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ट्यूशन का मजा_लीना अननल की ट्यूशन - चौधरी सर और मैडम

लेखक - कथा प्रेमी_Katha Premi

यह ां लीन और अननल के ब रे में एक और कह नी है, जब वे छोटे थे और क लेज में ट्यश


ू स
ां लेते थे। मैंने पहले
से ही अननल और लीन के ब रे में दो कह ननय ां पोस्ट ककय है और कुछ और पोस्ट कर सकते हैं, मख्
ु य रूप से
अनत-क मक
ु जोड़ी की हरकतों के ब रे में । लेककन अन्य कह ननयों में प त्रों को बदल सकते हैं और इनक एक
दस
ू रे से कोई त ककिक सांबध
ां नहीां है - कुछ मन्ु न भ ई किल्म की तरह।

मैं, समय बच ने के ललए इस ब र केवल हहांदी में पोस्ट कर रह हूूँ, क्षम य चन ।

***** *****
मेर न म अननल है । मेरी दीदी लीन मझ
ु से एक स ल बड़ी है । यह तब की कह नी है जब हम एच॰एस॰सी॰ के
पहले स ल में य ने ग्य रहवीां में थे। मैं अठ रह स ल क थ । क यदे से तब तक हमें ब रहवीां प स कर लेनी थी,
और दीदी मझ ु से आगे की क्ल स में य ने क लेज में होन च हहये थी। पर हम दोनों की पढ़ ई लेट शरूु हुई थी,
वह ां हम रे जर से छोटे शहर में , जो करीब-करीब एक बड़े ग ांव स ही थ , ककसी को हमें स्कूल में ड लने की
जल्दी नहीां थी और इसललये हम दोनों को एक ही क्ल स में एक स थ भरती कर य गय थ ।

लीन असल में मेरी एक दरू की मौसी की बेटी है, इसललये ररश्ते में मेरी मौसेरी बहन सी है । बचपन से रहती
हम रे यह ां ही थी क्योंकी मौसी जजस ग ांव में रहती थी वह ां स्कूल तो नहीां के बर बर थ । मैं उसे दीदी कहत
थ । आठवीां प स करने के ब द पढ़ ई के ललये हमें शहर में मेरी न नी के यह ां भेज हदय गय । न नी वह ां उस
वक्त अकेली थी क्योंकी न न जी की मत्ृ यु हो चक
ु ी थी और न नी क बेट , य ने मेर म म अपने पररव र के
स थ कुछ स ल को दब
ु ई चल गय थ ।

दसवीां प स करने के ब द हम दोनों उसी स्कूल के जूननयर क लेज में पढ़ने लगे। वह ां एक पनत पत्नी पढ़ ते थे,
चौधरी सर और मैडम। वैसे वे स्कूल में टीचर थे पर स थ-स थ क लेज में भी लेक्चर लेते थे। वे ट्यश
ू न लेते थे
पर गगने चुने स्टूडेंट्स की। वे पढ़ ते अच्छ थे और उनकी पसिन ललटी भी एकदम मस्त थी, इसललये क लेज में
बड़े प पल
ु र थे।

एक ररश्तेद र से उनके ब रे में सन


ु कर उनकी ट्यश
ू न हमें न नी ने लग दी थी। बोली कक एच॰एस॰सी॰ के ररज़ल्ट
पर आगे क परू कैररयर ननभिर करत है और तम
ु दोनों पढ़ने में जर कच्चे हो तो अब दो स ल मैडम और सर
से पढ़ो। हमने बस हदख ने को एक दो ब र न नक
ु ु र की और किर म न गये, सर और मैडम की जोड़ी बड़ी
खूबसरू त थी। सर एकदम गोरे और ऊूँचे परू े थे। मैडम मझले कद की थीां और बड़ी न जुक और खूबसरू त थीां।
हम री उमर ही ऐसी थी कक मैं और दीदी दोनों मन ही मन उन्हें च हते थे।

पहले ट्यश
ू न लेने में वे आन क नी कर रहे थे। मैडम न नी से बोलीां- “हम बस स्कूल के बच्चों की ट्यश
ू न लेते
हैं। असल में हम जर सख्त हैं, डडलसजललन रखते हैं, छोटे बच्चे तो चुपच प ड ांट डपट सह लेते हैं, ये दोनों अब
बड़े हैं तो इन्हें श यद ये पसांद न आये। क्योंकी वही सख्ती हम सब स्टूडेंट्स के स थ बरतें गे भले वे स्कूल के हों
य क लेज के…”
1
हम दोनों क हदल बैठ गय क्योंकी हम दोनों उस सद
ांु र पनत पत्नी के जोड़े से इतने इम्प्रेस हो गये थे कक ककसी
भी ह लत में उनकी ट्यश
ू न लग न च हते थे। न नी ने भी उनसे लमन्नत की, बोलीां कक- “कोई ब त नहीां, आपको
जजस तरीके से पढ़ न हो, वैसे पढ़ इये, इन्हें पीट भी हदय कीजजये अगर जरूरत हो…” न नी ने हम री ओर दे ख ।

मैं बोल - “मैडम, ललीज़… हम कोई बदम शी नहीां करें ग।े आप सज दें गी तो वो भी सह लें गे…”

सर बोले- “पर ये लीन , इतनी बड़ी है अब…”

लीन भी धीरे -धीरे बोली- “नहीां सर, हम आप जैसे पढ़ एांगे, पढ़ लेंग…


े ”

आखखर सर और मैडम म न गये, हम री खुशी क हठक न न रह । बस अगले हफ़्ते से हम री ट्यश


ू न च लू हो
गई।

पढ़ने के ललये हम उनके यह ां घर में ज ते थे, जो प स ही थ , बस बीस लमनट चलने के अांतर पर। धीरे -धीरे हमें
समझ में आय कक सर और मैडम ककतने सख्त थे। हम जूननयर क लेज में हों य न हों, सर और मैडम को
िरक नहीां पड़त थ । वे हमसे वैसे ही पेश आते थे जैसे स्कूल के बच्चों के स थ। मैं मझले कद क थ और
लीन दीदी भी दब
ु ली पतली थी। ब ललग होने के ब वजद
ू हम दोनों हदखने में जर छोटे ही लगते थे इसललये सर
और मैडम हमें बच्चे समझकर ही पढ़ ते और ‘बच्चों’ कहकर बल
ु ते थे। कभी-कभी क न पकड़कर पीठ पर एक ध
घस
ांू भी लग दे ते थे, पर हम बरु नहीां म नते थे, क्योंकी उस जम ने में टीचरों क स्टूडेंट पर ह थ उठ न आम
ब त थी, कोई बरु नहीां म नत थ ।

सर और मैडम दोनों इतने खब


ू सरू त थे कक भले उनकी पपट ई य ड ांट क डर लगत हो किर भी उनके घर ज ने
को हम हमेश उत्सक
ु रहते थे।

लीन और मैं, हम दोनों बहुत करीब थे, सगे भ ई बहन जैसे इसललये मझु े दीदी के स थ जर भी खझझक नहीां
होती थी। जव नी चढ़ने के स थ लीन दीदी भी मझ ु े बहुत अच्छी लगती थी। उसे दे खकर अब उससे गचपकने क
मन होत थ । मैडम तो पहले से ही मझ ु े बहुत अच्छी लगती थीां। नयी-नयी जव नी थी इसललये र त को उन
दोनों के ब रे में सोचते हुए लण्ड खड़ हो ज त थ ।

अब मैं दीदी से भी छे ड़-छ ड़ करत थ । जब उसक ध्य न नहीां होत थ तब उसे अच नक हौले से ककस करत
और कभी मम्प्मे भी दब दे त । दीदी कभी-कभी िटक र दे ती थी पर बहुत करके कुछ नहीां बोलती और मेरी
हरकत नजरां द ज कर दे ती, श यद उसे भी अच्छ लगत थ । एक दो ब र र त को ठां ड ज्य द होने के बह ने से
उसकी रज ई में घस
ु कर मैंने दीदी से गचपटने की भी कोलशश की पर दीदी इतने आगे ज ने को तैय र नहीां थी,
मझ
ु े ड ांट कर भग दे ती थी। कभी तम च भी जड़ दे ती।

पर वैसे लीन दीदी च लू थी, उसके रनत मेर तीव्र आकर्िण उसे अच्छ लगत थ , इसललये जह ां वो मझ
ु े हथ
भर दरू अलग रखती थी, वहीां ज नबझ
ू कर ररझ ती भी थी। अन्दर कुरसी में पढ़ने बैठती तो एक ट ांग दस
ू री पर
रख लेती जजससे उसकी स्कटि ऊपर चढ़ ज ती और उसके दब
ु ले पतले गचकने पैर मझ
ु पर कय मत सी ढ दे त।े
अपनी सिेद रां ग की रबर की स्लीपर उां गली पर नच ती रहती। कभी ज नबझ
ू कर सबसे तांग परु ने ट प घर में
2
पहनती जजससे उसके ट प में से उसके जर -जर से पर एकदम सख्त उरोज उभरकर मझ
ु े अपनी छट हदख ते।
एक दो ब र मैंने उसकी ट्रे ननांग ब्र और पैंटी उसकी अलम री से चरु कर उसमें मठ्
ु ठ म री। वैसे ब द में धोकर रख
दी पर उसे पत चल गय , उसने उस हदन मझ
ु े ज ांघ में अपने बड़े न खूनों से इतनी जोर से चट
ूां ी क टी कक मैं
बबलबबल उठ ।

चूांटी क टते वक्त मेरी ओर दे ख रही थी म नों कह रही हो कक ये तो बस ज ांघ में क टी है , ज्य द करे ग तो कहीां
भी क ट सकती हूूँ। उसके ब द ऐस करने की मेरी हहम्प्मत नहीां हुई। पर लगत है कक ब द में दीदी को मझ ु पर
तरस आ गय । एक हदन मझ ु े बोली कक अननल, इस लल जस्टक के बैग में मैंने अपने परु ने कपड़े रखे हैं, वो नीचे
ज कर न नी ने जो झोल बन य है बह
ु रन को कपड़े दे ने के ललये उसमें ड ल दे , अपने भी परु ने कपड़े ले ज ।
मैंने ज ते-ज ते उस बैग में दे ख , दीदी के कपड़े और मैं उनमें ह थ न ड ल।ांू दीदी की सलव र कमीज़ के नीचे
एक पैंटी और ब्र भी थी। परु नी नहीां लग रही थी, बजल्क वही व ली थी जजसमें मैंने मठ्
ु ठ म री थी।

मैंने चुपच प उसे ननक लकर अपनी अलम री में छुप ललय ।

ब द में लीन दीदी ने पछ


ू कक दे आय कपड़े?

मैंने ह ूँ कह और नजर चुर ली। किर कनखखयों से दे ख तो दीदी मन ही मन मश्ु कुर रही थी। ब द में उस पैंटी
और ब्र में मैंने इतनी मठ्
ु ठ म री कक हहस ब नहीां। हस्तमैथन
ु करत थ और दीदी को दआ
ु दे त थ । कहने क
त त्पयि ये कक मझ
ु में और दीदी में आपसी आकर्िण िट िट बढ़ रह थ , पर अभी सीम को ल ांघ नहीां थ । और
जैस आकर्िण मझ ु े लीन दीदी की ओर लगत थ , और श यद उसे थोड़ बहुत मेरी ओर लगत हो, उससे ज्य द
हम दोनों को सर और मैडम की तरि लगत ।

पहले हम इसके ब रे में ब त नहीां करते थे पर एक हदन आखखर हहम्प्मत करके मैंने दीदी से कह - “दीदी, मैडम
ककतनी सद
ुां र हैं न … किल्म में हीरोइन बनने ल यक हैं…”

तो दीदी बोली- “ह ूँ मैडम बहुत खूबसरू त हैं अननल। पर ऐस क्यों पछ


ू रह है… क्य इर द है तेर …”

“कुछ नहीां दीदी। मैं कह ां कुछ करत हूूँ… बस दे खत ही तो हूूँ…”

“पर कैसे दे खत है मझ
ु े म लम
ू है । अब कोई बदम शी नहीां करन नहीां तो सर म रें गे…”

“तझ
ु े भी तो सर अच्छे लगते हैं दीदी, झूठ मत बोल। कैसे दे ख रही थी कल उनको जब वे अांदर के कमरे में शटि
बदल रहे थे। दरव जे में से मड़ ु -मड़
ु कर दे ख रही थी अांदर, अच्छ हुआ मैडम तब हम री नोटबक
ु जच
ां रही थीां
और उन्होंने दे ख नहीां, नहीां तो तेरी तो श मत आ ही गई थी…”

दीदी झेंप गई किर बोली- “और तू कैसे घरू त है मैडम को। कल उनक पल्लू गगर थ तो कैसे टकटकी लग कर
दे ख रह थ उनकी छ ती को। तझ
ु े अकल नहीां है क्य ? उन्होंने दे ख ललय तो?”

“वैसे जोड़ी अच्छी है …” मैंने कह ।

3
दीदी बोली- “कौन सी जोड़ी की ब त कर रह है …”

“दीदी, सर और मैडम की जोड़ी… तम


ु को क्य लग … अच्छ दीदी, ये ब त है , तम
ु उस जोड़ी की ब त कर रही थीां
जो मैडम की छ ती पर है । अब बदम शी की ब त कौन कर रह है दीदी…”

दीदी मूँह
ु छुप कर हूँसने लगी। वो भी इन ब तों में कोई कम नहीां है ।

“दीदी, मैडम को बोलकर दे खें कक वे हमें बहुत अच्छी लगती हैं… श यद कुछ जुग ड़ हो ज ये, एक दो लय र के
चुम्प्मे ही लमल ज यें। मझ
ु े लगत है कक उनको भी हम अच्छे लगते हैं। कल नहीां कैसे चम
ू ललय थ हम दोनों
के ग ल को उन्होंने, जब टे स्ट में अच्छे म कि लमले थे…”

“चल हट शर रती कहीां क । कुछ मत कर नहीां तो म र पड़ेगी ि लतू में । वैसे तो आज सर ने भी मेरे ब ल सहल
हदये थे और मेरी पीठ पर चपत म रके मझ
ु े श ब शी दी थी जब मैंने वो सव ल ठीक से हल ककय थ …” दीदी
बोली। वैसे उसे भी सर और मैडम बहुत अच्छे लगते थे ये मझ
ु े म लम
ू थ । पपछली ब र वह चुपच प उनके
एल्बम में से उन दोनों क एक फ़ोटो ननक ल ल ई थी और अपने तककये के नीचे रखती थी।

हम री ये ब त हुई, उस र त हम दोनों को नीांद दे र से आयी। मैंने तो मज ले-लेकर मैडम को य द करके मठ् ु ठ


म री। ब द में मझ
ु े महसस
ू हुआ कक दीदी भी सोई नहीां थी, अांधेरे में भले हदखत न हो पर वो च दर के नीचे
क फ़ी इधर उधर करवट बदल रही थी, ब द में मझ ु े एक दो लससककय ां भी सनु ई दीां, मझ
ु े मज आ गय , दीदी
क्य कर रही थी ये स ि थ ।

इस ब त के दो तीन हदन ब द हम जब एक हदन पढ़ने पहुूँचे तो चौधरी सर ब हर गये थे। मैडम अकेली थीां।
आज वे बहुत खब ू सरू त लग रही थीां। उन्होंने लो कट स्लीवलेश ब्ल उज़ पहन रख थ और स ड़ी भी बड़ी अच्छी
थी, हल्के नीले रां ग की। पढ़ ते समय उनक पल्लू गगर तो उन्होंने उसे ठीक भी नहीां ककय , हमें एक नय सव ल
कर ने में वे इतनी व्यस्त थीां। ब्ल उज़ में से उनके स्तनों क ऊपरी हहस्स हदख रह थ । मैं ब र-ब र नजर
बच कर दे ख रह थ , एक ब र दीदी की ओर दे ख तो उसकी ननग ह भी वहीां लगी थी।

ब द में मैडम को ध्य न आय तो उन्होंने पल्लू ठीक ककय पर एक ही लमनट में वो किर से गगर गय । इस ब र
मैडम ने नीचे दे ख पर उसे वैस ही रहने ही हदय । उसके ब द मैडम हमें कनखखयों से दे खतीां और अपनी ओर
घरू त दे खकर मश्ु कुर दे ती थीां। मेर लण्ड खड़ होने लग । दीदी समझ गई, मझ
ु े कोहनी से म रकर स वध न
ककय कक ऐस वैस मत कर।

उसके ब द मैडम ने खद
ु अपनी छ ती सहल न शरू
ु ककय जैसे उन्हें थोड़ी तकलीि हो रही हो। छ ती के बीच
ह थ रखकर मलतीां और कभी अपने स्तनों के ऊपरी भ ग को सहल लेतीां। अब मैं और दीदी दोनों उनके मतव ले
उरोजों की ओर दे खने में खो से गये थे, यह ां तक कक मैडम को म लम
ू है कक हम घरू रहे हैं, यह पत होने पर
भी हम री ननग हें वह ां लगी हुई थीां। और बरु म नन तो दरू , मैडम भी पल्लू गगर गगर के झक
ु -झक
ु कर हमें
अपने सौंदयि के दशिन कर रही थीां।

प ांच लमनट ब द मैडम ने अच नक एक हल्की सी कर ह भरी और जोर से छ ती सहल ने लगीां।

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दीदी ने पछ
ू - “क्य हुआ मैडम…”

“अरे जर ददि है, कल श म से ऐस ही दख


ु रह है । कल हम दोनों लमलकर जर पलांग उठ कर इधर क उधर
कर रहे थे तब श यद छ ती के आस प स लचक सी आ गई है । सर बोले कक आते वक्त दव ई ले आयेंगे…”

दीदी ने मेरी ओर दे ख ।

मैडम बोलीां- “म ललश करने से आर म लमलत है पर मझ


ु े खद
ु की म ललश करन नहीां जमत ठीक से। अब सर
आयेंगे तब…”

मैंने दीदी को कोहनी म री कक च ांस है । दीदी समझ गई। पर मझ


ु े आांखें हदख कर चुप रहने को बोली। उसकी
हहम्प्मत नहीां हो रही थी कक खुद मैडम को कुछ कहे ।

मैडम ने थोड़ और पढ़ य , किर उठकर पलांग पर लेट गईं।

लीन बोली- “मैडम, आपकी तबबयत ठीक नहीां है , हम ज ते हैं, कल आ ज येंग,े आप आर म कर लें…”

मैडम बोलीां- “अरे नहीां, अभी ठीक हो ज येग । लीन , जर म ललश कर दे तू ही। जर आर म लमले तो किर ठीक
हो ज ऊूँगी। सर को आने में दे र है , और अभी तो तम
ु लोगों के दो लेसन भी लेन है …”

लीन दीदी ने मेरी ओर दे ख । मैंने उसे आांख म र दी कक कर न अगर मैडम कह रही हैं। दीदी शरम ते हुए उठी।
बोली- “मैडम, तेल ले आऊूँ क्य गरम करके…”

“अरे नहीां, ऐसे ही कर दे । और अननल, तझ


ु े बरु तो नहीां लगेग अगर मैं कहूां कक मेरे पैर दब दे । आज बदन
टूट स रह है, कल जर ज्य द ही क म हो गय , इन्हें भी अच्छी पड़ी थी घर क िननिचर इधर उधर करने
की…” वे अांगड़ ई लेकर बोलीां।

मैं झट उठकर खड़ हो गय - “ह ूँ मैडम, कर दां ग


ू , बरु क्यों म नग
ांू , आप तो मेरी टीचर हैं, आपकी सेव करन
तो मेर िज़ि है…”

मैं स ड़ी के ऊपर से मैडम के पैर दब ने लग । क्य मल


ु यम गद
ु ज ट ांगें थीां। लीन उनकी छ ती के बीच ह थ
रखकर म ललश करने लगी। मैडम आांखें बांद करके लेट गईं, दो लमनट ब द बोलीां- “अरे यह ां नहीां, दोनों तरि
कर, जह ां ददि है वह ां म ललश करे गी कक और कहीां करे गी…”

कहके मैडम ने उसके ह थ अपने मम्प्मों पर रख ललये। दीदी शरम ते हुए उनकी ब्ल उज़ के ऊपर से उनकी छ ती
की म ललश करने लगी। मैंने दीदी को आांख म री कक दीदी मैं कहत थ न कक मैडम को बोलेंगे तो कुछ च ांस
लमलेग । दीदी ने मझ
ु े चुप रहने क इश र ककय । उसक चेहर ल ल हो गय थ , स ि थ कक उसे इस तरह
मैडम की म ललश करन अच्छ लग रह थ ।

5
“ऐस कर, मैं बटन खोल दे ती हूूँ। तझ
ु े ठीक से म ललश करते बनेगी। और अननल, तू स ड़ी ऊपर सरक ले, ठीक
से पैर दब और जर ऊपर भी कर, मेरी ज ांघों पर दब , वह ां भी दख
ु त है…”

मैडम ने बटन खोले। सिेद लेस व ली ब्र में बांधे उनके खूबसरू त सड
ु ौल स्तन हदखने लगे। दीदी ने उन्हें पकड़
और सहल ने लगी। मैडम ने आांखें बांद कर लीां। कुछ दे र ब द लीन दीदी के ह थ पकड़कर अपने सीने पर दब ये
और बोलीां- “अरी सहल मत ऐसे धीरे -धीरे , उससे कुछ नहीां होग , दब जर । ह …
ूँ अब अच्छ लग रह है , लीन ।
और जोर से दब …”

मैंने स ड़ी ऊपर करके मैडम की गोरी-गोरी ज ांघों की म ललश करनी शरू


ु कर दी। मेर लण्ड खड़ हो गय थ ।
लीन दीदी अब जोर-जोर से मैडम के मम्प्मों को दब रही थी। उसकी स ांसें भी थोड़ी तेज चलने लगी थीां। मेरे
ह थ ब र-ब र मैडम की पैंटी पर लग रहे थे। मैडम बीच-बीच में इधर उधर हहलतीां और पैर ऊपर नीचे करतीां, इस
हहलने डुलने से उनकी स ड़ी और ऊपर हो गई।

मझ
ु से न रह गय । मैंने चप
ु च प मैडम की पैंटी थोड़ी सी ब जू में सरक दी। दीदी दे ख रही थी, पर कुछ नहीां
बोली। अब वो भी मस्ती में थी। मैडम के मम्प्मे कस के मसल रही थी। मैडम को जरूर पत चल गय होग कक
मैंने उनकी पैंटी सरक दी है । पर वे कुछ न बोलीां।

बस आांखें बांद करके म ललश क मज ले रही थीां, बीच में लीन के ह थ पकड़ लेतीां और कहतीां- “अां… अां… अब
अच्छ लग रह है जर …”

मैंने मौक दे खकर स ड़ी उठ कर उसके नीचे झ ांक ललय , सरक यी हुई पैंटी में से मैडम की गोरी-गोरी फ़ूली बरु
की एक झलक मझ ु े हदख गई। मझ
ु े ऐस लग रह थ जैसे स्वगि क दरव ज अब धीरे -धीरे खुल रह है । उस
स्वगि सख
ु की मैं कल्पन कर ही रह थ कक अच नक उस कमरे क दरव ज खल
ु और सर अांदर आ गये।
दरव जे पर खड़े होकर जोर से बोले- “ये क्य चल रह है …” लगत है वे एक दो लमनट ब हर खड़े दे ख रहे होंगे
कक अांदर क्य चल रह है ।

हम सपकप गये और डर के उठकर खड़े हो गये। मैडम श ांत थीां। कपड़े ठीक करते हुए बोलीां- “सर… कुछ नहीां,
ये दोनों जर मेरी म ललश कर रहे थे, आप जल्दी आ गये…”

“ऐसी होती है म ललश… मझ


ु े नहीां लग थ कक ये ऐसे बदम श हैं। इतने भोले भ ले हदखते हैं। मैडम, मैं पहले ही
कह रह थ कक इन क लेज के लड़कों लड़ककयों की ट्यश
ू न के चक्कर में न पड़ें, ये बड़े बदम श होते हैं। पर
आपको तो तब बड़ ल ड़ आ रह थ …” किर हम री ओर मड़
ु कर बोले- “आज हदख त हूूँ तम
ु दोनों को, चलो मेरे
कमरे में…” कहकर वे मेरे और लीन के क न पकड़कर ब हर ले गये।

मैडम ने बोलने की कोलशश की- “सर… उनक कोई कुसरू नहीां है । वो तो…”

“मैडम, मैं आपसे ब द में बोलग


ूां , पहले इनकी खबर ल।ूां और आप बैहठये यहीां चुपच प…” मैडम को ड ांट लग कर
वे खीांचकर हम दोनों को ब हर ल ये।

6
ब हर आते समय मैडम पीछे से फ़ुसिस कर मझ
ु े बोलीां- “घबर मत अननल, सर गस्
ु से में हैं, म फ़ी म ांग लेन
तो श ांत हो ज येंगे। जैस वो कहें वैसे करन तो म ि कर दें ग,े है ह सख्त, पर हदल के नरम हैं…”

ब हर आकर सर ने दरव ज ब हर से बांद कर हदय - “क्य हो रह थ ये… बोलो… बदम शी कर रहे थे न तम



दोनों…” सर हम पर गचल्ल ये।

हम दोनों चप
ु खड़े रहे । किर मैं हहम्प्मत करके बोल - “नहीां सर, मैडम की तबबयत ठीक नहीां थी तो…”

“तो उनके बदन को मसलने लगे दोनों… क्यों… मैडम इतनी अच्छी लगती हैं तम
ु दोनों को कक अकेले में उनपर
ह थ स ि करने लगे…”

“नहीां सर…”

“क्य मतलब… मैडम अच्छी नहीां लगतीां…” वे मेरे क न पकड़कर बोले।

मैं डर के म रे चुप हो गय ।

“चप
ु क्यों है… मैंने पछ
ू कक क्यों कर रहे थे ऐस क म तम
ु दोनों… तू बत अननल, मैडम अच्छी लगती हैं तझ
ु ,े
इसललये कर रहे थे…” चौधरी सर मेरे क न को मरोड़ते हुए बोले- “य और कोई वजह है …”

मैं बबलबबल उठ । बहुत डर लग रह थ । न ज ने वे मेरी क्य ह लत करें ।

“सन
ु नहीां मैंने क्य कह … मैडम अच्छी लगती हैं…” उन्होंने मेरे ग ल पर जोर से चांट
ू ी क टी।

बहुत ददि हुआ। धीमी आव ज में मैं बोल - “ह ूँ सर…”

“क्य पसांद है… उनकी बरु य मम्प्मे…” मेरे ह थ को पकड़कर वे बोले।

मैं डर के म रे उनकी ओर दे खने लग ।

“बत नहीां तो इतनी म र ख येग कक अस्पत ल पहुूँच ज येग , चल बोल… तेरी दीदी मैडम के मम्प्मे मसल रही थी
और तू स ड़ी उठ कर मैडम की बरु दे ख रह थ , इसललये मैंने पछ
ू कक क्य अच्छ लगत है तम ु लोगों को, बरु
य मम्प्मे…” और कस के मेर क न और मरोड़ हदय ।

“सर… सब अच्छ लगत है सर। पर सर ज नबझ


ू कर नहीां ककय हमने सर…”

“अब तझ
ु े पीटूां, तेरी मरम्प्मत करूां और तेरे घर में बत ऊूँ कक पढ़ ई करने आत है और क्य लफ़ांग पन करत है
इधर…” चौधरी सर ने मेरी गदि न पकड़कर पछ
ू ।

“नहीां सर, ललीज़, बच लीजजये, अब कभी नहीां करूांग …” मैं गगड़गगड़ य ।


7
“और तू लीन … शरम नहीां आती… छोटे भ ई के स थ यह ां पढ़ने आती है और ऐस नछन लपन करती है …” चौधरी
सर ने लीन दीदी की ओर दे खकर कह ।

दीदी तो रोने ही लगी। मझ


ु े मैडम ने बत य थ , वो य द आय कक सर जो कहें चुपच प सन
ु न , उनसे म फ़ी
म ांग लेन । मैं चौधरी सर के पैर पड़ गय - “सर, बच लीजजये, आप जो कहें गे वो करूांग …”

“और ये छोकरी, तेरी दीदी…” चौधरी सर ने दीदी की चोटी पकड़कर खीांची।

“सर ये भी करे गी…” मैं दीदी की ओर दे खकर बोल - “दीदी, बोलो न …”

“ह ूँ सर, आप जो कहें गे वो करूांगी, कुछ भी सज दीजजये सर, पर घर पर मत बत इये सर। ललीज़…” दीदी आांसू
पोंछती हुई बोली।

“अच्छ ये बत ओ, सच में मज आत है तम ु लोगों को यह सब करते हुए जो मैडम के स थ कर रहे थे…” चौधरी


सर ने थोड़ी नरमी से पछ
ू - “अब सच नहीां बोले तो झ पड़ म रूांग । अच्छ लगत है न ये सब करते हुए…”

हम दोनों ने लसर हहल य ।

“घर में भी करते हो यह सब… एक ही कमरे में सोते हो न … भ ई बहन हो, शरम नहीां आती…” उन्होंने किर से
कड़ी आव ज में पछ
ू ।

“नहीां सर, सच में, बस थोड़ ककस पवस कर लेते हैं। और कुछ नहीां करते सर घर में । और सर… हम सगे भ ई
बहन नहीां हैं। मैडम बहुत अच्छी लगती हैं इसललये गलती हो गई…” मैंने कह ।

“मैं नहीां म नत … इतने बदम श हो तम


ु दोनों। सगे भले न हो पर हो न भ ई बहन। दीदी कहते हो। रोज मठ्
ु ठ
म रते हो अननल तम
ु … दीदी को दे खकर… और क्यों री लीन … तझ
ु े मज आत है भ ई क लण्ड दे खकर… तू
इससे चद
ु व ती होगी जरूर…”

“नहीां सर, सच में, ललीज़… मैं सच कह रही हूूँ सर…” लीन किर रोने को आ गई।

“तो किर… तू भी मठ्


ु ठ म रती है क्य … मोमबत्ती से… और तन
ू े जव ब नहीां हदय रे न ल यक, मठ्
ु ठ म रत है
क्य घर में…” कहकर चौधरी सर ने किर मेर क न मरोड़ ।

“ह ूँ सर, म रत हूूँ। रह नहीां ज त सर, ख स कर जब से मैडम को दे ख है…” मैंने कह ।

“लीन दे खती है तझ
ु े मठ्
ु ठ म रते हुए…”

“ह ूँ सर… र त को बत्ती बझ
ु कर म रते हैं सर। दीदी को पत चल ज त है अक्सर…” मैं लसर झक
ु कर बोल ।

8
“और ये म रती है तब दे खत है त…
ू ” चौधरी सर ने लीन क क न पकड़कर पछ
ू ।

“हदखत नहीां है सर, ये च दर के नीचे करती है, पैंटी में ह थ ड लकर। इसकी स स
ां तेज चलने लगती है तो मेरे
को पत चल ज त है…” मैंने सि ई दी।

“और तम
ु कैसे मठ्
ु ठ म रते हो… मज ले-लेकर, सहल -सहल कर… य बस मठ्
ु ठी में लेकर दन दन… और क्यों री
लीन … ककस कैसे करती हो अपने भ ई को… करती हो न …” चौधरी सर ने लीन की पीठ में एक हल्क स घस
ांू
लग ते हुए कह ।

उसकी बबच री की बोलती ही बांद हो गई।

“तो अननल, तन
ू े बत य नहीां कक कैसे मैडम के न म की मठ्
ु ठ म रते हो…”

मैंने स हस करके कह - “सर मज ले-लेकर म रत हूूँ, सहल त हूूँ अपने लण्ड को लय र से, मैडम क खूबसरू त
बदन आूँखों के आगे ल त हूूँ, किर जब नहीां रह ज त तो…”

“क्य बदम श न ल यक हैं ये दोनों। जर वो बेंत तो ल न , कह ां गय …” मड़


ु कर चौधरी सर ने बेंत उठ कर कह -
“ये रह … लगत है कक बेंत के बज य चलपल से ही पीटूां तम
ु दोनों को। इतन पीटूां कक चलने के ल यक न रहो
न ल यको। किर घर ज कर तम्प्
ु ह री न नी को सब बत दे त हूूँ…”

“नहीां नहीां सर, दय कीजजये, हमें बच लीजजये…”

लीन ने भी झक
ु कर सर क पैर पकड़ ललय ।

चौधरी सर कुछ दे र हम री ओर दे खते रहे, किर बोले- “मैं जो कहूांग वो करोगे… जैस भी कहूांग , करन पड़ेग ,
सज तो लमलनी ही च हहये तम ु दोनों को…”

“ह ूँ सर करें ग…
े ” मैं और लीन दीदी बोले।

“तम
ु लोग वैसे हम रे स्टूडेंट हो इसललये म ि कर रह हूूँ। तम ु को दे खके लगत नहीां थ कक ऐसे बदम श
ननकलोगे। वैसे मैं म नत हूूँ कक मैडम भी सदांु र हैं, जव नी में उनको दे खकर मन भटकन स्व भपवक है पर तम

दोनों को इतनी अकल तो होनी च हहये कक कह ां क्य करन च हहये। आओ, मेरे ब जू में बैठ ज ओ। घबर ओ
नहीां, मैं नहीां पीटूांग , कम से कम तब तक तो नहीां पीटूांग जब तक तम
ु दोनों मेरी ब त म नोगे…” बेंत रखते हुए
चौधरी सर बोले।

मैं और लीन चप
ु च प चौधरी सर के दोनों ओर सोिे पर बैठ गये।

“दरू नहीां प स आओ, गचपक कर बैठो। मैडम से कैसे गचपके थे तम


ु दोनों, अब क्यों शरम आती है न ल यको…”
मेरी और लीन की कमर में ह थ ड लकर प स खीांचते हुए चौधरी सर बोले।

9
हम शरम ते हुए घबर ते हुए उनसे गचपक कर बैठे रहे ।

“अननल, तम
ु अपनी जज़प खोलो और लण्ड ब हर ननक लो…” चौधरी सर बोले।

मैं थोड़ घबर गय । उनकी ओर दे खने लग ।

चौधरी सर बेंत उठ ने लगे- “तम


ु लोग सध
ु रोगे नहीां, तम्प्
ु हें तो ठुक ई की जरूरत है , मैंने क्य कह थ … जो
कहूांग वो चुपच प चूां चपड़ न करते हुए करोगे, अब ऐसे बैठे हो जैसे बहरे हो…”

“नहीां सर, स री सर, ललीज़…” कहते हुए मैंने जज़प खोली और लण्ड ब हर ननक ल ललय । लण्ड क्य थ , नन्
ु नी
थी, डर के म रे बबलकुल बैठ हुआ थ ।

“अच्छ है पर जर स है । तू तो कहत थ कक मैडम को दे खकर खड़ हो ज त है । इसको दे खकर तो नहीां लगत


कक मैडम तम
ु को अच्छी लगती हैं…”

“सर वो अभी… पहले खड़ थ सर पर अब…” मैं बोल और चप


ु हो गय ।

“मेरी ड ांट ख कर घबर गय , है न । इसे अब जर मस्त करो, कैसे इसे खड़ करके मठ्
ु ठ म रते हो, जर
हदख ओ…” चौधरी सर ने मझ
ु े कह , किर लीन की ओर दे खकर बोले- “और लीन , तू कहती है न कक लसफ़ि
अपने भ ई को ककस करती है तो करके हदख ककस…”

लीन शरम कर उनकी ओर दे खने लगी। किर उठकर मेरे प स आने लगी।

तो चौधरी सर ने ह थ पकड़कर किर बबठ ललय - “अरे उसे मत तांग करो, उसे मैंने पहले ही क म दे हदय है ।
लीन , तम
ु समझो कक मैं ही तम्प्
ु ह र भ ई हूूँ और मझ
ु े ककसे करके हदख ओ…”

लीन घबर कर शरम ती हुई उनकी ओर दे खने लगी।

“ऐसे क्यों दे ख रही हो, मैं इतन बरु हूूँ क्य हदखने में कक तेरे को मझ
ु े ककस भी नहीां ककय ज त …” चौधरी सर
ने उसकी ओर दे खकर पछ ू ।

“नहीां सर आप… मेर मतलब है …” लीन को समझ में नहीां आय कक क्य कहे ।

मैंने दीदी को कह - “दीदी कर ले न ककस… सर तो ककतने अच्छे हैं हदखने में, तू नहीां कहती थी मझ
ु से रोज कक
ह य अननल… सर ककतने हैंडसम हैं…”

“अच्छ … मैं अच्छ लगत हूूँ तझ


ु े लीन … किर जल्दी ककस करो, परे श नी ककस ब त की है…” सर बोले।

लीन ने शरम ते हुए चौधरी सर क ग ल चम


ू ललय ।

10
“बस ऐसे ही… इसे ककस कहते हैं… ग ल पर बस जर स … नन्हे बच्चे क चुम्प्म ले रही है क्य … ये होंठ ककस
ललये हैं…”

चौधरी सर ने ड ांट तो लीन ने आखखर उनके होंठों पर होंठ रख हदये। कुछ दे र चम


ू ने के ब द वह अलग हुई।
उसक चेहर ल ल हो गय थ ।

“और… मैं नहीां म नत कक तू बस अपने भ ई को ऐसे दस सेकांड सख


ू -े सख
ू े चम
ू ती है । ठीक से करके बत नहीां
तो…” बेंत को सहल ते हुए चौधरी सर बोले।

लीन ने हड़बड़ कर उनके गले में अपनी ब हें ड लीां और किर से उनक चांब
ु न लेने लगी। इस ब र वह एक
लमनट तक उनके होंठों को चूमती रही।

“यह हुई न ब त। अच्छ तेर भ ई भी ऐसे ककस करत है कक बैठ रहत है… दे खो मैं करके हदख त हूूँ…” कहकर
चौधरी सर ने लीन को प स खीांचकर उसके मूँह
ु पर अपन मह
ूँु रख हदय और किर चूमने लगे। जल्द ही वे दीदी
के होंठों को अपने होंठों में लेकर चस
ू ने लगे। दीदी ने कसमस कर अलग होने की कोलशश की पर चौधरी सर ने
उसकी कमर में ह थ ड लकर प स खीांच ललय और परू े जोर से उसके चम्प्
ु बन लेने लगे।

दीदी ने एक दो ब र छूटने की कोलशश की किर चप


ु च प बैठी हुई चम्प्
ु म दे ती रही।

“ऐस करत है कक नहीां ये न ल यक…” सर ने पछ


ू ।

लीन दीदी शरम कर नीचे दे खने लगी। उसके चेहरे पर से लगत थ कक सर के चुांबन से उसे मज आ गय
थ । सर मश्ु कुर कर किर दीदी को चम
ू ने लगे।

“तेर लण्ड खड़ हुआ कक नहीां न ल यक…” चौधरी सर ने चुम्प्म तोड़कर मझ


ु े पछ
ू पर अब उनकी आव ज में
गस्
ु से की बज य थोड़ स अपन पन थ ।

दीदी और सर की चमू च टी दे खकर मेर लण्ड आध खड़ हो गय थ । मैं उसे लय र से सहल त हुआ और खड़


कर रह थ । अब मझु े मज आने लग थ , डर कम हो गय थ । लण्ड ने लसर उठ न शरू ु कर हदय थ ।

“बहुत अच्छे , परू तन्न कर खड़ करो…” मेरी पीठ थपथप कर श ब सी दे ते हुए चौधरी सर लीन दीदी की ओर
मड़ु -े “अच्छ तो लीन , चुम्प्मे क मज लेते हुए तेर ये भ ई और कुछ करत है कक नहीां… य ने दे खो ऐसे…”
कहकर उन्होंने किर से दीदी को एक ह थ से प स खीांचकर चूमन शरू
ु कर हदय और दस
ू रे ह थ से फ़्र क के
ऊपर से ही उसके मम्प्मों को सहल न शरू
ु कर हदय ।

इस ब र दीदी कुछ नहीां बोली, बस आांखें बांद करके बैठी रही। जरूर उसे मज आ रह थ ।

धीरे -धीरे सर ने दीदी के मम्प्मों को हौले-हौले मसलन शरू


ु कर हदय - “ऐसे करत है य नहीां… इसे अकल है कक
नहीां कक अपनी खब
ू सरू त दीदी क चम्प्
ु म कैसे ललय ज त है …” किर मेरी ओर मड़
ु कर उन्होंने मेरे खड़े थरथर ते
लण्ड को दे ख ।
11
मैं अब मस्त थ , बहुत मज आ रह थ , दीदी और सर के बीच की क यिव ही दे खकर मेर लण्ड परू खड़ हो
गय थ ।

