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रावण - आयवत का श ु

आई.आई.एम. (कोलकाता) से िशि त, 1974 म ज मे अमीश ने एक बो रं ग बकर से एक


सफल लेखक का ल बा सफ़र तय िकया है। अपने पहले उप यास मेलहू ा के म ृ युंजय (िशव
रचना यी का थम भाग) क अपार सफलता से ो सािहत होकर आप फ़ाइनिशयल सिवस
का चौदह साल का कै रयर छोड़ कर लेखन े म आ गये। इितहास, पौरािणक कथाओं एवं
दशन के ित आपके झान ने आपको िव के सभी धम और उनके अथ को समझने के
िलए े रत िकया। अमीश क पु तक क चालीस लाख से अिधक ितयाँ िबक चुक ह और
उनका उ नीस से अिधक भाषाओं म अनुवाद हो चुका है।

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शुिचता मीतल एक ल बे समय से भारतीय अनुवाद प रषद एवं या ा बु स से जुड़ी हई ह।


आपने निमता गोखले क शकुंतला, संजीव सा याल क मंथन का सागर, अमीश क
वायपु ु क शपथ, नीिलमा डालिमया आधार क क तरू बा क रह यमयी डायरी समेत
प चीस से अिधक पु तक का अनुवाद िकया है।
अमीश क अ य पु तक

शव रचना यी
भारतीय काशन इितहास म सबसे तेज़ी से िबकने वाली पु तक ंख
ृ ला

मेलहू ा के म ृ यज
ुं य (िशव रचना यी – भाग 1)
नागाओ ं का रह य (िशव रचना यी – भाग 2)
वायपु ु क शपथ (िशव रचना यी – भाग 3)

राम चं ंख
ृ ला
भारतीय काशन इितहास म दूसरी सबसे तेज़ी से िबकने वाली पु तक ंख
ृ ला

राम – इ वाकु के वंशज ( ंख


ृ ला का भाग 1)
सीता – िमिथला क यो ा ( ंख ृ ला का भाग 2)

कथेतर
अमर भारत : यवु ा देश, कालातीत स यता
“अमीश के लेखन ने भारत के सम ृ अतीत और सं कृित के ित अथाह िज ासा
उ प न क है।”
—नरे मोदी
( धानमं ी)

“अमीश क पु तक िदलच प, बाँध लेने वाली, और जानकारी से भरपरू है।”


—अिमताभ ब चन
(अिभनेता एवं सदी के महानायक)

“भारत के बेहतरीन कथाकार म से एक।”


— वीर सांघवी
(व र प कार एवं त भकार)

“अमीश भारत के पहले सािहि यक पॉप टार ह।”


—शेखर कपूर
(पुर कार िवजेता िफ़ म डाइरे टर)

“अमीश अपनी पीढ़ी के सबसे यादा मौिलक िच तक ह।”


–अनब गो वामी
(व र प कार एवं एम.डी., रपि लक टीवी)

"अमीश के पास बारीिकय के िलए पैनी नज़र और बाँध देने वाली कथा मक शैली है।”
–शिश थ र
(सांसद एवं लेखक)
“अमीश के पास अतीत का एक असाधारण, मौिलक और आकषक नज़ रया रखने
वाला गहन िवचारशील मि त क है।”
–शेखर गु ा
(व र प कार एवं त भकार)

“नये भारत को समझने के िलए आपको अमीश को पढ़ना होगा।”


– व न दासगु ा
(सांसद एवं व र प कार)

“अमीश क सारी पु तक म उदारवादी गितशील िवचारधारा वािहत होती है: िलंग,


जाित, िकसी भी िक़ म के भेदभाव को लेकर... वे एकमा भारतीय बै टसेिलंग लेखक ह
िजनक वा तिवक दशनशा म पैठ है—उनक पु तक म गहरी रसच और गहन
वैचा रकता होती है।”
—संदीपन देब
(व र प कार एवं स पादक य िनदेशक, वरा य)

“अमीश का असर उनक िकताब से परे है, उनक िकताब सािह य से परे ह, उनके
सािह य म दशन रचा-बसा है, जो भि म पैठा हआ है िजससे भारत के ित उनके ेम को
शि ा होती है।”
— गौतम िचकरमने
(व र प कार एवं लेखक)

“अमीश एक सािहि यक क र मा ह।”


— अिनल धारकर
(व र प कार एवं लेखक)
First published in English as Raavan - Enemy of Aryavarta in 2019 by
Westland Publications Private Limited

First published in Hindi as Raavan - Aryavart ka Shatru in 2019 by Eka,


an imprint of Westland Publications Private Limited

1st Floor, A Block, East Wing, Plot No. 40, SP Infocity, Dr MGR Salai,
Perungudi, Kandanchavadi, Chennai 600096

Westland and the Westland logo, Eka and the Eka logo are the trademarks
of Westland Publications Private Limited, or its affiliates.

Copyright © Amish Tripathi, 2019

Amish Tripathi asserts the moral right to be identified as the author of this
work.

ISBN: 9789388754361

This is a work of fiction. Names, characters, organisations, places, events


and incidents are either products of the author's imagination or used
fictitiously.
All rights reserved

No part of this book may be reproduced, or stored in a retrieval system, or


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photocopying, recording, or otherwise, without express written permission
of the publisher.
अनु म

पढ़ना शु कर
समपण
“जब िकसी यि . . .
मह वपणू पा एवं क़बीले
कथा िव यास पर एक िट पणी
आभार
अ याय 1
अ याय 2
अ याय 3
अ याय 4
अ याय 5
अ याय 6
अ याय 7
अ याय 8
अ याय 9
अ याय 10
अ याय 11
अ याय 12
अ याय 13
अ याय 14
अ याय 15
अ याय 16
अ याय 17
अ याय 18
अ याय 19
अ याय 20
अ याय 21
अ याय 22
अ याय 23
अ याय 24
अ याय 25
अ याय 26
अ याय 27
अ याय 28
अ याय 29
अमीश क अ य िकताब
ओम् नम: िशवाय
ांड भगवान िशव को नमन करता है।
म भगवान िशव को नमन करता हँ।
तु हारे िलए,

म डूब रहा था,


दुख म, ोध म, हताशा म।
तुम मुझे ख चकर शाि त क खुली हवा म ले गय ,
भले ही कुछ पल के िलए,
केवल मेरी बात को सुनकर।

और जब म कहता हँ तो ये केवल श द नह ह,
उनम रहे गी हमेशा मेरी मौन कृत ता,
ू ेम।
तु हारे साथ हमेशा रहे गा मेरा मक
“जब िकसी यि को महायश का असाधारण सौभा य ा होता है,
तो दुभा य क वापसी उसके दुख क गहनता को बढ़ा देती है।”
—क हण, राजतरं िगणी म

आपम से कौन महान बनना चाहता है?


आपम से कौन सुख क सभी स भावनाओं को गँवा देना चाहता है?
या यह यश इसके यो य भी है?

म रावण हँ।
म यह सब कुछ चाहता हँ।
मुझे याित चािहए। मुझे शि चािहए। मुझे स पि चािहए।
मुझे पण
ू िवजय चािहए।
भले ही मेरा यश मेरे दुख के साथ-साथ चले।
मह वपण
ू पा एवं क़बीले

अकंपन : एक त कर, रावण के िनकटतम सहयोिगय म से एक


अ र नेमी : मलयपु के सेनापित, िव ािम का दािहना हाथ
अ पित : उ र-पि म सा ा य कैकेय के राजा, दशरथ के घिन िम , कैकेयी के िपता
इ जीत : रावण और म दोदरी का पु
कुबेर : लंका का मुख- यापारी
कु भकण : रावण का भाई; एक नागा
कुश वज : संक या का राजा; जनक का छोटा भाई
कैकेसी : ऋिष िव वा क पहली प नी; रावण और कु भकण क माँ
कचबाह : िच का का ा तपाल
खर : लंका क सेना का अिधपित; समीची का ेमी
जनक : िमिथला के राजा; सीता के िपता
जटायु : मलयपु जाित का अिधपित; सीता और राम का नागा िम
दशरथ : कोशल के च वत राजा और स िस धु के स ाट; राम, भरत, ल मण और
श ु न के िपता
नागा : िवकृितय के साथ ज मी मानव जाित
प ृ वी : टोडी गाँव का एक यापारी
भरत : राम के सौतेले भाई; दशरथ और कैकेयी के पु
म दोदरी : रावण क प नी
मर : भाड़े का ह यारा
मरीच : कैकेसी का भाई; रावण और कु भकण का मामा; रावण के िनकटतम सहयोिगय म
से एक
मलयपु : छठे िव णु भु परशुराम क जाित
राम : स ाट दशरथ और उनक सबसे बड़ी प नी कौश या पु ; चार भाइय म सबसे बड़े ,
िजनका िववाह बाद म सीता से हआ
रावण : ऋिष िव वा का पु ; कु भकण का भाई; िवभीषण और शपू णखा का सौतेला भाई
ल मण : दशरथ के जुड़वाँ बेट म से एक; राम के सौतेले भाई
विश : अयो या के राजगु ; चार राजकुमार के गु
वायप ु ु : पवू वत महादेव भगवान क जाित
वाली : िकि कंधा का राजा
िवभीषण : रावण का सौतेला भाई
िव वा : एक स मानीय ऋिष; रावण, कु भकण, िवभीषण और शपू णखा के िपता
िव ािम : छठे िव णु परशुराम क जाित मलयपु के मुख, राम और ल मण के
अ थायी गु भी
वेदवती : टोड़ी गाँव क िनवासी; प ृ वी क प नी
श ु न : ल मण के जुड़वाँ भाई; दशरथ और सुिम ा के पु ; राम के सौतेले भाई
शूपणखा : रावण क सौतेली बहन
शोिचकेश : टोड़ी गाँव का भू वामी
समीची : िमिथला क नाग रक और सुर ा मुख; खर क ेिमका
सीता : िमिथला के राजा जनक और रानी सुनयना क पु ी; िमिथला क धानमं ी भी
िजनका िववाह बाद म राम से हआ था
सकु मण : टोड़ी गाँव का िनवासी; शोिचकेश का पु
हनम ु ान : नागा और वायुपु जाित के सद य
कथा व यास पर एक ट पणी

इस पु तक को चुनने और मुझे अपनी सबसे मह वपण ू चीज़ : समय, देने के िलए शुि या।
म जानता हँ िक आपम से बहत लोग बहत धैय के साथ राम च ृ ला के तीसरे
ंख
भाग के रलीज़ होने क ती ा करते रहे ह। देरी के िलए मा चाहता हँ, और मुझे आशा है
िक यह िकताब आपक अपे ाओं पर खरी उतरे गी।
आपम से कुछ लोग सोच रहे ह गे िक मने इसका नाम रावण : आयवत का अनाथ से
बदल कर रावण : आयवत का श ु करने का फ़ै सला य िकया। म बताता हं। रावण क
कहानी िलखते हए मुझे उस यि के बारे म कुछ बात समझ आय । रावण जब ब चा था
तभी से उसके मन म उन प रि थितय के िख़लाफ़ गु सा भर गया था, िजनम वो ख़ुद को
पाता था। वो िकसी हद तक अपनी िनयित का िनय ता था। शु म मुझे महसस ू हआ िक
रावण को अपनी मातभ ृ िू म से दूर कर िदया गया था और इस तरह, इस मायने म, वो अनाथ
था। मगर जैसे-जैसे मेरे िदमाग़ म कहानी बुनती गयी, मुझे महसस ू हआ िक वो फ़ै सले सोच-
समझकर िलए गये थे जो उसे उसक मातभ ृ िू म से दूर ले गये थे। उसने अनाथ क भिू मका म
ढाले जाने क अपे ा श ु बनना चुना था।
जैसा िक आपम से कुछ लोग जानते ह गे, म कहानी कहने क हाइपरिलंक नाम क
शैली से भािवत हँ, िजसे कुछ लोग बहरै िखक कथानक कहते ह। इस तरह के कथानक म
बहत सारे पा होते ह; और एक सू उन सबको साथ लाता है। राम च ंख
ृ ला म तीन
मु य पा राम, सीता और रावण ह। येक पा के अपने जीवन-अनुभव ह जो उ ह वो
बनाते ह जो वो ह, और येक के जीवन म अपना एडवचर, और िदलच प बैक टोरी है।
आिख़रकार, सीता के अपहरण के साथ उनक कहािनयाँ एक होती ह।
तो हालांिक पहले भाग ने राम क कहानी को और दूसरे ने सीता क कहानी को
खोजा था, तीसरा रावण क िज़ दगी को खँगालता है, और िफर तीन एक चौथी पु तक से
एकाकार होकर एक कहानी बन जायगे। यह याद रखना मह वपण ू है िक रावण सीता और
राम दोन से कह अिधक आयु का है। वा तव म, राम का ज म उस िदन हआ था जब रावण
ने एक िनणया मक लड़ाई लड़ी थी—राम के िपता स ाट दशरथ के िव । इसिलए यह
पु तक काल म और पीछे जाती है, अ य मु य पा —सीता और राम—का ज म होने से
पहले।
म जानता था िक बहरै िखक कथानक म तीन िकताब िलखना जिटल और समय-
खपाऊ मामला है, मगर म वीकार क ँ गा िक यह बहत उ ेजना भरा था। मुझे आशा है िक
आपके िलए भी यह उतना ही फलदायक और रोमांचकारी अनुभव होगा िजतना मेरे िलए रहा
है। राम, सीता और रावण को पा के प म समझने से मुझे उनक दुिनयाओं म रहने, और
षड्य और कहािनय क उस भल ै ा को खोजने म मदद िमली जो इस महागाथा को
ू भुलय
कािशत करती ह। इसके िलए म वाक़ई अनु हीत महसस ू करता हँ।
चँिू क म एक बहरै िखक कथानक पर चल रहा था, इसिलए मने पहली पु तक (राम:
इ वाकु के वंशज) के साथ ही दूसरी पु तक (सीताः िमिथला क यो ा) म भी ऐसे संकेत
छोड़े ह जो तीसरी पु तक क कहािनय से जुड़ते ह। यहाँ आपके िलए अनेक आ य और पच
ह, और बहत से आगे आयगे!
मुझे आशा है िक आपको रावण : आयवत का श ु पढ़ने म आन द आयेगा। कृपया
नीचे िदये गये मेरे फ़ेसबुक पेज, इं टा ाम, या ट्िवटर अकाउं ट पर स देश भेज कर मुझे
बताय िक आप इसके बारे म या सोचते ह।

नेह,
अमीश
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आभार

ये दो साल बहत बुरे बीते ह। इस किठन दौर म मने इतने दुख और क भोगे ह िजतने अपने
जीवन म पहले कभी नह देखे। कभी-कभी तो मुझे महसस ू हआ जैसे मेरी सारी िज़ दगी
िबखरी जा रही है। मगर ऐसा नह हआ। म उस दौर से िनकल आया। इमारत अभी भी मज़बत ू
है। इस िकताब के लेखन ने चु बक का सा काम िलया। और अभी आगे म िजन लोग के ित
आभार य क ँ गा, वो मेरा स बल रहे ह; य िक उ ह ने मुझे सँभाले रखा है।
मेरे ई र, भु िशव। उ ह ने इन िपछले दो साल म मेरी जम कर परी ा ली है। मुझे
आशा है िक अब वो इसे थोड़ा आसान कर दगे।
वो दो यि िज ह मने जीवन म सबसे यादा सराहा है, पुराने समय के मू य , जीवट
और मान-स मान वाले यि ; मेरे सुर मनोज यास और मेरे जीजा जी िहमांशु रॉय। अब ये
दोन ही ऊपर वग से मुझे देख रहे ह। आशा है वो मुझ पर गव कर सकगे।
मेरा दस वष य बेटा नील; और जब म कहता हँ, “मेरे बेटे जैसा े न कोई था और न
कभी होगा!” तो तुम एक िपता के ज बात को माफ़ कर देना।
कहानी म सहयोग देने के िलए मेरी बहन भावना; मेरे भाई अनीश और आशीष। हमेशा
क तरह, पहला ा प उ ह ने ही पढ़ा। उनके ि कोण, स बल, नेह और ो साहन
अनमोल ह।
अपने शेष प रवार : उषा, िवनय, शरनाज़, मीता, ीित, डोनेटा, ि मता, अनुज, टा
को उनक सतत आ था और ेम के िलए। और मेरी स नता म अपना योगदान देने के िलए
म अपने प रवार क अगली पीढ़ी का भी आभार य करना चाहँगा : िमतांश, डे िनयल,
एडे न, केया, अिनका और आ ा।
मेरे काशक वै टलड के सीईओ गौतम और मेरी स पादक काितका और संघिम ा।
अगर मेरे प रवार के इतर कोई ऐसा है जो इस ोजे ट के सबसे क़रीब है, तो यही तीन ह। ये
लोग द ता, िवन ता और ग रमा का अनोखा मेल ह। मेरी कामना है हम एक ल बी पारी
साथ खेल। वै टलड क शेष शानदार टीम : आन द, अिभजीत, अंिकत, अ िणमा, बरानी,
ि टीना, दीि , धवल, िद या, जयशंकर, जयंती, कृ णकुमार, कुलदीप, मधु, मु तफ़ा,
नवीन, नेहा, िनिध, ीित, राज,ू संयोग, सतीश, सतीश, श ु न, ीव स, सुधा, िविपन,
िव योित और अ य। ये काशन जगत क शानदार टीम ह।
अमन, िवजय, ेरणा, सीमा, और मेरे ऑिफ़स के मेरे अ य सहयोगी। जो मेरे अ य
काय को सँभाल लेते ह िजससे मुझे िलखने के िलए समय िमल जाता है।
हे मल, नेहा, कै डीडा, िहतेष, पाथ, िवनीत, नताशा, काश, अनुज और ऑ टोबज़ क
बाक टीम, िज ह ने इस िकताब का मुखप ृ िडजाइन िकया है, और बहत शानदार काम
िकया है। उ ह ने ेलर भी बनाया और िकताब क अनेक सोशल मीिडया गितिविधय का
ब ध करने म सहायता क । एक उ कृ , रचना मक और ितब एजसी।
मयंक, ेया, सरोिजनी, दीिपका, नरे श, माव , नेहा, िसमरन, क ित, ि यंका, िवशाल,
दािनश और मो'ज़ आट टीम, िज ह ने मीिडया स ब ध और िकताब के िलए माकिटंग
समझौत को अंजाम िदया। वो एक एजसी ही नह , परामशदाता भी ह।
स या और उनक टीम िज ह ने लेखक के नये फ़ोटो िलये िज ह इस पु तक के
अ द नी कवर पर लगाया गया है। उ ह ने एक साधारण से िवषय को बेहतर बना िदया।
कैलेब, ि ितज, संदीप, रोिहणी, धाराव, िहना और उनक अपनी टीम िज ह ने अपने
यवसाय, क़ानन ू और माकिटंग परामश से मेरे काम को स बल िदया।
सं कृत क उ कृ िव ान मण ृ ािलनी जो मेरे साथ मेरी रसच पर काम करती ह।
उनके साथ मेरी चचाएँ बहत ानपण ू होती ह। उनसे मने जो सीखा है, उसने कई िस ा त
िवकिसत करने म मेरी मदद क है जो इन िकताब म शािमल होते ह।
आिद य, मेरी िकताब के जोशीले पाठक जो अब एक िम और त य के जाँचकता बन
गये ह।
और अ त म, मगर िवशेष प से, आप पाठकगण। म जानता हँ िक इस िकताब म
बहत देरी हो गयी है। इसके िलए म िदल से माफ़ चाहता हँ। िज दगी मुझे लेखन से दूर ले
गयी थी। मगर अब वापस ले आयी है। और यहाँ से म डगमगाऊँगा नह । आपके धैय, नेह
और साथ के िलए ध यवाद।
अ याय 1

3400 ईसा पूव, सालसेट ीप, भारत का पि मी तट


वह आदमी घोर पीड़ा से िच ला पड़ा। उसे पता था िक उसक मौत बहत पास है। उसे
बस कुछ ही देर और चुप रहना होगा। उसे रह य िछपाये रखना था। यह करना ही था। बस
कुछ देर और।
उसने वयं को प थर का कर िलया। मन ही मन वह लगातार म जप रहा था। अथाह
शि का म । वह म जो उसक परू ी जनजाित जपती थी। मलयपु क जनजाित।
जय ी ... जय परश ु राम... जय ी ... जय परश ु राम।
उसने अपनी आँख ब द कर ल । अपने आततायी क मौजदू गी को नकारने के िलए।
मझु े शि दो, भ।ु मझु े शि दो।
उसका उ पीड़क उसके ऊपर खड़ा अगला वार करने क तैयारी कर रहा था। तभी उसे
िनममता से पीछे ख च िलया गया था। एक ी ारा।
उसने ोध से फुफकारते हए कहा। “खर, इससे बात नह बन रही है।”
लंका क सेना क एक टुकड़ी का सेनापित खर उस ी क ओर मुड़ा। समीची।
उसक बचपन क ेयसी। कुछ वष पहले तक समीची उ र भारत के एक छोटे से रा य
िमिथला क धानम ी के प म काय करती थी। लेिकन कुछ समय पहले उसने अपना पद
छोड़ िदया था और उसका अता-पता मालम ू करने म जुट गयी थी िजसने उसे िनयु िकया
था। वो राजकुमारी िजसक उसने सेवा क थी : सीता।
खर ने भी धीरे से जवाब िदया। “यह मलयपु स तजान है। यह टूटेगा नह । हम िकसी
और तरीके से जानकारी हािसल करनी होगी।”
“इतना समय नह है!”
समीची क फुसफुसाहट म शी ता का खुरदुरापन था। खर जानता था िक वो सही कह
रही है। जो जानकारी उ ह चािहए थी, इस समय उसको पाने का सबसे अ छा स भािवत
ोत यही था। जानकारी िक सीता, उनके पित राम, देवर ल मण और उनके साथ मौजदू
सोलह मलयपु सैिनक कहाँ िछपे हए थे। खर यह भी जानता था िक यह जानकारी
िनकलवाना िकतना अहम है। यह समीची के वा तिवक वामी का अनु ह पाने का सुअवसर
था। वो िजसे वो इराइवा कहती थी, लंका का राजा रावण।
“मगर यह अिधक देर जीिवत नह रहे गा।” खर का वर नम था। िनराशा से भरा।
“मुझे नह लगता यह बोलेगा।”
“मुझे कोिशश करने दो।”
समीची उस मेज़ क ओर बढ़ी जहाँ मलयपु बँधा हआ था। उसने झटके से मलयपु क
धोती ख चकर एक ओर फक दी। और िफर लंगोट भी ख च िदया। वो दीन-हीन ाणी अब परू ी
तरह न न और ल जा से कराह रहा था।
खर भी सहम-सा गया था। “समीची... यह...”
समीची ने तीखी िनगाह से खर को देखा। वो चुप हो गया।
भय से मलयपु क आँख फट गयी थ । जैसे उसे आगामी पीड़ा का आभास हो गया था।
उ पीड़क क भी कुछ नैितकता होती थी। लेिकन प प से समीची का उस पर चलने का
कोई इरादा नह था।
िफर समीची ने पास ही पड़ा एक हँिसया उठा िलया। एक ओर से वो बेतहाशा पैना था,
और दूसरी ओर से दांतेदार। अिधकतम पीड़ा देने के िलए बना ू रतम हिथयार। हाथ म
हँिसया िलए वो िशकंजे क ओर बढ़ी। उसने हँिसये को ऊपर उठाया, अपनी उँ गली म चुभोकर
र िनकलने देते हए उसने उसक तेज़ धार को महसस ू िकया। “तुम बकोगे। िव ास करो।
तुम बकोगे, ” वो ग़ुराते हए मलयपु क टाँग के बीच हँिसया ले गयी। ख़तरनाक ढं ग से
िनकट।
धीरे -धीरे , आराम से उसने हँिसये को आगे बढ़ाया िजससे उसने वचा को भेद िदया।
नम वचा को काटा और चीथ डाला। अंडकोश म गहरे फँसाते हए। शरीर के उस िब दु पर
अिधकािधक पीड़ा पहँचाते हए जहाँ ति का-शीष परपीड़क मा ा म उपि थत थे।
मलयपु िच ला उठा।
वो चीख़ पड़ा था, इसे रोकने क याचना कर रहा था।
इस बार वो अपने देवताओं के नाम नह ले रहा था। अब बात उनके बस से बाहर हो
चुक थी। अब तो वो अपनी माँ को पुकार रहा था।
खर तभी जान गया था। मलयपु बोलेगा। बस कुछ ही समय क बात है। वो टूट
जायेगा। और बोलेगा।

लंका का राजा रावण और उसका छोटा भाई कु भकण आरामदेह कुिसय पर बैठे थे जो
िव यात पु पक िवमान क दीवार के पास फ़श से जुड़ी थ ।
रावण चुप बैठा था। उसका बदन तनाव त था। उसने अपने लटकन को कसकर
पकड़ रखा था—वो लटकन जो उसके गले म पड़ी सोने क ज़ंजीर म पड़ा था। यह मानव
उँ गिलय क दो हड्िडय से बना था िजनके ऊपरी िह स को सावधानीपवू क सोने क
किड़य से कसा गया था। अनेक भारतीय के बीच यह मा यता थी िक कुछ दुदा त रा सी
यो ा अपने वीर श ुओ ं क लाश से काटे गये मिृ तिच पहनते ह। ऐसा करने से उनके
अ दर अपने मत ृ श ु क शि आ जाती है। रावण के ित घोर िन ावान लंका के सैिनक
भी मानते थे िक रावण के गले म पड़ा लटकन एक पुराने श ु के हाथ से काटकर बनाया
गया है। केवल कु भकण सच जानता था। केवल वही जानता था िक जब रावण उस लटकन
को कसकर पकड़ता है, जैसे अभी पकड़े हए था, तो इसका या मतलब होता है।
अपने बड़े भाई को उसके मौन मनन म छोड़कर कु भकण ने पु पक िवमान म िनगाह
घुमाई। िशखर क ओर संकरे होते शंकु के आकार का लंका का यह उड़न-वाहन महाकाय
था। आधार के िनकट बनी झरोख जैसी इसक अनेक िखड़िकयाँ मोटे काँच से ब द थ ,
मगर धातु के पट को खोल िदया गया था। सुबह के सरू ज क धुंधली-सी रोशनी अ दर आ
रही थी, िजससे िवमान का अ द नी िह सा काशमान हो गया था। य िप िवमान
अिधकांशतः विनरोधक था मगर िवमान के ऊपर लगे मु य घण ू क क तेज़ आवाज़ िनर तर
आ रही थी। इसी म िवमान के आधार के िनकट लगे अनेक छोटे घण ू क का शोर भी घुल गया
था, जो इस उड़न-य को िदशा देने और उसक पा गितिविधय को िनयि त करने म
सहायता करते थे।
िवमान का अ द नी िह सा ल बा-चौड़ा और आरामदेह तो था, मगर साज-स जा
नाममा को थी। एकमा सजावट िवमान के अ द नी िशखर पर बना एक बड़ा-सा िच
था, जहाँ"शंकु” एक िब दु तक पतला होता गया था। वो एक ा का िच था। एक िवशाल
भरू ा, अंडाकार ा ; इसका शाि दक अथ “ का आँस”ू था। महादेव भगवान के
सभी अनुयायी ा क माला धारण करते थे या अपने पज ू ाक म इसे रखते थे। इस िच
म एक िविश ा को दशाया गया था िजसम केवल एक ही खाँचा था। इस छोटे-से मल ू
बीज को, िजसे देखकर यह िच बनाया गया था, एकमुखी ा कहा जाता था। यह बहत
ही दुलभ ा था, इसे हािसल कर पाना बहत मुि कल था और यह बहत महँगा था। रावण
के महल म उसके िनजी पज ू ाक म भी सोने के धागे म िपरोया हआ ा रखा था।
इस िच के अलावा िवमान अनलंकृत और सन ू ा था—शानो-शौकत क अपे ा सै य
वाहन अिधक था। प-रं ग पर ि याशीलता को वरीयता देने के कारण पु पक िवमान आराम
से सौ से अिधक याि य को खपा सकता था।
कु भकण ने स तोष के साथ देखा िक िवमान म अनुशािसत घेर म और सारे म फै ले
हए सैिनक मौन बैठे ह। वो अभी-अभी भोजन करके चुके थे। भलीभाँित िव ाम और भोजन
करके वो यु के िलए तैयार थे। बस कुछ ही घंट म वो सालसेट ीप पर उतरने वाले थे। वहाँ,
जैसा िक कु भकण को बताया गया था, समीची उनक इस इि छत जानकारी के साथ
ती ा कर रही थी िक अयो या के राजकुमार राम, उनक प नी सीता, छोटे भाई ल मण
और सोलह मलयपु सैिनक ने कहाँ िशिवर लगाया है।
लंका के सैिनक को िव ास था िक वो अपने शि शाली राजा रावण क बहन
शपू णखा के अपमान का बदला लेने जा रहे ह िजसे ल मण ने घायल कर िदया था। हालाँिक
सौ दया मक श यिचिक सा उसक नाक के घाव के िच को तो दूर कर देती, मगर चेहरे
क पक य हािन का बदला तो केवल र से ही िलया जा सकता है। सैिनक ये जानते थे।
वो ये समझते थे।
मगर उनम से िकसी ने भी यह सोचने का यास नह िकया िक रावण के सौतेले छोटे
बहन-भाई राजकुमारी शपू णखा और राजकुमार िवभीषण इतनी दूर, गहन दंडकार य म
अयो या के िन कािसत और तुलना मक प से शि हीन राजकुमार के साथ कर या रहे
थे।
“वो एकदम मख ू ह,” अ ततः रावण ने शु कता से और वर को धीमा रखते हए कहा।
रावण और कु भकण के आसन को ऊपर लगी एक छड़ से लटके पद से आंिशक तौर पर
अलग कर िदया गया था।” इस अिभयान पर मुझे उ ह भेजना ही नह चािहए था।”
राम और उनके लोग के साथ हई िवफल भट और प रणाम व प हई झड़प के बाद
िवभीषण शपू णखा और अपने लंकाई सैिनक को लेकर शी ता से सालसेट वापस चला गया
था, जो िक भारत के पि मी तट पर लंका का ीपीय दुग था। वहाँ से रावण के पु इ जीत
के नेत ृ व म उ ह ने लंका वापस जाने के िलए नौका ले ली थी। उनके िवफल अिभयान क
सचू ना िमलते ही िजतने सैिनक पु पक िवमान म आ सके, उ ह लेकर रावण तुर त लंका से
चल पड़ा था।
कु भकण ने गहरी सांस ली, और अपने बड़े भाई क ओर देखते हए कहा, “अब यह
बात पुरानी हो चुक है, दादा।”
“दोन जड़बुि ह। िवभीषण और शपू णखा अपनी मख ू अस य माँ पर गये ह। एक
सीधा-सादा-सा काम भी नह कर सकते।”
रावण और कु भकण दोन ऋिष िव वा और उनक पहली प नी कैकेसी के पु थे।
िवभीषण और शपू णखा भी ऋिष िव वा क स तान थे, मगर उनक दूसरी प नी े टीस से,
जो भम ू यसागर के नॉसोस ीप क यन ू ानी राजकुमारी थ । रावण को अपने सौतेले भाई-
बहन से कभी कोई लगाव नह रहा था, मगर िपता के देहा त के बाद उसक माँ कैकेसी ने
उसे उ ह अपनाने के िलए िववश कर िदया था।
“हर प रवार म कुछ मख ू होते ही ह, दादा,” कु भकण ने मु कुराकर अपने भाई को
शा त करने क कोिशश करते हए कहा। “मगर िफर भी वो प रवार का अंग ह।”
“मुझे तु हारी बात सुननी चािहए थी। उ ह भेजना ही नह चािहए था।”
“अब इसे भल ू जाएँ ।”
“कभी-कभी मुझे लगता है िक—”
“हम इसे सँभाल लगे, दादा,” कु भकण ने बात काटी। “हम िव णु का अपहरण करगे
और िफर मलयपु के पास कोई िवक प नह रहे गा। वो हम वो सब दे दगे जो हम चाहते ह।
िजसक हम आव यकता है।”
रावण मु कुराया और उसने अपने भाई का हाथ थाम िलया। “मने तु ह क के अलावा
और कुछ नह िदया है, कु भ। हमेशा मेरा साथ देने के िलए ध यवाद।”
कु भकण ने अपने भाई का हाथ दबाया। “नह , दादा। क तो मने आपको िदया है,
अपने ज म से ही। आपके कारण ही म जीिवत हँ। म आपके िलए ाण भी दे दंूगा।”
“बकवास! तुम अभी ज दी नह मरने वाले। न मेरे िलए। न िकसी और के िलए। तुम
बुढ़ापे क मौत मरोगे, अनेक, अनेक वष बाद, जब तुम हर उस ी के साथ शयन कर
चुकोगे िजसके साथ शयन करना चाहोगे और जी भर के मिदरापान कर चुकोगे!”
कु भकण जो िपछले अनेक वष से पण
ू चारी था और म पान याग चुका था, हँस
पड़ा। “हम दोन क ओर से आप ही यह पया कर लेते ह, दादा!”

तेज़ हवाएँ पु पक िवमान को थपेड़े मार रही थ । िवमान थरथराने और डगमगाने लगा था।
िकसी भीमकाय रा सी बालक के हाथ म पकड़े िखलौने क तरह। मस ू लाधार बरसात हो
रही थी। वो झरोख के मोटे काँच के पार पानी को बरसते देखते रहे ।
“भगवान क शपथ, िकसी वािहयात िवमान हादसे म मरना मेरी िनयित नह हो
सकती!”
रावण ने दो बार अपनी कुस म लगे शारी रक िशकंजे को जाँचा िजसने उसे सुरि त
प से कुस से बाँधा हआ था। कु भकण ने भी। इन िशकंज को खासतौर से शरीर के परू े
ऊपरी भाग पर ितरोधक बल को फै लाने के िलए बनाया गया था। उनक जंघाएँ भी कस
गयी थ ।
लंका के सैिनक ने भी िवमान के फ़श और दीवार पर लगे सामा य िशकंज से वयं
को बाँध िलया था। अिधकांश सैिनक ख़ुद को और अपने पेट के भीतर चल रही हलचल को
शा त रख पा रहे थे। मगर िवमान म पहली बार या ा कर रहे कुछ सैिनक चुरता से उि टयाँ
कर रहे थे।
कु भकण रावण क ओर मुड़ा। “यह बेमौसमी तफ़ ू ान है।”
“तु ह ऐसा लगता है?” रावण ने मु कुराते हए पछ
ू ा। संकटकाल म उसका जुझा पन
और मुखर हो जाता है।
कु भकण ने मुड़कर उन चार िवमानचालक को देखा जो िनय क पर अपना परू ा
शारी रक बल लगाते हए हवाओं के िव िवमान को िदशा देने के िलए उपकरण के साथ
जझू रहे थे।
“बहत बलपवू क नह !” गरजती हवाओं के पार अपनी आवाज़ पहँचाते हए कु भकण ने
िच लाकर कहा। “उ ोलक टूट गये तो हम बेमौत मारे जायगे।”
चार यि कु भकण क ओर मुड़े जो शायद इस समय जीिवत सव े िवमान
चालक था।
“हवाओं से इतना मत जझ ू ो िक िनय क टूट ही जाये,” कु भकण ने आदेश िदया।
“इसे बहने दो। मगर बहत िशिथल भी मत होना। बस िवमान को सीधा रखो तो सब ठीक
रहे गा।”
चालक ने उ ोलक को थोड़ा ढीला छोड़ा तो िवमान लहरा गया और हवाओं के साथ
और अिधक तेज़ी से झल ू ने लगा।
“तुम यह चाह रहे हो िक म उ टी कर दँू?” रावण ने मँुह बनाते हए कहा।
“उ टी करने से िकसी क जान नह जाती,” कु भकण ने कहा। “मगर िवमान हादसा
यह काम अ छे से कर देगा।”
रावण ग़ुराया, उसने एक गहरी सांस ली और अपनी आँख ब द कर ल । उसने हाथ के
िशकंजे को और कसकर पकड़ िलया था।
“वैसे, इस तफ़
ू ान का एक लाभ भी है,” कु भकण ने कहा, “ये गरजती हवाएँ घणू क
के शोर को दबा दगी। उन पर हमला करते समय हमारे पास उ ह च का देने का लाभ होगा।”
रावण ने आँख खोल और कु भकण को देखा, उसक भँव िसकुड़ गयी थ । “तु हारा
िदमाग़ ठीक है? हम उनसे एक के मुक़ाबले पाँच अिधक ह। हम च काने का लाभ नह चािहए।
हम बस सुरि त उतरना है।”

यु छोटा और िनणया मक था।


लंका क ओर से कोई हताहत नह हआ था। मलयपु के सेनापित जटायू और उनके
दो सैिनक के अलावा सब मारे गये थे या बुरी तरह आहत हए थे। मगर राम, ल मण और
सीता लापता थे।
कु भकण तीन को ढूँढ़ने के यास का ब ध करने िनकला, तो रावण एक
मलयपु सैिनक को घरू ता खड़ा था जो धरती पर पीठ के बल पड़ा था। वो अभी भी जीिवत तो
था, मगर बमुि कल। हर खरखराती सांस के साथ वो अपनी मौत के और नज़दीक जा रहा
था।
उसके शरीर के आसपास गाढ़ा र जमा हो गया था, िजसने िम ी को तर और हरी
घास को बदरं ग कर िदया था। उसक जांघ क मांसपेिशय को काट िदया गया था। लगभग
अि थ तक। अनेक कटी हई धमिनय से र फूटा पड़ रहा था।
रावण तकता रहा। हमेशा क तरह, धीमी मौत के इस य से वो स मोिहत-सा था।
वो कु भकण क आवाज़ सुन रहा था।
“जटायू ोही है। मलयपु के साथ िमलने से पहले वो हमम से एक था। मुझे परवाह
नह िक तुम उसके साथ या करते हो। सच ू ना हािसल करो, सेनापित खर।”
“जी, भु कु भकण।” खर और उसक ेिमका समीची जानकारी और बल के साथ
अपनी यो यता सािबत कर चुके थे। उसने णाम िकया और अपने ोत क ओर बढ़ गया।
रावण ने मलयपु पर यान केि त िकया। उसका र ती ता से बह रहा था। वो
उसके पेट पर लगे एक छोटे से घाव से बहता मालम ू दे रहा था। मगर रावण देख सकता था
िक वो घाव गहरा है। गुद, यकृत, पेट सबको काट िदया गया था। शरीर से िनकलते र के
कारण उस सैिनक का शरीर पीड़ा से मरोड़े खा रहा था और कंपकंपा रहा था।
कु भकण के श द िफर से उसके अवचेतन को भेद गये।
“मुझे सात दल चािहए। हर दल म दो लोग ह गे। सारे म िबखर जाओ। वो दूर नह गये
ह गे। अगर वो राजकुमार या राजकुमारी िमल जाएँ , तो ख़ुद मत उलझना। तुमम से एक
आदमी वापस आकर हम सिू चत करे गा, जबिक दूसरा उनका पीछा करता रहे गा।”
रावण ने िफर से मलयपु क ओर यान िदया। उसक बाई ं आँख बाहर िनकल आयी
थी। शायद हाथ म शेर का गु पंजा पहने लंका के िकसी सैिनक ने िनकाली होगी। आंिशक
प से कटा आँख का ढे ला ने ीय ति का के सहारे गड्ढे से बाहर लटका हआ था।
र रं िजत, बेरंग सफ़ेद ढे ले से धीमे-धीमे र टपक रहा था।
मलयपु का मँुह खुला था, उसका सीना ज़ोर से धड़क रहा था। हवा भरकर अपने
शरीर म ाणवायु पहँचाने के िलए संघषरत। जीिवत रहने क बेतहाशा कोिशश करते हए।
आ मा अि तम पल तक शरीर म अटके रहने के िलए य अड़ी रहती है? तब भी जब
मौत प प से बेहतर िवक प होती है?
“दादा,” कु भकण ने उसके िदवा व न को तोड़ते हए पुकारा। रावण ने मौन रहने के
िलए अपना हाथ उठाया। कु भकण ने आदेश का पालन िकया।
लंका का राजा मलयपु के शरीर से धीरे -धीरे िनकलते जीवन को तकता रहा। उसक
सांस लगातार खरहरी होती जा रही थी। िजतनी जोर से वो सांस लेता, उतनी ही तेज़ी से
उसके बेशुमार घाव से र फूट पड़ता।
छोड़ दो...
अ ततः, बहत तेज़ ऐंठन हई। मरते हए आदमी के मँुह से अि तम, उथली-सी सांस
िनकली। पल भर के िलए सब थम गया था। वो अपनी आँख खोले पड़ा था, त-सा। दोन
मु याँ कसकर ब द थ । उँ गिलयाँ िविच से कोण पर मुड़ गयी थ । शरीर ऐंठा हआ था।
और िफर, धीरे -धीरे , वो िशिथल पड़ने लगा।
कुछ पल बीते, िफर रावण अपने सामने पड़े शव क ओर से मुड़ गया। “ या कह रहे
थे?” उसने कु भकण से पछ ू ा।
“वो दूर नह गये ह गे,” कु भकण ने कहा। “खर शी ही जटायू से सारी जानकारी
िनकाल लेगा। हम िव णु को ढूँढ़ लगे। हम उ ह जीिवत पकड़ लगे।”
“और राम-ल मण का या?”
“हम परू ा यास करगे िक उ ह चोट न पहँचे। और उ ह ऐसा लगे िक उ ह ने शपू णखा
के साथ जो िकया था, यह उसका ही बदला है। आप िवमान म जाकर ती ा करना चाहते
ह?”
रावण ने िसर िहला िदया। नह ।

“मुझे सीता को देखने दो,” रावण ने कहा।


“दादा, इतना समय नह है। राजा राम और राजकुमार ल मण िनकट ही ह, वो शी ही
आ जायगे। म नह चाहता िक हम उ ह मारने पर िववश होना पड़े । यह एकदम सही है। हम
िव णु िमल गयी ह, और अयो या के तथाकिथत राजा आहत नह हए ह। अब हम िनकलते ह।
िवमान म पहँचने के बाद आप उ ह देख लेना।”
लंकावासी एक छोटे-से मैदान म थे जहाँ मलयपु ने अपना िशिवर लगाया था। वो घने
वन से िघरे हए थे जहाँ पेड़ क पंि के पार कुछ िदखाई नह देता था। राजकुमार के उस
थान पर पहँचने से पहले वहाँ से िनकल लेने क कु भकण क आतुरता समझी जा सकती
थी।
रावण ने हामी भरी, और िवमान क ओर चलने लगा। उसका अि म सुर ा द ता आगे-
आगे चल रहा था, जबिक कु भकण साथ-साथ था। सैिनक का मु य दल पीछे एक ल बी-
सी डोली िलए चल रहा था िजस पर बेसुध सीता बँधी हई थ । िपछला सुर ा द ता अ त म था।
यह जानते हए िक राम और ल मण मु और सश ह, लंकावासी परू ी तरह चौकस
थे। वो तीर क बौछार से भ च के नह रह जाना चाहते थे।
बीच-बीच म, दूर कह से एक आवाज़ आती सुनाई दे रही थी। हर दोहराव के साथ वो
ती तर, और िनकट आती जा रही थी।
“सीताऽऽऽऽऽ!”
यह राम थे, अयो या के राजा दशरथ के सबसे बड़े पु । चँिू क अयो या उस े क
सव च शि था, इसिलए दशरथ भी स िस धु के स ाट थे। जब िमिथला के यु म
अनिधकृत प से दैवी अ का योग करने के िलए राम को चौदह वष के िलए िन कािसत
िकया गया तो दशरथ ने उनके थान पर भरत को युवराज िनयु कर िदया था। मगर जब
दशरथ के देहा त के बाद भरत के रा यािभषेक का समय आया, तो उ ह ने सभी अपे ाओं
के िवपरीत जाकर राम के खड़ाऊँ िसंहासन पर रखे और अपने बड़े भाई के ितिनिध के प
म सा ा य चलाने लगे।
इस तरह तकनीक प से, िन कासन म होने के बावजदू , राम अयो या के शासक
और स िस धु के स ाट थे। अनुपि थत। भले ही उनका औपचा रक रा यािभषेक नह हआ
था। अगर वो आहत होते या मारे जाते ह तो स िस धु के दूसरे रा य पर सि ध क शत
सि य हो जात । िफर इन रा य को अपने स ाट को हािन पहँचाने वाले के िव यु के
िलए एकजुट होना पड़ता। और रावण जानता था िक लंका यु वहन नह कर सकती। अभी
नह ।
मगर स ाट क प नी के स ब ध म ऐसी कोई शत नह थी।
दद भरी आवाज़ िफर सुनाई दी। “सीताऽऽऽऽऽ!”
रावण कु भकण क ओर मुड़ा। “तु ह या लगता है वो या करे गा? या वो स िस धु
क सेनाओं को एकजुट कर सकता है?”
अपने भीमकाय आकार के बावजदू आ यजनक प से चु त कु भकण रावण के साथ
गित बनाए हए थे। उसने सोचते हए कहा, “यह इस पर िनभर करता है िक हम इसे िकस
तरह दशाते ह। स िस धु म अनेक ऐसे ह जो राम और उनके प रवार का िवरोध करते ह।
अगर हम यह जानकारी म ला द िक शपू णखा का बदला लेने के िलए सीता का अपहरण
िकया गया है, तो इससे उन रा य को पीछे हटने का बहाना िमल जायेगा जो यु म शािमल
नह होना चाहते ह गे। साथ ही, सि ध म ऐसी कोई शत नह है जो स ाट के अलावा
राजप रवार के िकसी अ य सद य के आहत होने क स भा यता का उ लेख करती हो। तो
केवल इसिलए िक हमने स ाट क प नी का अपहरण िकया है, उन पर कूच करने के िलए
सि ध क बा यता नह है। जो लोग दूर रहना चाहते ह, वो दूर रहना चुन सकते ह। मुझे नह
लगता िक वो कोई बड़ी सेना जमा कर पायगे।”
“यानी वो मख ू , शपू णखा और िवभीषण, िकसी उपयोग के तो सािबत हए।”
“उपयोगी मख ू ,” कु भकण ने जोड़ा, उसक आँख म चमक थी।
“ए, इस िवशेषण पर मेरा अिधकार है!” रावण ने हँसते और िखल दड़े पन से कु भकण
क िवशाल त द पर हाथ मारते हए कहा।
दोन भाई पु पक िवमान के पास पहँच गये थे और झटपट अ दर चढ़ गये।
उनके पीछे -पीछे सैिनक आये और िवमान के अ दर अपने-अपने थान लेने लगे। शी
ही रावण और कु भकण उड़ान क तैयारी म वयं को बाँधने लगे थे। एक सरसराहट के साथ
िवमान के ार ब द हो गये।
“ये यो ा ह!” कु भकण ने शंसा मक मु कुराहट के साथ सीता क िदशा म िसर
िहलाते हए कहा। उनके बेसुध शरीर को फ़ त से बाँधते हए लंका के सैिनक उनके आसपास
मंडरा रहे थे।
वीर यो ा राजकुमारी को पकड़ना संघषपण ू रहा था।
शपू णखा और राजकुमार के बीच हई िहंसक भट को तीस िदन बीत गये थे, और अब
अयो या के राजप रवार के सद य ने यह मानकर अपनी सतकता िशिथल कर दी थी िक
लंकावासी उनसे पीछे रह गये ह। उस िदन, उ ह ने तय िकया िक बाहर िनकलकर अपने िलए
समुिचत आहार का ब ध करगे। सीता मकर त नाम के एक मलयपु सैिनक के साथ केले
के प े काटने गय । राम और ल मण िभ न िदशा म िशकार पर चले गये थे।
लंका के उन दोन सैिनक ने िज ह ने सीता को खोज िलया था, मकर त को मार
डाला, मगर बदले म वो सीता के हाथ मारे गये। िफर वो चुपचाप मलयपु के न कर िदये
गये िशिवर म पहँची और पेड़ क पंि के पीछे से उ ह ने धनुष और ढे र तीर का द तापण ू
इ तेमाल करते और तेज़ी से िछपने के थान बदलते हए लंका के अनेक सैिनक को िनबटा
िदया। मगर वो रावण या कु भकण तक नह पहँच पाय जो लंका के सैिनक के सुर ा घेरे म
सुरि त थे। अ ततः अपने िन ावान अनुयायी सेनापित जटायू को बचाने के िलए वो सामने
आने पर िववश हो गय । तभी उ ह घेरकर एक िवषा पदाथ से बेसुध कर िदया गया, और
िफर बाँधकर िवमान क ओर ले जाया गया।
“मलयपु का मानना है िक ये िव णु ह,” रावण ने हँसते हए कहा। “तो इ ह अ छी
यो ा तो होना ही चािहये!”
एक ाचीन भारतीय पर परा के अनुसार, महान म महानतम, भावशाली अिधनायक
जो क याण के वतक और एक नयी जीवनशैली के अ ेता ह , उ ह 'िव णु' क पदवी दान
क जाती है। अब तक छह िव णु हो चुके थे, और छठव िव णु भगवान परशु राम ने मलयपु
क जाित क न व डाली थी। अब मलयपु ने एक सातव िव णु को वीकार िकया था, जो
भारत म एक नयी जीवनशैली को थािपत करगी : सीता। और रावण ने अभी-अभी उनका
अपहरण कर िलया था।
सीता के आसपास मौजदू सैिनक हट गये थे और अपने-अपने थान पर लौट गये थे।
वो रावण से कोई बीस फ़ुट दूर लेटी हई थ , अपनी डोली पर सुरि त बँधी हई। उनके
अंगव को उनके तन पर ढक िदया गया था, और फ़ त से उनके ऊपरी शरीर और टाँग
को कसकर बाँध िदया गया था। उनक आँख ब द थ । मँुह के एक कोने से लार बह रही थी।
उ ह बेसुध करने के िलए बहत ती िवष क बहत यादा मा ा का योग िकया गया था।
जीवन म पहली बार रावण और कु भकण ने सीता का चेहरा देखा था।
रावण को लगा उसक सांस क गयी है। वो िन ल बैठा था, दय जैसे जड़ हो गया
था। आँख उनके चेहरे पर जमी थ ।
सीता के राजसी, ढ़, सु दर चेहरे पर।
अ याय 2

छ पन वष पहले, भारत म इ थ के िनकट ग ु िव वा का आ म


चार वष क आयु म भी रावण अपने ि याकलाप को लेकर बहत सुिनि त और ि थर
था।
बचपन म ही प रप व यह बालक ऋिष िव वा का पु था। यात ऋिष ने बहत देर से
िववाह िकया था, जब वो स र वष से अिधक के थे। य िप उ ह देखकर उनक आयु नह
बताई जा सकती थी : चम का रक, आयुरोधक सोमरस उ ह युवा रखता था िजसका पान वे
िनयिमत प से करते थे। अनेक दशक म फै ले अपने ल बे कायकाल म ऋिष िव वा ने
महान वै ािनक और आ याि मक गु के प म ित ा अिजत कर ली थी। वा तव म,
उनक िगनती तो अपनी पीढ़ी के महानतम बुि मान म होती थी।
इतने स मानीय ऋिष का पु होने से रावण के युवा क ध पर अपे ाओं का भारी बोझ
था। मगर लगता था िक वो िनराश नह करे गा। इतनी अ पायु म भी उसके पास भयंकर बुि
थी। उससे िमलने वाले हर यि को लगता था िक एक िदन यह बालक अपने उ कृ िपता
क िवशाल उपलि धय से भी आगे िनकल जायेगा।
मगर ा ड सब व तुओ ं म स तुलन िबठा ही देता है। सकारा मक के साथ
नकारा मक जुड़ा रहता है।
जब सरू ज सुदूर ि ितज पर आ िटका, तो रावण ने बड़े धीरज से उस ख़रगोश क
कमज़ोर-सी टाँग को भिू म म गड़े लकड़ी के दो खँटू से बाँध िदया िजसे उसने पकड़ा था।
बालक ने जब उसे अपने घुटने से दबाकर र सी को ख चकर कसा तो बेचारा जीव बुरी तरह
संघष करने लगा था। वो वहाँ अपने अंग को फै लाए पड़ा था, पेट और सीना आकाश क ओर
खुले पड़े थे। न हा बालक स तु था। अब वो अपना काम शु कर सकता था।
िपछले िदन भी रावण ने एक दूसरे ख़रगोश क चीरफाड़ क थी। उसक सांस चलने के
दौरान ही बारीक से उसक मांसपेिशय , अि थब ध और अि थय का अ ययन िकया था। वो
उसके धड़कते दय तक पहँचने के िलए उ सुक था। मगर वो उसके सीने क अि थ को
काटकर अ दर बढ़ता, इससे पहले ही बहत क भोग चुका खरगोश मर गया था। रावण के
पहँचने से पहले ही उसका दय क गया था।
आज, उसका इरादा सीधे पशु के दय पर जाने का था।
ख़रगोश अभी भी संघष कर रहा था, उसके ल बे कान बुरी तरह फड़फड़ा रहे थे।
आमतौर पर ख़रगोश शा त जीव होते ह, मगर यह प प से संकट म था। इसका कारण
भी था।
रावण ने तजनी के पोर से अपनी कटार क धार देखी। थोड़ा-सा र छलक आया था।
ख़रगोश को देखते हए उसने अपनी तजनी चस ू ली। रावण मु कुराया।
उसक उ ेजना और दय क ती धड़कन ने उसक नािभ के ह के से दद को भुला
िदया था। वो दद जो शा त था।
अपने बाएँ हाथ से उसने अपने िशकार को ि थर िकया। िफर पशु के ऊपर कटार रखी,
उसक नोक उसके सीने क ओर थी।
ठीक उस समय जब वो चीरा लगाने वाला था, उसे अपने िनकट िकसी के होने का
आभास हआ। उसने िनगाह उठाई।
क याकुमारी।
भारत के अनेक िह स म, क याकुमारी को पज ू ने क पर परा थी। माना जाता था िक
कुछ िविश क याओं के अ दर देवी माँ का वास होता है। इन क याओं को जीिवत देवी क
तरह पज ू ा जाता था। लोग परामश लेने और भिव य जानने के िलए उनके पास आते थे—
राजा-रानी भी उनके अनुयाियय म शािमल होते थे—जब तक िक वो रज वला नह हो जाती
थ , माना जाता था िक उस समय देवी िकसी दूसरी क या के शरीर म चली जाती थ ।
भारत म क याकुमारी के अनेक मि दर थे। यह िविश क याकुमारी जो रावण के
सामने खड़ी थ , पवू भारत के वै नाथ क थ ।
वो क मीर म पिव अमरनाथ गुफा क तीथया ा करके वै नाथ वापस जा रही थ ,
और ऋिष िव वा के आ म म क गयी थ । वष के अिधकांश भाग म िहम के अ दर दबी
पिव गुफा म िहम से बना महािलंगम् था। माना जाता था िक इसी गुफा म पहले महादेव ने
जीवन और सिृ के रह य को उ ािटत िकया था।
तीथया ा से लौटते क याकुमारी के दल क आ माएँ तो ऊजा से भरी थ , मगर तन
थकान से चरू थे। देवी ने तय िकया िक वै नाथ क अपनी या ा जारी रखने से पहले कुछ
स ाह यमुना िकनारे ऋिष िव वा के आ म म कगी।
ऋिष ने इसे देवी से बात करने और आ याि मक संसार के अपने ान को बढ़ाने का
सौभा यशाली अवसर मानते हए उनके आगमन का वागत िकया। मगर उनक परू ी
कोिशश के बावजदू क याकुमारी अपने आप म ही सीिमत रह और उ ह ने ऋिष या उनके
आ म के आवािसय के साथ ज़रा भी समय नह िबताया।
मगर इस बात ने जीिवत देवी के वाभािवक आकषण और भामंडल को और बढ़ा ही
िदया था। यहाँ तक िक अपनी ही दुिनया म म न रहने वाले रावण को भी जब भी अवसर
िमलता तो वो उ ह देखता रह जाता था, स मोिहत-सा।
वो अब भी उ ह देख रहा था, म मु ध, उसक कटार हवा म ही ठहर गयी थी।
क याकुमारी उसके सामने खड़ी थ , उनके भाव शा त थे। उनके चेहरे पर उस ोध
या िघन का कोई अंश नह था िज ह तब आ म के लोग के मँुह पर देखने का रावण आदी
था जब वो उसे उसके ‘वै ािनक' योग करते पकड़ते थे। न ही उनक आँख म दुख या दया
का कोई िच था। कुछ नह था। कोई भाव नह ।
वो बस वहाँ खड़ी थ , मानो प थर क बनी मरू त ह —उदासीन मगर िफर भी भय पैदा
करने वाली। आठ-नौ वष क बािलका। गेहँआ रं गत, ऊँची कपोलाि थयाँ और छोटी-सी तीखी
नाक। चोटी म बँधे ल बे काले बाल। लगभग रे खारिहत पलक वाली बड़ी-बड़ी काली आँख।
लाल धोती, अंिगया और अंगव पहने। उनके नैन-न श िहमालय के पहाड़ी लोग के से थे।
अनायास ही रावण ने कमर पर अपनी धोती के ऊपर बँधे कमरब द को जाँचा। वो
अपने थान पर, उसक नािभ को ढके हए था। उसका रह य सुरि त था। िफर उसे अपने
चेहरे के भ े ध बे याद आये जो बचपन म हई चेचक क िनशानी थे। स भवत: जीवन म
पहली बार वो अपने प-रं ग को लेकर इतना सजग हो रहा था।
इस िवचार को अपने मन से िनकालने के िलए उसने िसर झटका।
“देवी क... क याकुमारी,” अपनी कटार को धरती पर िगराते हए धीरे से कहा।
िबना एक श द कहे क याकुमारी आगे बढ़ , उनक भाव-भंिगमा म कोई बदलाव नह
था। वो झुक और उ ह ने कटार उठा ली। तेज, द तापण ू हरकत करते हए उ ह ने उस दीन-
हीन ख़रगोश के ब धन काट डाले।
िफर उसे ऊपर उठाया और धीरे से उसके म तक को चम ू ा। उनके हाथ म ख़रगोश
िब कुल शा त था, अपनी घबराहट भल ू गया था। मक
ू ाणी जैसे जानता था िक अब वो िफर
से सुरि त है।
पलांश के िलए रावण को लगा िक उसने क याकुमारी क आँख को ेम से जगमगाते
देखा है। िफर वो मुखौटा वापस चढ़ गया।
उ ह ने ख़रगोश को नीचे रखा और वो कुलाँचे मारता भाग गया।
क याकुमारी ने िफर से रावण को देखा और उसक कटार लौटा दी।
उनका चेहरा भावहीन ही रहा।
िबना कुछ कहे , वो मुड़कर चली गय ।
उनके आ म म आने के बाद से यह पहली बार नह था जब रावण ने सोचा था िक
जीिवत देवी के प म मा यता पाने से पहले क याकुमारी का ज म का नाम या रहा होगा।

जैसे ही रावण क माँ कैकेसी सोई ं, रावण घर से बाहर िनकल गया। वो तेज़ी से आपने
ग त य क ओर बढ़ रहा था।
अब वो सात बरस का था। और अपने िपता के आ म के अलावा अनेक आ म म उसे
िवकट बुि वाला ितभाशाली ब चा माना जाने लगा था। उसने यु कलाओं म भी िश ण
लेना शु कर िदया था,और वो बहत यो य सािबत हो रहा था। मानो यही पया न हो, संगीत
के ित भी उसक सहज िच थी। तार वाले वा य उसके मनपस द थे, िवशेषकर भ य
वीणा। वीणा बजाना सीखते हए उसे कुछ माह ही हए थे, मगर उसे अभी से उससे लगाव
हो गया था।
वीणा का नाम पवू महादेव, भगवान के नाम पर पड़ा था िजनक रावण बहत
िन ा से पज ू ा करता था। यह वा सबसे किठन वा म माना जाता था। उसे बताया गया था
िक इसम द ता लाने के िलए बरस अ यास करना होता है—जब भी वो यह सुनता, तो और
कमर कस लेता, य िक रावण सव े से कम कैसे हो सकता था?
तेज़ी से अँधेरे म आगे बढ़ते हए रावण का मन उस ित पधा पर लगा था जो डागर
नाम के एक संगीतकार के िव सुबह को होने वाली थी। युवा और वीणा का िव यात
वादक डागर ऋिष िव वा के आ म म आया हआ था।
हालाँिक यह मै ीपण ू ित प ा थी मगर रावण हारना नह चाहता था।
वो िफर से उस पहली बार के बारे म सोचने लगा जब उसने अपने ि यवा को देखा
था। जब उसने दो बड़े त बरू , जो उसे बताया गया था िक क ुओ ं को सुखाकर उ ह खोखला
करके बनाए जाते ह, पर लगे सागौन क लकड़ी के गोल अंगुिलपटल को छुआ था तो उसका
मन ा से भर गया था। ल बाकार वा के दोन िसर पर लकड़ी पर उकेरे मोर बने थे जो
िक भगवान के ि य प ी माने जाते ह। अंगुिलपटल पर मोम से लकड़ी क बाईस
सा रकाएँ लगी थ और तीन पथ ृ क घुड़च थे।
इस सबसे अिधक अ ुत वा म आठ तार थे—चार मु य और तीन तरब के तार
वादक क ओर और एक तरब का तार दूसरी ओर। सारे तार आठ वर सामंज य शीष पर
आठ खँिू टय से बँधे थे।
उस पहले पाठ के दौरान रावण पुराने छा को देखता रहा था िज ह ने धरती पर
बैठकर वीणा के एक त बरू े को क धे पर रख िलया। कुछ ने उसे अपने बाएँ घुटने पर रखा
था। उसी समय उसे आभास हो गया था िक इस वा को उस यि के अनु प बनाया जाता
है जो इसे बजाता है; सबके िलए समान होने का कोई सवाल नह था।
िजसने भी वीणा क संरचना पर यान िदया होगा, वो जानता होगा िक इस वा
को बजाना तो दूर, समझना भी बहत जिटल है। सीधे हाथ क तजनी और म यमा उँ गिलय म
पहने गये िमजराव से मु य तार को छे ड़ते ह जबिक तरब के तार को किनि का उँ गली के
नाख़न ू से बजाया जाता है। तार को िै तज ीवा के नीचे से बाएँ हाथ से छे ड़ा जाता है, जो
इस कारण और किठन हो जाता है िक दायाँ हाथ साइड के तरब के तार को रोक रहा होता है।
मगर वीणा को जो बात दूसरे त तुवा से अलग करती है, वो इसक गँज ू क
अ ुत प से उ चतर मता है, जो िक इसके िसर पर लगे दो बड़े त बरू के कारण
िनकलती है। गँज ू क ती ता और शि का वर क गुणव ा और संगीत पर यापक भाव
पड़ता है।
त बरू को न कर दो। गज ूँ को न कर दो। संगीत को न कर दो।
रावण चुपके से उस छोटी-सी कुिटया म दािख़ल हआ जहाँ उसे पता था िक संगीत के
वा य रखे जाते ह। डागर क वीणा भी वह थी। संगीतकार ितिदन सुबह और शाम को
अपने वा य क पजू ा करने के िलए जाने जाते थे। लगता था िक डागर भी िभ न नह
था। उसक वीणा के आधार पर पज ू ा के फूल और जली हई धपू रखी थ ।
रावण मन ही मन हँसा।
आज रात डागर क पज ू ा काम नह आयेगी।
उसने िबना आवाज़ िकये तेज़ी से काम िकया। सबसे पहले उसने वीणा के कपड़े के
आवरण को हटाया। िफर उसने बाएँ त बरू े को खोला और उसके अ द नी िह से को हाथ से
छुआ। घोटा हआ और िचकना। उसने अपनी कमर म बँधी थैली से धातु का उपकरण िनकाला
और उससे त बरू े के अ द नी िह से को खुरचने लगा।
डागर तुर त तो समझ भी नह पायेगा िक गँज ू सही नह है, न ही अगले िदन अपने
वा के सुर िमलाते समय जान पायेगा। उसे यह केवल तब ही समझ आयेगा जब ित पधा म
वो राग बजायेगा। उस समय तक बहत देर हो चुकेगी।

ित प ा क सुबह को एकदम िनमल, नीला आकाश था। आ मवािसय को चिकत करते


हए वै नाथ क क याकुमारी वापस उनके बीच मौजदू थ । उनके िपछले आगमन को तीन
वष बीत गये थे। इस बार वो अपने दल-बल के साथ उ र-पि मी भारत के िव िव ालयीय
नगर त िशला जा रही थ । और ऋिष िव वा का शाि तपण ू आ म आदश िव ाम थल िस
हआ।
क याकुमारी को सा ी मानते हए दोन संगीतकार ने अपने वा बजाना शु िकया।
ितयोिगता अिधक देर नह चली। डागर क ित त वीणा ने सुिनि त कर िदया िक वो
अपने दशन के मा दस िनिमष म हार मान ले, और उसके उससे छोटे ितभागी को िवजयी
घोिषत कर िदया गया।
मगर िव वा अपने पु को भलीभाँित जानते थे।
ित पधा के तुर त बाद वो रावण को अपनी साधारण-सी कुिटया म ख च ले गये।
“ या िकया था तुमने?” वो ार को ब द करते हए फुफकारे तािक बाहर कोई उनक
बातचीत न सुन सके।
“कुछ नह !” रावण ने अव ा से कहा, उसका िसर अपने िपता के सीने तक भी नह
पहँच रहा था, उसक आँख सुलग रही थ । “म बस उस मख ू से बेहतर था िजसका प लेना
आपको इतना पस द है।”
“अपनी िज ा पर िनय ण रखो,” िव वा ने कहा, ोध से उनक मु याँ िभंची हई
थ । “डागर इस आधुिनक युग के सव े युवा वीणा वादक म से है।”
“इतना े नह िक मुझे हरा सके,” रावण ने उपहास िकया।
“क याकुमारी यहाँ ह। उनक उपि थित म म िकसी भी तरह का छल-कपट कैसे होने
दे सकता हँ?”
रावण को इस श द का अथ पता नह था। “छल- या?”
कैकेसी जो उनके पीछे खड़ी थ , नम वर म बोल । “िव वा, अगर तु ह लगता है िक
रावण ने छल िकया है, तो कृपया सावजिनक प से डागर को िवजेता घोिषत कर दो। रावण
समझ जायेगा। शायद वयं क याकुमारी भी—”
रावण ने बात काट दी। “मगर आपके पित ने भी धोखा िदया है। मेरे ज म के साथ ही ये
झठ ू बोलते आ रहे ह। ये क याकुमारी को इस बारे म य नह बताते? ये सबको मेरे बारे म
बता य नह देते?”
बढ़ू े ऋिष ने ोध म हाथ उठा िलया।
“कृपा करके ऐसा मत करो!” कैकेसी ने याचना क , और दौड़कर अपने पु के िगद
बाँह फै ला द । “तु ह इसे मारना ब द करना होगा। यह अनुिचत है...”
“चुप रहो! यह तु हारी ग़लती है। म तु हारे कम के कारण य णा पा रहा हँ। तु हारे
दु कम ने इसक नािभ को दूिषत कर िदया है! और इसके मि त क को भी!” िव वा का
वर कटु था।
“ए!” रावण ने ोध से कहा। “इनसे बात न कर। मुझसे कर।”
ोध म भरकर, िव वा ने कैकेसी को एक ओर धकेला और रावण पर लपके। उ ह ने
लड़के के गाल पर झ नाटेदार थ पड़ जड़ िदया। सात साल का ब चा कमरे म दूर जाकर
िगरा। कैकेसी चीख़़ मारकर अपने बेटे को बचाने दौड़ ।
िव वा ने भिू म पर पड़े लड़के को देखा। रावण का कमरब द खुल गया था, और उसक
नािभ से छोटा-सा बगनी उपांग िदखने लगा था—उसक ज मजात िवकृित। सुबत ू िक वो
नागा था। भारत भर म, लोग मानते थे िक ज मजात िवकृितयाँ िकसी अिभश आ मा का,
िपछले ज म के बुरे कम का प रणाम होती ह। और इस तरह के िवकृत लोग नागा कहे जाते
थे।
िव वा लगभग प घण ृ ा से बोले। “उसे ढको!” उ ह ने जलती आँख से अपनी प नी
को देखा। “तु हारा बेटा मेरा नाम िमटा देगा।”
रावण ने अपनी माँ के र ा मक हाथ को हटा िदया। “हाँ, म िमटा दँूगा। य िक सब
जानते ह िक म हर ि से आपसे बेहतर हँ।”
“अहंकारी िबगडैल ब चा! भगवान इ ने ग़लत यि पर अपनी अनुक पा कर दी
है,” बाहर जाने के िलए पलटते िव वा भुनभुनाए।
“हाँ, चले जाइए! दूर हो जाइए! मुझे आपक आव यकता नह है!” उमड़-उमड़कर आते
आँसुओ ं के बावजदू अपनी आवाज़ को ि थर रखने क कोिशश करता रावण िच लाया।
उसक नािभ क सतत पीड़ा गहरा गयी थी। उसक उ ता बढ़ गयी थी।

अपने िपता के आ म से कुछ ही दूरी पर, चंड यमुना के एक िकनारे रावण बैठा हआ था।
उसका गाल अभी भी जल रहा था, हालाँिक आँसू कबके सख ू गये थे।
हाथ म आवधक शीशा िलए वो भिू म को तक रहा था। बहत सावधानी से उसने सरू ज
क िकरण को काश के एक शि शाली पुंज म संकेि त कर िदया था, जो वहाँ घम ू रही
न ही च िटय को जला रहा था। उसक सांस तेज़ चल रही थी, अभी भी उसक नस-नस म
ोध तड़क रहा था। सतत पीड़ा क के उसक नािभ फड़क रही थी।
सबसे पहले उसक नाक म सुग ध पहँची। उसे लगा उसक सांस क गयी है।
उसने अपना िसर घुमाया और उ ह देखा।
क याकुमारी को।
उसका शरीर जड़ हो गया, आवधक शीशा अभी भी उसके हाथ म था। जली-भुनी
च िटयाँ उसके पैर के पास पड़ी थ । सरू ज क संकेि त िकरण घास को झुलसा रही थ ।
क याकुमारी के भाव शा त रहे । न घण ृ ा का कोई िच था। न ोध का।
वो िनकट आय और रावण के हाथ से शीशा ले िलया।
“तुम इससे अ छा कर सकते हो।”
रावण ने कुछ नह कहा। अचानक उसका मँुह सख ू गया था। देर से रोक हई सांस आह
बनकर फूट पड़ी।
क याकुमारी हौले से मु कुराई ं। िद य मु कान। जीिवत देवी क मु कान।
उ ह ने आ म क ओर संकेत िकया जहाँ सुबह को संगीत क ितयोिगता हई थी।
“तुम उससे भी बेहतर कर सकते हो।”
रावण को अपने ह ठ िहलते महसस ू हए। उसने पाया िक उसक नािभ का दद जादुई
ढं ग से ग़ायब हो गया था। कुछ पल के िलए।
“कम से कम यास तो करो,” क याकुमारी ने कहा।
वो मुड़ और चली गय ।

“तुम वैसे भी जीत जाते,” डागर ने मु कुराते हए कहा।


सय ू ा त हो चुका था। अिधकांश आ मवासी अपनी कुिटयाओं म चले गये थे। रावण
अपने साथ कमल के पिव फूल का वो हार लेकर डागर से िमलने आया था जो उसने िदन
म जीता था। बेमन से, उसक आँख डागर से आँख िमलाने को तैयार नह थ , उसने अपराध
वीकार जैसा कुछ कहा। उससे बड़ी उ के ितभागी ने शालीनतापवू क उ र िदया था।
आयोजन म उपि थत अ य अिधकांश लोग क तरह डागर को भी स देह था िक
उसके वा म कुछ तो गड़बड़ है। ितयोिगता के बाद उसने अपनी वीणा क जाँच क और
ज दी ही सम या को पकड़ िलया। मगर वो नाराज़ नह हो पाया। रावण अ ततः बालक ही तो
था।
रावण ने कुछ नह कहा। वो िसर झुकाए खड़ा रहा। क याकुमारी के बारे म सोचते हए।
वो अगली सुबह जाने वाली थ ।
उस छोटे बालक के िसर और क ध से िनकलते सोलह वष य डागर ने उसके बाल
सहला िदये। “तु हारे अ दर ितभा है। उसका योग जीतने के िलए करो। तु ह कोई भी
अनुिचत काम करने क आव यकता ही नह है।”
रावण ने चुप रहते हए िसर िहला िदया। उसे िब कुल पस द नह था िक कोई उसके
बाल को छे ड़े।
अलावा उनके... इसके िलए तो वो कुछ भी कर गुज़र सकता है िक वो उसके बाल को
सहरा द।
“और िच ता मत करो,” डागर ने मु कुराते हए कहा। “मेरी वीणा ठीक क जा रही है।
कोई थायी हािन नह हई है।”
रावण ने ल बी सांस छोड़ी। उसे आशा थी िक उसक नािभ का दद दूर हो जायेगा। मगर
नह हआ।
“और इसे तुम रख सकते हो,” डागर ने कमल के फूल का हार उसे लौटाते हए कहा।
रावण ने उसे थामा। और घर को भाग गया।
अ याय 3

दो वष बीत गये थे। रावण नौ वष का हो गया था। ितिदन, वो जतन से क याकुमारी के


श द को अपने भीतर िजलाए रखने का यास करता। तम ु बेहतर कर सकते हो, अ सर वो
वयं को याद िदलाता। बहत कम ही से वो यह सोचे िबना कुछ करता था िक क याकुमारी
क उस पर या िति या होगी। और यह कारगर भी तीत हो रहा था। वो आ म के अ य
लोग के साथ पहले से अिधक सहज हो गया था; कुछ लोग तो व तुत: उसे पस द भी करने
लगे थे।
जब भी वो घर पर होता था तो एक कमरब द से अपनी नािभ को बाँधे रहता था। वो
जानता था िक उसके िपता इस बात से लि जत होते थे िक उनका पु एक नागा है, और
िपछले दो वष म उसने अपनी परू ी कोिशश क थी िक ि थित को और न िबगड़ने दे।
प रणाम व प अपने िपता के साथ उसके झगड़े भी कम हो गये थे।
और दद भी। वो था तो अभी भी। मगर इतना कम िक कभी-कभी रावण अपनी नािभ के
उपांग के बारे म भल
ू ही जाता था।
िफर, एक िदन, ऋिष िव वा पि म क ओर एक ल बी या ा के िलए आ म से चले
गये। भम ू यसागर म ि थत नोसॉस ीप क ओर। नोसॉस के राजा ने बु ऋिष से
िमलने क इ छा जताई थी, और ऋिष ने िनम ण वीकार करने का िनणय िलया।
उनके जाने के कुछ ही स ाह बाद कैकेसी ने पाया िक वो गभवती ह। उ ह ने सोचा िक
ऋिष के पीछे , उ ह वापस बुलाने के िलए िकसी स देशवाहक को भेज द। मगर िफर ऐसा न
करने का तय िकया। वो उनक वापसी पर उ ह चिकत कर देना चाहती थ ।
साथ ही, सच कहा जाये तो उनके मन पर एक िवचार बोझ क तरह रखा हआ था :
अगर कह दूसरा बालक भी नागा हआ तो?
अपनी माँ क आशंकाओं से बेख़बर रावण छोटे भाई या बहन के आगमन को लेकर
बहत उ सािहत था। वो लगातार अपनी माँ के आसपास मंडराता रहता, उनका यान रखता
और सुिनि त करता िक उनक हर आव यकता परू ी हो जाये। जब तक िक, अ ततः, वो िदन
नह आ गया।
घर के अ दर एक दाई कैकेसी क देखभाल कर रही थी। रावण बाहर ती ा कर रहा
था, िकसी याकुल भावी िपता क -सी आतुरता से टहलता हआ। समाचार क ती ा करता।
अनेक आ मवासी उसके साथ ती ा कर रहे थे। मगर सव ल बा हो गया था। बारह
घंटे बीत चुके थे। धीरे -धीरे लोग अपनी कुिटयाओं को लौटने लगे, और िफर बस रावण और
कैकेसी का बड़ा भाई मरीच रह गये। ऋिष िव वा क अनुपि थित म गभाव था के दौरान
अपनी बहन क सहायता करने के िलए मरीच कुछ िदन पहले ही आया था।
कुछ समय बाद, मरीच ने भी सोने जाने का िनणय िलया। “म सोने जा रहा हँ, रावण ।
तुम भी सो जाओ। दाई हम बुला लेगी। मने उसे कड़े िनदश दे िदये ह।”
रावण ने िसर िहला िदया। जंगली घोड़े भी उसे वहाँ से नह हटा सकते थे।
“ठीक है,” मरीच ने उठते हए कहा। “म पास वाली कुटी म ही हँ। जैसे ही दाई बुलाए,
तुम आकर मुझे उठा देना। ठीक है?”
“हाँ।”
“जैसे ही तुम कुछ सुनो, तो तुर त मुझे बुला लेना।”
“मने पहली बार म ही सुन िलया था, मामा।”
मरीच ह के से हँसा और उसने रावण के बाल सहरा िदये।
रावण ने अपना िसर पीछे झटक िदया और िचढ़कर अपने मामा को देखा। मरीच और
ज़ोर से हँस पड़ा और नक़ली मायाचना म उसने दोन हाथ उठा िदये। “ मा करो... मा
करो!”
आप ही आप हँसता हए वो मुड़ा और चला गया, और रावण ने अपने बाल वापस ठीक
कर िलए। सुघड़ता से।
अब एकदम अकेले रह गये बालक ने तार रिहत आकाश को देखा। नये चाँद क
न ही-सी कतरन अँधकार को िमटाने क जी-तोड़ कोिशश कर रही थी। कुटी के सामने
अहाते म दीपक जला िदये गये थे, जो काश के न हे -न हे दायरे बना रहे थे।
अंधकार म देखते हए उसे लगा जैसे दूर कह उसे कुछ साये मंडराते िदखे ह। हवा तेज़
हो गयी थी, और उसक सायं-सायं म एक तरह क भयावहता-सी घुली हई थी। जैसे भत ू
फुसफुसा रहे ह । नौ वष य बालक िसहर गया। उसके शरीर के के क पीड़ा िफर वापस आ
गयी थी। उसक नािभ भय से फड़क रही थी।
उसने ाथना म अपने हाथ जोड़ िदये और महाम ृ युंजय म का जाप करने लगा।
देवािधदेव महादेव को समिपत म । भगवान को समिपत।
जब वो उसे दोहराता रहा, बार-बार, तो उसे लगा िक उसका भय लु हो गया है। धीरे -
धीरे । उसक मांसपेिशयाँ तनावमु हो गय । उसके दय क धड़कन धीमी हो गयी।
उसक नािभ का दद एक बार िफर शा त हो गया था।
उसने नये आ मिव ास के साथ अँधेरे म देखा।
िकसे लड़ना है मुझसे? चलो! िकसे लड़ना है मुझसे?
भगवान मेरे साथ ह।
िविच प से, उसक नािभ िफर दुखने लगी थी।
वो और अिधक उ ता से म का जाप करने लगा।
अचानक, एक तेज़ चीख़़ रात के अँधेरे म गँज ू गयी। “रावण!”
यह कैकेसी थ ।
रावण उछलकर खड़ा हआ और कुिटया क ओर भागा।
“रावण!”
उसे िकसी िशशु के रोने क आवाज़ सुनाई दे रही थी।
“रावण!”
इस बार उसक माँ क पुकार म ती ता थी।
रावण ने झटके से ार खोल िदया और कुटी म घुस गया।
अ दर अँधेरा था। बस कुछ िदये धरती पर छायाएँ बना रहे थे। उसक माँ अभी भी पलंग
पर थ । ीण। उठने के िलए संघष करती। उनके गाल पर आँसू बह रहे थे।
दाई िशशु को पकड़े हए थी। बि क उसने उसे एक टाँग से लटका रखा था। वो बालक
था। रावण ने देखा िक नवजात के िलए िशशु बहत बड़ा था। जब वो अपने सामने मौजदू य
को समझ ही रहा था िक तभी वो यह जानकर सकते म आ गया िक दाई िशशु के िसर को
भिू म पर मारने वाली है।
“ क जाओ!” एक झटके म अपनी छोटी-सी तलवार को िनकालकर िच लाते हए वो
आगे लपका।
अपने पेट पर तलवार क नोक को महसस ू करते ही दाई जड़ हो गयी थी।
“मेरा भाई मेरे हवाले करो, तुर त!” रावण ने कहा, उसका वर खा था।
“तुम नह जानते तुम या कर रहे हो! म तु हारी माँ को बचा रही हँ! म तु ह बचा रही
हँ!” दाई िच लायी।
तब जाकर रावण ने िशशु के कान पर िनकले उभार को देखा। िविच -सी गाँठ से
उसके कान घड़े जैसे लग रहे थे। उसके क ध पर भी उभार थे, जैसे दो छोटी-सी अित र
बाँह ह । नवजात असामा य प से बाल भरा था। और वो दहाड़ मार रहा था।
रावण ने उसक वचा पर, उसे भेदते हए तलवार चुभोई। “मने कहा, इसे मुझे दे दो।”
“तुम नह समझते हो। इसे मरना ही होगा। यह अिभश है। यह िवकृत है। यह नागा है।”
“अगर यह मरा तो तुम भी मरोगी।”
दाई िझझक , तलवार के दबाव को झेलते हए जो उसका पेट फाड़ देने पर आमादा थी।
वो सोच रही थी िक अगर कोई िचिक सक तुर त उसका उपचार कर देगा तो या वो तलवार
के घाव से बच जायेगी।
“तुम इससे बच नह पाओगी,” रावण ग़ुराया, जैसे उसने उसका मन पढ़ िलया हो।
“मेरी तलवार इतनी ल बी है िक तु हारा पेट फाड़कर तु हारी मे दंड को काट देगी। मने
पशुओ ं पर बहत अ यास िकया है। मानव शरीर पर भी। कोई उपचारक तु ह नह बचा पायेगा।
मेरा भाई मुझे दे दो तो म तु ह जाने दँूगा।”
दाई धमसंकट म थी। उसे आदेश िदया गया था, और उसे उ ह परू ा करना था। मगर
इसके प रणाम व प वो मरना भी नह चाहती थी। रावण के योग के बारे म वो जानती थी।
वो जानती थी िक चाक़ू-तलवार म वो मािहर है। सब जानते थे।
रावण ने और दबाव बनाया। “इसे मुझे स प दो।”
दाई ने अमंगल क आशंका के साथ उसके चेहरे के भयानक भाव को देखा। वो इसे
पहले भी देख चुक थी, इस र पात को। यो ाओं के चेहर पर। उन लोग के चेहर पर जो
जान लेते थे। कभी-कभी केवल इसिलए िक उ ह इसम आन द आता था।
और िफर उसने यान िदया।
रावण का कमरब द खुल गया था। उसक नािभ और उसका बदसरू त उपांग िदखाई दे
रहा था। सुबत
ू िक वो भी नागा था।
ति भत औरत अपने थान पर जड़ होकर रह गयी थी।
उसे बाहर लोग के जमा होने क आवाज़ सुनाई दे रही थ । वो उसका साथ दगे। वो
जानते थे िक उ ह या करना है।
उसके मरने का कोई कारण नह था। उसने िशशु को रावण क बाँह म डाला और
बाहर भाग खड़ी हई।

रावण को बाहर से ोध भरी आवाज़े सुनाई दे रही थ । बहस क । लोग िच ला-िच लाकर
िनयम क बात कर रहे थे। नीित क । नैितकता क ।
कुटी का ार ब द था। मगर उस पर ताला नह था। िकसी भी पल कोई भी अ दर आ
सकता था।
उसने अपनी सांस को िनयि त करने क कोिशश क , उसका शरीर तनाव त था।
उसने कसकर अपनी तलवार पकड़ ली। जो भी अ दर आता, वो उसे मारने के िलए तैयार था।
उसने मुड़कर अपने न हे से भाई को देखा। वो अपनी माँ क बाँह म सुरि त था। स तोष से
तनपान कर रहा था। उस ख़तरे से बेख़बर िजसम वो लोग थे।
मगर उसक माँ का चेहरा आतंक क त वीर था।
“हम अब या करगे, रावण?” कैकेसी ने पछ ू ा।
रावण ने उ र नह िदया। उसक सतक आँख ार पर लगी थ , ऐसे िकसी भी यि
पर हमला करने को तैयार जो उसके ि यजन को हािन पहँचाने क िह मत करता।
अचानक, भड़ाक से ार खुला और मरीच तेज़ी से अ दर आया। उसक तलवार िखंची
हई थी। उसके फल से र टपक रहा था।
कैकेसी भय से िचंहक गयी और उसने अपने िशशु को छाती म भ च िलया। वो अपने बड़े
भाई से याचना करने लगी, “दादा, कृपा करो! हम मत मारो!”
िशशु अपनी माँ क छाती से अलग हो गया और िफर से रोने लगा था।
रावण मरीच के सामने आ खड़ा हआ। अपनी तलवार लहराता। उसक आवाज़
आ यजनक प से शा त थी। “आपको पहले मुझसे लड़ना होगा।”
मरीच ने अधीर िनगाह से उसे देखा। “चुप भी करो, रावण!” िफर अपनी बहन क ओर
मुड़ा। “तु ह हआ या है, कैकेसी? म तु हारा भाई हँ! म तु ह य मा ँ गा?”
कैकेसी ने उसे देखा, उलझन से।
और समय बबाद िकये िबना मरीच ने दीवार पर लगी खँटू ी से कपड़े का एक झोला
ख चा। और उसे रावण क ओर उछाल िदया। “दो िनिमष। अपने भाई और माँ के िलए िजस
व तु क आव यकता हो, उसे रख लो।”
लड़का िन ल खड़ा रहा। हत भ ।
“तुर त!” मरीच िच लाया।
रावण झटके से वा तिवकता म वापस आया। उसने अपनी तलवार वापस यान म रखी
और झोला उठा िलया, और झटपट अपने मामा का आदेश मानने दौड़ गया।
मरीच कैकेसी क ओर मुड़ा। “उठो! हम जाना होगा!”
कुछ ही पल के अ दर वो कुटी के बाहर थे। रावण ने अपने क धे पर झोला टाँग रखा
था। उसका न हा भाई अपनी माँ क गोदी म सुरि त था, उ ह ने दािहने हाथ क हथेली से
नवजात के िसर को सहारा दे रखा था।
आ म के आवासी कुटी के बाहर जमा हो गये थे। ु चेहरे , हाथ म मशाल।
धरती पर तीन लाश पड़ी थ । मरीच क तलवार से त-िव त।
वयं मरीच अपनी बहन और उसके ब च के सामने खड़ा था, भीड़ पर अपनी तलवार
लहराता। आ म के अिधकांश आवासी बुि जीवी और कलाकार थे। सामािजक बिह कार म
मािहर। मौिखक िहंसा म मािहर। भीड़ क िहंसा म भी मािहर। मगर िकसी िशि त यो ा से
िभड़ने म असमथ।
“पीछे हटो,” मरीच ग़ुराया।
धीरे -धीरे , तलवार ऊपर उठाए वो अ तबल क ओर बढ़ा। उसक आँख भीड़ पर ही लगी
थ । उसने शी ता से एक घोड़े पर सवार होने म अपनी बहन क सहायता क । शी ही रावण
दूसरे घोड़े पर सवार हो गया था। पलक झपकते ही मरीच ने अ तबल का ार चौपट खोल
िदया और उछलकर अपने घोड़े पर सवार हो गया।
और वो सरपट आ म से बाहर िनकल गये।

यह समहू घंट घोड़े दौड़ाता रहा। पवू िदशा म। सरू ज िनकल चुका था, और ऊपर ही ऊपर
चढ़ता जा रहा था।
“दया करो, दादा,” कैकेसी ने िवनती क । “हम कना होगा। म इस तरह अब नह
चल सकती।”
“नह ” ग भीर िदख रहे मरीच का सीधा-सा उ र था।
“मेहरबानी करो!”
मरीच झुका और उसने कैकेसी के घोड़े को चाबुक लगा िदया, और वो िफर से सरपट
दौड़ने लगा।

जब वो िव ाम करने के िलए के तब तक लगभग दोपहर हो गयी थी।


मरीच को िव ास नह था िक आ मवािसय क टोही और लडाका यो यताएँ कुछ
िवशेष ह गी। मगर दुखी होने से सुरि त रहना अ छा होगा, जब भी कैकेसी ने उससे धीमे
चलने को कहा तो उसने यही कहा था।
वो गंगा के मैदान म थे जहाँ मोटी कछारी िम ी और िनचला, च ानी े िकसी के
िलए भी उ ह खोज िनकालना आसान बना सकता था। वो अ सर िदशा बदलते रहे थे।
निदय के बीच से िनकलते थे। पानी भरे खेत से गुज़रते। खोजे जाने से बचने के िलए यह
सब करना आव यक था।
तीन घोड़ को सुरि त बाँध िदया गया था और कैकेसी एक पेड़ से िटककर िशशु को
दूध िपलाती आराम कर रही थ । रावण को िनगरानी पर छोड़कर मरीच भोजन क तलाश म
िनकल गया था।
ज दी ही वो दो ख़रगोश को िलए वापस आ गया। क धे पर लटके झोले म कुछ
क दमल ू और बे रयाँ थ ।
उ ह ने ख़रगोश को पकाया और झटपट भोजन कर िलया।
“बीस िनिमष का िव ाम,” मरीच ने कहा। “उसके बाद हम िफर चल दगे।”
“दादा,” थक -हारी कैकेसी ने कहा। “मुझे लगता है अब हम उ ह बहत पीछे छोड़ आये
ह। य न कुछ देर यह क जाएँ ?”
“नह । क नौज जाना अिधक सुरि त होगा। वहाँ हमारा प रवार है। वो हमारी र ा
करगे।”
कैकेसी ने हामी भरी।
मरीच ने रावण को देखा, उसने देखा िक रावण ने भोजन को छुआ तक नह है। “खा
लो, बेटे।”
“मुझे भख
ू नह है।”
“मुझे परवाह नह िक तु ह भख ू है या नह । तुम अपनी माँ और भाई क र ा करना
चाहते हो? तो तु ह शि शाली होना होगा। और इसके िलए तु ह खाना होगा।”
रावण िवरोध करने लगा।
“खा लो, रावण,” कैकेसी ने कहा।
रावण ने अपनी माँ को देखा, िफर अपने भोजन क ओर मुड़ा और खाने लगा।
“मुझे समझ नह आ रहा िक आ मवासी ऐसा कैसे कर सकते ह,” कैकेसी ने कहा।
“म उनके गु क प नी हँ। हम उनके गु का प रवार ह। उनका इतना साहस कैसे हआ!”
ू िदखने क कोिशश कर रही हो, कैकेसी? या
मरीच ने अपनी बहन को घरू ा। “तुम मख
बस मान नह रही हो?”
“ या मतलब है आपका?”
“तु ह सच म लगता है िक यह िनणय उ ह ने अपने आप से िलया होगा?”
“आप कहना या चाह रहे ह, दादा?”
“यह िदन के काश क तरह प है। वो िनदश का पालन कर रहे थे!”
कैकेसी ने अिव ास से िसर िहलाया। “नह , ऐसा नह हो सकता। वो मेरी गभाव था
के बारे म जानने से पहले ही चले गये थे।”
“वही थे। उ ह स देह था िक ऐसा हो सकता है, इसिलए वो िनदश दे गये थे। वो लोग
बस आदेश का पालन कर रहे थे।”
“म िव ास नह कर सकती।”
“सच पर िव ास न करने से यह कुछ कम सच नह हो जाता। हम क नौज म इसके
बारे म पता लगा था। तु ह या लगता है म आ म म तु हारे साथ रहने य आया था?”
कैकेसी अपना िसर िहलाती रह । “नह , नह । यह सच नह हो सकता।”
रावण बोल उठा। “मेरे िपता ने उ ह हम मारने का आदेश िदया था?”
मरीच ने रावण को और िफर वापस कैकेसी को देखा। अपनी बहन से बातचीत म वो
बालक क उपि थित को तो भल ू ही गया था।
“मने कुछ पछ ू ा है,” रावण ने कहा।
“कैकेसी?” मरीच ने लाचारी से कहा।
“मामा, या मेरे िपता ने हम मारने का आदेश िदया था?” रावण ने पछ
ू ा।
“कैकेसी...” मरीच ने दोहराया।
उसक बहन मौन रही। वो अपना िसर िहलाती रही। उसके गाल पर आँसू बह रहे थे।
“मामा...”
मरीच रावण क ओर मुड़ा। “तु ह अब अपने प रवार का यान रखना होगा। तो तु ह
भी सच जान लेना चािहए था।”
रावण चुप रहा। उसक मु याँ िभंच गयी थ । वो उ र पहले से ही जानता था। बस उसे
सुनना चाहता था।
“जो थोड़ा-बहत म जानता हँ, उसके अनुसार उ ह ने तु हारी या तु हारी माँ क म ृ यु
का आदेश नह िदया था,” मरीच ने कहा। “मगर उ ह ने यह आदेश िदया था िक अगर
तु हारा भाई नागा िनकले तो उसे मार िदया जाये।”
रावण ने गहरी सांस ली। ोध और दुख ने उसके मन को घेर िलया था। उसने माँ क
गोद म शाि त से सोते अपने भाई को देखा। न द म उसके क ध के ऊपर िनकले दोन छोटे-
छोटे अित र अंग ह के-ह के िहल रहे थे। उसका शेष शरीर िन ल था।
रावण झुका और उसने अपने िशशु भाई को उठा िलया। उसने उसे अपनी बाँह म ले
िलया, उसक आँख से नेह टपक रहा था। “तु ह कुछ नह होगा। तु ह कोई हािन नह
पहँचा पायेगा। मेरे जीिवत रहते नह ।”
उसके िसर के ऊपर, मरीच और कैकेसी ने एक-दूसरे को देखा, अच भे से, मगर साथ
ही अिभभतू होते हए। मरीच ने सहानुभिू त से बालक के क धे को छुआ, मगर रावण ने
िदलासा भरे उस हाथ को झटक िदया और िशशु से बात करता रहा।
अ याय 4

दो िदन बीत गये थे जब मरीच ने कैकेसी और उनके बेट क िव वा के आ म से भागने म


मदद क थी। रात िबताने के िलए उ ह ने जंगल म एक खुले थान पर िशिवर लगाया था,
घोड़ को िशिवर के चार ओर घेरे म बाँध िदया गया था।
चाँद के बढ़ने का तीसरा िदन था। घने जंगल के आवरण और रात के कोहरे के कारण
यता कुछ हाथ भर क रह गयी थी। इसिलए मरीच छोटी-सी आग जलाने म लगा था। केवल
ताप के िलए ही नह , बि क सुर ा के िलए भी।
वो लकड़ी के एक सपाट टुकड़े के ऊपर बैठा था िजसम एक कटाव लगा िदया गया था।
अि नपटल। अपने हाथ म उसने एक ल बी पतली-सी लकड़ी पकड़ी हई थी। जो दोन
हथेिलय को रगड़ने से घम ू ती थी। बड़े धैय से उसने लकड़ी क तकली को कटाव म लगाया।
और सुलगते कोयले जैसी चमकती काली धल ू के जमा होने क ती ा करने लगा। यह
आिदकालीन और बहत समय लेने वाला तरीक़ा था, मगर जंगल म उनके पास यही एक
िवक प था।
इ तज़ार करते हए मरीच क िनगाह अपनी बहन और उसके िशशु पु क काली
परे खा पर पड़ी। कुछ ही िदन के उस िशशु का अब एक नाम था : कु भकण, घड़े जैसे
कान वाला। रावण ने ही यह सुझाया था और कैकेसी और मरीच तुर त मान गये थे।
मरीच ने रावण को देखा, जो उसके पास ही बैठा था। नौ वष य बालक क कटार यान
से बाहर थी। मरीच ने रावण का चेहरा देखने क कोिशश क ।
या उसक आँख ब द थ ?
वो रावण को डाँटने और आदेश देने ही वाला था िक आग जलाने म उसक मदद करे
िक तभी लड़का िबजली क तरह कटार को नीचे लाया। एक तेज़ चीख़़ उभरी। मरीच उसे
घरू ता रह गया, ति भत-सा। िन य से कुछ कह पाने के िलए बहत अँधेरा था मगर ऐसा लग
रहा था िक उसके भानजे ने अभी-अभी अपनी कटार से एक ख़रगोश को मारा है।
बहत कम ही लोग ि के मागदशन के िबना तीर छोड़ पाते ह। उससे भी कम लोग
केवल विन के आधार पर खंजर फक पाते ह। मगर ख़रगोश जैसे तेज़ पशु को केवल विन
के आधार पर कटार से मारना अनसुना था।
मरीच ने िव मय से रावण को देखा, उसका मँुह ह का-सा खुला था। िफर उसने अपना
यान वापस लगाया जहाँ अि नपटल पर सुलगती धल ू जमा होने लगी थी। ज दी से उसने
उस धल ू को सख ू ी घास के उस छोटे से ढे र पर पलट िदया िजसे उसने जमा िकया था। िफर
धीरे -धीरे फँ ू क मारी जब तक िक घास ने आग नह पकड़ ली। एक-एक करके उसने आग को
उन लकिड़य पर रखा िज ह उसने जलती घास के पास लगाया हआ था। ज दी ही छोटे से
मैदान के बीच म ध-ू धू करती आग जल उठी।
आग जलाने का काम िनबटाकर मरीच रावण क ओर मुड़ा। लड़के ने ख़रगोश क
िपछली टाँग साफ़ करना शु कर िदया था। च ककर मरीच ने देखा िक वो पशु अभी जीिवत
ही है। और य मगर ीण आवाज़ िनकाल रहा है जैसे कोई त याचना कर रहा हो। आग
के काश म मरीच रावण के भाव भी देख सकता था।
उसक रीढ़ म िसहरन दौड़ गयी।
वो उठा, और एक झटके म उसने अपना खंजर िनकाला, रावण से ख़रगोश को िलया
और उसके िदल म भ क िदया। कुछ पल खंजर वह रखा, जब तक िक ख़रगोश ने िहलना
ब द नह िकया। िफर उसे रावण को लौटा िदया। “इस पशु ने तु हारा कुछ नह िबगाड़ा है।”
रावण ने मरीच को घरू ा, उसका चेहरा भावहीन था। एक ल बे, िन ल पल के बाद वो
वापस ख़रगोश क ओर मुड़ा और िफर से उसक खाल उतारने लगा। मरीच वहाँ गया जहाँ
उसका झोला पड़ा था और थोड़ा-सा सख ू ा मांस िनकाल लाया। एक पतली, नुक ली छड़ को
स ख़ क तरह इ तेमाल करते हए वो उसे लपट पर गम करने लगा।
“मामा।”
मरीच ने ऊपर देखा।
“मने आपको ध यवाद नह िदया,” रावण ने कहा।
“इसक कोई आव यकता नह है।”
“हाँ, िब कुल है। ध यवाद। म आपक उदारता को याद रखँग ू ा। म आपक िन ा को
याद रखँग ू ा।”
मरीच उस नौ वष य बालक को देखकर मु कुराया जो िकसी वय क क तरह बात
कर रहा था। और वापस मांस गम करने लगा।
काश यह रात ज दी से बीत जाये, और झटपट भोर हो। य िक अगले िदन वो अ तत:
क नौज म अपने घर पर ह गे।

