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PAPER-IV

Clinical & Community Intervention


MA FINAL

AKANKSHA DUBEY

2019

SANJAY SERIES
Ques-1 नैदाननक मनोनिज्ञान के इनिहास का संनिप्त िर्णन प्रस्तुि कीनिये ? नैदाननक मनोनिज्ञान की उत्पनि
में पूिणििी कारकों की भूनमका स्पष्ट कीनिये ?

Ans-

Ques-2 नैदाननक मनोनिज्ञान की समस्याएँ बिाइये ?

Ans-
Ques-3 माननसक संरचना : (उपाहं ,अहम् िथा पराहं ) की सनिस्तार व्याख्या कीनिये ?

Ans-
Ques-4 दु नचंिा एिं रिा प्रक्रम पर निप्पर्ी कीनिये ?

Ans-

Ques-5 मनोदै नहक निकृनि के प्रकारों की व्याख्या कीनिये ?

Ans-
Ques-6 माननसक दु बणलिा क्या है ? इसकी िनभन्न निशेषिाओं का िर्णन कीनिये ?

Ans-
Ques-6 माननसक दु बणलिा के निनभन्न स्तरों की व्याख्या कीनिये ? साथ ही बुद्धि की कसौिी के आधार पर
माननसक दु बणलिा की व्याख्या कीनिये ?

Ans-
Ques-7 माननसक दु बणलिा के सामान्य कारर्ों की व्याख्या कीनिये ?

Ans-
Ques-8 नैदाननक मूल्याङ्कन के अथण की व्याख्या कीनिये ?

Ans-
Ques-9 नैदाननक मूल्याङ्कन के ित्ों की व्याख्या करिे हुए इसके इसकी योिना को समझाइये ?

Ans-
Ques-10 नैदाननक सािात्कार की निश्वसनीयिा एिं िैधिा को समझाइये ?

Ans-
Ques-11 नैदाननक सािात्कार की निश्वसनीयिा एिं िैधिा को उिम बनाने हे िु महत्पूर्ण सुझाि दीनिये ? िथा
नैदाननक सािात्कार के गुर् ि दोषों की नििेचना कीनिये ?

Ans-
Ques- 12 न्यूनिम मद्धस्तष्क दु द्धिया के संप्रत्यय की व्याख्या करिे हुए न्यूरोमनोिैज्ञननक मूल्याङ्कन की प्रनिनधयों
का िर्णन कीनिये ?

An
Ques-13 व्यिसानयक स्विंत्रिा से क्या आशय है ?

Ans-
Ques- 14 मनोदै नहक हृदयिानहका निकृनियों की व्याख्या करिे हुए ननम्ां नकि निकृनियों का िर्णन कीनिये ?
1. ह्रदय गनि में िृद्धि
2. एद्धजिनल संलिर्
3. उच्च रक्तचाप या आिश्यक हाइपरिें शन

Ans-
Ques-15 निप्पर्ी कीनिये ?

(क). न्यूरोडमेिोनसस

(ख). खरोचना ि खुिलाना

Ans-
Ques-16 परामशण क्या है ? निशेषिाएं एिं अिधारर्ाओं सनहि िर्णन कीनिये ?

Ans- नकसी व्यद्धक्त की व्यद्धक्तगि समस्याओं एिं कनिनाइयों को दू र करने के नलये दी िाने िाली सहायिा,
सलाह और मागणदशणन, परामर्श (Counseling) कहलािा है । परामशण दे ने िाले व्यद्धक्त को परामशणदािा
(काउन्सलर) कहिे हैं । ननदे शन (गाइडें स) के अन्तगणि परामशण एक आयोनिि निनशष्ट सेिा है । यह एक
सहयाेे गी प्रनक्रया है । इसमें परामशणदािा सािात्कार एिं प्रेिर् के माध्यम से सेिाथी के ननकि िािा है उसे
उसकी शद्धक्त ि सीमाओं के बारे में उसे सही बोध करािा है ।

पररभाषा - है रनमन के अनुसार- परामशण मनोपचारात्मक सम्बन्ध है निसमें एक प्राथी एक सलाहकार से प्रत्यि
सहायिा प्राप्त करिा है या नकारात्मक भािनाओं को कम करने का अिसर और व्यद्धक्तत् में सकारात्मक
िृद्धि के नलये मागण प्रशस्त होिा है । मायसण ने नलखा है - परामशण से अनभप्राय दो व्यद्धक्तयों के बीच सम्बन्ध है
निसमें एक व्यद्धक्त दू सरे व्यद्धक्त को एक निशेष प्रकार की सहायिा करिा है । निनल एिं एण्ड्र ने कहा नक
परामशण पारस्पररक रूप से सीखने की प्रनक्रया है । इसमें दो व्यद्धक्त सद्धिनलि होिे है सहायिा प्राप्त करने
िाला और दू सरा प्रनशनिि व्यद्धक्त िो प्रथम व्यद्धक्त की सहायिा इस प्रकार करिा है नक उसका अनधकिम
निकास हो सकें। ब्रीिर ने परामशण को बािचीि करना, निचार-निमशण करना िथा नमत्रिापूिणक िािाण लाप करना
बिाया है ।

परामर्श की विर्ेषताएँ

 (1) परामशण मूलिः समस्यापरक होिा है ।


 (2) यह दो व्यद्धक्तयों के मध्य िािाण लाप का एक स्वरूप है ।
 (3) परामशण का मूल परस्पर निश्वास है ।
 (4) परामशण क परामशे च्छु को उसके नहि में सहायिा प्रदान करिा है ।
 (5) मैत्रीपूर्ण अथिा सौहादण पूर्ण िािािरर् में परामशण अनधक सफल होिा है ।
 (6) िे॰ ए॰ केलर कहिा है नक परामशण का सम्बन्ध अनधगम से होिा है । निस प्रकार अनधगम से
व्यद्धक्त के आचरर् में पररमािणन होिा है उसी प्रकार परामशण से भी व्यद्धक्त के आचरर् में पररमािणन
होिा है ।
 (7) परामशण, सम्पूर्ण ननदे शन (गाइडें स) प्रनक्रया का एक सशक्त अंश है ।
 (8) परामशण का स्वरूप प्रिािाद्धिक होिा है । परामशेच्छु परामशणक के सिुख अपने निचार रखने में
स्विि रहिा है ।
 (9) परामशण का आधार प्रायः व्यािसानयक होिा है ।

परामर्श की अिधारणायें
परामशण की सफलिा इसकी मूलभूि अिधारर्ा से ही सम्बद्धन्धि है । ए॰िे॰ िोन्स ने चार मूलभूि धारर्ाओं को
ही इसकी सफलिा के नलये आिश्यक बिाया है ।

 1. परामशण प्रनक्रया को सं चानलि करने हे िु िािािरर् का अनुकूलन इसके अनिररक्त िािािरर् में
गोपनीयिा भी होनी चानहये निससे नक प्राथी सहि अनुभि करें और सूचनायें प्रदान करें ।
 2. परामशण की प्रनक्रया में िब िक निद्याथी स्वयं इच्छा सें भाग नहीं लेिा, सफल नहीं हो पािा है ।
प्राथी की स्वयं की इच्छा उसे पूरा सहयोग प्रदान करने हे िु प्रेररि करिी है ।
 3. परामशणदािा के नलये आिश्यक है िह उपयु क्त प्रनशिर् अनुभि ि व्यद्धक्तगि दृनष्टकोर् िाला हो
इसके साथ ही िह इस प्रनक्रया के प्रनि रूनच रखने िाला और समनपणि हो निससे िह प्राथी के साथ
सहििा पूिणक सम्बन्ध स्थानपि कर ननधाण ररि उद्दे श्यों एिं लक्ष्ों को प्राप्त करिे हुये समस्या समाधान
करने में सहायिा दें ।
 4. परामशण ऐसा सम्बन्ध प्रदान करें िो िात्कानलक ि दीर्णकानलक आिश्यकिाओं की पूनिण कर सके।
परामशण उस समय उपलब्ध हो िब उसकी आिश्यकिा हो।

नननचि है नक परामशणक अनुभियुक्त िथा परामशण की प्रनक्रया से अिगि रहिा है । उसकी श्रेष्ठिा परामशेच्छु
अथिा सेिाथी पर स्विः नसि होिी है । इसी क्रम को आगे बढािे हुए सन् 1954 ई॰ में िेलबगण ने परामशण एिं
सािात्कार में समानिा नसि करने का प्रयास नकया और कहा नक परामशण एक प्रकार का सािात्कार ही है
निसमें सेिाथी को ऐसी सहायिा दी िािी है नक िह अपने को अनधक से अनधक ढं ग से समझ सके और
अपनी कनिनाइयों से समायोिन स्थानपि कर सके। मायसण ने परामशण के प्रत्यय को व्यापक बनाने का प्रयास
नकया है निसका नननहिाथण यह है नक मात्र व्यिसाय के नलए नहीं िरन् िीिन की नकसी भी समस्या के
समाधान हे िु िो िैचाररक सहायिा दी िािी है िह परामशण होिी है ।

Ques-17 परामशण के निनभन्न प्रकारों को समझाइये ?

Ans- कुछ निद्वानों ने परामशण के अन्य िीन प्रकारों का उल्लेख नकया है यथा-

1. विदे र्ात्मक परामर्श - इस प्रकार के परामशण में परामशणक ही सम्पूर्ण प्रनक्रया का ननर्ाण यक होिा है ।
प्रत्याशी परामशणदािा के ओदशों के अनुकूल अपने को ढालिा है । इसे कभी-कभी आदे शात्मक परामशण
भी कहिे हैं । इस नक्रया के मूल में परामशणक ही रहिा है ।
2. अविदे र्ात्मक परामर्श -इस प्रकार के परामशण मे परामशणप्राथी का निशेष महत् होिा है । इसमें िह
अपनी समस्या प्रस्तुि करने िथा समस्या के समाध ेाेान की प्रनक्रया में नबना नकसी शंका या सं कोच
के परामशणक से राय माँ गिा है । इसे सेिाथी-केद्धिि परामशण कहिे हैं । इसकी निषद व्याख्या आगे की
िाएगी।
3. समन्वित परामर्श -इसमें परामशणक न अनि सनक्रय रहिा है और न अनि उदासीन रहिा है । उसकी
भूनमका अत्यन्त मधुर एिं मुलायम होिी है ।

1 . विदे र्ात्मक परामर्श -


निनलयम्सन (1950) नामक निद्वान इसका िनक माना िािा है । उसके अनुसार ननदे शात्मक परामशण में
िानकणकिा एिं प्रभाि दोनों को ध्यान में रखा िािा है । उसने परामशण को एक प्रभािकारी सम्बन्ध माना है
और बल नदया है नक इस में बहस, निश्लेशर्, िकण-नििकण आनद सद्धिनलि रहिा है नकन्तु यह परामशण नकसी
भी प्रकार औपचाररक नहीं होने पािा। इस प्रकार के परामशण का नसिान्त निनलयम्सन ने व्यािसानयक परामशण
से नलया और बाद में इसका समन्वयन शैनिक एिं व्यद्धक्तत् सम्बन्धी ननदे शन से कर नदया। यह परामशण
सािात्कार एिं प्रश्नािली पिनि से नदया िािा है निनल एि एण्ड्र ने अपनी पुस्तक ‘‘माडनण मेथड् स एण्ड्
िे द्धिकस इन गाइडें स’’ में विदे र्ात्मक परामर्श की विम्न विर्ेषताएँ बतायी हैं :

1. परामशणदािा अनधक योग्य, प्रनशनिि, अनुभिी एिं ज्ञानी होिा है िह अच्छा समस्या समाधान दे सकिा
है ।
2. परामशण एक बौद्धिक प्रनक्रया है ।
3. परामशण प्राथी पिपाि ि सूचनाओं के अभाि में समस्या ननदान नहीं कर सकिा।
4. परामशण का उद्दे श्य समस्या समाधान अिस्था माध्यम से ननधाण ररि नकये िािे हैं ।

विदे र्ात्मक परामर्श की मूलभूत मान्यताएँ -

1. इस परामशण का उद्दे श्य सेिाथी के व्यद्धक्तत् का अनधकिम निकास है ।


2. प्रत्येक व्यद्धक्त की कुछ निनशष्टिाएँ होिी हैं । निनका निकास समाि में रहकर ही हो सकिा है ।
3. परामशण स्वैद्धच्छक होिा है ।
4. परामशण की प्रकृनि उपचारात्मक होिी है । यह िभी उपलब्ध कराया िािा है िब समस्या उत्पन्न होिी
है ।
5. परामशण में मूल्यां कन की व्यिस्था नही होिी।
6. परामशणदािा की दृनष्ट प्राथी की समस्याओं िथा िैयद्धक्तक निकास पर केिीि रहिा है ।
7. परामशण प्राथी को सिान नदया िािा है ।

विदे र्ात्मक परामर्श प्रविया में विवहत सोपाि-

1. विश्लेर्षात्मक-इसके अन्तगणि सिणप्रथम व्यद्धक्त के मूल्याकंन हिे ेु परामशणदािा व्यद्धक्त से सम्बद्धन्धि


सूचनाएँ एिं आँ कडे एकत्र करिा है । इसके अनिररक्त िह संकनलि अनभलेख, सािात्कार एिं अन्य लोगों
की मदद भी लेिा है । प्रदि्ेाेोें के निश्लेषर् हे िु नचनकत्सीय मनोनमि् ेाेीय एिं पाश्र्िनचत्र का प्रयोग
नकया िािा है ।
2. संश्लेषण-निनलयम्स के अनुसार प्राथी से सम्बद्धन्धि आँ कडाा़ेेें एिं सूचनाओं को समझिे हुए उसको
सारां श रूप में प्रस्तुि करने की नक्रया पर बल नदया िािा है । इसके नलए प्रत्याशी से सािात्कार, िािाण
एिं संगोश्िी करके िथ्ों को इकट्ठा नकया िािा है ।
3. विदाि-परामशणप्राथी की समस्याओं की पहचान इस स्तर पर की िािी है । समस्या के कारर्ों िक
पहुेचने का भी प्रयास नकया िािा है ।
4. पूिाशमाि-इस सोपान में प्रत्याशी की समस्याओं के सम्बन्ध में पूिण कथन नकये िािे हैं । इसका स्वरूप
मूलि: पररकल्पनात्मक होिा है ।
5. परामर्श -ननदे शात्मक परामशण में प्रयुक्त प्राय: यह अद्धन्तम सोपान हैं निसमें प्रत्याशी से िानकारी प्राप्त
करके समस्या का समाधान नकया िािा है ।
6. अिुगमि-इस स्तर पर प्रत्याशी को नदये गये परामशण का पुनव्र्यिस्थापन नकया िािा है । निनलयम्सन ने
अनुगमन हे िु कई सोपानों की चचाण की है , िैसे प्रत्याशी से सम्पकण करना, प्रत्याशी में आत्म-निश्वास
उत्पन्न करना, प्रत्याशी को ननदे शि करना नक िह अपना मागण स्वयं ननधाण ररि कर ले, उसकी समस्याओं
की निषद् व्याख्या करना आनद। यनद आिश्यकिा हो िो प्रत्याशी को अन्य सिम कायणकि्णेाेाओं के
पास भी भेिा िा सकिा है ।
1. निनलयम्सन एिं डाले ने अपनी पुस्तक ‘‘स्टू डे न्टस परसनेल िकण’’ में ननम् सोपानों का स्पश्ट
उल्लेख नकया है :
2. निनभन्न निनधयों िथा उपकरर्ों के माध्यम से आँ कडे संग्रनहि कर उनका निश्लेषर् करना।
3. आँ कडों का याद्धिक ि आकृनिक संगिन कर उनका संश्लेषर् करना ।
4. छात्र की समस्या के कारर्ों को ज्ञाि कर ननदान ज्ञाि करना।
5. परामशण या उपचार।
6. मूल्यां कन या अनुगमन।

विदे र्ात्मक परामर्श के लाभ-

1. इस प्रकार के परामशण से समय की बचि होिी है ।


2. इस में समस्याओं पर निशेष बल नदया िािा है ।
3. परामशणदािा िथा प्राथी में आमने-सामने बाि होिी है ।
4. परामशणदािा का ध्यान प्रत्याशी की भािनाओं की अपेिा उसकी बुद्धि पर निकिा है ।
5. परामशणदािा सहि रूप में उपलब्ध रहिा है ।

विदे र्ात्मक परामर्श की कवमयाँ

1. प्रत्याशी पूर्णिया परामशण क पर ननभणर रहिा है ।


2. प्रत्याशी के स्विि न होने के कारर् उस पर परामशण का प्रभाि कम पडिा है ।
3. प्रत्याशी के दृनष्टकोर् का निकास न हो पाने के कारर् िह अपनी समस्या का ननराकरर् स्वयं नहीं
कर पािा।
4. परामशणदािा के प्रधान होने से प्राथी में अपनी िमिाओं को उत्पन्न करना कनिन हो िािा है ।
5. प्रत्याशी के निषय में अपेनिि सूचनाओं के अभाि में उि्ेाम परामशण नहीं नमल पािा।
6. परामशणदािा के अनधक महत् से मनोिैज्ञाननक प्रनक्रया नही हो पािी।

2. अविदे र्ात्मक परामर्श -

ननदे शात्मक परामशण के प्रनिकूल यह प्रत्याशी केद्धिि परामशण है । इसमें प्राथी के आत्मज्ञान, आत्मनसद्धि िथा
आत्मननभणरिा पर निशेष दृनष्ट रखी िािी है । इसे समस्या-केद्धिि परामशण भी कहा िािा है । इस प्रकार के
परामशण के प्रमुख प्रििणक कालण रोिसण माने िािे हैं । यह परामशण अपेिाकृि निीन है और इसके अन्तगणि
व्यद्धक्तत् निकास, समूह-नेिृत्, नशिा एिं अनधगम, सृिनात्मक आनद सद्धिनलि है । परामशणक ऐसे िािािरर् का
सृिन करिा है निसमें सेिाथी स्विि रूप से इच्छानुसार अपना ननमाण र् कर सके।

यह परामशण प्राथी के इदण -नगदण र्ूमिी हैं । इसमें प्राथी को आत्मप्रदशणन, भािनाओं, निचारों एिं अनभिृनि यों को
रखने के नलये स्विििा दी िािी है । परामशण दािा ननरपेि रहिा है । िह बीच में बाधक नहीं बनिा और स्वयं
दोनों के मध्य बेहिर समन्वयन का प्रयास करिा है । इसमें खुले प्रश्न पूछे िािे हैं और ये प्रश्न हल्की संरचना
के होिे है । उिर परामशण प्राथी स्वयं दे िा है । परामशणदािा प्राप्त िानकारी का निश्लेषर् कर अथण ननकालिा
है । प्राथी को बोलिे समय सही निधा के नलये प्रोत्सानहि नकया िािा है और प्राथी को आभास होिा है नक
परामशणदािा उसके निचारों को सिान दे रहा है । परामशणदािा सत्य को िानने हे िु प्रश्न नहीं पूछिा। इस
प्रनक्रया में सभी को प्रनशनिि मनोिैज्ञाननक की िरह ही अनधकार होिा है और प्राथी स्वयं निद्वान िथा
समझदार की िरह ही प्रनिनक्रया करिा है ।

अविदे र्ात्मक परामर्श की मान्यताएँ

1. व्यद्धक्त के अद्धस्तत् में आस्था-रािे सण व्यद्धक्त के अद्धस्तत् को मानिा है और उसका यह निश्वास है नक


व्यद्धक्त अपने निषय में ननर्णय लेने में सिम है ।
2. आत्मनसद्धि की प्रिृनि -प्रत्याशी में आत्मनसद्धि, आत्मनिकास िथा आत्मननभणरिा की प्रिृनि होिी है ।
रोिसण यह मानिे हैं नक व्यद्धक्त की अन्तननणनहि िमिा होिी है ।
3. मानििा में निश्वास-मनुश्य मूलि: सद्भािी िथा निश्वसनीय होिा है । कभी-कभी व्यद्धक्त के िीिन में
ऐसी उिेिना उभरिी है िो उसे सन्मागण से दू र हिाने का प्रयास करिी है । ऐसी द्धस्थनि में परामशण के
माध्यम से उनका शमन नकया िािा है और व्यद्धक्त को सन्मागोन्मुख नकया िािा है ।
4. मानि की बुद्धिमिा में निश्वास-इस नननमि्ेा रािे सण व्यद्धक्त की बुद्धिमिा में अनधक निश्वास रखिा
है । उसकी मान्यिा है नक निशम पररद्धस्थनियों में िह अपनी चैिन्यिा का प्रयोग करिा है और सं गिन
से ऊपर उि कर अपनी कायणनसद्धि करिा है ।

उपयुणक्त के अनिररक्त निनलयम स्नाइडर ने चार अन्य मान्यिाओं को स्वीकृनि दी है -

1. व्यद्धक्त अपने िीिन का लक्ष् स्वयं ननधाण ररि कर सकिा है ।


2. अपने द्वारा ननधाण ररि लक्ष् की प्राद्धप्त में उसे सं िोश होिा है ।
3. अननदे शात्मक परामशण में प्रत्याशी अपने निचार प्रस्तुि करने के नलए स्विि रहिा है । अि: परामशण
के पष्चाि् िह स्वयं ननर्ण य लेने में सिम हो िािा है ।
4. व्यद्धक्त के समायोिन में उसका सां िेनगक द्वजद्व बाधक होिा है ।
5. अपने द्वारा ननधाण ररिे लक्ष् की प्राद्धप्त में उसे सं िोश होिा है ।

अविदे र्ात्मक परामर्श के प्रमुख वसद्धान्त

1. प्रार्थी का समादर- अननदे शात्मक परामशण में सेिाथी की सत्यननष्ठा और उसकी व्यद्धक्तगि स्वायििा को
समानहि नकया िािा है । परामशणक परामशण दे िा है नकन्तु ननर्णय प्रत्याशी पर छोड दे िा है ।
2. समग्र व्यन्वित्व पर ध्याि- प्राथी के व्यद्धक्तत् के सम्यक् निकास पर परामशणक का ध्यान रहिा है ।
अननदे शात्मक परामशण का यह दू सरा प्रमुख नसिान्त है । इसके अन्तगणि प्रत्याशी की िमिा का इस
प्रकार निकास नकया िािा है नक िह अपनी समस्या का ननदान स्वयं कर सके।
3. सवहष्णुता का वसद्धान्त- निचार-स्वाित्र्ंय की द्धस्थनि में परामशण क को अपनी सनहष्णुिा एिं स्वीकृनि का
पररचय दे ना पडिा है । परामशणदािा प्रत्याशी में यह भािना उत्पन्न् करना चाहिा है नक प्रत्याशी की
बािें ध्यान से सुनी िा रही हैं और परामशणक उसके निचारों से सहमि है ।
4. परामर्श प्रार्थी में अपिी क्षमताओं को जाििे और समझिे की र्न्वि उत्पन्न् करिा - परामशणप्राथी
के सिुख परामशणदािा एस पररद्धस्थनि उत्पन्न् करिा है नक िह अपने में नननहि िमिाओं को पहचान
सके और पररद्धस्थनियों से समायोिन करना सीख सके। परामशण के माध्यम से ही ऐसी पररद्धस्थनि उत्पन्न्
की िािी है ।
परामर्श प्रविया में विवहत सोपाि-

1. िाताशलाप-परामशकण िथा प्राथी के मध्य कछु आपैचाररक िथा कछु अनौपचाररक बैिकें होिी हैं ।
बैिकों का उद्दे श्य परामशणक िथा प्राथी के मध्य सौहादण पूर्ण िािािरर् का ननमाण र् करना है िानक
परामशणप्राथी अपनी बाि स्विि रूप से प्रस्तुि कर सके। इसे मैत्री-उपचार भी कहिे है ।
2. जाँच पड़़ताल-इस सोपान के अन्तगणि परामशणक अनके निनधयों का प्रयोग करिा है । इनमें से कुछ
प्रत्यि निनधयाँ होिी हैं और कुछ परोि निनधयाँ होिी है । इसका मुख्य उद्दे श्य सेिाथी के सम्बन्ध में
हर प्रकार की िानकारी प्राप्त करना है ।
3. संिेग-विमोचि-परामशणप्राथी एक समस्यायुक्त व्यद्धक्त है निसके अपने सिेंग िथा िनाि होिे है । िह
अपनी समस्या को परामशणक के सिुख िभी रख पािा है िब उसके मनोभािों को पूर्णिया निमोनचि
कर नदया िाय। इसनलए िृिीय सोपान में परामशण क का यह प्रयास होिा है नक प्रत्याशी सभी पूिाण ग्रहों
िथा िनािों से मुक्त होकर अपनी समस्या प्रस्तु ि करें ।
4. सुझािों पर चचाश -इसमें प्रत्याशी की भूने मका प्रमुख होिी है । परामशण क द्वारा नदये गये सुझािों पर
िह आलोचनात्मक दृनष्टकोर् अपनािा है और उस पर िीका-निप्पर्ी करिा है ।
5. योजिा का विमाशण-समस्याओं के प्रस्तुिीकरर् के नलए नकसी योिना-ननमाण र् का अिसर प्रत्याशी को
नदया िािा है । इस योिना ननमाण र् में परामशणदािा एिं प्राथी दोनों का सहयोग होिा है ।
6. योजिा वियाियि एिं प्रार्थी-बनायी गयी योिना का नक्रयान्वयन िथा मूल्यां कन इस सोपान के
अन्तगणि होिा है ।

3. समन्वित परामर्श -

िह एक मध्यम िगीय प्रनिनध है । इसके प्रमुख प्रिि्णेाकों में एफ0सी0 िोम का नाम उल्लेखनीय है । समद्धन्वि
परामशण में ननदे शात्मक से अननदे शात्मक की ओर बढिे हैं । यह प्रनिनध पू र्णिया व्यद्धक्त, पररद्धस्थनि िथा समस्या
पर आधाररि होिी है । इसके अन्तगणि निन िकनीकों का प्रयोग नकया िािा है उनमें प्रत्याशी में निश्वास
िगाना, उसे सूचनाएँ प्रदान करना, परीिर् करना आनद हैं । इस प्रनिनध में परामशणदािा ि प्राथी दोनों सनक्रय
एिं सहयोगी होिे हैं और ननदे शात्मक ि अननदे शात्मक दोनों ही प्रनिनधयों के प्रयोग के कारर् दोनों बारी-बारी
से िािाण में प्रनिभाग करिे हैं और समस्या का समाधान नमलकर ननकालिे है ।

समन्वित परामर्श की प्रविया

1. प्र्रत्यार्ी के व्यंव क्ंतत्व सम्बन्धी विर्ेषताओं तर्था उसकी आिश्यकताओं का अध्ययि-इसके


अन्तगिण परामशण प्राथी की आिश्यकिाओं उसकी समस्याओं िथा उसके व्यद्धक्तगि निशेषिाओं का
अध्ययन नकया िािा है । परामशण की प्रनक्रया में आगे बढने के पूिण परामशणक प्रत्याशी के निषय में
पूरी िानकारी प्राप्त कर लेिा है ।
2. उवचत तकिीक का चयि-परामशणप्राथी की आिश्यकिाओ समस्याओं िथा अपेिाओं से पूर्णिया
अिगि हो िाने के उपरान्त परामशणक उनचि प्रनिनध या िकनीक का चयन करिा है ।
3. तकिीकों का प्रयोग-िकनीक का चयन परामशण क नकसी निनशष्ट पररद्धस्थनि में ही करिा है । पररद्धस्थनि
का चयन समस्या की प्रकृनि एिं प्रत्याशी का स्वभाि दे खकर नकया िािा है ।
4. प्रयुि तकिीकों के प्रभािों का मूल्ांकि-अनेक निनधयों का प्रयोग करके यह दे खा िािा है नक
प्रत्याशी को परामनशणि करने में िो िकनीक प्रयोग में लाये गये उनका प्रत्याशी पर क्या प्रभाि पडा।
5. परामर्श की तैयारी-इस स्तर पर परामशण एिं ननदे शन हे िु उनचि िैयारी की िािी है ।
6. प्रत्यार्ी के विचारों से अिगत होिा-सम्पूर्ण प्रनक्रया के निषय में प्रत्याशी के निचार िानने के प्रयास
नकये िािे हैं ।

समन्वित परामर्श की विर्ेषताएँ


एफ0सी0 िोम के अनुसार समद्धन्वि परामशण की निशेषिाएँ हैं -

1. इस प्रकार के परामशण में समन्वयक निनध का प्रयोग नकया िािा है ।


2. मुख्य भूनमका परामशणप्राथी की होिी है और परामशणक प्राय: उदासीन रहिा है ।
3. कायण िमिा पर अनधक बल नदया िािा है । सम्पूर्ण प्रनक्रया परामशणक, परामशणप्राथी की समस्या-
समाधान की िमिा के इदण -नगदण र्ूमिी है ।
4. यह प्रनक्रया कम खचीली है । प्राय: सभी प्रनिनधयों का प्रयोग कर नलया िािा है ।
5. प्रत्याशी, उसकी समस्या िथा उसकी द्धस्थनि को दे खिे हुए परामशणक के सिुख ननदे शात्मक िथा
अननदे शात्मक के निकल्प खुले रहिे हैं ।
6. प्रत्याशी को समस्या का समाधान ननकालने का पू र्ण अिसर प्रदान नकया िािा है ।

समन्वित परामर्श की सीमायें

1. अनधकां शि: लोग इस प्रनक्रया को िीक से समझ नहीं पािे और इसे अिसर प्रधान कहिे हैं ।
2. दोनों अननदे शात्मक ि ननदे शात्मक प्रनिनध को िोडा नहीं िा सकिा।
3. प्राथी को स्विििा दे ने के आधार और उसकी सीमा पर कोई स्पष्ट सं केि नहीं है ।
4. दोनों प्रनिनधयों के नमलाने से उनचि मागण चयन और पररर्ाम प्राद्धप्त में भी दु निधा होिी है ।

Ques-18 परामशण को पररभानषि करिे हुए के नसिां िों की व्याख्या कीनिये ?

Ans- ‘परामशण’ शब्द अंग्रेिी के ‘counselling’ शब्द का नहन्दी रुपान्तर है ,िो लैनिन के ‘Consilium’ से बना है
निसका शद्धब्दक अथण है सलाह लेना या परामशण लेना। अि: परामशण एक ऐसी प्रनक्रया है निसमें परामशण
प्राथी अपने से अनधक अनुभिी, योग्य ि प्रनशनिि व्यद्धक्त के पास िाकर पूछिाछ, निचार-निमशण , िकण-नििकण
िथा निचारों का निननमय करिा है । इस प्रनक्रया के उपरान्त प्राथी समस्या समाधान योग्य होिा है ,उसका
अनधकिम निकास होिा है और िह अपना ननर्णय स्वयं ले सकने योग्य हो िािा है ।

1. ए0जे0जोन्स के अिुसार -’’परामशण एक प्रनक्रया है निसके माध्यम से एक छात्र व्यिहारों के सीखने


अथिा पररििणन करने और निनशष्ट लक्ष्ों को स्थानपि करने में व्यािसानयक रुप से प्रनशनिि व्यद्धक्त के
साथ कायण करिा है निससे िह इन लक्ष्ों को प्राप्त करनें की नदशा में अनधकार रख सके।’’
2. रुर्थ स्ट् ांग के अिुसार - ‘‘परामशण प्रनक्रया समस्या समाधान का सद्धिनलि प्रयास है ।’’
3. रॉवबन्सि के अिुसार- परामशण शब्द दो व्यद्धक्तयों के सम्पकण की उन सभी द्धस्थनियों का समािेश
करिा है निनमें एक व्यद्धक्त को उसके स्वयं के एिं पयाण िरर् के बीच अपेिाकृि प्रभािी समायोिन
प्राप्त करने सहायिा की िािी है ।
4. बरिार्श तर्था फुलमर के अिुसार - परामशण को उस अन्तर-िैयद्धक्तक सम्बन्ध के रूप में दे खा िा
सकिा है निसमे िैयद्धक्तक िथा सामूनहक परामशण के साथ-साथ िह कायण भी सद्धिनलि है िो
अध्यापाकेो एिं अनभभािकों से संम्बंनधि है और िो निशेष रूप से मानि सम्बन्धो के भािात्मक पिों
को स्पष्ट करिा है ।
5. कालश रोजसश के अिुसार- परामशण एक नननचि रूप से नननमणि स्वीकृि सम्बन्ध है िो उपबोध्य को
अपने को उस सीमा िक समझने में सहायिा करिा है निसमें िह अपने ज्ञान के प्रकाश में निद्यात्मक
कायण में अग्रसर हो सकें।
उपयुक्त निद्वानों की पररभाषाओं के आधार पर परामशण का अथण है स्पष्ट होिा है नक परामशण द्वारा दो
व्यद्धक्तयों के सद्धिनलि प्रयास से निचार-निमशण , िकण-नििकण, नमत्रिापूर्ण निचार-निननमय द्वारा समस्याग्रस्त व्यद्धक्त
को समस्या समाधान योग्य बनाया िािा है ।

परामर्श के तत्व

आबणकल ने परामशण की पररभाषाओं के आधार पर ननष्कषण ननकाले नक परामशण के िीन ित् मुख्य हैं ।

1. परामशण प्रनक्रया में दो व्यद्धक्त संलग्न रहिे हैं ।


2. परामशण प्रनक्रया का उद्दे श्य छात्र को अपनी समस्याएँ स्विंत्र रुप से हल करने योग्य बनाना है ।
3. परामशण एक प्रनशनिि व्यद्धक्त का व्यायिसानयक कायण है ।

इसी प्रकार निनलयम कोिल ने परामशण के िीन के स्थान पर पाँ च ित् बिाये है

1. दो व्यद्धक्तयों में पारस्पररक संम्बन्ध आिश्यक है ।


2. परामशणदािा िथा परामशण प्राथी के मध्य निचार-निमशण के अनेक साधन हो सकिे हैं ।
3. प्रत्येक परामशणदािा अपना काम पूर्ण ज्ञान से करिा है ।
4. परामशण प्राथी की भािनाओं के अनुसार परामशण का स्वरुप पररिनिणि होिा है
5. प्रत्येक परामशण सािात्कार नननमणि होिा है ।

परामर्श की विर्ेषताए

1. परामशण एक व्यद्धक्तगि प्रनक्रया है सामुनहक नहीं।


2. परामशण प्रनक्रया में केिल दो व्यद्धक्तयों का सम्पकण होिा है । यनद दो व्यद्धक्तयों से अनधक के मध्य
नियार-निमशण होिा है िो िह परामशण नहीं है ।
3. परामशण ननदे शन की एक निनध है । अि: यह एक ननदे शीय प्रनक्रया है ।
4. परामशण में परामशणदािा अपनी ननर्णय या निचार, परामशण प्राथी पर लादिा नहीं है ।
5. परामशण प्रनक्रया, परामशण प्राथी केद्धिि होिी है निसमें पारस्पररक निचार-निमशण , िािाण लाप, िकण-नििकण
द्वारा प्राथी को इस योग्य बनाया िािा है नक िह अपने स्वयं के नलये ननर्णय लेने में समथण हो सके।
6. परामशण प्रनक्रया व्यद्धक्त को आत्मननभणर बनािी है एिं उसमें आत्मनिश्वास उत्पन्न करिी है ।

परामर्श के वसद्धान्त

परामशण एक ननधाण ररि रूप से संरनचि स्वीकृि सम्बन्ध है िो परामशण प्राथी को प्र्याप्त मात्रा में स्वयं के
समझने में सहायिा दे िा है निससे िह अपने निीन ज्ञान के पररप्रेक्ष् मेंिोस कदम उिा सके। नसिान्त की
व्याख्या प्राय: नकन्ही दृनष्टगोचर व्यापार या र्िनाओं के अन्तननणनहि ननयमों अथिा नदखायी दे ने िाले सम्बन्धो के
प्रनिपादनों के रूप् में की िािी है निनका एक नननचि सीमा के अन्दर परीिर् सम्भि है परामशण के िेत्र में
सैिाद्धन्तक ज्ञान का निशद भण्ड्ार है । परामशण किाण के नलए इन सैिाद्धन्तक आधारों का पररचय आिश्यक है ।
परामशण के नसिान्तों को चार िगों में बाँ िा िा सकिा है -

प्रभािििी नसिान्त व्यिहारिादी नसिान्त बोधात्मक नसिान्त

1. व्यिस्थािादी प्रारूप नसिान्त


प्रभाििती वसंद्धान्त-
यह नसिान्त मूलि: अद्धस्तििादी-मानििादी दशणन की परम्परा से उत्पन्न हुआ है । इसमें उपबोध्य या
परामशण प्राथी को प्रभािपूर्ण ढं ग से समझने पर निशेष बल नदया िािा है । यह उपागम, उपबोध्य को एक
व्यद्धक्त के रूप में समझने पर, उसके बारे में िानने की अपेिा अनधक महत् दे िा है । इसमें परामशणदािा
बाह्य िस्तुननष्ठ परीिर् की पररनध को लॉर्कर उपबोध्य के आन्तररक संसार में प्रिेश करने का प्रयत्न करिा
है । परामशणदािा व्यद्धक्त से व्यद्धक्त के सािात्कार का िािािरर् नननमणि करिा है । उपबोध्य को एक व्यद्धक्त के
रूप में समझने पर उसके बारे में िानने की अपेिा अनधक महत् नदया िािा है । इस प्रकार उपागम के
अन्तगणि परामशणदािा बाह िस्तुननष्ठ परीिर् की पररनध लॉर्कर, उपबोध्य के आन्तररक िैषनयक संसार में प्रिेश
का प्रयत्न करिा है । मानिीय अन्त:नक्रया ही प्रभािििी परामशणदािा के नलए ध्यान का केि है । निन्हें संिेप में
ननम् रूप से व्यक्त नकया िा सकिा है ।

1. अिुभि की विलक्षणता - उपबोध्य का अनुभि निलिर् होिा है । यह बाि अनधक महत्पूर्ण है नक


परामशणप्राथी कैसा अनु भि करिा है ? उसकी िै षनयक िास्तनिकिा भी अनधक महत्पूर्ण है ।
2. समग्रता - व्यद्धक्त को समग्र रूप से उसके ििण मान अनुभिों के सन्दभों में ही िाना िा सकिा है ।
3. सीमाबद्धता - यद्यनप िैिकीय िथा पयाण िरर् िननि कारक नकन्ही निनशष्ट रूपों में व्यद्धक्त को सीमाबि
कर सकिे हैं नफर भी व्यद्धक्त में निकनसि होने ि अद्धस्तत् ननमाण र् की िमिाएे सीनमि होिी है ।
4. आत्म पररभाषा - मनुष्यिा सदै ि ही आत्म पररभाषा की प्रनक्रया में संलग्न रहिी है । इसे नकसी पदाथण
या ित् के रूप में सदै ि के नलये पररभानषि नहीं नकया िा सकिा है ।

व्यिहारिादी उपागम -
व्यिहारिादी उपागम उपबोध्य के अिलोकनीय व्यिहारों पर बल दे िे है । दू सरे शब्दों में व्यिहारिादी उपबोध्य
के अनुभिों की अपेिा उसके व्यिहारों को िानने ि समझने में अनधक रूनच रखिे है ।

व्यिहारिादी समस्याग्रस्त व्यद्धक्त के लिर्ें पर अनधक ध्यान दे िे है । ये समस्याएं अनधकां शि: उपबोध्य द्वारा
अपने व्यिहार करने के ढं ग या असफल व्यिहार के कारर् होिी है । इस प्रकार व्यिहारिादी परामशणदािा
मुख्यि: नक्रया पर बल दे िे है । उनके अनुसार व्यद्धक्त अपने िािािरर् के साथ प्रनिनक्रया के पररर्ामस्वरूप
व्यिहारों को िन्म दे िा है । व्यद्धक्त िब उिरदायी रूप से व्यिहार करने में समथण नहीं हो पािे िो िे नचद्धन्ति
रहिे हैं और बहुधा अनु पयुक्त व्यिहार करिे करिे है । इसके कारर् उनमें आत्म परािय का भाि िाग्रि
होिा है ।

बोधात्मक वसद्धान्त -
बोधात्मक नसिान्त में यह स्वीकार नकया िािा है नक संज्ञान या बोध व्यद्धक्त के संिेगों ि व्यिहारों के सबसे
प्रबल ननधाण रक हैं । व्यद्धक्त िो सोचिा है उसी के अनुसार अनुभि ि व्यिहार करिा है । बोधाध्मक नसिान्त के
अन्तगणि कायण सम्पादन निश्लेषर् अत्यनधक प्रचनलि निधा है । इसमें व्यिहार की समझ इस मान्यिा पर ननभणर
करिी है नक सभी व्यद्धक्त अपने पर निश्वास करना सीख सकिे हैं , अपने नलये नचन्तन या निचार कर सकिे हैं ,
अपने ननर्णय ले सकिे हैं िथा अपनी भािनाओं को अनभव्यक्त करने में समथण है । परामशणदािा इसके अन्तगणि
परमशण प्राथी को िीिन में सकारात्मक दृनष्टकोर् अपनाने ि निकनसि करने की िमिा दृढ करने का सम्बल
दान करिा है ।
व्यिस्र्थािादी विवभन्न-दर्शिग्राही प्रारूप उपागम-
व्यिस्थािादी उपागम की प्रमुख निशेषिा परामशण का निनभन्न चरर्ें में संयोनिि होना है ।

1. प्रथम अिस्था- समस्या अन्वेषर्


2. नद्विीय अिस्था- नद्वआयामी समस्या पररभाषा
3. िृिीय अिस्था- निकल्पों का अनभज्ञज्ञन करना
4. चिुथण अिस्था- आयोिना
5. पंचम अिस्था- नक्रया प्रनिबििा
6. शष्ठ अिस्था- मूल्यां कन एिं फीडबैक

Ques-19 व्यद्धक्तगि परामशण सनिस्तार िर्णन कीनिये ?