“अब खड़ हुआ है मस्त। अननल, क फ़ी सद ुां र है तेर लण्ड। इसे बस ऐसे ही हथेली से रगड़ते हो य ऐसे भी
करते हो…” कहते हुए चौधरी सर ने मेरे लण्ड को हथेली में लेकर दब य । किर लण्ड को मठ् ु ठी में लेकर अांगठ
ू े से
सप
ु ड़े के नीचे मसलन शरू
ु ककय ।

मेर और तनकर खड़ हो गय और मेरे मूँह


ु से लससकी ननकल गई।

“मज आय …” सर ने मश्ु कुर कर पछ


ू ।

मैंने मड
ुां ी डुल ई।

“जल्दी से मस्त करन हो लण्ड को तो ऐसे करते हैं। मझ


ु े लग थ कक तझ
ु े आत होग पर तझ
ु े अभी क फ़ी
कुछ सीखन है , लेसन दे ने पड़ेंगे…” वे बोले।

उनक ह थ मेरे लण्ड पर अपन ज द ू चल त रह । वे मड़


ु कर किर दीदी के स थ च लू हो गये। किर से दीदी की
चूची को फ़्र क के ऊपर से मसलते हुए बोले- “ब्र नहीां पहनती लीन तू अभी… उमर तो हो गई है तेरी…”

“पहनती हूूँ सर…” लीन दीदी सहम कर बोली- “ट्रे ननांग ब्र पहनती हूूँ पर हमेश नहीां…”

“कोई ब त नहीां, अभी तो जर -जर सी हैं, अच्छी कड़ी हैं इसललये बबन ब्र के भी चल ज त है । अब बत तेर
भ ई ऐसे मसलत है चच
ू ी… य ननपल को ऐसे करत है …”

कहकर वे दीदी क ननपल जो अब कड़ हो गय थ और उसक आक र दीदी के ट इट फ़्र क में से हदख रह थ ,


अांगठ
ू े और उां गली में लेकर मसलने लगे। दीदी ‘सी’ ‘सी’ करने लगी। वह अब बेहद गरम हो गई थी। अपनी ज ांघें
एक पर एक रगड़ रही थी।

सर मजे ले-लेकर दीदी की ये अवस्थ दे ख रहे थे। उन्होंने लय र से मश्ु कुर कर दरू से ही होंठ लमल कर चुांबन क
न टक ककय । दीदी एकदम मस्त गई, मचलकर उसने खद
ु ही अपनी ब ांहें किर से सर के गले में ड ल दी और
उनसे ललपटकर उनके होंठ चूसने लगी।

सर क ह थ अब भी मेरे लण्ड पर थ और वे उसे अांगठ


ू े से मसल रहे थे। मैंने दे ख कक अब चौधरी सर क
दस
ू र ह थ दीदी की चच
ू ी से हटकर उसकी ज ांघों पर पहुूँच गय थ । दीदी की ज घ
ां ें सहल कर चौधरी सर ने
उसकी फ़्र क धीरे -धीरे ऊपर खखसक य और दीदी की बरु पर पैंटी के ऊपर से ही िेरने लगे।

दीदी ने उनक ह थ पकड़ने की कोलशश की तो सर ने चुम्प्म लेत-े लेते ही उसे आांखें हदख कर स वध न ककय ।
बेच री चप
ु च प सर को चमू ते हुए बैठी रही। सर चड्डी के कपड़े पर से ही उसकी बरु को सहल ते रहे । दीदी ने
जब स ांस लेने को चौधरी सर के मूँह
ु से अपन मूँहु अलग ककय ।
12
तो चौधरी सर बोले- “लीन , तेरी चड्डी तो गीली लग रही है । ये क्य ककय तन
ू …
े बच्ची है क्य … कुछ बच्चों
जैस तो नहीां कर हदय …”

दीदी नजरें झुक कर ल ल चेहरे से बोली- “नहीां सर… ऐस कैसे करूांगी, वो आप जो… य ने…” किर चुप हो गई।

“अरे मैं तो मज क कर रह थ , मझ
ु े म लम
ू है तू बच्ची नहीां रही। और इस गीलेपन क मतलब है कक मज आ
रह है तझ
ु े। क्य बदम श भ ई बहन हो तम
ु दोनों। पर मज क्यों आ रह है ये तो बत ओ… क्यों रे अननल…
अभी रो रहे थे, अब मज आने लग …” चौधरी सर ने पछ
ू । उनकी आव ज में अब कुछ शैत नी से भरी थी।

मैं क्य कहत , चुप रह ।

“क्यों री लीन … मेरे करने से मज आ रह है… पहले तो मझ


ु े चूमने से भी मन कर रही थीां। अब क्य सर
अच्छे लगने लगे… बोलो। बोलो…” चौधरी सर ने पछ
ू ।

लीन ने आखखर ल ल हुए चेहरे को उठ कर उनकी ओर दे खते हुए कह - “ह ूँ सर आप बहुत अच्छे लगते हैं, जब
ऐस करते हैं, कैस तो भी लगत है …”

मैंने भी ह ूँ में ह ूँ लमल ई- “ह ां सर, बहुत अच्छ लग रह है , ऐस कभी नहीां लग , अकेले में भी…”

“अच्छ , अब ये बत ओ कक मैं लसफ़ि अच्छ करत हूूँ इसललये मज आ रह है य अच्छ भी लगत हूूँ तम
ु दोनों
को…” चौधरी सर अब मडू में आ गये थे।

मैंने दे ख कक उनकी पैंट में तांबू स तन गय थ । अपन ह थ उन्होंने अब दीदी की पैंटी के अांदर ड ल हदय थ ।
श यद उां गली से वे अब दीदी की चूत की लकीर को रगड़ रहे थे क्योंकी अच नक दीदी लससक कर उनसे ललपट
गई और किर से उन्हें चूमने लगी- “ओह सर बहुत अच्छ लगत है, आप बहुत अच्छे हैं सर…”

“अच्छ हूूँ य ने… अच्छे हदल क हूूँ कक हदखने में भी अच्छ लगत हूूँ तम
ु दोनों को…” चौधरी सर ने किर पछ
ू ।

दीदी क चुम्प्म खतम होते ही उन्होंने मेरी ओर लसर ककय और मेर ग ल चूम ललय - “क्यों रे अननल… तू बत ,
वैसे तम
ु और तेरी बहन भी दे खने में अच्छे ख से गचकने हो…”

मैं अब बहुत मस्त हो गय थ । सर से गचपट कर बैठने में अब अटपट नहीां लग रह थ । मेर ध्य न ब र-ब र
उनके तांबू की ओर ज रह थ । अनज ने में मैं धीरे -धीरे अपने चूतड़ ऊपर नीचे करके सर की हथेली में मेरे लण्ड
को पेलने लग थ । अपने लण्ड को ऊपर करते हुए मैं बोल - “आप बहुत हैंडसम हैं सर, सच में , हमें बहुत अच्छे
लगते हैं। दीदी अभी शरम रही है पर मझ
ु से ककतनी ब र बोली है कक अननल, चौधरी सर ककतने हैंडसम हैं। कल
सर जब आपने इसके ब ल सहल ये थे और ग लों को ह थ लग य थ तो दीदी को बहुत अच्छ लग थ …”

“तेरी दीदी भी बड़ी लय री है…” सर ने दो तीन लमनट और दीदी की पैंटी में ह थ ड लकर उां गली की और किर ह थ
ननक लकर दे ख । उां गली गीली हो गई थी। सर ने उसे च ट ललय - “अच्छ स्व द है लीन , शहद जैस …”
13
लीन आांखें बड़ी करके दे ख रही थी, शमि से उसने लसर झक
ु ललय ।

“अरे शरम क्यों रही है, सच कह रह हूूँ। एकदम मीठी छुरी है तू लीन , रस से भरी गडु ड़य है …” चौधरी सर
उठकर खड़े हो गये- “बैठो, मैं अब तम्प्
ु ह री मैडम को बल
ु त हूूँ। तम
ु दोनों ने जो ककय सो ककय , तम ु को न रोक
कर बड़ गलत कर रही थीां वे, पर अब ज ने दो, तम ु दोनों भ ई बहन सच में बड़े लय रे हो, तम्प्
ु हें म ि ककय
ज त है , मैडम को भी बत दां ।ू बड़े नरम हदल की हैं वे, वह ां परे श न हो रही होंगी कक मैं तम
ु दोनों की धन
ु ई
तो नहीां कर रह । पर उसके पहले… लीन , तम
ु अपनी पैंटी उत रो और सोिे पर हटक कर बैठो…”

लीन घबर कर शम िती हुई बोली- “पर सर… आप क्य करें गे…”

“डरो नहीां, जर ठीक से च टूांग तम्प्


ु ह री बरु । गलती तम्प्
ु ह री है , मैडम के स थ ये सब करने के पहले से सोचन
थ तम
ु को, और किर तेरी चूत क स्व द इतन रसील है कक च टे बबन मन नहीां म नेग मेर । अब गलती की है
तम
ु ने तो भग
ु तन तो पड़ेग ही। चलो, जल्दी करो नहीां तो कहीां किर मेर इर द बदल गय तो भ री पड़ेग तम

लोगों को…” टे बल पर पड़े बेंत को ह थ लग कर वे थोड़े कड़ ई से बोले।

“नहीां सर, अभी ननक लती हूूँ। अननल तू उधर दे ख न । मझ


ु े शमि आती है …” मेरी ओर दे खकर दीदी बोली, उसके
ग ल गल
ु बी हो गये थे।

“अरे उससे अब क्य शरम ती हो। इतन न टक सब रोज करती हो उसके स थ, आज दोनों लमलकर मैडम को…
और अब शरम रही हो। चलो जल्दी करो…”

लीन ने धीरे से अपनी पैंटी उत र दी। उसकी गोरी गचकनी बरु एकदम ल जव ब लग रही थी। बस थोड़े से जर -
जर से रे शमी ब ल थे। मेरी भी स ांस चलने लगी। आज पहली ब र दीदी की बरु दे खी थी, रोज कहत थ तो
दीदी मक
ु र ज ती थी। बरु गीली थी, ये दरू से भी मझ
ु े हदख रह थ ।

“अब ट ांगें फ़ैल ओ और ऊपर सोिे पर रखो। ऐसे… श ब्ब स…” चौधरी सर उसके स मने बैठते हुए बोले।

लीन दीदी ट ांगें उठ कर ऐसे सोिे पर बैठी हुई बड़ी चुदैल सी लग रही थी, उसकी बरु अब परू ी खुली हुई थी और
लकीर में से अांदर क गल ु बी हहस्स हदख रह थ । चौधरी सर ने उसकी गोरी दब ु ली पतली ज ांघों को पहले चूम
और किर जीभ से दीदी की बरु च टने लगे।

“ओह्ह… ओह्ह… ओह्ह… सर… ललीज़…” लीन शरम कर गचल्ल ई- “ये क्य कर रहे हैं…”

“क्य हुआ… ददि होत है…” सर ने पछ


ू …

“नहीां सर… अजीब स … कैस तो भी होत है…” हहलडुलकर अपनी बरु को सर की जीभ से दरू करने की कोलशश
करते हुए दीदी बोली- “ऐसे कोई वह ां… य ने जीभ, मूँह
ु लग ने से… ओह्ह… ओह्ह…”

14
“लीन , बस एक ब र कहूांग , ब र-ब र नहीां कहूांग । मझ
ु े अपने तरीके से ये करने दो…” सर ने कड़े लहजे में कह
और एक दो ब र और च ट । किर दो उां गललयों से बरु के पपोटे अलग करके वह ां चम ू और जीभ की नोक
लग कर रगड़ने लगे।

दीदी ‘अां’ ‘अां’ अां’ करने लगी।

“अब भी कैस तो भी हो रह है … य मज आ रह है लीन …” सर ने मश्ु कुर कर पछ


ू ।

“बहुत अच्छ लग रह है सर। ऐस कभी नहीां। उईऽ म ां… नहीां रह ज त सर। ऐस मत कीजजये न … अां… अां…”
कहकर दीदी किर पीछे सरकने की कोलशश करने लगी। किर अच नक चौधरी सर के ब ल पकड़ ललये और उनके
चेहरे को अपनी बरु पर दब कर सीत्क रने लगी।

सर अब कस के च ट रहे थे, बीच में बरु क ल ल-ल ल छे द चूम लेते य उसके पपोटों को होंठों जैसे अपने मूँह

में लेकर चूसने लगते।

दीदी अब आांखें बांद करके ह ांिते हुए अपनी कमर हहल कर सर के मूँह
ु पर अपनी चूत रगड़ने लगी। किर एक दो
लमनट में ‘उई… म … ां मर गईऽ…” कहते हुए ढे र हो गई, उसक बदन ढील पड़ गय और वो सोिे में पीछे लढ़ु क
गई।

सर अब किर से जीभ से ऊपर से नीचे तक दीदी की बरु च टने लगे, जैसे कुत्ते च टते हैं। एक दो लमनट च टने
के ब द वे उठकर खड़े हो गये। उनके पैंट क तांबू अब बहुत बड़ हो गय थ ।

“अच्छ लग लीन … मज आय …” सर ने पछ
ू ।

दीदी कुछ बोली नहीां, बस शरम कर अपन चेहर ह थों से छुप ललय और मड
ुां ी हहल कर ह ूँ बोली।

“अच्छी है लीन तेरी बरु , बहुत मीठी है । जरूर मैडम ने गेस कर ललय होग कक कैसे मतव ले जव न भ ई बहन
हो तम
ु दोनों नहीां तो वो ह थ भी नहीां लग ने दे तीां तम
ु दोनों को। चलो, उन्हें बल
ु त हूूँ, ि लतू ड ांट हदय बेच री
को…” कहकर वे उठे और ज कर दरव ज खोल ।

मैडम दरव जे पर ही खड़ी थीां। श यद सन


ु रही होंगी कक अांदर क्य हो रह है । ब द में मझ
ु े लग कक श यद वे
की-होल से अांदर भी दे ख रही थीां। मैंने जल्दी दे लण्ड पैंट के अांदर करके जज़प लग ली। दरव ज खोलते ही वे
अांदर आ गईं।

“सनु नये सर, म ि कर दीजजये, बच्चे ही हैं, हो ज त है , आखखर जव नी क नश है । इन्हें पीट तो नहीां… तम्प्
ु हर
कोई भरोस नहीां, तम
ु को गस्
ु स आ गय एक ब र तो…” वे अब भी उसी ह लत में थीां, ब्ल उज़ स मने से खल

हुआ थ और ब्र हदख रही थी। मझ
ु े न ज ने क्यों ऐस लग कक पैंटी भी श यद नहीां पहनी थी, पर स ड़ी के
क रण कुछ हदख नहीां रह थ ।

15
“पीटने व ल थ , बेंत भी ननक ली थी, आज इनक मैं भरु त बन दे त , ख सकर इस लीन की तो चमड़ी उधेड़
दे त , बड़ी है अननल से, दीदी है इसकी, इसे तो अकल होन च हहये। पर पत नहीां क्यों, ये म सम
ू से लगे मझ
ु ,े
रो भी रहे थे, म फ़ी म ांग रहे थे, इन्हें समझ य बझ
ु य , उसमें ट इम लग गय …”

“चलो अच्छ ककय । आखखर बेच रे न समझ हैं। पर ये लीन चड्डी उत रकर क्यों बैठी है … और ये अननल…” मेरे
लण्ड को दे खकर मश्ु कुर ते हुए वे बोलीां।

“अरे कुछ नहीां, जर धमक कर दे ख रह थ और पछ


ू रह थ कक ये भ ई बहन आपस में क्य करते हैं र त को,
इनकी न नी तो बढ़
ू ी है, सो ज ती है जल्दी, है न अननल… मैं बस दे ख रह थ कक अब भी सच कहते हैं य
नहीां…” चौधरी सर ने पछ
ू ।

मैडम बोलीां- “अब क्य करें इनक ?”

“कुछ नहीां, म ि कर दे ते हैं। पर इन्हें क फ़ी कुछ लसख ने की जरूरत है । ऐस करो तम


ु लीन को अपने कमरे में
ले ज ओ और जर एक प ठ और पढ़ ओ। इनको सांभ लन , समझ न अब हम री ड्यट
ू ी है , कहीां बबगड़ गये तो…”

लीन लसर झुक कर पैंटी पहनने लगी तो मैडम बोलीां- “अरे रहने दे , ब द में पहन लेन । अभी चल मेरे स थ उस
कमरे में…” और चौधरी सर की ओर मश्ु कुर ते हुए वे लीन दीदी क ह थ पकड़कर ले गईं।

मैं भी पीछे हो ललय तो चौधरी सर मेर ह थ पकड़कर बोले- “तू ककधर ज त है बदम श… तेर प ठ अभी परू
नहीां हुआ है । लीन क कम से कम एक तो लेसन हो गय । और अब मैडम भी लेसन लेने व ली हैं…”

मैं घबर ते हुए बोल - “सर, मैं… अब क्य करूां?”

वह ां मैडम ने अपने कमरे में ज कर दरव ज बांद कर ललय थ ।

“घबर मत, इधर आ और बैठ…” चौधरी सर ने सोिे पर बैठते हुए मझ


ु े इश र ककय ।

मेर लण्ड अब भी खड़ थ , पर अब िट िट बैठने लग थ । डर लग रह थ पर एक अजीब सी सनसन हट भी


हो रही थी हदम ग में । अांद ज हो गय थ कक अब क्य होग , सर ककस ककस्म के आदमी थे, ये भी स ि हो
चल थ । पर कोई च र नहीां थ । जो कहें गे वो करन ही पड़ेग ये म लम
ू थ । मैं उनके प स बैठ गय तो उन्होंने
मझ
ु े कमर में ह थ ड लकर प स खीांच ललय ।

“अब बत , लीन की चूत दे खकर मज आय ?”

“ह ूँ सर…”

“आज तक सच में नहीां दे खी थी…”

“नहीां सर, आपकी कसम। वो क्य है, दीदी च ांस नहीां दे ती ह थ व थ लग ने क …”


16
“वैसे उसने नहीां तेरे को ह थ लग ने की कोलशश की… य ने यह …
ां आखखर तू भी जव न है और वो भी…” सर मेरे
लण्ड को पैंट के ऊपर से सहल ते हुए बोले।

“नहीां सर, वैसे कई ब र मेर खड़ रहत है घर में, उसे हदखत है तो टक लग कर दे खती है और मेर मज क
उड़ ती है लीन दीदी…”

अच नक सर ने मझ
ु े खीांचकर गोद में बबठ ललय ।

“सर, ये क्य ?” मैं घबर कर गचल्ल य ।

“गोद में बैठ अननल, स्टूडेंट भले सय न हो ज ये, टीचर के ललये छोट ही रहत है…”

बैठे-बैठे मझ
ु े उनके लण्ड क उभ र अपने चूतड़ के नीचे महसस
ू हो रह थ । उन्होंने मझ
ु े ब ांहों में भर ललय और
मेरे ब ल चम
ू ललये। किर मेर लसर अपनी ओर मोड़ते हुए बोले- “अब तू चम्प्
ु म दे कर हदख , लीन ने तो िस्टि
क्ल स हदख हदय …”

“पर सर… मैं तो… मैं तो लड़क हूूँ…” मैंने हकल ते हुए कह ।

“तो क्य हुआ। ऐस कह ां ललख है कक लड़के लड़के चम्प्


ु म नहीां ले सकते… वैसे तू इतन गचकन है कक लड़की ही
है समझ ले मेरे ललये। अब नखर न कर, लीन तो प स हो गई अपने लेसन में, तझ ु े िेल होन है क्य ?”
मैंने कभी सपने में भी नहीां सोच थ कक ककसी मदि के स थ मैं इस तरह की ह लत में होऊूँग । मैंने डरते डरते
उनके होंठों पर होंठ रख हदये।

उन्हें चूमते हुए चौधरी सर ने मेरी जज़प खोलकर लण्ड ब हर ननक ल ललय और उसे ह थ में लेकर पच ु क रने
लगे। लण्ड में इतनी मीठी गद ु गद
ु ी होने लगी कक धीरे -धीरे मेरी स री हहचककच हट और… ये कुछ गलत हो रह
है … ये एहस स परू मन से ननकल गय । डर भी खतम हो गय । अब बच थ तो बस लण्ड में होती अजीब मीठी
च हत की फ़ीललांग जजसके आगे दनु नय क कोई ननयम नहीां हटकत । प स से मैंने सर को दे ख , वे सच में क फ़ी
हैंडसम थे।

बहुत दे र बस सर चमू रहे थे और मैं चप ु बैठ थ पर आखखर मैंने भी उनके होंठों को चमू न शरू
ु कर हदय ।
उनके होंठ म ांसल म स
ां ल से थे, प स से सर ने लग ये आफ़्टर शेव की भीनी-भीनी खशु बू आ रही थी। “मह
ुां बांद
क्यों है तेर … ठीक से ककस करन हो तो मूँह
ु खुल होन च हहये, इससे ककस करने व ले प स आते हैं और लय र
बढ़त है …” सर बोले।

मैंने अपन मूँह


ु खोल और सर ने भी अपने होंठ अलग-अलग करके मेरे ननचले होंठ को अपने होंठों में ललय
और चस
ू ने लगे। अब मझ
ु े उनके मूँह
ु क गील पन महसस
ू हो रह थ , स्व द भी आ रह थ ।

17
“श ब्ब स… अब ये बत कक तू जीभ नहीां लड़ त अपनी दीदी से… ऐसे। जर मूँह
ु खोल तो बत त हूूँ। तेरी दीदी के
स थ भी करने व ल थ पर बेच री बहुत शम ि रही थी आज पहली ब र। तन ू े सच में जीभ नहीां लड़ ई अब तक
ककसी से…” वे एक ह थ से मेरे लण्ड को और एक से मेरी ज ांघों को सहल ते हुए बोले।

“नहीां सर, अब तक नहीां। जब ककस भी नहीां ककय तो ये तो दरू की ब त है…”

“कोई ब त नहीां, अब करके दे ख, जीभ ब हर ननक ल…” वे बोले।

मैंने मूँह
ु खोल और जीभ ननक ली। सर ने अपनी जीभ भी मूँह
ु से ननक ली और मेरी जीभ से लड़ ने लगे। पहले
मझ
ु े अटपट लग पर किर उनकी वो ल ल-ल ल लांबी जीभ अच्छी लगने लगी। मैंने भी अपनी जीभ हहल न शरू

कर दी। चौधरी सर ने सहस उसे अपने मूँह
ु में ले ललय और चूसने लगे। मझ
ु े बहुत मज आ रह थ । अब
अपने आप मेर बदन ऊपर नीचे होकर सर के ह थ की पकड़ मेरे लण्ड पर बढ़ ने की कोलशश कर रह थ । सर
ने मेरी आूँखों में झ ांकते हुए मश्ु कुर कर अपनी जीभ मेरे मूँह
ु में ड ल दी और मैं उसे चूसने लग । अब मैं भी
मजे ले-लेकर चूम च टी कर रह थ ।

चौधरी सर के मूँह
ु क स्व द मझ
ु े अच्छ लग रह थ , जीभ एकदम गीली और रसीली थी। सर क लण्ड अब
उनकी पैंट के नीचे से ही स इककल के डांडे स मेरी ज घ
ां ों के बीच सट गय थ और महु ठय -महु ठय कर मझ
ु े ब र-
ब र ऊपर उठ रह थ । मैं सोचने लग कक ककतन तगड़ होग सर क लण्ड जो मेरे वजन को भी आस नी से
उठ रह है ।

दस लमनट चूम च टी करके सर आखखर रुके- “तेरे चुम्प्मे तो लीन से भी मीठे हैं अननल। तझ
ु े उससे ज्य द म कि
लमले इस लेसन में । अब अगल लेसन करें ग,े जव नी के रस व ल । लीन क रस तो बड़ मीठ थ , अब तेर
कैस है जर हदख …”

मैं उनकी ओर दे खने लग । मेरी स ांस तेज चल रही थी। लण्ड कसकर खड़ थ ।

मझ ु े नीचे सोिे पर बबठ ते हुए सर बोले- “तू बैठ आर म से, दे ख मैं क्य करत हूूँ। सीख जर , ये लेसन बड़
इांप टें ट है…”

सर मेरे स मने बैठ गये, किर मेरे लण्ड को प स से दे खने लगे- “मस्त है , क फ़ी रसील लगत है…” किर जीभ से
धीरे से मेरे सप
ु ड़े को गद
ु गद
ु य । मैं लसहर उठ । सहन नहीां हो रह थ ।

“क्यों रे तझ
ु े भी कैस -कैस होत है लीन जैस…
े ” और किर से मेरे सप
ु ड़े पर जीभ रगड़ने लगे।

“ह ूँ सर… ललीज़ सर… मत कीजजये सर… मेर मतलब है और कीजजये सर… अच्छ भी लगत है सर पर… सहन
नहीां होत है …” मैं बोल ।

“अच्छ , अब बत , ये अच्छ लगत है …” कहकर उन्होंने मेरे लण्ड को ऊपर करके मेरे पेट से सट य और उसकी
परू ी ननचली म ांसल ब जू नीचे से ऊपर तक च टने लगे।

18
मझ
ु े इतन मज आय कक मैंने उनक लसर पकड़ ललय - “ओह्ह… ओह्ह… सर… बहुत मज आत है…”

“ये ब त हुई न , य द रखन इस ब त को और अब दे ख, ये कैस लगत है…” कहकर वे बीच-बीच में जीभ की
नोक से मेरे सप
ु ड़े के जर नीचे दब ते और गद
ु गद
ु ने लगते।

मैं दो लमनट में झड़ने को आ गय - “सर… सर… आप… आप ककतने अच्छे हैं सर… ओह्ह… ओह्ह…” और मेर
लण्ड उछलने लग ।

चौधरी सर मश्ु कुर ये और बोले- “लगत है रस ननकलने व ल है तेर । जल्दी ननकल आत है अननल, परू मज
भी नहीां लेने दे त त।ू यह ां म कि कम लमलेंगे तझ
ु े। वो लीन भी ऐसी ही झड़ने की जल्दब जी व ली थी। खैर
तम
ु को भी क्य कहें , आखखर नौलसखखये हो तम
ु दोनों, लसख न पड़ेग तम
ु लोगों को और…” कहकर उन्होंने मेरे
लण्ड को परू मूँह
ु में ले ललय और चूसने लगे। स थ ही वे मेरी ज ांघों को भी सहल ते ज ते थे। चौधरी सर की
जीभ अब मेरे लण्ड को नीचे से रगड़ रही थी और उनक त लू मेरे सप
ु ड़े से लग थ । मैंने कसमस कर उनक
लसर पकड़ और अपने पेट पर दब कर उचक-उचक कर उनके मूँह
ु में लण्ड पेलने लग । सर कुछ नहीां बोले, बस
चस
ू ते रहे ।

अगले ही पल मेरी हहचकी ननकल गई और मैं झड़ गय । मैंने सर क लसर पकड़कर हट ने की कोलशश की पर


सर चस ू ते रहे, मेरे उबल-उबल कर ननकलते वीयि को वे ननगलते ज रहे थे। जब मेर लण्ड आखखर श ांत हुआ तो
मैंने उनक लसर छोड़ और पीछे सोिे पर हटक कर लस्त हो गय । सर अब भी मेरे लण्ड को चूसते रहे । किर
उसे मह
ूँु से ननक लकर हथेली में लेकर रगड़ने लगे।

“तेर रस बहुत मीठ है अननल, लीन से भी, वैसे उसक भी एकदम मस्त है, तझ
ु े फ़ुल म कि इस टे स्ट में, तू
बोल, तझ
ु े मज आय …”

“ह ूँ सर… बहुत… लगत थ प गल हो ज ऊूँग , सर… थैंक यू सर… इतन मज कभी नहीां आय थ जजांदगी में पर
सर… वो मैंने आपक लसर हट ने की कोलशश तो की थी। आपने ही सब मह ूँु में ले ललय …”

“क्य ले ललय …”

“यही सर… य ने ये सिेद…”

“ये जो सिेद मल ई ननकली तेरे लण्ड से, उसको क्य कहते हैं?”

“वीयि कहते हैं सर…” मैंने कह ।

“श ब स। तझ
ु े म लम
ू है । वीयि य ने सच में जव नी क ट ननक होत है, बेशकीमती, उसको कभी वेस्ट मत करन ,
जब-जब हो सके, उसे मूँह
ु में ही लेन , ननगलने की कोलशश करन , सेहत के ललये मस्त होत है…”

वे मेरे लण्ड से खेलते रहे । दोनों ह थों में लेकर बेलन से बेलते, कभी मठ्
ु ठी में लेकर दब ते और कभी अांगठ
ू े और
उां गली में लेकर मसलते- “अब बोल, क्य कह रह थ तू कक लड़क है … तो लड़के य ने मदि आपस मज नहीां कर
19
सकते क्य ऐसे… तझ
ु े मज आय कक नहीां… मैं भी लड़क हूूँ, तू भी लड़क है, पर इससे कोई िरक पड़ तेरी
मस्ती में… बोल, कैस लग ये लेसन?”

“सर आप बहुत अच्छ लसख ते हैं…” मैं उन्हें दे खकर शरम त हुआ बोल ।

“और हदखने में कैस लगत हूूँ… कक लड़क हूूँ इसललये अच्छ नहीां लगत …” चौधरी सर ने मेरे लण्ड के सप
ु ड़े को
चम
ू ते हुए पछ
ू ।

“नहीां सर, बहुत लय रे लगते हैं, मैडम जैसे ही। ककतने हैंडसम हैं आप…” मैं अब ह थ को मेरी गोद में झुके उनके
लसर के घने ब लों में चल रह थ । अब तक मेरे लण्ड में किर गद ु गद
ु ी होने लगी थी और वह लसर उठ ने लग
थ । दे खकर चौधरी सर ने उसे किर मूँह
ु में ले ललय और चस
ू ने लगे। एक ह थ से वे अब मेरे पैर के तलवे में
गद
ु गद
ु ी कर रहे थे। मेर जल्द ही परू खड़ हो गय ।

“तो ये प ठ पसांद आय तझ
ु …
े ” चौधरी सर उठकर सोिे पर बैठकर मझ
ु े किर ब ह
ां ों में भरके बोले।

अब मेरी हहम्प्मत बांध गई थी। चौधरी सर ने जजस तरह से मेर लण्ड चूस थ , मैं उनक गल
ु म ही हो गय थ ।
इसललये अब बबन हहचककच हट मैंने खुद ही उनके होंठ चूम ललये- “ह ां सर, आप बहुत अच्छे हैं सर…”

“तो अब चल, प ठ में जो सीख , करके बत । मेरे ऊपर कर…” मेर ह थ पकड़कर उन्होंने अपने तांबू पर रखते हुए
कह ।

मैं बबन शरम ये सर के तांबू पर ह थ किर ने लग । मेर हदल भी अब उनक लण्ड दे खने क कर रह थ पर
थोड़ डर भी लग रह थ कक श यद चस
ू न पड़ेग ।

मेरे ह थ से मस्त होकर सर बोले- “ह ूँ… बहुत अच्छे … और चल ओ ह थ अपन अननल। लगत है ऐस ही करते
हो क्ल स में क्यों… तभी तजुब ि है लगत है । बदम श कहीां के…” दो लमनट ब द सर बोले- “अब जज़प खोलो बेटे,
मेर लण्ड ब हर ननक लो…”

मैंने जज़प खोली। अांदर सर ने ज ांनघय पहन थ और लण्ड खड़ होकर अपने आप जस्लट से ब हर आ गय थ ।
जज़प खोलते ही परू टन्न से ब हर आ गय ।

“ब प रे …” मेरे मूँह
ु से ननकल आय ।

“क्य हुआ?” चौधरी सर मश्ु कुर रहे थे।

“बहुत बड़ है सर, मझ ु े पत नहीां थ कक ककसी क इतन बड़ होत है …” सर के तन्न कर खड़े लण्ड की ओर


आांखें ि ड़कर दे खत हुआ मैं बोल ।

“अच्छ लग तझ
ु …
े ठीक से दे ख, ह थ में ले…” सर बोले।

20
मैंने लण्ड ह थ में ललय ।

“कैस है, परू वणिन करके बत …”

“सर ऐस लगत है जैस गोर मोट मस


ू ल है, गन्ने जैस रसील लगत है…” मैं बोल ।

“ह ूँ… और बोल…” मस्त होकर सर बोले।

“सर नसें उभरी हुई हैं, एकदम मस्त हदखती हैं सर। और सर ये गोल-गोल…”

इसे क्य कहते हैं बोल… म लम


ू होग तझ
ु ,े अगर नहीां म लम
ू है तो एक तम च म रूांग …” सर मस्ती भरी आव ज
में बोले।

“सप
ु ड़ सर…”

“ये हुई न ब त। तो बोल, कैस है सप


ु ड़ …”

“सर… ककसी टम टर जैस रसील लग रह है, ल ल-ल ल फ़ूल हुआ। कभी रसीले सेब जैस लगत है…”

“और?”

“सर जस्कन ऐसे तनी है जैसे हव भर गब्ु ब र । कैसी मखमल सी लगती है ये गल


ु बी जस्कन…”

“चल अब ठीक से पकड़…” चौधरी सर ने कह । मैंने लण्ड को दो मठ्


ु हठयों में ललय , किर भी परू नहीां आय , डांडे
क दो इांच भ ग और सप
ु ड़ मेरी ऊपर की मठ्
ु ठी के ब हर ननकले थे।

“सर बहुत बड़ है सर, दो हथेली में भी पकड़ ई में नहीां आत है । सर… न प के दे ख…


ूां ” मैंने उसक
ु त से पछ
ू ।

“बबलकुल दे ख। इसे कहते हैं असली स्टूडेंट। हर चीज की उत्सक


ु त होनी च हहये। इस प ठ में तू अच्छ करे ग
अननल। ज , उस दर ज़ में से टे प ले आ…”

मैं टे प ले आय ।

“पहले खुद क न प… बत ककतन है ?”

मैंने अकेले में कई ब र न प थ किर भी सर के स मने किर से न प - “सर, प ांच इांच से ज्य द है पर स ढ़े प ांच
इांच के नीचे है…”

“चल ठीक है, अब मेर न प… यह ां नीचे से लग , जड़ से और ऊपर तक ले ज । ककतन है ?”

21
“सर पौने आठ इांच है सर। ठहररये सर किर से दे खत हूूँ…” कहकर मैंने किर टे प ठीक से लग यी- “आठ इांच है
सर। ककतन बड़ है । इतन मोट और लांब …” मैं सप
ु ड़े को हथेली में भरकर बोल - “दरू से तो ऐस लगत है
जैसे िूट भर क हो…”

“अब मोट ई दे ख। ऐसे नहीां मरू ख, प ई लसख य है न तझ


ु …
े य द है न … नहीां तो म रूांग । टे प को डांडे में लपेट
और दे ख। किर मोट ई बत …” सर ने कह ।

मैंने डांडे के च रों ओर टे प लपेटी- “सर सव छह इांच के करीब है । य ने…”

“जल्दी बत … सकिमफ़्रेंस अगर स ढ़े छह इांच है तो ड यमीटर ककतन है ?”

मैं हहस ब लग ने लग - “3॰14 से भ ग करके… ककतन होग …” मैं बद


ु बद
ु य । लसर चकर ने लग ।

चौधरी सर ने मेरी पीठ में एक घस


ूां म र , हल्के से- “अरे मरू ख, यह ां क्य पेपर पेजन्सल लेकर गण
ु भग
करे ग … प ई बर बर 3 समझ ले, अब बत …”

“सर 2” से जर स ज्य द हुआ। य ने आपक लण्ड दो इांच से थोड़ ज्य द मोट है …” मैं बोल ।

“बहुत अच्छे … अब सप
ु ड़ न प…” सर खुश होकर बोले।

सप
ु ड़े के च रों ओर टे प लपेटी तो न प स ढ़े स त इांच आय । मैंने झट तीन से भ ग हदत - “सर, अढ़ ई इांच के
करीब है , ब प रे ककतन मोट है सप
ु ड़ , लगत है जैसे आधे प व क एक टम टर हो…” मेरे मूँह
ु से ननकल पड़ ।

“दे ख न , कैस लग सर क लण्ड अब बत …” सर बड़े गवि से बोले। वे अब खुद ही अपने लण्ड को सहल रहे
थे।

“सर बहुत… बहुत मतव ल है सर, बहुत सद


ुां र, बहुत रसील लगत है सर और ककतन मजबत
ू और ज नद र है
सर…”

“म न गय न … अरे मेर लण्ड ऐस है कक ककसी को भी स्वगि की सैर करव दे , बस सैर करने व ल शौकीन
होन च हहये। रस चखेग इसक … बोल…”

“ह ूँ सर, लगत है कक अभी चब -चब कर ख ज ऊूँ सर…”

“तो शरू
ु हो ज । खेल उससे, उसे मस्त कर, स्व द दे ख। य द है वह सब करन है जो मैंने ककय थ …” सर पीछे
हटक कर बैठते हुए बोले।

अगले दस लमनट मैं चौधरी सर के लण्ड से खेलत रह । उसे तरह-तरह से ह थ में ललय , दब य , रगड़ ,
पच
ु क र , अपने ग ल और म थे पर रगड़ । किर सर के स मने जमीन पर बैठकर च टने लग ।

22
“आऽहऽ… अब आय मज मेरे बेटे। ऊपर से नीचे तक च ट। कुत्ते च टते हैं न वैसे, परू ी जीभ सट के…” सर
मस्त होकर बोले।

सर क लण्ड च टने में बहुत मज आ रह थ । पर मन सप ु ड़े क स्व द लेने को करत थ । मैंने लण्ड को किर
से मठ्
ु ठी में पकड़ और सप ु ड़े की सतह पर जीभ किर ने लग जैसे आइसक्रीम क कोन हो। एकदम मल ु यम
रे शमी चमड़ी थी, तनी हुई। लगत है कक मेरे नौलसखखय होने के ब वजूद सर को मज आ गय क्योंकी वे ऊपर
नीचे होने लगे।

“ह ूँ… ह ूँ बेटे… और च ट… वो नोक पर छे द दे खत है न । वह ां जीभ लग …”

मैंने दे ख कक सप
ु ड़े के बीचे के मत
ू ने के छे द पर एक सिेद मोती स छलक आय थ - “सर वह ां तो…” मैंने
हहचकते हुए कह ।

“वह ां क्य … बोल। बोल… क्य है वह ां…” सर ने मेरे ब ल पकड़कर कह ।

“सर वीयि की बद
ूां है…”

“अब उसक क्य करन है… बोलो बोलो अननल। उसक क्य करन है…” उन्होंने कड़ी आव ज में पछ
ू । किर खद

ही बोले- “उसे च टन है, स्व द लेन है, अांदर के खज ने क कैस ज यक है यह आजम न है । समझ न …”

जव ब में मैंने हहचकते हुए उसे बद


ूां को जीभ से टीप ललय । ख र स कसैल स स्व द थ । मझ
ु े अच्छ लग ।
मैंने सप
ु ड़े क आध हहस्स मूँह ु में ललय और चूसने लग ।

सर ओह्ह… ओह्ह… करने लगे। किर मेरे ब ल खीांचकर बोले- “अरे मरू ख द ांत क्यों लग रह है … पर चल कोई
ब त नहीां, उससे भी मझ
ु े मज आ रह है । ह ूँ… ह ूँ… ऐसे ही बेटे…”

“सर… मूँह
ु में ठीक से लेकर चूसूां सर…” मैंने पछ
ू ।

सर तो तैय र ही बैठे थे। मेरे क न पकड़कर बोले- “तो और क्य कह रह हूूँ मैं तब से न ल यक लड़के…”

“सर… बहुत बड़ है सर। मूँह


ु में नहीां आयेग …” मैंने हहचकते हुए कह ।

“परू मूँह
ु खोल, किर आयेग । मैं मदद करत हूूँ चल। पर पहले बत । मूँह
ु में लेकर क्य करे ग ?”

“सर चूसग
ूां …”

“कैसे चूसेग ?”

“सर कुल्फ़ी चस
ू ते हैं वैसे चस
ू ग
ांू …”

23
“कब तक चूसेग ?” सर मेरे ब ल सहल ते हुए बोले।

“जब तक आप झड़ नहीां ज ते सर…”

“झड़ने के ब द क्य करे ग … वीयि थूक ड लेग , है न … अच्छे बच्चे ऐस ही करते हैं न … बोल। जल्दी बोल…” सर
ने मेरी आूँखों में दे खकर कह ।

“नहीां सर…” हहचककच ते हुए मैंने कह - “ननगल ज ऊूँग सर…”

“क्य समझकर… बोलो बोलो क्य समझकर?”

