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“मैंएकस्त्रीहूँ ”

मैंक्याहूँ ? कौनहूँ ? कहाूँ सेआईहूँ ?मेराअस्तित्वक्याहै


?”जबसोचतीहूँ मैं,तबदु विधामेंपड़जातीहूँ ।जबइसीसोचमेंपड़ीहुईमैंअंधेरोकीदु वन
यामेंखोजातीहूँ ,उसीसमयमेरेअंतममनसे आिाज़आतीहै वक‘स्त्रीहूँ ।‘‘,
मैंएकस्त्रीहूँ ।‘िाििमेंस्त्रीक्याहै ? उसकािजूदक्याहै
?इसीप्रकारकेअनविनतसिालमेरेमस्तिष्ककोघेरले तेहैं।जबमैंविचारकरतीहूँ ,
तबमुझेमेरेसारे सिालोंकेजिाबस्वयं हीवमलजातेहैं।स्त्रीएकऐसाशब्दहै जोअपने अंद
रनजानेवकतनेअर्थोंकोसूँजोयेहुएहै ।स्त्रीईश्वरकीएकऐसीरचनाहै ,जोअपनेअंदरनजा
नेवकतनेददोंकोसमेटेहुएइससमाजकेबनायेहुएकड़े वनयमोंकासामनाकरतीहुईअप
नेअस्तित्वकोबचायेरखनेिआत्मसम्मानएिंस्वाविमानकेवलएवतरन्तरसंघर्मकरतीच
लीआरहीहै ।स्त्रीकेजीिनमेंसंघर्मकीकहानीइसतरहहै वकउनकोतोजन्मलेनेकेवलए
िीसंघर्मकरनापड़ताहै ।अतःहमस्पष्टरूपसेकहसकतेहैंवकस्त्रीजीिनकानामहीसंघ
र्महै।हमारे इसपु रुर्प्रधानदे शमें प्रत्येकक्षेत्रिहरकदमपरस्त्रीकोअपनीयोग्यतािक्षम
ताकोप्रदवशमतकरनापड़ताहै ।योग्यिक्षमतािानहोनेपरिीउसकीसमिक्षमताओ
कोदरवकनारकरकमतरहीआूँ काजाताहै ।चूूँवकसमयकेसार्थबदलाितोहोरहे हैं।स्तस्त्र
योंकीस्तथर्थवतिीकुछहदतकसुधररहीहै ।लेवकनअिीिीस्तस्त्रयोंकोिहदजमप्राप्तनहींहो
पायाहै ,
वजसकीिोिाििमें हक़दारहैं ।आजस्तस्त्रयोंकीस्तथर्थवतसम्मानसेपररपूर्महोतीजारहीहै ।
ले वकनितममानसमयकीस्तथर्थवतकोदे खतेहुएकुछयादआजाताहै ,कहाजाताहै वक-
“यत्रनाययस्तुपूज्यंते, रमन्तेतत्रदे वता”
अर्थाम तजहाूँ स्तस्त्रयोंकीपूजाहोतीहै ,
दे ितािहींवनिासकरतेहै।मैं पूछतीहूँ वकक्याअबदे ितािीइसपृथ्वीलोकसेअंतमध्यान
होिएहैं ?जोस्तस्त्रयोंकीइसददम सेिरीकहानीकोनहींदेखपारहे हैं।िारतआजप्रिवतशी
लहै औरइसप्रिवतशीलिारतकेसमाजमेंस्तस्त्रयोंकासड़कोंपरअकेलावनकलनादू िर
होताजारहाहै ।जिहजिहबलात्कारिहत्याजैसीखबरें प्रवतवदनसुननेकोवमलहीजाती
हैं ।आजकीस्त्रीकाप्रश्नयहीहै वकक्यायहीहै हमाराबदलाहुआसमाज,बदलहुआदे श?
आस्तखरमेंस्त्रीकेिलयहीकहतीहै –
“स्त्रीहूँ मैं, मैंस्त्रीहूँ।
स्वछं दमुझेभीजीनेदो,पक्षीसेमुझकोउड़नेदो।
जीवनहै कुछचंदददनोंका, मुझेआसमानकोछूनेदो।
नहीबंधनमेंबंधनेआयीहूँ , कुछनयासेकरनेआईहूँ।
रोकोमतमुझको, टोकोमत, अदधकारकोमेरेछीनोमत
मुझसेहैदुदनया,दु दनयामेंमुझकोआने दो,मारोमतमुझको, ददय मुझेभीहोताहै।
क्याहुआजोमैंएकस्त्रीहूँ ,दोषनही ंइसमेंकुछमेरादकमैंएकस्त्रीहूँ।
अबइसकाहैअदभमानमुझे, हैइसकाअबअदभमानमुझेदक
स्त्रीहूँ मैं, मैंएकस्त्रीहूँ।
अलका
(टी. जी. टी. दहंदी )

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