Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 134

ी राम-ल

मण स हत ववाम का जनकपुर म वेश

चौपाई :
* चले राम ल छमन म ु न संगा। गए जहाँ जग पाव न गंगा॥
गाधसूनु सब कथा सुनाई। जेह कार सुरस!र मह आई॥1॥
भावाथ#:-$ी रामजी और ल'मणजी मु न के साथ चले। वे वहाँ गए, जहाँ जगत को प,व-
करने वाल. गंगाजी थीं। महाराज गाध के पु- ,व/वा0म-जी ने वह सब कथा कह सुनाई
िजस कार दे वनद. गंगाजी प4
ृ वी पर आई थीं॥1॥

* तब भु !र,ष7ह समेत नहाए। 8ब8बध दान महदे वि7ह पाए॥


हर,ष चले म ु न बंद
ृ सहाया। बेग 8बदे ह नगर नअराया॥2॥
भावाथ#:-तब भु ने ऋ,षय= सहत (गंगाजी म? ) Aनान Bकया। CाDमण= ने भाँ त-भाँ त के
दान पाए। Bफर मु नव7ृ द के साथ वे स7न होकर चले और शीH ह. जनकपुर के नकट
पहुँच गए॥2॥

* पुर रJयता राम जब दे खी। हरषे अनज


ु समेत 8बसेषी॥
बापीं कूप स!रत सर नाना। स0लल सुधासम म न सोपाना॥3॥
भावाथ#:-$ी रामजी ने जब जनकपुर कM शोभा दे खी, तब वे छोटे भाई ल'मण सहत
अNय7त ह,षOत हुए। वहाँ अनेक= बाव0लयाँ, कुएँ, नद. और तालाब हP, िजनम? अमत
ृ के
समान जल है और मRणय= कM सीढ़याँ (बनी हुई) हP॥3॥

* गंज
ु त मंजु मT रस भंग
ृ ा। कूजत कल बहुबरन 8बहं गा॥
बरन बरन 8बकसे बनजाता। 8-8बध समीर सदा सख ु दाता॥4॥
भावाथ#:-मकरं द
रस से मतवाले होकर भVरे संद ु र गज
ंु ार कर रहे हP। रं ग-8बरं गे (बहुत से)
पWी मधरु शXद कर रहे हP। रं ग-रं ग के कमल Rखले हP। सदा (सब ऋतओ ु ं म? ) सखु दे ने
वाला शीतल, मंद, सुगंध पवन बह रहा है ॥4॥

दोहा :
* सम
ु न बाटका बाग बन 8बपल
ु 8बहं ग नवास।
फूलत फलत सुपZलवत सोहत पुर चहुँ पास॥212।
भावाथ#:-पु[प वाटका (फुलवार.), बाग और वन, िजनम? बहुत से प\Wय= का नवास है ,

फूलते, फलते और संद ु र पT= से लदे हुए नगर के चार= ओर सुशो0भत हP॥212॥

चौपाई :
* बनइ न बरनत नगर नकाई। जहाँ जाइ मन तहँइँ लोभाई॥
चा^ बजा^ 8बच- अँबार.। म नमय 8बध जनु Aवकर सँवार.॥1॥
भावाथ#:-नगर कM संद
ु रता का वणOन करते नह.ं बनता। मन जहाँ जाता है, वह.ं लभ
ु ा जाता
(रम जाता) है । संद
ु र बाजार है , मRणय= से बने हुए ,वच- छ_जे हP, मानो CDमा ने उ7ह?
अपने हाथ= से बनाया है ॥1॥

*ध नक ब नक बर धनद समाना। बैठे सकल बAतु लै नाना।


चौहट संद
ु र गल.ं सुहाई। संतत रहहं सुगंध 0संचाई॥2॥
भावाथ#:-कुबेर के समान $े[ठ धनी cयापार. सब कार कM अनेक वAतए
ु ँ लेकर (दक
ु ान= म? )
बैठे हP। सुंदर चौराहे और सुहावनी ग0लयाँ सदा सुगध
ं से 0संची रहती हP॥2॥

* मंगलमय मंदर सब केर? । च8-त जनु र तनाथ चतेर?॥


पुर नर ना!र सुभग सुच संता। धरमसील dयानी गन
ु वंता॥3॥
भावाथ#:-सबके
घर मंगलमय हP और उन पर च- कढ़े हुए हP, िज7ह? मानो कामदे व fपी
च-कार ने अंBकत Bकया है । नगर के (सभी) A-ी-प^
ु ष संद
ु र, प,व-, साधु Aवभाव वाले,
धमाONमा, gानी और गण
ु वान हP॥3॥

*अ त अनप
ू जहँ जनक नवास।ू 8बथकहं 8बबध
ु 8बलोBक 8बलासू॥
होत चBकत चत कोट 8बलोकM। सकल भुवन सोभा जनु रोकM॥4॥
भावाथ#:-जहाँ जनकजी का अNय7त अनप
ु म (संद
ु र) नवास Aथान (महल) है , वहाँ के ,वलास
(ऐ/वयO) को दे खकर दे वता भी थBकत (AतिJभत) हो जाते हP (मन[ु य= कM तो बात ह.
iया!)। कोट (राजमहल के परकोटे ) को दे खकर चT चBकत हो जाता है , (ऐसा मालम

होता है ) मानो उसने समAत लोक= कM शोभा को रोक (घेर) रखा है ॥4॥

दोहा :
*धवल धाम म न पुरट पट सुघटत नाना भाँ त।
0सय नवास संद
ु र सदन सोभा Bक0म कह जा त॥213॥
भावाथ#:-उ__वल महल= म? अनेक
कार के संुदर र. त से बने हुए मRण जटत सोने कM
जर. के परदे लगे हP। सीताजी के रहने के संद
ु र महल कM शोभा का वणOन Bकया ह. कैसे
जा सकता है ॥213॥

चौपाई :
* सभ
ु ग kवार सब कु0लस कपाटा। भप
ू भीर नट मागध भाटा॥
बनी 8बसाल बािज गज साला। हय गय रख संकुल सब काला॥1॥
भावाथ#:-राजमहल के सब दरवाजे (फाटक) संद
ु र हP, िजनम? वl के (मजबूत अथवा ह.र= के
चमकते हुए) Bकवाड़ लगे हP। वहाँ (मातहत) राजाओं, नट=, मागध= और भाट= कM भीड़
लगी रहती है । घोड़= और हाथय= के 0लए बहुत बड़ी-बड़ी घड़ु साल? और गजशालाएँ
(फMलखाने) बनी हुई हP, जो सब समय घोड़े, हाथी और रथ= से भर. रहती हP॥1॥

* सरू सचव सेनप बहुतरे े । नप


ृ गहृ स!रस सदन सब केरे ॥
पुर बाहेर सर स!रत समीपा। उतरे जहँ तहँ 8बपल
ु मह.पा॥2॥
भावाथ#:-बहुत से शरू वीर, मं-ी और सेनाप त हP। उन सबके घर भी राजमहल सर.खे ह. हP।
नगर के बाहर तालाब और नद. के नकट जहाँ-तहाँ बहुत से राजा लोग उतरे हुए (डेरा
डाले हुए) हP॥2॥

* दे Rख अनूप एक अँवराई। सब सुपास सब भाँ त सुहाई।


कौ0सक कहे उ मोर मनु माना। इहाँ रहअ रघब
ु ीर सुजाना॥3॥
भावाथ#:-(वह.ं) आम= का एक अनप
ु म बाग दे खकर, जहाँ सब कार के सभ
ु ीते थे और जो
सब तरह से सुहावना था, ,व/वा0म-जी ने कहा- हे सुजान रघव
ु ीर! मेरा मन कहता है Bक
यह.ं रहा जाए॥3॥

* भलेहं नाथ कह कृपा नकेता। उतरे तहँ म ु न बंद


ृ समेता॥
8बAवा0म- महामु न आए। समाचार 0मथलाप त पाए॥4॥
भावाथ#:-कृपा
के धाम $ी रामच7oजी 'बहुत अqछा Aवा0मन!'् कहकर वह.ं म ु नय= के समूह
के साथ ठहर गए। 0मथलाप त जनकजी ने जब यह समाचार पाया Bक महामु न
,व/वा0म- आए हP,॥4॥

दोहा :
* संग सचव सुच भू!र भट भस
ू ुर बर गरु dया त।
चले 0मलन मु ननायकह मुदत राउ एह भाँ त॥214॥
भावाथ#:-तब
उ7ह=ने प,व- sदय के (ईमानदार, Aवा0मभiत) मं-ी बहुत से योkधा, $े[ठ
CाDमण, ग^
ु (शतानंदजी) और अपनी जा त के $े[ठ लोग= को साथ 0लया और इस
कार स7नता के साथ राजा म ु नय= के Aवामी ,व/वा0म-जी से 0मलने चले॥214॥

चौपाई :
* कM7ह नामु चरन ध!र माथा। द.ि7ह असीस मुदत म ु ननाथा॥
8ब बंद
ृ सब सादर बंदे। जा न भाdय बड़ राउ अनंदे॥1॥
भावाथ#:-राजा ने मु न के चरण= पर मAतक रखकर णाम Bकया। मु नय= के Aवामी
,व/वा0म-जी ने स7न होकर आशीवाOद दया। Bफर सार. CाDमणमंड ल. को आदर सहत
णाम Bकया और अपना बड़ा भाdय जानकर राजा आनंदत हुए॥1॥

* कुसल Aन कह बारहं बारा। 8बAवा0म- नप


ृ ह बैठारा॥
तेह अवसर आए दोउ भाई। गए रहे दे खन फुलवाई॥2॥
भावाथ#:-बार-बार कुशल /न करके ,व/वा0म-जी ने राजा को बैठाया। उसी समय दोन= भाई
आ पहुँचे, जो फुलवाड़ी दे खने गए थे॥2॥

* Aयाम गौर मद
ृ ु बयस Bकसोरा। लोचन सख
ु द 8बAव चत चोरा॥
उठे सकल जब रघप
ु त आए। 8बAवा0म- नकट बैठाए॥3॥
भावाथ#:-सुकुमार Bकशोर अवAथा वाले /याम और गौर वणO के दोन= कुमार ने-= को सुख
दे ने वाले और सारे ,व/व के चT को चरु ाने वाले हP। जब रघन
ु ाथजी आए तब सभी
(उनके fप एवं तेज से भा,वत होकर) उठकर खड़े हो गए। ,व/वा0म-जी ने उनको अपने
पास बैठा 0लया॥3॥

* भए सब सुखी दे Rख दोउ tाता। बा!र 8बलोचन पुलBकत गाता॥


मूर त मधरु मनोहर दे खी भयउ 8बदे हु 8बदे हु 8बसेषी॥4॥
भावाथ#:-दोन= भाइय= को दे खकर सभी सुखी हुए। सबके ने-= म? जल भर आया (आनंद और

ेम के आँसू उमड़ पड़े) और शर.र रोमांचत हो उठे । रामजी कM मधरु मनोहर मू तO को


दे खकर ,वदे ह (जनक) ,वशेष fप से ,वदे ह (दे ह कM सुध-बुध से रहत) हो गए॥4॥

ी राम-ल मण को दे खकर जनकजी क' ेम मु(धता


दोहा :
* ेम मगन मनु जा न नप
ृ ु क!र 8बबेकु ध!र धीर।
बोलेउ मु न पद नाइ 0स^ गदगद गरा गभीर॥215॥
भावाथ#:-मन को ेम म? मdन जान राजा जनक ने ,ववेक का आ$य लेकर धीरज धारण
Bकया और म ु न के चरण= म? 0सर नवाकर गkगk ( ेमभर.) गंभीर वाणी से कहा- ॥215॥

चौपाई :
* कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक। मु नकुल तलक Bक नप
ृ कुल पालक॥
CDम जो नगम ने त कह गावा। उभय बेष ध!र कM सोइ आवा॥1॥
भावाथ#:-हे नाथ! कहए, ये दोन= सुंदर बालक मु नकुल के आभष
ू ण हP या Bकसी राजवंश के
पालक? अथवा िजसका वेद= ने 'ने त' कहकर गान Bकया है कह.ं वह CDम तो युगल fप
धरकर नह.ं आया है?॥1॥

* सहज 8बरागfप मनु मोरा। थBकत होत िज0म चंद चकोरा॥


ताते भु पछू उँ स तभाऊ। कहहु नाथ ज न करहु दरु ाऊ॥2॥
भावाथ#:-मेरा मन जो Aवभाव से ह. वैराdय fप (बना हुआ) है , (इ7ह? दे खकर) इस तरह मुdध
हो रहा है , जैसे च7oमा को दे खकर चकोर। हे भो! इस0लए मP आपसे सNय ( न/छल) भाव
से पछ
ू ता हूँ। हे नाथ! बताइए, छपाव न कMिजए॥2॥

* इ7हह 8बलोकत अ त अनुरागा। बरबस CDमसुखह मन Nयागा॥


कह मु न 8बह0स कहे हु नप
ृ नीका। बचन तुJहार न होइ अल.का॥3॥
भावाथ#:-इनको दे खते ह. अNय7त ेम के वश होकर मेरे मन ने जबदO Aती CDमसख
ु को Nयाग
दया है । म ु न ने हँसकर कहा- हे राजन!् आपने ठvक (यथाथO ह.) कहा। आपका वचन 0म4या
नह.ं हो सकता॥3॥
* ए , य सबह जहाँ लग ानी। मन मुसक
ु ाहं रामु स ु न बानी॥
रघक
ु ु ल म न दसरथ के जाए। मम हत लाग नरे स पठाए॥4॥
भावाथ#:-जगत म? जहाँ तक (िजतने भी) ाणी हP, ये सभी को , य हP। मु न कM (रहAय भर.)
वाणी सुनकर $ी रामजी मन ह. मन मA
ु कुराते हP (हँसकर मानो संकेत करते हP Bक रहAय
खो0लए नह.ं)। (तब मु न ने कहा-) ये रघुकुल मRण महाराज दशरथ के प-
ु हP। मेरे हत के
0लए राजा ने इ7ह? मेरे साथ भेजा है॥4॥

दोहा :
* रामु लखनु दोउ बंधब
ु र fप सील बल धाम।
मख राखेउ सबु साRख जगु िजते असरु संwाम॥216॥
भावाथ#:-ये राम और ल'मण दोन= $े[ठ भाई fप, शील और बल के धाम हP। सारा जगत
(इस बात का) साWी है Bक इ7ह=ने यk
ु ध म? असरु = को जीतकर मेरे यg कM रWा कM
है ॥216॥

चौपाई :
* म ु न तव चरन दे Rख कह राऊ। कह न सकउँ नज प7
ु य भाऊ॥
सुंदर Aयाम गौर दोउ tाता। आनँदहू के आनँद दाता॥1॥
भावाथ#:-राजा ने कहा- हे म ु न! आपके चरण= के दशOन कर मP अपना पुxय भाव कह नह.ं
सकता। ये सद
ुं र /याम और गौर वणO के दोन= भाई आनंद को भी आनंद दे ने वाले हP।

* इ7ह कै ी त परसपर पाव न। कह न जाइ मन भाव सह


ु ाव न॥
सुनहु नाथ कह मुदत 8बदे हू। CDम जीव इव सहज सनेहू॥2॥
भावाथ#:-इनकM आपस कM ी त बड़ी प,व- और सह ु ावनी है, वह मन को बहुत भाती है , पर
(वाणी से) कह. नह.ं जा सकती। ,वदे ह (जनकजी) आनंदत होकर कहते हP- हे नाथ! स ु नए,
CDम और जीव कM तरह इनम? Aवाभा,वक ेम है॥2॥

* प ु न पु न भुह चतव नरनाहू। पल


ु क गात उर अधक उछाहू॥
मु नह सं0स नाइ पद सीसू। चलेउ लवाइ नगर अवनीस॥ ू 3॥
भावाथ#:-राजा बार-बार भु को दे खते हP (yि[ट वहाँ से हटना ह. नह.ं चाहती)। ( ेम से) शर.र
पल
ु Bकत हो रहा है और sदय म? बड़ा उNसाह है । (Bफर) म ु न कM शंसा करके और उनके
चरण= म? 0सर नवाकर राजा उ7ह? नगर म? 0लवा चले॥3॥

* संद
ु र सदनु सख
ु द सब काला। तहाँ बासु लै द.7ह भआ
ु ला॥
क!र पज
ू ा सब 8बध सेवकाई। गयउ राउ गहृ 8बदा कराई॥4॥
भावाथ#:-एक सद
ुं र महल जो सब समय (सभी ऋतओ
ु ं म? ) सुखदायक था, वहाँ राजा ने उ7ह? ले
जाकर ठहराया। तदन7तर सब कार से पज
ू ा और सेवा करके राजा ,वदा माँगकर अपने घर
गए॥4॥
दोहा :
* !रषय संग रघब
ु ंस म न क!र भोजनु 8ब$ामु।
बैठे भु tाता सहत दवसु रहा भ!र जामु॥217॥
भावाथ#:-रघुकुल के 0शरोमRण भु $ी रामच7oजी ऋ,षय= के साथ भोजन और ,व$ाम करके
भाई ल'मण समेत बैठे। उस समय पहरभर दन रह गया था॥217॥

चौपाई :
*लखन sदयँ लालसा 8बसेषी। जाइ जनकपरु आइअ दे खी॥
भु भय बहु!र म ु नह सकुचाह.ं। गट न कहहं मनहं मस
ु क
ु ाह.ं॥1॥
भावाथ#:-ल'मणजी के sदय म? ,वशेष लालसा है Bक जाकर जनकपुर दे ख आव?, पर7तु भु $ी
रामच7oजी का डर है और Bफर मु न से भी सकुचाते हP, इस0लए कट म? कुछ नह.ं कहते,
मन ह. मन मुAकुरा रहे हP॥1॥

* राम अनज
ु मन कM ग त जानी। भगत बछलता हयँ हुलसानी॥
परम 8बनीत सकुच मुसुकाई। बोले गुर अनुसासन पाई॥2॥
भावाथ#:-(अ7तयाOमी) $ी रामच7oजी ने छोटे भाई के मन कM दशा जान ल., (तब) उनके
sदय म? भiतवNसलता उमड़ आई। वे गु^ कM आgा पाकर बहुत ह. ,वनय के साथ सकुचाते
हुए मुAकुराकर बोले॥2॥

* नाथ लखनु प^
ु दे खन चहह.ं। भु सकोच डर गट न कहह.ं॥
जV राउर आयसु मP पावV। नगर दे खाइ तुरत लै आवV॥3॥
भावाथ#:-हे नाथ! ल'मण नगर दे खना चाहते हP, Bक7तु भु (आप) के डर और संकोच के
कारण Aप[ट नह.ं कहते। यद आपकM आgा पाऊँ, तो मP इनको नगर दखलाकर तरु ं त ह.
(वापस) ले आऊँ॥3॥

* सु न मन
ु ीसु कह बचन स ीती। कस न राम तJ
ु ह राखहु नीती॥
धरम सेतु पालक तुJह ताता। ेम 8बबस सेवक सखु दाता॥4॥
भावाथ#:-यह सन
ु कर मन
ु ी/वर ,व/वा0म-जी ने ेम सहत वचन कहे- हे राम! तुम नी त कM
रWा कैसे न करोगे, हे तात! तुम धमO कM मयाOदा का पालन करने वाले और ेम के वशीभत

होकर सेवक= को सख
ु दे ने वाले हो॥4॥

ी राम-ल मण का जनकपरु *नर+,ण


दोहा :
* जाइ दे Rख आवहु नग^ सुख नधान दोउ भाइ।
करहु सुफल सब के नयन सुंदर बदन दे खाइ॥218॥
भावाथ#:-सख
ु के नधान दोन= भाई जाकर नगर दे ख आओ। अपने संद
ु र मख
ु दखलाकर सब
(नगर नवा0सय=) के ने-= को सफल करो॥218॥
चौपाई :
* म ु न पद कमल बंद दोउ tाता। चले लोक लोचन सख
ु दाता॥
बालक बद
ं ृ दे Rख अ त सोभा। लगे संग लोचन मनु लोभा॥1॥
भावाथ#:-सब लोक= के ने-= को सुख दे ने वाले दोन= भाई मु न के चरणकमल= कM वंदना करके
चले। बालक= के झुंड इन (के सVदयO) कM अNय7त शोभा दे खकर साथ लग गए। उनके ने-
और मन (इनकM माधरु . पर) लुभा गए॥1॥

* पीत बसन प!रकर कट भाथा। चा^ चाप सर सोहत हाथा॥


तन अनुहरत सच
ु ंदन खोर.। Aयामल गौर मनोहर जोर.॥2॥
भावाथ#:-(दोन= भाइय= के) पीले रं ग के वA- हP, कमर के (पीले) दप
ु {ट= म? तरकस बँधे हP।
हाथ= म? सुंदर धनुष-बाण सुशो0भत हP। (/याम और गौर वणO के) शर.र= के अनक
ु ू ल (अथाOत ्
िजस पर िजस रं ग का चंदन अधक फबे उस पर उसी रं ग के) सुंदर चंदन कM खौर लगी है।
साँवरे और गोरे (रं ग) कM मनोहर जोड़ी है ॥2॥

* केह!र कंधर बाहु 8बसाला। उर अ त ^चर नागम न माला॥


सुभग सोन सरसी^ह लोचन। बदन मयंक ताप-य मोचन॥3॥
भावाथ#:-0संह के समान (पु[ट) गदO न (गले का ,पछला भाग) है , ,वशाल भज
ु ाएँ हP। (चौड़ी)
छाती पर अNय7त सुंदर गजमुiता कM माला है । सद
ुं र लाल कमल के समान ने- हP। तीन=
ताप= से छुड़ाने वाला च7oमा के समान मुख है॥3॥

* कानि7ह कनक फूल छ8ब दे ह.ं। चतवत चतह चो!र जनु लेह.ं॥
चतव न चा^ भक
ृ ु ट बर बाँकM। तलक रे ख सोभा जनु चाँकM॥4॥
भावाथ#:-कान= म? सोने के कणOफूल (अNय7त) शोभा दे रहे हP और दे खते ह. (दे खने वाले के)
चT को मानो चुरा लेते हP। उनकM चतवन (yि[ट) बड़ी मनोहर है और भVह? तरछv एवं सद
ुं र
हP। (माथे पर) तलक कM रे खाएँ ऐसी सुंदर हP, मानो (मू तOमती) शोभा पर मह
ु र लगा द. गई
है ॥4॥

दोहा :
* ^चर चौतनीं सुभग 0सर मेचक कंु चत केस।
नख 0सख सद
ंु र बंधु दोउ सोभा सकल सद
ु े स॥219॥
भावाथ#:-0सर पर सद
ुं र चौकोनी टो,पयाँ (दए) हP, काले और घुँघराले बाल हP। दोन= भाई नख
से लेकर 0शखा तक (एड़ी से चोट. तक) सुंदर हP और सार. शोभा जहाँ जैसी चाहए वैसी ह.
है ॥219॥

चौपाई :
* दे खन नग^ भूपसुत आए। समाचार पुरबा0स7ह पाए॥
धाए धाम काम सब Nयागी। मनहुँ रं क नध लट
ू न लागी॥1॥
भावाथ#:-जब परु वा0सय= ने यह समाचार पाया Bक दोन= राजकुमार नगर दे खने के 0लए आए
हP, तब वे सब घर-बार और सब काम-काज छोड़कर ऐसे दौड़े मानो द!रo. (धन का) खजाना
लूटने दौड़े ह=॥1॥

* नरRख सहज सुंदर दोउ भाई। होहं सुखी लोचन फल पाई॥


जब
ु तीं भवन झरोखि7ह लागीं। नरखहं राम fप अनरु ागीं॥2॥
भावाथ#:-Aवभाव ह. से सुंदर दोन= भाइय= को दे खकर वे लोग ने-= का फल पाकर सुखी हो रहे
हP। युवती िA-याँ घर के झरोख= से लगी हुई ेम सहत $ी रामच7oजी के fप को दे ख रह.
हP॥2॥

* कहहं परसपर बचन स ीती। सRख इ7ह कोट काम छ8ब जीती॥
सुर नर असुर नाग मु न माह.ं। सोभा अ0स कहुँ सु नअ त नाह.ं॥3॥
भावाथ#:-वे आपस म? बड़े ेम से बात? कर रह. हP- हे सखी! इ7ह=ने करोड़= कामदे व= कM छ8ब
को जीत 0लया है। दे वता, मनु[य, असुर, नाग और मु नय= म? ऐसी शोभा तो कह.ं सुनने म?
भी नह.ं आती॥3॥

* 8ब[नु चा!र भज
ु 8बध मख
ु चार.। 8बकट बेष मख
ु पंच परु ार.॥
अपर दे उ अस कोउ ना आह.। यह छ8ब सखी पटत!रअ जाह.॥4॥
भावाथ#:-भगवान ,व[णु के चार भज
ु ाएँ हP, CDमाजी के चार मुख हP, 0शवजी का ,वकट
(भयानक) वेष है और उनके पाँच मँह
ु हP। हे सखी! दस
ू रा दे वता भी कोई ऐसा नह.ं है, िजसके
साथ इस छ8ब कM उपमा द. जाए॥4॥

दोहा :
* बय Bकसोर सुषमा सदन Aयाम गौर सुख धाम।
अंग अंग पर वा!रअहं कोट कोट सत काम॥220॥
भावाथ#:-इनकM Bकशोर अवAथा है , ये सुंदरता के घर, साँवले और गोरे रं ग के तथा सख
ु के
धाम हP। इनके अंग-अंग पर करोड़=-अरब= कामदे व= को नछावर कर दे ना चाहए॥220॥

चौपाई :
* कहहु सखी अस को तनु धार.। जो न मोह यह fप नहार.॥
कोउ स ेम बोल. मद
ृ ु बानी। जो मP सन
ु ा सो सन
ु हु सयानी॥1॥
भावाथ#:-हे सखी! (भला) कहो तो ऐसा कौन शर.रधार. होगा, जो इस fप को दे खकर मोहत
न हो जाए (अथाOत यह fप जड़-चेतन सबको मोहत करने वाला है )। (तब) कोई दस
ू र. सखी
ेम सहत कोमल वाणी से बोल.- हे सयानी! मPने जो सुना है उसे सुनो-॥1॥

* ए दोऊ दसरथ के ढोटा। बाल मरालि7ह के कल जोटा॥


म ु न कौ0सक मख के रखवारे । िज7ह रन अिजर नसाचर मारे ॥2॥
भावाथ#:-ये दोन= (राजकुमार) महाराज दशरथजी के प-
ु हP! बाल राजहंस= का सा सद
ुं र जोड़ा
है । ये मु न ,व/वा0म- के यg कM रWा करने वाले हP, इ7ह=ने युkध के मैदान म? राWस= को
मारा है॥2॥

* Aयाम गात कल कंज 8बलोचन। जो मार.च सभ


ु ज
ु मद ु मोचन॥
कौसZया सत
ु सो सख
ु खानी। नामु रामु धनु सायक पानी॥3॥
भावाथ#:-िजनका /याम शर.र और सद
ंु र कमल जैसे ने- हP, जो मार.च और सब
ु ाहु के मद को
चूर करने वाले और सख ु कM खान हP और जो हाथ म? धनुष-बाण 0लए हुए हP, वे कौसZयाजी
के पु- हP, इनका नाम राम है ॥3॥

* गौर Bकसोर बेषु बर काछ? । कर सर चाप राम के पाछ? ॥


ल छमनु नामु राम लघु tाता। सुनु सRख तासु स0ु म-ा माता॥4॥
भावाथ#:-िजनका रं ग गोरा और Bकशोर अवAथा है और जो सद
ुं र वेष बनाए और हाथ म?
धनुष-बाण 0लए $ी रामजी के पीछे -पीछे चल रहे हP, वे इनके छोटे भाई हP, उनका नाम
ल'मण है । हे सखी! सुनो, उनकM माता स0ु म-ा हP॥4॥

दोहा :
* 8ब काजु क!र बंधु दोउ मग म ु नबधू उधा!र।
आए दे खन चापमख स ु न हरषीं सब ना!र॥221॥
भावाथ#:-दोन= भाई CाDमण ,व/वा0म- का काम करके और राAते म? मु न गौतम कM A-ी
अहZया का उkधार करके यहाँ धनुषयg दे खने आए हP। यह सन
ु कर सब िA-याँ स7न
हु}॥221॥

चौपाई :
* दे Rख राम छ8ब कोउ एक कहई। जोगु जानBकह यह ब^ अहई॥
जV सRख इ7हह दे ख नरनाहू। पन प!रह!र हठ करइ 8बबाहू॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी कM छ8ब दे खकर कोई एक (दस
ू र. सखी) कहने लगी- यह वर जानकM
के योdय है। हे सखी! यद कह.ं राजा इ7ह? दे ख ले, तो तgा छोड़कर हठपूवक
O इ7ह.ं से
,ववाह कर दे गा॥1॥

* कोउ कह ए भप
ू त पहचाने। म ु न समेत सादर सनमाने॥
सRख परं तु पनु राउ न तजई। 8बध बस हठ अ8बबेकह भजई॥2॥
भावाथ#:-Bकसी ने कहा- राजा ने इ7ह? पहचान 0लया है और मु न के सहत इनका आदरपव
ू क
O
सJमान Bकया है , परं तु हे सखी! राजा अपना ण नह.ं छोड़ता। वह होनहार के वशीभत
ू होकर
हठपव
ू क
O अ,ववेक का ह. आ$य 0लए हुए हP ( ण पर अड़े रहने कM मख
ू त
O ा नह.ं छोड़ता)॥2॥

* कोउ कह जV भल अहइ 8बधाता। सब कहँ स ु नअ उचत फल दाता॥


तौ जानBकह 0म0लह ब^ एहू। नाहन आ0ल इहाँ संदेहू॥3॥
भावाथ#:-कोई कहती है- यद ,वधाता भले हP और सन
ु ा जाता है Bक वे सबको उचत फल दे ते
हP, तो जानकMजी को यह. वर 0मलेगा। हे सखी! इसम? संदेह नह.ं है ॥3॥

* जV 8बध बस अस बनै सँजोग।ू तौ कृतकृNय होइ सब लोगू॥


सRख हमर? आर त अ त तात? । कबहुँक ए आवहं एह नात? ॥4॥
भावाथ#:-जो दै वयोग से ऐसा संयोग बन जाए, तो हम सब लोग कृताथO हो जाएँ। हे सखी! मेरे
तो इसी से इतनी अधक आतरु ता हो रह. है Bक इसी नाते कभी ये यहाँ आव?गे॥4॥

दोहा :
* नाहं त हम कहुँ सन
ु हु सRख इ7ह कर दरसनु द!ू र।
यह संघटु तब होइ जब प7 ु य परु ाकृत भू!र॥222॥
भावाथ#:-नह.ं तो (,ववाह न हुआ तो) हे सखी! सुनो, हमको इनके दशOन दल
ु भ
O हP। यह संयोग
तभी हो सकता है, जब हमारे पव ू ज
O 7म= के बहुत पx
ु य ह=॥222॥

चौपाई :
* बोल. अपर कहे हु सRख नीका। एहं 8बआह अ त हत सबह. का।
कोउ कह संकर चाप कठोरा। ए Aयामल मद
ृ ु गात Bकसोरा॥1॥
भावाथ#:-दस
ू र. ने कहा- हे सखी! तुमने बहुत अqछा कहा। इस ,ववाह से सभी का परम हत
है । Bकसी ने कहा- शंकरजी का धनुष कठोर है और ये साँवले राजकुमार कोमल शर.र के
बालक हP॥1॥

* सबु असमंजस अहइ सयानी। यह स ु न अपर कहइ मद


ृ ु बानी॥
सRख इ7ह कहँ कोउ कोउ अस कहह.ं। बड़ भाउ दे खत लघु अहह.ं॥2॥
भावाथ#:-हे सयानी! सब असमंजस ह. है। यह सन
ु कर दस
ू र. सखी कोमल वाणी से कहने लगी-
हे सखी! इनके संबध
ं म? कोई-कोई ऐसा कहते हP Bक ये दे खने म? तो छोटे हP, पर इनका भाव
बहुत बड़ा है॥2॥

* पर0स जासु पद पंकज धूर.। तर. अहZया कृत अघ भूर.॥


सो Bक रहह 8बनु 0सव धनु तोर? । यह ती त प!रह!रअ न भोर? ॥3॥
भावाथ#:-िजनके चरणकमल= कM धू0ल का AपशO पाकर अहZया तर गई, िजसने बड़ा भार. पाप
Bकया था, वे iया 0शवजी का धनष
ु 8बना तोड़े रह? गे। इस ,व/वास को भल
ू कर भी नह.ं छोड़ना
चाहए॥3॥

* जेहं 8बरं च रच सीय सँवार.। तेहं Aयामल ब^ रचेउ 8बचार.॥


तासु बचन सु न सब हरषानीं। ऐसेइ होउ कहहं मद
ृ ु बानीं॥4॥
भावाथ#:-िजस CDमा ने सीता को सँवारकर (बड़ी चतरु ाई से) रचा है , उसी ने ,वचार कर
साँवला वर भी रच रखा है। उसके ये वचन सुनकर सब ह,षOत हु} और कोमल वाणी से कहने
लगीं- ऐसा ह. हो॥4॥

दोहा :
* हयँ हरषहं बरषहं सुमन सुमRु ख सल
ु ोच न बद
ंृ ।
जाहं जहाँ जहँ बंधु दोउ तहँ तहँ परमानंद॥223॥
भावाथ#:- सुंदर मुख और सुंदर ने-= वाल. िA-याँ समूह कM समह
ू sदय म? ह,षOत होकर फूल
बरसा रह. हP। जहाँ-जहाँ दोन= भाई जाते हP, वहाँ-वहाँ परम आनंद छा जाता है॥223॥

चौपाई :
* परु परू ब द0स गे दोउ भाई। जहँ धनुमख हत भू0म बनाई॥
अ त 8बAतार चा^ गच ढार.। 8बमल बेदका ^चर सँवार.॥1॥
भावाथ#:-दोन= भाई नगर के परू ब ओर गए, जहाँ धनष
ु यg के 0लए (रं ग) भ0ू म बनाई गई थी।
बहुत लंबा-चौड़ा सुंदर ढाला हुआ पiका आँगन था, िजस पर सद
ुं र और नमOल वेद. सजाई
गई थी॥1॥

* चहुँ द0स कंचन मंच 8बसाला। रचे जहाँ बैठहं महपाला॥


तेह पाछ? समीप चहुँ पासा। अपर मंच मंड ल. 8बलासा॥2॥
भावाथ#:-चार= ओर सोने के बड़े-बड़े मंच बने थे, िजन पर राजा लोग बैठ?गे। उनके पीछे समीप
ह. चार= ओर दस
ू रे मचान= का मंड लाकार घेरा सश
ु ो0भत था॥2॥

* कछुक ऊँच सब भाँ त सुहाई। बैठहं नगर लोग जहँ जाई॥


त7ह के नकट 8बसाल सुहाए। धवल धाम बहुबरन बनाए॥3॥
भावाथ#:-वह कुछ ऊँचा था और सब कार से सुंदर था, जहाँ जाकर नगर के लोग बैठ?गे।
उ7ह.ं के पास ,वशाल एवं सुंदर सफेद मकान अनेक रं ग= के बनाए गए हP॥3॥

* जहँ बैठ? दे खहं सब नार.। जथाजोगु नज कुल अनुहार.॥


परु बालक कह कह मद
ृ ु बचना। सादर भुह दे खावहं रचना॥4॥
भावाथ#:-जहाँ अपने-अपने कुल के अनस
ु ार सब िA-याँ यथायोdय (िजसको जहाँ बैठना उचत
है ) बैठकर दे ख?गी। नगर के बालक कोमल वचन कह-कहकर आदरपव
ू क
O भु $ी रामच7oजी
को (यgशाला कM) रचना दखला रहे हP॥4॥

दोहा :
* सब 0ससु एह 0मस ेमबस पर0स मनोहर गात।
तन पल
ु कहं अ त हरषु हयँ दे Rख दे Rख दोउ tात॥224॥
भावाथ#:-सब बालक इसी बहाने ेम के वश म? होकर $ी रामजी के मनोहर अंग= को छूकर
शर.र से पल
ु Bकत हो रहे हP और दोन= भाइय= को दे ख-दे खकर उनके sदय म? अNय7त हषO हो
रहा है ॥224॥

चौपाई :
* 0ससु सब राम ेमबस जाने। ी त समेत नकेत बखाने॥
नज नज ^च सब लेहं बोलाई। सहत सनेह जाहं दोउ भाई॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी ने सब बालक= को ेम के वश जानकर (यgभू0म के) Aथान= कM
ेमपव
ू क
O शंसा कM। (इससे बालक= का उNसाह, आनंद और ेम और भी बढ़ गया, िजससे) वे
सब अपनी-अपनी ^च के अनुसार उ7ह? बुला लेते हP और ( Nयेक के बुलाने पर) दोन= भाई
ेम सहत उनके पास चले जाते हP॥1॥

* राम दे खावहं अनज


ु ह रचना। कह मद
ृ ु मधरु मनोहर बचना॥
लव नमेष महुँ भुवन नकाया। रचइ जासु अनुसासन माया॥2॥
भावाथ#:-कोमल, मधरु और मनोहर वचन कहकर $ी रामजी अपने छोटे भाई ल'मण को
(यgभ0ू म कM) रचना दखलाते हP। िजनकM आgा पाकर माया लव नमेष (पलक गरने के
चौथाई समय) म? CDमाxड= के समह
ू रच डालती है ,॥2॥

*भग त हेतु सोइ द.नदयाला। चतवत चBकत धनष


ु मखसाला॥
कौतक
ु दे Rख चले गु^ पाह.ं। जा न 8बलंबु -ास मन माह.ं॥3॥
भावाथ#:-वह. द.न= पर दया करने वाले $ी रामजी भिiत के कारण धनुष यg शाला को
चBकत होकर (आ/चयO के साथ) दे ख रहे हP। इस कार सब कौतुक (,वच- रचना) दे खकर वे
ग^
ु के पास चले। दे र हुई जानकर उनके मन म? डर है ॥3॥

* जासु -ास डर कहुँ डर होई। भजन भाउ दे खावत सोई॥


कह बात? मद
ृ ु मधुर सह
ु ा}। Bकए 8बदा बालक ब!रआ}॥4॥
भावाथ#:-िजनके भय से डर को भी डर लगता है , वह. भु भजन का भाव (िजसके कारण
ऐसे महान भु भी भय का ना{य करते हP) दखला रहे हP। उ7ह=ने कोमल, मधुर और सुंदर
बात? कहकर बालक= को जबदO Aती ,वदा Bकया॥4॥

दोहा :
* सभय स ेम 8बनीत अ त सकुच सहत दोउ भाइ।
गुर पद पंकज नाइ 0सर बैठे आयसु पाइ॥225॥
भावाथ#:-Bफर भय, ेम, ,वनय और बड़े संकोच के साथ दोन= भाई ग^
ु के चरण कमल= म?
0सर नवाकर आgा पाकर बैठे॥225॥

चौपाई :
* न0स बेस मु न आयसु द.7हा। सबह.ं सं~याबंदनु कM7हा॥
कहत कथा इ तहास परु ानी। ^चर रज न जुग जाम 0सरानी॥1॥
भावाथ#:-रा8- का वेश होते ह. (सं~या के समय) म ु न ने आgा द., तब सबने सं~यावंदन
Bकया। Bफर ाचीन कथाएँ तथा इ तहास कहते-कहते सुंदर रा8- दो पहर बीत गई॥1॥

* मु नबर सयन कMि7ह तब जाई। लगे चरन चापन दोउ भाई॥


िज7ह के चरन सरो^ह लागी। करत 8ब8बध जप जोग 8बरागी॥2॥
भावाथ#:-तब $े[ठ म ु न ने जाकर शयन Bकया। दोन= भाई उनके चरण दबाने लगे, िजनके
चरण कमल= के (दशOन एवं AपशO के) 0लए वैराdयवान ् पु^ष भी भाँ त-भाँ त के जप और योग
करते हP॥2॥

*तेइ दोउ बंधु ेम जनु जीते। गुर पद कमल पलोटत ीते॥


बार बार मु न अdया द.7ह.। रघुबर जाइ सयन तब कM7ह.॥3॥
भावाथ#:-वे ह. दोन= भाई मानो ेम से जीते हुए ेमपव
ू क
O ग^
ु जी के चरण कमल= को दबा रहे
हP। मु न ने बार-बार आgा द., तब $ी रघुनाथजी ने जाकर शयन Bकया॥3॥

* चापत चरन लखनु उर लाएँ। सभय स ेम परम सचु पाएँ॥


प ु न पु न भु कह सोवहु ताता। पौढ़े ध!र उर पद जलजाता॥4॥
भावाथ#:-$ी रामजी के चरण= को sदय से लगाकर भय और ेम सहत परम सुख का अनुभव
करते हुए ल'मणजी उनको दबा रहे हP। भु $ी रामच7oजी ने बार-बार कहा- हे तात! (अब)
सो जाओ। तब वे उन चरण कमल= को sदय म? धरकर लेटे रहे॥4॥

प-ु पवा टका-*नर+,ण, सीताजी का थम दश#न, ी सीता-रामजी का पर/पर दश#न


दोहा :
* उठे लखनु न0स 8बगत स ु न अ^न0सखा धु न कान।
गरु त? पहलेहं जगतप त जागे रामु सज
ु ान॥226॥
भावाथ#:-रात बीतने पर, मुग का शXद कान= से सुनकर ल'मणजी उठे । जगत के Aवामी
सुजान $ी रामच7oजी भी गु^ से पहले ह. जाग गए॥226॥

चौपाई :
* सकल सौच क!र जाइ नहाए। नNय नबाह मु नह 0सर नाए॥
समय जा न गुर आयसु पाई। लेन सून चले दोउ भाई॥1॥
भावाथ#:-सब शौचB€या करके वे जाकर नहाए। Bफर (सं~या-अिdनहो-ाद) नNयकमO समात
करके उ7ह=ने मु न को मAतक नवाया। (पज
ू ा का) समय जानकर, गु^ कM आgा पाकर दोन=
भाई फूल लेने चले॥1॥

* भूप बागु बर दे खेउ जाई। जहँ बसंत !रतु रह. लोभाई॥


लागे 8बटप मनोहर नाना। बरन बरन बर बे0ल 8बताना॥2॥
भावाथ#:-उ7ह=ने जाकर राजा का सुंदर बाग दे खा, जहाँ वसंत ऋतु लुभाकर रह गई है । मन को
लुभाने वाले अनेक वW
ृ लगे हP। रं ग-8बरं गी उTम लताओं के मंड प छाए हुए हP॥2॥

*नव पZलव फल सुमन सुहाए। नज संप त सरु fख लजाए॥


चातक कोBकल कMर चकोरा। कूजत 8बहग नटत कल मोरा॥3॥
भावाथ#:-नए, पT=, फल= और फूल= से यi
ु त संद
ु र वW
ृ अपनी सJप,T से कZपवW
ृ को भी
लजा रहे हP। पपीहे, कोयल, तोते, चकोर आद पWी मीठv बोल. बोल रहे हP और मोर सद
ुं र
नNृ य कर रहे हP॥3॥
* म~य बाग स^ सोह सुहावा। म न सोपान 8बच- बनावा॥
8बमल स0ललु सर0सज बहुरं गा। जलखग कूजत गज ंु त भंगृ ा॥4॥
भावाथ#:-बाग के बीच=बीच सुहावना सरोवर सश
ु ो0भत है , िजसम? मRणय= कM सीढ़याँ ,वच-
ढं ग से बनी हP। उसका जल नमOल है , िजसम? अनेक रं ग= के कमल Rखले हुए हP, जल के पWी
कलरव कर रहे हP और tमर गुंजार कर रहे हP॥4॥

दोहा :
* बागु तड़ागु 8बलोBक भु हरषे बंधु समेत।
परम रJय आरामु यहु जो रामह सख ु दे त॥227॥
भावाथ#:-बाग और सरोवर को दे खकर भु $ी रामच7oजी भाई ल'मण सहत ह,षOत हुए। यह
बाग (वाAतव म? ) परम रमणीय है , जो (जगत को सख
ु दे ने वाले) $ी रामच7oजी को सुख दे
रहा है ॥227॥

चौपाई :
*चहुँ द0स चतइ पँ ू छ माल.गन। लगे लेन दल फूल मु दत मन॥
तेह अवसर सीता तहँ आई। ग!रजा पज
ू न जन न पठाई॥1॥
भावाथ#:-चार= ओर yि[ट डालकर और मा0लय= से पछ
ू कर वे स7न मन से प--प[ु प लेने
लगे। उसी समय सीताजी वहाँ आ}। माता ने उ7ह? ग!रजाजी (पावOती) कM पज
ू ा करने के
0लए भेजा था॥1॥

* संग सखीं सब सुभग सयानीं। गावहं गीत मनोहर बानीं॥


सर समीप ग!रजा गह
ृ सोहा। बर न न जाइ दे Rख मनु मोहा॥2॥
भावाथ#:-साथ म? सब संद
ु र. और सयानी सRखयाँ हP, जो मनोहर वाणी से गीत गा रह. हP।
सरोवर के पास ग!रजाजी का मंदर सुशो0भत है , िजसका वणOन नह.ं Bकया जा सकता,
दे खकर मन मोहत हो जाता है॥।2॥

* म_जनु क!र सर सRख7ह समेता। गई मु दत मन गौ!र नकेता॥


पज
ू ा कMि7ह अधक अनुरागा। नज अनुfप सुभग ब^ मागा॥3॥
भावाथ#:-सRखय= सहत सरोवर म? Aनान करके सीताजी स7न मन से ग!रजाजी के मंदर म?
ग}। उ7ह=ने बड़े ेम से पज
ू ा कM और अपने योdय संद
ु र वर माँगा॥3॥

* एक सखी 0सय संगु 8बहाई। गई रह. दे खन फुलवाई॥


तेहं दोउ बंधु 8बलोके जाई। ेम 8बबस सीता पहं आई॥4॥
भावाथ#:-एक सखी सीताजी का साथ छोड़कर फुलवाड़ी दे खने चल. गई थी। उसने जाकर दोन=
भाइय= को दे खा और ेम म? ,वDवल होकर वह सीताजी के पास आई॥4॥

दोहा :
* तासु दसा दे खी सRख7ह पुलक गात जलु नैन।
कहु कारनु नज हरष कर पछू हं सब मदृ ु बैन॥228॥
भावाथ#:-सRखय= ने उसकM दशा दे खी Bक उसका शर.र पलु Bकत है और ने-= म? जल भरा है।
सब कोमल वाणी से पछ
ू ने लगीं Bक अपनी स7नता का कारण बता॥228॥

चौपाई :
* दे खन बागु कुअँर दइ
ु आए। बय Bकसोर सब भाँ त सह
ु ाए॥
Aयाम गौर Bक0म कहV बखानी। गरा अनयन नयन 8बनु बानी॥1॥
भावाथ#:-(उसने कहा-) दो राजकुमार बाग दे खने आए हP। Bकशोर अवAथा के हP और सब कार
से सद
ंु र हP। वे साँवले और गोरे (रं ग के) हP, उनके सVदयO को मP कैसे बखानकर कहूँ। वाणी
8बना ने- कM है और ने-= के वाणी नह.ं है ॥1॥

* सु न हरषीं सब सखीं सयानी। 0सय हयँ अ त उतकंठा जानी॥


एक कहइ नप
ृ सत
ु तेइ आल.। सुने जे मु न सँग आए काल.॥2॥
भावाथ#:-यह सन
ु कर और सीताजी के sदय म? बड़ी उNकंठा जानकर सब सयानी सRखयाँ
स7न हु}। तब एक सखी कहने लगी- हे सखी! ये वह. राजकुमार हP, जो सन
ु ा है Bक कल
,व/वा0म- म ु न के साथ आए हP॥2॥

* िज7ह नज fप मोहनी डार.। कM7हे Aवबस नगर नर नार.॥


बरनत छ8ब जहँ तहँ सब लोगू। अव0स दे Rखअहं दे खन जोग॥
ू 3॥
भावाथ#:-और िज7ह=ने अपने fप कM मोहनी डालकर नगर के A-ी-प^
ु ष= को अपने वश म? कर
0लया है । जहाँ-तहाँ सब लोग उ7ह.ं कM छ8ब का वणOन कर रहे हP। अव/य (चलकर) उ7ह?
दे खना चाहए, वे दे खने ह. योdय हP॥3॥

* तासु बचन अ त 0सयह सोहाने। दरस लाग लोचन अकुलाने॥


चल. अw क!र , य सRख सोई। ी त परु ातन लखइ न कोई॥4॥
भावाथ#:-उसके वचन सीताजी को अNय7त ह. , य लगे और दशOन के 0लए उनके ने- अकुला
उठे । उसी यार. सखी को आगे करके सीताजी चल.ं। पुरानी ी त को कोई लख नह.ं
पाता॥4॥

दोहा :
* सु0म!र सीय नारद बचन उपजी ी त पुनीत।
चBकत 8बलोक त सकल द0स जनु 0ससु मग
ृ ी सभीत॥229॥
भावाथ#:-नारदजी के वचन= का Aमरण करके सीताजी के मन म? प,व- ी त उNप7न हुई। वे
चBकत होकर सब ओर इस तरह दे ख रह. हP, मानो डर. हुई मग
ृ छौनी इधर-उधर दे ख रह.
हो॥229॥

चौपाई :
* कंकन Bकं Bक न नूपुर धु न सु न। कहत लखन सन रामु sदयँ गु न॥
मानहुँ मदन दं द
ु भ
ु ी द.7ह.। मनसा 8बAव 8बजय कहँ कM7ह.॥1॥
भावाथ#:-कंकण (हाथ= के कड़े), करधनी और पायजेब के शXद सन
ु कर $ी रामच7oजी sदय म?
,वचार कर ल'मण से कहते हP- (यह ~व न ऐसी आ रह. है ) मानो कामदे व ने ,व/व को
जीतने का संकZप करके डंके पर चोट मार. है॥1॥

* अस कह Bफ!र चतए तेह ओरा। 0सय मख


ु स0स भए नयन चकोरा॥
भए 8बलोचन चा^ अचंचल। मनहुँ सकुच न0म तजे दगंचल॥2॥
भावाथ#:-ऐसा कहकर $ी रामजी ने Bफर कर उस ओर दे खा। $ी सीताजी के मख
ु fपी च7oमा
(को नहारने) के 0लए उनके ने- चकोर बन गए। संद
ु र ने- िAथर हो गए (टकटकM लग गई)।
मानो न0म (जनकजी के पूवज
O ) ने (िजनका सबकM पलक= म? नवास माना गया है, लड़कM-
दामाद के 0मलन- संग को दे खना उचत नह.ं, इस भाव से) सकुचाकर पलक? छोड़ द.ं, (पलक=
म? रहना छोड़ दया, िजससे पलक= का गरना ^क गया)॥2॥

* दे Rख सीय शोभा सख
ु ु पावा। sदयँ सराहत बचनु न आवा॥
जनु 8बरं च सब नज नपुनाई। 8बरच 8बAव कहँ गट दे खाई॥3॥
भावाथ#:-सीताजी कM शोभा दे खकर $ी रामजी ने बड़ा सख
ु पाया। sदय म? वे उसकM सराहना
करते हP, Bक7तु मुख से वचन नह.ं नकलते। (वह शोभा ऐसी अनुपम है ) मानो CDमा ने
अपनी सार. नपण
ु ता को मू तOमान कर संसार को कट करके दखा दया हो॥3॥

* सुंदरता कहुँ सुंदर करई। छ8बगह ृ ँ द.प0सखा जनु बरई॥


सब उपमा क8ब रहे जठ ु ार.। केहं पटतरV 8बदे हकुमार.॥4॥
भावाथ#:-वह (सीताजी कM शोभा) सुंदरता को भी सद
ंु र करने वाल. है । (वह ऐसी मालम
ू होती
है ) मानो संद
ु रता fपी घर म? द.पक कM लौ जल रह. हो। (अब तक संद
ु रता fपी भवन म?
अँधेरा था, वह भवन मानो सीताजी कM सुंदरता fपी द.प0शखा को पाकर जगमगा उठा है,
पहले से भी अधक सद
ुं र हो गया है)। सार. उपमाओं को तो क,वय= ने जँठ
ू ा कर रखा है। मP
जनकनि7दनी $ी सीताजी कM Bकससे उपमा दँ ॥
ू 4॥

दोहा :
* 0सय शोभा हयँ बर न भु आप न दसा 8बचा!र॥
बोले सु च मन अनज
ु सन बचन समय अनुहा!र॥230॥
भावाथ#:-(इस कार) sदय म? सीताजी कM शोभा का वणOन करके और अपनी दशा को
,वचारकर भु $ी रामच7oजी प,व- मन से अपने छोटे भाई ल'मण से समयानक
ु ू ल वचन
बोले-॥230॥

चौपाई :
* तात जनकतनया यह सोई। धनुषजdय जेह कारन होई॥
पज
ू न गौ!र सखीं लै आ}। करत कासु Bफरइ फुलवा}॥1॥
भावाथ#:-हे तात! यह वह. जनकजी कM क7या है , िजसके 0लए धनुषयg हो रहा है। सRखयाँ
इसे गौर. पज
ू न के 0लए ले आई हP। यह फुलवाड़ी म? काश करती हुई Bफर रह. है ॥1॥

* जासु 8बलोBक अलौBकक सोभा। सहज पुनीत मोर मनु छोभा॥


सो सबु कारन जान 8बधाता। फरकहं सुभद अंग सुनु tाता॥2॥
भावाथ#:-िजसकM अलौBकक सद
ंु रता दे खकर Aवभाव से ह. प,व- मेरा मन WुXध हो गया है।
वह सब कारण (अथवा उसका सब कारण) तो ,वधाता जान?, Bक7तु हे भाई! सुनो, मेरे
मंगलदायक (दाहने) अंग फड़क रहे हP॥2॥

* रघब
ु ं0स7ह कर सहज सुभाऊ। मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ॥
मोह अ तसय ती त मन केर.। जेहं सपनेहुँ परना!र न हेर.॥3॥
भावाथ#:-रघव
ु ं0शय= का यह सहज (ज7मगत) Aवभाव है Bक उनका मन कभी कुमागO पर पैर
नह.ं रखता। मुझे तो अपने मन का अNय7त ह. ,व/वास है Bक िजसने (जाwत कM कौन कहे )
Aवन म? भी पराई A-ी पर yि[ट नह.ं डाल. है॥3॥

