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चंद्र ग्रहण दोष उपाय
चंद्र ग्रहण दोष उपाय
तं यं मं टोना टोटका
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जा नए चं दोष ( हण दोष) या होता ?? य होता ह हण दोष ?? कैसे कर नवारण ???
आपने ज मकुंडली म योग और दोष दोन के बारे म ज र सुना होगा। यो त य योग और यो त य दोष ये दोन अलग अलग कार क ह क थ तया है जो
आपस म उनके कुंडली म मलने से उनके संयोग बनती है, जसे हम यो त य भाषा म ह क यु त कह कर स बो धत करते है। जो कई कार के शुभ और अशुभ
योगो का नमाण करती है। उन शुभ योगो म कुछ राजयोग होते है। हर अपनी कुंडली म राजयोग को खोजना चाहता है जो क हो के संयोग से बनने वाली एक
सुखद अव था है। ई र क कृपया से जनक कुंडली म यह सु दर राजयोग होते है वह अपनी ज़दगी अ छ कार से तीत कर पाने म समथ होते है। ले कन इसके
वपरीत कुछ जातक ऐसे भी होते है जनक कुंडली म ह कुछ षयोगो का नमाण करते है। जनका जातक को यथा स भव उपाय करवा लेना चा हये। आज हम
यहाँ ह के मा यमो से बनने वाले कुछ षयोगो के बारे म बात करगे।
हदोष शां त पूजा का मह व यह पूजा कसी के जीवन म ब त मह वपूण है य क यह जीवन क सभी सम या से को बाहर लाता है। सुख और समृ के
सभी कार के कसी भी बाधा और रा ते म बाधा के बना हा सल कया जा रहा है। हदोष शां त पूजा के लाभ इस पूजा के व भ लाभ कर रहे ह, य क यह
मान सक गड़बड़ी, वा य सम या , साथी के साथ इस सम या से छु टकारा पाने म मदद करता है, ब चे क अवधारणा। पेशेवर जीवन म सफलता ब त हद
तक और धन के लए सुधार हो जाता है और भौ तकवाद खुशी जीवन भर रखा है।
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चं हण दोष क्या होता है -
जब रा या केतू क यु त चं के साथ हो जाती है तो चं हण दोष हो जाता है। सरे शब्द म, चं के साथ रा और केतू का नकारात्मक गठन, चं हण दोष
कहलाता है। हण दोष का भाव, व भन्न रा शय पर व भन्न कार से पड़ता है जसके लए जन्मकुंडली, ह क थ त भी मायने रखती है|
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चं हण दोष के व भन्न कारण -
चं हण दोष के कई कारण होते ह और हर व्य के जीवन पर उसका भाव भी अलग तरीके से पड़ता है। चं हण दोष का सबसे अ धक भाव, उत्तरा भादप
न म पड़ता है। जो जातक, मीन रा श का होता है और उसक कुंडली म चं क यु त रा या केतू के साथ थत हो जाएं, हण दोष के कारण स्वत: बन जाते ह।
ऐसे व्य य पर इसके भाव अ धक गंभीर होते ह।
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चं हण दोष के अन्य कारण -
रा , रा श के कसी भी हस्से म चं के साथ पाया जाता है- जब क केतू समान रा श म चं के साथ पाया जाता है
- रा , चं महादशा के दौरान हण लगाते ह
- चं हण के दन बच्चे को स्नान अवश्य कराएं।
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चं हण दोष का पता कस कार लगाया जा सकता है -
चं हण दोष का पता लगाने के सबसे पहले जन्मकुंडली का होना आवश्यक होता है, इस जन्मकुंडली म रा और केतू क दशा को पं डत के ारा पता लगाया जा
सकता है। या फर, नवमासा या ादसमास चाट को दे खकर भी दोष को जाना जा सकता है। बेहतर होगा क कसी ानी पं डत से सलाह ल। ऐसा माना जाता है क
पछले जन्म के कम के कारण वतमान जन्म म चं हण दोष लगता है।
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चं हण दोष के प रणाम( भाव) -
व्य परेशान रहता है, सर पर दोष लगाता रहता है, उसके मां के सुख म भारी कमी आ जाती है। उसम सम्मान म कमी अ◌ाती है। हर कार से उस व्य पर
भारी समस्याएं आ जाती है जनके पीछे सफ वही दोषी होता है। साथ ही स्वास्थय
् सम्बंधी दक्कत भी आती ह। सूय और चं हदोष एक के जीवन म
अपने वयं के बुरे भाव क है। सूय के कारण दोष गत सफलता, शोहरत और नाम है जो सम वकास म पड़ाव प रणाम ा त करने म बाधा का सामना।
एक औरत बार-बार गभपात, ब चे और दोषपूण पु योग क अवधारणा म सम या क तरह ब चे से संबं धत सम या का सामना करना पड़ता। वा य सम या को
भी सूय दोष के कारण मुख ह। चं दोष अपने वयं के बुरे भाव के प म यह अनाव यक तनाव का एक ब त कुछ दे ता है।
इस दोष के कारण वहाँ व ास, भावना मक अप रप वता, लापरवाही, याददा त म कमी, असंवेदनशीलता म एक नुकसान है। वा य छाती, फेफड़े, सांस लेने और
मान सक अवसाद से संबं धत सम या को ब त हद तक अनुकूल ह। आ म वनाशकारी कृ त भी हो जाता है एक के मन म उठता है और आ मह या करने
क को शश करता है।य द आप हमेशा क मकश म रहते ह, इधर-उधर क सोचते रहते ह, नणय लेने म कमजोर ह, भावुक एवं संवेदनशील ह, अ तमुखी ह, शेखी
बघारने वाले ह, न द पूरी नही आती है, सीधे आप सो नह सकते ह अथात हमेशा करवट बदलकर सोएंगे अथवा उ टे सोते ह, भयभीत रहते ह तो न त प से
आपक कुंडती म च मा कमजोर होगा |समय पर इस कमजोर चं मा अथात तकूल भाव को कम करने का उपाय करना चा हए अ यथा जीवन भर आप आ म
व ास क कमी से त रहगे.
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जन य का च मा ीण होकर अ म भाव म और चतुथ तथा चं पर रा का भाव हो, अ य शुभ भाव न हो तो वे मरगी रोग का शकार होते ह.
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जन लोग का च मा छठे आठव आ द भाव म रा न हो, वैसे पाप हो तो उनको र चाप आ द होता है.
चं मा को सोम भी कहा जाता है. सोमवार को भगवान शव का दन माना जाता है और इस दन भगवान शव के पूजन से मनुषय ् को वशेष लाभ ा त होता है.
च मा के अ धदे वता भी शव ह और इसके या धदे वता जल है. महादे व के पूजन से चं मा के दोष का नवारण होता है. महादे व ने चं को अपनी जटा पर धारण
कया आ है. इस कार भगवान शव क पूजा से चं मा के उलटे भाव से त काल मु मलती है. भगवान शव के कई च लत नाम म एक नाम सोमसुंदर भी है.
