।
म ये कृ णको ेषु ईशानत:-10- 176 ऊँ माक डेयाय नम: 177 ऊँ मृकंडाय नम: 178 ऊँ लोमशाय नम:
179 ऊँ पुलहाय नम: 180 ऊँ पुल याय नम: 181 ऊँ बृह पतये नम: 182 ऊँ जमद ये नम: 183 ऊँ
जामद याय नम: 184 ऊँ दाल याय नम: 185 ऊँ गालवाय नम:।
म ये ह र को ेषु ईशानत:-16- 186 ऊँ या व याय नम: 187 ऊँ दुवाससे नम: 188 ऊँ सौभरये नम: 189
ऊँ जावालये नम: 190 ऊँ वा मीकये नम: 191 ऊँ ब ृचाय नम: 192 ऊँ इ िमतये नम: 193 ऊँ देविम ाय
नम: 194 ऊँ जाजलये नम: 195 ऊँ शाक याय नम: 196 ऊँ मु लाय नम: 197 ऊँ जातु क याय नम: 198 ऊँ
बलाकाय नम: 199 ऊँ कृ पाचायाय नम: 200 ऊँ कौश याय नम: 201 ने ाङ् गपूजनम् ।
ईशानकोणेऽ णको ेषु-12- 202 ऊँ ा नये नम: 203 ऊँ गाह प या ये नम: 204 ऊँ ई रा ये नम: 205
ऊँ दि णा ये नम: 206 ऊँ वै णवा ये नम: 207 ऊँ आहवनीया ये नम: 208 ऊँ स िज ा ये नम: 209 ऊँ
इ मिज ा ये नम: 210 ऊँ व या ये नम: 211 ऊँ वडवा ये नम: 212 ऊँ जठरा नये नम: 213 ऊँ
लौिकका ये नम:।
अि कोणे अ णको ेष-ु 12- 214 ऊँ सू याय नम: 215 ऊँ वेदाङ् गाय नम: 216 ऊँ भानवे नम: 217 ऊँ
इ ाय नम: 218 ऊँ खगाय नम: 219 ऊँ गभि तने नम: 220 ऊँ यमाय नम: 221 ऊँ अं शमु ते नम: 222 ऊँ
िहर यरे तसे नम: 223 ऊँ िदवाकराय नम: 224 ऊँ िम ाय नम: 225 ऊँ िव णवे नम:।
नैऋ यकोणे अ णको ेष-ु 12- 226 ऊँ श भवे नम: 227 ऊँ िग रशाय नम: 228 ऊँ अजैकपदे नम: 229 ऊँ
अिहबु याय नम: 230 ऊँ िपनाकपाणये नम: 231 ऊँ अपरािजताय नम: 232 ऊँ भुवनाधी राय नम: 233 ऊँ
कपािलने नम: 234 ऊँ िवशां पतये नम: 235 ऊँ ाय नम: 236 ऊँ वीरभ ाय नम: 237 ऊँ अि नीकु मारा यां
नम:।
वायु कोणे अ णको ेष-ु 11-238 ऊँ आवहाय नम: 239 ऊँ वहाय नम: 240 ऊँ उ हाय नम: 241 ऊँ
सं वहाय नम: 242 ऊँ िववहाय नम: 243 परीवहाय नम: 244 ऊँ धरायै नम: 245 ऊँ अद् यो नम: 246 ऊँ
अ नये नम: 247 ऊँ वायवे नम: 248 ऊँ आकाशाय नम:।
ऋषीन् पू जयेत् ईशानादीशपय तं बा पं ौ कृ णको ेषु- 249 ऊँ िहर यनाभाय नम: 250 ऊँ पु प जयाय
नम: 251 ऊँ ोणाय नम: 252 ऊँ शृंिगणे नम: 253 ऊँ बादरायणाय नम: 254 ऊँ अग याय नम: 255 ऊँ
मनवे नम: 256 ऊँ क यपाय नम: 257 ऊँ धौ याय नम: 258 ऊँ भृगवे नम: 259 ऊँ वीितहो ाय नम: 260 ऊँ
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मधु छं दसे नम: 261 ऊँ वीरसेनाय नम: 262 ऊँ कृ तवृ णवे नम: 263 ऊँ अ ये नम: 264 ऊँ मेधाितथये नम:
265 ऊँ अ र ïनेमये नम: 266 ऊँ अङ् िगरसाय नम: 267 ऊँ इ मदाय नम: 268 ऊँ इ मवाहवे नम: 269 ऊँ
िप पलादाय नम: 270 ऊँ नारदाय नम: 271 ऊँ अ र ïसेनाय नम: 272 ऊँ अ णाय नम: 273 ऊँ किपलाय
नम: 274 ऊँ कदमाय नम: 275 ऊँ मरीचये नम: 276 ऊँ तवे नम: 277 ऊँ चेतसे नम: 278 ऊँ उ माय नम:
279 ऊँ दधीचये नम: 280 ऊँ ा देवे यो नम: 281 ऊँ गणदेवे यो नम: 282 ऊँ िव ाधरे यो नम: 283 ऊँ
अ सरे यो नम: 284 ऊँ य े यो नम: 285 ऊँ र ो यो नम: 286 ऊँ ग धव यो नम: 287 ऊँ िपशाचे यो नम:
288 ऊँ गु के यो नम: 289 ऊँ िस देवे यो नम: 290 ऊँ औषधी यो नम: 291 ऊँ भूत ामाय नम: 292 ऊँ
चतु िवधभूत ामाय नम: ।।
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2.4 सारां श :-
इस इकाई के अ ययन के प ात् पूजन िविध के मह वपूण अङ् ग म डल- करण का ान िकया । इसके
अ तगत गणपित, षोड़श मातृका, वसो ् धारा, नव ह, चतु :ष ी योिगनी, े पाल, गृहवा तु म ड़ल,
चतु :षि पद वा तु म ड़ल, सवतोभ म ड़ल, गौरीितलक म ड़ल, एकिलङ् गतोभ एवं चतु िलङ् गतोभ
म ड़ल के रं गीन िच के साथ उनम देवताओं के थापन क िविध भी बताई गयी है । वतमान म म डल
िनमाण हेतु वेदी के थान पर चौक का भी उपयोग होने लगा है, पर तु बड़े य ािद अनु ान म वेदी पर ही
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2.5 श दावली -
1. हवना मक दुगास शतीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर ।
2. शु लयजुवदीय ा यायी स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अ. भा. ा. यो. शो. सं ., जयपुर ।
3. अनु ान काश स पादक - पि ़डत चतु थ लाल शमा काशक - खेमराज ीकृ णदास, मु बई ।
इकाई — 3
ारि भक पूजनकम
इकाई क परेखा
3.1 तावना
3.2 उेय
3.4 सारां श
3.5 श दाविल
3.8 स दभ थ
3-1 तावना :
येक पूजन के ार भ म आ मशुि , गु मरण, पिव धारण, पृ वी पूजन, सङ् क प, भैरव णाम, दीप
पूजन, शङ् ख-घ टा पूजन के प ात् ही देव पूजन करना चािहए । तो ापन एवं िवशेष अनु ान के समय
य पीठ क थापना का िवशेष मह व होता है, अत: धान देवता क पीठ रचना पूव िदशा के म य म क जाये
। पीठ रचना हेतु िविवध रं ग के अ त या अ नािद िलये जाते है। सभी तो ापन म सवतोभ पीठ िवशेष प
से बनाया जाता है । पूजन के अनेक कार चिलत है और शा म प चोपचार, षोडशोपचार, शतोपचार
आिद िविवध व तु ओ ं से अचना के िविध िवधान क िव तार से चचा है। ा भि के अनुसार उनका सं ह
करना चािहए।
3.2 उ े य :
1. पूजन के आव यक िनयम का ान ।
अ ां गअ य :- जल, पु प, कु शा का अ भाग, दही, चां वल, के सर (कु मकु म/रोली), दूवा, सु पारी, दि णा।
देवताओं क पू जा तथा थान :- प चदेव (सू य, गणेश, दुगा, िशव, िव णु) क पूजा सभी काय म करनी
चािहए। गृह थी एक मूित क पूजा नह करे , अिपतु अनेक देवमूितय क पूजा करे । इससे कामना पूरी होती है।
घर म दो िशविलङ् ग, तीन गणेश, दो शङ् ख, दो सू य, तीन दुगा, दो गोमती च और दो शािल ाम क पूजा
करने से गृह थी मनु य का क याण कभी नह होता है। शािल ाम क ाण ित ा नह होती है। बाण िलङ् ग
तीन लोक म िव यात है, उनक ाण ित ा, सं कार या आ ान कु छ भी नह होता है । प थर, लकड़ी, सोना
या अ य धातु ओ ं क मूितय क ित ा घर या मि दर म करनी चािहए। कु मकु म, के सर और कपूर के साथ िघसा
हआ च दन, पु प आिद हाथ म तथा च दन ता पा म रखे । तृण, का , प ा, प थर, ईटं आिद से ढके
सोमसू का लङ् घन िकया जा सकता है। पूजन म िजस साम ी का अभाव हो उसक पूित मानिसक भावना से
करनी चािहए अथवा उस साम ी के िलए अ त, पु प या जल चढ़ा दे, ''त द् यं तु सङ् क प य
पु पैवािप समचयेत् । अचनेषु िवहीनं यत् त ोयेन क पयेत॥् के वल नैवे चढ़ाने से अथवा के वल
च दनपु प चढ़ाने से भी पूजा मान ली जाती है ।
भू िमपरी ण :-
वयं क भूिम पर ही य ािद कम करने चािहए तथािप अ य तीथ अथवा अ य िकसी थान पर य ािद कम कर
रहे है तो उस भूिम का उिचत शु ल भू वामी को दे देना चािहए अ यथा य ािद का फल भू वामी को ही िमलता
है । भूिम का परी ण करने हेतु चयिनत भूिम म एक वग-हाथ का चतु कोण खात बनाकर उस गत को सू या त
के समय जल से भर देना चािहए। यिद दूसरे िदन ात: काल उस गड् ढे म जल शेष रह जाये अथवा वह भूिम
गीली रह जाये तो वह शुभल ण होता है। यिद क चड़यु भूिम रहे तो म यफलदायी होता है । यिद उसका जल
पूण प से सू ख जाये तो उसम दरारे पड़ जाये तो उस भूिम को अशुभ फलदायी कहा जाता है। यथा -
1. सु ग ध यु भूिम ा णी, र ग ध वाली भूिम ि या, मधुग ध वाली भूिम वै या, म ग ध वाली
भूिम शू ाभूिम कही गयी है , अ लरस यु वै या, ित रस यु शू ा, मधुरसयु भूिम ा णी और
कड़वी ग ध वाली भूिम ि यवणा होती है।
11. फटी हई से मृ यु, ऊषर भूिम से धननाश, हड् डीयु भूिम से सदा लेश , ऊँची-नीची भूिम से श ु विृ ,
मशान जैसी भूिम से भय, दीमक से यु भूिम से सङ् कट, गड् ढ वाली भूिम से िवनाश और कू माकार
अथात् बीच म से ऊँची भूिम से धनहािन होती है ।
12. आयताकार भू िम (िजसक दोन भु जाएँ बराबर एवं चार कोण सम हो) पर िनवास
सविसि दायक, चतु र भू िम (िजसक ल बाई चौड़ाई समान हो) पर य ािद शुभकम करने से
धन का लाभ, गोलाकार भूिम पर य ािद शुभकम करने से बुि बल क वृि , भ ासन भूिम पर सभी
कार का क याण, च ाकार भूिम पर द र ता, िवषम भूिम पर शोक, ि कोणाकार भूिम पर राजभय,
शकट अथात् वाहन स श भूिम पर धनहािन, द डाकार भूिम पर पशुओ ं का नाश , सू प के आकार क
भूिम पर गाय का नाश, जहाँ कभी गाय या हाथी बं धते हो वहाँ िनवास करने से पीड़ा तथा धनुषाकार
भूिम पर िनवास करने घोर सङ् कट आता है।
13. भूिम खोदते समय यिद वहाँ प थर िमल जाये तो धन एवं आयु क वृि होती है, यिद ईटं िमले तो
धनागम होता है। कपाल, हड् डी, कोयला, बाल आिद िमले तो रोग एवं पीड़ा होती है ।
14. यिद गड् ढे म से प थर िमले तो वण ाि , ईटं िमले तो समृि , य से सु ख तथा ता ािद धातु िमले तो
सभी कार के सु ख क ाि होती है।
15. भूिम खोदने पर िचऊँटी अथात् दीमक, अजगर ( अजगर क 16 प क िन ा होती है) िनकले तो उस
भूिम पर िनवास नह करे । यिद व , हड् डी, भूसा, भ म, अ डे, सप िनकले तो गृह वामी क मृ यु
होती है। कौड़ी िनकले तो दु:ख और झगड़ा होता है , ई िवशेष क कारक है । जली हई लकड़ी िनकले
तो रोगकारक होती है, ख पर से कलह ाि , लोहा िनकले तो गृह वामी क मृ यु होती है , इसीिलए
कु भाव से बचने के िलए इन सभी प पर िवचार करना चािहए ।
16. य कम हेतु म डप -िनमाण हेतु कायार भ हेतु िदशाका चयन करते समय राहमु ख का ान :-
िदशा के चयन हेतु यथोपल ध साम ी यथा - िदशा सू चक य (क पास) से िदशा का िनणय
करे।
यजमान बाय हाथ म जल लेकर तीन बार आचमन करे :- ऊँ के शवाय नम:। ऊँ नारायणाय नम:। ऊँ
माधवाय नम:। पुन: गोिव दाय नम: बोलकर हाथ धोवे और यिद यादा ही कर सके तो तीन बार पूरक (दाय
हाथ के अं गठू े से नाक का दायाँ छे द ब द करके बाय छेद से ास अ दर लेवे), कु भक (दाय हाथ क छोटी
अं गलु ी से दूसरी अं गलु ी ारा बाया छे द भी ब द करके ास को अ दर रोके ), रे चक (दाय अं गठू े को धीरे -धीरे
हटाकर ास बाहर िनकाले) करे ।
त य क दिलतकिणकापु टे लृ प मकथािदरेखया।
भू तापसारण (बाय हाथ म सरस लेकर उसे दािहने हाथ से ढककर िन म पढ़े) -
ा यैिदशे वाहा वा यै िदशे वाहा दि णायै िदशे वाहा वा यै िदशे वाहा ती यै िदशे वाहा वा यै िदशे
वाहोदी यै िदशे वाहा वा यै िदशे वाहो वायै िदशे वाहा वा यै िदशे वाहा वा यै िदशे वाहा वा यै
िदशे वाहा ॥
अहेडमानो व णे हबोद् यु श œ समानऽ आयु: मोषी:।। ऊँ व णाय नम:। पूव ऋ वेदाय नम:।
दि णे यजुवदाय नम:।पि मे सामवेदाय नम: । उ रे अथववेदाय नम: । म ये साङ् गव णाय नम:।
सव पचाराथ च दन अ तपु पािण समपयािम ।
अं कुशमु या सू यम डला सवािण तीथािन आवाहयेत् (दाय हाथ क म यमा अङ् गुली से जलपा म सभी तीथ
का आवाहन करे ) :-
आया तु मम शा यथ दु रत यकारका:।।
ऊँ जलिब बाय िव हे नीलपु षाय धीमिह। त नो अ बु चोदयात् । ''वं मूलेन अ वारमिभम य, धेनमु ु या
अमृतीकृ य, म यमु या आ छा । उदके न पूजासाम वा मानं च स ो येत् (पा के जल से पूजन साम ी
एवं वयं का ो ण करे ) :-
दीपपू जन (देवताओं के दािहने तरफ घी एवं िवशेष कम म बाय हाथ क तरफ तेल का दीपक जाकर पूजन
करना चािहए) :-
1. अि वता वातो देवता सू य देवता च मा देवता वसवो देवता ा देवतािद यादेवता म तो देवता
िव े देवादेवता बृह पित वते ो देवता व णो देवता ॥
ऊँ इम देवा ऽ असप नœ सु व व महते ायमहते यै ् याय महते जानरा याये येि याय ।इमममु य
पु ममु यै पु म यै िवशऽएषवोमीराजासोमोऽ माकं ा णाना œ राजा ।।
ऊँ भूभव:
ु व: शं ख थ देवतायै नम:। सव पचाराथ ग धा त पु पािण समपयािम।
‘रिमित जलधारया वङ् िघ ाकारं िविच य उ ानौ करौ कृ वा ‘सोऽहिमितङ् क जीवा मानं
दय थ दीपकिलकाकारं मूलाधारि थत कु लकु डिल या सह सु षु नाव मना मूलाधार वािध ान
मिणपूरकानाहत िवशु ा ार य षट् च ािण िभ वा िशरोऽवि थताधोमुख
सह दलकमलकिणका तगतपरमा मिन सं यो य पृिथ य ेजोवाय याकाशग धरस प पशश द नािसकािज ा
च ु व ो वा पािणपादपायूप थ कृ ितमनोबुद् यह र प-चतु िवशितत वािन िवलीनािन िवभा य ‘यिमङ् क
ित वायुबीजं धू वण वामनासापुटे िविच य त य षोडशवारजपेन वायुना देहमापूय (अगु ानािमका
किनि कािभ:) नासापुटौ धृ वा त य चतु :षि वारजपेन कु भकं कृ वा वामकु ि ि थत र वणपापपु षेण सह
देहं सं शो य त य ाि श ारजपेन दि णनासया वायुं रे चयेत् । ततो दि णनासापुटे ‘रिमङ् कितवङ् बीजं र वण
या वा त य षोडशवारजपेन वायुना देहमापूय नासापुटौ धृ वा त य चतु :षि वारजपेन कु भकं कृ वा पापपु षेण
सह देहं मूलाधारि थत वङ् ि ना द वा त य ाि श ारजपेन वामनासया भ मना सह वायुं रेचयेत् । तत:
‘ठिमङ् कित च बीजं शु लवण वामनािसकायां या वा त य षोडशवारजपेन ललाटे च ं नी वा नासापुटौ
धृ वा ‘विमङ् क ित व णबीज य चतु : षि वारजपेन त मा ललाट थच ाद् गिलतसु धया मातृकावणाि मकया
सम तं देहं िवर य ‘लिमङ् कित पृ वीबीज य ाि श ारजपेन देहं सु ढं िविच य दि णेन वायुं रे चयेत।् ।। इित ।
अथवा
अथ ऋ यिद यास
ॐ िव णुमहे रऋिष यो नम: िशरिस। ॐ ऋ यजु: सामछ दो यो नम: मुखे। ॐ ाणश यै नमो िद । ॐ
आं बीजाय नमो गु े। ॐ श ये नम: पादयो:। ॐ क लकाय नम: सवा ।
अथ कर यास: -
एवं दयािद करषड‘ यासान् कृ वा नाभेरार य पादा तम् (आँ ) इित पाशबीजं मरे त् । दयार य ना य तम् ( )
इित शि बीजं यसेत् । म तकादार य दया तम् ( ) इित सृिणबीजं मरे त् ।
इित वार येण वशरीरे ाणान् ित ा य ॐ इित णवेन प चदशावृ कृ वा अनेन मम देह था बटु कभैरव य
(अमुकदेव य) गभाधानािदप चदशसं कारा सं पादयािम । । इित ाण ित ा ।
ौर शाि तर त र गुं शाि त: पृिथवी शाि तराप: शाि तरोषधय :शाि त :। वन पतय :शाि तिव ेदेवा: शाि त
शाि त: सव गुं शाि त : शाि तरे व शाि त: सामाशाि तरे िध ।।12।। सु शाि तभवतु ।।
गणपित मरण :-
ॐ सु मख
ु ैकद त किपलो गजकणक: ।
त ीिवजयोभूित वा
ु नीितमितमम ।।10।।
ॐ ीम महागणािधपतये नम: -
ॐ मातृिपतृचरणकमले यो नम: -
ॐ इ देवता यो नम: -
ॐ कु लदेवता यो नम: -
ॐ ामदेवता यो नम: -
ॐ वा तु दवे ता यो नम: -
ॐ थानदेवता यो नम: -
ॐ सव यो देवे यो नम:
ॐ सव यो ा णे यो नम:
येक कम म इसी कार ारि भ पूजन करे , त प ात् गणप यािद देवतओं का पूजनािद म ार भ कर ।
3.5 सारां श :-
3.5 श दावली -
2. िविश = िवशेष
6. सङ् क प = ित ा
- 1 : प चामृत के य िलिखये ?
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- 2 : प चग य के य िलिखये ?
