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संवाद स्वास्थ्य सेवाओं पर ज्यादा ध्यान देने वाले दश

े ों में शतायु लोग बड़ी संख्या में हैं


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वक्त की यह
नवभारत टाइम्स । नई दिल्ली। शनिवार, 23 नवंबर 2019 हम भी देख सकते हैं सौ वसंत
बबली को जैसे ही छींक आई, 
Graphics : Ravi Thakur कैसी मार
प्रति 10 लाख आबादी पर सौ
बाजार की उलटबांसी दादी बोल पड़ीं,‘ सत्तन जी। सौ साल
जियो।’ बबली ने नाक मसलते हुए
कहा,  ‘दादी, यहां तो सत्तर पार पार करने वालों की संख्या
मैं करीब 8 साल का रहा होऊंगा, तभी पापा मुझे और
मेरे बड़े भाई को लेकर गांव से दूर शहर आ गए थे।
हम पापा के साथ जहां रहने आए वह एक लॉज था
विकास दर नरम लेकिन सेंसेक्स गरम करना ही मुश्किल है,  सौ साल कैसे भारत 21 जिसमें केवल बैचलर लोग रहते थे। उसके अगल-बगल
अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले इन दिनों उलझन में हैं। वे समझ नहीं जियेंग?े ’ भारत में पुरुषों की औसत चीन 36 कुछ फैमिली क्वॉर्टर थे। स्कूल में एडमिशन होने के बाद
आयु   68.56  वर्ष और महिलाओं उन फैमिली क्वॉर्टर्स के बच्चों से हमारी दोस्ती हो गई।
पा रहे कि अभी जब देश की आर्थिक विकास दर को लेकर आशंकाएं व्यक्त
की थोड़ी ज्यादा  70.5  वर्ष है। यह
तुर्की 67 हमारा उनके घर आना-जाना शुरू हो गया। इन्हीं में एक
की जा रही हैं तो शेयर बाजार उछालें क्यों मार रहा है। जीडीपी ग्रोथ रेट साल बाल मुकुंद
की तीसरी तिमाही में रिकॉर्ड निचले स्तर पर चली गई है। रेटिगं एजेंसियां विश्व की औसत मानव आयु से कम द. कोरिया 77 झा अंकल का परिवार था। उनका बड़ा बेटा मुझसे एक
आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान घटा रही हैं। लेकिन बीएसई और एनएसई का है,  जिसमें अफ्रीका के लेसोथो और सिएरा लियोन जैसे ब्रिटेन 215 क्लास सीनियर था और छोटा एक क्लास जूनियर। हम
ग्राफ बीच के छोटे-मोटे उतार के बावजूद लगातार ऊपर की ओर है। रेटिंग अति पिछड़े देश भी शामिल  हैं,  जहां के अधिकतर लोग अमेरिका 220 तीनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे।
एजेंसी मूडीज ने साल 2019 के लिए भारत जीवन के  55  वसंत भी नहीं देख पाते। औसत आयु की द. अफ्रीका 301 झा अंकल लोकल लेवल के छोटे-मोटे नेता थे। झा
गणना किसी देश,  समाज या समुदाय में  उसकी  जन्म और आंटी हॉस्पिटल में हेड नर्स थीं। उन्हीं की कमाई से पूरा
का आर्थिक वृद्धि दर अनुमान घटाकर
मृत्यु की दर के आधार पर करते हैं। इसी से यह अनुमान फ्रांस 321 परिवार चलता था, लेकिन वह खुद घर खर्चे के लिए झा
5.6 फीसदी कर दिया है। ‘ग्लोबल मैक्रो थाईलैंड 359
लगाया जाता है कि  वहां  जन्म के समय किसी शिशु के अंकल पर निर्भर रहती थीं। अंकल काफी रौबदार इंसान
आउटलुक 2020-21’ में उसने 2020
और 2021 में ग्रोथ रेट क्रमश: 6.6 फीसदी
कितने समय तक जीवित रहने  की आशा है। इसीलिए  इस जापान 480 थे। कई बार ऐसा देखा कि कपड़े में अगर प्रेस सही नहीं
औसत आयु को जीवन प्रत्याशा भी कहते हैं। आज मानव है तो आंटी से उसी कपड़े पर दोबारा प्रेस करवाते। घर
और 6.7 फीसदी होने की उम्मीद जताई की औसत जीवन प्रत्याशा या आयु लगभग  72  वर्ष एक ग्लोबल रिपोर्ट के मुताबिक सौ साल से ज्यादा जीने तो क्या, मोहल्ले में किसी की हिम्मत नहीं थी कि उनकी
