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रावण आर्यव्रत का शत्रु राम चंद्र PDF
रावण आर्यव्रत का शत्रु राम चंद्र PDF
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शव रचना यी
भारतीय काशन इितहास म सबसे तेज़ी से िबकने वाली पु तक ंख
ृ ला
मेलहू ा के म ृ यज
ुं य (िशव रचना यी – भाग 1)
नागाओ ं का रह य (िशव रचना यी – भाग 2)
वायपु ु क शपथ (िशव रचना यी – भाग 3)
राम चं ंख
ृ ला
भारतीय काशन इितहास म दूसरी सबसे तेज़ी से िबकने वाली पु तक ंख
ृ ला
कथेतर
अमर भारत : यवु ा देश, कालातीत स यता
“अमीश के लेखन ने भारत के सम ृ अतीत और सं कृित के ित अथाह िज ासा
उ प न क है।”
—नरे मोदी
( धानमं ी)
"अमीश के पास बारीिकय के िलए पैनी नज़र और बाँध देने वाली कथा मक शैली है।”
–शिश थ र
(सांसद एवं लेखक)
“अमीश के पास अतीत का एक असाधारण, मौिलक और आकषक नज़ रया रखने
वाला गहन िवचारशील मि त क है।”
–शेखर गु ा
(व र प कार एवं त भकार)
“अमीश का असर उनक िकताब से परे है, उनक िकताब सािह य से परे ह, उनके
सािह य म दशन रचा-बसा है, जो भि म पैठा हआ है िजससे भारत के ित उनके ेम को
शि ा होती है।”
— गौतम िचकरमने
(व र प कार एवं लेखक)
1st Floor, A Block, East Wing, Plot No. 40, SP Infocity, Dr MGR Salai,
Perungudi, Kandanchavadi, Chennai 600096
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of Westland Publications Private Limited, or its affiliates.
Amish Tripathi asserts the moral right to be identified as the author of this
work.
ISBN: 9789388754361
पढ़ना शु कर
समपण
“जब िकसी यि . . .
मह वपणू पा एवं क़बीले
कथा िव यास पर एक िट पणी
आभार
अ याय 1
अ याय 2
अ याय 3
अ याय 4
अ याय 5
अ याय 6
अ याय 7
अ याय 8
अ याय 9
अ याय 10
अ याय 11
अ याय 12
अ याय 13
अ याय 14
अ याय 15
अ याय 16
अ याय 17
अ याय 18
अ याय 19
अ याय 20
अ याय 21
अ याय 22
अ याय 23
अ याय 24
अ याय 25
अ याय 26
अ याय 27
अ याय 28
अ याय 29
अमीश क अ य िकताब
ओम् नम: िशवाय
ांड भगवान िशव को नमन करता है।
म भगवान िशव को नमन करता हँ।
तु हारे िलए,
और जब म कहता हँ तो ये केवल श द नह ह,
उनम रहे गी हमेशा मेरी मौन कृत ता,
ू ेम।
तु हारे साथ हमेशा रहे गा मेरा मक
“जब िकसी यि को महायश का असाधारण सौभा य ा होता है,
तो दुभा य क वापसी उसके दुख क गहनता को बढ़ा देती है।”
—क हण, राजतरं िगणी म
म रावण हँ।
म यह सब कुछ चाहता हँ।
मुझे याित चािहए। मुझे शि चािहए। मुझे स पि चािहए।
मुझे पण
ू िवजय चािहए।
भले ही मेरा यश मेरे दुख के साथ-साथ चले।
मह वपण
ू पा एवं क़बीले
इस पु तक को चुनने और मुझे अपनी सबसे मह वपण ू चीज़ : समय, देने के िलए शुि या।
म जानता हँ िक आपम से बहत लोग बहत धैय के साथ राम च ृ ला के तीसरे
ंख
भाग के रलीज़ होने क ती ा करते रहे ह। देरी के िलए मा चाहता हँ, और मुझे आशा है
िक यह िकताब आपक अपे ाओं पर खरी उतरे गी।
आपम से कुछ लोग सोच रहे ह गे िक मने इसका नाम रावण : आयवत का अनाथ से
बदल कर रावण : आयवत का श ु करने का फ़ै सला य िकया। म बताता हं। रावण क
कहानी िलखते हए मुझे उस यि के बारे म कुछ बात समझ आय । रावण जब ब चा था
तभी से उसके मन म उन प रि थितय के िख़लाफ़ गु सा भर गया था, िजनम वो ख़ुद को
पाता था। वो िकसी हद तक अपनी िनयित का िनय ता था। शु म मुझे महसस ू हआ िक
रावण को अपनी मातभ ृ िू म से दूर कर िदया गया था और इस तरह, इस मायने म, वो अनाथ
था। मगर जैसे-जैसे मेरे िदमाग़ म कहानी बुनती गयी, मुझे महसस ू हआ िक वो फ़ै सले सोच-
समझकर िलए गये थे जो उसे उसक मातभ ृ िू म से दूर ले गये थे। उसने अनाथ क भिू मका म
ढाले जाने क अपे ा श ु बनना चुना था।
जैसा िक आपम से कुछ लोग जानते ह गे, म कहानी कहने क हाइपरिलंक नाम क
शैली से भािवत हँ, िजसे कुछ लोग बहरै िखक कथानक कहते ह। इस तरह के कथानक म
बहत सारे पा होते ह; और एक सू उन सबको साथ लाता है। राम च ंख
ृ ला म तीन
मु य पा राम, सीता और रावण ह। येक पा के अपने जीवन-अनुभव ह जो उ ह वो
बनाते ह जो वो ह, और येक के जीवन म अपना एडवचर, और िदलच प बैक टोरी है।
आिख़रकार, सीता के अपहरण के साथ उनक कहािनयाँ एक होती ह।
तो हालांिक पहले भाग ने राम क कहानी को और दूसरे ने सीता क कहानी को
खोजा था, तीसरा रावण क िज़ दगी को खँगालता है, और िफर तीन एक चौथी पु तक से
एकाकार होकर एक कहानी बन जायगे। यह याद रखना मह वपण ू है िक रावण सीता और
राम दोन से कह अिधक आयु का है। वा तव म, राम का ज म उस िदन हआ था जब रावण
ने एक िनणया मक लड़ाई लड़ी थी—राम के िपता स ाट दशरथ के िव । इसिलए यह
पु तक काल म और पीछे जाती है, अ य मु य पा —सीता और राम—का ज म होने से
पहले।
म जानता था िक बहरै िखक कथानक म तीन िकताब िलखना जिटल और समय-
खपाऊ मामला है, मगर म वीकार क ँ गा िक यह बहत उ ेजना भरा था। मुझे आशा है िक
आपके िलए भी यह उतना ही फलदायक और रोमांचकारी अनुभव होगा िजतना मेरे िलए रहा
है। राम, सीता और रावण को पा के प म समझने से मुझे उनक दुिनयाओं म रहने, और
षड्य और कहािनय क उस भल ै ा को खोजने म मदद िमली जो इस महागाथा को
ू भुलय
कािशत करती ह। इसके िलए म वाक़ई अनु हीत महसस ू करता हँ।
चँिू क म एक बहरै िखक कथानक पर चल रहा था, इसिलए मने पहली पु तक (राम:
इ वाकु के वंशज) के साथ ही दूसरी पु तक (सीताः िमिथला क यो ा) म भी ऐसे संकेत
छोड़े ह जो तीसरी पु तक क कहािनय से जुड़ते ह। यहाँ आपके िलए अनेक आ य और पच
ह, और बहत से आगे आयगे!
मुझे आशा है िक आपको रावण : आयवत का श ु पढ़ने म आन द आयेगा। कृपया
नीचे िदये गये मेरे फ़ेसबुक पेज, इं टा ाम, या ट्िवटर अकाउं ट पर स देश भेज कर मुझे
बताय िक आप इसके बारे म या सोचते ह।
नेह,
अमीश
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आभार
ये दो साल बहत बुरे बीते ह। इस किठन दौर म मने इतने दुख और क भोगे ह िजतने अपने
जीवन म पहले कभी नह देखे। कभी-कभी तो मुझे महसस ू हआ जैसे मेरी सारी िज़ दगी
िबखरी जा रही है। मगर ऐसा नह हआ। म उस दौर से िनकल आया। इमारत अभी भी मज़बत ू
है। इस िकताब के लेखन ने चु बक का सा काम िलया। और अभी आगे म िजन लोग के ित
आभार य क ँ गा, वो मेरा स बल रहे ह; य िक उ ह ने मुझे सँभाले रखा है।
मेरे ई र, भु िशव। उ ह ने इन िपछले दो साल म मेरी जम कर परी ा ली है। मुझे
आशा है िक अब वो इसे थोड़ा आसान कर दगे।
वो दो यि िज ह मने जीवन म सबसे यादा सराहा है, पुराने समय के मू य , जीवट
और मान-स मान वाले यि ; मेरे सुर मनोज यास और मेरे जीजा जी िहमांशु रॉय। अब ये
दोन ही ऊपर वग से मुझे देख रहे ह। आशा है वो मुझ पर गव कर सकगे।
मेरा दस वष य बेटा नील; और जब म कहता हँ, “मेरे बेटे जैसा े न कोई था और न
कभी होगा!” तो तुम एक िपता के ज बात को माफ़ कर देना।
कहानी म सहयोग देने के िलए मेरी बहन भावना; मेरे भाई अनीश और आशीष। हमेशा
क तरह, पहला ा प उ ह ने ही पढ़ा। उनके ि कोण, स बल, नेह और ो साहन
अनमोल ह।
अपने शेष प रवार : उषा, िवनय, शरनाज़, मीता, ीित, डोनेटा, ि मता, अनुज, टा
को उनक सतत आ था और ेम के िलए। और मेरी स नता म अपना योगदान देने के िलए
म अपने प रवार क अगली पीढ़ी का भी आभार य करना चाहँगा : िमतांश, डे िनयल,
एडे न, केया, अिनका और आ ा।
मेरे काशक वै टलड के सीईओ गौतम और मेरी स पादक काितका और संघिम ा।
अगर मेरे प रवार के इतर कोई ऐसा है जो इस ोजे ट के सबसे क़रीब है, तो यही तीन ह। ये
लोग द ता, िवन ता और ग रमा का अनोखा मेल ह। मेरी कामना है हम एक ल बी पारी
साथ खेल। वै टलड क शेष शानदार टीम : आन द, अिभजीत, अंिकत, अ िणमा, बरानी,
ि टीना, दीि , धवल, िद या, जयशंकर, जयंती, कृ णकुमार, कुलदीप, मधु, मु तफ़ा,
नवीन, नेहा, िनिध, ीित, राज,ू संयोग, सतीश, सतीश, श ु न, ीव स, सुधा, िविपन,
िव योित और अ य। ये काशन जगत क शानदार टीम ह।
अमन, िवजय, ेरणा, सीमा, और मेरे ऑिफ़स के मेरे अ य सहयोगी। जो मेरे अ य
काय को सँभाल लेते ह िजससे मुझे िलखने के िलए समय िमल जाता है।
हे मल, नेहा, कै डीडा, िहतेष, पाथ, िवनीत, नताशा, काश, अनुज और ऑ टोबज़ क
बाक टीम, िज ह ने इस िकताब का मुखप ृ िडजाइन िकया है, और बहत शानदार काम
िकया है। उ ह ने ेलर भी बनाया और िकताब क अनेक सोशल मीिडया गितिविधय का
ब ध करने म सहायता क । एक उ कृ , रचना मक और ितब एजसी।
मयंक, ेया, सरोिजनी, दीिपका, नरे श, माव , नेहा, िसमरन, क ित, ि यंका, िवशाल,
दािनश और मो'ज़ आट टीम, िज ह ने मीिडया स ब ध और िकताब के िलए माकिटंग
समझौत को अंजाम िदया। वो एक एजसी ही नह , परामशदाता भी ह।
स या और उनक टीम िज ह ने लेखक के नये फ़ोटो िलये िज ह इस पु तक के
अ द नी कवर पर लगाया गया है। उ ह ने एक साधारण से िवषय को बेहतर बना िदया।
कैलेब, ि ितज, संदीप, रोिहणी, धाराव, िहना और उनक अपनी टीम िज ह ने अपने
यवसाय, क़ानन ू और माकिटंग परामश से मेरे काम को स बल िदया।
सं कृत क उ कृ िव ान मण ृ ािलनी जो मेरे साथ मेरी रसच पर काम करती ह।
उनके साथ मेरी चचाएँ बहत ानपण ू होती ह। उनसे मने जो सीखा है, उसने कई िस ा त
िवकिसत करने म मेरी मदद क है जो इन िकताब म शािमल होते ह।
आिद य, मेरी िकताब के जोशीले पाठक जो अब एक िम और त य के जाँचकता बन
गये ह।
और अ त म, मगर िवशेष प से, आप पाठकगण। म जानता हँ िक इस िकताब म
बहत देरी हो गयी है। इसके िलए म िदल से माफ़ चाहता हँ। िज दगी मुझे लेखन से दूर ले
गयी थी। मगर अब वापस ले आयी है। और यहाँ से म डगमगाऊँगा नह । आपके धैय, नेह
और साथ के िलए ध यवाद।
अ याय 1
लंका का राजा रावण और उसका छोटा भाई कु भकण आरामदेह कुिसय पर बैठे थे जो
िव यात पु पक िवमान क दीवार के पास फ़श से जुड़ी थ ।
रावण चुप बैठा था। उसका बदन तनाव त था। उसने अपने लटकन को कसकर
पकड़ रखा था—वो लटकन जो उसके गले म पड़ी सोने क ज़ंजीर म पड़ा था। यह मानव
उँ गिलय क दो हड्िडय से बना था िजनके ऊपरी िह स को सावधानीपवू क सोने क
किड़य से कसा गया था। अनेक भारतीय के बीच यह मा यता थी िक कुछ दुदा त रा सी
यो ा अपने वीर श ुओ ं क लाश से काटे गये मिृ तिच पहनते ह। ऐसा करने से उनके
अ दर अपने मत ृ श ु क शि आ जाती है। रावण के ित घोर िन ावान लंका के सैिनक
भी मानते थे िक रावण के गले म पड़ा लटकन एक पुराने श ु के हाथ से काटकर बनाया
गया है। केवल कु भकण सच जानता था। केवल वही जानता था िक जब रावण उस लटकन
को कसकर पकड़ता है, जैसे अभी पकड़े हए था, तो इसका या मतलब होता है।
अपने बड़े भाई को उसके मौन मनन म छोड़कर कु भकण ने पु पक िवमान म िनगाह
घुमाई। िशखर क ओर संकरे होते शंकु के आकार का लंका का यह उड़न-वाहन महाकाय
था। आधार के िनकट बनी झरोख जैसी इसक अनेक िखड़िकयाँ मोटे काँच से ब द थ ,
मगर धातु के पट को खोल िदया गया था। सुबह के सरू ज क धुंधली-सी रोशनी अ दर आ
रही थी, िजससे िवमान का अ द नी िह सा काशमान हो गया था। य िप िवमान
अिधकांशतः विनरोधक था मगर िवमान के ऊपर लगे मु य घण ू क क तेज़ आवाज़ िनर तर
आ रही थी। इसी म िवमान के आधार के िनकट लगे अनेक छोटे घण ू क का शोर भी घुल गया
था, जो इस उड़न-य को िदशा देने और उसक पा गितिविधय को िनयि त करने म
सहायता करते थे।
िवमान का अ द नी िह सा ल बा-चौड़ा और आरामदेह तो था, मगर साज-स जा
नाममा को थी। एकमा सजावट िवमान के अ द नी िशखर पर बना एक बड़ा-सा िच
था, जहाँ"शंकु” एक िब दु तक पतला होता गया था। वो एक ा का िच था। एक िवशाल
भरू ा, अंडाकार ा ; इसका शाि दक अथ “ का आँस”ू था। महादेव भगवान के
सभी अनुयायी ा क माला धारण करते थे या अपने पज ू ाक म इसे रखते थे। इस िच
म एक िविश ा को दशाया गया था िजसम केवल एक ही खाँचा था। इस छोटे-से मल ू
बीज को, िजसे देखकर यह िच बनाया गया था, एकमुखी ा कहा जाता था। यह बहत
ही दुलभ ा था, इसे हािसल कर पाना बहत मुि कल था और यह बहत महँगा था। रावण
के महल म उसके िनजी पज ू ाक म भी सोने के धागे म िपरोया हआ ा रखा था।
इस िच के अलावा िवमान अनलंकृत और सन ू ा था—शानो-शौकत क अपे ा सै य
वाहन अिधक था। प-रं ग पर ि याशीलता को वरीयता देने के कारण पु पक िवमान आराम
से सौ से अिधक याि य को खपा सकता था।
कु भकण ने स तोष के साथ देखा िक िवमान म अनुशािसत घेर म और सारे म फै ले
हए सैिनक मौन बैठे ह। वो अभी-अभी भोजन करके चुके थे। भलीभाँित िव ाम और भोजन
करके वो यु के िलए तैयार थे। बस कुछ ही घंट म वो सालसेट ीप पर उतरने वाले थे। वहाँ,
जैसा िक कु भकण को बताया गया था, समीची उनक इस इि छत जानकारी के साथ
ती ा कर रही थी िक अयो या के राजकुमार राम, उनक प नी सीता, छोटे भाई ल मण
और सोलह मलयपु सैिनक ने कहाँ िशिवर लगाया है।
लंका के सैिनक को िव ास था िक वो अपने शि शाली राजा रावण क बहन
शपू णखा के अपमान का बदला लेने जा रहे ह िजसे ल मण ने घायल कर िदया था। हालाँिक
सौ दया मक श यिचिक सा उसक नाक के घाव के िच को तो दूर कर देती, मगर चेहरे
क पक य हािन का बदला तो केवल र से ही िलया जा सकता है। सैिनक ये जानते थे।
वो ये समझते थे।
मगर उनम से िकसी ने भी यह सोचने का यास नह िकया िक रावण के सौतेले छोटे
बहन-भाई राजकुमारी शपू णखा और राजकुमार िवभीषण इतनी दूर, गहन दंडकार य म
अयो या के िन कािसत और तुलना मक प से शि हीन राजकुमार के साथ कर या रहे
थे।
“वो एकदम मख ू ह,” अ ततः रावण ने शु कता से और वर को धीमा रखते हए कहा।
रावण और कु भकण के आसन को ऊपर लगी एक छड़ से लटके पद से आंिशक तौर पर
अलग कर िदया गया था।” इस अिभयान पर मुझे उ ह भेजना ही नह चािहए था।”
राम और उनके लोग के साथ हई िवफल भट और प रणाम व प हई झड़प के बाद
िवभीषण शपू णखा और अपने लंकाई सैिनक को लेकर शी ता से सालसेट वापस चला गया
था, जो िक भारत के पि मी तट पर लंका का ीपीय दुग था। वहाँ से रावण के पु इ जीत
के नेत ृ व म उ ह ने लंका वापस जाने के िलए नौका ले ली थी। उनके िवफल अिभयान क
सचू ना िमलते ही िजतने सैिनक पु पक िवमान म आ सके, उ ह लेकर रावण तुर त लंका से
चल पड़ा था।
कु भकण ने गहरी सांस ली, और अपने बड़े भाई क ओर देखते हए कहा, “अब यह
बात पुरानी हो चुक है, दादा।”
“दोन जड़बुि ह। िवभीषण और शपू णखा अपनी मख ू अस य माँ पर गये ह। एक
सीधा-सादा-सा काम भी नह कर सकते।”
रावण और कु भकण दोन ऋिष िव वा और उनक पहली प नी कैकेसी के पु थे।
िवभीषण और शपू णखा भी ऋिष िव वा क स तान थे, मगर उनक दूसरी प नी े टीस से,
जो भम ू यसागर के नॉसोस ीप क यन ू ानी राजकुमारी थ । रावण को अपने सौतेले भाई-
बहन से कभी कोई लगाव नह रहा था, मगर िपता के देहा त के बाद उसक माँ कैकेसी ने
उसे उ ह अपनाने के िलए िववश कर िदया था।
“हर प रवार म कुछ मख ू होते ही ह, दादा,” कु भकण ने मु कुराकर अपने भाई को
शा त करने क कोिशश करते हए कहा। “मगर िफर भी वो प रवार का अंग ह।”
“मुझे तु हारी बात सुननी चािहए थी। उ ह भेजना ही नह चािहए था।”
“अब इसे भल ू जाएँ ।”
“कभी-कभी मुझे लगता है िक—”
“हम इसे सँभाल लगे, दादा,” कु भकण ने बात काटी। “हम िव णु का अपहरण करगे
और िफर मलयपु के पास कोई िवक प नह रहे गा। वो हम वो सब दे दगे जो हम चाहते ह।
िजसक हम आव यकता है।”
रावण मु कुराया और उसने अपने भाई का हाथ थाम िलया। “मने तु ह क के अलावा
और कुछ नह िदया है, कु भ। हमेशा मेरा साथ देने के िलए ध यवाद।”
कु भकण ने अपने भाई का हाथ दबाया। “नह , दादा। क तो मने आपको िदया है,
अपने ज म से ही। आपके कारण ही म जीिवत हँ। म आपके िलए ाण भी दे दंूगा।”
“बकवास! तुम अभी ज दी नह मरने वाले। न मेरे िलए। न िकसी और के िलए। तुम
बुढ़ापे क मौत मरोगे, अनेक, अनेक वष बाद, जब तुम हर उस ी के साथ शयन कर
चुकोगे िजसके साथ शयन करना चाहोगे और जी भर के मिदरापान कर चुकोगे!”
कु भकण जो िपछले अनेक वष से पण
ू चारी था और म पान याग चुका था, हँस
पड़ा। “हम दोन क ओर से आप ही यह पया कर लेते ह, दादा!”
तेज़ हवाएँ पु पक िवमान को थपेड़े मार रही थ । िवमान थरथराने और डगमगाने लगा था।
िकसी भीमकाय रा सी बालक के हाथ म पकड़े िखलौने क तरह। मस ू लाधार बरसात हो
रही थी। वो झरोख के मोटे काँच के पार पानी को बरसते देखते रहे ।
“भगवान क शपथ, िकसी वािहयात िवमान हादसे म मरना मेरी िनयित नह हो
सकती!”
रावण ने दो बार अपनी कुस म लगे शारी रक िशकंजे को जाँचा िजसने उसे सुरि त
प से कुस से बाँधा हआ था। कु भकण ने भी। इन िशकंज को खासतौर से शरीर के परू े
ऊपरी भाग पर ितरोधक बल को फै लाने के िलए बनाया गया था। उनक जंघाएँ भी कस
गयी थ ।
लंका के सैिनक ने भी िवमान के फ़श और दीवार पर लगे सामा य िशकंज से वयं
को बाँध िलया था। अिधकांश सैिनक ख़ुद को और अपने पेट के भीतर चल रही हलचल को
शा त रख पा रहे थे। मगर िवमान म पहली बार या ा कर रहे कुछ सैिनक चुरता से उि टयाँ
कर रहे थे।
कु भकण रावण क ओर मुड़ा। “यह बेमौसमी तफ़ ू ान है।”
“तु ह ऐसा लगता है?” रावण ने मु कुराते हए पछ
ू ा। संकटकाल म उसका जुझा पन
और मुखर हो जाता है।
कु भकण ने मुड़कर उन चार िवमानचालक को देखा जो िनय क पर अपना परू ा
शारी रक बल लगाते हए हवाओं के िव िवमान को िदशा देने के िलए उपकरण के साथ
जझू रहे थे।
“बहत बलपवू क नह !” गरजती हवाओं के पार अपनी आवाज़ पहँचाते हए कु भकण ने
िच लाकर कहा। “उ ोलक टूट गये तो हम बेमौत मारे जायगे।”
चार यि कु भकण क ओर मुड़े जो शायद इस समय जीिवत सव े िवमान
चालक था।
“हवाओं से इतना मत जझ ू ो िक िनय क टूट ही जाये,” कु भकण ने आदेश िदया।
“इसे बहने दो। मगर बहत िशिथल भी मत होना। बस िवमान को सीधा रखो तो सब ठीक
रहे गा।”
चालक ने उ ोलक को थोड़ा ढीला छोड़ा तो िवमान लहरा गया और हवाओं के साथ
और अिधक तेज़ी से झल ू ने लगा।
“तुम यह चाह रहे हो िक म उ टी कर दँू?” रावण ने मँुह बनाते हए कहा।
“उ टी करने से िकसी क जान नह जाती,” कु भकण ने कहा। “मगर िवमान हादसा
यह काम अ छे से कर देगा।”
रावण ग़ुराया, उसने एक गहरी सांस ली और अपनी आँख ब द कर ल । उसने हाथ के
िशकंजे को और कसकर पकड़ िलया था।
“वैसे, इस तफ़
ू ान का एक लाभ भी है,” कु भकण ने कहा, “ये गरजती हवाएँ घणू क
के शोर को दबा दगी। उन पर हमला करते समय हमारे पास उ ह च का देने का लाभ होगा।”
रावण ने आँख खोल और कु भकण को देखा, उसक भँव िसकुड़ गयी थ । “तु हारा
िदमाग़ ठीक है? हम उनसे एक के मुक़ाबले पाँच अिधक ह। हम च काने का लाभ नह चािहए।
हम बस सुरि त उतरना है।”
जैसे ही रावण क माँ कैकेसी सोई ं, रावण घर से बाहर िनकल गया। वो तेज़ी से आपने
ग त य क ओर बढ़ रहा था।
अब वो सात बरस का था। और अपने िपता के आ म के अलावा अनेक आ म म उसे
िवकट बुि वाला ितभाशाली ब चा माना जाने लगा था। उसने यु कलाओं म भी िश ण
लेना शु कर िदया था,और वो बहत यो य सािबत हो रहा था। मानो यही पया न हो, संगीत
के ित भी उसक सहज िच थी। तार वाले वा य उसके मनपस द थे, िवशेषकर भ य
वीणा। वीणा बजाना सीखते हए उसे कुछ माह ही हए थे, मगर उसे अभी से उससे लगाव
हो गया था।
वीणा का नाम पवू महादेव, भगवान के नाम पर पड़ा था िजनक रावण बहत
िन ा से पज ू ा करता था। यह वा सबसे किठन वा म माना जाता था। उसे बताया गया था
िक इसम द ता लाने के िलए बरस अ यास करना होता है—जब भी वो यह सुनता, तो और
कमर कस लेता, य िक रावण सव े से कम कैसे हो सकता था?
तेज़ी से अँधेरे म आगे बढ़ते हए रावण का मन उस ित पधा पर लगा था जो डागर
नाम के एक संगीतकार के िव सुबह को होने वाली थी। युवा और वीणा का िव यात
वादक डागर ऋिष िव वा के आ म म आया हआ था।
हालाँिक यह मै ीपण ू ित प ा थी मगर रावण हारना नह चाहता था।
वो िफर से उस पहली बार के बारे म सोचने लगा जब उसने अपने ि यवा को देखा
था। जब उसने दो बड़े त बरू , जो उसे बताया गया था िक क ुओ ं को सुखाकर उ ह खोखला
करके बनाए जाते ह, पर लगे सागौन क लकड़ी के गोल अंगुिलपटल को छुआ था तो उसका
मन ा से भर गया था। ल बाकार वा के दोन िसर पर लकड़ी पर उकेरे मोर बने थे जो
िक भगवान के ि य प ी माने जाते ह। अंगुिलपटल पर मोम से लकड़ी क बाईस
सा रकाएँ लगी थ और तीन पथ ृ क घुड़च थे।
इस सबसे अिधक अ ुत वा म आठ तार थे—चार मु य और तीन तरब के तार
वादक क ओर और एक तरब का तार दूसरी ओर। सारे तार आठ वर सामंज य शीष पर
आठ खँिू टय से बँधे थे।
उस पहले पाठ के दौरान रावण पुराने छा को देखता रहा था िज ह ने धरती पर
बैठकर वीणा के एक त बरू े को क धे पर रख िलया। कुछ ने उसे अपने बाएँ घुटने पर रखा
था। उसी समय उसे आभास हो गया था िक इस वा को उस यि के अनु प बनाया जाता
है जो इसे बजाता है; सबके िलए समान होने का कोई सवाल नह था।
िजसने भी वीणा क संरचना पर यान िदया होगा, वो जानता होगा िक इस वा
को बजाना तो दूर, समझना भी बहत जिटल है। सीधे हाथ क तजनी और म यमा उँ गिलय म
पहने गये िमजराव से मु य तार को छे ड़ते ह जबिक तरब के तार को किनि का उँ गली के
नाख़न ू से बजाया जाता है। तार को िै तज ीवा के नीचे से बाएँ हाथ से छे ड़ा जाता है, जो
इस कारण और किठन हो जाता है िक दायाँ हाथ साइड के तरब के तार को रोक रहा होता है।
मगर वीणा को जो बात दूसरे त तुवा से अलग करती है, वो इसक गँज ू क
अ ुत प से उ चतर मता है, जो िक इसके िसर पर लगे दो बड़े त बरू के कारण
िनकलती है। गँज ू क ती ता और शि का वर क गुणव ा और संगीत पर यापक भाव
पड़ता है।
त बरू को न कर दो। गज ूँ को न कर दो। संगीत को न कर दो।
रावण चुपके से उस छोटी-सी कुिटया म दािख़ल हआ जहाँ उसे पता था िक संगीत के
वा य रखे जाते ह। डागर क वीणा भी वह थी। संगीतकार ितिदन सुबह और शाम को
अपने वा य क पजू ा करने के िलए जाने जाते थे। लगता था िक डागर भी िभ न नह
था। उसक वीणा के आधार पर पज ू ा के फूल और जली हई धपू रखी थ ।
रावण मन ही मन हँसा।
आज रात डागर क पज ू ा काम नह आयेगी।
उसने िबना आवाज़ िकये तेज़ी से काम िकया। सबसे पहले उसने वीणा के कपड़े के
आवरण को हटाया। िफर उसने बाएँ त बरू े को खोला और उसके अ द नी िह से को हाथ से
छुआ। घोटा हआ और िचकना। उसने अपनी कमर म बँधी थैली से धातु का उपकरण िनकाला
और उससे त बरू े के अ द नी िह से को खुरचने लगा।
डागर तुर त तो समझ भी नह पायेगा िक गँज ू सही नह है, न ही अगले िदन अपने
वा के सुर िमलाते समय जान पायेगा। उसे यह केवल तब ही समझ आयेगा जब ित पधा म
वो राग बजायेगा। उस समय तक बहत देर हो चुकेगी।
अपने िपता के आ म से कुछ ही दूरी पर, चंड यमुना के एक िकनारे रावण बैठा हआ था।
उसका गाल अभी भी जल रहा था, हालाँिक आँसू कबके सख ू गये थे।
हाथ म आवधक शीशा िलए वो भिू म को तक रहा था। बहत सावधानी से उसने सरू ज
क िकरण को काश के एक शि शाली पुंज म संकेि त कर िदया था, जो वहाँ घम ू रही
न ही च िटय को जला रहा था। उसक सांस तेज़ चल रही थी, अभी भी उसक नस-नस म
ोध तड़क रहा था। सतत पीड़ा क के उसक नािभ फड़क रही थी।
सबसे पहले उसक नाक म सुग ध पहँची। उसे लगा उसक सांस क गयी है।
उसने अपना िसर घुमाया और उ ह देखा।
क याकुमारी को।
उसका शरीर जड़ हो गया, आवधक शीशा अभी भी उसके हाथ म था। जली-भुनी
च िटयाँ उसके पैर के पास पड़ी थ । सरू ज क संकेि त िकरण घास को झुलसा रही थ ।
क याकुमारी के भाव शा त रहे । न घण ृ ा का कोई िच था। न ोध का।
वो िनकट आय और रावण के हाथ से शीशा ले िलया।
“तुम इससे अ छा कर सकते हो।”
रावण ने कुछ नह कहा। अचानक उसका मँुह सख ू गया था। देर से रोक हई सांस आह
बनकर फूट पड़ी।
क याकुमारी हौले से मु कुराई ं। िद य मु कान। जीिवत देवी क मु कान।
उ ह ने आ म क ओर संकेत िकया जहाँ सुबह को संगीत क ितयोिगता हई थी।
“तुम उससे भी बेहतर कर सकते हो।”
रावण को अपने ह ठ िहलते महसस ू हए। उसने पाया िक उसक नािभ का दद जादुई
ढं ग से ग़ायब हो गया था। कुछ पल के िलए।
“कम से कम यास तो करो,” क याकुमारी ने कहा।
वो मुड़ और चली गय ।
रावण को बाहर से ोध भरी आवाज़े सुनाई दे रही थ । बहस क । लोग िच ला-िच लाकर
िनयम क बात कर रहे थे। नीित क । नैितकता क ।
कुटी का ार ब द था। मगर उस पर ताला नह था। िकसी भी पल कोई भी अ दर आ
सकता था।
उसने अपनी सांस को िनयि त करने क कोिशश क , उसका शरीर तनाव त था।
उसने कसकर अपनी तलवार पकड़ ली। जो भी अ दर आता, वो उसे मारने के िलए तैयार था।
उसने मुड़कर अपने न हे से भाई को देखा। वो अपनी माँ क बाँह म सुरि त था। स तोष से
तनपान कर रहा था। उस ख़तरे से बेख़बर िजसम वो लोग थे।
मगर उसक माँ का चेहरा आतंक क त वीर था।
“हम अब या करगे, रावण?” कैकेसी ने पछ ू ा।
रावण ने उ र नह िदया। उसक सतक आँख ार पर लगी थ , ऐसे िकसी भी यि
पर हमला करने को तैयार जो उसके ि यजन को हािन पहँचाने क िह मत करता।
अचानक, भड़ाक से ार खुला और मरीच तेज़ी से अ दर आया। उसक तलवार िखंची
हई थी। उसके फल से र टपक रहा था।
कैकेसी भय से िचंहक गयी और उसने अपने िशशु को छाती म भ च िलया। वो अपने बड़े
भाई से याचना करने लगी, “दादा, कृपा करो! हम मत मारो!”
िशशु अपनी माँ क छाती से अलग हो गया और िफर से रोने लगा था।
रावण मरीच के सामने आ खड़ा हआ। अपनी तलवार लहराता। उसक आवाज़
आ यजनक प से शा त थी। “आपको पहले मुझसे लड़ना होगा।”
मरीच ने अधीर िनगाह से उसे देखा। “चुप भी करो, रावण!” िफर अपनी बहन क ओर
मुड़ा। “तु ह हआ या है, कैकेसी? म तु हारा भाई हँ! म तु ह य मा ँ गा?”
कैकेसी ने उसे देखा, उलझन से।
और समय बबाद िकये िबना मरीच ने दीवार पर लगी खँटू ी से कपड़े का एक झोला
ख चा। और उसे रावण क ओर उछाल िदया। “दो िनिमष। अपने भाई और माँ के िलए िजस
व तु क आव यकता हो, उसे रख लो।”
लड़का िन ल खड़ा रहा। हत भ ।
“तुर त!” मरीच िच लाया।
रावण झटके से वा तिवकता म वापस आया। उसने अपनी तलवार वापस यान म रखी
और झोला उठा िलया, और झटपट अपने मामा का आदेश मानने दौड़ गया।
मरीच कैकेसी क ओर मुड़ा। “उठो! हम जाना होगा!”
कुछ ही पल के अ दर वो कुटी के बाहर थे। रावण ने अपने क धे पर झोला टाँग रखा
था। उसका न हा भाई अपनी माँ क गोदी म सुरि त था, उ ह ने दािहने हाथ क हथेली से
नवजात के िसर को सहारा दे रखा था।
आ म के आवासी कुटी के बाहर जमा हो गये थे। ु चेहरे , हाथ म मशाल।
धरती पर तीन लाश पड़ी थ । मरीच क तलवार से त-िव त।
वयं मरीच अपनी बहन और उसके ब च के सामने खड़ा था, भीड़ पर अपनी तलवार
लहराता। आ म के अिधकांश आवासी बुि जीवी और कलाकार थे। सामािजक बिह कार म
मािहर। मौिखक िहंसा म मािहर। भीड़ क िहंसा म भी मािहर। मगर िकसी िशि त यो ा से
िभड़ने म असमथ।
“पीछे हटो,” मरीच ग़ुराया।
धीरे -धीरे , तलवार ऊपर उठाए वो अ तबल क ओर बढ़ा। उसक आँख भीड़ पर ही लगी
थ । उसने शी ता से एक घोड़े पर सवार होने म अपनी बहन क सहायता क । शी ही रावण
दूसरे घोड़े पर सवार हो गया था। पलक झपकते ही मरीच ने अ तबल का ार चौपट खोल
िदया और उछलकर अपने घोड़े पर सवार हो गया।
और वो सरपट आ म से बाहर िनकल गये।
यह समहू घंट घोड़े दौड़ाता रहा। पवू िदशा म। सरू ज िनकल चुका था, और ऊपर ही ऊपर
चढ़ता जा रहा था।
“दया करो, दादा,” कैकेसी ने िवनती क । “हम कना होगा। म इस तरह अब नह
चल सकती।”
“नह ” ग भीर िदख रहे मरीच का सीधा-सा उ र था।
“मेहरबानी करो!”
मरीच झुका और उसने कैकेसी के घोड़े को चाबुक लगा िदया, और वो िफर से सरपट
दौड़ने लगा।
“घर आना अ छा लग रहा है!” कु भकण ने कहा, उसक अित र भुजाएँ धीरे -धीरे िहल रही
थ , जैसे उसके उ ेिजत होने पर हमेशा िहलती थ । य िप वो अभी केवल दस वष का था,
लेिकन उसक आवाज़ अभी से बदलने लगी थी।
रावण ारा अपने छोटे भाई को अपने गु क म आने क अनुमित िदये हए दो वष
बीत गये थे। अभी वो िनकोबार ीप क अपनी छोटी-सी या ा से वापस आ रहे थे, जो िक
दि ण-पवू एिशया के माग पर एक मह वपण ू ब दरगाह था। यह कु भकण क पहली
यापा रक या ा थी, और रावण सुिनि त करना चाहता था िक यह बहत अिधक ल बी और
असुिवधाजनक न हो।
रावण ने गहरी सांस ली। “मुझे घर आना अ छा नह लगता। मुझे समु बेहतर लगता
है।”
“मगर घर तो घर होता है, दादा।”
“और माँ माँ ह... मुझसे उनका हर समय का रोना सहन नह होता। लगता है जैसे वो
जब चाह आँसू िनकाल सकती ह, बस मुझे िचढ़ाने के िलए। िकसी िदन म...”
रावण ने कु भकण के चेहरे के भाव बदलते देखे तो बोलते-बोलते क गया। वो
जानता था िक उसका छोटा भाई भले ही उससे िकतना भी यार करता हो, मगर माँ के िलए
इस तरह क बात वो पस द नह करता।
“अ छा, अ छा,” उसने कु भकण के क धे को थपथपाते हए कहा। “तुम जानते हो िक
म कोई कठोर काम नह क ँ गा। मगर इस बार उनके आँसुओ ं से तुम ही िनबटना।”
ब दरगाह के मुहाने पर पहँचते हए पोत क गित धीरे -धीरे कम होने लगी थी। दोन
भाई देख रहे थे जबिक म लाह अपने तयशुदा थान क ओर मुड़ रहे थे। जब वो अपने माग
म पड़ने वाले दूसरे पोत के पास से िनकले तो लोग मुड़-मुड़कर अब तक मशहर हो चुके
पोत को देखने लगे जो जेटी पर पहँचने क तैयारी कर रहा था। गहरे समु म इसक
च िधया देने वाली गित ने रावण को त करी क गलाकाटू दुिनया म बहत भारी
ित पधा मक लाभ दान िकया था। अपने ती ता से बढ़ते लाभ से वो पाँच पोत का बेड़ा
बना चुका था।
रावण को अहसास था िक लोग उसे देख रहे ह। उसे लोग का यान देना अ छा लगता
था। मगर वो सीधे सामने देखता रहा, यह िदखावा करता िक उसने उसे तकती शंसा मक,
और ई यालु आँख को नह देखा है। वो दूसर के सामने आ मस तु नह िदखना चाहता
था। यह कमज़ोरी का िच होता। और उ नीस वष य रावण को अपनी कमजो रयाँ िदखाने म
िव ास नह था।
यापारी-राजकुमार, लोग उसे यही बुलाते थे। उसे यह पस द था।
“दादा,” कु भकण ने रावण को कोहनी मारते हए उसका यान ख चा।
रावण मुड़ा। ब दरगाह पर अकंपन उनक ती ा करता खड़ा था, वो प प से
िकसी बात को लेकर उ ेिजत था।
“लगता है छैला बाबू हमारे िलए कोई समाचार लाए ह,” उतरने के िलए तैयार होते
रावण ने कहा।
“रावण, तुम पागल हो गये हो या?” मरीच ने छूटते ही कहा। मगर भानजे क कड़ी िनगाह
ने उसे िनय ण म रहने और अपने सुर को नीचा करने के िलए िववश कर िदया। “मेरी बात
सुनो, रावण, आज हमारे पास जो कुछ भी है, उसे बनाने के िलए हमने बहत मेहनत क है...