Ans- िैयन्विक परामर्श, अिधारणा ि आिश्यकता -

आमिौर पर परामशण व्यद्धक्तगि रूप से ही सम्पन्न होिा है । परामशण नकसी भी प्रकार की आिश्यकिा पर
व्यद्धक्तगि रूप में ही नदया िािा है । व्यद्धक्तगि परामशण में व्यद्धक्त की समंिन िमिा बढाने उसकी ननिी
समस्याओं का हल ढूढने िथा आत्मबोध की िमिा उत्पन्न हे िु दी िाने िाली सहायिा होिी है ।
यह कहना सिणथा गलि न होगा नक िैयद्धक्तक परामशण में व्यद्धक्त के शारीररक, माननसक, सां िेनगक, शैनिक,
व्यािसानयक िीिन से सम्बद्धन्धि समस्याओं को समझना ि उनका हल प्राप्त करने की दििा निकनसि की
िािी है । िैयद्धक्तक परामशण की आिश्यकिा मुख्य रूप से नकशोरािस्था से ही मूल रूप में प्रारम्भ होिी है ।
इस परामशण का मुख्य उद्दे श्य होिा है -

1. व्यद्धक्त को अपने आसपास के िािािरर् की सम्भािनाओं को सही िरीके से समझने के योग्य बनाना।
2. व्यद्धक्त को अपने पररिार, समुदाय निद्यालय एिं व्यिसाय सम्बन्धी सामजिस्य की व्यद्धक्तगि समस्याओं
को हल करने में सहयोग दे ना।
3. व्यद्धक्त में सामंिस्य स्थानपि करने की िमिा निकनसि करना।
4. व्यद्धक्त को अपनी िमिाओं एिं अनभयोग्यिा को समझने में सहयोग दे ना।
5. व्यद्धक्त द्वारा नलये िाने िाले व्यद्धक्तगि ननर्णयों को लेने हे िु उनचि इच्छाषद्धक्त निकनसि करने में
सहयोग दे ना।
6. व्यद्धक्त को अपने िीिन को सही नदशा दे ने हे िु िमिा निकनसि करने में सहयोग दे ना।
7. अपने िीिन की निनिध पररद्धस्थनियों को समझने ि उसी के अनुकूल अपेनिि सूझबूझ निकनसि करने
में सहयोग करना।

िैयद्धक्तगि परामशण का मुख्य उद्दे श्य व्यद्धक्तगि सामंिस्य एिं व्यद्धक्तगि कुशलिा निकनसि करना है ।

िैयन्विगत परामर्श की आिश्यकता-


िैयद्धक्तक परामशण निशेष रूप में व्यद्धक्त निशेष की आिश्यकिा के अनु रूप उसे सहायिा दे ने हे िु नदया िािा
है । बाल्यािस्था से लेकर िृिािस्था िक अपने िीिन के निनिध सन्दभो में मधुर सामंिस्य स्थानपि करने की
िमिा ही स्वस्थ माननसक स्वास्थ्य के पररसूचक है । पुराने एिं नयी पररद्धस्थनियों के मध्य िकराि कम करके
सामंिस्य की द्धस्थनि उत्पन्न करिाना ही िैयद्धक्तक परामशण का उद्दे श्य होिा है । उक्त पररप्रेक्ष् में िैयद्धक्तक
परामशण की आिश्यकिा को ननम्नलद्धखि दृनष्टयों से प्रदनशणि नकया िा सकिा है -

1. व्यद्धक्तगि सामंिस्य एिं समायोिन बढाने की दृनष्ट से पररिार िथा निद्यालय के िीिन से सम्बद्धन्धि
अनेक समस्याओं का उद्भि व्यद्धक्त के िीिन मे होिा है निनके ननदान के नलये परामशण की
आिश्यकिा होिी है ।
2. िैयन्विगत दक्षता का विकास करिे हेतु- परामशण की दू सरी आिश्यकिा अपनी िमिा को पहचानने ,
ननर्णय लेने ि अनुकूलन की िमिा निकनसि करने हे िु होिी है ।
3. आपसी तिािों ि व्यन्विगत उलझिों से विजात हेतु- ििणमान में उपभोक्तािादी समाि ने आम
मनुश्य को िनाि एिं आपसी उलझनों में ढकेल नदया है इनसे ननदान पाने के नलये व्यद्धक्तगि परामशण
की बहुि ही अनधक आिश्ककिा होिी है ।
4. व्यन्वि के पाररिाररक एिं व्यािसावयक जीिि में सामजंस्य बैठािे हेतु- आि नशिा का मुख्य
उद्दे श्य भी व्यद्धक्त की आत्मननभणरिा की प्राद्धप्त है । व्यद्धक्त नकसी न नकसी व्यिसाय से िुडा रहिा है ।
व्यिसानयक िीिन भी उसका महत्पूर्ण भाग बन िािा है परन्तु व्यद्धक्त के ननिी पाररिाररक एिं
सामुदानयक िीिन के साथ उसका समायोिन एिं सामंिस्य नबिाने का संर्शण प्रारम्भ हो िािा है और
इसी के नलये उसे व्यद्धक्तगि परामशण की आिश्यकिा होिी है ।
5. जीिि में धैयश ि सयंम के सार्थ सन्तुलि बिाये रखिे हेतु- व्यद्धक्त के िीिन में िीिन पयणन्त
उसको अनेक समस्याओं का सामना करना पडिा है और उसके नलये उसे धैयण ि संयम का प्रयोग
करना पडिा है और इनके अभाि में उसका कुसमायोिन होने लगिा हैं । िैयद्धक्तक परामशण से उसमें
धैयण ि संयम का निकास नकया िािा है ।
6. विणशय लेिे की क्षमता के विकास हेतु- व्यद्धक्त को सम्पर्ण िीिन में अनके ननर्णय लेना पडिा है िो
नक उसके सम्पूर्ण िीिन पर प्रभाि डालिा है । िैयद्धक्तक परामशण के द्वारा व्यद्धक्त को उसकी
पररद्धस्थनििन्य समस्याओं के समय सही ननर्णय लेने की िमिा निकनसि की िािी है ।
7. व्यन्वि के जीिि में सुख, र्ान्वन्त ि सन्तोष के भाि लािे हेतु- हर व्यद्धक्त के िीन में प्रमुख लक्ष्
सुख शाद्धन्त ि सन्तोष लाना होिा है । इसके नलये उसकी मनोिृनि को समझिे हुये उसमें सन्तोश के
भाि पैदा करना भी िैयद्धक्तक परामशण की आिश्यकिा होिी है ।

इस प्रकार हम दे खिे हैं िीिन के निनभन्न िेत्रों में अपेनिि कुशलिा, आत्मसन्तोष एिं सामंिस्य स्थानपि करने
िथा स्वस्थ, प्रभािी एिं सहि आत्मनिकास का मागण प्रशस्त करने हे िु िैयद्धक्तक परामशण की आिश्यकिा होिी
है ।

िैयन्विक परामर्श के वसद्धान्त


िैयद्धक्तक परामशण की सम्पूर्ण प्रनक्रया के संचालन हे िु कुछ नननचि नसिान्तों को ध्यान में रखा िािा है ।

1. तथ्ों के गोपिीयता का वसद्धान्त- इस परामशण में इस बाि पर ध्यान नदया िािा है नक प्राथी से
सम्बद्धन्धि िो भी सूचनायें एिं िथ् प्राप्त हों उन्हें गोपनीय रखे िायें।
2. लचीलापि का वसद्धान्त-िैयद्धक्तक परामशण पूर्णिया प्राथी के नहिाय चलने िाली प्रनक्रया होिी है अि:
इसे समय, काल, पररद्धस्थनि के अनुसार लचीला बनाकर संचानलि नकया िािा है निससे प्राथी को
अपनी समस्याओं से ननदान नमल सके।
3. समग्र व्यन्वित्व पर ध्याि- इस परामशण में प्राथी के सम्यक निकास हे िु परामशणदािा का ध्यान रहिा
है और उसकी िमिा एिं व्यद्धक्तत् निकास का पूरा प्रयास नकया िािा है ।
4. सवहष्णुता एिं सहृदयता का वसद्धान्त- िैयद्धक्तक परामशण में परामशणदािा प्राथी को निचारों को व्यक्त
करने की स्विििा दे िा है और उसके प्रनि सनहष्णु एिं सहृदय रहिा है ।प्राथी को इस बाि का
आभास कराया िािा है नक िह परामशणदािा के नलये महत्पूर्ण है ।
5. प्रार्थी के आदर का वसद्धान्त- िैयद्धक्तक परामशण का उद्दे श्य प्राथी को निनभन्न िेत्रों में अपेनिि
दििा, कुशलिा, आत्मसन्तोष एिं सामिस्य कायम करिे हुये स्वस्थ प्रभािी एिं सहि आत्म निकास का
मागण प्रशस्त करने की दृनष्ट से सहयोग दे ना है । अि: प्राथी का आदर नकया िािा है ।
6. सहयोग का वसद्धान्त- िैयद्धक्तक परामशण में प्राथी के ऊपर अपने दृनष्टकोर् को निचारों को लादने के
बिाय उसे स्वयं की समस्याओं के प्रनि उनचि समझ निकनसि करिे हुये उन्हें सुलझाने हे िु सहयोग
नदया िािा है । उपरोक्त सभी नसिान्त िैयद्धक्तक परामशण की प्रनक्रया को और अनधक प्रभािशाली बना
दे िे हैं ।

Ques-20 समूह परामशण सनिस्तार िर्णन कीनिये ?

Ans- समूह परामर्श

समूह परामशण की संकल्पना अपेिाकृि निीन है । यह पिनि ऐसे प्रत्यानशयों के नलए उपयोगी नसि हुई है िो
व्यद्धक्तगि परामशण से लाभाद्धन्वि नहीं हो पाये हैं । प्रत्येक व्यद्धक्त मूलि: सामानिक होिा है । कभी-कभी समाि
में रहकर ही व्यद्धक्त अपना अनुकूलन एिं अपनी समस्याओं का ननदान कर लेिा है । सी0िी0 केम्प (1970) ने
नलखा है नक व्यद्धक्त को अपने िीिन के सभी िेत्रों में साथणक सम्बन्ध बनाने की आिश्यकिा पडिी है । इन्हीं
सम्बन्धों के आधार पर िे अपने िीिन को ननकििा से समझ पािे हैं और एक लक्ष् िक पहुँ च सकिे हैं ।
इसके सन्दभण में सामूनहक पररप्रे क्ष् के प्रनि रूनच बढिी िा रही है । समूह परामशण के आधार-समूह परामशण
के कुछ मूलभूि आधार हैं निनकी चचाण नीचे की िा रही है -

1. व्यद्धक्त को अपने व्यद्धक्तत् सम्बन्धी पूँिी िथा अभाि का ज्ञान हो। व्यद्धक्त अपनी िमिाओं के प्रनि या
िो अल्प ज्ञान रखिा है , या अज्ञानी होिा है । कभी-कभी िो िह अपनी िमिाओं को बढा-चढा कर
कहिा है । उसके स्वमूल्यां कन में यथाथण का अभाि होिा है । सामूनहक परामशण प्रत्याशी को इस योग्य
बनािा है नक िह समूह में रहकर अन्य व्यद्धक्तयों की पृष्ठभूनम में अपनी िास्तनिक िमिा को पहचान
सके और अपनी कनमयों को दू र कर सके।
2. समूह परामशण व्यद्धक्त को इस योग्य बनािा है नक िह अपने व्यद्धक्तत् में सनन्ननहि सम्भािनाओं के
अनुरूप सफलिा प्राप्त करने में सफल हो सके। समूह में रहकर िह अपनी प्रत्यि सम्भािनाओं को
भलीभाँ नि पहचान सकिा है ।
3. िैयद्धक्तक नभन्निा एक मनोिैज्ञाननक िथ् है । एक व्यद्धक्त दू सरे व्यद्धक्त से कायण , अनभिृनि , बुद्धि आनद में
नभन्न होिा है । समूह परामशण इस मनोिैज्ञाननक िथ् की उपेिा नहीं करिा। यह कुशल परामशण क पर
ननभणर करिा है नक िह िैयद्धक्तक नभन्निाओं को ध्यान में रखिे हुए भी समूह परामशण प्रदान कर सकें।
4. प्रत्याशी को समाि का अंग मानना समूह-परामशण का चौथा नसिान्त है । प्रत्येक व्यद्धक्त समूह अथिा
समाि में रहकर ही अपना निकास कर पािा। सामूनहक िीिन का अनु भि ही उसे निकास के पथ
पर अग्रसर करिा है । समाि से पृथक रहकर व्यद्धक्त कुण्ठाग्रस्त हो िािा है ।
5. प्रत्याशी में सम्प्रत्यय का निकास सामूनहक परामशण का पाँ चिाँ नसिान्त है । समूह में रहकर ही व्यद्धक्त
का सिाां गीर् निकास सम्भि हो पािा है और िह अपने निषय में सही धारर्ा बना सकिा है ।
समूह-परामर्श के लाभ

1. सीमन नलखिा है नक सामूनहक-परामशण एक सुरनिि एिं समझदारी का पररिेश प्रस्तुि करिा है । इस


पररिेश में सबका सहभाग होिा है और सबका अनुमोदन भी होिा है ।
2. इसमें ऐसा अिसर सुलभ होिा है िो स्वच्छ, नन:शंक िथा उन्मुक्त हो और निसमें समस्याओं का
समाधान ढूँढा िा सके और खुला मूल्यां कन नकया िा सके।
3. परामशणदािा को समूह-आचरर् सम्बन्धी ज्ञान का उपयोग करने का अिसर प्राप्त होिा है ।
4. अनेक मानिीय दु बणलिाओं िैसे नशा-सेिन, यौन-नशिा आनद पर खुली बहस हो सकिी है ।

समूह-परामर्श की आिश्यकताएँ

1. व्यन्विगत साक्षात्कार- समहू-परामशण समाप्त होने के उपरान्त परामशणक प्रत्येक सेिाथी का व्यद्धक्तगि
सािात्कार करिा है िानक िह प्रत्याशी की व्यद्धक्तगि समस्याओं से अिगि हो सके। परामशणक को िो
सूचनाएँ समूह-परामशण से प्राप्त नहीं होिी हैं उनकी पूनिण व्यद्धक्तगि सािात्कार द्वारा कर लेिा है । इस
प्रनक्रया से प्रत्याशी की सहायिा करने में पराशण क को सरलिा होिी है ।
2. परामर्श -कक्ष की समुवचत व्यिस्र्था-वजस कक्षा में समूह- परामशण नदया िािा है उस कि को
सिणप्रथम सुखद बनाया िाना चानहए। कि का िािािरर् ऐसा हो नक प्रत्याशी अपनेपन का अनुभि
करें । बैिने की कुनसणयाँ आरामदे ह एिं सुखकारी हो।
3. समूह में एकरूपता- िहाँ िक सम्भि हो परामशेय समहू में आयु , नलगं िथा यथासम्भि समस्या की
एकरूपिा हो िानक परामशण प्रदान करने में सुनिधा हो। कुछ परामशणदािाओं का यह मि है नक
असमान समूह को परामनशण ि करना अनधक लाभदायी होिा है ।

समूह का आकार- समहू का आकार िृहि् हाने पर परामशण ननरथणक हो िािा है अि: समूह का आकार
यथासम्भि छ: से आि िक होना चानहए। इसमें निचारों का आदान-प्रदान उिम हो िािा है ।
समूह परामर्श की प्रविया एि वियाकलाप

समूह-परामर्श की प्रविया -
समूह-परामशण के नलए परामशणप्राथी के लक्ष् की िानकारी आिश्यक है और लक्ष् िक पहुँ चाने के नलए
समूह के अन्य सदस्यों के सहयोग की अपेिा होिी है । इसके नलए ननम् प्रनक्रया का अनुसरर् नकया िािा है ।

1. प्र्रत्येक सदस्य के लक्ष्य का ज्ञाि प्राप्त करिा- समूह-परामशणक िभी सफल हो पािा है िब उसे
सेिाथी के उद्दे श्यों की पू री िानकारी हो।
2. संगठि का विणशय- अपनी परामशण -योिना में यनद परामशणक सगं िन द्वारा नलये गये ननर्णयों को
ध्यान में रखकर परामशण दे िा है िो सामूनहक परामशण अनधक प्रभािकारी होिा है ।
3. समू ह का गठि- व्यद्धक्त के लक्ष् और व्यद्धक्त के स्वभाि को ध्यान में रखकर ही समूह के प्रत्ये क
सदस्य को अनधक लाभ पहुँ चाया िा सकिा है ।
4. परामर्श का आरम्भ- समहू -परामशण को आरम्भ करि ेे समय परामशण दािा को अपनी िथा अन्य
सदस्यों की भूनमका स्पष्ट करनी चानहए। यनद समूह के सभी सदस्य परामशण में सहयोग दें िो
परामशणक का कायण अनधक सुगम हो सकिा है ।
5. सम्बन्धों का विमाशण-सामूवहक- परामशण की प्रनक्रया में िैसे-िैसे परामशण का कायण आगे बढिा है ,
सम्भािना रहिी है नक सेिाथी अपने लक्ष् से भिक िाय। अि: परामशण दािा का यह दानयत् बनिा है
नक िह अपनी ननष्पििा का पररचय दे िे हुए अपने प्रनि प्रत्याशी में निश्वास िगाये और उसे उसके
लक्ष्ों का ननरन्तर स्मरर् नदलािा रहे ।
6. मूल्ांकि- परामशण के प्रभाि का मूल्याकंन अद्धन्तम सोपान है । परामशणदािा को अपने प्रभाि का
मूल्यां कन करिे रहना चानहए िानक िह िान सके नक उसके परामशण का क्या प्रनिफल रहा है ।

समूह-परामर्श के वियाकलाप-
समूह-परामशण के अंिगणि निनिध प्रकार के नक्रयाकलापों का समािेश होिा है । यथा, अनभमुखीकरर्,
कैररयर/िृनि िािाण एँ, किा-िािाण एँ, िृनि -सिेलन, नकसी संस्था िैसे : उद्योग, संग्रहालय, प्रयोगशाला आनद की
शैनिक यात्राएँ िथा अने क प्रकार के अनौपचाररक नािक-समूह। आगे इन सभी की चचाण निद्यालय-पररद्धस्थनि
में आयोिन करने की दृनष्ट से की िा रही है ।

Ques- 21 क्लाइं ि केंनिि नचनकत्सा क्या है ? इसका मूल्याङ्कन करिे हुए इसमें नननहि क़दमों पर प्रकाश
डानलये ?

Ans-
Ques-22 सिोहन निनध का अथण स्पष्ट कीनिये ?

Ans-
Ques-23 मनोिैश्लेनषक नचनकत्सा की मूलअिधारर्ाओं की व्याख्या िथा उसका मूल्याङ्कन कीनिये ?

Ans-
Ques- 24 नकशोर अपचार से आप क्या समझिे है ? इसके उपचार िथा रोकथाम के िरीके सुझाइये ?

Ans- वकर्ोर अपराध - िब नकसी बच्चे द्वारा कोई कानून-निरोधी या समाि निरोधी कायण नकया िािा है िो
उसे नकशोर अपराध या बाल अपराध कहिे हैं । कानूनी दृनष्टकोर् से बाल अपराध 8 िषण से अनधक िथा 16
िषण से कम आयु के बालक द्वारा नकया गया कानूनी निरोधी कायण है निसे कानूनी कायणिाही के नलये बाल
न्यायालय के समि उपद्धस्थि नकया िािा है । भारि में बाल न्याय अनधननयम 1986 (संशोनधि 2000) के
अनुसर 16 िषण िक की आयु के लडकों एिं 18 िषण िक की आयु की लडनकयों के अपराध करने पर
बाल अपराधी की श्रेर्ी में सद्धिनलि नकया गया है । बाल अपराध की अनधकिम आयु सीमा अलग-अलग
राज्ों मे अलग-अलग है । इस आधार पर नकसी भी राज् द्वारा ननधाण ररि आयु सीमा के अन्तगणि बालक
द्वारा नकया गया कानूनी निरोधी कायण बाल अपराध है ।

केिल आयु ही बाल अपराध को ननधाण ररि नहीं करिी िरन् इसमें अपराध की गंभीरिा भी महत्पूर्ण पि है ।
7 से 16 िषण का लडका िथा 7 से 18 िषण की लडकी द्वारा कोई भी ऐसा अपराध न नकया गया हो
निसके नलए राज् मृत्यु दण्ड् अथिा आिीिन कारािास दे िा है िैसे हत्या, दे शिोह, र्ािक आक्रमर् आनद िो
िह बाल अपराधी मानी िायेगा।

बाल अपरावधयों के उपचार की विवधयाँ

1.मिोवचवकत्सा- यह मनौिैज्ञाननक साधनों से संिेगात्मक और व्यद्धक्तत् संबधी समस्याओं का ननदान करिी है ,


यह बाल अपराधी के निगि िीिन में कुछ महत्पूर्ण व्यद्धक्तयों के निषय में भािनाओं ओर अनभधारर्ाओं को
बदलकर उपचार करिी हैं । िब बच्चें के संबध प्रारद्धम्भक अिस्था में अपने माँ -बाप से अच्छे नहीं होिे, िो
उसका संिेगात्मक निकास अिरूि हो िािा है , पररर्ामस्वरूप अपने पररिार के भीिर ही सामन्य िरीकों से
संिुष्ट न होकर िह अपनी बाल आकां िाओं को संिुष्ट करने के प्रयत्न में अक्सर आिेगी हो िािा है । इन
आकां िाओंएिं आिेगों की संिुनष्ट असामानिक व्यिहार का रूप धारर् कर सकिी है । मनोनचनकत्सा के
माध्यमसे अपराधी को नचनकत्सक द्वारा स्नेह और स्वीकृनि के िािािरर् में निचरर् करने नदया िािा है ।

2.यर्थार्थश वचवकत्सा- यथाथण नचनकत्सा इस निचार पर आधाररि है नक अपनी मूलभूि आिश्यकिाओं की पूनिण न
कर पाने िाले व्यद्धक्त अनुिरदानयत्पूर्ण व्यिहार करिे हैं , यथाथण नचनकत्सा का उद्दे श्य अपराधी बालक के
नििेदारी से काम करने में सहायिा प्रदान करना अथाण ि् असामानहक नक्रयाओं से बचाना है । यह निनध व्यद्धक्त
के ििणमान व्य िहार का अध्ययन करिी है ।

3.व्यिहार वचवकत्सा- इसमें निीन सीखने की प्रनक्रयाओं के निकास द्वारा बाल अपराधी के सीखे हुए व्यिहार मे
सुधार लाया िािा है । व्यिहार के पुरस्कार या दण्ड् द्वार बदला िािा है , नकारािमक प्रबलन ननषेधात्मक
व्यिहार (अपराधी नक्रयाओं) को कम करे गा िबनक सकरात्मक प्रबलन (िैसे पुरस्कार) सकरात्मक व्यिहार
को बनाए रखेगा। व्यिहार को बदलने में दोनों ही प्रकार के कारकों का प्रयोग नकया िा सकिा है ।
4. विया वचवकत्सा- कई बच्चों में समूह द्धस्थनियो मे प्रभािी ढं ग से मौद्धखक सं िाद करने की िमिा नहीं होिी,
नक्रया नचनकत्सा निनध में बच्चों को उनमुक्त िािािरर् में कुछ न कुछ कायण करिाये िािे हैं । िहाँ िह अपनी
आक्रामकिा की भािना को रचनािमक कायों में, खेल या शैिानी में अनभव्यक्त कर सकिा है ।

5.पररिेर् वचवकत्सा विवध- यह ऐसा िािािरर् पैदा करिी है िो सुनिधािनक अथणपूर्ण पररििणन िथा
संिोषिनक समायोिन प्रदान करिा है , यह उन लोगों के नलये प्रयोग नकया िािा है , निनका निचनलि व्यिहार
िीिन की निषम द्धस्थनियों के प्रनिनक्रयास्वरूप होिा है ।

उपयुणक्त निनधयों के अनिररद्धक्त बाल अपरानधयों को उपचार में िीन और निनधयों का प्रयोग भी नकया िािा
है :

 1. व्यद्धक्तगि समाि कायण अथाण ि् कुसमायोनिि बच्चे को उसकी समस्याओं से ननपिने में सहायिा करिा
है । व्यद्धक्तगि समानिक कायणकिाण पररिीिा अनधकारी कारगार सलाहकार हो सकिा है ।

 2. व्यद्धक्तगिसलाह अथा्िण अपराधीबालक को उसकी िुरन्त द्धस्थनि को समझना और अपनी समस्या का


समाधान करने के नलये पुननशणनिि करना

 3. व्यिसानयक सलाह अथाण ि् बाल अपराधी को उसके भािी िीिन के चुनाि में सहायिा करना है ।

बाल अपराध को रोकिे के उपाय

बाल अपराधों को रोकने के नलये ििणमान में दो प्रकार के उपाय नकये गए हैं प्रथम उनके नलए नए कानूनों
का ननमाण र् नकया गया है ओर नद्विीय सुधार संस्थाओं एि स्कूलों का ननमाण र् नकया गया है िैसे उन्हें रखने
की सुनिधाएँ हैं , यहाँ हम दोनों प्रकार के उपायों का उल्लेख करें गे।

1.कािूिी उपाय- बाल अपरानधयों को निशेष सुनिधा दे ने ओर न्याय की उनचि प्रर्ाली अपनाने के नलये बाल-
अनधननयम और सुधारालय अनधननयम बनाए गए है । भारि मे बच्चों की सुरिा के नलए 20िी ं सदी की दू सरी
दशाब्दी में कई कानून बनें सन् 1860 में भारिीय दण्ड् संनहिा के भाग 399 ि 562 में बाल अपरानधयों को
िेल के स्थान पर ररफोमेिरीि में भेिने का प्रािधान नकया गया। दण्ड् निधान के इनिहास में पहली बार यह
स्वीकार नकया नक बच्चों को दण्ड् दे ने के बिाच उनमें सुधार नकया िाए एिं उन्हें युिा अपरानधयों से पृथक
रखा िाए।

संपूर्ण भारि के नलए सन् 1876 में सुधारालय स्कूल अनधननयम बना निसमें 1897 में सं शोधन नकया गया, यह
अनधननयम भारि के अन्य स्थानों पर 15 एिं बम्बई में 16 िषण के बच्चों पर लागू होिा था, इस कानून में
बाल-अपरानधयों को औद्योनगक प्रनशिर् दे ने की बाि भी कही गयी थी, अद्धखल भारिीय स्तर के स्थान पर
अलग-अलग प्रान्तों मे बाल अनधननयम बने , सन् 1920 में मिास, बंगाल, बम्बई, नदल्ली, पंिाब में एिं 1949 में
उिरप्रदे श मै और 1970 में रािस्थान मे बाल अनधननयम बने , बाल अनधननयमों में समाि निरोधी व्यिहार व्यक्त
करने िाले बालकों को प्रनशिर् दे ने िथा कुप्रभाि से बचाने के प्रयास नकये गए, उनके नलये दण्ड् के स्थानपर
सुधार को स्वीकार नकया गया। 1986 में बाल न्याय अनधननयम पाररि नकया गया निसमें सारे दे श में एक
समान बाल अनधननयम लागू कर नदया गया। इस अनधननयम के अनुसार 16 िषण की आयु से कम के लडके ि
18 िषण की आयु से कम की लडकी द्वारा नकए गए कानूनी निरोधी कायो को बाल अपराध की श्रेर्ी में रखा
गया। इस अनधननयम में उपेनिि बालकोंें िथा बाल अपरानधयों को दू सरे अपरानधयो के साथ िेल मे रखने
पर रोकलगा दी गई, उपेनिि बालकों को बाल गृहों का अिलोकन गृहों में रखा िाएगा। उन्हें बाल कल्यार्
बोडण के समि लाया िाएगा िबनक बाल अपरानधयों को बाल न्यायलाय के समि। इस अनधननयम में राज्ों
को कहा गया नक िे बाल अपरानधयों के कल्यार् और पुनिाण स की व्यिस्था करें गे।

2.बाल न्यायालय- भारि में 1960 के बाल अनधननयम के िहि बाल न्यायालय स्थानपि नकये गये है । सन् 1960
के बाल अनधननयम का स्थान बाल न्याया अनधननयम 1986 ने ले नलया है । इस समय भारि के सभी राज्ों मे
बाल न्यायालय है । बाल न्यायालय मे एक प्रथम श्रे र्ी का मनिस्टर े ि, अपराधी बालक, मािा-नपिा, प्रोबेशन
अनधकारी, साधारर् पोशक मे पुनलस, कभी-कभी िकील भी उपद्धस्थि रहिे हैं , बाल न्यायालय का िािािरर् इस
प्रकार का होिा है नक बच्चे के मद्धष्िष्क में कोिण का आं िक दू र हो िाए, ज्ों ही कोई बालक अपराध
करिा है िो पहले उसे ररमाण्ड् िेत्र में भेिा िािा है और 24 र्ंिे के भीिर उसे बाल न्यायालय के सिुख
प्रस्त्ेुि नकया िािा है , उसकी सुनिाई के समय उस व्यद्धक्त को भी बुलाया िािा है निसके प्रनि बालक ने
अपराध नकया। सुनिाई के बाद अपराधी बालकों को चेििनी दे कर, िुमाण ना करके या मािा-नपिा से बॉण्ड्
भरिा कर उन्हें सौंप नदया िािा है अथिा उन्हें पररिीिा पर छोड नदया िािा है या नकसी सुधा र संस्था,
मान्यिा प्राप्त निद्यालय पररिीिा हॉस्टल में रख नदया िािा है ।

3.सुधारात्मक संस्र्थाएँ - बाल अपरानधयों को रोकने का दू सरा प्रयास सुधारात्मक संस्थाओं एिं सुधरालयों की
स्थापना करने नकया गया है निनमें कुछ समय िक बाल अपरानधयों को रखकर प्रनशिर् नदया िािा है , हम
यहाँ कुछ ऐसी संस्थाओं का उल्लेख करें गें -

 ररमाण्ड क्षेत्र या अिलोकि - िब बाल अपराधी पुनलस द्वारा पकड नलया िािा है िो उसे सुधारात्मक
रख िािा है । िब िक उस पर अदालिी कायणिाही चलिी है , अपराधी इन्हीं सुधरालयों में रहिा है ।
यहाँ पर पररिीिा अनधकारी बच्चे की शारीररक ि माननसक द्धस्थनियों का अध्ययनकरिा हैं उन्हें
मनोरं िन, नशिा एिं प्रनशिर् आनद नदया िािा है ऐसे गृहों में बच्चें से सही सूचनाएँ प्राप्त की िािी हैं
िो िे न्यायाधीश के सिुख दे ने से र्बरािे है । भारि में नदल्ली एिं अन्य 11 राज्ों में ररमाण्ड् होना
है । अब इनका स्थान सम्प्रेिर् गृहों ने ले नलया है ।

 प्रमावणत या सुधारत्मक विद्यालय - प्रमानर्ि निद्यालय में बाल अपरानधयों को सुधार हे िु रखा िािा है ।
इन निद्यालयों को सरकार से अनुदान प्राप्त ऐद्धच्छक संस्थाओं चलािी है । इन स्कूलों में बाल अपरानधयों
को कम से कम िीन िषण और अनधकिम साि िषण की अिनध के नलये रखे िािे है । 18 िषण की आयु
के बाल अपराधी के बोस्टले स्कूल के स्थानान्तररि कर नदये िािे हैं । इन स्कूलों में नसलाई, द्धखलौने
बनाने , चमडे की िस्तुएँ बनाने और प्रनशिर् नदया िािाहै । प्रत्येक प्रनशिर् कायणक्रम दो िषण के नलए
होिा है , बच्चों को स्कूल से ही कच्चा माल प्राप्त होिा है और उसके द्वारा नननमणि िस्तुओं को बािार
में बेच नदया िािा है और लाभ उसके खािे मेंें िमा कर नदया िािा है । िमा की गई धनरानश एक
नननचि मात्रा िक पहुँ चने के बाद स्कूल के बच्चें के केिल राज् के उपयोग के नलए ही िस्तुओं का
उत्पादन करना होिा है । बच्चों के 5िें दिे िक की बुननयादी नशिा भी दी िािी है िषण के अन्त में
उसको निद्यालय ननरीिक द्वारा संचानलि परीिा में भी भाग लेना होिा हैं । यनद कोई बाल पाँ चिी किा
के बाद भी पढना चाहिा है िो उसे बाहर के नकसी निद्यालय में प्रिेश नदला नदया िािा है ।

बोस्टल स्कूल इस प्रर्ाली के िन्मदािा एद्धिन रे नगल्स ब्रादू स थे , यहाँ उन्हीं बालको को रखा िािा है निसकी
आयु 15 से 21 िषण िक की होिी है । उन्हें यहाँ प्रनशिर् एिं ननदे शन नदये िािे हैं िथा अनुशासन में रखकर
उसका सुधार नकया िािा है । अिनध समाप्त होने , अच्छे आाचरर् का आश्वासन दे ने एिं भनिष्य में अपराध न
करने का िचन दे ने पर अपराधी को इस निद्यालय से मुक्त नकया िािा है । ये स्कूल अपराधी का समाि से
पुनः सां मिस्य कराने में योग दे िे है ।
 पररिीक्षा होस्टल - यह बाल अपरानधयों के पररिीिा अनधननमय के अन्तगणि् स्थानपि उन बाल
अपरानधयों के आिासीय व्यिस्था एिं उपचार के नलए होिे है निन्हें पररिीिा अनधकारी की दे खरे ख में
पररिीिा पर ररहा नकया िािा है । पररिीिा हॉस्टल ननिानसयों को बािार िाने की िथा अपनी इच्छा
का काम चुनने की पूर्ण स्वंित्रिा होिी है । निनभन्न दे शों की भाँ नि भारि में भी बाल अपरानधयों को
सुधारने के नलये प्रयास नकये गये हैं और बाल अपराध की पुनरािृनि में कमी आयी है नफर भी इन
उपायों में अभी कुछ कनमयाँ हैं निन्हें दू र करना आिश्यक है । बालक अपराध की ओर प्रिेश नहीं
हो, इसके नलए आिश्यक है नक बालकों को स्वस्थ मनोरं िन के साधन उपलब्ध कराये िाँ ए, अश्लील
सानहत्य एिं दोषपूर्ण चलनचत्रों पर रोक लगायी िाए, नबगडे हुए बच्चें को सु धारने में मािा-नपिा की
मदद करने हे िु बाल सलाकार केि गनिि नकये िायें िथा सम्बद्धन्धि कानमणकों को उनचि प्रनशिर्
नदया िाए, संिेप मे बाल अपराध की रोकथाम के नलए सरकारी एिेद्धन्सयों (िैसे समाि कल्यार्
निभाग) शैनिक संस्थाओं, पुनलस, न्यायपानलका, सामानिक कायणकिाओं िथा स्वैद्धच्छक संगिनों के बीच
िालमेल की आिश्यकिा है ।

Ques- 25 अनधगम िमिा के िैनिक और सामानिक कारकों की नििेचना कीनिये ?

Ans- अवधगम (Learning)

मनुष्य में सीखने का क्रम िन्म से मृत्यु िक चलिा रहिा है । कुछ सीखने के बाद मानि अनुभिों के आधार
पर कायणरूप दे ने का प्रयास करिा है निससे उसके व्यिहार में पररििणन आिा है । व्यिहार में होने िाले इन
पररििणनों को ही सीखना अथिा अनधगम कहिे है । िास्ति में सीखने की प्रनक्रया व्यद्धक्त की शद्धक्त और रुनच
के कारर् निकनसि होिी है । बच्चों में स्वयं अनु भूनि द्वारा भी सीखने की प्रनक्रया होिी है , िैसे-बालक नकसी
िलिी िस्तु को छूने का प्रयास करिा है और छूने के बाद की अनुभूनि से िह यह ननष्कषण ननकालिा है नक
िलिी हुई िस्तु को छूना नहीं चानहए। अनधगम की यह प्रनक्रया सदै ि एक समान नही रहिी है । इसमें प्ररे र्ा
के द्वारा िृद्धि एिं प्रभानिि करने िाले कारकों से इसकी गनि धीमी पड िािी है ।

िुर्िर्थश के अनुसार ‘‘निीन ज्ञान और निीन प्रनिनक्रयाओं को प्राप्त करने की प्रनक्रया सीखने की प्रनक्रया है ।‘‘

िो एण्ड िो के अनुसार ‘‘सीखना, आदिों, ज्ञान और अनभिृनियों का अिणन है ।‘‘

न्वििर के अनुसार ‘‘सीखना, व्यिहार में उिरोिर सामंिस्य की एक प्रनक्रया है ।‘‘ उपयुणक्त अथण एिं पररभाषा
के आधार पर सीखने की ननम्नलद्धखि निशेषिाएँ स्पष्ट होिी हैं -

 सीखना, सािणभौनमक है ।
 सीखना, अनुभिों की निीन व्यिस्था है ।
 सीखना, िािािरर् एिं नक्रयाशीलिा की उपि है ।
 सीखना, समायोिन है ।
 सीखना, िीिन भर चलने िाली सिि प्रनक्रया है ।
 सीखना, व्यिहार में पररििणन है ।

वर्क्षण-अवधगम को प्रभावित करिे िाले कारक (Factors Influencing Teaching-Learning Process)

सीखना नशिर् द्वारा ही सम्पन्न होिा, चाहे िह नशिर् प्रनक्रया सीखने िाले द्वारा अपनाई िाए या अध्यापक
द्वारा। नशिर् का उद्दे श्य ही है ‘सीखना‘। नशिर् का अथण िभी साथणक होिा है , िब कोई इस प्रनक्रया से
सीखिा है । मनोिैज्ञाननकों ने अनधगम को प्रभानिि करने िाले कारकों की भी खोि की है । ये कारक
ननम्नलद्धखि है -
1. बालक का र्ारीररक ि मािवसक स्वास्थ्य (Physical and Mental Health of Children) प्रायः दे खा
िािा है नक शारीररक और माननसक रूप से स्वस्थ्य बालक सीखने में रुनच लेिा है । थकान का प्रभाि
कम होने से छात्र िल्दी सीखिे हैं । शारीररक और माननसक दृनष्ट से नपछडे बच्चे प्रायः पढने नलखने में
कमिोर रहिे हैं और िे दे र से सीखिे हैं ।
2. पररिक्वता (Maturity) व्यद्धक्त की आयु बढने के साथ-साथ उसकी पररपक्विा भी बढिी है । शारीररक
एिं माननसक रूप से पररपक्व होने पर सीखने की गनि बढ िािी है , निससे सीखने का स्तर भी बढ
िािा है । इसके निपरीि यनद आयु एिं पररपक्विा के अनुरूप अनधगम सामग्री नहीं है िो अनधगम
सामग्री ग्रहर् करने में कनिनाई होगी।
3. सीखिे की इच्छा (Will to learn) सीखना बहुि कुछ व्यद्धक्त की इच्छा पर ननभणर करिा है निस बाि
को सीखने के नलए बच्चों में प्रबल इच्छा होिी है , उसे सीखने उिना ही शीघ्र होिा है । उनकी इच्छा के
निरूि उन्हें कुछ नहीं नसखाया िा सकिा है ।
4. प्रेरणा (Motivation)–सीखने के नलए बच्चों को प्रे ररि करना अत्यंि आिश्यक है । इसनलए समय-समय
पर प्रशंसा, प्रोत्साहन िथा प्रनियोनगिा के आधार पर सीखना चानहए िो िे सुगमिा से सीख िािे है ।
5. विषय सामग्री का स्वरूप (Nature of subject matter) प्रत्येक स्तर के छात्रों के नलए उनकी बुद्धि,
रुनच एिं अनभिमिा के अनुरूप पाठ्यिस्तु सरल, रोचक एिं अथणपूर्ण होने पर छात्र उन्हें रुनचपूर्ण एिं
शीघ्रिा से सीखिे है । कनिन, नीरस िथा अथणहीन निषय-सामग्री बच्चे शीघ्रिा से नहीं सीख पािे हैं ।
6. िातािरण(Environment) भौनिक एिं सामानिक िािािरर् दोनों ही नशिर् अनधगम को प्रभानिि करिे
हैं । शुि िायु , उनचि प्रकाश, शान्त िािािरर् एिं मौसम की अनुकूलिा के बीच बच्चे शीघ्र सीखिे है ।
इसके अभाि में िे शीघ्र थक िािे हैं िथा अनधगम प्रनक्रया बानधि होिी है ।

इसी प्रकार यनद पररिार, समाि, समुदाय और निद्यालय आनद सभी स्थानों पर छात्रों को सामानिक एिं शैनिक
िािािरर् नमलिा है िो नशिर् अनधगम प्रनक्रया प्रभािी होिी है अन्यथा उसमें बाधा उत्पन्न होिी है ।

र्ारीररक एिं मािवसक र्थकाि (Physical and Mental Fatigue) नशिर्-अनधगम प्रनक्रया के नलए समय-
साररर्ी का बडा महत् है । कनिन निषय थोडे समय में ही छात्रों का थका दे िे हैं । इसनलए समय साररर्ी में
कनिन निषयों को पहले एिं सरल निषयों को बाद में स्थान नदया िािा है । कालां शो के बीच निश्राद्धन्तकाल
(Interval) का भी ध्यान रखना चानहए, इससे थकान का प्रभाि कम हो िािा है िथा छात्र िल्दी सीखिे है ।
थकान की द्धस्थनि होने पर अनधगम प्रनक्रया बानधि होिी है ।

Ques-26 अनधगम अिमिा की अिधारर्ा का सनिस्तार िर्णन कीनिये ?

