નવગ્રહ મંત્ર બીજસહિત

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श्री नवग्रह स्तोत्र

जपाकुसमु संकाशं काश्यपेयं महदद्यतु तम ्


तमोररंसववपापघ्नं प्रणतोSस्स्म ददवाकरम ्

दधिशंखतुषाराभं ऺीरोदाणवव संभवम ्


नमामम शमशनं सोमं शंभोमक
ुव ु ट भूषणम ्

िरणीगभव संभूतं ववद्युतकांतत समप्रभम ्


कुमारं शस्ततहस्तं तं मंगऱं प्रणाम्यहम ्

वप्रयंगक
ु मऱकाश्यामं रुपेणाप्रततमं बि
ु म्
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुिं प्रणमाम्यहम ्

दे वानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सस्ननभम ्


बुविभूतं त्रत्रऱोकेशं तं नमामम बह
ृ स्पततम ्

दहमकंु द मण
ृ ाऱाभं दै तयानां परमं गुरुम ्
सववशास्त्र प्रवततारं भागववं प्रणमाम्यहम ्

नीऱांजन समाभासं रववपुत्रं यमाग्रजम ्

छायामातंड संभूतं तं नमामम शनैश्चरम ्

अिवकायं महावीयं चंद्राददतय ववमदव नम ्

मसंदहकागभवसंभत
ू ं तं राहुं प्रणमाम्यहम ्

पऱाशपष्ु पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम ्

रौद्रं रौद्रातमकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम ्

મષવી વ્યાશ રચિત સ્તોત્ર.


નવગ્રહમંત્ર બીજ સહહત
સ ૂયય મન્ત્ત્રઃ-

ુ શાંકા઴ાં કાશ્ય઩ેય ાં મષાદ્યુિતમ । તમૉં઩ષાં િ ઩ા઩ાઘ્નાં પ્રણતોઽસ્સ્મ દદળાકરમ્ ॥


હ્ાાં હ્ીં હ્ૌં શઃ જ઩ાકુસમ

ગૃષાણામાદદરાદદત્યો ઱ોકરક્ષણકારકઃ । િળવમસ્થાનશાંભ ૂતાાં ઩ીડાાં ષરતુ તે રિળઃ ॥ શઃ હ્ૌં હ્ીં હ્ાાં ઈિત સ ૂયાયય નમઃ ॥

િન્ત્ર મન્ત્ત્રઃ-

ય ુ ટ ભ ૂવણમ ્ ॥
શ્ાાં શ્ીં શ્ૌં શઃ દિધ઴ાંખતુવારાભાં ક્ષીરોદાણયળ શાંભળમ્ । નમાિમ ઴િ઴નાં શોમાં ઴ાંભોમુક

રોદષણી઴ સુધામ ૂિતતઃ સુધામાત્રઃ સુધા઴નઃ । િળવમસ્થાનશાંભ ૂતાાં ઩ીડાાં ષરતુ તે િળધુઃ॥ શઃ શ્ૌં શ્ીં શ્ાાં ઈિત િન્ત્રરાય નમઃ ॥

માંગ઱ મન્ત્ત્રઃ-

ાં ૂતાં િળદ્યુત્કાાંિત શમપ્રભમ્ । કુમારાં ઴સ્તતષસ્તાં િ માંગ઱ાં પ્રણામ્યષમ્ ॥


ક્ાાં ક્ીં ક્ૌં શઃ ધરણીગભયશભ

ભુિમ઩ુત્રૌ મષાતેજા જગતાાં ભયકૃત્શદદ । વ ૃષ્ટટકૃદ વ ૃષ્ટટષતાાં તાં ઩ીડા ષરતુ તે કુજ ॥ શઃ ક્ૌં ક્ીં ક્ાાં ઈિત ભૌમાય નમઃ

બુધ મન્ત્ત્રઃ-

ુ ચ઱કાશ્યામાં રૂ઩ેણાપ્રિતમાં બુધમ્ । શૌમ્યાં શૌમ્યગુણો઩ેત ાં તાં બુધ ાં પ્રણમામ્યષમ્ ॥


રાાં રીં રૌં શઃ િપ્રયાંગક

ઉત્઩ાતરૂ઩ો જગતાાં િન્ત્ર઩ુત્રો મષાધ ૃિતઃ । સ ૂયય િપ્રયાંકરો િળદ્વન ઩ીડા ષરતુ તે બુધઃ ॥ શઃ રૌં રીં રાાં ઈિત બુધાય નમઃ ॥

ગુરૂ મન્ત્ત્રઃ-

જ્ાાં જ્ીં જ્ૌં શઃ દે ળાનાાંિ ઋવીનાાંિ ગુરૂ ાં કાાંિન શિિભમ્ । બુદ્ધિભ ૂતાં િત્ર઱ોકે઴ ાં તાં નમાિમ બ ૃષસ્઩િતમ ્ ॥

દે ળમન્ત્ત્રી િળ઴ા઱ાક્ષઃ શદા ઱ોકદષતે રતઃ । અનેકિ઴ટય શાંયતુ તાં ઩ીડાાં ષરતુ તે ગુરૂઃ ॥ શઃ જ્ૌં જ્ીં જ્ાાં ઈિત ગુરૂળે નમઃ ॥

શુક્ મન્ત્ત્રઃ-

જ્ાાં જ્ીં જ્ૌં શઃ દષમકુાંદ મ ૃણા઱ાભાં દૈ ત્યાનાાં ઩રમ્ ગુરૂમ્ । શળય઴ાસ્ત્ર પ્રળકતારાં ભાગયળ પ્રણમામ્યમષમ્ ॥

ૃ ઃુ ॥ શઃ જ્ૌં જ્ીં જ્ાાં ઈિત શુક્ાય નમઃ ॥


દૈ ત્યમન્ત્ત્રીં ગુરૂસ્તેવાાં પ્રાણદશ્ચ મષામિતઃ । પ્રભુસ્તથા ગ્રષાણાાં િ ઩ીડાાં ષરતુ તે ભગ

઴નૈશ્ચર મન્ત્ત્રઃ-

઴ાાં ઴ીં ઴ૌં શઃ ની઱ાાંજન શમાભાશાં રિળ઩ુત્ર ાં યમાગ્રજમ્ । છાયામાતાંડ શાંભ ૂતાં તાં નમાિમ ઴નૈશ્ચરમ્ ॥

ુ ો દીધયદેષો િળ઴ા઱ાક્ષઃ િ઴ળિપ્રયઃ । મન્ત્દિાર પ્રશિાત્મા ઩ીડાાં ષરતુ તે ઴િનઃ ॥ શઃ ઴ૌં ઴ીં ઴ાાં ઈિત ઴નૈશ્ચરાય નમઃ ॥
સ ૂયય઩ત્ર

રાહમ
ુ ન્ત્ત્રઃ-

ાં ૂતાં તાં રાહુ ાં પ્રણમામ્યષમ્ ॥


ભ્ાાં ભ્ીં ભ્ૌં શઃ અધયકાયાં મષાળીયાં િન્ત્રાદદત્ય િળમદય નમ્ । િશાદષકાગભયશભ

મષાિ઴રા મષાળતત્રૌ દીધયદાંટરો મષાબ઱ઃ । અતનુશ્ચૌર્ધળય કે઴શ્ચ ઩ીડાાં ષરતુ તે તમઃ ॥ શઃ ભ્ૌં ભ્ીં ભ્ાાં ઈિત રાષળે નમઃ ॥

કેત ુ મન્ત્ત્રઃ-

જ્ાાં જ્ીં જ્ૌં શઃ ઩઱ા઴઩ુટ઩શાંકા઴ાં તારકાગભય મસ્તકમ્ । રૌર ાં રૌરાત્મકાં ઘોરાં તાં કેત ુ ાં પ્રણમામ્યષમ્ ॥

