Satyarth Prakash Satyarath

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स"याथ&'काश

ओ३म् सि0दान3दे5राय नमो नमः


भूिमका
िजस समय म<ने यह >3थ ‘स"याथ&'काश’ बनाया था, उस समय और उस से
पूव& संHकृ तभाषण करने, पठन-पाठन मO संHकृ त ही बोलने और ज3मभूिम कR
भाषा गुजराती होने के कारण से मुझ को इस भाषा का िवशेष पWरXान न था,
इससे भाषा अशुZ बन गई थी। अब भाषा बोलने और िलखने का अ^यास हो
गया है। इसिलए इस >3थ को भाषा aाकरणानुसार शुZ करके दूसरी वार
छपवाया है। कहc-कहc शdद, वाeय रचना का भेद gआ है सो करना उिचत
था, eयijक इसके भेद jकए िवना भाषा कR पWरपाटी सुधरनी कWठन थी, पर3तु
अथ& का भेद नहc jकया गया है, '"युत िवशेष तो िलखा गया है। हाँ, जो 'थम
छपने मO कहc-कहc भूल रही थी, वह िनकाल शोधकर ठीक-ठीक कर दी गह&
है। यह >3थ १४ चौदह समुqलास अथा&त् चौदह िवभागi मO रचा गया है। इसमO
१० दश समुqलास पूवा&Z & और ४ चार उsराZ& मO बने ह<, पर3तु अ3"य के दो
समुqलास और पtात् HविसZा3त jकसी कारण से 'थम नहc छप सके थे, अब
वे भी छपवा jदये ह<।
१- 'थम समुqलास मO ई5र के uकाराऽऽjद नामi कR aाwया।
२- िyतीय समुqलास मO स3तानi कR िशzा।
३- तृतीय समुqलास मO {|चय&, पठनपाठनaवHथा, स"यास"य >3थi के नाम और
पढ़ने पढ़ाने कR रीित।
४- चतुथ& समुqलास मO िववाह और गृहा~म का aवहार।
५- प€म समुqलास मO वान'Hथ और सं3यासा~म का िविध।
६- छठे समुqलास मO राजधम&।
७- सƒम समुqलास मO वेद5े र-िवषय।
८- अ…म समुqलास मO जगत् कR उ"पिs, िHथित और 'लय।
९- नवम समुqलास मO िव‡ा, अिव‡ा, ब3ध और मोz कR aाwया।
१०- दशवO समुqलास मO आचार, अनाचार और भˆयाभˆय िवषय।
११- एकादश समुqलास मO आ‰या&वsŠय मत मता3तर का ख‹डन म‹डन िवषय।
१२- yादश समुqलास मO चारवाक मत का िवषय।
१३- •योदश समुqलास मO ईसाई मत का िवषय।
१४- चौदहवO समुqलास मO मुसलमानi के मत का िवषय।
और चौदह समुqलासi के अ3त मO आयŽ के सनातन वेदिविहत मत कR िवशेषतः
aाwया िलखी है, िजसको म< भी यथावत् मानता •ँ। मेरा इस >3थ के बनाने
का मुwय 'योजन स"य-स"य अथ& का 'काश करना है, अथा&त् जो स"य है उस
को स"य और जो िम•या है उस को िम•या ही 'ितपादन करना स"य अथ& का
'काश समझा है। वह स"य नहc कहाता जो स"य के Hथान मO अस"य और
अस"य के Hथान मO स"य का 'काश jकया जाय। jक3तु जो पदाथ& जैसा है,
उसको वैसा ही कहना, िलखना और मानना स"य कहाता है। जो मनु‘य
पzपाती होता है, वह अपने अस"य को भी स"य और दूसरे िवरोधी मतवाले
के स"य को भी अस"य िसZ करने मO 'वृs होता है, इसिलए वह स"य मत को
'ाƒ नहc हो सकता। इसीिलए िवyान् आƒi का यही मुwय काम है jक उपदेश
वा लेख yारा सब मनु‘यi के सामने स"याऽस"य का Hव’प सम“पत कर दO,
पtात् वे Hवयम् अपना िहतािहत समझ कर स"याथ& का >हण और िम•याथ&
का पWर"याग करके सदा आन3द मO रहO। मनु‘य का आ"मा स"याऽस"य का जानने
वाला है तथािप अपने 'योजन कR िसिZ, हठ, दुरा>ह और अिव‡ाjद दोषi
से स"य को छोड़ अस"य मO झुक जाता है। पर3तु इस >3थ मO ऐसी बात नहc
रeखी है और न jकसी का मन दुखाना वा jकसी कR हािन पर ता"पय& है, jक3तु
िजससे मनु‘य जाित कR उ–ित और उपकार हो, स"याऽस"य को मनु‘य लोग
जान कर स"य का >हण और अस"य का पWर"याग करO , eयijक स"योपदेश के
िवना अ3य कोई भी मनु‘य जाित कR उ–ित का कारण नहc है। इस >3थ मO
