Professional Documents
Culture Documents
श्री राम
श्री राम
चौपाई :
* चले राम ल छमन म ु न संगा। गए जहाँ जग पाव न गंगा॥
गाधसूनु सब कथा सुनाई। जेह कार सुरस!र मह आई॥1॥
भावाथ#:-$ी रामजी और ल'मणजी मु न के साथ चले। वे वहाँ गए, जहाँ जगत को प,व-
करने वाल. गंगाजी थीं। महाराज गाध के पु- ,व/वा0म-जी ने वह सब कथा कह सुनाई
िजस कार दे वनद. गंगाजी प4
ृ वी पर आई थीं॥1॥
* गंज
ु त मंजु मT रस भंग
ृ ा। कूजत कल बहुबरन 8बहं गा॥
बरन बरन 8बकसे बनजाता। 8-8बध समीर सदा सख ु दाता॥4॥
भावाथ#:-मकरं द
रस से मतवाले होकर भVरे संद ु र गज
ंु ार कर रहे हP। रं ग-8बरं गे (बहुत से)
पWी मधरु शXद कर रहे हP। रं ग-रं ग के कमल Rखले हP। सदा (सब ऋतओ ु ं म? ) सखु दे ने
वाला शीतल, मंद, सुगंध पवन बह रहा है ॥4॥
दोहा :
* सम
ु न बाटका बाग बन 8बपल
ु 8बहं ग नवास।
फूलत फलत सुपZलवत सोहत पुर चहुँ पास॥212।
भावाथ#:-पु[प वाटका (फुलवार.), बाग और वन, िजनम? बहुत से प\Wय= का नवास है ,
फूलते, फलते और संद ु र पT= से लदे हुए नगर के चार= ओर सुशो0भत हP॥212॥
चौपाई :
* बनइ न बरनत नगर नकाई। जहाँ जाइ मन तहँइँ लोभाई॥
चा^ बजा^ 8बच- अँबार.। म नमय 8बध जनु Aवकर सँवार.॥1॥
भावाथ#:-नगर कM संद
ु रता का वणOन करते नह.ं बनता। मन जहाँ जाता है, वह.ं लभ
ु ा जाता
(रम जाता) है । संद
ु र बाजार है , मRणय= से बने हुए ,वच- छ_जे हP, मानो CDमा ने उ7ह?
अपने हाथ= से बनाया है ॥1॥
*अ त अनप
ू जहँ जनक नवास।ू 8बथकहं 8बबध
ु 8बलोBक 8बलासू॥
होत चBकत चत कोट 8बलोकM। सकल भुवन सोभा जनु रोकM॥4॥
भावाथ#:-जहाँ जनकजी का अNय7त अनप
ु म (संद
ु र) नवास Aथान (महल) है , वहाँ के ,वलास
(ऐ/वयO) को दे खकर दे वता भी थBकत (AतिJभत) हो जाते हP (मन[ु य= कM तो बात ह.
iया!)। कोट (राजमहल के परकोटे ) को दे खकर चT चBकत हो जाता है , (ऐसा मालम
ू
होता है ) मानो उसने समAत लोक= कM शोभा को रोक (घेर) रखा है ॥4॥
दोहा :
*धवल धाम म न पुरट पट सुघटत नाना भाँ त।
0सय नवास संद
ु र सदन सोभा Bक0म कह जा त॥213॥
भावाथ#:-उ__वल महल= म? अनेक
कार के संुदर र. त से बने हुए मRण जटत सोने कM
जर. के परदे लगे हP। सीताजी के रहने के संद
ु र महल कM शोभा का वणOन Bकया ह. कैसे
जा सकता है ॥213॥
चौपाई :
* सभ
ु ग kवार सब कु0लस कपाटा। भप
ू भीर नट मागध भाटा॥
बनी 8बसाल बािज गज साला। हय गय रख संकुल सब काला॥1॥
भावाथ#:-राजमहल के सब दरवाजे (फाटक) संद
ु र हP, िजनम? वl के (मजबूत अथवा ह.र= के
चमकते हुए) Bकवाड़ लगे हP। वहाँ (मातहत) राजाओं, नट=, मागध= और भाट= कM भीड़
लगी रहती है । घोड़= और हाथय= के 0लए बहुत बड़ी-बड़ी घड़ु साल? और गजशालाएँ
(फMलखाने) बनी हुई हP, जो सब समय घोड़े, हाथी और रथ= से भर. रहती हP॥1॥
दोहा :
* संग सचव सुच भू!र भट भस
ू ुर बर गरु dया त।
चले 0मलन मु ननायकह मुदत राउ एह भाँ त॥214॥
भावाथ#:-तब
उ7ह=ने प,व- sदय के (ईमानदार, Aवा0मभiत) मं-ी बहुत से योkधा, $े[ठ
CाDमण, ग^
ु (शतानंदजी) और अपनी जा त के $े[ठ लोग= को साथ 0लया और इस
कार स7नता के साथ राजा म ु नय= के Aवामी ,व/वा0म-जी से 0मलने चले॥214॥
चौपाई :
* कM7ह नामु चरन ध!र माथा। द.ि7ह असीस मुदत म ु ननाथा॥
8ब बंद
ृ सब सादर बंदे। जा न भाdय बड़ राउ अनंदे॥1॥
भावाथ#:-राजा ने मु न के चरण= पर मAतक रखकर णाम Bकया। मु नय= के Aवामी
,व/वा0म-जी ने स7न होकर आशीवाOद दया। Bफर सार. CाDमणमंड ल. को आदर सहत
णाम Bकया और अपना बड़ा भाdय जानकर राजा आनंदत हुए॥1॥
* Aयाम गौर मद
ृ ु बयस Bकसोरा। लोचन सख
ु द 8बAव चत चोरा॥
उठे सकल जब रघप
ु त आए। 8बAवा0म- नकट बैठाए॥3॥
भावाथ#:-सुकुमार Bकशोर अवAथा वाले /याम और गौर वणO के दोन= कुमार ने-= को सुख
दे ने वाले और सारे ,व/व के चT को चरु ाने वाले हP। जब रघन
ु ाथजी आए तब सभी
(उनके fप एवं तेज से भा,वत होकर) उठकर खड़े हो गए। ,व/वा0म-जी ने उनको अपने
पास बैठा 0लया॥3॥
चौपाई :
* कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक। मु नकुल तलक Bक नप
ृ कुल पालक॥
CDम जो नगम ने त कह गावा। उभय बेष ध!र कM सोइ आवा॥1॥
भावाथ#:-हे नाथ! कहए, ये दोन= सुंदर बालक मु नकुल के आभष
ू ण हP या Bकसी राजवंश के
पालक? अथवा िजसका वेद= ने 'ने त' कहकर गान Bकया है कह.ं वह CDम तो युगल fप
धरकर नह.ं आया है?॥1॥
दोहा :
* रामु लखनु दोउ बंधब
ु र fप सील बल धाम।
मख राखेउ सबु साRख जगु िजते असरु संwाम॥216॥
भावाथ#:-ये राम और ल'मण दोन= $े[ठ भाई fप, शील और बल के धाम हP। सारा जगत
(इस बात का) साWी है Bक इ7ह=ने यk
ु ध म? असरु = को जीतकर मेरे यg कM रWा कM
है ॥216॥
चौपाई :
* म ु न तव चरन दे Rख कह राऊ। कह न सकउँ नज प7
ु य भाऊ॥
सुंदर Aयाम गौर दोउ tाता। आनँदहू के आनँद दाता॥1॥
भावाथ#:-राजा ने कहा- हे म ु न! आपके चरण= के दशOन कर मP अपना पुxय भाव कह नह.ं
सकता। ये सद
ुं र /याम और गौर वणO के दोन= भाई आनंद को भी आनंद दे ने वाले हP।
* संद
ु र सदनु सख
ु द सब काला। तहाँ बासु लै द.7ह भआ
ु ला॥
क!र पज
ू ा सब 8बध सेवकाई। गयउ राउ गहृ 8बदा कराई॥4॥
भावाथ#:-एक सद
ुं र महल जो सब समय (सभी ऋतओ
ु ं म? ) सुखदायक था, वहाँ राजा ने उ7ह? ले
जाकर ठहराया। तदन7तर सब कार से पज
ू ा और सेवा करके राजा ,वदा माँगकर अपने घर
गए॥4॥
दोहा :
* !रषय संग रघब
ु ंस म न क!र भोजनु 8ब$ामु।
बैठे भु tाता सहत दवसु रहा भ!र जामु॥217॥
भावाथ#:-रघुकुल के 0शरोमRण भु $ी रामच7oजी ऋ,षय= के साथ भोजन और ,व$ाम करके
भाई ल'मण समेत बैठे। उस समय पहरभर दन रह गया था॥217॥
चौपाई :
*लखन sदयँ लालसा 8बसेषी। जाइ जनकपरु आइअ दे खी॥
भु भय बहु!र म ु नह सकुचाह.ं। गट न कहहं मनहं मस
ु क
ु ाह.ं॥1॥
भावाथ#:-ल'मणजी के sदय म? ,वशेष लालसा है Bक जाकर जनकपुर दे ख आव?, पर7तु भु $ी
रामच7oजी का डर है और Bफर मु न से भी सकुचाते हP, इस0लए कट म? कुछ नह.ं कहते,
मन ह. मन मुAकुरा रहे हP॥1॥
* राम अनज
ु मन कM ग त जानी। भगत बछलता हयँ हुलसानी॥
परम 8बनीत सकुच मुसुकाई। बोले गुर अनुसासन पाई॥2॥
भावाथ#:-(अ7तयाOमी) $ी रामच7oजी ने छोटे भाई के मन कM दशा जान ल., (तब) उनके
sदय म? भiतवNसलता उमड़ आई। वे गु^ कM आgा पाकर बहुत ह. ,वनय के साथ सकुचाते
हुए मुAकुराकर बोले॥2॥
* नाथ लखनु प^
ु दे खन चहह.ं। भु सकोच डर गट न कहह.ं॥
जV राउर आयसु मP पावV। नगर दे खाइ तुरत लै आवV॥3॥
भावाथ#:-हे नाथ! ल'मण नगर दे खना चाहते हP, Bक7तु भु (आप) के डर और संकोच के
कारण Aप[ट नह.ं कहते। यद आपकM आgा पाऊँ, तो मP इनको नगर दखलाकर तरु ं त ह.
(वापस) ले आऊँ॥3॥
* सु न मन
ु ीसु कह बचन स ीती। कस न राम तJ
ु ह राखहु नीती॥
धरम सेतु पालक तुJह ताता। ेम 8बबस सेवक सखु दाता॥4॥
भावाथ#:-यह सन
ु कर मन
ु ी/वर ,व/वा0म-जी ने ेम सहत वचन कहे- हे राम! तुम नी त कM
रWा कैसे न करोगे, हे तात! तुम धमO कM मयाOदा का पालन करने वाले और ेम के वशीभत
ू
होकर सेवक= को सख
ु दे ने वाले हो॥4॥
* कानि7ह कनक फूल छ8ब दे ह.ं। चतवत चतह चो!र जनु लेह.ं॥
चतव न चा^ भक
ृ ु ट बर बाँकM। तलक रे ख सोभा जनु चाँकM॥4॥
भावाथ#:-कान= म? सोने के कणOफूल (अNय7त) शोभा दे रहे हP और दे खते ह. (दे खने वाले के)
चT को मानो चुरा लेते हP। उनकM चतवन (yि[ट) बड़ी मनोहर है और भVह? तरछv एवं सद
ुं र
हP। (माथे पर) तलक कM रे खाएँ ऐसी सुंदर हP, मानो (मू तOमती) शोभा पर मह
ु र लगा द. गई
है ॥4॥
दोहा :
* ^चर चौतनीं सुभग 0सर मेचक कंु चत केस।
नख 0सख सद
ंु र बंधु दोउ सोभा सकल सद
ु े स॥219॥
भावाथ#:-0सर पर सद
ुं र चौकोनी टो,पयाँ (दए) हP, काले और घुँघराले बाल हP। दोन= भाई नख
से लेकर 0शखा तक (एड़ी से चोट. तक) सुंदर हP और सार. शोभा जहाँ जैसी चाहए वैसी ह.
है ॥219॥
चौपाई :
* दे खन नग^ भूपसुत आए। समाचार पुरबा0स7ह पाए॥
धाए धाम काम सब Nयागी। मनहुँ रं क नध लट
ू न लागी॥1॥
भावाथ#:-जब परु वा0सय= ने यह समाचार पाया Bक दोन= राजकुमार नगर दे खने के 0लए आए
हP, तब वे सब घर-बार और सब काम-काज छोड़कर ऐसे दौड़े मानो द!रo. (धन का) खजाना
लूटने दौड़े ह=॥1॥
* कहहं परसपर बचन स ीती। सRख इ7ह कोट काम छ8ब जीती॥
सुर नर असुर नाग मु न माह.ं। सोभा अ0स कहुँ सु नअ त नाह.ं॥3॥
भावाथ#:-वे आपस म? बड़े ेम से बात? कर रह. हP- हे सखी! इ7ह=ने करोड़= कामदे व= कM छ8ब
को जीत 0लया है। दे वता, मनु[य, असुर, नाग और मु नय= म? ऐसी शोभा तो कह.ं सुनने म?
भी नह.ं आती॥3॥
* 8ब[नु चा!र भज
ु 8बध मख
ु चार.। 8बकट बेष मख
ु पंच परु ार.॥
अपर दे उ अस कोउ ना आह.। यह छ8ब सखी पटत!रअ जाह.॥4॥
भावाथ#:-भगवान ,व[णु के चार भज
ु ाएँ हP, CDमाजी के चार मुख हP, 0शवजी का ,वकट
(भयानक) वेष है और उनके पाँच मँह
ु हP। हे सखी! दस
ू रा दे वता भी कोई ऐसा नह.ं है, िजसके
साथ इस छ8ब कM उपमा द. जाए॥4॥
दोहा :
* बय Bकसोर सुषमा सदन Aयाम गौर सुख धाम।
अंग अंग पर वा!रअहं कोट कोट सत काम॥220॥
भावाथ#:-इनकM Bकशोर अवAथा है , ये सुंदरता के घर, साँवले और गोरे रं ग के तथा सख
ु के
धाम हP। इनके अंग-अंग पर करोड़=-अरब= कामदे व= को नछावर कर दे ना चाहए॥220॥
चौपाई :
* कहहु सखी अस को तनु धार.। जो न मोह यह fप नहार.॥
कोउ स ेम बोल. मद
ृ ु बानी। जो मP सन
ु ा सो सन
ु हु सयानी॥1॥
भावाथ#:-हे सखी! (भला) कहो तो ऐसा कौन शर.रधार. होगा, जो इस fप को दे खकर मोहत
न हो जाए (अथाOत यह fप जड़-चेतन सबको मोहत करने वाला है )। (तब) कोई दस
ू र. सखी
ेम सहत कोमल वाणी से बोल.- हे सयानी! मPने जो सुना है उसे सुनो-॥1॥
दोहा :
* 8ब काजु क!र बंधु दोउ मग म ु नबधू उधा!र।
आए दे खन चापमख स ु न हरषीं सब ना!र॥221॥
भावाथ#:-दोन= भाई CाDमण ,व/वा0म- का काम करके और राAते म? मु न गौतम कM A-ी
अहZया का उkधार करके यहाँ धनुषयg दे खने आए हP। यह सन
ु कर सब िA-याँ स7न
हु}॥221॥
चौपाई :
* दे Rख राम छ8ब कोउ एक कहई। जोगु जानBकह यह ब^ अहई॥
जV सRख इ7हह दे ख नरनाहू। पन प!रह!र हठ करइ 8बबाहू॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी कM छ8ब दे खकर कोई एक (दस
ू र. सखी) कहने लगी- यह वर जानकM
के योdय है। हे सखी! यद कह.ं राजा इ7ह? दे ख ले, तो तgा छोड़कर हठपूवक
O इ7ह.ं से
,ववाह कर दे गा॥1॥
* कोउ कह ए भप
ू त पहचाने। म ु न समेत सादर सनमाने॥
सRख परं तु पनु राउ न तजई। 8बध बस हठ अ8बबेकह भजई॥2॥
भावाथ#:-Bकसी ने कहा- राजा ने इ7ह? पहचान 0लया है और मु न के सहत इनका आदरपव
ू क
O
सJमान Bकया है , परं तु हे सखी! राजा अपना ण नह.ं छोड़ता। वह होनहार के वशीभत
ू होकर
हठपव
ू क
O अ,ववेक का ह. आ$य 0लए हुए हP ( ण पर अड़े रहने कM मख
ू त
O ा नह.ं छोड़ता)॥2॥
दोहा :
* नाहं त हम कहुँ सन
ु हु सRख इ7ह कर दरसनु द!ू र।
यह संघटु तब होइ जब प7 ु य परु ाकृत भू!र॥222॥
भावाथ#:-नह.ं तो (,ववाह न हुआ तो) हे सखी! सुनो, हमको इनके दशOन दल
ु भ
O हP। यह संयोग
तभी हो सकता है, जब हमारे पव ू ज
O 7म= के बहुत पx
ु य ह=॥222॥
चौपाई :
* बोल. अपर कहे हु सRख नीका। एहं 8बआह अ त हत सबह. का।
कोउ कह संकर चाप कठोरा। ए Aयामल मद
ृ ु गात Bकसोरा॥1॥
भावाथ#:-दस
ू र. ने कहा- हे सखी! तुमने बहुत अqछा कहा। इस ,ववाह से सभी का परम हत
है । Bकसी ने कहा- शंकरजी का धनुष कठोर है और ये साँवले राजकुमार कोमल शर.र के
बालक हP॥1॥
दोहा :
* हयँ हरषहं बरषहं सुमन सुमRु ख सल
ु ोच न बद
ंृ ।
जाहं जहाँ जहँ बंधु दोउ तहँ तहँ परमानंद॥223॥
भावाथ#:- सुंदर मुख और सुंदर ने-= वाल. िA-याँ समूह कM समह
ू sदय म? ह,षOत होकर फूल
बरसा रह. हP। जहाँ-जहाँ दोन= भाई जाते हP, वहाँ-वहाँ परम आनंद छा जाता है॥223॥
चौपाई :
* परु परू ब द0स गे दोउ भाई। जहँ धनुमख हत भू0म बनाई॥
अ त 8बAतार चा^ गच ढार.। 8बमल बेदका ^चर सँवार.॥1॥
भावाथ#:-दोन= भाई नगर के परू ब ओर गए, जहाँ धनष
ु यg के 0लए (रं ग) भ0ू म बनाई गई थी।
बहुत लंबा-चौड़ा सुंदर ढाला हुआ पiका आँगन था, िजस पर सद
ुं र और नमOल वेद. सजाई
गई थी॥1॥
दोहा :
* सब 0ससु एह 0मस ेमबस पर0स मनोहर गात।
तन पल
ु कहं अ त हरषु हयँ दे Rख दे Rख दोउ tात॥224॥
भावाथ#:-सब बालक इसी बहाने ेम के वश म? होकर $ी रामजी के मनोहर अंग= को छूकर
शर.र से पल
ु Bकत हो रहे हP और दोन= भाइय= को दे ख-दे खकर उनके sदय म? अNय7त हषO हो
रहा है ॥224॥
चौपाई :
* 0ससु सब राम ेमबस जाने। ी त समेत नकेत बखाने॥
नज नज ^च सब लेहं बोलाई। सहत सनेह जाहं दोउ भाई॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी ने सब बालक= को ेम के वश जानकर (यgभू0म के) Aथान= कM
ेमपव
ू क
O शंसा कM। (इससे बालक= का उNसाह, आनंद और ेम और भी बढ़ गया, िजससे) वे
सब अपनी-अपनी ^च के अनुसार उ7ह? बुला लेते हP और ( Nयेक के बुलाने पर) दोन= भाई
ेम सहत उनके पास चले जाते हP॥1॥
दोहा :
* सभय स ेम 8बनीत अ त सकुच सहत दोउ भाइ।
गुर पद पंकज नाइ 0सर बैठे आयसु पाइ॥225॥
भावाथ#:-Bफर भय, ेम, ,वनय और बड़े संकोच के साथ दोन= भाई ग^
ु के चरण कमल= म?
0सर नवाकर आgा पाकर बैठे॥225॥
चौपाई :
* न0स बेस मु न आयसु द.7हा। सबह.ं सं~याबंदनु कM7हा॥
कहत कथा इ तहास परु ानी। ^चर रज न जुग जाम 0सरानी॥1॥
भावाथ#:-रा8- का वेश होते ह. (सं~या के समय) म ु न ने आgा द., तब सबने सं~यावंदन
Bकया। Bफर ाचीन कथाएँ तथा इ तहास कहते-कहते सुंदर रा8- दो पहर बीत गई॥1॥
चौपाई :
* सकल सौच क!र जाइ नहाए। नNय नबाह मु नह 0सर नाए॥
समय जा न गुर आयसु पाई। लेन सून चले दोउ भाई॥1॥
भावाथ#:-सब शौचBया करके वे जाकर नहाए। Bफर (सं~या-अिdनहो-ाद) नNयकमO समात
करके उ7ह=ने मु न को मAतक नवाया। (पज
ू ा का) समय जानकर, गु^ कM आgा पाकर दोन=
भाई फूल लेने चले॥1॥
दोहा :
* बागु तड़ागु 8बलोBक भु हरषे बंधु समेत।
परम रJय आरामु यहु जो रामह सख ु दे त॥227॥
भावाथ#:-बाग और सरोवर को दे खकर भु $ी रामच7oजी भाई ल'मण सहत ह,षOत हुए। यह
बाग (वाAतव म? ) परम रमणीय है , जो (जगत को सख
ु दे ने वाले) $ी रामच7oजी को सुख दे
रहा है ॥227॥
चौपाई :
*चहुँ द0स चतइ पँ ू छ माल.गन। लगे लेन दल फूल मु दत मन॥
तेह अवसर सीता तहँ आई। ग!रजा पज
ू न जन न पठाई॥1॥
भावाथ#:-चार= ओर yि[ट डालकर और मा0लय= से पछ
ू कर वे स7न मन से प--प[ु प लेने
लगे। उसी समय सीताजी वहाँ आ}। माता ने उ7ह? ग!रजाजी (पावOती) कM पज
ू ा करने के
0लए भेजा था॥1॥
दोहा :
* तासु दसा दे खी सRख7ह पुलक गात जलु नैन।
कहु कारनु नज हरष कर पछू हं सब मदृ ु बैन॥228॥
भावाथ#:-सRखय= ने उसकM दशा दे खी Bक उसका शर.र पलु Bकत है और ने-= म? जल भरा है।
सब कोमल वाणी से पछ
ू ने लगीं Bक अपनी स7नता का कारण बता॥228॥
चौपाई :
* दे खन बागु कुअँर दइ
ु आए। बय Bकसोर सब भाँ त सह
ु ाए॥
Aयाम गौर Bक0म कहV बखानी। गरा अनयन नयन 8बनु बानी॥1॥
भावाथ#:-(उसने कहा-) दो राजकुमार बाग दे खने आए हP। Bकशोर अवAथा के हP और सब कार
से सद
ंु र हP। वे साँवले और गोरे (रं ग के) हP, उनके सVदयO को मP कैसे बखानकर कहूँ। वाणी
8बना ने- कM है और ने-= के वाणी नह.ं है ॥1॥
दोहा :
* सु0म!र सीय नारद बचन उपजी ी त पुनीत।
चBकत 8बलोक त सकल द0स जनु 0ससु मग
ृ ी सभीत॥229॥
भावाथ#:-नारदजी के वचन= का Aमरण करके सीताजी के मन म? प,व- ी त उNप7न हुई। वे
चBकत होकर सब ओर इस तरह दे ख रह. हP, मानो डर. हुई मग
ृ छौनी इधर-उधर दे ख रह.
हो॥229॥
चौपाई :
* कंकन Bकं Bक न नूपुर धु न सु न। कहत लखन सन रामु sदयँ गु न॥
मानहुँ मदन दं द
ु भ
ु ी द.7ह.। मनसा 8बAव 8बजय कहँ कM7ह.॥1॥
भावाथ#:-कंकण (हाथ= के कड़े), करधनी और पायजेब के शXद सन
ु कर $ी रामच7oजी sदय म?
,वचार कर ल'मण से कहते हP- (यह ~व न ऐसी आ रह. है ) मानो कामदे व ने ,व/व को
जीतने का संकZप करके डंके पर चोट मार. है॥1॥
* दे Rख सीय शोभा सख
ु ु पावा। sदयँ सराहत बचनु न आवा॥
जनु 8बरं च सब नज नपुनाई। 8बरच 8बAव कहँ गट दे खाई॥3॥
भावाथ#:-सीताजी कM शोभा दे खकर $ी रामजी ने बड़ा सख
ु पाया। sदय म? वे उसकM सराहना
करते हP, Bक7तु मुख से वचन नह.ं नकलते। (वह शोभा ऐसी अनुपम है ) मानो CDमा ने
अपनी सार. नपण
ु ता को मू तOमान कर संसार को कट करके दखा दया हो॥3॥
दोहा :
* 0सय शोभा हयँ बर न भु आप न दसा 8बचा!र॥
बोले सु च मन अनज
ु सन बचन समय अनुहा!र॥230॥
भावाथ#:-(इस कार) sदय म? सीताजी कM शोभा का वणOन करके और अपनी दशा को
,वचारकर भु $ी रामच7oजी प,व- मन से अपने छोटे भाई ल'मण से समयानक
ु ू ल वचन
बोले-॥230॥
चौपाई :
* तात जनकतनया यह सोई। धनुषजdय जेह कारन होई॥
पज
ू न गौ!र सखीं लै आ}। करत कासु Bफरइ फुलवा}॥1॥
भावाथ#:-हे तात! यह वह. जनकजी कM क7या है , िजसके 0लए धनुषयg हो रहा है। सRखयाँ
इसे गौर. पज
ू न के 0लए ले आई हP। यह फुलवाड़ी म? काश करती हुई Bफर रह. है ॥1॥
* रघब
ु ं0स7ह कर सहज सुभाऊ। मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ॥
मोह अ तसय ती त मन केर.। जेहं सपनेहुँ परना!र न हेर.॥3॥
भावाथ#:-रघव
ु ं0शय= का यह सहज (ज7मगत) Aवभाव है Bक उनका मन कभी कुमागO पर पैर
नह.ं रखता। मुझे तो अपने मन का अNय7त ह. ,व/वास है Bक िजसने (जाwत कM कौन कहे )
Aवन म? भी पराई A-ी पर yि[ट नह.ं डाल. है॥3॥
दोहा :
* करत बतकह. अनज
ु सन मन 0सय fप लोभान।
मुख सरोज मकरं द छ8ब करइ मधुप इव पान॥231॥
भावाथ#:- य= $ी रामजी छोटे भाई से बात? कर रहे हP, पर मन सीताजी के fप म? लभ
ु ाया हुआ
उनके मख ु fपी कमल के छ8ब fप मकरं द रस को भVरे कM तरह पी रहा है ॥231॥
चौपाई :
* चतव त चBकत चहूँ द0स सीता। कहँ गए नप
ृ Bकसोर मनु चंता॥
जहँ 8बलोक मग
ृ सावक नैनी। जनु तहँ ब!रस कमल 0सत $ेनी॥1॥
भावाथ#:-सीताजी चBकत होकर चार= ओर दे ख रह. हP। मन इस बात कM च7ता कर रहा है Bक
राजकुमार कहाँ चले गए। बाल मग
ृ नयनी (मग
ृ के छौने कM सी आँख वाल.) सीताजी जहाँ
yि[ट डालती हP, वहाँ मानो /वेत कमल= कM कतार बरस जाती है ॥1॥
दोहा :
* लताभवन त? गट भे तेह अवसर दोउ भाइ।
तBकसे जनु जुग 8बमल 8बधु जलद पटल 8बलगाई॥232॥
भावाथ#:-उसी समय दोन= भाई लता मंड प (कंु ज) म? से कट हुए। मानो दो नमOल च7oमा
बादल= के परदे को हटाकर नकले ह=॥232॥
चौपाई :
* सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा। नील पीत जलजाभ सर.रा॥
मोरपंख 0सर सोहत नीके। गq
ु छ बीच 8बच कुसुम कल. के॥1॥
भावाथ#:-दोन= सुंदर भाई शोभा कM सीमा हP। उनके शर.र कM आभा नीले और पीले कमल कM
सी है । 0सर पर सद
ुं र मोरपंख सश
ु ो0भत हP। उनके बीच-बीच म? फूल= कM क0लय= के गq
ु छे
लगे हP॥1॥
* चा^ चबक
ु ना0सका कपोला। हास 8बलास लेत मनु मोला॥
मुखछ8ब कह न जाइ मोह पाह.ं। जो 8बलोBक बहु काम लजाह.ं॥3॥
भावाथ#:-ठोड़ी नाक और गाल बड़े सुंदर हP और हँ सी कM शोभा मन को मोल 0लए लेती है।
मुख कM छ8ब तो मुझसे कह. ह. नह.ं जाती, िजसे दे खकर बहुत से कामदे व लजा जाते हP॥3॥
दोहा :
* केह!र कट पट पीत धर सुषमा सील नधान।
दे Rख भानुकुलभष
ू नह 8बसरा सRख7ह अपान॥233॥
भावाथ#:-0संह कM सी (पतल., लचील.) कमर वाले, पीताJबर धारण Bकए हुए, शोभा और शील
के भंड ार, सूयOकुल के भष
ू ण $ी रामच7oजी को दे खकर सRखयाँ अपने आपको भूल
ग}॥233॥
चौपाई :
* ध!र धीरजु एक आ0ल सयानी। सीता सन बोल. गह पानी॥
बहु!र गौ!र कर ~यान करे हू। भूपBकसोर दे Rख Bकन लेहू॥1॥
भावाथ#:-एक चतरु सखी धीरज धरकर, हाथ पकड़कर सीताजी से बोल.- ग!रजाजी का ~यान
Bफर कर लेना, इस समय राजकुमार को iय= नह.ं दे ख लेतीं॥1॥
ी सीताजी का पाव#ती पज
ू न एवं वरदान ाि4त तथा राम-ल मण संवाद
दोहा :
* दे खन 0मस मग
ृ 8बहग त^ Bफरइ बहो!र बहो!र।
नरRख नरRख रघब
ु ीर छ8ब बाढ़इ ी त न थो!र॥234॥
भावाथ#:-मग
ृ , पWी और वW
ृ = को दे खने के बहाने सीताजी बार-बार घम
ू जाती हP और $ी
रामजी कM छ8ब दे ख-दे खकर उनका ेम कम नह.ं बढ़ रहा है । (अथाOत ् बहुत ह. बढ़ता जाता
है )॥234॥
चौपाई :
* जा न कठन 0सवचाप 8बसरू त। चल. राRख उर Aयामल मूर त॥
भु जब जात जानकM जानी। सख
ु सनेह सोभा गन
ु खानी॥1॥
भावाथ#:-0शवजी के धनुष को कठोर जानकर वे ,वसरू ती (मन म? ,वलाप करती) हुई sदय म?