Ans- अवधगम अक्षमता अर्थश और पररभाषा-

अनधगम अिमिा पद दो अलग – अलग पदों अनधगम अिमिा से नमलकर बना है । अनधगम शब्द का
आशय सीखने से है िथा अिमिा का िात्पयण िमिा के अभाि या िमिा की अनुपद्धस्थनि से है । अथाण ि
सामान्य भाषा में अनधगम अिमिा का िात्पयण सीखने िमिा अथिा योग्यिा की कमी या अनुपद्धस्थनि से है ।
सीखने में कनिनाइयों को समझने के नलए हमें एक बच्चे की सीखने की नक्रया को प्रभानिि करने िाले
कारकों का आकलन करना चानहए। प्रभािी अनधगम के नलए मिबूि अभीप्रेरर्ा, सकारात्मक आत्म छनि, और
उनचि अध्ययन प्रथाएँ एिं रर्नीनियां आिश्यक शिें हैं (एरो, िेरे-फोलोनिया, हे जगारी, काररउकी िथा
मकानडािार, 2011) औपचाररक शब्दों में अनधगम अिमिा को निद्यालयी पाठ्यक्रम सीखने की िमिा की कमी
या अनुपद्धस्थनि के रूप में पररभानषि नकया िा सकिा है ।
अनधगम अिमिा पद का सिणप्रथम प्रयोग 1963 ई. में सैमुअल नककण द्वारा नकया गया था और इसे ननम्
शब्दों में पररभनषि नकया था।

अनधगम अिमिा को िाक्, भाषा, पिन, लेखन अं कगनर्िीय प्रनक्रयाओं में से नकसी एक या अनधक प्रनक्रयाओं
में मंदिा, निकृनि अथिा अिरूि निकास के रूप में पररभानषि नकया िा सकिा हैं हो संभििा: मद्धस्तष्क
कायणनिरूपिा और या संिेगात्मक अथिा व्यिाहररक नििोभ का पररर्ाम है न नक माननसक मंदिा, संिेदी
अिमिा अथिा संस्कृनिक अनुदेशन कारक का। (नककण, 1963)

इसके पचाि् से अनधगम अिमिा को पररभानषि करने के नलए निद्वानों द्वारा ननरं िर प्रयास नकये नकए गए
लेनकन कोई सिणमान्य पररभाषा निकनसि नहीं हो पाई।

अमेररका में निकनसि फेडरल पररभाषा के अनुसार, निनशष्ट अनधगम अिमिा को, नलद्धखि एिं मौद्धखक भाषा के
प्रयोग एिं समझने में शानमल एक या अनधक मूल मनोिैज्ञाननक प्रनक्रया में निकृनि, िो व्यद्धक्त के सोच, िाक्,
पिन, लेखन, एिं अंकगनर्िीय गर्ना को पूर्ण या आं नशक रूप में प्रभानिि करिा है , के रूप में पररभानषि
नकया िा सकिा है । इसके अंिगणि इद्धियिननि निकलां गिा, मद्धस्तष्क िनि, अल्पिम असामान्य नदमागी, प्रनक्रया,
नडस्लेद्धक्सया, एिं निकासात्मक िाच्चार्ाि आनद शानमल है । इसके अं िगणि िैसे बालक नहीं सद्धिनलि नकए
िािे हैं , िो दृनष्ट, श्रिर् या गामक निकलां गिा, संिेगात्मक नििोभ, माननसक मंदिा, संस्कृनिक या आनथणक दोष के
पररर्ामि: अनधगम संबंधी समस्या से पीनडि है । (फेडरल रनिस्टर, 1977)

िषण 1994 में अमेररका की अनधगम अिमिा की राष्टरीय संयुक्त सनमनि (द नेशनल ज्वायंि कनमिी ऑन लंननांग
नडसेद्धिनिज्म) ने अनधगम अिमिा को पररभानषि करिे हुए कहा नक अनधगम अिमिा एक सामान्य पद है ,
िो मानि में अनुमानि: केिीय िां नत्रक िं त्र के सुचारू रूप से नहीं कायण करने के कारर् उत्पन्न आन्तररक
निकृनियों के निषम समूह, निसमें की बोलने , सु नने , पढने , नलखने , िकण करने या गनर्िीय िमिा के प्रयोग में
कनिनाई शानमल होिे हैं , को दशाण िा है । िीिन के नकसी भी पडाि पर यह उत्पन्न हो सकिा है । हालाँ नक
अनधकिम अिमिा अन्य प्रकार की अिमिाओं (िैसे की संिेदी अिमिा, माननसक मंदिा, गंभीर संिेगात्मक
नििोभ) या संस्कृनिक नभन्निा, अनुपयुक्तिा या अपयाण प्त अनुदेशन के प्रभाि के कारर् होिा है लेनकन ये
दशाएँ अनधगम अिमिा को प्रत्यिि: प्रभानिि नहीं करिी है . (डी नेशनल ज्वायंि कनमिी ऑन लंननांग
नडसेद्धिनिज्म - 1994).

उपयुणक्त पररभाषाओं की समीिा के आधार पर यह कहा िा सकिा है नक अनधगम अिमिा एक व्यापक


संप्रत्यय है , निसके अंिणगि िाक्, भाषा, पिन, लेखन, एिं अंकगनर्िीय प्रनक्रयाओं में से एक या अनधक के प्रयोग
में शानमल एक या अनधक मूल मनोिैज्ञाननक प्रनक्रया में निकृनि को शानमल नकया िािा है , िो अनुमानि:
केिीय िंनत्रका िंत्र के सुचारू रूप से नहीं कायण करने के कारर् उत्पन्न होिा है । यह स्वभाि से आं िररक
होिा है ।

Ques- 27 अनधगम अिमिा और माननसक मंदिा में अंिर बिाइये ?

Ans- अवधगम अक्षमता और मािवसक मंदता

अनधगम अिमिा और माननसक मंदिा पद एक सामान्य आदमी भाषा में एक दू सरे के पयाण य हैं और भ्रमिश
िे दोनों पदों का एक ही अथण में प्रयोग करिे हैं । यह सिथाण गलि है । अनधगम अिमिा और माननसक
मंदिा में स्पष्ट अंिर है निन्हें आप उनकी पररभाषाओं के माध्यम से समझ सकेंगे।

अनधगम अिमिा को नलद्धखि या मौद्धखक भाषा के प्रयोग में शानमल नकसी एक या अनधक मनोिैज्ञाननक
प्रनक्रयाओं में कायणनिरूपिा के रूप में पररभानषि नकया िा सकिा है िबकी माननसक मंदिा को माननसक
निकास की ऐसी अिस्था के रूप में पररभानषि नकया िा सकिा है निसमें बच्चों का बौद्धिक निकास औसि
बुद्धि िाले बालकों से कम होिा है । इस अंिर को आप ननम्नलद्धखि िानलका के माध्यम से आप और स्पष्ट
कर सकिे हैं –

अनधगम अिमिा माननसक मंदिा


1. औसि या औसि से ज्ादा बूद्धिलद्धब्ध प्राप्तां क । बूद्धिलद्धब्ध प्राप्तां क 70 या उससे कम।
2. मद्धस्तष्क की सामान्य कायण- प्रर्ाली बानधि नहीं
मद्धस्तष्क की सामान्य कायण प्रर्ाली औसि से कम।
होिी है या औसि होिी है ।
दै ननक िीिन की आिश्यकिाओं की पूनिण करने में पूर्णि:
3.योग्यिा और उपलद्धब्ध में स्पष्ट अंिर।
अिम या कनिनाई का सामनाv
4. अनधगम अिम व्यद्धक्त माननसक मंदिा से माननसक मंद व्यद्धक्त आिश्यक रूप से अनधगम अिमिा
ग्रनसि हो यह आिश्यक नहीं है । से ग्रनसि होिे हैं ।
5.यह नकसी में भी हो सकिा है । यह मनहलाओं की अपेिा पुरूषों में ज्ादा पाई िािी है ।

Ques-28 अनधगम अिमिा के निनभन्न कारकों की व्याख्या कीनिए ?

Ans- अवधगम असमर्थशता के कारण

िैसे िो कारर् एिं कारक कई हो सकिे हैं परन्तु िो प्रमुख हैं एिं निनकी आपको िानकारी होनी चानहए -
अनधगम असमथणिा के अं िगणि अनधगम निकृनि पर नकये गये शोध अनुसंधानों एिं नसिान्तों के अनुसार इस
निकृनि के कारकों में िैनिक (genetic), न्यूरोबायलॉनिकल (neurobiological), एिं िािािरर्ीय
(environmental) कारक प्रमुख हैं । इनका समिेि नििेचन इस प्रकार है ।

उपरोक्त िीनों प्रकार के कारकों में आनु िॉंनशक कारकों का निश्लेषर् सिाण नधक िनिल है । यद्यनप िैज्ञाननक
फ्लेचर एिं उनके सहयोनगयों के अनुसार िु डिॉं युग्ों िथा उन्नि पररिारों पर नकये गये अध्ययन स्पष्ट करिे
हैं नक अनधगम निकृनि पररिारों में िृि की शाखाओं के समान फैलिी है एिं पायी िािी है िथानप इस
निकृनि के नलए नििेदार िीन्स का निश्लेषर् करने पर ज्ञाि होिा है नक अलग अलग प्रकार के अनधगम
निकृनि के नलए अलग अलग प्रकार के कौन से िीन्स इसके निकनसि होने के नलए उिरदायी हैं उनका
निनशष्ट रूप से अभी िक प्रकाशन नहीं हो पाया है । उदाहरर् के नलए पिन निकृनि (reading disorder) या
गनर्ि निकृनि (mathematics disorder) के नलए निनशष्ट रूप से नििेदार िीन्स की पहचान िैज्ञाननक अभी
िक नहीं कर पाये हैं । हालॉंनक यह अनधगम निकृनि के नलए नििे दार िीन्स की पहचान अिश्य हो गयी है
िो नक पिन निकृनि आनद अन्य सभी प्रकार की अनधगम निकृनि के नलए नििेदार हो सकिे हैं ।

मनोिैज्ञाननकों के अनुसार अनधगम निकृनि से िुडी हुई अलग-अलग प्रकार की समस्याओं के नलए अलग
अलग कारर् हो सकिे हैं । उदाहरर् के नलए बच्चों में पिन निकृनि से संबंनधि निनभन्न समस्याओं िैसे नक
शब्द पहचान (word recognition), शब्द प्रिाह (fluency) एिं समझ (comprehension) के नलए अलग अलग
कारक हो सकिे हैं । िै नोक (2009) के अनुसार शब्द पहचान से संबंनधि निकृनि के नलए अभी िक हुए
अनुसंधानों से दो प्रकार के प्रमार् नमलिे हैं एक प्रकार के प्रमार् इस निकृनि के नलए आनुिां नशक कारकों
यानन नक िीन्स को इसके नलए प्रमुख कारक नसि करिे हैं िही दू सरे िरह के प्रमार् इसमें िािािरर्ीय
असर को प्रदनशणि करिे हैं । िै नोक यह भी कहिे हैं नक इस प्रकार की निकृनि के नलए क्रोमोसोम्स में द्धस्थि
िीन संख्या 1, 2, 3, 6, 11, 12, 15 एिं 18 को निनभन्न अनुसंधानों में बार-बार संबंनधि पाया गया है । िहीं पेनिर ल
एिं उनके सहयोगी (2006) ने अपने शोध अनुसंधानों में िािािरर्ीय प्रभािों को इस निकृनि से सहसंबंनधि
पाया है । उनके अनुसार पररिारों में पढने का िािािरर् बच्चों की पिन आदि को महत्पूर्ण रूप में प्रभानिि
करिा है उनके अनुसार निन पररिारों में पिन निकृनि होने के बाििूद रीनडं ग आदि को कुशलिापूिणक बच्चों
में स्थानपि नकया गया है उन पररिारों में अन्य पररिारों के बच्चों की अपे िा पिन निकृनि की समस्या साथणक
रूप से कम निद्यमान होिी है । यहॉं िक नक यनद योिनाबि रीनि से यनद पिन निकृनि से ग्रस्त बच्चों में र्र
के स्नेनहल िािािरर् में पिन-पािन का अभ्यास कराया िाये एिं उनमें इस आदि को निकनसि नकया िाये
िो निशेष रूप से उनके शब्द पहचान की समस्या के खिरे को कम नकया िा सकिा है ।

सूक्ष्म मद्धस्तष्कीय निर्िन अथिा िनि को भी अनधगम निकृनि से िोडा िािा रहा है । एिं िैज्ञाननक नहन्सेलिुड
(1996) िैसे पूिणििी निद्वान इसकी न्यूरोलॉनिकल व्याख्या भी करिे रहे हैं । शेनिि् ि एिं उनके सहयोनगयों
(2006) के अनुसार अनधगम असमथणिा से ग्रस्त रोनगयों के मद्धस्तष्क में संरचनात्मक (structural) एिं प्रकायाण त्मक
(functional) निनभन्निाओं के प्रमार् उपलब्ध हैं खासिौर पर शब्द पहचान समस्या यानन की नडस्लेद्धक्सया की
व्याख्या हे िु बॉंये नहमेद्धियर के िीन प्रमुख नहस्ों के माध्यम से की िािी है । इन िीन नहस्ों में पहला है
ब्रोका एररया (Broca's area) िो नक शाद्धब्दक अनभव्यंिना एिं शब्द निश्लेषर् को प्रभानिि करिा है , िथा दू सरा
एररया बॉंया पैराइिोिे म्पोरल (left- parietotemporal) एररया है िो नक शब्द निश्लेषर् को प्रभानिि करिा है िथा
िीसरा एररया बॉंया ऑक्सीनिपोिे म्पोरल (left- occitipotemporal) एररया है िो नक शब्द के स्वरूप की पहचान
(recognition of word form) को प्रभानिि करिा है । फ्लेचर एिं उनके सहयोनगयों (2007) के अनुसार संख्या
ज्ञान के निकनसि होने में मद्धस्तष्क के बॉंये नहमेद्धियर का इन्टर ापैराइिल सलकस (intra-parietal sulcus) एक
ऐसा एररया है िो नक इसमें महत्पूर्ण रूप से िुडा हुआ है िथा इसकी गनर्ि निकृनि में अहम् भूनमका
होिी है ।

उपरोक्त सभी प्रकार की अनधगम निकृनि की िु लना में लेखन अनभव्यद्धक्त निकृनि के संबंध में अभी िक
कोई भी निनशष्ट कारक संबंधी प्रमार् नहीं नमले हैं । इसके अलािा संचार निकृनि के प्रमुख प्रकार चाइल्ड-
ऑनसेि-फ्लूयेन्सी निकृनि (हकलाना निकृनि) के सं बंध में नफनबगर एिं उनके सहयोनगयों (2010) का कहना है
नक इसका प्रमुख कारर् आनुिां नशक है । उनके अनुसार अनुमानि: कहा िा सकिा है नक इस निकृनि के
नलए संभाषर् करने के नलए िो मां सपे नशयॉं सद्धिनलि होिी हैं उन्हें ननयं नत्रि करने िाले िीन्स ही इसके नलए
नििेदार होिे हैं । िैज्ञाननक कां ग एिं उनके सहयोनगयों (2010) के अनुसार एक निशेष प्रकार के िीन के
म्यूिेशन को हकलाने िाले बच्चों में निनभन्न िैज्ञाननकों के शोध अनुसंधानों में ररपोिण नकया गया है संभििया
िह म्यूिेशन भी हकलाने की निकृनि से संबंनधि हो सकिा है । हालॉंनक इसकी िैधिा के संबंध में अनुसंधान
िारी हकलाने की इस निकृनि के कारर् कई सां िेनगक प्रभाि एिं पररर्ाम भी इससे ग्रस्त बच्चों में
अनधकां शि: दे खने को नमलिे हैं । करास एिं उनके सहयोनगयों के अनुसार इस निकृनि से ग्रस्त बच्चे िब
िनाि अथिा चुनौिीपूर्ण पररद्धस्थनियों में फंस िािे हैं या उनसे उनका सामना होिा है िब िे सामान्य बच्चों
के िुलना में कहीं अनधक उिेनिि एिं िुब्ध हो िािे हैं । इसके अलािा इनमें नहीं हकलाने िाले बच्चों के
अपेिा सां िेनगक प्रनिनक्रया िृनि भी काफी अनधक होिी है । क्राइमाि एिं उनके सहयोनगयों (2002) के अनुसार
हकलाने िाले बच्चों में इस निचार को लेकर नक उनके हकलाने को दे खकर दू सरे लोग क्या कहें गे अथिा
उनकी हं सी उडायेंगे सोचकर, सामानिक नचंिा (social anxiety) की संमस्या भी काफी मात्रा में उत्पन्न हो िािी
है । हकलाने िाले बच्चों में प्राय: उनकी इस समस्या के साथ बोलने के संबंध में नचंिा की समस्या, िैसी
पररद्धस्थनियॉं िहॉं बोलने की आिश्यकिा पडिी है का पररहार करने की प्रिृनि भी पायी िािी है । यह प्रिृनि
प्राय: व्याकुलिा से उत्पन्न होिी है ।

उपरोक्त िर्णन से स्पष्ट होिी है नक अनधगम असमथणिा अथिा अनधगम निकृनि, संचार निकृनि आनद के कई
कारर् होिे हैं अभी इस िेत्र में पयाण प्त शोध अनुसंधान नहीं हो पायें है निन्हें नकये िाने की महिी
आिश्यकिा है ।

Ques-29 माननसक स्वास्थ्य एिं मनोपचार के नलए मेनडिे शन (ध्यान) के महत् पर प्रकाश डानलये ?
Ans-
Ques-30 व्यिहार नचनकत्सा को पररभानषि कीनिये ?

Ans-
Ques-31 अन्तःिोिक नचनकत्सा क्या है ? व्यिहार नचनकत्सा के गुर् एिं दोषों का िर्णन कीनिये ?

Ans- अन्तःस्फोटक वचवकत्सा (Impolsive therapy)-

अन्तः िोिक नचनकत्सा के मुख्य समस्तक स्टाम्फ एिं लेनिस है । इसे ''इन नििर ो असंिेदीकरर् '' (in vitro
desensitization) भी कहा िािा है । अिः ये प्रानिनध िॉल्प के क्रमबि असंिेदीकरर् (systamic
desensitization) से काफी नमलिी िुलिी है अंिर नसफण इिना ही है नक इसमें काम नचन्तोत्पादक उद्दीपक या
पररद्धस्थनि से बढिे हुए क्रम में क्रमशः अनधक नचन्तोत्पादक उद्दीपक या पररद्धस्थनि प्रस्तुि नहीं की िािी।
बद्धल्क रोगी को सिाण नधक नचन्तोत्पादक पररद्धस्थनि के बारे में कल्पना करने के नलए कहा िािा है । िथा नचंिा
से सम्बंनधि निरुनचकार दृश्र्ों को नदमाग में िािा करने के नलए प्रोत्सानहि नकया िािा है इस नचनकत्सा में
रोगी को अनधक सुझािशाली बनाने के ख्याल से कभी-कभी सिोहन या औषध भी नदया िािा है । इस
िरह के नचनकद्धत्सकीय सत्र में रोगी में सिाण नधक नचंिा उत्पन्न करने की भरपूर कोनशश करिा है । इस
िरह के कई सत्रों के बाद रोगी यह महसू स करने लगिा है नक िह व्यथण ही उद्दीपकों या पररद्धस्थनि से
नचंनिि रहिा था क्योनक उससे िास्ति में कोई हानन नहीं होिी है । इसका पररर्ाम यह होिा है नक
अपअनुकूली व्यिहार धीरे -धीरे निलोनपि हो िािा है ।
Ques-31 निप्पर्ी कीनिये ?

(!) नारकोनसस नचनकत्सा (Narcosis therapy)

(!!) मनोशल्य नचनकत्सा (Psychosurgery)

Ans-
Ques-32 आर्ाि नचनकत्सा की व्याख्या कीनिये ?

Ans-
Ques-33 निरूनच नचनकत्सा क्या है ? समझाइये ?

Ans-
Ques-34 फ्लनडं ग क्या है ?

Ans-
Ques-35 अन्तःिोिक नचनकत्सा एिं फ्लनडं ग का िुलनात्मक अध्धयन प्रस्तु ि कीनिये ?

Ans-
Ques-36 रै शनल इमोिीि थेरेपी क्या है ?

Ans-
Ques-37 बेक की संज्ञानात्मक नचनकत्सा को निस्तार पूिणक समझाइये ?

Ans-
Ques-38 फ्रायड की मनोनिश्लेनषक नचनकत्सा का आलोचनात्मक मूल्याङ्कन कीनिये ?

Ans-
Ques-39 नैदाननक हस्तिेप के प्रत्यय की व्याख्या कीनिये ?

Ans-
Ques-40 िव्य उत्पन्न मनोभ्रम क्या है ?

Ans-

Ques-41 परामशण प्रनक्रया पर निस्तृि नोि नलद्धखए ?

Ans- परामशण- नकसी व्यद्धक्त की व्यद्धक्तगि समस्याओं एिं कनिनाइयों को दू र करने के नलये दी िाने िाली
सहायिा, सलाह और मागणदशणन, परामशण (Counseling) कहलािा है । परामशण दे ने िाले व्यद्धक्त को परामशणदािा
(काउन्सलर) कहिे हैं । ननदे शन (गाइडें स) के अन्तगणि परामशण एक आयोनिि निनशष्ट सेिा है । यह एक
सहयोगी प्रनक्रया है । इसमें परामशणदािा सािात्कार एिं प्रेिर् के माध्यम से सेिाथी के ननकि िािा है उसे
उसकी शद्धक्त ि सीमाओं के बारे में उसे सही बोध करािा है ।

परामर्श मिोविज्ञाि- परामशण मनोनिज्ञान या उपबोधन मनोनिज्ञान (Counseling psychology) एक


मिोिैज्ञाविक विर्ेषज्ञता है जो परामर्श प्रविया एिं पररणाम; पयशिेक्षण एिं प्रवर्क्षण; जीिि विकास
एिं परामर्श तर्था वििारण एिं स्वास्थ्य जैसे विवभन्न व्यापक क्षेत्र और र्ोध में प्रयुि की जाती है ।

परामशण मनोनिज्ञान प्रैद्धिशनर (निन्हें परामशणदािा कहा िािा है ) व्यद्धक्तयों से बाि करिे हैं , उनकी माननसक
द्धस्थनि को समझिे हैं िथा उन्हें परे शान करने िाली समस्याओं से उबरने के श्रेष्ठ उपाय उन्हें सु झािे हैं ।

नमस ब्रेगडन ने इन पररद्धस्थनियों के उत्पन्न होने पर परामशण की आिश्यकिा को इं नगि नकया है -

1. िह पररद्धस्थनि िब नक व्यद्धक्त न केिल सही सूचनायें चाहिा है िरन् अपने व्यद्धक्तगि समस्याओं का
भी समाधान चाहिा है ।
2. िब निद्याथ्री अपने से अनधक बुद्धिमान श्रोिा चाहिा है निससे िह अपनी समस्याओं का समाधान और
भनिष्य के नलये परामशण ि सुझाि चाहिा हो।
3. िब परामशणदािा ऐसी सु निधाओं का आकलन करिा है िो निद्यानथणयों की समस्याओं को सुलझाने में
सहायक होिी है पर निद्याथ्री उनका आकलन नही कर पािे है ।
4. िब निद्याथ्री को समस्या हो पर उसे इस समस्या का आभास न हो रहा हो िो उसे इस अिस्था का
आभास नदलाने के नलये परामशण प्रनक्रया संचानलि की िािी है ।
5. िब बच्चों को समस्या की िानकारी हो परन्तु उसे समझने , पररभानषि करने और समाधान करने में
िह अपने को असमथण पािे हों या िह आकद्धस्मक िनाि के कारर् इसे सुलझा नहीं पािे हैं ।
6. िब बच्चे कुसमायोिन के प्रभाि में हो और इसके नलये ननदान ि उपचार की आिश्यकिा हो।
7. िब िीिन के नकसी पि में हो रहे बदलाि को समझने में बच्चे /व्यद्धक्त अपने को असमथण पािे है ।
8. समाि के ढाँ चे में बदलाि के साथ मनुष्य की भूनमका में िबरदस्त बदलाि िथा पररििणन ने उसके
सामने समायोिन की समस्या खडी कर दी है ।

परामर्श की प्रविया के अंग

परामशण प्रनक्रया में अनेक ित् सद्धिनलि होिे है । निनलयम कोिल ने परामशण में साि ित्ों के सद्धिनलि होने
की आिश्यकिा बिायी है िो नक है -

1. दो व्यद्धक्तयों में परस्पर सम्बन्ध आिश्यक है ।


2. परामशणदािा ि परामशण प्राथी के मध्य निचार-निमशण के अनेक साधन हो सकिे हैं ।
3. प्रत्येक परामशणदािा अपना कायण पूरे लगन से करे ।
4. परामशण प्राथी की भािनाओं के अनुसार प्रनक्रया के स्वरूप में पररििणन हो।
5. प्रत्येक परामशणदािा अपना ज्ञान पूरे ज्ञान से करिा है ।
6. परामशणदािा की भािनाओं के अनुसार परामशण के स्वरूप में पररििणन हो।
7. प्रत्येक परामशण सािात्कार नननमणि होिा है ।

परामशण प्रनक्रया में नशिाथ्री एक प्रनशनिि व्यद्धक्त के साथ कुछ निनशष्ट उद्दे श्यों को स्थानपि करने के नलये
कायण करिा है िथा ऐसे व्यिहारों को सीखिा है निसका अिणन उद्दे श्यों िक पहुँ चने के नलये आिश्यक है ।
इसके नलए आिश्यक है ।

1. परामशणदािा प्रनशनिि ि अनुभिी होना चानहये।


2. परामशण के नलये उनचि िािािरर् होना चानहए।
3. परामशण द्वारा व्यद्धक्त की ििणमान ि भनिष्य की आिश्यकिाओं की पूनिण होनी चानहये।
4. संर्षणमय अिस्था का आभास-यह िह अिस्था है निसमें व्यद्धक्त अपने को उपद्धस्थि समस्या के प्रनि
िागरूक हो िािा है और िह उस पररद्धस्थनि से ननकलने के नलये सं र्षण करिा है और नफर उसके
समि िह पररद्धस्थनि भी आिी है नक िह अपनी समस्या नकसके समि रखे।
1. अचेति की स्वीकृवत-इस अिस्था में िह पररद्धस्थनि िब अचिे न मन की स्वीकृनि परामशण के
नलये हो िािी है और व्यद्धक्त अन्दर से अपनी समस्या के समाधान हे िु दू सरे से परामशण लेने
को िैयार हो िािा है ।
2. दमि की भूवमका-अपने आपके परामशण के नलये िैयार करने के साथ भी अपनी भािनाओं के
दमन की द्धस्थनि बनी रहिी है । व्यद्धक्त अपनी भािनाओं को प्रदनशणि करने में नहचनकचाहि का
अनुभि करिा है ।
3. परविर्श भरता एिं हस्तान्तरण-इस समय िक प्राथी अपनी समस्याओं के साथ उसके समाधान
हे िु परामशणदािा पर आनश्रि हो िािा है और नफर िह सूचनाओं का हस्तान्तरर् करने के नलये
िैयार हो िािा है ।
4. अन्र्तदृवि की उपलन्वि-इसके पचाि् परामशणदािा ि प्राथी को प्राप्त सचू नाओं के आधार
पर अन्र्िदृनष्ट का अनुभि होिा है ।
5. उवचत संिेगो पर बल-आपसी िािाण से प्राप्त अनुभि से उनचि संिेगों पर बल नदया िािा है ।
6. स्वीकारात्मक अवभरूवच-इसके पचाि् प्राथी स्वीकार करिे हुये परामशण का आिश्यक अंग
बन िािा है ।

परामर्श प्रविया के चरण

परामशण प्रनक्रया में परामशणदािा ि प्राथी समस्या समाधान हे िु लक्ष् ननधाण ररि करके एक चरर्बि िरीके से
आगे बढिे है । निनलयम एिं डारले ने परामशण प्रनक्रया के चरर् उद्धल्लद्धखि नकये हैं -

1. विश्लेषण-इस चरर् में निनिध िरीकों से प्राथी से सम्बद्धन्धि सूचनायें एकत्र की िािी हैं निससे नक
प्राथी को पूरी िरह से िाना िा सके।
2. संश्लेषण-इस चरर् मे प्राप्त सूचनाओं को व्यिद्धस्थि िरीके से रखा िािा है ।
3. प्राक्कथन-व्यिद्धस्थि आकंडें के आधार पर समस्या को एक समग्रिा के रूप में दे खा िािा है ।
4. परामर्श -इसमें परामशणदािा ि प्राथी दोनो नमलकर समायोिन के नलये प्रयास करिे हैं । इसमें
परामशणदािा ि प्राथी नमलकर समस्या समाधान हे िु भनिष्य की ओर कदम बढािे हैं ।
5. अिुिती सेिायें -इस चरर् में संचानलि परामशण के निनिध चरर्ों के प्रयासों का मूल्यां कन नकया िािा
है । इसके अनिररक्त इस बाि पर भी बल नदया िािा है नक प्राथी भनिष्य में नकन समस्याओं को
सुलझाने का प्रयास कर पायेगा। रोिर के द्वारा निनिध चरर्ें के इस प्रकार से व्याख्यानयि नकया गया।
1. एक व्यद्धक्त एक आकद्धस्मक ननर्णय लेिे हुये सहायिा के नलये आिा है ।
2. परामशण दािा यह द्धस्थनि उत्पन्न करिा है नक प्राथी अपनी समस्या को समझे और समाधान
करने की दििा उत्पन्न कर ले।
3. परामशणदािा स्विि प्रनिनक्रया को प्रोत्सानहि करिा है यह स्विि प्रनिनक्रया नकसी समस्या के
सन्दभण में ही होगी। यह उिेिना ि सिगिा उत्पन्न करे गी। प्राथी को यह बिाने का प्रयास
नही नकया िािा नक िह सही है या गलि। परामशणदािा प्राथी को िैसा ही स्वीकार कर लेिा
है िैसा िह है ।
4. परामशणदािा नकारात्मक प्रनिनक्रया को भी स्वीकृनि दे िा है और उनमें निनिधिा लाने का प्रयास
करिा है ।
5. इसके पचाि् अप्रत्यानशि सत्य ऊपर आिा है िो नक नकारात्मक प्रनिनक्रया के पचाि् उद्भि
होिा है ।
6. परामशणदािा सकारात्मक अनुभिों का निश्लेषर् कर स्वीकृनि दे िा है ।
7. नफर स्वानुभि ि आत्मज्ञान का उद्भि होिा है ।

परामर्श प्रविया का लक्ष्य

परामशण प्रनक्रया का लक्ष् सिणथा प्राथी को पूर्ण सहयोग एिं सिम बनाना होिा है । परन्तु परामशण की प्रकृनि
के अनुसार लक्ष्ों को पररभानषि अलग से नकया िािा है । ब्वाय एिं िी0 िे 0 पाहन ने प्राथी केद्धिि परामशण
की प्रकृनि पर निचार नदया नक निनशष्ट रूप से माध्यनमक स्तर पर निद्याथ्री को ‘‘अनधक पररपक्व एिं स्वयं
नक्रयाशील बनने , निधेयात्मक एिं रचनात्मक नदशा की ओर अग्रसर होने में सहायिा प्रदान करने िथा
अनधकानधक पररपक्व ढं ग से निचार-निमशण में सहायिा प्रदान करना परामशण प्रनक्रया का लक्ष् है ।’’

सामान्य िैदाविक परामर्श पर विचार- निमशण प्रकि करिे हुये ब्वाय एिं पाइन ने नलखा नक- यह ‘‘प्राथी
को अनधक अच्छा करने में सहायिा दे ने अथाण ि् प्राथी को स्वयं के महत् को स्वीकार करने , िास्तनिक ‘स्व’
एिं आदशण ‘स्व’ के बीच के अन्तर को नमिाने में सहायिा दे ने िथा स्वयं की व्यद्धक्तगि समस्याओं में
अपेिाकृि सफलिापूिणक निचार करने में सहायिा प्रदान करने से सम्बद्धन्धि है ।’’ अमेररकन मनोिैज्ञाननक संर्
ने दू सरी ओर परामशण के िीन उद्दे श्य बिाये-

1. प्राथी को इस योग्य बनाना नक िह स्वयं के अनभप्रेरकों, आत्म दृनष्टकोर्ों ि िमिाओं को यथाण थ रूप
में स्वीकार कर ले।
2. प्राथी को सामानिक, आनथणक एिं व्यािसानयक िािािरर् के साथ िकणयुक्त सामंिस्य स्थानपि करने में
सहयोग दे ना।
3. व्यद्धक्तगि निनभन्निाओं के प्रनि समाि को िागरूक करना निससे नक रोिगार ि सामानिक सम्बन्धों
में भी प्रश्रय नमले।

इसके आधार पर परामशण के िीन उद्दे श्य मुख्य रूप से स्पष्ट हुये -

1. आत्मज्ञाि/आत्मविश्लेषण- परामशणदािा प्राथी को दििा उत्पन्न करने में सहायिा दे िा है नक से िाथी


स्वयं का मूल्यां कन कर सके। स्वयं की िमिा, योग्यिा एिं रूनच को िास्तनिक रूप में िानने के नलये
ही परामशण की आिश्यकिा होिी है और परामशण का यही लक्ष् होिा है नक िह प्राथी को
आत्मनिश्लेषर् के लायक बना दें । नलयोना िायलर ने नलखा नक-’’परामशण को एक सहायक प्रनक्रया के
रूप में समझा िाना चानहये निसका उद्दे श्य व्यद्धक्त को पररिनिणि करना नही है िरन् उसके उन स्रोिों
के उपयोग में सिम बनाना है िो उसके पास इस िीिन का सामना करने हे िु उपलब्ध है । िब
परामशण से इस उपलद्धब्ध की अपेिा करें गे नक प्राथी स्वयं रचनात्मक कायण करने लगे।’’
2. आत्म स्वीकृव त- परामशण का दू सरा महत्पूर्ण उद्दे श्य है प्राथी को स्वयं को स्वीकृि करने में सहयोग
दे ना है । आत्म स्वीकृनि का अनभप्राय अपने प्रनि आदरभाि रखिे हुये उनचि दृनष्टकोर् का ननमाण र्
करना है । आत्म स्वीकृनि की अिस्था िब आिी है िबनक प्राथी अपनी सीमाओं, कनमयों ि योग्यिाओं
के निषय में उनचि ज्ञान पा िािा है । आत्मनिश्लेषर् के पचाि् आत्मस्वीकृनि व्यद्धक्त को हिाशा ि
ननराशा से बचािी है ।
3. सामावजक सामंजस्य- परामशण प्रनक्रया का एक प्रमुख लक्ष् व्यद्धक्त का समाि एिं िािािरर् से
सामंिस्य बैिाना भी है । प्राथी समायोिन न कर पाने के कारर् समस्याग्रस्त होिा है । सामानिक
िीिन ि आिश्यकिाओं को समझना एिं उसके अनुकूल स्वयं को ढालने की दििा उत्पन्न करना
परामशण का ही कायण है ।

परामर्श प्रविया के वसद्धान्त

परामशण की सम्पूर्ण प्रनक्रया एक नननचि नसिान्त पर आधाररि है । मैकेननयल और शैफ्टल ने इन नसिान्तों की


चचाण की है -

1. स्वीकृवत का वसद्धान्त-इस नसिान्त के अनुसार प्राथी के पूरे व्यद्धक्तत् को समझा िािा है और


उसके अनधकारों का पूरा सिान नकया िािा है और प्राथी के भािनाओं को स्वीकार कर सही नदशा
दी िािी है ।
2. सम्माि का वसद्धान्त-इसमें प्राथी के निचारें भािनाओं ि समस्याओं को स्वीकृनि दी िािी है और
उसे पूरा आदर नदया िािा है ।
3. उपयुिता का वसद्धान्त-परामशण में इस बाि का ध्यान रखा िािा है नक प्राथी को ऐसा अनुभि
हो िाये नक परामशण प्रनक्रया पूरी िरह से उसके नलये उपयुक्त है ।
4. सहसम्बन्ध का वसद्धान्त-परामशण प्रनक्रया में परामशणदािा प्राथी के निचारों ि भािनाओं के साथ
सहसम्बन्ध बनाने का प्रयास करिा है और उसके साथ िारिम्यिा बनाकर चलिा है ।
5. सोश्यता का वसद्धान्त-सम्पूर्ण परामशण प्रनक्रया सोद्दे श्य होिी है ।
6. लोकििीय आदशे का नसिान्त-सम्पूर्ण परामशण प्रनक्रया, लोकिाद्धिक आदशो से संचानलि होिी है
इसमें व्यद्धक्तगि नभन्निाओं को सिान करिे हुये सभी के व्यद्धक्तत् का आदर नकया िािा है और
प्राथी को महत् दे िे हुये उसे ननर्णय लेने के योग्य बनाया िािा है ।
7. लचीलेपि का वसद्धान्त-परामशण प्रनक्रया लचीली होिी है िह प्राथी की आिश्यकिा के अनुसार
पररिनिणि की िािी है और उसका सम्पूर्ण स्वरूप प्राथी के नहि पर ननधाण ररि होिा है ।

परामर्श प्रविया में ध्याि दे िे योग्य बातें

परामशण प्रनक्रया उद्दे श्यों पर आधाररि होिी है । इसका संचालन बहुि ही सािधानीपूिणक करना पडिा है ।
अन्यथा उद्दे श्यों की प्राद्धप्त में कनिनाई आिी है । अि: इस बाि की आिश्यकिा है नक परामशण की प्रनक्रया
ननम् नबजदु ओं को ध्यान में रखिे हुए सािधानी पूिणक संचानलि की िाए-

1. परामशण बहुि ही शां ि एिं अनुकूल िािािरर् में संचानलि होनी चानहए।
2. परामशण के नलए परामशण प्राथी स्वयं उत्सानहि हो एिं प्रनिभाग के नलए िैयार हो।
3. परामशण प्रनक्रया के संचालन हे िु यह प्रयास नकया िाए नक निश्वसनीय सूचनायें एकत्र हो निससे नक
निश्लेशर् कर उनचि मागणदशणन नदया िा सके।
4. प्रनक्रया में प्राथी को अपनी बाि रखने का पूरा अिसर नदया िाना चानहए। निससे नक उनचि एिं
अिसरानुकूल िानकाररयाँ नमल सकें।
5. परामशण प्रनक्रया परामशण प्राथी को माननसक रूप से पूरी िरह से िैयार करके ही प्रारम्भ की िाए।
6. परामशण प्रनक्रया बहुि ही सहि िािािरर् एिं प्रकृनि के साथ प्रारम्भ की िानी चानहए निससे नक
प्राथी अपने आप को पू री िरह से सहि अनुभि कर सकें।
7. परामशण प्रनक्रया परामशण दािा को प्राथी के साथ पूरी िरह से सामंिस्य नबिाकर ही संचानलि करना
चानहए निससे नक प्राथी को अपनी गनि से िथ्ों को समझने में सहायिा नमले।
8. परामशण प्रनक्रया में यह आिश्यक है नक परामशण दािा का दृनष्टकोर् सकारात्मक हो निससे नक प्राथी
की सोच एिं समझ सकारात्मक मागण की ओर ही िाए।
9. परामशण प्रनक्रया में कुछ आिश्यक िथ्ों की गोपनीयिा बनायी रखी िानी चानहए निससे नक प्राथी उन
िथ्ों को भी परामशण के समय रखने में सरलिा का अनुभि करें ।
10. इस प्रनक्रया में यह आिश्यक होिा है नक प्राप्त िथ्ों का पयाण प्त एिं सही निश्लेशर् करने के पचाि्
ही उनका संश्लेशर् करके सही ननष्कषण की ओर पहँ ेुचा िाए।
11. परामशण प्रनक्रया में यनद आिश्यक हो िो परामशण प्राथी से सम्बद्धन्धि लोगों से अिश्य ही सम्बन्ध
स्थानपि नकया िाए निससे नक पूर्ण िानकारी नमल सकें।
12. समस्या से सम्बद्धन्धि पू र्ण िथ्ों के िानकारी के पचाि् ही परामशण की प्रनक्रया प्रारम्भ की िाए।
13. परामशणदािा को यह ध्यान में रखना चानहए नक िह अपने नकसी भी निचार एिं प्रनिनक्रया को प्राथी
को मानने के नलए बाध्य ना करें । िह प्राथी को स्विििा दे नक िह परामशणदािा की निचारों एिं
प्रनिनक्रया से सहमि या असहमि हो सकिा है ।

इन नबजदु ओं को ध्यान में रखकर यनद परामशण प्रनक्रया संचानलि की िािी है िो अिश्य ही िह लक्ष्ोन्मुखी
होगी।
Ques-42 भारिीय सन्दभण में परामशण की व्याख्या कीनिये ?