सोम का अथ चं होता है | च मा यो तष शा म ब त अ धक मह वपूण भू मका अदा करता है। इसके संबंध म यो तष शा कहता है क च मा का आकषण
पृ वी पर भूकंप, समु आं धयां, वार भाटा, तूफानी हवाएं, अ त वषा, भू खलन आ द लाता ह। रात को चमकता पूरा चांद मानव स हत जीव-जंतु पर भी गहरा
असर डालता है। च मा से ही मनु य का मन और समु से उठने वाली लहरे दोन का नधारण होता है। माता और चं का संबंध भी गहरा होता है। कुंडली म माता क
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थ त को भी च मा दे वता से दे खा जाता है और च मा को माता भी कहा जाता है।हमारी कुंडली म जस भी रा श म च मा हो वही हमारी ज म रा श कहलाती है
और जब भी शुभ काय करने के लए म त दे खा जाता है वह हमारी ज मरा श के अनुसार दे खा जाता है जैसे क हमारी ज म रा श के अनुसार च मा कहाँ और कस
न म गोचर कर रहा है।
च मा ही हमारे जीवन क जीवन श है। कसी कुंडली म अगर च मा क थ त अगर ीण होती है अथवा च मा पाप भाव लए हो तो उस क मान सक
थ त को कोई भी अ छा यो तषी दे ख कर बता सकता है क जातक के मन म या वचार चलते है तथा जातक क मनो थ त कस कार है । न त ही ऐसे
जातक का मन उतावला होगा, अ यंत चंचल होगा। मन को एका करने म कठनाईयाँ ह गी और जब मन ही एका नही होगा तो जातक पढ़ने तो बैठेगा ले कन कुछ ही
मनट बाद उठ जायेगा, जातक सोचेगा क पहले फलां काय कर लूँ , पढ़ तो कुछ दे र बाद भी लूँगा।च मा दे वता हमारे मन और म त के करक है। कसी भी
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ज मकुंडली म च क मह वपूण भू मका को दे खे बना कुंडली का व ेषण केवल कुंडली के शव के प र ण जैसा होता है।
यो तषी इन हो यु तय को भ भन् कार से स बो धत करते है। कई यो तष इ हे दोष कह कर स बो धत करते है तो कई योग कह कर बुलाते है . मेरे वचार से
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जबतक क ही ह क यु तयां अ छा फल दे ने म समथ न हो तब तक उसे योग नही कहा जा सकता है। वह षयोग ही कहलाएगी।
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चं पूजा ब ध
च पूजा क व ध के बारे म चचा करगे तथा इस पूजा म योग होने वाली मह वपूण या के बारे म भी वचार करगे। वै दक यो तष च पूजा का सुझाव मु य
प से कसी कुंडली म अशुभ प से काय कर रहे च क अशुभता को कम करने के लए, अशुभ च ारा कुंडली म बनाए जाने वाले कसी दोष के नवारण के
लए अथवा कसी कुंडली म शुभ प से काय कर रहे च क श तथा शुभ फल बढ़ाने के लए दे ता है। च पूजा का आरंभ सामा यतया सोमवार वाले दन कया
जाता है तथा उससे अगले सोमवार को इस पूजा का समापन कर दया जाता है जसके चलते इस पूजा को पूरा करने के लए सामा यता 7 दन लगते ह क तु कुछ
थ तय म यह पूजा 7 से 10 दन तक भी ले सकती है जसके चलते सामा यतया इस पूजा के आरंभ के दन को बदल दया जाता है तथा इसके समापन का दन
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सामा यतया सोमवार ही रखा जाता है।
कसी भी कार क पूजा को व धवत करने के लए सबसे मह वपूण है उस पूजा के लए न त कये गए मं का एक न त सं या म जाप करना तथा यह सं या
अ धकतर पूजा के लए 125,000 मं होती है तथा च पूजा म भी च वेद मं का 125,000 बार जाप करना अ नवाय होता है। पूजा के आरंभ वाले दन पांच
या सात पं डत पूजा करवाने वाले यजमान अथात जातक के साथ भगवान शव के शव लग के सम बैठते ह तथा शव प रवार क व धवत पूजा करने के प ात
मु य पं डत यह संक प लेता है क वह और उसके सहायक पं डत उप थत यजमान के लए च वेद मं का 125,000 बार जाप एक न त अव ध म करगे तथा
इस जाप के पूरा हो जाने पर पूजन, हवन तथा कुछ वशेष कार के दान आ द करगे। जाप के लए न त क गई अव ध सामा यतया 7 से 10 दन होती है। संक प
के समय मं का जाप करने वाली सभी पं डत का नाम तथा उनका गो बोला जाता है तथा इसी के साथ पूजा करवाने वाले यजमान का नाम, उसके पता का नाम
तथा उसका गो भी बोला जाता है तथा इसके अ त र जातक ारा करवाये जाने वाले च वेद मं के इस जाप के फल व प मांगा जाने वाला फल भी बोला जाता
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है जो साधारणतया जातक क कुंडली म अशुभ च ारा बनाये जाने वाले कसी दोष का नवारण होता है अथवा च ह से शुभ फल क ा त करना होता है।
इस संक प के प ात सभी पं डत अपने यजमान अथात जातक के लए च वेद मं का जाप करना शु कर दे ते ह तथा येक पं डत इस मं के जाप को त दन
लगभग 8 से 10 घंटे तक करता है जससे वे इस मं क 125,000 सं या के जाप को संक प के दन न त क गई अव ध म पूण कर सक। न त कए गए दन
पर जाप पूरा हो जाने पर इस जाप तथा पूजा के समापन का काय म आयो जत कया जाता है जो लगभग 2 से 3 घंटे तक चलता है। सबसे पूव भगवान शव, मां
पावती, भगवान गणेश तथा शव प रवार के अ य सद य क पूजा फल, फूल, ध, दह , घी, शहद, श कर, धूप, द प, मठाई, हलवे के साद तथा अ य कई व तु के
साथ क जाती है तथा इसके प ात मु य पं डत के ारा च वेद मं का जाप पूरा हो जाने का संक प कया जाता है जसमे यह कहा जाता है क मु य पं डत ने
अपने सहायक अमुक अमुक पं डत क सहायता से इस मं क 125,000 सं या का जाप नधा रत व ध तथा नधा रत समय सीमा म सभी नयम का पालन करते
ए कया है तथा यह सब उ ह ने अपने यजमान अथात जातक के लए कया है जसने जाप के शु होने से लेकर अब तक पूण न ा से पूजा के येक नयम क
पालना क है तथा इस लए अब इस पूजा से व धवत ा त होने वाला सारा शुभ फल उनके यजमान को ा त होना चा हए।
“ॐ ां स: चं मसे नम:” अथवा “ॐ स सोमाय नम:” का जाप करना अ छे प रणाम दे ता है। ये वै दक मं ह, इस मं का जाप जतनी ा से कया जाएगा
यह उतना ही फलदायक होगा।
इस समापन पूजा के चलते नव ह से संबं धत अथवा नव ह म से कुछ वशेष ह से संबं धत कुछ वशेष व तु का दान कया जाता है जो व भ जातक के लए
भ भ हो सकता है तथा इन व तु म सामा यतया चावल, गुड़, चीनी, नमक, गे ं, दाल, खा तेल, सफेद तल, काले तल, ज तथा कंबल इ या द का दान कया
जाता है। इस पूजा के समापन के प ात उप थत सभी दे वी दे वता का आ शवाद लया जाता है तथा त प ात हवन क या शु क जाती है जो जातक तथा
पूजा का फल दान करने वाले दे वी दे वता अथवा ह के म य एक सीधा तथा श शाली संबंध था पत करती है। औपचा रक व धय के साथ हवन अ न
जव लत करने के प ात तथा हवन शु करने के प ात च वेद मं का जाप पुन: ारंभ कया जाता है तथा येक बार इस मं का जाप पूरा होने पर वाहा: का