$ी रामजी कM साँवल. मू तO को रखकर चल.ं। (0शवजी के धनुष कM कठोरता का Aमरण आने
से उ7ह? चंता होती थी Bक ये सक
ु ु मार रघुनाथजी उसे कैसे तोड़?गे, ,पता के ण कM Aम ृ त से
उनके sदय म? Wोभ था ह., इस0लए मन म? ,वलाप करने लगीं। ेमवश ऐ/वयO कM ,वAम ृ त
हो जाने से ह. ऐसा हुआ, Bफर भगवान के बल का Aमरण आते ह. वे ह,षOत हो ग} और
साँवल. छ8ब को sदय म? धारण करके चल.ं।) भु $ी रामजी ने जब सखु , Aनेह, शोभा और
गुण= कM खान $ी जानकMजी को जाती हुई जाना,॥1॥
* परम ेममय मद
ृ ु म0स कM7ह.। चा^ चT भीतीं 0लRख ल.7ह.॥
गई भवानी भवन बहोर.। बंद चरन बोल. कर जोर.॥2॥
भावाथ#:-तब परम ेम कM कोमल Aयाह. बनाकर उनके Aवfप को अपने सद
ंु र चT fपी 0भ,T
पर च8-त कर 0लया। सीताजी पुनः भवानीजी के मंदर म? ग} और उनके चरण= कM वंदना
करके हाथ जोड़कर बोल.ं-॥2॥
दोहा :
* प तदे वता सत
ु ीय महुँ मातु थम तव रे ख।
महमा अ0मत न सकहं कह सहस सारदा सेष॥235॥
भावाथ#:-प त को इ[टदे व मानने वाल. $े[ठ ना!रय= म? हे माता! आपकM थम गणना है ।
आपकM अपार महमा को हजार= सरAवती और शेषजी भी नह.ं कह सकते॥235॥
चौपाई :
* सेवत तोह सुलभ फल चार.। बरदायनी परु ा!र ,पआर.॥
दे 8ब पूिज पद कमल तुJहारे । सरु नर म ु न सब होहं सुखारे ॥1॥
भावाथ#:-हे (भiत= को मँह
ु माँगा) वर दे ने वाल.! हे 8-परु के श-ु 0शवजी कM , य पNनी!
आपकM सेवा करने से चार= फल सल
ु भ हो जाते हP। हे दे वी! आपके चरण कमल= कM पज
ू ा
करके दे वता, मनु[य और म ु न सभी सुखी हो जाते हP॥1॥
छ6द :
* मनु जाहं राचेउ 0म0लह सो ब^ सहज सुंदर साँवरो।
क^ना नधान सज ु ान सीलु सनेहु जानत रावरो॥
एह भाँ त गौ!र असीस स ु न 0सय सहत हयँ हरषीं अल.।
तुलसी भवा नह पिू ज प ु न पु न मु दत मन मंदर चल.॥
भावाथ#:-िजसम? तुJहारा मन अनुरiत हो गया है , वह. Aवभाव से ह. सद
ुं र साँवला वर ($ी
रामच7oजी) तुमको 0मलेगा। वह दया का खजाना और सज
ु ान (सवOg) है , तुJहारे शील और
Aनेह को जानता है । इस कार $ी गौर.जी का आशीवाOद सन
ु कर जानकMजी समेत सब
सRखयाँ sदय म? ह,षOत हु}। तल
ु सीदासजी कहते हP- भवानीजी को बार-बार पज
ू कर सीताजी
स7न मन से राजमहल को लौट चल.ं॥
सोरठा :
* जा न गौ!र अनक
ु ू ल 0सय हय हरषु न जाइ कह।
मंजल
ु मंगल मल
ू बाम अंग फरकन लगे॥236॥
भावाथ#:-गौर.जी को अनुकूल जानकर सीताजी के sदय को जो हषO हुआ, वह कहा नह.ं जा
सकता। सद ंु र मंगल= के मल
ू उनके बाएँ अंग फड़कने लगे॥236॥
चौपाई :
* sदयँ सराहत सीय लोनाई। गुर समीप गवने दोउ भाई॥
राम कहा सबु कौ0सक पाह.ं। सरल सुभाउ छुअत छल नाह.ं॥1॥
भावाथ#:-sदय म? सीताजी के सVदयO कM सराहना करते हुए दोन= भाई गु^जी के पास गए। $ी
रामच7oजी ने ,व/वा0म- से सब कुछ कह दया, iय=Bक उनका सरल Aवभाव है , छल तो उसे
छूता भी नह.ं है॥1॥
* क!र भोजनु म ु नबर 8बdयानी। लगे कहन कछु कथा परु ानी॥
8बगत दवसु गु^ आयसु पाई। सं~या करन चले दोउ भाई॥3॥
भावाथ#:-$े[ठ ,वgानी म ु न ,व/वा0म-जी भोजन करके कुछ ाचीन कथाएँ कहने लगे। (इतने
म? ) दन बीत गया और गु^ कM आgा पाकर दोन= भाई सं~या करने चले॥3॥
दोहा :
* जनमु 0संधु पु न बंधु 8बषु दन मल.न सकलंक।
0सय मख
ु समता पाव Bक0म चंद ु बापुरो रं क॥237॥
भावाथ#:-खारे समo
ु म? तो इसका ज7म, Bफर (उसी समo
ु से उNप7न होने के कारण) ,वष
इसका भाई, दन म? यह म0लन (शोभाह.न, नAतेज) रहता है, और कलंकM (काले दाग से
युiत) है । बेचारा गर.ब च7oमा सीताजी के मख
ु कM बराबर. कैसे पा सकता है?॥237॥
चौपाई :
* घटइ बढ़इ 8बरह न दख
ु दाई। wसइ राहु नज संधहं पाई॥
कोक सोक द पंकज oोह.। अवगुन बहुत चंoमा तोह.॥1॥
भावाथ#:-Bफर यह घटता-बढ़ता है और ,वरहणी िA-य= को दःु ख दे ने वाला है , राहु अपनी संध
म? पाकर इसे wस लेता है। चकवे को (चकवी के ,वयोग का) शोक दे ने वाला और कमल का
बैर. (उसे मुरझा दे ने वाला) है। हे च7oमा! तुझम? बहुत से अवगुण हP (जो सीताजी म? नह.ं
हP।)॥1॥
दोहा :
* अ^नोदयँ सकुचे कुमद
ु उडगन जो त मल.न।
िज0म तुJहार आगमन स ु न भए नप
ृ त बलह.न॥238॥
भावाथ#:-अ^णोदय होने से कुमुदनी सकुचा गई और तारागण= का काश फMका पड़ गया,
िजस कार आपका आना सुनकर सब राजा बलह.न हो गए हP॥238॥
चौपाई :
* नप
ृ सब नखत करहं उिजआर.। टा!र न सकहं चाप तम भार.॥
कमल कोक मधुकर खग नाना। हरषे सकल नसा अवसाना॥1॥
भावाथ#:-सब राजा fपी तारे उजाला (मंद काश) करते हP, पर वे धनष
ु fपी महान अंधकार
को हटा नह.ं सकते। रा8- का अंत होने से जैसे कमल, चकवे, भVरे और नाना कार के पWी
ह,षOत हो रहे हP॥1॥
दोहा :
* सतानंद पद बंद भु बैठे गुर पहं जाइ।
चलहु तात म ु न कहे उ तब पठवा जनक बोलाइ॥239॥
भावाथ#:-शतान7दजी के चरण= कM वंदना करके भु $ी रामच7oजी गु^जी के पास जा बैठे।
तब म ु न ने कहा- हे तात! चलो, जनकजी ने बल
ु ा भेजा है॥239॥
दोहा :
* कह मद
ृ ु बचन 8बनीत त7ह बैठारे नर ना!र।
उTम म~यम नीच लघु नज नज थल अनुहा!र॥240॥
भावाथ#:-उन सेवक= ने कोमल और न वचन कहकर उTम, म~यम, नीच और लघु (सभी $ेणी
के) A-ी-पु^ष= को अपने-अपने योdय Aथान पर बैठाया॥240॥
चौपाई :
* राजकुअँर तेह अवसर आए। मनहुँ मनोहरता तन छाए॥
गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर Aयामल गौर सर.रा॥1॥
भावाथ#:-उसी समय राजकुमार (राम और ल'मण) वहाँ आए। (वे ऐसे संद
ु र हP) मानो साWात
मनोहरता ह. उनके शर.र= पर छा रह. हो। सुंदर साँवला और गोरा उनका शर.र है । वे गण
ु = के
समo
ु , चतुर और उTम वीर हP॥1॥
* राज समाज 8बराजत fरे । उडगन महुँ जनु जुग 8बधु परू े ॥
िज7ह क? रह. भावना जैसी। भु मूर त त7ह दे खी तैसी॥2॥
भावाथ#:-वे राजाओं के समाज म? ऐसे सुशो0भत हो रहे हP, मानो तारागण= के बीच दो पूणO
च7oमा ह=। िजनकM जैसी भावना थी, भु कM म ू तO उ7ह=ने वैसी ह. दे खी॥2॥
दोहा :
* ना!र 8बलोकहं हर,ष हयँ नज- नज ^च अनf
ु प।
जनु सोहत 0संगार ध!र मूर त परम अनप
ू ॥241॥
भावाथ#:-िA-याँ sदय म? ह,षOत होकर अपनी-अपनी ^च के अनुसार उ7ह? दे ख रह. हP। मानो
$ंग
ृ ार रस ह. परम अनप
ु म म ू तO धारण Bकए सश
ु ो0भत हो रहा हो॥241॥
चौपाई :
* 8बदष
ु 7हभु 8बराटमय द.सा। बहु मुख कर पग लोचन सीसा॥
जनक जा त अवलोकहं कैस?। सजन सगे , य लागहं जैस?॥1॥
भावाथ#:-,वkवान= कोभु ,वराट fप म? दखाई दए, िजसके बहुत से मँुह, हाथ, पैर, ने- और
0सर हP। जनकजी के सजातीय (कुटुJबी) भु को Bकस तरह (कैसे , य fप म? ) दे ख रहे हP, जैसे
सगे सजन (संबध
ं ी) , य लगते हP॥1॥
दोहा :
* राजत राज समाज महुँ कोसलराज Bकसोर।
सुंदर Aयामल गौर तन 8बAव 8बलोचन चोर॥242॥
भावाथ#:-सुंदर साँवले और गोरे शर.र वाले तथा ,व/वभर के ने-= को चुराने वाले कोसलाधीश के
कुमार राज समाज म? (इस कार) सुशो0भत हो रहे हP॥242॥
चौपाई :
* सहज मनोहर मरू त दोऊ। कोट काम उपमा लघु सोऊ॥
सरद चंद नंदक मख
ु नीके। नीरज नयन भावते जी के॥1॥
भावाथ#:-दोन= मू तOयाँ Aवभाव से ह. (8बना Bकसी बनाव-$ंग
ृ ार के) मन को हरने वाल. हP। करोड़=
कामदे व= कM उपमा भी उनके 0लए तुqछ है । उनके सुंदर मख
ु शरk (पRू णOमा) के च7oमा कM भी
नंदा करने वाले (उसे नीचा दखाने वाले) हP और कमल के समान ने- मन को बहुत ह. भाते
हP॥1॥
दोहा :
* कंु जर म न कंठा क0लत उरि7ह तुल0सका माल।
बष
ृ भ कंध केह!र ठव न बल नध बाहु 8बसाल॥243॥
भावाथ#:-sदय= पर गजमुiताओं के सुंदर कंठे और तुलसी कM मालाएँ सश
ु ो0भत हP। उनके कंधे
बैल= के कंधे कM तरह (ऊँचे तथा प[ु ट) हP, ऐंड़ (खड़े होने कM शान) 0संह कM सी है और भज
ु ाएँ
,वशाल एवं बल कM भंड ार हP॥243॥
चौपाई :
* कट तूनीर पीत पट बाँध?। कर सर धनुष बाम बर काँध?॥
पीत जdय उपबीत सह
ु ाए। नख 0सख मंजु महाछ8ब छाए॥1॥
भावाथ#:-कमर म? तरकस और पीताJबर बाँधे हP। (दाहने) हाथ= म? बाण और बाएँ सुंदर कंध= पर
धनष
ु तथा पीले यgोपवीत (जनेऊ) सुशो0भत हP। नख से लेकर 0शखा तक सब अंग सद
ंु र हP,
उन पर महान शोभा छाई हुई है॥1॥
* दे Rख लोग सब भए सख
ु ारे । एकटक लोचन चलत न तारे ॥
हरषे जनकु दे Rख दोउ भाई। मु न पद कमल गहे तब जाई॥2॥
भावाथ#:-उ7ह? दे खकर सब लोग सुखी हुए। ने- एकटक ( नमेष शू7य) हP और तारे (पत
ु 0लयाँ) भी
नह.ं चलते। जनकजी दोन= भाइय= को दे खकर ह,षOत हुए। तब उ7ह=ने जाकर मु न के चरण
कमल पकड़ 0लए॥2॥
दोहा :
* सब मंच7ह त? मंचु एक सुंदर 8बसद 8बसाल।
म ु न समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे महपाल॥244॥
भावाथ#:-सब मंच= से एक मंच अधक सुंदर, उ__वल और ,वशाल था। (Aवयं) राजा ने मु न
सहत दोन= भाइय= को उस पर बैठाया॥244॥
चौपाई :
* भुह दे Rख सब नप
ृ हयँ हारे । जनु राकेश उदय भएँ तारे ॥
अ0स ती त सब के मन माह.ं। राम चाप तोरब सक नाह.ं॥1॥
भावाथ#:- भु को दे खकर सब राजा sदय म? ऐसे हार गए ( नराश एवं उNसाहह.न हो गए) जैसे
पण
ू O च7oमा के उदय होने पर तारे काशह.न हो जाते हP। (उनके तेज को दे खकर) सबके मन
म? ऐसा ,व/वास हो गया Bक रामच7oजी ह. धनुष को तोड़?ग,े इसम? संदेह नह.ं॥1॥
* 8बहसे अपर भप
ू स ु न बानी। जे अ8बबेक अंध अ0भमानी॥
तोरे हुँ धनुषु Xयाहु अवगाहा। 8बनु तोर? को कुअँ!र 8बआहा॥3॥
भावाथ#:-दस ू रे राजा, जो अ,ववेक से अंधे हो रहे थे और अ0भमानी थे, यह बात सन
ु कर बहुत
हँसे। (उ7ह=ने कहा) धनुष तोड़ने पर भी ,ववाह होना कठन है (अथाOत सहज ह. म? हम जानकM
को हाथ से जाने नह.ं द? गे), Bफर 8बना तोड़े तो राजकुमार. को Xयाह ह. कौन सकता है॥3॥
सोरठा :
* सीय 8बआह8ब राम गरब द!ू र क!र नप
ृ 7ह के।
जी त को सक संwाम दसरथ के रन बाँकुरे ॥245॥
भावाथ#:-(उ7ह=ने कहा-) राजाओं के गवO दरू करके (जो धनुष Bकसी से नह.ं टूट सकेगा उसे
तोड़कर) $ी रामच7oजी सीताजी को Xयाह? गे। (रह. युkध कM बात, सो) महाराज दशरथ के रण
म? बाँके प-
ु = को यk
ु ध म? तो जीत ह. कौन सकता है॥245॥
चौपाई :
* XयथO मरहु ज न गाल बजाई। मन मोदकि7ह Bक भख ू बतु ाई॥
0सख हमा!र स ु न परम पन
ु ीता। जगदं बा जानहु िजयँ सीता॥1॥
भावाथ#:-गाल बजाकर cयथO ह. मत मरो। मन के ल
डु ओं से भी कह.ं भूख बझ
ु ती है ? हमार.
परम प,व- ( न[कपट) सीख को सन
ु कर सीताजी को अपने जी म? साWात जग_जननी समझो
(उ7ह? पNनी fप म? पाने कM आशा एवं लालसा छोड़ दो),॥1॥
* जगत ,पता रघुप तह 8बचार.। भ!र लोचन छ8ब लेहु नहार.॥
सुंदर सुखद सकल गुन रासी। ए दोउ बंधु संभु उर बासी॥2॥
भावाथ#:-और $ी रघुनाथजी को जगत का ,पता (परमे/वर) ,वचार कर, ने- भरकर उनकM छ8ब
दे ख लो (ऐसा अवसर बार-बार नह.ं 0मलेगा)। सद
ंु र, सख
ु दे ने वाले और समAत गण
ु = कM रा0श
ये दोन= भाई 0शवजी के sदय म? बसने वाले हP (Aवयं 0शवजी भी िज7ह? सदा sदय म? छपाए
रखते हP, वे तुJहारे ने-= के सामने आ गए हP)॥2॥
चौपाई :
* 0सय सोभा नहं जाइ बखानी। जगदं 8बका fप गुन खानी॥
उपमा सकल मोह लघु लागीं। ाकृत ना!र अंग अनुरागीं॥1॥
भावाथ#:-fप और गण
ु = कM खान जग_जननी जानकMजी कM शोभा का वणOन नह.ं हो सकता।
उनके 0लए मुझे (काcय कM) सब उपमाएँ तुqछ लगती हP, iय=Bक वे लौBकक िA-य= के अंग= से
अनुराग रखने वाल. हP (अथाOत ् वे जगत कM िA-य= के अंग= को द. जाती हP)। (काcय कM
उपमाएँ सब 8-गुणाNमक, मा यक जगत से ल. गई हP, उ7ह? भगवान कM Aवfपा शिiत $ी
जानकMजी के अ ाकृत, च7मय अंग= के 0लए यi
ु त करना उनका अपमान करना और अपने
को उपहासाAपद बनाना है )॥1॥
* गरा मख
ु र तन अरध भवानी। र त अ त दRु खत अतनु प त जानी॥
8बष बा^नी बंधु , य जेह.। कहअ रमासम Bक0म बैदेह.॥3॥
भावाथ#:-(प4ृ वी कM िA-य= कM तो बात ह. iया, दे वताओं कM िA-य= को भी यद दे खा जाए तो
हमार. अपेWा कह.ं अधक दcय और सुंदर हP, तो उनम?) सरAवती तो बहुत बोलने वाल. हP,
पावOती अंkOधांगनी हP (अथाOत अधO-नार.नटे /वर के fप म? उनका आधा ह. अंग A-ी का है , शेष
आधा अंग प^
ु ष-0शवजी का है ), कामदे व कM A-ी र त प त को 8बना शर.र का (अनंग) जानकर
बहुत दःु खी रहती है और िजनके ,वष और मkय-जैसे (समo
ु से उNप7न होने के नाते) , य
भाई हP, उन ल'मी के समान तो जानकMजी को कहा ह. कैसे जाए॥3॥
दोहा :
* एह 8बध उपजै लिqछ जब सुंदरता सुख मल
ू ।
तद,प सकोच समेत क8ब कहहं सीय समतूल॥247॥
भावाथ#:-इस कार (का संयोग होने से) जब सद
ंु रता और सख
ु कM मल
ू ल'मी उNप7न हो, तो
भी क,व लोग उसे (बहुत) संकोच के साथ सीताजी के समान कह? गे॥247॥<
(िजस सुंदरता के समo
ु को कामदे व मथेगा वह सुंदरता भी ाकृत, लौBकक सुंदरता ह. होगी,
iय=Bक कामदे व Aवयं भी 8-गुणमयी कृ त का ह. ,वकार है। अतः उस सद
ुं रता को मथकर
कट कM हुई ल'मी भी उपयiुO त ल'मी कM अपेWा कह.ं अधक सुंदर और दcय होने पर भी
होगी ाकृत ह., अतः उसके साथ भी जानकMजी कM तलु ना करना क,व के 0लए बड़े संकोच कM
बात होगी। िजस सद
ुं रता से जानकMजी का दcया तदcय परम दcय ,वwह बना है, वह सुंदरता
उपयi
ुO त सुंदरता से 0भ7न अ ाकृत है - वAतुतः ल'मीजी का अ ाकृत fप भी यह. है । वह
कामदे व के मथने म? नह.ं आ सकती और वह जानकMजी का Aवfप ह. है, अतः उनसे 0भ7न
नह.ं और उपमा द. जाती है 0भ7न वAतु के साथ। इसके अ त!रiत जानकMजी कट हुई हP
Aवयं अपनी महमा से, उ7ह? कट करने के 0लए Bकसी 0भ7न उपकरण कM अपेWा नह.ं है ।
अथाOत शिiत शिiतमान से अ0भ7न, अkवैत तNव है , अतएव अनुपमेय है , यह. गूढ़ दाशO नक
तNव भiत 0शरोमRण क,व ने इस अभूतोपमालंकार के kवारा बड़ी सद
ुं रता से cयiत Bकया है ।)
चौपाई :
* चल.ं संग लै सखीं सयानी। गावत गीत मनोहर बानी॥
सोह नवल तनु सद
ंु र सार.। जगत जन न अत0ु लत छ8ब भार.॥1॥
भावाथ#:-सयानी सRखयाँ सीताजी को साथ लेकर मनोहर वाणी से गीत गाती हुई चल.ं। सीताजी
के नवल शर.र पर सुंदर साड़ी सशु ो0भत है। जग_जननी कM महान छ8ब अतुलनीय है ॥1॥
*हर,ष सरु 7ह दं द
ु भ
ु ीं बजा}। बर,ष सून अपछरा गा}॥
पा न सरोज सोह जयमाला। अवचट चतए सकल भआ
ु ला॥3॥
भावाथ#:-दे वताओं ने ह,षOत होकर नगाड़े बजाए और प[ु प बरसाकर असराएँ गाने लगीं। सीताजी
के करकमल= म? जयमाला सुशो0भत है । सब राजा चBकत होकर अचानक उनकM ओर दे खने
लगे॥3॥
दोहा :
* गुरजन लाज समाजु बड़ दे Rख सीय सकुचा न।
लाग 8बलोकन सRख7ह तन रघुबीरह उर आ न॥248॥
भावाथ#:-पर7तु गु^जन= कM लाज से तथा बहुत बड़े समाज को दे खकर सीताजी सकुचा ग}। वे
$ी रामच7oजी को sदय म? लाकर सRखय= कM ओर दे खने लगीं॥248॥
चौपाई :
* राम fपु अ^ 0सय छ8ब दे ख?। नर ना!र7ह प!रहर.ं नमेष?॥
सोचहं सकल कहत सकुचाह.ं। 8बध सन 8बनय करहं मन माह.ं॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी का fप और सीताजी कM छ8ब दे खकर A-ी-प^
ु ष= ने पलक मारना छोड़
दया (सब एकटक उ7ह.ं को दे खने लगे)। सभी अपने मन म? सोचते हP, पर कहते सकुचाते हP।
मन ह. मन वे ,वधाता से ,वनय करते हP-॥1॥
बंद+जन> ?वारा जनक*त<ा क' घोषणा राजाओं से धनुष न उठना, जनक क' *नराशाजनक
वाणी
* तब बंद.जन जनक बोलाए। 8ब!रदावल. कहत च0ल आए॥
कह नपृ ु जाइ कहहु पन मोरा। चले भाट हयँ हरषु न थोरा॥4॥
भावाथ#:-तब राजा जनक ने वंद.जन= (भाट=) को बलु ाया। वे ,व^दावल. (वंश कM कM तO) गाते हुए
चले आए। राजा ने कहा- जाकर मेरा ण सबसे कहो। भाट चले, उनके sदय म? कम आनंद न
था॥4॥
दोहा :
* बोले बंद. बचन बर सन
ु हु सकल महपाल।
पन 8बदे ह कर कहहं हम भुजा उठाइ 8बसाल॥249॥
भावाथ#:-भाट= ने $े[ठ वचन कहा- हे प4ृ वी कM पालना करने वाले सब राजागण! सु नए। हम
अपनी भज
ु ा उठाकर जनकजी का ,वशाल ण कहते हP-॥249॥
चौपाई :
* नपृ भुजबल 8बधु 0सवधनु राहू। ग^अ कठोर 8बदत सब काहू॥
रावनु बानु महाभट भारे । दे Rख सरासन गवँहं 0सधारे ॥1॥
भावाथ#:-राजाओं कM भज
ु ाओं का बल च7oमा है , 0शवजी का धनष
ु राहु है, वह भार. है , कठोर है ,
यह सबको ,वदत है। बड़े भार. योkधा रावण और बाणासुर भी इस धनुष को दे खकर गV से
(चुपके से) चलते बने (उसे उठाना तो दरू रहा, छूने तक कM हJमत न हुई)॥1॥
* सोइ परु ा!र कोदं डु कठोरा। राज समाज आजु जोइ तोरा॥
8-भव
ु न जय समेत बैदेह.। 8बनहं 8बचार बरइ हठ तेह.॥2॥
भावाथ#:-उसी 0शवजी के कठोर धनुष को आज इस राज समाज म? जो भी तोड़ेगा, तीन= लोक=
कM ,वजय के साथ ह. उसको जानकMजी 8बना Bकसी ,वचार के हठपव
ू क
O वरण कर? गी॥2॥
* सु न पन सकल भप
ू अ0भलाषे। भटमानी अ तसय मन माखे॥
प!रकर बाँध उठे अकुलाई। चले इ[ट दे व7ह 0सर नाई॥3॥
भावाथ#:- ण सुनकर सब राजा ललचा उठे । जो वीरता के अ0भमानी थे, वे मन म? बहुत ह.