અનેકરૂ઩ગાત્રશ્ચ ઴ત઴ોઽથ શષસ્ત્ર઴ઃ । ઉત્઩ાતરૂ઩ો જગતાાં ઩ીડાાં ષરતુ ત્ િ઴ખી ॥ શઃ જ્ાાં જ્ીં જ્ૌં ઈિત કેતળે નમઃ ॥
यजव
ु ेद में वर्णवत है नवग्रहों के सुंदर मंत्र
नवग्रहों के 9 वैददक मंत्र

वैददक काऱ से ग्रहों की अनक


ु ू ऱता के प्रयास ककए जाते रहे हैं। यजुवेद में 9 ग्रहों की प्रसननता के मऱए उनका आह्वान
ककया गया है । यह मंत्र चमतकारी रूप से प्रभावशाऱी हैं। प्रस्तत
ु है नवग्रहों के मऱए ववऱऺण वैददक मंत्र-
* सूय-व ॐ आ कृष्णेन यजसा वततभानो ननवेशमन्नभत
ृ ॊ भर्त्मं च। हहयण्ममेन सववता यथेना दे वो मानत बुवनानन
ऩश्मन ् (मजु. 33। 43, 34। 31) માંત્ર શાંખ્યા ૭૦૦૦. શમીધ માંદાર
* चनद्र- ॐ इभॊ दे वा असऩर्त्नॊ सुवध्मॊ भहते ऺत्राम भहते ज्मैष््माम भहते जानयाज्मामेन्रस्मेन्द्न्रमाम। इभभभुष्म
ऩुत्रभभुष्मे ऩुत्रभस्मै ववश एष वोऽभी याजा सोभोऽस्भाकॊ ब्राह्भणानाॊ याजा।।
(मजु. 10। 18) માંત્ર શાંખ્યા ૧૨૦૦૦. શમીધ ઩઱ા઴
* भौम- ॐ अन्द्ननभध
ू ात हदव: ककुर्त्ऩनत: ऩथृ थव्मा अमभ ्। अऩाॊ ये ताॊ सस न्द्जन्वनत।। (मज.ु 3।12)
માંત્ર શાંખ્યા ૧૧૦૦૦. શમીધ ખૈર
* बुि- ॐ उद्फुध्मस्वानने प्रनत जागहृ ह र्त्वसभष्टाऩूते सॊ सज
ृ ेधाभमॊ च। अन्द्स्भन्र्त्सधस्थे अध्मुर्त्तयन्द्स्भन ् ववश्वे दे वा
मशभानश्च सीदत।। (मजु. 15।54) માંત્ર શાંખ્યા ૨૧૦૦૦. શમીધ િીડિીડા
* गुरु- ॐ फह
ृ स्ऩते अनत मदमो अहातद् द्मुभद्ववबानत क्रतुभज्जनेषु। मद्दीदमच्छवस ऋतुप्रजात तदस्भासु रववणॊ
धेहह थचत्रभ ्।। (मज.ु 26।3) માંત્ર શાંખ્યા ૧૯૦૦૦. શમીધ ઩ી઩લો
* शक्र
ु - ॐ अन्नार्त्ऩरयस्त्रत
ु ो यसॊ ब्रह्भणा व्मवऩर्त्ऺत्रॊ ऩम: सोभॊ प्रजाऩनत:। ऋतेन सर्त्मसभन्द्न्रमॊ ववऩानॊ शक्र
ु भन्धस
इन्रस्मेन्द्न्रमसभदॊ ऩमोऽभत
ृ ॊ भध।ु । (मजु. 19।75) માંત્ર શાંખ્યા ૨૬૦૦૦. શમીધ ગ ૂ઱ર
* शतन- ॐ शॊ नो दे वीयसबष्टम आऩो बवन्तु ऩीतमे। शॊ मोयसब स्त्रवन्तु न:।। (मजु. 36।12) માંત્ર શાંખ્યા ૨૩૦૦૦.
શમીધ ઴મી
* राहु- ॐ कमा नन्द्श्चत्र आ बुवदत
ू ी सदावध
ृ : सखा। कमा शथचष्ठमा वत
ृ ा।। (मजु. 36।4) માંત્ર શાંખ્યા ૧૮૦૦૦.
શમીધ દૂ ળાય
* केत-ु ॐ केतुॊ कृण्वन्नकेतवे ऩेशो भमात अऩेशसे। सभुषनियजामथा:।। (मजु. 29।37) માંત્ર શાંખ્યા ૧૮૦૦૦.
શમીધ કુ઴ા
सन्द्ृ ष्ट को सुचारू रूऩ से चराने हे तु ऩयभेश्वय ने सम
ू ातहद नवग्रहों को इसकी न्द्जम्भेदायी सौंऩी। मह सबी ग्रह सॊसाय
भें न्द्स्थत सबी जड़-चेतन के कभो के अनुसाय उसके सरए परा-पर की व्मवस्था कयते हैं। आज कर ज्मोनतष
जैसी ऩववत्र ववद्मा की आड़ भें कुछ ज्मोनतषी ग्रहों के नाभ ऩे रोगो को बमबीत कय के अऩनी दक
ु ानदायी चरा
यहे है मह ठीक नहीॊ है । कोई बी ग्रह हभाया शत्रु नहीॊ होता फन्द्कक वह तो हभाये द्वाया ककमे गए अच्छे -फुये कभों
के अनुरूऩ तथा हभाये प्रायब्ध के रेखा-जोखा के अनुसाय फस हभें पर प्रदान कयता है । न्द्जस तयह से हभ यात-
हदन अऩनी न्द्जम्भेदारयमों को ननबा यहे हैं वैसे ही वह बी केवर अऩनी ड्मूटी ननबा यहे होते हैं। औय हभाये
सरए जो बी न्माम सॊगत होता है वही हभें प्रदान कयते हैं । कपय उनसे बमबीत कयाना मा उन्हें फयु ा-बरा
कहना कौन सा ज्मोनतष है ।

रेककन.. हभ आऩ सबी जानते हैं कक एक चीज ऐसी है न्द्जससे हभ रुष्ट ग्रह एवॊ दे वी-दे वताओॊ को बी भना
सकते हैं ? औय वो है प्राथतना जी हाॊ प्राथतना, माचना, स्तुनत (गुणगान) भें एक ऐसी शन्द्तत होती है न्द्जससे
ऩयभवऩता ऩयभेश्वय को बी फस भें ककमा जा सकता है । कपय बरा हभाये सरए रुष्ट ग्रह-दे व हभायी श्रद्धा-बन्द्तत,
ऩूजा-ऩाठ, भन्त्र-जाऩ एवॊ व्रत-स्तुनत से तमों प्रसन्न न होंगे । हभाये आहद धभतवेर्त्ताओॊ, हभाये ऩूवज
त ों, हभाये ऋवष-
भुननमों ने हभें ढे यों भन्त्र, मॊत्र, स्त्रोत, स्तुनत, कवच, ऩाठ अहद प्रदान ककमा है । न्द्जनके श्रवण, ऩाठ एवॊ स्थाऩन-
ऩूजन से हभ अऩने कुर दे वता, नवग्रह दे वता, इष्टदे वता तथा ऩयभवऩता ऩयभेश्वय को बी प्रसन्न कय के उनसे
अऩने सरए सुख-सौबानम एवॊ भोऺ-भुन्द्तत की काभना ऩूणत कय सकते हैं। तो आइमे जानते हैं कक अऩने प्रनतकूर
चर यहे सूमातहद नव ग्रहों को ककस भन्त्र अथवा उऩाम द्वाया अऩने अनुकुर फनामा जा सकता है औय उनकी
कृऩा प्राप्त की जा सकती है । मह ध्मान दे ने मोनम फात है कक इन उऩामों के साथ-साथ हभें अऩने कभत बी
ऩववत्र यखने चाहहए तबी हभ ऩये शाननमों से ननऩट सकते है । कहते है न कक जैसे कभत कयोगे वैसा ही पर
ऩाओगे। कहते है की कभत ही बानम का ननभातण कयते है । औय कभत ही हभाये दब
ु ातनम को हभाये शयीय
औय हभाये घय भें प्रवेश कयवाते हैं। नवग्रहों के उऩाम तमा हैं ? उऩाम ककस तयह से ककमे जाते है ? ग्रहों को
शाॊत कैसे ककमा जता है ? तमों जरुयी है उऩाम ? भेये वप्रम ऩाठकगण न्द्जतना बी हभें ( ज्मोनतषाचामत ऩॊ.
उदमप्रकाश शभात )इसका ऻान है उसके अनस
ु ाय नवग्रहों के ब्रत, दान, भन्त्र, कभातहद को सरखने का प्रमर्त्न कय यहे
हैं। ककसी बी त्रहु ट के सरए ऩहरे ही छभा प्राथी हैं। सॊऩण
ू त कोई नहीॊ हो सकता बर
ू सॊबव है ।
(1) – सूमत दे व के भन्त्र एवॊ उऩाम