* िज7ह कै लहहं न !रपु रन पीठv। नहं पावहं पर तय मनु डीठv॥


मंगन लहहं न िज7ह कै नाह.ं। ते नरबर थोरे जग माह.ं॥4॥
भावाथ#:-रण म? श-ु िजनकM पीठ नह.ं दे ख पाते (अथाOत ् जो लड़ाई के मैदान से भागते नह.ं),
पराई िA-याँ िजनके मन और yि[ट को नह.ं खींच पातीं और 0भखार. िजनके यहाँ से 'नाह.ं'
नह.ं पाते (खाल. हाथ नह.ं लौटते), ऐसे $े[ठ पु^ष संसार म? थोड़े हP॥4॥

दोहा :
* करत बतकह. अनज
ु सन मन 0सय fप लोभान।
मुख सरोज मकरं द छ8ब करइ मधुप इव पान॥231॥
भावाथ#:- य= $ी रामजी छोटे भाई से बात? कर रहे हP, पर मन सीताजी के fप म? लभ
ु ाया हुआ
उनके मख ु fपी कमल के छ8ब fप मकरं द रस को भVरे कM तरह पी रहा है ॥231॥

चौपाई :
* चतव त चBकत चहूँ द0स सीता। कहँ गए नप
ृ Bकसोर मनु चंता॥
जहँ 8बलोक मग
ृ सावक नैनी। जनु तहँ ब!रस कमल 0सत $ेनी॥1॥
भावाथ#:-सीताजी चBकत होकर चार= ओर दे ख रह. हP। मन इस बात कM च7ता कर रहा है Bक
राजकुमार कहाँ चले गए। बाल मग
ृ नयनी (मग
ृ के छौने कM सी आँख वाल.) सीताजी जहाँ
yि[ट डालती हP, वहाँ मानो /वेत कमल= कM कतार बरस जाती है ॥1॥

* लता ओट तब सRख7ह लखाए। Aयामल गौर Bकसोर सुहाए॥


दे Rख fप लोचन ललचाने। हरषे जनु नज नध पहचाने॥2॥
भावाथ#:-तब सRखय= ने लता कM ओट म? संद
ु र /याम और गौर कुमार= को दखलाया। उनके
fप को दे खकर ने- ललचा उठे , वे ऐसे स7न हुए मानो उ7ह=ने अपना खजाना पहचान
0लया॥2॥

* थके नयन रघुप त छ8ब दे ख?। पलकि7हहूँ प!रहर.ं नमेष?॥


अधक सनेहँ दे ह भै भोर.। सरद स0सह जनु चतव चकोर.॥3॥
भावाथ#:-$ी रघुनाथजी कM छ8ब दे खकर ने- थBकत ( न/चल) हो गए। पलक= ने भी गरना
छोड़ दया। अधक Aनेह के कारण शर.र ,वDवल (बेकाब)ू हो गया। मानो शरद ऋतु के
च7oमा को चकोर. (बेसुध हुई) दे ख रह. हो॥3॥

* लोचन मग रामह उर आनी। द.7हे पलक कपाट सयानी॥


जब 0सय सRख7ह ेमबस जानी। कह न सकहं कछु मन सकुचानी॥4॥
भावाथ#:-ने-= के राAते $ी रामजी को sदय म? लाकर चतुर0शरोमRण जानकMजी ने पलक= के
Bकवाड़ लगा दए (अथाOत ने- मँद
ू कर उनका ~यान करने लगीं)। जब सRखय= ने सीताजी को
ेम के वश जाना, तब वे मन म? सकुचा ग}, कुछ कह नह.ं सकती थीं॥4॥

दोहा :
* लताभवन त? गट भे तेह अवसर दोउ भाइ।
तBकसे जनु जुग 8बमल 8बधु जलद पटल 8बलगाई॥232॥
भावाथ#:-उसी समय दोन= भाई लता मंड प (कंु ज) म? से कट हुए। मानो दो नमOल च7oमा
बादल= के परदे को हटाकर नकले ह=॥232॥

चौपाई :
* सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा। नील पीत जलजाभ सर.रा॥
मोरपंख 0सर सोहत नीके। गq
ु छ बीच 8बच कुसुम कल. के॥1॥
भावाथ#:-दोन= सुंदर भाई शोभा कM सीमा हP। उनके शर.र कM आभा नीले और पीले कमल कM
सी है । 0सर पर सद
ुं र मोरपंख सश
ु ो0भत हP। उनके बीच-बीच म? फूल= कM क0लय= के गq
ु छे
लगे हP॥1॥

* भाल तलक $म 8ब7द ु सुहाए। $वन सभ


ु ग भूषन छ8ब छाए॥
8बकट भक
ृ ु ट कच घूघरवारे । नव सरोज लोचन रतनारे ॥2॥
भावाथ#:-माथे पर तलक और पसीने कM बँद
ू ? शोभायमान हP। कान= म? संद
ु र भष
ू ण= कM छ8ब
छाई है । टे ढ़. भVह? और घुँघराले बाल हP। नए लाल कमल के समान रतनारे (लाल) ने- हP॥2॥

* चा^ चबक
ु ना0सका कपोला। हास 8बलास लेत मनु मोला॥
मुखछ8ब कह न जाइ मोह पाह.ं। जो 8बलोBक बहु काम लजाह.ं॥3॥
भावाथ#:-ठोड़ी नाक और गाल बड़े सुंदर हP और हँ सी कM शोभा मन को मोल 0लए लेती है।
मुख कM छ8ब तो मुझसे कह. ह. नह.ं जाती, िजसे दे खकर बहुत से कामदे व लजा जाते हP॥3॥

* उर म न माल कंबु कल गीवा। काम कलभ कर भुज बलसींवा॥


सुमन समेत बाम कर दोना। सावँर कुअँर सखी सु ठ लोना॥4॥
भावाथ#:-वWःAथल पर मRणय= कM माला है । शंख के सyश सुंदर गला है । कामदे व के हाथी के
बqचे कM सँडू के समान (उतार-चढ़ाव वाल. एवं कोमल) भज
ु ाएँ हP, जो बल कM सीमा हP।
िजसके बाएँ हाथ म? फूल= सहत दोना है , हे सRख! वह साँवला कँु अर तो बहुत ह. सलोना
है ॥4॥

दोहा :
* केह!र कट पट पीत धर सुषमा सील नधान।
दे Rख भानुकुलभष
ू नह 8बसरा सRख7ह अपान॥233॥
भावाथ#:-0संह कM सी (पतल., लचील.) कमर वाले, पीताJबर धारण Bकए हुए, शोभा और शील
के भंड ार, सूयOकुल के भष
ू ण $ी रामच7oजी को दे खकर सRखयाँ अपने आपको भूल
ग}॥233॥

चौपाई :
* ध!र धीरजु एक आ0ल सयानी। सीता सन बोल. गह पानी॥
बहु!र गौ!र कर ~यान करे हू। भूपBकसोर दे Rख Bकन लेहू॥1॥
भावाथ#:-एक चतरु सखी धीरज धरकर, हाथ पकड़कर सीताजी से बोल.- ग!रजाजी का ~यान
Bफर कर लेना, इस समय राजकुमार को iय= नह.ं दे ख लेतीं॥1॥

* सकुच सीयँ तब नयन उघारे । सनमुख दोउ रघु0संघ नहारे ॥


नख 0सख दे Rख राम कै सोभा। सु0म!र ,पता पनु मनु अ त छोभा॥2॥
भावाथ#:-तब सीताजी ने सकुचाकर ने- खोले और रघुकुल के दोन= 0संह= को अपने सामने
(खड़े) दे खा। नख से 0शखा तक $ी रामजी कM शोभा दे खकर और Bफर ,पता का ण याद
करके उनका मन बहुत WुXध हो गया॥2॥

* परबस सRख7ह लखी जब सीता। भयउ गह^ सब कहहं सभीता॥


प ु न आउब एह बे!रआँ काल.। अस कह मन 8बहसी एक आल.॥3॥
भावाथ#:-जब सRखय= ने सीताजी को परवश ( ेम के वश) दे खा, तब सब भयभीत होकर कहने
लगीं- बड़ी दे र हो गई। (अब चलना चाहए)। कल इसी समय Bफर आएँगी, ऐसा कहकर एक
सखी मन म? हँसी॥3॥

* गूढ़ गरा सु न 0सय सकुचानी। भयउ 8बलंबु मातु भय मानी॥


ध!र बƒड़ धीर रामु उर आने। Bफर. अपनपउ ,पतुबस जाने॥4॥
भावाथ#:-सखी कM यह रहAयभर. वाणी सुनकर सीताजी सकुचा ग}। दे र हो गई जान उ7ह?
माता का भय लगा। बहुत धीरज धरकर वे $ी रामच7oजी को sदय म? ले आ} और (उनका
~यान करती हुई) अपने को ,पता के अधीन जानकर लौट चल.ं॥4॥

ी सीताजी का पाव#ती पज
ू न एवं वरदान ाि4त तथा राम-ल मण संवाद
दोहा :
* दे खन 0मस मग
ृ 8बहग त^ Bफरइ बहो!र बहो!र।
नरRख नरRख रघब
ु ीर छ8ब बाढ़इ ी त न थो!र॥234॥
भावाथ#:-मग
ृ , पWी और वW
ृ = को दे खने के बहाने सीताजी बार-बार घम
ू जाती हP और $ी
रामजी कM छ8ब दे ख-दे खकर उनका ेम कम नह.ं बढ़ रहा है । (अथाOत ् बहुत ह. बढ़ता जाता
है )॥234॥

चौपाई :
* जा न कठन 0सवचाप 8बसरू त। चल. राRख उर Aयामल मूर त॥
भु जब जात जानकM जानी। सख
ु सनेह सोभा गन
ु खानी॥1॥
भावाथ#:-0शवजी के धनुष को कठोर जानकर वे ,वसरू ती (मन म? ,वलाप करती) हुई sदय म?
$ी रामजी कM साँवल. मू तO को रखकर चल.ं। (0शवजी के धनुष कM कठोरता का Aमरण आने
से उ7ह? चंता होती थी Bक ये सक
ु ु मार रघुनाथजी उसे कैसे तोड़?गे, ,पता के ण कM Aम ृ त से
उनके sदय म? Wोभ था ह., इस0लए मन म? ,वलाप करने लगीं। ेमवश ऐ/वयO कM ,वAम ृ त
हो जाने से ह. ऐसा हुआ, Bफर भगवान के बल का Aमरण आते ह. वे ह,षOत हो ग} और
साँवल. छ8ब को sदय म? धारण करके चल.ं।) भु $ी रामजी ने जब सखु , Aनेह, शोभा और
गुण= कM खान $ी जानकMजी को जाती हुई जाना,॥1॥

* परम ेममय मद
ृ ु म0स कM7ह.। चा^ चT भीतीं 0लRख ल.7ह.॥
गई भवानी भवन बहोर.। बंद चरन बोल. कर जोर.॥2॥
भावाथ#:-तब परम ेम कM कोमल Aयाह. बनाकर उनके Aवfप को अपने सद
ंु र चT fपी 0भ,T
पर च8-त कर 0लया। सीताजी पुनः भवानीजी के मंदर म? ग} और उनके चरण= कM वंदना
करके हाथ जोड़कर बोल.ं-॥2॥

*जय जय ग!रबरराज Bकसोर.। जय महे स मख


ु चंद चकोर.॥
जय गजबदन षडानन माता। जगत जन न दा0म न द ु त गाता॥3॥
भावाथ#:-हे $े[ठ पवOत= के राजा हमाचल कM प-
ु ी पावOती! आपकM जय हो, जय हो, हे
महादे वजी के मख
ु fपी च7oमा कM (ओर टकटकM लगाकर दे खने वाल.) चकोर.! आपकM जय
हो, हे हाथी के मुख वाले गणेशजी और छह मख
ु वाले Aवा0मका तOकजी कM माता! हे
जग_जननी! हे 8बजल. कM सी काि7तयुiत शर.र वाल.! आपकM जय हो! ॥3॥

* नहं तव आद म~य अवसाना। अ0मत भाउ बेद ु नहं जाना॥


भव भव 8बभव पराभव का!र न। 8बAव 8बमोह न Aवबस 8बहा!र न॥4॥
भावाथ#:-आपका न आद है , न म~य है और न अंत है । आपके असीम भाव को वेद भी नह.ं
जानते। आप संसार को उNप7न, पालन और नाश करने वाल. हP। ,व/व को मोहत करने
वाल. और Aवतं- fप से ,वहार करने वाल. हP॥4॥

दोहा :
* प तदे वता सत
ु ीय महुँ मातु थम तव रे ख।
महमा अ0मत न सकहं कह सहस सारदा सेष॥235॥
भावाथ#:-प त को इ[टदे व मानने वाल. $े[ठ ना!रय= म? हे माता! आपकM थम गणना है ।
आपकM अपार महमा को हजार= सरAवती और शेषजी भी नह.ं कह सकते॥235॥

चौपाई :
* सेवत तोह सुलभ फल चार.। बरदायनी परु ा!र ,पआर.॥
दे 8ब पूिज पद कमल तुJहारे । सरु नर म ु न सब होहं सुखारे ॥1॥
भावाथ#:-हे (भiत= को मँह
ु माँगा) वर दे ने वाल.! हे 8-परु के श-ु 0शवजी कM , य पNनी!
आपकM सेवा करने से चार= फल सल
ु भ हो जाते हP। हे दे वी! आपके चरण कमल= कM पज
ू ा
करके दे वता, मनु[य और म ु न सभी सुखी हो जाते हP॥1॥

* मोर मनोरथु जानहु नीक?। बसहु सदा उर परु सबह. क?॥


कM7हेउँ गट न कारन तेह.ं। अस कह चरन गहे बैदेह.ं॥2॥
भावाथ#:-मेरे मनोरथ को आप भल.भाँ त जानती हP, iय=Bक आप सदा सबके sदय fपी नगर.
म? नवास करती हP। इसी कारण मPने उसको कट नह.ं Bकया। ऐसा कहकर जानकMजी ने
उनके चरण पकड़ 0लए॥2॥

* 8बनय ेम बस भई भवानी। खसी माल मूर त मुसक


ु ानी॥
सादर 0सयँ साद ु 0सर धरे ऊ। बोल. गौ!र हरषु हयँ भरे ऊ॥3॥
भावाथ#:-ग!रजाजी सीताजी के ,वनय और ेम के वश म? हो ग}। उन (के गले) कM माला
Rखसक पड़ी और मू तO मA
ु कुराई। सीताजी ने आदरपव
ू क
O उस साद (माला) को 0सर पर
धारण Bकया। गौर.जी का sदय हषO से भर गया और वे बोल.ं-॥3॥

* सुनु 0सय सNय असीस हमार.। पिू जह मन कामना तुJहार.॥


नारद बचन सदा सु च साचा। सो ब^ 0म0लह जाहं मनु राचा॥4॥
भावाथ#:-हे सीता! हमार. सqची आसीस सुनो, तुJहार. मनःकामना परू . होगी। नारदजी का
वचन सदा प,व- (संशय, tम आद दोष= से रहत) और सNय है । िजसम? तुJहारा मन
अनुरiत हो गया है , वह. वर तुमको 0मलेगा॥4॥

छ6द :
* मनु जाहं राचेउ 0म0लह सो ब^ सहज सुंदर साँवरो।
क^ना नधान सज ु ान सीलु सनेहु जानत रावरो॥
एह भाँ त गौ!र असीस स ु न 0सय सहत हयँ हरषीं अल.।
तुलसी भवा नह पिू ज प ु न पु न मु दत मन मंदर चल.॥
भावाथ#:-िजसम? तुJहारा मन अनुरiत हो गया है , वह. Aवभाव से ह. सद
ुं र साँवला वर ($ी
रामच7oजी) तुमको 0मलेगा। वह दया का खजाना और सज
ु ान (सवOg) है , तुJहारे शील और
Aनेह को जानता है । इस कार $ी गौर.जी का आशीवाOद सन
ु कर जानकMजी समेत सब
सRखयाँ sदय म? ह,षOत हु}। तल
ु सीदासजी कहते हP- भवानीजी को बार-बार पज
ू कर सीताजी
स7न मन से राजमहल को लौट चल.ं॥

सोरठा :
* जा न गौ!र अनक
ु ू ल 0सय हय हरषु न जाइ कह।
मंजल
ु मंगल मल
ू बाम अंग फरकन लगे॥236॥
भावाथ#:-गौर.जी को अनुकूल जानकर सीताजी के sदय को जो हषO हुआ, वह कहा नह.ं जा
सकता। सद ंु र मंगल= के मल
ू उनके बाएँ अंग फड़कने लगे॥236॥

चौपाई :
* sदयँ सराहत सीय लोनाई। गुर समीप गवने दोउ भाई॥
राम कहा सबु कौ0सक पाह.ं। सरल सुभाउ छुअत छल नाह.ं॥1॥
भावाथ#:-sदय म? सीताजी के सVदयO कM सराहना करते हुए दोन= भाई गु^जी के पास गए। $ी
रामच7oजी ने ,व/वा0म- से सब कुछ कह दया, iय=Bक उनका सरल Aवभाव है , छल तो उसे
छूता भी नह.ं है॥1॥

* सुमन पाइ म ु न पूजा कM7ह.। प ु न असीस दह


ु ु भाइ7ह द.7ह.॥
सुफल मनोरथ होहुँ तुJहारे । रामु लखनु सु न भय सख
ु ारे ॥2॥
भावाथ#:-फूल पाकर मु न ने पज
ू ा कM। Bफर दोन= भाइय= को आशीवाOद दया Bक तुJहारे
मनोरथ सफल ह=। यह सन
ु कर $ी राम-ल'मण सख
ु ी हुए॥2॥

* क!र भोजनु म ु नबर 8बdयानी। लगे कहन कछु कथा परु ानी॥
8बगत दवसु गु^ आयसु पाई। सं~या करन चले दोउ भाई॥3॥
भावाथ#:-$े[ठ ,वgानी म ु न ,व/वा0म-जी भोजन करके कुछ ाचीन कथाएँ कहने लगे। (इतने
म? ) दन बीत गया और गु^ कM आgा पाकर दोन= भाई सं~या करने चले॥3॥

* ाची द0स स0स उयउ सुहावा। 0सय मख


ु स!रस दे Rख सुखु पावा॥
बहु!र 8बचा^ कM7ह मन माह.ं। सीय बदन सम हमकर नाह.ं॥4॥
भावाथ#:-(उधर) पव
ू O दशा म? संुदर च7oमा उदय हुआ। $ी रामच7oजी ने उसे सीता के मख

के समान दे खकर सुख पाया। Bफर मन म? ,वचार Bकया Bक यह च7oमा सीताजी के मुख के
समान नह.ं है॥4॥

दोहा :
* जनमु 0संधु पु न बंधु 8बषु दन मल.न सकलंक।
0सय मख
ु समता पाव Bक0म चंद ु बापुरो रं क॥237॥
भावाथ#:-खारे समo
ु म? तो इसका ज7म, Bफर (उसी समo
ु से उNप7न होने के कारण) ,वष
इसका भाई, दन म? यह म0लन (शोभाह.न, नAतेज) रहता है, और कलंकM (काले दाग से
युiत) है । बेचारा गर.ब च7oमा सीताजी के मख
ु कM बराबर. कैसे पा सकता है?॥237॥

चौपाई :
* घटइ बढ़इ 8बरह न दख
ु दाई। wसइ राहु नज संधहं पाई॥
कोक सोक द पंकज oोह.। अवगुन बहुत चंoमा तोह.॥1॥
भावाथ#:-Bफर यह घटता-बढ़ता है और ,वरहणी िA-य= को दःु ख दे ने वाला है , राहु अपनी संध
म? पाकर इसे wस लेता है। चकवे को (चकवी के ,वयोग का) शोक दे ने वाला और कमल का
बैर. (उसे मुरझा दे ने वाला) है। हे च7oमा! तुझम? बहुत से अवगुण हP (जो सीताजी म? नह.ं
हP।)॥1॥

* बैदेह. मुख पटतर द.7हे । होइ दोषु बड़ अनुचत कM7हे ॥


0सय मख
ु छ8ब 8बधु Xयाज बखानी। गुर पहं चले नसा बƒड़ जानी॥2॥
भावाथ#:-अतः जानकMजी के मुख कM तुझे उपमा दे ने म? बड़ा अनुचत कमO करने का दोष
लगेगा। इस कार च7oमा के बहाने सीताजी के मख
ु कM छ8ब का वणOन करके, बड़ी रात हो
गई जान, वे गु^जी के पास चले॥2॥

* क!र म ु न चरन सरोज नामा। आयसु पाइ कM7ह 8ब$ामा॥


8बगत नसा रघन
ु ायक जागे। बंधु 8बलोBक कहन अस लागे॥3॥
भावाथ#:-मु न के चरण कमल= म? णाम करके, आgा पाकर उ7ह=ने ,व$ाम Bकया, रात बीतने
पर $ी रघुनाथजी जागे और भाई को दे खकर ऐसा कहने लगे-॥3॥

* उयउ अ^न अवलोकहु ताता। पंकज कोक लोक सख ु दाता॥


बोले लखनु जो!र जुग पानी। भु भाउ सच
ू क मद
ृ ु बानी॥4॥
भावाथ#:-हे तात! दे खो, कमल, च€वाक और समAत संसार को सुख दे ने वाला अ^णोदय हुआ
है । ल'मणजी दोन= हाथ जोड़कर भु के भाव को सूचत करने वाल. कोमल वाणी बोले-
॥4॥

दोहा :
* अ^नोदयँ सकुचे कुमद
ु उडगन जो त मल.न।
िज0म तुJहार आगमन स ु न भए नप
ृ त बलह.न॥238॥
भावाथ#:-अ^णोदय होने से कुमुदनी सकुचा गई और तारागण= का काश फMका पड़ गया,
िजस कार आपका आना सुनकर सब राजा बलह.न हो गए हP॥238॥

चौपाई :
* नप
ृ सब नखत करहं उिजआर.। टा!र न सकहं चाप तम भार.॥
कमल कोक मधुकर खग नाना। हरषे सकल नसा अवसाना॥1॥
भावाथ#:-सब राजा fपी तारे उजाला (मंद काश) करते हP, पर वे धनष
ु fपी महान अंधकार
को हटा नह.ं सकते। रा8- का अंत होने से जैसे कमल, चकवे, भVरे और नाना कार के पWी
ह,षOत हो रहे हP॥1॥

* ऐसेहं भु सब भगत तुJहारे । होइहहं टूट? धनुष सख


ु ारे ॥
उयउ भानु 8बनु $म तम नासा। दरु े नखत जग तेजु कासा॥2॥
भावाथ#:-वैसे ह. हे
भो! आपके सब भiत धनुष टूटने पर सुखी ह=गे। सूयO उदय हुआ, 8बना
ह. प!र$म अंधकार न[ट हो गया। तारे छप गए, संसार म? तेज का काश हो गया॥2॥

* र8ब नज उदय Xयाज रघुराया। भु तापु सब नप


ृ 7ह दखाया॥
तव भज
ु बल महमा उदघाट.। गट. धनु 8बघटन प!रपाट.।3॥
भावाथ#:-हे रघुनाथजी! सय
ू O ने अपने उदय के बहाने सब राजाओं को भु (आप) का ताप
दखलाया है । आपकM भज
ु ाओं के बल कM महमा को उkघाटत करने (खोलकर दखाने) के
0लए ह. धनुष तोड़ने कM यह पkध त कट हुई है ॥3॥

* बंधु बचन सु न भु मुसक


ु ाने। होइ सुच सहज पुनीत नहाने॥
क नNयB€या क!र ग^ पहं आए। चरन सरोज सभ
ु ग 0सर नाए॥4॥
भावाथ#:-भाई के वचन सन
ु कर भु मA
ु कुराए। Bफर Aवभाव से ह. प,व- $ी रामजी ने शौच से
नवT
ृ होकर Aनान Bकया और नNयकमO करके वे गु^जी के पास आए। आकर उ7ह=ने गु^जी
के सुंदर चरण कमल= म? 0सर नवाया॥4॥

* सतानंद ु तब जनक बोलाए। कौ0सक म ु न पहं तुरत पठाए॥


जनक 8बनय त7ह आइ सुनाई। हरषे बो0ल 0लए दोउ भाई॥5॥
भावाथ#:- तब जनकजी ने शतानंदजी को बुलाया और उ7ह? तुरंत ह. ,व/वा0म- मु न के पास
भेजा। उ7ह=ने आकर जनकजी कM ,वनती सुनाई। ,व/वा0म-जी ने ह,षOत होकर दोन= भाइय=
को बल
ु ाया॥5॥

दोहा :
* सतानंद पद बंद भु बैठे गुर पहं जाइ।
चलहु तात म ु न कहे उ तब पठवा जनक बोलाइ॥239॥
भावाथ#:-शतान7दजी के चरण= कM वंदना करके भु $ी रामच7oजी गु^जी के पास जा बैठे।
तब म ु न ने कहा- हे तात! चलो, जनकजी ने बल
ु ा भेजा है॥239॥

मासपारायण, आठवाँ वाम


नवा;न पा

ी राम-ल मण स हत ववाम का य<शाला म वेश


चौपाई :
* सीय Aवयंबf दे Rखअ जाई। ईसु काह धV दे इ बड़ाई॥
लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई॥1॥
भावाथ#:-चलकर सीताजी के Aवयंवर को दे खना चाहए। दे ख? ई/वर Bकसको बड़ाई दे ते हP।
ल'मणजी ने कहा- हे नाथ! िजस पर आपकM कृपा होगी, वह. बड़ाई का पा- होगा (धनुष तोड़ने
का $ेय उसी को ात होगा)॥1॥

* हरषे मु न सब सु न बर बानी। द.ि7ह असीस सबहं सुखु मानी॥


प ु न म ु नबंद
ृ समेत कृपाला। दे खन चले धनष
ु मख साला॥2॥
भावाथ#:-इस $े[ठ वाणी को सन
ु कर सब म ु न स7न हुए। सभी ने सुख मानकर आशीवाOद
दया। Bफर मु नय= के समूह सहत कृपालु $ी रामच7oजी धनष
ु यgशाला दे खने चले॥2॥

* रं गभू0म आए दोउ भाई। अ0स सुध सब पुरबा0स7ह पाई॥


चले सकल गह
ृ काज 8बसार.। बाल जुबान जरठ नर नार.॥3॥
भावाथ#:-दोन= भाई रं गभू0म म? आए हP, ऐसी खबर जब सब नगर नवा0सय= ने पाई, तब बालक,
जवान, बढ़
ू े , A-ी, प^
ु ष सभी घर और काम-काज को भल
ु ाकर चल दए॥3॥

* दे खी जनक भीर भै भार.। सुच सेवक सब 0लए हँकार.॥


तरु त सकल लोग7ह पहं जाहू। आसन उचत दे हु सब काहू॥4॥
भावाथ#:-जब जनकजी ने दे खा Bक बड़ी भीड़ हो गई है , तब उ7ह=ने सब ,व/वासपा- सेवक= को
बल
ु वा 0लया और कहा- तुम लोग तुरंत सब लोग= के पास जाओ और सब Bकसी को यथायोdय
आसन दो॥4॥

दोहा :
* कह मद
ृ ु बचन 8बनीत त7ह बैठारे नर ना!र।
उTम म~यम नीच लघु नज नज थल अनुहा!र॥240॥
भावाथ#:-उन सेवक= ने कोमल और न„ वचन कहकर उTम, म~यम, नीच और लघु (सभी $ेणी
के) A-ी-पु^ष= को अपने-अपने योdय Aथान पर बैठाया॥240॥

चौपाई :
* राजकुअँर तेह अवसर आए। मनहुँ मनोहरता तन छाए॥
गुन सागर नागर बर बीरा। सुंदर Aयामल गौर सर.रा॥1॥
भावाथ#:-उसी समय राजकुमार (राम और ल'मण) वहाँ आए। (वे ऐसे संद
ु र हP) मानो साWात
मनोहरता ह. उनके शर.र= पर छा रह. हो। सुंदर साँवला और गोरा उनका शर.र है । वे गण
ु = के
समo
ु , चतुर और उTम वीर हP॥1॥

* राज समाज 8बराजत fरे । उडगन महुँ जनु जुग 8बधु परू े ॥
िज7ह क? रह. भावना जैसी। भु मूर त त7ह दे खी तैसी॥2॥
भावाथ#:-वे राजाओं के समाज म? ऐसे सुशो0भत हो रहे हP, मानो तारागण= के बीच दो पूणO
च7oमा ह=। िजनकM जैसी भावना थी, भु कM म ू तO उ7ह=ने वैसी ह. दे खी॥2॥

* दे खहं fप महा रनधीरा। मनहुँ बीर रसु धर? सर.रा॥


डरे कुटल नप
ृ भुह नहार.। मनहुँ भयानक मूर त भार.॥3॥
भावाथ#:-महान रणधीर (राजा लोग) $ी रामच7oजी के fप को ऐसा दे ख रहे हP, मानो Aवयं वीर
रस शर.र धारण Bकए हुए ह=। कुटल राजा भु को दे खकर डर गए, मानो बड़ी भयानक म ू तO
हो॥3॥

* रहे असरु छल छो नप बेषा। त7ह भु गट कालसम दे खा।


परु बा0स7ह दे खे दोउ भाई। नरभूषन लोचन सुखदाई॥4॥
भावाथ#:-छल से जो राWस वहाँ राजाओं के वेष म? (बैठे) थे, उ7ह=ने भु को NयW काल के
समान दे खा। नगर नवा0सय= ने दोन= भाइय= को मनु[य= के भूषण fप और ने-= को सुख दे ने
वाला दे खा॥4॥

दोहा :
* ना!र 8बलोकहं हर,ष हयँ नज- नज ^च अनf
ु प।
जनु सोहत 0संगार ध!र मूर त परम अनप
ू ॥241॥
भावाथ#:-िA-याँ sदय म? ह,षOत होकर अपनी-अपनी ^च के अनुसार उ7ह? दे ख रह. हP। मानो
$ंग
ृ ार रस ह. परम अनप
ु म म ू तO धारण Bकए सश
ु ो0भत हो रहा हो॥241॥

चौपाई :
* 8बदष
ु 7हभु 8बराटमय द.सा। बहु मुख कर पग लोचन सीसा॥
जनक जा त अवलोकहं कैस?। सजन सगे , य लागहं जैस?॥1॥
भावाथ#:-,वkवान= कोभु ,वराट fप म? दखाई दए, िजसके बहुत से मँुह, हाथ, पैर, ने- और
0सर हP। जनकजी के सजातीय (कुटुJबी) भु को Bकस तरह (कैसे , य fप म? ) दे ख रहे हP, जैसे
सगे सजन (संबध
ं ी) , य लगते हP॥1॥

* सहत 8बदे ह 8बलोकहं रानी। 0ससु सम ी त न जा त बखानी॥


जोग7ह परम तNवमय भासा। सांत सुkध सम सहज कासा॥2॥
भावाथ#:-जनक समेत रा नयाँ उ7ह? अपने बqचे के समान दे ख रह. हP, उनकM ी त का वणOन
नह.ं Bकया जा सकता। योगय= को वे शांत, शुkध, सम और Aवतः काश परम तNव के fप म?
दखे॥2॥

* ह!रभगत7ह दे खे दोउ tाता। इ[टदे व इव सब सुख दाता॥


रामह चतव भायँ जेह सीया। सो सनेहु सख
ु ु नहं कथनीया॥3॥
भावाथ#:-ह!र भiत= ने दोन= भाइय= को सब सुख= के दे ने वाले इ[ट दे व के समान दे खा।
सीताजी िजस भाव से $ी रामच7oजी को दे ख रह. हP, वह Aनेह और सख
ु तो कहने म? ह. नह.ं
आता॥3॥

* उर अनुभव त न कह सक सोऊ। कवन कार कहै क8ब कोऊ॥


एह 8बध रहा जाह जस भाऊ। तेहं तस दे खेउ कोसलराऊ॥4॥
भावाथ#:-उस (Aनेह और सुख) का वे sदय म? अनभ
ु व कर रह. हP, पर वे भी उसे कह नह.ं
सकतीं। Bफर कोई क,व उसे Bकस कार कह सकता है । इस कार िजसका जैसा भाव था,
उसने कोसलाधीश $ी रामच7oजी को वैसा ह. दे खा॥4॥

दोहा :
* राजत राज समाज महुँ कोसलराज Bकसोर।
सुंदर Aयामल गौर तन 8बAव 8बलोचन चोर॥242॥
भावाथ#:-सुंदर साँवले और गोरे शर.र वाले तथा ,व/वभर के ने-= को चुराने वाले कोसलाधीश के
कुमार राज समाज म? (इस कार) सुशो0भत हो रहे हP॥242॥

चौपाई :
* सहज मनोहर मरू त दोऊ। कोट काम उपमा लघु सोऊ॥
सरद चंद नंदक मख
ु नीके। नीरज नयन भावते जी के॥1॥
भावाथ#:-दोन= मू तOयाँ Aवभाव से ह. (8बना Bकसी बनाव-$ंग
ृ ार के) मन को हरने वाल. हP। करोड़=
कामदे व= कM उपमा भी उनके 0लए तुqछ है । उनके सुंदर मख
ु शरk (पRू णOमा) के च7oमा कM भी
नंदा करने वाले (उसे नीचा दखाने वाले) हP और कमल के समान ने- मन को बहुत ह. भाते
हP॥1॥

* चतव न चा^ मार मनु हरनी। भाव त sदय जा त नहं बरनी॥


कल कपोल $ ु त कंु डल लोला। चबक
ु अधर संद
ु र मद
ृ ु बोला॥2॥
भावाथ#:-सुंदर चतवन (सारे संसार के मन को हरने वाले) कामदे व के भी मन को हरने वाल.
है । वह sदय को बहुत ह. यार. लगती है, पर उसका वणOन नह.ं Bकया जा सकता। सुंदर गाल
हP, कान= म? चंचल (झूमते हुए) कंु डल हP। ठोड़ और अधर (होठ) सुंदर हP, कोमल वाणी है ॥2॥

* कुमुदबंधु कर नंदक हाँसा। भक


ृ ु ट. 8बकट मनोहर नासा॥
भाल 8बसाल तलक झलकाह.ं। कच 8बलोBक अ0ल अव0ल लजाह.ं॥3॥
भावाथ#:-हँसी, च7oमा कM Bकरण= का तरAकार करने वाल. है। भVह? टे ढ़. और ना0सका मनोहर
है । (ऊँचे) चौड़े ललाट पर तलक झलक रहे हP (द.ितमान हो रहे हP)। (काले घुँघराले) बाल= को
दे खकर भVर= कM पंिiतयाँ भी लजा जाती हP॥3॥

* पीत चौतनीं 0सरि7ह सुहा}। कुसुम कल.ं 8बच बीच बना}॥


रे ख? ^चर कंबु कल गीवाँ। जनु 8-भव
ु न सष
ु मा कM सीवाँ॥4॥
भावाथ#:-पील. चौकोनी टो,पयाँ 0सर= पर सश
ु ो0भत हP, िजनके बीच-बीच म? फूल= कM क0लयाँ
बनाई (काढ़.) हुई हP। शंख के समान संद
ु र (गोल) गले म? मनोहर तीन रे खाएँ हP, जो मानो तीन=
लोक= कM सुंदरता कM सीमा (को बता रह.) हP॥4॥

दोहा :
* कंु जर म न कंठा क0लत उरि7ह तुल0सका माल।
बष
ृ भ कंध केह!र ठव न बल नध बाहु 8बसाल॥243॥
भावाथ#:-sदय= पर गजमुiताओं के सुंदर कंठे और तुलसी कM मालाएँ सश
ु ो0भत हP। उनके कंधे
बैल= के कंधे कM तरह (ऊँचे तथा प[ु ट) हP, ऐंड़ (खड़े होने कM शान) 0संह कM सी है और भज
ु ाएँ
,वशाल एवं बल कM भंड ार हP॥243॥

चौपाई :
* कट तूनीर पीत पट बाँध?। कर सर धनुष बाम बर काँध?॥
पीत जdय उपबीत सह
ु ाए। नख 0सख मंजु महाछ8ब छाए॥1॥
भावाथ#:-कमर म? तरकस और पीताJबर बाँधे हP। (दाहने) हाथ= म? बाण और बाएँ सुंदर कंध= पर
धनष
ु तथा पीले यgोपवीत (जनेऊ) सुशो0भत हP। नख से लेकर 0शखा तक सब अंग सद
ंु र हP,
उन पर महान शोभा छाई हुई है॥1॥

* दे Rख लोग सब भए सख
ु ारे । एकटक लोचन चलत न तारे ॥
हरषे जनकु दे Rख दोउ भाई। मु न पद कमल गहे तब जाई॥2॥
भावाथ#:-उ7ह? दे खकर सब लोग सुखी हुए। ने- एकटक ( नमेष शू7य) हP और तारे (पत
ु 0लयाँ) भी
नह.ं चलते। जनकजी दोन= भाइय= को दे खकर ह,षOत हुए। तब उ7ह=ने जाकर मु न के चरण
कमल पकड़ 0लए॥2॥

* क!र 8बनती नज कथा सुनाई। रं ग अव न सब मु नह दे खाई॥


जहँ जहँ जाहं कुअँर बर दोऊ। तहँ तहँ चBकत चतव सबु कोऊ॥3॥
भावाथ#:-,वनती करके अपनी कथा सन
ु ाई और मु न को सार. रं गभू0म (यgशाला) दखलाई।
(मु न के साथ) दोन= $े[ठ राजकुमार जहाँ-जहाँ जाते हP, वहाँ-वहाँ सब कोई आ/चयOचBकत हो
दे खने लगते हP॥3॥

* नज नज ^ख रामह सबु दे खा। कोउ न जान कछु मरमु 8बसेषा॥


भ0ल रचना म ु न नप
ृ सन कहे ऊ। राजाँ मु दत महासख
ु लहे ऊ॥4॥
भावाथ#:-सबने रामजी को अपनी-अपनी ओर ह. मख ु Bकए हुए दे खा, पर7तु इसका कुछ भी
,वशेष रहAय कोई नह.ं जान सका। म ु न ने राजा से कहा- रं गभू0म कM रचना बड़ी सद
ुं र है
(,व/वा0म-- जैसे नःAपहृ , ,वरiत और gानी म ु न से रचना कM शंसा सुनकर) राजा स7न
हुए और उ7ह? बड़ा सख
ु 0मला॥4॥

दोहा :
* सब मंच7ह त? मंचु एक सुंदर 8बसद 8बसाल।
म ु न समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे महपाल॥244॥
भावाथ#:-सब मंच= से एक मंच अधक सुंदर, उ__वल और ,वशाल था। (Aवयं) राजा ने मु न
सहत दोन= भाइय= को उस पर बैठाया॥244॥

चौपाई :
* भुह दे Rख सब नप
ृ हयँ हारे । जनु राकेश उदय भएँ तारे ॥
अ0स ती त सब के मन माह.ं। राम चाप तोरब सक नाह.ं॥1॥
भावाथ#:- भु को दे खकर सब राजा sदय म? ऐसे हार गए ( नराश एवं उNसाहह.न हो गए) जैसे
पण
ू O च7oमा के उदय होने पर तारे काशह.न हो जाते हP। (उनके तेज को दे खकर) सबके मन
म? ऐसा ,व/वास हो गया Bक रामच7oजी ह. धनुष को तोड़?ग,े इसम? संदेह नह.ं॥1॥

* 8बनु भंजेहुँ भव धनुषु 8बसाला। मे0लह सीय राम उर माला॥


अस 8बचा!र गवनहु घर भाई। जसु तापु बलु तेजु गवाँई॥2॥
भावाथ#:-(इधर उनके fप को दे खकर सबके मन म? यह न/चय हो गया Bक) 0शवजी के ,वशाल
धनष
ु को (जो संभव है न टूट सके) 8बना तोड़े भी सीताजी $ी रामच7oजी के ह. गले म?
जयमाला डाल?गी (अथाOत दोन= तरह से ह. हमार. हार होगी और ,वजय रामच7oजी के हाथ
रहेगी)। (य= सोचकर वे कहने लगे) हे भाई! ऐसा ,वचारकर यश, ताप, बल और तेज गँवाकर
अपने-अपने घर चलो॥2॥

* 8बहसे अपर भप
ू स ु न बानी। जे अ8बबेक अंध अ0भमानी॥
तोरे हुँ धनुषु Xयाहु अवगाहा। 8बनु तोर? को कुअँ!र 8बआहा॥3॥
भावाथ#:-दस ू रे राजा, जो अ,ववेक से अंधे हो रहे थे और अ0भमानी थे, यह बात सन
ु कर बहुत
हँसे। (उ7ह=ने कहा) धनुष तोड़ने पर भी ,ववाह होना कठन है (अथाOत सहज ह. म? हम जानकM
को हाथ से जाने नह.ं द? गे), Bफर 8बना तोड़े तो राजकुमार. को Xयाह ह. कौन सकता है॥3॥

* एक बार कालउ Bकन होऊ। 0सय हत समर िजतब हम सोऊ॥


यह स ु न अवर महप मुसक
ु ाने। धरमसील ह!रभगत सयाने॥4॥
भावाथ#:-काल ह. iय= न हो, एक बार तो सीता के 0लए उसे भी हम युkध म? जीत ल? गे। यह
घमंड कM बात सन
ु कर दस
ू रे राजा, जो धमाONमा, ह!रभiत और सयाने थे, मA
ु कुराए॥4॥

सोरठा :
* सीय 8बआह8ब राम गरब द!ू र क!र नप
ृ 7ह के।
जी त को सक संwाम दसरथ के रन बाँकुरे ॥245॥
भावाथ#:-(उ7ह=ने कहा-) राजाओं के गवO दरू करके (जो धनुष Bकसी से नह.ं टूट सकेगा उसे
तोड़कर) $ी रामच7oजी सीताजी को Xयाह? गे। (रह. युkध कM बात, सो) महाराज दशरथ के रण
म? बाँके प-
ु = को यk
ु ध म? तो जीत ह. कौन सकता है॥245॥

चौपाई :
* XयथO मरहु ज न गाल बजाई। मन मोदकि7ह Bक भख ू बतु ाई॥
0सख हमा!र स ु न परम पन
ु ीता। जगदं बा जानहु िजयँ सीता॥1॥
भावाथ#:-गाल बजाकर cयथO ह. मत मरो। मन के ल…डु ओं से भी कह.ं भूख बझ
ु ती है ? हमार.
परम प,व- ( न[कपट) सीख को सन
ु कर सीताजी को अपने जी म? साWात जग_जननी समझो
(उ7ह? पNनी fप म? पाने कM आशा एवं लालसा छोड़ दो),॥1॥

* जगत ,पता रघुप तह 8बचार.। भ!र लोचन छ8ब लेहु नहार.॥
सुंदर सुखद सकल गुन रासी। ए दोउ बंधु संभु उर बासी॥2॥
भावाथ#:-और $ी रघुनाथजी को जगत का ,पता (परमे/वर) ,वचार कर, ने- भरकर उनकM छ8ब
दे ख लो (ऐसा अवसर बार-बार नह.ं 0मलेगा)। सद
ंु र, सख
ु दे ने वाले और समAत गण
ु = कM रा0श
ये दोन= भाई 0शवजी के sदय म? बसने वाले हP (Aवयं 0शवजी भी िज7ह? सदा sदय म? छपाए
रखते हP, वे तुJहारे ने-= के सामने आ गए हP)॥2॥

* सुधा समुo समीप 8बहाई। मग ृ जलु नरRख मरहु कत धाई॥


करहु जाइ जा कहुँ जोइ भावा। हम तौ आजु जनम फलु पावा॥3॥
भावाथ#:-समीप आए हुए (भगवNदशOन fप) अमत ृ के समoु को छोड़कर तुम (जग_जननी
जानकM को पNनी fप म? पाने कM दरु ाशा fप 0म4या) मग
ृ जल को दे खकर दौड़कर iय= मरते
हो? Bफर (भाई!) िजसको जो अqछा लगे, वह. जाकर करो। हमने तो ($ी रामच7oजी के दशOन
करके) आज ज7म लेने का फल पा 0लया (जीवन और ज7म को सफल कर 0लया)॥3॥

* अस कह भले भूप अनरु ागे। fप अनूप 8बलोकन लागे॥


दे खहं सरु नभ चढ़े 8बमाना। बरषहं सुमन करहं कल गाना॥4॥
भावाथ#:-ऐसा कहकर अqछे राजा ेम मdन होकर $ी रामजी का अनुपम fप दे खने लगे।
(मन[ु य= कM तो बात ह. iया) दे वता लोग भी आकाश से ,वमान= पर चढ़े हुए दशOन कर रहे हP
और सुंदर गान करते हुए फूल बरसा रहे हP॥4॥

ी सीताजी का य<शाला म वेश


दोहा :
* जा न सअ
ु वस^ सीय तब पठई जनक बोलाइ।
चतरु सखीं संद
ु र सकल सादर चल.ं ि◌लवाइ॥246॥
भावाथ#:-तब सुअवसर जानकर जनकजी ने सीताजी को बुला भेजा। सब चतुर और सुंदर सRखयाँ
आरदपूवक
O उ7ह? 0लवा चल.ं॥246॥

चौपाई :
* 0सय सोभा नहं जाइ बखानी। जगदं 8बका fप गुन खानी॥
उपमा सकल मोह लघु लागीं। ाकृत ना!र अंग अनुरागीं॥1॥
भावाथ#:-fप और गण
ु = कM खान जग_जननी जानकMजी कM शोभा का वणOन नह.ं हो सकता।
उनके 0लए मुझे (काcय कM) सब उपमाएँ तुqछ लगती हP, iय=Bक वे लौBकक िA-य= के अंग= से
अनुराग रखने वाल. हP (अथाOत ् वे जगत कM िA-य= के अंग= को द. जाती हP)। (काcय कM
उपमाएँ सब 8-गुणाNमक, मा यक जगत से ल. गई हP, उ7ह? भगवान कM Aवfपा शिiत $ी
जानकMजी के अ ाकृत, च7मय अंग= के 0लए यi
ु त करना उनका अपमान करना और अपने
को उपहासाAपद बनाना है )॥1॥

* 0सय बर नअ तेइ उपमा दे ई। कुक8ब कहाइ अजसु को लेई॥


जV पटत!रअ तीय सम सीया। जग अ0स जुब त कहाँ कमनीया॥2॥
भावाथ#:-सीताजी के वणOन म? उ7ह.ं उपमाओं को दे कर कौन कुक,व कहलाए और अपयश का
भागी बने (अथाOत सीताजी के 0लए उन उपमाओं का योग करना सक
ु ,व के पद से qयत
ु होना
और अपकM तO मोल लेना है , कोई भी सक
ु ,व ऐसी नादानी एवं अनुचत कायO नह.ं करे गा।) यद
Bकसी A-ी के साथ सीताजी कM तुलना कM जाए तो जगत म? ऐसी सद
ुं र युवती है ह. कहाँ
(िजसकM उपमा उ7ह? द. जाए)॥2॥

* गरा मख
ु र तन अरध भवानी। र त अ त दRु खत अतनु प त जानी॥
8बष बा^नी बंधु , य जेह.। कहअ रमासम Bक0म बैदेह.॥3॥
भावाथ#:-(प4ृ वी कM िA-य= कM तो बात ह. iया, दे वताओं कM िA-य= को भी यद दे खा जाए तो
हमार. अपेWा कह.ं अधक दcय और सुंदर हP, तो उनम?) सरAवती तो बहुत बोलने वाल. हP,
पावOती अंkOधांगनी हP (अथाOत अधO-नार.नटे /वर के fप म? उनका आधा ह. अंग A-ी का है , शेष
आधा अंग प^
ु ष-0शवजी का है ), कामदे व कM A-ी र त प त को 8बना शर.र का (अनंग) जानकर
बहुत दःु खी रहती है और िजनके ,वष और मkय-जैसे (समo
ु से उNप7न होने के नाते) , य
भाई हP, उन ल'मी के समान तो जानकMजी को कहा ह. कैसे जाए॥3॥

* जV छ8ब सुधा पयो नध होई। परम fपमय कqछपु सोई॥


सोभा रजु मंद^ 0संगाf। मथै पा न पंकज नज माf॥4॥
भावाथ#:-(िजन ल'मीजी कM बात ऊपर कह. गई है , वे नकल. थीं खारे समुo से, िजसको मथने
के 0लए भगवान ने अ त ककOश पीठ वाले कqछप का fप धारण Bकया, रAसी बनाई गई महान
,वषधर वासBु क नाग कM, मथानी का कायO Bकया अ तशय कठोर मंदराचल पवOत ने और उसे
मथा सारे दे वताओं और दै Nय= ने 0मलकर। िजन ल'मी को अ तशय शोभा कM खान और
अनुपम सुंदर. कहते हP, उनको कट करने म? हे तु बने ये सब असद
ुं र एवं Aवाभा,वक ह. कठोर
उपकरण। ऐसे उपकरण= से कट हुई ल'मी $ी जानकMजी कM समता को कैसे पा सकती हP।
हाँ, (इसके ,वपर.त) यद छ8ब fपी अमतृ का समoु हो, परम fपमय कqछप हो, शोभा fप
रAसी हो, $ंग
ृ ार (रस) पवOत हो और (उस छ8ब के समुo को) Aवयं कामदे व अपने ह. करकमल
से मथे,॥4॥

दोहा :
* एह 8बध उपजै लिqछ जब सुंदरता सुख मल
ू ।
तद,प सकोच समेत क8ब कहहं सीय समतूल॥247॥
भावाथ#:-इस कार (का संयोग होने से) जब सद
ंु रता और सख
ु कM मल
ू ल'मी उNप7न हो, तो
भी क,व लोग उसे (बहुत) संकोच के साथ सीताजी के समान कह? गे॥247॥<
(िजस सुंदरता के समo
ु को कामदे व मथेगा वह सुंदरता भी ाकृत, लौBकक सुंदरता ह. होगी,
iय=Bक कामदे व Aवयं भी 8-गुणमयी कृ त का ह. ,वकार है। अतः उस सद
ुं रता को मथकर
कट कM हुई ल'मी भी उपयiुO त ल'मी कM अपेWा कह.ं अधक सुंदर और दcय होने पर भी
होगी ाकृत ह., अतः उसके साथ भी जानकMजी कM तलु ना करना क,व के 0लए बड़े संकोच कM
बात होगी। िजस सद
ुं रता से जानकMजी का दcया तदcय परम दcय ,वwह बना है, वह सुंदरता
उपयi
ुO त सुंदरता से 0भ7न अ ाकृत है - वAतुतः ल'मीजी का अ ाकृत fप भी यह. है । वह
कामदे व के मथने म? नह.ं आ सकती और वह जानकMजी का Aवfप ह. है, अतः उनसे 0भ7न
नह.ं और उपमा द. जाती है 0भ7न वAतु के साथ। इसके अ त!रiत जानकMजी कट हुई हP
Aवयं अपनी महमा से, उ7ह? कट करने के 0लए Bकसी 0भ7न उपकरण कM अपेWा नह.ं है ।
अथाOत शिiत शिiतमान से अ0भ7न, अkवैत तNव है , अतएव अनुपमेय है , यह. गूढ़ दाशO नक
तNव भiत 0शरोमRण क,व ने इस अभूतोपमालंकार के kवारा बड़ी सद
ुं रता से cयiत Bकया है ।)

चौपाई :
* चल.ं संग लै सखीं सयानी। गावत गीत मनोहर बानी॥
सोह नवल तनु सद
ंु र सार.। जगत जन न अत0ु लत छ8ब भार.॥1॥
भावाथ#:-सयानी सRखयाँ सीताजी को साथ लेकर मनोहर वाणी से गीत गाती हुई चल.ं। सीताजी
के नवल शर.र पर सुंदर साड़ी सशु ो0भत है। जग_जननी कM महान छ8ब अतुलनीय है ॥1॥

* भूषन सकल सुदेस सुहाए। अंग अंग रच सRख7ह बनाए॥


रं गभू0म जब 0सय पगु धार.। दे Rख fप मोहे नर नार.॥2॥
भावाथ#:-सब आभष
ू ण अपनी-अपनी जगह पर शो0भत हP, िज7ह? सRखय= ने अंग-अंग म?
भल.भाँ त सजाकर पहनाया है । जब सीताजी ने रं गभ0ू म म? पैर रखा, तब उनका (दcय) fप
दे खकर A-ी, प^
ु ष सभी मोहत हो गए॥2॥

*हर,ष सरु 7ह दं द
ु भ
ु ीं बजा}। बर,ष सून अपछरा गा}॥
पा न सरोज सोह जयमाला। अवचट चतए सकल भआ
ु ला॥3॥
भावाथ#:-दे वताओं ने ह,षOत होकर नगाड़े बजाए और प[ु प बरसाकर असराएँ गाने लगीं। सीताजी
के करकमल= म? जयमाला सुशो0भत है । सब राजा चBकत होकर अचानक उनकM ओर दे खने
लगे॥3॥

* सीय चBकत चत रामह चाहा। भए मोहबस सब नरनाहा॥


म ु न समीप दे खे दोउ भाई। लगे ललBक लोचन नध पाई॥4॥
भावाथ#:-सीताजी चBकत चT से $ी रामजी को दे खने लगीं, तब सब राजा लोग मोह के वश हो
गए। सीताजी ने म ु न के पास (बैठे हुए) दोन= भाइय= को दे खा तो उनके ने- अपना खजाना
पाकर ललचाकर वह.ं ($ी रामजी म? ) जा लगे (िAथर हो गए)॥4॥

दोहा :
* गुरजन लाज समाजु बड़ दे Rख सीय सकुचा न।
लाग 8बलोकन सRख7ह तन रघुबीरह उर आ न॥248॥
भावाथ#:-पर7तु गु^जन= कM लाज से तथा बहुत बड़े समाज को दे खकर सीताजी सकुचा ग}। वे
$ी रामच7oजी को sदय म? लाकर सRखय= कM ओर दे खने लगीं॥248॥

चौपाई :
* राम fपु अ^ 0सय छ8ब दे ख?। नर ना!र7ह प!रहर.ं नमेष?॥
सोचहं सकल कहत सकुचाह.ं। 8बध सन 8बनय करहं मन माह.ं॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी का fप और सीताजी कM छ8ब दे खकर A-ी-प^
ु ष= ने पलक मारना छोड़
दया (सब एकटक उ7ह.ं को दे खने लगे)। सभी अपने मन म? सोचते हP, पर कहते सकुचाते हP।
मन ह. मन वे ,वधाता से ,वनय करते हP-॥1॥

* ह^ 8बध बेग जनक जड़ताई। म त हमा!र अ0स दे ह सह


ु ाई॥
8बनु 8बचार पनु तिज नरनाहू। सीय राम कर करै 8बबाहू॥2॥
भावाथ#:-हे ,वधाता! जनक कM मूढ़ता को शीH हर ल.िजए और हमार. ह. ऐसी सद
ुं र बुkध उ7ह?
द.िजए Bक िजससे 8बना ह. ,वचार Bकए राजा अपना ण छोड़कर सीताजी का ,ववाह रामजी से
कर द? ॥2॥