3.8 स दभ थ -
1. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर ।
इकाई — 4
गणपित पू जन
इकाई क परेखा
4.1 तावना
4.2 उेय
4.6 सारां श
4.7 श दावली
4.10 स दभ थ
4.1 तावना
4.2. उ े य
ऋिषय ने मं गलकामना के िलए िकये जाने वाले येक देवपूजा कम के आर भ म गणेशाचन का अिनवाय प
से सं योिजत करने का िनदश िदया ह । गणेश पूजन का िवधान पुरातन ह। शु ल य जुवद सं िहता के ''गणाना वा
गणपित ठ हवामहेमै ायणीय सं िहता के 'त कराटाय िव हे ह तीमुखाय धीमिह । त नो द ती चोदयात् ।। एवं
तै रीय आर यक अ तगत नारायणोपिनषद के 'त पु षाय िव हे व तु डाय धीमिह त नो द ती चोदयात ।।
आिद म इस पर परा के य माण ह अतैव यह िनिववाद िस ह िक िन य नैिमि क एवं का य गणेश
उपासना के आचरण म ही मानवमा का िहत िनिहत ह । िकसी देवता क उपासना को साङ् गोपाङ् ग,
यथासमय एवं हानुकूलतापूवक स पािदत करना ही उसक साथकता का साधक ह, एति षयक िवषद
ानिनिध एकमा योितिव ान म ही सं िचत ह तथा वेद के छ: अं ग म इसे मूध य (ने प) माना गया ह।
अत: गणेशोपासना िवषयक कु छ उपयोगी त य को ि क धा मक योित थ से एकि त करके यहाँ तु त
िकया जा रहा ह। योितष शा के सं िहता थ म विणत गणपित ित ोपयु काल इस कार ह ।
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ल :- िमथुन , िसं ह तथा कु भ रािश ल वािधपित एवं शुभ ह से यु या होने पर। पुन के , ि कोण
म शुभ ह ष म पाप ह, 3-11 म कोई ह तथा अ म एवं ादश म ह का अभाव अपेि त ह।
गणेशोपसना का मु ह त :- सं कट, िनवारण, अथ पाजन, आरो यता- ाि , वं शवृि और वाथ िसि आिद
िकसी भी उ े य क पूित हेतु क र यमान गणेश क अराधना का शुभार भ िन िलिखत कालशुि मे वां िछत
एवं फलद है।
ल :- वृष, िमथुन , िसं ह, क या, वृि क, धनु, कु भ, मीन आिद िकसी रािश के उिदत होने पर जब के
ि कोण मे सौ य ह 3,6,11 व पाप ह तथा 8,12 ह ह-िवहीन हो। पुन , नवमभाव शुभ ह से यु
अथवा हो तथा भा येश िन कलं क एवं िम े ीय हो।
िवशेष :- 'गणेश चतु थ िविश ा ह तथा उपासना का बल हीन च सवथा या य है। पूव िनि त मुहत के
िदन यिद कोई बाधा रोग, उ पात अथवा कोई अि य घटना उपि थत हो जाए तो उपासना थिगत कर दे। भ ा
म गणपित पूजन का िवशेष मह व है।
06 अ र का व तु ड म - ऊँ व तु डाय हम् ।
िविनयोग - ऊँ अ य ीगणेशम य भागव ऋिष:, िनचृत अनु प छ द:, िव ेशो देवता , वं बीजम्, यं शि :,
ममाभी िस यथ जपे िविनयोग:। (हाथ म जल लेकर िगराये)
31 अ र का व तु ड म - राय पोष य दाता िनिधदाता नदो मत:। र ोहणो वो बलगहनो व तु डाय हम्
।।
शि िवनायक 04 अ र का म - ऊँ
िविनयोग - ऊँ अ य ी ैलो यमोहन कर गणेशम य गणक ऋिष: गाय ी छ द: ैलो यमोहन करो गणेशो
देवता ममाभी िस यथ जपे िविनयोग:। (हाथ म जल लेकर िगराये)।
िसि िवनायक म - ऊँ नमो िसि िवनायकाय सवकायक सविव न शमनाय सवरा य वशकरणाय
वजनसव ीपु षाकषणाय ी ऊँ वाहा।
ऋणहतृगणेशम -
ऊँ ल ग ग: ीम महागणािधपये नम:।
ऊँ ल ग वरदमूतये नम:।
बीजाय भालच ाय गणेश परमा मने । णत लेशनाशाय हेर बाय नमो नम:। ।
4.4. गणपित पू जन -
पीठ-देवता- मं म डू काय नम:। आं आधारश यै नम:। मूं मूल कृ यै नम:। कं कालाि ाय नम:। आं
आिदकू माय नम:। अं अन ताय नम:। आं आिदवराहाय नम:। पं पृिथ यै नम:। इ ु अणवाय नम:। रं र न ीपाय
नम:। हं हेमिगरये नम:। नं न दनो ानाय नम:। कं क पवृ ाय नम:। मं मिणभूतलाय नम:। दं िद यम डपाय नम:।
सं वणवेिदकायै नम:। रं र निसं हासनाय नम:। धं धमाय नम:। ां ानाय नम:। व वैरा याय नम:। ऐं ऐ याय
नम:। सं स वाय नम:। ं बोधा मने नम:। रं रजसे नम:। ं कृ या मने नम:। तं तमसे नम:। मं मोहा मने नम:।
स सोमम डलाय नम:। सं सू यम डलाय नम:। वं वि म डलाय नम:। मां मायात वाय नम:। िवं िव ात वाय
नम:। शं िशवत वाय नम:। ं ïणे नम:। मं महे राय नम:। आं आ मने नम:। अं अ तरा मने नम:। पं
परमा मने नम:। जं जीवा मने नम:। ं ाना मने नम:। कं क दाय नम:। नं नीलाय नम:। पं प ाय नम:। मं
महाप ाय नम:। रं र ने य: नम:। क के सरे य: नम:। कं किणकायैनम:।
नवशि पू जनम् :- ऊँ ती ायै नम:। ऊँ वािल यै नम:। ऊँ न दायै नम:। ऊँ मोदायै नम:। ऊँ काम िप यै नम:।
ऊँ उ ायै नम:। ऊँ तेजोव यै नम:। ऊँ स यायै नम:। ऊँ िव नािश यै नम:। सव पचाराथ ग धा तपु पािण
समपयािम । (हाथ म अ त लेकर मं बोलते हए छोड़े ) ।
अ यु ारणम् :-
अ यै ाणा ित तु अ यै ाणा: र तु च ।
ऊँ भूभव:
ु व: गौ य नम: गौरी आवाहयािम थापयािम ।
फणावृ दैयु ं तिमह मनसाऽन तममरं , याम: पूजाथ मखिमममुपे ेिह भगवन ।।
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याम वां भ या जनिन िनज पं गुणमयं, गृही वा य ेऽि मन् धरिण समुपे ेिह
कृ पया ।।
ऊँ मनोजूित जुषतामा य य बृह पित िमम तनो व र ं œ सिमम दधातु ।िव ेदवा स ऽ इह मादय तामो 3
ित ।।
ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:।
आसनम् -
र यं सु शोभनं िद यं सवसौ यकरं शुभम् । आसनं च मया द ं गृहाण परमे रः ।।ऊँ पु ष ऽ एवेदं œ
स व ू तँय च भा यम् । उतामृत व येशानो यद नेनाितरोहित ।। ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प च देवता यो नम:।
आसनाथ पु पािण समपयािम ।
पा म् –गौरीसु त नम ते तु श‘रि यसू नवे ।पा ं गृहाण देवेश ग धपु पा तै: फलै:।।
ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। पाद ालनाथ पा ं समपयािम ।
आचमनीयम् -
ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। मुखे आचमनीयं समपयािम।
ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। शु ोदक नानं समपयािम।
अथगणप यथवशीषम्
ऊँ नम ते गणपतये ॥ वमेव य ं त वमिस ॥ वमेव के वलं क ािस ॥ वमेव के वलं ध ािस॥ वमेव के वलं
ह ािस॥ वमेव सव खि वदं ािस॥ वं सा ादा मािस िन यम्॥1॥
सव जगिददं व ो जायते॥ सव जगिददं व ि त ित॥ सव जगिददं विय लयमे यित।। सव जगिददं विय
येित॥ वं भूिमरापोऽनलोऽिनलो नभ:॥ वं च वा र वा पदािन॥ 5॥
वं गुण यातीत:॥ वं काल यातीत:।। वं देह यातीत:॥ वं मूलाधारि थतोऽिस िन यम्॥ वं शि या मक:॥
वां योिगनो यायि त िन यम्॥ वं ा वं िव णु वं वम् इ वम् अि न वं वायु वं सू य वं
च मा वम ◌्॥ भूभव: ु वरोम्॥ 6॥
गणािदं पूवमु चाय वणािदं तदन तरम्॥ अनु वार: परतर:॥ अध दुलिसतम्॥ तारे ण म्॥ एत व मनु व पम्।।
गकार: पूव पम्।। अकारो म यम पम्॥ अनु वार ा य पम्॥ िब दु र पम्॥ नाद: स धानम्॥ सं िहता
सि ध:॥ सैषा गणेशिव ा॥ गणकऋिष: िनचृ ाय ी छ द:॥ गणपितदवता॥ ऊँ गं गणपतये नम:॥7॥ एकद तं
चतु ह तं पाशमं कुशधा रणम्। रदं च वरदं ह तैिब ाणं मूषक वजम्॥
र ं ल बोदरं शूपकणकं र वाससम्। र ग धानुिल ाङ् गं र पु पै: सु पिू जतम् ॥ भ ानुकि पनं देवं
जग कारणम युतम्। आिवभूतं च सृ ् यादौ कृ ते: पु षा परम्॥
एवं यायित यो िन यं । स योगी योिगनां वर:॥ 9॥ नमो ातपतये नमो गणपतये नम: मथपतये नम तेऽ तु
ल बोदरायैकद ताय िव ननािशने िशवसु ताय ीवरदमूतये नम: ॥10॥ऊँ अमृ तािभषेकोऽ तु ॥ऊँ भूभव:
ु व:
िसि 0 महा0 अिभषेक नानं सम0। शु ोदक नानम् ।
ऊँ अ œ शु ना ते अ œ शु : पृ यतां प षा प :।
ललाटपटले च त योपयवधायताम् । ।
ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। अलङ् करणाथम् अ तान् समपयािम ।
गणे राय नम: पादौ पूजयािम। िव नराजाय नम: जानुन पूजयािम । आखुवाहनाय नम: ऊ ं पूजयािम।
हेर बाय नम: कट पूजयािम। कामा रसू नवे नम: नािभं पूजयािम । ल बोदराय नम: उदरं पूजयािम ।
गौरीसु ताय नम: तनौ पूजयािम। गणनायकाय नम: दयं पूजयािम । थूलक ठाय नम: क ठं पूजयािम।
क दा जाय नम: क धौ पूजयािम। पाशह ताय नम: ह तौ पूजयािम । गजव ाय नम: व ं
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पूजयािम । िव ह नम: ललाटं पूजयािम। सव राय नम: िशर: पूजयािम । गणािधपाय नम: सवाङ् गं
पूजयािम।
ऊँ भूभव:
ु व: गणेशा िद प चदेवता यो नम:। िब वप ािण समपयािम ।
ऊँ अ ने तनूरिस वाचो ि वस जन देववीतये वा गृािम बृहद् ावािस वान प य: सऽइद देवे यो हिव:
शमी व सु शिम शमी व हिव कृ देिह हिव कृ देिह ।।ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। शमीप ािण
समपयािम।
अबीरे णािचतो देव अत: शाि तं य छ मे ।। ऊँ अिह रव भोगै: पित बाह याया हेितं
प रबाधमान:।ह त नो ि व ा वयुनािन ि व ा पुमा पुमा œ स प रपातु ि व त: ।। ऊँ भूभुव: व: गणेशािद
प चदेवता यो नम:। प रमल यािण समपयािम ।
दीपम् -
ऊँ ना याऽआसीद त र œ शी णो ौ: समव त।
ऊँ भूभव:
ु व: गणेशािद प चदेवता यो नम:। फलं िनवेदयािम। पुन: आचमनीयं िनवेदयािम ।
ऊँ यँ परादानँ पू या दि णा:।
ेताङ् गं ेतव ं िसतकु सु मगणै: पूिजतं ेतग धै:, ीरा धौ र नदीपै: सु रनरितलकं र निसं हासन थम्।
ऊँ भूभव:
ु व: ीगणेशाि बका यां नम: पु पा जिलं समपयािम। (हाथ म िलए हए पु प लेकर छोड़ दे)
र र गणा य ो र ैलो यर क ।
गोधूमािदधा यपू रते ह र ािदरि जतेमृ मये िव ना य -कलशे मोदािदषड् िवनायकानां ितमा: कुं कु मािदना
िलिख वा आवाहयेत-्
1. ऊँ भूभव:
ु व: मोदायनम: , मोदमावाहयािम थापयािम।
2. ऊँ भूभव:
ु व: मोदाय नम:, मोदमावाहयािम थापयािम।
3. ऊँ भूभव:
ु व: सु मख
ु ाय नम:, सु मख
ु मावाहयािम थापयािम।
4. ऊँ भूभव:
ु व: दुमुखाय नम: , दुमुखमावाहयािम थापयािम।
5. ऊँ भूभव:
ु व: अिव नाय नम:, अिव नमावाहयािम थापयािम।
ऊँ मोदािदषड् िवनायके यो नम: इित पंचोपचारै : षोडशोपचारै : वा सं पू य । अनया पूजया मोदािदषड् िवनायका:
ीय ताम् ।
4.6. सारां श
इस इकाई के अ ययन के प ात् छा को गणपित पूजन क िविध का ान िमलेगा । इसके अ तगत गणपित
पूजन का मुह , िविवध म का ान, नूतन गणपित मूित का थापन-िविध, ाण- ित ा, अङ् गपूजन,
अथवशीष का पाठा यास, षड् िवनायक पूजन सिहत गणपित क स पूण पूजन िविध का ान छा को िमलेगा।
गणपित को थमपू य का आशीवाद सभी देवताओं से ा है अतएव कोई भी माङ् गिलक काय इनके पूजन
के िबना पूणता को ा नह होता है ।
4.7. श दावली
3. व तु ड़ = टेढ़ी सू ड़
4. ह र ा = ह दी
5. ितमा = मूित
6. कू म = कछु आ
7. अन त = सपिवशेष
8. आखु = चू हा
9. थूल = मोटा
4.8. अितलघु री
उ र : भ ा म गणपित-पूजन का िवशेष मह व है ।
4.9. लघु रा मक
4.10. स दभ थ
1. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।
4. म महोदिध
इकाई — 5
5.1 तावना
5.2. उ े य
5.3. अथ मातृका तु ित
5.6. अथ ीसू
5.7. सारां श
5.8. श दावली
5.9. अितलघु री
5.11. स दभ थ
5.1. तावना
पूजन म म षोड़शमातृकाओं का पूजन अिनवाय म है , इसके अ तगत गणपित, षोड़श देिवय तथा स
वसो ारा देिवय का पूजन िकया जाता है। वेद म इ , व ण, यम, सू य, िव णु, अि एवं आिद देव से
स ब सू के साथ इ ाणी, व णानी, यमी, उषस्, ी एवं ाणी क भी उपासना क गयी है, साथ ही वाहा
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पौरािणक सािह य के अ तगत शि कह देवप नी, कह काली, दुगा, माया, सीता, सािव ी तथा त ािद
सािह य म ल मी, अ नपूणा, सर वती, ल मी, पृ वी, राि , पीता बरा, बगलामुखी, ि पुर सु दरी, भुवने री
आिद दशमहािव ाओं के प म पूिजत है। इसक यापकता इसी से िस है िक यह के वल िकसी थानिवशेष
म ही नह अिपतु गाँव-गाँव, घर-घर म कु लदेवी आिद के प म पूिजत है ।भगवती के उपासक ने दस
महािव ाओं को कालीकु ल एवं ीकु ल दो भाग म िवभािजत िकया है। दस देिवयाँ अपने-अपने वभाव, वण,
िच एवं काय के आधार पर भ के ारा पृथक् -पृथक् प म पूिजत है, िजनम गौरी, प ा, शची, मेधा,
सािव ी, िवजया, जया आिद देिवय सिहत मु य प से कु लदेवी का पूजन िकया जाता है ।
5.2. उ े य
5.3. अथ मातृका तु ित
स य र के अ त म भेद (िब दु िवसग प से) और भेद (अकार प से) िवभाग से सोbह व पवाली,
आ पंचकवग (पाँच कार का) अ त थ वणा के योग से चार कारवाली (उसके अन तर ऊ म वणा से चार
कार क है)– म यम वण से रिहत वण य के सं योग को करती हई हे िव ाशोिभतशरीरे देवी ! तेरी जय हो। हे
क याणका रणी ! हमारी र ा करो ।।
इस तरह 51 भेदयु तू माता िव ाओं क रानी है, श द प तू ही उन वणा के सं भेद से स पूण जगत् को िम
प से कट करती है । नाम पा मक यह सं सार अगर तेरी मा ा से यु न हो तो आकाश के समान शू य ही
हो जावे। िव ाओं से देदी यमान शरीर को धारण करनेवाली हे देवी ! तु हारी जय हो। हे क याणका रणी ! तु म
हमारी र ा करो ।।
मिणपूरक, अनाहत, िवशु यही तीन थान अगर तेरी क णा से रिहत ह तो सं सार का यवहार ही ब द हो
जाये और तो या वह परमपद (अथात् मो ) भी न हो; यह म शपथ के साथ कहता हँ, अ यथा नह । इस
कार ा ड का नाश हो जायगा । इसीिलए तू अकारािद हकारा त वण को बतानेवाली, उपािध रिहत पद को
या त करके हमेशा कािशत हो रही है । हे िव ािवकिसत शरीरवाली देवी, तु हारी जय हो, हे क याणका रणी
! हमारी र ा करो ।।7।।
इस लोक म तेरे भय से हम लोग उ पि , ि थित, सं हार प काय म लगे हए ह । तेरे पद-कम से उ प न हए समय
पर तु झ को नह जानते हए अथात् अहंकार से अ ान को ाá हए दुःखी हो रहे ह। समय-समय पर अथात्
िवपि आने पर तेरे चरण म णाम करनेवाले भययु मूढ दीन हम लोग क तू र ा कर । हे िव ाओं से
देदी यमान शरीरवाली क याणका रणी िशवशि पा देवी ! तु हारी जय हो। ।।8।।
बुि पा, वाणी पा, भारती पा, म ािद िव ा पा, प र छे ी पा, सर वती ा ी भाषा वण पा
आ म काश पा तू ही है। सं सार क आिदमूहै, कृ ित पा है, अिवनािशनी है।।9।।
तू ही िवक प है, तू ही िनिवक प है, तू ही अजा है, तू ही काम है, तू ही नाद पा है, तू ही ि या है, तू ही काम
क साम य पा है, तू ही सव ाणी पा है, तू ही क याण िपणी है, तू ही िु त है, तू ही सव मा है ।।10।।
सवलोक क ई री महादेवी ! तू हमारी र ा कर। हे देवी ! तेरे चरण म िगरे हए हमारी र ा कर, हम आपको
नम कार करते ह।।11।।
जो मनु य तीन काल म इसे पढ़ेगा, उसके öदय म श द व िपणी म का यािदमयी िव ा पा कट होती
रहँगी।।15।।
इस तु ित को पढ़नेवाले क िव ा न नह होगी और वह बृह पित के समान होगा तथा वाद-िववाद (शा ाथ)
म भी िवजय को ा त होता रहेगा ।।16।।
आप लोग से पढ़े हए चौबीस नाम को ितिदन तीन काb चौबीस बार पढ़ना चािहए।।17।।
ऐसा करने से ितिदन हजार लोक को याद कर सकता है। उसक बुि सू माथ को हण करनेवाली तथा
कु शा स श हो जाती है । इसम कोई स देह नह है, यह मने सच कहा है ।।18।।
5.4. सगणेशषोडशमातृका पू जन
एक लकड़ी क चौक अथवा समतल भूिम पर वेदी का िनमाण करते हए उस पर लालव िबछाकर
षोड़शमातृका व स मातृका क गणपित सिहत पूव व अि कोण के म य म थािपत (16 पु ज गेह ँ अथवा
सु पारी से भी बना सकते है) करे । शु नवीन व पहनकर उ रािभमुख अथवा पूवािभमुख बैठे । कुं कु म (रोली)
का ितलक करके अपने दाय हाथ क अनािमका म सु वण क अं गठु ी पहनकर आचमन ाणायाम कर पूजन
आर भ करे। 16वी मातृका कु लदेवी होती है, इस म म यजमान अपने ाम/नगर/कु ल क आरा य देवी का
पूजन करे । यिद अपनी कु लदेवी के िवषय म ान नह हो तो दुगा देवी का पूजन करे ।
गणशेनािधका वृ ौ पू या तु षोडश ।।
अथात् हे गणेश! चतु भजु व प चार भुजाओं म मश: जप-माला-अं कुश व गदा को धारण करने वाले, सू ड
म कमल को धारण करने वाले, हाथी के समान मुखवाले , मुख म े मोदक धारण करने वाले , तीन ने से
यु , ल बोदर, देवताओं के पू य, एकद त, ीगणेशजी म आपको आवाहन करता हँ, पूजन के िलए इस
य भूिम म पधार।
ऊँ भूभव:
ु व: गणपतये नम: , नैऋ यको े अ भागे गणपितमावाहयािम थापयािम।
अथात् िहमाचल क पु ी, भगवान िशवश भु क ि या, देवताओं ारा अचनीय, इस सं सार म णाम करने
वाले जन क र ा म त पर रहने वाली, आिदशि , कमल के समान ने वाली, च के समान मुखवाली, उमा
व गौरी नाम से िव यात, हे देिव! हम आपका आवाहन करते है, आप इस य भूिम म पूजन के िलए आवे और
क याण करे
ािदर य जनन गौरीमावाहया यहम् ।। ऊँ आयङ् गौ: पृि र मीदसद मातर पु र:।
िपतर च य व:।।
ऊँ भूभव:
ु व: गौय नम:, गणेशा पूव गौरीमावाहयािम थापयािम ।
अथात् वण के समान आभायु , हाथ म कमल धारण करने वाली, पाप को हरने वाली, िव णु के दय पर
िवलास करने वाली, स नमुख परादेवी, तीन भुवन क व दनीय, समु क पु ी, पूजा वाकार करने के िलए
हे प ा देिव! य भूिम म पधारे और सु दर सौभा य को दान करे ।
अथात् हंस पर िवराजमान, हंस के समान चालवाली जडबुि को समा करने वाली , देवताओं के ारा
नम कृ त, अभयमु ा से यु ह तवाली, े ा माला व पु तक को धारण करनेवाली हे मेधा देिव! मुझे
सु दर मेधा दान करे, म आपका आवाहन करता हँ, य भूिम म पधारकर वर दे और हे माता भगवित! इस पूजा
को वीकार कर और िनर तर हमको शुभफल दान करे ।
अथात् सारे सं सार क उ पि के िलए सेवनीय देवताओं ारा नम कृ त व और वरमु ा हाथ म धारण करने
वाली, ा क पु ी, अपने गभ म वेद को धारण करने वाली य व प, हे सािव ी! आप हमारी सपया
(िवशेष पूजा) वीकार करने के िलए पधारे , हम आपका आवाहन करते है, पधारकर हम वर दान करे ।
6. िवजया :-
अथात् िजसका धनुष िवजय पी जय को सदा दान करता है, जो इस सं सार म अपने भ क र ा करने क
िविध म द है। ऐसी देवी भगवती देवताओं से वि दत िवजया का आवाहन करते है, हे िवजया! य भूिम म
हमारी सपया (सेवा) को वीकार करने के िलए पधारे ।
7. जया :-
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अथात् देवताओं क जय के िलए, असु रकु ल के नाश के िलए िजस देवी ने िद यदेह ( व प) धारण क है, ऐसी
ि भुवन (तीन भुवन के ारा नम कृ त) हाथ म कमल, अभयमु ा, वरमु ा, शूल , खड् ग धारण करने वाली हे
देिव जया! अचन करने के िलए हम आपका आवाहन करते है, हे वर देने वाली भगवती! आप य भूिम म
पधारकर हम वर दे।
8. देवसेना :-
अथात् े देवताओं का क याण करने के िलए सु मित (सु दर बुि प) और िकये हए का उपकार मानने वाले
पु ष के िलए बुि प , देवताओं के श ु ओ ं के िलए कालराि और क द ( वामी काितके य) के साथ रमण
करने वाली, मोर पर सवारी करने वाली, हे देवसेना! तु मको हम मन से नम कार करते है और पूजा के िलए
आवाहन करते है। हे भगवित! आप पधारे और हम सु ख दे ।
9. वधा :-
अथात् िपतर के िलए जो क य ( ा म द साम ी) का िवतरण करती है। सारा सं सार िजसक मिहमा का
गुणगान करता है, दया क मूित है और पु ष को अिभलिषत मनोरथ क पूित करने वाली , वग म िनवास
करने वाली सम त मनु य क आरा य, हे े िवमल व प वधा! हम आपका पूजन के िलए आवाहन करते
है, आप इस य भूिम म पधारे ।
िपतॄणां तृि दां देवी वधामावाहया यहम् ।। ऊँ िपतृ य: वधािय य: वधानम: िपतामहे य:
वधािय य: वधा नम:
10. वाहा :-
अथात् देवताओं को हिव (हवनीय य) दान करने वाली दै यकु ल का िवनाश करने वाली, य भाग ा
करने वाल के स ताप को हरने वाली तथा य का भाग ा करने वाली, इस सम त जगत् म िवहार करने
वाली, देवताओं ारा आराधन म त पर, अ छी कार आराधना करने यो य, हे वाहा देिव! हम पूजन के िलए
आपका आवाहन करते है, य भूिम म पधारकर हमको वर दान कर ।
11. मातृ :-
12. लोकमातृ :-
13. धृित :-
14. पु ि :-
अथात् सम त सं सार क पुि (शरीर को पोषण करने के िलए), सभी कार के अ न को देने वाली, भूख को
भोजन देने वाली, िविधिवधानपूवक िकये हए य से भुता व पूणता दान करने वाली , लालव धारण करने
वाली, पु को सु ख देने वाली, सम त सं सार का क याण करने वाली हे पुि देिव! हम आपका पूजन के िलए
आवाहन करते है, आप य भूिम म हे माता! पधारे ।
15. तु ि :-
अथात् गदा-शि -कमल और वरमु ा को अपने हाथ म धारण करने वाली, िविधिवधान पूवक य करने वाले ,
वेद-िविध का पालन करने वाले, सु दर मन से यु , धीर पु ष को अभी दान करने वाली, प न (सभी
साधन से यु होने पर भी दु:खी रहना) पु ष को कामनापूित करने वाली क पलता के समान हे तु ि देिव!