तुमने बहत मेहनत क है। ित खेप पाँच लाख वण मु ाएँ बहत अिधक ह। हम कभी नह
—”
“मेरे आंकड़े कभी ग़लत नह होते। मेरी गणना है िक अगर हम ज दी से ज दी दो सौ
पोत का बेड़ा तैयार कर ल और उ ह लगातार मु य यापा रक माग —मसाले, कपास,
हाथी दांत, धातु और हीर —पर चलाएँ तो तीन वष म अपना िनवेश वसल ू कर लगे। उसके
बाद तो बस िवशु लाभ है।”
“दो सौ पोत? रावण, मुझे तु हारा आ मिव ास पस द है, और तु हारी दूर ि म
हमेशा मेरी आ था रही है। मगर इस तरह का प रमाण तो अक पनीय है। और अ ब धनीय
भी। बहत अिधक जोिखम है।”
“इसके िवपरीत, प रमाण बढ़ने से हमारा जोिखम कम होगा।”
“िक तु, रावण, कभी िकसी यापारी के पास दो सौ पोत का बेड़ा नह रहा। यह
अनसुना है!”
“वो इसिलए िक इससे पहले कभी रावण नाम को कोई यापारी नह हआ।”
अकंपन ने बीच म पड़ने क कोिशश क । “तु ह िव ास है िक हम मलयपु से और
मोलभाव नह कर सकते? गु िव ािम और उनके अनुयायी बहत ही साधारण जीवन जीते
ह। मुझे समझ नह आता िक उ ह इतना धन िकसिलए चािहए। हो सकता है अभी भी मोलभाव
क कुछ गुंजाइश हो...”
“म िजस सौदे पर ह ता र कर चुका हँ, उससे पीछे नह हटूंगा,” रावण ने ढ़ता से
कहा।
“तो िफर हम धीरे -धीरे िव तार कर सकते ह शायद? जैसे, बीस पोत से शु कर।
इसके िलए गुफा पदाथ क एक खेप पया होगी। हम देखगे िक यह कैसा काम करता है
और—”
रावण ने बात काट दी। “नह । हम दो सौ से ही शु करगे।”
“मगर, रावण,” अकंपन ने याकुलता से अपनी ढे र अंगिू ठय को घुमाते हए कहा। “दो
सौ पोत बनाने का मतलब है िक हम दस खेप चािहए ह गी। इसका मतलब है िक हम पचास
लाख वण मु ाएँ देनी ह गी।”
“सही है।”
“रावण, मेरी बात सुनो,” मरीच ने कहा। “पाँच लाख वण मु ाएँ ही स िस धु के
अिधकांश रा य के वािषक राज व से अिधक ह। इतना धन पाने के िलए हम वो सब कुछ
िगरवी रखना होगा जो हमने अिजत िकया है।”
“तो हम यही करगे।”
“दादा,” कु भकण बीच म बोला।
रावण छोटे भाई क ओर मुड़ा। “हाँ?”
“मेरे पास एक योजना है।”
“ या?”
“लोग मेरे सामने आराम से बात करते ह य िक उ ह लगता है िक म बालक भर हँ
और—”
“कृपया ज दी काम क बात पर आओ, कु भकण। तु ह पता है िक रावण को टेढे-मेढ़े
उ र पस द नह ह,” अकंपन बीच म बोल पड़ा। उसने पुि के िलए रावण को देखा, मगर
ु ि पाकर िसमटकर रह गया। कु भकण के िलए रावण के पास दुिनया का सारा समय
था।
“हम धन उधार लेने क आव यकता नह है,” कु भकण ने शा त भाव से कहा। “हम
उसे चुरा सकते ह।”
रावण ने िसर िहलाया। “अ छी योजना नह है। पचास लाख हािसल करने के िलए हम
बहत अिधक ल य को िनशाना बनाना होगा। और हर बार चोरी करते ही जोिखम बढ़
जायेगा।”
“ऐसा नह होगा, दादा। हम बस एक बड़े ल य को िनशाना बनाना होगा।”
“हम राजकोश को नह लटू सकते, कु भकण। उन पर बहत कड़ी सुर ा होती है।”
“म िकसी राजकोश क बात नह कर रहा हँ।”
“तो या भारत म िकसी राजा के अलावा भी कोई है िजसके पास पचास लाख वण
मु ाएँ ह ?” रावण ने उ सुक होते हए एक भकृ ु िट चढ़ाई।
“िच का का ा तपाल कचबाह।”
मरीच के गले म इलायची के दूध का फ दा लगते-लगते बचा। “ कचबाह? हम उसे
कैसे लटू सकते ह? किलंग के सारे बेड़े हमारे पीछे लग जायगे। िह द महासागर म कह हम
िसर छुपाने का थान नह िमलेगा।”
“मगर, मामा,” कु भकण ने िवन ता से कहा, “यह धन वो है जो कचबाह ने
किलंग के राजा से चुराया है। वो बरस से राज व शु क म से पैसा मारता आ रहा है। इस धन
को वो अपने महल म एक भिू मगत ितजोरी म िछपाकर रखता है। वो यह कभी नह वीकार
कर पायेगा िक यह धन उसके पास था भी। िकसी चोर क चोरी करने म यही तो मज़ा है; वो
िशकायत ही नह कर सकता।”
“ह म...” रावण क आँख चमकने लग ।
“मने यह भी सुना है िक उसक बहत सारी स पि सुिवधाजनक प से अनमोल हीरे -
जवाहरात के प म है। छोटे, ह के, और चुराने म आसान। और उ ह बहत आसानी से िह द
महासागर के िकसी भी ब दरगाह पर वण म बदला जा सकता है।”
चेहरे पर गव भरी मु कान िलए रावण मरीच और अकंपन क ओर मुड़ा। “भाई िकसका
है!”
“िक तु, रावण,” अकंपन ने कहा, “हम ऐसे ही तो कचबाह के महल म नह घुस
सकते। वो भारत के सबसे अिधक रि त आवास म से है। और अिधकांश पहरे दार उसके
अपने देश नाहर के ह।”
मरीच ने अकंपन को जवाब िदया, जो अब इस योजना को लेकर जोश म आने लगा था।
“हाँ, मगर महल के र क का मुख ह त है।”
यह नाम सुनते ही रावण मु कुराने लगा। “वो तो मेरा ऋणी है।”
“िब कुल,” मरीच ने कहा। “तुमने एक बार उसक जान बचाई थी। और वो हमेशा से
तु हारे साथ काम करना चाहता है। यह सच िक वो लालची और िनमम है, उसे इस काम के
िलए एकदम उपयु बनाता है।”
“तो िफर तैयारी शु करते ह। एक माह म हम िच का क ओर कूच करगे।”
अ याय 8
और िफर है यह प ृ वी
अ य से अलग, यह सोचती अिधक और महसस
ू करती है कम,
उसका मि त क उसके दय से अिधक शि शाली है,
वो देखती है सय ू को,
काशमान और ओज वी, एकाक और भ य,
िकतना कुछ है पास उसके मगर उड़ा देता है वो सब कैसे।
प ृ वी मगर है चतुर,
वो उठा लेती है सयू क यथ फक ऊजा,
पोसती है वयं को और बढ़ती है
च र से, मि त क से, तन और मन से।
इठलाती है वो अपनी ही चतुराई पर
और हािसल िकया है जो उसने अपने जीवन म।
वो डरती है सय ू से और उसक अथाह ऊजा से,
और खीझती है जैसे वो भोगता है ई र द अपनी भट को।
कचबाह को लटू ने का िनणय िलए हए एक माह बीत गया था। रावण और उसके दल को
अगले िदन गोकण ब दरगाह से या ा ार भ करनी थी। उस गित को देखते हए िजससे
उनका पोत चलता, उ ह कुछ ही िदन म िच का पहँच जाने क आशा थी। अकंपन, मरीच
और सौ सैिनक उनके साथ जा रहे थे। कु भकण ने भी साथ चलने का आ ह िकया था, और
उसे रोकने क कुछे क नाकाम कोिशश के बाद रावण ने हार मान ली।
मरीच और अकंपन पहले ही ह त से समझौता कर चुके थे। वो कचबाह क स पि
चुराने म रावण क सहायता करता, और िफर उनके साथ ही िच का को छोड़ देता। सबसे
मौके क बात यह थी िक कचबाह हाल ही म अपने वदेश नाहर गया था जो दजला और
िफ़रात के बीच ि थत था। िच का से आधी दुिनया दूर।
तािवत लटू से पहले वाली रात को रावण ने अपनी मँुहलगी वे या डिडिमकली के
पास जाने का िनणय िलया, जो गोकण के सबसे उ कृ वे यालय क सबसे महंगी वे या
थी। रावण को केवल सव े ही चलेगा!
वो पलंग पर लेटा हआ था, एक चादर उसक कमर तक पड़ी हई थी। डिडिमकली पेट
के बल लेटी थी, उसका िसर रावण क जंघाओं पर रखा था। एकदम िनव । वो लचीली और
कमनीय काया क थी, िजसके उभार सभी सही जगह पर थे।
“मुझे नह लगता कल म ठीक से चल भी पाऊँगी,” वो िखलिखलायी। वो रावण क
ओर मुड़ी और ऊपर आयी। “मगर लगता है िक तुम तो और के िलए तैयार हो गये हो।”
रावण ने अपनी बाँह फै लाय और पोर चटकाए। “मुझे नह लगता तुम इसे ले सकोगी।”
डिडिमकली ने यार से उसके चेहरे को देखा। “तुम जानते हो िक म तुमसे कुछ भी ले
सकती हँ।”
रावण परे देखने लगा। ऊबा हआ-सा। डिडिमकली का ेम लगातार चापलस ू ी भरा होता
जा रहा था। उसका मन उस कु े क ओर भटक गया िजसे कुछ महीने पहले उसने मार डाला
था। वो जो हर समय उसके पीछे िफरता रहता था।
खजैला, दयनीय िदखने वाला जीव। िघनौना। उसे उसके क से छुटकारा िदलाना
आव यक था।
“रावण?”
रावण ने उ र नह िदया। वो अपनी सांस पर यान केि त कर रहा था। ल बे समय
से सोया पड़ा एक पशु धीरे -धीरे उसके अ दर कसमसाने लगा था।
“रावण,” डिडिमकली हौले से बोली। “मुझे लगता म तुमसे ेम करती हँ।”
रावण को महसस ू हआ िक उसके अ दर का पशु जाग गया है।
डिडिमकली थोड़ा-सा उठी और उसने अपने न न व उससे सटा िदये। उसक आँख
से ेम टपक रहा था। “तु ह मुझे बताने क आव यकता नह है िक तुम भी मुझसे ेम करते
हो। म समझती हँ। म बस यह चाहती हँ िक तुम जान लो िक म तुमसे ेम करती हँ।”
“तुम तक या रही हो?” रावण ग़ुराया।
वो जानता था िक उसक सांवली वचा अिधकांश ि य को आकषक लगती है। मगर
उसके चेहरे के चेचक के िनशान हमेशा उसे असहज कर देते थे। वो दाढ़ी-मंछ ू बढ़ा रहा था
तािक अिधकािधक िनशान को िछपा सके।
डिडिमकली उसे तकती रही। “म देख रही हँ तु हारा सु दर मुखड़ा...”
वो िनकट आयी, उसने अपने ह ठ गोल कर िलए थे चु बन के िलए। रावण ने उसे बाल
से पकड़ा और उसके िसर को पीछे ख च िदया।
“तू मेरे चेहरे के िकस िह से को देख रही थी?” उसने पछ ू ा।
डिडिमकली जानती थी िक कभी-कभी रावण को उ ता अ छी लगती थी। वो िसर के
पीछे हाथ बाँधकर पलंग पर लेटी रही। परू ी तरह समपण करते हए। “म तु हारी दासी हँ। तुम
मेरे साथ जो चाहे करो।”
रावण को इ छा ने वश म कर िलया था। इ छा यह जानने क िक डिडिमकली के चेहरे
क सु दर वचा को उतारना और उसके नीचे मौजदू गुलाबी मांस को देखना कैसा लगेगा।
उसे धीरे -धीरे काटना। ऊतक और धमिनय को कतरना। अि थय तक पहँचना। अि थय को
काटना। उ ेजना से उसे अपनी सांस तेज़ होती महसस ू हई ं। उसके अ दर का पशु अब दहाड़ने
लगा था।
रावण क उ ेजना से बेखबर डिडिमकली एक बार िफर उसके िनकट िखसक । उसने
धीरे से रावण को चम ू ा। वयं को अिपत करते हए। अधीनतापवू क।
रावण ने उसके ह ठ को काट िलया। ज़ोर से। र िनकालते हए। वो चीख़़ी नह । शा त
रही। रावण के कुछ और करने क ती ा करती।
रावण क सांस तेज़ हो गयी थ । उसका शरीर माँग कर रहा था िक जो उसने शु
िकया है उसे समा भी करे । वो मदहोश-सा हो रहा था। िफर उसके मन के िकसी गहरे कोने
से उसे एक कोमल आवाज़ सुनाई दी।
दादा...
कु भकण क आवाज़। मासिू मयत से भरी। और भय से भी।
नह । इसे नह । म यहाँ इसे शा त नह रख सकता। कु भकण जान लेगा...
लेिकन उसके अ दर का पशु और जोर से गुराया।
इसे शा त रखने के िलए मेरे पास धन है।
उसने डिडिमकली क िव ास से भरी आँख को देखा। उसके िसकुड़े ह ठ को। उसके
ऊपर-नीचे िगरते व को।
इसे यह चािहए। यह इसक माँग कर रही है। यह दयनीय है। िघनौनी। इसे इसके क
से मिु िदलानी होगी।
उसने अपनी बाँह उसके िगद कस द । उसे दबाते हए। वो हौले से कुनमुनाई। मगर
िशकायत नह क ।
“म तु हारी हँ। तुम जो करना चाहते हो कर लो...”
अचानक रावण ने अपने मन म एक िचर-प रिचत, शा त आवाज़ सुनी।
तमु इससे बेहतर कर सकते हो।
क याकुमारी क आवाज़। जीिवत देवी क आवाज़।
उसक नािभ फड़कने लगी, पीड़ा बढ़ गयी थी।
रावण ने डिडिमकली को एक ओर धकेला, और कूदकर पलंग से बाहर आ गया।
डिडिमकली ने उसे रोकने क कोिशश म उसक ओर हाथ बढ़ाया। “ या हआ? मने या कह
िदया?”
“मुझसे दूर हटो!” वो फुफकारा।
डिडिमकली क आँख भर आय । “मुझे छोड़कर मत जाओ... कृपा करो...”
रावण मुड़ा और उसके चेहरे पर जोरदार थ पड़ जड़ िदया। बबरता से। वो पलंग पर िगर
गयी तो उसने अपने व उठाए और आँधी-तफ़ ू ान क तरह क से िनकल गया।
“महान इ देव क सौग ध!” रावण ने िन कलंक गुलाबी हीरे को अपने हाथ म पलटते हए
आ य से कहा। “िव ास करना मुि कल है िक यह छोटा-सा प थर चार लाख वण मु ा का
होगा।”
हीरे का रं ग ही मह वपण
ू प से उसका मू य िनधा रत करता है। अगर िकसी ेत हीरे
से पीली आभा िनकले तो उसका दाम कम हो जाता है। अगर गुलाबी आभा िनकले, जो िक
बहत दुलभ होता है, तो उसके दाम बहत बढ़ जाते ह।
उस अनमोल हीरे को सराहने के िलए मरीच िनकट चला आया था। “इसे तो िकसी भी
ि से छोटा नह कहा जा सकता, रावण। मने आज तक इतना बड़ा हीरा नह देखा है।”
घबराया-सा चार ओर देखता अकंपन एक ओर खड़ा रहा।
“ऐसा नह लगता जैसे अ दर इसका र बह रहा हो?” स मोिहत से रावण ने पछ ू ा।
“हैरानी हो रही है िक इसने यह गुलाबी आभा पायी कैसे है?”
कोई नह जानता था िक हीरे को उसक रं गत य या कैसे िमलती है। कुछ कहते थे
इसका कारण हजार साल से प थर पर पड़ने वाला दबाव है। दूसर को मानना था िक
भकू प ारा उ मु हए भारी बल के कारण हीर का रं ग बदल जाता है। कुछ तो यह भी
मानते थे िक गुलाबी हीरा अशुभ होता है। बुरे कम का वाहक।
“तु ह पता है?” रावण ने अकंपन को हीरा िदखाते हए पछ ू ा।
“रावण, यह िनरथक है िक यह गुलाबी कैसे हआ। जब तक िक यह गुलाबी हो। अब
चलो। कृपा करके।”
रावण ह के से हँसा। “हमेशा ऐसे ही घबराते हो, अकंपन।”
वो उस छोटे से, गु क से बाहर िनकला िजसे बड़ी कौशल से एक मोटी दीवार म
बनाया गया था। उसने ह त को देखा, जो क के सुदूर कोने म खड़ा था। ह त के
िन ावान सैिनक उसके पास खड़े थे, उनक तलवार िखंची हई थ । र टपकाती। उनके
सामने घुटन के बल तीन िक नर बैठे थे। ा तपाल कचबाह के नाहरी सुर ा दल के
अंग। उनके शरीर पर घोर य णा के घाव थे जो उ ह तब तक दी गयी थी जब तक िक
उ ह ने उस गु क का थान नह बताया जहाँ अनमोल हीरे रखे गये थे।
रावण ने ह त को संकेत िकया। सैिनक ने तुर त अपनी तलवार घुमाई ं और तीन
िक नर का िसर धड़ से अलग कर िदया। रावण के िनदश प थे। कोई ऐसा गवाह न छूटे
जो लटू के अपरािधय को पहचान सके। महल के सब लोग —सुर ा दल, सेिवकाओं,
रसोइय , सेवक —को मार डाला गया था। बेरहमी से।
गत स ाह आधे सुर ा दल को अनेक वष म अिजत िन ा और भारी मा ा म वण
देने के लोभन से करने म ह त सफल रहा था। उसके सैिनक ने महल के दूसरे
नाह रय पर अचानक हमला बोल िदया था। चु त और सुघड़ता से।
बाहर िकसी को महल के अ दर हए नरसंहार क भनक तक नह थी। कचबाह को
गुमराह करने के िलए पहले ही महल म लाश लाकर डाल दी गयी थ । पहचान िमटाने के
िलए उनके चेहरे कुचल िदये गये थे। िच का के नाहरी ा तपाल को यह िव ास िदलाने के
िलए िक लटू के दौरान ह त और उसका सुर ा बल भी अपनी जान से हाथ धो बैठे थे।
यह ू र योजना थी। मगर स म और यावहा रक भी थी। जैसे वयं रावण था।
ह त के परामश पर रावण ने उन िमक को न मारने का िनणय िलया था िज ह
उ ह ने ा तपाल के आवास से कुछ दूरी पर ित त जेटी क मर मत करते देखा था।
खुले म उनक ह या करने म उजागर होने का जोिखम था। वैसे भी, िमक को महल या
सहायक जेटी के पास भी जाने क अनुमित नह थी। तो उनके ारा रावण और उसके दल
को पहचाने जाने क स भावना न के बराबर थी।
रावण के आदमी पहले ही बड़े -बड़े स दूक म वण भरकर ले जा चुके थे। इ ह इस
समय पोत म लादा जा रहा था। वो मरीच, अकंपन और कुछ और लोग के साथ अनमोल हीरे
लटू ने के िलए क गया था। य िक मा ये हीरे ही बीस लाख वण मु ाओं से कुछ अिधक
के थे।
रावण आगे बढ़ा और तीन िक नर क िसर कटी लाश को घरू ने लगा। नाहरी
िक नर। जब उनक खुली गदन से र बहे जा रहा था, तो वो िन ल खड़ा रह गया,
लगभग स मोिहत-सा। अपने सामने मौजदू ख़न ू ी य क ओर िखंचा-सा।
वो आगे झुका। और िविभ न धमिनय को पहचानने क कोिशश करने लगा िजनसे
गाढ़ा लाल व फूट-फूटकर बह रहा था। शरीर बेजान हो गये थे। मगर उनके दय को शायद
अभी तक इसका पता नह चला था। वो अभी भी र वािहत कर रहे थे। ीणता से। मगर
अभी भी उन िसर को र भेज रहे थे जो अब वहाँ नह थे।
अकंपन ने रावण क भुजा को छुआ। “रावण...”
रावण झटके से अपने क पनालोक से बाहर आया और उसने हीरे को अपने कमरब द
म बँधी एक थैली म डाल िलया जहाँ यह दूसरे हीर से टकराया। उसने गहरी सांस ली और
दूसरे लोग को देखा। “चलो।”
ठीक तभी, पोत का भ पू बज उठा। ती ता से। हठपवू क।
“भागो!” रावण िच लाया।
सब तुर त हरकत म आ गये। उ ह पता था िक उ ह या करना है। योजना प थी।
उ ह अपने घोड़ क ओर भागना था और हवा से बात करते हए मु य जेटी क ओर जाना
था। वहाँ रावण के पोत म कु भकण उनक ती ा कर रहा होगा।
“ह या!”
रावण और उसके आदमी तेज़ी से घोड़े दौड़ा रहे थे। दस के दस। मरीच आगे था। रावण
सबसे पीछे था। वो पहाड़ी से उतर रहे थे, परू े वेग से।
“दािहनी ओर!” मरीच संकेत करते हए िच लाया।
एक दोराहा आ रहा था। दािहनी ओर क सड़क पहाड़ी के नीचे ित त जेटी को
जाती थी। दूसरी वाली सीधे सहायक जेटी को जा रही थी जो बहत दूरी पर िदखाई दे रही थी।
जहाँ रावण का पोत होना चािहए था। मगर अब नह था। पहाड़ी पर ऊँचाई से उ ह वहाँ खड़ा
एक और बड़ा पोत िदख रहा था। वो अभी पहँचा होगा, य िक उसके पाल अभी खुले हए ही
थे। और वज भी। यह कचबाह का पोत था। वो ज दी वापस आ गया था।
“और तेज़!” रावण िच लाया।
वो सहायक जेटी से बहत वेग से आते घुड़सवार को देख रहा था। मु य सड़क पर
आते हए। ऊपर पहाड़ी पर। उनक ओर। शायद कचबाह को आभास हो गया था िक कुछ
गड़बड़ है।
“दूसरी जेटी क ओर!” अकंपन िच लाया। वो समहू के बीच म था। इतना घबराया हआ
जैसे कोई िब ली गम तवे पर बैठ गयी हो।
घोड़े लहराते हए दािहनी सड़क पर मुड़ गये। घोड़े से पहाड़ी से जेटी तक क दूरी कोई
पाँच िनिमष क थी। रावण सीधी सड़क से उनक ओर आते अि म टोही को देख सकता था।
वो कचबाह का आदमी था।
रावण ने यान म से खंजर िनकाला, घोड़े क रास मँुह म दबाई और पल भर के िलए
यान केि त िकया। सांस थामकर उसने घुड़सवार पर खंजर फका। वो उस आदमी के गले
म जा घुसा। जब वो अपने घोड़े से िगर रहा था, तब रावण लहराता हआ दािहनी ओर मुड़ गया,
अपने आदिमय के पीछे ।
“ह या!”
जब घनी व य वन पित के बीच से होते हए वो धड़धड़ाते हए ित त जेटी क ओर
बढ़े जा रहे थे, तो रावण सड़क को अिधक प देख पा रहा था। अब जेटी तक क सीधी
सड़क थी िजसका अथ था िक वो कचबाह के घुड़सवार धनुधर का आसान ल य ह गे।
और वो पंि म सबसे पीछे था। पहला ल य।
धत!
तेज़ी से सोचते हए उसने अपने क धे पर बँधी डोरी को ख चा और पीठ पर बँधी ढाल
को ऊपर क ओर ख च िलया। पीठ पर लगे तीर से तो वो बच जायेगा। मगर गदन म लगे
तीर से नह ।
जेटी बस कुछ ही दूर थी। सड़क संकरी होती जा रही थी। इसका अिधकांश भाग
ब दरगाह क मर मत के िलए बँधे मचान ने घेर िलया था। मचान पर कुछ पु ष खड़े हए थे,
जबिक कुछ सड़क के पास खड़े थे। घुड़सवार दनदनाते हए आगे िनकल गये।
“हटो!” उनके पास से िनकलते हए मरीच िच लाया।
अचानक घबराकर िमक दौड़कर रा ते से हट गये। एक बहत ही अभागा यि
अकंपन के घोड़े के नीचे आ गया। मगर घुड़सवार ने गित कम नह क । अकंपन के पीछे आ
रहे कई घोड़े उस आदमी को र दते चले गये। जब तक रावण िनकला, वो कुचलकर चटनी
बन चुका था।
चँिू क जेटी पर पोत को बाँधने के िलए कोई त भ नह थे, इसिलए कु भकण ने
नािवक से लंगर डलवा िदये थे। छोटे लंगर क सहायता से वो पोत को जेटी के िजतना
िनकट ला सकता था, ले आया था। नािवक म सबसे बिल आदमी लंगर क रे खा के पास
खड़ा था, हाथ म बड़ा कु हाड़ा िलए हए तािक जैसे ही रावण और अ य लोग पोत पर आय वो
कु हाड़े के वार से मोटे र से को काट दे।
जेटी के िकनारे और पोत के बीच बहत बड़ा अ तराल था। मगर लंका के घोड़ को ऊँची
और ल बी कुदान लगाने के िलए िशि त िकया गया था। िवशेषकर ऐसे अवसर पर िजनम
शी भागना आव यक हो। जैसे िक अब।
ित त जेटी से सरपट भागते हए मरीच ने अपनी गित कम नह क ।
“ह या !”
उसने अपने घोड़े को चाबुक मारा, िजससे वो और तेज़ भागने लगा। तेज़ और तेज़। जेटी
के ठीक िकनारे पर पहँचकर वो िच लाया, “दश!”
दश सं कृत म दस के अंक को कहते ह। कोई नह जानता था िक जब घोड़ को
िशि त िकया जा रहा था तो रावण ने इसी श द के िलए आ ह य िकया था, मगर उसके
आदिमय ने हमेशा क तरह िबना िकये उसक आ ा का पालन िकया था।
मरीच का घोड़ा इस आदेश को अ छी तरह जानता था, और उसने आगे कुदान लगा दी।
ऊँची और ल बी। वो सफ़ाई से पोत के तल पर उतरा। मरीच कुछ हाथ आगे तक घोड़ा
दौड़ाकर ले गया, तािक उसके पीछे आने वाल के िलए थान बन जाये।
एक के बाद एक घुड़सवार पोत पर कूदते रहे । ह त के नाहरी सैिनक म से एक ने
समय का अनुमान ग़लत लगा िलया। उसका घोड़ा पीछे रह गया और पानी म जा िगरा।
सैिनक का िसर ज़ोर से पोत के फ े से टकराया और उसक गदन टूट गयी। वो तुर त मर
गया। कोई उसे देखने को नह ठहरा। उनके पास समय नह था।
“चलो!” मरीच िच लाया। अब वो घोड़े से उतरकर पोत क कगार पकड़े खड़ा था।
ह त ती ता से आगे आया, उसक कूद का समय िब कुल सटीक था, और वो सुरि त पोत
म उतर गया। अगला रावण था। अि तम।
कचबाह और उसके आदमी िनकट आते जा रहे थे। बस दो सौ मीटर दूर थे।
“शाबाश, दादा!” कु भकण िच लाया।
कचबाह के एक धनुधर ने अपने घोड़े क रास मँुह म दबाई, धनुष को अपने सीने के
सामने जमाया, और तीर छोड़ िदया।
यह हवा म छोड़ा तीर था। तेज़ी से भागते एक ल य पर।
तीर घोड़े क पीछे क दािहनी टाँग के िनचले िह से क मांसपेशी म लगा था। उसे
काटता चला गया था। देखने म यह कोई बड़ा घाव नह था। र भी न के बराबर िनकला
होगा। मगर इसने ती गित से भागते पशु को ीण कर िदया। बेकार और भार उठाने म
अ म हो गयी दािहनी टाँग ढह गयी। और अपनी भयंकर गित के कारण घोड़ा बहत ज़ोर से
िगरा, उसका िसर धरती पर लगा, और गदन बहत ही अ वाभािवक कोण पर मुड़ गयी थी।
हमेशा चौकस रहने वाला रावण पहले ही वयं को रकाब से मु कर चुका था। घोड़े के
धराशायी होते ही चु ती से उससे उतरते हए वो लुढ़कते हए उससे दूर गया और लगभग
तुर त ही उठकर खड़ा हो गया। वो उसी चु ती से आगे क ओर दौड़ पड़ा।
“दादा!” कु भकण के वर म िच ता और भय समाया हआ था।
उसके पास खड़े सब लोग के मन म समान िवचार था।
रावण आ नह पायेगा।
मरीच ने कु भकण को और िफर रावण को देखा। “भगवान दया कर...”
कोई भी पु ष िकसी भी तरह उस अ तराल को कूदकर पार नह कर सकता था िजसे
नापने म अिधकांश घोड़ को परू ा ज़ोर लगाना पड़ता है।
मगर यह कोई साधारण पु ष नह था। यह रावण था।
वो दौड़ता हआ जेटी पर गया। आगे भागता, िकनारे क ओर। ब दरगाह के उस
भारो ोलक क ओर जो पोत पर माल लादता था। महीन से इसका योग नह हआ था।
मगर अब एक अ यािशत शैली म इसका योग होने वाला था।
कचबाह के आदमी अभी भी उस पर तीर क बौछार कर रहे थे। कुछ रावण के पास
से िनकल गये। कुछ बाल-बाल चक ू गये। मगर अपने ल य पर कोई नह लग पाया।
जेटी के िकनारे के पास आकर रावण ऊँचा उछला और उसने भारो ोलक का कुंडा
पकड़ िलया। एक टाँग से उसने िघर को ठोकर मारी। उसक समय क गणना एकदम ठीक
थी। िघर तेज़ी से घमू ी, और उसका र सा खुल गया। कुंडे को पकड़कर रावण ने पानी के
ऊपर, पोत क ओर छलांग लगाई, तीर अभी भी उसके आसपास आ रहे थे।
कु भकण और शेष दल अपने थान पर जड़ खड़े थे। इस उ ेजना भरे दशन से
स मोिहत से।
उिचत ऊँचाई पर पहंचते ही रावण ने वेग हािसल िकया, अपने शरीर को आगे क ओर
झुलाया, और कुंडे को छोड़ िदया। वो हवा म ऊँचा उड़ा, और िफर आराम से पोत के तले पर आ
िगरा। अपने िगरने पर रोक लगाने के िलए वो लुढ़का और तुर त ही अपने पैर पर खड़ा हो
गया।
उसके आदमी उसके आसपास खड़े थे, िवि मत । मौन।
“चलो!” रावण िच लाया।
कु भकण लंगर के र से के पास खड़े आदमी क ओर मुड़ा। “काट दो इसे!”
नािवक ने कु हाड़ा घुमाया और एक शि शाली वार म उसने मोटा र सा काट िदया।
छोटे लंगर तेज़ी से खुल गये।
“खेओ अब! झटपट!” कु भकण ने आदेश िदया।
उसके आदेश पर, नीचे के तल पर बैठे गित िनधारक ने अपने नगाड़े बजाने शु कर
िदये। नािवक ने एक साथ खेना शु कर िदया था। पोत धीरे -धीरे आगे बढ़ने लगा। जेटी से
बाहर िनकलते हए।
कचबाह के आदमी उन पर तीर क बौछार िकये जा रहे थे।
“झुक जाओ!” रावण िच लाया।
सारे लोग पोत के कगार के पीछे िछपते हए घुटन के बल बैठ गये।
“और तेज़!” कु भकण ने आदेश िदया। गित िनधारक ने ताल तेज़ कर दी और
खेवनहार ने गित पकड़ ली।
“पाल खोल दो!”
एक नािवक जो त बू के पीछे िछपा हआ था, उसने िघर घुमानी शु कर दी। यह
अिभयाि क का ऐसा आिव कार था िजसे रावण ने सटीकता दी थी। यह तल पर लगी िघर
के मा यम से फ़टाफ़ट पाल को खोल देता था। पाल शी ही फै लने लगा था। ज दी ही इसम
हवा भर जाती।
पोत आगे बढ़ा, तो रावण कचबाह के आदिमय क दूर से आती ु आवाज़ सुन
सकता था। कगार के पीछे सुरि त उसने कु भकण को देखा और मु कुरा िदया।
मरीच ने रावण का क धा थपथपाया। “हम सफल रहे , रावण! हम सफल रहे !”
रावण मु कुराया। वो खड़ा हआ और उसने दूर खड़े कचबाह के आदिमय क ओर
अ ील-सा इशारा िकया। एक नाहरी ने तीर मारा जो सनसनाता हआ उसके चेहरे के पास से
िनकला।
मरीच ने अपने भानजे को नीचे ख चा। “ या कर रहे हो तुम? हम अभी संकट से बाहर
नह िनकले ह। नीचे रहो!”
रावण का चेहरा पीला पड़ गया था, उसका शरीर िविच प से िन ल था।
“दादा?” कु भकण ने िचि तत भाव से रावण के शरीर पर घाव को टटोलते हए कहा।
रावण ने कु भकण को एक ओर धकेला और िफर से खड़ा हो गया। उसक िनगाह
िमक क ओर लगी थी जो मचान के पास दुबके हए थे। एक और तीर पास से िनकला।
मगर रावण िहला तक नह ।
मरीच ने उसे िफर से नीचे ख चा। “तु ह हआ या है? नीचे रहो!”
रावण लड़खड़ाकर तल पर िगर गया। वो ऐसा िदख रहा था जैसे उसने कोई भत ू देख
िलया हो। उसक सांस उखड़ रही थी। उसने मरीच को धकेला और िफर से खड़ा हो गया।
इस बार एक तीर उसके क धे से टकराया, और घातक बल से उसके अ दर घुस गया।
मगर रावण िहला तक नह । उसक आँख मचान पर िचपक गयी थ ।
“दादा!” कु भकण ने घबराकर िच लाते हए उसे िफर से नीचे ख च िलया।
उसने अपने बड़े भाई क आँख म अचानक भर आये आँसुओ ं को देखा।
“क...” रावण रो रहा था। “क या...”
इस बार, कु भकण खड़ा हो गया। उसने अपनी आँख िसकोड़ और तेज़ी से पीछे छूटते
िकनारे क ओर देखने लगा। मचान को। वहाँ मौजदू िमक को। िवशेषकर बीच म खड़ी एक
यि को।
वही थ ।
िच के आधार पर वो तुर त उ ह पहचान गया।
जब बाक़ सब दुबक रहे थे, तो वो अिडग खड़ी थ । सतर। उस जीिवत देवी क तरह जो
वो थ । कड़े शारी रक म के िच उन पर िदख रहे थे मगर िफर भी चेहरा तेजयु था। वो
पोत को जाते हए देख रही थ , उनके भाव भावशाली और शा त थे। उनसे मक ू ग रमा फूट
रही थी। लगभग ऐसी जैसे िक वो उनसे िहंसा कवा रही ह । अपने नैितक बल से।
कोई स देह नह हो सकता था। ये वही थ ।
एक और तीर सरसराता िनकला तो मरीच ने हाथ बढ़ाकर कु भकण को नीचे ख च
िलया। वो ोध से अपने भानज पर िच लाया, “तुम दोन को हआ या है?”
कु भकण ने रावण को देखा। उसने वो कहा िजसे कहने क शि रावण नह जुटा पा
रहा था। “क याकुमारी...”
मानो इस िद य श द से ऊजा पाकर रावण ने अपने क धे म घुसे तीर क डं डी तोड़ दी।
वो िफर से खड़ा हआ और पलट गया। झील म कूदने को तैयार। तैरकर उनके पास जाने को
तैयार।
“रावण!” अपने भानजे को पकड़ते हए मरीच चीख़़ा। “ब द करो यह पागलपन!”
“मुझे जाने द!” अपने को छुड़ाने क कोिशश करता रावण भरे गले से बोला। “मुझे
जाने द!”
पोत के सारे लोग अपने नायक को देख रहे थे। समझ नह पा रहे थे िक हो या रहा
है।
कु भकण ने कसकर रावण को पकड़ िलया। “दादा, आप अब वापस नह जा सकते!
आप मारे जायगे!”
“मुझे जाने दो!” रावण ने सबको धकेलने और उठ खड़े होने क कोिशश क ।
“दादा! कृपया मेरी बात सुिनए। आप उनके पास पहँचने से पहले ही मारे जायगे!”
“मुझे जाने दो!”
“म उनके िलए वापस आऊँगा, दादा! म उ ह ढूँढ़ लंग
ू ा!”
“मुझे जाने दो!” रावण ने हताशा से दोहराया।
मरीच इतना अचि भत था िक कुछ कह ही नह सका। उसने कभी रावण को इस हाल
म नह देखा था।
“दादा!” कु भकण अपने भाई को छोड़ने को तैयार नह था। “कृपया मुझ पर िव ास
कर। म उनके िलए वापस आऊँगा, दादा! म उ ह ढूँढंगा। म आपको वचन देता हँ। मगर अभी
आपको हमारे साथ रहना होगा।”
“मुझे जाने दो!” रावण क आवाज़ िबखरी हई थी। टूटी।
“दादा, म उ ह ढूँढूँगा। म वचन देता हँ।”
“मुझे जाने दो...”
पाल परू ी तरह फै ल चुका था और उसम हवा भर गयी थी। पोत ने गित पकड़ ली और वो
तट से दूर हो गया था। कचबाह के तीर से दूर।
उनसे दूर।
क याकुमारी से दूर।
“मुझे जाने दो...”