क नौज क ाचीन नगरी ने अनेक भारतीय पर बहत अनुक पा क है।


जब से याद िकया जा सकता है तब से पिव गंगा नदी के िकनारे बसा यह नगर
िनमाण का, िवशेषकर उ कृ कपड़े के िनमाण का, एक बड़ा के रहा है। यह उतनी ही
उ कृ सुगि धय के उ पादन के िलए भी मशहर था। एक युग से यह शा ाथ, शोध और
ान का के भी रहा था, और का यकु ज ा ण का गढ़ भी था जो िव यात मगर द र
बुि जीिवय का समुदाय था। का यकु ज के बीच यह िठठोली चलती थी िक ान क देवी
सर वती तो उन पर बहत कृपालु रही थ मगर धन-समिृ क देवी ने िसरे से उनक उपे ा
कर दी थी।
ानपीठ के प म नगर उस समय के अनेक बेहतरीन िवचारक और दाशिनक का
गहृ नगर था, िजनम यात ऋिष िव ािम शािमल थे जो क नौज के राजप रवार म ज मे
थे। मगर जब बात इसके ार पर शरण माँगते आये भगोड़ के थके-माँदे समहू क आयी, तो
यह उतना िवचारशील नह िनकला।
मालमू पड़ा िक कैकेसी और मरीच के माता-िपता ने जैसे ही यह सुना िक उनक पु ी
ने एक नागा िशशु को ज म िदया है, उ ह ने िनणय िलया था िक उसका बिह कार करना ही
अ छा होगा। अब तक रावण क पहचान का गोपनीय रहा रह य भी उजागर हो चुका था। और
वा तव म, सबको पता था िक यह कैकेसी का ही दोष है। अ ततः ेय ऋिष िव वा तो ऐसे
दु कम के दोषी नह हो सकते िजनके कारण उनक नागा स तान उ प न ह ।
कैकेसी क दुदशा से सहानुभिू त रखने वाले लोग का भी ऐसा कोई म त य या इ छा
नह थी िक अपने समुदाय या अपने वयोव ृ के िव खड़े ह ।
क नौज पहँचने के एक िदन के अ दर ही एक बार िफर उन चार ने वयं को शहर के
बाहर, पिव गंगा के िकनारे हैरान होते पाया िक अब वो कहाँ जा सकते ह।
“अब हम या करगे?” कैकेसी ने पछ ू ा।
मरीच नदी क ओर देखने लगा, वो ोध म उबल रहा था। उसे िव ास नह हो रहा था
िक उसके प रवार ने उनक ओर से पीठ फेर ली। उन लोग तक ने अपना सुर बदल िलया था
िज ह ने शु म अपनी बहन क सुर ा के िलए िव वा के आ म म जाने के उसके िनणय
का समथन िकया था। उनम उससे यह कहने का दु साहस था, “हम आशा नह थी िक
कैकेसी वा तव म िकसी नागा को ज म दगी! हम इस तरह क अपे ा कैसे कर सकते थे?”
“दादा,” कैकेसी ने िफर कहा, “हमारा या होगा?”
“मुझे नह पता, कैकेसी!” मरीच ने कहा। “मुझे नह पता!”
रावण एक िचकने प थर से अपने खंजर क धार तेज़ कर रहा था। उसने ऊपर देखा
और कहा। “मुझे पता है। हम और पवू क ओर चलते ह। वै नाथ चलते ह।”
“वै नाथ?” मरीच ने हैरानी से पछ
ू ा। “वै नाथ म या है?”
क याकुमारी, रावण ने सोचा। मगर िकसी कारणवश वो यह कहना नह चाहता था। वो
िफर से अपना ख़ंजर तेज़ करने लगा। “मुझे यह पता है िक वहाँ कौन नह है : मेरे िपता।”
मरीच चुप रहा।
“हम पवू म, उगते सय ू क ओर या ा करते ह। शायद ान का कुछ काश हम पर भी
पड़ जाये।”
“यह पंि तुमने वयं गढ़ी है?” मरीच ने भािवत होते हए पछ ू ा।
रावण ने उपहास उड़ाते हए उसे देखा। “नह , मने कह पढ़ी थी। आपको भी पढ़ना
चािहए, मामा। अ छी आदत है।”
मरीच ने आँख तरे र और दूसरी ओर देखने लगा। िचढ़ाऊ ब चा है।

उ ह िव यात वै नाथ मि दर से कुछ दूरी पर ि थत एक छोटे से गाँव क एक धमशाला म


आवास िमल गया। वै नाथ अपने िचिक सक के िलए मशहर था, और कैकेसी िबना समय
गँवाए कु भकण को एक के पास ले गय यह जानने िक या उसके क ध और कान के
उपांग को हटाया जा सकता है। मगर िचिक सक ने इसक राय नह दी। उपांग म बहत
अिधक ति काएँ और र वािहिनयाँ थ , और श य िचिक सा से उ ह हटाने म बालक क
जान भी जा सकती थी, उसने कहा। वैसे भी, कु भकण एक स न बालक िदख रहा था,
िजसके उपांग, असामा य प से, उसे पीड़ा नह दे रहे थे। अ छा यही था िक वो उनके साथ
जीना सीखे।
कैकेसी को बहत िनराशा हई। रावण को भी। मगर उसक िनराशा का कारण िभ न था।
ऐसा नह िजसके बारे म वो िकसी को बता पाता।
अगली सुबह, भोर होते ही, वो मु य वै नाथ मि दर क ओर चल पड़े । ज दी ही
महादेव भगवान क सुबह क आरती का समय हो जाता।
वा तव म वै नाथ मि दर घने वन के बीच म बनाए गये अनेक मि दर का िवशाल
प रसर था। वहाँ पवू िव णुओ ं के, भारत क र ा करने वाली अनेक देिवय के, इ देव,
व ण देव, अि न देव एवं अ य देवी-देवताओं के मि दर थे। िन स देह, सबसे िवशाल मि दर
भगवान का था। महादेव का। देवािधदेव का।
मि दर प रसर बाढ़- वण मयरू ा ी नदी से दलदल और बाढ़ भािवत मैदान से अलग
होता था जो मानसन ू के मौसम म चंड नदी के अित र पानी को सोख लेते थे, इस तरह
मि दर सुरि त रहते थे। आ भिू म म अनेक िक़ म क औषधीय जड़ी-बिू टयाँ और क द
उ प न होते थे िजससे यह छोटी-सी मि दर नगरी अिधकांश बीमा रय के उपचार के िलए
औषिधय का कोष बन गयी थी। वा तव म, इसका नाम भी इसी से पड़ा था : वै नाथ, वै
का वामी।
वै नाथ का मु य मि दर एक िवशाल कमल के आकार म िनिमत था। इसका एक
अजिटल मगर िवशाल के था, िजसम एक िवशाल क , गभगहृ , और प थर और गारे का
एक िशखर था, जो आगम वा तुकला के थ के मापदंड पर आधा रत थे। पचास मीटर का
िवशाल मु य िशखर प ह मीटर के आधार से िनकला था। आधार के ऊपर लकड़ी के एक
सौ आठ 'प े' लगाए गये थे—जो िक वा तुकला का अ ुत दशन थे। हरे क प ा एक
वय क आदमी से चार गुणा बड़ा था। दुिनया क सबसे स त लकिड़य म मानी जाने वाली
साल व ृ क मज़बत ू लकड़ी से बने इन प को िकसी रासायिनक ि या से और मज़बत ू
बनाया गया था और उ ह गुलाबी रं गा गया था। उ ह एक के ऊपर एक चार तर पर रखा
गया था िजससे एक िवशाल कमल का फूल बन सके जो मि दर के के को घेरे हए था।
मु य िशखर को पीला रं गा गया था और वो एक िवशाल गभ-केसर क तरह इस पु प के
बीच से िनकल रहा था। आधार को कमल के तने का प देने के िलए हरा रं गा गया था।
ल बा आधार खोखला था और मि दर के सुरंग के आकार के ार के प म काम करता था।
यह लगभग वि नल-सा था। और अ य त तीका मक।
कमल वो फूल है जो क चड़ और ग दे पानी म िखलने के बाद भी अपनी सुग ध और
सौ दय क़ायम रखता है। यह मि दर म आने वाले मनु य के सामने एक मक ू चुनौती रखता
था, िक वो अपने धम के ित िन ावान रह भले ही उनके आसपास के लोग न ह । पि य
क सं या—एक सौ आठ—भी मह वपण ू थी। धािमक तौर-तरीक़ के अनुयायी भारत के
लोग इस सं या के साथ बहत भारी मह व जोड़ते ह। उनका मानना है िक यह एक िद य
अंक है िजसे ा ड क संरचना म बार-बार दोहराया जाता है। सय ू का यास प ृ वी के यास
से एक सौ आठ गुणा यादा है। सय ू से प ृ वी क औसत दूरी सयू के यास से एक सौ आठ
गुणा अिधक है। प ृ वी से चाँद क दूरी चाँद के यास से एक सौ आठ गुणा अिधक है। इस
सं या के ऐसे और अनेक उदाहरण चम का रक ढं ग से ा ड म िमलते रहते ह। समय के
साथ इसे अनेक अनु ान म शािमल कर िलया गया। उदाहरण के िलए, यह सलाह दी जाती
है िक िकसी भी म का जाप एक सौ आठ बार करना चािहए।
मि दर के सुदूर छोर पर, गभगहृ म भगवान क परू े आकार क ितमा थी।
भगवान प ासन म बैठे थे, िकसी योगी क तरह, उनक आँख यान म ब द थ । उनके ठीक
पीछे तीन मीटर का एक िवशाल िलंगम-योिन—एके र का ाचीन प—थी। िलंगम आधे
अंडे के आकार का था, और कुछ ाचीन लोग का मानना था िक यह ा ड, या कॉि मक
एग, का तीक था जो सिृ को एक कृत होने देता है। अ य का मानना था िक यह पौ ष
ऊजा और शि का तीक है। िलंग के आधार पर योिन थी, िजसे अ सर 'गभ' कहा जाता है,
मगर शाि दक तौर पर इसका अथ 'मल ू ' या ' ोत' है, यह ी ऊजा और शि का तीक है।
िलंगम और योिन का मेल सिृ का ितिनिध व करता है, पु ष और ी के बीच साझेदारी
का प रणाम, िनि य काल और सि य समय के बीच स ब ध िजससे सारा जीवन, वा तव
म सारी सिृ , उ प न होती है।
गभगहृ के बाहर, कमलाकार मि दर के के म भ के एक होने के िलए मु य
क है।
जब तक रावण और उसका प रवार मि दर म पहँचे, तब तक उनके पास इसके सौ दय
या तीका मकता को सराहने के िलए बहत कम समय बचा था। मु य क म आरती शु
हो चुक थी। और यह भ य थी।
सारे क म रखे बड़े -बड़े आधार पर िवशाल नगाड़े रखे गये थे। उनके पास ल बे-
चौड़े , बिल आदमी अपनी भुजाओं के-से आकार क डि डयाँ िलए खड़े थे, और लगातार
उनसे नगाड़े बजा रहे थे।
धम
ू -धम
ू -दना-धमू -धम
ू -दना।
ताल और लय रावण के शरीर म फै ल गयी थी। विन क तरं ग को वो अपनी हड्िडय
म महसस ू कर रहा था। और भगवान के भ के इस जमावड़े म मौजदू अ य सभी लोग
क तरह वो भी इस ताल पर न ृ य करने के िलए िववश-सा हो गया था। यहाँ तक िक न हा
कु भकण भी उ साह से अपनी बाँह को िहला रहा था।
धम ू -धम ू -दना-धम ू -धम ू -दना।
धम ू -धम ू -दना-धम ू -धम ू -दना।
जैसे-जैसे संगीत गित पकड़ने लगा, क म भरे ी-पु ष भ िविभ न थान पर
लगे लगभग दो सौ घंट क ओर उमड़ने लगे। अब वो उ ह बजा रहे थे। परू े तालमेल म।
िफर धीमे वर म एक-दूसरे से सुर िमलाते हए भ ने दो अ र के एक सादे से श द
का जाप शु कर िदया। अथाह शि का श द।
“महा... देव!”
“महा... देव!”
“महा... देव!”
जाप के गित पकड़ने के साथ ही आवाज़ ती और ती तर होती गय । महादेव के ित
आन दपण ू भि म। देवािधदेव। वयं भगवान ।
नगाड़े जाप के साथ गित िमला रहे थे।
धम ू -धम ू -दना-धम ू -धम ू -दना।
धम ू -धम ू -दना-धम ू -धम ू -दना।
रावण ने चार ओर देखा। जीवन म पहली बार, उसने अपने से बड़ी िकसी चीज़ का
भाग बनने के िवशु आन द का अनुभव िकया था। वो भगवान का भ था। वो सभी थे।
और यहाँ कोई भेदभाव नह था। िब कुल नह । सम ृ लोग तीत प से द र िदख रहे
देशवािसय के साथ न ृ य कर रहे थे। िश य अपने गु ओं के साथ झम ू रहे थे। िवकृितय वाले
लोग सुडौल शरीर वाले सैिनक के साथ जाप कर रहे थे। िवशु तावादी पुरोिहत भोगवादी
अघोर के साथ न ृ य कर रहे थे। ि याँ पु ष और िक नर के साथ न ृ य कर रही थ । ब चे
अपने माता-िपता के साथ। हर उ और जाित के लोग थे। भारतीय और अ-भारतीय भी।
कोई भेदभाव नह ।
वत ता।
आंकलन से वत ता। अपे ाओं से वत ता। उिचत-अनुिचत से वत ता। देव
और दानव से वत ता। व होने क वत ता। और भगवान के साथ एकाकार होने
का आन द।
धम ू -धम ू -दना-धम ू -धम ू -दना।
“म... हा... देव!”
धम ू -धम ू -दना-धम ू -धम ू -दना।
“म... हा... देव!”
आरती का अ त हआ बहत ही ऊँचे वर म लगे हंकारे से जो परू े वै नाथ म गँज ू उठा
था।
“जय ी !”
मानो इसी संकेत पर, नगाड़े और घंटे शा त हो गये। केवल गँजू शेष रही थी, गहन
और आन दपण ू भि के िन त ध मौन म मंडराती गँज ू ।
आरती पाँच िनिमष से अिधक नह चली थी। मगर वहाँ उपि थत सभी लोग को इसने
जीवन भर का आन द दान कर िदया था। रावण ने अपने आसपास देखा। हर चेहरे पर
उ लास था। उसने अपने मामा मरीच और माँ कैकेसी को देखा। उनके गाल पर आन द के
आँसू बह रहे थे। रावण ने अपने गाल छुए और उ ह नम पाकर हैरान रह गया।
उसने धीरे से ख़ुद से कहा, “जय ी !”
अचानक भीड़ से तेज़ आवाज़ उठ ।
“क याकुमारी!”
“क याकुमारी!”
आरती के अ त म, रीित थी िक िलंगम-योिन क पहली पार प रक पज ू ा ािभषेक
क याकुमारी करगी। कँु आरी देवी अपना कत य परू ा करने आगे आयी थ ।
सब ऊपर देखने लगे। गदन उचकाकर। अपने सामने वाल से परे देखने के िलए अपने
पंज के बल उचक-उचककर। सब अपनी जीिवत देवी क एक झलक पाने के िलए उ सुक थे।
मगर रावण नह । उसने अपनी िनगाह धरती पर िटकाए रखी थ । उसक मु याँ कसी
हई थ ।
“यह या नयी क याकुमारी ह?” कैकेसी ने पछ ू ा।
मरीच ने अपनी बहन को देखा और वापस क याकुमारी क ओर मुड़ गया, उसके हाथ
भि भाव से जुड़े हए थे। “हाँ। मुझे बताया गया है िक िपछली क याकुमारी कुछ माह पहले
रज वला हो गयी थ । वो हट गयी ह और एक नयी क याकुमारी को मा यता दान क गयी
है।”
कु भकण को वापस सुलाते हए कैकेसी ह के से लहराई ं। “म अ सर सोचती हँ िक
बाद म उनका या होता है। वो कहाँ जाती ह? या करती ह?”
मरीच ने क धे उचकाए। “पता नह । जब वो क याकुमारी नह रहती ह तो शायद अपने
गाँव वापस चली जाती ह गी। मगर कोई उ ह कैसे ढूँढ़ सकता है? उनका असली नाम भी
बहत कम लोग को पता होता है।”
रावण ने अपना िसर उठाया और नयी क याकुमारी को देखा। उसक आँख म नफ़रत
चमक रही थी।
एक णांश के िलए, एक उ मादी पल के िलए उसने सोचा िक आगे लपककर उनक
जान ले ले। इससे हमेशा के िलए उनसे छुटकारा िमल जायेगा। मगर िजतनी तेज़ी से यह
िवचार उसके मन म क धा था, उसी तेज़ी से उसने इसे मन से िनकाल िदया। यह अथहीन था।
वो बस िकसी दूसरी ब ची को क याकुमारी बना दगे। उसक क याकुमारी तो वापस नह
आत । उसे पता भी नह था िक वो कहाँ ह। उसे तो उनका असली नाम भी नह पता था।
उसे लगभग कुछ भी नह पता था। याद थे तो बस उनके श द। उनक आवाज़। और
उनका चेहरा।
उनका िद य चेहरा उसके मन म अंिकत हो गया था। वो चेहरा जो उसक सारी पीड़ा हर
लेता था।
वो िवचार िजससे वो बचता आ रहा था अ तत: उसक चेतना म क ध गया। वो उ ह
िफर कभी नह देख पायेगा। वो उसके जीवन से चली गयी थ । हमेशा के िलए।
उसे अपनी सांस संकुिचत होती-सी लगी। मानो उसका दम घुट रहा हो।
उसने अपनी माँ का हाथ पकड़ा। “हम जाना होगा।”
“ या? य ? क याकुमारी—”
“आप कल उनका आशीवाद ले लेना। चिलए।”
रावण मुड़ा और चल िदया।
अ याय 5

“चल?” हैरान मरीच ने पछ ू ा। “ य ?”


मरीच, कैकेसी, रावण और कु भकण धमशाला के अपने छोटे-से क म वापस आ गये
थे।
रावण का वर शा त था। “मुझे आशा थी िक यहाँ हम कु भकण के िलए उपचार िमल
पायेगा। मगर िचिक सक ने कहा है िक वो कुछ िवशेष नह कर सकते। तो अब यहाँ पड़े
रहने का कोई अथ नह है।”
“मगर हम यहाँ केवल कु भकण का उपचार तलाशने तो नह आये थे। यह सुरि त
थान है, कम से कम कुछ समय के िलए तो।”
“म बस सुरि त नह रहना चाहता। म कुछ हािसल करना चाहता हँ। यहाँ म कुछ नह
कर सकता।”
मरीच ने गहरी सांस भरी, वो अपनी उ से बड़े इस बालक से थोड़ा िचढ़ रहा
था।"रावण, तुम बस नौ वष के हो। तुम बालक हो। तुम इसे सहज भाव से लो और बड़ को—”
“म बालक नह हँ,” रावण ने मरीच क बात काटते हए ढ़ता से कहा। “म अपने
प रवार का सबसे बड़ा पु ष हँ। मेरे दािय व ह।”
मरीच ने बहत कोिशश करके अपनी मु कुराहट दबाई। “ठीक है, महा व र , मुझे
बताएँ , आपको वै नाथ से बेहतर कौन-सा थान लगता है? यहाँ िन वाथ दान-पु य क
पर परा है। तु हारी माँ और भाई मु त भोजन और आवास पा सकते ह जो इस धमशाला म
िमलता है। अगर हम कह और जाते ह तो तुम इनका पालन-पोषण कैसे करोगे?”
“मने पवू के बड़े ब दरगाह के बारे म पढ़ा है जो बाली और मलय जैसे देश से यापार
करते ह। हम वहाँ जा सकते ह। हम वहाँ काम कर सकते ह।”
“रावण, यह मत मानो िक तुम आसानी से पा—”
“म तय कर चुका हँ, मामा,” रावण ने कहा। “मने माँ से भी बात कर ली है। यह है
िक आप या करना चाहते ह?”
मरीच ने आ य से अपनी बहन को देखा। उसे पता नह था िक वो पहले ही रावण क
माँग के सामने हार मान चुक है। कैकेसी के चेहरे पर असहायता और समपण के भाव थे।
बहत वष बाद, मरीच इसे अनेक समपण के आर भ के प म याद करे गा। वो पल जब रावण
के साथ उसका स ब ध बदल गया था। वो पल जब रावण छोटे-से भानजे से उसका भावी
वामी और अिधनायक बन गया था।
“ठीक है,” उसने कहा। “पवू क ओर चलते ह।”

रावण और उसके प रवार को पवू म, िच का झील के तट पर बसे एक छोटे-से नगर म आये


हए चार साल हो गये थे।
दुिनया के िवशालतम अनपू म शािमल िच का एक िवशाल अनपू है, जो भारत के पवू
तट पर उ र-पवू से दि ण-पि म म 1000 वग िकलोमीटर से अिधक े म फै ली हई है।
चंड महानदी क कुछ बड़ी सहायक निदयाँ जैसे दया और लन ू ा इस झील म आकर िमलती
ह। इनके अित र पचास अ य छोटी निदयाँ भी िच का म िमलती ह। मानसन ू के दौरान,
भारी बा रश से झील म और पानी भर जाता है।
महानदी के दहाने के पास ि थत किलंग रा य म पहली बार आने वाले यि को यह
समझने के िलए मा िकया जा सकता है िक इसक अथाह समिृ का कारण उपजाऊ
धरती, मीठे पानी क बहतायत और िनयिमत एवं चुर वषा ह। वा तिवकता म, हालाँिक कृिष
िन य ही रा य क स पि का एक बड़ा ोत थी, मगर इसके छलकते कोष दूर-पास के
अ य े के साथ होने वाले े यापार का प रणाम थे।
और इस यापार के के म थी िच का झील।
इसके आकार- कार को देखते हए िच का झील के तट पर अनेक ब दरगाह बन गये
थे। झील के गहरे वाह का अथ था िक बड़े से बड़े समु ी पोत भी आराम से उसम आ सकते
थे। झील के अनेक ीप िजनम से अिधकांश इसके समु क ओर के ख़ के िनकट थे, छोटे
पोत के िलए छोटे ब दरगाह का काम करते थे, इस तरह पोत का भारी यातायात बँट जाता
था। सबसे मह वपण ू प से झील क पवू सीमाएँ जो इसे पवू समु से अलग करती थ ,
रे तीले समतल मैदान से यु थ । ये तफ़ ू ानी समु को िच का म घुसने से रोकने के िलए
बाँध का काम करते थे, िजससे झील पोत के िलए शा त आ य बन जाती थी। इन रे तीले
मैदान के दो मुख, उ री छोर पर चौड़ा और दि णी छोर पर संकरा, पोत को झील म आने
का रा ता दान करते थे। इसके अित र , िच का से महानदी के रा ते दि ण कौशल रा य
तक जाया जा सकता था, और िफर उ र म स िस धु क मु य भिू म तक क या ा भी क
जा सकती थी।
िच का सुरि त और िनरापद ब दरगाह दान करती थी, और सम ृ मु य देश म
जाने के िलए आसान वेश तैयार करती थी।
िकसी भी समय, झील म छोटे-बड़े कम से कम कुछ सौ पोत लंगर डाले खड़े होते थे।
और कुछ कम सं या म थान िमलने क ती ा म होते थे। पोत से लगातार माल उतारा-
चढ़ाया जाता था। यापा रय को ज़ोरदार ढं ग से मोलभाव करते सुना जा सकता था, जबिक
राज व अिधकारी रा य के ित देय कर को उगाहने क कोिशश म लगे होते थे। नािवक
को िनयिमत प से, अपने अवकाश के िदन, मिदरा और ि य क खोज म तट पर आते
देखा जा सकता था। सराय मािलक और ि याँ अिधकािधक नािवक को आकिषत करने क
परू ी कोिशश करते थे। इस बीच, वहाँ तैनात सैिनक अ यव था के बीच यव था बनाए रखने
म लगे रहते थे।
िच का को यापा रय के बीच लोकि य बनाने वाली बात यह थी िक भारत के अ य
भाग के िवपरीत यहाँ पर यापा रक गितिविधय पर अनाव यक ितब ध नह थे।
िपछले कुछ दशक म, स िस धु के अनेक िह स म साधारण लोग के साथ-साथ
राज प रवार भी यापक तर पर हो रहे ाचार के कारण वै य के विणक समुदाय के
िव हो गये थे। यापा रक गितिविधय पर कठोर ितब ध लगा िदये गये थे। यापा रय
को हर चरण पर अनु ाप लेने होते थे, और इ ह अ-विणक अिधका रय से लेना होता था।
और हआ यह िक ाचार का अ त होना तो दूर, र त का नया त व─वो भी भारी रािशय
म─इस ि या म और जुड़ गया। उस पर तुरा यह िक अपने अहंकार म अिधकारी यह भी नह
मानते थे िक वो यापा रय से र त वसल ू करके कुछ अनुिचत काम कर रहे ह। वो इसे
'चोर ' को दंड देने के तरीक़े के प म देखते थे।
िन स देह, कोई भी बुि मान यि समझ सकता है िक कुछ लोग के अनुिचत काम
के िलए एक परू े समुदाय को दोषी ठहरा देना ि थित को देखने का एक अ य त ही संक ण
ि कोण है। हरे क समाज को उ मी और यापा रय क उतनी ही आव यकता होती है
िजतनी िक बुि जीिवय , यो ाओं और िश पकार क । और सामािजक ढाँचे म िकसी एक वग
के साथ प पात करने वाला अस तुलन सम याएँ उ प न करता है। दुभा य से, स िस धु
के शासक वग म बुि मता का अभाव था और यापा रक समुदाय पर अ याचार होते रहे ।
अ तत: सारे स िस धु के यापारी लंका के धत ू यापारी-शासक कुबेर के नेत ृ व म
एक हो गये। कुबेर ने स िस धु के स ाट और इसके अधीन थ रा य के साथ एक सि ध
क िजसके ारा उसने उनक सारी यापा रक गितिविधय को अपने हाथ म ले िलया और
सा ा य को लाभ का एक बड़ा भाग देने लगा। मगर, इसने यापा रय का जीवन आसान
करने के िलए कुछ नह िकया। अपने लाभ को अिधकतम करने का कुबेर का तरीक़ा उनके
लाभांश को कम करना था। और हआ यह िक उसके साथ जुड़कर यापा रय क हालत
कड़ाही से िनकलकर अलाव म जा िगरने वाली हो गयी थी।
स िस धु का एकमा रा य िजसने अब तक कुबेर के साथ जुड़ने से इंकार कर िदया
था, किलंग था। इसीिलए, जब देश के अिधकांश िह स म यापार करना दु कर हो गया था
तब िच का म यह बढ़ गया था। ब दरगाह किलंग के राजा के िनय ण म था जो झील के
उ र म अ सी िकलोमीटर दूर ि थत अपनी राजधानी कटक से शासन करता था। 'कटक'
का शाि दक अथ सैिनक छावनी या राज-िशिवर था िजससे किलंग के यो ा अतीत क गँज ू
सुनाई देती थी। मगर अनेक सिदयाँ बीतने के साथ वहाँ के लोग अिहंसक और शाि ति य हो
गये थे िजनक िचयाँ यापा रक और सां कृितक एवं बौि क उ म म िनिहत थ । इस बात
ने भी किलंग के राजाओं को रा य के िनय ण के िववादा पद मसले पर अपनी नीित म
िकसी सीमा तक उदारवादी बना िदया था। प रणाम व प, अनेक वै य प रवार ने किलंग म
बसने और वहाँ अपना यापार जमाने का िनणय िकया।
मगर ि थितयाँ धीरे -धीरे बदल रही थ । शेष देश का वै य िवरोधी माहौल किलंग म भी
िसर उठाने लगा था। हर कोई अयो या के शि शाली राजा दशरथ का अनु ह पाना चाहता
था जो िक स िस धु के स ाट और अिधपित भी थे। और यह सबको पता था िक अयो या म
वै य िवरोधी माहौल है। इसके अलावा, किलंग से कुछ ही दूरी पर, महानदी के ऊपरी िह से म
ि थत दि ण कौशल के शि शाली रा य ने िववाह स ब ध के मा यम से अयो या के साथ
मज़बत ू स ब ध थािपत कर िलया था। राजकुमारी कौश या स ाट दशरथ क पहली प नी
बनी थ ।।
अपने शि शाली स बि धय के भाव म आकर दि ण कौशल ने भी यापार पर
कठोर ितब ध लगाने शु कर िदये। अपने पड़ोसी रा य म आये इस बदलाव को महसस ू
करके किलंग ने भी अपना पुनगठन करना शु कर िदया। व छ द यापा रय को
'अनुशािसत' करने के िलए मेसोपोटेिमया के नगर बेबीलोन के उ र-पि म म ि थत देश से
एक नाहरी शासक को िच का के ा तपाल के प म लाया गया। िकसी को उसका असली
नाम नह पता था, मगर उसने एक भारतीय नाम रख िलया था : कचबाह, यानी 'आरे
जैसी बाँह वाला।' शोचनीय ढं ग से, उसक शासिनक शैली भी उसके नाम क तरह ही
घणृ ा पद थी। मगर दूर अपनी राजधानी म बैठे किलंग के राजा ने िच का के कामकाज
चलाने का दािय व कचबाह पर छोड़ िदया था।
ज दी ही किलंग के यापारी भी उसी कर-आतंक और अनिगनत िविनयमन से त
होने लगे िजनसे स िस धु के अ य रा य म उनके साथी यापारी त थे। अगर वो िच का
म भी यापार नह कर सकते थे तो कहाँ कर सकते थे? हताश होकर कुछ ने तो यापार को
िसरे से ितलांजिल देने का िनणय ले िलया, मगर अिधकांश जी तोड़ कोिशश करते रहे ,
य िक उ ह केवल इसी यवसाय का अनुभव था। मगर यह भावना ज़ोर पकड़ रही थी िक
उ ह कचबाह के दमनकारी ितब ध से बचकर िनकलने के रा ते िनकालने ह गे।
तो िफर इसम अिधक देर नह लगी िक स िस धु से त करी का माल बाहरी दुिनया म
पहँचने लगा था। ऐसी बहत कम व तुएँ थ जो भारतीय को िवदेश से चािहए होती थ
य िक उनके पास जीवनयापन के िलए घरे लू उ पाद ही बहतायत म थे। अगर कोई व तु
त करी करके लायी भी जाती थी तो आव यक अनु ाप के अभाव म उसे स िस धु के
िकसी भी रा य म ज़ त िकया जा सकता था। इसिलए समझा जा सकता है िक त करी के
यापार का झान िनयात क ओर अिधक था। स िस धु म ऐसी अनेक व तुओ ं का
उ पादन होता था िजनक दुिनया म माँग थी। भारी िनयात शु क से बचने और अ छा लाभ
कमाने के िलए उनक त करी करना सुिवधाजनक तरीक़ा हो गया था।
समय के साथ तीन- तरीय त करी णाली िवकिसत हो गयी। पहले तर म िनिमत
उ पाद को स िस धु के िविभ न रा य से िच का तक लाना होता था। यह तुलना मक प
से सरल था य िक इनम से अिधकांश व तुओ ं को आसानी से वैध िनयात के साथ िमलाया
जा सकता था। इस तर म जोिखम भी सबसे कम था─और लाभ भी सबसे कम था। दूसरे
तर के प रचालक कचबाह क कर-नौकाओं के बीच से भागकर, नज़र म आये िबना या
राज व अिधका रय को र त देकर, समु म जाने के िलए छोटी कटर नाव का योग
करते थे। तीसरा तर पवू समु म काम करता था जहाँ िच का से अनेक समु ी मील दूर
लंगर डाले और ब दरगाह म जाने क ती ा करते अनेक दूसरे पोत के बीच िछपे बड़े
समु ी पोत कटर नाव से माल उठाते और दूर देश क ओर चले जाते।
तो, दूसरा तर प प से इस अिभयान का सबसे जोिखम भरा िह सा था। मगर
िफर भी, चँिू क यह मु यतः छोटी नाव म युवा त कर के ारा िकया जाता था जो िक
आजीिवका कमाने के िलए हताश होते थे, इसिलए लाभ का बड़ा िह सा तीसरे तर वाले ले
जाते थे: बड़े समु ी पोत के मािलक। वो एक को दूसरे के िव खड़ा करके दाम बहत कम
करवा लेते थे, जबिक वयं अरब, मलय या क बोिडया जैसे िवदेशी बाज़ार म परू ा और वैध,
शु क-द मू य वसल ू ते थे।
पहले पहल यहाँ आने पर रावण और मरीच ने गोदी िमक का काम हाथ म िलया।
कुछ समय उ ह ने कड़ी मेहनत क , मगर अ ततः सामने आने वाले अवसर से ो सािहत
होकर रावण ने एक छोटी कटर नौका िकराए पर ले ली और दूसरे तर क त करी करने
लगा। ज दी ही चतुर लड़के और ितभाशाली नािवक के प म उसने नाम कमा िलया जो
िक जोिखम लेने और िवपरीत से िवपरीत ि थितय म भी माल पहँचाने के िलए तैयार रहता
था। इसिलए उस समय कोई हैरानी नह हई जब तीसरे तर म मािहर अकंपन नाम के एक
त कर ने उससे स पक िकया।
आमतौर पर तीसरे तर के त कर भारी लाभ कमाने वाले स म समु ी म लाह होते
ह। मगर अकंपन उस ेणी म कुछ अनुपयु -सा था। वो तीसरे तर के सबसे कम लाभ द
अिभयान म था। वो अपने दल को देर से या िब कुल भी पैसा न देने के िलए कु यात था।
बात इस हद तक पहँच गयी थी िक लोग उसके साथ काम करने से प मना कर देते थे।
मगर उसके पास एक बड़ा लाभ था—उसका अपना पोत। बहत बड़ा। इतना बड़ा जो बड़े
समु म या ा करने म स म था।
दूसरे तर के िकसी त कर के िलए लाभकारी तीसरे तर तक पहँचने का एकमा
रा ता था िकसी समु ी पोत का वामी बनना या उस पर काम करना। यह जानते हए रावण
अकंपन से िमलने के िलए तैयार हो गया था।
अगले िदन, रावण और मरीच अपनी कटर नौका लेकर अपने पाँच दुदा त सािथय के
िनयिमत दल के साथ िच का के दि ण म एक गु अनपू क ओर चल िदये जहाँ अकंपन का
घर था।
रावण ने अपने दल को आदेश िदया िक नाव को अकंपन के पोत के पास ले जाएँ जो
िक तट से कुछ ही दूरी पर लंगर डाले खड़ा था।
“व ण देव क सौग ध,” मरीच ने जल और समु के देवता का आ ान करते हए
आ य से कहा। “ या यह अकंपन अपने पोत क िब कुल भी देखभाल नह करता है?”
पोत का वग करण करने का एक तरीक़ा उसके म तल ू क सं या होती थी। िच का
म आने वाले अिधकांश समु ी पोत म तीन म तल ू होते थे। अकंपन के पोत म भी थे। मगर
पोत क दुदशा एकदम प थी। पाल के साथ ही र से भी िघसे हए और हवा को भावी प
से ख चने म अ म िदख रहे थे। वा तव म हवा के अचानक आने वाले थपेड़ से होने वाली
हािन को रोकने के िलए पाल को उतारा तक नह गया था जो िक उस े म बहत आम थे।
साफ़ िदख रहा था म तल ू को लकड़ी के नये काम क आव यकता थी। मु य म तल ू के
िशखर पर मौजदू िनगरानी चौक के अिधकांश पटले लापता थे। पोत के पेटे के राल को जो
पोत को जलरोधी रखने और रसाव रोकने के िलए अहम होता है, दोबारा लगाए जाने क
ज़ रत थी।
“मुझे लगता था िक अकंपन का पोत अपनी गित के िलए मशहर है,” रावण भी उतना
ही हैरान था।
“मुझे भी,” मरीच ने कहा। “तु ह िव ास है िक तुम इस आदमी के साथ काम करना
चाहते हो?”
िवचार म डूबा रावण पोत को देखता रहा। िफर अचानक उसने अपना अंगव एक
ओर फक िदया। “यह रहना।”
“ या कर रहे हो तुम?” मरीच ने पछू ा।
वो अपनी बात परू ी करता, इससे पहले ही रावण पानी म उतर गया था और पोत क
ओर तैर रहा था। उसके िनकट पहँचकर वो का और सावधानी से पेटे को जाँचते हए उसके
साथ-साथ तैरने लगा। िफर उसने पानी के नीचे देखने के िलए ग़ोता लगाया। वापस ऊपर
आकर वो पोत क ल बाई के साथ तैरा, इस बार वो केवल उसे देख नह रहा था बि क
अपनी उँ गिलय से छूकर भी देख रहा था, कुछ-कुछ पल बाद वो पानी म ग़ायब हो जाता और
िफर सांस लेने के िलए ऊपर आता, और िफर से वापस अ दर चला जाता। मरीच के
आदेशानुसार कटर नौका पीछे -पीछे , रावण के साथ पोत के चार ओर घम ू रही थी।
जब रावण अि तम प से सतह पर आया और वापस नाव पर सवार हआ, तो मरीच ने
उसे भरी िनगाह से देखा।
“इस पोत म कुछ िविच -सी बात है,” रावण ने कहा।
“ या?”
“न कोई शैवाल। न कोई दीमक। न कोई समु ी क ड़ा। पेटा ऐसा िचकना है जैसे उस
िदन रहा होगा जब इसे बनाया गया था।”
जैव-प रदूषण उतनी ही पुरानी िवपि है िजतना पुराना वयं नौकायन है। पोत का
लकड़ी का आधार शैवाल व अ य समु ी जीव को जनन थल दान करता है। वो गीली
सतह से िचपक जाते ह और सह गुणा बढ़ते हए पानी के अ दर ि थत पेटे के अिधकांश
भाग पर छा जाते ह। कुछ पोत तो इतनी बुरी तरह से भािवत हो जाते ह िक जलीय रे खा के
नीचे उनक लकड़ी क सतह को देखना भी अस भव हो जाता है।
समु ी जीव का ये ऊबड़-खाबड़ जमावड़ा पोत क गित को भयंकर प से कम कर
देता है। एक और संकट समु ी क ड़े लग जाना था, जो एक कार क हाथ भर ल बी हो जाने
वाली सीप थी। ये जीव लकड़ी के पेटे म छे द कर देते थे िजनसे धीमी, मगर भारी ित होती
थी। यही कारण था िक इनको समु ी दीमक भी कहा जाता है। रावण ने कभी भी कोई ऐसा
समु ी पोत नह देखा था िजसका पेटा इन जीव से सं िमत न हो। मगर अकंपन का पोत
िविच प से उनसे मु था।
रावण जानता था िक पेटे को साफ़ करने का सबसे अ छा तरीक़ा तो पोत को सख ू ी
गोदी पर ले जाना था जहाँ उसे सखू े चबत
ू रे पर रखा जाता है तािक िमक समु ी जीव को
खुरचकर हटा द और लकड़ी क मर मत कर द या उसे बदल द। मगर त कर के िलए सख ू ी
गोदी पर पहँच पाना अस भव था। तो वो अ सर पोत को टेढ़ा िकया करते थे—अिनवायतः,
वार के समय उसे समु तट पर ले जाकर उसे एक करवट से िलटा िदया जाता था। इससे
पेटा पानी के ऊपर आ जाता था िजससे उसक सफ़ाई क जा सकती थी, पुरानी लकड़ी क
मर मत क जा सकती या उसे बदला जा सकता था।
मानो संकेत समझकर मरीच बोल उठा। “हो सकता है उ ह ने पोत को िलटाकर पेटे
को साफ िकया हो?”
रावण ने िसर िहलाया। “मामा, अगर अकंपन म इतनी समझ भी नह है िक दुघटनावश
होने वाली ित को रोकने के िलए पाल को बाँध दे, तो आपको लगता है िक उसने पोत को
िलटाकर साफ़ करवाने का झमेला या यय उठाया होगा?”
मरीच ने हामी भरी। “ठोस तक है।”
रावण ने अपने सामने मौजदू त य पर सोचा। जैव-प रदूषण के िबना, अकंपन का पोत
दूसरे पोत से लगभग दोगुनी गित से या ा कर सकता था। यह एक बड़ा ित पधा मक
लाभ था।
उसने इरादा कर िलया था।

“म तुम सबको वेतन तो नह दे सकता,” अकंपन ने कहा, “िक तु हम जो लाभ कमायगे


उसम से तु ह एक छोटा िह सा दे सकता हँ।”
रावण और मरीच ने अपने छोटे से दल को कुछ दूर, सुनाई देने क सीमा के बाहर छोड़
िदया था। इससे मोलतोल करने म आसानी रहती। तीन पु ष लकड़ी क कुिसय पर एक
बेतरतीब पड़े उपवन म बैठे थे िजसने िन य ही कभी बेहतर िदन देखे थे। उसी अहाते म
अकंपन का िवशाल, जीण- ीण होता भवन था। घर समु तट से बहत दूर नह था, इसिलए
जहाँ वो बैठे थे वहाँ से अकंपन का पोत साफ़ िदख रहा था।
जैसे ही मरीच ने अकंपन का ताव सुना, उसने सवािलया ढं ग से रावण को देखा,
इस याशा म िक उसका भानजा इस वािहयात ताव को नकार देगा। मगर रावण मौन
रहा, उसके भाव अबो य थे।
औसत ल बाई के पतले-दुबले अकंपन ने असहजता से पहलू बदला। उसने अपने माथे
को छुआ और अनजाने म उस पर लगे ल बे, काले ितलक को प छ िदया। अ ततः उसने चु पी
तोड़ी।
“देखो,” उसने कहा, “हम िनवाह यय का तो कुछ ब ध कर सकते ह िक तु—”
एक ु ी वर ने उसक बात काट दी। “यहाँ या हो रहा है भला?”
उ ह ने पलटकर देखा िक एक ल बी, तीखे नैन-न श वाली औरत उनक ओर चली
आ रही है।
“ या तुम िफर से नािवक दल रखने क कोिशश कर रहे हो, अकंपन?” उस ी ने
पछू ा, उसक खीझ प थी।
अकंपन य प से घबरा गया था। “धनाजन के िलए हम कुछ यापार तो करना ही
होगा, ि यतमा। ये लोग—”
“ यापार? तु ह पता भी नह है िक यापार िकया कैसे जाता है! तुम बस घाटा ही उठाते
हो। म तु ह अब कोई पैसा नह देने वाली। म अब अपने आभषू ण नह बेचँग ू ी। इस अिभश पोत
को बस बेच दो!”
“नह , मगर—”
“तुम मखू हो!” वो औरत िच लायी। “अगर तुम यह समझ लो और अपनी हद म रहो
तो बेहतर होगा।”
“मगर हम आव यकता—”
“कोई अगर-मगर नह ! बस उस अिभश पोत को बेच दो! म तो कचबाह के साथ
जा सकती थी, तुम यह जानते हो। वो तो मुझम िच ले रहा था। मने ही िच का के ा तपाल
के नेह को ठुकरा िदया और तु हारे साथ फँस गयी। मगर तु हारी मख ू ताएँ म बहत सहन
कर चुक हँ। उस पोत को बस बेच दो!”
अकंपन शिम दगी से दूसरी ओर देखने लगा। मगर उसके मौन ने उसक ु प नी
को शायद और भड़का िदया था। उसका सुर पहले से अिधक आ ामक हो गया था। “तु हारी
सम या या है? तुम जानते हो िक म सच बोल रही हँ, है न?”
“िन स देह,” अकंपन ने झठ ू ी मु कान िबखेरी। “म कुछ और कैसे सोच सकता हँ,
ि यतमा?”
उस औरत ने अपना िसर िहलाया, तीखी िनगाह से रावण और मरीच को देखा और
िफर मुड़कर पाँव पटकती चली गयी।
अकंपन अपनी जाती हई प नी क पीठ तकता रहा, उसके चेहरे पर गहन घण ृ ा फै ली
हई थी। िफर आग तुक क मौजदू गी का यान करते हए उसने वयं पर िनय ण िकया।
उसने गला खखारा और चेहरे पर ीण से मु कुराहट िलए मरीच क ओर मुड़ा। अब
शिम दगी से दूसरी ओर देखने क बारी मरीच क थी।
मगर रावण इस सबसे अ भािवत था। “तो हम ऐसा करगे,” उसने कहा मानो कोई
यवधान पड़ा ही न हो। “हम पोत को लगे, अपनी लागत पर इसक मर मत करगे, और इसे
चलाना शु कर दगे। तुम हमारे साथ आना चाहो तो तु हारा वागत है। और लाभ को बाँट
िलया जायेगा, न वे-दस के औसत से।”
अकंपन िखल गया। “न वे तो ठीक मालम ू देता है।”
रावण ने िशिथल उदासीनता से अकंपन को घरू ा। “न वे मेरे िलए। दस तु हारे िलए।”
“ या? मगर... मगर यह मेरा पोत है।”
रावण खड़ा हो गया। “और यह यहाँ पड़ा सड़ता रह सकता है।”
“सुनो, मुझे नह —”
“और तु हारी ख़ाितर हम तु हारी प नी को भी संभाल लगे।”
मरीच तक ने सहमकर रावण को देखा जो िपछले कुछ वष म अपने तेरह वष य भानजे
के िनमम तौर-तरीक का आदी हो चुका था।
अकंपन ने घबराकर उस िदशा म देखा िजधर उसक प नी गयी थी, और िफर रावण
को देखा। “ या... या मतलब है तु हारा?”
“म वो क ँ गा िजसके बारे म तुम सोचने तक से डर रहे हो।”
अकंपन ने थक ू गटका। मगर उसक भाव-भंिगमा से यह प था िक इसम उसक
िदलच पी थी।
“यह सौदा हो गया,” रावण ने ढ़ता से कहा।
अ याय 6

अकंपन का पोत लेने के दो वष के अ दर रावण, जो अब प ह वष का था, इस भारी लाभ द


उ म म बदल चुका था। पोत क मर मत करवाने के बाद उसने दूर-दूर तक माल पहँचाकर
और चुर धन कमाते हए त करी के अनेक सफल अिभयान िकये थे।
चँिू क उ र भारत के ब दरगाह मु और आसान यापार के ित अिधकािधक
ितरोधी होते जा रहे थे, इसिलए िह द महासागरीय े म लंका एक सबसे अिधक सि य
गोदाम के प म उभर रहा था। िपछले बारह माह म रावण ने इस ीप के अनेक च कर
लगाए थे। ऐसे ही एक दौरे म रावण ने जाना िक लंका का यापारी—राजा कुबेर उसका गु -
भाई है—उसके िपता िव वा का िश य। मगर यह एक ऐसी बात नह थी िजसका रावण लंका
म िकसी से उ लेख करता। वो अपने िपता क िकसी भी तरह क सहायता नह लेना चाहता
था—न यि गत प से, और न ही उनके नाम से।
रावण का यापार बढ़ा तो उसने िनणय िलया िक वो लंका के मु य ब दरगाह गोकण
—शाि दक तौर पर गाय का कान—को अपना अड्डा बनायेगा। यह शहर सुिवधाजनक प
से ीप के उ र-पवू म ि थत था। यहाँ गहरी खाड़ी और समु क ओर िनकलती भिू म के
साथ, जो ाकृितक बाँध का काम करती थी, एक ाकृितक ब दरगाह था। इसिलए यह वष
के िकसी भी मौसम म सुरि त प से पोत के आने और लंगर डालने क ि थित म था। यह
एक अहम लाभ था।
लंका क सबसे बड़ी नदी महावेली गंगा गोकण खाड़ी म इसके दि णी छोर से आती
थी। यह उपयोगी था, य िक यह पोत को ीप क मु यभिू म म अ दर तक जाने का ना य
जलमाग दान करता था। इस नदी का नाम अनेक वष पहले मलयपु जाित के मुख गु
िव ािम ने रखा था, िजसे पवू िव णु भगवान परशु राम ने थािपत िकया था। स भवतः
ेय ऋिष इसका नाम महावेली अथात महा-रे तीली गंगा रखकर उस नदी का स मान
करना चाहते ह गे जो उनके गहृ नगर क नौज म बहती थी।
लंका म गु िव ािम का बहत स मान था, केवल इसिलए ही नह िक वो एक महान
ऋिष थे, बि क इसिलए भी िक उ ह ने ीप को बसाने म सहायता क थी और इसे ामीण
िपछड़े े से िह द महासागर के यापा रक माग पर ि थत एक शि शाली के म बदल
िदया था। एक समय था जब लंका को बस महा संगमतिमल—वैिदक भारत क लयपवू दो
िपतभ ृ िू मय म से एक—क डूबी हई भिू म के शेष रह गये िह से के प म जाना जाता था।
सारे भारतीय उपमहा ीप से लोग अपने पवू ज के बनाए ाचीन मि दर के भ नावशेष म
पजू ा-अचना करने आते थे। मगर यह सब कुछ बदल गया था। अब वो सम ृ होने आते थे। और
हाल म यहाँ आने वाले लोग म से अिधकांश किलंग के थे।
जैसी िक ि थित थी, लंकावासी कुबेर के शासन से स न थे। और यापारी-राजा और
उसक जा ने िव ािम के ित गहन ा भाव दशाना जारी रखा। य िक वही थे िज ह ने
एक सदी से भी पहले लंका के महान राजधानी नगर िसिग रया को थािपत करने म राजा
ि शंकु का यप क सहायता क थी, और य िप िकसी ने भी लगातार अलोकि य होते गये
िनरं कुश राजा को कुछ वष बाद अपद थ िकये जाने का शोक नह िकया था, मगर िव ािम
उनके ि य बने रहे ।
रावण कभी अ दर िसिग रया तक नह गया था, जो िक गोकण के दि ण-पि म म
कोई सौ िकलोमीटर दूर था। मगर उसने गोकण म ही भगवान को समिपत कोणे रम
मि दर के पास एक सु दर-सा भवन ख़रीद िलया था। इस मि दर को ाचीन काल म खाड़ी
के उ री िह से से िनकले एक उ च अ तरीप पर बनाया गया था जो िह द महासागर म
िनकलता था। छह वष य कु भकण को साथ लेकर कैकेसी ितिदन मि दर जाती थ । रावण
का छोटा भाई समु या ाओं पर उसके साथ जाने के िलए अभी भी बहत छोटा था।
उस िवशेष िदन, कैकेसी एक योजन से कोणे रम मि दर जा रही थ । वो जानती थ
िक िसिग रया के रा ते म िव ािम नगर म के हए ह। बहत साल पहले िव वा के आ म
म वो िव ािम और उनके दािहने हाथ अ र नेमी से िमली थ । य िप िव ािम के साथ भट
तो बहत छोटी-सी रही थी, मगर अ र नेमी के साथ उ ह ने बहत समय िबताया था और उ ह
अपने भाई क तरह मानने लगी थ । िव ािम से भट करवाने के िलए उ ह ने अ र नेमी पर
अपने भाव का योग िकया था। इस त य का उ लेख नह िकया गया था िक कैकेसी का
अपना प रवार, िवशेषकर उनके दादा कभी िव ािम के िपता राजा गािध के िनकट िम रहे
थे। िकसी उिचत कारणवश।
“कृपया िकसी को यह मत बताना िक इस भट के िलए मने अपने पित के नाम का
योग िकया है,” कु भकण का हाथ पकड़कर ले जाते हए कैकेसी ने अ र नेमी से याचना
क।
अ र नेमी ने हामी भरी। उ ह िव वा और उनक पहली प नी क स तान के बीच
तनावपण ू स ब ध क जानकारी थी। िवशेषकर अब जबिक िव वा नोसॉस से एक िवदेशी
ी को प नी के प म घर लाकर दूसरा िववाह कर चुके थे। “िच ता न कर। म नह
बताऊँगा।”
कैकेसी मु कुराई ं। “ध यवाद, भैया।”
अ र नेमी उ ह कोणे रम मि दर से जुड़े एक अितिथगहृ म ले गये जहाँ िव ािम
ठहरे हए थे। “पल भर यह ती ा कर।”
कैकेसी उलझन म पड़ गय । “िक तु...”
“जैसा मने कहा वैसा कर,” अ र नेमी ने कहा और अ दर ग़ायब हो गये।
ार के बाहर खड़ी कैकेसी के कान म बातचीत के अंश पड़ रह थे।
“मेरे पास इस सबके िलए समय नह है, अ र नेमी। तु ह—”
कु भकण को साथ ख चते हए कैकेसी अ दर चली आई ं।
भिू म पर एक भीमकाय, चौड़े व वाला पु ष प ासन म बैठा था। िव ािम । कैकेसी
के अ दर आने क आहट सुनी तो उ ह ने ऊपर देखा। वो िव वा क प नी के प म उ ह
जानते थे। और अपने िपता के िनकटतम परामशदाता क पोती के प म भी।
उ ह ने अपनी खीज को छुपाने क कोई कोिशश नह क । “देखो, कैकेसी, तु हारे
दादा मेरे िपता क म ृ यु के बाद पया सम याएँ उ प न कर चुके ह और म नह —”
िव ािम क िनगाह कैकेसी के पास उनका हाथ पकड़े खड़े बालक पर पड़ी तो वो
कहते-कहते क गये। छह वष य बालक अपनी आयु के िलए बहत बड़ा था और उसे आसानी
से दस वष का कहा जा सकता था। वो असामा य प से बाल से भी भरा था। ऋिष का यान
उसके क ध और कान से िनकले भ े उपांग पर भी गया, जो प प से बता रहे थे िक
वो नागा है। केवल कोई ममतामयी माँ ही कु भकण जैसे कु प ब चे को सु दर कह सकती
थी। मगर िव ािम का दय बहत बड़ा था। िवशेषकर उन लोग के ित िज ह वो वंिचत
मानते थे। उनका चेहरा मु कान म िसकुड़ गया। “िकतना यारा बालक है।”
कैकेसी ने गव भरी आँख से कु भकण को देखा। “सो तो है।”
िव ािम ने बालक को बुलाया। “यहाँ आओ, बालक।”
कु भकण घबराकर अपनी माँ का अंगव पकड़कर उनके पीछे िखसक गया।
“इसका नाम कु भकण है, ेय महिष,” कैकेसी ने स मान के साथ कहा।
ब चे से िनगाह िमलाने के िलए िव ािम एक ओर को झुके। “यहाँ आओ, कु भकण।”
कु भकण ने शी ता से एक िनगाह ऋिष पर डाली। िफर वापस अपनी माँ के पीछे हो
गया।
िव ािम ह के से हँसे। अ र नेमी क ओर मुड़कर उ ह ने एक थाल क ओर संकेत
िकया। पहले आये ावान उनके िलए घर के बने िम ा न लाए थे। अ र नेमी महिष के
पास वो थाल ले आये।
“मेरे पास लड्डू ह, कु भकण,” िव ािम ने मु कुराते हए कहा, और एक लड्डू
उठाकर हाथ आगे को बढ़ा िदया।
अपनी मनपस द िमठाई का नाम सुनकर कु भकण िझझकते हए सामने आया। उसने
अपनी माँ को देखा। उ ह ने मु कुराकर हामी भर दी। वो दौड़कर महिष के पास गया और
लड्डू ले िलया। िव ािम हँस पड़े और उ ह ने नेह से कु भकण को पकड़कर अपने पास
िबठा िलया।
कैकेसी जो अब याकुल नह रही थ , बैठे हए िव ािम के सामने घुटन के बल बैठ
गय ।
“महान मलयपु ,” कैकेसी ने कहा, “म िनवेदन करना चाहती थी... मेरा पु
कु भकण... यह...”
“हाँ, जानता हँ। कभी-कभी उपांग से बहत र बहता है। यह पीड़ादायक होता है। और
अगर िनयि त न िकया जाये तो घातक भी हो सकता है,” िव ािम ने कैकेसी क आँख
म देखते हए कहा। ाचीन काल के महान ऋिषय म िकसी यि क आँख म देखने मा
से उसके िवचार को पढ़ने क शि हआ करती थी। आधुिनक काल के एक महानतम ऋिष
िव ािम म भी यह मता थी।
“आप तो सव ाता ह, गु जी। या आप इसक सहायता कर सकते ह?”
“म परू ी तरह तो इसे ठीक नह कर सकता। यह अस भव होगा। मगर म र ाव म
कमी ला सकता हँ। और िन य ही इस यारे बालक को जीिवत रख सकता हँ।”
कैकेसी क आँख से राहत के आँसू बह िनकले, उ ह ने िव ािम के चरण पर
म तक रख िदया। “ध यवाद, ध यवाद।”
िव ािम ने कैकेसी के क धे को छुआ और उनसे उठने को कहा। “मगर इसे मेरी
औषिध ितिदन लेनी होगी। यह कभी रोक नह सकता। कभी भी नह । अ यथा म ृ यु िनकट
आने लगेगी।”
“हाँ, गु जी। म कभी नह —”
“ये दुलभ औषिधयाँ ह। और इ ह हािसल करना दु कर है। ये अ र नेमी सुिनि त
करगे िक तुम इ ह िनयिमत प से ा करती रहो। यह यान रखना िक औषिधय को ती
काश और ताप से दूर रखो। और उ ह ठीक वैसे ही देना जैसे अ र नेमी तु ह बताएँ ।”
“ध यवाद। ध यवाद, गु जी। म आपका ऋण कैसे उतार पाऊँगी?”
“तुम अपने दादा से कहना िक बरस पहले उ ह ने जो िकया था, उसके िलए मुझसे
मा माँग।”
कैकेसी को समझ नह आया या कहे । उनके दादा तो नह रहे थे। उ ह ने घबराते हए
कहा, “गु जी, मेरे दादा जी तो... वो..”
“वो नह रहे ?” िव ािम ने आ य से पछ ू ा। “ओह!”
“गु जी,” कैकेसी ने कहा, उनके गाल पर िफर से आँसू बहने लगे थे।
“भगवान परशु राम के िलए, रोना ब द करके बात कहो।”
“ ेय महिषजी...”
िव ािम ने कैकेसी क आँख म झाँका। “िकसी और क भी यही ि थित है?”
कैकेसी ने आँसू प छे और बोली, “आपसे तो कुछ िछपा नह है, गु जी। मेरा दूसरा बेटा,
रावण... वो भी नागा है।” ।
िव ािम ने हौले से सांस छोड़ी। उ ह यहाँ एक अवसर क सँघ ू आ रही थी। रावण भी
नागा है?
“वो... वो एक...”
िव ािम ने बात काटी। “जानता हँ वो एक त कर है।”
कैकेसी ने िचि तत भाव से पहले अ र नेमी को और िफर िव ािम को देखा। उनके
गाल पर आँसू लुढ़क रहे थे। “हमने बहत किठन समय देखा है, गु जी। उसे... उसने वो
िकया जो उसे करना पड़ा। वो मेरा बेटा है, गु जी... म उससे कहँगी िक छोड़ दे...”
िव ािम मौन बैठे रहे , उनका मि त क तेज़ी से दौड़ रहा था।
जैसा िक मने सनु ा है, रावण साख बनाता जा रहा है। वो यवु ा है, मगर अनय ु ाियय को
एक और े रत कर सकता है। स म है। बिु मान है। ू र भी है। साम यवान यो ा है। वो
मेरा योजन िस कर सकता है। वो भारत माता का योजन िस कर सकता है।
कैकेसी अभी भी रो रही थ । “उसक नािभ के उपांग से र ाव होने लगा है,
मलयपु । इस तरह तो वो मर जायेगा। कृपया उसक सहायता कर। वो बुरा आदमी नह है।
प रि थितय ने उसे ऐसा बना िदया है।”
अगर उसके उपांग से र ाव होता है, तो जीिवत रहने के िलए उसे हमेशा मेरी
औषिधय क आव यकता होगी। वो हमेशा मेरे िनय ण म रहेगा। हमेशा।
“दया कर, गु जी,” कैकेसी िफर से िव ािम के चरण म िगर गयी थ । “कृपया
हमारी सहायता कर। आप और म, दोन ही क नौज के ह। दया कर। मेरी सहायता कर। मेरे
पु क सहायता कर।”
िव ािम मु कुराए। “यह किठन होता होगा। म जानता हँ।”
कैकेसी अभी भी महिष के चरण म पड़ी बेआवाज़ सुबकती रह ।
िव ािम ने उनके िसर पर िदलासा भरा हाथ रखा। “म ित माह इन दोन के िलए
औषिधयाँ िभजवाता रहँगा। म इ ह जीिवत रखँग ू ा। तब तक जब तक रख सकता हँ और
रखना होगा,” उ ह ने कहा।

कैकेसी और कु भकण के जाते ही अ र नेमी िव ािम क ओर मुड़े। वो उलझे हए से िदख


रहे थे।
“गु जी,” उ ह ने सावधानी से कहा। “म समझ नह पाया िक आप रावण क सहायता
य करना चाहते ह। कु भकण तो बालक है। उसे आपक सहायता क आव यकता है। मगर
रावण? मने उसक िनममता क कहािनयाँ सुनी ह। उसक ू रता क । और अभी तो वो
वय क भी नह हआ है। वो तो और दु ही होता जायेगा।”
िव ािम मु कुराए। “हाँ, वो ू र है। और तुम सही कहते हो, वो और अिधक दु ही
होगा।”
अ र नेमी और भी य़ादा उलझ गये थे। “िफर आप उसक सहायता य करना चाहते
ह, गु जी?”
“अ र नेमी, मलयपु मुख के मेरे काल के दौरान िव णु का उदय होगा।”
पवू िव णु भगवान परशु राम ारा पीछे छोड़ी गयी जाित मलयपु को दो िवशेष काय
परू े करने थे। पहला तो जब भी अगले महादेव आएँ तो उनक सहायता करना। और दूसरा था
उिचत समय आने पर अपने बीच अगले क याणकारी िव णु को पहचानना।
अ र नेमी हत भ से िदख रहे थे. “गु जी, अं... मेरा मतलब आपके िनणय पर
उठाना नह है िक तु मुझे िव ास नह है िक रावण... आप जानते ह... िव णु क भिू मका
बहत ही...”
“तु हारी बुि िफर गयी है, अ र नेमी? तु ह लगता है म कभी भी िव णु क भिू मका
के िलए रावण के नाम पर िवचार कर सकता हँ?”
अ र नेमी याकुल-सी हँसी हँसे, उ ह राहत िमली थी। “मुझे पता था िक ऐसा नह हो
सकता... म तो बस...”
“ यान से मेरी बात सुनो। अगर सारी पर पराएँ और होह ला हटा िदया जाये तो एक
आम भारतीय के िलए िव णु कौन, या या ह?”
अ र नेमी मौन रहे । उ ह लग रहा था िक वो जो भी कहगे वो ग़लत उ र ही होगा।
िव ािम ने समझाया, “िव णु मल ू भत
ू तौर पर एक नायक ह। ऐसा नायक िजसका
अ य लोग वे छा से अनुसरण करते ह। और वो िव णु का अनुसरण इसिलए करते ह य िक
वो अपने नायक पर िव ास करते ह।”
“मगर इसका रावण से या स ब ध है, गु जी?”
“कोई भी नायक या करता है, अ र नेमी?”
“कोई िवशेष काय?”
“हाँ, वो भी। और िवशेष काय के अलावा?”
अ र नेमी मु कुराए, मानो अ तत: वो बात को समझ गये ह । “कोई खलनायक।”
“िब कुल। हम सही खलनायक चािहए जो हमारे नायक को नायक बनाने का काम
करे । केवल तभी लोग नायक को अपने र क, अपने िव णु के प म देखगे। और केवल तभी
वो उस माग पर िव णु का अनुसरण करगे जो हम तय करगे। वो माग जो इस भिू म क
महानता को पुनज िवत करे गा। वो एक बार िफर दुिनया म इसे इसका यथोिचत थान
िदलायेगा। जो द र ता और भख ू को दूर करे गा। अ याय का अ त करे गा। िन न जाितय ,
िनधन और िवकलांग के दमन का अ त करे गा। जो वतमान भारतीय को अपने महान
पवू ज के यो य बनायेगा।”
“अब म समझ गया, गु जी,” अ र नेमी ने अपना िसर झुकाते हए कहा। “अगर रावण
के बारे म मने जो सुना है, वो सही है तो उसम एक अ छा खलनायक बनने क स भावनाएँ
ह।”
“सटीक खलनायक। य िक वो न केवल िव सनीय खलनायक लगेगा, बि क
हमेशा हमारे िनय ण म भी रहे गा,” िव ािम ने कहा।
“हाँ। अग यकूटम से लायी गयी हमारी औषिधय के िबना वो मर जायेगा।”
अग यकूटम केरल क पिव भिू म म पहाड़ के भीतर िछपी मलयपु क गु
राजधानी थी।
िव ािम ने िसर िहलाया, मानो मन ही मन अपनी योजना क पुि कर रहे ह । “हम
ऊपर उठने म रावण क सहायता करगे। और जब सही समय आयेगा, तो हम उसे न कर
दगे। भारत माता के क याण के िलए।”
“भारत माता के क याण के िलए,” अ र नेमी ने सुर िमलाया।
जैसे ही िव ािम का मन अतीत क ओर लौटा, उनके भाव बदल गये। जब वो दोबारा
बोले, तो उनका ोध दब नह पा रहा था।"वो... वो यि अपनी िनयित परू ी करने से मुझे
रोक नह पायेगा।”
अ र नेमी को पता था िक िव ािम िकसक बात कर रहे ह : अपने बालसखा से घोर
श ु म बदल गये विश क । मगर उ ह पता था िक उ ह िति या नह करनी है। वो मौन
खड़े लहर के गुज़रने क ती ा करते रहे ।

“दादा!” सीिढ़य से दौड़कर आता कु भकण उ साह से िच लाया। अकंपन और मरीच के


साथ उसका बड़ा भाई घर म वेश कर रहा था।
िपछले कुछ वष म रावण ने जो चुर लाभ अिजत िकये थे, उ ह ने उस स ह वष य
युवा को लंका के सम ृ तम यापा रय म ला खड़ा िकया था। मगर उसक सफलता ने उसम
बस और पाने क भख ू जगा दी थी। वो अपना अिधकांश समय समु पर कड़ी मेहनत करते
िबताता था। प रणाम व प, गोकण को घेरे खड़े पहाड़ म से एक पर बने अपने नये ठाठदार
भवन म उसका आना-जाना दुलभ हो गया था। और ये दुलभ आगमन उसके आठ वष य भाई
कु भकण के िलए स नता का ोत होते थे।
“दादा!” कु भकण िफर से िच लाया और भवन के के म ि थत बड़े से अहाते म
दौड़ता हआ सीधे रावण क ओर भागा। भागते हए उसका पेट िहल रहा था।
रावण ने हँसते हए अपने हाथ और बाँह म लदे उपहार को फक िदया, “धीरे चलो,
कु भ! अब इन खेल के िलए तुम बहत बड़े हो गये हो!”
मगर कु भकण तो इतना जोश म था िक उसने कुछ सुना ही नह । वो आठ वष का भले
ही हो, मगर अभी से प ह वष य िकशोर के बराबर लगता था। उसके क ध पर िनकली
अित र बाँह जोर से िहल रही थ , जैसे उ ेजना म हमेशा िहलती थ । अपने असामा य प
से बाल भरे शरीर के कारण वो छोटे-से भालू जैसा िदखता था।
जैसे ही कु भकण कूदकर अपने भाई क बाँह म चढ़ा, तो उसके झटके से रावण
लड़खड़ा गया। कु भकण स नता से िखलिखलाने लगा।
रावण ने हँसते हए अपने भाई को झुलाया। कुछ पल के िलए उसक नािभ म हमेशा
रहने वाली पीड़ा लु हो गयी थी।
भतू ल के सुदूर छोर पर बनी रसोई से कैकेसी बाहर आई ं। उनक लाल आँख से प
था िक वो रो रही थ । “रावण।”
रावण ने कु भकण को उतारा और उ ह देखा, उसके चेहरे पर हताशा का भाव आ गया
था। नािभ क पीड़ा वापस लौट आयी थी। “ या हआ, माँ?”
“कुछ नह ।”
रावण ने आँख तरे री। “माँ, या बात है?”
“अगर तु ह पछ ू ना पड़े तो तुम सुपु नह हो।”
“ठीक है, तो म सुपु नह हँ,” रावण ने कहा, हर समय उदास रहने वाली अपनी माँ से
वो हमेशा िखंचा-िखंचा रहता था। “म बस एक बार और पछ ू रहा हँ। या परे शानी है?”
“तुम चार माह बाद घर आये हो, रावण। या तुम प रवार के साथ समय िबताना नह
चाहते? मुझे हमेशा यह माँग य करनी पड़ती है? या तु हारे िलए धन ही सब कुछ है?”
“म अपना सारा समय आपके साथ िबता सकता हँ और हम झोपड़ी म रह सकते ह,
भखू मर सकते ह। या म काम कर सकता हँ और आप सबको सुख-सुिवधाओं म रख सकता
हँ। म अपना चुनाव कर चुका हँ।”
मरीच और अकंपन ने असहजता से पहलू बदला। कैकेसी और रावण के बीच ये खीझ
भरी बात आम होती जा रही थ ।
कैकेसी अपने कृत न पु को याद िदलाने ही वाली थ िक उसके और उसके ारा
िव ािम के आगे िगड़िगड़ाकर लायी गयी औषिधय के कारण ही वो अभी तक जीिवत है।
मगर उ ह ने ऐसा नह िकया। िव ािम के साथ अब रावण का वत स ब ध था। अब
वा तव म उसे उनक आव यकता नह थी।
अपनी कम आयु के बावजदू कु भकण अपनी ि य माँ और भाई के बीच शाि त थािपत
करने क भिू मका िनभाने लगा था। अब माहौल म तनाव भाँपकर वो बोल उठा। “दादा, आपने
वचन िदया था िक मुझे अपना गोपनीय क िदखायगे!”
रावण ने मु कुराते हए अपने छोटे भाई को देखा। “लेिकन तु हारे उपहार?”
“मुझे उपहार म िच नह है!” कु भकण ने कहा। “मुझे तो आपका क देखना है।
आपने वचन िदया था!”
िजस क को देखने के िलए कु भकण इतना उ सुक था वो रावण के भवन के सबसे
ऊपरी तल पर था। सबक पहँच से दूर, वो क हमेशा ब द रहता था िजसक एकमा चाबी
रावण के पास रहती थी। यहाँ तक िक उसक िखड़िकयाँ भी ब द कर दी गयी थ । गोकण के
अपने संि दौर पर रावण घंट इस गु क म अकेले रहता था। िकसी को अ दर आने क
अनुमित नह थी। िकसी को भी नह ।
मगर िपछली बार जब वो घर आया था, तो कु भकण ने िकसी तरह रावण से वचन ले
िलया था िक वो उसे अपने क म आने देगा। अपने अब छोटे नह रहे छोटे भाई को रावण
लगभग िकसी बात के िलए मना नह कर सकता था।
कु भकण के हाथ को थामते हए रावण मु कुराया। “आओ, कु भ। चलते ह।” जाते-
जाते उसने उस थान क ओर संकेत िकया जहाँ उपहार पड़े थे। “माँ, आपका उपहार भी
उनम कह है। ले लो।”

रावण का गु क कु भकण क क पना से कह अिधक बड़ा था। और अंधकार भरा भी।


िपछले कुछ महीन से कमरे म बैठ गयी धल ू उड़ी और उसक नाक से टकराई तो उसे ह क -
सी खांसी आ गयी।
“यह को, कु भ,” रावण ने एक ओर रखी पीिठका पर रखे एक कटोरे म चाबी
डालते हए कहा। हाथ म मशाल लेकर वो क म लगी दूसरी मशाल जलाते हए सारे म घम ू ा।
दीवार पर ताँबे के बड़े -बड़े चमकदार फ़लक लगे थे। कमरे के हर कोने को कािशत करते
हए वो मशाल के काश को परावितत कर रहे थे।
“वाह...” कु भकण धीरे से बोला, वो स न था िक अब वो अपने भाई के जीवन के
उस िह से का राज़दार बन गया था िजसे और कोई नह जानता था, उनक माँ भी नह । वो
मुड़ा और उसने ार ब द करके कुंडा लगा िदया।
“तु ह यह पस द आया?” रावण ने पछ ू ा।
सारे म घमू ते अचि भत कु भकण ने हामी भरी, वो इस सबको आ मसात कर लेना
चाहता था।
एक दीवार के सहारे से भ य वीणा रखी हई थी। जब भी रावण आता था तो
कु भकण ब द ार के पीछे से आते इसके िद य वर को सुनता था। दीवार के साथ ही एक
पंि म अ य वा य भी रखे हए थे—तबला, ढोल, डम , तवील, िसतार, िचकारा,
शहनाई, बांसुरी, चडा और भी कई। कु भकण ने अपने भाई को ये सब बजाते सुना था।
“वो या है, दादा?” कु भकण ने एक वा क ओर संकेत करते हए पछ ू ा, िजसे उसने
न पहले कभी देखा था और न ही उसके बारे म पढ़ा था।
वो दो-तारा वा य एक वणमंिडत आधार पर रखा हआ था। उसका चाप एक ओर
एक िचमटी से जुड़ा हआ था।
“इसे मने बनाया है। म इसे हता कहता हँ।”
“हता?” कु भकण ने पछ ू ा। “इसका या अथ होता है?”
रावण कु भकण के बाल को सहराकर मु कुरा िदया और दूसरी ओर देखने लगा।
ाचीन सं कृत म 'हता' का अथ हताशा से त यि होता था।
“कभी और बताऊँगा,” रावण ने कहा, उसक नािभ क पीड़ा िफर उभरने लगी थी।
“लेिकन अगर आपने इसे बनाया है, तो इसका नाम आपके नाम पर होना चािहए,
दादा!” कु भकण ने कहा।
रावण पल भर को िवचारम न लगा। यह देखते हए िक वा का दद भरा वर अ सर
उसे अपनी हताशा क याद िदला देता था, उसके भाई का सुझाव कई तरह से उिचत था। “हाँ।
सही कहते हो। म अब से इसे रावणहता कहँगा।”
“आप मुझे यह बजाकर सुनायगे, दादा?”
“कभी और, कु भ। वादा करता हँ।”
रावण ने यह वा क याकुमारी क याद म बनाया था। इसे बजाने से उसे उनक ही
याद हो आती थी।
कु भकण आँख िसकोड़कर दूर क दीवार को देख रहा था। “वो या िच ह?”
रावण कु भकण का हाथ पकड़ने को बढ़ा। वो उसे क के बाहर ले जाना चाहता था।
वो इसके िलए तैयार नह था। अभी नह । मगर िफर, िकसी वजह से िजसे वो समझ नह
सका, उसने खुद को रोक िलया। उसने बहत ल बे समय तक अपने दद को सहा था, एकदम
अकेले। उसे अहसास हआ िक, दय के िकसी कोने म, वो चाहता था िक कु भकण यह जाने।
वो अपने भाई के साथ अपना दद बाँटना चाहता था। अपनी आशाएँ बाँटना चाहता था।
रावण क आँख म िबन बुलाए आँसू भर आये।
कु भकण िच क ओर दौड़ गया था।
रावण मौके का फ़ायदा उठाकर अपनी आँख प छते हए धीरे -धीरे उसके पीछे गया।
उसने एक गहरी सांस ली। इससे हमेशा सहायता िमलती है।
कु भकण सुदूर बाई ं ओर लगे िच को तक रहा था।
वो एक लड़क का था। जो यारह-बारह वष से अिधक क नह थी। गोल चेहरा। गोरी
रं गत। ऊँची कपोलाि थयाँ और तीखी, छोटी-सी नाक। चोटी म बँधे ल बे काले बाल। काली,
भेदती-सी, बड़ी-बड़ी आँख और लगभग सपाट पलक। उसका तन सौ यता से ल बी लाल
धोती, अंिगया और अंगव से ढका था।
िद य। उदासीन। भय उ प न करने वाली।
कु भकण को वो देवी माँ-सी लगी।
कु भकण ने अपने भाई को देखा। “यह आपने बनाया है, दादा?”
रावण का गला इतना ं धा हआ था िक वो कुछ बोल नह पाया। उसने िसर िहलाकर
हामी भरी।
“कौन है यह?”
रावण ने एक गहरी सांस ली। “यह कन... कन... क याकुमारी ह।”
कु भकण ने यान से िच को देखा। उसके बाल-ने को भी तिू लका के हर पश म
समपण, पज ू ा और ेम का दशन प िदखाई दे रहा था।
उसने िफर से अपने भाई के उदास मुखड़े को, और िफर वापस िच को देखा। तभी
उसका यान एक दूसरे िच पर गया जो िक उस िच के दािहनी ओर लगा था िजसे वो देख
रहा था।
यह भी उसी लड़क का था। सब कुछ वैसा ही लग रहा था। अलावा उसके व के रं ग
के। वो ेत थे।
वो अपने भाई क ओर पलटा। “यहाँ ये बड़ी लग रही ह।”
रावण ने हामी भरी। “हाँ। परू े एक साल बड़ी।”
धीरे -धीरे , िच को देखते हए कु भकण दीवार के साथ बढ़ता गया। हर िच म वही
लड़क होती थी, बस थोड़ी-सी बड़ी। उसका व भर गया था। िनत ब ने आकार ले िलया था।
वो थोड़ी ल बी भी हो गयी लगती थी।
जब कु भकण दसव िच पर पहँचा, तो क गया और देर तक चुप खड़ा रहा। यह
ंख
ृ ला का अि तम िच था। लड़क अब ी हो गयी थी। शायद इ क स या बाईस बरस क ।
उसके व ह के बगनी रं ग के थे : जो दुिनया का सबसे महंगा रं ग था और राजप रवार
ारा पस द िकया जाता था। वो ल बी थी। लुभावनी। ल बे बाल। पण
ू , नारी शरीर। असाधारण
प से आकषक।
उसके सौ दय म कुछ अलौिकक-सा था। उसका मुखड़ा। उसक आँख। उसके भाव। वो
देवी-सी लग रही थी। देवी माँ।
“ या ये हर वष आपसे िच बनवाती ह?” कु भकण ने असमंजस से पछ ू ा।
रावण ने पहले िच क िकशोरी क ओर संकेत िकया। “यह अि तम बार थी जब मने
उ ह देखा था।”
“तो आपने इ ह कैसे बनाया?”
“म अपने मन म इ ह बड़े होते देखता हँ।”
“आप इनके िच य बनाते ह, दादा?”
“इ ह देखने से मेरी पीड़ा दूर हो जाती है, कु भ...”
“इनका नाम या है?”
“मने तु ह बताया ना।” वयं को यवि थत करने के िलए रावण ने अपनी आँख ब द
कर ली और गहरी सांस ली। “क... क याकुमारी।”
“वो तो बस पदवी है, दादा। इतना तो म भी जानता हँ। क याकुमारी तो बहत सारी ह।
और अब अगर यह वय क ी हो गयी ह तो शायद क याकुमारी रही भी नह ह गी। इनका
असली नाम या है?”
“म नह जानता।”
“ये िकस क़बीले क ह?”
“म नह जानता।”
“अब ये कहाँ ह?”
“म नह जानता।”
कु भकण का दय भारी हो आया। उसक आँख म आँसू आ गये थे। वो रावण के पास
आया और उससे िलपट गया। “हम इ ह ढूँढ़ लगे, दादा।”
अब रावण के गाल पर भी आँसू बह रहे थे। उन पर कोई बाँध नह रहा था। उसने
कसकर अपने भाई को िचपटा िलया। उसक नािभ क पीड़ा अस हो गयी थी।
“हम इ ह ढूँढ़ लगे, दादा, हम ढूँढ़ लगे! म वचन देता हँ।”
अ याय 7

“घर आना अ छा लग रहा है!” कु भकण ने कहा, उसक अित र भुजाएँ धीरे -धीरे िहल रही
थ , जैसे उसके उ ेिजत होने पर हमेशा िहलती थ । य िप वो अभी केवल दस वष का था,
लेिकन उसक आवाज़ अभी से बदलने लगी थी।
रावण ारा अपने छोटे भाई को अपने गु क म आने क अनुमित िदये हए दो वष
बीत गये थे। अभी वो िनकोबार ीप क अपनी छोटी-सी या ा से वापस आ रहे थे, जो िक
दि ण-पवू एिशया के माग पर एक मह वपण ू ब दरगाह था। यह कु भकण क पहली
यापा रक या ा थी, और रावण सुिनि त करना चाहता था िक यह बहत अिधक ल बी और
असुिवधाजनक न हो।
रावण ने गहरी सांस ली। “मुझे घर आना अ छा नह लगता। मुझे समु बेहतर लगता
है।”
“मगर घर तो घर होता है, दादा।”
“और माँ माँ ह... मुझसे उनका हर समय का रोना सहन नह होता। लगता है जैसे वो
जब चाह आँसू िनकाल सकती ह, बस मुझे िचढ़ाने के िलए। िकसी िदन म...”
रावण ने कु भकण के चेहरे के भाव बदलते देखे तो बोलते-बोलते क गया। वो
जानता था िक उसका छोटा भाई भले ही उससे िकतना भी यार करता हो, मगर माँ के िलए
इस तरह क बात वो पस द नह करता।
“अ छा, अ छा,” उसने कु भकण के क धे को थपथपाते हए कहा। “तुम जानते हो िक
म कोई कठोर काम नह क ँ गा। मगर इस बार उनके आँसुओ ं से तुम ही िनबटना।”
ब दरगाह के मुहाने पर पहँचते हए पोत क गित धीरे -धीरे कम होने लगी थी। दोन
भाई देख रहे थे जबिक म लाह अपने तयशुदा थान क ओर मुड़ रहे थे। जब वो अपने माग
म पड़ने वाले दूसरे पोत के पास से िनकले तो लोग मुड़-मुड़कर अब तक मशहर हो चुके
पोत को देखने लगे जो जेटी पर पहँचने क तैयारी कर रहा था। गहरे समु म इसक
च िधया देने वाली गित ने रावण को त करी क गलाकाटू दुिनया म बहत भारी
ित पधा मक लाभ दान िकया था। अपने ती ता से बढ़ते लाभ से वो पाँच पोत का बेड़ा
बना चुका था।
रावण को अहसास था िक लोग उसे देख रहे ह। उसे लोग का यान देना अ छा लगता
था। मगर वो सीधे सामने देखता रहा, यह िदखावा करता िक उसने उसे तकती शंसा मक,
और ई यालु आँख को नह देखा है। वो दूसर के सामने आ मस तु नह िदखना चाहता
था। यह कमज़ोरी का िच होता। और उ नीस वष य रावण को अपनी कमजो रयाँ िदखाने म
िव ास नह था।
यापारी-राजकुमार, लोग उसे यही बुलाते थे। उसे यह पस द था।
“दादा,” कु भकण ने रावण को कोहनी मारते हए उसका यान ख चा।
रावण मुड़ा। ब दरगाह पर अकंपन उनक ती ा करता खड़ा था, वो प प से
िकसी बात को लेकर उ ेिजत था।
“लगता है छैला बाबू हमारे िलए कोई समाचार लाए ह,” उतरने के िलए तैयार होते
रावण ने कहा।

“रावण, मुझे रह य का पता लग गया है! मुझे पता लग गया है िक...”


“चुप रहो!” रावण ने उसके िसर को थपथपाते हए ग भीरता से कहा।
उिचत प से दंिडत िदखते अकंपन ने बोलना ब द कर िदया।
वो अभी भी ब दरगाह े म थे, लोग से िघरे हए। रावण जानता था िक िकसी भी
यापा रक उ म क सफलता िविभ न पोत ारा लायी जा रही व तुओ ं और उ पाद और वो
िकस िदशा म जा रहे ह, इसके बारे म िव सनीय सच ू ना पर िनभर करती है। अपने यापार
क बात को गोपनीय रखना भी मह वपण ू था।
उसने चलना जारी रखा, उसके अंगर क लोग को बीच से हटाते हए उसके िलए
रा ता साफ़ कर रहे थे। अपने बाल ठीक करता अकंपन पीछे रह गया था। रावण ारा उसका
िसर थपथपाने से कुछ बाल अपने िव यास से िछटक गये थे। वो अंगोछा लेने के िलए अपने
सहायक क ओर मुड़ा, जो साथ ही चल रहा था। थोड़ा-सा सुगि धत केश तेल उसके हाथ पर
आ गया था।

“अब,” रावण ने कहा। “बोलना शु करो।”


वो रावण के सुसि जत भवन म उसके िनजी क म थे। रावण उन अनेक स देश को
देख रहा था जो उसक अनुपि थित म उसके िलए आये थे। मरीच और अकंपन बड़ी-सी मेज़
के पार उसके सामने बैठे थे। कु भकण िखड़क के पास बैठा न बू पानी पी रहा था।
“ मा चाहता हँ, रावण,” अकंपन ने घबराते हए कहा। “मुझे ब दरगाह पर बोलना
नह चािहए था और यह—”
“हाँ, हाँ,” रावण ने िबना ऊपर देखे हाथ िहलाते हए उसक बात काटी। “मतलब क
बात पर आओ। मेरे पास सारा िदन नह है।”
अकंपन आगे को झुका। उसक आवाज़ क उ ेजना सु प थी। “मुझे इसका पता लग
गया है। म जानता हँ िक या रह य है।”
रावण ने भोजप क प ी नीचे रखी और एक क़लम उठा ली। उसे याही क दवात म
डुबोकर वो उस स देश के िकनारे पर कोई िट पणी िलखने लगा िजसे वो पढ़ रहा था। “तुम
जानते हो मुझे पहे िलयाँ बुझाना पस द नह है। प बताओ। तु ह या पता लगा है?”
“मुझे वो जानकारी िमल गयी है जो हम तलाश रहे थे। राजा ि शंकु का यप के एक
वंशज से।”
रावण ने िलखना ब द कर िदया। उसने क़लम को उसके थान पर रखा, अपनी कुस
पर टेक लगाकर बैठा और बोला, “कहते रहो।”
“तु ह पता ही है िक ि शंकु का यप का शव कभी नह िमल पाया जब—”
“मुझे ि शंकु क सारी कहानी पता है। मुझे इितहास मत पढ़ाओ। मु े पर आओ,” रावण
भड़का।
ि शंकु का यप आधुिनक काल म लंका का पहला राजा था। िव ािम क सहायता से
उसका रा य थािपत हआ था। मगर समय के साथ, ि शंकु क जा उसके िहंसक और
वाथपणू रवैये से परे शान हो गयी, और उसे अपद थ कर िदया गया। ि शंकु का समथन
करने म अपनी चक ू को समझकर िव ािम तक ने जनिव ोह म सहायता क थी।
मरीच ने वो िकया जो सबके मन म था। “तु ह रह य िमल गया या?”
“हां!” अकंपन ने िवजयी भाव से कहा।
यह रह य रावण के मु य पोत से जुड़ा था जो कभी अकंपन का था। अकंपन ारा
इतने अनुपयु तरीके से रखे जाने के बावजदू उस पोत को कभी भी जैव-प रर ण का
सामना नह करना पड़ा और वो दूसरे पोत से दोगुनी गित से या ाएँ करता रहा। वयं
अकंपन भी नह जानता था िक वो पोत इतना िविश य है। उसे बस इतना पता था िक
कभी यह पोत ि शंकु का यप के एक वंशज का था।
“एक िवशेष पदाथ होता है िजसे पीसकर तेल—मेसोपोटेिमया के एक तेल—म
िमलाया और हर बीस साल म एक बार पोत के पेटे पर मला जाता है,” अकंपन ने कहा। “यह
शैवाल और दूसरे समु ी जीव को दूर रखता है। बस इतनी-सी बात है।”
रावण आगे को झुका। “और यह िवशेष पदाथ िमलता कहाँ है, अकंपन?”
“यह तु हारे िम के पास है। मलयपु के पास। िकसी कारणवश वो इसे गुफा पदाथ
कहते ह।”
“शायद इसिलए िक उ ह वो एक गुफा म िमला होगा,” रावण ने यं य से कहा।
“शायद तुम सही कहते हो,” अकंपन ने हमेशा क तरह बे यानी म कहा।
रावण ने आँख तरे र और मरीच क ओर मुड़ गया। “उनसे भट का ब ध कर। ज दी।”
“तु ह गुफा पदाथ य चािहए, रावण?” िव ािम ने पछ ू ा।
िविच संयोग से उसी स ाह िसिग रया जाते हए िव ािम और अ र नेमी गोकण आ
पहँचे थे। रावण िबना समय गँवाए उनसे िमलने पहँच गया। मगर उसने अकेले जाने का आ ह
िकया था। अकंपन, या मरीच तक के िबना।
“उसके साथ यापार क मेरी कुछ योजनाएँ ह, गु जी,” रावण ने उ र िदया, उसका
िसर झुका हआ था। िव ािम के साथ वो हमेशा िवन और आदरपण ू रहता था।
“ या तुम हम अलग करके इसे कुबेर को सीधा बेचना चाहते हो? या तुम हमारा लाभ
कम करने क योजना बना रहे हो?”
रावण जानता था िक मलयपु गुफा पदाथ कुबेर को सीधे बेचते ह। अकंपन ने उसे
बताया था िक यह पदाथ, यह जो कुछ भी है, मनु य के िलए िवषैला है। और िक यह प र कृत
है और इसे पु पक िवमान के िलए ई ंधन म िम ण के प म योग िकया जाता है, जो िक
कुबेर का मशहर उड़न यान था। ई ंधन के िम ण म योग होने वाली अ य साम ी भी लगभग
इतनी ही महंगी थ । यह भी एक कारण था िक पु पक िवमान का योग बहत कम ही िकया
जाता था, और इस कार के और िवमान नह बनाए गये थे। उ ह चलाना बहत ही महंगा
पड़ता था।
रावण के िलए तैयार था। उसने िनगाह उठाई और नम ते म हाथ जोड़ िदये। “नह ,
गु जी। शि शाली मलयपु के साथ या म कभी ऐसा कुछ कर सकता हँ? मगर यह भी है
िक मु य- यापारी कुबेर अब आपसे पदाथ नह ले रहे ह य िक यह बहत महंगा है। जैसा
आप जानते ही ह, उ ह ने पु पक िवमान का योग करना ही ब द कर िदया है।”
“तो तुम पु पक िवमान को य करने और वयं उसका योग करने क योजना बना
रहे हो?”
रावण का अनुमान था िक मलयपु को इस बात क जानकारी नह है िक गुफा पदाथ
पोत पर जैव-प रदूषण को रोकने म सहायता करता है अ यथा वो वयं अपने पोत पर
इसका योग कर रहे होते। अब िव ािम क बात सुनकर उसे इसका यक़ न हो गया था।
अगर सब सही से हआ तो सबसे ु तगामी पोत का ित पधा मक लाभ केवल उसके पास ही
होगा।
“पु पक िवमान को िकराए पर लेना भी एक िवक प है, गु जी। मु य- यापारी कुबेर
लाभ कमाने के िकसी अवसर को नह छोड़ते ह, सही है ना?”
“और तुम पु पक िवमान का करोगे या?”
“ओह, बस ऐसे ही थोड़ी मौज-म ती।”
य िप िवमान को चलाने क अितशय लागत के कारण उसे यापार के िलए योग
करना घाटे का सौदा होता, मगर रावण क योजना वा तव म इसका उपयोग करने क थी।
अ ततः उसे हमेशा चौकस रहने वाले मलयपु को िव ास िदलाना था िक वो गुफा पदाथ
केवल िवमान को उड़ाने के योजन से ख़रीद रहा है। शायद स भािवत या ाओं पर जाने के
िलए। या घमू ने जाने के िलए भी!
िव ािम ने रावण के मन क थाह लेने क कोिशश म पैनी िनगाह से उसे देखा। मगर
उनका सामना ठोस दीवार से हआ। अब तक रावण ने सवशि मान ऋिष को अपना मन पढ़
पाने से रोकने क िविध सीख ली थी।
“ठीक है,” िव ािम ने कहा। “तु ह पाँच लाख वण मु ाएँ ित खेप देनी ह गी। और
तु ह वष म कम से कम तीन खेप लेनी ह गी।”
यह आव यकता से बहत अिधक दाम थे। उससे कह अिधक जो कुबेर देता था। और
कम से कम य का आ ह तो कभी देखा-सुना नह गया था।
मगर रावण िहचिकचाया नह । वो पहले ही अपना िहसाब-िकताब लगा चुका था। “मुझे
ये दाम वीकार ह, गु जी। मुझे पता नह है िक म िवमान को िकतना योग क ँ गा। म हर
वष तीन खेप लेने का परू ा यास क ँ गा। मगर कुछ वष ऐसे भी हो सकते ह जब म ऐसा
नह कर पाऊँगा। उसके िलए मुझे दंड का भागी मत बनाइयेगा।”
िव ािम ने हामी भरी। “ठीक है।”
उनके पास खड़े अ र नेमी को अपने कान पर िव ास नह हो रहा था। पाँच लाख
वण मु ाएँ ित खेप! इतने अिधक धन से तो मलयपु जोरशोर से दैवी अ क साम ी
क खोज शु कर सकते ह। दैवी अ यापक िवनाश के अ थे िजनके योग पर पवू
महादेव भगवान ने कठोर ितब ध लगा िदया था। उ ह ने िवधान बनाया था िक उ ह
भगवान क जाित वायुपु क अनुमित के िबना उपयोग नह िकया जायेगा। मगर
िव ािम क अपनी ही योजनाएँ थ । वो चाहते थे िक िव णु का उदय उनके काल म ही हो
जाये। इसके िलए, और घटना म पर िनय ण के िलए उ ह दैवी अ के वत
िनय ण क आव यकता थी। रावण के साथ यह सौदा उ ह इतना धन दान कर देता िक
वो दैवी अ के िनमाण के िलए आव यक साम ी क खोज कर और उसे हािसल कर।
अ र नेमी इस िवड बना पर मु कुराए िबना नह रह पाये। समु ी लुटेरा रावण उ ह वायुपु
पर िनभरता से मु करवायेगा।
“बहत कृपा है, गु जी,” रावण ने महिष के चरण म झुकते हए कहा।
“आयु मान भव,” िव ािम ने रावण को आशीवाद िदया।

“समझ नह आ रहा यह या करना चाह रहा है, गु जी,” अ र नेमी ने कहा।


“म भी उलझन म पड़ गया हँ,” िव ािम ने कहा। “पु पक िवमान के ई ंधन के
अित र गुफा पदाथ का एकमा उपयोग िवष के प म ही होता है।”
“हाँ। मगर यावहा रक ि कोण से यह बहत ही बेकार िवष है।”
अ र नेमी सही कह रहे थे। गुफा पदाथ बहत धीमे काम करने वाला िवष था। कोई
भाव पाने के िलए इसे अपने िशकार को कई स ाह तक िनयिमत प से देना पड़ता। और
अगर इसे शि शाली िवष के प म संशोिधत िकया जाता था तो इससे इतनी तेज़ दुग ध
आती थी िक सारा मक़सद ही ख़ म कर देती। अभी िशकार मील दूर से इसे संघ
ू लेता!
“शायद वो ऐसा एकमा यि बनना चाहता है िजसके पास उड़नयान है, भले ही
इसम वो कंगाल हो जाये। म समझता था िक रावण हमारा योजन िस कर सकता है। िक
वो यो य खलनायक बन सकता है। मगर यह तो ऐसा जान पड़ता है िक उसने खोखली शान
के आगे हिथयार डाल िदये ह,” िव ािम ने िनराश िदखते हए कहा।
“वो अभी भी हमारा योजन िस कर सकता है, गु जी। इतना सोना पास म होगा तो
हम ज़ोरशोर से दैवी अ क साम ी क अपनी खोज शु कर सकते ह।”
“सच है। मगर गुफा पदाथ लाना भी तो किठन है।”
“कृपया आप इसक िच ता न कर, गु जी,” अ र नेमी ने कहा। “म सुिनि त
क ँ गा िक हम िजतना पदाथ चािहए वो िमल जाये।”

“रावण, तुम पागल हो गये हो या?” मरीच ने छूटते ही कहा। मगर भानजे क कड़ी िनगाह
ने उसे िनय ण म रहने और अपने सुर को नीचा करने के िलए िववश कर िदया। “मेरी बात
सुनो, रावण, आज हमारे पास जो कुछ भी है, उसे बनाने के िलए हमने बहत मेहनत क है...
तुमने बहत मेहनत क है। ित खेप पाँच लाख वण मु ाएँ बहत अिधक ह। हम कभी नह
—”
“मेरे आंकड़े कभी ग़लत नह होते। मेरी गणना है िक अगर हम ज दी से ज दी दो सौ
पोत का बेड़ा तैयार कर ल और उ ह लगातार मु य यापा रक माग —मसाले, कपास,
हाथी दांत, धातु और हीर —पर चलाएँ तो तीन वष म अपना िनवेश वसल ू कर लगे। उसके
बाद तो बस िवशु लाभ है।”
“दो सौ पोत? रावण, मुझे तु हारा आ मिव ास पस द है, और तु हारी दूर ि म
हमेशा मेरी आ था रही है। मगर इस तरह का प रमाण तो अक पनीय है। और अ ब धनीय
भी। बहत अिधक जोिखम है।”
“इसके िवपरीत, प रमाण बढ़ने से हमारा जोिखम कम होगा।”
“िक तु, रावण, कभी िकसी यापारी के पास दो सौ पोत का बेड़ा नह रहा। यह
अनसुना है!”
“वो इसिलए िक इससे पहले कभी रावण नाम को कोई यापारी नह हआ।”
अकंपन ने बीच म पड़ने क कोिशश क । “तु ह िव ास है िक हम मलयपु से और
मोलभाव नह कर सकते? गु िव ािम और उनके अनुयायी बहत ही साधारण जीवन जीते
ह। मुझे समझ नह आता िक उ ह इतना धन िकसिलए चािहए। हो सकता है अभी भी मोलभाव
क कुछ गुंजाइश हो...”
“म िजस सौदे पर ह ता र कर चुका हँ, उससे पीछे नह हटूंगा,” रावण ने ढ़ता से
कहा।
“तो िफर हम धीरे -धीरे िव तार कर सकते ह शायद? जैसे, बीस पोत से शु कर।
इसके िलए गुफा पदाथ क एक खेप पया होगी। हम देखगे िक यह कैसा काम करता है
और—”
रावण ने बात काट दी। “नह । हम दो सौ से ही शु करगे।”
“मगर, रावण,” अकंपन ने याकुलता से अपनी ढे र अंगिू ठय को घुमाते हए कहा। “दो
सौ पोत बनाने का मतलब है िक हम दस खेप चािहए ह गी। इसका मतलब है िक हम पचास
लाख वण मु ाएँ देनी ह गी।”
“सही है।”
“रावण, मेरी बात सुनो,” मरीच ने कहा। “पाँच लाख वण मु ाएँ ही स िस धु के
अिधकांश रा य के वािषक राज व से अिधक ह। इतना धन पाने के िलए हम वो सब कुछ
िगरवी रखना होगा जो हमने अिजत िकया है।”
“तो हम यही करगे।”
“दादा,” कु भकण बीच म बोला।
रावण छोटे भाई क ओर मुड़ा। “हाँ?”
“मेरे पास एक योजना है।”
“ या?”
“लोग मेरे सामने आराम से बात करते ह य िक उ ह लगता है िक म बालक भर हँ
और—”
“कृपया ज दी काम क बात पर आओ, कु भकण। तु ह पता है िक रावण को टेढे-मेढ़े
उ र पस द नह ह,” अकंपन बीच म बोल पड़ा। उसने पुि के िलए रावण को देखा, मगर
ु ि पाकर िसमटकर रह गया। कु भकण के िलए रावण के पास दुिनया का सारा समय
था।
“हम धन उधार लेने क आव यकता नह है,” कु भकण ने शा त भाव से कहा। “हम
उसे चुरा सकते ह।”
रावण ने िसर िहलाया। “अ छी योजना नह है। पचास लाख हािसल करने के िलए हम
बहत अिधक ल य को िनशाना बनाना होगा। और हर बार चोरी करते ही जोिखम बढ़
जायेगा।”
“ऐसा नह होगा, दादा। हम बस एक बड़े ल य को िनशाना बनाना होगा।”
“हम राजकोश को नह लटू सकते, कु भकण। उन पर बहत कड़ी सुर ा होती है।”
“म िकसी राजकोश क बात नह कर रहा हँ।”
“तो या भारत म िकसी राजा के अलावा भी कोई है िजसके पास पचास लाख वण
मु ाएँ ह ?” रावण ने उ सुक होते हए एक भकृ ु िट चढ़ाई।
“िच का का ा तपाल कचबाह।”
मरीच के गले म इलायची के दूध का फ दा लगते-लगते बचा। “ कचबाह? हम उसे
कैसे लटू सकते ह? किलंग के सारे बेड़े हमारे पीछे लग जायगे। िह द महासागर म कह हम
िसर छुपाने का थान नह िमलेगा।”
“मगर, मामा,” कु भकण ने िवन ता से कहा, “यह धन वो है जो कचबाह ने
किलंग के राजा से चुराया है। वो बरस से राज व शु क म से पैसा मारता आ रहा है। इस धन
को वो अपने महल म एक भिू मगत ितजोरी म िछपाकर रखता है। वो यह कभी नह वीकार
कर पायेगा िक यह धन उसके पास था भी। िकसी चोर क चोरी करने म यही तो मज़ा है; वो
िशकायत ही नह कर सकता।”
“ह म...” रावण क आँख चमकने लग ।
“मने यह भी सुना है िक उसक बहत सारी स पि सुिवधाजनक प से अनमोल हीरे -
जवाहरात के प म है। छोटे, ह के, और चुराने म आसान। और उ ह बहत आसानी से िह द
महासागर के िकसी भी ब दरगाह पर वण म बदला जा सकता है।”
चेहरे पर गव भरी मु कान िलए रावण मरीच और अकंपन क ओर मुड़ा। “भाई िकसका
है!”
“िक तु, रावण,” अकंपन ने कहा, “हम ऐसे ही तो कचबाह के महल म नह घुस
सकते। वो भारत के सबसे अिधक रि त आवास म से है। और अिधकांश पहरे दार उसके
अपने देश नाहर के ह।”
मरीच ने अकंपन को जवाब िदया, जो अब इस योजना को लेकर जोश म आने लगा था।
“हाँ, मगर महल के र क का मुख ह त है।”
यह नाम सुनते ही रावण मु कुराने लगा। “वो तो मेरा ऋणी है।”
“िब कुल,” मरीच ने कहा। “तुमने एक बार उसक जान बचाई थी। और वो हमेशा से
तु हारे साथ काम करना चाहता है। यह सच िक वो लालची और िनमम है, उसे इस काम के
िलए एकदम उपयु बनाता है।”
“तो िफर तैयारी शु करते ह। एक माह म हम िच का क ओर कूच करगे।”
अ याय 8