आप य भूिम म पधारे , हम वर दे, हम आपका आवाहन करते है।
16. कु लदेवी :-
यथोपचारैः स पू य ाथयेत् :-
1. ी: :-
अथात् वण के समान आभायु , लालकमल के आसन पर ि थत, स नमुख वाली, हाथ म कमलयुगल,
अभय और वरमु ा धारण करने वाली िविच कार के अलङ् कार (आभूषण इ यािद) धारण िकये हए
कमलपु प क माला धारण करने वाली ी देिव! हम आपका पूजन के िलए आवाहन करते है , य भूिम म
पधारकर हम सु ख दान करे ।
2. ल मी :-
जग ां ल म तनभरनतां शु वसनां,
अथात् पिव कमल पर आ ढ़, िव तृत किट देश से यु , कमल के समान नयनवाली, गजे ारा िद य
वणकलश के जल से नान करते हए शरीर से यु सम त सं सार क व दनीय, शु व धारण िकये हए,
तन के भार से नत हे ल मीमाता! हम आपको अचन के िलए आवाहन करते है, इस य म पधारो और हम
धन दो ।
ऊँ भूभव:
ु व: ल यै नम:, ल म आवाहयािम थापयािम।
3. धृित :-
सदा िवकिसत रहता है, ऐसी कमल के समान धृित देिव का पूजन के िलए आवाहन करते है , हे देिव! य भूिम म
पधारकर हम वरदान दे।
4. मेधा :-
अथात् िजस मेधा देिव का व ण आिद देवता अ छे मन से िन य यान करते रहते है, जो चार हाथ म मश:
वरमु ा, कमल, पु तक और अभयमु ा धारण करती है , जो कमल के म य म िवराजमान है, पीले व धारण
करती है, ऐसी मेधामाता का हम य भूिम म आवाहन करते है। हे मेधा! आप यहाँ आकर हम बुि दान करे ।
5. वाहा :-
अथात् जो देिव दोन हाथ से सभी पु ष को ग भता दान करती है तथा देवताओं के िज ा पर सदा िवहार
करती है। कमल पी पा को िलए रहती है, णव (ऊँकार) क जननी है, जो शु रे शमी व से ढक रहती है
तथा जो अ य त च चल है, ऐसी ा का हम आवाहन करते है, वो हमे य भूिम म पधारकर वर दान करे ।
6. ा :-
अथात् शुभर न से यु , लाल बड़े-बड़े ने से यु , तीन भुवन म सभी को पुि देने के िलए शरीर धारण
करने वाली च मुखी, सम त जगत् क व दनीय, सम त िव क जननी, लालव धारण करने वाली हे पुि
देिव! य भूिम म पधारकर हम बल दान करो, हम आपका आवाहन करते ह ।
िव ाधारां जग ां महाघौघिवनािशनीम् ।।
7. सर वती :-
त प ात् पृथक् -पृथक् म अथवा देवीसू अथवा ीसू का पाठ करते हए मातृकाओं क षोड़शोपचार
पूजन करे ।
भावाथ :- हे अि नदेव! आप सुवण समान काि तमय ह र ण क कनक-रजत पु प के हार को धारण करने
वाली च स श दीि मान् और अशेषजन को च मा के समान मुिदत करने वाली वणमयी ल मी को मेरे
िलए अभी िसि हेतु ा कराय।
भावाथ :- हे अि नदेव! आप चं चलता िवरिहत अथात् अ य गमन न करने वाली ल मी ा कराय िजनके
आगमन से म वण, गौ, अ और पु -िम ािद प म अनेक मनु य को ा क ं ।
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भावाथ :- हे माँ ल मी! भूख और यास से कृ िशत शरीर वाली ये ा अल मी को म नाश चाहता हँ, आप मेरे
घर से सभी अभूित और असमृि को दूर कर।
भावाथ :- सम त पृ वी पा िकसी अ य से घिषत न होन वाली सवदा स यािद से समृ गाय, अ ािद प
अनेक पशुओ ं से पूण सम त ािणय क वािमनी िव ाधा रत उस ल मी को म यहाँ अपने समीप आने के
िलए आवाहन करता हँ।
भावाथ :- हे महाल मी! आपक कृ पा से अशेष मनोरथ क ाि , स तोष और वाणी क स यता मुझे ा हो।
पशुओ ं के प म दु ध -दिध आिद अ न के प म चतु िवध (भ य, भो य, ले , चौ य) प पदाथ को म ा
क ं । ल मी और क ित मेरे म आ य हण करे िजससे म ीयुत और क ितवान बनूं ।
भावाथ :- हे ल मीपु महिष कदम! आप मुझ पर अनु ह कर मेरे यहाँ िनवास कर य िक माता ल मी आपसे
ही पु वती है । आप मेरे कु ल म प माला धारण करने वाली माता ल मी को ित ािपत करे ।
भावाथ :- जलािभमानी देवता नेहयु पदाथ को उ प न करे । हे ीपु ! िच लीत आप मेरे घर म िनवास कर
और िद य गुण वाली माता ल मी को भी मेरे वं श म वास कराय ।
भावाथ :- हे वङ् िघदेव! आप मेरे घर म उस ल मी को िनवास कराय िजससे म बहत वण, गौ, मिहष आिद
पशुधन, अनुचर, तु रगािद वाहन और पु -िम व कल ािद पु षजन को ा क ं ।
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गौया ा: सु कला: सदािशवनु तामाङ् ग यमू ला: िशवा:,देवानामिप मातर: िकमु मनु याणां सदा
सौ यदा:।
ीरा ा घृतमातरौ गणपितं ौड़ेवह योभृ शम्,तासां पादनवा बु ज य सु िचरंपु पा जल राजताम् ।।1।।
ाथना -
5.7. सारां श
इस इकाई के अ ययन के प ात् छा को पूजन म के अ तगत पूिजत षोड़श मातृकाओं के अ तगत गौरी के
साथ म गणपित, प ा, शची, मेधा, सािव ी, िवजया, जया, देवसेना, वधा, वाहा, मातृ, लोकमातृ, धृित, पुि ,
तु ि व आ मकु लदेवता अथात् कु लदेवी तथा स वसो ाराओं के अ तगत Ÿ ी, ल मी, धृित, मेधा, वाहा,
ा व सर वती के पूजन क िविध का ान करते हए इनसे स बि धत म का ान तथा मातृशि म िव ास
एवं वतमान प र े य म नारी शि का स मान करने क ेरणा िमलेगी । इस इकाई म मातृका तु ित व ीसू
का पाठा यास भी भावाथ सिहत छा के ानाजन हेतु िदया गया है ।
5.8. श दावली
2. सं हाकरता = न करने क शि
5. गणपित = िशवगण म थम
6. शची = इ क आ ाशि
9. सािव ी = सू य क शि
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उ र : षोड़श मातृकाओं के नाम - गौरी, प ा, शची, मेधा, सािव ी, िवजया, जया, देवसेना, वधा, वाहा,
मातृ, लोकमातृ, धृित, पुि , तु ि व आ मकु लदेवता अथात् कु लदेवी।
- 3 : ीसू म िकतने ोक है ?
- 5 : शि श द से आप या समझते ह ?
5.11. स दभ थ
2. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।
इकाई — 6
ना दी ा
इकाई क परेखा
6.1. तावना
6.2. उ े य
6.4. सारां श
6.5. श दाविल
6.8. स दभ थ
6.1. तावना
पूजनकम म ना दी ा का िवशेष मह व है, इस पूजन के हमारा अ युदय होता है। माङ् गिलक काय म यिद
आशौचािद क स भावना हो तो ना दी ा का पूजन कर लेना चािहए। सभी माङ् गिलक काय से पूव
ना दी ा िवशेष पूजन है तथािप आशौचािद के िकि चत् प रहार हेतु तो यह परम आव यक है ।
य , िववाह, ित ा, उपनयन, समावतन, पु ज म, गृह वेश, नामकरण, सीम तो नयन, स तान का मुख देखने
से पूव और वृषो सग म ना दी ा अव य करना चािहए । य ार भ से 21 िदन पूव , िववाह से 10 िदन पूव ,
चू ड़ाकम और उपनयन से 18 िदन पूव ना दी ा करना चािहए ।
6.2. उ े य
4. ना दी ा से प रवार का अ युदय होता है तथा हमारे अनुज म भी िपतर का स मानभाव उ प न होता है।
ात: काल वेला के पूव शयन से उठकर शौचािद से िनवृ होकर िकसी नदी, सरोवर या कु एँ पर ही अपनी
सु िवधा के अनुसार नान करके शु उ वल व धारण करके पूवािभमुख हो कु शासन पर बैठकर ा कर ना
चािहए। वण, चाँदी, तां बा, काँसे का पा िपतर के ा हेतु े बताया गया है। िम ी तथा लोहे का पा
सवथा विजत है ।त प ात् तीन बार आचमन, पिव ीधारण (दािहने हाथ क अनािमका म दो कु शा क पिव ी
धारण करे तथा बाय हाथ क अनािमका म तीन कु शा क पिव ी धारण करके ), ाणायाम आिद करे :-
ऊँ पु न तु मा देवजना: पु न तु मनसािधय:।
ऊँ के शवाय नम:। ऊँ नारायणाय नम:। ऊँ माधवाय नम:। पुन: गोिव दाय नम: बोलकर हाथ धोवे और यिद
यादा ही कर सके तो तीन बार पूरक (दाय हाथ के अं गठू े से नाक का दायाँ छे द ब द करके बाय छे द से ास
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अ दर लेवे), कु भक (दाय हाथ क छोटी अंगलु ी से दूसरी अं गलु ी ारा बाया छे द भी ब द करके ास को
अ दर रोके ), रे चक (दाय अं गठू े को धीरे-धीरे हटाकर ास बाहर िनकाले) करे ।
शु आसन पर बैठकर कमकता आसन पूजन , िशखाब धन, व ण पूजन, ितलकधारण आिद करके ना दी ा
हेतु स पूण साम ी को सं िहत करके सङ् क प करे - ऊँ िव णुिव णुिव णु: ीम गवतो महापु ष य
िव णोरा या वतमान य अिखल ा डा तगत भूम डल म ये स ीप म यवितनी ज बू ीपे भारतवष
भरतख डे आयावता तगत ावतकदेशे गं गायमुनयो: पि मभागे नमदाया उ रे भागे अबुदार ये पु कर े े
राज थान देशे गालवा म उप े े (जयप ने) अि मन्ï देवालये (गृह)े देव- ा ïणानां सि नधौ ïणो
ि तीयपराध रथ तरािद ाि ं श क पानां म ये अ ïमे ी ेतवाराहक पे वायं भवु ािद म व तराणां म ये स मे
वैव वतम व तरे चतु णा युगानां म ये वतमाने अ ï◌ािवं शिततमे किलयुगे थमचरणे बौ ावतारे भवािद
षि ïस व सराणां म येऽि मन्ï वतमाने अमुकनाि न स व सरे अमुकवै मा दे िव मािद यरा यात्
शािलवाहनशके अमुकायने अमुकऋत अमुकमासे अमुकप े अमुकितथौ अमुकवासरे अमुकरािशि थते च े
अमुकरािशि थते ीसू य अमुकरािशि थते देवगुरौ शेषेषु हेषु यथायथा रािश थान ि थतेषु स सु एवं
गुणगणिवशेषेण िविश ायां शुभपु य बेलायां अमुकगो : (शमा/वमा/गु /दास) अमुकोऽहं ममा मन:
िु त मृितपुराणो फल ा यथ ऐ यािभवृद् ï यथ अ ा ल मी ा यथ ा ल याि रकाल सं र णाथ
सकलमनईि सत कामना सं िस यथ लोके सभायां राज ारे वा सव यशोिवजयलाभािद ा यथ इह ज मिन
ज मा तरे वा सकलदु रतोपशमनाथ मम सभाय य सपु य सबा धव य अिखलकु टु बसिहत य
सम तभय यािध जरापीड़ा-मृ यु प रहार ारा आयुरारो यै यािभवृद् यथ मम ज मराशे: नामराशे: वा सकाशा े
के िचि चतु था ïम ादश थानि थत ू र हा तै: सू िचतं सूचिय यमाणं च य सवा र ं ति नाश ारा
एकादश थान-ि थतव छु भफल ा यथ पु पौ ािद स ततेरिवि छ न वृद् यथ
आिद यािदनव हानुकूलतािस यथ ि िवधतापोपशमनाथ चतु िवध पु षाथ िस यथ वसु ािद य व पाणां
िपतृिपतामह िपतामहानां सप नीकानां तथा अमुकगो ाणाममुकामु कश मणां सप नीकानां
मातामह मातामहवृ मातामहानाम् ीगणेशाि बकयो: साङ् कि पक ना दी ा महंक र ये।
ि तीय पा थापनम् :-
पादोदक अथवा पा पा को एक तरफ रखकर ि तीय पा के थापन हेतु दूवाङ् कु र, दभा या पलाश आिद का
प आसन के िलए कु श पर रखकर ि तीय पा का थापन करे, उसम जल-यवा त-दिध-च दन-पु प-
दूवाङ् कु र अथवा दभा क पिव ी डाले।
दिध :- ऊँ दिध ा णो ऽ अका रषि ज णोर य वािजन:। सु रिभनो मु खाकर णऽआयू œ िषता रषत्
॥
यव :- ऊँ यवोऽिसयवया म ेशोयवयाराती:।।
पि मे वा णो र ेद - इससे पि म को णाम कर ।
एवं दश िदशो र ेदï◌् वासु देवो जनादन:।।- इस म से सभी िदशाओं म णाम करे ।
य पिव ीकरण :- आ युदियक ा हेतु एकि त िकये गये पदाथ , उपहारािद का पा थ जलािद य से
पिव ी ारा पिव करना चािहए।
ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐभूभवः ु वः इमे आसने वो नम:। ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए कु शा का आसन समिपत करे ।
ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः इमे वासिस सु वासिस। ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव े दवे ा के िलए व समिपत करे ।
ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वःइमे अ ता: - सु अ ता: ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए अ त समिपत करे ।
ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः इमािन पु पािण - सु पु पािण ( वाहा नामयं
च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए पु प समिपत करे ।
ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः वः अयं वो धूप: - सु धूप: ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए धूप समिपत करे।
ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः अयं वो सु गि धत दीप: - सु दीप: ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए दीप समिपत करे ।
ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवःु वःइदं नैवे ं - सु नैवे ं ( वाहा नामयं च वृि :)
- इससे स यवसु िव ेदेवा के िलए नैवे समिपत करे।
ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः इदं आचमनीयम् - सु आचमनीयम् ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए आचमन हेतु जल समिपत करे ।
ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वःइमािन ऋतु फलािन - सु ऋतु फलािन ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए ऋतु फल समिपत करे ।
ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः इदं पुन: आचमनीयम् सु आचमनीयम्
( वाहा नामयं च वृि :) - इससे स यवसु िव ेदेवा के िलए पुन: जल समिपत करे।
ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वः इदं ता बूलं - सु ता बूलं ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए ता बूल समिपत करे ।
ॐ स यवसु सं काः िव ेदेवाः ना दीमु खाः ॐ भू भवः ु वःइदं दि णां - सु दि णां ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे स यवसु िव ेदवे ा के िलए दि णा समिपत करे ।
ॐ भू भवः
ु वः इदं वः पा ं पादावनेजनं पाद ालनं वृि ः
ि तीय पा थापनम् :-
पादोदक अथवा पा पा को एक तरफ रखकर ि तीय पा के थापन हेतु दूवाङ् कु र, दभा या पलाश आिद का
प आसन के िलए कु श पर रखकर ि तीय पा का थापन करे, उसम जल-यवा त-दिध-च दन-पु प-
दूवाङ् कु र अथवा दभा क पिव ी डाले।
दिध :- ऊँ दिध ा णो ऽ अका रषि ज णोर य वािजन:। सु रिभनो मुखाकर णऽआयू œ िषता रषत् ॥
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यव :- ऊँ यवोऽिसयवया म श
े ोयवयाराती:।।
ऊँ ा यै वाहा - पूव
ऊँ अवा यै वाहा - दि ण
ऊँ ती यै वाहा - पि म
ऊँ उदी यै वाहा - उ र
य पिव ीकरण :- आ युदियक ा हेतु एकि त िकये गये पदाथ , उपहारािद का पा थ जलािद य से
पिव ी ारा पिव करना चािहए।
ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: व: इमे आसने वो नम:। ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए कु शा का आसन समिपत करे ।
ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: ( वाहा नामयं च वृि :) - इससे मातृ,
िपतामही और िपतामही के िलए य ोपवीत समिपत करे।
ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इमे अ ता: - सु अ ता: ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए अ त समिपत करे ।
ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इमािन पु पािण - सु पु पािण ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए पु प समिपत करे ।
ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: अयं वो धूप: - सु धूप: ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए धूप समिपत करे ।
ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इदं नैवे ं - सु नैवे ं ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए नैवे समिपत करे।
ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इमािन ऋतु फलािन - सु ऋतु फलािन ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए ऋतु फल समिपत करे ।
ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इदं पुन: आचमनीयम् सु आचमनीयम् ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए पुन: जल समिपत करे ।
ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इदं ता बूलं - सु ता बूलं ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए ता बूल समिपत करे ।
ऊँ अमुकगो ा: मातृिपतामही िपताम ः ना दीमु यः ऊँ भुभव: इदं दि णां - सु दि णां ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे मातृ, िपतामही और िपतामही के िलए दि णा समिपत करे ।
ॐ भू भवः
ु वः इदं वः पा ं पादावनेजनं पाद ालनं वृि ः
ि तीय पा थापनम् :-
पादोदक अथवा पा पा को एक तरफ रखकर ि तीय पा के थापन हेतु दूवाङ् कु र, दभा या पलाश आिद का
प आसन के िलए कु श पर रखकर ि तीय पा का थापन करे, उसम जल-यवा त-दिध-च दन-पु प-
दूवाङ् कु र अथवा दभा क पिव ी डाले।
दिध :- ऊँ दिध ा णो ऽ अका रषि ज णोर य वािजन:। सु रिभनो मुखाकर णऽआयू œ िषता रषत् ॥
यव :- ऊँ यवोऽिसयवया म ेशोयवयाराती:।।
ऊँ ा यै वाहा - पूव
ऊँ अवा यै वाहा - दि ण
ऊँ ती यै वाहा - पि म
ऊँ उदी यै वाहा - उ र
य पिव ीकरण :- आ युदियक ा हेतु एकि त िकये गये पदाथ , उपहारािद का पा थ जलािद य से
पिव ी ारा पिव करना चािहए।
ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इमे आसने वो नम:। ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए कु शा का आसन समिपत करे ।
ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः अयं वो धूप: - सु धूप: ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए धूप समिपत करे ।
ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इदं नैवे ं - सु नैवे ं ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए नैवे समिपत करे ।
ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवः ु वः इमािन ऋतु फलािन - सु ऋतु फलािन
( वाहा नामयं च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए ऋतु फल समिपत करे ।
ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमु खाः ॐ भूभवः ु वः इदं ता बूलं - सु ता बूलं ( वाहा नामयं
च वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए ता बूल समिपत करे।
ॐ अमुकगो ा: िपतृिपतामह िपतामहाः ना दीमुखाः ॐ भूभवःु वः इदं दि णां - सु दि णां ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे िपतृ, िपतामह और िपतामहा के िलए दि णा समिपत करे ।
ॐ भू भवः
ु वः इदं वः पा ं पादावनेजनं पाद ालनं वृि ः
ि तीय पा थापनम् :-
पादोदक अथवा पा पा को एक तरफ रखकर ि तीय पा के थापन हेतु दूवाङ् कु र, दभा या पलाश आिद का
प आसन के िलए कु श पर रखकर ि तीय पा का थापन करे, उसम जल-यवा त-दिध-च दन-पु प-
दूवाङ् कु र अथवा दभा क पिव ी डाले।
दिध :- ऊँ दिध ा णो ऽ अका रषि ज णोर य वािजन:। सु रिभनो मुखाकर णऽआयू œ िषता रषत् ॥
यव :- ऊँ यवोऽिसयवया म ेशोयवयाराती:।।
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ऊँ ा यै वाहा - पूव
ऊँ अवा यै वाहा - दि ण
ऊँ ती यै वाहा - पि म
ऊँ उदी यै वाहा - उ र
य पिव ीकरण :- आ युदियक ा हेतु एकि त िकये गये पदाथ , उपहारािद का पा थ जलािद य से
पिव ी ारा पिव करना चािहए।
मता तर :-
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ि तीय पा थापनम् :-
पादोदक अथवा पा पा को एक तरफ रखकर ि तीय पा के थापन हेतु दूवाङ् कु र, दभा या पलाश आिद का
प आसन के िलए कु श पर रखकर ि तीय पा का थापन करे, उसम जल-यवा त-दिध-च दन-पु प-
दूवाङ् कु र अथवा दभा क पिव ी डाले।
दिध :- ऊँ दिध ा णो ऽ अका रषि ज णोर य वािजन:। सु रिभनो मुखाकर णऽआयू œ िषता रषत् ॥
यव :- ऊँ यवोऽिसयवया म ेशोयवयाराती:।।
ऊँ ा यै वाहा - पूव
ऊँ अवा यै वाहा - दि ण
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xzg’kkfUr izdj.k CIK - 02
ऊँ ती यै वाहा - पि म
ऊँ उदी यै वाहा - उ र
य पिव ीकरण :- आ युदियक ा हेतु एकि त िकये गये पदाथ , उपहारािद का पा थ जलािद य से
पिव ी ारा पिव करना चािहए।
ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभवः ु वः इसे आसने वो नम: य ोपवीता ते आचमनीयं सु आचमनीयमï◌् ( वाहा
नामयं च वृि :) - इससे गणेश और अि बका के िलए य ोपवीत समिपत करे ।
ीगणेशाि बकयो: ॐ भूभुवः वः इसे आसने वो नम: इदं आचमनीयम् - सु आचमनीयम् ( वाहा नामयं च
वृि :) - इससे गणेश और अि बका के िलए आचमन हेतु जल समिपत करे ।
ऊँ िव णुिव णुिव णु: ीमद् ïभगवतो महापु ष य िव णोरा या वतमान य अिखल ा डा तगत भूम डल
म ये स ीप म यवितनी ज बू ीपे भारतवष भरतख डे आयावता तगत ावतकदेशे गंगायमुनयो: पि म भागे
नमदाया उ रे भागे अबुदार ये पु कर े े राज थान देशे गालवा म उप े े (जयप ने) अि मन् ï देवालये
(गृह)े देव- ा ïणानां सि नधौ ïणो ि तीयपराध रथ तरािद ाि ं श क पानां म ये अ ïमे ी ेतवाराहक पे
वायं भवु ािद म व तराणां म ये स मे वैव वतम व तरे चतु णा युगानां म ये वतमाने अ ािवं शिततमे किलयुगे
थमचरणे बौ ावतारे भवािद षि स व सराणां म येऽि मन् वतमाने अमुकनाि न स व सरे अमुकवै मा दे
िव मािद यरा यात्ï शािलवाहनशके अमुकायने अमुकऋत अमुकमासे अमुकप े अमुकितथौ अमुकवासरे
अमुकरािशि थते च े अमुकरािशि थते ीसू य अमुकरािशि थते देवगुरौ शेषेषु हेषु यथायथा रािश थान
ि थतेषु स सु एवं गुणगणिवशेषणे िविश ायां शुभपु य बेलायां अमुकगो : (शमा/वमा/गु /दास) अमुकोऽहं
ममा मन: िु त मृितपुराणो फल ा यथ ऐ यािभवृद् ï यथ अ ा ल मी ा यथ ा ल याि रकाल
सं र णाथ सकलमनईि सत कामना सं िस यथ लोके सभायां राज ारे वा सव यशोिवजयलाभािद ा यथ इह
ज मिन ज मा तरे वा सकलदु रतोपशमनाथ मम सभाय य सपु य सबा धव य अिखलकु टु बसिहत य
सम तभय यािध जरापीड़ा-मृ यु प रहार ारा आयुरारो यै यािभवृद् यथ मम ज मराशे: नामराशे: वा सकाशा े
के िचि चतु था ïम ादश थानि थत ू र हा तै: सू िचतं सूचिय यमाणं च य सवा र ं ति नाश ारा
एकादश थान-ि थतव छु भफल ा यथ पु पौ ािद स ततेरिवि छ न वृद् यथ
आिद यािदनव हानुकूलतािस यथ ि िवधतापोपशमनाथ चतु िवध पु षाथ िस यथ वसु ािद य व पाणां
िपतृिपतामह िपतामहानां सप नीकानां तथा अमुकगो ाणाममुकामु कश मणां सप नीकानां
मातामह मातामहवृ मातामहानाम् ीगणेशाि बकयो: साङ् कि पकिविधना ना दी ा कमाङ् िगभूतं
यु म ा ण भोजनसिहतदि णािददानमहं क र ये।
अनु जनम् :-आमा वाज य सवो जग यादेमे ावापृिथवी ि व पे । आ मा ग तां िपतरा मातरा चा मा
सोमोऽअमृत वेन ग यात् ।। िव ेदवे ाः ीय तािमित। अि म ना दी ा े यूनाित र ो यो िविधः स उपिव
ा णानां वचनात् ना दीमुख सादात् सव प रपूण ऽ तु । अ तु प रपूणः इित ा णाः।
त प ात् कम म यूनता क पूित के िलए िन ाङ् िकत लोक को पढ़ते हए भगवान् से ाथना करे :-
6.4. सारां श
6.5. श दावली
1. ा = ा
3. ता = ताँबा
4. मृ मय = िम ी का पा
5. आलोड़न = िहलाना
6. यव = जौ
7. दिध = दही
9. मातामह: = परनाना
6.8. स दभ थ
2. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर ।
इकाई — 7
ा ण वरण और पु याहवाचन
इकाई क परेखा
7.1. तावना
7.2. उ े य
7.3. ा णवरण
7.5. पु याहवाचन
7.6. सारां श
7.7. श दाविल
7.10. स दभ थ
7.1. तावना
भारतीय पर परा म मातृदेवो भव, िपतृदेवो भव, आचाय देवो भव, अितिथ देवो भव क पर परा रही है। इसी का
अनुसरण करते हए आगत अितिथय का यथोिचत स कार येक गृह थी को करना चािहए, िजसके
फल व प गृह थी क सामािजक- ित ा म वृि होती है। जब देवािद पूजन का समय हो तो ा ण को शा
ने पूजा-दान-य आिद काय के स पादन के िलए उपयु माना है। येक शुभकाय करने से पूव माता-िपता,
ा ण , अपने से बड़े यि य का आशीवाद लेना चािहए, इनके शुभाशीवाद से आयु, क ित, यश, बल आिद
म वृि होती है। साथ ही उिचत-अनुिचत काय ारा उपािजत धन का सदुपयोग भी होता है तथा सामािजक
ि याशीलता भी बनी रहती है। इसके िबना काय म सफलता नह िमलती है। शा म िविध-िवधान िनि त
िकया है, िजसका ान सभी िज ासुओ ं को इस इकाई म िमलेगा ।
7.2. उ े य
7.3. ा णवरण
ा ण :- ऊँ अचय ।
पा पा :-पैर धोने के िलए उपयोगी जल को पा कहते है। अ य के आसन पर बैठ जाने के बाद पैर धोना
चािहए, इसीिलए कां यपा म जल भरकर उसका अचन करके यजमान सप नीक खड़ा हो जाये एवं ा ण से
पैर धुलवाने क ाथना करे।
ा ण िन म का पाठ करे :-
ि व णो रराटमिस ि व णो े थो ि व णो यू रिस-
यजमान :- ऊँ पा ं पा ं पा म्।
ा ण :- ऊँ पा ं ितगृ ािम।
॥ ह र: ऊँ ॥
स सृ ï िज सोमपाबाह श ् यु ध वा ितिह-तािभर ा॥ 3॥
आयु आरो य पु ािद सु ख ी ा ये मम आपदिव िवनाशाय श ु बुि याय च िवशेष: का य होमेन सु हतं
सिमधािदिभ: नव हमखं य ं कतु यूयं सीदत वागतं भो ि ज े मदनु हकारका: इदं अघ भवान्
ितगृ ताम्।
यजमान :- ऊँ अघ अघ अघ:।
ा ण :- ऊँ अघ ितगृ ािम।
िविनयोग :-
आचमनीय -
यजमान आचमनीय पा लेवे :- सु िवधापूवक आचमन करने के िलए उपयोगी पा िवशेष म आचमन के िलए
रखा गया जल आचमनीय कहलाता है और इसे ा ण को पा के बाद िदया जाता है, इसम कपूर, अगर, पु प,
जातीफल, लवङ् ग व कङ् कोल को डालने (कपूरमग ं पु पं द ात् जाितफलं मुन।े लवङ् गमिप कङ् कोलं
श तमाचमनीयके ।।) का िवधान है। ा ण आचमनीय पा लेकर जल से आचमन करे।
यजमान के हाथ से ा ण आचमनीय पा लेकर अपने बाय हाथ म रखकर दाय हाथ से दो बार आचमन करे ।
यजमान काँसी क कटोरी म शु दही, शहद व घी िमलावे और दूसरी काँसी क कटोरी से ढँक लेवे।
मधु पक :-
पदाथिवशेषबोधक मधुपक श द पुि लङ् ग है और कमिवशेषवाचक मधुपक नपुं सकिलङ् ग है, यहाँ पूजनिविध
को यान म रखकर िवचार िकया जा रहा है। पदाथिवशेषवाचक मधुपक श द से भी दो तरह के पदाथ का
सङ् के त िमलता है - दही, घी, शहद के िम ण को मधुपक (दिधसिपजलं ौ ं शीतं तािभ तु प चिभ:। ो यते
मधुपक तु सवदेवोपतु ये ।। अथवा आ यं दिध मधु िम ं मधुपक िवदुबुधा:। मधुपक दिधमधुघतृ मिपिहतं
कां येन।।) कहते है तथा दही, शहद, घी के िम ण को भी मधुपक कहते है। काँसे के कटोरे म रखकर काँसे के
कटारे से ढक करके ा ण को देना चािहए ।
मधु पक का माण :- घृत एक पल, दिध तीन पल व शहद एक पल िमलाने पर मधुपक बनता है अथात् आठ
तोला का पल मानने पर आधा सेर तथा चार तोला का पल मानने पर पावभर के बराबर दही आिद से बने हए
पदाथ का वजन होता है ।
म ो चारपूवक ा ण मधुपक को बाय हाथ म लेकर दाय हाथ के अङ् गु व अनािमका अङ् गुली से दि ण
म से तीन बार िमलाकर भूिम पर थोड़ा-थोड़ा छोड़े, इसके बाद तीन बार ाशन करे, ित ाशन म म का
पाठ करे त प ात् ाशन के बाद दो बार आचमन करे ।
म :- ऊँ िम य वा च ुषा ती े।
त प ात् बाय हाथ म रखकर ऊपर क कटोरी हटाकर दाय हाथ क अनािमका अं गलु ी से तीन बार चलाकर
अनािमका और अं गठू े से थोड़ा सा भूिम पर पर िगराये :-
इस म से तीन बार ेप करके तीनबार िफर नीचे के म से मधुपक का सेवन करता हआ तीन बार य मधुनो
म का उ चारण करे :-
िफर मधुपक को ा ण वयं ाशन करे (उि छ /शेष) तथा मधुपक को अपने पु /िश य को देवे/अस चरे
िनधाय :-
िफर ा ण तीन बार आचमन करके तजनी म यमा व अनािमका अं गलु ी से मुख का पश करे :-
म ो चापूवक ा ण दाय हाथ क अनािमका, म यमा अङ् गुली व अङ् गु से से सव थम मुख का पश करे
एवं इसी कार मश: नाक, आँख, कान का पश करते हए बाय हाथ से दाय हाथ का तथा दाय हाथ से बाय
हाथ का पश करे त प ात् घुटने का पश करते हए सभी अङ् ग का पश करे ।
ऊँ वा ऽआ ये अ तु ।
यजमान ा ण के साथ दूवादल पकड़कर तीन बार यह कहे (तृण याग : - यजमान य या तृण को खड़ा करे ,
पुन: ा ण उसे पकड़े , त प ात् म ो चारपूवक उस तृण को तोड़कर ईशानकोण म याग देवे।) :-
ऊँ गौग ग :।
म :-
अ अ ाऽऽचारात् गोदानम् :-
अङ् ग यास एवं तृण याग के बाद आचाय ने गोदान का िनदश िकया है, इसिलए मधुपक के अन तर गोदान
यथाशि अव य करना चािहए। वतमान म कु छ ही यजमान गोदान कर पाते है य िक गाय इतनी मँहगी आती
है िक हर यि गाय दान नह कर सकता और गोदान सभी ा ण िभ न-िभ न कारण से ले भी नह सकते है,
अत: गोदान म ा ण अपने िववेक से काम करे।
सङ् क प :-
अमुकरािशि थते देवगुरौ शेषेषु हेषु यथायथा रािश थान ि थतेषु स सु एवं गुणगणिवशेषेण िविश ï◌ायां
शुभपु य बेलायां अमुकगो : (शमा/वमा/गु /दास) अमुकोऽहं ममा मन: िु त मृितपुराणो फल ा यथ
ऐ यािभवृद् यथ अ ा ल मी ा यथ ा ल याि रकाल सं र णाथ सकलमनईि सत कामना सं िस यथ
लोके सभायां राज ारे वा सव यशोिवजयलाभािद ा यथ इह ज मिन ज मा तरे वा सकलदु रतोपशमनाथ मम
सभाय य सपु य सबा धव य अिखलकु टु बसिहत य सम तभय यािध जरापीड़ा-मृ यु प रहार ारा
आयुरारो यै यािभवृद् यथ मम ज मराशे: नामराशे: वा सकाशा े
के िचि चतु था ïम ादश थानि थत ू र हा तै: सू िचतं सूचिय यमाणं च य सवा र ं ति नाश ारा
एकादश थान-ि थतव छु भफल ा यथ पु पौ ािद स ततेरिवि छ न वृदï् यथ
आिद यािदनव हानुकूलतािस यथ ि िवधतापोपशमनाथ चतु िवध पु षाथ िस यथ मधुपक पयोिगनो
गो सगकमण: सा ु याथ सव सा गौ/गोिन यीभूतम् इदं (गोतृ यथ तृणिनि य यं वा) यम्
अमुकगो ाय अमुकशमणे ा णाय दातु महम् उ सृ ये।
ा ण के ितलक करे :-
यजमान अपने दाय हाथ म वण यािद लेकर बोले ( ा ण को देने हेतु य :- धो ी, दुप ा, कु ा, तौिलया,
बिनयान, माला, जनेऊ, गोमुखी, आसन, लोई, छाता, पु तक, दि णा, पा , प चपा , वणमय/रजतमय
कु डल, वणमय/रजतमय मुि का आिद अ त-पु प सिहत) :-
ा ण के गो :-
गो ािद वर वरसं या
4. का यप का यप, वतसारन , वु 3
14. सां यायन सां यायन, वाच पित, अङ् िगरस, वत, गग 5
(मौ य/बाविलया)
ा ाथना :-
आचाय ाथना :-
ीदय छवसऽऋत जाततद मासु िवणं धेिह िच म् ।। अनेन अचनेन य आचाय: ि यताम् न
मम्।
ऋि वक ाथना :-
ि थरै रङ् गै तु वा œ स तनूिभ यशेमिह देविहतं यदायु:।।अनेन अचनेन ा ण (ऋि वक् ) ि यताम् न
मम्।
वपुरत: त डु लै: अ दलं कृ वा (पूव-ईशान के म य 24 अङ् गुल माण से चतु र वेदी बनावे अथवा का क
चौक पर शु नवीनव पर अ दल अथवा व ण का म ड़ल वि तवाचन/पु याहवाचन हेतु बनाकर िन
िविध से पूजन करे ) -
धा य पश (धा य से म ड़ल बनावे) :-
ऊँ व ण यो भनमिस व ण य क भसनी थो
ऊँ का डा का डा रोह ती प ष: प ष प र।
कलशे प चप लव (पीपल, आम, गूलर, बड़, अशोक) ेप: (जलपू रत कलश म प चप लव लगाये):-
कलशे स मृि का (हाथी- थान, अ - थान, व मीक- थान, दीमक, नदी-सं गम, तालाब, गौशाला) ेप:
(जलपू रत कलश म स मृि का डाले) :-
कलशं व ेणावे येत् (कलश पर ि थत ना रयल को यथोिचत व ािद से अलं कृत करे ) :-
वासो ऽ अ ने ि व प œ सं यय वि वभावसो ।।
ऊँ भूभव:
ु व: कलशे व णाय नम:। व णमावाहयािम थापयािम ।
पु पा जिल -
पाशपाणे नम तु यं पि नी जीवनायक ।
ऊँ भूभव:
ु व: वि तकलशेव णाय नम: पु पा जिलं समपयािम।
साङ् गा त कलशि थतं सु मनसैर भ: पितं भावये।।अनेन पूजनेन साङ् गव ण: ीय ताम् न मम।।
7.5. पु याहवाचन
इस पूजन म यजमान ा ण को अपने व अपने प रवार के मङ् गल हेतु ाथना करता है त प ात् ा ण
यजमान के िलए पु य लोक का उ चारण करता है, यही पु याहवाचन (पु य का वाचन) है। इसके अ तगत
ा ण यजमान के प रवार हेतु दीघायु, सु ख-समृि , बल-पुि , आरो यता, वि त आिद क कामना करते हए
म का उ चारण करता है तथा अपने िकये गये काय (अभी पूजन) का फल यजमान को दान करता है
स पू य गं धमा या ै र् ा णा वि त वाचयेत।्
यमजानः अविनकृ त जानुमं डलः कमलमुकुलस शमं जqल िशर याधाय (आचायः व) दि णेन पािणना वण
(जल) पूणकलशं (यजमाना जलौ) धारिय वा आिशषः ाथयेत् । (इस म से कलश को यजमान अपने िसर
से पश करवाकर अपनी प नी के िसर व चू‹डे का पश करवाय, इसके बाद ा ण कलश को व थान
थािपत कर । इस म का उ चारण तीन बार कर ।)
यजमान-
िव ाः - ॐ अ तु दीघमायु।
िव ाः - ॐ अ तु दीघमायु ।
यजमान-
िव ाः - ॐ अ तु दीघमायु : ।
यजमान :-
अ तं चा तु मे पु यं दीघमायु यशोबलम्।
यजमान :-
िव ाः :- अ तु सौि यं ।
िव ाः :- अ तु ऐ यम् ।
िव ाः :- अ तु आरो यम् ।
यजमान :-
ॐ दीघमायुः ेयः शाि तः पुि तु ि ः ीयशोिव ािवनयो िव ं बहपु ं बहधनं चारो यं चायु य चा तु।
यजमान :-
िवभित दा यण उ िहर य उ सदेवेषु कृ णुते दीघमायुः स मनु येषकु ृ णुते दीघमायुः।। 3।।
यजमान :-
ॐ अ र िनरसनम तु ।
पुनः पा े - ॐ य े य तद तु ।
ॐ उ रे कमिण िनिव नम तु ।
ॐ उ रो रमहरहरिभवृि र तु ।
ितिथकरणमुहतन हल नािद स पद तु ।
ॐ दुगापा चा यौ ीयेताम् ।
ॐ च ा णा ीय ताम् ।
ॐ अि बकासर व यौ ीयेताम् ।
ॐ ामेधे ीयेताम् ।
ॐ शा य वीतयः ।
पु नः पा े -
िव ाः :- वा यताम्।
भो िव ाः! म ं सकु टु ि बने महाजना नम कु वाणाय आशीवचनमपे माणाय मया ि यमाण य ................
कमण ''पु याहं भव तो बु ्रव तु ि वारं यू ात् ।
िव ाः –
यजमान :-
भो िव ाः! म ं सकु टु ि बने महाजना नम कु वाणाय आशीवचनमपे माणाय मया ि यमाण य ................
कमण 'क याणं भव तो बु ्रव तु'' ि वारं वदेत् ।
भो िव ाः! म ं सकु टु ि बने महाजना नम कु वाणाय आशीवचनमपे माणाय मया ि यमाण य ................
कमण ऋि भव तो बु ्रव तु'' इित ि वारं वदेत् ।
ऊँ स यऽऋि र यग म योितरमृताऽअभूम ।
भो िव ाः! म ं सकु टु ि बने महाजना नम कु वाणाय आशीवचनमपे माणाय मया ि यमाण य ................