है, लेकिन साथ में यह भी जोड़ा है कि है।  पुरुषों की 70  वर्ष और स्त्रियों की  75  वर्ष।
भारत में सन 2017-18 में पांच साल वाले लोगों की संख्या जिन पांच देशों में सबसे अधिक है, अनुमति के बिना कुछ कर ले। जब तक वह घर में होते
बीते दिनों की तुलना में आर्थिक सक्रियता अलग-अलग देशों में औसत आयु अलग-अलग है। से कम उम्र के 8.8 लाख बच्चों का वे हैं अमेरिका, जापान, चीन, भारत और इटली। इनमें बच्चे या आंटी, किसी की आवाज नहीं सुनाई देती थी।
कम ही रहेगी। मूडीज ने भारत सरकार की सबसे ज्यादा दीर्घायु जापान,  स्विट्जरलैंड,  स्पेन, जीवन चिकित्सा सुविधाओं तक पहुचं चीन और भारत का नाम इसलिए शामिल है क्योंकि इन उन्हीं के घर के आगे एक छोटा मैदान था जहां हम खेला
सॉवरेन रेटिंग्स को भी न्यूट्रल से बदलकर अमेरिका,  कनाडा,  फ्रांस और इटली के लोग होते दोनों देशों की जनसंख्या बहुत बड़ी है, वरना यहां के लोगों करते थे। झा अंकल के बेटे तभी खेलने आते जब अंकल
सुधार का भरोसा
नकारात्मक कर दिया था। सवाल है कि हैं। जापान में औसत आयु  84.2,  स्पेन में  83.1 
नहीं होने के कारण समाप्त हो गया की जीवन प्रत्याशा (औसत उम्र) अमेरिका, जापान और घर पर नहीं होते। कई बार ऐसा होता कि दोनों हमारे साथ
घरेलू और विदेशी निवेशक क्या रेटिंग एजेंसियों को गंभीरता से नहीं लेत,े जबकि  इटली और फ्रांस में 82.9  वर्ष है। लेकिन मध्य क्षेत्रों में रहने वाले उस तबके की जीवन प्रत्याशा ज्यादा इटली से काफी कम है। अमेरिका में प्रति दस लाख 22 खेल रहे होते और उसी समय अंकल आ धमकते। फिर
या फिर एजेंसियों का आकलन संदिग्ध है? हकीकत यह है कि शेयर बाजार अफ्रीका में औसत आयु मात्र  53  साल है। जिस चाड पाई गई,  जो भोजन,  आवास और चिकित्सा के अचानक व्यक्ति ‘सत्तन जी’ का आशीर्वाद पा लेते हैं। जापान में क्या, मैदान में ही वे उन्हें जिस तरह पीटना शुरू करते तो
को अर्थव्यवस्था का आईना समझने की धारणा ही गलत है। आर्थिक वृद्धि और सोमालिया की भुखमरी की तस्वीरें कभी-कभी हम आ पड़े दबावों  से निबटने में समर्थ थे। शहरों में चिकित्सा प्रति दस लाख की आबादी पर 480 और इटली में 315 लगता था कि जान लेकर
के आंकड़ों का शेयर बाजार पर असर जरूर पड़ता है लेकिन शेयर बाजार खबरों में देखते हैं,  वहां लोग  55  वर्ष पूरे नहीं कर पाते। सुविधाओं की उपलब्धता के कारण बूढ़े लोगों की जीवन व्यक्ति सौ से ऊपर हैं। भारत और चीन में यह अनुपात ही छोड़ेंग।े उन दोनों भाइयों
के चढ़ने-उतरने की वजहें अक्सर अलग होती हैं। शेयरों पर कई स्थानीय उन्हीं की कतार में सूडान भी है,  जहां की औसत आयु प्रत्याशा में बढ़ोतरी हुई है। यह औसत आयु कम होने क्रमश: 21 और 36 का ही है। भारत के आंकड़ों को को पिटता देख हम बच्चे
और अंतरराष्ट्रीय तत्वों का प्रभाव तो पड़ता ही है, खास कंपनियों से जुड़ी भारत के पुरुषों की औसत आयु से दस वर्ष कम यानी के लिए जेनेटिक कारणों के जिम्मेदार होने के तर्क को लेकर एक विवाद भी है। यहां पुराने लोगों की जन्म तिथि अपना बैट-विकेट छोड़कर
खबरें भी इसमें इंजन की भूमिका निभाती हैं। अभी जो तेजी दिखाई पड़ रही 58.6  वर्ष है। कुछ देशों के लोग दीर्घायु और कुछ के कमजोर साबित करता है। के रिकार्ड नहीं मिलते और 80-85 से ऊपर के हर व्यक्ति घर भाग जाते थे। कई बार