जो कहc-कहc भूल-चूक से अथवा शोधने तथा छापने मO भूल-चूक रह जाय,
उसको जानने जनाने पर जैसा वह स"य होगा वैसा ही कर jदया जायेगा। और
जो कोई पzपात से अ3यथा शंका वा ख‹डन म‹डन करे गा, उस पर —यान न
jदया जायेगा। हाँ, जो वह मनु‘यमा• का िहतैषी होकर कु छ जनावेगा उस को
स"य-स"य समझने पर उसका मत संगृहीत होगा। य‡िप आजकल बgत से
िवyान् '"येक मतi मO ह<, वे पzपात छोड़ सव&त3• िसZा3त अथा&त् जो-जो
बातO सब के अनुकूल सब मO स"य ह<, उनका >हण और जो एक दूसरे से िव˜Z
बातO ह<, उनका "याग कर परHपर 'ीित से वs™ वsा&वO तो जगत् का पूण& िहत
होवे। eयijक िवyानi के िवरोध से अिवyानi मO िवरोध बढ़ कर अनेकिवध
दुःख कR वृिZ और सुख कR हािन होती है। इस हािन ने, जो jक HवाथŠ मनु‘यi
को ि'य है, सब मनु‘यi को दुःखसागर मO डु बा jदया है। इनमO से जो कोई
साव&जिनक िहत लˆय मO धर 'वृs होता है, उससे HवाथŠ लोग िवरोध करने
मO त"पर होकर अनेक 'कार िवš करते ह<। पर3तु ‘स"यमेव जयित नानृतं स"येन
प3था िवततो देवयानः।’ अथा&त् सव&दा स"य का िवजय और अस"य का पराजय
और स"य ही से िवyानi का माग& िवHतृत होता है। इस दृढ़ िनtय के आल›बन
से आƒ लोग परोपकार करने से उदासीन होकर कभी स"याथ&'काश करने से
नहc हटते। यह बड़ा दृढ़ िनtय है jक ‘यsद>े िवषिमव पWरणामेऽमृतोपमम् ।’
यह गीता का वचन है। इसका अिभ'ाय यह है jक जो-जो िव‡ा और धम&'ािƒ
के कम& ह<, वे 'थम करने मO िवष के तुqय और पtात् अमृत के सदृश होते ह<।
ऐसी बातi को िचs मO धरके म<ने इस >3थ को रचा है। ~ोता वा पाठकगण भी
'थम 'ेम से देख के इस >3थ का स"य-स"य ता"पय& जान कर यथे… करO । इसमO
यह अिभ'ाय रeखा गया है jक जो-जो सब मतi मO स"य-स"य बातO ह<, वे वे
सब मO अिव˜Z होने से उनका Hवीकार करके जो-जो मतमता3तरi मO िम•या
बातO ह<, उन-उन का ख‹डन jकया है। इसमO यह भी अिभ'ाय रeखा है jक सब
मतमता3तरi कR गुƒ वा 'कट बुरी बातi का 'काश कर िवyान् अिवyान् सब
साधारण मनु‘यi के सामने रeखा है, िजससे सब से सब का िवचार होकर
परHपर 'ेमी हो के एक स"य मतHथ होवO।
य‡िप म< आया&वs& देश मO उ"प– gआ और वसता •ँ, तथािप जैसे इस देश के
मतमता3तरi कR झूठी बातi का पzपात न कर याथात•य 'काश करता •ँ,
वैसे ही दूसरे देशHथ वा मत वालi के साथ भी वs&ता •ँ। जैसा Hवदेश वालi के
साथ मनु‘यो–ित के िवषय मO वs&ता •ँ, वैसा िवदेिशयi के साथ भी तथा सब
सœनi को भी वs&ना यो•य है। eयijक म< भी जो jकसी एक का पzपाती होता
तो जैसे आजकल के Hवमत कR Hतुित, म‹डन और 'चार करते और दूसरे मत
कR िन3दा, हािन और ब3ध करने मO त"पर होते ह<, वैसे म< भी होता, पर3तु ऐसी
बातO मनु‘यपन से बाहर ह<। eयijक जैसे पशु बलवान् हो कर िनब&लi को दुःख
देते और मार भी डालते ह<, जब मनु‘य शरीर पाके वैसा ही कम& करते ह< तो वे
मनु‘य Hवभावयुž नहc, jक3तु पशुवत् ह<। और जो बलवान् होकर िनब&लi कR
रzा करता है वही मनु‘य कहाता है और जो Hवाथ&वश होकर परहािनमा•
करता रहता है, वह जानो पशुu का भी बड़ा भाई है।
अब आ‰या&वsŠयi के िवषय मO िवशेष कर ११ •यारहवO समुqलास तक िलखा
है। इन समुqलासi मO जो jक स"यमत 'कािशत jकया है, वह वेदोž होने से
मुझ को सव&था म3तa है और जो नवीन पुराण त3•jद >3थोž बातi का
ख‹डन jकया है, वे "यža ह<।
य‡िप जो १२ बारहवO समुqलास मO चारवाक का मत, इस समय zीणाऽHत
सा है और यह चारवाक सब से बड़ा नािHतक है। उसकR चे…ा का रोकना