वर उ चारण कया जाता है जसके साथ ही हवन कुंड क अ न म एक वशेष व ध से हवन साम ी डाली जाती है तथा यह हवन साम ी व भ पूजा तथा
व भ जातक के लए भ भ हो सकती है। च वेद मं क हवन के लए न त क गई जाप सं या के पूरे होने पर कुछ अ य मह वपूण मं का उ चारण
कया जाता है तथा येक बार मं का उ चारण पूरा होने पर वाहा क व न के साथ पुन: हवन कुंड क अ न म हवन साम ी डाली जाती है।
अंत म एक सूखे ना रयल को उपर से काटकर उसके अंदर कुछ वशेष साम ी भरी जाती है तथा इस ना रयल को वशेष मं के उ चारण के साथ हवन कुंड क अ न
म पूण आ त के प म अ पत कया जाता है तथा इसके साथ ही इस पूजा के इ छत फल एक बार फर मांगे जाते ह। त प ात यजमान अथात जातक को हवन
कुंड क 3, 5 या 7 प र माएं करने के लए कहा जाता है तथा यजमान के इन प र मा को पूरा करने के प ात तथा पूजा करने वाले पं डत का आ शवाद ा त
करने के प ात यह पूजा संपूण मानी जाती है। हालां क कसी भी अ य पूजा क भां त च पूजा म भी उपरो व धय तथा औपचा रकता के अ त र अ य ब त
सी व धयां तथा औपचा रकताएं पूरी क जात ह क तु उपर बता ग व धयां तथा औपचा रकताएं इस पूजा के लए सबसे अ धक मह वपूण ह तथा इसी लए इन
व धय का पालन उ चत कार से तथा अपने काय म नपुण पं डत के ारा ही कया जाना चा हए। इन व धय तथा औपचा रकता म से कसी व ध अथवा
औपचा रकता को पूरा न करने पर अथवा इ ह ठ क कार से न करने पर जातक को इस पूजा से ा त होने वाले फल म कमी आ सकती है तथा जतनी कम व धय
का पूणतया पालन कया गया होगा, उतना ही इस पूजा का फल कम होता जाएगा।
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च पूजा के आरंभ होने से लेकर समा त होने तक पूजा करवाने वाले जातक को भी कुछ नयम का पालन करना पड़ता है। इस अव ध के भीतर जातक के लए
येक कार के मांस, अंडे, म दरा, धू पान तथा अ य कसी भी कार के नशे का सेवन नषेध होता है अथात जातक को इन सभी व तु का सेवन नह करना
चा हए। इसके अ त र जातक को इस अव ध म अपनी प न अथवा कसी भी अ य ी के साथ शारी रक संबंध नह बनाने चा हएं तथा अ ववा हत जातक को
कसी भी क या अथवा ी के साथ शारी रक संबंध नह बनाने चा हएं। इसके अ त र जातक को इस अव ध म कसी भी कार का अनै तक, अवैध, हसा मक तथा
घृणा मक काय आ द भी नह करना चा हए। इसके अ त र जातक को त दन मान सक संक प के मा यम से च पूजा के साथ अपने आप को जोड़ना चा हए
तथा त दन नान करने के प ात जातक को इस पूजा का समरण करके यह संक प करना चा हए क च पूजा उसके लए अमुक थान पर अमुक सं या के
पं डत ारा च वेद मं के 125,000 सं या के जाप से क जा रही है तथा इस पूजा का व धवत और अ धका धक शुभ फल उसे ा त होना चा हए। ऐसा करने से
जातक मान सक प से च पूजा के साथ जुड़ जाता है तथा जससे इस पूजा से ा त होने वाले फल और भी अ धक शुभ हो जाते ह।
यहां पर यह बात यान दे ने यो य है क च पूजा जातक क अनुप थ त म भी क जा सकती है तथा जातक के गत प से उप थत होने क थ त म इस पूजा
म जातक क त वीर अथात फोटो का योग कया जाता है जसके साथ साथ जातक के नाम, उसके पता के नाम तथा उसके गो आ द का योग करके जातक के
लए इस पूजा का संक प कया जाता है। इस संक प म यह कहा जाता है क जातक कसी कारणवश इस पूजा के लए गत प से उप थत होने म स म नह
है जसके चलते पूजा करने वाले पं डत म से ही एक पं ड़त जातक के लए जातक के ारा क जाने वाली सभी या पूरा करने का संक प लेता है तथा उसके
प ात पूजा के समा त होने तक वह पं डत ही जातक क ओर से क जाने वाली सारी याएं करता है जसका पूरा फल संक प के मा यम से जातक को दान कया
जाता है। येक कार क या को करते समय जातक क त वीर अथात फोटो को उप थत रखा जाता है तथा उसे सांके तक प से जातक ही मान कर याएं क
जात ह। उदाहरण के लए य द जातक के थान पर पूजा करने वाले पं डत को भगवान शव को पु प अथात फूल अ पत करने ह तो वह पं डत पहले पु प धारण करने
वाले अपने हाथ को जातक के च से पश करता है तथा त प ात उस हाथ से पु प को भगवान शव को अ पत करता है तथा इसी कार सभी याएं पूरी क जात
ह। यहां पर यह बात यान दे ने यो य है क गत प से अनुप थत रहने क थ त म भी जातक को च पूजा के आरंभ से लेकर समा त होने क अव ध तक
पूजा के लए न त कये गए नयम का पालन करना होता है भले ही जातक संसार के कसी भी भाग म उप थत हो। इसके अ त र जातक को उपर बताई गई
व ध के अनुसार अपने आप को इस पूजा के साथ मान सक प से संक प के मा यम से जोड़ना भी होता है जससे इस च पूजा के अ धक से अ धक शुभ फल
जातक को ा त हो सक।
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चं दोष नवारण ----
चं दोष के उपाय जो शा म उ ले खत ह उनम सोमवार का त करना, माता क सेवा करना, शव क आराधना करना, मोती धारण करना, दो मोती या दो चांद का
टु कड़ा लेकर एक टु कड़ा पानी म बहा दे ना तथा सरे को अपने पास रखना है. कुंडली के छठव भाव म चं हो तो ध या पानी का दान करना मना है. य द चं बारहवां
हो तो धमा मा या साधु को भोजन न कराएं और ना ही ध पलाएं. सोमवार को सफेद वा तु जैसे दही, चीनी, चावल, सफेद व , 1 जोड़ा जनेऊ, द णा के साथ दान
करना और ॐ सोम सोमाय नमः का १०८ बार न य जाप करना ेय कर होता है.
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जाप मं ---
ऊँ ां स: च मसे नम:.
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चं नम कार के लए मं ---
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शव का महामृ युंजय मं ---
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चं दोष नवारण के तां क टोटका ----
महापं डत रावण जैसे ानी चार वेद के ान के आधार पर और अपने यो तष ान के आधार पर चं दोष नवारण के कुछ उपाय बताएं ह. रावण के महान व ा के
आधार पर 'लाल कताब' क रचना क गयी है. यहां वै दक यो तष म चं दोष नवारण के लए बड़े बड़े हवन आ द करने पड़ते है वह रावण के तां क टोटके उस
सम या को कुछ ही दन म न कर दे ते है. हमारे यो तष शा ने चं मा को चौथे घर का कारक माना है. यह कक राशी का वामी है. च ह से वाहन का सुख
स प त का सुख वशेष प से माता और दाद का सुख और घर का पया पैसा और मकान आ द सुख दे खा जाता है. उपाय - 1 कलो जौ ध म धोकर और एक
सुखा ना रयल चलते पानी म बहाय और 1 कलो चावल मं दर म चढ़ा दे , अगर च रा के साथ है और य द च केतु के साथ है तो चूना प थर ले उसे एक भूरे कपडे
म बांध कर पानी म बहा दे और एक लाल तकोना झंडा कसी मं दर म चढ़ा दे .
