Download as docx, pdf, or txt
Download as docx, pdf, or txt
You are on page 1of 6

अष्टविनायक मंत्र

मूलाधार चक्र में पािनता स्थावपत करने के वलये श्रीगणेश की शक्तियां ।


1. मूलाधारः
ऊँ त्वमेि साक्षात् श्री एकादश रूद्र साक्षात्
ऊँ त्वमेि साक्षात् श्री गणेश
ऊँ त्वमेि साक्षात् श्री विकट कामासुर मवदि नी साक्षात्
ऊँ त्वमेि साक्षात् श्री वनष्कामा साक्षात्
श्री आवदशक्ति माताजी श्री वनमिला दे व्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)
2. स्वावधष्ठान
ऊँ त्वमेि साक्षात् श्री एकादश रूद्र साक्षात्
ऊँ त्वमेि साक्षात् श्री गणेश साक्षात्
ऊँ त्वमेि साक्षात् श्री लं बोदर क्रोधासुर मवदि नी साक्षात्
ऊँ त्वमेि साक्षात् श्री वनष्क्रोधा साक्षात्
श्री आवदशक्ति माताजी श्री वनमिला दे व्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)
3. नाव ः
ऊँ त्वमेि साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्
ऊँ त्वमेि साक्षात् श्री गणेश
गजानन लो ासुर मवदि नी साक्षात्
श्री वनलो ा साक्षात्
श्री आवदशक्ति माताजी श्री वनमिला दे व्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)
4. िसागरः
ऊँ त्वमेि साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्
श्री गणेश साक्षात्
महोदर मोहासुर मवदि नी साक्षात्
श्री वनमोहा साक्षात्
श्री आवदशक्ति माताजी श्री वनमिला दे व्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)
5. अनाहतः
ऊँ त्वमेि साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्
श्री गणेश साक्षात्
एकदं त मदासुर मवदि नी साक्षात्
श्री वनमिदा साक्षात्
श्री आवदशक्ति माताजी श्री वनमिला दे व्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)
6. विशु क्तधः
ऊँ त्वमेि साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्
श्री गणेश साक्षात्
िक्रतुंड मत्सरासुर मवदि नी साक्षात्
श्री वनमित्सरा साक्षात्
श्री आवदशक्ति माताजी श्री वनमिला दे व्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)
7. प्रवतअहं (+ बै क आज्ञा)
ऊँ त्वमेि साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्
श्री गणेश साक्षात्
विघ्ननाशा ममतासुर मवदि नी साक्षात्
श्री वनमिमा साक्षात्
श्री आवदशक्ति माताजी श्री वनमिला दे व्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)
8. अहं (+आज्ञा)
ऊँ त्वमेि साक्षात् एकादश रूद्र साक्षात्
श्री गणेश साक्षात्
श्री धूम्रिणि अव मानासुर मवदि नी साक्षात्
श्री आवदशक्ति माताजी श्री वनमिला दे व्यै नमो नमः।। (4-7-21 बार)
इसके पश्चात श्रीमाताजी के प्रिचन या श्रीमाताजी के 108 नाम सुनते हुये या विर वनविि चाररता की गहन
शां वत में ध्यान करें ।
मूलाधार चक्र कैसे शु ध करें ------------------
* माँ के प्रवत पूणि समपिण रखें।
* वकसी ी प्रकार की चालाकी , प्रलो न से बचे बहुत बड़ी - बड़ी बाते करना , वदखािा करना , स्वयं को