अ याय 9
नलबण ीप क लटू को तीन साल हो चुके थे। बाईस वष य रावण एका ति य हो गया था
और िवरले ही बाहर िनकलता था। य िप अभी भी वो यापार से जुड़ा था और सभी मुख
रणनीितक मु पर िनणय लेता था, पर वो समु पर या या ाओं पर नह जाता था। वो गोकण
म ही रहता था, और पहाड़ी के ऊपर बने अपने भवन क ऊँचाइय से समु को देखता रहता
था। कु भकण क ती ा म।
इतने समय म, कु भकण किलंग से िनयिमत प से समाचार भेजता रहा था।
ब दरगाह क मर मत करने वाले िमक िजनके साथ उ ह ने क याकुमारी को देखा था
अब पि म क ओर चले गये थे, किलंग के और भीतर। अगली बार जब रावण को कु भकण
का स देश िमला, तो वो यह था िक उ ह ने मयरू ा ी नदी के िनकट वै नाथ म डे रा डाल
िलया है। यह किलंग से बहत दूर नह था।
इस बीच, रावण के िवशाल यावसाियक सा ा य का ब धन मरीच ने सँभालना
आर भ कर िदया था। उसने कचबाह से लटू े गये धन का उपयोग िवशालकाय नये पोत
बनाने म िकया। गोकण और आसपास के सव े पोत-िनमाताओं के काम करने क परू ी
मता रावण के काम म िल हो गयी थी। वो हर महीने पाँच या छह पोत हािसल कर रहा था;
यह एक अभत ू पवू घटना थी िजससे िह द महासागर के घेरे का परू ा यापा रक समुदाय
हत भ था।
धीरे -धीरे , रावण ने दो सौ पोत का बेड़ा बना िलया। मलयपु को गुफा पदाथ के िलए
अि म भुगतान कर िदया गया था। हर नये पोत क वसल ू ी िमलते ही रावण के आदमी उसे
उनवाटुन ले जाते थे, जो लंका के दि णी तट पर एक गु मंडप था। वो पोत को वहाँ ितरछा
िटका देते थे। उसके बाद गुफा पदाथ गँध ू ा जाता, उसम अ य अवयव िमलाये जाते, और परू ी
लगन से हर पोत के पेटे पर उसका लेप कर िदया जाता। यह एक ल बी और किठन ि या
थी। और इसे गु प से एक छोटा, वफ़ादार दल अंजाम देता था िजसे इसके िलए बहत अ छा
पैसा िदया जाता था।
जैसे-जैसे रावण का बेड़ा बड़ा होता गया, वैसे-वैसे ु तगामी या ा क उसक साख
बढ़ती गयी। िनमाताओं और कारीगर को उसके साथ काम करना लाभदायक लगने लगा।
वो जानते थे िक अगर वो रावण के पास जायगे, तो अ य यापा रय क तुलना म उनका
सामान कह ज दी पहँचेगा और झटपट िबकेगा। रावण के िनदश पर, मरीच ने अपने कह
अिधक े बेड़े का इ तेमाल करके िह द महासागर के य त यापा रक माग पर अ य
पोत को रोकना और लटू ना भी शु कर िदया था। लुटेरे पोत आँधी-तफ़ ू ान क तरह आते,
लि त पोत पर लटू पाट करते, नािवक क ह या करते और िफर उ ह डुबो देते तािक उनके
अपराध का कोई नामो-िनशान तक न रहे । उनके ारा न िकये कई पोत कुबेर के थे। कोई
सा ी न होने के कारण कोई इसे रावण से जोड़ ही नह सका। उनका मानना था िक ये हमले
समु ी लुटेर का काम ह।
िन स देह, रावण क योजना धन के िलए अ य पोत पर आ मण करने तक ही
सीिमत नह थी। समु म लुटेर के हमले के लगातार बढ़ते डर का लाभ उठाते हए उसने
ह त के नेत ृ व म वयं अपनी छोटी-सी सेना बनानी शु कर दी। उसने कहा िक यह
उसके अपने पोत के िलए सुर ा बल है। य िप िकसी यापारी के िलए िशि त सैिनक का
अपना दल खड़ा कर लेना एक असामा य-सी बात थी, लेिकन कई लोग का मानना था िक
अपने लाभ क र ा के िलए ऐसा करना उिचत ही है। कुछ अ य यापारी भी रावण के सुर ा
बल क सेवाएँ लेने लगे। इस तरह वो अपने सैिनक क सेवाएँ देकर धन ही नह कमाने
लगा, बि क उसके सैिनक उसे उसके ित ि य और उनक यापा रक योजनाओं क
जानकारी देने का ोत भी बन गये।
आय म अ य त तेज़ी से विृ होने लगी थी। रावण अब तक गोकण के सबसे धनी
यापा रय म शािमल हो चुका था। शी ही वो संसार के सबसे धनी यापा रय म से एक
बनने वाला था। इतना धनी िक प ृ वी के सबसे धनी यि कुबेर तक का उस पर यान
जाये।
यह जानते हए िक वो यह जोिखम नह ले सकते थे िक मलयपु को गुफा पदाथ के
वा तिवक उपयोग के बारे म पता चले, मरीच ने कुबेर से पु पक िवमान को प े पर लेने का
िन य िकया। उसने दाम पर जमकर मोलभाव िकया तािक यह एक िव सनीय सौदा लगे।
हमेशा यावहा रकता म िव ास करने वाला यापारी कुबेर आसानी से मान गया। िवमान को
चलाना इतना महंगा पड़ता था िक उसने उसका योग लगभग ब द ही कर िदया था। और
िनयिमत इ तेमाल म न रहने वाले िकसी भी अ य य क तरह वो भी धीरे -धीरे जंग खाने
लगा था। उसके ि कोण से कोई सौदा न होने से कोई भी सौदा बेहतर था।
जब मरीच ने पु पक िवमान अपने हाथ म ले िलया, तो सबसे पहला काम उसने यह
िकया िक कुबेर के ारा लगायी गयी सारी िवलािसताएँ उसम से हटा द । नम ग वाले
वणमंिडत पलंग और उ कृ भोजन बनाने के िलए सामान से लदी रसोई को हटा िदया
गया। िवमान से हर वो व तु हटा दी गयी िजससे यथ क समिृ क बू आती हो, िजसका
कोई यावहा रक मू य भी न हो। इन िवलािसताओं को हटा देने से िवमान का भार बहत कम
हो गया था। कम भार का अथ था िक िवमान को उड़ाने के िलए आव यक गुफा पदाथ क
मा ा म भी भारी कमी आना। इससे िवमान को चलाने क लागत कम हो गयी।
मरीच ने िवमान का योग भी सीिमत रखा था। अब इसका योग केवल दूर देश क
उड़ान के िलए िकया जाता था। जानकारी हािसल करने, और अ य त मू यवान मगर ह के
माल जैसे िक अनमोल हीरे जवाहरात के यापार के िलए। इन उड़ान पर कभी-कभी रावण भी
उसके साथ चला जाता था।
ऐसी ही एक या ा के बारे म मरीच रावण से बात करने आया था।
“आपको इस सच ू ना पर िव ास है?” रावण ने यायाम जारी रखते हए पछ
ू ा।
मरीच और रावण उसके भवन के पहले तल क दीघा म थे। मकान एक बड़ी-सी पहाड़ी
पर बना था जो समु म िनकल रही थी। िह द महासागर का यह सु दर य दान करता
था जो जहाँ तक आँख देख सकती थ , वहाँ तक फै ला हआ था। बि क उससे से भी परे तक।
रावण ितिदन सुबह सय ू नम कार करने यहाँ आता था, जो यायाम और आ याि मकता का
सटीक मेल था।
“हाँ, नािवक दि ण अ का का है,” मरीच ने कहा। “यह एकदम प क सच ू ना है। वो
िजन व तुओ ं क बात कर रहा है, उ ह उसने अपनी आँख से देखा है।
िजस आदमी क चचा हो रही थी वो लेथाबो था, उन अ क नािवक म से एक जो
कु भकण के साथ किलंग गये थे। वो कुछ माह पहले रावण के िलए एक स देश लेकर आया
था, मगर एक चोट ने उसे कु भकण के पास अपने थान पर लौटने से रोक िदया, जो िक
इस समय वै नाथ म था। मरीच उससे िमलने गोकण आयुरालय गया था जहाँ उसका उपचार
हो रहा था। और इस तरह उसे अ क महा ीप के दि णी छोर के िनकट अनमोल हीर से
भरी खदान के बारे म पता लगा था। एक िवशाल सपाट िशखर वाले पवत से िचि त, िजसे
थानीय लोग पीिठका पवत कहते थे।
“ह म...” अपनी िनयिमत िदनचया समा करते और सय ू देव को णाम करते हए
रावण उदासीन बना रहा।
“रावण, पु पक िवमान को वहाँ ले जाना उपयोगी हो सकता है। अगर हम कुछे क हीरे
भी िमल गये तो या ा क लागत तो वसल ू हो ही जायेगी। और अगर खान भी िमल गयी...
शेष म तु हारी क पना पर छोड़ता हँ।”
रावण दीघा के िकनारे चला गया और जंगले पर हाथ रखकर खड़ा हो गया। उसने
समु को और िफर दूर ि ितज को देखा।
“रावण?”
रावण मौन रहा।
“रावण, या िनणय है तु हारा?”
कोई उ र नह िमला।
मरीच ने गहरी सांस ली। वो अपने भानजे के पास गया और उसका क धा छुआ।
“रावण...”
“कु भ...”
“ या?”
रावण ने ि ितज के िकनारे पर एक पोत क ओर संकेत िकया। उसके पाल ऊपर थे।
एक वज फड़फड़ा रहा था। कु भकण का वज।
“इतनी दूर से तुम वज के िच कैसे पहचान सकते हो?” मरीच ने अिव ास से पछ ू ा।
“वही है। मुझे पता है वही है,” रावण ने कहा, उसका चेहरा स नता से चमक रहा था।
वो मुड़ा और अपने सुर ाकिमय को पीछे आने को कहते हए बाहर को दौड़ गया। वो
शी ता से एक पोत पर सवार होकर अपने छोटे भाई से िमलने जायेगा। वो इतना अधीर था
िक ती ा नह कर सकता था।
उसे ज दी से ज दी उनका समाचार पाना था।
क याकुमारी का समाचार।
“तु ह िव ास है?”
रावण िबना देर िकये गोकण ब दरगाह से कुछ समु ी मील दूर मौजदू अपने भाई से
िमलने चल पड़ा था। रावण के अचानक आने से कु भकण आ यचिकत रह गया था, मगर वो
अपने बड़े भाई क िच ता समझ सकता था। तीन वष बीत गये थे।
भावुक पुनिमलन के बाद रावण कु भकण को अलग ऊपरी तल के एक छोर क ओर
ले गया। और क बौछार कर दी। क याकुमारी के बारे म ।
“हाँ, दादा, मुझे िव ास है। मने वयं उ ह देखा है।”
रावण क आँख चमक उठ । “तुमने देखा उ ह?”
कु भकण मु कुराया। “हाँ। सौभा यशाली हँ!”
रावण भी मु कुराया। “िन स देह। मगर वो थान िकतनी दूर है?”
“िजस गाँव म वो रहती ह वो मु य भिू म म बहत अ दर है। वा तव म, वो वै नाथ
मि दर के िनकट है।”
“वै नाथ मि दर? सच? जब तुम छोटे थे तो हम कुछ िदन वहाँ के थे।”
“हाँ, जानता हँ,” कु भकण ने कहा। “माँ से सारी कहानी सुन चुका हँ।”
“िक तु वै नाथ मि दर तो थानीय क याकुमारी मि दर से बहत िनकट है, है ना?
इस थान का नाम या है? ि कूट? वो उसी थान पर एक साधारण ी क तरह रहने
वापस य जायेगी जहाँ कभी देवी के प म उनक पज ू ा होती थी?”
“ य तः, पवू क याकुमा रय के िलए उसी मि दर के आसपास बस जाना बहत
सामा य बात है जहाँ कभी वो जीिवत देवी के प म शासन करती थ । ऐसा केवल ि कूट के
क याकुमारी मि दर म ही नह बि क भारत भर म क याकुमारी के अ य अनेक मि दर म
होता है। मेरा अनुमान है बहत सारी पवू क याकुमा रय के आसपास रहने से अपने जीवन
का पुनिनमाण करने के िलए उ ह एक अवल ब उपल ध हो जाता होगा।”
“ह म,” रावण ने कहा, वो ठीक से सुन भी नह रहा था िक कु भकण या कह रहा
है।
मुझे तो बहत पहले ही वै नाथ जाना चािहए था। उ ह वह ढूँढ़ना सबसे अिधक
तकस मत बात होती। म भी िकतना मख ू था! इतने वष बबाद कर िदये।
“दादा...”
“ या?” रावण ने अपने मन को वतमान म वापस लाते हए पछ ू ा।
“म बस यह बताना चाहता था िक एक छोटी-सी सम या है।”
“कैसी सम या?”
“अं...”
“चलो, बताओ भी। ऐसा कुछ नह है जो तु हारा दादा सँभाल न सके।”
“दादा, क याकुमारी... वो... वो िववािहता ह।”
रावण ने हाथ िहलाकर इसे दरिकनार कर िदया। “अरे , यह कोई सम या नह है। हम
इसे सँभाल लगे।”
“सँभाल लगे? कैसे?” कु भकण िचि तत िदख रहा था।
“नादान मत बनो, कु भ,” रावण ह के से हँसा। “हम उनके पित को नह मारगे। कैसे
मार सकते ह? वो क याकुमारी के पित ह? हम उ ह ख़रीद लगे।”
“िक तु...”
“इसे तुम मुझ पर छोड़ दो। हम िकतनी ज दी वै नाथ के िलए िनकल सकते ह?”
“कुछ ही िदन म िनकल लगे।”
“बहत बिढ़या!”
कु भकण हँसा और उसने िठठोली करते हए रावण को णाम िकया। “जैसी आ ा,
इराइवा!”
इराइवा वो उपािध थी जो अकंपन रावण के िलए योग करता था। भारत के उ र-पि म
म सुदूर प तन ू े म ि थत अकंपन के देश म बोली जानी वाली भाषा म इसका अथ
'वा तिवक वामी' होता था। यह उपािध चल िनकली थी। रावण के अनेक नािवक अब उसे
इराइवा कहते थे।
रावण ने अपने भाई को गले लगा िलया और उसके बाल को सहरा िदया। रावण से नौ
वष छोटा होने के बावजदू कु भकण लगभग उसी के बराबर ल बा हो गया था।
“लेिकन आपने मुझसे सबसे अिधक सामा य तो पछू ा ही नह , दादा,” कु भकण
ने कहा। “मुझे लगता है म कुछ अिधक समय ही दूर रहा हँ। और समय के साथ आप धीमे
होते जा रहे ह।”
रावण कु भकण से दूर हटा और उसके माथे पर बल पड़ गये। “ या है वो?”
“एक बात जो आप हमेशा से जानना चाहते ह। पछू मुझसे। मेरे पास उ र है।”
समझ म आते ही रावण का चेहरा िखल उठा। “तु ह पता है? तु ह उनका नाम पता
है?”
ह के से हँसते हए कु भकण ने हामी भरी।
रावण ने अपने भाई के क धे थाम िलये। “बताओ मुझे, मख
ू ! या नाम है उनका?”
“वेदवती।”
रावण ने सांस रोक ली। इस अलौिकक नाम को गँज ू जाने िदया अपने कान म। अपने
शरीर म। अपनी आ मा म।
वेदवती।
वेद क ाता।
रावण अपने भाई से परे देखने लगा, समु क ओर। उसे लग रहा था मानो उस िद य
नाम के नाद से उसका दय फट जायेगा। उसे साहस नह हआ िक इसे ज़ोर से बोल सके।
उसक आ मा इसे सँभाल नह पाती। उसने इस नाम को हौले-हौले अपने मन क सीमाओं म
गँज
ू ने िदया।
वेदवती...
अ याय 10
दोन भाइय को अगली सुबह िनकलना था। भावी या ा के िलए उनके बेड़े के सबसे ु तगामी
पोत को तैयार िकया गया था।
सयू देव अपना काम समा करके िव ाम करने चले गये थे। सौभा य से, सोम देव ने
आगे क कमान संभाल ली थी। यह परू े चाँद क सु दर रात थी। समु के कुछ भाग और
गोकण का अित सु दर तट वहाँ िबखरी चाँदनी से जगमगा रहे थे। आकाश म लगभग कह
कोई बादल नह था, और तार भरी रात जड़ाऊ छ जैसी िदख रही थी। समु क ठं डी, नम
हवा इि य को शा त कर रही थी। नगर क ककश आवाज म म पड़ चुक थ । रावण ने
आकाश क ओर देखा।
हवा म यार क महक थी। और लुटेरे- यापारी ने उसे सांस म भर िलया।
“म कल तक ती ा नह कर सकता!” उसने थोड़ी और मिदरा पीते हए कहा।
कु भकण मु कुराया। उसने अपने भाई के साथ मिदरापान करने से इंकार कर िदया
था। उनक माँ घर पर थ ।
शंसा म अपने पा को ऊपर उठाते हए रावण ने अपने पेय के उ कृ वाद का
आन द िलया। िफर उसने बोतल को देखा। और िफर कु भकण के ख़ाली हाथ को देखा।
“सच म?” रावण ने पछ ू ा। “उ ह ने वा तव म तुमसे कहा िक मेरी बुरी आदत मत
अपनाना? कभी-कभी मुझे लगता है िक मुझे बस—”
कु भकण ने अपने बड़े भाई को टोका। “दादा, या सच म यह मायने रखता है? वो
हमारी माँ ह...”
रावण ने गहरी सांस ली। उसने थोड़ी मिदरा और पी।
य िप कु भकण अपनी माँ क इ छाओं का स मान करता था, कम से कम उनक
उपि थित म, लेिकन अपने छोटे बेटे के िलए कैकेसी क सदाशयी चेताविनय का उस पर
कोई भाव नह होता था। कु भकण रावण को पज ू ता था। उसका बड़ा भाई सदा से उसका
आदश रहा था। बुरी आदत? वो तो रावण क येक आदत का अनुकरण करना चाहता था।
एकमा चीज़ जो वो चाहता था िक उसका भाई न करे , वो थी उनक माँ का अपमान करना।
“तो, मुझे उनके बारे म और बताओ,” रावण ने कहा। “क याकुमारी...”
कु भकण ने देखा था िक उनका नाम जानने के बावजदू भी रावण वयं को वो नाम
बोलने के िलए तैयार नह कर पाता था। वो सोचने लगा िक वो रावण को वेदवती के बारे म
और या बता सकता है। वो उनके शारी रक प के बारे म तो बता ही चुका था। यह आ य
क बात थी िक वो रावण के बनाये िच क ी से िकतना मेल खाती थ ।
“वो सचमुच असाधारण ह, दादा,” कु भकण ने कहा। “आप जानते ह ना िक अिधकांश
लोग के िलए जीवन िकतना किठन है? कर बहत बढ़ गये ह और नौक रयाँ िमलना मुि कल
हो गया है।”
अिधकांश स िस धु रा य क यापारी-िवरोधी नीितय के नतीजे म यापा रक
गितिविधय म भारी िगरावट आ गयी थी। और िफर कर राज व म भी उतनी ही भारी िगरावट
आयी। साथ ही, सा ा यवादी यु के कारण राजक य यय भी बढ़ गया था। इसिलए कर क
दर बढ़ा दी गय । इसने यापार के भिव य को और धँुधला िदया और नौक रय के अवसर भी
भािवत हए। ऐसे हताशा भरे माहौल म, अपराध भी बढ़ गये थे। और हमेशा क तरह, इसक
चोट आम लोग पर पड़ी। देश भर म छोटे-छोटे िव ोह हो रहे थे, िवशेषकर रा य के शासक
क सेवा म लगे छोटे-मोटे साम त और भू वािमय के िव । पर अभी रावण को लोग क
ि थित म कोई िच नह थी।
“मुझे क याकुमारी के बारे म बताओ।”
“यह उसी से जुड़ा है, दादा। क याकुमारी के पित...”
रावण के जबड़े को िभंचते देखकर कु भकण चुप हो गया।
रावण ने एक ण को दूसरी ओर देखा और िफर वापस अपने भाई को देखा। “हाँ,
उसके बारे म या? ”
कु भकण ने आगे कहा, “उनका नाम प ृ वी है। वो भारत के सुदूर पि म म
बलोिच तान के यापारी ह, या थे। कई वष पहले वो वै नाथ म आकर बस गये और अनेक
यापार म हाथ आजमाया। िक तु उनको भारी घाटा ही हआ।”
“नाकारा।”
कु भकण ने रावण के ई यापण ू श द को िबना िकसी िट पणी जाने देने का फ़ै सला
िकया। उसने सुना था िक प ृ वी एक ईमानदार, सरल और िश आदमी थे। भले ही वो कोई
बहत चतुर यापारी न रहे ह ।
“ यापार म इन घाट के कारण,” कु भकण ने आगे कहा, “वो थानीय भू वामी के
भारी ऋणी हो गये। अब अपने ऋण को चुकाने के िलए वो उसके िलए काम कर रहे ह।”
“तो क याकुमारी को अपने मख ू पित के कारण नौकर वाला काम करना पड़ रहा
है?”
“लगता है िक वो अपनी इ छा से वहाँ ह, दादा। वो भी भू वामी के िलए काम करती ह।
उस े म हर कोई जानता है िक वो क याकुमारी थ और सब लोग उनका स मान करते
ह। इसिलए जब भी आव यकता पड़ती है, तो वो आम लोग और भू वामी के बीच शाि त
थािपत करती ह। भू वामी सुिनि त करता है िक उसके लोग के िलए पया भोजन हो। जब
भी स भव होता है, वो उ ह अपने खेत पर या िच का म या आसपास के े म अपने
िनमाण थल पर काम भी देता है। लोग इसके कारण बहत स तु ह और उनके पास िव ोह
करने का कोई कारण नह है। उनका गाँव स िस धु के सबसे शाि तपण ू गाँव म से है।
जोिक द र ता और ोध के इस युग म एक उपलि ध है। और यह सब वेदवतीजी क नैितक
शि के कारण स भव हो पाता है।”
इस सबसे रावण ने बस इतना िन कष िनकाला। “यानी हम बस एक तु छ ामीण
भू वामी का ऋण चुकाना है और िफर क याकुमारी वत हो जायगी?”
“ह म... दादा, मुझे नह लगता िक यह इतना सरल होगा।”
“यह इतना ही सरल है। तु ह जीवन के बारे म अभी बहत कुछ सीखना है, कु भ। तुम
अभी भी छोटे हो।”
रावण का पोत भारत के पवू तट पर ंगा क ओर बढ़ रहा था। पिव गंगा के मुहाने क ओर।
उनका इरादा नदी म उस िब दु तक आगे बढ़ने का था जो वै नाथ के सबसे िनकट था।
उसके बाद चालक दल भिू म माग से पिव मि दर नगरी तक जायेगा। मयरू ा ी नदी अपनी
या ा वै नाथ के िनकट से आर भ करती थी, और पवू म बहती हई गंगा क सबसे पि मी
उपशाखा म जा िमलती थी। एक नौिसिखया नािवक यह सोचने क ग़लती कर सकता था
िक मयरू ा ी क उलट िदशा म चलकर सबसे ज दी वै नाथ पहँचा जा सकता है। लेिकन
रावण नौिसिखया नह था। वो जानता था िक मयरू ा ी एक बाढ़ वण नदी है िजसम जोिखम
भरी और तेज़ लहर होती ह। उस पर नौकायन करना किठन और धीमा होगा। इससे बेहतर था
गंगा म आगे बढ़ना, और िफर शेष रा ता पैदल या घोड़ ारा तय करना।
“तु ह िव ास है िक तुम इतने व थ हो िक वै नाथ तक घुड़सवारी कर सको?”
रावण ने कु भकण क िवशाल त द को चंचलता से थपथपाते हए पछ ू ा।
दोन भाई पोत के ऊपरी तल पर थे, और गिलयारे से होकर पोत मुख के क क
ओर जा रहे थे। रावण ने अभी खुले तल पर अपने मनपस द संगीतकार सय ू के साथ एक घंटे
का न ृ य अ यास परू ा िकया था। उसने कुछ ही समय पहले भारी शु क देकर सय ू क सेवाएँ
ली थ , और उसे और उसक प नी अ नपण ू ा को इस या ा पर साथ चलने के िलए मना िलया
था तािक वो उस न ृ य िवधा का अ यास जारी रख सके िजसम वो अभी िनपुण होने क
कोिशश कर रहा था।
“मेरी िच ता मत क िजए, दादा। वो म नह हँ िजसक सांस उस 'िद य नाम' को सुनने
मा से उखड़ जाती ह,” कु भकण ने चेहरे पर छ -भि भाव लाते हए कहा।
रावण ठहाका लगाकर हँस पड़ा और कु भकण ने और भी ज़ोर से हँसते हए उसक
पीठ को ठ का। उ ह ने क म वेश िकया और कु भकण ने ार ब द कर िदया। रावण ने
एक अलंकृत अलमारी के पास जाकर एक शीशे क सुराही और याला िनकाला। िफर उसने
अपने िलए थोड़ी-सी मिदरा पलटी।
“यहाँ तो माँ नह ह, कु भ,” रावण ने याला ऊँचा उठाते हए कहा। “थोड़ी आज़माकर
देख सकते हो।”
“म आजमा चुका हँ, दादा!” कु भकण ने दांत िनपोरे । “लेिकन मुझे समु पर पीना
पस द नह है। उलटी आने लगती है।”
“छी,” रावण ने मँुह बनाया। “मुझे यह जानने क आव यकता नह थी।” वो अपने भाई
के सामने एक मोखले के पास पड़ी कुस पर पसर गया। “ख़ैर, अब जबिक म जान गया हँ
िक तुम मिदरा आज़मा चुके हो, तो म चाहँगा िक तुम ि य को भी आज़माओ। रा ते म कुछ
बहत अ छे वे यालय ह। हम उनम से िकसी पर कगे। तािक तुम... ी के पश का अनुभव
कर सको।”
कु भकण खी-खी करने लगा। वो शमा भी रहा था और साथ ही रोमांिचत भी था। उसने
कहािनयाँ तो सुनी थ । पर यह नह जानता था िक उसे िकसी ी के साथ या करना होगा।
“ि य के साथ एकमा सम या उनका मँुह है,” रावण ने आगे कहा। “वो बोलती ह।
उससे भी बढ़कर यह िक फ़ालतू बोलती ह। तुम जानते हो ना िक दुिनया के कुछ भाग म
माना जाता है िक वग ऊपर है और नक नीचे? ि य के साथ ठीक इसका उलट है। उनके
मामले म, वग नीचे है और नक ऊपर!”
रावण अपने मज़ाक़ पर खुद ही जोर से हँसा। कु भकण भी अिनि तता के साथ उसका
साथ देने लगा।
“यह बात सभी ि य पर लागू नह होती, दादा,” उसने कहा। “जब वेदवतीजी बोलती
ह, तो बुि मानी का अहसास—”
इससे पहले िक वो अपना वा य परू ा कर पाता, रावण ने बात काट दी। “क याकुमारी
साधारण ी नह ह। वो जीिवत देवी ह।”
“िन स देह, दादा।”
रावण ने मिदरा पीते हए मोखले से बाहर देखा। यह सोचते हए िक उनसे िमलने पर वो
या कहे गा। वो कैसे उ ह अपना ेम िदखायेगा।
ु े य ठुकरायगी? िवशेषकर तब जब उ ह पता चलेगा िक म उनके िलए कै सा
वो मझ
महसस ू करता हँ। जब उ ह पता चलेगा िक म िकतना धनी और शि शाली हँ... और उनके
ेम के यो य हँ।
“दादा, म एक बात प बताना चाहता हँ। आपको भी इस पर ग भीरता से सोचना
चािहए।” कु भकण क आवाज़ ने रावण के िवचार म अवरोध डाल िदया।
अपने छोटे भाई के ग भीर भाव को देखकर रावण भी ग भीर हो गया। “ या बात है?”
“बात यह है िक...” कु भकण िहचिकचाया।
“ या हआ, कु भ? बोलो।”
“दादा... इसे ग़लत मत समझना... पर सच म, मुझे नह लगता िक क याकुमारी
आपके न ृ य से भािवत ह गी। इसिलए कृपया उनके िलए न ृ य मत करना। म िव ास िदला
सकता हँ िक अगर आपने न ृ य िकया तो वो आपसे दूर भाग जायगी।”
रावण ने अपने पास पड़ा एक छोटा-सा तिकया उठाकर कु भकण पर दे मारा, जो
हँसते-हँसते लोटपोट हो रहा था।
रावण भी हँस रहा था। “तुम िनि त प से उतने छोटे और अ छे बालक नह हो
िजसके िलए माँ को डर है िक म िबगाड़ दंूगा।”
कु भकण दांत िनपोरने लगा। “आपका अनुसरण करने क कोिशश कर रहा हँ,
दादा!”
रावण ने पास रखा एक और तिकया उठाकर कु भकण पर फका। उसके छोटे भाई ने
उसे बड़ी आसानी से लपक िलया और अपनी पीठ के पीछे लगा िलया। “अब शायद म आराम
से हँ, ध यवाद। अब और नह चािहए!”
क म हँसी गँज ू ने लगी। आन द के आँसुओ ं को प छते हए रावण ने अपने छोटे भाई
को यार से देखा। और गव से भी। य िक इन ह केफु के ण म, उसक नािभ म हमेशा
रहने वाला दद भी लु हो जाता था। आन द और आशा से उसका दय भर गया था।
लड़खड़ाते क़दम से पोत क ओर वापस जाता कु भकण मु कुराए िबना नह रह पा रहा था।
रावण ने अपने भाई के क ध पर हाथ रखा, उसके िनकट झुका और हौले से पछ ू ा,
“कैसा रहा?”
वो महआ ीप म थे और कु भकण अभी पहली बार एक वे यालय होकर आया था। यह
ीप गंगा क सबसे पि मी उपशाखा के मुहाने पर था, उस िब दु पर जहाँ पानी और तलछट
से बोिझल महान नदी अलसाईसी पवू सागर से िमलती थी। यहाँ वस तपला नाम क एक
मिहला का एक वे यालय था, जो परू े े म िव यात था। रावण ने िनणय िलया था िक
दैिहक आन द क दुिनया से अपने भाई का प रचय कराने के िलए यह जगह एकदम ठीक
है।
उसने वस तपला का सुझाव मानते हए अपने छोटे भाई के िलए ज़बीबी नाम क एक
िस वे या को चुना था। ज़बीबी अरब क थी, और पैसा कमाने के िलए हाल ही म भारत
आयी थी। वो िकसी अ सरा से कम नह थी। ल बे अंग वाली और कमनीय ज़बीबी के
चमक ले काले बाल थे। इस े म नयी होने के बावजदू वो अपनी सु दरता, और कपड़ एवं
आभषू ण क अपनी उ कृ अिभ िच के िलए िस हो चुक थी। और सबसे मह वपण ू यह
िक वो ेम क कला म अनुभवी थी।
कु भकण के िलए सव े ही चलेगा।
“शायद मुझे ेम हो गया है,” ेम म डूबा और मदहोश िदख रहा कु भकण फुसफुसाया।
रावण ज़ोर से हँस पड़ा। वो आगे बढ़ता गया, और िफर जब उसे अहसास हआ िक
उसका भाई साथ नह है तो क गया।
कु भकण जड़ खड़ा था। सपनीली ि से भोर के आसमान को देखता हआ। उसके
क ध क दोन अित र बाँह लटक-सी गयी थ , जैसे वो भी नशे म ह । “म हँसी नह कर
रहा हँ, दादा। मुझे लगता है मुझे ेम हो गया है।”
रावण ने अपनी भ ह उठाई ं।
“म उसे यहाँ नह छोड़ना चाहता। या म उसे हमेशा के िलए नह पा सकता? म उससे
िववाह नह कर सकता?”
रावण पलटकर चलता हआ कु भकण के पास पहँचा, उसके क ध पर अपनी बाँह
डाल , और अपने िहचिकचाते भाई को आगे बढ़ाने लगा।
“दादा, म ग भीर हँ...”
“कु भ, ज़बीबी जैसी ि याँ उपभोग करने के िलए होती ह, ेम करने के िलए नह ।”
कु भकण के चेहरे पर ोध क चमक ने रावण को कने पर मजबरू कर िदया।
“दादा! ज़बीबी के बारे म इस तरह मत बोिलए!”
“यह एक सौदा था, कु भ। उसने तु ह आन द िदया, तुमने उसे धन िदया। उसक तुमम
कोई िच नह है। उसक िच बस पैसे म है।”
“नह , नह ! आप नह जानते उसने मुझसे या कहा। उसे िव ास ही नह हो रहा था
िक म मा एक लड़का हँ। उसने कहा िक वो मुझ जैसे पु ष के साथ कभी नह रही।”
“मने उसे पैसा िदया था, कु भ। वो पेशेवर है। िन स देह उसने ऐसी बात कह जो तुम
सुनना चाहते थे।”
“पर उसने झठ ू नह बोला और न ही मुझे स न करने भर के िलए कुछ कहा। उसने
जो कहा वो िदल से कहा था। उसने यह नह कहा िक म सु दर हँ। म जानता हँ म सु दर नह
हँ। पर उसने यह अव य कहा िक म बुि मान हँ। जोिक म हँ। और िक म शि शाली हँ।
और...” कु भकण शमाते हए मु कुराया, “और िब तर म अ छा हँ।”
रावण िफर से हँसने से वयं को रोक नह सका। “मेरे भोले न हे कु भ! यह दुिनया
वाथ लोग से भरी पड़ी है। वो तुमसे वही बात कहगे जो तुम सुनना चाहते हो तािक तुमसे
वो पा सक जो वो चाहते ह। अपनी र ा के िलए तु ह पता होना चािहए िक तु ह जो चािहए वो
लेने के िलए उनका उपयोग कैसे करो। संसार ऐसे ही चलता है।”
“पर दादा, ज़बीबी िभ न है। वो—”
“वो कुछ भी िभ न नह है। उसे बस यह अिधक प है िक उसे या चािहए। उसे धन
चािहए। और बदले म वो तु ह यौन ि या देगी। सीधी-सी बात है। कुछ पु ष स मान चाहते ह।
य ? म नह जानता। पर चाहते ह। तो, उ ह स मान दो। उ ह मरने का स मानजनक
तरीक़ा दो। और इससे लाभ उठाओ। कुछ ि य को लगता है िक अपनी सु दरता का दशन
करना उ ह शि शाली बनाता है। तो, उनक शंसा करो, उनके साथ स भोग करो, और
िफर दूर हटा दो। लोग का उपयोग करो इससे पहले िक वो तु हारा उपयोग कर। संसार म
अिधकांश लोग घण ृ ा यो य होते ह। अनेक लोग िदखाव के पीछे िछपे होते ह। सफल वो लोग
होते ह जो अपने साथ ईमानदार होते ह। ज़बीबी ईमानदार है। उसे तु हारी िच ता नह है। उसे
अपनी िच ता है। वो यहाँ कुछ साल के िलए आयी है तािक पया पैसा कमा सके, और िफर वो
अरब म अपने पित के पास वापस चली जायेगी।”
कु भकण भ च का रह गया। “वो िववािहत है? उसने मुझसे झठ ू बोला!”
“हाँ, उसने तुमसे झठू बोला। लेिकन उसने अपने जीवन के सबसे मह वपणू यि —
वयं—से झठ ू नह बोला! तु ह च कना नह चािहए। इसके बजाय तु ह उससे सीखना
चािहए। प रहो िक तु ह या चािहए। लेिकन उसे अ छी तरह से िछपाकर रखो। इससे जो
तुम चाहते हो उसे पाने म तु ह मदद िमलेगी।”
कु भकण कुछ देर मौन रहा, और अपने भाई क कही बात पर िच तन करता रहा।
अ तत: वो बोला, “हम इसीिलए कुबेर के पोत पर हमला कर रहे ह ना? लेिकन यह हम इस
तरह करते ह िक सबको लगे िक यह लुटेर का काम था।”
“िब कुल सही। अब तुम सीख रहे हो। कुबेर क शि उसका धन है, और हम उसका
िजतना धन लगे, वो उतना ही असुरि त महसस ू करे गा। अपनी हताशा म, वो लंका के
एकमा ऐसे यि से स पक करे गा िजसके पास सु िशि त और सश सैिनक ह—
मुझसे। वो अपने धन क सुर ा के िलए मेरी मदद माँगेगा। म िनि त प से उस बेचारे क
सहायता क ँ गा। और लंका क सेना का मुख बन जाऊँगा। उसके बाद, राजा बनना बहत
दूर नह होगा।”
कु भकण क छाती गव से फूल गयी। “मेरे भैया, लंका के राजा!”
रावण मु कुराया। “हमेशा याद रखो िक हम य शि शाली ह, य सफल ह। य िक
हम वयं को मख ू नह बनाते िक हम स मानीय ह या अ छे ह। हम जानते ह िक हम कौन
ह। हम इसे वीकार करते ह। हम इसे अंगीकार करते ह। इसीिलए हम सबको हराते ह।
इसीिलए हम सबको हराते रहगे।”
“हाँ, दादा।”
रावण आगे बढ़ गया, और कु भकण उसके साथ-साथ चलता गया।
अ याय 11
“वस तपला, यह अ छा दाम है और तुम भी यह जानती हो,” रावण ने अधीरता से कहा। “दस
वण मु ाएँ । ये ले लो और बात समा करो। मेरा समय बबाद मत करो।”
रावण और कु भकण बीस अंगर क के साथ वस तपला के भवन पर वापस आये थे।
रावण ने सोचा था िक झटपट मोल तय हो जायेगा। मगर वो तो चिकत रह गया था।
वो ब ची िजसे कु भकण बचाना चाहता था दीवार के पास खड़ी थी। िसर झुकाए। हाथ
बाँधे हए। वो काँप रही थी। शायद डर से। या शायद वत ता क याशा म।
“यह इतना सरल नह है, वामी,” वस तपला ने कहा। “इसके िलए दस वण मु ाएँ
पया हो ही नह सकत ।”
रावण खीझ गया था। “इतने वष म तुमने मुझसे बेतहाशा धन कमाया है, वस तपला।
नादान मत बनो। तुम आसानी से िकसी दूसरे लड़के-लड़क को दास रख सकती हो।
आजकल काम िकसके पास है?”
“यह मा दासी नह है।”
रावण ने िफर से ब ची को देखा। उसने उसके हाथ-पैर पर ब धन के िच देखे : जो
बताते थे िक उसे अ सर बाँधा जाता है। उसे पता था िक कुछ पु ष अ पायु बालक-
बािलकाओं से स भोग करना पस द करते ह, इस दौरान उ ह बाँध भी देते ह। वो यह कभी
नह समझ पाया था। यह िघनौना था। अ िचकर था।
“तो िफर िकतना?” उसने पछ ू ा।
“दो सौ वण मु ाएँ । यह सोने क मुग है।”
रावण ने अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ाया। उसका एक सहायक आगे आया और उसने उसे
एक भोजप और क़लम थमा दी। रावण ने उस पर कुछ िलखा, अपनी मोहर लगायी और
वस तपला क ओर फक िदया। “सौ वण मु ाएँ मेरा अि तम ताव ह। तुम इस ह डी को
कह भी भुना सकती हो।”
वस तपला ने प क उठाया और उसे यान से पढ़ा। वो मु कुराई। “बहत कृपा है,
वामी, िक तु यह पया नह होगा।”
“म तुमसे िझकिझक नह कर रहा हँ, वस तपला। यह मेरा अि तम ताव है। अ यथा
हम इस ह डी को फाड़ सकते ह और—”
वस तपला ने उसक बात काटी। “और धन म अपने िलए नह माँग रही थी, वामी।
मेरे िलए तो यह पया है। िक तु आपको िकसी और को भी पैसा देना होगा।”
रावण क भक ृ ु िटयाँ चढ़ गय । “िकसे?”
“इसके िपता को,” वस तपला ने उ र िदया।
रावण उस न ही ब ची क ओर मुड़ा, ति भत-सा। मगर बस पल भर के िलए। सारे
िपता कमीने होते ह। मेरे िपता क तरह।
ब ची ने अपना िसर उठाया और वस तपला को देखा। उसक आँख ोध से जल रही
थ । और नफ़रत से। मगर लगभग तुर त ही उसके भाव बदल गये। एक बार िफर वो उदासीन
लगने लगी थी। िसर झुकाए। िवनीत।
वाह! यह लड़क तो िन य ही इसके यो य है।
रावण वस तपला क ओर मुड़ा। “इसका िपता?”
“आपको या लगता है इसे हम कौन बेच गया होगा?”