है, उसका फैलाव सारे शेयरों तक नहीं है। कुछ खास शेयर ही ऐसे हैं, जो अल्पायु क्यों होते हैं?  जनसंख्या और जन स्वास्थ्य का भारत की औसत आयु कम होने का एक बहुत बड़ा को सौ से अधिक का बताने का रिवाज है। खुद अपनी दोनों भाइयों की पिटाई की
लगातार मजबूती दिखा रहे हैं। इसके अलावा बड़ी सरकारी कंपनियों में अध्ययन करने वाले इसके अलग-अलग कारण बताते कारण है यहां की शिशु मृत्यु दर। यहां चिकित्सा सुविधाओं अमेरिका में जीवन प्रत्याशा 78.87 वर्ष, चीन में 76.79 आवाज हमें उनके घर
विनिवेश का फैसला भी शेयर बाजार के लिए खुशहाली लेकर आया है। हैं। पश्चिमी अध्ययनकर्ता आम तौर पर जेनेटिक या
नृवंशीय कारणों पर ज्यादा बल देते हैं। यानी हमारी नस्ल
तक पहुंच नहीं होने के कारण  2017-18  में पांच साल
से कम उम्र के  8.8  लाख बच्चों का जीवन समाप्त हुआ।
वर्ष और भारत में 68.7 वर्ष है। लेकिन अमेरिका जन
स्वास्थ योजनाओं पर अपने जीडीपी का 17.9 प्रतिशत,
अांख से के पास से गुजरते हुए भी
सुनाई पड़ती थी।
शेयर बाजार के खिलाड़ी मानकर चल रहे हैं कि भारतीय इकॉनमी का सबसे
बुरा दौर बीत चुका है। किसी बड़े बदलाव के संकेत भले ही न हों पर उन्हें या जेनेटिक बनावट ऐसी है कि यहां के लोग सामान्य यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में शिशु मृत्यु दर  चीन 5 प्रतिशत और भारत 3.9 प्रतिशत भाग खर्च करता रौशन कुमार झा समय बीतता गया और
इसकी रिकवरी का भरोसा है। यह शेयर बाजार का चरित्र है कि जब मुनाफे तौर इतने ही साल जी सकते हैं। इसके बाद वे पर्यावरण (पांच साल से कम)  दुनिया में सबसे ज्यादा है। यहां  है।  इसलिए यह तर्क सही नहीं है कि आबादी ज्यादा होने मैं स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई
कम हो रहे होते हैं तो स्थानीय म्यूचुअल फंडों और ग्लोबल निवेशकों के और बड़ी आबादी के दबाव जैसे तत्वों को जिम्मेदार 27  प्रतिशत बच्चों को न्यूमोनिया और  80  प्रतिशत के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रति व्यक्ति होने वाला पूरी कर हायर एजुकेशन के लिए दिल्ली आ गया। इस
जरिए चुनिदं ा शेयरों में गति आती रहती है। बाजार कई चीजों पर पैनी नजर ठहराते हैं। बाकी तथ्यों का जिक्र वे हल्के ढंग से करते हैं।  बच्चों को उल्टी-दस्त के इलाज के लिए भी अस्पताल हमारा खर्च बंट जाता है। सवाल प्रति व्यक्ति खर्च का ही बीच पापा भी रिटायर हो गए और उस शहर से हमारा
रखता है। जैसे पिछले साल लगा कि एनबीएफसी संकट बहुत ज्यादा गहरा लेकिन  उनका यह विश्लेषण सही नहीं होता। पहुंचना  नसीब नहीं होता। यहां  15  प्रतिशत बच्चों को नहीं,  जीडीपी में से निकाली जाने वाली रकम के प्रतिशत नाता टूट गया। अभी कुछ दिनों पहले गांव गया तो मन
है, लेकिन अब यह एहसास होने के बाद कि नीति-निर्माता उनके बारे में सोच किसी देश के लोगों की जीवन प्रत्याशा इस पर भी डीटीपी जैसे अनिवार्य टीके नहीं लग पाते। जन्म के समय का भी है। ऐसा नहीं है कि हम सौ साल नहीं जी सकते। में झा अंकल और आंटी से मिलने की इच्छा जाग उठी।
रहे हैं, शेयर बाजार इस तरफ से निश्चिंत दिख रहा है। वैस,े बाजार की यह निर्भर करती है कि वहां की सामाजिक व्यवस्था कैसी है,  होने वाली मौतें घटी हैं,  लेकिन प्रसव के बाद हम बच्चों जो देश अपने यहां स्वास्थ्य सेवाओं पर पर्याप्त ध्यान देते सोशल मीडिया के इस जमाने में भी उनके दोनों बच्चे