“योजना तो अ छी लगती है, दादा,” कु भकण ने कहा।


कु भकण ारा कचबाह का ख़ज़ाना लटू ने का सुझाव िदये हए दो स ाह हो गये थे।
देर शाम गये दोन भाई अपनी रणनीित क समी ा करने के िलए लकड़ी के फ़लक मढ़े
रावण के िनजी पु तकालय म बैठे थे िजसम सह पांडुिलिपय का सं ह था।
ान का भारत म बहत मह व था। घर म पांडुिलिपय के छोटे-छोटे सं ह होना
असामा य बात नह थी, हाँ, बड़े , अ छे सं ह वाले पु तकालय केवल िव िव ालय और
मि दर म ही होते थे। कहा जाता था, और यथोिचत िव ास के साथ, िक िकसी यि के
िनजी सं ह म रावण से अिधक पांडुिलिप नह ह गी। और तो और, उसने वा तव म इनम से
अिधकांश को पढ़ा भी था।
“मने बनाई है,” रावण ने कहा। “िन स देह यह अ छी है!”
“हो सकता है, मगर हमारा ल य तो मने सुझाया था!”
“ठीक है, ठीक है,” रावण ने हँसते हए कहा। “तुम सब बात के राजा हो, कु भ।”
कु भ ने नाटक य ढं ग से िसर झुकाया और हँसने लगा। “म कुछ अ छा-सा पढ़ना
चाहता हँ, दादा। आप कुछ सलाह दगे?”
रावण ने अपने िवशाल पु तकालय म नज़र घुमाई। अपनी पांडुिलिपय को लेकर वो
बहत र ा मक था। वो िकसी को उ ह लेने क अनुमित नह देता था। अलावा कु भकण के।
ऐसी शायद ही कोई चीज़ होगी िजसके िलए वो कु भकण को मना करता होगा। “ य न
इसके बदले म तु ह एक किवता सुनाऊँ?”
“किवता?”
“हाँ।”
“िकसक िलखी?”
रावण मौन रहा। वो लगभग लि जत-सा लग रहा था।
कु भकण ने अपनी भ ह उठाई ं। “आपक िलखी, दादा?”
“हाँ।”
“हे माँ सर वती, यह चम कार कैसे हो गया? मुझे तो पता ही नह था िक आप
किवताएँ िलखते ह!”
“अब तुम चुप रहकर सुनोगे भी?”
“िब कुल!”
रावण ने एक प क उठाया, वो घबराया-सा भी था और उ ेिजत भी। उसने अपना गला
साफ़ िकया, िफर बोला, “इसका शीषक है 'सय ू एवं प ृ वी का ेम गीत'।”
“ या बात है! मुझे तो यह भाने लगी।”
“चुप रहो और सुनो, कु भ।”
“ मा करो, म ग भीर होने क कोिशश क ँ गा। वैसे भी किवता कहना कोई हँसी-
िठठोली नह है,” कु भकण शरारत से मु कुराया।
“यह किवता के साथ-साथ कहानी भी है। अब सुनोः
“सय ू एवं प ृ वी का ेम गीत
घटाएँ दौड़कर गय पवत क ओर...”
कु भकण ने टाँग अड़ाई। “अब वहाँ घटाएँ और पवत या कर रहे ह? मुझे तो लगा था
िक यह सय ू और प ृ वी के बारे म है।”
रावण ने कु भकण को घरू ा, िजसने तुर त मायाचना म हाथ जोड़ िदये थे।
“अब बीच म मत बोलना, बताए दे रहा हँ,” रावण ने कहा। उसने एक गहरी सांस लेकर
िफर से सुनाना शु िकया।

सूय एवं प ृ वी का ेम गीत


घटाएँ दौड़कर जाती ह पवत क ओर,
नेह से भर लेती ह उसे बाँह म,
झगड़ती ह उसका यान पाने को,
उचककर चम ू लेती ह उसके अधर को।
घटाओं को लगता है पवत है उन पर मोिहत
िक वो खड़ा है इतना ऊँचा तािक जाने न दे उनको
िक वो असहजता से खड़ा रहता है िन ल, ऋिषय क -सी शाि त
से,
य िक ती ा करता है ित वष वो उनक वापसी क ।
नह है कोई स देह उनके मन म :
िक पवत को ेम है उनसे।
दुखद है िक वो न जानगी कभी,
िक पवत को नह है उनक परवाह क़तई,
उसे चािहए तो बस उनक पोषणदायी वषा,
वो उचकाता नह है चम ू ने को उ ह,
वो तो ये करता है उ ह तोड़ने और अपना अभी पाने को
और जब तक वो यह समझ पाती ह,
बहत देर हो जाती है।

यह दुखद है िक नह बचती कोई घटा चेताने को दूसर को।

नदी दौड़ती जाती है समु क ओर,


उसका मन कहता है िक यही है िनयित उसक ।
वो बड़ी हई है सुन-सुनकर ेमकहािनयाँ,
कहािनयाँ अँधे और तकहीन जुनन ू क,
और इतनी हड़बड़ी म है वो िमलने को
अपने िपया से, ठहरती भी नह सोचने को।
मगर जब वो देखती है समु को,
उसक िवशालता, गहराई और शि को,
तो िझझक जाती है, भटक जाती है इधर-उधर।
मगर जीत जाता है ेम म पगा उसका मन
और वो ख़ुशी से समा जाती है उसक बाँह म।

दुखद है िक वो न जानेगी कभी


िक सागर को नह है ेम उससे क़तई,
िक वो तो खोया हआ है इतना अपनी िवशालता म
िक नदी को देखता भी नह ।
िक उसके ेमपण ू आिलंगन नह बदल पाते समु को,
िक जो जल वो पाती है समु से उपहार म
वो तो असल म उसे िदया है परोपकारी सय
ू ने।

यह दुखद है िक जब तक नदी जान पाती है सच,


वो खो चुक होती है अपनी पहचान तलक।

और िफर है यह प ृ वी
अ य से अलग, यह सोचती अिधक और महसस
ू करती है कम,
उसका मि त क उसके दय से अिधक शि शाली है,
वो देखती है सय ू को,
काशमान और ओज वी, एकाक और भ य,
िकतना कुछ है पास उसके मगर उड़ा देता है वो सब कैसे।
प ृ वी मगर है चतुर,
वो उठा लेती है सयू क यथ फक ऊजा,
पोसती है वयं को और बढ़ती है
च र से, मि त क से, तन और मन से।
इठलाती है वो अपनी ही चतुराई पर
और हािसल िकया है जो उसने अपने जीवन म।
वो डरती है सय ू से और उसक अथाह ऊजा से,
और खीझती है जैसे वो भोगता है ई र द अपनी भट को।

दुखद है िक वो न जानेगी कभी


िक जा सकता था सय ू
मगर िफर भी खड़ा रहता है त हा, तािक दे सके सव व प ृ वी को।
जलता है वयं, तािक पा सके वो लाभ इसका,
चाहता है िक आये िनकट, मगर जानता है िक आ नह सकता,
वो जानता है िक उसका ेम है इतना िवकट िक जला देगा प ृ वी
को,
इसिलए खड़ा रहता है वो दूर, और सराहता है अपनी ि या को।

यह दुखद है िक नह है कोई जो बताए प ृ वी को


बताए उसे िक िकतना चाहता है सय
ू उसको।

रावण ने प क रख िदया और अपने भाई क िति या क ती ा करने लगा।


कु भकण िवचारम न िदख रहा था।
“दादा, बहत सश थी यह,” पल भर बाद उसने कहा।
रावण मु कुराया। “तु ह अ छी लगी?”
“म तो मर िमटा! मेरा िव ास कर, दादा, एक समय आयेगा जब महादेव और िव णु भी
इस किवता को उ त ृ करगे!”
रावण हँसने लगा। “तुम िन य ही मुझसे बहत ेम करते हो, न हे भाई...”
“वो तो करता हँ! मगर सच म, दादा, आप संगीत बजा सकते ह, गाते ह, किवता
िलखते ह, आप यो ा ह, आप सम ृ ह, आप िव ान ह, आप अ य त बुि मान ह। इतनी बड़ी
दुिनया म आपके समान कोई नह है!”
रावण ने गव से सीना फुला िलया। “िब कुल सही। मेरे समान कोई नह है!”
दोन हँस पड़े ।

कचबाह को लटू ने का िनणय िलए हए एक माह बीत गया था। रावण और उसके दल को
अगले िदन गोकण ब दरगाह से या ा ार भ करनी थी। उस गित को देखते हए िजससे
उनका पोत चलता, उ ह कुछ ही िदन म िच का पहँच जाने क आशा थी। अकंपन, मरीच
और सौ सैिनक उनके साथ जा रहे थे। कु भकण ने भी साथ चलने का आ ह िकया था, और
उसे रोकने क कुछे क नाकाम कोिशश के बाद रावण ने हार मान ली।
मरीच और अकंपन पहले ही ह त से समझौता कर चुके थे। वो कचबाह क स पि
चुराने म रावण क सहायता करता, और िफर उनके साथ ही िच का को छोड़ देता। सबसे
मौके क बात यह थी िक कचबाह हाल ही म अपने वदेश नाहर गया था जो दजला और
िफ़रात के बीच ि थत था। िच का से आधी दुिनया दूर।
तािवत लटू से पहले वाली रात को रावण ने अपनी मँुहलगी वे या डिडिमकली के
पास जाने का िनणय िलया, जो गोकण के सबसे उ कृ वे यालय क सबसे महंगी वे या
थी। रावण को केवल सव े ही चलेगा!
वो पलंग पर लेटा हआ था, एक चादर उसक कमर तक पड़ी हई थी। डिडिमकली पेट
के बल लेटी थी, उसका िसर रावण क जंघाओं पर रखा था। एकदम िनव । वो लचीली और
कमनीय काया क थी, िजसके उभार सभी सही जगह पर थे।
“मुझे नह लगता कल म ठीक से चल भी पाऊँगी,” वो िखलिखलायी। वो रावण क
ओर मुड़ी और ऊपर आयी। “मगर लगता है िक तुम तो और के िलए तैयार हो गये हो।”
रावण ने अपनी बाँह फै लाय और पोर चटकाए। “मुझे नह लगता तुम इसे ले सकोगी।”
डिडिमकली ने यार से उसके चेहरे को देखा। “तुम जानते हो िक म तुमसे कुछ भी ले
सकती हँ।”
रावण परे देखने लगा। ऊबा हआ-सा। डिडिमकली का ेम लगातार चापलस ू ी भरा होता
जा रहा था। उसका मन उस कु े क ओर भटक गया िजसे कुछ महीने पहले उसने मार डाला
था। वो जो हर समय उसके पीछे िफरता रहता था।
खजैला, दयनीय िदखने वाला जीव। िघनौना। उसे उसके क से छुटकारा िदलाना
आव यक था।
“रावण?”
रावण ने उ र नह िदया। वो अपनी सांस पर यान केि त कर रहा था। ल बे समय
से सोया पड़ा एक पशु धीरे -धीरे उसके अ दर कसमसाने लगा था।
“रावण,” डिडिमकली हौले से बोली। “मुझे लगता म तुमसे ेम करती हँ।”
रावण को महसस ू हआ िक उसके अ दर का पशु जाग गया है।
डिडिमकली थोड़ा-सा उठी और उसने अपने न न व उससे सटा िदये। उसक आँख
से ेम टपक रहा था। “तु ह मुझे बताने क आव यकता नह है िक तुम भी मुझसे ेम करते
हो। म समझती हँ। म बस यह चाहती हँ िक तुम जान लो िक म तुमसे ेम करती हँ।”
“तुम तक या रही हो?” रावण ग़ुराया।
वो जानता था िक उसक सांवली वचा अिधकांश ि य को आकषक लगती है। मगर
उसके चेहरे के चेचक के िनशान हमेशा उसे असहज कर देते थे। वो दाढ़ी-मंछ ू बढ़ा रहा था
तािक अिधकािधक िनशान को िछपा सके।
डिडिमकली उसे तकती रही। “म देख रही हँ तु हारा सु दर मुखड़ा...”
वो िनकट आयी, उसने अपने ह ठ गोल कर िलए थे चु बन के िलए। रावण ने उसे बाल
से पकड़ा और उसके िसर को पीछे ख च िदया।
“तू मेरे चेहरे के िकस िह से को देख रही थी?” उसने पछ ू ा।
डिडिमकली जानती थी िक कभी-कभी रावण को उ ता अ छी लगती थी। वो िसर के
पीछे हाथ बाँधकर पलंग पर लेटी रही। परू ी तरह समपण करते हए। “म तु हारी दासी हँ। तुम
मेरे साथ जो चाहे करो।”
रावण को इ छा ने वश म कर िलया था। इ छा यह जानने क िक डिडिमकली के चेहरे
क सु दर वचा को उतारना और उसके नीचे मौजदू गुलाबी मांस को देखना कैसा लगेगा।
उसे धीरे -धीरे काटना। ऊतक और धमिनय को कतरना। अि थय तक पहँचना। अि थय को
काटना। उ ेजना से उसे अपनी सांस तेज़ होती महसस ू हई ं। उसके अ दर का पशु अब दहाड़ने
लगा था।
रावण क उ ेजना से बेखबर डिडिमकली एक बार िफर उसके िनकट िखसक । उसने
धीरे से रावण को चम ू ा। वयं को अिपत करते हए। अधीनतापवू क।
रावण ने उसके ह ठ को काट िलया। ज़ोर से। र िनकालते हए। वो चीख़़ी नह । शा त
रही। रावण के कुछ और करने क ती ा करती।
रावण क सांस तेज़ हो गयी थ । उसका शरीर माँग कर रहा था िक जो उसने शु
िकया है उसे समा भी करे । वो मदहोश-सा हो रहा था। िफर उसके मन के िकसी गहरे कोने
से उसे एक कोमल आवाज़ सुनाई दी।
दादा...
कु भकण क आवाज़। मासिू मयत से भरी। और भय से भी।
नह । इसे नह । म यहाँ इसे शा त नह रख सकता। कु भकण जान लेगा...
लेिकन उसके अ दर का पशु और जोर से गुराया।
इसे शा त रखने के िलए मेरे पास धन है।
उसने डिडिमकली क िव ास से भरी आँख को देखा। उसके िसकुड़े ह ठ को। उसके
ऊपर-नीचे िगरते व को।
इसे यह चािहए। यह इसक माँग कर रही है। यह दयनीय है। िघनौनी। इसे इसके क
से मिु िदलानी होगी।
उसने अपनी बाँह उसके िगद कस द । उसे दबाते हए। वो हौले से कुनमुनाई। मगर
िशकायत नह क ।
“म तु हारी हँ। तुम जो करना चाहते हो कर लो...”
अचानक रावण ने अपने मन म एक िचर-प रिचत, शा त आवाज़ सुनी।
तमु इससे बेहतर कर सकते हो।
क याकुमारी क आवाज़। जीिवत देवी क आवाज़।
उसक नािभ फड़कने लगी, पीड़ा बढ़ गयी थी।
रावण ने डिडिमकली को एक ओर धकेला, और कूदकर पलंग से बाहर आ गया।
डिडिमकली ने उसे रोकने क कोिशश म उसक ओर हाथ बढ़ाया। “ या हआ? मने या कह
िदया?”
“मुझसे दूर हटो!” वो फुफकारा।
डिडिमकली क आँख भर आय । “मुझे छोड़कर मत जाओ... कृपा करो...”
रावण मुड़ा और उसके चेहरे पर जोरदार थ पड़ जड़ िदया। बबरता से। वो पलंग पर िगर
गयी तो उसने अपने व उठाए और आँधी-तफ़ ू ान क तरह क से िनकल गया।

रावण और कु भकण पोत के ऊपरी तल पर खड़े हए सु दर य को सराह रहे थे। उ ह ने


अभी-अभी िच का झील म वेश िकया था। मरीच और अकंपन िनचले तल पर थे, और झील
के बीच बीच ि थत एक छोटे से ीप नलबण क ओर बढ़ते पोत क गित का िनरी ण कर
रहे थे।
परू ा ीप कचबाह के उपयोग के िलए आरि त था। ीप के बीच म एक पहाड़ी के
िशखर पर उसका महल था। वो पहाड़ी मानव-िनिमत थी, िजसे िच का झील से िनकाली गयी
िम ी से बनाया गया था तािक झील का पानी गहरा हो जाये और उसम बड़े पोत आ सक।
महल के आसपास क अिधकांश भिू म को अनछुआ छोड़ िदया गया था। जंगली और हरी-भरी।
नलबण जैिवक-गम थल भी था जहाँ शीत वासन के दौरान भारी सं या म िविभ न
जाित के प ी आते ह।
कचबाह को अपने काम के ित समिपत एक साधारण आदमी के प म देखा जाता
था। कृित माँ के ित उसका प आदर और ा तपाल के साधारण से महल ने किलंग के
राजा के सामने उसका मुखौटा बनाए रखा था और उसके ाचार पर पदा डाले रखा था।
सच तो यह था िक वो किलंग के राज व से लटू ा अपना अवैध धन लेकर शी ही यहाँ से जाने
क योजना बना रहा था। उसने पया धन जमा कर िलया था और उसका इरादा था िक इस
धन से एक सेना बनाकर नाहर को जीतेगा। उसक दीघाविध क योजना अपने देश पर राज
करने क थी।
मगर वो यह नह जानता था िक लंका का एक नया-नवेला यापारी उसक योजना
को चौपट कर देने वाला है।
“तु ह मेरे िनदश याद ह ना?” रावण ने अपने भाई से पछ
ू ा।
“याद ह, दादा, मगर म आपके साथ नह चल सकता?”
“नह , तुम नह चल सकते। हम इस पर पहले ही बात कर चुके ह। अब मेरे िनदश
दोहराओ।”
“हम ीप क सहायक जेटी पर जायगे और थाईलड के यापा रक पोत के प म
अपना बीजक दगे। आप सब रीते स दूक लेकर जायगे िज ह कचबाह के वण और
अनमोल हीरे -जवाहरात से भरगे। िफर आप उ ह वापस पोत पर ले आयगे।”
रावण हँसा और उसने कु भकण के बाल सहरा िदये। “कु भ, यह तो मुझे करना है।
मुझे वो बताओ जो तु ह करना होगा।”
“ओह, वो, हाँ... तो, म जेटी पर आपक ती ा क ँ गा। अगर मुझे संकट का कोई िच
िदखेगा, तो म पोत का भ पू बजा दंूगा और पोत लेकर यहाँ से िनकल लँग ू ा। म ीप के दूसरी
ओर मु य जेटी पर आपक ती ा क ँ गा। और आप लोग मुझे वहाँ िमलगे।”
कुछ माह पहले जब एक जलयान अपने प रचालनत का िनय ण खोकर मु य
जेटी से टकरा गया था तो वो ित त हो गयी थी। उसक मर मत का काम चल रहा था
और सारे यातायात को सहायक जेटी पर भेजा जा रहा था।
“ये सही है। तो म यहाँ तु हारे साथ कुछ आदिमय को छोड़कर जा रहा हँ। लेिकन अगर
कोई संकट आये तो तुम अनाव यक प से कोई बहादुरी नह िदखाओगे। तुम पोत लेकर
चले जाओगे और ित त मु य जेटी पर मुझे िमलोगे।”
“हाँ, दादा।”
रावण कु भकण के िनकट झुका। “वचन दो िक तुम पोत लेकर चले जाओगे और कोई
मखू ता नह करोगे।”
“मने या कभी आपके िनदश क अव ा क है, दादा?” कु भकण ने आहत िदखते
हए पछ ू ा।
“अ सर,” रावण ने उपहास करते हए कहा। “चलो, वचन दो। भगवान क शपथ
लो।”
“दादा! म इतनी लापरवाही से भगवान क शपथ नह ले सकता।”
“शपथ लो!”
“ठीक है! म भगवान क शपथ लेता हँ। संकट का पहला संकेत िमलते ही म पोत
लेकर चला जाऊँगा और मु य जेटी पर आपक ती ा क ँ गा।”
“शाबाश।”

“महान इ देव क सौग ध!” रावण ने िन कलंक गुलाबी हीरे को अपने हाथ म पलटते हए
आ य से कहा। “िव ास करना मुि कल है िक यह छोटा-सा प थर चार लाख वण मु ा का
होगा।”
हीरे का रं ग ही मह वपण
ू प से उसका मू य िनधा रत करता है। अगर िकसी ेत हीरे
से पीली आभा िनकले तो उसका दाम कम हो जाता है। अगर गुलाबी आभा िनकले, जो िक
बहत दुलभ होता है, तो उसके दाम बहत बढ़ जाते ह।
उस अनमोल हीरे को सराहने के िलए मरीच िनकट चला आया था। “इसे तो िकसी भी
ि से छोटा नह कहा जा सकता, रावण। मने आज तक इतना बड़ा हीरा नह देखा है।”
घबराया-सा चार ओर देखता अकंपन एक ओर खड़ा रहा।
“ऐसा नह लगता जैसे अ दर इसका र बह रहा हो?” स मोिहत से रावण ने पछ ू ा।
“हैरानी हो रही है िक इसने यह गुलाबी आभा पायी कैसे है?”
कोई नह जानता था िक हीरे को उसक रं गत य या कैसे िमलती है। कुछ कहते थे
इसका कारण हजार साल से प थर पर पड़ने वाला दबाव है। दूसर को मानना था िक
भकू प ारा उ मु हए भारी बल के कारण हीर का रं ग बदल जाता है। कुछ तो यह भी
मानते थे िक गुलाबी हीरा अशुभ होता है। बुरे कम का वाहक।
“तु ह पता है?” रावण ने अकंपन को हीरा िदखाते हए पछ ू ा।
“रावण, यह िनरथक है िक यह गुलाबी कैसे हआ। जब तक िक यह गुलाबी हो। अब
चलो। कृपा करके।”
रावण ह के से हँसा। “हमेशा ऐसे ही घबराते हो, अकंपन।”
वो उस छोटे से, गु क से बाहर िनकला िजसे बड़ी कौशल से एक मोटी दीवार म
बनाया गया था। उसने ह त को देखा, जो क के सुदूर कोने म खड़ा था। ह त के
िन ावान सैिनक उसके पास खड़े थे, उनक तलवार िखंची हई थ । र टपकाती। उनके
सामने घुटन के बल तीन िक नर बैठे थे। ा तपाल कचबाह के नाहरी सुर ा दल के
अंग। उनके शरीर पर घोर य णा के घाव थे जो उ ह तब तक दी गयी थी जब तक िक
उ ह ने उस गु क का थान नह बताया जहाँ अनमोल हीरे रखे गये थे।
रावण ने ह त को संकेत िकया। सैिनक ने तुर त अपनी तलवार घुमाई ं और तीन
िक नर का िसर धड़ से अलग कर िदया। रावण के िनदश प थे। कोई ऐसा गवाह न छूटे
जो लटू के अपरािधय को पहचान सके। महल के सब लोग —सुर ा दल, सेिवकाओं,
रसोइय , सेवक —को मार डाला गया था। बेरहमी से।
गत स ाह आधे सुर ा दल को अनेक वष म अिजत िन ा और भारी मा ा म वण
देने के लोभन से करने म ह त सफल रहा था। उसके सैिनक ने महल के दूसरे
नाह रय पर अचानक हमला बोल िदया था। चु त और सुघड़ता से।
बाहर िकसी को महल के अ दर हए नरसंहार क भनक तक नह थी। कचबाह को
गुमराह करने के िलए पहले ही महल म लाश लाकर डाल दी गयी थ । पहचान िमटाने के
िलए उनके चेहरे कुचल िदये गये थे। िच का के नाहरी ा तपाल को यह िव ास िदलाने के
िलए िक लटू के दौरान ह त और उसका सुर ा बल भी अपनी जान से हाथ धो बैठे थे।
यह ू र योजना थी। मगर स म और यावहा रक भी थी। जैसे वयं रावण था।
ह त के परामश पर रावण ने उन िमक को न मारने का िनणय िलया था िज ह
उ ह ने ा तपाल के आवास से कुछ दूरी पर ित त जेटी क मर मत करते देखा था।
खुले म उनक ह या करने म उजागर होने का जोिखम था। वैसे भी, िमक को महल या
सहायक जेटी के पास भी जाने क अनुमित नह थी। तो उनके ारा रावण और उसके दल
को पहचाने जाने क स भावना न के बराबर थी।
रावण के आदमी पहले ही बड़े -बड़े स दूक म वण भरकर ले जा चुके थे। इ ह इस
समय पोत म लादा जा रहा था। वो मरीच, अकंपन और कुछ और लोग के साथ अनमोल हीरे
लटू ने के िलए क गया था। य िक मा ये हीरे ही बीस लाख वण मु ाओं से कुछ अिधक
के थे।
रावण आगे बढ़ा और तीन िक नर क िसर कटी लाश को घरू ने लगा। नाहरी
िक नर। जब उनक खुली गदन से र बहे जा रहा था, तो वो िन ल खड़ा रह गया,
लगभग स मोिहत-सा। अपने सामने मौजदू ख़न ू ी य क ओर िखंचा-सा।
वो आगे झुका। और िविभ न धमिनय को पहचानने क कोिशश करने लगा िजनसे
गाढ़ा लाल व फूट-फूटकर बह रहा था। शरीर बेजान हो गये थे। मगर उनके दय को शायद
अभी तक इसका पता नह चला था। वो अभी भी र वािहत कर रहे थे। ीणता से। मगर
अभी भी उन िसर को र भेज रहे थे जो अब वहाँ नह थे।
अकंपन ने रावण क भुजा को छुआ। “रावण...”
रावण झटके से अपने क पनालोक से बाहर आया और उसने हीरे को अपने कमरब द
म बँधी एक थैली म डाल िलया जहाँ यह दूसरे हीर से टकराया। उसने गहरी सांस ली और
दूसरे लोग को देखा। “चलो।”
ठीक तभी, पोत का भ पू बज उठा। ती ता से। हठपवू क।
“भागो!” रावण िच लाया।
सब तुर त हरकत म आ गये। उ ह पता था िक उ ह या करना है। योजना प थी।
उ ह अपने घोड़ क ओर भागना था और हवा से बात करते हए मु य जेटी क ओर जाना
था। वहाँ रावण के पोत म कु भकण उनक ती ा कर रहा होगा।

“ह या!”
रावण और उसके आदमी तेज़ी से घोड़े दौड़ा रहे थे। दस के दस। मरीच आगे था। रावण
सबसे पीछे था। वो पहाड़ी से उतर रहे थे, परू े वेग से।
“दािहनी ओर!” मरीच संकेत करते हए िच लाया।
एक दोराहा आ रहा था। दािहनी ओर क सड़क पहाड़ी के नीचे ित त जेटी को
जाती थी। दूसरी वाली सीधे सहायक जेटी को जा रही थी जो बहत दूरी पर िदखाई दे रही थी।
जहाँ रावण का पोत होना चािहए था। मगर अब नह था। पहाड़ी पर ऊँचाई से उ ह वहाँ खड़ा
एक और बड़ा पोत िदख रहा था। वो अभी पहँचा होगा, य िक उसके पाल अभी खुले हए ही
थे। और वज भी। यह कचबाह का पोत था। वो ज दी वापस आ गया था।
“और तेज़!” रावण िच लाया।
वो सहायक जेटी से बहत वेग से आते घुड़सवार को देख रहा था। मु य सड़क पर
आते हए। ऊपर पहाड़ी पर। उनक ओर। शायद कचबाह को आभास हो गया था िक कुछ
गड़बड़ है।
“दूसरी जेटी क ओर!” अकंपन िच लाया। वो समहू के बीच म था। इतना घबराया हआ
जैसे कोई िब ली गम तवे पर बैठ गयी हो।
घोड़े लहराते हए दािहनी सड़क पर मुड़ गये। घोड़े से पहाड़ी से जेटी तक क दूरी कोई
पाँच िनिमष क थी। रावण सीधी सड़क से उनक ओर आते अि म टोही को देख सकता था।
वो कचबाह का आदमी था।
रावण ने यान म से खंजर िनकाला, घोड़े क रास मँुह म दबाई और पल भर के िलए
यान केि त िकया। सांस थामकर उसने घुड़सवार पर खंजर फका। वो उस आदमी के गले
म जा घुसा। जब वो अपने घोड़े से िगर रहा था, तब रावण लहराता हआ दािहनी ओर मुड़ गया,
अपने आदिमय के पीछे ।
“ह या!”
जब घनी व य वन पित के बीच से होते हए वो धड़धड़ाते हए ित त जेटी क ओर
बढ़े जा रहे थे, तो रावण सड़क को अिधक प देख पा रहा था। अब जेटी तक क सीधी
सड़क थी िजसका अथ था िक वो कचबाह के घुड़सवार धनुधर का आसान ल य ह गे।
और वो पंि म सबसे पीछे था। पहला ल य।
धत!
तेज़ी से सोचते हए उसने अपने क धे पर बँधी डोरी को ख चा और पीठ पर बँधी ढाल
को ऊपर क ओर ख च िलया। पीठ पर लगे तीर से तो वो बच जायेगा। मगर गदन म लगे
तीर से नह ।
जेटी बस कुछ ही दूर थी। सड़क संकरी होती जा रही थी। इसका अिधकांश भाग
ब दरगाह क मर मत के िलए बँधे मचान ने घेर िलया था। मचान पर कुछ पु ष खड़े हए थे,
जबिक कुछ सड़क के पास खड़े थे। घुड़सवार दनदनाते हए आगे िनकल गये।
“हटो!” उनके पास से िनकलते हए मरीच िच लाया।
अचानक घबराकर िमक दौड़कर रा ते से हट गये। एक बहत ही अभागा यि
अकंपन के घोड़े के नीचे आ गया। मगर घुड़सवार ने गित कम नह क । अकंपन के पीछे आ
रहे कई घोड़े उस आदमी को र दते चले गये। जब तक रावण िनकला, वो कुचलकर चटनी
बन चुका था।
चँिू क जेटी पर पोत को बाँधने के िलए कोई त भ नह थे, इसिलए कु भकण ने
नािवक से लंगर डलवा िदये थे। छोटे लंगर क सहायता से वो पोत को जेटी के िजतना
िनकट ला सकता था, ले आया था। नािवक म सबसे बिल आदमी लंगर क रे खा के पास
खड़ा था, हाथ म बड़ा कु हाड़ा िलए हए तािक जैसे ही रावण और अ य लोग पोत पर आय वो
कु हाड़े के वार से मोटे र से को काट दे।
जेटी के िकनारे और पोत के बीच बहत बड़ा अ तराल था। मगर लंका के घोड़ को ऊँची
और ल बी कुदान लगाने के िलए िशि त िकया गया था। िवशेषकर ऐसे अवसर पर िजनम
शी भागना आव यक हो। जैसे िक अब।
ित त जेटी से सरपट भागते हए मरीच ने अपनी गित कम नह क ।
“ह या !”
उसने अपने घोड़े को चाबुक मारा, िजससे वो और तेज़ भागने लगा। तेज़ और तेज़। जेटी
के ठीक िकनारे पर पहँचकर वो िच लाया, “दश!”
दश सं कृत म दस के अंक को कहते ह। कोई नह जानता था िक जब घोड़ को
िशि त िकया जा रहा था तो रावण ने इसी श द के िलए आ ह य िकया था, मगर उसके
आदिमय ने हमेशा क तरह िबना िकये उसक आ ा का पालन िकया था।
मरीच का घोड़ा इस आदेश को अ छी तरह जानता था, और उसने आगे कुदान लगा दी।
ऊँची और ल बी। वो सफ़ाई से पोत के तल पर उतरा। मरीच कुछ हाथ आगे तक घोड़ा
दौड़ाकर ले गया, तािक उसके पीछे आने वाल के िलए थान बन जाये।
एक के बाद एक घुड़सवार पोत पर कूदते रहे । ह त के नाहरी सैिनक म से एक ने
समय का अनुमान ग़लत लगा िलया। उसका घोड़ा पीछे रह गया और पानी म जा िगरा।
सैिनक का िसर ज़ोर से पोत के फ े से टकराया और उसक गदन टूट गयी। वो तुर त मर
गया। कोई उसे देखने को नह ठहरा। उनके पास समय नह था।
“चलो!” मरीच िच लाया। अब वो घोड़े से उतरकर पोत क कगार पकड़े खड़ा था।
ह त ती ता से आगे आया, उसक कूद का समय िब कुल सटीक था, और वो सुरि त पोत
म उतर गया। अगला रावण था। अि तम।
कचबाह और उसके आदमी िनकट आते जा रहे थे। बस दो सौ मीटर दूर थे।
“शाबाश, दादा!” कु भकण िच लाया।
कचबाह के एक धनुधर ने अपने घोड़े क रास मँुह म दबाई, धनुष को अपने सीने के
सामने जमाया, और तीर छोड़ िदया।
यह हवा म छोड़ा तीर था। तेज़ी से भागते एक ल य पर।
तीर घोड़े क पीछे क दािहनी टाँग के िनचले िह से क मांसपेशी म लगा था। उसे
काटता चला गया था। देखने म यह कोई बड़ा घाव नह था। र भी न के बराबर िनकला
होगा। मगर इसने ती गित से भागते पशु को ीण कर िदया। बेकार और भार उठाने म
अ म हो गयी दािहनी टाँग ढह गयी। और अपनी भयंकर गित के कारण घोड़ा बहत ज़ोर से
िगरा, उसका िसर धरती पर लगा, और गदन बहत ही अ वाभािवक कोण पर मुड़ गयी थी।
हमेशा चौकस रहने वाला रावण पहले ही वयं को रकाब से मु कर चुका था। घोड़े के
धराशायी होते ही चु ती से उससे उतरते हए वो लुढ़कते हए उससे दूर गया और लगभग
तुर त ही उठकर खड़ा हो गया। वो उसी चु ती से आगे क ओर दौड़ पड़ा।
“दादा!” कु भकण के वर म िच ता और भय समाया हआ था।
उसके पास खड़े सब लोग के मन म समान िवचार था।
रावण आ नह पायेगा।
मरीच ने कु भकण को और िफर रावण को देखा। “भगवान दया कर...”
कोई भी पु ष िकसी भी तरह उस अ तराल को कूदकर पार नह कर सकता था िजसे
नापने म अिधकांश घोड़ को परू ा ज़ोर लगाना पड़ता है।
मगर यह कोई साधारण पु ष नह था। यह रावण था।
वो दौड़ता हआ जेटी पर गया। आगे भागता, िकनारे क ओर। ब दरगाह के उस
भारो ोलक क ओर जो पोत पर माल लादता था। महीन से इसका योग नह हआ था।
मगर अब एक अ यािशत शैली म इसका योग होने वाला था।
कचबाह के आदमी अभी भी उस पर तीर क बौछार कर रहे थे। कुछ रावण के पास
से िनकल गये। कुछ बाल-बाल चक ू गये। मगर अपने ल य पर कोई नह लग पाया।
जेटी के िकनारे के पास आकर रावण ऊँचा उछला और उसने भारो ोलक का कुंडा
पकड़ िलया। एक टाँग से उसने िघर को ठोकर मारी। उसक समय क गणना एकदम ठीक
थी। िघर तेज़ी से घमू ी, और उसका र सा खुल गया। कुंडे को पकड़कर रावण ने पानी के
ऊपर, पोत क ओर छलांग लगाई, तीर अभी भी उसके आसपास आ रहे थे।
कु भकण और शेष दल अपने थान पर जड़ खड़े थे। इस उ ेजना भरे दशन से
स मोिहत से।
उिचत ऊँचाई पर पहंचते ही रावण ने वेग हािसल िकया, अपने शरीर को आगे क ओर
झुलाया, और कुंडे को छोड़ िदया। वो हवा म ऊँचा उड़ा, और िफर आराम से पोत के तले पर आ
िगरा। अपने िगरने पर रोक लगाने के िलए वो लुढ़का और तुर त ही अपने पैर पर खड़ा हो
गया।
उसके आदमी उसके आसपास खड़े थे, िवि मत । मौन।
“चलो!” रावण िच लाया।
कु भकण लंगर के र से के पास खड़े आदमी क ओर मुड़ा। “काट दो इसे!”
नािवक ने कु हाड़ा घुमाया और एक शि शाली वार म उसने मोटा र सा काट िदया।
छोटे लंगर तेज़ी से खुल गये।
“खेओ अब! झटपट!” कु भकण ने आदेश िदया।
उसके आदेश पर, नीचे के तल पर बैठे गित िनधारक ने अपने नगाड़े बजाने शु कर
िदये। नािवक ने एक साथ खेना शु कर िदया था। पोत धीरे -धीरे आगे बढ़ने लगा। जेटी से
बाहर िनकलते हए।
कचबाह के आदमी उन पर तीर क बौछार िकये जा रहे थे।
“झुक जाओ!” रावण िच लाया।
सारे लोग पोत के कगार के पीछे िछपते हए घुटन के बल बैठ गये।
“और तेज़!” कु भकण ने आदेश िदया। गित िनधारक ने ताल तेज़ कर दी और
खेवनहार ने गित पकड़ ली।
“पाल खोल दो!”
एक नािवक जो त बू के पीछे िछपा हआ था, उसने िघर घुमानी शु कर दी। यह
अिभयाि क का ऐसा आिव कार था िजसे रावण ने सटीकता दी थी। यह तल पर लगी िघर
के मा यम से फ़टाफ़ट पाल को खोल देता था। पाल शी ही फै लने लगा था। ज दी ही इसम
हवा भर जाती।
पोत आगे बढ़ा, तो रावण कचबाह के आदिमय क दूर से आती ु आवाज़ सुन
सकता था। कगार के पीछे सुरि त उसने कु भकण को देखा और मु कुरा िदया।
मरीच ने रावण का क धा थपथपाया। “हम सफल रहे , रावण! हम सफल रहे !”
रावण मु कुराया। वो खड़ा हआ और उसने दूर खड़े कचबाह के आदिमय क ओर
अ ील-सा इशारा िकया। एक नाहरी ने तीर मारा जो सनसनाता हआ उसके चेहरे के पास से
िनकला।
मरीच ने अपने भानजे को नीचे ख चा। “ या कर रहे हो तुम? हम अभी संकट से बाहर
नह िनकले ह। नीचे रहो!”
रावण का चेहरा पीला पड़ गया था, उसका शरीर िविच प से िन ल था।
“दादा?” कु भकण ने िचि तत भाव से रावण के शरीर पर घाव को टटोलते हए कहा।
रावण ने कु भकण को एक ओर धकेला और िफर से खड़ा हो गया। उसक िनगाह
िमक क ओर लगी थी जो मचान के पास दुबके हए थे। एक और तीर पास से िनकला।
मगर रावण िहला तक नह ।
मरीच ने उसे िफर से नीचे ख चा। “तु ह हआ या है? नीचे रहो!”
रावण लड़खड़ाकर तल पर िगर गया। वो ऐसा िदख रहा था जैसे उसने कोई भत ू देख
िलया हो। उसक सांस उखड़ रही थी। उसने मरीच को धकेला और िफर से खड़ा हो गया।
इस बार एक तीर उसके क धे से टकराया, और घातक बल से उसके अ दर घुस गया।
मगर रावण िहला तक नह । उसक आँख मचान पर िचपक गयी थ ।
“दादा!” कु भकण ने घबराकर िच लाते हए उसे िफर से नीचे ख च िलया।
उसने अपने बड़े भाई क आँख म अचानक भर आये आँसुओ ं को देखा।
“क...” रावण रो रहा था। “क या...”
इस बार, कु भकण खड़ा हो गया। उसने अपनी आँख िसकोड़ और तेज़ी से पीछे छूटते
िकनारे क ओर देखने लगा। मचान को। वहाँ मौजदू िमक को। िवशेषकर बीच म खड़ी एक
यि को।
वही थ ।
िच के आधार पर वो तुर त उ ह पहचान गया।
जब बाक़ सब दुबक रहे थे, तो वो अिडग खड़ी थ । सतर। उस जीिवत देवी क तरह जो
वो थ । कड़े शारी रक म के िच उन पर िदख रहे थे मगर िफर भी चेहरा तेजयु था। वो
पोत को जाते हए देख रही थ , उनके भाव भावशाली और शा त थे। उनसे मक ू ग रमा फूट
रही थी। लगभग ऐसी जैसे िक वो उनसे िहंसा कवा रही ह । अपने नैितक बल से।
कोई स देह नह हो सकता था। ये वही थ ।
एक और तीर सरसराता िनकला तो मरीच ने हाथ बढ़ाकर कु भकण को नीचे ख च
िलया। वो ोध से अपने भानज पर िच लाया, “तुम दोन को हआ या है?”
कु भकण ने रावण को देखा। उसने वो कहा िजसे कहने क शि रावण नह जुटा पा
रहा था। “क याकुमारी...”
मानो इस िद य श द से ऊजा पाकर रावण ने अपने क धे म घुसे तीर क डं डी तोड़ दी।
वो िफर से खड़ा हआ और पलट गया। झील म कूदने को तैयार। तैरकर उनके पास जाने को
तैयार।
“रावण!” अपने भानजे को पकड़ते हए मरीच चीख़़ा। “ब द करो यह पागलपन!”
“मुझे जाने द!” अपने को छुड़ाने क कोिशश करता रावण भरे गले से बोला। “मुझे
जाने द!”
पोत के सारे लोग अपने नायक को देख रहे थे। समझ नह पा रहे थे िक हो या रहा
है।
कु भकण ने कसकर रावण को पकड़ िलया। “दादा, आप अब वापस नह जा सकते!
आप मारे जायगे!”
“मुझे जाने दो!” रावण ने सबको धकेलने और उठ खड़े होने क कोिशश क ।
“दादा! कृपया मेरी बात सुिनए। आप उनके पास पहँचने से पहले ही मारे जायगे!”
“मुझे जाने दो!”
“म उनके िलए वापस आऊँगा, दादा! म उ ह ढूँढ़ लंग
ू ा!”
“मुझे जाने दो!” रावण ने हताशा से दोहराया।
मरीच इतना अचि भत था िक कुछ कह ही नह सका। उसने कभी रावण को इस हाल
म नह देखा था।
“दादा!” कु भकण अपने भाई को छोड़ने को तैयार नह था। “कृपया मुझ पर िव ास
कर। म उनके िलए वापस आऊँगा, दादा! म उ ह ढूँढंगा। म आपको वचन देता हँ। मगर अभी
आपको हमारे साथ रहना होगा।”
“मुझे जाने दो!” रावण क आवाज़ िबखरी हई थी। टूटी।
“दादा, म उ ह ढूँढूँगा। म वचन देता हँ।”
“मुझे जाने दो...”
पाल परू ी तरह फै ल चुका था और उसम हवा भर गयी थी। पोत ने गित पकड़ ली और वो
तट से दूर हो गया था। कचबाह के तीर से दूर।
उनसे दूर।
क याकुमारी से दूर।
“मुझे जाने दो...”
अ याय 9

एक महीने से भी कम म कु भकण वापस किलंग आ चुका था। नलबण ीप क दु साहसी


लटू के बाद उ ह ने उदास मनोि थित म लंका क या ा परू ी क । वो डे ढ़ िदन म गोकण पहँच
गये, और बहमू य सामान को झटपट उतारकर रावण के भवन के तलघर म िवशेष प से
बने और सुरि त क म रख िदया गया, िजस पर अित र सुर ा के िलए कई ताले लगे थे।
कु भकण तुर त ीप पर वापस जाने क तैयारी म लग गया। उसने एक नया पोत ख़रीदा,
िजसे िकसी भी तरह से रावण से नह जोड़ा जा सकता था। उसने दि णी अ क नौजवान
क एक छोटी टुकड़ी भी रख ली थी। यह सब कुछ तीन स ाह के भीतर कर िलया गया था।
िफर कु भकण दोबारा उ र िदशा म चल पड़ा। िच का झील क ओर। क याकुमारी क
ओर।
अब तक यह समाचार भी आने लगा था िक नाह रय के एक गुट ने िजसने िव ोह म
िच का के ा तपाल का साथ देने क योजना बनायी थी, अब ा तपाल के साथ
िव ासघात करके उसे ब दी बना िलया था। वो कचबाह को ब दी बनाकर उसे राजा को
स पने के इरादे से नाहर क ओर चल िदये थे। जब कोई िव ोह असफल हो जाये, तो िव ोिहय
के िलए समझदारी इसी म है िक वो राजा के प म अपने अगुआ के साथ िव ासघात कर द
और कम से कम अपनी खाल बचा ल। कचबाह ारा इतने बरस म जमा िकये गये धन के
िबना नाहर िव ोह समा हो चुका था।
िफर भी, कु भकण जानता था िक सीधे झील म पहँच जाना जोिखम भरा होगा। वो युवा
था, लेिकन दु साहसी नह था। िच का म अभी भी कचबाह के कुछ िन ावान हो सकते
थे।
इसिलए, कु भकण िच का के परे उ र क ओर बढ़ा। उसका इरादा था िक महानदी के
मुहाने के रा ते किलंग म वेश करे गा। लेिकन रा ते म उसने पुरी के िस जग नाथ
मि दर जाने का िन य िकया, जो दि ण म झील और उ र म नदी के म य ि थत था।
जग नाथ मि दर को भारत के सबसे पिव थल म माना जाता था। यह समु तट के
िनकट था और समु से प िदखाई देता था। कु भकण ने अपने पोत का लंगर डाला और
िफर एक नाव म अपने दस अ क अंगर क के साथ तट क ओर चल पड़ा।
तीस मि दर वाला यह मि दर प रसर दस एकड़ म फै ले प थर के िवशाल चबत ू रे पर
बना हआ था। के ीय मि दर जग नाथ मि दर था, जो भारत के सबसे ऊँचे और बड़े मि दर
म से एक था; और यह समिपत था सिृ के रचियता को। िव णु को। अ य सभी िव णुओ ं से
पवू के िव णु को। उन िव णु को जो साि न थे।
मि दर क प थर से बनी अ य अिधकतर मिू तय के िवपरीत जग नाथ क मिू त
लकड़ी क बनी थी। वा तव म, नीम के पेड़ क लकड़ी क । इसे हर बारह वष म एक नयी
तराशी गयी मिू त से बदल िदया जाता था।
काले रं ग क मिू त का िसर िवशाल था, जो सीधे छाती म से िनकलता था, िबना िकसी
य गदन के। बाँह ऊपरी ह ठ के समाना तर थ । आँख बड़ी-बड़ी और गोल थ । कमर वहाँ
थी जहाँ देह समा होती थी। न टाँग। न हाथ।
साि न िव णु, सही मायन म, गवाह थे। गहरा काला रं ग, ाचीन सं कृत म कृ ण
वण, इसक उ पि का सा य था, िक यह देवता काल के आर भ से भी पहले से थे। काश
क रचना से भी पहले। य िक काश क रचना से पहले सब कुछ अँधकारमय था। सब कुछ
काला था।
हाथ के न होने का अथ था िक वो वयं से कुछ भी कम नह करगे। टाँग के न होने
का अथ था िक वो िहलगे नह , न तो आपक ओर न आपसे दूर। वो तट थ थे। वो तु छ मानव
ित ि ताओं म कोई प नह लगे। वो िनजी पस द या नापस द से परे थे।
कुछ लोग का मानना था िक ई र को कोई िलंग देना ही ग़लत था। वो ऐसे तु छ
िवभाजन से परे थे। वो एक प थे। ोत थे।
सबसे मह वपण ू यह िक उनक पलक नह थ । उनक आँख हमेशा खुली रहती थ । वो
हमेशा देखते रहते थे।
पवू ज के अनुसार यह िद यता का उ चतम प था िजसे समझने म मानव स म हो
पाया था। य िक साि न िव णु आिद ाणी थे। काल के परे तैरते हए। सब कुछ के सा ी,
जैसे लोग जीवन-यापन करते ह और सिृ अपने कम को जीती है।
उनसे क जाने वाली ाथना भी असामा य थी।
भ मा आशीवाद लेने के िलए जग नाथ मि दर नह जाते थे। वो एक बड़े उ े य के
साथ जाते थे, जब वो अपना मुख कम करने को तैयार होते थे। यह सुिनि त करने िक
उनका कम आिद ाणी क मिृ त म दज हो जाये। साि न िव णु क मिृ त म जमा कम का
खाता ही िनणय करे गा िक भ को ज म और पुनज म के च से मुि ा होगी या नह ।
कु भकण का िव ास था िक वो अपने जीवन का सबसे महान कम करने जा रहा है।
वो िवशाल मिू त के आगे घुटन के बल बैठ गया। उसक कमर झुक हई थी। उसका िसर भिू म
को पश कर रहा था। वो म जप रहा था। बहत देर बाद वो उठा और उसने वही कहा जो
साि न िव णु का हर भ उनके सामने कहता है: “मेरे सा ी बनना, भु।”
जब म अपने जीवन का सबसे बड़ा कम क ँ तो मेरे सा ी बनना।

नलबण ीप क लटू को तीन साल हो चुके थे। बाईस वष य रावण एका ति य हो गया था
और िवरले ही बाहर िनकलता था। य िप अभी भी वो यापार से जुड़ा था और सभी मुख
रणनीितक मु पर िनणय लेता था, पर वो समु पर या या ाओं पर नह जाता था। वो गोकण
म ही रहता था, और पहाड़ी के ऊपर बने अपने भवन क ऊँचाइय से समु को देखता रहता
था। कु भकण क ती ा म।
इतने समय म, कु भकण किलंग से िनयिमत प से समाचार भेजता रहा था।
ब दरगाह क मर मत करने वाले िमक िजनके साथ उ ह ने क याकुमारी को देखा था
अब पि म क ओर चले गये थे, किलंग के और भीतर। अगली बार जब रावण को कु भकण
का स देश िमला, तो वो यह था िक उ ह ने मयरू ा ी नदी के िनकट वै नाथ म डे रा डाल
िलया है। यह किलंग से बहत दूर नह था।
इस बीच, रावण के िवशाल यावसाियक सा ा य का ब धन मरीच ने सँभालना
आर भ कर िदया था। उसने कचबाह से लटू े गये धन का उपयोग िवशालकाय नये पोत
बनाने म िकया। गोकण और आसपास के सव े पोत-िनमाताओं के काम करने क परू ी
मता रावण के काम म िल हो गयी थी। वो हर महीने पाँच या छह पोत हािसल कर रहा था;
यह एक अभत ू पवू घटना थी िजससे िह द महासागर के घेरे का परू ा यापा रक समुदाय
हत भ था।
धीरे -धीरे , रावण ने दो सौ पोत का बेड़ा बना िलया। मलयपु को गुफा पदाथ के िलए
अि म भुगतान कर िदया गया था। हर नये पोत क वसल ू ी िमलते ही रावण के आदमी उसे
उनवाटुन ले जाते थे, जो लंका के दि णी तट पर एक गु मंडप था। वो पोत को वहाँ ितरछा
िटका देते थे। उसके बाद गुफा पदाथ गँध ू ा जाता, उसम अ य अवयव िमलाये जाते, और परू ी
लगन से हर पोत के पेटे पर उसका लेप कर िदया जाता। यह एक ल बी और किठन ि या
थी। और इसे गु प से एक छोटा, वफ़ादार दल अंजाम देता था िजसे इसके िलए बहत अ छा
पैसा िदया जाता था।
जैसे-जैसे रावण का बेड़ा बड़ा होता गया, वैसे-वैसे ु तगामी या ा क उसक साख
बढ़ती गयी। िनमाताओं और कारीगर को उसके साथ काम करना लाभदायक लगने लगा।
वो जानते थे िक अगर वो रावण के पास जायगे, तो अ य यापा रय क तुलना म उनका
सामान कह ज दी पहँचेगा और झटपट िबकेगा। रावण के िनदश पर, मरीच ने अपने कह
अिधक े बेड़े का इ तेमाल करके िह द महासागर के य त यापा रक माग पर अ य
पोत को रोकना और लटू ना भी शु कर िदया था। लुटेरे पोत आँधी-तफ़ ू ान क तरह आते,
लि त पोत पर लटू पाट करते, नािवक क ह या करते और िफर उ ह डुबो देते तािक उनके
अपराध का कोई नामो-िनशान तक न रहे । उनके ारा न िकये कई पोत कुबेर के थे। कोई
सा ी न होने के कारण कोई इसे रावण से जोड़ ही नह सका। उनका मानना था िक ये हमले
समु ी लुटेर का काम ह।
िन स देह, रावण क योजना धन के िलए अ य पोत पर आ मण करने तक ही
सीिमत नह थी। समु म लुटेर के हमले के लगातार बढ़ते डर का लाभ उठाते हए उसने
ह त के नेत ृ व म वयं अपनी छोटी-सी सेना बनानी शु कर दी। उसने कहा िक यह
उसके अपने पोत के िलए सुर ा बल है। य िप िकसी यापारी के िलए िशि त सैिनक का
अपना दल खड़ा कर लेना एक असामा य-सी बात थी, लेिकन कई लोग का मानना था िक
अपने लाभ क र ा के िलए ऐसा करना उिचत ही है। कुछ अ य यापारी भी रावण के सुर ा
बल क सेवाएँ लेने लगे। इस तरह वो अपने सैिनक क सेवाएँ देकर धन ही नह कमाने
लगा, बि क उसके सैिनक उसे उसके ित ि य और उनक यापा रक योजनाओं क
जानकारी देने का ोत भी बन गये।
आय म अ य त तेज़ी से विृ होने लगी थी। रावण अब तक गोकण के सबसे धनी
यापा रय म शािमल हो चुका था। शी ही वो संसार के सबसे धनी यापा रय म से एक
बनने वाला था। इतना धनी िक प ृ वी के सबसे धनी यि कुबेर तक का उस पर यान
जाये।
यह जानते हए िक वो यह जोिखम नह ले सकते थे िक मलयपु को गुफा पदाथ के
वा तिवक उपयोग के बारे म पता चले, मरीच ने कुबेर से पु पक िवमान को प े पर लेने का
िन य िकया। उसने दाम पर जमकर मोलभाव िकया तािक यह एक िव सनीय सौदा लगे।
हमेशा यावहा रकता म िव ास करने वाला यापारी कुबेर आसानी से मान गया। िवमान को
चलाना इतना महंगा पड़ता था िक उसने उसका योग लगभग ब द ही कर िदया था। और
िनयिमत इ तेमाल म न रहने वाले िकसी भी अ य य क तरह वो भी धीरे -धीरे जंग खाने
लगा था। उसके ि कोण से कोई सौदा न होने से कोई भी सौदा बेहतर था।
जब मरीच ने पु पक िवमान अपने हाथ म ले िलया, तो सबसे पहला काम उसने यह
िकया िक कुबेर के ारा लगायी गयी सारी िवलािसताएँ उसम से हटा द । नम ग वाले
वणमंिडत पलंग और उ कृ भोजन बनाने के िलए सामान से लदी रसोई को हटा िदया
गया। िवमान से हर वो व तु हटा दी गयी िजससे यथ क समिृ क बू आती हो, िजसका
कोई यावहा रक मू य भी न हो। इन िवलािसताओं को हटा देने से िवमान का भार बहत कम
हो गया था। कम भार का अथ था िक िवमान को उड़ाने के िलए आव यक गुफा पदाथ क
मा ा म भी भारी कमी आना। इससे िवमान को चलाने क लागत कम हो गयी।
मरीच ने िवमान का योग भी सीिमत रखा था। अब इसका योग केवल दूर देश क
उड़ान के िलए िकया जाता था। जानकारी हािसल करने, और अ य त मू यवान मगर ह के
माल जैसे िक अनमोल हीरे जवाहरात के यापार के िलए। इन उड़ान पर कभी-कभी रावण भी
उसके साथ चला जाता था।
ऐसी ही एक या ा के बारे म मरीच रावण से बात करने आया था।
“आपको इस सच ू ना पर िव ास है?” रावण ने यायाम जारी रखते हए पछ
ू ा।
मरीच और रावण उसके भवन के पहले तल क दीघा म थे। मकान एक बड़ी-सी पहाड़ी
पर बना था जो समु म िनकल रही थी। िह द महासागर का यह सु दर य दान करता
था जो जहाँ तक आँख देख सकती थ , वहाँ तक फै ला हआ था। बि क उससे से भी परे तक।
रावण ितिदन सुबह सय ू नम कार करने यहाँ आता था, जो यायाम और आ याि मकता का
सटीक मेल था।
“हाँ, नािवक दि ण अ का का है,” मरीच ने कहा। “यह एकदम प क सच ू ना है। वो
िजन व तुओ ं क बात कर रहा है, उ ह उसने अपनी आँख से देखा है।
िजस आदमी क चचा हो रही थी वो लेथाबो था, उन अ क नािवक म से एक जो
कु भकण के साथ किलंग गये थे। वो कुछ माह पहले रावण के िलए एक स देश लेकर आया
था, मगर एक चोट ने उसे कु भकण के पास अपने थान पर लौटने से रोक िदया, जो िक
इस समय वै नाथ म था। मरीच उससे िमलने गोकण आयुरालय गया था जहाँ उसका उपचार
हो रहा था। और इस तरह उसे अ क महा ीप के दि णी छोर के िनकट अनमोल हीर से
भरी खदान के बारे म पता लगा था। एक िवशाल सपाट िशखर वाले पवत से िचि त, िजसे
थानीय लोग पीिठका पवत कहते थे।
“ह म...” अपनी िनयिमत िदनचया समा करते और सय ू देव को णाम करते हए
रावण उदासीन बना रहा।
“रावण, पु पक िवमान को वहाँ ले जाना उपयोगी हो सकता है। अगर हम कुछे क हीरे
भी िमल गये तो या ा क लागत तो वसल ू हो ही जायेगी। और अगर खान भी िमल गयी...
शेष म तु हारी क पना पर छोड़ता हँ।”
रावण दीघा के िकनारे चला गया और जंगले पर हाथ रखकर खड़ा हो गया। उसने
समु को और िफर दूर ि ितज को देखा।
“रावण?”
रावण मौन रहा।
“रावण, या िनणय है तु हारा?”
कोई उ र नह िमला।
मरीच ने गहरी सांस ली। वो अपने भानजे के पास गया और उसका क धा छुआ।
“रावण...”
“कु भ...”
“ या?”
रावण ने ि ितज के िकनारे पर एक पोत क ओर संकेत िकया। उसके पाल ऊपर थे।
एक वज फड़फड़ा रहा था। कु भकण का वज।
“इतनी दूर से तुम वज के िच कैसे पहचान सकते हो?” मरीच ने अिव ास से पछ ू ा।
“वही है। मुझे पता है वही है,” रावण ने कहा, उसका चेहरा स नता से चमक रहा था।
वो मुड़ा और अपने सुर ाकिमय को पीछे आने को कहते हए बाहर को दौड़ गया। वो
शी ता से एक पोत पर सवार होकर अपने छोटे भाई से िमलने जायेगा। वो इतना अधीर था
िक ती ा नह कर सकता था।
उसे ज दी से ज दी उनका समाचार पाना था।
क याकुमारी का समाचार।
“तु ह िव ास है?”
रावण िबना देर िकये गोकण ब दरगाह से कुछ समु ी मील दूर मौजदू अपने भाई से
िमलने चल पड़ा था। रावण के अचानक आने से कु भकण आ यचिकत रह गया था, मगर वो
अपने बड़े भाई क िच ता समझ सकता था। तीन वष बीत गये थे।
भावुक पुनिमलन के बाद रावण कु भकण को अलग ऊपरी तल के एक छोर क ओर
ले गया। और क बौछार कर दी। क याकुमारी के बारे म ।
“हाँ, दादा, मुझे िव ास है। मने वयं उ ह देखा है।”
रावण क आँख चमक उठ । “तुमने देखा उ ह?”
कु भकण मु कुराया। “हाँ। सौभा यशाली हँ!”
रावण भी मु कुराया। “िन स देह। मगर वो थान िकतनी दूर है?”
“िजस गाँव म वो रहती ह वो मु य भिू म म बहत अ दर है। वा तव म, वो वै नाथ
मि दर के िनकट है।”
“वै नाथ मि दर? सच? जब तुम छोटे थे तो हम कुछ िदन वहाँ के थे।”
“हाँ, जानता हँ,” कु भकण ने कहा। “माँ से सारी कहानी सुन चुका हँ।”
“िक तु वै नाथ मि दर तो थानीय क याकुमारी मि दर से बहत िनकट है, है ना?
इस थान का नाम या है? ि कूट? वो उसी थान पर एक साधारण ी क तरह रहने
वापस य जायेगी जहाँ कभी देवी के प म उनक पज ू ा होती थी?”
“ य तः, पवू क याकुमा रय के िलए उसी मि दर के आसपास बस जाना बहत
सामा य बात है जहाँ कभी वो जीिवत देवी के प म शासन करती थ । ऐसा केवल ि कूट के
क याकुमारी मि दर म ही नह बि क भारत भर म क याकुमारी के अ य अनेक मि दर म
होता है। मेरा अनुमान है बहत सारी पवू क याकुमा रय के आसपास रहने से अपने जीवन
का पुनिनमाण करने के िलए उ ह एक अवल ब उपल ध हो जाता होगा।”
“ह म,” रावण ने कहा, वो ठीक से सुन भी नह रहा था िक कु भकण या कह रहा
है।
मुझे तो बहत पहले ही वै नाथ जाना चािहए था। उ ह वह ढूँढ़ना सबसे अिधक
तकस मत बात होती। म भी िकतना मख ू था! इतने वष बबाद कर िदये।
“दादा...”
“ या?” रावण ने अपने मन को वतमान म वापस लाते हए पछ ू ा।
“म बस यह बताना चाहता था िक एक छोटी-सी सम या है।”
“कैसी सम या?”
“अं...”
“चलो, बताओ भी। ऐसा कुछ नह है जो तु हारा दादा सँभाल न सके।”
“दादा, क याकुमारी... वो... वो िववािहता ह।”
रावण ने हाथ िहलाकर इसे दरिकनार कर िदया। “अरे , यह कोई सम या नह है। हम
इसे सँभाल लगे।”
“सँभाल लगे? कैसे?” कु भकण िचि तत िदख रहा था।
“नादान मत बनो, कु भ,” रावण ह के से हँसा। “हम उनके पित को नह मारगे। कैसे
मार सकते ह? वो क याकुमारी के पित ह? हम उ ह ख़रीद लगे।”
“िक तु...”
“इसे तुम मुझ पर छोड़ दो। हम िकतनी ज दी वै नाथ के िलए िनकल सकते ह?”
“कुछ ही िदन म िनकल लगे।”
“बहत बिढ़या!”
कु भकण हँसा और उसने िठठोली करते हए रावण को णाम िकया। “जैसी आ ा,
इराइवा!”
इराइवा वो उपािध थी जो अकंपन रावण के िलए योग करता था। भारत के उ र-पि म
म सुदूर प तन ू े म ि थत अकंपन के देश म बोली जानी वाली भाषा म इसका अथ
'वा तिवक वामी' होता था। यह उपािध चल िनकली थी। रावण के अनेक नािवक अब उसे
इराइवा कहते थे।
रावण ने अपने भाई को गले लगा िलया और उसके बाल को सहरा िदया। रावण से नौ
वष छोटा होने के बावजदू कु भकण लगभग उसी के बराबर ल बा हो गया था।
“लेिकन आपने मुझसे सबसे अिधक सामा य तो पछू ा ही नह , दादा,” कु भकण
ने कहा। “मुझे लगता है म कुछ अिधक समय ही दूर रहा हँ। और समय के साथ आप धीमे
होते जा रहे ह।”
रावण कु भकण से दूर हटा और उसके माथे पर बल पड़ गये। “ या है वो?”
“एक बात जो आप हमेशा से जानना चाहते ह। पछू मुझसे। मेरे पास उ र है।”
समझ म आते ही रावण का चेहरा िखल उठा। “तु ह पता है? तु ह उनका नाम पता
है?”
ह के से हँसते हए कु भकण ने हामी भरी।
रावण ने अपने भाई के क धे थाम िलये। “बताओ मुझे, मख
ू ! या नाम है उनका?”
“वेदवती।”
रावण ने सांस रोक ली। इस अलौिकक नाम को गँज ू जाने िदया अपने कान म। अपने
शरीर म। अपनी आ मा म।
वेदवती।
वेद क ाता।
रावण अपने भाई से परे देखने लगा, समु क ओर। उसे लग रहा था मानो उस िद य
नाम के नाद से उसका दय फट जायेगा। उसे साहस नह हआ िक इसे ज़ोर से बोल सके।
उसक आ मा इसे सँभाल नह पाती। उसने इस नाम को हौले-हौले अपने मन क सीमाओं म
गँज
ू ने िदया।
वेदवती...
अ याय 10

दोन भाइय को अगली सुबह िनकलना था। भावी या ा के िलए उनके बेड़े के सबसे ु तगामी
पोत को तैयार िकया गया था।
सयू देव अपना काम समा करके िव ाम करने चले गये थे। सौभा य से, सोम देव ने
आगे क कमान संभाल ली थी। यह परू े चाँद क सु दर रात थी। समु के कुछ भाग और
गोकण का अित सु दर तट वहाँ िबखरी चाँदनी से जगमगा रहे थे। आकाश म लगभग कह
कोई बादल नह था, और तार भरी रात जड़ाऊ छ जैसी िदख रही थी। समु क ठं डी, नम
हवा इि य को शा त कर रही थी। नगर क ककश आवाज म म पड़ चुक थ । रावण ने
आकाश क ओर देखा।
हवा म यार क महक थी। और लुटेरे- यापारी ने उसे सांस म भर िलया।
“म कल तक ती ा नह कर सकता!” उसने थोड़ी और मिदरा पीते हए कहा।
कु भकण मु कुराया। उसने अपने भाई के साथ मिदरापान करने से इंकार कर िदया
था। उनक माँ घर पर थ ।
शंसा म अपने पा को ऊपर उठाते हए रावण ने अपने पेय के उ कृ वाद का
आन द िलया। िफर उसने बोतल को देखा। और िफर कु भकण के ख़ाली हाथ को देखा।
“सच म?” रावण ने पछ ू ा। “उ ह ने वा तव म तुमसे कहा िक मेरी बुरी आदत मत
अपनाना? कभी-कभी मुझे लगता है िक मुझे बस—”
कु भकण ने अपने बड़े भाई को टोका। “दादा, या सच म यह मायने रखता है? वो
हमारी माँ ह...”
रावण ने गहरी सांस ली। उसने थोड़ी मिदरा और पी।
य िप कु भकण अपनी माँ क इ छाओं का स मान करता था, कम से कम उनक
उपि थित म, लेिकन अपने छोटे बेटे के िलए कैकेसी क सदाशयी चेताविनय का उस पर
कोई भाव नह होता था। कु भकण रावण को पज ू ता था। उसका बड़ा भाई सदा से उसका
आदश रहा था। बुरी आदत? वो तो रावण क येक आदत का अनुकरण करना चाहता था।
एकमा चीज़ जो वो चाहता था िक उसका भाई न करे , वो थी उनक माँ का अपमान करना।
“तो, मुझे उनके बारे म और बताओ,” रावण ने कहा। “क याकुमारी...”
कु भकण ने देखा था िक उनका नाम जानने के बावजदू भी रावण वयं को वो नाम
बोलने के िलए तैयार नह कर पाता था। वो सोचने लगा िक वो रावण को वेदवती के बारे म
और या बता सकता है। वो उनके शारी रक प के बारे म तो बता ही चुका था। यह आ य
क बात थी िक वो रावण के बनाये िच क ी से िकतना मेल खाती थ ।
“वो सचमुच असाधारण ह, दादा,” कु भकण ने कहा। “आप जानते ह ना िक अिधकांश
लोग के िलए जीवन िकतना किठन है? कर बहत बढ़ गये ह और नौक रयाँ िमलना मुि कल
हो गया है।”
अिधकांश स िस धु रा य क यापारी-िवरोधी नीितय के नतीजे म यापा रक
गितिविधय म भारी िगरावट आ गयी थी। और िफर कर राज व म भी उतनी ही भारी िगरावट
आयी। साथ ही, सा ा यवादी यु के कारण राजक य यय भी बढ़ गया था। इसिलए कर क
दर बढ़ा दी गय । इसने यापार के भिव य को और धँुधला िदया और नौक रय के अवसर भी
भािवत हए। ऐसे हताशा भरे माहौल म, अपराध भी बढ़ गये थे। और हमेशा क तरह, इसक
चोट आम लोग पर पड़ी। देश भर म छोटे-छोटे िव ोह हो रहे थे, िवशेषकर रा य के शासक
क सेवा म लगे छोटे-मोटे साम त और भू वािमय के िव । पर अभी रावण को लोग क
ि थित म कोई िच नह थी।
“मुझे क याकुमारी के बारे म बताओ।”
“यह उसी से जुड़ा है, दादा। क याकुमारी के पित...”
रावण के जबड़े को िभंचते देखकर कु भकण चुप हो गया।
रावण ने एक ण को दूसरी ओर देखा और िफर वापस अपने भाई को देखा। “हाँ,
उसके बारे म या? ”
कु भकण ने आगे कहा, “उनका नाम प ृ वी है। वो भारत के सुदूर पि म म
बलोिच तान के यापारी ह, या थे। कई वष पहले वो वै नाथ म आकर बस गये और अनेक
यापार म हाथ आजमाया। िक तु उनको भारी घाटा ही हआ।”
“नाकारा।”
कु भकण ने रावण के ई यापण ू श द को िबना िकसी िट पणी जाने देने का फ़ै सला
िकया। उसने सुना था िक प ृ वी एक ईमानदार, सरल और िश आदमी थे। भले ही वो कोई
बहत चतुर यापारी न रहे ह ।
“ यापार म इन घाट के कारण,” कु भकण ने आगे कहा, “वो थानीय भू वामी के
भारी ऋणी हो गये। अब अपने ऋण को चुकाने के िलए वो उसके िलए काम कर रहे ह।”
“तो क याकुमारी को अपने मख ू पित के कारण नौकर वाला काम करना पड़ रहा
है?”
“लगता है िक वो अपनी इ छा से वहाँ ह, दादा। वो भी भू वामी के िलए काम करती ह।
उस े म हर कोई जानता है िक वो क याकुमारी थ और सब लोग उनका स मान करते
ह। इसिलए जब भी आव यकता पड़ती है, तो वो आम लोग और भू वामी के बीच शाि त
थािपत करती ह। भू वामी सुिनि त करता है िक उसके लोग के िलए पया भोजन हो। जब
भी स भव होता है, वो उ ह अपने खेत पर या िच का म या आसपास के े म अपने
िनमाण थल पर काम भी देता है। लोग इसके कारण बहत स तु ह और उनके पास िव ोह
करने का कोई कारण नह है। उनका गाँव स िस धु के सबसे शाि तपण ू गाँव म से है।
जोिक द र ता और ोध के इस युग म एक उपलि ध है। और यह सब वेदवतीजी क नैितक
शि के कारण स भव हो पाता है।”
इस सबसे रावण ने बस इतना िन कष िनकाला। “यानी हम बस एक तु छ ामीण
भू वामी का ऋण चुकाना है और िफर क याकुमारी वत हो जायगी?”
“ह म... दादा, मुझे नह लगता िक यह इतना सरल होगा।”
“यह इतना ही सरल है। तु ह जीवन के बारे म अभी बहत कुछ सीखना है, कु भ। तुम
अभी भी छोटे हो।”

रावण का पोत भारत के पवू तट पर ंगा क ओर बढ़ रहा था। पिव गंगा के मुहाने क ओर।
उनका इरादा नदी म उस िब दु तक आगे बढ़ने का था जो वै नाथ के सबसे िनकट था।
उसके बाद चालक दल भिू म माग से पिव मि दर नगरी तक जायेगा। मयरू ा ी नदी अपनी
या ा वै नाथ के िनकट से आर भ करती थी, और पवू म बहती हई गंगा क सबसे पि मी
उपशाखा म जा िमलती थी। एक नौिसिखया नािवक यह सोचने क ग़लती कर सकता था
िक मयरू ा ी क उलट िदशा म चलकर सबसे ज दी वै नाथ पहँचा जा सकता है। लेिकन
रावण नौिसिखया नह था। वो जानता था िक मयरू ा ी एक बाढ़ वण नदी है िजसम जोिखम
भरी और तेज़ लहर होती ह। उस पर नौकायन करना किठन और धीमा होगा। इससे बेहतर था
गंगा म आगे बढ़ना, और िफर शेष रा ता पैदल या घोड़ ारा तय करना।
“तु ह िव ास है िक तुम इतने व थ हो िक वै नाथ तक घुड़सवारी कर सको?”
रावण ने कु भकण क िवशाल त द को चंचलता से थपथपाते हए पछ ू ा।
दोन भाई पोत के ऊपरी तल पर थे, और गिलयारे से होकर पोत मुख के क क
ओर जा रहे थे। रावण ने अभी खुले तल पर अपने मनपस द संगीतकार सय ू के साथ एक घंटे
का न ृ य अ यास परू ा िकया था। उसने कुछ ही समय पहले भारी शु क देकर सय ू क सेवाएँ
ली थ , और उसे और उसक प नी अ नपण ू ा को इस या ा पर साथ चलने के िलए मना िलया
था तािक वो उस न ृ य िवधा का अ यास जारी रख सके िजसम वो अभी िनपुण होने क
कोिशश कर रहा था।
“मेरी िच ता मत क िजए, दादा। वो म नह हँ िजसक सांस उस 'िद य नाम' को सुनने
मा से उखड़ जाती ह,” कु भकण ने चेहरे पर छ -भि भाव लाते हए कहा।
रावण ठहाका लगाकर हँस पड़ा और कु भकण ने और भी ज़ोर से हँसते हए उसक
पीठ को ठ का। उ ह ने क म वेश िकया और कु भकण ने ार ब द कर िदया। रावण ने
एक अलंकृत अलमारी के पास जाकर एक शीशे क सुराही और याला िनकाला। िफर उसने
अपने िलए थोड़ी-सी मिदरा पलटी।
“यहाँ तो माँ नह ह, कु भ,” रावण ने याला ऊँचा उठाते हए कहा। “थोड़ी आज़माकर
देख सकते हो।”
“म आजमा चुका हँ, दादा!” कु भकण ने दांत िनपोरे । “लेिकन मुझे समु पर पीना
पस द नह है। उलटी आने लगती है।”
“छी,” रावण ने मँुह बनाया। “मुझे यह जानने क आव यकता नह थी।” वो अपने भाई
के सामने एक मोखले के पास पड़ी कुस पर पसर गया। “ख़ैर, अब जबिक म जान गया हँ
िक तुम मिदरा आज़मा चुके हो, तो म चाहँगा िक तुम ि य को भी आज़माओ। रा ते म कुछ
बहत अ छे वे यालय ह। हम उनम से िकसी पर कगे। तािक तुम... ी के पश का अनुभव
कर सको।”
कु भकण खी-खी करने लगा। वो शमा भी रहा था और साथ ही रोमांिचत भी था। उसने
कहािनयाँ तो सुनी थ । पर यह नह जानता था िक उसे िकसी ी के साथ या करना होगा।
“ि य के साथ एकमा सम या उनका मँुह है,” रावण ने आगे कहा। “वो बोलती ह।
उससे भी बढ़कर यह िक फ़ालतू बोलती ह। तुम जानते हो ना िक दुिनया के कुछ भाग म
माना जाता है िक वग ऊपर है और नक नीचे? ि य के साथ ठीक इसका उलट है। उनके
मामले म, वग नीचे है और नक ऊपर!”
रावण अपने मज़ाक़ पर खुद ही जोर से हँसा। कु भकण भी अिनि तता के साथ उसका
साथ देने लगा।
“यह बात सभी ि य पर लागू नह होती, दादा,” उसने कहा। “जब वेदवतीजी बोलती
ह, तो बुि मानी का अहसास—”
इससे पहले िक वो अपना वा य परू ा कर पाता, रावण ने बात काट दी। “क याकुमारी
साधारण ी नह ह। वो जीिवत देवी ह।”
“िन स देह, दादा।”
रावण ने मिदरा पीते हए मोखले से बाहर देखा। यह सोचते हए िक उनसे िमलने पर वो
या कहे गा। वो कैसे उ ह अपना ेम िदखायेगा।
ु े य ठुकरायगी? िवशेषकर तब जब उ ह पता चलेगा िक म उनके िलए कै सा
वो मझ
महसस ू करता हँ। जब उ ह पता चलेगा िक म िकतना धनी और शि शाली हँ... और उनके
ेम के यो य हँ।
“दादा, म एक बात प बताना चाहता हँ। आपको भी इस पर ग भीरता से सोचना
चािहए।” कु भकण क आवाज़ ने रावण के िवचार म अवरोध डाल िदया।
अपने छोटे भाई के ग भीर भाव को देखकर रावण भी ग भीर हो गया। “ या बात है?”
“बात यह है िक...” कु भकण िहचिकचाया।
“ या हआ, कु भ? बोलो।”
“दादा... इसे ग़लत मत समझना... पर सच म, मुझे नह लगता िक क याकुमारी
आपके न ृ य से भािवत ह गी। इसिलए कृपया उनके िलए न ृ य मत करना। म िव ास िदला
सकता हँ िक अगर आपने न ृ य िकया तो वो आपसे दूर भाग जायगी।”
रावण ने अपने पास पड़ा एक छोटा-सा तिकया उठाकर कु भकण पर दे मारा, जो
हँसते-हँसते लोटपोट हो रहा था।
रावण भी हँस रहा था। “तुम िनि त प से उतने छोटे और अ छे बालक नह हो
िजसके िलए माँ को डर है िक म िबगाड़ दंूगा।”
कु भकण दांत िनपोरने लगा। “आपका अनुसरण करने क कोिशश कर रहा हँ,
दादा!”
रावण ने पास रखा एक और तिकया उठाकर कु भकण पर फका। उसके छोटे भाई ने
उसे बड़ी आसानी से लपक िलया और अपनी पीठ के पीछे लगा िलया। “अब शायद म आराम
से हँ, ध यवाद। अब और नह चािहए!”
क म हँसी गँज ू ने लगी। आन द के आँसुओ ं को प छते हए रावण ने अपने छोटे भाई
को यार से देखा। और गव से भी। य िक इन ह केफु के ण म, उसक नािभ म हमेशा
रहने वाला दद भी लु हो जाता था। आन द और आशा से उसका दय भर गया था।

लड़खड़ाते क़दम से पोत क ओर वापस जाता कु भकण मु कुराए िबना नह रह पा रहा था।
रावण ने अपने भाई के क ध पर हाथ रखा, उसके िनकट झुका और हौले से पछ ू ा,
“कैसा रहा?”
वो महआ ीप म थे और कु भकण अभी पहली बार एक वे यालय होकर आया था। यह
ीप गंगा क सबसे पि मी उपशाखा के मुहाने पर था, उस िब दु पर जहाँ पानी और तलछट
से बोिझल महान नदी अलसाईसी पवू सागर से िमलती थी। यहाँ वस तपला नाम क एक
मिहला का एक वे यालय था, जो परू े े म िव यात था। रावण ने िनणय िलया था िक
दैिहक आन द क दुिनया से अपने भाई का प रचय कराने के िलए यह जगह एकदम ठीक
है।
उसने वस तपला का सुझाव मानते हए अपने छोटे भाई के िलए ज़बीबी नाम क एक
िस वे या को चुना था। ज़बीबी अरब क थी, और पैसा कमाने के िलए हाल ही म भारत
आयी थी। वो िकसी अ सरा से कम नह थी। ल बे अंग वाली और कमनीय ज़बीबी के
चमक ले काले बाल थे। इस े म नयी होने के बावजदू वो अपनी सु दरता, और कपड़ एवं
आभषू ण क अपनी उ कृ अिभ िच के िलए िस हो चुक थी। और सबसे मह वपण ू यह
िक वो ेम क कला म अनुभवी थी।
कु भकण के िलए सव े ही चलेगा।
“शायद मुझे ेम हो गया है,” ेम म डूबा और मदहोश िदख रहा कु भकण फुसफुसाया।
रावण ज़ोर से हँस पड़ा। वो आगे बढ़ता गया, और िफर जब उसे अहसास हआ िक
उसका भाई साथ नह है तो क गया।
कु भकण जड़ खड़ा था। सपनीली ि से भोर के आसमान को देखता हआ। उसके
क ध क दोन अित र बाँह लटक-सी गयी थ , जैसे वो भी नशे म ह । “म हँसी नह कर
रहा हँ, दादा। मुझे लगता है मुझे ेम हो गया है।”
रावण ने अपनी भ ह उठाई ं।
“म उसे यहाँ नह छोड़ना चाहता। या म उसे हमेशा के िलए नह पा सकता? म उससे
िववाह नह कर सकता?”
रावण पलटकर चलता हआ कु भकण के पास पहँचा, उसके क ध पर अपनी बाँह
डाल , और अपने िहचिकचाते भाई को आगे बढ़ाने लगा।
“दादा, म ग भीर हँ...”
“कु भ, ज़बीबी जैसी ि याँ उपभोग करने के िलए होती ह, ेम करने के िलए नह ।”
कु भकण के चेहरे पर ोध क चमक ने रावण को कने पर मजबरू कर िदया।
“दादा! ज़बीबी के बारे म इस तरह मत बोिलए!”
“यह एक सौदा था, कु भ। उसने तु ह आन द िदया, तुमने उसे धन िदया। उसक तुमम
कोई िच नह है। उसक िच बस पैसे म है।”
“नह , नह ! आप नह जानते उसने मुझसे या कहा। उसे िव ास ही नह हो रहा था
िक म मा एक लड़का हँ। उसने कहा िक वो मुझ जैसे पु ष के साथ कभी नह रही।”
“मने उसे पैसा िदया था, कु भ। वो पेशेवर है। िन स देह उसने ऐसी बात कह जो तुम
सुनना चाहते थे।”
“पर उसने झठ ू नह बोला और न ही मुझे स न करने भर के िलए कुछ कहा। उसने
जो कहा वो िदल से कहा था। उसने यह नह कहा िक म सु दर हँ। म जानता हँ म सु दर नह
हँ। पर उसने यह अव य कहा िक म बुि मान हँ। जोिक म हँ। और िक म शि शाली हँ।
और...” कु भकण शमाते हए मु कुराया, “और िब तर म अ छा हँ।”
रावण िफर से हँसने से वयं को रोक नह सका। “मेरे भोले न हे कु भ! यह दुिनया
वाथ लोग से भरी पड़ी है। वो तुमसे वही बात कहगे जो तुम सुनना चाहते हो तािक तुमसे
वो पा सक जो वो चाहते ह। अपनी र ा के िलए तु ह पता होना चािहए िक तु ह जो चािहए वो
लेने के िलए उनका उपयोग कैसे करो। संसार ऐसे ही चलता है।”
“पर दादा, ज़बीबी िभ न है। वो—”
“वो कुछ भी िभ न नह है। उसे बस यह अिधक प है िक उसे या चािहए। उसे धन
चािहए। और बदले म वो तु ह यौन ि या देगी। सीधी-सी बात है। कुछ पु ष स मान चाहते ह।
य ? म नह जानता। पर चाहते ह। तो, उ ह स मान दो। उ ह मरने का स मानजनक
तरीक़ा दो। और इससे लाभ उठाओ। कुछ ि य को लगता है िक अपनी सु दरता का दशन
करना उ ह शि शाली बनाता है। तो, उनक शंसा करो, उनके साथ स भोग करो, और
िफर दूर हटा दो। लोग का उपयोग करो इससे पहले िक वो तु हारा उपयोग कर। संसार म
अिधकांश लोग घण ृ ा यो य होते ह। अनेक लोग िदखाव के पीछे िछपे होते ह। सफल वो लोग
होते ह जो अपने साथ ईमानदार होते ह। ज़बीबी ईमानदार है। उसे तु हारी िच ता नह है। उसे
अपनी िच ता है। वो यहाँ कुछ साल के िलए आयी है तािक पया पैसा कमा सके, और िफर वो
अरब म अपने पित के पास वापस चली जायेगी।”
कु भकण भ च का रह गया। “वो िववािहत है? उसने मुझसे झठ ू बोला!”
“हाँ, उसने तुमसे झठू बोला। लेिकन उसने अपने जीवन के सबसे मह वपणू यि —
वयं—से झठ ू नह बोला! तु ह च कना नह चािहए। इसके बजाय तु ह उससे सीखना
चािहए। प रहो िक तु ह या चािहए। लेिकन उसे अ छी तरह से िछपाकर रखो। इससे जो
तुम चाहते हो उसे पाने म तु ह मदद िमलेगी।”
कु भकण कुछ देर मौन रहा, और अपने भाई क कही बात पर िच तन करता रहा।
अ तत: वो बोला, “हम इसीिलए कुबेर के पोत पर हमला कर रहे ह ना? लेिकन यह हम इस
तरह करते ह िक सबको लगे िक यह लुटेर का काम था।”
“िब कुल सही। अब तुम सीख रहे हो। कुबेर क शि उसका धन है, और हम उसका
िजतना धन लगे, वो उतना ही असुरि त महसस ू करे गा। अपनी हताशा म, वो लंका के
एकमा ऐसे यि से स पक करे गा िजसके पास सु िशि त और सश सैिनक ह—
मुझसे। वो अपने धन क सुर ा के िलए मेरी मदद माँगेगा। म िनि त प से उस बेचारे क
सहायता क ँ गा। और लंका क सेना का मुख बन जाऊँगा। उसके बाद, राजा बनना बहत
दूर नह होगा।”
कु भकण क छाती गव से फूल गयी। “मेरे भैया, लंका के राजा!”
रावण मु कुराया। “हमेशा याद रखो िक हम य शि शाली ह, य सफल ह। य िक
हम वयं को मख ू नह बनाते िक हम स मानीय ह या अ छे ह। हम जानते ह िक हम कौन
ह। हम इसे वीकार करते ह। हम इसे अंगीकार करते ह। इसीिलए हम सबको हराते ह।
इसीिलए हम सबको हराते रहगे।”
“हाँ, दादा।”
रावण आगे बढ़ गया, और कु भकण उसके साथ-साथ चलता गया।
अ याय 11

“हम वापस जाना होगा, दादा!”


“कु भ, तुम बचपना कर रहे हो। अपने क म जाओ।”
कुछ ही घंटे म उनका पोत महआ ीप से रवाना होने वाला था। कु भ कोई समाचार
लेकर भागता हआ रावण के क म आया था। कुछ देर पहले जब ज़बीबी के साथ उसक ेम-
ड़ाओं का आन द ले रहा था तो उस छोटी-सी ब ची पर उसका यान तक नह गया था जो
मुि कल से आठ वष क रही होगी और मिदरा और भोजन लायी थी। क से जाने से पहले
उसने देखा था िक वो उस कुस के पास थोड़ी देर क रही थी िजस पर उसने लापरवाही से
अपना अंगव डाल िदया था। तब उसने इस बारे म यादा नह सोचा था।
अपने क म वापस आने पर उसका यान व के छोर पर ब धी एक छोटी-सी गाँठ
पर गया। उसने गाँठ को खोला तो एक छोटा-सा भोजप िमला। उस पर दो श द िलखे थे,
बाल िलखी म। उसने वो प ी रावण को थमा दी।
रावण ने ज़ोर से उसे पढ़ा। “मुझे बचाएँ ।”
“हम बचाना होगा।”
“िकसे बचाना होगा?”
“वे यालय क उस छोटी ब ची को।”
“तु ह कैसे पता िक यह वही है?”
“मुझे पता है, दादा। वो परे शान िदख रही थी। अब जब म इस बारे म सोचता हँ, तो
उसक आँख म भय था। उसे हमारी सहायता चािहए।”
“कु भ, अभी बस आधे घंटे पहले मने तु ह इतना ल बा भाषण िदया था। लोग का
शोषण करने क अपनी मता के कारण ही हम सफल ह। इसिलए नह िक हम अ छे काम
करते ह।”
“दादा, आपने ही एक बार मुझसे कहा था िक अगर कभी तु ह कोई असुरि त या
ग भीर संकट म िमले, तो उसक सहायता करना—और िफर जीवनभर के िलए उ ह अपना
दास बना लेना। अगर उसके साथ दु यवहार हो रहा है, और हम उसक सहायता करगे तो वो
हमेशा हमारे ित िन ावान रहे गी। वो उपयोगी हो सकती है।”
“बेकार बात, कु भ। तुम बस उसक सहायता करना चाहते हो और इसके िलए कोई
उिचत तक ढूँढ़ रहे हो।”
“स भव है म यह कर रहा होऊँ । इसम हमारा बहत कम यय होगा। अ तत: एक ब ची
क सेवाएँ य करने म िकतना धन लगेगा? वो इसके यो य होगी। मने उसक आँख म
आग देखी है।”
“पल भर पहले तुमने कहा िक तुमने उसक आँख म भय देखा था। या था वो? भय
या आग?”
“दादा, म बता रहा हँ। यह लड़क उपयोगी िस होगी।”
रावण ने हताशा से िसर िहलाया। िफर उसने कु भकण क ओर उँ गली उठायी। “यह
अि तम बार है जब म तु हारे कारण ऐसे ही िकसी क सहायता क ँ गा।”
“यह सहायता नह है, दादा। यापार है। यह लाभ द रहे गा। मेरा भरोसा कर।”

“वस तपला, यह अ छा दाम है और तुम भी यह जानती हो,” रावण ने अधीरता से कहा। “दस
वण मु ाएँ । ये ले लो और बात समा करो। मेरा समय बबाद मत करो।”
रावण और कु भकण बीस अंगर क के साथ वस तपला के भवन पर वापस आये थे।
रावण ने सोचा था िक झटपट मोल तय हो जायेगा। मगर वो तो चिकत रह गया था।
वो ब ची िजसे कु भकण बचाना चाहता था दीवार के पास खड़ी थी। िसर झुकाए। हाथ
बाँधे हए। वो काँप रही थी। शायद डर से। या शायद वत ता क याशा म।
“यह इतना सरल नह है, वामी,” वस तपला ने कहा। “इसके िलए दस वण मु ाएँ
पया हो ही नह सकत ।”
रावण खीझ गया था। “इतने वष म तुमने मुझसे बेतहाशा धन कमाया है, वस तपला।
नादान मत बनो। तुम आसानी से िकसी दूसरे लड़के-लड़क को दास रख सकती हो।
आजकल काम िकसके पास है?”
“यह मा दासी नह है।”
रावण ने िफर से ब ची को देखा। उसने उसके हाथ-पैर पर ब धन के िच देखे : जो
बताते थे िक उसे अ सर बाँधा जाता है। उसे पता था िक कुछ पु ष अ पायु बालक-
बािलकाओं से स भोग करना पस द करते ह, इस दौरान उ ह बाँध भी देते ह। वो यह कभी
नह समझ पाया था। यह िघनौना था। अ िचकर था।
“तो िफर िकतना?” उसने पछ ू ा।
“दो सौ वण मु ाएँ । यह सोने क मुग है।”
रावण ने अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ाया। उसका एक सहायक आगे आया और उसने उसे
एक भोजप और क़लम थमा दी। रावण ने उस पर कुछ िलखा, अपनी मोहर लगायी और
वस तपला क ओर फक िदया। “सौ वण मु ाएँ मेरा अि तम ताव ह। तुम इस ह डी को
कह भी भुना सकती हो।”
वस तपला ने प क उठाया और उसे यान से पढ़ा। वो मु कुराई। “बहत कृपा है,
वामी, िक तु यह पया नह होगा।”
“म तुमसे िझकिझक नह कर रहा हँ, वस तपला। यह मेरा अि तम ताव है। अ यथा
हम इस ह डी को फाड़ सकते ह और—”
वस तपला ने उसक बात काटी। “और धन म अपने िलए नह माँग रही थी, वामी।
मेरे िलए तो यह पया है। िक तु आपको िकसी और को भी पैसा देना होगा।”
रावण क भक ृ ु िटयाँ चढ़ गय । “िकसे?”
“इसके िपता को,” वस तपला ने उ र िदया।
रावण उस न ही ब ची क ओर मुड़ा, ति भत-सा। मगर बस पल भर के िलए। सारे
िपता कमीने होते ह। मेरे िपता क तरह।
ब ची ने अपना िसर उठाया और वस तपला को देखा। उसक आँख ोध से जल रही
थ । और नफ़रत से। मगर लगभग तुर त ही उसके भाव बदल गये। एक बार िफर वो उदासीन
लगने लगी थी। िसर झुकाए। िवनीत।
वाह! यह लड़क तो िन य ही इसके यो य है।
रावण वस तपला क ओर मुड़ा। “इसका िपता?”
“आपको या लगता है इसे हम कौन बेच गया होगा?”