तमतमाए। कमर कसकर अकुलाकर उठे और अपने इ[टदे व= को 0सर नवाकर चले॥3॥
* तमBक ताBक तBक 0सवधनु धरह.ं। उठइ न कोट भाँ त बलु करह.ं॥
िज7ह के कछु 8बचा^ मन माह.ं। चाप समीप मह.प न जाह.ं॥4॥
भावाथ#:-वे तमककर (बड़े ताव से) 0शवजी के धनुष कM ओर दे खते हP और Bफर नगाह जमाकर
उसे पकड़ते हP, करोड़= भाँ त से जोर लगाते हP, पर वह उठता ह. नह.ं। िजन राजाओं के मन म?
कुछ ,ववेक है , वे तो धनष
ु के पास ह. नह.ं जाते॥4॥
दोहा :
* तमBक धरहं धनु मढ़
ू नप
ृ उठइ न चलहं लजाइ॥
मनहुँ पाइ भट बाहुबलु अधकु अधकु ग^आइ॥250॥
भावाथ#:-वे मूखO राजा तमककर (BकटBकटाकर) धनष
ु को पकड़ते हP, पर7तु जब नह.ं उठता तो
लजाकर चले जाते हP, मानो वीर= कM भज
ु ाओं का बल पाकर वह धनष
ु अधक-अधक भार.
होता जाता है॥250॥
चौपाई :
* भूप सहस दस एकह बारा। लगे उठावन टरइ न टारा॥
डगइ न संभु सरासनु कैस?। कामी बचन सती मनु जैस?॥1॥
भावाथ#:-तब दस हजार राजा एक ह. बार धनुष को उठाने लगे, तो भी वह उनके टाले नह.ं
टलता। 0शवजी का वह धनष
ु कैसे नह.ं डगता था, जैसे कामी प^
ु ष के वचन= से सती का मन
(कभी) चलायमान नह.ं होता॥1॥
* सब नप
ृ भए जोगु उपहासी। जैस? 8बनु 8बराग सं7यासी॥
कMर त 8बजय बीरता भार.। चले चाप कर बरबस हार.॥2॥
भावाथ#:-सब राजा उपहास के योdय हो गए, जैसे वैराdय के 8बना सं7यासी उपहास के योdय हो
जाता है । कM तO, ,वजय, बड़ी वीरता- इन सबको वे धनष
ु के हाथ= बरबस हारकर चले गए॥2॥
दोहा :
* कुअँ!र मनोहर 8बजय बड़ कMर तअ त कमनीय।
पाव नहार 8बरं च जनु रचेउ न धनु दमनीय॥251॥
भावाथ#:-पर7तु धनुष को तोड़कर मनोहर क7या, बड़ी ,वजय और अNय7त सद
ुं र कM तO को पाने
वाला मानो CDमा ने Bकसी को रचा ह. नह.ं॥251॥
चौपाई :
* कहहु काह यहु लाभु न भावा। काहुँ न संकर चाप चढ़ावा॥
रहउ चढ़ाउब तोरब भाई। तलु भ!र भ0ू म न सके छड़ाई॥1॥
भावाथ#:-कहए, यह लाभ Bकसको अqछा नह.ं लगता, पर7तु Bकसी ने भी शंकरजी का धनुष
नह.ं चढ़ाया। अरे भाई! चढ़ाना और तोड़ना तो दरू रहा, कोई तल भर भू0म भी छुड़ा न
सका॥1॥
ी ल मणजी का Dोध
* जनक बचन स ु न सब नर नार.। दे Rख जानBकह भए दख
ु ार.॥
माखे लखनु कुटल भइँ भVह? । रदपट फरकत नयन !रसVह? ॥4॥
भावाथ#:-जनक के वचन सन
ु कर सभी A-ी-प^ ु ष जानकMजी कM ओर दे खकर दःु खी हुए, पर7तु
ल'मणजी तमतमा उठे , उनकM भVह? टे ढ़. हो ग}, होठ फड़कने लगे और ने- ोध से लाल हो
गए॥4॥
दोहा :
* कह न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान।
नाइ राम पद कमल 0स^ बोले गरा मान॥252॥
भावाथ#:-$ी रघुवीरजी के डर से कुछ कह तो सकते नह.ं, पर जनक के वचन उ7ह? बाण से लगे।
(जब न रह सके तब) $ी रामच7oजी के चरण कमल= म? 0सर नवाकर वे यथाथO वचन बोले-
॥252॥
चौपाई :
* रघब
ु ं0स7ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहं समाज अस कहइ न कोई॥
कह. जनक ज0स अनु चत बानी। 8बkयमान रघक ु ु ल म न जानी॥1॥
भावाथ#:-रघव
ु ं0शय= म? कोई भी जहाँ होता है, उस समाज म? ऐसे वचन कोई नह.ं कहता, जैसे
अनु चत वचन रघक
ु ु ल 0शरोमRण $ी रामजी को उपिAथत जानते हुए भी जनकजी ने कहे
हP॥1॥
* सुनहु भानक
ु ु ल पंकज भानू। कहउँ सुभाउ न कछु अ0भमानू॥
जV तुJहा!र अनुसासन पावV। कंदक
ु इव CDमांड उठावV॥2॥
भावाथ#:-हे सय
ू O कुल fपी कमल के सय
ू !O सु नए, मP Aवभाव ह. से कहता हूँ, कुछ अ0भमान
करके नह.ं, यद आपकM आgा पाऊँ, तो मP CDमाxड को ग? द कM तरह उठा लँ ॥ ू 2॥
दोहा :
* तोरV छ-क दं ड िज0म तव ताप बल नाथ।
जV न करV भु पद सपथ कर न धरV धनु भाथ॥253॥
भावाथ#:-हे नाथ! आपके ताप के बल से धनुष को कुकुरमुTे (बरसाती छTे) कM तरह तोड़ दँ ।ू
यद ऐसा न कfँ तो भु के चरण= कM शपथ है, Bफर मP धनुष और तरकस को कभी हाथ म?
भी न लँ ूगा॥253॥
चौपाई :
* लखन सकोप बचन जे बोले। डगमगा न मह दdगज डोले॥
सकल लोग सब भप
ू डेराने। 0सय हयँ हरषु जनकु सकुचाने॥1॥
भावाथ#:-_य= ह. ल'मणजी ोध भरे वचन बोले Bक प4
ृ वी डगमगा उठv और दशाओं के हाथी
काँप गए। सभी लोग और सब राजा डर गए। सीताजी के sदय म? हषO हुआ और जनकजी
सकुचा गए॥1॥
* सु न ग^
ु बचन चरन 0स^ नावा। हरषु 8बषाद ु न कछु उर आवा॥
ठाढ़े भए उठ सहज सभ
ु ाएँ। ठव न जब
ु ा मग
ृ राजु लजाएँ॥4॥
भावाथ#:-गु^ के वचन सन
ु कर $ी रामजी ने चरण= म? 0सर नवाया। उनके मन म? न हषO हुआ,
न ,वषाद और वे अपनी ऐंड़ (खड़े होने कM शान) से जवान 0संह को भी लजाते हुए सहज
Aवभाव से ह. उठ खड़े हुए ॥4॥
दोहा :
* उदत उदयग!र मंच पर रघुबर बालपतंग।
8बकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भग
ं ृ ॥254॥
भावाथ#:-मंच fपी उदयाचल पर रघुनाथजी fपी बाल सूयO के उदय होते ह. सब संत fपी कमल
Rखल उठे और ने- fपी भVरे ह,षOत हो गए॥254॥
चौपाई :
* नप
ृ 7ह के!र आसा न0स नासी। बचन नखत अवल. न कासी॥
मानी महप कुमुद सकुचाने। कपट. भप
ू उलूक लुकाने॥1॥
भावाथ#:-राजाओं कM आशा fपी रा8- न[ट हो गई। उनके वचन fपी तार= के समूह का चमकना
बंद हो गया। (वे मौन हो गए)। अ0भमानी राजा fपी कुमुद संकुचत हो गए और कपट. राजा
fपी उZलू छप गए॥1॥
दोहा :
* रामह ेम समेत लRख सRख7ह समीप बोलाइ।
सीता मातु सनेह बस बचन कहइ 8बलखाइ॥255॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी को (वाNसZय) ेम के साथ दे खकर और सRखय= को समीप बल
ु ाकर
सीताजी कM माता Aनेहवश 8बलखकर (,वलाप करती हुई सी) ये वचन बोल.ं-॥255॥
चौपाई :
* सRख सब कौतक
ु दे ख नहारे । जेउ कहावत हतू हमारे ॥
कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाह.ं। ए बालक अ0स हठ भ0ल नाह.ं॥1॥
भावाथ#:-हे सखी! ये जो हमारे हतू कहलाते हP, वे भी सब तमाशा दे खने वाले हP। कोई भी
(इनके) ग^
ु ,व/वा0म-जी को समझाकर नह.ं कहता Bक ये (रामजी) बालक हP, इनके 0लए ऐसा
हठ अqछा नह.ं। (जो धनष
ु रावण और बाण- जैसे जगk,वजयी वीर= के हलाए न हल सका,
उसे तोड़ने के 0लए म ु न ,व/वा0म-जी का रामजी को आgा दे ना और रामजी का उसे तोड़ने के
0लए चल दे ना रानी को हठ जान पड़ा, इस0लए वे कहने लगीं Bक गु^ ,व/वा0म-जी को कोई
समझाता भी नह.ं)॥1॥
दोहा :
* मं- परम लघु जासु बस 8बध ह!र हर सरु सबO।
महामT गजराज कहुँ बस कर अंकुस खबO॥256॥
भावाथ#:-िजसके वश म? CDमा, ,व[णु, 0शव और सभी दे वता हP, वह मं- अNय7त छोटा होता है ।
महान मतवाले गजराज को छोटा सा अंकुश वश म? कर लेता है ॥256॥
चौपाई :
* काम कुसम
ु धनु सायक ल.7हे। सकल भुवन अपन? बस कM7हे ॥
दे 8ब तिजअ संसउ अस जानी। भंजब धनुषु राम सन
ु ु रानी॥1॥
भावाथ#:-कामदे व ने फूल= का ह. धनष
ु -बाण लेकर समAत लोक= को अपने वश म? कर रखा है।
हे दे वी! ऐसा जानकर संदेह Nयाग द.िजए। हे रानी! सु नए, रामच7oजी धनष
ु को अव/य ह.
तोड़?गे॥1॥
दोहा :
* दे Rख दे Rख रघुबीर तन सुर मनाव ध!र धीर।
भरे 8बलोचन ेम जल पल
ु कावल. सर.र॥257॥
भावाथ#:-$ी रघुनाथजी कM ओर दे ख-दे खकर सीताजी धीरज धरकर दे वताओं को मना रह. हP।
उनके ने-= म? ेम के आँसू भरे हP और शर.र म? रोमांच हो रहा है ॥257॥
चौपाई :
* नीक? नरRख नयन भ!र सोभा। ,पतु पनु सु0म!र बहु!र मनु छोभा॥
अहह तात दा^ न हठ ठानी। समझु त नहं कछु लाभु न हानी॥1॥
भावाथ#:-अqछv तरह ने- भरकर $ी रामजी कM शोभा दे खकर, Bफर ,पता के ण का Aमरण
करके सीताजी का मन WुXध हो उठा। (वे मन ह. मन कहने लगीं-) अहो! ,पताजी ने बड़ा ह.
कठन हठ ठाना है , वे लाभ-हा न कुछ भी नह.ं समझ रहे हP॥1॥
दोहा :
* भुह चतइ प ु न चतव मह राजत लोचन लोल।
खेलत मन0सज मीन जुग जनु 8बधु मंड ल डोल॥258॥
भावाथ#:- भु $ी रामच7oजी को दे खकर Bफर प4ृ वी कM ओर दे खती हुई सीताजी के चंचल ने-
इस कार शो0भत हो रहे हP, मानो च7oमंड ल fपी डोल म? कामदे व कM दो मछ0लयाँ खेल रह.
ह=॥258॥
चौपाई :
* गरा अ0ल न मख
ु पंकज रोकM। गट न लाज नसा अवलोकM॥
लोचन जलु रह लोचन कोना। जैस? परम कृपन कर सोना॥1॥
भावाथ#:-सीताजी कM वाणी fपी tमर. को उनके मख
ु fपी कमल ने रोक रखा है। लाज fपी
रा8- को दे खकर वह कट नह.ं हो रह. है । ने-= का जल ने-= के कोने (कोये) म? ह. रह जाता
है । जैसे बड़े भार. कंजूस का सोना कोने म? ह. गड़ा रह जाता है ॥1॥
दोहा :
* लखन लखेउ रघब
ु स
ं म न ताकेउ हर कोदं डु ।
पल
ु Bक गात बोले बचन चरन चा,प CDमांडु ॥259॥
भावाथ#:-इधर जब ल'मणजी ने दे खा Bक रघक
ु ु ल मRण $ी रामच7oजी ने 0शवजी के धनुष कM
ओर ताका है, तो वे शर.र से पल
ु Bकत हो CDमाxड को चरण= से दबाकर नJन0लRखत वचन
बोले-॥259॥
चौपाई :
*द0सकंु जरहु कमठ अह कोला। धरहु धर न ध!र धीर न डोला॥
रामु चहहं संकर धनु तोरा। होहु सजग सु न आयसु मोरा॥1॥
भावाथ#:-हे दdगजो! हे कqछप! हे शेष! हे वाराह! धीरज धरकर प4ृ वी को थामे रहो, िजससे यह
हलने न पावे। $ी रामच7oजी 0शवजी के धनष
ु को तोड़ना चाहते हP। मेर. आgा सुनकर सब
सावधान हो जाओ॥1॥
* भग
ृ प
ु त के!र गरब ग^आई। सुर मु नबर7ह के!र कदराई॥
0सय कर सोचु जनक प छतावा। रा न7ह कर दा^न दख
ु दावा॥3॥
भावाथ#:-परशरु ामजी के गवO कM ग^
ु ता, दे वता और $े[ठ म ु नय= कM कातरता (भय), सीताजी का
सोच, जनक का प/चाताप और रा नय= के दा^ण दःु ख का दावानल,॥3॥
* संभच
ु ाप बड़ बोहतु पाई। चढ़े जाइ सब संगु बनाई॥
राम बाहुबल 0संधु अपाf। चहत पा^ नहं कोउ कड़हाf॥4॥
भावाथ#:-ये सब 0शवजी के धनष
ु fपी बड़े जहाज को पाकर, समाज बनाकर उस पर जा चढ़े । ये
$ी रामच7oजी कM भुजाओं के बल fपी अपार समo
ु के पार जाना चाहते हP, पर7तु कोई केवट
नह.ं है ॥4॥
धनुषभंग
दोहा :
* राम 8बलोके लोग सब च- 0लखे से दे Rख।
चतई सीय कृपायतन जानी 8बकल 8बसे,ष॥260॥
भावाथ#:-$ी रामजी ने सब लोग= कM ओर दे खा और उ7ह? च- म? 0लखे हुए से दे खकर Bफर
कृपाधाम $ी रामजी ने सीताजी कM ओर दे खा और उ7ह? ,वशेष cयाकुल जाना॥260॥
चौपाई :
* दे खी 8बपल
ु 8बकल बैदेह.। न0मष 8बहात कलप सम तेह.।
त,ृ षत बा!र 8बनु जो तनु Nयागा। मुएँ करइ का सध
ु ा तड़ागा॥1॥
भावाथ#:-उ7ह=ने जानकMजी को बहुत ह. ,वकल दे खा। उनका एक-एक Wण कZप के समान बीत
रहा था। यद यासा आदमी पानी के 8बना शर.र छोड़ दे , तो उसके मर जाने पर अमत
ृ का
तालाब भी iया करे गा?॥1॥
* का बरषा सब कृषी सख
ु ान? । समय चुक? प ु न का प छतान?॥
अस िजयँ जा न जानकM दे खी। भु पल
ु के लRख ी त 8बसेषी॥2॥
भावाथ#:-सार. खेती के सख
ू जाने पर वषाO Bकस काम कM? समय बीत जाने पर Bफर पछताने से
iया लाभ? जी म? ऐसा समझकर $ी रामजी ने जानकMजी कM ओर दे खा और उनका ,वशेष ेम
लखकर वे पुलBकत हो गए॥2॥
छ6द :
* भे भव
ु न घोर कठोर रव र8ब बािज तिज मारगु चले।
चiकरहं दdगज डोल मह अह कोल कू^म कलमले॥
सुर असुर म ु न कर कान द.7ह? सकल 8बकल 8बचारह.ं।
कोदं ड खंड उ
े राम तल
ु सी जय त बचन उचारह.ं॥
भावाथ#:-घोर, कठोर शXद से (सब) लोक भर गए, सूयO के घोड़े मागO छोड़कर चलने लगे।
दdगज चdघाड़ने लगे, धरती डोलने लगी, शेष, वाराह और कqछप कलमला उठे । दे वता, राWस
और मु न कान= पर हाथ रखकर सब cयाकुल होकर ,वचारने लगे। तुलसीदासजी कहते हP (जब
सब को न/चय हो गया Bक) $ी रामजी ने धनष
ु को तोड़ डाला, तब सब '$ी रामच7o कM
जय' बोलने लगे।
सोरठा :
* संकर चापु जहाजु साग^ रघुबर बाहुबलु।
बड़
ू सो सकल समाजु चढ़ा जो थमहं मोह बस॥261॥
भावाथ#:-0शवजी का धनुष जहाज है और $ी रामच7oजी कM भज
ु ाओं का बल समुo है । (धनुष
टूटने से) वह सारा समाज डू ब गया, जो मोहवश पहले इस जहाज पर चढ़ा था। (िजसका वणOन
ऊपर आया है।)॥261॥
चौपाई :
* भु दोउ चापखंड मह डारे । दे Rख लोग सब भए सुखारे ॥
कौ0सकfप पयो नध पावन। ेम बा!र अवगाहु सुहावन॥1॥
भावाथ#:- भु ने धनुष के दोन= टुकड़े प4ृ वी पर डाल दए। यह दे खकर सब लोग सख ु ी हुए।
,व/वा0म- fपी प,व- समo ु म? , िजसम? ेम fपी सद ुं र अथाह जल भरा है ,॥1॥
* रह. भव
ु न भ!र जय जय बानी। धनष
ु भंग ध ु नजात न जानी॥
मुदत कहहं जहँ तहँ नर नार.। भंजेउ राम संभध
ु नु भार.॥4॥
भावाथ#:-सारे CDमाxड म? जय-जयकार कM ~व न छा गई, िजसम? धनुष टूटने कM ~व न जान ह.
नह.ं पड़ती। जहाँ-तहाँ A-ी-प^
ु ष स7न होकर कह रहे हP Bक $ी रामच7oजी ने 0शवजी के भार.
धनुष को तोड़ डाला॥4॥
चौपाई :
* झाँRझ मद
ृ ं ग संख सहनाई। भे!र ढोल दं द
ु भ
ु ी सह
ु ाई॥
बाजहं बहु बाजने सुहाए। जहँ तहँ जुब त7ह मंगल गाए॥1॥
भावाथ#:-झाँझ, मद
ृ ं ग, शंख, शहनाई, भेर., ढोल और सुहावने नगाड़े आद बहुत कार के संद
ु र
बाजे बज रहे हP। जहाँ-तहाँ युव तयाँ मंगल गीत गा रह. हP॥1॥
* $ीहत भए भप
ू धनु टूटे । जैस? दवस द.प छ8ब छूटे ॥
सीय सुखह बर नअ केह भाँती। जनु चातकM पाइ जलु Aवाती॥3॥
भावाथ#:-धनुष टूट जाने पर राजा लोग ऐसे $ीह.न ( नAतेज) हो गए, जैसे दन म? द.पक कM
शोभा जाती रहती है । सीताजी का सुख Bकस कार वणOन Bकया जाए, जैसे चातकM Aवाती का
जल पा गई हो॥3॥
दोहा :
* संग सखीं सुंदर चतुर गावहं मंगलचार।
गवनी बाल मराल ग त सष
ु मा अंग अपार॥263॥
भावाथ#:-साथ म? संद
ु र चतरु सRखयाँ मंगलाचार के गीत गा रह. हP, सीताजी बालहं 0सनी कM चाल
से चल.ं। उनके अंग= म? अपार शोभा है॥263॥
चौपाई :
* सRख7ह म~य 0सय सोह त कैस?। छ8बगन म~य महाछ8ब जैस॥
?
कर सरोज जयमाल सह
ु ाई। 8बAव 8बजय सोभा जेहं छाई॥1॥
भावाथ#:-सRखय= के बीच म? सीताजी कैसी शो0भत हो रह. हP, जैसे बहुत सी छ,वय= के बीच म?
महाछ,व हो। करकमल म? सद ंु र जयमाला है, िजसम? ,व/व ,वजय कM शोभा छाई हुई है ॥1॥
सोरठा :
* रघब
ु र उर जयमाल दे Rख दे व ब!रसहं सुमन।
सकुचे सकल भआ
ु ल जनु 8बलोBक र8ब कुमुदगन॥264॥
भावाथ#:-$ी रघुनाथजी के sदय पर जयमाला दे खकर दे वता फूल बरसाने लगे। समAत राजागण
इस कार सकुचा गए मानो सूयO को दे खकर कुमद
ु = का समूह 0सकुड़ गया हो॥264॥
चौपाई :
* परु अ^ Xयोम बाजने बाजे। खल भए म0लन साधु सब राजे॥
सुर Bकंनर नर नाग मन
ु ीसा। जय जय जय कह दे हं असीसा॥1॥
भावाथ#:-नगर और आकाश म? बाजे बजने लगे। द[ु ट लोग उदास हो गए और स_जन लोग सब
स7न हो गए। दे वता, Bक7नर, मन[ु य, नाग और मुनी/वर जय-जयकार करके आशीवाOद दे रहे
हP॥1॥
* महं पाताल नाक जसु Xयापा। राम बर. 0सय भंजेउ चापा॥
करहं आरती परु नर नार.। दे हं नछाव!र 8बT 8बसार.॥3॥
भावाथ#:-प4
ृ वी, पाताल और AवगO तीन= लोक= म? यश फैल गया Bक $ी रामच7oजी ने धनष
ु
तोड़ दया और सीताजी को वरण कर 0लया। नगर के नर-नार. आरती कर रहे हP और अपनी
पँज
ू ी (है 0सयत) को भल
ु ाकर (साम4यO से बहुत अधक) नछावर कर रहे हP॥3॥
दोहा :
* गौतम तय ग त सरु त क!र नहं परस त पग पा न।
मन 8बहसे रघुबस
ं म न ी त अलौBकक जा न॥265॥
भावाथ#:-गौतमजी कM A-ी अहZया कM ग त का Aमरण करके सीताजी $ी रामजी के चरण= को
हाथ= से AपशO नह.ं कर रह. हP। सीताजी कM अलौBकक ी त जानकर रघक
ु ु ल मRण $ी
रामच7oजी मन म? हँसे॥265॥
चौपाई :
* तब 0सय दे Rख भप
ू अ0भलाषे। कूर कपूत मढ़
ू मन माखे॥
उठ उठ पह!र सनाह अभागे। जहँ तहँ गाल बजावन लागे॥1॥
भावाथ#:-उस समय सीताजी को दे खकर कुछ राजा लोग ललचा उठे । वे द[ु ट, कुपूत और मढ़
ू
राजा मन म? बहुत तमतमाए। वे अभागे उठ-उठकर, कवच पहनकर, जहाँ-तहाँ गाल बजाने
लगे॥1॥
दोहा :
* दे खहु रामह नयन भ!र तिज इ!रषा मद ु कोहु।।
लखन रोषु पावकु बल जा न सलभ ज न होहु॥266॥
भावाथ#:-ईषाO, घमंड और ोध छोड़कर ने- भरकर $ी रामजी (कM छ8ब) को दे ख लो। ल'मण
के ोध को बल अिdन जानकर उसम? पतंगे मत बनो॥266॥
चौपाई :
*बैनतेय ब0ल िज0म चह कागू। िज0म ससु चहै नाग अ!र भागू॥
िज0म चह कुसल अकारन कोह.। सब संपदा चहै 0सवoोह.॥1॥
भावाथ#:-जैसे ग^ड़ का भाग कौआ चाहे, 0संह का भाग खरगोश चाहे , 8बना कारण ह. ोध करने
वाला अपनी कुशल चाहे , 0शवजी से ,वरोध करने वाला सब कार कM सJप,T चाहे,॥1॥
दोहा :
* अ^न नयन भक
ृ ु ट. कुटल चतवत नप
ृ 7ह सकोप।
मनहुँ मT गजगन नरRख 0संघBकसोरह चोप॥267॥
भावाथ#:- उनके ने- लाल और भVह? टे ढ़. हो ग} और वे ोध से राजाओं कM ओर दे खने लगे,
मानो मतवाले हाथय= का झंडु दे खकर 0संह के बqचे को जोश आ गया हो॥267॥
चौपाई :
* खरभ^ दे Rख 8बकल परु नार.ं। सब 0म0ल दे हं मह.प7ह गार.ं॥
तेहं अवसर सु न 0सवधनु भंगा। आयउ भग
ृ क
ु ु ल कमल पतंगा॥1॥
भावाथ#:-खलबल. दे खकर जनकपरु . कM िA-याँ cयाकुल हो ग} और सब 0मलकर राजाओं को
गा0लयाँ दे ने लगीं। उसी मौके पर 0शवजी के धनष
ु का टूटना सन
ु कर भग
ृ क
ु ु ल fपी कमल के
सय
ू O परशरु ामजी आए॥1॥
* बष
ृ भ कंध उर बाहु 8बसाला। चा^ जनेउ माल मग ृ छाला॥
कट मु नबसन तनू दइ ु बाँध?। धनु सर कर कुठा^ कल काँध?॥4॥
भावाथ#:-बैल के समान (ऊँचे और पु[ट) कंधे हP, छाती और भुजाएँ ,वशाल हP। सुंदर यgोपवीत
धारण Bकए, माला पहने और मग
ृ चमO 0लए हP। कमर म? म ु नय= का वA- (वZकल) और दो
तरकस बाँधे हP। हाथ म? धनुष-बाण और सद
ंु र कंधे पर फरसा धारण Bकए हP॥4॥
दोहा :
* सांत बेषु करनी कठन बर न न जाइ सfप।
ध!र मु नतनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब भूप॥268॥
भावाथ#:-शांत वेष है , पर7तु करनी बहुत कठोर हP, Aवfप का वणOन नह.ं Bकया जा सकता। मानो
वीर रस ह. म ु न का शर.र धारण करके, जहाँ सब राजा लोग हP, वहाँ आ गया हो॥268॥
चौपाई :
* दे खत भग
ृ प
ु त बेषु कराला। उठे सकल भय 8बकल भुआला॥
,पतु समेत कह कह नज नामा। लगे करन सब दं ड नामा॥1॥
भावाथ#:-परशरु ामजी का भयानक वेष दे खकर सब राजा भय से cयाकुल हो उठ खड़े हुए और
,पता सहत अपना नाम कह-कहकर सब दं ड वत णाम करने लगे॥1॥
दोहा :
* बहु!र 8बलोBक 8बदे ह सन कहहु काह अ त भीर।
पँछ
ू त जा न अजान िज0म Xयापेउ कोपु सर.र॥269॥
भावाथ#:-Bफर सब दे खकर, जानते हुए भी अनजान कM तरह जनकजी से पछ
ू ते हP Bक कहो, यह
बड़ी भार. भीड़ कैसी है? उनके शर.र म? ोध छा गया॥269॥
चौपाई :
* समाचार कह जनक सन
ु ाए। जेह कारन मह.प सब आए॥
सुनत बचन Bफ!र अनत नहारे । दे खे चापखंड मह डारे ॥1॥
भावाथ#:-िजस कारण सब राजा आए थे, राजा जनक ने वे सब समाचार कह सुनाए। जनक के
वचन सुनकर परशरु ामजी ने Bफरकर दस
ू र. ओर दे खा तो धनष
ु के टुकड़े प4ृ वी पर पड़े हुए
दखाई दए॥1॥
* अ त ड^ उत^ दे त नप
ृ ु नाह.ं। कुटल भूप हरषे मन माह.ं॥
सरु म ु न नाग नगर नर नार.। सोचहं सकल -ास उर भार.॥3॥
भावाथ#:-राजा को अNय7त डर लगा, िजसके कारण वे उTर नह.ं दे ते। यह दे खकर कुटल राजा
मन म? बड़े स7न हुए। दे वता, मु न, नाग और नगर के A-ी-प^
ु ष सभी सोच करने लगे, सबके
sदय म? बड़ा भय है ॥3॥
दोहा :
* सभय 8बलोके लोग सब जा न जानकM भी^।
sदयँ न हरषु 8बषाद ु कछु बोले $ीरघब
ु ी^॥270॥
भावाथ#:-तब $ी रामच7oजी सब लोग= को भयभीत दे खकर और सीताजी को डर. हुई जानकर
बोले- उनके sदय म? न कुछ हषO था न ,वषाद-॥270॥
ी राम-ल मण और परशुराम-संवाद
चौपाई :
* नाथ संभध
ु नु भंज नहारा। होइह केउ एक दास तुJहारा॥
आयसु काह कहअ Bकन मोह.। सु न !रसाइ बोले मु न कोह.॥1॥
भावाथ#:-हे नाथ! 0शवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई एक दास ह. होगा। iया आgा
है , मझ
ु से iय= नह.ं कहते? यह सन
ु कर ोधी म ु न !रसाकर बोले-॥1॥
दोहा :
* रे नप
ृ बालक काल बस बोलत तोह न सँभार।
धनुह. सम तपरु ा!र धनु 8बदत सकल संसार॥271॥
भावाथ#:-अरे राजपु-! काल के वश होने से तुझे बोलने म? कुछ भी होश नह.ं है। सारे संसार म?