तेजी सिर्फ भारत में नहीं है। कई और शेयर बाजार भी रिकॉर्ड स्तर पर हैं। जीवनयापन की स्थितियां और सरकारी नीतियां कैसी हैं। को पांच साल भी नहीं बचा पाते और इससे हमारी औसत हैं,  उनके यहां शतायु लोगों की संख्या अच्छी-खासी देखी कहीं किसी प्लैटफॉर्म पर कभी नहीं दिखे जिससे कि उन
भारत में किए गए एक शोध में पाया गया कि संयुक्त आयु का ग्राफ नीचे गिर जाता है। जिन देशों में औसत आयु जाती है। इसलिए अपने देश की औसत आयु बढ़ानी है, तो लोगों के बारे में जान पाता। करीब 20 साल बाद मैं उन
पूरी दुनिया में और भारत में भी नरम ब्याज दरों की नीति ने उत्साह बढ़ाया है।
परिवारों में रहने वालों की जीवन प्रत्याशा पति, पत्नी और ज्यादा है, वहां  जन स्वास्थ्य पर भारी रकम खर्च की जाती हमें स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना होगा,  उन्हें जन लोगों से मिलने जा रहा था। वहां पहुंचा तो उनकी स्थिति
हालांकि यहां यह जोड़ना जरूरी है कि शेयर बाजार लंबे समय तक बुनियादी बच्चों वाले न्यूक्लियस परिवारों के सदस्यों की तुलना है। जापान अपने जीडीपी का  9.3  प्रतिशत  और फ्रांस सुलभ बनाना होगा और शिशु मृत्यु दर तथा जननी मृत्यु देख चौंक गया। झा अंकल की याददाश्त चली गई थी
आंकड़ों के खिलाफ नहीं जा सकते। बाजार में तेजी लंबी चले, इसके लिए में ज्यादा रही। इसी तरह  शहरों की तुलना में ग्रामीण 11.6 प्रतिशत हिस्सा  स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है। दर में कमी लानी होगी। और वह चलने-फिरने में असमर्थ थे। आंटी ने तुरंत मुझे
अच्छी आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित करना जरूरी है। पहचान लिया और फोन कर दोनों बेटों को बुलाया जो
पास में ही दुकान करते थे। पूरे परिवार के इकट्ठा होने के
बाद जो दृश्य मैंने देखा उसने मुझे सवालों से भर दिया।
ऑफ िद �ैक कैमरा बोलता है AFP खास बात बड़े बेटे ने मेरे आने की सूचना अंकल को इस तरह
दी, ‘हां जी झा साहब, देखो कौन आया है। पहचानो।
पहचानते हो इसे।’ झा अंकल मेरी तरफ बस ताकते रहे।
दुरंगी सतह चांद की जब-तब ही खेलें डे-नाइट टेस्ट? दूसरे बेटे ने कहा, ‘देखो-देखो, आपको ही देखने आया
है। बात तो करो। दिल्ली से आया है आपको देखने।’
चंद्रभूषण मुझे लगता है, डे-नाइट टेस्ट एकाध बार के जब दोनों बेटे इस तरह बात कर रहे थे, मुझे वे दिन
लिए ठीक है, पर इसे रेग्युलर सीन नहीं बनाना याद आ रहे थे जब इनके सामने किसी की आवाज नहीं
चंद्रमा पर न हवा चलती है, न पानी बहता है, न कोई ऐसी भूगर्भीय उथल- चाहिए। टेस्ट क्रिकेट में एक्साइटमेंट लाइए, निकलती थी। तब शायद अंकल उसे ही अपनी कामयाबी
पुथल होती है, जिससे उसकी सतह की शक्ल बदलती हो। जब-तब गिरने वाले लेकिन इसे विशुद्ध मनोरंजन नहीं बना सकते। मानते थे, पर शायद उसी ‘कामयाबी’ ने यह नौबत ला दी
उल्कापिंडों से पैदा हुई क्षणिक हलचलों को छोड़ दें तो वहां ऐसा कुछ भी नहीं - विराट कोहली थी कि आज दोनों बेटों या आंटी के चेहरों पर अंकल की
होता जिससे चंद्रमा को लेकर वैज्ञानिकों की राय अचानक बदल जाए। लेकिन कैप्टन, टीम इंडिया इस स्थिति को लेकर जरा भी दुख नजर नहीं आ रहा था।
अपोलो की तर्ज पर तैयार हो रहे नासा के नए चंद्र अभियान आर्टेमिस की क्या वक्त की इस गहरी मार को समझ पा रहे थे अंकल?