रावण और उसका दल वै नाथ के उस भवन म पहँच गये थे िजसे कु भकण ने उनके रहने
के िलए िकराए पर िलया था। यह मि दर प रसर से सुरि त दूरी पर ि थत एक साधारण-सा
भवन था, और उसम ऐसी कोई िवलािसताएँ नह थ िजनका अब रावण आदी हो चुका था।
मगर भाइय ने साधारण तरीके से रहने का ही िनणय िलया था। इस े म इतने सारे बड़े
मि दर होने के कारण स िस धु के राजप रवार और साम ती प रवार के अनेक सद य
यहाँ आते रहते थे। इसका अथ था कड़ी सुर ा। और स िस धु के कर िनरी क और
सुर ाकिमय के िलए एक कु यात त कर को पकड़ना एक बड़ी सफलता होती। भाइय ने
रावण और कु भकण के थान पर अपने िम या नाम तक रख िलए थे: जय और िवजय।
अपने आवास पर पहँचने के एक घंटे के भीतर रावण और कु भकण वेदवती को ढूँढ़ने
िनकल पड़े थे। वो एक घंटे क या ा क दूरी पर टोडी नाम के एक गाँव म रहती थ ।
ऐितहािसक प से भारत के मि दर केवल उपासना का ही नह , बि क सामािजक
गितिविधय का भी के थे िजनके आसपास सामुदाियक जीवन घम ू ता था। अिधकांश मि दर
प रसर म थानीय लोग के उपयोग के िलए सरोवर होते थे। साद के प म िनधन को
भोजन िदया जाता था। आसपास के गाँव के ब च के िलए िन:शु क ाथिमक िश ा उपल ध
होती थी। बड़े नगर के मि दर उ च िश ा भी देते थे। गाँववािसय को अपने े के मि दर
म बुिनयादी िचिक सक य उपचार भी उपल ध होता था। इसके अित र , अिधकांश मि दर
भंडारगहृ का काम भी करते थे जहाँ आधारभतू अनाज रखे जाते थे जो वषा न होने पर लोग
को दान िकया जाता था। अगर वो असाधारण प से सम ृ होते थे तो िनधन के िलए घर
या निदय पर बाँध बनवाने जैसी थानीय िनमाण प रयोजनाओं के िलए धन भी देते थे। यह
सब कुछ उस दान के कारण स भव होता था जो मि दर को सम ृ और िनधन लोग से ा
होता था।
लेिकन अिधकांश चीज क तरह यह णाली भी न हो रही थी। यापार म दा पड़ा तो
दान भी कम हो गये। बड़े मि दर म भी कोष र होने लगे थे। ि थित को और िबगाड़ते हए
राजप रवार कोई-न-कोई बहाना बनाकर मि दर का अिध हण कर रहे थे— ायः उनके
“बेहतर ब धन के िलए।” शी ही, मि दर के च दे का एक बड़ा िह सा राजकोष म जाने
लगा।
वाभािवक प से, अिधकांश सामुदाियक मि दर ारा िकये जाने वाले परोपकार
काम भी भािवत होने लगे। थानीय मल ू भत
ू यव थाएँ भी बुरी तरह भािवत हई ं।
मगर टोडी म ऐसा नह था। यहाँ थानीय भू वामी शोिचकेश पास म बहने वाली नदी
पर बाँध बनाने के िलए गाँववािसय के साथ िमलकर काम कर रहा था। इससे सख ू े मौसम के
िलए पानी संरि त करने म सहायता िमलती। भू वामी ने सामान िदया था और गाँववािसय
ने म। लाभ सबका था।
अस भव लगने वाला यह सहकाय केवल वेदवती के कारण ही स भव हआ था।
य िक, गाँववािसय को य िप भू वामी पर िव ास करना आसान नह लगता था, मगर
क याकुमारी पर सभी िव ास करते थे। सभी।
और वो वहाँ थ , अिभयान का िनरी ण करती। एक थोड़े से ऊँचे चबत ू रे पर खड़ी,
अपने माथे पर जमा पसीने और चार ओर उड़ती धल ू से बेपरवाह।
बाँध का काम ती ता से चल रहा था। गाँव के सारे स म पु ष, लगभग िबना आराम
िकये काम पर लगे थे। भू वामी भी वेदवती वाले चबत ू रे पर ही खड़ा काम का िनरी ण कर
रहा था। उसने तो अपने व छ द पु सुकमण तक को यहाँ आकर काम म हाथ बँटाने के
िलए मना िलया था। बाँध को बहत ज दी ही परू ा करना था। इसिलए नह िक बा रश का
मौसम िसर पर रखा था—उसे आने म तो अभी महीन शेष थे। कारण थ वेदवती।
वो गभवती थ । य त: गभवती। िशशु ज म के िलए िनकट ि थत वै नाथ मि दर से
जुड़े िचिक सालय म उनके जाने से पहले बाँध का काम परू ा होना था। न तो गाँववासी और न
ही भू वामी के आदिमय को यह िव ास था िक उनक शा त उपि थित के िबना वो साथ
म काम कर पायगे। केवल वही थ जो उनके िववाद को स तोषजनक प से हल करने म
स म और िव सनीय थ ।
रावण और कु भकण ने काय थल से कुछ सौ गज़ दूर अपने घोड़े बाँधे, और बड़ी
सावधानी से पैदल आगे बढ़े । रावण ने तय िकया था िक पहला िदन वयं को सामने लाये
िबना क याकुमारी को देखने म िबतायेगा।
“दादा,” कु भकण ने कहना शु िकया।
“धीमे बोलो!” रावण ने उसे चुप िकया। “कोई हम सुन लेगा।”
कु भकण ने आसपास देखा। कह कोई नह था। मगर उसने िन ापवू क अपना वर
धीमा करके फुसफुसाहट म बदल िलया। “दादा, हम िछप य रहे ह? यहाँ तो हम कोई नह
जानता है। हम लोग से कह सकते ह िक आप एक यापारी ह और वै नाथ मि दर के दशन
करने आये ह और अपने अितिथगहृ जाते हए यहाँ ठहर गये थे। िफर आप जाकर क याकुमारी
से बात कर सकते ह। केवल वही आपको पहचान पायगी।”
रावण ने िसर िहला िदया।
कु भकण को लगा कह रावण क सतकता का कारण वो तो नह है। “म यहाँ पहले
भी आ चुका हँ, दादा। यहाँ के लोग के मन म नागाओं के िलए कोई पवू ा ह नह है। म यहाँ
सुरि त हँ।”
रावण ने कु भकण को देखा। “म उस आँख को न च लँग ू ा जो तु ह घरू े गी,” उसने
ू े प और टहिनय से बचते हए जो पैर
शा त भाव से कहा। वो सावधानी से चल रहा था। सख
के नीचे आकर टूट सकती थ ।
कु भकण मन-ही-मन मु कुराया। उसका बड़ा भाई घबरा रहा था।
“तु ह पता है जब तुम छोटे थे तो कुछ िदन हम टोडी के पास ही रहे थे?” रावण ने
आवाज़ धीमी रखते हए पछ ू ा।
“आप मुझे बता चुके ह, दादा,” कु भकण ने अपना हाथ उठाया और तीन उँ गिलयाँ
िदखाय । “िपछले पाँच िनिमष म मा तीन बार।”
“ओह, अ छा? लगता है म...”
इस बार कु भकण खुलकर मु कुरा िदया। उसने अपने भाई को इतना िचि तत कभी
नह देखा था।
दोन भाइय को कुछ घनी झािड़य के पीछे िछपने का बहत सही थान िमल गया था। वहाँ से
नदी का काय थल प िदखाई दे रहा था। िकसी िमक ने उ ह आते नह देखा था।
आिखर वो लुटेरे- यापारी थे। आव यकता होने पर वयं को िछपाना उनके िलए आव यक
यावसाियक गुण था।
काय थल पर पचास से अिधक लोग थे। मगर रावण क िनगाह तो केवल एक पर थ ।
वो स मोिहत रह गया। लगभग शि हीन। उसक ि गाँववािसय के बीच घम ू ती
वेदवती पर जमी हई थी।
वो यह सोचे िबना नह रह पाया िक देवी सर वती उस पर वा तव म कृपालु थ ,
य िक वो िवल ण प से उसके ारा बनाये उनके िच के समान ही थ । एक ी के िलए
वो ल बी थ । गोरी, गोल चेहरा, ऊँचे कपोल, और तीखी, छोटी-सी नाक। सपाट पलक वाली
काली, बड़ी-बड़ी आँख। उनके काले, ल बे बाल कसी चोटी म पीठ पर लहरा रहे थे। उनक
छिव उसके मन म अंिकत हो गयी थी। उसने उ ह पण ू नारी वयु कमनीय ी के प म
उकेरा था। अब तो वो और अिधक आकषक लग रही थ । उनके पुराने, मगर व छ व
उनके आकषण को कम नह कर रहे थे।
कु भकण फुसफुसाया, “ मा करना, दादा। मुझे पता नह था िक क याकुमारी
गभवती ह। पहले यह प नह था...”
मगर रावण सुन ही नह रहा था। वो तो बस उ ह देखे जा रहा था, यह िव ास कर पाने
म असमथ-सा िक वो अ तत: उनके आसपास था।
कु भकण को यह समझने म थोड़ी देर लगी िक एक पता के बावजदू वेदवती रावण
के अपने िच से कुछ िभ न य िदख रही थ । अपने गभ के उभार के कारण नह । बात
कुछ और थी। रावण क दीवार पर, वो िद य और ा उ प न करती थ , मगर बहत िवलग
और उदासीन भी थ । वा तिवक जीवन म वो िभ न थ । वो अभी भी िद य िदखती थ , हाँ।
ा उ प न करती थ , हाँ। मगर उनम उदासीनता क़तई नह थी। गाँववािसय के बीच घम ू ते
हए उनक आँख म नेह और उदारता झलक रही थी। देवी माँ क तरह।
“दादा,” कु भकण ने धीरे से कहा।
रावण ने कु भकण के क धे पर हाथ रख िदया। उसने कुछ नह कहा, मगर यह संकेत
ही पया था।
ु े देखने दो... मझ
चपु रहो, छोटे भाई। मझ ु े अ तत: अपना जीवन जीने दो...
“यह बहत भयानक था,” वेदवती ने कहा। “हम हमेशा क तरह अपने काम म लगे हए थे िक
वो लोग अचानक कह से आये और उ ह ने हमारे एक सहयोगी को मार डाला। हमारे समाज
म शि हीन के साथ यही होता है।”
रावण और कु भकण िफर से टोडी म थे। वो बाँध बनाने क तकनीक सीखने क इ छा
के बहाने िपछले कुछ िदन से िनयिमत प से यहाँ आ रहे थे।
इस िवशेष िदन, वो शोिचकेश और वेदवती के साथ दोपहर का भोजन कर रहे थे।
काय थल से बहत दूर तािक धल ू से बच सक।
कु भकण काय थल पर सुर ा उपाय के बारे म जानने को लेकर उ सुक था। और
बात उन िपछली घटनाओं और दुघटनाओं क िनकल आयी िजनका उ ह ने या तो वयं
सामना िकया था या िजनके बारे म सुना था। शोिचकेश ने ही उस िमक क घटना सुनानी
शु क थी िजसने तीन साल पहले एक जेटी पर काम करते हए जान गँवा दी थी। िच का
झील पर। ा तपाल कचबाह के िनवास के पास।
कु भकण इस घटना के उ लेख पर सकपका गया था, हालािक समय रहते उसने खुद
को सँभाल िलया। मगर रावण अिवचिलत रहा और वो पहले शोिचकेश और िफर वेदवती से
उस िदन और उन ू र लोग के बारे म सुनते रहे िजनके घोड़ ने उस बेबस युवा िमक को
कुचल डाला था।
शोिचकेश ने ा तपाल के िनवास पर हई लटू का कुछ आधा-अधरू ा-सा िववरण िदया
था। कु भकण यह िदखाने क परू ी कोिशश करता रहा जैसे िक यह सब पहली बार सुन रहा
हो। च कने और ु होने के उिचत भाव के साथ।
“बाद म जो पता चला, उससे लगता है,” शोिचकेश ने कहा, “िक यह आ मण
ा तपाल कचबाह के मल ू थान नाहर के उनके श ुओ ं ारा िकया गया होगा। जब दो
हाथी लड़ते ह तो घास तो कुचलती ही है। हम घास थे।”
“िक तु यह अधम है,” वेदवती बोल । “ ि य के आपस म जो भी झगड़े ह , मगर उ ह
सुिनि त करना चािहए िक िनद ष को हािन न पहँचे।”
रावण ने सहमित म िसर िहलाया, लेिकन अपने भाव से उसने कुछ भी उजागर नह
होने िदया।
“सही कहा,” शोिचकेश ने कहा। “पर आजकल धम के बारे म कौन सोचता है? हम
अपनी पर परा और सं कृित को भल ू चुके ह। हम अपने पवू ज के नाम पर कलंक ह।”
कु भकण ने एक बार िफर अपने ह-न को ध यवाद िदया िक िच का म हमले के
दौरान वो पोत पर था, इतनी दूर िक ये लोग उसे पहचान नह सकते थे। उसका अनुमान था
िक रावण इतनी ती ता से िनकलता चला गया होगा िक कोई भी उसे अ छी तरह देख नह
सका होगा, िवशेष प से वेदवती। साथ ही, तीन वष पहले क तुलना म अब रावण क दाढ़ी
अिधक भरी हई थी। और अब ल बी, घनी मंछ ू के कारण उसका चेहरा बहत िभ न िदखता
था।
शायद यह एक वरदान ही है िक वो उसे िब कुल नह पहचानत । न तो िपताजी के
आ म से न ही िच का से।
“इसम बहत समय लग रहा है, दादा,” कु भकण ने कहा। उ ह वै नाथ े म एक महीने से
अिधक हो चुका था। “मरीच मामा चाहते थे िक हम ज दी से ज दी लौट आये। अ का म भी
वो काम है...”
रावण ने इशारे से उसे चुप करा िदया। “वो ऐसा कोई काम नह है जो मरीच वयं नह
सँभाल सकते।”
“पर दादा, हमारे दल का या? और समीची? सब ख़ाली बैठे हए ह। और सोच रहे ह िक
उ ह य इस अितिथगहृ म ब द कर िदया गया है जहाँ कोई...”
रावण ने अपने भाई को टोका। “उ ह कुछ करने को दे दो, कु भ। उ ह िकसी छोटे से
यापा रक अिभयान आिद पर भेज दो।”
कु भकण चुप हो गया। रावण ने सपनीली नज़र से िखड़क के बाहर देखा। काफ़ रात
हो चुक थी। िसफ़ झ गुर क आवाज ही सुनाई दे रही थी। कभी-कभी दूर कह कोई उ लू
िच लाने लगता था। रावण वेदवती से ल बी बातचीत के बाद शाम को अितिथगहृ म लौटा था।
उसने च मा को देखा। और एक गहरी सांस ली।
“आज यह िकतना सु दर लग रहा है ना?”
कु भकण ने पलटकर चाँद को देखा। उसे तो वो एकदम साधारणसा िदखाई दे रहा था।
उसने धीरे से सांस छोड़ी और िफर से रावण को देखा। “दादा...”
“ श!” रावण ने अपने पास रखा रावणहता उठा िलया। “सुनो, मने एक नयी रचना
तैयार क है।”
उसने तार को छे ड़ा, जैसे उसके वर क जाँच कर रहा हो। और शु हो गया।
रावणहता को पहली बार सुनने के बाद से ही कु भकण को यह शोक का वा लगता
था। इसका नाद िदल को कचोटता था और आँख म आँसू ला देता था।
पर आज रात रावण के गहरे , मीठे वर, उसके रचे मधुर संगीत क लया मकता, और
हवाओं क सरसराहट ने रावणहता के अलौिकक नाद के साथ िमलकर परम सुख और
आन द का एक ीप-सा बना िदया था। रावण ने िकसी तरह शोक के वा य से उ लास
क मधुर धुन िनकाल ली थी, नकारा मक को सकारा मक म बदल िदया था। इसक ेरणा
कोई देवी ही दे सकती थी।
अ याय 14
“मुझे लगा था िक आप मुझे अ छे काम करने के िलए ो सािहत करना चाहती ह,” रावण ने
कहा।
रावण वेदवती से िमलने के िलए वयं टोडी आ गया था। वो जानता था िक वो बहत
समय नह क सकेगा और उसे ज द ही लंका के िलए िनकलना होगा। वो बहत समय से
बाहर था। लेिकन वो वेदवती के िबना कैसे जा सकता था? रावण उतावला हो रहा था—उसे
िकसी भी तरह उ ह मनाना ही था।
“म या ा नह कर सकती,” वेदवती ने कहा।
“िशशु के ज म के बाद... शायद तब आ सकती ह ।”
वेदवती मौन रही।
“कृपया... म आपसे िवनती करता हँ।”
“आप जानते ह िक आपको मेरी आव यकता नह है।”
“मुझे आव यकता है! कृपा कर... कुछ भी बदलने क आव यकता नह है। आप उ ह
के साथ िववािहत रह सकती ह। प ृ वी के साथ। म आपसे कुछ माँगंग ू ा नह । म बस इतना
चाहता हँ िक आप लंका म मेरे साथ ह । बस वहाँ होना... मुझे ितिदन वयं को देखने देना।
म बस इतनी माँग कर रहा हँ। कृपया... कृपया... वेद... वे... कृपया, देवी क याकुमारी।”
“आपको मेरी आव यकता नह है,” वेदवती ने शाि तपवू क दोहराया।
रावण क आँख म आँसू थे। “मुझे आव यकता है... म जानता हँ मुझे या चािहए।”
“नह । आप नह जानते आपको या चािहए। अगर जानते तो आपको पता होता िक वो
पहले से ही आपके पास है।”
“पर वो मेरे पास नह है!” रावण ने कहा। वो अपनी झँुझलाहट िछपा नह सका। “मुझे
आपक आव यकता है! मुझे आपक आव यकता है!”
“आपको मेरी आव यकता नह है। आपको वयं क आव यकता है।
“ या?!! नह ! मुझे अपनी आव यकता नह ...”
“इस बारे म सोचना। म अभी तक आपके िलए या रही हँ? केवल आपके मि त क म
एक छिव। आप ही अपना एक बेहतर प बनना चाहते थे। आपको बस एक बहाना चािहए था।
एक बहाना जो आपको े रत कर सके, आपको उससे बेहतर बना सके जो आप उसक
िति या म बन गये थे जो आपके िपता ने आपके साथ िकया था। आप मुझसे एक बहाने के
प म िचपके रहे । म आपको यह बताने का यास कर रही हँ िक अब आपको बहाने क
आव यकता नह है। वा तव म, वयं को बेहतर बनाने के िलए आपको कभी िकसी अ य क
आव यकता नह होनी चािहए। यह जोिखम भरा है। या पता म कल ही मर जाऊँ। िफर आप
या...”
रावण ने अपनी मु याँ भ च ल । “कोई आपको चोट पहँचायेगा तो म उसे न कर
डालँगू ा। म उसे फाड़कर...”
“आप ऐसा य मान रहे ह िक िक कोई मुझे चोट पहँचायेगा? म िकसी बीमारी से भी
मर सकती हँ। तब तो आरोप लगाने को कोई नह होगा ना?”
रावण को चुप लग गयी।
“जीवन क सबसे मह वपण ू या ा आर भ करते समय आप िकसी और पर िनभर नह
रह सकते। िकसी और पर । य िक िफर आप अपने ल य, अपने वधम को िकसी अ य
यि से बाँध लगे। यह जोिखम भरा है। िवशेषकर आप जैसे मह वपण ू यि के िलए।”
“म म...” रावण ने वयं को गाली देने से रोक िलया। “म मह वपण ू नह हँ। म तो
अ छा यि तक नह हँ। आप नह जानत मने कैसे-कैसे काम िकये ह।”
“अपने साथ इतने कठोर मत होइये। आप बचपन से ही अपनी माँ और छोटे भाई क
अ छी देखभाल करते आ रहे ह। आपने लगभग अकेले एक यापार सा ा य खड़ा िकया है।
आपके पास शि है, साहस है, और मता है।”
“म... मने अपना सा ा य बनाने के िलए कुछ भयंकर काम िकये ह। म...” रावण
जीवन म पहली बार पण ू तया ईमानदार होने के िलए संघष कर रहा था। “म एक रा स हँ। म
जानता हँ िक म रा स हँ। मुझे रा स होने म आन द आता है। मुझे वयं को बचाने के िलए
आपक आव यकता है। आप ही मेरी आशा ह। मेरी एकमा आशा, यिद मुझे वयं को कुछ
बनाना है... कुछ भला बनाना है।”
“नह । म आपक आशा नह हँ। आप वयं अपनी आशा ह। आपको लगता है िक आप
रा स ह? िकस महान आदमी के भीतर एक रा स नह होता?”
रावण ने वेदवती को देखा। और मौन रहा।
“आप िजसे रा स कह रहे ह, वो एक आग है जो हर सफल यि के भीतर होती है,”
वेदवती ने आगे कहा। “एक ऐसी आग जो उसे िव ाम नह करने देती। ऐसी आग जो उसे
उकसाती रहती है िक वो प र म करे । बुि से काम ले। िनर तर काम करे । एका िच रहे ।
अनुशािसत रहे । जुझा रहे । य िक सफलता के अवयव यही ह। वो आग एक ऐसे रा स क
तरह है जो आपको सामा य जीवन नह िबताने देता। लेिकन एक चीज़ है जो सफल आदमी
को महान आदमी से िभ न बनाती है। एक मुख चीज़ : या रा स आपको िनयि त
करता है या आप रा स को िनयि त करते ह? िबना रा स के, आप साधारण होते। रा स
के साथ, आपके पास महान होने का अवसर है। िनि तता नह है, अवसर है। महानता के उस
अवसर को पाने के िलए आपको रा स को िनयि त करना पड़े गा, और अपने अ दर क
िवशाल मता को धम के िलए योग म लाना होगा।”
“म आपके िबना यह नह कर सकता।”
“मेरे िबना? म तो कुछ भी नह हँ।”
“आप क याकुमारी ह! आप जीिवत देवी ह! आप उस तरह से स जन ह जैसे म कभी
नह हो सकता। आप दयालु और उदार ह। म आप जैसे शु यि से कभी नह िमला। म एक
अशु वाथ नीच हँ।”
वेदवती चुप रह ।
रावण को तुर त ही पछतावा होने लगा। “ मा कर। मेरा इरादा गािलयाँ देने का नह
था। म मा चाहता हँ।”
“िकसी बात को बलपवू क कहने के िलए गाली देने क कोई आव यकता नह है।”
“मुझे खेद है।”
वेदवती मु कुराई ं। “तो आपको लगता है िक म शु हँ? पर या आपने देखा है िक उस
पानी म मछिलयाँ नह होती जो बहत शु होता है?”
रावण मौन रहा। उसे यह अहसास होने म कुछ ण लगे िक वेदवती क बात सही थी।
“म शु हो सकती हँ, पर या म बड़ी सं या म लोग के जीवन म कुछ अ तर ला
पायी? म अपने काय म भली हो सकती हँ, पर म अपने गाँव के बाहर के लोग का यान
आकिषत करने म स म नह हँ। केवल वही लोग लाख लोग के जीवन म सुधार ला सकते
ह जो लाख लोग तक पहँच सकते ह। िबना स मता के भलाई सीिमत होती है, इसका
प रणाम केवल अ छा िस ा त होता है।”
“पर...”
“मेरी बात सुिनए, रावण। वा तव म महान लोग, िज ह ने इितहास और लाख
अनुयाियय के िदल पर छाप छोड़ी है, ठं डे, िनदयी मि त क और नेही, धािमक दय वाले
हए ह।”
“मेरे पास वो नह है। मेरे पास दय नह है। मेरे पास न...”
वेदवती ने आगे झुककर रावण का हाथ अपने हाथ म थाम िलया। ऐसा पहली बार हआ
था िक उ ह ने उसे पश िकया हो। एक ण को उसक दयगित थम-सी गयी।
“आपके पास नेही दय है, रावण। इसका योग केवल अपने शरीर म र का संचार
करने के िलए मत क िजये। इसका योग अपनी आ मा म धम का सार करने के िलए भी
होने दीिजये। भलाई करने के िलए उिठये। हमारे इस देश के िलए भलाई क िजये, जो िनधनता,
अराजकता, और रोग से पीिड़त है। द र क सहायता क िजये। अभाव त क सहायता
क िजये। क याण क िजये।”
रावण क आँख म आँसू उबल आये।
“भारत को वापस महान बना दीिजये, इसे िफर से स चा आयवत बना दीिजये। इसे िफर
से एक पज ू नीय देश बना दीिजये। िफर म लंका म आकर रहँगी। आपक देवी के प म नह ।
बि क आपक भ के प म। मेरे पित और म आपक पज ू ा करगे।”
रावण को समझ नह आ रहा था िक या बोले । वो ख़ुद को वेदवती क नजर से
देखकर चिकत था। या वो सचमुच उस सबम स म है जो वेदवती ने कहा है?
“आपम यह मता है। मुझे आप पर िव ास है। ल बे समय से क झेलती आ रही
हमारी मातभ ृ िू म म पहले ही बहत खलनायक ह। इसे बुरी तरह से एक नायक क
आव यकता है। उिठये और नायक बिनये।”
रावण मौन बैठा सुनता रहा।
“आप भगवान के स चे भ ह ना?” वेदवती ने दयालु और िवन आवाज़ म पछ ू ा।
रावण ने िसर उठाकर देखा और हामी भरी। हाँ।
“मुझे िव ास है आप जानते ह गे िक भगवान के नाम का या अथ है। का अथ है
'वो जो दहाड़ता है।' वो जो अ छे लोग क र ा के िलए दहाड़ता है। और आपके िवचार से
रावण का या अथ है? आपको इस बारे म या बताया गया है?”
रावण ने कुछ नह कहा।
“आपके िपता ने आपको या बताया था? इसका या अथ है?”
“उ ह ने मुझे बताया था िक इसका अथ है 'वो जो लोग को डराता है।' रावण वो जो
लोग के मन म डर िबठाता है।”
“आपके िपता क केवल आधी बात सही थी। आपके नाम का मल ू ' ' है। तो रावण का
अथ होगा 'वो जो लोग को डराने के िलए दहाड़ता
“आपका मतलब है िक मेरे और भगवान के नाम का मल ू एक ही है?”
“हाँ। पर यह है िक आप िकसिलए दहाड़गे, रावण? या आप लोग को डराने के
िलए दहाड़गे? या िफर आप भगवान क तरह उन लोग को बचाने के िलए दहाड़गे िज ह
सुर ा क आव यकता है?”
वेदवती के श द ने रावण के परू े शरीर को एक सकारा मक ऊजा और ेरणा से भर
िदया। वो देव के देव महादेव से पहले से कह अिधक जुड़ा महसस ू करने लगा।
“दहािड़ये, भ रावण,” वेदवती ने कहा। “पर धम के प म दहािड़ये। िनद ष , द र
और अभाव त क सुर ा के िलए दहािड़ये। महादेव के स चे भ बिनये। आ ामक बिनये,
पर दूसर के भले के िलए। कठोर बिनये, पर केवल कमज़ोर का पोषण करने के िलए।
भयंकर बिनये, पर केवल सदाचा रय के िलए लड़ने के िलए। भगवान भी उनके िलए ही
खड़े हए थे। भगवान के उदाहरण का पालन क िजये।”
रावण एक श द भी नह बोला।
“जय ी ,” वेदवती बोल ।
“जय ी ...”
वेदवती ने मु कुराते हए एक बार िफर से रावण के हाथ को थपथपाया।
महादेव के स चे भ के पथ का पहला क़दम अहं क आनु ािनक बिल था। रावण
जानता था उसे या करना है। वो बैठी हई वेदवती के आगे झुक गया। एक गहरी सांस लेते
हए उसने अपनी पहले कभी न झुक पीठ को झुकाया और अपना िसर नीचे लाकर वेदवती
के चरण म रख िदया। उसने जीवन म पहली बार िकसी अ य जीिवत यि से आशीवाद
माँगा था।
वेदवती ने रावण को उसके क ध से पकड़ा और उठाया। “आप सदा धम म रह। धम
सदा आपम रहे ।”
रावण ने अपनी परू ी छह फुट तीन इंच क काया को उठाया, और अपने कमरब द म
बँधी थैली से एक भोजप िनकाला। “कृपया इसे वीकार कर ल, देवी वेदवती। न मत
किहयेगा।”
वो िद य नाम बोलते हए रावण का दय पहली बार परू े िनय ण म था। वो हकलाया
नह ।
“िकस चीज़ को?” वेदवती ने पछ ू ा।
“वा तिवक क याण के मेरे पहले काम को।”
“आप य वयं को इस तरह नीचा िदखाते ह? आपने पहले भी अ छाई क है। आपने
अपने भाई के साथ अ छाई क है। इस गाँव के साथ। और...”
“वो वाथ के काय थे। मने उनक र ा क थी जो मेरे अपने थे। यहाँ तक िक जो
सामान मने यहाँ िदया वो भी आपको भािवत करने के िलए था। जब मने ये हंडी िलखी और
मुहरब द क , तो उसके पीछे भी मेरा वाथ था, पर अब ऐसा नह है। म यह आपको दे रहा हँ
य िक म जानता हँ िक आप इसके साथ कुछ अ छा ही करगी।”
“रावण, म आपसे धन नह ले सकती।”
“यह आपके िलए नह है, देवी वेदवती। यह पचास सह वण मु ाओं क हंडी है, और
ये इस परू े े के िलए ह। म जानता हँ आप इनका अ छा उपयोग करगी।”
“पर...”
“कृपया मना मत क िजये। मेरे पहले वा तिवक दयालुता के काम म मुझे मत रोिकये।
म इसे आशीवाद मानंग ू ा।”
वेदवती ने रावण के हाथ से हंडी लेकर उसे अपने माथे से छुआ और कहा, “यह मेरा
सौभा य है, भ रावण। म इसका उपयोग आम लोग क भलाई के िलए क ँ गी।”
“यह मेरे िलए बहत मह वपण ू है। म यहाँ एक आय के प म वापस आऊँगा और िफर
जो मेरा है उसे माँगंग
ू ा।”
“और आपको उससे वँिचत नह रखा जायेगा। यह प ृ वी का और मेरा स मान होगा।”
रावण ने हाथ जोड़कर नम ते क ।"अब म आपसे अनुमित चाहँगा, देवी वेदवती। आपके
अज मे िशशु के िलए मेरा आशीवाद। वो सचमुच भा यशाली है िक उसे आप जैसी माँ और
प ृ वी जैसे िपता िमले ह।”
“ध यवाद, महान रावण।”
जब भी वेदवती रावण का नाम बोलत , रावण के परू े अि त व म आन द क लहर दौड़
जाती थी। “िफर िमलने तक, वेदवती। जय ी ।”
“जय ी ।”
वहाँ से जाते हए रावण को अपने अि त व म एक ऐसा ह कापन महससू हआ जो इससे
पहले कभी महसस ू नह हआ था। उसके परू े शरीर म एक सकारा मक ऊजा का वाह हो रहा
था। नािभ का दद भी अब उसे परे शान नह कर रहा था। वो अपने पैर म एक उछाल, ह ठ पर
महादेव का नाम और दय म क याकुमारी को िलये जा रहा था।
अब उसके पास एक उ े य था।
अब वो धम पर चलने वाला आदमी था।
झािड़य म िछपे शोिचकेश के पु सुकमण को न तो रावण ने देखा, न ही वेदवती ने।
वो परू े समय वहाँ मौजदू रहा था और उसने सारी बात सुनी थी। लेिकन उसके मि त क म
केवल चार श द गँज ू रहे थे। पचास सह वण म ु ाएँ !
रावण ने सुकमण के चेहरे पर जोरदार थ पड़ मारा। “तुझे वाक़ई लगता था िक तू ऐसा करके
बच जायेगा?”
कु भकण ठीक समय से अ तबल पहँच गया। सुकमण और उसके पाँच साथी अपने
चोरी के धन के साथ जाने ही वाले थे। कु भकण और उसके सैिनक ने बड़ी आसानी से उन
छह लड़क को क़ाबू म कर िलया और उन िस क को ज त कर िलया जो वो ले जा रहे थे।
उसके बाद चोर को रावण के सामने तुत िकया गया।
“तू भा यशाली है िक म बदल चुका हँ,” रावण गुराया। “वना अब तक यातनाओं से
भरा तेरा शरीर यहाँ अधमरा पड़ा होता।”
सुकमण अपने ब दीकताओं से ख चतान कर रहा था; वो भयभीत िदखाई दे रहा था।
कु भकण ने सुकमण के पास झु ड म खड़े पाँच लड़क क ओर इशारा िकया। “ये
कौन लोग ह, सुकमण? मने इ ह नह पहचाना। ये तु हारे गाँव के तो नह ह,” उसने कहा।
सुकमण अब तक काँपने लगा था, और डर के मारे उ र तक नह दे पा रहा था।
“इसे टोडी ले चलते ह, दादा,” कु भकण ने कहा।"वेदवती जी से ही िनणय कराते ह
िक इसके साथ या िकया जाये।”
रावण सुकमण को घरू ता रहा। ोध िदखाने के बावजदू , वो अपनी भावनाओं को
िनयि त िकये हए था। वेदवती का नाम सुनकर वो और शा त हो गया। “चल तो सकते ह,
पर मुझे डर है िक वो इसे मा कर दगी। और यह नीच मा का अिधकारी नह है।”
सुकमण अचानक अपने मू ाशय पर िनय ण नह रख सका और उसने वयं को
गीला कर िलया। पहली िति या के प म रावण हँसा, लेिकन िफर वो क गया।
एक ऐसा िवचार उसके मि त क म घुसा चला आया िजस पर सोचना भी पीड़ादायक
था। कुछ पल को वो ति भत-सा हो गया, इतना भयभीत िक वो उस िवचार तक को
वीकार करने को तैयार नह था।
हे भगवान ... नह ...
भया ा त रावण अपने छोटे भाई क ओर पलटा। और यह देखकर उसका िदल डूब-सा
गया िक कु भकण के चेहरे पर भी उसी के जैसे भाव थे। उसने अपनी िनगाह सुकमण क
ओर इस तरह घुमाई जैसे वो मू छा म हो। उसके चेहरे का रं ग उड़ चुका था। वो काँपता खड़ा
बड़ा दयनीय िदखाई दे रहा था। रावण को ऐसा लग रहा था जैसे उसका दय िहमख ड हो
गया हो। यह केवल लटू नह थी... यह तो...
भगवान , दया करना!
पहले कु भकण ने खुद को सँभाला। वो तेज़ी से दौड़ते हए िच लाया, “र को! सब
लोगो! हम टोडी जा रहे ह! तुर त!”
भिू म पर हर ओर लाश िबखरी हई थ । आदमी। औरत। ब चे। जो जहाँ था उसे वह काट डाला
गया था। कुछ ही पल म सब समा हो गया था।
रावण सुकमण के एक साथी के पास खड़ा था, जबिक कु भकण उसके दूसरी ओर
खड़ा था। अपनी खन ू म सनी तलवार िलए लंकाई सैिनक पीछे क ओर थे। सुकमण के हाथ
को एक दरवाजे पर ठ क िदया गया था जो उन पेड़ के सामने था जहाँ उसके साथी बँधे हए
थे। वो प देख सकता था िक उनके साथ या िकया जा रहा है।
रावण ने लकड़ी का एक जलता कु दा सुकमण के साथी क बाँह से लगाया, िजससे
उसक वचा झुलसने लगी और माँस भुनने लगा। जलते माँस क दुग ध परू े माहौल म बस
गयी। और उस धीरे -धीरे जलकर मरते आदमी क खन ू को जमा देने वाली चीख़ हवा म
गँजू ने लग ।।
लेिकन रावण तो अपनी यातना के पीिड़त क ओर देख तक नह रहा था। उसक आँख
तो सुकमण के चेहरे पर लगी हई थ । “तन ू े यह केवल धन के िलए िकया? या िकसी ने तुझे
उ ह मारने का आदेश िदया था?”
भयभीत सुकमण हकलाने लगा। “म... बहत खेद है... मुझे मा कर दो... कृपया...
मा कर दो... सारा धन ले लो...”
रावण क आँख शु , अिमि त ोध से सुलग रही थ । उसने जलते हए लकड़ी के
कु दे को उठाया और उसे अपने तािड़त िशकार के चेहरे के िनकट ले गया। उसने एक बार
िफर सुकमण क ओर देखा। “तुझे लगता है म यह धन के िलए कर रहा हँ?”
अब कु भकण बोला। “क याकुमारी का िशशु कहाँ है?”
जब वेदवती क लाश का परी ण िकया गया था, तो उनक कोख ख़ाली िमली थी।
िजसका अथ था िक वो ह या से पहले अपने िशशु को ज म दे चुक थ ।
लेिकन िशशु का कोई अता-पता नह था।
“सुकमण, मने तुझसे एक पछ
ू ा है। ब चा कहाँ है?” कु भकण गुराया।
सुकमण क िघ घी बँध गयी, वो जमीन को देखता रहा। डर के मारे एक बार िफर
मू ाशय पर उसका िनय ण खो बैठा था।
“सुकमण।” कु भकण क मु याँ कसकर िभंच चुक थ । “बोल!”
अचानक, सुकमण का एक साथी बोल उठा। “इसने मुझे यह करने का आदेश िदया था।
सुकमण ने। म यह नह करना चाहता था।”
“तन ू े या िकया?” कु भकण उस आदमी को घरू ता हआ गरजा।
“इसने आदेश िदया था। दोष इसका है...”
“तन ू े या िकया?”
वो आदमी मौन हो गया।
कु भकण उसके पास गया और भयानक ढं ग से उसक आँख म देखने लगा।
“ या िकया तन ू े? बता दे। तो तुझ पर दया क जायेगी।”
उस आदमी ने सुकमण को और िफर कु भकण को देखा। “इसने आदेश िदया... िक
ब चे को जंगल म फक दंू। और पशुओ ं को... खाने दंू.. मेरा मतलब...” उसके श द अटके
और क गये। उसक नीच बबर आ मा भी उस भयानक अपराध के िलए शिम दा थी जो
उसने िकया था।
भारतीय का मानना था िक बाल-ह या एक भयावह पाप है, और यह आ मा को ज म-
ज मा तर तक के िलए दूिषत कर देता है। सुकमण के िगरोह को लगा था िक यह काम
जंगली पशुओ ं से करवाकर वो इस ई रीय कोप से बच सकगे।
ति भत कु भकण को कुछ बोलते ही नह सझ ू ा, उसने रावण क ओर देखा। उसे ऐसे
उ र क अपे ा नह थी। इन जैसे जंगिलय के िलए भी यह कृ य िघनौनी हद तक ू र
लगता था।
एक िशश ु को जंगली पशओ ु ं के भोज के िलए जंगल म छोड़ िदया गया... हे , दया
करो।
“दया कर,” उस आदमी ने िवनती क । “मने सच बता िदया... दया कर...”