कमण वित भव तो बु ्रव तु'' इित ि वारं वदेत् ।
िव ाः :- ॐ अ तु ीः।
भगवान् शा तो िन यं स नो र तु सवतः।।
ि ये द ाऽऽिशषः स तु ॠि वि भवदपारगैः।।
िव ाः :- ॐ आयु मते वि त।
व े ि थता िन यं िन न तु तव शा वान्।।
अ ताि व ह ता ु िन यं गृ ि त ये नराः।
कृ तेऽि म पु याहवाचने उपिव ा णानां वचनात् ी गणेशाि बकयोः सादा च सव िविधः प रपूण ऽ तु ।
अ तु प रपूणः ितवचनम्।
ततोिभषेक (त प ात् पा म छोड़े गये शेष जल/पु याहवाचन पा के जल से यजमान का सप रवार दूवा से
अिभषेक करे । अिभषेक के समय प नी को वामाङ् ग (बाय हाथ) म कर देना चािहए।)
वन पतयः शाि ति व ेदवे ाः शाि त शाि तः स व ल शाि तः शाि तरे वशाि तः सामाशाि तरे िधŸ।।
ॐ शाि तः शाि तः शाि तर तु । यजमान व थाने उपिव य ह ते जलं गृही वा पूजनं कतृके यो ा णे यो
यथो साहं दि णां दा ये। (यजमान अपने थान पर बैठकर हाथ म जल लेकर ा ण को यथोिचत दि णा
देवे।)
7.6. सारां श
7.7. श दावली
1. िव र = 25 कु शाओं का आसन-िवशेष
2. साधु = स जन
3. पा पा = पैर धोने का जल पा
4. तृण = ितनका
6. ा ण = को जानने वाला
9. अ त = चावल
उ र : अ यपा क साम ी - दिध-दूवा-कु शा -पु प-अ त-कुं कु म-दि णा-सु पारी िमि त जल।
उ र : पु याहवाचन के अ तगत यजमान ा ण ारा अपने और अपने प रवार के िलए पु य-क याण-ऋि -
वि त-दीघायु-वं शवृि आिद क कामना करता है ।
7.10. स दभ थ
1. िववाह सं कार - ि तीय सं करण स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - हंसा काशन, जयपुर।
2. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।
इकाई — 8
अि थापन एवं नव ह
इकाई क परेखा
8.1. तावना
8.2. उ े य
8.5. नव ह पूजन
8.7. सारां श
8.8. श दावली
8.11. स दभ थ
8.1. तावना
अि न पूजन अथवा आराधना ाचीनकाल से चिलत है अि न के ारा ही देवताओं क पुि के िलए हिव यान
पहंचाया जाता है। अि न को सभी देव ने आ ग य एवं पिव माना है। िजसके मा यम से िव णु इ , ािद
देव के िलए अ न दान िकया जाता है। काय के अनुसार अि न िविवध िविवध नाम से जानी जाती है ।
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हशाि त करण म अि थापन एवं नव ह अ य त मह वपूण िवषय है। लोकाचार के अनुसार कमका ड़ का
म िभ न-िभ न ( मुखतया जयपुरी म एवं काशीय म) हो सकता है, पर तु िवधान वही रहता है। अि
थापन के प ात् ह- थापन का म आता है। ह मनु य के जीवन को ज म से लेकर मृ युपय त भािवत
करते है। ह क कृ पा तो मनु य को सदैव चािहए। यिद कु ड ली म ह िनबल है, तो उनक पुि के िलए
हपूजन िकया जाता है तथा यिद कु ड ली म पु है तो उनक शुभता को बढ़ाने के िलए भी हपूजन िकया
जाता है। ह का भाव सा ातï◌् मनु य पर पड़ता है । उदाहरणतया हम देख सकते है पूिणमा के िदन जब
च मा पूणकलाओं से यु होता है , तो समु म वार, मानिसक रोगी क उि ता म वृि आिद कई प रवतन
देखने म आते है। इस इकाई म सभी िज ासुओ ं को हशाि त करण के अ तगत अि न थापन एवं हपूजन के
साथ-साथ अपने जीवन म आये क के िनवारण अथवा अशुभ समय के ताप को कम करने हए ह के
िविभ न पूजन म एवं हवनािद म शा ने बताये है। मा यता है िक हवन म म अि थापन के प ात् सू यािद
ह का अचन िकया जाना चािहए। हवन हेतु थि ड़ल अथवा का कु ड का िनमाण आव यक है। सामा यत:
कु ड एक हाथ अथात् 24 अङ् गुला मक (18 इ च) चतु र बनाना चािहए ।
8.2. उ े य
2. नव ह के िविभ न म का ान
3. ह के पूजन म पारङ् गत ।
होमे कु ड़ाभावे बालु कािभ: समेखलं थि डलं (होमसं यानुसारे ण) एकह ता मकं (ह त
चतु िवशाङ् गुला मकम्) ि ह ता मकं वा कु यात । (यथोिचत कु ड अथवा थि ड़ल का िनमाण करे ।)
3. उ लेखनम् - वु मूलेन ादशाङ् गुला ाग ा ित ो रे खा: उ लेखयेत् । ( वु ा के मूल भाग से तीन रेखा
खीचे)
सव थम चौसठ (64) कु शापा ले। इनम से सोलह कु शा लेकर अि नकोण से ईशानकोण तक वेदी के पास
रखे। िफर सोलह कु शाएँ नैऋ यकोण से वाय यकोण तक फै ला देवे। इसके प ात् अि न के उ रभाग से पि म
िदशा म तीन कु शा और दो कु शा पिव ी के िलए थािपत करे । अब ो णीपा , घी के िलए भगोनी अथवा
कचौला रखे। िफर वु ा, प छने के िलए तीन कु शाएँ, हाथ म रखने के िलए तीन कु शाएँ, तीन सिमधाएँ, घी,
चावल के पूण पा पूव -पूव म से रखे। पिव ी के िलए रखे गये दो कु शापा को आगे से आठ अङ् गुल नाप
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कर तीन कु शाओं से तोड़ लेवे और आगे के कु शापा से पिव ी बनाकर धारण करके इसी पिव ी से यु हाथ
से णीता के जल को तीन बार ो णीपा म डाल। िफर अनािमका एवं अङ् गु से पिव ी हण करके जल को
तीन बार ऊपर क ओर उछाल। िफर णीता का जल ो णी म िमलावे । इसके बाद ो णी पा थािपत
करके घृत के पा म घृत डाले। घी के पा को अि न पर गम करे। िफर कु शा को जलाकर घी ऊपर घुमाकर
अि न म छोड़ देवे। इसके बाद अधोमुख वु ा को अि पर गमकरके स माजन हेतु रखे। िफर तीन कु शाओं को
लेकर उन के अ भाग से वु ा के भीतरी एवं मूल भाग से वु ा के मूल म बाहर से प छकर णीता के जल से
वु ा को स चे। पुन: वु ा को तपाव और उसे दि ण क त रफ रख देवे, त प ात् घी के पा को अि न के ऊपर
से हटाकर जैसे ो णी म से उछाला गया था वैसे ही कु शा से उछालकर उसम यिद तृण, लोम, क ट आिद कोई
व तु यिद िगर गयी हो तो उसे िनकालकर ो णी के समान घी उछाले। िफर उपयमन हेतु रखे हए तीन कु शा
लेकर खड़े होकर ा का मन म मरण करते हए घी यु तीन सिमधाओं को अि न म छोड़े , िफर बैठकर अि न
के चार ओर तीन बार जलिस चन करे, त प ात् दािहना घुटना मोड़कर ा से अपने तक कु शा रखकर
विलत अि न म वु ा से घी क आहित दे तथा वाहा कहते ही अि न म आहित देव और इदम् कहते ही
ो णी पा म शेष घी डाल देवे।
तदुप र ाग ान् कु शाना तीय तदुप र ाणम् ï थापयेत् । पूजयेत । (उ र क ओर कु शा का अ भाग रखते
हए उस पर ा क थापना करके ग धािद से पूजन करे ।)
ाथयेत् :-
ऊँ णय ऊँ णय ऊँ णय,
प र तरणम् -
तत: बिहष चतु रोभागाि वधायैकैकभागेन चतु िद ु अ णे मूलमा छा वार यं प र तरे त् :- (बिहष के चार भाग
करके एक-एक भाग से वेदी/कु ड क प रिध पर कु शाओं से प र तरण करे आ छािदत करे ।)
पा सादनम्ï ( णीता, ो णीपा तथा घी का पा , खीर बनाने का पा , उपयमन कु शा, तीन सिमधा, नव ह-
सिमधा, वु ा, चु ी, शु घी, चावल, पूणपा , ितल-जौ आिद हवनीय सामि य को एकि त करके वेदी/कु ड
के पास मश: रखे तथा बाय हाथ म ो णीपा लेकर दो प क कु शा से शु जल से ो ण करते हए पिव
करे ।) :-
णीतासि नधौ ो णीपा ं िनधाय, सपिव ह तेन ि : िणतोदकमािस य अनािमकाङ् गु यामु रा े पिव े
धृ वा ि पवनम्ï।
अिध यणम् (घी के पा को यथा थान रखकर चावल को तीन बार णीता के जल से धोकर अि के म य म
खीर का पा रखे तथा दि ण क ओर घी के पा को रखे ) :-
वु -सं कार: ( णीता के जल से वु ािद का ो ण करे तथा बनी हई खीर व िपघले हए घी को िनरी ण करके
यथा थान रखे, बाय हाथ म उपयमन कु शा तथा दािहने हाथ म तीन सिमधा को लेकर अि म ''सिमधौ याधाय
म से अि म छोड़े। ो णी के जल को वेदी/कु ड के अि कोण से ार भ करके ईशान से णीता पा तक
जल िगराय तथा वाय यकोण म (सं व हेतु ) थािपत करे ) :-
कां यपा थं िनधूमवि ं ि तीयपा ेण िपिहतं कु डे/ थि ड़ले वा ( थि डलाद्) बिहरा ेयां िदिश िनधाय।
यादां शं नैऋ या िदिश प र य य।
अि ं सं था य -
2. ऊँ इ ाय वाहा इदं इ ाय न मम ।
3. ऊँ अ ये वाहा इदं अ ये न मम ।
ऊँ भूभव:
ु व: .... अ ये नम:।। ग धािदिभ: स पू य ।
कम अि कम अि
7. चौल सय 8. तब धन समु व
1. ऊँ व ण यो भनमिस वाहा ।
2. ऊँ व ण य क भस जनी थो वाहा ।
4. ऊँ व ण य ऽऋतसदनमिस वाहा ।
8.5. नव ह पू जन
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सू य :-
हा य ं स ा रथमिध ढं सक णम ।
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ऊँ भूभव:
ु व: सू याय नम:, म ये सू यमावाहयािम थापयािम।
च मा :-
िह दी :- ह रण पर सवार, सम त रस के वामी, हाथ म गदा धारण करने वाले, खुले के शवाले , देवताओं ारा
णत, अि ऋिष के ा णकु ल म स ो म उ प न हे च देव! आप यहाँ य भूिम म पधारे ।
म :- ऊँ इम देवा ऽ असप न œ सु व व महते ायमहते यै ् याय महते जानरा याये येि याय
।
ऊँ भूभव:
ु व: च मसे नम:, आ ेयां च मसमावाहयािम थापयािम।
मङ् गल :-
ऊँ भूभव:
ु व: भौमाय नम: , दि णे भौममावाहयािम थापयािम।
बु ध :-
िह दी :- चार भुजाओं म गदा, खड् ग, खेट और वरमु ा धारण करने वाले , िसं ह पर स नमुख होकर ि थत, हरे
व धारण िकये हए, वण के समान शरीर वाले वै यवण, मगध देश म उ प न, आ ेयकु ल म ज म लेने वाले हे
बुध देवता! आपको पूजन के िलए आवाहन करते है , हे भगवन! य म पधारो ।
ऊँ भूभव:
ु व: बुधाय नम: , ईशाने बुधमावाहयािम थापयािम ।
गु :-
ऊँ भूभव:
ु व: गुरवे नम: , उ रे गु मावाहयािम थापयािम ।
शु :-
िह दी :- पु य से यु , भृगऋ
ु िष के कु ल म उ प न, भोजकटक देश म ज मलेने वाले, कमल डलु,
ा माला, वरमु ा और प रघ हाथ म िलए हए स नमुख ा णवण, दै य के आचाय, ेत अ पर
िवराजमान, आकाश म गमन करने वाले, हम आपका पूजन के िलए आवाहन करते है, हे भगवन शु ! य भूिम
म पधारे ।
ऊँ भू भव:
ु शु ाय नम:, पू व शु मावाहयािम थापयािम।
शिन :-
िह दी :- काले वण वाले, काले मृग का चम धारण करने वाले, आिद य (सू य) भगवान के पु , ि शूल , बाण,
धनुष , वरमु ा, धारण करने वाले, सौरा म उ प न, सम त दु रत (अशुभफल) का शमन करने वाले , गृ पर
गमन करने वाले, म दगित से चलने वाले हे शिनदेव! हम आपका आवाहन करते है, हे भगवनï! य भूिम म
आओ और हमे वर दो।
ऊँ भूभव:
ु व: शनै राय नम:, पि मे शनै रमावाहयािम थापयािम।
राह :-
ऊँ भूभव:
ु व: राहवे नम:, नैऋ यां राहं आवाहयािम थापयािम।
के तु :-
िह दी :- महान् शरीर वाले, रािशय के समूह का दलन करने वाले , जैिमनी कु ल म उ प न, कबूतर पर ि थत,
धुएँ के समान वण वाले , मलयपवत पर उ प न, भयहरण करने वाले, िवकराल, नीलेवण का वज और वरमु ा
हाथ म िलए हए िविच व को धारण करने वाले हे के तु ! हम तु हारा आवाहन करते है, भगवन आप
य भूिम म पधारे और हमे वर दे।
ऊँ भूभव:
ु व: के तवे नम:, वाय यां के तु मावाहयािम थापयािम ।
ऊँ भूभव:
ु व: नव हे यो नम:।
01. ऊँ भूभव:
ु व: ई राय नम:। ई रम् आवाहयािम थापयािम।
02. ऊँ भूभव:
ु व: उमायै नम:। उमा आवाहयािम थापयािम।
03. ऊँ भूभव:
ु व: क दाय नम:। क दमावाहयािम थापयािम।
04. ऊँ भूभव:
ु व: िव णवे नम:। िव णुं आवाहयािम थापयािम।
05. ऊँ भूभव:
ु व: णे नम:। ाणमावाहयािम थापयािम।
06. ऊँ भूभव:
ु व: इ ाय नम:। इ मावाहयािम थापयािम।
07. ऊँ भूभव:
ु व: यमाय नम:। यम आवाहयािम थापयािम।
09. ऊँ भूभव:
ु व: िच गु ाय नम:। िच गु ं आवाहयािम थापयािम।
8.6. प चदेव पू जन
ा :-
ऊँ भूभव:
ु व: णे नम: , ाणमावाहयािम थापयािम ।
िव णु :-
भ क प ु मं शा तं िव णु मावाहया यहम्।।
ऊँ भूभव:
ु व: िव णवे नम:, िव णुमावाहयािम थापयािम ।
िशव :-
ऊँ भूभव:
ु व: िशवाय नम:, िशवमावहयािम थापयािम।
ल मी :-
ऊँ भूभव:
ु व: ल यै नम:, ल मीमावाहयािम थापयािम।
सर वती :-
म :- ऊँ प चन : सर वतीमिप यि त स ोतस: ।
ऊँ भूभव:
ु व: सर व यै नम:, सर वतीमावाहयािम थापयािम।।
ऊँ भूभव:
ु व: असं यात े यो नम:, असं यात ान् आवाहयािम थापयािम ।।
इस म से कलश पर अ त चढ़ाएँ ।
ऊँ भू भव:
ु व: आिद यािदनव हा: ािदप चदेवा: कलशे असं यात ाय नम:। सु िति ता:
वरदा: भव तु ।
॥ अथ मै सू ॥
॥ ह र: ऊँ ॥
वँ व णप यिस॥ 3॥
िच देवानामु दगादनीक च ुि म य व ण या े।
स व तिद ते वशे॥ 9॥
ाय तऽइव सू यय ँि व ेिद य भ त।
नव हाणां पु पा जिल :-
सू य भगवान सभी को शौय दान कर, च मा उ चपद दान कर, मङ् गल ह मङ् गलकाय िस कर, बुध
स िु दान कर, गु े ता दान कर, शु सु ख-शाि त दान कर, शिन क याण कर, राह बाहबल दान
कर, के तु िनर तर कु ल क उ नित दान कर और सभी ह िन य स नता दान कर तथा सभी ह हमारे व
सभी के अनुकूल रह।
सू य पृ वीपित व, च मा ेम, मं गल मां ग य, बुध स ु ि , गु गौरव, शु वीय (बल) और धन, शिन श -ु नाश
तथा राह-के तु रोग का िवनाश कर।
प चदेव पु पा जिल :-
ाथना
सभी ह हम पर स न होकर हमारा क याण कर और आयु, धन, सु ख, धम, अथ इन सबका लाभ कराय,
बहत सी स तान (पु ) द, श ु ओ ं का नाश कर और राजाओं म पू यता उ प न करे ।
8.7. सारां श
8.8. श दाविल
- 3 : प र तरण या होता है ?
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- 4 : नव ह के नाम बताइये ?
8.11. स दभ थ
2. हवना मक दुगास शतीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।
4. योितष स ाट् प चाङ् ग, स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अिखल भारतीय ाय
योितष शोध सं थान, जयपुर।
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सू यािद नव ह के दान पदाथ, जपनीय मं , जप सं या, सिमधा, औषिध, र न उपर न, धातु र न धारण
करने क अङ् गुली, न वार, समय, पुराणो तवन साम ी :-
इकाई — 9
9.1. तावना
9.2. उ े य
9.3. िवषय व तु
9.6. सारां श
9.7. श दावली
9.10. स दभ थ
9.1. तावना
हशाि त करण म वा तु, योिगनी व े पाल पूजन का मह वपूण थान है। योिगिनय क सं या 64 है। पूजन
म म 16 देिवयाँ व 7 घृतमातृकाय भी है, पर तु योिगिनय का िवशेष मह व है। इनके अ तगत ीमहाकाली,
ीमहाल मी, ीमहासर वती तथा इनक गजाननािद 64 देिवय का पूजन िकया जाता है। साधना भेद से इनके
पूजन म म िविवध नाम से पाठभेद य -त उपल ध है । योिगनी के म ड़ल िनमाण हेतु वेदी का िनमाण
े पाल के पूजन के अ तगत भैरव का पूजन िकया जाता है । भैरव (भैरव (भय+रव) अथात् िजसक वेश
विन िवशेष अनुभिू त को ा कराती है ।) सम त सृि के लोकपाल है । साधना म शि के साथ-साथ भैरव
एवं भैरवी परम असा य है।
े पाल के म ड़ल िनमाण हेतु वेदी का िनमाण वाय यकोण कृ णव पर िकया जाता है, नवीन व पर धा य
से 49 को का मक म ड़ल बनाना चािहए। म ड़ल पूजन क षोड़शोपचार पूजन के प ात् े पाल (भैरव) के
देवताओं के िलए पृथक् -पृथक् य से अथवा पायस (दूध अथवा दूधिनिमत िम ा न) से बिल देनी चािहए।
बिल देते समय येक देवता हेतु पृथक् -पृथक् दीप भी विलत करके देवता के िलए दीपदान करना चािहए ।
ी-पु आिद के भोग, सु ख, धम, अथ व काम को देने वाला ािणय के सु ख का थान और सद , वायु और
गम जैसे मौसमी क से र ा करने वाला 'घर ही है। िविधवत् गृहिनमाणकता को बावड़ी, देवालय आिद के
िनमाण का पु य भी ा होता है, इसिलए िव कमा आिद देविशि पय ने सव थम गृहिनमाण का िनदश िदया
है ।
गृह फल गृह फल
9.2. उ े य
9-3 िवषय व तु
वा तु पू जनम्
वा तु देवता के म ड़ल िनमाण हेतु वेदी का िनमाण नैऋ यकोण म िकया जाता है, नवीन व पर धा य से 49,
64, 81 अथवा कायिवशेष के अनुसार यथासं यक को का मक म ड़ल बनाना चािहए। म ड़ल पूजन से पूव
अि कोण से ार भ करके ईशान पय त चार नागफणी क क लो क पूजन-बिल सिहत थापना क जाती है।
म ड़ल पूजन क षोड़शोपचार पूजन के प ात् वा तु के देवताओं के िलए पृथक् -पृथक् य से अथवा पायस
(दूध अथवा दूधिनिमत िम ा न) से बिल देनी चािहए । बिल देते समय येक देवता हेतु पृथक् -पृथक् दीप भी
विलत करके देवता के िलए दीपदान करना चािहए तथा पूजन के उपरा त धानदेवता वा तु के िलए
सदीपबिल देनी चािहए । शा के अनुसार खात म िगरिगट के व प म वा तु दवे ता क क पना क गयी है ।
रजत अथवा वणमयी मूित क म ड़ल पर थापना करके िन म से पूजन करना चािहए: -
शङ् कु रोपण :-
चार लोहे क नागफणी क क ल को आ नेय, नैऋ य, वाय य व ईशानकोण म मश: शङ् कु रोपण,
बिलदानािद कम करना चािहए।
बिलदान :-
5. ऊँ स यै नम:, 6. ऊँ सु म यै नम:,
9. ऊँ सु रथाय नम:,
9. ऊँ ईड़ाय नम:।
ऊँ भूभव:
ु व: वा तु पु षाय नम:। वा तु पु षमावा0 था0॥
पूजनं कु यात् -
पु पा जिल :-
ाथना - भो वा तु पु ष इमं बिलं गृहाण मम (यजमान य) गृहे आयु: कता ेम कता शाि तकता पुि ï कता
तु ि कता िनिव नकता क याणकता भव।
योिगनी के म ड़ल िनमाण हेतु वेदी का िनमाण आ ेयकोण म िकया जाता है, नवीन व पर धा य से
64 को का मक म ड़ल बनाना चािहए। म ड़ल के देवताओं के पूजन से पूव महाकाली महाल मी
महासर वती का आवाहन करना चािहए। म ड़ल पूजन क षोड़शोपचार पूजन के प ात् योिगनी के देवताओं के
िलए पृथक् -पृथक् य से अथवा पायस (दूध अथवा दूधिनिमत िम ा न) से बिल देनी चािहए। बिल देते समय
येक देवता हेतु पृथक् -पृथक् दीप भी विलत करके देवता के िलए दीपदान करना चािहए । रजत अथवा
वणमयी मूित क म ड़ल पर थापना करके िन म से पूजन करना चािहए: -
अ तपु पािण गृ ही वा -
पू जनं कु यात्-
े पाल के म ड़ल िनमाण हेतु वेदी का िनमाण वाय यकोण कृ णव पर िकया जाता है, नवीन व
पर धा य से 49 को का मक म ड़ल बनाना चािहए। म ड़ल पूजन क षोड़शोपचार पूजन के प ात् े पाल
(भैरव) के देवताओं के िलए पृथक् -पृथक् य से अथवा पायस (दूध अथवा दूधिनिमत िम ा न) से बिल देनी
चािहए। बिल देते समय येक देवता हेतु पृथक् -पृथक् दीप भी विलत करके देवता के िलए दीपदान करना
चािहए । कलश थापन करते हए उस पर रजत अथवा वणमयी मूित क म ड़ल पर थापना करके िन म
से पूजन करना चािहए:-
ऊँ भूभव:
ु व: यापकाय नम:, यापकमावाहयािम थापयािम ॥2॥
ऊँ भूभव:
ु व: वटु काय नम:, वटु कमावाहयािम थापयािम ॥2॥
ऊँ भूभव:
ु व: िवमु ाय नम: , िवमु मावाहयािम थापयािम ॥3॥
ऊँ भूभव:
ु व: िल काय नम:, िल कमावाहयािम थापयािम ॥4॥
ऊँ भूभव:
ु व: लीलाकाय नम:, लीलाकमावाहयािम थापयािम ॥5॥
ऊँ भूभव:
ु व: एकदं ाय नम:, एकदं मावाहयािम थापयािम ॥6॥
दि णको े -
ऊँ भूभव:
ु व: ऐरावतराय नम:, ऐरावतमावाहयािम थापयािम॥1॥
ऊँ भूभव:
ु व: ओषधी ाय नम: , ओषधी मावाहयािम थापयािम॥2॥
ऊँ भूभव:
ु व: ब धनाय नम: , ब धनमावाहयािम थापयािम॥3॥
ऊँ भूभव:
ु व: िद यकायाय नम:, िद यकायमावाहयािम थापयािम॥4॥
यथािमिलतोपचार यै: सं पू य।
पू जनं कु यात् -
पु पा जिल :-
वृ ो लोचनमुपा गदाकपालम् ।
र ा बरं भुजगभूषणमु दं ं
े पाल बिल याय नम:। भो े पाल इमं बिलं समपयािम। जलमु सृजेतï् ।
9.6. सारां श
इस इकाई के अ तगत पूजन म के मह वपूण अङ् ग वा तु , योिगनी व े पाल के पूजन हेतु सर वर म िदये
गये ह। पूजन म म के वलमा नाम से भी पूजन िकया जा सकता है तथािप िवशेष मह व तो समि क पूजन का
ही है। वा तु म ड़ल का िनमाण नैऋ यकोण म करते हए सव थम म ड़ल के चार कोण पर शङ् कु रोपण करते
हए पि म से पूव तथा दि ण से उ र क ओर रे खादेवताओं का आवाहन-पूजन करने के साथ कलश थापन
करते हए िश यािद वा तु म ड़ल देवताओं का पूजन तथा बिलदानािद क िविध तथा महाकाली, महाल मी व
महासर वती सिहत 64 योिगनीय का अि कोण म पूजन, बिलदान एवं वाय यकोण म े पाल म ड़ल के
अजरािद देवताओं का पूजन, बिलदान साङ् गोपाङ् ग इस इकाई म िदया गया है ।
9.7. श दावली
5. पायस = दूध
6. वणयमी = वण से िनिमत
8. रजत = चाँदी
- 1 : वा तु म ड़ल क िववेचना क िजये ?
- 4 : वा तु म ड़ल म रे खा देवताओं से आप या समझते ह ?