,वयात 0शवजी का यह धनुष iया धनुह. के समान है ?॥271॥
चौपाई :
* लखन कहा हँ0स हमर? जाना। सन
ु हु दे व सब धनुष समाना॥
का छ त लाभु जून धनु तोर? । दे खा राम नयन के भोर? ॥1॥
भावाथ#:-ल'मणजी ने हँसकर कहा- हे दे व! सु नए, हमारे जान म? तो सभी धनुष एक से ह. हP।
परु ाने धनष
ु के तोड़ने म? iया हा न-लाभ! $ी रामच7oजी ने तो इसे नवीन के धोखे से दे खा
था॥1॥
दोहा :
* मातु ,पतह ज न सोचबस कर0स मह.सBकसोर।
गभO7ह के अभOक दलन परसु मोर अ त घोर॥272॥
भावाथ#:-अरे राजा के बालक! तू अपने माता-,पता को सोच के वश न कर। मेरा फरसा बड़ा
भयानक है, यह गभ के बqच= का भी नाश करने वाला है ॥272॥
चौपाई :
*8बह0स लखनु बोले मद
ृ ु बानी। अहो मुनीसु महा भटमानी॥
प ु न पु न मोह दे खाव कुठाf। चहत उड़ावन फँू Bक पहाf॥1॥
भावाथ#:-ल'मणजी हँसकर कोमल वाणी से बोले- अहो, मुनी/वर तो अपने को बड़ा भार. योkधा
समझते हP। बार-बार मुझे कुZहाड़ी दखाते हP। फँू क से पहाड़ उड़ाना चाहते हP॥1॥
*भगृ स
ु ुत समRु झ जनेउ 8बलोकM। जो कछु कहहु सहउँ !रस रोकM॥
सुर महसुर ह!रजन अ^ गाई। हमर? कुल इ7ह पर न सरु ाई॥3॥
भावाथ#:-भग
ृ व
ु ंशी समझकर और यgोपवीत दे खकर तो जो कुछ आप कहते हP, उसे मP ोध को
रोककर सह लेता हूँ। दे वता, CाDमण, भगवान के भiत और गो- इन पर हमारे कुल म? वीरता
नह.ं दखाई जाती॥3॥
दोहा :
* जो 8बलोBक अनु चत कहेउँ छमहु महाम ु न धीर।
सु न सरोष भग
ृ ुबस
ं म न बोले गरा गभीर॥273॥
भावाथ#:-इ7ह? (धनुष-बाण और कुठार को) दे खकर मPने कुछ अनुचत कहा हो, तो उसे हे धीर
महाम ु न! Wमा कMिजए। यह सुनकर भग
ृ व
ु ंशमRण परशुरामजी ोध के साथ गंभीर वाणी बोले-
॥273॥
चौपाई :
* कौ0सक सन ु हु मंद यहु बालकु। कुटल कालबस नज कुल घालकु॥
भानु बंस राकेस कलंकू। नपट नरं कुस अबुध असंकू॥1॥
भावाथ#:-हे ,व/वा0म-! सन
ु ो, यह बालक बड़ा कुबुkध और कुटल है , काल के वश होकर यह
अपने कुल का घातक बन रहा है । यह सूयOवश
ं fपी पण
ू O च7o का कलंक है । यह 8बZकुल
उkदxड, मख
ू O और नडर है॥1॥
* लखन कहे उ मु न सज
ु सु तुJहारा। तुJहह अछत को बरनै पारा॥
अपने मँहु तुJह आप न करनी। बार अनेक भाँ त बहु बरनी॥3॥
भावाथ#:-ल'मणजी ने कहा- हे म ु न! आपका सय
ु श आपके रहते दस
ू रा कौन वणOन कर सकता
है ? आपने अपने ह. मँह
ु से अपनी करनी अनेक= बार बहुत कार से वणOन कM है ॥3॥
* नहं संतोषु त पु न कछु कहहू। ज न !रस रोBक दस
ु ह दख
ु सहहू॥
बीरCती तुJह धीर अछोभा। गार. दे त न पावहु सोभा॥4॥
भावाथ#:-इतने पर भी संतोष न हुआ हो तो Bफर कुछ कह डा0लए। ोध रोककर असDय दःु ख
मत सहए। आप वीरता का त धारण करने वाले, धैयव O ान और Wोभरहत हP। गाल. दे ते शोभा
नह.ं पाते॥4॥
दोहा :
* सूर समर करनी करहं कह न जनावहं आप।ु
8बkयमान रन पाइ !रपु कायर कथहं ताप॥
ु 274॥
भावाथ#:-शरू वीर तो यk
ु ध म? करनी (शरू वीरता का कायO) करते हP, कहकर अपने को नह.ं जनाते।
श-ु को युkध म? उपिAथत पाकर कायर ह. अपने ताप कM डींग मारा करते हP॥274॥
चौपाई :
* तुJह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोह लाग बोलावा॥
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सध
ु ा!र धरे उ कर घोरा॥1॥
भावाथ#:-आप तो मानो काल को हाँक लगाकर बार-बार उसे मेरे 0लए बुलाते हP। ल'मणजी के
कठोर वचन सुनते ह. परशरु ामजी ने अपने भयानक फरसे को सुधारकर हाथ म? ले 0लया॥1॥
दोहा :
* गाधसूनु कह sदयँ हँ 0स मु नह ह!रअरइ सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबझ
ू ॥275॥
भावाथ#:-,व/वा0म-जी ने sदय म? हँ सकर कहा- मु न को हरा ह. हरा सूझ रहा है (अथाOत सवO-
,वजयी होने के कारण ये $ी राम-ल'मण को भी साधारण W8-य ह. समझ रहे हP), Bक7तु यह
लोहमयी (केवल फौलाद कM बनी हुई) खाँड़ (खाँड़ा-ख
ग) है, ऊख कM (रस कM) खाँड़ नह.ं है (जो
मँुह म? लेते ह. गल जाए। खेद है ,) मु न अब भी बेसमझ बने हुए हP, इनके भाव को नह.ं
समझ रहे हP॥275॥
चौपाई :
* कहेउ लखन मु न सीलु तुJहारा। को नहं जान 8बदत संसारा॥
माता ,पतह उ!रन भए नीक?। गरु !रनु रहा सोचु बड़ जीक?॥1॥
भावाथ#:- ल'मणजी ने कहा- हे मु न! आपके शील को कौन नह.ं जानता? वह संसार भर म?
0सkध है । आप माता-,पता से तो अqछv तरह उऋण हो ह. गए, अब ग^
ु का ऋण रहा,
िजसका जी म? बड़ा सोच लगा है॥1॥
* 0मले न कबहुँ सभ
ु ट रन गाढ़े । k,वज दे वता घरह के बाढ़े़ ॥
अनु चत कह सब लोग पक
ु ारे । रघप
ु त सयनहं लखनु नेवारे ॥4॥
भावाथ#:-आपको कभी रणधीर बलवान ् वीर नह.ं 0मले हP। हे CाDमण दे वता ! आप घर ह. म? बड़े
हP। यह सुनकर 'अनुचत है , अनुचत है ' कहकर सब लोग पक
ु ार उठे । तब $ी रघुनाथजी ने
इशारे से ल'मणजी को रोक दया॥4॥
दोहा :
* लखन उतर आहु त स!रस भगृ ुबर कोपु कृसानु।
बढ़त दे Rख जल सम बचन बोले रघकु ु लभान॥
ु 276॥
भावाथ#:-ल'मणजी के उTर से, जो आहु त के समान थे, परशरु ामजी के ोध fपी अिdन को
बढ़ते दे खकर रघुकुल के सूयO $ी रामचंoजी जल के समान (शांत करने वाले) वचन बोले-
॥276॥
चौपाई :
*नाथ करहु बालक पर छोहु। सूध दध
ू मुख क!रअ न कोहू॥
जV पै भु भाउ कछु जाना। तौ Bक बराब!र करत अयाना॥1॥
भावाथ#:-हे नाथ ! बालक पर कृपा कMिजए। इस सीधे और दध
ू मँुहे बqचे पर ोध न कMिजए।
यद यह भु का (आपका) कुछ भी भाव जानता, तो iया यह बेसमझ आपकM बराबर. करता
?॥1॥
दोहा :
* लखन कहे उ हँ0स सन
ु हु म ु न ोधु पाप कर मल
ू ।
जेह बस जन अनुचत करहं चरहं 8बAव तकूल॥277॥
भावाथ#:-ल'मणजी ने हँसकर कहा- हे म ु न! सु नए, ोध पाप का मल
ू है, िजसके वश म? होकर
मनु[य अनुचत कमO कर बैठते हP और ,व/वभर के तकूल चलते (सबका अहत करते)
हP॥277॥
चौपाई :
* मP तुJहार अनच
ु र म ु नराया। प!रह!र कोपु क!रअ अब दाया॥
टूट चाप नहं जु!रह !रसाने। बैठअ होइहं पाय ,पराने॥1॥
भावाथ#:-हे म ु नराज! मP आपका दास हूँ। अब ोध Nयागकर दया कMिजए। टूटा हुआ धनुष ोध
करने से जुड़ नह.ं जाएगा। खड़े-खड़े पैर दःु खने लगे ह=गे, बैठ जाइए॥1॥
* जV अ त , य तौ क!रअ उपाई। जो!रअ कोउ बड़ गुनी बोलाई॥
बोलत लखनहं जनकु डेराह.ं। म[ट करहु अनुचत भल नाह.ं॥2॥
भावाथ#:-यद धनष
ु अNय7त ह. , य हो, तो कोई उपाय Bकया जाए और Bकसी बड़े गण
ु ी
(कार.गर) को बल
ु ाकर जुड़वा दया जाए। ल'मणजी के बोलने से जनकजी डर जाते हP और
कहते हP- बस, चुप रहए, अनुचत बोलना अqछा नह.ं॥2॥
दोहा :
* स ु न ल छमन 8बहसे बहु!र नयन तरे रे राम।
गुर समीप गवने सकुच प!रह!र बानी बाम॥278॥
भावाथ#:-यह सन
ु कर ल'मणजी Bफर हँसे। तब $ी रामच7oजी ने तरछv नजर से उनकM ओर
दे खा, िजससे ल'मणजी सकुचाकर, ,वपर.त बोलना छोड़कर, गु^जी के पास चले गए॥278॥
चौपाई :
* अ त 8बनीत मद
ृ ु सीतल बानी। बोले रामु जो!र जुग पानी॥
सुनहु नाथ तुJह सहज सुजाना। बालक बचनु क!रअ नहं काना॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी दोन= हाथ जोड़कर अNय7त ,वनय के साथ कोमल और शीतल वाणी
बोले- हे नाथ! सु नए, आप तो Aवभाव से ह. सज
ु ान हP। आप बालक के वचन पर कान न
द.िजए (उसे सुना-अनसुना कर द.िजए)॥1॥
दोहा :
* गभO वहं अव नप रव न सु न कुठार ग त घोर।
परसु अछत दे खउँ िजअत बैर. भूपBकसोर॥279॥
भावाथ#:-मेरे िजस कुठार कM घोर करनी सन
ु कर राजाओं कM िA-य= के गभO गर पड़ते हP, उसी
फरसे के रहते मP इस श-ु राजपु- को जी,वत दे ख रहा हूँ॥279॥
चौपाई :
* बहइ न हाथु दहइ !रस छाती। भा कुठा^ कंु ठत नप
ृ घाती॥
भयउ बाम 8बध Bफरे उ सुभाऊ। मोरे sदयँ कृपा क0स काऊ॥1॥
भावाथ#:-हाथ चलता नह.ं, ोध से छाती जल. जाती है। (हाय!) राजाओं का घातक यह कुठार
भी कुिxठत हो गया। ,वधाता ,वपर.त हो गया, इससे मेरा Aवभाव बदल गया, नह.ं तो भला,
मेरे sदय म? Bकसी समय भी कृपा कैसी?॥1॥
* आजु दया दख
ु ु दस
ु ह सहावा। स ु न सौ0म8- 8बह0स 0स^ नावा॥
बाउ कृपा मूर त अनुकूला। बोलत बचन झरत जनु फूला॥2॥
भावाथ#:-आज दया मझ
ु े यह दःु सह दःु ख सहा रह. है । यह सुनकर ल'मणजी ने मुAकुराकर 0सर
नवाया (और कहा-) आपकM कृपा fपी वायु भी आपकM मू तO के अनक
ु ू ल ह. है , वचन बोलते हP,
मानो फूल झड़ रहे हP॥2॥
चौपाई :
* बंधु कहइ कटु संमत तोर? । तू छल 8बनय कर0स कर जोर? ॥
क^ प!रतोषु मोर संwामा। नाहं त छाड़ कहाउब रामा॥1॥
भावाथ#:-तेरा यह भाई तेर. ह. सJम त से कटु वचन बोलता है और तू छल से हाथ जोड़कर
,वनय करता है । या तो युkध म? मेरा संतोष कर, नह.ं तो राम कहलाना छोड़ दे ॥1॥
दोहा :
* भुह सेवकह सम^ कस तजहु 8ब बर रोसु।
बेषु 8बलोक? कहे 0स कछु बालकहू नहं दोसु॥281॥
भावाथ#:-Aवामी और सेवक म? यk
ु ध कैसा? हे CाDमण $े[ठ! ोध का Nयाग कMिजए। आपका
(वीर= का सा) वेष दे खकर ह. बालक ने कुछ कह डाला था, वाAतव म? उसका भी कोई दोष नह.ं
है ॥281॥
चौपाई :
*दे Rख कुठार बान धनु धार.। भै ल!रकह !रस बी^ 8बचार.॥
नामु जान पै तुJहह न ची7हा। बंस सभ
ु ायँ उत^ तेहं द.7हा॥1॥
भावाथ#:-आपको कुठार, बाण और धनष
ु धारण Bकए दे खकर और वीर समझकर बालक को ोध
आ गया। वह आपका नाम तो जानता था, पर उसने आपको पहचाना नह.ं। अपने वंश (रघुवंश)
के Aवभाव के अनुसार उसने उTर दया॥1॥
* हमह तुJहह स!रब!र क0स नाथा। कहहु न कहाँ चरन कहँ माथा॥
राम मा- लघुनाम हमारा। परसु सहत बड़ नाम तोहारा॥3॥
भावाथ#:-हे नाथ! हमार. और आपकM बराबर. कैसी? कहए न, कहाँ चरण और कहाँ मAतक!
कहाँ मेरा राम मा- छोटा सा नाम और कहाँ आपका परशुसहत बड़ा नाम॥3॥
* दे व एकु गन
ु ु धनुष हमार? । नव गुन परम पन
ु ीत तुJहार? ॥
सब कार हम तुJह सन हारे । छमहु 8ब अपराध हमारे ॥4॥
भावाथ#:-हे दे व! हमारे तो एक ह. गण
ु धनष
ु है और आपके परम प,व- (शम, दम, तप, शौच,
Wमा, सरलता, gान, ,वgान और आिAतकता ये) नौ गुण हP। हम तो सब कार से आपसे हारे
हP। हे ,व ! हमारे अपराध= को Wमा कMिजए॥4॥
दोहा :
* बार बार मु न 8ब बर कहा राम सन राम।
बोले भग
ृ ुप त स^ष ह0स तहूँ बंधू सम बाम॥282॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी ने परशरु ामजी को बार-बार 'म ु न' और ',व वर' कहा। तब भग
ृ प
ु त
(परशरु ामजी) कु,पत होकर (अथवा ोध कM हँसी हँसकर) बोले- तू भी अपने भाई के समान ह.
टे ढ़ा है॥282॥
दोहा :
* जV हम नदरहं 8ब बद सNय सन
ु हु भग
ृ न
ु ाथ।
तौ अस को जग सुभटु जेह भय बस नावहं माथ॥283॥
भावाथ#:-हे भग
ृ ुनाथ! यद हम सचमुच CाDमण कहकर नरादर करते हP, तो यह सNय सु नए,
Bफर संसार म? ऐसा कौन योkधा है, िजसे हम डरके मारे मAतक नवाएँ?॥283॥
चौपाई :
* दे व दनज
ु भप
ू त भट नाना। समबल अधक होउ बलवाना॥
जV रन हमह पचारै कोऊ। लरहं सुखेन कालु Bकन होऊ ॥1॥
भावाथ#:-दे वता, दै Nय, राजा या और बहुत से योkधा, वे चाहे बल म? हमारे बराबर ह= चाहे अधक
बलवान ह=, यद रण म? हम? कोई भी ललकारे तो हम उससे सुखपूवक O लड़?गे, चाहे काल ह.
iय= न हो॥1॥
* छ8-य तनु ध!र समर सकाना। कुल कलंकु तेहं पावँर आना॥
कहउँ सभ
ु ाउ न कुलह संसी। कालहु डरहं न रन रघब
ु स
ं ी॥2॥
भावाथ#:-W8-य का शर.र धरकर जो युkध म? डर गया, उस नीच ने अपने कुल पर कलंक लगा
दया। मP Aवभाव से ह. कहता हूँ, कुल कM शंसा करके नह.ं, Bक रघुवश
ं ी रण म? काल से भी
नह.ं डरते॥2॥
* 8ब बंस कै अ0स भत
ु ाई। अभय होइ जो तुJहह डेराई॥
सु न मद
ृ ु गूढ़ बचन रघप
ु त के। उघरे पटल परसध
ु र म त के॥3॥
भावाथ#:-CाDमणवंश कM ऐसी ह. भत
ु ा (महमा) है Bक जो आपसे डरता है, वह सबसे नभOय हो
जाता है (अथवा जो भयरहत होता है, वह भी आपसे डरता है) $ी रघुनाथजी के कोमल और
रहAयपूणO वचन सुनकर परशरु ामजी कM बk
ु ध के परदे खल
ु गए॥3॥
दोहा :
* जाना राम भाउ तब पल
ु क फुिZलत गात।
जो!र पा न बोले बचन sदयँ न ेमु अमात॥284॥
भावाथ#:-तब उ7ह=ने $ी रामजी का भाव जाना, (िजसके कारण) उनका शर.र पुलBकत और
फुिZलत हो गया। वे हाथ जोड़कर वचन बोले- ेम उनके sदय म? समाता न था-॥284॥
चौपाई :
* जय रघब
ु ंस बनज बन भानू। गहन दनज
ु कुल दहन कृसान॥
ू
जय सुर 8ब धेनु हतकार.। जय मद मोह कोह tम हार.॥1॥
भावाथ#:-हे रघुकुल fपी कमल वन के सय
ू !O हे राWस= के कुल fपी घने जंगल को जलाने वाले
अिdन! आपकM जय हो! हे दे वता, CाDमण और गो का हत करने वाले! आपकM जय हो। हे
मद, मोह, ोध और tम के हरने वाले! आपकM जय हो॥1॥
* कह जय जय जय रघक
ु ु लकेतू। भग
ृ ुप त गए बनह तप हे तू॥
अपभयँ कुटल मह.प डेराने। जहँ तहँ कायर गवँहं पराने॥4॥
भावाथ#:-हे रघुकुल के पताका Aवfप $ी रामच7oजी! आपकM जय हो, जय हो, जय हो। ऐसा
कहकर परशरु ामजी तप के 0लए वन को चले गए। (यह दे खकर) द[ु ट राजा लोग 8बना ह.