*जगु भल कहह भाव सब काहू। हठ कM7ह? अंतहुँ उर दाहू॥


एहं लालसाँ मगन सब लोगू। ब^ साँवरो जानकM जोगू॥3॥
भावाथ#:-संसार उ7ह? भला कहे गा, iय=Bक यह बात सब Bकसी को अqछv लगती है । हठ करने से
अंत म? भी sदय जलेगा। सब लोग इसी लालसा म? मdन हो रहे हP Bक जानकMजी के योdय वर
तो यह साँवला ह. है॥3॥

बंद+जन> ?वारा जनक*त<ा क' घोषणा राजाओं से धनुष न उठना, जनक क' *नराशाजनक
वाणी
* तब बंद.जन जनक बोलाए। 8ब!रदावल. कहत च0ल आए॥
कह नपृ ु जाइ कहहु पन मोरा। चले भाट हयँ हरषु न थोरा॥4॥
भावाथ#:-तब राजा जनक ने वंद.जन= (भाट=) को बलु ाया। वे ,व^दावल. (वंश कM कM तO) गाते हुए
चले आए। राजा ने कहा- जाकर मेरा ण सबसे कहो। भाट चले, उनके sदय म? कम आनंद न
था॥4॥

दोहा :
* बोले बंद. बचन बर सन
ु हु सकल महपाल।
पन 8बदे ह कर कहहं हम भुजा उठाइ 8बसाल॥249॥
भावाथ#:-भाट= ने $े[ठ वचन कहा- हे प4ृ वी कM पालना करने वाले सब राजागण! सु नए। हम
अपनी भज
ु ा उठाकर जनकजी का ,वशाल ण कहते हP-॥249॥

चौपाई :
* नपृ भुजबल 8बधु 0सवधनु राहू। ग^अ कठोर 8बदत सब काहू॥
रावनु बानु महाभट भारे । दे Rख सरासन गवँहं 0सधारे ॥1॥
भावाथ#:-राजाओं कM भज
ु ाओं का बल च7oमा है , 0शवजी का धनष
ु राहु है, वह भार. है , कठोर है ,
यह सबको ,वदत है। बड़े भार. योkधा रावण और बाणासुर भी इस धनुष को दे खकर गV से
(चुपके से) चलते बने (उसे उठाना तो दरू रहा, छूने तक कM हJमत न हुई)॥1॥

* सोइ परु ा!र कोदं डु कठोरा। राज समाज आजु जोइ तोरा॥
8-भव
ु न जय समेत बैदेह.। 8बनहं 8बचार बरइ हठ तेह.॥2॥
भावाथ#:-उसी 0शवजी के कठोर धनुष को आज इस राज समाज म? जो भी तोड़ेगा, तीन= लोक=
कM ,वजय के साथ ह. उसको जानकMजी 8बना Bकसी ,वचार के हठपव
ू क
O वरण कर? गी॥2॥

* सु न पन सकल भप
ू अ0भलाषे। भटमानी अ तसय मन माखे॥
प!रकर बाँध उठे अकुलाई। चले इ[ट दे व7ह 0सर नाई॥3॥
भावाथ#:- ण सुनकर सब राजा ललचा उठे । जो वीरता के अ0भमानी थे, वे मन म? बहुत ह.
तमतमाए। कमर कसकर अकुलाकर उठे और अपने इ[टदे व= को 0सर नवाकर चले॥3॥

* तमBक ताBक तBक 0सवधनु धरह.ं। उठइ न कोट भाँ त बलु करह.ं॥
िज7ह के कछु 8बचा^ मन माह.ं। चाप समीप मह.प न जाह.ं॥4॥
भावाथ#:-वे तमककर (बड़े ताव से) 0शवजी के धनुष कM ओर दे खते हP और Bफर नगाह जमाकर
उसे पकड़ते हP, करोड़= भाँ त से जोर लगाते हP, पर वह उठता ह. नह.ं। िजन राजाओं के मन म?
कुछ ,ववेक है , वे तो धनष
ु के पास ह. नह.ं जाते॥4॥

दोहा :
* तमBक धरहं धनु मढ़
ू नप
ृ उठइ न चलहं लजाइ॥
मनहुँ पाइ भट बाहुबलु अधकु अधकु ग^आइ॥250॥
भावाथ#:-वे मूखO राजा तमककर (BकटBकटाकर) धनष
ु को पकड़ते हP, पर7तु जब नह.ं उठता तो
लजाकर चले जाते हP, मानो वीर= कM भज
ु ाओं का बल पाकर वह धनष
ु अधक-अधक भार.
होता जाता है॥250॥

चौपाई :
* भूप सहस दस एकह बारा। लगे उठावन टरइ न टारा॥
डगइ न संभु सरासनु कैस?। कामी बचन सती मनु जैस?॥1॥
भावाथ#:-तब दस हजार राजा एक ह. बार धनुष को उठाने लगे, तो भी वह उनके टाले नह.ं
टलता। 0शवजी का वह धनष
ु कैसे नह.ं ƒडगता था, जैसे कामी प^
ु ष के वचन= से सती का मन
(कभी) चलायमान नह.ं होता॥1॥

* सब नप
ृ भए जोगु उपहासी। जैस? 8बनु 8बराग सं7यासी॥
कMर त 8बजय बीरता भार.। चले चाप कर बरबस हार.॥2॥
भावाथ#:-सब राजा उपहास के योdय हो गए, जैसे वैराdय के 8बना सं7यासी उपहास के योdय हो
जाता है । कM तO, ,वजय, बड़ी वीरता- इन सबको वे धनष
ु के हाथ= बरबस हारकर चले गए॥2॥

* $ीहत भए हा!र हयँ राजा। बैठे नज नज जाइ समाजा॥


नप
ृ 7ह 8बलोBक जनकु अकुलाने। बोले बचन रोष जनु साने॥3॥
भावाथ#:-राजा लोग sदय से हारकर $ीह.न (हत भ) हो गए और अपने-अपने समाज म? जा
बैठे। राजाओं को (असफल) दे खकर जनक अकुला उठे और ऐसे वचन बोले जो मानो €ोध म?
सने हुए थे॥3॥

* द.प द.प के भूप त नाना। आए सु नहम जो पनु ठाना॥


दे व दनज
ु ध!र मनज
ु सर.रा। 8बपुल बीर आए रनधीरा॥4॥
भावाथ#:-मPने जो ण ठाना था, उसे सुनकर kवीप-kवीप के अनेक= राजा आए। दे वता और दै Nय
भी मन[ु य का शर.र धारण करके आए तथा और भी बहुत से रणधीर वीर आए॥4॥

दोहा :
* कुअँ!र मनोहर 8बजय बƒड़ कMर तअ त कमनीय।
पाव नहार 8बरं च जनु रचेउ न धनु दमनीय॥251॥
भावाथ#:-पर7तु धनुष को तोड़कर मनोहर क7या, बड़ी ,वजय और अNय7त सद
ुं र कM तO को पाने
वाला मानो CDमा ने Bकसी को रचा ह. नह.ं॥251॥

चौपाई :
* कहहु काह यहु लाभु न भावा। काहुँ न संकर चाप चढ़ावा॥
रहउ चढ़ाउब तोरब भाई। तलु भ!र भ0ू म न सके छड़ाई॥1॥
भावाथ#:-कहए, यह लाभ Bकसको अqछा नह.ं लगता, पर7तु Bकसी ने भी शंकरजी का धनुष
नह.ं चढ़ाया। अरे भाई! चढ़ाना और तोड़ना तो दरू रहा, कोई तल भर भू0म भी छुड़ा न
सका॥1॥

* अब ज न कोउ भाखे भट मानी। बीर 8बह.न मह. मP जानी॥


तजहु आस नज नज गहृ जाहू। 0लखा न 8बध बैदेह 8बबाहू॥2॥
भावाथ#:-अब कोई वीरता का अ0भमानी नाराज न हो। मPने जान 0लया, प4ृ वी वीर= से खाल. हो
गई। अब आशा छोड़कर अपने-अपने घर जाओ, CDमा ने सीता का ,ववाह 0लखा ह. नह.ं॥2॥

* सुकृतु जाइ जV पनु प!रहरऊँ। कुअँ!र कुआँ!र रहउ का करऊँ॥


जV जनतेउँ 8बनु भट भु8ब भाई। तौ पनु क!र होतेउँ न हँसाई॥3॥
भावाथ#:-यद ण छोड़ता हूँ, तो पुxय जाता है, इस0लए iया कfँ, क7या कुँआर. ह. रहे । यद मP
जानता Bक प4
ृ वी वीर= से शू7य है , तो ण करके उपहास का पा- न बनता॥3॥

ी ल मणजी का Dोध
* जनक बचन स ु न सब नर नार.। दे Rख जानBकह भए दख
ु ार.॥
माखे लखनु कुटल भइँ भVह? । रदपट फरकत नयन !रसVह? ॥4॥
भावाथ#:-जनक के वचन सन
ु कर सभी A-ी-प^ ु ष जानकMजी कM ओर दे खकर दःु खी हुए, पर7तु
ल'मणजी तमतमा उठे , उनकM भVह? टे ढ़. हो ग}, होठ फड़कने लगे और ने- €ोध से लाल हो
गए॥4॥

दोहा :
* कह न सकत रघुबीर डर लगे बचन जनु बान।
नाइ राम पद कमल 0स^ बोले गरा मान॥252॥
भावाथ#:-$ी रघुवीरजी के डर से कुछ कह तो सकते नह.ं, पर जनक के वचन उ7ह? बाण से लगे।
(जब न रह सके तब) $ी रामच7oजी के चरण कमल= म? 0सर नवाकर वे यथाथO वचन बोले-
॥252॥

चौपाई :
* रघब
ु ं0स7ह महुँ जहँ कोउ होई। तेहं समाज अस कहइ न कोई॥
कह. जनक ज0स अनु चत बानी। 8बkयमान रघक ु ु ल म न जानी॥1॥
भावाथ#:-रघव
ु ं0शय= म? कोई भी जहाँ होता है, उस समाज म? ऐसे वचन कोई नह.ं कहता, जैसे
अनु चत वचन रघक
ु ु ल 0शरोमRण $ी रामजी को उपिAथत जानते हुए भी जनकजी ने कहे
हP॥1॥

* सुनहु भानक
ु ु ल पंकज भानू। कहउँ सुभाउ न कछु अ0भमानू॥
जV तुJहा!र अनुसासन पावV। कंदक
ु इव CDमांड उठावV॥2॥
भावाथ#:-हे सय
ू O कुल fपी कमल के सय
ू !O सु नए, मP Aवभाव ह. से कहता हूँ, कुछ अ0भमान
करके नह.ं, यद आपकM आgा पाऊँ, तो मP CDमाxड को ग? द कM तरह उठा लँ ॥ ू 2॥

*काचे घट िज0म डारV फोर.। सकउँ मे^ मूलक िज0म तोर.॥


तव ताप महमा भगवाना। को बापरु ो ,पनाक परु ाना॥3॥
भावाथ#:-और उसे कqचे घड़े कM तरह फोड़ डालँ ।ू मP सुमे^ पवOत को मल
ू . कM तरह तोड़ सकता
हूँ, हे भगवन!् आपके ताप कM महमा से यह बेचारा पुराना धनष
ु तो कौन चीज है ॥3॥

* नाथ जा न अस आयसु होऊ। कौतक


ु ु करV 8बलोBकअ सोऊ॥
कमल नाल िज0म चाप चढ़ावV। जोजन सत मान लै धावV॥4॥
भावाथ#:-ऐसा जानकर हे नाथ! आgा हो तो कुछ खेल कfँ, उसे भी दे Rखए। धनुष को कमल कM
डंड ी कM तरह चढ़ाकर उसे सौ योजन तक दौड़ा 0लए चला जाऊँ॥4॥

दोहा :
* तोरV छ-क दं ड िज0म तव ताप बल नाथ।
जV न करV भु पद सपथ कर न धरV धनु भाथ॥253॥
भावाथ#:-हे नाथ! आपके ताप के बल से धनुष को कुकुरमुTे (बरसाती छTे) कM तरह तोड़ दँ ।ू
यद ऐसा न कfँ तो भु के चरण= कM शपथ है, Bफर मP धनुष और तरकस को कभी हाथ म?
भी न लँ ूगा॥253॥

चौपाई :
* लखन सकोप बचन जे बोले। डगमगा न मह दdगज डोले॥
सकल लोग सब भप
ू डेराने। 0सय हयँ हरषु जनकु सकुचाने॥1॥
भावाथ#:-_य= ह. ल'मणजी €ोध भरे वचन बोले Bक प4
ृ वी डगमगा उठv और दशाओं के हाथी
काँप गए। सभी लोग और सब राजा डर गए। सीताजी के sदय म? हषO हुआ और जनकजी
सकुचा गए॥1॥

* गुर रघुप त सब म ु न मन माह.ं। मु दत भए प ु न पु न पल


ु काह.ं॥
सयनहं रघप
ु त लखनु नेवारे । ेम समेत नकट बैठारे ॥2॥
भावाथ#:-ग^
ु ,व/वा0म-जी, $ी रघुनाथजी और सब म ु न मन म? स7न हुए और बार-बार
पल
ु Bकत होने लगे। $ी रामच7oजी ने इशारे से ल'मण को मना Bकया और ेम सहत अपने
पास बैठा 0लया॥2॥

* 8बAवा0म- समय सुभ जानी। बोले अ त सनेहमय बानी॥


उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक प!रतापा॥3॥
भावाथ#:-,व/वा0म-जी शुभ समय जानकर अNय7त ेमभर. वाणी बोले- हे राम! उठो, 0शवजी का
धनष
ु तोड़ो और हे तात! जनक का संताप 0मटाओ॥3॥

* सु न ग^
ु बचन चरन 0स^ नावा। हरषु 8बषाद ु न कछु उर आवा॥
ठाढ़े भए उठ सहज सभ
ु ाएँ। ठव न जब
ु ा मग
ृ राजु लजाएँ॥4॥
भावाथ#:-गु^ के वचन सन
ु कर $ी रामजी ने चरण= म? 0सर नवाया। उनके मन म? न हषO हुआ,
न ,वषाद और वे अपनी ऐंड़ (खड़े होने कM शान) से जवान 0संह को भी लजाते हुए सहज
Aवभाव से ह. उठ खड़े हुए ॥4॥

दोहा :
* उदत उदयग!र मंच पर रघुबर बालपतंग।
8बकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भग
ं ृ ॥254॥
भावाथ#:-मंच fपी उदयाचल पर रघुनाथजी fपी बाल सूयO के उदय होते ह. सब संत fपी कमल
Rखल उठे और ने- fपी भVरे ह,षOत हो गए॥254॥

चौपाई :
* नप
ृ 7ह के!र आसा न0स नासी। बचन नखत अवल. न कासी॥
मानी महप कुमुद सकुचाने। कपट. भप
ू उलूक लुकाने॥1॥
भावाथ#:-राजाओं कM आशा fपी रा8- न[ट हो गई। उनके वचन fपी तार= के समूह का चमकना
बंद हो गया। (वे मौन हो गए)। अ0भमानी राजा fपी कुमुद संकुचत हो गए और कपट. राजा
fपी उZलू छप गए॥1॥

* भए 8बसोक कोक म ु न दे वा। ब!रसहं सम


ु न जनावहं सेवा॥
गुर पद बंद सहत अनुरागा। राम मु न7हसन आयसु मागा॥2॥
भावाथ#:-मु न और दे वता fपी चकवे शोकरहत हो गए। वे फूल बरसाकर अपनी सेवा कट कर
रहे हP। ेम सहत ग^
ु के चरण= कM वंदना करके $ी रामच7oजी ने म ु नय= से आgा माँगी॥2॥

* सहजहं चले सकल जग Aवामी। मT मंजु बर कंु जर गामी॥


चलत राम सब परु नर नार.। पल
ु क प!ू र तन भए सख
ु ार.॥3॥
भावाथ#:-समAत जगत के Aवामी $ी रामजी सुंदर मतवाले $े[ठ हाथी कM सी चाल से
Aवाभा,वक ह. चले। $ी रामच7oजी के चलते ह. नगर भर के सब A-ी-प^
ु ष सुखी हो गए और
उनके शर.र रोमांच से भर गए॥3॥

* बंद ,पतर सरु सक


ु ृ त सँभारे । जV कछु प7
ु य भाउ हमारे ॥
तौ 0सवधनु मन
ृ ाल कM ना}। तोरहुँ रामु गनेस गोसा}॥4॥
भावाथ#:-उ7ह=ने ,पतर और दे वताओं कM वंदना करके अपने पx
ु य= का Aमरण Bकया। यद हमारे
पx
ु य= का कुछ भी भाव हो, तो हे गणेश गोसा}! रामच7oजी 0शवजी के धनुष को कमल कM
डंड ी कM भाँ त तोड़ डाल? ॥4॥

दोहा :
* रामह ेम समेत लRख सRख7ह समीप बोलाइ।
सीता मातु सनेह बस बचन कहइ 8बलखाइ॥255॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी को (वाNसZय) ेम के साथ दे खकर और सRखय= को समीप बल
ु ाकर
सीताजी कM माता Aनेहवश 8बलखकर (,वलाप करती हुई सी) ये वचन बोल.ं-॥255॥

चौपाई :
* सRख सब कौतक
ु दे ख नहारे । जेउ कहावत हतू हमारे ॥
कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाह.ं। ए बालक अ0स हठ भ0ल नाह.ं॥1॥
भावाथ#:-हे सखी! ये जो हमारे हतू कहलाते हP, वे भी सब तमाशा दे खने वाले हP। कोई भी
(इनके) ग^
ु ,व/वा0म-जी को समझाकर नह.ं कहता Bक ये (रामजी) बालक हP, इनके 0लए ऐसा
हठ अqछा नह.ं। (जो धनष
ु रावण और बाण- जैसे जगk,वजयी वीर= के हलाए न हल सका,
उसे तोड़ने के 0लए म ु न ,व/वा0म-जी का रामजी को आgा दे ना और रामजी का उसे तोड़ने के
0लए चल दे ना रानी को हठ जान पड़ा, इस0लए वे कहने लगीं Bक गु^ ,व/वा0म-जी को कोई
समझाता भी नह.ं)॥1॥

* रावन बान छुआ नहं चापा। हारे सकल भप


ू क!र दापा॥
सो धनु राजकुअँर कर दे ह.ं। बाल मराल Bक मंदर लेह.ं॥2॥
भावाथ#:-रावण और बाणासुर ने िजस धनुष को छुआ तक नह.ं और सब राजा घमंड करके हार
गए, वह. धनुष इस सुकुमार राजकुमार के हाथ म? दे रहे हP। हं स के बqचे भी कह.ं मंदराचल
पहाड़ उठा सकते हP?॥2॥

* भूप सयानप सकल 0सरानी। सRख 8बध ग त कछु जा त न जानी॥


बोल. चतुर सखी मद
ृ ु बानी। तेजवंत लघु ग नअ न रानी॥3॥
भावाथ#:-(और तो कोई समझाकर कहे या नह.ं, राजा तो बड़े समझदार और gानी हP, उ7ह? तो
गु^ को समझाने कM चे[टा करनी चाहए थी, पर7तु मालूम होता है -) राजा का भी सारा
सयानापन समात हो गया। हे सखी! ,वधाता कM ग त कुछ जानने म? नह.ं आती (य= कहकर
रानी चुप हो रह.ं)। तब एक चतुर (रामजी के महNव को जानने वाल.) सखी कोमल वाणी से
बोल.- हे रानी! तेजवान को (दे खने म? छोटा होने पर भी) छोटा नह.ं गनना चाहए॥3॥

* कहँ कंु भज कहँ 0संधु अपारा। सोषेउ सज


ु सु सकल संसारा॥
र8ब मंड ल दे खत लघु लागा। उदयँ तासु तभव
ु न तम भागा॥4॥
भावाथ#:-कहाँ घड़े से उNप7न होने वाले (छोटे से) मु न अगANय और कहाँ समo
ु ? Bक7तु उ7ह=ने
उसे सोख 0लया, िजसका सय ु श सारे संसार म? छाया हुआ है। सूयOमंड ल दे खने म? छोटा लगता
है , पर उसके उदय होते ह. तीन= लोक= का अंधकार भाग जाता है॥4॥

दोहा :
* मं- परम लघु जासु बस 8बध ह!र हर सरु सबO।
महामT गजराज कहुँ बस कर अंकुस खबO॥256॥
भावाथ#:-िजसके वश म? CDमा, ,व[णु, 0शव और सभी दे वता हP, वह मं- अNय7त छोटा होता है ।
महान मतवाले गजराज को छोटा सा अंकुश वश म? कर लेता है ॥256॥

चौपाई :
* काम कुसम
ु धनु सायक ल.7हे। सकल भुवन अपन? बस कM7हे ॥
दे 8ब तिजअ संसउ अस जानी। भंजब धनुषु राम सन
ु ु रानी॥1॥
भावाथ#:-कामदे व ने फूल= का ह. धनष
ु -बाण लेकर समAत लोक= को अपने वश म? कर रखा है।
हे दे वी! ऐसा जानकर संदेह Nयाग द.िजए। हे रानी! सु नए, रामच7oजी धनष
ु को अव/य ह.
तोड़?गे॥1॥

* सखी बचन सु न भै परतीती। 0मटा 8बषादु बढ़. अ त ीती॥


तब रामह 8बलोBक बैदेह.। सभय sदयँ 8बनव त जेह तेह.॥2॥
भावाथ#:-सखी के वचन सन
ु कर रानी को ($ी रामजी के साम4यO के संबंध म? ) ,व/वास हो गया।
उनकM उदासी 0मट गई और $ी रामजी के त उनका ेम अNय7त बढ़ गया। उस समय $ी
रामच7oजी को दे खकर सीताजी भयभीत sदय से िजस- तस (दे वता) से ,वनती कर रह. हP॥2॥

* मनह.ं मन मनाव अकुलानी। होहु स7न महे स भवानी॥


करहु सफल आप न सेवकाई। क!र हतु हरहु चाप ग^आई॥3॥
भावाथ#:-वे cयाकुल होकर मन ह. मन मना रह. हP- हे महे श-भवानी! मुझ पर स7न होइए, मPने
आपकM जो सेवा कM है , उसे सुफल कMिजए और मझ
ु पर Aनेह करके धनुष के भार.पन को हर
ल.िजए॥3॥

* गननायक बरदायक दे वा। आजु लग? कMि7हउँ तुअ सेवा॥


बार बार 8बनती स ु न मोर.। करहु चाप ग^ ु ता अ त थोर.॥4॥
भावाथ#:- हे गण= के नायक, वर दे ने वाले दे वता गणेशजी! मPने आज ह. के 0लए तुJहार. सेवा
कM थी। बार-बार मेर. ,वनती सन
ु कर धनुष का भार.पन बहुत ह. कम कर द.िजए॥4॥

दोहा :
* दे Rख दे Rख रघुबीर तन सुर मनाव ध!र धीर।
भरे 8बलोचन ेम जल पल
ु कावल. सर.र॥257॥
भावाथ#:-$ी रघुनाथजी कM ओर दे ख-दे खकर सीताजी धीरज धरकर दे वताओं को मना रह. हP।
उनके ने-= म? ेम के आँसू भरे हP और शर.र म? रोमांच हो रहा है ॥257॥

चौपाई :
* नीक? नरRख नयन भ!र सोभा। ,पतु पनु सु0म!र बहु!र मनु छोभा॥
अहह तात दा^ न हठ ठानी। समझु त नहं कछु लाभु न हानी॥1॥
भावाथ#:-अqछv तरह ने- भरकर $ी रामजी कM शोभा दे खकर, Bफर ,पता के ण का Aमरण
करके सीताजी का मन WुXध हो उठा। (वे मन ह. मन कहने लगीं-) अहो! ,पताजी ने बड़ा ह.
कठन हठ ठाना है , वे लाभ-हा न कुछ भी नह.ं समझ रहे हP॥1॥

* सचव सभय 0सख दे इ न कोई। बुध समाज बड़ अनु चत होई॥


कहँ धनु कु0लसहु चाह कठोरा। कहँ Aयामल मद
ृ ग
ु ात Bकसोरा॥2॥
भावाथ#:-मं-ी डर रहे हP, इस0लए कोई उ7ह? सीख भी नह.ं दे ता, पंƒडत= कM सभा म? यह बड़ा
अनुचत हो रहा है। कहाँ तो वl से भी बढ़कर कठोर धनुष और कहाँ ये कोमल शर.र Bकशोर
/यामसंद
ु र!॥2॥

* 8बध केह भाँ त धरV उर धीरा। 0सरस सम


ु न कन बेधअ ह.रा॥
सकल सभा कै म त भै भोर.। अब मोह संभुचाप ग त तोर.॥3॥
भावाथ#:-हे ,वधाता! मP sदय म? Bकस तरह धीरज धfँ, 0सरस के फूल के कण से कह.ं ह.रा छे दा
जाता है । सार. सभा कM बुkध भोल. (बावल.) हो गई है, अतः हे 0शवजी के धनुष! अब तो
मुझे तुJहारा ह. आसरा है ॥3॥

* नज जड़ता लोग7ह पर डार.। होह ह^अ रघुप तह नहार.॥


अ त प!रताप सीय मन माह.ं। लव नमेष जुग सय सम जाह.ं॥4॥
भावाथ#:-तुम अपनी जड़ता लोग= पर डालकर, $ी रघुनाथजी (के सक
ु ु मार शर.र) को दे खकर
(उतने ह.) हZके हो जाओ। इस कार सीताजी के मन म? बड़ा ह. संताप हो रहा है। नमेष का
एक लव (अंश) भी सौ यग
ु = के समान बीत रहा है ॥4॥

दोहा :
* भुह चतइ प ु न चतव मह राजत लोचन लोल।
खेलत मन0सज मीन जुग जनु 8बधु मंड ल डोल॥258॥
भावाथ#:- भु $ी रामच7oजी को दे खकर Bफर प4ृ वी कM ओर दे खती हुई सीताजी के चंचल ने-
इस कार शो0भत हो रहे हP, मानो च7oमंड ल fपी डोल म? कामदे व कM दो मछ0लयाँ खेल रह.
ह=॥258॥

चौपाई :
* गरा अ0ल न मख
ु पंकज रोकM। गट न लाज नसा अवलोकM॥
लोचन जलु रह लोचन कोना। जैस? परम कृपन कर सोना॥1॥
भावाथ#:-सीताजी कM वाणी fपी tमर. को उनके मख
ु fपी कमल ने रोक रखा है। लाज fपी
रा8- को दे खकर वह कट नह.ं हो रह. है । ने-= का जल ने-= के कोने (कोये) म? ह. रह जाता
है । जैसे बड़े भार. कंजूस का सोना कोने म? ह. गड़ा रह जाता है ॥1॥

* सकुची Xयाकुलता बƒड़ जानी। ध!र धींरजु ती त उर आनी॥


तन मन बचन मोर पनु साचा। रघुप त पद सरोज चतु राचा॥2॥
भावाथ#:-अपनी बढ़. हुई cयाकुलता जानकर सीताजी सकुचा ग} और धीरज धरकर sदय म?
,व/वास ले आ} Bक यद तन, मन और वचन से मेरा ण सqचा है और $ी रघन ु ाथजी के
चरण कमल= म? मेरा चT वाAतव म? अनुरiत है,॥2॥

* तौ भगवानु सकल उर बासी। क!रह मोह रघब


ु र कै दासी॥
जेह क? जेह पर सNय सनेहू। सो तेह 0मलइ न कछु संदेहू॥3॥
भावाथ#:-तो सबके sदय म? नवास करने वाले भगवान मझु े रघ$ु े[ठ $ी रामच7oजी कM दासी
अव/य बनाएँगे। िजसका िजस पर सqचा Aनेह होता है, वह उसे 0मलता ह. है , इसम? कुछ भी
संदेह नह.ं है ॥3॥

* भु तन चतइ ेम तन ठाना। कृपा नधान राम सबु जाना॥


0सयह 8बलोBक तकेउ धनु कैस?। चतव ग^^ लघु Xयालह जैस॥
? 4॥
भावाथ#:- भु कM ओर दे खकर सीताजी ने शर.र के kवारा ेम ठान 0लया (अथाOत ् यह न/चय
कर 0लया Bक यह शर.र इ7ह.ं का होकर रहे गा या रहेगा ह. नह.ं) कृपा नधान $ी रामजी सब
जान गए। उ7ह=ने सीताजी को दे खकर धनुष कM ओर कैसे ताका, जैसे ग^ड़जी छोटे से साँप कM
ओर दे खते हP॥4॥

दोहा :
* लखन लखेउ रघब
ु स
ं म न ताकेउ हर कोदं डु ।
पल
ु Bक गात बोले बचन चरन चा,प CDमांडु ॥259॥
भावाथ#:-इधर जब ल'मणजी ने दे खा Bक रघक
ु ु ल मRण $ी रामच7oजी ने 0शवजी के धनुष कM
ओर ताका है, तो वे शर.र से पल
ु Bकत हो CDमाxड को चरण= से दबाकर नJन0लRखत वचन
बोले-॥259॥

चौपाई :
*द0सकंु जरहु कमठ अह कोला। धरहु धर न ध!र धीर न डोला॥
रामु चहहं संकर धनु तोरा। होहु सजग सु न आयसु मोरा॥1॥
भावाथ#:-हे दdगजो! हे कqछप! हे शेष! हे वाराह! धीरज धरकर प4ृ वी को थामे रहो, िजससे यह
हलने न पावे। $ी रामच7oजी 0शवजी के धनष
ु को तोड़ना चाहते हP। मेर. आgा सुनकर सब
सावधान हो जाओ॥1॥

* चाप समीप रामु जब आए। नर ना!र7ह सुर सुकृत मनाए॥


सब कर संसउ अ^ अdयानू। मंद मह.प7ह कर अ0भमान॥
ू 2॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी जब धनुष के समीप आए, तब सब A-ी-प^
ु ष= ने दे वताओं और पx
ु य=
को मनाया। सबका संदेह और अgान, नीच राजाओं का अ0भमान,॥2॥

* भग
ृ प
ु त के!र गरब ग^आई। सुर मु नबर7ह के!र कदराई॥
0सय कर सोचु जनक प छतावा। रा न7ह कर दा^न दख
ु दावा॥3॥
भावाथ#:-परशरु ामजी के गवO कM ग^
ु ता, दे वता और $े[ठ म ु नय= कM कातरता (भय), सीताजी का
सोच, जनक का प/चाताप और रा नय= के दा^ण दःु ख का दावानल,॥3॥

* संभच
ु ाप बड़ बोहतु पाई। चढ़े जाइ सब संगु बनाई॥
राम बाहुबल 0संधु अपाf। चहत पा^ नहं कोउ कड़हाf॥4॥
भावाथ#:-ये सब 0शवजी के धनष
ु fपी बड़े जहाज को पाकर, समाज बनाकर उस पर जा चढ़े । ये
$ी रामच7oजी कM भुजाओं के बल fपी अपार समo
ु के पार जाना चाहते हP, पर7तु कोई केवट
नह.ं है ॥4॥

धनुषभंग
दोहा :
* राम 8बलोके लोग सब च- 0लखे से दे Rख।
चतई सीय कृपायतन जानी 8बकल 8बसे,ष॥260॥
भावाथ#:-$ी रामजी ने सब लोग= कM ओर दे खा और उ7ह? च- म? 0लखे हुए से दे खकर Bफर
कृपाधाम $ी रामजी ने सीताजी कM ओर दे खा और उ7ह? ,वशेष cयाकुल जाना॥260॥

चौपाई :
* दे खी 8बपल
ु 8बकल बैदेह.। न0मष 8बहात कलप सम तेह.।
त,ृ षत बा!र 8बनु जो तनु Nयागा। मुएँ करइ का सध
ु ा तड़ागा॥1॥
भावाथ#:-उ7ह=ने जानकMजी को बहुत ह. ,वकल दे खा। उनका एक-एक Wण कZप के समान बीत
रहा था। यद यासा आदमी पानी के 8बना शर.र छोड़ दे , तो उसके मर जाने पर अमत
ृ का
तालाब भी iया करे गा?॥1॥

* का बरषा सब कृषी सख
ु ान? । समय चुक? प ु न का प छतान?॥
अस िजयँ जा न जानकM दे खी। भु पल
ु के लRख ी त 8बसेषी॥2॥
भावाथ#:-सार. खेती के सख
ू जाने पर वषाO Bकस काम कM? समय बीत जाने पर Bफर पछताने से
iया लाभ? जी म? ऐसा समझकर $ी रामजी ने जानकMजी कM ओर दे खा और उनका ,वशेष ेम
लखकर वे पुलBकत हो गए॥2॥

* गुरह नामु मनहं मन कM7हा। अ त लाघवँ उठाइ धनु ल.7हा॥


दमकेउ दा0म न िज0म जब लयऊ। पु न नभ धनु मंड ल सम भयऊ॥3॥
भावाथ#:-मन ह. मन उ7ह=ने गु^ को णाम Bकया और बड़ी फुत‡ से धनष
ु को उठा 0लया। जब
उसे (हाथ म? ) 0लया, तब वह धनष
ु 8बजल. कM तरह चमका और Bफर आकाश म? मंड ल जैसा
(मंड लाकार) हो गया॥3॥

* लेत चढ़ावत खPचत गाढ़? । काहुँ न लखा दे ख सबु ठाढ़? ॥


तेह छन राम म~य धनु तोरा। भरे भव ु न ध ु न घोर कठोरा॥4॥
भावाथ#:-लेत,े चढ़ाते और जोर से खींचते हुए Bकसी ने नह.ं लखा (अथाOत ये तीन= काम इतनी
फुत‡ से हुए Bक धनुष को कब उठाया, कब चढ़ाया और कब खींचा, इसका Bकसी को पता नह.ं
लगा), सबने $ी रामजी को (धनष
ु खींच)े खड़े दे खा। उसी Wण $ी रामजी ने धनष
ु को बीच से
तोड़ डाला। भयंकर कठोर ~व न से (सब) लोक भर गए॥4॥

छ6द :
* भे भव
ु न घोर कठोर रव र8ब बािज तिज मारगु चले।
चiकरहं दdगज डोल मह अह कोल कू^म कलमले॥
सुर असुर म ु न कर कान द.7ह? सकल 8बकल 8बचारह.ं।
कोदं ड खंड उ
े राम तल
ु सी जय त बचन उचारह.ं॥
भावाथ#:-घोर, कठोर शXद से (सब) लोक भर गए, सूयO के घोड़े मागO छोड़कर चलने लगे।
दdगज चdघाड़ने लगे, धरती डोलने लगी, शेष, वाराह और कqछप कलमला उठे । दे वता, राWस
और मु न कान= पर हाथ रखकर सब cयाकुल होकर ,वचारने लगे। तुलसीदासजी कहते हP (जब
सब को न/चय हो गया Bक) $ी रामजी ने धनष
ु को तोड़ डाला, तब सब '$ी रामच7o कM
जय' बोलने लगे।

सोरठा :
* संकर चापु जहाजु साग^ रघुबर बाहुबलु।
बड़
ू सो सकल समाजु चढ़ा जो थमहं मोह बस॥261॥
भावाथ#:-0शवजी का धनुष जहाज है और $ी रामच7oजी कM भज
ु ाओं का बल समुo है । (धनुष
टूटने से) वह सारा समाज डू ब गया, जो मोहवश पहले इस जहाज पर चढ़ा था। (िजसका वणOन
ऊपर आया है।)॥261॥

चौपाई :
* भु दोउ चापखंड मह डारे । दे Rख लोग सब भए सुखारे ॥
कौ0सकfप पयो नध पावन। ेम बा!र अवगाहु सुहावन॥1॥
भावाथ#:- भु ने धनुष के दोन= टुकड़े प4ृ वी पर डाल दए। यह दे खकर सब लोग सख ु ी हुए।
,व/वा0म- fपी प,व- समo ु म? , िजसम? ेम fपी सद ुं र अथाह जल भरा है ,॥1॥

* रामfप राकेसु नहार.। बढ़त बीच पुलकाव0ल भार.॥


बाजे नभ गहगहे नसाना। दे वबधू नाचहं क!र गाना॥2॥
भावाथ#:-राम fपी पण
ू Oच7o को दे खकर पल
ु कावल. fपी भार. लहर? बढ़ने लगीं। आकाश म? बड़े
जोर से नगाड़े बजने लगे और दे वांगनाएँ गान करके नाचने लगीं॥2॥

* CDमादक सुर 0सkध मुनीसा। भुह संसहं दे हं असीसा॥


ब!रसहं सुमन रं ग बहु माला। गावहं Bकंनर गीत रसाला॥3॥
भावाथ#:-CDमा आद दे वता, 0सkध और मुनी/वर लोग भु कM शंसा कर रहे हP और आशीवाOद
दे रहे हP। वे रं ग-8बरं गे फूल और मालाएँ बरसा रहे हP। Bक7नर लोग रसीले गीत गा रहे हP॥3॥

* रह. भव
ु न भ!र जय जय बानी। धनष
ु भंग ध ु नजात न जानी॥
मुदत कहहं जहँ तहँ नर नार.। भंजेउ राम संभध
ु नु भार.॥4॥
भावाथ#:-सारे CDमाxड म? जय-जयकार कM ~व न छा गई, िजसम? धनुष टूटने कM ~व न जान ह.
नह.ं पड़ती। जहाँ-तहाँ A-ी-प^
ु ष स7न होकर कह रहे हP Bक $ी रामच7oजी ने 0शवजी के भार.
धनुष को तोड़ डाला॥4॥

जयमाला पहनाना, परशरु ाम का आगमन व Dोध


दोहा :
* बंद. मागध सूतगन 8ब^द बदहं म तधीर।
करहं नछाव!र लोग सब हय गय धन म न चीर॥262॥
भावाथ#:-धीर बुkध वाले, भाट, मागध और सूत लोग ,व^दावल. (कM तO) का बखान कर रहे हP।
सब लोग घोड़े, हाथी, धन, मRण और वA- नछावर कर रहे हP॥262॥

चौपाई :
* झाँRझ मद
ृ ं ग संख सहनाई। भे!र ढोल दं द
ु भ
ु ी सह
ु ाई॥
बाजहं बहु बाजने सुहाए। जहँ तहँ जुब त7ह मंगल गाए॥1॥
भावाथ#:-झाँझ, मद
ृ ं ग, शंख, शहनाई, भेर., ढोल और सुहावने नगाड़े आद बहुत कार के संद
ु र
बाजे बज रहे हP। जहाँ-तहाँ युव तयाँ मंगल गीत गा रह. हP॥1॥

* सRख7ह सहत हरषी अ त रानी। सख


ू त धान परा जनु पानी॥
जनक लहे उ सुखु सोचु 8बहाई। तैरत थक? थाह जनु पाई॥2॥
भावाथ#:-सRखय= सहत रानी अNय7त ह,षOत हु}, मानो सूखते हुए धान पर पानी पड़ गया हो।
जनकजी ने सोच Nयाग कर सख ु ात Bकया। मानो तैरते-तैरते थके हुए प^
ु ष ने थाह पा ल.
हो॥2॥

* $ीहत भए भप
ू धनु टूटे । जैस? दवस द.प छ8ब छूटे ॥
सीय सुखह बर नअ केह भाँती। जनु चातकM पाइ जलु Aवाती॥3॥
भावाथ#:-धनुष टूट जाने पर राजा लोग ऐसे $ीह.न ( नAतेज) हो गए, जैसे दन म? द.पक कM
शोभा जाती रहती है । सीताजी का सुख Bकस कार वणOन Bकया जाए, जैसे चातकM Aवाती का
जल पा गई हो॥3॥

* रामह लखनु 8बलोकत कैस?। स0सह चकोर Bकसोरकु जैस॥


?
सतानंद तब आयसु द.7हा। सीताँ गमनु राम पहं कM7हा॥4॥
भावाथ#:-$ी रामजी को ल'मणजी Bकस कार दे ख रहे हP, जैसे च7oमा को चकोर का बqचा दे ख
रहा हो। तब शतानंदजी ने आgा द. और सीताजी ने $ी रामजी के पास गमन Bकया॥4॥

दोहा :
* संग सखीं सुंदर चतुर गावहं मंगलचार।
गवनी बाल मराल ग त सष
ु मा अंग अपार॥263॥
भावाथ#:-साथ म? संद
ु र चतरु सRखयाँ मंगलाचार के गीत गा रह. हP, सीताजी बालहं 0सनी कM चाल
से चल.ं। उनके अंग= म? अपार शोभा है॥263॥

चौपाई :
* सRख7ह म~य 0सय सोह त कैस?। छ8बगन म~य महाछ8ब जैस॥
?
कर सरोज जयमाल सह
ु ाई। 8बAव 8बजय सोभा जेहं छाई॥1॥
भावाथ#:-सRखय= के बीच म? सीताजी कैसी शो0भत हो रह. हP, जैसे बहुत सी छ,वय= के बीच म?
महाछ,व हो। करकमल म? सद ंु र जयमाला है, िजसम? ,व/व ,वजय कM शोभा छाई हुई है ॥1॥

* तन सकोचु मन परम उछाहू। गूढ़ म े ु लRख परइ न काहू॥


जाइ समीप राम छ8ब दे खी। रह जनु कुअँ!र च- अवरे खी॥2॥
भावाथ#:-सीताजी के शर.र म? संकोच है , पर मन म? परम उNसाह है । उनका यह गुत ेम Bकसी
को जान नह.ं पड़ रहा है । समीप जाकर, $ी रामजी कM शोभा दे खकर राजकुमार. सीताजी जैसे
च- म? 0लखी सी रह ग}॥2॥

* चतुर सखीं लRख कहा बुझाई। पहरावहु जयमाल सुहाई॥


सुनत जुगल कर माल उठाई। ेम 8बबस पहराइ न जाई॥3॥
भावाथ#:-चतरु सखी ने यह दशा दे खकर समझाकर कहा- सुहावनी जयमाला पहनाओ। यह
सुनकर सीताजी ने दोन= हाथ= से माला उठाई, पर ेम म? ,ववश होने से पहनाई नह.ं जाती॥3॥
* सोहत जनु जुग जलज सनाला। स0सह सभीत दे त जयमाला॥
गावहं छ8ब अवलोBक सहे ल.। 0सयँ जयमाल राम उर मेल.॥4॥
भावाथ#:-(उस समय उनके हाथ ऐसे सुशो0भत हो रहे हP) मानो डंƒडय= सहत दो कमल च7oमा
को डरते हुए जयमाला दे रहे ह=। इस छ,व को दे खकर सRखयाँ गाने लगीं। तब सीताजी ने $ी
रामजी के गले म? जयमाला पहना द.॥4॥

सोरठा :
* रघब
ु र उर जयमाल दे Rख दे व ब!रसहं सुमन।
सकुचे सकल भआ
ु ल जनु 8बलोBक र8ब कुमुदगन॥264॥
भावाथ#:-$ी रघुनाथजी के sदय पर जयमाला दे खकर दे वता फूल बरसाने लगे। समAत राजागण
इस कार सकुचा गए मानो सूयO को दे खकर कुमद
ु = का समूह 0सकुड़ गया हो॥264॥

चौपाई :
* परु अ^ Xयोम बाजने बाजे। खल भए म0लन साधु सब राजे॥
सुर Bकंनर नर नाग मन
ु ीसा। जय जय जय कह दे हं असीसा॥1॥
भावाथ#:-नगर और आकाश म? बाजे बजने लगे। द[ु ट लोग उदास हो गए और स_जन लोग सब
स7न हो गए। दे वता, Bक7नर, मन[ु य, नाग और मुनी/वर जय-जयकार करके आशीवाOद दे रहे
हP॥1॥

* नाचहं गावहं 8बबध


ु बधट
ू .ं। बार बार कुसुमांज0ल छूट.ं॥
जहँ तहँ 8ब बेदध ु न करह.ं। बंद. 8ब!रदाव0ल उqचरह.ं॥2॥
भावाथ#:-दे वताओं कM िA-याँ नाचती-गाती हP। बार-बार हाथ= से पु[प= कM अंज0लयाँ छूट रह. हP।
जहाँ-तहाँ CDम वेद~व न कर रहे हP और भाट लोग ,व^दावल. (कुलकM तO) बखान रहे हP॥2॥

* महं पाताल नाक जसु Xयापा। राम बर. 0सय भंजेउ चापा॥
करहं आरती परु नर नार.। दे हं नछाव!र 8बT 8बसार.॥3॥
भावाथ#:-प4
ृ वी, पाताल और AवगO तीन= लोक= म? यश फैल गया Bक $ी रामच7oजी ने धनष

तोड़ दया और सीताजी को वरण कर 0लया। नगर के नर-नार. आरती कर रहे हP और अपनी
पँज
ू ी (है 0सयत) को भल
ु ाकर (साम4यO से बहुत अधक) नछावर कर रहे हP॥3॥

* सोह त सीय राम कै जोर.। छ8ब 0संगा^ मनहुँ एक ठोर.॥


सखीं कहहं भु पद गहु सीता। कर त न चरन परस अ त भीता॥4॥
भावाथ#:-$ी सीता-रामजी कM जोड़ी ऐसी सुशो0भत हो रह. है मानो सद
ुं रता और $ंग
ृ ार रस एक-
हो गए ह=। सRखयाँ कह रह. हP- सीते! Aवामी के चरण छुओ, Bक7तु सीताजी अNय7त भयभीत
हुई उनके चरण नह.ं छूतीं॥4॥

दोहा :
* गौतम तय ग त सरु त क!र नहं परस त पग पा न।
मन 8बहसे रघुबस
ं म न ी त अलौBकक जा न॥265॥
भावाथ#:-गौतमजी कM A-ी अहZया कM ग त का Aमरण करके सीताजी $ी रामजी के चरण= को
हाथ= से AपशO नह.ं कर रह. हP। सीताजी कM अलौBकक ी त जानकर रघक
ु ु ल मRण $ी
रामच7oजी मन म? हँसे॥265॥

चौपाई :
* तब 0सय दे Rख भप
ू अ0भलाषे। कूर कपूत मढ़
ू मन माखे॥
उठ उठ पह!र सनाह अभागे। जहँ तहँ गाल बजावन लागे॥1॥
भावाथ#:-उस समय सीताजी को दे खकर कुछ राजा लोग ललचा उठे । वे द[ु ट, कुपूत और मढ़

राजा मन म? बहुत तमतमाए। वे अभागे उठ-उठकर, कवच पहनकर, जहाँ-तहाँ गाल बजाने
लगे॥1॥

* लेहु छड़ाइ सीय कह कोऊ। ध!र बाँधहु नपृ बालक दोऊ॥


तोर? धनुषु चाड़ नहं सरई। जीवत हमह कुअँ!र को बरई॥2॥
भावाथ#:-कोई कहते हP, सीता को छvन लो और दोन= राजकुमार= को पकड़कर बाँध लो। धनुष
तोड़ने से ह. चाह नह.ं सरे गी (परू . होगी)। हमारे जीते-जी राजकुमार. को कौन Xयाह सकता
है ?॥2॥

* जV 8बदे हु कछु करै सहाई। जीतहु समर सहत दोउ भाई॥


साधु भप
ू बोले स ु न बानी। राजसमाजह लाज लजानी॥3॥
भावाथ#:-यद जनक कुछ सहायता कर? , तो युkध म? दोन= भाइय= सहत उसे भी जीत लो। ये
वचन सुनकर साधु राजा बोले- इस ( नलO_ज) राज समाज को दे खकर तो लाज भी लजा
गई॥3॥

* बलु तापु बीरता बड़ाई। नाक ,पनाकह संग 0सधाई॥


सोइ सरू ता Bक अब कहुँ पाई। अ0स बुध तौ 8बध मुँह म0स लाई॥4॥
भावाथ#:-अरे ! तुJहारा बल, ताप, वीरता, बड़ाई और नाक ( त[ठा) तो धनष
ु के साथ ह. चल.
गई। वह. वीरता थी Bक अब कह.ं से 0मल. है? ऐसी द[ु ट बk
ु ध है , तभी तो ,वधाता ने तुJहारे
मुख= पर का0लख लगा द.॥4॥

दोहा :
* दे खहु रामह नयन भ!र तिज इ!रषा मद ु कोहु।।
लखन रोषु पावकु बल जा न सलभ ज न होहु॥266॥
भावाथ#:-ईषाO, घमंड और €ोध छोड़कर ने- भरकर $ी रामजी (कM छ8ब) को दे ख लो। ल'मण
के €ोध को बल अिdन जानकर उसम? पतंगे मत बनो॥266॥

चौपाई :
*बैनतेय ब0ल िज0म चह कागू। िज0म ससु चहै नाग अ!र भागू॥
िज0म चह कुसल अकारन कोह.। सब संपदा चहै 0सवoोह.॥1॥
भावाथ#:-जैसे ग^ड़ का भाग कौआ चाहे, 0संह का भाग खरगोश चाहे , 8बना कारण ह. €ोध करने
वाला अपनी कुशल चाहे , 0शवजी से ,वरोध करने वाला सब कार कM सJप,T चाहे,॥1॥

* लोभी लोलुप कल कMर त चहई। अकलंकता Bक कामी लहई॥


ह!र पद 8बमख
ु परम ग त चाहा। तस तुJहार लालचु नरनाहा॥2॥
भावाथ#:-लोभी-लालची सद
ुं र कM तO चाहे, कामी मनु[य न[कलंकता (चाहे तो) iया पा सकता है?
और जैसे $ी ह!र के चरण= से ,वमुख मनु[य परमग त (मोW) चाहे , हे राजाओं! सीता के 0लए
तुJहारा लालच भी वैसा ह. cयथO है ॥2॥

* कोलाहलु सु न सीय सकानी। सखीं लवाइ ग} जहँ रानी॥


रामु सुभायँ चले गु^ पाह.ं। 0सय सनेहु बरनत मन माह.ं॥3॥
भावाथ#:-कोलाहल सुनकर सीताजी शंBकत हो ग}। तब सRखयाँ उ7ह? वहाँ ले ग}, जहाँ रानी
(सीताजी कM माता) थीं। $ी रामच7oजी मन म? सीताजी के ेम का बखान करते हुए
Aवाभा,वक चाल से ग^
ु जी के पास चले॥3॥

*रा न7ह सहत सोच बस सीया। अब धV 8बधह काह करनीया॥


भूप बचन सु न इत उत तकह.ं। लखनु राम डर बो0ल न सकह.ं॥4॥
भावाथ#:-रा नय= सहत सीताजी (द[ु ट राजाओं के दव
ु च
O न सुनकर) सोच के वश हP Bक न जाने
,वधाता अब iया करने वाले हP। राजाओं के वचन सन
ु कर ल'मणजी इधर-उधर ताकते हP,
Bक7तु $ी रामच7oजी के डर से कुछ बोल नह.ं सकते॥4॥

दोहा :
* अ^न नयन भक
ृ ु ट. कुटल चतवत नप
ृ 7ह सकोप।
मनहुँ मT गजगन नरRख 0संघBकसोरह चोप॥267॥
भावाथ#:- उनके ने- लाल और भVह? टे ढ़. हो ग} और वे €ोध से राजाओं कM ओर दे खने लगे,
मानो मतवाले हाथय= का झंडु दे खकर 0संह के बqचे को जोश आ गया हो॥267॥

चौपाई :
* खरभ^ दे Rख 8बकल परु नार.ं। सब 0म0ल दे हं मह.प7ह गार.ं॥
तेहं अवसर सु न 0सवधनु भंगा। आयउ भग
ृ क
ु ु ल कमल पतंगा॥1॥
भावाथ#:-खलबल. दे खकर जनकपरु . कM िA-याँ cयाकुल हो ग} और सब 0मलकर राजाओं को
गा0लयाँ दे ने लगीं। उसी मौके पर 0शवजी के धनष
ु का टूटना सन
ु कर भग
ृ क
ु ु ल fपी कमल के
सय
ू O परशरु ामजी आए॥1॥

* दे Rख मह.प सकल सकुचाने। बाज झपट जनु लवा लक


ु ाने॥
गौ!र सर.र भ ू त भल tाजा। भाल 8बसाल 8-पडंु 8बराजा॥2॥
भावाथ#:-इ7ह? दे खकर सब राजा सकुचा गए, मानो बाज के झपटने पर बटे र लुक ( छप) गए ह=।
गोरे शर.र पर ,वभ ू त (भAम) बड़ी फब रह. है और ,वशाल ललाट पर 8-पx
ु ˆ ,वशेष शोभा दे
रहा है॥2॥

* सीस जटा स0सबदनु सह


ु ावा। !रस बस कछुक अ^न होइ आवा॥
भक
ृ ु ट. कुटल नयन !रस राते। सहजहुँ चतवत मनहुँ !रसाते॥3॥
भावाथ#:-0सर पर जटा है, संद
ु र मख
ु च7o €ोध के कारण कुछ लाल हो आया है । भVह? टे ढ़. और
आँख? €ोध से लाल हP। सहज ह. दे खते हP, तो भी ऐसा जान पड़ता है मानो €ोध कर रहे
हP॥3॥

* बष
ृ भ कंध उर बाहु 8बसाला। चा^ जनेउ माल मग ृ छाला॥
कट मु नबसन तनू दइ ु बाँध?। धनु सर कर कुठा^ कल काँध?॥4॥
भावाथ#:-बैल के समान (ऊँचे और पु[ट) कंधे हP, छाती और भुजाएँ ,वशाल हP। सुंदर यgोपवीत
धारण Bकए, माला पहने और मग
ृ चमO 0लए हP। कमर म? म ु नय= का वA- (वZकल) और दो
तरकस बाँधे हP। हाथ म? धनुष-बाण और सद
ंु र कंधे पर फरसा धारण Bकए हP॥4॥

दोहा :
* सांत बेषु करनी कठन बर न न जाइ सfप।
ध!र मु नतनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब भूप॥268॥
भावाथ#:-शांत वेष है , पर7तु करनी बहुत कठोर हP, Aवfप का वणOन नह.ं Bकया जा सकता। मानो
वीर रस ह. म ु न का शर.र धारण करके, जहाँ सब राजा लोग हP, वहाँ आ गया हो॥268॥

चौपाई :
* दे खत भग
ृ प
ु त बेषु कराला। उठे सकल भय 8बकल भुआला॥
,पतु समेत कह कह नज नामा। लगे करन सब दं ड नामा॥1॥
भावाथ#:-परशरु ामजी का भयानक वेष दे खकर सब राजा भय से cयाकुल हो उठ खड़े हुए और
,पता सहत अपना नाम कह-कहकर सब दं ड वत णाम करने लगे॥1॥

* जेह सुभायँ चतवहं हतु जानी। सो जानइ जनु आइ खट


ु ानी॥
जनक बहो!र आइ 0स^ नावा। सीय बोलाइ नामु करावा॥2॥
भावाथ#:-परशरु ामजी हत समझकर भी सहज ह. िजसकM ओर दे ख लेते हP, वह समझता है मानो
मेर. आयु परू . हो गई। Bफर जनकजी ने आकर 0सर नवाया और सीताजी को बुलाकर णाम
कराया॥2॥