ताजा रिपोर्ट पर भरोसा करें तो चंद्रमा की सतह एकरंगी नहीं है। उस पर गहरे टेस्ट मैचों का क्रेज खत्म हो रहा
और हल्के रंग वाले वैसे ही सुडौल लहरियादार पैटर्न दिखते हैं, जैसे धरती पर है। अगर पिंक बॉल के जरिए
इसकी पॉप्युलैरिटी लौटती है तो
चलते-चलते...
रेगिस्तानों में या समुद्र तटों पर नजर आते हैं। लूनर स्वर्ल (चंद्र भंवर) नाम की
इन संरचनाओं के बनने का कारण क्या है, इस पर वैज्ञानिकों के बीच बहस जारी इसमें कोई बुराई नहीं है। साइंस मूवीज में इंसान को बक्से में बंद करके सालों तक
है। पृथ्वी जैसा कोई एकीकृत चुबं कीय क्षेत्र चंद्रमा का नहीं है लेकिन चुबं कीय - हिमानी जिंदा रहते दिखाते हैं। अब डॉक्टरों ने भी ऐसा ही कुछ
सुई उसके अलग-अलग इलाकों में काफी कमजोर मगर अलग-अलग चुबं कीय किया है। अमरे िका में डॉक्टरों ने ऐक्सिडेंट में घायल एक
क्षेत्र प्रदर्शित करती है। एक वैज्ञानिक राय यह है कि जहां भी यह चुबं कीय क्षेत्र डे-नाइट टेस्ट एक गिमिक है। व्यक्ति के दिमाग को दस डिग्री सेंटिग्डरे तापमान पर ठंडा
ज्यादा मजबूत है वहां सूरज से सौर वायु के रूप में आने वाले उच्च ऊर्जा वाले क्रिकेट का भला तभी होगा जब करके उसके खून में ठंडी सलाइन डाली। इससे घायल
आवेशित कण छिटक कर परे चले जाते हैं। इससे ये इलाके कम फुकत ं े हैं और टेस्ट मैचों के पारंपरिक रूप को ही की दहे के क्रियाकलाप रुक गए और बाद में उसे बचा
इनका रंग हल्का रह जाता है। इस राय का सही या गलत होना 2024 में ही एक और अनेक : यहां मेरे सिवा कोई नहीं। मुझे अलग-अलग मत समझना। चारों तरफ मैं ही हूं। मैं ही यहां हूं और लोकप्रिय बनाया जाए। लिया गया। यह प्रयोग आगे भी सफल रहा तो किसी फिल्म
पक्का होगा जब अमेरिकी चंद्रयात्री चंद्रमा का सघन चुबं कीय सर्वे करेंग।े अगर वहां भी। मैं ही ऊपर मैं ही नीचे। मैं ही बायें मैं ही दायें। मैं ही आगे मैं ही पीछे। जो फर्क है वह आंखों का धोखा है। आंखों - अरुण की ही तरह इंसान को भी जीवन का नया वरदान मिलगे ा।
राय सही हुई तो खेमे गाड़ने के लिए हल्के रंग वाली जगहें ज्यादा सही रहेंगी। से देखोगे तो छले जाओगे। सच्चे मन से ही मुझे देख पाओगे, समझ पाओगे।
प्रस्तुति: इला
इनके बरक्स गहरे रंग वाले इलाकों में नमी होने की संभावना ज्यादा है, बशर्ते
वे ध्रुवीय दायरे में हों और उन्हें कोई आड़ मिली हुई हो।

गैलरी गीतों से क्रांति लाने का सपना नहीं देखा रीडर्स मेल


‘पल भर ठहर जाओ’, ‘अज दिन चढ़ेया’, ‘मेरी हर मनमानी गानों की शेल्फ लाइफ छोटी होने एनआरसी का विरोध करें राज्य
ममता की कई शक्लें बस तुम तक’ और ऐसे कितने ही लोकप्रिय फिल्मी गाने
लिखने वाले प्रसिद्ध कवि और गीतकार हैं इरशाद कामिल।
के कई कारण हैं। पहला गानों की
बहुतायत, दूसरा मनोरंजन के कई
संपादकीय ‘मत खोलो यह पिटारा’ (22 नवंबर)
पढ़ा। शायद यह इकलौता संपादकीय है जिसने निडर