अवŸय है, eयijक जो िम•या बात न रोकR जाय तो संसार मO बgत से अनथ&
'वृs हो जायO।
१३वO समुqलास मO ईसाइयi का मत िलखा है। ये लोग बायिबल को अपना
धम&-पुHतक मानते ह<। इन का िवशेष समाचार उसी १३ तेरहवO समुqलास मO
देिखए और १४ चौदहवO समुqलास मO मुसलमानi के मत-िवषय मO िलखा है।
ये लोग कु रान को अपने मत का मूल पुHतक मानते ह<। इनका भी िवशेष
aवहार १४वO समुqलास मO देिखए और इस के आगे वैjदकमत के िवषय मO
िलखा है।
जो कोई इस >3थकsा& के ता"पय& से िव˜Z मनसा से देखेगा उसको कु छ भी
अिभ'ाय िवjदत न होगा, eयijक वाeयाथ&बोध मO चार कारण होते ह<-
आकांzा, यो•यता, आसिs और ता"पय&। जब इन चारi बातi पर —यान देकर,
जो पु˜ष >3थ को देखता है, तब उस को >3थ का अिभ'ाय यथायो•य िवjदत
होता है-
‘आका zा’ jकसी िवषय पर वžा कR और वाeयHथ पदi कR आकांzा परHपर
होती है।
‘यो•यता’ वह कहाती है jक िजस से जो हो सके , जैसे जल से सcचना।
‘आसिs’ िजस पद के साथ िजसका स›ब3ध हो, उसी के समीप उस पद को
बोलना वा िलखना।
‘ता"पय&’ िजस के िलए वžा ने शdदो0ारण वा लेख jकया हो, उसी के साथ
उस वचन वा लेख को युž करना। बgत से हठी, दुरा>ही मनु‘य होते ह< jक
जो वžा के अिभ'ाय से िव˜Z कqपना jकया करते ह<, िवशेष कर मत वाले
लोग। eयijक मत के आ>ह से उनकR बुिZ अ3धकार मO फँ स के न… हो जाती
है। इसिलए जैसा म< मनु‘य जाित कR उ–ित के िलए 'य¢ करता •ं, वैसा
सबको करना यो•य है।
इन मतi के थोड़े-थोड़े ही दोष 'कािशत jकए ह<, िजनको देखकर मनु‘य लोग
स"याऽस"य मत का िनण&य कर सकO और स"य का >हण और अस"य का "याग
करने कराने मO समथ& होवO, eयijक एक मनु‘य जाित मO बहका कर, िव˜Z
बुिZ कराके , एक दूसरे को श•ु बना, लड़ा मारना िवyानi के Hवभाव से बिहः
है।
य‡िप इस >3थ को देखकर अिवyान् लोग अ3यथा ही िवचारO ग,े तथािप
बुिZमान् लोग यथायो•य इस का अिभ'ाय समझOगे, इसिलये म< अपने पWर~म
को सफल समझता और अपना अिभ'ाय सब सœनi के सामने धरता •ँ। इस
को देख-jदखला के मेरे ~म को सफल करO । और इसी 'कार पzपात न करके
स"याथ& का 'काश करके मुझ वा सब महाशयi का मुwय कs&a काम है।
सवा&"मा सवा&3तया&मी सि0दान3द परमा"मा अपनी कृ पा से इस आशय को
िवHतृत और िचरHथायी करे ।
।। अलमितिवHतरे ण बुिZमyरिशरोमिणषु ।।
।। इित भूिमका ।।
Hथान महाराणा जी का उदयपुर (Hवामी) दयान3द सरHवती
भा¥पद, शुeलपz संवत् १९३९
।। ओ३म्।।
अथ स"याथ&'काशः
ओ३म् श–ो िम•ः शं व˜णः श–ो भव"व‰य& मा ।
श–ऽइ3¥ो बृहHपितः श–ो िव‘णु˜˜¦मः ।।
नमो {|णे नमHते वायो "वमेव '"यzं {|ािस । "वामेव '"यzं
ब§¨ वjद‘यािम ऋतं वjद‘यािम स"यं वjद‘यािम त3मामवतु
तyžारमवतु।
अवतु माम् अवतु वžारम् । ओ३म् शाि3तŸशाि3तŸशाि3तः
।।१।।
अथ&-(ओ३म्) यह uकार शdद परमे5र का सवªsम नाम है, eयijक इसमO जो
अ, उ और म् तीन अzर िमलकर एक (ओ३म्) समुदाय gआ है, इस एक नाम
से परमे5र के बgत नाम आते ह< जैस-े अकार से िवराट् , अि« और िव5ाjद।
उकार से िहर‹यगभ&, वायु और तैजसाjद। मकार से ई5र, आjद"य और
'ाXाjद नामi का वाचक और >ाहक है। उसका ऐसा ही वेदाjद स"यशा¬O मO
Hप… aाwयान jकया है jक 'करणानुकूल ये सब नाम परमे5र ही के ह<।
('-) परमे5र से िभ– अथŽ के वाचक िवराट् आjद नाम eयi नहc? {|ा‹ड,
पृिथवी आjद भूत, इ3¥ाjद देवता और वै‡कशा¬ मO शु‹¯ाjद ओषिधयi के
भी ये नाम ह<, वा नहc ?