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शव कवच से चं दोष का नवारण होता है
।। ीगणेशाय नम:।।
व नयोगः- ॐ अ य ी शवकवच तोत◌्रमं य ा ऋ ष: अनु प् छ द:। ीसदा शव ◌ो दे वता। शक् त:। रं क लकम्। ी ल बीजम्। ीसदा शव ीत
◌्यथ शवकवच तो जप◌े व नयोग:।
कर- यास: - ॐ नमो भगवते वल वालामालि◌ने ॐ ांसवश ध◌ा ने ईशाना मने अंगु ा यां नम: । ॐ नमो भगवते वल वालामालि◌ने ॐ नं र न यतृ तधाम्
ने त पु षा मने तजनी यां नम: । ॐ नमो भगवते वल वालामालि◌ने ॐ मं ं अना दशक् तधा ने अघोरा मने म यामा यां नम: । ॐ नमो भगवते वल वालामाल
ि◌ने ॐ श र वतं श धा ने वामदे वा मने अना मका यां नम: । ॐ नमो भगवते वल वालामालि◌ने ॐ वांर अलु तश धाम्ने स ो जाता मने क न का यां
नम: । ॐ नमो भगवते वल वालामालि◌ने ॐयंर: अना दश धा न◌े सवा मने करतल करपृ ा यां नम:।
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॥ अथ यानम् ॥
व दं ं नयनं कालक ठम र दमम◌् ।
सह करम यु ◌ं वंदे शंभुमुप तम् ॥ १ ॥
।।ऋषभ उवाच।।
अथापरं सवपुराणगु ं नशे:षपापौघहरं प व म् ।
जय दं सव वप मोचनं व या म शैवं कवचं हताय ते ॥ २ ॥
नम कृ य महादे वं वश्व ा पनमीश्वरम्।
व ये शवमयं वम सवर ाकरं नृणाम् ॥ ३ ॥
शुचौ दे शे समासीनो यथाव क पतासन: ।
जते यो जत ाणश् चतये छवम यम् ॥ ४ ॥
पुंडरीक तरस व ं वतेजसा ा तनभोवकाशम◌् ।
अत यं सू ममनंतताद्यं याये परानंदमयं महेशम् ॥ ५ ॥
यानावधूता खलकमब धश्चरं चतान द नम नच◌ेता: ।
षड र याससमाहि◌ता मा शैवेन कुया कवचेन र ाम् ॥ ६ ॥
मां पातु दे वोऽ खलदे व मा संसारकूपे प ततं गंभीरे
त ाम द ं वरमं मूलं धुनोतु मे सवमघं द थम् ॥ ७ ॥
सव मां र तु वश्वमू त य तमयानंदघनश् चदा मा ।
अणोरणीयानु शक् तरेक: स ईश्वर: पातु भयादशेषात् ॥ ८ ॥
यो भू व पेण बभ त वश्वं पाया स भूमे ग रशोऽष्टमू त: ॥
योऽपां व पेण नृणां करो त संजीवनं सोऽवतु मां जले य: ॥ ९ ॥
क पावसाने भुवना न द वा सवा ण यो नृ य त भू रलील: ।
स काल ोऽवतु मां दवा नेवा या दभीतेर खला च तापात् ॥ १० ॥
द त व ुत◌्कनकावभासो व ावराभी त कुठारपा ण: ।
चतुमुख त पु ष ने : ा यां थतं र तु मामज म् ॥ ११ ॥
कुठारवेदांकुशपाशशूलकपालढ काक्षगुणान् दधान: ।
चतुमुखोनील चि◌ ने : पायादघोरो द श द ण याम् ॥ १२ ॥
कुंद शंख फटि◌कावभासो वेदा माला वरदाभयांक: ।
य श्चतुव उ भाव: स ो धजातोऽवस्तु मां ती याम् ॥ १३ ॥
वरा मालाभयटं कह त: सरोज कज कसमानवण: ।
लोचनश्चा चतुमुखो मां पाया द या द श वामदे व: ॥ १४ ॥
वेदा ये ांकुशपाश टं ककपालढ का कशूलपा ण: ॥
सत ु त: पंचमुखोऽवता मामीशान ऊ व परम काश: ॥ १५ ॥
मूधानम ा मम चं मौ लभालं ममा ादथ भालने : ।
ने े ममा ा गने हारी नासां सदा र तु वश्वनाथ: ॥ १६ ॥
पाया ती मे ु तगीतक त: कपोलम ा सततं कपाली ।
व ं सदा र तु पंचव ो ज ां सदा र तु वेद ज : ॥ १७ ॥
कंठं गरीशोऽवतु नीलक ठ: पा ण: यं पातु: पनाकपा ण: ।
दोमूलम ा मम धमवा व : थलं द मखातकोऽ ात् ॥ १८ ॥
मनोदरं पातु गर ध वा म यं ममा ा मदनांतकारी ।
हेरंबतातो मम पातु ना भ पाया क ट धूज टरीश्वरो मे ॥ १९ ॥
ऊ यं पातु कुबेर म ो जानु यं मे जगद श्वरोऽ ात् ।
जंघायुगंपुंगवकेतु यातपादौ ममा सुरवंदय ् पाद: ॥ २० ॥
महेशव ् र: पातु दना दयामे मां म ययामेऽवतु वामदे व: ॥
लोचन: पातु तृतीययामे वृष वज: पातु दनां ययामे ॥ २१ ॥
पाया शादौ श शशेखरो मां गंगाधरो र तु मां नशीथे ।
गौरी प त: पातु नशावसाने मृ युंजयो र तु सवकालम् ॥ २२ ॥
अ त: थतं र तु शंकरो मां थाणु: सदापातु ब ह: थत माम् ।
तदं तरे पातु प त: पशूनां सदा शवोर तु मां समंतात् ॥ २३ ॥
त तम ाद्भुवनैकनाथ: पायाद् जंतं थमा धनाथ: ।
वेदांतवे ोऽवत◌ु मां नष णं माम य: पातु शव: शयानम् ॥ २४ ॥
मागषु मां र तु नीलकंठ: शैला द गषु पुर या र: ।
अर यवासा दमहाप◌्रवासे पाया मृग ाध उदारश : ॥ २५ ॥
क पांतकोटोपपटु कोप- फुटाट् टहासो च लतांडक◌ोश: ।
घोरा रसेनणव नवारमहाभयाद्र तु वीरभ : ॥ २६ ॥
प यश्वमातंगघटाव थसह ल ायुतको टभीषणम् ।
अ ौ हणीनां शतमातता यनां छ ा मृडोघोर कुठार धारया २७ ॥
नहंतु द यू लयानल◌ा च वल शूलं पुरांतक य ।
शा ल सह वृका द ह ा सं ासय वीशधनु: पनाक: ॥ २८ ॥ : व :शकुन ग तदौमनस◌्य भ सन :सह र◌्यशां स ।
ी ि े ी
उ पातताप वषभीति◌मसद् हा त ाध श्च नाशयतु मे जगतामधीश: ॥ २९ ॥
ॐ नमो भगवते सदा शवाय सकलत वा मकाय सवमं व प◌ाय सवयं ा ध ि◌ताय सवतं व प◌ाय सव व व राय ावता रणे नीलकंठाय पावतीमनोहर
ि◌याय सोमसूया नलोचनाय भ मोद्धू लत व हाय महाम णमुकुटधारण◌ाय मा ण यभूषणाय सृ थ त लयकालरौ ावतार◌ाय द ा वर वंसक◌ाय
महाकालभेदनाय मूलाधारैक नलयाय त वातीताय गंगाधराय सवदे वा धदे वाय षडा याय वेदांतसाराय वगसाधनायानंतको ट ाण◌्डनायकायानंतवास
◌ु कत ककक टकङ् खकु लक प महाप े य महानागकुलभूषणाय णव व पाय चदाकाशाय आकाश द व पाय हन मालि◌ने सकलाय कलंकर हताय