9.10. स दभ थ
2. हवना मक दुगास शतीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा. सं सा. के ., जयपुर।
3. शु लयजुवदीय ा यायीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अ. भा. ा. यो. शो. सं .,
जयपुर।
इकाई — 10
सवतोभ
इकाई क परेखा
10.1. तावना
10.2. उ े य
10.5. सारां श
10.6. श दावली
10.7. अितलघु रा मक
10.8. लघु रा मक
10.9. स दभ थ
10.1. तावना
य , याग, होम, त, अनु ान आिद धािमक कमका ड़ म देवताओं के अनुसार िविवध भ म ड़ल क रचना
करना आव यक होता है । इनका उ लेख ताि क थ , पुराण आिद म िमलता है । म साधना हेतु
भ म ड़ल का िनमाण आव यक बताया गया है। यथा -
शु भू मौ गृ हे ा य म ड़ले ह रमी रम ।।
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भ म ड़ल का वग करण :-
1. सामा य भ म ड़ल :- सवतोभ म ड़ल सामा य भ है, इसका उपयोग सभी याग एवं अनु ान म
िकया जाता है।
2. शैवभ :- इसका उपयोग शैवयाग तथा तािद म करते है, िजनम एकिलङ् गतोभ , चतु िलङ् गतोभ ,
अ िलङ् गतोभ तथा ादशिलङ् गतोभ मुख है।
इसी कार सभी देवताओं के मुख म ड़ल उनसे स बि धत अनु ान एवं य म बनाये जाते है ।
10.2. उ े य
3. म का स वर पाठा यास।
10.3. िवषय व तु
सवतोभ म डल पू जन
धानपीठ पर ािद सवतोभ म डल थ देव का आवाहन करके ग धािद से प चोपचार अचन (ग धािदिभ:
स पू य) करके व ण कलश का थापन करना चािहए।
िजस िकसी भी कम के धान देवता का अचन करना हो, उस देवता का म ड़ल पूवम य म बनाना चािहए तथा
धान देवता क मूित आिद का कलश पर थापनािद पूजन करना चािहए। पूजन से पूव मूित का अ यु ारण ,
ाण ित ा आिद सं कार करना चािहए।
ऊँ भूभव:
ु व : ............... (अमुकदेव) शु ोदक नानं समपयािम।
मू ित म आवाहन :-
अ यै ाणा ित तु अ यै ाणा: र तु च।
िजस भी देवता का धान पूजन करना हो, उसी देवता का म / यान आिद से षोड़शोपचार/प चोपचार पूजन
करे । पूव ित ािपत मूितय /देवताओं का
1. गणपित का आवाहन :-
ऊँ भूभव:
ु व: गणपतये नम: , गणपितमावाहयािम थापयािम।
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2. िव णु का आवाहन/ यान :-
ऊँ भूभव:
ु व: िव णवे नम:, साङ् गाय सप रवाराय सायुधाय सशि काय सवाहनाय िव णुं
आवाहयािम/ यायािम।
िव ा ं िव व ं िनिखलभयहरं प चव ं ि ने म◌्।।
ऊँ भूभव:
ु व: िशवाय नम:, साङ् गाय सप रवाराय सायुधाय सशि काय सवाहनाय िशवम्
आवाहयािम/ यायािम ।
ऊँ भूभव:
ु व: महाका यै नम:, साङ् गाय सप रवाराय सायुधाय सशि काय सवाहनाय महाकाली
आवाहयािम/ यायािम।
ऊँ भूभव:
ु व: ल यै नम: , साङ् गाय सप रवाराय सायुधाय सशि काय सवाहनाय ल मीम्
आवाहयािम/ यायािम।
ऊँ भूभव:
ु व: सर व यै नम:, साङ् गाय सप रवाराय सायुधाय सशि काय सवाहनाय सर वतीम्
आवाहयािम/ यायािम।
7. दु गा का आवाहन/ यान :-
ऊँ भूभव:
ु व: ीमहाकाली ीमहाल मी ीमहासर वती ि गुणाि मकायै दुगादै यै नम: , साङ् गाय सप रवाराय
सायुधारय सशि काय सवाहनाय दुगाम् आवाहयािम/ यायािम।
कामािददोषरिहतं कु मानसं च ।।
एवं या वा मानसोपचारै ः स पू य तदुप र ‘‘ॐ नमो भगवते ीरामाय सवभूता तरा मने वासु देवाय
सवा‘सं योग योग पीठा मने नमः।
तु समयसपयािव िव छे दहेत-ु
ऊँ भूभव:
ु व: भै रवाय नम:, साङ् गाय सप रवाराय सायुधाय सशि काय सवाहनाय भैरवम्
आवाहयािम/ यायािम।
आसनम् -
ऊँ पु ष ऽ एवेद œ स व ू तँ च भा यम्।
ऊँ भूभव:
ु व: .... ..... ( धान देव का नाम) आसनाथ पु पं समपयािम।
पा म् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) पाद ालनाथ पा ं समपयािम।
अ यम् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) ह तयो: अ य समपयािम।
आचमनीयम् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) मुखे आचमनीयं समपयािम।
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जल नानम् -
ऊँ व ण यो भनमिस व ण य क भस जनी थो
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) नानाथ जलं समपयािम ।।
प चामृ त नानम् -
ऊँ प चन : सर वतीमिपय तस ोतस:।
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) िमिलतप चामृत नानं समपयािम।
शु ोदक नानम् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) शु ोदक नानं समपयािम।
अिभषेक: (ग धािदिभ: स पू य) -
िजस देवता का पूजन कर रहे है, उसी देव के तो /अथवशीष आिद का उ चारण करते हए दु ध अथवा
यथोिचत पदाथ से से अिभषेक करे।
ऊँ भूभव:
ु व: िसि 0 महा0 अिभषेक नानं सम0। शु ोदक नानम्।
व ोपव म् -
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वासो ऽ अ े िव प œ सँ यय वि वभावसो।।
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) व ोपव ाथ र सू ं समपयािम।
य ोपवीतम् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) य ोपवीतं समपयािम।
च दनम् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) च दनकुं कु म च समपयािम।
अ ता: -
ऊँ अ नमीमद त वि याऽअधूषत।
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) अलङ् करणाथम् अ तान् समपयािम।
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) पु पािण समपयािम ।
िजस देवता का पूजन कर रहे है, उसी देव के अङ् ग का पूजन करे ।
दु वाङ् कु रम् -
ऊँ का डा का डा रोह ती प ष: प ष प र।
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) दूवाङ् कु रािण समपयािम।
िब वप म् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) िब वप ािण समपयािम।
शमीप म् -
सु गि धत यम् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम)सु गि धत यं समपयािम।
िस दू रम् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) िस दूरं समपयािम।
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) प रमल यािण समपयािम।
धू पम् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) धूपम् आ ापयािम।
दीपम् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) दीपकं दशयािम। ह तौ ा य।
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) नैवे ं िनवेदयािम। म ये जलं िनवेदयािम ।
ऋतु फलम् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) फलं िनवेदयािम। पुन: आचमनीयं िनवेदयािम ।
ता बू लम् -
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) ता बूलं समपयािम ।
ऊँ भूभव:
ु व: ......... ( धान देव का नाम) दि णां समपयािम ।
पु पा जिल -
िजस देवता का पूजन कर रहे है, उसी देव के तो / यान म का उ चारण करते हए पु पा जिल अिपत करे ।
ऊँ राजािधराजाय स सािहने नमो वयं वै वणाय कु महे। स मे कामान् काम कामाय म ं कामे रो वै वणो
ददातु । कु बेराय वै वणाय महाराजाय नम:॥
मा ाथना -
िवसजनम् -
ितलकाशीवाद :-
10.5. सारां श
इस इकाई के अ ययन के प ात् छा को येक माङ् गिलक काय म धान पूजन के िवषय िवशद् ान ा
हआ। साथ ही साथ सवतोभ म ड़ल के देवताओं क पूजनिविध के ान सिहत धान देवता के अचन के िलए
व ण कलश का थापन तथा धान देवता के मूित, य ािद के िनमाण समय म अि , तपन, ताड़न, अवघातािद
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दोष क िनवृि के िलए अ यु ारण तथा मूित को देवता के प म थािपत करने हेतु उसम ाण ित ा तथा
शा ीय िविध से उसका अचन करने तथा अचन से ा फल को पूणतया ा करने क िविध का ान ा
हआ।
10.6. श दावली
2. शैव = िशव से स बि धत
3. शा = देवी से स बि धत
6. स मृि का = हाथी का थान, घोड़ा, व मीक, दीमक, नदी का सं गम, तालाब, गौशाला+राज ार।
उ र : अि नतपन, ताड़न, अवघातनािद दोष को दूर करने के िलए नवीन मूित का शुि करण िकया जाता है।
10.9. स दभ थ
1. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।
2. शु लयजुवदीय ा यायी स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - अिखल भारतीय ा य
योितष शोध सं थान, जयपुर।
3. कमठगु : काशक - ा य काशन वाराणसी।
4. म महोदिधलेखक - मुकु द व लभ योितषाचायस पादक - ीशुकदेव चतुवदी काशक -
मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी ।
5. य मीमां सा स पादक - पं . वेणीराम शमा, काशक - चौख बा िव ाभवन, वाराणसी।
इकाई — 11
हवन — करण
इकाई क परेखा
11.1. तावना
11.2. उ े य
1.4. सारां श
11.5. श दावली
11.8. स दभ थ
11.1. तावना
'यज् धातु से यज-याच-यत-िव छ- छ-र ो नङ् (3-3-30) । इस पािणनीय सू से 'नङ् यय करने पर 'य
श द बनता है । 'नङ त इस पािणनीय िलङ् गानुशासन से य श द पुि लङ् ग भी होता है । 'नङ् यय भाव
अथ म होता है िक तु 'कृ युटो बहलम् सू पर 'बहल हणं कृ मा याथ यिभचाराथम् इस िस ा त से कृ द त
के सभी यय का अथ आव यकतानुसार प रवितत िकया जा सकता है । धातु पाठ म 'यज् धातु का पाठ
िकया गया है 'धातव: अनेकाथा: इस वैयाकरण िस ा त के अनुसार कितपय आचाय ने 'यज
देवपूजासङ् गितकरणदानेषु इस पािणनीय सू के अनुसार 'यज् धातु का देवपूजा सङ् गितकरण और दान इन
तीन अथ म योग िकया गया है अथात् य म देवपूजा होती है, देवतु य तु ि महिषय का सङ् गितकरण होता
है ।
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11.2. उ े य
1. य के मह व का ान ा करना ।
इ ािद देव का पूजन तथा स कार य कहा जाता है । िजस कम िवशेष म देवताओं के िलए अनु ान िकया
जाए उसे य कहते है । पूजा िकये जाने वाले अथात् भगवान िव णु को य कहते है। िजस काय म देवगण
पूिजत होकर तृ ह , उसे य कहते है।
धम, देश, जाित, वणा म क मयादा क र ा के िलए महापु ष को एकि त करना य कहलाता है । िव
क याण के िलए जगद् मण करके महापु ष ारा बड़े -बड़े िव ान, वैिदक मूध य या यानर नाकर लोग जहाँ
िनमि त ह , उसे य कहते है। िजस सदनु ान म अपने ब धु बा धव आिद नेिहय को पर पर सि मलन के
िलए आमि त िकया जावे तो उसे य कहते है। यथाशि देशकाल, पा ािद िवचारपुर सर यो सग करने को
य कहते है । िजसम ापूवक देवताओं के उ े य से य का याग िकया जाये उसे य कहते है। िजस कम
म याचक को स तु िकया जाये उसे य कहते है ।
य से ता पय :-
1. िजस सदनु ान ारा इ ािद देवगण स न होकर सु विृ दान करे, उसे य कहते है। िजस सदनु ान
ारा वगािद क ाि सु लभ हो, सं सार का क याण हो, आ याि मक, आिधदैिवक, आिधभौितक
िवपि याँ दूर हो, यागाङ् ग समूह के एक फल साधनाथ अपूव से यु कमिवशेष को वैिदक म के
ारा देवताओं को उ े य करके िकये हए य के दान को य कहते ह ।
3. यज् धातु का अथ देवपूजा आिद लोक और वेद म िस ही है, ऐसा िन के िव ान् कहते है अथवा
िजस कम म लोग यजमान से अ नािद क याचना करते ह अथवा यजमान ही देवताओं से वषा आिद
मनोकामना हेतु ाथना करता है, यजुवद के म क धानता रहती है , उसे य कहते है ।
गौतम धमसू (8-98) म य का उ लेख िन िलिखत है । औपासन होम:, वै देवम्, पावणम्, अ का,
मािसक ा , वण, शलगव इित स पाकय सं था:। अि हो म् दशपूणमासौ, आ ग यम् चातु मा यािन
िव ढ़पशुब ध सौ ामिण िप डिपतृ य दयो हिवहोम इित स हिवय सं था:। अि ोम अ यि ोम, उ य:,
षोडशी, बाजपेय:, अितरा :, आ ोयिम इित स सोम सं था:। गौतमधम सू कार ने पाकय , हिवय , सोमय
भेद से तीन कार के य का भेद बताकर येक के सात-सात भेद बताकर 21 कार के य का उ लेख
िकया है। वतमान समय म ौत य का चार नह के बराबर है। गृ सू ो पाक य का चार िकसी न
िकसी प म अव य चिलत है। उपयु 14 वैिदक य व 7 पाकय के अित र गृ सू और धमसू म
प चमहाय , य , िपतृय , देवय , भूतय और मनु यय प चमहाय के अ तगत ही आते ह ।
य क ाचीनता :- सनातन धम (िह दू जाित का) ाचीन धम थ वेद है। वेद म कमका ड, उपासनाका ड
व ानका ड, इन तीन िवषय का मु यत: वणन िमलता है िक तु इन तीन म धान थान 'कमका ड को ही
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अथात् अि म िविध-िवधान पूवक दी गयी आहित सू यदेव को ा होती है, बाद म उससे वृि होती है। वृि से
अ न होता है तथा अ न से जा क उ पि होती है।
अथात् य करने वाला यि इ लोक म सैकड़ , हजार वष पय त िनवास करता है, दान करने वाला मनु य
सू यलोक को ा करता है।
अथात् य से सभी लोको म िनमलता व सु दरता को ा करता है। य से देवगण अमर व को ा करते ह।
य से अनेक कार के पाप को ालन करके ाणी भगवान िव णु के परम वै णवधाम को ा करते है ।
य ािदिभदवा: शि सु खािदनाम् ।। (महिष अङ् िगरा) अथात् य करने से देवगण स तु होते है, उनक स तु ता
से मनु य शि व सु खािद ा करता है ।
देवल के मतानु सार अि वलन :- हवन म अि को प ा, हाथ, छाजला, कपड़ा और पंखे से विलत
नह करना चािहए। प े से रोग, हाथ क हवा से मृ यु, शूप से धननाश, व से यथता ओर पं खे से दु:ख ा
होता है ।
ु क् से ही आहित देवे :-
चु ् के िबना हाथ से आहित देने पर होता अपने यजमान को वगलोक से युत कर देता है। अत: कु ् से ही
हवन करे । अि कु ड म हत िकया गया पुरोड़ाश कु ड से अ य नह िगरना चािहए ।
अि िज ा िदशा का य कम
मनोजवा दि ण अिभचा रक कम
धू वणा पि म -
चलायमाना - -
अ य मत से वाच पित के अनुसार कराली, धूिमनी, ेता, लोिहता, नीललोिहता, सु पणा और प रागा ये अि
क सात िज ाय है ।
य म ा घृत :-
गाय का घृत य म उ म माना गया है, भस का म यम तथा बकरी का घृत िनकृ बताया गया है ।
भर ाज ऋिष का मत है िक सव घृत ही काम म लेना चािहए, तैल कभी नह तथािप कायिवशेष के अनुसार
आ य के अभाव म ितल का तैल लेना चािहए । यिद यह भी नह िमले तो यव, ीिह या यामक धा य के
आटे को जल म िमलाकर उससे काम िनकाल लेना चािहए। वृ के भी तैल िलए जा सकते है, िक तु पु नाग,
अरीठा व एर ड़ का तैल िनिष है।
य साम ी लाने हेतु िनयम :- शङ् ख मृित के अनुसार य क सिमधाय, पु प-कु शा आिद को ा ण वयं
ही लावे, अ य ( ि य,वै य के अित र - पूवकाल म जाित का िनधारण कम से होता था, न िक ज म से) के
लाने पर कमफल न हो जाता है। यिद कोई अ य जाित का यि ले भी आता है, तो उन दभा-सिमधा आिद
व तु ओ ं का वेदो पवमान सू से ो ण करना चािहए ।
िबना दभाधारण िकये हए स या करना, िबना जल िलये हए दान-सङ् क प करना और िबना िगनती िकये हए
जप करना िन फल हो जाता है।
ौत- मात य म हरे रं ग क दभा, िक तु प चमहाय म पीतवण वाली दभा, वै देव कम म क माष दभाय
और िपतृकम म जड़वाली दभाय लेनी चािहए। दभा के अभाव म दूवा
दभा, कृ णमृगचम, म , ा ण, हिव, य ाि याँ सदैव पिव रहते है, इ ह बार बार काम म ले सकते है।
िजन दभाओं म से अ य अं कुर न िनकले हो, वे दभा कहलाती है, िजनम से अ य अं कुर िनकल गये हो, वे कु शा
मानी गयी है। जड़ सिहत को कु तपा कहते है और िजनक नोक टू ट गयी हो, वे घास के समान है।
पचास (50) कु शा का ा बनाया जाता है और प चीस (25) कु शा का िव र होता है। दि णावत वाला ा
बनता है और वामाव वाला िव र। अन तगभ वाला, सा भागवाला तथा ि दलवाला ादेशमा का
कु शिनिमत पिव बनता है ।
य ायु ध :-
वु ा, चु ी, उपयमन कु शा, य, णीता, ो णी, अि हो हवनी, शूप , कृ णचम, श या, ऊखल, मूसल, षत्
और उपल, अरिण, म था, ओबली, र जु, द ड़, बिह, कू च, धरमास दी, स भरणी, शङ् कु , यूप , चमस, अ ी,
ऊखल, मुसल, इड़ापा ी आिद ौतय म काम म आने वाले पा िवशेष य ायुध है।
1. ु क् अथवा वु :- खैर या वरना क लकड़ी का वु , बनाना चािहए । इसके 24 अङ् गुल म छ: देवताओं
(अि , , यम, िव णु, श और जापित) का माण है ।
सं हकार के अनुसार शमी (सफे द क कर) का वु होना चािहए । इसके अभाव म अ य वृ का बनाया जाये,
िक तु खैर का वु सविसि दायक होता है। शौनकऋिष के अनुसार वु खैर क लकड़ी का और जुह पलाश
क लकड़ी क होती हे । वु के अभाव म पलाश से भी हवन कर सकते है और यिद पलाश (छीला) का भी
प ा न िमले तो पीपल के प से भी हवन कर सकते है ।
वु के 24 अङ् गुल म नीचे से चार-चार अङ् गुल म मश: अि , , यम, िव णु, श और जापित का
थान माना गया है। इन सभी म िव णु का थान ही सवकम म े फलदायी माना गया है।
2. ु ची :- यह 36 अङ् गुल ल बी होती है, इसका मुख इसका गौमुख के समान पु कल होता है। चु ी के
अ भाग के छठे िह से के माप के बराबर चु ीमुख क गहराई होती है। खैर क लकड़ी क चु ी बनानी चािहए
। खिदर के अभाव म पलाश, पीपल या अ य हवनीय सिमधा के वृ क का से चु ी का िनमाण िकया जा
सकता है । चु ी से हवना त म पूणाहित म गोलािग र/बताश/सु पारी को थािपत करके अि म िु च क
सहायता से घृतसिहत समिपत िकया जाता है ।
4. णीता :- बारह (12) अङ् गुल ल बा व चौकार णीता पा होता है और उसको गहराई इतनी ही होनी
चािहए िक िजसम एक थ जल भर जाये।
5. ो णीपा :- वरण लकड़ी का बना हआ बारह (12) अङ् गुल िव तृत कमलाकार ो णी पा होता है।
वरण वृ को व ण (वरना/िविल/वायवरणा/भाटवरणा/वरणी) कहते ह।