मैं चुप रह । समझ में नहीां आ रह थ क्य कहूां।

सर ने किर कड़ ई के स्वर में पछ


ू - “बोलो अननल… क्य समझकर ननगलोगे अपने सर क वीयि… कड़वी दव ई
समझकर…”

“नहीां सर…” मैं बोल पड़ - “आपक रस द समझकर…”

सर खुश हो गये। झुक कर मझ


ु े चूम ललय - “ये बोल न अब ठीक से। अरे तेरे टीचर क रस द है ये,
बेशकीमती, मेर लशष्य बनकर रहे ग तो बहुत ऐश करे ग । अब चल जल्दी मह
ूँु खोल…”

मैंने मूँह
ु खोल । सर ने सप
ु ड़ होंठों के बीच किट कर हदय । किर मेरे ग ल पपचक कर मेर मूँह
ु और खोल और
सप
ु ड़ अांदर सरक हदय । मेरे मूँह
ु में सर क वो बड़ सप
ु ड़ परू भर गय । मैं आांखें बांद करके चस
ू ने लग । अब
बहुत अच्छ लग रह थ । सप ु ड़े में से बड़ी भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी। मैं जीभ से रगड़-रगड़कर और त लू से
सप
ु ड़े को गचपक कर लड्डू जैसे चूसने लग ।

सर अब मेर ल ड़ करने लगे। कभी मेरे ग ल पच


ु क रते, कभी मेरे ब लों को लय र से बबखर ते पर अपने लण्ड को
अब वे खदु नहीां छू रहे थे, ह थ दरू रखे थे- “ह ूँ… ह ूँ अननल बेटे। बहुत अच्छे मेरे बच्चे… तू तो बबन लसख ये ही
िस्टि आ रह है इस लेसन में । तेरी परीक्ष है वो यह कक बबन मेरे ह थ लग ये। य ने लसफ़ि तू ही करे ग मेरे
लण्ड से खेल। ककतनी दे र में तू मझ
ु े हदल स दे त है । तू कर लेग अननल… कल है तझ
ु में । थोड़ और ननगल
बेटे। जर और अांदर ले मेर लण्ड। ह ूँ ऐसे ही… और… और ले। तेर मूँह
ु तो मखमली है मेरे बेटे। क्य नरम-नरम
है । ओह्ह… आह्ह… बहुत लय र है तू अननल। हीर है हीर …”

सर क लण्ड और ननगलने के चक्कर में मझ


ु े ख ांसी आ गई तो वे बोले- “अब नहीां होत और तो रहने दे । ब द
में लसख दां ग
ू । अब जर मेरे लण्ड को पकड़कर मठ्
ु ठ म र। तेर रस द तेरे ललये तैय र है बेटे। ननक ल ले उसे
ब हर…”

मैं सर के लण्ड के डांडे को पकड़कर महु ठय त हुआ उनकी मठ्ु ठ म रने लग । स थ ही मूँह
ु में ललये सप
ु ड़े को
और कस के त लू और जीभ में दब य और चस ू ने लग । सर ऊपर नीचे होने लगे, मेरे मूँह
ु को अपने लण्ड से
चोदने की कोलशश करने लगे। मैं लग त र मठ्
ु ठी ऊपर नीचे करके उनको हस्तमैथुन कर रह थ ।
24
“ओहऽ… ह ूँऽ मेरे र ज ऽ… आहऽ…” करके सर ने मेरे लसर को पकड़ ललय । उनक लण्ड अब उछल-उछलकर झड़ने
लग थ ।

मेरे मूँह
ु में गरम-गरम गचपगचपे वीयि की फ़ुह र ननकल पड़ी। मैं आांखें बांद करके पीत रह । अब मेर स र परहे ज
खतम हो गय थ । मज आ रह थ । सर को ऐसे मीठ तड़प हदय यह सोचकर गवि स लग रह थ । गचपगचप
वीयि मेरे त लू से गचपक गय थ पर ऐस लग रह थ जैसे थोड़ नमक लमली जर सी कसैली मल ई हो। च र
प ांच बड़े चम्प्मच जजतन वीयि ननकल सर के लण्ड से, मैं सब ननगल गय । सोच रह थ कक कटोरी भर होत तो
और मज आत ।

आखखर सर ने मेरे मूँह


ु से लण्ड ननक ल । मझ
ु े ऊपर खीांचकर गोद में ले ललय और एक गहर चुांबन लेकर बोले-
“बहुत अच्छे अननल, तू तो अव्वल नांबर है इस लेसन में । वैसे इस लेसन के और भी भ ग हैं, वो मैं तझ
ु े लसख
दां ग
ू । पर आज जो तन
ू े ककय उसके ललये श ब्ब स बेटे। अब बत , स्व द आय … मज आय ?”

मैंने पलकें झपक कर ह ूँ कह क्योंकी मैं अब भी चटख रे ले-लेकर जीभ से ललपटे गचपगचपे कतरों क स्व द ले
रह थ । मझ
ु े अच्छ भी लग रह थ सर के मह
ुां से त रीि सन
ु कर। मेर लण्ड भी अब मस्त खड़ थ । डर भी
ननकल गय थ इसललये मैं उनकी गोद में उनकी ओर मड़
ु कर बैठ गय और शटि के ऊपर से ही उनके पेट पर
लण्ड रगड़ने लग । चम
ू च टी चलती रही। सर अब बड़ी लय र भरी आूँखों से मेरी ओर दे ख रहे थे। मैंने सर क
लण्ड अब भी कसकर ह थ में पकड रख थ । वह धीरे -धीरे किर से लांब होने लग ।

कुछ दे र ब द वे उठे और बोले- “चलो, अब जर दे खते हैं कक तेरी दीदी क प ठ खतम हुआ कक नहीां। वैसे ये
बत कक मज आय … य ने रस द कैस लग … स्व द आय य नहीां?”

“अच्छ लग रह थ सर। ककतन गचपगचप थ … गचपकत थ त लू में । ख र ख र स है सर। जैसे मल ई में


नमक लमल हदय हो। सर… एक ब त पछ
ू ू ां सर…” मैंने उनके पीछे चलते हुए कह ।

वे मेरे लण्ड को लग म स पकड़कर खीांचते हुए मझ


ु े दस
ू रे कमरे में ले ज रहे थे।

“सर अब कल से। य ने किर से आप… मतलब सर…” मैं थोड़ शरम गय ।

“बोलो बोलो अब डरने की कोई ब त नहीां है , तम


ु दोनों ने स बबत कर हदय है कक ककतने अच्छे स्टूडेंट हो। अब
मैडम और मझ
ु े तम
ु से कोई लशक यत नहीां है । ह ूँ ऐसे ही कह म नन पड़ेग अब रोज। बोलो तम
ु क्य पछ
ू रहे
थे…”

“सर अब रोज ऐसे ही… य ने ऐसे ही लेसन होंगे क्य ?” मैंने पछ


ू ।

“ह ूँ होंगे तो… पसांद नहीां आये…” सर ने पछ


ू ।

“नहीां सर, अच्छे लगे, बहुत मज आय । इसललये पछ


ू रह थ …”

25
“चलो तम्प्
ू ह री दीदी से भी पछ
ू लेते हैं। और इसक क्य करें …” मेरे लण्ड को पकड़कर वे बोले- “ये तेर तो किर
से खड़ हो गय है । इसे ऐसे घर भेजन ठीक नहीां है, र त को किर शैत नी करने लगोगे तम
ु भ ई बहन…” कहते
हुए सर दरव ज खोलकर अांदर घस
ु गये।

***** *****
अांदर मैडम पलांग पर लेटकर दीदी की चूत चूस रही थीां। उनकी ब्र ग यब थी और लय रे -लय रे छोटे -छोटे मम्प्मे
नांगे थे। उनकी स ड़ी कमर के ऊपर थी और उनकी गोरी छरहरी ज ांघें फ़ैली हुई थीां। गोरी बरु एकदम गचकनी थी,
श यद शेव की हुई थी। दीदी के फ़्र क के दो बटन खुले थे और दीदी की जर -जर सी कड़क चगूां चय ां हदख रही
थीां। दीदी ट ांगें फ़ैल कर लसरह ने से हटक कर मैडम के स मने बैठी थी और “ओह्ह… ओह्ह… मैडम… ह ूँ मैडम…
ललीज़ मैडम…” कर रही थी। उसने ह थों में मैडम क लसर पकड़ रख थ जजसे वह बरु पर दब ये हुए थी। मैडम
क एक ह थ अपनी बरु पर थ और वे उसमें उां गली कर रही थीां। जीभ ननक लकर वे दीदी की बरु परू ी ऊपर से
नीचे तक च ट रही थीां।

“क्यों लीन , मैडम ने कुछ लसख य य नहीां…” सर ने दीदी की चच


ू ी पकड़कर पछ
ू ।

लीन से ठीक से बोल भी नहीां ज रह थ । बस सर और मेरी ओर पथर यी आूँखों से दे खकर- “ओह्ह… ह ूँ… अां…
अां…” करती रही। किर उसकी नजर सर के आधे खड़े लण्ड पर पड़ी, बस उसने नजर वहीां गड़ दी। ऐसे दे ख रही
थी जैसे बच्च ललच कर खखलौने को दे खत है ।

मैडम ने मह
ूँु उठ कर कह - “आ गये तम
ु … प ठ खतम हो गय लगत है … कैस है यह लड़क पढ़ने में… कुछ
सीख य ऐसे ही भोंद ू जैस बैठ रह …”

सर बोले- “सपु रय र नी, ये तो एकदम होलशय र है, एक ब र में सीख गय । इसे अब एक्सपटि कर दां ग
ू । यह
लड़की कैसी है?”

“बड़ी मीठी लय री सी बच्ची है । अच्छ सीख रही है, सब कह म नती है । अभी तक मेहनत कर रही थी बेच री
अपनी मैडम की खूब सेव की इसने। मेर शहद भी चख ललय । अब जर इसे इसकी मेहनत क इन म दे रही
हूूँ…” मैडम ने मश्ु कुर कर कह ।

“ऐस करो, हम दोनों लमलकर लसख ते हैं इन्हें । जल्दी लेसन हो ज येग । किर इन्हें ज ने दो। कल से ठीक से
पढ़ न पड़ेग । बड़े होनह र स्टूडेन्ट हैं…” चौधरी सर ने पलांग पर चढ़ते हुए कह ।

उन्होंने मैडम को गचत ललट य और मझ


ु े बोले- “अननल, चल आ ज । मैं हदख त हूूँ वैसे कर। मैडम के न म से
मचल रह थ न त…
ू ले मैडम को हदख दे कक तझ
ु में ककतनी अकल है, चल मैडम की ट ांगों के बीच बैठ…”
उन्होंने मेर लण्ड पकड़कर मैडम की चूत पर रख और इश र ककय ।

मैंने पेल तो पक्


ु क से मेर लण्ड मैडम की उस गहरी बरु में घस
ु गय । एकदम गीली और गरम थी मैडम की
चूत।

26
“लीन , तू उठ और ठीक से बैठ मैडम के मूँह
ु पर। ऐसे… बहुत अच्छे … स इककल पर बैठती है न , वैसे ही बैठ।
सव री कर मैडम के मूँह
ु पर, पैर चल जर । मैडम की लय स बझ ु नी च हहये ठीक से, नहीां तो मेर वो बेंत अब
भी पड़ है ब हर। समझ गई न ?”

लीन दीदी ने मड
ुां ी हहल यी। उसकी ह लत क फ़ी न जक
ु थी। श यद चूत में होती मीठी कसक उससे सांभल नहीां
रही थी।

“अब मूँह
ु खोल लीन । ये लेसन तन
ू े नहीां ककय , पर तेरे भ ई ने बहुत अच्छ ककय । चल मूँह
ु में ले और चूस।
समझ ले गन्न है । रस ननक ल ले इसमें से। जजतनी जल्दी रस ननक लेगी, उतने म कि ज्य द दां ग ू …” चौधरी सर
दीदी के स मने बैठ गये और अपने लण्ड को उसके होंठों और ग लों पर रगड़ने लगे। अब तक उनक लशश्न
एकदम तनकर खड़ हो गय थ ।

दीदी अब जोर-जोर से स ांस लेते हुए उचक-उचक कर मैडम के मूँह


ु पर अपनी बरु नघस रही थी। वह जीभ
ननक लकर चौधरी सर के लण्ड को च टने लगी।

सर मश्ु कुर ये- “बहुत अच्छे लीन । लेसन की तैय री अच्छी है । पर मूँह
ु खोलो, ये लेसन ब द में ठीक से परू
दां ग
ू । अभी जल्दी में समरी लसख त हूूँ बस…”

दीदी ने मूँह
ु खोल और सर क सप
ु ड़ गलप से ननगल ललय । किर आांखें बांद करके चूसने लगी। सर ने उसकी
दोनों चोहटय ां ह थ में लेकर उसक लसर अपनी ओर खीांच - “व ह, यह लड़की इस लेसन को अच्छ करे गी लगत
है , क्यों रे अननल, तन
ू े भी इतनी जल्दी नहीां ककय थ । और क्य लय र से चूस रही है लड़की, एकदम स्व द
लेकर। अब चूसो लीन , अपने सर क रस द प ओ। और तम
ु अननल, अब कमर आगे पीछे करो, धक्के म रो।
म लम
ू है इसे क्य कहते हैं…”

“ह ूँ सर… चोदन …” मैडम की बरु में लण्ड पेलत हुआ मैं बोल ।

“बहुत अच्छे … अब तम्प्


ु ह र क म यह है कक तब तक चोदो जब तक मैडम खद ु न बोलें कक अब रुको। समझे न …
तेर यही क म है अब…” चौधरी सर बोले। वे भी अब धीरे -धीरे आगे पीछे होकर दीदी के मूँह
ु को चोद रहे थे। हम
दोनों भ ई बहन बत य हुआ क म करने लगे।

सर अब दीदी को बोले- “लीन , तेरे दो क म हैं। चस


ू न और चस
ु व न । बहुत अच्छे से चस
ू रही है त।ू ब द के
लेसन में और लसख दां ग
ू कक अांदर तक परू ननगलकर कैसे चूसते हैं। पर अभी अपनी मैडम क भी खय ल करो,
उन्हें तेरी चूत चूसने में ज्य द मेहनत न करनी पड़े। मजे ले-लेकर चुसव ओ और खूब स र प नी मैडम को
पपल ओ। ठीक है न …”

दीदी ने मड
ांु ी हहल ई। हम दोनों भ ई बहन मन लग कर जैस चौधरी सर और मैडम ने बत य थ वैसे करते रहे ।

“मैडम चुद रहीां है न ठीक से अननल… दे ख इसमें गिलत मत करन , मैडम गरु
ु आइन हैं तम्प्
ु ह री, उन्हें परू
सांतष्ु ट करोगे तो आलशव द
ि प ओगे…”

27
मैं और मन लग कर सट -सट मैडम को चोदने लग । उनकी गीली ररसती बरु में से अब ‘िच’ ‘िच’ ‘िच’ की
आव ज आ रही थी।

“लीन , मेर लण्ड थोड़ और ननगल, ऐसे सप


ु ड़ चूसन तो ठीक है पर जर गन्ने को भी तो चूस। और दे ख, अब
तेरी मेहनत क िल तझ
ु े लमलने व ल है , वह ठीक से भजक्तभ व से ग्रहण करन , मूँह
ु से टपकने न दे न …”
लीन के लसर को अपने पेट पर दब कर चौधरी सर बोले।

लीन दीदी क बदन अच नक कांपकांप ने लग और वह मैडम के लसर को पकड़कर ऊपर नीचे होने लगी। मैडम
जोर-जोर से चूसने लगीां, सरि सलप सप
ु की आव जें करते हुए। स थ ही वे अपनी ट ांगें िटक रने लगीां। चौधरी सर
ने झक
ु कर मेर लसर अपनी हथेललयों में ललय ।

और मझु े चूमकर बोले- “बस बहुत अच्छे मेरे ल ड़लो। लीन तो मैडम की लय स अब बझु रही है , उसकी भख ू मैं
अभी लमट त हूूँ, अब तू मैडम को ऐसे चोद कक वे एकदम खश ु हो ज यें। और ये अपनी मैडम के मम्प्मे तझ
ु े
पसांद नहीां आये क्य … तब से दे खो बेच रे वैसे ही अलग से पड़े हैं, जर उनकी भी खबर ले…”

मैंने मैडम की चूांगचय ां पकड़ीां और दब -दब कर मैडम को चोदने लग । चौधरी सर लग त र मेर चम्प्
ु म ले रहे थे
और मेरी जीभ चूसते हुए लीन दीदी के लसर को अपने पेट पर दब कर उसक मूँह ु चोद रहे थे। पहले मैडम झड़ीां
और कसमस कर उन्होंने अपनी ट ांगों से मेरी कमर को जकड़ ललय । मैंने चौधरी सर के होंठ अपने द ांतों में
दब ये और कसके चूसते हुए एक लमनट में झड़ गय । किर लस्त होकर बैठ गय । अगले ही पल चौधरी सर ने
मेरे मह
ूँु में एक गहरी स ांस छोड़ी और उनक बदन भी गथरक उठ ।

दीदी मन लग कर उनक लण्ड चूस रही थी। दो लमनट ब द सब अलग हुए और पलांग पर बैठ गये। लीन दीदी
अपन मूँह
ु पोंछ रही थी। चौधरी सर के ग ढ़े वीयि के कुछ कतरे उसके होंठों से लटक रहे थे। मैंने तरु ां त आगे
होकर दीदी क मूँह
ु चूम ललय और वे कतरे च ट ललये।

“अच्छ लग गन्ने क रस लीन … तन


ू े करीब-करीब परू ननगल ललय ये दे खकर मझ
ु े अच्छ लग । थोड़ वैसे तेरे
मूँह
ु से ननकल आय दे ख, पर कोई ब त नहीां, तेरे भ ई ने दे ख कैसे रेम से च ट ललय । ये न य ब चीज है ,
बरब द नहीां करनी च हहये। अननल बड़ समझद र हो गय है एक ही लेसन के ब द…”

“तो लीन , तू कुछ बोली नहीां…”

“सर… बहुत अच्छ लग सर। मल ई जैस । और मूँह


ु में लेकर भी बहुत अच्छ लगत है सर, इतन बड़ और
म ांसल है आपक ल… मेर मतलब है ये आपक … य ने सर…” लीन दीदी क मूँहु शरम से ल ल हो गय थ पर
वैसे वह खुश लग रही थी।

“रुक क्यों गई बोल… बोल आपक । ये… य ने… इसके पहले क्य बोल रही थी…” सर ने हूँसते हुए पछ
ू ।

“सर… लण्ड…” लीन लसर झक


ु कर बोली।

28
“बहुत अच्छे , शरम न नहीां च हहये, खुल बोलन च हहये। अब बत , तझ
ु े मज आय कक नहीां मैडम को अपन
प नी पपल कर…”

“ह ूँ सर… इतन अच्छ लग । मैं… य ने बहुत मज आय सर, मैडम जीभ से मझ


ु े कैस -कैस कर रही थीां…” लीन
दीदी बोली।

“चलो, सन
ु सपु रय र नी, तेरी स्टुडेंट तो किद है तझ
ु पर, वैसे इस लड़की क स्व द कैस थ …” चौधरी सर ने
मैडम को पछ
ू ।

मैडम एक ह थ से दीदी के मम्प्मे सहल रही थी और एक ह थ से मेरे मरु झ ये लण्ड को लय र से मसल रही थीां।
मश्ु कुर कर बोलीां- “अरे ये कोई पछ
ू ने की ब त है … ये लड़की तो एकदम लमठ ई है लमठ ई। जव न बदन क रस है
आखखर। और इस लड़के ने भी बहुत अच्छी मेहनत की। बहुत लय र से और जोर से धक्के लग रह थ । मेरी बरु
को परू मज हदय इसने…”

“चलो, बहुत अच्छ हुआ। अब बच्चो, आज की तम्प् ु ह री गलती म ि की ज ती है । अब घर ज ओ, दे र हो गई है ।


पर अब ऐसे लेसन रोज होंगे। तम्प्
ु हें ठीक से लसख न पड़ेग । दोनों अच्छे होनह र हो और बहुत लय रे हो, जल्दी
ही सब सीख ज ओगे। अब कल से घर में बत कर आन कक सर और मैडम रोज एक घांटे की नहीां, तीन घांटे की
ट्यश
ू न लेने व ले हैं। तम्प्
ु ह र स्कूल तीन बजे छूटत है न …” सर ने पछ
ू ।

हमने मड
ांु ी हहल यी।

“तो बस घर ज कर अच्छे से नह धोकर फ़्रेश होकर च र बजे आ ज य करो। मैं और मैडम तीन घांटे तम्प्
ु हें
पढ़ येंगे, स त बजे तक। ठीक है न …”

हमने खुश होकर मड


ुां ी हहल यी और कपड़े पहनने लगे। मैंने स हस करके पछ
ू - “सर… य ने एक ब त पछ
ू ू ां सर?”

“ह ूँ ह ूँ बोलो, डरो मत…”

“सर हम रे लेसन ऐसे ही आप और मैडम दोनों लमल कर लेंगे कक अलग-अलग। य ने…” कहकर मैं शरम कर चुप
हो गय ।

“तम
ु बोलो। तम्प्
ु हें मैडम से पढ़न है य मझ
ु से… तू भी बत लीन …” चौधरी सर मश्ु कुर कर बोले।

लीन दीदी ने मेरी ओर दे ख । उसके मन की ब त मैं समझ गय - “सर, हम दोनों को आप दोनों से पढ़न है
सर, आप बहुत अच्छे लेसन दे ते हैं…” मैं खझझकत हुआ बोल ।

चौधरी सर हूँसने लगे और मैडम की ओर दे ख ।

मैडम बोलीां- “बस किर हो गय । च र से स ढ़े च र तक मैं तम


ु दोनों को गखणत पढ़ ऊूँगी और किर आधे घांटे तक
सर तम
ु लोगों को इांगललश पढ़ येंगे जजसके ललये तम
ु दोनों यह ां आते हो। पढ़ ई ललख ई में कोई कमी नहीां होनी
29
च हहये। उसके ब द एक-एक घांटे हम र ख स लेसन होग । मैं तम्प्
ु हें पढ़ ऊूँगी अननल और सर लीन को पढ़ येंगे।
हर हदन बदल लेंग,े कभी मैं लीन को पढ़ ऊूँगी और सर अननल को पढ़ एांगे। अलट-पलटकर हर हदन ऐसे लेसन
होंगे। और किर हर रोज आखखरी एक घांटे में मैं और सर दोनों लमलकर तम
ु दोनों के लेसन लें गे जैसे आज ललय
थ । ठीक है न …”

मैं और लीन खुशी से एक स थ बोल पड़े- “ह ूँ मैडम…” और अपनी ककत बें उठ कर चलने की तैय री करने लगे।

लीन ने मड़
ु कर खझझकते हुए मैडम से पछ
ू - “मैडम, शननव र और रपवव र को छुट्टी होगी क्य ?”

चौधरी सर बोले- “ह ूँ वैसे तो छुट्टी है । क्यों, तम


ु दोनों पढ़न च हते हो क्य छुट्टी में भी…”

लीन ने मेरी ओर दे ख । मैं स हस करके बोल - “ह ूँ सर, घर में तो हम अकेले हैं, न नी भर है , आस पड़ोस में
पहच न भी नहीां है । आप कहें तो…”

“अरे व ह, ये तो अच्छी ब त है , तम
ु अगर पढ़न च हते हो तो हम तो बड़ी खश
ु ी से पढ़ येंगे। ऐस करो न नी को
बोल दो कक शननव र को स्पेशल क्ल स होगी छह घांटे की, सब
ु ह जल्दी ख न ख कर 11:00 बजे आ ज य करो।
प ांच बजे तक अच्छे से पढ़ ई करें गे हम लमलकर। ठीक है न … परसों ही शननव र है , तभी से शरू
ु कर दें ग…
े ”

“ह ूँ सर…” हमने कह और घर को ननकल पड़े।

दो लमनट हम चुपच प चलते रहे , आज के हदन जो हुआ थ , वह इतन मस्ती व ल थ कक पवश्व स ही नहीां हो
रह थ । मन में थोड़ डर भी थ कक हमने जो ककय वो गलत तो नहीां ककय । थोड़ी दे र ब द लीन दीदी बोली-
“क्य ककय रे सर ने तेरे स थ अकेले में …”

“और तेरे स थ मैडम ने क्य ककय दीदी?” मैंने पछ


ू ।

दीदी कुछ नहीां बोली।

मैंने कह - “दीदी, कल आन है क्य ?”

“क्यों अननल, क्यों पछ


ू त है… अभी तो बड़ी खश
ु ी से चहक रह थ …” दीदी मड़
ु कर बोली।

“ऐसे ही, दीदी, तम


ु ने भी तो शननव र रपवव र की ब त खुद ही छे ड़ी थी, है न …” मैंने कह तो दीदी चुप हो गई।
दो लमनट ब द मैं बोल - “दीदी, यूां ही मेरे मन में आय , लगत है सर और मैडम ने लमलकर हमें फ़ांस य है ।
मैडम ने ज नबझ
ू कर हम दोनों को म ललश के ललये कह थ । किर आकर सर ने पकड़ ललय …” मैंने कह ।

“ह ूँ अननल, सच कहत है, वैसे ये गलत ब त है । हमें श यद नहीां आन च हहये है न …” दीदी बोली और मेरी ओर
दे खने लगी।

30
मैं थोड़ बबचक गय , सोच कक ि लतू ये कह कक सर और मैडम ने हमें िांस य । दीदी अब सोच रही थी कक
ट्यश
ू न ही बांद कर दें । लीन को मन ने के ललये बोल - “दीदी, वैसे मझ
ु े पक्क नहीां म लम
ू , ऐसे ही कह । पर
सच बोलो, मज आय कक नहीां…”

दीदी धीरे से बोली- “उससे क्य िरक पड़त है ?”

“व ह दीदी िरक क्यों नहीां पड़त । तम


ु जो भी कहो, हम दोनों कुछ ऐस ही हो इसकी किर क में थे, है न …”

“ह ूँ रे , मैडम ककतनी खूबसरू त हैं… है न …” दीदी आखखर थोड़ी खुलकर बोली।

मैं बोल - “और सर भी, उनक लण्ड दे ख न दीदी… क्य म ल है । झठ


ू मत बोल, तू कैसे चूस रही थी गन्ने
जैसे…” मैं बोल ।

“ह ूँ… मज तो आय । तू ही बोल क्य करें …” दीदी कनखखयों से दे खकर बोली।

“आयेंगे न दीदी, ललीज़…” मैंने दीदी क ह थ पकड़कर कह - “मज आयेग । सर और मैडम ने ज नबझ
ू कर भले
ककय हो पर हम ही तो दे खते थे उन दोनों को, उनकी समझ में आ गय और उन्होंने ह थ स ि कर हदय । हमें
भी तो यही च हहये थ न दीदी… बोलो, आयेंगे न दीदी?”

“ह ूँ आयेंगे। पर ककसी को बत न नहीां, तेर कोई भरोस नहीां…” दीदी मेरी ओर दे खकर बोली।

“मेर क्य हदम ग खर ब हुआ है… पर दीदी अब मैडम और सर लमलकर हमको… य ने आज जैसे रोज… य ने
चोदें गे क्य ?” मैंने पछ
ू ।

“किर क्य , पज
ू करने को बल
ु य है …” दीदी हूँसने लगी।

“दीदी, तम
ु चुदव लोगी सर से… मैं तो मैडम को रोज मस्त चोद करूांग आज की तरह…”

“ह ूँ रे , डर तो लगत है पर ककतन मस्त लण्ड है उनक । और हूँसत क्य है… सर तझ


ु े भी चोदें गे। छोड़ेंगे थोड़े…”
दीदी मझ
ु े धक्क दे ते हुए बोली।

“पर दीदी, मैं तो मदि हूूँ। मेरी… य ने मेरी चूत थोड़े है तेरे जैसी, किर कैसे चोदें ग?
े ” मैंने सकपक कर पछ
ू ।

“अरे इतन भोल मत बन, कल कैसी ककत ब पढ़कर सन


ु रह थ मस्तर म की। वो दे वर भौजी की ग ण्ड म रत
है तब की…”

“य ने दीदी, सर मेरी… ब प रे , मैं नहीां आने व ल कल…” मैं सहम कर बोल ।

“मत आ, मैं तो ज ऊूँगी। वो मैडम के मम्प्मे ककतने लय रे थे, य द है न … दे ख थ न … मझ


ु से खब
ू चस
ु व ये
आज उन्होंने। और उनकी चूत क स्व द। वो तो तन
ू े ललय ही नहीां। और सर कल ही तेरे को। ऐस थोड़े ही है ,
31
वो तो मैं इसललये कह रही थी कक मझ
ु े लगत है कक मैडम और सर दोनों को हम दोनों से ये मस्ती क लग व
हो गय है …” दीदी मझ
ु े लभ
ु ते हुए बोली।

“तो दीदी, मैं क्य लसफ़ि मैडम के स थ मस्ती नहीां कर सकत , सर मन करें गे क्य ?” मैंने पछ
ू ।

“और क्य , तझ ु े लग खुश होंगे… पर तू डरत क्यों है , सर तझ


ु े बहुत पसांद करते हैं। सर ने तझ
ु े लय र ककय न
अकेले में… वैसे ही जैसे मैडम ने मझ
ु े ककय … तझ
ु े अच्छ नहीां लग क्य … मेरी कसम सच बत …”

“ह ूँ दीदी, पहले बहुत अजीब लग , पर ब द में मेर खड़ होने के ब द अच्छ लग । मैं तो बस थोड़ इसललये डर
रह थ कक सर क बहुत बड़ है । वैसे बहुत मस्त है दीदी, एकदम खब ू सरू त है, जब मैं ह थ में लेकर… तब बहुत
मज आ रह थ दीदी…”

“और कुछ नहीां ककय सर ने… मल ई नहीां खखल ई तेरे को… मझ


ु े चुसव ने के पहले अकेले में नहीां चुसव य थ
सर ने अपन गन्न … और तन
ू े भी कुछ ककय होग । दे ख ब त मत बन , ऐस भोल भ ल मत बन…” दीदी ने
त न हदय ।

मैं शरम कर नीचे दे खने लग - “ह ां दीदी…”

“तो न टक मत कर, अपन दोनों कल से चलेंगे तीन घांटे के ललये, ठीक है न …” दीदी बोली।

“ह ूँ दीदी। बहुत मज आयेग दीदी, आज तो सर पहले ड ांट रहे थे इसललये मैं घबर गय थ , ब द में ककतन
लय र ककय उन्होंने, है न दीदी…” मैं खुद को समझ त हुआ बोल , कल के ब रे में सोच सोचकर मेर लण्ड किर
से खड़ हो रह थ ।

चलते चलते घर आने को थ तब मैं बोल - “दीदी, आज र त चोदने दो न …”

दीदी मेर क न पकड़कर बोली- “खबरद र बदम श, न नी को बत दां ग


ू ी। अब जो करन है सर और मैडम के स थ
करन …”

“दीदी, तम
ु बहुत सद
ुां र हो, मेर खड़ हो ज त है …” मैंने सि ई दी।

“वो ठीक है रे । पर जब हम सर के यह ां ज येंगे तो क्य थके हुए ज यें… हमें परू आर म करके त जेदम होकर
ज न च हहये, जजससे सर और मैडम को मज आये। ऐसे र त को मज करन शरू ु कर हदय तो उनको जरूर
पत चल ज येग , किर पढ़ ई की छुट्टी…”

“दीदी पर तेरी चत
ू ककतनी लय री हदख रही थी आज… तम
ु तो हदख ती भी नहीां हो ठीक से। कम से कम च टने
दोगी दीदी आज र त… ललीज़…” मैंने दीदी क ह थ पकड़कर कह ।

“मैंने मन ककय न , सन
ु नहीां… अब ऐसी रोनी सरू त मत बन । सर और मैडम के स थ जब स थ-स थ लेसन
होग तो जरूर च ांस लमलेग तझ
ु े दे ख…”
32
हम दोनों घर की ओर चलने लगे

***** *****055
दस
ू रे हदन हम जल्दी पहुूँच गये।

“आओ बच्चो, दस लमनट जल्दी ही आ गये…” सर ने दरव ज हम रे पीछे बांद करते हुए पछ
ू ।

“ह ूँ सर, सोच दे र न हो ज ये…” मैं नीचे दे खत हुआ बोल ।

“बहुत अच्छ ककय । ज्य द ट इम लमलेग हमें, है न … लो ये मैडम भी आ गईं…” सर ने कह । वे लसफ़ि कुरत
पज म पहने हुए थे। लगत है अांदर और कुछ नहीां थ क्योंकी हम दोनों को दे खते ही उनके प ज मे में धीरे -धीरे
एक तांबू बनने लग ।

मैडम लसफ़ि एक ग उन पहने हुए थीां। उन्होंने भी अांदर कुछ नहीां पहन थ । उनके स्तनों क उभ र तो ग उन में
हदख ही रह थ , ऊपर से ननपलों क शेप भी हदख रह थ । हम री नजर कभी मैडम के मम्प्मों पर ज ती और
कभी सर के पज मे में बने तांबू पर।

सर मश्ु कुर ये और बोले- “चलो, अब आध घांट पढ़ लो। और खबरद र, ठीक से पढ़न , पढ़ ई में कोई गलती नहीां
होनी च हहये। आज से अब पननशमें ट भी लमलेग समझे न … चलो, तम
ु दोनों अब मैडम से पढ़ो, किर मेरे प स
आन …” सर दस
ू रे कमरे में चले गये।

मैडम ने गखणत पढ़ न शरू


ु ककय । पर हम दोनों क ध्य न नहीां थ , हदम ग में और ही कुछ चल रह थ । ब र-
ब र नजर मैडम के गोरे बदन और उनके ग उन के ऊपर के खुले भ ग में से हदखते मल
ु यम स्तनों पर ज ती।
मैडम ने हमें एक सव ल करने को हदय । मैंने कर ललय पर दीदी को नहीां बन । वह मैडम की ओर दे खकर बबन
ब त शरम ती और इधर उधर दे खने लगती। मैं समझ गय कक दीदी की चूत गीली हो रही है कल की मैडम के
स थ व ली ब त सोचकर। मैडम कुछ नहीां बोलीां, किर हम री क पी चेक की। मझ
ु े कुछ नहीां कह पर दीदी को
बोलीां- “लीन , ह थ आगे कर…” और स्केल उठ ली।

“क्यों मैडम?” लीन घबर गई।

“मैंने कह न आगे कर… ऐसे…” किर सट से खड़ी स्केल दीदी की हथेली पर जड़ दी।

“उईऽ मैडम दख
ु त है । ललीज़ मैडम। ललीज़…” वो रोने को आ गई और ह थ पीछे खीांच ललय ।

मैडम ने उसक ह थ पकड़ और एक के ब द एक तीन च र स्केल जड़ दी।

दीदी मस
ु मस
ु कर रोने लगी।

33
मैडम कड़े स्वर में बोलीां- “समझ नहीां है तझ
ु में… इतनी बड़ी हो गई है । यह ां पढ़ने आती है न … अगर िेल हो
गई तो तेरी न नी कहे गी कक मैडम तो कुछ पढ़ ती नहीां हैं, किर तेरी ट्यश
ू न बांद हो ज येगी और यह ां आन भी
बांद हो ज येग … यही च हती है त?
ू ”

लीन दीदी लससकते हुए बोली- “स री मैडम, भल


ू हो गई, अब य द रखूांगी…”

उसके ब द वो भी बड़े ध्य न से पढ़ने लगी। आधे घांटे ब द मैडम ने श ब सी दी- “ऐसे पढ़ करो अच्छे बच्चों
जैसे। अब सर के प स ज ओ, अननल तम
ु लेसन खतम होने पर किर मेरे प स आन , और लीन तू सर के कमरे
में ही रहन , किर हम र अगल लेसन शरू
ु होग , जजसके ललये तम
ु दोनों बेत ब हो, ठीक है न ?”

“ह ूँ मैडम…” कहकर हम दोनों सर के कमरे में गये।

वे टे बल के पीछे बैठे थे, श यद ज नबझ


ू कर जजससे हमें उनक तांबू न हदखे और मन इधर उधर न भटके। श यद
उन्होंने मैडम की ब त सन
ु ली थी। हम इांजग्लश पढ़ने लगे। सर ने मन लग कर पढ़ य । बीच-बीच में पछ
ू ते ज ते।
दीदी अब िट िट जव ब दे रही थी। पर मेर ध्य न ब र-ब र सर पर ज त । वे सच में क फ़ी हैंडसम थे, शेव
ककय हुआ उनक चेहर एकदम गचकन लग रह थ ।

मैं ब र-ब र कल के ब रे में सोच रह थ , सर क लण्ड य द आ रह थ । इसी चक्क्कर में मझ


ु से गलती हुई तो
उन्होंने मेर क न पकड़ और एक तम च जड़ हदय - “अब तेरी ब री है म र ख ने की, तझु े मझु से पढ़न है कक
नहीां… य घर में बैठन है…”

मैंने रोनी आव ज में ‘स री’ कह और ध्य न दे कर पढ़ने लग । हम दोनों समझ गये थे कक अगली मस्ती व ली
पढ़ ई के ललये इस पढ़ ई को सीररयसली लेने की जरूरत थी।

आधे घांटे ब द सर बोले- “चलो, आज क ये लेसन खतम हुआ। लीन , तू बहुत ध्य न से पढ़ती है, बहुत अच्छी
बच्ची है , तू यहीां रुक, अब तझ
ु े अगल लेसन दे त हूूँ। अननल तम
ु मैडम के कमरे में ज ओ…”

मैं मैडम के कमरे में द खखल हुआ, हदल धड़क रह थ । मैडम परू ी नांगी होकर सोिे पर बैठी मेर इांतज र कर
रही थीां।

“आओ अननल, पहले अपने सब कपड़े उत रो, किर मेरे प स आओ…” अपने मम्प्मे एक ह थ से सहल ती हुई वे
बोलीां। उनक दस
ू र ह थ अपनी बरु से खेल रह थ ।

मैंने िट िट कपड़े उत रे और शरम त हुआ उनके प स बैठ गय । मेर लण्ड अभी बैठ थ ।

मैडम ने मझ
ु े चम
ू ललय - “अब घबर ने की जरूरत नहीां है , अब पढ़ ई भल
ू ज ओ और इस तरि ध्य न दो। दे खो,
तेरी दीदी क लेसन कैस चल रह है ?”

मैंने दे ख तो दोनों कमरों के बीच में एक खखड़की थी। मैं चकर गय , कल तक तो यह नहीां थी।

34
खखड़की में से सर क कमर हदख रह थ । सर ने अपने कपड़े उत र हदये थे और दीदी को गोद में बबठ कर चूम
रहे थे। दीदी शरम रही थी पर बड़ी खश
ु ी-खश
ु ी चौधरी सर को चम्प्
ु मे दे रही थी। सर कुछ दे र तक दीदी की
चूांगचय ां ब्ल उज़ पर से दब ते रहे किर अपन लण्ड दीदी के ह थ में दे हदय और उसके कपड़े उत रने लगे। सर
क बदन एकदम गठील और गोर गचट्ट थ । लण्ड के च रों ओर अच्छी घनी झ ांटें थीां।

मेर लण्ड खड़ हो गय । मैडम भी बड़े लय र से उसे महु ठय रही थीां। अब मेरी खझझक ज चुकी थी, स हस करके
मैंने मैडम की एक चच
ू ी पकड़ ली और धीरे -धीरे दब ने लग ।

“ये ननपल को उां गललयों में लो और घम


ु ओ, जर मसलो, डरो मत, मझ
ु े अच्छ लगत है …” मैडम ने मझ
ु े
खीांचकर सीने से लग ते हुए कह ।

मैं मैडम के ननपल मरोड़ते हुए दस


ू रे कमरे में दे खने लग - मैडम, ये दो बेडरूम के बीच खखड़की…” मैंने खझझकते
हुए पछ ू ।

“ह ूँ परु न घर है न । वैसे यह ां पद ि रहत है पर आज से ख स ट्यश


ू न है न । इसललये ननक ल हदय है । दोनों
कमरे व ले एक दस
ू रे को दे ख भी सकते हैं और कहने को अलग-अलग कमरे में होने से बबन खझझक के मन की
कर भी सकते हैं…” मैडम ने कह और किर मूँह
ु से ‘सी’ ‘सी’ करने लगीां।

क्योंकी चौधरी सर और दीदी के बीच क क म दे खकर मैं उत्तेजजत हो गय थ और जोर से मैडम के ननपल
मसलने लग थ । मैंने स री कह तो मैडम बोलीां- “अरे परे श न मत हो अननल बेटे, मझ
ु े अच्छ लगत है, जर
दब भी न जोर से मेरे मम्प्मे, मन में तो खूब सोचत होग कक मैडम लमल ज यें तो उनके भोंपू दब ऊूँग तो अब
क्यों शरम रह है?”