सकललोकैक सकललोकैकभ सकललोकैकसंहत्रे सकललोकैकगुरवे सकललोकैकसा ण◌े सकल नगमगु ाय सकल वेदा तपारगाय सकललोकैकवर दाय
सकलकोलोकैकशंकराय शशांकशेखराय शाश्वत नजावासाय नराभासाय नरामयाय नमलाय नल भाय नमदाय नश् चताय नरहंकाराय नरंकुशाय न कलंकाय
नगुणाय न कामाय न प लवाय नरव ाय नरंतराय न कारणाय नरंतकाय न पंचाय न:संगाय न ाय नराधाराय नीरागाय न ोधाय नमलाय न पापाय
नभयाय न वक पाय नभदाय न यय न तुलाय न:संशयाय नरंजनाय न पम वभवाय नत◌्यशु बु प रपूणस चदानंदा याय परमशांत व पाय तेजो पाय
तेजोमयाय जय जय महारौ भद◌्रावतार महाभैरव कालभैरव क पांतभैरव कपालमालाधर खट् वांगखड् गचमपाश◌ांकुशडम शूलचाप
बाणगदाशक् त भ दपालतोमरम◌ुसलमुदगरपाशपरि◌घ
् भुशु डीशत नीच ा ायुधभीषणकरसह मुखदं ◌्राकरालवदन वकटा हास व फा रत ांडमंडल
नाग कुंडल नाग हार नागे वलय नाग चमधरम◌ृयुंजय यंबकपुरांतक वश्व प व पा वश्वे र वृषभवाहन वष वभूषण वश्वतोमुख सवतो र र मां वल
वल महामृ युमपमृतय ् ुभयं नाशयनाशयचोरभयमु सादयो सादय वषसपभयं शमय शमय चोरा मारय मारय ममशमनु चा ोच◌्चाटय शूलेनवि◌दारय
कुठारेण भ ध भभ ध खड् गेन छ ध छ ध खट् वांगेन वपोथय वपोथय मुसलेन न पेषय न पेषय वाणै: संताडय संताडय र ां स भीषय भीषयशेषभूता न न ावय
कू मांडवेतालमारीच रा सगणान्सं ासय सं ासय ममाभय कु कु व तं मामाश्वासयाश्वासय नरकमहाभया मामु रसंजीवय संजीवय ु ृड◌् यां मामा याय-
आ याय :खातुरं मामान दयान दय शवकवचेन मामा छादया छादयमृ युंजय यंबक सदा शव नम ते नम ते नम ते।
।। ऋषभ उवाच ।।
इ येत कवचं शैवं वरदं ा तं मया ॥
सवबाधा शमनं रह यं सवदे हनाम् ॥ ३० ॥
य: सदा धारये म य: शैवं कवचमु मम् ।
न त य जायते वा प भयं शंभोरनु हात् ॥ ३१ ॥
ीणायुअ: ाप◌्तमृ युवा महारोगहतोऽ प वा ॥
स : सुखमवा ो त द घमायुशच ् वद त ॥ ३२ ॥
सवदा र य ् शमनं सौमंग य ववधनम् ।
यो ध े कवचं शैवं सदे वैर प पू यते ॥ ३३ ॥
महापातकसंघातैर्मु यते चोपपातकै: ।
दे हांते मुक् तमा ो त शववमानुभावत: ॥ ३४ ॥
वम प या व स शैवं कवचमु मम्
धारय व मया द ं स : ेयो वा य स ॥ ३५ ॥
॥ सूत उवाच ॥
इ यु वाऋषभो योगी त मै पा थवसूनवे ।
ददौ शंखं महारावं खड् गं चा र नषूदनम् ॥ ३६ ॥
पुनश्च भ म संम य तदं गं प रतोऽ पृशत् ।
गजानां षट् सह य गुण य बलं ददौ । ३७ ॥
भ म भावा सं ा तबलै र्यधृ त मृ त: ।
स राजपु : शुशुभे शरदक इव या ॥ ३८ ॥
तमाह ांज ल भूय: स योगी नृपनंदनम् ।
एष खड् गो मया द तपोमं ानुभा वत: ॥ ३९ ॥
शतधार ममंखड् गं य मै दशयसे फुटम् ।
स स ो यतेश ु: सा ा मृ युर प वयम् ॥ ४० ॥
अ य शंख य न ादं ये ृ वं त तवा हता: ।
ते मू छता: प त यं त य तश ा वचेतना: ॥ ४१ ॥
खड् गशंखा वमौ द ौ परसै य नवा शनौ ।
आ मसै य यपक्षाणां शौयतेजो ववधनो ॥ ४२ ॥
एतयोश्च भावेण शैवेन कवचेन च ।
षट् सह नागानां बलेन महता प च ॥ ४३ ॥
भ मधारणसामथ्या छ ुसै यं वजे य स ।
ा य सहासनं प यं गो ता स पृ थवी ममाम् ॥ ४४ ॥
इ त भ ायुषं स यगनुशा य समातृकम् ।
ता यां पू जत: सोऽथ योगी वैरग तययौ ॥ ४५ ॥
।।इ त ी कंदपुराणे एकाशी तसाह यां तृतीये ो रख ड◌े अमोघ- शव-कवचं समा तम् ।
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अमाव या योग या दोष -
जब सूय और च मा दोन कु डली के एक ही घर म वरा जत हो जावे तब इस दोष का नमाण होता है। जैसे क आप सब जानते है क अमाव या को च मा कसी
को दखाई नही दे ता उसका भाव ीण हो जाता है। ठ क उसी कार कसी जातक क कुंडली म यह दोष बन रहा हो तो उसका च मा भावशाली नही रहता। और
च मा को यो तष म कु डली का ाण माना जाता है और जब च मा ही भाव हीन हो जाए तो यह कसी भी जातक के लए क कारी हो जाता है य क यही
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हमारे मन और म त का करक ह है। इस लए अमाव या दोष को मह ष पराशर जी ने ब त बुरे योगो म से एक माना है, जसक ा या उ ह ने अपने थ बृहत
पराशर होराशा म बड़े व तार से क है तथा उसके उपाय बताये है। जो क म आगे अपने लॉग पर कुछ समय बाद का शत क ँ गा। यो तष म ऐसा माना जाता है
क सूय और च दो भ त व के ह है सूय अ न त व और च जल त व, इस कार जब दोन मल जाते है तो वा प बन जाती है कुछ भी शेष नही रह जाता।
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हण योग या दोष -
जब सूय या च मा क यु त रा या केतु से हो जाती है तो इस दोष का नमाण होता है। च हण और सूय हण दोष क अव था म जातक डर व घबराहट महसूस
करता है। चड चडापन उसके वभाव का ह सा बन जाता है। माँ के सुख म कमी आती है। कसी भी काय को शु करने के बाद उसे सदा अधूरा छोड़ दे ना व नए
काम के बारे म सोचना इस योग के ल ण ह। मने अपने ३ साल के छोटे से अनुभव म ऐसी कई कु ड लयाँ दे खी है जनमे यह योग बन रहा था और जातक कसी न
