Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 48

rakesh.

sharma@yog2017
01

घय भें मोग का वातावयण फनामे.


१५ मभननट घय के सबी सदस्म मोग को सभर्ऩित कये .
हभ क्मा कयें .......
rakesh.sharma@yog2017
भोहल्रे भें मोग का वातावयण फनामे.
१५ मभननट ककसी उद्मान भें सबी ऩडोसी एकत्रित हो कय मोग
हभ क्मा कयें ....... कये . rakesh.sharma@yog2017
अऩने संस्थान भें मोग का वातावयण फनामे.
१५ मभननट रघु अवकाश भें सबी कभिचारयमों को मोग का अभ्मास
हभ क्मा कयें ....... कयामे. rakesh.sharma@yog2017
२१ जन
ू को र्वश्व मोग ददवस ऩय हभ बी मोग का कामिक्रभ
आमोजजत कये .
हभ क्मा कयें ....... अथवा ककसी न ककसी कामिक्रभ भें सहबागीrakesh.sharma@yog2017
हो.
चर्चित स्थर अथवा ऩमिटन स्थर ऩय मोग मशर्वय २१ जन ू को
हभ क्मा कयें ....... करयमे एवं पोटो पेसफुक ऩय अवश्म रोड कये .
rakesh.sharma@yog2017
छािों हे तु र्वद्मारम भें अवश्म कामिक्रभ संऩन्न हो.
हभ क्मा कयें ....... १५ मभननट प्रनतददन मशऺक बी मोग कये . rakesh.sharma@yog2017
मोग का सादहत्म अध्ममन कये . जजससे मोग र्वषमक ठीक
हभ क्मा कयें ....... जानकायी रोगो तक ऩंहुचा सके. rakesh.sharma@yog2017
प्रत्मेक र्वद्माथी को मोग एवं सम
ू न
ि भस्काय के प्रनत रूर्च जागत

कयने का प्रमास कये . एवं वैऻाननक र्वर्ध से इनके राबों से उन्हें
हभ क्मा कयें ....... अवगत कयामे . rakesh.sharma@yog2017
बायत से अच्छे मोग मशऺक ननकरे इस हे तु मोग्म रोगो को
हभ क्मा कयें ....... प्रेरयत कये . rakesh.sharma@yog2017
मोग एक प्राचीन बायतीम जीवन-ऩद्धतत
है , जजसभें मोग के भाध्मभ से शयीय,
भन औय भजततष्क को ऩूर्ण रूऩ से
तवतथ ककमा जा सकता है । तीनों के
तवतथ यहने से आऩ तवमॊ को तवतथ
भहसस ू कयते हैं। मोग से आऩका शयीय
तनयोग व तवतथ यहता है । मोग से
आऩके शयीय को तो आयाभ मभरता ही
है , साथ ही ददभागी सुकून बी मभरता
है । तनममभत मोग कयने से आऩका
चचत्त प्रसन्न यहता है औय काभ के
चरते होने वारा चचड़चचड़ाऩन दयू होता
है ।

rakesh.sharma@yog2017
मोग से आऩका शयीय ननयोग व स्वस्थ यहता है ।
ननममभत मोग कयने से आऩका र्चत्त प्रसन्न यहता है ।

rakesh.sharma@yog2017
rakesh.sharma@yog2017
rakesh.sharma@yog2017
rakesh.sharma@yog2017
rakesh.sharma@yog2017
rakesh.sharma@yog2017
rakesh.sharma@yog2017
सम्ऩण
ू ि र्वश्व बायत के मोग
आज है २१ जन
ू को अऩना यहा है ...
rakesh.sharma@yog2017
rakesh.sharma@yog2017
rakesh.sharma@yog2017
rakesh.sharma@yog2017
rakesh.sharma@yog2017
शीषािसन : मसय के फर ककए
जाने की वजह से इसे शीषाणसन
कहते हैं। इससे ऩाचनतॊत्र ठीक
यहता है साथ ही भजततष्क भें
यक्त सॊचाय फढ़ता है , जजससे
की तभयर् शजक्त सही यहती है ।

rakesh.sharma@yog2017
कदटचक्रासन : कदि का अथण कभय
अथाणत कभय का चक्रासन। मह
आसन खड़े होकय ककमा जाता है ।
इससे कभय, ऩेि, कूल्हे को तवतथ
यखता है । इससे कभय की चफी
कभ होती है ।

rakesh.sharma@yog2017
ऩादहस्तासन : इस आसन भें हभ
अऩने दोनों हाथों से अऩने ऩैय के
अॊगठ ू े को ऩकड़ते हैं, ऩैय के िखने
बी ऩकड़े जाते हैं। चॊकू क हाथों से
ऩैयों को ऩकड़कय मह आसन ककमा
जाता है इसमरए इसे ऩादहततासन
कहा जाता है । मह आसन खड़े
होकय ककमा जाता है ।

rakesh.sharma@yog2017
ताडासन : इससे शयीय की जतथतत
ताड़ के ऩेड़ के सभान यहती है ,
इसीमरए इसे ताड़ासन कहते हैं। मह
आसन खड़े होकय ककमा जाता है ।
इस आसन को तनममभत कयने से
ऩैयों भें भजफूती आती है ।

rakesh.sharma@yog2017
र्वऩयीत नौकासन : नौकासन
ऩीठ के फर रेिकय ककमा जाता
है , इसभें शयीय का आकाय
नौका के सभान प्रतीत होती है ।
इससे भेरुदॊ ड को शजक्त मभरती
है । मौन योग व दफ ु र
ण ता दयू
कयता है । इससे ऩेि व कभय
का भोिाऩा दयू होता है ।