* आ0सष द.ि7ह सखीं हरषानीं। नज समाज लै ग} सयानीं॥


8बAवा0म-ु 0मले प ु न आई। पद सरोज मेले दोउ भाई॥3॥
भावाथ#:-परशरु ामजी ने सीताजी को आशीवाOद दया। सRखयाँ ह,षOत हु} और (वहाँ अब अधक
दे र ठहरना ठvक न समझकर) वे सयानी सRखयाँ उनको अपनी मंड ल. म? ले ग}। Bफर
,व/वा0म-जी आकर 0मले और उ7ह=ने दोन= भाइय= को उनके चरण कमल= पर गराया॥3॥
* रामु लखनु दसरथ के ढोटा। द.ि7ह असीस दे Rख भल जोटा॥
रामह चतइ रहे थBक लोचन। fप अपार मार मद मोचन॥4॥
भावाथ#:-(,व/वा0म-जी ने कहा-) ये राम और ल'मण राजा दशरथ के प-
ु हP। उनकM संद
ु र जोड़ी
दे खकर परशरु ामजी ने आशीवाOद दया। कामदे व के भी मद को छुड़ाने वाले $ी रामच7oजी के
अपार fप को दे खकर उनके ने- थBकत (AतिJभत) हो रहे॥4॥

दोहा :
* बहु!र 8बलोBक 8बदे ह सन कहहु काह अ त भीर।
पँछ
ू त जा न अजान िज0म Xयापेउ कोपु सर.र॥269॥
भावाथ#:-Bफर सब दे खकर, जानते हुए भी अनजान कM तरह जनकजी से पछ
ू ते हP Bक कहो, यह
बड़ी भार. भीड़ कैसी है? उनके शर.र म? €ोध छा गया॥269॥

चौपाई :
* समाचार कह जनक सन
ु ाए। जेह कारन मह.प सब आए॥
सुनत बचन Bफ!र अनत नहारे । दे खे चापखंड मह डारे ॥1॥
भावाथ#:-िजस कारण सब राजा आए थे, राजा जनक ने वे सब समाचार कह सुनाए। जनक के
वचन सुनकर परशरु ामजी ने Bफरकर दस
ू र. ओर दे खा तो धनष
ु के टुकड़े प4ृ वी पर पड़े हुए
दखाई दए॥1॥

* अ त !रस बोले बचन कठोरा। कहु जड़ जनक धनष ु कै तोरा॥


बेग दे खाउ मूढ़ न त आजू। उलटउँ मह जहँ लह तव राज॥
ू 2॥
भावाथ#:-अNय7त €ोध म? भरकर वे कठोर वचन बोले- रे मूखO जनक! बता, धनुष Bकसने तोड़ा?
उसे शीH दखा, नह.ं तो अरे मढ़
ू ! आज मP जहाँ तक तेरा रा_य है, वहाँ तक कM प4
ृ वी उलट
दँ ग
ू ा॥2॥

* अ त ड^ उत^ दे त नप
ृ ु नाह.ं। कुटल भूप हरषे मन माह.ं॥
सरु म ु न नाग नगर नर नार.। सोचहं सकल -ास उर भार.॥3॥
भावाथ#:-राजा को अNय7त डर लगा, िजसके कारण वे उTर नह.ं दे ते। यह दे खकर कुटल राजा
मन म? बड़े स7न हुए। दे वता, मु न, नाग और नगर के A-ी-प^
ु ष सभी सोच करने लगे, सबके
sदय म? बड़ा भय है ॥3॥

*मन प छता त सीय महतार.। 8बध अब सँवर. बात 8बगार.॥


भग
ृ प
ु त कर सुभाउ स ु न सीता। अरध नमेष कलप सम बीता॥4॥
भावाथ#:-सीताजी कM माता मन म? पछता रह. हP Bक हाय! ,वधाता ने अब बनी-बनाई बात
8बगाड़ द.। परशरु ामजी का Aवभाव सुनकर सीताजी को आधा Wण भी कZप के समान बीतते
लगा॥4॥

दोहा :
* सभय 8बलोके लोग सब जा न जानकM भी^।
sदयँ न हरषु 8बषाद ु कछु बोले $ीरघब
ु ी^॥270॥
भावाथ#:-तब $ी रामच7oजी सब लोग= को भयभीत दे खकर और सीताजी को डर. हुई जानकर
बोले- उनके sदय म? न कुछ हषO था न ,वषाद-॥270॥

मासपारायण नौवाँ वाम

ी राम-ल मण और परशुराम-संवाद
चौपाई :
* नाथ संभध
ु नु भंज नहारा। होइह केउ एक दास तुJहारा॥
आयसु काह कहअ Bकन मोह.। सु न !रसाइ बोले मु न कोह.॥1॥
भावाथ#:-हे नाथ! 0शवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई एक दास ह. होगा। iया आgा
है , मझ
ु से iय= नह.ं कहते? यह सन
ु कर €ोधी म ु न !रसाकर बोले-॥1॥

* सेवकु सो जो करै सेवकाई। अ!र करनी क!र क!रअ लराई॥


सुनहु राम जेहं 0सवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो !रपु मोरा॥2॥
भावाथ#:-सेवक वह है जो सेवा का काम करे । श-ु का काम करके तो लड़ाई ह. करनी चाहए। हे
राम! सुनो, िजसने 0शवजी के धनुष को तोड़ा है , वह सह‰बाहु के समान मेरा श-ु है ॥2॥

* सो 8बलगाउ 8बहाइ समाजा। न त मारे जैहहं सब राजा॥


सु न म ु न बचन लखन मुसक
ु ाने। बोले परसुधरह अपमाने॥3॥
भावाथ#:-वह इस समाज को छोड़कर अलग हो जाए, नह.ं तो सभी राजा मारे जाएँगे। म ु न के
वचन सुनकर ल'मणजी मA
ु कुराए और परशरु ामजी का अपमान करते हुए बोले-॥3॥

* बहु धनुह.ं तोर.ं ल!रका}। कबहुँ न अ0स !रस कMि7ह गोसा}॥


एह धनु पर ममता केह हे तू। स ु न !रसाइ कह भग
ृ क
ु ु लकेत॥
ू 4॥
भावाथ#:-हे गोसा}! लड़कपन म? हमने बहुत सी धनुहयाँ तोड़ डाल.ं, Bक7तु आपने ऐसा €ोध
कभी नह.ं Bकया। इसी धनुष पर इतनी ममता Bकस कारण से है ? यह सन ु कर भग
ृ ुवश
ं कM
~वजा Aवfप परशरु ामजी कु,पत होकर कहने लगे॥4॥

दोहा :
* रे नप
ृ बालक काल बस बोलत तोह न सँभार।
धनुह. सम तपरु ा!र धनु 8बदत सकल संसार॥271॥
भावाथ#:-अरे राजपु-! काल के वश होने से तुझे बोलने म? कुछ भी होश नह.ं है। सारे संसार म?
,वŠयात 0शवजी का यह धनुष iया धनुह. के समान है ?॥271॥

चौपाई :
* लखन कहा हँ0स हमर? जाना। सन
ु हु दे व सब धनुष समाना॥
का छ त लाभु जून धनु तोर? । दे खा राम नयन के भोर? ॥1॥
भावाथ#:-ल'मणजी ने हँसकर कहा- हे दे व! सु नए, हमारे जान म? तो सभी धनुष एक से ह. हP।
परु ाने धनष
ु के तोड़ने म? iया हा न-लाभ! $ी रामच7oजी ने तो इसे नवीन के धोखे से दे खा
था॥1॥

* छुअत टूट रघप


ु तहु न दोसू। म ु न 8बनु काज क!रअ कत रोस॥

बोले चतइ परसु कM ओरा। रे सठ सन
ु ेह सुभाउ न मोरा॥2॥
भावाथ#:-Bफर यह तो छूते ह. टूट गया, इसम? रघुनाथजी का भी कोई दोष नह.ं है । म ु न! आप
8बना ह. कारण Bकस0लए €ोध करते हP? परशरु ामजी अपने फरसे कM ओर दे खकर बोले- अरे
द[ु ट! तूने मेरा Aवभाव नह.ं सन
ु ा॥2॥

* बालकु बो0ल बधउँ नहं तोह.। केवल मु न जड़ जानह मोह.॥


बाल CDमचार. अ त कोह.। 8बAव 8बदत छ8-यकुल oोह.॥3॥
भावाथ#:-मP तुझे बालक जानकर नह.ं मारता हूँ। अरे मख
ू !O iया तू मझ
ु े नरा म ु न ह. जानता है।
मP बालCDमचार. और अNय7त €ोधी हूँ। W8-यकुल का श-ु तो ,व/वभर म? ,वŠयात हूँ॥3॥

* भुजबल भू0म भूप 8बनु कM7ह.। 8बपल


ु बार महदे व7ह द.7ह.॥
सहसबाहु भजु छे द नहारा। परसु 8बलोकु मह.पकुमारा॥4॥
भावाथ#:-अपनी भजु ाओं के बल से मPने प4
ृ वी को राजाओं से रहत कर दया और बहुत बार उसे
CाDमण= को दे डाला। हे राजकुमार! सह‰बाहु कM भज ु ाओं को काटने वाले मेरे इस फरसे को
दे ख!॥4॥

दोहा :
* मातु ,पतह ज न सोचबस कर0स मह.सBकसोर।
गभO7ह के अभOक दलन परसु मोर अ त घोर॥272॥
भावाथ#:-अरे राजा के बालक! तू अपने माता-,पता को सोच के वश न कर। मेरा फरसा बड़ा
भयानक है, यह गभ‹ के बqच= का भी नाश करने वाला है ॥272॥

चौपाई :
*8बह0स लखनु बोले मद
ृ ु बानी। अहो मुनीसु महा भटमानी॥
प ु न पु न मोह दे खाव कुठाf। चहत उड़ावन फँू Bक पहाf॥1॥
भावाथ#:-ल'मणजी हँसकर कोमल वाणी से बोले- अहो, मुनी/वर तो अपने को बड़ा भार. योkधा
समझते हP। बार-बार मुझे कुZहाड़ी दखाते हP। फँू क से पहाड़ उड़ाना चाहते हP॥1॥

* इहाँ कुJहड़ब तया कोउ नाह.ं। जे तरजनी दे Rख म!र जाह.ं॥


दे Rख कुठा^ सरासन बाना। मP कछु कहा सहत अ0भमाना॥2॥
भावाथ#:-यहाँ कोई कुJहड़े कM ब तया (छोटा कqचा फल) नह.ं है , जो तजOनी (सबसे आगे कM)
अँगुल. को दे खते ह. मर जाती हP। कुठार और धनष
ु -बाण दे खकर ह. मPने कुछ अ0भमान सहत
कहा था॥2॥

*भगृ स
ु ुत समRु झ जनेउ 8बलोकM। जो कछु कहहु सहउँ !रस रोकM॥
सुर महसुर ह!रजन अ^ गाई। हमर? कुल इ7ह पर न सरु ाई॥3॥
भावाथ#:-भग
ृ व
ु ंशी समझकर और यgोपवीत दे खकर तो जो कुछ आप कहते हP, उसे मP €ोध को
रोककर सह लेता हूँ। दे वता, CाDमण, भगवान के भiत और गो- इन पर हमारे कुल म? वीरता
नह.ं दखाई जाती॥3॥

* बध? पापु अपकMर त हार? । मारतहूँ पा प!रअ तुJहार? ॥


कोट कु0लस सम बचनु तुJहारा। XयथO धरहु धनु बान कुठारा॥4॥
भावाथ#:-iय=Bक इ7ह? मारने से पाप लगता है और इनसे हार जाने पर अपकM तO होती है,
इस0लए आप मार? तो भी आपके पैर ह. पड़ना चाहए। आपका एक-एक वचन ह. करोड़= वl=
के समान है । धनष
ु -बाण और कुठार तो आप cयथO ह. धारण करते हP॥4॥

दोहा :
* जो 8बलोBक अनु चत कहेउँ छमहु महाम ु न धीर।
सु न सरोष भग
ृ ुबस
ं म न बोले गरा गभीर॥273॥
भावाथ#:-इ7ह? (धनुष-बाण और कुठार को) दे खकर मPने कुछ अनुचत कहा हो, तो उसे हे धीर
महाम ु न! Wमा कMिजए। यह सुनकर भग
ृ व
ु ंशमRण परशुरामजी €ोध के साथ गंभीर वाणी बोले-
॥273॥

चौपाई :
* कौ0सक सन ु हु मंद यहु बालकु। कुटल कालबस नज कुल घालकु॥
भानु बंस राकेस कलंकू। नपट नरं कुस अबुध असंकू॥1॥
भावाथ#:-हे ,व/वा0म-! सन
ु ो, यह बालक बड़ा कुबुkध और कुटल है , काल के वश होकर यह
अपने कुल का घातक बन रहा है । यह सूयOवश
ं fपी पण
ू O च7o का कलंक है । यह 8बZकुल
उkदxड, मख
ू O और नडर है॥1॥

* काल कवलु होइह छन माह.ं। कहउँ पक


ु ा!र खो!र मोह नाह.ं॥
तुJह हटकहु जV चहहु उबारा। कह तापु बलु रोषु हमारा॥2॥
भावाथ#:-अभी Wण भर म? यह काल का wास हो जाएगा। मP पक ु ारकर कहे दे ता हूँ, Bफर मझ
ु े
दोष नह.ं है । यद तुम इसे बचाना चाहते हो, तो हमारा ताप, बल और €ोध बतलाकर इसे
मना कर दो॥2॥

* लखन कहे उ मु न सज
ु सु तुJहारा। तुJहह अछत को बरनै पारा॥
अपने मँहु तुJह आप न करनी। बार अनेक भाँ त बहु बरनी॥3॥
भावाथ#:-ल'मणजी ने कहा- हे म ु न! आपका सय
ु श आपके रहते दस
ू रा कौन वणOन कर सकता
है ? आपने अपने ह. मँह
ु से अपनी करनी अनेक= बार बहुत कार से वणOन कM है ॥3॥
* नहं संतोषु त पु न कछु कहहू। ज न !रस रोBक दस
ु ह दख
ु सहहू॥
बीरCती तुJह धीर अछोभा। गार. दे त न पावहु सोभा॥4॥
भावाथ#:-इतने पर भी संतोष न हुआ हो तो Bफर कुछ कह डा0लए। €ोध रोककर असDय दःु ख
मत सहए। आप वीरता का Œत धारण करने वाले, धैयव O ान और Wोभरहत हP। गाल. दे ते शोभा
नह.ं पाते॥4॥

दोहा :
* सूर समर करनी करहं कह न जनावहं आप।ु
8बkयमान रन पाइ !रपु कायर कथहं ताप॥
ु 274॥
भावाथ#:-शरू वीर तो यk
ु ध म? करनी (शरू वीरता का कायO) करते हP, कहकर अपने को नह.ं जनाते।
श-ु को युkध म? उपिAथत पाकर कायर ह. अपने ताप कM डींग मारा करते हP॥274॥

चौपाई :
* तुJह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोह लाग बोलावा॥
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सध
ु ा!र धरे उ कर घोरा॥1॥
भावाथ#:-आप तो मानो काल को हाँक लगाकर बार-बार उसे मेरे 0लए बुलाते हP। ल'मणजी के
कठोर वचन सुनते ह. परशरु ामजी ने अपने भयानक फरसे को सुधारकर हाथ म? ले 0लया॥1॥

* अब ज न दे इ दोसु मोह लोगू। कटुबाद. बालकु बधजोगू॥


बाल 8बलोBक बहुत मP बाँचा। अब यहु मर नहार भा साँचा॥2॥
भावाथ#:- (और बोले-) अब लोग मुझे दोष न द? । यह कडु आ बोलने वाला बालक मारे जाने के
ह. योdय है। इसे बालक दे खकर मPने बहुत बचाया, पर अब यह सचमुच मरने को ह. आ गया
है ॥2॥

* कौ0सक कहा छ0मअ अपराध।ू बाल दोष गन


ु गनहं न साधू॥
खर कुठार मP अक^न कोह.। आग? अपराधी गु^oोह.॥3॥
भावाथ#:-,व/वा0म-जी ने कहा- अपराध Wमा कMिजए। बालक= के दोष और गण
ु को साधु लोग
नह.ं गनते। (परशरु ामजी बोले-) तीखी धार का कुठार, मP दयारहत और €ोधी और यह
गु^oोह. और अपराधी मेरे सामने-॥3॥

* उतर दे त छोड़उँ 8बनु मार? । केवल कौ0सक सील तुJहार? ॥


न त एह काट कुठार कठोर? । गुरह उ!रन होतेउँ $म थोर? ॥4॥
भावाथ#:-उTर दे रहा है । इतने पर भी मP इसे 8बना मारे छोड़ रहा हूँ, सो हे ,व/वा0म-! केवल
तुJहारे शील ( ेम) से। नह.ं तो इसे इस कठोर कुठार से काटकर थोड़े ह. प!र$म से ग^
ु से
उऋण हो जाता॥4॥

दोहा :
* गाधसूनु कह sदयँ हँ 0स मु नह ह!रअरइ सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबझ
ू ॥275॥
भावाथ#:-,व/वा0म-जी ने sदय म? हँ सकर कहा- मु न को हरा ह. हरा सूझ रहा है (अथाOत सवO-
,वजयी होने के कारण ये $ी राम-ल'मण को भी साधारण W8-य ह. समझ रहे हP), Bक7तु यह
लोहमयी (केवल फौलाद कM बनी हुई) खाँड़ (खाँड़ा-ख…ग) है, ऊख कM (रस कM) खाँड़ नह.ं है (जो
मँुह म? लेते ह. गल जाए। खेद है ,) मु न अब भी बेसमझ बने हुए हP, इनके भाव को नह.ं
समझ रहे हP॥275॥

चौपाई :
* कहेउ लखन मु न सीलु तुJहारा। को नहं जान 8बदत संसारा॥
माता ,पतह उ!रन भए नीक?। गरु !रनु रहा सोचु बड़ जीक?॥1॥
भावाथ#:- ल'मणजी ने कहा- हे मु न! आपके शील को कौन नह.ं जानता? वह संसार भर म?
0सkध है । आप माता-,पता से तो अqछv तरह उऋण हो ह. गए, अब ग^
ु का ऋण रहा,
िजसका जी म? बड़ा सोच लगा है॥1॥

* सो जनु हमरे ह माथे काढ़ा। दन च0ल गए Xयाज बड़ बाढ़ा॥


अब आ नअ Xयवह!रआ बोल.। तुरत दे उँ मP थैल. खोल.॥2॥
भावाथ#:-वह मानो हमारे ह. मNथे काढ़ा था। बहुत दन बीत गए, इससे Xयाज भी बहुत बढ़
गया होगा। अब Bकसी हसाब करने वाले को बल ु ा लाइए, तो मP तरु ं त थैल. खोलकर दे दँ ॥
ू 2॥

*स ु न कटु बचन कुठार सध


ु ारा। हाय हाय सब सभा पक
ु ारा॥
भग
ृ ब
ु र परसु दे खावहु मोह.। 8ब 8बचा!र बचउँ नप
ृ दोह.॥3॥
भावाथ#:-ल'मणजी के कडु ए वचन सुनकर परशरु ामजी ने कुठार सJहाला। सार. सभा हाय-हाय!
करके पक
ु ार उठv। (ल'मणजी ने कहा-) हे भग
ृ ु$े[ठ! आप मुझे फरसा दखा रहे हP? पर हे
राजाओं के श-!ु मP CाDमण समझकर बचा रहा हूँ (तरह दे रहा हूँ)॥3॥

* 0मले न कबहुँ सभ
ु ट रन गाढ़े । k,वज दे वता घरह के बाढ़े़ ॥
अनु चत कह सब लोग पक
ु ारे । रघप
ु त सयनहं लखनु नेवारे ॥4॥
भावाथ#:-आपको कभी रणधीर बलवान ् वीर नह.ं 0मले हP। हे CाDमण दे वता ! आप घर ह. म? बड़े
हP। यह सुनकर 'अनुचत है , अनुचत है ' कहकर सब लोग पक
ु ार उठे । तब $ी रघुनाथजी ने
इशारे से ल'मणजी को रोक दया॥4॥

दोहा :
* लखन उतर आहु त स!रस भगृ ुबर कोपु कृसानु।
बढ़त दे Rख जल सम बचन बोले रघकु ु लभान॥
ु 276॥
भावाथ#:-ल'मणजी के उTर से, जो आहु त के समान थे, परशरु ामजी के €ोध fपी अिdन को
बढ़ते दे खकर रघुकुल के सूयO $ी रामचंoजी जल के समान (शांत करने वाले) वचन बोले-
॥276॥
चौपाई :
*नाथ करहु बालक पर छोहु। सूध दध
ू मुख क!रअ न कोहू॥
जV पै भु भाउ कछु जाना। तौ Bक बराब!र करत अयाना॥1॥
भावाथ#:-हे नाथ ! बालक पर कृपा कMिजए। इस सीधे और दध
ू मँुहे बqचे पर €ोध न कMिजए।
यद यह भु का (आपका) कुछ भी भाव जानता, तो iया यह बेसमझ आपकM बराबर. करता
?॥1॥

* जV ल!रका कछु अचग!र करह.ं। गुर ,पतु मातु मोद मन भरह.ं॥


क!रअ कृपा 0ससु सेवक जानी। तुJह सम सील धीर म ु न dयानी॥2॥
भावाथ#:-बालक यद कुछ चपलता भी करते हP, तो ग^
ु , ,पता और माता मन म? आनंद से भर
जाते हP। अतः इसे छोटा बqचा और सेवक जानकर कृपा कMिजए। आप तो समदश‡, सुशील,
धीर और gानी मु न हP॥2॥

* राम बचन सु न कछुक जुड़ाने। कह कछु लखनु बहु!र मुसुकाने॥


हँसत दे Rख नख 0सख !रस Xयापी। राम तोर tाता बड़ पापी॥3॥
भावाथ#:-$ी रामचंoजी के वचन सन
ु कर वे कुछ ठं डे पड़े। इतने म? ल'मणजी कुछ कहकर Bफर
मA
ु कुरा दए। उनको हँसते दे खकर परशरु ामजी के नख से 0शखा तक (सारे शर.र म?) €ोध छा
गया। उ7ह=ने कहा- हे राम! तेरा भाई बड़ा पापी है ॥3॥

* गौर सर.र Aयाम मन माह.ं। कालकूट मख


ु पयमख
ु नाह.ं॥
सहज टे ढ़ अनुहरइ न तोह.। नीचु मीचु सम दे ख न मोह.॥4॥
भावाथ#:-यह शर.र से गोरा, पर sदय का बड़ा काला है । यह ,वषमुख है , दध
ू मँुहा नह.ं। Aवभाव
ह. टे ढ़ा है , तेरा अनुसरण नह.ं करता (तेरे जैसा शीलवान नह.ं है )। यह नीच मुझे काल के
समान नह.ं दे खता॥4॥

दोहा :
* लखन कहे उ हँ0स सन
ु हु म ु न €ोधु पाप कर मल
ू ।
जेह बस जन अनुचत करहं चरहं 8बAव तकूल॥277॥
भावाथ#:-ल'मणजी ने हँसकर कहा- हे म ु न! सु नए, €ोध पाप का मल
ू है, िजसके वश म? होकर
मनु[य अनुचत कमO कर बैठते हP और ,व/वभर के तकूल चलते (सबका अहत करते)
हP॥277॥

चौपाई :
* मP तुJहार अनच
ु र म ु नराया। प!रह!र कोपु क!रअ अब दाया॥
टूट चाप नहं जु!रह !रसाने। बैठअ होइहं पाय ,पराने॥1॥
भावाथ#:-हे म ु नराज! मP आपका दास हूँ। अब €ोध Nयागकर दया कMिजए। टूटा हुआ धनुष €ोध
करने से जुड़ नह.ं जाएगा। खड़े-खड़े पैर दःु खने लगे ह=गे, बैठ जाइए॥1॥
* जV अ त , य तौ क!रअ उपाई। जो!रअ कोउ बड़ गुनी बोलाई॥
बोलत लखनहं जनकु डेराह.ं। म[ट करहु अनुचत भल नाह.ं॥2॥
भावाथ#:-यद धनष
ु अNय7त ह. , य हो, तो कोई उपाय Bकया जाए और Bकसी बड़े गण
ु ी
(कार.गर) को बल
ु ाकर जुड़वा दया जाए। ल'मणजी के बोलने से जनकजी डर जाते हP और
कहते हP- बस, चुप रहए, अनुचत बोलना अqछा नह.ं॥2॥

* थर थर काँपहं परु नर नार.। छोट कुमार खोट बड़ भार.॥


भग
ृ प
ु त सु न स ु न नरभय बानी। !रस तन जरइ होई बल हानी॥3॥
भावाथ#:-जनकपुर के A-ी-प^
ु ष थर-थर काँप रहे हP (और मन ह. मन कह रहे हP Bक) छोटा
कुमार बड़ा ह. खोटा है । ल'मणजी कM नभOय वाणी सन
ु -सुनकर परशरु ामजी का शर.र €ोध से
जला जा रहा है और उनके बल कM हा न हो रह. है (उनका बल घट रहा है )॥3॥

* बोले रामह दे इ नहोरा। बचउँ 8बचा!र बंधु लघु तोरा॥


मनु मल.न तनु सुंदर कैस?। 8बष रस भरा कनक घटु जैस?॥4॥
भावाथ#:-तब $ी रामच7oजी पर एहसान जनाकर परशुरामजी बोले- तेरा छोटा भाई समझकर मP
इसे बचा रहा हूँ। यह मन का मैला और शर.र का कैसा सुंदर है , जैसे ,वष के रस से भरा हुआ
सोने का घड़ा!॥4॥

दोहा :
* स ु न ल छमन 8बहसे बहु!र नयन तरे रे राम।
गुर समीप गवने सकुच प!रह!र बानी बाम॥278॥
भावाथ#:-यह सन
ु कर ल'मणजी Bफर हँसे। तब $ी रामच7oजी ने तरछv नजर से उनकM ओर
दे खा, िजससे ल'मणजी सकुचाकर, ,वपर.त बोलना छोड़कर, गु^जी के पास चले गए॥278॥

चौपाई :
* अ त 8बनीत मद
ृ ु सीतल बानी। बोले रामु जो!र जुग पानी॥
सुनहु नाथ तुJह सहज सुजाना। बालक बचनु क!रअ नहं काना॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी दोन= हाथ जोड़कर अNय7त ,वनय के साथ कोमल और शीतल वाणी
बोले- हे नाथ! सु नए, आप तो Aवभाव से ह. सज
ु ान हP। आप बालक के वचन पर कान न
द.िजए (उसे सुना-अनसुना कर द.िजए)॥1॥

*बररै बालकु एकु सुभाऊ। इ7हह न संत 8बदष


ू हं काऊ ॥
तेहं नाह.ं कछु काज 8बगारा। अपराधी मP नाथ तJ
ु हारा॥2॥
भावाथ#:-बरŽ और बालक का एक Aवभाव है । संतजन इ7ह? कभी दोष नह.ं लगाते। Bफर उसने
(ल'मण ने) तो कुछ काम भी नह.ं 8बगाड़ा है , हे नाथ! आपका अपराधी तो मP हूँ॥2॥

* कृपा कोपु बधु बँधब गोसा}। मो पर क!रअ दास कM ना}॥


कहअ बेग जेह 8बध !रस जाई। मु ननायक सोइ करV उपाई॥3॥
भावाथ#:-अतः हे Aवामी! कृपा, €ोध, वध और बंधन, जो कुछ करना हो, दास कM तरह (अथाOत
दास समझकर) मुझ पर कMिजए। िजस कार से शीH आपका €ोध दरू हो। हे मु नराज!
बताइए, मP वह. उपाय कfँ॥3॥

* कह मु न राम जाइ !रस कैस?। अजहुँ अनुज तव चतव अनैस॥


?
एह क? कंठ कुठा^ न द.7हा। तौ मP कहा कोपु क!र कM7हा॥4॥
भावाथ#:-मु न ने कहा- हे राम! €ोध कैसे जाए, अब भी तेरा छोटा भाई टे ढ़ा ह. ताक रहा है ।
इसकM गदO न पर मPने कुठार न चलाया, तो €ोध करके Bकया ह. iया?॥4॥

दोहा :
* गभO ‰वहं अव नप रव न सु न कुठार ग त घोर।
परसु अछत दे खउँ िजअत बैर. भूपBकसोर॥279॥
भावाथ#:-मेरे िजस कुठार कM घोर करनी सन
ु कर राजाओं कM िA-य= के गभO गर पड़ते हP, उसी
फरसे के रहते मP इस श-ु राजपु- को जी,वत दे ख रहा हूँ॥279॥

चौपाई :
* बहइ न हाथु दहइ !रस छाती। भा कुठा^ कंु ठत नप
ृ घाती॥
भयउ बाम 8बध Bफरे उ सुभाऊ। मोरे sदयँ कृपा क0स काऊ॥1॥
भावाथ#:-हाथ चलता नह.ं, €ोध से छाती जल. जाती है। (हाय!) राजाओं का घातक यह कुठार
भी कुिxठत हो गया। ,वधाता ,वपर.त हो गया, इससे मेरा Aवभाव बदल गया, नह.ं तो भला,
मेरे sदय म? Bकसी समय भी कृपा कैसी?॥1॥

* आजु दया दख
ु ु दस
ु ह सहावा। स ु न सौ0म8- 8बह0स 0स^ नावा॥
बाउ कृपा मूर त अनुकूला। बोलत बचन झरत जनु फूला॥2॥
भावाथ#:-आज दया मझ
ु े यह दःु सह दःु ख सहा रह. है । यह सुनकर ल'मणजी ने मुAकुराकर 0सर
नवाया (और कहा-) आपकM कृपा fपी वायु भी आपकM मू तO के अनक
ु ू ल ह. है , वचन बोलते हP,
मानो फूल झड़ रहे हP॥2॥

* जV पै कृपाँ ज!रहं म ु न गाता। €ोध भएँ तनु राख 8बधाता॥


दे खु जनक हठ बालकु एहू। कM7ह चहत जड़ जमपरु गेहू॥3॥
भावाथ#:-हे म ु न ! यद कृपा करने से आपका शर.र जला जाता है , तो €ोध होने पर तो शर.र
कM रWा ,वधाता ह. कर? गे। (परशरु ामजी ने कहा-) हे जनक! दे ख, यह मख
ू O बालक हठ करके
यमपरु . म? घर ( नवास) करना चाहता है ॥3॥

* बेग करहु Bकन आँRख7ह ओटा। दे खत छोट खोट नप ृ ु ढोटा॥


8बहसे लखनु कहा मन माह.ं। मूद? आँRख कतहुँ कोउ नाह.ं॥4॥
भावाथ#:-इसको शीH ह. आँख= कM ओट iय= नह.ं करते? यह राजप- ु दे खने म? छोटा है, पर है
बड़ा खोटा। ल'मणजी ने हँसकर मन ह. मन कहा- आँख मँद
ू लेने पर कह.ं कोई नह.ं है ॥4॥
दोहा :
* परसरु ामु तब राम त बोले उर अ त €ोध।ु
संभु सरासनु तो!र सठ कर0स हमार बोधु॥280॥
भावाथ#:-तब परशुरामजी sदय म? अNय7त €ोध भरकर $ी रामजी से बोले- अरे शठ! तू 0शवजी
का धनुष तोड़कर उलटा हमीं को gान 0सखाता है॥280॥

चौपाई :
* बंधु कहइ कटु संमत तोर? । तू छल 8बनय कर0स कर जोर? ॥
क^ प!रतोषु मोर संwामा। नाहं त छाड़ कहाउब रामा॥1॥
भावाथ#:-तेरा यह भाई तेर. ह. सJम त से कटु वचन बोलता है और तू छल से हाथ जोड़कर
,वनय करता है । या तो युkध म? मेरा संतोष कर, नह.ं तो राम कहलाना छोड़ दे ॥1॥

* छलु तिज करह सम^ 0सवoोह.। बंधु सहत न त मारउँ तोह.॥


भग
ृ प
ु त बकहं कुठार उठाएँ। मन मुसक
ु ाहं रामु 0सर नाएँ॥2॥
भावाथ#:-अरे 0शवoोह.! छल Nयागकर मझ
ु से युkध कर। नह.ं तो भाई सहत तुझे मार डालँ ूगा।
इस कार परशुरामजी कुठार उठाए बक रहे हP और $ी रामच7oजी 0सर झुकाए मन ह. मन
मA
ु कुरा रहे हP॥2॥

* गुनह लखन कर हम पर रोष।ू कतहुँ सुधाइहु ते बड़ दोषू॥


टे ढ़ जा न सब बंदइ काहू। ब€ चंoमह wसइ न राहू॥3॥
भावाथ#:-($ी रामच7oजी ने मन ह. मन कहा-) गुनाह (दोष) तो ल'मण का और €ोध मुझ पर
करते हP। कह.ं-कह.ं सीधेपन म? भी बड़ा दोष होता है। टे ढ़ा जानकर सब लोग Bकसी कM भी
वंदना करते हP, टे ढ़े च7oमा को राहु भी नह.ं wसता॥3॥

* राम कहे उ !रस तिजअ मुनीसा। कर कुठा^ आग? यह सीसा॥


जेहं !रस जाइ क!रअ सोइ Aवामी। मोह जा नअ आपन अनग
ु ामी॥4॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी ने ( कट) कहा- हे मुनी/वर! €ोध छोƒड़ए। आपके हाथ म? कुठार है और
मेरा यह 0सर आगे है, िजस कार आपका €ोध जाए, हे Aवामी! वह. कMिजए। मझ
ु े अपना
अनुचर (दास) जा नए॥4॥

दोहा :
* भुह सेवकह सम^ कस तजहु 8ब बर रोसु।
बेषु 8बलोक? कहे 0स कछु बालकहू नहं दोसु॥281॥
भावाथ#:-Aवामी और सेवक म? यk
ु ध कैसा? हे CाDमण $े[ठ! €ोध का Nयाग कMिजए। आपका
(वीर= का सा) वेष दे खकर ह. बालक ने कुछ कह डाला था, वाAतव म? उसका भी कोई दोष नह.ं
है ॥281॥

चौपाई :
*दे Rख कुठार बान धनु धार.। भै ल!रकह !रस बी^ 8बचार.॥
नामु जान पै तुJहह न ची7हा। बंस सभ
ु ायँ उत^ तेहं द.7हा॥1॥
भावाथ#:-आपको कुठार, बाण और धनष
ु धारण Bकए दे खकर और वीर समझकर बालक को €ोध
आ गया। वह आपका नाम तो जानता था, पर उसने आपको पहचाना नह.ं। अपने वंश (रघुवंश)
के Aवभाव के अनुसार उसने उTर दया॥1॥

* जV तुJह औतेहु मु न कM ना}। पद रज 0सर 0ससु धरत गोसा}॥


छमहु चकू अनजानत केर.। चहअ 8ब उर कृपा घनेर.॥2॥
भावाथ#:-यद आप म ु न कM तरह आते, तो हे Aवामी! बालक आपके चरण= कM धू0ल 0सर पर
रखता। अनजाने कM भल
ू को Wमा कर द.िजए। CाDमण= के sदय म? बहुत अधक दया होनी
चाहए॥2॥

* हमह तुJहह स!रब!र क0स नाथा। कहहु न कहाँ चरन कहँ माथा॥
राम मा- लघुनाम हमारा। परसु सहत बड़ नाम तोहारा॥3॥
भावाथ#:-हे नाथ! हमार. और आपकM बराबर. कैसी? कहए न, कहाँ चरण और कहाँ मAतक!
कहाँ मेरा राम मा- छोटा सा नाम और कहाँ आपका परशुसहत बड़ा नाम॥3॥

* दे व एकु गन
ु ु धनुष हमार? । नव गुन परम पन
ु ीत तुJहार? ॥
सब कार हम तुJह सन हारे । छमहु 8ब अपराध हमारे ॥4॥
भावाथ#:-हे दे व! हमारे तो एक ह. गण
ु धनष
ु है और आपके परम प,व- (शम, दम, तप, शौच,
Wमा, सरलता, gान, ,वgान और आिAतकता ये) नौ गुण हP। हम तो सब कार से आपसे हारे
हP। हे ,व ! हमारे अपराध= को Wमा कMिजए॥4॥

दोहा :
* बार बार मु न 8ब बर कहा राम सन राम।
बोले भग
ृ ुप त स^ष ह0स तहूँ बंधू सम बाम॥282॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी ने परशरु ामजी को बार-बार 'म ु न' और ',व वर' कहा। तब भग
ृ प
ु त
(परशरु ामजी) कु,पत होकर (अथवा €ोध कM हँसी हँसकर) बोले- तू भी अपने भाई के समान ह.
टे ढ़ा है॥282॥

* नपटहं k,वज क!र जानह मोह.। मP जस 8ब सुनावउँ तोह.॥


चाप सव ु ा सर आहु त जानू। कोपु मोर अ त घोर कृसान॥ ू 1॥
भावाथ#:-तू मुझे नरा CाDमण ह. समझता है ? मP जैसा ,व हूँ, तुझे सुनाता हूँ। धनुष को सु ्रवा,
बाण को आहु त और मेरे €ोध को अNय7त भयंकर अिdन जान॥1॥

* स0मध सेन चतुरंग सह


ु ाई। महा मह.प भए पसु आई॥
मP एहं परसु काट ब0ल द.7हे । समर जdय जप कोट7ह कM7हे ॥2॥
भावाथ#:-चतुरंगणी सेना सुंदर स0मधाएँ (यg म? जलाई जाने वाल. लकƒड़याँ) हP। बड़े-बड़े राजा
उसम? आकर ब0ल के पशु हुए हP, िजनको मPने इसी फरसे से काटकर ब0ल दया है । ऐसे करोड़=
जपयुiत रणयg मPने Bकए हP (अथाOत जैसे मं-ोqचारण पूवक O 'Aवाहा' शXद के साथ आहु त द.
जाती है , उसी कार मPने पक
ु ार-पक
ु ार कर राजाओं कM ब0ल द. है )॥2॥

* मोर भाउ 8बदत नहं तोर? । बोल0स नद!र 8ब के भोर? ॥


भंजेउ चापु दापु बड़ बाढ़ा। अह0म त मनहुँ जी त जगु ठाढ़ा॥3॥
भावाथ#:-मेरा भाव तुझे मालूम नह.ं है, इसी से तू CाDमण के धोखे मेरा नरादर करके बोल
रहा है। धनुष तोड़ डाला, इससे तेरा घमंड बहुत बढ़ गया है । ऐसा अहं कार है , मानो संसार को
जीतकर खड़ा है ॥3॥

* राम कहा म ु न कहहु 8बचार.। !रस अ त बƒड़ लघु चूक हमार.॥


छुअतहं टूट ,पनाक पुराना। मP केह हे तु करV अ0भमाना॥4॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी ने कहा- हे म ु न! ,वचारकर बो0लए। आपका €ोध बहुत बड़ा है और मेर.
भूल बहुत छोट. है । पुराना धनुष था, छूते ह. टूट गया। मP Bकस कारण अ0भमान कfँ?॥4॥

दोहा :
* जV हम नदरहं 8ब बद सNय सन
ु हु भग
ृ न
ु ाथ।
तौ अस को जग सुभटु जेह भय बस नावहं माथ॥283॥
भावाथ#:-हे भग
ृ ुनाथ! यद हम सचमुच CाDमण कहकर नरादर करते हP, तो यह सNय सु नए,
Bफर संसार म? ऐसा कौन योkधा है, िजसे हम डरके मारे मAतक नवाएँ?॥283॥

चौपाई :
* दे व दनज
ु भप
ू त भट नाना। समबल अधक होउ बलवाना॥
जV रन हमह पचारै कोऊ। लरहं सुखेन कालु Bकन होऊ ॥1॥
भावाथ#:-दे वता, दै Nय, राजा या और बहुत से योkधा, वे चाहे बल म? हमारे बराबर ह= चाहे अधक
बलवान ह=, यद रण म? हम? कोई भी ललकारे तो हम उससे सुखपूवक O लड़?गे, चाहे काल ह.
iय= न हो॥1॥

* छ8-य तनु ध!र समर सकाना। कुल कलंकु तेहं पावँर आना॥
कहउँ सभ
ु ाउ न कुलह संसी। कालहु डरहं न रन रघब
ु स
ं ी॥2॥
भावाथ#:-W8-य का शर.र धरकर जो युkध म? डर गया, उस नीच ने अपने कुल पर कलंक लगा
दया। मP Aवभाव से ह. कहता हूँ, कुल कM शंसा करके नह.ं, Bक रघुवश
ं ी रण म? काल से भी
नह.ं डरते॥2॥

* 8ब बंस कै अ0स भत
ु ाई। अभय होइ जो तुJहह डेराई॥
सु न मद
ृ ु गूढ़ बचन रघप
ु त के। उघरे पटल परसध
ु र म त के॥3॥
भावाथ#:-CाDमणवंश कM ऐसी ह. भत
ु ा (महमा) है Bक जो आपसे डरता है, वह सबसे नभOय हो
जाता है (अथवा जो भयरहत होता है, वह भी आपसे डरता है) $ी रघुनाथजी के कोमल और
रहAयपूणO वचन सुनकर परशरु ामजी कM बk
ु ध के परदे खल
ु गए॥3॥

* राम रमाप त कर धनु लेहू। खPचहु 0मटै मोर संदेहू॥


दे त चापु आपु हं च0ल गयऊ। परसुराम मन 8बसमय भयऊ॥4॥
भावाथ#:-(परशरु ामजी ने कहा-) हे राम! हे ल'मीप त! धनुष को हाथ म? (अथवा ल'मीप त
,व[णु का धनष
ु ) ल.िजए और इसे खींचए, िजससे मेरा संदेह 0मट जाए। परशरु ामजी धनष
ु दे ने
लगे, तब वह आप ह. चला गया। तब परशुरामजी के मन म? बड़ा आ/चयO हुआ॥4॥

दोहा :
* जाना राम भाउ तब पल
ु क फुिZलत गात।
जो!र पा न बोले बचन sदयँ न ेमु अमात॥284॥
भावाथ#:-तब उ7ह=ने $ी रामजी का भाव जाना, (िजसके कारण) उनका शर.र पुलBकत और
फुिZलत हो गया। वे हाथ जोड़कर वचन बोले- ेम उनके sदय म? समाता न था-॥284॥

चौपाई :
* जय रघब
ु ंस बनज बन भानू। गहन दनज
ु कुल दहन कृसान॥

जय सुर 8ब धेनु हतकार.। जय मद मोह कोह tम हार.॥1॥
भावाथ#:-हे रघुकुल fपी कमल वन के सय
ू !O हे राWस= के कुल fपी घने जंगल को जलाने वाले
अिdन! आपकM जय हो! हे दे वता, CाDमण और गो का हत करने वाले! आपकM जय हो। हे
मद, मोह, €ोध और tम के हरने वाले! आपकM जय हो॥1॥

* 8बनय सील क^ना गुन सागर। जय त बचन रचना अ त नागर॥


सेवक सख
ु द सुभग सब अंगा। जय सर.र छ8ब कोट अनंगा॥2॥
भावाथ#:-हे ,वनय, शील, कृपा आद गुण= के समo
ु और वचन= कM रचना म? अNय7त चतरु !
आपकM जय हो। हे सेवक= को सख
ु दे ने वाले, सब अंग= से सुंदर और शर.र म? करोड़= कामदे व=
कM छ8ब धारण करने वाले! आपकM जय हो॥2॥

*करV काह मुख एक संसा। जय महेस मन मानस हं सा॥


अनुचत बहुत कहेउँ अdयाता। छमहु छमा मंदर दोउ tाता॥3॥
भावाथ#:-मP एक मख
ु से आपकM iया शंसा कfँ? हे महादे वजी के मन fपी मानसरोवर के हं स!
आपकM जय हो। मPने अनजाने म? आपको बहुत से अनुचत वचन कहे । हे Wमा के मंदर दोन=
भाई! मुझे Wमा कMिजए॥3॥

* कह जय जय जय रघक
ु ु लकेतू। भग
ृ ुप त गए बनह तप हे तू॥
अपभयँ कुटल मह.प डेराने। जहँ तहँ कायर गवँहं पराने॥4॥
भावाथ#:-हे रघुकुल के पताका Aवfप $ी रामच7oजी! आपकM जय हो, जय हो, जय हो। ऐसा
कहकर परशरु ामजी तप के 0लए वन को चले गए। (यह दे खकर) द[ु ट राजा लोग 8बना ह.
कारण के (मनः किZपत) डर से (रामच7oजी से तो परशरु ामजी भी हार गए, हमने इनका
अपमान Bकया था, अब कह.ं ये उसका बदला न ल?, इस cयथO के डर से डर गए) वे कायर
चुपके से जहाँ-तहाँ भाग गए॥4॥

दोहा :
* दे व7ह द.7ह.ं दं द
ु भ
ु ीं भु पर बरषहं फूल।
हरषे परु नर ना!र सब 0मट. मोहमय सल
ू ॥285॥
भावाथ#:-दे वताओं ने नगाड़े बजाए, वे भु के ऊपर फूल बरसाने लगे। जनकपरु के A-ी-प^
ु ष सब
ह,षOत हो गए। उनका मोहमय (अgान से उNप7न) शूल 0मट गया॥285॥

चौपाई :
* अ त गहगहे बाजने बाजे। सबहं मनोहर मंगल साजे॥
जूथ जूथ 0म0ल सम
ु ुRख सुनयनीं। करहं गान कल कोBकलबयनीं॥1॥
भावाथ#:-खब
ू जोर से बाजे बजने लगे। सभी ने मनोहर मंगल साज साजे। संद
ु र मख
ु और सद
ंु र
ने-= वाल. तथा कोयल के समान मधुर बोलने वाल. िA-याँ झुंड कM झुंड 0मलकर सुंदरगान
करने लगीं॥1॥

* सुखु 8बदे ह कर बर न न जाई। ज7मद!रo मनहुँ नध पाई॥


8बगत -ास भइ सीय सुखार.। जनु 8बधु उदयँ चकोरकुमार.॥2॥
भावाथ#:-जनकजी के सुख का वणOन नह.ं Bकया जा सकता, मानो ज7म का द!रo. धन का
खजाना पा गया हो! सीताजी का भय जाता रहा, वे ऐसी सख
ु ी हु} जैसे च7oमा के उदय होने
से चकोर कM क7या सुखी होती है॥2॥

* जनक कM7ह कौ0सकह नामा। भु साद धनु भंजेउ रामा॥


मोह कृतकृNय कM7ह दहु ु ँ भा}। अब जो उचत सो कहअ गोसा}॥3॥
भावाथ#:-जनकजी ने ,व/वा0म-जी को णाम Bकया (और कहा-) भु ह. कM कृपा से $ी
रामच7oजी ने धनुष तोड़ा है। दोन= भाइय= ने मुझे कृताथO कर दया। हे Aवामी! अब जो उचत
हो सो कहए॥3॥

* कह मु न सन
ु ु नरनाथ बीना। रहा 8बबाहु चाप आधीना॥
टूटतह.ं धनु भयउ 8बबाहू। सरु नर नाग 8बदत सब काहू॥4॥
भावाथ#:-मु न ने कहा- हे चतुर नरे श ! सुनो य= तो ,ववाह धनुष के अधीन था, धनुष के टूटते
ह. ,ववाह हो गया। दे वता, मनु[य और नाग सब Bकसी को यह मालूम है॥4॥

दशरथजी के पास जनकजी का दत


ू भेजना, अयोHया से बारात का /थान
दोहा :
* तद,प जाइ तJु ह करहु अब जथा बंस Xयवहा^।
बRू झ 8ब कुलबkृ ध गुर बेद 8बदत आचा^॥286॥
भावाथ#:-तथा,प तुम जाकर अपने कुल का जैसा cयवहार हो, CाDमण=, कुल के बूढ़= और गु^ओं
से पछ
ू कर और वेद= म? वRणOत जैसा आचार हो वैसा करो॥286॥

चौपाई :
* दतू अवधपरु पठवहु जाई। आनहं नप ृ दसरथहं बोलाई॥
मुदत राउ कह भलेहं कृपाला। पठए दत
ू बो0ल तेह काला॥1॥
भावाथ#:-जाकर अयो~या को दत
ू भेजो, जो राजा दशरथ को बल
ु ा लाव?। राजा ने स7न होकर
कहा- हे कृपाल!ु बहुत अqछा! और उसी समय दत
ू = को बुलाकर भेज दया॥1॥

* बहु!र महाजन सकल बोलाए। आइ सबि7ह सादर 0सर नाए॥


हाट बाट मंदर सरु बासा। नग^ सँवारहु चा!रहुँ पासा॥2॥
भावाथ#:-Bफर सब महाजन= को बल
ु ाया और सबने आकर राजा को आदरपव
ू क
O 0सर नवाया।
(राजा ने कहा-) बाजार, राAते, घर, दे वालय और सारे नगर को चार= ओर से सजाओ॥2॥

* हर,ष चले नज नज गहृ आए। प ु न प!रचारक बो0ल पठाए॥


रचहु 8बच- 8बतान बनाई। 0सर ध!र बचन चले सचु पाई॥3॥
भावाथ#:-महाजन स7न होकर चले और अपने-अपने घर आए। Bफर राजा ने नौकर= को बल
ु ा
भेजा (और उ7ह? आgा द. Bक) ,वच- मंड प सजाकर तैयार करो। यह सुनकर वे सब राजा के
वचन 0सर पर धरकर और सुख पाकर चले॥3॥

* पठए बो0ल गन
ु ी त7ह नाना। जे 8बतान 8बध कुसल सज
ु ाना॥
8बधह बंद त7ह कM7ह अरं भा। 8बरचे कनक कद0ल के खंभा॥4॥
भावाथ#:-उ7ह=ने अनेक कार.गर= को बुला भेजा, जो मंड प बनाने म? कुशल और चतुर थे। उ7ह=ने
CDमा कM वंदना करके कायO आरं भ Bकया और (पहले) सोने के केले के खंभे बनाए॥4॥

दोहा :
* ह!रत म न7ह के प- फल पदम
ु राग के फूल।
रचना दे Rख 8बच- अ त मनु 8बरं च कर भल
ू ॥287॥
भावाथ#:-हर.-हर. मRणय= (प7ने) के पTे और फल बनाए तथा पkमराग मRणय= (माRणक) के
फूल बनाए। मंड प कM अNय7त ,वच- रचना दे खकर CDमा का मन भी भूल गया॥287॥

चौपाई :
* बेनु ह!रत म नमय सब कM7हे। सरल सपरब परहं नहं ची7हे ॥
कनक क0लत अहबे0ल बनाई। लRख नहं परइ सपरन सह
ु ाई॥1॥
भावाथ#:-बाँस सब हर.-हर. मRणय= (प7ने) के सीधे और गाँठ= से युiत ऐसे बनाए जो पहचाने
नह.ं जाते थे (Bक मRणय= के हP या साधारण)। सोने कM सुंदर नागबेल. (पान कM लता) बनाई,
जो पT= सहत ऐसी भल. मालूम होती थी Bक पहचानी नह.ं जाती थी॥1॥

* तेह के रच पच बंध बनाए। 8बच 8बच मुकुता दाम सुहाए॥
मा नक मरकत कु0लस ,परोजा। ची!र को!र पच रचे सरोजा॥2॥
भावाथ#:-उसी नागबेल. के रचकर और पqचीकार. करके बंधन (बाँधने कM रAसी) बनाए। बीच-
बीच म? मो तय= कM सुंदर झालर? हP। माRणक, प7ने, ह.रे और ि◌फरोजे, इन रNन= को चीरकर,
कोरकर और पqचीकार. करके, इनके (लाल, हरे , सफेद और Bफरोजी रं ग के) कमल बनाए॥2॥

* Bकए भग
ं ृ बहुरं ग 8बहं गा। गुंजहं कूजहं पवन संगा॥
सरु तमा खंभन गढ़ काढ़.ं। मंगल oXय 0लएँ सब ठाढ़.ं॥3॥
भावाथ#:-भVरे और बहुत रं ग= के पWी बनाए, जो हवा के सहारे गँज
ू ते और कूजते थे। खंभ= पर
दे वताओं कM म ू तOयाँ गढ़कर नकाल.ं, जो सब मंगल ocय 0लए खड़ी थीं॥3॥

* चौक? भाँ त अनेक परु ा}। 0संधुर म नमय सहज सह


ु ा}॥4॥
भावाथ#:-गजमi
ु ताओं के सहज ह. सुहावने अनेक= तरह के चौक परु ाए॥4॥

दोहा :
* सौरभ पZलव सभ
ु ग सु ठ Bकए नीलम न को!र।
हे म बौर मरकत घव!र लसत पाटमय डो!र॥288॥
भावाथ#:-नील मRण को कोरकर अNय7त संद
ु र आम के पTे बनाए। सोने के बौर (आम के फूल)
और रे शम कM डोर. से बँधे हुए प7ने के बने फल= के गुqछे सश
ु ो0भत हP॥288॥

चौपाई :
* रचे ^चर बर बंद नवारे । मनहुँ मनोभवँ फंद सँवारे ॥
मंगल कलश अनेक बनाए। ~वज पताक पट चमर सह ु ाए॥1॥
भावाथ#:-ऐसे सुंदर और उTम बंदनवार बनाए मानो कामदे व ने फंदे सजाए ह=। अनेक= मंगल
कलश और संद
ु र ~वजा, पताका, परदे और चँ वर बनाए॥1॥

* द.प मनोहर म नमय नाना। जाइ न बर न 8बच- 8बताना॥


जेहं मंड प दल
ु ह न बैदेह.। सो बरनै अ0स म त क8ब केह.॥2॥
भावाथ#:-िजसम? मRणय= के अनेक= संद
ु र द.पक हP, उस ,वच- मंड प का तो वणOन ह. नह.ं Bकया
जा सकता, िजस मंड प म? $ी जानकMजी दल
ु हन ह=गी, Bकस क,व कM ऐसी बुkध है जो उसका
वणOन कर सके॥2॥

* दल
ू हु रामु fप गन
ु सागर। सो 8बतानु तहुँ लोग उजागर॥
जनक भवन कै सोभा जैसी। गह ृ गहृ त परु दे Rखअ तैसी॥3॥
भावाथ#:-िजस मंड प म? fप और गुण= के समुo $ी रामच7oजी दZ
ू हे ह=गे, वह मंड प तीन= लोक=
म? 0सkध होना ह. चाहए। जनकजी के महल कM जैसी शोभा है, वैसी ह. शोभा नगर के
Nयेक घर कM दखाई दे ती है॥3॥