ऩौयाणणक भन्त्र

ॐ जऩाकुसुभसॊकाशॊ काश्मऩेमॊ भहाद्मुनतभ ्।

तभोऽरयॊ सवतऩाऩघ्नॊ प्रणतोऽन्द्स्भ हदवाकयभ ्।।

वैहदक भन्त्र

ऊॉ आ कृष्णेन यजसा वततभानो ननवेशमन्नभत


ृ ॊ भर्त्मं च।हहयण्ममेन सववता यथेना दे वो मानत बुवनानन ऩश्मन ्।।

फीज भन्त्र

ऊॉ ह्ाॊ ह्ीॊ ह्ौं स् सूमातम नभ्।।

जऩ सॊख्मा – 7 (सात) हजाय

सभम – यवववाय प्रात् सूमोदम कार


ग्रह ऩूजा भॊत्र – ऊॉ ह्ीॊ सूमातम नभ्।।

मह भॊत्र फोरते हुए सूमत को ऩूजा साभग्री सभवऩतत कयें । ताॊफे के रोटे से अघत दें ।
दान

रार गाम का दान अगय फछड़े सभेत हो तो उर्त्तभ, नारयमर, गेहूॊ, रार चॊदन, रार वस्त्र, गुड़, सोना, घी भाणणतम,
ताॊफे के फततन, रार यॊ ग से फनी सभठाइमाॊ, औय रार पूर (दान के ववषम भें शास्त्र कहता है कक दान का पर
उर्त्तभ तबी होता है जफ मह शुब सभम भें सुऩात्र को हदमा जाए। सूमत से सम्फन्द्न्धत वस्तुओॊ का दान यवववाय
के हदन दोऩहय भें ४० से ५० वषत के व्मन्द्तत को दे ना चाहहए)

व्रत

सम
ू त ग्रह की शाॊनत के सरए यवववाय के हदन व्रत कयना चाहहए, गाम को गेहुॊ औय गड़
ु सभराकय णखराना चाहहए।

* ककसी ब्राह्भण अथवा गयीफ व्मन्द्तत को गुड़ का खीय णखराने से बी सूमत ग्रह के ववऩयीत प्रबाव भें कभी आती
है ।* अगय आऩकी कुण्डरी भें सूमत कभजोय है तो आऩको अऩने वऩता एवॊ अन्म फुजुगों की सेवा कयनी चाहहए
इससे सूमत दे व प्रसन्न होते हैं।

* प्रात: उठकय सूमत नभस्काय कयने से बी सूमत की ववऩयीत दशा से आऩको याहत सभर सकती है ।

* सूमत को फरी फनाने के सरए व्मन्द्तत को प्रात्कार सूमोदम के सभम उठकय रार ऩुष्ऩ वारे ऩौधों एवॊ वऺ
ृ ों
को जर से सीॊचना चाहहए।

* यात्रत्र भें ताॉफे के ऩात्र भें जर बयकय ससयहाने यख दें तथा दस


ू ये हदन प्रात्कार उस जर को ऩीना चाहहए।

* रार गाम को यवववाय के हदन दोऩहय के सभम दोनों हाथों भें गेहूॉ बयकय णखराने चाहहए।

* ककसी बी भहर्त्र्त्वऩूणत कामत ऩय जाते सभम घय से भीठी वस्तु खाकय ननकरना चाहहए।

* हाथ भें भोरी (करावा) छ् फाय रऩेटकय फाॉधना चाहहए।* रार चन्दन को नघसकय स्नान के जर भें डारना
चाहहए।* सम
ू त के दष्ु प्रबाव ननवायण के सरए ककए जा यहे टोटकों हे तु यवववाय का हदन, सम
ू त के नऺत्र (कृन्द्र्त्तका,
उर्त्तया-पाकगन
ु ी तथा उर्त्तयाषाढा) तथा सम
ू त की होया भें अथधक शब
ु होते हैं।

सूमत की अशुब न्द्स्थनत भें तमा न कयें ?

* कभजोय अथवा नीच का होकय ऩये शान कय यहा है अथवा ककसी कायण सम
ू त की दशा सही नहीॊ चर यही है
तो आऩको भाणणतम नहीॊ धायण कयना चाहहए।
* गुड़ का सेवन कभ कयना चाहहए, इसके अरावा आऩको इस सभम ताॊफा धायण नहीॊ कयना चाहहए अन्मथा
इससे सम्फन्द्न्धत ऺेत्र भें आऩको औय बी ऩये शानी भहसूस हो सकती है ।

(2) – चन्र दे व के भन्त्र एवॊ उऩाम

ऩौयाणणक भन्त्र
ॐ दथधशॊखतुषायाबॊ ऺीयोदाणतव सॊबवभ ्।

नभासभ शसशनॊ सोभॊ शम्बोभक


ुत ु ट बष
ू णभ ्।।

वैहदक भन्त्र

ऊॉ इभॊ दे वा असऩर्त्न सव
ु ध्वॊ भहते ऺत्राम भहते ज्मेष्ठमाम भहते

जानयाज्मामेन्रस्मेन्द्न्रमाम इभभभुष्म ऩुत्रभभुष्मै

ऩुत्रभस्मै ववश एष वोऽभी याजा सोभोऽस्भाॊकॊ ब्राह्भणानाॊ याजा।।

फीज भॊत्र

ऊॉ श्राॊ श्रीॊ श्रौं स् चॊराम नभ्।।


जऩ सॊख्मा – 11000

सभम – सोभवाय चन्र की होया भें

ग्रह ऩूजा भॊत्र–

“ऊॉ ऐॊ तरी सोभाम नभ्” मह भॊत्र फोरते हुए चॊरभा का ऩूजन कयें ।
दान

सफ़ेद यॊ ग की गाम ककसी ब्राह्भण को दें तो फहोत राब है ब्राह्भण गाम का दध


ू वऩमेगा औय आऩ को दआ
ु एॊ
दे गा। चावर, सपेद चन्दन, शॊख, कऩयू , घी, दही, चीनी, सभश्री, खीय, भोती, सफ़ेद वस्त्र औय चाॉदी मा चाॊदी के फततन।
अगय मह दान ऩणू णतभा को ककमा जामे तो राब ज्मादा सभरता है ।