कारण के (मनः किZपत) डर से (रामच7oजी से तो परशरु ामजी भी हार गए, हमने इनका
अपमान Bकया था, अब कह.ं ये उसका बदला न ल?, इस cयथO के डर से डर गए) वे कायर
चुपके से जहाँ-तहाँ भाग गए॥4॥
दोहा :
* दे व7ह द.7ह.ं दं द
ु भ
ु ीं भु पर बरषहं फूल।
हरषे परु नर ना!र सब 0मट. मोहमय सल
ू ॥285॥
भावाथ#:-दे वताओं ने नगाड़े बजाए, वे भु के ऊपर फूल बरसाने लगे। जनकपरु के A-ी-प^
ु ष सब
ह,षOत हो गए। उनका मोहमय (अgान से उNप7न) शूल 0मट गया॥285॥
चौपाई :
* अ त गहगहे बाजने बाजे। सबहं मनोहर मंगल साजे॥
जूथ जूथ 0म0ल सम
ु ुRख सुनयनीं। करहं गान कल कोBकलबयनीं॥1॥
भावाथ#:-खब
ू जोर से बाजे बजने लगे। सभी ने मनोहर मंगल साज साजे। संद
ु र मख
ु और सद
ंु र
ने-= वाल. तथा कोयल के समान मधुर बोलने वाल. िA-याँ झुंड कM झुंड 0मलकर सुंदरगान
करने लगीं॥1॥
* कह मु न सन
ु ु नरनाथ बीना। रहा 8बबाहु चाप आधीना॥
टूटतह.ं धनु भयउ 8बबाहू। सरु नर नाग 8बदत सब काहू॥4॥
भावाथ#:-मु न ने कहा- हे चतुर नरे श ! सुनो य= तो ,ववाह धनुष के अधीन था, धनुष के टूटते
ह. ,ववाह हो गया। दे वता, मनु[य और नाग सब Bकसी को यह मालूम है॥4॥
चौपाई :
* दतू अवधपरु पठवहु जाई। आनहं नप ृ दसरथहं बोलाई॥
मुदत राउ कह भलेहं कृपाला। पठए दत
ू बो0ल तेह काला॥1॥
भावाथ#:-जाकर अयो~या को दत
ू भेजो, जो राजा दशरथ को बल
ु ा लाव?। राजा ने स7न होकर
कहा- हे कृपाल!ु बहुत अqछा! और उसी समय दत
ू = को बुलाकर भेज दया॥1॥
* पठए बो0ल गन
ु ी त7ह नाना। जे 8बतान 8बध कुसल सज
ु ाना॥
8बधह बंद त7ह कM7ह अरं भा। 8बरचे कनक कद0ल के खंभा॥4॥
भावाथ#:-उ7ह=ने अनेक कार.गर= को बुला भेजा, जो मंड प बनाने म? कुशल और चतुर थे। उ7ह=ने
CDमा कM वंदना करके कायO आरं भ Bकया और (पहले) सोने के केले के खंभे बनाए॥4॥
दोहा :
* ह!रत म न7ह के प- फल पदम
ु राग के फूल।
रचना दे Rख 8बच- अ त मनु 8बरं च कर भल
ू ॥287॥
भावाथ#:-हर.-हर. मRणय= (प7ने) के पTे और फल बनाए तथा पkमराग मRणय= (माRणक) के
फूल बनाए। मंड प कM अNय7त ,वच- रचना दे खकर CDमा का मन भी भूल गया॥287॥
चौपाई :
* बेनु ह!रत म नमय सब कM7हे। सरल सपरब परहं नहं ची7हे ॥
कनक क0लत अहबे0ल बनाई। लRख नहं परइ सपरन सह
ु ाई॥1॥
भावाथ#:-बाँस सब हर.-हर. मRणय= (प7ने) के सीधे और गाँठ= से युiत ऐसे बनाए जो पहचाने
नह.ं जाते थे (Bक मRणय= के हP या साधारण)। सोने कM सुंदर नागबेल. (पान कM लता) बनाई,
जो पT= सहत ऐसी भल. मालूम होती थी Bक पहचानी नह.ं जाती थी॥1॥
* तेह के रच पच बंध बनाए। 8बच 8बच मुकुता दाम सुहाए॥
मा नक मरकत कु0लस ,परोजा। ची!र को!र पच रचे सरोजा॥2॥
भावाथ#:-उसी नागबेल. के रचकर और पqचीकार. करके बंधन (बाँधने कM रAसी) बनाए। बीच-
बीच म? मो तय= कM सुंदर झालर? हP। माRणक, प7ने, ह.रे और ि◌फरोजे, इन रNन= को चीरकर,
कोरकर और पqचीकार. करके, इनके (लाल, हरे , सफेद और Bफरोजी रं ग के) कमल बनाए॥2॥
* Bकए भग
ं ृ बहुरं ग 8बहं गा। गुंजहं कूजहं पवन संगा॥
सरु तमा खंभन गढ़ काढ़.ं। मंगल oXय 0लएँ सब ठाढ़.ं॥3॥
भावाथ#:-भVरे और बहुत रं ग= के पWी बनाए, जो हवा के सहारे गँज
ू ते और कूजते थे। खंभ= पर
दे वताओं कM म ू तOयाँ गढ़कर नकाल.ं, जो सब मंगल ocय 0लए खड़ी थीं॥3॥
दोहा :
* सौरभ पZलव सभ
ु ग सु ठ Bकए नीलम न को!र।
हे म बौर मरकत घव!र लसत पाटमय डो!र॥288॥
भावाथ#:-नील मRण को कोरकर अNय7त संद
ु र आम के पTे बनाए। सोने के बौर (आम के फूल)
और रे शम कM डोर. से बँधे हुए प7ने के बने फल= के गुqछे सश
ु ो0भत हP॥288॥
चौपाई :
* रचे ^चर बर बंद नवारे । मनहुँ मनोभवँ फंद सँवारे ॥
मंगल कलश अनेक बनाए। ~वज पताक पट चमर सह ु ाए॥1॥
भावाथ#:-ऐसे सुंदर और उTम बंदनवार बनाए मानो कामदे व ने फंदे सजाए ह=। अनेक= मंगल
कलश और संद
ु र ~वजा, पताका, परदे और चँ वर बनाए॥1॥
* दल
ू हु रामु fप गन
ु सागर। सो 8बतानु तहुँ लोग उजागर॥
जनक भवन कै सोभा जैसी। गह ृ गहृ त परु दे Rखअ तैसी॥3॥
भावाथ#:-िजस मंड प म? fप और गुण= के समुo $ी रामच7oजी दZ
ू हे ह=गे, वह मंड प तीन= लोक=
म? 0सkध होना ह. चाहए। जनकजी के महल कM जैसी शोभा है, वैसी ह. शोभा नगर के
Nयेक घर कM दखाई दे ती है॥3॥
दोहा :
* बसइ नगर जेहं लिqछ क!र कपट ना!र बर बेष।ु
तेह परु कै सोभा कहत सकुचहं सारद सेष॥
ु 289॥
भावाथ#:-िजस नगर म? साWात ् ल'मीजी कपट से A-ी का सद
ंु र वेष बनाकर बसती हP, उस परु
कM शोभा का वणOन करने म? सरAवती और शेष भी सकुचाते हP॥289॥
चौपाई :
* पहुँचे दत
ू राम परु पावन। हरषे नगर 8बलोBक सुहावन॥
भूप kवार त7ह खब!र जनाई। दसरथ नप ृ सु न 0लए बोलाई॥1॥
भावाथ#:-जनकजी के दतू $ी रामच7oजी कM प,व- पुर. अयो~या म? पहुँच।े सुंदर नगर दे खकर वे
ह,षOत हुए। राजkवार पर जाकर उ7ह=ने खबर भेजी, राजा दशरथजी ने सुनकर उ7ह? बल ु ा
0लया॥1॥
* क!र नामु त7ह पाती द.7ह.। मु दत मह.प आपु उठ ल.7ह.॥
बा!र 8बलोचन बाँचत पाती। पल
ु क गात आई भ!र छाती॥2॥
भावाथ#:-दत
ू = ने णाम करके च{ठv द.। स7न होकर राजा ने Aवयं उठकर उसे 0लया। च{ठv
बाँचते समय उनके ने-= म? जल ( ेम और आनंद के आँसू) छा गया, शर.र पुलBकत हो गया
और छाती भर आई॥2॥
दोहा :
* कुसल ान, य बंधु दोउ अहहं कहहु केहं दे स।
सु न सनेह साने बचन बाची बहु!र नरे स॥290॥
भावाथ#:- हमारे ाण= से यारे दोन= भाई, कहए सकुशल तो हP और वे Bकस दे श म? हP? Aनेह से
सने ये वचन सन
ु कर राजा ने Bफर से च{ठv पढ़.॥290॥
चौपाई :
* सु न पाती पल
ु के दोउ tाता। अधन सनेहु समात न गाता॥
ी त पन
ु ीत भरत कै दे खी। सकल सभाँ सुखु लहेउ 8बसेषी॥1॥
भावाथ#:-च{ठv सुनकर दोन= भाई पल
ु Bकत हो गए। Aनेह इतना अधक हो गया Bक वह शर.र
म? समाता नह.ं। भरतजी का प,व- ेम दे खकर सार. सभा ने ,वशेष सख
ु पाया॥1॥
* तब नप
ृ दत
ू नकट बैठारे । मधरु मनोहर बचन उचारे ॥
भैया कहहु कुसल दोउ बारे । तुJह नीक? नज नयन नहारे ॥2॥
भावाथ#:-तब राजा दत
ू = को पास बैठाकर मन को हरने वाले मीठे वचन बाले- भैया! कहो, दोन=
बqचे कुशल से तो हP? तम
ु ने अपनी आँख= से उ7ह? अqछv तरह दे खा है न?॥2॥
दोहा :
* सुनहु मह.प त मक
ु ु ट म न तुJह सम ध7य न कोउ।
रामु लखनु िज7ह के तनय 8बAव 8बभूषन दोउ॥291॥
भावाथ#:-(दत
ू = ने कहा-) हे राजाओं के मुकुटमRण! सु नए, आपके समान ध7य और कोई नह.ं है ,
िजनके राम-ल'मण जैसे प-
ु हP, जो दोन= ,व/व के ,वभष
ू ण हP॥291॥
चौपाई :
* पछ
ू न जोगु न तनय तुJहारे । प^
ु ष0संघ तहु परु उिजआरे ॥
िज7ह के जस ताप क? आगे। स0स मल.न र8ब सीतल लागे॥1॥
भावाथ#:-आपके पु- पछ
ू ने योdय नह.ं हP। वे प^
ु ष0संह तीन= लोक= के काश Aवfप हP। िजनके
यश के आगे च7oमा म0लन और ताप के आगे सय
ू O शीतल लगता है॥1॥
* त7ह कहँ कहअ नाथ Bक0म ची7हे । दे Rखअ र8ब Bक द.प कर ल.7हे॥
सीय Aवयंबर भूप अनेका। स0मटे सभ
ु ट एक त? एका॥2॥
भावाथ#:-हे नाथ! उनके 0लए आप कहते हP Bक उ7ह? कैसे पहचाना! iया सय
ू O को हाथ म? द.पक
लेकर दे खा जाता है? सीताजी के Aवयंवर म? अनेक= राजा और एक से एक बढ़कर योkधा एक-
हुए थे॥2॥
* सकइ उठाइ सरासरु मेf। सोउ हयँ हा!र गयउ क!र फेf॥
जेहं कौतक
ु 0सवसैलु उठावा। सोउ तेह सभाँ पराभउ पावा॥4॥
भावाथ#:-बाणासुर, जो सुमे^ को भी उठा सकता था, वह भी sदय म? हारकर प!रमा करके चला
गया और िजसने खेल से ह. कैलास को उठा 0लया था, वह रावण भी उस सभा म? पराजय को
ात हुआ॥4॥
दोहा :
* तहाँ राम रघुबंसम न सु नअ महा महपाल।
भंजेउ चाप यास 8बनु िज0म गज पंकज नाल॥292॥
भावाथ#:-हे महाराज! सु नए, वहाँ (जहाँ ऐसे-ऐसे योkधा हार मान गए) रघव
ु श
ं मRण $ी
रामच7oजी ने 8बना ह. यास 0शवजी के धनुष को वैसे ह. तोड़ डाला जैसे हाथी कमल कM डंड ी
को तोड़ डालता है !॥292॥
चौपाई :
* सु न सरोष भग ृ न
ु ायकु आए। बहुत भाँ त त7ह आँRख दे खाए॥
दे Rख राम बलु नज धनु द.7हा। क!रबहु 8बनय गवनु बन कM7हा॥1॥
भावाथ#:-धनुष टूटने कM बात सन
ु कर परशुरामजी ोध म? भरे आए और उ7ह=ने बहुत कार से
आँख? दखला}। अंत म? उ7ह=ने भी $ी रामच7oजी का बल दे खकर उ7ह? अपना धनष ु दे दया
और बहुत कार से ,वनती करके वन को गमन Bकया॥1॥
दोहा :
* तब उठ भूप ब0स[ट कहुँ द.ि7ह प8-का जाई।
कथा सुनाई गुरह सब सादर दतू बोलाइ॥293॥
भावाथ#:-तब राजा ने उठकर व0श[ठजी के पास जाकर उ7ह? प8-का द. और आदरपव
ू क
O दत
ू = को
बल
ु ाकर सार. कथा गु^जी को सन
ु ा द.॥293॥
चौपाई :
* सु न बोले गुर अ त सख
ु ु पाई। पु7य पु^ष कहुँ मह सुख छाई॥
िज0म स!रता सागर महुँ जाह.ं। जkय,प ताह कामना नाह.ं॥1॥
भावाथ#:-सब समाचार सुनकर और अNय7त सुख पाकर ग^
ु बोले- पx
ु याNमा प^
ु ष के 0लए प4
ृ वी
सखु = से छाई हुई है । जैसे नदयाँ समo
ु म? जाती हP, यkय,प समo
ु को नद. कM कामना नह.ं
होती॥1॥
* त0म सख
ु संप त 8बनहं बोलाएँ। धरमसील पहं जाहं सभ
ु ाएँ॥
तुJह गुर 8ब धेनु सुर सेबी। त0स पुनीत कौसZया दे बी॥2॥
भावाथ#:-वैसे ह. सुख और सJप,T 8बना ह. बल
ु ाए Aवाभा,वक ह. धमाONमा प^
ु ष के पास जाती
है । तुम जैसे गु^, CाDमण, गाय और दे वता कM सेवा करने वाले हो, वैसी ह. प,व- कौसZयादे वी
भी हP॥2॥
दोहा :
* चलहु बेग स ु न गरु बचन भलेहं नाथ 0स^ नाई।
भूप त गवने भवन तब दत ू 7ह बासु दे वाइ॥294॥
भावाथ#:-और जZद. चलो। गु^जी के ऐसे वचन सुनकर, हे नाथ! बहुत अqछा कहकर और 0सर
नवाकर तथा दतू = को डेरा दलवाकर राजा महल म? गए॥294॥
चौपाई :
* राजा सबु र नवास बोलाई। जनक प8-का बाच सन
ु ाई॥
स ु न संदेसु सकल हरषानीं। अपर कथा सब भप
ू बखानीं॥1॥
भावाथ#:-राजा ने सारे र नवास को बल
ु ाकर जनकजी कM प8-का बाँचकर सुनाई। समाचार सुनकर
सब रा नयाँ हषO से भर ग}। राजा ने Bफर दस
ू र. सब बात= का (जो दत
ू = के मख
ु से सुनी थीं)
वणOन Bकया॥1॥
सोरठा :
* जाचक 0लए हँका!र द.ि7ह नछाव!र कोट 8बध।
च^ जीवहुँ सतु चा!र चब तO दसरNथ के॥295॥
भावाथ#:-Bफर 0भWुक= को बल
ु ाकर करोड़= कार कM नछावर? उनको द.ं। 'चवत महाराज
दशरथ के चार= पु- चरं जीवी ह='॥295॥
चौपाई :
* कहत चले पहर? पट नाना। हर,ष हने गहगहे नसाना॥
समाचार सब लोग7ह पाए। लागे घर-घर होन बधाए॥1॥
भावाथ#:-य= कहते हुए वे अनेक कार के सद
ंु र वA- पहन-पहनकर चले। आनंदत होकर नगाड़े
वाल= ने बड़े जोर से नगाड़= पर चोट लगाई। सब लोग= ने जब यह समाचार पाया, तब घर-घर
बधावे होने लगे॥1॥
दोहा :
* मंगलमय नज नज भवन लोग7ह रचे बनाइ।
बीथीं सींचीं चतरु सम चौक? चा^ परु ाइ॥296॥
भावाथ#:-लोग= ने अपने-अपने घर= को सजाकर मंगलमय बना 0लया। ग0लय= को चतुर सम से
सींचा और (kवार= पर) सुंदर चौक परु ाए। (चंदन, केशर, कAतूर. और कपरू से बने हुए एक
सुगं धत oव को चतरु सम कहते हP)॥296॥
चौपाई :
* जहँ तहँ जूथ जूथ 0म0ल भा0म न। सिज नव सत सकल द ु त दा0म न॥
8बधब
ु दनीं मग
ृ सावक लोच न। नज सfप र त मानु 8बमोच न॥1॥
भावाथ#:-8बजल. कM सी कां त वाल. च7oमुखी, ह!रन के बqचे के से ने- वाल. और अपने सद
ुं र
fप से कामदे व कM A-ी र त के अ0भमान को छुड़ाने वाल. सह
ु ागनी िA-याँ सभी सोलह= $ंग
ृ ार
सजकर, जहाँ-तहाँ झंडु कM झंडु 0मलकर,॥1॥
दोहा :
* सोभा दसरथ भवन कइ को क8ब बरनै पार।
जहाँ सकल सरु सीस म न राम ल.7ह अवतार॥297॥
भावाथ#:-दशरथ के महल कM शोभा का वणOन कौन क,व कर सकता है , जहाँ समAत दे वताओं के
0शरोमRण रामच7oजी ने अवतार 0लया है॥297॥
चौपाई :
* भूप भरत प ु न 0लए बोलाई। हय गयAयंदन साजहु जाई॥
चलहु बेग रघुबीर बराता। सुनत पल
ु क पूरे दोउ tाता॥1॥
भावाथ#:-Bफर राजा ने भरतजी को बल
ु ा 0लया और कहा Bक जाकर घोड़े, हाथी और रथ सजाओ,
जZद. रामच7oजी कM बारात म? चलो। यह सुनते ह. दोन= भाई (भरतजी और श-ुनजी)
आनंदवश पुलक से भर गए॥1॥
दोहा :
* छरे छबीले छयल सब सूर सज
ु ान नबीन।
जुग पदचर असवार त जे अ0सकला बीन॥298॥
भावाथ#:-सभी चन
ु े हुए छबीले छै ल, शूरवीर, चतुर और नवयुवक हP। Nयेक सवार के साथ दो
पैदल 0सपाह. हP, जो तलवार चलाने कM कला म? बड़े नपण ु हP॥298॥
चौपाई :
* बाँध? 8बरद बीर रन गाढ़े । नक0स भए पुर बाहेर ठाढ़े ॥
फेरहं चतुर तुरग ग त नाना। हरषहं सु न सु न पनव नसाना॥1॥
भावाथ#:-शरू ता का बाना धारण Bकए हुए रणधीर वीर सब नकलकर नगर के बाहर आ खड़े हुए।
वे चतुर अपने घोड़= को तरह-तरह कM चाल= से फेर रहे हP और भेर. तथा नगाड़े कM आवाज
सुन-सुनकर स7न हो रहे हP॥1॥
दोहा :
* चढ़ चढ़ रथ बाहे र नगर लागी जुरन बरात।
होत सगुन सुंदर सबह जो जेह कारज जात॥299॥
भावाथ#:-रथ= पर चढ़-चढ़कर बारात नगर के बाहर जट
ु ने लगी, जो िजस काम के 0लए जाता है,
सभी को सुंदर शकुन होते हP॥299॥
चौपाई :
* क0लत क!रबरि7ह पर.ं अँबार.ं। कह न जाहं जेह भाँ त सँवार.ं॥
चले मT गज घंट 8बराजी। मनहुँ सुभग सावन घन राजी॥1।
भावाथ#:-$े[ठ हाथय= पर सुंदर अंबा!रयाँ पड़ी हP। वे िजस कार सजाई गई थीं, सो कहा नह.ं
जा सकता। मतवाले हाथी घंट= से सुशो0भत होकर (घंटे बजाते हुए) चले, मानो सावन के सुंदर
बादल= के समूह (गरते हुए) जा रहे ह=॥
* मागध सत
ू बंध गन
ु गायक। चले जान चढ़ जो जेह लायक॥
बेसर ऊँट बषृ भ बहु जाती। चले बAतु भ!र अग नत भाँती॥3॥
भावाथ#:-मागध, सूत, भाट और गुण गाने वाले सब, जो िजस योdय थे, वैसी सवार. पर चढ़कर
चले। बहुत जा तय= के खqचर, ऊँट और बैल असंय= कार कM वAतुएँ लाद-लादकर चले॥3॥
दोहा :
* सब क? उर नभOर हरषु पू!रत पल
ु क सर.र।
कबहं दे Rखबे नयन भ!र रामु लखनु दोउ बीर॥300॥
भावाथ#:-सबके sदय म? अपार हषO है और शर.र पल
ु क से भरे हP। (सबको एक ह. लालसा लगी
है Bक) हम $ी राम-ल'मण दोन= भाइय= को ने- भरकर कब दे ख?गे॥300॥
चौपाई :
* गरजहं गज घंटा धु न घोरा। रथ रव बािज हंस चहु ओरा॥
नद!र घनह घुJमOरहं नसाना। नज पराइ कछु सु नअ न काना॥1॥
भावाथ#:-हाथी गरज रहे हP, उनके घंट= कM भीषण ~व न हो रह. है। चार= ओर रथ= कM घरघराहट
और घोड़= कM हनहनाहट हो रह. है । बादल= का नरादर करते हुए नगाड़े घोर शXद कर रहे हP।
Bकसी को अपनी-पराई कोई बात कान= से सन ु ाई नह.ं दे ती॥1॥
* महा भीर भप
ू त के kवार? । रज होइ जाइ पषान पबार? ॥
चढ़. अटा!र7ह दे खहं नार.ं। 0लएँ आरती मंगल थार.ं॥2॥
भावाथ#:-राजा दशरथ के दरवाजे पर इतनी भार. भीड़ हो रह. है Bक वहाँ पNथर फ?का जाए तो
वह भी ,पसकर धूल हो जाए। अटा!रय= पर चढ़. िA-याँ मंगल थाल= म? आरती 0लए दे ख रह.
हP॥2॥
* दोउ रथ ^चर भूप पहं आने। नहं सारद पहं जाहं बखाने॥
राज समाजु एक रथ साजा। दस
ू र तेज पज
ुं अ त tाजा॥4॥
भावाथ#:-दोन= संद
ु र रथ वे राजा दशरथ के पास ले आए, िजनकM संद
ु रता का वणOन सरAवती से
भी नह.ं हो सकता। एक रथ पर राजसी सामान सजाया गया और दस
ू रा जो तेज का पज
ुं और
अNय7त ह. शोभायमान था,॥4॥
दोहा :
* तेहं रथ ^चर ब0स[ठ कहुँ हर,ष चढ़ाई नरे सु।
आपु चढ़े उ Aयंदन सु0म!र हर गुर गौ!र गनेसु॥301॥
भावाथ#:-उस संद
ु र रथ पर राजा व0श[ठजी को हषO पव
ू क
O चढ़ाकर Bफर Aवयं 0शव, ग^
ु , गौर.
(पावOती) और गणेशजी का Aमरण करके (दस
ू रे ) रथ पर चढ़े ॥301॥
चौपाई :
* सहत ब0स[ठ सोह नप
ृ कैस?। सुर गुर संग परु ं दर जैस?॥
क!र कुल र. त बेद 8बध राऊ। दे Rख सबह सब भाँ त बनाऊ॥1॥
भावाथ#:-व0श[ठजी के साथ (जाते हुए) राजा दशरथजी कैसे शो0भत हो रहे हP, जैसे दे व गु^
बहृ Aप तजी के साथ इ7o ह=। वेद कM ,वध से और कुल कM र. त के अनस ु ार सब कायO करके
तथा सबको सब कार से सजे दे खकर,॥1॥
* स0ु म!र रामु गरु आयसु पाई। चले मह.प त संख बजाई॥
हरषे 8बबध
ु 8बलोBक बराता। बरषहं सम
ु न स ुम ग
ं ल दाता॥2॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी का Aमरण करके, गु^ कM आgा पाकर प4
ृ वी प त दशरथजी शंख
बजाकर चले। बारात दे खकर दे वता ह,षOत हुए और सुंदर मंगलदायक फूल= कM वषाO करने
लगे॥2॥
दोहा :
* तुरग नचावहं कुअँर बर अक न मद
ृ ं ग नसान।
नागर नट चतवहं चBकत डगहं न ताल बँधान॥302॥
भावाथ#:-सुंदर राजकुमार मद
ृ ं ग और नगाड़े के शXद सुनकर घोड़= को उ7ह.ं के अनुसार इस
कार नचा रहे हP Bक वे ताल के बंधान से जरा भी डगते नह.ं हP। चतुर नट चBकत होकर यह
दे ख रहे हP॥302॥
चौपाई :
* बनइ न बरनत बनी बराता। होहं सगुन सुंदर सभ
ु दाता॥
चारा चाषु बाम द0स लेई। मनहुँ सकल मंगल कह दे ई॥1॥
भावाथ#:-बारात ऐसी बनी है Bक उसका वणOन करते नह.ं बनता। सद
ुं र शुभदायक शकुन हो रहे
हP। नीलकंठ पWी बा} ओर चारा ले रहा है , मानो सJपण
ू O मंगल= कM सूचना दे रहा हो॥।1॥
दोहा :
* मंगलमय कZयानमय अ0भमत फल दातार।
जनु सब साचे होन हत भए सगन
ु एक बार॥303॥
भावाथ#:-सभी मंगलमय, कZयाणमय और मनोवां छत फल दे ने वाले शकुन मानो सqचे होने के
0लए एक ह. साथ हो गए॥303॥
चौपाई :
* मंगल सगन
ु सुगम सब ताक?। सगुन CDम सद
ुं र सुत जाक?॥
राम स!रस ब^ दल
ु ह न सीता। समधी दसरथु जनकु पन
ु ीता॥1॥
भावाथ#:-Aवयं सगण
ु CDम िजसके सद
ंु र प-
ु हP, उसके 0लए सब मंगल शकुन सल
ु भ हP। जहाँ $ी
रामच7oजी सर.खे दZ
ू हा और सीताजी जैसी दल
ु हन हP तथा दशरथजी और जनकजी जैसे प,व-
समधी हP,॥1॥
* सु न अस Xयाहु सगन
ु सब नाचे। अब कM7हे 8बरं च हम साँच॥
े
एह 8बध कM7ह बरात पयाना। हय गय गाजहं हने नसाना॥2॥
भावाथ#:-ऐसा Xयाह सन
ु कर मानो सभी शकुन नाच उठे (और कहने लगे-) अब CDमाजी ने
हमको सqचा कर दया। इस तरह बारात ने Aथान Bकया। घोड़े, हाथी गरज रहे हP और नगाड़=
पर चोट लग रह. है ॥2॥
* आवत जा न भानक
ु ु ल केतू। स!रति7ह जनक बँधाए सेत॥
ू
बीच-बीच बर बास बनाए। सुरपरु स!रस संपदा छाए॥3॥
भावाथ#:-सूयव
O श
ं के पताका Aवfप दशरथजी को आते हुए जानकर जनकजी ने नदय= पर पल ु
बँधवा दए। बीच-बीच म? ठहरने के 0लए सद
ुं र घर (पड़ाव) बनवा दए, िजनम? दे वलोक के
समान सJपदा छाई है ,॥3॥
दोहा :
* आवत जा न बरात बर सु न गहगहे नसान।
सिज गज रथ पदचर तरु ग लेन चले अगवान॥304॥
भावाथ#:-बड़े जोर से बजते हुए नगाड़= कM आवाज सुनकर $े[ठ बारात को आती हुई जानकर
अगवानी करने वाले हाथी, रथ, पैदल और घोड़े सजाकर बारात लेने चले॥304॥
चौपाई :
* कनक कलस भ!र कोपर थारा। भाजन ल0लत अनेक कारा॥
भरे सुधा सम सब पकवाने। नाना भाँ त न जाहं बखाने॥1॥
भावाथ#:-(दध
ू , शबOत, ठं डाई, जल आद से) भरकर सोने के कलश तथा िजनका वणOन नह.ं हो
सकता ऐसे अमतृ के समान भाँ त-भाँ त के सब पकवान= से भरे हुए परात, थाल आद
अनेक कार के संुदर बतOन,॥1॥
दोहा :
* हर,ष परसपर 0मलन हत कछुक चले बगमेल।
जनु आनंद समo
ु दइ
ु 0मलत 8बहाइ सुबेल॥305॥
भावाथ#:-(बाराती तथा अगवान= म? से) कुछ लोग परAपर 0मलने के 0लए हषO के मारे बाग
छोड़कर (सरपट) दौड़ चले और ऐसे 0मले मानो आनंद के दो समo
ु मयाOदा छोड़कर 0मलते
ह=॥305॥
चौपाई :
* बर,ष सुमन सुर संुद!र गावहं। मुदत दे व दं द
ु भ
ु ीं बजावहं॥
बAतु सकल राखीं नप
ृ आग? । 8बनय कMि7ह त7ह अ त अनरु ाग? ॥1॥
भावाथ#:-दे वसंद
ु !रयाँ फूल बरसाकर गीत गा रह. हP और दे वता आनंदत होकर नगाड़े बजा रहे
हP। (अगवानी म? आए हुए) उन लोग= ने सब चीज? दशरथजी के आगे रख द.ं और अNय7त
ेम से ,वनती कM॥1॥
दोहा :
* 0सध सब 0सय आयसु अक न ग} जहाँ जनवास।
0लएँ संपदा सकल सुख सुरपुर भोग 8बलास॥306॥
भावाथ#:-सीताजी कM आgा सुनकर सब 0सkधयाँ जहाँ जनवासा था, वहाँ सार. सJपदा, सुख
और इंoपुर. के भोग-,वलास को 0लए हुए ग}॥306॥
चौपाई :
* नज नज बास 8बलोBक बराती। सुर सुख सकल सुलभ सब भाँती॥
8बभव भेद कछु कोउ न जाना। सकल जनक कर करहं बखाना॥1॥
भावाथ#:-बारा तय= ने अपने-अपने ठहरने के Aथान दे खे तो वहाँ दे वताओं के सब सुख= को सब
कार से सल
ु भ पाया। इस ऐ/वयO का कुछ भी भेद कोई जान न सका। सब जनकजी कM
बड़ाई कर रहे हP॥1॥
दोहा :
* भप
ू 8बलोके जबहं मु न आवत सुत7ह समेत।
उठे हर,ष सुख0संधु महुँ चले थाह सी लेत॥307॥
भावाथ#:-जब राजा दशरथजी ने पु-= सहत म ु न को आते दे खा, तब वे ह,षOत होकर उठे और
सख
ु के समुo म? थाह सी लेते हुए चले॥307॥
चौपाई :
* म ु नह दं ड वत कM7ह मह.सा। बार बार पद रज ध!र सीसा॥
कौ0सक राउ 0लए उर लाई। कह असीस पूछv कुसलाई॥1॥
भावाथ#:-प4
ृ वीप त दशरथजी ने म ु न कM चरणध0ू ल को बारं बार 0सर पर चढ़ाकर उनको
दxडवत ् णाम Bकया। ,व/वा0म-जी ने राजा को उठाकर sदय से लगा 0लया और आशीवाOद
दे कर कुशल पछ
ू v॥1॥
* भरत सहानज
ु कM7ह नामा। 0लए उठाइ लाइ उर रामा॥
हरषे लखन दे Rख दोउ tाता। 0मले ेम प!रप!ू रत गाता॥4॥
भावाथ#:-भरतजी ने छोटे भाई श-
ु न सहत $ी रामच7oजी को णाम Bकया। $ी रामजी ने
उ7ह? उठाकर sदय से लगा 0लया। ल'मणजी दोन= भाइय= को दे खकर ह,षOत हुए और ेम
से प!रपूणO हुए शर.र से उनसे 0मले॥4॥
दोहा :
* परु जन प!रजन जा तजन जाचक मं-ी मीत।
0मले जथा8बध सबह भु परम कृपाल 8बनीत॥308॥
भावाथ#:-तद7तर परम कृपालु और ,वनयी $ी रामच7oजी अयो~यावा0सय=, कुटुिJबय=, जा त
के लोग=, याचक=, मं8-य= और 0म-= सभी से यथा योdय 0मले॥308॥
* रामह दे Rख बरात जड़
ु ानी। ी त Bक र. त न जा त बखानी॥
नप
ृ समीप सोहहं सुत चार.। जनु धन धरमादक तनध
ु ार.॥1॥
$ी रामच7oजी को दे खकर बारात शीतल हुई (राम के ,वयोग म? सबके sदय म? जो
भावाथ#:-
चौपाई :
* सुत7ह समेत दसरथह दे खी। मु दत नगर नर ना!र 8बसेषी॥
सम
ु न ब!र0स सरु हनहं नसाना। नाकनट.ं नाचहं क!र गाना॥2॥
भावाथ#:-पु-=
सहत दशरथजी को दे खकर नगर के A-ी-पु^ष बहुत ह. स7न हो रहे हP।
(आकाश म? ) दे वता फूल= कM वषाO करके नगाड़े बजा रहे हP और असराएँ गा-गाकर नाच रह.
हP॥2॥
चौपाई :
* जनक सक
ु ृ त मरू त बैदेह.। दसरथ सक
ु ृ त रामु धर? दे ह.॥
इ7ह सम काहुँ न 0सव अवराधे। काहुँ न इ7ह समान फल लाधे॥1॥
भावाथ#:-जनकजी के सुकृत (पुxय) कM मू तO जानकMजी हP और दशरथजी के सुकृत दे ह धारण
Bकए हुए $ी रामजी हP। इन (दोन= राजाओं) के समान Bकसी ने 0शवजी कM आराधना नह.ं
कM और न इनके समान Bकसी ने फल ह. पाए॥1॥
दोहा :
* बारहं बार सनेह बस जनक बोलाउब सीय।
लेन आइहहं बंधु दोउ कोट काम कमनीय॥310॥
भावाथ#:-जनकजी Aनेहवश बार-बार सीताजी को बल
ु ाव? गे और करोड़= कामदे व= के समान संद
ु र
दोन= भाई सीताजी को लेने (,वदा कराने) आया कर? ग॥
े 310॥
चौपाई :
* 8ब8बध भाँ त होइह पहुनाई। , य न काह अस सासुर माई॥
तब तब राम लखनह नहार.। होइहहं सब पुर लोग सुखार.॥1॥
भावाथ#:-तब उनकM अनेक=
कार से पहुनाई होगी। सखी! ऐसी ससुराल Bकसे यार. न होगी!