* जेहं तेरहु त तेह समय नहार.। तेह लघु लगहं भव


ु न दस चार.॥
जो संपदा नीच गह ृ सोहा। सो 8बलोBक सुरनायक मोहा॥4॥
भावाथ#:-उस समय िजसने तरहुत को दे खा, उसे चौदह भव
ु न तुqछ जान पड़े। जनकपुर म? नीच
के घर भी उस समय जो सJपदा सुशो0भत थी, उसे दे खकर इ7o भी मोहत हो जाता था॥4॥

दोहा :
* बसइ नगर जेहं लिqछ क!र कपट ना!र बर बेष।ु
तेह परु कै सोभा कहत सकुचहं सारद सेष॥
ु 289॥
भावाथ#:-िजस नगर म? साWात ् ल'मीजी कपट से A-ी का सद
ंु र वेष बनाकर बसती हP, उस परु
कM शोभा का वणOन करने म? सरAवती और शेष भी सकुचाते हP॥289॥

चौपाई :
* पहुँचे दत
ू राम परु पावन। हरषे नगर 8बलोBक सुहावन॥
भूप kवार त7ह खब!र जनाई। दसरथ नप ृ सु न 0लए बोलाई॥1॥
भावाथ#:-जनकजी के दतू $ी रामच7oजी कM प,व- पुर. अयो~या म? पहुँच।े सुंदर नगर दे खकर वे
ह,षOत हुए। राजkवार पर जाकर उ7ह=ने खबर भेजी, राजा दशरथजी ने सुनकर उ7ह? बल ु ा
0लया॥1॥

* क!र नामु त7ह पाती द.7ह.। मु दत मह.प आपु उठ ल.7ह.॥
बा!र 8बलोचन बाँचत पाती। पल
ु क गात आई भ!र छाती॥2॥
भावाथ#:-दत
ू = ने णाम करके च{ठv द.। स7न होकर राजा ने Aवयं उठकर उसे 0लया। च{ठv
बाँचते समय उनके ने-= म? जल ( ेम और आनंद के आँसू) छा गया, शर.र पुलBकत हो गया
और छाती भर आई॥2॥

* रामु लखनु उर कर बर चीठv। रह गए कहत न खाट. मीठv॥


प ु न ध!र धीर प8-का बाँची। हरषी सभा बात स ु न साँची॥3॥
भावाथ#:-sदय म? राम और ल'मण हP, हाथ म? सद
ुं र च{ठv है , राजा उसे हाथ म? 0लए ह. रह
गए, ख{ट.-मीठv कुछ भी कह न सके। Bफर धीरज धरकर उ7ह=ने प8-का पढ़.। सार. सभा
सqची बात सुनकर ह,षOत हो गई॥3॥

* खेलत रहे तहाँ सु ध पाई। आए भरतु सहत हत भाई॥


पछ
ू त अ त सनेहँ सकुचाई। तात कहाँ त? पाती आई॥4॥
भावाथ#:-भरतजी अपने 0म-= और भाई श-
ु न के साथ जहाँ खेलते थे, वह.ं समाचार पाकर वे
आ गए। बहुत ेम से सकुचाते हुए पूछते हP- ,पताजी! च{ठv कहाँ से आई है?॥4॥

दोहा :
* कुसल ान, य बंधु दोउ अहहं कहहु केहं दे स।
सु न सनेह साने बचन बाची बहु!र नरे स॥290॥
भावाथ#:- हमारे ाण= से यारे दोन= भाई, कहए सकुशल तो हP और वे Bकस दे श म? हP? Aनेह से
सने ये वचन सन
ु कर राजा ने Bफर से च{ठv पढ़.॥290॥

चौपाई :
* सु न पाती पल
ु के दोउ tाता। अधन सनेहु समात न गाता॥
ी त पन
ु ीत भरत कै दे खी। सकल सभाँ सुखु लहेउ 8बसेषी॥1॥
भावाथ#:-च{ठv सुनकर दोन= भाई पल
ु Bकत हो गए। Aनेह इतना अधक हो गया Bक वह शर.र
म? समाता नह.ं। भरतजी का प,व- ेम दे खकर सार. सभा ने ,वशेष सख
ु पाया॥1॥

* तब नप
ृ दत
ू नकट बैठारे । मधरु मनोहर बचन उचारे ॥
भैया कहहु कुसल दोउ बारे । तुJह नीक? नज नयन नहारे ॥2॥
भावाथ#:-तब राजा दत
ू = को पास बैठाकर मन को हरने वाले मीठे वचन बाले- भैया! कहो, दोन=
बqचे कुशल से तो हP? तम
ु ने अपनी आँख= से उ7ह? अqछv तरह दे खा है न?॥2॥

* Aयामल गौर धर? धनु भाथा। बय Bकसोर कौ0सक मु न साथा॥


पहचानहु तुJह कहहु सुभाऊ। ेम 8बबस प ु न प ु न कह राऊ॥3॥
भावाथ#:-साँवले और गोरे शर.र वाले वे धनष
ु और तरकस धारण Bकए रहते हP, Bकशोर अवAथा
है , ,व/वा0म- म ु न के साथ हP। तुम उनको पहचानते हो तो उनका Aवभाव बताओ। राजा ेम
के ,वशेष वश होने से बार-बार इस कार कह (पछ
ू ) रहे हP॥3॥

* जा दन त? मु न गए लवाई। तब त? आजु साँच सुध पाई॥


कहहु 8बदे ह कवन 8बध जाने। स ु न , य बचन दत ू मस
ु ुकाने॥4॥
भावाथ#:- (भैया!) िजस दन से म ु न उ7ह? 0लवा ले गए, तब से आज ह. हमने सqची खबर पाई
है । कहो तो महाराज जनक ने उ7ह? कैसे पहचाना? ये , य ( ेम भरे ) वचन सुनकर दत

मुAकुराए॥4॥

दोहा :
* सुनहु मह.प त मक
ु ु ट म न तुJह सम ध7य न कोउ।
रामु लखनु िज7ह के तनय 8बAव 8बभूषन दोउ॥291॥
भावाथ#:-(दत
ू = ने कहा-) हे राजाओं के मुकुटमRण! सु नए, आपके समान ध7य और कोई नह.ं है ,
िजनके राम-ल'मण जैसे प-
ु हP, जो दोन= ,व/व के ,वभष
ू ण हP॥291॥

चौपाई :
* पछ
ू न जोगु न तनय तुJहारे । प^
ु ष0संघ तहु परु उिजआरे ॥
िज7ह के जस ताप क? आगे। स0स मल.न र8ब सीतल लागे॥1॥
भावाथ#:-आपके पु- पछ
ू ने योdय नह.ं हP। वे प^
ु ष0संह तीन= लोक= के काश Aवfप हP। िजनके
यश के आगे च7oमा म0लन और ताप के आगे सय
ू O शीतल लगता है॥1॥

* त7ह कहँ कहअ नाथ Bक0म ची7हे । दे Rखअ र8ब Bक द.प कर ल.7हे॥
सीय Aवयंबर भूप अनेका। स0मटे सभ
ु ट एक त? एका॥2॥
भावाथ#:-हे नाथ! उनके 0लए आप कहते हP Bक उ7ह? कैसे पहचाना! iया सय
ू O को हाथ म? द.पक
लेकर दे खा जाता है? सीताजी के Aवयंवर म? अनेक= राजा और एक से एक बढ़कर योkधा एक-
हुए थे॥2॥

* संभु सरासनु काहुँ न टारा। हारे सकल बीर ब!रआरा॥


ती न लोक महँ जे भटमानी। सभ कै सक त संभु धनु भानी॥3॥
भावाथ#:-परं तु 0शवजी के धनुष को कोई भी नह.ं हटा सका। सारे बलवान वीर हार गए। तीन=
लोक= म? जो वीरता के अ0भमानी थे, 0शवजी के धनष
ु ने सबकM शिiत तोड़ द.॥3॥

* सकइ उठाइ सरासरु मेf। सोउ हयँ हा!र गयउ क!र फेf॥
जेहं कौतक
ु 0सवसैलु उठावा। सोउ तेह सभाँ पराभउ पावा॥4॥
भावाथ#:-बाणासुर, जो सुमे^ को भी उठा सकता था, वह भी sदय म? हारकर प!र€मा करके चला
गया और िजसने खेल से ह. कैलास को उठा 0लया था, वह रावण भी उस सभा म? पराजय को
ात हुआ॥4॥

दोहा :
* तहाँ राम रघुबंसम न सु नअ महा महपाल।
भंजेउ चाप यास 8बनु िज0म गज पंकज नाल॥292॥
भावाथ#:-हे महाराज! सु नए, वहाँ (जहाँ ऐसे-ऐसे योkधा हार मान गए) रघव
ु श
ं मRण $ी
रामच7oजी ने 8बना ह. यास 0शवजी के धनुष को वैसे ह. तोड़ डाला जैसे हाथी कमल कM डंड ी
को तोड़ डालता है !॥292॥

चौपाई :
* सु न सरोष भग ृ न
ु ायकु आए। बहुत भाँ त त7ह आँRख दे खाए॥
दे Rख राम बलु नज धनु द.7हा। क!रबहु 8बनय गवनु बन कM7हा॥1॥
भावाथ#:-धनुष टूटने कM बात सन
ु कर परशुरामजी €ोध म? भरे आए और उ7ह=ने बहुत कार से
आँख? दखला}। अंत म? उ7ह=ने भी $ी रामच7oजी का बल दे खकर उ7ह? अपना धनष ु दे दया
और बहुत कार से ,वनती करके वन को गमन Bकया॥1॥

* राजन रामु अतुलबल जैस?। तेज नधान लखनु पु न तैस॥


?
कंपहं भप
ू 8बलोकत जाक?। िज0म गज ह!र Bकसोर के ताक?॥2॥
भावाथ#:-हे राजन!् जैसे $ी रामच7oजी अतल
ु नीय बल. हP, वैसे ह. तेज नधान Bफर ल'मणजी
भी हP, िजनके दे खने मा- से राजा लोग ऐसे काँप उठते थे, जैसे हाथी 0संह के बqचे के ताकने
से काँप उठते हP॥2॥

* दे व दे Rख तव बालक दोऊ। अब न आँRख तर आवत कोऊ ॥


दत
ू बचन रचना , य लागी। ेम ताप बीर रस पागी॥3॥
भावाथ#:-हे दे व! आपके दोन= बालक= को दे खने के बाद अब आँख= के नीचे कोई आता ह. नह.ं
(हमार. yि[ट पर कोई चढ़ता ह. नह.ं)। ेम, ताप और वीर रस म? पगी हुई दत
ू = कM वचन
रचना सबको बहुत , य लगी॥3॥
* सभा समेत राउ अनुरागे। दत
ू 7ह दे न नछाव!र लागे॥
कह अनी त ते मद
ू हं काना। धरमु 8बचा!र सबहं सुखु माना॥4॥
भावाथ#:-सभा सहत राजा ेम म? मdन हो गए और दत
ू = को नछावर दे ने लगे। (उ7ह? नछावर
दे ते दे खकर) यह नी त ,व^kध है , ऐसा कहकर दत
ू अपने हाथ= से कान मद
ँू ने लगे। धमO को
,वचारकर (उनका धमOयi
ु त बताOव दे खकर) सभी ने सख
ु माना॥4॥

दोहा :
* तब उठ भूप ब0स[ट कहुँ द.ि7ह प8-का जाई।
कथा सुनाई गुरह सब सादर दतू बोलाइ॥293॥
भावाथ#:-तब राजा ने उठकर व0श[ठजी के पास जाकर उ7ह? प8-का द. और आदरपव
ू क
O दत
ू = को
बल
ु ाकर सार. कथा गु^जी को सन
ु ा द.॥293॥

चौपाई :
* सु न बोले गुर अ त सख
ु ु पाई। पु7य पु^ष कहुँ मह सुख छाई॥
िज0म स!रता सागर महुँ जाह.ं। जkय,प ताह कामना नाह.ं॥1॥
भावाथ#:-सब समाचार सुनकर और अNय7त सुख पाकर ग^
ु बोले- पx
ु याNमा प^
ु ष के 0लए प4
ृ वी
सखु = से छाई हुई है । जैसे नदयाँ समo
ु म? जाती हP, यkय,प समo
ु को नद. कM कामना नह.ं
होती॥1॥

* त0म सख
ु संप त 8बनहं बोलाएँ। धरमसील पहं जाहं सभ
ु ाएँ॥
तुJह गुर 8ब धेनु सुर सेबी। त0स पुनीत कौसZया दे बी॥2॥
भावाथ#:-वैसे ह. सुख और सJप,T 8बना ह. बल
ु ाए Aवाभा,वक ह. धमाONमा प^
ु ष के पास जाती
है । तुम जैसे गु^, CाDमण, गाय और दे वता कM सेवा करने वाले हो, वैसी ह. प,व- कौसZयादे वी
भी हP॥2॥

* सुकृती तुJह समान जग माह.ं। भयउ न है कोउ होनेउ नाह.ं॥


तुJह ते अधक प7
ु य बड़ काक?। राजन राम स!रस सत
ु जाक?॥3॥
भावाथ#:-तुJहारे समान पुxयाNमा जगत म? न कोई हुआ, न है और न होने का ह. है । हे राजन!्
तुमसे अधक पx ु य और Bकसका होगा, िजसके राम सर.खे प-
ु हP॥3॥

* बीर 8बनीत धरम Cत धार.। गुन सागर बर बालक चार.॥


तुJह कहुँ सबO काल कZयाना। सजहु बरात बजाइ नसाना॥4॥
भावाथ#:-और िजसके चार= बालक वीर, ,वन„, धमO का Œत धारण करने वाले और गण
ु = के सुंदर
समo
ु हP। तुJहारे 0लए सभी काल= म? कZयाण है । अतएव डंका बजवाकर बारात सजाओ॥4॥

दोहा :
* चलहु बेग स ु न गरु बचन भलेहं नाथ 0स^ नाई।
भूप त गवने भवन तब दत ू 7ह बासु दे वाइ॥294॥
भावाथ#:-और जZद. चलो। गु^जी के ऐसे वचन सुनकर, हे नाथ! बहुत अqछा कहकर और 0सर
नवाकर तथा दतू = को डेरा दलवाकर राजा महल म? गए॥294॥

चौपाई :
* राजा सबु र नवास बोलाई। जनक प8-का बाच सन
ु ाई॥
स ु न संदेसु सकल हरषानीं। अपर कथा सब भप
ू बखानीं॥1॥
भावाथ#:-राजा ने सारे र नवास को बल
ु ाकर जनकजी कM प8-का बाँचकर सुनाई। समाचार सुनकर
सब रा नयाँ हषO से भर ग}। राजा ने Bफर दस
ू र. सब बात= का (जो दत
ू = के मख
ु से सुनी थीं)
वणOन Bकया॥1॥

* ेम फुिZलत राजहं रानी। मनहुँ 0सRख न सु न बा!रद बानी॥


मुदत असीस दे हं गरु नार.ं। अ त आनंद मगन महतार.ं॥2॥
भावाथ#:- ेम म? फुिZलत हुई रा नयाँ ऐसी सुशो0भत हो रह. हP, जैसे मोरनी बादल= कM गरज
सुनकर फुिZलत होती हP। बड़ी-बढ़
ू . (अथवा गु^ओं कM) िA-याँ स7न होकर आशीवाOद दे रह.
हP। माताएँ अNय7त आनंद म? मdन हP॥2॥

* लेहं परAपर अ त , य पाती। sदयँ लगाई जुड़ावहं छाती॥


राम लखन कै कMर त करनी। बारहं बार भूपबर बरनी॥3॥
भावाथ#:-उस अNय7त , य प8-का को आपस म? लेकर सब sदय से लगाकर छाती शीतल करती
हP। राजाओं म? $े[ठ दशरथजी ने $ी राम-ल'मण कM कM तO और करनी का बारं बार वणOन
Bकया॥3॥

* म ु न साद ु कह kवार 0सधाए। रा न7ह तब महदे व बोलाए॥


दए दान आनंद समेता। चले 8ब बर आ0सष दे ता॥4॥
भावाथ#:-'यह सब म ु न कM कृपा है ' ऐसा कहकर वे बाहर चले आए। तब रा नय= ने CाDमण= को
बल
ु ाया और आनंद सहत उ7ह? दान दए। $े[ठ CाDमण आशीवाOद दे ते हुए चले॥4॥

सोरठा :
* जाचक 0लए हँका!र द.ि7ह नछाव!र कोट 8बध।
च^ जीवहुँ सतु चा!र च€ब तO दसरNथ के॥295॥
भावाथ#:-Bफर 0भWुक= को बल
ु ाकर करोड़= कार कM नछावर? उनको द.ं। 'च€वत‡ महाराज
दशरथ के चार= पु- चरं जीवी ह='॥295॥

चौपाई :
* कहत चले पहर? पट नाना। हर,ष हने गहगहे नसाना॥
समाचार सब लोग7ह पाए। लागे घर-घर होन बधाए॥1॥
भावाथ#:-य= कहते हुए वे अनेक कार के सद
ंु र वA- पहन-पहनकर चले। आनंदत होकर नगाड़े
वाल= ने बड़े जोर से नगाड़= पर चोट लगाई। सब लोग= ने जब यह समाचार पाया, तब घर-घर
बधावे होने लगे॥1॥

* भुवन चा!रदस भरा उछाहू। जनकसतु ा रघुबीर 8बआहू॥


सु न सभ
ु कथा लोग अनरु ागे। मग गहृ गल.ं सँवारन लागे॥2॥
भावाथ#:-चौदह= लोक= म? उNसाह भर गया Bक जानकMजी और $ी रघन
ु ाथजी का ,ववाह होगा।
यह शभ
ु समाचार पाकर लोग ेममdन हो गए और राAते, घर तथा ग0लयाँ सजाने लगे॥2॥

* जkय,प अवध सदै व सुहाव न। रामपुर. मंगलमय पाव न॥


तद,प ी त कै ी त सुहाई। मंगल रचना रची बनाई॥3॥
भावाथ#:-यkय,प अयो~या सदा सुहावनी है, iय=Bक वह $ी रामजी कM मंगलमयी प,व- पुर. है ,
तथा,प ी त पर ी त होने से वह सुंदर मंगल रचना से सजाई गई॥3॥

* ~वज पताक पट चामर चाf। छावा परम 8बच- बजाf॥


कनक कलस तोरन म न जाला। हरद दब
ू दध अqछत माला॥4॥
भावाथ#:-~वजा, पताका, परदे और सुंदर चँवर= से सारा बाजा बहुत ह. अनठ
ू ा छाया हुआ है ।
सोने के कलश, तोरण, मRणय= कM झालर? , हलद., दब ू , दह., अWत और मालाओं से-॥4॥

दोहा :
* मंगलमय नज नज भवन लोग7ह रचे बनाइ।
बीथीं सींचीं चतरु सम चौक? चा^ परु ाइ॥296॥
भावाथ#:-लोग= ने अपने-अपने घर= को सजाकर मंगलमय बना 0लया। ग0लय= को चतुर सम से
सींचा और (kवार= पर) सुंदर चौक परु ाए। (चंदन, केशर, कAतूर. और कपरू से बने हुए एक
सुगं धत oव को चतरु सम कहते हP)॥296॥

चौपाई :
* जहँ तहँ जूथ जूथ 0म0ल भा0म न। सिज नव सत सकल द ु त दा0म न॥
8बधब
ु दनीं मग
ृ सावक लोच न। नज सfप र त मानु 8बमोच न॥1॥
भावाथ#:-8बजल. कM सी कां त वाल. च7oमुखी, ह!रन के बqचे के से ने- वाल. और अपने सद
ुं र
fप से कामदे व कM A-ी र त के अ0भमान को छुड़ाने वाल. सह
ु ागनी िA-याँ सभी सोलह= $ंग
ृ ार
सजकर, जहाँ-तहाँ झंडु कM झंडु 0मलकर,॥1॥

* गावहं मंगल मंजुल बानीं। स ु न कल रव कलकंठ लजानीं॥


भूप भवन Bक0म जाइ बखाना। 8बAव 8बमोहन रचेउ 8बताना॥2॥
भावाथ#:-मनोहर वाणी से मंगल गीत गा रह. हP, िजनके सद
ुं र Aवर को सन
ु कर कोयल? भी लजा
जाती हP। राजमहल का वणOन कैसे Bकया जाए, जहाँ ,व/व को ,वमोहत करने वाला मंड प
बनाया गया है॥2॥

* मंगल oXय मनोहर नाना। राजत बाजत 8बपुल नसाना॥


कतहुँ 8ब!रद बंद. उqचरह.ं। कतहुँ बेद धु न भूसुर करह.ं॥3॥
भावाथ#:-अनेक= कार के मनोहर मांग0लक पदाथO शो0भत हो रहे हP और बहुत से नगाड़े बज रहे
हP। कह.ं भाट ,व^दावल. (कुलकM तO) का उqचारण कर रहे हP और कह.ं CाDमण वेद~व न कर
रहे हP॥3॥

* गावहं सुंद!र मंगल गीता। लै लै नामु रामु अ^ सीता॥


बहुत उछाहु भवनु अ त थोरा। मानहुँ उमग चला चहु ओरा॥4॥
भावाथ#:-सुंदर. िA-याँ $ी रामजी और $ी सीताजी का नाम ले-लेकर मंगलगीत गा रह. हP।
उNसाह बहुत है और महल अNय7त ह. छोटा है। इससे (उसम? न समाकर) मानो वह उNसाह
(आनंद) चार= ओर उमड़ चला है ॥4॥

दोहा :
* सोभा दसरथ भवन कइ को क8ब बरनै पार।
जहाँ सकल सरु सीस म न राम ल.7ह अवतार॥297॥
भावाथ#:-दशरथ के महल कM शोभा का वणOन कौन क,व कर सकता है , जहाँ समAत दे वताओं के
0शरोमRण रामच7oजी ने अवतार 0लया है॥297॥

चौपाई :
* भूप भरत प ु न 0लए बोलाई। हय गयAयंदन साजहु जाई॥
चलहु बेग रघुबीर बराता। सुनत पल
ु क पूरे दोउ tाता॥1॥
भावाथ#:-Bफर राजा ने भरतजी को बल
ु ा 0लया और कहा Bक जाकर घोड़े, हाथी और रथ सजाओ,
जZद. रामच7oजी कM बारात म? चलो। यह सुनते ह. दोन= भाई (भरतजी और श-ुनजी)
आनंदवश पुलक से भर गए॥1॥

* भरत सकल साहनी बोलाए। आयसु द.7ह मुदत उठ धाए॥


रच ^च जीन तुरग त7ह साजे। बरन बरन बर बािज 8बराजे॥2॥
भावाथ#:-भरतजी ने सब साहनी (घुड़साल के अ~यW) बुलाए और उ7ह? (घोड़= को सजाने कM)
आgा द., वे स7न होकर उठ दौड़े। उ7ह=ने ^च के साथ (यथायोdय) जीन? कसकर घोड़े
सजाए। रं ग-रं ग के उTम घोड़े शो0भत हो गए॥2॥

* सुभग सकल सु ठ चंचल करनी। अय इव जरत धरत पग धरनी॥


नाना जा त न जाहं बखाने। नद!र पवनु जनु चहत उड़ाने॥3॥
भावाथ#:-सब घोड़े बड़े ह. सुंदर और चंचल करनी (चाल) के हP। वे धरती पर ऐसे पैर रखते हP
जैसे जलते हुए लोहे पर रखते ह=। अनेक= जा त के घोड़े हP, िजनका वणOन नह.ं हो सकता।
(ऐसी तेज चाल के हP) मानो हवा का नरादर करके उड़ना चाहते हP॥3॥

* त7ह सब छयल भए असवारा। भरत स!रस बय राजकुमारा॥


सब संद
ु र सब भष
ू नधार.। कर सर चाप तून कट भार.॥4॥
भावाथ#:-उन सब घोड़= पर भरतजी के समान अवAथा वाले सब छै ल-छबीले राजकुमार सवार
हुए। वे सभी सद
ुं र हP और सब आभूषण धारण Bकए हुए हP। उनके हाथ= म? बाण और धनुष हP
तथा कमर म? भार. तरकस बँधे हP॥4॥

दोहा :
* छरे छबीले छयल सब सूर सज
ु ान नबीन।
जुग पदचर असवार त जे अ0सकला बीन॥298॥
भावाथ#:-सभी चन
ु े हुए छबीले छै ल, शूरवीर, चतुर और नवयुवक हP। Nयेक सवार के साथ दो
पैदल 0सपाह. हP, जो तलवार चलाने कM कला म? बड़े नपण ु हP॥298॥

चौपाई :
* बाँध? 8बरद बीर रन गाढ़े । नक0स भए पुर बाहेर ठाढ़े ॥
फेरहं चतुर तुरग ग त नाना। हरषहं सु न सु न पनव नसाना॥1॥
भावाथ#:-शरू ता का बाना धारण Bकए हुए रणधीर वीर सब नकलकर नगर के बाहर आ खड़े हुए।
वे चतुर अपने घोड़= को तरह-तरह कM चाल= से फेर रहे हP और भेर. तथा नगाड़े कM आवाज
सुन-सुनकर स7न हो रहे हP॥1॥

* रथ सारथ7ह 8बच- बनाए। ~वज पताक म न भष


ू न लाए॥
चवँर चा^ BकंBक न धु न करह.ं। भानु जान सोभा अपहरह.ं॥2॥
भावाथ#:-सारथय= ने ~वजा, पताका, मRण और आभष ू ण= को लगाकर रथ= को बहुत ,वलWण
बना दया है। उनम? संुदर चँवर लगे हP और घंटयाँ संद
ु र शXद कर रह. हP। वे रथ इतने संद
ु र
हP, मानो सूयO के रथ कM शोभा को छvने लेते हP॥2॥

* सावँकरन अग नत हय होते। ते त7ह रथ7ह सारथ7ह जोते॥


सुंदर सकल अलंकृत सोहे । िज7हह 8बलोकत मु न मन मोहे ॥3॥
भावाथ#:-अगRणत /यामवणO घोड़े थे। उनको सारथय= ने उन रथ= म? जोत दया है, जो सभी
दे खने म? सुंदर और गहन= से सजाए हुए सश
ु ो0भत हP और िज7ह? दे खकर म ु नय= के मन भी
मोहत हो जाते हP॥3॥

* जे जल चलहं थलह कM ना}। टाप न बूड़ बेग अधका}॥


अA- सA- सबु साजु बनाई। रथी सारथ7ह 0लए बोलाई॥4॥
भावाथ#:-जो जल पर भी जमीन कM तरह ह. चलते हP। वेग कM अधकता से उनकM टाप पानी म?
नह.ं डू बती। अA--शA- और सब साज सजाकर सारथय= ने रथय= को बल
ु ा 0लया॥4॥

दोहा :
* चढ़ चढ़ रथ बाहे र नगर लागी जुरन बरात।
होत सगुन सुंदर सबह जो जेह कारज जात॥299॥
भावाथ#:-रथ= पर चढ़-चढ़कर बारात नगर के बाहर जट
ु ने लगी, जो िजस काम के 0लए जाता है,
सभी को सुंदर शकुन होते हP॥299॥
चौपाई :
* क0लत क!रबरि7ह पर.ं अँबार.ं। कह न जाहं जेह भाँ त सँवार.ं॥
चले मT गज घंट 8बराजी। मनहुँ सुभग सावन घन राजी॥1।
भावाथ#:-$े[ठ हाथय= पर सुंदर अंबा!रयाँ पड़ी हP। वे िजस कार सजाई गई थीं, सो कहा नह.ं
जा सकता। मतवाले हाथी घंट= से सुशो0भत होकर (घंटे बजाते हुए) चले, मानो सावन के सुंदर
बादल= के समूह (गरते हुए) जा रहे ह=॥

* बाहन अपर अनेक 8बधाना। 0स8बका सुभग सख


ु ासन जाना॥
त7ह चढ़ चले 8ब बर बंद
ृ ा। जनु तनु धर? सकल $ ु त छं दा॥2॥
भावाथ#:-संद
ु र पालBकयाँ, सख
ु से बैठने योdय तामजान (जो कुस‡नुमा होते हP) और रथ आद
और भी अनेक= कार कM सवा!रयाँ हP। उन पर $े[ठ CाDमण= के समूह चढ़कर चले, मानो सब
वेद= के छ7द ह. शर.र धारण Bकए हुए ह=॥2॥

* मागध सत
ू बंध गन
ु गायक। चले जान चढ़ जो जेह लायक॥
बेसर ऊँट बषृ भ बहु जाती। चले बAतु भ!र अग नत भाँती॥3॥
भावाथ#:-मागध, सूत, भाट और गुण गाने वाले सब, जो िजस योdय थे, वैसी सवार. पर चढ़कर
चले। बहुत जा तय= के खqचर, ऊँट और बैल असंŠय= कार कM वAतुएँ लाद-लादकर चले॥3॥

* कोट7ह काँव!र चले कहारा। 8ब8बध बAतु को बरनै पारा॥


चले सकल सेवक समद
ु ाई। नज नज साजु समाजु बनाई॥4॥
भावाथ#:-कहार करोड़= काँवर? लेकर चले। उनम? अनेक= कार कM इतनी वAतए
ु ँ थीं Bक िजनका
वणOन कौन कर सकता है। सब सेवक= के समह
ू अपना-अपना साज-समाज बनाकर चले॥4॥

दोहा :
* सब क? उर नभOर हरषु पू!रत पल
ु क सर.र।
कबहं दे Rखबे नयन भ!र रामु लखनु दोउ बीर॥300॥
भावाथ#:-सबके sदय म? अपार हषO है और शर.र पल
ु क से भरे हP। (सबको एक ह. लालसा लगी
है Bक) हम $ी राम-ल'मण दोन= भाइय= को ने- भरकर कब दे ख?गे॥300॥

चौपाई :
* गरजहं गज घंटा धु न घोरा। रथ रव बािज हंस चहु ओरा॥
नद!र घनह घुJमOरहं नसाना। नज पराइ कछु सु नअ न काना॥1॥
भावाथ#:-हाथी गरज रहे हP, उनके घंट= कM भीषण ~व न हो रह. है। चार= ओर रथ= कM घरघराहट
और घोड़= कM हनहनाहट हो रह. है । बादल= का नरादर करते हुए नगाड़े घोर शXद कर रहे हP।
Bकसी को अपनी-पराई कोई बात कान= से सन ु ाई नह.ं दे ती॥1॥

* महा भीर भप
ू त के kवार? । रज होइ जाइ पषान पबार? ॥
चढ़. अटा!र7ह दे खहं नार.ं। 0लएँ आरती मंगल थार.ं॥2॥
भावाथ#:-राजा दशरथ के दरवाजे पर इतनी भार. भीड़ हो रह. है Bक वहाँ पNथर फ?का जाए तो
वह भी ,पसकर धूल हो जाए। अटा!रय= पर चढ़. िA-याँ मंगल थाल= म? आरती 0लए दे ख रह.
हP॥2॥

* गावहं गीत मनोहर नाना। अ त आनंद ु न जाइ बखाना॥


तब सुमं- दइ
ु Aयंदन साजी। जोते र8ब हय नंदक बाजी॥3॥
भावाथ#:-और नाना कार के मनोहर गीत गा रह. हP। उनके अNय7त आनंद का बखान नह.ं हो
सकता। तब सुम7-जी ने दो रथ सजाकर उनम? सूयO के घोड़= को भी मात करने वाले घोड़े
जोते॥3॥

* दोउ रथ ^चर भूप पहं आने। नहं सारद पहं जाहं बखाने॥
राज समाजु एक रथ साजा। दस
ू र तेज पज
ुं अ त tाजा॥4॥
भावाथ#:-दोन= संद
ु र रथ वे राजा दशरथ के पास ले आए, िजनकM संद
ु रता का वणOन सरAवती से
भी नह.ं हो सकता। एक रथ पर राजसी सामान सजाया गया और दस
ू रा जो तेज का पज
ुं और
अNय7त ह. शोभायमान था,॥4॥

दोहा :
* तेहं रथ ^चर ब0स[ठ कहुँ हर,ष चढ़ाई नरे सु।
आपु चढ़े उ Aयंदन सु0म!र हर गुर गौ!र गनेसु॥301॥
भावाथ#:-उस संद
ु र रथ पर राजा व0श[ठजी को हषO पव
ू क
O चढ़ाकर Bफर Aवयं 0शव, ग^
ु , गौर.
(पावOती) और गणेशजी का Aमरण करके (दस
ू रे ) रथ पर चढ़े ॥301॥

चौपाई :
* सहत ब0स[ठ सोह नप
ृ कैस?। सुर गुर संग परु ं दर जैस?॥
क!र कुल र. त बेद 8बध राऊ। दे Rख सबह सब भाँ त बनाऊ॥1॥
भावाथ#:-व0श[ठजी के साथ (जाते हुए) राजा दशरथजी कैसे शो0भत हो रहे हP, जैसे दे व गु^
बहृ Aप तजी के साथ इ7o ह=। वेद कM ,वध से और कुल कM र. त के अनस ु ार सब कायO करके
तथा सबको सब कार से सजे दे खकर,॥1॥

* स0ु म!र रामु गरु आयसु पाई। चले मह.प त संख बजाई॥
हरषे 8बबध
ु 8बलोBक बराता। बरषहं सम
ु न स ुम ग
ं ल दाता॥2॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी का Aमरण करके, गु^ कM आgा पाकर प4
ृ वी प त दशरथजी शंख
बजाकर चले। बारात दे खकर दे वता ह,षOत हुए और सुंदर मंगलदायक फूल= कM वषाO करने
लगे॥2॥

* भयउ कोलाहल हय गय गाजे। Xयोम बरात बाजने बाजे॥


सरु नर ना!र सम
ु ंगल गा}। सरस राग बाजहं सहना}॥3॥
भावाथ#:-बड़ा शोर मच गया, घोड़े और हाथी गरजने लगे। आकाश म? और बारात म? (दोन=
जगह) बाजे बजने लगे। दे वांगनाएँ और मन[ु य= कM िA-याँ सद
ुं र मंगलगान करने लगीं और
रसीले राग से शहनाइयाँ बजने लगीं॥3॥

* घंट घंट धु न बर न न जाह.ं। सरव करहं पाइक फहराह.ं॥


करहं 8बदष
ू क कौतक
ु नाना। हास कुसल कल गान सुजाना॥4॥
भावाथ#:-घंटे-घंटय= कM ~व न का वणOन नह.ं हो सकता। पैदल चलने वाले सेवकगण अथवा
प{टे बाज कसरत के खेल कर रहे हP और फहरा रहे हP (आकाश म? ऊँचे उछलते हुए जा रहे हP।)
हँसी करने म? नपण
ु और सुंदर गाने म? चतुर ,वदष
ू क (मसखरे ) तरह-तरह के तमाशे कर रहे
हP॥4॥

दोहा :
* तुरग नचावहं कुअँर बर अक न मद
ृ ं ग नसान।
नागर नट चतवहं चBकत डगहं न ताल बँधान॥302॥
भावाथ#:-सुंदर राजकुमार मद
ृ ं ग और नगाड़े के शXद सुनकर घोड़= को उ7ह.ं के अनुसार इस
कार नचा रहे हP Bक वे ताल के बंधान से जरा भी ƒडगते नह.ं हP। चतुर नट चBकत होकर यह
दे ख रहे हP॥302॥

चौपाई :
* बनइ न बरनत बनी बराता। होहं सगुन सुंदर सभ
ु दाता॥
चारा चाषु बाम द0स लेई। मनहुँ सकल मंगल कह दे ई॥1॥
भावाथ#:-बारात ऐसी बनी है Bक उसका वणOन करते नह.ं बनता। सद
ुं र शुभदायक शकुन हो रहे
हP। नीलकंठ पWी बा} ओर चारा ले रहा है , मानो सJपण
ू O मंगल= कM सूचना दे रहा हो॥।1॥

* दाहन काग सुखेत सहु ावा। नकुल दरसु सब काहूँ पावा॥


सानक
ु ू ल बह 8-8बध बयार.। सघट सबाल आव बर नार.॥2॥
भावाथ#:-दाहनी ओर कौआ सुंदर खेत म? शोभा पा रहा है । नेवले का दशOन भी सब Bकसी ने
पाया। तीन= कार कM (शीतल, मंद, सुगं धत) हवा अनक
ु ू ल दशा म? चल रह. है। $े[ठ
(सुहागनी) िA-याँ भरे हुए घड़े और गोद म? बालक 0लए आ रह. हP॥2॥

* लोवा Bफ!र Bफ!र दरसु दे खावा। सरु भी सनमख


ु 0ससु ह ,पआवा॥
मग
ृ माला Bफ!र दाह न आई। मंगल गन जनु द.ि7ह दे खाई॥3॥
भावाथ#:-लोमड़ी Bफर-Bफरकर (बार-बार) दखाई दे जाती है । गाय? सामने खड़ी बछड़= को दध

,पलाती हP। ह!रन= कM टोल. (बा} ओर से) घूमकर दाहनी ओर को आई, मानो सभी मंगल= का
समह
ू दखाई दया॥3॥

* छे मकर. कह छे म 8बसेषी। Aयामा बाम सुत^ पर दे खी॥


सनमख
ु आयउ दध अ^ मीना। कर पA
ु तक दइ
ु 8ब बीना॥4॥
भावाथ#:-Wेमकर. (सफेद 0सरवाल. चील) ,वशेष fप से Wेम (कZयाण) कह रह. है । /यामा बा}
ओर सुंदर पेड़ पर दखाई पड़ी। दह., मछल. और दो ,वkवान CाDमण हाथ म? पुAतक 0लए हुए
सामने आए॥4॥

दोहा :
* मंगलमय कZयानमय अ0भमत फल दातार।
जनु सब साचे होन हत भए सगन
ु एक बार॥303॥
भावाथ#:-सभी मंगलमय, कZयाणमय और मनोवां छत फल दे ने वाले शकुन मानो सqचे होने के
0लए एक ह. साथ हो गए॥303॥

चौपाई :
* मंगल सगन
ु सुगम सब ताक?। सगुन CDम सद
ुं र सुत जाक?॥
राम स!रस ब^ दल
ु ह न सीता। समधी दसरथु जनकु पन
ु ीता॥1॥
भावाथ#:-Aवयं सगण
ु CDम िजसके सद
ंु र प-
ु हP, उसके 0लए सब मंगल शकुन सल
ु भ हP। जहाँ $ी
रामच7oजी सर.खे दZ
ू हा और सीताजी जैसी दल
ु हन हP तथा दशरथजी और जनकजी जैसे प,व-
समधी हP,॥1॥

* सु न अस Xयाहु सगन
ु सब नाचे। अब कM7हे 8बरं च हम साँच॥

एह 8बध कM7ह बरात पयाना। हय गय गाजहं हने नसाना॥2॥
भावाथ#:-ऐसा Xयाह सन
ु कर मानो सभी शकुन नाच उठे (और कहने लगे-) अब CDमाजी ने
हमको सqचा कर दया। इस तरह बारात ने Aथान Bकया। घोड़े, हाथी गरज रहे हP और नगाड़=
पर चोट लग रह. है ॥2॥

* आवत जा न भानक
ु ु ल केतू। स!रति7ह जनक बँधाए सेत॥

बीच-बीच बर बास बनाए। सुरपरु स!रस संपदा छाए॥3॥
भावाथ#:-सूयव
O श
ं के पताका Aवfप दशरथजी को आते हुए जानकर जनकजी ने नदय= पर पल ु
बँधवा दए। बीच-बीच म? ठहरने के 0लए सद
ुं र घर (पड़ाव) बनवा दए, िजनम? दे वलोक के
समान सJपदा छाई है ,॥3॥

* असन सयन बर बसन सह


ु ाए। पावहं सब नज नज मन भाए॥
नत नत
ू न सख
ु लRख अनक
ु ू ले। सकल बरा त7ह मंदर भल
ू े॥4॥
भावाथ#:-और जहाँ बारात के सब लोग अपने-अपने मन कM पसंद के अनुसार सुहावने उTम
भोजन, 8बAतर और वA- पाते हP। मन के अनक
ु ू ल नNय नए सुख= को दे खकर सभी बारा तय=
को अपने घर भूल गए॥4॥

दोहा :
* आवत जा न बरात बर सु न गहगहे नसान।
सिज गज रथ पदचर तरु ग लेन चले अगवान॥304॥
भावाथ#:-बड़े जोर से बजते हुए नगाड़= कM आवाज सुनकर $े[ठ बारात को आती हुई जानकर
अगवानी करने वाले हाथी, रथ, पैदल और घोड़े सजाकर बारात लेने चले॥304॥

मासपारायण दसवाँ वाम

बारात का जनकपुर म आना और /वागता द

चौपाई :
* कनक कलस भ!र कोपर थारा। भाजन ल0लत अनेक कारा॥
भरे सुधा सम सब पकवाने। नाना भाँ त न जाहं बखाने॥1॥
भावाथ#:-(दध
ू , शबOत, ठं डाई, जल आद से) भरकर सोने के कलश तथा िजनका वणOन नह.ं हो
सकता ऐसे अमतृ के समान भाँ त-भाँ त के सब पकवान= से भरे हुए परात, थाल आद
अनेक कार के संुदर बतOन,॥1॥

* फल अनेक बर बAतु सुहा}। हर,ष भ? ट हत भूप पठा}॥


भूषन बसन महाम न नाना। खग मग ृ हय गय बहु8बध जाना॥2॥
भावाथ#:-उTम फल तथा और भी अनेक= संद
ु र वAतए
ु ँ राजा ने ह,षOत होकर भ? ट के 0लए भेजीं।
गहने, कपड़े, नाना कार कM मZ
ू यवान मRणयाँ (रNन), पWी, पशु, घोड़े, हाथी और बहुत
तरह कM सवा!रयाँ,॥2॥

* मंगल सगनु सुगंध सुहाए। बहुत भाँ त महपाल पठाए॥


दध चउरा उपहार अपारा। भ!र भ!र काँव!र चले कहारा॥3॥
भावाथ#:-तथाबहुत कार के सुगंधत एवं सुहावने मंगल ocय और शगन
ु के पदाथO राजा ने
भेजे। दह., चउड़ा और अगRणत उपहार कM चीज? काँवर= म? भर-भरकर कहार चले॥3॥

* अगवान7ह जब द.Rख बराता। उर आनंद ु पल


ु क भर गाता॥
दे Rख बनाव सहत अगवाना। मु दत बरा त7ह हने नसाना॥4॥
भावाथ#:-अगवानी करने वाल= को जब बारात दखाई द., तब उनके sदय म? आनंद छा गया
और शर.र रोमांच से भर गया। अगवान= को सज-धज के साथ दे खकर बारा तय= ने स7न
होकर नगाड़े बजाए॥4॥

दोहा :
* हर,ष परसपर 0मलन हत कछुक चले बगमेल।
जनु आनंद समo
ु दइ
ु 0मलत 8बहाइ सुबेल॥305॥
भावाथ#:-(बाराती तथा अगवान= म? से) कुछ लोग परAपर 0मलने के 0लए हषO के मारे बाग
छोड़कर (सरपट) दौड़ चले और ऐसे 0मले मानो आनंद के दो समo
ु मयाOदा छोड़कर 0मलते
ह=॥305॥

चौपाई :
* बर,ष सुमन सुर संुद!र गावहं। मुदत दे व दं द
ु भ
ु ीं बजावहं॥
बAतु सकल राखीं नप
ृ आग? । 8बनय कMि7ह त7ह अ त अनरु ाग? ॥1॥
भावाथ#:-दे वसंद
ु !रयाँ फूल बरसाकर गीत गा रह. हP और दे वता आनंदत होकर नगाड़े बजा रहे
हP। (अगवानी म? आए हुए) उन लोग= ने सब चीज? दशरथजी के आगे रख द.ं और अNय7त
ेम से ,वनती कM॥1॥

* ेम समेत रायँ सबु ल.7हा। भै बकसीस जाचकि7ह द.7हा॥


क!र पूजा मा7यता बड़ाई। जनवासे कहुँ चले लवाई॥2॥
भावाथ#:-राजा दशरथजी ने ेम सहत सब वAतएु ँ ले ल.ं, Bफर उनकM बŠशीश? होने लगीं और
वे याचक= को दे द. ग}। तदन7तर पूजा, आदर-सNकार और बड़ाई करके अगवान लोग
उनको जनवासे कM ओर 0लवा ले चले॥2॥

* बसन 8बच- पाँवड़े परह.ं। दे Rख धनद ु धन मद ु प!रहरह.ं॥


अ त संद ु र द.7हे उ जनवासा। जहँ सब कहुँ सब भाँ त सपु ासा॥3॥
भावाथ#:-,वलWण वA-= के पाँवड़े पड़ रहे हP, िज7ह? दे खकर कुबेर भी अपने धन का अ0भमान

छोड़ दे ते हP। बड़ा संद


ु र जनवासा दया गया, जहाँ सबको सब कार का सभ
ु ीता था॥3॥

* जानी 0सयँ बरात पुर आई। कछु नज महमा गट जनाई॥


sदयँ सु0म!र सब 0सkध बोला}। भप ू पहुनई करन पठा}॥4॥
भावाथ#:-सीताजी ने बारात जनकपुर म? आई जानकर अपनी कुछ महमा कट करके
दखलाई। sदय म? Aमरणकर सब 0सkधय= को बल
ु ाया और उ7ह? राजा दशरथजी कM
मेहमानी करने के 0लए भेजा॥4॥

दोहा :
* 0सध सब 0सय आयसु अक न ग} जहाँ जनवास।
0लएँ संपदा सकल सुख सुरपुर भोग 8बलास॥306॥
भावाथ#:-सीताजी कM आgा सुनकर सब 0सkधयाँ जहाँ जनवासा था, वहाँ सार. सJपदा, सुख
और इंoपुर. के भोग-,वलास को 0लए हुए ग}॥306॥

चौपाई :
* नज नज बास 8बलोBक बराती। सुर सुख सकल सुलभ सब भाँती॥
8बभव भेद कछु कोउ न जाना। सकल जनक कर करहं बखाना॥1॥
भावाथ#:-बारा तय= ने अपने-अपने ठहरने के Aथान दे खे तो वहाँ दे वताओं के सब सुख= को सब
कार से सल
ु भ पाया। इस ऐ/वयO का कुछ भी भेद कोई जान न सका। सब जनकजी कM
बड़ाई कर रहे हP॥1॥

* 0सय महमा रघन


ु ायक जानी। हरषे sदयँ हे तु पहचानी॥
,पतु आगमनु सुनत दोउ भाई। sदयँ न अ त आनंद ु अमाई॥2॥
भावाथ#:-$ी रघन
ु ाथजी यह सब सीताजी कM महमा जानकर और उनका ेम पहचानकर sदय
म? ह,षOत हुए। ,पता दशरथजी के आने का समाचार सुनकर दोन= भाइय= के sदय म? महान
आनंद समाता न था॥2॥

* सकुच7ह कह न सकत ग^


ु पाह.ं। ,पतु दरसन लालचु मन माह.ं॥
8बAवा0म- 8बनय बƒड़ दे खी। उपजा उर संतोषु 8बसेषी॥3॥
भावाथ#:-संकोचवश वे ग^
ु ,व/वा0म-जी से कह नह.ं सकते थे, पर7तु मन म? ,पताजी के
दशOन= कM लालसा थी। ,व/वा0म-जी ने उनकM बड़ी न„ता दे खी, तो उनके sदय म? बहुत
संतोष उNप7न हुआ॥3॥

* हर,ष बंधु दोउ sदयँ लगाए। पल


ु क अंग अंबक जल छाए॥
चले जहाँ दसरथु जनवासे। मनहुँ सरोबर तकेउ ,पआसे॥4॥
भावाथ#:- स7न होकर उ7ह=ने दोन= भाइय= को sदय से लगा 0लया। उनका शर.र पल
ु Bकत हो
गया और ने-= म? ( ेमा$ुओं का) जल भर आया। वे उस जनवासे को चले, जहाँ दशरथजी
थे। मानो सरोवर यासे कM ओर ल'य करके चला हो॥4॥

दोहा :
* भप
ू 8बलोके जबहं मु न आवत सुत7ह समेत।
उठे हर,ष सुख0संधु महुँ चले थाह सी लेत॥307॥
भावाथ#:-जब राजा दशरथजी ने पु-= सहत म ु न को आते दे खा, तब वे ह,षOत होकर उठे और
सख
ु के समुo म? थाह सी लेते हुए चले॥307॥

चौपाई :
* म ु नह दं ड वत कM7ह मह.सा। बार बार पद रज ध!र सीसा॥
कौ0सक राउ 0लए उर लाई। कह असीस पूछv कुसलाई॥1॥
भावाथ#:-प4
ृ वीप त दशरथजी ने म ु न कM चरणध0ू ल को बारं बार 0सर पर चढ़ाकर उनको
दxडवत ् णाम Bकया। ,व/वा0म-जी ने राजा को उठाकर sदय से लगा 0लया और आशीवाOद
दे कर कुशल पछ
ू v॥1॥

* पु न दं ड वत करत दोउ भाई। दे Rख नप


ृ त उर सुखु न समाई॥
सुत हयँ लाइ दस
ु ह दख
ु मेटे। मत
ृ क सर.र ान जनु भ? टे॥2॥
भावाथ#:-Bफर दोन= भाइय= को दxडवत ् णाम करते दे खकर राजा के sदय म? सुख समाया
नह.ं। पु-= को (उठाकर) sदय से लगाकर उ7ह=ने अपने (,वयोगज नत) दःु सह दःु ख को
0मटाया। मानो मत
ृ क शर.र को ाण 0मल गए ह=॥2॥

* प ु न ब0स[ठ पद 0सर त7ह नाए। ेम मु दत मु नबर उर लाए॥


8ब बंद
ृ बंदे दह
ु ुँ भा}। मनभावती असीस? पा}॥3॥
भावाथ#:-Bफर उ7ह=ने व0श[ठजी के चरण= म? 0सर नवाया। मु न $े[ठ ने ेम के आनंद म?
उ7ह? sदय से लगा 0लया। दोन= भाइय= ने सब CाDमण= कM वंदना कM और मनभाए
आशीवाOद पाए॥3॥

* भरत सहानज
ु कM7ह नामा। 0लए उठाइ लाइ उर रामा॥
हरषे लखन दे Rख दोउ tाता। 0मले ेम प!रप!ू रत गाता॥4॥
भावाथ#:-भरतजी ने छोटे भाई श-
ु न सहत $ी रामच7oजी को णाम Bकया। $ी रामजी ने
उ7ह? उठाकर sदय से लगा 0लया। ल'मणजी दोन= भाइय= को दे खकर ह,षOत हुए और ेम
से प!रपूणO हुए शर.र से उनसे 0मले॥4॥

दोहा :
* परु जन प!रजन जा तजन जाचक मं-ी मीत।
0मले जथा8बध सबह भु परम कृपाल 8बनीत॥308॥
भावाथ#:-तद7तर परम कृपालु और ,वनयी $ी रामच7oजी अयो~यावा0सय=, कुटुिJबय=, जा त
के लोग=, याचक=, मं8-य= और 0म-= सभी से यथा योdय 0मले॥308॥

* रामह दे Rख बरात जड़
ु ानी। ी त Bक र. त न जा त बखानी॥
नप
ृ समीप सोहहं सुत चार.। जनु धन धरमादक तनध
ु ार.॥1॥
$ी रामच7oजी को दे खकर बारात शीतल हुई (राम के ,वयोग म? सबके sदय म? जो
भावाथ#:-

आग जल रह. थी, वह शांत हो गई)। ी त कM र. त का बखान नह.ं हो सकता। राजा के


पास चार= प-
ु ऐसी शोभा पा रहे हP, मानो अथO, धमO, काम और मोW शर.र धारण Bकए हुए
ह=॥1॥

चौपाई :
* सुत7ह समेत दसरथह दे खी। मु दत नगर नर ना!र 8बसेषी॥
सम
ु न ब!र0स सरु हनहं नसाना। नाकनट.ं नाचहं क!र गाना॥2॥
भावाथ#:-पु-=
सहत दशरथजी को दे खकर नगर के A-ी-पु^ष बहुत ह. स7न हो रहे हP।
(आकाश म? ) दे वता फूल= कM वषाO करके नगाड़े बजा रहे हP और असराएँ गा-गाकर नाच रह.
हP॥2॥

* सतानंद अ^ 8ब सचव गन। मागध सूत 8बदष


ु बंद.जन॥
सहत बरात राउ सनमाना। आयसु माग Bफरे अगवाना॥3॥
भावाथ#:-अगवानीम? आए हुए शतानंदजी, अ7य CाDमण, मं-ीगण, मागध, सूत, ,वkवान और
भाट= ने बारात सहत राजा दशरथजी का आदर-सNकार Bकया। Bफर आgा लेकर वे वापस
लौटे ॥3॥
* थम बरात लगन त? आई। तात? पुर मोद ु अधकाई॥
CDमानंद ु लोग सब लहह.ं। बढ़हुँ दवस न0स 8बध सन कहह.ं॥4॥
भावाथ#:-बारात लdन के दन से पहले आ गई है, इससे जनकपुर म? अधक आनंद छा रहा
है । सब लोग CDमानंद ात कर रहे हP और ,वधाता से मनाकर कहते हP Bक दन-रात बढ़
जाएँ (बड़े हो जाएँ)॥4॥

* रामु सीय सोभा अवध सुकृत अवध दोउ राज।


जहँ तहँ पुरजन कहहं अस 0म0ल नर ना!र समाज॥309॥
भावाथ#:- $ी रामच7oजी और सीताजी संुदरता कM सीमा हP और दोन= राजा पुxय कM सीमा हP,
जहाँ-तहाँ जनकपुरवासी A-ी-पु^ष= के समूह इक{ठे हो-होकर यह. कह रहे हP॥309॥

चौपाई :
* जनक सक
ु ृ त मरू त बैदेह.। दसरथ सक
ु ृ त रामु धर? दे ह.॥
इ7ह सम काहुँ न 0सव अवराधे। काहुँ न इ7ह समान फल लाधे॥1॥
भावाथ#:-जनकजी के सुकृत (पुxय) कM मू तO जानकMजी हP और दशरथजी के सुकृत दे ह धारण

Bकए हुए $ी रामजी हP। इन (दोन= राजाओं) के समान Bकसी ने 0शवजी कM आराधना नह.ं
कM और न इनके समान Bकसी ने फल ह. पाए॥1॥

* इ7ह सम कोउ न भयउ जग माह.ं। है नहं कतहूँ होनेउ नाह.ं॥


हम सब सकल सक
ु ृ त कै रासी। भए जग जन0म जनकपुर बासी॥2॥
भावाथ#:-इनके
समान जगत म? न कोई हुआ, न कह.ं है, न होने का ह. है । हम सब भी
सJपण
ू O पx
ु य= कM रा0श हP, जो जगत म? ज7म लेकर जनकपरु के नवासी हुए,॥2॥