कु भकण ने एक बार िफर रावण क ओर देखा। रावण ने िसर िहलाया। कु भकण ने
तलवार िनकाली और एक ही वार म उस आदमी का िसर धड़ से अलग कर डाला।
अपराधी का कटा हआ िसर हवा म उड़ता उसके पास बँधे एक अ य साथी के िसर से
जा टकराया। वो घबराहट के मारे चीख़ा, जबिक गदन के खुले छे द से खन ू का एक फ़ वारा
छूटकर उस पर पड़ा।
पंख क ती फड़फड़ाहट सुनकर रावण और कु भकण ने ऊपर देखा। िग का एक
झु ड गाँव पर उतर रहा था। उन लोग के देखतेदेखते एक प ी ने जमीन पर िबखरी लाश
म से एक को यँ ू ही च च मारी। ताज़े माँस को चखते ही वो ख़ुशी-से िचिचयाया और िफर उसे
खाने लगा।
रावण ने एक बार िफर अपने पास जल रहे आदमी क ओर यान केि त िकया। बेसुध
और लगभग पहचान म नह आ रहे उस ाणी को अपने ब धन पर लटके देखकर रावण क
आँख से ोध के अिनयि त आँसू बह िनकले। उसे कोई दया, कोई पछतावा नह था। केवल
रोष था।
ि याकम क तैया रयाँ परू ी हो चुक थ । दो बड़ी िचताएँ तैयार क गयी थ । वेदवती और
प ृ वी क लाश को साफ़ करके, नहलाने के बाद उ ह नए ेत कपड़े पहनाये गये। पिव
वैिदक म उनके कान म बोले गये। ऐसा माना जाता था िक म क शि िदवंगत
आ माओं को अपनी या ा जारी रखने क शि देगी।
यह सब होने के बाद उनके मँुह म पिव जल डाला गया और उनके ह ठ पर तुलसी
क पि याँ रखी गय । कुछ और तुलसी क पि य को गँथ ू कर उनके नथुन और कान म
लगाया गया। वेदवती के अँगठ ू को आपस म बाँधकर उनके हाथ को उनक छाती पर रखा
गया। उनके पैर के अँगठ ू को भी आपस म बाँध िदया गया था। ऐसा ही प ृ वी के साथ िकया
गया। ऐसी मा यता थी िक इससे दाएँ और बाएँ ऊजा माग आपस म जुड़ जाते ह, िजससे शरीर
के भीतर ऊजा एक घेरे म घम ू ती है। उन थान पर िम ी के दीये जलाये गये जहाँ वेदवती और
प ृ वी मतृ पाये गये थे, और दीय क लौ को म ृ यु और धम के देवता यम के स मान म दि ण
क ओर रखा गया था।
इस सबके दौरान, रावण और कु भकण बाहर से शा त बने रहे । यहाँ बेढंगेपन से रोने
और अशोभनीय िवलाप क कोई गँुजाइश नह थी। ग रमा। आदर। स मान। देवी इस सबक
अिधकारी थ । महान क याकुमारी उसी ढं ग से दुिनया से िसधारगी िजस ढं ग से वो जी थ ।
ग रमा, आदर और स मान के साथ।
दोन भाई वेदवती क िबना जली िचता के पास खड़े थे। पहले उनका ि याकम िकया
जायेगा, और िफर प ृ वी का।
एक िम ी के पा म पिव घी लाया गया। कु भकण ने बतन को पकड़ा और रावण
उसम से घी के बड़े -बड़े चमचे वेदवती के शव पर डालता रहा। इस ि या के दौरान दोन भाई
ग ड़ पुराण का जाप करते रहे । जब रावण ने अपने हाथ प छे , तो उसके कुछ आदिमय ने
झटपट आगे आकर वेदवती के शव पर कुछ और लकिड़याँ रख दी। कुछ ही देर म केवल
उनका चेहरा ही िदखाई दे रहा था।
रावण पीछे हटा, तो पिव अि न से जलती एक लकड़ी लाकर उसे थमा दी गयी।
कु भकण ने अि तम बार वेदवती के चेहरे को देखने का साहस जुटाया। छे द को ढं क
िदया गया था। जहाँ उनक बाई ं आँख हआ करती थी उस थान पर भी कुछ भर िदया गया
था।
उनका चेहरा—अब भी, इतना सब झेलने के बाद भी—शा त और िवन था। िकसी
देवी क तरह। कु भकण बड़ी मुि कल से अपने आँसुओ ं को रोके हए था। वो अग रमामय नह
होगा। उनके सामने नह । अपनी देवी के सामने नह ।
उसने बहत बार सुना था िक ि यजन के आँसू िदवंगत आ मा का दुिनया से जाना
किठन बना देते ह। मत ृ क के क याण के िलए जीिवत को अपने दुख को िनयि त करना
और दबाना पड़ता है।
उसने वेदवती के िन ल शरीर को अि न ारा लील िलये जाने क ती ा म पड़े देखा,
और अ यािशत प से, एकदम अचानक, उसका सारा ोध िवलीन हो गया।
उसने च ककर अपने आसपास देखा, जैसे अभी एक ल बी न द से जागा हो। दूर गाँव
म, वो अभी भी जंगली पशुओ ं को गाँववाल क लाश खाते देख सकता था। उन पु ष और
मिहलाओं क लाश को िज ह कायर तो कहा जा सकता था, पर अपराधी नह । उसने
पलटकर वेदवती के चेहरे को देखा और वो शिम दा हो गया। ख़ुद पर, और उस पर जो उसने
िकया था।
वो जानता था िक वेदवती को उससे और उसके भाई से िनराशा होती। अब वो अपने भाई
क ओर देखने को पलटा।
रावण पिव अि न वाली लकड़ी िलये िचता क ओर बढ़ रहा था।
कु भकण पीछे हट गया।
रावण ने लकड़ी को िचता म डालते हए उसे आग दी। और सब कुछ शु कर देने वाले
अि न देवता को देवी के शरीर का उपभोग करने िदया।
िकसी ने रावण को पिव जल से भरा िम ी का घड़ा िदया। उसने उसे फोड़ा, और पिव
पर परा का पालन करते हए जलती िचता क उ टी प र मा लगाने लगा। जैसे-जैसे वो
चलता जा रहा था, छोटे से छे द से पानी रसता जा रहा था। उसने तीन प र मा लगाय । ऐसा
करते हए, वो वा तव म संसार के सामने घोषणा कर रहा था िक वो वेदवती के ऋण को
चुकाने का दािय व लेता है। धन से जुड़े ऋण नह , य िक आ मा के िलए धन अथहीन है—
वो वेदवती के अपणू कािमक ऋण को चुकाने का वचन दे रहा था और सुिनि त कर रहा था
िक वो इस संसार के सारे ब धन और दािय व से मु हो जाय। तभी, स भवतः, उनक
आ मा मो क िदशा म या ा कर पायेगी, और ज म के च से मु हो पायेगी।
कु भकण ने अपने भाई को िचता क प र मा करते देखा, और िफर उस गाँव क ओर
देखा िजसे उ ह ने न िकया था।
अभी बहत कुछ करना था। बहत से कम का ायि त करना था।
वो आशा कर रहा था िक वो वेदवती को िनराश नह करगे।
अगले िदन सुबह जब रावण और कु भकण जागे तो काफ़ देर हो चुक थी। उ ह ने गाँव के
िनकट ही एक झील के िकनारे रात िबताई थी। िदन भर क थकान के बावजदू , वो केवल
कुछ घंटे ही सो पाये थे।
दोन िचताएँ अभी भी सुलग रही थ , य िप लपट बुझ चुक थ । देवी क याकुमारी और
उनके नेक पित के पािथव शरीर लगभग पण ू प से राख म बदल चुके थे। रावण के बीस
सैिनक को रात म मशान म तैनात िकया गया था तािक कोई जंगली जानवर वहाँ न आ
सके। लेिकन यह डर िनराधार ही था। गाँव म ही इतना भोजन था िक जानवर को मशान
जाने क आव यकता ही नह थी।
आनु ािनक नान के बाद रावण और कु भकण अ येि थल पर गये। अभी भी
कुछ अनु ान बाक़ रह गये थे। उ ह ने वेदवती क िचता से आर भ िकया।
एक बा टी पिव जल का ब ध िकया गया था। पानी क सतह पर तुलसी क पि याँ
तैर रही थ । रावण ने एक ना रयल लेकर उसे ज़मीन पर मारा। वो ल बवत टूट गया, एक
संकरे छोर से दूसरे तक। यह असामा य था और शुभ माना जाता था; आ मा िनि त प से
मो ा करे गी। ना रयल के पानी को बा टी के पानी म िमला िदया गया। इस िम ण को
हाथ से िमलाया गया और साथ म सं कृत के म पढ़े जाते रहे । यह काम परू ा हो जाने के
बाद रावण ने रीित के अनुसार पिव जल को सुलगती िचता पर िछड़ककर अि तम लपट
को बुझा िदया।
चार लंकाई सैिनक ने आगे आकर राख को चबत ू रे से हटाया। कु भकण और रावण ने
राख के ढे र पर झुककर बड़े जतन से उसम से अि थय —उन छोटी-छोटी हड्िडय को
छाँटकर िनकाला जो िचता के साथ जलकर राख नह हई थ । शरीर को प देने वाली बाक़
सभी चीज़ माँस, अंग, माँसपेिशयाँ राख बन चुक थ । राख को एक आसानी से यो य प म
धरती माता को वापस लौटाना था। हड्िडय के अवशेष को गंगा के पिव पानी म िवसिजत
करना था।
रावण जानता था िक अि त सं कृत के श द अि त व का मल ू था। ये हड्िडयाँ,
िज ह ने परू ी ढ़ता के साथ पिव अि न म जलने से इंकार कर िदया था, अि त व के
अवशेष का तीक थ । उ ह सबक ोत देवी माँ के पास बहते, पोषक जल के प म वापस
जाना था। जल के साथ उनका देवी माँ क छाती म िवलय हो जायेगा, तािक अि त व के
अविश को भी शाि त ा हो सके।
रावण और कु भकण ने एक-एक छोटी हड्डी को परू ी सावधानी के साथ धोया, और
उ ह िम ी के एक पा म रख िदया। यह पहचान पाना लगभग अस भव था िक वो शरीर के
िकस अंग का भाग थ । िफर रावण क हैरानी का िठकाना न रहा जब उसे उँ गिलय क दो
हड्िडयाँ िमल जो लगभग अ त थ । माँस, माँसपेिशयाँ, िशराएं , सब कुछ जल चुका था।
लेिकन दोन उं गिलय के तीन-तीन पोर बच गये थे। कुल छह पोर। िज ह प पहचाना जा
सकता था।
जब कपाल का अिधकांश भाग नह बचा था, तो इन पोर के बचने क िकतनी
स भावना हो सकती थी?
उन कोमल-सी हड्िडय को अपनी खुली हथेली म थामे हए रावण को अचानक एक
िवचार आया ये शायद उसी हाथ के अवशेष ह िजससे वेदवती ने उसके हाथ को पकड़ा था।
पहली बार। कुछ ही िदन पहले। उ ह ने दोबारा कभी उसे नह छुआ था।
वो उ ह िफर कभी नह देख सकेगा। लेिकन अब भी उनका हाथ पकड़ सकता है।
अब रावण वयं पर िनय ण नह रख सका।
वो हड्िडय को अपने माथे से लगाते हए रो पड़ा, जैसे वो िद यतम देवी के पिव
अवशेष ह । और िफर उसने धीरे से उ ह चम
ू िलया।
वो इ ह उसके िलए छोड़ गयी थ ।
और तब वो जान गया िक वो जी लेगा। िक वो अपना शेष जीवन जीने का कोई माग
खोज लेगा। य िक वो जानता था िक वो जब भी चाहे उनका हाथ पकड़ सकता है।
वो इ ह एक बैसाखी के प म उसके िलए छोड़ गयी थ । तािक वो उस पीड़ा के पार जा
सके जो िक वो जानता था िक उसका शेष जीवन होने वाला है। उनके हाथ के सहारे ।
उनके हाथ को थाम कर।
रावण ने कलश को पलटा और वेदवती के अवशेष को पिव नदी म िगरने िदया। कुछ ही
दूरी पर, कु भकण ने भी इसी तरह प ृ वी के अवशेष को िवसिजत िकया।
अ येि को तीन िदन हो चुके थे। दोन भाई अपने सभी सैिनक के साथ नदी क
ओर चल पड़े थे, और रा ते से उ ह ने बािलका समीची को ले िलया था। कु भकण के बार-
बार िवनती करने के बावजदू रावण ने टोडी ामवािसय क अ येि करने से मना कर
िदया था और उनक लाश को वह छोड़ िदया था जहाँ वो पड़ी थ । जंगली जानवर के िलए
सड़ते माँस क तरह। उसे उनक आ माओं को अन त काल तक पीड़ा भोगने देने म कोई
िहचिकचाहट नह थी।
रावण ने यान से वेदवती के पािथव अवशेष को पिव नदी म ओझल होते देखता रहा।
अब अि त माता का अंग बन चुक थ ।
लेिकन उसने सारा कुछ नदी म नह डाला था। उसने वेदवती के हाथ के अवशेष ,
उँ गिलय के उन पोर को रख िलया था। अब वो एक असाधारण-सी लटकन के प म आपस
म बँधे उसके गले म झल ू रहे थे।
वो कलश हाथ म िलए हए नदी के घाट क सीिढ़याँ चढ़ने लगा।
“दादा,” कु भकण ने पानी से बाहर िनकलते हए कहा। “आपको कलश भी जल म
डालना होगा।”
रावण ने िसर झुकाकर रीते-उदास कलश को देखा, मानो वो भी शोकाकुल हो।
“दादा...”
रावण ने कोई उ र नह िदया। उसने अपने आसपास देखा। पिव गंगा को, हरे -भरे
िकनार को, घने जंगल को... भारत क भिू म को। देवताओं ारा ध य क भिू म को।
उसने अपनी आँख ब द क । और उस पर एक घण ृ ा-सी तारी होने लगी थी।
वो देश जो अपने नायक का स मान नह कर सकता, उसे बने रहने का कोई
अिधकार नह है।
“दादा... कलश...” कु भकण ने उसे याद िदलाया।
और कु भकण यह देखकर ति भत रह गया िक रावण पलटा और िफर से तट क
ओर जाने लगा।
“दादा?”
रावण नदी के िकनारे पहँचा, झुका, उसने कुछ िम ी ली—स िस धु क िम ी—और
उसे कलश म डाल िदया। िफर वो—ती गित से, जैसे उस पर कोई भत ू सवार हो—नदी के
अ दर वापस जाने लगा।
“दादा, आप या कर रहे ह?”
रावण ने झुककर कलश को पानी म डुबोया िजससे सारी िम ी धुल गयी। जैसे वो धरती
क ही अि त का िवसजन कर रहा हो।
“दादा?” कु भकण क आवाज़ म उसक लगातार बढ़ती िच ता उतर आयी थ ।
रावण ने कलश म पानी भरा और उसे अपने िसर पर पलट िलया। अ येि के बाद के
आनु ािनक नान क तरह।
“नह , दादा!” रावण को रोकने के िलए उतावला होकर कु भकण तेज़ी से आगे बढ़ा।
पर तब तक बहत देर हो चुक थी।
रावण ने कलश को अपनी बाँह पर तोड़ा और उसके टुकड़ को नदी म िगरने िदया।
िफर वो कु भकण क ओर मुड़ा; उसक आँख दहक रही थ और मु याँ िभंची हई थ । उसके
शरीर क एक-एक कोिशका से ोध फूटा पड़ रहा था। उसने दाँत पीसते हए कहा, “यह देश
मेरे िलए मर चुका है।”
“दादा, मेरी बात तो सुिनए...”
"रा स को िनयि त करो, यही कहा था ना उ ह ने?”
“दादा, आप या बोल रहे ह? मेरी बात सुिनए...”
“म रा स को खुला छोड़ दँूगा! म इस देश को न कर डालँग ू ा!”
अ याय 18
कु भकण िचि तत था। “दादा, हम शायद अपनी सीमा से आगे िनकल रहे ह.... कह हम
उससे अिधक तो नह काट रहे ह िजतना िक हम चबा सकते ह?”
दोन भाई लंका क राजधानी िसिग रया म अपने घर पर थे।
“नह , कु भ,” रावण ने कहा। “हम सब कुछ काटगे। हम सब कुछ चबायगे। हम सब
कुछ पचायगे।”
"दादा, स िस धु के शासक लड़ने के अित र कुछ नह करते ह। हम यापारी ह।
हमारे सैिनक मल ू प से लुटेरे ह। वो केवल और केवल धन के िलए लड़ते ह। अगर उ ह
सामने कोई लाभ िदखाई नह िदया, तो वो यु छोड़ दगे। लेिकन स िस धु के सैिनक यु
म वीरगित' का ज मनाते ह। वो स मान और मिहमा जैसे िविच कारण के िलए मर जाते
ह। हम ऐसे मख ू को कैसे हरा सकगे?”
“अ छी रणनीितय ारा।”
“मुझे लगता है आप...”
“नह , म आव यकता से अिधक आ मिव ासी नह हो रहा हँ।”
“िक तु अगर हम उ ह हरा भी सके, तो इससे लाभ कैसे अिजत कर सकगे? इस
अिभयान क लागत ही इतनी अिधक होगी।”
“िच ता मत करो। जीतने के बाद, हम अगर अिधक नह तो न बे ितशत लाभ लेने
लगगे।”
कु भकण जो मिदरा पी रहा था वो उसके गले म लगभग फँस-सी गयी।” न बे
ितशत! अपने िलए?”
रावण गुराया। “हाँ, िब कुल।”
“दादा, मुझे नह लगता हम इस तरह क सि ध लागू कर पायगे। इसे पचा पाना स
िस धु के राजा के िलए कुछ अिधक ही होगा। उनके पास िनर तर लड़ते रहने के अित र
कोई चारा नह बचेगा। उसके बाद के िव ोह उ ह न कर दगे, पर वो हम भी थका डालगे।
और हमारे पास इतने सैिनक नह ह िक हम शाि तकाल म स िस धु के सारे रा य को
िनयि त कर सक।”
“हम एक बड़े यु म उनके साहस को तोड़ डालगे। उनक परू ी सेना को न कर दगे।
मुझे उनके नाग रक पर अपने िनयम लागू करने म िच नह है, इसिलए उ ह िनयि त
करने क आव यकता ही या है? हम केवल अपनी यापा रक शत उन पर लागू करगे। और
धीरे -धीरे उ ह चस
ू डालगे।”
“पर, दादा,” कु भकण ने कहा, “इतनी बड़ी दलाली कुछ समय म स िस धु क
अथ यव था को न कर देगी। हम उस सोने क ब ख़ को मार डालगे जो हमारा पेट भरती
है।”
रावण क आँख कु भकण क नजर से टकराय , लेिकन रावण के भाव से कुछ भी
प नह हआ।
“िब कुल सही,” वो बोला।
अगले िदन, दूसरे पहर क चौथी घड़ी तक रावण यु के िलए तैयार हो चुका था। अपने जंगी
घोड़े पर सवार, और अि म पंि म ती ा करता।
अपने श ुओ,ं और कुछ अनुयाियय को भी हैरान करते हए उसने दुग क सुिनिमत
दीवार के पीछ रहने के अ य त र ा मक लाभ को छोड़ िदया था। इसके बजाय उसने अपने
पचास हज़ार सैिनक —अपनी अिधकांश सेना को दुग क दीवार के बाहर, समु तट पर
सामा य चतुरंग यहू म तैनात िकया था।
अब लंकावािसय के सामने उनका श ु और पीछे दुग क दीवार थी। तीत प से
दशरथ और उनक सेना के िलए सरल ल य तुत करते हए।
स िस धु के यो ाओं के िलए लंकाई चारा।
और चारे को ले िलया गया।
अयो या के स ाट ने अपनी सेना को समु तट के साथ सच ू ी यहू , सईू यहू , म
सजाया था। दशरथ को पता था िक भिू म क ओर से दुग पर हमला करने का िवक प नह है।
रावण के दल ने दुग के चार ओर काँटेदार झािड़याँ बो दी थ , अलावा उस दीवार के जो समु
तट के पास थी। दशरथ क सेना झािड़य को साफ़ करके दुग तक पहँचने का माग बना
सकती थी, लेिकन उसम कई स ाह लग जाते। लंका क सेना ारा करछप के आसपास के
े को तबाह कर िदये जाने, और इस कारण दुग के बाहर भोजन और पानी के अभाव के
चलते यह िवक प िकसी तरह यवहाय नह था। रसद समा होने से पहले सेना को
आ मण करना ही था।
दशरथ को यह सोचने के िलए ठहरना चािहए था िक रावण ने समु तट वाले माग के
अलावा िभड़ त के सभी स भािवत माग को अव य िकया है। अपने भ य सै यकाल म
अयो या के राजा को कभी िकसी यु म पराजय नह िमली थी। उनक साम रक विृ को
उ ह सजग कर देना चािहए था। मगर िपछले िदन रावण ारा कहे गये अपमानजनक श द
अभी भी उनके मन म गँज ू रहे थे, और उ ह ने अपने अहं को अपने िववेक पर हावी होने िदया।
समु तट अनेक मापद ड के अनुसार चौड़ा था मगर एक बड़ी सेना के िलए पया नह
था इसिलए दशरथ ने सच ू ी यहू बनाने का साम रक िनणय िलया था। उनक सेना का
सव े अंग उनके साथ यहू के सामने रहता, जबिक शेष सेना उनके पीछे एक ल बी
क़तार म रहती। वो आवत आ मण करना चाहते थे, िजसम पहली पंि याँ लंका क सेना
पर आ मण करत , और यु के लगभग बीस िनिमष बाद पीछे हट जात , और यो ाओं क
अगली पंि को मोरचा सँभालने देत । इस तरह िबना के लंका क श ु सेना को समा
करने के िलए यु के िलए ढ़ सैिनक क नयी लहर आती रहती।
कैकेय के राजा और दशरथ के सुर अ पित को इस रणनीित को लेकर स देह थे।
उ ह ने इंिगत िकया िक यु के िकसी भी पल केवल कुछ पचास-साठ हजार सैिनक ही
केवल यु रत रहगे, जबिक अिधकांश पीछे ती ारत रहगे। बड़े यु े क जगह एक
संकरे समु तट पर यु करने के िलए िववश करके रावण ने स िस धु क सेना क िवशाल
सं या के लाभ को शू य कर िदया था। मगर िव ास से भरे दशरथ ने अ पित के स देह
को दरिकनार कर िदया।
दशरथ का मानना था िक लंकावासी यापारी ह जो प र कृत यु नीितय को अपनाने
म अ म थे। दुग क दीवार के बाहर सेना को तैनात करने के य त: मख ू तापण ू काय ने
उ ह आ त ही िकया था िक रावण और उसक सेना को इसक कोई समझ नह है िक वो
या कर रहे ह।
दूर, समु तट के दूसरे छोर पर रावण ने अपने दािहनी ओर देखा, जहाँ समु म दो
िकलोमीटर से अिधक दूरी पर उसके पोत लंगर डाले खड़े थे। छोटी नौकाएँ भी नह िदख रही
थ । कु भकण अ छी तरह उसके िनदश का पालन कर रहा था।
रावण ने अपनी ि वापस स िस धुओ ं क सेना क ओर घुमायी।
उसके द भी और अित-आ मिव ासी श ुओ ं ने उसके चौड़े अ भाग वाले पोत क
जाँच करने के िलए अपनी गु चर नौकाएँ भी नह भेजी थ । उ ह यह तो करना ही चािहए था।
उसके ह ठ पर एक मु कान तैर गयी। मख ू कह के।
रावण ने अपने क धे और बाँह ढीली छोड़ी। यु का सबसे िचढ़ाऊ प ती ा करना
होता है। दूसरे प ारा आ मण करने क ती ा। आप न तो अपना यान भटकने दे
सकते ह और न ही अपनी ऊजा न होने दे सकते ह। उसने अपनी सेना को चेतावनी दी थी
िक िच लाकर श ु पर गािलयाँ बरसाकर या यु के उ ोष करके वयं को थकाएँ नह । उ ह
चुप रहकर ती ा करने का आदेश िदया गया था।
प प से दशरथ ने अपने सैिनक को ऐसे कोई िनदश नह िदये थे। वो दहाड़ते हए
यु के नारे लगा रहे थे, उनक आवाज उ माद म उठ-िगर रही थ । जोश से वयं को भरते
हए। मगर इसी के साथ वयं को थकाते हए भी।
रावण ने यु का अपना िविश िशर ाण पहना हआ था िजसके दोन ओर से भयावह
ढं ग से छह-छह इंच के स ग िनकले हए थे। यह उसके श ुओ ं : दशरथ के िलए चुनौती थी।
म यहाँ हँ। आकर पकड़ो मुझे।
इस बीच दशरथ अपने सु िशि त और भ य िदखने वाले जंगी घोड़े पर सवार होकर
अपनी िवशाल सेना का िनरी ण कर रहे थे। उ ह ने परू े िव ास से उस पर अपनी ि
दौड़ायी। अपनी तलवार ख चे, यु के िलए उ सुक वो उ और ककश लोग थे। उनके घोड़े भी
जैसे उस पल के रोमांच म डूब गये थे, िजससे उनके सवार को उनक लगाम ख च-ख च
कर उ ह बस म करना पड़ रहा था। दशरथ को तो शी बहाए जाने वाले र क ग ध तक
आने लगी थी : उस नरसंहार क जो िवजय क ओर ले जायेगा!
उ ह ने आँख िसकोड़कर सामने दूर खड़ी लंका क सेना और उनके सेनापित को
परखा। रावण ारा िपछली शाम कही गयी बात याद करते ही ोध क िचंगारी उनके अ दर
फूट पड़ी। यह अहंकारी यापारी शी ही उनके ोध का भागी बनेगा। उ ह ने अपनी तलवार
ख ची और उसे ऊँचा ताना, और िफर अपने कौशल रा य, और उसक राजधानी अयो या के
सु प यु घोष का गजन िकया। “अयो यात: िवजेतार:!”
अजेय नगर के िवजेता!
उनक सेना म सभी अयो या के नह थे, मगर िफर भी कौशल के वज तले यु करने
का उ ह गव था। उ ह ने भी अपने स ाट के यु घोष को दोहराया। “अयो यात: िवजेतारः!”
अपनी तलवार नीची करते और अपने घोड़े को एड़ लगाते हए दशरथ दहाड़े । “सबका
वध हो! कोई दया नह !”
“कोई दया नह !” पहले हमले के घुड़सवार ने अपने िनभ क वामी के पीछे आगे
बढ़ते हए हंकार लगायी।
तेज़ी से, िनभ कता से घोड़े दौड़ाते हए, अपने वयं के िवनाश क ओर बढ़ते हए।
जब दशरथ और उनके सव े यो ा तेज़ी से समु तट पर लंकावािसय क ओर बढ़ने
लगे, तो रावण क सेना िन ल खड़ी रही। जब दु मन के घुड़सवार बस कुछ सौ मीटर दूर रह
गये तो अचानक रावण ने अपना घोड़ा मोड़ा और अि म पंि से पीछे जाने लगा, हालाँिक
उसके सैिनक ढ़ता से खड़े थे।
रावण क रणनीित प थी—मह वपण ू थी जीत, न िक पौ ष और साहस का
दशन। मगर ि य जीवनशैली म पले-बढ़े दशरथ के िलए यि गत बहादुरी सेनापित का
सबसे बड़ा गुण थी। रावण क य कायरता ने उ ह ोध िदला िदया था। उ ह ने अपने
घोड़े को एड़ लगाकर सरपट दौड़ा िदया, उनका इरादा लंका क अि म पंि को र दकर
शी ता से रावण तक पहँचना था। अयो या क सेना भी गित बढ़ाते हए अपने राजा के पीछे
चली।
रावण को यही आशा थी। लंका क अि म पंि हरकत म आ गयी। अचानक सैिनक
ने अपनी तलवार फक दी और अ वाभािवक प से ल बे, लगभग बीस फुट ल बे, भाले उठा
िलये, जो उनके पैर के पास रखे थे। लकड़ी और धातु के बने वो भाले इतने भारी थे िक एक
भाले को दो आदमी उठा रहे थे। सैिनक ने ताँबे के नुक ले अ भाग वाले इन भाल का ख़
दशरथ क आगे बढ़ती घुड़सवार सेना क ओर कर िदया था।
घुड़सवार सैिनक समय रहते अपने घोड़ क लगाम नह ख च पाये और सीधे भाल म
घुसते चले गये िज ह ने असावधान घोड़ को चीथ डाला। घोड़े ढे र हए तो उनके सवार आगे
को जाकर िगरे । दशरथ क घुड़सवार सेना का आ मण जब का तो करछप दुग क ऊँची
दीवार पर लंका के धनुधर उठ खड़े हए। दुग क ाचीर क ऊँचाई से वो ल बे चाप म,
दशरथ क सेना के पीछे ि थत घने यहू क ओर लगातार बाण-वषा कर रहे थे िजसने स
िस धु क पंि य को तोड़ डाला।
दशरथ के अनेक यो ा िज ह उनके धराशायी होते घोड़ ने उछाल िदया था, लड़खड़ाते
हए दु मन से आमने-सामने का यु करने के िलए खड़े हो गये थे। उनके राजा भयावह ढं ग
से अपनी तलवार घुमाते और उसक चपेट म आने वाले हर यि को काटते हए उनका
नेत ृ व कर रहे थे। मगर अपने चार ओर वो अपने सैिनक पर ढाए गये िवनाश को देख रहे
थे जो लंकाई तीर क बौछार और बेहतरीन िश ण पाये तलवारबाज ारा तेज़ी से िगराये
जा रहे थे। कुछ ही पल के बाद दशरथ ने अपने वजवाहक को इशारा िकया िज ह ने
यु र म उनका वज ऊपर उठा िदया। यह पीछे मौजदू सैिनक के िलए अि म पंि क
सहायता के िलए आ मण म शािमल होने का संकेत था।
इसी पल का रावण को इ तजार था।
कु भकण के आदेश पर लंका के पोत ने अचानक लंगर उठा िलये। बड़े पोत हमेशा तट
से दूर रहते ह जब तक िक समुिचत ब दरगाह उपल ध न हो। नौसैिनक को छोटी नाव ारा
तट पर लाया जाता है। मगर कु भकण ने नाव नीचे नह उतारी। उसने पोत को ही तेज़ी से
समु तट क ओर बढ़ने का आदेश िदया था। परू ी तरह चौकस नािवक ने च पू बढ़ाते हए
तेज़ी से तट क ओर बढ़ना शु कर िदया था। हवा के ख़़ क सहायता पाने के िलए पोत
के म तल ू परू े खुले हए थे। कुछ ही पल के भीतर पोत के तल से दशरथ के नेत ृ व वाली
सघन सेना पर तीर क बौछार होने लगी थी। पोत पर मौजदू लंका के धनुधर ने स िस धु
क सेना के समहू को चीर डाला था।
दशरथ क सेना म िकसी को भी श ु पोत के तेज़ी से समु तट पर आने क स भावना
का अ देशा नह था; साधारणतया इससे उनके पेटे टूट जाते। मगर वो यह नह जानते थे िक
ये जल-थलीय पोत थे िजनम िवशेष प से बनाये गये पेटे थे जो धरती पर आने के झटके को
वहन कर सकते थे। समु तट पर ती गित से आते-आते ही उनके पेटे के चौड़े अि म भाग
ऊपर से खुलने लगे। ये सामा य पेटे के साधारण अि म भाग नह थे। वो बड़े -बड़े क़ ज़ से
पेटे क तली से जुड़े हए थे, और वो पोत से उतरने के ढलवाँ माग क तरह रे त पर खुल गये
थे। इससे पोत के अ द नी भाग से सीधे समु तट पर आने का रा ता खुल गया था। पोत से
पि म से मँगवाये गये असामा य प से िवशाल घोड़ पर सवार सैिनक धड़धड़ाते हए
समु तट पर आने और िनममता से अपने रा ते म आने वाले सभी लोग को काटने लगे।
अब स िस धुवासी दोन छोर पर लड़ रहे थे—अि म पंि य म करछप दुग क
दीवार पर मौजदू रावण के सैिनक से, और पीछे कु भकण के नेत ृ व म पोत से िनकले
अनपेि त आ मणका रय से।
एक कुशल यो ा क सु िशि त सहज विृ ने दशरथ को आगाह कर िदया था िक
पीछे के भाग म कुछ भयानक हो रहा है। जब वो यु रत मानवजाित के समु के पार देखने
का यास कर रहे थे तभी उ ह अपने बाई ं ओर अचानक कुछ हरकत का आभास हआ और
उ ह ने समय रहते अपनी ढाल उठा कर लंका के एक सैिनक के घातक वार को रोक िदया।
भयानक हंकार के साथ अयो या के राजा घातक ढं ग से अपने आ मणकारी क ओर घम ू े
और उनक तलवार उसके कवच को काटती चली गयी। लंकाई पीछे िगर गया, उसका पेट
खुल गया था और उससे र फूट पड़ा था, और उसी के साथ एक झ के म िचकनी गुलाबी
आँत भी बाहर आ गयी थ । दशरथ घम ू े और उ ह ने अपने पीछे , सेना के िपछले िह से क ओर
देखा।
“नह !” वो िच ला पड़े ।
उनक आँख के सामने जो य घिटत हो रहा था वो उ ह ने पहले कभी नह देखा था।
आगे के िह से म दुग क दीवार पर धनुधर और पैदल सैिनक के दोहरे िनमम आ मण,
और पीछे समु तट पर खड़े पोत से िनकली लंका क च ड घुड़सवार सेना के बीच फँसी
उनक हमेशा िवजयी रहने वाली सेना का मनोबल तेज़ी से िगर रहा था। अिव ास से भरे
दशरथ ने देखा िक उनके कुछ सैिनक पंि याँ तोड़कर पीछे हटने लगे ह।
"नह !” वो दहाड़े । “लड़ो! लड़ो! हम अयो या ह! अजेय ह!”
इस बीच सब कुछ अपनी अपे ानुसार चलने के बीच रावण ने अपने घोड़े को एड़
लगायी और अपने कुछ सैिनक को समु के िकनारे बाई ं ओर के तट क ओर ले गया। यही
एक टुकड़ा ऐसा था जो अयो या क सेना के जवाबी आ मण के िलए खुला था। अपने
सु िशि त घुड़सवार सैिनक के साथ रावण ने सैिनक क बाहरी पंि को िफर से एकजुट
होने से पहले ही काट डाला। उसे दुग क दीवार के अपने मोरचे को सुरि त रखना था
जबिक कु भकण पीछे क पंि य का संहार कर रहा था।
दशरथ को मारने म रावण क िच नह थी। इस िब दु पर यह मायने नह रखता था।
उसका यान बस िवजय पर था। और वो पाने के िलए, उसे अयो या क सेना के अि तम
ितरोध को भी तोड़ देना था।
धीरे -धीरे मगर िन यपवू क, आगे के भाग म दुग क दीवार पर मौजदू सैिनक से िघर
कर, पीछे कु भकण के नेत ृ व म हए आ मण से, और रावण के सैिनक ारा िकये घातक
बग़ली आ मण से दशरथ क सेना िततर-िबतर हो गयी थी। सभी पंि य म भगदड़ मच
गयी थी। और कुछ ही देर म, परू ी तरह अ त- य त प से सेना पीछे हटने लगी।
अब यह यु नह रहा था। यह नरसंहार था।
मगर रावण का नह । उसने यु िवराम का आदेश नह िदया। उसने अपनी सेना को
दया िदखाने क अनुमित नह दी।
उसके आदेश प थे और उसने िच ला कर कहा था : “सबका वध कर दो! कोई दया
नह ! सबका वध कर दो!”
और उसके सैिनक ने आ ा का पालन िकया।
अ याय 20
रावण ारा लंका के धानम ी मेघदूत क ह या का आदेश िदये एक माह बीत गया था,
मगर कु भकण अब तक आगे बढ़ने का माग नह तलाश पाया था। अ तत: सहायता के िलए
उसने अपने मामा क ओर देखा। और आज, मरीच ने उसे सिू चत िकया था िक इस काम के
िलए उपयु आदमी िमल गया है।
अपने भाई को इस समचार क जानकारी देने के िलए उ सुक कु भकण उसक खोज
म िनकला, मगर वो कह नह िमल रहा था। अ तत: वो महल के अ द नी िह से म िछपे
गु क म गया। गोकण के रावण के िनजी क क तरह ही यहाँ भी दोन भाइय के अलावा
िकसी को जाने क अनुमित नह थी।
अ दर वेश करते ही कु भकण ने पलट कर ार को ब द कर िदया। केवल एक
मशाल जल रही थी। उसका भाई अ दर था।
नीम-अँधेरे म पहली चीज़ उसे वणमि डत रावणहता िदखाई िदया। वो भिू म पर पड़ा
था, टूटा हआ, उसके तार एक ओर पड़े थे। क के मौत जैसे स नाटे म उसे लगा जैसे उसने
िकसी के रोने क आवाज़ सुनी है।
जब आँख अँधेरे क अ य त हई ं तो कु भकण ने ार क ओर पीठ िकये, लकड़ी क
एक ल बी ितपाई पर िनढाल पड़े रावण को देखा। उसने अपने हाथ से अपना सर पकड़ रखा
था और रोने के कारण उसका सारा शरीर िहल रहा था। दुख और हताशा क गहराइय से
गहरी, दद भरी सुबिकयाँ िनकल रही थ ।
रावण के सामने एक िच पटल था। उस पर कठोर, ोध भरे हार से, िज ह ने िच
क रे खाओं को लगभग िछपा िदया था, एक अ प प से प रिचत-सी छिव को काट िदया
गया था। कु भकण को इस िच को समझने म एक पल लगा, मगर िफर उसने देखा िक वो
वेदवती का अधरू ा िच था। गभवती, अपने पण ू आकार म, कमनीय वेदवती। बाहरी परे खा
बना दी गयी थी और उसम रं ग भरा जाना शेष था। आँख अधबनी थ और यह आकर जैसे
रावण ने हार मान ली थी।
कु भकण जानता था िक िनमम ह याओं वाले िदन से ही रावण ने वेदवती के िच
बनाना छोड़ िदया था। तब तक, वो धीरे -धीरे , साल-दरसाल उसक क पना म भी बड़ी होती
रही थ । और वो अपने मन क आँख से उ ह अपनी परू ी बारीक के साथ देख पाता था,
लगभग ऐसे जैसे िक िच बनाते समय वो उसके पास ही खड़ी ह । मगर उनक म ृ यु के बाद,
जैसे उनका िच बनाने क इ छा भी मर गयी थी, और अब, जब उसने िफर से उ ह पटल पर
उतारने क कोिशश क , तो लगता था जैसे वो वरदान, रचना मक ि क वो मता लु
हो गयी हो।
कु भकण को अहसास था िक वो उस रोष और ोध को परू ी तरह नह समझ सकता
जो उसका भाई महसस ू करता है। केवल एक कलाकार ही अपनी देवी अपने जीवन भर क
ेरणा ारा याग िदये जाने क हताशा को समझ सकता है। केवल वही िजसने ेम िकया
हो, अपने ि य को खोने क अथाह पीड़ा को समझ सकता है। केवल एक समिपत भ िजसे
िद य ने पश िकया हो, अपनी देवी को छीने जाने के, आ मा को छलनी कर देने वाले क
को समझ सकता है।
कु भकण चुपचाप रावण के पास गया।
वो अपने बड़े भाई के पास बैठा और उसके िगद अपनी बाँह डाल दी। रावण मुड़ा और
उसने अपने भाई के क धे म चेहरा धँसा िदया, वो इस तरह रो रहा था जैसे कभी कोई चीज़
उसे िदलासा न दे सकती हो।
देर तक वो एक-दूसरे को थामे बैठे रहे , िबना कुछ कहे । उनके साझा दुख ने बाक़ सब
कुछ—सारे िवचार, सारे श द को— धँुधला िदया था।
रावण ने ही मौन तोड़ा। “मुझे िनय ण चािहए... लंका का... शी ।”
“हाँ, दादा।”
“मुझे न करना है... करना ही है... उन िनकृ को... स िस धु को... परू ी तरह
न करना है...”
