Kunalini

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शक्तिपाि..........

श्रीसदगरुु दे व की अद्भतु कृपा

प्रायः गरु
ु का नाम आते ही हम शक्ततपात के बारे में च त
िं न करने लगते हैं। आइये जाने की यह शक्ततपात
है तया? श्रीगरु
ु दे व द्वारा शशष्य में आध्याक्ममक शक्तत को समावेशशत करना शक्ततपात कहलाता है , सद््‌गरु

की कृपाशक्तत से शशष्य के अन्तस्‌में आध्याक्ममक ज्योतत प्रज्वशलत हो जाना शक्ततपात है । श्रीसद्गरु
ु दे व
महाराज अपने शशष्य में गरु
ु मिंत्र द्वारा शक्ततपात करते हैं । यह शक्ततपात एक अद्भत
ु और अदृश्य क्रिया
है , क्जसको शसर्फ श्रीसद्गुरुदे व महाराज जानते हैं और सद््‌गरु
ु की कृपा से शशष्य इसका अनुभव पाता है ।

सद्‌गरु
ु का यह शक्तिपािरूपी अनुग्रह वही शशष्य पािा है जो सद्‌
गरुु के प्रति पर्
ू ण रूप से समर्पणि हो और
सद्‌गरु
ु की शरर् क्जसके जीवन का ध्येय हो। ऐसा शशष्य क्जसका हृदय सद्‌गरु
ु के श्रीचरर्ों में शरर्ागति
को छटपटा रहा हो। शशष्य की यही छटपटाहट, शक्तिपाि ग्रहर् करने की पात्रिा है । जैसे गैस ईंधन दरू से
ही अक्नन को भभक कर पकड़ लेिा है , वैसी ही सद्‌गुरु से एकाकार करने की िड़प से गरु
ु दे व की कृपा शशष्य
में समा जािी है ।

सद्गरु
ु के रणों में पूणफ समपफण ही जीवन का एक मात्र परम उद्दे श्य है , तयोंक्रक आवागमन से मत
ु त होकर
शशवमव (ब्रह्म) मे प्रवेश करने का यही एकमात्र उपाय है । सद््‌गरु
ु के रणों में समपफण से ही आममानुसध
िं ान
का द्वार खुलता है और आममक्थितत प्राप्त होती है । आममक्थित होने का राथता शसर्फ सद्गरु
ु दे व ही जानते
हैं और इस भेद को गरु
ु दे व ने पूणफ समर्पफत भाव से अपने सद्गरु
ु दे व की सेवा करके आशीवाफद रूप में पाया
है । क्जसे भी आममक्थित होने की अवथिा को प्राप्त करना है तो उसके शलये सद््‌गरु
ु की शरण ही एकमात्र
मागफ है , इसके अलावा कोई दस
ू रा राथता नहीिं ।

सदगरु
ु दे व दवारा दीक्षा में प्रदान ककया गया गरु
ु मंत्र आध्याक्ममक शक्तिपुंज है । जब सद्‌
गरुु दवारा यह
गरु
ु मंत्ररूपी शक्तिपाि ककया जािा है , िो यह शक्ति शशष्य की बबखरी चेिना को संसार से बटोर कर पर्
ू रू
ण प
से आमम-केक्रिि कर दे िी है । आममक्थिति िक पहुुँचने का यही उपाय (गरु
ु मंत्र) है ।
जीवन का एक मात्र उद्दे श्य है , आवागमन से मत
ु त हो कर शशवमव (ब्रह्म) में प्रवेश करना, और यह तभी
सिंभव है , जब जीव अपनी आमम क्थितत का अनुसध
िं ान करते हुये उसमे अवलक्बबत हो जाता है । मगर
आममक्थित कैसे होएिं इसका राथता शसर्फ सद्गरु
ु दे व महाराज ही जानते हैं । तयोंक्रक अपने सद्गरु
ु दे वों की
सेवा पूणफ समर्पफत भाव से कर के आशीवाफद थवरूप उन्होने इस भेद को पाया है ।