गले से लगाती है, खाना खिलाती है, दर्द हो तो सहलाती है, मां इतना हिंदी, उर्दू और पंजाबी तीनों भाषाओं का लाड़-प्यार इन्हें कुछ और निष्पक्ष होकर पूरे देश में एनआरसी लागू करने की
प्यार कहां से लाती है? दुनिया भर के तमाम फोटो अवॉर्डों में मां की इस तरह मिला कि ये पूरे अपनेपन और अधिकार से तीनों साधन, तीसरा समय की कमी, घोषणा से अपनी असहमति जताने का साहस किया।
ममता दिखाती तस्वीरें सबसे ऊपर रहती हैं। इस साल घोषित आईपीए भाषाओं के शब्दों को अपने गानों में पिरोते हैं और कहीं भी चौथा अकारण मान लिया जाना कि बकौल संपादकीय, एनआरसी कुल मिलाकर देश को
अवॉर्ड और अगोरा फोटो अवॉर्ड में भी मां की ममता ने बाजी मारी है। असहज नहीं होते। फिल्म फेयर अवॉर्ड, आइफा अवॉर्ड, जी आज के गाने स्तरीय नहीं। किसी व्यर्थ की परेशानी में झोंकने जैसा है। कहावत है कि दूध
देखिए मां की ममता की कुछ चुनिंदा पुरस्कृत तस्वीरें: सिने अवॉर्ड से लेकर न जाने कितने सम्मान-पुरस्कार इन्हें का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। मगर यहां
मिल चुके हैं। हाल ही में अर्चना शर्मा ने इरशाद कामिल से भी युग में सारे गाने स्तरीय नहीं तो असम से भी ये सरकार सबक लेने को तैयार नहीं
लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं महत्वपूर्ण अंश: रहे। मेरे ख्याल से आज हमें गानों है। 6 साल, 13 सौ करोड़ बर्बाद करने और करोड़ों
की शेल्फ लाइफ से ज्यादा मोबाइल लोगों को लाइन में खड़ा करने के बाद भी नतीजा यह
आज के दौर में अच्छा पढ़ने-लिखने और सुनने  की लाइफ पर बात करनी चाहिए निकला कि समाज में ध्रुवीकरण हुआ। ऐसे में लगता तो
आदत पर आप क्या सोचते हैं? यही है कि शायद 2024 की तैयारी हेतु इसका ऐलान
हम इस समय घोषणाओं और उद्घोषणाओं के युग में जी रहे किया गया है। जिस तरह से नए मोटर वाहन अधिनियम
हैं। प्रचार, प्रसार और व्यापार का ये युग हर चीज को इश्तेहारी चर्चा में है आजकल। उसके पीछे की सोच के बारे को अनेकों राज्यों से मानने से इंकार कर दिया है, उसी
और विज्ञापनकारी बना रहा है। ऐसे में अच्छा पढ़ने, लिखने में बताएं। तर्ज पर एनआरसी का भी विरोध होना चाहिए। पश्चिम
और सुनने की कोशिश उतनी ही जरूरी है जितनी ताजा हवा ‘बोलती दीवारें’ आज के जमाने में प्रेम को बंगाल से शुरुआत हो भी चुकी है।

दुलार : स्पेन के एक आइलैंड तेनेरिफे में जब यह चिंपैंजी मां अपने बच्चे को


में सांस लेने की कोशिश। सप्ताह का इंटरव्यू नई नजर से देखने की कोशिश है। ये समझाने
की कोशिश है कि सही अर्थों में प्रेम करना
जंग बहादुर सिंह, ईमेल से

दुलार से गुदगुदी कर रही थी, फटॉग्रफर सैंटियागो लोपेज ने फोटो खींच ली। n फिल्मी गाने लिखते समय आप ज्यादा महत्व इरशाद कामिल कोई आसान काम नहीं है। प्रेम उतना आसान सहज पके सो मीठा होय
किसको देते हैं- किरदार को या संवदे नाओं को? नहीं जितना विज्ञापन कंपनियां बताती हैं कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए तीनों ही पार्टियां-