ब्रत औय कॊु डरी भें चन्र के शुब होकय कभजोय होने की न्द्स्थनत भें _
* सोरह सोभवाय का रगाताय व्रत कयना चाहहए तथा कन्माओॊ को खीय णखराना चाहहए।

* अऩने चायऩाई के चायो ऩाए भें चाॊदी की कीर ठुकवानी चाहहए।

* गाम को गूॊथा हुआ आटा णखराना चाहहए तथा कौए को बात औय चीनी सभराकय दे ना चाहहए।

* ककसी ब्राह्भण अथवा गयीफ व्मन्द्तत को दध


ू भें फना हुआ खीय णखराना चाहहए।

* सेवा धभत से बी चन्रभा की दशा भें सुधाय सॊबव है , सेवा धभत से आऩ चन्रभा की दशा भें सुधाय कयना चाहते
है तो इसके सरए आऩको भाता औय भाता सभान भहहरा एवॊ वद्ध
ृ भहहराओॊ की सेवा कयनी चाहहए।

* चाॉदी का कड़ा, चाॉदी की चैन, मा चाॉदी की अॊगूठी भें सच्चा भोती ऩहनना चाहहए।
चन्रभा के कभजोय अथवा ऩीडड़त होने ऩय_

* व्मन्द्तत को प्रनतहदन दध
ू नहीॊ ऩीना चाहहए।

* स्वेत वस्त्र धायण नहीॊ कयना चाहहए।

* सग
ु ॊध नहीॊ रगाना चाहहए औय भोती अथवा भन
ू स्टोन नहीॊ ऩहनना चाहहए।

* फहते हुए ऩानी भें चाॉदी के टुकड़े मा ससतके, सफ़ेद पूर, मा दध


ू प्रवाहहत कयने से चॊरभा की अशुबता दयू होती
है ।

* चाॉदी के फततन भें कच्ची रस्सी भें थोड़ा जर व थोड़ा दध


ू सभराकय सशवसरॊग ऩे चढाने से चॊरभा अऩना शब

पर दे ता है
(3) – भॊगर दे व के भन्त्र एवॊ उऩाम
ऩौयाणणक भन्त्र_

ॐ धयणीगबतसॊबूतॊ ववद्मुर्त्काॊनत सभप्रबभ ् ।

कुभायॊ शन्द्ततहस्तॊ तॊ भङ्गरॊ प्रणभाम्महभ ् ।।


वैहदक भन्त्र_

ऊॉ अन्द्ननभध
ूत ात हदव् ककुर्त्ऩनत् ऩथृ थव्मा अमभ।

अऩाॊ ये ता सस न्द्जन्वनत।।
फीज भन्त्र_

ऊॉ क्राॊ क्रीॊ क्रौं स् बौभाम नभ्।।

जऩ सॊख्मा – 10000

सभम – भॊगरवाय को सम
ू त की होया भें

ग्रह ऩूजा भॊत्र – ऊॉ बोभ बोभाम नभ्

मह भॊत्र फोरते हुए भॊगर प्रनतभा अथवा मॊत्र का ऩज


ू न कयें ।
दान_
व्मन्द्तत को रार यॊ ग का फैर दान कयना चाहहए, गेहूॊ, भसूयकी दार, गुड़, रार यॊ ग का वस्त्र, सोना, ताॊफे के फततन,
फताशा, भीठी चऩाती, गुड़ ननसभतत ये वडड़माॊ दान दे ना चाहहए।

भॊगरवाय के हदन व्रत कयना चाहहए औय ब्राह्भण अथवा ककसी गयीफ व्मन्द्तत को बय ऩेट बोजन कयाना चाहहए।
भॊगर ऩीडड़त व्मन्द्तत भें धैमत की कभी होती है अत: धैमत फनामे यखने का अभ्मास कयना चाहहए एवॊ छोटे बाई
फहनों का ख्मार यखना चाहहए।
व्रत_

व्रत कयने से बी ग्रह का प्रकोऩ कभ हो जाता है । तमों कक जो वाय न्द्जस ग्रह से प्रबाववत होता है उसी वाय का
अगय ब्रत ककमा जामे तो उस ग्रह का प्रकोऩ कभ हो जाता है ।

* अगय भॊगर कॊु डरी भें शुब है तो सोने अथवा ताॊफे की अॊगूठी भें भूॊगा नग धायण कयना चाहहए।

* रार कऩड़े भें सौंप फाॉधकय अऩने शमनकऺ भें यखनी चाहहए।

* जातक जफ बी अऩना घय फनवामे तो उसे घय भें रार ऩर्त्थय अवश्म रगवाना चाहहए।

* रार वस्त्र रे कय उसभें दो भठ्ठ


ु ी भसयू की दार फाॉधकय भॊगरवाय के हदन ककसी सबखायी को दान कयनी
चाहहए।

* भॊगरवाय के हदन हनुभानजी के चयण से ससन्दयू रे कय उसका टीका भाथे ऩय रगाना चाहहए।

फॊदयों को गुड़ औय चने णखराने चाहहए।

* अगय आऩ ऩयाक्रभ से सम्फॊथधत कामत कयते हैं जैसे ऩुसरस-सेना की नौकयी, कक्रकेट, पुटफार अथवा अन्म खेरों
भें रार रुभार अथवा रार टोऩी का स्तेभार कय सकते हैं। इससे भॊगर भजफूत होगा तथा साहस भें ववृ द्ध
होगी।
भॊगर के नीच अथवा अशुब न्द्स्थनत भें होने ऩय_
* नारयमर को नतरक रगाकय रार कऩडे भें रऩेटकय फहते हुए जर भें 3 भॊगरवाय प्रवाहहत कयने से अशब

भॊगर का प्रबाव कभ हो जाता है ।

* अगय आऩ का भॊगर अशुब है तो आऩ को रार वस्त्र नहीॊ धायण कयना चाहहए।

* भॊगरवाय को भहदया, भाॊस-भछरी का सेवन नहीॊ कयना चाहहए फन्द्कक भॊगर भन्त्र, हनभ
ु ान चारीसा, हनभ
ु ान
कवच, फजयॊ गफाण आहद का ऩाठ कयना चाहहए न्द्जससे भॊगर दे व की कृऩा प्राप्त होती है ।

* न्द्जस कन्मा की कॊु डरी भें भाॊगसरक मोग की वजह से शादी भें फाधा आती है उनको सात भॊगरवाय का
रगाताय ब्रत कयना चाहहए।
(4) – फुध दे व के भन्त्र एवॊ उऩाम
ऩौयाणणक भन्त्र_