* िज7ह जानकM राम छ8ब दे खी। को सुकृती हम स!रस 8बसेषी॥


पु न दे खब रघब
ु ीर 8बआहू। लेब भल. 8बध लोचन लाहू॥3॥
भावाथ#:-और िज7ह=ने जानकMजी और $ी रामच7oजी कM छ8ब दे खी है । हमारे सर.खा ,वशेष

पुxयाNमा कौन होगा! और अब हम $ी रघन


ु ाथजी का ,ववाह दे ख?गे और भल.भाँ त ने-= का
लाभ ल? गे॥3॥

* कहहं परसपर कोBकलबयनीं। एह 8बआहँ बड़ लाभु सुनयनीं॥


बड़? भाग 8बध बात बनाई। नयन अ तथ होइहहं दोउ भाई॥4॥
भावाथ#:-कोयल के समान मधरु बोलने वाल. िA-याँ आपस म? कहती हP Bक हे संुदर ने-=
वाल.! इस ,ववाह म? बड़ा लाभ है । बड़े भाdय से ,वधाता ने सब बात बना द. है , ये दोन=
भाई हमारे ने-= के अ तथ हुआ कर? गे॥4॥

दोहा :
* बारहं बार सनेह बस जनक बोलाउब सीय।
लेन आइहहं बंधु दोउ कोट काम कमनीय॥310॥
भावाथ#:-जनकजी Aनेहवश बार-बार सीताजी को बल
ु ाव? गे और करोड़= कामदे व= के समान संद
ु र
दोन= भाई सीताजी को लेने (,वदा कराने) आया कर? ग॥
े 310॥

चौपाई :
* 8ब8बध भाँ त होइह पहुनाई। , य न काह अस सासुर माई॥
तब तब राम लखनह नहार.। होइहहं सब पुर लोग सुखार.॥1॥
भावाथ#:-तब उनकM अनेक=
कार से पहुनाई होगी। सखी! ऐसी ससुराल Bकसे यार. न होगी!
तब-तब हम सब नगर नवासी $ी राम-ल'मण को दे ख-दे खकर सुखी ह=गे॥1॥

* सRख जस राम लखन कर जोटा। तैसेइ भप ू संग हुइ ढोटा॥


Aयाम गौर सब अंग सुहाए। ते सब कहहं दे Rख जे आए॥2॥
भावाथ#:-हे सखी! जैसा $ी राम-ल'मण का जोड़ा है , वैसे ह. दो कुमार राजा के साथ और भी
हP। वे भी एक /याम और दस ू रे गौर वणO के हP, उनके भी सब अंग बहुत संुदर हP। जो लोग
उ7ह? दे ख आए हP, वे सब यह. कहते हP॥2॥

* कहा एक मP आजु नहारे । जनु 8बरं च नज हाथ सँवारे ॥


भरतु राम ह. कM अनह
ु ार.। सहसा लRख न सकहं नर नार.॥3॥
भावाथ#:-एक ने कहा- मPने आज ह. उ7ह? दे खा है , इतने संुदर हP, मानो CDमाजी ने उ7ह? अपने
हाथ= सँवारा है। भरत तो $ी रामच7oजी कM ह. शकल-सूरत के हP। A-ी-पु^ष उ7ह? सहसा
पहचान नह.ं सकते॥3॥

* लखनु स-स
ु ूदनु एकfपा। नख 0सख ते सब अंग अनप
ू ा॥
मन भावहं मुख बर न न जाह.ं। उपमा कहुँ 8-भुवन कोउ नाह.ं॥4॥
भावाथ#:-ल'मण और श-
ु न दोन= का एक fप है। दोन= के नख से 0शखा तक सभी अंग
अनप
ु म हP। मन को बड़े अqछे लगते हP, पर मुख से उनका वणOन नह.ं हो सकता। उनकM
उपमा के योdय तीन= लोक= म? कोई नह.ं है ॥4॥

छ6द :
* उपमा न कोउ कह दास तल
ु सी कतहुँ क8ब को8बद कहP।
बल 8बनय 8बkया सील सोभा 0संधु इ7ह से एइ अहP॥
पुर ना!र सकल पसा!र अंचल 8बधह बचन सन
ु ावह.ं॥
Xयाहअहुँ चा!रउ भाइ एहं पुर हम सुमंगल गावह.ं॥
भावाथ#:-दास तल
ु सी कहता है क,व और को,वद (,वkवान) कहते हP , इनकM उपमा कह.ं कोई
नह.ं है। बल, ,वनय, ,वkया, शील और शोभा के समुo इनके समान ये ह. हP। जनकपुर कM
सब िA-याँ आँचल फैलाकर ,वधाता को यह वचन (,वनती) सुनाती हP Bक चार= भाइय= का
,ववाह इसी नगर म? हो और हम सब संद
ु र मंगल गाव? ।

सोरठा :
* कहहं परAपर ना!र बा!र 8बलोचन पल
ु क तन।
सRख सबु करब परु ा!र पु7य पयो नध भूप दोउ॥311॥
भावाथ#:-ने-= म? ( ेमा$ुओं का) जल भरकर पल
ु Bकत शर.र से िA-याँ आपस म? कह रह. हP Bक
हे सखी! दोन= राजा पुxय के समुo हP, 8-पुरार. 0शवजी सब मनोरथ पूणO कर? गे॥311॥

चौपाई :
* एह 8बध सकल मनोरथ करह.ं। आनँद उमग उमग उर भरह.ं॥
जे नप
ृ सीय Aवयंबर आए। दे Rख बंधु सब त7ह सख
ु पाए॥1॥
भावाथ#:-इस कार सब मनोरथ कर रह. हP और sदय को उमंग-उमंगकर (उNसाहपव
ू क
O ) आनंद
से भर रह. हP। सीताजी के Aवयंवर म? जो राजा आए थे, उ7ह=ने भी चार= भाइय= को
दे खकर सख
ु पाया॥1॥

* कहत राम जसु 8बसद 8बसाला। नज नज भवन गए महपाला॥


गए बी त कछु दन एह भाँती। मुदत पुरजन सकल बराती॥2॥
भावाथ#:-$ीरामच7oजी का नमOल और महान यश कहते हुए राजा लोग अपने-अपने घर गए।
इस कार कुछ दन बीत गए। जनकपुर नवासी और बाराती सभी बड़े आनंदत हP॥2॥

* मंगल मूल लगन दनु आवा। हम !रतु अगहनु मासु सुहावा॥
wह तथ नखतु जोगु बर बाf। लगन सोध 8बध कM7ह 8बचाf॥3॥
भावाथ#:-मंगल= का मल
ू लdन का दन आ गया। हे मंत ऋतु और सुहावना अगहन का मह.ना
था। wह, तथ, नW-, योग और वार $े[ठ थे। लdन (मुहूत)O शोधकर CDमाजी ने उस पर
,वचार Bकया,॥3॥

* पठै द.ि7ह नारद सन सोई। गनी जनक के गनक7ह जोई॥


सुनी सकल लोग7ह यह बाता। कहहं जो तषी आहं 8बधाता॥4॥
भावाथ#:-और उस (लdन प8-का) को नारदजी के हाथ (जनकजी के यहाँ) भेज दया। जनकजी
के _यो त,षय= ने भी वह. गणना कर रखी थी। जब सब लोग= ने यह बात सुनी तब वे
कहने लगे- यहाँ के _यो तषी भी CDमा ह. हP॥4॥

दोहा :
* धेनध
ु !ू र बेला 8बमल सकल सुमंगल मल
ू ।
8ब 7ह कहे उ 8बदे ह सन जा न सगन
ु अनक
ु ू ल॥312॥
भावाथ#:- नमOल और सभी संद
ु र मंगल= कM मल
ू गोध0ू ल कM प,व- बेला आ गई और अनक
ु ूल
शकुन होने लगे, यह जानकर CाDमण= ने जनकजी से कहा॥312॥
चौपाई :
* उपरोहतह कहे उ नरनाहा। अब 8बलंब कर कारनु काहा॥
सतानंद तब सचव बोलाए। मंगल सकल सािज सब Zयाए॥1॥
भावाथ#:-तब राजा जनक ने पुरोहत शतानंदजी से कहा Bक अब दे र. का iया कारण है । तब
शतानंदजी ने मं8-य= को बुलाया। वे सब मंगल का सामान सजाकर ले आए॥1॥

* संख नसान पनव बहु बाजे। मंगल कलस सगन ु सुभ साजे॥
सभ
ु ग सुआ0स न गावहं गीता। करहं बेद ध ु न 8ब पुनीता॥2॥
भावाथ#:-शंख,
नगाड़े, ढोल और बहुत से बाजे बजने लगे तथा मंगल कलश और शभ ु शकुन
कM वAतए
ु ँ (दध, दवू ाO आद) सजाई ग}। संद
ु र सुहागन िA-याँ गीत गा रह. हP और प,व-
CाDमण वेद कM ~व न कर रहे हP॥2॥

* लेन चले सादर एह भाँती। गए जहाँ जनवास बराती॥


कोसलप त कर दे Rख समाज।ू अ त लघु लाग त7हह सरु राजू॥3॥
भावाथ#:-सब लोग इस कार आदरपूवक
O बारात को लेने चले और जहाँ बारा तय= का जनवासा
था, वहाँ गए। अवधप त दशरथजी का समाज (वैभव) दे खकर उनको दे वराज इ7o भी बहुत
ह. तq
ु छ लगने लगे॥3॥

* भयउ समउ अब धा!रअ पाऊ। यह सु न परा नसानहं घाऊ ॥


गुरह पू छ क!र कुल 8बध राजा। चले संग मु न साधु समाजा॥4॥
भावाथ#:-(उ7ह=ने जाकर ,वनती कM-) समय हो गया, अब पधा!रए। यह सन
ु ते ह. नगाड़= पर
चोट पड़ी। ग^
ु व0श[ठजी से पछ
ू कर और कुल कM सब र. तय= को करके राजा दशरथजी
म ु नय= और साधओ
ु ं के समाज को साथ लेकर चले॥4॥

दोहा :
* भाdय 8बभव अवधेस कर दे Rख दे व CDमाद।
लगे सराहन सहस मुख जा न जनम नज बाद॥313॥
भावाथ#:-अवध नरे श दशरथजी का भाdय और वैभव दे खकर और अपना ज7म cयथO समझकर,
CDमाजी आद दे वता हजार= मुख= से उसकM सराहना करने लगे॥313॥

चौपाई :
* सुर7ह सम
ु ंगल अवस^ जाना। बरषहं सुमन बजाइ नसाना॥
0सव CDमादक 8बबुध बfथा। चढ़े 8बमानि7ह नाना जूथा॥1॥
भावाथ#:-दे वगण संद
ु र मंगल का अवसर जानकर, नगाड़े बजा-बजाकर फूल बरसाते हP। 0शवजी,
CDमाजी आद दे वव7ृ द यथ
ू (टो0लयाँ) बना-बनाकर ,वमान= पर जा चढ़े ॥1॥

* ेम पल
ु क तन sदयँ उछाहू। चले 8बलोकन राम 8बआहू॥
दे Rख जनकपु^ सुर अनरु ागे। नज नज लोक सबहं लघु लागे॥2॥
भावाथ#:-और ेम से पल
ु Bकत शर.र हो तथा sदय म? उNसाह भरकर $ी रामच7oजी का ,ववाह
दे खने चले। जनकपुर को दे खकर दे वता इतने अनरु iत हो गए Bक उन सबको अपने-अपने
लोक बहुत तq
ु छ लगने लगे॥2॥

* चतवहं चBकत 8बच- 8बताना। रचना सकल अलौBकक नाना।


नगर ना!र नर fप नधाना। सुघर सुधरम सस
ु ील सुजाना॥3॥
भावाथ#:-,वच- मंड प को तथा नाना कार कM सब अलौBकक रचनाओं को वे चBकत होकर
दे ख रहे हP। नगर के A-ी-पु^ष fप के भंड ार, सघ
ु ड़, $े[ठ धमाONमा, सुशील और सज
ु ान
हP॥3॥

* त7हह दे Rख सब सुर सरु नार.ं। भए नखत जनु 8बधु उिजआर.ं॥


8बधह भयउ आचरजु 8बसेषी। नज करनी कछु कतहुँ न दे खी॥4॥
भावाथ#:-उ7ह? दे खकर सब दे वता और दे वांगनाएँ ऐसे भाह.न हो गए जैसे च7oमा के उिजयाले

म? तारागण फMके पड़ जाते हP। CDमाजी को ,वशेष आ/चयO हुआ, iय=Bक वहाँ उ7ह=ने अपनी
कोई करनी (रचना) तो कह.ं दे खी ह. नह.ं॥4॥

दोहा :
* 0सवँ समुझाए दे व सब ज न आचरज भुलाहु।
sदयँ 8बचारहु धीर ध!र 0सय रघुबीर 8बआहु॥314॥
भावाथ#:-तब 0शवजी ने सब दे वताओं को समझाया Bक तम
ु लोग आ/चयO म? मत भल
ू ो। sदय
म? धीरज धरकर ,वचार तो करो Bक यह (भगवान कM महामहमामयी नजशिiत) $ी
सीताजी का और (अRखल CDमाxड= के परम ई/वर साWात ् भगवान) $ी रामच7oजी का
,ववाह है ॥314॥

चौपाई :
* िज7ह कर नामु लेत जग माह.ं। सकल अमंगल मूल नसाह.ं॥
करतल होहं पदारथ चार.। तेइ 0सय रामु कहे उ कामार.॥1॥
भावाथ#:-िजनका नाम लेते ह. जगत म? सारे अमंगल= कM जड़ कट जाती है और चार= पदाथO
(अथO, धमO, काम, मोW) मु{ठv म? आ जाते हP, ये वह. (जगत के माता-,पता) $ी
सीतारामजी हP, काम के श-ु 0शवजी ने ऐसा कहा॥1॥

* एह 8बध संभु सरु 7ह समुझावा। पु न आग? बर बसह चलावा॥


दे व7ह दे खे दसरथु जाता। महामोद मन पुलBकत गाता॥2॥
भावाथ#:-इस कार 0शवजी ने दे वताओं को समझाया और Bफर अपने $े[ठ बैल नंद./वर को
आगे बढ़ाया। दे वताओं ने दे खा Bक दशरथजी मन म? बड़े ह. स7न और शर.र से पुलBकत
हुए चले जा रहे हP॥2॥

* साधु समाज संग महदे वा। जनु तनु धर? करहं सख


ु सेवा॥
सोहत साथ सुभग सत
ु चार.। जनु अपबरग सकल तनध
ु ार.॥3॥
भावाथ#:-उनके साथ (परम हषOयi
ु त) साधओ
ु ं और CाDमण= कM मंड ल. ऐसी शोभा दे रह. है,
मानो समAत सख
ु शर.र धारण करके उनकM सेवा कर रहे ह=। चार= संद
ु र पु- साथ म? ऐसे
सुशो0भत हP, मानो सJपूणO मोW (सालोiय, सामीय, साfय, साय_
ु य) शर.र धारण Bकए
हुए ह=॥3॥

* मरकत कनक बरन बर जोर.। दे Rख सुर7ह भै ी त न थोर.॥


प ु न रामह 8बलोBक हयँ हरषे। नप
ृ ह सराह सुमन त7ह बरषे॥4॥
भावाथ#:-मरकतमRण और सव
ु णO के रं ग कM संुदर जोƒड़य= को दे खकर दे वताओं को कम ी त
नह.ं हुई (अथाOत ् बहुत ह. ी त हुई)। Bफर रामच7oजी को दे खकर वे sदय म? (अNय7त)
ह,षOत हुए और राजा कM सराहना करके उ7ह=ने फूल बरसाए॥4॥

दोहा :
* राम fपु नख 0सख सुभग बारहं बार नहा!र।
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरा!र॥315॥
भावाथ#:-नख
से 0शखा तक $ी रामच7oजी के संद
ु र fप को बार-बार दे खते हुए पावOतीजी
सहत $ी 0शवजी का शर.र पल
ु Bकत हो गया और उनके ने- ( ेमा$ओ ु ं के) जल से भर
गए॥315॥

चौपाई :
* केBक कंठ द ु त Aयामल अंगा। तƒड़त 8ब नंदक बसन सुरंगा॥
Xयाह 8बभूषन 8ब8बध बनाए। मंगल सब सब भाँ त सुहाए॥1॥
भावाथ#:-रामजी का मोर के कंठ कM सी कां तवाला (ह!रताभ) /याम शर.र है । 8बजल. का
अNय7त नरादर करने वाले काशमय संद
ु र (पीत) रं ग के वA- हP। सब मंगल fप और सब
कार के संद
ु र भाँ त-भाँ त के ,ववाह के आभष
ू ण शर.र पर सजाए हुए हP॥1॥

* सरद 8बमल 8बधु बदनु सुहावन। नयन नवल राजीव लजावन॥


सकल अलौBकक संद
ु रताई। कह न जाई मनह.ं मन भाई॥2॥
भावाथ#:-उनका संुदर मुख शरNपूRणOमा के नमOल च7oमा के समान और (मनोहर) ने- नवीन
कमल को लजाने वाले हP। सार. संद
ु रता अलौBकक है । (माया कM बनी नह.ं है, दcय
सिqचदान7दमयी है ) वह कह.ं नह.ं जा सकती, मन ह. मन बहुत , य लगती है ॥2॥

* बंधु मनोहर सोहहं संगा। जात नचावत चपल तरु ं गा।


राजकुअँर बर बािज दे खावहं। बंस संसक 8ब!रद सुनावहं॥3॥
भावाथ#:-साथ
म? मनोहर भाई शो0भत हP, जो चंचल घोड़= को नचाते हुए चले जा रहे हP।
राजकुमार $े[ठ घोड़= को (उनकM चाल को) दखला रहे हP और वंश कM शंसा करने वाले
(मागध भाट) ,व^दावल. सुना रहे हP॥3॥

* जेह तरु ं ग पर रामु 8बराजे। ग त 8बलोBक खगनायकु लाजे॥


कह न जाइ सब भाँ त सुहावा। बािज बेषु जनु काम बनावा॥4॥
भावाथ#:-िजस घोड़े पर $ी रामजी ,वराजमान हP, उसकM (तेज) चाल दे खकर ग^ड़ भी लजा
जाते हP, उसका वणOन नह.ं हो सकता, वह सब कार से संद
ु र है । मानो कामदे व ने ह. घोड़े
का वेष धारण कर 0लया हो॥4॥

छ6द :
* जनु बािज बेषु बनाइ मन0सजु राम हत अ त सोहई।
आपन? बय बल fप गन
ु ग त सकल भव
ु न 8बमोहई॥
जगमगत जीनु जराव जो त सुमो त म न मा नक लगे।
BकंBक न ललाम लगामु ल0लत 8बलोBकसुर नर मु न ठगे॥
भावाथ#:-मानो $ी रामच7oजी के 0लए कामदे व घोड़े का वेश बनाकर अNय7त शो0भत हो रहा
है । वह अपनी अवAथा, बल, fप, गण
ु और चाल से समAत लोक= को मोहत कर रहा है।
उसकM संद
ु र घघ
ुँ f लगी ल0लत लगाम को दे खकर दे वता, मन[ु य और मु न सभी ठगे जाते
हP।

दोहा :
* भु मनसहं लयल.न मनु चलत बािज छ8ब पाव।
भ,ू षत उड़गन तƒड़त घनु जनु बर बरह नचाव॥316॥
भावाथ#:-भु कM इqछा म? अपने मन को ल.न Bकए चलता हुआ वह घोड़ा बड़ी शोभा पा रहा
है । मानो तारागण तथा 8बजल. से अलंकृत मेघ संद
ु र मोर को नचा रहा हो॥316॥

चौपाई :
* जेहं बर बािज रामु असवारा। तेह सारदउ न बरनै पारा॥
संक^ राम fप अनरु ागे। नयन पंचदस अ त , य लागे॥1॥
भावाथ#:-िजस $े[ठ घोड़े पर $ी रामच7oजी सवार हP, उसका वणOन सरAवतीजी भी नह.ं कर
सकतीं। शंकरजी $ी रामच7oजी के fप म? ऐसे अनरु iत हुए Bक उ7ह? अपने पंoह ने- इस
समय बहुत ह. यारे लगने लगे॥1॥

* ह!र हत सहत रामु जब जोहे। रमा समेत रमाप त मोहे ॥


नरRख राम छ8ब 8बध हरषाने। आठइ नयन जा न प छताने॥2॥
भावाथ#:-भगवान ,व[णु ने जब ेम सहत $ी राम को दे खा, तब वे (रमणीयता कM म ू तO) $ी
ल'मीजी के प त $ी ल'मीजी सहत मोहत हो गए। $ी रामच7oजी कM शोभा दे खकर
CDमाजी बड़े स7न हुए, पर अपने आठ ह. ने- जानकर पछताने लगे॥2॥

* सरु सेनप उर बहुत उछाहू। 8बध ते डेवढ़ लोचन लाहू॥


रामह चतव सरु े स सज
ु ाना। गौतम $ापु परम हत माना॥3॥
भावाथ#:-दे वताओं के सेनाप त Aवा0म का तOक के sदय म? बड़ा उNसाह है , iय=Bक वे CDमाजी
से …योढ़े अथाOत बारह ने-= से रामदशOन का संद
ु र लाभ उठा रहे हP। सुजान इ7o (अपने
हजार ने-= से) $ी रामच7oजी को दे ख रहे हP और गौतमजी के शाप को अपने 0लए परम
हतकर मान रहे हP॥3॥

* दे व सकल सुरप तह 0सहाह.ं। आजु परु ं दर सम कोउ नाह.ं॥


मु दत दे वगन रामह दे खी। नप
ृ समाज दहु ु ँ हरषु 8बसेषी॥4॥
भावाथ#:-सभी दे वता दे वराज इ7o से ईषाO कर रहे हP (और कह रहे हP) Bक आज इ7o के
समान भाdयवान दस
ू रा कोई नह.ं है । $ी रामच7oजी को दे खकर दे वगण स7न हP और
दोन= राजाओं के समाज म? ,वशेष हषO छा रहा है ॥4॥

छ6द :
* अ त हरषु राजसमाज दहु ु द0स दं द
ु भ
ु ीं बाजहं घनी।
बरषहं सुमन सुर हर,ष कह जय जय त जय रघक
ु ु लमनी॥
एह भाँ त जा न बरात आवत बाजने बहु बाजह.ं।
रानी सुआ0स न बो0ल प!रछ न हे तु मंगल साजह.ं॥
भावाथ#:-दोन= ओर से राजसमाज म? अNय7त हषO है और बड़े जोर से नगाड़े बज रहे हP। दे वता
स7न होकर और 'रघक
ु ु लमRण $ी राम कM जय हो, जय हो, जय हो' कहकर फूल बरसा
रहे हP। इस कार बारात को आती हुई जानकर बहुत कार के बाजे बजने लगे और रानी
सुहागन िA-य= को बल
ु ाकर परछन के 0लए मंगल ocय सजाने लगीं॥

दोहा :
* सिज आरती अनेक 8बध मंगल सकल सँवा!र।
चल.ं मुदत प!रछ न करन गजगा0म न बर ना!र॥317॥
भावाथ#:-अनेक कार से आरती सजकर और समAत मंगल ocय= को यथायोdय सजाकर
गजगा0मनी (हाथी कM सी चाल वाल.) उTम िA-याँ आनंदपव
ू Oक परछन के 0लए चल.ं॥317॥

चौपाई :
* 8बधब
ु दनीं सब सब मग
ृ लोच न। सब नज तन छ8ब र त मद ु मोच न॥
पहर? बरन बरन बर चीरा। सकल 8बभूषन सज? सर.रा॥1॥
भावाथ#:-सभी िA-याँ च7oमुखी (च7oमा के समान मुख वाल.) और सभी मग
ृ लोचनी (ह!रण
कM सी आँख= वाल.) हP और सभी अपने शर.र कM शोभा से र त के गवO को छुड़ाने वाल. हP।
रं ग-रं ग कM संद
ु र साƒड़याँ पहने हP और शर.र पर सब आभूषण सजे हुए हP॥1॥

* सकल सुमंगल अंग बनाएँ। करहं गान कलकंठ लजाएँ॥


कंकन BकंBक न नूपुर बाजहं। चा0ल 8बलोBक काम गज लाजहं॥2॥
भावाथ#:-समAतअंग= को संुदर मंगल पदाथ‹ से सजाए हुए वे कोयल को भी लजाती हुई
(मधरु Aवर से) गान कर रह. हP। कंगन, करधनी और नप ू ुर बज रहे हP। िA-य= कM चाल
दे खकर कामदे व के हाथी भी लजा जाते हP॥2॥

* बाजहं बाजने 8ब8बध कारा। नभ अ^ नगर सुमंगलचारा॥


सची सारदा रमा भवानी। जे सुर तय सु च सजह सयानी॥3॥
भावाथ#:-अनेक कार के बाजे बज रहे हP, आकाश और नगर दोन= Aथान= म? संुदर मंगलाचार
हो रहे हP। शची (इ7oाणी), सरAवती, ल'मी, पावOती और जो Aवभाव से ह. प,व- और
सयानी दे वांगनाएँ थीं,॥3॥

* कपट ना!र बर बेष बनाई। 0मल. सकल र नवासहं जाई॥


करहं गान कल मंगल बानीं। हरष 8बबस सब काहुँ न जानीं॥4॥
भावाथ#:-वे सब कपट से संुदर A-ी का वेश बनाकर र नवास म? जा 0मल.ं और मनोहर वाणी
से मंगलगान करने लगीं। सब कोई हषO के ,वशेष वश थे, अतः Bकसी ने उ7ह? पहचाना
नह.ं॥4॥

छ6द :
* को जान केह आनंद बस सब CDमु बर प!रछन चल.।
कल गान मधरु नसान बरषहं सुमन सुर सोभा भल.॥
आनंदकंद ु 8बलोBक दल
ू हु सकलहयँ हर,षत भई।
अंभोज अंबक अंबु उमग सुअंग पुलकाव0ल छई॥
भावाथ#:-कौन
Bकसे जाने-पहचाने! आनंद के वश हुई सब दल ू ह बने हुए CDम का परछन
करने चल.ं। मनोहर गान हो रहा है । मधरु -मधरु नगाड़े बज रहे हP, दे वता फूल बरसा रहे हP,
बड़ी अqछv शोभा है । आनंदक7द दल ू ह को दे खकर सब िA-याँ sदय म? ह,षOत हु}। उनके
कमल सर.खे ने-= म? ेमा$ओु ं का जल उमड़ आया और संुदर अंग= म? पुलकावल. छा गई॥

दोहा :
* जो सुखु भा 0सय मातु मन दे Rख राम बर बेषु।
सो न सकहं कह कलप सत सहस सारदा सेषु॥318॥
$ी रामच7oजी का वर वेश दे खकर सीताजी कM माता सुनयनाजी के मन म? जो सुख हुआ,
उसे हजार= सरAवती और शेषजी सौ कZप= म? भी नह.ं कह सकते (अथवा लाख= सरAवती
और शेष लाख= कZप= म? भी नह.ं कह सकते)॥318॥

चौपाई :
* नयन नी^ हट मंगल जानी। प!रछ न करहं मुदत मन रानी॥
बेद 8बहत अ^ कुल आचाf। कM7ह भल. 8बध सब Xयवहाf॥1॥
भावाथ#:-मंगल अवसर जानकर ने-= के जल को रोके हुए रानी स7न मन से परछन कर रह.
हP। वेद= म? कहे हुए तथा कुलाचार के अनस
ु ार सभी cयवहार रानी ने भल.भाँ त Bकए॥1॥

* पंच सबद ध ु न मंगल गाना। पट पाँवड़े परहं 8बध नाना॥


क!र आरती अरघु त7ह द.7हा। राम गमनु मंड प तब कM7हा॥2॥
भावाथ#:-पंचशXद (तं-ी, ताल, झाँझ, नगारा और तरु ह.- इन पाँच कार के बाज= के शXद),
पंच~व न (वेद~व न, वि7द~व न, जय~व न, शंख~व न और हुलू~व न) और मंगलगान हो रहे
हP। नाना कार के वA-= के पाँवड़े पड़ रहे हP। उ7ह=ने (रानी ने) आरती करके अयO दया,
तब $ी रामजी ने मंड प म? गमन Bकया॥2॥

* दसरथु सहत समाज 8बराजे। 8बभव 8बलोBक लोकप त लाजे॥


समयँ समयँ सुर बरषहं फूला। सां त पढ़हं महसुर अनुकूला॥3॥
भावाथ#:-दशरथजी
अपनी मंड ल. सहत ,वराजमान हुए। उनके वैभव को दे खकर लोकपाल भी
लजा गए। समय-समय पर दे वता फूल बरसाते हP और भूदेव CाDमण समयानक ु ू ल शां त
पाठ करते हP॥3॥

* नभ अ^ नगर कोलाहल होई। आप न पर कछु सुनइ न कोई॥


एह 8बध रामु मंड पहं आए। अरघु दे इ आसन बैठाए॥4॥
भावाथ#:-आकाश और नगर म? शोर मच रहा है। अपनी-पराई कोई कुछ भी नह.ं सुनता। इस
कार $ी रामच7oजी मंड प म? आए और अयO दे कर आसन पर बैठाए गए॥4॥

छ6द :
* बैठा!र आसन आरती क!र नरRख ब^ सख
ु ु पावह.ं।
म न बसन भूषन भ!ू र वारहं ना!र मंगल गावह.ं॥
CDमाद सुरबर 8ब बेष बनाइ कौतक
ु दे खह.ं।
अवलोBक रघक
ु ु ल कमल र8ब छ8ब सुफल जीवन लेखह.ं॥
भावाथ#:-आसन पर बैठाकर, आरती करके दल
ू ह को दे खकर िA-याँ सुख पा रह. हP। वे ढे र के
ढे र मRण, वA- और गहने नछावर करके मंगल गा रह. हP। CDमा आद $े[ठ दे वता
CाDमण का वेश बनाकर कौतक
ु दे ख रहे हP। वे रघक
ु ु ल fपी कमल को फुिZलत करने वाले
सूयO $ी रामच7oजी कM छ8ब दे खकर अपना जीवन सफल जान रहे हP।

दोहा :
*नाऊ बार. भाट नट राम नछाव!र पाइ।
मुदत असीसहं नाइ 0सर हरषु न sदयँ समाइ॥319॥
भावाथ#:-नाई, बार., भाट और नट $ी रामच7oजी कM नछावर पाकर आनंदत हो 0सर नवाकर
आशीष दे ते हP, उनके sदय म? हषO समाता नह.ं है ॥319॥

चौपाई :
* 0मले जनकु दसरथु अ त ीतीं। क!र बैदक लौBकक सब र.तीं॥
0मलत महा दोउ राज 8बराजे। उपमा खोिज खोिज क8ब लाजे॥1॥
भावाथ#:-वैदक और लौBकक सब र. तयाँ करके जनकजी और दशरथजी बड़े ेम से 0मले।
दोन= महाराज 0मलते हुए बड़े ह. शो0भत हुए, क,व उनके 0लए उपमा खोज-खोजकर लजा
गए॥1॥

* लह. न कतहुँ हा!र हयँ मानी। इ7ह सम एइ उपमा उर आनी॥


सामध दे Rख दे व अनरु ागे। सुमन बर,ष जसु गावन लागे॥2॥
भावाथ#:-जब कह.ं भी उपमा नह.ं 0मल., तब sदय म? हार मानकर उ7ह=ने मन म? यह. उपमा
नि/चत कM Bक इनके समान ये ह. हP। समधय= का 0मलाप या परAपर संबंध दे खकर
दे वता अनरु iत हो गए और फूल बरसाकर उनका यश गाने लगे॥2॥

* जगु 8बरं च उपजावा जब त? । दे खे सुने Xयाह बहु तब त?॥


सकल भाँ त सम साजु समाज।ू सम समधी दे खे हम आज॥ ू 3॥
भावाथ#:-(वे
कहने लगे-) जबसे CDमाजी ने जगत को उNप7न Bकया, तब से हमने बहुत
,ववाह दे ख-े सुने, पर7तु सब कार से समान साज-समाज और बराबर. के (पण
ू O
समतायi
ु त) समधी तो आज ह. दे खे॥3॥

* दे व गरा सु न सुंदर साँची। ी त अलौBकक दह


ु ु द0स माची॥
दे त पाँवड़े अरघु सुहाए। सादर जनकु मंड पहं Zयाए॥4॥
भावाथ#:-दे वताओं कM संद
ु र सNयवाणी सुनकर दोन= ओर अलौBकक ी त छा गई। संद
ु र पाँवड़े
और अयO दे ते हुए जनकजी दशरथजी को आदरपूवक
O मंड प म? ले आए॥4॥

छ6द :
* मंड पु 8बलोBक 8बच- रचनाँ ^चरताँ मु न मन हरे ।
नज पा न जनक सुजान सब कहुँ आ न 0संघासन धरे ॥
कुल इ[ट स!रस ब0स[ट पूजे 8बनय क!र आ0सष लह.।
कौ0सकह पूजन परम ी त Bक र. त तौ न परै कह.॥
भावाथ#:-मंड प को दे खकर उसकM ,वच- रचना और संद
ु रता से मु नय= के मन भी हरे गए
(मोहत हो गए)। सुजान जनकजी ने अपने हाथ= से ला-लाकर सबके 0लए 0संहासन रखे।
उ7ह=ने अपने कुल के इ[टदे वता के समान व0श[ठजी कM पज
ू ा कM और ,वनय करके
आशीवाOद ात Bकया। ,व/वा0म-जी कM पूजा करते समय कM परम ी त कM र. त तो कहते
ह. नह.ं बनती॥

दोहा :
* बामदे व आदक !रषय पूजे मुदत मह.स॥
दए दXय आसन सबह सब सन लह. असीस॥320॥
भावाथ#:-राजा ने वामदे व आद ऋ,षय= कM स7न मन से पूजा कM। सभी को दcय आसन
दए और सबसे आशीवाOद ात Bकया॥320॥

चौपाई :
* बहु!र कMि7ह कोसलप त पज
ू ा। जा न ईस सम भाउ न दज
ू ा॥
कMि7ह जो!र कर 8बनय बड़ाई। कह नज भाdय 8बभव बहुताई॥1॥
भावाथ#:-Bफर उ7ह=ने कोसलाधीश राजा दशरथजी कM पज
ू ा उ7ह? ईश (महादे वजी) के समान
जानकर कM, कोई दस
ू रा भाव न था। तद7तर (उनके संबंध से) अपने भाdय और वैभव के
,वAतार कM सराहना करके हाथ जोड़कर ,वनती और बड़ाई कM॥1॥

* पूजे भूप त सकल बराती। समधी सम सादर सब भाँती॥


आसन उचत दए सब काहू। कहV काह मुख एक उछाहू॥2॥
भावाथ#:-राजा जनकजी ने सब बारा तय= का समधी दशरथजी के समान ह. सब कार से
आदरपव
ू क
O पज
ू न Bकया और सब Bकसी को उचत आसन दए। मP एक मख
ु से उस उNसाह
का iया वणOन कfँ॥2॥

* सकल बरात जनक सनमानी। दान मान 8बनती बर बानी॥


8बध ह!र ह^ द0सप त दनराऊ। जे जानहं रघब
ु ीर भाऊ॥3॥
भावाथ#:-राजा जनक ने दान, मान-सJमान, ,वनय और उTम वाणी से सार. बारात का
सJमान Bकया। CDमा, ,व[ण,ु 0शव, दiपाल और सूयO जो $ी रघन
ु ाथजी का भाव जानते
हP,॥3॥

* कपट 8ब बर बेष बनाएँ। कौतक


ु दे खहं अ त सचु पाएँ॥
पूजे जनक दे व सम जान?। दए सुआसन 8बनु पहचान?॥4॥
भावाथ#:-वे
कपट से CाDमण= का संद ु र वेश बनाए बहुत ह. सुख पाते हुए सब ल.ला दे ख रहे
थे। जनकजी ने उनको दे वताओं के समान जानकर उनका पज ू न Bकया और 8बना पहचाने
भी उ7ह? संद
ु र आसन दए॥4॥

छ6द :
* पहचान को केह जान सबह अपान सु ध भोर. भई।
आनंद कंद ु 8बलोBक दल
ू हु उभय द0स आनँदमई॥
सुर लखे राम सुजान पूजे मान0सक आसन दए।
अवलोBक सीलु सभ
ु ाउ भु को 8बबुध मन मुदत भए॥
भावाथ#:-कौन
Bकसको जाने-पहचाने! सबको अपनी ह. सुध भल
ू . हुई है । आनंदक7द दल
ू ह को
दे खकर दोन= ओर आनंदमयी िAथ त हो रह. है। सुजान (सवOg) $ी रामच7oजी ने दे वताओं
को पहचान 0लया और उनकM मान0सक पज
ू ा करके उ7ह? मान0सक आसन दए। भु का
शील-Aवभाव दे खकर दे वगण मन म? बहुत आनंदत हुए।

दोहा :
* रामच7o मुख चंo छ8ब लोचन चा^ चकोर।
करत पान सादर सकल ेम ु मोद ु न थोर॥321॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी के मुख fपी च7oमा कM छ8ब को सभी के संद
ु र ने- fपी चकोर
आदरपूवक
O पान कर रहे हP, ेम और आनंद कम नह.ं है (अथाOत बहुत है )॥321॥

चौपाई :
* समउ 8बलोBक ब0स[ठ बोलाए। सादर सतानंद ु सु न आए॥
बेग कुअँ!र अब आनहु जाई। चले मु दत मु न आयसु पाई॥1॥
भावाथ#:-समय दे खकर व0श[ठजी ने शतानंदजी को आदरपवू क
O बल
ु ाया। वे सुनकर आदर के
साथ आए। व0श[ठजी ने कहा- अब जाकर राजकुमार. को शीH ले आइए। मु न कM आgा
पाकर वे स7न होकर चले॥1॥

* रानी स ु न उपरोहत बानी। मु दत सRख7ह समेत सयानी॥


8ब बधू कुल बk
ृ ध बोला}। क!र कुल र. त सम
ु ंगल गा}॥2॥
भावाथ#:-बk
ु धमती रानी परु ोहत कM वाणी सुनकर सRखय= समेत बड़ी
स7न हु}। CाDमण=
कM िA-य= और कुल कM बूढ़. िA-य= को बल
ु ाकर उ7ह=ने कुलर. त करके संुदर मंगल गीत
गाए॥2॥

* ना!र बेष जे सुर बर बामा। सकल सभ


ु ायँ संद
ु र. Aयामा॥
त7हह दे Rख सुखु पावहं नार.। 8बनु पहचा न ानहु ते यार.ं॥3॥
भावाथ#:-$े[ठ दे वांगनाएँ, जो संुदर मन[
ु य-िA-य= के वेश म? हP, सभी Aवभाव से ह. संुदर. और
/यामा (सोलह वषO कM अवAथा वाल.) हP। उनको दे खकर र नवास कM िA-याँ सुख पाती हP
और 8बना पहचान के ह. वे सबको ाण= से भी यार. हो रह. हP॥3॥

* बार बार सनमानहं रानी। उमा रमा सारद सम जानी॥


सीय सँवा!र समाजु बनाई। मुदत मंड पहं चल.ं लवाई॥4॥
भावाथ#:-उ7ह? पावOती, ल'मी और सरAवती के समान जानकर रानी बार-बार उनका सJमान
करती हP। (र नवास कM िA-याँ और सRखयाँ) सीताजी का $ंग
ृ ार करके, मंड ल. बनाकर,
स7न होकर उ7ह? मंड प म? 0लवा चल.ं॥4॥

ी सीता-राम ववाह, वदाई

छ6द :
* च0ल Zयाइ सीतह सखीं सादर सिज सुमंगल भा0मनीं।
नवसत साज? संद
ु र. सब मT कं ु जर गा0मनीं॥
कल गान सु न मु न ~यान Nयागहं काम कोBकल लाजह.ं।
मंजीर नप
ू ुर क0लत कंकन ताल ग त बर बाजह.ं॥
भावाथ#:-संद
ु र मंगल का साज सजकर (र नवास कM) िA-याँ और सRखयाँ आदर सहत सीताजी
को 0लवा चल.ं। सभी संद
ु !रयाँ सोलह= $ंग
ृ ार Bकए हुए मतवाले हाथय= कM चाल से चलने
वाल. हP। उनके मनोहर गान को सुनकर मु न ~यान छोड़ दे ते हP और कामदे व कM कोयल?
भी लजा जाती हP। पायजेब, पPजनी और संद
ु र कंकण ताल कM ग त पर बड़े संुदर बज रहे
हP।

दोहा :
* सोह त ब नता बंद
ृ महुँ सहज सुहाव न सीय।
छ8ब ललना गन म~य जनु सुषमा तय कमनीय॥322॥
भावाथ#:-सहज ह. संद
ु र. सीताजी िA-य= के समूह म? इस कार शोभा पा रह. हP, मानो छ8ब
fपी ललनाओं के समूह के बीच साWात परम मनोहर शोभा fपी A-ी सश
ु ो0भत हो॥322॥

चौपाई :
* 0सय संद
ु रता बर न न जाई। लघु म त बहुत मनोहरताई॥
आवत द.Rख बरा त7ह सीता। fप रा0स सब भाँ त पुनीता॥1॥
भावाथ#:-सीताजी
कM संुदरता का वणOन नह.ं हो सकता, iय=Bक बk
ु ध बहुत छोट. है और
मनोहरता बहुत बड़ी है । fप कM रा0श और सब कार से प,व- सीताजी को बारा तय= ने
आते दे खा॥1॥

* सबहं मनहं मन Bकए नामा। दे Rख राम भए पूरनकामा॥


हरषे दसरथ सुत7ह समेता। कह न जाइ उर आनँद ु जेता॥2॥
भावाथ#:-सभी ने उ7ह? मन ह. मन णाम Bकया। $ी रामच7oजी को दे खकर तो सभी पूणक
O ाम
(कृतकृNय) हो गए। राजा दशरथजी पु-= सहत ह,षOत हुए। उनके sदय म? िजतना आनंद
था, वह कहा नह.ं जा सकता॥2॥

* सुर नामु क!र ब!रसहं फूला। मु न असीस ध ु न मंगल मूला॥


गान नसान कोलाहलु भार.। ेम मोद मगन नर नार.॥3॥
भावाथ#:-दे वता णाम करके फूल बरसा रहे हP। मंगल= कM मल
ू मु नय= के आशीवाOद= कM ~व न
हो रह. है । गान= और नगाड़= के शXद से बड़ा शोर मच रहा है । सभी नर-नार. ेम और
आनंद म? मdन हP॥3॥

*एह 8बध सीय मंड पहं आई। मु दत सां त पढ़हं म ु नराई॥
तेह अवसर कर 8बध Xयवहाf। दहु ु ँ कुलगरु सब कM7ह अचाf॥4॥
भावाथ#:-इस कार सीताजी मंड प म? आ}। म ु नराज बहुत ह. आनंदत होकर शां तपाठ पढ़ रहे

हP। उस अवसर कM सब र. त, cयवहार और कुलाचार दोन= कुलग^


ु ओं ने Bकए॥4॥

छ6द :
* आचा^ क!र गरु गौ!र गनप त मु दत 8ब पज
ु ावह.ं।
सरु गट पज
ू ा लेहं दे हं असीस अ त सख
ु ु पावह.ं॥
मधप ु कO मंगल oXय जो जेह समय म ु न मन महुँ चह? ।
भरे कनक कोपर कलस सो तब 0लएहं प!रचारक रहP॥1॥
भावाथ#:-कुलाचार करके ग^
ु जी स7न होकर गौर.जी, गणेशजी और CाDमण= कM पज
ू ा करा रहे
हP (अथवा CाDमण= के kवारा गौर. और गणेश कM पज
ू ा करवा रहे हP)। दे वता कट होकर
पूजा wहण करते हP, आशीवाOद दे ते हP और अNय7त सुख पा रहे हP। मधप
ु कO आद िजस
Bकसी भी मांग0लक पदाथO कM मु न िजस समय भी मन म? चाह मा- करते हP, सेवकगण
उसी समय सोने कM परात= म? और कलश= म? भरकर उन पदाथ‹ को 0लए तैयार रहते
हP॥1॥

* कुल र. त ी त समेत र8ब कह दे त सबु सादर Bकयो।


एह भाँ त दे व पज
ु ाइ सीतह सभ
ु ग 0संघासनु दयो॥
0सय राम अवलोक न परसपर ेमु काहुँ न लRख परै ।
मन बुkध बर बानी अगोचर गट क8ब कैस? करै ॥2॥
भावाथ#:-Aवयं सूयद
O ेव ेम सहत अपने कुल कM सब र. तयाँ बता दे ते हP और वे सब
आदरपूवक
O कM जा रह. हP। इस कार दे वताओं कM पूजा कराके मु नय= ने सीताजी को संुदर
0संहासन दया। $ी सीताजी और $ी रामजी का आपस म? एक-दस
ू रे को दे खना तथा उनका
परAपर का ेम Bकसी को लख नह.ं पड़ रहा है , जो बात $े[ठ मन, बुkध और वाणी से भी
परे है , उसे क,व iय= कर कट करे ?॥2॥

दोहा :
* होम समय तनु ध!र अनलु अ त सख ु आहु त लेहं।
8ब बेष ध!र बेद सब कह 8बबाह 8बध दे हं॥323॥
भावाथ#:-हवन के समय अिdनदे व शर.र धारण करके बड़े ह. सख
ु से आहु त wहण करते हP
और सारे वेद CाDमण वेष धरकर ,ववाह कM ,वधयाँ बताए दे ते हP॥323॥

चौपाई :
* जनक पाटमहषी जग जानी। सीय मातु Bक0म जाइ बखानी॥॥
सुजसु सक
ु ृ त सुख संद
ु रताई। सब समेट 8बध रची बनाई॥1॥
भावाथ#:-जनकजी कM जग,वŠयात पटरानी और सीताजी कM माता का बखान तो हो ह. कैसे
सकता है । सुयश, सुकृत (पुxय), सुख और संुदरता सबको बटोरकर ,वधाता ने उ7ह?
सँवारकर तैयार Bकया है ॥1॥

* समउ जा न मु नबर7ह बोला}। सुनत सआ


ु 0स न सादर Zया}॥
जनक बाम द0स सोह सुनयना। हमग!र संग बनी जनु मयना॥2॥
भावाथ#:-समय जानकर $े[ठ म ु नय= ने उनको बल
ु वाया। यह सुनते ह. सुहागनी िA-याँ उ7ह?
आदरपव
ू क
O ले आ}। सुनयनाजी (जनकजी कM पटरानी) जनकजी कM बा} ओर ऐसी सोह रह.
हP, मानो हमाचल के साथ मैनाजी शो0भत ह=॥2॥

* कनक कलस म न कोपर fरे । सुच सुगध


ं मंगल जल पूरे॥
नज कर मुदत रायँ अ^ रानी। धरे राम के आग? आनी॥3॥
भावाथ#:-प,व-, सुगंधत और मंगल जल से भरे सोने के कलश और मRणय= कM संुदर परात?
राजा और रानी ने आनंदत होकर अपने हाथ= से लाकर $ी रामच7oजी के आगे रखीं॥3॥

* पढ़हं बेद मु न मंगल बानी। गगन सुमन झ!र अवस^ जानी॥


ब^ 8बलोBक दं प त अनरु ागे। पाय पुनीत पखारन लागे॥4॥
भावाथ#:-म ु न मंगलवाणी से वेद पढ़ रहे हP। सअ
ु वसर जानकर आकाश से फूल= कM झड़ी लग
गई है । दल
ू ह को दे खकर राजा-रानी ेममdन हो गए और उनके प,व- चरण= को पखारने
लगे॥4॥

छ6द :
* लागे पखारन पाय पंकज ेम तन पल
ु कावल.।
नभ नगर गान नसान जय धु न उमग जनु चहुँ द0स चल.॥
जे पद सरोज मनोज अ!र उर सर सदै व 8बराजह.ं।
जे सक
ु ृ त सु0मरत 8बमलता मन सकल क0ल मल भाजह.ं॥1॥
भावाथ#:-वे $ी रामजी के चरण कमल= को पखारने लगे, ेम से उनके शर.र म? पल
ु कावल. छा
रह. है । आकाश और नगर म? होने वाल. गान, नगाड़े और जय-जयकार कM ~व न मानो
चार= दशाओं म? उमड़ चल., जो चरण कमल कामदे व के श-ु $ी 0शवजी के sदय fपी
सरोवर म? सदा ह. ,वराजते हP, िजनका एक बार भी Aमरण करने से मन म? नमOलता आ
जाती है और क0लयग
ु के सारे पाप भाग जाते हP,॥1।
* जे पर0स मु नब नता लह. ग त रह. जो पातकमई।
मकरं द ु िज7ह को संभु 0सर सुचता अवध सुर बरनई॥
क!र मधप
ु मन मु न जोगजन जे सेइ अ0भमत ग त लहP।
ते पद पखारत भाdयभाजनु जनकु जय जय सब कहP॥2॥
भावाथ#:-िजनका AपशO पाकर गौतम म ु न कM A-ी अहZया ने, जो पापमयी थी, परमग त पाई,
िजन चरणकमल= का मकर7द रस (गंगाजी) 0शवजी के मAतक पर ,वराजमान है, िजसको
दे वता प,व-ता कM सीमा बताते हP, म ु न और योगीजन अपने मन को भVरा बनाकर िजन
चरणकमल= का सेवन करके मनोवां छत ग त ात करते हP, उ7ह.ं चरण= को भाdय के पा-
(बड़भागी) जनकजी धो रहे हP, यह दे खकर सब जय-जयकार कर रहे हP॥2॥

*बर कुअँ!र करतल जो!र साखोचा^ दोउ कुलगरु करP।


भयो पा नगहनु 8बलोBक 8बध सुर मनज
ु मु न आनँद भरP॥
सुखमूल दल
ू हु दे Rख दं प त पुलक तन हुलAयो हयो।
क!र लोक बेद 8बधानु क7यादानु नप ृ भूषन Bकयो॥3॥
भावाथ#:-दोन= कुल= के ग^
ु वर और क7या कM हथे0लय= को 0मलाकर शाखोqचार करने लगे।
पाRणwहण हुआ दे खकर CDमाद दे वता, मन[ु य और मु न आनंद म? भर गए। सख
ु के मलू
दल
ू ह को दे खकर राजा-रानी का शर.र पल
ु Bकत हो गया और sदय आनंद से उमंग उठा।
राजाओं के अलंकार Aवfप महाराज जनकजी ने लोक और वेद कM र. त को करके
क7यादान Bकया॥3॥

* हमवंत िज0म ग!रजा महे सह ह!रह $ी सागर दई।


त0म जनक रामह 0सय समरपी 8बAव कल कMर त नई॥
iय= करै 8बनय 8बदे हु Bकयो 8बदे हु मूर त सावँर.ं।
क!र होमु 8बधवत गाँठ जोर. होन लागीं भावँर.ं॥4॥
भावाथ#:-जैसे हमवान ने 0शवजी को पावOतीजी और सागर ने भगवान ,व[णु को ल'मीजी द.
थीं, वैसे ह. जनकजी ने $ी रामच7oजी को सीताजी सम,पOत कMं, िजससे ,व/व म? संुदर
नवीन कM तO छा गई। ,वदे ह (जनकजी) कैसे ,वनती कर? ! उस साँवल. म ू तO ने तो उ7ह?
सचमच
ु ,वदे ह (दे ह कM सुध-बुध से रहत) ह. कर दया। ,वधपव
ू क
O हवन करके गठजोड़ी कM
गई और भाँवर? होने लगीं॥4॥

दोहा :
* जय ध ु न बंद. बेद ध ु न मंगल गान नसान।
सु न हरषहं बरषहं 8बबध
ु सुरत^ सुमन सुजान॥324॥
भावाथ#:-जय ~व न, व7द. ~व न, वेद ~व न, मंगलगान और नगाड़= कM ~व न सुनकर चतरु
दे वगण ह,षOत हो रहे हP और कZपवW
ृ के फूल= को बरसा रहे हP॥324॥

चौपाई :
* कुअँ^ कुअँ!र कल भावँ!र दे ह.ं। नयन लाभु सब सादर लेह.ं॥
जाइ न बर न मनोहर जोर.। जो उपमा कछु कहV सो थोर.॥1॥
भावाथ#:-वर और क7या संद
ु र भाँवर? दे रहे हP। सब लोग आदरपूवक
O (उ7ह? दे खकर) ने-= का
परम लाभ ले रहे हP। मनोहर जोड़ी का वणOन नह.ं हो सकता, जो कुछ उपमा कहूँ वह. थोड़ी
होगी॥1॥

* राम सीय संद


ु र तछाह.ं। जगमगात म न खंभन माह.ं
मनहुँ मदन र त ध!र बहु fपा। दे खत राम 8बआहु अनप ू ा॥2॥
भावाथ#:-$ी रामजी और $ी सीताजी कM संद
ु र परछाह.ं मRणय= के खJभ= म? जगमगा रह. हP,
मानो कामदे व और र त बहुत से fप धारण करके $ी रामजी के अनप
ु म ,ववाह को दे ख रहे
हP॥2॥

* दरस लालसा सकुच न थोर.। गटत दरु त बहो!र बहोर.॥


भए मगन सब दे ख नहारे । जनक समान अपान 8बसारे ॥3॥
भावाथ#:- उ7ह? (कामदे व और र त को) दशOन कM लालसा और संकोच दोन= ह. कम नह.ं हP
(अथाOत बहुत हP), इसी0लए वे मानो बार-बार कट होते और छपते हP। सब दे खने वाले
आनंदमdन हो गए और जनकजी कM भाँ त सभी अपनी सुध भल ू गए॥3॥

* मुदत मु न7ह भावँर.ं फेर.ं। नेगसहत सब र. त नवेर.ं॥


राम सीय 0सर स?दरु दे ह.ं। सोभा कह न जा त 8बध केह.ं॥4॥
भावाथ#:-म ु नय= ने आनंदपूवक
O भाँवर? Bफरा} और नेग सहत सब र. तय= को पूरा Bकया। $ी
रामच7oजी सीताजी के 0सर म? 0संदरू दे रहे हP, यह शोभा Bकसी कार भी कह. नह.ं
जाती॥4॥

* अ^न पराग जलजु भ!र नीक?। स0सह भष


ू अह लोभ अमी क?॥
बहु!र ब0स[ठ द.ि7ह अनसु ासन। ब^ दल
ु ह न बैठे एक आसन॥5॥
भावाथ#:-मानो कमल को लाल पराग से अqछv तरह भरकर अमत ृ के लोभ से साँप च7oमा
को भू,षत कर रहा है । (यहाँ $ी राम के हाथ को कमल कM, स?दरू को पराग कM, $ी राम
कM /याम भज
ु ा को साँप कM और सीताजी के मुख को च7oमा कM उपमा द. गई है ।) Bफर
व0श[ठजी ने आgा द., तब दल
ू ह और दल
ु हन एक आसन पर बैठे॥5॥