“मैडम भोंप…
ू ” मैंने कह ।

तो मैडम मेर क न पकड़कर बोलीां- “अब न द न न बन, मैं ज नती हूूँ कक तम


ु शर रती लड़के स्कूल की लेडी
टीचसि के ब रे में क्य क्य कहते हो, चलो अब, बज ओ भोंप…
ू ”

मैडम ने नरम-नरम भोंपू दब त हुआ मैं दे खने लग । अब तक सर ने दीदी को नांग कर हदय थ और उससे
कुछ कह रहे थे। दीदी शरम रही थी। सर ने उसे गोद में लेकर अपने लण्ड पर स इककल के डांडे जैस बबठ
ललय थ और उनक तन हुआ लण्ड दीदी की दब ु ली पतली ज ांघों के बीच से ब हर ननकल आय थ । सर अब
दीदी की चूांगचय ां दोनों ह थों से मसल रहे थे और कस के उसे चूम रहे थे। वे ब र-ब र दीदी क मह
ूँु अपने होंठों
से खोलते और चूसने लगते। दीदी एक लमनट शरम ती रही किर उसने भी मूँह
ु खोलकर अपनी जीभ सर को
चूसने को दे दी और हथेली में उनक सप
ु ड़ लड्डू जैस पकड़ ललय ।

उनकी चम
ू च टी दे खकर मझ
ु से न रह गय और मैंने मैडम की ओर दे ख । उन्होंने मश्ु कुर कर मेरे होंठों पर अपने
गल
ु बी होंठ रख हदये और चूमने लगीां। उनकी जीभ मेरे मूँह
ु पर लग रही थी। मैंने मूँह
ु खोल और मैडम की
रसीली जीभ चस
ू ने लग । स थ-स थ मैं कमर हहल कर मैडम की मठ्
ु ठी में दबे मेरे लण्ड को आगे पीछे कर रह
थ।

35
मैडम ने किर मेर लसर अपनी छ ती पर दब य और बोलीां- “अननल, अब मूँह
ु में लो। अपनी मैडम के मम्प्मे
चस
ू ने क मन नहीां करत है क्य ?” मेर ह थ पकड़कर उन्होंने अपनी बरु पर रख हदय ।

“ह ूँ मैडम, करत है …” कहकर मैंने मैडम क ननपल मूँह


ु में ले ललय और चूसते-चूसते मैडम की बरु को टटोलने
लग । एकदम गीली थी और गचकनी भी थी।

“अरे ऐसे उां गली से कर मेरे बच्चे, जर मज दे मझु ,े अब सीख ले यह कल , बहुत क म आयेगी तेरे। उधर दे ख,
तेरे सर क्य कर रहे हैं। आह्ह… ह ूँ ऐसे ही रगड़ अब। अरे जर धीरे , लय र से…”

मैंने दे ख तो अब चौधरी सर ने दीदी को एक कुरसी में बबठ हदय थ और स मने बैठकर उसकी चत
ू च ट रहे
थे। बड़े लय र से उसपर नीचे से ऊपर तक जीभ रगड़ रहे थे जैसे कैं डी च ट रहे हों। दीदी मेरी और मैडम की
तरि दे ख रही थी, उसक चेहर ल ल हो गय थ पर एकदम खुश नजर आ रही थी। सर ने अब उसकी बरु की
लकीर में एक उां गली ड ली और नघसने लगे। दीदी ‘सी’ ‘सी’ करने लगी। थोड़ी दे र से सर ने उां गली मोड़ी और
धीरे से दीदी की बरु में घस
ु ड़
े दी।

लीन थोड़ी कसमस सी गई।

“क्य हुआ लीन … दख


ु रह है क्य , दख
ु न नहीां च हहये, लसफ़ि उां गली ही तो ड ली है , तू तो मोमबत्ती ड लती है
न …” कहकर सर उसकी चतू को उां गली से चोदते हुए चूसने लगे। किर उां गली ननक लकर च टी और दीदी की बरु
उां गललयों से फ़ैल यी और मह
ूँु लग हदय जैसे आम चस
ू रहे हों।

“ह ऽय… आऽह… सर… बहुत अच्छ लगत है सर… ललीज़ सरऽ… उईऽ म ूँऽ…” कहकर दीदी अपनी कमर हहल ने
लगी। उसने सर क लसर पकड़ ललय थ और उनके मह ूँु पर अपनी चत
ू रगड़ रही थी।

दे खकर मझ
ु से न रह गय । उनक ननपल मूँह
ु से ननक लकर मैंने अपनी उां गली मैडम की बरु में से ननक ली और
च टकर दे खी- “मैडम मैं आपकी चूत चूस…
ूां ”

“क्यों रे … चस
ू ेग कक चोदे ग … कल तन
ू े बहुत अच्छ चोद थ । मज आय । बहुत हदन में ककसी ने ऐसे चोद
मझु …
े ” मैडम मेरे ग लों पर अपनी चूांगचय ां रगड़ती हुई बोलीां।

“मैडम, चोदां ग
ू भी पर पहले चस
ू ने दीजजये न , कल भी आपने लसफ़ि दीदी को चत
ू चटव यी, मझ
ु े कुछ नहीां
लमल …” मैं बोल । मेरे मन में आय कक सर क इतन मस्त लण्ड है , उससे तो मैडम रोज चुदव ती होंगी, किर
ऐस क्यों बोलीां कक बहुत हदन ब द कल चुदव य । पर कुछ बोल नहीां।

“चल, चूस ले, वैसे तेरी दीदी ने भी बहुत लय र से मेरी बरु क रस पपय थ कल…” कहकर मैडम ने पैर फ़ैल
हदये। मैं झट से नीचे बैठ और उनकी बरु से मूँहु लग हदय ।

“ह ूँऽ बस ऐसे हीऽ जीभ लग । वो द न है न … वह ां बस ऐसे ही। बहुत अच्छे अननल। अच्छ लग टे स्ट?”

36
“ह ूँ मैडम…” मैं बोल और चूसत रह । थोड़ी दे र के ब द वे आगे पीछे होने लगीां और मेरे लसर को अपनी ज घ
ां ों
में कसकर मेर चेहर अपनी बरु पर सट ललय ।

“ओह्ह… ओह्ह… तम
ु दोनों बच्चे हो बड़े होलशय र इन क मों में । आहऽ… वो दे ख तेरी दीदी झड़ गई। छूटने की
कोलशश कर रही है पर सर उसे नहीां छोड़ेंग,े रस क चस्क जो लग गय है । अब तेरी दीदी की बरु को ननचोड़
कर ही दम लेंगे। ओह्ह… ओह्ह… ले… तू भी पी मेर रस। ह ूँऽ ह ूँ अननल। ऐसे ही…” कहते हुए मैडम क बदन
कांपकांप य और मेरे मूँह
ु में प नी बहने लग ।

करीब दस लमनट ब द मैडम किर से झड़ीां और मझ


ु े और थोड़ बरु क प नी पपल कर मझ
ु े खीांचकर उठ हदय । वे
बड़ी तलृ त लग रही थीां।

“बहुत अच्छ ककय अननल। तझ


ु े स्व द पसांद आय ?”

“ह ूँ मैडम, बहुत ग ढ़ और शहद जैस है मैडम…” मैंने त रीि की।

मैडम खुश होकर बोलीां- “शहद की कमी नहीां होगी तझ


ु े कभी, जब च हे, ले ललय कर… अब जर यह ां दे ख। तेरी
दीदी कौन स लेसन सीख रही है …”

मैं मूँह
ु पोंछत हुआ उठ बैठ । दे ख तो दीदी सर के स मने नीचे बैठकर उनक लण्ड मूँह
ु में लेने की कोलशश कर
रही थी। बस सप ु ड़ ही ले प यी थी, उसके ग ल फ़ूल गये थे। सर अपन लण्ड उसके मह ूँु में पेलने की कोलशश
कर रहे थे और कह रहे थे- “लीन , ऐसे तो तन
ू े कल भी चूस थ , अब नय कुछ सीखन है कक नहीां… और मूँह

में ले, ज ने दे गले में, रोक नहीां, परू ले आज…”

लीन गों गों करने लगी।

सर ने लण्ड उसके मूँह


ु से खीांच और उठ खड़े हुए- “कोई ब त नहीां, तेरे ललये ये नय है , नयी-नयी जव नी जो
है । घबर मत, आज तेर ये लेसन मैं परू कर ही दां ग
ू । रुक, मैं अभी आय …”

वे कमरे के ब हर गये और एक लमनट में एक मोट लांब केल लेकर व पस आये। केल छीलते हुए बोले- “इससे
रैजक्टस करव त हूूँ, दे ख लीन , पहली ब त यह ध्य न में रख कक गले को ढील छोड़, एकदम ढील । दस
ू रे यह
कक ऐसे समझ कक तू जो ननगल रही है उसमें से तझ
ु े बहुत सी मल ई लमलने व ली है , ठीक है न … अब मह
ूँु
खोल…”

लीन ने मड
ुां ी हहल ई और परू मूँह
ु ब हदय । चौधरी सर ने उसके मूँह
ु में केल ड ल और धीरे -धीरे अांदर घस
ु ड़
े ने
लगे। च र प ांच इांच के ब द दीदी कसमस ई तो वे रुक गये- “तू गल नहीां ढील कर रही है लीन , बबलकुल ढील
कर…”

लीन दीदी ने पलकें झपक ईं और सर किर से केल अांदर ड लने लगे। इस ब र दीदी परू ननगल गई।

37
“श ब स लीन , ये हुई न ब त। ये केल बड़ व ल मद्र सी केल है, दस इांच क , मेरे लण्ड से दो इांच बड़ , अब
तो तू आर म से ले-लेगी, बस अांदर ब हर करने की रैजक्टस कर। लण्ड चस
ू ते समय, जजतन जरूरी परू मूँह ु में
लेन है , उतन ही ब र-ब र अांदर ब हर करन है, इससे जो मज लमलत है उससे कोई भी मदि तेर गल
ु म हो
ज येग । और दे ख, द ांत नहीां लग न , इस केले पर दे ख ये ननश न बन गये हैं, अब बबन द ांत लग ये अांदर ब हर
कर, द ांतों को अपने होंठों से ढक ले…”

सर केले को लीन दीदी के मूँह


ु से परू खीांचकर किर अांदर पेलने लगे। दीदी अब आस नी से कर रही थी। उसे
मज भी आ रह थ , वह सर क लण्ड अब ह थ में पकड़कर बैठी थी।

मैडम ने मझ
ु से कह - “तेरी दीदी तो एकदम एक्सपटि हो गई अननल… लगत है क फ़ी मतव ले स्वभ व की है ।
आ, मैं भी तझ
ु े जर मज दां ू इस ब त क , पर झड़न नहीां हां … नहीां तो सर मझ
ु े ड ांटेंगे, बोले थे कक अननल को
इस लेसन में झड़ न नहीां…”

किर मैडम ने झुक कर मेर लण्ड मूँह


ु में ललय और लय र से चूसने लगीां। मैं उनके रे शमी ब लों में उां गललय ां
किर त हुआ मज ले लकर किर से सर और दीदी के कमरे में दे खने लग ।

***** *****
सर ने केल एक ललेट पर रख हदय थ और दीदी को स मने िशि पर बबठ कर उसके मूँह
ु में लण्ड पेल रहे थे।
आध तो दीदी ने ले भी ललय थ । सर लय र से दीदी के ब ल सहल रहे थे- “दे ख गय न गले के नीचे… बस हो
गय , अब परू ले-ले…”

दीदी ने लसर नीचे ककय और सर की झ ांटें उसके होंठों पर आ हटकीां। दीदी के ग ल ऐसे फ़ूल गये थे जैसे बड़
सेब मूँह
ु में ले ललय हो।

“ये तो कम ल हो गय लीन र नी। अब मज ले लकर चूस। मूँह


ु में अांदर ब हर कर। और सन
ु … जीभ से लण्ड के
नीचे रगड़, लय र से। आहऽ आह्ह… बहुत अच्छी बच्ची है लीन त।ू बहुत लय री है। बस ऐसे ही कर। आर म से
मज ले। कोई जल्दी नहीां है …” और उन्होंने दीदी क सर पकड़ ललय और कमर हहल -हहल कर लण्ड हौले-हौले
दीदी के मूँह
ु में पेलने लगे।

दीदी अब ब र-ब र सर क लण्ड परू मूँह


ु से ननक लती और किर ननगल लेती। उसे मज आ रह थ जैसे बच्चों
को आत है कोई नय क म सीखकर। मैं झड़ने को आ गय । मैडम को पत चल गय इसललये मेरे लण्ड को मूँह

से ननक लकर से किर बैठ गईं।

“क्य ब त है अननल, मस्ती में है त…


ू अच्छ , दीदी के क रन मे दे ख रह है । सोच रह है कक तेरी दब
ु ली पतली
न जुक गले व ली दीदी ने कैसे इतन बड़ लण्ड ननगल ललय … पर मझ
ु े कोई अचरज नहीां हुआ, मैं तो तम
ु दोनों
को दे खते ही समझ गई थी कक क्य मस्तीखोर हो तम
ु दोनों और ख सकर तेरी दीदी। वो असली गरम लड़की है ,
जैसी मैं थी बचपन में । अब जर तेरे इस लण्ड को थोड़ ठां ड कर, मझ
ु े चोदन है…”

मैं बोल - “ह ूँ मैडम…” और उठने लग ।

38
तो वे बोलीां- “अरे तू लेट रह, मैं चोदां ग
ू ी, तेर कोई भरोस नहीां, झड़ ज येग । तू लेट और वो लसनेम दे ख, मैं
करती हूूँ जो करन है …”

मझ
ु े ललट कर मैडम मेरे ऊपर चढ़ गईं और मेरे लण्ड को अपनी चूत में लेकर मेरे पेट पर बैठ गईं। किर चोदने
लगीां। चुद ई क आनांद लेते हुए मैंने दस ू रे कमरे में दे ख तो सर दीदी से लण्ड चस
ु व ते हुए वो व ल केल ख
रहे थे, जो दीदी के मूँह
ु में अांदर ब हर हुआ थ । मेरे चेहरे के भ व दे खकर मैडम हूँसने लगीां- “अरे अचरज क्यों
करत है , तेरी दीदी क चम्प्
ु म इतन मीठ है, सर उसके मूँह
ु क स्व द ले रहे हैं…”

“तेरे मूँह
ु के स्व द क जव ब नहीां लीन , अमत
ृ है अमत
ृ , अब जब ककस करूां तो मेरे को ढे र सी च सनी पपल न
अपने मूँह
ु की। ठीक है न …” सर केल खतम करके बोले।

दीदी ने पलक झपक कर कह कक समझ गई।

सर अब आर म से पीछे हटक कर बैठ गये और लीन दीदी क लसर पकड़कर उसके ब लों में उां गललय ां चल ते हुए
दीदी के लसर को आगे पीछे ग इड करने लगे- “ह अ लीन … बस ऐसे ही। ह ूँ… ह ूँ मेरी र नी। मेरी ल ड़ली बच्ची।
चूस र नी चूस। अपने सर क लौड़ चूस। उनक रस द प ले। चल चूस…”

थोड़ी ही दे र में सर ने दीदी के सर को कसकर अपने पेट पर भीांच ललय और झड़ गये- “ओह्ह… ह ूँ… लीन । तू
तो कम ल करती है री। आह्ह… मज आ गय …”

तीन च र स ांसों के ब द सर ने लण्ड करीब-करीब परू दीदी के मूँह


ु के ब हर खीांच और लसफ़ि सप
ु ड़ उसके मह
ूँु में
दे कर बोले- “लीन , अब जीभ पर ले और चख। मजे ले-लेकर ख । ये है सच्ची मल ई। इतनी मेहनत की है तो
अब उसक इन म ले…” उनक वीयि उबल-उबल कर दीदी की जीभ पर इकठ्ठ हो रह थ ।

जब लण्ड श ांत हुआ तो दीदी ने मूँह


ु बांद ककय और आांखें बांद करके उसक स्व द लेने लगी। वीयि ननगलने के
ब द दीदी ने किर से लण्ड को मूँह
ु में लेकर स ि ककय और उठकर खड़ी हो गई। थोड़ शरम रही थी पर बड़े
गवि के स थ सर की ओर दे ख रही थी।

सर ने उसे खीांचकर वह ां के सोिे पर ललट य और उसक बदन जगह जगह चूमने लगे- “बहुत लय री है तू लीन ,
अब जर आर म कर, मझ ु े अपने इस खूबसरू त बदन क स्व द लेने दे …”

वे दीदी को हर जगह चूम रहे थे, छ ती, पेट, पीठ, कांधे, ज ांघ,ें पैर। थोड़ी दे र किर से उन्होंने दीदी की बरु चूसी
और दीदी जब गरम कर सी सी करने लगी तो उसे पलटकर सोिे पर पेट के बल ललट हदय और उसके चूतड़ों
में मूँह
ु ग ड़ हदय ।

दीदी शरम कर- “सर… सर… वह ां क्यों चस


ू रहे हैं सर… ओह्ह… ओह्ह… उईऽ छीीः सर… वह ां गांद है । मत ड ललये
न जीभ। ओह्ह… आह्ह…” करने लगी।

पर सर ने उसके चत
ू ड़ों को नहीां छोड़ ।

39
मैडम अब कस के मझ ु े चोद रही थीां। अपने मम्प्मे खदु दब रही थीां। ह ांिते हुए बोलीां- “अरे यह लीन … नहीां
ज नती कक वह …
ां पीछे … तेरे सर क ख स इांटरे स्ट है । समझ ज येगी जल्दी। ओहऽ ओहऽ अननल…” कहकर वे झड़
गईं और मेरे पेट पर उनक प नी बह आय । मैं उठने लग तो बोलीां- “अरे रुक… एक ब र और। अभी मन नहीां
भर मेर । सर अब लीन को लेकर आते ही होंगे। तब तक… और दे ख… झड़न नहीां…”

मैडम ने मझ
ु े दस लमनट और चोद । उधर सर दीदी के बदन को लय र करते रहे , वे ब र-ब र दीदी की बरु य
ग ण्ड से मूँह
ु लग दे ते थे। बीच में उन्होंने मैडम की ओर दे ख और आूँखों-आूँखों में पछ
ू कक हो गय क्य तो
मैडम ने लसर हहल कर न बोल हदय । सर किर से दीदी की ग ण्ड चूसने में जट
ु गये।

दस
ू री ब र जब मैडम झड़ीां तो उन्होंने सर की ओर दे ख और मश्ु कुर दीां। सर ने लीन को उठ य और बोले-
“चल मेरी र नी, अब एक स थ लेसन लेंगे तम
ु दोनों क …”

दीदी एकदम मस्त थी, सर की गदि न में ब हें ड लकर ब र-ब र उनको चूम रही थी। हम रे कमरे क दरव ज खुल
और सर दीदी को उठ ये अांदर आये- “व ह अननल, मैडम अच्छ लेसन दे रही है तझ
ु ,े तेरी इस दीदी ने तो आज
बहुत कुछ सीख , है न लीन …”

लीन ने शरम कर उनके सीने में मूँह


ु छुप ललय । सर ने उसे नीचे पलांग पर रख और मैडम से पछ
ू - “क्यों
सपु रय मैडम, आपको कोई र हत लमली य नहीां?”

“ह ूँ… बहुत। ये लड़क कम ल क है, बहुत कांट्रोल है इसे। मैंने दो ब र चोद , यह आर म से सह गय …” मैडम
मझु पर से उतरती हुई बोलीां।

“चललये ये अच्छ हुआ मैडम, अब आपकी चत


ू र नी कभी लय सी नहीां रहे गी…” सर बोले।

मैडम दे खकर मश्ु कुर दीां।

मझ
ु े ठीक से समझ में नहीां आय कक मेरे लण्ड की इतनी त रीि क्यों हो रही है , सर के मतव ले मस
ू ल के आगे
तो ये कुछ भी नहीां है, और सर के लण्ड पर तो मैडम क ही हक है, च हे जैसे चद
ु व यें।

लीन के ब जू में लेटकर मैडम ने लीन दीदी की चूत में उां गली ड ली और उसक मूँह
ु चूमने लगीां- “ये लड़की तो
एकदम गरम गई है सर। लगत है आपने खब
ू अगन दी है इसकी ट ांगों के बीच, इसको ठां ड नहीां ककय ठीक
से…”

“अभी कह ां मैडम, इसकी अगन तो अभी बझ


ु न है, बहुत क म करन पड़ेग , इसकी जो भट्टी है वो ऐसे वैसे
नहीां ठां डी होने व ली…”

“ह ूँ तो बच्चो, चूसने और च टने में तो तम


ु दोनों एकदम होलशय र हो। अब असल क म की शरु
ु व त करते हैं…”
चौधरी सर बोले। किर मेरे लण्ड को पकड़कर पछ
ू - “तकलीि हो रही है अननल… य मज आ रह है… मैडम ने
बहुत खीांचकर रख है तझ
ु े। अब चोदोगे ककसी को?”

40
“ह ूँ सर, बहुत मस्ती लग रही है , रह नहीां ज रह है …”

“ककसे चोदोगे?” उन्होंने मेरे लण्ड को मठ्


ु ठी में कस के दब कर पछ
ू ।

“सर, मैडम को…” कहकर मैं चुप हो गय ।

“अरे मैडम को तो अब तक चोद रहे थे। कल भी चोद थ , मन नहीां भर लगत है । अब और ककसी को चोदो…”

मैं उनकी ओर दे खने लग ।

वे बोले- “अरे अपनी इस लय री दीदी को चोद लो। बेच री दे खो कैसी तरस रही है । ऐसे क्यों दे ख रहे हो… दीदी
को चोद नहीां है न अब तक…”

“नहीां सर…”

“किर आज मौक है । और लीन तन


ू े चुदव य है कभी…” चौधरी सर ने लीन दीदी के जर -जर से मम्प्मे दब ते
हुए पछ
ू ।

दीदी की ह लत खर ब थी, मैडम उसकी बरु में ऐसी उां गली कर रही थीां कक दीदी बेच री बस तड़प-तड़पकर कमर
हहल रही थी। मैडम उसक मह
ूँु चस
ू रही थीां इसललये वह चप
ु थी। जब मैडम ने दो लमनट ब द उसक मह
ूँु छोड़
तो लससक कर बोली- “ह ूँ सर, ललीज़ सर… मैडम… ललीज़ आप…”

मैडम दीदी के मूँह


ु में अपनी चच
ू ी ठूांसकर बोलीां- “अरे नहीां, अभी नहीां चस
ू ग
ांू ी तेरी बरु , वैसे बहुत रस ननकल रह
है । अब तू चुदव ले। बोल सर से चुदव येगी…”

दीदी ने मैडम की चच
ू ी चूसते-चूसते हुए पलक झपक कर ह ूँ कह ।

मैडम हूँसने लगीां- “क्यों सर, आप प ठ बहुत अच्छ पढ़ ते हैं लगत है… ये लड़की आप पर लट्टू है, दे खो झट से
ह ूँ कह हदय नहीां तो लड़ककय ां ककतने नखरे करती हैं। अब आप चोदें गे न …”

सर बोले- “ह ूँ चोदां ग
ू , इस फ़ूल सी नरम बरु में घस
ु ने के खय ल से ही दे खो मेर लण्ड कैस किर से मचलने
लग है । पर इसपर ज्य दती हो ज येगी। अभी मस्ती में चहक रही है, किर चीखने गचल्ल ने लगेगी। इसललये
कहत हूूँ इसे पहले अननल से चुदव दो और इसकी चत
ू खोल दो, किर मेर ज ने में इसको तकलीि नहीां होगी…”

“ह ूँ भई, भ ई बहन को चोदे इससे ज्य द मस्ती की ब त और क्य हो सकती है, है न लीन … चल अननल तू
इधर आ जल्दी से…” कहकर मैडम ने लीन दीदी को नीचे पलांग पर ललट हदय - “लीन , ठीक से लेट और ट ांगें
फ़ैल , अब जर अपने भ ई क लण्ड ह थ में लेकर दे ख, इसे लेगी न अब अपनी चूत में…”

दीदी तो अब मछली जैसी तड़प रही थी। उसने झट से ट ांगें फ़ैल यीां और मेर लण्ड पकड़कर बोली- “अननल,
जल्दी कर न । ह य… मैडम रह नहीां ज त …” उसकी नजर सर के किर से खड़े लण्ड पर हटकी थी।
41
चौधरी सर बोले- “अननल बेटे, पहले लीन की चत
ू की पज
ू करो, आखखर तम्प्
ु ह री बड़ी बहन है …”

“कैसे सर…” मैं पछ


ू बैठ ।

“अरे मरू ख, चूत पज


ू कैसे करते हैं… उसे लय र करके, उसे च ट के, उसके रस को उसके रस द को ग्रहण करके।
मैडम की तब से कर रह थ न , अब अपनी दीदी की कर…” सर मझ
ु े ड ांट कर बोले।

मैं जुट गय । दीदी की चूत में मूँह


ु ड ल हदय ।

वह मेरे लसर को भीांचकर तड़पने लगी- “सर… सर… रह नहीां ज त सर… बहुत अच्छ लगत है सर…”

मैं लप लप दीदी की बरु च टने में जुट थ । आज लग रह थ जैसे वरद न प ललय हो, जजस लमठ ई की इतने
हदन तमन्न की थी, वो अब प ली थी मैंने।

“असल में भ ई से चुसव रही है न , इसललये ज्य द मज आ रह है , अब चद


ु के दे खन , और आनांद प येगी।
चलो अननल बहुत हो गय , अब दीदी को चोदो…” मैडम ने आदे श हदय ।

मैंने झट से दीदी की बरु पर लण्ड रख और पेलने लग ।

“अरे धीरे बेटे, हौले-हौले, दीदी ने कभी लण्ड ललय नहीां है न , ऐसे धसड़ पसड़ न कर…” मैडम ने समझ य ।

“पर मैडम, रोज ये मोमबत्ती से…” मैंने कह तो मैडम हूँसने लगीां।

“अरे मोमबत्ती ककतनी मोटी है और तेर ये लण्ड ककतन मोट है , कुछ तो खय ल कर…”

मैंने धीरे से लण्ड पेल और वो सट से आध दीदी की चूत में घस


ु गय । दीदी थोड़ी कसमस ई। मैडम बोलीां-
“लीन , घबर मत, समझ बड़ी मोमबत्ती है । बहुत मज आयेग तझ
ु े दे खन । चल अननल, आगे चल, पर जर
लय र से…”

मैंने किर लण्ड पेल और वो परू दीदी की बरु में सम गय । दीदी जर सी गचहुूँकी और मझ
ु े कस के पकड़
ललय ।

चौधरी सर खुश होकर बोले- “बहुत अच्छे बेटे। ये अच्छ हुआ, बहन ने कैसे लय र से भ ई क ले ललय । भ ई क
हो तो ददि भी कम होत है । अब चोद धीरे -धीरे । जगह बन मेरे मस
ू ल के ललये। लय र से चोदन , और जर
मस्ती से दस लमनट तक चोद, जल्दी मत कर…”

मैं चोदने लग । पहले धीरे चोद कक दीदी को ददि न हो। पर दीदी की चूत ऐसी गीली थी कक आर म से लण्ड
अांदर ब हर होने लग । दीदी कमर उचक ने लगी और मैडम की चच
ू ी मूँह
ु से ननक लकर बोली- “अननल… बहुत
अच्छ लग रह है रे । मैडम… बहुत मज आ रह है मैडम…”
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मैडम ने अपन मम्प्म किर से दीदी के मूँह
ु में घस
ु ेड़ और खद
ु दीदी के मम्प्मे मसलने लगीां- “चल अननल चोद
अपनी बहन को। कब से इसक मौक दे ख रह थ न त…
ू चल अब दीदी को हदख दे कक ककतन लय र करत
है …”

मैं कस के चोदने लग । िच िच िच िच की आव ज आने लगी। दीदी की बरु से प नी बह रह थ । मैंने चौधरी


सर की ओर दे ख । वे अपने लण्ड को पकड़कर मस्ती से उसे पच
ु क र रहे थे।

मैडम उनसे बोलीां- “अरे सर, अपने स्टूडेंट क हौसल बढ़ इये, दे ख बेच र ककतनी मेहनत कर रह है …”

सर मेरे प स आकर बैठ गये और मेरी कमर और चूतड़ों पर ह थ किर ने लगे- “बस ऐसे ही अननल, कसकर चोदो
हचक-हचक कर, तेरी दीदी की चूत अब खुल गई है , मस्ती से चोदो, झड़न नहीां बेटे…” कहकर उन्होंने मेरे मूँह

को चूमन शरू
ु कर हदय । अपने ह थ से वे अब मेरे चूतड़ ऐसे दब रहे थे जैसे चूतड़ न होकर ककसी औरत के
मम्प्मे हों। इधर उनकी जीभ मेरी जीभ से लगी और उधर मझ
ु े ऐस मज आय कक मैंने दो च र धक्के कसकर
लग ये और झड़ गय ।

मेरी हहचकी सर के मूँह


ु में ननकली तो वे चुम्प्म तोड़ कर बोले- “अरे बदम श, झड़ गय अभी से…” और एक
हल्क स घस
ांू मेरी पीठ पर लग हदय । किर मैडम की ओर मड़
ु कर बोले- “मैडम लगत है आपने क फ़ी सत य
है मेरे स्टूडेंट को, बेच र कब से तड़प रह थ लगत है …”

मैडम बोलीां- “अरे उसे लसख रही थी कक मज लेने के ललये कांट्रोल कैसे करते हैं, खैर चलो अच्छ हुआ, ये
लड़की अब परू ी मस्ती में है, बेच री झड़ी भी नहीां है । सर, आप इसकी तकलीि दरू कर दीजजये…”

सर ने अपने लण्ड को मस्ती से मठ्


ु ठी में पकड़ और बोले- “अभी करत हूूँ। लीन तो बहुत लय री लड़की है, इसे
परू मज दे त हूूँ अभी, चल अननल, ब जू में हो और खबरद र, आज म ि कर हदय पर किर ऐसे जल्दी में झड़
तो म र ख येग …”

मेर लण्ड ननक लकर मैं ब जू में बैठ गय । दीदी को चोदकर बहुत अच्छ लग रह थ । मैडम बोलीां- “इधर आ
बेटे, ऐसे मेरे प स आ…” मैं उनके प स गय तो झक ु कर उन्होंने मेरी नन्
ु नी मूँह
ु में ली और चूसकर स ि कर
दी।

उधर सर भी झक
ु कर दीदी की बरु च ट रहे थे। लीन दीदी ने उनक लसर पकड़ ललय और कमर हहल ने लगी।
मैडम हूँसने लगीां- “क्यों सर, गन्ने के रस को चखने क कोई भी मौक आप नहीां छोड़ते…”

“मैडम, ये ख स छोटे रसीले गन्ने क रस है, और गन्ने के रस के स थ-स थ कमलसन बरु क शहद भी है ।
इतन अच्छ म ल कौन छोड़ेग , आपने छोड़ …” कहकर उन्होंने दीदी की बरु परू ी च टी और किर उसकी ट ांगों के
बीच बैठ गये- “चल लीन , ट ांगें फ़ैल । मैडम आप अपनी स्टूडेंट को सांभ ललये, उसने बड़ क म ककय है, इस
लड़की की चूत ऐसी गचकनी और गीली कर दी है कक अब ये आर म से मेर ले-लेगी…”

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मैडम समझ गईं और लीन के मूँह
ु से चच
ू ी ननक लकर उसके ब जू में लेट गईं। लीन को ब हों में भरके चूमते
हुए बोलीां- “लीन , अब मज ले, सर मेहरब न होने व ले हैं तझ
ु पर…”

सर ने लीन की चूत के पपोटे फ़ैल ये और सप


ु ड़ रखकर अांदर पेल हदय । दीदी की चूत इतनी गीली थी कक वो
आर म से िच्च से अांदर चल गय । दीदी एकदम से तड़पी। मैडम ने तरु ां त अपने मूँह
ु से उसक मूँह
ु बांद कर
हदय । सर ने और लण्ड पेल और आध अांदर कर हदय । दीदी ह थ पैर म रने लगी। मैडम ने उसके ह थ पकड़
ललये। सर ने मेरी ओर दे खकर कह - “अननल, अपनी दीदी के पैर पकड़ लो, इसे ददि हो रह है पर मैं परू अांदर
ड ल दे त हूूँ, किर झांझट ही खतम हो ज येगी…”

सर क मस
ू ल दीदी की चत
ू को चौड़ कर रह थ , दीदी की बरु क छे द ऐसे िैल थ जैसे िट ज येग, तने रबर
बैंड स लग रह थ । दे खकर मझ
ु े भी मज आ गय । मैंने दीदी के पैर पकड़े और सर ने कस के सट क से
अपन परू लण्ड दीदी की बरु में ड ल हदय । दीदी क बदन एकदम कड़ हो गय और वो क ांपने लगी, अब वो
परु ी तरह से तड़पती हुई ह थ पैर िटक रने की कोलशश कर रही थी पर मैंने और मैडम ने उन्हें कस के पकड़े
रख , हहलने तक नहीां हदय । उधर दीदी की आूँखों में ददि से आांसू आ गये थे और वो बड़ी क तर आूँखों से हम री
ओर दे ख रही थी। सर मस्ती में आकर बोले- “ओह्ह… ओह्ह… क्य कसी चत
ू है इस लौंडी की। मैडम, मज आ
गय , बहुत हदन हो गये ऐसी चूत लमली है …”

मैडम ने बड़े लय र से सर क चम्प्


ु म ललय - “सर, मज कीजजये। आखखर आपको जो च हहये थ वो लमल ही गय
और क्यों न लमले। आप स मद िन मस्त परु
ु र् तो डडज़वि करत है…”

सर दीदी के सांभलने क इांतज र करने लगे। स थ ही झुक कर होंठों से दीदी की आांखें चूमने लगे। मेर लण्ड अब
लसर उठ ने लग थ । सर ने उसे पकड़ और दब ने लगे- “अननल, मज आ रह है दीदी की चुद ई दे खकर…”

“ह ूँ सर, दीदी की चूत ककतनी खुल गई है, ये िट तो नहीां ज येगी सर…” मैंने उत्सक
ु त से पछ
ू ।

“अरे नहीां, तेरी दीदी जैसी खूबसरू त मतव ली लड़ककयों की चूत ऐसे नहीां िटती, ये तो बनी ही है हरदम चद
ु व ने
को। बस दो लमनट ब द ये कैसे मचलने लगेगी, तू ही दे खन …”

सर मझु े प स खीांचकर मेर चुम्प्म लेते हुए बोले। मैडम अपनी छ ती से दीदी की छ ती मसल रही थीां और किर
से लीन दीदी के होंठ चूसने में लग गई थीां। धीरे -धीरे दीदी क कांपकांप त बदन श ांत हुआ। सर ने एक उां गली से
दीदी क द न रगड़न शरू
ु कर हदय । दो लमनट में दीदी कमर हहल ने लगी।

सर ने मश्ु कुर कर मैडम से कह - “अब छोड़ दीजजये मैडम, आपकी स्टूडेंट मड


ू में आ गई है । मझ
ु े तो पत थ कक
ये बह दरु बच्ची ऐसे घबर ने व ली नहीां है । अब दे खखये मैं इसे कैस मस्त करत हूूँ…”

मैडम ने दीदी क मूँह


ु छोड़ - “लीन , ठीक है न त…
ू अब तो नहीां दख
ु त …”

दीदी लससक कर बोली- “मैडम। अभी भी बहुत दख


ु त है । पर अच्छ भी लग रह है । सर ने जब ड ल तब ऐस
लग रह थ कक मैं मर ज ऊूँगी…”

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मैडम बोलीां- “तेरी गलती नहीां है , सर क हगथय र है ही ऐस मस
ू ल जैस , मझ
ु े म लम
ू है , मैं तो कब से सह रही
हूूँ। पर अब दे ख, सर तझ
ु े ऐस मज दें गे कक तू स्वगि क सख
ु लेगी…”

सर ने अब धीरे -धीरे अपन लण्ड अांदर ब हर करन शरू


ु कर हदय थ । स थ ही उनकी उां गली दीदी के द ने पर
चल रही थी। मैडम ने झुक कर दीदी क ननपल मूँह
ु में ललय और चूसने लगीां। मैंने दे ख कक सर क लण्ड अब
आर म से अांदर ब हर हो रह थ । जब ब हर होत तो थोड़ प नी ननकलत ।

दीदी हौले-हौले स ांसें ले रही थी और सर की आूँखों में आांखें ड ले हुए थी- “सर… मज आ रह है सर… कीजजये
न और…”

“ददि तो नहीां हो रह है लीन … चोदां ू तझ


ु े अब क यदे से, जैसे तेरी जैसी छोकरी को चोदन च हहये…” सर ने लीन
क चुम्प्म लेकर पछ
ू ।

लीन ने बस पलक झपक दी।

सर उसे अब हौले-हौले चोदने लगे। दीदी ने एक लससक री भरी और सर से ललपट गई- “ह ऽय सर… उईऽ म ांऽ…
सर ददि होत है सर पर बहुत अच्छ लग रह है सर। और… और कीजजये न … ललीज़…”

“और क्य लीन … ठीक से बोल, और क्य करूां…” सर ने मश्ु कुर कर पछ


ू । वे बड़े सधे अांद ज में चोद रहे थे। बस
तीन च र इांच लण्ड अांदर ब हर करते, बबन एक पल भी रुके हुए।

दीदी ने शरम कर कह - “सर… चोहदये न ललीज़…”

“ये हुई न ब त। अब लेसन सीखी है कक कैसे बोल ज त है । अब दे ख तझ


ु े कैसे चोदत हूूँ…” कहकर सर ने
रफ़्त र बढ़ दी। परू लण्ड अांदर ब हर करन शरू
ु कर हदय । मझु े लग कक दीदी को ददि होग पर वो अब मजे से
चुदव रही थी। उसकी जर सी बरु में सर क इतन बड़ लण्ड अांदर ब हर होत दे खकर मैं आांखें ि ड़-ि ड़ कर
यह नज र दे ख रह थ । मेर लण्ड किर से कसके खड़ हो गय थ ।

मैडम ने मझ
ु े प स खीांच ललय - “अरे ऐसे क्य दे खत है अननल बेटे… तेरी दीदी ककतनी चद
ु ै ल है ये अब पत
चल है तझ
ु े। मैंने तो इसे दे खते ही पहच न ललय थ …”

“और यह लड़क भी कम चोद ू नहीां है मैडम। दे खन आगे कैसे कैसे गल


ु खखल येग …” सर ने मझ
ु े सर ह । वे दीदी
को कस के चोद रहे थे। स त आठ धक्के लग ने के ब द रुक ज ते, किर एक लमनट रुक कर हौले-हौले चोदते
और किर घच घच लण्ड पेलने लगते।

दीदी लससक लससक कर कह रही थी- “सर… बहुत मज आ रह है सर… रह नहीां ज त । आह्ह… ओह्ह… ललीज़।
ललीज़… और जोर से कीजजये। चोहदये न … मैडम दे खखये न … ललीज़…”

मैडम ने मेर लण्ड मठ्


ु ठी में लेकर ऊपर नीचे करते हुए सर से कह - “सर, झड़ दीजजये बेच री को, ऐसे न
तड़प इये उसे…”
45
सर ने धक्के लग ते हुए कह - “अरे जर मज करने दो, बेच री ने इतन ददि सह है मेर लण्ड लेने में, लीन , तू
क्यों बबचकती है, मज ले, चुदने क परू मज नहीां लेगी क्य …” किर चौधरी सर दीदी को ब हों में भर के परू े
उसपर लेट गये।

और मझु े बोले- “तू क्यों ऐसे बैठ है अननल, चढ़ ज मैडम पर, चोद ड ल। बजल्क मैं तो कहूांग कक ग ण्ड म र ले
उनकी, क्यों मैडम…”

मझ
ु े रोम च
ां हो आय । मैडम की ग ण्ड म रने को लमलेगी क्य … पर लगत थ आज वो जन्नत मेरे नसीब में
नहीां थी।

मैडम बोलीां- “नहीां सर, ग ण्ड व ांड रहने दीजजये आज। यह मेर लशष्य इतन अच्छ चोदत है कक क्य कहूां। आ
ज अननल, चोद ले मझ ु …
े ” कहकर वे लेट गईं।

“ठीक है अननल, चोद ही ले, और ननर श मत हो, कल म र लेन ग ण्ड…” सर बोले।

“ककसकी…” मैडम ने हूँसते हुए पछ


ू ।

“कल पत चल ज येग , यह ां ग ण्डों की कमी है क्य … पर मज आयेग इसे इसकी ग रां टी है…” कहकर सर ने
दीदी के होंठ अपने मह
ूँु में ललये और उसक मह
ूँु चस
ू ते हुए हचक-हचक कर चोदने लगे।

मैं मैडम पर चढ़कर चोदने लग । अब कमरे में बस ‘िच िच’ ‘िच िच’ ‘प क प क पक
ु पक
ु ’ ऐसी चद
ु ई की
आव जें आ रही थीां। दीदी ने अपनी ट ांगें और ह थ सर के बदन के इदि गगदि भीांच ललये थे और कमर उछ ल-
उछ ल कर उनक मूँह
ु चूसते हुए चुदव रही थी।

मैंने मैडम को बहुत दे र चोद । वे दो ब र झड़ीां। मझ


ु े चूमती ज तीां और मझ
ु े श ब सी दे ती ज तीां- “बहुत अच्छे मेरे
बच्चे… बहुत लय र है त।ू बहुत मस्त चोदत है । अब जर और जोर से। लग न कस कस के। आज ख न नहीां
ख य क्य … वो दे ख सर कैसे कचम
ू र ननक ल रहे हैं तेरी बहन क …”

ब त सच थी। सर ने दीदी को ऐस चोद थ कक वो बस अपने सर के मूँह


ु में दबे मूँह
ु से ‘अांऽ अांऽ अांऽ’ कर रही
थी। श यद अब वो झड़ गई थी इसललये छूटने की कोलशश कर रही थी। पर सर उसे छोड नहीां रहे थे। जब सर
ने अपन मूँह
ु अलग ककय तो दीदी लससक कर बोली- “आहऽ… बस सर… ललीज़ सर… अब छोडड़ये न … कैस तो
भी होत है सर… ललीज़ सर…”

मैडम मझ
ु े बोलीां- “तेरी दीदी झड़ गई है इसललये अब ह लत खर ब है उसकी। पर तेरे सर नहीां म नेंगे। अब तो
उन्हें ख स मज आ रह होग । आखखर अनचद
ु ी, कच्ची बरु ऐसे रोज-रोज थोड़े लमलती है चोदने को…”

सर ने एक लमनट के ललये चुद ई रोक दी- “इत्ते में खल स हो गई तू लीन … तेरी मैडम को दे ख, घांटों चद
ु व ती हैं
किर भी मन नहीां भरत उनक , उनके जैसी बनन है कक नहीां?”