थवरूप क्थितत में थिातयमव प्राप्त कर लेना ही मक्ु तत का द्वार खुलना है । शक्ततपात एक ऐसी आध्याक्ममक
प्रक्रिया है , क्जसके माध्यम से सद्गरु
ु अपनी शक्ततयों को शशष्य में सिं ररत करते हैं, और शशष्य की सप्ु त
आध्याक्ममक शक्ततयााँ जाग्रत हो जाती हैं। आध्याक्ममक शक्ततयों के जागरण से शशष्य की बुद्चध
अतीक्न्िय र्वषयों को समझने में सक्षम हो जाती है । सद््‌गरु
ु की कृपा से शशष्य का यह ज्ञान क्षु खुलना ही
शक्ततपात कहलाता है । थवरूप क्थितत तक पहुाँ ने के शलए जो उपाय (गरु
ु मिंत्र) सद्गरु
ु दे व महाराज बताते
हैं, उसे ही शक्तत पात कहते हैं

शक्तिपाि करने का सामर्थयण सबमें संभव नहीं है , क्जसका िुर्ीर सद्‌गरु


ु कृपा से भरा हो,
क्जरहोंने जीवन भर सद्‌गरु
ु की सेवा करके अपनी झोली गरु
ु कृपारूपी पुष्पों से भर शलया हो,
क्जसका हर पल हर थवाुँस सद्‌गरु
ु को समर्पणि रहा हो, क्जसके हृदय में केवल सद्‌गरु
ु ही
धड़का हो, ऐसे ककसी बबरले के पास ही सद्‌गुरु की आशीवाणद से गरु
ु कृपा के अनंि मेघ प्राप्ि
होिे हैं और ऐसी महान र्वभतू ि ही समय के सदगरु
ु होिे हैं और उनमें ही गरु
ु कृपा बरसाने
का सामर्थयण होिा है ।

सद््‌गरु
ु आध्याक्ममक शक्तत का भिंडार हैं, शशष्य के अन्तस्‌को अध्यामम से प्रकाशशत करने के शलये गरु
ु मन्त्र
के रूप में सद््‌गरु
ु थवयिं ही प्रवेश करते हैं। इस तरह अदृश्य आध्याक्ममक शक्तत से शशष्य सदा
लाभाक्न्वतरहता है , यही शक्ततपात है । आममक्थितत एक आध्याक्ममक शसद्चध है , क्जसे प्राप्त करने के शलए
शक्ततपात आवश्यक है और इसके शलए गरु
ु ही एकमात्र साधन है । गरु
ु मिंत्ररूपी शक्ततपात न होने पर आमम-
शसद्चध नहीिं हो सकती। माहामबय सत
ू -सिंहहता में शक्ततपात की महहमा का वणफन करते हुए कहा गया
है -
तमवज्ञानेन मायवा बाधो नान्येन कमफणा। ज्ञ निं वेदान्तवातयोमििं ब्रह्माममैकमवगो रम।।
तच् दे वप्रसादे न गुर ः साक्षात्रत्रनीक्षणात। जायते शक्ततपातेन वातयादे वचधकाररणाम।।

अिाफत, तत्त्वज्ञान के अततररतत अन्य क्रकसी उपाय से माया का ह्रास नहीिं हो सकता। यह तत्त्वज्ञान ब्रह्म
और आममा की अभेद शसद्चध का तनरूपण करने वाले वेदान्त वातयों से प्राप्त होता है । इसका अचधकार
सद्गरु
ु द्वारा शशष्य को शक्ततपात से ही हदया जाता है ।
सिंत ज्ञानेश्वर ने शलखा है क्रक शक्ततपात होने पर, रहता तो वह जीव ही है परिं तु महे श्वर के समान हो जाता
है । गरु
ु कृपा से ही आध्याक्ममक शक्तत का जागरण होता है । थवरूप क्थितत में थिातयमव प्राप्त करना ही
मक्ु तत द्वार तक पहुिं ने का सिंकेत है । इस थवरूप क्थितत तक पहुिं ने का प्रामाणणक उपाय गरु
ु मिंत्र ही है ,
गरु
ु मिंत्र ही शक्तत है और मिंत्रदीक्षा शक्ततपात है । इस कृपा अिवा भगवद्नग्र
ु ह को ही शक्ततपात कहा जाता
है ।
ु सवफतत्त्ववेत्ता और अध्यामम र्वद्या के जानने वाले होते हैं। ‘माशलनी र्वजय’ में भी कहा है - स
सद्गरु
गुरुमिंमसमः प्रोततो मिंत्रवीयफ प्रकाशकः।
गरु
ु कृपा से शक्ततपात हो जाने पर य चगक क्रियाओिं की अपेक्षा नहीिं रहती, सभी अपेक्षक्षत क्रियाएाँ साधक
की प्रकृतत के अनुरूप थवतः होने लगती हैं। प्रबुद्ध किंु डशलनी ब्रह्मरन्र की ओर प्रवाहहत होने के शलए
छटपटाती है , क्जससे सभी क्रियाएिं थव-सिं ाशलत रहती हैं। क्जन्होंने ने कुण्डशलनी जागरण से सबबिंचधत
कोई अभ्यास भी न क्रकया हो और ना ही र्वशेष अध्ययन क्रकया हो, उनमें भी सद्गरु
ु कृपा प्रसाद से दक्ष
शसद्धों जैसी य चगक क्रियायें घहटत होने लगता है अिाफत क्रियाममक ज्ञान भी थवत: शशष्य में सद्गरु