हिव या न :- िभ न-िभ न थ म अनेक हिव या न बताये गये है, िजनम कई जगह िवरोध भी तीत होता है
िक तु पय, यवागू, घृत, ओदन, दही, त डु ल, मधु, ीिह, यव हिव या न के प म ा है । हिव या न म ीिह
उ म माना गया है, उनके अभाव म दही या दूध से हवन का उ लेख िमलता है।
हिव के िजतने य पदाथ है, उ ह वु े से तथा कठोर य का हाथ से हवन करना चािहए।
भूख , यास या ोध से आ ा त होकर या म रिहत तथा अ विलत एवं अ यिधक धुआँ वाली अि म
हवन करना िनषेध है। कम खी िच गा रयाँ िजस अि म से िनकल रही हो, बाय ओर िजसक लपट जा रही
हो, देखने पर भयावह तीत होती हो, देखने पर काली लपटे, दुग ध यु अि म हवन करना भी िनषेध है ।
साम ी मा ा
चावल 500 ाम
यव 250 ाम
अय य गु गुल , अगर, तगर, इ जौ, कपूर काचरी, सफे द व लाल च दन का बुरादा, च दन, दशाङ् ग
धूप , मरोड़फली, िब विग र, प चमेवा, जटामां सी, भोजप , नागरमोथा, कमलग ा इ यािद।
हवन क मु ाय :- सामा यतया हवन के समय मृगीमु ा ारा आहित देनी चािहए ।
मु ाय कम सं ा
गौरसषपान् िविकरयेत् (बाय हाथ म पीली सरस लेकर दाय हाथ से कु ड / थि ड़ल म िविकरण करे।) -
4. उ रणम् ( येक रे खा पर अनािमका अङ् गु से िकि चत् िम ी को पृथक् -पृथक् उठाकर ईशान क
ओर याग देवे) - ितरे खात: अं गु ानािमका यां अं गु ात् अनािमकापय तं ि वारं पां सू नु ृ य। ऐशा यां
प र यजेत् ।
5. अ यु णम् (हाथ म जल लेकर येक रेखा पर उ टे हाथ से जल डाले) - ितरे खां यु जमुि ना
ाजाप यतीथन उदके न ि र यु ेत ।
कु शकि डका
ऊँ णय ऊँ णय ऊँ णय (बोलते हए पा म जल डाले)
प र तरणािद कम -
पहले चौसठ कु शापा ले । इनम से सोलह कु शापा लेकर अि कोण से ईशानकोण तक वेदी के पास रखे ।
िफर सोलह कु शाएँ नैऋ यकोण से वाय यकोण तक फै ला देवे। इसके प ात् अि के उ रभाग से पि म िदशा
म तीन कु शा और दो कु शा पिव ी के िलए थािपत करे । अब ो णीपा , घी के िलए कां यपा (भगोनी
अथवा कचौला) रखे। िफर वु ा, प छने के िलए तीन कु शाएँ, हाथ म रखने के िलए तीन कु शाएँ, तीन सिमधाएँ,
घी, चावल के पूण पा पूव पूव म से रखे। पिव ी के िलए रखे गये दो कु शापा को आगे से आठ अङ् गुल
नाप कर तीन कु शाओं से तोड़ लेवे और आगे के कु शापा से पिव ी बनाकर धारण करके इसी पिव ी से यु
हाथ से णीता के जल को तीन बार ो णीपा म डाल। िफर अनािमका एवम् अङ् गु से पिव ी हण करके
जल को तीन बार ऊपर क ओर उछाल। िफर णीता का जल ो णी म िमलावे। इसके बाद ो णी पा
थािपत करके घृत के पा म घृत डाले । घी के पा को अि पर गम करे । िफर कु शा को जलाकर घी ऊपर
घुमाकर अि म छोड़ देवे। इसके बाद अधोमुख वु ा को अि पर गमकरके स माजन हेतु रखे। िफर तीन
कु शाओं को लेकर उन के अ भाग से वु ा के भीतरी एवं मूल भाग से वु ा के मूल म बाहर से प छकर णीता
के जल से वु ा को स चे। पुन: वु ा को तपाव और उसे दि ण क तरफ रख देवे, त प ात् घी के पा को अि
के ऊपर से हटाकर जैसे ो णी म से उछाला गया था वैसे ही कु शा से उछालकर उसम यिद तृण, लोम, क ट
आिद कोई व तु यिद िगर गयी हो तो उसे िनकाल कर ो णी के समान घी उछाले। िफर उपयमन हेतु रखे हए
तीन कु शा लेकर खड़े होकर ा का मन म मरण करते हए घी यु तीन सिमधाओं को अि म छोड़े , िफर
बैठकर अि के चार ओर तीन बार जलिस चन करे , त प ात् दािहना घुटना मोड़कर ा से अपने तक कु शा
रखकर विलत अि म वु ा से घी क आहित दे तथा वाहा कहते ही अि म आहित देव और इदम् कहते
ही ो णी पा म शेष घी डाल देवे।
पा सादनम् -
अ े रत: पि मिदिश कु शोप र पिव छे दनािन ीिण तृणािन, पिव े ,े ो णीपा म्ï आ य थाली,
च थाली, स माजनकु शा प च ीिण वा उपमयन कु शा: स , सिमध: ित :, वु :, कु ् , आ यं, त डु ला:,
पूणपा म् , ितल-यव, हसिमध अ यद् हवनीयं च आसादयेत् - तत: कु श यं ादेशमा ं वामह ते धृ वा त
कु श यं दि णह तेन कु श योप र िनधाय, कु श यं कु श योप र दि णीकृ य िछ ात् । कु शप यं ा म्,
कु श यमु रत: ि पेत् ।
ो णीसं कार: -
णीतासि नधौ ो णीपा ं िनधाय, सपिव ह तेन ि : िणतोदकमािस य अनािमकाङ् ग ा यामु रा े पिव े
धृ वा ि पवनम् । तत: ो णीपा ं स यह ते कृ वा अनािमकाङ् ग ा यां सपिव ं ह तेन ि िदङ् गनम्
(जलो छालनम् ) । आसािदत यािण ो णं कृ वा अि णीतयोम ये ो णीपा ं िनद यात् ।
सम तभय यािध जरापीड़ा-मृ यु प रहार ारा आयुरारो यै यािभवृद् यथ मम ज मराशे: नामराशे: वा सकाशा े
के िचि चतु था ïम ादश थानि थत ू र हा तै: सू िचतं सूचिय यमाणं च य सवा र ं ति नाश ारा
एकादश थान-ि थतव छु भफल ा यथ पु पौ ािद स ततेरिवि छ न वृद् यथ
आिद यािदनव हानुकूलतािस यथ ि िवधतापोपशमनाथ चतु िवध पु षाथ िस यथ हवनकम कमाङ् िगभूतं
आवािहतदेवतानां हम डल थ देवानां गौयािदमातृका स घृतमातृका वा तु-म डल थदेवतानां योिगनी-
म डल थ-देवतानां े पाल-म डल थ-देवानां भ म डल थदेवानां धानहवनं ीसू होम: ि व कृ ोम:
िद पालपूजनबिलदान च पूणाहित: सिहत वसो ारासिहत दि णादानािदसङ् क पािद च कम च अहं क र ये।
अि थापन -कां यपा थं िनधूमवि ं ि तीयपा ेण िपिहतं कु डे/ थि डले वा ( थि डलाद् बिहरा ेयां िदिश
िनधाय। यादां शं नैऋ या िदिश प र य य ।
अि ं सं था य -
अि से ाथना करे :- अि के सात हाथ है, चार स ग है, सात िज ाये है, दो िसर है, तीन पैर है, स न मुख है,
सु खासन से बैठी है, उसम से ऊपर क ओर देदी यमान वालाय िनकल रही है । दािहनी ओर वाहा और बाई ं
और वधा देवी िवरािजत है, दािहने हाथ म शि , अ न, वु ा औ गु ् िलए हए है तथा बाय हाथ म तोमर,
यजन और घृतपा धारण िकये हए है, वृषभ पर सवार है, जटाधारी है, गौरवण है, धू वण क उसके वजा है ,
ने लाल है, स ािच है और अपनी ओर मुख करके मानो बैठा है - ऐसे अि देव का नम कार है।
2. ऊँ इ ाय वाहा इदं इ ाय न मम ।
3. ऊँ अ ये वाहा इदं अ ये न मम ।
o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 279
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िकं िच घृत ो णीपा े ेप (अि म घृत क आहित देने के प ात् वाय यकोण म ि थत ो णीपा म
आहित प ात् वु े म शेष घी का याग करे ।) :-
ऊँ भूभव:
ु व: .... अ ये नम:।। ग धािदिभ: स पू य ।
1. ऊँ व ण यो भनमिस वाहा ।
2. ऊँ व ण य क भस जनी थो वाहा ।
4. ऊँ व ण य ऽऋतसदनमिस वाहा ।
ऊँ भूभव:
ु व: गणपतये वाहा। गणपतये न मम ।
ऊँ भूभव:
ु व: गौ य वाहा। गौ य न मम्।
o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 280
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3. ऊँ य कू म ....0।। ऊँ भूभव:
ु व: कू मायै वाहा। कू मायै न मम।
1. ऊँ आकृ णेनरजसा वतमानो िनवेशय नमृत म य च। िहर ययेन सिवता रथेना देवो याित भुवनािन
प यन्।। - ऊँ सूयाय वाहा। (अक-सिमधा क आहित देवे)
2. ऊँ इम देवा ऽ असप न œ सु व व महते ायमहते यै ् याय महते जानरा याये येि याय।
इमममु य पु ममु यै पु म यै िवशऽएषवोमीराजासोमोऽ माकं ा णाना ठ 0 राजा।। - ऊँ च मसे
वाहा। (पलाश-सिमधा क आहित देवे)
3. ऊँ अि मू ािदव: ककु पित: पृिथ या ऽ अयम्। अपा œ रे ता œ िसिज वित।। - ऊँ भौमाय वाहा।
(खिदर-सिमधा क आहित देवे)
5. ऊँ बृह पते ऽ अितयद ऽअहा मु ि भाित तु म जनेषु । ीदय छवसऽऋत जाततद मासु िवणं धेिह
िच म् ।। - ऊँ गुरवे वाहा। (पीपल-सिमधा क आहित देवे)
9. ऊँ के तुं कृ व नके तवे पेशो माऽअपेशसे। समुषि रजायथा:।। - ऊँ के तवे वाहा। (कु शा क आहित
देवे)
7. ऊँ सर व यै वाहा ।
16. ऊँ मृगाय वाहा । 17. ऊँ िपतृ य: वाहा । 18. ऊँ दौवा रकाय वाहा ।
25. ऊँ रोगाय वाहा । 26. ऊँ अिहबु याय वाहा । 27. ऊँ मु याय वाहा ।
43. ऊँ पृ वीधराय वाहा। 44. ऊँ आपव साय वाहा । 45. ऊँ ïणे वाहा।
13. ऊँ हँकाय वाहा । 14. ऊँ िसि वैतािलकायै वाहा। 15. ऊँ काय वाहा ।
22. ऊँ वीरभ ायै वाहा । 23. ऊँ धू ा यै वाहा। 24. ऊँ कलहि यायै वाहा ।
40. ऊँ दीघल बो ïयै वाहा। 41. ऊँ मािल यै वाहा। 42. ऊँ मं योिग यै वाहा ।
46. ऊँ कु डिल यै वाहा। 47. ऊँ बालु कायै वाहा। 48. ऊँ कौबेय वाहा ।
61. ऊँ धूजटï◌्यै वाहा। 62. ऊँ िवकटायै वाहा। 63. ऊँ घोर पायै वाहा।
67. ऊँ िसि दायै वाहा। 68. ऊँ जयायै वाहा। 69. ऊँ िवजयायै वाहा।
70. ऊँ अिजतायै वाहा। 71. ऊँ अपरािजतायै वाहा। 72. ऊँ ेमक र्यै वाहा।
अनेन हवनेन महाकालीमहाल मीमहासर वती सिहता िद यािदचतु :षि ïयोिग य: ीय ताम ।।
10. ऊँ लृ काय वाहा। 11. ऊँ लीलाकाय वाहा। 12. ऊँ एकदं ï◌्राय वाहा।
22. ऊँ अणु व पाय वाहा । 23. ऊँ च वा णाय वाहा। 24. ऊँ पटाटोपाय वाहा।
28. ऊँ िवटङ् काय वाहा । 29. ऊँ मिणमानाय वाहा । 30. ऊँ गणब धाय वाहा ।
40. ऊँ िसं हाय वाहा । 41. ऊँ मृगाय वाहा। 42. ऊँ य ि याय वाहा ।
46. ऊँ शु लतु डाय वाहा । 47. ऊँ सु धालापाय वाहा । 48. ऊँ बबरकाय वाहा ।
10. ऊँ अ ïवसु य: वाहा । 11. ऊँ एकादश देर् य: वाहा। 12. ऊँ ादशािद ये य: वाहा ।
16. ऊँ अ कु लनागे य: वाहा । 17. ऊँ गं धवा सरो य: वाहा । 18. ऊँ क दाय वाहा ।
19. ऊँ नि दने वाहा । 20. ऊँ शूलकाला यां वाहा । 21. ऊँ द ािदस गणे य: वाहा ।
25. ऊँ मृ युरोगा यां वाहा । 26. ऊँ गणपतये वाहा । 27. ऊँ अद् य: वाहा ।
37. ऊँ द डाय वाहा । 38. ऊँ खड् गाय वाहा । 39. ऊँ पाशाय वाहा ।
नोट :- त प ात् धानपीठ थ देवता क यथोिचत सं या मक (108, 1008 इ यािद) आहितयाँ मूलम या
नामाविल से करवानी चािहए ।
ीसू होम: (चावल व दूध से िनिमत खीर अथवा पायसिनिमत िम ा न से ल मीहोम करवाय) -
तां पि नीम शरणमहं प े अल मीम न यतां वां वृणे ॥5॥ ऊँ महाल यै वाहा ।
ऊँ आ ा य क रण यि ं सुवणा हेममािलनीम् ï।
''ऊँ ह कमले कमलालये सीद सीद ह ऊँ महाल यै वाहा ।।'' इित म ेण अ ो शतं 108
यथासं या मकं वा जुहयात् । अनने हवनेन ीमहाल मीदेवता ीयतां न मम।। जलमु सृजेत् ।।
ि व कृ ोम:
यिज ो वि हतम: शोशुचानो ि व ा ेषा िस मुमु य मत् वाहा । इदं अि व णा यां न मम।
अवय वनो व ण रराणो वीिह मृडीक सु हवोनऽएिध वाहा । इदं अि व णा यां न मम।
वेदी/ थि ड़ल के पूवािद दश िदशाओं म ि थत िद पाल के िलए दिध-माषािद पदाथ से सदीप बिलदान करना
चािहए।
सू यवामपा ऊँ भूभव:
ु व: सूयवामपा अ ये नम:। अ ये नम:।
3. दि णे - ऊँ माय वाङ् िगïïर वते िपतृमते वाहा। वाहा घ माय वाहा घम: िप े ।
वायो ऽ अि म सवने मादय व यूय पात वि तिभ: सदा न:॥ वायवे नम:।
उ रे ऊँ भूभव:
ु व: सोमाय नम:। कु बेराय नम:।
9. ऊ व (ईशानपूवयोम ये) -
अन ताय नम:।
ाथयेत् - भो इ ािददशिद पाला: िदशं र त बिलं भ त मम गृहे आयु: कतार: ेमकतार: शाि तकतार:
पुि कतार: फलदो वरदो भव:। एिभबिलदानै: इ ादयो दशिद पाला: ीय ताम् । जलमु सृजेत् ।
ाथयेत् -
भो े पाल! इमं चतु वितकासिहतं सदीपदिधमाषा नबिलं गृहाण। मम गृहे आयुकता ेमकता शाि तकता
पुि कता फलदो वरदो भव:। अनेन बिलदानेन े पाल: ीयताम । बिलं चतु पदे ग छे त ।
o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 294
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पू णाहित: (बताशा/सु पारी/गोलािग र से यथोिचत घी-बूरा भरकर नागरबेल के पान के प े को ऊपर लगाकर
िु च म रखकर घी डालते हए म ो चारपूवक पूणाहित करवाये) -
ऊँ भूभव:
ु व: पूणाह यां मृडना े वै ानराय नम: गं धािदिभ: सं पजू येत् ।
वु ेण चतु वारमा यं िु च गृही वा । त यां ना रके लफलं (सा य गोलािग र:) ता बूलं पूगीफलं वा िनधाय
पु पमालां र व ेणवेि ïतं चु ोऽप र अधोमुख वु छ नं ।
एकोनप चाशत् म णे यो नम: गं धािदिभ: सं पू य, पािण येन शंखमु या सु ्रवं सु ्रचमादाय उ थाय एवं पूणाहितं
जुहयात् । घृतेनािवि छ नधाराम ौ पातयेत् ।
वसो ारा-होम: (पूणाहित के प ात् कु ् को हटाकर िु च से शेष बचे घृत से वसो ारा हवन करवाये) -
भ मधारणम् (ऐशा यां वु ेण भ मानीय) (ऐशान कोण से सुवा के ारा भ म लेर मं के ारा यजमान को
लगाव।)
ि थ-िवमोक :-
उप य तु म त: सु दानव ऽ इ ाशूभवा स चा ॥
बिहहोम :-
सं क प: :- सं क प बोले
ऊँ त सद कृ तैतत् ....... (कम का नाम) कमण: साङ् गïतािसद् यथ आचायाय आचायदि णा: णे
दि णां अ यवृते य: ा णे य: स ददे।
त सद अ य ........ (कम का नाम) कमण: साङ् गï विस यथ यूनाित र दोषप रहाराथ गो य: तृणं
कपोते य: अ नं वानरे य: फलं दीनानाथे य: भूयस दि णामहं स ददे।
त सद अ य ........ (कम का नाम) कमण: साङ् गï विस यथ ा णान् ा णी वजाित अ यजाित बटु कान्
क यान यथा अ नेन् भोजिय ये।
आशीवाद :-
व य तु ते कु शलम तु िचरायुर तु ।
11.4. सारां श
11.5. श दावली
का िनिमत उपकरण
7. शाक य = हवनीय य
11.6. अितलघु री
- 1 : य श द से या ता पय है?
- 1 : य श द क िववेचना क िजये ?
11.8. स दभ थ
1. हवना मक दुगास शतीस पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर ।
इकाई — 12
आरती का मह व
इकाई क परेखा
12.1. तावना
12.2. उ े य
12.4. म पु पा जिल
12.5. सारां श
12.6. श दावली
12.9. स दभ थ
12.1. तावना
आरती को ''आराितक अथवा ''नीराजन भी कहते है। पूजा के अ त म आरती क जाती है । पूजन म जो भी
ु िटयाँ (म हीन/ि याहीन/अशुि आिद) रह जाती है, उनक पूित आरती के ारा क जाती है। क दपुराण के
अनुसार :-
जो सदा धूप और आरती को देखता है और दोन हाथ से आरती लेता है , वह अपने वं श का उ ार करता है।
आरती म मूलम (िजस देवता का िजस म से पूजन िकया हो) के ारा तीन बार पु पा जिल देनी चािहए
और मृदङ् ग, शङ् ख, घिड़याल आिद वा य सिहत जयकार के उ चश द व मधुर श द से शुभपा म घी या
कपूर से िवषम सं या क अनेक बि य से आरती करनी चािहए ।
सामा यतया पाँच बि य से आरती क जाती है, इसे ''प च दीप भी कहते है। एक, सात या उससे भी अिधक
बि य से भी आरती क जाती है। के वलमा कपूर से भी आरती क जाती है।
कुं कु मï, अगर, कपूर, घृत, च दन अथवा ई क सात या पाँच वितका बनाकर शङ् ख-घ टा आिद मधुर व
उ च विनय से आरती करनी चािहए ।
आरती पूजन के अ त इ देव क स नता हेतु क जाती है । इसम इ देव को दीपक िदखाने के साथ ही उनका
तवन तथा गुणगान िकया जाता है ।
5. वाल 6. स या 7. शयन
o/keZeku egkohj [kqyk fo’ofo|ky;] dksVk 304
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आरती के दो भाव है जो ''नीराजन और ''आरती से य हये है। नीराजन (िन:शेषेण राजनम् काशनम्) का
अथ है - '' शेष प से कािशत करना। अनेक दीपवितका विलत करके िव ह के चार ओर घुमाने का
अिभ ाय यही है िक स पूण िव ह नख से िशख तक कािशत हो उठे , अङ् ग यङ् ग प प से उ ािषत हो
जाये, िजसम दशक या उपासक भलीभाँित देवता का व प िनहार सके , दयङ् गम कर सके ।
12.2. उ े य
नाराि कं भ जन तु कु यात् ।।
2. दो बार नािभदेश म,
(1)
(2)
(3)
देवता व णो देवता ॥
(4)
सव ठ. शाि त: शाि तरे वशाि ते सामाशाि तरे िध ि पदे चतु पदे य: शुभशाि तभवतु ॥
लौिकक आरितयाँ
1. गणेश जी क आरती
ा सतां कु लजन भव य ल जा
तु म पाताल-िनवािसनी, तु म ही शुभदाता ।
सब स भव हो जाता, मन नह घबराता ॥ ऊँ जय ॥
3. अ बे मै या क आरती
दुगािस दुगभवसागरनौरसङ् गा ।
तु म ही जग क माता, तु म ही हो भरता ।
4. आरती ीदु गा जी
सव पकारकरणाय सदा िच ा॥
तू परधामिनवािसनी, महािवलािसनी तू ।
सु र-मुिन-मोिहनी सौ या तू शोभाऽऽधारा ।
मूलाधारिनवािसिन, इह-पर-िसि दे ।
शि शि धर तू ही िन य अभेदमयी ।
अथ जगद बा जयवादः
िशवजी क आरती
ऊँ जै िशव ओङ् कारा, हो मन भज िशव ऊँकारा, हो मन रट िशव ओङ् कारा, हो िशव गल डन माला,
हो िशव ओढ़त मृगछाला, हो िशव पीते भं ग याला, हो िशव रहते मतवाला, हो िशव पावती यारा, हो िशव
ऊपर जलधारा, जटा म गङ् ग िवराजत, म तक पे च िवराजत रहते मतवाला ॥ ऊँ हर.॥
7. िशव—आराित यम्
िव ा ं िव व ं िनिखलभयहरं प चव ं ि ने म्।।
ऊँ हर हर हर महादेव ॥
तु म क णा के सागर, तु म पालनक ा ॥ भु ॥
9 आरती कु जिबहारी क
गगन सम अङ् ग काि त काली, रािधका चमक रही आली, लतन म ठाढ़े बनमाली,
जय ल मीरमणा, ील मीरमणा ।
वै य मनोरथ पायो, ा तज दी ह ।
सरबस धन ह रच द अलीक ।।
जय जानिकनाथा, जय ीरघुनाथा ।
13 ीरामच जी क आरती
स -अ रथ रािजत एक च धारी ।
सू यदेव क णाकर अब क णा क जै ।
सेवत सतत सकल सु खका रिण। सु महौषिध ह र-च रत गानक ।। आरित 0।।
भुि -मुि -रित- ेम-सु दािसनी। कथा अिक चन ि य सु जानक ।। आरित 0।।
त ीिवजयो भूित वा
ु नीितमितमम ॥
12.4. म पु पा जिल
णाम :-
िवसजन :-
12.5. सारां श
प म मङ् गला, धूप , शृङ्गार, राजभोग, वाल, स या एवं शयन के समय म देवताओं को स न करने के िलए
एवं अपने क के िनवारण हेतु देव ितमा के चरण पर चार बार, नािभ देश म दो बार, मुखम ड़ल पर एक बार
तथा सम त अङ् ग पर सात बार आरती करने क िविध सिहत लौिकक एवं वैिदक आरितय के अ यास का
ान ा हआ ।
12.6. श दावली
5. वितका = ई से बनी हई ब ी
7. आतिनवारण = क से मुि
- 1 : आरती य क जाती है ?