ॐ वप्रमङ्गसु रकाश्माभॊ रूऩेणाप्रनतभॊ फध


ु भ ्।

सौम्मॊ सौम्मगुणोऩेतॊ तॊ फुधॊ प्रणभाम्महभ ्।।

वैहदक भन्त्र_

ऊॉ उदफुध्मस्वानने प्रनत जागहृ ह र्त्वसभष्टाऩूते स सज


ृ ेथाभमॊ च

अन्द्स्भन्र्त्सधस्थे अध्मर्त्ु तयन्द्स्भन ् ववश्वेदेवा मजभानश्च सीदत।।


फीज भॊत्र_

ऊॉ ब्राॊ ब्रीॊ ब्रौं स् फुधाम नभ्।।

जऩ सॊख्मा – 9000

सभम_ शुतर ऩऺ भें फुध की होया भें

ग्रह ऩूजा भॊत्र_ ऊॉ ऐॊ स्त्रीॊ श्रीॊ फुधाम नभ्।।

मह भॊत्र फोरते हुए फुध प्रनतभा अथवा फुध मॊत्र का ऩूजन कयें ।
दान_
फुध ग्रह हये यॊ ग का कायक होता है अगय शयीय भें हया यॊ ग अशुब है मा ज्मादा फरवान है तो इसके दष्ु ऩरयणाभ
हो सकते हैं ऐसे भें हये यॊ ग को शयीय भें सॊतुसरत कयने के सरए हयी चीजें का दान कयना चाहहए। हया वस्त्र,
हयी सब्जी, भूॊग की दार, हये पर, गन्ना, हयी इरामची, काॊसे के फततन, फुध यर्त्न ऩन्ना, हया कऩडा, हयी सन्द्ब्जमाॊ, हये
यॊ ग का कदद,ू दध
ु ारू फकयी मह सफ ककसी ऩढने वारे गयीफ ववद्माथी को दे ना चाहहए । हये यॊ ग की चड़
ू ी औय
वस्त्र का दान ककन्नयो को दे ना बी इस ग्रह दशा भें श्रेष्ठ होता है । फुध ग्रह से सम्फन्द्न्धत वस्तुओॊ का दान बी
ग्रह की ऩीड़ा भें कभी रा सकती है . इन वस्तुओॊ के दान के सरए ज्मोनतषशास्त्र भें फुधवाय के हदन दोऩहय का
सभम उऩमत
ु त भाना गमा है ।
व्रत_

फुध की दशा भें सुधाय हे तु फुधवाय के हदन व्रत यखना चाहहए।

* घय भें हये यॊ ग के ऩयदे रगवाने चाहहए।

* गाम को हयी घास औय हयी ऩन्द्र्त्तमाॊ णखरानी चाहहए।

* ब्राह्भणों को दध
ू भें ऩकाकय खीय बोजन कयना चाहहए।

* फुध की दशा भें सुधाय के सरए ववष्णु सहस्रनाभ का जाऩ बी ककमाणकायी कहा गमा है ।

* फुधवाय के हदन सुरु कय के 108 हदन रगाताय हयी घास ऩय नॊगे ऩाॊव चरने से फुध से होने वारी फीभारयमाॊ व ्
चभत योग दयू हो जाते हैं।

* यवववाय को छोड़कय अन्म हदन ननमसभत तुरसी भें जर दे ने से फुध की दशा भें सुधाय होता है ।

* अनाथों एवॊ गयीफ छात्रों की सहामता कयने से फुध ग्रह से ऩीडड़त व्मन्द्ततमों को राब सभरता है ।

भौसी, फहन, चाची फेटी के प्रनत अच्छा व्मवहाय फुध ग्रह की दशा से ऩीडड़त व्मन्द्तत के सरए ककमाणकायी होता
है ।

* अऩने घय भें तुरसी का ऩौधा अवश्म रगाना चाहहए तथा ननयन्तय उसकी दे खबार कयनी चाहहए। फुधवाय के
हदन तुरसी ऩत्र का सेवन कयना चाहहए।

* हयी सन्द्ब्जमाॉ एवॊ हया चाया गाम को णखराना चाहहए।

* फुधवाय के हदन गणेशजी के भॊहदय भें भॉग


ू के रड्डुओॊ का बोग रगाएॉ तथा फच्चों को फाॉटें।
फुध के नीच अथवा अशुब न्द्स्थनत भें होने ऩय_
* ज्मादा से ज्मादा फुध का दान कयना चाहहए।
* सात दाने हये यॊ ग की सफूत भूॊग, हया ऩर्त्थय, काॊसे का गोर टुकड़ा मे सबी चीजें हये यॊ ग के वस्त्र भें रऩेटकय
फुधवाय को फहते ऩानी भें फहाने से फुध का प्रकोऩ कभ होता है । मह सात फध
ु वाय कयना चाहहए।

* दग
ु ात सप्तसी का ऩाठ, ववष्णु उऩासना, तथा बगवान ववघ्नहतात गणऩनत दे व का ऩूजन-दशतन कयने से फुध का
अशुब प्रबाव कभ हो जाता है ।

(5) – गुरु (फह


ृ स्ऩनत) दे व के भन्त्र एवॊ उऩाम
ऩौयाणणक भन्त्र_

ॐ दे वानाॊ च ऋषीणाॊ च गुरूॊ काञ्चनसॊन्द्न्नबभ ्।

फवु द्धबत
ू ॊ त्रत्ररोकेशॊ तॊ नभासभ फह
ृ स्ऩनतभ ्।
वैहदक भन्त्र_

ऊॉ फह
ृ स्ऩते अनत मदमो अहद् द्मुभद्ववबानत क्रतुभज्जनेषु।

मदीदमच्छवस ऋत प्रजात। तदस्भासु रववणॊ धेहह थचत्रभ ्।।


फीज भॊत्र_

ऊॉ ग्राॊ ग्रीॊ ग्रौं स् गुरुवे नभ्

जऩ सॊख्मा_ 19000
सभम_ शुतर ऩऺ भें गुरु की होया भें

ग्रह ऩूजा भॊत्र_ “ॐ फह


ृ भ फह
ृ स्ऩतमे नभ्”

मह भॊत्र फोरते हुए गुरु प्रनतभा अथवा गुरु मॊत्र का ऩूजन कयें ।

दान_

फह
ृ स्ऩनत के उऩाम हे तु न्द्जन वस्तुओॊ का दान कयना चाहहए उनभें चने की दार, केरे, ऩीरे वस्त्र, ऩीरे चावर,
केशय, ऩुखयाज, शहद, ऩीरे पूर-पर,वऩरी सभठाईमाॊ, हकदी, काॊसे के फततन, घोडा, घी, फेसन के रड्डू, कोई बी धभत
ग्रॊथ, सोना दान कयना सख
ु कायी होता है ।दान कयते सभम आऩको ध्मान यखना चाहहए कक हदन फह
ृ स्ऩनतवाय हो
औय सफ
ु ह का सभम हो, दान ककसी ब्राह्भण, गरू
ु अथवा ऩयु ोहहत को दे ना ववशेष परदामक होता है ।
व्रत_

फह
ृ स्ऩनतवाय के हदन व्रत यखना चाहहए।

* गरु
ु वाय को केसय का नतरक रगाने से फह
ृ स्ऩनत भजफत
ू हो जाता है । अगय 27 गरु
ु वाय रगाताय नतरक रगामा
जाता है तो फह
ृ स्ऩनत का शब
ु प्रबाव फढ जाता है ।

* कभजोय फह
ृ स्ऩनत वारे व्मन्द्ततमों को केरा औय ऩीरे यॊ ग की सभठाईमाॊ गयीफों।

* ऩॊक्षऺमों ववशेषकय कौओॊ को दे ना चाहहए।

* ब्राह्भणों एवॊ गयीफों को दही चावर णखराना चाहहए।

* यवववाय औय फह
ृ स्ऩनतवाय को छोड़कय अन्म सबी हदन ऩीऩर के जड़ को जर से ससॊचना चाहहए।

* गुरू, ऩुयोहहत औय सशऺकों भें फह


ृ स्ऩनत का ननवास होता है अत: इनकी सेवा से बी फह
ृ स्ऩनत के दष्ु प्रबाव भें
कभी आती है . केरा का सेवन औय सोने वारे कभड़े भें केरा यखने से फह
ृ स्ऩनत से ऩीडड़त व्मन्द्ततमों की
कहठनाई फढ जाती है अत: इनसे फचना चाहहए।

* ऩुखयाज नग सोने की अॊगूठी भें सीधे हाथ की तजतनी उॊ गरी भें धायण कयने से फह
ृ स्ऩनत का प्रबाव फढ जाता
है ।
गुरु के नीच अथवा अशुब होने की न्द्स्थनत भें _