द्वारा शक्ततपात करने पर होने लगता है । शक्ततपात से जब शशष्य में गरु
ु -शक्ततयााँ प्रवेश करती हैं, तो
ज्ञान का प्रकाश थवत: ही सवफत्र र्ैलने लगता है और गरु
ु की कृपा से शशष्य में सिंबक्न्धत योग्यता का उदय
एविं ि जागरण अिवा किंु डशलनी जागरण आहद खद
ु ब खुद होने लगता है ।
शक्ततपात के द्वारा साधक के अन्तस्‌में िािंततकारी पररवतफन आते हैं, उसमें भगवद्भक्तत का र्वकास,
च दाममा का प्रकाश होता है , मिंत्र शसद्चध होती है । शक्ततपात के साि-साि हृदय में प्रेम व श्रद्धा ऐसे ले
आते हैं जैसे पुष्प के साि सग
ु ध
िं । क्जसे सद््‌गरु
ु से शक्ततपात प्राप्त हुआ, ऐसे बड़े भाग्यवानों की बुद्चध में
शाथत्र थवयिं अपना गह्
ु य ज्ञान और अिफ प्रगट करते हैं। शक्ततपात हो जाने पर ज्ञानतत्त्व आममसात्‌होता
है , शरीर भाव जाता रहता है और शशवमव लाभ होता है । कृष्ण के शक्ततपात से क्रकस तरह अजन
ुफ को
आममानुभतू त हुई, इसका हृदयानुग्राही वणफन ज्ञानेश्वरी गीता में क्रकया गया है । प्रारब्ध कमफ समाप्त हो जाते
हैं, उनके त्रबना भोगे ही उसकी मक्ु तत हो जाती है । ऐसा तब तक होता रहता है , जब तक शरीर रहता है । सख

दःु ख की पररक्थितत में भी आनिंद की मि
ु ा रहती है ।

शाथत्रों में शक्ततपात के लक्षण इस प्रकार से वणणफत क्रकये गये हैं:-

दे हपातथतिा कबप परमानन्दहषफणे। थवेदो रोमािं इमयेतच्छक्ततपातथय लक्षणम।।


शशष्यथय दे हे र्वप्रेन्िाः धरण्या पतततेसतत। प्रसादः शािंकरथतथय द्र्वज सिंजात एव हह।।
यथय प्रसादः सिंजातो दे हपातावसानकः। कृतािफ एव र्वप्रेन्िा न स भूयोऽशभजातयते।।

शक्ततपात होते ही शरीर भशू म पर चगर जाता है , किंपन होने लगते हैं, मन में अपार प्रसन्नता का उदय होता
है और परम आनिंद की प्राक्प्त होती है , शक्ततपात (गरु
ु मिंत्र) होते ही अज्ञानता का नाश और ज्ञान का उदय
होता है । शक्ततपात से मन में र्ववेक के प्रतत क्जज्ञासा उमपन्न होती है , सद्गरु
ु की प्राक्प्त की इच्छा जागत

होती है । तत्त्व को जानने की उमकिंठा ही इसका लक्षण है । इच्छा होने पर सद्गरु
ु की प्राक्प्त भी होती है । गरु

की प्राक्प्त होने पर क्जज्ञासाओिं का शमन होता है तिा शशष्य मक्ु तत पि की ओर अग्रसर होता है ।
गीता के शब्दों में :

यिेधिं स सशमद्धोऽक्ग्नभफथमसामकुरुतेऽजुन
फ । ज्ञानाक्ग्नः सवफकमाफणण भथमसात कुरुते तिा।।
अिाफत हे अजन
ुफ ! तेजी से जली हुई अक्ग्न क्जस तरह ईंधनों को जलाकर भथम कर दे ती है , उसी प्रकार
ज्ञानरूपी अक्ग्न भी समथत कमों को भथमसात कर हदया करती है ।

*********श्री सद्गरु
ु -शरणम *******

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