कु भकण मौन रहा।
रावण ने बहत कोिशश करके वयं पर िनय ण पाया, िफर कहा, “उस ह यारे को मेरे
पास लाओ।”
“हाँ, दादा।”
“शी ।”
“हाँ, लाऊँगा।”
जब आप िकसी ब द नाली को उससे अिधक पानी से भर देते ह िजतना उसम समा
सकता है, तो वो बाहर बह कर अपने आसपास क चीज़ को दूिषत कर ही देगा। जब दुख
िकसी को अिभभत ू कर देता है, जब वो उसे ले कर रोष से भर जाते ह जो िनयित ने उनके
साथ िकया है, तो अ सर उनका ोध छलक पड़ता है और दुिनया को पीड़ा पहँचाता है।
यही एक तरीक़ा होता है िजसके साथ वो अपने जीवन से तालमेल िबठा पाते ह—वो
जीवन जो अब उनके िलए अथहीन हो गया है।
“बुरा नह है,” िव ािम ने कहा, वो प प से भािवत थे। “िब कुल बुरा नह है।”
िव ािम और अ र नेमी मलयपु क गु राजधानी अग यकूटम म थे। करछप के
यु को एक वष बीत गया था।
“हाँ, रावण तो एकदम सही खलनायक सािबत हो रहा है,” अ र नेमी ने कहा। “स
िस धु म उससे अिधक घण ृ ा िकये जाना वाला कोई यि नह है। उसने सा ा य को केवल
इतनी बुरी तरह परािजत ही नह िकया बि क उन पर इतनी भारी सि ध भी थोप दी िक शी
ही उनक िगनती संसार के सम ृ तम रा य से िनधनतम रा य म होने लगेगी।”
“जब मने उसक लगायी शत को सुना तो मने समझा िक रावण इतना अितशय
िह सा इसिलए माँग रहा है तािक अ तत: जब वो कम पर तैयार हो जाये तो उसक
उदारशीलता क शंसा हो। प है िक उसके मन म यह नह था। वो वा तव म इस सि ध
क शत को उनके कंठ म ठूँस रहा है। अयो या कभी इतना कमज़ोर नह रहा। िजसका अथ
है िक अ तत:, उस... उस... भी नराधम को उसका थान िदखा िदया गया है।” िव ािम
उस नाम को लेने के िलए वयं को तैयार नह कर पाये िजससे वो सबसे अिधक घण ृ ा करते
थे।
अ र नेमी को पता था उसके गु अयो या दरबार के राजगु और राजप रवार के
मु य सलाहकार विश क बात कर रहे ह। हमेशा क तरह, विश के िवचार मा ने
िव ािम को उ ेिजत कर िदया था।
अ र नेमी ने सफ़ाई से िवषय बदल िदया। “हाँ, अयो या इतना कमज़ोर कभी नह रहा
िजतना िक अब है। और िजस तरह रावण ने कुबेर के हाथ को चलाया था, वो अ ुत था,
य िक यापारी मुख वयं तो इस तर क सि ध और यु क ितपिू त क माँग नह कर
सकता। वो लालची भले ही हो, मगर भी भी है। और हम यह भी नह भल ू ना चािहए िक
मेघदूत क ह या सही समय पर चली द चाल थी।”
“ या तु ह इसका िव ास है?” िव ािम ने िफ़लहाल विश को भल ू ते हए पछ
ू ा।
“ य िक मने िवपरीत िववरण सुने ह। ऐसे पया लोग ह जो मानते ह िक उसक म ृ यु डूबने
से—दुघटनावश डूबने से हई थी।”
“म आ त हँ, गु जी। वो डूबा नह था। उसे डुबोया गया था।”
“मगर—”
“इसे बहत सु दरता से योजनाब िकया गया था। सब जानते थे िक मेघदूत अपने
मनपस द नाटक जलस देश म उस अिभश किव कालीदास क भिू मका का अ यास कर
रहा था। और हम जानते ह िक झील का वो मशहर य िकस तरह खेला जाता है।”
“मगर मने तो सुना है िक िजस तरणताल म वो डूबा था, उसके पास मिदरा का चषक
और पा भी िमले थे।”
“वो भी जाल का िह सा थे। मेघदूत बहत रं गीला यि था िजसे मिदरा और ि याँ
पस द थ , इसिलए मिदरा का पा वहाँ होना समझ आता है। एक सामा य भटकाव। इसके
अलावा, मेघदूत पर चोट का कोई िच नह था। िकसी संघष का िच नह था। म ृ यु के बाद
के परी ण ने उसके फेफड़ म पानी दशाया था। वो डूबने से मरा था। सब कुछ इतनी अ छी
तरह नपा-तुला है िक सच नह हो सकता, गु जी। िकसी के ारा स देह करने का कोई
कारण नह है।”
“तो, तु ह लगता है यह कुछ अिधक ही दोषहीन है?”
"िब कुल। वा तिवक जीवन बेतरतीब होता है। कुछ भी कभी भी दोषहीन नह होता,
मगर यह म ृ यु थी। इसी ने मुझे स देह म डाल िदया, और मने खोजबीन करने का िनणय
िकया।” ।
“तो, इसके पीछे कौन यि है?”
“मर नाम का कोई यि । प है िक यह उसका असली नाम नह है। कौन माँ अपने
ब चे का नाम 'म ृ यु' रखेगी? अभी मुझे उसक प ृ भिू म के बारे म कुछ नह पता, मगर वो
कह से भी आया हो, है मािहर। मुझे स देह है िक वो युवा है और अभी भी अपनी कला को
माँज रहा है। ऐसी कई चीज़ ह िजन पर अभी उसे काम करना है।”
“जैसे?”
“एक तो, वो पया गोपनीय नह है। वो बहत सारे लोग को अपना चेहरा िदखा चुका
है। वो अ छा है, मगर उसे सुधार लाने के िलए िशि त िकया जा सकता है।”
“तो या तुम यही करना चाहते हो?”
“मुझे िव ास है िक मर हमारे िलए उपयोगी संसाधन सािबत होगा, गु जी।”
“म यह तुम पर छोड़ता हँ। जो आव यक हो सो करो। मेरी िच तो इसम अिधक है िक
अब रावण या करने वाला है। तु हारे िवचार से वो कुबेर को कब तक बाहर कर देगा?”
“मुझे नह लगता िक वो करे गा, अभी तो। मेघदूत के जाने के साथ ही राज व िवभाग
और सेना सीधे उसके िनय ण म आ गये ह वो ऐसा करने वाला लंका का पहला म ी है।
उसने तो, वा तव म, कुबेर को सभाओं से बाहर रखना भी शु कर िदया है, यह कह कर िक
यापारी मुख का वर इतना शु है िक उसे इन तु छ शासिनक सभाओं म नह सुना
जाना चािहए। सभी यावहा रक उ े य से वो लंका का राजा बन चुका है। कुबेर को हटाकर
स तुलन िबगाड़ने क उसे कोई आव यकता नह है।”
“ह म... चतुर चाल है। मगर स िस धु पर इतनी हा या पद शत लागू करने क
बुि मता को ले कर म कुछ शंकालु हँ। वो उस सोने क हंिसनी को समा कर देगा जो
उसका पेट भरती है।”
" या यह मायने रखता है, गु जी? वो एकदम उसी थान पर है जहाँ हम उसक
आव यकता है। वो ख़ुद को समुिचत खलनायक के प म थािपत कर रहा है। सारा स
िस धु उससे भय खायेगा। अब तो हम िव णु क खोज शु कर देनी चािहए।”
“िन स देह। मगर हम रावण के उ े य से भी आँख नह मंदू सकते। हम जानना होगा
िक उसके मन म या चल रहा है तािक हम उसे बेहतर ढं ग से िनयि त कर सक। यह
समझना मह वपण ू है िक िकस कारण ने उसे अयो या के साथ यह रवैया अपनाने क ओर
धकेला। मुझे नह लगता िक यह धन या शि के िलए उसक वासना से जुड़ा है। उसे कोई
बेलगाम, लगभग उ मादी आ ोश चला रहा है। य िक उसके काय यापार और राजनीित के
सभी तक से परे ह।”
“म पता लगाऊँगा, गु जी।”
“साथ ही हम गुफा पदाथ के िलए उससे अिधक धन लेना शु करगे।”
अ र नेमी हँसा। “जी, गु जी। म भी यही सोच रहा था। हम िन य ही उस धन का
योग उससे बेहतर करगे।”
करछप के यु के यारह साल बाद, वैि क यापार पर लंका का परू ा िनय ण हो गया था।
न केवन रावण क िनजी स पि म अथाह विृ हई थी बि क उसने छोटे-से ीप रा य को
भी िव शि बना िदया था। स िस धु पर लगाये गये भारी कर सात निदय के देश को
सुखा रहे थे, मगर इस बेतहाशा कमी के बाद भी यह सम ृ बना रहा। यहाँ अभी भी इतनी
चुरता थी िजससे लंका वसल ू ना जारी रख सकता था।
अब तक िह द महासागर के यापा रक माग और हर बड़े ब दरगाह पर लंका का
िनय ण हो गया था। प रणा व प यह संसार भर म यापार के वाह पर हावी हो गया था।
रा य समिृ से दमकता था और इसे वण लंका कहा जाने लगा था—जहाँ शू य कर,
अ य त रआयती जीवनयापन, िनशु क िचिक सा और िश ा, घर म सीसे के पाइप से
चौबीस घंटे पानी क आपिू त, चार ओर फै ले हए सावजिनक उ ान, खेल प रसर, सभागार
आिद थे। रावण क लंका म कोई िनधन नह था।
वयं रावण ने, जो अब अड़तीस वष का था, रा य म देवता-सरीखा तर पा िलया था।
लोग कुछ मि दर म उसके प क पज ू ा भी करने लगे थे जो िपछले एक साल म बन गये थे।
केवल उसक माँ कैकेसी इस दैवीकरण का िवरोध करने का साहस करती थ : उ ह ने
सावजिनक प से घोषणा क थी िक रावण जीिवत रहते हए भी इस तरह क पज ू ा को बढ़ावा
दे कर ाचीन वैिदक णाली का अनादर कर रहा है। पु या मा और सु दर म दोदरी एक
छोटे-से साम त माया क बेटी थी जो म य भारत के दो छोटे मगर सम ृ गाँव का वामी था।
दुभा य से उसे और उनके आसपास के लोग को यह शी ही प हो गया िक उसने उससे
केवल इसिलए िववाह िकया है तािक उस भिू म का अनादर कर सके िजससे घण ृ ा करने क
उसने शपथ ली थी। मानो वो स िस धु के महान सा ा य को जताना चाहता हो िक उसके
पास न केवल उनक सेनाओं को हराने और उनक स पि छीनने क बि क उनक ि य
को ले जाने क भी शि है। इस दुभा यपण ू स ब ध का केवल एक ही सकारा मक प रणाम
हआ था और वो था पु इ जीत का ज म िजसे रावण सच म ेम करता था।
इस बीच उ तीस वष का कु भकण लगातार एकाक होता गया। वो अपने भाई से ेम
करता था मगर उन चीज को ले कर अ स न था जो उसके ित अबाध िन ा के कारण
करने के िलए वो िववश था। अपने भाई के ित अपने ेम और अपने धम का पालन करने क
इ छा के बीच फँसा वो िजतना हो सकता था लंका से बाहर रहने के बहाने ढूँढ़ता था। वो दूर
देश क या ाएँ करता, कभी यापा रक अिभयान और सि धय के िलए तो कभी सै य
अिभयान पर, समु पर लुटेर क सम या को समा करने के िलए। िसिग रया से दूर रहने
के हर वैध कारण को वो लपक लेता था।
ऐसे ही एक दौरे पर कु भकण इिथयोिपया रा य के दमात नगर म था जो एक ल बे
समय से लंका का िम रहा था। जहाँ तक याद िकया जा सकता है, पि म और भारत के बीच
यापार पि मी समु के रा ते फला-फूला था, िजसका रा ता लाल समु म संकरी म देब
जलसि ध या फ़ारस क खाड़ी म होरमुज़ जलसि ध से होकर जाता था िजसे थानीय लोग
जम यांग भी कहते थे। िम या मेसोपोटैिमया के िकसी भी यापा रक पोत को भारत क
ओर आने के िलए इनम से िकसी िब दु से पि मी सागर म वेश करना होता। कुशल पतरा
चलते हए रावण ने िजबत ू ी और दुबई के ब दरगाह को जीत िलया था, िजनका इन दोन
जलसि धय पर िनय ण था। अब दमात और पि म म आगे ि थत अ य रा य के पोत को
पि मी सागर और िह द महासागर के मु य यापा रक माग म वेश करने के िलए भारी
सीमा शु क देना पड़ता था।
कु भकण इसके शासक से िमलने और अगले वष के िलए यापा रक िह सा और सीमा
शु क तय करने के िलए रा य म आया था। भट समा होने के बाद उसने दमात क
राजधानी येहा-अ सुम के बाज़ार म घम ू ने का िनणय िकया। लंका लौटने से पहले बस एक
िदन ख़ाली होने से इस सु दर नगर के सारे थल को देखने के िलए उसके पास पया
समय नह था जहाँ वो पहली बार आया था।
अचानक, एक प रिचत वर ने उसका यान ख चा—नगाड़ क आवाज़ िजसक उसे
गहृ देश से इतनी दूर सुनने क आशा नह थी।
धमू -धम ू -दना-धम ू -धम ू -दना।
धम ू -धम ू -दना-धम ू -धम ू -दना।
वो आवाज़ क िदशा म चलने लगा, मानो िकसी अ य डोर से िखंचा जा रहा हो।
धम ू -धम ू -दना-धम ू -धम ू -दना।
कुछ ही पल बाद उसने वयं को प थर के एक भ य िनमाण के सामने पाया जो
अनपेि त प से िकसी भारतीय मि दर जैसा िदखाई देता था—भू तर पर लाल बलुआ
प थर से बना एक िवशाल चबत ू रा और दूर आकाश म जाता एक िशखर, जैसे देवताओं को
नम ते कर रहा हो। बाहरी दीवार सु दरता से उकेरी गयी अ सराओं, ऋिषय , ऋिषकाओं,
राजाओं और रािनय से अलंकृत थ , जो भारतीय शैली के अनु प व पहने थे। एकमा
अ तर उनके चेहरे थे जो प प से अ क थे।
कु भकण अ क महा ीप के कुछ ऐसे लोग से िमला था जो भारत म बस गये थे। वो
कुछ ऋिषय और ऋिषकाओं को भी जानता था जो मल ू प से अ का के थे। मगर येहा-
अ सुम के बीच बीच भगवान का मि दर देखने के िलए वो तैयार नह था।
जब उसने मि दर म वेश िकया, तो नगाड़ क आवाज़ और तेज़ हो गयी।
धमू -धम
ू -दना-धमू -धम ू -दना।
मि दर के मु य क म गभगहृ के सामने िविभ न थान पर बड़ीबड़ी ितपाइयाँ रखी
हई थ । येक ितपाई पर एक पंि म तीन िवशाल नगाड़े रखे थे। एक ओर खड़े ल बे,
बिल पु ष ल बी-ल बी छिड़याँ िलये परू ी लय-ताल म नगाड़े बजा रहे थे। मि दर का ांगण
न ृ य करते लोग से भरा था। िवशु आन द क चुरता का न ृ य।
माहौल िव त ु ीय था, और इसने तुर त ही कु भकण को अपनी िगर त म ले िलया।
उसका शरीर अपनी ही इ छा से िथरकने लगा और ज दी ही वो न ृ य करने लगा था।
भगवान के संगीत के तीन आन द ने उसके मन और आ मा को भर िदया था।
जैसे-जैसे ताल ने गित पकड़ी, न ृ य उ म होता गया। मि दर का ांगण भगवान
के भ क वाभािवक ऊजा से जीव त हो उठा था। धीरे -धीरे , गित बढ़ती गयी जब तक िक
यह अपने चरम पर नह पहँच गयी और िफर “जय ी !” के ज़ोरदार उ ोष के साथ
समा हई।
कु भकण ने भी आन द के साथ भु के नाम का उ ोष िकया।
“जय देवी इ तार!”
कु भकण ने अपने चार ओर मौजदू जोशीले न ृ य से पसीने भरे आनि दत चेहर को
देखा। कुछ के गाल पर आन द के आँसू बह रहे थे। कुछ अभी भी मोहाव था म थे। अजनबी
गले िमल रहे थे, एक-दूसरे को शुभकामनाएँ दे रहे थे। कु भकण को भी गले लगाया गया।
िकसी का यान नह गया लगता था िक उसके अ दर िवकृित है, िक वो नागा है।
“यहाँ कैसे आना हआ, कु भकण?”
कु भकण पलटा तो सामने एक ल बा, बेदाग़ गहरी भरू ी वचा वाला भावशाली
िदखने वाला पु ष था। य िप उसक प-रं गत से प था िक वो दमात का थानीय यि
है, मगर वो गे आ धोती और अंगव पहने था, िवराग और सं यास के रं ग के। मुंडे हए िसर
पर गाँठ लगी िशखा बता रही थी िक वो ा ण था। ल बी िखचड़ी दाढ़ी उसके चेहरे को नम
दान कर रही थी, और अपने ल बे डीलडौल के बावजदू अपनी शा त, भली आँख से वो
शाि त का अहसास दे रहा था। िन य ही वो शा तमना यि था।
कु भकण क भक ृ ु िट चढ़ गय । “मने पहले भी आपको देखा है।”
ा ण मु कुराया और उसने हामी भरी।
“कल, दरबार म?”
“सही है,” उस यि ने कहा। “म पीछे खड़ा था। आपक पैनी िनगाह है।”
“मह वपण ू लोग को म देख लेता हँ।” कु भकण ने िवन ता से मु कुराते और स मान
म हाथ जोड़ते हए कहा। “मगर मुझे नह पता था िक आप भी भगवान के भ ह।
आपका या नाम है, िम ?”
वह यि मु कुराया और यु र म उसने भी नम ते क । “आप मुझे मबकुर बुला
सकते ह, िम ।”
“मबकुर?” कु भकण हैरान था। “आप जानते ह सं कृत म एक श द है बकुर—
इसका अथ है तुरही।”
“जानता हँ। और, हमारी भाषा म, जब हम इसम म जोड़ देते ह तो इसका अथ होता है
महा तुरही।”
कु भकण खुल कर मु कुराया। “अ छा नाम है। मगर आप तो शाि तपण ू यि लगते
ह।”
“म बहत यु देख चुका हँ। और यह सािबत करने के िलए मेरे ऊपर बहत घाव ह।”
“तो मि दर के नगाड़ के प म शि शाली तलवार को रख िदया गया है?”
मबकुर ह के से हँसा। “न ृ य लड़ने से कह अिधक म त है, आप नह मानते?”
कु भकण भी हँसा, और उसने हामी भरी।
“मि दर का पुरोिहत बनने के मेरे अपने कारण थे,” मबकुर ने कहा। “आपके यापार
के म य थ बनने के या कारण ह जबिक प प से आपका मन इसम नह रमता है?”
“ मा चाहँगा? आप कह रहे ह िक म इसम कुशल नह हँ?” कु भकण समझ नह पा
रहा था िक बुरा माने या नह ।
“मने ऐसा नह कहा। मने बस यह कहा है िक आपका मन इसम नह रम रहा है। कल
मने आपका वातालाप देखा था। म चिकत था। आप बेहतर शत रख सकते थे। आपने हमारे
िलए बहत कुछ छोड़ िदया था।”
कु भकण चुप रहा।
“मुझे ऐसा लगा िक आप िकसी और बात क ितपिू त कर रहे थे। आव यकता से
अिधक ितपिू त, शायद। जैसे हमारी मदद करने से आपके मन से कुछ बोझ उतर जाता।”
कु भकण ने आसपास देखा। मि दर लगभग ख़ाली हो गया था। अिधकांश भ गण
चले गये थे। उसने वापस मबकुर को देखा। “आप कौन ह?”
“मेरे साथ बैठो, िम ।” मबकुर ने शा त वर म कहा।
वो मि दर के मु य क म त भ से पीठ िटकाए बैठे थे। कु भकण ने दूर ि थत
गभगहृ को देखा। उसम भगवान क पण ू आकार क ितमा थी : ल बे, खुले बाल और
ल बी दाढ़ी वाली ल बी, बिल छिव।
भगवान जैसे वा तिवक जीवन म रहे थे—भ य और भयंकर।
कु भकण ने दोन हाथ जोड़े और गहन ा मे नतम तक हो गया, मबकुर भी।
भगवान के दािहनी ओर थािपत एक देवी क ितमा भी लगभग भगवान के
समान ही ल बी थी। शा त चेहरे के न श अ क थे, य िप शरीर पर भारतीय शैली म
धोती, अंिगया और अंगव पहने हए थे। बाएँ हाथ म एक अंडा और दािहने म ल बी तलवार
उ ह ेम और यु क देवी बता रही थी। कु भकण और मबकुर ने देवी इ तार क ितमा को
भी णाम िकया।
लंकावासी ने एक बार िफर पछ ू ा, “आप कौन ह?”
“कोई जो तु हारी सहायता करना चाहता है,” मबकुर ने उ र िदया।
“िकसने कहा िक मुझे सहायता चािहए?”
“हर बात को कहा नह जाता है। जब आप िकसी को वयं को हािन पहँचाते देखते ह,
तो यह प है िक उ ह सहायता चािहए। मगर मेरा अनुमान है िक आप समझ नह पा रहे ह
िक मुझ पर भरोसा कर सकते ह या नह ...”
कु भकण मौन रहा।
मबकुर आगे को झुका और धीरे से बोला, “म हनुमान का िम हँ |”
कु भकण ने च क कर उसे देखा। हनुमान िव यात वायुपु जनजाित के सद य थे।
सोने के िदल वाले भले भीमकाय हनुमान सब ज़ रतम द क सहायता करने के िलए तैयार
रहते थे। बहत पहले एक बार उ ह ने कु भकण क जान बचायी थी। मगर उ ह ने उससे
वचन िलया था िक वो कभी इसके बारे म नह बतायेगा, और कु भकण ने उस वचन को
िनभाया था। मगर वो हमेशा हनुमान का कृत रहा था, और हमेशा उस ऋण को चुकाने के
अवसर क खोज म रहता था।
हनुमान का कोई िम उसका भी िम था।
“आप वायुपु ह?” कु भकण ने पछ ू ा।
मबकुर ने हामी भरी। हाँ।
“और आप मुझसे नफ़रत नह करते?”
मबकुर धीमे से हँसा। “म आपसे नफ़रत य क ँ गा?”
“मेरा मतलब...” कु भकण ने गहरी सांस ली। “म...”
“किहए।”
“देिखए, आप तो िद य वायुपु जनजाित के ह। वो जनजाित िजसे भगवान पीछे
छोड़ गये थे। आप पर भारत क पिव भिू म क र ा करने का दािय व है। और म उस यि
का भाई हँ जो भारत को न कर रहा है।”
“भारत को न ! सच?” मबकुर ने पछ ू ा, उनक आँख चुहल म फै ल गयी थ । “आपको
लगता है आपका भाई इतना शि शाली है?”
कु भकण ति भत रह गया था। उसे तो अपने भाई के िलए बड़ीबड़ी बात सुनने क
आदत थी। “ या? म समझा नह ।”
मबकुर मु कुराने लगा। “ये बताओ, कोई भारत को न करे तो तु ह कैसा लगेगा?”
“यह... यह मेरी भिू म है। म अपनी मातभ ृ िू म से ेम करता हँ।”
“और या तु हारी मातभ ृ िू म इतनी शि हीन है िक एक यि इसे न कर देगा? या,
म दूसरे श द म कहता हँ। अगर कोई भिू म इतनी अश है िक एक अकेला यि इसे न
कर दे तो या वो बचे रहने क अिधकारी है?”
“आप या कह रहे ह?”
“आपने म य याय के बारे म सुना है?”
“िकसने नह सुना? बड़ी मछली हमेशा छोटी मछली को खा लेती है। मेरा मानना है िक
आप इसे मछिलय का िवधान कह सकते ह।”
“आप जानते ह ना िक यह िवधान केवल मछिलय पर ही लागू नह होता है?”
कु भकण हँसा। “हाँ, जानता हँ।”
“यह कृित माँ का िवधान है। समथ जीिवत रहे गा।”
“हाँ, और यह ू र िवधान है। इसीिलए हम इससे दूर हो गये ह। हम उन लोग को नह
मारते जो हमसे कमज़ोर ह। हम उनक र ा करते ह।”
“यह मानव आचार-संिहता है, मगर कृित इस तरह से काम नह करती है। ू रता
और उदारता मानवीय धारणाएँ ह। कृित स तुलन को ाथिमकता देती है। और स तुलन
कभी-कभी कठोर ेम क माँग करता है।”
“कठोर ेम?”
“एक ेम होता है जो हम अश कर देता है, और िफर एक ेम होता है जो आपको
आगत के िलए तैयार करता है। कभी-कभी वो ेम कठोर तीत होता है, मगर यह आव यक
है। अगर आप ऐसे माता-िपता ह िजसे केवल यह और अभी क िच ता है, तो आप अपनी
स तान को वो सब कुछ दगे जो वो चाहता है, य िक आप उसके चेहरे पर मु कुराहट देखना
चाहते ह। िक तु अगर आप ऐसे माता-िपता ह िजसे अपनी स तान के भिव य क िच ता है
तो आप समझगे िक ब चे को िबगाड़ना वो सबसे बुरा काम है जो आप कर सकते ह।”
“हाँ, लेिकन अगर आप बहत अिधक कठोर ह गे तो बालक टूट जायेगा।”
मबकुर मु कुराया। “और कृित और हमारे बीच यही अ तर है। माँ कृित हर पल का
यान नह रखती है, वो उ रजीिवता के िनयम को भावी होने देती है। और हाँ, कभी-कभी
अश टूट जाते ह और न हो जाते ह। मगर मनु य िभ न है। हम सोच सकते ह और... हम
हर पल का यान रख सकते ह। हम कठोर ेम को सही तर पर संचािलत कर सकते ह :
इतना कठोर जो सश करे मगर इतना भी कठोर नह िक तोड़ दे।”
“इसका मेरे भाई या मुझसे या सरोकार है?”
“कभी आपने ठहर कर यह सोचा है िक माँ कृित के खेल क तरह, कुछ अिधक बड़े
बल भी हमारे जीवन को िनयि त करते ह? िक स भवत: आपके भाई ऐसे ही िकसी बल क
कठपुतली ह ?”
कु भकण इतना हैरान था िक कुछ बोल नह सका।
मबकुर ने अचानक बात बदल दी। “आपने कभी वन क आग देखी है?”
“देखी है।”
“वो अ छी होती है या बुरी?”
“यह तो िनभर करता है।”
“िकस बात पर िनभर करता है?”
“इस पर िनभर करता है िक आग िनयि त है या अिनयि त।”
“िब कुल ठीक। िनयि त आग सख ू ी लकिड़य को न कर देती है; सख ू ी लकिड़याँ
एक िब दु के बाद िवषा हो सकती ह और वन को न कर सकती ह। अगर भिू म को साफ़
करने के िलए छोटी, िनयि त आग का योग न िकया जाये तो यापक, अिनयि त आग
फै लने क स भावना बढ़ जाती है। और वन क अिनयि त आग सब कुछ भ म कर सकती
है। यह तो अ छा नह होगा, है ना?”
“यह िब कुल अ छा नह होगा।”
“िब कुल सही। तो वन क छोटी आग का योग उसी तरह िकया जाता है जैसे िकसी
बड़े िवष को मारने के िलए छोटे िवष का योग होता है।”
कु भकण तन गया। “मेरे भाई िवष नह ह।”
मबकुर मु कुराया। उसने उ र नह िदया। न ही मा माँगी।
कु भकण जाने के िलए उठ खड़ा हआ।
“हमारी बात अभी परू ी नह हई है,” मबकुर ने कहा।
“आपको य लगता है िक आप मेरे भाई से बहत बेहतर ह?” कु भकण ने िफर से
बैठते हए पछू ा। “मेरे िलए तो य तः िकसी 'दीघकािलक क याण’ के िलए लोग के क
पाने के ित आपक सहज वीकृित भी उतनी ही अनुिचत है िजतना वो जो मेरे भाई करते
ह।”
“आपको पता है, माँ कृित के ि कोण से दि ण का िवपरीत उ र नह , वाम होता
है।”
“यह तो बस कुतक है। आपका ता पय या है?”
“मेरा ता पय यह है िक कोई एक सही माग, एक आदश ि थित नह होती। संसार ायः
उन लोग के हाथ सबसे अिधक क पाता है जो स पण ू ता म िव ास करते ह, वो लोग जो
यह नह समझते िक कोई एक आदश नह है। मगर वा तिवक ानी जानते ह िक आप
केवल सव कृ हल तलाश सकते ह, आदश हल नह । ऐसा हल जो अिधकतम लोग क
सहायता करे , वही अनुसरण करने यो य है। य िक ऐसा हल नह हो सकता जो सब लोग
क सहायता कर सके। भारत इसिलए क पा रहा है िक ि य बहत शि शाली हो गये ह,
और अपने अहं म वो शू और वै य का दमन कर रहे ह। हम उनके िशकंजे को तोड़ना होगा
तभी समाज को िफर से सही माग पर लाया जा सकता है। और यही वो भिू मका है जो रावण
िनभा रहे ह। वो ि य को तोड़ सकते ह।”
“आप मुझे यह सब य बता रहे ह? म जाकर अपने भाई को बता सकता हँ िक आप
उनका इ तेमाल कर रहे ह।”
“और आपको आशा है िक वो आपक बात सुनगे?” मबकुर ने पछ ू ा। “आपको लगता है
िक वो अचानक धािमक हो जायगे?”
“आप मुझसे यह िव ास करने क अपे ा रखते ह िक आप लोग धािमक ह?”
मबकुर मु कुराया। “काश धम के का उ र इतनी सरलता से िदया जा सकता।”
“ यास करके देिखए।”
“धम जिटल है। हम अपना सारा जीवन इस चचा म िबता सकते ह िक या धम है और
या अधम। लेिकन असल म यह मायने रखता है िक या हमारा म त य धािमक है—
प रणाम हमारे िनय ण से बाहर है और इसिलए धम का मापदंड नह हो सकता।”
“म त य?”
“कोई दूसर के क याण के िलए काय करने का यास कर सकता है, जैसे उदाहरण
के िलए वायुपु कर रहे ह। या हम व तुत: सफल ह गे? यह तो केवल समय बतायेगा। मगर
हम जानते ह िक हमारे म त य पर स देह नह िकया जा सकता। हम दूसर के क याण का
ही सोच रहे ह, न िक मा अपने ल य का। धम क ओर यही पहला क़दम है। जब अ य के
िलए आप अपने वाथपण ू िहत क उपे ा करते ह।”
कु भकण आगे क ओर झुका। “एक बार िफर पछ ू ू ँ गा, आप मुझे यह सब य बता रहे
ह?”
“ य िक रावण क दानवी कृित का योग वहृ द क याण के िलए तो िकया जा
सकता है। मगर हम चाहते ह िक उनक आ मा को भी बचाया जाये।”
कु भकण क भक ृ ु िटयाँ तन गय । “और आपको म इतना भोला िदखता हँ िक यह
िव ास कर लँ ू िक वायुपु को उनक िच ता है?”
“ य नह ? हम तो सबक िच ता करते ह। भले ही हम सबक सहायता न कर पाय,
मगर हम सबक िच ता करते ह।”
“िक तु आप मुझसे या चाहते ह?”
“हम आशा है िक आप अपने भाई क सहायता करगे।”
“और आपको या लगता है िक म या कर रहा हँ?”
“बुरी सि धयाँ करवाने से आपके भाई क सहायता नह होगी।”
“हमारे पास इतनी स पि है िक हम उसका उपभोग नह कर सकते। म उसे थोड़ा-
बहत फै ला सकता हँ। कम-से-कम कुछ तो उपकार होगा। दान म िदया गया थोड़ा-सा भी धन
धम का काय होता है।”
मबकुर मु कुराया। “आपने भगवान िवदुर के बारे म सुना है?”
“िन स देह सुना है,” कु भकण ने उ र िदया। “उस महान दाशिनक के बारे म
िकसने नह सुना होगा, जो इितहास के सबसे े लोग म से ह?”
“भगवान िवदुर ने कहा था िक धन का अप यय करने के दो माग ह। एक, अपा को
दान दे कर। दूसरा, सुपा को दान न दे कर।”
“म तो...”
“आपक यापा रक रआयत से मेरे रा य के शासक और यापा रय को लाभ होगा।
उ ह दान नह चािहए। सहायता तो िनधन को चािहए। केवल दमात म ही नह , सब जगह
पर। उ ह तलािशए और उनक सहायता क िजए। अपने भाई के नाम पर उनक सहायता
क िजए। उनके िलए सुकम अिजत क िजये। अवसाद म मत पिड़ये। उ े य तलािशये। म
जानता हँ ज म के समय आपके भाई ने आपक जान बचाई थी। अब आपका कत य है िक
उनक आ मा क सहायता कर।”
मबकुर क बात यान से सुनते हए कु भकण िवचारम न िदख रहा था।
“और उससे िनराश मत होना,” मबकुर ने आगे कहा। “हम िनर तर प रवतन के काल
म रहते ह। मुझे िव ास है िक रावण क आ मा को िफर से बचाने का अवसर आयेगा। वो
इतने अ ानी हो सकते ह िक इसे न देख, मगर जब समय आयेगा तो उ ह आपक सहायता
क आव यकता होगी।”
कु भकण ने धीरे से कहा, उसक आँख नम थ । “म अपने भाई को खो चुका हँ। म
उनसे ेम करता हँ, िक तु मने उ ह खो िदया है। मने उ ह उनके ोध के हाथ खो िदया है।
उनक पीड़ा के हाथ । मने उ ह खो िदया है उनके दुख...”
“वेदवती क म ृ यु के दुख के हाथ ,” मबकुर ने कहा। “म जानता हँ।”
कु भकण ने मबकुर को घरू ा। उसे यह जान कर ध का लगा था िक उसे कोई ऐसी बात
पता है जो रावण के िलए इतनी यि गत है। और जो अिधकांश लोग से िछपी हई थी।
“यह न भल ू िक वो आपसे भी ेम करते ह। आप और उनका पु इ जीत ही स भवत:
दो ऐसे जीिवत यि ह िजनसे वो वा तव म ेम करते ह।”
“इ जीत भी उनसे ेम करता है। स भवतः मुझसे भी अिधक।”
मबकुर मु कुराया। “जानता हँ। मगर वो बालक है। वो अपने िपता क सहायता नह
कर सकता। कम-से-कम अभी नह । इसिलए रावण को बचाने का दािय व आपका है। इस
जीवन म यही आपका वधम है। इसे अ छे से िनभाय।”
अकंपन चकरा गया था। “मगर, इराइवा, म समझा नह । िमिथला? वो तो... वो तो कुछ नह
ह। उनका तो बस ानी और दाशिनक के तौर पर स मान िकया जाता है। उनके पास कोई
वा तिवक शि नह है।”
अकंपन का वा तिवक वामी रावण सामा य तौर पर तो उससे चुप रहने और जैसा
कहा गया हो वैसा करने को कहता। मगर मह वपण ू यि , बड़े काम करने वाले यि य
म आमतौर पर एक कमजोरी होती है : वो अपने बड़े काम क बात करना चाहते ह। वो
सुनना चाहते ह िक वो िकतने महान ह, श द म नह तो अपने अनुचर क आँख म शंसा
के भाव म। रावण भी िभ न नह था। सामा यतया वो अपनी योजनाएँ केवल कु भकण को ही
बताता था। इ जीत अभी बहत छोटा था, और अ य लोग के िलए रावण के मन म कोई
स मान नह था। मगर कुछ समय से, भाइय के बीच बातचीत तनावपण ू हो गयी थी।
कु भकण क लगातार धम क बात रावण को उबाने लगी थ ।
“शपथ लो िक इस बारे म कभी िकसी से कुछ नह कहोगे,” रावण ने कहा।
अकंपन ने तुर त लंका का मानक अिभवादन करने क दयनीय-सी कोिशश क ।
“िन स देह, इराइवा।”
“कु भकण से भी नह ।”
अकंपन का सीना गव से फूल गया। अ ततः उसके वा तिवक वामी ने उसके मोल
को पहचाना था। वो उस पर अपने र से अिधक िव ास जता रहे थे। “ व न म भी नह ,
इराइवा। म शपथ लेता हँ। म महा भु जग नाथ क शपथ लेता हँ।”
“तो म यह करने वाला हँ। जैसे ही म वयंवर को जीतंग ू ा, म िमिथला का अिध हण
कर लँगू ा और राजा जनक से अपने आदेश का पालन करवाऊँगा। म उ ह, और उनक ऋिष-
सभा को िववश कर दंूगा िक मुझे जीिवत ई र के प म वीकार कर। सांसा रक मामल म
िमिथला शि हीन हो सकता है, मगर जब बात आ याि मक मामल क आती है तो इसक
िगनती सवािधक पू य म होती है, शायद काशी के समक ही। केवल सर वती नदी के
िनकट थ भिू म ही इससे अिधक ा पाती है। अगर िमिथला मुझे ई र के प म पज ू ना शु
कर देगा तो स िस धु के कई अ य रा य भी इसका अनुकरण करगे। मेरे जीिवत रहते हए
ही वो मेरे मि दर बनवायगे। तब, और केवल तब म अमर व के ित आ त हो सकता हँ।”
वयंवर का एक और प भी था जो रावण को रोमांिचत कर रहा था। राजकुमारी सीता
से उसका िववाह स िस धुवािसय के िलए परू ी तरह अपमानजनक होगा; यह उ ह
िदखायेगा िक वो न केवल उनके ब दरगाह और स पि को, बि क उनक ि य को भी
लेने म स म है। इ ह कारण से उसने म दोदरी से िववाह िकया था। मगर म दोदरी तो बस
एक भू वामी क पु ी थी। सीता एक राजा क पु ी थ —असली राजकुमारी। एक राजप रवार
क क या से िववाह करके राजप रवार को अपमािनत करने के िवचार ने रावण को बेपनाह
स तुि दी थी। मगर वो अकंपन को यह नह बता सकता था। भले ही वो िन ावान सेवक
हो, मगर रावण उसके साथ तो अपने िनजी जीवन पर चचा नह कर सकता था।
इस बीच िन ावान सेवक अभी भी गहरे सदमे म था। “मगर इराइवा, आपको लगता है
िक वो मान...”
“मानगे।”
“म आपसे असहमत होने वाला कौन हँ? िक तु, मेरा मतलब... स िस धु के लोग
हठी ह। वो उतने खुले िवचार के नह ह िजतने हम लंकावासी ह। यहाँ तक िक िव णु और
महादेव के मि दर भी उनके जीिवत रहते नह बने थे।”
रावण आगे को झुका, उसका चेहरा अकंपन के चेहरे के िनकट आ गया था। “तुम कह
रहे हो िक म िकसी िव णु या महादेव से कम हँ?”
“ऐसा सोचने क भी मेरी िह मत नह होगी, महान इराइवा! आप तो िन स देह उनसे
भी महान ह। मगर मुझे यह नह पता िक स िस धुवासी भी या इस प स य को देखगे।
कभी-कभी लोग यह मानने से भी इंकार कर देते ह िक सय ू देव उिदत हो गये ह, भले ही िदन
चढ़ आया हो!” अकंपन ने चापलस ू ी भरी मु कुराहट के साथ कहा।
“तु ह इसक िच ता करने क आव यकता नह है। जो स य है उसे वो देखगे। मेरा
िव ास करो।”
“मुझे िव ास है िक आप सही कह रहे ह, इराइवा। अ यथा वो आपको य आमि त
करते?”
“उ ह ने इस बारे म नह सोचा था। मने उनसे ऐसा करवाया था।”
“सच?” अकंपन भािवत था।
“हाँ। संक य के राजा कुश वज िमिथला के राजा जनक के भाई ह। उन पर लंका का
भारी ऋण है। कुछ वष पहले जब अचानक उनके धानम ी सुलोचन क दयाघात से म ृ यु
हई, तब से उनके यापा रक काय अ त- य त हो गये ह। हमने उनका ऋण माफ़ कर िदया
और उ ह ने िनम ण का ब ध कर िदया।”
“यह तो बहत अ छे से हो गया, महान इराइवा।”
अकंपन क शंसा पर रावण स न िदखा। “हाँ, मने इसे बहत अ छे से िकया।”
“वैसे, िमिथला म हमारा भी कोई है, वामी।”
स िस धु के सभी रा य म रावण के अिधकृत यापा रक ितिनिध थे। मगर बस
इतना ही नह था। उसने सारे रा य म एक गोपनीय गु चर जाल भी िबछा िदया था। ये
गु चर और िन ावान लोग वेष बदल कर उसके िलए काम करते थे, और चुपचाप यह प का
करते थे िक उसक योजनाएँ भावी प से ि याि वत ह ।
“मुझे नह लगता था िक िमिथला हमारे िलए इतना मह वपण ू है िक हमने वहाँ िकसी
को रख छोड़ा है?” रावण ने कहा। “िक तु मुझे आशा है िक इससे हमारे उ े य म सहायता
िमलेगी। कौन है वो?”