Ans-

Ques-43 ननदे शन के स्वरुप की व्याख्या करिे हुए इसके संप्रत्यय को सनिस्तार समझाइये ?

Ans-
Ques-44 सामान्य मनुष्य के िीिन में ननदे शन की आिश्यकिा के महत्त्व को समझाइये साथ ही ननदे शन हे िु
बढिी हुई मां ग को प्रभानिि करने िाले कारकों की व्याख्या कीनिये ?

Ans-
Ques-45 ननदे शन को पररभानषि करिे हुए इसके निनभन्न िेत्रों का िर्णन कीनिये ?

Ans-
Ques-46 ननदे शन एिं परामशण में अंिर को समझाइये ?

Ans-
Ques-47 निप्पर्ी कीनिये ?

(!) सूचना सेिा (!!) मूल्यां कन सेिा (!!!) परामशण सेिा

(!V) स्थापन सेिा (V) पू िाण नभमुखीकरन सेिा (V!) सुधारात्मक सेिा (V!!) अनुििणन सेिा

Ans-
Ques-48 ननदे शन कायण क्रमों में मािा-नपिा एिं अनभभािकों की भूनमका को समझाइये ?

Ans-
Ques-49 बच्चों की ननदे शन सम्बन्धी आिश्यकिा की व्याख्या कीनिये , ननदे शन कायणक्रम के संगिन और
प्रशासन के नसिां ि का िर्णन कीनिये ?

Ans-
Ques-50 मौनलक संगिनात्मक प्रारूप समझाइये ?

Ans-
Ques-51 व्यािसानयक ननदे शन में मनोिैज्ञाननकों की क्या भूनमका है । निस्तार पूिणक समझाइये ?

Ans-
Ques-52 समूह ननदे शन प्रनिनध की व्याख्या करिे हुए ननदे शन एिं परामशण की आिश्यकिा पर भी चचाण
कीनिये ?

Ans-
Ques-53 समूह ननदे शन एिं परामशणन प्रनक्रया को समझाइये ?

Ans-
Ques-54 संज्ञानात्मक व्यिहार नचनकत्सा का मूल्यां कन कीनिये ?

Ans-
Ques-55 िनाि प्रबंधन की निनभन्न निनधयों की व्याख्या कीनिये ?

Ans-
Ques-56 िनाि प्रबंधन की इसके निनभन्न नसिां िों सनहि व्याख्या कीनिये ?

Ans-
Ques-57 नचंिा निकृनि से आप क्या समझिे है , नििेचना कीनिए ?

Ans- क्या आपने कभी सोचा है नक आप अपने इम्तहानों से पहले काँ प क्यों रहे थे या नकसी नौकरी के नलए
सािात्कार से पहले आपकी हथेनलयों में पसीना क्यों आिा था? ऩिक्र या व्यग्रिा या नचंिा की ये भािनाएँ ,
नकसी महत्त्वपू र्ण र्िनाक्रम के नलए खुद को िैयार करने का, शरीर का एक कुदरिी िरीक़ा है । आपने ये भी
गौर नकया होगा नक एक बार र्िनाक्रम शुरू हो िाए िो आप कैसे शां ि होने लगिे हैं , आपकी सां सें सहि
हो िािी हैं और आपका हृदय उछलना बंद कर दे िा है । ऐसी नचंिाएँ िास्ति में हमें बेहिर प्रदशणन करने में
मदद ही करिी हैं क्योंनक िे हमें और सिग कर दे िी हैं । लेनकन कुछ लोगों को ये नचंिा या र्बराहि नबना
नकसी स्पष्ट ििह के होने लगिी है । अगर आप अपनी नचंिाओं पर क़ाबू पाने में कनिनाई महसू स करिे हैं
और नचंिा की लगािार भािना आपके रोज़मराण के कायों को करने में आपकी सिमिा में बाधा पहुँ चाने लगिी
हैं िो ऐसी द्धस्थनि दु नचंिा या नचं िा रोग कही िा सकिी है ।

दु वचंता या वचंता रोग के लक्षण क्या हैं ?

हर नकसी को नचंिा या र्बराहि होिी है , इसनलए ये कहना कनिन है नक उसे निकार के िौर पर कब
पहचाना िा सकिा है । अगर आपकी नचंिा से आपकी कायणिमिा पर एक समयािनध के दौरान बुरा असर
पडिा है िो आपको नकसी माननसक स्वास्थ्य निशे षज्ञ की सलाह लेनी चानहए। दु नचंिा या नचंिा रोग कई िरह
के होिे हैं लेनकन उनके सामान्य लिर् इस िरह से हैं -

• हृदयगनि में बढोिरी, सां स फूलना

• स्नायुओं में िनाि बढ िाना

• छािी में द्धखंचाि महसूस होना

• ननराधार और अिानकणक नचंिाओं में बढोिरी और बेचैनी या व्यग्रिा

• अनािश्यक िस्तुओं के प्रनि रुझान बढना निससे व्यिहार में नज़द्दीपन आ िािा है ।

अगर आपको अपने नकसी दोस्त या पररिार के सदस्य में ये नचन्ह नज़र आए हैं , िो आपको उनकी संभानिि
दशा के बारे में उनसे बाि करनी चानहए और उन्हें नकसी माननसक स्वास्थ्य निशेषज्ञ से नमलने की सलाह भी
दे नी चानहए।

दु वचंता या वचंता रोग का कारण क्या है ?

पररिार का इनिहासः निन व्यद्धक्तयों के पररिार में माननसक स्वास्थ्य से िुडी समस्याओं की नहस्टर ी होिी है ,
उन्हें अक़्सर नचंिा का निकार हो सकिा है । नमसाल के नलए ओसीडी नाम का निकार, एक पीढी से दू सरी
पीढी में िा सकिा है ।

 िनािपूर्ण र्िनाएँ : कायणस्थल पर िनाि, अपने नकसी नप्रय व्यद्धक्त का ननधन, संबंधों में दरार आनद से
भी नचंिा के लिर् उभर सकिे हैं ।
 स्वास्थ्य से िुडे मामले: थायरॉयड की समस्या, दमा, डायनबिीज़ या हृदय रोग से दु नचंिा या नचंिा रोग
पैदा हो सकिा है . अिसाद से पीनडि लोग भी व्यग्रिा के निकार की चपेि में आ सकिे हैं ।
उदाहरर् के नलए, िो व्यद्धक्त लंबे समय से अिसाद से िूझ रहा हो, उसकी कायणिमिा में नगरािि
आने लगिी है । इससे कायण से िुडे िनाि बढिे हैं और नफर दु नचंिा का िन्म होिा है ।
 नशे का इस्तेमालः ऐसे लोग िो बडे पैमाने पर डरग, शराब या नकसी दू सरे नशे के आदी हो िािे हैं ,
उन्हें भी दु नचंिा या नचंिा रोग हो िािा है . नशे का असर िब खत्म होने लगिा है िो र्बराहि बढने
लगिी है ।
 व्यद्धक्तत् से िुडे कारर्ः कभी कभी, कुछ खास व्यद्धक्तत् िाले लोगों में, िैसे पूर्णिािादी (पऱिेक्शननस्ट)
लोगों में या ऐसे व्यद्धक्तयों में िो ननयंनत्रि रहना चाहिे हैं , उनमें भी र्बराहि और नचंिा से िुडे मसले
पनप सकिे हैं ।

दु वचंता या वचंता रोग के प्रकार-

दु नचंिा या र्बराहि लोगों में अलग अलग ढं ग से असर डालिी है निससे कई नकस्म के निकार उत्पन्न होिे
हैं . इनमें सबसे आम़िहम निकार इस िरह से हैं :-

 सामान्यीकृत दु वचंता या वचंता रोग विकार:- िेनरलाइज़्ड ऐंगज़ाइअिी नडसऑडण र (िीएडी)- िीएडी
से पीनडि लोगो में निनभन्न द्धस्थनियों और र्िनाओं के दौरान अत्यनधक र्बराहि और नचंिा दे खी िािी
है । िे अपनी व्यग्रिाओं पर काबू नहीं रख पािे हैं । उन्हें बेचैनी होने लगिी है और हर समय ऐसा
लगिा है नक िे फँस गए हैं या नबल्कुल कगार पर हैं । ऐसे लोग नकसी एक निशेष चीज़ के प्रनि
नचंनिि या व्यग्र नहीं होिे हैं और इन भािनाओं के उभरने की कोई एक नननचि ििह नहीं होिी है ।

 आसि बाध्यकारी विकार:- ऑब्सेनसि कम्पलनसि नडसऑडण र (ओसीडी)- ओसीडी से पीनडि लोगों
को लगािार ऐसे निचार आिे रहिे हैं या ऐसे भय सिािे रहिे हैं निनसे उनकी व्यग्रिा बढ िािी है ।िे
इस नचंिाकुल द्धस्थनि से पीछा छु डाने के नलए या इससे राहि पाने के नलए एक ही िरह की हरकि
दोहरािे रहिे हैं . नमसाल के नलए, कीिार्ुओं और संक्रमर् से आशंनकि और भयािुर व्यद्धक्त लगािार
अपने हाथ या र्र के बिणन धोिा रहे गा।

 समाज का र्र:- सोशल ़िोनबया या सामानिक नचंिा निकार, सोशल ऐंगज़ाइअिी नडसऑडण र
(एसएडी)- इस िरह के निकार से पीनडि लोगों को सामानिक या सािण िननक प्रदशणन की द्धस्थनियों में
डर सिािा रहिा है । उन्हें समाि में िाने का भय इसनलए लगिा है क्योंनक उन्हें लगिा है नक िहाँ
उनकी परीिा होगी यानन िे अन्य लोगों के सामने ज़ानहर होंगे, उन्हें इस बाि का गहरा डर सिािा है
नक िे िो भी बोलेंगे या करें गे, इससे उनका अपमान होगा और उन्हें शनमांदगी उिानी पडे गी. ऐसे
व्यद्धक्त रोज़ाना की द्धस्थनियों को हैं डल नहीं कर पािे हैं िैसे कोई छोिी सी िॉक दे ना, छोिा सा भाषर्
दे ना या सािणिननक िगह पर भोिन करना।
 विवर्ि र्र या फोवबया:- ़िोनबया अिानकणक और ननराधार डर हैं और निन लोगों को ़िोनबया होिा
है िे व्यग्रिा या र्बराहि से बचने के नलए उन िस्तुओं या द्धस्थनियों से दू र रहने की भरसक कोनशश
करिे हैं निनसे उनमें अनािश्यक डर बन िािा है । निमान में स़िर करने , भीडभाड िाली िगह में
िाने से लेकर मकडी और ऊँची इमारिों को दे खने िक से उन्हें डर लगिा है ।
 पोस्ट ट् ॉमावटक स्ट्े स वर्सऑर्श र (पीटीएसर्ी):- अत्यनधक यािना या सदमे िाली नकसी र्िना से
गुज़रना या उसे दे खना या कोई शारीररक हमला आगे चलकर पीिीएसडी में िब्दील हो सकिा है ।
इस निकार से पीनडि व्यद्धक्त को नींद नहीं आिी हैं , िह िीक से आराम भी नहीं कर पािा है क्योंनक
उसे पुरानी बािें बार बार याद आिी रहिी हैं (र्िना का फ़्लैशबैक)।
 संत्रास का विकार (पैविक वर्सऑर्श र):- संत्रास से पीनडि लोगों को आकद्धस्मक भय के दौरे पडिे
हैं िो अननयंनत्रि होिे हैं और इसमें कई शारीररक लिर् शानमल होिे हैं िैसे चक्कर आना, सां स लेने
में िक़ली़ि और अत्यनधक पसीना आना। ऐसे अिसरों पर, उन्हें मनोिैज्ञाननक लिर्ों की नशकायि भी
होने लगिी है िैसे आसन्न निनाश या आ़िि का अहसास और आत्महं िा भािनाएँ िैसे मैं मरने ही
िाला हूँ । या मैं पागल हो िाऊँगा। ये दौरे नकसी स्पष्ट ििह से नहीं आिे हैं और व्यद्धक्त इस िरह
का दौरा दोबारा आने की नचंिा में लगािार र्ु लिा रहिा है ।
Ques-58 क्रोध क्या है ? क्रोध ननयंत्रर् की व्याख्या कीनिये ?

Ans- िोध(Anger)- िोध या गुस्सा एक भािना है । दै नहक स्तर पर क्रोध करने /होने पर हृदय की गनि बढ िािी
है ; रक्त-चाप बढ िािा है । यह भय से उपि सकिा है । भय व्यिहार में स्पष्ट रूप से व्यक्त होिा है िब
व्यद्धक्त भय के कारर् को रोकने की कोनशश करिा है । क्रोध मानि के नलए हाननकारक है । क्रोध कायरिा
का नचह्न है ।सनकी आदमी को अनधक क्रोध आिा है उसमे पररद्धस्थिीयो का बोझ झेलने का साहस और धैयण
नही होिा।क्रोध संिापयुक्त निकलिा की दशा है । क्रोध मे व्यद्धक्त की सोचने समझने की िमिा लुप्त हो िािी
है और िह समाि की निरो से नगर िािा है ।क्रोध आने का प्रमुख कारर् व्यद्धक्तगि या सामानिक अिमानना
है ।उपेनिि निरस्कृि और हे य समझे िाने िाले लोग अनधक क्रोध करिे है । क्योंनक िे क्रोध िैसी नकारात्मक
गनिनिधी के द्वारा भी समाि को नदखाना चाहिे है नक उनका भी अद्धस्तत् है ।क्रोध का ध्ये य नकसी व्यद्धक्त
निशेष या समाि से प्रेम की अपेिा करना भी होिा है ।

िोध का वियंत्रण-
िोध पर वियंत्रण (anger management) से अनभप्राय उन मनोनचनकत्सकीय निनधयों से है निनका उपयोग
करके एिं निनके अभ्यास से क्रोधी स्वभाि के व्यद्धक्त लाभाद्धन्वि हो सकिे हैं । क्रोध को ननयंत्रर् में रखने से
बहुि से लाभ होिे हैं । इसके नलये कुछ प्रनसि निनधयाँ हैं -

 निश्रां नि िकनीक (relaxation techniques),


 संज्ञानात्मक पुनरण चना (cognitive restructuring),
 समस्या समाधान (problem solving), िथा
 संचार रर्नीनि को उन्नि बनाना (improving communication strategies)

नहजदू धमण में 'अक्रोध' को धमण के दस लिर्ों में सद्धिनलि नकया गया है । गीिा में कहा गया है -

क्रोधाि भिनि सिोहः सिोहाि स्मृनिनिभ्रमः।

स्मृनिभ्रंशाि बुद्धिनाशो बुद्धिनाशाि प्रर्श्यनि ॥

िोध पर वियंत्रण की आिश्यकता

क्रोध प्रकि करने से पहले: कायाण लय में िनाि अनधक होना धैयण िमिा को कम करिा है । िब आपके काम
का श्रेय कोई और ले लेिा है अथिा आपके काम पर प्रश्न उिािा है िो क्रोध के लिर् उभरने लगिे हैं ।
पर इससे पहले नक क्रोध हम पर हािी हो िाए हमें इसका प्रबंध करना िरूरी हो िािा है । हमें क्रोध के
मूल कारर् को िानने और समझने की िरूरि है । आप संबंनधि व्यद्धक्त से बािचीि कर सकिे हैं अथिा
सीननयर के साथ मीनिं ग भी कर सकिे हैं । सीननयर द्वारा आपके काम पर प्रश्न बदला लेने के नलए ित्पर न
रहें ।धैयण मानि का सबसे बडा गुर् है । गलिी मानिीय स्वभाि है , हमेशा सिीक होना सम्भि नहीं है ।

Ques-59 िोकन इकॉनमी नचनकत्सा क्या है ?

Ans- टोकि इकॉिमी वचवकत्सा- टोकि अर्थशव्यिस्र्था कायशिम उनके पूिणििी बीएफ न्वििर (1904-1990) द्वारा
शुरू नकए गए ऑपरे निि कंडीशननंग (सुदृढीकरर्, दं ड, निलुप्त होने और ननयंत्रर् उिेिनाओं) के नसिां िों पर
आधाररि हैं । ऑपरे शन िकनीक अत्यनधक प्रभािी होिी है और व्यिहार को बनाए रखने , बढाने या र्िाने के
नलए व्यिहार उपचारों में ििणमान में उपयोग नकया िािा है ।
इस प्रकार, हम इसे व्यिहार को प्रभानिि करने िाले हद िक व्यिहार के रूप में समझिे हैं , व्यिहार के बाद
के पररर्ामों पर ननभणर करिा है , मिबूि करिा है या कमिोर करिा है , अथाण ि व्यिहार के इनिहास में
आकद्धस्मकिा या मौका और इसके पररर्ाम।

टोकि अर्थशव्यिस्र्था कायशिम

एक िोकन अथणव्यिस्था सुदृढीकरर् और सिा प्रनक्रयाओं का एक संयोिन है । इसमें मुख्य रूप से एक


सामान्यीकृि ररस्टे न्सर (िै ब) दे ना होिा है , िब लक्ष् व्यिहार अनुनचि होने पर िां छनीय प्रनिनक्रया और / या
िापस ले ली िािी है । इस मामले में ररकॉडण का एक रीइज़िॉमणर के रूप में एक मूल्य है , क्योंनक यह निषय
निनभन्न ररइन्फोसणसण के नलए भुना सकिा है , इसनलए अथणव्यिस्था का नाम। काडण आपके "पैसे" की िरह है ।
इस प्रकार हमें िां छनीय व्यिहार के बाद ररइऩिॉमणर को लगािार दे ने की आिश्यकिा नहीं है क्योंनक िे
पहले से ही ररकॉडण -पुरस्कार से सहमि हैं । यनद निषय अच्छी िरह से कायण करिा है िो स्वचानलि रूप से
पिा चलेगा नक "X" नचप्स।

कायशिम के घटक टोकि अर्थशव्यिस्र्था

 उन व्यिहारों की सूची, निन्हें आप संशोनधि करना चाहिे हैं । उदाहरर् के नलए: किा में ध्यान दें , मेि
को साफ करें , बैिें, समय की पाबंदी करें आनद।
 उन नचप्स की संख्या को इं नगि करें निन्हें हर अच्छे व्यिहार के नलए अनिणि नकया िा सकिा है । यह
व्यिहार के महत् की नडग्री के आधार पर आपको एक नननचि उच्च या ननम् मूल्य दे सकिा है ।
 अनिणि नकए गए िोकन या नबंदुओं के आदान-प्रदान के नलए निनशष्ट रीइं िऱिोसण की सूची बनाएं ।
उदाहरर् के नलए: नकसी नफल्म को दे खने , पाकण में िाने , कुछ छोिी चीि खरीदने के नलए (िर े नडं ग
काडण , मैगज़ीन, नकिाबें)। हमेशा लगाम लगाने की कोनशश करें कुछ शैनिक है , हम सुदृढीकरर् नहीं
दें गे नक भले ही व्यद्धक्त सकारात्मक बनािा है िास्ति में उसके नलए बुरा है ।
 खेल को उिागर करना। आम िौर पर आप एक निनशष्ट स्थान पर एक िरह का बोडण लगा सकिे हैं
या पानिण यों के बीच नकसी प्रकार का "अनुबंध" स्थानपि कर सकिे हैं िहां व्याख्या करिे हैं । उस
समय िहां नचप्स नििररि नकया िाएगा, इसका मूल्य और िब िे पुष्ट द्वारा बदला िा सकिा है ।
आपको या िो यह चुनना होगा नक अगर बहुि दे र हो गई िो हमें छोिे बच्चे को पाकण करने की
अनुमनि नहीं दी िाएगी। यनद आपने नलखा है नक ननयम समझेंगे और निरोध नहीं करें गे: यह एक
खेल है और खेल निशेष रूप से बच्चों को प्यार करिा है । यनद आिश्यक हो िो हमें कायणक्रम की
अिनध और एक अंनिम लक्ष् को प्राप्त करने की भी आिश्यकिा है ।

टोकि

िब भी कोई िां नछि व्यिहार (सकारात्मक सुदृढीकरर्) इसे बढाने के नलए नकया िािा है , या कायणक्रम की
शुरुआि में कुल नचप्स नििररि करने के नलए िै ब को प्रस्तुि नकया िा सकिा है , िो इसे (प्रनिनक्रया लागि)
को कम करने की कोनशश करने के नलए एक व्यिहार समस्या को हिाने के नलए।

प्रवतविया लागत

हां , समस्या व्यिहार को खत्म करने के नलए नननचि रूप से कुछ इस निनध को आिाज़ दें गे। कुछ िषों के
नलए स्पेन में उपयोग नकए िाने िाले पॉइं ि डराइनिंग लाइसेंस में बहुि अनधक मनोनिज्ञान है । यह प्रर्ाली
िोकन अथणव्यिस्था पर आधाररि है । आप 12 अंकों के काडण से शुरू करिे हैं और इस प्रकार के अपराध
पर ननभणर करिे हैं नक आपने काडण के संभानिि नुकसान को कम कर नदया है । इसके अलािा, यनद आप
अच्छे हैं और आपके पास दो साल में कोई उल्लंर्न नहीं है , िो DGT आपको "लाइसेंस" पर बढाए गए अंकों
के साथ "पुरस्कार" दे िा है । इस मामले में पु ष्टाहार नबंदुओं के कुशन की शां नि है , उिीद नहीं है नक DGT
थोडा अिकाश दे गा। हालां नक यह लाइसेंस निीनीकरर् शुल्क या उस िरह की कुछ कमी के साथ डराइनिंग
में उत्कृष्टिा को पुरस्कृि करने के नलए चोि नहीं पहुं चाएगा, लेनकन मुझे लगिा है नक िह राज् प्रशासन को
कम पसंद करिा है ;)

प्रनिनक्रया लागि के नलए कायणक्रम प्रकार की िोकन अथणव्यिस्था का उपयोग आमिौर पर िब नकया िािा है
िब उच्च संभािना होिी है नक नकसी दे श की सडक पर 50 नकमी / र्ं िा की सीमा के साथ सु रनिि रूप
से िेत्रों में अपराध (नछपे हुए स्पीड कैमरा सुरनिि रूप से ...)। शुरुआि में सभी नचप्स नििररि करें यह
एक महान बढाने के रूप में कायण करिा है , कोई भी आपके पास पहले से मौिूद चीज़ों को खोना नहीं
चाहिा है , और व्यद्धक्त में आत्मनिश्वास को प्रेररि करिा है क्योंनक आप अपने व्यिहार के अनुसार नचप्स के
ननयंत्रर् खचण को अनुमनि दे िे हैं ।

टोकि अर्थशव्यिस्र्था को लागू करिे के सुझाि और वसफाररर्ें

कायणक्रम की अिनध के नलए सबसे बडी संभि सफलिा प्राप्त करने के नलए कुशल संचालन के नलए इन
नबंदुओं को ध्यान में रखना है :

 अच्छी िरह से पुनननणिेशक का चयन करें । कई प्रकार के रीइन्फोसेंि होने चानहए और यह कम से


कम एक को पसंद करिे हैं । कल्पना करें नक आप अपने पररिार में दो बच्चों के साथ आिेदन करिे
हैं , एक आदमी का बूस्टर दू सरे के नलए इिना नहीं। एक बस चाहिा है नक पैि पैिरोल के काडण और
अन्य अपने दोस्तों के साथ फुिबॉल खेलना पसंद करें । हमारे पास प्रोग्रामसण और प्रोग्राम को लागू
करने िाले लोगों के बीच रीइं फोम्सण की एक सूची होगी िो पॉनलनशं ग, बढिे या र्ििे िा सकिी है ।
 सुदृढीकरर् की दे री का अच्छा प्रबंधन। प्रोग्राम को शुरू करने के नलए ररकॉडण को अनधक बार
नििररि नकया िाना चानहए और इसे प्रोग्राम की गनिशीलिा को प्रेररि करने और नचप्स प्राप्त करने के
नलए असंभि में नहीं नगरने के नलए और अनधक रीइन्फोसणरों को बदला िा सकिा है । हालाँ नक, हम इसे
और अनधक प्रिीकात्मक (आं िररक) अनधक प्रिीकात्मक (आं िररक) बनाना चाहिे हैं , इसनलए संनचि
नचप्स को इस संबंध में लाभ होगा और इसका एक प्रिीकात्मक मूल्य होगा। इसे प्राप्त करने के नलए,
हम खेल के ननयमों में अनग्रम रूप से डाल सकिे हैं िो कायणक्रम में अनिणि प्रगनि के प्रकाश में
संशोनधि नकया िाएगा।
 याद रखें नक कायणक्रम का लक्ष् आं िररक रूप से , नचप्स के नबना लक्ष् व्यिहार को बढाना या र्िाना
है । इसनलए, कायणक्रम को चरर्बि नकया िाएगा िानक मूल्य िधणक नचप्स स्वयं को मिबूि करने िाले
व्यिहारों और सामानिक सुदृढीकरर् के रूप में संचानलि करने के मूल्य पर हो िो अच्छे व्यिहार के
प्रदशणन को उत्पन्न करिा है । उदाहरर् के नलए, आप सामानिक रूप से कहिे हैं नक आपके पास 15
अंक काडण है , है ना? आप सामानिक समारोहों में उनके बारे में डींग मारने के नलए नहीं हारें गे;)

यनद हम इन नबंदुओं से सािधान नहीं हैं िो हम इस नुकसान में पड सकिे हैं नक व्यिहार केिल कायणक्रम
की अिनध के नलए होिा है और यह उद्दे श्य नहीं है ।

टोकि अर्थशव्यिस्र्था कायशिमों के लाभ

 मिबूिी को िुरंि नििररि नकया िािा है , लेनकन गनिनिनध को बानधि नकए नबना। िब आप फ्लै श की
नचंगारी दे खिे हैं और आप िानिे हैं नक आपकी अथणव्यिस्था नननचि रूप से लाइसेंस को नीचे लािी
है , लेनकन गाडी चलािे रहें । या अगर नकसी बच्चे ने िे बल उिा नलया है और आपको पिा है नक
आपके पास िै ब है , िो इसे मिबूि नकया गया है , लेनकन खाने के िुरंि बाद अिकाश खोने की
आिश्यकिा नहीं है । यह पैसे की िरह है , इसे कोबरा पेरोल के रूप में खचण करने की कोई िरूरि
नहीं है ।
 िैसा नक मात्रात्मक है , आपको इस आधार पर िरािू पर रखा िा सकिा है नक क्या कायण या व्यिहार
ने बेहिर या बुरा नकया है , इसनलए मूल्यिान है । यनद उदाहरर् के नलए, आप िानलका सेि करके 2
ररकॉडण दे िे हैं लेनकन एक नदन आप िहािों को रखना भूल िािे हैं , िैसा नक हम इरादे का आकलन
कर सकिे हैं और एक नबंदु दे सकिे हैं । नननचि रूप से अगले नदन चश्मा लगािा है ।
निनभन्न प्रबलकों के नलए नचप्स का आदान-प्रदान करने के नलए संिृप्त प्रभाि से बचें। यनद हम हर
नदन कैंडी खरीदिे हैं , िो हम उन्हें थक िािे हैं , लेनकन उन नबंदुओं के साथ निनभन्न चीिें खरीद सकिे
हैं , मेरी प्रेरर्ा बढे गी।
 नद्विीयक रीइन्फोमणर िो उस समय का अनुसरर् करिे हैं िब मूिण बढाने िाला संबि िै ब हिा नदया
िािा है । िे बल सेि करने के उदाहरर् में, संभिि: िे बल सेि करिे समय बच्चा नकसी ऐसे व्यद्धक्त की
संगनि में हो, िो सामानिक रूप से (प्रिीकात्मक सुदृढीकरर्) को सुदृढ करिा हो क्योंनक आप अन्य
चीिों के बारे में ध्यान दे रहे हों या अच्छी चीिों को पकड रहे हों, िैसे व्यंिन अच्छी िरह से
पकडना। िो बेहिर िगह का आदे श नदया। दं ड नबंदुओं के मामले में, कार की खपि को धीरे -धीरे
कम करना और स्पष्ट रूप से दु र्णिना का िोद्धखम, िो हालां नक लगिा है नक एक नद्विीयक पुष्टाहार
कायणक्रम का मुख्य उद्दे श्य होना चानहए।

Ques-60 निरे चन क्या है , स्पष्ट कीनिये ?

Ans- विरे चि भारिीय नचनकत्साशास्त्र (आयुिेद) का पाररभानषक शब्द है । इसका अथण है -रे चक औषनध के
द्वारा शारीररक निकारों अथाण ि् उदर के निकारों की शुद्धि। यह पंचकमों में से एक है । आयुिेद के अनुसार
त्चारोगों के उपचार के नलए निरे चन सिोिम नचनकत्सा है ।

अरस्तु का विरे चि वसद्धांत

विरे चि वसद्धांत (Catharsis / कैथानसणस ) द्वारा अरस्तु ने प्रनिपानदि नकया नक कला और सानहत्य के द्वारा
हमारे दू नषि मनोनिकारों का उनचि रूप से निरे चन हो िािा है । सफल त्रासदी निरे चन द्वारा करुर्ा और
त्रास के भािों को उद् बुद करिी है , उनका सामंिन करिी है और इस प्रकार आनंद की भूनमका प्रस्तुि
करिी है । निरे चन से भािात्मक निश्रां नि ही नहीं होिी, भािात्मक पररष्कार भी होिा है । इस िरह अरस्तु ने
कला और काव्य को प्रशंसनीय, ग्राह्य और सायास रिनीय नसि नकया है ।

अरस्तु ने इस नसिां ि के द्वारा कला और काव्य की महिा को पुनप्रणनिनष्ठि करने का सफल प्रयास नकया।
अरस्तु के गुरु प्लेिो ने कनियों और कलाकारों को अपने आदशण राज् के बाहर रखने की नसफाररश की
थी। उनका मानना था नक काव्य हमारी िासनाओं को पोनषि करने और भडकाने में सहायक है इसनलए
ननंदनीय और त्याज् है । धानमणक और उच्च कोनि का नैनिक सानहत्य इसका अपिाद है नकंिु अनधकां श
सानहत्य इस आदशण श्रेर्ी में नहीं आिा है ।

निरे चन नसिान्त का महत्त्व बहुनिध है । प्रथम िो यह है नक उसने प्ले िो द्वारा काव्य पर लगाए गए आिेप
का ननराकरर् नकया और दू सरा यह नक उसने गि नकिने ही िषों के काव्यशास्त्रीय नचन्तन को नकसी-न-
नकसी रूप में अिश्य ही प्रभानिि नकया।

पररचय
'निरे चन' यूनानी कथानसणस (Katharsis) का नहन्दी रूपान्तर है । यूनानी नचनकत्साशास्त्र का पाररभानषक शब्द है -
‘कैथानसणस’ और भारिीय नचनकत्साशास्त्र (आयुिेद) का पाररभानषक शब्द है - ‘निरे चन’। इसका अथण है - रोचक
औषनध के द्वारा शारीररक निकारों अथाण ि् उदर के निकारों की शुद्धि। स्वास्थ्य के नलए निस प्रकार शारीररक
मल का ननष्कासन-शोधन आिश्यक है , उसी प्रकार ईष्याण , द्वे ष, लोभ, मोह और क्रोध आनद माननसक मलों का
ननष्कासन एिं शोधन आिश्यक है ।

अरस्तू ने ‘कैथानसणस’ शब्द का लािनर्क प्रयोग मानि-मन पर पडनेिाली त्रासदी के प्रभाि का उद् र्ािन करने
के नलए नकया है । त्रासदी के प्रनि प्लेिो की आपनि थी- ‘‘िह (त्रासदी) मानि की िासनाओं का दमन
करने के स्थान पर उनका पोषर् और नसंचन करिी है । िह उच्चिर ित्त्वों के बदले ननम्िर ित्त्वों को
उभारकर आत्मा में अरािकिा उत्पन्न करिी है ।’’

अरस्तू ने कैथानसणस (निरे चन) नसिान्त द्वारा प्लेिो के इस आिेप का खण्ड्नकर त्रासदी की उपादे यिा
स्थानपि की। प्लेिो ने निसे दोष नसि नकया था, अरस्तू ने उसी को गुर् के रूप में प्रस्तुि नकया। अरस्तू का
अनभमि है -

"Tragedy is an imitation of an action that is serious, complete and of a certain magnitude......


through pity and fear effecting the proper purgation or Katharsis of these emotions."

अथाण ि् त्रासदी नकसी गम्भीर स्विः पूर्ण िथा नननचि आयाम से युक्त कायण को अनुकृनि का नाम है ।...
निसके करुर्ा त्रास से उिे क द्वारा इन मनोनिकारों का उनचि नििेचन नकया िािा है ।

इसी प्रकार त्रासदी केिल अिां छनीय भािनाओं को ही उद्दीप्त नहीं करिी, अनपिु करुर्ा और त्रास के कृनत्रम
उिे क द्वारा मानि के िास्तनिक िीिन की करुर्ा और त्रास की भािनाओं का ननष्कासन करिी है ।

विरे चि का स्वरूप

निरे चन का उल्लेख अरस्तू की रचनाओं में केिल दो स्थानों पर नमलिा है । प्रथम उल्लेख उसके ‘पोयनिक्स’
(काव्यशास्त्र) ग्रंथ में, िहाँ िर ै िेडी के स्वरूप की ओर संकेि नकया गया है और दू सरा ‘रािनीनिक’ नामक ग्रंथ
में िहाँ उन्होंने संगीि की उपयोनगिा प्रनिपानदि की है । इन स्थलों पर उन्होंने निरे चन शब्द का सूत्र रूप में
एिं उसके स्वरूप की चचाण की है । अरस्तू का कथन है - ‘‘संगीि का अध्ययन एक नहीं िरन् अनेक उद्दे श्यों
की नसद्धि के नलए होना चानहए, अथाण ि् नशिा के नलए निरे चन (शुद्धि) के नलए। संगीि से बौद्धिक आनन्द की
भी उपलद्धब्ध होिी है । ..... धानमणक रागों के प्रभाि से िे शान्त हो िािे हैं , मानों उनके आिेश का शमन
और निरे चन हो गया हो।

इस प्रकार निरे चन से अनभप्राय शुद्धि से है । अरस्तू के ये निचार त्रासदी-नििेचन के सन्दभण में फुिकर रूप
में नमलिे हैं । निशेष सुव्यिद्धस्थिरूप से इनका सम्पादन नहीं नकया गया है ।

आधुननक युग में अरस्तू के सीनमि और अल्प शब्दों ने पूर्ण काव्य-शास्त्रीय नसिान्त का रूप धारर् कर
नलया है । अिः एक प्रश्न स्वाभानिकरूप से उिा नक करुर्ा और त्रास के उिे क िथा रे चन से अरस्तू का
मूलिः क्या अनभप्राय था? इस सन्दभण में अरस्तू के परििी व्याख्याकारों ने निरे चन के नभन्न-नभन्न अथण और
व्याख्याएँ प्रस्तुि कीं-
धमशपरक अर्थश

अरस्तू के व्याख्याकारों में प्रो॰ नगल्बिण मरे और नलनि ने निरे चन की धमणपरक व्याख्या प्रस्तुि की है । धमणपरक
अथण की एक निशेष पृष्ठभूनम है । इसका सम्बन्ध धानमणक उत्सिों से है । प्रो॰ नगल्बिण मरे का कथन है नक -
‘‘यूनान में नदओन्यूसस नामक दे ििा से सम्बि उत्सि अपने आप में एक प्रकार की शुद्धि का प्रिीक था,
निसमें निगि् समय के कलुष और पाप एिं मृत्यु-संसगों से मुद्धक्त नमल िािी है । इस प्रकार बाह्य निकारों
द्वारा आन्तररक निकारों की शद्धन्त का यह उपाय अरस्तू के समय में धानमणक संस्थाओं में काफी प्रचनलि था।
उन्होंने इसका लािनर्क प्रयोग उसी के आधार पर नकया है और निरे चन का अथण हुआ- ‘‘बाह्य उिेिना
और अंि में उसके शमन द्वारा आद्धत्मक शुद्धि और शाद्धन्त।’’

िीवतपरक अर्थश

बारनेि नामक िमणन निद्वान ने निरे चन की नीनिपरक व्याख्या की है । उसके अनुसार मानि-मन अनेक
मनोनिकारों से आक्रान्त रहिा है । निनमें करुर् और भय, मूलिः दु ःखद मनोिेग हैं । त्रासदी रं गमंच पर
अिास्तनिक पररद्धस्थनियों द्वारा इन्हें अनिरं निि रूप में प्रस्तुिकर कृनत्रम अस्पष्ट उपायों से प्रेिक के मन में
िासना रूप में द्धस्थि इन मनोिेगों के दे श का ननराकरर् और उसके पररर्ामस्वरूप माननसक सामंिस्य की
स्थापना करिी है । अिः निरे चन का नीनिपरक अथण हुआ - मनोनिकारों के उिेिन के उपरान्त उद्वे ग का
शमन और िज्जन्य माननसक निशदिा।

ििणमान मनोनिज्ञान िथा मनोनिश्लेषर् शास्त्र भी इस अथण की पुनष्ट करिे हैं । माननसक स्वास्थ्य की साधक होने
के कारर् यह पिनि नैनिक मानी गई है ।

कलापरक अर्थश

गेिे और अंग्रेिी के स्वच्छन्दिािादी कनि आलोचकों में निरे चन के कलापरक अथण के संकेि नमलिे हैं । अरस्तू
के प्रनसि व्याख्याकार प्रो॰ बूचर का अनभमि है नक निरे चन केिल मनोनिज्ञान अथिा ननदानशास्त्र के एक
िथ् निशेष का िाचक न होकर, एक कला-नसिान्त का अनभव्यंिक है । इस प्रकार त्रासदी का किणव्य-कमण
केिल करुर्ा या त्रास के नलए अनभव्यद्धक्त का माध्यम प्रस्तुि करना ही नहीं अनपिु इन्हें एक सुनननचि
कलात्मक पररिोष प्रदान करना है । इनको कला के माध्यम में ढालकर पररष्कृि और स्पष्ट करना है । निरे चन
का अथण यहाँ व्यापक है - माननसक संिुलन इसका पूिण भाग मात्र है , पररर्नि उसकी कलात्मक पररिोष का
पररष्कार ही है निसके नबना त्रासदी के कलागि आस्वाद का िृि पूरा नहीं होिा।

प्रश्न उििा है नक उपयुण क्त िीनों अथों में से कौन सा अथण अरस्तू के मि के सिाण नधक ननकि है ? यद्यनप
ित्कालीन धानमणक पररद्धस्थनियों से अरस्तू का प्रभानिि होना स्वाभानिक है और स्वयं धानमणक सं गीि की ओर
अरस्तू ने संकेि भी नकया है नक निस प्रकार धानमणक संगीि श्रोिाओं के भािों को उिेनिि कर नफर शान्त
करिा है , उसी प्रकार त्रासदी प्रेिक के भय ओर करुर्ा के भािों को िगाकर बाद में उन्हें उपशनमि करिी
है । त्रासदी के सम्बन्ध में यह मि अिरशः िीक नहीं है , क्योंनक संगीि द्वारा िीक नकए िानेिाले व्यद्धक्त पहले
ही भािाक्रान्त होिे थे, िबनक प्रेिागृह में िानेिाले व्यद्धक्त करुर्ा या भय की माननसक द्धस्थनि में नहीं होिे।
अिः निरे चन नसिान्त की प्रकल्पना पर उक्त प्रथा का प्रभाि अप्रत्यि िो माना िा सकिा है ; नकन्तु सीधा
सम्बन्ध स्थानपि करना आिश्यक है ।

िहाँ िक नीनिपरक अथण की बाि है , मनोनिज्ञान भी इसकी पुनष्ट करिा है । निरे चन से अरस्तू के िात्पयण भािों
का ननष्कासन मात्र नहीं, िरन् उनका संिुलन भी है ।
इसी प्रकार प्रो॰ बूचर का अथण भी निचारर्ीय है । उनके अनुसार निरे चन के दो पि है - एक अभािात्मक
और दू सरा भािात्मक। अभािात्मक पि यह है नक िह पहले मनोिेगों को उिेनिि करें , िदु परान्त उनका
शमनकर मनःशां नि प्रदान करे । इसके बाद सम्पन्न कलात्मक पररिोष उसका भािात्मक पि है । निरे चन को
भािात्मक रूप दे ना उनचि नहीं है । अरस्तू का अभीष्ट केिल मन का सामंिस्य और िज्जन्य निमदिा िक ही
है , निसके आधार पर ििणमान आलोचक ररचड्ण स ने ‘अन्तिृनियों के समंिन’ का नसिान्त प्रनिपादन नकया है ।