46
दीदी लांबी-लांबी स ांसें लेती हुई सांभलने की कोलशश करने लगी। हूँसते हुए सर उसके ग ल चूमते रहे , किर
अच नक किर से दीदी के होंठों को अपने मूँह ु में पकड़ और शरू
ु हो गये। अब वे परू ी त कत से चोद रहे थे।
उनक परू लण्ड दीदी की बरु में अांदर ब हर हो रह थ ।

मैडम ने मझ ु े कस के भीांच ललय और मस्ती से अपनी कमर उछ लते हुए बोलीां- “सर उसे छोड़ेंगे नहीां, शेर के
मूँह
ु में खून लग गय है, परू ी मेहनत करें गे और तेरी दीदी को चुद ई क परू सख
ु दे कर ही रुकेंगे, खुद भी परू
मज ललये बबन अब नहीां रुकने व ले ये…”

दीदी छटपट ने लगी। बहुत छूटने की कोलशश की पर सर के आगे उसकी क्य चलने व ली थी। सर अब कस के
धक्के लग रहे थे, बबन ककसी परव ह के कक उनके नीचे कोई चद
ु ै ल रां डी नहीां बजल्क मेरी न जक
ु बहन थी। यह
सीन इतन मस्त थ कक मैं झड़ गय और मैडम पर पड़ पड़ ह ांिने लग । मैडम भी तीसरी ब र झड़ चक
ु ी थीां,
मझ
ु े चूमने लगीां।

हम दोनों दीदी की होती पपस ई दे खने लगे। सर अब ऐसे कसके दीदी की धुन ई कर रहे थे कक दे ख-दे खकर मझ
ु े
ही डर लग रह थ कक दीदी को कुछ हो न ज ये। अच नक दीदी ने आांखें बांद कर लीां और लस्त हो गई,
छटपट न भी बांद हो गय ।

“बेहोश हो गई श यद, बेच री की पहली ब र है, बरु ने जव ब दे ही हदय आखखर बेच री की, आखखर ऐसे सोंटे के
आगे उसकी क्य चलती, इसने तो बड़ों-बड़ों को खल स कर हदय है, ये बच्ची ककस खेत की मल
ू ी है…” मैडम ने
बड़े गवि से कह । किर सर से बोलीां- “अब तो उसपर रहम कीजजये सर, बेच री ने हगथय र ड ल हदये हैं आपके
आगे…”

सर ह ांिते हुए बोले- “अभी नहीां… अब आयेग मज … लगत है कक ककसी रबड़ की गडु ड़य को चोद रह हूूँ। आप
नहीां ज नती मैडम। ऐसे ककसी बेहोश बदन को कचरने में क्य आनांद आत । है । इसे भी मज आ रह होग ।
बेहोशी में भी। नांबर एक की चुदैल कन्य । है ये…” दो लमनट ब द सर भी कस के गचल्ल ये और झड़ गये। किर
दीदी के बदन पर पड़े-पड़े जोर-जोर की स ांसें भरते हुए लस्त पड़कर आर म करने लगे।

प ांच लमनट ब द मैं और सर दोनों उठ बैठे। सर ने उठकर मेर लण्ड च ट और किर मैडम की बरु में मूँह
ु डल
हदय । लप लप उनकी बरु से बहते वीयि और प नी क भोग लग ने लगे। बीच में मेरी ओर मड़
ु कर बोले- “बैठ
क्यों है रे मरू ख… भोग नहीां लग न है … अरे इस रस द से स्व हदष्ट और कुछ नहीां है इस दनु नय में । चल, घस

ज अपनी बहन की ट ांगों में …”

मैडम ने मझ
ु े इश र ककय कक पहले सर के लण्ड को च टूां। मैंने सर क झड़ लण्ड मूँह
ु में ललय और चूस ड ल ।
दीदी की बरु के प नी और उनके वीयि क लमल जुल स्व द थ । किर दीदी की बरु अपनी जीभ से स ि करने में
लग गय ।

दीदी ने प च
ां लमनट ब द आांखें खोलीां। पहले वह इधर उधर दे खती रही किर मैडम को दे खकर लससकती हुई उनसे
ललपट गई।

47
मैडम उसे ब हों में लेकर चम
ू ने लगीां- “क्य हुआ लीन … ठीक है न … तू तो टें बोल गई। मझ
ु े लग थ कक परू
मज लेगी, ऐस अपने सर और मैडम से कुछ सीखने क मौक सबको थोड़े लमलत है । और ऐसे क्यों लससक
रही है , दख
ु रह है क्य ?”

मझ
ु े लग कक दीदी श यद रोये, अब भी उसकी चूत परू ी खुली थी, ल ल-ल ल छे द हदख रह थ ।

पर दीदी तो मैडम को गचपटकर बोली- “मैडम… मैडम… अब मैं यहीां रहूांगी। आप रख लीजजये न मझ
ु े यहीां।
इतन अच्छ लग रह थ मैडम। सर क लण्ड जब अांदर ब हर हो रह थ तो… सर। मैं यहीां रहूां आप दोनों के
प स…”

सर मश्ु कुर ये और उसके ब ल बबखेरते हुए बोले- “चलो, मेर लेसन बहुत पसांद आय लगत है । अरे अभी तो
बहुत लेसन हैं। और घबर ओ मत, रोज ये लेसन होंगे, रपवव र को भी। तम्प्
ु ह री न नी को अच्छ थोड़े लगेग
अगर तम
ु लोग यह ां रहो तो, वो जरूर पछ
ू े गी। बस र त को सोने घर ज य करो, ब की स्कूल के ब द यहीां आकर
पढ़ करो। ठीक है न …”

दीदी ने मड
ुां ी हहल ई।

मैडम बोलीां- “चलो बच्चो, अब ज ओ, बहुत समय हो गय , कल आन , जल्दी आ ज न , कल सर ख स लेसन


दे ने व ले हैं तम
ु दोनों को ब री-ब री से… क्यों सर, ठीक है न …” और हूँसने लगीां।

सर बोले- “ह ूँ… कल शननव र है न , ख स हदन भर पढ़ ऊूँग तम


ु दोनों को, सब
ु ह जल्दी ख न ख कर आ ज न …”

मैं और दीदी खश
ु ी-खश
ु ी घर चल हदये। दीदी थोड़ धीरे चल रही थी, पैर नछतर कर। मैंने पछ
ू - “क्यों दीदी, सर
ने आज तम्प्
ु ह री परू ी खोल दी। ददि हो रह है क्य ? कल आन है य न कर दें ?”

“मैं तो आऊूँगी, सर ने क्य चोद मझ ु े अननल। बहुत ददि हुआ पर… अननल चद
ु व ने में इतन मज आत होग
मैंने सोच भी नहीां थ । तझु े न आन हो तो मत आ, तू डर गय श यद सर के लण्ड से, कल तेरी ब री है न …”
दीदी मेर क न पकड़कर बोली।

“क्य मतलब… सर क लण्ड तो मस्त है, परसों चूस थ तो बहुत मज आय थ , मैं भी अब रोज आऊूँग , बस
चले तो र त को भी सो ज ऊूँ वह ां। कल क्य होग … क्य कह रही है त…
ू मैं तो तेरे ब रे में सोचकर बोल रह थ
कक सर के लण्ड ने क्य ह लत की थी तेरी…” मैंने पछ

दीदी हूँसने लगी- “खुद दे ख लेन भोलेर म, मैं तो ले लग


ूां ी सर क कभी भी, तू अपनी सोच…”

कुछ दे र हम चप
ु च प चलते रहे । मैंने कह - “दीदी, तम
ु ने दे ख … मैडम के पैर ककतने खब
ू सरू त हैं न … एकदम गोरे
गोरे । और मैडम वो चलपलें पहने थीां, रबर की, ककतनी कोमल और मल
ु यम थीां न …”

48
दीदी हूँस कर दे खने लगी- “ह ूँ मझ
ु े म लम
ू है । किकर मत कर, उनके पैर पड़ने के बह ने उन्हें छू लेन । तझ
ु े
चलपलों क शौक है न … खेलने में मज आत है न … मझ
ु े म लम
ू है । कल र त मैं सो रही थी तो मेरी चलपल के
स थ क्य कर रह थ …”

मैं कुछ बोल नहीां, बस शरम से हूँस हदय । लीन दीदी ने दे ख ललय ये ज नकर जर शरम भी महसस ू हुई, पर
क्य करूां, सच में लीन दीदी के पैर और वे सिेद रबर की हव ई चलपलें मेरे को बहुत भ ती हैं, ख स करके दीदी
जब पढ़ते समय एक पैर पर दस
ू र पैर रखकर उां गली में चलपल लटक कर नच ती है तो मेरी ह लत खर ब हो
ज ती है । कल र त मन नहीां म न तो ल इट आि होने के ब द, ये सोचकर कक दीदी सो गई है, जर उसकी
चलपल से चूम च टी कर रह थ ।

पर दीदी ने ज्य द नहीां गचढ़ य । श यद उसको मेरी दीव नगी क अांद ज थ ।

***** *****
दस
ू रे हदन जब हम पहुूँचे तो कल की ही तरह पहले मैडम ने हमें पढ़ य । किर सर ने। सर क लेसन खतम होने
पर मैं उठकर ज ने लग तो सर बोले- “कह ां ज रह है तू अननल…”

मैं सकुच कर बोल - “सर… कल जैसे मैडम के प स…”

“अरे आज तेरी ब री है मझ
ु से लेसन लेने की। आज लीन ज येगी मैडम के प स। तू ज लीन , मैडम र ह दे ख
रही होंगी…” और सर ने मझ
ु े ह थ पकड़कर अपनी गोद में खीांच ललय । लीन दीदी ज ते-ज ते मेरी ओर
मश्ु कुर कर दे ख रही थी कक अब समझे बच्च…

मेर हदल धड़कने लग । सर मेरे स थ क्य करें ग…


े पर लण्ड भी खड़ होने लग । परसों सर के स थ क्य मज
आय थ उनक लण्ड चूसकर, यह य द आ रह थ । किर दीदी ने जो ग ण्ड म रने की ब त की थी वो सोचकर
हदल में डर स भी लगने लग ।

चौधरी सर कपड़े उत रने लगे। मैं अभी भी सकुच त हुआ वैसे ही खड़ थ । सर बोले- “चल नांग हो ज िट िट।
अब हम ये लेसन आर म से सलीके से करते हैं ये तन
ू े दे ख न कल…”

“ह ूँ सर…” मैं धीरे से बोल ।

“किर ननक ल कपड़े जल्दी। कल कैसे मस्ती में मैडम दे लेसन ले रह थ । आज और मज आयेग । मैं मदद करूां
नांग होने में …”

“नहीां सर…” कहकर मैंने भी सब कपड़े उत र हदये।

चौधरी सर क लण्ड मस्त खड़ थ । लण्ड पकड़कर सहल ते हुए वे सोिे में बैठे और मझु े ह थ से पकड़कर खीांच
और गोद में बबठ ललय । मझ
ु े कस के चूम और बोले- “पहले खूब चम्प्
ु मे दे अननल। परसों तेरे चुम्प्मे बड़े मीठे थे
पर जल्दी-जल्दी में मज नहीां आय । आज लय र से अपने सर को चम्प्
ु मे दे , तझ
ु े अच्छे लगते हैं न … मैडम को
तो कल खूब चूम रह थ …”
49
मैंने शरम ते हुए मड
ांु ी हहल ई और लसर सर की ओर घम ु कर सर के होंठ चम
ू ने लग । सर क लण्ड मेरी पीठ पर
धक्के म र रह थ । सर ने मेरे लण्ड को मठ् ु ठी में ललय और मस्त करने लगे। उनकी जीभ मेरे मूँह
ु में घस
ु गई
थी। मैं उसे चूसने लग और कमर उचक कर लण्ड उनकी मठ्
ु ठी में अांदर ब हर करने लग । सर की जीभ मेरे
गले में घस
ु गई। मझ
ु े थोड़ी ख ांसी आयी पर सर ने मेर मूँह
ु अपने मूँह
ु से बांद कर हदय थ , इसललये उनके मूँह

में ही दब के रह गई।

सर अब मेरी आूँखों में झ क


ां रहे थे। मैं अब भी झेंप रह थ इसललये आांखें हट कर नतरछी नजर से मैंने दस
ू रे
कमरे में दे ख । दीदी और मैडम नांगे एक दस
ू रे से गचपटकर चूम च टी कर रहे थे। मैडम दीदी की बरु सहल रही
थीां और दीदी उनकी चच
ू ी पर मूँह
ु म र रही थी। लीन दीदी जर भी नहीां शरम रही थी, बजल्क मैडम से ऐसे
गचपकी थी कक जैसे रेलमक रेमी से गचपकती है । थोड़ी दे र ब र मैडम ने दीदी को नीचे ललट य और उसकी ट ांगों
के बीच लसर घस
ु हदय ।

सर ने खूब दे र सट सट कर मेर मूँह


ु चूस और अपन चुसव य । प ांच दस लमनट में मेरी स री झेंप खतम हो
गई थी। लण्ड सन सन कर रह थ और सर क ह थ उसपर अपन ज द ू चल रह थ । मझ
ु े अब सर पर इतन
ल ड़ आ रह थ कक मैं जब भी मौक लमलत लय र से उनके ग ल, आांखें और क न चूमने लगत । कभी गले पे
मूँह
ु जम दे त पर सर किर से मेरे होंठ अपने होंठों में लेकर दब लेते और चूसने लगते। मेरी ह लत खर ब हो
गई।

इतन मज आ रह थ कक सह नहीां ज रह थ । सोच रह थ कक सर किर से परसों जैस चस


ू लें तो क्य
लत्ु फ़ आयेग । य अपन मस्त लौड़ मझ
ु े चुसव दें । जो भी हो, कुछ तो करम करें मेरे ऊपर। आखखर मैं बोल
पड़ - “सर… सर… ललीज़… सर…”

“क्य हुआ अननल… बोलो बेटे, मज नहीां आ रह है…” सर ने शैत नी से पछ


ू - “शरम ओ नहीां, अब घबर ओ भी
मत, अपने मन की ब त कह दो। मैं भी आज तझ ु से अपने मन जैस करने व ल हूूँ…”

“बहुत मज आ रह है सर… रह नहीां ज त । ललीज़ सर…” मैंने अपन ह थ अपनी पीठ के पीछे करके सर के
मसू ल को पकड़कर कह - “सर… अब चसु व इये न ललीज़…”

“अरे व ह, आखखर तन
ू े अपने मन की कह ही दी। अरे ऐसे ही खुलकर बोल कर, सेक्स में शरम नहीां। तझ
ु े स्व द
पसांद आय उस हदन लगत है । उस हदन मज आय थ ?”

“ह ूँ सर, बहुत ज यकेद र थ …”

“चलो, अभी चुसव त हूूँ। पर परू लेकर चस


ू न पड़ेग । कल तेरी दीदी ने ललय थ न … आज तू भी ले…”

“ह ूँ सर… सर केल ले आऊूँ…” मैंने उत्स ह से पछ


ू । कल सर ने कैसे दीदी को केल ननगलने की ट्रे ननांग दी थी
और किर लण्ड मूँह
ु में हदय थ , यह मझ
ु े य द आ रह थ ।

50
“अरे नहीां, वो तो न जक
ु सी बच्ची है इसललये केले से च लू ककय । तू तो बह दरु बच्च है , वैसे ही ले-लेग । चल
आ ज , आर म से लेटकर चस ु व त हूूँ…” कहकर सर बबस्तर पर लेट गये और मझ
ु े अपने स मने ललट कर लण्ड
मेरे चेहरे पर रगड़ने लगे।

लण्ड मस्त खड़ थ , गल
ु बी ल ल सप
ु ड़ तो क्य रसील थ । उसमें सर के मत
ू की धीमी-धीमी खुशबू आ रही
थी। मैंने मूँह
ु ब य और सप
ु ड़ मूँह
ु में लेकर चूसने लग । परसों जैसे मैंने सर क लण्ड पकड़ और आगे पीछे
करने लग ।

“ऐसे तो तू िेल हो ज येग । ये क्य नसिरी के बच्चे जैस लेसन ले रह है । अब आगे क लेसन है, र इमरी क ।
परू मूँह
ु में ले, चल िट िट। आज लसफ़ि लड्डू ख कर नहीां छुटक र होग तेर , परू ी डडश ख न पड़ेगी…” सर ने
मेरे ब लों में उां गललय ां चल ते हुए कह ।

मैंने उत्स ह से मूँह


ु खोल और ननगलने लग । च र प च
ां इांच ननगल और किर सप
ु ड़ गले में फ़ांस गय । सर ने
मेर लसर पकड़कर अपने पेट पर दब य । मेर दम घट
ु ने लग और मझ
ु े ख ांसी आ गई। सर ने एक दो ब र और
दब य , किर छोड़ हदय ।

“अरे अननल बेटे, आज तू िेल हो ज येग पक्क । चल किर से कोलशश कर…”

मैंने तीन च र ब र कोलशश की पर सर क मतव ल लौड़ हलक से नीचे नहीां उतरत थ , फ़ांस ज त थ । मैंने
आांखें उठ कर सर की ओर दे ख कक सर, अब क्य करूां… मझ
ु े थोड़ी शरम भी आ रही थी कक मैं वो क म नहीां
कर प रह थ जो दीदी ने कर ललय थ ।

सर ने मेरे मूँह
ु से लण्ड ननक ल । मेरे क न पकड़कर बोले- “क्यों रे न ल यक… इतन भी नहीां कर सकत … और
डीांग म र रह थ कक सर आप मझ
ु े बहुत अच्छे लगते हैं। उधर लीन दे ख ककतनी सेव कर रही है अपनी मैडम
की…”

मैंने दे ख तो मैडम ने अपनी ट ांगों के बीच दीदी क लसर दब ललय थ और दीदी के मूँह
ु पर बैठकर ऊपर नीचे
हो रही थीां। दीदी ने मैडम के चत
ू ड़ ह थों में पकड़ रखे थे और मन लग कर मैडम की बरु चस
ू रही थी। मैं
परे श न होकर बोल - “स री सर, म ि कर दीजजये, बहुत बड़ है । एक ब र और करने दीजजये ललीज़, अब जरूर ले
लग
ूां सर…”

“नहीां तझ
ु े नहीां जमेग । श यद तझ
ु े मेरे लेसन अच्छे लहीां लगते। तू ज अपनी मैडम के प स। मैं तेरी दीदी को
ही लेसन दां ग
ू आगे से…” सर कड़ ई से बोले।

मेर हदल बैठ गय । वैसे मैडम के स थ ज ने को मैं कभी भी तैय र थ , पर ऐसे नहीां, सर न र ज हो ज यें तो
किर आगे की मस्ती में ब्रेक लगन ल जमी थ । और सरके लण्ड क अब तक मैं आलशक हो चक
ु थ।

सर ने दे ख तो मझ
ु े भीांचकर चूम ललय । मश्ु कुर ते हुए बोले- “अरे मैं तो मज क कर रह थ । सच में सर अच्छे
लगते हैं… कसम से…”

51
मैं कसम ख कर बोल , उनके पैर भी पकड़ ललये- “ह ां सर, मैं आपको छोड़कर नहीां ज न च हत , जो भी लेसन
आप लसख येंग,े मैं सीखांग
ू …”

“तो आज मैं तझ
ु े दो लेसन दां ग
ू । दो तीन घांटे लग ज येंगे। ब द में मक
ु रे ग तो नहीां… पीछे तो नहीां हटे ग … सोच
ले…” उनके ह थ अब लय र से मेरे चूतड़ों को सहल रहे थे।

मैंने किर से उनके पैर छूकर कसम ख ई- “नहीां सर, आप जो कहें गे वो करूांग सर। मझ
ु े अपन लण्ड चस
ू ने
दीजजये सर एक ब र किर से…” सर के पैर भी बड़े गोरे गोरे थे, वे रबड़ की नीली स्लीपर पहने थे, उन्हें छूकर
अजीब सी गद
ु गद
ु ी होती थी मन में । मेरे ध्य न में आय कक मैडम के गोरे न जक
ु पैरों से कोई कम नहीां थे सर
के पैर।

“ठीक है , वैसे तेरे बस क भी नहीां है मेर ये मस


ू ल ऐसे ही लेन । लीन की ब त और है, वो लड़की है , लड़ककय ां
जनम से इस ब त के ललये तैय र होती हैं। ऐस करते हैं कक अपने इस मस ू ल को मैं बबठ त हूूँ। दे ख, तैय र रह,
बस लमनट भर को बैठेग ये, तू िट क से ले-लेन मूँह
ु में , ठीक है न …”

मैंने मड
ुां ी हहल ई, किर बोल - “पर सर… बबन झड़े ये कैसे बैठेग ?”

सर ने अपने तनकर खड़े लण्ड की जड़ में एक नस को चट


ु की में पकड़ और दब य । उनक लण्ड बैठने लग -
“ददि होत है थोड़ ऐसे करने में इसललये मैं कभी नहीां करत , बस तेरे ललये कर रह हूूँ। दे ख तझ
ु पर ककतने
मेहरब न हैं तेरे सर…”

सर क लण्ड एक लमनट में लसकुड़ कर छोटे इल यची केले जैसे हो गय ।

“इसे क्य कहते हैं जब ये लसकुड़ होत है …” सर ने पछ


ू ।

“नन्
ु नी सर…”

“न ल यक, नन्
ु नी कहते हैं बच्चों के बैठे लण्ड को। बड़ों के बैठे लण्ड को लल्
ु ली कहते हैं। अब जल्दी से मेरी
लल्
ु ली मूँह
ु में ले। इसे तो ले-लेग न य ये भी तेरे बस की ब त नहीां है…” सर ने त न हदय ।

मैंने लपककर उनकी लल्


ु ली मूँह
ु में परू ी भर ली। उनकी बैठी लल्
ु ली भी करीब-करीब मेरे खड़े लण्ड जजतनी थी।
मूँह
ु में बड़ी अच्छी लग रही थी, नरम-नरम लांबे रसगल्
ु ले जैसी।

सर ने कह - “श ब स, बस पड़ रह। तेर क म हो गय । अब अपने आप सीख ज येग परू लण्ड लेन …” और मेरे


लसर को अपने पेट से सट कर बबस्तर पर लेट गये और मेरे बदन को अपनी मजबत
ू ट ांगों के बीच दब ललय ।

मैं मन लग कर सर क लण्ड चूसने लग । उनक लण्ड अब िट िट खड़ होने लग । आध खड़ लण्ड मूँह


ु में
भरकर मझु े बहुत मज आ रह थ । पर एक ही लमनट में सर क सप ु ड़ मेरे गले तक पहुूँच गय और किर मेरे
गले को चौड़ करके हलक के नीचे उतरने लग । मझ
ु े थोड़े घबर हट हुई, जब मैंने लण्ड मूँह
ु से ननक लन च ह
तो सर ने मेरे चेहरे को कस के अपने पेट पर दब ललय ।
52
“घबर मत बेटे, ऐसे ही तो ज येग अांदर, गले को ढील कर, किर तकलीि नहीां होगी…”

मेर दम स घट
ु ने लग । मैंने कसमस कर लसर अलग करने की कोलशश की तो सर मझ
ु े नीचे पटककर मेरे
ऊपर चढ़ गये और मेरे लसर को कस के अपने नीचे दब कर मेरे ऊपर औांधे सो गये। उनकी झ ट
ां ों में मेर चहर
परू दब गय ।

“मैंने कह न घबर मत। वैसे भी मैं तझ


ु े छोड़ने व ल नहीां हूूँ। ये लेसन अब तझ
ु े मैं प स करव कर रहूांग …”

सर क लण्ड अब परू तनकर मेरे गले के नीचे उतर गय थ । स ांस लेने में भी तकलीि हो रही थी। सर ने
अपने तलवों और चलपल के बीच मेरे लण्ड को पकड़ और रगड़ने लगे। दम घट
ु ने के ब वजूद सर क लण्ड मूँह

में बहुत मस्त लग रह थ । सर की झ ांटों में से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी। अच नक अपने आप मेर गल
ढील पड़ गय और सर क ब की लण्ड अपने आप मेरे हलक के नीचे उतर गय । मैं चटख रे ले-लेकर लण्ड
चूसने लग ।

“ह ूँऽ ऐसे ही मेरे बच्चे… ह ूँ… अब आय तू र स्ते पर, बस ऐस ही चूस। अब ये लेसन आ रह है तेरी समझ में ।
बहुत अच्छे मेरे बेटे। बस ऐसे ही चूस। अब घबर न मत, मैं तेरे गले को धीरे -धीरे चोदां ग
ू । ठीक है न ?”

मैं बोल तो नहीां सकत थ पर मड


ुां ी हहल ई।

सर ने मेरे ह थ पकड़कर अपने चूतड़ों के इदि गगदि कर हदये- “मझ


ु े पकड़ न लय र से अननल। मेरे चूतड़ दब ,
शरम मत। अपने सर के चूतड़ भी दे ख, लण्ड क मज तो ले ही रह है, इसके स थ-स थ अपने सर क
पपछव ड़ भी दे ख। मज आय न … ये हुई न ब त, ह ूँ ऐसे ही अननल। और दब जोर से…”

मैं सर के चूतड़ों को ब ांहों में भरके उनको दब रह थ । सर के चूतड़ अच्छे बड़े बड़े थे। सर अब हल्के हल्के मेरे
मूँह
ु को चोद रहे थे। मेरे गले में उनक लण्ड अांदर ब हर होत थ तो अजीब स लगत थ , ख ांसी आती थी। मेरे
मूँह
ु में , अब ल र भर गई थी इसललये लण्ड आर म से मेरे गले में किसल रह थ ।

कुछ दे र चोदने के ब द सर अपने बगल पर लेट गये और मेर लसर छोड़कर बोले- “अब तू खद
ु अपने मूँह
ु से मेरे
लण्ड को चोद, अांदर ब हर कर। ये होत है असली चस
ू न । बहुत अच्छ कर रह है… अननल तू ऐसे ही कर…
आह्ह… ओह्ह… अननल बेटे। तू तो लगत है अव्वल म कि लेग इस लेसन में । कह ां मझ
ु े लग थ कक तू िेल न
हो ज ये और यह ां ओह्ह… ओह्ह… तू एकदम एक्सपटि जैस कर रह है । एकदम ककसी रां डी जैस । ह ूँ ऐसे ही मेरे
र ज । परू ननक ल और अांदर ले, ब र-ब र ऐसे ही…” सर मस्ती से भ व पवभोर होकर मझ
ु े श ब सी दे रहे थे और
मेरे ब लों में लय र से उां गललय ां चल रहे थे।

सर क लण्ड न ग जैस फ़ुिक र रह थ । मझ


ु े न ज ने क्य हुआ कक मैंने अच नक उसे परू मूँह
ु से ननक ल
और ऊपर करके उसक ननचल हहस जीभ रगड़-रगड़कर च टने लग ।

53
सर मस्ती से झूम उठे - “आह्ह… ह ूँ… ह ूँ मेरी ज न… मेरे बच्चे… ऐसे ही कर… ओह्ह… ओह्ह…” एक लमनट वे
मझ
ु से ऐसे ही लण्ड चटव ते रहे और किर ब ल पकड़कर लण्ड को किर से मेरे मूँह
ु में घस
ु ने की कोलशश करने
लगे।

मेरी नजर दस
ू रे कमरे में गई तो मैडम मझ
ु े बड़े ल ड़ से दे ख रही थीां। दीदी आांखें ि ड़कर मेरे क रन मे दे ख रही
थी। उसे यकीन नहीां हो रह थ कक मैं भी इस तरह से सर क परू मस
ू ल मूँह
ु में ले सकत हूूँ। मैडम ने दीदी
को जबरदस्ती अपने स मने बबठ ललय और उसके लसर को अपनी ज ांघों में जकड़कर अपनी बरु चस ु व ने लगीां।
मझ
ु े दे खकर उन्होंने इश र ककय कक बहुत अच्छे , लगे रहो।

मझु े बड़ िक्र हुआ कक सर को मैं इतन सखु दे रह हूूँ। मैंने किर से उनक लण्ड मूँह
ु में ले ललय और आर म
से ननगल ललय । अब लण्ड ननगलने में मझु े कोई तकलीि नहीां हो रही थी, ऐस लगत थ कक ये क म मैं स लों
से कर रह हूूँ। सर ने घट
ु ने मोड़े तो मेर ह थ उनके पैर में लग । मैं अपन ह थ उनके पैरों के तलवे और चलपल
पर किर ने लग । सर की चलपल बड़ी मल
ु यम थी, उसे छूने में मज आ रह थ ।

अब मैं सर की मल ई के ललये भख
ू थ । लगत थ कक चब -चब कर उनक लण्ड ख ज ऊूँ। मेरे ह थ उनके
मजबत
ू मोटे चूतड़ों पर घम
ू रहे थे। मेरी उां गली उनकी ग ण्ड के बीच की लकीर पर गई और बबन सोचे मैंने
अपनी उां गली उनके छे द से लभड़ दी। सर ऐसे बबचके जैसे बबच्छू ने क ट ख य हो। अपने चूतड़ हहल -हहल कर वे
मेरे मूँह
ु में लण्ड पेलने लगे।

“अननल, उां गली अांदर ड ल दे … ये अगले लेसन में मैं करव ने व ल थ पर त।ू इतन मस्त सीख रह है । चल
उां गली कर अांदर…”

मैंने सर की ग ण्ड में उां गली ड ली और चत


ू ड़ पकड़कर लसर आगे पीछे करके अपने मूँह
ु से लण्ड ब र-ब र अांदर
ब हर करते हुए चूसने लग । बीच में सप
ु ड़े को जीभ और त लू के बीच लेकर दब दे त । मेरी उां गली उनकी ग ण्ड
बर बर खोद रही थी। सर ऐसे बबचके की मेर लसर पकड़ और उसे ऐसे चोदने लगे जैसे ककसी फ़ूटब ल को चोद
रहे हों। उनक लण्ड उछल और मेरे मूँह
ु में वीयि उगलने लग । एक दो पपचक ररय ां सीधे मेरे गले में उतर गईं।

किर सर ने ही अपन लण्ड ब हर खीांच और मेरी जीभ पर सप


ु ड़ रखकर उसे लय र से झड़ ने लगे। उनकी स ांस
तेज चल रही थी- “बहुत अच्छे अननल। क्य ब त है । अरे तू छुप रुस्तम ननकल बेटे। तेरी मैडम भी इतन
अच्छ नहीां करती। लगत है तझ ु े ये कल जनम से आती है । ले बेटे… मजे कर… ले मेरी मल ई ख , ऐश कर…
ग ढ़ी है न … जैसी तझ
ु े अच्छी लगती है…”

मैं चटख रे ले-लेकर सर क वीयि पीत रह । एकदम गचपगचप लेई जैस थ पर स्व द ल जव ब थ । मैंने अब भी
सर के चूतड़ पकड़ रखे थे और मेरी उां गली उनकी ग ण्ड में थी। मेर ध्य न पीछे के आइने पर गय उसमें सर
क पपछव ड़ हदख रह थ । क्य चूतड़ थे सर के, पहली ब र मैं ठीक से दे ख रह थ । गोरे गोरे और गठे हुए।

मझ
ु े परू वीयि पपल कर सर ने मझ
ु े आललांगन में ललय और मेरे ननपल मसलते हुए बोले- “भई म न गये आज
अननल, चेल गरू ु से आगे ननकल गय , तझ ु में तो कल है लण्ड चूसने की। अपने सर क रस द अच्छ लग …”

54
“ह ूँ सर, बहुत मस्त है, इतन सद
ुां र लण्ड है सर आपक , दीदी भी कल गण
ु ग रही थी। और स्व द भी उतन ही
अच्छ है सर… सर आपकी… मेर मतलब है कक आपके… य ने…” और सकुच कर चप ु हो गय ।

“बोलो बेटे। मेरे क्य ?” सर ने मझ


ु े पच
ु कर।

“सर आपके चूतड़ भी ककतने अच्छे हैं…” मैं बोल ।

“ऐसी ब त है… अरे तो शरम ते क्यों हो… ये तो मेरे ललये बड़े हौसले की ब त है कक तेरे जैसे गचकने लड़के को
मेरे चूतड़… य मेरी ग ण्ड कहो… ठीक है न … ग ण्ड अच्छी लगी। ठीक से दे खन च होगे?”