कसी फो बया या कसी न कस कार का डर से सत थे। जन लोगो म दमाग म हमेशा यह डर लगा रहता है, उदाहरण के लए समझे क "म पहड़ो पर जैसे मनाली
या शमला घूमने जाऊँगा तो बस पलट जाएगी। रेल से वहां जाऊंगा तो रेल म बम ब फोट हो जायेगा।" इस कार के सारे नकारा मक वचार इसी दोष के कारण मन
म आते है। अमूमन कसी भी कार के फो बया अथवा कसी भी मान सक बीमारी जैसे ड ेसन , स ेफे नया आ द इसी दोष के भाव के कारण माने गए ह य द यहाँ
चं मा अ धक षत हो जाता है या कह अ य पाप भाव म भी होता है, तो मग ,च कर व पूणत: मान सक संतुलन खोने का डर भी होता है। सूय ारा बनने वाला
हण योग पता सुख म कमी करता है। जातक का शारी रक ढांचा कमजोर रह जाता है। आँख व दय स ब धी रोग का कारक बनता है। सरकारी नौकरी या तो
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मलती नह या उसको नभाना क ठन होता है डपाटमटल इ वाइरी, सजा, जेल, परमोशन म कावट सब इसी दोष का प रणाम है।
उपाय - ज री नही क हम हज़ारो पए लगा कर, भारी भरकम उपाय कर के ही ह का या भगवन का पूजन कर उपाय करे जैसे क आजकल यो तष बताते है।
बरन हम छोटे छोटे उपाय करके भी भगवन तथा ह को स कर सकते है। बस उस कये गए उपाय म स ची धा भाव तथा उस परम पता परमे र म व ास
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होना अ नवाय है। सूय दे वता के लए और च दे वता के लए भी हम यह उपाय कर उन अपनी कु डली म उ ह बलवान बना सकते है।
सूय से बने हण दोष म या कु डली म सूय दे व के कमजोर होने पर हमे सूय दे वता को ी त दन अ य दे ना चा हए उसमे थोड़ा गुड, कुमकुम तथा कनेर के पु प या कोई
भी लाल रंग पु प डाले तथा सूय भगवान को यह मं "ॐ घृ ण सूयाय नमः " या "ॐ ां सः सूयाय नमः" जप ते ए अ य दे । इसके अलावा अ त ाचीन और
सवमा य आ द य दय तो का पाठ सूय दे वता क पूजा करने के लए ब त ही मह वपूण तथा सव प र माना गया है तथा यह अपने भाव जातक को शी ही
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अनुभव म करवा दे ता है।
च मा और रा या केतु से बनने वाले च हण दोष के लए सबसे अ छा उपाय शव जी भगवन क पूजा उनका ी त दन जल से क चे ध से अ भषेक करना अ त
लाभदायक स द होता है य क च मा शव जी भगवान क जटा म वराजमान है तथा शव जी भगवन क पूजा से अ त सन होता है। इसके अलावा च मा
दे वता के य को घर म पूजा क जगह वरा जत करे और अपनी पूजा के समय (सुबह और शाम) य का भी धूप द प से पूजन करे च मा के मं "ॐ ाम ीम्
ोम सः च मसे नमः " का जाप करे ।
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केम म योग या दोष -
च मा से बनने वाला ये दोष अपने आप म महास यानाशी दोष है य द चं मा से तीय और ादश दोन थान म कोई ह नही हो तो केम म नामक या दोष बनता है
या फर आप इसे इस कार समझे च मा कुंडली के जस भी घर म हो, उसके आगे और पीछे के घर म कोई ह न हो। इसके अलावा च मा क कसी ह से यु त न
हो या चं को कोई शुभ ह न दे खता हो तो कु डली म केम म दोष बनता है। केम म दोष के संदभ म छाया ह रा केतु क गणना नह क जाती है। जस भी
क कु डली म यह दोष बनता हो उसे सजग हो जाना चाइये।
इस दोष म उ प आ जीवन म कभी न कभी कसी न कस पड़ाव पर द र ता एवं संघष से त होता है। अपने यो तष के अनुभव म मेने ऐसे ऐसे
दे खे है ज ह ने बड़ी मेहनत करके पैसा कमाया ले कन कुछ एक सालो बाद सब बबाद हो गया, तो यह इसी दोष काय का है। जीवन म सब कुछ वा पस ले लेना और
फर शू य थ त म लाना भी इसी दोष का काय है।
इसके साथ ही साथ ऐसे अ श त या कम पढा लखे , नधन एवं मूख भी हो सकते है। यह भी कहा जाता है क केम म योग वाला वैवा हक जीवन और
संतान प का उ चत सुख नह ा त कर पाता है। वह सामा यत: घर से र ही रहता है। थ बात करने वाला होता है कभी कभी उसके वभाव म नीचता का भाव भी
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दे खा जा सकता है।
उपाय - केम म योग के अशुभ भाव को र करने हेतु कुछ उपाय को करके इस योग के अशुभ भाव को कम करके शुभता को ा त कया जा सकता। सोमवार के
दन भगवान शव के मं दर जाकर शव लग का जल व गाय के क चे ध से अ भषेक करे व पूजा कर। भगवान शव ओर माता पावती का पूजन कर। ा क माला
से शवपंचा री मं " ऊँ नम: शवाय" का जप कर ऎसा करने से केम म योग के अशुभ फल म कमी आएगी। घर म द णावत शंख था पत करके नय मत प से
ीसू का पाठ कर। द णावत शंख म जल भरकर उस जल से दे वी ल मी क मू त को नान कराएं तथा चांद के ीयं म मोती धारण करके उसे सदै व अपने पास
रख या धारण कर।
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कमजोर च मा का अ य ह पर भाव------
य द ज म कुंडली म च मा कमजोर हो तो अ य ह क साथकता कम हो जाती है.पूण च मा शुभ ह क ेणी म आता है व अपूण च मा अशुभ ह क ेणी म
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आता है.
