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SHIV SHAKTI AYURVEDIC MEDICAL COLLEGE BHIKHI, MANSA.

DEPARTMENT OF SAMHITA SIDDHANTA

धातुभेद से पुरुषभेद

षड्धातुज एकधातज
ु चतर्ु विंशततक

षड्धातुज पुरुष- पञ्चमहाभत ू और आत्मा के संयोग को परु ु ष कहा गया है । प्रकृत सत्र

'खादयश्चेतना षष्ठा' में चेतना कहने से चेतना के आधार मन और
खादि पंचभूत कहने से भौततक इन्द्रियों का ज्ञान होता है ।
षड्धात
एकधातुज पुरुष- अकेली चेतना धातु को ुज
भी परु
ु ष कहा जाता है। इसे "पुरुषसंज्ञक" कहा
गया है ।
चतुर्विंशततक पुरुष- चौबीस तत्वों को चरक ने िो भागों में व्यक्त ककया है :-
१)अष्टधातु की प्रकृतत + २) षोडश र्वकार
( अव्यक्त ,महान, अहँ कार तथा (पांच ज्ञानेन्द्रिय , पांच कमेन्द्रियाँ,
सूक्ष्म आकाश वायु अन्द्नन जल एवं स्थूल आकाश वायु, अन्द्नन जल, एवं
पथ्
ृ वी)एकधात ज
ु चत र्
ु पविंथ्ृ श
वी ततक
तथा मन )
SUBMITTED TO :- SUBMITTED BY:-
DR. GIRISH (Prof.) RAMANDEEP KAUR
DR. KANWARJIT ATTRI( Astt. Prof.) RITU

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