“ह ूँ सर…” मैं धीरे से बोल ।

“लो बेटे, कर लो मरु द परू ी। वैसे ये तेर आज क दस


ू र लेसन है । बड़ी जल्दी-जल्दी लेसन ले रह है आज तू
अननल, आज ही पढ़ ई खतम करनी है क्य …” कहते हुए सर औांधे लेट गये।

उनके चूतड़ हदख रहे थे। मैं उनके प स बैठ और उनको ह थ से सहल ने लग । किर एक उां गली सर की ग ण्ड में
ड लने की कोलशश करने लग , कनखखयों से दे ख कक बरु तो नहीां म न गये पर सर तो आांखें बांद करके मज ले
रहे थे। उां गली ठीक से गई नहीां।

सर ने छल्ल लसकोड़ कर छे द क फ़ी ट इट कर ललय थ - “गीली कर ले अननल मह


ूँु में ले के, किर ड ल…” सर
आांखें बांद ककये ही बोले।

मैंने अपनी उां गली मूँह


ु में ले के चस
ू ी और किर सर की ग ण्ड में ड ल दी। आर म से चली गई।

“अांदर ब हर कर अननल। ऐसे ही। ह ूँ… अब इधर उधर घमु । जैसे टटोल रह हो। ह ूँ ऐसे ही। बहुत अच्छे बेटे।
कैस लग रह है अननल… मेरी ग ण्ड अांदर से कैसी है… मैडम की चूत जैसी है…”

मैंने कह - “बहुत मल
ु यम है सर। एकदम मखमली। मैडम की चत
ू से ज्य द ट इट भी है …”

“तन
ू े कभी खद
ु की ग ण्ड में उां गली नहीां की…” चौधरी सर ने पछ
ू ।

“सर… एक ब र की थी पर ददि होत है…”

“मरू ख… सख
ू ी की होगी। वैसे तेरी तो मैडम य लीन की चूत से ज्य द मल
ु यम होगी। ये लेसन समझ ले।
ग ण्ड भी चूत जैसी ही कोमल होती है और उससे भी चूत जैस ही… चूत से ज्य द आनांद ललय ज सकत है ।
ये मैं तझ
ु े अगले लेसन में और बत ऊूँग …”

किर वे उठकर बैठ गये। उनक लण्ड आध खड़ हो गय थ - “अब आ मेरे प स, तझ


ु े जर मज दां ू अलग ककस्म
क … दे ख तेर कैस खड़ है मस्त…” मझ
ु े गोद में लेकर सर बैठ गये और मेरे लण्ड को तरह-तरह से रगड़ने

55
लगे। कभी हथेललयों में लेकर बेलन स रगड़ते, कभी एक ह थ से ऊपर से नीचे तक सहल ते तो कभी उसे मठ्
ु ठी
में भरके दस
ू रे ह थ की हथेली मेरे सप
ु ड़े पर रगड़ते।

मैं परे श न होकर मचलने लग । बहुत मज आ रह थ , रह नहीां ज रह थ - “सर… ललीज़… ललीज़ सर… रह
नहीां ज त सर…”

चौधरी सर मेर क न लय र से पकड़कर बोले- “ये मैं क्य लसख रह हूूँ म लम


ू है …”

“नहीां सर…”

“मठ्
ु ठ म रने की य ने हस्तमैथुन की अलग-अलग तरह की तरकीब लसख रह हूूँ। समझ … और भी बहुत सी हैं,
धीरे -धीरे सब लसख दां ग
ू । और एक ब त… ये सीख ले कक ऐसे मचलन नहीां च हहये। असली आनांद लेन हो तो
खुद पर कांट्रोल रखकर मज लेन च हहये। जैसे मैंने तझ
ु से आधे घांटे तक लण्ड चस
ु व य , झड़ने के ललये दो
लमनट में क म तम म नहीां ककय । समझ न …”

“ह ूँ सर… स री सर अब नहीां मचलग


ूां …” कहकर मैं चुपच प बैठ गय और मज लेने लग । बस कभी-कभी
अत्यगधक आनांद से मेरी हहचकी ननकल ज ती। स मने दे ख तो अब मैडम दीदी की ट ांगों में मूँह
ु ड ले बैठी थीां।
दीदी उनके लसर को पकड़कर आगे पीछे हो रही थी और मेरी ओर पथर यी आूँखों से दे ख रही थी। बहुत मस्ती में
थी।

सर ने दस लमनट और हर तरह से मेरी मठ्


ु ठ म री। किर पछ
ू - “सबसे अच्छ क्य लग बत … कौन तरीक
पसांद आय …”

“सर सब अच्छे हैं सर। पर जब आप मठ्


ु ठी में लेकर अांगठ
ू े को सप
ु ड़े के नीचे से दब ते हैं तो… ह ूँ सर… ओह्ह…
ओह्ह… ऐसे ही तो झड़ने को आ ज त हूूँ सर… ह ूँ… ओह्ह… ओह्ह…” मैं लससक उठ ।

सर ने मेरी उां गली मूँह


ु में ली और चूसी। किर बोले- “अब तू ये अपनी ग ण्ड में कर। अच्छ ठहर, पहले जर …”
उन्होंने वह ां पड़ी न ररयल की तेल की शीशी में से तेल मेरी उां गली पर लग य और बोले- “इसे धीरे -धीरे अपने
छे द पर लग और उां गली ड ल अांदर…”

शीशी के प स एक छोटी कुलपी भी रखी थी। मझ


ु े समझ में नहीां आय कक ये कुलपी यह ां क्यों है… मैंने अपने
गद
ु में उां गली ड ली। शरू
ु में जर स ददि हुआ पर किर मज आ गय । क्य मखमली थी मेरी ग ण्ड अांदर से।
मेर लण्ड और तन्न गय ।

सर मस ु कर ये- “मज आय न … अब उां गली करत रह, मैं तझ


ु े झड़ त हूूँ, बहुत दे र हो गई है । यह सच है कक
कांट्रोल करन च हहये पर लण्ड को बहुत ज्य द भी तड़प न नहीां च हहये…” और मेरी मठ् ु ठ म रने लगे।

मैंने अपनी ग ण्ड में जोर से उां गली की और एक लमनट में तड़प के झड़ गय - “ओह्ह… ओह्ह… ह य सर… मर
गय सर… उई म ांऽ…”

56
सर ने मेरे उछलते सप
ु ड़े के स मने अपनी हथेली रखी और मेर स र वीयि उसमें इकठ्ठ कर ललय । लण्ड श ांत
होने पर मझ
ु े हथेली हदख ई। मेरे सिेद ग ढ़े वीयि से वो भर गई थी- “ये दे ख अननल… ये रस द है क मदे व क …
ख स कर तेरे जैसे सद
ुां र नौजव न क वीयि… य ने तो ये मेव है मेव … समझ न … जो ये मेव ख येग वो बड़
भ ग्यश ली होग । अब मैं ही इसे प लेत हूूँ, आखखर मेरी मेहनत है । ठीक है न … वो दे ख तेरी मैडम इधर आ
रही है …” सर जीभ से मेर वीयि च ट च टकर ख ने लगे।

मैडम दीदी को लेकर हम रे कमरे में आयीां और बोलीां- “क्यों सर, क्य चल रह है … अकेले-अकेले ही… हमें भी
चख इये। और आज ककतन चलेग आपक यह लेसन… स थ में लेसन नहीां दे न है क्य …” मैडम थीां तो परू ी नांगी
पर अपनी रबर की चलपलें पहने थीां।

“नहीां मैडम, आज नहीां, आज तो बस मैं अननल को ही लेसन दां ग


ू । ये दे खखये इसक रस द, आप भी प इये थोड़
स बच है…”

मैडम ने ब की बच वीयि सर की हथेली से च ट ललय । बोलीां- “मजे हैं आपके सर, तो आज परू लेसन आप ही
दें गे…” उन्होंने कनखखयों से सर की ओर दे ख ।

सर ने आूँखों-आूँखों में कुछ कह और बोले- “ह ूँ मैडम, आज ये एकदम ि स्ट सीख रह है । एक दो बड़े इम्प्पॉटें ट
लेसन बचे हैं, वे भी दे दां ू आज ही। आपक लेसन कैसे चल रह है… लीन तो बड़ी खश
ु लग रही है, दे खखये
आपसे अलग भी नहीां रह प रही है …”

लीन दीदी मैडम से गचपट कर खड़ी थी और उनके मम्प्मे दब रही थी। उसक एक ह थ अपनी बरु में चल रह
थ । मझ
ु े दे खकर दीदी मश्ु कुर यी।

मैडम उसकी कमर में ह थ ड लकर बोलीां- “चल लीन , हम चलके अपने लेसन परू े करते हैं, तेरे ये सर आज मड

में हैं, अननल को परू लसख कर ही म नेंग…
े ”

“ऐस कीजजये मैडम, आ ही गई हैं तो हम दोनों को अपन रस द चख ती ज इये, बड़ी मतव ली महक आ रही
है …” चौधरी सर बोले।

“ह ूँ ह ूँ क्यों नहीां, आओ अननल, तम


ु मेरे प स आओ…” कहकर मैडम पैर फ़ैल कर खड़ी हो गईं। मैं समझ गय
और तरु ां त उनके स मने बैठकर उनकी बरु से मूँह
ु लग हदय । सर ने लीन को बबस्तर पर रख और उसकी बरु
च टने लगे।

“सर… सर… आपक चुसव इये न ललीज़…” लीन दीदी ने िरम इश की।

“क्यों नहीां लीन , ले चस


ू …” कहकर सर ने लीन दीदी क बदन घम
ु य और अपन लण्ड उसके मूँह
ु में दे कर दीदी
की बरु चूसने लगे।

दीदी ने एक ब र में गलप से उनक लण्ड परू मूँह


ु में ले ललय ।

57
मैडम हूँस कर बोलीां- “दे ख मेरी स्टूडेंट को, ककतनी होलशय र है , आपने बस एक ब र लसख य है और दे खखये,
कैसी अव्वल आने लगी है इस क म में…” मेरे मूँह
ु पर वे अपनी बरु के पपोटे नघस रही थीां।

“मेर ये स्टूडेंट भी कुछ कम नहीां है , दे ख आपने कक इसे तो केले से भी नहीां लसख न पड़ । अब आप ही


दे खखयेग कक अगल लेसन ये ककतनी सि ई से सीखत है …” कहते हुए सर लीन क मूँह
ु चोदने लगे।

प ांच लमनट ब द लीन दीदी ने अपन प नी सर के मूँह


ु में छोड़ और मैडम ने मझ
ु े अपनी बरु क अमत

पपल य । सर ने अपन लण्ड लीन के मूँह
ु से ननक ल ।

तो मैडम बोली- “सर… वो मल ई तो चख ई ही नहीां आपने…”

सर हां से और बोले- “आज नहीां, असल में ये मस्त खड़ है , अगले लेसन में मझ
ु े ये ऐस ही च हहये…”

मैडम बोलीां- “चल लीन , सर को तेरे भ ई को लेसन दे ने दे , अभी क फ़ी दे र लगेगी उसमें…” किर वे उठकर लीन
के स थ अपने कमरे में चली गईं। ज ते-ज ते मैडम मड़
ु कर बोलीां- “अगले लेसन में मेरी हे ल्प लगे तो बल
ु इयेग
सर, जर कहठन है…”

“ह ूँ ह ूँ मैडम, पर मेर पवश्व स है कक यह होलशय र बच्च खद


ु ही सीख लेग बबन मेरे जबरदस्ती ककये…” सर
बोले। उनक लण्ड किर से कसकर खड़ हो गय थ ।

“क्रीम की शीशी लभजव ऊूँ य ये तेल से ही क म चल लेंगे…” मैडम ने पछ


ू ।

“तेल अच्छ है मैडम, ढे र स र अांदर उड़ेल दां ग


ू पहले। एक चीज और लगेगी आव ज बांद करने को, आप समझ
रही हैं न …” सर मैडम को आांख म रकर बोले।

मैडम ने मश्ु कुर कर मेरी और सर की ओर दे ख और अपनी चलपलें वहीां सर की चलपल के प स उत र दीां- “ये
ठीक रहें गीां…”

“बबलकुल मैडम। ये तो आपने ऐस ककय कक मन की मरु द ही दे दी अपने लशष्य को…”

“ह ूँ मैंने भी गौर ककय है, बहुत शौकीन लगत है इनक , चल लीन …” लीन को पकड़कर खीांचती हुई मैडम उसे
अपने कमरे में ले गईं।

मझ
ु े बबस्तर पर सल
ु कर मेर झड़ लण्ड सर ने लय र से मूँह
ु में ललय और चूसने लगे। एक ह थ बढ़ कर उन्होंने
थोड़ न ररयल तेल अपनी उां गली पर ललय और मेरी गद
ु पर चुपड़ । किर मेर लण्ड चूसते हुए धीरे से अपनी
उां गली मेरी ग ण्ड में आधी ड ल दी।

“ओह्ह… ओह्ह…” मेरे मूँह


ु से ननकल ।

“क्य हुआ, दख
ु त है…” चौधरी सर ने पछ
ू ।
58
“ह ूँ सर… कैस तो भी होत है …”

“इसक मतलब है कक दख
ु ने के स थ मज भी आत है, है न … यही तो मैं लसख न च हत हूूँ अब तझ
ु े। ग ण्ड
क मज लेन हो तो थोड़ ददि भी सहन सीख ले…” कहकर सर ने परू ी उां गली मेरी ग ण्ड में उत र दी और हौले-
हौले घम
ु ने लगे। पहले ददि हुआ पर किर मज आने लग । लण्ड को भी अजीब स जोश आ गय और वो खड़
हो गय । सर उसे किर से बड़े लय र से चम
ू ने और चस
ू ने लगे- “दे ख … तू कुछ भी कहे य नखरे करे , तेरे लण्ड
ने तो कह हदय कक उसे क्य लत्ु फ़ आ रह है…”

प ांच लमनट सर मेरी ग ण्ड में उां गली करते रहे और मैं मस्त होकर आखखर उनके लसर को अपने पेट पर दब कर
उनक मूँह
ु चोदने की कोलशश करने लग ।

सर मेरे ब जू में लेट गये, उनकी उां गली बर बर मेरी ग ण्ड में चल रही थी। मेरे ब ल चूमकर बोले- “अब बत
अननल बेटे, जब औरत को लय र करन हो तो उसकी चूत में लण्ड ड लते हैं य उसे चूसते हैं। है न … अब ये
बत कक अगर एक परु
ु र् को दस
ू रे परु
ु र् से लय र करन हो तो क्य करते हैं…”

“सर… लण्ड चूसकर लय र करते हैं…” मैंने कह ।

“और अगर और कसकर लय र करन हो तो… य ने चोदने व ल लय र…” सर ने मेरे क न को द ांत से पकड़कर
पछ
ू । मझ
ु े बड़ अच्छ लग रह थ ।

“सर, ग ण्ड में उां गली ड लते हैं, जैस मैंने ककय थ और आप कर रहे हैं…”

“अरे वो आध लय र हुआ, करव ने व ले को मज आत है । पर लण्ड में होती गद


ु गद
ु ी को कैसे श ांत करें ग…
े ”

मैं समझ गय । हहचकत हुआ बोल - “सर… ग ण्ड में लण्ड ड लकर सर…”

“बहुत अच्छे मेरी ज न। तू समझद र है । अब दे ख, तू मझ


ु े इतन लय र लगत है कक मैं तझ ु े चोदन च हत हूूँ।
तू भी मझ
ु े चोदने को लण्ड महु ठय रह है । अब अपने प स चूत तो है नहीां, पर ये जो ग ण्ड है वो चूत से ज्य द
सख
ु दे ती है । और चोदने व ले को भी जो आनद आत है वो। बय न करन मजु श्कल है बेटे। अब बोल, अगल
लेसन क्य है… तेरे सर अपने लय रे स्टूडेंट को कैसे लय र करें ग…
े ”

“सर… मेरी ग ण्ड में अपन लण्ड ड लकर। ओह सर…”

मेर लण्ड मस्ती में उछल क्योंकी सर ने अपनी उां गली सहस मेरी ग ण्ड में गहर ई तक उत र दी।

“सर ददि होग सर… ललीज़ सर…” मैं लमन्नत करते हुए बोल ।

मेरी आूँखों में दे खकर सर मेरे मन की ब त समझ गये- “तझ


ु े करव न भी है ऐस लय र और डर भी लगत है , है
न …”
59
“ह ूँ सर, आपक बहुत बड़ है …” मैंने खझझकते हुए कह ।

“अरे उसकी किकर मत कर, ये तेल ककस ललये है, आधी शीशी ड ल दां ग
ू अांदर, किर दे खन ऐसे ज येग जैसे
मख्खन में छुरी। और तझ
ु े म लम
ू नहीां है , ये ग ण्ड लचीली होती है, आर म से ले-लेती है । और दे ख, मैंने पहले
एक ब र अपन झड़ ललय थ , नहीां तो और सख्त और बड़ होत । अभी तो बस लय र से खड़ है, है न … और
च हे तो तू भी पहले मेरी म र सकत है…”

मेर मन ललच गय ।

सर हूँस कर बोले- “म रन है मेरी… वैसे मैं तो इसललये पहले तेरी म रने की कह रह थ कक तेर लण्ड इतन
मस्त खड़ है, इस समय तझ
ु े असली मज आयेग इस लेसन क । ग ण्ड को लय र करन हो तो अपने स थी को
मस्त करन जरूरी होत है, वैसे ही जैसे चूत चोदने के पहले चूत को मस्त करते हैं। मैंने और मैडम ने तेरी
बहन को कैसे मस्त ककय थ , समझ न … लण्ड खड़ है तेर तो मरव ने में बड़ मज आयेग तेरे को…”

“ह ूँ सर…” सर मझ
ु े इतने लय र से दे ख रहे थे कक मेर मन डोलने लग - “सर… आप ड ल दीजजये सर अांदर, मैं
सांभ ल लग
ूां …”

“अभी ले मेरे र ज । वैसे तम्प्


ु हें क यदे से कहन च हहये कक सर, म र लीजजये मेरी ग ण्ड…”

“ह ूँ सर… मेरी ग ण्ड म ररये सर। मझ


ु …
े मझ
ु े चोहदये सर जैसे आपने दीदी को चोद थ …”

सर मश्ु कुर ये- “अब हुई न ब त। चल पलट ज , पहले तेल ड ल दां ू अांदर। तझ
ु े म लम
ू है न की क र के एांजजन
में तेल से पपस्टन सट सट चलत है… बस वैसे ही तेरे लसललांडर में मेर पपस्टन ठीक से चले इसललये तेल जरूरी
है । अच्छ पलटने के पहले मेरे पपस्टन में तो तेल लग …”

मैंने हथेली में न ररयल क तेल ललय और चौधरी सर के लण्ड पर चुपड़ने लग । उनक खड़ लण्ड मेरे ह थ में
न ग जैस मचल रह थ । तेल चप
ु ड़कर मैं पलटकर सो गय । डर भी लग रह थ । तेल लग ते समय मझ
ु े
अांद ज हो गय थ कक सर क लण्ड किर से ककतन बड़ हो गय है । सर ने भले ही हदल स दे ने को यह कह
थ कक एक ब र झड़कर उनक जर नरम खड़ रहे ग पर असल में वो लोहे की सल ख जैस ही टनटन गय थ ।
सर ने तेल में उां गली डुबोके मेरी गद
ु को गचकन ककय और एक उां गली अांदर ब हर की। किर एक ह थ से मेरे
चूतड़ फ़ैल ये और कुलपी उठ कर उसकी नली धीरे से मेरी ग ण्ड में अांदर ड ल दी।

मैं सर की ओर दे खने लग ।

वे मश्ु कुर कर बोले- “बेटे, अांदर तक तेल ज न जरूरी है । मैं तो भर दे त हूूँ आधी शीशी अांदर जजससे तझ
ु े कम से
कम तकलीि हो…” वे शीशी से तेल कुलपी के अांदर ड लने लगे।

मझु े ग ण्ड में तेल उतरत हुआ महसस


ू हुआ। बड़ अजीब स पर मजेद र अनभ ु व थ । सर ने मेरी कमर पकड़कर
मेरे बदन को हहल य - “बड़ी ट इट ग ण्ड है रे तेरी, तेल धीरे -धीरे अांदर ज रह है…”
60
मैंने दस
ू रे कमरे में दे ख । मैडम ने दीदी को गोद में बबठ ललय थ और एक दस ू री की बरु में उां गली करते हुए
वो दोनों बड़ी उत्सकु त से हम री ओर दे ख रही थीां दीदी ने मझु े गचढ़ ते हुए मूँह
ु बन य कक अब दे खन । मेरी
ग ण्ड से कुलपी ननक लकर सर ने किर एक उां गली ड ली और घम
ु -घम
ु कर गहरे तक अांदर ब हर करने लगे। मैंने
द ांतों तले होंठ दब ललये कक लससक री न ननकल ज ये। किर सर ने दो उां गललय ां ड ली। इतन ददि हुआ कक मैं
गचहुक पड़ ।

“इतने में तू ररररय ने लग तो आगे क्य करे ग … मूँह


ु में कुछ ले-ले जजससे चीख न ननकल ज ये। क्य लेग
बोल…” सर ने पछ
ू ।

मझ
ु े समझ में नहीां आय कक क्य कहूां। मेरी नजर वह ां पलांग के नीचे पड़ी सर की और मैडम की हव ई चलपल
पर गई।

सर बोले- “अच्छ ये ब त है… शौकीन लगत है त।ू कल से दे ख रह हूूँ कक तेरी नजर ब र-ब र मेरी और मैडम
की चलपलों पर ज ती है । तझ
ु े पसांद हैं क्य ?”

मैं शरम त हुआ बोल - “ह ूँ सर, बहुत लय री सी हैं, नरम-नरम…”

“तो मेरी चलपल ले-ले, य मैडम की ल…


ूां ” सर ने पछ
ू ।

“नहीां सर… आपकी चलेगी…” मैंने कह ।

चौधरी सर ने मश्ु कुर कर मैडम की एक चलपल उठ ली- “मैडम की ही ले-ले, मझ


ु े पत है कक तू कैस दीव न है
इनक …”

मैडम की चलपल दे खकर मेरे मूँहु में प नी भर आय पर किर मैंने सोच कक ये ठीक नहीां है , सर से मरव रह हूूँ
तो उन्हीां के चरणों की चलपल ज्य द ठीक होगी। मैंने कह - “सर मैडम की ब द में ले लग
ूां , मैडम की सेव
करूांग तब, आज आपकी ही च हहये मझ
ु …
े ”

सर ने अपनी चलपल उठ ई और मेरे मूँह


ु में दे दी- “ठीक से पकड़ ले, थोड़ी अांदर लेकर, मूँह
ु भर ले, जब ददि हो
तो चब लेन । ठीक है न … तझ
ु े शौक है इनक ये अच्छी ब त है, मूँह
ु में लेकर दे ख क्य लत्ु फ़ आयेग …”

मैंने मड
ुां ी हहल ई और मैडम की हव ई चलपल मूँह
ु में ले ली। लण्ड तन्न गय थ , नरम-नरम रबर की मल
ु यम
चलपल की भीनी-भीनी खुशबू से मज आ रह थ ।

“अब पलटकर लेट ज , आर म से। वैसे तो बहुत से आसन हैं और आज तझ ु े सब आसनों की रैजक्टस कर ऊूँग ।
पर पहली ब र ड लने को ये सबसे अच्छ है…” मेरे पीछे बैठते हुए सर बोले। सर ने मेरे चेहरे के नीचे एक
तककय हदय और अपने घट ु ने मेरे बदन के दोनों ओर टे ककर बैठ गये- “अब अपने चूतड़ पकड़ और खोल, तझ ु े
भी आस नी होगी और मझ
ु े भी… और एक ब त है बेटे, गद
ु ढील छोड़न नहीां तो तझ
ु े ही ददि होग । समझ ले
कक तू लड़की है और अपने सैंय के ललये चूत खोल रही है , ठीक है न …”
61
मैंने अपने ह थ से अपने चत
ू ड़ पकड़कर फ़ैल ये। सर ने मेरे गद
ु पर लण्ड जम य और पेलने लगे।

“ढील छोड़ अननल, जल्दी…”

मैंने अपनी ग ण्ड क छे द ढील ककय और अगले ही पल सर क सप


ु ड़ पक्क से अांदर हो गय । मेरी चीख
ननकलते ननकलते रह गई। मैंने मूँह
ु में भरी चलपल द त
ां ों तले दब ली और ककसी तरह चीख ननकलने नहीां दी।
बहुत ददि हो रह थ ।

सर ने मझ
ु े श ब सी दी- “बस बेटे बस, अब ददि नहीां होग । बस पड़ रह चप
ु च प…” और एक ह थ से मेरे चत
ू ड़
सहल ने लगे। दस
ू र ह थ उन्होंने मेरे बदन के नीचे ड लकर मेर लण्ड पकड़ ललय और उसे आगे पीछे करने
लगे।

मैं चलपल चब ने की कोलशश कर रह थ ।

सर बोले- “लगत है कक थोड़ी बड़ी है तेरे ललये। आज पहली ब र है तेरी… ऐस कर ये मैडम की चलपल मूँह
ु में
ले-ले। जर छोटी है, तझ
ु े भी मूँह
ु में लेने में आस नी होगी…” अपनी चलपल मेरे मूँह
ु से ननक लकर उन्होंने मैडम
की चलपल मेरे मूँह
ु में ड ल दी।

आर म से मैंने आधी ले ली और चब ने लग । मैडम की चलपल क स्व द भी अनोख थ , उनके पैर की भीनी-


भीनी खुशबू उसमें से आ रही थी।

“अरे ख ज येग क्य …” सर ने हूँस कर कह । किर बोले- “कोई ब त नहीां बेटे, जैस मन में आये वैसे कर, मस्ती
कर… हम और ले आयेंगे तेरे ललये…”

दो लमनट में जब ददि कम हुआ तो मेर कस हुआ बदन कुछ ढील पड़ और मैंने जोर से स ांस ली। सर समझ
गये। झुक कर मेरे ब ल चम
ू े और बोले- “बस अननल, अब धीरे -धीरे अांदर ड लत हूूँ। एक ब र तू परू ले-ले, किर
तझ
ु े समझ में आयेग कक इस लेसन में ककतन आनांद आत है…” किर वे हौले-हौले लण्ड मेरे चत
ू ड़ों के बीच
पेलने लगे। दो तीन इांच ब द जब मैं किर से थोड़ तड़प तो वे रुक गये। मैं जब सांभल तो किर शरू
ु हो गये।
प ांच लमनट ब द उनक परू लण्ड मेरी ग ण्ड में थ । ग ण्ड ऐसे दख
ु रही थी जैसे ककसी ने हथौड़े से अांदर से
ठोंकी हो। सर की झ ांटें मेरे चत
ू ड़ों से लभड़ गई थीां। सर अब मझ
ु पर लेटकर मझ
ु े चम
ू ने लगे। उनके ह थ मेरे
बदन के इदि गगदि बांधे थे और मेरे ननपलों को हौले-हौले मसल रहे थे।

मैंने लसर घम
ु कर दे ख तो मैडम दीदी के मम्प्मे दब ती हुई कस के दीदी को चूम रही थीां। दीदी की आांखें मेरी
इस ह लत को दे खकर चमक रही थीां।

सर बोले- “ददि कम हुआ अननल बेटे…”

मैंने मड
ांु ी हहल कर ह ूँ कह । सर बोले- “अब तझ
ु े लय र करूांग , मदों व ल लय र। थोड़ ददि भले हो पर सह लेन ,
दे ख मज आयेग …” और वे धीरे -धीरे मेरी ग ण्ड म रने लगे। मेरे चूतड़ों के बीच उनक लण्ड अांदर ब हर होन
62
शरू
ु हुआ और एक अजीब सी मस्ती मेरी नस-नस में भर गई। ददि हो रह थ पर ग ण्ड में अांदर तक बड़ी मीठी
कसक हो रही थी।

एक दो लमनट धीरे -धीरे लण्ड अांदर ब हर करने के ब द मेरी ग ण्ड में से ‘सप’ ‘सप’ ‘सप’ की आव ज ननकलने
लगी। तेल परू मेरे छे द को गचकन कर चक
ु थ । मैं कसमस कर अपनी कमर हहल ने लग ।

चौधरी सर हूँसने लगे- “दे ख , आ गय र स्ते पर। मज आ रह है न … अब दे ख आगे मज …” किर वे कस के


लण्ड पेलने लगे। सट सट सट सट लण्ड अांदर ब हर होने लग ।

ददि हुआ तो मैंने किर से मैडम की चलपल चब ली पर किर अपने चत


ू ड़ उछ ल कर सर क स थ दे ने लग ।

सर मड
ु कर मैडम से बोले- “दे ख मैडम मेरे स्टूडेंट क कम ल… चूां नहीां की और कैसे आर म से मेरे मस
ू ल को
ननगल गय । मैं कह रह थ न कक ये बहुत आगे ज येग , मेर न म रोशन करे ग …”

मैडम वहीां खखड़की से दे खती हुई बोलीां- “ह ूँ सर, म न गये, मझ


ु े पवश्व स नहीां थ कक ये सह लेग पर आपने तो
कम ल कर हदय । क्यों अननल, मज आय सर क डांड ले के…”

सर ने चलपल मेरे मूँह


ु से ननक ल दी- “अब इसकी जरूरत नहीां है अननल। बत … आनांद आय य नहीां?”

“ह ूँ… सर… आपक लेकर बहुत मज आ रह है …” सर के धक्के झेलत हुआ मैं बोल - “सर… आपको कैस लग
सर?”

“अरे र ज तेरी मखमली ग ण्ड के आगे तो गल


ु ब भी नहीां हटकेग । ये तो जन्नत है जन्नत मेरे ललये। ले… ले
और जोर से करूां…” वे बोले।

“ह ूँ… सर… जोर से म ररये सर… बहुत अच्छ लग रह है सर…”

सर मेरी प ांच लमनट म रते रहे और मझ


ु े बेतह श चम
ू ते रहे । कभी मेरे ब ल चम
ू ते, कभी गदि न और कभी मेर
चेहर मोड़कर अपनी ओर करते और मेरे होंठ चूमने लगते। किर वे रुक गये। मैंने अपने चूतड़ उछ लते हुए
लशक यत की- “म ररये न सर। ललीज़…”

“अब दस
ू र आसन। भल
ू गय कक ये लेसन है… ये तो थ ग ण्ड म रने क सबसे सीध स द और मजेद र आसन।
अब दस
ू र हदख त हूूँ। चल उठ और ये सोिे को पकड़कर झुक कर खड़ हो ज …” सर ने मझ
ु े बड़ी स वध नी से
उठ य कक लण्ड मेरी ग ण्ड से ब हर न ननकल ज ये और मझ
ु े सोिे को पकड़कर खड़ कर हदय - “झुक अननल,
ऐसे सीधे नहीां, अब समझ कक तू कुनतय है, य घोड़ी है और मैं पीछे से तेरी म रूांग …”

मैं झुक कर सोिे के सह रे खड़ हो गय । सर मेरे पीछे खड़े होकर मेरी कमर पकड़कर किर पेलने लगे। आगे
पीछे , आगे पीछे । स मने आइने में हदख रह थ कक कैसे उनक लण्ड मेरी ग ण्ड में अांदर ब हर हो रह थ ।
दे खकर मेर और जोर से खड़ हो गय । मस्ती में आकर मैंने एक ह थ सोिे से उठ य और लण्ड पकड़ ललय ।
सर पीछे से पेल रहे थे, धक्के से मैं गगरते गगरते बच ।
63
“चल… जल्दी ह थ हट और सोि पकड़ नहीां तो तम च म रूांग …” सर गचल्ल ये।

“सर… ललीज़… रह नहीां ज त । मठ्


ु ठ म रने क मन होत है …” मैं बोल ।

“अरे मेरे र ज मन्


ु न , यही तो मज है, ऐसी जल्दब जी न कर, परू लत्ु फ़ उठ । ये भी इस लेसन क एक भ ग
है …” सर लय र से बोले- “और अपने लण्ड को कह कक सब्र कर, ब द में बहुत मज आयेग उसे…” सर ने खड़े खड़े
मेरी दस लमनट तक म री। उनक लण्ड एकदम सख्त थ । मझ ु े अचरज हो रह थ कक कैसे वे झड़े नहीां। बीच में
वे रुक ज ते और किर कस के लण्ड पेलते।

मेरी ग ण्ड में से ‘िच’ ‘िच’ ‘िच’ की आव ज आ रही थी।

किर सर रुक गये। बोले- “थक गय बेटे… चल थोड़ सस्


ु त ले, आ मेरी गोद में बैठ ज । ये है तीसर आसन,
आर म से लय र से चूम च टी करते हुए करने व ल …” कहकर वे मझ
ु े गोद में लेकर सोिे पर बैठ गये। लण्ड अब
भी मेरी ग ण्ड में धांस थ ।

मझ
ु े ब ांहों में लेकर सर चम
ू -च टी करने लगे। मैं भी मस्ती में थ , उनके गले में ब ांहें ड लकर उनक मूँह
ु चम
ू ने
लग और जीभ चस
ू ने लग । सर धीरे -धीरे ऊपर नीचे होकर अपन लण्ड नीचे से मेरी ग ण्ड में अांदर ब हर करने
लगे।

उधर दीदी और मैडम अब लेटकर एक दस


ू रे की बरु चस
ू रही थीां और लेटे-लेटे हम री ओर दे ख रही थीां। ख स
कर दीदी तो एकदम मस्ती में थी, मैडम के लसर को अपनी ट ांगों में दब कर पैर िटक र रही थी।

प ांच लमनट आर म करके सर बोले- “चल अननल, अब मझ


ु से भी नहीां रह ज त , क्य करूां, तेरी ग ण्ड है ही
इतनी ल जव ब, दे ख कैसे लय र से मेरे लण्ड को कस के जकड़े हुए है, आ ज , इसे अब खुश कर दां ,ू बेच री
मरव ने को बेत ब हो रही है, है न …”

मैं बोल - “ह ूँ सर…” मेरी ग ण्ड अपने आप ब र-ब र लसकुड़ कर सर के लण्ड को ग य के थन जैस दहु रही थी।

“चलो, उस दीव र से सट कर खड़े हो ज ओ…” सर मझ


ु े चल कर दीव र तक ले गये। चलते समय उनक लण्ड
मेरी ग ण्ड में रोल हो रह थ । मझ
ु े दीव र से सट कर सर ने खड़े खड़े मेरी म रन शरू
ु कर दी। अब वे अच्छे
लांबे स्ट्रोक लग रहे थे, दे दन दन दे दन दन उनक लण्ड मेरे चूतड़ों के बीच अांदर ब हर हो रह थ । थोड़ी दे र में
उनकी स ांस जोर से चलने लगी। उन्होंने अपने ह थ मेरे कांधे पर जम हदये और मझ
ु े दीव र पर दब कर कस
कस के मेरी ग ण्ड चोदने लगे।

मेरी ग ण्ड अब ‘पच क’ पच क’ ‘पच क’ की आव ज कर रही थी। दीव र पर बदन दबने से मझ


ु े ददि हो रह थ
पर सर को इतन मज आ रह थ कक मैंने मूँह
ु बांद रख और चुपच प मरव त रह । चौधरी सर एक एक झड़
गये और ‘ओह्ह… ओह्ह… अां… आह्ह…” करते हुए मझ
ु से गचपट गये। उनक लण्ड ककसी ज नवर जैस मेरी ग ण्ड
में उछल रह थ ।

64
सर ह ांिते ह ांिते खड़े रहे और मझ
ु पर हटक कर मेरे ब ल चूमने लगे। परू झड़ कर जब लण्ड लसकुड़ गय तो
सर ने लण्ड ब हर ननक ल । किर मझ
ु े खीांचकर बबस्तर तक ल ये और मझ
ु े ब ांहों में लेकर लेट गये और चम
ू ने
लगे- “अननल बेटे, बहुत सख
ु हदय तन ू े आज मझ ु ,े बहुत हदनों में मझु े इतनी मतव ली कुव री ग ण्ड म रने को
लमली है , आज तो द वत हो गई मेरे ललये। मेर आलशव िद है तझ ु े कक तू हमेश सखु प येग , इस कक्रय में मेरे से
ज्य द आगे ज येग । तझ
ु े मज आय … ददि तो नहीां हुआ ज्य द …”

सर के ल ड़ से मेर मन गदगद हो गय । मैं उनसे गचपट कर बोल - “सर… बहुत मज आय सर… ददि हुआ…
आपक बहुत बड़ है सर… लग रह थ कक ग ण्ड िट ज येगी। किर भी बहुत मज आ रह थ सर…”

सर ने मेरे गद
ु को सहल कर कह - “दे ख, कैसे मस्त खल
ु गय है तेर छे द, अब तकलीि नहीां होगी तझ
ु ,े मजे
से मरव येग । अब तू कांु व र नहीां है …” किर मेर लण्ड पकड़कर बोले- “मज आ रह है …”

“सर… अब नहीां रह ज त ललीज़। मर ज ऊूँग अब… अब कुछ करने दीजजये सर…” कमर हहल -हहल कर सर के
ह थ में अपन लण्ड आगे पीछे करत हुआ मैं बोल ।

“ह ूँ ब त तो सच है । तू ज्य द दे र नहीां हटकेग अब। बोल चुसव येग य चोदे ग ?”

“सर चोदां ग
ू … हचक-हचक के चोदां ग
ू …” मैं मचलकर बोल ।

“मैडम य दीदी को बल ु ऊूँ… य …” सर कनखखयों से मेरी ओर दे खते हुए बोले। वे अब पलट गये थे और उनकी
भरे परू े चूतड़ मेरे स मने थे। मेरी नजर उनपर गड़ी थी।

“सर… अगर आप न र ज न हों तो… सर…” मैं धीरे से बोल ।

“ह ूँ ह ूँ… कहो मेरे बच्चे… घबर ओ मत…” सर मझ


ु े पच
ु क र कर बोले।

“सर… आपकी ग ण्ड म रने क जी हो रह है…”

सर हूँस कर बोले- “अरे तो हदल खोलकर बोल न , डरत क्यों है… यही तो मैं सन
ु न च हत थ । वैसे मेरी ग ण्ड
तेरे जजतनी न जक
ु नहीां है …”

“सर बहुत मस्त है सर… मोटी-मोटी, गठी हुई, म ांसल… ललीज़ सर…”

“तो आ ज … पर एक शति है । दो तीन लमनट में नहीां झड़न , जर मस्ती ले-लेकर दस लमनट म रन । मझ
ु े भी तो
मज लेने दे जर । ठीक है न … समझ ले यही तेर एग्ज़ म है , दस लमनट म रे ग तो प स नहीां तो िेल…” सर
बोले।

“ह ूँ सर… मेर बस चले तो घांट भर म रूां सर…” सर के चूतड़ों को पकड़कर मैं बोल ।

वे मश्ु कुर ये और पेट के बल लेट गये- “थोड़ी उां गली कर पहले, तेल लग ले। मज आत है उां गली करव ने में …”
65
मैंने उां गली पर तेल ललय और सर की ग ण्ड में ड ल हदय । गरम-गरम मल
ु यम ग ण्ड थी चौधरी सर की। मैं
उां गली इधर उधर घम
ु ने लग ।

“ह ूँ… ऐसे ही… जर गहरे … वो ब जू में… ह ूँ बस ऐसे ही…” सर गन


ु गन
ु उठे ।

मैंने दो तीन लमनट और उां गली की पर किर रह नहीां गय , झट से सर पर चढ़कर उनकी ग ण्ड में लण्ड फ़ांस य
और पेल हदय । लण्ड आस नी से अांदर चल गय ।

“अच्छी है न … तेरे जजतनी अच्छी तो नहीां होगी, तू तो एकदम कली जैस है…” सर बोले।

“नहीां सर, बहुत अच्छ लग रह है । ओह्ह… आह्ह…” मेरे मूँह


ु से ननकल गय ।

सर ने गद
ु लसकोड़कर मेरे लण्ड को कस के पकड़ ललय थ - “अब म र… कस के म रन , धीरे -धीरे की कोई
जरूरत नहीां है …” सर कमर हहल कर बोले।

मैं सर की म रने लग । पहले वैसे ही झुक कर बैठे-बैठे म री पर किर उनपर लेट गय और उनके बदन से गचपट
कर म रने लग । सर की चौड़ी पीठ मेरे मूँह
ु के स मने थी, उसे चम
ू त हुआ मैं जोर-जोर से चोदने लग । उतन
ही मज आ रह थ कक जैस मैडम को चोदते समय आय थ ।

मेरी स ांस चलने लगी तो सर ड ांट कर बोले- “सांभ ल के… सांभ ल के… िेल हो ज येग तो आज उसी बेंत से म र
ख येग …”

मैं रुक गय और किर सांभलने के ब द किर से सर को चोदने लग । सर भी मड


ू में थे। अपने चूतड़ उछ ल-उछ ल
कर मेर स थ दे रहे थे- “ऐसे ही अननल… बहुत अच्छे … लग धक्क जोर से… ग ण्ड म रते समय कस के म रनी
च हहये। ऐसे नहीां जैसे नयी दल्
ु हन को हौले-हौले चोद रह हो। ऐसे चोदन च हहये जैसे ककसी रां डी को पैसे वसल

करने के ललये चोदते हैं। समझ न … अरे तेरी दीदी को भी मज आत है न कस के चुदव ने में… किर म र जोर
से। ह ूँ… बहुत मस्त म र रह है त…
ू ” मेरे ह थ पकड़कर उन्होंने अपनी छ ती पर रख ललये। मैं इश र समझकर
उनके ननपल मसलत हुआ उनकी ग ण्ड म रने लग । बीच में ह थ से मैंने उनक लण्ड पकड़ तो वो किर से
सख्त हो गय थ ।

ककसी तरह मैंने दस लमनट ननक ले। किर बोल - “सर… ललीज़ सर… अब…”

सर बोले- “ठीक है , पहली ब र है उसके हहस ब से अच्छ ककय है तन


ू े। पर आगे य द रखन । अपने सर की सेव
ठीक से करन । तेरे सर की ये ग ण्ड तझ
ु े मज भी खब
ू लट
ू ने दे गी…”

मैं कस के सर की ग ण्ड पर पपल पड़ और उसे चोद-चोदकर अपन वीयि उनकी ग ण्ड में उगल हदय । किर हम
वैसे ही पड़े रहे , चूम च टी करते।

66
मैडम लीन को लेकर हम रे प स आयीां- “व ह, क्य खेल थ गरु
ु लशष्य क । भई मज आ गय । पर सर…
आपकी ये स्टूडेंट बहुत तड़प रही है , आज इसकी लय स बझ
ु ये नहीां बझ
ु ती, मैंने इतनी चस
ू ी इसकी पर ठां डी नहीां
हो रही है , कहती है कक सर से चुदव ऊूँगी…”

सर उठकर लीन को पलांग पर लेते हुए बोले- “क्यों नहीां, आ ज लीन बेटी, अभी चोद दे त हूूँ, तेरे भ ई को
चोद , अब तझ
ु े चोदकर तेरी लय स बझ
ु दे त हूूँ। पर झड़ूग ां नहीां लीन …”

लीन सी सी करती रही, कुछ बोली नहीां। उसक चेहर तमतम गय थ , आांखें चमक रही थीां। सर ने उसकी
ट ांगें फ़ैल कर उसकी बरु में लण्ड ड ल और शरू
ु हो गये। लीन ऐसे सर को गचपकी जैसे बांदर क बच्च अपनी
म ां को जकड़ लेत है , अपने ह थों और पैरों से सर के बदन को ब ध
ां कर कमर हहल ने लगी- “सर… चोहदये सर…
ललीज़ सर… जोर से सर… आह्ह… ओह्ह…”

मैडम ने मझ
ु े अपनी ट ांगों के बीच ललय और बड़े अगधक र से अपनी बरु मेरे मह
ूँु से लगी दी- “तू भी स्व द ले-
ले अननल। तेरी दीदी को तो खूब चख य मैंने अपन शहद पर आज उसकी भख
ू ही नहीां लमट रही है , ज नत है
क्यों?”

मैडम की बरु में जीभ ड लकर अांदर ब हर करते मैंने आूँखों-आूँखों में पछ
ू कक क्यों मैडम?

वे बोलीां- “जब उसने सर के मस


ू ल को तेरी जर सी ग ण्ड में घस
ु ते दे ख तो प गल सी हो गई। पहले कह रही
थी कक मैडम, अननल मर ज येग … मैंने उसे समझ य कक अरे अननल को मज आयेग दे ख… जब ब द में सर ने
तेरी तरह-तरह से म री और तू भी मजे से मरव त रह तो वो चुप हो गई। वैसे बत अननल, ददि हुआ थ न
बहुत?”