rakesh.sharma@yog2017
हरासन : हरासन भें शयीय का
आकाय हर जैसा फनता है ,
इसीमरए इसे हरासन कहते हैं।
इस आसन को ऩीठ के फर
रेिकय ककमा जाता है । हरासन
हभाये शयीय को रचीरा फनाने के
मरए भहत्वऩर्
ू ण है ।

rakesh.sharma@yog2017
सवाांगासन : इस आसन भें सबी अॊगो
का व्मामाभ होता है , इसीमरए इसे
सवाांगासन कहते हैं। इस आसन को
ऩीठ के फर रेिकय ककमा जाता है ।
इससे दभा, भोिाऩा, दफ ण ता एवॊ
ु र
थकानादद ववकाय दयू होते है ।

rakesh.sharma@yog2017
शवासन : शवासन भें शयीय
को भदु े सभान फना रेने के
कायर् ही इस आसन को
शवासन कहा जाता है । मह
ऩीठ के फर रेिकय ककमा
जाता है औय इससे शायीरयक
तथा भानमसक शाॊतत मभरती
है ।

rakesh.sharma@yog2017
भमूयासन : इस आसन को
कयते सभम शयीय की आकृतत
भोय की तयह ददखाई दे ती है ,
इसमरए इसका नाभ भमयू ासन
है । इस आसन को फैठकय
सावधानी ऩव ू कण ककमा जाता
है । इस आसन से वऺतथर,
पेपड़े, ऩसमरमाॉ औय प्रीहा
को शजक्त प्राप्त होती है ।

rakesh.sharma@yog2017
ऩजश्चभोत्तनासन : इस आसन को
ऩीठ के फर ककमा जाता है । इससे
ऩीठ भें खखॊचाव होता है , इसीमरए
इसे ऩजचचभोत्तनासन कहते हैं।
इस आसन से शयीय की सबी
भाॊसऩेमशमों ऩय खखॊचाव ऩड़ता है ।
जजससे उदय, छाती औय भेरुदॊ ड
की कसयत होती है ।

rakesh.sharma@yog2017
वक्रासन : वक्रासन फैठकय ककमा
जाता है । इस आसन को कयने
से भेरुदॊ ड सीधा होता है । इस
आसन के अभ्मास से रीवय,
ककडनी तवतथ यहते हैं।

rakesh.sharma@yog2017
भत्स्मासन : इस आसन भें
शयीय का आकाय भछरी
जैसा फनता है , इसमरए
मह भत्तमासन कहराता
है । मह आसन से आॊखों
की योशनी फढ़ती है औय
गरा साप यहता है ।

rakesh.sharma@yog2017
सप्ु त-वज्रासन : मह आसन
वज्रासन की जतथतत भें सोए
हुए ककमा जाता है । इस आसन
भें ऩीठ के फर रेिना ऩड़ता
है , इमसमरए इस आसन को
सप्ु त-वज्रासन कहते है , जफकक
वज्रासन फैठकय ककमा जाता
है । इससे घि ु ने, वऺतथर औय
भेरुदॊ ड को आयाभ मभरता है ।

rakesh.sharma@yog2017
वज्रासन : वज्रासन से जाघें
भजफत ू होती है । शयीय भें यक्त
सॊचाय फढ़ता है । ऩाचन कक्रमा के
मरए मह फहुत राबदामक है ।
खाना खाने के फाद इसी आसन
भें कुछ दे य फैठना चादहए।

rakesh.sharma@yog2017
ऩद्मासन : इस आसन से यक्त
सॊचाय तेजी से होता है औय उसभें
शद्ध
ु ता आती है । मह तनाव हिाकय
चचत्त को एकाग्र कय सकायात्भक
ऊजाण को फढ़ाता है ।

rakesh.sharma@yog2017
हभ क्मा कयें ....... न्मन
ू तभ १६ आसन के नाभ एवं उनके राबों से ऩरयर्चत हो.
rakesh.sharma@yog2017
घय भें मोग का वातावयण फनामे.
१५ मभननट घय के सबी सदस्म मोग को सभर्ऩित कये .
हभ क्मा कयें .......
rakesh.sharma@yog2017
भोहल्रे भें मोग का वातावयण फनामे.
१५ मभननट ककसी उद्मान भें सबी ऩडोसी एकत्रित हो कय मोग
हभ क्मा कयें ....... कये . rakesh.sharma@yog2017
अऩने संस्थान भें मोग का वातावयण फनामे.
१५ मभननट रघु अवकाश भें सबी कभिचारयमों को मोग का अभ्मास
हभ क्मा कयें ....... कयामे. rakesh.sharma@yog2017
२१ जन
ू को र्वश्व मोग ददवस ऩय हभ बी मोग का कामिक्रभ
आमोजजत कये .
हभ क्मा कयें ....... अथवा ककसी न ककसी कामिक्रभ भें सहबागीrakesh.sharma@yog2017
हो.
२१ जन
ू को र्वश्व मोग ददवस ऩय हभ बी मोग का कामिक्रभ
आमोजजत कये .
हभ क्मा कयें ....... अथवा ककसी न ककसी कामिक्रभ भें सहबागीrakesh.sharma@yog2017
हो.
हभ क्मा कयें .......
घय से ननकरो बाई आज मोग ददवस है ..
आज ककसी न ककसी मोग मशर्वय भें जा यहे है न....
rakesh.sharma@yog2017
rakesh.sharma@yog2017
समू ि नभस्काय : समू ण नभतकाय कयने से
शयीय तनयोग औय तवतथ होता है । सूमण
नभतकाय की दो जतथततमाॊ होती हैं- ऩहरे
दाएॊ ऩैय से औय दसू या फाएॊ ऩैय से।

rakesh.sharma@yog2017
rakesh.sharma@yog2017

You might also like