“वैसे अनेक वष से हम सि यता से उसका संचालन नह कर रहे ह। जैसा आपने
कहा, वामी, िमिथला कोई बहत मह वपण ू रा य नह है, और उसके साथ हमारा कुछ अिधक
यापार भी नह है। मगर हमारे गु चर को रा य के शासन म बहत ऊँचा पद हािसल है—
िमिथला के नगर-र क और नयाचार मुख का।”
“कौन है यह पु ष?”
“ ी, वामी। उसका नाम समीची है।”
लड़क का नाम सुनकर रावण जड़ हो गया। कु भकण के अलावा उसने ऐसे िकसी
यि से सरोकार नह रखना चाहा था जो वेदवती क ह या के समय उसके साथ रहा हो।
उनक मौजदू गी उसे उस भयानक िदन क याद ही िदलाती रहती। उसके साथ टोडी गये
लंका के सभी सैिनक को ऐसी साधारण चौिकय पर भेज िदया गया था जहाँ उसे उ ह कभी
न देखना पड़ता। समीची का नाम सुनने भर से वो सारी याद वापस चली आयी थ और एक
बार िफर उसे वेदवती क र ा न कर पाने क याद िदला गयी थ ।
“उससे बात कर और सुिनि त कर िक सब कुछ मेरे प म तैयार हो,” उसने कहा।
“िब कुल, इराइवा।”
“कोई चकू नह होनी चािहए।”
“िब कुल सही, इराइवा।”
“और वहाँ होने के दौरान म समीची को देखना या उससे िमलना नह चाहता। या यह
प है?”
अकंपन उलझन म पड़ गया, मगर तुर त सहमत हो गया। “जैसा आप चाहगे,
इराइवा।”
पु पक िवमान कुछ देर हवा म ही मंडराता रहा, जबिक उसके घण ू क धीरे -धीरे म द पड़ रहे
थे। िफर, बहत आराम से, वो धरती पर उतरा। रावण के पास बेहतरीन िवमान-चालक थे।
जब ार िखसक कर खुला, तो रावण अपने िव यात उड़न-यान के गभ से बाहर
आया, उसके पीछे -पीछे कु भकण था। िकि क धा का राजा और महान वानर वंश का वंशज
वािल अपने परू े दरबार के साथ सुरि त दूरी पर खड़ा हआ था।
दस सह सैिनक क रावण क सेना पहले ही भारत के पवू समु और िफर गंगा के
माग से िमिथला के िलए चल पड़ी थी। अपने पोत से उतरने के बाद वो जनक के रा य क
ओर कूच करती और रावण के पहँचने क ती ा करती। इस बीच पया िदन थे तो िमिथला
जाते हए रावण ने िकि क धा कने का िनणय िकया।
िवशाल पाषाण-खंड और च ानी पहािड़य से भरा िकि क धा का देश च मा क
सतह जैसा था। उ र-पवू म बहती चंड तुंगभ ा बलखाती इस सपनीले देश म बहते हए
अ तत: उ र म कृ णा नदी म िमल जाती थी। कृित के साथ सामंज य और अिधकांश
वैिदक लोग क मिू त-पज ू क शैली के कारण नगर के अनके िह स म िवशाल मि दर का
िनमाण हआ था जहाँ पिव तुंगभ ा, इसके आसपास क भिू म और ाचीन देवताओं क पज ू ा
होती थी। िकि क धा का येक नगर िकसी मि दर के आसपास बसा था िजसके चार ओर
बाज़ार, े ागहृ , पु तकालय, उपवन और घर थे। वािल बुि मान और शि शाली राजा था।
उसका रा य सम ृ था और जा सुखी थी। और उसक वीरता, मान और सुिश आचरण क
याित दूर-दूर तक फै ली हई थी।
“कुछ गड़बड़ है,” ती ारत आितथेय क ओर बढ़ते हए कु भकण ने धीमे से कहा।
वहाँ पार प रक वैिदक वागत का कोई िच नह था, िजसक उ ह अपे ा थी। न
सजे-धजे हाथी, न अलंकृत गाय, और न ही आरती के थाल िलये पुरोिहत । यही नह , वागत
दल असहज चु पी से िघरा हआ था—वहाँ कोई संगीत या जय-जयकार नह हो रही थी।
शीष पर वािल मौन खड़ा था, उसके हाथ िवन नम ते म जुड़े हए थे। िकि क धा का
राजा गौर वण का, असामा य प से बाल भरा और औसत ल बाई का असाधारण प से
बिल शरीर का था। वो पर परागत सज-धज के साथ था मगर कुछ अ यमन क-सा िदख
रहा था।
“मुझे सु ीव नह िदख रहा,” रावण ने धीरे से कु भकण से कहा।
सु ीव वािल का छोटा सौतेला भाई था, और रावण क राय म अश मख ू था। सु ीव
को एक महान राजा के िबगड़े , आलसी भाई के प म देखने वाले अिधकांश लोग उसके ित
रावण क राय से सहमत होते, वो अपने अ यिधक सफल बड़े भाई क उपलि धय के सामने
कह नह ठहरता था और इसिलए अपनी असुर ाओं को वो मिदरा और त ू म भुलाता था।
सु ीव ने इतने अिववेकपण ू काम िकये थे िक वो रा य से िनकाल िदये जाने के यो य था,
मगर उनक माँ आ िण के संर ण के कारण वािल अपने छोटे भाई को िन कािसत नह कर
पाया था।
“मुझे भी नह िदख रहा,” कु भकण ने नम वर म कहा।
अवसर क संघ ू पाकर रावण मु कुरा िदया।
िकि क धा मातवृ ंशीय समाज था। िसंहासन पर अिधकार िपता से पु को नह िमलता था,
बि क माँ से बेटी को ा होता था। बेटी का पित राजा के प म माँ के पित का थान लेता
था। मगर हठी और शि शाली देवी आ िण ने इस पर परा को तोड़ा और अपने यो य बड़े पु
को राजा बनाया। उनक कोई पु ी नह हई थी, और पर परा के अनुसार राजवंश को अपनी
छोटी बहन क ी वंशज के हवाले करने के थान पर उ ह ने तय िकया िक स ा को
अपने ही प रवार म रखगी।
रावण इस इितहास से प रिचत था, मगर इस समय िकि क धा के महल के अितिथगहृ
म वािल के पास बैठे हए उसे इसम िच नह थी। कु भकण के िसवा आसपास और कोई नह
था, वािल के अंगर क भी नह । िच ता दशाते हए रावण क भाव-भंिगमा सावधानी से तराशी
हई थी। “आप याकुल िदख रहे ह, राजा वािल। आशा है आपको िदया जाने वाला सीमा-शु क
का भाग बहत कम नह होगा? कभी-कभी मेरे आदमी कुछ अिधक लालची हो जाते ह,”
उसने कहा।
वािल फ केपन से मु कुराया। “आपके लोग जानते ह िक मुझसे पंगे नह िलए जा
सकते। म वािल हँ।”
रावण िदल खोल कर हँसा। “आप वीर ह, मेरे िम ।”
वािल ने रावण को देखा, उसके चेहरे पर दुख था। य िप वो मौन रहा, मगर उसक
सनू ी आँख जैसे बोल रही थ । वीर? म?
अब रावण को िव ास हो गया था िक उस सुबह अपने गु चर से उसे िमली सच ू ना
सही थी। मगर अपना पाँसा फकने से पहले उसे सुिनि त होना था।
“िम ,” उसने कहा। “अंगद कहाँ ह? मुझे वो कह िदखाई नह दे रहे ? आशा है वो
व थ ह गे?”
अंगद वािल का पाँच वष य पु और उसक आँख का तारा था। कठोर, खा और
िवर वािल, िजसे लोग ेम से अिधक स मान करते थे, अपने इकलौते पु के साथ होने पर
िब कुल िभ न यि होता था। जब भी अवसर िमलता तो वो उसके साथ हँसता, खेलता,
और उसे दुलारता था। कभी-कभी अंगद के िलए घोड़ा भी बन जाता था। अंगद के ज म से ही,
िकि क धा के नाग रक , यहाँ तक िक राजप रवार के लोग , ने भी वािल का एक
अनौपचा रक, म तमौला प देखा था।
“हाँ... अंगद... वो...” वािल बोलते-बोलते क गया, उसके चेहरे पर पीड़ा छा गयी थी,
उसक आवाज़ ँ ध गयी थी।
अब रावण को यक़ न हो गया था िक उसक सच ू ना सही है। उसने अपनी सांस को
िनयि त िकया। वो अपने उ साह को िदखने नह दे सकता था।
बाद म। िकि क धा को म बाद म हिथयाऊँगा। िमिथला पर अिध हण करने के बाद।
दूसरी ओर, कु भकण वािल के चेहरे पर िदख रही पीड़ा से अचि भत था। उसने
िकि क धा के शि शाली राजा को कभी इस हाल म नह देखा था। “महान राजा,”
कु भकण ने कहा, “सब कुशल तो है?”
वािल अचानक उठा और उनके सामने हाथ बाँधकर खड़ा हो गया। “मुझे मा कर,
िम ो। मुझे... मुझे जाना होगा। म कुछ देर म आता हँ।”
रावण और कु भकण भी तुर त खड़े हो गये।
“अव य, वािल,” रावण ने कहा, उसका चेहरा िच ता क त वीर िदख रहा था। “अगर
हम कुछ कर सकते ह तो कृपया हम बताइयेगा।”
“ध यवाद। हम बाद म बात करगे।” यह कहते हए वािल ल बे डग भरता क से बाहर
िनकल गया।
कु भकण जाते हए वािल को तकता रहा और िफर अचि भत-सा अपने बड़े भाई क
ओर मुड़ा। “मुझे नह पता था राजा वािल अपनी माँ से इतना ेम करते थे।”
एक माह पहले ही वािल क माँ आ िण का अ पकािलक बीमारी के बाद देहा त हो
गया था।
“बात उसक माँ क नह है,” रावण ने कहा।
कु भकण हैरान िदखा। “िफर या बात है? वो तो एकदम िनढाल िदखते ह। मने कभी
सोचा भी नह था िक वो िकसी भी िवपदा से इतने हताश हो सकते ह। उ ह कोई बात तो
खाये जा रही है।”
यह प का करने के िलए िक वो लोग वा तव म अकेले ही ह, रावण ने ार क ओर
एक िनगाह डाली। “हम जो बात कर रहे ह, वो हमारे बीच ही रहनी चािहए। परू ी तरह से हमारे
बीच।”
“िन स देह,” कु भकण ने तुर त कहा। “बात या है?”
“बात अंगद क है।”
“अंगद क ? या उस यारे बालक को कुछ हो गया है?”
“उसे अभी तो कुछ नह हआ। मामला वो है जो उसका ज म होने से पहले हआ था।”
“उसके ज म से पहले?”
“हाँ। या तु ह िनयोग क पर परा क जानकारी है?”
कु भकण अवाक रह गया। िनयोग एक ाचीन पर परा थी िजसके ारा वो ी
िजसका पित स तान उ प न करने म असमथ हो, िकसी अ य पु ष से उसे गभवती करने
क ाथना कर सकती थी। िविभ न कारण से, यह पु ष साम यतया कोई ऋिष होता था।
एक तो, अिधकांश ऋिषय का उनक उ च बौि क मताओं के िलए आदर िकया
जाता था, एक ऐसा गुण िजसके उनक स तान म आने क स भावना होती थी। उससे भी
मह वपण ू , चँिू क अिधकांश ऋिष घुम तु सं यासी होते थे, इसिलए यह लगभग िनि त होता
था िक वो स तान पर अपना दावा नह करगे। िवधान के अनुसार िनयोग रीित के मेल से
उ प न स तान उस ी और उसके पित क वैध स तान मानी जाती थी; ज मदाता िपता
िपत ृ व का दावा नह कर सकता था और उसे सदैव गुमनाम रहना होता था।
“जैसा मेरे गु चर ने मुझे बताया है,” रावण ने आगे कहा, “एक बार सु ीव को बचाते
हए वािल बहत बुरी तरह से घायल हो गया था। यह बहत वष पहले एक िशकार के दौरान
हआ था। उसका जीवन बचाने वाली औषिधय का दु भाव यह हआ िक उसक स तान नह
हो सकती थी। य कारण से इसे गोपनीय रखा गया था।”
“इनका वो िनकृ भाई,” कु भकण ने अ स नता से कहा। “तो आपका मतलब है
िक राजा वािल क प नी तारा ने िनणय िलया...”
“तारा ने नह ,” रावण ने बात काटी। “ प प से यह उनक माँ थ । रानी माँ ने तय
िकया िक वािल के बाद उसक स तान को िकि क धा पर शासन करना चािहए। और इसका
हल पाने के िलए वो िनयोग क ओर मुड़ ।”
“तो या?” कु भकण ने पछ ू ा। “अगर अंगद उनका अपना पु नह है तो इससे या
अ तर पड़ता है? िनयम प ह। चँिू क राजा वािल रानी तारा के पित ह, तो उनके पु के
िपता वही माने जायगे, भले ही स तान का ज मदाता कोई और हो। और अंगद अ ुत बालक
है। एक िदन वो महान राजा बनेगा। म देख सकता हँ, इस न ही उ म भी, िक उसने अपने
नेक िपता का जोश, उ साह और बुि पायी है।”
“मामला इससे कुछ अिधक जिटल है।”
“वो कैसे?”
“तुम जानते हो आ िण कैसी थ ।”
“हाँ, मने रानी माँ के हठी यवहार क कहािनयाँ सुनी ह...”
“हाँ, खैर, मुझे लगता है जब लोग म ृ यु के िनकट पहँचते ह, तो अपनी आ मा के बारे
म सोचने लगते ह। वो अपने पाप का ायि त करना और 'सच बता देना' चाहते ह।”
“उ ह ने राजा वािल को या सच बताया?”
“ य तः, जब आ िण ने िनणय िलया िक वंश जारी रखने के िलए िनयोग अिनवाय
है तो वो वािल क प नी को िकसी ऋिष के पास नह ले जाना चाहती थ ।”
“तो उ ह ने या िकया?”
“वो सुिनि त करना चाहती थ िक उनक वंशावली ही शासन करती रहे । तो
उ ह ने...”
“हे ई र!” सारी बात समझ म आते ही कु भकण के मँुह से िनकला।
सु ीव।
वाली क पीड़ा को महसस ू करते हए कु भकण िसर पकड़ कर बैठ गया। “म तो
क पना भी नह कर सकता िक वो िकतने दुखी ह गे। अंगद उनका गव और आन द है। और
अब... सच जानना... िक अंगद क रग म सु ीव का नीच र बह रहा है...”
“यही तो।” रावण ने कहा।
“ या अंगद जानता है?”
“जहाँ तक मुझे पता है, वो नह जानता।”
“तो रानी माँ ने राजा वािल को यह बता िदया?”
“हाँ। अपनी म ृ युशयै ा पर।”
“वो इस िवषय म चुप य नह रह पाय ?”
“अपराधबोध? उ ह अहसास होगा िक उ ह ने वािल के साथ सही नह िकया है और
अपनी म ृ यु से पहले वो उसके सामने यह वीकार करना चाहती थ ।”
“िकतनी वाथ बात है! अपनी आ मा के बुरे कम को धोने के िलए उ ह ने अपने पु
को यह बताया और उसे जीवन भर का दुख भट कर िदया।”
“तुम तो जानते हो माँएँ िकतनी वाथ हो सकती ह...”
कु भकण ने इस यं य को अनदेखा कर िदया। “ या राजा वािल ने उस भी सु ीव
से बात क ?”
“हाँ, और उसने भी यह वीकार कर िलया, और कहा िक इस मामले म उसके सामने
कोई चारा नह था। िक उसने तो बस उनक माँ क आ ा का पालन िकया था।”
“बकवास!” कु भकण ने कहा। “म िनि त कह सकता हँ िक सु ीव इस याशा से
स न होगा िक एक िदन उसक स तान िसंहासन पर बैठेगी।”
“वािल को जब सच का पता लगा तो उसने सु ीव को रा य से िनकाल िदया,” रावण
ने कहा। “म तो उसे मरवा देता!”
“भगवान दया कर!” कु भकण ने कहा। “कैसी आपदा है।”
रावण को वािल से सहानुभिू त थी, मगर वो अपनी झोली म आ पड़े सौभा य को ले कर
स न हए िबना नह रह पा रहा था। अब वो सु ीव और वािल के बीच लेश का लाभ उठा
कर वानर वंश को िमटा सकता था और सम ृ िकि क धा को लंका के अधीन कर सकता
था। वािल क सेना उसके अधीन हो जाती और आव यकता पड़ने पर लंका क र ा करने के
काम आती।
उसने चैन क सांस ली। उसे अ तत: उस सम या का हल िमल गया हो सकता है
िजससे वो बहत समय से जझ ू रहा था : लंका म उसक सेना क घटती सं या।
मगर उसे लगता था िक कु भकण उसक योजना का अनुमोदन नह करे गा। यह उसे
अकेले ही करना होगा।
अ याय 25
भारत क पिव भिू म से सह फुट ऊपर पु पक िवमान अबाध गित से उड़ते हए िकि क धा
से िमिथला जा रहा था। रावण और कु भकण सुर ा के िलए ब धन कसे हए आरामदेह
कुिसय पर बैठे थे। शी ही वो िमिथला म उतरने वाले थे, इतना समय रहते िक रावण
राजकुमारी सीता के वयंवर म शािमल हो सके।
मगर इस समय उनका मन िमिथला या सीता म नह था।
“ चय, कु भ?” रावण ने मँुह बनाया। “सच म? ि य को केवल एक ही उ े य से
रचा गया है। और चय अपना कर तुम उनके इस उ े य को परू ा नह करोगे?”
“उफ़, दादा, आप ि य के ित इतने अस मानजनक य ह?” कु भकण ने पछ ू ा।
उसे पता था िक यह कह कर उसने अपने बड़े भाई को कर िदया है िक वो भारत के
सुदूर दि ण म ि थत भगवान अय पा के पिव मि दर क या ा पर शबरीमला जाने के िलए
इकतालीस िदन क शपथ लेने वाला है। रावण ने इसे इस बात के एक और संकेत के तौर पर
देखा था िक उसका भाई उससे दूर हो रहा है और एक कठोर धािमक जीवनशैली अपनाने क
ओर बढ़ रहा है।
“ या तुम चाहोगे िक म उनका स मान क ँ , यारे भाई?” रावण ने हँसते हए पछ ू ा।
“िव ास करो, ि याँ आदर-स मान नह चाहती ह। वो तो बस यह चाहती ह िक कोई उनका
भरण-पोषण करे और उ ह सुर ा दान करे । बदले म, वो ेम, या उसके िमलती-जुलती जो
भी व तु होती हो उसे, देने के िलए तैयार रहती ह!”
“दादा, आप दूसरी बार िववाह करने जा रहे ह। मुझे सच म लगता है िक आपको ि य
के िवषय म अपने िवचार बदलने चािहए।”
“देखो, कु भ, म प ह िदन म इतनी ि य का उपभोग करता हँ िजतना तुमने
जीवन भर म नह िकया होगा। म जानता हँ वो कैसे सोचती ह। वो भले ही यह कह िक उ ह
अ छे , संवेदनशील पु ष पस द ह। मगर याद रखो, ि याँ वो कभी नह कहत जो उनके
मन म होता है। वा तिवकता म, वो भले, घरे लू िक़ म के पु ष को अश और अिव सनीय
मान कर दरिकनार कर देती ह। उ ह असली पु ष चािहए होते ह—सबल, कठोर पु ष।”
“हमारा धम कहता है िक असली पु ष वो है जो ि य का स मान करता है।”
“यानी असली पु ष वो है जो आ मसमपण कर दे और ि य के पाँव क जत ू ी बन
जाये?”
“मने ऐसा तो नह कहा। असली पु ष वो है जो अपना स मान करता है और दूसर के
साथ भी स मानजनक यवहार करता है।”
“बकवास। म अपने अनुभव से बता सकता हँ, चार ि याँ िमल कर भी एक पु ष के
समान नह हो सकत । वा तव म, चार सौ ि याँ भी एक पु ष के समक नह हो सकत ।”
“ या बेकार क बात है! आप अपनी बात सुन भी रहे ह, दादा?”
“हमेशा सुनता हँ। और म कुछ अनुिचत नह सुनता!”
कु भकण ने अपनी अ स नता को दबाने के िलए गहरी सांस ली। “जाने दीिजए।
आपके िवचार मेरे िव ास या उन वचन को नह िडगा सकते जो म भगवान अय पा के िलए
लँगू ा।”
“तु हारा चारी रहना िकसी भगवान को कैसे स न कर सकता है?” रावण ने
उपहास िकया, वो प प से कु भकण को ोध िदलाने क कोिशश कर रहा था।
“यह केवल चय क बात नह है, दादा,” कु भकण ने धैय से समझाया। “वचन ले
कर, म पवू महादेव भगवान और िव णु देवी मोिहनी के पु भगवान अय पा के ित
अपनी िन ा क शपथ ले रहा हँ। य िप देश भर के हजार मि दर म भगवान अय पा क
पजू ा क जाती है मगर यह त केवल शबरीमला के मि दर के िलए िलया जाता है। वन क
देवी शबरी के नेत ृ व म उस े क एक व य जनजाित मि दर क देखरे ख करती है। और
सभी भ के िलए िनयम प प से बनाये गये ह।”
कु भकण ने अपनी उँ गिलय पर िनयम िगनवाये : “इकतालीस िदन के त क अविध
म हम माँस-मिदरा का सेवन नह करगे। हम भिू म पर सोयगे। हम शारी रक प से या अपनी
वाणी से िकसी को आहत नह करगे। हम सभी सामािजक समारोह से दूर रहगे। उ े य सादा
जीवन जीने और उ म िवचार पर यान केि त करने का है।”
“यह सब कुछ बहत भला सुनाई देता है। मगर मुझे एक बात बताओ, तुम कहते रहते हो
िक तुम ि य का िकतना स मान करते हो। मगर तुम जानते हो ना िक शबरीमला मि दर
म ि य को जाने क अनुमित नह है? या यह उनके ित अस मानजनक नह है?”
“ि य को अनुमित है! िब कुल है। केवल उन ि य को इस मि दर िवशेष म जाने
क अनुमित नह है जो अपने जीवन के जनन काल म होती ह। मल ू प से, रज वला होने
म स म ि य के िलए वेश विजत है।”
“अहा! तो तु ह लगता है जनन अशु है? और रज वला ि याँ मि दर को दूिषत
कर दगी? तुम जानते हो िक उ र-पवू भारत के कामा या मि दर म माहवारी के र को
पिव माना जाता है और उसक पज ू ा होती है?”
“आप जानबझ ू कर मुझे ग़लत समझ रहे ह, दादा। रज वला ि य पर ितब ध का
माहवारी के र के अशु होने से कोई स ब ध नह है। कोई भी भारतीय ऐसा कैसे सोच
सकता है? इसका कारण तो सं यास माग है।”
कु भकण आगे कहता गया, “जैसा आप जानते ह, भारत के लगभग सभी मि दर
गहृ थ माग का पालन करते ह। इन मि दर के अनु ान सांसा रक जीवन के इद-िगद
िनिमत ह, वो पित-प नी के, माता-िपता और स तान के, या िकसी वामी और उसके सेवक
के बीच स ब ध का अनु ान करते ह। सं यािसय के भी मि दर होते ह, उनम से अिधकांश
सुदूर पहाड़ी े म च ान को काटकर बनाई गयी गुफाएँ ह; इनम अ-सं यािसय को जाने
क अनुमित नह होती। सं यािसय के मि दर म जाने का एकमा तरीक़ा सभी लौिकक
मोह को यागना, अपने प रवार और भौितक स पि को यागना और थायी प से
सं यासी मत म शािमल होना होता है।”
रावण ने च कने का नाटक िकया। “तुम या सं यासी हो रहे हो? तुम मुझे छोड़ दोगे?
या है यह!”
कु भकण हँस पड़ा। “दादा, मेरी बात सुन। शबरीमला मि दर उन लोग के िलए नह है
जो थायी सं यास ले चुके ह। हम बस इकतालीस िदन सं यासी रहने का त लेना होता है।
यह हम एक सं यासी के जीवन का छोटा-सा अनुभव दान करता है। अगर आप यह समझ
ल तो पहले मने जो भी वचन बताये ह, उनक साथकता समझ म आती है। इन इकतालीस
िदन के िलए हम जीवन के सभी आन द और सुिवधाओं के साथ ही चरम भावनाओं से दूर
रहना होता है। इसीिलए मांस-मिदरा के भ ण और काम का िनषेध है। मि दर पु ष सं यास
माग को समिपत है, इसिलए जनन चरण म मौजदू ि य का वेश विजत है, मगर क याएँ
और व ृ ि याँ यहाँ जा सकती ह। इसी कार, ी सं यास माग को समिपत मि दर भी ह
जहाँ वय क पु ष को जाने क अनुमित नह होती जैसे कुमारी अ मन मि दर म। िक नर
लोग के सं यास के िलए भी मि दर ह। ग़लतफ़हिमयाँ तब पनपती ह जब आप जैसे
सांसा रक लोग हमारे सं यासी तौर-तरीक़ को ठीक से नह समझते ह।”
“ठीक है, ठीक है, म हार मानता हँ,” रावण ने कृि म समपण म अपने हाथ उठाते हए
कहा। “अपनी तीथया ा पर जाओ। कब है यह? कुछ माह म?”
“हाँ,” कु भकण मु कुराया और बुदबुदाया, “ वािमये शरणम् अय पा।”
हम भ ु अय पा क शरण म जाते ह।
रावण अपने छोटे भाई का उपहास भले ही उड़ा रहा हो, मगर वो भगवान अय पा का
िनरादर नह करने वाला था। वन के देवता अ ततः भगवान और देवी मोिहनी के पु थे।
उ ह िव के महानतम यो ाओं म माना जाता था।
उसने भी कु भकण के साथ दोहराया, “ वािमये शरणम् अय पा।”
रावण कुछ और कहता, इससे पहले ही उ च वर म घोषणा हई। “हम धरती पर उतरने
वाले ह। कृपया अपनी पेिटयाँ जाँच ल।”
रावण और कु भकण ने दोबारा अपनी उन पेिटय को जाँचा िजनसे वो अपनी कुिसय
से बँधे हए थे। पु पक िवमान म उपि थत सौ सैिनक ने भी यही िकया।
रावण ने मोखल से नीचे ि थत धरती-पु क नगरी िमिथला को देखा। ऊपर आकाश
से िमिथला भारत के अ य बड़े नगर से बहत िभ न िदख रही थी, जो अिधकतर निदय के
िकनारे बसे हए थे। िमिथला मल
ू प से नदी-प न नगर था, मगर कुछ दशक पहले गंडक
नदी रा ता बदलकर पि म क ओर बहने लगी थी, इससे िमिथला क िनयित नाटक य प
से बदल गयी थी। स िस धु के महान नगर म िगनी जाने वाली िमिथला का तेज़ी से पतन
हआ था। अब यह सा ा य के अ य नगर क तुलना म कह अिधक द र हो गया था, जो
वयं रावण के हाथ द र हो रहे थे। ि थित यहाँ तक पहँच गयी थी िक रावण ने िमिथला म
अपने उप- यापारी रखना भी र कर िदया था। उनके िलए वहाँ पया काम ही नह था।
“नगर के लगभग सब ओर इतना घना वन पनपते देखना दुलभ ही है,” रावण ने
कहा।
वषा ऋतु म भरपरू वषा होने के कारण उपजाऊ, दलदली मैदान होने के चलते िमिथला
के आसपास क भिू म अ य त उपजाऊ थी। चंिू क िमिथला के िकसान ने बहत अिधक भिू म
साफ़ नह क थी, इसिलए वन ने कृित क देन का लाभ उठाते हए नगर के चार ओर एक
घनी सीमा बना दी थी।
“खाई को देख,” कु भकण ने हैरानी से कहा।
ऊपर से उ ह दुग के चार ओर एक जलाशय िदख रहा था जो कभी सुर ा मक खाई
के प म काय करता होगा, िजसम सुर ा-उपाय के तौर पर घिड़याल होते ह गे। अब यह
पानी िनकालने के िलए झील बन गयी थी।
झील ने अपनी प रिध के भीतर सारे नगर को इतने भावी ढं ग से समेटा हआ था िक
िमिथला एक ीप जैसा िदख रहा था। िवशाल चरिखयाँ झील से पानी ख च रही थी, िजसे
पाइप के मा यम से नगर म ले जाया जा रहा था। जल तक आसानी से पहँचने के िलए
िकनार पर सीिढ़याँ बनायी गयी थ ।
“अब इनके पास समुिचत सुर ा मक खाई नह है!” रावण ने आ य से कहा।
“मुझे लगता है यह चतुर काम है। उ ह उसक आव यकता ही नह है। कोई िमिथला
पर आ मण य करे गा? यहाँ लटू ने के िलए धन है ही नह । और अपनी एकमा स पि वो
मु ह त से बाँटते ह : अपना ान।”
“ह म... सही कहते हो।”
जब दोन भाई दुग के चार ओर बनी खाई को देख रहे थे, तो उनका यान दुग क
मु य दीवार के लगभग एक िकलोमीटर अ दर ि थत एक भीतरी दीवार पर गया। दुग क
बाहरी और भीतरी दीवार के बीच के े को सुघड़ता से खेत म बाँट िदया गया था। अनाज
क फ़सल काटे जाने के िलए तैयार िदख रही थ ।
रावण भािवत हो गया था। “उ म िवचार है। कम-से-कम िमिथला म िकसी को सै य
ान तो है।”
दुग क दीवार के भीतर फ़सल उगाने से िकसी भी घेराव के दौरान खा -आपिू त तो
सुरि त हो जाती। साथ ही, य िक वहाँ कोई मानव ब ती नह थी तो, अगर कोई बाहरी
दीवार म सध लगा कर घुस भी जाये यह े उसके िलए घातक सािबत होता। शी ता से पीछे
हटने क िकसी आशा के िबना अ द नी दीवार तक पहँचने क कोिशश म िकसी भी
आ मणकारी बल को अपने बहत से सैिनक गँवाने पड़ते।
कु भकण अपने बड़े भाई से सहमत था। “हाँ, यह उ कृ सै य िनमाण है; दुग क दो
दीवार और बीच म वीरान भिू म। हम भी इसे आजमाना चािहए।”
जब कुछ देर पु पक िवमान भिू म के ऊपर मंडरा रहा था तो उ ह िमिथला का एक
मु य ार िदखायी िदया। ार पर भारत के अिधकांश दुग के िवपरीत कोई राजिच अंिकत
नह था।
इसके बजाय, ार के ऊपरी आधे िह से पर देवी सर वती क छिव उकेरी गयी थी।
छिव के नीचे एक ोक िलखा हआ था, मगर दूर से उसे पढ़ा नह जा सकता था।
“पता नह इस ोक म या है,” रावण ने कहा।
“मुझे याद है अकंपनजी ने मुझे इस बारे म बताया था,” कु भकण ने कहा।
वगहृ े पू यते मखू ः, व ामे पू यते भुः
वदेशे पू यते राजा, िव ा सव पू यते।”
एक मख ू क पज ू ा उसके घर म होती है। एक मुिखया क पज ू ा उसके गाँव म होती है।
एक राजा क पज ू ा उसके रा य म होती है। मगर िव ान क पज ू ा सब जगह होती है।
रावण मु कुराया। सच म, ान को समिपत नगर। सच म, ऋिषय का ि य नगर। सच
म, वो नगर जो उसके उ े य को परू ा करे गा।
धातु के छोटे, गोलाकार पद मोखल पर फै ल गये, िज ह ने य को अव कर िदया
था।
“हम उतर रहे ह,” कु भकण ने कहा।
जब घण ू क का गजन ह का हआ, तो पु पक िवमान धीरे -धीरे भिू म पर उतरा। यह दुग
क बाहरी दीवार के बाहर वन क सीमा के आगे साफ़ मैदान म, अपने िलए िनधा रत थान
पर उतरा था। रावण का दस सह से अिधक सैिनक का अंगर क द ता पहले ही
यवि थत संरचना म वहाँ मौजदू था।
रावण ने गहरी सांस ली। “काम करने का समय आ गया।”
वयंवर के िदन रावण और कु भकण तीस सैिनक के साथ अपने िशिवर से चले। प ह
सैिनक उनके आगे चल रहे थे और प ह पीछे । सैिनक अपनी परू ी सज-धज के साथ थे, जैसे
दुिनया के सम ृ तम रा य के ितिनिधय को होना चािहए। वो लंका क पताका िलये हए थे:
काले वज, िजन पर लपट के बीच से िनकलते दहाड़ते िसंह का िसर बना था।
यह देखते हए िक वयंवर म उनका वागत नह था, कु भकण ने परू ी तरह अ -
श से लैस एक सह सैिनक क पलटन तैयार क थी िजसे रावण और उसके अंगर क
के पीछे रहना था। उ ह वयंवर थल के बाहर ती ा करनी थी। कु भकण परू ी सुर ा के
साथ चलना चाहता था, मगर मलयपु को उकसाये िबना।
लंकावािसय ने झील पर बने नाव के पुल को पार िकया और बाहरी दीवार के खुले
ार से होते हए भीतरी दीवार के पार चले गये। रावण और कु भकण के पीछे चल रहे सैिनक
शंख बजाते हए अिधक-से-अिधक यान आकिषत कर रहे थे।
िमिथला के अिधकांश नाग रक वयंवर क ओर जा रहे थे, या पहले ही वहाँ पहँच चुके
थे। जो थोड़े -बहत नगर म रह गये थे, वो इस शोभाया ा को देखने के िलए अपने घर से
बाहर िनकल आये थे। िव के सम ृ तम और सबसे शि शाली यि क शोभाया ा। लंका
के दल क तड़क-भड़क को देख कर िमिथला के शाि ति य िनवासी पीछे हट गये। वो िकसी
भी कार से लंकावािसय को ु करना या भड़काना नह चाहते थे।
रावण ने अपनी ि आगे के माग पर रखी, उसक भंिगमा ऐसे राजा क -सी थी जो
यु से िवजयी होकर लौटा हो। उसने तो िमिथला के दीन-हीन नाग रक क ओर एक िनगाह
तक नह डाली थी।
वयंवर का आयोजन राजदरबार क बजाय महल प रसर के अ दर धमसभा म िकया
गया था। यह भवन राजा जनक ने िमिथला िव िव ालय को दान कर िदया था और यहाँ
िनयिमत प से िविभ न गढ़ ू िवषय —इस भौितक संसार के म, आ मा क कृित, सिृ
के ोत, मिू त-पज ू ा के मह व और सौ दय, नाि तकता के दशनशा ीय प ीकरण आिद
—पर वादिववाद और चचाएँ हआ करती थ । राजा जनक दाशिनक-राजा थे जो अपने रा य
के सभी संसाधन को आ याि मक और बौि क अिभ िचय के मामल पर केि त करते थे।
व ृ ाकार क के शीष पर एक बड़ा-सा, भ य गु बद था। उसक दीवार अतीत के
महानतम ऋिषय और ऋिषकाओं के िच से सुशोिभत थ । कुछ मायन म, व ृ ाकार िव यास
राजा जनक क शासिनक नीित का तीक था : सभी ि कोण के ित आदरभाव ।
वादिववाद के दौरान सभी समान तर पर बैठते थे, समक क भाँित, िबना िकसी
संचालक ' मुख' के, और खुल कर, िनभयता से िवषय पर चचा करते।
वयंवर के िलए, क के वेश ार के पास एक अ थायी तीन तरीय दशक दीघा
बनायी गयी थी। दूसरे छोर पर, एक लकड़ी के मंच पर राजा का िसंहासन रखा था। िसंहासन
के पीछे एक ऊँची पीिठका पर िमिथला के सं थापक राजा िमिथ क मिू त रखी हई थी। राजा
के िसंहासन के दाएं -बाएं कुछ कम भ य दो आसन और रखे गये थे। िवशाल क के बीच के
थान म एक घेरे म आरामदेह आसन लगे हए थे जहाँ राजा और राजकुमार—स भािवत वर
—बैठे थे।
लंका के शंख के ती नाद के साथ रावण और कु भकण ने अपने तीस अंगर क के
दल के साथ परू ी भ यता से वेश िकया। एक हजार सैिनक का दल क के बाहर ती ा
कर रहा था। िनगाह से दूर, मगर िनकट ही। आव यकता पड़ने पर राजा क सहायता के
िलए हमला बोलने को तैयार।
सारे ब ध को देखते हए रावण और कु भकण आगे बढ़े ।
तीन- तरीय दशक दीघा के ऊपरी तर आम नाग रक से भरे हए थे, जबिक कुलीन
वग और सम ृ यापा रय ने पहले चबत ू रे पर आसन जमाया हआ था। ितभागी एक घेरे म
क के म य म आरामदेह आसन पर िवराजमान थे। हर आसन भरा हआ था। वयं िनगाह
म आये िबना राजकुमारी सीता सारा आयोजन देख सकती थ , य िक उ ह ने इसे गु
वयंवर बनाने का िनणय िलया था।
क के म य म, औपचा रक प से एक पीिठका पर एक यंचा उतरा धनुष रखा था।
िव यात िपनाक, वयं भगवान का धनुष। उसके पास ही अनेक बाण रखे हए थे।
पीिठका के पास भिू म पर एक बड़ा-सा ताँबे का पा था। ितभािगय को पहले धनुष को
उठाना और उसक यंचा चढ़ानी थी, जो वयं ही कोई आसान काम नह था। िफर उ ह पा
के पास जाना था जो पानी से भरा हआ था, िजसम लगातार ऊपर से बंदू िगर रही थ । इससे
पा म छोटी-छोटी लहर बन रही थ , जो के ीय भाग से िकनार क ओर जा रही थ । ि थित
को और अिधक किठन और अ यािशत बनाते हए पानी क बंदू अिनयिमत अ तराल पर
िगर रही थ ।
गु बद के शीष से भिू म से कोई सौ मीटर ऊपर लटक एक धुरी पर लगे एक च पर
एक िह सा मछली लगी हई थी। च एक िनि त गित से घम ू रहा था। ितभािगय को नीचे
ि थत अि थर पानी म मछली के ितिब ब को देखना था और धनुष से बाण छोड़ कर मछली
क आँख को भेदना था। सबसे पहले सफल होने वाला ितभागी वधू का हाथ जीत लेता।
रावण स भािवत वर के िलए िनयत चुनौती को देखने के िलए नह का। न ही ऐसा
लगा िक उसने इस पर यान िदया है िक उसके वेश ने महा-मलयपु गु िव ािम के
भाषण म बाधा डाली है। यह महिष का घोर अपमान था। मगर रावण को जैसे परवाह ही नह
थी। य िक िकसी और बात ने उसका यान ख च िलया था। ितभािगय के घेरे का हर
आसन भरा हआ था।
इन लोग ने मेरे िलए थान भी आरि त नह िकया है! नराधम लोग!
रावण का दल क के के म आया और भगवान के धनुष के पास क गया।
अ णी अंगर क ने उ च वर म घोषणा क । “राजाओं के राजा, स ाट के स ाट, ि लोक
के शासक, देवि य, वामी रावण!”