तब-तब हम सब नगर नवासी $ी राम-ल'मण को दे ख-दे खकर सुखी ह=गे॥1॥
* लखनु स-स
ु ूदनु एकfपा। नख 0सख ते सब अंग अनप
ू ा॥
मन भावहं मुख बर न न जाह.ं। उपमा कहुँ 8-भुवन कोउ नाह.ं॥4॥
भावाथ#:-ल'मण और श-
ु न दोन= का एक fप है। दोन= के नख से 0शखा तक सभी अंग
अनप
ु म हP। मन को बड़े अqछे लगते हP, पर मुख से उनका वणOन नह.ं हो सकता। उनकM
उपमा के योdय तीन= लोक= म? कोई नह.ं है ॥4॥
छ6द :
* उपमा न कोउ कह दास तल
ु सी कतहुँ क8ब को8बद कहP।
बल 8बनय 8बkया सील सोभा 0संधु इ7ह से एइ अहP॥
पुर ना!र सकल पसा!र अंचल 8बधह बचन सन
ु ावह.ं॥
Xयाहअहुँ चा!रउ भाइ एहं पुर हम सुमंगल गावह.ं॥
भावाथ#:-दास तल
ु सी कहता है क,व और को,वद (,वkवान) कहते हP , इनकM उपमा कह.ं कोई
नह.ं है। बल, ,वनय, ,वkया, शील और शोभा के समुo इनके समान ये ह. हP। जनकपुर कM
सब िA-याँ आँचल फैलाकर ,वधाता को यह वचन (,वनती) सुनाती हP Bक चार= भाइय= का
,ववाह इसी नगर म? हो और हम सब संद
ु र मंगल गाव? ।
सोरठा :
* कहहं परAपर ना!र बा!र 8बलोचन पल
ु क तन।
सRख सबु करब परु ा!र पु7य पयो नध भूप दोउ॥311॥
भावाथ#:-ने-= म? ( ेमा$ुओं का) जल भरकर पल
ु Bकत शर.र से िA-याँ आपस म? कह रह. हP Bक
हे सखी! दोन= राजा पुxय के समुo हP, 8-पुरार. 0शवजी सब मनोरथ पूणO कर? गे॥311॥
चौपाई :
* एह 8बध सकल मनोरथ करह.ं। आनँद उमग उमग उर भरह.ं॥
जे नप
ृ सीय Aवयंबर आए। दे Rख बंधु सब त7ह सख
ु पाए॥1॥
भावाथ#:-इस कार सब मनोरथ कर रह. हP और sदय को उमंग-उमंगकर (उNसाहपव
ू क
O ) आनंद
से भर रह. हP। सीताजी के Aवयंवर म? जो राजा आए थे, उ7ह=ने भी चार= भाइय= को
दे खकर सख
ु पाया॥1॥
* मंगल मूल लगन दनु आवा। हम !रतु अगहनु मासु सुहावा॥
wह तथ नखतु जोगु बर बाf। लगन सोध 8बध कM7ह 8बचाf॥3॥
भावाथ#:-मंगल= का मल
ू लdन का दन आ गया। हे मंत ऋतु और सुहावना अगहन का मह.ना
था। wह, तथ, नW-, योग और वार $े[ठ थे। लdन (मुहूत)O शोधकर CDमाजी ने उस पर
,वचार Bकया,॥3॥
दोहा :
* धेनध
ु !ू र बेला 8बमल सकल सुमंगल मल
ू ।
8ब 7ह कहे उ 8बदे ह सन जा न सगन
ु अनक
ु ू ल॥312॥
भावाथ#:- नमOल और सभी संद
ु र मंगल= कM मल
ू गोध0ू ल कM प,व- बेला आ गई और अनक
ु ूल
शकुन होने लगे, यह जानकर CाDमण= ने जनकजी से कहा॥312॥
चौपाई :
* उपरोहतह कहे उ नरनाहा। अब 8बलंब कर कारनु काहा॥
सतानंद तब सचव बोलाए। मंगल सकल सािज सब Zयाए॥1॥
भावाथ#:-तब राजा जनक ने पुरोहत शतानंदजी से कहा Bक अब दे र. का iया कारण है । तब
शतानंदजी ने मं8-य= को बुलाया। वे सब मंगल का सामान सजाकर ले आए॥1॥
* संख नसान पनव बहु बाजे। मंगल कलस सगन ु सुभ साजे॥
सभ
ु ग सुआ0स न गावहं गीता। करहं बेद ध ु न 8ब पुनीता॥2॥
भावाथ#:-शंख,
नगाड़े, ढोल और बहुत से बाजे बजने लगे तथा मंगल कलश और शभ ु शकुन
कM वAतए
ु ँ (दध, दवू ाO आद) सजाई ग}। संद
ु र सुहागन िA-याँ गीत गा रह. हP और प,व-
CाDमण वेद कM ~व न कर रहे हP॥2॥
दोहा :
* भाdय 8बभव अवधेस कर दे Rख दे व CDमाद।
लगे सराहन सहस मुख जा न जनम नज बाद॥313॥
भावाथ#:-अवध नरे श दशरथजी का भाdय और वैभव दे खकर और अपना ज7म cयथO समझकर,
CDमाजी आद दे वता हजार= मुख= से उसकM सराहना करने लगे॥313॥
चौपाई :
* सुर7ह सम
ु ंगल अवस^ जाना। बरषहं सुमन बजाइ नसाना॥
0सव CDमादक 8बबुध बfथा। चढ़े 8बमानि7ह नाना जूथा॥1॥
भावाथ#:-दे वगण संद
ु र मंगल का अवसर जानकर, नगाड़े बजा-बजाकर फूल बरसाते हP। 0शवजी,
CDमाजी आद दे वव7ृ द यथ
ू (टो0लयाँ) बना-बनाकर ,वमान= पर जा चढ़े ॥1॥
* ेम पल
ु क तन sदयँ उछाहू। चले 8बलोकन राम 8बआहू॥
दे Rख जनकपु^ सुर अनरु ागे। नज नज लोक सबहं लघु लागे॥2॥
भावाथ#:-और ेम से पल
ु Bकत शर.र हो तथा sदय म? उNसाह भरकर $ी रामच7oजी का ,ववाह
दे खने चले। जनकपुर को दे खकर दे वता इतने अनरु iत हो गए Bक उन सबको अपने-अपने
लोक बहुत तq
ु छ लगने लगे॥2॥
म? तारागण फMके पड़ जाते हP। CDमाजी को ,वशेष आ/चयO हुआ, iय=Bक वहाँ उ7ह=ने अपनी
कोई करनी (रचना) तो कह.ं दे खी ह. नह.ं॥4॥
दोहा :
* 0सवँ समुझाए दे व सब ज न आचरज भुलाहु।
sदयँ 8बचारहु धीर ध!र 0सय रघुबीर 8बआहु॥314॥
भावाथ#:-तब 0शवजी ने सब दे वताओं को समझाया Bक तम
ु लोग आ/चयO म? मत भल
ू ो। sदय
म? धीरज धरकर ,वचार तो करो Bक यह (भगवान कM महामहमामयी नजशिiत) $ी
सीताजी का और (अRखल CDमाxड= के परम ई/वर साWात ् भगवान) $ी रामच7oजी का
,ववाह है ॥314॥
चौपाई :
* िज7ह कर नामु लेत जग माह.ं। सकल अमंगल मूल नसाह.ं॥
करतल होहं पदारथ चार.। तेइ 0सय रामु कहे उ कामार.॥1॥
भावाथ#:-िजनका नाम लेते ह. जगत म? सारे अमंगल= कM जड़ कट जाती है और चार= पदाथO
(अथO, धमO, काम, मोW) मु{ठv म? आ जाते हP, ये वह. (जगत के माता-,पता) $ी
सीतारामजी हP, काम के श-ु 0शवजी ने ऐसा कहा॥1॥
दोहा :
* राम fपु नख 0सख सुभग बारहं बार नहा!र।
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरा!र॥315॥
भावाथ#:-नख
से 0शखा तक $ी रामच7oजी के संद
ु र fप को बार-बार दे खते हुए पावOतीजी
सहत $ी 0शवजी का शर.र पल
ु Bकत हो गया और उनके ने- ( ेमा$ओ ु ं के) जल से भर
गए॥315॥
चौपाई :
* केBक कंठ द ु त Aयामल अंगा। तड़त 8ब नंदक बसन सुरंगा॥
Xयाह 8बभूषन 8ब8बध बनाए। मंगल सब सब भाँ त सुहाए॥1॥
भावाथ#:-रामजी का मोर के कंठ कM सी कां तवाला (ह!रताभ) /याम शर.र है । 8बजल. का
अNय7त नरादर करने वाले काशमय संद
ु र (पीत) रं ग के वA- हP। सब मंगल fप और सब
कार के संद
ु र भाँ त-भाँ त के ,ववाह के आभष
ू ण शर.र पर सजाए हुए हP॥1॥
छ6द :
* जनु बािज बेषु बनाइ मन0सजु राम हत अ त सोहई।
आपन? बय बल fप गन
ु ग त सकल भव
ु न 8बमोहई॥
जगमगत जीनु जराव जो त सुमो त म न मा नक लगे।
BकंBक न ललाम लगामु ल0लत 8बलोBकसुर नर मु न ठगे॥
भावाथ#:-मानो $ी रामच7oजी के 0लए कामदे व घोड़े का वेश बनाकर अNय7त शो0भत हो रहा
है । वह अपनी अवAथा, बल, fप, गण
ु और चाल से समAत लोक= को मोहत कर रहा है।
उसकM संद
ु र घघ
ुँ f लगी ल0लत लगाम को दे खकर दे वता, मन[ु य और मु न सभी ठगे जाते
हP।
दोहा :
* भु मनसहं लयल.न मनु चलत बािज छ8ब पाव।
भ,ू षत उड़गन तड़त घनु जनु बर बरह नचाव॥316॥
भावाथ#:-भु कM इqछा म? अपने मन को ल.न Bकए चलता हुआ वह घोड़ा बड़ी शोभा पा रहा
है । मानो तारागण तथा 8बजल. से अलंकृत मेघ संद
ु र मोर को नचा रहा हो॥316॥
चौपाई :
* जेहं बर बािज रामु असवारा। तेह सारदउ न बरनै पारा॥
संक^ राम fप अनरु ागे। नयन पंचदस अ त , य लागे॥1॥
भावाथ#:-िजस $े[ठ घोड़े पर $ी रामच7oजी सवार हP, उसका वणOन सरAवतीजी भी नह.ं कर
सकतीं। शंकरजी $ी रामच7oजी के fप म? ऐसे अनरु iत हुए Bक उ7ह? अपने पंoह ने- इस
समय बहुत ह. यारे लगने लगे॥1॥
छ6द :
* अ त हरषु राजसमाज दहु ु द0स दं द
ु भ
ु ीं बाजहं घनी।
बरषहं सुमन सुर हर,ष कह जय जय त जय रघक
ु ु लमनी॥
एह भाँ त जा न बरात आवत बाजने बहु बाजह.ं।
रानी सुआ0स न बो0ल प!रछ न हे तु मंगल साजह.ं॥
भावाथ#:-दोन= ओर से राजसमाज म? अNय7त हषO है और बड़े जोर से नगाड़े बज रहे हP। दे वता
स7न होकर और 'रघक
ु ु लमRण $ी राम कM जय हो, जय हो, जय हो' कहकर फूल बरसा
रहे हP। इस कार बारात को आती हुई जानकर बहुत कार के बाजे बजने लगे और रानी
सुहागन िA-य= को बल
ु ाकर परछन के 0लए मंगल ocय सजाने लगीं॥
दोहा :
* सिज आरती अनेक 8बध मंगल सकल सँवा!र।
चल.ं मुदत प!रछ न करन गजगा0म न बर ना!र॥317॥
भावाथ#:-अनेक कार से आरती सजकर और समAत मंगल ocय= को यथायोdय सजाकर
गजगा0मनी (हाथी कM सी चाल वाल.) उTम िA-याँ आनंदपव
ू Oक परछन के 0लए चल.ं॥317॥
चौपाई :
* 8बधब
ु दनीं सब सब मग
ृ लोच न। सब नज तन छ8ब र त मद ु मोच न॥
पहर? बरन बरन बर चीरा। सकल 8बभूषन सज? सर.रा॥1॥
भावाथ#:-सभी िA-याँ च7oमुखी (च7oमा के समान मुख वाल.) और सभी मग
ृ लोचनी (ह!रण
कM सी आँख= वाल.) हP और सभी अपने शर.र कM शोभा से र त के गवO को छुड़ाने वाल. हP।
रं ग-रं ग कM संद
ु र साड़याँ पहने हP और शर.र पर सब आभूषण सजे हुए हP॥1॥
छ6द :
* को जान केह आनंद बस सब CDमु बर प!रछन चल.।
कल गान मधरु नसान बरषहं सुमन सुर सोभा भल.॥
आनंदकंद ु 8बलोBक दल
ू हु सकलहयँ हर,षत भई।
अंभोज अंबक अंबु उमग सुअंग पुलकाव0ल छई॥
भावाथ#:-कौन
Bकसे जाने-पहचाने! आनंद के वश हुई सब दल ू ह बने हुए CDम का परछन
करने चल.ं। मनोहर गान हो रहा है । मधरु -मधरु नगाड़े बज रहे हP, दे वता फूल बरसा रहे हP,
बड़ी अqछv शोभा है । आनंदक7द दल ू ह को दे खकर सब िA-याँ sदय म? ह,षOत हु}। उनके
कमल सर.खे ने-= म? ेमा$ओु ं का जल उमड़ आया और संुदर अंग= म? पुलकावल. छा गई॥
दोहा :
* जो सुखु भा 0सय मातु मन दे Rख राम बर बेषु।
सो न सकहं कह कलप सत सहस सारदा सेषु॥318॥
$ी रामच7oजी का वर वेश दे खकर सीताजी कM माता सुनयनाजी के मन म? जो सुख हुआ,
उसे हजार= सरAवती और शेषजी सौ कZप= म? भी नह.ं कह सकते (अथवा लाख= सरAवती
और शेष लाख= कZप= म? भी नह.ं कह सकते)॥318॥
चौपाई :
* नयन नी^ हट मंगल जानी। प!रछ न करहं मुदत मन रानी॥
बेद 8बहत अ^ कुल आचाf। कM7ह भल. 8बध सब Xयवहाf॥1॥
भावाथ#:-मंगल अवसर जानकर ने-= के जल को रोके हुए रानी स7न मन से परछन कर रह.
हP। वेद= म? कहे हुए तथा कुलाचार के अनस
ु ार सभी cयवहार रानी ने भल.भाँ त Bकए॥1॥
छ6द :
* बैठा!र आसन आरती क!र नरRख ब^ सख
ु ु पावह.ं।
म न बसन भूषन भ!ू र वारहं ना!र मंगल गावह.ं॥
CDमाद सुरबर 8ब बेष बनाइ कौतक
ु दे खह.ं।
अवलोBक रघक
ु ु ल कमल र8ब छ8ब सुफल जीवन लेखह.ं॥
भावाथ#:-आसन पर बैठाकर, आरती करके दल
ू ह को दे खकर िA-याँ सुख पा रह. हP। वे ढे र के
ढे र मRण, वA- और गहने नछावर करके मंगल गा रह. हP। CDमा आद $े[ठ दे वता
CाDमण का वेश बनाकर कौतक
ु दे ख रहे हP। वे रघक
ु ु ल fपी कमल को फुिZलत करने वाले
सूयO $ी रामच7oजी कM छ8ब दे खकर अपना जीवन सफल जान रहे हP।
दोहा :
*नाऊ बार. भाट नट राम नछाव!र पाइ।
मुदत असीसहं नाइ 0सर हरषु न sदयँ समाइ॥319॥
भावाथ#:-नाई, बार., भाट और नट $ी रामच7oजी कM नछावर पाकर आनंदत हो 0सर नवाकर
आशीष दे ते हP, उनके sदय म? हषO समाता नह.ं है ॥319॥
चौपाई :
* 0मले जनकु दसरथु अ त ीतीं। क!र बैदक लौBकक सब र.तीं॥
0मलत महा दोउ राज 8बराजे। उपमा खोिज खोिज क8ब लाजे॥1॥
भावाथ#:-वैदक और लौBकक सब र. तयाँ करके जनकजी और दशरथजी बड़े ेम से 0मले।
दोन= महाराज 0मलते हुए बड़े ह. शो0भत हुए, क,व उनके 0लए उपमा खोज-खोजकर लजा
गए॥1॥
छ6द :
* मंड पु 8बलोBक 8बच- रचनाँ ^चरताँ मु न मन हरे ।
नज पा न जनक सुजान सब कहुँ आ न 0संघासन धरे ॥
कुल इ[ट स!रस ब0स[ट पूजे 8बनय क!र आ0सष लह.।
कौ0सकह पूजन परम ी त Bक र. त तौ न परै कह.॥
भावाथ#:-मंड प को दे खकर उसकM ,वच- रचना और संद
ु रता से मु नय= के मन भी हरे गए
(मोहत हो गए)। सुजान जनकजी ने अपने हाथ= से ला-लाकर सबके 0लए 0संहासन रखे।
उ7ह=ने अपने कुल के इ[टदे वता के समान व0श[ठजी कM पज
ू ा कM और ,वनय करके
आशीवाOद ात Bकया। ,व/वा0म-जी कM पूजा करते समय कM परम ी त कM र. त तो कहते
ह. नह.ं बनती॥
दोहा :
* बामदे व आदक !रषय पूजे मुदत मह.स॥
दए दXय आसन सबह सब सन लह. असीस॥320॥
भावाथ#:-राजा ने वामदे व आद ऋ,षय= कM स7न मन से पूजा कM। सभी को दcय आसन
दए और सबसे आशीवाOद ात Bकया॥320॥
चौपाई :
* बहु!र कMि7ह कोसलप त पज
ू ा। जा न ईस सम भाउ न दज
ू ा॥
कMि7ह जो!र कर 8बनय बड़ाई। कह नज भाdय 8बभव बहुताई॥1॥
भावाथ#:-Bफर उ7ह=ने कोसलाधीश राजा दशरथजी कM पज
ू ा उ7ह? ईश (महादे वजी) के समान
जानकर कM, कोई दस
ू रा भाव न था। तद7तर (उनके संबंध से) अपने भाdय और वैभव के
,वAतार कM सराहना करके हाथ जोड़कर ,वनती और बड़ाई कM॥1॥
छ6द :
* पहचान को केह जान सबह अपान सु ध भोर. भई।
आनंद कंद ु 8बलोBक दल
ू हु उभय द0स आनँदमई॥
सुर लखे राम सुजान पूजे मान0सक आसन दए।
अवलोBक सीलु सभ
ु ाउ भु को 8बबुध मन मुदत भए॥
भावाथ#:-कौन
Bकसको जाने-पहचाने! सबको अपनी ह. सुध भल
ू . हुई है । आनंदक7द दल
ू ह को
दे खकर दोन= ओर आनंदमयी िAथ त हो रह. है। सुजान (सवOg) $ी रामच7oजी ने दे वताओं
को पहचान 0लया और उनकM मान0सक पज
ू ा करके उ7ह? मान0सक आसन दए। भु का
शील-Aवभाव दे खकर दे वगण मन म? बहुत आनंदत हुए।
दोहा :
* रामच7o मुख चंo छ8ब लोचन चा^ चकोर।
करत पान सादर सकल ेम ु मोद ु न थोर॥321॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी के मुख fपी च7oमा कM छ8ब को सभी के संद
ु र ने- fपी चकोर
आदरपूवक
O पान कर रहे हP, ेम और आनंद कम नह.ं है (अथाOत बहुत है )॥321॥
चौपाई :
* समउ 8बलोBक ब0स[ठ बोलाए। सादर सतानंद ु सु न आए॥
बेग कुअँ!र अब आनहु जाई। चले मु दत मु न आयसु पाई॥1॥
भावाथ#:-समय दे खकर व0श[ठजी ने शतानंदजी को आदरपवू क
O बल
ु ाया। वे सुनकर आदर के
साथ आए। व0श[ठजी ने कहा- अब जाकर राजकुमार. को शीH ले आइए। मु न कM आgा
पाकर वे स7न होकर चले॥1॥
छ6द :
* च0ल Zयाइ सीतह सखीं सादर सिज सुमंगल भा0मनीं।
नवसत साज? संद
ु र. सब मT कं ु जर गा0मनीं॥
कल गान सु न मु न ~यान Nयागहं काम कोBकल लाजह.ं।
मंजीर नप
ू ुर क0लत कंकन ताल ग त बर बाजह.ं॥
भावाथ#:-संद
ु र मंगल का साज सजकर (र नवास कM) िA-याँ और सRखयाँ आदर सहत सीताजी
को 0लवा चल.ं। सभी संद
ु !रयाँ सोलह= $ंग
ृ ार Bकए हुए मतवाले हाथय= कM चाल से चलने
वाल. हP। उनके मनोहर गान को सुनकर मु न ~यान छोड़ दे ते हP और कामदे व कM कोयल?
भी लजा जाती हP। पायजेब, पPजनी और संद
ु र कंकण ताल कM ग त पर बड़े संुदर बज रहे
हP।
दोहा :
* सोह त ब नता बंद
ृ महुँ सहज सुहाव न सीय।
छ8ब ललना गन म~य जनु सुषमा तय कमनीय॥322॥
भावाथ#:-सहज ह. संद
ु र. सीताजी िA-य= के समूह म? इस कार शोभा पा रह. हP, मानो छ8ब
fपी ललनाओं के समूह के बीच साWात परम मनोहर शोभा fपी A-ी सश
ु ो0भत हो॥322॥
चौपाई :
* 0सय संद
ु रता बर न न जाई। लघु म त बहुत मनोहरताई॥
आवत द.Rख बरा त7ह सीता। fप रा0स सब भाँ त पुनीता॥1॥
भावाथ#:-सीताजी
कM संुदरता का वणOन नह.ं हो सकता, iय=Bक बk
ु ध बहुत छोट. है और
मनोहरता बहुत बड़ी है । fप कM रा0श और सब कार से प,व- सीताजी को बारा तय= ने
आते दे खा॥1॥
*एह 8बध सीय मंड पहं आई। मु दत सां त पढ़हं म ु नराई॥
तेह अवसर कर 8बध Xयवहाf। दहु ु ँ कुलगरु सब कM7ह अचाf॥4॥
भावाथ#:-इस कार सीताजी मंड प म? आ}। म ु नराज बहुत ह. आनंदत होकर शां तपाठ पढ़ रहे
छ6द :
* आचा^ क!र गरु गौ!र गनप त मु दत 8ब पज
ु ावह.ं।
सरु गट पज
ू ा लेहं दे हं असीस अ त सख
ु ु पावह.ं॥
मधप ु कO मंगल oXय जो जेह समय म ु न मन महुँ चह? ।
भरे कनक कोपर कलस सो तब 0लएहं प!रचारक रहP॥1॥
भावाथ#:-कुलाचार करके ग^
ु जी स7न होकर गौर.जी, गणेशजी और CाDमण= कM पज
ू ा करा रहे
हP (अथवा CाDमण= के kवारा गौर. और गणेश कM पज
ू ा करवा रहे हP)। दे वता कट होकर
पूजा wहण करते हP, आशीवाOद दे ते हP और अNय7त सुख पा रहे हP। मधप
ु कO आद िजस
Bकसी भी मांग0लक पदाथO कM मु न िजस समय भी मन म? चाह मा- करते हP, सेवकगण
उसी समय सोने कM परात= म? और कलश= म? भरकर उन पदाथ को 0लए तैयार रहते
हP॥1॥
दोहा :
* होम समय तनु ध!र अनलु अ त सख ु आहु त लेहं।
8ब बेष ध!र बेद सब कह 8बबाह 8बध दे हं॥323॥
भावाथ#:-हवन के समय अिdनदे व शर.र धारण करके बड़े ह. सख
ु से आहु त wहण करते हP
और सारे वेद CाDमण वेष धरकर ,ववाह कM ,वधयाँ बताए दे ते हP॥323॥
चौपाई :
* जनक पाटमहषी जग जानी। सीय मातु Bक0म जाइ बखानी॥॥
सुजसु सक
ु ृ त सुख संद
ु रताई। सब समेट 8बध रची बनाई॥1॥
भावाथ#:-जनकजी कM जग,वयात पटरानी और सीताजी कM माता का बखान तो हो ह. कैसे
सकता है । सुयश, सुकृत (पुxय), सुख और संुदरता सबको बटोरकर ,वधाता ने उ7ह?
