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बूंद-बूंद इ तहास

बूंद-बूंद इ तहास म आपका हा दक वागत है। इस लॉग म आप पाएंगे हद सा ह य के इ तहास क परेखा और


एक ही थान पर हद क रचना ,लेखक और उसक व भ धारा क वृ य का सारग भत नचोड़ ।

री तकाल क वृ याँ
जनवरी 08, 2011

री तकाल क मुख वृ याँ न न ल खत ह :: - 

1. ल ण ंथ का नमाण :: री तकाल क सव मुख वशेषता ल ण- ंथ का नमाण है ।


यहाँ का - ववेचना अ धक ई । क वय ने सं कृत के ल ण ंथकार आचाय का
अनुकरण करते ए अपनी रचना को ल ण- ंथ अथवा री त ंथ के पम तुत
कया । य प री त न पण म इन क वय को वशेष सफलता नह मली । ाय: इ ह ने
सं कृत- ंथ म दए गए नयम और त व का ही हद प म अनुवाद कया है । इनम
मौ लकता और प ता का अभाव है । 
2. ृंगार - च ण :: री तकाल क सरी बड़ी वशेषता ृंगार रस क धानता है । इस
काल क क वता म नारी केवल पु ष के र तभाव का आल बन बनकर रह गई । राधा
कृ ण के ेम के नाम पर नारी के अंग- यंग क शोभा,हाव-भाव, वलास चे ाएँ आ द म
ृंगार का सुंदर और सफल च ण आ है , कतु वयोग वणन म क व-कम खलवाड़
बन कर रह गया है । ृंगार के आलंबन और उ पन के बड़े ही सरस उदाहरण का
नमाण आ ।
3. वीर और भ का : री तकाल म अपनी पूववत का -धारा वीर और भ के भी
दशन होते ह । भूषण का वीर का हद सा ह य क न ध है ।
4. नी त का : नी त का इस युग क एक नई दे न है । इस े म वृ द के नी त दोहे और
गरधर क कुंड लयाँ तथा द नदयाल ग र क अ यो याँ उ लेखनीय ह । 
5. कृ त च ण :री तकाल म कृ त- च ण उ पन प म आ है । वतं और
आल बन प म कृ त च ण ब त कम प म आ है ।यह वाभा वक ही था,
य क दरबारी क व का, जसका आकषण के नारी ही था, यान कृ त के वतं
प क ओर जा ही कैसे सकता था । इनके का म कृ त का ब ब ाही प नह
मलता । कृ त के उ पन प का च ण भी पर परागत है । फर भी सेनाप त का
कृ त- च ण शंसनीय है । 
6. जभाषा का उ कष :: यह काल जभाषा का वणयुग रहा । भाषा म वणमै ी,
अनु ास ज, व या मकता, श दसंगीत आ द का पूरा नवाह कया गया है । भाषा क
मधुरता के कारण मुसलमान क वय का भी इस ओर यान गया । इसम अवधी,
बु दे लखंडी,फारसी के श द को मलया गया और क व ने अपने भावानुकूल बनाने के
लए इसके श द को तोड़ा-मरोड़ा । यह श भूषण और दे व म वशेष प से थी ।
कोमल कांत पदावली म दे व और प ाकर ने तलसी को पीछे छोड़ दया है । ले कन
कोमल कात पदावली म दव और प ाकर न तुलसी को पीछ छोड़ दया ह । ल कन
भाषा को अ य धक कोमल तथा चम का रक बनाने के कारण उसम कई दोष भी आ
गए । 
7. आलंका रकता :: री तका क एक अ य धान वृ आलंका रकता है । इसका
कारण राजदरबार का वलासी वातावरण तथा जन-साधारण क च थी । क व को
अपनी क वता भड़क ले रंग म रंगनी पड़ती थी । ब त सारे क वय ने अलंकार के
ल ण उदाहरण दए, ले कन ब त ने केवल उदाहरण ही लखे,जब क उनके मन म
ल ण व मान थे । अलंकार का इतना अ धक योग आ क वह साधन न रहकर
सा य बन गए , जससे का का स दय बढ़ने क अपे ा कम ही आ । कभी-कभी
केवल अलंकार ही अलंकार प होते ह और क व का अ भ ेत अथ उसी चम कार म
खो जाता है । यह दोष री तकालीन का म ाय: दखाई पड़ता है । केशव को इसी
कारण क ठन का का ेत कहा जाता है ।
8. का - प ::री त काल म मु क-का प को धानता मली । राजा क
काम डा और काम-वासना को उ े जत करने एवं उनक मान सक थकान को र
करने के लए जस क वता का आ य लया गया, वह मु क ही रही । अत: इस काल
म क व और सवैय क धानता रही । क व का योग वीर और ृंगार रस म तथा
सवैय का ृंगार रस म आ । बहारी ने दोहा छं द के सी मत श द म अ धक अथ
करने क कला को वक सत कया । का ांग के ल ण ाय: दोह म ही लखे
जाते थे । कभी-कभी उदाहरण भी दोह म दए गए । वैसे भी, धैय तथा एक-रसता के
अभाव म बंध-का का सृजन अस भव था । फर भी, कुछ अ छे बंध-का लखे
गए । जैसे गु गो व द सह का चंडी-च र , प ाकर का ह मत बहा र व दावली,
लालक व का छ - काश आ द । 

री तकाल क वृ याँ या वशेषताएँ

यो त सह 12 जनवरी 2011 को 1:04 am

aham jaankaria ,uttam post .

Manoj Kumar 18 नवंबर 2017 को 12:58 am

ĪΊ

उ रद

navneet Singh 4 नवंबर 2016 को 12:00 am

Namkaran
उ रद

Taniya Das 20 माच 2017 को 8:06 pm

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