(उsर) ह<, पर3तु परमा"मा के भी ह<।
('-) के वल देवi का >हण इन नामi से करते हो वा नहc?
(उsर) आपके >हण करने मO eया 'माण है?
('-) देव सब 'िसZ और वे उsम भी ह<, इससे म< उनका >हण करता •ँ।
(उsर) eया परमे5र अ'िसZ और उससे कोई उsम भी है? पुनः ये नाम
परमे5र के भी eयi नहc मानते? जब परमे5र अ'िसZ और उसके तुqय भी
कोई नहc तो उससे उsम कोई eयiकर हो सके गा। इससे आपका यह कहना
स"य नहc। eयijक आपके इस कहने मO बgत से दोष भी आते ह<, जैस-े ‘उपिHथतं
पWर"य°याऽनुपिHथतं याचत इित बािधत3यायः’ jकसी ने jकसी के िलए भोजन
का पदाथ& रख के कहा jक आप भोजन कRिजए और वह जो उसको छोड़ के
अ'ाƒ भोजन के िलए जहाँ-तहाँ ±मण करे उसको बुिZमान् न जानना
चािहए, eयijक वह उपिHथत नाम समीप 'ाƒ gए पदाथ& को छोड़ के
अनुपिHथत अथा&त् अ'ाƒ पदाथ& कR 'ािƒ के िलए ~म करता है। इसिलए जैसा
वह पु˜ष बुिZमान् नहc वैसा ही आपका कथन gआ। eयijक आप उन िवराट्
आjद नामi के जो 'िसZ 'माणिसZ परमे5र और {|ा‹डाjद उपिHथत अथŽ
का पWर"याग करके अस›भव और अनुपिHथत देवाjद के >हण मO ~म करते ह<,
इसमO कोई भी 'माण वा युिž नहc। जो आप ऐसा कहO jक जहाँ िजस का
'करण है वहाँ उसी का >हण करना यो•य है जैसे jकसी ने jकसी से कहा jक
‘हे भृ"य ! "वं सै3धवमानय’ अथा&त् तू सै3धव को ले आ। तब उस को समय
अथा&त् 'करण का िवचार करना अवŸय है, eयijक सै3धव नाम दो पदाथŽ का
है; एक घोड़े और दूसरा लवण का। जो HवHवामी का गमन समय हो तो घोड़े
और भोजन का काल हो तो लवण को ले आना उिचत है और जो गमन समय
मO लवण और भोजन-समय मO घोड़े को ले आवे तो उसका Hवामी उस पर ¦ु Z
होकर कहेगा jक तू िनबु&िZ पु˜ष है। गमनसमय मO लवण और भोजनकाल मO
घोड़े के लाने का eया 'योजन था? तू 'करणिवत् नहc है, नहc तो िजस समय
मO िजसको लाना चािहए था उसी को लाता। जो तुझ को 'करण का िवचार
करना आवŸयक था वह तूने नहc jकया, इस से तू मूख& है, मेरे पास से चला
जा। इससे eया िसZ gआ jक जहाँ िजसका >हण करना उिचत हो वहाँ उसी
अथ& का >हण करना चािहए तो ऐसा ही हम और आप सब लोगi को मानना
और करना भी चािहए।
अथ म3•थ&ः
u ख›{| ।।१।। यजुः अ० ४० । मं० १७
देिखए वेदi मO ऐसे-ऐसे 'करणi मO ‘ओम्’ आjद परमे5र के नाम ह<।
ओिम"येतदzरमुम•थमुपासीत।।२।। -छा3दो•य उपिनषत् ।
ओिम"येतदzरिमदँ◌् सव¶ तHयोपaाwयानम्।।३।।-मा‹डू eय।
सव· वेदा य"पदमामनि3त तपांिस सवा&िण च यyदि3त ।
यjद¸छ3तो {|चय¶ चरि3त तsे पदं सं>हेण {वी›योिम"येतत्।।४।।
-कठोपिनषत्, वqली २। मं० १५।।
'शािसतारं सव·षामणीयांसमणोरिप ।
˜eमाभं Hव¹धीग›यं िव‡ाsं पु˜षं परम्।।५।।
एतमि« वद3"येके मनुम3ये 'जापितम् ।
इ3¥मेके परे 'ाणमपरे {| शा5तम्।।६।।
-मनुHमृित अ—याय १२। ºोक १२२, १२३।
स {|ा स िव‘णुः स ˜¥Hस िशवHसोऽzरHस परमः Hवराट् ।
स इ3¥Hस कालाि«Hस च3¥माः।।७।। -कै वqय उपिनषत्।