छ6द :
* बैठे बरासन रामु जानBक मु दत मन दसरथु भए।
तनु पल
ु क प ु न प ु न दे Rख अपन? सक
ु ृ त सरु त^ पल नए॥
भ!र भुवन रहा उछाहु राम 8बबाहु भा सबह.ं कहा।
केह भाँ त बर न 0सरात रसना एक यहु मंगलु महा॥1॥
भावाथ#:-$ी
रामजी और जानकMजी $े[ठ आसन पर बैठे, उ7ह? दे खकर दशरथजी मन म? बहुत
आनंदत हुए। अपने सुकृत fपी कZप वW
ृ म? नए फल (आए) दे खकर उनका शर.र बार-बार
पुलBकत हो रहा है । चौदह= भुवन= म? उNसाह भर गया, सबने कहा Bक $ी रामच7oजी का
,ववाह हो गया। जीभ एक है और यह मंगल महान है , Bफर भला, वह वणOन करके Bकस
कार समात Bकया जा सकता है॥1॥

* तब जनक पाइ ब0स[ठ आयसु Xयाह साज सँवा!र कै।


मांड वी $त
ु कMर त उर0मला कुअँ!र ल} हँका!र कै॥
कुसकेतु क7या थम जो गन
ु सील सुख सोभामई।
सब र. त ी त समेत क!र सो Xयाह नप
ृ भरतह दई॥2॥
भावाथ#:- तब व0श[ठजी कM आgा पाकर जनकजी ने ,ववाह का सामान सजाकर माxडवीजी,
$ुतकM तOजी और उ0मOलाजी इन तीन= राजकुमा!रय= को बल
ु ा 0लया। कुश ~वज कM बड़ी
क7या माxडवीजी को, जो गण
ु , शील, सुख और शोभा कM fप ह. थीं, राजा जनक ने
ेमपव
ू क
O सब र. तयाँ करके भरतजी को Xयाह दया॥2॥

* जानकM लघु भगनी सकल सुंद!र 0सरोम न जा न कै।


सो तनय द.7ह. Xयाह लखनह सकल 8बध सनमा न कै॥
जेह नामु $ुतकMर त सल
ु ोच न सम
ु ुRख सब गन
ु आगर.।
सो दई !रपस
ु द
ू नह भूप त fप सील उजागर.॥3॥
भावाथ#:-जानकMजी कM छोट. बहन उ0मOलाजी को सब संुद!रय= म? 0शरोमRण जानकर उस
क7या को सब कार से सJमान करके, ल'मणजी को Xयाह दया और िजनका नाम
$ुतकM तO है और जो संद
ु र ने-= वाल., संद
ु र मुखवाल., सब गण
ु = कM खान और fप तथा
शील म? उजागर हP, उनको राजा ने श-ुन को Xयाह दया॥3॥

* अनf
ु प बर दल
ु ह न परAपर लRख सकुच हयँ हरषह.ं।
सब मुदत संद
ु रता सराहहं सम
ु न सुर गन बरषह.ं॥
संद
ु र.ं संद
ु र बर7ह सह सब एक मंड प राजह.ं।
जनु जीव उर चा!रउ अवAथा 8बभुन सहत 8बराजह.ं॥4॥
भावाथ#:-दल
ू ह
और दल ु हन? परAपर अपने-अपने अनुfप जोड़ी को दे खकर सकुचाते हुए sदय
म? ह,षOत हो रह. हP। सब लोग स7न होकर उनकM संुदरता कM सराहना करते हP और
दे वगण फूल बरसा रहे हP। सब संुदर. दल
ु हन? संद
ु र दZ
ू ह= के साथ एक ह. मंड प म? ऐसी
शोभा पा रह. हP, मानो जीव के sदय म? चार= अवAथाएँ (जाwत, Aवन, सष
ु ुित और तरु .य)
अपने चार= Aवा0मय= (,व/व, तैजस, ाg और CDम) सहत ,वराजमान ह=॥4॥

दोहा :
* मु दत अवधप त सकल सुत बध7
ु ह समेत नहा!र।
जनु पाए महपाल म न B€य7ह सहत फल चा!र॥325॥
भावाथ#:-सबपु-= को बहुओं सहत दे खकर अवध नरे श दशरथजी ऐसे आनंदत हP, मानो वे
राजाओं के 0शरोमRण B€याओं (यgB€या, $kधाB€या, योगB€या और gानB€या) सहत
चार= फल (अथO, धमO, काम और मोW) पा गए ह=॥325॥

चौपाई :
* ज0स रघब
ु ीर Xयाह 8बध बरनी। सकल कुअँर Xयाहे तेहं करनी॥
कह न जा कछु दाइज भरू .। रहा कनक म न मंड पु परू .॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी के ,ववाह कM जैसी ,वध वणOन कM गई, उसी र. त से सब राजकुमार
,ववाहे गए। दहेज कM अधकता कुछ कह. नह.ं जाती, सारा मंड प सोने और मRणय= से भर
गया॥1॥

* कंबल बसन 8बच- पटोरे । भाँ त भाँ त बहु मोल न थोरे ॥


गज रथ तरु गदास अ^ दासी। धेनु अलंकृत कामदह ु ा सी॥2॥
भावाथ#:-बहुत से कJबल, वA- और भाँ त-भाँ त के ,वच- रे शमी कपड़े, जो थोड़ी कMमत के
न थे (अथाOत बहुमूZय थे) तथा हाथी, रथ, घोड़े, दास-दा0सयाँ और गहन= से सजी हुई
कामधेनु सर.खी गाय?-॥2॥

* बAतु अनेक क!रअ Bक0म लेखा। कह न जाइ जानहं िज7ह दे खा॥
लोकपाल अवलोBक 0सहाने। ल.7ह अवधप त सबु सुखु माने॥3॥
भावाथ#:-(आद) अनेक= वAतए
ु ँ हP, िजनकM गनती कैसे कM जाए। उनका वणOन नह.ं Bकया जा
सकता, िज7ह=ने दे खा है, वह. जानते हP। उ7ह? दे खकर लोकपाल भी 0सहा गए। अवधराज
दशरथजी ने सुख मानकर स7नचT से सब कुछ wहण Bकया॥3॥

* द.7ह जाचकि7ह जो जेह भावा। उबरा सो जनवासेहं आवा॥


तब कर जो!र जनकु मद
ृ ु बानी। बोले सब बरात सनमानी॥4॥
भावाथ#:-उ7ह=ने वह दहे ज का सामान याचक= को, जो िजसे अqछा लगा, दे दया। जो बच
रहा, वह जनवासे म? चला आया। तब जनकजी हाथ जोड़कर सार. बारात का सJमान करते
हुए कोमल वाणी से बोले॥4॥

छ6द :
* सनमा न सकल बरात आदर दान 8बनय बड़ाइ कै।
मु दत महाम ु न बंद
ृ बंदे पिू ज ेम लड़ाइ कै॥
0स^ नाइ दे व मनाइ सब सन कहत कर संपुट Bकएँ।
सुर साधु चाहत भाउ 0संधु Bक तोष जल अंज0ल दएँ॥1॥
भावाथ#:-आदर, दान, ,वनय और बड़ाई के kवारा सार. बारात का सJमान कर राजा जनक ने
महान आनंद के साथ ेमपूवOक लड़ाकर (लाड़ करके) मु नय= के समह
ू कM पूजा एवं वंदना
कM। 0सर नवाकर, दे वताओं को मनाकर, राजा हाथ जोड़कर सबसे कहने लगे Bक दे वता और
साधु तो भाव ह. चाहते हP, (वे ेम से ह. स7न हो जाते हP, उन पूणक
O ाम महानभ
ु ाव= को
कोई कुछ दे कर कैसे संत[ु ट कर सकता है ), iया एक अंज0ल जल दे ने से कह.ं समo
ु संत[ु ट
हो सकता है ॥1॥

* कर जो!र जनकु बहो!र बंधु समेत कोसलराय स=।


बोले मनोहर बयन सा न सनेह सील सुभाय स=॥
संबंध राजन रावर? हम बड़े अब सब 8बध भए।
एह राज साज समेत सेवक जा नबे 8बनु गथ लए॥2॥
भावाथ#:-Bफर जनकजी भाई सहत हाथ जोड़कर कोसलाधीश दशरथजी से Aनेह, शील और
संद
ु र ेम म? सानकर मनोहर वचन बोले- हे राजन!् आपके साथ संबंध हो जाने से अब हम
सब कार से बड़े हो गए। इस राज-पाट सहत हम दोन= को आप 8बना दाम के 0लए हुए
सेवक ह. समRझएगा॥2॥

* ए दा!रका प!रचा!रका क!र पा0लबीं क^ना नई।


अपराधु छ0मबो बो0ल पठए बहुत हV ढ.{यो कई॥
पु न भानक
ु ु लभूषन सकल सनमान नध समधी Bकए।
कह जा त नहं 8बनती परAपर ेम प!रपूरन हए॥3॥
भावाथ#:-इन लड़Bकय= को टहलनी मानकर, नई-नई दया करके पालन कMिजएगा। मPने बड़ी
ढठाई कM Bक आपको यहाँ बुला भेजा, अपराध Wमा कMिजएगा। Bफर सूयक
O ु ल के भूषण
दशरथजी ने समधी जनकजी को सJपूणO सJमान का नध कर दया (इतना सJमान Bकया
Bक वे सJमान के भंड ार ह. हो गए)। उनकM परAपर कM ,वनय कह. नह.ं जाती, दोन= के
sदय ेम से प!रपण
ू O हP॥3॥

* बं द
ृ ारका गन सम
ु न ब!रसहं राउ जनवासेह चले।
दं द
ु भ
ु ी जय ध ु न बेद धु न नभ नगर कौतह
ू ल भले॥
तब सखीं मंगल गान करत मुनीस आयसु पाइ कै।
दल
ू ह दल
ु ह न7ह सहत संुद!र चल.ं कोहबर Zयाइ कै॥4॥
भावाथ#:-दे वतागण फूल बरसा रहे हP, राजा जनवासे को चले। नगाड़े कM ~व न, जय~व न और
वेद कM ~व न हो रह. है , आकाश और नगर दोन= म? खूब कौतह
ू ल हो रहा है (आनंद छा
रहा है ), तब मुनी/वर कM आgा पाकर संुदर. सRखयाँ मंगलगान करती हुई दल
ु हन= सहत
दZ
ू ह= को 0लवाकर कोहबर को चल.ं॥4॥

दोहा :
* प ु न प ु न रामह चतव 0सय सकुच त मनु सकुचै न।
हरत मनोहर मीन छ8ब ेम ,पआसे नैन॥326॥
भावाथ#:-सीताजी बार-बार रामजी को दे खती हP और सकुचा जाती हP, पर उनका मन नह.ं
सकुचाता। ेम के यासे उनके ने- संुदर मछ0लय= कM छ8ब को हर रहे हP॥326॥

मासपारायण, (यारहवाँ वाम

चौपाई :
* Aयाम सर.^ सभ
ु ायँ सुहावन। सोभा कोट मनोज लजावन॥
जावक जत
ु पद कमल सुहाए। मु न मन मधप
ु रहत िज7ह छाए॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी का साँवला शर.र Aवभाव से ह. संद
ु र है । उसकM शोभा करोड़= कामदे व=
को लजाने वाल. है । महावर से यi
ु त चरण कमल बड़े सुहावने लगते हP, िजन पर मु नय=
के मन fपी भVरे सदा छाए रहते हP॥1॥

* पीत पुनीत मनोहर धोती। हर त बाल र8ब दा0म न जोती॥


कल Bकं Bक न कट सू- मनोहर। बाहु 8बसाल 8बभूषन सुंदर॥2॥
भावाथ#:-प,व- और मनोहर पील. धोती ातःकाल के सूय O और 8बजल. कM _यो त को हरे लेती

है । कमर म? संुदर Bकं Bकणी और कटसू- हP। ,वशाल भुजाओं म? संद


ु र आभष
ू ण सुशो0भत
हP॥2॥

* पीत जनेउ महाछ8ब दे ई। कर मुoका चो!र चतु लेई॥


सोहत Xयाह साज सब साजे। उर आयत उरभूषन राजे॥3॥
भावाथ#:-पीला जनेऊ महान शोभा दे रहा है। हाथ कM अँगठ
ू v चT को चरु ा लेती है । Xयाह के
सब साज सजे हुए वे शोभा पा रहे हP। चौड़ी छाती पर sदय पर पहनने के संद
ु र आभष
ू ण
सुशो0भत हP॥3॥

* ,पअर उपरना काखासोती। दह


ु ु ँ आँचरि7ह लगे म न मोती॥
नयन कमल कल कं ु डल काना। बदनु सकल सVदजO नदाना॥4॥
भावाथ#:-पीला दप
ु {टा काँखासोती (जनेऊ कM तरह) शो0भत है , िजसके दोन= छोर= पर मRण
और मोती लगे हP। कमल के समान संुदर ने- हP, कान= म? संद
ु र कं ु डल हP और मख
ु तो सार.
संद
ु रता का खजाना ह. है ॥4॥

* सं द
ु र भक
ृ ु ट मनोहर नासा। भाल तलकु ^चरता नवासा॥
सोहत मौ^ मनोहर माथे। मंगलमय मक
ु ु ता म न गाथे॥5॥
भावाथ#:-संद
ु र भVह? और मनोहर ना0सका है । ललाट पर तलक तो संद
ु रता का घर ह. है,
िजसम? मंगलमय मोती और मRण गँथ
ु े हुए हP, ऐसा मनोहर मौर माथे पर सोह रहा है ॥5॥

छ6द :
* गाथे महाम न मौर मंजुल अंग सब चत चोरह.ं।
पुर ना!र सुर संद
ु र.ं बरह 8बलोBक सब तन तोरह.ं॥
म न बसन भूषन वा!र आर त करहं मंगल गावह.ं।
सुर सुमन ब!रसहं सूत मागध बंद सुजसु सुनावह.ं॥1॥
भावाथ#:-संद
ु र
मौर म? बहुमूZय मRणयाँ गँथ ु ी हुई हP, सभी अंग चT को चरु ाए लेते हP। सब
नगर कM िA-याँ और दे वसंद
ु !रयाँ दल
ू ह को दे खकर तनका तोड़ रह. हP (उनकM बलैयाँ ले
रह. हP) और मRण, वA- तथा आभूषण नछावर करके आरती उतार रह. और मंगलगान कर
रह. हP। दे वता फूल बरसा रहे हP और सूत, मागध तथा भाट सुयश सुना रहे हP॥1॥

*कोहबरहं आने कुअँर कुअँ!र सआ


ु 0स न7ह सुख पाइ कै।
अ त ी त लौBकक र. त लागीं करन मंगल गाइ कै॥
लहकौ!र गौ!र 0सखाव रामह सीय सन सारद कहP।
र नवासु हास 8बलास रस बस ज7म को फलु सब लहP॥2॥
भावाथ#:-सुहागनी िA-याँ सुख पाकर कँु अर और कुमा!रय= को कोहबर (कुलदे वता के Aथान) म?
ला} और अNय7त ेम से मंगल गीत गा-गाकर लौBकक र. त करने लगीं। पावOतीजी $ी
रामच7oजी को लहकौर (वर-वधू का परAपर wास दे ना) 0सखाती हP और सरAवतीजी सीताजी
को 0सखाती हP। र नवास हास-,वलास के आनंद म? मdन है , ($ी रामजी और सीताजी को
दे ख-दे खकर) सभी ज7म का परम फल ात कर रह. हP॥2॥

* नज पा न म न महुँ दे Rखअ त मरू त सुfप नधान कM।


चाल त न भुजबZल. 8बलोक न 8बरह भय बस जानकM॥
कौतक
ु 8बनोद मोद ु ेमु न जाइ कह जानहं अल.ं।
बर कुअँ!र संुदर सकल सखीं लवाइ जनवासेह चल.ं॥3॥
भावाथ#:-'अपने हाथ कM मRणय= म? संुदर fप के भxडार $ी रामच7oजी कM परछाह.ं दख रह.
है । यह दे खकर जानकMजी दशOन म? ,वयोग होने के भय से बाहु fपी लता को और yि[ट को
हलाती-डु लाती नह.ं हP। उस समय के हँसी-खेल और ,वनोद का आनंद और ेम कहा नह.ं
जा सकता, उसे सRखयाँ ह. जानती हP। तदन7तर वर-क7याओं को सब संद
ु र सRखयाँ
जनवासे को 0लवा चल.ं॥3॥

* तेह समय स ु नअ असीस जहँ तहँ नगर नभ आनँद ु महा।


च^ िजअहुँ जोर.ं चा^ चार्यो मुदत मन सबह.ं कहा॥
जोगींo 0सkध मुनीस दे व 8बलोBक भु दं द
ु 0ु भ हनी।
चले हर,ष बर,ष सून नज नज लोक जय जय जय भनी॥4॥
भावाथ#:-उस समय नगर और आकाश म? जहाँ स ु नए, वह.ं आशीवाOद कM ~व न सुनाई दे रह.
है और महान आनंद छाया है । सभी ने स7न मन से कहा Bक संुदर चार= जोƒड़याँ
चरं जीवी ह=। योगीराज, 0सkध, मुनी/वर और दे वताओं ने भु $ी रामच7oजी को दे खकर
द7ु दभ
ु ी बजाई और ह,षOत होकर फूल= कM वषाO करते हुए तथा 'जय हो, जय हो, जय हो'
कहते हुए वे अपने-अपने लोक को चले॥4॥

दोहा :
* सहत बधू ट7ह कुअँर सब तब आए ,पतु पास।
सोभा मंगल मोद भ!र उमगेउ जनु जनवास॥327॥
भावाथ#:-तब
सब (चार=) कुमार बहुओं सहत ,पताजी के पास आए। ऐसा मालूम होता था
मानो शोभा, मंगल और आनंद से भरकर जनवासा उमड़ पड़ा हो॥327॥

चौपाई :
* पु न जेवनार भई बहु भाँती। पठए जनक बोलाइ बराती॥
परत पाँवड़े बसन अनपू ा। सुत7ह समेत गवन Bकयो भूपा॥1॥
भावाथ#:-Bफर
बहुत कार कM रसोई बनी। जनकजी ने बारा तय= को बल ु ा भेजा। राजा
दशरथजी ने पु-= सहत गमन Bकया। अनप
ु म वA-= के पाँवड़े पड़ते जाते हP॥1॥

* सादर सब के पाय पखारे । जथाजोगु पीढ़7ह बैठारे ॥


धोए जनक अवधप त चरना। सीलु सनेहु जाइ नहं बरना॥2॥
भावाथ#:-आदर के साथ सबके चरण धोए और सबको यथायोdय पीढ़= पर बैठाया। तब

जनकजी ने अवधप त दशरथजी के चरण धोए। उनका शील और Aनेह वणOन नह.ं Bकया जा
सकता॥2॥

* बहु!र राम पद पंकज धोए। जे हर sदय कमल महुँ गोए॥


ती नउ भाइ राम सम जानी। धोए चरन जनक नज पानी॥3॥
भावाथ#:-Bफर $ी रामच7oजी के चरणकमल= को धोया, जो $ी 0शवजी के sदय कमल म? छपे
रहते हP। तीन= भाइय= को $ी रामच7oजी के समान जानकर जनकजी ने उनके भी चरण
अपने हाथ= से धोए॥3॥

* आसन उचत सबह नप


ृ द.7हे । बो0ल सूपकार. सब ल.7हे ॥
सादर लगे परन पनवारे । कनक कMल म न पान सँवारे ॥4॥
भावाथ#:-राजा जनकजी ने सभी को उचत आसन दए और सब परसने वाल= को बल
ु ा 0लया।
आदर के साथ पTल? पड़ने लगीं, जो मRणय= के पT= से सोने कM कMल लगाकर बनाई गई
थीं॥4॥

दोहा :
* सप
ू ोदन सरु भी सर,प संद
ु र Aवाद ु पुनीत।
छन महुँ सब क? प^0स गे चतरु सुआर 8बनीत॥328॥
भावाथ#:-चतर
ु और ,वनीत रसोइए संुदर, Aवाद[ट और प,व- दाल-भात और गाय का
(सुगंधत) घी Wण भर म? सबके सामने परस गए॥328॥

चौपाई :
* पंच कवल क!र जेवन लागे। गा!र गान सु न अ त अनरु ागे।
भाँ त अनेक परे पकवाने। सुधा स!रस नहं जाहं बखाने॥1॥
भावाथ#:-सब लोग पंचकौर करके (अथाOत ' ाणाय Aवाहा, अपानाय Aवाहा, cयानाय Aवाहा,
उदानाय Aवाहा और समानाय Aवाहा' इन मं-= का उqचारण करते हुए पहले पाँच wास
लेकर) भोजन करने लगे। गाल. का गाना सुनकर वे अNय7त ेममdन हो गए। अनेक= तरह
के अमत
ृ के समान (Aवाद[ट) पकवान परसे गए, िजनका बखान नह.ं हो सकता॥1॥

* प^सन लगे सुआर सुजाना। 8बंजन 8ब8बध नाम को जाना॥


चा!र भाँ त भोजन 8बध गाई। एक एक 8बध बर न न जाई॥2॥
भावाथ#:-चतर
ु रसोइए नाना कार के cयंजन परसने लगे, उनका नाम कौन जानता है । चार
कार के (चcयO, चो[य, लेDय, पेय अथाOत चबाकर, चस
ू कर, चाटकर और पीना-खाने योdय)
भोजन कM ,वध कह. गई है , उनम? से एक-एक ,वध के इतने पदाथO बने थे Bक िजनका
वणO नह.ं Bकया जा सकता॥2॥

* छरस ^चर 8बंजन बहु जाती। एक एक रस अग नत भाँती॥


जेवँत दे हं मधरु ध ु न गार.। लै लै नाम पु^ष अ^ नार.॥3॥
भावाथ#:-छह=
रस= के बहुत तरह के संुदर (Aवाद[ट) cयंजन हP। एक-एक रस के अनगनत
कार के बने हP। भोजन के समय पु^ष और िA-य= के नाम ले-लेकर िA-याँ मधरु ~व न से
गाल. दे रह. हP (गाल. गा रह. हP)॥3॥

* समय सुहाव न गा!र 8बराजा। हँसत राउ सु न सहत समाजा॥


एह 8बध सबह.ं भोजनु कM7हा। आदर सहत आचमनु द.7हा॥4॥
भावाथ#:-समय कM सुहावनी गाल. शो0भत हो रह. है। उसे सुनकर समाज सहत राजा
दशरथजी हँस रहे हP। इस र. त से सभी ने भोजन Bकया और तब सबको आदर सहत
आचमन (हाथ-मँुह धोने के 0लए जल) दया गया॥4॥

दोहा :
* दे इ पान पज
ू े जनक दसरथु सहत समाज।
जनवासेह गवने मुदत सकल भूप 0सरताज॥329॥
भावाथ#:-Bफर पान दे कर जनकजी ने समाज सहत दशरथजी का पूजन Bकया। सब राजाओं के
0सरमौर (च€वत‡) $ी दशरथजी स7न होकर जनवासे को चले॥329॥

चौपाई :
* नत नत
ू न मंगल परु माह.ं। न0मष स!रस दन जा0म न जाह.ं॥
बड़े भोर भूप तम न जागे। जाचक गन
ु गन गावन लागे॥1॥
भावाथ#:-जनकपुर म? नNय नए मंगल हो रहे हP। दन और रात पल के समान बीत जाते हP।
बड़े सबेरे राजाओं के मुकुटमRण दशरथजी जागे। याचक उनके गण
ु समूह का गान करने
लगे॥1॥

* दे Rख कुअँर बर बध7
ु ह समेता। Bक0म कह जात मोद ु मन जेता॥
ातB€या क!र गे ग^
ु पाह.ं। महा मोद ु ेमु मन माह.ं॥2॥
भावाथ#:-चार= कुमार= को संद
ु र वधओ
ु ं सहत दे खकर उनके मन म? िजतना आनंद है , वह Bकस
कार कहा जा सकता है ? वे ातः B€या करके ग^
ु व0श[ठजी के पास गए। उनके मन म?
महान आनंद और ेम भरा है ॥2॥

* क!र नामु पज
ू ा कर जोर.। बोले गरा अ0मअँ जनु बोर.॥
तJ
ु हर. कृपाँ सुनहु मु नराजा। भयउँ आजु मP पूरन काजा॥3॥
भावाथ#:-राजा णाम और पूजन करके, Bफर हाथ जोड़कर मानो अमत ृ म? डु बोई हुई वाणी
बोले- हे मु नराज! स ु नए, आपकM कृपा से आज मP पूणक
O ाम हो गया॥3॥

* अब सब 8ब बोलाइ गोसा}। दे हु धेनु सब भाँ त बना}॥


सु न गरु क!र महपाल बड़ाई। पु न पठए मु नबंद ृ बोलाई॥4॥
भावाथ#:-हे Aवा0मन!् अब सब CाDमण= को बल
ु ाकर उनको सब तरह (गहन=-कपड़=) से सजी
हुई गाय? द.िजए। यह सुनकर ग^
ु जी ने राजा कM बड़ाई करके Bफर मु नगण= को बल
ु वा
भेजा॥4॥

दोहा :
* बामदे उ अ^ दे व!र,ष बालमीBक जाबा0ल।
आए म ु नबर नकर तब कौ0सकाद तपसा0ल॥330॥
भावाथ#:-तब वामदे व, दे व,षO नारद, वाZमीBक, जाबा0ल और ,व/वा0म- आद तपAवी $े[ठ
मु नय= के समह
ू के समह
ू आए॥330॥

चौपाई :
* दं ड नाम सबह नप
ृ कM7हे । पूिज स ेम बरासन द.7हे ॥
चा!र लqछ बर धेनु मगा}। काम सुर0भ सम सील सुहा}॥1॥
भावाथ#:-राजा ने सबको दxडवत ् णाम Bकया और ेम सहत पूजन करके उ7ह? उTम आसन
दए। चार लाख उTम गाय? मँगवा}, जो कामधेनु के समान अqछे Aवभाव वाल. और
सुहावनी थीं॥1॥

* सब 8बध सकल अलंकृत कM7ह.ं। मु दत महप महदे व7ह द.7ह.ं॥


करत 8बनय बहु 8बध नरनाहू। लहे उँ आजु जग जीवन लाहू॥2॥
भावाथ#:-उन सबको सब कार से (गहन=-कपड़= से) सजाकर राजा ने स7न होकर भद
ू ेव
CाDमण= को दया। राजा बहुत तरह से ,वनती कर रहे हP Bक जगत म? मPने आज ह. जीने
का लाभ पाया॥2॥

* पाइ असीस मह.सु अनंदा। 0लए बो0ल प ु न जाचक बंद


ृ ा॥
कनक बसन म न हय गय Aयंदन। दए बRू झ ^च र8बकुलनंदन॥3॥
भावाथ#:-(CाDमण=
से) आशीवाOद पाकर राजा आनंदत हुए। Bफर याचक= के समूह= को बल
ु वा
0लया और सबको उनकM ^च पछू कर सोना, वA-, मRण, घोड़ा, हाथी और रथ (िजसने जो
चाहा सो) सूयक
O ु ल को आनंदत करने वाले दशरथजी ने दए॥3॥

* चले पढ़त गावत गन


ु गाथा। जय जय जय दनकर कुल नाथा॥
एह 8बध राम 8बआह उछाहू। सकइ न बर न सहस मुख जाहू॥4॥
भावाथ#:-वे सब गण
ु ानव
ु ाद गाते और 'सूयक
O ु ल के Aवामी कM जय हो, जय हो, जय हो' कहते
हुए चले। इस कार $ी रामच7oजी के ,ववाह का उNसव हुआ, िज7ह? सह‰ मुख हP, वे
शेषजी भी उसका वणOन नह.ं कर सकते॥4॥

दोहा :
* बार बार कौ0सक चरन सीसु नाइ कह राउ।
यह सबु सख
ु ु म ु नराज तव कृपा कटाqछ पसाउ॥331॥
भावाथ#:-बार-बार ,व/वा0म-जी के चरण= म? 0सर नवाकर राजा कहते हP- हे मु नराज! यह सब
सुख आपके ह. कृपाकटाW का साद है ॥331॥

चौपाई :
* जनक सनेहु सीलु करतत
ू ी। नप
ृ ु सब भाँ त सराह 8बभूती॥
दन उठ 8बदा अवधप त मागा। राखहं जनकु सहत अनरु ागा॥1॥
भावाथ#:-राजा दशरथजी जनकजी के Aनेह, शील, करनी और ऐ/वयO कM सब कार से सराहना
करते हP। तदन (सबेरे) उठकर अयो~या नरे श ,वदा माँगते हP। पर जनकजी उ7ह? ेम से
रख लेते हP॥1॥

* नत नत
ू न आद^ अधकाई। दन त सहस भाँ त पहुनाई॥
नत नव नगर अनंद उछाहू। दसरथ गवनु सोहाइ न काहू॥2॥
भावाथ#:-आदर नNय नया बढ़ता जाता है । तदन हजार= कार से मेहमानी होती है। नगर
म? नNय नया आनंद और उNसाह रहता है , दशरथजी का जाना Bकसी को नह.ं सुहाता॥2॥

* बहुत दवस बीते एह भाँती। जनु सनेह रजु बँधे बराती॥
कौ0सक सतानंद तब जाई। कहा 8बदे ह नप ृ ह समुझाई॥3॥
भावाथ#:-इसकार बहुत दन बीत गए, मानो बाराती Aनेह कM रAसी से बँध गए हP। तब
,व/वा0म-जी और शतानंदजी ने जाकर राजा जनक को समझाकर कहा-॥3॥

* अब दसरथ कहँ आयसु दे हू। जkय,प छाƒड़ न सकहु सनेहू॥


भलेहं नाथ कह सचव बोलाए। कह जय जीव सीस त7ह नाए॥4॥
भावाथ#:-यkय,प आप Aनेह (वश उ7ह? ) नह.ं छोड़ सकते, तो भी अब दशरथजी को आgा
द.िजए। 'हे नाथ! बहुत अqछा' कहकर जनकजी ने मं8-य= को बल
ु वाया। वे आए और 'जय
जीव' कहकर उ7ह=ने मAतक नवाया॥4॥

दोहा :
* अवधनाथु चाहत चलन भीतर करहु जनाउ।
भए ेमबस सचव स ु न 8ब सभासद राउ॥332॥
भावाथ#:-(जनकजी ने कहा-) अयो~यानाथ चलना चाहते हP, भीतर (र नवास म? ) खबर कर दो।
यह सुनकर मं-ी, CाDमण, सभासद और राजा जनक भी ेम के वश हो गए॥332॥

चौपाई :
* पुरबासी सु न च0लह बराता। बूझत 8बकल परAपर बाता॥
सNय गवनु सु न सब 8बलखाने। मनहुँ साँझ सर0सज सकुचाने॥1॥
भावाथ#:-जनकपुरवा0सय= ने सुना Bक बारात जाएगी, तब वे cयाकुल होकर एक-दस
ू रे से बात
पूछने लगे। जाना सNय है , यह सुनकर सब ऐसे उदास हो गए मानो सं~या के समय कमल
सकुचा गए ह=॥1॥

* जहँ जहँ आवत बसे बराती। तहँ तहँ 0सkध चला बहु भाँती॥
8ब8बध भाँ त मेवा पकवाना। भोजन साजु न जाइ बखाना॥2॥
भावाथ#:-आते
समय जहाँ-जहाँ बाराती ठहरे थे, वहाँ-वहाँ बहुत कार का सीधा (रसोई का
सामान) भेजा गया। अनेक= कार के मेव,े पकवान और भोजन कM सामwी जो बखानी नह.ं
जा सकती-॥2॥

* भ!र भ!र बसहँ अपार कहारा। पठ} जनक अनेक सुसारा॥


तरु ग लाख रथ सहस पचीसा। सकल सँवारे नख अ^ सीसा॥3॥
भावाथ#:-अनगनत बैल= और कहार= पर भर-भरकर (लाद-लादकर) भेजी गई। साथ ह.
जनकजी ने अनेक= संद
ु र श—याएँ (पलंग) भेजीं। एक लाख घोड़े और पचीस हजार रथ सब
नख से 0शखा तक (ऊपर से नीचे तक) सजाए हुए,॥3॥

दोहा :
* मT सहस दस 0संधरु साजे। िज7हह दे Rख द0सकं ु जर लाजे॥
कनक बसन म न भ!र भ!र जाना। महषीं धेनु बAतु 8बध नाना॥4॥
भावाथ#:-दसहजार सजे हुए मतवाले हाथी, िज7ह? दे खकर दशाओं के हाथी भी लजा जाते हP,
गाƒड़य= म? भर-भरकर सोना, वA- और रNन (जवाहरात) और भPस, गाय तथा और भी नाना
कार कM चीज? द.ं॥4॥

दोहा :
* दाइज अ0मत न सBकअ कह द.7ह 8बदे हँ बहो!र।
जो अवलोकत लोकप त लोक संपदा थो!र॥333॥
भावाथ#:-(इस कार) जनकजी ने Bफर से अप!र0मत दहे ज दया, जो कहा नह.ं जा सकता और
िजसे दे खकर लोकपाल= के लोक= कM सJपदा भी थोड़ी जान पड़ती थी॥333॥

चौपाई :
* सबु समाजु एह भाँ त बनाई। जनक अवधपुर द.7ह पठाई॥
च0लह बरात सुनत सब रानीं। 8बकल मीनगन जनु लघु पानीं॥1॥
भावाथ#:-इस कार सब सामान सजाकर राजा जनक ने अयो~यापुर. को भेज दया। बारात
चलेगी, यह सुनते ह. सब रा नयाँ ऐसी ,वकल हो ग}, मानो थोड़े जल म? मछ0लयाँ छटपटा
रह. ह=॥1॥

* पु न पु न सीय गोद क!र लेह.ं। दे ह असीस 0सखावनु दे ह.ं॥


होएहु संतत ,पयह ,पआर.। च^ अहबात असीस हमार.॥2॥
भावाथ#:-वे बार-बार सीताजी को गोद कर लेती हP और आशीवाOद दे कर 0सखावन दे ती हP- तम

सदा अपने प त कM यार. होओ, तJ
ु हारा सोहाग अचल हो, हमार. यह. आशीष है ॥2॥

* सासु ससुर गरु सेवा करे हू। प त ^ख लRख आयसु अनस ु रे हू॥
अ त सनेह बस सखीं सयानी। ना!र धरम 0सखवहं मद ृ ु बानी॥3॥
भावाथ#:-सास, ससुर और ग^
ु कM सेवा करना। प त का ^ख दे खकर उनकM आgा का पालन
करना। सयानी सRखयाँ अNय7त Aनेह के वश कोमल वाणी से िA-य= के धमO 0सखलाती
हP॥3॥

* सादर सकल कुअँ!र समुझा}। रा न7ह बार बार उर ला}॥


बहु!र बहु!र भेटहं महतार.ं। कहहं 8बरं च रचीं कत नार.ं॥4॥
भावाथ#:-आदर के साथ सब पु8-य= को (िA-य= के धमO) समझाकर रा नय= ने बार-बार उ7ह?

sदय से लगाया। माताएँ Bफर-Bफर भ? टती और कहती हP Bक CDमा ने A-ी जा त को iय=


रचा॥4॥

दोहा :
* तेह अवसर भाइ7ह सहत रामु भानु कुल केत।ु
चले जनक मंदर मुदत 8बदा करावन हे त॥
ु 334॥
भावाथ#:-उसी समय सूयव
O ंश के पताका Aवfप $ी रामच7oजी भाइय= सहत स7न होकर
,वदा कराने के 0लए जनकजी के महल को चले॥334॥

चौपाई :
* चा!रउ भाइ सुभायँ सुहाए। नगर ना!र नर दे खन धाए॥
कोउ कह चलन चहत हहं आजू। कM7ह 8बदे ह 8बदा कर साज॥
ू 1॥
भावाथ#:-Aवभाव से ह. संुदर चार= भाइय= को दे खने के 0लए नगर के A-ी-प^
ु ष दौड़े। कोई
कहता है- आज ये जाना चाहते हP। ,वदे ह ने ,वदाई का सब सामान तैयार कर 0लया है॥1॥

* लेहु नयन भ!र fप नहार.। , य पाहुने भप


ू सुत चार.॥
को जानै केहं सुकृत सयानी। नयन अ तथ कM7हे 8बध आनी॥2॥
भावाथ#:-राजा के चार= पु-, इन यारे मेहमान= के (मनोहर) fप को ने- भरकर दे ख लो। हे
सयानी! कौन जाने, Bकस पुxय से ,वधाता ने इ7ह? यहाँ लाकर हमारे ने-= का अ तथ Bकया
है ॥2॥

* मरनसीलु िज0म पाव ,पऊषा। सुरत^ लहै जनम कर भूखा॥


पाव नार कM ह!रपद ु जैस?। इ7ह कर दरसनु हम कहँ तैस?॥3॥
भावाथ#:-मरने वाला िजस तरह अमत
ृ पा जाए, ज7म का भूखा कZपवW
ृ पा जाए और नरक
म? रहने वाला (या नरक के योdय) जीव जैसे भगवान के परमपद को ात हो जाए, हमारे
0लए इनके दशOन वैसे ह. हP॥3॥

* नरRख राम सोभा उर धरहू। नज मन फ न मरू त म न करहू॥


एह 8बध सबह नयन फलु दे ता। गए कुअँर सब राज नकेता॥4॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी कM शोभा को नरखकर sदय म? धर लो। अपने मन को साँप और
इनकM म ू तO को मRण बना लो। इस कार सबको ने-= का फल दे ते हुए सब राजकुमार
राजमहल म? गए॥4॥

दोहा :
* fप 0संधु सब बंधु लRख हर,ष उठा र नवास।ु
करहं नछाव!र आरती महा मु दत मन सासु॥335॥
भावाथ#:-fप के समुo सब भाइय= को दे खकर सारा र नवास ह,षOत हो उठा। सासए
ु ँ महान
स7न मन से नछावर और आरती करती हP॥335॥
चौपाई :
* दे Rख राम छ8ब अ त अनरु ागीं। ेम8बबस पु न पु न पद लागीं॥
रह. न लाज ी त उर छाई। सहज सनेहु बर न Bक0म जाई॥1॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी कM छ8ब दे खकर वे ेम म? अNय7त मdन हो ग} और ेम के ,वशेष
वश होकर बार-बार चरण= लगीं। sदय म? ी त छा गई, इससे ल_जा नह.ं रह गई। उनके
Aवाभा,वक Aनेह का वणOन Bकस तरह Bकया जा सकता है ॥1॥

* भाइ7ह सहत उबट अ7हवाए। छरस असन अ त हे तु जेवाँए॥


बोले रामु सुअवस^ जानी। सील सनेह सकुचमय बानी॥2॥
भावाथ#:-उ7ह=ने भाइय= सहत $ी रामजी को उबटन करके Aनान कराया और बड़े ेम से
ष˜स भोजन कराया। सुअवसर जानकर $ी रामच7oजी शील, Aनेह और संकोचभर. वाणी
बोले-॥2॥

* राउ अवधपरु चहत 0सधाए। 8बदा होन हम इहाँ पठाए॥


मातु मुदत मन आयसु दे हू। बालक जा न करब नत नेहू॥3॥
भावाथ#:-महाराज अयो~यापुर. को चलाना चाहते हP, उ7ह=ने हम? ,वदा होने के 0लए यहाँ भेजा

है । हे माता! स7न मन से आgा द.िजए और हम? अपने बालक जानकर सदा Aनेह बनाए
रRखएगा॥3॥

* सुनत बचन 8बलखेउ र नवास।ू बो0ल न सकहं ेमबस सासू॥


sदयँ लगाई कुअँ!र सब ल.7ह.। प त7ह सV,प 8बनती अ त कM7ह.॥4॥
भावाथ#:-इन वचन= को सुनते ह. र नवास उदास हो गया। सासए
ु ँ ेमवश बोल नह.ं सकतीं।
उ7ह=ने सब कुमा!रय= को sदय से लगा 0लया और उनके प तय= को सVपकर बहुत ,वनती
कM॥4॥

छ6द :
* क!र 8बनय 0सय रामह समरपी जो!र कर पु न पु न कहै ।
ब0ल जाउँ तात सज
ु ान तJ
ु ह कहुँ 8बदत ग त सब कM अहै॥
प!रवार पुरजन मोह राजह ान, य 0सय जा नबी।
ु सीस सीलु सनेहु लRख नज Bकंकर. क!र मा नबी॥
तल
भावाथ#:-,वनती करके उ7ह=ने सीताजी को $ी रामच7oजी को सम,पOत Bकया और हाथ जोड़कर
बार-बार कहा- हे तात! हे सुजान! मP ब0ल जाती हूँ, तुमको सबकM ग त (हाल) मालम
ू है ।
प!रवार को, परु वा0सय= को, मझ
ु को और राजा को सीता ाण= के समान , य है , ऐसा
जा नएगा। हे तल
ु सी के Aवामी! इसके शील और Aनेह को दे खकर इसे अपनी दासी करके
मा नएगा।
सोरठा :
* तJ
ु ह प!रपूरन काम जान 0सरोम न भाव, य।
जन गन
ु गाहक राम दोष दलन क^नायतन॥336॥
भावाथ#:-तम
ु पूणO काम हो, सुजान 0शरोमRण हो और भाव, य हो (तJ
ु ह? ेम यारा है )। हे
राम! तम
ु भiत= के गण
ु = को wहण करने वाले, दोष= को नाश करने वाले और दया के धाम
हो॥336॥

चौपाई :
* अस कह रह. चरन गह रानी। ेम पंक जनु गरा समानी॥
सु न सनेहसानी बर बानी। बहु8बध राम सासु सनमानी॥1॥
भावाथ#:-ऐसा कहकर रानी चरण= को पकड़कर (चप ु ) रह ग}। मानो उनकM वाणी ेम fपी
दलदल म? समा गई हो। Aनेह से सनी हुई $े[ठ वाणी सुनकर $ी रामच7oजी ने सास का
बहुत कार से सJमान Bकया॥1॥

* राम 8बदा मागत कर जोर.। कM7ह नामु बहो!र बहोर.॥


पाइ असीस बहु!र 0स^ नाई। भाइ7ह सहत चले रघरु ाई॥2॥
भावाथ#:-तब $ी रामच7oजी ने हाथ जोड़कर ,वदा माँगते हुए बार-बार णाम Bकया। आशीवाOद
पाकर और Bफर 0सर नवाकर भाइय= सहत $ी रघन
ु ाथजी चले॥2॥

* मंजु मधरु मूर त उर आनी। भ} सनेह 0सथल सब रानी॥


प ु न धीरजु ध!र कुअँ!र हँकार.ं। बार बार भेटह महतार.ं॥3॥
भावाथ#:-$ी रामजी कM संद
ु र मधरु म ू तO को sदय म? लाकर सब रा नयाँ Aनेह से 0शथल हो
ग}। Bफर धीरज धारण करके कुमा!रय= को बल
ु ाकर माताएँ बारं बार उ7ह? (गले लगाकर)
भ? टने लगीं॥3॥

* पहुँचावहं Bफ!र 0मलहं बहोर.। बढ़. परAपर ी त न थोर.॥


पु न पु न 0मलत सRख7ह 8बलगाई। बाल बqछ िज0म धेनु लवाई॥4॥
भावाथ#:-पु8-य= को पहुँचाती हP, Bफर लौटकर 0मलती हP। परAपर म? कुछ थोड़ी ी त नह.ं बढ़.
(अथाOत बहुत ी त बढ़.)। बार-बार 0मलती हुई माताओं को सRखय= ने अलग कर दया।
जैसे हाल कM Xयायी हुई गाय को कोई उसके बालक बछड़े (या ब छया) से अलग कर
दे ॥4॥

दोहा :
* ेम8बबस नर ना!र सब सRख7ह सहत र नवासु।
मानहुँ कM7ह 8बदे हपरु क^नाँ 8बरहँ नवास॥
ु 337॥
भावाथ#:-सब A-ी-पु^ष और सRखय= सहत सारा र नवास ेम के ,वशेष वश हो रहा है । (ऐसा
लगता है ) मानो जनकपरु म? क^णा और ,वरह ने डेरा डाल दया है ॥337॥

चौपाई :
* सक
ु सा!रका जानकM _याए। कनक ,पंजरि7ह राRख पढ़ाए॥
Xयाकुल कहहं कहाँ बैदेह.। सु न धीरजु प!रहरइ न केह.॥1॥
भावाथ#:-जानकM ने िजन तोता और मैना को पाल-पोसकर बड़ा Bकया था और सोने के ,पंजड़=
म? रखकर पढ़ाया था, वे cयाकुल होकर कह रहे हP- वैदेह. कहाँ हP। उनके ऐसे वचन= को
सुनकर धीरज Bकसको नह.ं Nयाग दे गा (अथाOत सबका धैयO जाता रहा)॥1॥

* भए 8बकल खग मग
ृ एह भाँती। मनज
ु दसा कैस? कह जाती॥
बंधु समेत जनकु तब आए। ेम उमग लोचन जल छाए॥2॥
भावाथ#:-जब पWी और पशु तक इस तरह ,वकल हो गए, तब मन[ु य= कM दशा कैसे कह. जा
सकती है ! तब भाई सहत जनकजी वहाँ आए। ेम से उमड़कर उनके ने-= म? ( ेमा$ुओं
का) जल भर आया॥2॥

* सीय 8बलोBक धीरता भागी। रहे कहावत परम 8बरागी॥


ल.ि7ह रायँ उर लाइ जानकM। 0मट. महामरजाद dयान कM॥3॥
भावाथ#:-वे परम वैराdयवान कहलाते थे, पर सीताजी को दे खकर उनका भी धीरज भाग गया।
राजा ने जानकMजी को sदय से लगा 0लया। ( ेम के भाव से) gान कM महान मयाOदा 0मट
गई (gान का बाँध टूट गया)॥3॥

* समुझावत सब सचव सयाने। कM7ह 8बचा^ न अवसर जाने॥


बारहं बार सुता उर ला}। सिज संुदर पालकMं मगा}॥4॥
भावाथ#:-सब बुkधमान मं-ी उ7ह? समझाते हP। तब राजा ने ,वषाद करने का समय न जानकर
,वचार Bकया। बारं बार प8ु -य= को sदय से लगाकर संद
ु र सजी हुई पालBकयाँ मँगवाई॥4॥

दोहा :
* ेम8बबस प!रवा^ सबु जा न सल
ु गन नरे स।
कुअँ!र चढ़ा} पालBक7ह सु0मरे 0सkध गनेस॥338॥
भावाथ#:-सारा प!रवार
ेम म? ,ववश है । राजा ने संद
ु र मुहूतO जानकर 0सkध सहत गणेशजी
का Aमरण करके क7याओं को पालBकय= पर चढ़ाया॥338॥

चौपाई :
* बहु8बध भूप सुता समुझा}। ना!रधरमु कुलर. त 0सखा}॥
दासीं दास दए बहुतरे े । सु च सेवक जे , य 0सय केरे ॥1॥
भावाथ#:-राजा ने पु8-य= को बहुत कार से समझाया और उ7ह? िA-य= का धमO और कुल कM

र. त 0सखाई। बहुत से दासी-दास दए, जो सीताजी के , य और ,व/वास पा- सेवक थे॥1॥


* सीय चलत Xयाकुल परु बासी। होहं सगन
ु सुभ मंगल रासी॥
भस
ू ुर सचव समेत समाजा। संग चले पहुँचावन राजा॥2॥
भावाथ#:-सीताजी के चलते समय जनकपुरवासी cयाकुल हो गए। मंगल कM रा0श शभ
ु शकुन
हो रहे हP। CाDमण और मं8-य= के समाज सहत राजा जनकजी उ7ह? पहुँचाने के 0लए साथ
चले॥2॥

* समय 8बलोBक बाजने बाजे। रथ गज बािज बरा त7ह साजे॥


दसरथ 8ब बो0ल सब ल.7हे । दान मान प!रपूरन कM7हे ॥3॥
भावाथ#:-समय दे खकर बाजे बजने लगे। बारा तय= ने रथ, हाथी और घोड़े सजाए। दशरथजी ने
सब CाDमण= को बुला 0लया और उ7ह? दान और सJमान से प!रपूणO कर दया॥3॥

* चरन सरोज ध!ू र ध!र सीसा। मु दत मह.प त पाइ असीसा॥


स0ु म!र गजाननु कM7ह पयाना। मंगल मल
ू सगन
ु भए नाना॥4॥
भावाथ#:-उनके
चरण कमल= कM ध0ू ल 0सर पर धरकर और आशीष पाकर राजा आनंदत हुए
और गणेशजी का Aमरण करके उ7ह=ने Aथान Bकया। मंगल= के मल
ू अनेक= शकुन
हुए॥4॥

दोहा :
* सुर सून बरषहं हर,ष करहं अपछरा गान।
चले अवधप त अवधपुर मुदत बजाइ नसान॥339॥
भावाथ#:-दे वता ह,षOत होकर फूल बरसा रहे हP और असराएँ गान कर रह. हP। अवधप त
दशरथजी नगाड़े बजाकर आनंदपूवक
O अयो~यापरु . चले॥339॥

चौपाई :
* नप
ृ क!र 8बनय महाजन फेरे । सादर सकल मागने टे रे॥
भूषन बसन बािज गज द.7हे । ेम पो,ष ठाढ़े सब कM7हे ॥1॥
भावाथ#:-राजा दशरथजी ने ,वनती करके ति[ठत जन= को लौटाया और आदर के साथ सब
मँगन= को बुलवाया। उनको गहने-कपड़े, घोड़े-हाथी दए और ेम से पु[ट करके सबको
सJप7न अथाOत बलयi
ु त कर दया॥1॥।

* बार बार 8ब!रदाव0ल भाषी। Bफरे सकल रामह उर राखी॥


बहु!र बहु!र कोसलप त कहह.ं। जनकु ेमबस Bफरै न चहह.ं॥2॥
भावाथ#:-वे सब बारं बार ,व^दावल. (कुलकM तO) बखानकर और $ी रामच7oजी को sदय म?