धोखा दे ना। पुरे समय बाहरी दु वनया में ही वचत्त होना , अपनी आँ खों को हर िास्तु या व्यक्ति को वटकाना
- यवद आपमें ये है तो तु रंत छोड़ दें ।
* वनयवमत जल वक्रया ( वदन में कम से कम २ बार )
श्री गणेश अथिि शीर्ि पढ़ें ।
ओम गम गणपतये नमः का उच्चारण ४ बार करें ।
श्री गणेश मन्त्र / श्री कावतिकेय मन्त्र लें ।
* धरती पर बैठकर ध्यान करें ।
* हरी घास पर नंगे पैर चले - गणेश जी का ध्यान करे बहते पानी में नदी / समुद्र में पैर डालकर श्री
गणेश अथिि शीर्ि करें ।
* गीली रे ट पर चलें ।
* पृथ्वी माँ की ओर नजर रखें।
* िूलों तथा प्रकृवत की सुन्दर रचनाओं को दे खे।
* छोटे बच्चों को दे खें , उनके बीच रहें ।
* अपने वचत्त को मूलाधार चक्र पर ( बैठने के स्थान पर जो वहस्सा जमीं को छूता है ) रखकर ध्यान में
विनती करें :---
( अ ) श्री माताजी मुझे अबोवधता तथा शु ध वििेक दीवजये ।
श्री माताजी मेरे अंदर वनमिल गणेशतत्व जागृत कर दीवजये ।
श्री माताजी मेरी बु क्तध को सुबुक्तध में पररिवति त कर दीवजये ।
( ब ) श्री माताजी मुझे आपकी प्रशं सा के योग्य बना दीवजये।
श्री माताजी मुझे विनम्र बना दीवजयें ।
श्री माताजी मेरी शु ध और केिल यही इच्छा है की मैं आपको खुश कर सकूँ।
अब श्री माताजी की िोटो की ओर दे खकर कहे
श्री माताजी आप ही श्री गणेश है
श्री माताजी आप ही मुझे बु क्तध और वििेक प्रदान करती है ।
( स ) अपना वचत्त दायें मूलाधार पर रखें। दायां हाथ श्री माताजी की ओर तथा बायां हाथ पृथ्वी माँ पर
रखें। विनती करें श्री माताजी कृपा कर के समस्त नकारात्मक शक्तियों से हमारी रक्षा कररयें । मन्त्र ले :-
श्री कावतिकेय मंत्र
श्री राक्षस हंत्री मंत्र
श्री राक्षसवघ्न मंत्र लें ।
स्वावधष्ठान चक्र का शु क्तधकरण -----------
बायां स्वावधष्ठान :-
* वजन कारणों से इड़ा नाड़ी ( बायीं नाड़ी ) प्र ावित होती है िे स ी कारण छोड़े और इस नाड़ी को
शु ध करने के तरीके अपनायें ।
* यवद इन पकड़ के कारणों को हम नहीं छोड़ते है तो बाये ँ स्वावधष्ठान से बाधाएँ हमारे शरीर में प्रिे श
करने लग जाती है और सीधे बै क आज्ञा को प्र ावित करती है ।
* हर चीज को पाने की अशु ध ईच्छाओं को त्यागे ।
तां वत्रक वक्रया , कुगुरु को पूणिरूप से छोड़ दें ।
* खुला वदमाग रखे। पुरानी बातों को जड़ ि् त पकड़ नहीं बैठे। नयी बातों को स्वीकार करने को तैयार
रहें ।
श्री ब्रम्हदे ि सरस्वती
१. श्री वनमिल विद्या
२. श्री शु ध इच्छा
३. श्री मवहर्ासुर मवदि नी का मंत्र लें ।
* दायां मूलाधार को सुधारने पर ी बायां स्वावधष्ठान सुधरता है ।
दां या स्वावधष्ठान :----------
* वजन कारणों से दायीं नाड़ी ( वपंगला नाड़ी ) प्र ावित होती है , िे स ी कारण छोड़े और इस नाड़ी को
शु ध करने के तरीके अपनायें ।
* यवद हम लगातार वदमागी सोच जारी रखे हुए है तो हमारे मक्तस्तष्क को लगातार ऊजाि ेजने के कारण
दायां स्वावधष्ठान गमि हो जाता है । अतः
----- विष्य के बारे में वदमागी सोच विचार बं द करे
----- सब कुछ परम चै तन्य पर छोड़ दे