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उपाय और लाभ----
च मा के अ धदे वता भी शव ह और इसके या धदे वता जल है. अत: महामृ युंजय मं जाप शव पूजा एवं शव कवच का पाठ चं पीड़ा म ेय कर है ही,साथ ही
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या धदे वता जल होने के कारण गणेशोपासना ( वशेष प से केतु के साथ चं हो तो) भी शुभदायी है, य क गणेश जलत व के वामी ह. गौरी, गा,काल◌ी,ल लता
और भैरव क उपासना भी हतकर है.
गा स तशती का पाठ तो नव ह पीड़ा म लाभ द रहता ही है, य क यह सम त ह को अनुकूल करता है व सव स दायक है. इसके अलावा चं मं व चं तो
का पाठ भी अ तशुभ है.
चं मा क पीड़ा शां त के न म नय मत (अथवा कम से कम सोमवार को) चं मा के मं का 1100 बार जाप करना अ भ होता है.
जाप मं इस कार है-
ऊँ ां स: च मसे नम:.
चं नम कार के लए न ल खत मं का योग कर-
द ध शंख तुषारामं ीरोदाणव स भवम्.
नमा म श शनं भ या श भोमकुट भूषणम्..
चं मा सोम के नाम से भी जाने जाते ह तथा मन,औष धय एवं वन प तय के वामी कहे गए ह.
शव का महामृ युंजय मं तो चं पीड़ा के साथ-साथ सभी ह पीड़ा का नवारण कर मृ यु पर वजय ा त करने का साम य दे ता है. वह इस कार है-
य बकं यजामहे सुग धं पु वधनम्
उवा क मव ब धना मृ योर◌्मु य मामृतात्.
इसे मृत संजीवनी मं भी कहा गया है.यह मं दै य गु शु ाचाय़ ारा दधी च ऋ ष को दान कया गया था.च दोष नवारण के लये शवरा पर ा भषेक
करवाएं.य द आपके आसपास कोई शव मं दर हो तो वहां जाकर वशेष पूजा -अचना करनी चा हए.उस रा को संभव हो तो शव मं दर म जाकर जागरण कर |
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ज म कुंडली के सभी भाव म हण दोष और उनका नवारण---
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यो तषाचाय पं डत दयानंद शा ी ने बताया क ल न कुंडली म कसी भी भाव म सूय के साथ केतु या चं मा के साथ रा क यु त हो तो हण योग बनता है |इसके
अलावा स तम या ादश भाव म नीच के शु [क या राशी म ] के साथ रा क यु त को भी कुछ व ान हण दोष क सं ा दे ते है |
हण योग का भाव कुंडली के व भ भाव म अलग – अलग दे खने को मलता है |
थम भाव- गु सेल, व य म कमी, खा वभाव व नज वाथ सव परी मानने वाला होता है |
तीय भाव- धन क चता करना, सरकारी छापे राजकाय म धन क बबाद और मेहनत का प रणाम अ प मलता है |
तीसरा भाव- भाई-बंधुओ से कलह रहती है | यह योग जातक को शांत चत नही रहने दे ता |
चतुथ भाव- मान सक परेशानी व अ थरता, नकट थ लोगो से वैचा रक मतभेद व हीनभावना से त होता है |
पंचम भाव- बचपन कठोर व वृ ाव था संघष से भरी ई होती है | द र ता, म ो का अभाव व गृह कलह रहता है |
छठा भाव- व वध रोग वशेष कर दय रोग, कदम कदम पर मनी पालने वाला, पर ीगामी, संदेहा पद व का जातक होता है |
स तम भाव- ोधी वभाव, काया ीण, - भाया योग,संक ण मनोवृ त व जीवनसाथी हमेशा व य से संघषशील रहता है |
अ म भाव- अ पायु योग का नमाण, घटना का भय, बीमारी व म ो के मा यम से धन का नाश होता है | य द अ य योग ठ क हो तो अ पायु योग समा त हो
सकता है
नवम भाव- श ा व आजी वका के लए नरंतर संघष, थ क या ाएं, कसी का भी सहयोग नही, भा य वृ 48 वष के प ात होती है |
दशम भाव- माता- पता के सुख म कमी, असंयमी, रोजगार के लए संघषशील रहता है |
यारवाँ भाव- ज , गलत बात पर अड़ने वाला, आय के साधन अ न त, ठगी, खुद भी धोखा खा सकता है |
बारहवां भाव- संघषशील व परेशानो का भरा जीवन, ेम ववाह [जाती से बहार] योग, थ के य क भरमार, पता के सुख म कमी व नरंतर उ थान पतन का
सामना करना पड़ता है |
ऐसे कर दोष नवारण उपाय ----
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जयंतीमंगला काली भ काली कृपा लनी |
गा मा शव धा ी, वाहा सवधा नमो तुते ||
हण योगज नत दोष का नवारण जयंती का अवतार जीण क आराधना से होता है |
इसका वलंतउदाहरण यह है के हमारे यहाँ पर हण काल म कसी भी दे वी-दे वता क पूजा नही होती है | जब क जीण क पूजा हण काल म भी मा य है | गृह ज नत
योग यहाँ पर न भावी हो जाते है | इस लए जन लोगो क कुंडली म हण-दोष है, वे न न कार जीण क आराधना करे | जीण के नाम से संक प लेकर शु लप
क अ मी के 42 उपवास करे | य द हण दोष 1 , 3 , 6 , 8 , 11 , व
12 , भाव म है, तो शु लप क एकम से जीण क तमा के आगे तेल क अखंड जोत जलाकर अ मी तक न य पूजा अचना करे | शेष भाव 2 , 4 , 5 , 7 , 9 व
10 , भाव म हण दोष है, तो अखंड जोत घी क जलाई जाती है व शेष या यथावत रखे | इससे ह दोष ज नत बाधा का नवारण होता है |
आपने ज मकुंडली म योग और दोष दोन के बारे म ज र सुना होगा। यो त य योग और यो त य दोष ये दोन अलग अलग कार क ह क थ तया है जो
आपस म उनके कुंडली म मलने से उनके संयोग बनती है, जसे हम यो त य भाषा म ह क यु त कह कर स बो धत करते है। जो कई कार के शुभ और अशुभ
योगो का नमाण करती है। उन शुभ योगो म कुछ राजयोग होते है। हर अपनी कुंडली म राजयोग को खोजना चाहता है जो क हो के संयोग से बनने वाली एक
सुखद अव था है। ई र क कृपया से जनक कुंडली म यह सु दर राजयोग होते है वह अपनी ज़दगी अ छ कार से तीत कर पाने म समथ होते है। ले कन इसके
वपरीत कुछ जातक ऐसे भी होते है जनक कुंडली म ह कुछ षयोगो का नमाण करते है। जनका जातक को यथा स भव उपाय करवा लेना चा हये। आज हम
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यहाँ ह के मा यमो से बनने वाले कुछ षयोगो के बारे म बात करगे।
हदोष शां त पूजा का मह व यह पूजा कसी के जीवन म ब त मह वपूण है य क यह जीवन क सभी सम या से को बाहर लाता है। सुख और समृ के
सभी कार के कसी भी बाधा और रा ते म बाधा के बना हा सल कया जा रहा है। हदोष शां त पूजा के लाभ इस पूजा के व भ लाभ कर रहे ह, य क यह
मान सक गड़बड़ी, वा य सम या , साथी के साथ इस सम या से छु टकारा पाने म मदद करता है, ब चे क अवधारणा। पेशेवर जीवन म सफलता ब त हद
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तक और धन के लए सुधार हो जाता है और भौ तकवाद खुशी जीवन भर रखा है।
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चं हण दोष क्या होता है -
जब रा या केतू क यु त चं के साथ हो जाती है तो चं हण दोष हो जाता है। सरे शब्द म, चं के साथ रा और केतू का नकारात्मक गठन, चं हण दोष
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कहलाता है। हण दोष का भाव, व भन्न रा शय पर व भन्न कार से पड़ता है जसके लए जन्मकुंडली, ह क थ त भी मायने रखती है|
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चं हण दोष के व भन्न कारण -
चं हण दोष के कई कारण होते ह और हर व्य के जीवन पर उसका भाव भी अलग तरीके से पड़ता है। चं हण दोष का सबसे अ धक भाव, उत्तरा भादप
न म पड़ता है। जो जातक, मीन रा श का होता है और उसक कुंडली म चं क यु त रा या केतू के साथ थत हो जाएं, हण दोष के कारण स्वत: बन जाते ह।
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ऐसे व्य य पर इसके भाव अ धक गंभीर होते ह।
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चं हण दोष के अन्य कारण -
रा , रा श के कसी भी हस्से म चं के साथ पाया जाता है- जब क केतू समान रा श म चं के साथ पाया जाता है
- रा , चं महादशा के दौरान हण लगाते ह
- चं हण के दन बच्चे को स्नान अवश्य कराएं।
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चं हण दोष का पता कस कार लगाया जा सकता है -
चं हण दोष का पता लगाने के सबसे पहले जन्मकुंडली का होना आवश्यक होता है, इस जन्मकुंडली म रा और केतू क दशा को पं डत के ारा पता लगाया जा
सकता है। या फर, नवमासा या ादसमास चाट को दे खकर भी दोष को जाना जा सकता है। बेहतर होगा क कसी ानी पं डत से सलाह ल। ऐसा माना जाता है क
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पछले जन्म के कम के कारण वतमान जन्म म चं हण दोष लगता है।
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चं हण दोष के प रणाम( भाव) -
व्य परेशान रहता है, सर पर दोष लगाता रहता है, उसके मां के सुख म भारी कमी आ जाती है। उसम सम्मान म कमी अ◌ाती है। हर कार से उस व्य पर
भारी समस्याएं आ जाती है जनके पीछे सफ वही दोषी होता है। साथ ही स्वास्थय
् सम्बंधी दक्कत भी आती ह। सूय और चं हदोष एक के जीवन म
अपने वयं के बुरे भाव क है। सूय के कारण दोष गत सफलता, शोहरत और नाम है जो सम वकास म पड़ाव प रणाम ा त करने म बाधा का सामना।
एक औरत बार-बार गभपात, ब चे और दोषपूण पु योग क अवधारणा म सम या क तरह ब चे से संबं धत सम या का सामना करना पड़ता। वा य सम या को
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भी सूय दोष के कारण मुख ह। चं दोष अपने वयं के बुरे भाव के प म यह अनाव यक तनाव का एक ब त कुछ दे ता है।
इस दोष के कारण वहाँ व ास, भावना मक अप रप वता, लापरवाही, याददा त म कमी, असंवेदनशीलता म एक नुकसान है। वा य छाती, फेफड़े, सांस लेने और
मान सक अवसाद से संबं धत सम या को ब त हद तक अनुकूल ह। आ म वनाशकारी कृ त भी हो जाता है एक के मन म उठता है और आ मह या करने
क को शश करता है।य द आप हमेशा क मकश म रहते ह, इधर-उधर क सोचते रहते ह, नणय लेने म कमजोर ह, भावुक एवं संवेदनशील ह, अ तमुखी ह, शेखी
बघारने वाले ह, न द पूरी नही आती है, सीधे आप सो नह सकते ह अथात हमेशा करवट बदलकर सोएंगे अथवा उ टे सोते ह, भयभीत रहते ह तो न त प से
आपक कुंडती म च मा कमजोर होगा |समय पर इस कमजोर चं मा अथात तकूल भाव को कम करने का उपाय करना चा हए अ यथा जीवन भर आप आ म
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व ास क कमी से त रहगे.
जन य का च मा ीण होकर अ म भाव म और चतुथ तथा चं पर रा का भाव हो, अ य शुभ भाव न हो तो वे मरगी रोग का शकार होते ह.
जन लोग का च मा छठे आठव आ द भाव म रा न हो, वैसे पाप हो तो उनको र चाप आ द होता है.
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चं मा को सोम भी कहा जाता है. सोमवार को भगवान शव का दन माना जाता है और इस दन भगवान शव के पूजन से मनुषय ् को वशेष लाभ ा त होता है.
च मा के अ धदे वता भी शव ह और इसके या धदे वता जल है. महादे व के पूजन से चं मा के दोष का नवारण होता है. महादे व ने चं को अपनी जटा पर धारण
कया आ है. इस कार भगवान शव क पूजा से चं मा के उलटे भाव से त काल मु मलती है. भगवान शव के कई च लत नाम म एक नाम सोमसुंदर भी है.