डॉ॰ नगेि का मि है नक ‘‘निरे चन कला-स्वाद का साधक िो अिश्य है - समंनिि मन कला के आनन्द को


अनधक ित्परिा से ग्रहर् करिा है , परन्तु निरे चन में कला-स्वाद का सहि अन्तभाण ि नहीं है । अिएि निरे चन
नसिान्त को भािात्मक रूप दे ना कदानचि न्यायसंगि नहीं है ।’’

आधुविकतम मत

आधुननक निद्वानों के मिानुसार त्रास और करुर्ा की भािनाएँ अपने प्रकृि रूप में अनधक कष्टप्रद बनकर
प्रकि होिी है । त्रासदी के प्रेिर्ा के फलस्वरूप िे अपने अनुग्र एिं अनापनििनक रूप को प्रकानशि करिी
है । इस रूप में िे ननिैयद्धक्तक एिं सािणभौम रूप में सामने आिी हैं । इससे निरे चन और साधारर्ीकरर् का
र्ननष्ठ सम्बन्ध सहि ही दे खा िा सकिा है ।

यहाँ यह प्रश्न उििा है नक क्या त्रासदी के प्रभाि या प्रयोिन को समझने के नलए निरे चन नसिान्त ही
एकमात्र समीचीन माध्यम है ? िस्तुिः त्रासदी के कायण को रे चन िक सीनमि कर दे ना उसके उद्दे श्य को संकीर्ण
बनाने िैसा है । इसके निपरीि भाििादी समीिकों ने निरे चन का िेत्र अत्यन्त निस्तृि बनाकर यह नसि करने
का प्रयास नकया है नक निरे चन से अिां छनीय भािनाओं में भी पररििणन होिा है और उनका अनिरे क नमििा
है । इस व्यापक दृनष्टकोर् का प्रनिपादन डराइडन, एडीसन आनद निद्वानों ने नकया।

आक्षेप और समाधाि

कुछ निद्वान निरे चन प्रनक्रया के अद्धस्तत् के बारे में शंका करिे हैं । उनका आिेप है नक िास्तनिक िीिन में
ऐसा निरे चन नहीं होिा है । त्रासदी से करुर्ानद मनोिेग उद् बुि िो हो िािे हैं , नकन्तु उनके निरे चन से मनः
शाद्धन्त सिणथा नहीं होिी। िास्ति में त्रासदी का चमत्कार मूलिः रागात्मक होिा है । िह निरे चन-प्रनक्रया द्वारा
भािों को उद् बुि करिी है उनका समंिन करिी है और इस प्रकार आनन्द की भूनमका प्रस्तुि करिी है ।
यह निरे चन नसिान्त की महत्त्वपूर्ण दे न है । दू सरा आिेप यह है नक त्रासदी में प्रदनशणि भाग अिास्तनिक होिे
हैं , अिः िे हमारे भािों को उद् बुि नहीं कर पािे , निरे चन की िो बाि ही नहीं। िस्तुिः यह मि भी उनचि
नहीं है । त्रासदी द्वारा भािोद्वे क ननचय ही कला-चमत्कार का प्रनिफल नहीं, रागात्मक प्रभाि की पररर्नि है ।
सारभूि समंिनकारी प्रभाि ही उसकी सफलिा का कारर् है । अिः आिेप सिणथा ननमूणल है ।

विरे चि का मिोिैज्ञाविक आधार

मनोनिश्लेषर् शास्त्र के अनुसार भािनाओं की अिृद्धप्त या दमन माननसक रोगों का प्रमुख कारर् है । इनका
निचार भािों की उनचि अनभव्यद्धक्त और पररिोष द्वारा हो सकिा है । अचे िन मन में पडे भाि उनचि
अनभव्यद्धक्त के अभाि में माननसक ग्रद्धियों को िन्म दे िे हैं । इन ग्रंनथयों को चेिन स्तर पर लाकर मन की
र्ुिन और अिृद्धप्त को दू र नकया िािा है । इससे मन का िनाि दू र हो िािा है और नचि एक प्रकार की
निशदिा एिं हल्कापन अनुभि करिा है । मनोनिश्लेषर् शास्त्र की उन्मुक्त निचार-प्रिाह-प्रर्ाली का आधार
यही प्रनक्रया है । इस दृनष्ट से निरे चन का मनोिै ज्ञाननक आधार सिणथा पुष्ट है । फ्रायड आनद निद्वानों ने अनेक
स्थलों पर अरस्तू िाक्यों को अपन मि के समथणन में प्रस्तुि नकया है ।

विरे चि और करुण रस
अरस्तू द्वारा प्रनिपानदि त्रासदी के प्रभाि का भारिीय काव्यशास्त्र में करुर् रस से पयाण प्त साम्य है । त्रासद
प्रभाि के आधारभूि मनोिेग है - करुर्ा और त्रास। ये दोनों भाि मूलिः दु ःखद हैं । उधर करुर् रस का
स्थायी भाि ‘शोक’ है । भारिीय काव्यशास्त्र ‘शोक’ स्थायी भाि के अन्तगणि करुर्ा के साथ त्रास के अद्धस्तत्
को स्वीकार करिा है । इष्ट नाश या निपनि शोक के कारर् हैं । इनसे करुर्ा और त्रास दोनों की उद् भूनि
होिी है । निपनि के सािात्कार से करुर्ा की, िैसी ही निपनि की पुनरािृनि की आशंका से त्रास की अनुभूनि
होिी है । नकन्तु भारिीय आचायों और अरस्तू के दृनष्टकोर् में प्रमुख अन्तर यह है नक अरस्तू का त्रासद प्रभाि
एक नमश्र भाि है , िबनक भारिीय काव्यशास्त्र का शोक स्थायी भाि मूलिः अनमश्र है , िैसे - सीिा के दु भाण ग्य
से उत्पन्न करुर्ा में त्रास का स्पशण नहीं है , िबनक अरस्तू की दृनष्ट में त्रासहीन करुर् प्रसंग आदशण द्धस्थनि
नहीं है ।

Ques-61 एक नैदाननक मनोिैज्ञाननक की भूनमका और प्रनशिर् को समझाइये ?

Ans- एक िैदाविक मिोिैज्ञाविक की भूवमका और प्रवर्क्षण-

 एक नैदाननक मनोिैज्ञाननक क्या करिा है


 ABCP बुननयादी दििाओं
 निनशष्ट कौशल
 एक मनोिैज्ञाननक और एक मनोनचनकत्सक के बीच अंिर
 क्या आपको मनोिैज्ञाननक या मनोनचनकत्सक दे खना चानहए?

एक नैदाननक मनोिैज्ञाननक एक माननसक स्वास्थ्य पेशेिर है िो माननसक, व्यिहाररक और भािनात्मक


बीमाररयों के ननदान और मनोिैज्ञाननक उपचार में अत्यनधक निनशष्ट प्रनशिर् के साथ-साथ िुनूनी-बाध्यकारी
निकार (ओसीडी) भी शानमल है ।

एक िैदाविक मिोिैज्ञाविक क्या करता है

नैदाननक मनोिैज्ञाननक माननसक बीमारी के इलाि के नलए दिाओं को ननधाण ररि नहीं करिे हैं । बद्धल्क, िे
मनोिैज्ञाननक िकनीकों का उपयोग करिे हैं , िै से नक संज्ञानात्मक-व्यिहार थेरेपी (सीबीिी) और मनोनिश्लेषर्
नचनकत्सा।

नैदाननक मनोिैज्ञाननकों को आमिौर पर पीएचडी पूरी करनी चानहए। रोनगयों को दे खने और इन िकनीकों का
उपयोग करने में सिम होने से पहले नैदाननक मनोनिज्ञान में। हालाँ नक, कुछ राज्ों और प्रां िों में, मास्टर नडग्री
पयाण प्त है । अनधकां श राज्ों और प्रां िों में, नैदाननक मनोिैज्ञाननकों की व्यािसानयक गनिनिनधयों को एक
लाइसेंनसंग बोडण और / या पेशेिर कॉलेि द्वारा निननयनमि नकया िािा है ।मनोनचनकत्सा के नििरर् के अलािा,
मनोिैज्ञाननक मनोिैज्ञाननक परीिर्, अनुसंधान और नशिर् सनहि कई िरह की गनिनिनधयां कर सकिे हैं ।

ABCP बुवियादी दक्षताओं

अमेररकन बोडण ऑफ द्धक्लननकल साइकोलॉिी (ABCP) परीिा यह नननचि करिी है नक नैदाननक मनोिैज्ञाननकों
के नलए बोडण प्रमार्न में बुननयादी दििाओं को शानमल नकया िािा है , िानक िे अभ्यास करने , नसखाने या
अनुसंधान करने में सिम हों। इन दििाओं में शानमल हैं :
 ग्राहकों, साथी नचनकत्सकों और िनिा सनहि अन्य लोगों के साथ प्रभािी संबंध बनाना और बनाए
रखना। नैदाननक मनोिैज्ञाननक को ननष्पि, सिानिनक, एक स्पष्ट संचारक होना चानहए, और समझ और
कूिनीनि के साथ संभानिि कनिन पररद्धस्थनियों को संभालने में सिम होना चानहए।
 व्यद्धक्तगि और सां स्कृनिक निनिधिा के प्रनि संिेदनशीलिा और यह समझना नक ये कारक नकस िरह
प्रभानिि करिे हैं नक हम कौन हैं और हम कैसे सोचिे हैं ।
 नैनिक और कानूनी नसिां िों के बारे में िागरूकिा और उन्हें प्रभािी ढं ग से ननयुक्त करिा है ।
 एक पेशेिर रिैया, मूल्य, और व्यिहार िो दू सरों के साथ बािचीि में स्पष्ट हैं ।

 उपचार के िरीकों में सु धार के नलए स्व-मूल्यां कन और हमेशा प्रयास करने का एक ननरं िर अभ्यास।
 निनभन्न िैज्ञाननक निषयों की समझ िो मनोनिज्ञान से संबंनधि हैं और िे उपचार को कैसे प्रभानिि कर
सकिे हैं ।
 निनभन्न निषयों और संगिनों से दू सरों के साथ सहयोग करने में कौशल, सिान, प्रशंसा और संचार को
रोिगार।
 निीनिम अनुसंधान के साथ िालमेल रखना और यह पहचानना नक यह नैदाननक अभ्यास में कैसे
सुधार कर सकिा है ।

विवर्ि कौर्ल

नैदाननक मनोिैज्ञाननकों में निनशष्ट कौशल का एक पूरा मेिबान होिा है , निसे िे अपने काम में लगािे हैं ,
निसमें शानमल हैं :

 नहं सा, आत्महत्या और गंभीर माननसक संकि के बारे में निनभन्न व्यिहार और स्वास्थ्य पेशेिरों और
संगिनों के साथ परामशण करना।
 माननसक स्वास्थ्य के मुद्दों के व्यापक निस्तार को समझना और िे नकसी भी उम्र में कैसे हो सकिे
हैं ।
 मरीिों के इलाि में अनधक प्रभािी होने के नलए व्यद्धक्तत् और मानकीकृि मनोिैज्ञाननक परीिर्
स्कोर का आकलन करना।
 माननसक बीमारी का व्यापक ज्ञान होना और इसका ननदान और उपचार कैसे करना है ।
 नैदाननक मनोनिज्ञान की समझ बढाने के नलए अनुसंधान करने और डे िा एकत्र करने में सिम होना।

एक मिोिैज्ञाविक और एक मिोवचवकत्सक के बीच अंतर

एक मनोिैज्ञाननक और एक मनोनचनकत्सक के बीच सबसे बडा अंिर यह है नक एक मनोनचनकत्सक एक


मेनडकल डॉिर (एमडी) है िो एक मेनडकल नडग्री है िो दिाओं को नलख सकिा है । एक मनोिैज्ञाननक
आमिौर पर नहीं कर सकिा। िबनक मनोिैज्ञाननकों के पास एक डॉिरे ि भी है , यह एक मेनडकल डॉिरे ि
नहीं है । मनोनचनकत्सक माननसक बीमाररयों के इलाि और ननदान में िीन साल के ननिास के बाद मेनडकल
इं िनणनशप से गुिरिे हैं । मनोिैज्ञाननक आमिौर पर अपनी नडग्री पूरी करने के बाद एक से दो साल की
इं िनणनशप करिे हैं ।

क्या आपको मिोिैज्ञाविक या मिोवचवकत्सक दे खिा चावहए?

दो दृनष्टकोर्ों के बीच एक बडा अंिर यह है नक िहां एक मनोिैज्ञाननक आमिौर पर आपके व्यिहार को


दे खेगा, एक मनोनचनकत्सक आपकी माननसक स्वास्थ्य समस्याओं के पीछे िैनिक कारकों को पहले दे खने की
अनधक संभािना है ।
चाहे आप मनोिैज्ञाननक को चुनिे हैं या मनोनचनकत्सक कई कारकों पर ननभणर हो सकिे हैं । कुछ
मनोनचनकत्सक केिल दिा नलखिे हैं और मनोनचनकत्सा नहीं करिे हैं , इसनलए आप दिा और नचनकत्सा दोनों
प्राप्त करने के नलए मनोनचनकत्सक और मनोिैज्ञाननक दोनों को दे ख सकिे हैं । हालां नक कई मनोनचनकत्सक
दोनों करिे हैं ।

Ques-62 गेस्टाल्ट नचकीत्सा क्या है ?

Ans- गेस्टाल्ट पिनि मनोनिश्लेषर् का निस्तृि ननरीिर् है । अपने प्रारं नभक निकास के दौरान इसे इसके
संस्थापकों फ्रेडररक और लारा पल्सण द्वारा "कंसं िरेशन थेरेपी" कहा िािा था। हालां नक, इसके सैिां निक प्रभािों
का नमश्रर्, गेस्टाल्ट मनोिैज्ञाननकों के कायों के बीच सिाण नधक व्यिद्धस्थि पाया गया; इस प्रकार निस समय िक
'गेस्टाल्ट थेरेपी, मानि व्यद्धक्तत् में उत्साह ि् निकास' (पल्सण , हे फरलाइन और गुडमैन) को नलखा गया, िब िक
यह पिनि "गेस्टाल्ट थेरेपी" के रूप में प्रनसद्द हो चुकी थी।

गेस्टाल्ट थेरेपी सिाण नधक भार िहन करने िाली चार अत्यािश्यक सैिां निक दीिारों में सबसे ऊपर द्धस्थि है ।
कुछ ने इसे अद्धस्तत्िादी िथ्िाद के रूप में मन है िबनक अन्य ने इसका िर्णि िथ्िादात्मक व्यिहारिाद
के रूप मे नकया है । गेस्टाल्ट थेरेपी एक मानििादी, समग्र और आनुभनिक पिनि है िो नसफण बािचीि पर
ननभणर नहीं है , अनपिु नक्रयात्मक और प्रत्यि पररद्धस्थनियों से सम्बंनधि बािचीि से अपेिाकृि नभन्न ििणमान
अनुभि के द्वारा िीिन के िमाम प्रसं गों में िागरूकिा को बढािा दे िी है ।

Ques-63 नचनकत्सकीय और गैर नचनकत्सकीय प्रनिदशण क्या है ?

Ans- वचवकत्सकीय और गैर वचवकत्सकीय प्रवतदर्श

एक नचनकत्सकीय प्रनिदशण और एक मानििादी प्रनिदशण का प्रयोग करने िाली मनोनचनकत्सकों के बीच भी


निभेद संभि है । नचनकत्सकीय प्रनिदशण में रोगी को अस्वस्थ के रूप में दे खा िािा है और नचनकत्सक रोगी
को पुनः स्वस्थ करने के नलए अपने कौशल का प्रयोग करिा है । डीएसएम-आइिी िोनक यू .एस. में
माननसक निकारों की एक नै दाननक और संख्यानकय नें -पुद्धस्तका है , िह निनशष्ट नचनकत्सकीय प्रनिदशण का एक
उदहारर् है ।

इसके निपरीि मानििानदयों का गैर-नचनकत्सकीय प्रनिदशण मानि अिस्थाओं को गैर-रोगनिषयक बनने का


प्रयास करिा है । इसमें नचनकत्सक आत्मीय िािािरर् बनाने का प्रयास करिा है िोनक आनुभनिक अनधगम में
सहायक होिा है और रोगी में अपनी स्वाभानिक प्रनक्रया पर निश्वास का ननमाण र् करिा है निसके
पररर्ामस्वरूप स्वयं के प्रनि बोध और गहन हो िािा है । इसका एक उदहारर् गेस्टाल्ट थेरेपी है ।

कुछ मनोिेगीय नचनकत्सक अनधक अनभव्यद्धक्तपरक और अनधक सहायिामूलक मनोनचनकत्सा के बीच निभेद
करिे हैं । अनभव्यद्धक्तपरक पिनि, रोनग की समस्या की िद िक पहुं चाने में रोगी की अंिदृण नष्ट को सहायिा
प्रदान करने पर िोर दे िी है । अनभव्यद्धक्तपरक नचनकत्सा का सिोिम ज्ञाि उदहारर् क्लानसकल मनोनिश्लेषर्
है । इसके निपरीि सहायिामूलक मनोनचनकत्सा रोगी के रिात्मक स्त्रोिों के सशक्तीकरर् पर िोर दे िा है और
प्रायः प्रोत्साहन ि् सलाह प्रदान करिा है । रोगी के व्यद्धक्तत् के आधार पर, एक अनधक सहायिामूलक या एक
अनधक अनभव्यद्धक्तपरक पिनि सिोिम हो सकिी है । मनोनचनकत्सा की अनधकां श पिनियां सहायिामूलक और
अनभव्यद्धक्तपरक पिनियों के नमश्रर् का प्रयोग करिी हैं ।

Ques-64 एक मनोिैज्ञाननक और एक मनोनचनकत्सक में क्या अंिर होिा है ?

Ans- मिोवचवकत्सक
1. मनोनचनकत्सक िैसा नक नाम से ही स्पष्ट है माननसक रोगी की समस्या का अध्ययन (केस नहस्टर ी)
करने के बाद उनकी नचनकत्सा मनौषनधयों द्वारा करिे हैं ।
2. मनोनचनकत्सक बनने के नलए एमबीबीएस की उपानध लेना आिश्यक है ।
3. निनशष्ट योग्यिा (specialization) करने के नलये इसी िेत्र में पीिी भी नकया िा सकिा है ।
4. मनोनचनकत्सक मनोनचनकत्सा केंि (मेन्टल हॉद्धस्पिल) में अपनी सेिाएं दे सकिे हैं या स्वयं का नचनकत्सा
केंि खोल कर भी यह कायण कर सकिे हैं ।
5. मनोनचनकत्सक पेशेिर डॉिर होिे हैं ।

मिोिैज्ञाविक

1. मनोिैज्ञाननक माननसक व्यानधयों के कारर् और ननदान के ज्ञािा होिे हैं ।


2. मनोिैज्ञाननक, मनोनिज्ञान के निनभन्न िेत्रों िैसे सामान्य एिम् असामान्य मनोनिज्ञान, व्यद्धक्तत् निकास,
शारीररक मनोनिज्ञान, मनोिैज्ञाननक एिम सां द्धख्यकी निनधयां , नैदाननक मनोनिज्ञान, नशिा मनोनिज्ञान,
निकासात्मक मनोनिज्ञान, बाल मनोनिज्ञान, समाि मनोनिज्ञान, प्रायोनगक मनोनिज्ञान, संज्ञानात्मक मनोनिज्ञान,
ननदे शन एिम् परामशण औद्योनगक मनोनिज्ञान इत्यानद अनेक िेत्रों का अध्ययन एिम् अध्यापन करिे हैं ।
3. मनोिैज्ञाननक, निनभन्न प्रकार की मानि व्यिहार संबंधी खोिों के माध्यम से इस िेत्र को बदलिे पररिेश
के अनुरूप नयी नदशा प्रदान करिे हैं ।
4. मनोिैज्ञाननक, मनोनिज्ञान के िेत्र में नकसी निशेष निषय को लेकर पीएचडी कर सकिे हैं ।
5. मनोिैज्ञाननक, नशिर् संस्थाओं में अध्यापन का कायण करिे हुए लेक्चरर, अनसस्टे न्ट प्रोफेसर एिम् रीडर
आनद पद धारर् कर सकिे हैं ।
6. मनोिैज्ञाननक. अपने शोध प्रबंध को प्रकानशि कर इस िेत्र में हो रहे अध्ययन के सम्बन्ध में प्रचार
प्रसार कर सकिे हैं ।
7. मनोिैज्ञाननक प्राथनमक स्तर पर ननदे शन एिम् परामशण के द्वारा माननसक रोनगयों की समस्या का
समाधान करिे हैं एिम् आिश्यकिा पडने पर उन्हें मनोनचनकत्सक के पास िाने की सलाह दे सकिे
हैं ।
8. मनोिैज्ञाननक नशिर् संस्थानों, नचनकत्सालयों, एिम् ननदे शन एिम् परामशण केि में अपनी सेिाएं दे सकिे
हैं ।
9. मनोिैज्ञाननक नशिा, पाररिाररक समस्याओं, िैिानहक समस्याओं, बाल निकास से सम्बंनधि अनेक प्रकार की
व्यिहार निषयक समस्याओं का समाधान परामशण के माध्यम से करिे हैं ।
10. मनोिैज्ञाननक एिम् मनोनचनकत्सक दोनों ही समय समय पर सेमीनार, िकणशॉप और कां फ्रेन्स के माध्यम
से इस निषय में हो रहे अनुसंधानों एिम् पररििणनों की िानकारी आपस से साझा करिे हैं िो आगे
चलकर इस निषय को और समृि और बोधगम्य बनािी है ।
11. मनोिैज्ञाननक मन एिम् व्यद्धक्तत् की अच्छी समझ रखिे हैं और हर प्रकार की मानि व्यिहार िननि
समस्याओं को सुलझाने में सहायक होिे हैं ।

िोट- कोई व्यन्वि अपिे उपचार हेतु या अपिी वकसी मािवसक समस्या के समाधाि हेतु वकसी
मिोवचवकत्सक या मिोिैज्ञाविक के पास जाता है तो ऐसा भ्रामक प्रचार ि करें वक िह पागल है।

हम बुन्वद्ध जीवियों का यह परम् कतशव्य है वक ऐसी बातों को फैलिे से रोकें क्योंवक यह वबल्कुल िैसा
ही है जैसे वकसी र्ारीररक समस्या के उपचार हेतु वकसी र्ॉक्टर के पास जािा।

Ques-65 मनोनचनकत्सा के नैनिक पिों की व्याख्या कीनिये ?

Ans- पररचय
मनोनचनकत्सा के पेशे में नैनिकिा की भूनमका पर निचार करने के नलए, ननम्नलद्धखि शीषणकों के िहि नैनिकिा
के निषय में पूछिाछ करना मेरा उद्दे श्य है : -

 नैनिकिा क्या हैं ?


 िे महत्पूर्ण क्यों हैं ?
 नैनिकिा कब मदद नहीं करिी है ?

िैवतकता क्या हैं ?

अरस्तू (1963) के अनुसार, नैनिकिा कुछ कृत्यों को करने में शानमल होिी है , क्योंनक हम उन्हें अपने आप में
सही मानिे हैं , लेनकन क्योंनक हम दे खिे हैं नक िे हमें अपने अंि के करीब लाएं गे, अथाण ि। 'आदमी के नलए
अच्छा है '। पेि और िोसकेि (1994) स्वीकार करिे हैं नक नैनिक नसिां िों की स्थापना के नसिां ि में नैनिक
दशणन की िडें हैं । ऐसे नसिां िों का उद्दे श्य सामान्य िौर पर यह ननधाण ररि करने में सहायिा करना है नक
कैसे कायण करना है , कैसे िय करना है नक क्या अच्छा है और क्या बुरा है । िे मनोनचनकत्सा में अच्छे अभ्यास
का गिन करने के मूल्यां कन के आधार के रूप में पां च नैनिक नसिां िों को रे खां नकि करिे हैं । स्वायििा -
व्यद्धक्त को उसकी द्धस्थनि में अनधकिम निकल्प का उपयोग करने में सिम होने के नलए काम करना, ननष्ठा -
नकए गए िादों के प्रनि िफादार होना, न्याय - यह सुनननचि करना नक लाभ ननष्पि रूप से नििररि नकए िािे
हैं , लाभ , - दू सरों के लाभ के नलए काम करने के नलए, और गैर-लाभकारी। दू सरों को कोई नुकसान नहीं। इन
अिधारर्ाओं को नैनिक मुद्दों से संबंनधि करना िो एक नए ग्राहक से नमलने पर उत्पन्न हो सकिे हैं ,
उदाहरर् के नलए, इस समय मनोनचनकत्सा के नलए उस ग्राहक की ित्परिा; ग्राहक की िरूरिों और
नचनकत्सक की िमिा के बीच मेल या बेमेल; एक ग्राहक के नलए मनोनचनकत्सक की प्रनिस्पधाण त्मक नििीय
आिश्यकिा, यह दशाण िी है नक प्रथम सत्र में ननष्ठा, न्याय, लाभ और असामानिकिा के मुद्दों को सामने लाया
गया है ।

“मनोनचनकत्सा की भूनमका ग्राहक के कायों को सुनिधािनक बनाने के नलए है िो ग्राहक के मूल्यों, व्यद्धक्तगि
संसाधनों और आत्मननर्णय के नलए िमिा का सिान करिी है । उद्दे श्य ग्राहकों को सशक्त बनाना और उन्हें
अपने िीिन पर ननयंत्रर् रखने के नलए प्रोत्सानहि करना है । केिल िब नचनकत्सक और ग्राहक दोनों एक
नचनकत्सा संबंध में प्रिेश करने के नलए स्पष्ट रूप से सहमि हो िािे हैं िो क्या यह 'मनोनचनकत्सा' बन िािा
है । ”( IAHIP कोड ऑफ एनथक्स दे खें, पृष्ठ 1-2)

नैनिक मुद्दे मेरे काम के हर पहलू पर दै ननक आधार पर आिे हैं । एक संभानिि ग्राहक के साथ पहले संपकण
से, मुझे खुद को प्रनिनबंनबि करने की आिश्यकिा है '... क्या यह व्यद्धक्त नचनकत्सा के नलए िैयार है ? ... क्या मैं
उपयुक्त नचनकत्सक हूँ ? ... क्या इस व्यद्धक्त के पास अपनी आं िररक दु ननया की िां च करने की पयाण प्त िमिा
है और एक ही समय में पयाण प्त रूप से कायण करने में सिम है ? ' यह प्रनिनबंब प्रनक्रया मेरे नलए चल रही
है । कभी-कभी इसका पररर्ाम स्पष्टिा में होिा है , कभी-कभी अनधक सिाल उििे हैं । मेरे काम के संबंध में
मेरी व्यद्धक्तगि मूल्य प्रर्ाली, नैनिक संनहिा और या नैनिक रुख, मेरे द्वारा नकए गए प्रत्येक ननर्णय के नलए
आधार क्या है । मैं िीिंि आदान-प्रदान, बहस, िकण के नलए उत्सुक हूं , अन्य लोग इन दु निधाओं का प्रबंधन
कैसे करिे हैं ।

मनोनचनकत्सक, पयणिेिर् के नलए मेरे पास आिे हैं , शायद ही कभी नैनिक मुद्दों का उल्लेख करिे हैं । िब मैं
नकसी मुद्दे को प्रनिनबंब के नलए एक नैनिक के रूप में नाम दे िा हूं , िो यह अक्सर भ्रम और कौशल की
कमी से नमलिा है नक इस िरह के कायण को कैसे नकया िाए। ये पयणिेिर् अक्सर कहिे हैं नक नैनिक मुद्दों
को प्रनशिर् में शायद ही कभी संदनभणि नकया िािा है , प्रासंनगक पेशेिर आचार संनहिा पर ध्यान आकनषणि
करने से परे ।
एक ऐसे निषय पर निचार-निमशण की अनुपद्धस्थनि के बारे में उत्सुक, निसे मैंने एक मनोनचनकत्सक के काम
का एक ननयनमि पहलू माना, मैंने एक अनौपचाररक सिेिर् करके दू सरों के साथ अपने दृनष्टकोर् की िुलना
करने का फैसला नकया। िनिरी 2009 के महीने के दौरान मैंने हर मनोनचनकत्सा सहयोगी से पूछा नक मैं
नैनिकिा के निषय पर उनके पहले निचारों के संपकण में आया हूं । प्रनिनक्रयाएं इस प्रकार थीं: -

 कागिी कारण िाई के बहुि सारे


 नैनिकिा और निननयमन मुद्दों के कोड
 मुसीबि
 व्यद्धक्तगि नैनिकिा और निस संगिन के नलए उन्होंने काम नकया, उसकी नैनिकिा के बीच संर्षण
 व्यद्धक्तगि सुरिा यानी आत्महत्या के मुद्दे
 रोि की नचंिा नहीं और ननयनमि रूप से नदमाग में नहीं आिी
 नैनिकिा का कोड पढा है , लेनकन इसमें से कोई भी िास्ति में डूब नहीं गया है
 अिक िाने पर ही आचार संनहिा का संदभण लें
 मौके पर रखे िाने पर नैनिकिा की भूनमका स्पष्ट नहीं है

केिल एक व्यद्धक्त ने नैनिकिा के मुद्दे पर गहराई से निचार नकया था और नैनिकिा के मेरे ज्ञान से कहीं
अनधक गहराई से समझ प्रदनशणि की थी। आगे पूछिाछ करने पर यह सामने आया नक अध्ययन से िुडा यह
ज्ञान िो मनोनचनकत्सा प्रनशिर् से िुडा नहीं था। मैंने इस िानकारी से ननष्कषण ननकाला नक व्यद्धक्तगि
मनोनचनकत्सक के नलए िो भी नैनिकिा का अथण है , सामूनहक प्रनिनक्रया स्पष्ट रूप से थी नक नैनिकिा एिेंडा
में उच्च नहीं है । उसके बाद मैंने अपने पररचयात्मक पैराग्राफ में उन सिालों के ििाबों का सिे िर् करने के
नलए सानहत्य की ओर रुख नकया।

िैवतकता क्यों महत्वपूणश हैं ?

यहां प्रदनशणि करना मेरा उद्दे श्य है नक नैनिकिा महत्पूर्ण है , क्योंनक िे एक नक्शा, नैनिकिा का एक निज्ञान
प्रदान करिे हैं , िो हमें यह ननधाण ररि करने के नलए समथणन कर सकिा है नक हमारा किणव्य कहाँ है , कारण िाई
करने का सही िरीका क्या है , निससे कोई नुकसान नहीं होगा, और व्यद्धक्तगि लाभ िक सीनमि नहीं है ।

डै ननयल (2006) का सुझाि है नक सही काम करने के नलए, हमें कभी-कभी अपने झुकाि के द्धखलाफ काम
करना पडिा है और यह बिाना मुद्धश्कल हो सकिा है नक क्या हम सही कारर्ों के नलए सही काम कर रहे
हैं , िैसा नक स्वयं-इच्छु क लोगों के निपरीि है । नबंदु कां ि बनािा है नक एक नक्रया का नैनिक मूल्य अनधकिम
में नननहि है , या आचरर् का ननयम, निसके आधार पर यह िय नकया िािा है , इसके पररर्ामों पर नहीं।
व्यािहाररक उदाहरर्ों से संबंनधि होने पर मुझे यह दृनष्टकोर् अप्रभािी लगिा है । इस नबं दु को स्पष्ट करने के
नलए, यौन शोषर् की अननिायण ररपोनिां ग के मुद्दे के संबंध में नचनकत्सक के बीच परस्पर निरोधी निचार हैं ।
िबनक आयरलैंड में अभी िक कानूनी आिश्यकिा नहीं है , लेनकन नचनकत्सक के व्यद्धक्तगि, नैनिक और नैनिक
रुख का दु रुपयोग करने िाले ग्राहक के प्रनि उनकी प्रनिनक्रया को प्रभानिि करे गा। के नलए और द्धखलाफ िकण
पररर्ाम पर आधाररि हैं िैसे नक नचनकत्सीय सं बंध पर क्या प्रभाि पडिा है ? क्या प्रभाि की ररपोनिां ग नहीं
की गई है , अगर व्यापक समुदाय में अन्य संभानिि रूप से िोद्धखम में हैं ?

Tjeltveit (1999) के अनुसार सूनचि सहमनि एक कानूनी और नैनिक अिधारर्ा है िो पेशेिरों को संभानिि
संबंधों, िैसे लक्ष्ों, प्रनक्रयाओं, संभानिि लाभों और दु ष्प्रभािों, और निकल्पों के बारे में प्रासंनगकिा की िानकारी
प्रदान करने के नलए पेशेिरों को बाध्य करिी है । ग्राहकों को नचनकत्सा के बारे में िानकार होना सुनननचि
करना, सूनचि सहमनि में संलग्न होने की उनकी िमिा का समथणन करिा है , िो उनके अनधकारों और
स्वायििा की रिा करिा है । उनका सुझाि है नक नचनकत्सक को ग्राहकों को इसके नैनिक आयामों के बारे
में िानकारी प्रदान करने की आिश्यकिा है , निसमें नचनकत्सक और ग्राहकों के बीच संभानिि मूल्य संर्षण
शानमल हैं , िो निशेष रूप से नचनकत्सीय संबंध के नलए उपयुक्त है । मैं उनके निचार से सहमि हूं , और सोचिा
हूं नक इसनलए प्रत्येक नचनकत्सक के नलए एक नींि के रूप में एक स्पष्ट नैनिक ढां चा िैयार करना आिश्यक
होगा निसमें से काम करना है । हमेशा उन मुद्दों की एक श्रृंखला होगी निनके बारे में नचनकत्सक के पास
मिबूि भािनाएं हो सकिी हैं निनके नलए प्रनिनबंब की आिश्यकिा होिी है । कुछ उदाहरर् गभण पाि, इन नििर ो
ननषेचन, समलैंनगकिा, संकीर्णिा, आत्महत्या, आत्महत्या और आपरानधक गनिनिनधयों िैसे मुद्दे हैं ।

यौन शोषर् का खुलासा करने िाले एक ग्राहक के उदाहरर् में नचनकत्सक और ग्राहक के बीच यहां एक
मूल्य संर्षण की संभािना है िब नचनकत्सक ररपोिण करना चाहिा है , और ग्राहक नहीं चाहिा नक प्रकिीकरर्
ररपोिण नकया िाए। यनद यह शुरू में स्पष्ट नहीं नकया गया है , िो क्या ग्राहक को सूनचि सहमनि बनाने का
अिसर नदया गया है ? मैं िकण दू ं गा नक उन्होंने ऐसा नहीं नकया है , और यह सुझाि दें गे नक इस िरह के एक
चूक के नननहिाथण गैर-नसिां ि का उल्लंर्न करने की िमिा है - दू सरों को कोई नुकसान नहीं पहुं चाना।

यह उदाहरर् मौिूद कुछ समस्याओं को नदखािा है , और यह नक एक नैनिक अनधकिम पयाण प्त नहीं है । हमें
नैनिकिा के निनिध ज्ञान की आिश्यकिा है और यह सुनननचि करने के नलए नक नसिां िों को कैसे लागू
नकया िाए निससे कनिन ननर्णय नलए िा सकें। यह संभािना नहीं है नक नैनिक निचार-निमशण स्पष्ट, स्वच्छ
पररर्ाम दे गा। यौन दु व्यणिहार, आत्महत्या और गोपनीयिा के उल्लंर्न से सं बंनधि दु निधाओं की प्रकृनि को
सािधानीपूिणक िकणपूर्ण निचार की आिश्यकिा होिी है , िो िां च के नलए खडी हो सकिी है । िीनर (2001) इस
बाि से सहमि हैं नक नै निकिा हमारे अभ्यास के कोड को सूनचि करिी है िो हमारे ग्राहक के गोपनीयिा
के अनधकार का सिान करने के नैनिक महत् पर बहुि िनाि डालिी है । िह निश्वास के संबंध के नलए
अपनी कडी पर िोर दे िा है िो हमारे काम के नलए बहुि महत्पूर्ण है , और सुझाि दे िा है नक मूल्यों के
संर्षण का अनुभि होने पर नैनिक दु निधाएं सबसे अनधक होिी हैं ।

मुझे लगिा है नक नैनिकिा क्यों महत्पूर्ण है , इसका उिर बॉन्ड (1996) द्वारा संिेप में प्रस्तुि नकया गया है ।
नैनिकिा के नलए िकणसं गि आधार पर चचाण करिे हुए, उन्होंने िुलना के साथ ननष्कषण ननकाला नक गैर-नैनिक
मूल्य निकल्प व्यद्धक्त को पसंद करने िाले व्यद्धक्त की भलाई से संबंनधि होिे हैं , िबनक नैनिक निकल्प
समुदाय या समाि की भलाई से िुडे होिे हैं पूरा का पूरा।

इस खंड में मैंने नदखाया है नक नैनिकिा क्यों महत्पूर्ण है । अंि में, मेरा मूल्यां कन यह है नक एक नैनिक
आधार को निनभन्न प्रकार के दृनष्टकोर्ों से नैनिक दु निधाओं की पहचान करने और निचार करने की प्रनक्रया
का समथणन करने के नलए एक संरचनात्मक आधार प्रदान करने की आिश्यकिा है । िबनक इस िरह की
नींि नैनिकिा और व्यिहार संनहिा के नलए आधार होगी, मेरा मानना है नक इसका दायरा नैनिकिा और
कानून के कोड से अनधक व्यापक होना चानहए।

िैवतकता कब मदद िही ं करती है ?

है ररस (1991) ने अपनी बेिी की आत्महत्या की त्रासदी पर चचाण की और बिाया नक नकस िरह कॉलेि के
डॉिर ने उसका इलाि नकया, निसे उसके माननसक इनिहास और माननसक आत्महत्या के प्रयासों के संबंध
में उसके नपछले इनिहास के बारे में पिा नहीं था। उसके मािा-नपिा को उसके व्यक्त समझौिे के नबना
सूनचि नहीं नकया िा सकिा था क्योंनक िह अिारह िषण से अनधक की थी। िह यह सुनननचि करिा है नक
प्राप्त करने के नलए एक महत्पूर्ण इनिहास के नलए; नचनकत्सा नैनिकिा को एक रोगी से िकणसंगि ननर्णय की
आिश्यकिा थी िो सौ या अनधक काल्पननक लोगों की आिाज़ सुन रहा था। उन्होंने सोचा के साथ समाप्त
होिा है ,
“ ऐसे मामलों में ननर्णय लेने के नलए उपयोग नकए िाने िाले मानदं ड का पुन: मूल्यां कन सभी संबंनधिों की
मदद कर सकिा है । यह सही प्रिीि नहीं होिा है नक नकसी भी ननयम के आिेदन के पररर्ामस्वरूप ननराशा
के िंगल में रोने के नलए माननसक रूप से बीमार होना चानहए। ”(1991)

बद्धिनी और फोसल (2007) द्वारा िनर्णि दृनष्टकोर् नसिां ि ऊपर उद्धल्लद्धखि दु निधा को बयां करिा है । सभी
दृनष्टकोर् समान नहीं हैं , और यनद नैनिक िकण एक दृनष्टकोर् से बंधा हुआ है , िो अलग-अलग दृनष्टकोर् िाले
लोग नैनिक रूप से अलग-अलग होंगे। इसनलए हम निनभन्न दृनष्टकोर्ों के प्रनिस्पधी दािों को कैसे आं क
सकिे हैं ? िे एक निशेष सामानिक समूह के दृनष्टकोर् को प्रस्तुि करने के खिरे पर िोर दे िे हैं क्योंनक यह
िास्ति में अनधक से अनधक समरूप है । िबनक है ररस ने महसूस नकया नक उसकी बेिी को छोड नदया गया
था और अपने सहायकों के नैनिक प्रनिबंधों से उसे ननराश नकया गया था, िह पररद्धस्थनियों में, उसकी पसंद या
उसके डॉिरों को स्वीकार नहीं करिा है । यह सं भि है , नक उस समय उसे आिश्यक सहायिा नमली हो।
दु भाण ग्यपूर्ण िास्तनिकिा यह है नक हम अक्सर उस व्यद्धक्त के सिीक दृनष्टकोर् को कभी नहीं िानिे हैं िो
खुद का िीिन लेिा है ।

विष्कषश

मनोनचनकत्सा से संबंनधि कुछ नैनिक मुद्दों की इस परीिा में, मेरा सारां श यह है नक हमारे पास कई मुद्दों पर
अपने व्यद्धक्तगि, नैनिक और नैनिक निचारों पर निचार करने की नििेदारी है , िो व्यिहार में उत्पन्न होने िाली
संभािना से सीनमि नहीं है । बॉन्ड (2000) अपने ननिी अनुभि को संदनभणि करिा है , िो उन नचनकत्सकों द्वारा
सामना की गई चुनौिी के संबंध में है िो नैनिक रूप से काम करना चाहिे हैं । व्यद्धक्तगि परामशणदािाओं,
उनके संगिनों और सं स्कृनियों द्वारा आयोनिि नैनिक पदों की निनिधिा ने उनकी नपछली सोच को चुनौिी
दी है । िह आशा करिा है नक प्रिृनि िारी रहे गी। अपने अभ्यास पर नचंिन करिे हुए, िह उन ग्राहकों की
गहराई से सुनने के नलए और अनधक िैयार होने की उिीद करिा है , िो उनसे नैनिक रूप से नैनिकिा के
नलए प्रनिबि हैं , िो उनसे पररनचि और स्वीकायण हैं ।

Ques-66 मनोनचनकत्सा के लक्ष् समझाइये ?