व्मन्द्तत को अऩने भाता-वऩता, गरु


ु जन एवॊ अन्म ऩज
ू नीम व्मन्द्ततमों के प्रनत आदय बाव यखना चाहहए तथा
भहर्त्र्त्वऩण
ू त सभमों ऩय इनका चयण स्ऩशत कय आसशवातद रेना चाहहए।
* फादाभ व ् नारयमर ऩीरे कऩडे भें रऩेटकय फहते ऩानी भें कभ से कभ 7 गरु
ु वाय फहाना चाहहए।

* ऐसे व्मन्द्तत को भन्द्न्दय भें मा ककसी धभत स्थर ऩय नन्शुकक सेवा कयनी चाहहए तथा कोई धभत ग्रन्थ ककसी
फुजुगत ब्राह्भण को दे ना चाहहए ।

* गुरुवाय के हदन भन्द्न्दय भें केरे के ऩेड़ के सम्भुख गौघत


ृ का दीऩक जराना चाहहए।

* गुरुवाय के हदन आटे के रोमी भें चने की दार, गुड़ एवॊ ऩीसी हकदी डारकय गाम को णखरानी चाहहए।

* घय भें ऩीरे सूयजभुखी व ऩीरे गें दे के ऩौधे रगाने चाहहए इससे दे व गुरु फह
ृ स्ऩनत के शुब पर प्राप्त होते हैं।
_गरु
ु के दष्ु प्रबाव ननवायण के सरए ककए जा यहे उऩामों हे तु गरु
ु वाय का हदन, शत
ु र ऩऺ, गरु
ु के नऺत्र ऩन
ु वतस,ु
ववशाखा, ऩव
ू -त बारऩद तथा गरु
ु की होया भें अथधक शब
ु होते हैं।

(6) – शक्र
ु दे व के भन्त्र एवॊ उऩाम
इनकी प्रसन्नता हे तु बगवती रक्ष्भी की ऩज
ू ा कयनी चाहहए।

ऩौयाणणक भन्त्र_

ॐ हहभकुन्द भण
ृ ाराबॊ दै र्त्मानाॊ ऩयभॊ गरू
ु भ ्।

सवतशास्त्र प्रवततायॊ बागतवॊ प्रणभाम्महभ ्।।


वैहदक भन्त्र_
ऊॉ अन्नार्त्ऩरयस्रुतो यसॊ ब्रह्भणा व्मवऩफत ् ऺत्रॊ ऩम् सोभॊ प्रजाऩनत्।

ऋतेन सर्त्मभ ् इन्द्न्रमॊ ववऩान शुक्रभन्धस इन्रस्मेन्द्न्रमसभदॊ ऩमोऽभत


ृ ॊ भध।ु ।
फीज भॊत्र_

ऊॉ राॊ रीॊ रौं स् शुक्राम नभ्

जऩ सॊख्मा_ 16000

सभम_ शुतर ऩऺ, शुक्रवाय एवॊ शुक्र की ही होया।

ग्रह ऩूजा भॊत्र_ ऊॉ ह्ीॊ श्री शुक्राम नभ्

मह भॊत्र फोरते हुए शक्र


ु मॊत्र का ऩज
ू न कयें ।
दान_

ये शभी कऩड़े, भराई, भतखन, दही, घी, सुगॊध, चीनी, खाद्म तेर, शैम्ऩू, ऩावडय, चावर, कऩूय, सपेद घोडा, सपेद
चन्दन आहद का दान शुक्र ग्रह की ववऩयीत दशा भें सुधाय राता है । शुक्र से सम्फन्द्न्धत यर्त्न (हहया) का दान बी
राबप्रद होता है । इन वस्तुओॊ का दान शुक्रवाय के हदन सॊध्मा कार भें ककसी मुवती को दे ना उर्त्तभ यहता है ।
व्रत_

* शुक्र ग्रह से सम्फन्द्न्धत ऺेत्रभें आऩको ऩये शानी आ यही है तो इसके सरए आऩ शुक्रवाय के हदन व्रत यखें ,
ब्राह्भणों एवॊ गयीफों को घी बात णखराएॊ, अऩने बोजन भें से एक हहस्सा ननकारकय गाम को णखराएॊ।

* सीधे हाॉथ की अनासभका उॊ गरी भें हीया सोने मा प्रेहटनभ धातु भें जड़वाकय ऩहनना चाहहए।

* हभेसा चाॉदी की गोरी फनाकय अऩने ऩसत भें यखना चाहहए मा गरे भें चाॉदी भें ओऩर नग का रॉकेट
फनवाकय धायण कयना चाहहए।

* गॊदे नारे भें नीरा पूर डारने से शक्र


ु अच्छा पर दे ता है ।

* शुक्रवाय को उडद की दार भें घी डार कय बोजन कयने से शुक्र भजफूत हो जाता है ।

* ऩयफ्मभ
ू , इत्र, डडजाइनय कऩडे, क्रीभ, ऩावडय का प्रमोग कयने से बी शक्र
ु फरवान होता है ।
शक्र
ु के नीच अथवा अशुब होने की न्द्स्थनत भें _

* शुक्र से सम्फन्द्न्धत वस्तुओॊ जैसे सुगॊध, घी औय सुगॊथधत तेर का प्रमोग नहीॊ कयना चाहहए।वस्त्रों के चन
ु ाव भें
अथधक ववचाय नहीॊ कयें ।
* कारी चीॊहटमों को चीनी णखरानी चाहहए।

* शुक्रवाय के हदन सपेद गाम को आटा णखराना चाहहए।

*ककसी काने व्मन्द्तत को सपेद वस्त्र एवॊ सपेद सभष्ठान्न का दान कयना चाहहए।

* ककसी कन्मा के वववाह भें कन्मादान का अवसय सभरे तो अवश्म स्वीकायना चाहहए।

* सपेद यॊ ग के ऩर्त्थय ऩे चन्दन का नतरक रगाकय फहते हुए ऩानी भें फहाने से शुक्र का अशुब प्रबाव कभ हो
जाता है ।

(7) सम
ू ऩ
त त्र
ु शनन दे व के भन्त्र एवॊ उऩाम

शनन की अनुकूरता के सरए बैयव दे व की ऩूजा कयनी चाहहए।

ऩौयाणणक भन्त्र_

ॐ नीराञ्जन सभाबासॊ यववऩुत्रॊ मभाग्रजभ ्।


छामाभाततण्ड सॊबूतॊ तॊ नभासभ शनैश्चयभ ्।।
वैहदक भन्त्र_

ऊॉ शॊ नो दे वीयसबष्टम आऩो बवन्तु ऩीतमे।

शॊ मोयसबस्रवन्तु न् ।। ऊॉ शनैश्चयाम नभ्।।


फीज भॊत्र_

ऊॉ प्राॊ प्रीॊ प्रौं स् शनैश्चयाम नभ्।।

जऩ सॊख्मा_ 23000

सभम_ सॊध्मा कार, शुतर ऩऺ, शनन की होया।

ग्रह ऩज
ू ा भॊत्र_ ऊॉ ऐॊ ह्ीॊ श्रीॊ शनैश्चयाम नभ्।।

मह भॊत्र फोरते हुए शनन मॊत्र का ऩूजन कयें ।


दान_

शनन कारे यॊ ग कायक होता है । इन्हें दान भें कारा वस्त्र, नीरभ, कारी गाम, जत
ू े, दवाइमाॊ, कारी बैंस, सयसो का
तेर, नारयमर, ननरे पूर, कारे उड़द की दार, कारा नतर, चभड़े का जत
ू ा, नभक, रोहा, खेती मोनम बसू भ दे नी
चाहहए। शनन ग्रह की शाॊनत के सरए दान दे ते सभम ध्मान यखें कक सॊध्मा कार हो औय शननवाय का हदन हो
तथा दान प्राप्त कयने वारा व्मन्द्तत ग़यीफ औय वद्ध
ृ हो।
व्रत_