रखकर लौटे । कोसलाधीश दशरथजी बार-बार लौटने को कहते हP, पर7तु जनकजी ेमवश
लौटना नह.ं चाहते॥2॥

* प ु न कह भूपत बचन सुहाए। Bफ!रअ मह.स द!ू र बƒड़ आए॥


राउ बहो!र उत!र भए ठाढ़े । ेम बाह 8बलोचन बाढ़े ॥3॥
भावाथ#:-दशरथजी
ने Bफर सुहावने वचन कहे - हे राजन!् बहुत दरू आ गए, अब लौटए। Bफर
राजा दशरथजी रथ से उतरकर खड़े हो गए। उनके ने-= म? ेम का वाह बढ़ आया
( ेमा$ओ
ु ं कM धारा बह चल.)॥3॥

* तब 8बदे ह बोले कर जोर.। बचन सनेह सुधाँ जनु बोर.॥


करV कवन 8बध 8बनय बनाई। महाराज मोह द.ि7ह बड़ाई॥4॥
भावाथ#:-तब जनकजी हाथ जोड़कर मानो Aनेह fपी अमत
ृ म? डु बोकर वचन बोले- मP Bकस
तरह बनाकर (Bकन शXद= म? ) ,वनती कfँ। हे महाराज! आपने मुझे बड़ी बड़ाई द. है ॥4॥

दोहा :
* कोसलप त समधी सजन सनमाने सब भाँ त।
0मल न परसपर 8बनय अ त ी त न sदयँ समा त॥340॥
भावाथ#:-अयो~यानाथ दशरथजी ने अपने Aवजन समधी का सब कार से सJमान Bकया।
उनके आपस के 0मलने म? अNय7त ,वनय थी और इतनी ी त थी जो sदय म? समाती न
थी॥340॥

चौपाई :
* म ु न मंड 0लह जनक 0स^ नावा। आ0सरबाद ु सबह सन पावा॥
सादर पु न भ? टे जामाता। fप सील गन
ु नध सब tाता॥1॥
भावाथ#:-जनकजी ने म ु न मंड ल. को 0सर नवाया और सभी से आशीवाOद पाया। Bफर आदर के
साथ वे fप, शील और गण
ु = के नधान सब भाइय= से, अपने दामाद= से 0मले,॥1॥

* जो!र पंक^ह पा न सह
ु ाए। बोले बचन ेम जनु जाए॥
राम करV केह भाँ त संसा। मु न महे स मन मानस हं सा॥2॥
भावाथ#:-और संुदर कमल के समान हाथ= को जोड़कर ऐसे वचन बोले जो मानो ेम से ह.
ज7मे ह=। हे रामजी! मP Bकस कार आपकM शंसा कfँ! आप म ु नय= और महादे वजी के
मन fपी मानसरोवर के हं स हP॥2॥

* करहं जोग जोगी जेह लागी। कोहु मोहु ममता मद ु Nयागी॥


Xयापकु CDमु अलखु अ8बनासी। चदानंद ु नरगन
ु गन
ु रासी॥3॥
भावाथ#:-योगी लोग िजनके 0लए €ोध, मोह, ममता और मद को Nयागकर योग साधन करते
हP, जो सवOcयापक, CDम, अcयiत, अ,वनाशी, चदानंद, नगण
ुO और गण
ु = कM रा0श हP,॥3॥

*मन समेत जेह जान न बानी। तरBक न सकहं सकल अनम


ु ानी॥
महमा नगमु ने त कह कहई। जो तहुँ काल एकरस रहई॥4॥
भावाथ#:- िजनको मन सहत वाणी नह.ं जानती और सब िजनका अनम
ु ान ह. करते हP, कोई
तकOना नह.ं कर सकते, िजनकM महमा को वेद 'ने त' कहकर वणOन करता है और जो
(सिqचदानंद) तीन= काल= म? एकरस (सवOदा और सवOथा न,वOकार) रहते हP,॥4॥

दोहा :
* नयन 8बषय मो कहुँ भयउ सो समAत सुख मूल।
सबइ लाभु जग जीव कहँ भएँ ईसु अनक
ु ू ल॥341॥
भावाथ#:-वे
ह. समAत सुख= के मल
ू (आप) मेरे ने-= के ,वषय हुए। ई/वर के अनक
ु ू ल होने पर
जगत म? जीव को सब लाभ ह. लाभ है ॥341॥

चौपाई :
* सबह भाँ त मोह द.ि7ह बड़ाई। नज जन जा न ल.7ह अपनाई॥
होहं सहस दस सारद सेषा। करहं कलप कोटक भ!र लेखा॥1॥
भावाथ#:- आपने मुझे सभी कार से बड़ाई द. और अपना जन जानकर अपना 0लया। यद
दस हजार सरAवती और शेष ह= और करोड़= कZप= तक गणना करते रह? ॥1॥

* मोर भाdय राउर गन


ु गाथा। कह न 0सराहं सुनहु रघन
ु ाथा॥
मP कछु कहउँ एक बल मोर? । तJ ु ह र.झहु सनेह सुठ थोर? ॥2॥
भावाथ#:- तो भी हे रघन
ु ाजी! स ु नए, मेरे सौभाdय और आपके गण ु = कM कथा कहकर समात
नह.ं कM जा सकती। मP जो कुछ कह रहा हूँ, वह अपने इस एक ह. बल पर Bक आप
अNय7त थोड़े ेम से स7न हो जाते हP॥2॥

* बार बार मागउँ कर जोर? । मनु प!रहरै चरन ज न भोर? ॥


सु न बर बचन ेम जनु पोषे। पूरनकाम रामु प!रतोषे॥3॥
भावाथ#:- मP बार-बार हाथ जोड़कर यह माँगता हूँ Bक मेरा मन भूलकर भी आपके चरण= को
न छोड़े। जनकजी के $े[ठ वचन= को सुनकर, जो मानो ेम से पु[ट Bकए हुए थे, पूणO काम
$ी रामच7oजी संत[ु ट हुए॥3॥

* क!र बर 8बनय ससुर सनमाने। ,पतु कौ0सक ब0स[ठ सम जाने॥


8बनती बहु!र भरत सन कM7ह.। 0म0ल स ेमु पु न आ0सष द.7ह.॥4॥
भावाथ#:- उ7ह=ने संद
ु र ,वनती करके ,पता दशरथजी, ग^
ु ,व/वा0म-जी और कुलग^
ु व0श[ठजी
के समान जानकर ससुर जनकजी का सJमान Bकया। Bफर जनकजी ने भरतजी से ,वनती
कM और ेम के साथ 0मलकर Bफर उ7ह? आशीवाOद दया॥4॥

दोहा :
* 0मले लखन !रपस
ु द
ू नह द.ि7ह असीस मह.स।
भए परसपर ेमबस Bफ!र Bफ!र नावहं सीस॥342॥
भावाथ#:- Bफर राजा ने ल'मणजी और श-
ु नजी से 0मलकर उ7ह? आशीवाOद दया। वे परAपर
ेम के वश होकर बार-बार आपस म? 0सर नवाने लगे॥342॥

चौपाई :
* बार बार क!र 8बनय बड़ाई। रघप
ु त चले संग सब भाई॥
जनक गहे कौ0सक पद जाई। चरन रे नु 0सर नयन7ह लाई॥1॥
भावाथ#:- जनकजी कM बार-बार ,वनती और बड़ाई करके $ी रघन
ु ाथजी सब भाइय= के साथ
चले। जनकजी ने जाकर ,व/वा0म-जी के चरण पकड़ 0लए और उनके चरण= कM रज को
0सर और ने-= म? लगाया॥1॥

* सुनु मुनीस बर दरसन तोर? । अगमु न कछु ती त मन मोर? ॥


जो सुखु सज
ु सु लोकप त चहह.ं। करत मनोरथ सकुचत अहह.ं॥2॥
भावाथ#:- (उ7ह=ने कहा-) हे मुनी/वर! स ु नए, आपके संद
ु र दशOन से कुछ भी दल
ु भ
O नह.ं है, मेरे
मन म? ऐसा ,व/वास है , जो सुख और सय
ु श लोकपाल चाहते हP, पर7तु (असंभव समझकर)
िजसका मनोरथ करते हुए सकुचाते हP,॥2॥

* सो सुखु सुजसु सुलभ मोह Aवामी। सब 0सध तव दरसन अनग


ु ामी॥
कMि7ह 8बनय पु न पु न 0स^ नाई। Bफरे मह.सु आ0सषा पाई॥3॥
भावाथ#:- हे Aवामी! वह. सुख और सुयश मुझे सल
ु भ हो गया, सार. 0सkधयाँ आपके दशOन=
कM अनग
ु ा0मनी अथाOत पीछे -पीछे चलने वाल. हP। इस कार बार-बार ,वनती कM और 0सर
नवाकर तथा उनसे आशीवाOद पाकर राजा जनक लौटे ॥3॥

बारात का अयोHया लौटना और अयोHया म आनंद


* चल. बरात नसान बजाई। मुदत छोट बड़ सब समुदाई॥
रामह नरRख wाम नर नार.। पाइ नयन फलु होहं सख
ु ार.॥4॥
भावाथ#:-डंका बजाकर बारात चल.। छोटे -बड़े सभी समुदाय स7न हP। (राAते के) गाँव के A-ी-
प^
ु ष $ी रामच7oजी को दे खकर ने-= का फल पाकर सुखी होते हP॥4॥

दोहा :
* बीच बीच बर बास क!र मग लोग7ह सख
ु दे त।
अवध समीप पुनीत दन पहुँची आइ जनेत॥343॥
भावाथ#:-बीच-बीच म? संद
ु र मक
ु ाम करती हुई तथा मागO के लोग= को सख
ु दे ती हुई वह बारात
प,व- दन म? अयो~यापुर. के समीप आ पहुँची॥343॥

चौपाई :
*हने नसान पनव बर बाजे। भे!र संख धु न हय गय गाजे॥
झाँRझ 8बरव ƒड ƒं डमीं सुहाई। सरस राग बाजहं सहनाई॥1॥
भावाथ#:-नगाड़= पर चोट? पड़ने लगीं, सुंदर ढोल बजने लगे। भेर. और शंख कM बड़ी आवाज हो
रह. है , हाथी-घोड़े गरज रहे हP। ,वशेष शXद करने वाल. झाँझ?, सुहावनी डफ0लयाँ तथा रसीले
राग से शहनाइयाँ बज रह. हP॥1॥

* परु जन आवत अक न बराता। मुदत सकल पल


ु काव0ल गाता॥
नज नज सद
ुं र सदन सँवारे । हाट बाट चौहटपरु kवारे ॥2॥
भावाथ#:-बारात को आती हुई सन ु कर नगर नवासी स7न हो गए। सबके शर.र= पर पल ु कावल.
छा गई। सबने अपने-अपने सद ुं र घर=, बाजार=, ग0लय=, चौराह= और नगर के kवार= को
सजाया॥2॥

* गल.ं सकल अरगजाँ 0संचा}। जहँ तहँ चौक? चा^ पुरा}॥


बना बजा^ न जाइ बखाना। तोरन केतु पताक 8बताना॥3॥
भावाथ#:-सार. ग0लयाँ अरगजे से 0संचाई ग}, जहाँ-तहाँ सुंदर चौक परु ाए गए। तोरण= ~वजा-
पताकाओं और मंड प= से बाजार ऐसा सजा Bक िजसका वणOन नह.ं Bकया जा सकता॥3॥

* सफल पग
ू फल कद0ल रसाला। रोपे बकुल कदं ब तमाला॥
लगे सुभग त^ परसत धरनी। म नमय आलबाल कल करनी॥4॥
भावाथ#:-फल सहत सुपार., केला, आम, मौल0सर., कदJब और तमाल के वW
ृ लगाए गए। वे
लगे हुए सद
ुं र वW
ृ (फल= के भार से) प4
ृ वी को छू रहे हP। उनके मRणय= के थाले बड़ी सद
ुं र
कार.गर. से बनाए गए हP॥4॥

दोहा :
* 8ब8बध भाँ त मंगल कलस गहृ गह
ृ रचे सँवा!र।
सरु CDमाद 0सहाहं सब रघब
ु र परु . नहा!र॥344॥
भावाथ#:-अनेक कार के मंगल-कलश घर-घर सजाकर बनाए गए हP। $ी रघुनाथजी कM परु .
(अयो~या) को दे खकर CDमा आद सब दे वता 0सहाते हP॥344॥

चौपाई :
* भूप भवनु तेह अवसर सोहा। रचना दे Rख मदन मनु मोहा॥
मंगल सगन
ु मनोहरताई। !रध 0सध सख
ु संपदा सुहाई॥1॥
भावाथ#:-उस समय राजमहल (अNय7त) शो0भत हो रहा था। उसकM रचना दे खकर कामदे व भी
मन मोहत हो जाता था। मंगल शकुन, मनोहरता, ऋkध-0सkध, सुख, सुहावनी सJप,T॥1॥

* जनु उछाह सब सहज सह


ु ाए। तनु ध!र ध!र दसरथ गह
ृ ँ छाए॥
दे खन हेतु राम बैदेह.। कहहु लालसा होह न केह.॥2॥
भावाथ#:-और सब कार के उNसाह (आनंद) मानो सहज सुंदर शर.र धर-धरकर दशरथजी के घर
म? छा गए हP। $ी रामच7oजी और सीताजी के दशOन= के 0लए भला कहए, Bकसे लालसा न
होगी॥2॥

* जूथ जूथ 0म0ल चल.ं सुआ0स न। नज छ8ब नदरहं मदन 8बला0स न॥


सकल सम ु ंगल सज? आरती। गावहं जनु बहु बेष भारती॥3॥
भावाथ#:-सुहागनी िA-याँ झुंड कM झुंड 0मलकर चल.ं, जो अपनी छ8ब से कामदे व कM A-ी र त
का भी नरादर कर रह. हP। सभी सद
ंु र मंगलocय एवं आरती सजाए हुए गा रह. हP, मानो
सरAवतीजी ह. बहुत से वेष धारण Bकए गा रह. ह=॥3॥

* भप
ू त भवन कोलाहलु होई। जाइ न बर न समउ सख
ु ु सोई॥
कौसZयाद राम महतार.ं। ेम8बबस तन दसा 8बसार.ं॥4॥
भावाथ#:-राजमहल म? (आनंद के मारे ) शोर मच रहा है । उस समय का और सुख का वणOन नह.ं
Bकया जा सकता। कौसZयाजी आद $ी रामच7oजी कM सब माताएँ ेम के ,वशेष वश होने से
शर.र कM सुध भल
ू ग}॥4॥

दोहा :
* दए दान 8ब 7ह 8बपल
ु पिू ज गनेस परु ा!र।
मुदत परम द!रo जनु पाइ पदारथ चा!र॥345॥
भावाथ#:-गणेशजी और 8-परु ा!र 0शवजी का पज
ू न करके उ7ह=ने CाDमण= को बहुत सा दान
दया। वे ऐसी परम स7न हु}, मानो अNय7त द!रo. चार= पदाथO पा गया हो॥345॥

चौपाई :
* मोद मोद 8बबस सब माता। चलहं न चरन 0सथल भए गाता॥
राम दरस हत अ त अनरु ागीं। प!रछ न साजु सजन सब लागीं॥1॥
भावाथ#:-सुख और महान आनंद से ,ववश होने के कारण सब माताओं के शर.र 0शथल हो गए
हP, उनके चरण चलते नह.ं हP। $ी रामच7oजी के दशOन= के 0लए वे अNय7त अनरु ाग म? भरकर
परछन का सब सामान सजाने लगीं॥1॥

* 8ब8बध 8बधान बाजने बाजे। मंगल मुदत सु0म-ाँ साजे॥


हरद दब
ू दध पZलव फूला। पान पग
ू फल मंगल मल
ू ा॥2॥
भावाथ#:-अनेक= कार के बाजे बजते थे। स0ु म-ाजी ने आनंदपव
ू क
O मंगल साज सजाए। हZद.,
दब
ू , दह., पTे, फूल, पान और सप
ु ार. आद मंगल कM मल
ू वAतुए,ँ ॥2॥

* अqछत अंकुर लोचन लाजा। मंजुल मंज!र तल


ु 0स 8बराजा॥
छुहे परु ट घट सहज सुहाए। मदन सकुन जनु नीड़ बनाए॥3॥
भावाथ#:-तथा अWत (चावल), अँखए
ु , गोरोचन, लावा और तुलसी कM सुंदर मंज!रयाँ सश
ु ो0भत हP।
नाना रं ग= से च8-त Bकए हुए सहज सह
ु ावने सुवणO के कलश ऐसे मालूम होते हP, मानो कामदे व
के प\Wय= ने घ=सले बनाए ह=॥3॥

*सगन
ु सुगंध न जाहं बखानी। मंगल सकल सजहं सब रानी॥
रचीं आरतीं बहतु 8बधाना। मु दत करहं कल मंगल गाना॥4॥
भावाथ#:-शकुन कM सुगि7धत वAतुएँ बखानी नह.ं जा सकतीं। सब रा नयाँ सJपण
ू O मंगल साज
सज रह. हP। बहुत कार कM आरती बनाकर वे आनंदत हु} सुंदर मंगलगान कर रह. हP॥4॥

दोहा :
* कनक थार भ!र मंगलि7ह कमल करि7ह 0लएँ मात।
चल.ं मु दत प!रछ न करन पल
ु क पZल,वत गात॥346॥
भावाथ#:-सोने के थाल= को मांग0लक वAतुओं से भरकर अपने कमल के समान (कोमल) हाथ=
म? 0लए हुए माताएँ आनंदत होकर परछन करने चल.ं। उनके शर.र पुलकावल. से छा गए
हP॥346॥

चौपाई :
* धूप धूम नभु मेचक भयऊ। सावन घन घमंडु जनु ठयऊ॥
सुरत^ सुमन माल सुर बरषहं। मनहुँ बलाक अव0ल मनु करषहं॥1॥
भावाथ#:-धप
ू के धुएँ से आकाश ऐसा काला हो गया है मानो सावन के बादल घुमड़-घुमड़कर छा
गए ह=। दे वता कZपवW
ृ के फूल= कM मालाएँ बरसा रहे हP। वे ऐसी लगती हP, मानो बगुल= कM
पाँ त मन को (अपनी ओर) खींच रह. हो॥1॥

* मंजल
ु म नमय बंद नवारे । मनहुँ पाक!रपु चाप सँवारे ॥
गटहं दरु हं अट7ह पर भा0म न। चा^ चपल जनु दमकहं दा0म न॥2॥
भावाथ#:-सुंदर मRणय= से बने बंदनवार ऐसे मालूम होते हP, मानो इ7oधनुष सजाए ह=। अटा!रय=
पर सद
ंु र और चपल िA-याँ कट होती और छप जाती हP (आती-जाती हP), वे ऐसी जान पड़ती
हP, मानो 8बज0लयाँ चमक रह. ह=॥2॥

* दं द
ु 0ु भ धु न घन गरज न घोरा। जाचक चातक दादरु मोरा॥
सुर सग
ु ंध सुच बरषहं बार.। सुखी सकल स0स परु नर नार.॥3॥
भावाथ#:-नगाड़= कM ~व न मानो बादल= कM घोर गजOना है । याचकगण पपीहे, म? ढ क और मोर हP।
दे वता प,व- सग
ु ंध fपी जल बरसा रहे हP, िजससे खेती के समान नगर के सब A-ी-प^
ु ष सुखी
हो रहे हP॥3॥

* समउ जा न गरु आयसु द.7हा। पुर बेसु रघुकुलम न कM7हा॥


स0ु म!र संभु ग!रजा गनराजा। मु दत मह.प त सहत समाजा॥4॥
भावाथ#:- ( वेश का) समय जानकर गु^ व0श[ठजी ने आgा द.। तब रघक
ु ु लमRण महाराज
दशरथजी ने 0शवजी, पावOतीजी और गणेशजी का Aमरण करके समाज सहत आनंदत होकर
नगर म? वेश Bकया॥4॥

* होहं सगन
ु बरषहं सुमन सुर दं द
ु भीं बजाइ।
8बबध
ु बधू नाचहं मुदत मंजुल मंगल गाइ॥347॥
भावाथ#:-शकुन हो रहे हP, दे वता द7ु दभ
ु ी बजा-बजाकर फूल बरसा रहे हP। दे वताओं कM िA-याँ
आनंदत होकर सुंदर मंगल गीत गा-गाकर नाच रह. हP॥347॥
चौपाई :
* मागध सत ू बंद नट नागर। गावहं जसु तहु लोक उजागर॥
जय ध ु न 8बमल बेद बर बानी। दस द0स स ु नअ सम ु ंगल सानी॥1॥
भावाथ#:-मागध, सूत, भाट और चतुर नट तीन= लोक= के उजागर (सबको काश दे ने वाले परम
काश Aवfप) $ी रामच7oजी का यश गा रहे हP। जय ~व न तथा वेद कM नमOल $े[ठ वाणी
सुंदर मंगल से सनी हुई दस= दशाओं म? सुनाई पड़ रह. है॥1॥

* 8बपल
ु बाज ने बाजन लागे। नभ सुर नगर लोग अनुरागे॥
बने बराती बर न न जाह.ं। महा मुदत मन सुख न समाह.ं॥2॥
भावाथ#:-बहुत से बाजे बजने लगे। आकाश म? दे वता और नगर म? लोग सब ेम म? मdन हP।
बाराती ऐसे बने-ठने हP Bक उनका वणOन नह.ं हो सकता। परम आनंदत हP, सुख उनके मन म?
समाता नह.ं है॥2॥

* परु बा0स7ह तब राय जोहारे । दे खत रामह भए सख


ु ारे ॥
करहं नछाव!र म नगन चीरा। बा!र 8बलोचन पल
ु क सर.रा॥3॥
भावाथ#:- तब अयो~याव0सय= ने राजा को जोहार (वंदना) कM। $ी रामच7oजी को दे खते ह. वे
सख
ु ी हो गए। सब मRणयाँ और वA- नछावर कर रहे हP। ने-= म? ( ेमा$ुओं का) जल भरा है
और शर.र पुलBकत हP॥3॥।

* आर त करहं मु दत परु नार.। हरषहं नरRख कुअँर बर चार.॥


0स8बका सुभग ओहार उघार.। दे Rख दल
ु ह न7ह होहं सख
ु ार.॥4॥
भावाथ#:-नगर कM िA-याँ आनंदत होकर आरती कर रह. हP और सद
ुं र चार= कुमार= को दे खकर
ह,षOत हो रह. हP। पालBकय= के सुंदर परदे हटा-हटाकर वे दल
ु हन= को दे खकर सख
ु ी होती हP॥4॥

दोहा :
* एह 8बध सबह. दे त सख
ु ु आए राजदआ
ु र।
मु दत मातु प!रछ न करहं बध7
ु ह समेत कुमार॥348॥
भावाथ#:-इस कार सबको सुख दे ते हुए राजkवार पर आए। माताएँ आनंदत होकर बहुओं सहत
कुमार= का परछन कर रह. हP॥348॥

चौपाई :
* करहं आरती बारहं बारा। ेमु मोद ु कहै को पारा॥
भूषन म न पट नाना जाती। करहं नछाव!र अग नत भाँती॥1॥
भावाथ#:-वे बार-बार आरती कर रह. हP। उस ेम और महान आनंद को कौन कह सकता है!
अनेक= कार के आभूषण, रNन और वA- तथा अगRणत कार कM अ7य वAतुएँ नछावर कर
रह. हP॥1॥

* बधु7ह समेत दे Rख सत
ु चार.। परमानंद मगन महतार.॥
प ु न पु न सीय राम छ8ब दे खी। मुदत सफल जग जीवन लेखी॥2॥
भावाथ#:-बहुओं सहत चार= पु-= को दे खकर माताएँ परमानंद म? मdन हो ग}। सीताजी और $ी
रामजी कM छ8ब को बार-बार दे खकर वे जगत म? अपने जीवन को सफल मानकर आनंदत हो
रह. हP॥2॥

* सखीं सीय मख
ु प ु न प ु न चाह.। गान करहं नज सक
ु ृ त सराह.॥
बरषहं सुमन छनहं छन दे वा। नाचहं गावहं लावहं सेवा॥3॥
भावाथ#:-सRखयाँ सीताजी के मुख को बार-बार दे खकर अपने पx
ु य= कM सराहना करती हुई गान
कर रह. हP। दे वता Wण-Wण म? फूल बरसाते, नाचते, गाते तथा अपनी-अपनी सेवा समपOण
करते हP॥3॥

* दे Rख मनोहर चा!रउ जोर.ं। सारद उपमा सकल ढँ ढ ोर.ं॥


दे त न बनहं नपट लघु लागीं। एकटक रह.ं fप अनरु ागीं॥4॥
भावाथ#:-चार= मनोहर जोƒड़य= को दे खकर सरAवती ने सार. उपमाओं को खोज डाला, पर कोई
उपमा दे ते नह.ं बनी, iय=Bक उ7ह? सभी 8बलकुल तुqछ जान पड़ीं। तब हारकर वे भी $ी रामजी
के fप म? अनरु iत होकर एकटक दे खती रह ग}॥4॥

दोहा :
* नगम नी त कुल र. त क!र अरघ पाँवड़े दे त।
बध7
ु ह सहत सत
ु प!र छ सब चल.ं लवाइ नकेत॥349॥
भावाथ#:-वेद कM ,वध और कुल कM र. त करके अयO-पाँवड़े दे ती हुई बहुओं समेत सब प-
ु = को
परछन करके माताएँ महल म? 0लवा चल.ं॥349॥

चौपाई :
* चा!र 0संघासन सहज सह
ु ाए। जनु मनोज नज हाथ बनाए॥
त7ह पर कुअँ!र कुअँर बैठारे । सादर पाय पन
ु ीत पखारे ॥1॥
भावाथ#:-Aवाभा,वक ह. सद
ंु र चार 0संहासन थे, जो मानो कामदे व ने ह. अपने हाथ से बनाए थे।
उन पर माताओं ने राजकुमा!रय= और राजकुमार= को बैठाया और आदर के साथ उनके प,व-
चरण धोए॥1॥

* धूप द.प नैबेद बेद 8बध। पूजे बर दल


ु ह न मंगल नध॥
बारहं बार आरती करह.ं। Xयजन चा^ चामर 0सर ढरह.ं॥2॥
भावाथ#:-Bफर वेद कM ,वध के अनुसार मंगल के नधान दल
ू ह कM दल
ु हन= कM धूप, द.प और
नैवेkय आद के kवारा पज
ू ा कM। माताएँ बारJबार आरती कर रह. हP और वर-वधुओं के 0सर=
पर सद
ुं र पंखे तथा चँवर ढल रहे हP॥2॥

* बAतु अनेक नछाव!र होह.ं। भर.ं मोद मातु सब सोह.ं॥


पावा परम तNव जनु जोगीं। अमत
ृ ु लहेउ जनु संतत रोगीं॥3॥
भावाथ#:-अनेक= वAतुएँ नछावर हो रह. हP, सभी माताएँ आनंद से भर. हुई ऐसी सुशो0भत हो
रह. हP मानो योगी ने परम तNव को ात कर 0लया। सदा के रोगी ने मानो अमत ृ पा
0लया॥3॥

* जनम रं क जनु पारस पावा। अंधह लोचन लाभु सुहावा॥


मकू बदन जनु सारद छाई। मानहुँ समर सरू जय पाई॥4॥
भावाथ#:-ज7म का द!रo. मानो पारस पा गया। अंधे को सुंदर ने-= का लाभ हुआ। गँूगे के मख

म? मानो सरAवती आ ,वराजीं और शूरवीर ने मानो युkध म? ,वजय पा ल.॥4॥

दोहा :
* एह सुख ते सत कोट गुन पावहं मातु अनंद।ु
भाइ7ह सहत 8बआह घर आए रघुकुलचंद॥
ु 350 क॥
भावाथ#:-इन सख
ु = से भी सौ करोड़ गुना बढ़कर आनंद माताएँ पा रह. हP, iय=Bक रघक
ु ु ल के
चंoमा $ी रामजी ,ववाह कर के भाइय= सहत घर आए हP॥350 (क)॥

* लोक र. त जननीं करहं बर दल


ु ह न सकुचाहं।
मोद ु 8बनोद ु 8बलोBक बड़ रामु मनहं मस
ु ुकाहं॥350 ख॥
भावाथ#:-माताएँ लोकर. त करती हP और दल
ू ह-दल
ु हन? सकुचाते हP। इस महान आनंद और ,वनोद
को दे खकर $ी रामच7oजी मन ह. मन मुAकुरा रहे हP॥350 (ख)॥

चौपाई :
* दे व ,पतर पूजे 8बध नीकM। पूजीं सकल बासना जी कM॥
सबह बंद माँगहं बरदाना। भाइ7ह सहत राम कZयाना॥1॥
भावाथ#:-मन कM सभी वासनाएँ परू . हुई जानकर दे वता और ,पतर= का भल.भाँ त पज
ू न Bकया।
सबकM वंदना करके माताएँ यह. वरदान माँगती हP Bक भाइय= सहत $ी रामजी का कZयाण
हो॥1॥

* अंतरहत सुर आ0सष दे ह.ं। मुदत मातु अंचल भ!र लेह.ं॥


भूप त बो0ल बराती ल.7हे । जान बसन म न भूषन द.7हे ॥2॥
भावाथ#:-दे वता छपे हुए (अ7त!रW से) आशीवाOद दे रहे हP और माताएँ आनि7दत हो आँचल
भरकर ले रह. हP। तदन7तर राजा ने बारा तय= को बल ु वा 0लया और उ7ह? सवा!रयाँ, वA-, मRण
(रNन) और आभष
ू णाद दए॥2॥

* आयसु पाइ राRख उर रामह। मुदत गए सब नज नज धामह॥


परु नर ना!र सकल पहराए। घर घर बाजन लगे बधाए॥3॥
भावाथ#:-आgा पाकर, $ी रामजी को sदय म? रखकर वे सब आनंदत होकर अपने-अपने घर
गए। नगर के समAत A-ी-प^
ु ष= को राजा ने कपड़े और गहने पहनाए। घर-घर बधावे बजने
लगे॥3॥
* जाचक जन जाचहं जोइ जोई। मुदत राउ दे हं सोइ सोई॥
सेवक सकल बज नआ नाना। पूरन Bकए दान सनमाना॥4॥
भावाथ#:-याचक लोग जो-जो माँगते हP, ,वशेष स7न होकर राजा उ7ह? वह.-वह. दे ते हP। सJपण
ू O
सेवक= और बाजे वाल= को राजा ने नाना कार के दान और सJमान से स7तु[ट Bकया॥4॥

दोहा :
* दे हं असीस जोहा!र सब गावहं गुन गन गाथ।
तब गुर भूसुर सहत गह
ृ ँ गवनु कM7ह नरनाथ॥351॥
भावाथ#:-सब जोहार (वंदन) करके आशीष दे ते हP और गुण समूह= कM कथा गाते हP। तब गु^
और CाDमण= सहत राजा दशरथजी ने महल म? गमन Bकया॥351॥

चौपाई :
* जो ब0स[ट अनस
ु ासन द.7ह.। लोक बेद 8बध सादर कM7ह.॥
भूसरु भीर दे Rख सब रानी। सादर उठvं भाdय बड़ जानी॥1॥
भावाथ#:- व0श[ठजी ने जो आgा द., उसे लोक और वेद कM ,वध के अनस
ु ार राजा ने
आदरपूवक
O Bकया। CाDमण= कM भीड़ दे खकर अपना बड़ा भाdय जानकर सब रा नयाँ आदर के
साथ उठvं॥1॥

* पाय पखा!र सकल अ7हवाए। पूिज भल. 8बध भप


ू जेवाँए॥
आदर दान ेम प!रपोषे। दे त असीस चले मन तोषे॥2॥
भावाथ#:-चरण धोकर उ7ह=ने सबको Aनान कराया और राजा ने भल.-भाँ त पूजन करके उ7ह?
भोजन कराया! आदर, दान और ेम से पु[ट हुए वे संतु[ट मन से आशीवाOद दे ते हुए चले॥2॥

* बहु 8बध कMि7ह गाधसुत पज ू ा। नाथ मोह सम ध7य न दजू ा॥


कMि7ह संसा भूप त भरू .। रा न7ह सहत ल.ि7ह पग धूर.॥3॥
भावाथ#:-राजा ने गाध प-ु ,व/वा0म-जी कM बहुत तरह से पज ू ा कM और कहा- हे नाथ! मेरे
समान ध7य दस ू रा कोई नह.ं है । राजा ने उनकM बहुत शंसा कM और रा नय= सहत उनकM
चरणधू0ल को wहण Bकया॥3॥

* भीतर भवन द.7ह बर बासू। मन जोगवत रह नप


ृ ु र नवास॥

पज
ू े गरु पद कमल बहोर.। कMि7ह 8बनय उर ी त न थोर.॥4॥
भावाथ#:-उ7ह? महल के भीतर ठहरने को उTम Aथान दया, िजसम? राजा और सब र नवास
उनका मन जोहता रहे (अथाOत िजसम? राजा और महल कM सार. रा नयाँ Aवयं उनकM
इqछानस
ु ार उनके आराम कM ओर yि[ट रख सक?) Bफर राजा ने ग^
ु व0श[ठजी के चरणकमल=
कM पूजा और ,वनती कM। उनके sदय म? कम ी त न थी (अथाOत बहुत ी त थी)॥4॥

दोहा :
* बधु7ह समेत कुमार सब रा न7ह सहत मह.सु।
प ु न पु न बंदत गुर चरन दे त असीस मुनीसु॥352॥
भावाथ#:-बहुओं सहत सब राजकुमार और सब रा नय= समेत राजा बार-बार गु^जी के चरण= कM
वंदना करते हP और मुनी/वर आशीवाOद दे ते हP॥352॥

चौपाई :
* 8बनय कMि7ह उर अ त अनरु ाग? । सत
ु संपदा राRख सब आग? ॥
नेगु माग म ु ननायक ल.7हा। आ0सरबाद ु बहुत 8बध द.7हा॥1॥
भावाथ#:-राजा ने अNय7त ेमपण ू O sदय से प-
ु = को और सार. सJप,T को सामने रखकर (उ7ह?
Aवीकार करने के 0लए) ,वनती कM, पर7तु मु नराज ने (परु ोहत के नाते) केवल अपना नेग
माँग 0लया और बहुत तरह से आशीवाOद दया॥1॥

* उर ध!र रामह सीय समेता। हर,ष कM7ह गुर गवनु नकेता॥


8ब बधू सब भप
ू बोला}। चैल चा^ भष
ू न पहरा}॥1॥
भावाथ#:-Bफर सीताजी सहत $ी रामच7oजी को sदय म? रखकर गु^ व0श[ठजी ह,षOत होकर
अपने Aथान को गए। राजा ने सब CाDमण= कM िA-य= को बुलवाया और उ7ह? सुंदर वA- तथा
आभष
ू ण पहनाए॥2॥

* बहु!र बोलाइ सुआ0स न ल.7ह.ं। ^च 8बचा!र पहराव न द.7ह.ं॥


नेगी नेग जोग जब लेह.ं। ^च अनुfप भप ू म न दे ह.ं॥3॥
भावाथ#:-Bफर अब सुआ0स नय= को (नगर कM सौभाdयवती बहन, बेट., भानजी आद को) बल
ु वा
0लया और उनकM ^च समझकर (उसी के अनुसार) उ7ह? पहरावनी द.। नेगी लोग सब अपना-
अपना नेग-जोग लेते और राजाओं के 0शरोमRण दशरथजी उनकM इqछा के अनुसार दे ते हP॥3॥

* , य पाहुने प_ ू य जे जाने। भप
ू त भल. भाँ त सनमाने॥
दे व दे Rख रघुबीर 8बबाहू। बर,ष सून सं0स उछाहू॥4॥
भावाथ#:-िजन मेहमान= को , य और पज
ू नीय जाना, उनका राजा ने भल.भाँ त सJमान Bकया।
दे वगण $ी रघुनाथजी का ,ववाह दे खकर, उNसव कM शंसा करके फूल बरसाते हुए-॥4॥

दोहा :
* चले नसान बजाइ सरु नज नज परु सख
ु पाइ।
कहत परसपर राम जसु ेम न sदयँ समाइ॥353॥
भावाथ#:-नगाड़े बजाकर और (परम) सुख ात कर अपने-अपने लोक= को चले। वे एक-दस
ू रे से
$ी रामजी का यश कहते जाते हP। sदय म? ेम समाता नह.ं है ॥353॥

चौपाई :
* सब 8बध सबह समद नरनाहू। रहा sदयँ भ!र पू!र उछाहू॥
जहँ र नवासु तहाँ पगु धारे । सहत बहूट7ह कुअँर नहारे ॥1॥
भावाथ#:-सब कार से सबका ेमपव ू क
O भल.-भाँ त आदर-सNकार कर लेने पर राजा दशरथजी के
sदय म? पूणO उNसाह (आनंद) भर गया। जहाँ र नवास था, वे वहाँ पधारे और बहुओं समेत
उ7ह=ने कुमार= को दे खा॥1॥

* 0लए गोद क!र मोद समेता। को कह सकइ भयउ सख


ु ु जेता॥
बधू स ेम गोद बैठार.ं। बार बार हयँ हर,ष दल
ु ार.ं॥2॥
भावाथ#:-राजा ने आनंद सहत प-
ु = को गोद म? ले 0लया। उस समय राजा को िजतना सख ु हुआ
उसे कौन कह सकता है? Bफर प- ु वधुओं को ेम सहत गोद. म? बैठाकर, बार-बार sदय म?
ह,षOत होकर उ7ह=ने उनका दल
ु ार (लाड़-चाव) Bकया॥2॥

* दे Rख समाजु मु दत र नवासू। सब क? उर अनंद Bकयो बासू॥


कहेउ भप ू िज0म भयउ 8बबाहू। स ु न सु न हरषु होत सब काहू॥3॥
भावाथ#:-यह समाज (समारोह) दे खकर र नवास स7न हो गया। सबके sदय म? आनंद ने
नवास कर 0लया। तब राजा ने िजस तरह ,ववाह हुआ था, वह सब कहा। उसे सुन-सुनकर सब
Bकसी को हषO होता है॥3॥

* जनक राज गुन सीलु बड़ाई। ी त र. त संपदा सुहाई॥


बहु8बध भप ू भाट िज0म बरनी। रानीं सब मुदत सु न करनी॥4॥
भावाथ#:-राजा जनक के गणु , शील, महNव, ी त कM र. त और सुहावनी सJप,T का वणOन राजा
ने भाट कM तरह बहुत कार से Bकया। जनकजी कM करनी सन
ु कर सब रा नयाँ बहुत स7न
हु}॥4॥

दोहा :
* सत
ु 7ह समेत नहाइ नप
ृ बो0ल 8ब गरु dया त।
भोजन कM7ह अनेक 8बध घर. पंच गइ रा त॥।354॥
भावाथ#:-प-
ु = सहत Aनान करके राजा ने CाDमण, गु^ और कुटुिJबय= को बल
ु ाकर अनेक कार
के भोजन Bकए। (यह सब करते-करते) पाँच घड़ी रात बीत गई॥354॥

चौपाई :
* मंगलगान करहं बर भा0म न। भै सुखमल
ू मनोहर जा0म न॥
अँचइ पान सब काहूँ पाए। ‰ग सुगंध भ,ू षत छ8ब छाए॥1॥
भावाथ#:-सुंदर िA-याँ मंगलगान कर रह. हP। वह रा8- सख
ु कM मूल और मनोहा!रणी हो गई।
सबने आचमन करके पान खाए और फूल= कM माला, सुगं धत ocय आद से ,वभू,षत होकर
सब शोभा से छा गए॥1॥

* रामह दे Rख रजायसु पाई। नज नज भवन चले 0सर नाई॥


ेम मोद ु 8बनोद ु बड़ाई। समउ समाजु मनोहरताई॥2॥
भावाथ#:-$ी रामच7oजी को दे खकर और आgा पाकर सब 0सर नवाकर अपने-अपने घर को
चले। वहाँ के ेम, आनंद, ,वनोद, महNव, समय, समाज और मनोहरता को-॥2॥
* कह न सकहं सतसारद सेस।ू बेद 8बरं च महेस गनेसू॥
सो मP कहV कवन 8बध बरनी। भ0ू मनागु 0सर धरइ Bक धरनी॥3॥
भावाथ#:-सैकड़= सरAवती, शेष, वेद, CDमा, महादे वजी और गणेशजी भी नह.ं कह सकते। Bफर
भला मP उसे Bकस कार से बखानकर कहूँ? कह.ं क?चआ
ु भी धरती को 0सर पर ले सकता
है ?॥3॥

* नप
ृ सब भाँ त सबह सनमानी। कह मद
ृ ु बचन बोला} रानी॥
बधू ल!रकनीं पर घर आ}। राखेहु नयन पलक कM नाई॥4॥
भावाथ#:-राजा ने सबका सब कार से सJमान करके, कोमल वचन कहकर रा नय= को बल
ु ाया
और कहा- बहुएँ अभी बqची हP, पराए घर आई हP। इनको इस तरह से रखना जैसे ने-= को
पलक? रखती हP (जैसे पलक? ने-= कM सब कार से रWा करती हP और उ7ह? सख
ु पहुँचाती हP,
वैसे ह. इनको सुख पहुँचाना)॥4॥

दोहा :
* ल!रका $0मत उनीद बस सयन करावहु जाइ।
अस कह गे 8ब$ामगह
ृ ँ राम चरन चतु लाइ॥355॥
भावाथ#:-लड़के थके हुए नींद के वश हो रहे हP, इ7ह? ले जाकर शयन कराओ। ऐसा कहकर राजा
$ी रामच7oजी के चरण= म? मन लगाकर ,व$ाम भवन म? चले गए॥355॥

चौपाई :
* भूप बचन सु न सहज सुहाए। ज!रत कनक म न पलँ ग डसाए॥
सुभग सुर0भ पय फेन समाना। कोमल क0लत सुपत
े ीं नाना॥1॥
भावाथ#:-राजा के Aवाभव से ह. सद
ुं र वचन सुनकर (रा नय= ने) मRणय= से जड़े सुवणO के पलँ ग
8बछवाए। (गkद= पर) गो के फेन के समान संद
ु र एवं कोमल अनेक= सफेद चादर? 8बछा}॥1॥

* उपबरहन बर बर न न जाह.ं। ‰ग सुगंध म नमंदर माह.ं॥


रतनद.प सु ठ चा^ चँदोवा। कहत न बनइ जान जेहं जोवा॥2॥
भावाथ#:-सुंदर तBकय= का वणOन नह.ं Bकया जा सकता। मRणय= के मंदर म? फूल= कM मालाएँ
और सुगध
ं ocय सजे हP। सुंदर रNन= के द.पक= और सुंदर चँ दोवे कM शोभा कहते नह.ं बनती।
िजसने उ7ह? दे खा हो, वह. जान सकता है ॥2॥

* सेज ^चर रच रामु उठाए। ेम समेत पलँ ग पौढ़ाए॥


अdया प ु न पु न भाइ7ह द.7ह.। नज नज सेज सयन त7ह कM7ह.॥3॥
भावाथ#:-इस कार संद
ु र श—या सजाकर (माताओं ने) $ी रामच7oजी को उठाया और ेम सहत
पलँ ग पर पौढ़ाया। $ी रामजी ने बार-बार भाइय= को आgा द.। तब वे भी अपनी-अपनी
श—याओं पर सो गए॥3॥

* दे Rख Aयाम मद
ृ ु मंजुल गाता। कहहं स ेम बचन सब माता॥
मारग जात भयाव न भार.। केह 8बध तात ताड़का मार.॥4॥
भावाथ#:-$ी रामजी के साँवले सुंदर कोमल अँग= को दे खकर सब माताएँ ेम सहत वचन कह
रह. हP- हे तात! मागO म? जाते हुए तुमने बड़ी भयावनी ताड़का राWसी को Bकस कार से
मारा?॥4॥

दोहा :
* घोर नसाचर 8बकट भट समर गनहं नहं काहु।
मारे सहत सहाय Bक0म खल मार.च सब
ु ाहु॥356॥
भावाथ#:-बड़े भयानक राWस, जो ,वकट योkधा थे और जो युkध म? Bकसी को कुछ नह.ं गनते
थे, उन द[ु ट मार.च और सब
ु ाहु को सहायक= सहत तुमने कैसे मारा?॥356॥

चौपाई :
* म ु न साद ब0ल तात तुJहार.। ईस अनेक करवर? टार.॥
मख रखवार. क!र दहु ु ँ भा}। गु^ साद सब 8बkया पा}॥1॥
भावाथ#:-हे तात! मP बलैया लेती हूँ, मु न कM कृपा से ह. ई/वर ने तुJहार. बहुत सी बलाओं को
टाल दया। दोन= भाइय= ने यg कM रखवाल. करके गु^जी के साद से सब ,वkयाएँ पा}॥1॥

* मु न तय तर. लगत पग धूर.। कMर त रह. भुवन भ!र परू .॥


कमठ पीठ प8ब कूट कठोरा। नप ृ समाज महुँ 0सव धनु तोरा॥2॥
भावाथ#:-चरण= कM ध0ू ल लगते ह. म ु न पNनी अहZया तर गई। ,व/वभर म? यह कM तO पण
ू O र. त
से cयात हो गई। कqछप कM पीठ, वl और पवOत से भी कठोर 0शवजी के धनुष को राजाओं
के समाज म? तुमने तोड़ दया!॥2॥

* 8बAव 8बजय जसु जानBक पाई। आए भवन Xयाह सब भाई॥


सकल अमानुष करम तुJहारे । केवल कौ0सक कृपाँ सध
ु ारे ॥3॥
भावाथ#:-,व/व,वजय के यश और जानकM को पाया और सब भाइय= को Xयाहकर घर आए।
तुJहारे सभी कमO अमानष
ु ी हP (मन[ु य कM शिiत के बाहर हP), िज7ह? केवल ,व/वा0म-जी कM
कृपा ने सुधारा है (सJप7न Bकया है )॥3॥

* आजु सफ
ु ल जग जनमु हमारा। दे Rख तात 8बधब
ु दन तJ
ु हारा॥
जे दन गए तुJहह 8बनु दे ख?। ते 8बरं च ज न पारहं लेख?॥4॥
भावाथ#:-हे तात! तुJहारा च7oमखु दे खकर आज हमारा जगत म? ज7म लेना सफल हुआ। तुमको
8बना दे खे जो दन बीते हP, उनको CDमा गनती म? न लाव? (हमार. आयु म? शा0मल न
कर? )॥4॥

दोहा :
* राम तोषीं मातु सब कह 8बनीत बर बैन।
सु0म!र संभु गु^ 8ब पद Bकए नीदबस नैन॥357॥
भावाथ#:-,वनय भरे उTम वचन कहकर $ी रामच7oजी ने सब माताओं को संतु[ट Bकया। Bफर
0शवजी, गु^ और CाDमण= के चरण= का Aमरण कर ने-= को नींद के वश Bकया। (अथाOत वे सो
रहे)॥357॥

चौपाई :
* नीदउँ बदन सोह सु ठ लोना। मनहुँ साँझ सरसी^ह सोना॥
घर घर करहं जागरन नार.ं। दे हं परसपर मंगल गार.ं॥1॥
भावाथ#:-नींद म? भी उनका अNय7त सलोना मुखड़ा ऐसा सोह रहा था, मानो सं~या के समय का
लाल कमल सोह रहा हो। िA-याँ घर-घर जागरण कर रह. हP और आपस म? (एक-दस
ू र. को)
मंगलमयी गा0लयाँ दे रह. हP॥1॥

* परु . 8बराज त राज त रजनी। रानीं कहहं 8बलोकहु सजनी॥


संद
ु र बध7 ु ह सासु लै सो}। फ नक7ह जनु 0सरम न उर गो}॥2॥
भावाथ#:-रा नयाँ कहती हP- हे सजनी! दे खो, (आज) रा8- कM कैसी शोभा है , िजससे अयो~यापुर.
,वशेष शो0भत हो रह. है ! (य= कहती हुई) सासुएँ सुंदर बहुओं को लेकर सो ग}, मानो सप‹ ने
अपने 0सर कM मRणय= को sदय म? छपा 0लया है॥2॥

* ात पन
ु ीत काल भु जागे। अ^नचूड़ बर बोलन लागे॥
बंद मागधि7ह गन
ु गन गाए। परु जन kवार जोहारन आए॥3॥
भावाथ#:- ातःकाल प,व- CDम मुहूतO म? भु जागे। मुग सद
ंु र बोलने लगे। भाट और मागध= ने
गुण= का गान Bकया तथा नगर के लोग kवार पर जोहार करने को आए॥3॥

* बंद 8ब सरु गरु ,पतु माता। पाइ असीस मु दत सब tाता॥


जन न7ह सादर बदन नहारे । भूप त संग kवार पगु धारे ॥4॥
भावाथ#:-CाDमण=, दे वताओं, गु^, ,पता और माताओं कM वंदना करके आशीवाOद पाकर सब भाई
स7न हुए। माताओं ने आदर के साथ उनके मख
ु = को दे खा। Bफर वे राजा के साथ दरवाजे
(बाहर) पधारे ॥4॥

दोहा :
* कMि7ह सौच सब सहज सु च स!रत पुनीत नहाइ।
ातB€या क!र तात पहं आए चा!रउ भाइ॥358॥
भावाथ#:-Aवभाव से ह. प,व- चार= भाइय= ने सब शौचाद से नवT
ृ होकर प,व- सरयू नद. म?
Aनान Bकया और ातःB€या (सं~या वंदनाद) करके वे ,पता के पास आए॥358॥

नवा;नपारायण, तीसरा वाम

चौपाई :
* भूप 8बलोBक 0लए उर लाई। बैठे हर,ष रजायसु पाई॥
दे Rख रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अवध अनुमानी॥1॥
भावाथ#:-राजा ने दे खते ह. उ7ह? sदय से लगा 0लया। तदन7तर वे आgा पाकर ह,षOत होकर बैठ
गए। $ी रामच7oजी के दशOन कर और ने-= के लाभ कM बस यह. सीमा है , ऐसा अनुमान कर
सार. सभा शीतल हो गई। (अथाOत सबके तीन= कार के ताप सदा के 0लए 0मट गए)॥1॥

* प ु न ब0स[टु म ु न कौ0सकु आए। सुभग आसनि7ह म ु न बैठाए॥


सुत7ह समेत पूिज पद लागे। नरRख रामु दोउ गुर अनुरागे॥2॥
भावाथ#:-Bफर म ु न व0श[ठजी और ,व/वा0म-जी आए। राजा ने उनको सद
ंु र आसन= पर बैठाया
और प-
ु = समेत उनकM पज
ू ा करके उनके चरण= लगे। दोन= गु^ $ी रामजी को दे खकर ेम म?
मुdध हो गए॥2॥

* कहहं ब0स[टु धरम इ तहासा। सुनहं मह.सु सहत र नवासा॥


म ु न मन अगम गाधसत
ु करनी। मु दत ब0स[ठ 8बपल
ु 8बध बरनी॥3॥
भावाथ#:-व0श[ठजी धमO के इ तहास कह रहे हP और राजा र नवास सहत सन
ु रहे हP, जो म ु नय=
के मन को भी अगJय है, ऐसी ,व/वा0म-जी कM करनी को व0श[ठजी ने आनंदत होकर बहुत
कार से वणOन Bकया॥3॥

* बोले बामदे उ सब साँची। कMर त क0लत लोक तहुँ माची॥


सु न आनंद ु भयउ सब काहू। राम लखन उर अधक उछाहू॥4॥
भावाथ#:-वामदे वजी बोले- ये सब बात? सNय हP। ,व/वा0म-जी कM सद
ंु र कM तO तीन= लोक= म? छाई
हुई है । यह सन
ु कर सब Bकसी को आनंद हुआ। $ी राम-ल'मण के sदय म? अधक उNसाह
(आनंद) हुआ॥4॥

दोहा :
* मंगल मोद उछाह नत जाहं दवस एह भाँ त।
उमगी अवध अनंद भ!र अधक अधक अधका त॥359॥
भावाथ#:- नNय ह. मंगल, आनंद और उNसव होते हP, इस तरह आनंद म? दन बीतते जाते हP।
अयो~या आनंद से भरकर उमड़ पड़ी, आनंद कM अधकता अधक-अधक बढ़ती ह. जा रह.
है ॥359॥

चौपाई :
* सुदन सोध कल कंकन छोरे । मंगल मोद 8बनोद न थोरे ॥
नत नव सुखु सुर दे Rख 0सहाह.ं। अवध ज7म जाचहं 8बध पाह.ं॥1॥
भावाथ#:-अqछा दन (शुभ मुहूत)O शोधकर संद
ु र कंकण खोले गए। मंगल, आनंद और ,वनोद
कुछ कम नह.ं हुए (अथाOत बहुत हुए)। इस कार नNय नए सख ु को दे खकर दे वता 0सहाते हP
और अयो~या म? ज7म पाने के 0लए CDमाजी से याचना करते हP॥1॥

* 8बAवा0म-ु चलन नत चहह.ं। राम स ेम 8बनय बस रहह.ं॥


दन दन सयगुन भप
ू त भाऊ। दे Rख सराह महामु नराऊ॥2॥
भावाथ#:-,व/वा0म-जी नNय ह. चलना (अपने आ$म जाना) चाहते हP, पर रामच7oजी के Aनेह
और ,वनयवश रह जाते हP। दन=दन राजा का सौ गन
ु ा भाव ( ेम) दे खकर महाम ु नराज
,व/वा0म-जी उनकM सराहना करते हP॥2॥

* मागत 8बदा राउ अनरु ागे। सत


ु 7ह समेत ठाढ़ भे आगे॥
नाथ सकल संपदा तुJहार.। मP सेवकु समेत सत
ु नार.॥3॥
भावाथ#:-अंत म? जब ,व/वा0म-जी ने ,वदा माँगी, तब राजा ेममdन हो गए और प-
ु = सहत
आगे खड़े हो गए। (वे बोले-) हे नाथ! यह सार. सJपदा आपकM है। मP तो A-ी-प-
ु = सहत
आपका सेवक हूँ॥3॥

* करब सदा ल!रक7ह पर छोहू। दरसनु दे त रहब मु न मोहू॥


अस कह राउ सहत सत
ु रानी। परे उ चरन मख ु आव न बानी॥4॥
भावाथ#:-हे म ु न! लड़क= पर सदा Aनेह करते रहएगा और मुझे भी दशOन दे ते रहएगा। ऐसा
कहकर पु-= और रा नय= सहत राजा दशरथजी ,व/वा0म-जी के चरण= पर गर पड़े,
( ेम,वDवल हो जाने के कारण) उनके मुँह से बात नह.ं नकलती॥4॥

* द.ि7ह असीस 8ब बहु भाँ त। चले न ी त र. त कह जाती॥


रामु स म
े संग सब भाई। आयसु पाइ Bफरे पहुँचाई॥5॥
भावाथ#:-CाDमण ,व/व0म-जी ने बहुत कार से आशीवाOद दए और वे चल पड़े। ी त कM र. त
कह. नह.ं जीती। सब भाइय= को साथ लेकर $ी रामजी ेम के साथ उ7ह? पहुँचाकर और आgा
पाकर लौटे ॥5॥

ी रामचJरत ् सुनने-गाने क' म हमा


दोहा :
* राम fपु भप
ू त भग त Xयाहु उछाहु अनंद।ु
जात सराहत मनहं मन मु दत गाधकुलचंद॥ ु 360॥
भावाथ#:-गाधकुल के च7oमा ,व/वा0म-जी बड़े हषO के साथ $ी रामच7oजी के fप, राजा
दशरथजी कM भिiत, (चार= भाइय= के) ,ववाह और (सबके) उNसाह और आनंद को मन ह. मन
सराहते जाते हP॥360॥

चौपाई :
* बामदे व रघकु ु ल गरु dयानी। बहु!र गाधसत
ु कथा बखानी॥
सु न म ु न सुजसु मनहं मन राऊ। बरनत आपन प7 ु य भाऊ॥1॥
भावाथ#:-वामदे वजी और रघुकुल के गु^ gानी व0श[ठजी ने Bफर ,व/वा0म-जी कM कथा
बखानकर कह.। मु न का सुंदर यश सुनकर राजा मन ह. मन अपने पुxय= के भाव का बखान
करने लगे॥1॥
* बहुरे लोग रजायसु भयऊ। सुत7ह समेत नप ृ त गह
ृ ँ गयऊ॥
जहँ तहँ राम Xयाहु सबु गावा। सज
ु सु पुनीत लोक तहुँ छावा॥2॥
भावाथ#:-आgा हुई तब सब लोग (अपने-अपने घर= को) लौटे । राजा दशरथजी भी प-
ु = सहत
महल म? गए। जहाँ-तहाँ सब $ी रामच7oजी के ,ववाह कM गाथाएँ गा रहे हP। $ी रामच7oजी
का प,व- सुयश तीन= लोक= म? छा गया॥2॥

* आए Xयाह रामु घर जब त? । बसइ अनंद अवध सब तब त? ॥


भु 8बबाहँ जस भयउ उछाहू। सकहं न बर न गरा अहनाहू॥3॥
भावाथ#:-जब से $ी रामच7oजी ,ववाह करके घर आए, तब से सब कार का आनंद अयो~या म?
आकर बसने लगा। भु के ,ववाह म? आनंद-उNसाह हुआ, उसे सरAवती और सप‹ के राजा
शेषजी भी नह.ं कह सकते॥3॥

* क8बकुल जीवनु पावन जानी। राम सीय जसु मंगल खानी॥


तेह ते मP कछु कहा बखानी। करन पुनीत हे तु नज बानी॥4॥
भावाथ#:-$ी सीतारामजी के यश को क,वकुल के जीवन को प,व- करने वाला और मंगल= कM
खान जानकर, इससे मPने अपनी वाणी को प,व- करने के 0लए कुछ (थोड़ा सा) बखानकर कहा
है ॥4॥

छ6द :
* नज गरा पाव न करन कारन राम जसु तल
ु सीं कDयो।
रघुबीर च!रत अपार बा!रध पा^ क8ब कौन? लDयो॥
उपबीत Xयाह उछाह मंगल सु न जे सादर गावह.ं।
बैदेह राम साद ते जन सबOदा सुखु पावह.ं॥
भावाथ#:-अपनी वाणी को प,व- करने के 0लए तल
ु सी ने राम का यश कहा है। (नह.ं तो) $ी
रघुनाथजी का च!र- अपार समुo है , Bकस क,व ने उसका पार पाया है? जो लोग यgोपवीत
और ,ववाह के मंगलमय उNसव का वणOन आदर के साथ सुनकर गाव?गे, वे लोग $ी जानकMजी
और $ी रामजी कM कृपा से सदा सख
ु पाव?गे।
सोरठा :
* 0सय रघुबीर 8बबाहु जे स ेम गावहं सुनहं।
त7ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जस॥ ु 361॥
भावाथ#:-$ी सीताजी और $ी रघुनाथजी के ,ववाह संग को जो लोग ेमपव
ू क
O गाएँ-सुन?गे,
उनके 0लए सदा उNसाह (आनंद) ह. उNसाह है , iय=Bक $ी रामच7oजी का यश मंगल का धाम
है ॥361॥
* मासपारायण, बारहवाँ ,व$ाम
इ त $ीमoामच!रतमानसे सकलक0लकलष
ु ,व~वंसने थमः सोपानः समातः।
क0लयुग के सJपूणO पाप= को ,व~वंस करने वाले $ी रामच!रत मानस का यह पहला सोपान
समात हुआ॥

(बालकाLड समा4त)

You might also like