------ वलिर पर बिि की थैली रखें ( ध्यान में )
------ अपने दाए स्वावधष्ठान पर वचत्त रखकर ठं डे करने िाले मंत्र ले सकते है ---
श्री वहमालय
श्री कैलास स्वावमनी
श्री वनमिल वचत्त
श्री वचत्त वनरोध
श्री वचत्ते श्वरी
श्री वचत्तशक्ति
श्री हजरत अली िावतमा बी
सिि ताप हररणी
श्री संजीिनी स्वावमनी
* दायें स्वावधष्ठान पर ---
हजरत अली िावतमा बी - ६ बार लें ।
श्री गायत्री माता साक्षात मंत्र लें ।
*********** जय श्री माताजी **********
नाव चक्र का शु क्तधकरण ------
* घर की स्री का अनादर ना करे ।
* इस तरह के व्यक्ति पुरे समय घर की वचं ता करने में , वशकायत करते रहने में , कुछ ी बोलकर माहौल
ख़राब करते है। समय गं िाते है । अधीर रह कर घटना , व्यक्ति के बारे में जानकारी चाहना , सहनशक्ति
की कमी होना , घर तथा िस्तु एं , अव्यिक्तस्थत रखना , अपने वकये का दोर् दू सरे पर मढ़ना इनके दु गुिण
होते है । यवद आपमें बायीं नाव की पकड़ आ रही है और आप में इस तरह के दु गुिण है। तो उन्हें तुरंत
छोड़े ।
> गिान के नाम पर उपास न करें ।
> लम्बे समय तक ूखे न रहे ।
> खाद्य पदाथि को चै तक्तन्यत करे ।
> चै तक्तन्यत पानी वपये ।
कच्चा , अधपका बासी खाना न खायें ।
( १ चम्मच गे रू ( चैतक्तन्यत ) + १ चम्मच शहद वदन में ३ बार लें
> बायीं नाव का मोमबत्ती द्वारा उपचार करे ।
> क्षमा करे । धै यि रखे। क्रोध न करें । शां त रहे।
> हमेशा ददि की वशकायते न करे । पूणि आत्मसंतुवष्ट में रहे ।
मंत्र :- श्री गृ हलक्ष्मी साक्षात
** दायीं नाव चक्र **
> दायें स्वावधष्ठान में यवद पकड़ है तो उसकी गमी ऊपर चढ़ती हुई नाव को प्र ावित करती है अतः
विष्य का सोच विचार/ वचंताएँ छोड़े ।
> रूपया पैसा , ौवतकिाद , िै ि विलावसता में ही हमेशा न उलझे रहे ।
> अधावमिक आचरण तत्काल छोड़े - जै से अपने अवधनसें गलत व्यिहार , दहेज़ लेना - दे ना।
> कंजू सी बं द करे । दयालु , मददगार बनें। अन्य सहजी ाई - बहनों को सुंदर उपहार दें । सहज / कायों
में खुले वदल से रूवच लें।
> वबना कृवत्रमता , वबना वदखाने के दान करें ।
> शराब सेिन वबलकुल न करें ।
> वबना वचवकतसवकय परमाशि के दिाईयों का सेिन अंधाधुंद न करें ।
> पुरे समय ोज्य पदाथों में ही वचत्त न रखें।
> वलिर डाईट ( जो श्री माताजी ने बतायी है ) अपनायें ।
मंत्र -- श्री राजलक्ष्मी साक्षात
मध्य नाव का मंत्र :- श्री लक्ष्मी नारायण साक्षात।
((((( जय श्री माताजी )))))
िसागर का शु क्तधकरण -------------
* कुगु रु /अगु रु /तां वत्रक /मां वत्रक सबसे नाता तोड़ें ।
* इनके द्वारा वदए गए प्रसाद , लॉकेट , वकताबें , िोटो , स्म / कपडे / गंडे - ताबीज को तुरंत त्याग दें ।
* इनके द्वारा वदए गये मंत्र , उपास , ध्यान बं द करे , कमिकां ड बंद करें ।
* दो नािों पर सिार होने की क्तस्थवत से बचे ।
* सदगु रु िही है जो परमात्मा से वमलाता है , वजनके सामने कुण्डवलनी जागरण होता है और आत्म
साक्षात्कार प्राप्त होता है । याद रखे सहजयोग को आपकी जरुरत नहीं है आपको सहजयोग की जरुरत है।