दरअसल किरदार और संवदे ना दो अलग बातें नहीं हैं। n आज के मटीरियलिस्टिक दौर में अपने गानों से फलां परफ्यूम लगा लिया तो लड़की को प्यार हो शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस बड़े आराम से सोच-
संवदे ना किरदार की होती है, जिसको इस तरह लोगों के सामने आप किस तरह के बदलाव की उम्मीद रखते हैं? गया, फलां चॉकलेट खिला दिया तो लड़की आपकी हो गई। विचार के साथ कदम रख रही हैं, जो कि अच्छी और
लाना होता है कि वह संवदे ना सिर्फ किरदार तक ही सिमटी ना किस हद तक गाने बदलाव का जरिया हो सकते हैं? अपने सही बात है। ऐसा जरूरी भी है क्योंकि यह आगामी
रहे बल्कि लोगों की भी बन जाए।  गीतों से क्रांति लाने का सपना न मैंने कभी देखा है और न n ख्यालों का कोहरा तो कभी असलियत की चट्टानें- पांच वर्ष के शासन का बड़ा मामला है। साफ है कि
कभी देखगूं ा। यह बड़ी किताबी और असंभव बात है। मेरे इन दो विरोधी भावों को कैसे पिरो लेते हैं इतनी खिचड़ी धीरे-धीरे ही पक रही है और कहते भी हैं कि
n हिंदी, उर्दू और पंजाबी भाषा की जो सहज सी गानों का पहला काम है फिल्म के मुताबिक होना और लोगों खब ू सरू ती से? सहज पके सो मीठा होय। अब इतने लंबे-चौड़े मंथन
जुगलबंदी आपके गानों में चलती है, वह कैसे हो के दिलों को छूना। मेरे गानों का आखिरी काम भी यही है, न यहीं तो है सब कुछ। मेरे अंदर ख्याल हैं और बाहर के बाद जो सरकार बनेगी, वह वास्तव में टिकाऊ और
पाती है? कुछ ज्यादा और न कम।  असलियत। इन दोनों के लिए मुझे कहीं और नहीं जाना स्थाई होनी चाहिए वरना यह सारी कसरत बेकार ही
मैं इस बात को ऐसे समझता हूं कि पंजाबी ने एक बच्चे पड़ता। इसी बात को और आसान करूं तो ये कि एक दुनिया होगी। अभी तक देखा गया है कि गठबंधन सरकारें चल
को जनम दिया और उर्दू के साथ खेलने भेज दिया। जब वह n राष्ट्रवाद का मुद्दा हर मंच पर उठने लगा है, इसके मेरे अंदर  बसती  है और एक दुनिया में मैं बसता हू।ं ख्याल  नहीं पाई हैं क्योंकि पार्टियां और नेता राज्य और जनता
प्यार : तस्वीर कनाडा की है। इसे खींचने वाली डोरोता सेनेचल ने बताया कि बच्चा बड़ा हुआ और उसके खाने-कमाने के रास्ते पर चलने बारे में आप क्या कहेंग?े अंदर  की दुनिया की बात है और असलियत  बाहर  की से कहीं ऊपर अपने हितों को ही लेकर चलते हैं और
वहां बच्चों के साथ पोलर बियर मांएं फरवरी की बर्फबारी में खूब दिखती हैं। का टाइम आया तो उर्दू ने उसकी उंगली हिंदी को थमा दी। मैंने इसके बारे में जिगर मुरादाबादी बहुत पहले कह गए हैं दुनिया की।  समय मिलते ही एक दूसरे को पटकी देने की भी सोचते
इन तीनों भाषाओं में जन्म लिया है। ये तीनों मेरी मिट्टी में हैं। हमारी तरफ से, ‘उनका जो काम है वो अहल-ए -सियासत हैं। इस तरह के हालात में राज्य और जनता की ही हानि
जानें/ अपना पैगाम मोहब्बत है जहां तक पहुचं ।े ’  n आपकी पुस्तक ‘काली औरत का ख्वाब’ ने भी होती है जिससे किसी नेता या किसी सरकार का कोई