Ans- मनोनचनकत्सा का लक्ष् न केिल लिर्ों का निर्िन है , बद्धल्क अनुकूलन िमिा में सुधार लाने और आत्म-
समझ की उपलद्धब्ध को गहरा करने का प्रयास करना है । मनोनचनकत्सा की प्रकृनि नचनकत्सक और रोगी के
बीच संबंधों पर आधाररि है । इस िरह के लक्ष् और प्रकृनि का मिलब है नक कुछ प्रकार के मनोनचनकत्सा
नचनकत्सा मॉडल से परे हैं । इस पत्र में मनोनचनकत्सा में नैनिक मुद्दों पर ननम्ानुसार चचाण की गई है ।-

1) सूनचि-सहमनि में कुछ िनिल मामले

2) खराब प्रनशनिि नचनकत्सक की नहि या नमस िकनीक

3) गोपनीयिा की सुरिा

4) रोनगयों के साथ नचनकत्सक का यौन दु राचार

5) बाल-नकशोर रोनगयों के नलए निशेष निचार

Ques-67 स्थानां िरर् एिं प्रनिस्थानां िरर् पर निप्पर्ी कीनिये ?

Ans- स्र्थािांतरण(Transference)-
संक्रमर् ( िमणन : ragbertragung ) एक सैिां निक र्िना है िो नकसी व्यद्धक्त द्वारा अपने मािा-नपिा के बारे में
बेहोश पुनननणदेशन (प्रिेपर्) की निशेषिा है , एक उदाहरर् के रूप में, नचनकत्सक पर। यह आमिौर पर
बचपन के दौरान एक प्राथनमक संबंध से भािनाओं की नचंिा करिा है । कई बार, इस प्रिेपर् को अनुनचि
माना िा सकिा है । संक्रमर् का िर्णन सबसे पहले मनोनिश्लेषर् के संस्थापक नसगमंड फ्रायड ने नकया था, िो
इसे मनोनिश्लेषर्ात्मक उपचार का एक महत्पूर्ण नहस्ा मानिे थे।

घटिा

लोगों के नलए अपने मािा-नपिा के बारे में भािनाओं को अपने भागीदारों या बच्चों (यानी, क्रॉस-िेनरे शनल
उलझनों) में स्थानां िररि करना आम है । उदाहरर् के नलए, कोई ऐसे व्यद्धक्त से अनिश्वास कर सकिा है िो
नशष्टाचार, आिाि, या बाहरी रूप में पूिण पनि से नमलिा-िुलिा हो, या बचपन के दोस्त के समान हो।

द साइकोलॉिी ऑ़ि द िर ां नज़शन में , कालण िंग कहिे हैं नक िर ान्सफर डे ड के भीिर दोनों प्रनिभागी आमिौर
पर निनभन्न प्रकार के निपरीि अनुभि करिे हैं , नक प्यार में और मनोिैज्ञाननक निकास में, सफलिा की कुंिी
प्रनक्रया को त्यागने के नबना निरोधी के िनाि को सहन करने की िमिा है । , और यह िनाि एक को बढने
और बदलने की अनुमनि दे िा है ।

केिल व्यद्धक्तगि या सामानिक रूप से हाननकारक संदभण में संक्रमर् को एक रोग संबंधी समस्या के रूप में
िनर्णि नकया िा सकिा है । संक्रमर् पर एक आधुननक, सामानिक-संज्ञानात्मक पररप्रेक्ष् बिािा है नक यह
रोिमराण की निंदगी में कैसे हो सकिा है । िब लोग एक नए व्यद्धक्त से नमलिे हैं िो उन्हें नकसी और की
याद नदलािा है , िो िे अनिाने में यह अनुमान लगा लेिे हैं नक नए व्यद्धक्त के पास उस व्यद्धक्त के समान
लिर् हैं । इस पररप्रेक्ष् ने अनुसंधान के एक धन को उत्पन्न नकया है िो इस बाि पर प्रकाश डालिा है नक
कैसे लोग अिीि से ििण मान में संबंधों के पैिनण को दोहरािे हैं ।

हाई-प्रोफाइल सीररयल नकलर अक्सर "सरोगेि्स" पर नपछले प्यार या नफरि-िस्तुओं की ओर अनसुलझे


गुस्े को स्थानां िररि करिे हैं , या उस र्ृर्ा की मूल िस्तु को ध्यान में रखिे हुए या अन्यथा कॉल करने िाले
व्यद्धक्त। यह िे ड बंडी के उदाहरर् में माना िािा है , उसने बार-बार श्यामला मनहलाओं को मार डाला, निन्होंने
उसे एक नपछली प्रेनमका की याद नदला दी, निसके साथ िह बेिफा हो गई थी, लेनकन निसने ररश्ते को
समाप्त कर नदया था, बंडी को अस्वीकार कर नदया और रोगिनक रूप से क्रोधी (बंडी, हालां नक, इस बाि से
इनकार नकया) उसके अपराधों में एक प्रेरक कारक)। इसके बाििूद, बंडी के व्यिहार को पैथोलॉनिकल
इन्सो़िर माना िा सकिा है क्योंनक उन्हें मादक या असामानिक व्यद्धक्तत् निकार हो सकिा है । यनद ऐसा है , िो
सामान्य संक्रमर् िं त्र को उसके समलैंनगक व्यिहार के कारर् नहीं िहराया िा सकिा है ।

नसगमंड फ्रायड ने माना नक संक्रमर् पुरुष समलैंनगकिा में एक बडी भूनमका ननभािा है । द ईगो एं ड द ईद में
, उन्होंने दािा नकया नक पुरुषों के बीच कामुकिा एक "[माननसक रूप से ] गैर-आनथणक" शत्रुिा का पररर्ाम
हो सकिी है , िो अनिाने में प्यार और यौन आकषणर् में बदल िािी है ।

मनोनचनकत्सा दौरान संक्रमर् और पलिाि

एक नचनकत्सा के संदभण में, संक्रमर् एक महत्पू र्ण व्यद्धक्त के नलए नचनकत्सक को एक रोगी की भािनाओं के
पुनननणदेशन को संदनभणि करिा है । संक्रमर् को अक्सर एक नचनकत्सक के प्रनि एक कामुक आकषणर् के रूप
में प्रकि नकया िािा है , लेनकन कई अन्य रूपों में दे खा िा सकिा है िै से नक क्रोध, र्ृर्ा, अनिश्वास, नपिृत् ,
चरम ननभणरिा या यहां िक नक नचनकत्सक को भगिान या गुरु की द्धस्थनि में रखना । िब फ्रायड ने शुरू में
रोनगयों के साथ अपनी नचनकत्सा में संक्रमर् का सामना नकया, िो उन्हें लगा नक िह रोगी प्रनिरोध का सामना
कर रहे हैं , क्योंनक उन्होंने इस र्िना को पहचान नलया िब एक मरीि ने मुफ्त संर् के सत्र में भाग लेने से
इनकार कर नदया। लेनकन उन्होंने िो सीखा, िह यह था नक संक्रमर् का निश्लेषर् िास्ति में िह काम था
निसे करने की आिश्यकिा थी: "संक्रमर्, िो, चाहे स्नेही या शत्रुिापूर्ण, हर मामले में लग रहा था नक उपचार
के नलए सबसे बडा खिरा है , इसका सबसे अच्छा उपकरर् बन गया"। मनोनचनकत्सा मनोनचनकत्सा में ध्यान
केंनिि है , बडे नहस्े में, नचनकत्सक और रोगी संक्रमर् संबंध को पहचानिे हैं और ररश्ते के अथण की खोि
करिे हैं । चूँनक रोगी और नचनकत्सक के बीच का संक्रमर् अचेिन स्तर पर होिा है , इसनलए मनोनचनकत्सक
नचनकत्सक, िो रोगी की अचेिन सामग्री से बडे पैमाने पर नचंनिि होिे हैं , का उपयोग संक्रमर् को प्रकि
करने के नलए नकया िािा है , निसमें मरीज़ बचपन के आं कडों के साथ होिे हैं ।

प्रवतस्र्थािांतरण(Countertransference)-

काउं टरट् ांसफेरें स को एक मनोनचनकत्सक की भािनाओं को एक ग्राहक के प्रनि पुनननणदेशन के रूप में
पररभानषि नकया िािा है - या, आमिौर पर एक नचनकत्सक के साथ नचनकत्सक के भािनात्मक उलझाि के
रूप में।

प्रारं वभक सूत्र

काउं िरिर ां सफेरें स की र्िना ( िमणन : Gegenübertragung ) को पहली बार 1910 में नसगमंड फ्रायड द्वारा
सािणिननक रूप से पररभानषि नकया गया था ( साइको-एनानलनिकल थेरेपी के भनिष्य की संभािनाएं )
"नचनकत्सक के [अचेिन भािनाओं" पर रोगी के प्रभाि का एक पररर्ाम के रूप में); हालाँ नक फ्रायड कुछ
समय के नलए ननिी िौर पर इसके बारे में िानिा था, लेनकन 1909 में कालण िुंग को "काउं िर-िर ां स़िरें स" पर
हािी होने की ज़रूरि के नलए नलखना, िो हमारे नलए एक स्थायी समस्या है । फ्रायड ने कहा नक चूंनक एक
निश्लेषक स्वयं एक मानि है इसनलए िह आसानी से अपनी भािनाओं को ग्राहक में िाने दे सकिा है ।
क्योंनक फ्रायड ने प्रनिक्रां नि को निश्लेषक के नलए एक निशुि रूप से व्यद्धक्तगि समस्या के रूप में दे खा,
उन्होंने शायद ही कभी इसे सािणिननक रूप से संदनभणि नकया, और ऐसा करने के नलए लगभग "लगभग
नकसी भी प्रनििाद के निरुि चेिािनी के संदभण में" नकया िो निश्लेषक के नलए " "अपने आप में इस
प्रनििाद को पहचानना चानहए और इसे मास्टर करना चानहए"। हालां नक, फ्रायड के पत्रों के निश्लेषर् से पिा
चलिा है नक िह पलििार से नर्र गया था और इसे निशुि रूप से एक समस्या के रूप में नहीं दे खा था।

निश्लेषक के प्रनििाद के संभानिि खिरे - "ऐसे मामलों में रोगी निश्लेषक के नलए अिीि की एक ऐसी
िस्तु का प्रनिनननधत् करिा है निस पर अिीि की भािनाओं और इच्छाओं का अनुमान लगाया िािा है "
मनोनिश्लेषक के भीिर और नबना दोनों में व्यापक रूप से मनोनचनकत्सा के दायरे में स्वीकार नकए िािे हैं ।
मुख्य धारा। इस प्रकार, उदाहरर् के नलए, िंग ने "काउं िर-िर ां सफर के मामलों के द्धखलाफ चेिािनी दी िब
निश्लेषक िास्ति में रोगी को िाने नहीं दे सकिे ... दोनों एक ही अंधेरे में बेहोशी के छे द में नगर िािे
हैं "। इसी प्रकार एररक बनण ने िोर दे कर कहा नक "काउं िरिर ां सफेरें स का अथण है नक न केिल निश्लेषक रोगी
की पिकथा में एक भूनमका ननभािा है , बद्धल्क िह उसके नहस्े में भूनमका ननभािा है ... पररर्ाम 'अरािक
द्धस्थनि' है , िो निश्लेषकों का कहना है "। लैकन ने निश्लेषक के "प्रनििाद" की बाि स्वीकार की ... यनद िह
नफर से अनुप्रानर्ि है िो खेल नबना नकसी को िाने समझे आगे बढ िाएगा नक कौन अग्रर्ी है "।

इस अथण में, इस शब्द में एक रोगी के नलए बेहोश प्रनिनक्रयाएं शानमल हैं िो मनोनिश्लेषक के अपने िीिन के
इनिहास और बेहोश सामग्री द्वारा ननधाण ररि की िािी हैं ; यह बाद में बेहोश शत्रुिापूर्ण और / या कामुक
भािनाओं को शानमल करने के नलए निस्ताररि नकया गया था िो एक मरीि के प्रनि ननष्पििा में हस्तिेप
करिा है और नचनकत्सक की प्रभािशीलिा को सीनमि करिा है । उदाहरर् के नलए, एक नचनकत्सक को
निश्वनिद्यालय में अच्छे ग्रेड प्राप्त करने के नलए एक ग्राहक की िीव्र इच्छा हो सकिी है क्योंनक ग्राहक उसे
िीिन में उस स्तर पर अपने बच्चों की याद नदलािा है , और उस समय के दौरान नचनकत्सक को िो नचंिाएं
होिी हैं । यहां िक नक अपने सबसे सौम्य रूप में, इस िरह का रिैया "एक 'काउं िरिर ां सफेरें स इलाि' का
सबसे अच्छा नेिृत् कर सकिा है ... अनुपालन और रोगी की अनधक कनिन भािनाओं के ' झूिे आत्म '
दमन के माध्यम से हानसल नकया।"

एक अन्य उदाहरर् एक नचनकत्सक होगा निसने अपने नपिा से अपने ग्राहक को बहुि दू र होने के कारर्
उस पर पयाण प्त ध्यान नहीं नदया और उस पर नारािगी ििाई। संिेप में, यह रोगी को िे िरेि के संक्रमर् का
िर्णन करिा है , निसे "संकीर्ण दृनष्टकोर्" के रूप में िाना िािा है ।

मध्य िषश

20 िी ं शिाब्दी की प्रगनि के रूप में, हालां नक, अन्य, काउं िरिर ां सफर के अनधक सकारात्मक निचार उभरने लगे,
काउं िरिर ां सफरें स की पररभाषा भािनाओं के पूरे शरीर के रूप में आ रही है िो नचनकत्सक की ओर है । िंग
ने र्ायल नचनकत्सक की छनि के माध्यम से रोगी की नचनकत्सक की प्रनिनक्रया के महत् का पिा लगाया:
"यह उसकी खुद की चोि है िो उसकी शद्धक्त को िीक करने का उपाय दे िा है "। हे नररक रै कर ने इस
धमकी पर िोर नदया नक "प्रनिसंिुलन का दमन ... निश्लेषर्ात्मक द्धस्थनि की पौरानर्क कथाओं में लम्बा
है "। पौला हीमैन ने इस बाि पर प्रकाश डाला नक कैसे "निश्लेषक का प्रनिकार केिल निश्लेषर्ात्मक संबंधों
का नहस्ा और पासणल नहीं है , बद्धल्क यह मरीि का ननमाण र् है , यह मरीि के व्यद्धक्तत् का नहस्ा है "।
पररर्ामस्वरूप, "प्रनि-रूपां िरर् इस प्रकार एक हस्तिेप से महत्पूर्ण पुनष्ट के संभानिि स्रोि बनने से उलि
गया"। भाग्य का पररििण न "अत्यनधक नििादास्पद था। मेलानी क्लेन इस आधार पर अस्वीकृि हो गया नक
मनोिैज्ञाननक-निश्लेषकों का खराब निश्लेषर् उनकी अपनी भािनात्मक कनिनाइयों का कारर् बन सकिा है ";
लेनकन उनके छोिे अनुयानययों के बीच "क्लेनशयन समूह के भीिर प्रिृनि को प्रनि-संक्रमर् के नए दृनष्टकोर्
को गंभीरिा से लेना था" - हन्ना सहगल ने आमिौर पर व्यािहाररक रूप से चेिािनी दी नक
"काउं िरिर ां सफेरें स नौकरों में से सबसे अच्छा हो सकिा है लेनकन सबसे भयानक है मास्टसण के ”।

बीसिी ं सदी के अंत में प्रवतमाि

सदी के आद्धखरी िीसरे िक, "व्यद्धक्तगि प्रनििाद (िो नचनकत्सक के साथ क्या करना है ) और 'नै दाननक
प्रनिनक्रया' के बीच एक अंिर" के महत् पर एक बढिी आम सहमनि नदखाई दी - िो रोगी के बारे में कुछ
इं नगि करिा है ... ननदान प्रनििेप "। एक नया निश्वास यह माना गया है नक "प्रनिक्रां नि इस िरह की
निशाल नैदाननक उपयोनगिा की हो सकिी है .... आपको इस बाि में अंिर करना होगा नक रोगी के प्रनि
आपकी प्रनिनक्रयाएँ आपको उसके मनोनिज्ञान के बारे में क्या बिा रही हैं और िे केिल आपके बारे में क्या
व्यक्त कर रहे हैं । "।" निनिप्त प्रनिक्रां नि " (या " भ्रमात्मक प्रनिसंिोष ") और " प्रनिसंिुलन उनचि " बीच एक
अंिर व्यद्धक्तगि निद्यालयों को पार करने के नलए आया था। मुख्य अपिाद यह है नक "अनधकां श
मनोनिश्लेषक िो लैकन के नशिर् का पालन करिे हैं ... काउं िर-िर ां स़िरें स केिल प्रनिरोध का एक रूप
नहीं है , यह निश्लेषक का अंनिम प्रनिरोध है "। काउं िरिर ां सफर की समकालीन समझ इस प्रकार है नक आम
िौर पर िर े िर और मरीि के बीच "संयुक्त रूप से नननमणि" र्िना के रूप में काउं िरिर ां सफरें स का संबंध है ।
रोगी मरीि की आं िररक दु ननया के साथ एक भूनमका ननभािे हुए संक्रमर् के माध्यम से िे िर को दबािा
है । हालां नक, उस भूनमका के निनशष्ट आयामों को िॉरे ि के स्वयं के व्यद्धक्तत् द्वारा रं गीन नकया िािा है ।
काउं िरिर ां सफेरें स एक नचनकत्सीय उपकरर् हो सकिा है , िब िे िर द्वारा िां च की िािी है नक कौन क्या कर
रहा है , और यह पारस्पररक भूनमकाओं के पीछे का अथण है (स्वयं और अन्य के बीच िस्तु की पारस्पररक
दु ननया का अंिर)। संकरे पररप्रेक्ष् में खिरों की ननरं िर िागरूकिा के नलए नननचि रूप से नई समझ के
नलए कुछ भी नहीं - "एक नचनकत्सीय संबंध होने का क्या मिलब है भीिर चल रहे अनसुलझे पलिाि की
कनिनाइयों के गंभीर िोद्धखम"; लेनकन "उस नबंदु से , एक अनिभाज् युगल ... 'कुल द्धस्थनि" के रूप में
संक्रमर् और प्रनि-सं क्रमर् को दे खा गया। "
इक्कीसिी ं सदी के घटिािम

ििणमान शिाब्दी में आगे की र्िनाओं को बढी हुई मान्यिा के रूप में कहा िा सकिा है नक "अनधकां श
प्रनिसानदिा प्रनिनक्रयाएं दो पहलुओं का नमश्रर् हैं ", व्यद्धक्तगि और नैदाननक, निन्हें उनकी बािचीि में
सािधानीपूिणक असहमनि की आिश्यकिा होिी है ; और संभािना है नक आिकल मनोनचनकत्सक परामशणदािा
प्रनििेपर् की िुलना में बहुि अनधक पलिाि का उपयोग करिे हैं - "िषों में पररप्रेक्ष् में एक और नदलचस्प
बदलाि"। [२ of ] बाद के नबंदु का एक स्पष्टीकरर् यह हो सकिा है क्योंनक "िस्तु संबंध नचनकत्सा में ...
संबंध इिना केंिीय है , 'प्रनिकार' प्रनिनक्रयाओं को उपचारक को संक्रमर् को समझने में मदद करने में
महत्पूर्ण माना िािा है ", [२ something ] कुछ नदखने िाला "उिर-क्लेनशयन पररप्रेक्ष् ... [के रूप में]
अनिभाज् transferencecountertransference "।

बॉर्ी-केंवित काउं टरट् ांसफरें स

एनयूआई गॉलिे और यूननिनसणिी कॉलेि डबनलन मनोिैज्ञाननकों ने हाल ही में निकनसि "एगन एं ड कैर बॉडी
सेंिरेिेड काउं िरिर ां सफेरें स स्केल, एक सोलह लिर् उपाय का उपयोग करके मनहला आर्ाि नचनकत्सक में शरीर-
केंनिि काउं िरिर ां सफरें स को मापना शुरू कर नदया है । शरीर-केंनिि काउं िरिर ां सफेरें स के उच्च स्तर के बाद
से आयररश मनहला आर्ाि नचनकत्सक और नैदाननक मनोिैज्ञाननक दोनों में पाए गए हैं ।इस र्िना को "दै नहक
प्रनिकषणर्" या "सनन्ननहि प्रनिसंिोष" के रूप में भी िाना िािा है और इन न्यूरॉन्स के कायों के कारर्
नमरर न्यूरॉन्स और स्वचानलि दै नहक सहानुभूनि के नलंक को पररकद्धल्पि नकया गया है ।

Ques-68 प्लेसबो इ़िेि क्या है ?

Ans- कूटभेषज (placebo / प्लेसीबो) ऐसी नचनकत्सा को कहिे हैं निसका कोई िैज्ञाननक आधार न हो। ऐसी
नचनकत्सा पिनि या िो प्रभािहीन होिी है , या यनद कोई सुधार नदखिा भी है िो उसका कारर् कोई अन्य
चीि ही होिी है । कूिभे षि के उपयोग से कभी-कभी लाभ होिा नदखिा है निसे 'कूिभेषि प्रभाि' (प्लेसीबो
इफेि) या कूिभेषि अनुनक्रया' (प्लेसीबो ररस्पॉन्स) कहिे हैं । 'कूिभेषि प्रभाि' िास्ति में के पीछे कई अन्य
'प्रभाि' होिे हैं िो नमलकर लाभ होने का भ्रम पैदा करिे हैं ।

# प्लेसीबो पास्ट –

‘प्लेसीबो डॉनमनोज़’ शब्द का उपयोग पां चिी सदी में अनुिानदि बाइबल के एक महत्पूर्ण अं श में नकया गया
था. इसका अथण है –मैं ईश्वर को प्रसन्न करू ं गा।

18 िी ं सदी के उिराधण में ‘प्लेसीबो नचनकत्सा’ औषधीय शब्दािली का एक अनभन्न नहस्ा बन गया। इस प्रकार
की नचनकत्सा लोगों को िीक/स्वस्थ करने के बिाय संिुष्ट/प्रसन्न करने में अनधक उपयोग में आिी थी।
सनदयों से प्लेसीबो को ‘भ्रामक उपचार’ माना िािा रहा है । 1955 में एचके बीचर ने JAMA में एक पेपर, ‘दी
पािरफुल प्लेसीबो’ प्रकानशि नकया, निसमें उन्होंने ननष्कषण ननकाला नक –

यह स्पष्ट है नक ‘प्लेसीबो उपचार’ में काफी हद िक नचनकत्सकीय प्रभािशीलिा मौज़ूद होिी है ।

# प्लेसीबो पररभाषा –

नसंपल भाषा में कहें िो प्लेसीबो ऐसी नचनकत्सा को कहिे हैं निसका कोई िैज्ञाननक आधार न हो। ऐसी
नचनकत्सा पिनि या िो प्रभािहीन होिी है , या यनद कोई सुधार नदखिा भी है िो उसका कारर् कोई अन्य
चीि ही होिी है । और इस पूरे कां सेप्ट या इ़िेि को कहिे हैं – प्लेसीबो प्रभाि।

अब, िब कहा िािा है नक इनको दिा नहीं दु आ की ज़रूरि है िो दरअसल ‘प्लेसीबो इ़िेि’ की ही बाि
की िा रही होिी है ।

िब कहा िा रहा होिा है नक अब िो इन्हें कोई चमत्कार ही बचा सकिा है , िो उसका अथण होिा है नक
अब िो इन्हें कोई ‘प्लेसीबो इ़िेि’ ही बचा सकिा है ।

हम आपको ये भी बिा दें नक प्लेसीबो हमेशा लाभकारी ही हो, ऐसा नहीं है . इसके प्रभाि सकारात्मक और
नकारात्मक, दोनों हो सकिे हैं । इन नकारात्मक प्रभािों को नोसीबो इफेि (Nocebo effect) कहिे हैं ।

नकारात्मक प्रभाि िो मैंने खुद अपनी आखों से दे खा है , बद्धल्क अनुभि नकया है . एक बार नकसी दोस्त ने
मज़ाक में कह नदया नक िुम्हारे खाने में नछपकली नगरी हुई थी। मुझे काफी िॉनमि हुई. क्यूंनक उसकी सूचना
के पूिण ही मैं भोिन ग्रहर् कर चुका था।

बहरहाल, िॉनमि हो चुकने के बाद पिा चला नक भोिन में कोई नछपकली नहीं नगरी थी. यानी नछपकली मेरे
मन में थी।
अध्ययनों से ये भी पिा चला है नक कुछ बीमाररयां िो ऐसी हैं निनपर प्लेसीबो िब भी प्रभािकारी होिा है ,
िबनक रोगी को पिा हो नक उपचार के नाम पर उसके साथ ‘प्लेसीबो’ नकया िा रहा है ।

ऐसा ही एक अध्ययन हॉिडण मेनडकल स्कूल ने नकया था, िब उन्होंने अपच के नशकार कुछ लोगों को
‘प्लेसीबो’ की मीिी गोनलयां दीं लेनकन ये भी बिाया नक ये गोनलयां झूिी हैं , इसमें कोई केनमकल सॉल्ट नहीं
है . लेनकन नफर भी अध्ययन में भाग लेने िाले लोगों को इन गोनलयों से राहि का अनुभि हुआ।

# क्यूं काम करता है प्लेसीबो प्रभाि –

प्लेसीबो-इ़िेि का पूरा प्रभाि मन और शरीर के ररश्ते पर आधाररि है . प्लेसीबो-इ़िेि क्यूं इ़िेद्धिि है ,


इसको लेकर कई मि और नसिां ि हैं , लेनकन सबसे आम नसिां िों में से एक यह है नक प्लेसीबो प्रभाि
नकसी व्यद्धक्त की अपेिाओं के कारर् प्रभािकारी होिा है . यानी यनद कोई रोगी नकसी गोली या कैप्सूल से
कुछ ‘होने’ की अपेिा रखिा है , िो यह संभि है नक प्लेसीबो िाली मीिी गोली से िो नहीं, उसके शरीर के
अंदर के कैनमकल लोचे से िो प्रभाि उत्पन्न होंगे िो िास्तनिक गोली से हुए होिे ।

ररसचण करने िाले ये भी कहिे हैं नक इस बाि का भी फकण पडिा है नक मीिी गोली दे कौन रहा है – एक
अंिान व्यद्धक्त, एक अंिान डॉिर, एक िान-पहचान िाला डॉिर या नफर आपका पनि या आपकी पत्नी।

यह िथ् नक प्लेसीबो-प्रभाि ‘अपेिाओं’ से िुडा हुआ है , इसे काल्पननक या झूिा नहीं बना दे िा है । प्लेसीबो
के प्रभाि से िास्तनिक शारीररक पररििणन होिे दे खे गए हैं . िैसे कुछ अध्ययनों से पिा चला है नक प्लेसीबो-
प्रभाि से बॉडी में एं डॉनफणन के उत्पादन में िृद्धि होिी है . एं डॉनफणन शरीर में ही उत्पन्न होने िाले प्राकृनिक
ददण ननिारकों में से एक रसायन है ।

शोधकिाण ओं का मानना है नक प्लेनसबो-इ़िेि पर और अनधक अध्ययन और शोध, रोगों के इलाि में इस


पिनि को और अनधक लाभकारी बना सकिा है ।

चूंनक प्लेसीबो धारर्ाओं और अपेिाओं पर ननभणर हैं , इसनलए धारर्ा को बदलने िाले निनभन्न कारक प्लेसीबो
इ़िेि के पररमार् को र्िा-बढा सकिे हैं - उदाहरर् के नलए, अध्ययनों से पिा चला है नक प्ले सीबो िाली
गोली के रं ग और आकार से भी पररर्ामों पर फकण पडिा है । िेज़ रं गो िाली गोनलयां उिेिक के रूप में
बेहिर काम करिी हैं िबनक हल्के रं ग की गोनलयां अिसाद की िनक होिी हैं ।

और हां , एक इं िरेद्धस्टंग फैि ये भी है नक गोनलयों की बिाय कैप्सूल अनधक प्रभािी होिे हैं । िहां िक
आकार की बाि है , बडी गोनलयां ज़्यादा प्रभािी होिी हैं ।

इसके अलािा, प्लेसीबो-सिणरी प्लेसीबो-इं िेक्शन की िुलना में ज़्यादा प्रभािकारी होिी हैं ।

Ques-69 बायोफीड बैक निनध से आप क्या समझिे है ?

Ans- बायोफीर् बैक विवध-


!. अिलोकि -बायोफीडबैक एक ऐसी िकनीक है निसका उपयोग आप अपने शरीर के कुछ कायों को
ननयंनत्रि करने के नलए सीख सकिे हैं , िैसे नक आपकी हृदय गनि। बायोफीडबैक के दौरान, आप निद् युि
सेंसर से िुडे होिे हैं िो आपके शरीर के बारे में िानकारी प्राप्त करने में आपकी मदद करिे हैं ।

यह प्रनिनक्रया आपके शरीर में सूक्ष्म बदलाि करने में मदद करिी है , िै से नक कुछ मां सपेनशयों को आराम
दे ना, आप िो पररर्ाम चाहिे हैं , िै से ददण को कम करना। संिेप में, बायोफीडबैक आपको अपने शरीर को
ननयंनत्रि करने के नलए नए िरीकों का अभ्यास करने की िमिा दे िा है , अक्सर स्वास्थ्य की द्धस्थनि या
शारीररक प्रदशणन में सु धार करने के नलए।

!!. बायोफीर्बैक के प्रकार

आपका नचनकत्सक आपकी स्वास्थ्य समस्याओं और लक्ष्ों के आधार पर कई िरह के बायोफीडबैक िरीकों
का उपयोग कर सकिा है । बायोफीडबैक प्रकार में शानमल हैं :

 मन्वस्तष्क तरं गें- यह प्रकार एक इलेिरोएन्सेफलोग्राफ (ईईिी) का उपयोग करके आपके मद्धस्तष्क की
िरं गों की ननगरानी के नलए खोपडी सेंसर का उपयोग करिा है ।
 श्वास- श्वसन बायोफीडबैक के दौरान, आपके पेि और छािी के चारों ओर आपके श्वास पैिनण और
श्वसन दर की ननगरानी के नलए बैंड लगाए िािे हैं ।
 हृदय गवत-यह प्रकार रक्त की मात्रा में पररििणन (फोिोप्लेथीस्मोग्राफ) का पिा लगाने के नलए उपयोग
नकए िाने िाले उपकरर् के साथ उं गली या ईयरलोब सेंसर का उपयोग करिा है । या आपके सीने ,
ननचले धड या कलाई पर लगाए गए सेंसर आपके नदल की दर को मापने के नलए एक
इलेिरोकानडण योग्रा़ि (ईसीिी) का उपयोग करिे हैं और आपकी हृदय गनि कैसे बदलिी है ।
 मांसपेर्ी में संकुचि- इस प्रकार में निद् युि गनिनिनध की ननगरानी करने के नलए इलेिरोमोग्राफ
(ईएमिी) के साथ आपकी कंकाल की मां सपेनशयों पर सेंसर रखना शानमल है िो मां सपेनशयों के
संकुचन का कारर् बनिा है ।
 पसीिा ग्रंवर्थ गवतविवध- आपकी उं गनलयों के आसपास या आपकी हथेली या कलाई पर
इलेिरोडमोग्राफ (EDG) के साथ लगे सेंसर आपकी पसीने की ग्रंनथयों की गनिनिनध और आपकी त्चा
पर पसीने की मात्रा को मापिे हैं , निससे आपको नचंिा होिी है ।
 तापमाि- आपकी उं गनलयों या पैरों से िुडे सेंसर आपकी त्चा में रक्त के प्रिाह को मापिे हैं ।
क्योंनक आपका िापमान अक्सर िब कम हो िािा है िब आप िनाि में होिे हैं , एक कम पढना
आपको निश्राम िकनीक शुरू करने के नलए प्रेररि कर सकिा है ।

!!!. बायोफीर्बैक वर्िाइस

आप भौनिक नचनकत्सा क्लीननक, नचनकत्सा केंिों और अस्पिालों में बायोफीडबैक प्रनशिर् प्राप्त कर सकिे हैं ।
बायोफीडबैक उपकरर्ों और कायणक्रमों की बढिी संख्या भी र्रे लू उपयोग के नलए निपर्न की िा रही है ,
निनमें शानमल हैं :

 इं टरएन्वक्टि कंप्यूटर प्रोग्राम या मोबाइल वर्िाइस- कुछ प्रकार के बायोफीडबैक उपकरर् आपके
शरीर में शारीररक पररििणनों को मापिे हैं , िैसे नक आपकी हृदय गनि गनिनिनध और त्चा में
पररििणन, आपकी उं गनलयों या आपके कान से िु डे एक या अनधक सेंसर का उपयोग करके। सेंसर
आपके कंप्यूिर में प्लग इन करिे हैं ।

कंप्यूिर ग्रानफक्स और प्रॉम्प्ट का उपयोग करिे हुए, नडिाइस िब आपकी सां स को गनि दे ने, आपकी
मां सपेनशयों को आराम दे ने और आपकी सामना करने की िमिा के बारे में सकारात्मक आत्म-कथन
सोचने में आपकी मदद करके आपको िनाि को दू र करने में मदद करिे हैं । अध्ययन बिािे हैं नक
इस प्रकार के उपकरर् िनाि के दौरान प्रनिनक्रयाओं को बेहिर बनाने और शां ि और कल्यार् की
भािनाओं को प्रेररि करने में प्रभािी हो सकिे हैं ।

एक अन्य प्रकार के बायोफीडबैक थेरेपी में एक हे डबैंड पहनना शानमल होिा है िो आपके ध्यान
करिे समय आपके मद्धस्तष्क की गनिनिनध पर नज़र रखिा है । यह आपको यह िानने के नलए
ध्वननयों का उपयोग करिा है नक आपका मन कब शां ि है और िब यह आपकी िनाि प्रनिनक्रया को
ननयंनत्रि करने के नलए सीखने में मदद करने के नलए सनक्रय है । प्रत्येक सत्र की िानकारी आपके
कंप्यूिर या मोबाइल नडिाइस पर संग्रहीि की िा सकिी है िानक आप समय के साथ अपनी प्रगनि
को िर ै क कर सकें।

 पहििे योग्य उपकरण- एक प्रकार में आपकी कमर पर एक सेंसर शानमल होिा है िो आपकी सां स
लेने पर नज़र रखिा है और एक डाउनलोड करने योग्य ऐप का उपयोग करके आपके श्वास पैिनण को
िर ै क करिा है । यनद आप लंबे समय िक िनाि में रहिे हैं , िो ऐप आपको सचेि कर सकिा है , और
यह आपके शां ि को बहाल करने में मदद करने के नलए ननदे नशि श्वसन गनिनिनधयाँ प्रदान करिा है ।

खाद्य और औषनध प्रशासन (एफडीए) ने िनाि को कम करने और रक्तचाप को कम करने के नलए एक


बायोफीडबैक उपकरर्, रे सपेरेि को मंिूरी दी है । Resperate एक पोिे बल इलेिरॉननक उपकरर् है िो धीमी,
गहरी श्वास को बढािा दे िा है ।

हालां नक, एफडीए र्रे लू उपयोग के नलए निपर्न नकए गए कई बायोफीडबैक उपकरर्ों को निननयनमि नहीं
करिा है । र्र पर बायोफीडबैक थेरेपी की कोनशश करने से पहले, सबसे उपयुक्त खोिने के नलए अपनी
दे खभाल िीम के साथ उपकरर्ों के प्रकारों पर चचाण करें ।

ध्यान रखें नक कुछ उत्पादों को बायोफीडबैक उपकरर्ों के रूप में गलि िरीके से निपर्न नकया िा सकिा
है , और यह नक सभी बायोफीडबैक नचनकत्सक िै ध नहीं हैं ।

!v. क्यों वकया है?

बायोफीडबैक, निसे कभी-कभी बायोफीडबैक प्रनशिर् कहा िािा है , का उपयोग कई शारीररक और माननसक
स्वास्थ्य मुद्दों को प्रबंनधि करने में मदद करने के नलए नकया िािा है , निसमें शानमल हैं :

 नचंिा या िनाि
 दमा
 ध्यान-र्ािा / अनि सनक्रयिा निकार (ADHD)
 कीमोथेरेपी के साइड इफेि् स
 पुराना ददण
 कब्ज
 मल असंयम
 fibromyalgia
 सरददण
 उच्च रक्त चाप
 इररण िे बल बोिेल नसंडरोम
 रायनौद की बीमारी
 कानों में बिना (निननिस)
 आर्ाि
 िे म्पोरोमैंनडबुलर ज्वाइं ि नडसऑडण र (TMJ)
 मूत्र असंयम

बायोफीडबैक कई कारर्ों से लोगों से अपील करिा है :

 यह गैर है ।
 यह दिाओं की आिश्यकिा को कम या समाप्त कर सकिा है ।
 यह दिाओं के लाभों को बढा सकिा है ।
 यह उन मनहलाओं की मदद कर सकिा है िो गभाण िस्था के दौरान दिा नहीं ले सकिी हैं ।
 यह लोगों को उनके स्वास्थ्य के ननयंत्रर् में अनधक महसूस करने में मदद करिा है ।

v. जोन्वखम

बायोफीडबैक आमिौर पर सुरनिि है , लेनकन यह सभी के नलए उपयुक्त नहीं हो सकिा है । बायोफीडबैक
उपकरर् कुछ नचनकत्सा द्धस्थनियों िाले लोगों पर िीक से काम नहीं कर सकिे हैं , िै से नक हृदय की लय की
समस्याएं या कुछ त्चा की द्धस्थनि। पहले अपने डॉिर से इस बारे में चचाण ज़रूर करें ।

V!.आप कैसे तैयार करते हैं

आपको बायोफीडबैक के नलए निशेष िैयारी की आिश्यकिा नहीं है ।

बायोफीडबैक नचनकत्सक को खोिने के नलए, अपने डॉिर या नकसी अन्य स्वास्थ्य दे खभाल पेशेिर से
बायोफीडबैक नचनकत्सा के ज्ञान के साथ पूछें, िो नकसी को आपकी द्धस्थनि का इलाि करने का अनुभि करने
के नलए सलाह दे । कई बायोफीडबैक नचनकत्सकों को स्वास्थ्य दे खभाल के नकसी अन्य िेत्र में लाइसेंस नदया
िािा है , िैसे मनोनिज्ञान, ननसांग या भौनिक नचनकत्सा।

बायोफीडबैक नचनकत्सकों को निननयनमि करने िाले राज् कानून अलग-अलग हैं । कुछ बायोफीडबैक
नचनकत्सक अभ्यास में अपने अनिररक्त प्रनशिर् और अनुभि को नदखाने के नलए प्रमानर्ि होने का चयन
करिे हैं ।

उपचार शुरू करने से पहले आप निन बायोफीडबैक प्रैद्धिशनर पर निचार कर रहे हैं , उनसे पूछें:

 क्या आप लाइसेंस प्राप्त, प्रमानर्ि या पंिीकृि हैं ?


 आपका प्रनशिर् और अनुभि क्या है ?
 क्या आपको मेरी द्धस्थनि के नलए बायोफीडबैक प्रदान करने का अनुभि है ?
 आपको लगिा है नक मुझे नकिने बायोफीडबैक सत्रों की आिश्यकिा होगी?
 लागि क्या है और क्या यह स्वास्थ्य बीमा द्वारा किर नकया गया है ?
 क्या आप संदभों की एक सूची प्रदान कर सकिे हैं ?