उस ब ची का िपता वे यालय से बीस िनिमष से भी कम क दूरी पर रहता था। वस तपला का


एक सहायक रावण और उसके दल को वहाँ ले गया। रा ते म उसने रावण को बताया िक वो
ब ची बोलती नह है। उ ह पता नह था िक वो ज म से गंग ू ी है या नह । रावण को ऐसा लग
रहा था िक ब ची के आवाज़ खो देने का कारण वो यातनाएँ रही ह गी जो उसने इतनी कम
आयु म झेली ह।
उस थान पर पहँचकर उ ह ने तुलना मक प से िनजन े म एक साधारण-सा घर
देखा। मगर वो उससे बेहतर ि थित म था िजसक उस छोटी-सी ब ची क ि थित देखते हए
रावण को अपे ा थी। घर के आसपास का थान साफ़ था। दीवार को हाल ही म नयी ई ंट से
बनाया गया था। छत भी नयी िदख रही थी। बाहर फूल क या रय से सजा एक छोटा-सा
उपवन था। सब बहत सु िचपण ू ढं ग से िकया गया था।
वस तपला के सहायक ने ार पर द तक दी और एक ओर हट गया। म य आयु के
एक आदमी ने ार खोला। वो रावण से छोटा और पतला था, अलावा एक छोटी-सी त द के।
उसने मू यवान रे शमी धोती पहन रखी थी। गले म सोने क मोटी माला चमक रही थी। उसके
ल बे बाल को तेल लगाकर सुघड़ता से सँवारा गया था।
“यह तु हारी बेटी है?” रावण ने छोटी ब ची क ओर संकेत करते हए पछ ू ा।
उस आदमी ने पहले ब ची को और िफर रावण को देखा। उसने लुटेरे- यापारी के
भयंकर प से बिल शरीर को देखा। उसक आँख ने उसके मू यवान व और आभषू ण
को भी तोल िलया था। प प से, मोटा ाहक है। “हाँ, मेरी बेटी है।”
“मुझे कुछ पछू ना है। म जानना चाहता हँ—”
वो आदमी बीच म ही बोल पड़ा। “एक वण मु ा ित घंटा। आप मेरे घर के क का
उपयोग कर सकते ह। अगर आप कुछ िभ न करना चाहते ह, जैसे इसके मँुह से या पीछे से,
तो दाम बढ़ जायगे। लेिकन, अगर आप इसे बाँधना या पीटना चाहते ह, तो हम दाम तय
करने ह गे। य िक अगर आपने कोई हड्डी तोड़ दी तो यह कम-से-कम कुछ महीने तो कुछ
भी नह कमा पायेगी।”
रावण उस आदमी के िनकट गया।
“तो या चाहते ह?” िपता ने कुछ असहजता से पछ ू ा।
उ र म, रावण ने उस आदमी के चेहरे पर जोरदार घँस ू ा जड़ िदया। घँस
ू ा सीधे उसक
नाक पर लगा था। दहला देने वाली कड़क ने प का कर िदया था िक उसक हड्डी टूट गयी
है। जब वो आदमी भिू म पर िगरा, और उसक नाक से र फूट पड़ा तो रावण ने पलटकर उस
ब ची को देखा। वो अपने िपता को घरू रही थी। अपने िपता के र को।
उसने पलक भी नह झपकायी। न दूसरी ओर देखा।
रावण अपने आदिमय क ओर मुड़ा। “इसे उस पेड़ से बाँध दो। घुटन के बल।”
वो आदमी पीड़ा से ची कार मार रहा था।
रावण के आदमी उसे घसीटते हए ना रयल के एक ल बे पेड़ के पास ले गये और उससे
उसे बाँध िदया। घुटन के बल। हाथ तने के पीछे । दोन टाँग मुड़ी हई ं। चेहरा रावण क ओर।
एकदम लाचार। और अभी भी वो फेफड़े फाड़कर चीख़ रहा था।
“इ देव क सौग ध, इस मख ू का मँुह बाँधो,” रावण ने कहा, उसका चेहरा घण ृ ा से
िसकुड़ गया था।
एक र क ने तुर त एक कपड़े का टुकड़ा िनकाला और उस आदमी के मँुह म ठूँस
िदया। एक दूसरे ल बे से कपड़े से उ ह ने उसका मँुह कसते हए उसे पेड़ के तने से बाँध िदया।
अब वो शोर तो मचा ही नह सकता था, अपना िसर भी नह िहला सकता था। उसके मँुह से
बस ह क , घुटी-घुटी-सी आवाज ही िनकल रही थ ।
रावण ने मुड़कर कु भकण को देखा। आँख -आँख म बात करते हए। देखो और
सीखो।
“तुम,” रावण ने उस ब ची से कहा। “ या नाम है तु हारा?”
ब ची कुछ नह बोली। कु भकण रावण को याद िदलाने ही वाला था िक वो नह बोल
सकती, मगर उसके बड़े भाई ने उसे चुप रहने का संकेत िकया।
“यहाँ आओ,” रावण ने उससे कहा।
वो िनकट आयी। ल बे और बहत अ छे डीलडौल वाले रावण के सामने वो बहत छोटी
िदख रही थी। वो मुि कल से उसक कमर तक पहँच रही थी। अचानक रावण ने एक खंजर
िनकाला। लड़क च ककर पीछे हट गयी।
“डरो मत। यह खंजर तु हारे िलए है,” यह कहकर रावण ने खंजर को घुमाया और
ह थे क ओर से ब ची को थमा िदया।
उसने यान से उसे देखा। वो ल बा, धातु के मज़बत
ू ह थे और िै तज छड़ से यु था।
खंजर का फल बाहरी ओर से धारदार और अ दर क ओर से दाँतेदार था। धारदार ओर से फल
माँस को आसानी से काटता चला जाता था। दाँतेदार प खंजर को िनकालते समय
अिधकतम ित और पीड़ा पहँचाता था। गोकण के हनरम द लुहार ने इसे बनाया था, मगर
इसक प रक पना वयं रावण क थी।
ब ची ने कसकर खंजर को पकड़ िलया। उसके हाथ काँप रहे थे। िफर उसने अपने
िपता को देखा। उस आदमी क आँख डर के मारे फै ल गयी थ । उसक घुटी-घुटी-सी चीख़ अब
बहत तेज हो गयी थ ।
म त ु हारा िपता हँ...
मझु े मा कर दो...
म त ु हारा िपता हँ...
“मेरे साथ आओ,” रावण ने कहा। वो पेड़ से बँधी उस दयनीय काया के पास गया।
ब ची उसके पीछे -पीछे गयी।
अब वो आदमी काँप रहा था, और बहत बुरी तरह से घबराया हआ था। वो उन रि सय
से जझू रहा था िजनसे उसे बाँधा गया था। मगर उसे बहत ही अ छी तरह बाँधा गया था। बस
उसक घुटी-घुटी चीख़ क आवाज़ ही सुनाई दे रही थी। अ य सभी चुप थे।
रावण ने उस आदमी को झ नाटेदार झापड़ मारा। “ओह, चुप कर!”
रावण ब ची क ओर मुड़ा और उसके िपता क गदन के आधार पर एक थान िदखाया
जहाँ ीवा िशरा और ीवा धमनी िसर और दय के बीच र लाती-ले जाती है। लगभग कोई
पाठ पढ़ाने क तरह उसने हाथ से काटने का इशारा करते हए उस ब ची से कहा, “यहाँ एक
ल बा, गहरा वार करोगी, तो कुछ ही पल म तु हारे िपता मर जायगे।” िफर उसने दय क
ओर इशारा िकया और उस आदमी के सीने पर हाथ रखा। “यहाँ खंजर घ पोगी, तो यह और
तेज़ी से मर जायेगा। मगर तु ह सुिनि त करना होगा िक वार ठीक से हो। तुम यह नह
चाहोगी िक खंजर पसिलय से टकराकर मुड़ जाये। ये कठोर अि थयाँ होती ह। कभी-कभी
खंजर पसिलय से टकराकर वापस लौट आता है और इससे तु ह वयं चोट लग सकती है।
तो म अभी इसे आज़माने क सलाह नह दंूगा। इसके िलए तुम बाद म िश ण ले सकती
हो।”
ब ची ने हामी भरी। उ सुक िव ाथ क तरह। भयंकर प से उ सुक िव ाथ क तरह।
“या,” रावण ने उस आदमी के पेट के िनचले िह से क ओर संकेत िकया, “तुम इसे
यहाँ घ प सकती हो। आँत म। खंजर को मोड़ने के िलए कोई अि थ नह है। मगर सम या
यह है िक सारा र बहने म बहत समय लगेगा। सारा र बहकर ाण िनकलने तक हम
कोई बीस या शायद तीस िनिमष तक भी उसक चीख़ सुननी पड़ सकती ह। और अगर घाव
बहत गहरा नह हआ तो र बहत धीमे बहे गा। इसम घंट लग सकते ह। और तु हारे िपता पर
बबाद करने के िलए इतना समय मेरे पास नह है। तो, अगर तुम इसे यहाँ खंजर मारने वाली
हो, तो यान रखना िक घाव गहरा हो।”
हताश आदमी खुद को छुड़ाने के िलए संघष कर रहा था।
“अब यह तुम पर है,” रावण ने कहा।
उस ब ची ने अपने िपता को देखा। ोध म काँपते हए जैसे उसका सारा
आ मिनय ण चुक गया था। उसने दोन हाथ से कसकर खंजर को पकड़ा। उसके िपता क
आँख दया क भीख माँग रही थ । आँसुओ ं म पसीना और र िमल गया था।
ब ची के िनणय लेने क ती ा करता रावण एक ओर खड़ा हो गया।
मगर यह िजतनी तेज़ी से हआ, उससे वो भी हैरान रह गया था।
ब ची ने तेज़ी से हरकत क । न दोबारा सोचा। न िझझक । वो आगे बढ़ी और उसने
अपने िपता क आँत म खंजर घ प िदया। घ पते समय अपने क ध को आगे धकेलते हए।
उसके िलए धीमी, ददनाक मौत चुनते हए। उस आदमी के मँुह से घोर पीड़ा भरी ची कार
िनकली। डर और पीड़ा से उसक आँख फै ल गयी थ । उसक िति या ने जैसे ब ची को और
उकसा िदया था। उसने दोन हाथ से अपने खंजर को और गहरा धकेल िदया। जब अ तत:
उसने खंजर बाहर िनकाला, तो र का फुहारा फूट पड़ा। लाल रं गता हआ उसके हाथ को।
उसके कपड़ को। उसके शरीर को। सब कुछ को।
वो िहचिकचाई नह । न पीछे हटी। अपने िपता के गम लह म भीगी वो वह खड़ी रही।
रावण मु कुराया। “शाबाश।”
मगर ब ची का काम अभी समा नह हआ था। वो आगे बढ़ी और उसने िफर से अपने
िपता को खंजर घ प िदया। और िफर से। और िफर से। हमेशा पेट म। हमेशा आँत म।
इस सबके बीच वो िब कुल चुप थी।
न ोध भरी आवाज। न चीख़। न िच लाहट।
बस िवशु , मक ू ोध।
वो अपने िपता को तब तक खंजर भ कती रही जब तक िक उसका पेट फट नह गया
और आँत बाहर िनकलने नह लग ।
कु भकण ने रावण से कहा, “दादा, इसे रोिकये।”
रावण ने िसर िहला िदया। नह ।
उसक आँख ब ची पर लगी थ ।
उसने अपना खंजर उठाया और एक बार िफर अपने िपता के भ क िदया।
अ ततः जब वो पीछे हटी, तब तक उसके िशिथल शरीर पर लगभग प चीस घाव कर
चुक थी। उसका चेहरा, उसके हाथ, उसका शरीर, उसके कपड़े सब र म सने थे। ऐसा लग
रहा था जैसे वो अपने िपता के र म नहाई हो।
वो मुड़ी और उसने रावण को देखा। पल भर को वो लड़खड़ा गया था।
वो मु कुरा रही थी।
वो रावण के पास आयी, अपने घुटन पर बैठी, और र म सना खंजर उसके पैर म
रख िदया।
रावण ने उसके क ध पर हाथ रखे और उसे खड़ा िकया।
“ या नाम है तु हारा?” उसने पछू ा।
ब ची ने कुछ नह कहा।
रावण ने कहा, “अब म तु हारा वामी हँ। तुम मेरे िलए काम करोगी। तुम मेरे ित
िन ावान रहोगी। और म तु हारी र ा क ँ गा।”
ब ची मौन रही।
रावण ने अपना दोहराया। “ या नाम है तु हारा?”
ब ची ने सुना था िक रावण के अनुयायी उसे या कहकर बुलाते ह। इराइवा। वा तिवक
वामी।
अ तत: वो बोली। बालसुलभ वर म जो असहज प से शा त था। “महान इराइवा, मेरा
नाम समीची है।”
अ याय 12

रावण और उसका दल वै नाथ के उस भवन म पहँच गये थे िजसे कु भकण ने उनके रहने
के िलए िकराए पर िलया था। यह मि दर प रसर से सुरि त दूरी पर ि थत एक साधारण-सा
भवन था, और उसम ऐसी कोई िवलािसताएँ नह थ िजनका अब रावण आदी हो चुका था।
मगर भाइय ने साधारण तरीके से रहने का ही िनणय िलया था। इस े म इतने सारे बड़े
मि दर होने के कारण स िस धु के राजप रवार और साम ती प रवार के अनेक सद य
यहाँ आते रहते थे। इसका अथ था कड़ी सुर ा। और स िस धु के कर िनरी क और
सुर ाकिमय के िलए एक कु यात त कर को पकड़ना एक बड़ी सफलता होती। भाइय ने
रावण और कु भकण के थान पर अपने िम या नाम तक रख िलए थे: जय और िवजय।
अपने आवास पर पहँचने के एक घंटे के भीतर रावण और कु भकण वेदवती को ढूँढ़ने
िनकल पड़े थे। वो एक घंटे क या ा क दूरी पर टोडी नाम के एक गाँव म रहती थ ।
ऐितहािसक प से भारत के मि दर केवल उपासना का ही नह , बि क सामािजक
गितिविधय का भी के थे िजनके आसपास सामुदाियक जीवन घम ू ता था। अिधकांश मि दर
प रसर म थानीय लोग के उपयोग के िलए सरोवर होते थे। साद के प म िनधन को
भोजन िदया जाता था। आसपास के गाँव के ब च के िलए िन:शु क ाथिमक िश ा उपल ध
होती थी। बड़े नगर के मि दर उ च िश ा भी देते थे। गाँववािसय को अपने े के मि दर
म बुिनयादी िचिक सक य उपचार भी उपल ध होता था। इसके अित र , अिधकांश मि दर
भंडारगहृ का काम भी करते थे जहाँ आधारभतू अनाज रखे जाते थे जो वषा न होने पर लोग
को दान िकया जाता था। अगर वो असाधारण प से सम ृ होते थे तो िनधन के िलए घर
या निदय पर बाँध बनवाने जैसी थानीय िनमाण प रयोजनाओं के िलए धन भी देते थे। यह
सब कुछ उस दान के कारण स भव होता था जो मि दर को सम ृ और िनधन लोग से ा
होता था।
लेिकन अिधकांश चीज क तरह यह णाली भी न हो रही थी। यापार म दा पड़ा तो
दान भी कम हो गये। बड़े मि दर म भी कोष र होने लगे थे। ि थित को और िबगाड़ते हए
राजप रवार कोई-न-कोई बहाना बनाकर मि दर का अिध हण कर रहे थे— ायः उनके
“बेहतर ब धन के िलए।” शी ही, मि दर के च दे का एक बड़ा िह सा राजकोष म जाने
लगा।
वाभािवक प से, अिधकांश सामुदाियक मि दर ारा िकये जाने वाले परोपकार
काम भी भािवत होने लगे। थानीय मल ू भत
ू यव थाएँ भी बुरी तरह भािवत हई ं।
मगर टोडी म ऐसा नह था। यहाँ थानीय भू वामी शोिचकेश पास म बहने वाली नदी
पर बाँध बनाने के िलए गाँववािसय के साथ िमलकर काम कर रहा था। इससे सख ू े मौसम के
िलए पानी संरि त करने म सहायता िमलती। भू वामी ने सामान िदया था और गाँववािसय
ने म। लाभ सबका था।
अस भव लगने वाला यह सहकाय केवल वेदवती के कारण ही स भव हआ था।
य िक, गाँववािसय को य िप भू वामी पर िव ास करना आसान नह लगता था, मगर
क याकुमारी पर सभी िव ास करते थे। सभी।
और वो वहाँ थ , अिभयान का िनरी ण करती। एक थोड़े से ऊँचे चबत ू रे पर खड़ी,
अपने माथे पर जमा पसीने और चार ओर उड़ती धल ू से बेपरवाह।
बाँध का काम ती ता से चल रहा था। गाँव के सारे स म पु ष, लगभग िबना आराम
िकये काम पर लगे थे। भू वामी भी वेदवती वाले चबत ू रे पर ही खड़ा काम का िनरी ण कर
रहा था। उसने तो अपने व छ द पु सुकमण तक को यहाँ आकर काम म हाथ बँटाने के
िलए मना िलया था। बाँध को बहत ज दी ही परू ा करना था। इसिलए नह िक बा रश का
मौसम िसर पर रखा था—उसे आने म तो अभी महीन शेष थे। कारण थ वेदवती।
वो गभवती थ । य त: गभवती। िशशु ज म के िलए िनकट ि थत वै नाथ मि दर से
जुड़े िचिक सालय म उनके जाने से पहले बाँध का काम परू ा होना था। न तो गाँववासी और न
ही भू वामी के आदिमय को यह िव ास था िक उनक शा त उपि थित के िबना वो साथ
म काम कर पायगे। केवल वही थ जो उनके िववाद को स तोषजनक प से हल करने म
स म और िव सनीय थ ।
रावण और कु भकण ने काय थल से कुछ सौ गज़ दूर अपने घोड़े बाँधे, और बड़ी
सावधानी से पैदल आगे बढ़े । रावण ने तय िकया था िक पहला िदन वयं को सामने लाये
िबना क याकुमारी को देखने म िबतायेगा।
“दादा,” कु भकण ने कहना शु िकया।
“धीमे बोलो!” रावण ने उसे चुप िकया। “कोई हम सुन लेगा।”
कु भकण ने आसपास देखा। कह कोई नह था। मगर उसने िन ापवू क अपना वर
धीमा करके फुसफुसाहट म बदल िलया। “दादा, हम िछप य रहे ह? यहाँ तो हम कोई नह
जानता है। हम लोग से कह सकते ह िक आप एक यापारी ह और वै नाथ मि दर के दशन
करने आये ह और अपने अितिथगहृ जाते हए यहाँ ठहर गये थे। िफर आप जाकर क याकुमारी
से बात कर सकते ह। केवल वही आपको पहचान पायगी।”
रावण ने िसर िहला िदया।
कु भकण को लगा कह रावण क सतकता का कारण वो तो नह है। “म यहाँ पहले
भी आ चुका हँ, दादा। यहाँ के लोग के मन म नागाओं के िलए कोई पवू ा ह नह है। म यहाँ
सुरि त हँ।”
रावण ने कु भकण को देखा। “म उस आँख को न च लँग ू ा जो तु ह घरू े गी,” उसने
ू े प और टहिनय से बचते हए जो पैर
शा त भाव से कहा। वो सावधानी से चल रहा था। सख
के नीचे आकर टूट सकती थ ।
कु भकण मन-ही-मन मु कुराया। उसका बड़ा भाई घबरा रहा था।
“तु ह पता है जब तुम छोटे थे तो कुछ िदन हम टोडी के पास ही रहे थे?” रावण ने
आवाज़ धीमी रखते हए पछ ू ा।
“आप मुझे बता चुके ह, दादा,” कु भकण ने अपना हाथ उठाया और तीन उँ गिलयाँ
िदखाय । “िपछले पाँच िनिमष म मा तीन बार।”
“ओह, अ छा? लगता है म...”
इस बार कु भकण खुलकर मु कुरा िदया। उसने अपने भाई को इतना िचि तत कभी
नह देखा था।

दोन भाइय को कुछ घनी झािड़य के पीछे िछपने का बहत सही थान िमल गया था। वहाँ से
नदी का काय थल प िदखाई दे रहा था। िकसी िमक ने उ ह आते नह देखा था।
आिखर वो लुटेरे- यापारी थे। आव यकता होने पर वयं को िछपाना उनके िलए आव यक
यावसाियक गुण था।
काय थल पर पचास से अिधक लोग थे। मगर रावण क िनगाह तो केवल एक पर थ ।
वो स मोिहत रह गया। लगभग शि हीन। उसक ि गाँववािसय के बीच घम ू ती
वेदवती पर जमी हई थी।
वो यह सोचे िबना नह रह पाया िक देवी सर वती उस पर वा तव म कृपालु थ ,
य िक वो िवल ण प से उसके ारा बनाये उनके िच के समान ही थ । एक ी के िलए
वो ल बी थ । गोरी, गोल चेहरा, ऊँचे कपोल, और तीखी, छोटी-सी नाक। सपाट पलक वाली
काली, बड़ी-बड़ी आँख। उनके काले, ल बे बाल कसी चोटी म पीठ पर लहरा रहे थे। उनक
छिव उसके मन म अंिकत हो गयी थी। उसने उ ह पण ू नारी वयु कमनीय ी के प म
उकेरा था। अब तो वो और अिधक आकषक लग रही थ । उनके पुराने, मगर व छ व
उनके आकषण को कम नह कर रहे थे।
कु भकण फुसफुसाया, “ मा करना, दादा। मुझे पता नह था िक क याकुमारी
गभवती ह। पहले यह प नह था...”
मगर रावण सुन ही नह रहा था। वो तो बस उ ह देखे जा रहा था, यह िव ास कर पाने
म असमथ-सा िक वो अ तत: उनके आसपास था।
कु भकण को यह समझने म थोड़ी देर लगी िक एक पता के बावजदू वेदवती रावण
के अपने िच से कुछ िभ न य िदख रही थ । अपने गभ के उभार के कारण नह । बात
कुछ और थी। रावण क दीवार पर, वो िद य और ा उ प न करती थ , मगर बहत िवलग
और उदासीन भी थ । वा तिवक जीवन म वो िभ न थ । वो अभी भी िद य िदखती थ , हाँ।
ा उ प न करती थ , हाँ। मगर उनम उदासीनता क़तई नह थी। गाँववािसय के बीच घम ू ते
हए उनक आँख म नेह और उदारता झलक रही थी। देवी माँ क तरह।
“दादा,” कु भकण ने धीरे से कहा।
रावण ने कु भकण के क धे पर हाथ रख िदया। उसने कुछ नह कहा, मगर यह संकेत
ही पया था।
ु े देखने दो... मझ
चपु रहो, छोटे भाई। मझ ु े अ तत: अपना जीवन जीने दो...

कु भकण ने धीरे से कहा, “दादा, आपको नह लगता िक अब समय आ गया है िक हम...”


रावण ने उसे चुप करने के िलए हाथ उठाया तो वो क गया।
उ ह वै नाथ आये हए परू ा एक ह ता हो गया था। वो ितिदन काय थल पर आते थे,
हर बार अपने िछपने का थान बदल देते। काय थल का िभ न प र य देखते। वहाँ मौजदू
लोग का िभ न य देखते। क याकुमारी का िभ न दशन पाते।
कुछ बदला नह था तो यह सच िक उ ह ने अभी तक उनसे बात नह क थी। अपनी
उपि थित तक उजागर नह क थी।
कु भकण हैरान था। उसका शि शाली, अजेय भाई वेदवती से बात करने क िह मत
तक नह जुटा पा रहा था। ि य के साथ उसका िव ास और सहज आकषण जैसे उसका
साथ छोड़ गया था। अपने सामा य साहस से रीता वो बस अपने िछपने के थान पर खड़ा था
और अपने समपण िब दु को तके जा रहा था।
अपनी क याकुमारी को। अपनी देवी को।
मगर कु भकण तो हमेशा क याकुमारी को देखता नह रह सकता था। तो उसने
काय थल पर और आराम करते दूसरे लोग को देखना शु िकया। िपछले ह ते भर म वो
इतने गाँववािसय को और उनक बातचीत को देख चुका था िक वो उनके बारे म राय बनाने
लगा था। भू वामी शोिचकेश सच म भला आदमी लगता था। वो ऐसे भ य कपड़े नह पहने हए
था जैसे लंका के भू वामी पहनते ह, मगर गाँववािसय का यान रखता तीत हो रहा था।
गाँववासी भी उसका स मान करते तीत होते थे, भले ही उस पर भरोसा न करते ह । दूसरी
ओर, शोिचकेश का बेटा सुकमण िबगड़ा ब चा था। आलसी। वाथ । सु त, और एक बार तो
जब कोई नह देख रहा था तो उसने धन भी चुराया था। लेिकन जब क याकुमारी या उसके
िपता आसपास होते तो हमेशा अ छा यवहार करता था।
म इन मखू को देखने म अपना समय य बबाद कर रहा हँ?
कु भकण अपने भाई क ओर पलटा। “दादा...”
रावण ने उसे िफर से चुप करने के िलए हाथ उठाया।
इस बार कु भकण चुप रहने को तैयार नह था। रावण के कोई पहल करने क ती ा
करता वो हत भ-सा था। वो क पना करने लगा िक उसका शेष जीवन झािड़य के पीछे िछपे
रहने और क याकुमारी पर िनगाह रखने म ही बीत जायेगा। नह , उसे कुछ करना होगा।
“दादा, य न हम उनका अपहरण कर ल?”
रावण ने भया ा त होकर कु भकण को देखा। “तु ह हआ या है? वो देवी ह! तुम
कैसे...”
कु भकण ने ह के से हँसते हए अपने भाई क बात काटी। “दादा, आपका महआ ीप
वाला भाषण मुझे अभी भी याद है। लोग का उपयोग और शोषण करने क शि वाला भाषण।
मुझे लगता था हम उसम मािहर ह! हम झािड़य के पीछे िछपकर और गाँववािसय को अपना
काम करते देखकर या कर रहे ह?”
रावण पल भर के िलए ु िदखा। िफर मु कुराया और उसने िसर िहला िदया। “वाम:
कामो मनु याणाम् यि मन् िकल िनब यते; जने ति मं वनु ोशः नेह िकल जायते।”
वो देवी िव णु, मोिहनी, ारा छोड़ी गयी महान वा मीिकय क जाित के एक उ कृ
दाशिनक का ोक उ त ृ कर रहा था। ाचीन सं कृत के इस ोक म ेम-पीिड़त पु ष क
असहायता का वणन है, िजसका अनुवाद कुछ इस तरह है: पु ष के िलए काम क अिभलाषा
करना अमंगलकारी है; य िक काम म बँधा पु ष क णा और ेम महसस ू करता है।
अनकहा सच : ऐसा पु ष ीण हो जायेगा।
बड़े भाई को देखकर मु कुराते हए कु भकण क आँख शरारत से चमकने लगी थ ।
रावण दूर खड़ी वेदवती को देखने के िलए मुड़ा और धीरे से बोला, “कल... कल हम
उनसे बात करने चलगे।”

“हाँ,” कु भकण ने िवन ता से हाथ जोड़कर नम ते क । “हम यापारी ह और वै नाथ के


महान महादेव मि दर के दशन करने आये थे। हम अपने अितिथगहृ जा रहे थे तभी हमने
सुना िक यहाँ बाँध का काम चल रहा है। तो हमने सोचा िक आकर इसे देख ल।”
जैसा तय हआ था, कु भकण और रावण अ तत: अपने वयं के थोपे हए गु थल से
बाहर आये। दोन भाई बुि मानी से तुलना मक प से साधारण व मे आये थे। द र ता के
इस काल म, ऐसे समुदाय के बीच जो िवपरीत प रि थितय से जझ ू रहा था, अपनी स पि
का दशन अिश , बि क संकटपण ू भी हो सकता था। कु भकण केवल तेरह साल का था,
मगर मानव मन के सबसे आधारभत ू भाव म से एक ई या को वो समझता था।
िनःस देह, भू वामी और गाँववािसय को कु भकण कम-से-कम बीस वष का वय क
पु ष लग रहा था। और शोिचकेश क सराहना करनी होगी िक उसने उन उपांग पर िनगाह
भी नह डाली जो कु भकण के नागा होने क पुि करते थे।
“हमारे साथ भोजन करके हम कृताथ कर, भले याि य ,” शोिचकेश ने कहा। “हम
सम ृ तो नह ह, लेिकन अपना धम जानते ह। अितिथ देवो भव।”
शोिचकेश ारा उ त ृ तैि रीय उपिनषद क इस पंि को सराहते हए कु भकण ने
अपने हाथ जोड़े और स मान म िसर झुकाया। उसने अपने भाई को टहोका िदया, और उसने
भी यही िकया। मगर रावण का यान कह और ही लगा हआ था। उस ी पर जो उनक ओर
आ रही थी।
क याकुमारी पर।
वेदवती पर।
“आपने अपने या नाम बताये?” शोिचकेश ने पछ ू ा।
“मेरा नाम िवजय है,” कु भकण ने कहा। “और मेरे बड़े भाई का नाम जय है।”
शोिचकेश मु कुराया। “दोन नाम का अथ िवजय ही है। आपके माता-िपता को
अ यिधक आशाएँ रही ह गी!”
कु भकण खुलकर हँसा। “और हमने उन आशाओं को तोड़ िदया!”
शोिचकेश मु कुराया। उसने अपने लाल बाल क ओर संकेत िकया। “मेरे माता-िपता
ने मेरा नाम शोिचकेश रखा था। वो िजसके बाल आग क लपट जैसे ह! मगर मेरे अ दर
कुछ भी ऐसा नह है जो आग-सा हो!”
“शायद अपने माता-िपता को िनराश करना सारी स तान का कत य होता हो?”
कु भकण इस आशा म बातचीत जारी रखे हए था िक शायद ज दी ही उसका भाई अपने
क पना जगत से बाहर िनकल आयेगा।
शोिचकेश हँस पड़ा। िकसी अनकहे भाव से वो पलटकर अपने बेटे सुकमण को देखने
लगा, जो कुछ ही दूरी पर बैठा दूसरे लोग को काम करते देख रहा था। और उसके चेहरे से
मु कुराहट लु हो गयी। सुकमण का अथ था जो अ छे काम करे । हँसी-िठठोली म िछपे होने
पर भी कड़वे सच पीड़ादायक ही होते ह। “जो भी हो, हमारे साथ भोजन करने के िलए
आपका वागत है।”
कु भकण को शोिचकेश को उ र देने का अवसर ही नह िमल पाया। य िक वेदवती
उनक ओर आ रही थ । उनका बायाँ हाथ उनके उभरे हए पेट पर अज मे िशशु को सहारा दे
रहा था। कु भकण ने उ ह देखा और मु कुराया। दूसरी ओर रावण भिू म को तकता रहा।
“हमारे स जन भू वामी शोिचकेश सही कह रहे ह,” वेदवती ने कहा। “हमारे साथ
भोजन करके हम अनु हीत कर।”
रावण ने थोड़ा-सा िसर उठाया और मु कुरा िदया। यही आवाज़ सुनने के िलए तो वो
इतने बरस से तड़प रहा था। उसक आ मा के िलए यह मरहम क तरह था। उसने उसे अपने
भीतर, अपने सारे अि त व म गँज ू ने िदया। वयं उन श द क कोई मह ा नह थी।
उसने कुछ कहने क कोिशश क । उ र देने क कोिशश क । मगर उसक वर-
ति याँ जैसे िसकुड़ गयी थ । उसके मँुह से कोई आवाज़ नह िनकली।
कु भकण ने अपने अवाक भाई को और िफर वेदवती को देखा। पीड़ादायक सच उसके
सामने प था। वेदवती को कुछ ात नह था िक रावण कौन है। वो उसे िब कुल नह
पहचानती थ ।
कु भकण ने िसर झुकाया और िवन ता से बोला, “महान क याकुमारी, यह...”
“म अब क याकुमारी नह हँ,” वेदवती ने नेह से मु कुराते हए बात काटी।
कु भकण ने िसर िहलाया। “िन स देह, भ ा वेदवती जी। मगर मुझे पता नह िक हम
भोजन के िलए क पायगे या नह । य िक हम...”
“हम क जायगे!”
अगर कु भकण ने अपने क धे को दबाते अपने बड़े भाई के हाथ को महसस ू न िकया
होता तो वो शायद इस आवाज़ को पहचान भी नह पाता। यह आ यजनक ढं ग से बचकाना
थी। शि शाली रावण क हमेशा जैसी भारी-भरकम आवाज़ नह थी।
“बहत बिढ़या!” वेदवती रावण को देखकर मु कुराई ं। िफर मुड़ और चली गय ।
कु भकण ने अपने भाई को देखा जो अब वेदवती क जाती हई आकृित को देखकर मू
क तरह मु कुरा रहा था। उसके चेहरे पर िविच -सा भाव था। आन द का। वो इतना स न
कभी नह रहा था।
कु भकण ने अपने गले म भर आया डे ला िनगला। उसने कह पढ़ा था िक इकतरफ़ा
ेम से बुरा कुछ नह होता। मगर वो लोग ग़लत थे। इससे भी बुरा कुछ होता है : इकतरफ़ा
ेम िजसे यह तक आभास न हो िक वो इकतरफ़ा है। वो अपने भाई को, िजसे वो सबसे अिधक
सराहता था, ऐसे ममभेदी दुख का भागी बनते नह देख सकता था।
वो दूसरी ओर देखने लगा, उसका मि त क इस िविच -सी नयी अव था का हल ढूँढ़ने
म लग गया था।
अ याय 13

“यह बहत भयानक था,” वेदवती ने कहा। “हम हमेशा क तरह अपने काम म लगे हए थे िक
वो लोग अचानक कह से आये और उ ह ने हमारे एक सहयोगी को मार डाला। हमारे समाज
म शि हीन के साथ यही होता है।”
रावण और कु भकण िफर से टोडी म थे। वो बाँध बनाने क तकनीक सीखने क इ छा
के बहाने िपछले कुछ िदन से िनयिमत प से यहाँ आ रहे थे।
इस िवशेष िदन, वो शोिचकेश और वेदवती के साथ दोपहर का भोजन कर रहे थे।
काय थल से बहत दूर तािक धल ू से बच सक।
कु भकण काय थल पर सुर ा उपाय के बारे म जानने को लेकर उ सुक था। और
बात उन िपछली घटनाओं और दुघटनाओं क िनकल आयी िजनका उ ह ने या तो वयं
सामना िकया था या िजनके बारे म सुना था। शोिचकेश ने ही उस िमक क घटना सुनानी
शु क थी िजसने तीन साल पहले एक जेटी पर काम करते हए जान गँवा दी थी। िच का
झील पर। ा तपाल कचबाह के िनवास के पास।
कु भकण इस घटना के उ लेख पर सकपका गया था, हालािक समय रहते उसने खुद
को सँभाल िलया। मगर रावण अिवचिलत रहा और वो पहले शोिचकेश और िफर वेदवती से
उस िदन और उन ू र लोग के बारे म सुनते रहे िजनके घोड़ ने उस बेबस युवा िमक को
कुचल डाला था।
शोिचकेश ने ा तपाल के िनवास पर हई लटू का कुछ आधा-अधरू ा-सा िववरण िदया
था। कु भकण यह िदखाने क परू ी कोिशश करता रहा जैसे िक यह सब पहली बार सुन रहा
हो। च कने और ु होने के उिचत भाव के साथ।
“बाद म जो पता चला, उससे लगता है,” शोिचकेश ने कहा, “िक यह आ मण
ा तपाल कचबाह के मल ू थान नाहर के उनके श ुओ ं ारा िकया गया होगा। जब दो
हाथी लड़ते ह तो घास तो कुचलती ही है। हम घास थे।”
“िक तु यह अधम है,” वेदवती बोल । “ ि य के आपस म जो भी झगड़े ह , मगर उ ह
सुिनि त करना चािहए िक िनद ष को हािन न पहँचे।”
रावण ने सहमित म िसर िहलाया, लेिकन अपने भाव से उसने कुछ भी उजागर नह
होने िदया।
“सही कहा,” शोिचकेश ने कहा। “पर आजकल धम के बारे म कौन सोचता है? हम
अपनी पर परा और सं कृित को भल ू चुके ह। हम अपने पवू ज के नाम पर कलंक ह।”
कु भकण ने एक बार िफर अपने ह-न को ध यवाद िदया िक िच का म हमले के
दौरान वो पोत पर था, इतनी दूर िक ये लोग उसे पहचान नह सकते थे। उसका अनुमान था
िक रावण इतनी ती ता से िनकलता चला गया होगा िक कोई भी उसे अ छी तरह देख नह
सका होगा, िवशेष प से वेदवती। साथ ही, तीन वष पहले क तुलना म अब रावण क दाढ़ी
अिधक भरी हई थी। और अब ल बी, घनी मंछ ू के कारण उसका चेहरा बहत िभ न िदखता
था।
शायद यह एक वरदान ही है िक वो उसे िब कुल नह पहचानत । न तो िपताजी के
आ म से न ही िच का से।

वेदवती अब अपने गभ के अि तम चरण म थ , और अगर उन लात से अनुमान लगाया जाये


जो उ ह अ सर च का देती थ तो उनके गभ म एक व थ ब चा था। और व थ ब चे को
अ छा पोषण चािहए था। ह क सी इलायची और अदरक के साथ दूध म पके चावल माँ और
उसके अज मे ब चे के िलए पौि क माने जाते थे। लेिकन उस छोटे-से गाँव टोडी म इलायची
न तो उगायी जाती थी और न लायी जाती थी। काली इलायची सामा यत: नेपाल, िसि कम
और भटू ान क तलहटी म उगायी जाती थी। इसे ा करना महँगा और किठन था।
पर जो दूसर के िलए किठन था, वह रावण के िलए आसान था। उसने अपने आदिमय
को भेजकर इस सुगि धत मसाले के पाँच बोरे मँगवा िलये थे। यह मा ा आव यकता से बहत
अिधक थी, यह देखते हए िक एक भोजन के िलए इसक बहत थोड़ी मा ा चािहए थी। उसने
यह कहते हए वेदवती को इलायची भट क िक यह परू े गाँव के िलए है। वो कुछ उपकरण भी
लाया था जो वो जानता था िनमाण काय को आसान बना दगे।
अगले िदन रावण के साथ दोपहर के भोजन पर बैठी वेदवती दयतल से आभारी थ ।
शोिचकेश वै नाथ गया हआ था। और कु भकण को अचानक, और सुिवधाजनक प से,
याद आ गया था िक गाँव म उसका कुछ काम अधरू ा रह गया है।
जब वो चुपचाप खाने बैठे तो िदल म तफ़ू ान उठने के बावजदू रावण ने अपने शा त
यवहार को बनाये रखा।
“जय,” वेदवती ने उ ह बताये गये रावण के नाम को लेते हए कहा। “ या आप
इ थ े से ह? आपक बोली से ऐसा लगता है।”
रावण वेदवती को अपने बारे म कुछ नह बताना चाहता था। अभी नह । “मने वहाँ कुछ
समय िबताया है। पर अिधक नह ।”
वेदवती ने अिनि तता के भाव से उसे देखा। “जय, हम आपक उदारता के िलए
आभारी ह, पर म आशा करती हँ िक आपने हमारे िलए वयं पर बहत अिधक भार नह डाला
होगा। आप बुरा न मान, तो या म पछ ू सकती हँ िक आप करते या ह? आप इतने दानशील
कैसे हो पाते ह?”
“ओह, मेरा काम... यापार है। वो व तुएँ लाना िजनक यहाँ के लोग को आव यकता
हो, और वो ले जाना जो दूसरे े म लोग को पस द ह ।”
“समझी। और इसम लाभ होता है?”
मने जो धन इलायची और उपकरण पर यय िकया है, वो अगर खो भी जाता तो मझ ु े
पता नह चलता।
रावण ने अपने िवचार अपने तक रखे, और कहा, “हाँ। नये अनु ाप और ितब ध
के चलते यह कुछ किठन हो गया है। लेिकन दो जन ू क रोटी चल जाती है।”
“जानकर अ छा लगा,” वेदवती ने कहा। सहज प से भले और सरल लोग दूसर को
भी सहज ही वीकार कर लेते ह। “ध यवाद, जय, आपक सहायता मेरे गाँव के िलए बहत
मह वपण ू है।”
रावण ने क धे उचकाए। यह तो कुछ भी नह है।
“सहायता करने म स म हर यि सहायता नह करता,” वेदवती ने आगे कहा।
“इस युग म तो नह ।”
“हर कोई... जय नह होता,” रावण ने हँसते हए कहा, उसने ठीक समय पर अपना
नाम लेने से वयं को रोक िलया था।
वेदवती उसके द भ को अनदेखा करते हए मु कुराई ं। “इन ामीण ने बड़े क झेले
ह। आजकल जो कुछ चल रहा है, उसके वा तिवक िशकार यही ह। और अिधकांश लोग उन
लोग क सहायता करने क िच ता नह करते जो उनसे कम भा यशाली ह। परोपकार क
पर परा धीरे धीरे भारत से भुलाई जा रही है। हम अपना धम भल
ू ते जा रहे ह।”
रावण का चेहरा फ का पड़ गया, लेिकन वो कुछ बोला नह ।
“मेरा ता पय आप जैसे यि से नह था,” वेदवती ने रावण के चेहरे के भाव को ग़लत
समझते हए कहा। “लेिकन आज परू े देश म धम को केवल अनु ान और बात तक सीिमत
कर िदया गया है। अनु ान के पीछे के दशन, और उन अनु ान पर चलने के कारण को
भुलाया जा रहा है।”
“म आपसे सहमत हँ,” रावण ने कहा। “हर जगह अनाव यक पाखंड ने डे रा जमा
िलया है। िक तु...”
“िक तु या?” वेदवती ने पछ ू ा।
“देिखए, मुझे नह लगता िक इन ामीण को पीिड़त माना जाना चािहए।”
वेदवती ने आ य से खाना रोक िदया। “आपको लगता है ये पीिड़त नह ह?”
“िब कुल, ये पीिड़त ह।”
वेदवती मु कुराई ं, उ ह ने अपना िसर िहलाया और िफर से खाना शु कर िदया। “म
समझी नह िक आप या कह रहे ह।”
“वो िन स देह पीिड़त ह,” रावण ने कहा। “दुिनया के हर दूसरे यि क तरह। हम
सब िकसी-न-िकसी प म पीिड़त ह। पर इसका यह अथ नह िक हम वयं को पीिड़त
मानते रह।”
वेदवती ने रावण को देखा। वो उलझ-सी गयी थ ।
रावण आगे बोला, “हम सबके जीवन म ऐसा समय आता है जब लगता है हमारे साथ
अ याय हआ है। ऐसी ि थितय म यह हम पर है िक हम वयं को पीिड़त मान और शेष
दुिनया पर आरोप लगाते रह। हम खुद को इस िम या सा वना म डुबो सकते ह िक अपनी
किठनाइय के िलए हम उ रदायी नह ह और दूसर से उ मीद कर िक वो हमारी िज़ दगी
को बदलगे। या िफर, हम वयं को उठा सकते ह। मज़बत ू बन सकते ह। और दुिनया से लड़
सकते ह।”
“यह सच है िक मुसीबत का सामना हम सभी करते ह, जय, लेिकन सबक
किठनाइयाँ समान नह होत । कुछ लोग अ य क तुलना म अिधक परे शानी म होते ह। और
उन लोग को हमारी मदद चािहए होती है। िन स देह िकसी को यह आशा नह करनी चािहए
िक दूसरे लोग उसक सम याएँ हल करगे लेिकन शि शाली लोग को सहायता करनी...”
“...'पीिड़त के प थ' क सहायता करनी चािहए?” रावण ने बीच म टोका।
“ या?”
“उन लोग का प थ जो केवल झ कना और िशकायत करना जानते ह।” रावण ने
अपने हाथ ऊपर िकये और ऊँचे सुर म नक़ल बनाने लगा, 'ओह, म दुिखयारा। देखो मुझे।
देखो म िकतनी मुसीबत म हँ। कोई आओ और मेरी देखभाल करो। म समाज के हाथ पीिड़त
हँ।'”
वेदवती ने अपना ह ठ काटा जैसे मु कुराहट को दबा रही ह , और िफर ग भीर हो गय ।
“जय, हम दूसर क कमजोरी को तु नह करना चािहए, िक तु उसका उपहास भी नह
उड़ाना चािहए।”
“नह ... म उपहास नह उड़ा रहा... देवी क याकुमारी, उनका उपहास उड़ाना शायद
मेरी ग़लती थी। मुझे खेद है। िक तु मेरा उ ह देखने का यह ि कोण है : हम सबके भीतर
एक शेर और एक िहरन होता है। अगर हम शेर का पोषण करगे, तभी कुछ ा कर सकगे।
यिद हमने िहरन को तु िकया, तो जीवन भर भागते और िछपते िफरगे।”
“यानी... िशकारी और िशकार।”
“हाँ।”
“और हम शायद हमेशा िशकारी बनने का यास करना चािहए? य िक स भवतः
िशकार म ऐसे कोई गुण नह ह गे जो उसक अनुशंसा कर सक?”
“यिद हम अपने िलए नह लड़ सकते, तो उनक र ा और भरण कैसे करगे जो हम पर
िनभर करते ह?”
“तो आप इसे इस तरह देखते ह? हर िशकारी एक महान यो ा है, और िशकार िकसी
स मान का अिधकारी नह है?”
“आप सहमत नह ह, महान वे... वेद... क याकुमारी?”
वेदवती ने उसे सहानुभिू त से देखा। उ ह लगा िक रावण म थोड़ा हकलापन है जो कोई
नाम लेते समय, िवशेषकर 'व' से आर भ होने वाले नाम लेते समय और िवकट हो जाता है।
इसीिलए उ ह ने उसके ारा क याकुमारी कहा जाना वीकार कर िलया था।
“जय, आपने पंचत के बारे म सुना है?”
रावण ने तुर त िसर िहला िदया। “िब कुल!”
पंचत , अथात पाँच आलेख, भारत के येक ब चे क ारि भक िश ा का भाग था।
इसम बोलने वाले पशुओ ं क कहािनयाँ थ , और येक कहानी म एक नैितक पाठ िछपा था।
“कभी-कभी,” वेदवती बोल , “हम धम के पाठ सीखने के िलए पशुओ ं क कहािनय
पर िनभर होने क आव यकता नह होती। कभी-कभी हम वा तिवक पशुओ ं से भी सीख ले
सकते ह।”
रावण आगे को झुक गया, उसक िज ासा उभर आयी थी।
“यह बहत पुरानी बात है,” वेदवती ने कहा। “म तब क याकुमारी ही थी। मने बहत-सी
जगह क या ा क थी, िजनम वीर आं का अ ुत देश भी शािमल था। अमरावती के नदी
ब दरगाह के पास।”
“म वहाँ जा चुका हँ। वो अ य त सु दर है। वा तव म अपने नाम जैसा शहर।”
“हाँ, कुछ लोग का मानना है िक आधुिनक अमरावती ठीक उसी जगह ि थत है जहाँ
पहले िकसी युग म देवास के राजा भगवान इ रहा करते थे।”
“हाँ, मने भी ऐसा सुना है। कौन जाने, शायद यह सच ही हो।”
“जो भी हो, जब हम वहाँ थे, तो थानीय शासक ने हम पिव कृ णा और गोदावरी
निदय के बीच ि थत वन म घुमाने क इ छा जतायी। इसका अिधकांश भाग घास का खुला
मैदान था, और हम हाथी पर सवार थे। िदन म िकसी समय हमने एक बढ़ ू ा शेर देखा िजसके
साथ उसके ब चे थे...” वेदवती क , िफर उ ह ने पछ ू ा, “आप जानते ह अिधकांश शेर के
साथ बुढ़ापे म या होता है?”
“हाँ।” रावण ने िसर िहलाया। “यौवन खो चुके शि शाली िशकारी को देखने से यादा
पीड़ादायक शायद ही कोई य होता हो। मने अ सर ऐसा देखा है जब एक बढ़ ू े शेर को एक
अ य, सामा यत: युवा शेर चुनौती देता है। अगर वो हार जाये, लेिकन सौभा य से जीिवत रहे ,
तो उसे अपना े छोड़कर भागना पड़ता है। युवा शेर उसक जगह सँभाल लेता है और
शेरिनयाँ अपनी िन ा बदल देती ह। कई बार यह युवा शेर बढ़ ू े शेर के ब च को भी मार
डालता है। असहाय माँएँ दूर से तकती रह जाती ह। वो शायद इसे नये वामी के आदेश के
तहत देखती ह—नये शासन म नये िनयम।”
“जंगल के तौर-तरीके बड़े ू र हो सकते ह।”
“आपने ब च के साथ जो बढ़ ू ा शेर देखा था, वो शायद िकसी तरह उ ह बचाने म
कामयाब हो गया होगा। हो सकता है िक वो और उसके ब चे िमलकर युवा शेर के ोध से
बच गये ह ।”
“बहत स भव है,” वेदवती ने कहा। “तो, जैसा आप जानते ह बढ़ ू े शेर के िलए िशकार
करना किठन होता है। और यिद उसे कुछे क ब च का पेट भी भरना हो, तब तो जीवन एक
बड़ा संघष बन जाता है। इस शेर के ब चे भख ू े थे। वो वयं भख
ू ा था। वो िनबल थे। और हताश
थे।”
“उसके बाद या हआ, देवी क याकुमारी?”
“जब हमने उस शेर को देखा, तो वो घास के मैदान के दूसरे छोर पर था, उसके ब चे
उसके पीछे चल रहे थे। उसने तभी कुछ िहरन को देखा था जो शायद अपने झुंड से िबछुड़
गये थे। एक माँ, अपने ब च के साथ। चार ब चे थे। उनम से एक अ य से दुबल था। प रवार
म सबसे िनबल।”
“शेर के ब च का भोजन...”
वेदवती ने यान िदया िक रावण का पहला िवचार शेर और उसके भख ू े ब च के िलए
था। लगता था िक उसक सहानुभिू त िशकारी के साथ थी, भले ही वो बढ़ ू ा और कमज़ोर था।
“िब कुल सही। लेिकन याद रख, शेर बढ़ ू ा था। वो िशकारी िजसके अ छे िदन बीत चुके थे।
आपके िवचार से उसने या िकया होगा?”
“िन स देह उसने िहरनी के सबसे दुबल ब चे पर हमला िकया होगा। उससे माँस भले
ही कम िमलता, लेिकन वो िनि त तो होता िक उसे पकड़ सकेगा और अपने ब च को
िखला सकेगा। िब कुल भोजन न होने से कुछ भोजन होना अ छा है। उसके ब चे और वो
एक िदन और बच जाते। थोड़ी शि पा जाते।”
वेदवती मु कुराई ं। “आप िशकारी क सोच को बहत अ छी तरह समझते ह, जय।”
रावण भी मु कुरा िदया, य िप वो परू ी तरह िनि त नह था िक यह बात शंसा व प
ही कही गयी थी।
“तो, जैसा िक आपने सही अनुमान लगाया, शेर ने सबसे दुबल िहरन पर हमला
िकया,” वेदवती ने अपनी बात जारी रखी। “िहरनी ने खतरा महसस ू करते हए अपना िसर
ऊपर िकया, और उसक आँख िकसी भी हलचल को तलाश करने लग । शेर को देखते ही वो
ब च को सतक करते हए तेज़ी से बढ़ी, और वो एक-दूसरे पर िगरते-पड़ते तेज़ी से पेड़ क
ंख
ृ ला क ओर दौड़ने लगे। वो तेज़ थे। एक को छोड़कर सभी। शेर ने अपनी गित बढ़ा दी। वो
कमजोर था, पर िफर भी शेर था। वो न हे से िहरन से दूरी कम करता जा रहा था। बस कुछ
समय क बात थी, शायद कुछ पल क िक वो अपने िशकार तक पहँच जाता। ऐसा लगता था
िक शेर और उसके ब च को अ तत: भोजन िमल ही जायेगा।”
“और िफर?”
“िफर अचानक, िहरनी धीमी हो गयी। बड़े ब चे मैदान के िकनारे पहँच चुके थे और
िकसी भी ण पेड़-पौध म अ य हो जाने वाले थे। शेर से दूर। लेिकन दुबल ब चा अभी भी
संकट म था। माँ ने दौड़ना ब द िकया, और िफर क गयी।”
रावण ने महसस ू िकया िक वो अपनी सांस रोके हए है। “िफर?”
“शेर िहरनी क ओर मुड़ गया। परू े आकार क िहरनी छोटे िहरन क तुलना म उसके
और उसके ब च के अिधक समय तक काम आती। उसने रा ता बदल िदया। चँिू क माँ िहरनी
लगभग क ही हई थी, इसिलए वो तुर त ही उस तक पहँच गया।”
“तो या अि तम पल म िहरनी भागी नह ? य िक वो शेर का यान अपने ब चे से तो
भटका चुक थी?”
वेदवती ने िसर िहलाते हए मना िकया। “नह । वो वह खड़ी रही, और अपने ब चे को
सुरि त जाते देखती रही।”
“और शेर ने या िकया?”
“शेर भी क गया। िहरनी से बस कुछ हाथ क दूरी पर। वो उलझन म पड़ गया था। तब
तक दुबल ब चा अपने भाई-बहन से जा िमला था। वो पलटकर ज़ोर-ज़ोर से िमिमयाते हए
अपनी माँ को देख रहे थे, जैसे उससे भाग जाने क िवनती कर रहे ह । लेिकन िहरनी जहाँ
थी वह क रही। उसने केवल एक बार एक आवाज़ िनकाली। जैसे अपने ब च को भागने
का आदेश दे रही हो। शायद वो नह चाहती थी िक वो उसे देख जो होने वाला था।”
रावण मौन रहा। या माँ थी...
वेदवती आगे बोली, “कहानी यह ख़ म नह होती।”
“तो आगे या हआ?”
“शेर ने िहरनी के ब च को देखा, जो अब उसक पहँच से बहत दूर िनकल चुके थे।
अपनी माँ के िलए िच लाते-िमिमयाते। िफर उसने माँ िहरनी को देखा, जो बस एक छोटी-सी
छलाँग क दूरी पर खड़ी थी। और ऐसा लगा जैसे वो ति भत हो गया हो। जैसे वो अपने
सामने खड़ी सु दर िहरनी को मारने क िह मत नह जुटा पा रहा हो। और िफर, उसने
पलटकर दूर खड़े अपने ब च को देखा। भख ू े और भोजन के िलए ती ा करते।”
रावण ने जंगल के उन ण के बारे म सुनाती वेदवती के चेहरे के बदलते भाव को
देखा ।
“शेर को या करना चािहए? धम या कहता है? या वो एक अ छा बाप बने, और
अपने भख ू े ब च का पेट भरने के िलए िहरनी को मार डाले? या िफर एक अ छा पशु बने,
और उस भ य माँ को जीवन का उपहार दे दे?”
“मु... मुझे नह पता,” रावण ने उ र िदया।
“हम लगता है िक पशु धम के बारे म नह सोच सकते। शायद वो धम को य नह
कर सकते, य िक वो बोल नह सकते। पर हम यह य मान िक धम उ ह छूता भी नह है?
धम सावभौिमक है। यह हर िकसी को पश करता है।”
रावण चुप रहा, और परू े मनोयोग से सुनता रहा।
वेदवती आगे बोलती रह । “धम जिटल है। ायः इसका मल ू या म नह य म होता है।
यिद शेर खेल के िलए िशकार कर रहा होता—िजसम अिधकांश पशु स म नह होते ह—तो
हम इसे अधम का कृ य कह सकते थे। पर चँिू क वो अपने भख ू े ब च का पेट भरने के िलए
िशकार कर रहा था, इसिलए हम कह सकते ह िक वो धम का पालन कर रहा था। यिद
िहरनी ने प रि थितय को हावी होने िदया होता और अपने ब च को बचाने का यास नह
िकया होता, तो यह अधम होता। लेिकन अपने ब च को बचाने के िलए िकये उसके बिलदान
को केवल धम ही माना जा सकता है। धम के े म मंशा यिद अिधक नह तो उतनी ही
मह वपण ू अव य होती है िजतना िक वयं कृ य। पर एक चीज़ प है। आपके पास धम का
जीवन ा करने का अवसर मा भी केवल तभी है जब आप अपने कत य को वयं से ऊपर
रख। वाथ आपको िनि त प से इससे दूर ले जायेगा।”
“जीवन ने शेर और िहरनी दोन के साथ अ याय िकया था,” रावण सोचते हए बोला।
“दोन पीिड़त थे।”
“जीवन सबके साथ अ याय करता है। जैसा िक िसखी बु ने कहा था, जीवन क
मल ू वा तिवकता दुख है। इस मायावी संसार के कोनेकोने म या दुख से बचने का
ू भत
कोई रा ता नह है। इस मल ू भत
ू सच को वीकार करना ही इस पर िवजय पाने क ओर
पहला कदम है।”
“हर कोई संघषरत है... मेरे िवचार से हम आँकने के बजाय समझना और सीखना
चािहए।”
“िब कुल सही। यिद आप आँकगे नह , तो अपने दय म दूसर क सहायता करने के
िलए जगह बना लगे। और यह आपको धम क ओर ले जायेगा।”
“पर इसका अ त या हआ, देवी क याकुमारी? या शेर ने िहरनी को मार िदया?”
“इस कहानी का उ े य यह नह है, जय।”
रावण मु कुराया। और उसने सवाल पछ ू ना ब द कर िदया।

“इसम बहत समय लग रहा है, दादा,” कु भकण ने कहा। उ ह वै नाथ े म एक महीने से
अिधक हो चुका था। “मरीच मामा चाहते थे िक हम ज दी से ज दी लौट आये। अ का म भी
वो काम है...”
रावण ने इशारे से उसे चुप करा िदया। “वो ऐसा कोई काम नह है जो मरीच वयं नह
सँभाल सकते।”
“पर दादा, हमारे दल का या? और समीची? सब ख़ाली बैठे हए ह। और सोच रहे ह िक
उ ह य इस अितिथगहृ म ब द कर िदया गया है जहाँ कोई...”
रावण ने अपने भाई को टोका। “उ ह कुछ करने को दे दो, कु भ। उ ह िकसी छोटे से
यापा रक अिभयान आिद पर भेज दो।”
कु भकण चुप हो गया। रावण ने सपनीली नज़र से िखड़क के बाहर देखा। काफ़ रात
हो चुक थी। िसफ़ झ गुर क आवाज ही सुनाई दे रही थी। कभी-कभी दूर कह कोई उ लू
िच लाने लगता था। रावण वेदवती से ल बी बातचीत के बाद शाम को अितिथगहृ म लौटा था।
उसने च मा को देखा। और एक गहरी सांस ली।
“आज यह िकतना सु दर लग रहा है ना?”
कु भकण ने पलटकर चाँद को देखा। उसे तो वो एकदम साधारणसा िदखाई दे रहा था।
उसने धीरे से सांस छोड़ी और िफर से रावण को देखा। “दादा...”
“ श!” रावण ने अपने पास रखा रावणहता उठा िलया। “सुनो, मने एक नयी रचना
तैयार क है।”
उसने तार को छे ड़ा, जैसे उसके वर क जाँच कर रहा हो। और शु हो गया।
रावणहता को पहली बार सुनने के बाद से ही कु भकण को यह शोक का वा लगता
था। इसका नाद िदल को कचोटता था और आँख म आँसू ला देता था।
पर आज रात रावण के गहरे , मीठे वर, उसके रचे मधुर संगीत क लया मकता, और
हवाओं क सरसराहट ने रावणहता के अलौिकक नाद के साथ िमलकर परम सुख और
आन द का एक ीप-सा बना िदया था। रावण ने िकसी तरह शोक के वा य से उ लास
क मधुर धुन िनकाल ली थी, नकारा मक को सकारा मक म बदल िदया था। इसक ेरणा
कोई देवी ही दे सकती थी।
अ याय 14

आप तब या करते ह जब वो ी िजसे आप िदल क गहराइय से यार करते ह, िजसके


आपने हमेशा सपने देखे ह, िजसे आपने पज ू ा है, वो हमेशा के िलए आपसे दूर हो जाये? आप
अपने िदल पर प थर रखकर उसके िबना जीने के िवचार के साथ समझौता कर लेते ह।
िफर भा य आपको दोबारा उससे िमला देता है। और आपको पता चलता है िक वो िकसी
और क हो चुक है। आप इस त य को अनदेखा करने का यास करते ह। उसके जीवन म
िकसी और के अि त व को अनदेखा करने क कोिशश करते ह। अपने अ दर उपजी
वाभािवक घण ृ ा को दबाते ह।
पर आप उससे दूर नह रह सकते। आप उसे और िनकट से जानते ह। उससे और अिधक
यार करने लगते ह— यिद यह स भव है तो। और िफर, आप दूसरे आदमी से िमलते ह।
उससे... पित से। और वो आपक क पना के एकदम उलट है। वो सु दर है। ईमानदार है।
दयालु है। उदार है। वो... इतना भला है जैसा िक आप जानते ह आप कभी नह हो सकते।
और वो उसे यार करता है। शायद उतना ही िजतना आप करते ह। वो उसका स मान
करता है। शायद उससे भी अिधक िजतना आप करते
और आपके िदल क गहराइय म कह , एक कोमल, रा सी, अिन कारी-सा वर
गँज
ू ता है। आप उस सच को सुनने को िववश ह िजसे आप वीकार नह करना चाहते : िक
शायद, हो सकता है, वो उसके िलए आपसे बेहतर है।
अब आप या कर? आप या कर?
एकमा तािकक चीज़ यह है िक आप उस आदमी से घण ृ ा कर, ितर कार कर। और
पहले से कह यादा कर।
यही तािकक है। रावण ने वयं से कहा।
वेदवती का पित प ृ वी गाँव लौट आया था। जब रावण ने यह सुना, तो कुछ िदन वो
िनजी काम का बहाना करके दूर ही रहा। लेिकन िफर एक िदन उसने साहस जुटा ही िलया
और कु भकण के साथ काय थल क ओर चल पड़ा।
शाम हए देर हो चुक थी और एक सुखद-सी हवा गम िदन को ठं डक दे रही थी।
शोिचकेश कह गया हआ था, शायद कुछ ऐसी साम ी का ब ध करने जो बाँध पर काम
जारी रखने के िलए आव यक थी। लेिकन रावण असली कारण से प रिचत था। भू वामी का
बेटा सुकमण िफर से मि दर के दानपा से चोरी करते पकड़ा गया था; उसने दावा िकया था
िक उसे अपने जुए के उधार चुकाने थे। शोिचकेश इस कोिशश म था िक बात के फै लने से
पहले वो ख़ामोशी से पैसा वापस ा कर ले। वो गभवती वेदवती को कोई दुख नह पहँचाना
चाहता था।
“एक बार िफर से ध यवाद, जय,” प ृ वी ने रावण को स बोिधत करते हए कहा। भारत
के सुदूर पि म के बलोच े के अनेक लोग क तरह प ृ वी ल बा, और प मुखाकृित व
अ यिधक गोरे रं ग का था। रावण तक को वीकार करना पड़ा िक वो एक सु दर आदमी था।
“आपने जो उपकरण िदये ह उनसे यहाँ काम क गित बढ़ाने म बहत मदद िमली है। एक ऐसे
यापारी से िमलकर बहत अ छा लगा जो धम और परोपकार म िव ास रखता है।”
रावण ने मु कुराकर अटपटे ढं ग से हाथ िहलाया। उसे समझ नह आ रहा था िक वो उस
यि से िमल रही शंसा पर या िति या दे िजससे उसे िचढ़ है।
“तो आपका दौरा कैसा रहा, प ृ वी जी?” कु भकण ने पछ ू ा।
प ृ वी ने उ र देने से पहले वेदवती क ओर देखा। “अ छा रहा। इस बार मुझे अ छा लाभ
हआ। लगभग साढ़े छह सौ वण मु ाओं का।”
रावण को उपे ापवू क न हँसना किठन लगा। यह अ छा लाभ है? म तो इतना एक घंटे
म कमाता हँ।
“अ तत: अब मेरे पास इतना धन है िक म अपनी प नी और ब चे क देखभाल कर
सकँ ू ,” प ृ वी ने वेदवती का हाथ अपने हाथ म लेते हए कहा।
वेदवती ने अपना िसर प ृ वी के क धे पर िटका िदया। रावण पलटकर पास के पेड़ के
िशखर पर पि य को देखने लगा।
“और आप ठीक समय से लौट आये ह,” कु भकण ने कहा।
“हाँ!” प ृ वी ने गव से कहा। “हमारे ब चे के इस संसार म वेश करने म अब बस कुछ
स ाह बचे ह।”
कु भकण ने सहमित म िसर िहलाया। “वैसे म सोच रहा था िक बाँध पर काम आगे
बढ़ाने के िलए कुछ और उपकरण से मदद िमलेगी। यिद आपके पास थोड़ा समय हो, तो म
आपको िदखा सकता हँ िक मेरा या मतलब है।”
प ृ वी ने वेदवती क ओर देखा।
“अभी तो म आराम करना चाहँगी, प ृ वी,” वेदवती ने कहा। “मेरी पीठ मुझे मारे डाल
रही है।”
प ृ वी ने मु कुराकर वेदवती के चेहरे को धीरे से सहलाया। “म ज दी वापस आ
जाऊँगा।”
कु भकण के साथ प ृ वी के चले जाने के बाद रावण थोड़ा शा त हआ। “आपक पीठ म
िकतना दद है? या म वै नाथ से कुछ औषिधयाँ मँगवाऊँ?”
वेदवती ने िसर िहलाकर मना कर िदया। “नह , मुझे नह लगता इसक आव यकता
है। हम वैसे भी एक स ाह म वै नाथ के िलए िनकल रहे ह।”
अपनी भावनाएँ न िदखाने क परू ी कोिशश करते हए रावण ने बस िसर िहला िदया।
“वो अ छे पु ष ह,” वेदवती ने कहा।
रावण ने च ककर उनक ओर देखा। “बेशक ह। म...”
“और म उ ह ेम करती हँ। वो मेरे पित ह।”
“म... िब कुल... मेरा मतलब... ”
वेदवती ने रावण क आँख म आँख डाल द । वो प का कर रही थ िक वो उसे आहत
िकये िबना उस तक अपना स देश पहँचा द।
“तो हम पहली बार कहाँ िमले थे?” अचानक उ ह ने पछ ू ा।
रावण बुरी तरह िसटिपटा गया। वो समझ ही नह पाया िक वेदवती का मतलब या है।
“मने एक िदन िवजय से पछ ू ा िक ऐसा य है िक आप दोन मुझे इस तरह देखते ह
जैसे मुझे पहले से जानते ह? शायद मेरे क याकुमारी वाले िदन से। िकसी अनजान कारण से
आप भी मुझे प रिचत से लगते ह। सच कहँ, तो िवजय नह । वो मुझे िनि त प से याद
होता।” वेदवती अपनी िवन ता म वो बात नह बोल रही थ जो प थी—कु भकण क
नागा मुखाकृित को भल ू ना किठन ही था। “तो मुझे िव ास है िक तुम और म पहले भी िमले
ह। पर हम कहाँ िमले थे?”
झठ ू बड़ी आसानी से रावण क ज़बान पर आ गया। “शायद तब जब म बरस पहले
वै नाथ आया था। म क याकुमारी मि दर आया था और आपने मुझे आशीवाद िदया था। पर
यह बहत पुरानी बात है। हम दोन ब चे थे। मुझे आ य है िक आपको मेरे बारे म कुछ ह का-
सा भी याद है।”
वेदवती ने रावण क आँख म घरू ा। एक ण को तो रावण को लगा िक वो जानती ह
िक वो झठ ू बोल रहा है। लेिकन वेदवती ने केवल िसर िहला िदया।
“तो आप भगवान के भ ह?” वेदवती ने पछ ू ा।
रावण ने मु कुराते हए अपने गले म पड़े एकमुखी ा के लटकन को छुआ। “हाँ।
जय ी !”
“जय ी ,” वेदवती ने मु कुराते हए दोहराया और उ ह ने भी अपने ा लटकन
को पकड़ िलया। “तो, एक बात पछ ू ू ँ आप उनके काय के भ ह या उस प के िजसका वो
महादेव के प म ितिनिध व करते ह?”
रावण क भक ृ ु िटय म बल पड़ गये। “ या दोन म कोई अ तर है?”
“िब कुल है।”
“वो कैसे? मनु य उसी से प रभािषत होता है जो वो करता या करती है। अपने यवसाय
या ध धे से। कम ही मनु य को प रभािषत करता है। कम के िबना इंसान मत ृ समान है।”
वेदवती मु कुराई ं। “मने ऐसा नह कहा िक कम मह वपण ू नह है। पर यह एकमा
मह वपण ू चीज़ नह है। अ य चीज़ भी मह वपण ू ह।”
“और ये अ य चीज़ या ह?” ।
“पुरानी सं कृत म, वत व। िजसका शाि दक अथ है वयं का सार। या और भी सरल
श द म, आपका अि त व।”
“अि त व?”
“अि त व एक जिटल श द है िजसे समझना सरल नह है। धम क तरह।”
“म धम को समझता हँ।”
“सच?” वेदवती मु कुराई ं।
“ठीक है। म मानता हँ िक धम एक जिटल धारणा है। हम कई ज म तक इसक
बारीिकय पर बहस कर सकते ह। पर िनि त प से, अि त व इतना जिटल नह है।”
“है। लेिकन अि त व को समझने के िलए पहले कम को समझना होगा। आपके काम
आपके कम ह। कम का अथ है वो जो आप करते ह। पर मुझे बताएँ , आप कोई भी ऐसा काम
य करते ह िजसका दूसर से स ब ध होता है? य िक आप िति या क आशा करते ह
—शायद एक ऐसी िति या जो आपको स न करे गी।”
“तो आप कह रही ह िक कम का स ब ध लेनदेन से है और इसिलए यह वाथपण ू है?”
या ये जानती ह िक मने इस घिटया गाँव को जो चीज़ दान क वो केवल इनके िनकट
आने के िलए दी?
वेदवती ने इ कार म िसर िहला िदया। “इसम मत पिड़ए िक या अ छा है और या बुरा
है। जो है सो है। बस । कम िनि त प से लेनदेन स ब धी है।”
“और अि त व नह है?”
“नह , अि त व नह है। यही बात इसे इतना मह वपण ू बनाती है। और इतना
शि शाली भी।”
“म समझा नह ।”
“मुझे िव ास है आपने सुना होगा िक मि त क क शाि त पाने का एकमा तरीक़ा
शा त और एका रहना सीखना है। यह सलाह ाय: दी जाती है।”
“हाँ,” रावण ने आँख घुमाते हए कहा।
“आपने आँख य घुमाई ं?”
“मेरा ऐसा आशय नह था। मा चाहता हँ।”
वेदवती हँसने लग । “मने ऐसा नह कहा िक आपका आँख घुमाना अनुिचत था। मने
बस इतना पछ ू ा था िक आपने आँख य घुमाई ं।”
रावण भी धीरे से हँस पड़ा। “ य िक लोग को शा त और एका रहने क सलाह देना
बहत आसान है। सम या तो यह है िक ऐसा िकया कैसे जाये!”
“िब कुल सही। यही सम या है। लोग सोचते रहते ह िक यह अव था पाने के िलए उ ह
कुछ करना होगा। शायद अपने यवसाय म सफल होना होगा, या घम ू ने जाना होगा, या सही
कार के िम बनाना, या एक िभ न जीवनसाथी पाना... लेिकन ये बदलाव कर लेने के बाद
भी उ ह पता चलता है िक वो शा त नह ह। तो उ ह लगता है िक उ ह कुछ और करना
होगा। कुछ िभ न। यह कभी न कने वाला च है। मल ू प से, शाि त और एका ता कभी
हाथ नह आते य िक लोग को लगता रहता है िक उ ह उन तक पहँचने के िलए कुछ
करना है, अ छे कम ा करने ह।"
“तो, सम या है कम पर यान देना?”
“हाँ। यिद आपका परू ा यान कम पर ही रहे गा, तो शा त और एका होना बहत
किठन है। य िक कम बदले म कुछ पाने क आशा म िकया गया काम है। जैसे, यिद आप
िकसी को दान देते ह, तो आप बदले म कम-से-कम स मान क आशा करते ह। यह एक
लेनदेन है। और अगर आपके काम के नतीजे म आपको वो न िमले िजसक आपने आशा क
थी, तो आप िनराश और दुखी हो जाते ह। इससे भी बदतर यह िक यिद आपके काम के बदले
म िमलने वाला वही हो िजसक आपने आशा क थी, तो आपको पता चलता है िक उससे
िमलने वाली स नता िणक थी। यिद अस तुि िनि त है, तो आपको मि त क क
शाि त कैसे िमलेगी?”
“कैसे?”
“बस वो होकर जो आपको होना है। अपने व व के ित स चा रह कर।”
रावण पीछे िटक गया। तक का सौ दय उसके मि त क पर छा गया था।
वेदवती ने आगे कहा, “म यह नह कह रही हँ िक हम कम पर यान नह देना चािहए।
आपने सही कहा था िक अगर कम नह करगे, तो हम मत ृ समान ह। िक तु कम हमारे
जीवन का के नह होना चािहए। यिद हम सचमुच अपने अि त व को, अपने व व को
खोज लेते ह, और उसके साथ तालमेल म रहते ह जो हम होना है, तो सब कुछ आसान हो
जाता है। हम अपने कम करने के िलए बहत अिधक य न नह करना पड़ता। य िक हम
कोई भी काम िकसी और चीज़ क यथ आशा म नह करगे। हम उसे मा इसिलए करगे िक
वो हमारे अि त व के साथ तालमेल म है। उसके साथ तालमेल म है जो हम होना है।”
रावण ने इतना एका या शा त कभी महसस ू नह िकया था िजतना वेदवती के साथ
इन िपछले कुछ स ाह म िकया था। वेदवती के पास उसके उ र थे। उन के उ र जो
रावण ने पहले कभी पछू े तक नह थे। “और आपके िवचार से म या करने के िलए पैदा हआ
था, भ ा क याकुमारी? मेरा व व या होना चािहए?”
“नायक।”
रावण खुलकर हँस पड़ा। वेदवती मौन रह ; उ ह अपनी बात पर पण ू िव ास था।
अ तत: उसने खुद पर िनय ण पाया। “म मा चाहता हँ, क याकुमारी। म नायक
नह हँ। आप िनि त प से ह। म नह हँ। म तो हर कार से एक...” मँुह से 'खलनायक'
श द िनकलने से पहले रावण चुप हो गया।
वेदवती आगे को झुक । “आपका व व आपसे इसक माँग कर रहा है। आप एक
नायक बनना चाहते ह। आप भले बनना चाहते ह। आप आय बनना चाहते ह। इसीिलए, स
िस धु छोड़ने के आपके जो भी कारण रहे ह , आप यहाँ वापस आते ह। मने सुना है िक आप
लंका म रहते ह। स िस धु के सारे धनी लोग भागकर वह जा रहे ह। िक तु आप वापस आते
रहते ह। य ? य िक आप यहाँ के आय क वीकृित और स मान चाहते ह। आप भले
बनना चाहते ह। और आपको तब तक मन क शाि त नह िमलेगी जब तक आप वीकार
नह कर लेते िक आप कौन ह।”
रावण मौन रहा। उसक आँख भावशू य-सी हो गय । वो िफर से बालक बन गया था।
वेदवती का अनुमोदन पाने को हताश। क याकुमारी का अनुमोदन पाने को। उसक दय-
गित बढ़ने लगी। उसे सांस लेने म किठनाई होने लगी। वो िफर से उनक सुग ध को संघू
सकता था। वही वष पहले वाली सुग ध। वो अपने मि त क म उनके आदेश को, उनके
बाल वर को सुन सकता था।
तमु इससे बेहतर हो। कम से कम कोिशश तो करो।
हाँ, तम
ु वा तव म इससे बेहतर हो। तम
ु यही बनना चाहते हो।
म बस अपने िपता को आहत करना चाहता हँ।म उनसे घण ृ ा करता हँ।
तम ु उ ह हराना चाहते हो?
हाँ।
तो, बेशक हराओ अपने िपता को। पर उ ह चोट पहँचाकर मत हराओ। उ ह हराओ
उनसे बेहतर बन कर।
“जय... जय?”
वेदवती के वर ने रावण को उसक आ त रक, अशा त दुिनया से बाहर ख चा। “ मा
चाहता हँ... या?”
“मेरा ता पय यह नह है िक आपको स िस धु के कुलीन वग का स मान चािहए।
उनम कुछ भी 'आय' नह है। यहाँ कोई वा तिवक कुलीनता नह बची है। पर म देख सकती हँ
िक आप स चे आय का स मान चाहते ह। उनका जो अब भी हमारे पुराने तौर-तरीक को
जीिवत रखे हए ह। वो जो वा तव म कुलीन ह। आप भले ही आज शि शाली न ह , लेिकन
धािमक ह। आप उनक वीकायता चाहते ह। य िक आप भी आय बनना चाहते ह। जय,
आपको बस वीकार करना है िक आप कौन ह। और आपको शाि त ा हो जायेगी।”
रावण ख़ामोश रहा।
वेदवती यानपवू क उसे देखती रह । “कम से कम कोिशश तो कर।”

“यह योजना के अनुसार नह गया,” कु भकण ने कहा।


कु भकण अभी टोडी से लौटा था। रावण अितिथगहृ म आतुरता से उसक ती ा कर
रहा था। लेिकन समाचार िनराशाजनक था।
“तुमने उ ह सब कुछ बताया?” रावण ने पछ ू ा। “धन क बात भी?”
“हाँ, मने बताया, दादा। म जानता हँ यह आपके िलए िकतना मह वपणू है।”
रावण ने कु भकण को प ृ वी को एक नौकरी का ताव देने के िलए भेजा था।
“उस मख ू को बस मेरा िनजी सिचव बनना होगा,” रावण ने कहा। “प िलखने ह गे।
मुझे िव ास है िक इतना तो वो भी कर सकेगा। म इसके िलए उसे वष क दो सह वण
मु ाएँ देने को तैयार हँ! उसने मना य िकया?”
“शायद वेदवती जी के िलए यह ताव कुछ यादा ही उदार था।”
“क याकुमारी के िलए? वो इसम य पड़ ?”
“प ृ वी जी तो ताव को लेकर बहत उ सािहत थे। उ ह ने कहा िक वो लोग अपने
ब चे के ज म के कुछ महीने बाद लंका के िलए िनकल सकते ह। िफर वो इस बारे म पछ
ू ने
के िलए वेदवती जी के पास गये। और उ ह ने मना कर िदया।”
“पर य ? मुझे लगा था वो चाहती ह िक म...”
“ या चाहती ह?”
“कुछ नह । उ ह ने मना य कर िदया?”
“उ ह ने बताया नह ।”
“पर या तुमने उनसे पछ ू ा?”
“मने पछ ू ा था, दादा।”
रावण दूसरी ओर देखने लगा। िखड़क के बाहर तकने लगा।
“और िफर उ ह ने बहत ही िविच बात कही।”
रावण कु भकण क ओर पलटा। “ या?” ।
“उ ह ने कहा िक म आपको बता दंू िक उ ह कुछ समय तो लगा लेिकन अ तत: उ ह
याद आ गया।”
“ या याद आ गया?”
“ख़रगोश और च िटय के बारे म।”
रावण भ च का-सा कु भकण को देखने लगा। उसे पहचान िलया गया था। वो िकतना
जानती ह? या वो िच का क लटू के बारे म भी जानती ह? अगर जानती ह तो वो उससे
घणृ ा करगी। “उ ह ने िच का के बारे म कुछ कहा? या कचबाह के बारे म?”
“नह । वो इस बारे म कुछ य कहगी? मुझे नह लगता वो हम उससे जोड़ती ह?”
रावण मौन रहा।
“मगर दादा, ये ख़रगोश और च िटय का या च कर है?”
रावण ने कुछ जवाब नह िदया।
अ याय 15

“मुझे लगा था िक आप मुझे अ छे काम करने के िलए ो सािहत करना चाहती ह,” रावण ने
कहा।
रावण वेदवती से िमलने के िलए वयं टोडी आ गया था। वो जानता था िक वो बहत
समय नह क सकेगा और उसे ज द ही लंका के िलए िनकलना होगा। वो बहत समय से
बाहर था। लेिकन वो वेदवती के िबना कैसे जा सकता था? रावण उतावला हो रहा था—उसे
िकसी भी तरह उ ह मनाना ही था।
“म या ा नह कर सकती,” वेदवती ने कहा।
“िशशु के ज म के बाद... शायद तब आ सकती ह ।”
वेदवती मौन रही।
“कृपया... म आपसे िवनती करता हँ।”
“आप जानते ह िक आपको मेरी आव यकता नह है।”
“मुझे आव यकता है! कृपा कर... कुछ भी बदलने क आव यकता नह है। आप उ ह
के साथ िववािहत रह सकती ह। प ृ वी के साथ। म आपसे कुछ माँगंग ू ा नह । म बस इतना
चाहता हँ िक आप लंका म मेरे साथ ह । बस वहाँ होना... मुझे ितिदन वयं को देखने देना।
म बस इतनी माँग कर रहा हँ। कृपया... कृपया... वेद... वे... कृपया, देवी क याकुमारी।”
“आपको मेरी आव यकता नह है,” वेदवती ने शाि तपवू क दोहराया।
रावण क आँख म आँसू थे। “मुझे आव यकता है... म जानता हँ मुझे या चािहए।”
“नह । आप नह जानते आपको या चािहए। अगर जानते तो आपको पता होता िक वो
पहले से ही आपके पास है।”
“पर वो मेरे पास नह है!” रावण ने कहा। वो अपनी झँुझलाहट िछपा नह सका। “मुझे
आपक आव यकता है! मुझे आपक आव यकता है!”
“आपको मेरी आव यकता नह है। आपको वयं क आव यकता है।
“ या?!! नह ! मुझे अपनी आव यकता नह ...”
“इस बारे म सोचना। म अभी तक आपके िलए या रही हँ? केवल आपके मि त क म
एक छिव। आप ही अपना एक बेहतर प बनना चाहते थे। आपको बस एक बहाना चािहए था।
एक बहाना जो आपको े रत कर सके, आपको उससे बेहतर बना सके जो आप उसक
िति या म बन गये थे जो आपके िपता ने आपके साथ िकया था। आप मुझसे एक बहाने के
प म िचपके रहे । म आपको यह बताने का यास कर रही हँ िक अब आपको बहाने क
आव यकता नह है। वा तव म, वयं को बेहतर बनाने के िलए आपको कभी िकसी अ य क
आव यकता नह होनी चािहए। यह जोिखम भरा है। या पता म कल ही मर जाऊँ। िफर आप
या...”
रावण ने अपनी मु याँ भ च ल । “कोई आपको चोट पहँचायेगा तो म उसे न कर
डालँगू ा। म उसे फाड़कर...”
“आप ऐसा य मान रहे ह िक िक कोई मुझे चोट पहँचायेगा? म िकसी बीमारी से भी
मर सकती हँ। तब तो आरोप लगाने को कोई नह होगा ना?”
रावण को चुप लग गयी।
“जीवन क सबसे मह वपण ू या ा आर भ करते समय आप िकसी और पर िनभर नह
रह सकते। िकसी और पर । य िक िफर आप अपने ल य, अपने वधम को िकसी अ य
यि से बाँध लगे। यह जोिखम भरा है। िवशेषकर आप जैसे मह वपण ू यि के िलए।”
“म म...” रावण ने वयं को गाली देने से रोक िलया। “म मह वपण ू नह हँ। म तो
अ छा यि तक नह हँ। आप नह जानत मने कैसे-कैसे काम िकये ह।”
“अपने साथ इतने कठोर मत होइये। आप बचपन से ही अपनी माँ और छोटे भाई क
अ छी देखभाल करते आ रहे ह। आपने लगभग अकेले एक यापार सा ा य खड़ा िकया है।
आपके पास शि है, साहस है, और मता है।”
“म... मने अपना सा ा य बनाने के िलए कुछ भयंकर काम िकये ह। म...” रावण
जीवन म पहली बार पण ू तया ईमानदार होने के िलए संघष कर रहा था। “म एक रा स हँ। म
जानता हँ िक म रा स हँ। मुझे रा स होने म आन द आता है। मुझे वयं को बचाने के िलए
आपक आव यकता है। आप ही मेरी आशा ह। मेरी एकमा आशा, यिद मुझे वयं को कुछ
बनाना है... कुछ भला बनाना है।”
“नह । म आपक आशा नह हँ। आप वयं अपनी आशा ह। आपको लगता है िक आप
रा स ह? िकस महान आदमी के भीतर एक रा स नह होता?”
रावण ने वेदवती को देखा। और मौन रहा।
“आप िजसे रा स कह रहे ह, वो एक आग है जो हर सफल यि के भीतर होती है,”
वेदवती ने आगे कहा। “एक ऐसी आग जो उसे िव ाम नह करने देती। ऐसी आग जो उसे
उकसाती रहती है िक वो प र म करे । बुि से काम ले। िनर तर काम करे । एका िच रहे ।
अनुशािसत रहे । जुझा रहे । य िक सफलता के अवयव यही ह। वो आग एक ऐसे रा स क
तरह है जो आपको सामा य जीवन नह िबताने देता। लेिकन एक चीज़ है जो सफल आदमी
को महान आदमी से िभ न बनाती है। एक मुख चीज़ : या रा स आपको िनयि त
करता है या आप रा स को िनयि त करते ह? िबना रा स के, आप साधारण होते। रा स
के साथ, आपके पास महान होने का अवसर है। िनि तता नह है, अवसर है। महानता के उस
अवसर को पाने के िलए आपको रा स को िनयि त करना पड़े गा, और अपने अ दर क
िवशाल मता को धम के िलए योग म लाना होगा।”
“म आपके िबना यह नह कर सकता।”
“मेरे िबना? म तो कुछ भी नह हँ।”
“आप क याकुमारी ह! आप जीिवत देवी ह! आप उस तरह से स जन ह जैसे म कभी
नह हो सकता। आप दयालु और उदार ह। म आप जैसे शु यि से कभी नह िमला। म एक
अशु वाथ नीच हँ।”
वेदवती चुप रह ।
रावण को तुर त ही पछतावा होने लगा। “ मा कर। मेरा इरादा गािलयाँ देने का नह
था। म मा चाहता हँ।”
“िकसी बात को बलपवू क कहने के िलए गाली देने क कोई आव यकता नह है।”
“मुझे खेद है।”
वेदवती मु कुराई ं। “तो आपको लगता है िक म शु हँ? पर या आपने देखा है िक उस
पानी म मछिलयाँ नह होती जो बहत शु होता है?”
रावण मौन रहा। उसे यह अहसास होने म कुछ ण लगे िक वेदवती क बात सही थी।
“म शु हो सकती हँ, पर या म बड़ी सं या म लोग के जीवन म कुछ अ तर ला
पायी? म अपने काय म भली हो सकती हँ, पर म अपने गाँव के बाहर के लोग का यान
आकिषत करने म स म नह हँ। केवल वही लोग लाख लोग के जीवन म सुधार ला सकते
ह जो लाख लोग तक पहँच सकते ह। िबना स मता के भलाई सीिमत होती है, इसका
प रणाम केवल अ छा िस ा त होता है।”
“पर...”
“मेरी बात सुिनए, रावण। वा तव म महान लोग, िज ह ने इितहास और लाख
अनुयाियय के िदल पर छाप छोड़ी है, ठं डे, िनदयी मि त क और नेही, धािमक दय वाले
हए ह।”
“मेरे पास वो नह है। मेरे पास दय नह है। मेरे पास न...”
वेदवती ने आगे झुककर रावण का हाथ अपने हाथ म थाम िलया। ऐसा पहली बार हआ
था िक उ ह ने उसे पश िकया हो। एक ण को उसक दयगित थम-सी गयी।
“आपके पास नेही दय है, रावण। इसका योग केवल अपने शरीर म र का संचार
करने के िलए मत क िजये। इसका योग अपनी आ मा म धम का सार करने के िलए भी
होने दीिजये। भलाई करने के िलए उिठये। हमारे इस देश के िलए भलाई क िजये, जो िनधनता,
अराजकता, और रोग से पीिड़त है। द र क सहायता क िजये। अभाव त क सहायता
क िजये। क याण क िजये।”
रावण क आँख म आँसू उबल आये।
“भारत को वापस महान बना दीिजये, इसे िफर से स चा आयवत बना दीिजये। इसे िफर
से एक पज ू नीय देश बना दीिजये। िफर म लंका म आकर रहँगी। आपक देवी के प म नह ।
बि क आपक भ के प म। मेरे पित और म आपक पज ू ा करगे।”
रावण को समझ नह आ रहा था िक या बोले । वो ख़ुद को वेदवती क नजर से
देखकर चिकत था। या वो सचमुच उस सबम स म है जो वेदवती ने कहा है?
“आपम यह मता है। मुझे आप पर िव ास है। ल बे समय से क झेलती आ रही
हमारी मातभ ृ िू म म पहले ही बहत खलनायक ह। इसे बुरी तरह से एक नायक क
आव यकता है। उिठये और नायक बिनये।”
रावण मौन बैठा सुनता रहा।
“आप भगवान के स चे भ ह ना?” वेदवती ने दयालु और िवन आवाज़ म पछ ू ा।
रावण ने िसर उठाकर देखा और हामी भरी। हाँ।
“मुझे िव ास है आप जानते ह गे िक भगवान के नाम का या अथ है। का अथ है
'वो जो दहाड़ता है।' वो जो अ छे लोग क र ा के िलए दहाड़ता है। और आपके िवचार से
रावण का या अथ है? आपको इस बारे म या बताया गया है?”
रावण ने कुछ नह कहा।
“आपके िपता ने आपको या बताया था? इसका या अथ है?”
“उ ह ने मुझे बताया था िक इसका अथ है 'वो जो लोग को डराता है।' रावण वो जो
लोग के मन म डर िबठाता है।”
“आपके िपता क केवल आधी बात सही थी। आपके नाम का मल ू ' ' है। तो रावण का
अथ होगा 'वो जो लोग को डराने के िलए दहाड़ता
“आपका मतलब है िक मेरे और भगवान के नाम का मल ू एक ही है?”
“हाँ। पर यह है िक आप िकसिलए दहाड़गे, रावण? या आप लोग को डराने के
िलए दहाड़गे? या िफर आप भगवान क तरह उन लोग को बचाने के िलए दहाड़गे िज ह
सुर ा क आव यकता है?”
वेदवती के श द ने रावण के परू े शरीर को एक सकारा मक ऊजा और ेरणा से भर
िदया। वो देव के देव महादेव से पहले से कह अिधक जुड़ा महसस ू करने लगा।
“दहािड़ये, भ रावण,” वेदवती ने कहा। “पर धम के प म दहािड़ये। िनद ष , द र
और अभाव त क सुर ा के िलए दहािड़ये। महादेव के स चे भ बिनये। आ ामक बिनये,
पर दूसर के भले के िलए। कठोर बिनये, पर केवल कमज़ोर का पोषण करने के िलए।
भयंकर बिनये, पर केवल सदाचा रय के िलए लड़ने के िलए। भगवान भी उनके िलए ही
खड़े हए थे। भगवान के उदाहरण का पालन क िजये।”
रावण एक श द भी नह बोला।
“जय ी ,” वेदवती बोल ।
“जय ी ...”
वेदवती ने मु कुराते हए एक बार िफर से रावण के हाथ को थपथपाया।
महादेव के स चे भ के पथ का पहला क़दम अहं क आनु ािनक बिल था। रावण
जानता था उसे या करना है। वो बैठी हई वेदवती के आगे झुक गया। एक गहरी सांस लेते
हए उसने अपनी पहले कभी न झुक पीठ को झुकाया और अपना िसर नीचे लाकर वेदवती
के चरण म रख िदया। उसने जीवन म पहली बार िकसी अ य जीिवत यि से आशीवाद
माँगा था।
वेदवती ने रावण को उसके क ध से पकड़ा और उठाया। “आप सदा धम म रह। धम
सदा आपम रहे ।”
रावण ने अपनी परू ी छह फुट तीन इंच क काया को उठाया, और अपने कमरब द म
बँधी थैली से एक भोजप िनकाला। “कृपया इसे वीकार कर ल, देवी वेदवती। न मत
किहयेगा।”
वो िद य नाम बोलते हए रावण का दय पहली बार परू े िनय ण म था। वो हकलाया
नह ।
“िकस चीज़ को?” वेदवती ने पछ ू ा।
“वा तिवक क याण के मेरे पहले काम को।”
“आप य वयं को इस तरह नीचा िदखाते ह? आपने पहले भी अ छाई क है। आपने
अपने भाई के साथ अ छाई क है। इस गाँव के साथ। और...”
“वो वाथ के काय थे। मने उनक र ा क थी जो मेरे अपने थे। यहाँ तक िक जो
सामान मने यहाँ िदया वो भी आपको भािवत करने के िलए था। जब मने ये हंडी िलखी और
मुहरब द क , तो उसके पीछे भी मेरा वाथ था, पर अब ऐसा नह है। म यह आपको दे रहा हँ
य िक म जानता हँ िक आप इसके साथ कुछ अ छा ही करगी।”
“रावण, म आपसे धन नह ले सकती।”
“यह आपके िलए नह है, देवी वेदवती। यह पचास सह वण मु ाओं क हंडी है, और
ये इस परू े े के िलए ह। म जानता हँ आप इनका अ छा उपयोग करगी।”
“पर...”
“कृपया मना मत क िजये। मेरे पहले वा तिवक दयालुता के काम म मुझे मत रोिकये।
म इसे आशीवाद मानंग ू ा।”
वेदवती ने रावण के हाथ से हंडी लेकर उसे अपने माथे से छुआ और कहा, “यह मेरा
सौभा य है, भ रावण। म इसका उपयोग आम लोग क भलाई के िलए क ँ गी।”
“यह मेरे िलए बहत मह वपण ू है। म यहाँ एक आय के प म वापस आऊँगा और िफर
जो मेरा है उसे माँगंग
ू ा।”
“और आपको उससे वँिचत नह रखा जायेगा। यह प ृ वी का और मेरा स मान होगा।”
रावण ने हाथ जोड़कर नम ते क ।"अब म आपसे अनुमित चाहँगा, देवी वेदवती। आपके
अज मे िशशु के िलए मेरा आशीवाद। वो सचमुच भा यशाली है िक उसे आप जैसी माँ और
प ृ वी जैसे िपता िमले ह।”
“ध यवाद, महान रावण।”
जब भी वेदवती रावण का नाम बोलत , रावण के परू े अि त व म आन द क लहर दौड़
जाती थी। “िफर िमलने तक, वेदवती। जय ी ।”
“जय ी ।”
वहाँ से जाते हए रावण को अपने अि त व म एक ऐसा ह कापन महससू हआ जो इससे
पहले कभी महसस ू नह हआ था। उसके परू े शरीर म एक सकारा मक ऊजा का वाह हो रहा
था। नािभ का दद भी अब उसे परे शान नह कर रहा था। वो अपने पैर म एक उछाल, ह ठ पर
महादेव का नाम और दय म क याकुमारी को िलये जा रहा था।
अब उसके पास एक उ े य था।
अब वो धम पर चलने वाला आदमी था।
झािड़य म िछपे शोिचकेश के पु सुकमण को न तो रावण ने देखा, न ही वेदवती ने।
वो परू े समय वहाँ मौजदू रहा था और उसने सारी बात सुनी थी। लेिकन उसके मि त क म
केवल चार श द गँज ू रहे थे। पचास सह वण म ु ाएँ !

“यह तो बहत अिधक है,” कु भकण ने आ य से भ ह उठाते हए कहा।


“यह तो केवल शु आत है,” रावण ने उ र िदया। उसके चेहरे पर एक शा त मु कान
थी।
कु भकण ने अपने भाई को इतना मु कुराते पहले कभी नह देखा था िजतना िक इस
बीते एक स ाह म देखा था। वेदवती से अि तम बार िमलने के बाद के सात िदन म रावण
एक नया मनु य बन गया था—आशा और उ साह से भरपरू । वो योजना बनाता रहा था िक
अपने अपार धन से िकस कार भारत क सहायता करे । वो सोच रहा था िक स िस धु के
िकसी छोटे-से रा य पर िवजय ा करके उसे आम लोग के िलए आदश रा य के प म
थािपत करे ।
वो वै नाथ मि दर से जुड़ा एक बड़ा िचिक सालय भी थािपत करना चाहता था जहाँ
परू े स िस धु के लोग का मु त इलाज हो। वो इसके िलए जो रािश देने का सोच रहा था वो
चुर थी और इसीिलए कु भकण ने उसक उदारता पर िट पणी क थी।
“सच, दादा?” कु भकण ने पछ ू ा। “यह बहत बड़ी रािश है।”
“यह मेरी स पि के समु म एक बंदू मा है। तुम यह जानते हो। अब यह हंडी
थानीय साहकार के पास ले जाओ और वण ले आओ। हम उसे दान करगे और िफर लंका
के िलए िनकलगे। हम बहत काम करना है और समय कम है।” ।
कु भकण ने मु कुराते हए िसर िहलाया। “आपका कथन मेरे िलए आदेश है, क... क...
क याकुमारी के महान भ ।”
रावण ने कु भकण क बाँह पर घँस ू ा मारा। “मुझे छे ड़ना ब द करो!”
कु भकण कमरे से जाते समय भी हँस रहा था।

“वाह,” साहकार ने कहा। “महान रावण ने एक ही िदन म दो हंिडयाँ भेज द ।”


कु भकण ने साहकार से रसीद ली और उस पर अपनी मोहर लगा दी। साहकार इस
ह ता रत रसीद और रावण क मल ू हंडी के ारा मगध म रावण के सबसे िनकट थ
यापा रक कायालय से रािश ा कर लेगा। और हाँ, इस लेनदेन पर उसे काफ़ बड़ी दलाली
भी िमलेगी।
“अ सी सह ू ी साहकार बोलता रहा, “हमारे छोटे से वै नाथ के
वण मु ाएँ ,” बातन
िलए यह बहत अिधक धन है। और वो भी एक ही िदन म!”
“और तु ह दलाली भी बहत बड़ी िमलेगी,” कु भकण ने हँसते हए कहा।
“हाँ!” साहकार िखल उठा था। “म अ तत: वो भख ू ड खरीद सकता हँ िजस पर मेरी
और मेरी प नी क बहत समय से नज़र है।”
रसीद देते और िस क से भरे बड़े -बड़े थैले लेते हए कु भकण मु कुराया। हिथयारब द
आदिमय क उसक टुकड़ी के दो सैिनक ने थैल को उठाया और अपनी बैलगाड़ी क ओर
बढ़ गये। कु भकण ने साहकार को ध यवाद कहा और वापस जाने के िलए मुड़ा।
और िफर, वो अचानक क गया। उसक छठी इ ी फड़क रही थी।
“जो मिहला पहले रावण क दूसरी हंडी छुड़ाने आयी थ ,” कु भकण ने कहा। “ या
वो...”
“मिहला नह ,” साहकार ने टोका। “वो कोई पु ष था। वो यहाँ कुछ घड़ी पहले तो आया था।”
तब तो वो प ृ वी जी ह गे।
“एकदम लड़का-सा था, ” साहकार ने आगे कहा।
कु भकण को अपने मन म कुछ अमंगल होने का-सा अहसास हआ। “मुझे रसीद
िदखाना।”
साहकार ने िसर िहलाते हए मना कर िदया। “म आपको रसीद नह िदखा सकता। ये
अनु...”
जैसे ही कु भकण ने पटल पर पचास वण मु ाएँ डाली और आदेशपवू क ढं ग से हाथ
आगे बढ़ाया, साहकार ने बोलना ब द कर िदया और िबना िकसी िहचिकचाहट के पटल के
नीचे बनी छोटी-सी अलमारी म हाथ डाला और रसीद िनकाल ली। कु भकण ने उस पर
िनगाह डाली, पलटा, और अपने घोड़े क ओर दौड़ गया।
ज द ही वो वै नाथ क गिलय म होता हआ मु य अ तबल क ओर जा रहा था। यिद
िकसी को नगर क सीमा के पार जाना हो, तो घोड़ा िकराए पर लेने या थान करने वाली
गाड़ी म जगह पाने के िलए, कोई भी वह जाता।
वो जानता था िक उसे ज दी करनी होगी। समय बहत ही कम था।
य िक रसीद पर नाम साफ़-साफ़ दज था : सुकमण।
अ याय 16

रावण ने सुकमण के चेहरे पर जोरदार थ पड़ मारा। “तुझे वाक़ई लगता था िक तू ऐसा करके
बच जायेगा?”
कु भकण ठीक समय से अ तबल पहँच गया। सुकमण और उसके पाँच साथी अपने
चोरी के धन के साथ जाने ही वाले थे। कु भकण और उसके सैिनक ने बड़ी आसानी से उन
छह लड़क को क़ाबू म कर िलया और उन िस क को ज त कर िलया जो वो ले जा रहे थे।
उसके बाद चोर को रावण के सामने तुत िकया गया।
“तू भा यशाली है िक म बदल चुका हँ,” रावण गुराया। “वना अब तक यातनाओं से
भरा तेरा शरीर यहाँ अधमरा पड़ा होता।”
सुकमण अपने ब दीकताओं से ख चतान कर रहा था; वो भयभीत िदखाई दे रहा था।
कु भकण ने सुकमण के पास झु ड म खड़े पाँच लड़क क ओर इशारा िकया। “ये
कौन लोग ह, सुकमण? मने इ ह नह पहचाना। ये तु हारे गाँव के तो नह ह,” उसने कहा।
सुकमण अब तक काँपने लगा था, और डर के मारे उ र तक नह दे पा रहा था।
“इसे टोडी ले चलते ह, दादा,” कु भकण ने कहा।"वेदवती जी से ही िनणय कराते ह
िक इसके साथ या िकया जाये।”
रावण सुकमण को घरू ता रहा। ोध िदखाने के बावजदू , वो अपनी भावनाओं को
िनयि त िकये हए था। वेदवती का नाम सुनकर वो और शा त हो गया। “चल तो सकते ह,
पर मुझे डर है िक वो इसे मा कर दगी। और यह नीच मा का अिधकारी नह है।”
सुकमण अचानक अपने मू ाशय पर िनय ण नह रख सका और उसने वयं को
गीला कर िलया। पहली िति या के प म रावण हँसा, लेिकन िफर वो क गया।
एक ऐसा िवचार उसके मि त क म घुसा चला आया िजस पर सोचना भी पीड़ादायक
था। कुछ पल को वो ति भत-सा हो गया, इतना भयभीत िक वो उस िवचार तक को
वीकार करने को तैयार नह था।
हे भगवान ... नह ...
भया ा त रावण अपने छोटे भाई क ओर पलटा। और यह देखकर उसका िदल डूब-सा
गया िक कु भकण के चेहरे पर भी उसी के जैसे भाव थे। उसने अपनी िनगाह सुकमण क
ओर इस तरह घुमाई जैसे वो मू छा म हो। उसके चेहरे का रं ग उड़ चुका था। वो काँपता खड़ा
बड़ा दयनीय िदखाई दे रहा था। रावण को ऐसा लग रहा था जैसे उसका दय िहमख ड हो
गया हो। यह केवल लटू नह थी... यह तो...
भगवान , दया करना!
पहले कु भकण ने खुद को सँभाला। वो तेज़ी से दौड़ते हए िच लाया, “र को! सब
लोगो! हम टोडी जा रहे ह! तुर त!”