“ह ूँ मैडम, लग रह थ कक आज जरूर िट ज येगी, अस्पत ल ले ज न पड़ेग । पर मैडम, बहुत मज आय


मैडम, क्य लण्ड है सर क , अांदर घस
ु त थ तो इतनी गद
ु गद
ु ी करत थ कक जैसे कक जैस…
े ”

“जैसे हम री औरतों की चूत में होती है लण्ड लेकर। वैसे सर तेरी ग ण्ड के आलशक हो गये हैं। इतन खुश मैंने
उन्हें नहीां दे ख कभी…” कहकर कस के उन्होंने मेरे मूँह
ु पर अपनी चत
ू लग यी और प नी छोड़ हदय ।

प नी पीकर मैं बोल - “मैडम… अब मैं आपको चोदां …


ू ”

मैडम मेरे लण्ड को पकड़कर बोलीां- “अरे ये किर लसर उठ ने लग … सच में जव ब नहीां तम
ु दोनों भ ई बहन क ,
क्य रसीले बच्चे हो तम
ु लोग। पर नहीां अननल, आज नहीां, अभी सर क तेरे स थ क लेसन खतम नहीां हुआ
है । मैं तो बस लीन की तकलीि दरू करने आयी थी। दे खो सर क्य हचक-हचक कर चोद रहे हैं तेरी बहन को।
वो ठां डी होने को है दे ख…”

सर कस के दीदी को चोद रहे थे, अांदर तक लण्ड पेल रहे थे। दीदी अपने ह थों से उनके पीठ को नोंच रही थी।
किर दीदी चीखी और लस्त हो गई। पर सर ने उसे नहीां छोड़ । मेरी ओर मड़
ु कर बोले- “अननल, यह ां ध्य न दो,
ये आसन ध्य न से दे खो…” उन्होंने दीदी के पैर मोड़कर उसकी ट ांगें दीदी के लसर के इदि गगदि कर दीां और किर
उसे चोदने लगे।
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“दे ख … ऐसे मोड़कर मस्त चोद ज सकत है, किर छे द कोई भी हो, समझे न … च हे चत
ू में ड ल दो य ग ण्ड
में , आसन यही रहत है । और आगे से मस्त चम्प्
ु मे ले-लेकर लय र करते हुए ग ण्ड भी चोद सकते हैं…”

मैं बोल - “ह ूँ सर…”

दीदी कसमस रही थी- “बस सर… हो गय … अब नहीां… ललीज़ छोडड़ये न … मत कीजजये सर… ललीज़… मैं झड गई
सर… बस…”

पर सर चोदते रहे - “अरे लीन र नी, ऐसे हगथय र नहीां ड लते। अब चद


ु रही हो तो परू चद
ु ओ…”

दीदी हल्के हल्के चीखने लगी तो सर ने उसक मूँह


ु अपने मूँह
ु से बांद कर हदय । प ांच लमनट में दीदी ननश्चल
होकर लढ़
ु क गई।

सर ने लण्ड ब हर ननक ल - “लो, ये तो गई क म से। वैसे बड़ी लय री बच्ची है, क फ़ी रलसक है , इसकी चत
ू क्य
गीली थी आज, मैडम ये आपकी स्टूडेंट आपसे भी आगे ज येगी…”

लण्ड जब दीदी की चत
ू से ननकल , तो दीदी के प नी से गील थ ।

“ह ूँ बहुत लय री बच्ची है , वैसे तम्प्


ु ह र स्टूडेंट भी कम नहीां है । लीन को ले ज ऊूँ य यहीां रहने दां …
ू और चोदें गे
क्य इसे ब द में…” मैडम उठते हुए बोलीां।

“मैडम, अब कह ां ले ज येंगी इसे… आपको उठ कर ले ज न पड़ेग । इसे यहीां सोने दो ब जू में, आप इसक भोग
लग ओ और मझ
ु े अननल क लेसन परू करने दो। आओ अननल, यह ां लेटो बेटे…” सर मझ
ु े प स खीांचते हुए बोले।

मैं दीदी के ब जू में पेट के बल लेटने लग तो सर बोले- “अरे वो आसन तो हो गय , अब स मने व ल , बबलकुल
जैसे तेरी दीदी को चोद न , वैस…
े इसललये तो तझ
ु े दे खने को कह थ मरू ख, भल
ू गय … सीध लेटो। तू भल

ज येग कक तेरी ग ण्ड म र रह हूूँ, तझ
ु े भी यही लगेग कक तेरी चत
ू चोद रह हूूँ। ये अपने पैर मोड़ो बेटे, और
ऊपर… उठ लो ऊपर… और ऊपर… अपने लसर तक… ह ूँ अब ठीक है…”

मैंने ट ांगें उठ ईं। सर ने उन्हें मोड़कर मेरे टखने मेरे क नों के इदि गगदि जम हदये। कमर दख
ु रही थी- “अब इन्हें
पकड़ो और मझ
ु े अपन क म करने दो…” कहकर सर मेरे स मने बैठ गये और लण्ड मेरी परू ी खुली ग ण्ड पर
रखकर पेलने लगे। पक्क से लण्ड आध अांदर गय ।

मैंने लसफ़ि जर स सी सी ककय , और कुछ नहीां बोल ।

“श ब स बेटे, अब तू परू तैय र हो गय है , दे ख जर स भी नहीां गचल्ल य मेर लण्ड लेने में । कमर दख
ु ती है
क्य ऐसे ट ग
ां ें मोड़कर…”

“ह ूँ सर…” मैंने कबल


ू ककय ।
68
“पहली ब र है न … आदत हो ज येगी। ये आसन बड़ अच्छ है कमर के ललये, योग सन जैस ही है । तेरी कमर
लड़ककयों से ज्य द लचीली हो ज येगी दे खन । अब ये ले परू …” कहकर उन्होंने सध हुआ जोर लग य और लण्ड
जड़ तक मेरे चूतड़ों के बीच उत र हदय । एक दो ब र वैसे ही उन्होंने लण्ड अांदर ब हर ककय और किर स मने से
मेरे ऊपर लेट गये।

“ह य… सर… ककतन लय र लग रह है अननल, इसी ह लत में , इसके ब ल लांबे कर दो तो कोई कहे ग नहीां इस
ह ल में कक लड़क है । अननल, अपनी ट ांगों से सर के बदन को पकड़ ले बेटे…” मैडम लस्त पड़ी दीदी की ट ग
ां ों
को फ़ैल कर उनके बीच अपन मूँह
ु ड लते हुए बोलीां।

मैंने थोड़ ऊपर उठकर सर की पीठ को ब ांहों में भीांच ललय और अपने पैर उनकी कमर के इदि गगदि लपेट ललये।
बहुत अच्छ लग रह थ सर के सड
ु ौल बदन से ऐसे आगे से गचपटकर। मेर लण्ड उनके पेट और मेरे पेट के
बीच दब गय थ ।

सर ने लय र से मझ
ु े चम
ू और चोदने लगे- “अच्छ लग रह है अननल… य तझ ु े अनू कहूां… अननल, थोड़ी दे र को
समझ ले कक तू लड़की है और चतू चद ु रही है…” किर मेरे ग ल और आांखें चूमने लगे। वे मझ ु े हौले-हौले चोद
रहे थे, बस दो तीन इांच लण्ड ब हर ननक लते और किर अांदर पेलते।

कुछ दे र मैं पड़ पड़ चुपच प ग ण्ड चुदव त रह । किर कमर क ददि कम हुआ और मेरी ग ण्ड ऐसी खखल उठी
जैसे मस्ती में प गल कोई चत
ू । ग ण्ड के अांदर मझ
ु े बड़ी मीठी-मीठी कसक हो रही थी। जब सर क सप
ु ड़ मेरी
ग ण्ड की नली को नघसत तो मेरी नस-नस में लसहरन दौड़ उठती। मेर लण्ड भी मस्ती में थ , बहुत मीठी-मीठी
चुभन हो रही थी। मझ
ु े लग कक लड़ककयों के जक्लट में कुछ ऐस ही लगत होग ।

सर पर मझ
ु े खूब लय र आने लग वैस ही जैसे ककसी लड़की को अपने आलशक से चुदव ने में आत होग । मैंने
उन्हें जम के अपनी ब ांहों में भीांच और बेतह श उन्हें चूमने लग - “सर… मेरे अच्छे सर… बहुत अच्छ लग रह
है सर… चोहदये न … कस के चोहदये न … ि ड़ दीजजये मेरी ग ण्ड… चूत… मेरी चत ू को ढील कर दीजजये सर… ओह
सर… आप अब जो कहें गे मैं करूांग सर… आप मेरे भगव न हैं सर… सर मैं आपको बहुत लय र करत हूूँ सर…
सर… आपको मैं अच्छ लगत हूूँ न सर…” और कमर उछ ल-उछ ल कर मैं अपनी ग ण्ड में सर के लण्ड को
जजतन हो सकत है उतन लेने की कोलशश करने लग ।

सर मझ ु े चमू कर मेरी ग ण्ड में लण्ड पेलते हुए बोले- “ह ूँ अनू र नी, मैं तझ
ु े लय र करत हूूँ। बहुत लय री है त।ू
तन
ू े मझु े बहुत सख
ु हदय है । अब आगे दे खन कक ककस तरह से मैं तझ ु े और तेरी दीदी को चोदां गू …” सर ने मझ ु े
खूब दे र चोद । हचक-हचक कर धक्के लग ये और मेरी कमर करीब-करीब तोड़ दी।

मैडम दीदी की बरु चूसती रहीां और अपनी बरु में उां गली करके हम री रनत दे खकर मज लेती रहीां। बीच-बीच में
मेरे ग ल सहल कर श ब सी दे ती ज तीां- “बहुत अच्छ चद
ु रह … स री सर… चद
ु रही है तू अनू बेटी…” किर
बोलीां- “सर कल एक खेल करते हैं। अननल को लड़की और लीन को लड़क बन ते हैं। अरे पर कल तो रपवव र
है …”

“हम लोग आ ज येंगे मैडम…” मैंने और लीन ने एक आव ज में कह ।


69
“नहीां, आर म करो जर … आर म करोगे तो सोमव र को और मज आयेग …”

सर मेरी ग ण्ड में लण्ड पेलते हुए बोले- “बहुत अच्छ खय ल है मैडम… आप तैय री कर लीजजयेग … वो आपकी
पैडड
े ब्र है न , वो ननक लकर रखखये और ब लों क वो क्य करें गीां मैडम?”

“आप किकर मत कीजजये सर। मैं पवग ले आऊूँगी आज श म को। वो डडल्डो तो है न जो हम रोज यज़
ू करते
हैं…” मैडम ने पछ
ू ।

“ह ूँ… यहीां रख है । इन तीन हदनों में जरूरत ही नहीां पड़ी। दे खखये ये बच्चे इतने होलशय र ननकले ओह्ह… ओह्ह…
अनू र नी… अननल र ज …” और चौधरी सर भलभल कर झड़ गये।

मैं कमर चल त रह क्योंकी मेर लण्ड प गल स हो गय थ ।

सर ने लण्ड मेरी ग ण्ड से ननक ल और लय र से मेरे मूँह


ु में दे हदय - “ले अनू र नी… ऐश कर… मेहनत क िल
चख…”

मैडम ने मेरी ग ण्ड के छे द पर उां गली किर यी- “सर, आपने तो इसकी गि
ु बन दी एक हदन में…”

“छे द किर छोट हो ज येग मैडम, आखखर जव न लड़क है …” सर लेटकर सस्


ु त ते हुए बोले।

मैडम मेरे लण्ड को सहल ती हुई बोलीां- “इसे दे खखये सर, है जर स और नन्
ु नी भर है पर ये कैसे कसमस रह
है जैसे मज आ रह हो, क्यों रे अननल, अच्छ लगत है …”

“ह ूँ मैडम, बहुत मीठ लग रह है लण्ड में …” मैं मैडम क ह थ पकड़कर अपने लण्ड पर और जोर से नघसने की
कोलशश करते हुए बोल ।

“मैडम ऐस होत है… जब ज्य द ग ण्ड म र ली ज ये तो ऐस ही होत है, लण्ड खड़ नहीां होत पर मज बहुत
आत है । म ल लमलेग इसमें से… आपक मड ू है य मैं चूस ल…
ूां ”

पर मैडम कह ां छोड़ने व ली थीां। झट से मेरी नन्


ु नी मह
ूँु में ली और चस
ू ड ली। मझ
ु े इतन मज आ रह थ कक
समझ में नहीां आय क्य करूां। नजर सर की चलपल पर पड़ी तो बबन सोचे समझे ह थ बढ़ कर चलपल उठ ली
और मूँह
ु में लेकर चूसने च टने लग । सर लय र से दे खकर मश्ु कुर ते रहे । अपने ह थ में उन्होंने अपनी दस
ू री
चलपल ले ली और मेरे ग लों और आूँखों पर िेरने लगे।

मैडम जब मझ
ु े झड़ कर मेर वीयि खतम करके उठीां तो हूँस के बोलीां- “ये लड़क तो आपकी चलपलों क भी
आलशक हो गय है लगत है । वैसे ठीक भी है , आपक लशष्य है, आपकी चरण पज
ू करे ग तो आलशव िद ही
प येग …”

70
हम सब दस लमनट ऐसे ही पड़े रहे । किर मैडम बोलीां- “चलो, श म हो गई, अब तम
ु लोग ज ओ। सोमव र को
आन ऐसे ही। ख स खेल है । और न नी को बत दे न कक सर दो घांटे की एक्सट्र क्ल स लेने व ले हैं…”

दीदी अब तक होश में आ गई थी। बहुत थकी हुई लग रही थी। मैडम ने हम दोनों के ललये शरबत बन य । उसे
पीकर दीदी जर सांभली। हमने कपड़े पहने और चलने लगे। मैं और दीदी दोनों पैर नछतर कर चल रहे थे। सर
बोले- “ये लो दो रुपये, ररक्स से चले ज ओ, ऐसे ज ओगे तो लोग दे खकर कहें गे कक क्य हो गय । आज आर म
करन । परसों एक और अच्छ मजेद र लेसन दें गे तम
ु लोगों को। मैडम आज कुछ श पपांग करने व ली हैं तम

लोगों के ललये…”

घर पहुूँच कर मैंने दीदी से कह - “दीदी, तू तो एकदम चद


ु क्कड़ हो गई है , कैसे चद
ु व रही थी सर से…”

दीदी बोली- “तू कम थ क्य , क्य ग ण्ड मर यी सर से… सच बत । दख


ु क्य … तेरी ग ण्ड में जब वो मस
ू ल घस

रह थ तो मझु े लग कक अब िटी तेरी। पर अननल, दे खकर बहुत मज आय , ग ण्ड में लण्ड घस
ु ने क नज र
अलग ही होत है, तझ
ु े मज आय क्य … वैसे ह लत खर ब थी तेरी…”

“ह ूँ दीदी, बहुत दख
ु । पर दीदी, ग ण्ड मर ने क मज और ही है । तू मर येगी क्य ?”

“नहीां ब ब …” दीदी क न पर ह थ रखकर बोली- “मेरे ललये ये चत


ू चद
ु न क फ़ी है । तू ही ललय कर ग ण्ड में। सर
क लण्ड ककतन अच्छ है न अननल… मेर तो मन ही नहीां भरत , लगत है चौबीसों घांटे चुदव ती रहूां। मैडम
ककतनी नसीब व ली हैं अननल, उनको सर क लण्ड रोज लमलत है । वैसे वो तझ
ु को लड़की और मझ ु े लड़क
बन ने के ब रे में क्य बोल रही थीां मैडम…”

“पत नहीां दीदी। परसों पत चल ही ज येग …”

उस र त जल्दी ख न ख कर हम सो गये, बहुत थके थे।

न नी भी बोली- “ह ूँ सो ज ओ बच्चो। ककतन थक गये हो आज, तम्प्


ु ह री सरू त पर से हदखत है । सर और मैडम
बहुत पढ़ ते हैं लगत है । बेच रे इतनी मेहनत करते हैं। भगव न उन्हें लांबी उमर दे …”

***** *****
रपवव र को हमने परू े हदन आर म ककय । दीदी तो सोती ही रही। मैं भी कहीां नहीां गय , ग ण्ड में अब भी ददि थ ,
सोच बबस्तर में पड़ रहूांग तो जल्दी आर म लमलेग ।

सोमव र को हम क फ़ी ठीक हो गये थे। मेरी भी ग ण्ड सम्प्भल गई थी, ददि खतम हो गय थ , जर सी टीस भर
थी। जब हम सर के यह ां पहुूँचे तो मैडम र ह दे ख रही थीां। हमें खीांचकर वे अांदर ले गईं। वह ां उन्होंने अपन
ग उन उत र और हमें भी कपड़े उत रने को कह ।

मैडम की नांगी जव नी को दे खते हुए हम भी नांगे होने लगे। दो हदन के आर म से थक न ग यब हो गई थी। मेर
लण्ड मैडम को दे खकर खड़ हो गय ।

71
“सर कह ां हैं मैडम?” दीदी ने पछ
ू ।

“नह रहे हैं। आज दे र से सोकर उठे । वे जब तक आयें, तम


ु दोनों को तैय र करन है । आज ख स खेल है
बच्चो…” मैडम मश्ु कुर यीां और मझ
ु े प स बल
ु य । उनके ह थ में एक ब्र थी- “इसे पहन लो अननल। य मैं ही
पहन दे ती हूूँ…”

“मैडम, ये क्य है?” मैंने खझझकते हुए पछ


ू ।

“अरे लड़की नहीां बनन है… भल


ू गय … कल ख स ज कर ल यी हूूँ तेरे न प की छोटी…” कहकर मैडम ने मझ
ु े ब्र
पहन दी। ट इट थी। ब्र के कपों में लगत है स्पांज की गें दें भरी थीां। उन्हें दब कर मैडम बोलीां- “ये बन गईं
मस्त चूगचय ां तेरी। अब ये पैंटी पहनो…” कहकर मैडम ने मझ
ु े एक लेस व ली गल
ु बी पैंटी पहन दी। उसमें पीछे
और आगे छे द थ । आगे के छे द में से मेर लण्ड मैडम ने ब हर ननक ल ललय । पीछे के छे द से उां गली ड लकर
बोलीां- “मज आय … सर ने कह थ छे द रखने को जजससे पैंटी न उत रनी पड़े। अब रहे ब ल तो ये लग ले…”
कहकर उन्होंने मझ
ु े एक पवग लग हदय । पवग के कांधे तक रे शमी ब ल थे।

“अब दे ख आइने में । तब तक मैं ललपजस्टक लग दां …


ू ” मैडम मझ
ु े ललपजस्टक लग ने लगीां। मैंने आइने में दे ख तो
सच में लड़की लग रह थ । बस लण्ड कस के खड़ थ । मझ
ु े अजीब स लग , मन में गद
ु गद
ु ी भी हुई।

दीदी खखलखखल कर हूँसने लगी- “मैडम, सच में । क्य लगत है अननल। इसे ऐसे ही ब हर र स्ते पर ले ज इये
मैडम…”

“ह ूँ ले ज ऊूँगी, स ड़ी पहन कर एक हदन ले ज ऊूँगी। अभी अब ये चूडड़य ां पहन अननल और क न में ये बद


ूां ी। डर
मत, जस्रांग व ली हैं, क न में छे द नहीां करन पड़ेग । और ये मेर मांगलसत्र
ू पहन ले…”

मझ
ु े शरम लग रही थी पर मज आ रह थ । लीन मह
ूँु दब कर मझ
ु े गचढ़ कर हूँस रही थी- “तू क्यों किदी किदी
कर रही है शैत न, अब तू आ इधर, तेरी ब री है…”

लीन दीदी चप
ु हो गई। किर बोली- “मैडम मैं…”

“तझ
ु े भी तो लड़क बन न है । चल ब ल ब ांध ले…” कहकर मैडम ने दीदी के ब ल ब ांधकर छोटे कर हदये और
एक कक्रकेट कैप पहन दी। किर एक डडल्डो ननक ल और दीदी को ब ांधने लगीां- “ये लसर अांदर ड ल ले, डर मत
छोट है, मज आयेग …”

दीदी की बरु में डडल्डो क एक छोर घस


ु ेड़कर मैडम ने स्ट्रै प उसकी कमर में कस हदये। डडल्डो जस्कन कलर क
थ , ऐस लगने लग जैसे सच में दीदी क लण्ड उग आय हो। मैडम ने डडल्डो हहल य तो दीदी सी सी करने
लगी।

“क्य हुआ… दख
ु त है…” मैडम ने पछ
ू ।

“नहीां मैडम, मज आत है , कैस -कैस तो भी होत है…” दीदी लसहर कर बोली।


72
“अरे , वो जो डडल्डो क बेस है न , तेरी चत
ू के मूँह
ु पर जो सट है, उसपर जक्लट को गद
ु गद
ु ने के ललये द ने से
बने हैं। डडल्डो हहलेग तो तझ
ु े ऐस मज आयेग जैसे मदों के चोदते समय आत है । आज तझ
ु े लड़क बनकर
खूब चोदन है…”

“ककसे मैडम…” दीदी ने पछ


ू ।

“जजसे हम कहें । इतने लोग तो हैं यह ां, सब चुद ते हैं, दे ख नहीां दो हदन में… कोई बच चद
ु ने से… अब इधर आ,
तेरे मम्प्मे ब ांधने हैं नहीां तो लड़क कैसे बनेगी…” कहकर मैडम ने एक रे शम क पट्ट ललय और कस के दीदी
की छ ती के च रों ओर ब ांध हदय । दीदी की जर -जर सी चगू चय ां दबकर ग यब सी हो गईं। ऊपर से दीदी को
मैडम ने एक टी-शटि पहन हदय ।

अब दीदी ऐसे लग रही थी जैसे कोई अधनांग सक


ु ु म र लड़क हो जजसने बस टी-शटि पहन रखी हो।

“व ह, ये हुई न ब त। एक नय लड़क और एक नयी लड़की…” सर ने बोल । वे कमरे में कब आ गये थे हमें


पत ही नहीां चल । एकदम नांगे थे और अपन लण्ड पकड़कर हहल रहे थे।

“चललये सर, आजक खेल शरू


ु ककय ज य…”

“चलो, मैं तैय र हूूँ। बच्चो, आज मैं और मैडम जो कहें गे वो करन । बहुत मज आयेग । पहले जर सब लोग
पलांग पर आओ। लमल-जुल कर थोड़ लय र करें ग,े किर खेल शरू ु करें ग…
े ” सर बोले।

पलांग पर हम र लय र शरू
ु हो गय । एक दस
ू रे को चम
ू न , लण्ड पकड़न , मैडम की चत
ू में उां गली करन आहद
क रन मे शरू
ु हो गये। दीदी परे श न थी, बेच री की चत
ू डडल्डो से ढकी थी इसललये कुछ कर नहीां प रही थी।

सर बोले- “मैडम, इस लड़के से चुद इये तो जर , दे खें कैसे चोदत है ?”

मैं मैडम पर चढ़ने लग तो बोले- “अरे तू नहीां, ये नय लड़क , लीन कुम र, य ऐस करो इसे लललत कुम र
न म दे दो…”

मैडम लीन को लेकर लेट गईं- “आ ज लीन । मेर मतलब है लललत। चोद ले अपनी मैडम को…”

लीन को अटपट लग रह थ । उसने मैडम की बरु में अपन नकली लण्ड ड ल और मैडम पर लेट गई।

“अरे चोद न , जैसे सर करते हैं य तेर ये भ ई, मेर मतलब है ये अनू करती है…”

लीन मैडम को चोदने लगी। उसक चेहर खखल उठ - “मैडम… मैडम बहुत अच्छ लगत है । बहुत गद
ु गद
ु ी सी
होती है जब डडल्डो आपकी चूत में अांदर ब हर करती हूूँ…”

73
“अरी बत य तो थ कक तेरे जक्लट पर वो द ने रगड़ते हैं। ऐस ही लगत होग अननल को य सर को जब वो
तझ
ु े चोदते हैं। अब चोद ठीक से, मेहनत करके, अभी लड़की जैसी चोद रही है, नखरे करके, जर लड़के जैसे
चोद जोर-जोर से…” मैडम ने लीन दीदी को मीठी िटक र लग यी।

“और तू इधर आ अनू र नी। मैं तझ


ु े चोद ल…
ूां ” कहकर सर ने मझ
ु े नीचे गचत ललट य और मेरी ग ण्ड में लण्ड
ड ल हदय । वे तेल लग कर ही आये थे। मझ
ु े कल जैसी तकलीि नहीां हुई किर भी क फ़ी ददि हुआ, मूँह ु से
लससक री ननकल गई। सर ने मेरे पैर मोड़कर मेरे लसर के प स ल ये और मझु े चोदने लगे। वे ब र-ब र मझु े
चूमते ज ते- “बहुत सद ुां र छोकरी है मैडम, चूत भी अब एकदम सही हो गई है । और ये मम्प्मे तो दे खो…” कहते
हुए वे मेरी नकली चगांू चय ां दब ने लगे।

चोदते चोदते अच नक लीन दीदी लस्त होकर मैडम पर गगर पड़ी।

मैडम अब भी मड
ू में थीां- “अरे रुक क्यों गय लललत, और चोद न …”

“मैडम… हो गय मैडम। अब नहीां होत …” कहकर दीदी पड़ी रही। लगत है जोर से झड़ गई थी।

“दे ख कम ल डडल्डो क लीन … ये मज आत है इसमें। बबन डडल्डो के तू घांटे-घांटे चुद ती थी। अब चोद न
और, नखरे मत कर…”

दीदी धीरे -धीरे किर शरू


ु हो गई। प ांच लमनट में एक लससकी लेकर किर ननढ ल हो गई।

“मैडम, आप ऊपर से चोहदये, इसके बस की ब त नहीां है …” सर ने मेरी ग ण्ड चोदते हुए मैडम को सल ह दी।
किर मझु े बोले- “चल अन,ू अब मझ
ु े चद
ु ने दे जर …”

अपन खड़ लण्ड उन्होंने खीांचकर मेरी ग ण्ड से ननक ल और किर मेर लण्ड अपनी ग ण्ड में लेते हुए मेरे पेट
पर बैठ गये। लगत है कक वे ग ण्ड में भी तेल लग कर आये थे। मेर लण्ड आस नी से अांदर हो गय । किर सर
उचक-उचक कर अपनी मरव ने लगे। मैंने मस्ती में इधर उधर लसर हहल न शरू
ु कर हदय । मेरी नजर नीचे पड़ी
मैडम की चलपल पर गई।

सर ने दे ख तो मैडम की चलपल उठ कर उन्होंने मेरे मूँह


ु पर रख दी- “ले अन,ू मज कर…”

मैं मैडम की रबर की जस्लपर च टने लग । सर मेरे ऊपर चढ़े -चढ़े मेरी नकली चूगचय ां दब ने लगे- “ये मस्त मम्प्मे
हैं मैडम, एकदम ठोस, आपके जैसे ही हैं…”

“कल च र दक
ु न घम
ू ी तब लमले हैं सर…” मैडम गवि से बोलीां। किर- “आपक तो अभी खड़ है सर, अनू को ठीक
से परू नहीां चोद …” मैडम ने उठते हुए पछ
ू ।

“नहीां मैडम, अभी इसे क फ़ी मेहनत करनी है , झड़ने के पहले और मज लेन है, असली क म तो अभी होग
थोड़ी दे र से…” और मैडम को आांख म र दी।

74
मैडम हूँसने लगीां- “आप बड़े ज ललम हैं सर…”

“मैं और ज ललम…” सर आूँख नच कर बोले।

“बस-बस, मझ
ु े न उल्लू बन इये, और आपको जो करन है कर लीजजये आज, अच्छ मौक है…” मैडम बोलीां।
मैडम ने लीन को नीचे ललट य और उसके ऊपर चढ़कर डडल्डो अपनी चूत में लेकर ऊपर नीचे होने लगीां।

दीदी बोली- “ललीज़ मैडम… ललीज़… कैस तो भी होत है …”

मैडम ने अनसन
ु कर हदय और तब तक चोदती रहीां जब तक वे खद
ु नहीां झड़ गईं। दीदी तो एकदम से खल स
हो गई थी, बस इधर उधर लसर िेंक कर मैडम से गह
ु र कर रही थी कक अब छोड़ दो।

सर की ग ण्ड में मेर लण्ड चल रह थ । मैं दो तीन ब र झड़ते झड़ते बच । एकदम मस्ती चढ़ी थी पर सर मझ
ु े
झड़ने नहीां दे रहे थे। बस मेरी ओर दे खकर मश्ु कुर रहे थे और उछल-उछलकर मेरे लण्ड को अपनी ग ण्ड क
मज दे रहे थे। सर थोड़ी दे र ब द मेर लण्ड ग ण्ड में से सलप से खीांचकर उठे तो मैं तरु ां त ह थ में अपन लण्ड
लेकर मठ्
ु ठ म रने लग ।

सर ने ह थ पकड़ ललय - “लगत है कक अब असली खेल शरू


ु करने क ट इम हो गय है मैडम, चललये वो
रजस्सय ां ले आइये…”

मैडम उठकर स त-आठ रे शम की रजस्सय ां ले आईं। सर और मैडम लमलकर मेरे ह थ पैर ब ांधने लगे।

“ये क्य कर रही हैं मैडम, ललीज़…” मैंने सकपक कर कह ।

तो सर बोले- “घबर मत, असली मज तो अब आयेग तझ


ु े। तन
ू े अपने लण्ड को ह थ लग कर ये मस
ु ीबत मोल
ले ली नहीां तो श यद तझ
ु े नहीां ब ांधन पड़त । अरे आज भल
ू ज कक तू लड़क है , समझ लण्ड है ही नहीां, बस
चूत है जजसमें मीठी कसक हो रही है और कोई तझ
ु े चोद तो रह है पर झड़ नहीां रह …” दोनों ने मेरे ह थ पैर
ब ांध कर मझ
ु े पलांग पर ललट हदय । किर दीदी को ब ध
ां ने लगे।

दीदी घबर कर बोली- “मैडम… मझ


ु े क्यों…”

“अरे तेर तो ख स क म है आज। नय खूबसरू त लड़क लमल है हम दोनों को आज, खूब मजे लेंगे। ख सकर
सर, तझ
ु े तो म लम
ू है कक सर को ककतन मज आत है लड़कों को चोदने में…” मैडम बोलीां।

दीदी बोली- “पर मैडम… मझ


ु े तो ये डडल्डो… य ने इससे मेरी। मैडम मेरी चूत ढकी है डडल्डो से। सर कैसे चोदें ग…

डडल्डो ननक ल दें ग…
े ”

“अरे दे खती ज , सब पत चल ज येग …” मैडम शैत नी से मश्ु कुर ते हुए बोलीां।

75
दीदी के ह थ और पैर ब ध
ां कर सर ने उसे ललट हदय । किर उसपर चढ़ गये- “अब तेरे लण्ड से मरव त हूूँ, नये
लण्ड से मरव ने की ब त ही कुछ और है…” सर ने डडल्डो अपने छे द पर रख और किर उसे अपनी ग ण्ड में लेते
हुए बैठ गये- “आह्ह… मज आय । इस लण्ड की ख स ब त है कक ये झड़त नहीां है , ककतन भी चुदव ओ…” किर
सर ऊपर नीचे होकर अपनी ग ण्ड खुद मरव ने लगे।

दीदी किर सी सी करने लगी। उसकी बरु में डडल्डो थोड़ स अांदर ब हर हो रह थ और जक्लट पर उसके द ने
रगड़ रहे थे।

सर लीन की ट गां ों पर ह थ िेरते हुए बोले- “लीन , तू पछ


ू रही थी न कक मैं तझु े कैसे चोदां ग
ू … तो दे ख ले, एक
तो इस तरह से जैसे अभी तेरे बदन को चोद रह हूूँ, अपनी ग ण्ड से। और दस ू री तरह से कैसे चोद ज त है
लड़कों को… बत । कल नहीां दे ख कक तेरे भ ई को कैसे चोद थ …”

“सर… उसकी ग ण्ड…”

“ह ूँ… अब समझी… वैसे होलशय र है तू लीन , इत्ती सी ब त न समझे ऐस हो ही नहीां सकत …”

“नहीां सर… ललीज़ सर… आप नहीां म रें गे न मेरी…” लीन रोने को आ गई थी।

“क्यों नहीां म रूांग … मैं तो कब से इस किर क में हूूँ। इसीललये तो तझ


ु े लड़क बन य है आज कक नये लड़के की
ग ण्ड म रूां। पर अभी से क्यों डरती है , अभी तो तेर लण्ड मेरी ग ण्ड चोद रह है, उसक आनांद ले…”

मैडम मझ
ु से ललपटकर मझ
ु े चूमने लगीां। मेरे मूँह
ु में अपनी चूची दे दी और मेरी नकली चूांगचय ां दब ने लगीां। एक
ह थ से मेरे लण्ड को पकड़कर बोलीां- “मज आ रह है अन…
ू ”

“ह ूँ मैडम, बहुत। मस्ती लग रही है । मैडम। लण्ड चूस लीजजये न ललीज़…” मैंने मचलकर कह ।

“अरे नहीां ब ब , सर म र ड लेंगे मझ


ु ,े ह ूँ चोद सकती हूूँ कहो तो…” मैडम बोलीां।

“ह ूँ मैडम… चोद ड ललये न । जोर से…” मैंने लमन्नत की।

मैडम मेरे लण्ड को बरु में लेकर चोदने लगीां। पर मेरी ह लत और खर ब हो गई। चोद तो रही थीां पर खद
ु के
मजे के ललये, मेरे लण्ड को बबन झड़ ये।

“मैडम ललीज़… चोहदये न मझ


ु …
े झड़ दीजजये न …” मैं बोल ।

“अरे चोद तो रही हूूँ, मैंने कह थ वैस,े मैंने ये थोड़े ही कह थ कक झड़ दां ग ू ी। आज तो समझ ले कक तू मेर
गड्
ु ड है । य गड्
ु डी है , खेलग ूां ी मन भर के, गड्
ु डों से थोड़े कोई पछ
ू त है कक अब खेलें य नहीां। इसीललये तो तेरे
ह थ पैर ब ांधे हैं…” मैडम उछलते हुए बोलीां।

76
उधर लीन की ह लत खर ब थी। झड़-झड़ कर बेच री परे श न हो गई थी। बस- “अां… आह्ह… ओह्ह… नहीां सर…
बस सर… ललीज़ सर…” ऐसे बोल रही थी। उसके जक्लट पर डडल्डो क ननचल लसर नघस-नघस कर चत
ू एकदम
खल स हो गई थी, वह उसे अब जर स भी नघसन सहन नहीां हो रह थ ।

सर मस्ती से ग ण्ड चुदव रहे थे और लीन की रोने को आयी सरू त दे ख-दे खकर मज ले रहे थे। उनक लण्ड
अब ऐसे खड़ थ जैसे लोहे की सल ख हो। एक दो लमनट के ब द वे डडल्डो ग ण्ड से ननक लकर बैठ गये और
लीन को ब हों में उठ कर चम
ू ने लगे- “आ ज लीन , परे श न मत हो, अब तेरी ग ण्ड चोदत हूूँ। तू यही च हती
है न …”

“नहीां सर… मर ज ऊूँगी। ललीज़…” लीन धीमी क ांपती आव ज में बोली।

मैडम ने भी मेर लण्ड चूत से ननक ल और सर के प स बैठ गईं- “सर आप शरू


ु कीजजये, मन ही मन ये तैय र
है , बस शरम कर न कर रही है । आखखर लड़क बनी है तो लड़के जैसे तो मर न ही पड़ेग …” कहकर उन्होंने
लीन को पट ललट हदय ।

लीन डर से गचल्ल ने लगी- “अननल… बच न … ललीज़… मैं मर ज ऊूँगी… मैडम ऐस मत कीजजये ललीज़…”

“सर, इसक मूँह


ु बांद करन पड़ेग । लगत है बहुत रोयेगी धोएगी। और ये अनू भी बहुत चपड़-चपड़ कर रह ।
मेर मतलब… कर रही है । क्य इस्तेम ल करूां इनक मूँह
ु बांद करने को…” मैडम बोलीां।

“मैडम, वही इस्तेम ल करें गे जो करन च हहये। आखखर हम रे स्टूडेंट हैं, हम री चरण पज
ू करन अपन सौभ ग्य
म नते हैं, इन्हें अपने सर और मैडम की चलपल ककतनी पसांद हैं आपने दे ख है न …”

“सर तो मैं ऐस करती हूूँ कक अपनी चलपल इस अनू के मूँह


ु में दे दे ती हूूँ। वो गचल्ल तो नहीां रही है पर मस्ती
में है । इसे मज आयेग , बड़ी शौकीन है चलपलों की, कल दे ख न । क्यों अननल… मेर मतलब है अनू र नी… और
आप लीन के मूँह
ु में अपनी चलपल दे दीजजये। आपकी लय री लशष्य है और आखखर जब आप उसकी ग ण्ड म र
रहे हैं तो उसके मूँह
ु में भी आप ही की चलपल होनी च हहये…”

मैडम ने अपनी एक रबर की चलपल उठ ई और मेरे मूँह


ु पर िेरने लगी। मैं ऐसी मस्ती में थ कक मूँह
ु खोलकर
मैडम की चलपल आधी मूँह
ु में भर ली और चूसने लग । लण्ड मस्ती में खड़ थ । लीन की ग ण्ड म री ज ने की
ब त सन
ु कर मैं और उत्तेजजत हो गय थ , म लम
ू थ कक आज दीदी की खैर नहीां पर उसकी नरम-नरम ग ण्ड में
सर क मह क य मस
ू ल दे खने को मर ज रह थ ।

सर को म लम
ू थ कक मेरे मन में क्य चल रह है, वे मेरी ओर दे खकर मश्ु कुर ये और बोले- “लीन , तू क्यों
डरती है , अपने भ ई को दे ख, लसफ़ि ग ण्ड म रने के न म से ही कैस मस्त हो गय है । एक ब र तू मर लेगी तो
किर ब द में खद
ु ही करव य करे गी। चल मूँह
ु खोल…”

लीन मूँह
ु खोल नहीां रही थी। बस सर के ह थ में उनकी चलपल को घबर कर दे ख रही थी। मैडम ने उसके ग ल
दब कर मूँह
ु खल
ु व य और सर ने अपनी चलपल क पांज दीदी के मूँह
ु में ठूांस हदय ।

77
“अरे इतन स … और ठूांसो न …” मैडम बोलीां।

“अरे इतनी कोमल बच्ची। मेर मतलब बच्च है…”

“तो क्य हुआ… ठीक से मह ूँु बांद करो उसक । नहीां तो गचल्ल ने लगेगी। आपक मस
ू ल उसे भ री पड़ने व ल है ।
और लीन , तझु े तो खुश होन च हहये, ये तो तझ ु े अपने टीचर क , अपने सर क आलशव िद लमल है उनकी
चलपल के रूप में, ठीक से स्व द ले उसक …”

“ब त तो सच है …” कहकर सर बोले- “लीन , और मूँह


ु में ले मेरी चलपल, और… और अांदर ज ने दे । मूँह
ु भर ज ने
दे । ठहर मैं हदख त हूूँ…” कहकर सर ने दीदी क लसर पकड़ और कस के चलपल उसके मूँह
ु में और ठूांस दी।
दीदी क बदन कांपकांप ने लग । बेच री गों गों करने लगी।

“अब ठीक है…” कहकर सर ने उसक मश्ु कें बांध बदन नीचे रख और दीदी के चूतड़ों में मूँह
ु ड ल हदय - “क्य
खज न है मैडम, कब से सोच रह थ कक कब इसक भोग लग ने क मौक लमलेग …” और दीदी के चूतड़ों को
चम
ू ने और च टने लगे। बीच-बीच में दीदी की ग ण्ड क छे द चस
ू ने लगते।

“आपने चूम और चूस तो थ सर कई ब र…” मैडम उनको दे खते हुए बोलीां।

“अरे ह ूँ पर आज उनमें घस
ु ने क मौक लमल रह है । मैडम वो मख्खन ले आइये, लसफ़ि तेल से क म नहीां
चलेग …”

मैडम ज कर ककचन से कटोरी भर मख्खन ले आईं। किर खुद ही सर के लण्ड और दीदी की ग ण्ड में लग ने
लगीां। बोलीां- “सर आज आपक घोड़े जैस हो गय है । चलो अच्छ हुआ कक आपको मन की मरु द लमलने व ली
है । मन भर के ग ण्ड म रने लमलेगी अब से…”

किर मेरी ओर मड़
ु कर बोलीां- “अननल, पत है कक ये पहले मेरी म र करते थे। अब तम
ु लोग आ गये हो तो मेरी
ग ण्ड की तो ज न छूटी कम से कम। वैसे तम
ु को मज आत है ये मझ
ु े म लम
ू है …”

“अरे लड़कों को मज आयेग ही। बस लड़ककय ां रोती हैं। वैसे ये लड़की है बहुत गरम, एक दो ब र में सीख लेगी।
बस आज की ब त है । समझी लीन … आज सहन कर ले, किर जब खुद मरव ने लगेगी तो मैं मह ूँु में चलपल दे न
भी बांद कर दां ग
ू । पर आज तो मूँह
ु में रहे गी तेरे, वैसे स्व द ले उसक , तझ
ु े अच्छ लगेग , तेरे भ ई की तो पसांद
की चीज है …” सर बोले।

“सर… सर मैं लग
ूां सर आपकी चलपल मूँह
ु में मर ते समय, बहुत मज आत है सर… और मैडम की भी…” मैं
कहन च हत थ पर मैडम की चलपल मूँह ु में थी इसललये चुप रह ।

“चललये सर, अपन क म कीजजये, आपकी लशष्य तैय र है …” मैडम ने ह थ पोछे कर और ब जू में हो गईं और
मेर लण्ड अपनी चगूां चयों के बीच लेकर रगड़ने लगीां।