इ3¥ं िम•ं व˜णमि«माgरथो jदaHस सुपणª ग˜"मान् ।
एकं सिy'ा बgधा वद3"यि« यमं मातWर5ानमाgः ।।८।।
- ऋ•वेद मं० १। सूž १६४। म3• ४६।।
भूरिस भूिमरHयjदितरिस िव5धाया िव5Hय भुवनHय ध•Š ।
पृिथवc य¸छ पृिथवc दृ◌
ँ ्ह पृिथवc मा »ह◌्सीः ।।९।।
यजुः अ० १३ । मं० १८
इ3¥ो म§ना रोदसी प'थ¸छव इ3¥ः सू‰य&मरोचयत् ।
इ3¥े ह िव5ा भुवनािन येिमर इ3¥े Hवानास इ3दवः ।।१०।।
-सामवेद 'पाठक ७। ि•क ८। म3• २।।

'ाणाय नमो यHय सव&िमदं वशे ।


यो भूतः सव&Hये5रो यिHम3"सव¶ 'िति¼तम् ।।११।।
-अथव&वेद का‹ड ११। 'पाठक २४। अ० २। म3• ८।।
अथ&-यहाँ इन 'माणi के िलखने मO ता"पय& यही है jक जो ऐसे-ऐसे 'माणi मO
uकाराjद नामi से परमा"मा का >हण होता है िलख आये तथा परमे5र का
कोई भी नाम अनथ&क नहc, जैसे लोक मO दWर¥ी आjद के धनपित आjद नाम
होते ह<। इससे यह िसZ gआ jक कहc गौिणक, कहc का“मक और कहc
Hवाभािवक अथŽ के वाचक ह<।
‘ओम्’ आjद नाम साथ&क ह<-जैसे (u खं०) ‘अवती"योम्, आकाशिमव
aापक"वात् खम्, सव·^यो बृह"वाद् {|’ रzा करने से (ओम्), आकाशवत्
aापक होने से (खम्), सब से बड़ा होने से ई5र का नाम ({|) है।।१।।
(ओ३म्) िजसका नाम है और जो कभी न… नहc होता, उसी कR उपासना करनी
यो•य है, अ3य कR नहc।।२।।
(ओिम"येत०) सब वेदाjद शा¬O मO परमे5र का 'धान और िनज नाम ‘ओ३म्’
को कहा है, अ3य सब गौिणक नाम ह<।।३।।
(सव· वेदा०) eयijक सब वेद सब धमा&नु¼ान’प तपtरण िजसका कथन और
मा3य करते और िजसकR 'ािƒ कR इ¸छा करके {|च‰या&~म करते ह<, उसका
नाम ‘ओ३म्’ है।।४।।
('शािसता०) जो सब को िशzा देनेहारा, सूˆम से सूˆम, Hव'काशHव’प,
समािधHथ बुिZ से जानने यो•य है, उसको परम पु˜ष जानना चािहए।।५।।
और Hव'काश होने से ‘अि«’ िवXानHव’प होने से ‘मनु’ और सब का पालन
करने से ‘'जापित’ और परमै5‰य&वान् होने से ‘इ3¥’ सब का जीवनमूल होने
से ‘'ाण’ और िनर3तर aापक होने से परमे5र का नाम ‘{|’ है।।६।।
(स {|ा स िव‘णुः०) सब जगत् के बनाने से ‘{|ा’, सव&• aापक होने से
‘िव‘णु’, दु…i को द‹ड देके ˜लाने से ‘˜¥’, मंगलमय और सब का कqयाणकsा&
होने से ‘िशव’, ‘यः सव&म-ुते न zरित न िवनŸयित तदzरम्’
‘यः Hवयं राजते स Hवराट् ’ ‘योऽि«Wरव कालः कलियता 'लयकsा& स
कालाि«री5रः’ (अzर) जो सव&• aाƒ अिवनाशी, (Hवराट् ) Hवयं
'काशHव’प और (कालाि«०) 'लय मO सब का काल और काल का भी काल
है, इसिलए परमे ½वर का नाम ‘कालाि«’ है।।७।।
(इ3¥ं िम•ं) जो एक अिyतीय स"य{| वHतु है, उसी के इ3¥ाjद सब नाम ह<।
‘‡ुषु शुZष े ु पदाथ·षु भवो jदaः’, ‘शोभनािन पणा&िन पालनािन पूणा&िन
कमा&िण वा यHय सः’, ‘यो गुवा&"मा स ग˜"मान्’, ‘यो मातWर5ा वायुWरव
बलवान् स मातWर5ा’, (jदa) जो 'कृ "याjद jदa पदाथŽ मO aाƒ, (सुपण&)
िजसके उsम पालन और पूण& कम& ह<, (ग˜"मान्) िजसका आ"मा अथा&त् Hव’प