* अपने आप को दू सरों का गुरु न समझें।
* िसागर को आगे से ( घडी के कां टे के सदृश ) सीधे हाथ से शु ध करें ।
------- आवद गुरु दत्तात्रय का मंत्र लें
------ दसो गु रुओं के नाम लें
------ आवद गुरु दत्तात्रय के १०८ नाम ले सकते है।
------ असत्य गु रु मवदि नी / कुगुरु मवदि नी का मंत्र ले ।
* िसागर पर ध्यान करें - - श्री माताजी से प्राथिना करें श्री माताजी मुझे स्वयं का गु रु बना दीवजये ।
श्री आवदगु रु दत्तात्रे य एिं उनके दस अितरण
१ श्री राजा जनक
२ श्री एब्राहम
३ श्री मोजे स
४ श्री जोराष्टर
५ श्री लाओत्से
६ श्री कन्फूवशयस
७ सुकरात
८ श्री मोहम्मद साहब
९ श्री गुरु नानक
१० श्री वशडी के साईनाथ
[ जय श्री माताजी ]
ह्रदय चक्र का शु क्तधकरण -----------
बायां ह्रदय :---
* अपनी आत्मा पर वचत्त रखें। पुरे समय बाहरी दु वनया के सोच से आत्मा से वचत्त हट जाता है।
* ध्यान ि अंतदि शिन आिश्यक है वजससे आत्मविश्वास बढ़ता है।
* आत्मा के विरोध में कायि न करें
बायां हाथ श्री माताजी की ओर तथा दायां हाथ ह्रदय पर रखकर मंत्र लें :-
> श्री आत्मा परमात्मा मंत्र
> श्री वशि पािि ती मंत्र / श्री वशि शक्ति मंत्र
> श्री वशिजी के १०८ नाम ले सकते है ।
> बायें ह्रदय का मोमबत्ती द्वारा उपचार
> बायें ह्रदय को दायें हाथ से चैतन्य दे ना।
> माँ से विनती करें - श्री माताजी मैं शु ध आत्मा हँ , कृपा करके मेरा परमात्मा से योग घवटत करिा
दीवजये । मुझे प्रेम तत्व एिं आत्म तत्व प्रदान कीवजये।
मध्य ह्रदय :---
* श्री जगदम्बा साक्षात मंत्र
* श्री दु गाि माता साक्षात मंत्र
* लं बी सां स अंदर खींचे - १२ बार जगदं ब कहें , सां स छोड़े ऐसा ३ बार करें
* पुरे विश्वास से कहे - श्री माताजी आप ही आवदशक्ति है
* आप ने मुझे चु ना है , इसवलए मेरा कोई कुछ नहीं वबगड़ सकता
--- मुझे कोई डरा नहीं सकता
--- मुझे कोई मार नहीं सकता
--- मुझ पर कोई अपना प्र ुत्व नहीं जमा सकता।
* दू सरों को आत्म-साक्षात्कार दें । इससे आप में आत्म विश्वास बढ़ता है ।
* आत्माष्टकम् ( वनमिलांजवल पुस्तक ) गायें ।
* श्री दु गाि माता के नाम लें ।
* दे िी सूिम पढ़े ।
* अजीब आकार - प्रकार के लॉकेट आवद न पहने वजनसे नकारात्मकता सीधे ह्रदय या विशु क्तध चक्र में
प्रिे श कर सकती है ।
* अपने अंदर दबा गुस्सा , वचं ता न रखें। सब कुछ परमचै तन्य पर छोड़ दें ।
दायां ह्रदय :--
* अपने वपता से संबंध अच्छे रखे। क्षमा का ाि रखे।
* वपतास्वरूप अपने बच्चों की बहुत वचं ता न करें । श्री माताजी पर विश्वास रखें।
* अपने घर पररिार की वजम्मेदारी समझें। पुरे समय काम धंधे , रुपये पैसे , सत्ता ईष्याि , जलन का ही सोच
विचार बंद करें ।
* अवत मानवसक - अवत शारीररक श्रम न करें । बीच बीच में शरीर ि वदमाग को आराम दे ते रहें ।
* पररिार समाज ि स्वयं से मयािदा में रहें ।
* आत्मा पर वचत्त रखें।
* पूििजों / वपतरों का आहिान न करें । श्री माताजी से कहें श्री माताजी आप ही हमारी माँ है , वपता है।