रावण एक छोटे राजा क ओर मुड़ा जो िपनाक के सबसे िनकट बैठा था, उसने हौले से
उसे घुड़का, और िसर िहला कर संकेत िकया। भयभीत राजा िबना िकये उठा और शी ता
से जा कर एक अ य ितभागी के पीछे खड़ा हो गया। रावण आसन क ओर गया मगर बैठा
नह । उसने अपना दायाँ पाँव आसन पर रखा और अपने हाथ को घुटने पर िटका िलया।
कु भकण एवं अ य लोग उसके पीछे पंि ब खड़े थे। िफर, लगभग अलसाए से ढं ग से,
रावण ने अपनी ि क के दूसरी ओर घुमाई जहाँ िसंहासन रखे हए थे।
महिष िव ािम िमिथला के राजिसंहासन पर िवराजमान थे, जो पार प रक प से
राजा के िलए आरि त होता है। िमिथला के वतमान राजा जनक महिष के दािहनी ओर एक
छोटे आसन पर बैठे थे जबिक राजा का छोटा भाई कुश वज िव ािम के बाय ओर बैठा था।
रावण ने दूर मौजदू िव ािम से ज़ोर से कहा। “कहते रह, महान मलयपु ।”
रावण ने मलयपु मुख के भाषण के बीच म बाधा डाल कर उनका घोर अपमान
करने के िलए मा माँगना भी उिचत नह समझा।
िव ािम ु हो गये थे। उनसे कभी इतना अपमानजनक यवहार नह िकया गया
था। “रावण...” वो ग़ुराए।
रावण ने घोर लापरवाही से उ ह घरू ा।
िव ािम ने िकसी तरह अपने ोध को वश म िकया, उ ह एक मह वपण ू काम
करना था। रावण से तो वो बाद म िनबट लगे। “राजकुमारी सीता ने वो म तय िकया है
िजसके अनुसार महान राजा और राजकुमार ितयोिगता म भाग लगे।”
िव ािम के बोलने के बीच ही रावण ने आसन से पाँव उतारा और िपनाक क ओर
चल िदया। जैसे ही रावण धनुष उठाने के िलए बढ़ा, मलयपु मुख ने अपनी घोषणा परू ी क ।
“पहले ितभागी आप नह ह, रावण। अयो या के राजकुमार राम ह।”
रावण का हाथ धनुष से कुछ अंगुल दूर ठहर गया। उसने िव ािम को देखा और िफर
यह देखने के िलए पलटा िक ऋिष के कहने पर कौन यु र देता है। उसने लगभग बीस वष
क आयु के एक युवक को देखा, जो एक तप वी के से साधारण ेत व पहने था। उसके
पीछे एक और युवक, य िप भीमकाय, खड़ा था, उसके पास ही अ र नेमी था। रावण ने
पहले अ र नेमी को घरू ा, और िफर राम को। अगर ि मा ाण ले सकती तो आज रावण
िन य ही कुछे क के ाण अव य ले लेता।
तो यह है वो बालक जो अयो या म उस िदन ज मा था जब मने इसके िपता को
परािजत िकया था! और िव ािम का इतना दु साहस िक इस बालक को मेरे िव खड़ा
कर रहे ह? लंका के राजा के िव ? संसार के शासक के िव ?
रावण िव ािम क ओर मुड़ा, उसक उँ गिलयाँ अपने गले म पड़े वेदवती क उँ गली
क हड्डी के लटकन से िलपटी हई थ । उसे उनक आव यकता थी। उसे उनका वर सुनने
क आव यकता थी। मगर वो कुछ नह सुन सका। इस घोर ितर कार के समय वो भी उसे
छोड़ गयी थ ।
रावण ऊँची और गरजती हई आवाज़ म बोला, “मेरा अपमान िकया जा रहा है!”
कु भकण जो रावण के आसन के पीछे खड़ा था, अलि त प से अपना िसर िहला रहा
था। प प से वो अ स न था।
“अगर आपक योजना मुझसे पहले अनाड़ी बालक को अवसर देने क थी तो मुझे
आमि त ही य िकया गया था?!” रावण ोध से काँप रहा था।
जनक ने अ स नता से कुश वज को देखा और िफर रावण क ओर मुड़ कर उ ह ने
अश -सा बीच-बचाव िकया, “ वयंवर के यही िनयम ह, महान लंकाराज...”
अ ततः िबजली क कड़क जैसा एक वर सुनाई िदया। यह कु भकण था। “बहत हई
यह बकवास!” वो रावण क ओर मुड़ा। “दादा, चिलए।”
रावण अचानक झुका और उसने िपनाक को उठा िलया। कोई कुछ िति या करता,
इससे पहले वो उसक यंचा चढ़ा कर उसक डोरी म एक बाण लगा चुका था। अिधकांश
लोग आसानी से िवशाल िपनाक को उठा तक नह सकते थे। मगर रावण ने शि और
कौशल का बेहतरीन दशन करते हए, िकसी के कुछ कर पाने से पहले ही एक झटके म
उसे उठाया, यंचा चढ़ाई और उस पर बाण भी लगा िलया था। िजस गित और द ता के साथ
उसने यह िकया था, वो हत भ कर देने वाली थी। उससे भी उ लेखनीय उसके बाण का ल य
था।
रावण ने बाण का ल य महान ऋिष और यात मलयपु मुख िव ािम क ओर
िकया तो सब स न रह गये।
मलयपु पवू िव णु ारा बनायी गयी जनजाित थी। तो उसका मुख, एक कार से,
िव णु का ितिनिध ही था। मलयपु मुख के िलए िकसी का अस मानजनक बात कहना ही
अभत ू पवू था। मगर िकसी का, भले ही वो रावण जैसा शि शाली यि ही य न हो,
िव ािम पर बाण तानना? यह तो अक पनीय ही था।
जब िव ािम उठे , अपना अंगव एक ओर फका और मु ी से अपने सीने को ठ कते
हए खड़े हो गये तो भीड़ का मँुह आतंक से सामिू हक प से खुला रह गया। “बाण मारो,
रावण!”
महिष के यो ाओं जैसे यवहार से हर कोई स न रह गया था। िकसी ानी पु ष के
ारा इतना आिदम साहस दशाना दुलभ था। मगर िफर, एक समय म िव ािम यो ा ही रहे
थे।
ऋिष का वर परू े क म गँज ू गया। “चलो! अगर तुमम साहस है तो चलाओ बाण!”
मझु े इसे मार डालना चािहए। उ म पाखंडी... मगर औषिधयाँ... कु भकण के िलए...
मेरे िलए...
रावण ने बहत ह के से अपनी बाँह को िहलाया और बाण छोड़ िदया। बाण िव ािम के
पीछे रखी राजा िमिथ क ितमा से टकराया, और इसने ाचीन राजा क नाक तोड़ दी।
लंका के राजा ने चार ओर देखा। उसने नगर के सं थापक का अपमान िकया था।
ाचीन राजा का सभी लोग आदर-स मान करते थे। उनक मिृ त आज तक भी पिव थी।
रावण को अपे ा थी िक कम-से-कम कुछ िमिथलावासी तो यायोिचत ोध दशायगे।
चलो भी! राजा िमिथ के स मान के िलए लड़ो। मझ ु े कोई तो बहाना दो िक म अपने
सैिनक को अ दर आने और तम ु सबका संहार करने क आ ा दूँ!
मगर कोई िमिथलावासी खड़ा नह हआ। अपने रा य के सं थापक क मिृ त के इस
सावजिनक अपमान पर भी वो लि जत से, अपने अिभमान को पी कर बैठे रहे ।
कायर!
रावण ने सुलगती आँख से कुश वज को देखते हए हाथ झटक कर जनक को
दरिकनार कर िदया। उसने पीिठका पर धनुष फका और ल बे डग भरता ार क ओर बढ़
गया, उसके अंगर क उसके पीछे थे।
इस सारे हंगामे मे कु भकण पीिठका के पास गया, शी ता से उसने िपनाक क
यंचा उतारी, और स मानपवू क दोन हाथ से धनुष को अपने माथे से लगाया।
मा करना, हे देव। मेरे भाई आपके पिव धनुष का िनरादर नह करना चाहते थे।
वो तो अपनी भावनाओं के वशीभत ू हो गये थे। कृपया इसके िलए उनसे नह।
अ यिधक आदर और ित ा के साथ कु भकण ने भगवान के धनुष िपनाक को
वापस पीिठका पर रख िदया। िफर वो मुड़ा और तेज़ क़दम से, ोध से सुलगते रावण के
पीछे -पीछे क से बाहर चला गया।
अ याय 26
रात बहत बीत गयी थी, चौथे हर क चौथी घड़ी थी। लंका के िशिवर म मशाल जली हई थ ।
रावण के अंगर क परू ी शाम मु तैदी से काम करते हए, जंगल के पेड़ को काट कर खाई
पार करने के िलए नाव बनाते रहे थे। चल कर सीधे पार जाने का नह उठता था य िक
िमिथलावािसय ने नाव के पुल को न कर िदया था।
रावण झील के पास खड़ा पानी के पार दुग क दीवार को देख रहा था। उसने कवच
पहना हआ था, िजसने उसके ऊपरी तन को ढका हआ था। दो तलवार और तीन कटार
उसक कमर पर लटके हए थे। दो छोटे चाक़ू उसक पादुकाओं म िछपे थे। बाण से भरा
तरकश पीठ पर उसके क ध से बँधा था। उसने बाएँ हाथ म धनुष पकड़ा हआ था। रावण यु
के िलए तैयार था।
लंकाराज के पास ही कु भकण खड़ा था। उसके शरीर पर रावण से अिधक श थे,
य िक उसके क ध पर ि थत दोन अित र भुजाएँ भी चालू फकने म स म थ ।
उनके सैिनक भी सश और तैयार थे। कुछ दूर पर दस सह सैिनक नाव के
िनकट खड़े थे—परू ी तरह चौकस, और र ा करने के िलए िस ।
रावण ने उस दूरदश को हटाया िजससे वो देख रहा था। “उनक बाहरी दीवार पर कोई
नह है।”
कु भकण ने अपना दूरदश उठा कर उसके मा यम से यान से दीवार को देखा।
“ह म। बात समझ म आती है। वो चाहते ह िक हम बाहरी दीवार पर चढ़े । उनके अिधकांश
सैिनक भीतरी दीवार क ाचीर पर ह गे। जब हम दौड़ते हए अ द नी दीवार क ओर
जायगे तो वो हम पर बाण क वषा कर दगे और उस म ृ यु- े म हमारे अिधकािधक सैिनक
को मारने क उ मीद करगे।”
रावण िखिखयाया। “बुि जीिवय के इस रोते-धोते नगर म िकसी के पास यु क
समझ है, मगर इतनी नह िक हमसे मेल खा सके। हम अ द नी दीवार पर चढ़गे ही नह ।
हम खुले ार से दौड़ते हए जायगे।”
कु भकण ने हामी भरी।
“हम कब तक समाचार िमल जाना चािहए?” रावण ने पछ ू ा।
कु भकण ने दुग क ओर देखना जारी रखते हए ही उ र िदया, “हम अभी तक कोई
समाचार नह िमला है, यह त य शुभ संकेत नह है।”
“मुझे परवाह नह है। हम पीछे नह हट रहे ह।”
कु भकण अपने बड़े भाई क ओर मुड़ा। “जानता हँ, दादा।”
ठीक तभी अकंपन भागते हए उनक ओर आया। “इराइवा! इराइवा! वो जाल था!”
“धीरे बोल, मख
ू !” रावण फुफकारा।
“हआ या?” कु भकण ने पछ ू ा।
“ग सुरंग तो अपने आप ही िगर गयी, महान इराइवा। उससे भी बुरा यह, िक वो ोही
जटायू और उसके मलयपु दीवार के ऊपर से हम पर तीर बरसा रहे थे। हमारी आधी पलटन
समा हो गयी। दस सैिनक िकसी तरह बच-बचा कर मुझे यह समाचार देने आ पाये।
स भवत: समीची पकड़ी गयी होगी और उसे हमारी रणनीित उ ह बताने के िलए िववश कर
िदया गया होगा।”
“या समीची ने हमसे झठ
ू बोला होगा,” कु भकण ने कहा।
“इससे कोई अ तर नह पड़ता,” रावण ने कहा। “हम अभी भी आ मण कर रहे ह।”
“दादा...”
“मेरे पास एक वैकि पक योजना है।”
कु भकण ने नाव क ओर देखा। उन पर लकड़ी के बड़े -बड़े य लादे जा रहे थे। “वो
या है?”
“मेरी वैकि पक योजना,” रावण ने कहा। “चलो।”
सैिनक अपनी नाव को खाई म धकेलने लगे थे। दस सह सैिनक को खाई पार
करने और झील के दूसरी ओर दुग के बाहर जमा होने म आधा घंटा लगता।
िमिथला का यु शु हो गया था।
कु भकण झील के पास खड़ा लंका के सैिनक को नाव पर क छप ढाल लादने का िनदश
दे रहा था। अभी भी वो असुरा चलाये जाने का कोई भी िच पाने के िलए दुग पर चौकस
िनगाह रखे हए था।
उसने मुड़ कर अपने पीछे कुछ दूरी पर खड़े िवमान को देखा और यह देख कर उसे
राहत िमली िक ोध म भनभनाता रावण उड़न यान के अ दर ही खड़ा था।
कु भकण ने हाथ से संकेत करके रावण को वह रहने को कहा, और िफर नाव पर
चल रहे काम को देखने लगा।
अचानक, उसके मन म बैठी अमंगल क आशा बलवती होती लगी। पीड़ाजनक प से।
मानो िकसी ने उसक अ तिड़य को दबोच िलया हो और उ ह िनचोड़े डाल रहा हो।
उसने दुग क ओर देखा। अ द नी दीवार के उस खंड क ओर िजससे मधुकर िनवास
जुड़ा हआ था। संकट क आशंका म उसक आँख फै ल गय ।
कु भकण यह नह जानता था िक मलयपु ने अ ततः ऐसा यि खोज िलया था जो
असुरा चलाये। कोई जो भगवान का िवधान तोड़ने के अपराध और दंड वीकार करे ।
कोई िजसक उस ी को बचाने क इ छा उस िवधान को तोड़ने से अिधक बलवती थी िजस
पर सामा यतया वो सोचता भी नह सीता के पित राम। राम ारा छोड़ा जलता हआ बाण
भयानक गित से हवा को काटता जा रहा था।
भगवान दया कर।
कु भकण तुर त िच लाते हए पलटा, “दादा!”
वो पु पक िवमान क ओर दौड़ पड़ा, उतनी तेज़ी से दौड़ता िजतना िक उसक टाँग उसे
अनुिमत देत ।
इस बीच, मधुकर िनवास के ऊपर, जलता हआ बाण असुरा ेपक पर बने एक
छोटे-से लाल वग म जा घुसा और उसे पीछे क ओर धकेल िदया। बाण क आग को लाल वग
के पीछे ि थत पा ने पकड़ िलया, और वहाँ से यह तेज़ी से ई ंधन क तक फै ली िजसने
ेपा को ऊजा दान क । चंड काश चमका और अनेक छोटे-छोटे िव फोट हए। कुछ
पल बाद ेपक के आधार के पास बहत तेज लपट िनकलने लग ।
कु भकण िवमान पर पहँच गया था और उसने उसके ार क ओर छलाँग लगा दी,
अपने बड़े भाई के ऊपर िगरते हए जो िवमान म पीछे जा िगरा था। कु भकण के वेग ने उसे भी
अ दर पहंचा िदया था।
मगर िवमान का ार अभी भी खुला था।
असुरा ेपा चल िदया और पलांश म ही सारी दूरी को मापते और एक बड़ा-सा
चाप बनाते हए िमिथला क दीवार के ऊपर से गुज़र गया। ख दक-झील के बाहरी ओर
मौजदू लंका के सैिनक हत भ और दहशत म थे। ेपा का बस एक ही अथ हो सकता
था।
कोई दैवी अ ।
वो मरणो मुख थे। वो यह जानते थे।
कोई िति या करने के िलए समय ही नह था। न भागने का समय था। और भाग कर
वो िछपते भी कहाँ?
वो तो खुले म थे। असुरा का आसान िशकार।
हालाँिक उनका िवनाश तेज़ी से उनक ओर बढ़ रहा था, मगर िफर भी कोई लंकावासी
इस मंज़र से िनगाह नह हटा सका। ख दक-झील के ऊपर से उड़ते ेपा म छोटा-सा,
लगभग अ य-सा िव फोट हआ, जैसे िकसी बालक के िलए पटाखा छुड़ाया गया हो।
सैिनक के िदल म बैठा आतंक तुर त ही आशा म बदल गया।
स भवत: दैवी अ असफल हो गया है।
मगर मधुकर िनवास के ऊपर खड़े मलयपु और अयो या के राजकुमार अ छी तरह
जानते थे। गु िव ािम के िनदश पर उ ह ने अपने कान ब द कर िलये थे।
असुरा का हमला तो अभी शु ही नह हआ था।
इस बीच, कु भकण उछल कर खड़ा हआ, जबिक रावण अभी तक िवमान के तल पर
िच पड़ा हआ था। वो तेज़ी से ार क ओर दौड़ा और उसने अपने शरीर के परू े भार से पा
क दीवार पर लगे धातु के बटन को दबा िदया। िवमान का ार धीरे -धीरे सरकते हए ब द
होने लगा। बहत ही धीमे।
ार समय से ब द नह हो पायेगा।
एक पल भी सोचे िबना, कु भकण ने मोचा संभाल िलया। िवमान के भीतर। ार के
ठीक पीछे । जबिक सरकने वाला ार अपनी जगह ले रहा था, धीमे-धीमे ब द होते हए,
पीड़ाजनक प से धीमे।
कु भकण। अपनी िवशाल काया से ार के अभी भी खुले भाग को रोकते हए।
तािक िव फोट के भाव उसके पार न जा पाय।
कु भकण। आ मबिलदान के िलए तैयार। उस यि के िलए िजससे वो ेम करता था।
अपने भाई के िलए।
अपने दादा के िलए।
असुरा पल भर के िलए लंका के सैिनक के ऊपर मंडराया, और िफर ऐसे कानफाड़
धमाके के साथ फटा िजसने दूर िमिथला क दीवार को भी िहला िदया था। लंकावािसय को
अपने कान के पद फटते मालम ू िदये, उनके फेफड़ से जैसे सारी हवा िनचुड़ गयी थी।
मगर यह तो उस िवनाश क भिू मका मा थी जो आगे होने वाला था।
धमाके के बाद दहला देने वाली चु पी छा गयी। िफर िमिथला क छत पर खड़े दशक ने
उस थान से तीन हरे काश को िनकलते देखा जहाँ ेपा फटा था। यह भयंकर बलता
के साथ िनकली थी और िबजली क चमक क तरह नीचे खड़े लंकावािसय को लील गयी।
वो जहाँ थे, वह खड़े रह गये, अ थायी प ाघात से सु न से हो कर। फटे हए ेपा के
टुकड़े उनके ऊपर बरस रहे थे।
ठीक उस समय जब पु पक िवमान का ार ब द हआ, कु भकण ने हरे काश क
च ध को देखा था। ार के वयं ही ब द होने, और अ दर मौजदू लोग को और अिधक हािन
होने से बचा लेने के बावजदू कु भकण िगर पड़ा था, अचेत।
“कु भऽऽऽऽ!” रावण िच लाते हए अपने छोटे भाई क ओर भागा।
िवमान के बाहर असुरा का काम अभी परू ा नह हआ था। असली ित तो अभी होनी
थी।
एक भयंकर फुफकार क -सी विन फै ल गयी, जैसे िकसी िवशाल साँप का यु -घोष
हो। इसी के साथ, नीचे िगरे ेपा के टुकड़ से हरी वा प के दानवीय बादल उठने लगे
जो कफ़न क तरह ति भत लंकावािसय पर छा गये थे।
यही वा प असुरा क असल जान थी। वा तिवक अ । िव फोट और प ाघात
करने वाले हरे काश ने तो िशकार को तैयार िकया था। यह गाढ़ी हरी वा प असली मारक
थी।
कुछ ही पल म इस घातक वा प ने लंका के सैिनक को अपनी जकड़ म ले िलया, जो
पु पक िवमान के बाहर मैदान म जड़ पड़े हए थे। अगर स ाह तक नह तो कम-से-कम कई
िदन तक यह उ ह मिू छत रखने वाली थी। कुछ के तो यह ाण ही ले लेने वाली थी। मगर
इस समय सब कुछ ामक प से शा त था। न कोई चीख़-पुकार थी, न दया क गुहार थी।
िकसी ने भागने क कोिशश नह क । वो बस भिू म पर पड़े रहे , िन ल, उस दानवी अ
ारा िव मिृ त के आगोश म धकेल िदये जाने के िलए ती ारत। उस गहन ख़ामोशी म
एकमा आवाज़ बस ेपा के टुकड़ से िनकल रही वा प क फुफकार थी।
िवमान के अ दर बदहाल रावण अपनी बाँह म अपने छोटे भाई को िलये घुटन के बल
बैठा हआ था। उसके गाल पर आँसू बह रहे थे और वो अपने प ाघात त भाई को िहला-
िहला कर उसे होश म लाने क कोिशश कर रहा था। “कु भ! कु भ!”
कोई तीस िनिमष बीत गये ह गे। असुरा लंका क सेना का अपना िवनाश परू ा कर चुका
था।
िवमान के अ दर मौजदू छोटा, नग य-सा दल ही बच पाया था। उनम से एक
िचिक सक था। मानक अिभयान ि या के प म िवमान को हमेशा मु तैद दल के साथ
उड़ने को तैयार रहना था।
िचिक सक ने अपनी आपातकालीन औषिधय क सहायता से कु भकण को ेपा
के प ाघातीय भाव से मु कर िदया था। उसका शरीर अभी भी िन ल और सांस उखड़ी
हई थ , मगर वो अपना िसर थोड़ा-बहत िहला सकता था। वो िवमान के तल पर लेटा हआ था।
उसके नागा उपांग से बहत धीमे-धीमे र ाव हो रहा था। उसका िसर अपने बड़े भाई क
गोद म था।
उसने कुछ कहने क कोिशश क मगर उसक िज ा सज ू ी हई थी और उसक वाणी
लड़खड़ा रही थी और अबझ ू -सी थी।
“चुप रहो,” रावण ने धीरे से कहा, उसके गाल आँसुओ ं से भीगे हए थे। “आराम करो।
तुम ठीक हो जाओगे। म तु ह कुछ नह होने दंूगा।”
“थाथा... आप... थीक ह?”
रावण को जब समझ आया िक उसका भाई या कह रहा है तो उसके आँसू और ज़ोर से
बहने लगे। इस हालत म भी, कु भकण को रावण के ठीक होने क िच ता थी। लंकाराज ने
धीरे से अपने छोटे भाई के माथे को चम ू ा। “म ठीक हँ। तुम आराम करो, छोटे भाई, आराम
करो।”
कु भकण के आंिशक प से लकवा त चेहरे पर िकसी तरह टेढ़ी-सी मु कुराहट
आयी। “आप... मेले... िलली ह।”
आँसुओ ं के बीच भी रावण मु कुरा िदया। “हाँ। हाँ, म तु हारा ऋणी हँ, मेरे भाई। म
तु हारा ऋणी हँ।”
कु भकम ने धीरे से अपना िसर िहलाया, टेढ़ी-सी मु कान अभी भी उसके चेहरे पर थी।
“अले... िथथोली... कल लहा हँ...”
“आराम करो, कु भ। आराम करो...”
कु भकण ने अपनी आँख ब द कर ल ।
रावण ने रोते हए अपने भाई के िसर को अपने सीने से लगा िलया। “मुझे बहत दुख है,
कु भ। मुझे बहत दुख है। मुझे तु हारी बात सुननी चािहए थी।”
“ वामी,” लंका के एक सैिनक ने मोखले से बाहर देखते हए धीरे से कहा।
रावण ने िनगाह उठायी।
“वा प अभी भी िदख रही है,” उस सैिनक ने कहा। “इसने हमारे सैिनक को अपने घेरे
म ले िलया है। अब हम या कर?”
रावण जानता था इसका या अथ है। पु पक िवमान के बाहर भिू म पर िगरे उसके सारे
सैिनक अगर स ाह को नह तो िदन भर के िलए तो अश हो ही गये थे। वो ल बी मू छा म
रहगे, िजससे कुछ तो कभी बाहर नह िनकल पायगे। वो भी बाहर क़दम नह रख सकता
था। य िक वा प का भाव अभी भी घातक था।
िमिथला का यु हारा जा चुका था। उसक अंगर क सेना न कर दी गयी थी।
िवमान म मौजदू च द लोग के िसवा उसके पास कोई सैिनक नह बचा था। वो कुछ नह कर
सकता था।
मगर इस समय यह इतना मायने नह रखता था।
उसने नीचे अपने भाई को देखा। और उसे िनकट ख च िलया।
इस समय कुछ मायने रखता था तो वो था उसका भाई। उसे कु भकण को वापस अपने
पैर पर खड़ा करना था।
रावण ने पु पक िवमान के चालक को देखा। “हम इस मनहस थान से बाहर ले
चलो।”
अ याय 28
रावण ने सांस ली। “अ ततः, मलयपु से बदला लेने का अवसर िमल गया,” उसने कहा।
िमिथला के यु को तेरह वष से कुछ अिधक समय हो चुका था। रावण और कु भकण
िसिग रया के राजमहल म राजा के िनजी कायालय म थे। यु क मिृ त समय के साथ
धँुधला गयी थी, लेिकन रावण के िलए घाव अभी तक क चा था।
अपमानजनक हार और रावण के शि शाली दस हज़ार अंगर क के द ते के
िव वंसक िवनाश का स िस धु म उतना भाव नह हआ था िजतना उसे डर था। िमिथला के
यु के बाद कुछ समय तक तो स िस धु के कुछ अ य रा य भी लंका क स ा को चुनौती
देने के सपने देखते रहे थे। वो अयो या के राजकुमार राम को ितरोध के नेता के प म भी
देखने लगे थे। लेिकन इससे पहले िक यह आ दोलन बल पकड़ता, पवू महादेव के िवधान के
अनुसार राजा दशरथ ने राम को दैवी अ के अनिधकृत योग के िलए स िस धु से चौदह
वष के िलए िनवािसत कर िदया। उनके थान के साथ ही िव ोह के सारे सपन ने भी दम
तोड़ िदया। इस बात से हौसले और प त हो गये थे िक राम के साथ िमिथला क राजकुमारी
और उनक प नी सीता और उनके छोटे भाई ल मण भी चले गये थे।
रावण क ित ा को भी ध का लगा था। उसक जा को उससे अपे ा थी िक अपनी
हार का बदला लेने के िलए वो िमिथला वापस जा कर उसे तहस-नहस कर देगा, लेिकन
रावण जानता था िक लंका क सेना पण ू यु के िलए तैयार नह थी। वैसे भी, मलयपु लंका
के सैिनक को साथ ले कर िमिथला छोड़ कर चले गये थे, और उ ह पुनज िवत करके ब दी
बना िलया गया था। उ ह लौटाने का मू य था िक रावण भगवान के नाम पर यह ग भीर
शपथ ले िक वो िमिथला या स िस धु के िकसी भी अ य रा य पर हमला नह करे गा।
यह सुिनि त करने के िलए िक वो अपने वचन पर िटका रहे , गु िव ािम ने उसे
चेतावनी दी थी िक अगर उसने स िस धु पर हमला करने के िलए अपनी सेना को तैयार
करने के बारे म सोचा भी, तो उसे वो औषिधयाँ िमलना ब द हो जायगी जो उसे और
कु भकण को जीिवत रखे हए थ । अपनी बात को िस करने के िलए उ ह ने औषिधय और
गुफा साम ी का मू य और बढ़ा िदया था। रावण अपमान म सुलग रहा था, लेिकन उसके
पास इन शत को मानने के अलावा कोई चारा भी नह था। लेिकन वो मलयपु से बदला
लेने के अवसर क लगातार ती ा म रहा था, और लगता था िक अब ऐसा एक अवसर हाथ
आ ही गया था।
“बात बदले क नह है, दादा,” कु भकण ने कहा। “बात है उसे पाने क जो हम
चािहए। हम सावधान रहना होगा। बहत सावधान।”
“यह शायद तु हारे िलए सच हो। मेरे िलए मलयपु से बदला लेना भी उतना ही
मह वपण ू है। लेिकन म कभी भी मख ू ता, या ोध म कुछ नह क ं गा। म मखू नह हँ।”
कु भकण ने हार मानते हए हाथ फै ला िदये। “ठीक है।”
“मह वपण ू बात यह है िक अब उनके पास एक िव णु ह। और वो भी एक िदलच प
िव णु,” रावण ने िवचारपवू क कहा।
“हाँ,” कु भकण बोला। “अचानक बहत-सी बात समझ म आने लगी ह। उदाहरण के
िलए, मुझे कभी समझ नह आता था िक मलयपु िमिथला को बचाने के िलए इतने उतावले
य थे। उ ह ने भगवान के ितब ध को तोड़ते और वायुपु से स भवतः हमेशा के िलए
अपने स ब ध िबगाड़ते हए असुरा का योग िकया। िमिथला जैसा एक मामल ू ी रा य
िनि त प से ऐसा जोिखम लेने यो य तो नह था। िक तु अब प हो रहा है िक वो अपने
ऋिषय क अनमोल नगरी को नह बि क अपनी िव णु को बचाने का यास कर रहे थे! वो
जानते थे िक आप उस िदन इतने ु थे िक वहाँ मौजदू हर िकसी को मार डालते।”
रावण ने िसर िहलाया। “सही है। उ ह अपनी जान क िच ता नह है। उ ह केवल अपने
ल य क िच ता है। और अपने ल य क सफलता के िलए उ ह िव णु क आव यकता है।”
“राजकुमारी सीता क ।”
“िकसने सोचा था िक वो िव णु के िलए उस छोटे-से, शि हीन िमिथला से िकसी को
चुनगे,” रावण ने अपने दाएँ क धे को मोड़ते हए कहा। वो अब लगभग साठ वष का हो रहा
था, और दद-तकलीफ उसके जीवन का सतत भाग बन गयी थ । साथ ही, उसे जीिवत रखने
वाली औषिधयाँ भी उसक शि को भािवत कर रही थ । िसिग रया को तबाह करने वाली
रह यमय महामारी ने इस ित को और बढ़ाया ही था।
“अकेली वही उ मीदवार नह थ ,” कु भकण ने कहा।
रावण ने हैरानी से अपने छोटे भाई को देखा।
“वायुपु और गु विश का मानना है िक राम को अगला िव णु होना चािहए,”
कु भकण ने कहा।
विश अयो या के राजप रवार के राजगु और मु य परामशदाता थे। मगर स
िस धु के राजप रवार म उनक पदवी ही इस बात का एकमा कारण नह था िक देश भर म
उ ह इतना स मान िदया जाता था। वो महिष भी थे िजनका ान अ ितम था। उनके एकमा
समक , स भवतः, मलयपु मुख महिष िव ािम ही थे। यह भी सव ात था िक महिष
विश पवू महादेव भगवान ारा िनिमत जनजाित वायुपु के भी बहत िनकट थे।
“राम? या सच?”
“हाँ।”
“यह तो अनुपयु है,” रावण ने कहा। “वायुपु और गु विश करना या चाह रहे
ह? राम और सीता के बीच वैवािहक मतभेद पैदा करना?”
कु भकण हँसने लगा। “जो भी हो, िव णु के िवषय म वायुपु या गु विश जो भी
सोच रहे ह , उसका अि तम चुनाव पर कोई भाव नह होगा। िव णु का चुनाव केवल
मलयपु करते ह। और गु िव ािम अपना चुनाव कर चुके ह। सीता अगली िव णु ह गी।”
रावण अपने आसन पर िटक कर बैठा और उसने एक गहरी सांस ली। “गु विश
और गु िव ािम के बीच इस कलह का या कारण है? वो तो िकसी समय िम थे ना?”
“पता नह , दादा। यह िकसी और कथा, िकसी और पु तक का कथानक है। इसका
हमसे कोई सरोकार नह है।”
“मगर तुम तो अिधकांश बात के बारे म बहत कुछ जानते हो,” रावण ने कहा। “तु ह
इस िव णु के च कर के बारे म इतना सब कैसे पता लगा?”
“बेहतर होगा िक आप यह न जान।”
“ य ?”
“बस मुझ पर भरोसा रख, दादा।”
रावण ने कु भकण को तका। “मुझे ऐसा य लग रहा है जैसे हम िकसी बड़ी िबसात
के छोटे-से मोहरे भर ह?”
“हर मनु य एक मोहरा ही है, दादा। मगर चौपड़ म, जो मोहरा दूसरे प म सध लगा
लेता है, वो अचानक ही बहत शि शाली हो जाता है।”
रावण ने अपनी 8व उठाय और मु कुराया। “चौपड़ और वा तिवक जीवन म अ तर
होता है, छोटे भाई।”
“िन स देह। मगर चौपड़ वा तिवक जीवन का ितिनिध व करता है। आप चौपड़ कैसे
खेलते ह, यह इस बारे म भी बहत कुछ बता देता है िक आप जीवन कैसे िबतायगे।”
“बुि मतापण ू बात,” रावण ने कहा। “जो भी हो, मुझे तुम पर परू ा भरोसा है, कु भ। जब
भी मने तुम पर भरोसा नह िकया है, मुझे हािन ही हई है।”
कु भकण हँसा और उसने उबासी रोक ।
“िफर से न द आ रही है?” रावण ने पछ ू ा, उसके चेहरे पर अपराधबोध था।
असुरा ने कु भकण पर बहत दु भाव छोड़े थे। नागा उ प न होने के कारण बचपन
से ही वो पीड़ा और असुिवधा भोगता आ रहा था। उसके उपांग जोड़ पर बहत पीड़ादायी थे,
और बचपन म उनसे बहत अिधक र ाव होता था। मलयपु क औषिधय ने उसक पीड़ा
और र ाव को रोकने म सहायती क थी। मगर, असुरा के हरे काश क सीमा म
आने से उसक हालत म बहत िगरावट आयी थी। इसके अलावा, इ यावन वष क आयु म वो
उतना सश भी नह रहा था िजतना पहले हआ करता था। िफर से शु हआ र ाव और
दद अब लगभग असहनीय हो गये थे।
मलयपु के वै िसिग रया आये थे और उ ह ने कुछ नई औषिधयाँ तैयार क थ
िजनसे पीड़ा और र ाव को रोकने म िकसी सीमा तक मदद िमली मगर उनके भाव से
कु भकण अ यिधक सु त हो गया था। अब वो ितिदन, िदन के अिधकांश भाग म बस सोता
रहता था। उसके िलए अपना यान वापस केि त कर पाने का केवल एक ही उपाय था, और
वो था कुछ िदन के िलए औषिधयाँ लेना ब द कर देना। लेिकन लगभग तुर त ही पीड़ा वापस
लौट आती थी, और अगर वो पाँच िदन से अिधक औषिध छोड़ता तो र ाव शु हो जाता।
इससे अिधक कुछ भी होता तो उसका जीवन ही संकट म पड़ जाता।
और यह सब इसिलए था िक िमिथला के यु म अपने भाई का जीवन बचाने के िलए
उसने वयं को संकट म डाल िदया था।
रावण वयं को मा नह कर पाया था। िपछले तेरह वष म उसने अपनी दूसरी सभी
योजनाओं—लंका के सा ा य के िव तार से ले कर िकि क धा का अिध हण करने तक—
को छोड़ िदया था । उसका सारा यान बस यह सुिनि त करने पर लग गया था िक उसका
छोटा भाई जीिवत और यथास भव व थ रहे ।
कु भकण रावण को देखकर मु कुराया। “म ठीक हँ, दादा।”
रावण मु कुराया और उसने अपने भाई का क धा थपथपाया।
“वैसे भी,” कु भकण ने आगे कहा, “हम वायुपु या गु विश से तो कोई लेना-
देना है नह । हम तो बस मलयपु को अपने िनय ण म लाना है। और यह तभी होगा जब
हम िव णु को उठा लायगे। वो हर मू य पर उ ह मु करवाना चाहगे, और तभी हम उ ह परू ी
तरह िनचोड़ सकते ह। हम उनसे एक साथ इतनी औषिध माँग लगे जो हमारे िलए अगले बीस
वष तक पया हो—उनका अितशय मोल िदये िबना। जब तक िव णु लंका म ब दी रहगी,
हम मलयपु से अिधक माँग करने से कोई चीज़ नह रोक सकेगी।”
रावण ने हामी भरी।
“तो हम इस पर आगे बढ़?” कु भकण ने पछ ू ा।
“हाँ, हम सीता का अपहरण करना होगा।”
“याद रख, दादा, यह बदला लेने के िलए नह है। हम केवल वही माँगगे जो हम चाहते
ह। हम बस मलयपु पर अपनी पकड़ चािहए। हम िव णु को मारगे नह ।”
रावण ने हामी भरी।
“वो हमारी ब दी रहगी।”
“हाँ।”
“राजनीितक ब दी। उ ह लंका के एक महल म रखा जायेगा, कालकोठरी म नह ।”
“म समझ गया, कु भ! तु ह बार-बार कहने क आव यकता नह है!”
कु भकण मु कुराया और मायाचना म उसने अपने हाथ जोड़ िदये।
... मशः।
अमीश क अ य कताब
शव रचना यी
भारतीय काशन इितहास म सबसे तेज़ी से िबकने वाली पु तक शंख
ृ ला
मेलहू ा के म ृ यंज
ु य
(िशव रचना यी क िकताब 1)
1900 ईसापवू । िजसे आधुिनक भारतीय ग़लती से िसंधु घाटी क स यता कहते ह, उसे उस
समय के िनवासी मेलहू ा क भिू म–एक स पण ू सा ा य िजसक थापना भु ीराम ने कई
शताि दय पवू क थी—के प म जानते थे। अब उनक ाथिमक नदी सर वती मत ृ ाय
होती जा रही है, और वे पवू िदशा म अपने श ुओ ं ारा िकये जा रहे आतंकवादी हमल का
सामना कर रहे ह। या उनके िस महानायक नीलकंठ बुराई के नाश के िलए अवत रत
ह गे?
नागाओ ं का रह य
(िशव रचना यी क िकताब 2)
वायप
ु ु क शपथ
(िशव रचना यी क िकताब 3)
िशव नागाओं क राजधानी पंचवटी तक जा पहँचते ह, और अपने वा तिवक श ु के िव
धमयु क तैयारी करते ह। नीलकंठ नाकाम नह हो सकते चाहे इसक जो भी क़ मत
चुकानी पड़े । अपनी हताशा म, वे वायुपु से स पक करते ह। या वे सफल हो पायगे? और
बुराई से लड़ने क वा तिवक क़ मत या होगी? इन सभी रह य का जवाब पाने के िलए इस
बै टसैिलंग िशव रचना यी का अि तम भाग पढ़।
राम चं ंख
ृ ला
भारतीय काशन इितहास म दूसरी सबसे तेज़ी से िबकने वाली पु तक ंख
ृ ला
सीता-िमिथला क यो ा
( ंख
ृ ला क िकताब 2)
खेत म एक प र य ब ची िमलती है। उसे दूसर ारा नज़रअ दाज़, कमज़ोर रा य िमिथला
के शासक गोद ले लेते ह। िकसी को िव ास नह है िक यह ब ची कुछ िवशेष कर पायेगी।
लेिकन वे ग़लत ह। य िक वह कोई साधारण लड़क नह है। वे सीता ह। एक अनोखी बह-
रे खीय कथा शैली के मा यम से, अमीश आपको राम चं ंखृ ला के ऐितहािसक जगत क
गहराइय म और अ दर तक ले जाते ह।
कथेतर
अमर भारत
भारत को खोज देश के कहानीकार अमीश के साथ, जो आपको तीखे लेख , प भाषण
और बुि म ापणू बहस के ारा देश को एक नये ढं ग से समझने म मदद करते ह। अमर
भारत म, अमीश आकषक प से आधुिनक ि कोण के साथ एक ाचीन सं कृित का
िव ततृ ख़ाका ख चते ह।