सँवारकर तैयार Bकया है ॥1॥
छ6द :
* लागे पखारन पाय पंकज ेम तन पल
ु कावल.।
नभ नगर गान नसान जय धु न उमग जनु चहुँ द0स चल.॥
जे पद सरोज मनोज अ!र उर सर सदै व 8बराजह.ं।
जे सक
ु ृ त सु0मरत 8बमलता मन सकल क0ल मल भाजह.ं॥1॥
भावाथ#:-वे $ी रामजी के चरण कमल= को पखारने लगे, ेम से उनके शर.र म? पल
ु कावल. छा
रह. है । आकाश और नगर म? होने वाल. गान, नगाड़े और जय-जयकार कM ~व न मानो
चार= दशाओं म? उमड़ चल., जो चरण कमल कामदे व के श-ु $ी 0शवजी के sदय fपी
सरोवर म? सदा ह. ,वराजते हP, िजनका एक बार भी Aमरण करने से मन म? नमOलता आ
जाती है और क0लयग
ु के सारे पाप भाग जाते हP,॥1।
* जे पर0स मु नब नता लह. ग त रह. जो पातकमई।
मकरं द ु िज7ह को संभु 0सर सुचता अवध सुर बरनई॥
क!र मधप
ु मन मु न जोगजन जे सेइ अ0भमत ग त लहP।
ते पद पखारत भाdयभाजनु जनकु जय जय सब कहP॥2॥
भावाथ#:-िजनका AपशO पाकर गौतम म ु न कM A-ी अहZया ने, जो पापमयी थी, परमग त पाई,
िजन चरणकमल= का मकर7द रस (गंगाजी) 0शवजी के मAतक पर ,वराजमान है, िजसको
दे वता प,व-ता कM सीमा बताते हP, म ु न और योगीजन अपने मन को भVरा बनाकर िजन
चरणकमल= का सेवन करके मनोवां छत ग त ात करते हP, उ7ह.ं चरण= को भाdय के पा-
(बड़भागी) जनकजी धो रहे हP, यह दे खकर सब जय-जयकार कर रहे हP॥2॥
दोहा :
* जय ध ु न बंद. बेद ध ु न मंगल गान नसान।
सु न हरषहं बरषहं 8बबध
ु सुरत^ सुमन सुजान॥324॥
भावाथ#:-जय ~व न, व7द. ~व न, वेद ~व न, मंगलगान और नगाड़= कM ~व न सुनकर चतरु
दे वगण ह,षOत हो रहे हP और कZपवW
ृ के फूल= को बरसा रहे हP॥324॥
चौपाई :
* कुअँ^ कुअँ!र कल भावँ!र दे ह.ं। नयन लाभु सब सादर लेह.ं॥
जाइ न बर न मनोहर जोर.। जो उपमा कछु कहV सो थोर.॥1॥
भावाथ#:-वर और क7या संद
ु र भाँवर? दे रहे हP। सब लोग आदरपूवक
O (उ7ह? दे खकर) ने-= का
परम लाभ ले रहे हP। मनोहर जोड़ी का वणOन नह.ं हो सकता, जो कुछ उपमा कहूँ वह. थोड़ी
होगी॥1॥
छ6द :
* बैठे बरासन रामु जानBक मु दत मन दसरथु भए।
तनु पल
ु क प ु न प ु न दे Rख अपन? सक
ु ृ त सरु त^ पल नए॥
भ!र भुवन रहा उछाहु राम 8बबाहु भा सबह.ं कहा।
केह भाँ त बर न 0सरात रसना एक यहु मंगलु महा॥1॥
भावाथ#:-$ी
रामजी और जानकMजी $े[ठ आसन पर बैठे, उ7ह? दे खकर दशरथजी मन म? बहुत
आनंदत हुए। अपने सुकृत fपी कZप वW
ृ म? नए फल (आए) दे खकर उनका शर.र बार-बार
पुलBकत हो रहा है । चौदह= भुवन= म? उNसाह भर गया, सबने कहा Bक $ी रामच7oजी का
,ववाह हो गया। जीभ एक है और यह मंगल महान है , Bफर भला, वह वणOन करके Bकस
कार समात Bकया जा सकता है॥1॥
* अनf
ु प बर दल
ु ह न परAपर लRख सकुच हयँ हरषह.ं।
सब मुदत संद
ु रता सराहहं सम
ु न सुर गन बरषह.ं॥
संद
ु र.ं संद
ु र बर7ह सह सब एक मंड प राजह.ं।
जनु जीव उर चा!रउ अवAथा 8बभुन सहत 8बराजह.ं॥4॥
भावाथ#:-दल
ू ह
और दल ु हन? परAपर अपने-अपने अनुfप जोड़ी को दे खकर सकुचाते हुए sदय
म? ह,षOत हो रह. हP। सब लोग स7न होकर उनकM संुदरता कM सराहना करते हP और
दे वगण फूल बरसा रहे हP। सब संुदर. दल
ु हन? संद
ु र दZ
ू ह= के साथ एक ह. मंड प म? ऐसी
शोभा पा रह. हP, मानो जीव के sदय म? चार= अवAथाएँ (जाwत, Aवन, सष
ु ुित और तरु .य)
अपने चार= Aवा0मय= (,व/व, तैजस, ाg और CDम) सहत ,वराजमान ह=॥4॥
दोहा :
* मु दत अवधप त सकल सुत बध7
ु ह समेत नहा!र।
जनु पाए महपाल म न Bय7ह सहत फल चा!र॥325॥
भावाथ#:-सबपु-= को बहुओं सहत दे खकर अवध नरे श दशरथजी ऐसे आनंदत हP, मानो वे
राजाओं के 0शरोमRण Bयाओं (यgBया, $kधाBया, योगBया और gानBया) सहत
चार= फल (अथO, धमO, काम और मोW) पा गए ह=॥325॥
चौपाई :
* ज0स रघब
ु ीर Xयाह 8बध बरनी। सकल कुअँर Xयाहे तेहं करनी॥
कह न जा कछु दाइज भरू .। रहा कनक म न मंड पु परू .॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी के ,ववाह कM जैसी ,वध वणOन कM गई, उसी र. त से सब राजकुमार
,ववाहे गए। दहेज कM अधकता कुछ कह. नह.ं जाती, सारा मंड प सोने और मRणय= से भर
गया॥1॥
* बAतु अनेक क!रअ Bक0म लेखा। कह न जाइ जानहं िज7ह दे खा॥
लोकपाल अवलोBक 0सहाने। ल.7ह अवधप त सबु सुखु माने॥3॥
भावाथ#:-(आद) अनेक= वAतए
ु ँ हP, िजनकM गनती कैसे कM जाए। उनका वणOन नह.ं Bकया जा
सकता, िज7ह=ने दे खा है, वह. जानते हP। उ7ह? दे खकर लोकपाल भी 0सहा गए। अवधराज
दशरथजी ने सुख मानकर स7नचT से सब कुछ wहण Bकया॥3॥
छ6द :
* सनमा न सकल बरात आदर दान 8बनय बड़ाइ कै।
मु दत महाम ु न बंद
ृ बंदे पिू ज ेम लड़ाइ कै॥
0स^ नाइ दे व मनाइ सब सन कहत कर संपुट Bकएँ।
सुर साधु चाहत भाउ 0संधु Bक तोष जल अंज0ल दएँ॥1॥
भावाथ#:-आदर, दान, ,वनय और बड़ाई के kवारा सार. बारात का सJमान कर राजा जनक ने
महान आनंद के साथ ेमपूवOक लड़ाकर (लाड़ करके) मु नय= के समह
ू कM पूजा एवं वंदना
कM। 0सर नवाकर, दे वताओं को मनाकर, राजा हाथ जोड़कर सबसे कहने लगे Bक दे वता और
साधु तो भाव ह. चाहते हP, (वे ेम से ह. स7न हो जाते हP, उन पूणक
O ाम महानभ
ु ाव= को
कोई कुछ दे कर कैसे संत[ु ट कर सकता है ), iया एक अंज0ल जल दे ने से कह.ं समo
ु संत[ु ट
हो सकता है ॥1॥
* बं द
ृ ारका गन सम
ु न ब!रसहं राउ जनवासेह चले।
दं द
ु भ
ु ी जय ध ु न बेद धु न नभ नगर कौतह
ू ल भले॥
तब सखीं मंगल गान करत मुनीस आयसु पाइ कै।
दल
ू ह दल
ु ह न7ह सहत संुद!र चल.ं कोहबर Zयाइ कै॥4॥
भावाथ#:-दे वतागण फूल बरसा रहे हP, राजा जनवासे को चले। नगाड़े कM ~व न, जय~व न और
वेद कM ~व न हो रह. है , आकाश और नगर दोन= म? खूब कौतह
ू ल हो रहा है (आनंद छा
रहा है ), तब मुनी/वर कM आgा पाकर संुदर. सRखयाँ मंगलगान करती हुई दल
ु हन= सहत
दZ
ू ह= को 0लवाकर कोहबर को चल.ं॥4॥
दोहा :
* प ु न प ु न रामह चतव 0सय सकुच त मनु सकुचै न।
हरत मनोहर मीन छ8ब ेम ,पआसे नैन॥326॥
भावाथ#:-सीताजी बार-बार रामजी को दे खती हP और सकुचा जाती हP, पर उनका मन नह.ं
सकुचाता। ेम के यासे उनके ने- संुदर मछ0लय= कM छ8ब को हर रहे हP॥326॥
चौपाई :
* Aयाम सर.^ सभ
ु ायँ सुहावन। सोभा कोट मनोज लजावन॥
जावक जत
ु पद कमल सुहाए। मु न मन मधप
ु रहत िज7ह छाए॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी का साँवला शर.र Aवभाव से ह. संद
ु र है । उसकM शोभा करोड़= कामदे व=
को लजाने वाल. है । महावर से यi
ु त चरण कमल बड़े सुहावने लगते हP, िजन पर मु नय=
के मन fपी भVरे सदा छाए रहते हP॥1॥
* सं द
ु र भक
ृ ु ट मनोहर नासा। भाल तलकु ^चरता नवासा॥
सोहत मौ^ मनोहर माथे। मंगलमय मक
ु ु ता म न गाथे॥5॥
भावाथ#:-संद
ु र भVह? और मनोहर ना0सका है । ललाट पर तलक तो संद
ु रता का घर ह. है,
िजसम? मंगलमय मोती और मRण गँथ
ु े हुए हP, ऐसा मनोहर मौर माथे पर सोह रहा है ॥5॥
छ6द :
* गाथे महाम न मौर मंजुल अंग सब चत चोरह.ं।
पुर ना!र सुर संद
ु र.ं बरह 8बलोBक सब तन तोरह.ं॥
म न बसन भूषन वा!र आर त करहं मंगल गावह.ं।
सुर सुमन ब!रसहं सूत मागध बंद सुजसु सुनावह.ं॥1॥
भावाथ#:-संद
ु र
मौर म? बहुमूZय मRणयाँ गँथ ु ी हुई हP, सभी अंग चT को चरु ाए लेते हP। सब
नगर कM िA-याँ और दे वसंद
ु !रयाँ दल
ू ह को दे खकर तनका तोड़ रह. हP (उनकM बलैयाँ ले
रह. हP) और मRण, वA- तथा आभूषण नछावर करके आरती उतार रह. और मंगलगान कर
रह. हP। दे वता फूल बरसा रहे हP और सूत, मागध तथा भाट सुयश सुना रहे हP॥1॥
दोहा :
* सहत बधू ट7ह कुअँर सब तब आए ,पतु पास।
सोभा मंगल मोद भ!र उमगेउ जनु जनवास॥327॥
भावाथ#:-तब
सब (चार=) कुमार बहुओं सहत ,पताजी के पास आए। ऐसा मालूम होता था
मानो शोभा, मंगल और आनंद से भरकर जनवासा उमड़ पड़ा हो॥327॥
चौपाई :
* पु न जेवनार भई बहु भाँती। पठए जनक बोलाइ बराती॥
परत पाँवड़े बसन अनपू ा। सुत7ह समेत गवन Bकयो भूपा॥1॥
भावाथ#:-Bफर
बहुत कार कM रसोई बनी। जनकजी ने बारा तय= को बल ु ा भेजा। राजा
दशरथजी ने पु-= सहत गमन Bकया। अनप
ु म वA-= के पाँवड़े पड़ते जाते हP॥1॥
जनकजी ने अवधप त दशरथजी के चरण धोए। उनका शील और Aनेह वणOन नह.ं Bकया जा
सकता॥2॥
दोहा :
* सप
ू ोदन सरु भी सर,प संद
ु र Aवाद ु पुनीत।
छन महुँ सब क? प^0स गे चतरु सुआर 8बनीत॥328॥
भावाथ#:-चतर
ु और ,वनीत रसोइए संुदर, Aवाद[ट और प,व- दाल-भात और गाय का
(सुगंधत) घी Wण भर म? सबके सामने परस गए॥328॥
चौपाई :
* पंच कवल क!र जेवन लागे। गा!र गान सु न अ त अनरु ागे।
भाँ त अनेक परे पकवाने। सुधा स!रस नहं जाहं बखाने॥1॥
भावाथ#:-सब लोग पंचकौर करके (अथाOत ' ाणाय Aवाहा, अपानाय Aवाहा, cयानाय Aवाहा,
उदानाय Aवाहा और समानाय Aवाहा' इन मं-= का उqचारण करते हुए पहले पाँच wास
लेकर) भोजन करने लगे। गाल. का गाना सुनकर वे अNय7त ेममdन हो गए। अनेक= तरह
के अमत
ृ के समान (Aवाद[ट) पकवान परसे गए, िजनका बखान नह.ं हो सकता॥1॥
दोहा :
* दे इ पान पज
ू े जनक दसरथु सहत समाज।
जनवासेह गवने मुदत सकल भूप 0सरताज॥329॥
भावाथ#:-Bफर पान दे कर जनकजी ने समाज सहत दशरथजी का पूजन Bकया। सब राजाओं के
0सरमौर (चवत) $ी दशरथजी स7न होकर जनवासे को चले॥329॥
चौपाई :
* नत नत
ू न मंगल परु माह.ं। न0मष स!रस दन जा0म न जाह.ं॥
बड़े भोर भूप तम न जागे। जाचक गन
ु गन गावन लागे॥1॥
भावाथ#:-जनकपुर म? नNय नए मंगल हो रहे हP। दन और रात पल के समान बीत जाते हP।
बड़े सबेरे राजाओं के मुकुटमRण दशरथजी जागे। याचक उनके गण
ु समूह का गान करने
लगे॥1॥
* दे Rख कुअँर बर बध7
ु ह समेता। Bक0म कह जात मोद ु मन जेता॥
ातBया क!र गे ग^
ु पाह.ं। महा मोद ु ेमु मन माह.ं॥2॥
भावाथ#:-चार= कुमार= को संद
ु र वधओ
ु ं सहत दे खकर उनके मन म? िजतना आनंद है , वह Bकस
कार कहा जा सकता है ? वे ातः Bया करके ग^
ु व0श[ठजी के पास गए। उनके मन म?
महान आनंद और ेम भरा है ॥2॥
* क!र नामु पज
ू ा कर जोर.। बोले गरा अ0मअँ जनु बोर.॥
तJ
ु हर. कृपाँ सुनहु मु नराजा। भयउँ आजु मP पूरन काजा॥3॥
भावाथ#:-राजा णाम और पूजन करके, Bफर हाथ जोड़कर मानो अमत ृ म? डु बोई हुई वाणी
बोले- हे मु नराज! स ु नए, आपकM कृपा से आज मP पूणक
O ाम हो गया॥3॥
दोहा :
* बामदे उ अ^ दे व!र,ष बालमीBक जाबा0ल।
आए म ु नबर नकर तब कौ0सकाद तपसा0ल॥330॥
भावाथ#:-तब वामदे व, दे व,षO नारद, वाZमीBक, जाबा0ल और ,व/वा0म- आद तपAवी $े[ठ
मु नय= के समह
ू के समह
ू आए॥330॥
चौपाई :
* दं ड नाम सबह नप
ृ कM7हे । पूिज स ेम बरासन द.7हे ॥
चा!र लqछ बर धेनु मगा}। काम सुर0भ सम सील सुहा}॥1॥
भावाथ#:-राजा ने सबको दxडवत ् णाम Bकया और ेम सहत पूजन करके उ7ह? उTम आसन
दए। चार लाख उTम गाय? मँगवा}, जो कामधेनु के समान अqछे Aवभाव वाल. और
सुहावनी थीं॥1॥
दोहा :
* बार बार कौ0सक चरन सीसु नाइ कह राउ।
यह सबु सख
ु ु म ु नराज तव कृपा कटाqछ पसाउ॥331॥
भावाथ#:-बार-बार ,व/वा0म-जी के चरण= म? 0सर नवाकर राजा कहते हP- हे मु नराज! यह सब
सुख आपके ह. कृपाकटाW का साद है ॥331॥
चौपाई :
* जनक सनेहु सीलु करतत
ू ी। नप
ृ ु सब भाँ त सराह 8बभूती॥
दन उठ 8बदा अवधप त मागा। राखहं जनकु सहत अनरु ागा॥1॥
भावाथ#:-राजा दशरथजी जनकजी के Aनेह, शील, करनी और ऐ/वयO कM सब कार से सराहना
करते हP। तदन (सबेरे) उठकर अयो~या नरे श ,वदा माँगते हP। पर जनकजी उ7ह? ेम से
रख लेते हP॥1॥
* नत नत
ू न आद^ अधकाई। दन त सहस भाँ त पहुनाई॥
नत नव नगर अनंद उछाहू। दसरथ गवनु सोहाइ न काहू॥2॥
भावाथ#:-आदर नNय नया बढ़ता जाता है । तदन हजार= कार से मेहमानी होती है। नगर
म? नNय नया आनंद और उNसाह रहता है , दशरथजी का जाना Bकसी को नह.ं सुहाता॥2॥
* बहुत दवस बीते एह भाँती। जनु सनेह रजु बँधे बराती॥
कौ0सक सतानंद तब जाई। कहा 8बदे ह नप ृ ह समुझाई॥3॥
भावाथ#:-इसकार बहुत दन बीत गए, मानो बाराती Aनेह कM रAसी से बँध गए हP। तब
,व/वा0म-जी और शतानंदजी ने जाकर राजा जनक को समझाकर कहा-॥3॥
दोहा :
* अवधनाथु चाहत चलन भीतर करहु जनाउ।
भए ेमबस सचव स ु न 8ब सभासद राउ॥332॥
भावाथ#:-(जनकजी ने कहा-) अयो~यानाथ चलना चाहते हP, भीतर (र नवास म? ) खबर कर दो।
यह सुनकर मं-ी, CाDमण, सभासद और राजा जनक भी ेम के वश हो गए॥332॥
चौपाई :
* पुरबासी सु न च0लह बराता। बूझत 8बकल परAपर बाता॥
सNय गवनु सु न सब 8बलखाने। मनहुँ साँझ सर0सज सकुचाने॥1॥
भावाथ#:-जनकपुरवा0सय= ने सुना Bक बारात जाएगी, तब वे cयाकुल होकर एक-दस
ू रे से बात
पूछने लगे। जाना सNय है , यह सुनकर सब ऐसे उदास हो गए मानो सं~या के समय कमल
सकुचा गए ह=॥1॥
* जहँ जहँ आवत बसे बराती। तहँ तहँ 0सkध चला बहु भाँती॥
8ब8बध भाँ त मेवा पकवाना। भोजन साजु न जाइ बखाना॥2॥
भावाथ#:-आते
समय जहाँ-जहाँ बाराती ठहरे थे, वहाँ-वहाँ बहुत कार का सीधा (रसोई का
सामान) भेजा गया। अनेक= कार के मेव,े पकवान और भोजन कM सामwी जो बखानी नह.ं
जा सकती-॥2॥
दोहा :
* मT सहस दस 0संधरु साजे। िज7हह दे Rख द0सकं ु जर लाजे॥
कनक बसन म न भ!र भ!र जाना। महषीं धेनु बAतु 8बध नाना॥4॥
भावाथ#:-दसहजार सजे हुए मतवाले हाथी, िज7ह? दे खकर दशाओं के हाथी भी लजा जाते हP,
गाड़य= म? भर-भरकर सोना, वA- और रNन (जवाहरात) और भPस, गाय तथा और भी नाना
कार कM चीज? द.ं॥4॥
दोहा :
* दाइज अ0मत न सBकअ कह द.7ह 8बदे हँ बहो!र।
जो अवलोकत लोकप त लोक संपदा थो!र॥333॥
भावाथ#:-(इस कार) जनकजी ने Bफर से अप!र0मत दहे ज दया, जो कहा नह.ं जा सकता और
िजसे दे खकर लोकपाल= के लोक= कM सJपदा भी थोड़ी जान पड़ती थी॥333॥
चौपाई :
* सबु समाजु एह भाँ त बनाई। जनक अवधपुर द.7ह पठाई॥
च0लह बरात सुनत सब रानीं। 8बकल मीनगन जनु लघु पानीं॥1॥
भावाथ#:-इस कार सब सामान सजाकर राजा जनक ने अयो~यापुर. को भेज दया। बारात
चलेगी, यह सुनते ह. सब रा नयाँ ऐसी ,वकल हो ग}, मानो थोड़े जल म? मछ0लयाँ छटपटा
रह. ह=॥1॥
* सासु ससुर गरु सेवा करे हू। प त ^ख लRख आयसु अनस ु रे हू॥
अ त सनेह बस सखीं सयानी। ना!र धरम 0सखवहं मद ृ ु बानी॥3॥
भावाथ#:-सास, ससुर और ग^
ु कM सेवा करना। प त का ^ख दे खकर उनकM आgा का पालन
करना। सयानी सRखयाँ अNय7त Aनेह के वश कोमल वाणी से िA-य= के धमO 0सखलाती
हP॥3॥
दोहा :
* तेह अवसर भाइ7ह सहत रामु भानु कुल केत।ु
चले जनक मंदर मुदत 8बदा करावन हे त॥
ु 334॥
भावाथ#:-उसी समय सूयव
O ंश के पताका Aवfप $ी रामच7oजी भाइय= सहत स7न होकर
,वदा कराने के 0लए जनकजी के महल को चले॥334॥
चौपाई :
* चा!रउ भाइ सुभायँ सुहाए। नगर ना!र नर दे खन धाए॥
कोउ कह चलन चहत हहं आजू। कM7ह 8बदे ह 8बदा कर साज॥
ू 1॥
भावाथ#:-Aवभाव से ह. संुदर चार= भाइय= को दे खने के 0लए नगर के A-ी-प^
ु ष दौड़े। कोई
कहता है- आज ये जाना चाहते हP। ,वदे ह ने ,वदाई का सब सामान तैयार कर 0लया है॥1॥
दोहा :
* fप 0संधु सब बंधु लRख हर,ष उठा र नवास।ु
करहं नछाव!र आरती महा मु दत मन सासु॥335॥
भावाथ#:-fप के समुo सब भाइय= को दे खकर सारा र नवास ह,षOत हो उठा। सासए
ु ँ महान
स7न मन से नछावर और आरती करती हP॥335॥
चौपाई :
* दे Rख राम छ8ब अ त अनरु ागीं। ेम8बबस पु न पु न पद लागीं॥
रह. न लाज ी त उर छाई। सहज सनेहु बर न Bक0म जाई॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी कM छ8ब दे खकर वे ेम म? अNय7त मdन हो ग} और ेम के ,वशेष
वश होकर बार-बार चरण= लगीं। sदय म? ी त छा गई, इससे ल_जा नह.ं रह गई। उनके
Aवाभा,वक Aनेह का वणOन Bकस तरह Bकया जा सकता है ॥1॥
है । हे माता! स7न मन से आgा द.िजए और हम? अपने बालक जानकर सदा Aनेह बनाए
रRखएगा॥3॥
छ6द :
* क!र 8बनय 0सय रामह समरपी जो!र कर पु न पु न कहै ।
ब0ल जाउँ तात सज
ु ान तJ
ु ह कहुँ 8बदत ग त सब कM अहै॥
प!रवार पुरजन मोह राजह ान, य 0सय जा नबी।
ु सीस सीलु सनेहु लRख नज Bकंकर. क!र मा नबी॥
तल
भावाथ#:-,वनती करके उ7ह=ने सीताजी को $ी रामच7oजी को सम,पOत Bकया और हाथ जोड़कर
बार-बार कहा- हे तात! हे सुजान! मP ब0ल जाती हूँ, तुमको सबकM ग त (हाल) मालम
ू है ।
प!रवार को, परु वा0सय= को, मझ
ु को और राजा को सीता ाण= के समान , य है , ऐसा
जा नएगा। हे तल
ु सी के Aवामी! इसके शील और Aनेह को दे खकर इसे अपनी दासी करके
मा नएगा।
सोरठा :
* तJ
ु ह प!रपूरन काम जान 0सरोम न भाव, य।
जन गन
ु गाहक राम दोष दलन क^नायतन॥336॥
भावाथ#:-तम
ु पूणO काम हो, सुजान 0शरोमRण हो और भाव, य हो (तJ
ु ह? ेम यारा है )। हे
राम! तम
ु भiत= के गण
ु = को wहण करने वाले, दोष= को नाश करने वाले और दया के धाम
हो॥336॥
चौपाई :
* अस कह रह. चरन गह रानी। ेम पंक जनु गरा समानी॥
सु न सनेहसानी बर बानी। बहु8बध राम सासु सनमानी॥1॥
भावाथ#:-ऐसा कहकर रानी चरण= को पकड़कर (चप ु ) रह ग}। मानो उनकM वाणी ेम fपी
दलदल म? समा गई हो। Aनेह से सनी हुई $े[ठ वाणी सुनकर $ी रामच7oजी ने सास का
बहुत कार से सJमान Bकया॥1॥
दोहा :
* ेम8बबस नर ना!र सब सRख7ह सहत र नवासु।
मानहुँ कM7ह 8बदे हपरु क^नाँ 8बरहँ नवास॥
ु 337॥
भावाथ#:-सब A-ी-पु^ष और सRखय= सहत सारा र नवास ेम के ,वशेष वश हो रहा है । (ऐसा
लगता है ) मानो जनकपरु म? क^णा और ,वरह ने डेरा डाल दया है ॥337॥
चौपाई :
* सक
ु सा!रका जानकM _याए। कनक ,पंजरि7ह राRख पढ़ाए॥
Xयाकुल कहहं कहाँ बैदेह.। सु न धीरजु प!रहरइ न केह.॥1॥
भावाथ#:-जानकM ने िजन तोता और मैना को पाल-पोसकर बड़ा Bकया था और सोने के ,पंजड़=
म? रखकर पढ़ाया था, वे cयाकुल होकर कह रहे हP- वैदेह. कहाँ हP। उनके ऐसे वचन= को
सुनकर धीरज Bकसको नह.ं Nयाग दे गा (अथाOत सबका धैयO जाता रहा)॥1॥
* भए 8बकल खग मग
ृ एह भाँती। मनज
ु दसा कैस? कह जाती॥
बंधु समेत जनकु तब आए। ेम उमग लोचन जल छाए॥2॥
भावाथ#:-जब पWी और पशु तक इस तरह ,वकल हो गए, तब मन[ु य= कM दशा कैसे कह. जा
सकती है ! तब भाई सहत जनकजी वहाँ आए। ेम से उमड़कर उनके ने-= म? ( ेमा$ुओं
का) जल भर आया॥2॥
दोहा :
* ेम8बबस प!रवा^ सबु जा न सल
ु गन नरे स।
कुअँ!र चढ़ा} पालBक7ह सु0मरे 0सkध गनेस॥338॥
भावाथ#:-सारा प!रवार
ेम म? ,ववश है । राजा ने संद
ु र मुहूतO जानकर 0सkध सहत गणेशजी
का Aमरण करके क7याओं को पालBकय= पर चढ़ाया॥338॥
चौपाई :
* बहु8बध भूप सुता समुझा}। ना!रधरमु कुलर. त 0सखा}॥
दासीं दास दए बहुतरे े । सु च सेवक जे , य 0सय केरे ॥1॥
भावाथ#:-राजा ने पु8-य= को बहुत कार से समझाया और उ7ह? िA-य= का धमO और कुल कM
दोहा :
* सुर सून बरषहं हर,ष करहं अपछरा गान।
चले अवधप त अवधपुर मुदत बजाइ नसान॥339॥
भावाथ#:-दे वता ह,षOत होकर फूल बरसा रहे हP और असराएँ गान कर रह. हP। अवधप त
दशरथजी नगाड़े बजाकर आनंदपूवक
O अयो~यापरु . चले॥339॥
चौपाई :
* नप
ृ क!र 8बनय महाजन फेरे । सादर सकल मागने टे रे॥
भूषन बसन बािज गज द.7हे । ेम पो,ष ठाढ़े सब कM7हे ॥1॥
भावाथ#:-राजा दशरथजी ने ,वनती करके ति[ठत जन= को लौटाया और आदर के साथ सब
मँगन= को बुलवाया। उनको गहने-कपड़े, घोड़े-हाथी दए और ेम से पु[ट करके सबको
सJप7न अथाOत बलयi
ु त कर दया॥1॥।
रखकर लौटे । कोसलाधीश दशरथजी बार-बार लौटने को कहते हP, पर7तु जनकजी ेमवश
लौटना नह.ं चाहते॥2॥
दोहा :
* कोसलप त समधी सजन सनमाने सब भाँ त।
0मल न परसपर 8बनय अ त ी त न sदयँ समा त॥340॥
भावाथ#:-अयो~यानाथ दशरथजी ने अपने Aवजन समधी का सब कार से सJमान Bकया।
उनके आपस के 0मलने म? अNय7त ,वनय थी और इतनी ी त थी जो sदय म? समाती न
थी॥340॥
चौपाई :
* म ु न मंड 0लह जनक 0स^ नावा। आ0सरबाद ु सबह सन पावा॥
सादर पु न भ? टे जामाता। fप सील गन
ु नध सब tाता॥1॥
भावाथ#:-जनकजी ने म ु न मंड ल. को 0सर नवाया और सभी से आशीवाOद पाया। Bफर आदर के
साथ वे fप, शील और गण
ु = के नधान सब भाइय= से, अपने दामाद= से 0मले,॥1॥
* जो!र पंक^ह पा न सह
ु ाए। बोले बचन ेम जनु जाए॥
राम करV केह भाँ त संसा। मु न महे स मन मानस हं सा॥2॥
भावाथ#:-और संुदर कमल के समान हाथ= को जोड़कर ऐसे वचन बोले जो मानो ेम से ह.