शनन के प्रकोऩ से फचने हे तु व्मन्द्तत को शननवाय के हदन एवॊ शुक्रवाय के हदन व्रत यखना चाहहए।

* शननवाय को ऩॊचधातु की अॊगूठी भें नीरभ यर्त्न को सीधे हाथ की भध्मभा उॊ गरी भें धायण कयने से शनन
फरवान हो जाते हैं, कारे घोड़े की नार मा नाव के काॊटे से फनी भुॊदयी मा छकरा धायण कयना बी राबप्रद होता
है ।

आॉखों भें कारा सयु भा रगाने से बी शनन फरवान होते हैं।

* सयसो के तेर से 27 शननवाय शयीय की भासरश कयवाने से बी शनन भजफुत हो जाते हैं।
शनन के नीच अथवा अशुब होने की न्द्स्थनत भें _
* रोहे के फततन भें दही चावर औय नभक सभराकय सबखारयमों औय कौओॊ को दे ना चाहहए।

* योटी ऩय नभक औय सयसों तेर रगाकय कौआ को दे ना चाहहए।


* नतर औय चावर ऩकाकय ब्राह्भण को णखराना चाहहए।

* अऩने बोजन भें से कौए के सरए एक हहस्सा ननकारकय उसे दें ।

* शनन ग्रह से ऩीडड़त व्मन्द्तत के सरए हनुभान चारीसा का ऩाठ, भहाभर्त्ृ मुॊजम भॊत्र का जाऩ एवॊ शननस्तोत्रभ का
ऩाठ बी फहुत राबदामक होता है ।

* शनन ग्रह के दष्ु प्रबाव से फचाव हे तु गयीफ, वद्ध


ृ एवॊ कभतचारयमो के प्रनत अच्छा व्मवहाय यखें. भोय ऩॊख धायण
कयने से बी शनन के दष्ु प्रबाव भें कभी आती है ।

* शननवाय के हदन ऩीऩर वऺ


ृ की जड़ ऩय नतकरी के तेर का दीऩक जराएॉ।

* शननवाय के हदन रोहे , चभड़े, रकड़ी की वस्तुएॉ एवॊ ककसी बी प्रकाय का तेर नहीॊ खयीदना चाहहए।

* 7 फादाभ, 7 नारयमर, 7 दाने कारे भसयू कारे कऩडे भें फाॊधकय दध


ू के साथ फहते ऩानी भें फहाने ऩय शनन की
ऩीड़ा से राब प्राप्त होता है ।

(8) ग्रह दे व याहु के भन्त्र एवॊ उऩाम


याहु की अनुकूरता के सरए

बैयोदे व की ऩूजा कयें मा भहाभर्त्ृ मुॊजम भन्त्र का जऩ कयें ।


ऩौयाणणक भन्त्र_

ॐ अधतकामॊ भहावीमं चन्राहदर्त्म ववभदत नभ ्।

ससॊहहकागबतसॊबूतॊ तॊ याहुॊ प्रणभाम्महभ ्।।

वैहदक भन्त्र_

ऊॉ कमा नन्द्श्चत्र आ बुवदत


ू ी सदा वध
ृ ् सखा।

कमा शथचष्ठमा वत
ृ ।।

फीज भॊत्र_

ऊॉ भ्ाॊ भ्ीॊ भ्ौं स् याहवे नभ्।।

जऩ सॊख्मा_18000

सभम_ शननवाय शत
ु र ऩऺ यात्रत्रकार

ग्रह ऩूजा भॊत्र_ “ऊॉ ऐॊ ह्ीॊ याहवे नभ्” मह भन्त्र फोरते हुए याहु दे व अथवा याहु मॊत्र की ऩूजा कयें ।

दान_

ग्रह दे व याहु की प्रसन्नता हे तु शननवाय को सतनाजा,( सात अनाज )

गोभेद-नीराभ, सीसा करा घोडा, सोने मा चाॊदी का फना हुआ सऩत, कारे उडद, तरवाय, नीरा मा कारा कॊफर,
नारयमर, नतर का तेर, कोमरा, खोटे ससतके, जरेफी ( एकतयह की सभठाई ) सॊध्मा सभम ककसी कोढी को दान भें
दे ना चाहहए।

व्रत_

याहु से ऩीडड़त व्मन्द्तत को शननवाय का व्रत कयना चाहहए इससे याहु ग्रह का दष्ु प्रबाव कभ होता है ।

भीठी योटी कौए को दें औय ब्राह्भणों अथवा गयीफों चावर दान कयें ।
* जन्भकुण्डरी भें याहु फरवान होकय शुब ग्रहों के साथ फैठा हो तो याहु यर्त्न गोभेद ऩॊच धातु की अॊगूठी
भें सीधे हाॉथ की भाध्मभा उॊ गरी भें शननवाय को धायण कयना चाहहए।

* कारे काॊच की गोरी मा खोटे ससतके जेफ भें यखने से याहु फरवान हो जाता है ।

* याहु की दशा होने ऩय कुष्ट से ऩीडड़त व्मन्द्तत की सहामता कयनी चाहहए।

* गयीफ व्मन्द्तत की कन्मा की शादी कयनी चाहहए।

* याहु की दशा से आऩ ऩीडड़त हैं तो अऩने ससयहाने जौ यखकय सोमें औय सुफह उनका दान कय दें इससे याहु
की दशा शाॊत होगी।

* ऐसे व्मन्द्तत को अष्टधातु का कड़ा दाहहने हाथ भें धायण कयना चाहहए।

* हाथी दाॉत का राकेट गरे भें धायण कयना चाहहए।

* अऩने ऩास सपेद चन्दन अवश्म यखना चाहहए। सपेद चन्दन की भारा बी धायण की जा सकती है ।

* अऩनी चायऩाई मा फेड के चायो कोनो ऩे ससतके फॊधने से याहु फरवान हो जाता है ।
याहु के नीच एवॊ अशब
ु होने ऩय_
* जभादाय मा सपाई कभतचायी को तॊफाखू मा इससे फनी चजे दान दे नी चाहहए।

* हदन के सॊथधकार भें अथातत ् सूमोदम मा सूमातस्त के सभम कोई भहर्त्र्त्वऩूणत कामत नही कयना चाहहए।

* महद ककसी अन्म व्मन्द्तत के ऩास रुऩमा अटक गमा हो, तो प्रात्कार ऩक्षऺमों को दाना चग
ु ाना चाहहए।

* झुठी कसभ नही खानी चाहहए।

* कारे व ननरे कऩडे नहीॊ ऩहनने चाहहए, तथा बगवती दग


ु ात एवॊ सयस्वती की जी की ऩूजा कयने से याहु का शुब
पर प्राप्त होता है ।
(9) ग्रह दे व केतु के भन्त्र एवॊ उऩाम

केतु की अनुकूरता प्राप्त कयने हे तु ववघ्नहतात बगवान श्री गणेश की ऩूजा कयनी चाहहमे
ऩौयाणणक भन्त्र_