उ र : आरती के समय बजाने जाने वाले मु य वा य - मृदङ् ग, शङ् ख, घिड़याल, घ टा, नगाड़ा आिद।
12.9. स दभ थ
1. हवना मक दुगास शती स पादक - डॉ. रिव शमा काशक - रा ीय सं कृ त सािह य के , जयपुर।
इकाई — 13
ा प रचय
इकाई क परेखा
13.1. तावना
13.2. उ े य
13.5. सारां श
13.6. श दावली
13.9. स दभ थ
13.1. तावना
िपतर का ऋण ा ारा चु काया जाता है, आि नमास के कृ णप एवं मृ युितिथ को ा िकया जाता है।
ा का अथ है - या दीयते यत् तत् ा म् अथात् जो भी ा से िदया जाये। िपतृप म ा तो मृ यु
ितिथ को ही होता है, िक तु तपण ितिदन िकया जाता है । देवताओं तथा ऋिषय को जल देने के प ात् िपतर
को जल देकर तृ िकया जाता है। य िप येक अमाव या िपतर क पु यितिथ है तथािपत आि न क
अमाव या िपतर के िलए परम फलदायी है। इसी कार िपतृप क नवमी को माता के ा के िलए पु यदायी
माना गया है। ा के िलए गयातीथ सव म तीथ माना गया है । ा सं कार न होकर एक आव यक कम है।
ा िपतर के ित हमारी िन ा को कट करता है। आि न मास का कृ णप िपतृप के नाम से िस है,
िपतृप म होने वाले ा पावण एवं महालय ा के नाम से जाने जाते है। जब क या के सू य भा पद
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2. पावण ा :- महालय व अमाव या िवधान से जो ा िकया जाता है, उसे पावण ा कहते है।
3. वृि ा :- िववाह, स तान आिद माङ् गिलक काय म जो ा िकया जाता है, उसे वृि ा कहते
है।
4. सिप ड़न ा :- ेत को िपतर के साथ िमलाने के िलए जो ा िकया जाता है, उसे सिप ड़न ा
कहते है।
6. नैिमि क ा :- िकसी िवशेष उ े य से जो एकोि ा िकया जाता है, उसे नैिमि क ा कहते
है।
13.2. उ े य
1. ा िविध-िवधान का प रचय ।
2. ा से स बि धत ाि तय का िनराकरण ।
3. ा म ा का मह व ।
मनु य का एक मास िपतर का एक िदन-रात होता है। कृ णप िपतर के काय के िलए होता है, अत: वह
िपतर का एक िदन होता है और शु लप सोने के िलए है , अत: वह िपतर क रात होती है। यह सनातन धम
का िस ा त वै ािनक होने से मा य एवं स य िस हआ है। इस लोक से मरकर गये हमारे िपतर क अवि थित
िपतृलोक म होती है। हमे उनके म या काल म उ हे भोजन पहँचना है। उसमे दो कार है-एक तो यह िक हम
उनके नाम से अि न म हिवका हवन करना चािहए, य िक अथववेद सं िहता म मृत िपतर के िखलाने के िलए
अि न से ाथना क गई है :-
अथात्-अि नदेव! जो पृ वी म गाडे गये है, जो जल म वािहत िकए गए है जो िचता मे जलाए गए है अथवा
अ त र म न हो गए है, उन सभी िपतर को आप इस ा काय मे बुला कर लाय। महाभारत आिद पव मे
अि न क उि है :-
(वेदा िवधान से मुझ अि म िजस हिवका हवन होता है , उससे देवता तथा िपतर तृ हो जाते है। देवताओं
तथा िपतरो का मुख म (अि न) हँ । अमाव या म िपतर तथा पूिणमा म देवता मेरे मुख से ही हिव खाते है।) दूसरा
कार यह है िक- अि न के सहोदर ा ण क जठराि न म ा ण के मुख ारा उन देव एवं िपतरो के नाम से
ह य-क य समिपत िकया जावे। यथा - िव ातप: समृ ेषु हतं िव तुखाि षु ।(िव ा एवं तप से समृ ा ण के
मुख वा अि म आहित डाली जाए।) अि न और ा ण क सहोदरता म माण यह है िक ा ण तथा अि न
दोनो क िवराट् पु ष के मुख से उ पि वेदािद शा म कही गयी है , जैसा िक -
ा णो य मु खमासी ाह राज य़ कृ त ।
- अि न हो, तो (िपतृदान) ा ण को ही दे दे ।
'अ यभावे तु िव य पाणौ एवोपपादयेत् यह कहकर वहाँ हेतु िदया गया है-
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यहां पर ा ण को वै ानर अि न माना गया है। यहां वामी ी शं कराचाय ने भा य म कहा है-
जैसे देवताओं को 'सोमाय वाहा, 'व णाय वाहा आिद म से दी हई हिव को सू य ख चते ह, वैसे ही िपतर
के उ े य से दी हई हिव को सू य ख चकर अपनी सु षु णा रि म से कािशत च लोक म भेज देते है, वह च
अपने मे ि थत िपतर को उ हिव पहँचा देता है। उस ा भोग को ा ण क अि म द न पड जाए, िजससे
महाि से उसका मेल न हो सके , इसिलए शा ने उस िदन कई िविभिषकाएँ देकर उसे पूव राि म सं यमी रहने
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के िलए आिद िकया है- यही उसम रह य है। शेष ा ण को भ मीभूत कहा गया है । इसिलए िपतृ ा मे
दोषहीन िविश ा ण को बुलाने को मनु मृित आिद म कहा है। कई लोग देवताओं को जड़ मानते है, तब सू य
च ािद िकरण के भी जड होने से वे उस िपतर को िदया हआ क य कै से पहँचा सकते है- यह होता है, इस
पर उ र यह है- हमलोगो के कम भी तो जड हआ करते है? जैसे कम के अिध ाता परमा मा जड नही है, िकं तु
सव यापक एवं चेतन है, वे ही देव और िपतर के कम के भी यव थापक है। वे ही सब यव थाएँ पूरी करा
िदया करते है। जैसे हजार गौओ मे बछड़ा अपनी माता को ा कर िलया करता है, वैसे ही पु कृ त ा भी
िपतर के पास उपि थत हो जाता है । यही मृतक ा का रह य है, अि न िपतृलोक थ िपतर को सू म क य
समिपत करती है- इसमे कई वेद-म क सा ी भी है, यथा -
इससे िस है िक वेद म ा के सङ् ग म यु 'िपतृ श द मातृ िपतृवाचक होता है । इसीिलए वेद मे कहा है-
िपतृणां लोकमिप ग छ तु ये मृता: अ वधा मृता: िपतृषु सं भव तु इस कार मृतक ा क वैिदकता िस हो
गई। मृतक के मािसक ा करने का यही रह य है। शारिदक वािषक ा तो िविश होता है। भा पद पूिणमा
से ार भ होकर आि न क अमाव या तक सब ितिथय मे िभ न-िभ न िपतर भोजन पाते है। जैसे हम कभी
िववाहािद िवशेष भोजन ा करते है, ज मा मी आिद के अवसर पर भ गण आधी रात के समय भी पारण
करते है, उसी कार अपवाद होने से िपतर के िवषय मे शु ल प ीय यािद ितिथ मे जान लेना चािहए। वे
िपतर उस ितिथ मे उस माग म होते है। ितिथय का स ब ध च मा से होता है, शारिदक ा भी पावण होने से
िवशेष िपतर का िवशेष पव ही समझना चािहए । ा म ा ण-भोजन का उ लेख आप त बधम बोधनीय
िपतृमेध एवं बोधनीय गृ सू और िहर यके शीय गृ सू म तो आया ही है, मानवगृ सू म भी कहा गया है
िक ' ा मपरप ेिपतृ यो द् ात् अनुगु म ने ा णान् भोजयेत् । नावेदिवद् भु जीत् इित िु त इ यािद। इसी
कार-यां ते धेनंु िवपृ ्रणािम यमुते ीरमोदनम् इ यािद से मृतक के िनिम गोदान तथा खीर का िवधान है-
इममोदनं िन े ा णेषु महाभारत के वन पव मे भी कहां है- ा णा एव स पू या:
पु य वगमभी सता ।।
इससे िपतृलोक च लोक के ऊपर िस होता है। जब च मा शु लप म इस लोक म अपना काश करते
रहते है, तब वे सू य से दूसरे कोने मे होते है, तब िपतृ लोक मे 15 िदन तक िनर तर एक राि होती है। जब कृ ण
प होता है, तब इस लोक म रात को चाँदनी नही होती । उस समय च लोक सू य के िनकट होता है, तब
िपतृलोक क जा िनर तर (कृ ण अ मी से शु ल अ मी तक) सू य को देखता है। इस कार िनर तर उसका
एक िदन ात: 6 से सायं 6 तक होता है। अमाव या जब सू य-च एक रािश मे होते है, तब हमारे अपरा काल
म सू य के च लोक के िसर पर होने से च लोक के उ व थ िपतर का भोजन काल (म या ) होता है। हमारी
जब पूिणमा होती है , तब सू य च लोक 6 रािश के अ तर से बहत दूरी होते है। तब च लोक म राि होती है।
हमारा 30 िदन का एक मास होता है। परं तु च लोक के ऊपर रहते हए िपतर का वह 24 घं टे का िदन-रात होता
है । इस गणना से हमारी ितिथ िपतर क म यमान से 48 िमनट का समय होता है। इससे अमाव या िपतर का
म या है। इसिलए अमाव या के ा का अिधक मह व माना गया है। ा शा ीय अव यकरणीय कत य
और पूवजो मे ा का प रचायक अनु ेय कत य है। िपतृप म तपण करना तथा ा करना येक आि तक
धािमक का पावन कत य है ।
क मृ युितिथ याद न रहे , उनके िनिम , ा , तपण, दान आिद इसी अमाव या को िकया जाता है। इसी िदन
िपतर अपने पु ािदक के ार पर िप ड़दान एवं ा ािद क आशा म आते है, यिद वहाँ उ ह िप ड़दान या
ितला जिल नह िमलती है तो वे शाप देकर चले जाते है। अतएव एकदम ा का प र याग नह करे , िपतर
को यथाशि स तु अव य करे ।
ा म ा पु प :-
ा हेतु थान :- गया, पु कर, कु शावत (ह र ार) आिद तीथ म ा क िवशेष मिहमा है। सामा यत: घर
म, गौशाला म, देवालय, यमुना, नमदा आिद पिव निदय के तट पर ा करने का अ यिधक मह व है। ा
थान को गोमय िम ी से लेपन करके शु कर लेना चािहए। दि ण िदशा क ओर ढाल वाली भूिम श त
मानी गयी है।
ा म श त आसन :- रे शमी, नेपाली क बल, ऊन, का , तृण, पण, कु श आिद के आसन े है।
का ासन म भी शमी, का मरी, श ल, कद ब, जामुन , आम, मौलिसरी एवं व ण के आसन े है। ये सभी
आसन लोहे क क ल से यु नह होने चािहए।
भोजन के समय आचरण :- ा म भोजन के समय मौन रहना चािहए, माँगने या ितषेध का सं केत हाथ से
ही करना चािहए। भोजन करते समय ा ण से अ न क शं सा अथवा िन दा के िवषय म चचा नह करनी
चािहए।
ा म विजत ा ण व परी ा का िनषेध :- लं गड़ा, काना, दाता का दास, चोर, पितत, नाि तक, मूख ,
धूत , मां सिव यी, यापारी, कु नखी, काले दाँतयु , गु ेषी, शू ापित, शु क लेकर पढ़ाने या पढ़ने वाला,
जुआरी, अ धा, कु ती िसखाने वाला, नपुं सक, अङ् गहीन एवं अिधक अङ् गवाला ा ण ा म विजत है।
देवकाय, पूजा-पाठ आिद म ा ण क परी ा न करे , िक तु िपतृकाय म अव य करे।
ा म श त अ न :- ा म गाय का दूध, दही और घी काम म लेना चािहए। जौ, धान, ितल, मूँग , साँवां,
सरस का तेल, ित नी का चावल, कँ गनी आिद से िपतर को तृ करना चािहए। आम, अमड़ा, बेल, अनार,
िबजौरा, पुराना आँवला, खीर, ना रयल, फालसा, नारं गी, खजूर , अं गरू , नीलकै थ, परवल, िचर जी, बेर, जं गली
बेर, इ जौ और भतु आ - ये सभी ा म श त माने गये है।
अ य मत से जौ, कङ् गनी, मूँग , गेह,ँ धान, ितल, मटर, कचनार और सरस भी े है।
ा म विजत अ न :- िजस म बाल, क ड़े पड़ गये हो, िजसे कु ने देख िलया हो, जो बासी एवं दुगि धत
हो, ऐसी व तु ओ ं का ा म उपयोग न करे । बगन और शराब को भी याग करे । िजस अ न पर पहने हए व
क हवा लग जाये, वह भी िनिष है। राजमाष, मसू र, अरहर, गाजर, कु हड़ा, गोल लौक , बगन, शलजम,
ह ग, याज, लहसु न, काला नमक, काला जीरा, िसं घाड़ा, जामुन , िप पली, कु लथी, कै थ, महआ, अलसी, चना
ये सभी विजत है।
ा कता के िलए विजत काय :- जो ा करने के अिधकारी है, उ ह प ह िदन तक ौरकम नह करना
चािहए। पूण चय का पालन करना चािहए। ितिदन नान के बाद तपण करना चािहए। तेल , उबटन आिद
का उपयोग नह करना चािहए। दातु न करना, पान का सेवन, तेल लगाना, उपवास, ी-िवहार, औषिध सेवन,
अ य का अ न खाना आिद भी ा कता के िलए विजत है ।
पु , प नी, सहोदर भाई आिद ा करने के अिधकारी होते है अथात् सबसे पूव मृतक का पु ा करे , यिद
पु नह हो तो प नी ा करे । प नी के भी न होने पर सहोदर भाई आिद मश: ा करे । पु , पौ , पौ ,
पु ी का पु , प नी का भाई, भाई का पु , िपता, माता, बह, बिहन सिप ड सोदक इनम पूव के न होने से िपछले -
िपछले िप ड के दाता कहे गये है।
बालक के ा क यव था :-
1. दो वष के पूव बालक का कोई ा तथा जला जिल आिद ि या करने क आव यकता नही होती है।
1. सव सा गाय 1. सव सा गाय
2. भूिम िव णु 2. भूिम िव णु
5. वण अि न 5. वण अि न
6. घी मृ यु जय 6. कपास वन पित
8. स धा य जापित 8. स धा य जापित
9. गुड़ सोम
10. रजत च मा
धमशा के अनु सार ा म तपण का िनदश (िकन-िकन का तपण ा म िकया जाना चािहए) :-
10. वृ मातामह (वृ परनाना) 11. मातामही (नानी) 12. मातामही (परनानी)
गया ा कब करे ? :- मीन, मेष, क या, धनु, और कु भ रािश के सूय के होने पर गया म िप डदान करना
चािहए। यह तीन लोक म दुलभ व पु यकारी योग होता है। मकर के सू य म तथा सू य व च हण के समय म
भी गया म िप डदान करना चािहए। येक सं ाि त के आिद म गया ा िकया जा सकता है। माता-िपता के
मृ युिदन म महालय, गया ा , िप डदान आिद यथािविध करना चािहए। मृताह म सगोि य का िप डदान,
गया ा महाफलदायक होता है।
दैिवक, पावण, एकोि व नैिमि क ा िकस समय करे ? :- पूवा म दैिवक ा करना चािहए,
अपरा म पावण ा करना चािहए, म या म एकोि ा करना चािहए तथा ात: काल वृि ा करना
चािहए।
2. यिद शाक खरीदने के िलए भी पैसे न हो तो तृण-का आिद को बेचकर धन एकि त करे और उन पैस
से शाक खरीदकर ा कर सकते है।
3. प पुराण के अनुसार देशकाल के अनुसार लकिड़याँ भी नह िमले तो घास काटकर गाय को िखला
दीिजये, तब भी आपका ा कम पूण हो जायेगा।
4. यिद घास भी नह िमले तो ा कता एका त म जाकर दोन भुजाओं को उठाकर िन िलिखत ाथना
करे :- न मेऽि त िव ं न धनं च ना य ा ोपयो यं विपतृ नतोऽि म।
अथातï◌् हे िपतृगण! मेरे पास ा के उपयु न तो धन है, न धा य आिद। हाँ, मेरे पास आप के िलए ा
और भि है, म इ ह के ारा आपको तृ करना चाहता हँ, आप तृ हो जाये।
ा के भेद :- म यपुराण के अनुसार तीन (1. िन य, 2. नैिमि क, 3. का यभेद) कार के ा बताये गये
है :- िन यं नैिमि कं का यं ि िवधं ा मु यते।।
ितिदन िकये जाने वाले ा को िन य ा कहते है, इसम िव ेदेव नह होते तथा अश ाव था म के वल
जल दान से भी इस ा क पूित हो जाती है। एकोि ा को नैिमि क ा कहते है , इसम भी िव ेदवे
नह होते। िकसी कामना क पूित के िनिम िकये जाने वाले ा को का य ा कहते है। वृि काल म
पु ज म तथा िववाहािद मङ् गल काय म जो ा िकया जाता है , उसे वृि ा (नाि द ा ) कहते है।
िपतृप , अमाव या अथवा पव क ितिथ आिद पर जो सदैव (िव ेदवे सिहत) ा िकया जाता है, उसे
पावण ा कहते है।
िव ािम मृित तथा भिव यपुराण के अनुसार ादश कार के ा बताये गये है :- 1. िन य, 2. नैिमि क, 3.
का य, 4. वृि , 5. पावण, 6. सिप ड़न, 7. गो ी, 8. शुद् यथ , 9. कमाङ् ग, 10. दैिवक, 11. या ाथ तथा 12.
पु ् यथ। ाय: सभी ा का अ तभाव उपरो प च ा म हो जाता है ।
िजस ा म ेतिप ड़ का िपतृिप ड़ म स मेलन िकया जाता है, उसे सिप ड़न ा कहते है। समूह म जो ा
िकया जाता है, उसे गो ी ा कहते है। शुि के िनिम िजस ा म ा ण को भोजन करवाया जाता है , उसे
शुद् यथ कहते है। गभाधान , सीम तो नयन तथा पुं सवन आिद सं कार म जो ा िकया जाता है, उसे कमाङ् ग
ा कहते है। स मी आिद ितिथय म िविश हिव य के ारा देवताओं के िनिम जो ा िकया जाता है, उसे
दैिवक ा कहते है। तीथ के उ े य से देशा तर जाने के समय घृत ारा जो ा िकया जाता है, उसे या ाथ ा
कहा जाता है। शारी रक अथवा आिथक उ नित के िलए जो ा िकया जाता है, वह पु ् यथ ा कहलाता है।
उपयु सभी कार के ा ौत व मात-भेद से दो कार के होते है। िप ड़िपतृयाग को ौत ा कहते है
और एकोि , पावण तथा तीथ ा से लेकर मरण तक ा को मात ा कहते है। ा के 96 अवसर है :-
ितिथयाँ यु गािद
8. पाँच अ का ा (5)
9. पाँच अ व का ा (5)
10. पाँच पूव :ु ा ( 5), इस कार कु ल िमलाकर 96 ा के अवसर वषभर म आते है।
ा िविध :- सामा य प से कम से कम वष म दो बार ा करना अिनवाय है। इसके अित र अमाव या,
यितपात, सं ाि त आिद पव क ितिथय म भी ा करने का िवधान है।
2. सङ् क प म अपने ''नाम-गो के आगे ''शमा/वमा/गु ोऽहं के थान पर ''दासोऽहम का उ चारण करना
चािहए तािक गो म ''क यप गो कहना चािहए। ी करे तो ''अमुक देवी कहे ।
3. जहाँ वैिदक म है, उनका उ चारण नह करना चािहए। उनके थान पर नाम-म को बोलकर
ि या पूरी कर लेनी चािहए।
4. जहाँ वैकि पक पौरािणक म न हो, वहाँ आम क सभी िकयाएँ होगी अथात् िबना म बोले ा
क स पूण ि या स प न होगी ।
5. प वा न क जगह अमा न से ा करना चािहए। िप ड़दान आिद का काय भी आमा न (जौ के आटे
अथवा चावल आिद से करने क िविध है) तथा ा ण-भोजन म भी आमा न (अप व भोजन साम ी)
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ा के िनिम भोजन तैयार होने पर एक थाली म पाँच जगह थोड़े-थोड़े सभी कार के भो य-पदाथ परोसकर
हाथ म जल, अ त, पु प, च दन लेकर िन िलिखत सङ् क प करे :-
3. काक हेतु बिल (पृ वी पर) :- अपस य (उ रािभमुख) होकर िन निलिखत म पढ़कर कौओं को भूिम
पर अ न देवे -
4. देवताओं हेतु बिल (प े पर) :- स य होकर िन निलिखत म पढ़कर देवता आिद के िलए अ न देवे -
5. िपपीिलका हेतु बिल (प े पर) :- इसी कार िन िलिखत म से च टी आिद को बिल देवे -
प चबिल देने के बाद एक थाली म सभी पकवान परोसकर अपस य और दि णािभमुख होकर िन सङ् क प
करे - अ अमुक गो : अमुक शमाऽहममुकगो य मम िपतु : (िपतामह य मातु : वा) वािषक ा े
(महालय ा े वा) अ यतृ यथिमदम नं त मै (त यै वा) वधा ।
उपयु सङ् क प करने के बाद 'ऊँ इदम नम्, 'ऊँ इमा आप:, 'ऊँ इदमा यम्, 'ऊँ इदं हिव: इस कार बोलते हए
अ न, जल, घी तथा पुन: अ न को दािहने हाथ के अङ् गु से पश करे ।
ा ण भोजन का सङ् क प :- अ अमुकगो : अमुकोऽहं मम िपतु : (मातु : वा) वािषक ा े यथासं यकान्
ा णान् भोजिय ये।
प चबिल िनकालकर कौओं के िनिम िनकाला गया अ न कोएं को, कु े का अ न कु े को, देवताओं का
अ न देवताओं को, च िटय का अ न च िटय को तथा गाय का अ न गाय को देने के बाद िन िलिखत म से
ा ण के पैर धोकर भोजन कराय।
इसके बाद उ ह अ न, व और य-दि णा देकर ितलक करके नम कार करे , त प ात् नीचे िलखे वा य
यजमान व ा ण दोन बोले -
इसके बाद अपने प रवार वाल के साथ वयं भी भोजन करे तथा िन म ारा भगवान को नम कार कर -
6. अनुक प :- िवक प ।
10. अपस य :- जनेऊ तथा उपव को दािहने क धे के ऊपर डालकर बाय हाथ के नीचे कर लेना ।
12. अवनेजन :- ा म िप ड़ थान को पिव करने के िलए िपतृतीथ से वेदी पर िदया जाने वाला जल ।
14. आ युदियक ा :- िववाह आिद माङ् गिलक अवसर पर ार भ म िकया जाने वाला ा , यह
वृि ा या ना दी ा भी कहलाता है ।
17. उ मषोडशी :- सिप ड़न के पूव तथा एक वष पय त िदये जाने वाले ऊनमािसकािद सोलह िप ड़।
19. उदकाल भन :- जल पश ।
20. उ ापन :- त आिद स कम क स प नता के िलए िकया जाने वाला पूजा-अनु ान।
22. एकोि :- िपता आिद के वल एक यि के उ े य से िकया जाने वाला ा , यह िव ेदवे रिहत होता
है । इसम आवाहन तथा अ नौकरण ि या नह होती है। एक िप ड़, एक अघ तथा एक पिव क होता है
।
24. करो तन :- पूजा म नैवे -अपण के बाद दोन हाथ क अनािमका-अङ् गु से च दन का समपण ।
29. कु तप :- िदनमान म कु ल 15 मुह होते है, उनम कु तप आठवाँ मुह है। कु - कु ि सत (पाप) + तप
(स त ) अथात् पाप को स त करने के कारण यह समय कु तप (िदन म 11 बजकर 36 िमनट से 12
बजकर 24 िमनट तक का समय) कहलाता है। खड् गपा (गडे के स ग से बना पा ), नेपाली क बल,
रजत, कु श, ितल, जौ और दोिह (पु ी का पु ) - ये आठ कु तप कहलाते है ।
30. कु शकि ड़का :- हवन से पूव वेदी का िकया जाने वाला कु शा तरण आिद सं कार ।
34. गोपु छोदक :- गाय क पुं छ के मा यम से तपण आिद म िदया जाने वाला जल ।
40. ितलतोया जिल :- मृ यु के उपरा त ाणी के िनिम अ जिल ारा ितलसिहत जल दान करना ।
42. दश :- अमाव या ।
46. नारायण बिल :- शा ो िविध से मृ यु न होने पर दुगित से बचने के िलए िकया जाने वाला ायि
अनु ान ।
53. पिव ी :- कु शा से बनायी हई िवशेष कार क अं गठू ी जो िक अनािमका म धारण क जाती है।
60. िपतृतीथ :- अं गठू े और तजनी अङ् गुली के बीच का थान िपतृतीथ कहलाता है। िपतर के उ े य से
य याग इसी िपतृतीथ से िकया जाता है।
63. ाजाप यतीथ :- किनि का अङ् गुली मूल के पास का थान, इसका उपयोग ऋिष तपण म होता है ।
64. म यषोड़शी :- एकादशाह के िदन िव णु आिद देवताओं तथा ेत के िनिम िकया जाने वाला सोलह
िप ड़दान ।
72. रे चक :- ास छोड़ना।
73. रौिहण :- िदन का नवम् मुह (िदन म 12:24 से 01:12 अथातï◌् 48 िमनट)।
76. िविकरदान :- िजन क जलने से मृ यु हो गयी हो अथवा िजनका दाह-सं कार नह हआ हो, उनके
िनिम ा म िदया जाने वाला अ न।
77. षोड़शोपचार :- पा , अघ, आचमन, नान, व , आभूषण, ग ध, पु प, धूप , दीप, नैवे , आचमन,
ता बूल , तवपाठ और नम कार ।
78. सङ् गव :- ात: काल के प ात् तीन मुह तक (िदन म 08:24 से 10:48 तक अथात् 02 घ टा 24
िमनट) ।
82. सिप ड़ीकरण :- मृत ाणी को िपतर क पं ि म सि मिलत करने हेतु िवशेष कार क िप डदान
ि या ।
84. साङ् गतािसि :- कम के सभी अङ् ग क पूणता के िलए िकया जाने वाला सङ् क प ।
13.5. सारां श
यो य व अयो य कमकता, ा म िकये जाने वाले महादान, प चसू नाजिनत दोष प रहार के िलए प चबिल का
िवधान तथा ा कम म पा रभािषक श द का ान ा हआ। ा म तपण आिद के प ात् िपतर को भोग
लगाकर वेदपाठी ा ण, ऋि वग्, दामाद, िश य आिद को ापूवक भोजन कराना चािहए, यह
अ यफलदायी होता है।
13.6. श दावली
- 1 : ा िकसे कहते ह ?
- 2 : क यागत श द से या ता पय है ?
उ र : ेत को िपतर के साथ िमलाने के िलए जो ा िकया जाता है, उसे सिप ड़न ा कहते है।
उ र : िववाह, स तान आिद माङ् गिलक काय से पूव वृि ा िकया जाता है ।
- 1 : ा क िववेचना क िजये ?
13.9. स दभ थ