V!!. आप क्या उम्मीद कर सकते हैं -

प्रविया के दौराि

बायोफीडबैक सत्र के दौरान, एक नचनकत्सक आपके शरीर के निनभन्न नहस्ों में नबिली के सेंसर लगािा है । ये
सेंसर आपके मद्धस्तष्क की िरं गों, त्चा के िापमान, मां सपेनशयों के िनाि, हृदय गनि और श्वास की ननगरानी
के नलए उपयोग नकए िा सकिे हैं । यह िानकारी cues के माध्यम से आपको िापस भेि दी िािी है , िैसे
मॉननिर पर बदलाि, बीनपं ग साउं ड या फ्लैनशंग लाइि।

प्रनिनक्रया आपके निचारों, भािनाओं या व्यिहार को बदलकर आपके शरीर की प्रनिनक्रयाओं को बदलना या
ननयंनत्रि करना नसखािी है । यह उस द्धस्थनि में मदद कर सकिा है निसके नलए आपने उपचार की मां ग की
थी।

उदाहरर् के नलए, बायोफीडबैक िनाि िाली मां सपेनशयों को इं नगि कर सकिा है िो नसरददण पै दा कर रहे
हैं । नफर आप सीखिे हैं नक अपने शरीर में िानबूझकर शारीररक पररििणन कैसे करें , िैसे नक निनशष्ट
मां सपेनशयों को आराम दे ना, िानक आपके ददण को कम नकया िा सके। बायोफीडबैक के साथ अंनिम लक्ष्
अपने दम पर र्र पर इन िकनीकों का उपयोग करना सीखना है ।

एक िे ि बायोफीडबैक सत्र 30 से 60 नमनि िक रहिा है । सत्र की लंबाई और संख्या आपकी द्धस्थनि से


ननधाण ररि होिी है और आप अपनी शारीररक प्रनिनक्रयाओं को ननयंनत्रि करने के नलए नकिनी िल्दी सीखिे हैं ।
बायोफीडबैक बीमा द्वारा किर नहीं नकया िा सकिा है ।

V!!! .पररणाम

यनद बायोफीडबैक आपके नलए सफल है , िो यह आपकी द्धस्थनि के लिर्ों को ननयंनत्रि करने या आपके द्वारा
ली िाने िाली दिा की मात्रा को कम करने में आपकी मदद कर सकिा है । आद्धखरकार, आप बायोफीडबैक
िकनीकों का अभ्यास कर सकिे हैं िो आप अपने दम पर सीखिे हैं । हालां नक, आपकी दे खभाल िीम से
परामशण नकए नबना, आपकी द्धस्थनि के नलए नचनकत्सा उपचार बंद न करें ।

Ques-70 माननसक मंनदि बालक का अथण , पररभाषा, िगीकरर् एिं कारर्ों की नििेचना कीनिये ?

Ans- ‘‘माननसक मंनदिा’’ माननसक न्यू निाओं से ग्रस्त बालक ‘‘माननसक निकलां गिा’’ और ‘‘सामान्य से कम
माननसक मंनदि बालक’’ आनद सभी माननसक रूप से निकलां ग बच्चों के नाम हैं । प्राचीन समय में माननसक
मंनदि बच्चों के नलए मूखण, मन्दबुद्धि आनद शब्दों का प्रयोग नकया िािा था िो अब अप्रचनलि हो गये हैं ।
एल्फ्फ्रेड नबने (Alfred Binet, 1908) ने ‘‘माननसक आयु ’’ प्रत्यय का प्रनिपादन नकया। माननसक आयु से अनभप्राय
एक नननचि आयु स्तर पर बच्चे के ज्ञान से है । यनद कुछ बच्चे सामान्य योग्यिाओं में सामान्य बच्चों की िुलना
में बहुि अनधक न्यून ि अनिकनसि होिे हैं िो िे मंदिा के नशकार होिे है । उदाहरर्स्वरूप, यनद 10 साल का
बच्चा यह कायण करिा है िो 06 साल के बच्चं को करना चानहए िो हम उसकी माननसक आयु 06 साल
मानेंगे।
अर्थश एिं पररभाषा

माननसक मंनदि औसि से ननम् मानसक कायणिमिा का उल्लेख करिी है । इसनलए मानसक मंनदिा से अनभप्राय
माननसक िृद्धि एिं निकास की गनि की न्यूनिा से है । माननसक मंनदिा बोल बच्चों की बुद्धिलद्धब्ध, साधारर्
बालकों की बुद्धिलद्धब्ध से कम होिी है ।

‘‘माननसक मंनदि से िात्पयण उस असामान्य साधारर् बौथ्द्िक कायणिमिा से है िो व्यद्धक्त की निकासात्मक


अिस्थाओं में प्रकि होिी है िथा उसके अनुकूल व्यिहार से सम्बंनधि होिी है ।’’
1. जे .र्ी. पेज (J.D. Page, 1976) के अिुसार :- ‘‘माननसक न्यूनिा या मंदन व्यद्धक्त में िन्म के समय
या बचपन के प्रारं भ के िषों में पायी िाने िाली सामान्य से कम माननसक निकास की ऐसी अिस्था
है िो उसमें बुद्धि सम्बन्धी कमी िथा सामानिक अिमिा के नलए उिरदायी होिी है ।’’
2. विवटर् मेण्टल र्ै वफवर्येन्सी एक्ट के अिुसार :- ‘‘माननसक मंदन 18 िषण से पहले आन्तररक
करर्ों की ििह से अथिा बीमारी या चोि के कारर् पैदा हुई एक ऐसी द्धस्थनि है , निसमें व्यद्धक्त के
मद्धस्तष्क का निकास या िो रूक िािा है या उसमें पूर्णिा नहीं आ पािी।’’
3. िो और िो के र्ब्ों में :- ‘‘निन बालकों की बुद्धिलद्धब्ध 70 से कम होिी है , उन्हें माननसक मंनदि
बालक कहिे हैं ।’’

मािवसक मंवदता का िगीकरण

माननसक मंनदिा का िगीकरर् िीन प्रकार से नकया िा सकिा है - नचनकत्सकीय, मनोिैज्ञाननक िथा शैिनर्क
निनधयों द्वारा नचनकत्सकीय िगीकरर् की अपेिा मनो-िैज्ञाननक ि शैिनर्क िगीकरर् का प्रयोग सामान्यि:
नकया िािा है । नचनकत्सकीय िगीकरर् कारर्ों पर आधाररि होिा है । मनोिैज्ञाननक िगीकरर् का आधार बुद्धि
के स्तर पर िथा शैिनर्क िगीकरर् का आधार माननसक मंनदि बालक का ििणमान नक्रयात्मक स्तर होिा है ।
शैिनर्क िगीकरर् निसे अमेररकी नशिानिदों द्वारा मौनलकिा प्रदान की, उसे छब्त्ि् नई नदल्ली द्वारा भी मान्यिा
प्रदान की गयी है ।

वचवकत्सकीय िगीकरण

1. पोषर् (Nutrition)
2. िर ोमा (सदमा) (Trauma)
3. भयंकर नदमागी बीमारी पोषर् (Gross Brain Disease)
4. िन्म से पहले के प्रभाि (Prental Influences)
5. क्रोमोसोमो की असामान्यिा (Chromosomal Ahnarmality)
6. भ्रूर्ािस्था या गभाण िस्था सम्बन्धी निकास (Geslational Disorder)
7. संक्रमर् िथा उिेिना (Infections and Intoxications)
8. मनोिैज्ञाननक निकार (Physchiasric Disorder)
9. िािािरर् का प्रभाि (Environmental Influences)

मिोिैज्ञाविक िगीकरण I.Q. के आधार पर

1. सामान्य (साधारर्) मंनदिा - I.Q. 50-70


2. मध्यमिगीय मंनदिा - I.Q. 35-49
3. गंभीर मंनदिा - I.Q. 20-34
4. अनिगंभीर मंनदिा - I.Q. Below

र्ैक्षवणक िगीकरण

1. ssनशनिि नकये िाने िाले बालक - I.Q. 50-75


2. प्रनशनिि नकये िाने िाले बालक - I.Q. 25-50
3. प्रनशनिि न नकये िाने िाले बालक - I.Q. Below 25 यह निनभन्न प्रकार का िगीकरर् माननसक मंनदि
बच्चों की नशिा, उसके व्यिहार ि स्विंत्रिा के स्तर के बारे में समझ के एक स्तर को निकनसि
करिा है अथाण ि् उनको समझने में सहायिा करिा है ।

मािवसक मंवदत के कारण

माननसक मंनदि के नलए कोई ऐसे सामान्य कारर् ननधाण ररि करना सम्भि नहीं है । माननसक मंनदिा एक
व्यद्धक्तगि समस्या हैं । अि: प्रत्येक मन्दबुद्धि बालक अपनी मन्दबुद्धि के नलए कुछ अपूर्ण कारर् रखिा है ,
मन्दबुद्धि बच्चों से सम्बंनधि कारर्ों को अग्र िीन भागों में बाँ िा िा सकिा है :-

1. िन्म से पूिण के कारर् (Prinital Causes)


2. िन्म के समय के कारर् (Perinatal Causes)
3. िन्म के बाद के कारर् (Pornatal Causes)

जन्म से पूिश के कारण

 आिुिांवर्की ि दोषपूणश गुणसूत्र :-मानि शरीर में 23 िोडे गुर्सूत्र होिे है । प्रत्येक व्यद्धक्त अपने
मािा-नपिा से आधे गुर्सूत्रों को ग्रहर् करिा है । माननसक मंनदिा मािा या नपिा अथिा दोनों के
गुर्सूत्रों में उपद्धस्थि दोषपूर्ण पैिृकों के कारर् पै दा हो सकिी है । कुछ िैनिक बीमाररयों का िर्णन इस
प्रकार है -
 र्ाउन्स वसण्ड्ोम :-इसे मंगोनलज्म के नाम से भी िाना िािा है । इस बीमारी में गुर्सू त्रों का एक
िोडा गभण धारर् के समय अलग हो िािा है । फ्रां स के िैज्ञाननकों ने यह बिा नदया नक व्यद्धक्तयों के
क्रोमोसोम्य (Chromosomes) के 21िें िोडे में एक अनिररक्त क्रोमोसोम होिा है , निससे इन लोगों में 46
की बिाय 47 क्रोमोसोम होिे है । इन लोगों के चे हरे की बनािि मंगोनलयन िानि के लोगों से नमलिी-
िुलिी होिी है , इसनलए इन्हें मंगोनलज्म कहा िािा है । इनका चेहरा गोल, नाक छोिी ि चपिी, आँ खें
धंसी हुई, हाथ छोिे और मोिे िथा िीभ में एक दरार होिी है ।
 टिशर वसण्ड्ोम :-इस माननसक दु बणलिा का कारर् यौन क्रोमोसोम (Sex chromosomes) में गडबडी
होिी है । यह माननसक दु बणलिा केिल बानलकाओं में ही पायी िािी है । इन बानलकाओं की गदण न छोिी
और झुकी हुई होिी है । इस प्रकार के बच्चों मं अनधगम सम्बन्धी समस्याएँ सामान्यि: पायी िािी हैं ,
निसमें श्रिर् बानधिा भी शानमल है ।

Male Female
XY + 22 XO + 22

XO + 44

 क्लाईिफैल्टर वसण्ड्ोम:-इस प्रकार की दु बणलिा पुरूषों में एक अनिररक्त क्रोमोस (XYZ) की उपद्धस्थनि
के कारर् नदखाई दे िी है । इसका कारर् भी यौन क्रोमोसोम्स में निसंगनि का होा है । इस अनिररक्त
क्रोमोसोम्स को हम 47 नगनिे है । इस दु बणलिा के कारर् पुरूषों में सामान्यि: मनहलाओं की
निशेषिाएँ निकनसि होने लगिी है ।

XX XY

XYZ

 गभणििी मािा की िनिलिाओं के कारर् एक्स-रे करिाना पडिा है िथा इन नकरर्ों का नशशु के
माननसक निकास पर प्रभाि पडिा है ।
 गभण धारर् के शुरूआिी िीन महीनों में संक्रमर् आनद पैदा होने के कारर् भ्रूर् के निकास पर
प्रभाि पड सकिा है ।
 गभणििी मािा द्वारा शराब, नसगरे ि ि नशीली दिाइयों का सेिन भी माननसक मंनदिा का कारर् बन
सकिा है ।
 कम आयु में गभण धारर् की माननसक मंनदिा का एक कारर् है । कम आयु में गभणििी होन से भ्रूर्
का निकास पूर्ण रूप से नहीं हो पािा है ।

जन्म के समय के कारण

1. समय से पूिण (24 हफ्तों और 34 हफ्तों के बीच िन्म) बच्चे का पैदा होना भी माननसक मंनदिा का
एक कारर् है ।
2. िन्म के समय नशशु का ििन कम होने के कारर् बच्चे का माननसक निकास कम हो िािा है । बि
िन्म के समय ऑक्सीिन की कमी भी बच्चे में माननसक मंनदि पै दा करिी है ।
3. ऑपरे शन के समय प्रयु क्त नकये िाने िाले औिारों से कई बार नशशु के नसर पर र्ाि बन िािे है ।
4. एनीनथनसया और ददण नेिारकों का प्रयोग के समय करने से भी माननसक मंनदिा हो सकिी है ।

जन्म के बाद के कारण

1. नकसी दु र्णिना के फलस्वरूप मद्धस्तष्क या स्नायु संस्थान को आर्ाि पहुँ चने के कारर् माननसक मंनदिा
हो सकिी है ।
2. िन्म के बाद बच्चे को सन्तुनलि आहार और उनचि पोषर् न नमलने के कारर् भी माननसक मंनदिा
हो सकिी है ।
3. बाल्यकाल में बच्चों को होने िाली बीमाररयों, िैसे - िमणन खसरा, ऐपीलैप्सी (नमरगी) आनद से भी
माननसक मंनदिा हो सकिी है ।
4. मेननिारनिस एक नदगामी संक्रमर् भी माननसक मंनदिा का एक मुख्य कारर् है ।

मािवसक मंवदत बालकों की पहचाि

माननसक मंनदि बालकों को नशिा प्रदान करने के नलए िथा गम्भीर माननसक मंनदि की रोकथाम के नलए
यह आिश्यक है नक िल्दी से िल्दी मंनदि बच्चों की पहचान की िाए। ऐसे बच्चों की पहचान करने के नलए
अग्र निनधयों का प्रयोग नकया िा सकिा है :-

1. बच्चे के िन्म होिे ही िु रन्त न रोना।


2. बच्चे का निकास अन्य बच्चों की िुलना में धीमी गनि से हो रहा हो, अथाण ि् दे स से चलना, बैिना,
बोलना, शुरू करना आनद।
3. नकसी भी कायण ि कुशलिा के धीमी गनि से सीख पाना या बहुि अनधक समझाने पर ही समझ
पाना।
4. अपनी उम्र के अनुसार सामान्य कायों को (िैसे भोिन करना, बिन लगाा, कपडे पहनना, समय दे खना
आनद) कुशलिा से न कर पाना।
5. भाषा का सही प्रयोग न कर पाना।
6. पढाई में पीछे रहना।
7. अपनी उम्र के अन्य बच्चों के साथ र्ुल-नमल नहीं पाना।
8. अपनी उम्र से कम उम्र के बच्चे की िरह व्यिहार करना।
9. दै ननक कायों के नलए दू सरों पर ननभणर रहना।

उपरोक्त सभी बुद्धि परीिर्ों द्वारा माननसक मंनदि बच्चों की पहचान करने में बहुि सहायिा नमलिी है । इस
प्रकार नशिा में नई-नई खोिों िथा परीिर्ों के द्वारा बालक की मंदबुद्धििा का पिा लगािार इनकी नशिा
का उनचि प्रबंध करना चानहए।

मािवसक मंवदत बच्ों की विर्ेषताएँ

माननसक मंनदि बालक बहुि-सी बािों में सामान्य बच्चों िैसा व्यिहार करिा है , परन्तु कुछ निशेषिाएँ ऐसी
है िो माननसक मंनदि बालकों को सामान्य बच्चों से अलग करिी है । इन निशेषिाओं को निनभन्न
मनोिैज्ञाननकों ने नभन्न-नभन्न प्रकार से व्यक्त नकया है । मन्दबुद्धि बच्चों की बौद्धिक ि व्यद्धक्तत् सम्बंध
निशेषिाओं का िर्णन इस प्रकार है :-

बौन्वद्धक या मािवसक विर्ेषताएँ -


मंनदि बच्चों को बौद्धिक निकास से सम्बंनधि चार िेत्रों - अिधान, स्मृनि, भाषा और शैिनर्क स्तर आनद में
निनभन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पडिा है ।

1. अिधाि की कवमयाँ :- एक बच्चा नकसी भी कायण को िभी कर सकिा है िब िह उसे स्मरर् कर


सकिा हो या सीख सकिा हो। अनुसंधानकिाण ओं का यह मि है नक माननसक मंनदि बच्चों की
बौद्धिक समस्याओं में सबसे महत्पूर्ण समस्या अिधान की समस्या होिी है ।
2. विम्न स्मृवत स्तर :- मानसक मंनदि बच्चों की सीखने की गनि धीमी होने के कारर् ये नक्रया के बार-
बार दोहराने के बाद ही कुछ सीख पािे हैं । इिना ही नहीं ये सीखकर पुन: भूल भी िािे हैं , इनकी
प्रनिनक्रया गनि भी धीमी होिी है ।
3. भाषा विकास :- इनका भाषा निकास ननम् होिा है । भाषा निकास सीनमि होने के कारर् इस श्रेर्ी
के बच्चों की शब्दािली अपूर्ण और दोषपूर्ण होिी है । अि: इन बच्चों का भाषा ि िर्ी निकास
सामन्य बच्चों से ननम् होिा है ।
4. विम्न र्ैक्षवणक उपलन्वि :- शैिनर्क बुद्धि ि शैिनर्क उपलद्धब्ध सम्बन्धी सभी िेत्रों में यह बालक,
सामान्य बच्चों से पीछे रहिे हैं क्योंनक बुद्धि और उपलद्धब्ध में गहरा सम्बन्ध है । इनकी अनधगम िमिा
सीखने या समझने की बिाय रहने पर आधाररि होिी है ।

व्यन्वित्व संबंधी विर्ेषताएँ :-

1. सामावजक और संिेगात्मक अिुपयुिता :- स्कूली नशिा कम होने के कारर् िे बालक सामानिक ि


संिेगात्मक रूप से स्वयं को समायोनिि नहीं कर पािे। ये बालक संिेगात्मक रूप से अद्धस्थर होिे हैं ।
2. अवभप्रेरणा की कमी :- माननसक मंनदि बच्चों में अनभप्रेरर्ा ि प्रोत्साहन की कमी होिी है । इनका
झुकाि अनैनिकिा और अपराध की ओर रहिा है । इनमें आत्मनिश्वास की कमी होिी है । ये बालक
स्वयं कायण नहीं कर सकिे लेनकन दू सरे के ननदे शन में ये कायण कर लेिे है ।
3. सीवमत िैयन्विक विवभन्नता :- माननसक मंनदि बच्चों में िैयद्धक्तक निनभन्निा सीनमि होिी है ।
िैयद्धक्तक निनभन्निा से अनभप्राय व्यद्धक्तयों में नकसी एक निशेषिा या अनेक निशेषिाओं को लेकर पाये
िाने िाली नभन्निाएँ या अन्तर से है । निनभन्न अिसरों पर ये बालक निनभन्न प्रकार का व्यिहार प्रदनशणि
करिे है । बहुि-से माननसक मंनदि बालक रं गहीन होिे है ।
4. र्ारीररक हीिता :- माननसक मंनदि बच्चों का शरीर निकृि हो िािा है । शारीररक रोगों का सामना
करने की िमिा कम होिी है । मन्द बुद्धि बालक प्राय: शारीररक रूप से बेडौल होिे है , िैसे - नाक,
कान, हाथ, पैर ि पेि का निकृि होना। सामान्य बच्चों की िुलना में इनका शरीररक निकास कम होिा
है , लेनकन यह आिश्यक नहीं नक िो बच्चा शारीररक रूप से निकृि होगा िह बुद्धिहीन होगा।
5. समायोजि समस्या :- माननसक मंनदि बच्चे स्वयं को असहाय ि हीन भािना ग्रनसि महसूस करिे
हैं । इन बच्चों को अपने पररिार िथा िािािरर् सम्बन्धी निनभन्न समस्याओं का सामना करना पडिा है ।
माननसक मंनदि बच्चों में पररद्धस्थनियों के अनुसार स्वयं को समायोनिि करने की िमिा कम होिी है ।
6. सृजिात्मक की कमी :- माननसक मंनदि बच्चों में सृिनात्मकिा की भी कमी होिी है । सीनमि
अिधान होने के कारर् इन बच्चों की रूनच, अनभरूनच िथा अनभिृनि आनद िेत्रों में भी कमी होिी है ।
माननसक मंनदि बच्चे नकसी एक ही कायण में अपनी रूनच का प्रदशणन करने में सिम होिे है ।
सृिनात्मक ये अनभप्राय नकसी नई िस्तु के सृिन से होिा है िथा माननसक मंनदि बच्चों में अभूिण
नचन्तन का अभाि पाया िािा है ।

मािवसक मंवदत बच्ों की समस्याएँ

1. पररिार में समायोिन


2. निद्यालय में समायोिन
3. समाि में समायोिन

समायोजि सम्बन्धी समस्याएँ


माननसक मंनदि बच्चों को समाि, र्र िथा निद्यारलय में समायोिन सम्बन्धी अनेक कनिनाइयों का सामना
करना पडिा है , निनका िर्णन इस प्रकार है -

1. पररिार में समायोजि (Adjstment of Family) :- मन्दबुद्धि बच्चे के मािा-नपिा को यह निश्वास नदलाना
अनि आिश्यक होिा है नक उनका बच्चा माननसक मंनदि है । यनद ऐसा नहीं नकया िािा है िो मािा-
नपिा अपने बच्चे आकां िाएँ रखने लगिे हैं , लेनकन कुछ ही समय में बालक की असफलिाएँ उन्हें
ननराश कर दे िी है । इस कारर् मािा-नपिा का व्यिहार बच्चे के प्रनि बदल िािा है ।

2. विद्यालय में समायोजि (Adjstment in School) :- मन्दबुद्धि बच्चों को साधारर् बच्चों की िरह किा में
अध्यापकों की सामान्य निनधयों द्वारा नहीं पढाया िा सकिा, क्योंनक ऐसे बालक अध्यापकों की सामान्य
निनधयों से कुछ भी सीखने मं असमथण होिे हैं , निसके कारर् मन्दबुद्धि बच्चों को निद्यालयों िथा
किाओं में अध्यापकों के असहानुभूनिपूर्ण व्यहिार का सामना करना पडिा है । कई बार िो उन्हें दण्ड्
भी नदया िािा है । इस प्रकार बच्चा हीन भािना से भर िािा है िथा पढाई एिं निद्यालय के प्रनि
उसका दृनष्टकोर् नबल्कुल बदल िािा है ।
3. समाज में समायोजि (Adjstment in Society) :- बच्चों को पररिार के बाद समाि में अपने आपको
समायोनिि करना पडिा है । माननसक मंनदि बच्चों के नलए िो यह और भी मुद्धश्कल हो िािा है ।
समाि के दू सरे बच्चे उनके साथ खेलना पसन्द नहीं करिे िथा बाि-बाि पर उनको नचढािे है ।
पररर्ामस्वरूप इन बालकों में हीन भािना पैदा होनी शुरू हो िािी है । इसी कारर् से इन बच्चों में
सामानिक गुर्ों का निकास नहीं हो पािा।
संिेगात्मक समस्याएँ -
माननसक मंनदि बच्चों को र्र, निद्यालय ि समाि में उनचि िािािरर् न नमलने के कारर् समायोनिि बालक
संिेगात्मक रूप से पररपक्व नहीं हो सकिे। संिेगों को ननयंनत्रि करने का प्रनशिर् उन्हें नहीं नमल पािा।
अि: ये बच्चे संिेगात्मक रूप से अपररपक्व रह िािे है ।

विकास की समस्याएँ :-
माननसक मंनदि बच्चों का शारीररक ि माननसक निकास सामान्य बच्चों की िरह नहीं हा पािा निसके कारर्
इनको समायोिन की कनिनाइयाँ होिी है । इनका बौद्धिक निकास का होने के कारर् ये कुछ सीख नहीं
पािे। इनमें अभूिण नचन्तन का अभाि होिा है । ये नकसी एक निषय पर अनधक समय िक ध्यान केद्धिि नहीं
कर सकिे। इनकी रूनचयाँ सीनमि होिी हैं िथा ये केिल साधारर् िथा सरल ननदे श ही समझ सकिे है ।

मािवसक मंवदत की रोकर्थाम सम्बन्धी उपाय

1. जल्दी पहचाििा तर्था खोजिा - माननसक मंनदि बच्चों की मंनदिा को कम करने का उपाय सबसे
पहले उनकी पहचान िथा खोि होिा है । उदाहरर्स्वरूप Abgar Scale के द्वारा नये िन्में बच्चों की
मंनदिा की पहचान की िा सकिी है िथा उसकी रोकथाम के उपाय नकये िा सकिे है ।
2. जिविकी विदे र्ि-माननसक मंनदिा को कम करने के नलए गभणििी मािाओं को िनननकी ननदे शन
प्रदान करना चानहए।
3. िमणन खसरा िथा िे िनैस िैसी भयंकर बीमाररयों के नलए प्रनिरनिि या िीके आिश्यकिानुसार लगिाने
चानहए।
4. PKU और galactoremia के नलए आहार नचनकत्सा द्वारा माननसक मंनदिा कम हो सकिी है ।
5. शीशे िहर की रोकथाम के नलए फनीचर िथा द्धखलौने पर प्रयोग होने िाले शीशे िहर की सम्बंधी
कानून बनाये िथा लागू नकये िाने चानहए।
6. उक्त रक्तचाप िाली गभणििी मनहलाओं को उनचि दे खभाल प्रदान की िानी चानहए।
7. बच्चों को पयाण प्त पोषर् िथा सन्तुनलि आहार प्रदान नकया िाना चानहए।
8. गभणििी मनहला को शुरूआिी महीनों में एक्स-रे नकरर्ों के प्रभाि से दू र रहना चानहए।
9. गभणििी मनहला क नलए शराब, िम्बाकू, कोकीन ि अय नशीली दिाईयों का प्रयोग िनिणि हो चानहए।
10. यनद बच्चे में नकसी भी प्रकार की बौद्धिक या माननसक असामान्यिा नदखाई दे िो उसे निशेषज्ञ को
नदखाया िाना चानहए।

मािवसक मंवदतों के वलए र्ैवक्षक प्रािधाि

माननसक मंनदि बच्चों के नलए निनभन्न प्रकार के शैनिक प्रािधान नकये िा सकिे हैं , िैसे - ननयनमि किा
कि, निशेष किाएँ , निशेष निद्यालय, आिासीय निद्यालय िथा नचनकत्सा सेिाओं िाले संस्थान आनद। शैनिक
प्रािधानों के चुनाि के समय कुछ महत्पूर्ण बािें नदमाग में रखनी चानहए।

1. शैनिक सुनिधाएँ ि व्यिस्था बच्चे की आिश्यकिाओं के आधार पर होनी चानहए।


2. बच्चों को उपयुक्त ि उनचि या कम प्रनिबंनधि िािािरर् प्रदान करना चानहए।
3. स्थानापन्न सुनिधा लोचशील होनी चानहए िानक बच्चा निनभन पररद्धस्थनियों में द्धस्थनि के अनुसार स्वयं को
ढाल सकें।
मुख्यिया माननसक मंनदि बच्चों को िीन िगों में बाँ ि सकिे हैं -

1. नशनिि नकये िाने िाले बालक


2. प्रनशनिि नकये िाने िाले बालक
3. प्रनशनिि न नकये िाने िाले बालक

वर्वक्षत वकये जािे िाले बालकों की वर्क्षा


इन बच्चों की बुद्धिलद्धब्ध 50-75 के बीच होिी है । इन बच्चों की दे खभाल, नशिा ि प्रनशिर् की नििेदारी
केिल अध्यापक की ही नहीं होिी, बद्धल्क मािा-नपिा िथा समाि की भी यह नििेदारी केिल अध्यापक की
ही नहीं होिी, इनकी नशिा ि दे खभाल का ध्यान रखे। ऐसे बच्चों को कुछ निशेष नशिा सुनिधाओं द्वारा
आसानी से नशनिि नकया िा सकिा है ।

माता-वपता का उत्तरदावयत्व
‘‘माननसक मंनदिा’’ माननसक न्यूनिाओं से ग्रस्त बालक ‘‘माननसक निकलां गिा’’ और ‘‘सामान्य से कम माननसक
मंनदि बालक’’ आनद सभी माननसक रूप से निकलां ग बच्चों के नाम हैं । प्राचीन समय में माननसक मंनदि बच्चों
के नलए मूखण, मन्दबुद्धि आनद शब्दों का प्रयोग नकया िािा था िो अब अप्रचनलि हो गये हैं ।

1. अनुभिी मािा िथा पररिार के अन्य बुिुगण मनहलाओं को बच्चों के निकास सम्बन्धी काफी ज्ञान होिा
है । यनद एक बच्चे का निकास मन्दगनि से और उसके व्यिहार में कुछ असामानिा नदखाई दे िी है िो
उसे नकसी निशेषज्ञ या बाल मनोिैज्ञाननक को नदखाना चानहए।
2. मािा-नपिा को अपना धैयण नहीं खोना चानहए बद्धल्क उन्हें अपने बच्चे की मंनदिा की रोकथाम के नलए
आिश्यक कदम उिाने चानहए।
3. आिासीय प्रनशिर् ऐसे बच्चों के नलए बहुि लाभदायक होिा है । मािा-नपिा बच्चों को दै ननक नक्रया
संबंधी कौशल, सामानिक कौशल, भाषा कौशल आनद द्वारा शुरूआिी कुछ िषों में बहुि कुछ सीख
सकिे है । पूिण निद्यालयी नशिा ; पूिण निद्यालयी नशिा मध्यम मन्दबुद्धि बच्चों के नलए ननम् स्तर से शुरू
करनी चानहए और उन्हें कौशल प्रनशिर् एक िषण की बिाय दो या िीन िषण प्रदान करना चानहए।
4. द्धस्थर बैिना िथा अध्यापक की बािों पर ध्यान दे ना।
5. ननदे शों का पालन करना।
6. भाषा निकास।
7. आत्म-नक्रयात्मक कौशल का निकास, िैसे - िूिे बाँ धना, बिन बन्द करना और कपडे पहनना आनद। ;
8. शारीररक सन्तुलन बढाना, िैसे - पैंनसल पकडना आनद।

प्रवर्क्षण योग्य मन्दबुन्वद्ध बच्ों के वलए र्ैवक्षक प्रािधाि


इस श्रेर्ी में िे मंनदि बालक आिे है िो नकसी भी प्रकार सामान्य किाओं में पढकर लाभ नहीं उिा सकिे।
इस श्रेर्ी में िे बालक रखे िािे हैं निनकी बुद्धिलद्धब्ध 50-25 के मध्य होिी है । ऐसे बालक बहुि कम नशिा
प्राप्त कर सकिे हैं और दो या िी किा से आगे नहीं पढ सकिे। ऐसे बच्चों को प्रनशिर् दे ने के नलए निशेष
साधनों, किाओं और नशिकों की आिश्यकिा पडिी है ।

1. नदनचयाण कौशल का निकास (Daily Living Skills)


2. सामानिक निकास (Social Development)
3. शारीररक निकास (Motor Development)
4. भाषा निकास (Language Development)
5. श्रम - आदि और शैिनर्क कौशल (Work Habit and Academic Skill)
6. योग नचनकत्सा (Yoga Therapy)

प्रवर्वक्षत ि वकये जािे िाले या गम्भीर मािवसक मंवदत बच्ों की वर्क्षा


गम्भीर माननसक मंनदि बच्चों की बुद्धिलद्धब्ध 25 से कम होिी है । ऐसे बालक अपनी दे ख-रे ख स्वयं नहीं कर
सकिे और समाि में अकेले िीिनयापन नहीं कर सकिे। यहाँ िक नक ये न िो िीक से बोल सकिे हैं
और न ही अपने निचारों को दू सरों को अच्छी िरह समझाने के योग्य होिे हैं । इन्हें निशेष सहायिा की
आिश्यकिा होिी है ।
ग्रासमैन ने गम्भीर माननसक मंनदि बच्चों के बारे में नलखा है , ‘‘गहन रूप से मन्दबुद्धि बालकों के नलए
माननसक अस्पिाल ि सं स्थाएँ ि सुरनिि िगह हो।’’

1. गम्भीर माननसक मंनदि बालक पानी, आग, नबिली आनद के खिरे को नहीं समझ सकिे िथा आसानी
से दु र्णिनाग्रस्त हो िािे है ।
2. माननसक मंनदि बालक अपने छोिे -छोिे कायों के नलए भी दू सरों पर ननभणर रहिे है ।
3. इन बच्चों को छोिे बच्चों की िरह ही नहलाया, धुलाया ि भोिन कराया िािा है ।
4. इन बच्चों को स्कूलों में नहीं रखा िािा, बद्धल्क इनको माननसक अस्पिालों िथा संस्थाओं में रखा िािा
है । अि: इन बच्चों के नलए एक ही कायणक्रम हो सकिा है और िह यह है - इन बालकों को
सुरिा िथा सहायिा प्रदान करना।

Ques-71 "निनशष्ट बालकों के नलए ननदे शन " कथन की पुनष्ट कीनिये ?

Ans- िे 0िी0 हण्ट ने निनशष्ट बालकों की पररभाषा दे िे हुये नलखा है नक-’’निनशष्ट बालक िे हैं िो नक शारीररक,
संिेगात्मक ि सामानिक निशेषिाओं में सामान्य बालकों से इिने पृथक हैं नक उनकी िमिाओं को अनधकिम
निकासाथण नशिा सेिाओं की आिश्यकिा है ।’’

क्रुशां क ने निनशष्ट बालकों के सम्बन्ध में निचार व्यक्त करिे हुये नलखा नक-निनशष्ट बालक िह है िो सामान्य
बौद्धिक, शारीररक, सामानिक िथा संिेगात्मक िृद्धि िथा निकास से इिने पृथक है नक िे ननयनमि िथा सामान्य
शैिनर्क कायो से अनधकिम लाभाद्धन्वि नहीं हो पािे निनके नलये निनशष्ट किाओं एिं अनिररक्त नशिर् ि
सेिाओं की आिश्यकिा होिी है । इस पररभाषा से आपको ये बालक ननम् िेत्रों में पृथक दृनष्टगोचर हुये -

1. र्ारीररक क्षेत्रों में पृर्थकता-

 बाहा्र अपंगिा; िैसे-लूला, लंगडा, बहरा, गूंगा आनद।


 आन्तररक अपंगिा-हृदय की खराबी, फेफडों की दु बणलिा, ननबणल दृनष्ट, ग्रद्धियों की खराबी आनद।

2. मािवसक क्षेत्रों में पृर्थकता-

 प्रनिभा-सम्पन्निा।
 मन्द-बुद्धििा।

3. व्यन्विगत सन्तुलि क्षेत्र में पृर्थकता-


 संिेगात्मक असन्तुलन।
 सामानिक असन्तुलन।

र्ारीररक रूप से विकलांग बालक ि विदे र्ि

ननदे शन प्रदान करने के दृनष्टकोर् से ननम्ां नकि शारीररक निकलां ग बालकों का निशेष ध्यान रखने की
आिश्यकिा है इन्हें ननदे शन अलग से दे ना पडिा है िब ये समायोिन नहीं कर पािे।

1. दृनष्ट-दोष से ग्रस्त बालक।


2. श्रिर्-दोष से ग्रस्त बालक।
3. िार्ी-दोष से ग्रनसि बालक।
4. गामक-दोष से ग्रनसि बालक।
5. अन्य निनशष्ट शारीररक दोषों से ग्रनसि बालक।

दृवि-दोष से ग्रस्त बालक-


दृनष्ट-दोष कई प्रकार का हो सकिा है ; िैसे कम नदखाई दे ना, ननकि की िस्तु स्पष्ट नदखाई न दे , दू र की
िस्तुएँ स्पष्ट नदखाई न दे ना; अन्धापन, िीव्र प्रकाष में धुँधला नदखाई दे ना, थोडे से अन्धकार में ही नबल्कुल नदखाई
न दे ना िथा सभी िस्तुएँ एक ही रं ग की नदखाई दे ना। इन बालकों में पू र्ण अन्धे उिनी समस्या पै दा नहीं
करिे हैं नििनी नक अन्य दृनष्ट-दोषों से ग्रनसि बालक। खराब दृनष्ट का प्रभाि बालक की ननद्धश्पि्ेायों पर ही
नहीं पडिा है िरन् इससे बालक की समायोिन-शद्धक्त, व्यंनेक्तत् िथा रूनच आनद भी प्रभानिि होिी हैं ।
िृिीयि: पूर्ण अन्धे बालकों की नशिा की निनशष्ट व्यिस्था होिी है नकन्तु दू नषि दृनष्ट िाले बालक सामान्य दृनष्ट
िाले बालकों के साथ ही पढिे है । इससे भी समस्याएँ पैदा होिी हैं क्योंनक सामान्य बालकों के नलए मुनिि
पुस्तकों के अिरों को पढने में इन्हें कनिनाई अनुभि होिी है , पररर्ामस्वरूप ये बालक लम्बे समय िक
बोधगम्यिा के साथ धाराप्रिाह अध्ययन नहीं कर सकिे हैं ।

दृविगत दोषों के लक्षण-


दृनष्टगि-दोषों से ग्रनसि बालकों को ननदे शन सेिाओं से लाभाद्धन्वि करने की दृनष्ट से ननदे शन कायणकिाण को
सिणप्रथम दृनष्टगि दोषों से ग्रनसि बालकों का पिा लगाना पडे गा, िदोपरान्त उनका ननदे शन करना पडे गा।
परामशणदािा ननम्ां नकि लिर्ों से दृनष्टगि दोषों का पिा लगा सकिा है :-

1. बालक आँ खे बार-बार रगडिा हो, पलकों के बाल नोंचिा हो,


2. आँ खे लाल या गंदी रहिी हो,
3. िीक से नदखायी न दे िा हो।
4. छोिी िस्तुएँ बडेा़ ध्यान से दे खिा हो।
5. नकिाब आनद आँ खों के अत्यन्त ननकि लाकर पढिा हो।
6. एक िस्तु के दो प्रनिनबम्ब नदखाई दे िे हो।
7. साधारर् प्रकाष से चकाचौंध आिा हो।
8. रं गों की पहचान न कर पािा हो।
विदे र्ि के उपाय-
उपयुणक्त लिर्ों के आधार पर ननदे शन कायणकिाण को दृनष्टगि दोषों से यु क्त बालकों का पिा लगाना चानहए,
िदोपरान्त दृनष्टगि दोष की मात्रा को ज्ञाि करने की आिश्यकिा पडिी है ।

1. गम्भीर दृनष्ट-दोषों से ग्रनसि बालकों को ननदे शन प्रदान करनें हे िु निद्यालय के सामान्य संचालन में ही
ननयनमि रूप से दृनष्ट-सं रिर् किाओं की व्यिस्था की िाय।
2. इन किाओं में नेत्र-नचनकत्सक िषण में समय-समय पर आकर दृनष्ट-दोषों की िाँ च करिा रहे गा।
3. किा-कि सुन्दर ढं ग से सद्धज्जि होना भी आिश्यक हैं ।
4. किा-कि में समुनचि प्रकार की भी व्यिस्था रहनी चानहए। लेखनानद के नलए प्रयुक्त कागि हल्के
क्रीम रं ग पर गहरे नीले या काले रं ग से छपी मोंिी पंद्धक्तयों से युक्त होनी चानहए।
5. इस प्रकार के छात्रों के नलए निनशष्ट भोिन की व्यिस्था भी आिश्यक है। भोिन ऐसे ित्त्वों से युक्त
होना चानहए िो नेत्रों के स्वास्थ्य के नलए आिश्यक हो।
6. साधारर् दृनष्ट-दोषों से ग्रनसि बालकों को साधारर् किाओं में ही दृनष्ट सु धार हे िु ननदे शन प्रदान नकया
िा सकिा है ।
7. ननयनमि नचनकत्सा के साथ ही साथ इनको निद्यालय की साधारर् गनिनिनधयों में सामथ्र्यानुसार भाग लेने
के अिसर प्रदान करने चानहए।
8. इनके साथ व्यिहार करिे समय अध्यापक को ध्यान रखना चानहए नक िह बालकों को यह बोध न
होने दे नक उनके साथ दृनष्ट-दोष के कारर् निशे ष प्रकार का व्यिहार नकया िा रहा है ।

श्रिण-दोषों से ग्रवसत बालक-


श्रव्य-दोषों से ग्रनसि बालकों को दो श्रेनर्यों में निभक्त नकया िा सकिा है - पूरे बहरे िथा ऊँचा सुनने िाले।
पूरे बहरे िे होिे है िो कुछ भी नही सुन पािे है । ननपि बहरे भी पुन: दो प्रकार के होिे है -एक िो िे िो
िन्म से बहरे होिे है िथा दू सरे िे िो बाद में नकसी कर्ण -रोग अथिा कर्ाण र्ाि के कारर् श्रिर्-शद्धक्त खो
बैििे है । साधारर्िया िन्म से बहरे गूँगे भी होिे है । ऊँचा सुनने िाले अनेक प्रकार के होिे है और उनका
श्रेर्ी-निभािन ऊँचा सुनने मात्रा के द्वारा नकया िािा है नकन्तु इसको श्रेर्ीबि करने के पूिण ननधाण ररि एिं
नननचि ननयम नही है । इनके अनिररक्त कुछ बालक कर्ण -रोगों से भी ग्रनसि होिे है ; िैसे-कान का बहरा, कान
का ददण , कान में हर समय झनझनाहि का होना आनद। ये रोग बालकों की श्रिर् शद्धक्त को प्रभानिि कर
सकिे है । अि: इनका उपचार करके उनकी श्रिर्-शद्धक्त की रिा करने की आिश्यकिा है । ऊँचा सुनने
िाले िथा बहरों को शल्य-नचनकत्सा द्वारा श्रिर्-शद्धक्त प्रदान की िा सकिी है । यनद शल्य-नचनकत्सा के द्वारा
यह सम्भि न हो िो उन्हें ननदे शन प्रदान करने की आिश्यकिा होिी है । ऊँचा सुनने िाले श्रिर्-उपकरर्ों
का प्रयोग करके भी समस्या का समाधान कर सकिे है ।