कृपया हमारे वपतरों को स्वगि में उवचत स्थान दें ।
* श्री सीता राम साक्षात मंत्र लें ।
((((( जय श्री माताजी )))))
विशुक्तध चक्र का शु क्तधकरण -----------
* क्तस्थत प्रज्ञ की क्तस्थवत के वलए श्री माताजी से प्राथिना करें । इसके वलए साक्षी ाि रखें। अपने अहं कार
अथिा जड़ता से लगाि न रखे। तु रंत प्रवतवक्रया करने से बचे । बाद में क्तस्थवत सामान्य होने पर अपनी बात
रखने की कोवशश करें ।
* मंत्रों का सही उच्चारण करें ।
* सामूवहकता में रहें। अवधक से अवधक सािि जावनक सहज कायिक्रमों में जायें।
* सहजयोग का कायि करें ।
* सामूवहकता में सहज जन गायें ।
* वजन कारणों से पकड़ आ रही है , िे बंद करें ।
* श्री राधा कृष्ण मंत्र लें - विशु क्तध चक्र पर वचत्त रखकर।
* श्री कृष्ण के १०८ नाम ले सकते है ।
* खुले आसमान की तरि दे खकर दोनों कानों में पहलगी ( विशु क्तध की ) ऊँगली डालकर , हथेवलयां खुली
रखकर , अल्लाह - ओ - अकबर का १६ बार उच्चारण करें ।
* ठं ड में गलें को ढं ककर रखे।
* आपका पहनािा इस तरह का हो वजसमें कंधे बाँहें खुली न हो ( स्लीिले स न पहने )
* ताबीज आवद न पहने , िहाँ से नकारात्मकता सीधे अंदर प्रिेश कर सकती है ।
* नाक में ( घी + कपूिर ) प्रवतवदन डाले ।
* बालों में ते ल डालें । बाल व्यिक्तस्थत रखे। वबखरे बाल ूतों को बुलािा दे ते है ।
* अपने दांत में वनयवमत ब्रश करे ।
* गमि दू ध या गमि पानी में मक्खन और शहद डालकर पीये ।
* मक्खन और वमश्री खायें ।
* अजिायन की धू नी / ाप लें ।
* धू म्रपान / तं बाकू सेिन तुरंत बं द करे । नहीं कर पा रहे है तो उपरोि उपायों के साथ - साथ माँ से
लगातार विनती करे ।
***** बाँ या विशु क्तध चक्र *****
* यवद आपने गलत कायि या अधावमिक कायि या आत्मा के विरुध कोई कायि वकया है तो श्री माताजी के
सामने अपनी गलती स्वीकार करें । गलती का सामना करे । सिाई दे ने की जरुरत नहीं। कहे श्री माताजी
अगली बार मै ऐसा नहीं करू ँ गा।
* माँ से विनती करें श्री माताजी मैं शु ध आत्मा हँ कृपया करके मुझे दोर् ाि से मुि करें ।
* पर श्री के प्रवत आदर ि पवित्र ाि रखे।
* गलत कायों को / अपवित्र आचरण को तुरंत छोड़े ।
* दू सरों की आलोचना / बुराई करना तु रंत छोड़े ।
* श्री विष्णुमाया का मंत्र लें ।
* चक्र को आगे से घड़ी के काँटे के सदृश शु ध करें ।
* चक्र को चैतन्य दें ।
* चक्र की मोमबत्ती वक्रया करें ।
* झूठ न बोलें ।
***** दायां विशु क्तध चक्र *****
* तु रंत प्रवतवक्रया कर गलत / अपशब्द न कहें / चीख वचल्ला कर बाते न करें , गाली - गलौच / बहस
न करे । इससे आप दू सरों के ूत अिशोवर्त कर ले ते है ।
* अहं कार -रवहत मधुर िाणी कहे । इसके वलये ी श्री माताजी से लगातार विनती करे ।
* लगातार ार्ण दे ना। लगातार गाना गाना इनसे विशु क्तध चक्र पर दबाि पड़ता है अतः अपने गले को कुछ
अंतराल के बाद आराम दें ।
* श्री विट्ठल - रुक्तिवण का मंत्र लें ।
((((( जय श्री माताजी )))))
आज्ञा चक्र का शु क्तधकरण -----------