“मैडम, भर हदय न अांदर तक… बेच री को ज्य द तकलीि हो ये मैं नहीां च हत …” चौधरी सर बोले।
78
मैडम खखलखखल उठीां- “मैं अच्छी तरह ज नती हूूँ आपको क्य च हहये। चललये अब म ररये, और मैंने अांदर तक
भर हदय है मख्खन, पेट तक घस ु ग
ें े तो भी सट से चल ज येग …”

सर दीदी के बदन के दोनों ओर घट


ु ने जम कर बैठते हुए बोले- “मैडम, आप आयेंगी यह ां जर … मझ
ु े मदद
कीजजये…”

“क्य हुआ सर, ब ांध तो है आपके खखलौने को। कोई तकलीि नहीां होगी, आखखर जर सी तो बच्ची है…”
“ह ूँ पर बड़ी हहल डुल रही है , छूटने की कोलशश कर रही है , जर इसे पकडड़ये…”

मैडम ने कस के लीन की कमर पकड़ी और दस


ू रे ह थ से उसक लसर नीचे बबस्तर में दब हदय - “म ररये सर
अब। मन लग कर म ररये, ये कहीां नहीां ज येगी अभी…”

सर ने लीन के चूतड़ खोले और उसके जर से छे द में अपन सेब जैस सप


ु ड़ फ़ांस हदय । किर पेलने लगे।
दीदी क बदन कांपकांप ने लग ।

“आज आपक सप
ु ड़ नहीां किसल सर… पपछली ब र उस लड़की… क्य न म थ उसक । वो बड़ी सेक्सी बदम श
लड़की थी ब बकट व ली… ह ूँ… रीत । आपक ब र-ब र किसल ज त थ , आध घांट लग गय थ उसकी लेने में …”
मैडम बोलीां।

“अरे उसे ब ांध नहीां थ न , आपने लसफ़ि मूँह


ु पकड़ थ । आज इांतज म अच्छ है । जल्दी पेल दां ग
ू …” सर दीदी की
ग ण्ड में अपन लण्ड पेलते हुए बोले।

“उसकी तो ि ड़ भी दी थी आपने। ड क्टर के यह ां ले ज न पड़ थ । अच्छ हुआ कक होस्टल की लड़की थी और


ड क्टर भी पहच न क थ । और वो रीत भी मेरे ऊपर किद थी इसललये मैंने ककसी तरह मन ललय थ , नहीां तो
जरूर बड़ लिड़ होत थ सर…”

मैडम की ब त सन
ु कर मैं अपनी कमर उचक ने लग , लण्ड और तन गय ।

मैडम दे खकर हूँस कर बोलीां- “ये अननल दे खो कैस बदम श है , दीदी की ग ण्ड िटने की ब त सन
ु कर ही मज
आ गय इसको…”

“अरे मैडम, ये मरव चुक है न , इसे म लम


ू है इसक मज । वैसे आज ऐस नहीां होग । ि ड़ूग
ां नहीां, आखखर
इतनी लय री बच्ची है, आखखर स ल भर म रनी है इसकी। ह ूँ मजे ले-लेकर स रे हदन म रूांग आज…” कहकर सर
ने और लण्ड पेल और सप
ु ड़ आध दीदी के गद
ु में धांस गय । दीदी छटपट ने लगी। श यद गचल्ल ने की
कोलशश कर रही थी पर मूँह
ु से बस हल्क स ‘गों’ गों’ ननकल रह थ ।

सर रुक गये। थोड़ स सप


ु ड़ ब हर खीांच और किर थोड़ अांदर ककय ।

79
“क्य सर छोकरी को तड़प रहे हैं आप… मैंने वो टी॰वी॰ पे दे ख थ , एक शेर हहरन के बच्चे क ऐस ही लशक र
कर रह थ …” मैडम सर को चम
ू कर बोलीां।

“ह ूँ मैडम, इसी में तो आध मज है । इतन ट इट पकड़ है इस छोकरी की ग ण्ड ने मझ


ु े कक लगत है मखमली
लशकांज है । धीरे -धीरे इसक छे द चौड़ करूांग और किर अांदर ड लग
ूां …” सर बोले और दीदी के चूतड़ मसलने लगे।
कई ब र उन्होंने आध सप
ु ड़ दीदी की ग ण्ड में फ़ांस य और किर अांदर ब हर करके किर ननक ल ललय । दीदी
बस धीरे -धीरे लससक रही थी।

थोड़ी दे र खेलने के ब द सर ने किर जोर लग य और पक्क से अपन सप


ु ड़ दीदी की ग ण्ड के अांदर कर हदय ।
दीदी जोर से तड़पी और उठने की कोलशश करने लगी। मैडम ने उसे दबोचे रख । सर मस्ती में आकर मैडम को
जोर से चूमने लगे- “ओह मैडम… ओह्ह… आपकी यह स्टुडेंट तो गडु ड़य है… रबड़ की गडु ड़य … मज आ गय
मैडम…”

मैडम सर के चूतड़ दब कर बोलीां- “अब परू ड ल दीजजये सर, जड़ तक, मैं दे खन च हती हूूँ कक क्य होत है,
वैसे ये लड़की ले नहीां प येगी आपक लांब डांड , इसके मूँह
ु से ननकल आयेग दे खखयेग …”

सर ने जोर लग य और लण्ड दीदी की ग ण्ड में घस


ु ने लग । इस ब र सर नहीां रुके और पेलते रहे । अच नक
कच्च से उनक आध लण्ड दीदी के चत ू ड़ों को चौड़ करत हुआ अांदर घस
ु गय । दीदी अब बरु ी तरह से तड़प
रही थी और उसके बदन में झटके पड़ रहे थे।

“ये हुई न ब त, ओह सर… ले ललय इस जव न कन्य ने, मझ


ु े नहीां लग थ कक ले प येगी…” मैडम अपनी बरु
को नघसते हुए बोलीां।

“ह ूँ मैडम… ओह मैडम… मैडम मैं झड़ने व ल हूूँ…” कहकर सर ने मस्ती में आांखें बांद कर लीां। मैडम ने उनके
लण्ड के बेस को जोर से दब य और झड़ने से रोक हदय ।

“अरे सर… क्य कर रहे हैं आप, इतनी मजु श्कल से ये तमन्न आपकी परू ी हुई है, अब ठीक से चोहदये आपकी
लशष्य को…”

सर एक लमनट वैसे ही बैठे रहे , किर बोले- “धन्यव द मैडम, आपने बच ललय नहीां तो हमेश मैं आपको कोसत ।
मैं भी कैस हूूँ, अब तक इतने लोगों को चोद चक ु हूूँ किर भी मझ
ु से कांट्रोल नहीां हुआ, आपक कैसे शकु क्रय अद
करूां…” और झुक कर मैडम की चच ू ी चस
ू ने लगे।

मैडम उनके लसर को छ ती से गचपट कर बोलीां- “कोई ब त नहीां सर, ये म ल ही ऐस है , अब तक की सबसे


लय री गडु ड़य है ये। मझ
ु े तो इसकी चूत के स्व द से ही म लम
ू थ , पर आपको तो चूत से ज्य द इसकी ग ण्ड
में रस थ न । अब मझ
ु े शकु क्रय दे न है तो आज बबन झड़े, मन लग कर, हचक-हचक कर, पेल-पेलकर, मसल
मसलकर इस कन्य के बदन को भोगगये, मझ
ु े सब लमल ज येग आपकी खुशी दे खकर…”

सर ने एक गहरी स ांसे ली और दीदी की ग ण्ड में लण्ड पेलने लगे। ऐस लग रह थ जैसे कोई मल
ु यम तरबज

में बड़ी छुरी घस
ु रही हो। दीदी अब चुपच प पड़ी थी, श यद बेहोश हो गई थी।
80
मैडम ने श यद ये भ ांप ललय । सर को रोक कर बोलीां- “रुककये सर, ये बेच री तो क म से गई, इसे क्य मज
आयेग । आपको और मझ
ु े कोसेगी कक सोते-सोते ही परू क म कर हदय । जर होश आने दीजजये, किर ड ललये
परू …”

सर क आध लण्ड ब हर थ । वो बोले- “ह ूँ मैडम, वैसे भी अब ये अांदर नहीां ज रह है , जोर लग न पड़ेग । बड़ी


ट इट म्प्य न है लीन बेटी की…”

“बस यही तो मजे लेने की ब त है सर। मैं इसे जग ती हूूँ, किर इसे भी मज दीजजये अपने लण्ड क । ट इट भले
हो पर इन चद
ु ै ल जव न बदनों के छे द अच्छे गहरे होते हैं, आर म से ले-लेते हैं आपक परू मस
ू ल, आपने खद

तो दे ख है इतनी ब र…” कहकर मैडम दीदी को चूम-चूमकर उसे जग ने लगीां। उसके मूँह
ु पर रुम ल से थोड़ ठां ड
प नी भी लग य । सर की चलपल दीदी के गचल्ल ने की कोलशश करने की वजह से उसके मूँह
ु से ननकल आयी
थी।

सर बोले- “ननक ल दीजजये अब मैडम…”

“अरे नहीां, अपने सर की चरण पज


ू क ऐस मौक कह ां लमलत है सब स्टूडेंट को। आप परू ड लकर म रन शरू

कर दीजजये, तब तक इसे स्व द लेने दीजजये, दे खखये मेर स्टूडेंट कैसे चब रह है मेरी चलपल। लगत है कक ख
ही ज येग …” मैडम मेरी ओर दे खकर ल ड़ से बोलीां।

“आपकी चलपलें तो हैं ही खब


ू सरू त मैडम…” सर ने कह ।

“आपकी भी लीन को अच्छी लग रही होंगी। वैसे ये अच्छ नस्


ु ख है सर। य द है पहले आप ककसी नये स्टूडेंट
की म रते थे तो मूँह
ु में कपड़ ठूांस दे ते थे। चलपल ज्य द मज दे ती होगी इनको…” मैडम ने जोर लग कर दीदी
के मूँह
ु में किर सर की चलपल ठूांस दी, किर उसे जग ने में जुट गईं- “लीन उठ न , आांखें खोल, दे ख तेरे सर
ककतन लय र करते हैं तझ
ु को। बोले कक बेच री के होश में आने के ब द ही परू लण्ड ड लग
ूां नहीां तो तू बरु म न
ज येगी कक सर ने अकेले में मज ले ललय …”

दीदी को होश आ गय । जब वह हहलने डुलने लगी तो मैडम ने सर को आांख म री।

सर ने कह - “बस अब एक ब र में पेल दां ग ू , डर मत लीन , मैं ज नत हूूँ कक तू मझ


ु से न र ज है कक क्य सर
धीरे -धीरे पक
ु ु र-पक
ु ु र कर रहे हैं। तेरे जैसी चुदैल छोकरी तो एक स थ लेने को मरी ज रही होगी। ले मेरी र नी…”
करके सर ने लीन दीदी के चूतड़ पकड़े और घच्च से एक ब र में अपन मस
ू ल अांदर कर हदय और दीदी पर
लेट गये।

दीदी अब ऐसी तड़पी कक ककसी ने गल दब हदय हो। कस के अपने बांधे ह थ पैर फ़ेंकने की कोलशश करने
लगी। उसक लसर अब ककसी हल ल होते बकरे जैस इधर उधर हो रह थ । मैडम ने अपन ह थ उसके पेट के
नीचे ड ल और टटोल कर दे ख - “सर, इसकी तो छ ती तक घस
ु गय है लगत है, दे खखये पेट के ऊपर कैस
सप
ु ड़े क आक र महसस
ू हो रह है …”

81
“मैडम, ये लण्ड तो बन ही है ऐसे सद
ुां र स्टूडेंट्स की सेव के ललये। उनके बदन में गहर घस
ु त है तो बड़ सक
ु ून
लमलत है …” कहकर सर लीन के ब ल चम
ू ने लगे।

मैडम ने दीदी के बदन को छोड़ और मझ


ु पर चढ़ गईं और मेर लण्ड चूत में लेकर मझ
ु े चोदने लगीां- “मेर क म
हो गय सर। बस अब आप हैं और आपकी लशष्य है । क्यों रे अननल, मज आय …” कहकर ल ड़ से मैडम मेरे
चेहरे पर अपने तलवे रगड़ते हुए बोलीां। वे अपनी एांड़ी से मेरे मूँह
ु में अपनी चलपल अब और अांदर घसु रही थीां।
मेर ह ल बेह ल थ । मैं स्वगि में थ , लण्ड ऐसे तन थ कक जैसे लसत र के त र। आूँखों से मैंने मैडम को कह
कक मैडम, बहुत अच्छ लग और कमर उचक र कर उन्हें नीचे से चोदने लग ।

मैडम मश्ु कुर ते हुए बोलीां- “और मज ले अननल, अभी नहीां छोड़ूग
ां ी तझ
ु ,े अभी तो सर क एक क म करव न है
मझु े तझ
ु से…”

सर ने अब दीदी के बदन को ब ांहों में भर ललय थ और अपनी ट ांगें दीदी की कमर के आस प स कस ली थी।
दीदी की ग ण्ड को अब वे बरु ी तरह से चोद रहे थे, जैसे घोड़ी की सव री कर रहे हों। थोड़ी ही दे र में दीदी की
मख्खन भरी ग ण्ड से ‘िच’ ‘िच’ ‘िच’ आव ज आने लगी।

“कैस लग रह है सर… स्व द ले-लेकर चोहदये जर । जल्दब जी मत कीजजये…” मैडम अपन ह थ चौधरी सर की
पीठ पर िेरते हुए बोलीां।

सर बोलने की जस्थनत में नहीां थे। उनकी आांखें खम


ु री से ल ल हो गई थीां- “ओह्ह… ओह्ह… ये तो जन्नत है ।
स्वगि है मैडम। आह्ह… अां… अां… ओह्ह…” कहते हुए सर दीदी की ग ण्ड परू े जोर से म र रहे थे। उनकी स्पीड
दे खकर नहीां लगत थ कक वे ज्य द दे र हटकेंगे। ऐस ही हुआ- “आह्ह… ओह्ह… आह्ह… आह्ह…” कहते हुए वे
अच नक झड़ गये और दीदी के ब लों को बरु ी तरह चम ू ने लगे।

मैडम मश्ु कुर दीां और मझ


ु े बोलीां- “दे ख तेरी दीदी की कर मत… सर जैसे पक्के चोद ू भी नहीां हटक प ये। कल
मझ
ु से बोल रहे थे कक घांटे भर चोदें ग…
े ”

सर ह ांिते हुए पड़े रहे । किर सांभलने पर बोले- “कोई ब त नहीां मैडम, ये तो शरु
ु आत है । आज तो हदन भर लीन
की लग
ूां मैं। ये दे खखये मेर लण्ड भी बस ढोंग कर रह है , बस जर स थक गय है …” उन्होंने अपन लण्ड आध
ब हर खीांचकर हदख य । वो अब ही क फ़ी तन हुआ थ ।

“ननक ल लीजजये सर। बहुत रसील लग रह है । अननल को दे खखये। बेच र कैसे ललच कर दे ख रह है । क्यों रे
अननल…” मैडम ने मेरे ग ल को अपने पैर के अांगठ
ू े से कुरे दते हुए पछ
ू ।

मैंने जोर से मड
ुां ी हहल ई।

सर ने लण्ड पक्
ु क से ब हर खीांच ललय । उसपर मख्खन और उनके वीयि क झ ग लग थ । मैडम ने मेरी मह
ूँु से
अपनी चलपल ननक ली और उठ बैठीां- “बहुत हो गय मैडम की चरण पज
ू । अननल, अब तू ये लमठ ई च ट ले, मैं
भी तो जर दे खांू मेरी लय री गडु ड़य क ह ल…”

82
सर मेरे प स आकर बैठे और मेर लसर अपनी गोद में लेकर अपन लण्ड मेरे मूँह
ु में दे हदय । उधर मैडम ने
ज कर दीदी के चत
ू ड़ खीांचकर फ़ैल ये और बोली- “व ह सर, आपने एकदम चौड़ कर हदय मेरी गडु ड़य को। कैसी
छोटी सी थी इसकी ये म्प्य न, अब दे खखये, मूँह
ु ब कर कैसे तैय र है । िटी तो नहीां…” कहकर वे दीदी के गद
ु को
उां गली से हौले-हौले टटोलने लगीां।

मेरे लसर को अपने पेट पर सट कर सर बोले- “अरे नहीां मैडम, ऐसे सद


ुां र छे द को कोई ि ड़त है क्य … बच कर
रखी है मैंन,े तभी तो धीरे -धीरे कर रह थ शरू
ु में, आप ही जल्दी कर रही थीां। लगत है आप ही च हती थीां कक
लीन की िट ज ये…”

“नहीां सर, मैं क्यों च हूांगी पर कुछ भी कहहये, जब आपने रीत की ि ड़ी थी तब भी बहुत मज आय थ दे खने
में । वैसे वो लड़की भी बदम श थी, मह ांु िट भी थी, जबरदस्ती करन पड़ी थी, ह थ नहीां लग ने दे ती थी। आपने
उसकी परू ी खोल दी, ब द में कैसी डरती थी वो, स ल भर मरव ती रही पर चूां नहीां की उसने। ये दोनों तो बहुत
लय रे हैं, खुद ही कैसे आ गये हम री सेव करने को। इनसे जबरदस्ती क क्य क म…” मैडम झुकीां और दीदी की
ग ण्ड च टने लगीां।

सर क किर से जोर से खड़ हो गय थ और मेरे गले तक उतर गय थ । वे आगे पीछे होकर मेरे गले को चोद
रहे थे। मैं भी मस्ती से चस
ू रह थ कक सर क और म ल लमल ज ये।

मैडम ने जीभ अांदर ड लकर दीदी की गद


ु स ि ककय और किर से उसमें थोड़ मख्खन भर हदय । किर सर को
पकड़कर उन्हें खीांचकर मझ
ु से अलग ककय - “चलो अब किर से शरू
ु हो गये, इस लड़के को तो तम
ु ऐसे गचपट ते
हो कक आज क अपन क म भी भल
ू ज ते हो…”

“नहीां ऐसी ब त नहीां है मैडम, आज तो बस लीन की ग ण्ड है और मैं हूूँ। असल में ये दोनों भ ई बहन इतने
लय रे हैं कक समझ में नहीां आत कक ककस पर चढ़ूँू और ककसे छोड़ू…
ां ” सर उठकर दीदी के प स ज ते हुए बोले।

“ठीक है सर। अब आप अपनी घोड़ी की सव री किर शरू


ु कीजजये, अब मैं आपको डबल मज हदल ती हूूँ…”

सर किर दीदी पर चढ़ गये और उसकी ग ण्ड में अपन लण्ड उत र हदय । इस ब र बस प ांच लमनट भी नहीां
लगे। दीदी जरूर छटपट ई पर उसकी बोलती अब भी बांद थी, मूँह
ु में सर की चलपल जो थी।

“लीन , अब तेरे मूँह


ु की चलपल ननक ल दे ती हूूँ। अगर गचल्ल यी तो किर ठूांस दां ग
ू ी। और इस ब र परू ी अांदर तक
ड ल दां ग
ू ी, समझी न … इतनी अच्छी लय री मस्त चद ु ै ल छोकरी है, अब जर नखर छोड़ और सर को भी मज
लेने दे और खद
ु भी ले, सर जैसे लण्ड से ग ण्ड मर ने क मौक ककश्मत से लमलत है …” मैडम ने मीठी िटक र
लग यी।

दीदी के मांह से चलपल ननकली तो वो एक दो ब र ख ांसी और किर चप


ु हो गई।

“क्यों लीन बेटी, ददि होत है …” सर ने लय र से पछ


ू ।

“ह ूँ सर…” दीदी ने मरु झ ये स्वर में कह ।


83
“अच्छी ब त है, यह तो गव ही है तेरे कांु व रे बदन की। वैसे ऐसे खेलों में ददि होने से भी मज आत है, कम से
कम ददि दे ने व ले को जैसे मैं। मैंने तझ
ु े बहुत सख
ु हदय थ न … बोल… मझ
ु से चद
ु ने में मज आत है न …” सर
ने पछ
ू ।

“ह ूँ सर…”

“तो ददि भी सहन करन सीख। गचल्ल येगी नहीां तो ह थ पैर भी खोल दां ग
ू …” कहकर सर शरू
ु हो गये। बड़े लय र
से हौले-हौले वे दीदी के चूतड़ों के बीच अपन लण्ड अांदर ब हर करने लगे। दीदी थोड़ी लससकी पर चुप रही।

“चलो… ये ठीक हुआ। अब जर रुको…” मैडम ने कह और मेरे ह थ पैर खोल हदये। मेरे मूँह
ु से चलपल भी
ननक ल दी।

“चलपल रहने दीजजये न मैडम…” मैंने गह


ु र की- “बहुत अच्छी है, मल
ु यम और सोंधी-सोंधी…”

“अरे मेरे चलपल के गल


ु म, ब द में च ट लेन , कहीां भ गी ज रही है क्य … मेरी और सर की ठीक से सेव करे ग
तो दे दां ग
ू ी तझ
ु ,े घर ले ज न और मन भर के च ट करन । अब इधर आ और ये दे ख अपने सर क म ल…”
मैडम ने सर की ग ण्ड पर ह थ रखकर कह ।

मैंने भी सर के गोरे कसे चत


ू ड़ सहल ये।

“अच्छे हैं… वैसे तन


ू े तो पहले भी इनक मज ललय थ …” मैडम ने पछ
ू ।

“ह ूँ मैडम, बहुत अच्छी ग ण्ड है सर की, म रने में मज आय थ …”

“चल अब किर म र। मैं मख्खन लग दे ती हूूँ। पपछली ब र तेल लग य थ न … मख्खन से और मस्त सटकत
है …” मैडम ने मेरे लण्ड और सर के छे द में मख्खन चप
ु ड़।

“म न गय मैडम आपको। आप ककतन खय ल रखती हैं मेर । ये तो कब से मेरे मन में थ …” सर अपने चूतड़
थोड़े हहल कर बोले।

“अब लड़की के स थ-स थ एक लड़क भी स्टूडेंट लमल है सर, इसक ि यद तो लेन ही च हहये। चल अननल,
आज सर को खुश कर दे …” मैडम ब जू में हटीां और मैं सर पर चढ़ गय । एक ब र में आध लण्ड ग ड़ हदय
उनकी ग ण्ड में । किर परू पेल और उनपर सो गय ।

“व ह मज आ गय मेरे बेटे। अब म र मेरी। मैडम बहुत मस्त खड़ है इसक , क्य ब त है । डबल मज आ


गय । बस झड़न नहीां मेरे शेर, बहुत दे र म रन । समझ ले तू जब तक मेरी म रे ग तब तक मैं तेरी दीदी की
कस के लग
ूां । अब तू अगर च हत है कक तेरी दीदी खब
ू लत्ु फ़ उठ ये अपनी ग ण्ड मरव ने क , तो तू मझ
ु े वैसे
ही चोद जैसे दीदी को चद
ु व न च हत है…” सर दीदी की ग ण्ड में लण्ड पेलते हुए बोले।

84
मैं सर की ग ण्ड म रने लग । लण्ड मस्त खड़ थ , मख्खन से किसल भी मस्त रह थ । हमने बहुत दे र तक
चद
ु ई की। पहले धीरे -धीरे हौले-हौले। किर ब द में सर कसके दीदी की म रने लगे। उनके चत
ू ड़ हव में उछल-
उछल रहे थे। दीदी कर ह रही थी, पर गचल्ल ई नहीां, श यद मैडम के डर से। मैं भी सर के स थ-स थ ऊपर नीचे
होत रह ।

मैडम हम दोनों क हौसल बढ़ ते हुए हम रे ब जू में ही बैठी थीां। कभी दीदी को चम


ू तीां, कभी मझ
ु े।

“बस ऐसे ही सर, बहुत ठीक कर रहे हैं आप। मेरे प स कैमर होत तो पपक्चर ले-लेती, बहुत बबकत । क्य हदख
रही है आपकी ये नतकड़ी सर, एक बड़ ऊूँच परू परु ु र् और उसके दोनों और ये गचकने जव न भ ई बहन सैंडपवच
बन ते हुए। लीन मज आ रह है न … आखखर हम दोनों के प स आये हुए स्टूडेंट बनकर तो हम र तो िज़ि है
तम्प्
ु हें परू आनांद दे न और तम
ु दोनों क िज़ि है अपनी मैडम और सर के सख
ु क खय ल रखन …”

सर जब झड़े तो गचल्ल उठे , इतन मज उन्हें आय कक वे रोक नहीां प ये। आखखर पहली ब र ककसी और की
ग ण्ड म रते हुए अपनी ग ण्ड चुद ने क ये पहल मौक थ । उनके झड़ने के ब द भी मैंने उन्हें नहीां छोड़ और
गचपक कर कसकर म रत रह । मैडम ने मझ ु े अलग करने की कोलशश की तो सर ह ांिते हुए बोले- “अरे मज
कर लेने दीजजये उसे मैडम, बहुत मेहनत की है बेच रे ने, बहुत सख
ु हदय है अपने टीचर को। भगव न भल करे
बेट तेर , ऐस ही सख
ु लेत रह और दे त रह…”

इस चुद ई के ब द मैडम सबके ललये च य बन ल यीां। दीदी लस्त पड़ी थी, उठकर बैठ भी नहीां रही थी।

उसक मरु झ य चेहर दे खकर मैडम बोलीां- “आज तो इस कन्य को ननचोड़ ललय परू आपने सर…”

“ह ूँ मैडम, बहुत अच्छ लग । पर अभी मन नहीां भर , अभी तो तीन च र घांटे हैं श म होने में । आज लीन को
मैं परू भोग लग ूां , जब से इसे दे ख है, मन तरस रह है , आज तो मरु द लमल गई है मझ
ु ,े क्यों लीन बेटी, तझ
ु े
अच्छ लग कक नहीां…”

दीदी बस चुप थी, टुकुर-टुकुर सर और मैडम को दे खती रही।

“अभी वो सकते में है सर, बेच री तब से अकेले आपको झेल रही है, वैसे इसे बहुत सख
ु लमल होग , मैं कहती हूूँ
न , अब आप आगे शरू ु कीजजये जल्दी…” मैडम ने सर को कह ।

च य पीने और न श्त करने के ब द सर बोले- “अब बेच री को थोड़ आर म दें ग…


े ”

“य ने अब आप इसकी ग ण्ड नहीां म रें गे सर…” मैंने उत्सक


ु त से पछ
ू ।

मैडम हूँसकर बोलीां- “क्यों रे तझ


ु े अब जल्दी है क्य … सर से ल ड़ करव न है दीदी जैस …”

मैं झेंप गय । सर मझ
ु े चूमकर बोले- “अरे ये तो मेर ल ड़ल है । पर बेटे, तन
ू े तो मज ले ललय पपछले दो हदन,
अब दीदी को लेने दे । मेर मतलब ये है कक अब इसपर चढ़ूांग नहीां, गोद में बबठ ऊूँग । आ ज लीन …”

85
दीदी ककसी तरह उठी और सर की गोद में बैठने लगी।

“ऐसे नहीां मेरी र नी, ये खूांट तो लभड़व ले अपने बदन में …” कहकर सर ने अपन लण्ड उसकी ग ण्ड के छे द पर
रख और थोड़ स अांदर कर हदय - “अब बैठ ज …”

दीदी लससक कर बोली- “मैडम दख


ु त है…”

“अरे इतनी दे र से ग ण्ड मरव रही है अब भी लेने में डरती है … किकर मत कर, मैं मदद करती हूूँ…” कहकर
मैडम ने दीदी के कांधे पकड़े और जोर से सर की गोद में उसे बबठ हदय । लण्ड गलप से दीदी के चूतड़ों के ब च
धांस गय और दीदी धम्प्म से सर की गोद में बैठ गई। वो चीखती इसके पहले मैडम ने उसक मूँह
ु अपने मह
ूँु से
बांद कर हदय ।

“तू इधर आ अननल, मेरे प स बैठ…” कहकर सर ने मझ


ु े प स बबठ ललय और मेर चुम्प्म लेने लगे। किर मेर
मूँह
ु चूसते-चूसते ऊपर नीचे होकर गोद में बैठी दीदी की ग ण्ड म रने लगे।

मैडम तरु ां त हम रे स मने नीचे बैठ गईं और दीदी की बरु से मूँह


ु लग हदय । एक दो ब र च टकर लसर उठ कर
बोलीां- “सर मैं कहती थी न कक छोकरी को मज आ रह है । ये दे खखये इसके बदन से तो रस की ध र बह रही
है , भले ये बबलख रही हो पर ये लड़ककय ां तो ऐस नखर करती ही हैं। आप शरू
ु हो ज इये…”

उस हदन परू े हदन ऐसी ही चद


ु ई चलती रही। दीदी की ग ण्ड में सर क लण्ड हदन भर रह । कई आसनों में
चुद ई की गई, आखखर में सर ने दीदी को दीव र से सट कर खड़ ककय और म रने लगे। दीदी तो बेहोश सी ही
थी, उससे खड़ भी नहीां हुआ ज रह थ ।

मैडम बोलीां- “लीन अब पस्त हो गई है सर, अब इस ललट कर म ररये, दे खखये न गगरने को है…”

“आप गचांत न कीजजये मैडम, नहीां गगरे गी, मेरे खूांटे से जो टां गी है, ये दे खखये…” कहकर सर ने दीदी के बदन से
अपने ह थ हट ललय । दीदी वैसी की वैसे रही। उसके पैर हव में झूल रहे थे, बस सर के लण्ड से टां गी हुई थी।

“इतनी ब र चोदने के ब द भी आपके खट


ूां े में इतनी त कत है अभी सर, आपक तो जव ब नहीां…” मैडम ने उनकी
त रीि की।

“अरे मैडम, म ल ही ऐस है , मेरे लण्ड को म लम


ू है कक वो ककतन खुशककश्मत है जो इतने लय रे मस्त ये
जव न बदन लमले हैं भोगने को, इसक मन ही नहीां भरत , लगत है आज जजतनी ब र च हूां उतन चोद सकत
हूूँ। और फ़ूल स तो वजन है इसक , लण्ड को लगत भी नहीां कक कोई इसपर टां ग है …” कहकर सर ने किर दीदी
के बदन को ब हों में ललय और उसके बदन को कस के भीांचकर दीव र से सट सट उसकी म रने लगे- “तू भी
आ ज अननल। खड़ हो ज मेरे पीछे , पर खबरद र झड़न नहीां। तझ
ु े आखखर में इन म दां ग
ू एक लय र स …”

सर क आदे श म नकर मैं उनके पीछे खड़ होकर उनकी म रने लग ।

86
मैडम बस लेटी-लेटी अपनी बरु में उां गली करती हुई मस्ती लेती रहीां और सर के क रन मे दे खती रहीां। श म होते
होते दीदी परू ी लस्त हो गई। वह तो बेहोश ही हो गई थी और चप ु च प पड़ी थी। सर जब परू ी तरह से तलृ त हो
गये तो आखखर में मैडम ने मझ
ु से दीदी की ग ण्ड म रने को कह । मैंने मन लग कर मजे लेते हुए म री। अब
दीदी की इतनी फ़ुकल हो गई थी कक सर की ग ण्ड भी उसके मक ु बले कसी हुई लगती थी।

मैंने कह तो मैडम बोलीां- “अरे उसकी ग ण्ड में जो लण्ड चल आज हदन भर वो तेरे से दग
ु न है । तो किर होग
ही। किकर मत कर। आज र त तू दीदी की ग ण्ड में बफ़ि के गोले भर दे न । कल तक किर अच्छी लसकुड़
ज येगी…”

दीदी की मैंने परू ी मस्ती ले-लेकर म री। मज आ रह थ कक दीदी जो हमेश मझ


ु पर रोल करती थी आज इस
ह लत में थी कक मझ
ु े रोक भी नहीां सकती थी।

चुद ई खतम होने पर मैडम ने हमें आध घांट आर म करने हदय । किर दीदी को नहल य और उसे और मझ
ु े
दध
ू पीने को हदय । हमने कपड़े पहने। दीदी को मैडम ने कपड़े पहन ये। उसके ब द सर खद
ु हमें अपने स्कूटर
पर बबठ कर घर छोड़ गये क्योंकी दीदी से चल नहीां ज रह थ । न नी ने पछ
ू तो सर बोले कक अरे जर गगर
पड़ी इसललये पैर में मोच है।

मझ
ु े डर थ कक दीदी के स थ जर ज्य द ही हो गय , वो न नी को कह न दे । पर दीदी चप
ु थी। न नी ने पछ

कक आज इतनी थकी मरु झ यी क्यों लग रही है तो दीदी धीमी आव ज में बोली कक न नी, आज बहुत पढ़ ई की
है हदन भर।

र त को ख ने के पहले दीदी खुद ही बोली कक अननल वो मैडम ने कह थ न बफ़ि के ब रे में । मैंने बफ़ि से दीदी
की ग ण्ड सेक दी। वो सी सी करते हुए पड़ी रही। श यद बफ़ि से दख
ु भी रह थ । मैंने कह कक दीदी दख
ु त है
तो रहने दो… तो बोली कक अरे मैडम ने कह थ न कक ट इट हो ज येगी किर से, किर सेक न , मेरे ददि की
परव न कर… ख न ख ते समय दीदी चुप चुप थी।

आखखर र त को सोते वक्त मैंने पछ


ू - “दीदी, बहुत ददि हो रह है क्य ?”

दीदी आांखें बांद करके ह ूँ बोली।

“दीदी… वो मैंने भी आज तम्प्


ु ह री ग ण्ड म री। तम
ु को बरु तो नहीां लग ?”

“अरे नहीां, मझ
ु े तो पत भी नहीां पड़ , वो सर ने ही मेरी ऐसी ह लत कर दी थी कक मझ
ु े कुछ समझ में नहीां आ
रह थ , मैं तो बेहोश ही थी श यद। तझ
ु े मज आय क्य ?”

“ह ूँ दीदी, बहुत लय री। कोमल है तम्प्


ु ह री ग ण्ड। सर तो प गल हो गये थे, किद हो गये थे…” मैंने दीदी के बदन
को सहल कर कह । मैं कुछ दे र चुप रह , किर बोल - “दीदी, तम ु च हो तो कल गोल म र दे ते हैं। अगर तकलीि
हो रही हो तो अब सर और मैडम के प स नहीां ज येंगे तम
ु कहो तो। न नी को कहें गे कक कहीां और ट्यश
ू न लग
दे …”

87
दीदी बोली- “तझ
ु े मज नहीां आय … सर और मैडम पसांद नहीां हैं तझ
ु …
े ”

मैं उसकी ओर दे खत रह । किर बोल - “दीदी, बहुत मज आय । पर तेरी जर ज्य द पपस ई हो गई लगत है ।
सर और मैडम तो ऐसे हैं कक मैं तो उनकी पजू करूां रोज। पर तेरी ह लत आज जर न जक
ु हो गई है इसललये
कह रह थ …”

दीदी बोली- “ह ूँ रे , ऐस लगत है कक जैसे ककसी ने मस


ू ल से कुट ई की हो। अांग अांग दख
ु रह है…”

थोड़ी दे र वो चुप रही। किर बोली- “पर अननल, जब सर मेरी म र रहे थे न तो ग ण्ड तो बहुत दख
ु रही थी पर
मेरी चत
ू ऐसी गीली थी कक बहुत मीठी कसक हो रही थी रे । इतन अच्छ लग रह थ कक… अननल… सर और
मैडम के प स ज द ू है ज द।ू लगत है मैं परू ी चद
ु ै ल बन गई हूूँ, दे ख किर से चूत बह रही है , य द आती है कक
आज क्य हुआ तो ऐसी कसकती है अननल। अब ऐस लगत है कक मेरी ये आग श ांत ही नहीां होती। अननल आ
न र ज , मेरी बरु चूस दे रे , किर चोद दे न …”

“पर दीदी… न नी…”

“उसकी किकर मत कर, वो सो ज ती है तो उसे कुछ सन


ु ई नहीां दे त । आज से तेरी डबल ड्यट
ू ी। हदन में सर
और मैडम और र त में मैं। चल आ जल्दी से…”

उस र त मैंने दीदी की बरु दो ब र चस


ू ी तब वो सोयी। दस
ू रे हदन मझ
ु े डर थ कक सर और मैडम न ड ट
ां ें , आखखर
उस हदन की धआ
ुां ध र चद
ु ई के ब द मेर लण्ड ठीक से खड़ भी होन मजु श्कल थ । पर उस हदन सर क म से
ब हर गये थे और मैडम ने हमें बस पढ़ य , और कुछ नहीां ककय ।

मश्ु कुर कर बोली- “आज छुट्टी… अब कल से नये लेसन शरू


ु करें गे। लीन आर म कर लेन । सर कल से किर
लगें गे तम
ु दोनों के पीछे । सच पछ ू ो तो मझ
ु े बहुत अच्छ लग कक तम ु दोनों लमल गये। अब सर को वो सख

लमलेग जो मैं उन्हें परू नहीां दे प ती थी। और मझ ु े भी लमलेग , मझ
ु े थोड़ी र हत भी लमलेगी…”

हम दोनों ने मैडम की ओर दे ख ।

वे बोलीां- “अरे तेरे सर असल में शौकीन हैं इन गोल मटोल गोरे चूतड़ों के। बरु के भी शौकीन हैं पर उनक
असल इांटरे स्ट परू पपछव ड़े ही होत है । ख सकर तम
ु जैसे लय रे जव न लड़के लड़ककयों के पपछव ड़े में । तम
ु नहीां
थे तो मझ
ु े झेलन पड़त थ , अब मेरी ज न छूटी। वो सर मझ
ु े चोदते कम थे और ग ण्ड ज्य द म रते थे। तभी
तो अननल आ गय तो मैं खुश हो गई, बहुत लय र से चोदत है तू मझ ु े अननल। और मझु े भी तमु जैसे बच्चे
बहुत पसांद हैं। अब हम दोनों की च द
ां ी है । मैं अपनी तरह से तम
ु दोनों से सेव करव य करूांगी और सर अपनी
तरह से…”

कुछ दे र ब द मैडम आगे बोलीां- “तम


ु दोनों बहुत गरम हो, ऐस बहुत कम होत है । बहुत सख
ु प ओगे आगे
ज कर। बस मेरे और सर की तरह ही रहन और हम र न म रोशन करन …”

“पर मैडम…” मैं खझझकत हुआ बोल - “आप और सर तो। पनत पत्नी हैं। और मैं और दीदी भ ई बहन…”
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मैडम हूँसने लगी- “ककतने भोले हो अननल। तझ
ु े कैसे म लम
ू कक हम दोनों पनत पत्नी हैं… भ ई बहन भी हो
सकते हैं न … तझ
ु े म लम
ू है कक हम कह ां से आये हैं, हम र ग ूँव कौन स है… हम तो नये हैं यह ां…”

“पर मैडम…” दीदी बोल पड़ी।

“अब चप
ु , ककसी से कहन नहीां। पर हम दोनों जैसे तम
ु लोग भी आगे खब
ू मजे करन । ये जीवन है ही इस
तरह क आनांद उठ ने के ललये। भ ई बहन क असली लय र तम
ु ने दे ख है, अब आगे बहुत तरह के लय र
दे खन …” मैडम ने हमें चूमकर कह ।

उस हदन व पस आते समय मैंने लीन दीदी से कह - “दीदी, मैं तम


ु से श दी करूांग …”

लीन दीदी मझ
ु े ड ांट कर बोली- “चुप कर… हम दोनों भ ई बहन हैं…”

“पर सगे तो नहीां हैं न । दरू के ररश्ते में श दी चलती है । मैं तो म ूँ से कह दां ग
ू …”

“पर ये श दी क भतू कैसे सव र हो गय तेरे लसर पर…” लीन मझ


ु े कनखखयों से दे खते हुए बोली- “आज मैडम
की ब त सनु कर…”

“ह ूँ दीदी। क्य मज लट
ू ते हैं दोनों। हम दोनों भी ऐसी ही मस्ती करें ग…
े ” मैं बोल । लीन कुछ नहीां बोली, बस
मश्ु कुर दी। पर उस र त घर पर न नी के सोने के ब द उसने मझ
ु े पहली ब र अकेले में चोदने हदय ।

स ल भर हमने सर और मैडम के स थ ऐसे-ऐसे गल


ु खखल ये कक कभी सोच भी नहीां थ । स ल के ब द उनक
ट्र न्सिर हो गय । पर तब तक मैं और दीदी पक्के भोगी बन गये थे। आगे भी हमने सर और मैडम के ही र स्ते
पर चलने क ननश्चय ककय और ऐसे-ऐसे मजे ककये। वैसे वो एक अलग कह नी य उपन्य स है…”

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