ॐ ऩराशऩुष्ऩसॊकाशॊ तायकाग्रहभस्तकभ ्।

यौरॊ यौरार्त्भकॊ घोयॊ तॊ केतुॊ प्रणभाम्महभ ्।।

वैहदक भन्त्र_

ऊॉ केतुॊ कृण्वन्न केतवे ऩेशो भमात अऩनमशसे।

सभष
ु नियजामथा्।।

फीज भॊत्र_

ऊॉ स्राॊ स्रीॊ स्रौं स् केतवे नभ्।।

जऩ सॊख्मा_17000

सभम_ शत
ु रऩऺ भॊगरवाय
ग्रहऩुजा भन्त्र_ ” ॐ कें केतवे नभ्” मह भन्त्र फोरते हुए दे व ग्रह केतु एवॊ केतु मॊत्र की ऩूजा कयनी चाहहए।
दान_

दे व ग्रह केतु की कृऩा प्रान्द्प्त हे तु ककसी मुवा व्मन्द्तत को कवऩरा गाम दान दे नी चाहहए । दान के सरए अन्म
ऩदाथत जैस-ेे सतनाजा, कॊफर, धए
ु ॊ जैसे यॊ ग के वस्त्र, कस्तूयी, रहसुननमा, रोहा, नतर, तेर, शस्त्र, फकया, नारयमर,
उड़द आहद का दान कयने से केतु ग्रह की शाॊनत होती है ।ज्मोनतषशास्त्र भें केतु ग्रह को अशुब ग्रह भाना गाम है
अत: न्द्जस जातक की कॊु डरी भें केतु की दशा चर यही है औय उसे अशुब ऩरयणाभ प्राप्त हो यहे हैं तो शाॊनत हे तु
जो उऩाम ककमा जा सकता हैं उनभें दान का स्थान प्रथभ है ।

व्रत_

व्रत कयने से बी ग्रहों का प्रकोऩ कभ हो जाता है । तमोंकक जो वाय न्द्जस ग्रह से प्रबाववत होता है उसी वाय का
अगय व्रत ककमा जाए तो उस ग्रह का प्रकोऩ कभ हो जाता है । केतु ग्रह का वाय बी भॊगर ग्रह की तयप
भॊगरवाय होता है । भॊगरवाय को अगय आऩ व्रत कयते हैं तो केतु ग्रह का प्रकोऩ कभ हो जाता है । कुर्त्ते को
आहाय दें एवॊ ब्राह्भणों को बात णखरामें इससे बी केतु की दशा शाॊत होगी। ककसी को अऩने भन की फात नहीॊ
फताएॊ एवॊ फुजुगों एवॊ सॊतों की सेवा कयें मह केतु की दशा भें याहत प्रदान कयता है ।

* अगय जन्भ कॊु डरी भें केतु फरवान हो औय शुब ग्रहों की मुनत भें हो तो रहसुननमाॊ (Cat’s Eye) यर्त्न ऩॊचधातु
भें जड़वाकय सीधे हाॉथ की अनासभका उॊ गरी भें धायण कयने से केतु का फर फढ जाता है ।

* कारे औय सपेद यॊ ग के कऩडे ऩहनने से केतु का प्रबाव फढता है ।

*
ग्रहदे व केतु के नीच एवॊ अशुब होने ऩय
* कारे औय सपेद यॊ ग के कॊफर गयीफों को एवॊ भॊहदय भें दान दे ने चाहहए।

* सपेद नतर एवॊ कारे नतर को सपेद कऩडे भें फाॊधकय फहते हुए जर भें प्रबाववत कयना चाहहए।

* यॊ ग-ववयॊ गी गाम की सेवा कयनी चाहहए तथा यॊ ग त्रफयॊ गे कुर्त्ते को दध


ू औय योटी णखराना चाहहए।

* ऩीऩर के ऩेड़ भें मा भॊहदय भें खफ


ू ऊॉची ध्वजा-ऩताका फाॊधनी चाहहए।

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* नवग्रहों का व्मन्द्तत के जीवन ऩय ऩण


ू त रुऩ से प्रबाव दे खा जा सकता है । इन नवग्रहों की शाॊनत द्वाया जीवन
की अनेक सभस्माएॊ दयू हो जाती हैं। हभाये ऩव
ू त ऋवषमों द्वाया इस ववषम भें अनेक तथ्म कहे गए हैं। न्द्जनभें
भॊत्रों का भहर्त्व ऩरयरक्षऺत होता है। इस ववषम भें ज्मोनतष भें अनेक ससद्धाॊत प्रचसरत हैं। भहवषत वेद व्मास द्वाया
यथचत नव ग्रह स्त्रोत बी इसी के आधाय स्वरुऩ एक भहर्त्वऩण
ू त भॊत्र जाऩ है न्द्जसके द्वाया सभस्त ग्रहों की शाॊनत
एवॊ उनकी कृऩा प्रान्द्प्त सॊबव है ।
।। नवग्रह स्त्रोत ।।
जऩाकुसुभ सॊकाशॊ काश्मऩेमॊ भहदद्मुनतभ ् ।

तभोरयॊसवतऩाऩघ्नॊ प्रणतोSन्द्स्भ हदवाकयभ ् ।। 1 ।।


दथधशॊखतुषायाबॊ ऺीयोदाणतव सॊबवभ ् ।

नभासभ शसशनॊ सोभॊ शॊबोभक


ुत ु ट बूषणभ ् ।। 2 ।।
धयणीगबत सॊबूतॊ ववद्मुर्त्काॊनत सभप्रबभ ् ।

कुभायॊ शन्द्ततहस्तॊ तॊ भॊगरॊ प्रणाम्महभ ् ।। 3 ।।


वप्रमॊगुकसरकाश्माभॊ रुऩेणाप्रनतभॊ फुधभ ् ।

सौम्मॊ सौम्मगण
ु ोऩेतॊ तॊ फध
ु ॊ प्रणभाम्महभ ् ।। 4 ।।
दे वानाॊच ऋषीनाॊच गरु
ु ॊ काॊचन सन्द्न्नबभ ् ।

फुवद्धबूतॊ त्रत्ररोकेशॊ तॊ नभासभ फह


ृ स्ऩनतभ ् ।। 5 ।।
हहभकॊु द भण
ृ ाराबॊ दै र्त्मानाॊ ऩयभॊ गुरुभ ् ।

सवतशास्त्र प्रवततायॊ बागतवॊ प्रणभाम्महभ ् ।। 6 ।।


नीराॊजन सभाबासॊ यववऩत्र
ु ॊ मभाग्रजभ ् ।

छामाभातंड सॊबूतॊ तॊ नभासभ शनैश्चयभ ् ।। 7 ।।


अधतकामॊ भहावीमं चॊराहदर्त्म ववभदत नभ ् ।

ससॊहहकागबतसॊबूतॊ तॊ याहुॊ प्रणभाम्महभ ् ।। 8 ।।


ऩराशऩुष्ऩसॊकाशॊ तायकाग्रह भस्तकभ ् ।

यौरॊ यौरार्त्भकॊ घोयॊ तॊ केतुॊ प्रणभाम्महभ ् ।। 9 ।।


इनत श्रीव्मासभुखोनदीतभ ् म् ऩठे त ् सुसभाहहत् ।

हदवा वा महद वा यात्रौ ववघ्न शाॊनतबतववष्मनत ।। 10 ।।


नयनायी नऩ
ृ ाणाॊच बवेत ् द्ु स्वप्ननाशनभ ् ।

ऐश्वमतभतर
ु ॊ तेषाॊ आयोनमॊ ऩन्द्ु ष्टवधतनभ ् ।। 11 ।।
ग्रहनऺत्रजा् ऩीडास्तस्कयान्द्ननसभभ्
ु दवा्।

ता सवात्प्रशभॊ मान्द्न्त व्मासोब्रुते न सॊशम् ।। 12 ।।


।।इनत श्री वेद व्मास ववयथचतभ ् आहदर्त्मादी नवग्रह स्तोत्रॊ सॊऩूणं ।।

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