एक घंटे से कम के अ दर, सौ से अिधक सैिनक का रावण का क़ािफ़ला टोडी म आ धमका।


कु भकण के आदेश पर केवल समीची को छोड़ िदया गया था। सुकमण को एक घोड़े क पीठ
पर बाँध िदया गया था िजसक लगाम रावण के एक घुड़सवार यो ा के हाथ म थी। उसके
पाँच सािथय को भी इसी ढं ग से टोडी लाया जा रहा था।
जब सरपट दौड़ते घोड़ ने गाँव म वेश िकया, तो तुर त ही प हो गया िक कुछ
गड़बड़ अव य है।
हर ओर मौत का-सा स नाटा पसरा हआ था।
रावण ने अपने घोड़े को एड़ लगायी और उसे सबसे आगे सरपट दौड़ाता हआ गाँव के
म य म ि थत वेदवती के घर पहँच गया। घर के ठीक बाहर िवशाल चौक म भारी भीड़ जमा
थी। ऐसा लगता था जैसे सारा गाँव ही वहाँ इक ा हो गया है।
रावण तेज़ी से अपने घोड़े से उतरकर लोग को हटाता हआ घर क ओर दौड़ा। उसका
िदल बुरी तरह धड़क रहा था। अशुभ क आशंका म उसका मँुह सख ू गया था।
कु भकण ठीक उसके पीछे था।
एक दुबल से गाँव वाले को रा ते से हटाते हए रावण भिू म पर पड़ी िकसी व तु से
टकराकर िगरने से बाल-बाल बचा।
िबना उस ओर नज़र डाले, वो स भला और लड़खड़ाता-सा उस साधारण-सी झ पड़ी क
ओर बढ़ा जो वेदवती और प ृ वी क थी।
यह कु भकण ने देखा िक रावण िकस चीज पर लड़खड़ाया था।
प ृ वी क र रं िजत और कटी-फटी लाश।
हे भ ु ...
वहाँ िनि त प से संघष हआ था। प ृ वी को कई बार चाक़ू मारा गया था, और शायद
ख़न ू बहने से ही उसक मौत हई थी। यह प था िक वो धीरे -धीरे मरा था। धरती पर ख़न ू
क लक र बता रही थी िक उसने िघसटकर अपने घर तक पहँचने का यास िकया था,
लेिकन उसके शरीर ने दम तोड़ िदया।
कु भकण ने िसर उठाकर देखा। प ृ वी के घर क ओर। जहाँ गभवती वेदवती होत ।
और िफर उसने एक चीख़ सुनी।
यह एक मम पश , अथाह पीड़ा भरी आवाज़ थी। यह अक पनीय दुख से तािड़त
आ मा क टूटी आवाज़।
वो अपने रा ते म आने वाले लोग को बुरी तरह ध का देता हआ वेदवती क झ पड़ी
क ओर दौड़ा। और जब वो भीड़ के बीच से िनकला तो उसने देखा िक रावण खुले दरवाज़े के
बाहर घुटन के बल बैठा है। और बुरी तरह सुबक रहा है।
अपने दय को कठोर करते हए कु भकण ने खुले दरवाज़े से उस एक कमरे क
झ पड़ी के अ दर देखा। और उस य ने उसका खन ू जमा िदया। वेदवती फ़श पर पड़ी हई
थ , और उनका दायाँ हाथ एक िविच से कोण पर मुड़ा हआ था। उनका बायाँ हाथ उनके पेट
पर था, जैसे वो अपने अज मे ब चे क र ा कर रही ह । या जैसे उसक र ा करते मर गयी
ह । य िक चाक़ू के अिधकतर घाव उनके पेट पर ही थे। उ ह कम-से-कम प ह से बीस बार
चाक़ू मारा गया था। र बहकर उनके आसपास जम गया था, जैसे एक भयावह-सा लाल
कफ़न उनके शरीर के नीचे िबछा हो। उनके सदा ि थर और शा त रहने वाले चेहरे को भी
नह ब शा गया था। हमलावर ने सीधे उनक बाई ं आँख म चाक़ू घ पा था। देखने से यह एक
गहरा घाव लगता था। शायद वो घाव िजसने अ ततः उ ह मार डाला था। वो हार िजसने
जीिवत देवी क आँख का दीया बुझा िदया था।
कु भकण आगे को झुक गया; वो जो देख रहा उसे उस पर िव ास ही नह हो पा रहा
था। आँख म आँसू भरे हए, वो लड़खड़ाता हआ अपने भाई क ओर बढ़ा और उसके क धे को
छुआ।
रावण इस पश पर झटका खा गया, जैसे आग से झुलस गया हो। िफर उसने अपने
भाई क ओर देखा। उसके चेहरे पर आँसू बह रहे थे।
कु भकण अपने घुटन पर ढह गया। “दादा...”
रावण ने आकाश क ओर देखा। उन बादल के महल क ओर जहाँ शायद देवता रहते
थे। “हरामजादो!! य ?! इनको य ?! य ?!!”
कु भकण ने रावण को गले लगा िलया, य िक उसे समझ ही नह आ रहा था िक वो
और या करे , या कहे ।
लोग कहते ह िक आँसू दुख को धो डालते ह। झठ ू कहते ह।
कुछ दुख ऐसे होते ह िज ह लाख आँसू भी नह धो सकते। जो जीवन भर सताते ह। हर
पल।
लोग कहते ह िक समय घाव को भर देता है। झठ ू कहते ह।
कभी-कभी, मनु य िजस दुख से अिभश होता है वो इतना गहरा होता है िक समय भी
उसके आगे आ मसमपण कर देता है।
दोन भाई एक दूसरे के गले लगे रहे । और बुरी तरह रोते रहे ।
रावण के आदमी धीरे -धीरे रावण और कु भकण के आसपास जमा हो गये थे। उनम से कोई
भी ठीक से नह समझ पा रहा था िक हआ या है। पर वो देख रहे थे िक उनका यापारी-
राजकुमार टूट गया है।
गाँव के लोग भी इतने भ च के थे िक कुछ करने म स म नह थे, और चार ओर खड़े
रो रहे थे।
शोिचकेश धीरे -धीरे लड़खड़ाता हआ रावण के िनकट आया। उसक आँख रोने से सज ू
गयी थ और उसका शरीर दुख से दोहरा हो गया था। “मुझे बहत दुख है, जय... म...”
वो अभी तक भी यह नह जानता था िक रावण कौन है।
“तुम सब थे कहाँ जब यह हआ?” रावण गरजा। ऐसा लगता था जैसे सारी सिृ का
रोष उसके अ दर समा गया हो।
“जय... हम कुछ नह कर सके... हमने शोर सुना तो हम दौड़ते हए यहाँ आये...
लेिकन वो हिथयारब द थे...”
रावण को िफर से अपने भीतर ोध उठता महसस ू हआ। उसने चार ओर देखा। झ पड़ी
के िनकट कम-से-कम दो सौ ामीण इक ा थे। उसने सुकमण और उसके पाँच सािथय को
देखा, जो झ पड़ी के पास एक पेड़ के तने से कसकर बँधे हए थे।
छह के िव दो सौ।
शोिचकेश को स बोिधत करते हए रावण का वर एक भयानक फुसफुसाहट म बदल
गया। “वो हमारी देवी थ । वो इस परू े दयनीय गाँव को सँभालती थ । एक माँ क तरह इसक
िच ता करती थ । और तुम सब िमलकर उ ह इन छह दु से नह बचा सके?”
“मुझे खेद है... हम... कई तो डर कर भाग गये...”
रावण अपने परू े क़द के साथ खड़ा हआ, तो शोिचकेश से बहत ऊँचा िनकल
गया।"भाग गये? तुम हरामजादे भाग गये?”
शोिचकेश ने लंकाई यापारी क रि म आँख को देखा, तो उसे घबराहट-सी होने
लगी। उसने रावण को समझाने क कोिशश क । “पर... पर हम या कर सक...”
श द शोिचकेश के ह ठ पर जमे रह गये। उसक आँख फटी क फटी रह गय जब
उसने नीचे नज़र डाली और अपने शरीर म एक चाक़ू धँसा देखा। एक ण को वो खड़ा रह
गया, और िफर उसके मँुह से पीड़ा भरी एक चीख़ िनकली। रावण ने बड़ी सफ़ाई से एक ही
बार म अपना ल बा चाक़ू िनकाला था और उसे शोिचकेश के पेट म धँसा िदया था। चीख़़ ने
रावण को और भी ु कर िदया। उसने चाक़ू को और अ दर तक धँसाया और भयानक ढं ग
से घुमा िदया। चाक़ू का फलक दूसरी ओर तक काटता चला गया, और उसक नोक
शोिचकेश क पीठ को चीरती हई बाहर िनकली। रावण ने एक झटके से हिथयार को बाहर
िनकाला और शोिचकेश को ध का दे िदया। लाल बाल वाला शोिचकेश भिू म पर जा िगरा;
उसका खन ू बुरी तरह बह रहा था। यह एक धीमी, पीड़ादायक मौत होने वाली थी।
डर से त ध गाँववाले अपनी-अपनी जगह पर जड़ हो गये थे।
रावण ने एक ण को नीचे शोिचकेश के शरीर को देखा। िफर लंका के इस यापारी ने
ज़ोर से खखारा और टोडी के भू वामी पर थक ू िदया।
नीचे देखते हए ही रावण ने एक धीमी गुराहट म कहा, “मार डालो इन सबको।” िफर
उसने उस ओर इशारा िकया जहाँ सुकमण और उसके साथी बँधे हए थे। “अलावा उनके।”
गाँववाल म अफ़रा-तफ़री मच गयी और वो चीख़ते-िच लाते चार ओर भागने लगे
जबिक रावण के सैिनक अपने वामी के आदेश का पालन करने के िलए दौड़ पड़े । टोडी के
िनवािसय के पास बचने क कोई उ मीद नह थी। एक-एक को मार डाला गया।

भिू म पर हर ओर लाश िबखरी हई थ । आदमी। औरत। ब चे। जो जहाँ था उसे वह काट डाला
गया था। कुछ ही पल म सब समा हो गया था।
रावण सुकमण के एक साथी के पास खड़ा था, जबिक कु भकण उसके दूसरी ओर
खड़ा था। अपनी खन ू म सनी तलवार िलए लंकाई सैिनक पीछे क ओर थे। सुकमण के हाथ
को एक दरवाजे पर ठ क िदया गया था जो उन पेड़ के सामने था जहाँ उसके साथी बँधे हए
थे। वो प देख सकता था िक उनके साथ या िकया जा रहा है।
रावण ने लकड़ी का एक जलता कु दा सुकमण के साथी क बाँह से लगाया, िजससे
उसक वचा झुलसने लगी और माँस भुनने लगा। जलते माँस क दुग ध परू े माहौल म बस
गयी। और उस धीरे -धीरे जलकर मरते आदमी क खन ू को जमा देने वाली चीख़ हवा म
गँजू ने लग ।।
लेिकन रावण तो अपनी यातना के पीिड़त क ओर देख तक नह रहा था। उसक आँख
तो सुकमण के चेहरे पर लगी हई थ । “तन ू े यह केवल धन के िलए िकया? या िकसी ने तुझे
उ ह मारने का आदेश िदया था?”
भयभीत सुकमण हकलाने लगा। “म... बहत खेद है... मुझे मा कर दो... कृपया...
मा कर दो... सारा धन ले लो...”
रावण क आँख शु , अिमि त ोध से सुलग रही थ । उसने जलते हए लकड़ी के
कु दे को उठाया और उसे अपने तािड़त िशकार के चेहरे के िनकट ले गया। उसने एक बार
िफर सुकमण क ओर देखा। “तुझे लगता है म यह धन के िलए कर रहा हँ?”
अब कु भकण बोला। “क याकुमारी का िशशु कहाँ है?”
जब वेदवती क लाश का परी ण िकया गया था, तो उनक कोख ख़ाली िमली थी।
िजसका अथ था िक वो ह या से पहले अपने िशशु को ज म दे चुक थ ।
लेिकन िशशु का कोई अता-पता नह था।
“सुकमण, मने तुझसे एक पछ
ू ा है। ब चा कहाँ है?” कु भकण गुराया।
सुकमण क िघ घी बँध गयी, वो जमीन को देखता रहा। डर के मारे एक बार िफर
मू ाशय पर उसका िनय ण खो बैठा था।
“सुकमण।” कु भकण क मु याँ कसकर िभंच चुक थ । “बोल!”
अचानक, सुकमण का एक साथी बोल उठा। “इसने मुझे यह करने का आदेश िदया था।
सुकमण ने। म यह नह करना चाहता था।”
“तन ू े या िकया?” कु भकण उस आदमी को घरू ता हआ गरजा।
“इसने आदेश िदया था। दोष इसका है...”
“तन ू े या िकया?”
वो आदमी मौन हो गया।
कु भकण उसके पास गया और भयानक ढं ग से उसक आँख म देखने लगा।
“ या िकया तन ू े? बता दे। तो तुझ पर दया क जायेगी।”
उस आदमी ने सुकमण को और िफर कु भकण को देखा। “इसने आदेश िदया... िक
ब चे को जंगल म फक दंू। और पशुओ ं को... खाने दंू.. मेरा मतलब...” उसके श द अटके
और क गये। उसक नीच बबर आ मा भी उस भयानक अपराध के िलए शिम दा थी जो
उसने िकया था।
भारतीय का मानना था िक बाल-ह या एक भयावह पाप है, और यह आ मा को ज म-
ज मा तर तक के िलए दूिषत कर देता है। सुकमण के िगरोह को लगा था िक यह काम
जंगली पशुओ ं से करवाकर वो इस ई रीय कोप से बच सकगे।
ति भत कु भकण को कुछ बोलते ही नह सझ ू ा, उसने रावण क ओर देखा। उसे ऐसे
उ र क अपे ा नह थी। इन जैसे जंगिलय के िलए भी यह कृ य िघनौनी हद तक ू र
लगता था।
एक िशश ु को जंगली पशओ ु ं के भोज के िलए जंगल म छोड़ िदया गया... हे , दया
करो।
“दया कर,” उस आदमी ने िवनती क । “मने सच बता िदया... दया कर...”
कु भकण ने एक बार िफर रावण क ओर देखा। रावण ने िसर िहलाया। कु भकण ने
तलवार िनकाली और एक ही वार म उस आदमी का िसर धड़ से अलग कर डाला।
अपराधी का कटा हआ िसर हवा म उड़ता उसके पास बँधे एक अ य साथी के िसर से
जा टकराया। वो घबराहट के मारे चीख़ा, जबिक गदन के खुले छे द से खन ू का एक फ़ वारा
छूटकर उस पर पड़ा।
पंख क ती फड़फड़ाहट सुनकर रावण और कु भकण ने ऊपर देखा। िग का एक
झु ड गाँव पर उतर रहा था। उन लोग के देखतेदेखते एक प ी ने जमीन पर िबखरी लाश
म से एक को यँ ू ही च च मारी। ताज़े माँस को चखते ही वो ख़ुशी-से िचिचयाया और िफर उसे
खाने लगा।
रावण ने एक बार िफर अपने पास जल रहे आदमी क ओर यान केि त िकया। बेसुध
और लगभग पहचान म नह आ रहे उस ाणी को अपने ब धन पर लटके देखकर रावण क
आँख से ोध के अिनयि त आँसू बह िनकले। उसे कोई दया, कोई पछतावा नह था। केवल
रोष था।

रावण और कु भकण दीवार से टेक लगाकर धरती पर बैठ गये। पाँच मत


ृ आदमी अभी भी
पेड़ से बँधे थे। सुकमण को, जो बमुि कल जीिवत था, उस दरवाज़े से ख चकर िजस पर उसे
ठ का गया था, एक पेड़ से बाँध िदया गया था। उसका कुछ र रं िजत माँस अभी भी खटू पर
लगा हआ था। वो धीमे-धीमे जलने और यातनाओं के कारण बेहोश हो गया था। लेिकन रावण
ने बड़े यान से सुिनि त िकया था िक वो मरे नह । उसे उतनी पीड़ा झेलनी थी िजतनी िकसी
मानव के िलए स भव थी। ऐसी पीड़ा, िजसक मिृ त भी उसक आ मा को कई जीवनकाल
तक झकझोरती रहे ।
उधर रावण के सैिनक वेदवती और प ृ वी के िन ाण शरीर को भू वामी के घर ले गये
थे। अि तम ि याकम से पहले उ ह नहलाना और कपड़े पहनाए जाना था।
अब तक, िग के साथ जंगल के अ य ाणी आ िमले थे। कौए। जंगली कु े।
लकड़ब घे। सबके िलए पया माँस था। पशु ख़ामोशी से खा रहे थे। एक दूसरे से लड़े िबना।
वो बहत अिधक शोर भी नह मचा रहे थे। वो जानते थे िक वहाँ इतना माँस था जो कई िदन
उनके िलए पया होने वाला था।
यह भीषण प से भयावह य था। हर जगह ख़ामोशी से मानव शव क दावत उड़ाते
जंगली जानवर। एक पेड़ से बँधा एक बेहोश आदमी। खन ू से सनी तलवार िलए सावधान खड़े
सैिनक। और अपनी टूटी हई आ माओं से लड़ते दो भाई, उस मिहला के घर के बाहर बैठे िजसे
वो सराहते थे। वो यि िजसे वो ेम करते थे। वो देवी िजसे वो पज ू ते थे।
रावण क सज ू ी हई आँख म खन ू उतरा हआ था, और उसका चेहरा परू ी तरह भावहीन
था। कु भकण ने अपने भाई के खन ू से सने हाथ को अपने हाथ म ले िलया। वेदवती क
ह या करने वाले अपरािधय के खन ू से उनके अंग लथपथ थे, लेिकन इससे उनके दुख म
कोई कमी नह आयी थी। ऐसी पीड़ा को कौन से श द कम कर सकते थे?
अ ततः, रावण बोला। “मुझे इससे घण ृ ा है...” वो बोलते-बोलते क गया य िक आँसू
िफर से उसके गाल पर बहने लगे थे।
कु भकण ने अपने भाई को देखा। मौन।
रावण का दुख और ोध से भरा वर िफर से गँज ू ा।
“मुझे इस अिभश इलाक़े से घण ृ ा है।”
अ याय 17

जब भी सुकमण बेहोश होता, बा टी भर पानी उसके चेहरे को िभगो देता। यह आव यक था


िक उसे होश म रखा जाये तािक वो यातना के हर पल को महसस ू करे । उसका शरीर बेजान-
सा लटका हआ था, लेिकन कसी हई रि सय ने उसे पेड़ से सीधा लगा रखा था। उसके शरीर
से उसक लंगोट के अित र सब कुछ उतार िदया गया था। उसके असं य घाव से खन ू रस
रहा था और उसके शरीर का एक-एक पोर या तो झुलसा हआ था या कटा हआ था। अलावा
उसके चेहरे के।
जब आिख़रकार सुकमण आँख खोलने म स म हआ, तो उसने लंका के लुटेरे-
यापारी को अपने सामने खड़ा देखा।
रावण।
िव के सबसे धनी लोग म से एक। िनि त प से सबसे अिधक ोधी जीिवत
यि । एक ऐसा यि िजसम ितशोध क उ कट भावना थी। “तन ू े केवल धन य नह ले
िलया?” रावण का वर रोष और हताशापण ू दुख से भरा था। “ य ? तुझे उ ह मारना य
था?”
सुकमण के मि त क म कह उ मीद क एक िकरण चमक । उसे लगा िक उसके पास
शायद अभी भी सफ़ाई देने का अवसर है। और इस िवचार ने उसम थोड़ी-सी ऊजा का संचार
कर िदया। “मने कोिशश क थी... बहत कोिशश क थी... पर वो सुनने को... तैयार ही नह
थ ।”
रावण ने कु भकण क ओर देखा और िफर से सुकमण को देखने लगा।
“मने उनसे कहा िक उ ह ने पहले कभी तो धन क िच ता नह क ... तो अब य ?
पर वो मानने को तैयार नह हई ं... वो िज़द पर अड़ गयी थ ... उनके उस पित के भी अचानक
पाँव िनकल आये और वो मुझे िझड़कने लगा। वो मुझसे बोल िक म उनका बाक़ सब कुछ ले
लँ,ू पर वो मुझे... आपक हंडी नह दगी... लेिकन उनके पास जो कुछ था, वो कुछ भी नह
था... और मुझे जुए के उधार चुकाने थे... मेरे देनदार मुझे मार डालते... मने उ ह यह
बताया... पर वो िब कुल ही... नासमझ हो रही थ ,” वो घरघराती सांस के साथ बोला।
रावण ने अिव ास से सुकमण को देखा।
जब सुकमण आगे बोला तो उसक आवाज़ मुि कल ही से सुनाई दे रही थी, “मने उनसे
कहा... िक आप उ ह और धन दे दगे... िक आप... अ य त धनी ह... िक आपको कोई अ तर
नह पड़े गा... पर वो सुनने को तैयार नह थी... उ ह ने कहा िक वो हंडी नह देगी... िक
हंडी पिव है... िक हंडी एक ऐसे यि ने दी है िजसने अभी धम को खोजा है... िक वो
रावण के िलए यह अवसर नह जाने दगी िक वो अपने भीतर ई र को ढूँढ़ सके।”
कु भकण के मँुह से एक ह क कराह-सी िनकल गयी, और उसने हताशा म अपने
बाल नोच डाले। मगर कुछ उ र देने म अ म रावण सुकमण को ही देखता रहा।
सुकमण क बात अभी परू ी नह हई थी। रावण क ख़ामोशी से ग़लतफ़हमी म पड़ते हए,
वो बड़बड़ाया, “म तो उ ह समझाने का यास कर रहा था, पर मेरा एक साथी धैय खो बैठा।
म उसे दोष नह दे सकता... वो... िब कुल ही अिड़यल हो रही थ ।”
रावण अब बहत सहन कर चुका था। वो सुकमण पर झपटा और उसने उसक ठोड़ी पर
एक शि शाली घँस ू ा मारा। सुकमण का िसर एक झटके के साथ पीछे को हआ और पेड़ के
तने से टकराया। कु भकण ने आगे बढ़कर उसे बाल से कसकर पकड़ा और उसके जबड़े पर
एक तगड़ा घँस ू ा मारा िजससे उसका जबड़ा टूटने क आवाज़ प सुनाई दी। िफर उसने टूटे
जबड़े को नीचे कर िदया िजससे सुकमण का मँुह खुल गया।
रावण ने अधजले कोयले का एक छोटा-सा टुकड़ा उठाया और उसे उसके िशिथल मँुह
के अ दर डाल िदया।
जलते हए सुख़ कोयले ारा मँुह क वचा झुलसने पर उसका शरीर तड़पा और िफर
कोयले को उसके हलक़ के अ दर घुसा िदया गया। कु भकण ने उसके मँुह को खोल िदया,
जबिक कुछ लंकाई सैिनक दौड़-दौड़कर जलते कोयल के और टुकड़े लाने लगे। रावण एक-
एक कोयला लेकर उसे सुकमण के कंठ म ठूँसता गया। वो दद क िच ता िकये िबना अपने
नंगे हाथ से कोयले डाल रहा था। जैसे-जैसे जलते कोयले सुकमण क ासनली म वेश
करते, उसका शरीर पीड़ा से बल खा जाता।
उसे जीिवत जलाया जा रहा था, अ दर से बाहर क ओर।
िक तु रावण और कु भकण कने वाले नह थे। वो सुकमण के पाचन माग म
लगातार कोयले ठूँसते रहे ।
कुछ समय बाद, सुकमण ने िहलना ब द कर िदया।
जले हए माँस क तीखी ग ध हवा म फै ल चुक थी। सुकमण के मँुह से धुआँ बाहर आ
रहा था। उसका पेट चमकता-सा िदखाई दे रहा था। जैसे उसके अ दर आग लग चुक हो। उस
दयनीय आदमी को जीिवत पकाया जा रहा था।
पर ये दोन भाई अभी भी नह के।
ोध परू ी तरह उनक आ माओं पर हावी हो गया था।
वो अपना सब कुछ खो चुके थे।
अपनी देवी। अपनी दुिनया। अपना होश।
वो सब कुछ खो चुके थे।

ि याकम क तैया रयाँ परू ी हो चुक थ । दो बड़ी िचताएँ तैयार क गयी थ । वेदवती और
प ृ वी क लाश को साफ़ करके, नहलाने के बाद उ ह नए ेत कपड़े पहनाये गये। पिव
वैिदक म उनके कान म बोले गये। ऐसा माना जाता था िक म क शि िदवंगत
आ माओं को अपनी या ा जारी रखने क शि देगी।
यह सब होने के बाद उनके मँुह म पिव जल डाला गया और उनके ह ठ पर तुलसी
क पि याँ रखी गय । कुछ और तुलसी क पि य को गँथ ू कर उनके नथुन और कान म
लगाया गया। वेदवती के अँगठ ू को आपस म बाँधकर उनके हाथ को उनक छाती पर रखा
गया। उनके पैर के अँगठ ू को भी आपस म बाँध िदया गया था। ऐसा ही प ृ वी के साथ िकया
गया। ऐसी मा यता थी िक इससे दाएँ और बाएँ ऊजा माग आपस म जुड़ जाते ह, िजससे शरीर
के भीतर ऊजा एक घेरे म घम ू ती है। उन थान पर िम ी के दीये जलाये गये जहाँ वेदवती और
प ृ वी मतृ पाये गये थे, और दीय क लौ को म ृ यु और धम के देवता यम के स मान म दि ण
क ओर रखा गया था।
इस सबके दौरान, रावण और कु भकण बाहर से शा त बने रहे । यहाँ बेढंगेपन से रोने
और अशोभनीय िवलाप क कोई गँुजाइश नह थी। ग रमा। आदर। स मान। देवी इस सबक
अिधकारी थ । महान क याकुमारी उसी ढं ग से दुिनया से िसधारगी िजस ढं ग से वो जी थ ।
ग रमा, आदर और स मान के साथ।
दोन भाई वेदवती क िबना जली िचता के पास खड़े थे। पहले उनका ि याकम िकया
जायेगा, और िफर प ृ वी का।
एक िम ी के पा म पिव घी लाया गया। कु भकण ने बतन को पकड़ा और रावण
उसम से घी के बड़े -बड़े चमचे वेदवती के शव पर डालता रहा। इस ि या के दौरान दोन भाई
ग ड़ पुराण का जाप करते रहे । जब रावण ने अपने हाथ प छे , तो उसके कुछ आदिमय ने
झटपट आगे आकर वेदवती के शव पर कुछ और लकिड़याँ रख दी। कुछ ही देर म केवल
उनका चेहरा ही िदखाई दे रहा था।
रावण पीछे हटा, तो पिव अि न से जलती एक लकड़ी लाकर उसे थमा दी गयी।
कु भकण ने अि तम बार वेदवती के चेहरे को देखने का साहस जुटाया। छे द को ढं क
िदया गया था। जहाँ उनक बाई ं आँख हआ करती थी उस थान पर भी कुछ भर िदया गया
था।
उनका चेहरा—अब भी, इतना सब झेलने के बाद भी—शा त और िवन था। िकसी
देवी क तरह। कु भकण बड़ी मुि कल से अपने आँसुओ ं को रोके हए था। वो अग रमामय नह
होगा। उनके सामने नह । अपनी देवी के सामने नह ।
उसने बहत बार सुना था िक ि यजन के आँसू िदवंगत आ मा का दुिनया से जाना
किठन बना देते ह। मत ृ क के क याण के िलए जीिवत को अपने दुख को िनयि त करना
और दबाना पड़ता है।
उसने वेदवती के िन ल शरीर को अि न ारा लील िलये जाने क ती ा म पड़े देखा,
और अ यािशत प से, एकदम अचानक, उसका सारा ोध िवलीन हो गया।
उसने च ककर अपने आसपास देखा, जैसे अभी एक ल बी न द से जागा हो। दूर गाँव
म, वो अभी भी जंगली पशुओ ं को गाँववाल क लाश खाते देख सकता था। उन पु ष और
मिहलाओं क लाश को िज ह कायर तो कहा जा सकता था, पर अपराधी नह । उसने
पलटकर वेदवती के चेहरे को देखा और वो शिम दा हो गया। ख़ुद पर, और उस पर जो उसने
िकया था।
वो जानता था िक वेदवती को उससे और उसके भाई से िनराशा होती। अब वो अपने भाई
क ओर देखने को पलटा।
रावण पिव अि न वाली लकड़ी िलये िचता क ओर बढ़ रहा था।
कु भकण पीछे हट गया।
रावण ने लकड़ी को िचता म डालते हए उसे आग दी। और सब कुछ शु कर देने वाले
अि न देवता को देवी के शरीर का उपभोग करने िदया।
िकसी ने रावण को पिव जल से भरा िम ी का घड़ा िदया। उसने उसे फोड़ा, और पिव
पर परा का पालन करते हए जलती िचता क उ टी प र मा लगाने लगा। जैसे-जैसे वो
चलता जा रहा था, छोटे से छे द से पानी रसता जा रहा था। उसने तीन प र मा लगाय । ऐसा
करते हए, वो वा तव म संसार के सामने घोषणा कर रहा था िक वो वेदवती के ऋण को
चुकाने का दािय व लेता है। धन से जुड़े ऋण नह , य िक आ मा के िलए धन अथहीन है—
वो वेदवती के अपणू कािमक ऋण को चुकाने का वचन दे रहा था और सुिनि त कर रहा था
िक वो इस संसार के सारे ब धन और दािय व से मु हो जाय। तभी, स भवतः, उनक
आ मा मो क िदशा म या ा कर पायेगी, और ज म के च से मु हो पायेगी।
कु भकण ने अपने भाई को िचता क प र मा करते देखा, और िफर उस गाँव क ओर
देखा िजसे उ ह ने न िकया था।
अभी बहत कुछ करना था। बहत से कम का ायि त करना था।
वो आशा कर रहा था िक वो वेदवती को िनराश नह करगे।

अगले िदन सुबह जब रावण और कु भकण जागे तो काफ़ देर हो चुक थी। उ ह ने गाँव के
िनकट ही एक झील के िकनारे रात िबताई थी। िदन भर क थकान के बावजदू , वो केवल
कुछ घंटे ही सो पाये थे।
दोन िचताएँ अभी भी सुलग रही थ , य िप लपट बुझ चुक थ । देवी क याकुमारी और
उनके नेक पित के पािथव शरीर लगभग पण ू प से राख म बदल चुके थे। रावण के बीस
सैिनक को रात म मशान म तैनात िकया गया था तािक कोई जंगली जानवर वहाँ न आ
सके। लेिकन यह डर िनराधार ही था। गाँव म ही इतना भोजन था िक जानवर को मशान
जाने क आव यकता ही नह थी।
आनु ािनक नान के बाद रावण और कु भकण अ येि थल पर गये। अभी भी
कुछ अनु ान बाक़ रह गये थे। उ ह ने वेदवती क िचता से आर भ िकया।
एक बा टी पिव जल का ब ध िकया गया था। पानी क सतह पर तुलसी क पि याँ
तैर रही थ । रावण ने एक ना रयल लेकर उसे ज़मीन पर मारा। वो ल बवत टूट गया, एक
संकरे छोर से दूसरे तक। यह असामा य था और शुभ माना जाता था; आ मा िनि त प से
मो ा करे गी। ना रयल के पानी को बा टी के पानी म िमला िदया गया। इस िम ण को
हाथ से िमलाया गया और साथ म सं कृत के म पढ़े जाते रहे । यह काम परू ा हो जाने के
बाद रावण ने रीित के अनुसार पिव जल को सुलगती िचता पर िछड़ककर अि तम लपट
को बुझा िदया।
चार लंकाई सैिनक ने आगे आकर राख को चबत ू रे से हटाया। कु भकण और रावण ने
राख के ढे र पर झुककर बड़े जतन से उसम से अि थय —उन छोटी-छोटी हड्िडय को
छाँटकर िनकाला जो िचता के साथ जलकर राख नह हई थ । शरीर को प देने वाली बाक़
सभी चीज़ माँस, अंग, माँसपेिशयाँ राख बन चुक थ । राख को एक आसानी से यो य प म
धरती माता को वापस लौटाना था। हड्िडय के अवशेष को गंगा के पिव पानी म िवसिजत
करना था।
रावण जानता था िक अि त सं कृत के श द अि त व का मल ू था। ये हड्िडयाँ,
िज ह ने परू ी ढ़ता के साथ पिव अि न म जलने से इंकार कर िदया था, अि त व के
अवशेष का तीक थ । उ ह सबक ोत देवी माँ के पास बहते, पोषक जल के प म वापस
जाना था। जल के साथ उनका देवी माँ क छाती म िवलय हो जायेगा, तािक अि त व के
अविश को भी शाि त ा हो सके।
रावण और कु भकण ने एक-एक छोटी हड्डी को परू ी सावधानी के साथ धोया, और
उ ह िम ी के एक पा म रख िदया। यह पहचान पाना लगभग अस भव था िक वो शरीर के
िकस अंग का भाग थ । िफर रावण क हैरानी का िठकाना न रहा जब उसे उँ गिलय क दो
हड्िडयाँ िमल जो लगभग अ त थ । माँस, माँसपेिशयाँ, िशराएं , सब कुछ जल चुका था।
लेिकन दोन उं गिलय के तीन-तीन पोर बच गये थे। कुल छह पोर। िज ह प पहचाना जा
सकता था।
जब कपाल का अिधकांश भाग नह बचा था, तो इन पोर के बचने क िकतनी
स भावना हो सकती थी?
उन कोमल-सी हड्िडय को अपनी खुली हथेली म थामे हए रावण को अचानक एक
िवचार आया ये शायद उसी हाथ के अवशेष ह िजससे वेदवती ने उसके हाथ को पकड़ा था।
पहली बार। कुछ ही िदन पहले। उ ह ने दोबारा कभी उसे नह छुआ था।
वो उ ह िफर कभी नह देख सकेगा। लेिकन अब भी उनका हाथ पकड़ सकता है।
अब रावण वयं पर िनय ण नह रख सका।
वो हड्िडय को अपने माथे से लगाते हए रो पड़ा, जैसे वो िद यतम देवी के पिव
अवशेष ह । और िफर उसने धीरे से उ ह चम
ू िलया।
वो इ ह उसके िलए छोड़ गयी थ ।
और तब वो जान गया िक वो जी लेगा। िक वो अपना शेष जीवन जीने का कोई माग
खोज लेगा। य िक वो जानता था िक वो जब भी चाहे उनका हाथ पकड़ सकता है।
वो इ ह एक बैसाखी के प म उसके िलए छोड़ गयी थ । तािक वो उस पीड़ा के पार जा
सके जो िक वो जानता था िक उसका शेष जीवन होने वाला है। उनके हाथ के सहारे ।
उनके हाथ को थाम कर।

रावण ने कलश को पलटा और वेदवती के अवशेष को पिव नदी म िगरने िदया। कुछ ही
दूरी पर, कु भकण ने भी इसी तरह प ृ वी के अवशेष को िवसिजत िकया।
अ येि को तीन िदन हो चुके थे। दोन भाई अपने सभी सैिनक के साथ नदी क
ओर चल पड़े थे, और रा ते से उ ह ने बािलका समीची को ले िलया था। कु भकण के बार-
बार िवनती करने के बावजदू रावण ने टोडी ामवािसय क अ येि करने से मना कर
िदया था और उनक लाश को वह छोड़ िदया था जहाँ वो पड़ी थ । जंगली जानवर के िलए
सड़ते माँस क तरह। उसे उनक आ माओं को अन त काल तक पीड़ा भोगने देने म कोई
िहचिकचाहट नह थी।
रावण ने यान से वेदवती के पािथव अवशेष को पिव नदी म ओझल होते देखता रहा।
अब अि त माता का अंग बन चुक थ ।
लेिकन उसने सारा कुछ नदी म नह डाला था। उसने वेदवती के हाथ के अवशेष ,
उँ गिलय के उन पोर को रख िलया था। अब वो एक असाधारण-सी लटकन के प म आपस
म बँधे उसके गले म झल ू रहे थे।
वो कलश हाथ म िलए हए नदी के घाट क सीिढ़याँ चढ़ने लगा।
“दादा,” कु भकण ने पानी से बाहर िनकलते हए कहा। “आपको कलश भी जल म
डालना होगा।”
रावण ने िसर झुकाकर रीते-उदास कलश को देखा, मानो वो भी शोकाकुल हो।
“दादा...”
रावण ने कोई उ र नह िदया। उसने अपने आसपास देखा। पिव गंगा को, हरे -भरे
िकनार को, घने जंगल को... भारत क भिू म को। देवताओं ारा ध य क भिू म को।
उसने अपनी आँख ब द क । और उस पर एक घण ृ ा-सी तारी होने लगी थी।
वो देश जो अपने नायक का स मान नह कर सकता, उसे बने रहने का कोई
अिधकार नह है।
“दादा... कलश...” कु भकण ने उसे याद िदलाया।
और कु भकण यह देखकर ति भत रह गया िक रावण पलटा और िफर से तट क
ओर जाने लगा।
“दादा?”
रावण नदी के िकनारे पहँचा, झुका, उसने कुछ िम ी ली—स िस धु क िम ी—और
उसे कलश म डाल िदया। िफर वो—ती गित से, जैसे उस पर कोई भत ू सवार हो—नदी के
अ दर वापस जाने लगा।
“दादा, आप या कर रहे ह?”
रावण ने झुककर कलश को पानी म डुबोया िजससे सारी िम ी धुल गयी। जैसे वो धरती
क ही अि त का िवसजन कर रहा हो।
“दादा?” कु भकण क आवाज़ म उसक लगातार बढ़ती िच ता उतर आयी थ ।
रावण ने कलश म पानी भरा और उसे अपने िसर पर पलट िलया। अ येि के बाद के
आनु ािनक नान क तरह।
“नह , दादा!” रावण को रोकने के िलए उतावला होकर कु भकण तेज़ी से आगे बढ़ा।
पर तब तक बहत देर हो चुक थी।
रावण ने कलश को अपनी बाँह पर तोड़ा और उसके टुकड़ को नदी म िगरने िदया।
िफर वो कु भकण क ओर मुड़ा; उसक आँख दहक रही थ और मु याँ िभंची हई थ । उसके
शरीर क एक-एक कोिशका से ोध फूटा पड़ रहा था। उसने दाँत पीसते हए कहा, “यह देश
मेरे िलए मर चुका है।”
“दादा, मेरी बात तो सुिनए...”
"रा स को िनयि त करो, यही कहा था ना उ ह ने?”
“दादा, आप या बोल रहे ह? मेरी बात सुिनए...”
“म रा स को खुला छोड़ दँूगा! म इस देश को न कर डालँग ू ा!”
अ याय 18

“बहत सु दर रचना है, दादा,” कु भकण ने कहा।


वेदवती क म ृ यु को दो वष बीत चुके थे।
चौबीस वष य रावण देवी को समिपत एक राग बजा रहा था। देवी के स मान म रचे गये
अिधकतर राग उनके माँ के प का बखान करते थे। कुछ अ य राग भी थे जो उनके
ेिमका, पु ी, कलाकार इ यािद अ य प को समिपत थे, लेिकन यो ा देवी को समिपत
राग बहत कम थे। रावण ने इसी प के सार क रचना क थी। जैसे कृित अपने च ड और
रौ प म हो।
उसने राग का नाम वाशी स तापनी रखा था। ु देवी क दहाड़।
“मने इतनी शि शाली रचना कभी नह सुनी,” कु भकण ने कहा। “वा तव म, शायद
मने अपने जीवन का सबसे सु दर राग सुना है।”
रावण ने लापरवाही से िसर िहला िदया। लगता था जैसे उसे शंसा क कोई परवाह नह
है।
“वाशी श द भी एकदम उिचत है, दादा। धधकती वाला क विन—इसका मल ू अथ
यही हआ ना? मुझे नह लगता आप इससे अिधक िवचारो ेजक िकसी अ य श द का योग
कर सकते थे।”
“ह म।”
कु भकण ने बस यँ ू ही अपने भाई के क धे को छुआ।"लोग कहते ह िक दुख और
ासदी एक कलाकार क सव े ितभा को सामने लाते ह।”
रावण ने िचढ़ कर अपने भाई को देखा। “कौन लोग ह ये? जो भी कहते ह, वो मख ू ह!
कोई भी ासदी को ढूँढ़ने नह िनकलता है। कोई ऐसा नह होता जो केवल कला क रचना
के िलए दुख भोगना चाहता हो।”
कु भकण को लगा िक उसका भाई इस तरह क बातचीत क मनोि थित म नह था।
उसने िवषय बदलने क कोिशश क । “मुझे ख़ुशी है िक आपका अिधक-से-अिधक समय
काम म लग रहा है, दादा। वयं को काम म डुबो लेना नकारा मक िवचार को भगाने का
सबसे अ छा उपाय है।”
रावण सचमुच बहत य त रहा था। िपछले डे ढ़ साल म, उसने अपने अपार धन और
लंका के एकमा भरोसेम द सश बल के सहारे वयं को लंका के िसंहासन तक पहँचने
क राह पर डाल िदया था। लंका का शासक कुबेर अपने यापा रक पोत को सुर ा दान
करने के िलए अब उसी पर िनभर रहने लगा था। कई अ य यापारी भी रावण के सुर ा बल
क सेवाएँ लेने लगे थे। और चँिू क अिधकांश लोग यह नह जानते थे िक समु ी लुटेरे और
नाग रक सेना दोन ही रावण के िनय ण म ह, इसिलए जब भी कोई सुर ा के िलए उसके
आदिमय क सेवाएँ लेता, तो उसके पोत पर लुटेर के हमले होना ब द हो जाते। रावण के
धन और संसाधन के साथ-साथ उसका भाव और साख भी बड़ी तेज़ी से बढ़ती जा रही थी।
वो अब औपचा रक प से लंका के यापा रक सुर ा बल का मुख िनयु िकये जाने क
कगार पर था। उसक योजना सरल-सी थी : अपनी िनजी नाग रक सेना को लंका का
अिधकृत सुर ा बल िनयु करवाना। इससे न केवल उसके सैिनक क देखरे ख और
सश ीकरण क लागत लंका के राजकोष पर पड़े गी, बि क ह ता तरण के बाद भी सैिनक
रावण के ित वफ़ादार रहगे। समय के साथ वो अपने बल को िनयिमत सेना िजतना बड़ा और
सुसि जत कर लेगा। एक ऐसी सेना जो स िस धु सा ा य पर क़ ज़ा करने के िलए
िशि त होगी।
“हाँ,” रावण ने कहा। “काम अ छा भटकाव होता है।”
कु भकण मु कुराया। उसे ख़ुशी हई िक उसने अपने भाई के मँुह से कुछ श द तो
िनकलवाये। पर वो उसके िलए तैयार नह था जो इसके आगे रावण के मँुह से िनकलने वाला
था।
“माँ क यह जो मख ू तापणू ी धारणा है िक सम याओं के बारे म बात करने से दुख
ह का हो जाता है, एकदम बकवास है। पु ष ढं ग कह बेहतर है। वयं को काम म डुबो लो।
दुख को दबा दो। इसके बारे म न तो सोचो और न इसे बाहर आने दो। इसे अपने दय क
िकसी गहरी, अँधेरी कालकोठरी म डाल दो, भले ही यह वहाँ पड़ा सड़ता रहे । और जब आप
बढ़ू े और िनरीह हो जाय, तो बस एक अ छा-सा घातक दयाघात होगा और सब समा ,”
रावण ने अपनी बात परू ी क ।
कु भकण ने कुछ न बोलने म ही समझदारी समझी। यह प था। अपने दुख को
दबाना तो दूर, रावण उसके नीचे कुचला हआ था। उसने स िस धु को न करने के
एकमा उ े य से वयं को काम म लगाया हआ था, लेिकन लगता था िक अब उसे िकसी
काम म आन द नह आता। कु भकण ने सोचा था िक वो अपनी माँ के ज दी िववाह कर लेने
के सुझाव क बात छे ड़ेगा। पर शायद यह इस बारे म बात करने का सही समय नह था।
कुबेर अ य त घबराया हआ लग रहा था। “रावण, मुझे नह लगता िक संसार के सबसे
शि शाली सा ा य से टकराना समझदारी होगी।”
वेदवती क म ृ यु को चार साल हो चुके थे।
कुबेर और रावण लंका के शासक के िनजी कायालय म थे। रावण और कु भकण कुछ
समय पहले अपनी माँ को गोकण म छोड़कर िसिग रया म रहने चले आये थे। जैसे ही रावण
को लंका के यापा रक सुर ा बल का मुख िनयु िकया गया, उसने लंका के िसंहासन
के और िनकट पहँचने क तैया रयाँ आर भ कर दी थ । उसने कुबेर के महल से कुछ ही दूरी
पर एक िवशाल भवन ख़रीद िलया था।
लंका क राजधानी म आने के बाद से, रावण ने स िस धु के साथ लड़ाई छे ड़ने क
अपनी योजना पर भी काम शु कर िदया था। उसे बस एक वीकाय कारण चािहए था िक
सा ा य इस छोटे-से ीप रा य पर आ मण करने को भड़क जाये, और वो जानता था िक
यह कारण या हो सकता है। पहले क़दम के प म, वो उस लाभ को कम करना चाहता था
जो सीमा-पार के यापार से स -िस धुई हड़पते थे। महीन क मनुहार के बाद उसने अ ततः
कुबेर को इस िवषय पर बात करने के िलए तैयार कर िलया था। रावण क आ ामक छ बीस
वष क आयु क तुलना म उ ह र वष क आयु का बुि मान कुबेर कोई यो ा नह था; वो
एक यापारी था जो यावहा रकता को बहत मह व देता था। वो अहं पर लाभ को ाथिमकता
देता था और सावधानी को एक आव यक गुण मानता था। उसके पास समझदारी के साथ
लाभकारी सौदे करने क कला का कौशल था, संकट को दावत देने का नह ।
“मने यह पहले भी कहा है और िफर कहँगा : हम अपना नौ बटा दस लाभ स िस धु
को य द?” रावण ने पछ ू ा। “ य सारा प र म हम कर और अिधकांश पैसा उ ह ले जाने
द?”
“हम वा तव म उ ह न बे ितशत नह दे रहे ह, रावण,” कुबेर ने चालाक भरी
मु कुराहट के साथ कहा। “हमारे खाते रचना मक ह। हम अपनी लागत बढ़ा कर बताते ह।
वा तव म, उ ह स र ितशत से अिधक नह िमलता है।”
रावण पहले ही कुबेर के उ र का अनुमान लगा चुका था, लेिकन उसने सहमित जताने
का फ़ै सला िकया। वो लंका के यापारी मुख को कम आँकने क भल ू नह कर सकता था;
वही भलू जो उसक शारी रक बनावट क वजह से स िस धु वाल ने क थी। कुबेर का
गोल, भोला-सा चेहरा और िचकना रं ग उसक बढ़ती उ को झुठलाता था। लेिकन वो इतना
मोटा था िक अपने भारी-भरकम शरीर के साथ ब ख़ क तरह डगमगाता हआ चलता था। वो
सामा यत: रं ग-िबरं गे कपड़े पहनता था; आज वो एक चमकदार नीले रं ग क धोती और
पीला अंगव म पहने हए था, और उसका शरीर सजावटी आभषू ण से सजा हआ था। उसके
ै रं ग-ढं ग और उसके िदखावटी जीवन ने उसे यो ा वग म उपहास का पा बना िदया

था। मगर रावण जानता था िक उसके अश से डील-डौल के पीछे एक कुशा और िनमम
मि त क िछपा हआ था, जो केवल एक ही उ े य को समिपत था : लाभ।
“पर स र ितशत भी बहत अिधक है!” उसने जवाब िदया।
"मेरे िलए तीस ितशत पया है। म इसके एक बड़े भाग क बचत करता हँ जबिक स
िस धु अपने िह से का अिधकतर भाग उड़ा देते ह। या तुम जानते हो िक वो बचत य नह
करते ह?” कुबेर ने पछू ा।
“उनक बचत को भल ू जाइये, महाराज। हम इस बात क िच ता य कर िक अयो या
या उसके अधीन थ रा य के पास िकतना धन है? हम बस अपने धन क िच ता करनी
चािहए। यिद हम उनक दलाली कम कर द, तो हम अिधक लाभ िमल सकेगा।”
“तुमने मेरे का उ र नह िदया। म तु ह बताता हँ िक हमारी बचत उनसे अिधक
य है, जबिक हम उनसे कम कमाते ह। इसका कारण यह है िक स िस धु बहत-सा धन
अनाव यक यु पर यय करता है। जबिक हम नह करते। यु यापार के िलए बुरे होते ह,
लाभ के िलए बुरे होते ह और धन के िलए बुरे होते ह। अगर हमने दलाली कम कर दी, तो वो
िनि त प से हम पर आ मण कर दगे। हम अपनी सेना को लामब द करना होगा और
एक यथ के यु पर पैसा ख़च करना, नह , बबाद करना, होगा। और यह—”
रावण ने कुबेर को बीच म ही टोक िदया। “यिद यु का यय म उठाने को तैयार
होऊँ?”
कुबेर ने स देहपण ू ढं ग से घरू ा।"परू े यु का?”
“हर चीज़ का। आपको एक पाई भी नह लगानी पड़े गी। म सारा पैसा दँूगा।”
कुबेर के भीतर वो वाभािवक स देह जाग गया जो एक चतुर यापारी के मन म हर
ऐसे सौदे पर जागता है जो कुछ अिधक ही अ छा िदखाई दे रहा हो। वो जानता था िक रावण
चालाक है, और केवल मिहमा के िलए कुछ करने वाल म से नह है। “लेिकन तुम मेरी
तिनक भी सहायता य करोगे?” उसने पछ ू ा।
“ य िक िफर आप बढ़ने वाली दलाली का आधा भाग मेरे साथ बाँटगे।”
कुबेर मु कुराया। िकसी भी कार के वाथ को वो समझता था और स मान करता था।
अनुभव ने उसे िसखाया था िक सबसे अ छे यापा रक सौदे तभी होते ह जब दोन प अपने
िहत के बारे म ईमानदार ह । “तो म सुिनि त करना चाहँगा िक म तु हारी बात को समझ
गया। तुम मेरी अनुमित के िबना यु क घोषणा नह कर सकते। और तु ह लगता है िक यह
यु लाभकारी होगा।”
“हाँ, दोन ।”
“लेिकन इसक या िनि तता है िक िवजय हमारी ही होगी?”
“कोई नह । पर या इस बात क िनि तता है िक जब हम अपने पोत को यापार के
िलए समु म भेजते ह तो वो डूबगे नह ? हम स भावनाओं का अनुमान लगाते ह और सबसे
अ छी बाजी लगाते ह। नपी-तुली बाज़ी। हम यापारी ह। हमारा यही काम है।”
“वो सब तो ठीक है, लेिकन अगर हम हार गये तो?”
“तो आपको यावहा रक काम करना होगा।
“अगर हम हार गये,” कुबेर ने अपने श द सावधानी से चुनते हए कहा, “तो
यावहा रक काम स िस धु को यह बताना होगा िक यह सब तु हारा िवचार था।”
“आपने सही कहा। तब िन स देह यावहा रक काम यही होगा। अगर हम असफल रहे ,
तो दोष म लँगू ा। आिख़र यह मेरा ही िवचार है। आप वयं को और लंका के अ य यापा रय
को सुरि त रखना। लेिकन अगर हम जीते, तो बढ़ी हई दलाली म से आधी मुझे िमलेगी।”
कुबेर मु कुराया। “ठीक है, रावण। तु ह तु हारा यु िमलेगा। बस इतना प का करना
िक मुझे घाटा न हो। अ यािशत घाटे से अिधक दुख मुझे और िकसी बात का नह होता है।”
“महाराज, या मने कभी आपको िनराश िकया है?” रावण ने मु कुराते हए पछ ू ा।

कु भकण िचि तत था। “दादा, हम शायद अपनी सीमा से आगे िनकल रहे ह.... कह हम
उससे अिधक तो नह काट रहे ह िजतना िक हम चबा सकते ह?”
दोन भाई लंका क राजधानी िसिग रया म अपने घर पर थे।
“नह , कु भ,” रावण ने कहा। “हम सब कुछ काटगे। हम सब कुछ चबायगे। हम सब
कुछ पचायगे।”
"दादा, स िस धु के शासक लड़ने के अित र कुछ नह करते ह। हम यापारी ह।
हमारे सैिनक मल ू प से लुटेरे ह। वो केवल और केवल धन के िलए लड़ते ह। अगर उ ह
सामने कोई लाभ िदखाई नह िदया, तो वो यु छोड़ दगे। लेिकन स िस धु के सैिनक यु
म वीरगित' का ज मनाते ह। वो स मान और मिहमा जैसे िविच कारण के िलए मर जाते
ह। हम ऐसे मख ू को कैसे हरा सकगे?”
“अ छी रणनीितय ारा।”
“मुझे लगता है आप...”
“नह , म आव यकता से अिधक आ मिव ासी नह हो रहा हँ।”
“िक तु अगर हम उ ह हरा भी सके, तो इससे लाभ कैसे अिजत कर सकगे? इस
अिभयान क लागत ही इतनी अिधक होगी।”
“िच ता मत करो। जीतने के बाद, हम अगर अिधक नह तो न बे ितशत लाभ लेने
लगगे।”
कु भकण जो मिदरा पी रहा था वो उसके गले म लगभग फँस-सी गयी।” न बे
ितशत! अपने िलए?”
रावण गुराया। “हाँ, िब कुल।”
“दादा, मुझे नह लगता हम इस तरह क सि ध लागू कर पायगे। इसे पचा पाना स
िस धु के राजा के िलए कुछ अिधक ही होगा। उनके पास िनर तर लड़ते रहने के अित र
कोई चारा नह बचेगा। उसके बाद के िव ोह उ ह न कर दगे, पर वो हम भी थका डालगे।
और हमारे पास इतने सैिनक नह ह िक हम शाि तकाल म स िस धु के सारे रा य को
िनयि त कर सक।”
“हम एक बड़े यु म उनके साहस को तोड़ डालगे। उनक परू ी सेना को न कर दगे।
मुझे उनके नाग रक पर अपने िनयम लागू करने म िच नह है, इसिलए उ ह िनयि त
करने क आव यकता ही या है? हम केवल अपनी यापा रक शत उन पर लागू करगे। और
धीरे -धीरे उ ह चस
ू डालगे।”
“पर, दादा,” कु भकण ने कहा, “इतनी बड़ी दलाली कुछ समय म स िस धु क
अथ यव था को न कर देगी। हम उस सोने क ब ख़ को मार डालगे जो हमारा पेट भरती
है।”
रावण क आँख कु भकण क नजर से टकराय , लेिकन रावण के भाव से कुछ भी
प नह हआ।
“िब कुल सही,” वो बोला।

ह े-क े सैिनक ती ता से च पू चलाते हए िवशाल पोत को तट क ओर ला रहे थे। रावण


गनल पर हाथ रखे सामने बैठा हआ था। कु भकण उसके पीछे बैठा उसक मुड़ी हई बाँह को,
उसक िवशाल भुजाओं को देख रहा था जो प प से तनी हई िदखाई दे रही थ ।
दादा परे शान ह।
रावण एकदम सामने स िस धु–सात निदय के देश—क ओर देख रहा था।
कु भकण ने अपनी बाई ं ओर कुबेर के पोत को देखा िजसे दस नािवक लया मक ढं ग
से खेकर तट क ओर ला रहे थे।
अभी स िस धु के िव यु छे ड़ने के िलए रावण ारा कुबेर को मनाये जाने को
केवल एक वष हआ था। उसके बाद से घटनाएँ बड़ी ती ता से घिटत हई थ ।
कुछ ही महीन के भीतर, रावण ने अपनी सेना एकि त करके उसे िशि त कर िलया
था। उसने जीत के माल म से बड़ा िह सा देने का वादा करके दुिनया भर से भाड़े के सैिनक
भी जमा कर िलये थे।
जैसे ही लंकाई सेना तैयार हई, कुबेर ने स िस धु के राजा दशरथ को अिधकृत प से
स देश भेज िदया। जब उसका स देश अयो या पहँचा, उस राजधानी नगर म जहाँ से दशरथ
भारतीय उपमहा ीप के परू े उ री भाग पर शासन करते थे, तो वहाँ ोध का कोई िठकाना न
रहा।
यापारी वग, वै य के ित अपनी घण ृ ा के चलते, स िस धु के पुराने राजप रवार
ै कुबेर को अस य मानते थे। वो उसके अि त व को बस िकसी तरह सहन कर लेते थे।

लंका के यापारी-शासक से 'राजक य स देश' िमलने को अपमान के प म देखा गया। ऐसा
माना जाता था िक यापारी ाचीन सा ा यवादी वंश के स ाट को राजक य स देश नह
भेज सकते। वो उ ह केवल िवन , िवनीत यािचकाएँ भेज सकते थे। और जैसे इतना ही पया
नह था, साथ म कुबेर ने सा ा य से लाभ पर दलाली कम लेने क माँग भी क थी, िजसे
ि य गौरव के िलए एक असहनीय अपमान माना गया। ऐसे िनरादर को सहन नह िकया
जा सकता था।
दशरथ ने तुर त परू े सा ा य के अपने अधीन थ राजाओं को इक ा िकया और एक
सेना लामब द कर ली। योजना यह थी िक उनके सैिनक स िस धु के पि मी तट पर कुबेर
के सबसे बड़े यापा रक के म से एक करछप तक जायगे। दशरथ का इरादा करछप के
दुग और यापा रक गोदाम को न करने का था। उनका िवचार था िक कुबेर के होश
िठकाने लगाने के िलए इतना ही पया होगा। और यिद यह पया नह हआ, तो कुबेर के
िनय ण वाले कुछ अ य ब दरगाह भी न कर िदये जायगे, और अ ततः, वयं लंका का
घेरा डाल िदया जायेगा।
रावण का अनुमान यही था िक स िस धुवासी कुबेर के स देश से ु ह गे और
तुर त यु के िलए िनकल पड़गे। उसके अपने सैिनक तैयार थे। उसके िवशेष प से बनाये
गये पोत, िज ह रह यमयी गुफा साम ी से चमकाया गया था, यु के िलए तैयार थे। जैसे ही
उसे स िस धु क सेना को लामब द िकये जाने और उनके आगे बढ़ने क िदशा के बारे म
समाचार िमला, उसके पोत भी चल पड़े और करछप पहँचने के िलए ती ता से भारत के
पि मी तट क ओर बढ़ने लगे।
रावण क नौसेना म पोत क सं या इतनी अिधक थी िक वो िवशाल करछप
ब दरगाह म भी नह समा सकते थे। साथ ही, रावण जानता था िक करछप म स िस धु के
गु चर मौजदू ह और वो िब कुल नह चाहता था िक उसके पोत क एकदम िभ न बनावट
कोई उ सुकता पैदा करे । ये पोत उसक रणनीित का भाग थे, उसका गु हिथयार थे।
इसीिलए अिधकतर पोत तट से दूर खड़े हए थे।
उसी िदन बाद म रावण और कु भकण एक नाव पर सवार हए और करछप के तट क
ओर बढ़े । नाव लहराकर रे त से टकरायी और चार सैिनक बाहर उथले पानी म कूदे और नाव
को ख चकर तट तक लाये। रावण िहला भी नह । वो सामने ही देखता रहा।
कु भकण अपनी सांस तेज़ होते महसस ू कर सकता था। वो पाँच साल बाद स िस धु
वापस लौट रहे थे। िपछली बार उ ह ने यहाँ वेदवती क अि थय को गंगा म िवसिजत िकया
था।
कहा जाता है, और सही कहा जाता है, िक अतीत से जुड़ी याद जैसी भी ह , अपने
मलू थान पर लौटने पर हर यि क दय गित तेज़ हो जाती है। अलगाव क पीड़ा, और
घर वापसी क ख़ुशी सावभौिमक चीज़ ह। और दुिनया क सबसे आरामदेह जगह, माँ क गोद
म वापसी क राहत क तुलना िकसी चीज़ से नह क जा सकती।
जैसे ही नाव पानी से बाहर िनकली, कु भकण बाहर कूद आया। उसने झुककर थोड़ी-
सी गीली रे त—अपनी मातभ ृ िू म क िम ी उठायी, और उसे बड़े स मानपवू क अपने माथे से
लगाया। उसने उसे अपनी दोन आँख से पश िकया और िफर उसे चम ू ा। परू े स मान के साथ
उसे धरती पर वापस रखने से पहले, वो फुसफुसाया, “जय माँ।”
उसने देखा िक रावण ने, जो उससे थोड़ा आगे चला गया था, भी झुककर थोड़ी रे त
उठायी थी। कु भकण मु कुरा िदया।
शायद मातभृ िू म वापस आने ने अ तत: इनके िदल को भी कोमल बना िदया है।
कु भकण देखता रहा िक रावण अपना हाथ अपने चेहरे के िनकट लाया और हाथ म
रखी रे त को देखता रहा। िनर तर । न जाने िकतनी देर तक। कु भकण आगे बढ़ते हए
िहचिकचाने लगा। शायद उसे अपने भाई को इस ण के साथ अकेला छोड़ देना चािहए।
उसे बड़ी राहत का भाव महसस ू हो रहा था िक अतीत अ तत: पीछे छूट चुका है। उसके
बड़े भाई ने बहत कुछ झेला है, बहत समय तक वो संसार से ु रहा है, पर लगता है िक वो
अब अपने अ दर थोड़ी शाि त का वागत करने को तैयार है। बेशक यह यु तो लड़ा
जायेगा। लड़ा ही जाना था। लाभ के िलए। पर कम-से-कम मातभ ृ िू म वापस आने ने रावण के
दय क गहराइय म जमे दुख को थोड़ा कम कर िदया था। या कम-से-कम कु भकण को
ऐसा लग रहा था।
रावण ने अपनी उस हथेली को खोला िजसम रे त थी, उसे अपने मँुह के और क़रीब
लाया। िफर, धीरे -धीरे , जानबझ
ू कर, वो खखारा और उसने उस रे त म थकू िदया। जब उसने
रे त को जमीन पर फका और अपने पैर तले कुचला, तो लगा मानो ोध से उसका परू ा शरीर
ऐंठ गया हो।
“इस देश का नाश हो।”
अ याय 19

“ या हम उनके िशिवर म नह चलना चािहए?” घबराहट से भरे कुबेर ने पछ


ू ा।
स िस धु के स भु दशरथ अपने दूर-दूर तक फै ले सा ा य को पार करते हए अपनी
राजधानी अयो या से करछप पहँच गये थे। अपने आगमन के कुछ ही घंट के भीतर, उ ह ने
कुबेर को एक खा-सा स देश भेजकर सि ध क शत पर बात करने के िलए बुलाया था।
अपने शासन के शु आती वष म दशरथ ने अपने िपता अज से िमली शि शाली
िवरासत को और सु ढ़ बनाया था। भारत के िविभ न भाग के शासक को या तो अपद थ
कर िदया गया या िफर शु क देने और दशरथ का आिधप य वीकार करने के िलए िववश
कर िदया गया था, और इस तरह दशरथ च वत स ाट बन गये थे।
“हम उनके िशिवर म नह जायगे, महान यापारी मुख,” अपनी खीझ पर िनय ण
रखने क परू ी कोिशश करते हए रावण ने कहा। “अयो यावासी इसे हमारी दुबलता समझेगा।
यिद हम िमलना ही है, तो हम तट थ जगह पर िमलगे—न उनके िशिवर म न अपने म।”
“िक तु...”
“कोई िक तु-पर तु नह । हम लड़ने आये ह, आ मसमपण करने नह ।”
रावण का रवैया आर भ से ही प था। िपछले एक स ाह म, उसने अपने सैिनक को
करछप के पचास िकलोमीटर के दायरे म चार ओर ि थत सारे गाँव को न करने का
आदेश िदया था। खड़ी हई फ़सल जला दी गयी थ । कटा हआ अनाज और मवेशी ज़ त करके
लंकाई सैिनक के भोजन के िलए ले आये गये थे। कुओं को मत ृ जानवर क लाश से
िवषा कर िदया गया था।
सब कुछ न कर देने वाली नीित।
लंकाई सेना को करछप क दीवार के भीतर अ छा भोजन और िव ाम िमलेगा। लेिकन
देहाती े न हो जाने के कारण नगर के बाहर पड़ाव डाली स िस धु क सेना को अपने
पाँच लाख सैिनक के िलए भोजन जुटा पाना भी किठन होगा। सं या म उनक बढ़त उनके
िलए बोझ बन जायेगी।
“लेिकन यिद स ाट दशरथ भोजन क कमी के बावजदू भी पीछे नह हटे तो?” कुबेर
ने याकुल होते हए पछ
ू ा। “यिद उ ह ने तुर त आ मण कर िदया तो?”
रावण मु कुराया। “म आप पर भरोसा कर रहा हँ, महान यापारी मुख, िक आप
दशरथ को ठीक यही करने के िलए उकसायगे। शेष म सँभाल लँगू ा।”
"स ाट दशरथ,” कुबेर ने सुधारा।
रावण उस यि को केवल नाम से स बोिधत करना पस द करता था। श ु को
अनाव यक स मान देने क आव यकता नह है। “केवल दशरथ,” उसने शा त भाव से
कहा।

दशरथ ल बी बातचीत के प म नह थे।


“म आपको आदेश देता हँ िक हमारी दलाली वापस अपने लाभ का यायोिचत नौ बटा
दस कर और, बदले म, म आपको िव ास िदलाता हँ िक म आपको जीवनदान दँूगा,” उ ह ने
ढ़ता से कहा।
कुछ खे स देश के आदान- दान के बाद, दोन प एक तट थ थान पर िमलने
पर सहमत हो गये। चुना गया थल एक तट था, जो दशरथ के सै य िशिवर और करछप दुग
के आधे रा ते पर था। स ाट अपने सुर राजा अ पित, अपने सेनापित मग ृ य और बीस
सैिनक क एक अंगर क पलटन के साथ आये थे। कुबेर रावण और बीस अंगर क के
साथ आया था।
जब कुबेर डगमगाता हआ-सा िशिवर के अ दर आया तो स िस धु के यो ा अपने
ितर कार को बड़ी मुि कल ही से िछपा सके। यापारी मुख ने शालीन कपड़े पहनने के
रावण के सुझाव क अनदेखी करते हए चमक ली हरी धोती और गुलाबी अंगव पहना था।
आभषू ण भी सामा य से अिधक भड़क ले थे। उसका मानना था िक अपने सु िचपण ू प को
िदखाकर वो स िस धु के अ णी लोग क श सा ा कर सकेगा। लेिकन इससे उसके
िवरोधी समझ गये िक उनका सामना एक ण ै वै य से है; एक मोर से जो यु कला के बारे
म कुछ नह जानता।
“महाराज...” कुबेर द बपू न से बोला, “मुझे लगता है िक दलाली को उसी तर पर
बनाये रखना थोड़ा किठन होगा। हमारी लागत बढ़ गयी है और लाभ उतना नह रहा है
िजतना—”
“अपनी िघनौनी सौदेबाज़ी क रणनीित मुझ पर मत आज़माइए!” दशरथ ज़ोर से
िच लाए और भाव के िलए उ ह ने अपना हाथ मेज़ पर मारा। “म कोई यापारी नह हँ! म
स ाट हँ! स य लोग इस अ तर को समझते ह।”
रावण ने मेज़ के नीचे अपनी मु याँ भ च ल । कुबेर ने उसक सलाह का कोई अंश नह
माना था, न यवहार म न भाषा म।
दशरथ आगे को झुके और िनयि त उ ता के साथ बोले, “म दयालु हो सकता हँ। म
ग़लितय को मा कर सकता हँ। लेिकन आपको यह मख ू ता ब द करनी होगी और जैसा म
कहता हँ करना होगा।”
कुबेर अपनी कुस पर बेचन ै ी से डगमगाया और उसने भावशू य रावण क ओर देखा,
जो उसके दाई ं ओर बैठा था। बैठे हए रावण का डीलडौल भी स -िस धु वाल के िलए
आ यजनक था। उ ह उस बल म ऐसे यो ा को देखने क उ मीद नह थी िजसे वो
उपहासपवू क एक यापारी का सुर ा बल कहते थे। रावण के यु क मार खाये सांवले रं ग
पर बचपन म हई चेचक के ध बे थे। उसक मोटी-मोटी मँछ ू के साथ घनी दाढ़ी उसके चेहरे
को और भी भयानक भाव दे रही थी। उसके कपड़े साधारण और सादे थे; वो सफ़ेद धोती और
दूिधया अंगव पहने था। उसक िशर ाण भी इस तरह का था िक उसक भयावहता म और
बढ़ोतरी हो रही थी, उसके ऊपर दोन ओर छह-छह इंच के स ग बाहर िनकल रहे थे। स देश
प था : रावण कोई सैिनक भर नह था, बि क इंसान के बीच सांड था।
स िस धु का दल इस अपे ा के साथ अपने बीच बैठे बिल लंकाई सेनापित पर
ि पात कर रहा था िक वो कुछ कहे । मगर रावण शा त बैठा रहा, वो न अपना मत जता
रहा था न आपि ।
कुबेर दशरथ क ओर पलटा, “िक तु, महाराज, हम अनेक सम याओं का सामना कर
रहे ह, और हमारी िनवेिशत पँज
ू ी—”
“अब आप मेरे स क परी ा ले रहे ह, कुबेर!” दशरथ गरजे। “आप स िस धु के
स ाट को ोध िदला रहे ह!”
“िक तु, वामी...”
“देिखए, अगर आप हमारा यथोिचत िह सा चुकाना जारी नह रखगे, तो, िव ास
जािनए, कल इस समय तक आप सभी मत ृ ह गे। म पहले आपक दयनीय सेना को हराऊँगा,
िफर आपक उस मनहस राजधानी जाऊँगा और उस शहर को जलाकर व त कर दँूगा।”
“मगर हमारे पोत के साथ सम याएं पेश आ रही ह, और िमक लागत भी—”
“आपक सम याओं से मुझे कोई सरोकार नह है!” अब दशरथ िच लाने लगे थे।
“आपको होगी, कल के बाद,” रावण ने नम वर म कहा।
स ाट अपना आपा खो बैठे। समय सही था।
दशरथ ने ती ता से घमू कर रावण को देखा। “तु हारी िह मत कैसे हई बीच म बोलने
—”
“तु हारी िह मत कैसे हई, दशरथ?” रावण ने पछ ू ा, उसका वर प और गँज ू ता
हआ-सा था।
दशरथ, अ पित और मग ृ य हत भ बैठे रह गये, वो ति भत थे िक एक यापारी के
सहयोगी मा ने स िस धु के स ाट को नाम से स बोिधत करने का दु साहस िकया है।
रावण ने मु कुराहट को दबाया। वो िब कुल वैसा ही बताव कर रहे थे जैसी उसे उ मीद
थी। इन लोग के साथ खेलना िकतना सरल है। इनके अहं ही इनका िवनाश ह गे।
कटार को घुमाने का समय आ गया था।
“यह सोचने क भी तु हारी िह मत कैसे हई िक तुम उस सेना को हराने के िनकट भी
पहँच पाओगे िजसका नेत ृ व म कर रहा हँ?” रावण ने तिनक घण ृ ा से ह ठ िसकोड़ते हए
पछ
ू ा।
दशरथ ोध से उठ खड़े हए, उनक कुस धड़धड़ाती हई दूर जाकर िगरी। उ ह ने
रावण क ओर उँ गली लहराई। “कल यु के मैदान म म तुझे ही खोजँग ू ा, अहंकारी!”
धीरे -धीरे और भयावह ढं ग से रावण अपनी कुस से उठ खड़ा हआ, उसक मु ी अपनी
गदन म पड़ी सोने क जंजीर म पड़े लटकन को जकड़े हए थी। उनके हाथ को थामना उसे
साहस देता था। यह इस बात क भी िनर तर याद िदलाता था िक वो यह सब िकसिलए कर
रहा है।
जब रावण क मु ी खुली, तो दशरथ ने लटकन को देखा। यह प था िक स ाट ने
जो देखा उससे वो सकते म आ गये थे। स भवतः उ ह लगा था िक यह लंकावासी रा स है
जो अपने श ुओ ं के शव को त-िव त कर देता है।
दशरथ को सोचने देत े ह िक म एक नरभ ी दानव हँ। इससे य ु म ित पधा मक
लाभ हािसल होगा।
“म िव ास िदलाता हँ िक म ती ा क ँ गा,” रावण ने अपने वर म उपहास का पुट
लाते हए कहा, वो मँुह खोले तकते दशरथ को देख रहा था। “म आपका र पान करने क
ती ा क ँ गा।”
इतना पया है। इसे ोध म बलबलाने देत े ह।
रावण पलटा और ल बे डग भरता िशिवर से बाहर चला गया। कुबेर भी िहलता-डुलता
ज दी से उसके पीछे चल िदया, और उसके पीछे लंका के अंगर क थे।

“आप भी नह सो सके?” कु भकण ने पछ ू ा।


रावण अपने भाई क ओर मुड़ा और मु कुरा िदया, उसने हाथ से पकड़े लटकन को
छोड़ िदया था।
चौथे पहर क पाँचव घड़ी थी—आधी रात से बस एक घड़ी पहले का समय । रावण
करछप के दुग के परकोटे पर खड़ा स िस धु के िशिवर और वहाँ जल रही अनेक आग को
देख रहा था। रात शा त थी और बात और हँसी-िठठोली क आवाज दुग तक पहँच रही थ ।
“लगता है श ु भी नह सो रहा है,” रावण ने कहा।
कु भकण हँसा। “स िस धु के ये ि य समझते ह िक यु मौज-म ती है।”
रावण ने गहरी सांस ली। “कल इस समय तक स िस धु हमारा होगा।”
“तकनीक प से, या यह कुबेर का नह होगा?”
“और तु हारे िवचार म उस मोटे थुलथुले का वामी कौन है?”
कु भकण ज़ोर से हँस पड़ा, और पल भर बाद रावण भी हँसी म शािमल हो गया।
कु भकण ने अपने भाई के िगद बाँह डाल दी।
“आप और हँसा क िजये, दादा,” उसने कहा। “वो भी यही पस द करत ।”
रावण का दायाँ हाथ आप-ही-आप िफर से लटकन को ढूँढ़ने लगा। “उनको स मािनत
करने का सबसे अ छा तरीक़ा उस सेना को न करना होगा जो इस िनकृ समाज क
र ा करती है िजसने उनक ह या क ।”
कु भकण मौन रहा। वो जानता था िक इस िवषय म रावण से कुछ भी कहने का कोई
लाभ नह है।
रावण याही से काले समु को देखने लगा। वो देख तो नह पा रहा था लेिकन
जानता था िक उसके पोत वह थे, तट से दो िकलोमीटर दूर लंगर डाले हए। अपने असामा य
प से चौड़े अि म भाग के साथ वो पोत उसक यु रणनीित के िलए बहत अहम थे।
“पोत जहाँ ह वह रहगे,” रावण ने कहा। “म यह भी नह चाहता िक उनक छोटी नाव
उतारी जाय।”
“ प है,” कु भकण ने कहा।
िजस तरह उसका भाई उसके मन क बात जान लेता था वो रावण को अ छा लगता
था। लंकाई पोत के इतनी दूर होने और छोटी नाव तक के न उतारे जाने से अयो यावासी
समझते िक यु म उनक कोई भिू मका नह है। अगर उन पोत पर आरि त बल होता भी तो
भी उ ह लड़ने के िलए शी ता से ला पाना स भव नह होता।
और यही जाल िबछाया जाना था।
“आपको लगता है िक वो इसके झाँसे म आ जायगे?” कु भकण ने पछ ू ा।
“अब तक तो वो सारे चारे खा चुके ह, है ना? मुझे उनके अहं पर िव ास है। उनका यह
आकलन ही िक हम मख ू यापारी ह और यु लड़ने म अ म ह, कल उनसे चक ू करवायेगा।
साथ ही याद रहे उनके पास पाँच लाख सैिनक ह। हमारे पास नगर म पचास हज़ार से कुछ ही
अिधक ह। यह स भावना उ ह बहत अ छी लग रही होगी। और जब लोग यह समझते ह िक
स भावनाएँ उनके प म ह तो वो अिववेकपण ू काम करते ह।”
“लेिकन जब तक स ाट तट पर उनक आ ामक यहू रचना नह करते, हमारे पोत
अनुपयोगी रहगे।”
“यही तो,” रावण ने कु भकण क ओर मुड़ते हए कहा। “म इसी बारे म तो तुमसे बात
करना चाहता था।”
“म ऐसा ही क ँ गा, दादा। म कुछ पलटन को नगर क दीवार से बाहर ले जाऊँगा
और उ ह—हम—चारे क तरह योग क ँ गा। और जब अयो यावासी हम पर आ मण
करगे, तो शेष काम आप पोत के साथ कर लेना।”
“तुम लगभग एकदम सही समझते हो िक मेरा मि त क कैसे काम करता है,” रावण
ने मु कुराते हए कहा।
कु भकण हँसा। “लगभग? मुझे हमेशा पता होता है िक आप या सोच रहे ह।”
“परू ी तरह नह । हम उसी यु योजना पर चलगे जो तुमने अभी बनायी है। अलावा
इसके िक चारा म रहँगा। और तुम पोत का नेत ृ व करोगे।”
कु भकण भया ा त हो गया। “नह , दादा!”
“कु भ”…”
“नह !”
“तुम अ सर मुझसे कहते रहते हो िक तुम मेरे िलए कुछ भी करोगे।”
“हाँ, क ँ गा। आपके िलए म अपनी जान जोिखम म डालँग ू ा। और आप यु जीतगे।”
“कु भ, म तुमसे कह अिधक किठन काम करने को कह रहा हँ। म चाहता हँ तुम मुझे
अपनी जान जोिखम म डालने क अनुमित दो।”
“यह स भव नह है, दादा।”
“कु भ, मेरी बात सुनो...”
“नह !”
“कु भ, वो द भी मख ू दशरथ मुझसे घण ृ ा करता है। म ही उसे अिववेकपणू आचरण
करने के िलए उकसा सकता हँ। मुझे यह रहना होगा।”
“तो म आपके साथ रहँगा। मरीच मामा पोत का नेत ृ व कर लगे।”
“मेरी जान जोिखम म होगी, कु भ। एक तुम ही हो िजस पर म अपना यान रखने का
भरोसा कर सकता हँ।”
“दादा....”
“केवल तुम ही हो जो यह सुिनि त करोगे िक म म ँ नह ।”
कु भकण ने हाथ बढ़ाकर रावण के मँुह पर रख िदया। “ श! माँ ने आपसे कहा है ना
िक अपनी म ृ यु क बात मत करना। परमे र ने आपको मँुह िदया है, इसका यह अथ नह है
िक आप इसका योग ऊटपटांग बात कहने के िलए कर!”
“तो यह सुिनि त करना िक मुझे दोबारा यह न कहना पड़े । पोत का नेत ृ व करना।”
“दादा!” कु भकण खीझ गया था।
"यह आदेश है, कु भ। म केवल तुम पर िव ास कर सकता हँ। तु ह मेरे िलए यह
करना होगा। तु ह देखना होगा िक पोत सही समय पर चल द।”
कु भकण ने कस कर रावण के हाथ पकड़ िलये, िबना कुछ कहे ।
“कल जीत हमारी होगी,” रावण ने कहा। “और िफर हमारा युग शु होगा। इितहास
कभी रावण और कु भकण के नाम नह भल ू ेगा।”

अगले िदन, दूसरे पहर क चौथी घड़ी तक रावण यु के िलए तैयार हो चुका था। अपने जंगी
घोड़े पर सवार, और अि म पंि म ती ा करता।
अपने श ुओ,ं और कुछ अनुयाियय को भी हैरान करते हए उसने दुग क सुिनिमत
दीवार के पीछ रहने के अ य त र ा मक लाभ को छोड़ िदया था। इसके बजाय उसने अपने
पचास हज़ार सैिनक —अपनी अिधकांश सेना को दुग क दीवार के बाहर, समु तट पर
सामा य चतुरंग यहू म तैनात िकया था।
अब लंकावािसय के सामने उनका श ु और पीछे दुग क दीवार थी। तीत प से
दशरथ और उनक सेना के िलए सरल ल य तुत करते हए।
स िस धु के यो ाओं के िलए लंकाई चारा।
और चारे को ले िलया गया।
अयो या के स ाट ने अपनी सेना को समु तट के साथ सच ू ी यहू , सईू यहू , म
सजाया था। दशरथ को पता था िक भिू म क ओर से दुग पर हमला करने का िवक प नह है।
रावण के दल ने दुग के चार ओर काँटेदार झािड़याँ बो दी थ , अलावा उस दीवार के जो समु
तट के पास थी। दशरथ क सेना झािड़य को साफ़ करके दुग तक पहँचने का माग बना
सकती थी, लेिकन उसम कई स ाह लग जाते। लंका क सेना ारा करछप के आसपास के
े को तबाह कर िदये जाने, और इस कारण दुग के बाहर भोजन और पानी के अभाव के
चलते यह िवक प िकसी तरह यवहाय नह था। रसद समा होने से पहले सेना को
आ मण करना ही था।
दशरथ को यह सोचने के िलए ठहरना चािहए था िक रावण ने समु तट वाले माग के
अलावा िभड़ त के सभी स भािवत माग को अव य िकया है। अपने भ य सै यकाल म
अयो या के राजा को कभी िकसी यु म पराजय नह िमली थी। उनक साम रक विृ को
उ ह सजग कर देना चािहए था। मगर िपछले िदन रावण ारा कहे गये अपमानजनक श द
अभी भी उनके मन म गँज ू रहे थे, और उ ह ने अपने अहं को अपने िववेक पर हावी होने िदया।
समु तट अनेक मापद ड के अनुसार चौड़ा था मगर एक बड़ी सेना के िलए पया नह
था इसिलए दशरथ ने सच ू ी यहू बनाने का साम रक िनणय िलया था। उनक सेना का
सव े अंग उनके साथ यहू के सामने रहता, जबिक शेष सेना उनके पीछे एक ल बी
क़तार म रहती। वो आवत आ मण करना चाहते थे, िजसम पहली पंि याँ लंका क सेना
पर आ मण करत , और यु के लगभग बीस िनिमष बाद पीछे हट जात , और यो ाओं क
अगली पंि को मोरचा सँभालने देत । इस तरह िबना के लंका क श ु सेना को समा
करने के िलए यु के िलए ढ़ सैिनक क नयी लहर आती रहती।
कैकेय के राजा और दशरथ के सुर अ पित को इस रणनीित को लेकर स देह थे।
उ ह ने इंिगत िकया िक यु के िकसी भी पल केवल कुछ पचास-साठ हजार सैिनक ही
केवल यु रत रहगे, जबिक अिधकांश पीछे ती ारत रहगे। बड़े यु े क जगह एक
संकरे समु तट पर यु करने के िलए िववश करके रावण ने स िस धु क सेना क िवशाल
सं या के लाभ को शू य कर िदया था। मगर िव ास से भरे दशरथ ने अ पित के स देह
को दरिकनार कर िदया।
दशरथ का मानना था िक लंकावासी यापारी ह जो प र कृत यु नीितय को अपनाने
म अ म थे। दुग क दीवार के बाहर सेना को तैनात करने के य त: मख ू तापण ू काय ने
उ ह आ त ही िकया था िक रावण और उसक सेना को इसक कोई समझ नह है िक वो
या कर रहे ह।
दूर, समु तट के दूसरे छोर पर रावण ने अपने दािहनी ओर देखा, जहाँ समु म दो
िकलोमीटर से अिधक दूरी पर उसके पोत लंगर डाले खड़े थे। छोटी नौकाएँ भी नह िदख रही
थ । कु भकण अ छी तरह उसके िनदश का पालन कर रहा था।
रावण ने अपनी ि वापस स िस धुओ ं क सेना क ओर घुमायी।
उसके द भी और अित-आ मिव ासी श ुओ ं ने उसके चौड़े अ भाग वाले पोत क
जाँच करने के िलए अपनी गु चर नौकाएँ भी नह भेजी थ । उ ह यह तो करना ही चािहए था।
उसके ह ठ पर एक मु कान तैर गयी। मख ू कह के।
रावण ने अपने क धे और बाँह ढीली छोड़ी। यु का सबसे िचढ़ाऊ प ती ा करना
होता है। दूसरे प ारा आ मण करने क ती ा। आप न तो अपना यान भटकने दे
सकते ह और न ही अपनी ऊजा न होने दे सकते ह। उसने अपनी सेना को चेतावनी दी थी
िक िच लाकर श ु पर गािलयाँ बरसाकर या यु के उ ोष करके वयं को थकाएँ नह । उ ह
चुप रहकर ती ा करने का आदेश िदया गया था।
प प से दशरथ ने अपने सैिनक को ऐसे कोई िनदश नह िदये थे। वो दहाड़ते हए
यु के नारे लगा रहे थे, उनक आवाज उ माद म उठ-िगर रही थ । जोश से वयं को भरते
हए। मगर इसी के साथ वयं को थकाते हए भी।
रावण ने यु का अपना िविश िशर ाण पहना हआ था िजसके दोन ओर से भयावह
ढं ग से छह-छह इंच के स ग िनकले हए थे। यह उसके श ुओ ं : दशरथ के िलए चुनौती थी।
म यहाँ हँ। आकर पकड़ो मुझे।
इस बीच दशरथ अपने सु िशि त और भ य िदखने वाले जंगी घोड़े पर सवार होकर
अपनी िवशाल सेना का िनरी ण कर रहे थे। उ ह ने परू े िव ास से उस पर अपनी ि
दौड़ायी। अपनी तलवार ख चे, यु के िलए उ सुक वो उ और ककश लोग थे। उनके घोड़े भी
जैसे उस पल के रोमांच म डूब गये थे, िजससे उनके सवार को उनक लगाम ख च-ख च
कर उ ह बस म करना पड़ रहा था। दशरथ को तो शी बहाए जाने वाले र क ग ध तक
आने लगी थी : उस नरसंहार क जो िवजय क ओर ले जायेगा!
उ ह ने आँख िसकोड़कर सामने दूर खड़ी लंका क सेना और उनके सेनापित को
परखा। रावण ारा िपछली शाम कही गयी बात याद करते ही ोध क िचंगारी उनके अ दर
फूट पड़ी। यह अहंकारी यापारी शी ही उनके ोध का भागी बनेगा। उ ह ने अपनी तलवार
ख ची और उसे ऊँचा ताना, और िफर अपने कौशल रा य, और उसक राजधानी अयो या के
सु प यु घोष का गजन िकया। “अयो यात: िवजेतार:!”
अजेय नगर के िवजेता!
उनक सेना म सभी अयो या के नह थे, मगर िफर भी कौशल के वज तले यु करने
का उ ह गव था। उ ह ने भी अपने स ाट के यु घोष को दोहराया। “अयो यात: िवजेतारः!”
अपनी तलवार नीची करते और अपने घोड़े को एड़ लगाते हए दशरथ दहाड़े । “सबका
वध हो! कोई दया नह !”
“कोई दया नह !” पहले हमले के घुड़सवार ने अपने िनभ क वामी के पीछे आगे
बढ़ते हए हंकार लगायी।
तेज़ी से, िनभ कता से घोड़े दौड़ाते हए, अपने वयं के िवनाश क ओर बढ़ते हए।
जब दशरथ और उनके सव े यो ा तेज़ी से समु तट पर लंकावािसय क ओर बढ़ने
लगे, तो रावण क सेना िन ल खड़ी रही। जब दु मन के घुड़सवार बस कुछ सौ मीटर दूर रह
गये तो अचानक रावण ने अपना घोड़ा मोड़ा और अि म पंि से पीछे जाने लगा, हालाँिक
उसके सैिनक ढ़ता से खड़े थे।
रावण क रणनीित प थी—मह वपण ू थी जीत, न िक पौ ष और साहस का
दशन। मगर ि य जीवनशैली म पले-बढ़े दशरथ के िलए यि गत बहादुरी सेनापित का
सबसे बड़ा गुण थी। रावण क य कायरता ने उ ह ोध िदला िदया था। उ ह ने अपने
घोड़े को एड़ लगाकर सरपट दौड़ा िदया, उनका इरादा लंका क अि म पंि को र दकर
शी ता से रावण तक पहँचना था। अयो या क सेना भी गित बढ़ाते हए अपने राजा के पीछे
चली।
रावण को यही आशा थी। लंका क अि म पंि हरकत म आ गयी। अचानक सैिनक
ने अपनी तलवार फक दी और अ वाभािवक प से ल बे, लगभग बीस फुट ल बे, भाले उठा
िलये, जो उनके पैर के पास रखे थे। लकड़ी और धातु के बने वो भाले इतने भारी थे िक एक
भाले को दो आदमी उठा रहे थे। सैिनक ने ताँबे के नुक ले अ भाग वाले इन भाल का ख़
दशरथ क आगे बढ़ती घुड़सवार सेना क ओर कर िदया था।
घुड़सवार सैिनक समय रहते अपने घोड़ क लगाम नह ख च पाये और सीधे भाल म
घुसते चले गये िज ह ने असावधान घोड़ को चीथ डाला। घोड़े ढे र हए तो उनके सवार आगे
को जाकर िगरे । दशरथ क घुड़सवार सेना का आ मण जब का तो करछप दुग क ऊँची
दीवार पर लंका के धनुधर उठ खड़े हए। दुग क ाचीर क ऊँचाई से वो ल बे चाप म,
दशरथ क सेना के पीछे ि थत घने यहू क ओर लगातार बाण-वषा कर रहे थे िजसने स
िस धु क पंि य को तोड़ डाला।
दशरथ के अनेक यो ा िज ह उनके धराशायी होते घोड़ ने उछाल िदया था, लड़खड़ाते
हए दु मन से आमने-सामने का यु करने के िलए खड़े हो गये थे। उनके राजा भयावह ढं ग
से अपनी तलवार घुमाते और उसक चपेट म आने वाले हर यि को काटते हए उनका
नेत ृ व कर रहे थे। मगर अपने चार ओर वो अपने सैिनक पर ढाए गये िवनाश को देख रहे
थे जो लंकाई तीर क बौछार और बेहतरीन िश ण पाये तलवारबाज ारा तेज़ी से िगराये
जा रहे थे। कुछ ही पल के बाद दशरथ ने अपने वजवाहक को इशारा िकया िज ह ने
यु र म उनका वज ऊपर उठा िदया। यह पीछे मौजदू सैिनक के िलए अि म पंि क
सहायता के िलए आ मण म शािमल होने का संकेत था।
इसी पल का रावण को इ तजार था।
कु भकण के आदेश पर लंका के पोत ने अचानक लंगर उठा िलये। बड़े पोत हमेशा तट
से दूर रहते ह जब तक िक समुिचत ब दरगाह उपल ध न हो। नौसैिनक को छोटी नाव ारा
तट पर लाया जाता है। मगर कु भकण ने नाव नीचे नह उतारी। उसने पोत को ही तेज़ी से
समु तट क ओर बढ़ने का आदेश िदया था। परू ी तरह चौकस नािवक ने च पू बढ़ाते हए
तेज़ी से तट क ओर बढ़ना शु कर िदया था। हवा के ख़़ क सहायता पाने के िलए पोत
के म तल ू परू े खुले हए थे। कुछ ही पल के भीतर पोत के तल से दशरथ के नेत ृ व वाली
सघन सेना पर तीर क बौछार होने लगी थी। पोत पर मौजदू लंका के धनुधर ने स िस धु
क सेना के समहू को चीर डाला था।
दशरथ क सेना म िकसी को भी श ु पोत के तेज़ी से समु तट पर आने क स भावना
का अ देशा नह था; साधारणतया इससे उनके पेटे टूट जाते। मगर वो यह नह जानते थे िक
ये जल-थलीय पोत थे िजनम िवशेष प से बनाये गये पेटे थे जो धरती पर आने के झटके को
वहन कर सकते थे। समु तट पर ती गित से आते-आते ही उनके पेटे के चौड़े अि म भाग
ऊपर से खुलने लगे। ये सामा य पेटे के साधारण अि म भाग नह थे। वो बड़े -बड़े क़ ज़ से
पेटे क तली से जुड़े हए थे, और वो पोत से उतरने के ढलवाँ माग क तरह रे त पर खुल गये
थे। इससे पोत के अ द नी भाग से सीधे समु तट पर आने का रा ता खुल गया था। पोत से
पि म से मँगवाये गये असामा य प से िवशाल घोड़ पर सवार सैिनक धड़धड़ाते हए
समु तट पर आने और िनममता से अपने रा ते म आने वाले सभी लोग को काटने लगे।
अब स िस धुवासी दोन छोर पर लड़ रहे थे—अि म पंि य म करछप दुग क
दीवार पर मौजदू रावण के सैिनक से, और पीछे कु भकण के नेत ृ व म पोत से िनकले
अनपेि त आ मणका रय से।
एक कुशल यो ा क सु िशि त सहज विृ ने दशरथ को आगाह कर िदया था िक
पीछे के भाग म कुछ भयानक हो रहा है। जब वो यु रत मानवजाित के समु के पार देखने
का यास कर रहे थे तभी उ ह अपने बाई ं ओर अचानक कुछ हरकत का आभास हआ और
उ ह ने समय रहते अपनी ढाल उठा कर लंका के एक सैिनक के घातक वार को रोक िदया।
भयानक हंकार के साथ अयो या के राजा घातक ढं ग से अपने आ मणकारी क ओर घम ू े
और उनक तलवार उसके कवच को काटती चली गयी। लंकाई पीछे िगर गया, उसका पेट
खुल गया था और उससे र फूट पड़ा था, और उसी के साथ एक झ के म िचकनी गुलाबी
आँत भी बाहर आ गयी थ । दशरथ घम ू े और उ ह ने अपने पीछे , सेना के िपछले िह से क ओर
देखा।
“नह !” वो िच ला पड़े ।
उनक आँख के सामने जो य घिटत हो रहा था वो उ ह ने पहले कभी नह देखा था।
आगे के िह से म दुग क दीवार पर धनुधर और पैदल सैिनक के दोहरे िनमम आ मण,
और पीछे समु तट पर खड़े पोत से िनकली लंका क च ड घुड़सवार सेना के बीच फँसी
उनक हमेशा िवजयी रहने वाली सेना का मनोबल तेज़ी से िगर रहा था। अिव ास से भरे
दशरथ ने देखा िक उनके कुछ सैिनक पंि याँ तोड़कर पीछे हटने लगे ह।
"नह !” वो दहाड़े । “लड़ो! लड़ो! हम अयो या ह! अजेय ह!”
इस बीच सब कुछ अपनी अपे ानुसार चलने के बीच रावण ने अपने घोड़े को एड़
लगायी और अपने कुछ सैिनक को समु के िकनारे बाई ं ओर के तट क ओर ले गया। यही
एक टुकड़ा ऐसा था जो अयो या क सेना के जवाबी आ मण के िलए खुला था। अपने
सु िशि त घुड़सवार सैिनक के साथ रावण ने सैिनक क बाहरी पंि को िफर से एकजुट
होने से पहले ही काट डाला। उसे दुग क दीवार के अपने मोरचे को सुरि त रखना था
जबिक कु भकण पीछे क पंि य का संहार कर रहा था।
दशरथ को मारने म रावण क िच नह थी। इस िब दु पर यह मायने नह रखता था।
उसका यान बस िवजय पर था। और वो पाने के िलए, उसे अयो या क सेना के अि तम
ितरोध को भी तोड़ देना था।
धीरे -धीरे मगर िन यपवू क, आगे के भाग म दुग क दीवार पर मौजदू सैिनक से िघर
कर, पीछे कु भकण के नेत ृ व म हए आ मण से, और रावण के सैिनक ारा िकये घातक
बग़ली आ मण से दशरथ क सेना िततर-िबतर हो गयी थी। सभी पंि य म भगदड़ मच
गयी थी। और कुछ ही देर म, परू ी तरह अ त- य त प से सेना पीछे हटने लगी।
अब यह यु नह रहा था। यह नरसंहार था।
मगर रावण का नह । उसने यु िवराम का आदेश नह िदया। उसने अपनी सेना को
दया िदखाने क अनुमित नह दी।
उसके आदेश प थे और उसने िच ला कर कहा था : “सबका वध कर दो! कोई दया
नह ! सबका वध कर दो!”
और उसके सैिनक ने आ ा का पालन िकया।
अ याय 20

रावण ने िवचारम न ढं ग से मिदरा के अपने ख़ाली पा को टकटकाया। क के दूसरे छोर


पर मौजदू एक सेवक आगे बढ़ने लगा, मगर जब उसने देखा िक कु भकण अपने भाई का
पा भरने के िलए उठ रहा है, तो वो पीछे हट गया।
कु भकण ने पा को िफर से भरा और िफर अपने िलए भी मिदरा डाली। िफर उसने
ऊपर देखा और सेवक को जाने का संकेत िकया। उस आदमी ने णाम िकया और क से
बाहर हो गया।
करछप के यु म स िस धु क सेना को खदेड़े हए पाँच माह बीत गये थे। दशरथ
अपनी दूसरी प नी और कैकेय के राजा अ पित क पु ी कैकेयी ारा बहादुरी से र ा िकये
जाने के कारण िकसी तरह जान बचा पाये थे।
“आपको लगता है िक हम उस िदन स ाट को मार देना चािहए था?” कु भकण ने
मिदरा का घँटू भर कर अपने आरामदेह आसन पर बैठते हए पछ ू ा।
“मने इस बारे म सोचा था,” रावण ने अपना िसर िहलाते हए कहा। “लेिकन यह शायद
इस तरह ही अ छा है। यु े म शी ता से मर जाना उसके िलए वरदान होता। पराजय क
लािन उसके मनोबल को ितल-ितल करके तोड़े गी। सै य असफलता, और हमारे ारा थोपी
गयी सि ध उसक मानिसक शाि त को न कर दगी। अि थर और असुरि त नेत ृ व के
साथ स िस धु का मनोबल उठ नह पायेगा। जब हम धीरे -धीरे सा ा य को िनचोड़गे तो वो
हमारे िलए कोई सम या खड़ी नह कर पायगे। अगर हमने दशरथ को मार िदया होता तो हम
उसे शहीद बना देते। और शहीद ख़तरनाक हो सकते ह। वो िव ोह को े रत कर सकते ह।”
“तो आपको लगता है िक रानी कैकेयी क बहादुरी ने वा तव म हमारी सहायता ही
क है।”
“वो हमारी मदद करने का यास नह कर रही थ , वो तो बस अपने पित को बचाने
क कोिशश कर रही थ । मगर वो बहादुर ी ह। और मुझे कोई स देह नह है िक उनक
कृत न जा उनके साथ बुरा बताव करे गी। वो अपने नायक का स मान करना जानते ही
नह ह।”
“ य तः स ाट दशरथ और उनक पहली रानी कौश या को उसी िदन पु ा हआ
था िजस िदन हमने उ ह करछप म परा त िकया था। उ ह ने उसका नाम राम रखा है।”
“िव णु पर?” रावण ने उपहास म धीरे से हँसते हए पछू ा। राम छठे िव णु का नाम था,
िज ह सामा यतया परशु राम के नाम से जाना जाता है। “उ ह इस िशशु से अ यिधक
अपे ाएँ ह गी!”
“मज़े क बात यह है िक वो करछप क पराजय का दोष इस बेचारे िशशु को देते ह।
य त: वो उन पर दुभा य लाया है।”
“अथात हमारी िवजय म मेरी उ कृ यु नीित का कोई हाथ नह था? यह सब मा
इसिलए हआ िक कोई रानी उसी समय सवक म चली गयी थी?!” रावण हँस पड़ा।
कु भकण भी हँस िदया।
“आपको और अिधक हँसना चािहए, दादा,” उसने कहा। “वेदवती जी भी यह पस द
करत ।”
“मुझे बार-बार यह बताना ब द करो।”
“मगर यह सच है।”
“तु ह कैसे पता िक यह सच है? या उनक आ मा ने आकर तुमसे यह कहा था?”
कु भकण ने अपना िसर िहला िदया। “दादा, जब तक आप चेहरे पर मु कुराहट के
साथ उनके बारे म सोचने म स म नह ह गे, तब तक आपके घाव नह भरगे। अगर उ ह
याद करके हर बार आप दुखी और ु ह गे तो एक सु दर मिृ त को िवष म बदल दगे। अब
अनेक वष बीत चुके ह। आपको आगे बढ़ना सीखना होगा।”
“तुम कह रहे हो िक म भल ू जाऊँ िक उनक म ृ यु कैसे हई थी? िक म मख ू तापण