n आज के गानों की शेल्फ लाइफ इतनी छोटी क्यों लोगों का ध्यान खींचा है... सरोकार ही नहीं दिखाई देता। ऐसे ही रवैये से तो जनता
होती जा रही है? n हिंदी के प्रचार-प्रसार में फिल्मी गानों का बड़ा हाथ ‘काली औरत का ख्वाब’ अपनी तरह की पहली और का इन पार्टियों, नेताओं और चुनाव से निरंतर विश्वास
गानों की शेल्फ लाइफ छोटी होने के कई कारण हैं। पहला है। लेकिन अभी इसमें भी अंग्ज रे ी शब्दों को घुसाया इकलौती किताब है। यह किताब गीत लिखने की प्रक्रिया को घट रहा है। फिर भी भावी सरकार से बेचारी जनता
गानों की बहुतायत, दूसरा मनोरंजन के विभिन्न साधन, तीसरा जा रहा है। क्यों? भी बताती है और मरे  े जीवन के गलियारों में भी झांकती है। काफी आशा जरूर लगाए है।
समय की कमी, चौथा यह अकारण मान लिया जाना कि आज क्योंकि हमारा समाज हिंदी बोलता हुआ भी बातचीत में गीत कैसे लिखा जाता है, किस तरह की बहस होती है आपस वेद मामूरपुर, नरेला
के गाने स्तरीय नहीं। किसी भी युग में सारे के सारे गाने स्तरीय अंग्ज
रे ी घुसा रहा है। किरदार समाज का ही हिस्सा हैं। आज में, क्या ध्यान रखना पड़ता है, क्या लिखना पड़ता है, क्या वर्ष 73, संख्या 279
आर.एन.आई. नं. 510/57© सर्वाधिकार सुरक्षित। लिखित अनुमति के बिना संपूर्ण या आंशिक पुनर्प्रकाशन पूर्णत:
नहीं रहे हैं। दूसरी बात यह कि मेरे ख्याल से आज हमें गानों जो समाज बोल रहा है वही भाषा आज के फिल्मी  गानों की छोड़ना पड़ता है - ये सब है इस किताब में। इसके अलावा प्रतिबंधित। स्वत्वाधिकारी बैनेट, कोलमैन एण्ड कम्पनी लिमिटेड के लिए राजीव यादव द्वारा, 7 बहादुरशाह जफर मार्ग,
नई दिल्ली-110002 से प्रकाशित तथा टाइम्स ऑफ इंडिया प्रेस, साइट IV, औद्योगिक क्षेत्र साहिबाबाद तथा प्लॉट
की शेल्फ लाइफ से ज्यादा मोबाइल लाइफ पर बात करनी है। समाज बदलेगा तो भाषा बदल जाएगी। मेरे कुछ दिन हैं, मेरी कुछ रातें, कुछ उमीदें, कुछ सपने, नंबर 407, तिवारीगंज, फैजाबाद रोड, चिनहट, लखनऊ-227105 और प्लॉट नंबर 7-8, सेक्टर M-11, ट्रांसपोर्ट
हब, इंडस्ट्रियल मॉडल टाऊनशिप, मानेसर, हरियाणा से मुद्रित। फोन : 23302000 फैक्स: 23492047, पंजीकृत
बेकरार : म्यांमार में अपनी कठफोड़वा मां की चोंच में मौजूद बिच्छू देखकर चाहिए। लोगों के मोबाइल में कई गाने सालों साल रहते हैं, कुछ मायूसियां और कुछ खुशियां। आप इस किताब के जरिये कार्यालय : दादाभाई नौरोजी रोड, मुंबई-400001। विमान सेवा शुल्क : 1 रु. प्रति कापी। नेपाल में कुल मूल्य : सोमवार
से शनिवार : नेपाली 5 रु. ; रविवार : नेपाली 6 रु.
उसका बच्चा खाने को मचला। तभी फटॉग्रफर फाई मोई ने क्लिक कर दिया। उसे भी शेल्फ लाइफ ही कहा जाएगा न! n आपका लिखा  नाटक ‘बोलती दीवारें’ भी काफी नजदीक से देख सकते हैं मुझ।े कार्यकारी संपादक (दिल्ली मार्केट) : ए.पी.एस. खाती (इस अंक में प्रकाशित समस्त समाचारों के चयन एवं संपादन
हेतु पी.आर.बी. एक्ट के अन्तर्गत उत्तरदायी)

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