ज7मे ह=। हे रामजी! मP Bकस कार आपकM शंसा कfँ! आप म ु नय= और महादे वजी के
मन fपी मानसरोवर के हं स हP॥2॥
दोहा :
* नयन 8बषय मो कहुँ भयउ सो समAत सुख मूल।
सबइ लाभु जग जीव कहँ भएँ ईसु अनक
ु ू ल॥341॥
भावाथ#:-वे
ह. समAत सुख= के मल
ू (आप) मेरे ने-= के ,वषय हुए। ई/वर के अनक
ु ू ल होने पर
जगत म? जीव को सब लाभ ह. लाभ है ॥341॥
चौपाई :
* सबह भाँ त मोह द.ि7ह बड़ाई। नज जन जा न ल.7ह अपनाई॥
होहं सहस दस सारद सेषा। करहं कलप कोटक भ!र लेखा॥1॥
भावाथ#:- आपने मुझे सभी कार से बड़ाई द. और अपना जन जानकर अपना 0लया। यद
दस हजार सरAवती और शेष ह= और करोड़= कZप= तक गणना करते रह? ॥1॥
दोहा :
* 0मले लखन !रपस
ु द
ू नह द.ि7ह असीस मह.स।
भए परसपर ेमबस Bफ!र Bफ!र नावहं सीस॥342॥
भावाथ#:- Bफर राजा ने ल'मणजी और श-
ु नजी से 0मलकर उ7ह? आशीवाOद दया। वे परAपर
ेम के वश होकर बार-बार आपस म? 0सर नवाने लगे॥342॥
चौपाई :
* बार बार क!र 8बनय बड़ाई। रघप
ु त चले संग सब भाई॥
जनक गहे कौ0सक पद जाई। चरन रे नु 0सर नयन7ह लाई॥1॥
भावाथ#:- जनकजी कM बार-बार ,वनती और बड़ाई करके $ी रघन
ु ाथजी सब भाइय= के साथ
चले। जनकजी ने जाकर ,व/वा0म-जी के चरण पकड़ 0लए और उनके चरण= कM रज को
0सर और ने-= म? लगाया॥1॥
दोहा :
* बीच बीच बर बास क!र मग लोग7ह सख
ु दे त।
अवध समीप पुनीत दन पहुँची आइ जनेत॥343॥
भावाथ#:-बीच-बीच म? संद
ु र मक
ु ाम करती हुई तथा मागO के लोग= को सख
ु दे ती हुई वह बारात
प,व- दन म? अयो~यापुर. के समीप आ पहुँची॥343॥
चौपाई :
*हने नसान पनव बर बाजे। भे!र संख धु न हय गय गाजे॥
झाँRझ 8बरव ड ं डमीं सुहाई। सरस राग बाजहं सहनाई॥1॥
भावाथ#:-नगाड़= पर चोट? पड़ने लगीं, सुंदर ढोल बजने लगे। भेर. और शंख कM बड़ी आवाज हो
रह. है , हाथी-घोड़े गरज रहे हP। ,वशेष शXद करने वाल. झाँझ?, सुहावनी डफ0लयाँ तथा रसीले
राग से शहनाइयाँ बज रह. हP॥1॥
* सफल पग
ू फल कद0ल रसाला। रोपे बकुल कदं ब तमाला॥
लगे सुभग त^ परसत धरनी। म नमय आलबाल कल करनी॥4॥
भावाथ#:-फल सहत सुपार., केला, आम, मौल0सर., कदJब और तमाल के वW
ृ लगाए गए। वे
लगे हुए सद
ुं र वW
ृ (फल= के भार से) प4
ृ वी को छू रहे हP। उनके मRणय= के थाले बड़ी सद
ुं र
कार.गर. से बनाए गए हP॥4॥
दोहा :
* 8ब8बध भाँ त मंगल कलस गहृ गह
ृ रचे सँवा!र।
सरु CDमाद 0सहाहं सब रघब
ु र परु . नहा!र॥344॥
भावाथ#:-अनेक कार के मंगल-कलश घर-घर सजाकर बनाए गए हP। $ी रघुनाथजी कM परु .
(अयो~या) को दे खकर CDमा आद सब दे वता 0सहाते हP॥344॥
चौपाई :
* भूप भवनु तेह अवसर सोहा। रचना दे Rख मदन मनु मोहा॥
मंगल सगन
ु मनोहरताई। !रध 0सध सख
ु संपदा सुहाई॥1॥
भावाथ#:-उस समय राजमहल (अNय7त) शो0भत हो रहा था। उसकM रचना दे खकर कामदे व भी
मन मोहत हो जाता था। मंगल शकुन, मनोहरता, ऋkध-0सkध, सुख, सुहावनी सJप,T॥1॥
* भप
ू त भवन कोलाहलु होई। जाइ न बर न समउ सख
ु ु सोई॥
कौसZयाद राम महतार.ं। ेम8बबस तन दसा 8बसार.ं॥4॥
भावाथ#:-राजमहल म? (आनंद के मारे ) शोर मच रहा है । उस समय का और सुख का वणOन नह.ं
Bकया जा सकता। कौसZयाजी आद $ी रामच7oजी कM सब माताएँ ेम के ,वशेष वश होने से
शर.र कM सुध भल
ू ग}॥4॥
दोहा :
* दए दान 8ब 7ह 8बपल
ु पिू ज गनेस परु ा!र।
मुदत परम द!रo जनु पाइ पदारथ चा!र॥345॥
भावाथ#:-गणेशजी और 8-परु ा!र 0शवजी का पज
ू न करके उ7ह=ने CाDमण= को बहुत सा दान
दया। वे ऐसी परम स7न हु}, मानो अNय7त द!रo. चार= पदाथO पा गया हो॥345॥
चौपाई :
* मोद मोद 8बबस सब माता। चलहं न चरन 0सथल भए गाता॥
राम दरस हत अ त अनरु ागीं। प!रछ न साजु सजन सब लागीं॥1॥
भावाथ#:-सुख और महान आनंद से ,ववश होने के कारण सब माताओं के शर.र 0शथल हो गए
हP, उनके चरण चलते नह.ं हP। $ी रामच7oजी के दशOन= के 0लए वे अNय7त अनरु ाग म? भरकर
परछन का सब सामान सजाने लगीं॥1॥
*सगन
ु सुगंध न जाहं बखानी। मंगल सकल सजहं सब रानी॥
रचीं आरतीं बहतु 8बधाना। मु दत करहं कल मंगल गाना॥4॥
भावाथ#:-शकुन कM सुगि7धत वAतुएँ बखानी नह.ं जा सकतीं। सब रा नयाँ सJपण
ू O मंगल साज
सज रह. हP। बहुत कार कM आरती बनाकर वे आनंदत हु} सुंदर मंगलगान कर रह. हP॥4॥
दोहा :
* कनक थार भ!र मंगलि7ह कमल करि7ह 0लएँ मात।
चल.ं मु दत प!रछ न करन पल
ु क पZल,वत गात॥346॥
भावाथ#:-सोने के थाल= को मांग0लक वAतुओं से भरकर अपने कमल के समान (कोमल) हाथ=
म? 0लए हुए माताएँ आनंदत होकर परछन करने चल.ं। उनके शर.र पुलकावल. से छा गए
हP॥346॥
चौपाई :
* धूप धूम नभु मेचक भयऊ। सावन घन घमंडु जनु ठयऊ॥
सुरत^ सुमन माल सुर बरषहं। मनहुँ बलाक अव0ल मनु करषहं॥1॥
भावाथ#:-धप
ू के धुएँ से आकाश ऐसा काला हो गया है मानो सावन के बादल घुमड़-घुमड़कर छा
गए ह=। दे वता कZपवW
ृ के फूल= कM मालाएँ बरसा रहे हP। वे ऐसी लगती हP, मानो बगुल= कM
पाँ त मन को (अपनी ओर) खींच रह. हो॥1॥
* मंजल
ु म नमय बंद नवारे । मनहुँ पाक!रपु चाप सँवारे ॥
गटहं दरु हं अट7ह पर भा0म न। चा^ चपल जनु दमकहं दा0म न॥2॥
भावाथ#:-सुंदर मRणय= से बने बंदनवार ऐसे मालूम होते हP, मानो इ7oधनुष सजाए ह=। अटा!रय=
पर सद
ंु र और चपल िA-याँ कट होती और छप जाती हP (आती-जाती हP), वे ऐसी जान पड़ती
हP, मानो 8बज0लयाँ चमक रह. ह=॥2॥
* दं द
ु 0ु भ धु न घन गरज न घोरा। जाचक चातक दादरु मोरा॥
सुर सग
ु ंध सुच बरषहं बार.। सुखी सकल स0स परु नर नार.॥3॥
भावाथ#:-नगाड़= कM ~व न मानो बादल= कM घोर गजOना है । याचकगण पपीहे, म? ढ क और मोर हP।
दे वता प,व- सग
ु ंध fपी जल बरसा रहे हP, िजससे खेती के समान नगर के सब A-ी-प^
ु ष सुखी
हो रहे हP॥3॥
* होहं सगन
ु बरषहं सुमन सुर दं द
ु भीं बजाइ।
8बबध
ु बधू नाचहं मुदत मंजुल मंगल गाइ॥347॥
भावाथ#:-शकुन हो रहे हP, दे वता द7ु दभ
ु ी बजा-बजाकर फूल बरसा रहे हP। दे वताओं कM िA-याँ
आनंदत होकर सुंदर मंगल गीत गा-गाकर नाच रह. हP॥347॥
चौपाई :
* मागध सत ू बंद नट नागर। गावहं जसु तहु लोक उजागर॥
जय ध ु न 8बमल बेद बर बानी। दस द0स स ु नअ सम ु ंगल सानी॥1॥
भावाथ#:-मागध, सूत, भाट और चतुर नट तीन= लोक= के उजागर (सबको काश दे ने वाले परम
काश Aवfप) $ी रामच7oजी का यश गा रहे हP। जय ~व न तथा वेद कM नमOल $े[ठ वाणी
सुंदर मंगल से सनी हुई दस= दशाओं म? सुनाई पड़ रह. है॥1॥
* 8बपल
ु बाज ने बाजन लागे। नभ सुर नगर लोग अनुरागे॥
बने बराती बर न न जाह.ं। महा मुदत मन सुख न समाह.ं॥2॥
भावाथ#:-बहुत से बाजे बजने लगे। आकाश म? दे वता और नगर म? लोग सब ेम म? मdन हP।
बाराती ऐसे बने-ठने हP Bक उनका वणOन नह.ं हो सकता। परम आनंदत हP, सुख उनके मन म?
समाता नह.ं है॥2॥
दोहा :
* एह 8बध सबह. दे त सख
ु ु आए राजदआ
ु र।
मु दत मातु प!रछ न करहं बध7
ु ह समेत कुमार॥348॥
भावाथ#:-इस कार सबको सुख दे ते हुए राजkवार पर आए। माताएँ आनंदत होकर बहुओं सहत
कुमार= का परछन कर रह. हP॥348॥
चौपाई :
* करहं आरती बारहं बारा। ेमु मोद ु कहै को पारा॥
भूषन म न पट नाना जाती। करहं नछाव!र अग नत भाँती॥1॥
भावाथ#:-वे बार-बार आरती कर रह. हP। उस ेम और महान आनंद को कौन कह सकता है!
अनेक= कार के आभूषण, रNन और वA- तथा अगRणत कार कM अ7य वAतुएँ नछावर कर
रह. हP॥1॥
* बधु7ह समेत दे Rख सत
ु चार.। परमानंद मगन महतार.॥
प ु न पु न सीय राम छ8ब दे खी। मुदत सफल जग जीवन लेखी॥2॥
भावाथ#:-बहुओं सहत चार= पु-= को दे खकर माताएँ परमानंद म? मdन हो ग}। सीताजी और $ी
रामजी कM छ8ब को बार-बार दे खकर वे जगत म? अपने जीवन को सफल मानकर आनंदत हो
रह. हP॥2॥
* सखीं सीय मख
ु प ु न प ु न चाह.। गान करहं नज सक
ु ृ त सराह.॥
बरषहं सुमन छनहं छन दे वा। नाचहं गावहं लावहं सेवा॥3॥
भावाथ#:-सRखयाँ सीताजी के मुख को बार-बार दे खकर अपने पx
ु य= कM सराहना करती हुई गान
कर रह. हP। दे वता Wण-Wण म? फूल बरसाते, नाचते, गाते तथा अपनी-अपनी सेवा समपOण
करते हP॥3॥
दोहा :
* नगम नी त कुल र. त क!र अरघ पाँवड़े दे त।
बध7
ु ह सहत सत
ु प!र छ सब चल.ं लवाइ नकेत॥349॥
भावाथ#:-वेद कM ,वध और कुल कM र. त करके अयO-पाँवड़े दे ती हुई बहुओं समेत सब प-
ु = को
परछन करके माताएँ महल म? 0लवा चल.ं॥349॥
चौपाई :
* चा!र 0संघासन सहज सह
ु ाए। जनु मनोज नज हाथ बनाए॥
त7ह पर कुअँ!र कुअँर बैठारे । सादर पाय पन
ु ीत पखारे ॥1॥
भावाथ#:-Aवाभा,वक ह. सद
ंु र चार 0संहासन थे, जो मानो कामदे व ने ह. अपने हाथ से बनाए थे।
उन पर माताओं ने राजकुमा!रय= और राजकुमार= को बैठाया और आदर के साथ उनके प,व-
चरण धोए॥1॥
दोहा :
* एह सुख ते सत कोट गुन पावहं मातु अनंद।ु
भाइ7ह सहत 8बआह घर आए रघुकुलचंद॥
ु 350 क॥
भावाथ#:-इन सख
ु = से भी सौ करोड़ गुना बढ़कर आनंद माताएँ पा रह. हP, iय=Bक रघक
ु ु ल के
चंoमा $ी रामजी ,ववाह कर के भाइय= सहत घर आए हP॥350 (क)॥
चौपाई :
* दे व ,पतर पूजे 8बध नीकM। पूजीं सकल बासना जी कM॥
सबह बंद माँगहं बरदाना। भाइ7ह सहत राम कZयाना॥1॥
भावाथ#:-मन कM सभी वासनाएँ परू . हुई जानकर दे वता और ,पतर= का भल.भाँ त पज
ू न Bकया।
सबकM वंदना करके माताएँ यह. वरदान माँगती हP Bक भाइय= सहत $ी रामजी का कZयाण
हो॥1॥
दोहा :
* दे हं असीस जोहा!र सब गावहं गुन गन गाथ।
तब गुर भूसुर सहत गह
ृ ँ गवनु कM7ह नरनाथ॥351॥
भावाथ#:-सब जोहार (वंदन) करके आशीष दे ते हP और गुण समूह= कM कथा गाते हP। तब गु^
और CाDमण= सहत राजा दशरथजी ने महल म? गमन Bकया॥351॥
चौपाई :
* जो ब0स[ट अनस
ु ासन द.7ह.। लोक बेद 8बध सादर कM7ह.॥
भूसरु भीर दे Rख सब रानी। सादर उठvं भाdय बड़ जानी॥1॥
भावाथ#:- व0श[ठजी ने जो आgा द., उसे लोक और वेद कM ,वध के अनस
ु ार राजा ने
आदरपूवक
O Bकया। CाDमण= कM भीड़ दे खकर अपना बड़ा भाdय जानकर सब रा नयाँ आदर के
साथ उठvं॥1॥
दोहा :
* बधु7ह समेत कुमार सब रा न7ह सहत मह.सु।
प ु न पु न बंदत गुर चरन दे त असीस मुनीसु॥352॥
भावाथ#:-बहुओं सहत सब राजकुमार और सब रा नय= समेत राजा बार-बार गु^जी के चरण= कM
वंदना करते हP और मुनी/वर आशीवाOद दे ते हP॥352॥
चौपाई :
* 8बनय कMि7ह उर अ त अनरु ाग? । सत
ु संपदा राRख सब आग? ॥
नेगु माग म ु ननायक ल.7हा। आ0सरबाद ु बहुत 8बध द.7हा॥1॥
भावाथ#:-राजा ने अNय7त ेमपण ू O sदय से प-
ु = को और सार. सJप,T को सामने रखकर (उ7ह?
Aवीकार करने के 0लए) ,वनती कM, पर7तु मु नराज ने (परु ोहत के नाते) केवल अपना नेग
माँग 0लया और बहुत तरह से आशीवाOद दया॥1॥
* , य पाहुने प_ ू य जे जाने। भप
ू त भल. भाँ त सनमाने॥
दे व दे Rख रघुबीर 8बबाहू। बर,ष सून सं0स उछाहू॥4॥
भावाथ#:-िजन मेहमान= को , य और पज
ू नीय जाना, उनका राजा ने भल.भाँ त सJमान Bकया।
दे वगण $ी रघुनाथजी का ,ववाह दे खकर, उNसव कM शंसा करके फूल बरसाते हुए-॥4॥
दोहा :
* चले नसान बजाइ सरु नज नज परु सख
ु पाइ।
कहत परसपर राम जसु ेम न sदयँ समाइ॥353॥
भावाथ#:-नगाड़े बजाकर और (परम) सुख ात कर अपने-अपने लोक= को चले। वे एक-दस
ू रे से
$ी रामजी का यश कहते जाते हP। sदय म? ेम समाता नह.ं है ॥353॥
चौपाई :
* सब 8बध सबह समद नरनाहू। रहा sदयँ भ!र पू!र उछाहू॥
जहँ र नवासु तहाँ पगु धारे । सहत बहूट7ह कुअँर नहारे ॥1॥
भावाथ#:-सब कार से सबका ेमपव ू क
O भल.-भाँ त आदर-सNकार कर लेने पर राजा दशरथजी के
sदय म? पूणO उNसाह (आनंद) भर गया। जहाँ र नवास था, वे वहाँ पधारे और बहुओं समेत
उ7ह=ने कुमार= को दे खा॥1॥
दोहा :
* सत
ु 7ह समेत नहाइ नप
ृ बो0ल 8ब गरु dया त।
भोजन कM7ह अनेक 8बध घर. पंच गइ रा त॥।354॥
भावाथ#:-प-
ु = सहत Aनान करके राजा ने CाDमण, गु^ और कुटुिJबय= को बल
ु ाकर अनेक कार
के भोजन Bकए। (यह सब करते-करते) पाँच घड़ी रात बीत गई॥354॥
चौपाई :
* मंगलगान करहं बर भा0म न। भै सुखमल
ू मनोहर जा0म न॥
अँचइ पान सब काहूँ पाए। ग सुगंध भ,ू षत छ8ब छाए॥1॥
भावाथ#:-सुंदर िA-याँ मंगलगान कर रह. हP। वह रा8- सख
ु कM मूल और मनोहा!रणी हो गई।
सबने आचमन करके पान खाए और फूल= कM माला, सुगं धत ocय आद से ,वभू,षत होकर
सब शोभा से छा गए॥1॥
* नप
ृ सब भाँ त सबह सनमानी। कह मद
ृ ु बचन बोला} रानी॥
बधू ल!रकनीं पर घर आ}। राखेहु नयन पलक कM नाई॥4॥
भावाथ#:-राजा ने सबका सब कार से सJमान करके, कोमल वचन कहकर रा नय= को बल
ु ाया
और कहा- बहुएँ अभी बqची हP, पराए घर आई हP। इनको इस तरह से रखना जैसे ने-= को
पलक? रखती हP (जैसे पलक? ने-= कM सब कार से रWा करती हP और उ7ह? सख
ु पहुँचाती हP,
वैसे ह. इनको सुख पहुँचाना)॥4॥
दोहा :
* ल!रका $0मत उनीद बस सयन करावहु जाइ।
अस कह गे 8ब$ामगह
ृ ँ राम चरन चतु लाइ॥355॥
भावाथ#:-लड़के थके हुए नींद के वश हो रहे हP, इ7ह? ले जाकर शयन कराओ। ऐसा कहकर राजा
$ी रामच7oजी के चरण= म? मन लगाकर ,व$ाम भवन म? चले गए॥355॥
चौपाई :
* भूप बचन सु न सहज सुहाए। ज!रत कनक म न पलँ ग डसाए॥
सुभग सुर0भ पय फेन समाना। कोमल क0लत सुपत
े ीं नाना॥1॥
भावाथ#:-राजा के Aवाभव से ह. सद
ुं र वचन सुनकर (रा नय= ने) मRणय= से जड़े सुवणO के पलँ ग
8बछवाए। (गkद= पर) गो के फेन के समान संद
ु र एवं कोमल अनेक= सफेद चादर? 8बछा}॥1॥
* दे Rख Aयाम मद
ृ ु मंजुल गाता। कहहं स ेम बचन सब माता॥
मारग जात भयाव न भार.। केह 8बध तात ताड़का मार.॥4॥
भावाथ#:-$ी रामजी के साँवले सुंदर कोमल अँग= को दे खकर सब माताएँ ेम सहत वचन कह
रह. हP- हे तात! मागO म? जाते हुए तुमने बड़ी भयावनी ताड़का राWसी को Bकस कार से
मारा?॥4॥
दोहा :
* घोर नसाचर 8बकट भट समर गनहं नहं काहु।
मारे सहत सहाय Bक0म खल मार.च सब
ु ाहु॥356॥
भावाथ#:-बड़े भयानक राWस, जो ,वकट योkधा थे और जो युkध म? Bकसी को कुछ नह.ं गनते
थे, उन द[ु ट मार.च और सब
ु ाहु को सहायक= सहत तुमने कैसे मारा?॥356॥
चौपाई :
* म ु न साद ब0ल तात तुJहार.। ईस अनेक करवर? टार.॥
मख रखवार. क!र दहु ु ँ भा}। गु^ साद सब 8बkया पा}॥1॥
भावाथ#:-हे तात! मP बलैया लेती हूँ, मु न कM कृपा से ह. ई/वर ने तुJहार. बहुत सी बलाओं को
टाल दया। दोन= भाइय= ने यg कM रखवाल. करके गु^जी के साद से सब ,वkयाएँ पा}॥1॥
* आजु सफ
ु ल जग जनमु हमारा। दे Rख तात 8बधब
ु दन तJ
ु हारा॥
जे दन गए तुJहह 8बनु दे ख?। ते 8बरं च ज न पारहं लेख?॥4॥
भावाथ#:-हे तात! तुJहारा च7oमखु दे खकर आज हमारा जगत म? ज7म लेना सफल हुआ। तुमको
8बना दे खे जो दन बीते हP, उनको CDमा गनती म? न लाव? (हमार. आयु म? शा0मल न
कर? )॥4॥
दोहा :
* राम तोषीं मातु सब कह 8बनीत बर बैन।
सु0म!र संभु गु^ 8ब पद Bकए नीदबस नैन॥357॥
भावाथ#:-,वनय भरे उTम वचन कहकर $ी रामच7oजी ने सब माताओं को संतु[ट Bकया। Bफर
0शवजी, गु^ और CाDमण= के चरण= का Aमरण कर ने-= को नींद के वश Bकया। (अथाOत वे सो
रहे)॥357॥
चौपाई :
* नीदउँ बदन सोह सु ठ लोना। मनहुँ साँझ सरसी^ह सोना॥
घर घर करहं जागरन नार.ं। दे हं परसपर मंगल गार.ं॥1॥
भावाथ#:-नींद म? भी उनका अNय7त सलोना मुखड़ा ऐसा सोह रहा था, मानो सं~या के समय का
लाल कमल सोह रहा हो। िA-याँ घर-घर जागरण कर रह. हP और आपस म? (एक-दस
ू र. को)
मंगलमयी गा0लयाँ दे रह. हP॥1॥
* ात पन
ु ीत काल भु जागे। अ^नचूड़ बर बोलन लागे॥
बंद मागधि7ह गन
ु गन गाए। परु जन kवार जोहारन आए॥3॥
भावाथ#:- ातःकाल प,व- CDम मुहूतO म? भु जागे। मुग सद
ंु र बोलने लगे। भाट और मागध= ने
गुण= का गान Bकया तथा नगर के लोग kवार पर जोहार करने को आए॥3॥
दोहा :
* कMि7ह सौच सब सहज सु च स!रत पुनीत नहाइ।
ातBया क!र तात पहं आए चा!रउ भाइ॥358॥
भावाथ#:-Aवभाव से ह. प,व- चार= भाइय= ने सब शौचाद से नवT
ृ होकर प,व- सरयू नद. म?
Aनान Bकया और ातःBया (सं~या वंदनाद) करके वे ,पता के पास आए॥358॥
चौपाई :
* भूप 8बलोBक 0लए उर लाई। बैठे हर,ष रजायसु पाई॥
दे Rख रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अवध अनुमानी॥1॥
भावाथ#:-राजा ने दे खते ह. उ7ह? sदय से लगा 0लया। तदन7तर वे आgा पाकर ह,षOत होकर बैठ
गए। $ी रामच7oजी के दशOन कर और ने-= के लाभ कM बस यह. सीमा है , ऐसा अनुमान कर
सार. सभा शीतल हो गई। (अथाOत सबके तीन= कार के ताप सदा के 0लए 0मट गए)॥1॥
दोहा :
* मंगल मोद उछाह नत जाहं दवस एह भाँ त।
उमगी अवध अनंद भ!र अधक अधक अधका त॥359॥
भावाथ#:- नNय ह. मंगल, आनंद और उNसव होते हP, इस तरह आनंद म? दन बीतते जाते हP।
अयो~या आनंद से भरकर उमड़ पड़ी, आनंद कM अधकता अधक-अधक बढ़ती ह. जा रह.
है ॥359॥
चौपाई :
* सुदन सोध कल कंकन छोरे । मंगल मोद 8बनोद न थोरे ॥
नत नव सुखु सुर दे Rख 0सहाह.ं। अवध ज7म जाचहं 8बध पाह.ं॥1॥
भावाथ#:-अqछा दन (शुभ मुहूत)O शोधकर संद
ु र कंकण खोले गए। मंगल, आनंद और ,वनोद
कुछ कम नह.ं हुए (अथाOत बहुत हुए)। इस कार नNय नए सख ु को दे खकर दे वता 0सहाते हP
और अयो~या म? ज7म पाने के 0लए CDमाजी से याचना करते हP॥1॥
चौपाई :
* बामदे व रघकु ु ल गरु dयानी। बहु!र गाधसत
ु कथा बखानी॥
सु न म ु न सुजसु मनहं मन राऊ। बरनत आपन प7 ु य भाऊ॥1॥
भावाथ#:-वामदे वजी और रघुकुल के गु^ gानी व0श[ठजी ने Bफर ,व/वा0म-जी कM कथा
बखानकर कह.। मु न का सुंदर यश सुनकर राजा मन ह. मन अपने पुxय= के भाव का बखान
करने लगे॥1॥
* बहुरे लोग रजायसु भयऊ। सुत7ह समेत नप ृ त गह
ृ ँ गयऊ॥
जहँ तहँ राम Xयाहु सबु गावा। सज
ु सु पुनीत लोक तहुँ छावा॥2॥
भावाथ#:-आgा हुई तब सब लोग (अपने-अपने घर= को) लौटे । राजा दशरथजी भी प-
ु = सहत
महल म? गए। जहाँ-तहाँ सब $ी रामच7oजी के ,ववाह कM गाथाएँ गा रहे हP। $ी रामच7oजी
का प,व- सुयश तीन= लोक= म? छा गया॥2॥
छ6द :
* नज गरा पाव न करन कारन राम जसु तल
ु सीं कDयो।
रघुबीर च!रत अपार बा!रध पा^ क8ब कौन? लDयो॥
उपबीत Xयाह उछाह मंगल सु न जे सादर गावह.ं।
बैदेह राम साद ते जन सबOदा सुखु पावह.ं॥
भावाथ#:-अपनी वाणी को प,व- करने के 0लए तल
ु सी ने राम का यश कहा है। (नह.ं तो) $ी
रघुनाथजी का च!र- अपार समुo है , Bकस क,व ने उसका पार पाया है? जो लोग यgोपवीत
और ,ववाह के मंगलमय उNसव का वणOन आदर के साथ सुनकर गाव?गे, वे लोग $ी जानकMजी
और $ी रामजी कM कृपा से सदा सख
ु पाव?गे।
सोरठा :
* 0सय रघुबीर 8बबाहु जे स ेम गावहं सुनहं।
त7ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जस॥ ु 361॥
भावाथ#:-$ी सीताजी और $ी रघुनाथजी के ,ववाह संग को जो लोग ेमपव
ू क
O गाएँ-सुन?गे,
उनके 0लए सदा उNसाह (आनंद) ह. उNसाह है , iय=Bक $ी रामच7oजी का यश मंगल का धाम
है ॥361॥
* मासपारायण, बारहवाँ ,व$ाम
इ त $ीमoामच!रतमानसे सकलक0लकलष
ु ,व~वंसने थमः सोपानः समातः।
क0लयुग के सJपूणO पाप= को ,व~वंस करने वाले $ी रामच!रत मानस का यह पहला सोपान
समात हुआ॥
(बालकाLड समा4त)