िव मिृ त क ि थित म िजयँ?ू ” रावण फुफकारा।
कु भकण शा त रहा। “मने ऐसा नह कहा। हमारे िलए यह भल ू पाना कैसे स भव है
िक उनक म ृ यु कैसे हई थी? मगर हमारे पास उनक केवल यही याद तो नह है ना? यह तो
उन अनेक याद म से एक है जो वो पीछे छोड़ गयी ह। उन दूसरी याद के साथ भी समय
िबताय। सुख के वो पल जो आपने उनके साथ िबताये थे। िफर आप हर बार उ ह याद करके
उदासी म नह डूबगे।”
“स भवतः मुझे उदासी ही पस द है। यह मुझे सुकून देती है।”
“िकसी भी चीज़ के साथ आप यादा रहगे तो उसे पस द करने लगगे, उदासी को
भी।”
रावण ने अपना िसर िहला िदया। प था िक इस िवषय पर बात करने को अब और
कुछ नह था।
कु भकण चुप हो गया।
“अ छा, यु क ितपिू त क पहली खेप िसिग रया कब पहँच रही है?” रावण ने पछ ू ा।
“कुछ ही स ाह म, दादा। कुछ स ाह म लंका स प न मा से अथाह स प न हो
जायेगी। स भवत: संसार का सबसे सम ृ रा य होगी।”
करछप के यु से पहले लंका को स िस धु के साथ अपने यापार से होने वाले लाभ
का मा दस ितशत भाग रखने का अिधकार था। न बे ितशत सा ा य के ितिनिध
अयो या का होता था। िफर अयो या इस पँज ू ी को अपने अधीन थ रा य के साथ बाँटता था।
यु के बाद रावण ने अयो या क दलाली को मा नौ ितशत कर िदया और शेष लंका के
िलए रखा। साथ ही, उसने स िस धु से ख़रीदी जाने वाली सभी िनिमत व तुओ ं का मू य भी
बेतहाशा कम कर िदया था। अगर यही पया नह था तो उसने यह भी आदेश िदया िक
अयो या, पवू भाव से, िपछले तीन वष से अिधक समय म दी गयी अित र रािश को नयी
गणना के अनुसार—यु क ितपिू त के प म—लौटाये। रावण जानता था िक दलाली म
क गयी भारी कटौती समय के साथ सा ा य को कंगाल कर देगी, जबिक लंका असाधारण
प से सम ृ हो जायेगी। िन स देह, लंका के बढ़े हए लाभ का आधा िह सा जब वो रख रहा
था, तो वो भी ज दी ही आ यजनक प से सम ृ हो जायेगा। और शि शाली भी।
“आगे या, दादा?” कु भकण ने पछ ू ा।
रावण क क एक बड़ी-सी िखड़क क ओर गया और बाहर फै ले हरे -भरे उपवन को
देखने लगा। िसिग रया का उसका भवन उस िवशाल एकल च ान से कुछ ही दूरी पर था
िजस पर लंका के यापारी मुख और िव के सबसे सम ृ यि कुबेर का महल ि थत था।
कुबेर को यु स ब धी बहत जानकारी भले ही नह थी, मगर वो अपनी अथाह स पि
क र ा करने क आव यकता को समझता था। िपछले कुछ दशक म उसने नगर क र ा
णािलय म बहत सुधार िकया था। िसिग रया लुढ़कती च ान से भरी पहािड़य से िघरा हआ
था। हर ल बी च ान के सपाट िशखर पर भवन बनाये गये थे िजनम सैिनक रहते थे जो
अकाट्य ऊँचाई से िकसी भी घुसपैठ का सामना कर सकते थे। यह नगर को चार ओर से
घेरने वाली मज़बत ू दीवार और खाइय के अित र था।
मगर कुबेर ने अपने को केवल सुर ा तक ही सीिमत नह रखा। व और आभषू ण
क भड़क ली अिभ िच के बावजदू , भवन िनमाण क ओर भी उसक आ यजनक प से
कला मक ि थी। और उसने पहले ही बेतहाशा सु दर नगर को वा तव म ग रमा और
भ यता का उ कृ तीक बना िदया था।
एक िवशाल पठार पर बना यह नगर अ ुत उपवन और सावजिनक माग से
सुसि जत था। बाहरी सीमा पर जलमाग और भिू मगत नहर ारा स चे जाने वाले सु दरता
से तराशे गये उ ान थे, तो ल बे, हमेशा हरे रहने वाले व ृ क शाखाएँ मु य माग के दोन
ओर फै ली रहती थ । नगर के भीतर ि थत अनेक च ान को भी, िसिग रयावािसय के श द
म, पाषाण उ ान म बदल िदया गया था, पेचीदा फ़ वारे िजनक शोभा और सु दरता को
बढ़ाते थे। सावजिनक काय म के िलए सु िचपवू क बनाये गये िवशाल क , पु तकालय,
रं गशालाएँ , नौकायन के िलए झील, और वो सब कुछ था जो स य जीवन के िलए आव यक
था। लंका एक वहृ द वैिदक संसार का अंग था और नगर के िविभ न िह स म िविभ न
वैिदक देवताओं के अनेक मि दर थे। सबसे बड़ा मि दर, िन स देह, छठे िव णु और मलयपु
जनजाित के सं थापक भगवान परशु राम को समिपत था। इस मि दर का िनमाण और
ित ापन वयं ऋिष िव ािम ने िकया था।
मगर रावण िसिग रया के इस सारे ठाठ-बाट से भािवत नह था। उसका यान तो उस
एकल च ान पर केि त था िजसे िसंहिग र कहते थे, जो आसपास के ा य े से लगभग
दो सौ मीटर ऊँची थी। नगर का नाम इसी च ान पर पड़ा था, िसिग रया सं कृत के िसंहिग र
का अप ंश था। इस च ान के िशखर पर कुबेर का िवशाल महल था। यह कृित क उदारता
पर मानव क पना क िवजय का तीक था। िवशाल, मगर िफर भी नज़ाकत भरे ढं ग से
प र कृत।
इस च ान के आधार पर थल ू प से संकेि त सीढ़ीनुमा उ ान थे जो जलरोधी ई ंट
क दीवार का बेहतरीन योग दशाते थे। ये सभी उ ान अपने िनकट वाले से कुछ ऊँचाई पर
थे, और फ़ वार से सजे हरे -भरे उ ान के बीच से एक घुमावदार सड़क ऊपर च ान तक जा
रही थी। उ री ओर का माग िसिग रया के सबसे अिधक िव मयकारी वा तुिश पीय
उपलि धय म से एक, िसंह ार, क ओर जा रहा था।
इसे िसंह ार इसिलए कहते थे य िक वेश ार के ऊपर एक िवशाल िसंह का िसर
उकेरा गया है। ार िसंह के आगे के दो पंज के बीच था, जो एक औसत पु ष क ऊँचाई के
थे, जबिक िवशाल िसर पीछे को झुका था, िजसे दूर-दूर तक िसिग रया के सभी नाग रक
देख सकते थे। वयं च ान का आकार राजसी शान के साथ बैठे एक िवराट िसंह के शरीर
का था, जैसे इसका िसर ऊँचाई से अपने े का िनरी ण कर रहा हो।
यह भ य य था।
च ान के ऊपर, दो वग िकलोमीटर के े म फै ला कुबेर का िवराट महल प रसर था
िजसम तरण ताल, उ ान, िनजी क , अदालत, कायालय और संसार के सबसे सम ृ यि
के िलए कि पत अक पनीय िवलािसताएँ मौजदू थ ।
"आगे यह है िक हम उस पर िनय ण हािसल करगे,” रावण ने िसंहिग र क ओर
संकेत करते हए कहा।
“ या!” कु भकण अपनी दहशत िछपा नह पाया। “कुबेर से छुटकारा पाने के िलए यह
कुछ अिधक ज दी नह है, दादा? हम अभी इतने शि शाली नह ह और...”
रावण क भक ृ ु िटयाँ चढ़ गय । “वो नह ,” उसने प िकया। “वो।”
इस बार कु भकण ने यादा यान से संकेत म उठी उँ गली क िदशा म देखा। रावण
िसंहिग र क ओर ही संकेत कर रहा था, मगर कुबेर के महल क ओर नह । िसंह ार से
म य तर के चबत ू रे तक सीिढ़याँ जा रही थ , च ान के िशखर से कोई सौ मीटर नीचे। च ान
को काटकर बनायी गयी और चबत ू रे तक जा रही पगडं डी के िकनारे पर एक दीवार थी जो
समान प से कटी ई ंट से बनी थी और उस पर चमकदार ेत लेप हआ था। इतना बिढ़या
चमकदार िक उसके पास से िनकलने वाला याि उसम अपनी छिव देख सकता था। इसे
नीरस ढं ग से दपण िभि कहा जाता था। दपण िभि के परे च ान को उस िवराट िसंह क
कपड़े क काठी के प म बनाया गया था िजसका वो च ान ितिनिध व करती थी। काठी
पर सु दर ि य के भ य िभि -िच बने थे। कोई नह जानता था िक ये छिवयाँ िकसका
ितिनिध व करती थ । उ ह ि शंकु का यप के काल म बनाया गया था, और बहत जतन से
उनका रखरखाव िकया गया था। िभि -िच के परे , पगडं डी ऊपरी प रसर को, जहाँ कुबेर
का िनजी महल था, सुर ा दान करने वाले शानदार उ ान , सरोवर , खाइय और ाचीर
के पीछे िनचले तर के महल क ओर जाती थी।
और इ ह िनचले महल क ओर रावण संकेत कर रहा था।
“मेघदूत?” कु भकण ने पछ ू ा।
िनचले तर के महल म कुछ वे याएँ और कुबेर क युवा पि नयाँ रहती थ । मगर इनम
से एक महल धानम ी मेघदूत का आवास था िजसके पास राज व, कर , सीमा-शु क और
सामा य शासन का दािय व था। लंका क सेना और नगर-र क का मुख होने के नाते
रावण भावी प से सारी सै य शि का भी मुख था। मेघदूत सारे धन का मुख था। साथ
िमल कर वो दोन कुबेर का रा य चलाते थे। अगर रावण अपने काय म मेघदूत का कायभार
भी जोड़ लेता तो उसके पास भावी प से यापारी मुख से अिधक शि हो जाती। इसके
बाद, उसक जगह लेना बस कुछ ही समय क बात होती। एक आसान-सा प रवतन।
हालाँिक वो अकेले थे मगर कु भकण अपने श द के चयन को लेकर सावधान था।
“आप समझ रहे ह ना िक हम—”
“हाँ, समझता हँ,” रावण ने बात काटी। “मगर यह दुघटना जैसी लगनी चािहए।
अ यथा उसक जगह लेना मेरे िलए मुि कल हो जायेगा।”
“ म”
“यह मुि कल काम है। हम िकसी बदमाश से यह नह करवा सकते। हम कोई
कलाकार चािहए होगा।”
“म िकसी को ढूँढ़ लँग
ू ा,” कु भकण ने कुछ सोचते हए कहा।

रावण ारा लंका के धानम ी मेघदूत क ह या का आदेश िदये एक माह बीत गया था,
मगर कु भकण अब तक आगे बढ़ने का माग नह तलाश पाया था। अ तत: सहायता के िलए
उसने अपने मामा क ओर देखा। और आज, मरीच ने उसे सिू चत िकया था िक इस काम के
िलए उपयु आदमी िमल गया है।
अपने भाई को इस समचार क जानकारी देने के िलए उ सुक कु भकण उसक खोज
म िनकला, मगर वो कह नह िमल रहा था। अ तत: वो महल के अ द नी िह से म िछपे
गु क म गया। गोकण के रावण के िनजी क क तरह ही यहाँ भी दोन भाइय के अलावा
िकसी को जाने क अनुमित नह थी।
अ दर वेश करते ही कु भकण ने पलट कर ार को ब द कर िदया। केवल एक
मशाल जल रही थी। उसका भाई अ दर था।
नीम-अँधेरे म पहली चीज़ उसे वणमि डत रावणहता िदखाई िदया। वो भिू म पर पड़ा
था, टूटा हआ, उसके तार एक ओर पड़े थे। क के मौत जैसे स नाटे म उसे लगा जैसे उसने
िकसी के रोने क आवाज़ सुनी है।
जब आँख अँधेरे क अ य त हई ं तो कु भकण ने ार क ओर पीठ िकये, लकड़ी क
एक ल बी ितपाई पर िनढाल पड़े रावण को देखा। उसने अपने हाथ से अपना सर पकड़ रखा
था और रोने के कारण उसका सारा शरीर िहल रहा था। दुख और हताशा क गहराइय से
गहरी, दद भरी सुबिकयाँ िनकल रही थ ।
रावण के सामने एक िच पटल था। उस पर कठोर, ोध भरे हार से, िज ह ने िच
क रे खाओं को लगभग िछपा िदया था, एक अ प प से प रिचत-सी छिव को काट िदया
गया था। कु भकण को इस िच को समझने म एक पल लगा, मगर िफर उसने देखा िक वो
वेदवती का अधरू ा िच था। गभवती, अपने पण ू आकार म, कमनीय वेदवती। बाहरी परे खा
बना दी गयी थी और उसम रं ग भरा जाना शेष था। आँख अधबनी थ और यह आकर जैसे
रावण ने हार मान ली थी।
कु भकण जानता था िक िनमम ह याओं वाले िदन से ही रावण ने वेदवती के िच
बनाना छोड़ िदया था। तब तक, वो धीरे -धीरे , साल-दरसाल उसक क पना म भी बड़ी होती
रही थ । और वो अपने मन क आँख से उ ह अपनी परू ी बारीक के साथ देख पाता था,
लगभग ऐसे जैसे िक िच बनाते समय वो उसके पास ही खड़ी ह । मगर उनक म ृ यु के बाद,
जैसे उनका िच बनाने क इ छा भी मर गयी थी, और अब, जब उसने िफर से उ ह पटल पर
उतारने क कोिशश क , तो लगता था जैसे वो वरदान, रचना मक ि क वो मता लु
हो गयी हो।
कु भकण को अहसास था िक वो उस रोष और ोध को परू ी तरह नह समझ सकता
जो उसका भाई महसस ू करता है। केवल एक कलाकार ही अपनी देवी अपने जीवन भर क
ेरणा ारा याग िदये जाने क हताशा को समझ सकता है। केवल वही िजसने ेम िकया
हो, अपने ि य को खोने क अथाह पीड़ा को समझ सकता है। केवल एक समिपत भ िजसे
िद य ने पश िकया हो, अपनी देवी को छीने जाने के, आ मा को छलनी कर देने वाले क
को समझ सकता है।
कु भकण चुपचाप रावण के पास गया।
वो अपने बड़े भाई के पास बैठा और उसके िगद अपनी बाँह डाल दी। रावण मुड़ा और
उसने अपने भाई के क धे म चेहरा धँसा िदया, वो इस तरह रो रहा था जैसे कभी कोई चीज़
उसे िदलासा न दे सकती हो।
देर तक वो एक-दूसरे को थामे बैठे रहे , िबना कुछ कहे । उनके साझा दुख ने बाक़ सब
कुछ—सारे िवचार, सारे श द को— धँुधला िदया था।
रावण ने ही मौन तोड़ा। “मुझे िनय ण चािहए... लंका का... शी ।”
“हाँ, दादा।”
“मुझे न करना है... करना ही है... उन िनकृ को... स िस धु को... परू ी तरह
न करना है...”
कु भकण मौन रहा।
रावण ने बहत कोिशश करके वयं पर िनय ण पाया, िफर कहा, “उस ह यारे को मेरे
पास लाओ।”
“हाँ, दादा।”
“शी ।”
“हाँ, लाऊँगा।”
जब आप िकसी ब द नाली को उससे अिधक पानी से भर देते ह िजतना उसम समा
सकता है, तो वो बाहर बह कर अपने आसपास क चीज़ को दूिषत कर ही देगा। जब दुख
िकसी को अिभभत ू कर देता है, जब वो उसे ले कर रोष से भर जाते ह जो िनयित ने उनके
साथ िकया है, तो अ सर उनका ोध छलक पड़ता है और दुिनया को पीड़ा पहँचाता है।
यही एक तरीक़ा होता है िजसके साथ वो अपने जीवन से तालमेल िबठा पाते ह—वो
जीवन जो अब उनके िलए अथहीन हो गया है।

“तु ह िव ास है?” रावण ने पछू ा, उसके चेहरे पर सचू क भाव थे।


रावण और कु भकण इस भट के िलए गोकण आये थे। वो यह जोिखम नह लेना चाहते
थे िक िसिग रया म िकसी को उनक योजना क भनक भी पड़े ।
मरीच और अकंपन लोग क ि से बचते हए अभी एक बग़ली ार से घर म आये थे।
उनके साथ एक पतला-दुबला-सा युवक था।
मरीच ने रावण से कहा, उसक आवाज़ धीमी मगर िव ास से भरी थी, “मेरा भरोसा
करो। मने वयं इसके काम को देखा है। यह असाधारण है। िवषक याओं के समान द ।”
िवषक याएँ मशहर ह या रन थ । उ ह बहत कम आयु से ही ितिदन िवष क छोटी-
छोटी मा ा देकर ह यारी बनने के िलए बड़ा िकया जाता था। अ तत: वो िवष से अ भावी हो
जाती थ । मगर उनका एक चु बन भी घातक होता था। और अगर उनका िवष आपको न मार
पाये तो अ मार देते थे। वो संसार म ात सबसे मारक ह या रन थ ।
“िवषक याओं के समान द ?” अकंपन के पास खड़े पु ष को देखते हए कु भकण
ने अपने संशय को िछपाने क कोई कोिशश नह क थी। “सच, मामा, अितशयोि क कुछ
तो सीमा होती है।”
मरीच ने उस स भािवत ह यारे को देखा। वो देख सकता था िक वो उसके बारे म कुछ
अिधक य नह सोच पा रहे थे। नाटे कद का, घँुघराले बाल और दोन गाल म पड़ने वाले
गड्ढ के साथ उससे एक आन ददायक आकषण टपक रहा था। उस पर कह िकसी घाव का
िच नह िदख रहा था। ू र ह यारा होने क जगह वो तो ऐसे रिसक क तरह िदखता था
िजसे केवल ि य को लुभाना आता हो।
“सचू ी म अगला कौन है?” रावण ने पछ ू ा, वो िचढ़ गया था िक वो गोकण तक एक ऐसे
आदमी से िमलने आया था जो य प से काय के िलए अनुपयु था।
मरीच ने उ र नह िदया। वो ह यारे क ओर मुड़ा और िसर िहलाया।
लचीले बदन ने िबजली क -सी तेज़ी से हरकत क , और पलक झपकते अकंपन के
पीछे पहँच गया। छैला यापारी कोई िति या करता, इससे पहले एक उँ गली उसक गदन
के पीछे एक िविश दबाव िब दु पर तेज़ी से टकरायी। तुर त ही अकंपन के गदन के नीचे
के शरीर को लकवा मार गया। हमलावर ने उसे क ध से पकड़ा और आराम से उसे धरती पर
िगरने िदया।
अकंपन बस अपना िसर िहला सकता था। उसक आँख घबराहट म दाएँ -बाएँ घम ू रही
थ । “मुझे कुछ महसस ू नह हो रहा! मुझे कुछ महसस ू नह हो रहा! मेरी सहायता कर! हे
इ देवता!” उसने रावण को पुकारा। “इराइवा! इराइवा! कृपया सहायता कर!”
मगर उसका 'वा तिवक वामी' हँस रहा था। उसने जो देखा था, उससे वो आ यचिकत
था। वो अपने भाई क ओर मुड़ा। “ब दा बुरा नह है, कु भ!”
मगर कु भकण स न नह था। उसने मरीच से कहा, जो रावण के साथ ही हँस रहा
था, “मामा, इससे कह िक अकंपनजी को तुर त ठीक करे । यह सही नह है। यह हमारे साथी
ह।”
आतंिकत अकंपन अभी भी बड़बड़ा रहा था। “ वामी रावण! इराइवा! मुझे न मार! दया
कर! मने कुछ नह िकया!”
रावण ने अपनी हँसी को दबाया और मरीच से पछ ू ा, “मामा, इसे फेरा तो जा सकता है
ना?”
“हाँ, वामी।” इस सारी िच ता क जड़ ने सीधे रावण को उ र िदया। “म इस पकड़ को
छोड़ सकता हँ। लेिकन, अगर आव यक हो तो, इसी प ाघात क ि थित म म शाि तपवू क
इनक जान भी ले सकता हँ।”
यह सुनकर, अकंपन िफर से घबरा कर िच ला उठा, “इराइवा! सहायता कर!”
“ओह, चुप कर, अकंपन!” उ सुकता भरी िच के साथ ह यारे क ओर मुड़ने से पहले
रावण ने कहा। “तो पीिड़त को कुछ महसस ू होता है?”
“जब म इस िविश दबाव िब दु पर काम करता हँ तब नह । अ य भी ह जो इ ह
लकवा त मगर पीड़ा महसस ू करता छोड़ दगे।”
रावण ने इस स य को िछपाया नह िक वो भािवत हआ है। “इस पु ष का या नाम
है, मामा?”
“इसके नाम का अथ ही म ृ यु है,” मरीच ने कहा। “मर।”
रावण िफर से युवक क ओर पलटा। “ठीक है, मर। तु ह िनयु िकया गया।”
“इराइवा!” अकंपन िच लाया। “मुझे मु कर!”
रावण ने अकंपन को देखा और िफर मर को। “ या तुम इनके शरीर को मु करके
इनक िज ा को लकवा त कर सकते हो?”
सब हँसने लगे। यहाँ तक िक अकंपन के चेहरे पर भी ीण से मु कान आ गयी।
कु भकण अभी भी स न नह था। उसके क ध क दोन अित र भुजाएँ तनाव त
थ । वो अपने बड़े भाई क ओर मुड़ा, उसके चेहरे पर अ वीकृित प झलक रही थी।
“दादा...”
“ठीक है, ठीक है,” रावण ने कहा।
उसने मर को इशारा िकया। “ इ ह मु कर दो।”
अ याय 21

“बुरा नह है,” िव ािम ने कहा, वो प प से भािवत थे। “िब कुल बुरा नह है।”
िव ािम और अ र नेमी मलयपु क गु राजधानी अग यकूटम म थे। करछप के
यु को एक वष बीत गया था।
“हाँ, रावण तो एकदम सही खलनायक सािबत हो रहा है,” अ र नेमी ने कहा। “स
िस धु म उससे अिधक घण ृ ा िकये जाना वाला कोई यि नह है। उसने सा ा य को केवल
इतनी बुरी तरह परािजत ही नह िकया बि क उन पर इतनी भारी सि ध भी थोप दी िक शी
ही उनक िगनती संसार के सम ृ तम रा य से िनधनतम रा य म होने लगेगी।”
“जब मने उसक लगायी शत को सुना तो मने समझा िक रावण इतना अितशय
िह सा इसिलए माँग रहा है तािक अ तत: जब वो कम पर तैयार हो जाये तो उसक
उदारशीलता क शंसा हो। प है िक उसके मन म यह नह था। वो वा तव म इस सि ध
क शत को उनके कंठ म ठूँस रहा है। अयो या कभी इतना कमज़ोर नह रहा। िजसका अथ
है िक अ तत:, उस... उस... भी नराधम को उसका थान िदखा िदया गया है।” िव ािम
उस नाम को लेने के िलए वयं को तैयार नह कर पाये िजससे वो सबसे अिधक घण ृ ा करते
थे।
अ र नेमी को पता था उसके गु अयो या दरबार के राजगु और राजप रवार के
मु य सलाहकार विश क बात कर रहे ह। हमेशा क तरह, विश के िवचार मा ने
िव ािम को उ ेिजत कर िदया था।
अ र नेमी ने सफ़ाई से िवषय बदल िदया। “हाँ, अयो या इतना कमज़ोर कभी नह रहा
िजतना िक अब है। और िजस तरह रावण ने कुबेर के हाथ को चलाया था, वो अ ुत था,
य िक यापारी मुख वयं तो इस तर क सि ध और यु क ितपिू त क माँग नह कर
सकता। वो लालची भले ही हो, मगर भी भी है। और हम यह भी नह भल ू ना चािहए िक
मेघदूत क ह या सही समय पर चली द चाल थी।”
“ या तु ह इसका िव ास है?” िव ािम ने िफ़लहाल विश को भल ू ते हए पछ
ू ा।
“ य िक मने िवपरीत िववरण सुने ह। ऐसे पया लोग ह जो मानते ह िक उसक म ृ यु डूबने
से—दुघटनावश डूबने से हई थी।”
“म आ त हँ, गु जी। वो डूबा नह था। उसे डुबोया गया था।”
“मगर—”
“इसे बहत सु दरता से योजनाब िकया गया था। सब जानते थे िक मेघदूत अपने
मनपस द नाटक जलस देश म उस अिभश किव कालीदास क भिू मका का अ यास कर
रहा था। और हम जानते ह िक झील का वो मशहर य िकस तरह खेला जाता है।”
“मगर मने तो सुना है िक िजस तरणताल म वो डूबा था, उसके पास मिदरा का चषक
और पा भी िमले थे।”
“वो भी जाल का िह सा थे। मेघदूत बहत रं गीला यि था िजसे मिदरा और ि याँ
पस द थ , इसिलए मिदरा का पा वहाँ होना समझ आता है। एक सामा य भटकाव। इसके
अलावा, मेघदूत पर चोट का कोई िच नह था। िकसी संघष का िच नह था। म ृ यु के बाद
के परी ण ने उसके फेफड़ म पानी दशाया था। वो डूबने से मरा था। सब कुछ इतनी अ छी
तरह नपा-तुला है िक सच नह हो सकता, गु जी। िकसी के ारा स देह करने का कोई
कारण नह है।”
“तो, तु ह लगता है यह कुछ अिधक ही दोषहीन है?”
"िब कुल। वा तिवक जीवन बेतरतीब होता है। कुछ भी कभी भी दोषहीन नह होता,
मगर यह म ृ यु थी। इसी ने मुझे स देह म डाल िदया, और मने खोजबीन करने का िनणय
िकया।” ।
“तो, इसके पीछे कौन यि है?”
“मर नाम का कोई यि । प है िक यह उसका असली नाम नह है। कौन माँ अपने
ब चे का नाम 'म ृ यु' रखेगी? अभी मुझे उसक प ृ भिू म के बारे म कुछ नह पता, मगर वो
कह से भी आया हो, है मािहर। मुझे स देह है िक वो युवा है और अभी भी अपनी कला को
माँज रहा है। ऐसी कई चीज़ ह िजन पर अभी उसे काम करना है।”
“जैसे?”
“एक तो, वो पया गोपनीय नह है। वो बहत सारे लोग को अपना चेहरा िदखा चुका
है। वो अ छा है, मगर उसे सुधार लाने के िलए िशि त िकया जा सकता है।”
“तो या तुम यही करना चाहते हो?”
“मुझे िव ास है िक मर हमारे िलए उपयोगी संसाधन सािबत होगा, गु जी।”
“म यह तुम पर छोड़ता हँ। जो आव यक हो सो करो। मेरी िच तो इसम अिधक है िक
अब रावण या करने वाला है। तु हारे िवचार से वो कुबेर को कब तक बाहर कर देगा?”
“मुझे नह लगता िक वो करे गा, अभी तो। मेघदूत के जाने के साथ ही राज व िवभाग
और सेना सीधे उसके िनय ण म आ गये ह वो ऐसा करने वाला लंका का पहला म ी है।
उसने तो, वा तव म, कुबेर को सभाओं से बाहर रखना भी शु कर िदया है, यह कह कर िक
यापारी मुख का वर इतना शु है िक उसे इन तु छ शासिनक सभाओं म नह सुना
जाना चािहए। सभी यावहा रक उ े य से वो लंका का राजा बन चुका है। कुबेर को हटाकर
स तुलन िबगाड़ने क उसे कोई आव यकता नह है।”
“ह म... चतुर चाल है। मगर स िस धु पर इतनी हा या पद शत लागू करने क
बुि मता को ले कर म कुछ शंकालु हँ। वो उस सोने क हंिसनी को समा कर देगा जो
उसका पेट भरती है।”
" या यह मायने रखता है, गु जी? वो एकदम उसी थान पर है जहाँ हम उसक
आव यकता है। वो ख़ुद को समुिचत खलनायक के प म थािपत कर रहा है। सारा स
िस धु उससे भय खायेगा। अब तो हम िव णु क खोज शु कर देनी चािहए।”
“िन स देह। मगर हम रावण के उ े य से भी आँख नह मंदू सकते। हम जानना होगा
िक उसके मन म या चल रहा है तािक हम उसे बेहतर ढं ग से िनयि त कर सक। यह
समझना मह वपण ू है िक िकस कारण ने उसे अयो या के साथ यह रवैया अपनाने क ओर
धकेला। मुझे नह लगता िक यह धन या शि के िलए उसक वासना से जुड़ा है। उसे कोई
बेलगाम, लगभग उ मादी आ ोश चला रहा है। य िक उसके काय यापार और राजनीित के
सभी तक से परे ह।”
“म पता लगाऊँगा, गु जी।”
“साथ ही हम गुफा पदाथ के िलए उससे अिधक धन लेना शु करगे।”
अ र नेमी हँसा। “जी, गु जी। म भी यही सोच रहा था। हम िन य ही उस धन का
योग उससे बेहतर करगे।”

रावण ने झटके से पोत के क का ार खोला और तेज़ी से अ दर चला गया, उसका चेहरा


पसीने से भरा था और लाल हो रहा था।
इसी तरह थका-सा िदखता कु भकण अपने भाई के पीछे अ दर आया। उनके साथ
लंका के दो सैिनक भी थे। क म वेश करते समय उसने सैिनक को बाहर ही रोक िदया।
“अपनी तलवार िनकाल कर चौकस रहना। िकसी और को अ दर मत आने देना।”
रावण अब तक दो पा म मिदरा िनकाल चुका था। एक उसने अपने छोटे भाई को थमा
िदया।
“ध यवाद, दादा,” कु भकण ने र के ध ब से भरे पा को पल भर देखते हए कहा,
और िफर एक घँटू म मिदरा पी गया। यु के तनाव के बाद अ छी मिदरा के समान कोई चीज़
नह होती।
रावण ने भी उतनी ही द ता से अपना पा ख़ाली कर िदया था। वो अभी भी अपनी
सांस पर िनय ण करने का यास कर रहा था।
करछप के यु को दो बरस हो गये थे। स िस धु को परू ी तरह परा त कर देने के
बाद लंका म बहत ती ता से धन आ रहा था। अब रावण ीप-रा य का धानम ी और लंका
क सेना का सेनापित था, िजससे वो देश का सबसे शि शाली यि बन गया था। कुबेर
नाम मा का राजा रह गया था।
मरीच और अकंपन कु भकण के यो य िनदशन म उ तीस वष य रावण का यापा रक
सा ा य सँभाल रहे थे। मरीच का काम यापार को इतनी दूर तक फै लाना था िजतना स भव
था और वैि क यापार पर हावी होना था। वो स िस धु के हर रा य म अनुमोिदत मु य
यापारी' िनयु कर चुका था। सा ा य के साथ सारा यापार केवल इ ह यापा रय के
मा यम से िकया जाता था। यह साम रक पतरा था—इससे लंकावािसय को स िस धु के
साथ यापार म यादा िनय ण िमल जाता था, और हर रा य म थानीय वफ़ादार साथी भी
बन जाते थे।
अकंपन का काम यह सुिनि त करना था िक इस िवशाल उ म—इितहास क सबसे
बड़ी सं था—का िहसाब-िकताब और आय साफ़ रहे , और कोई भी सहयोगी या कमचारी
तरीक से धन न िनकाले।
अब तक तो उनक सारी योजनाएँ अ छे से आकार ले रही थ । रावण कुबेर से अिधक
सम ृ हो गया था और अब अपनी अथाह स पदा का आन द लेने पर यान देने लगा था।
संसार का सबसे सम ृ आदमी अपने नये-नये हािसल िकये तर को अपनी जीवनशैली म
दशाना चाहता था—बेहतरीन मिदरा और खाना, सबसे सु दर ि याँ, संगीत एवं न ृ य—
रावण के िलए केवल सव म चीज़ ही चलगी। वो हर उस चीज़ म िल होता था जो उसके
काम को शा त करती थी।
िसहंिग र के िनचले तर पर ि थत महल को िपछले धानम ी क दुभा यपण ू म ृ यु
के शी बाद िनय ण म ले िलया गया था। रावण ने मेघदूत के प रवार और कुबेर क छोटी
पि नय और वे याओं को िनकाल कर उनके महल को एक िव ततृ , भ य भस ू पि म िमला
िलया था िजस पर वो एक राजा के से ठाठ-बाट के साथ रहता था।
उसने कु भकण और अपनी कुछ चुनी हई गिणकाओं के साथ आन द के िलए या ाएँ
करना भी शु कर िदया था—जो पहले वो शायद ही कभी करता था। ऐसी ही एक या ा म
जब वो शा त समु म शाि तपवू क अरब ाय ीप क ओर बढ़ रहे थे, तभी पोत का एक
अिधकारी दौड़ता हआ रावण के क म यह सच ू ना देने आया िक एक लुटेरे पोत को तेज़ी से
उनक ओर बढ़ते हए देखा गया है। दोन भाई इसी अवांिछत भटकाव से िनबटकर अभी अपने
केिबन म लौटे थे।
“मखू !” रावण ने कहा। “हम पर हमला करगे! वो सोच या रहे थे?”
कु भकण मिदरा का पा िलये अपनी कुस से उठा, रावण से उसका पा िलया और
मेज़ क ओर चला गया। उसने उ ह रखा और एक तौिलया से अपने र म सने हाथ को
प छा। िफर उसने पा को भी प छकर साफ़ िकया। काम होने के बाद उसने थोड़ी मिदरा और
िनकाली और दोन पा और एक कपड़ा ले कर अपने भाई क ओर गया। “यह ल, दादा।
इससे अपने हाथ प छ ल। इ देव ही जानते ह गे िक यह िकसका र है।”
रावण ने अपने र रं िजत हाथ को देखा। उसके व भी लाल हो गये थे। मगर उसके
महँगे व या शरीर पर उसके अपने र का क़तरा भी नह था। उसे खर च भी नह आयी
थी। उसने अपने हाथ पर लगे र को संघ ू ा, िफर अपनी जीभ िनकाल कर उसे चाट िलया।
“छी!” कु भकण ने मँुह बनाया।
“ह म,” रावण ने सोचते हए कहा। “िदलच प वाद है।”
कु भकण अभी भी िघनाया िदख रहा था, उसने मिदरा का पा रावण से दूर कर िदया।
“आपको पहले अपना मँुह साफ़ करना होगा।”
“म पी कर धो लँगू ा,” रावण ने कु भकण के हाथ से पा को िलया और एक घँटू म
मिदरा पी गया। हाथ के िपछले िह से से उसने अपना मँुह प छा, िजससे उसके चेहरे पर और
र लग गया। “तो हम या बात कर रहे थे? उन जड़बुि लुटेर के हमला करने से पहले?”
कु भकण ने िसर िहलाया, उसने अभी जो देखा था वो उस पर न सोचने क कोिशश
कर रहा था। “हम िवभीषण और शपू णखा से िमलने क बात कर रहे थे। आपने माँ से वादा
िकया था िक आप िमलगे, याद है?”
िव वा और उनक दूसरी प नी े टीस के देहा त के बाद कैकेसी ने उनक स तान ,
िवभीषण और शपू णखा, को अपनाने का िनणय िलया था। ऋिष िव वा के आ म के कुछ
लोग के साथ दोन ब चे शरण माँगते लंका म अपने सम ृ सौतेले भाई के पास आ गये थे।
उनका जैसा वागत हआ, उसक उ ह अपे ा नह थी। अपने िपता से अभी भी नाराज़ रावण
ने अपने सौतेले भाई-बहन को बाहर िनकाल िदया और शरण देने से इंकार कर िदया। मगर
कैकेसी अपने पु के सामने खड़ी हो गय और उ ह ने यह कहते हए उससे उ ह वापस लाने
का आ ह िकया िक उनके उनक ओर दािय व ह।
रावण को अपनी माँ का यह झठ ू ा परोपकार पस द नह आया था। “कु भ, तुम तो
जानते हो माँ कैसी ह। उनक दया-माया सब झठ ू है। उ ह ने इन दोन को केवल इसिलए
अपनाया है तािक संसार को िदखा सक िक वो िकतनी भली ह।”
“दादा, आपको हआ या है? आप माँ के िलए ऐसा कैसे कह सकते ह?”
“मने कुछ भी अस य नह कहा है। मुझे बताओ, इस सबके यो य होने के िलए उ ह ने
िकया या है? हमारे सुख के िलए उ ह ने या याग िकये ह? म ही मेहनत करता और उस
भ य मकान म उनके सुिवधास प न जीवन के िलए भुगतान करता रहा हँ। म ही उस सब
दान-पु य के िलए धन देता हँ जो वो करती ह और उसका चार करती ह। और म ही हमारे
उन बेकार सौतेले भाई-बहन के िलए पैसा दे रहा हँ िज ह उ ह ने अपना कर अपना नेह
उड़े लने का िनणय िकया है। वो बस फुदकती हई कहती िफरती ह, 'ओह, देखो! देखो, म
िकतनी महान हँ।” रावण ने आँख फै ला कर अपनी माँ क कुछ ऊँची आवाज़ क नक़ल
बनायी थी। “वो कपटी ह। उ ह अपना जीवन वयं जीने दो। िफर वो दुिनया म नैितकता के
पाठ पढ़ाती िफर, मेरी बला से। म उनके नैितक संकेत से उकता गया हँ।”
“दादा, काश आप उनके साथ इतने कठोर न होते। इसके अलावा, इस सबका िवभीषण
और शपू णखा से या वा ता है? वो तो ब चे ह।”
कु भकण के क ध के उपांग कठोर और सीधे हो गये थे, यह प संकेत था िक वो
नाराज़ है।
रावण ने गहरी सांस ली। “तुम कुछ अिधक ही भले हो, कु भ।”
कु भ चुप रहा।
रावण ने हार मानते हए अपनी बाँह फक । “ठीक है, ठीक है! िसिग रया वापस पहँचने
पर म उनसे िमलँग ू ा।”
कु भकण मु कुराया। “यह है ना मेरा ब चा।”
“ या कहा!” रावण ने सीधे होते हए कहा। “ 'ब चे' से या मतलब है तु हारा? भल ू ो
मत िक म तु हारा बड़ा भाई हँ।”
“हाँ, हाँ,” कु भकण ने हँसते हए कहा।
रावण भी मु कुरा िदया। “म तु ह बहत छूट देता हँ।”
“वो इसिलए िक आप मेरे िबना काम नह चला सकते।”
“अ छा तो मेरे जीवन ब धक, यह बताओ, तुमने कुबेर का या िकया?”
“हम इस पर बात कर चुके ह, दादा। उसे हटाने क कोई आव यकता नह है। वो वैसे
भी एक तरह से आपका ब दी ही है। हमारे िनचले चबत ू र को पार िकये िबना वो अपने ऊपरी
महल से बाहर नह िनकल सकता। उसके अंगर क हमारे आदमी ह। उसके जीवन को हम
िनयि त करते ह।”
“मगर उसे यहाँ रखने क तुक ही या है?”
“मेरी बात सुन, दादा। लंका म कर हटाने का कुबेर का िवचार उ कृ था। वैसे भी स
िस धु से इतना धन आ रहा है िक हम करराज व क आव यकता नह है। और यह घोषणा
करके िक सभी नाग रक िकसी भी कर से मु ह, उसने जीवन भर के िलए अपनी जा क
िन ा ा कर ली है।”
रावण ने िसर िहलाया। “नह । बहत देर हो चुक है। म लंका का राजा कहलाना चाहता
हँ।”
“मुझे लगता है िक आपने कोई योजना सोच ली है।”
“ प है। इसीिलए तो तुमसे बात कर रहा हँ।”
"आप मुझसे या करवाना चाहते ह?”
“बताऊँगा... लेिकन इन लोग से िनबटने के बाद।” रावण ने पा ख़ाली िकया और
उसे फक िदया, िफर खड़ा हआ और चु ती से ार क ओर बढ़ गया।
कु भकण अपने भाई के पदिच पर चला।
कुछ ही समय म वो मु य तल पर थे। यह आन द-नौका थी, इसिलए तल िवशाल और
भ य था। मगर इस समय वो यु भिू म-सा िदख रहा था। हर तरफ़ लुटेर क लाश पड़ी थ ।
एक भी लंकावासी नह मारा गया था, हालाँिक कुछे क को छोटी-मोटी चोट आयी थ । बड़े पोत
के पास, समु म िहचकोले खाता लुटेर का कह छोटा पोत था, जो कुंड के साथ रावण के
पोत से जुड़ा हआ था। लुटेर ने सोचा होगा िक उनके ल य म कोई धनी, डरपोक यापारी
होगा िजसके नािवक दल पर वो आसानी से क़ाबू पा लगे। उ ह ने रावण के पोत का पीछा
िकया और भयंकर यु घोष करते उस पर चढ़ गये। लुटेर के दुभा य से उनक भयंकरता क
सीमा बस इतनी-सी ही थी। उनका सामना ऐसे सैिनक से हआ जो िह द महासागर के
सव े यो ाओं म से थे। लड़ाई के शु आती कुछ पल म ही अिधकांश लुटेरे मारे गये। दूसरे ,
िजनम अिधकांश बुरी तरह घायल हए थे, बेिड़य म बँधे और घुटन के बल बैठे तल के सुदूर
छोर पर पंि ब थे।
दोन भाई बि दय क ओर बढ़े , उनके िन ावान लंकाई सैिनक उनके पीछे -पीछे थे।
वो घुटन के बल बैठे एक गठीले नौजवान के सामने के, उसके माथे पर लगे गहरे घाव से
र बह रहा था।
“तो, दादा, आप इन मतू के साथ या करना चाहते ह? या हम पता कर िक ये
िकनके िलए काम करते ह? शायद हम इ ह भम ू यसागर म कह दास के प म बेच सकते
ह?”
उ र के तौर पर, रावण ने बस अपने क धे ढीले छोड़े , िफर अपनी तलवार िनकाली
और एक चु त, शि शाली वार म अपने सामने बैठे आदमी का िसर उड़ा िदया।
कु भकण ने क धे उचकाये। “या हम यह कर सकते ह।”
लंकावािसय ने अपने वामी और सेनापित के उदाहरण का अनुपालन िकया। उ ह ने
अपनी तलवार ख ची और एक-एक लुटेरे को उसके क से मुि िदला दी।
अ याय 22

करछप के यु को तीन वष बीत गये थे। अब कुबेर से छुटकारा पा कर रावण लंका का


एकछ राजा था। यह आ यजनक प से आसान रहा था।
अयो या म लंकावािसय के िलए यापार का मु य स पक मंथरा नाम क एक ी
थी। समय के साथ कुबेर उस पर परू ी तरह से भरोसा करने लगा था। हालाँिक आ ापालन
करने पर उ चतर दलाली पाने और आ ा के उ लंघन पर कठोर दंड िदये जाने के रावण के
स देश को पा कर यावहा रक मंथरा ने झटपट प बदल िलया था। रावण के िनदश पर,
उसने कुबेर के मि त क म यह िवचार भरा िक रावण ने उससे छुटकारा पाने के िलए एक
ह यारे को रखा है। यह सच नह था, लेिकन कुबेर ने इस पर िव ास कर िलया। उसे और
अिधक भयभीत करने के िलए मंथरा ने यह भी बता िदया िक उसका पवू धानम ी मेघदूत
दुघटनावश डूबने से नह मरा था, बि क रावण के आदेश पर उसक ह या क गयी थी। यह,
िन स देह, सच था।
भयभीत कुबेर ने झटपट िसंहासन याग िदया, और सावजिनक प से घोषणा क िक
उसे और अिधक कुछ नह पाना है। उसने कहा िक अब वो िहमालय क देवभिू म म, और
शायद उससे भी आगे कैलाश क ओर जाना चाहता है। उसे सं यास के माग पर जाने वाले
यि क भाँित आदर-स मान के साथ लंका से िवदा िकया गया। मगर सं यास दूर-दूर तक
कुबेर के मन म नह था, िवशेष कर तब जब रावण ने उसे अपनी अिधकांश िनजी स पि ,
साथ ही पि नय और पस दीदा गिणकाएँ भी ले जाने दी थ । उसने तो कुबेर को उ र क
ओर जाने के िलए पु पक िवमान का योग करने क अनुमित भी दे दी थी—यह उड़न-
वाहन अब अिधकृत प से रावण क स पि था। और कुबेर भी सावजिनक प से रावण क
उदारता क शंसा करते हए पया चापलस ू रहा था।
यह सुिनि त करने के िलए िक लंका के िसंहासन पर रावण के अिधकार को ले कर
कोई दावेदार या अस तोष न हो, कु भकण ने सुझाव िदया िक जाने से पहले वयं कुबेर नये
राजा को मुकुट पहनाये। हमेशा िववेक से काम लेने वाले यापारी ने खुशी-खुशी रावण के
िसर पर मुकुट रख िदया। एक बार कोई शासक सावजिनक प से िकसी अ य के प म
िसंहासन याग दे, तो दूसरे यि ारा उसक ह या कराये जाने का कोई य कारण
नह बचता था। यह तकस मत ही था।
लंका का िनिववाद राजा बनते ही रावण ने यापारी मुख क उपािध को छोड़ िदया
िजसे कुबेर प सद करता था। इसके बजाय उसने कह अिधक आड बरपण ू उपािधयाँ
अपनाय , जैसे राजाओं का राजा, स ाट का स ाट, ि लोक का शासक, देवि य और कुछ
अ य भी। जब कु भकण ने आड बरपण ू नयी उपािधय को ले कर उपहास िकया तो उसके
भाई ने उसे चुप रहने को कह िदया।
सब कुछ उसी तरह हो रहा था, जैसे िक रावण चाह रहा था, तो उसे सुखी और स तु
होना चािहए था। मगर इस पल भी वो कोई िवशेष स न नह िदख रहा था।
“पता नह मने वयं को तु हारी बात म कैसे आने िदया,” उसने कहा।
रावण और कु भकण िनचले तर के महल क ओर जा रहे थे जो अब कैकेसी का
आवास था। दोन भाई िसंहिग र के िशखर पर बने कुबेर के भ य महल म चले गये थे। िनचले
तर पर जाने के िलए उ ह उस िवशाल, समतल भिू म को पार करना पड़ता था िजसे पु पक
िवमान के उतरने का थल बना िदया गया था। उनके पीछे सौ अंगर क क टुकड़ी थी जो
राजा और उसके भाई से स मानजनक दूरी बनाये हए थे।
“दादा, म जानता हँ आप इसे ले कर अ स न ह, मगर वो एक स ाह पहले अपने महल
म आ गये थे। केवल आपके िलए ही वो गहृ वेश पज ू ा म िवल ब करते आ रहे ह। आप जानते
ह िक इन अनु ान म देर करना अशुभ होता है। हम उ ह और ती ा नह करवा सकते.”
कु भकण ने उ र िदया।
“उ ह ने जानबझ ू कर इस अनु ान के िलए स िस धु से पुरोिहत को बुलाया है। वो
जानती ह िक इससे मुझे ोध आयेगा। तुम कब समझोगे िक हमारी माँ िकतनी धत ू ह?”
रावण भड़का।
कु भकण ने सोचा िक अपने बड़े भाई क लान मनोि थित पर यान न देना ही अ छा
होगा और वो चलता रहा।
जब वो महल के िनकट पहँचे तो उ ह ने कैकेसी को वेश ार के पास खड़े देखा, बाल
िवभीषण और शपू णखा उनके पीछे िछपे हए थे। दोन ब चे दस वष से कम आयु के थे, और
रावण से डरते थे। िजन पुरोिहत को कैकेसी ने बुलवाया था वो उनके पास खड़े , म द वर म
िनदश दे रहे थे। उनके पीछे कम-से-कम सौ दािसयाँ खड़ी हर माँग को परू ा कर रही थ ।
कैकेसी उन िवलािसताओं का आन द ले रही थ जो उनके पु के सौभा य के साथ आयी थ ।
जैसे ही रावण सुनने क सीमा म आया तो कैकेसी ने सरू ज क ओर देख कर कहा,
“तुमने देर कर दी।”
“म जा सकता हँ,” रावण ने कहा।
उसक माँ ने अपने ह ठ काटे और मन-ही-मन कुछ बुदबुदाय । िफर उ ह ने अपने पास
खड़े पुरोिहत के हाथ से पजू ा का थाल िलया और रावण क आरती क । तीन बार। रावण एक
ओर हटा तो उ ह ने कु भकण क भी आरती क ।
“अ दर आओ,” उ ह ने खेपन से कहा, और अपने से पहले रावण और कु भकण के
अ दर जाने क ती ा करने लग । जब रावण महल क ड्योढ़ी पार करने ही वाला था, तभी
उ ह ने ज़ोर से कहा, “पहले दायाँ पैर।”
रावण का, उसने अपनी माँ को देखा, िफर उनके पास खड़े पुरोिहत को, और िफर
बायाँ पैर आगे बढ़ा िदया।
“दादा!” कु भकण ने हताशा म ज़ोर से सांस छोड़ी, िफर यान से और सावधानी से
अपना दायाँ पैर ड्योढ़ी के पार रखा। “महल सु दर िदख रहा है, माँ,” उसने कहा। “इतने
कम समय म आपने बहत अ छा काम िकया है।”
कैकेसी ने अपने बेटे को देखा और गहरी सांस भरी, उनक आँख म आँसू भर आये थे।
“इतना भावुक होने के िलए मा करना, मेरे बेटे। बात बस यह है िक आजकल शंसा पाना
मेरे िलए दुलभ हो गया है। म दूसर के िलए इतना कुछ करती हँ, मगर कोई मेरी सराहना
नह करता।”
रावण अचानक मुड़ा और गरज कर बोला, “मुझे ज दी जाना है, माँ। मेरे पास और भी
बहत सारे काम ह। यह मख ू तापण ू पज
ू ा कहाँ होनी है? इसे िनबटाते ह।”
कैकेसी ने तुर त ती वर म कहा। “अपने श द पर यान दो, रावण। यह कोई
मखू तापण ू पज ू ा नह है! यह वो तरीक़ा है िजससे हम अपने पवू ज और अपनी सं कृित का
स मान करते ह। अिश मत बनो!”
रावण अपनी माँ के िनकट आया। “सही कहती ह। यह कोई मख ू तापण
ू पज
ू ा नह है। यह
बहत ही मख ू तापण ू पज
ू ा है।”
यह बचकानापन कु भकण क सहनशीलता से बाहर हो गया था। “बस कर, आप
दोन !” उसने आसपास देखा िक सारी दािसयाँ त लीनता से फ़श तक रही थ , जबिक
पुरोिहत पज ू ा क साम ी ठीक करने म य त िदख रहे थे। केवल बाल िवभीषण और
शपू णखा सहमे से िदख रहे थे। कु भकण अपनी माँ और बड़े भाई क ओर मुड़ा। “ज दी से
अनु ान परू ा करते ह। िफर आप दोन एक-दूसरे को अिधक दुख नह दे पायगे।”
“ वयं को दुख देने के िलए इसे मेरी आव यकता नह है,” कैकेसी ने कड़वाहट से
कहा। “वो यह करने म खबू समथ है।”
रावण उनक ओर घम ू ा, उसक मु याँ िभंची हई थ । “आपका या मतलब है, माँ?”
“तुम जानते हो मेरा या मतलब है।”
“म कहता हँ खुल कर कह। आपका या मतलब है?”
कु भकण ने एक बार िफर उ ह शा त करने क कोिशश क । “देिखए, यह पज ू ा बाद
म कर लगे। हम वापस आ जायगे। अभी...”
रावण ने अपना हाथ उठाया तो कु भकण चुप हो गया। वो अपनी माँ के ऊपर छा जाते
हए उनके और िनकट गया। उनके बीच माहौल िव ेषपण ू हो गया था। “बोलो, माँ। आपका
या मतलब था?”
कैकेसी पीछे नह हट । उनक सारी स पि और शि का ोत उनका सबसे बड़ा पु
था, मगर िफर भी वो उससे घण ृ ा करने लगी थ । वो यह भी जानती थ िक रावण चाहे िजतना
भी ु य न हो, उ ह कभी हािन नह पहँचायेगा। वो लगभग कुछ भी कह कर बच सकती
थ । “यह मत भल ू ो िक म तु हारी माँ हँ। मुझे तु हारे जीवन म घटने वाली छोटी-से-छोटी बात
भी पता है। और तुम जानते हो म िकसके िवषय म बात कर रही हँ।”
“आप िकसके िवषय म बात कर रही ह? बोिलए। बोिलए!”
कु भकण ने एक बार िफर उनसे याचना क । “माँ, कृपया कुछ न कह।” वो रावण क
ओर मुड़ा। “दादा, हम चलते ह। चिलए।”
रावण अपनी माँ को घरू ता रहा, उसक आँख म िपघलता ोध भरा था। “बोिलए!”
“सब तु हारी ग़लती थी! अगर तुमने एक अ छे पु क तरह अपनी माँ का स मान
िकया होता और उसक बात सुनी होती तो यह सब कुछ न हआ होता! यह जान लो िक ई र
ने तु ह दंड िदया है। तु हारे कारण उ ह ने िकसी मासम ू को दंड िदया। तु हारे ही धम के
अभाव के कारण क याकुमारी, नेक वेदवती, मारी गय !”
“माँ!” अपनी कटार क ओर हाथ बढ़ाते हए रावण िच लाया।
“ क जाय!” कु भकण दौड़ कर उनके बीच आ खड़ा हआ, और रावण को अपनी माँ
से दूर धकेलने लगा। “दादा, नह !”
रावण अब िनय ण से बाहर हो गया था। अपनी माँ के ित ोध जताते हए उसने हवा
म कटार चलायी। “नीच ी! मेरे संर ण के िबना तू एक िदन भी नह जी सकती! और तन ू े
उनका नाम लेने का साहस िकया! तन ू े क याकुमारी का अपमान करने का साहस िकया!
ू े वेदवती का...”
तन
रावण का वर गिलयार म गँज ू ता रहा जबिक कु भकण लगभग ख च कर अपने भाई
को महल से बाहर ले गया।

“ ेम?” िव ािम ने घोर आ य से पछ ू ा।


महिष के आदेशानुसार अ र नेमी ने स िस धु के ित रावण के यवहार के
स भािवत कारण क खोजबीन क थी। और संयोग से उसे सच का पता चल गया था।
“हाँ। य त: उसे एक क याकुमारी से ेम था।”
“कौन-सी क याकुमारी?”
“वेदवती।”
िव ािम ने अपनी आँख िसकोड़ और अपने सहायक को देखा। “अ र नेमी, म कैसे
जान सकता हँ िक वो कौन-सी क याकुमारी है? तुम समझते हो मुझे सबके वा तिवक नाम
पता ह गे? कौन-सा मि दर? और िकस काल क ?”
“ मा कर, गु जी। वो वै नाथ क क याकुमारी थ । और यह बहत समय पहले क
बात है। स भवत: कम-से-कम दो दशक पहले क ।”
“तो वो तब उससे िमला था जब वो बालक था?”
“हाँ, मेरा यही मानना है।”
“लेिकन हमने तो कभी उसे रावण के साथ नह देखा, है ना? तब से तो नह जब से
हमने उसक खोज-खबर रखनी शु क है।”
“ य त: वो रावण के िपता के आ म म िमले थे और उसके बाद अनेक वष तक
उ ह ने एक-दूसरे को नह देखा। िफर वो दोबारा िमले, शायद आठ-नौ वष बाद। मुझे समय
का प का पता नह है।”
“तो तुम कह रहे हो िक वो इस सारे समय उससे ेम करता रहा, बचपन से ले कर?
भले ही वष तक वो उससे िमला भी नह था?”
“लगता तो यही है।”
“इससे या अथ िनकलता है?”
“इसका कोई अथ नह िनकलता, मगर ऐसा ही हआ था। वैसे भी, अपने भाई क
सहायता से जब वो दोबारा उनसे िमला तब तक उनका िकसी और से िववाह हो गया था।”
िव ािम को जब समझ आया तो वो पीछे को झुक गये। “ भु परशु राम दया कर!
या यह वही पवू क याकुमारी है िजसक उसके अपने ही गाँव म ह या हो गयी थी? या
नाम था उस थान का... टोडी?”
“हाँ, गु जी।”
“उसके पित क भी ह या कर दी गयी थी, है ना?”
“हाँ।”
“और सारे गाँव को मौत के घाट उतार िदया गया था? िनममता से?”
“हाँ। कोई सच नह जानता िक या हआ था, य िक कोई जीिवत नह बचा था। कुछ
िदन बाद पड़ोसी गाँव के कुछ लोग ने शव देखे। उ ह ने जंगली पशुओ ं को भगाया और टोडी
गाँव के मत ृ क क अ येि क ।”
“मगर मुझे ऐसा सुनना याद है िक क याकुमारी और उसके पित के शव का परू ी
वैिदक रीित से अि तम सं कार िकया गया था।”
“हाँ। मने भी ऐसा ही सुना था।
“तब तो केवल एक ही प ीकरण हो सकता है,” िव ािम ने कहा।
अ र नेमी ने हामी भरी। “म भी यही सोच रहा था, गु जी। रावण वेदवती क ओर
आकिषत था, मगर जब तक वो उसे िमली, उसका िकसी और से िववाह हो गया था। उसने
अपने पित को छोड़ने से इंकार िकया होगा, और उसके इंकार से ु ध होकर रावण ने उसे
और उसके पित को मार डाला। स भवत: उसका बला कार करने का यास भी िकया हो...
हम पण ू सच कभी नह जान पायगे। अपने अपराध का हर सुबत ू िमटाने के िलए उसने सारे
गाँव का संहार कर िदया होगा।”
िव ािम इतने ति भत थे िक कुछ बोल नह पाये। उ ह ने बहत ल बा जीवन िजया
था—कुछ लोग मानते थे िक वो कम-से-कम डे ढ़ सौ वष के ह गे—और अपने काल म बहत
भयानक बात देखी थ । संसार कभी भी दयावान थान नह रहा था, मगर इस प रमाण क
बबरता उनक क पना से परे थी। ि शंकु का यप के काल के बाद से उ ह ऐसी िकसी घटना
के बारे म सुनना याद नह था।
“वैसे, गु जी,” अ र नेमी ने कहा, “हम एक खलनायक चािहए था, और वो हम िमल
गया है। वो भी रा सी विृ का।”
“कु भकण इसम शािमल नह रहा होगा, िन य ही,” िव ािम ने कहा। उस न ह
नागा बालक के िलए उनके मन म कोमल थान था जो बहत वष पहले अपनी माँ के साथ
उनके पास आया था।
“म िनि त नह कह सकता, गु जी। मगर वो परू ी तरह से रावण के भाव म है।”
गहन िवचार म म न होते हए िव ािम ने अपनी ठोड़ी के नीचे हाथ बाँध िलये थे।
िफर उ ह ने एक गहरी सांस ली और िसर िहलाया। “उस क याकुमारी, वै नाथ वाली
क याकुमारी... से म एक बार िमला था। मुझे वो याद है। तब वो बािलका ही थी। हँसमुख, और
सबके ित दयालु, पशुओ ं के ित भी। कोई यि अपने से िनबल ािणय के साथ िजस
तरह का यवहार करता है, वह उनके च र का अ छा संकेतक होता है। हाँ, मुझे वो याद
है... वो पहाड़ी मैना क एकदम सटीक आवाज़ िनकाल लेती थी। और उसने मेरी नक़ल भी
बनायी थी।” यह कहते हए िव ािम मु कुराए। “बहत अ छी ब ची थी, पिव मन और दय
वाली... स ची नेक आ मा। वो ऐसी म ृ यु क अिधकारी नह थी जो उसे ा हई थी।”
“हम एक ऐसे भारत का िनमाण करना होगा जहाँ एक बार िफर ऐसी पिव ता और
स जनता का स मान हो, गु जी।”
कुछ पल मौन रहा, िफर िव ािम ने िनणायक वर म कहा, “अब हम िव णु को
खोजना होगा। हाँ, खोजना ही होगा... हम अपनी महान मातभ ृ िू म का पुनरो थान करना
होगा। हम एक बार िफर इसे अपने पवू ज के यो य बनाना होगा।”
“हमारे पास वो खलनायक है िजसक हम तलाश थी,” अ र नेमी ने कहा। “अब, हम
शी ता से उस उदा िव णु क पहचान करनी होगी जो हमारी योजना को फलीभत ू करे ।”
गु और िश य ने एक दूसरे को देखा, उनक आँख एक येय को ले कर सजीव थ ।

“दादा!” कु भकण का वर धीमा और अिनयिमत-सा था। वो अपनी भावनाओं से जझ ू ता-सा


तीत हो रहा था।
करछप के यु को पाँच वष हो गये थे। अब दो वष से रावण लंका का शासक था।
राजप रवार क सम याएँ खुल कर सामने आ गयी थ , और कैकेसी लगभग हर िकसी को
जो उनक बात सुनता, बताती थ िक रावण अब उनका पु नह था, और वो उसके साथ
स ब ध नह रखना चाहती थ । उसके बजाय, वो कहत िक, िवभीषण और शपू णखा को
उनक स तान के प म माना जाये।
सब लोग जानते थे िक लंका म कैकेसी का तर—उनके ारा उपभोग क जाने वाली
सारी िवलािसताएँ , परोपकार के काय, उ ह िमलने वाला स मान और शि —रावण क माँ
के प म उनक पहचान म िनिहत था। मगर िकसी म उनके मँुह पर यह कहने का साहस
नह था। वा तव म, अनेक लोग तो अपना काम िनकालने के िलए उनके मन म असुर ाएँ
भरते थे।
मगर एक बात म कोई स देह नह था : लंका म शि का केवल एक वा तिवक के
था, व तुत: सारे िव म नह तो सारे भारतीय उपमहा ीप म भी, और वो रावण था। और
िकसी म रावण का सामना करने का साहस नह था। इसके िवपरीत, वो उसके हर आदेश को
परू ा करने को दौड़ पड़ते थे और िबना सवाल िकये उसके हर िनदश को मानते थे। कुछ तो
उसका अनुमोदन जीतने क आशा म और आगे िनकल जाते थे। ऐसी ही एक अित हई थी जो
कु भकण को बहत िवचिलत कर रही थी।
“ या बात है, कु भ?” रावण ने गहरी सांस भरी। “िजसका भी ब ध करना हो,
करो।”
“ ब ध करने को कुछ नह बचा है, दादा।” कु भकण का लहजा िन य ही िवन था,
जैसे वो सावजिनक प से अपने भाई से बात करता था, मगर वो प प से परे शान था।
रावण ने पल भर कु भकण को देखा, और िफर अपनी गोद म बैठी सु दर ी को
इशारा िकया। वो उठी, और एक अलसाई-सी हरकत से उसने अपनी अंिगया उठायी और बाहर
चली गयी। क म मौजदू शेष नतिकयाँ भी पीछे -पीछे चली गय ।
“तो मुझसे या करवाना चाहते हो?”
“आपको ह त को सेना से हटाना होगा।”
रावण क सेना दो भाग म बँटी थी। एक का नेत ृ व मिहरावण पदवी वाले अिधकारी
करते थे, िजनके ऊपर भिू मगत े का दािय व था। अिहरावण नाम के अिधका रय के
नेत ृ व वाला दूसरा समहू समु और ब दरगाह का ब ध करता था। अिहरावण म ही
ह त था जो िच का के ा तपाल के साथ िव ासघात करने के बाद से ही रावण क सेना
म शािमल हो गया था और उसक ू रता से भारी भय खाया जाता था।
“कु भ, अगर हम समु पर िनय ण करना है, तो हम ह त जैसे िनमम
अिधका रय क आव यकता होगी। या तुम भल ू रहे हो िक उसक बदौलत ही अनेक वष
पहले हमने कचबाह क स पि को हािसल िकया था?”
“दादा, ू रता और अधम म अ तर होता है।”
“बचकानी बात मत करो, कु भ! धम या अधम जैसी कोई चीज़ नह होती। बस
सफलता और असफलता होती है। और म कभी असफल नह होऊँगा। म रावण हँ।”
“और म कु भकण हँ, दादा। इस संसार म आपसे मुझसे अिधक ेम कोई नह करता है।
और मेरा कत य है िक आपको महापाप करने से रोकँ ू ।”
“एकमा असली पाप िनधन और शि हीन होना है, जैसे कभी हम थे। तु ह याद है
अपने बचपन म हम िकतने असहाय थे? हम कभी उन िदन म वापस नह जायगे।”
“दादा, हम और िकतना धन और शि चािहए? आप संसार के सम ृ तम यि ह।
आप संसार के सबसे शि शाली यि ह। आपको और अिधक क आव यकता नह है।”
“हाँ, है। तुम कहते हो म संसार का सम ृ तम यि हँ। मगर, म तब तक नह क
सकता जब तक िक इितहास का सम ृ तम यि न बन जाऊँ। और जब यह पा लँग ू ा तो,
कौन जाने, म देवताओं से भी अिधक सम ृ और शि शाली होना चाह सकता हँ! वैसे यह
कोई बुरा िवचार भी नह है। लंका के नाग रक को देवता के प म मेरी पज ू ा करना सीख
लेना चािहए।”
“दादा, अगर आप देवता बनना चाहते ह तो सोिचए िक कोई देवता कैसा यवहार
करता है। या आप उस तरह के अपराध क अनुिमत देते जो ह त ने िकये ह?”
“इसका िनणय मुझे करने दो िक मुझे कैसा यवहार करना चािहए?”
“दादा, ह त ने मु बादेवी म जो िकया है, वो शैतािनयत से भी परे है!” कु भकण ने
कहा।
“एक बार िफर मुझे इसका िनणय करने दो। उसने या िकया?”
मु बादेवी ब दरगाह भारत के पि मी तटवत े पर, िस धुसर वती तटीय े और
लंका के बीच समु ी माग पर एक साम रक िब दु पर ि थत था। रावण वैि क यापार के
के िह द महासागर के यापार पर परू ा िनय ण चाहता था। इस सागर पर िजसका
िनय ण होता, वो संसार पर िनय ण करता।
वो भारतीय उपमहा ीप और अरब, अ का और दि ण-पवू एिशया के समु तट के
मु य ब दरगाह पर िनय ण हािसल कर चुका था। इन सभी थान पर वो अपने कठोर
सीमा शु क लागू कर चुका था। वो अपने िम िकि क धा के राजा वािल के साथ नमदा नदी
के दि ण म भ-ू यापार माग पर भी ितब ध लगा चुका था। अब संसार के सबसे अिधक
सम ृ े स िस धु उसक िशकंजे जैसी पकड़ म था। और वो अपने और लंका के िलए धन
ा करने के िलए इसे िनचोड़ रहा था।
केवल मु बादेवी ने ही अिड़यल ढं ग से उ च सीमा शु क वसल
ू ने या वहाँ शरण खोजने
आये िकसी भी नािवक को धता बताने से इंकार कर िदया था। मु बादेवी के शासक समुदाय
देवे ार का मानना था िक यापार को सेवा के साथ-साथ चलना चािहए, और वो अपने
कत य, अपने धम के माग से नह िडगते थे। रावण ने तय िकया था िक अपने यापार क
भलाई के िलए उसे इसे रोकना होगा। उसक िशकंजे जैसी पकड़ के िलए कभी कोई चुनौती
नह हो सकती : इसका अथ न केवल राज व म हािन होगी, बि क यह लंका के
सवशि मान राजा क उसक छिव को भी कमजोर करे गा।
“उसने मु बादेवी ब दरगाह पर िनय ण कर िलया है,” कु भकण ने कहना शु
िकया।
“तो? मने उसे ब दरगाह पर िनय ण करने का आदेश िदया था। तुम मेरे आदेश पर
उठा रहे हो?”
“नह , दादा! म आपके आदेश पर नह उठा रहा। म आपके अधीन थ के तरीक़े
पर उठा रहा हँ।”
“मुझे तरीक क परवाह नह है। उसे प रणाम दान करने थे। और अगर उसने
प रणाम िदये ह, तो यह मेरे िलए काफ़ है।”
“दादा, सारा मु बादेवी न कर िदया गया है।”
“तो या हआ? हम िनकट ि थत सा सेट ीप को ब दरगाह क तरह इ तेमाल
करगे।”
कु भकण अचि भत था। “दादा, आपने सुना भी जो मने अभी कहा? सा सेट को भल ू
जाय। सारा मु बादेवी न हो गया है। एक-एक देवे ार मारा गया है। उनका नगर जला
िदया गया है, घर न कर िदये गये ह। कोई नह बचा है—पु ष, ि याँ, ब चे। उनके शव
का ढे र सामिू हक िचता म ऊँचा लगा था। उदार राजा इ ण क अधजली लाश भी िमली थी।
लगता है जैसे सबको जीिवत जला िदया गया हो।”
रावण ने कोई िति या नह दी। ऐसा लगा जैसे इस समाचार से पल भर को वो भी
िहल गया हो।
“वो सब असैिनक थे,” कु भकण कहता रहा। “वो यो ा नह थे। उ ह इस तरह मारना
अधम है। मने सुना है िक हमारे कुछ सैिनक ह त के काय से इतना ु ध हए िक उ ह ने
सेना ही छोड़ दी। पाँच हज़ार सैिनक क शि शाली टुकड़ी म से उसने लगभग एक ितहाई
गँवा िदये ह। देवे ार क सारी स पदा के साथ ह त लंका लौट आया है, इस आशा के
साथ िक मा वण हम उसे दंड देने से रोक देगा।”
िवचार म गुम रावण नीचे देखता रहा। उसका दायाँ हाथ अपने आप ही उसके गले म
पड़े लटकन पर पहँच गया था।
कु भकण आगे बढ़ कर अपने भाई के पास बैठ गया। “दादा, आपको ह त को दंड
देना होगा। हम इस तरह के अधम क अनुमित नह दे सकते। एक उदाहरण रखना होगा।”
“हाँ, उदाहरण तो रखना ही होगा,” रावण ने कहा। “तो, हम ऐसा करगे। ह त का
थाना तरण कर िदया जायेगा। मु बादेवी से उसने जो स पि लटू ी है, उसे ज़ त करके लंका
के कोष म जमा कर िदया जायेगा। और भगोड़ क खोज म हम खोजी दल भेजगे। उनम से
कुछ को सावजिनक प से म ृ युदंड िदया जायेगा।”
कु भकण ने दहशत से अपने भाई को देखा।
“कु भकण, म तुमसे सहमत हँ। ह त ने आव यकता से अिधक िकया है। मगर हम
उसे सेना से नह हटा सकते। अिधकांश संसार हमसे घण ृ ा करता है। हम अपने प म उसक
ू रता चािहए। साथ ही, हम सेना छोड़ कर जाने क अनुमित भी नह दे सकते। यह हमारी
सेना को न कर देगा। हम उन सबके पीछे जाने क आव यकता नह है, इसम बहत यास
लगेगा। हम बस एक ठीक-ठाक सं या चािहए, शायद सौ-दो सौ भगोड़े सैिनक। और उ ह
ाणदंड देना होगा। यह शेष लोग के िलए चेतावनी का काम करे गी।”
“दादा... िक तु...”
“इसे करो, कु भ,” रावण ने कहा। उसका लहजा और मतभेद नह चाहता था।
लंका का राजा ार क ओर मुड़ा और उसने ताली बजायी। नतिकयाँ शी ता से अ दर
आय , कुछ ने आते हए अपनी अंिगया उतार ली थ । कु भकण जानता था िक मुलाक़ात का
समय समा हो गया है।
अ याय 23

करछप के यु के यारह साल बाद, वैि क यापार पर लंका का परू ा िनय ण हो गया था।
न केवन रावण क िनजी स पि म अथाह विृ हई थी बि क उसने छोटे-से ीप रा य को
भी िव शि बना िदया था। स िस धु पर लगाये गये भारी कर सात निदय के देश को
सुखा रहे थे, मगर इस बेतहाशा कमी के बाद भी यह सम ृ बना रहा। यहाँ अभी भी इतनी
चुरता थी िजससे लंका वसल ू ना जारी रख सकता था।
अब तक िह द महासागर के यापा रक माग और हर बड़े ब दरगाह पर लंका का
िनय ण हो गया था। प रणा व प यह संसार भर म यापार के वाह पर हावी हो गया था।
रा य समिृ से दमकता था और इसे वण लंका कहा जाने लगा था—जहाँ शू य कर,
अ य त रआयती जीवनयापन, िनशु क िचिक सा और िश ा, घर म सीसे के पाइप से
चौबीस घंटे पानी क आपिू त, चार ओर फै ले हए सावजिनक उ ान, खेल प रसर, सभागार
आिद थे। रावण क लंका म कोई िनधन नह था।
वयं रावण ने, जो अब अड़तीस वष का था, रा य म देवता-सरीखा तर पा िलया था।
लोग कुछ मि दर म उसके प क पज ू ा भी करने लगे थे जो िपछले एक साल म बन गये थे।
केवल उसक माँ कैकेसी इस दैवीकरण का िवरोध करने का साहस करती थ : उ ह ने
सावजिनक प से घोषणा क थी िक रावण जीिवत रहते हए भी इस तरह क पज ू ा को बढ़ावा
दे कर ाचीन वैिदक णाली का अनादर कर रहा है। पु या मा और सु दर म दोदरी एक
छोटे-से साम त माया क बेटी थी जो म य भारत के दो छोटे मगर सम ृ गाँव का वामी था।
दुभा य से उसे और उनके आसपास के लोग को यह शी ही प हो गया िक उसने उससे
केवल इसिलए िववाह िकया है तािक उस भिू म का अनादर कर सके िजससे घण ृ ा करने क
उसने शपथ ली थी। मानो वो स िस धु के महान सा ा य को जताना चाहता हो िक उसके
पास न केवल उनक सेनाओं को हराने और उनक स पि छीनने क बि क उनक ि य
को ले जाने क भी शि है। इस दुभा यपण ू स ब ध का केवल एक ही सकारा मक प रणाम
हआ था और वो था पु इ जीत का ज म िजसे रावण सच म ेम करता था।
इस बीच उ तीस वष का कु भकण लगातार एकाक होता गया। वो अपने भाई से ेम
करता था मगर उन चीज को ले कर अ स न था जो उसके ित अबाध िन ा के कारण
करने के िलए वो िववश था। अपने भाई के ित अपने ेम और अपने धम का पालन करने क
इ छा के बीच फँसा वो िजतना हो सकता था लंका से बाहर रहने के बहाने ढूँढ़ता था। वो दूर
देश क या ाएँ करता, कभी यापा रक अिभयान और सि धय के िलए तो कभी सै य
अिभयान पर, समु पर लुटेर क सम या को समा करने के िलए। िसिग रया से दूर रहने
के हर वैध कारण को वो लपक लेता था।
ऐसे ही एक दौरे पर कु भकण इिथयोिपया रा य के दमात नगर म था जो एक ल बे
समय से लंका का िम रहा था। जहाँ तक याद िकया जा सकता है, पि म और भारत के बीच
यापार पि मी समु के रा ते फला-फूला था, िजसका रा ता लाल समु म संकरी म देब
जलसि ध या फ़ारस क खाड़ी म होरमुज़ जलसि ध से होकर जाता था िजसे थानीय लोग
जम यांग भी कहते थे। िम या मेसोपोटैिमया के िकसी भी यापा रक पोत को भारत क
ओर आने के िलए इनम से िकसी िब दु से पि मी सागर म वेश करना होता। कुशल पतरा
चलते हए रावण ने िजबत ू ी और दुबई के ब दरगाह को जीत िलया था, िजनका इन दोन
जलसि धय पर िनय ण था। अब दमात और पि म म आगे ि थत अ य रा य के पोत को
पि मी सागर और िह द महासागर के मु य यापा रक माग म वेश करने के िलए भारी
सीमा शु क देना पड़ता था।
कु भकण इसके शासक से िमलने और अगले वष के िलए यापा रक िह सा और सीमा
शु क तय करने के िलए रा य म आया था। भट समा होने के बाद उसने दमात क
राजधानी येहा-अ सुम के बाज़ार म घम ू ने का िनणय िकया। लंका लौटने से पहले बस एक
िदन ख़ाली होने से इस सु दर नगर के सारे थल को देखने के िलए उसके पास पया
समय नह था जहाँ वो पहली बार आया था।
अचानक, एक प रिचत वर ने उसका यान ख चा—नगाड़ क आवाज़ िजसक उसे
गहृ देश से इतनी दूर सुनने क आशा नह थी।
धमू -धम ू -दना-धम ू -धम ू -दना।
धम ू -धम ू -दना-धम ू -धम ू -दना।
वो आवाज़ क िदशा म चलने लगा, मानो िकसी अ य डोर से िखंचा जा रहा हो।
धम ू -धम ू -दना-धम ू -धम ू -दना।
कुछ ही पल बाद उसने वयं को प थर के एक भ य िनमाण के सामने पाया जो
अनपेि त प से िकसी भारतीय मि दर जैसा िदखाई देता था—भू तर पर लाल बलुआ
प थर से बना एक िवशाल चबत ू रा और दूर आकाश म जाता एक िशखर, जैसे देवताओं को
नम ते कर रहा हो। बाहरी दीवार सु दरता से उकेरी गयी अ सराओं, ऋिषय , ऋिषकाओं,
राजाओं और रािनय से अलंकृत थ , जो भारतीय शैली के अनु प व पहने थे। एकमा
अ तर उनके चेहरे थे जो प प से अ क थे।
कु भकण अ क महा ीप के कुछ ऐसे लोग से िमला था जो भारत म बस गये थे। वो
कुछ ऋिषय और ऋिषकाओं को भी जानता था जो मल ू प से अ का के थे। मगर येहा-
अ सुम के बीच बीच भगवान का मि दर देखने के िलए वो तैयार नह था।
जब उसने मि दर म वेश िकया, तो नगाड़ क आवाज़ और तेज़ हो गयी।
धमू -धम
ू -दना-धमू -धम ू -दना।
मि दर के मु य क म गभगहृ के सामने िविभ न थान पर बड़ीबड़ी ितपाइयाँ रखी
हई थ । येक ितपाई पर एक पंि म तीन िवशाल नगाड़े रखे थे। एक ओर खड़े ल बे,
बिल पु ष ल बी-ल बी छिड़याँ िलये परू ी लय-ताल म नगाड़े बजा रहे थे। मि दर का ांगण
न ृ य करते लोग से भरा था। िवशु आन द क चुरता का न ृ य।
माहौल िव त ु ीय था, और इसने तुर त ही कु भकण को अपनी िगर त म ले िलया।
उसका शरीर अपनी ही इ छा से िथरकने लगा और ज दी ही वो न ृ य करने लगा था।
भगवान के संगीत के तीन आन द ने उसके मन और आ मा को भर िदया था।
जैसे-जैसे ताल ने गित पकड़ी, न ृ य उ म होता गया। मि दर का ांगण भगवान
के भ क वाभािवक ऊजा से जीव त हो उठा था। धीरे -धीरे , गित बढ़ती गयी जब तक िक
यह अपने चरम पर नह पहँच गयी और िफर “जय ी !” के ज़ोरदार उ ोष के साथ
समा हई।
कु भकण ने भी आन द के साथ भु के नाम का उ ोष िकया।
“जय देवी इ तार!”
कु भकण ने अपने चार ओर मौजदू जोशीले न ृ य से पसीने भरे आनि दत चेहर को
देखा। कुछ के गाल पर आन द के आँसू बह रहे थे। कुछ अभी भी मोहाव था म थे। अजनबी
गले िमल रहे थे, एक-दूसरे को शुभकामनाएँ दे रहे थे। कु भकण को भी गले लगाया गया।
िकसी का यान नह गया लगता था िक उसके अ दर िवकृित है, िक वो नागा है।
“यहाँ कैसे आना हआ, कु भकण?”
कु भकण पलटा तो सामने एक ल बा, बेदाग़ गहरी भरू ी वचा वाला भावशाली
िदखने वाला पु ष था। य िप उसक प-रं गत से प था िक वो दमात का थानीय यि
है, मगर वो गे आ धोती और अंगव पहने था, िवराग और सं यास के रं ग के। मुंडे हए िसर
पर गाँठ लगी िशखा बता रही थी िक वो ा ण था। ल बी िखचड़ी दाढ़ी उसके चेहरे को नम
दान कर रही थी, और अपने ल बे डीलडौल के बावजदू अपनी शा त, भली आँख से वो
शाि त का अहसास दे रहा था। िन य ही वो शा तमना यि था।
कु भकण क भक ृ ु िट चढ़ गय । “मने पहले भी आपको देखा है।”
ा ण मु कुराया और उसने हामी भरी।
“कल, दरबार म?”
“सही है,” उस यि ने कहा। “म पीछे खड़ा था। आपक पैनी िनगाह है।”
“मह वपण ू लोग को म देख लेता हँ।” कु भकण ने िवन ता से मु कुराते और स मान
म हाथ जोड़ते हए कहा। “मगर मुझे नह पता था िक आप भी भगवान के भ ह।
आपका या नाम है, िम ?”
वह यि मु कुराया और यु र म उसने भी नम ते क । “आप मुझे मबकुर बुला
सकते ह, िम ।”
“मबकुर?” कु भकण हैरान था। “आप जानते ह सं कृत म एक श द है बकुर—
इसका अथ है तुरही।”
“जानता हँ। और, हमारी भाषा म, जब हम इसम म जोड़ देते ह तो इसका अथ होता है
महा तुरही।”
कु भकण खुल कर मु कुराया। “अ छा नाम है। मगर आप तो शाि तपण ू यि लगते
ह।”
“म बहत यु देख चुका हँ। और यह सािबत करने के िलए मेरे ऊपर बहत घाव ह।”
“तो मि दर के नगाड़ के प म शि शाली तलवार को रख िदया गया है?”
मबकुर ह के से हँसा। “न ृ य लड़ने से कह अिधक म त है, आप नह मानते?”
कु भकण भी हँसा, और उसने हामी भरी।
“मि दर का पुरोिहत बनने के मेरे अपने कारण थे,” मबकुर ने कहा। “आपके यापार
के म य थ बनने के या कारण ह जबिक प प से आपका मन इसम नह रमता है?”
“ मा चाहँगा? आप कह रहे ह िक म इसम कुशल नह हँ?” कु भकण समझ नह पा
रहा था िक बुरा माने या नह ।
“मने ऐसा नह कहा। मने बस यह कहा है िक आपका मन इसम नह रम रहा है। कल
मने आपका वातालाप देखा था। म चिकत था। आप बेहतर शत रख सकते थे। आपने हमारे
िलए बहत कुछ छोड़ िदया था।”
कु भकण चुप रहा।
“मुझे ऐसा लगा िक आप िकसी और बात क ितपिू त कर रहे थे। आव यकता से
अिधक ितपिू त, शायद। जैसे हमारी मदद करने से आपके मन से कुछ बोझ उतर जाता।”
कु भकण ने आसपास देखा। मि दर लगभग ख़ाली हो गया था। अिधकांश भ गण
चले गये थे। उसने वापस मबकुर को देखा। “आप कौन ह?”
“मेरे साथ बैठो, िम ।” मबकुर ने शा त वर म कहा।
वो मि दर के मु य क म त भ से पीठ िटकाए बैठे थे। कु भकण ने दूर ि थत
गभगहृ को देखा। उसम भगवान क पण ू आकार क ितमा थी : ल बे, खुले बाल और
ल बी दाढ़ी वाली ल बी, बिल छिव।
भगवान जैसे वा तिवक जीवन म रहे थे—भ य और भयंकर।
कु भकण ने दोन हाथ जोड़े और गहन ा मे नतम तक हो गया, मबकुर भी।
भगवान के दािहनी ओर थािपत एक देवी क ितमा भी लगभग भगवान के
समान ही ल बी थी। शा त चेहरे के न श अ क थे, य िप शरीर पर भारतीय शैली म
धोती, अंिगया और अंगव पहने हए थे। बाएँ हाथ म एक अंडा और दािहने म ल बी तलवार
उ ह ेम और यु क देवी बता रही थी। कु भकण और मबकुर ने देवी इ तार क ितमा को
भी णाम िकया।
लंकावासी ने एक बार िफर पछ ू ा, “आप कौन ह?”
“कोई जो तु हारी सहायता करना चाहता है,” मबकुर ने उ र िदया।
“िकसने कहा िक मुझे सहायता चािहए?”
“हर बात को कहा नह जाता है। जब आप िकसी को वयं को हािन पहँचाते देखते ह,
तो यह प है िक उ ह सहायता चािहए। मगर मेरा अनुमान है िक आप समझ नह पा रहे ह
िक मुझ पर भरोसा कर सकते ह या नह ...”
कु भकण मौन रहा।
मबकुर आगे को झुका और धीरे से बोला, “म हनुमान का िम हँ |”
कु भकण ने च क कर उसे देखा। हनुमान िव यात वायुपु जनजाित के सद य थे।
सोने के िदल वाले भले भीमकाय हनुमान सब ज़ रतम द क सहायता करने के िलए तैयार
रहते थे। बहत पहले एक बार उ ह ने कु भकण क जान बचायी थी। मगर उ ह ने उससे
वचन िलया था िक वो कभी इसके बारे म नह बतायेगा, और कु भकण ने उस वचन को
िनभाया था। मगर वो हमेशा हनुमान का कृत रहा था, और हमेशा उस ऋण को चुकाने के
अवसर क खोज म रहता था।
हनुमान का कोई िम उसका भी िम था।
“आप वायुपु ह?” कु भकण ने पछ ू ा।
मबकुर ने हामी भरी। हाँ।
“और आप मुझसे नफ़रत नह करते?”
मबकुर धीमे से हँसा। “म आपसे नफ़रत य क ँ गा?”
“मेरा मतलब...” कु भकण ने गहरी सांस ली। “म...”
“किहए।”
“देिखए, आप तो िद य वायुपु जनजाित के ह। वो जनजाित िजसे भगवान पीछे
छोड़ गये थे। आप पर भारत क पिव भिू म क र ा करने का दािय व है। और म उस यि
का भाई हँ जो भारत को न कर रहा है।”
“भारत को न ! सच?” मबकुर ने पछ ू ा, उनक आँख चुहल म फै ल गयी थ । “आपको
लगता है आपका भाई इतना शि शाली है?”
कु भकण ति भत रह गया था। उसे तो अपने भाई के िलए बड़ीबड़ी बात सुनने क
आदत थी। “ या? म समझा नह ।”
मबकुर मु कुराने लगा। “ये बताओ, कोई भारत को न करे तो तु ह कैसा लगेगा?”
“यह... यह मेरी भिू म है। म अपनी मातभ ृ िू म से ेम करता हँ।”
“और या तु हारी मातभ ृ िू म इतनी शि हीन है िक एक यि इसे न कर देगा? या,
म दूसरे श द म कहता हँ। अगर कोई भिू म इतनी अश है िक एक अकेला यि इसे न
कर दे तो या वो बचे रहने क अिधकारी है?”
“आप या कह रहे ह?”
“आपने म य याय के बारे म सुना है?”
“िकसने नह सुना? बड़ी मछली हमेशा छोटी मछली को खा लेती है। मेरा मानना है िक
आप इसे मछिलय का िवधान कह सकते ह।”
“आप जानते ह ना िक यह िवधान केवल मछिलय पर ही लागू नह होता है?”
कु भकण हँसा। “हाँ, जानता हँ।”
“यह कृित माँ का िवधान है। समथ जीिवत रहे गा।”
“हाँ, और यह ू र िवधान है। इसीिलए हम इससे दूर हो गये ह। हम उन लोग को नह
मारते जो हमसे कमज़ोर ह। हम उनक र ा करते ह।”
“यह मानव आचार-संिहता है, मगर कृित इस तरह से काम नह करती है। ू रता
और उदारता मानवीय धारणाएँ ह। कृित स तुलन को ाथिमकता देती है। और स तुलन
कभी-कभी कठोर ेम क माँग करता है।”
“कठोर ेम?”
“एक ेम होता है जो हम अश कर देता है, और िफर एक ेम होता है जो आपको
आगत के िलए तैयार करता है। कभी-कभी वो ेम कठोर तीत होता है, मगर यह आव यक
है। अगर आप ऐसे माता-िपता ह िजसे केवल यह और अभी क िच ता है, तो आप अपनी
स तान को वो सब कुछ दगे जो वो चाहता है, य िक आप उसके चेहरे पर मु कुराहट देखना
चाहते ह। िक तु अगर आप ऐसे माता-िपता ह िजसे अपनी स तान के भिव य क िच ता है
तो आप समझगे िक ब चे को िबगाड़ना वो सबसे बुरा काम है जो आप कर सकते ह।”
“हाँ, लेिकन अगर आप बहत अिधक कठोर ह गे तो बालक टूट जायेगा।”
मबकुर मु कुराया। “और कृित और हमारे बीच यही अ तर है। माँ कृित हर पल का
यान नह रखती है, वो उ रजीिवता के िनयम को भावी होने देती है। और हाँ, कभी-कभी
अश टूट जाते ह और न हो जाते ह। मगर मनु य िभ न है। हम सोच सकते ह और... हम
हर पल का यान रख सकते ह। हम कठोर ेम को सही तर पर संचािलत कर सकते ह :
इतना कठोर जो सश करे मगर इतना भी कठोर नह िक तोड़ दे।”
“इसका मेरे भाई या मुझसे या सरोकार है?”
“कभी आपने ठहर कर यह सोचा है िक माँ कृित के खेल क तरह, कुछ अिधक बड़े
बल भी हमारे जीवन को िनयि त करते ह? िक स भवत: आपके भाई ऐसे ही िकसी बल क
कठपुतली ह ?”
कु भकण इतना हैरान था िक कुछ बोल नह सका।
मबकुर ने अचानक बात बदल दी। “आपने कभी वन क आग देखी है?”
“देखी है।”
“वो अ छी होती है या बुरी?”
“यह तो िनभर करता है।”
“िकस बात पर िनभर करता है?”
“इस पर िनभर करता है िक आग िनयि त है या अिनयि त।”
“िब कुल ठीक। िनयि त आग सख ू ी लकिड़य को न कर देती है; सख ू ी लकिड़याँ
एक िब दु के बाद िवषा हो सकती ह और वन को न कर सकती ह। अगर भिू म को साफ़
करने के िलए छोटी, िनयि त आग का योग न िकया जाये तो यापक, अिनयि त आग
फै लने क स भावना बढ़ जाती है। और वन क अिनयि त आग सब कुछ भ म कर सकती
है। यह तो अ छा नह होगा, है ना?”
“यह िब कुल अ छा नह होगा।”
“िब कुल सही। तो वन क छोटी आग का योग उसी तरह िकया जाता है जैसे िकसी
बड़े िवष को मारने के िलए छोटे िवष का योग होता है।”
कु भकण तन गया। “मेरे भाई िवष नह ह।”
मबकुर मु कुराया। उसने उ र नह िदया। न ही मा माँगी।
कु भकण जाने के िलए उठ खड़ा हआ।
“हमारी बात अभी परू ी नह हई है,” मबकुर ने कहा।
“आपको य लगता है िक आप मेरे भाई से बहत बेहतर ह?” कु भकण ने िफर से
बैठते हए पछू ा। “मेरे िलए तो य तः िकसी 'दीघकािलक क याण’ के िलए लोग के क
पाने के ित आपक सहज वीकृित भी उतनी ही अनुिचत है िजतना वो जो मेरे भाई करते
ह।”
“आपको पता है, माँ कृित के ि कोण से दि ण का िवपरीत उ र नह , वाम होता
है।”
“यह तो बस कुतक है। आपका ता पय या है?”
“मेरा ता पय यह है िक कोई एक सही माग, एक आदश ि थित नह होती। संसार ायः
उन लोग के हाथ सबसे अिधक क पाता है जो स पण ू ता म िव ास करते ह, वो लोग जो
यह नह समझते िक कोई एक आदश नह है। मगर वा तिवक ानी जानते ह िक आप
केवल सव कृ हल तलाश सकते ह, आदश हल नह । ऐसा हल जो अिधकतम लोग क
सहायता करे , वही अनुसरण करने यो य है। य िक ऐसा हल नह हो सकता जो सब लोग
क सहायता कर सके। भारत इसिलए क पा रहा है िक ि य बहत शि शाली हो गये ह,
और अपने अहं म वो शू और वै य का दमन कर रहे ह। हम उनके िशकंजे को तोड़ना होगा
तभी समाज को िफर से सही माग पर लाया जा सकता है। और यही वो भिू मका है जो रावण
िनभा रहे ह। वो ि य को तोड़ सकते ह।”
“आप मुझे यह सब य बता रहे ह? म जाकर अपने भाई को बता सकता हँ िक आप
उनका इ तेमाल कर रहे ह।”
“और आपको आशा है िक वो आपक बात सुनगे?” मबकुर ने पछ ू ा। “आपको लगता है
िक वो अचानक धािमक हो जायगे?”
“आप मुझसे यह िव ास करने क अपे ा रखते ह िक आप लोग धािमक ह?”
मबकुर मु कुराया। “काश धम के का उ र इतनी सरलता से िदया जा सकता।”
“ यास करके देिखए।”
“धम जिटल है। हम अपना सारा जीवन इस चचा म िबता सकते ह िक या धम है और
या अधम। लेिकन असल म यह मायने रखता है िक या हमारा म त य धािमक है—
प रणाम हमारे िनय ण से बाहर है और इसिलए धम का मापदंड नह हो सकता।”
“म त य?”
“कोई दूसर के क याण के िलए काय करने का यास कर सकता है, जैसे उदाहरण
के िलए वायुपु कर रहे ह। या हम व तुत: सफल ह गे? यह तो केवल समय बतायेगा। मगर
हम जानते ह िक हमारे म त य पर स देह नह िकया जा सकता। हम दूसर के क याण का
ही सोच रहे ह, न िक मा अपने ल य का। धम क ओर यही पहला क़दम है। जब अ य के
िलए आप अपने वाथपण ू िहत क उपे ा करते ह।”
कु भकण आगे क ओर झुका। “एक बार िफर पछ ू ू ँ गा, आप मुझे यह सब य बता रहे
ह?”
“ य िक रावण क दानवी कृित का योग वहृ द क याण के िलए तो िकया जा
सकता है। मगर हम चाहते ह िक उनक आ मा को भी बचाया जाये।”
कु भकण क भक ृ ु िटयाँ तन गय । “और आपको म इतना भोला िदखता हँ िक यह
िव ास कर लँ ू िक वायुपु को उनक िच ता है?”
“ य नह ? हम तो सबक िच ता करते ह। भले ही हम सबक सहायता न कर पाय,
मगर हम सबक िच ता करते ह।”
“िक तु आप मुझसे या चाहते ह?”
“हम आशा है िक आप अपने भाई क सहायता करगे।”
“और आपको या लगता है िक म या कर रहा हँ?”
“बुरी सि धयाँ करवाने से आपके भाई क सहायता नह होगी।”
“हमारे पास इतनी स पि है िक हम उसका उपभोग नह कर सकते। म उसे थोड़ा-
बहत फै ला सकता हँ। कम-से-कम कुछ तो उपकार होगा। दान म िदया गया थोड़ा-सा भी धन
धम का काय होता है।”
मबकुर मु कुराया। “आपने भगवान िवदुर के बारे म सुना है?”
“िन स देह सुना है,” कु भकण ने उ र िदया। “उस महान दाशिनक के बारे म
िकसने नह सुना होगा, जो इितहास के सबसे े लोग म से ह?”
“भगवान िवदुर ने कहा था िक धन का अप यय करने के दो माग ह। एक, अपा को
दान दे कर। दूसरा, सुपा को दान न दे कर।”
“म तो...”
“आपक यापा रक रआयत से मेरे रा य के शासक और यापा रय को लाभ होगा।
उ ह दान नह चािहए। सहायता तो िनधन को चािहए। केवल दमात म ही नह , सब जगह
पर। उ ह तलािशए और उनक सहायता क िजए। अपने भाई के नाम पर उनक सहायता
क िजए। उनके िलए सुकम अिजत क िजये। अवसाद म मत पिड़ये। उ े य तलािशये। म
जानता हँ ज म के समय आपके भाई ने आपक जान बचाई थी। अब आपका कत य है िक
उनक आ मा क सहायता कर।”
मबकुर क बात यान से सुनते हए कु भकण िवचारम न िदख रहा था।
“और उससे िनराश मत होना,” मबकुर ने आगे कहा। “हम िनर तर प रवतन के काल
म रहते ह। मुझे िव ास है िक रावण क आ मा को िफर से बचाने का अवसर आयेगा। वो
इतने अ ानी हो सकते ह िक इसे न देख, मगर जब समय आयेगा तो उ ह आपक सहायता
क आव यकता होगी।”
कु भकण ने धीरे से कहा, उसक आँख नम थ । “म अपने भाई को खो चुका हँ। म
उनसे ेम करता हँ, िक तु मने उ ह खो िदया है। मने उ ह उनके ोध के हाथ खो िदया है।
उनक पीड़ा के हाथ । मने उ ह खो िदया है उनके दुख...”
“वेदवती क म ृ यु के दुख के हाथ ,” मबकुर ने कहा। “म जानता हँ।”
कु भकण ने मबकुर को घरू ा। उसे यह जान कर ध का लगा था िक उसे कोई ऐसी बात
पता है जो रावण के िलए इतनी यि गत है। और जो अिधकांश लोग से िछपी हई थी।
“यह न भल ू िक वो आपसे भी ेम करते ह। आप और उनका पु इ जीत ही स भवत:
दो ऐसे जीिवत यि ह िजनसे वो वा तव म ेम करते ह।”
“इ जीत भी उनसे ेम करता है। स भवतः मुझसे भी अिधक।”
मबकुर मु कुराया। “जानता हँ। मगर वो बालक है। वो अपने िपता क सहायता नह
कर सकता। कम-से-कम अभी नह । इसिलए रावण को बचाने का दािय व आपका है। इस
जीवन म यही आपका वधम है। इसे अ छे से िनभाय।”

“दादा, इस धन से हम कोई अ तर नह पड़ता है।” कु भकण परे शान और ु था। उसके


क ध क दो अित र बाह कठोर और सीधी थ ।
करछप क लड़ाई को स ह साल हो चुके थे। कु भकण रावण के िनजी क म था।
हमेशा क तरह, िवशाल क के म य म कुछ अधन न ि याँ न ृ य कर रही थ । रावण
अपनी आरामकुस पर बैठा था, उसक उँ गिलयाँ गोद म बैठी ी के बाल म उलझी हई थ ।
ख़ाली हाथ म चरस से भरी िचलम थी।
कु भकण परोपकार के इस काम को वयं, अपने धन से भी कर सकता था। मगर वो
चाहता था िक यह िविश दान रावण क िनजी स पि म से हो। ऐसे ही होना चािहए था।
रावण ने िचलम का गहरा कश िलया और ह ठ पर अलसाई-सी, नशीली मु कुराहट
िलए कु भकण को देखा। उसने धुएँ के छ ल के बीच कहा। “म अपनी सारी स पि फँ ू क
दँूगा, मगर स िस धु कुछ नह जाने दँूगा। भले ही वै नाथ म िचिक सालय के िलए हो।”
कु भकण ने क म चार ओर देखा। ि याँ, धुआँ, मिदरा, चरस, हर तरह क अित।
“आप अपनी स पि तो पहले ही फँ ू क रहे ह, दादा।”
“हाँ, मने इसे अिजत िकया है... म इसका जो चाहँ, क ँ ।”
कु भकण नतिकय क ओर मुड़ा और तीखे वर म बोला, “हम अकेला छोड़ द।”
ि य ने न ृ य करना ब द कर िदया, मगर क से गय नह । वो जहाँ थ , वह खड़ी
रह , कुछ अव ा से तो कुछ डरी हई, रावण के आदेश क ती ा करती।
कु भकण ने रावण क गोद म बैठी ी क ओर संकेत िकया। “बाहर जाओ।”
उस ी ने उठने क कोिशश क , मगर रावण ने कठोरता से उसे वापस अपने व क
ओर ख च िलया। “अपनी सीमा मत लांघो, कु भकण,” वो फुफकारा।
कु भकण आगे बढ़ा और उसने रावण के गले म पड़े लटकन क ओर संकेत िकया।
“यह िचिक सालय वो वचन था जो आपने क याकुमारी के नाम पर िदया था, दादा। उनक
अं येि के समय हमने उनके कािमक ऋण अपने ऊपर िलए थे। आप भले ही यह भल ू गये
ह , मगर म नह भल ू ा हँ। म उस िचिक सालय को बनवा कर रहँगा। वहाँ रोिगय का िनशु क
उपचार होगा और वो जीवन बचायेगा। और आप इस ह डी पर अपनी मोहर लगायगे।”
रावण मौन था। उसके चेहरे पर कोई भाव नह थे, न ोध के न पछतावे के और न ही
दुख के। उसने अपनी पीड़ा से मादक य , मिदरा और मख ू ि य म आसरा लेना चाहा था।
इस आसरे का मू य अपने मि त क का समपण था।
कु भकण आगे बढ़ा, उसने रावण का हाथ थामा और उसक तजनी क अँगठ ू ी,
राजक य मोहर, को ह डी पर लगा िदया। अब यह क याणकाय रावण का धन लगाने के
िलए अिधकृत था।
कु भकण ने अपने भाई क गोद म असुिवधाजनक ढं ग से पड़ी ी पर िनगाह डाली
और बोला, “आपक प नी ह, दादा। उनका इस तरह अपमान नह होना चािहए।”
रावण ने उ र नह िदया।
कु भकण मुड़ा और क से बाहर चला गया। रावण क गोद म बैठी ी उसके िनकट
िखसक और उसने उसके गाल को सहलाया। बनावटी नेह से वो धीरे से बोली, “आपके भाई
ने िजस तरह से आपसे बात क वो मुझे अ छा नह लगा।”
रावण क िति या तेज़ थी। उसका घँस ू ा और ज़ोर से उस औरत के चेहरे पर पड़ा।
ू ा घम
उसक नाक टूट गयी। वो पीड़ा से िच लाती भिू म पर लुढ़क तो रावण ने िच ला कर दूर
खड़ी नतिकय से कहा, “िनकल जाओ यहाँ से! सब!” उसने अपने पैर म पड़ी सुबकती हई
ी क ओर संकेत िकया, िजसका चेहरा लाल हो गया था, नाक से र बह रहा था। “और
इस कुलटा को भी अपने साथ ले जाओ!”
ि याँ भागती हई उसके क से िनकल गय तो रावण अपने आसन पर लुढ़क गया
और उसने कस कर वेदवती क उँ गिलय को पकड़ िलया। उसक ब द आँख से आँसू
िनकल कर उसके गाल पर बह आये थे।
तमु इससे बेहतर कर सकते हो। कम-से-कम यास तो करो।
अ याय 24