विदे र्ि के उपाय -

1. अध्यापक को इन्हें गम्भीर रूप से ननदे शन प्रदान करना होिा है । इस प्रकार के बालक न िो दू सरे
की िार्ी सुन सकिे है और न उनकी नकल करके कुछ बोल ही सकिे है । ये अपने भािों अस्पष्ट
संकेिों के द्वारा ही प्रदनशण ि कर सकिे है ।
2. अध्यापक इस प्रकार के बालकों के नलए अधर-अध्ययन किा की व्यिस्था कर सकिा है ।
3. अध्ययन-किाओं में बहरे बालकों के सिुख अध्यापक धीरे -धीरे स्पष्ट शब्दों में सम्बद्धन्धि सहायक
सामग्री की सहायिा से भाषर् दें और छात्रों को अपने (अध्यापक के) अधरों की गनि को ध्यान
पूिणक दे खने िथा उस गनि का अनुकरर् करिे हुए उच्चारर् करने को प्रोत्सानहि करना चानहए।
4. अधर-अध्ययन किाऐं छोिी-छोिी हो निससे सभी छात्र अपने अध् यापक के अधरों की गनि का स्पष्ट
अध्ययन सुगमिा से कर सकें।

िाणी-दोषों से ग्र्स्त बालक-


िैसे प्रमुख िार्ी-दोषों में हम हकलाना, िुिलाना, फिािालू; कुिौष्ठ, श्रिर्-दोष िननि िार्ी-दोष, निदे शी
स्वरार्ाि, अिपिी िार्ी िथा अननयंनत्रि िार्ी आनद को सद्धिनलि करिे है । इनमें कुछ दोष इद्धियगनि होिी
है , कुछ कायणगि िथा कुछ संिेगात्मक एिं पाररिाररक कारर्ों से होिे है ।

इद्धियों से सम्बद्धन्धि दोषों का यनद अध्यापक को संदेह हो िो उपयुणक्त नचनकत्सक के पास परीिाथण बालक
को भेि दे ना चानहए िथा आिश्यक नचनकत्सा की व्यिस्था करनी चानहए। इन दोषों को अपने ियस्कों के
अनुकरर् से अपनािा है िथा इन दोषों को उसके र्र िथा पडोस के ियस्क लोग साधारर् िथा सामान्य
रूप में ही स्वीकार कर लेिे हैं । संिेगात्मक कारर्ों से िननि दोषों का भी सािधानी से उपचार नकया िा
सकिा है ।

विदे र्ि के उपाय-


िब बच्चे को ज्ञाि हो िािा है नक िे िार्ी में असामान्य हैं िो िे संिेगात्मक िनाि के नषकार होिे है ,
सामान्य बालकों से ही पृ थक रहिे है और यनद साथी उसकी नकल करिे है या व्यंग्य करिे है िो िह और
भी अनधक एकाकी हो िािा है और अपने िार्ी-दोष को भी कम प्रदनशणि हे िु अपना बोलना और भी कम
कर दे िा है । अध्यापक को इन बालकों के साथ सहानुभूनिपूर्ण व्यिहार करने की आिश्यकिा होिी है । दण्ड्
या अस्वीकृनि समस्या को और अनधक गम्भीर बना दे िी है ।

1. अध्यापक को चानहए नक िह किा को भी इस प्रकार के व्यिहार के नलए प्रेररि करें ।


2. अध्यापक का प्रमुख उद्दे श्य इन छात्रों में ‘स्व’ का सामानिक रूप में निकास करना होना चानहए।
िार्ी-दोषों से ग्रनसि बालकों के नलए अध्यापक को िार्ी-दोषों को दू र करने की उपायों का भी ज्ञान
होना आिश्यक है ।
3. उनचि नशिर् निनधयों का भी प्रयोग करना चानहए।

गामक-दोषों से ग्रवसत बालक-


गामक-दोषों से ग्रनसि बालक िे हैं निनका कोई शारीररक अंग नकन्ही कारर्ों से असामान्य है । शारीररक
अंगों की असामान्यिा िन्मिाि हो सकिी है अथिा नकसी रोग या दु र्णिना का पररर्ाम हो सकिी है । इस
प्रकार के बालक माननसक रूप से स्वस्थ होिे है , िे दे ख सकिे है , िे सुन सकिे है , बोल सकिे है िथा
सामान्य बालकों की भाँ नि अन्य माननसक कायण कर सकिे है , नकन्तु असामान्य अंग से सम्बद्धन्धि कायो में िे
सामान्य बालकों की अपे िा पीछे रह िािे है ये बालक िनिपूरक शद्धक्तयों का निकास करके अपने व्यद्धक्तत्
को असन्तुनलि भी कर सकिे है ।

विदे र्ि के उपाय-

1. अध्यापक का किव्यण है नक िह इन बालकों में आत्मग्लानन िथा आत्महीनिा की भािना का निकास न


होने दें और उनमें एक स्वस्थ ‘स्व’ का निकास करें ।
2. अध्यापकाेे ें को इन छात्राेे ें के साथ इस प्रकार व्यिहार करना चानहए नक िे सामानिक रूप में
िनिपूरक शद्धक्तयों का निकास न कर पायें।
3. बालक की व्यापक शारीररक रचना िथा नक्रयाओं में कोई कमी नही है , इस िथ् का ज्ञान करना
अध्यापक का सबसे प्रमुख किणव्य है ।
4. अध्यापक को ऐसे बालकों में ऐसी िनिपरू क शद्धक्तयों िथा िमिाओं का निकास करना चानहए िो
सामानिक हो िथा बालक में और भी अनधक दृढ िथा स्थायी ‘स्व’ का निकास करें ।

र्ारीररक दु बशलताओं से ग्रस्त बालक-


कुछ बालक शारीररक रूप में इिने दु बणल होिे हैं नक िे सामान्य कायण िथा खेल नही कर पािे है । इस
प्रकार के बच्चों को भी उसी प्रकार ननदे शन दे ने की आिश्यकिा पडिी है निस प्रकार अध्यापक शारीररक
अपंगिा िाले छात्रों को दे िा है । बालकों में शारीररक दु बणलिाए अने क कारर्ों से आ सकिी है । कुपोषर्,
लम्बी बीमारी, िय, हृदय रोग या शारीररक रसायन-रचना आनद के कारर् शारीररक दु बणलिाएँ आ िािी है ।
शारीररक शद्धक्त से हीन बालक सामान्य बालकों के साथ खेल नही सकिा है , िह शीघ्र ही थकान का अनुभि
करिा है , शीघ्र ही क्रोनधि हो िािा है , उसमें झंु झलाहि की मात्रा काफी अनधक होिी है िथा िह सामान्य
बालकों के साथ समायोिन भी स्थानपि नही कर पािा है । इससे व्यद्धक्तत् सन्तुलन सम्बन्धी समस्याएँ उि
खडी होिी है ।

विदे र्ि के उपाय-

1. अध्यापक ऐसे बालकों को सन्तुनलि व्यद्धक्तत् के निकासाथण ऐसे अिसर प्रदान कर सकिा है निससे
बालक पाठ्यक्रम िथा सह-पाठ्यक्रम सम्बन्धी नक्रयाओं में अपनी शारीररक सीमाओं को ध्यान में रखिे
हुए यथा सम्भि भाग ले सके।
2. इन बालकों के सम्बन्ध में अध्यापक का किणव्य है नक िह उनकी शारीररक िमिाओं िथा बौद्धिक
स्तर को ध्यान में रखिे हुए उनका पूर्ण सामानिक निकास करें निससे िे समाि के उपयोगी सदस्य
बन सकें।
3. अध्यापक का भी किणव्य है नक िह बालकों की शारीररक दु बणलिाओं को दू र करने के प्रयास भी
करिा रहे ।
4. इसके नलए अनभभािकों से भी सहयोग लें।

मािवसक रूप से असामान्य बालक ि विदे र्ि

क्रो0 एिं क्रो0 के शब्दों में ‘‘िह बालक िो माननसक, शारीररक, सामानिक और संिेगात्मक आनद निशेषिाओं में
औसि से निनशष्ट िा इस स्तर की हो नक उसे िह अपनी निकास-िमिा की उच्चिम सीमा िक पहुचने के
नलए निशेष प्रनशिर् की आिश्यकिा हो, असाधारर् या निनशष्ट बालक कहलािा है ।’’

मननसक रूप से असामान्य बालक िे हैं िो सामान्य बौद्धिक िथा माननसक कायों से पयाण प्त मात्रा में दू र
रहिे है । निले ने ऐसे बालकों के सम्बन्ध में नलखा है नक ये बालक सीखने की िमिा में सामान्य बालकों से
काफी पृथक होिे है । माननसक रूप से असामान्य बालक माननसक कायो को सामान्य बालकों की िुलना में
या िो बहुि ही शीघ्रिा िथा कुशलिा के साथ कर सकिे हैं या नफर काफी सामान्य बालकों के ऊपर िथा
नीचे ही नदशाओं में होिे है । सामान्य बालकों से ऊपर अच्छी कुशलिा से माननसक कायण करने िाले बालक
प्रनिभािान कहलािे है । िथा सामान्य बालकों की अपेिा कम काम करने िाले छात्र मन्दबुद्धि बालक कहलािे
है । नीचे दोनों के सम्बन्ध में चचाण की गयी है ।
प्रवतभा-सम्पन्न बालक-
प्रनिभाशाली बालक िे होिे है िो सबमें सभी बािों में श्रेश्ि होिे है । द्धस्कनर ि है रीमैन-’’प्रनिभाशाली शब्द
का प्रयोग उन 01 प्रनिशि के बच्चों के नलए नकया िािा है िो सबसे अनधक बुद्धिमान होिे है । क्रो0 एिं क्रो0-
प्रनिभाशाली बालक दो प्रकार के होिे है -

1. िे बालक निनकी बुद्धिलद्धब्ध 130 से अनधक होिी है िो असाधारर् बुद्धि िाले होिे है ।
2. िे बालक िो गनर्ि, निज्ञान, संगीि ि अनभनय आनद में से एक से अनधक में निशेष योग्यिा रखिे है ।

अध्यापक िथा ननदे शन कायणकिाण ओं का किणव्य है नक िे इन बालकों की प्रनिभाओं के पूर्ण एिं समुनचि
निकास हे िु आिश्यक ननदे शन प्रस्तुि करें ।
इन बालकों के उपयुक्त ननदे शन हे िु ननम्ां नकि िथ्ों को ध्यान में रखना पडे गा।

(अ) पहचाि-प्रवतभा-सम्पन्न बालकों को उपयुण क्त ननदे शन सिेाएँ उस समय िक प्रदान नही की िा सकिी
है िब िब नक उनकी पहचान न हो िाये। नशिा- अध्ययन हे िु राष्टरीय सनमनि ने प्रनिभा-सम्पन्न बालकों के
सम्बन्ध में नलखा है ; ‘प्रनिभा-सम्पन्न िह बालक है िो उल्लेखनीय माननसक कायण के ननष्पादन में काफी
सन्तोषिनक प्रगनि का प्रदशणन करिा है ’। यह पररभाषा प्रनिभा-सम्पन्न बालकों के सम्बन्ध में अब िक िो
संकीर्ण धारर्ा थी नक प्रनिभा-सम्पन्न बालक िही है निसकी बुद्धिलद्धब्ध काफी ऊची है उस धारर्ा से बाहर
ननकालकर व्यापकिा लािी है । इस पररभाषा के अनुसार-बालक की उच्च बुद्धि-लद्धब्ध का ही होना आिश्यक
नही है िरन् उसे नकसी भी माननसक िेत्र में सामान्य बालकों से काफी ऊँचा ननष्पादन प्रदनशणि करना होिा
है ।

प्रनिभािान बालकों की उपयुणक्त पररभाषा के अनिररक्त उनकी सही निश्वसनीय एिं िैध पहचान करने के नलए
उनकी कुछ सामान्य लिर्ों का िानना भी आिश्यक है । प्रनिभा-सम्पन्न बालकों में सामान्यिया ननम्ां नकि
लिर् नदखाई दे िे हैं :-

1. बालकों की बुद्धि-लद्धब्ध साधारर्िया ऊँची (प्राय: 130 से ऊपर)।


2. शारीररक स्वास्थ्य िथा सामानिक समायोिन।
3. चररत्र-परीिर्ों के आधार पर मानपि नैनिक अनभिृनेि में श्रेष्ठिा।
4. शैषिास्था में अपेिाकृि शीघ्रिा के साथ निकास।
5. निद्यालय-निषयों के मापन हे िु प्रयुक्त ननद्धष्पि परीिर्ों।
6. िीव्र ननरीिर्-शद्धक्त, अच्छी स्मरर्-शद्धक्त, ित्काल उिर िमिा, ज्ञान की स्पष्टिा एिं मौनलकिा, निचारों को
िानकणक निनध से प्रस्तुि करने की शद्धक्त िथा निषाल एिं मौनलक शब्दािली।
7. शब्दािली के प्रयोग में मौनलकिा है , भाषा और भाि-प्रदशणन में श्रेश्ििा।
8. प्रनिभा-सम्पन्न बालक व्यद्धक्तगि स्वास्थ्य िथा शारीररक स्वच्छिा का पूरा-पूरा ध्यान। \
9. सामानिक निकास सन्तुलन, सामानिक कायो में प्रसन्निा से सहयोग।
10. निद्यालय में अध्ययन हे िु उपद्धस्थि।
11. अध्यापक िगण िथा पाररिाररक सदस्यों के साथ व्यिहार मधुर।
12. सामान्य पररपक्विा-स्तर ऊँचा।
13. सृिनात्मकिा अनधक।

(आ) आिश्यकताएँ -इन बालकों की कुछ निनशष्ट आिश्यकिाएँ भी होिी है । इन आिश्यकिाएँ की अिां नछि
रूप से पूनिण होने पर इन बालकों में भी असामानिकिा के ित्ों िथा व्यिहारों का निकास हो िािा है नकन्तु
इनमें सामान्य िथा औसि बालकों की िुलना में असामानिक व्यिहार अनधक मात्रा में और शीघ्रिा से निकनसि
नही हो पािे हैं । प्रनिभा-सम्पन्न बालकों की अने क आिश्यकिाएँ होिी है ।
प्रनिभा-सम्पन्न बालकों की इन आिश्यकिाओं को मास्लो ने उच्च स्तरीय आिश्यकिाएँ कहकर पुकारा है । इन
उच्च-स्तरीय आिश्यकिाओं में हम ज्ञान, बोध, सौन्दयाण नुभूनि िथा आत्मानुभूनि से सम्बद्धन्धि आिश्यकिाओं को
सद्धिनलि करिे हैं । इन उच्च-स्तरीय आिश्यकिाओं की पूनिण सामान्य रूप से र्र िथा पररिार में नही हो
सकिी है । प्रनिभा-सम्पन्न बालकों की प्रथम निनशष्ट आिश्यकिा अपनी इन उच्चस्तरीय आिश्यकिाओं की पूनिण
करनी होिी है । प्रनिभा-सम्पन्न बालक अपनी आिश्यकिाओं की पूनिण अन्य प्रनिभा सम्पन्न सानथयों, अध्यापक,
प्रशासक िथा अनभभािकों के साथ सम्पकण स्थानपि करके करिा है ।

सौन्दयाण नुभूनि से सम्बद्धन्धि आिश्यकिाओं के अनिररक्त प्रनिभा-सम्पन्न बालकों की और भी अनेक निनशष्ट


आिश्यकिाएँ होिी है ; िैसे-’स्व’ का निकास, ‘निश्व की समस्याओं का ज्ञान’, मानि-व्यिहार का ज्ञान’ ‘उच्च-स्तरीय
गनर्िीय ज्ञान’ आनद। प्रनिभा-सम्पन्न बालक सश्िनात्मक शद्धक्तयों का निकास करना चाहिे हैं ।

(इ) प्रवतभा-सम्पन्नों का विदे र्ि-ननदे शन कायण किाण ओं िथा अध्यापक को प्रनिभा-सम्पन्न बालकों को ननदे शन
प्रदान करने में निशेष सािधानी रखने की आिश्यकिा होिी है क्योंनक इनकी आिश्यकिाएँ िथा निशेषिाएँ
सामान्य बालकों से पृथक् होिी है । परामशण दािा िथा अध्यापक को प्रनिभा-सम्पन्न बालकों के ननदे शन के
सम्बन्ध में ननम्ां नकि िथ्ों को ध्यान में रखना चानहए :

1. प्रनिभा-सम्पन्नों की समुनचि पहचान की िाए िथा उनकी निनिध िमिाओं की माप की िाए।
2. उन नक्रयाओं को प्रारम्भ नकया िाए िो प्रनिभा-सम्पन्नों की योग्यिाओं, िमिाओं िथा रूनचयों के
अनुकूल हो िथा उनका निकास करने में सहायक हो।
3. प्रनिभा-सम्पन्नों के कायो में रूनच प्रदनशणि की िाए िथा उनके कायो की प्रषंसा करके उन्हें प्रोत्सानहि
नकया िाए।
4. किा-कि के सामान्य स्तर से ऊँचा उिाने हे िु सदै ि प्रोत्सानहि नकया िाए।
5. नेिृत् गुर्ों के निकास, स्वाध्याय, चाररनत्रक दृढिा, आत्म-ननभणरिा िथा स्विंत्र नचन्तन-शद्धक्त का ननरन्तर
निकास नकया िाना आिश्यक है ।
6. नशिक व्यद्धक्तगि ध्यान दें ।
7. संस्कृनि एिं सभ्यिा की नशिा दी िाए।
8. सामान्य बच्चों के साथ नशिा दी िाए।
9. निशेष अध्ययन की सुनिधा दी िाए।
10. सामान्य रूप से किोन्ननि दी िाए।
11. सामानिक अनुभि के अिसर प्रदान नकये िाए।
12. छात्रों को आत्म-मूल्यां कन िथा आत्म-नििेचन हे िु न केिल प्रोत्सानहि ही नकया िाये , िरन् इस कायण में
उनकी आिश्यक सहायिा भी दी िाए।
13. उन्हें उच्च-स्तरीय नशिर् प्रदान करने की व्यिस्था की िाए।

(ई) प्रवतभा-सम्पन्नों के वलए विवर्ि वियाओं की व्यिस्र्था-प्रनिभा-सम्पन्न बालक न केिल अनधक कायण ही
कर सकिे हैं , िरन् िे अनधक उच्च-स्तरीय कायण भी करिे हैं । किा के सामान्य कायण -कलाप उनकी निनिध
िमिाओं की पूनिण नही करिे है और न सामान्य नशिर् ही उनकी आिश्यकिाओं की पूनिण करिा है । किा
के कायण को िह अनिशीघ्र कर लेिा है ; िदोपरान्त िह अन्य कायो में व्यस्त हो िािा है । िह ऐसे कायण
अनधक करना पसन्द करिा है , निससे उसकी प्रशं सा हो, या िो अन्य लोगों का ध्यान उसकी ओर आकनषणि
करें , निनमें साहस हो, िो रोमां चकारी हो, निनमें निीनिा हो, द्धक्लश्टिा ि िनिलिा हो िथा निनमें मौनलकिा
हो।

िो बालक शारीररक संरचना, माननसक शद्धक्त िथा व्यिहार में सामान्य नहीं हैं िे सभी निनशष्ट बालक कहलािे
हैं । अब िक हम शारीररक संरचना में पृथक् बालक एिं माननसक िमिाओं से सम्पन्न एिं समृि बालकों का
अध्ययन कर चुके हैं । नीचे उन बालकों का अध्ययन नकया गया है िो माननसक िमिाओं में सामान्य िथा
औसि बालकों से नपछडे हुए हैं । कुप्पू स्वामी ने नपछडेा़ बालक की ननम्नलद्धखि निशेषिाये बिायी हैं -

1. सीखने की धीमी गनि।


2. ननराशा का अनुभि।
3. समाि निरोधी काम में रूनच।
4. कम शैनिक लद्धब्ध।
5. निद्यालय पाठ्यक्रम से लाभ लेने में असमथण।
6. सामान्य नशिर् निनधयों से नशिा ग्रहर् करने में निफलिा।
7. माननसक रूप से अस्वस्थ।
8. ननम् बुद्धि लद्धब्ध।
9. सामान्य बच्चों की िरह प्रगनि में अयोग्य
10. अपनी ि नीची किा के कायण में अयोग्य।
11. मान्यिाओं में अिल निश्वास।
12. सामानिक कुसमायोिन।
13. केिल अपनी नचन्ता।

र्ैवक्षक मन्दता के कारण-कुप्पूस्वामी के शब्दों में शैनिक नपछडेा़ पन के अनेक कारर् हो सकिे है । िैसे
नक-

1. सामान्य से कम शारीररक निकास हो िो नक िं षानुक्रम या िािािरर् के कारर् हो।


2. शरीर में कोई दोष हो।
3. लम्बे समय िक कोई शारीररक रोग लगा रह िाये।
4. ननम् स्तर की सामान्य बुद्धि हो।
5. पररिार में अत्यनधक ननधणनिा हो िो नक आिश्यकिायें न पूरी कर पािे हो।
6. पररिार का बडा आकार होने से एकान्त स्थान अध्ययन हे िु न नमलिा हो।
7. पाररिाररक कलह से बालक िनािग्रस्त रहिा हो।
8. मािा-नपिा अनशनिि हों।
9. निद्यालय का दोषपूर्ण सं गिन ि िािािरर् भी बालक पर कुप्रभाि डालिे हैं ।

बौद्धिक स्तर का ज्ञान करने के नलए सामान्यिया बुद्धि-परीिर् का सहारा नलया िािा है और बुद्धि-लद्धब्ध के
आधार पर बालकों का श्रेर्ी-निभािन नकया िािा है । निन बालकों की बुद्धि-लद्धब्ध सामान्यिया 75 से कम
होिी है उन्हें मन्द-बुद्धि बालक कहा िािा है । इन मन्द-बुद्धि बालकों को पुन: िीन उपश्रेनर्यों में निभानिि
नकया िािा है -

1. निनकी बुद्धि-लद्धब्ध 25 से कम होिी है । इन्हें िड-बुद्धि कहा िािा है । ये समाि पर भार-स्वरूप होिे
हैं । ये कुछ भी कायण नहीं कर पािे हैं । इन्हें नकसी भी प्रकार की नशिा प्रदान नहीं की िा सकिी
है ।
2. दू सरे िे निनकी बुद्धि-लद्धब्ध 25 से 50 मध्य होिी है इन्हें मूढ-बुद्धि कहा िािा है । इनमें भी बुद्धि की
अत्यन्त कमी होिी है । समाि के एक उपयोगी सदस्य के रूप में कायण नहीं कर सकिे हैं । ननरीिर्
के अन्तगणि ये कायण कर सकिे हैं । इन्हें शारीररक कायो में प्रनशिर् प्रदान नकया िा सकिा है और
इसी प्रनशिर् के आधार पर िे कायण भी कर सकिे हैं ।
3. मन्द-बुद्धि होिे हैं निनकी बुद्धि-लद्धब्ध 50 और 75 के मध्य होिी है । इन्हें मूखण कहा िािा है और ये
करीब-करीब औसि बालक के पास होिे है । थोडी-सी सािधानी, पररश्रम िथा लगन के द्वारा इन्हें
नशिा प्रदान की िा सकिी है और इन्हें समाि का एक उपयोगी सदस्य बनाया िा सकिा है । मन्द-
बुद्धि बालकों में से िीसरी प्रकार के बालक ही सामान्य रूप में निद्यालय में आिे हैं और परामशणदािा
िथा अध्यापक दोनों को ही इन्हीं से काम पडिा है ।

प्रो0 उदय र्ंकर िे वलखा है वक-’’यनद नपछडे बालकों को सामान्य बालकों के साथ नशिा दी िायेगी िो िे
नपछड िायेगें फलस्वरूप िे अपने स्वयं के स्तर के बालकों से और अनधक नपछडेा़ हो िायेगें और निनशष्ट
निद्यालयों में उनको अपनी कनमयों का कम ज्ञान होगा और िे अपने समान बालकों के समूह में अनधक
सुरिा का अनुभि करे गें। इन निद्यालयों में उनके नलये प्रनिनद्वजद्विा कम होगी और प्रोत्साहन अनधक।’’

मन्द-बुन्वद्ध बालकों का विदे र्ि-

1. बालकों की िमिाएँ िथा अनभरूनचयाँ ही िास्ति में बालकों की नशिा का आधार होनी चानहए। इस
नसिान्त के आधार पर मन्द-बुद्धि बालकों की ननम् माननसक िमिाओं को उन्हें नशिा प्रदान करिे
समय सदै ि ध्यान में रखना चानहए। परामशणदािा को इस उद्दे श्य की पूनिण हे िु उनके नलए उपयुक्त
पाठ्यक्रम की योिना नननमणि करनी चानहए।
2. परामशणदािा को निद्यालय के सभी नशिकों का सहयागे प्राप्त करने की आिश्यकिा।
3. परामशणदािा को मन्द-बुद्धि बालकों के नलए ननदानात्मक किाओं की व्यिस्था भी करनी चानहए। भाषा,
गनर्ि िथा िार्ी सम्बन्धी िेत्रों के नलए ननदानात्मक किाएँ अनधक उपयोगी होिी हैं ।
4. मन्द-बुद्धि बालकों के नशिर् हे िु छात्र-केनेिि नशिर्-पिनियाँ सदै ि उपयोगी िथा अच्छी रहिी है ।
5. परामशणदािा को सभी मन्द-बुद्धि की आरे व्यद्धक्तगि रूप से ध्यान दे ने की आिश्यकिा है ।
6. इनकी किाओं में पयाण प्त मात्रा में सहायक सामग्री की व्यिस्था होनी चानहए।
7. इनके नलये निशेष पाठ्यक्रम की व्यिस्था होनी चानहये।
8. इन्हें हस्तनषल्प ि सास्ंकृनिक निषयों की नशिा दी िानी चानहये ।
9. स्विििा ि आत्मनिश्वास की भािना का निकास नकया िाए।
10. परामषदण ेािा को बडीा़ सािधानी से इन बालकों की रूनचयों िथा अनभिृनेियों की खोि करनी
चानहए निससे उन्हें आिश्यक िथा उपयोगी शैनिक िथा व्यािसानयक ननदे शन प्रदान नकया िा सके।
11. मन्द-बुनेि बालकों के नलए उपयकुि व्यािसानयक ननदे शन िथा ननयुद्धक्त-सेिाएँ सबसे अनधक महत्पूर्ण
मानी िािी हैं । इस महत् के दो प्रमुख कारर् हैं ।
12. व्यािसानयक समायोिन के नलए इन्हें आिश्यक सहायिा िथा ननदे शन की आिश्यकिा पडिी है ।
व्यािसानयक समायोिन की शद्धक्त के निकास हे िु निनशष्ट किाओं के द्वारा इन बालकों को इस योग्य
बना दे ना चानहए िे अपना स्विि िीिन व्यिीि कर सकें और निस व्यिसाय में लग िायँ, उसके
साथ सरलिा िथा सुगमिा के साथ समायोिन स्थानपि कर सकें।
13. मन्द-बुद्धि बालकों के नलए िीिनापे यागेी नशिा की अत्यन्त आिश्यकिा होिी है । इनकी नशिा िीिन
से र्ननश्ि रूप से सम्बद्धन्धि होनी चानहए।

समस्याग्रस्त व्यिहार िाले बालक ि विदे र्ि कायशिम


प्रत्येक प्रार्ी का व्यिहार उद्दे श्यपूर्ण होिा है । इनमें मानि प्रार्ी का व्यिहार निनशष्ट रूप से उद्दे श्यपूर्ण होिा
है । मानि-व्यिहार न केिल उद्दे श्यपूर्ण ही होिा है िरन् कभी-कभी व्यिहार समायोिन-उपायों के रूप में
भी नकया िािा है । िे सामानिक रीनि-ररिािों िथा मान्यिाओं के निरूि हों या समाि के अन्य व्यद्धक्तयों के
नलए आनपि्ेािनक हों िो िे समस्यात्मक व्यिहार की संज्ञा प्राप्त कर लेिे हैं । संिेप में, यनद बालकों का
व्यिहार समाि अथिा सामानिक संस्थाओं की रीनि-ररिािों, परम्पराओं, मान्यिाओं िथा ननयमों के उल्लेखनीय
रूप में निरूि होिा है िो िह समस्यात्मक व्यिहार कहलािा है ।

िेलन्टाइि के अिुसार-’समस्यात्मक बालकों शब्द का प्रयागे साधारर्ि: उन बालकों का िर्णन करने के


नलये नकया िािा है निनका व्यिहार ि व्यद्धक्तत् नकसी बाि में गम्भीर रूप से असामान्य होिा है ।’’
समस्यात्मक व्यिहार िाले बालकों के अने क प्रकार होिे है । िैसे नक-

1. चोरी करने िाला


2. झूि बोलने िाला
3. क्रोध करने िाला
4. मादक िव्यों का सेिन करने िाला।

समस्यात्मक व्यिहार के कारण-


बालक के समस्यात्मक व्यिहार के अनेक कारर् हो सकिे हैं । इनमें से कुछे क ननम्ां नकि प्रमुख रूप से
उल्लेखनीय हैं : -

1. असुरक्षा की भाििा-निनशष्ट िथा सामान्य-दोनों की प्रकार की असुरिा की भािना पैदा होने से िनाि
िथा नचन्ता का िन्म होिा है । माननसक िनाि िथा नचन्ता समस्यात्मक व्यिहार का एक प्रमुख कारर्
है ।
2. पाररिाररक पररन्वस्र्थवतयाँ-बालक िब निद्यालय में िाने लगिा है िब िक उसके व्यद्धक्तत् की नींि
पड चुकी होिी है । व्यद्धक्तत् की नींि की रूपरे खा में पाररिाररक पररद्धस्थनियाँ अपना महत् रखिी है ।
पररिार ने िैसी नींि डाल दी है , निद्यालय उसी पर भिन खडा करे गा। पररिार ने बालक की आधारभूि
आिश्यकिाओं को नकस सीमा िक पूरा नकया है । इसका उसके व्यद्धक्तत् पर प्रभाि पडिा है ।
3. विद्यालय-निद्यालय िािािरर् भी बालकों में िनाि िथा नचन्ता की भािना का निकास करिा है । यनद
पररिार ने बालक को निद्यालय के नलए िीक प्रकार से िैयार नहीं नकया है और निद्यालय भी बालक
को समायोनिि होने के पयाण प्त अिसर प्रदान नहीं कर रहा है िो बालक के मन में िनाि ि नचन्ता
का िन्म होना स्वाभानिक ही है ।
4. आवर्थशक न्वस्र्थवत-िब िक आधारभिू मनोिैज्ञाननक आिश्यकिाएँ पूरी होिी रहिी हैं , बालक ननम् आनथणक
द्धस्थनि की नचन्ता न करे गा, नकन्तु अगर उसकी इन आिश्यकिाओं की पूनिण नहीं हो पािी है िो िह
िनाि एिं नचन्ताग्रस्त होकर समस्यात्मक व्यिहार करे गा।
5. सामावजक न्वस्र्थवत-अगर समाि में रहकर बालक अपने को ननम् अथिा िुच्छ अनुभि करिा है अथिा
ऐसा अनुभि करने के नलए बाध्य नकया िािा है है िो इससे बालक के मन में िनाि ि नचन्ता हो
सकिी है ।

समस्यात्मक बालकों का विदे र्ि के उपाय-


व्यिहार अनके प्रकार के होिे है उनके ननराकरर् हे िु निनशष्ट प्रयास की आिश्किा पडिी है , नफर भी कुछ
सामान्य बािें ऐसी हैं िो परामशणदािा को सभी िे त्रों में ध्यान रखनी चानहए।
1. अवभिृव त्त तर्था व्यन्वित्व का मापि-परामशणदािा को बालक की अनभिश्नेि िथा व्यद्धक्तत् का
मापन करना चानहए। इससे परामशणदािा को बालक के व्यिहार को समझने में सहायिा नमलेगी।
2. व्यिहार का मूल्ांकि-परामशणदािा को समस्यात्मक व्यिहार का मूल्यां कन करना चानहए। मूल्यां कन
के अन्तगणि परामशणदािा को समस्या के प्रकार, उसकी गम्भीरिा िथा कारर्ों को ज्ञाि करना चानहए।
इससे परामशणदािा को बालक की समस्या का ननराकरर् करने में सहायिा नमलेगी।
3. घर के सार्थ सम्पकश-स्थापन-परामशणदािा को बालक के र्र िथा पररिार का अध्ययन कर मािा-नपिा
आनद के माननसक स्वास्थ्य, आनथणक ि सामानिक द्धस्थनि आनद बािों का ज्ञान करना चानहए। पररिार के
सम्पकण से बालक के समस्यात्मक व्यिहार के कारर्ानद को समझने में सफलिा नमलेगी।
4. रोकर्थाम, विदािात्मक तर्था उपचारात्मक सेिाओं की व्यिस्र्था- छात्र ननदे शन कायणक्रम के अन्तगणि
समस्यात्मक व्यिहार के रोकथाम की व्यिस्था करनी चानहए। इलाि से रोकथाम सदै ि अच्छा रहिा है ,
अि: परामशणदािा को ऐसी व्यिस्था करनी चानहए निससे बालक िनाि ि नचन्ता से ग्रनसि ही न हो।
5. वर्क्षक-िगण के साथ निचार-निमशण-बालकों के समस्यात्मक व्यिहार को समझने के नलए परामशण दािा
को बालकों से सम्बद्धन्धि नशिकों के साथ बालक के व्यिहार के सम्बन्ध में निचार-निमशण करना
चानहए।
6. बालक के व्यिहार का अिलोकि-समस्यात्मक बालक अपने को अनेक प्रकार के समस्यात्मक कायो
के द्वारा प्रदनशणि करिा है िथा उसका प्रत्येक कायण नकसी न नकसी निचार का प्रनिनननधत् करिा है ।
परामशणदािा को, िहाँ िक सम्भि हो, बालक के व्यिहारों का अिलोकन करना चानहए।
7. विर्ेषज्ञों के सार्थ सम्पकश-व्यिहार को समझना अत्यन्त िनिल िथा कनिन कायण है । समस्यात्मक
व्यिहार को सही ढं ग से साधारर् नशिक अथिा परामशणदािा सही रूप में समझ लें, यह आिश्यक
नहीं, अि: परामशणदािा को िेत्र से सम्बद्धन्धि निशेषज्ञों के साथ सम्पकण कर बालकों के व्यिहार को
समझने का प्रयास करना आिश्यक है ।
8. अिुसन्धाि कायश -सुनिधा होने पर परामशणदािा ित्रे से सम्बद्धन्धि अनुसन्धान कायण भी कर सकिा है ।
नशिक िगण के अध्ययन, परामशण िथा सुझाि अिैज्ञाननक िथा अपूर्ण हो सकिे हैं ।
9. व्यन्वि-अध्ययि-समस्यात्मक बालकों का अध्ययन करने के नलए व्यद्धक्त-अध्ययन पिनियाँ बहुि ही
उपयोगी होिी है । व्यद्धक्त-अध्ययन पिनि के द्वारा नकसी बालक-निशेष के सम्बन्ध में निस्तृि अध्ययन
नकया िािा है िथा बालक के सम्बन्ध में सभी आिश्यक िथ् संग्रहीि कर नलए िािे हैं , निनके आधार
पर ननश्कषण ननकाले िािे हैं और िदोपरान्त उपचारात्मक कायण नकए िािे हैं ।
10. ऐसे बच्चों में परामशणदािा आत्मनिश्वास िगायें ।

Ques-72 अिलम्बी और पुनरण चनात्मक मनोनचनकत्साओं का िर्णन कीनिये ?

Ans- 1- अिलम्बी मिोवचवकत्सा -सहायक मिोवचवकत्सा एक मनोनचनकत्सात्मक दृनष्टकोर् है िो नचनकत्सीय


सहायिा प्रदान करने के नलए निनभन्न स्कूलों को एकीकृि करिा है । इसमें मनोनचनकत्सा , संज्ञानात्मक-व्यिहार
और पारस्पररक िैचाररक मॉडल और िकनीकों िै से नचनकत्सीय स्कूलों के र्िक शानमल हैं । सहायक
मनोनचनकत्सा का उद्दे श्य प्रकि या कम होने िाले लिर्ों, संकि या निकलां गिा की िीव्रिा को कम करना या
राहि दे ना है । यह रोगी के माननसक संर्षण या गडबडी के कारर् व्यिहार संबंधी व्यिधानों को भी कम
करिा है ।नचनकत्सक का उद्दे श्य माननसक निकारों के लिर्ों को उत्पन्न करने िाले इं िराद्धप्सनसक संर्षण को कम
करने के नलए रोगी के स्वस्थ और अनुकूल निचारों के प्रनिमानों को सुदृढ करना है । मनोनिश्लेषर् के निपरीि,
निसमें निश्लेषक संक्रमर् के नलए "खाली कैनिास" के रूप में एक ििस्थ प्रदशणन को बनाए रखने के नलए
काम करिे हैं , सहायक नचनकत्सा में नचनकत्सक पूरी िरह से भािनात्मक, उत्साहिनक और स्वस्थ रिा िंत्र को
आगे बढाने के एक िरीके के रूप में रोगी के साथ सहायक संबंध स्थानपि करिा है । निशेषकर पारस्पररक
संबंधों के संदभण में।
इस थेरेपी का उपयोग नशे के गंभीर मामलों के साथ-साथ बुनलनमया निोसा , िनाि और अन्य माननसक
बीमाररयों से पीनडि रोनगयों के नलए नकया गया है । [3]

सहायक मनोनचनकत्सा का उपयोग प्रारं नभक नचनकत्सा के रूप में, कम करने और लंबे समय िक नहीं करने
के नलए नकया िािा है , ऐसी द्धस्थनियों या अिनध में िहां व्यिद्धस्थि दृनष्टकोर् या व्यिहारिाद के नलए साधनों की
कमी होिी है । ऐसी द्धस्थनियों के उदाहरर्ों में शानमल हैं :

 आलोचनात्मक बािचीि
 अद्धस्थर लेनकन अपररहायण रोिमराण की निंदगी या ननर्ाण यक द्धस्थनि
 समझौिा (कम से कम कम से कम पररचालन, कुशल संबंध द्धस्थनियों को लागू करने के नलए),
दीर्णकानलक संबंधों में, स्थायी समझौिों के आधार पर

इं टरिेट-आधाररत

इं िरनेि-आधाररि सहायक मनोनचनकत्सा एक प्रकार का सहायक मनोनचनकत्सा है िो ग्राहक और नचनकत्सक


के बीच दो र्ंिे की प्रारं नभक बैिक और नफर ईमेल और िे लीफोन के माध्यम से नचनकत्सक द्वारा समय-
समय पर और कभी-कभी अध्ययन नकए िाने की निशेषिा है ।

अिुसंधाि विदे र्

कुछ अध्ययनों से पिा चलिा है नक आनुिां नशकी, पशु अध्ययन और िंनत्रका निज्ञान का प्रभाि हो सकिा है या
सहायक मनोनचनकत्सा में भूनमका ननभा सकिा है ।

2-पुिरश चिात्मक मिोवचवकत्सा- माननसक नचनकत्सा निषय के व्यद्धक्तत् की िृद्धि, उप या अचेिन नििाद, या
अनुकूली प्रनिनक्रयाओं के निषय में सुधार करके नकसी निषय के व्यद्धक्तत् के मौनलक और व्यापक समायोिन के
उद्दे श्य से है । फ्रायड, िं ग, और एडलर द्वारा उपयोग नकए गए मनोनिज्ञान के साथ-साथ करे न हॉनी (1885-
1952) और है री स्टै क सुनलिन (1892-1949) के नलए दृनष्टकोर् शानमल हैं ।

RECONSTRUCTIVE PSYCHOTHERAPY : "पुनननणमाण र् मनोनचनकत्सा का उपयोग फ्रायड, िं ग और एडलर


िैसे प्रकाशकों द्वारा नकया गया है ।"

मनोनचनकत्सा के रूप में नचनकत्सा का एक रूप, िो न केिल लिर्ों को कम करने के नलए, बद्धल्क कुरूप
चररत्र संरचना में पररििणन उत्पन्न करने और नई अनुकूली िमिा में िेिी लाने का प्रयास करिा है ; इस
उद्दे श्य को संर्षण , भय, अिरोधों और उनकी अनभव्यद्धक्तयों के बारे में िागरूकिा और अंिदृण नष्ट में लाने के
द्वारा प्राप्त नकया िािा है ।

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