महान् है, (मातWर5ा) जो वायु के समान अन3त बलवान् है, इसिलए परमा"मा
के ‘jदa’, ‘सुपण&’, ‘ग˜"मान्’ और ‘मातWर½वा’ ये नाम ह<। शेष नामi का अथ&
आगे िलखOगे।।८।।
(भूिमरिस०) ‘भवि3त भूतािन यHयां सा भूिमः’ िजसमO सब भूत 'ाणी होते ह<,
इसिलए ई5र का नाम ‘भूिम’ है। शेष नामi का अथ& आगे िलखOगे।।९।।
(इ3¥ो म§ना०) इस म3• मO ‘इ3¥’ परमे5र ही का नाम है, इसिलए यह 'माण
िलखा है।।१०।।
('ाणाय) जैसे 'ाण के वश सब शरीर इि3¥याँ होती ह< वैसे परमे5र के वश मO
सब जगत् रहता है।।११।।
इ"याjद 'माणi के ठीक-ठीक अथŽ के जानने से इन नामi करके परमे5र ही
का >हण होता है। eयijक ‘ओ३म्’ और अ•3याjद नामi के मुwय अथ& से
परमे5र ही का >हण होता है। जैसा jक aाकरण, िन˜ž, {ा|ण, सू•jद
ऋिष मुिनयi के aाwयानi से परमे5र का >हण देखने मO आता है, वैसा >हण
करना सब को यो•य है, पर3तु ‘ओ३म्’ यह तो के वल परमा"मा ही का नाम है
और अि« आjद नामi से परमे5र के >हण मO 'करण और िवशेषण
िनयमकारक ह<। इससे eया िसZ gआ jक जहाँ-जहाँ Hतुित, 'ाथ&ना, उपासना,
सव&X, aापक, शुZ, सनातन और सृि…कsा& आjद िवशेषण िलखे ह< वहc-वहc
इन नामi से परमे5र का >हण होता है। और जहाँ-जहाँ ऐसे 'करण ह< jक-
ततो िवराडजायत िवराजो अिधपू˜ षः ।
~ो•yायुt 'ाणt मुखादि«रजायत ।।
तेन देवा अयज3त । पtा¾भूिममथो पुरः ।। यजुः अ० ३१
तHमाyा एतHमादा"मन आकाशः स›भूतः। आकाशाyायुः। वायोरि«ः।
अ«ेरापः। अ¿ः पृिथवी। पृिथaा ओषधयः। ओषिध^योऽ–म्। अ–ादेर् तः।
रे तसः पु˜षः। स वा एष पु˜षोऽ–रसमयः। -यह तैिsरीयोपिनषद् का वचन है।
ऐसे 'माणi मO िवराट् , पु˜ष, देव, आकाश, वायु, अि«, जल, भूिम आjद नाम
लौjकक पदाथŽ के होते ह<, eयijक जहाँ-जहाँ उ"पिs, िHथित, 'लय, अqपX,
जड़, दृŸय आjद िवशेषण भी िलखे हi, वहाँ-वहाँ परमे5र का >हण नहc
होता। वह उ"पिs आjद aवहारi से पृथÀफ़ ह< और उपरोž म3•O मO उ"पिs
आjद aवहार ह<, इसी से यहाँ िवराट् आjद नामi से परमा"मा का >हण न हो
के संसारी पदाथŽ का >हण होता है। jक3तु जहाँ-जहाँ सव&Xाjद िवशेषण हi,
वहc-वहc परमा"मा और जहाँ-जहाँ इ¸छा, yेष, 'य¢, सुख, दुःख और
अqपXाjद िवशेषण हi, वहाँ-वहाँ जीव का >हण होता है, ऐसा सव&• समझना
चािहए। eयijक परमे5र का ज3म-मरण कभी नहc होता, इससे िवराट् आjद
नाम और ज3माjद िवशेषणi से जगत् के जड़ और जीवाjद पदाथŽ का >हण
करना उिचत है, परमे5र का नहc। अब िजस 'कार िवराट् आjद नामi से
परमे5र का >हण होता है, वह 'कार नीचे िलखे 'माणे जानो।
अथ uकाराथ&ः
१- ‘िव’ उपसग&पूवक& (राजृ दीƒौ) इस धातु से jÂप् '"यय करने से ‘िवराट् ’
शdद िसZ होता है। ‘यो िविवधं नाम चराऽचरं जग¥ाजयित 'काशयित स
िवराट् ’ िविवध अथा&त् जो बg 'कार के जगत् को 'कािशत करे , इससे ‘िवराट् ’
नाम से परमे5र का >हण होता है।
२- (अÃचु गितपूजनयोः) (अग, अिग, इण् ग"यथ&क) धातु ह<, इनसे ‘अि«’ शdद