“मुझे नह पता िक म सही कर रहा हँ या नह । लगता है जैसे म उन पर बहत अिधक दबाव


डाल रहा हँ,” कु भकण ने कहा। “आजकल वो बहत कमज़ोर पड़ गये ह।”
वै नाथ म क याणाथ िचिक सालय बनवाने के िलए कु भकण ारा रावण से बलात्
अनुमित िलये हए कई माह हो गये थे। वो मि दरनगरी म था और िनमाण काय शु होने से
पहले सारी तैया रयाँ देख रहा था। धन आवंिटत हो गया था। िचिक सक को ढूँढ़कर िनयु
कर िदया गया था। भवन कुछ माह म बन कर तैयार हो जाना था। मबकुर जो इतने वष से
कु भकण के स पक म रहा था, अभी काय को अि तम प देने के िलए वै नाथ म मौजदू
था।
“आपके भाई बहत कुछ हो सकते ह,” मबकुर ने कहा, “िक तु िन य ही वो कमज़ोर
नह ह।”
“सच तो यह है, इन िदन उ ह देख कर दुख होता है। उ ह ने मादक य और मिदरा
के सामने जैसे समपण कर िदया है। वो लगभग पतालीस वष के ह, वो इस तरह अपने शरीर
को न नह करते रह सकते। और इस सारे तनाव के साथ जो म उन पर डाल रहा हँ, म इसे
और मुि कल बना रहा हँ।”
“आप ग़लत ह। तनाव तो अ छा होता है।”
“ओह, रहने दीिजए, मबकुरजी। तनाव कैसे अ छा हो सकता है?”
मबकुर ने उनके पीछे एक चबत ू रे पर जलते चू हे क ओर संकेत िकया िजस पर पानी
से भरा एक बतन रखा था। इस उबलते पानी म अंड और आलुओ ं का साधारण-सा भोजन
पक रहा था।
“इस उबलते पानी को देख रहे ह?” मबकुर ने कहा।
“इसका तनाव से या स ब ध है?” कु भकण ने पछ ू ा।
“इससे आपको समझने म सहायता िमलेगी।”
कु भकण ने गहरी सांस ली। “आप लोग पहे िलय के िबना बात य नह कर
सकते?”
“ य िक पहे िलय म बात करना आन ददायक होता है। और अगर आप िकसी पहे ली
को हल करगे तो उस िवचार को अ छी तरह समझ सकगे। जैसा िक िकसी ने कहा है :
परो ि या वै देवाः।”
सं कृत क इस कहावत का मोटा-मोटा अनुवाद इस तरह था िक देवताओं को भी घुमा-
िफरा कर कही बात पस द होती है।
“तो दशनशा कभी य प से भाव य नह कर सकता है?” कु भकण ने
पछू ा।
“कर सकता है, िन स देह। मगर िकसी जिटल पहे ली के प म भाव को य करना
कह अिधक िचकर होता है। स देश के गढ़ ू अथ को समझना दशनशा के आन द को
बनाये रखता है। इस तरह पाया गया ान एक उपलि ध का अहसास दान करता है। अगर
िकसी उपलि ध या आ य का भाव ा न हो तो अ यिधक मह वपण ू स देश भी अपने ल य
तक पहँचने म असफल रहते ह।”
“तो मुझसे अपे ा क जाती है िक म उस बड़े िब दु तक पहँचँ ू जो आप इस उबलते पानी
के साथ सामने रखना चाह रहे ह?” कु भकण ने पछ ू ा।
“न केवल आप समझगे बि क वयं ही इस तक पहँचगे।”
कु भकण ने हताशा से हाथ झटके। “ठीक है तो। आपके के उ र म, हाँ, म पानी
को उबलते देख रहा हँ।”
“अंडे और आलू दोन एक ही पानी म ह, है ना?”
“हाँ, प है। म यह देख सकता हँ।”
“तो ये दोन व तुएँ समान तापमान पर, समान वातावरण म और समान आग पर रखे
समान बतन म उबल रहे पानी म पक रही ह।”
“हाँ।”
“इस उबलते पानी म अंडे का या होगा?”
“वो उबला अंडा बन जायेगा।”
मबकुर हँस पड़े । “इतना तो प है। म यह जानना चाहता हँ िक उबला अंडा मल ू अंडे
से कैसे िभ न है?”
“यह कठोर हो जाता है।”
“िब कुल! अब, आलुओ ं के बारे म सोच। उनक पानी म या ि थित होगी?”
कु भकण मु कुराया। “वो नम हो जायगे।”
“देखा आपने? समान उबला पानी, समान बतन, समान तापमान, मगर िफर भी अंडे
कठोर हो जाते ह और आलू नम।”
“यानी उबलता पानी तनाव क भाँित है। िभ न लोग इसके ित िभ न तरह से
िति या करते ह। यह िकसी को कठोर बनाता है और िकसी को नम। आप यही कहना चाह
रहे ह?”
“यह तो प -सी बात है, िक तु थोड़ा और सोच। उबलते पानी का तनाव झेलने से
पहले अंडा कैसा होता है?”
“इसका ख़ोल कठोर होता है मगर अ दर तरल होता है।”
“तो अंडा बाहर से कठोर मगर अ दर से नम होता है। और उबलता पानी, तनाव इसे
अ दर से भी कठोर बना देता है, सही ना?”
“हाँ |”
“अब आलू के बारे म सोच। आप इसका वणन कैसे करगे?”
“इसका पतला-सा िछलका होता है तो यह बाहर से नम और अ दर से कठोर होता है।”
“तनाव के ित भी लोग क बहत कुछ ऐसी ही िति या होती है। जो अ दर से नम
होते ह, वो सही मा ा म तनाव िमलने से कठोर हो जाते ह, और जो अ दर से कठोर होते ह
वो नम हो जाते ह। अगर इस बारे म आप इस तरह से सोच तो च र को स तुिलत करने के
िलए आपको सही मा ा म तनाव क आव यकता होती है। आव यकता से अिधक तनाव
अ छा नह होता वो आपको तोड़ सकता है। ना ही िब कुल तनाव न होना अ छा है। च र के
स तुलन और सही िवकास के िलए आपको सही मा ा म तनाव क आव यकता होती है।”
“तो आप कह रहे ह िक म अपने भाई को जो तनाव दे रहा हँ, वो उ ह िफर से सश
कर देगा?”
मबकुर ने िसर िहलाया। “म आपके भाई क बात नह कर रहा हँ। म आपक बात कर
रहा हँ।”
कु भकण के माथे पर बल पड़ गये, वो अचि भत था।
“संसार भर म लोग आपके जैसे लोग , नागाओं, के ित पवू ा ह से त ह। आपका
बाहरी प कठोर, भयानक है। मगर अ दर से आप स जन और संवेदनशील ह। आप उन
कुछ े लोग म से ह िज ह जानने का सौभा य मुझे िमला है।”
कु भकण ने कुछ नह कहा, हालाँिक इस अ यािशत शंसा पर वो आन द से लजा
गया था।
मबकुर ने आगे कहा, “सच तो यह है िक आपके भाई के साथ जो हो रहा है, उसका
तनाव आप महसस ू कर रहे ह। यह तनाव आपको सश बना रहा है। यह आपको उसका
सामना करने के िलए तैयार कर रहा है जो आने वाला है।”
“ या आने वाला है?”
“िव णु।”
“िव णु?”
“सातव िव णु आयगे। अधम के माग पर चलने वाल के िलए यह किठन समय होगा।
अपने भाई क आ मा को सही माग क ओर िनदिशत करने और उस पर लाने का दािय व
आपका होगा, कु भकण। आपको ही लंका के बेगुनाह को बचाना होगा। आपको अिधक ढ़
होना होगा।”
“मने तो िकसी िव णु के आने के बारे म नह सुना...”
मबकुर मु कुराया। “आग लगने पर केवल मख ू ही तब हरकत म आते ह जब वो उनके
िसर पर आ जाती है। बुि मान तो उसे जलाए जाने के वष पहले ही उसका आभास पा लेते
ह।”
“मगर िव णु मेरे भाई के पीछे य जायगे?”
मबकुर ने कु भकण को देखा, इस प प से मख
ू तापण
ू पर उनक भँव चढ़
गयी थ ।
चेहरे पर शिम दगी िलए कु भकण शी ता से पीछे हटा। “यह िव णु कौन ह? उनका
या नाम है?”
मबकुर पलांश को िझझका, िफर उसने उ र िदया, “यह उ र अभी प नह है।”
मबकुर जानता था िक वो कु भकण को सच नह बता सकता, मगर वो झठ ू भी नह
बोल रहा था। कम-से-कम, तकनीक प से तो नह ।

“आपने मुझे बुलाया, दादा?” कु भकण ने क के ार पर खड़े होकर ज़ोर से पछ ू ा।


करछप क लड़ाई को बीस साल बीत चुके थे। गत वष ने रावण के यवहार म प रवतन
देखा था। सतालीस वष के रावण ने अपने नशे क लत को कम करने क ओर यान िदया
था। एक बार िफर उसने अपने यापार का िनय ण सँभालना शु िकया। वो कभी-कभार
वै नाथ के िचिक सालय के बारे म भी पछ ू िलया करता था, य िप वो कभी वहाँ गया नह
था।
कु भकण का मानना था िक उसका भाई उस ासदी के कारण अपनी उदासीनता और
आ मतुि से बाहर िनकल आया है जो कुछ वष पहले िसिग रया म अचानक आ पड़ी थी।
एक रह यमय महामारी ने शहर को अपनी ू र चपेट म ले िलया था और इससे िनबटने के
सभी उपाय असफल हो रहे थे। िविच प से इसका भाव ब च के बीच सबसे अिधक था।
िशशु समय से पहले ज म ले रहे थे और अनेक तो सव के दौरान ही म ृ यु को ा हो गये
थे। जो जीिवत बचे, वो कुछ सीखने म अ म, भख ू के अभाव, लगभग िनर तर पेट म दद,
िशिथलता और थकान के साथ बड़े हो रहे थे। कुछ म बहरापन था और उ ह िनर तर ऐंठन
या दौरे पड़ते थे। वय क भी पीड़ा से मु नह थे। अनेक दुबल कर देने वाले जोड़ और
माँसपेिशय के दद और घोर सरदद से पीिड़त थे। बड़ी सं या म गभवती ि य के गभपात
और मत ृ िशशु उ प न हो रहे थे, और अनेक क सव के दौरान म ृ यु हो गयी थी।
य िप शारी रक ल ण ने यापक खलबली मचा दी थी, मगर उससे भी हािनकारक
देश भर म िगरता मनोबल था। लंका के सबसे अ छे िचिक सक भी इस महामारी का उपचार
ढूँढ़ पाना तो दूर इसके कारण को भी नह समझ पा रहे थे। लगभग सारी जनसं या िकसी-
न-िकसी प म क भोग रही थी, अफ़वाह फै लने लग िक िसिग रया पर िकसी कार का
शाप लग गया है।
रावण को महामारी को ले कर सबसे अिधक िच ता यह थी िक इससे सेना कमज़ोर हो
रही थी। वो िह द महासागर क िविभ न यापा रक चौिकय से लंका के कुछ सै य बल को
बुला कर सेना को सु ढ़ कर सकता था, मगर इससे ब दरगाह अरि त हो जाते। साथ ही,
इससे लंका के श ुओ ं को इस त य क जानकारी हो जाती िक ीपीय रा य म सब कुछ
ठीक नह है, और इससे िव ोह को हवा िमलती।
रावण ने स िस धु तक बात पहँचने िदये िबना वयं को नगर क सुर ा म विृ
करने के काम म लगाया, तो सम या क ओर कु भकण क नीित शोध म और िचिक सक
और प रचारक के िश ण म और अिधक धन िनवेश करने क थी। अपने भाई के उ र क
ती ा करते हए वो इसी बारे म सोच रहा था।
िफर उसे रावण क आवाज़ सुनायी दी। “हाँ, कु भ। अ दर आ जाओ।”
कु भकण ने रावण के गु क म वेश िकया, जहाँ उसके बड़े भाई के अनेक
पस दीदा वा य , और हजार क सं या म अितिविश पांडुिलिपयाँ रखी थ । सबसे
मह वपण ू वहाँ क याकुमारी के उसके अनमोल िच भी रखे हए थे।
“यहाँ इतना कम काश य है?” उसने पछ ू ा।
रावण ने दीवार पर लगी मशाल क ओर संकेत िकया। “अब तुम इ ह जला सकते हो।
इस अि तम भाग को परू ा करने के िलए मुझे बहत ह के काश क आव यकता थी।”
कु भकण ने मशाल को जलाया और यह देखने के िलए अपने भाई के पास पहँचा िक
वो िकस पर काम कर रहा है। िच पटल के य को देख कर उसका मँुह खुला रह गया।
रावण ने पछू ा, “तु हारा या कहना है?”
कु भकण के मन म जो श द उभरे थे, उ ह कहते-कहते वो क गया। भयंकर और
साथ ही साथ भ य।
यह वेदवती का िच था, मगर उन वेदवती का नह िज ह वो जानता था। िच म, वो
उसी आयु क थ जब उनक म ृ यु हई थी, मगर वो समानता बस यह समा हो जाती थी। यह
ी सु ढ़ और शि शाली थी, उनका शरीर बिल और पु था। असल जीवन म वेदवती
िजतनी ल बी थ , यह उससे अिधक ल बी थ । य िप रावण ने उनके अनुपात के साथ
छे ड़छाड़ नह क थी, मगर बिल काया के कारण उनके उभार कम प थे। रावण ारा
लाये गये सभी प रवतन के िमले-जुले भाव के कारण वो वा स यमयी कम और िकसी
यो ा राजकुमारी क भाँित चंड अिधक लग रही थ । वो एक शानदार घोड़े पर सवार थ ,
उनके खुले हए बाल हर िदशा म उड़ रहे थे। एक हाथ म ऊँची उठी र रं िजत तलवार थी, जो
िफर से वार करने के िलए तैयार थी। उनके सामने, क चड़ भरी भिू म पर स िस धु के अनेक
राजा घुटन के बल बैठे थे। वो हताश और भयभीत िदख रहे थे। कुछ के मँुह िच लाने के भाव
से खुले हए थे। कुछ के िसर धड़ से अलग िकये जा चुके थे, जबिक अ य प प से दया
क गुहार लगा रहे थे। प ृ भिू म म, बहत दूर, साधारणजन थे—भारतीय—िनधन और दीन-
हीन, मगर अ य त स न िक उनक देवी उनके यातनादायक का संहार कर रही ह।
भयंकर और साथ ही साथ भ य।
“ या कहते हो?” रावण ने िफर से पछू ा।
“यह... यह भ य है, दादा! समझ नह पा रहा या कहँ,” कु भकण हकला-सा गया
था।
“मुझे स नता हई िक तुम ऐसा सोचते हो,” रावण ने कहा। “संसार को उ ह इसी प
म याद रखना चािहए। इसी तरह संसार उ ह याद करे गा।”
मगर वो ऐसी तो नह थ ।
कु भकण ने अपने िवचार अपने तक ही रखे।
“इनके चेहरे को देखो। मने इ ह िब कुल वैसा ही उकेरा है जैसी वो तब थ जब हम
अि तम बार िमले थे।”
“हाँ, दादा। आ य क बात है िक बीस से अिधक वष बाद भी ये आपको िब कुल प
याद ह।”
“कोई आ मा अपने अि त व के कारण को कैसे भल ू सकती है?”
कु भकण कोई उ र देता, इससे पहले रावण मुड़ा और उसने एक प उठा िलया,
उसक आँख उ साह से चमक रही थ । “इसे देखो।”
कु भकण ने प िलया और ज दी से पढ़ डाला। “इसका या अथ हआ?”
“इसका या अथ हआ?” रावण ने पछ ू ा। “तुम अँधे हो या? िफर से पढ़ो। यह तो
फिटक क तरह प है।”
“हाँ, िक तु...”
“िक तु या?”
“यह िमिथला रा य से राजकुमारी सीता के वयंवर म शािमल होने का िनम ण है।”
िमिथला स िस धु का एक रा य था िजसके अ छे िदन बहत पीछे छूट गये थे। कभी
यह गंडक नदी के िकनारे बसा एक सम ृ नदी-प न नगर रहा था। मगर अनेक वष पहले
भकू प के कारण नदी के माग म बदलाव हो गया िजससे नगर क समिृ और शि म भारी
कमी आ गयी। मगर, अपनी कमतर ि थित के बावजदू िमिथला परू े स िस धु से स मान
पाता था। यह एक ऐसा नगर था िजसे ऋिष-ऋिषकाएँ पस द करते थे, और कम-से-कम
आ याि मक और बौि क स दभ म यह भारत के सवािधक स मािनत रा य म से एक था।
“िब कुल।”
“मगर य ...?”
“म य जाऊँगा?”
“यह जाल है, दादा। आप जानते ह िक स िस धु के राजप रवार आपसे घण ृ ा करते ह।
वो आपको य आमि त करगे? कृपया आप न जाय? कृपया आप न जाय।”
रावण चिकत-सा िदखा। “मुझे तो लगता था िक तुम चाहते हो म स िस धु के साथ
शाि त थािपत करने का यास क ं ।”
कु भकण ने पल भर को वेदवती के िच को देखा, िफर रावण क ओर मुड़ा।
“मने यह िच अनेक माह पहले बनाना शु िकया था। म एक नई शु आत करना
चाहता हँ,” रावण ने कहा। “इस िनम ण से म सोचने लगा हँ िक शायद हम स
िस धुवािसय के साथ सच म िमलजुल कर रह सकते ह। शायद हमारी स पि भी कुछ
क याण-काय म लगायी जा सके। यह है िक तुम मेरे साथ हो या नह ?”
कु भकण को मबकुर के कोई आठ वष पहले के श द याद आ गये। मझ ु े िव ास है िक
रावण क आ मा को िफर से बचाने का अवसर आयेगा जब समय आयेगा तो उ ह आपक
सहायता क आव यकता होगी।
वो रावण को गले लगाने के िलए आगे बढ़ा। “िन स देह म आपके साथ हँ, दादा!”
अगर हम अधम से दूर जा सक तो िव ण ु के पास हम पर आ मण करने का कोई
कारण ही नह होगा।

अकंपन चकरा गया था। “मगर, इराइवा, म समझा नह । िमिथला? वो तो... वो तो कुछ नह
ह। उनका तो बस ानी और दाशिनक के तौर पर स मान िकया जाता है। उनके पास कोई
वा तिवक शि नह है।”
अकंपन का वा तिवक वामी रावण सामा य तौर पर तो उससे चुप रहने और जैसा
कहा गया हो वैसा करने को कहता। मगर मह वपण ू यि , बड़े काम करने वाले यि य
म आमतौर पर एक कमजोरी होती है : वो अपने बड़े काम क बात करना चाहते ह। वो
सुनना चाहते ह िक वो िकतने महान ह, श द म नह तो अपने अनुचर क आँख म शंसा
के भाव म। रावण भी िभ न नह था। सामा यतया वो अपनी योजनाएँ केवल कु भकण को ही
बताता था। इ जीत अभी बहत छोटा था, और अ य लोग के िलए रावण के मन म कोई
स मान नह था। मगर कुछ समय से, भाइय के बीच बातचीत तनावपण ू हो गयी थी।
कु भकण क लगातार धम क बात रावण को उबाने लगी थ ।
“शपथ लो िक इस बारे म कभी िकसी से कुछ नह कहोगे,” रावण ने कहा।
अकंपन ने तुर त लंका का मानक अिभवादन करने क दयनीय-सी कोिशश क ।
“िन स देह, इराइवा।”
“कु भकण से भी नह ।”
अकंपन का सीना गव से फूल गया। अ ततः उसके वा तिवक वामी ने उसके मोल
को पहचाना था। वो उस पर अपने र से अिधक िव ास जता रहे थे। “ व न म भी नह ,
इराइवा। म शपथ लेता हँ। म महा भु जग नाथ क शपथ लेता हँ।”
“तो म यह करने वाला हँ। जैसे ही म वयंवर को जीतंग ू ा, म िमिथला का अिध हण
कर लँगू ा और राजा जनक से अपने आदेश का पालन करवाऊँगा। म उ ह, और उनक ऋिष-
सभा को िववश कर दंूगा िक मुझे जीिवत ई र के प म वीकार कर। सांसा रक मामल म
िमिथला शि हीन हो सकता है, मगर जब बात आ याि मक मामल क आती है तो इसक
िगनती सवािधक पू य म होती है, शायद काशी के समक ही। केवल सर वती नदी के
िनकट थ भिू म ही इससे अिधक ा पाती है। अगर िमिथला मुझे ई र के प म पज ू ना शु
कर देगा तो स िस धु के कई अ य रा य भी इसका अनुकरण करगे। मेरे जीिवत रहते हए
ही वो मेरे मि दर बनवायगे। तब, और केवल तब म अमर व के ित आ त हो सकता हँ।”
वयंवर का एक और प भी था जो रावण को रोमांिचत कर रहा था। राजकुमारी सीता
से उसका िववाह स िस धुवािसय के िलए परू ी तरह अपमानजनक होगा; यह उ ह
िदखायेगा िक वो न केवल उनके ब दरगाह और स पि को, बि क उनक ि य को भी
लेने म स म है। इ ह कारण से उसने म दोदरी से िववाह िकया था। मगर म दोदरी तो बस
एक भू वामी क पु ी थी। सीता एक राजा क पु ी थ —असली राजकुमारी। एक राजप रवार
क क या से िववाह करके राजप रवार को अपमािनत करने के िवचार ने रावण को बेपनाह
स तुि दी थी। मगर वो अकंपन को यह नह बता सकता था। भले ही वो िन ावान सेवक
हो, मगर रावण उसके साथ तो अपने िनजी जीवन पर चचा नह कर सकता था।
इस बीच िन ावान सेवक अभी भी गहरे सदमे म था। “मगर इराइवा, आपको लगता है
िक वो मान...”
“मानगे।”
“म आपसे असहमत होने वाला कौन हँ? िक तु, मेरा मतलब... स िस धु के लोग
हठी ह। वो उतने खुले िवचार के नह ह िजतने हम लंकावासी ह। यहाँ तक िक िव णु और
महादेव के मि दर भी उनके जीिवत रहते नह बने थे।”
रावण आगे को झुका, उसका चेहरा अकंपन के चेहरे के िनकट आ गया था। “तुम कह
रहे हो िक म िकसी िव णु या महादेव से कम हँ?”
“ऐसा सोचने क भी मेरी िह मत नह होगी, महान इराइवा! आप तो िन स देह उनसे
भी महान ह। मगर मुझे यह नह पता िक स िस धुवासी भी या इस प स य को देखगे।
कभी-कभी लोग यह मानने से भी इंकार कर देते ह िक सय ू देव उिदत हो गये ह, भले ही िदन
चढ़ आया हो!” अकंपन ने चापलस ू ी भरी मु कुराहट के साथ कहा।
“तु ह इसक िच ता करने क आव यकता नह है। जो स य है उसे वो देखगे। मेरा
िव ास करो।”
“मुझे िव ास है िक आप सही कह रहे ह, इराइवा। अ यथा वो आपको य आमि त
करते?”
“उ ह ने इस बारे म नह सोचा था। मने उनसे ऐसा करवाया था।”
“सच?” अकंपन भािवत था।
“हाँ। संक य के राजा कुश वज िमिथला के राजा जनक के भाई ह। उन पर लंका का
भारी ऋण है। कुछ वष पहले जब अचानक उनके धानम ी सुलोचन क दयाघात से म ृ यु
हई, तब से उनके यापा रक काय अ त- य त हो गये ह। हमने उनका ऋण माफ़ कर िदया
और उ ह ने िनम ण का ब ध कर िदया।”
“यह तो बहत अ छे से हो गया, महान इराइवा।”
अकंपन क शंसा पर रावण स न िदखा। “हाँ, मने इसे बहत अ छे से िकया।”
“वैसे, िमिथला म हमारा भी कोई है, वामी।”
स िस धु के सभी रा य म रावण के अिधकृत यापा रक ितिनिध थे। मगर बस
इतना ही नह था। उसने सारे रा य म एक गोपनीय गु चर जाल भी िबछा िदया था। ये
गु चर और िन ावान लोग वेष बदल कर उसके िलए काम करते थे, और चुपचाप यह प का
करते थे िक उसक योजनाएँ भावी प से ि याि वत ह ।
“मुझे नह लगता था िक िमिथला हमारे िलए इतना मह वपण ू है िक हमने वहाँ िकसी
को रख छोड़ा है?” रावण ने कहा। “िक तु मुझे आशा है िक इससे हमारे उ े य म सहायता
िमलेगी। कौन है वो?”
“वैसे अनेक वष से हम सि यता से उसका संचालन नह कर रहे ह। जैसा आपने
कहा, वामी, िमिथला कोई बहत मह वपण ू रा य नह है, और उसके साथ हमारा कुछ अिधक
यापार भी नह है। मगर हमारे गु चर को रा य के शासन म बहत ऊँचा पद हािसल है—
िमिथला के नगर-र क और नयाचार मुख का।”
“कौन है यह पु ष?”
“ ी, वामी। उसका नाम समीची है।”
लड़क का नाम सुनकर रावण जड़ हो गया। कु भकण के अलावा उसने ऐसे िकसी
यि से सरोकार नह रखना चाहा था जो वेदवती क ह या के समय उसके साथ रहा हो।
उनक मौजदू गी उसे उस भयानक िदन क याद ही िदलाती रहती। उसके साथ टोडी गये
लंका के सभी सैिनक को ऐसी साधारण चौिकय पर भेज िदया गया था जहाँ उसे उ ह कभी
न देखना पड़ता। समीची का नाम सुनने भर से वो सारी याद वापस चली आयी थ और एक
बार िफर उसे वेदवती क र ा न कर पाने क याद िदला गयी थ ।
“उससे बात कर और सुिनि त कर िक सब कुछ मेरे प म तैयार हो,” उसने कहा।
“िब कुल, इराइवा।”
“कोई चकू नह होनी चािहए।”
“िब कुल सही, इराइवा।”
“और वहाँ होने के दौरान म समीची को देखना या उससे िमलना नह चाहता। या यह
प है?”
अकंपन उलझन म पड़ गया, मगर तुर त सहमत हो गया। “जैसा आप चाहगे,
इराइवा।”

पु पक िवमान कुछ देर हवा म ही मंडराता रहा, जबिक उसके घण ू क धीरे -धीरे म द पड़ रहे
थे। िफर, बहत आराम से, वो धरती पर उतरा। रावण के पास बेहतरीन िवमान-चालक थे।
जब ार िखसक कर खुला, तो रावण अपने िव यात उड़न-यान के गभ से बाहर
आया, उसके पीछे -पीछे कु भकण था। िकि क धा का राजा और महान वानर वंश का वंशज
वािल अपने परू े दरबार के साथ सुरि त दूरी पर खड़ा हआ था।
दस सह सैिनक क रावण क सेना पहले ही भारत के पवू समु और िफर गंगा के
माग से िमिथला के िलए चल पड़ी थी। अपने पोत से उतरने के बाद वो जनक के रा य क
ओर कूच करती और रावण के पहँचने क ती ा करती। इस बीच पया िदन थे तो िमिथला
जाते हए रावण ने िकि क धा कने का िनणय िकया।
िवशाल पाषाण-खंड और च ानी पहािड़य से भरा िकि क धा का देश च मा क
सतह जैसा था। उ र-पवू म बहती चंड तुंगभ ा बलखाती इस सपनीले देश म बहते हए
अ तत: उ र म कृ णा नदी म िमल जाती थी। कृित के साथ सामंज य और अिधकांश
वैिदक लोग क मिू त-पज ू क शैली के कारण नगर के अनके िह स म िवशाल मि दर का
िनमाण हआ था जहाँ पिव तुंगभ ा, इसके आसपास क भिू म और ाचीन देवताओं क पज ू ा
होती थी। िकि क धा का येक नगर िकसी मि दर के आसपास बसा था िजसके चार ओर
बाज़ार, े ागहृ , पु तकालय, उपवन और घर थे। वािल बुि मान और शि शाली राजा था।
उसका रा य सम ृ था और जा सुखी थी। और उसक वीरता, मान और सुिश आचरण क
याित दूर-दूर तक फै ली हई थी।
“कुछ गड़बड़ है,” ती ारत आितथेय क ओर बढ़ते हए कु भकण ने धीमे से कहा।
वहाँ पार प रक वैिदक वागत का कोई िच नह था, िजसक उ ह अपे ा थी। न
सजे-धजे हाथी, न अलंकृत गाय, और न ही आरती के थाल िलये पुरोिहत । यही नह , वागत
दल असहज चु पी से िघरा हआ था—वहाँ कोई संगीत या जय-जयकार नह हो रही थी।
शीष पर वािल मौन खड़ा था, उसके हाथ िवन नम ते म जुड़े हए थे। िकि क धा का
राजा गौर वण का, असामा य प से बाल भरा और औसत ल बाई का असाधारण प से
बिल शरीर का था। वो पर परागत सज-धज के साथ था मगर कुछ अ यमन क-सा िदख
रहा था।
“मुझे सु ीव नह िदख रहा,” रावण ने धीरे से कु भकण से कहा।
सु ीव वािल का छोटा सौतेला भाई था, और रावण क राय म अश मख ू था। सु ीव
को एक महान राजा के िबगड़े , आलसी भाई के प म देखने वाले अिधकांश लोग उसके ित
रावण क राय से सहमत होते, वो अपने अ यिधक सफल बड़े भाई क उपलि धय के सामने
कह नह ठहरता था और इसिलए अपनी असुर ाओं को वो मिदरा और त ू म भुलाता था।
सु ीव ने इतने अिववेकपण ू काम िकये थे िक वो रा य से िनकाल िदये जाने के यो य था,
मगर उनक माँ आ िण के संर ण के कारण वािल अपने छोटे भाई को िन कािसत नह कर
पाया था।
“मुझे भी नह िदख रहा,” कु भकण ने नम वर म कहा।
अवसर क संघ ू पाकर रावण मु कुरा िदया।

िकि क धा मातवृ ंशीय समाज था। िसंहासन पर अिधकार िपता से पु को नह िमलता था,
बि क माँ से बेटी को ा होता था। बेटी का पित राजा के प म माँ के पित का थान लेता
था। मगर हठी और शि शाली देवी आ िण ने इस पर परा को तोड़ा और अपने यो य बड़े पु
को राजा बनाया। उनक कोई पु ी नह हई थी, और पर परा के अनुसार राजवंश को अपनी
छोटी बहन क ी वंशज के हवाले करने के थान पर उ ह ने तय िकया िक स ा को
अपने ही प रवार म रखगी।
रावण इस इितहास से प रिचत था, मगर इस समय िकि क धा के महल के अितिथगहृ
म वािल के पास बैठे हए उसे इसम िच नह थी। कु भकण के िसवा आसपास और कोई नह
था, वािल के अंगर क भी नह । िच ता दशाते हए रावण क भाव-भंिगमा सावधानी से तराशी
हई थी। “आप याकुल िदख रहे ह, राजा वािल। आशा है आपको िदया जाने वाला सीमा-शु क
का भाग बहत कम नह होगा? कभी-कभी मेरे आदमी कुछ अिधक लालची हो जाते ह,”
उसने कहा।
वािल फ केपन से मु कुराया। “आपके लोग जानते ह िक मुझसे पंगे नह िलए जा
सकते। म वािल हँ।”
रावण िदल खोल कर हँसा। “आप वीर ह, मेरे िम ।”
वािल ने रावण को देखा, उसके चेहरे पर दुख था। य िप वो मौन रहा, मगर उसक
सनू ी आँख जैसे बोल रही थ । वीर? म?
अब रावण को िव ास हो गया था िक उस सुबह अपने गु चर से उसे िमली सच ू ना
सही थी। मगर अपना पाँसा फकने से पहले उसे सुिनि त होना था।
“िम ,” उसने कहा। “अंगद कहाँ ह? मुझे वो कह िदखाई नह दे रहे ? आशा है वो
व थ ह गे?”
अंगद वािल का पाँच वष य पु और उसक आँख का तारा था। कठोर, खा और
िवर वािल, िजसे लोग ेम से अिधक स मान करते थे, अपने इकलौते पु के साथ होने पर
िब कुल िभ न यि होता था। जब भी अवसर िमलता तो वो उसके साथ हँसता, खेलता,
और उसे दुलारता था। कभी-कभी अंगद के िलए घोड़ा भी बन जाता था। अंगद के ज म से ही,
िकि क धा के नाग रक , यहाँ तक िक राजप रवार के लोग , ने भी वािल का एक
अनौपचा रक, म तमौला प देखा था।
“हाँ... अंगद... वो...” वािल बोलते-बोलते क गया, उसके चेहरे पर पीड़ा छा गयी थी,
उसक आवाज़ ँ ध गयी थी।
अब रावण को यक़ न हो गया था िक उसक सच ू ना सही है। उसने अपनी सांस को
िनयि त िकया। वो अपने उ साह को िदखने नह दे सकता था।
बाद म। िकि क धा को म बाद म हिथयाऊँगा। िमिथला पर अिध हण करने के बाद।
दूसरी ओर, कु भकण वािल के चेहरे पर िदख रही पीड़ा से अचि भत था। उसने
िकि क धा के शि शाली राजा को कभी इस हाल म नह देखा था। “महान राजा,”
कु भकण ने कहा, “सब कुशल तो है?”
वािल अचानक उठा और उनके सामने हाथ बाँधकर खड़ा हो गया। “मुझे मा कर,
िम ो। मुझे... मुझे जाना होगा। म कुछ देर म आता हँ।”
रावण और कु भकण भी तुर त खड़े हो गये।
“अव य, वािल,” रावण ने कहा, उसका चेहरा िच ता क त वीर िदख रहा था। “अगर
हम कुछ कर सकते ह तो कृपया हम बताइयेगा।”
“ध यवाद। हम बाद म बात करगे।” यह कहते हए वािल ल बे डग भरता क से बाहर
िनकल गया।
कु भकण जाते हए वािल को तकता रहा और िफर अचि भत-सा अपने बड़े भाई क
ओर मुड़ा। “मुझे नह पता था राजा वािल अपनी माँ से इतना ेम करते थे।”
एक माह पहले ही वािल क माँ आ िण का अ पकािलक बीमारी के बाद देहा त हो
गया था।
“बात उसक माँ क नह है,” रावण ने कहा।
कु भकण हैरान िदखा। “िफर या बात है? वो तो एकदम िनढाल िदखते ह। मने कभी
सोचा भी नह था िक वो िकसी भी िवपदा से इतने हताश हो सकते ह। उ ह कोई बात तो
खाये जा रही है।”
यह प का करने के िलए िक वो लोग वा तव म अकेले ही ह, रावण ने ार क ओर
एक िनगाह डाली। “हम जो बात कर रहे ह, वो हमारे बीच ही रहनी चािहए। परू ी तरह से हमारे
बीच।”
“िन स देह,” कु भकण ने तुर त कहा। “बात या है?”
“बात अंगद क है।”
“अंगद क ? या उस यारे बालक को कुछ हो गया है?”
“उसे अभी तो कुछ नह हआ। मामला वो है जो उसका ज म होने से पहले हआ था।”
“उसके ज म से पहले?”
“हाँ। या तु ह िनयोग क पर परा क जानकारी है?”
कु भकण अवाक रह गया। िनयोग एक ाचीन पर परा थी िजसके ारा वो ी
िजसका पित स तान उ प न करने म असमथ हो, िकसी अ य पु ष से उसे गभवती करने
क ाथना कर सकती थी। िविभ न कारण से, यह पु ष साम यतया कोई ऋिष होता था।
एक तो, अिधकांश ऋिषय का उनक उ च बौि क मताओं के िलए आदर िकया
जाता था, एक ऐसा गुण िजसके उनक स तान म आने क स भावना होती थी। उससे भी
मह वपण ू , चँिू क अिधकांश ऋिष घुम तु सं यासी होते थे, इसिलए यह लगभग िनि त होता
था िक वो स तान पर अपना दावा नह करगे। िवधान के अनुसार िनयोग रीित के मेल से
उ प न स तान उस ी और उसके पित क वैध स तान मानी जाती थी; ज मदाता िपता
िपत ृ व का दावा नह कर सकता था और उसे सदैव गुमनाम रहना होता था।
“जैसा मेरे गु चर ने मुझे बताया है,” रावण ने आगे कहा, “एक बार सु ीव को बचाते
हए वािल बहत बुरी तरह से घायल हो गया था। यह बहत वष पहले एक िशकार के दौरान
हआ था। उसका जीवन बचाने वाली औषिधय का दु भाव यह हआ िक उसक स तान नह
हो सकती थी। य कारण से इसे गोपनीय रखा गया था।”
“इनका वो िनकृ भाई,” कु भकण ने अ स नता से कहा। “तो आपका मतलब है
िक राजा वािल क प नी तारा ने िनणय िलया...”
“तारा ने नह ,” रावण ने बात काटी। “ प प से यह उनक माँ थ । रानी माँ ने तय
िकया िक वािल के बाद उसक स तान को िकि क धा पर शासन करना चािहए। और इसका
हल पाने के िलए वो िनयोग क ओर मुड़ ।”
“तो या?” कु भकण ने पछ ू ा। “अगर अंगद उनका अपना पु नह है तो इससे या
अ तर पड़ता है? िनयम प ह। चँिू क राजा वािल रानी तारा के पित ह, तो उनके पु के
िपता वही माने जायगे, भले ही स तान का ज मदाता कोई और हो। और अंगद अ ुत बालक
है। एक िदन वो महान राजा बनेगा। म देख सकता हँ, इस न ही उ म भी, िक उसने अपने
नेक िपता का जोश, उ साह और बुि पायी है।”
“मामला इससे कुछ अिधक जिटल है।”
“वो कैसे?”
“तुम जानते हो आ िण कैसी थ ।”
“हाँ, मने रानी माँ के हठी यवहार क कहािनयाँ सुनी ह...”
“हाँ, खैर, मुझे लगता है जब लोग म ृ यु के िनकट पहँचते ह, तो अपनी आ मा के बारे
म सोचने लगते ह। वो अपने पाप का ायि त करना और 'सच बता देना' चाहते ह।”
“उ ह ने राजा वािल को या सच बताया?”
“ य तः, जब आ िण ने िनणय िलया िक वंश जारी रखने के िलए िनयोग अिनवाय
है तो वो वािल क प नी को िकसी ऋिष के पास नह ले जाना चाहती थ ।”
“तो उ ह ने या िकया?”
“वो सुिनि त करना चाहती थ िक उनक वंशावली ही शासन करती रहे । तो
उ ह ने...”
“हे ई र!” सारी बात समझ म आते ही कु भकण के मँुह से िनकला।
सु ीव।
वाली क पीड़ा को महसस ू करते हए कु भकण िसर पकड़ कर बैठ गया। “म तो
क पना भी नह कर सकता िक वो िकतने दुखी ह गे। अंगद उनका गव और आन द है। और
अब... सच जानना... िक अंगद क रग म सु ीव का नीच र बह रहा है...”
“यही तो।” रावण ने कहा।
“ या अंगद जानता है?”
“जहाँ तक मुझे पता है, वो नह जानता।”
“तो रानी माँ ने राजा वािल को यह बता िदया?”
“हाँ। अपनी म ृ युशयै ा पर।”
“वो इस िवषय म चुप य नह रह पाय ?”
“अपराधबोध? उ ह अहसास होगा िक उ ह ने वािल के साथ सही नह िकया है और
अपनी म ृ यु से पहले वो उसके सामने यह वीकार करना चाहती थ ।”
“िकतनी वाथ बात है! अपनी आ मा के बुरे कम को धोने के िलए उ ह ने अपने पु
को यह बताया और उसे जीवन भर का दुख भट कर िदया।”
“तुम तो जानते हो माँएँ िकतनी वाथ हो सकती ह...”
कु भकण ने इस यं य को अनदेखा कर िदया। “ या राजा वािल ने उस भी सु ीव
से बात क ?”
“हाँ, और उसने भी यह वीकार कर िलया, और कहा िक इस मामले म उसके सामने
कोई चारा नह था। िक उसने तो बस उनक माँ क आ ा का पालन िकया था।”
“बकवास!” कु भकण ने कहा। “म िनि त कह सकता हँ िक सु ीव इस याशा से
स न होगा िक एक िदन उसक स तान िसंहासन पर बैठेगी।”
“वािल को जब सच का पता लगा तो उसने सु ीव को रा य से िनकाल िदया,” रावण
ने कहा। “म तो उसे मरवा देता!”
“भगवान दया कर!” कु भकण ने कहा। “कैसी आपदा है।”
रावण को वािल से सहानुभिू त थी, मगर वो अपनी झोली म आ पड़े सौभा य को ले कर
स न हए िबना नह रह पा रहा था। अब वो सु ीव और वािल के बीच लेश का लाभ उठा
कर वानर वंश को िमटा सकता था और सम ृ िकि क धा को लंका के अधीन कर सकता
था। वािल क सेना उसके अधीन हो जाती और आव यकता पड़ने पर लंका क र ा करने के
काम आती।
उसने चैन क सांस ली। उसे अ तत: उस सम या का हल िमल गया हो सकता है
िजससे वो बहत समय से जझ ू रहा था : लंका म उसक सेना क घटती सं या।
मगर उसे लगता था िक कु भकण उसक योजना का अनुमोदन नह करे गा। यह उसे
अकेले ही करना होगा।
अ याय 25

भारत क पिव भिू म से सह फुट ऊपर पु पक िवमान अबाध गित से उड़ते हए िकि क धा
से िमिथला जा रहा था। रावण और कु भकण सुर ा के िलए ब धन कसे हए आरामदेह
कुिसय पर बैठे थे। शी ही वो िमिथला म उतरने वाले थे, इतना समय रहते िक रावण
राजकुमारी सीता के वयंवर म शािमल हो सके।
मगर इस समय उनका मन िमिथला या सीता म नह था।
“ चय, कु भ?” रावण ने मँुह बनाया। “सच म? ि य को केवल एक ही उ े य से
रचा गया है। और चय अपना कर तुम उनके इस उ े य को परू ा नह करोगे?”
“उफ़, दादा, आप ि य के ित इतने अस मानजनक य ह?” कु भकण ने पछ ू ा।
उसे पता था िक यह कह कर उसने अपने बड़े भाई को कर िदया है िक वो भारत के
सुदूर दि ण म ि थत भगवान अय पा के पिव मि दर क या ा पर शबरीमला जाने के िलए
इकतालीस िदन क शपथ लेने वाला है। रावण ने इसे इस बात के एक और संकेत के तौर पर
देखा था िक उसका भाई उससे दूर हो रहा है और एक कठोर धािमक जीवनशैली अपनाने क
ओर बढ़ रहा है।
“ या तुम चाहोगे िक म उनका स मान क ँ , यारे भाई?” रावण ने हँसते हए पछ ू ा।
“िव ास करो, ि याँ आदर-स मान नह चाहती ह। वो तो बस यह चाहती ह िक कोई उनका
भरण-पोषण करे और उ ह सुर ा दान करे । बदले म, वो ेम, या उसके िमलती-जुलती जो
भी व तु होती हो उसे, देने के िलए तैयार रहती ह!”
“दादा, आप दूसरी बार िववाह करने जा रहे ह। मुझे सच म लगता है िक आपको ि य
के िवषय म अपने िवचार बदलने चािहए।”
“देखो, कु भ, म प ह िदन म इतनी ि य का उपभोग करता हँ िजतना तुमने
जीवन भर म नह िकया होगा। म जानता हँ वो कैसे सोचती ह। वो भले ही यह कह िक उ ह
अ छे , संवेदनशील पु ष पस द ह। मगर याद रखो, ि याँ वो कभी नह कहत जो उनके
मन म होता है। वा तिवकता म, वो भले, घरे लू िक़ म के पु ष को अश और अिव सनीय
मान कर दरिकनार कर देती ह। उ ह असली पु ष चािहए होते ह—सबल, कठोर पु ष।”
“हमारा धम कहता है िक असली पु ष वो है जो ि य का स मान करता है।”
“यानी असली पु ष वो है जो आ मसमपण कर दे और ि य के पाँव क जत ू ी बन
जाये?”
“मने ऐसा तो नह कहा। असली पु ष वो है जो अपना स मान करता है और दूसर के
साथ भी स मानजनक यवहार करता है।”
“बकवास। म अपने अनुभव से बता सकता हँ, चार ि याँ िमल कर भी एक पु ष के
समान नह हो सकत । वा तव म, चार सौ ि याँ भी एक पु ष के समक नह हो सकत ।”
“ या बेकार क बात है! आप अपनी बात सुन भी रहे ह, दादा?”
“हमेशा सुनता हँ। और म कुछ अनुिचत नह सुनता!”
कु भकण ने अपनी अ स नता को दबाने के िलए गहरी सांस ली। “जाने दीिजए।
आपके िवचार मेरे िव ास या उन वचन को नह िडगा सकते जो म भगवान अय पा के िलए
लँगू ा।”
“तु हारा चारी रहना िकसी भगवान को कैसे स न कर सकता है?” रावण ने
उपहास िकया, वो प प से कु भकण को ोध िदलाने क कोिशश कर रहा था।
“यह केवल चय क बात नह है, दादा,” कु भकण ने धैय से समझाया। “वचन ले
कर, म पवू महादेव भगवान और िव णु देवी मोिहनी के पु भगवान अय पा के ित
अपनी िन ा क शपथ ले रहा हँ। य िप देश भर के हजार मि दर म भगवान अय पा क
पजू ा क जाती है मगर यह त केवल शबरीमला के मि दर के िलए िलया जाता है। वन क
देवी शबरी के नेत ृ व म उस े क एक व य जनजाित मि दर क देखरे ख करती है। और
सभी भ के िलए िनयम प प से बनाये गये ह।”
कु भकण ने अपनी उँ गिलय पर िनयम िगनवाये : “इकतालीस िदन के त क अविध
म हम माँस-मिदरा का सेवन नह करगे। हम भिू म पर सोयगे। हम शारी रक प से या अपनी
वाणी से िकसी को आहत नह करगे। हम सभी सामािजक समारोह से दूर रहगे। उ े य सादा
जीवन जीने और उ म िवचार पर यान केि त करने का है।”
“यह सब कुछ बहत भला सुनाई देता है। मगर मुझे एक बात बताओ, तुम कहते रहते हो
िक तुम ि य का िकतना स मान करते हो। मगर तुम जानते हो ना िक शबरीमला मि दर
म ि य को जाने क अनुमित नह है? या यह उनके ित अस मानजनक नह है?”
“ि य को अनुमित है! िब कुल है। केवल उन ि य को इस मि दर िवशेष म जाने
क अनुमित नह है जो अपने जीवन के जनन काल म होती ह। मल ू प से, रज वला होने
म स म ि य के िलए वेश विजत है।”
“अहा! तो तु ह लगता है जनन अशु है? और रज वला ि याँ मि दर को दूिषत
कर दगी? तुम जानते हो िक उ र-पवू भारत के कामा या मि दर म माहवारी के र को
पिव माना जाता है और उसक पज ू ा होती है?”
“आप जानबझ ू कर मुझे ग़लत समझ रहे ह, दादा। रज वला ि य पर ितब ध का
माहवारी के र के अशु होने से कोई स ब ध नह है। कोई भी भारतीय ऐसा कैसे सोच
सकता है? इसका कारण तो सं यास माग है।”
कु भकण आगे कहता गया, “जैसा आप जानते ह, भारत के लगभग सभी मि दर
गहृ थ माग का पालन करते ह। इन मि दर के अनु ान सांसा रक जीवन के इद-िगद
िनिमत ह, वो पित-प नी के, माता-िपता और स तान के, या िकसी वामी और उसके सेवक
के बीच स ब ध का अनु ान करते ह। सं यािसय के भी मि दर होते ह, उनम से अिधकांश
सुदूर पहाड़ी े म च ान को काटकर बनाई गयी गुफाएँ ह; इनम अ-सं यािसय को जाने
क अनुमित नह होती। सं यािसय के मि दर म जाने का एकमा तरीक़ा सभी लौिकक
मोह को यागना, अपने प रवार और भौितक स पि को यागना और थायी प से
सं यासी मत म शािमल होना होता है।”
रावण ने च कने का नाटक िकया। “तुम या सं यासी हो रहे हो? तुम मुझे छोड़ दोगे?
या है यह!”
कु भकण हँस पड़ा। “दादा, मेरी बात सुन। शबरीमला मि दर उन लोग के िलए नह है
जो थायी सं यास ले चुके ह। हम बस इकतालीस िदन सं यासी रहने का त लेना होता है।
यह हम एक सं यासी के जीवन का छोटा-सा अनुभव दान करता है। अगर आप यह समझ
ल तो पहले मने जो भी वचन बताये ह, उनक साथकता समझ म आती है। इन इकतालीस
िदन के िलए हम जीवन के सभी आन द और सुिवधाओं के साथ ही चरम भावनाओं से दूर
रहना होता है। इसीिलए मांस-मिदरा के भ ण और काम का िनषेध है। मि दर पु ष सं यास
माग को समिपत है, इसिलए जनन चरण म मौजदू ि य का वेश विजत है, मगर क याएँ
और व ृ ि याँ यहाँ जा सकती ह। इसी कार, ी सं यास माग को समिपत मि दर भी ह
जहाँ वय क पु ष को जाने क अनुमित नह होती जैसे कुमारी अ मन मि दर म। िक नर
लोग के सं यास के िलए भी मि दर ह। ग़लतफ़हिमयाँ तब पनपती ह जब आप जैसे
सांसा रक लोग हमारे सं यासी तौर-तरीक़ को ठीक से नह समझते ह।”
“ठीक है, ठीक है, म हार मानता हँ,” रावण ने कृि म समपण म अपने हाथ उठाते हए
कहा। “अपनी तीथया ा पर जाओ। कब है यह? कुछ माह म?”
“हाँ,” कु भकण मु कुराया और बुदबुदाया, “ वािमये शरणम् अय पा।”
हम भ ु अय पा क शरण म जाते ह।
रावण अपने छोटे भाई का उपहास भले ही उड़ा रहा हो, मगर वो भगवान अय पा का
िनरादर नह करने वाला था। वन के देवता अ ततः भगवान और देवी मोिहनी के पु थे।
उ ह िव के महानतम यो ाओं म माना जाता था।
उसने भी कु भकण के साथ दोहराया, “ वािमये शरणम् अय पा।”
रावण कुछ और कहता, इससे पहले ही उ च वर म घोषणा हई। “हम धरती पर उतरने
वाले ह। कृपया अपनी पेिटयाँ जाँच ल।”
रावण और कु भकण ने दोबारा अपनी उन पेिटय को जाँचा िजनसे वो अपनी कुिसय
से बँधे हए थे। पु पक िवमान म उपि थत सौ सैिनक ने भी यही िकया।
रावण ने मोखल से नीचे ि थत धरती-पु क नगरी िमिथला को देखा। ऊपर आकाश
से िमिथला भारत के अ य बड़े नगर से बहत िभ न िदख रही थी, जो अिधकतर निदय के
िकनारे बसे हए थे। िमिथला मल
ू प से नदी-प न नगर था, मगर कुछ दशक पहले गंडक
नदी रा ता बदलकर पि म क ओर बहने लगी थी, इससे िमिथला क िनयित नाटक य प
से बदल गयी थी। स िस धु के महान नगर म िगनी जाने वाली िमिथला का तेज़ी से पतन
हआ था। अब यह सा ा य के अ य नगर क तुलना म कह अिधक द र हो गया था, जो
वयं रावण के हाथ द र हो रहे थे। ि थित यहाँ तक पहँच गयी थी िक रावण ने िमिथला म
अपने उप- यापारी रखना भी र कर िदया था। उनके िलए वहाँ पया काम ही नह था।
“नगर के लगभग सब ओर इतना घना वन पनपते देखना दुलभ ही है,” रावण ने
कहा।
वषा ऋतु म भरपरू वषा होने के कारण उपजाऊ, दलदली मैदान होने के चलते िमिथला
के आसपास क भिू म अ य त उपजाऊ थी। चंिू क िमिथला के िकसान ने बहत अिधक भिू म
साफ़ नह क थी, इसिलए वन ने कृित क देन का लाभ उठाते हए नगर के चार ओर एक
घनी सीमा बना दी थी।
“खाई को देख,” कु भकण ने हैरानी से कहा।
ऊपर से उ ह दुग के चार ओर एक जलाशय िदख रहा था जो कभी सुर ा मक खाई
के प म काय करता होगा, िजसम सुर ा-उपाय के तौर पर घिड़याल होते ह गे। अब यह
पानी िनकालने के िलए झील बन गयी थी।
झील ने अपनी प रिध के भीतर सारे नगर को इतने भावी ढं ग से समेटा हआ था िक
िमिथला एक ीप जैसा िदख रहा था। िवशाल चरिखयाँ झील से पानी ख च रही थी, िजसे
पाइप के मा यम से नगर म ले जाया जा रहा था। जल तक आसानी से पहँचने के िलए
िकनार पर सीिढ़याँ बनायी गयी थ ।
“अब इनके पास समुिचत सुर ा मक खाई नह है!” रावण ने आ य से कहा।
“मुझे लगता है यह चतुर काम है। उ ह उसक आव यकता ही नह है। कोई िमिथला
पर आ मण य करे गा? यहाँ लटू ने के िलए धन है ही नह । और अपनी एकमा स पि वो
मु ह त से बाँटते ह : अपना ान।”
“ह म... सही कहते हो।”
जब दोन भाई दुग के चार ओर बनी खाई को देख रहे थे, तो उनका यान दुग क
मु य दीवार के लगभग एक िकलोमीटर अ दर ि थत एक भीतरी दीवार पर गया। दुग क
बाहरी और भीतरी दीवार के बीच के े को सुघड़ता से खेत म बाँट िदया गया था। अनाज
क फ़सल काटे जाने के िलए तैयार िदख रही थ ।
रावण भािवत हो गया था। “उ म िवचार है। कम-से-कम िमिथला म िकसी को सै य
ान तो है।”
दुग क दीवार के भीतर फ़सल उगाने से िकसी भी घेराव के दौरान खा -आपिू त तो
सुरि त हो जाती। साथ ही, य िक वहाँ कोई मानव ब ती नह थी तो, अगर कोई बाहरी
दीवार म सध लगा कर घुस भी जाये यह े उसके िलए घातक सािबत होता। शी ता से पीछे
हटने क िकसी आशा के िबना अ द नी दीवार तक पहँचने क कोिशश म िकसी भी
आ मणकारी बल को अपने बहत से सैिनक गँवाने पड़ते।
कु भकण अपने बड़े भाई से सहमत था। “हाँ, यह उ कृ सै य िनमाण है; दुग क दो
दीवार और बीच म वीरान भिू म। हम भी इसे आजमाना चािहए।”
जब कुछ देर पु पक िवमान भिू म के ऊपर मंडरा रहा था तो उ ह िमिथला का एक
मु य ार िदखायी िदया। ार पर भारत के अिधकांश दुग के िवपरीत कोई राजिच अंिकत
नह था।
इसके बजाय, ार के ऊपरी आधे िह से पर देवी सर वती क छिव उकेरी गयी थी।
छिव के नीचे एक ोक िलखा हआ था, मगर दूर से उसे पढ़ा नह जा सकता था।
“पता नह इस ोक म या है,” रावण ने कहा।
“मुझे याद है अकंपनजी ने मुझे इस बारे म बताया था,” कु भकण ने कहा।
वगहृ े पू यते मखू ः, व ामे पू यते भुः
वदेशे पू यते राजा, िव ा सव पू यते।”
एक मख ू क पज ू ा उसके घर म होती है। एक मुिखया क पज ू ा उसके गाँव म होती है।
एक राजा क पज ू ा उसके रा य म होती है। मगर िव ान क पज ू ा सब जगह होती है।
रावण मु कुराया। सच म, ान को समिपत नगर। सच म, ऋिषय का ि य नगर। सच
म, वो नगर जो उसके उ े य को परू ा करे गा।
धातु के छोटे, गोलाकार पद मोखल पर फै ल गये, िज ह ने य को अव कर िदया
था।
“हम उतर रहे ह,” कु भकण ने कहा।
जब घण ू क का गजन ह का हआ, तो पु पक िवमान धीरे -धीरे भिू म पर उतरा। यह दुग
क बाहरी दीवार के बाहर वन क सीमा के आगे साफ़ मैदान म, अपने िलए िनधा रत थान
पर उतरा था। रावण का दस सह से अिधक सैिनक का अंगर क द ता पहले ही
यवि थत संरचना म वहाँ मौजदू था।
रावण ने गहरी सांस ली। “काम करने का समय आ गया।”

“कुछ तो गड़बड़ है, दादा,” कु भकण ने कहा। “वापस चलते ह।”


रावण ने िमिथला के बाहर िशिवर लगाया था। वहाँ अपने सैिनक से िघरे होना स
िस धु के िकसी रा य के नगर क दीवार के भीतर रहने से कह अिधक सुरि त था। वो भी
ऐसा रा य िजसे उसने अपनी यापा रक नीितय से द र कर िदया था।
“मगर मुझे तो वयं राजा कुश वज ने आमि त िकया था!” रावण ने ोध म भर कर
कहा। वो कु भकण और अपने सहायक क िमिथला के राजदरबार से लौटने क ती ा कर
रहा था, जहाँ वो उसके आगमन क घोषणा करने गये थे।
“जानता हँ, मगर वो सारे समय चुप रहे । और राजा जनक भी।”
“तो आिख़र बोल कौन रहा था?”
“गु िव ािम ।”
“इ देव के िलए गु जी यहाँ या कर रहे ह? वयंवर समारोह के दौरान कोई
शा ाथ तो है नह !”
“मुझे नह पता िक वो यहाँ या कर रहे ह, मगर यह बता सकता हँ िक वही सारे
िनणय लेते तीत हो रहे थे। और मुझे तो राजकुमारी सीता से िमलने तक नह िदया गया।”
“इसका या मतलब है?” रावण अब और अिधक उ ेिजत होता जा रहा था। “म लंका
हँ। संसार के सबसे शि शाली रा य का शासक। प ृ वी का सम ृ तम देश। सीता का हाथ
जीतने के िलए यहाँ आने को सहमत हो कर मने िमिथला पर उपकार िकया है। वो मेरे साथ
इस तरह का यवहार कैसे कर सकते ह?”
“दादा, चलते ह यहाँ से। स िस धुवासी हम कभी वीकार नह करगे। आपने िनमल
दय से यह िकया था। आप नई शु आत करना चाहते थे। मगर ये लोग ऐसा नह होने दगे।
भाड़ म जाये यह 'आयवत ।' हम अपनी लंका म, भारत के अपने वयं के कोने म सुखी रहगे।
चलते ह।”
“और सारे संसार को यह जानने द िक मेरा अपमान हआ? तािक कल को कोई भी
मामलू ी-सा नराधम मेरे िव िव ोह कर दे? कभी नह । म नह जाऊँगा!”
“दादा, मेरी बात सुन। गु िव ािम प श द म कहे िबना मुझे बताने का यास
कर रहे थे िक वयंवर म आपका वागत नह होगा। जब भी मने राजा कुश वज को देखा,
तो वो भिू म को देखने म य त थे। उ ह ने एक श द भी नह कहा। ये सब शुभ संकेत नह
ह।”
“तुमने उ ह बताया य नह िक हम उस मख ू कुश वज ने िनमि त िकया है?”
“इसका लाभ या है, दादा? वो तो हम वीकार भी नह करना चाहता था। यहाँ हमारा
वागत नह है। हम चलते ह।”
“नह , हम नह जायगे!”
“दादा...”
“रावण का इस तरह अपमान नह िकया जायेगा! लंका का इस तरह अपमान नह
िकया जायेगा! मुझे परवाह नह िक वो या सोचते ह। म वयंवर म जाऊँगा और जीतंग ू ा। म
सीता के साथ जाऊँगा, भले ही बाद म मुझे उ ह िसिग रया क कालकोठरी म डालना पड़े । म
इस वयंवर को जीतंग ू ा। म अपने स मान को हािसल क ँ गा!”
“दादा, मुझे नह लगता िक—”
“कु भकण! मेरा िनणय अि तम है!”

वयंवर के िदन रावण और कु भकण तीस सैिनक के साथ अपने िशिवर से चले। प ह
सैिनक उनके आगे चल रहे थे और प ह पीछे । सैिनक अपनी परू ी सज-धज के साथ थे, जैसे
दुिनया के सम ृ तम रा य के ितिनिधय को होना चािहए। वो लंका क पताका िलये हए थे:
काले वज, िजन पर लपट के बीच से िनकलते दहाड़ते िसंह का िसर बना था।
यह देखते हए िक वयंवर म उनका वागत नह था, कु भकण ने परू ी तरह अ -
श से लैस एक सह सैिनक क पलटन तैयार क थी िजसे रावण और उसके अंगर क
के पीछे रहना था। उ ह वयंवर थल के बाहर ती ा करनी थी। कु भकण परू ी सुर ा के
साथ चलना चाहता था, मगर मलयपु को उकसाये िबना।
लंकावािसय ने झील पर बने नाव के पुल को पार िकया और बाहरी दीवार के खुले
ार से होते हए भीतरी दीवार के पार चले गये। रावण और कु भकण के पीछे चल रहे सैिनक
शंख बजाते हए अिधक-से-अिधक यान आकिषत कर रहे थे।
िमिथला के अिधकांश नाग रक वयंवर क ओर जा रहे थे, या पहले ही वहाँ पहँच चुके
थे। जो थोड़े -बहत नगर म रह गये थे, वो इस शोभाया ा को देखने के िलए अपने घर से
बाहर िनकल आये थे। िव के सम ृ तम और सबसे शि शाली यि क शोभाया ा। लंका
के दल क तड़क-भड़क को देख कर िमिथला के शाि ति य िनवासी पीछे हट गये। वो िकसी
भी कार से लंकावािसय को ु करना या भड़काना नह चाहते थे।
रावण ने अपनी ि आगे के माग पर रखी, उसक भंिगमा ऐसे राजा क -सी थी जो
यु से िवजयी होकर लौटा हो। उसने तो िमिथला के दीन-हीन नाग रक क ओर एक िनगाह
तक नह डाली थी।
वयंवर का आयोजन राजदरबार क बजाय महल प रसर के अ दर धमसभा म िकया
गया था। यह भवन राजा जनक ने िमिथला िव िव ालय को दान कर िदया था और यहाँ
िनयिमत प से िविभ न गढ़ ू िवषय —इस भौितक संसार के म, आ मा क कृित, सिृ
के ोत, मिू त-पज ू ा के मह व और सौ दय, नाि तकता के दशनशा ीय प ीकरण आिद
—पर वादिववाद और चचाएँ हआ करती थ । राजा जनक दाशिनक-राजा थे जो अपने रा य
के सभी संसाधन को आ याि मक और बौि क अिभ िचय के मामल पर केि त करते थे।
व ृ ाकार क के शीष पर एक बड़ा-सा, भ य गु बद था। उसक दीवार अतीत के
महानतम ऋिषय और ऋिषकाओं के िच से सुशोिभत थ । कुछ मायन म, व ृ ाकार िव यास
राजा जनक क शासिनक नीित का तीक था : सभी ि कोण के ित आदरभाव ।
वादिववाद के दौरान सभी समान तर पर बैठते थे, समक क भाँित, िबना िकसी
संचालक ' मुख' के, और खुल कर, िनभयता से िवषय पर चचा करते।
वयंवर के िलए, क के वेश ार के पास एक अ थायी तीन तरीय दशक दीघा
बनायी गयी थी। दूसरे छोर पर, एक लकड़ी के मंच पर राजा का िसंहासन रखा था। िसंहासन
के पीछे एक ऊँची पीिठका पर िमिथला के सं थापक राजा िमिथ क मिू त रखी हई थी। राजा
के िसंहासन के दाएं -बाएं कुछ कम भ य दो आसन और रखे गये थे। िवशाल क के बीच के
थान म एक घेरे म आरामदेह आसन लगे हए थे जहाँ राजा और राजकुमार—स भािवत वर
—बैठे थे।
लंका के शंख के ती नाद के साथ रावण और कु भकण ने अपने तीस अंगर क के
दल के साथ परू ी भ यता से वेश िकया। एक हजार सैिनक का दल क के बाहर ती ा
कर रहा था। िनगाह से दूर, मगर िनकट ही। आव यकता पड़ने पर राजा क सहायता के
िलए हमला बोलने को तैयार।
सारे ब ध को देखते हए रावण और कु भकण आगे बढ़े ।
तीन- तरीय दशक दीघा के ऊपरी तर आम नाग रक से भरे हए थे, जबिक कुलीन
वग और सम ृ यापा रय ने पहले चबत ू रे पर आसन जमाया हआ था। ितभागी एक घेरे म
क के म य म आरामदेह आसन पर िवराजमान थे। हर आसन भरा हआ था। वयं िनगाह
म आये िबना राजकुमारी सीता सारा आयोजन देख सकती थ , य िक उ ह ने इसे गु
वयंवर बनाने का िनणय िलया था।
क के म य म, औपचा रक प से एक पीिठका पर एक यंचा उतरा धनुष रखा था।
िव यात िपनाक, वयं भगवान का धनुष। उसके पास ही अनेक बाण रखे हए थे।
पीिठका के पास भिू म पर एक बड़ा-सा ताँबे का पा था। ितभािगय को पहले धनुष को
उठाना और उसक यंचा चढ़ानी थी, जो वयं ही कोई आसान काम नह था। िफर उ ह पा
के पास जाना था जो पानी से भरा हआ था, िजसम लगातार ऊपर से बंदू िगर रही थ । इससे
पा म छोटी-छोटी लहर बन रही थ , जो के ीय भाग से िकनार क ओर जा रही थ । ि थित
को और अिधक किठन और अ यािशत बनाते हए पानी क बंदू अिनयिमत अ तराल पर
िगर रही थ ।
गु बद के शीष से भिू म से कोई सौ मीटर ऊपर लटक एक धुरी पर लगे एक च पर
एक िह सा मछली लगी हई थी। च एक िनि त गित से घम ू रहा था। ितभािगय को नीचे
ि थत अि थर पानी म मछली के ितिब ब को देखना था और धनुष से बाण छोड़ कर मछली
क आँख को भेदना था। सबसे पहले सफल होने वाला ितभागी वधू का हाथ जीत लेता।
रावण स भािवत वर के िलए िनयत चुनौती को देखने के िलए नह का। न ही ऐसा
लगा िक उसने इस पर यान िदया है िक उसके वेश ने महा-मलयपु गु िव ािम के
भाषण म बाधा डाली है। यह महिष का घोर अपमान था। मगर रावण को जैसे परवाह ही नह
थी। य िक िकसी और बात ने उसका यान ख च िलया था। ितभािगय के घेरे का हर
आसन भरा हआ था।
इन लोग ने मेरे िलए थान भी आरि त नह िकया है! नराधम लोग!
रावण का दल क के के म आया और भगवान के धनुष के पास क गया।
अ णी अंगर क ने उ च वर म घोषणा क । “राजाओं के राजा, स ाट के स ाट, ि लोक
के शासक, देवि य, वामी रावण!”
रावण एक छोटे राजा क ओर मुड़ा जो िपनाक के सबसे िनकट बैठा था, उसने हौले से
उसे घुड़का, और िसर िहला कर संकेत िकया। भयभीत राजा िबना िकये उठा और शी ता
से जा कर एक अ य ितभागी के पीछे खड़ा हो गया। रावण आसन क ओर गया मगर बैठा
नह । उसने अपना दायाँ पाँव आसन पर रखा और अपने हाथ को घुटने पर िटका िलया।
कु भकण एवं अ य लोग उसके पीछे पंि ब खड़े थे। िफर, लगभग अलसाए से ढं ग से,
रावण ने अपनी ि क के दूसरी ओर घुमाई जहाँ िसंहासन रखे हए थे।
महिष िव ािम िमिथला के राजिसंहासन पर िवराजमान थे, जो पार प रक प से
राजा के िलए आरि त होता है। िमिथला के वतमान राजा जनक महिष के दािहनी ओर एक
छोटे आसन पर बैठे थे जबिक राजा का छोटा भाई कुश वज िव ािम के बाय ओर बैठा था।
रावण ने दूर मौजदू िव ािम से ज़ोर से कहा। “कहते रह, महान मलयपु ।”
रावण ने मलयपु मुख के भाषण के बीच म बाधा डाल कर उनका घोर अपमान
करने के िलए मा माँगना भी उिचत नह समझा।
िव ािम ु हो गये थे। उनसे कभी इतना अपमानजनक यवहार नह िकया गया
था। “रावण...” वो ग़ुराए।
रावण ने घोर लापरवाही से उ ह घरू ा।
िव ािम ने िकसी तरह अपने ोध को वश म िकया, उ ह एक मह वपण ू काम
करना था। रावण से तो वो बाद म िनबट लगे। “राजकुमारी सीता ने वो म तय िकया है
िजसके अनुसार महान राजा और राजकुमार ितयोिगता म भाग लगे।”
िव ािम के बोलने के बीच ही रावण ने आसन से पाँव उतारा और िपनाक क ओर
चल िदया। जैसे ही रावण धनुष उठाने के िलए बढ़ा, मलयपु मुख ने अपनी घोषणा परू ी क ।
“पहले ितभागी आप नह ह, रावण। अयो या के राजकुमार राम ह।”
रावण का हाथ धनुष से कुछ अंगुल दूर ठहर गया। उसने िव ािम को देखा और िफर
यह देखने के िलए पलटा िक ऋिष के कहने पर कौन यु र देता है। उसने लगभग बीस वष
क आयु के एक युवक को देखा, जो एक तप वी के से साधारण ेत व पहने था। उसके
पीछे एक और युवक, य िप भीमकाय, खड़ा था, उसके पास ही अ र नेमी था। रावण ने
पहले अ र नेमी को घरू ा, और िफर राम को। अगर ि मा ाण ले सकती तो आज रावण
िन य ही कुछे क के ाण अव य ले लेता।
तो यह है वो बालक जो अयो या म उस िदन ज मा था जब मने इसके िपता को
परािजत िकया था! और िव ािम का इतना दु साहस िक इस बालक को मेरे िव खड़ा
कर रहे ह? लंका के राजा के िव ? संसार के शासक के िव ?
रावण िव ािम क ओर मुड़ा, उसक उँ गिलयाँ अपने गले म पड़े वेदवती क उँ गली
क हड्डी के लटकन से िलपटी हई थ । उसे उनक आव यकता थी। उसे उनका वर सुनने
क आव यकता थी। मगर वो कुछ नह सुन सका। इस घोर ितर कार के समय वो भी उसे
छोड़ गयी थ ।
रावण ऊँची और गरजती हई आवाज़ म बोला, “मेरा अपमान िकया जा रहा है!”
कु भकण जो रावण के आसन के पीछे खड़ा था, अलि त प से अपना िसर िहला रहा
था। प प से वो अ स न था।
“अगर आपक योजना मुझसे पहले अनाड़ी बालक को अवसर देने क थी तो मुझे
आमि त ही य िकया गया था?!” रावण ोध से काँप रहा था।
जनक ने अ स नता से कुश वज को देखा और िफर रावण क ओर मुड़ कर उ ह ने
अश -सा बीच-बचाव िकया, “ वयंवर के यही िनयम ह, महान लंकाराज...”
अ ततः िबजली क कड़क जैसा एक वर सुनाई िदया। यह कु भकण था। “बहत हई
यह बकवास!” वो रावण क ओर मुड़ा। “दादा, चिलए।”
रावण अचानक झुका और उसने िपनाक को उठा िलया। कोई कुछ िति या करता,
इससे पहले वो उसक यंचा चढ़ा कर उसक डोरी म एक बाण लगा चुका था। अिधकांश
लोग आसानी से िवशाल िपनाक को उठा तक नह सकते थे। मगर रावण ने शि और
कौशल का बेहतरीन दशन करते हए, िकसी के कुछ कर पाने से पहले ही एक झटके म
उसे उठाया, यंचा चढ़ाई और उस पर बाण भी लगा िलया था। िजस गित और द ता के साथ
उसने यह िकया था, वो हत भ कर देने वाली थी। उससे भी उ लेखनीय उसके बाण का ल य
था।
रावण ने बाण का ल य महान ऋिष और यात मलयपु मुख िव ािम क ओर
िकया तो सब स न रह गये।
मलयपु पवू िव णु ारा बनायी गयी जनजाित थी। तो उसका मुख, एक कार से,
िव णु का ितिनिध ही था। मलयपु मुख के िलए िकसी का अस मानजनक बात कहना ही
अभत ू पवू था। मगर िकसी का, भले ही वो रावण जैसा शि शाली यि ही य न हो,
िव ािम पर बाण तानना? यह तो अक पनीय ही था।
जब िव ािम उठे , अपना अंगव एक ओर फका और मु ी से अपने सीने को ठ कते
हए खड़े हो गये तो भीड़ का मँुह आतंक से सामिू हक प से खुला रह गया। “बाण मारो,
रावण!”
महिष के यो ाओं जैसे यवहार से हर कोई स न रह गया था। िकसी ानी पु ष के
ारा इतना आिदम साहस दशाना दुलभ था। मगर िफर, एक समय म िव ािम यो ा ही रहे
थे।
ऋिष का वर परू े क म गँज ू गया। “चलो! अगर तुमम साहस है तो चलाओ बाण!”
मझु े इसे मार डालना चािहए। उ म पाखंडी... मगर औषिधयाँ... कु भकण के िलए...
मेरे िलए...
रावण ने बहत ह के से अपनी बाँह को िहलाया और बाण छोड़ िदया। बाण िव ािम के
पीछे रखी राजा िमिथ क ितमा से टकराया, और इसने ाचीन राजा क नाक तोड़ दी।
लंका के राजा ने चार ओर देखा। उसने नगर के सं थापक का अपमान िकया था।
ाचीन राजा का सभी लोग आदर-स मान करते थे। उनक मिृ त आज तक भी पिव थी।
रावण को अपे ा थी िक कम-से-कम कुछ िमिथलावासी तो यायोिचत ोध दशायगे।
चलो भी! राजा िमिथ के स मान के िलए लड़ो। मझ ु े कोई तो बहाना दो िक म अपने
सैिनक को अ दर आने और तम ु सबका संहार करने क आ ा दूँ!
मगर कोई िमिथलावासी खड़ा नह हआ। अपने रा य के सं थापक क मिृ त के इस
सावजिनक अपमान पर भी वो लि जत से, अपने अिभमान को पी कर बैठे रहे ।
कायर!
रावण ने सुलगती आँख से कुश वज को देखते हए हाथ झटक कर जनक को
दरिकनार कर िदया। उसने पीिठका पर धनुष फका और ल बे डग भरता ार क ओर बढ़
गया, उसके अंगर क उसके पीछे थे।
इस सारे हंगामे मे कु भकण पीिठका के पास गया, शी ता से उसने िपनाक क
यंचा उतारी, और स मानपवू क दोन हाथ से धनुष को अपने माथे से लगाया।
मा करना, हे देव। मेरे भाई आपके पिव धनुष का िनरादर नह करना चाहते थे।
वो तो अपनी भावनाओं के वशीभत ू हो गये थे। कृपया इसके िलए उनसे नह।
अ यिधक आदर और ित ा के साथ कु भकण ने भगवान के धनुष िपनाक को
वापस पीिठका पर रख िदया। िफर वो मुड़ा और तेज़ क़दम से, ोध से सुलगते रावण के
पीछे -पीछे क से बाहर चला गया।
अ याय 26

“उनका साहस कैसे हआ!” ु रावण ि थर खड़े पु पक िवमान के अ दर तेज़ क़दम से


टहल रहा था। “उनका साहस कैसे हआ? म लंका हँ! म उनका वामी हँ! उनका साहस कैसे
हआ?”
कु भकण ने उसे शा त करने क कोिशश क । “जाने दो, दादा। मने तो आपसे ऐसी ही
अपे ा करने को कहा था। अब बस चलते ह।”
“चल? चल? तुम पागल हो गये हो, कु भकण?”
कु भकण जानता था िक अगर उसका भाई 'कु भ' के बजाय उसे उसके परू े नाम से
पुकार रहा है, तो वो अपने भाई क शा त रहने क कोई सलाह सुनने क मनोि थित म नह
है।
“इन तु छ नाकारा लोग ने मेरा अपमान िकया है,” रावण फुफकारा, उसक मु याँ
खुल-ब द हो रही थ । “उ ह ने भरी सभा म मेरा अपमान िकया है। वो इसका मोल चुकायगे!”
“दादा,” कु भकण ने संयत वर म कहा। “आप या करना चाहते ह?”
रावण ने िमिथला क ओर संकेत िकया। “म उस नगर को जला कर खाक कर दँूगा!
म वहाँ मौजदू सब लोग को मार डालँग ू ा! म इन धरतीपु के नगर को धरती म िमला
दँूगा!”
“दादा, शासक के अपराध के िलए बेगुनाह नाग रक को य दंड िदया जाये?”
“अगर नाग रक अपने शासक के अपराध के िव िव ोह नह करते, तो वो भी
अपराधी ह!”
“िक तु दादा─”
“कोई िक तु-पर तु नह ! मने कह िदया िक वो भी अपराधी ह!”
कु भकण ने िदशा बदली, और दया के थान पर तक से समझाने क कोिशश क ।
“दादा, अयो या के युवराज अ दर ह। और लगता है िक उ ह ने राजकुमारी सीता का हाथ
पाने के िलए वयंवर जीत भी िलया होगा। वो अपनी प नी को छोड़ कर िमिथला से भागगे
नह । मेरे गु चर ने मुझे यह भी बताया है िक िपछले कुछ वष म राजकुमार राम स ाट
दशरथ के ि य पु बन गये ह। अगर हमने उ ह मार िदया तो सा ा य लगभग िन य ही
हमारे िव यु क घोषणा कर देगा। और अगर स ाट यु का आ ान करते ह तो सि ध
क शत के कारण अ य रा य भी शािमल होने के िलए िववश हो जायगे। आप जानते ही ह
िक अभी हम यु लड़ने क ि थित म नह ह। ये तो बस हमारी साख ही हम सुरि त रखे हए
है।”
रावण ने कोसा। कु भकण सही था। महामारी ने लंका क सेना को कमज़ोर कर िदया
था। बड़े तर पर यु नह िकया जा सकता था।
मगर रावण का ोध आसानी से शा त होने वाला नह था। “जो भी हो, हम नह जा
रहे ह,” उसने कहा।
“दादा, मुझे अकंपन ने बताया था, िज ह समीची से पता लगा था, िक िमिथला म
लगभग चार सह नगर र क और रि काएँ ह। वो यु करने म स म ह गे।”
“मगर हमारे पास तो लंका के दस सह यो ा ह।”
“पाँच के मुक़ाबले दो का लाभ भी उनक सुर ा मक दोहरी दीवार ारा नाकाम कर
िदया जायेगा। आप यह जानते ह।”
रावण हार मानने को तैयार नह था। “मने सुना है िक उस भीतरी दीवार के पवू प म
एक गु सुरंग है। हम उस सुरंग के रा ते नगर म एक छोटा द ता भेज सकते ह। एक बार
हमारे सैिनक ार के र क पर िनय ण करके मु य नगर के ार खोल दगे तो हमारी
सेना हावी हो सकती है। हम उनका संहार कर दगे!”
कु भकण ने भी अकंपन से उस गु सुरंग के बारे म सुना था िजसने यह जानकारी
समीची से हािसल क थी। अकंपन ने कु भकण को बताया था िक उ ह उस गु सुरंग तक ले
जाने के िलए सहमत होते हए समीची ने लंका से यह वचन िलया था िक आ मण के दौरान
राजकुमारी सीता को कोई हािन नह पहँचाई जायेगी। एक ऐसे यि क ओर से यह
िविच सी माँग थी िजसने रावण और लंका के ित िन ा क शपथ ली थी। गु सुरंग क
सारी कहानी एक जाल हो सकती है। कु भकण को समीची क िन ा पर स देह था। प
प से रावण को नह था।
“आ मण क तैयारी करो,” उसने कहा।
“दादा, मुझे अभी भी लगता है—”
“मने कहा, आ मण क तैयारी करो!”
कु भकण ने गहरी सांस ली, िसर झुकाया और अ स नता से धीरे से कहा, “जी,
दादा।”

रात बहत बीत गयी थी, चौथे हर क चौथी घड़ी थी। लंका के िशिवर म मशाल जली हई थ ।
रावण के अंगर क परू ी शाम मु तैदी से काम करते हए, जंगल के पेड़ को काट कर खाई
पार करने के िलए नाव बनाते रहे थे। चल कर सीधे पार जाने का नह उठता था य िक
िमिथलावािसय ने नाव के पुल को न कर िदया था।
रावण झील के पास खड़ा पानी के पार दुग क दीवार को देख रहा था। उसने कवच
पहना हआ था, िजसने उसके ऊपरी तन को ढका हआ था। दो तलवार और तीन कटार
उसक कमर पर लटके हए थे। दो छोटे चाक़ू उसक पादुकाओं म िछपे थे। बाण से भरा
तरकश पीठ पर उसके क ध से बँधा था। उसने बाएँ हाथ म धनुष पकड़ा हआ था। रावण यु
के िलए तैयार था।
लंकाराज के पास ही कु भकण खड़ा था। उसके शरीर पर रावण से अिधक श थे,
य िक उसके क ध पर ि थत दोन अित र भुजाएँ भी चालू फकने म स म थ ।
उनके सैिनक भी सश और तैयार थे। कुछ दूर पर दस सह सैिनक नाव के
िनकट खड़े थे—परू ी तरह चौकस, और र ा करने के िलए िस ।
रावण ने उस दूरदश को हटाया िजससे वो देख रहा था। “उनक बाहरी दीवार पर कोई
नह है।”
कु भकण ने अपना दूरदश उठा कर उसके मा यम से यान से दीवार को देखा।
“ह म। बात समझ म आती है। वो चाहते ह िक हम बाहरी दीवार पर चढ़े । उनके अिधकांश
सैिनक भीतरी दीवार क ाचीर पर ह गे। जब हम दौड़ते हए अ द नी दीवार क ओर
जायगे तो वो हम पर बाण क वषा कर दगे और उस म ृ यु- े म हमारे अिधकािधक सैिनक
को मारने क उ मीद करगे।”
रावण िखिखयाया। “बुि जीिवय के इस रोते-धोते नगर म िकसी के पास यु क
समझ है, मगर इतनी नह िक हमसे मेल खा सके। हम अ द नी दीवार पर चढ़गे ही नह ।
हम खुले ार से दौड़ते हए जायगे।”
कु भकण ने हामी भरी।
“हम कब तक समाचार िमल जाना चािहए?” रावण ने पछ ू ा।
कु भकण ने दुग क ओर देखना जारी रखते हए ही उ र िदया, “हम अभी तक कोई
समाचार नह िमला है, यह त य शुभ संकेत नह है।”
“मुझे परवाह नह है। हम पीछे नह हट रहे ह।”
कु भकण अपने बड़े भाई क ओर मुड़ा। “जानता हँ, दादा।”
ठीक तभी अकंपन भागते हए उनक ओर आया। “इराइवा! इराइवा! वो जाल था!”
“धीरे बोल, मख
ू !” रावण फुफकारा।
“हआ या?” कु भकण ने पछ ू ा।
“ग सुरंग तो अपने आप ही िगर गयी, महान इराइवा। उससे भी बुरा यह, िक वो ोही
जटायू और उसके मलयपु दीवार के ऊपर से हम पर तीर बरसा रहे थे। हमारी आधी पलटन
समा हो गयी। दस सैिनक िकसी तरह बच-बचा कर मुझे यह समाचार देने आ पाये।
स भवत: समीची पकड़ी गयी होगी और उसे हमारी रणनीित उ ह बताने के िलए िववश कर
िदया गया होगा।”
“या समीची ने हमसे झठ
ू बोला होगा,” कु भकण ने कहा।
“इससे कोई अ तर नह पड़ता,” रावण ने कहा। “हम अभी भी आ मण कर रहे ह।”
“दादा...”
“मेरे पास एक वैकि पक योजना है।”
कु भकण ने नाव क ओर देखा। उन पर लकड़ी के बड़े -बड़े य लादे जा रहे थे। “वो
या है?”
“मेरी वैकि पक योजना,” रावण ने कहा। “चलो।”
सैिनक अपनी नाव को खाई म धकेलने लगे थे। दस सह सैिनक को खाई पार
करने और झील के दूसरी ओर दुग के बाहर जमा होने म आधा घंटा लगता।
िमिथला का यु शु हो गया था।

लंकावािसय ने वयं को बड़ी द ता से बाहरी दीवार के बाहर संगिठत कर िलया था।


चँिू क कोई ितरोध नह हो रहा था—उन पर तीर बरसाने यो उबलता तेल डालने के
िलए ाचीर पर िमिथला का कोई सैिनक नह था—तो वो आराम से घम ू -िफर सकते थे।
इस बीच कु भकण अच भे से रावण के आिव कार को देख रहा था—उसक वैकि पक
योजना को।
“यह तो उ कृ है, दादा। यह तो काम कर सकती है,” कु भकण ने कहा।
“यह काम करे गी!” रावण ने कहा।
“आप महान ह! आपम अभी भी आग है।”
“वो मने कभी खोई ही नह थी!” रावण ने कहा।
कु भकण क शंसा का िवषय, रावण ारा खोजा गया एक य , अपनी प रक पना
म साधारण मगर मारक मता म िवनाशकारी था। इसम एक बड़ा-सा आधार था िजसके एक
छोर पर भिू म से िै तजीय एक िवशाल, लगभग एक पु ष के आकार का धनुष जड़ा हआ था।
धनुष बीच म एक धुरी से कसा हआ था िजससे एक बहत ही मोटी यंचा जुड़ी हई थी। आधार
के दूसरी ओर एक साधारण-सा आसन बनाया गया था, जहाँ धनुधर बैठता। धनुधर का काम
एक िवशाल बाण, लगभग एक छोटे भाले के आकार का, धनुष पर लगाना और िफर दोन
हाथ से यंचा ख च कर इसे उड़ने देना था। दंतच और गरा रय क एक णाली से
आधार को यवि थत िकया जा सकता था तािक बाण क िदशा और कोण को िनयि त
िकया जा सके।
ऐसे एक सह आधार थे िजन पर एक सह धनुष रखे हए थे।
अिनवायतः रावण ने आ मणकारी सेना ारा दुग क दीवार पर मौजदू सैिनक पर
तीर बरसाने और उसक मता म ती ता लाने क मानक रणनीित को अपनाया था।
समीची ारा दी गयी सच ू ना क बदौलत उ ह पहले से ही जानकारी थी िक िमिथला के
'सैिनक' नगर-र क मा ह, यो ा नह ह। उनके पास धातु क ढाल भी नह थ , बस लकड़ी
क ढाल थ । वो ढाल तीर क बरसात तो रोक सकती थ मगर भाले के आकार के
ेपा को रोक पाने म िन य ही अ म थ ।
“वो जान भी नह पायगे िक उनसे या टकराया है,” कु भकण ने कहा। “वो सोचते
रह जायगे िक हम बाहरी दीवार के बाहर से उन पर भाले कैसे मार पा रहे ह। वो सोचगे िक
हमारी सेना म दै य और दानव लोग ह!”
रावण हँसा, र िपपासा उसके भीतर सर उठाने लगी थी। यु क उ ेजना से अिधक
और कोई चीज़ उसक दयगित को नह बढ़ाती थी। “उनके पास सोचने का तो समय ही
नह होगा। वो मरने म ही इतना य त ह गे।”
“ या म आ मण का आदेश दे दँू?”
रावण ने चार ओर देखा। दुग क बाहरी दीवार पर ल बी सीिढ़याँ लगा दी गयी थ ।
सीिढ़य के ऊपर दूरदश िलये टोही खड़े हए थे जो िमिथला क अ द नी दीवार पर िनगाह
रखे हए थे और कुछ ही देर म शु होने वाले िवनाश क जानकारी देते। रावण को अपे ा थी
िक जैसे ही भाल का आ मण शु होगा िमिथला के सैिनक भागने लगगे। मगर अ छा
सेनापित अपनी अपे ाओं से अिधक भरोसा ठोस त य पर करता है। हालाँिक इसक
स भावना नह थी, मगर अभी भी यह स भावना थी िक कुछ बहादुर िमिथलावासी मुकाबला
करगे। एक बार उसे यह पुि हो जाये िक दुग क अ द नी दीवार के पास कह िमथला का
कोई र क नह है, तो लंका के सैिनक बाहरी दीवार पर चढ़ कर हमला बोल दगे।
रावण ने कु भकण को देखा। “नरसंहार शु करते ह।”
चँिू क यह हमला रात म हो रहा था, इसिलए झंड के मा यम से आदेश नह िदये जा
सकते थे। कु भकण अपने हरकारे क ओर मुड़ा और िसर िहला कर हामी भरी। हरकारे ने
तुर त शंख बजा िदया। संकेत जारी हो गया था, शंखनाद क ल बाई और अ तराल ने
सैिनक तक रावण का स देश पहँचा िदया था। लंकाई सेना के पंि य के दूसरे हरकार ने
भी इस संकेत को दोहराया।
धनुधर िवशाल धनुष म बाण लगाने लगे थे। िणक ठहराव के बाद शंखनाद का
संकेत िफर से िदया गया और लंका के भाल क बौछार कर दी गयी। एक हजार ेपा
उस नगर क ओर अपनी मारक या ा पर एक साथ उड़ चले िजसे यु के िलए नह ान के
िलए बनाया गया था। िमिथलावासी अपनी लकड़ी क ढाल के पीछे िछप गये। वो ढाल जो
उनक ओर आते भाल को रोक पाने म िनता त अ म थ ।
रावण और कु भकण टोिहय से संकेत िमलने क ती ा करने लगे। पल भर बाद,
येक लगभग एक साथ मु ी उठाता िदखाई िदया।
नीचे भिू म पर मौजदू लंकावािसय म स नता क लहर दौड़ गयी। “भारताधीप
लंका!”
भारत का वामी लंका! या यह कहना अिधक सही होगा, भारत का शासक लंका!
“सीधा वार करो!” रावण दहाड़ा। भाल ने दुग क अ द नी दीवार के पास जमा
िमिथला सैिनक को िततर-िबतर कर िदया था। “बबाद करने के िलए समय नह है! एक
हमला और करो।”
धनुधर तुर त अपने काम म लग गये। सारे बाण को तैयार करने म कुछ िमनट लगते।
“हमारे सैिनक बाहरी दीवार पर चढ़गे तो हम हमला नह कर सकगे,” कु भकण ने
कहा। “जब वो अ द नी दीवार क ओर भाग रहे ह गे तो हम अपने ही आदिमय को िनशाना
बना दगे।”
“इसीिलए तो म चाहता हँ भाल क एक खेप और फक जाये,” रावण ने कहा। “म
चाहता हँ िक हमारे आ मण करने से पहले िमिथलावासी पीछे हटने लग।”
कु भकण ने ऊपर टोिहय क ओर देखा। लगभग सभी अपने दोन हाथ को सर के
ऊपर झुला रहे थे।
“देिखए, दादा! हम दूसरी खेप फकने क आव यकता ही नह है,” कु भकण ने कहा।
“वो पीछे हटने लगे ह।”
रावण ने घणृ ा से दाँत पीसे। “भी कह के। एक हमला तक नह सह सके!”
“ या हम हमला कर?”
“नह । सुर ा के िलए एक खेप और फको।”
अब टोही अपनी बाँह सर के ऊपर मोड़े हए थे। िमिथलावासी परू ी तरह पीछे हट रहे थे।
जब एक और गरजती, अिन कारी सनसनाहट सुनाई दी तो कु भकण ने रावण को
देखा। एक सह और भाले धनुष से छूट कर अ द नी ाचीर क ओर लपक रहे थे, और
भागते हए िमिथलावािसय म पीछे रह गये लोग को भेद रहे थे।
उन िवनाशकारी कुछ पल म िमिथला के चार सह यो ाओं म से कम-से-कम एक
सह यो ा ढे र हो गये थे। जबिक लंका के एक भी यो ा ने जान नह गंवाई थी।
टोही अब अपने िसर के ऊपर ताली बजा रहे थे। संकेत प था। अब अ द नी दीवार
पर कोई िमिथलावासी नह बचा था। वो या तो मारे गये थे या भाग गये थे।
“आ मण!” रावण दहाड़ा।
हरकार ने पंि म आगे तक आदेश क घोषणा क और यु घोष करते लंकावासी
बाहरी दीवार पर चढ़ने लगे। श िखंचे हए। मारने के िलए तैयार। िमिथला के असहाय
नाग रक को न करने के िलए तैयार।
मगर वो चिकत रह गये।
िमिथला एक द र नगर था, और वहाँ जो थोड़ी-बहत स पि थी वो अ यायपण ू ढं ग से
िवत रत थी। सम ृ बहत सम ृ थे। और िनधन बहत अिधक िनधन।
इसके प रणाम व प, सम ृ लोग शहर के बीच म िवलािसतापण ू भवन म रहते थे
जबिक िनधन दुग क दीवार के िनकट जजर झोपिड़य और बि तय म रहते थे। िमिथला क
राजकुमारी और इसक धानम ी सीता इस अ याय को सहन नह कर पाय । तो उ ह ने
कर और बाहरी लोग क सहायता से झोपड़-बि तय का पुनिवकास करने के िलए धन
एक िकया। चँिू क सभी झोपड़प ीवािसय के िलए बड़े घर बनाने के िलए पया भिू म नह थी
इसिलए उ ह ने एक अ ुत हल िनकाला एक चार तल का शहद के छ े जैसा िनमाण, जो
दुग क अ द नी दीवार तक फै ला था।
अपने आकार के कारण यह िवशाल भवन िजसने झोपड़-ब ती का थान िलया था,
मधुकर िनवास कहलाता था। अनेक पवू ब तीवािसय ने दुग क दीवार म जो अब उनके घर
क भी दीवार थी, िखड़िकयाँ बना ली थ । सीता ने उ ह रोका नह था। स िस धु क
शि शाली संरचना म िमिथला के छोटे-से तर को देखते हए उनके िलए सुर ा कभी इतनी
मह वपण ू नह थी िजतना िक िनधन नाग रक का उ थान था।
वयंवर के िलए दीवार क िखड़िकय को लकड़ी के प से अ थायी प से ब द कर
िदया गया था। लेिकन अब, िमिथलावािसय ने झटपट इन रोक को तोड़ कर हटा िदया था,
िजससे उ ह दोन दीवार के बीच के ख़ाली मैदान का प य िमल गया था—और
बाहरी दीवार से उनक ओर दौड़ते आते लंकावािसय पर बाण क बौछार करने का आसान
थान। चँिू क िमिथलावासी मधुकर िनवास के भीतर थे, इसिलए छत उ ह भावी ेपा के
हमल से बचा लेती।
मलू प से, शहरी अिभयाि क म एक कामचलाऊ-सा सुधार यु के दौरान बहत
बड़ा साम रक लाभ बन गया था!
अपनी ती ा करते संकट से अनजान लंकावासी परू े जोश के साथ आ मण करने के
िलए आगे बढ़ रहे थे। वो सीिढ़याँ िलए अ द नी दीवार क ओर दौड़ रहे थे। दूसरी दीवार पर
चढ़ने के िलए, हाथ म अ िलये, और िमिथला के असहाय नाग रक को र द डालने के
िलए तैयार। उ ह िकसी ितरोध क अपे ा नह थी।
“मार डालो सबको!” अपने सैिनक के साथ क धे-से-क धा िमला कर दौड़ते हए,
र िपपासा आँख म भरे रावण िच लाया। “कोई दया नह ! कोई दया नह !”
लंकावािसय ारा मचाये जा रहे भयानक हो-ह ले म रावण दूर कह उ च वर म िदया
गया आदेश नह सुन पाया। मधुकर िनवास के अ दर से। सीता और उनके पित राम ारा
िदया गया आदेश। “बाण छोड़ो!”
आगे बढ़ते लंकावािसय को हैरान करते हए अचानक उन पर बाण क बौछार होने
लगी। रावण ने ऊपर अ द नी ाचीर को देखा, िफर उसे अहसास हआ िक बाण तो दीवार
के अ दर से िनचली िखड़िकय से छोड़े जा रहे थे। वो िखड़िकयाँ िजनके अि त व का भी
उ ह भान नह था।
बाण ने लंकावािसय क पंि य को भेद कर उ ह औचक धर पकड़ा था। हािन बहत
अिधक थी, लगभग हर बाण अपने िनशाने पर लग रहा था, य िक सैिनक घनी संरचना म
तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे। इस अ त य तता म, आ मण का एक िह सा क गया था,
य िक रावण के कुछ सैिनक अपने ऊपर हो रही बाण क बौछार से बचने के िलए इधर-उधर
भागने लगे थे, जबिक दूसरे अपनी ढाल के पीछे िछप गये थे। अिधकािधक श ु को मारते हए
िमिथलावासी िबना के बाण चला रहे थे।
रावण और कु भकण के आसपास मौजदू सैिनक ने अपनी ढाल िनकाल कर दोन
भाइय का बचाव िकया।
“पीछे हट, दादा!” कु भकण िच लाया। “हम म ृ यु- े म ह।”
“कभी नह !” रावण दहाड़ा। “हम बस अ द नी दीवार पर चढ़ना भर है। हमारी सेना
उन सबको समा कर देगी! बस कुछ पल और!”
“दादा! कुछ और पल म आपके पास कोई सेना नह बचेगी!”
कु भकण देख रहा था िक रावण ोध म सुलग रहा है। वो यह भी जानता था िक रावण
क अनुमित के िबना वो पीछे हटने का आदेश नह दे सकता। “दादा, वो हम पीपे म भरी
मछिलय क तरह भेद रहे ह! आदेश द!”
ढाल के सुर ाकवच के पीछे से रावण ने चार ओर देखा। उसके चार ओर उसके
िन ावान सैिनक िगरते जा रहे थे, िनममता से कटे-फटे।
लंका के राजा ने िसर िहला कर हामी भरी, अँधेरे म यह हरकत मुि कल से ही िदखाई
दी थी।
कु भकण अपने हरकारे क ओर मुड़ा। “पीछे हटो!”
शंख बजा िदये गये, और उनके वर को लंका क सेना के हरकार ने पकड़ िलया।
मगर इस बार उ ह ने एक िभ न सुर बजाया था। संकेत पाते ही, लंकावासी पलट कर भागने
लगे, और िजतनी तेज़ी से आये थे उतनी ही तेज़ी से पीछे हटने लगे।
मधुकर िनवास म िमिथलावािसय ने स नता से जोरदार उ ोष िकया।
लंका के पहले आ मण को असफल कर िदया गया था।
अ याय 27

अगले िदन के पहले हर क पाँचव घड़ी थी।


लंका के िशिवर म सदमे का अहसास असल म हए िवनाश से कह अिधक था। उ ह
अपे ा थी ऊपरी तौर पर शाि ति य िमिथलावािसय के िव वो बहत सरलता से जीत
हािसल कर लगे। मगर उ ह इतने ज़बद त जवाबी हमले क आशा नह थी।
पहले तो रावण िपछली रात के प रणाम से बहत ु ध हआ, मगर िवचार करने के बाद
उसे अहसास हआ िक स भावनाएँ अभी भी उनके प म थ । िपछली रात लंका के एक सह
ू ना के अनुसार िमिथला के भी इतने ही सैिनक
सैिनक मारे गये थे। मगर समीची से िमली सच
मारे गये थे। िमिथला क कह छोटी-सी सेना के िलए एक सह सैिनक को गँवाना कह
अिधक बड़ी ित थी। राजकुमारी सीता क सेना अब नाग रक र ा बल से िलए तीन सह
अिनयिमत सैिनक से िनिमत थी, मगर लंका के पास अभी भी नौ सह यु लड़े हए
अनुभवी सैिनक थे। इसके अलावा, समीची से उ ह यह भी पता लगा था िक िपछली रात
लंकावािसय ारा ढहाये गये िवनाश से िमिथला के सामा यजन आतंिकत ह। मनोबल बहत
िगरा हआ था और राजकुमारी सीता अपने नाग रक को लड़ने के िलए े रत करने क
भरपरू कोिशश कर रही थ , मगर ऐसा लगता नह था िक वो सफल ह गी।
रावण िजतना इस बारे म सोचता, उतना ही आ त हो जाता िक उसक सेना म अभी
भी राजा िमिथ के नगर को जीतने और न करने का मा ा है। और अब, पहले से कह
अिधक, यह स मान का िवषय बन चुका था।
लंका क सेना ने रात भर कड़ी मेहनत क थी। अ थायी तौर पर बने िचिक सक य
िशिवर म घायल का उपचार िकया जा रहा था, साथ ही बहत तेज़ गित के साथ वन को भी
साफ़ िकया जा रहा था। सुबह तक, उनके पास अपनी आव यकता के िलए पया लकड़ी हो
जायेगी। कुछ सैिनक लकड़ी को त त म काटने और आकार देने के िलए समहू म काम
कर रहे थे। अ य इन त त को जोड़ कर िवशाल आयताकार ढाल बना रहे थे, िजनम आधार
के साथ-साथ पा म भी मजबत ू पकड़ लगी थ । हर ढाल बीस सैिनक क सुर ा करने म
स म थी।
कु भकण के साथ रावण काम का िनरी ण करने सेना के बीच गया।
“क छप ढाल बहत सही बन रही ह,” कु भकण ने कहा। य िप शु म तो यु को ले
कर कु भकण िब कुल भी उ सािहत नह था, मगर वो जानता था िक इसे अब छोड़ने का
ही नह उठता। अगर अपने पहले असफल यास के बाद ही वो पीछे हट गये तो सारे स
िस धु म समाचार फै ल जायेगा िक एक छोटे-से, शि हीन रा य ने यु म शि शाली
लंकावािसय को हरा िदया। इससे रावण के श ुओ ं को बल िमल जाता। अगर पहले ही वो यु
से बचने क कोिशश करते, तो उसका भाव इतना िवनाशकारी नह होता। मगर अब तो
बहत देर हो चुक थी। दूसरे िव ोिहय को पहले ही रोक देने के िलए उ ह िमिथला से लड़ना
और उसे हराना होगा।
“हाँ,” रावण ने कहा। “आज रात हम िफर से हमला करगे। हम बाहरी दीवार को तोड़
दगे, उन पर चढ़ने क कोई आव यकता नह है। वैसे भी, बाहर तो कोई िमिथलावासी होगा
नह । बाहरी दीवार के पार होने के बाद अपनी क छप ढाल से रि त हम लोग अ द नी
दीवार म सध लगायगे। वो मख ू घेराव के िलए तैयार नह ह। हमने पहले उ ह कम आँका था।
हम वही ग़लती िफर नह दोहरायगे।”
कु भकण ने हामी भरी। मगर उसे यह बात लगातार परे शान कर रही थी िक गु
िव ािम और उनके कुछ मलयपु सहयोगी अभी भी दुग के भीतर थे। शि शाली मलयपु
को ह के म नह िलया जा सकता था। कभी भी नह ।
रावण का मि त क अभी आगामी यु पर ही था। “जब हम उनक दीवार को तोड़ दगे
तो उन सबको समा कर दगे। कोई जीिवत नह बचना चािहए, पशु तक नह ।”
कु भकण ने कुछ नह कहा।
“तुम इन ढाल का िनरी ण जारी रखो,” रावण ने कहा। “म गु चर का िववरण
पढ़ना चाहता हँ।”
“हाँ, दादा।”
िवचार म त लीन कु भकण आगे बढ़ गया। वो जानता था िक उ ह यह यु लड़ना ही
होगा, मगर वो अिन क उस आशंका को नह हटा पा रहा था जो उसे घेरे हए थी।
वो सैिनक के बीच, क छप ढाल क जाँच करता घम ू रहा था, िक तभी उसने हवा म
िकसी बाण क िनि त सनसनाहट सुनी। सहजबोध से वो झुक गया, और उसने एक बाण
को अपने पाँव तले लकड़ी के एक त ते म धंसते देखा। उसने हैरानी से ऊपर देखा।
िमिथला म ऐसा कौन है जो इतनी ज़बद त सटीकता के साथ इतनी दूर तक बाण चला
सकता है?
उसने यान से दीवार को तका। उसे बस अ द नी दीवार क ाचीर पर दो असामा य
प से ल बे और कुछ छोटा एक तीसरा पु ष िदखाई िदये। तीसरे पु ष के हाथ म धनुष था;
वो उसी क िदशा म देखता तीत हो रहा था।
कु भकण ने आगे बढ़कर लकड़ी म फँसे बाण को जाँचा। उसक डं डी पर एक भोजप
बँधा हआ था। उसने उसे िनकाला, भोजप को खोला और ज दी-ज दी पढ़ा।
भगवान दया कर!