* वजन कारणों से पकड़ है -- िे बंद करें ।
* अहं कार / प्रवत अहं कार या जड़ता को तु रंत छोड़े । इनके वलये माँ से लगातार विनती करे ।
* अपनी नजरे हर िस्तु , हर व्यक्ति पर न वटकाये
* आँ खों के अत्यावधक उपयोग से बचे जै से लगातार टी िी दे खना / कंप्यू टर पर कायि / मोबाइल पर कायि
/ लगातार पढ़ना / वसलाई / कढाई आवद करना।
* बीच -बीच में अपनी आँ खों को आराम दे ना आिश्यक है , आँ खें बंद कर शांत वचत्त बैठे।
* अपवित्र सावहत्य पढ़ने से , अपवित्र , गंदे मनुष्यों को दे खने से , गन्दे टी.िी सीररयल , गन्दी विल्मे दे खने
से आज्ञा चक्र प्र ावित होता है । आँ खों के अनेक रोग इन्ही कारणों से होते है । ऐसी आदते तु रंत छोड़े ।
* िे सारी विवधयाँ जो आँ खों पर ध्यान केंवद्रत करने को प्रेररत करती है जै से सम्मोहन , तां वत्रक वक्रया आवद
वबलकुल न करें ।
* अनवधकृत गुरु के सामने - गदि न झुकाने से , चरणों में माथा टे कने से बचे ।
* असहजी द्वारा माथे पर कुमकुम लगिाने से बचे ।
* गलत स्थान पर माथे टे कने से बचे ।
* अपने आज्ञा चक्र पर श्रीमाताजी के सामने रखा हुआ चै तक्तन्यत कुमकुम लगाये।
* बायीं नाड़ी की पकड़ से अथिा बायें तरि के चक्रों की पकड़ से बै क आज्ञा पकड़ जाती है अतः पीछे
से घडी के काटे के विपरीत हाथ घु माकर बै क आज्ञा शुध करें ।
--- श्री महागणेश , श्री महा ैरिनाथ , श्री महा वहरण्यग ाि य का मंत्र लें ।
---- मोमबत्ती - वक्रया , द्वारा शु ध करें / अजिायन कपूिर द्वारा शु ध करें ।
--- चक्र को चैतन्य दें
फ्रंट आज्ञा को शुध करने के वलए -----------
* क्षमा करे । प्रवतवदन सीधे हाथ को आज्ञा चक्र पर रखकर प्राथिना करे । श्री माताजी मैंने ह्रदय से सबको
क्षमा वकया , मैंने अपने आपको ी क्षमा वकया। ये शब्द ही मंत्र है । धीरे - धीरे आपमें अंदर से पररिति न
होगा।
* तु रंत प्रवतवक्रया से बचे । साक्षी ाि रखे।
* लगातार सोच विचार / वचंताएं / दबा गुस्सा / तनाि तु रंत बं द करें । सब कुछ श्री माताजी पर विश्वास
कर परम चैतन्य पर छोड़ दें ।
* श्री जीसस मेरी , श्री महािीर , श्री बुधदे ि साक्षात का मंत्र लें ।
* महत अहं कार साक्षात का मंत्र लें ।
* हं क्षं मंत्र लें ( दो बार उच्चारण करें )
* वनविि चार साक्षात का मंत्र लें / महत अहं कार साक्षात मंत्र लें ।
* गणेश अथििशीर्ि पढ़ सकते है ।
* लॉड्ि स प्रेयर पढ़े ।
* चक्र को चैतन्य दें ।
* श्री माताजी के आज्ञा चक्र को मोमबत्ती की लौ के अंदर दे खे ( मुख्यतः आँ खों के वलये है । )
***** एकादश रूद्र को जागृत करने के उपाय *****
* अपने माथे पर जहाँ से बाल शु रू होते है - पर ध्यान करें । वचत्त को बायें से दायें तथा दायें से बाएं
घु माये ।
प्राथिना करे ---
---- श्री माताजी कृपा करके मेरे अंदर एकादश रूद्र की शक्तियों को जागृत कर दीवजये।
---- मेरे समपिण में आने िाली समस्त नकारात्मकता को नष्ट कीवजये ।
---- श्री एकदाश रूद्र साक्षात का मंत्र ३ बार लें ।
***** जय श्री माताजी *****

You might also like