सोम का अथ चं होता है | च मा यो तष शा म ब त अ धक मह वपूण भू मका अदा करता है। इसके संबंध म यो तष शा कहता है क च मा का आकषण
पृ वी पर भूकंप, समु आं धयां, वार भाटा, तूफानी हवाएं, अ त वषा, भू खलन आ द लाता ह। रात को चमकता पूरा चांद मानव स हत जीव-जंतु पर भी गहरा
असर डालता है। च मा से ही मनु य का मन और समु से उठने वाली लहरे दोन का नधारण होता है। माता और चं का संबंध भी गहरा होता है। कुंडली म माता क
थ त को भी च मा दे वता से दे खा जाता है और च मा को माता भी कहा जाता है।हमारी कुंडली म जस भी रा श म च मा हो वही हमारी ज म रा श कहलाती है
और जब भी शुभ काय करने के लए म त दे खा जाता है वह हमारी ज मरा श के अनुसार दे खा जाता है जैसे क हमारी ज म रा श के अनुसार च मा कहाँ और कस
न म गोचर कर रहा है।
च मा ही हमारे जीवन क जीवन श है। कसी कुंडली म अगर च मा क थ त अगर ीण होती है अथवा च मा पाप भाव लए हो तो उस क मान सक
थ त को कोई भी अ छा यो तषी दे ख कर बता सकता है क जातक के मन म या वचार चलते है तथा जातक क मनो थ त कस कार है । न त ही ऐसे
जातक का मन उतावला होगा, अ यंत चंचल होगा। मन को एका करने म कठनाईयाँ ह गी और जब मन ही एका नही होगा तो जातक पढ़ने तो बैठेगा ले कन कुछ ही
मनट बाद उठ जायेगा, जातक सोचेगा क पहले फलां काय कर लूँ , पढ़ तो कुछ दे र बाद भी लूँगा।च मा दे वता हमारे मन और म त के करक है। कसी भी
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ज मकुंडली म च क मह वपूण भू मका को दे खे बना कुंडली का व ेषण केवल कुंडली के शव के प र ण जैसा होता है।
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यो तषी इन हो यु तय को भ भन् कार से स बो धत करते है। कई यो तष इ हे दोष कह कर स बो धत करते है तो कई योग कह कर बुलाते है . मेरे वचार से
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जबतक क ही ह क यु तयां अ छा फल दे ने म समथ न हो तब तक उसे योग नही कहा जा सकता है। वह षयोग ही कहलाएगी।
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आज के इस लेख म हम च पूजा क व ध के बारे म चचा करगे तथा इस पूजा म योग होने वाली मह वपूण या के बारे म भी वचार करगे। वै दक यो तष
च पूजा का सुझाव मु य प से कसी कुंडली म अशुभ प से काय कर रहे च क अशुभता को कम करने के लए, अशुभ च ारा कुंडली म बनाए जाने वाले
कसी दोष के नवारण के लए अथवा कसी कुंडली म शुभ प से काय कर रहे च क श तथा शुभ फल बढ़ाने के लए दे ता है। च पूजा का आरंभ सामा यतया
सोमवार वाले दन कया जाता है तथा उससे अगले सोमवार को इस पूजा का समापन कर दया जाता है जसके चलते इस पूजा को पूरा करने के लए सामा यता 7
दन लगते ह क तु कुछ थ तय म यह पूजा 7 से 10 दन तक भी ले सकती है जसके चलते सामा यतया इस पूजा के आरंभ के दन को बदल दया जाता है तथा
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इसके समापन का दन सामा यतया सोमवार ही रखा जाता है।
कसी भी कार क पूजा को व धवत करने के लए सबसे मह वपूण है उस पूजा के लए न त कये गए मं का एक न त सं या म जाप करना तथा यह सं या
अ धकतर पूजा के लए 125,000 मं होती है तथा च पूजा म भी च वेद मं का 125,000 बार जाप करना अ नवाय होता है। पूजा के आरंभ वाले दन पांच
या सात पं डत पूजा करवाने वाले यजमान अथात जातक के साथ भगवान शव के शव लग के सम बैठते ह तथा शव प रवार क व धवत पूजा करने के प ात
मु य पं डत यह संक प लेता है क वह और उसके सहायक पं डत उप थत यजमान के लए च वेद मं का 125,000 बार जाप एक न त अव ध म करगे तथा
इस जाप के पूरा हो जाने पर पूजन, हवन तथा कुछ वशेष कार के दान आ द करगे। जाप के लए न त क गई अव ध सामा यतया 7 से 10 दन होती है। संक प
के समय मं का जाप करने वाली सभी पं डत का नाम तथा उनका गो बोला जाता है तथा इसी के साथ पूजा करवाने वाले यजमान का नाम, उसके पता का नाम
तथा उसका गो भी बोला जाता है तथा इसके अ त र जातक ारा करवाये जाने वाले च वेद मं के इस जाप के फल व प मांगा जाने वाला फल भी बोला जाता
है जो साधारणतया जातक क कुंडली म अशुभ च ारा बनाये जाने वाले कसी दोष का नवारण होता है अथवा च ह से शुभ फल क ा त करना होता है।
इस संक प के प ात सभी पं डत अपने यजमान अथात जातक के लए च वेद मं का जाप करना शु कर दे ते ह तथा येक पं डत इस मं के जाप को त दन
लगभग 8 से 10 घंटे तक करता है जससे वे इस मं क 125,000 सं या के जाप को संक प के दन न त क गई अव ध म पूण कर सक। न त कए गए दन
पर जाप पूरा हो जाने पर इस जाप तथा पूजा के समापन का काय म आयो जत कया जाता है जो लगभग 2 से 3 घंटे तक चलता है। सबसे पूव भगवान शव, मां
पावती, भगवान गणेश तथा शव प रवार के अ य सद य क पूजा फल, फूल, ध, दह , घी, शहद, श कर, धूप, द प, मठाई, हलवे के साद तथा अ य कई व तु के
साथ क जाती है तथा इसके प ात मु य पं डत के ारा च वेद मं का जाप पूरा हो जाने का संक प कया जाता है जसमे यह कहा जाता है क मु य पं डत ने
अपने सहायक अमुक अमुक पं डत क सहायता से इस मं क 125,000 सं या का जाप नधा रत व ध तथा नधा रत समय सीमा म सभी नयम का पालन करते
ए कया है तथा यह सब उ ह ने अपने यजमान अथात जातक के लए कया है जसने जाप के शु होने से लेकर अब तक पूण न ा से पूजा के येक नयम क
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पालना क है तथा इस लए अब इस पूजा से व धवत ा त होने वाला सारा शुभ फल उनके यजमान को ा त होना चा हए।
“ॐ ां स: चं मसे नम:” अथवा “ॐ स सोमाय नम:” का जाप करना अ छे प रणाम दे ता है। ये वै दक मं ह, इस मं का जाप जतनी ा से कया जाएगा
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यह उतना ही फलदायक होगा।
इस समापन पूजा के चलते नव ह से संबं धत अथवा नव ह म से कुछ वशेष ह से संबं धत कुछ वशेष व तु का दान कया जाता है जो व भ जातक के लए
भ भ हो सकता है तथा इन व तु म सामा यतया चावल, गुड़, चीनी, नमक, गे ं, दाल, खा तेल, सफेद तल, काले तल, ज तथा कंबल इ या द का दान कया
जाता है। इस पूजा के समापन के प ात उप थत सभी दे वी दे वता का आ शवाद लया जाता है तथा त प ात हवन क या शु क जाती है जो जातक तथा
पूजा का फल दान करने वाले दे वी दे वता अथवा ह के म य एक सीधा तथा श शाली संबंध था पत करती है। औपचा रक व धय के साथ हवन अ न
जव लत करने के प ात तथा हवन शु करने के प ात च वेद मं का जाप पुन: ारंभ कया जाता है तथा येक बार इस मं का जाप पूरा होने पर वाहा: का
वर उ चारण कया जाता है जसके साथ ही हवन कुंड क अ न म एक वशेष व ध से हवन साम ी डाली जाती है तथा यह हवन साम ी व भ पूजा तथा
व भ जातक के लए भ भ हो सकती है। च वेद मं क हवन के लए न त क गई जाप सं या के पूरे होने पर कुछ अ य मह वपूण मं का उ चारण
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कया जाता है तथा येक बार मं का उ चारण पूरा होने पर वाहा क व न के साथ पुन: हवन कुंड क अ न म हवन साम ी डाली जाती है।
अंत म एक सूखे ना रयल को उपर से काटकर उसके अंदर कुछ वशेष साम ी भरी जाती है तथा इस ना रयल को वशेष मं के उ चारण के साथ हवन कुंड क अ न
म पूण आ त के प म अ पत कया जाता है तथा इसके साथ ही इस पूजा के इ छत फल एक बार फर मांगे जाते ह। त प ात यजमान अथात जातक को हवन
कुंड क 3, 5 या 7 प र माएं करने के लए कहा जाता है तथा यजमान के इन प र मा को पूरा करने के प ात तथा पूजा करने वाले पं डत का आ शवाद ा त
करने के प ात यह पूजा संपूण मानी जाती है। हालां क कसी भी अ य पूजा क भां त च पूजा म भी उपरो व धय तथा औपचा रकता के अ त र अ य ब त
सी व धयां तथा औपचा रकताएं पूरी क जात ह क तु उपर बता ग व धयां तथा औपचा रकताएं इस पूजा के लए सबसे अ धक मह वपूण ह तथा इसी लए इन
व धय का पालन उ चत कार से तथा अपने काय म नपुण पं डत के ारा ही कया जाना चा हए। इन व धय तथा औपचा रकता म से कसी व ध अथवा
औपचा रकता को पूरा न करने पर अथवा इ ह ठ क कार से न करने पर जातक को इस पूजा से ा त होने वाले फल म कमी आ सकती है तथा जतनी कम व धय
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का पूणतया पालन कया गया होगा, उतना ही इस पूजा का फल कम होता जाएगा।
च पूजा के आरंभ होने से लेकर समा त होने तक पूजा करवाने वाले जातक को भी कुछ नयम का पालन करना पड़ता है। इस अव ध के भीतर जातक के लए
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येक कार के मांस, अंडे, म दरा, धू पान तथा अ य कसी भी कार के नशे का सेवन नषेध है
जय ी महाकाल
January 1, 2018 at 10:06 PM · Public
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