िसZ होता है। ‘गते¬योऽथा&ः Xानं गमनं 'ािƒtेित, पूजनं नाम स"कारः।’
‘योऽ€ित, अ¸यतेऽग"यंग"येित सोऽयमि«ः’ जो XानHव’प, सव&X, जानने,
'ाƒ होने और पूजा करने यो•य है, इससे उस परमे5र का नाम ‘अि«’ है।
३- (िवश 'वेशने) इस धातु से ‘िव5’ शdद िसZ होता है। ‘िवशि3त 'िव…ािन
सवा&‹याकाशादीिन भूतािन यिHमन् । यो वाऽऽकाशाjदषु सव·षु भूतेषु 'िव…ः
स िव5 ई5रः’ िजस मO आकाशाjद सब भूत 'वेश कर रहे ह< अथवा जो इन मO
aाƒ होके 'िव… हो रहा है, इसिलए उस परमे5र का नाम ‘िव5’ है, इ"याjद
नामi का >हण अकारमा• से होता है।
४- ‘°योितवÄ िहर‹यं, तेजो वै िहर‹यिम"यैतरे यशतपथ{ा|णे’ ‘यो िहर‹यानां
सूया&दीनां तेजसां गभ& उ"पिsिनिमsमिधकरणं स िहर‹यगभ&ः’ िजसमO सू‰या&jद
तेज वाले लोक उ"प– होके िजसके आधार रहते ह< अथवा जो सूया&jद
तेजःHव’प पदाथŽ का गभ& नाम, (उ"पिs) और िनवासHथान है, इससे उस
परमे5र का नाम ‘िहर‹यगभ&’ है। इसमO यजुव·द के म3• का 'माण-
िहर‹यगभ&ः समवs&ता>े भूतHय जातः पितरे क आसीत् ।
स दाधार पृिथवc ‡ामुतेमां कHमै देवाय हिवषा िवधमे ।।
इ"याjद Hथलi मO ‘िहर‹यगभ&’ से परमे5र ही का >हण होता है।
५- (वा गितग3धनयोः) इस धातु से ‘वायु’ शdद िसZ होता है। (ग3धनं िहसनम्)
‘यो वाित चराऽचरÅगZरित बिलनां बिल¼ः स वायुः’ जो चराऽचर जगत् का
धारण, जीवन और 'लय करता और सब बलवानi से बलवान् है, इससे उस
ई5र का नाम ‘वायु’ है।
६- (ितज िनशाने) इस धातु से ‘तेजः’ और इससे तिZत करने से ‘तैजस’ शdद
िसZ होता है। जो आप Hवयं'काश और सू‰या&jद तेजHवी लोकi का 'काश
करने वाला है, इससे ई5र का नाम ‘तैजस’ है। इ"याjद नामाथ& उकारमा• से
>हण होते ह<।
७- (ईश ऐ5य·) इस धातु से ‘ई5र’ शdद िसZ होता है। ‘य ई…े सवÄ5य&वान्
वs&ते स ई5रः◌ं’ िजस का स"य िवचारशील Xान और अन3त ऐ5य& है, इससे
उस परमा"मा का नाम ‘ई5र’ है।
८, ९- (दो अवख‹डने) इस धातु से ‘अjदित’ और इससे तिZत करने से
‘आjद"य’ शdद िसZ होता है। ‘न िव‡ते िवनाशो यHय सोऽयमjदितः,
अjदितरे व आjद"यः’ िजसका िवनाश कभी न हो उसी ई5र कR ‘आjद"य’ संXा
है।
१०,११- (Xा अवबोधने) ‘'’ पूव&क इस धातु से ‘'X’ और इससे तिZत करने
से ‘'ाX’ शdद िसZ होता है। ‘यः 'कृ …तया चराऽचरHय जगतो aवहारं
जानाित स 'Xः, 'X एव 'ाXः’ जो िन±ा&3त Xानयुž सब चराऽचर जगत् के
aवहार को यथावत् जानता है, इससे ई5र का नाम ‘'ाX’ है। इ"याjद नामाथ&
मकार से गृहीत होते ह<। जैसे एक-एक मा• से तीन-तीन अथ& यहाँ aाwयात
jकये ह< वैसे ही अ3य नामाथ& भी uकार से जाने जाते ह<। जो (श–ो िम•ः शं
व०) इस म3• मO िम•jद नाम ह< वे भी परमे5र के ह<, eयijक Hतुित, 'ाथ&ना,
उपासना ~े¼ ही कR कR जाती है। ~े¼ उसको कहते ह< जो अपने गुण, क›म&,
Hवभाव और स"य-स"य aवहारi मO सब से अिधक हो। उन सब ~े¼i मO भी
जो अ"य3त ~े¼ उस को परमे5र कहते ह<। िजस के तुqय न कोई gआ, न है