“तु ह सच म िव ास है िक वो ऐसा करगे, कु भकण?” रावण ने घण ृ ा से फुफकारते हए पछू ा


और प क को फक िदया।
कु भकण दौड़ते हए रावण के पास आया था और उसे अलग ले जा कर उसने उसे वो
प क िदखाया था। उसे अयो या के युवराज और अब िमिथला क राजकुमारी- धानम ी
सीता के पित राम ने भेजा था। उस छोटे-से प क ने बहत प प से चेतावनी दी थी िक
मलयपु ने लंका के सैिनक क पहँच से बहत दूर, िमिथला के दुग क अ द नी दीवार
पर असुरा ेपा तैयार कर िलया है। और िक अगर लंकावासी अपनी सेना को भंग
करके पीछे नह हटे तो राम असुरा चला दगे। रावण के पास िनणय लेने के िलए एक घंटे
का समय था।
“दादा,” कु भकण ने कहा, “अगर वो असुरा दाग़ते ह तो यह—”
“उनके पास कोई असुरा नह है,” रावण ने बात काटी। “वो कोरी धमक दे रहे ह।”
अनेक लोग असुरा को दैवी अ मानते थे, िजसे सामिू हक िवनाश के अ के प
म योग िकया जाता था। िपछले महादेव भगवान ने अनेक शताि दय पहले दैवी अ के
अनिधकृत योग पर ितब ध लगा िदया था, और ाय: सभी ने इस आदेश का पालन िकया
था। उ ह ने िनयम बनाया था िक अगर कोई भी इस िवधान को तोड़े गा तो उसे चौदह वष के
िनवासन के दंड का भागी होना होगा। दूसरी बार इस िनयम को तोड़ने का दंड म ृ यु था।
भगवान ारा बनायी गयी जनजाित वायुपु को कड़ाई से इस दंड को लागू करना था।
मगर ऐसे भी लोग थे िजनका कहना था िक असुरा सही मायन म सामिू हक िवनाश
का नह , बि क सामिू हक प से अश करने का अ था। और चँिू क इसे दैवी अ नह
कहा जा सकता था, इसिलए स भवत: यह भगवान के ितब ध से बच सकता था। रावण
ने इस बात क िच ता ही नह क िक असुरा दैवी अ के प म मा य है या नह । उसने
तो यह मानने से ही इंकार कर िदया था िक मलयपु के पास असुरा है भी। उसे पता था
िक असुरा बनाने क मल ू भत
ू साम ी को हािसल कर पाना अ य त दु कर है—भारत म
तो िन य ही कोई यह नह पा सकता था। उसने उस अ को ले कर िच ता करने म कोई
तुक ही नह देखी जो उसके श ु के पास हो ही नह सकता था।
“मगर, दादा, मलयपु के पास—”
“िव ािम ड ग हाँक रहे ह, कु भकण!”
रावण ारा गु िव ािम को केवल नाम से स बोिधत करने से ति भत कु भकण
मौन हो गया।
लंकावािसय को चेतावनी िमले हए लगभग तीन घंटे बीत गये थे। अब तक कु भकण को भी
लगने लगा था िक वो प क कोरी धमक मा है, हालाँिक भावी अमंगल का धँुधला-सा
आभास उसे छोड़ नह रहा था।
“अब तो आ त हो, कु भ?” रावण ने पछ ू ा। “तुम जानते हो म कभी ग़लत नह
होता।”
कु भकण चाह रहा था िक वो भी अपने भाई के िव ास को महसस ू कर सके, मगर
उसका अपना सहजबोध कुछ और कह रहा था।
“तु ह दैवी अ छोड़ने का दंड तो पता है ना?” रावण ने पछ ू ा। “तु ह लगता है िक
मलयपु भगवान के िनयम को तोड़गे? गु जी अ छी तरह जानते ह िक अगर हम
िमिथला के एक-एक यि को भी मार दगे, तो भी हम उ ह छूने का साहस नह करगे। वो
सुरि त ह।”
रावण यह नह जानता था िक मलयपु के पास कोई िवक प ही नह बचा था। भले ही
उ ह भगवान के िवधान का यान हो, तो भी उ ह हर क़ मत पर सीता को बचाना ही
था।
कु भकण क आशंका सही थी।
“अब अगर तुम अनुमित दो तो म बाहर आ जाऊँ?” रावण ने यं य से पछ ू ा।
कु भकण के आ ह पर, भुनभुनाते हए रावण वहाँ खड़े पु पक िवमान के अ दर रहा
था। वाहन के ढाँचे के िनमाण म यु हई धातुओ ं म से एक सीसा था और यह सव ात था
िक सीसा असुरा समेत िविभ न दैवी अ के भाव का अवरोधक है। इसीिलए कभी-
कभी इसे चम का रक धातु भी कहा जाता था। कु भकण िमिथला के दुग के उस खंड पर
िनगाह रखे हए था जहाँ से चेतावनी का बाण छोड़ा गया था। संकट का पहला संकेत पाते ही
वो िवमान का ार ब द कर देने वाला था तािक उसका भाई सुरि त रहे ।
कु भकण ने अपना िसर िहलाया। “नह , दादा। आपक र ा करना मेरा कत य है।”
“और तु हारी अपनी मख ू ता से तु हारी र ा करना मेरा कत य है! अब हटो। मुझे जा
कर देखना है िक नाव क छप ढाल का बोझ वहन करने के िलए तैयार ह या नह ।”
“दादा, कृपया मेरी बात सुन।”
“भगवान क ख़ाितर, या तुम पागल हो गये हो, कु भकण?” रावण ने भड़क
कर पछू ा।।
“कृपया मान जाय, दादा। आपक सुर ा सबसे मह वपण ू है।”
“म बालक नह हँ िजसे तु हारी सुर ा चािहए हो!”
“कृपया यह रह, दादा,” कु भकण ने कहा। “म जाकर नाव को देख लेता हँ।”
“हे भगवान!”
“दादा, बस यह मान ल िक आप मेरा मन रखने के िलए यह कर रहे ह। मुझे अिन
क आशंका—”
“हम तु हारी 'आशंकाओं' के आधार पर यु क योजनाएँ नह बना सकते!”
“मेरी आपसे िवनती है। िवमान म ही रह। म जा कर नाव क जाँच करता हँ।”
रोष म भरा रावण बैठ गया। “ठीक है!”

कु भकण झील के पास खड़ा लंका के सैिनक को नाव पर क छप ढाल लादने का िनदश
दे रहा था। अभी भी वो असुरा चलाये जाने का कोई भी िच पाने के िलए दुग पर चौकस
िनगाह रखे हए था।
उसने मुड़ कर अपने पीछे कुछ दूरी पर खड़े िवमान को देखा और यह देख कर उसे
राहत िमली िक ोध म भनभनाता रावण उड़न यान के अ दर ही खड़ा था।
कु भकण ने हाथ से संकेत करके रावण को वह रहने को कहा, और िफर नाव पर
चल रहे काम को देखने लगा।
अचानक, उसके मन म बैठी अमंगल क आशा बलवती होती लगी। पीड़ाजनक प से।
मानो िकसी ने उसक अ तिड़य को दबोच िलया हो और उ ह िनचोड़े डाल रहा हो।
उसने दुग क ओर देखा। अ द नी दीवार के उस खंड क ओर िजससे मधुकर िनवास
जुड़ा हआ था। संकट क आशंका म उसक आँख फै ल गय ।
कु भकण यह नह जानता था िक मलयपु ने अ ततः ऐसा यि खोज िलया था जो
असुरा चलाये। कोई जो भगवान का िवधान तोड़ने के अपराध और दंड वीकार करे ।
कोई िजसक उस ी को बचाने क इ छा उस िवधान को तोड़ने से अिधक बलवती थी िजस
पर सामा यतया वो सोचता भी नह सीता के पित राम। राम ारा छोड़ा जलता हआ बाण
भयानक गित से हवा को काटता जा रहा था।
भगवान दया कर।
कु भकण तुर त िच लाते हए पलटा, “दादा!”
वो पु पक िवमान क ओर दौड़ पड़ा, उतनी तेज़ी से दौड़ता िजतना िक उसक टाँग उसे
अनुिमत देत ।
इस बीच, मधुकर िनवास के ऊपर, जलता हआ बाण असुरा ेपक पर बने एक
छोटे-से लाल वग म जा घुसा और उसे पीछे क ओर धकेल िदया। बाण क आग को लाल वग
के पीछे ि थत पा ने पकड़ िलया, और वहाँ से यह तेज़ी से ई ंधन क तक फै ली िजसने
ेपा को ऊजा दान क । चंड काश चमका और अनेक छोटे-छोटे िव फोट हए। कुछ
पल बाद ेपक के आधार के पास बहत तेज लपट िनकलने लग ।
कु भकण िवमान पर पहँच गया था और उसने उसके ार क ओर छलाँग लगा दी,
अपने बड़े भाई के ऊपर िगरते हए जो िवमान म पीछे जा िगरा था। कु भकण के वेग ने उसे भी
अ दर पहंचा िदया था।
मगर िवमान का ार अभी भी खुला था।
असुरा ेपा चल िदया और पलांश म ही सारी दूरी को मापते और एक बड़ा-सा
चाप बनाते हए िमिथला क दीवार के ऊपर से गुज़र गया। ख दक-झील के बाहरी ओर
मौजदू लंका के सैिनक हत भ और दहशत म थे। ेपा का बस एक ही अथ हो सकता
था।
कोई दैवी अ ।
वो मरणो मुख थे। वो यह जानते थे।
कोई िति या करने के िलए समय ही नह था। न भागने का समय था। और भाग कर
वो िछपते भी कहाँ?
वो तो खुले म थे। असुरा का आसान िशकार।
हालाँिक उनका िवनाश तेज़ी से उनक ओर बढ़ रहा था, मगर िफर भी कोई लंकावासी
इस मंज़र से िनगाह नह हटा सका। ख दक-झील के ऊपर से उड़ते ेपा म छोटा-सा,
लगभग अ य-सा िव फोट हआ, जैसे िकसी बालक के िलए पटाखा छुड़ाया गया हो।
सैिनक के िदल म बैठा आतंक तुर त ही आशा म बदल गया।
स भवत: दैवी अ असफल हो गया है।
मगर मधुकर िनवास के ऊपर खड़े मलयपु और अयो या के राजकुमार अ छी तरह
जानते थे। गु िव ािम के िनदश पर उ ह ने अपने कान ब द कर िलये थे।
असुरा का हमला तो अभी शु ही नह हआ था।
इस बीच, कु भकण उछल कर खड़ा हआ, जबिक रावण अभी तक िवमान के तल पर
िच पड़ा हआ था। वो तेज़ी से ार क ओर दौड़ा और उसने अपने शरीर के परू े भार से पा
क दीवार पर लगे धातु के बटन को दबा िदया। िवमान का ार धीरे -धीरे सरकते हए ब द
होने लगा। बहत ही धीमे।
ार समय से ब द नह हो पायेगा।
एक पल भी सोचे िबना, कु भकण ने मोचा संभाल िलया। िवमान के भीतर। ार के
ठीक पीछे । जबिक सरकने वाला ार अपनी जगह ले रहा था, धीमे-धीमे ब द होते हए,
पीड़ाजनक प से धीमे।
कु भकण। अपनी िवशाल काया से ार के अभी भी खुले भाग को रोकते हए।
तािक िव फोट के भाव उसके पार न जा पाय।
कु भकण। आ मबिलदान के िलए तैयार। उस यि के िलए िजससे वो ेम करता था।
अपने भाई के िलए।
अपने दादा के िलए।
असुरा पल भर के िलए लंका के सैिनक के ऊपर मंडराया, और िफर ऐसे कानफाड़
धमाके के साथ फटा िजसने दूर िमिथला क दीवार को भी िहला िदया था। लंकावािसय को
अपने कान के पद फटते मालम ू िदये, उनके फेफड़ से जैसे सारी हवा िनचुड़ गयी थी।
मगर यह तो उस िवनाश क भिू मका मा थी जो आगे होने वाला था।
धमाके के बाद दहला देने वाली चु पी छा गयी। िफर िमिथला क छत पर खड़े दशक ने
उस थान से तीन हरे काश को िनकलते देखा जहाँ ेपा फटा था। यह भयंकर बलता
के साथ िनकली थी और िबजली क चमक क तरह नीचे खड़े लंकावािसय को लील गयी।
वो जहाँ थे, वह खड़े रह गये, अ थायी प ाघात से सु न से हो कर। फटे हए ेपा के
टुकड़े उनके ऊपर बरस रहे थे।
ठीक उस समय जब पु पक िवमान का ार ब द हआ, कु भकण ने हरे काश क
च ध को देखा था। ार के वयं ही ब द होने, और अ दर मौजदू लोग को और अिधक हािन
होने से बचा लेने के बावजदू कु भकण िगर पड़ा था, अचेत।
“कु भऽऽऽऽ!” रावण िच लाते हए अपने छोटे भाई क ओर भागा।
िवमान के बाहर असुरा का काम अभी परू ा नह हआ था। असली ित तो अभी होनी
थी।
एक भयंकर फुफकार क -सी विन फै ल गयी, जैसे िकसी िवशाल साँप का यु -घोष
हो। इसी के साथ, नीचे िगरे ेपा के टुकड़ से हरी वा प के दानवीय बादल उठने लगे
जो कफ़न क तरह ति भत लंकावािसय पर छा गये थे।
यही वा प असुरा क असल जान थी। वा तिवक अ । िव फोट और प ाघात
करने वाले हरे काश ने तो िशकार को तैयार िकया था। यह गाढ़ी हरी वा प असली मारक
थी।
कुछ ही पल म इस घातक वा प ने लंका के सैिनक को अपनी जकड़ म ले िलया, जो
पु पक िवमान के बाहर मैदान म जड़ पड़े हए थे। अगर स ाह तक नह तो कम-से-कम कई
िदन तक यह उ ह मिू छत रखने वाली थी। कुछ के तो यह ाण ही ले लेने वाली थी। मगर
इस समय सब कुछ ामक प से शा त था। न कोई चीख़-पुकार थी, न दया क गुहार थी।
िकसी ने भागने क कोिशश नह क । वो बस भिू म पर पड़े रहे , िन ल, उस दानवी अ
ारा िव मिृ त के आगोश म धकेल िदये जाने के िलए ती ारत। उस गहन ख़ामोशी म
एकमा आवाज़ बस ेपा के टुकड़ से िनकल रही वा प क फुफकार थी।
िवमान के अ दर बदहाल रावण अपनी बाँह म अपने छोटे भाई को िलये घुटन के बल
बैठा हआ था। उसके गाल पर आँसू बह रहे थे और वो अपने प ाघात त भाई को िहला-
िहला कर उसे होश म लाने क कोिशश कर रहा था। “कु भ! कु भ!”

कोई तीस िनिमष बीत गये ह गे। असुरा लंका क सेना का अपना िवनाश परू ा कर चुका
था।
िवमान के अ दर मौजदू छोटा, नग य-सा दल ही बच पाया था। उनम से एक
िचिक सक था। मानक अिभयान ि या के प म िवमान को हमेशा मु तैद दल के साथ
उड़ने को तैयार रहना था।
िचिक सक ने अपनी आपातकालीन औषिधय क सहायता से कु भकण को ेपा
के प ाघातीय भाव से मु कर िदया था। उसका शरीर अभी भी िन ल और सांस उखड़ी
हई थ , मगर वो अपना िसर थोड़ा-बहत िहला सकता था। वो िवमान के तल पर लेटा हआ था।
उसके नागा उपांग से बहत धीमे-धीमे र ाव हो रहा था। उसका िसर अपने बड़े भाई क
गोद म था।
उसने कुछ कहने क कोिशश क मगर उसक िज ा सज ू ी हई थी और उसक वाणी
लड़खड़ा रही थी और अबझ ू -सी थी।
“चुप रहो,” रावण ने धीरे से कहा, उसके गाल आँसुओ ं से भीगे हए थे। “आराम करो।
तुम ठीक हो जाओगे। म तु ह कुछ नह होने दंूगा।”
“थाथा... आप... थीक ह?”
रावण को जब समझ आया िक उसका भाई या कह रहा है तो उसके आँसू और ज़ोर से
बहने लगे। इस हालत म भी, कु भकण को रावण के ठीक होने क िच ता थी। लंकाराज ने
धीरे से अपने छोटे भाई के माथे को चम ू ा। “म ठीक हँ। तुम आराम करो, छोटे भाई, आराम
करो।”
कु भकण के आंिशक प से लकवा त चेहरे पर िकसी तरह टेढ़ी-सी मु कुराहट
आयी। “आप... मेले... िलली ह।”
आँसुओ ं के बीच भी रावण मु कुरा िदया। “हाँ। हाँ, म तु हारा ऋणी हँ, मेरे भाई। म
तु हारा ऋणी हँ।”
कु भकम ने धीरे से अपना िसर िहलाया, टेढ़ी-सी मु कान अभी भी उसके चेहरे पर थी।
“अले... िथथोली... कल लहा हँ...”
“आराम करो, कु भ। आराम करो...”
कु भकण ने अपनी आँख ब द कर ल ।
रावण ने रोते हए अपने भाई के िसर को अपने सीने से लगा िलया। “मुझे बहत दुख है,
कु भ। मुझे बहत दुख है। मुझे तु हारी बात सुननी चािहए थी।”
“ वामी,” लंका के एक सैिनक ने मोखले से बाहर देखते हए धीरे से कहा।
रावण ने िनगाह उठायी।
“वा प अभी भी िदख रही है,” उस सैिनक ने कहा। “इसने हमारे सैिनक को अपने घेरे
म ले िलया है। अब हम या कर?”
रावण जानता था इसका या अथ है। पु पक िवमान के बाहर भिू म पर िगरे उसके सारे
सैिनक अगर स ाह को नह तो िदन भर के िलए तो अश हो ही गये थे। वो ल बी मू छा म
रहगे, िजससे कुछ तो कभी बाहर नह िनकल पायगे। वो भी बाहर क़दम नह रख सकता
था। य िक वा प का भाव अभी भी घातक था।
िमिथला का यु हारा जा चुका था। उसक अंगर क सेना न कर दी गयी थी।
िवमान म मौजदू च द लोग के िसवा उसके पास कोई सैिनक नह बचा था। वो कुछ नह कर
सकता था।
मगर इस समय यह इतना मायने नह रखता था।
उसने नीचे अपने भाई को देखा। और उसे िनकट ख च िलया।
इस समय कुछ मायने रखता था तो वो था उसका भाई। उसे कु भकण को वापस अपने
पैर पर खड़ा करना था।
रावण ने पु पक िवमान के चालक को देखा। “हम इस मनहस थान से बाहर ले
चलो।”
अ याय 28

रावण ने सांस ली। “अ ततः, मलयपु से बदला लेने का अवसर िमल गया,” उसने कहा।
िमिथला के यु को तेरह वष से कुछ अिधक समय हो चुका था। रावण और कु भकण
िसिग रया के राजमहल म राजा के िनजी कायालय म थे। यु क मिृ त समय के साथ
धँुधला गयी थी, लेिकन रावण के िलए घाव अभी तक क चा था।
अपमानजनक हार और रावण के शि शाली दस हज़ार अंगर क के द ते के
िव वंसक िवनाश का स िस धु म उतना भाव नह हआ था िजतना उसे डर था। िमिथला के
यु के बाद कुछ समय तक तो स िस धु के कुछ अ य रा य भी लंका क स ा को चुनौती
देने के सपने देखते रहे थे। वो अयो या के राजकुमार राम को ितरोध के नेता के प म भी
देखने लगे थे। लेिकन इससे पहले िक यह आ दोलन बल पकड़ता, पवू महादेव के िवधान के
अनुसार राजा दशरथ ने राम को दैवी अ के अनिधकृत योग के िलए स िस धु से चौदह
वष के िलए िनवािसत कर िदया। उनके थान के साथ ही िव ोह के सारे सपन ने भी दम
तोड़ िदया। इस बात से हौसले और प त हो गये थे िक राम के साथ िमिथला क राजकुमारी
और उनक प नी सीता और उनके छोटे भाई ल मण भी चले गये थे।
रावण क ित ा को भी ध का लगा था। उसक जा को उससे अपे ा थी िक अपनी
हार का बदला लेने के िलए वो िमिथला वापस जा कर उसे तहस-नहस कर देगा, लेिकन
रावण जानता था िक लंका क सेना पण ू यु के िलए तैयार नह थी। वैसे भी, मलयपु लंका
के सैिनक को साथ ले कर िमिथला छोड़ कर चले गये थे, और उ ह पुनज िवत करके ब दी
बना िलया गया था। उ ह लौटाने का मू य था िक रावण भगवान के नाम पर यह ग भीर
शपथ ले िक वो िमिथला या स िस धु के िकसी भी अ य रा य पर हमला नह करे गा।
यह सुिनि त करने के िलए िक वो अपने वचन पर िटका रहे , गु िव ािम ने उसे
चेतावनी दी थी िक अगर उसने स िस धु पर हमला करने के िलए अपनी सेना को तैयार
करने के बारे म सोचा भी, तो उसे वो औषिधयाँ िमलना ब द हो जायगी जो उसे और
कु भकण को जीिवत रखे हए थ । अपनी बात को िस करने के िलए उ ह ने औषिधय और
गुफा साम ी का मू य और बढ़ा िदया था। रावण अपमान म सुलग रहा था, लेिकन उसके
पास इन शत को मानने के अलावा कोई चारा भी नह था। लेिकन वो मलयपु से बदला
लेने के अवसर क लगातार ती ा म रहा था, और लगता था िक अब ऐसा एक अवसर हाथ
आ ही गया था।
“बात बदले क नह है, दादा,” कु भकण ने कहा। “बात है उसे पाने क जो हम
चािहए। हम सावधान रहना होगा। बहत सावधान।”
“यह शायद तु हारे िलए सच हो। मेरे िलए मलयपु से बदला लेना भी उतना ही
मह वपण ू है। लेिकन म कभी भी मख ू ता, या ोध म कुछ नह क ं गा। म मखू नह हँ।”
कु भकण ने हार मानते हए हाथ फै ला िदये। “ठीक है।”
“मह वपण ू बात यह है िक अब उनके पास एक िव णु ह। और वो भी एक िदलच प
िव णु,” रावण ने िवचारपवू क कहा।
“हाँ,” कु भकण बोला। “अचानक बहत-सी बात समझ म आने लगी ह। उदाहरण के
िलए, मुझे कभी समझ नह आता था िक मलयपु िमिथला को बचाने के िलए इतने उतावले
य थे। उ ह ने भगवान के ितब ध को तोड़ते और वायुपु से स भवतः हमेशा के िलए
अपने स ब ध िबगाड़ते हए असुरा का योग िकया। िमिथला जैसा एक मामल ू ी रा य
िनि त प से ऐसा जोिखम लेने यो य तो नह था। िक तु अब प हो रहा है िक वो अपने
ऋिषय क अनमोल नगरी को नह बि क अपनी िव णु को बचाने का यास कर रहे थे! वो
जानते थे िक आप उस िदन इतने ु थे िक वहाँ मौजदू हर िकसी को मार डालते।”
रावण ने िसर िहलाया। “सही है। उ ह अपनी जान क िच ता नह है। उ ह केवल अपने
ल य क िच ता है। और अपने ल य क सफलता के िलए उ ह िव णु क आव यकता है।”
“राजकुमारी सीता क ।”
“िकसने सोचा था िक वो िव णु के िलए उस छोटे-से, शि हीन िमिथला से िकसी को
चुनगे,” रावण ने अपने दाएँ क धे को मोड़ते हए कहा। वो अब लगभग साठ वष का हो रहा
था, और दद-तकलीफ उसके जीवन का सतत भाग बन गयी थ । साथ ही, उसे जीिवत रखने
वाली औषिधयाँ भी उसक शि को भािवत कर रही थ । िसिग रया को तबाह करने वाली
रह यमय महामारी ने इस ित को और बढ़ाया ही था।
“अकेली वही उ मीदवार नह थ ,” कु भकण ने कहा।
रावण ने हैरानी से अपने छोटे भाई को देखा।
“वायुपु और गु विश का मानना है िक राम को अगला िव णु होना चािहए,”
कु भकण ने कहा।
विश अयो या के राजप रवार के राजगु और मु य परामशदाता थे। मगर स
िस धु के राजप रवार म उनक पदवी ही इस बात का एकमा कारण नह था िक देश भर म
उ ह इतना स मान िदया जाता था। वो महिष भी थे िजनका ान अ ितम था। उनके एकमा
समक , स भवतः, मलयपु मुख महिष िव ािम ही थे। यह भी सव ात था िक महिष
विश पवू महादेव भगवान ारा िनिमत जनजाित वायुपु के भी बहत िनकट थे।
“राम? या सच?”
“हाँ।”
“यह तो अनुपयु है,” रावण ने कहा। “वायुपु और गु विश करना या चाह रहे
ह? राम और सीता के बीच वैवािहक मतभेद पैदा करना?”
कु भकण हँसने लगा। “जो भी हो, िव णु के िवषय म वायुपु या गु विश जो भी
सोच रहे ह , उसका अि तम चुनाव पर कोई भाव नह होगा। िव णु का चुनाव केवल
मलयपु करते ह। और गु िव ािम अपना चुनाव कर चुके ह। सीता अगली िव णु ह गी।”
रावण अपने आसन पर िटक कर बैठा और उसने एक गहरी सांस ली। “गु विश
और गु िव ािम के बीच इस कलह का या कारण है? वो तो िकसी समय िम थे ना?”
“पता नह , दादा। यह िकसी और कथा, िकसी और पु तक का कथानक है। इसका
हमसे कोई सरोकार नह है।”
“मगर तुम तो अिधकांश बात के बारे म बहत कुछ जानते हो,” रावण ने कहा। “तु ह
इस िव णु के च कर के बारे म इतना सब कैसे पता लगा?”
“बेहतर होगा िक आप यह न जान।”
“ य ?”
“बस मुझ पर भरोसा रख, दादा।”
रावण ने कु भकण को तका। “मुझे ऐसा य लग रहा है जैसे हम िकसी बड़ी िबसात
के छोटे-से मोहरे भर ह?”
“हर मनु य एक मोहरा ही है, दादा। मगर चौपड़ म, जो मोहरा दूसरे प म सध लगा
लेता है, वो अचानक ही बहत शि शाली हो जाता है।”
रावण ने अपनी 8व उठाय और मु कुराया। “चौपड़ और वा तिवक जीवन म अ तर
होता है, छोटे भाई।”
“िन स देह। मगर चौपड़ वा तिवक जीवन का ितिनिध व करता है। आप चौपड़ कैसे
खेलते ह, यह इस बारे म भी बहत कुछ बता देता है िक आप जीवन कैसे िबतायगे।”
“बुि मतापण ू बात,” रावण ने कहा। “जो भी हो, मुझे तुम पर परू ा भरोसा है, कु भ। जब
भी मने तुम पर भरोसा नह िकया है, मुझे हािन ही हई है।”
कु भकण हँसा और उसने उबासी रोक ।
“िफर से न द आ रही है?” रावण ने पछ ू ा, उसके चेहरे पर अपराधबोध था।
असुरा ने कु भकण पर बहत दु भाव छोड़े थे। नागा उ प न होने के कारण बचपन
से ही वो पीड़ा और असुिवधा भोगता आ रहा था। उसके उपांग जोड़ पर बहत पीड़ादायी थे,
और बचपन म उनसे बहत अिधक र ाव होता था। मलयपु क औषिधय ने उसक पीड़ा
और र ाव को रोकने म सहायती क थी। मगर, असुरा के हरे काश क सीमा म
आने से उसक हालत म बहत िगरावट आयी थी। इसके अलावा, इ यावन वष क आयु म वो
उतना सश भी नह रहा था िजतना पहले हआ करता था। िफर से शु हआ र ाव और
दद अब लगभग असहनीय हो गये थे।
मलयपु के वै िसिग रया आये थे और उ ह ने कुछ नई औषिधयाँ तैयार क थ
िजनसे पीड़ा और र ाव को रोकने म िकसी सीमा तक मदद िमली मगर उनके भाव से
कु भकण अ यिधक सु त हो गया था। अब वो ितिदन, िदन के अिधकांश भाग म बस सोता
रहता था। उसके िलए अपना यान वापस केि त कर पाने का केवल एक ही उपाय था, और
वो था कुछ िदन के िलए औषिधयाँ लेना ब द कर देना। लेिकन लगभग तुर त ही पीड़ा वापस
लौट आती थी, और अगर वो पाँच िदन से अिधक औषिध छोड़ता तो र ाव शु हो जाता।
इससे अिधक कुछ भी होता तो उसका जीवन ही संकट म पड़ जाता।
और यह सब इसिलए था िक िमिथला के यु म अपने भाई का जीवन बचाने के िलए
उसने वयं को संकट म डाल िदया था।
रावण वयं को मा नह कर पाया था। िपछले तेरह वष म उसने अपनी दूसरी सभी
योजनाओं—लंका के सा ा य के िव तार से ले कर िकि क धा का अिध हण करने तक—
को छोड़ िदया था । उसका सारा यान बस यह सुिनि त करने पर लग गया था िक उसका
छोटा भाई जीिवत और यथास भव व थ रहे ।
कु भकण रावण को देखकर मु कुराया। “म ठीक हँ, दादा।”
रावण मु कुराया और उसने अपने भाई का क धा थपथपाया।
“वैसे भी,” कु भकण ने आगे कहा, “हम वायुपु या गु विश से तो कोई लेना-
देना है नह । हम तो बस मलयपु को अपने िनय ण म लाना है। और यह तभी होगा जब
हम िव णु को उठा लायगे। वो हर मू य पर उ ह मु करवाना चाहगे, और तभी हम उ ह परू ी
तरह िनचोड़ सकते ह। हम उनसे एक साथ इतनी औषिध माँग लगे जो हमारे िलए अगले बीस
वष तक पया हो—उनका अितशय मोल िदये िबना। जब तक िव णु लंका म ब दी रहगी,
हम मलयपु से अिधक माँग करने से कोई चीज़ नह रोक सकेगी।”
रावण ने हामी भरी।
“तो हम इस पर आगे बढ़?” कु भकण ने पछ ू ा।
“हाँ, हम सीता का अपहरण करना होगा।”
“याद रख, दादा, यह बदला लेने के िलए नह है। हम केवल वही माँगगे जो हम चाहते
ह। हम बस मलयपु पर अपनी पकड़ चािहए। हम िव णु को मारगे नह ।”
रावण ने हामी भरी।
“वो हमारी ब दी रहगी।”
“हाँ।”
“राजनीितक ब दी। उ ह लंका के एक महल म रखा जायेगा, कालकोठरी म नह ।”
“म समझ गया, कु भ! तु ह बार-बार कहने क आव यकता नह है!”
कु भकण मु कुराया और मायाचना म उसने अपने हाथ जोड़ िदये।

“दादा, मुझे नह लगता यह अ छा िवचार है,” कु भकण ने धीरे से कहा।


रावण कु भकण के साथ िसिग रया के राजमहल के अपने िनजी क म था। रावण का
पु स ाईस वष य इ जीत भी वहाँ मौजदू था। इ जीत का डीलडौल भी अपने िपता क
तरह भयभीत करने वाला था। वो ल बा और आ यजनक प से बिल था, और उसक
आवाज़ गहरी और आदेशा मक थी। उसने अपनी माँ क -सी कपोलाि थयाँ और घने भरू े बाल
पाये थे, िज ह वो िसंह के केश के समान दोन ओर माँग िनकाल कर और िसर के बीच म
एक ल बी गाँठ लगाकर सँवारता था। तेल लगी ल बी मंछ ू े उसके िचकनी रं गत वाले चेहरे पर
बहत अँचती थ । उसके व साधारण से थे—भरू े रं ग क धोती और मोितया रं ग का अंगव ।
कान के बँद के अलावा वो कोई आभषू ण नह पहनता था, जो िक भारत के अिधकांश यो ा
पहनना पस द करते थे। लंका को तबाह करने वाली महामारी ने इ जीत पर कोई भाव
नह डाला था, िजस पर रावण को गव था।
लंकाराज को अपने पु से बेहद ेम था। उसने वयं उसका नाम चुना था: इ जीत,
जो देवराज इ को भी जीत ले।
बहत ाचीनकाल म इ देव के पौरािणक राजा थे। मगर समय के साथ यह नाम उन
लोग क पदवी बन गया था िज ह देवताओं का राजा माना जाता था। अपने पु से रावण क
अितशय आशाएँ िकसी से िछपी नह थ ।
“म कु भकण चाचा से सहमत हँ,” इ जीत ने धीमे वर म कहा तािक उसक आवाज़
दूर तक न जाये। “यह मह वपण ू अिभयान है। मेरा मानना है इसे हम ही पण ू करना चािहए।
हम इसे चाचा और बुआ पर नह छोड़ सकते, जो घमंड और अ मता का भयंकर मेल ह।”
रावण ने उस पु ष और ी को देखा जो उससे स मानजनक दूरी पर खड़े हए थे।
िवभीषण और शपू णखा—उसके सौतेले भाई-बहन और इ जीत के 'चाचा और बुआ।' सीता
का अपहरण करने के काय के िलए दोन ने जाने क इ छा जतायी थी। उनक ओर देखते
हए रावण मुि कल से ही अपनी घण ृ ा दशाने से वयं को रोक रहा था। वो उसके उस िपता से
ज मे थे िजनसे वो बैर मानता था और उस सौतेली माँ क स तान थे िज ह वो तु छ समझता
था, और अगर इतना ही पया नह था तो उसक हमेशा िवलाप करने वाली माँ कैकेसी ने
उ ह गोद ले कर पाला-पोसा था। एक बार िफर उसने सोचा िक उसे नीचा िदखाने के िलए वो
िकसी भी हद तक जा सकती थ ।
“हम यह कर लगे, दादा,” िवभीषण ने िवन ता से अपने से कह बड़े सौतेले भाई से
कहा।
िवभीषण औसत ल बाई का और असामा य प से गोरी रं गत का था। उसक सरकंडे
जैसी पतली काया िकसी धावक क -सी थी। मगर उसने अपनी पतली बाँह चौड़ा रखी थ ,
मानो अपने भावशाली डोल को सहे ज रहा हो। उसके ल बे, गहरे काले बाल िसर के पीछे
एक गाँठ म बँधे थे। उसक भरी-परू ी दाढ़ी को सफ़ाई से कतर कर गहरा भरू ा रं गा गया था। वो
ढे र आभषू ण के साथ महँगी बगनी धोती और गुलाबी अंगव पहने हए था। वो एकदम छैला
लग रहा था, और रावण के अनुसार झठ ू ी िवन ता और दीनता से भरा था।
“म तु हारा दादा नह हँ,” रावण ने ढ़ता से कहा। “म तु हारा राजा हँ।”
“िन स देह, वामी,” िवभीषण ने तुर त अपने को सुधारते हए कहा, और स मानपण ू
मायाचना म कान पकड़ िलये।
रावण ने आँख तरे र । “हमारी योजना कारगर रहे गी, वामी,” िवभीषण ने कहा।
रावण के गु चर ने सच ू ना दी थी िक सीता, राम और ल मण ने अपनी सुर ा के िलए
सोलह मलयपु के साथ गोदावरी नदी के िकनारे पंचवटी नामक एक शा त थल पर
िशिवर लगाया हआ है। रावण इस बात को ले कर शंकालु था िक िव णु जैसे मह वपण ू यि
क सुर ा के िलए केवल सोलह मलयपु को िनयु िकया गया है, मगर उसे बताया गया
था िक सीता इस बात को ले कर मलयपु से अभी भी थ िक उ ह ने राम को असुरा
चलाने के िलए िववश िकया था। उ ह ने सहायता लेने से इंकार कर िदया था। उनके साथ जो
सैिनक थे वो जटायू के नेत ृ व म थे िजसे वो अपना भाई मानती थ —जो िक तीित प से
एकमा कारण था िक वो उनक मौजदू गी के िलए मान गयी थ ।
िवभीषण ने ताव रखा था िक वो शपू णखा के सौ दय से राम और ल मण को
लुभायगे। अनुमानतः उससे भट होने पर दोन पु ष अपनी चौकसी म िशिथल हो जायगे। िफर
शपू णखा िकसी बहाने से सीता को राम और ल मण से दूर ले जायेगी और उनका अपहरण
कर लेगी। अयो या के राजकुमार से कहा जायेगा िक सीता ने ई यावश शपू णखा पर
आ मण िकया, और उसके बाद हई लड़ाई म वो दुघटनावश नदी म डूब गय । चँिू क गोदावरी
म ाय: तेज़ लहर आ जाती थ , तो स भवतः उनका शव कभी ा न हो।
इस तरह, िवभीषण का तक था िक वो लंका पर कोई आरोप आये िबना सीता का
अपहरण कर लगे।
“अपने सैिनक को भेज कर उ ह उठवा ही य न ल?” कु भकण ने पछ ू ा।
“और अगर इस च कर म राम घायल या आहत हो गये तो?” िवभीषण ने से ही
उ र िदया।
िवभीषण ने जो अनकहा छोड़ िदया था, वो सबको प था। राम तकनीक प से
अयो या के राजा थे, और अयो या के राजा को स िस धु का स ाट समझा जाता था। अगर
वो लंकावािसय के हाथ मारे जाते तो लंका के िव यु घोिषत करने के िलए स िस धु
के सारे रा य पर सि ध क शत लागू हो जात । और लंका इस समय यु लड़ने क ि थित
म नह था। उसक सेना यु लड़ने के िलए बहत शि हीन थी।
कु भकण अभी भी आ त नह था। “मुझे िव ास है िक हम अपनी बहन को चारा
बनाये िबना राम और सीता को अलग करने का कोई बेहतर तरीक़ा िनकाल लगे।”
“हम उन अ से लड़ते ह िजनसे हम नवाज़ा गया है, दादा,” िवभीषण ने कहा। “और
शपू णखा ने असाधारण सौ दय पाया है।”
शंसा से स न शपू णखा गव से मु कुराई। प-रं ग म वो िवभीषण के समान ही थी,
मगर अपने म रयल भाई के िवपरीत उसका प मनमोहक था। उसने अपने भारतीय िपता से
अिधक अपनी यन ू ानी माँ के वंशाणु पाये थे। उसक वचा मोितया ेत थी, और आँख तो
मनमोिहनी थ । उसक नाक तीखी, ह क -सी ऊपर को मुड़ी हई थी और कपोलाि थयाँ उठी
हई थ । उसके बाल सुनहरी थे, भारत के िलए बहत ही असामा य-सा रं ग, और उसक एक-
एक लट हमेशा अपने थान पर रहती थी। उसक कमनीय काया क हर बात लुभावनी थी।
वो बिढ़या, महँगी रं गी गयी बगनी धोती पहने थी, जो बहत नीचे बँधी हई थी, िजससे उसक
पतली, घुमावदार कमर िदख रही थी। उसक रे शमी अंिगया नाममा के व क थी िजससे
उसक व रे खा भलीभाँित उजागर हो रही थी। एक क धे से जानबझ ू कर लटकता छोड़ा गया
उसका अंगव अंग को िछपा कम और िदखा अिधक रहा था। चुरता क त वीर को परू ा
कर रहे थे ढे र आभषू ण।
लगता था शपू णखा को इस योजना को अंजाम देने क अपनी मता पर परू ा िव ास
है। मगर कु भकण को अभी भी स देह था। वो इ जीत क राय जानने के िलए उसक ओर
मुड़ा।
आ मिव ासी नौजवान ने तुर त कहा। “िवभीषण चाचा, कृपया यह न सोच िक म
अिश हो रहा हँ, मगर मने सच म अपने जीवन म कभी इससे अिधक वािहयात योजना नह
सुनी। मुझे समझ नह आ रहा यह कैसे कारगर होगी।”
िवभीषण ोध से तना, मगर अितमानवीय कोिशश करके उसने अपनी िज ा पर
िनय ण रखा। अपने बड़े भाई ारा अपमान िकया जाना ऐसी बात थी िजसके साथ जीना
उसने सीख िलया था। मगर इस िप ले से ऐसी बात सुनना? यह असहनीय था!
“तु ह लगता है कोई भी पु ष िजसके सीने म धड़कने वाला िदल है, वो इससे बेअसर
रहने क सोच भी सकता है?” शपू णखा ने अपनी ओर संकेत करते हए पछ ू ा।
“भगवान के िलए, शपू णखा! तुम मेरी बहन हो। मेरी उपि थित म तुम ऐसी बात कह भी
कैसे सकती हो?” कु भकण ति भत था।
“आप तो चारी हो गये ह, दादा,” शपू णखा ने लगभग िचढ़ाते हए कु भकण से
कहा। “आप नह समझगे।”
कु भकण रावण क ओर मुड़ा। “दादा, म इसका समथन नह करता। मेरा कहना है िक
हम अपनी मल ू योजना पर ही चलना चािहए।”
“दादा,” शपू णखा ने रावण से कहा—उसम ऐसी कोई िझझक नह थी जो िवभीषण पर
मढ़ दी गयी थी—“म इसे कर लँग ू ी। आपको अपने हाथ ग दे करने क आव यकता नह है।
हम अपना िव ास जीतने का अवसर द।”
रावण ने इस पर िवचार िकया। कु भकण थका और उन दा-सा िदखने लगा था। उसे
ज दी ही उसक औषिधयाँ देनी ह गी। िफर इ जीत था—उसका गव और आन द। उसका
वा रस। अगर इन दोन को संकट म डालने से बचाने का कोई रा ता हो सकता है तो...
“साथ ही, वामी,” िवभीषण ने कहा, “अनेक लोग का मानना है िक हम आपके
िनकटवत नह ह। तो अगर हम पकड़े भी गये, तो िन स देह, सीता के िवलोपन को आपसे
नह जोड़ा जायेगा। यह उन स बि धय ारा िकया गया एक वत काय होगा िज ह आप
पस द नह करते। आपके हाथ व छ रहगे।”
रावण ने आँख िसकोड़ । इस बात म तो दम है।
“दादा,” शपू णखा अड़ी हई थी, “आपक कोई हािन नह होगी। अगर हम असफल रहे ,
तो आप अपने सैिनक को ले कर पंचवटी जा ही सकते ह। हम अवसर देने म हािन या है?”
हाँ... या हािन है?
“ठीक है,” रावण ने कहा।
शपू णखा स नता से ताली बजाते हए िच ला उठी।
िवभीषण आदरपवू क घुटन के बल बैठा और भिू म से म तक छुआ कर उसने रावण को
णाम िकया। “आपको इस पर पछतावा नह होगा, वामी।”
रावण ने उसे देखा। ढ गी मख
ू ।
अ याय 29

िवभीषण और शपू णखा को भारत के पि मी तट पर सालसेट के ब दरगाह जाने के िलए


लंका से िनकले कई स ाह बीत चुके थे। न हो चुके मु बादेवी ब दरगाह के उ र म ि थत
यह ीप अब इस े म लंका क मुख चौक थी। यही पंचवटी का सबसे िनकटवत
ब दरगाह था, जहाँ राम, सीता और ल मण सोलह मलयपु सैिनक के साथ डे रा डाले हए
थे।
इ जीत अपने चाचा और बुआ के साथ सालसेट गया था, लेिकन उसे आदेश था िक वो
इस अिभयान म और कोई भाग न ले। रावण अपने पु क जान जोिखम म नह डालना
चाहता था। वीर नवयुवक ने भीषण िवरोध िकया, लेिकन अ तत: अपने िपता के िनदश के
आगे झुक गया था। सालसेट से, सीता का अपहरण करने के इरादे से िवभीषण और शपू णखा
सैिनक क एक टुकड़ी के साथ पंचवटी क ओर बढ़ गये थे।
लेिकन यह अिभयान िवनाशकारी सािबत हआ।
“ मा करना,” रावण ने कु भकण से कहा। “मुझे तु हारी बात सुननी चािहए थी।”
रावण और कु भकण पु पक िवमान म सौ सैिनक के साथ सालसेट क ओर जा रहे थे।
न केवल शपू णखा सीता का अपहरण करने म नाकाम रही, बि क उनके ारा पकड़
कर बाँध भी दी गयी। सीता लंका क िमिमयाती हई राजकुमारी को घसीटती हई पंचवटी के
िशिवर तक लायी थ , जहाँ ती ारत लंका के सैिनक राम और सीता के अनुयाियय के साथ
लगभग हाथापाई पर उतर आये थे। इससे भी बढ़ कर यह िक शपू णखा क नाक ल मण ारा
ग़लती से घायल हो गयी थी।
िवभीषण ने लड़े िबना तुर त ही पीछे हटने का आदेश दे िदया था, और इस तरह ख़ुद
को, अपनी बहन को और अपने सैिनक को जीिवत रखा था। वो ज दी से सालसेट वापस
आये, और अपनी दुदशा के बारे म रावण को बताने के िलए वहाँ से इ जीत के नेत ृ व म
लंका वापस चले गये थे।
िजतने सैिनक पु पक िवमान म समा सकते थे, उ ह ले कर रावण तुर त लंका से चल
पड़ा था। शपू णखा के शारी रक घाव को तो समय के साथ िचिक सा ारा दूर िकया जा
सकता था, लेिकन उसके मँुह िदखाने यो य न रह पाने का बदला र से ही िलया जा
सकता था।
परू ी उड़ान के दौरान रावण अपने नाकारा सौतेले भाई-बहन को बुरा-भला कहता रहा,
लेिकन कु भकण के समझाने पर उसे यह भी समझ आ गया था िक उसे अ तत: राम के
िशिवर पर हमला करने का एक वैध बहाना िमल गया है। कुछ भी हो, लंका के राजप रवार के
िकसी भी सद य के साथ हई िहंसा का जवाब तो िदया ही जाना था। यह ित ा का मामला
था, और कोई भी यायोिचत यि इसे यु क कारवाई नह कह सकता था। और इस तरह
उन सि धगत दािय व के र हो जाने क भी आशा थी जो स िस धु के अ य रा य को
अयो या क सहायता करने के िलए बा य करते थे।
कु भकण ने अपने भाई को देखा और उसक मायाचना को हाथ िहला कर दरिकनार
करते हए मु कुराया। “कोई बात नह , दादा। हम इस पर पहले भी बात कर चुके ह और अपने
सौतेले भाई-बहन को बहत बुरा-भला कह चुके ह। अभी हम इस पर यान देना चािहए िक
आगे या करना है। हम िव णु का अपहरण करना है। बस। हम अपने मि त क म यह बात
िबठा लेनी चािहए।”
“सही है,” रावण ने मु कुराते हए कहा। उसने िसर के ऊपर अपनी बाँह फै लाय ।
“जानते हो िकसी भी हमले का सबसे िखझाऊ भाग या होता है?”
“ या?”
“ ती ा।”
“सही कहा।”
“यह जानना क दायी है िक हम ज दी ही यु म ह गे, पर उसके आर भ होने तक
हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना है। हम सामा य ढं ग से बात और यवहार करना है, हम
अपनी दयगित को िनय ण म और र िपपासा को उ च रखना है, लेिकन इतना भी ऊँचा
नह िक यह िनय ण से बाहर ही हो जाये।”
कु भकण हँसा। “लेिकन अपनी र िपपासा को आप वहाँ भी िनय ण म रखगे।”
रावण ने कु भकण को घरू कर देखा।
“दादा, यथाथवादी बिनये। अब आप वो नह ह जो हआ करते थे। अब आप लगभग साठ
वष के ह। आपक नािभ के उपांग और िनर तर औषिधयाँ लेते रहने ने आपको कमज़ोर कर
िदया है। आप अनेक यु लड़ चुके ह। अब लड़ने का काम सैिनक को करने दीिजये।”
“बहत व थ तो अब तुम भी नह हो!” रावण ने झ लाते हए कहा।
कु भकण ने िवमान के चालक क ओर देखा, जो सुनने यो य दूरी पर थे।
“इसीिलए म भी लड़ने से बचँगू ा,” उसने अपना वर नीचा रखते हए कहा।
“उ ह ने हमारे प रवार पर हमला िकया। और तुम चाहते हो िक हम कुछ कर भी
नह ?” रावण ने ोधपण ू फुसफुसाहट म कहा।
“नह , दादा, म चाहता हँ िक हम समझदारी से कुछ कर।”
“म भी नह हँ!”
“मने ये तो नह कहा िक आप भी ह।”
“तो िफर मुझे लड़ना होगा।”
“िब कुल नह ।”
“तु ह मुझे आदेश देने का अिधकार नह है, कु भकण।”
“आपने सही कहा। लेिकन मुझे उन तीन वचन म से पहला वचन माँगने का अिधकार
अव य है िजनका आपने मुझे आ ासन िदया था।”
िमिथला के यु के बाद, िजसम रावण क ग़लती से कु भकण के वा य को थायी
हािन पहँची थी, उसने अपराधबोध और प ाताप के आवेश म अपने छोटे भाई से कहा था िक
वो जीवन के िकसी भी िब दु पर उससे तीन वचन माँग सकता है। और िक उन तीन वचन
को िकसी भी क़ मत पर परू ा िकया जायेगा। कु भकण ने कुछ नह माँगा था। अभी तक।
रावण ग़ु से से गुराया। वो जानता था िक उसके सामने कोई चारा नह था। “यह तुम
ठीक नह कर रहे हो, कु भ!”
“हम िव णु को लायगे, दादा। हम उनका अपहरण करगे। लेिकन आपको अपना जीवन
जोिखम म डालने क कोई आव यकता नह है।”
रावण भुनभुनाता हआ दूसरी ओर देखने लगा।
कु भकण धीरे से हँसा। “अ छे प क ओर देिखए, दादा। अब मेरे पास कुल दो वचन
बचे ह।”

रावण ने िखड़क से झाँक कर नीचे सालसेट क धरती को देखा।


वो कुछ देर को ब दरगाह पर के थे, तािक समीची और उसके ेमी खर को ले सक
जो लंका के सश बल का अिधपित भी था। और िवमान एक बार िफर चल पड़ा था, और
इसक िदशा गोदावरी नदी क ओर थी।
शपू णखा और िवभीषण के साथ हए उस वीभ स टकराव के तुर त बाद राम, सीता,
ल मण और उनके साथी मलयपु पंचवटी छोड़ गये थे। वो लंका के गु चर क पहँच से
िनकल चुके थे। लेिकन समीची ने एक ब दी मलयपु को ू रतापण ू यातनाएँ दे-देकर िव णु
क सही-सही ि थित का पता लगा िलया था। पता चला िक वो पंचवटी से तो काफ़ दूर ह,
लेिकन अभी भी नदी के िनकट ह। कु भकण को जैसे ही इस बारे म सिू चत िकया गया, उसने
उ ह अपने छापामार दल के साथ आने का आदेश दे िदया।
रावण ने समीची को, और िफर अपने छोटे भाई को देखा। “हम इस औरत को साथ ले
जाने क या ज़ रत है? मुझे इसका आसपास होना पस द नह है!”
“म जानता हँ आपको इससे सम या होती है, दादा,” कु भकण ने शा त भाव से कहा।
“लेिकन यह उनक सही ि थित जानती है।”
“तो या हआ? अब हमारे पास जानकारी है। अब हम अकेले जा सकते ह।”
“समीची राजकुमारी सीता को हमम से िकसी से भी बेहतर जानती है। यह कई वष
िव णु क सेवा म रही है। इसक सलाह उपयोगी हो सकती है।”
“तुम सालसेट से चलने से पहले इससे अ छी तरह पछ ू ताछ कर सकते थे। मुझे अब भी
समझ नह आ रहा है िक यह हमारे साथ य जा रही है।”
“इसे साथ रखना हमारे िलए बेहतर है।”
“िमिथला के यु म भी यह थी। बहत लाभ हआ था हम इसके होने से। एकदम नाकारा
थी यह!”
“पर अब वो ख़ुद को उपयोगी बनाने क कोिशश कर रही है। हम उसे यह अवसर देना
चािहए। हमारी हािन या है?”
रावण ने एक गहरी सांस ली और कोई जवाब नह िदया।
“दादा, कृपया मुझ पर भरोसा रख। हमारे िलए िव णु को ा करना, उ ह जीिवत
पकड़ना मह वपण ू है। हम अपनी भावनाओं को भुला कर इस पर यान देना चािहए।”
“कभी-कभी तुम बड़े ही िखझाऊ हो जाते हो, कु भ! पता नह मने तु हारा िच य
बनाया, “ अचानक रावण बोल उठा।
“आपने मेरा िच बनाया है?” कु भकण को सचमुच आ य हआ था। वो जानता था िक
रावण के हर िच म सदैव केवल एक ही च र होता था। “आपने क याकुमारी के साथ मेरा
िच बनाया है?”
रावण ने वीकृित म िसर िहलाया।
“मुझे वो कब देखने को िमलेगा?” कु भकण ने पछू ा।
रावण ने अपने पास पड़ा कपड़े का एक थैला उठाया और उसम से िलपटा हआ
िच फलक िनकाला।
“ या? यह आपके पास है?” कु भकण ने ख़ुश होते हए कहा।
रावण ने िच फलक अपने भाई को दे िदया।
कु भकण उसे खोलते हए थोड़ा-सा टेढ़ा हो कर बैठ गया तािक िवमान म और कोई
उसे न देख सके। “वाह!”
रावण क अन त ेरणा क याकुमारी िच के म य म थ । वो पहले से बढ़ ू ी िदख रही
थ । उनके बाल लगभग परू ी तरह सफ़ेद हो चुके थे और उनके चेहरे पर बारीक-सी झु रयाँ थ ।
वो ह का -सा झुक गयी थ । वो अिधक नह तो कम से कम साठ साल क तो िदख ही रही
थ । लेिकन उनके चेहरे पर अभी भी वही िद य भ यता थी—ग रमा, सौ दय और क णा
भरी।
वो एक दीवार पर चढ़ने का यास कर रहे एक छोटे बालक क सहायता कर रही थ ।
कु भकण मु कुराया। “यह ब चा पहचाना-सा लगता है!”
रावण धीरे से हँसा, य िक वो ब चा कु भकण ही था। लगभग रीछ क तरह बाल
भरा, मटके जैसे कान वाला और िजसके क ध के ऊपर से दो अित र बाँह िनकली हई
थ । अपनी िवषमताओं के बावजदू ब चा बहत यारा िदख रहा था। स न और यार करने
यो य।
“म कहाँ जा रहा हँ?” कु भकण ने पछू ा, िजसक आँख िच पर ही िटक हई थ ।
रावण ने दीवार के ऊपर लगी बाड़ क ओर इशारा िकया। च के आकार के एक
व ृ ाकार िच को अनेक बार बना कर एक बाड़-सी बनायी गयी थी। कु भकण इसे अ छी
तरह पहचानता था।
“धमच ।”
“हाँ,” रावण ने कहा। “तुम अपने धम को पाने के िलए ऊपर उठोगे।”
“इस िच म मुझे आप नह िदखाई दे रहे । आप कहाँ ह?”
रावण ने उ र नह िदया।
“आप वयं को कहाँ देखते ह, दादा?”
रावण मौन रहा।
कु भकण ने यान से िच को देखा। िफर वो -सा अपने भाई क ओर पलटा।
“दादा—”
बहत यान से देखने पर ही दीवार पर दस चेहरे िदखाई देते थे। उनम से नौ चेहरे
नाट्यशा म विणत नवरस — ेम, हा य, दुख, ोध, साहस, भय, जुगु सा, आ य और
शाि त—को दशाते थे। लेिकन म य म ि थत दसव चेहरे पर कोई भाव नह था। यह
िनिवकार था।
कु भकण को समझ आ रहा था िक रावण ने िच म या िदखाने क कोिशश क थी।
लंका के राजा को अ सर उसक जा दशानन कहती थी, य िक उनका कहना था िक
उसम दस िसर का ान और शि थी। रावण ने अपने नाम और भारतीय कला पर परा म
भावनाओं से जुड़े तीकवाद का सहारा ले कर कह गहरा अथ य करने क कोिशश क
थी। पार प रक ान कहता है िक वा तिवक आ याि मक उ थान तभी स भव है जब मनु य
भावनाओं क उस दीवार को लाँघ ले जो उसे इस मायावी संसार म बाँधे रखती है। िच म,
रावण ने वयं को वही दीवार बनाया था िजसे बाल कु भकण लाँघने का यास कर रहा था।
“मेरे ित अपनी भावनाओं क दीवार को लाँघो, मेरे भाई,” रावण ने कहा। “मुझे छोड़ो,
और धम को ढूँढ़ो। म बहत दूर जा चुका हँ। मेरे िलए कोई उ मीद नह बची है। लेिकन तुम
अ छे मनु य हो। अपने बचपन और भोलेपन क पुनख ज करो। मुझे छोड़ो और नये िसरे से
शु आत करो। धम के पथ पर चलो, य िक म जानता हँ िक तु हारी आ मा यही चाहती है।”
कु भकण ने िबना कुछ बोले िच फलक को कस कर लपेटा और रावण के थैले म
वापस डाल िदया।
“कु भ... मेरी बात सुनो।”
“म अपना धम ही िनभा रहा हँ, दादा,” उसने कहा।
“कु भ—”
“बस बहत हो गया।”
लंकावासी िनवािसत के अ थायी िशिवर के िनकट पहँच ही रहे थे िक एक बेमौसमी तफ़ ू ान
पु पक िवमान पर थपेड़े मारने लगा। चालक िवमान को िकसी तरह सुरि त उतारने म
सफल रहे । तफ़ू ान िवमान के िलए ख़तरनाक तो था, िक तु अनजाने म ही यह लंकावािसय
के िलए लाभकारी िस हआ। तेज़ हवाओं के शोर म िवमान के िवशाल घण ू क क आवाज़ दब
गयी थी। वो िकसी क िनगाह म आये िबना उतर गये और अ थायी िशिवर पर आ मण
करते समय वो सफलतापवू क श ु को च का सके।
लड़ाई संि और घमासान रही।
मलयपु सं या म बहत कम थे, इसिलए इसम आ य क कोई बात नह थी िक लंका
का कोई भी सैिनक हताहत नह हआ। अिधपित जटायु और दो अ य सैिनक के अित र
सभी मलयपु या तो मारे गये थे या बुरी तरह घायल हो गये थे।
लेिकन राम, ल मण और सीता लापता थे। कु भकण ने इस ितकड़ी क खोज के िलए
दो-दो सैिनक के सात दल चार ओर भेज िदये थे।
साथ ही, अिधपित खर को जीिवत बच गये मलयपु , और िवशेषकर अिधपित जटायु
से जानकारी िनकलवाने का काम स प िदया गया।
रावण और कु भकण दूर खड़े हो गये तािक उ ह अपने हाथ ग दे न करने पड़। तीस
सैिनक उनको घेरे खड़े थे, तािक संकट के पहले ही संकेत पर वो उनक र ा कर सक।
“इसम बहत समय लग रहा है,” रावण ने बड़बड़ाते हए कु भकण से कहा।
“ या हम िवमान म जाकर ती ा कर?” कु भकण ने पछ ू ा।
रावण ने िसर िहला िदया। नह ।
खर अभी भी जटायु पर काम कर रहा था, जो अपने घुटन पर थे और लंका के दो
सैिनक उ ह पकड़े हए थे। मलपयपु के हाथ पीछे बँधे हए थे। जटायु के साथ बड़ी ू रता क
गयी थी; वो बुरी तरह घायल थे, उनका ख़न ू बह रहा था, लेिकन वो टूटे नह थे।
“जवाब दे,” खर ने जटायु के गाल पर चाक़ू फेर कर थोड़ा और खन ू िनकालते हए
कहा। “कहाँ ह वो?”
जटायु ने उस पर थकू िदया। “मुझे ज दी मार दे। या धीरे -धीरे मार। तुझे मुझसे कुछ पता
नह चलेगा।”
खर ने ोध म जटायु क गदन काटने के िलए अपना चाक़ू उठाया। अचानक, वन क
ओर से सरसराता हआ एक बाण आया और उसके हाथ म लगा। वो आ य और पीड़ा से
िच लाया और चाक़ू उसके हाथ से भिू म पर िगर गया।
रावण और कु भकण च क कर पलटे। उनके पास मौजदू लंका के सैिनक ने तेज़ी से
बढ़ कर उनके चार ओर सुर ा मक घेरा डाल िदया। कु भकण ने रावण क बाँह को पकड़
िलया तािक अपने आवेगशील भाई को लड़ाई म कूद पड़ने से रोक सके।
लंका के अ य सैिनक ने अपने धनुष उस िदशा म उठा िलए िजधर से श ु का बाण
आया था। उ ह कुछ िदखायी नह िदया। बाण िकसी ने जंगल के काफ़ अ दर पेड़ के इतना
पीछे से चलाया था जहाँ ि नह जा सकती थी।
“बाण मत चलाना!” कु भकण ने ऊँचे वर म आदेश िदया। उसे िव णु जीिवत चािहए
थ।
लंका के सैिनक ने धनुष तुर त नीचे कर िलये गये।
खर ने बाण क छड़ को तोड़ िदया, और नोक को अपने हाथ म धँसा रहने िदया। इससे
कुछ देर तक ख़न ू का रहता। उसने पेड़ क अभे पंि क ओर देखा। अँधरे म। और
ितर कारपवू क ताना िदया। “िकसने चलाया यह बाण? ल बे समय से तािड़त राजकुमार
ने? उसके मोटे भाई ने? या वयं िव णु ने?”
कोई उ र नह िमला।
“सामने आकर स चे यो ाओं क तरह लड़ो!” खर िच लाया।
इस ताने का भी कोई उ र नह िमला।
रावण और कु भकण अपने सैिनक के घेरे म अ छी तरह सुरि त थे, िज ह ने अपनी
ढाल ऊँची उठा रखी थ ।
“सैिनक को अ दर भेजो,” रावण ने वन के उस भाग क ओर संकेत करते हए कहा
िजधर से बाण आया था।
“नह ,” कु भकण ने कहा। “हम अपने बल को और कम नह करना चािहए। वो तीन
ह। वो फै ले हए हो सकते ह। अगर हमारे सैिनक हमारे साथ नह ह गे, तो वो आपको िनशाना
बना सकते ह।”
“कु भ, म इतना मह वपण ू नह हँ। उन—”
कु भकण ने अपने बड़े भाई को टोक िदया। “दादा, इस आ मण का एकमा कारण
आप ही तो ह। हम िव णु का अपहरण इसीिलए तो कर रहे ह िक मलयपु क औषिधय के
ारा आपको जीिवत रख सक। म आपके जीवन को जोिखम म नह डालँग ू ा।”
इससे पहले िक रावण कुछ और बहस कर पाता, ती आ मण म पाँच बाण और आये।
तेज़ी से एक के बाद एक । ठीक उस जगह जहाँ रावण और कु भकण थे। िक तु ये बाण िभ न
िदशा से चले थे। उस थान से बहत दूर से जहाँ से पहला तीर चला था।
तीर भाइय को घेरे सैिनक को लगे। पाँच लंकाई सैिनक ढह गये। लेिकन अ य अपनी
जगह से नह िहले। रावण का घेरा अिडग रहा। अपने राजा के िलए मरने को तैयार।
अंगर क अपने शौय का परू ा प रचय दे रहे थे।
“लगता है वन म दो लोग ह,” कु भकण फुसफुसाया। “आशा करता हँ िक िव णु भागी
नह ह गी।”
रावण कुछ नह बोला। उसे कुछ स देह हो रहा था। खर पर होने वाले पहले आ मण,
और उस पर व कु भकण पर होने वाले दूसरे आ मण के बीच काफ़ ल बा अ तराल था।
कुछ लंकाई सैिनक उस िदशा म दौड़ गये िजधर से दूसरा आ मण हआ था।
िफर एक आवाज़ आयी जैसे िकसी का पैर िकसी टहनी पर पड़ा हो। एक अ य िदशा से।
तीन सैिनक उस िदशा म चल िदये।
अब रावण को िव ास हो गया था। “केवल एक यि है। वो हम असमंजस म डालने
के िलए वन के भीतर तेज़ी से इधर-उधर हो रहा है।”
“आपको इसका िव ास है?” कु भकण ने पछ ू ा।
इससे पहले िक रावण कुछ जवाब देता, खर अपने थान से हटा। उसने जटायु के पीछे
जाकर अपने व थ हाथ से एक चाक़ू जटायु क गदन पर लगा िदया।
िछपे हए आ मणका रय का हर ओर पीछा िकया जा सकता है। या, उ ह एक सटीक
धमक के ारा सामने लाया जा सकता है। खर समझदार था। उसने समझदारी का काम
िकया था।
“आप भाग सकती थ ,” उसने यं या मक वर म कहा। “पर नह भाग । इसिलए मुझे
िव ास है िक पेड़ के पीछे िछपने वाल म आप भी ह, महान िव णु। और आप उनक र ा
करना चाहती ह जो आपक पज ू ा करते ह। िकतना ेरणादायक है... िकतना मािमक...” खर
ने आँसू प छने का िदखावा िकया।
काफ़ दूर खड़ा रावण मु कुरा िदया, वो वयं को घेरे लंकाई सैिनक क ओट के
कारण खर को देख नह सकता था। वो कु भकण क ओर मुड़ा। “मुझे यह खर पस द
आया।”
खर ज़ोर से बोलता रहा। “इसिलए मेरा एक ताव है। सामने आ जाय। अपने पित और
उस देवकाय देवर से भी सामने आने को कह। तो हम इस अिधपित को जीिवत रहने दगे। हम
अयो या के दोन तु छ राजकुमार को भी सकुशल जाने दगे। हम बस आपका आ मसमपण
चािहए।”
कोई िति या नह ।
खर ने चाक़ू को धीरे से जटायु क गदन पर सहलाया, िजससे एक पतली-सी लाल
रे खा बन गयी। उसने गाते हए से वर म कहा, “मेरे पास परू ा िदन नह पड़ा है...”
अचानक जटायु ने एक झटके से अपना िसर पीछे करके खर क रान के बीच मारा।
उधर लंकाई दद से दोहरा हआ, और इधर जटायु िच लाया, “भािगए! भाग जाइए, देवी! म इस
यो य नह िक आप अपनी जान संकट म डाल!”
तीन लंकाई सैिनक ने तुर त आगे बढ़ कर जटायु को भिू म पर दबा िदया। पीड़ा को
कम करने के िलए झुका हआ खर भी अब तक ज़ोर से गािलयाँ देता सँभल गया था। कुछ
ण बाद, उसने पास आकर मलयपु को एक जोरदार लात मारी। वो पेड़ क पंि य के
पीछे हर उस ओर देख रहा था िजधर से तीर चलाये गये थे। साथ ही, वो लगातार जटायु को
लात मारता जा रहा था। िफर वो झुका और उसने एक झटके के साथ जटायु को ज़बरद ती
उसके पैर पर खड़ा कर िदया।
इस बार, िसर क मार से बचने के िलए उसने जटायु के िसर को मज़बत ू ी से अपने
घायल दाएँ हाथ से पकड़ रखा था। उसके चेहरे पर ितर कार वापस आ चुका था। उसने चाक़ू
मलयपु क गदन से लगा िदया। “म गलिशरा काटूँगा और आपका ि य अिधपित कुछ ही
ण म मर जायेगा, महान िव णु,” उसने कहा। िफर उसने चाक़ू मलयपु के पेट पर लगा
िदया। “या, यह धीरे -धीरे र बहने से मर सकता है। तुम सबके पास इस बारे म सोचने के
िलए कुछ समय है।”
अभी भी कोई िति या नह हई।
“हम बस िव णु चािहए,” खर िच लाया। “वो आ मसमपण कर द और आप शेष लोग
जा सकते ह। म वचन देता हँ। यह एक लंकावासी का वचन है!”
पेड़ के पीछे से एक नारी वर गँज ू ा। “इ ह जाने दो!”
कु भकण ने फुसफुसा कर रावण से कहा। “वही ह। िव णु ही ह।”
खर जटायु के पेट से चाक़ू लगाये हए ही बोला, “आगे आकर आ मसमपण कर द। और
हम इसे छोड़ दगे।”
और िमिथला क राजकुमारी सीता, िज ह मलयपु िव णु के प म पहचानते थे, पेड़
क पंि के पीछे से िनकल आय । एक धनुष िलये, िजस पर बाण चढ़ा हआ था। उनक पीठ
पर तरकश बँधा हआ था।
लंका का राजप रवार िव णु को नह देख सका। रावण ने उ ह देखने के िलए अपने घेरे
से िनकलने क कोिशश क । लेिकन कु भकण ने उसे वापस ख च िलया।
“दादा,” कु भकण ने कहा, “उसका पित और देवर अभी भी पेड़ म िछपे हो सकते ह।
हम आपको खुले म लाने का जोिखम मोल नह ले सकते।”
“हटो भी!”
“आपने मुझे वचन िदया था, दादा।”
रावण जहाँ था वह क गया। ु । लेिकन िबना अड़े ।
“महान िव णु,” खर उपहासपवू क हँसा। साथ ही उसने एक ण को जटायु को छोड़
कर अपने िसर के पीछे एक पुराने घाव पर हाथ फेरा। एक याद को िफर से जीते हए जो परू ी
तरह भुलाई नह जा सक थी। “बड़ी कृपा िक आप यहाँ पधारी। आपके पितदेव और उनका
मोटा भाई कहाँ ह?”
सीता ने कोई उ र नह िदया। कुछ लंकाई सैिनक धीरे -धीरे उनक ओर बढ़ने लगे।
उनक तलवार यान म थ । उनके पास लािठयाँ थ , जो घायल करने के िलए काफ़ थ ,
जान से मारने के िलए नह । उनके िनदश प थे। िव णु को जीिवत पकड़ना था।
सीता ने आगे बढ़ कर धनुष को नीचे कर िलया, िजसम अभी भी एक बाण लगा हआ
था। “म आ मसमपण कर रही हँ। अिधपित जटायु को छोड़ दो।”
खर ने धीरे से हँसते हए चाक़ू को जटायु के पेट म अ दर तक धँसा िदया। हौले-हौले।
धीरे -धीरे । पहले यकृत कटा, िफर गुदा, िफर...
“नह ...!” सीता िच लाय । उ ह ने धनुष उठाया और एक तीर खर क आँख म मारा।
तीर ने उसके कोटर को फाड़ा और जा कर उसके मि त क म ठहर गया, िजससे उसक
तुर त मौत हो गयी।
“मुझे वो जीिवत चािहये!” कु भकण लंकाई सुर ा घेरे के पीछे से िच लाया।
अब सीता क ओर बढ़ रहे सैिनक म लािठयाँ ऊँची उठाये कुछ अ य सैिनक भी
शािमल हो गये।
“राऽऽऽम!” सीता िच लाय , और उ ह ने तरकश से एक और बाण िनकाल कर उसे
धनुष म लगा कर छोड़ िदया; एक और लंकाई सैिनक तुर त ढे र हो गया।
लेिकन इससे अ य क गित धीमी नह पड़ी। वे तेज़ी से आगे बढ़ते रहे ।
सीता ने एक बाण और चलाया। अपना अि तम बाण। एक और लंकाई ज़मीन पर िगर
पड़ा। अ य आगे बढ़ते रहे ।
“राऽऽऽम!”
लािठयाँ उठाये लंकाई अब उनके िसर पर पहँच चुके थे।
“राऽऽऽम!” सीता िच लाय ।
एक लंकाई सैिनक आगे बढ़ा, तो सीता ने अपने धनुष क डोरी का फँदा बना कर
उसक लाठी को उसम फँसा कर उसे उससे छीन िलया। सीता ने लाठी को उस सैिनक के
िसर पर मारा, िजससे उसके पैर उखड़ गये। उ ह ने लाठी को अपने िसर के ऊपर लहराया,
और इसक भयानक आवाज़ से अचानक सावधान हए सैिनक थम गये। सीता अपने अ को
अ छी तरह सँभाले ि थर खड़ी रह ।
अपनी ऊजा को बचाते हए। तैयार और सतक। एक हाथ लाठी के म य को पकड़े , और
लाठी का िसरा बग़ल म फँसा हआ। दूसरी बाँह आगे को पसरी हई थी। पैर स तुलन के िलए
फै ले हए थे। वो लंका के कम-से-कम पचास सैिनक से िघरी हई थ । िक तु वो दूरी बनाये हए
थे।
“राऽऽऽम!” सीता िच लाय , यह ाथना करते हए िक िकसी तरह उनक आवाज़ वन
को पार करके उनके पित तक पहँच जाये।
“हम आपको चोट नह पहँचाना चाहते, देवी िव णु,” एक लंकावासी ने िवन ता से
कहा। “कृपया आ मसमपण कर द। आपको कोई हािन नह पहँचाई जायेगी।”
सीता ने एक ती िनगाह जटायु पर डाली।
“हमारे पु पक िवमान म उसे बचाने के िलए उपकरण ह,” लंकावासी ने कहा। “कृपया
हम बा य मत क िजए िक हम आपको हािन पहँचाएँ ।”
सीता ने अपने फेफड़ म सांस भरी और एक बार िफर से िच लाय , “राऽऽऽम!”
उ ह लगा िक उ ह बहत दूर से एक ह क -सी आवाज़ सुनायी दी है। “सीताऽऽऽ!”
अचानक एक सैिनक बाएँ से लाठी लहराता हआ आगे आया। सीता क िपंडिलय का
िनशाना लेता हआ। वो हार से बचने के िलए टाँग को मोड़ते हए उछल पड़ । हवा म रहते हए
ही उ ह ने तेज़ी से लाठी पर अपने दाएँ हाथ क पकड़ ढीली क और बाएँ हाथ से उसे
भयानक ढं ग से लहराया। लाठी लंकाई सैिनक के िसर के एक ओर पड़ी। और वो वह बेहोश
हो गया।
भिू म पर उतरते हए वो िफर से िच लाय , “राऽऽऽम!”
उ ह अपने पित क आवाज़ सुनायी दी। धीमी। दूर से आती। “उ ह... छोड़... दो...”
कु भकण ने भी इस धँुधली-सी आवाज़ को सुना। उसने रावण क ओर देखा। और िफर
िच ला कर अपने सैिनक को आदेश िदया। “इ ह तुर त पकड़ लो! तुर त!”
दस लंकाई सैिनक ने एक साथ धावा बोल िदया। सीता ने हर िदशा म लाठी भाँजना
शु कर िदया और अनेक को अ म कर िदया।
“राऽऽऽम!”
उ ह ने िफर से आवाज़ सुनी। जो इस बार उतनी दूर से नह आयी थी। “सीताऽऽऽ...”
अब लंकाई आ मण िनर तर और िनमम हो गया था। सीता लया मक ढं ग से लगातार
लाठी चलाती रह । भयानक ढं ग से। पर अफ़सोस िक उनके श ुओ ं क सं या बहत अिधक
थी। एक लंकाई सैिनक ने उन पर पीछे से लाठी चलायी। उनक पीठ पर।
“राऽऽऽ”
सीता के घुटने मुड़ गये और वो भिू म पर िगर पड़ । इससे पहले िक वो सँभल पात ,
सैिनक ने दौड़ कर उ ह दबोच िलया। वो बुरी तरह संघष कर रही थ । लंका का एक सैिनक
हाथ म नीम क एक प ी िलये आगे आया। उस पर नीले रं ग का कोई लेप लगा हआ था।
उसने प ी को कस कर उनक नाक से लगा िदया। और सीता उलट कर बेहोश हो गय ।
“इ ह िवमान म ले कर जाओ! ज दी!”
कु भकण अपने बड़े भाई क ओर पलटा। “चिलए, दादा।”
“मुझे सीता को देखने दो,” रावण ने कहा।
“दादा, इतना समय नह है। राजा राम और राजकुमार ल मण िनकट ही ह, वो शी ही
आ जायगे। म नह चाहता िक हम उ ह मारने पर िववश होना पड़े । सब एकदम ठीक है। हम
िव णु िमल गयी ह, और अयो या के तथाकिथत राजा आहत नह हए ह। अब हम िनकल लेते
ह। िवमान म पहँचने के बाद आप उ ह देख लेना।”
अपने अंगर क से िघरे हए ही रावण और कु भकण िवमान क ओर चल िदये। लंका
के सैिनक पीछे -पीछे एक ल बी-सी डोली पर बेहोश सीता को ला रहे थे।

लंकावािसय ने पु पक िवमान म चढ़ कर अपने थान लेना शु कर िदया था।


अि तम सैिनक ने एक ओर क दीवार पर एक धातुई बटन दबाया और एक सरसराहट
के साथ िफसलते हए ार ब द होने लगा।
जब दोन भाई अपने थान पर पहँचे, तो कु भकण चालक क ओर मुड़ा। “हम ज दी
यहाँ से िनकालो।”
रावण और कु भकण उड़ान के िलए तैयार होने लगे और उधर सीता को पु पक िवमान
के तल पर लगी एक िशिवका से बाँधा जा रहा था।
“ये यो ा ह!” कु भकण ने शंसा मक मु कुराहट के साथ कहा।
जब आ मण हआ था, तब सीता मकर त नाम के एक मलयपु सैिनक के साथ रात
के खाने के िलए केले के प े काटने गयी हई थ । राम और ल मण िभ न िदशा म िशकार पर
गये थे। उन लोग को लगने लगा था िक उ ह ने लंकाइय को चकमा दे िदया है और अब वो
उनके पीछे नह ह।
लंका के उन दोन सैिनक ने िज ह ने सीता को खोज िलया था, मकर त को मार
डाला, मगर बदले म वो सीता के हाथ मारे गये। िफर वो चुपचाप मलयपु के न कर िदये
गये िशिवर म पहँच और पेड़ क पंि के पीछे से उ ह ने धनुष और ढे र तीर का द तापण ू
इ तेमाल करते और तेज़ी से िछपने के थान बदलते हए लंका के अनेक सैिनक को िनबटा
िदया। लेिकन अपने िन ावान अनुयायी जटायू को बचाने क इ छा ने उ ह बेबस कर िदया।
“मलयपु का मानना है िक ये िव णु ह,” रावण ने हँसते हए कहा। “तो इ ह अ छी
यो ा तो होना ही चािहए!”
ठीक उसी समय, सीता के आसपास मौजदू सैिनक हट गये थे और अपने-अपने थान
पर लौट गये थे।
उनका बेहोश शरीर िशिवका पर बँधा हआ था। वो रावण से कोई बीस फ़ुट दूर लेटी हई
थ । उनके केस रया अंगव को उनके तन पर ढक िदया गया था, और फ़ त से उनके
ऊपरी शरीर और टाँग को िशिवका पर कस कर बाँध िदया गया था। उनक आँख ब द थ ।
मँुह के एक कोने से लार बह रही थी। उ ह बेसुध करने के िलए बहत ती िवष क बहत
यादा मा ा का योग िकया गया था।
जीवन म पहली बार रावण और कु भकण ने सीता का चेहरा देखा था।
िमिथला क यो ा राजकुमारी को। राम क प नी को। िव णु को।
रावण उ ह ताकता रह गया था।
सांस रोके। दय िन ल। एकटक।
अचि भत कु भकण ने अपने भाई को देखा, और िफर सीता को। उसे अपनी आँख पर
िव ास नह हो रहा था।
ब ची बची रही थी। अड़तीस साल तक। अब वो एक ी थी।
सीता आम मैिथली ि य क तुलना म काफ़ ल बी थ । अपने छरहरे कमनीय शरीर
के साथ वो देवी माँ क सेना क यो ा लगती थ । उनके गेहँए रं ग के शरीर पर यु के
गौरवपण ू िच थे।
लेिकन रावण क नज़र तो उनके चेहरे पर िटक हई थ । वो चेहरा िजसे उसने पहले भी
देखा था।
गाल क ऊँची हड्िडय और तीखी, छोटी-सी नाक वाले चेहरे का रं ग शेष शरीर से
कुछ ह का था। ह ठ न यादा पतले थे न बहत भरे हए। उनक चौड़ी आँख न छोटी थ न
बड़ी; िबना झु रय वाली पलक के ऊपर तीखी भ ह म एक सटीक घुमाव था। ल बे,
चमक ले काले बाल खुल कर बेतरतीबी से उनके चेहरे के एक ओर िबखर गये थे। उनका
चेहरा िहमालय के पहाड़ी लोग जैसा था।
वो इस चेहरे को अ छी तरह पहचानता था। यह मल ू से थोड़ा पतला था। अिधक सश ।
कम कोमल। दाई ं कनपटी पर एक धँुधला-सा ज मिच था; शायद बचपन के िकसी घाव क
याद।
लेिकन स देह क कोई गुंजाइश नह थी। कृित माँ ने यह चेहरा उसी साँचे से रचा था।
यह ऐसा चेहरा था िजसे रावण कभी नह भल ू सकता था। यह वह चेहरा था िजसे उसने
अपने मि त क म बढ़ ू ा होते देखा था। यह वह चेहरा था िजसे वह ेम करता था।
िवमान के घण ू क ने तेज़ी से घम ू ना शु िकया और िवमान ने ऊपर उठना आर भ कर
िदया।
रावण सांस नह ले पा रहा था। िनय ण से बाहर होती दुिनया पर ि थर पकड़ बनाये
रखने के िलए उसने अपनी कुस के ह थे को कस कर पकड़ िलया था।
शायद समय आ गया था, एक पुराने कािमक ऋण को चुकाने का।
क... क...
हवा के एक तेज़ थपेड़े से िवमान लड़खड़ा गया। लेिकन रावण का यान भी नह गया।
वो बस तके ही जा रहा था, मकू ।
उसक सांस उथला गयी थी।
उसका दय जड़ हो गया था।
समय ठहर गया था।
यह प था। उनके चेहरे से यह प था।
सीता प ृ वी क बेटी थ ।
सीता वेदवती क बेटी थ ।

“गु जी! गु जी!”


मलयपु क गु राजधानी अग यकूटम म, अ र नेमी तेज़ी से अपने गु के सादे
से िनजी क म घुसा।
अपने गहन यान से िनकलते हए िव ािम ने धीरे -धीरे आँख खोल । सामा यतः, ऐसे
समय म उ ह छे ड़ने का कोई साहस नह कर सकता था। लेिकन यह एक अपवाद था। वो
िकसी समाचार क ती ा कर रहे थे और उ ह ने अ र नेमी को आदेश िदया था िक
समाचार िमलते ही वो उ ह सिू चत करे ।
“हाँ?” उ ह ने अपनी िविश आवाज़ म पछ ू ा।
“काम हो गया, गु जी।”
“मुझे सारी बात बताओ।”
“रावण और कु भकण को समीची से सीता, राम और ल मण के िठकाने क जानकारी
िमली। उ ह ने पु पक िवमान से वहाँ जा कर अचानक आ मण कर िदया।”
“िफर?”
“उ ह ने सीता का अपहरण कर िलया है। िशिवर म सारे लोग मारे गये। मुझे बताया
गया है िक राम और ल मण केवल इसिलए बच गये िक वो उस समय िशकार के िलए बाहर
गये हए थे।”
िव ािम पीछे क ओर झुके। उनके चेहरे पर ह क -सी मु कान थी। हम खेल म
वापस आ गये ।
“गु जी, मुझे समझ नह आ रहा िक हमने उनक सहायता के िलए और मलयपु को
भेजने म देरी य क । हम जानते थे िक शपू णखा के साथ जो हआ था, रावण उसका बदला
लेने क कोिशश करे गा हम उ ह बचा सक—”
“िक ह बचा सकते थे?”
“जटायू और उनके साथ मौजदू अ य मलयपु को। आ मण म वो सभी मारे गये।”
“उ ह ने भारत माता के क याण के िलए अपना बिलदान िदया है। वो स चे बिलदानी
ह। हम उनका स मान करगे। हम जटायू और उसक टुकड़ी के िलए मि दर बनवायगे।”
“िक तु सीता का या, गु जी? हमारी िव णु लंकावािसय के पास ह। जहाँ तक मने
सुना है, वो जीिवत पकड़ी गयी ह। पर म नह जानता िक रावण पर भरोसा िकया जा सकता
है या नह िक वो उ ह आहत नह करे गा। या, इससे भी बुरा, उ ह मार नह डालेगा।”
“वो उ ह आहत नह करे गा। मेरा िव ास करो।”
“गु जी, आप और म दोन जानते ह िक वो रा स है। कौन कह सकता है िक एक
रा स कैसा यवहार करे गा?”
िव ािम ने कुछ सोचते हए अ र नेमी को देखा। रह य खोलने का समय आ गया
था।
“रा स, तुमने यह कहा? तो म तुमसे पछू ना चाहँगा िक या तुम ऐसे िकसी यि को
जानते हो िजसके साथ इस रा स ने भलाई क हो?”
अ र नेमी इस िविच से पर चकरा गया। “म केवल उसके भाई कु भकण के बारे
म सोच सकता हँ। लेिकन कभी-कभी उसके साथ भी दु यवहार िकया गया है।”
“केवल उसका भाई? सच म? और कोई नह ?”
“ प है िक वो अपने पु के साथ दयालु रहा है। और हाँ! अपनी बहत पहले मर चुक
ेिमका वेदवती के साथ भी।”
“वेदवती के कारण ही वो सीता को हािन नह पहँचायेगा,” िव ािम ने कहा।
िव ािम को बहत समय से स देह था िक टोडी क घटनाओं के बारे म उनका
शु आती िन कष ग़लत था। कई वष पहले उ ह ने अ र नेमी और कुछ अ य को एक बार
िफर से और जानकारी खोज िनकालने के िलए वहाँ भेजा था। अ र नेमी ने उन लोग से
बात क थी िज ह टोडी म शव िमले थे और उ ह पता चला िक कुछ लाश वेदवती के घर के
पास पेड़ से बँधी भी िमली थ । हर लाश पर भीषण यातना के संकेत िमले थे। अ य मरने
वाल क लाश गाँव के आसपास िबखरी हई पायी गयी थ , िजससे ऐसा लगता था िक भागने
क कोिशश के दौरान पीछा करके उ ह मार िगराया गया था। लाश को जंगली जानवर के
खाने के िलए छोड़ िदया गया था। अ र नेमी ने यह भी प का कर िलया था एकमा लाश
िजनके साथ स मानपवू क यवहार िकया गया और िजनक वैिदक स मान के साथ
अ येि क गयी, वो वेदवती और उनके पित प ृ वी क थ ।
इस सबने िव ािम को इस बारे म अपना िवचार बदलने को मजबरू कर िदया था िक
वहाँ या हआ होगा। जैसा उ ह ने पहले सोचा था, शायद उसके िवपरीत रावण ने स मानपण ू
यवहार िकया था। पेड़ से बाँध कर यातनाएँ िदये जाने वाले लोग शायद वो रहे ह गे िज ह ने
वेदवती और उनके पित क ह या क होगी।
िन कष प था : रावण वेदवती से ेम करता था और उसने उनके साथ अ त तक
अ छा बताव िकया था। नरसंहार उ ह खो देने पर उसक वेदना का नतीजा था। उनक ह या
के बाद ोध म उसने ामीण को मार डालने का आदेश िदया होगा।
िव ािम को िव ास था िक महादेव क जनजाित वायुपु ने भी यही िन कष
िनकाला होगा। लेिकन उ ह स देह था िक वो शायद उस बात से अनिभ थे जो नरसंहार के
बाद हआ था। वो उस मह वपण ू अि तम कड़ी को नह जोड़ पाये ह गे। िक वेदवती क
स तान बच गयी थी। अ यथा सीता के ित उनका यवहार िभ न होता।
अ र नेमी अभी भी उलझन म था। “वेदवती और सीता के बीच या स ब ध हो सकता
है, गु जी? रावण उ ह हािन य नह पहँचायेगा?”
“उ ह इसिलए हािन नह पहँचायेगा य िक सीता वेदवती क बेटी ह।”
अ र नेमी भौच का रह गया। “ या?”
िव ािम ने िसर िहलाया, उनके चेहरे पर ह क -सी मु कान थी। हाँ, हम िनि त प
से खेल म वापस आ चक ु े ह।
“आप यह कब से जानते ह, गु जी? आपको कब पता चला?”
“सीता को िव णु िनयु करने के मेरे िनणय से बस कुछ पहले। जब वो लगभग तेरह
वष क थ ।”
“महान भु परशु राम क सौग ध! यह तो लगभग प चीस वष पहले क बात है!”
“हाँ। और इस कड़ी को जोड़ने म एक पहाड़ी मैना क आवाज़ ने मेरी मदद क थी।”
“पहाड़ी मैना? सच म?”
“हाँ। जब मुझे इस कड़ी का अहसास हआ, तो म और भी िनि त हो गया िक मेरा चुनाव
सही है। सीता एकदम सही िव णु, एक आदश नायक ह गी। य िक खलनायक कभी भी इस
नायक को मारने का साहस नह जुटा पायेगा।”
अचि भत-सा अ र नेमी अपने गु के आगे नतम तक हो गया। “ भु, आप िनि त
प से भु परशु राम के पथ के दशक होने के यो य ह।”
िव ािम ने इस शंसा को मु कुराते हए वीकार िकया और कहा, “जय परशु राम।”
“जय परशु राम,” अ र नेमी ने दोहराया। “अब या करना है, गु जी?”
“अब हम लंका पर आ मण करने के िलए अपने सारे संसाधन , सैिनक , धन—और
हनुमान—का योग करगे। सीता रावण को न करगी। और सारा भारत उ ह िव णु
वीकार करे गा।”
“हनुमान य ? वो तो...” अ र नेमी ने समय रहते ख़ुद को रोक िलया। वो कहने
वाला था िक हनुमान तो उसके गु के मुख िवरोधी विश के िनकट ह।
“इसके कई कारण ह,” िव ािम ने कहा। “िजनम सबसे मह वपण ू यह है िक हनुमान
सीता को बहन क तरह यार करते ह। और सीता उन पर एक भाई क तरह भरोसा करती
ह।”
अ र नेमी िव मय से िसर को िहलाते हए मु कुराया। “आप जैसा कोई नह है, गु जी।
ऐसी योजना और कोई नह बना सकता था।”
“देखते जाओ। मुझे इसम कोई स देह नह है िक भारत माँ को बचा िलया जायेगा। और
उसे हमारी िव णु ही बचायगी। हम इसके िलए हमेशा याद िकया जायेगा। हमारे पवू ज को हम
पर गव होगा,” िव ािम ने घोषणा क ।
अ र नेमी ने स मानपवू क अपने हाथ जोड़े और कहा, “जय ी । जय परश ु राम।”
िव ािम ने मलयपु के इस म को दोहराया। “जय ी । जय परशु राम।”

“िदवोदास! पलटो और मेरा सामना करो!”


अपने ग ु कुल के िदन म िदवोदास के नाम से जाने जाने वाले विश ने पलट कर
उस यि को देखा जो कभी उनका सबसे िनकटवत िम हआ करता था : िव ािम ।
“कौिशक...” विश ने दाँत पीसते हए िव ािम का ग ु कुल वाला नाम ले कर
कहा। “यह सब त ु हारी ग़लती है।”
िव ािम ने िचता क ओर िनगाह डाली और िफर से विश को देखा। “वो त ु हारे
कारण मरी ह। य िक तम ु वो नह कर सके जो करना आव यक था! िसिग रया और ि शंकु
को—”
विश िव ािम को टोकते हए और करीब आ गये। “िह मत भी मत करना! वो
त ु हारे कारण मरी है, कौिशक! वो इसिलए मरी ह िक तम ु ने वो करने का यास िकया जो
िकया ही नह जाना चािहए था। मने कहा था तम ु से! मने चेताया था त ु ह!”
विश अ यिधक दुबले-पतले थे। उनका िसर परू ी तरह मड ुं ा हआ था लेिकन िसर के
ऊपर चोटी थी िजसम गाँठ बँधी थी, िजससे प होता था िक वो ा ण ह। अपनी लहराती
हई ल बी दाढ़ी के कारण वो िकसी दाशिनक जैस े लगते थे। लेिकन इस समय वो िकसी भी
तरह िवन नह िदख रहे थे। वो ोध से काँप रहे थे, उनक म ु याँ िभंची हई थ । ोध
उनक आँख से फूटा पड़ रहा था।
विश बेशक ल बे थे, लेिकन अपने सामने खड़े ल बे-तड्गे िव ािम के आगे वो
बौने लग रहे थे। लगभग सात फुट ल बे, काली रं गत, चौड़ी छाती, बिल शरीर और गोल
प ेट वाले िव ािम क उपि थित मा से ही लोग डर जाते थे। उनक ल बी काली दाढ़ी और
गाँठ लगी चोटी हवा म फड़फड़ा रही थी। ऐसा लगता था जैस े विश क गदन मरोड़ने से
वयं को रोकने के िलए वो अपने ोध पर िनय ण पाने का संघष कर रहे ह ।
“चले जाओ यहाँ से,” िव ािम गरजे। “म उनके सामने त ु ह नह मा ँ गा।”
विश ने और िनकट आकर ठं डे भाव से िव ािम को घरू ा। उनक िम ता को ख म
हए ल बा समय हो चक ु ा था। और उसके अवशेष उस िचता म जल रहे थे जो उस मिहला को
भ म कर रही थी िजसे वो दोन ेम करते थे। उस भड़कती आग से एक नयी श त ु ा ज म ले
रही थी। एक ऐसी श त ु ा जो सौ साल से अिधक चलने वाली थी।
“त ु ह लगता है म तम ु से डरता हँ? तो ठीक है! लड़ ही लेत े ह! बोलो कब!” विश ने
कहा।
िव ािम ने अपना हाथ उठा िलया, और िफर बड़ी कोिशश करके वयं को िनयि त
िकया और पीछे हट गये। “म उनका सपना परू ा क ँ गा। म उ ह िदखाऊँगा िक म े हँ,
तम ु से े हँ।”
“तम ु उनके िलए कुछ भी करने वाले कोई नह होते हो! वो मेरी थ । म—”
“गु जी!”
विश ने आँख खोली और उस ाचीन, लगभग एक शता दी पुरानी याद से वापस
आये।
उ ह ने मन-ही-मन ज दी से एक ाथना पढ़ी और पछ ू ा, “ या हआ?” उ ह ने अपने
िम हनुमान को सीता और राम को बचाने के िलए भेजा था। वो आशा कर रहे थे िक हनुमान
समय रहते वहाँ पहँच गये ह ।
“हम भु हनुमान का स देश ा हआ है, गु जी। मुझे खेद है, िक तु रावण ने
राजकुमारी सीता का अपहरण कर िलया है।”
“और राम?”
“लंकावािसय ने उन सभी मलयपु को मार डाला जो राजकुमारी सीता के साथ थे।
िक तु जैसा हम बताया गया है, राजकुमार राम और राजकुमार ल मण अभी जीिवत ह। हमारे
िव णु सुरि त ह। समाचार उतना बुरा नह है िजतना शु म लगा था।”
वायुपु ने राम को िव णु के प म मा यता देने के विश के िनणय का समथन
िकया था। उनका भी यह मानना था िक यह भारत के िलए अ छा होगा। लेिकन, तकनीक
प से, िपछले महादेव क जनजाित होने के नाते उ ह केवल अगले महादेव को मा यता देने
का अिधकार था, अगले िव णु को नह ।
“समाचार बुरा है, मेरे िम ,” विश ने कहा। “यु िछड़ चुका है।”
“लेिकन... लेिकन मुझे िव ास नह है िक रावण यु चाहता है, गु जी। हम जानते ह
िक लंका बहत अ म है।”
“इससे कोई अ तर नह पड़ता िक रावण या चाहता है। वो मा कठपुतली है। इस
सबके पीछे वो नह है।”
“तो िफर कौन है?”
“िव ािम ।”
“लेिकन—” वायुपु स देशवाहक कुछ बोलते-बोलते चुप हो गया। वह विश और
िव ािम के बीच के बैर को जानता था। जो कभी बहत यारा िम हआ करता था, वो
आपका सबसे बुरा श ु भी बन सकता है। वो जानता था िक उसे इतनी िवशाल और िव ेषपण ू
लड़ाई म नह पड़ना चािहए िजतनी विश और िव ािम के बीच थी।
“अब हम या करगे, गु जी?”
विश क मु याँ कस कर िभंची हई थ , उनक माँसपेिशयाँ तन गयी थ । उनक
सामा यतः दयालु और िवन रहने वाली आँख ोध से जल रही थ । उनका चेहरा ढ़ता क
ितमिू त बना हआ था।
“अब... हम लड़गे!”

... मशः।
अमीश क अ य कताब
शव रचना यी
भारतीय काशन इितहास म सबसे तेज़ी से िबकने वाली पु तक शंख
ृ ला

मेलहू ा के म ृ यंज
ु य
(िशव रचना यी क िकताब 1)

1900 ईसापवू । िजसे आधुिनक भारतीय ग़लती से िसंधु घाटी क स यता कहते ह, उसे उस
समय के िनवासी मेलहू ा क भिू म–एक स पण ू सा ा य िजसक थापना भु ीराम ने कई
शताि दय पवू क थी—के प म जानते थे। अब उनक ाथिमक नदी सर वती मत ृ ाय
होती जा रही है, और वे पवू िदशा म अपने श ुओ ं ारा िकये जा रहे आतंकवादी हमल का
सामना कर रहे ह। या उनके िस महानायक नीलकंठ बुराई के नाश के िलए अवत रत
ह गे?
नागाओ ं का रह य
(िशव रचना यी क िकताब 2)

कुिटल नागा यो ा ने अपने िम बहृ पित क ह या कर दी है और अब उसक प नी सती के


पीछे पड़ा है। िशव, जो बुराई के िस िवनाशक ह, अपने रा सी िवरोिधय को ढूँढ़ लेने तक
चैन से नह बैठगे। ितशोध क यास उ ह सप जाित के लोग नागाओं के ार तक ले
जायेगी। िशव रचना यी क दूसरी िकताब म, भयंकर यु लड़े जायगे और कुछ च काने
वाले रह य से पदा उठे गा।

वायप
ु ु क शपथ
(िशव रचना यी क िकताब 3)
िशव नागाओं क राजधानी पंचवटी तक जा पहँचते ह, और अपने वा तिवक श ु के िव
धमयु क तैयारी करते ह। नीलकंठ नाकाम नह हो सकते चाहे इसक जो भी क़ मत
चुकानी पड़े । अपनी हताशा म, वे वायुपु से स पक करते ह। या वे सफल हो पायगे? और
बुराई से लड़ने क वा तिवक क़ मत या होगी? इन सभी रह य का जवाब पाने के िलए इस
बै टसैिलंग िशव रचना यी का अि तम भाग पढ़।

राम चं ंख
ृ ला
भारतीय काशन इितहास म दूसरी सबसे तेज़ी से िबकने वाली पु तक ंख
ृ ला

राम - इ वाकु के वंशज


( ंख
ृ ला क िकताब 1)
वे अपने देश से ेम करते ह और क़ाननू के िलए अकेले डटकर खड़े रहते ह। उनके भाई,
उनक प नी सीता, और अराजकता के अँधकार के िव लड़ाई। वे ह राजकुमार राम। या
वे दूसर ारा उन पर उछाली गयी क चड़ से उबर पायगे? या सीता के ित उनका ेम उ ह
उनके संघष से पार लगा सकेगा? या वे उस रा स राजा रावण को हरा पायगे िजसने
उनका बचपन न कर िदया था? या वे िव णु क िनयित को परू ा कर पायगे? अमीश क
नयी राम चं ंख ृ ला के साथ एक और ऐितहािसक सफ़र क शु आत कर।

सीता-िमिथला क यो ा
( ंख
ृ ला क िकताब 2)
खेत म एक प र य ब ची िमलती है। उसे दूसर ारा नज़रअ दाज़, कमज़ोर रा य िमिथला
के शासक गोद ले लेते ह। िकसी को िव ास नह है िक यह ब ची कुछ िवशेष कर पायेगी।
लेिकन वे ग़लत ह। य िक वह कोई साधारण लड़क नह है। वे सीता ह। एक अनोखी बह-
रे खीय कथा शैली के मा यम से, अमीश आपको राम चं ंखृ ला के ऐितहािसक जगत क
गहराइय म और अ दर तक ले जाते ह।

कथेतर
अमर भारत

भारत को खोज देश के कहानीकार अमीश के साथ, जो आपको तीखे लेख , प भाषण
और बुि म ापणू बहस के ारा देश को एक नये ढं ग से समझने म मदद करते ह। अमर
भारत म, अमीश आकषक प से आधुिनक ि कोण के साथ एक ाचीन सं कृित का
िव ततृ ख़ाका ख चते ह।

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