और न होगा। जब तुqय नहc तो उससे अिधक eयiकर हो सकता है? जैसे
परमे5र के स"य, 3याय, दया, सव&साम•य& और सव&X"वाjद अन3त गुण ह<, वैसे
अ3य jकसी जड़ पदाथ& वा जीव के नहc ह<। जो पदाथ& स"य है, उस के गुण,
क›म&, Hवभाव भी स"य ही होते ह<। इसिलये सब मनु‘यi को यो•य है jक
परमे5र ही कR Hतुित, 'ाथ&ना और उपासना करO , उससे िभ– कR कभी न करO ।
eयijक {|ा, िव‘णु, महादेव नामक पूव&ज महाशय िवyान्, दै"य दानवाjद
िनकृ … मनु‘य और अ3य साधारण मनु‘यi ने भी परमे5र ही मO िव5ास करके
उसी कR Hतुित, 'ाथ&ना और उपासना करी, उससे िभ– कR नहc कR। वैसे हम
सब को करना यो•य है। इस का िवशेष िवचार मुिž और उपासना के िवषय
मO jकया जायगा।
('-) िम•jद नामi से सखा और इ3¥ाjद देवi के 'िसZ aवहार देखने से
उ3हc का >हण करना चािहए।
(उsर) यहाँ उन का >हण करना यो•य नहc, eयijक जो मनु‘य jकसी का िम•
है, वही अ3य का श•ु और jकसी से उदासीन भी देखने मO आता है। इससे
मुwयाथ& मO सखा आjद का >हण नहc हो सकता, jक3तु जैसा परमे5र सब
जगत् का िनिtत िम•, न jकसी का श•ु और न jकसी से उदासीन है, इस से
िभ– कोई भी जीव इस 'कार का कभी नहc हो सकता। इसिलये परमा"मा ही
का >हण यहाँ होता है। हाँ, गौण अथ& मO िम•jद शdद से सुÆदाjद मनु‘यi का
>हण होता है।
१२- (िञ्ािमदा Èेहने) इस धातु से औणाjदक ‘e•’ '"यय के होने से ‘िम•’
शdद िसZ होता है। ‘मे‡ित, िÈÉित िÈÉते वा स िम•ः’ जो सब से Èेह
करके और सब को 'ीित करने यो•य है, इस से उस परमे5र का नाम ‘िम•’
है।
१३- (वृञ्◌ा◌् वरणे, वर ईÊसायाम्) इन धातुu से उणाjद ‘उनन्’ '"यय होने
से ‘व˜ण’ शdद िसZ होता है। ‘यः सवा&न् िश…ान् मुमुzू3धमा&"मनो वृणो"यथवा
यः िश…ैमु&मुzुिभध&मा&"मिभ“Ëयते व‰य&ते वा स व˜णः परमे5रः’ जो
आ"मयोगी, िवyान्, मुिž कR इ¸छा करने वाले मुž और धमा&"माu का
Hवीकारकsा&, अथवा जो िश… मुमुzु मुž और धमा&"माu से >हण jकया
जाता है वह ई5र ‘व˜ण’ संXक है। अथवा ‘व˜णो नाम वरः ~े¼ः’ िजसिलए
परमे5र सब से ~े¼ है, इसीिलए उस का नाम ‘व˜ण’ है।
१४- (ऋ गित'ापणयोः) इस धातु से ‘यत्’ '"यय करने से ‘अ‰य&’ शdद िसZ
होता है और ‘अ‰य&’ पूव&क (माङ् माने) इस धातु से ‘किनन्’ '"यय होने से
‘अ‰य&मा’ शdद िसZ होता है। ‘योऽ‰या&न् Hवािमनो 3यायाधीशान् िममीते
मा3यान् करोित सोऽय&मा’ जो स"य 3याय के करनेहारे मनु‘यi का मा3य और
पाप तथा पु‹य करने वालi को पाप और पु‹य के फलi का यथावत् स"य-स"य
िनयमकता& है, इसी से उस परमे5र का नाम ‘अ‰य&मा’ है।
१५- (इjद परमै5य·) इस धातु से ‘रन्’ '"यय करने से ‘इ3¥’ शdद िसZ होता
है। ‘य इ3दित परमै5य&वान् भवित स इ3¥ः परमे5रः’ जो अिखल ऐ5य&युž
है, इस से उस परमा"मा का नाम ‘इ3¥’ है।
१६- ‘बृहत्’ शdदपूव&क (पा रzणे) इस धातु से ‘डित’ '"यय, बृहत् के तकार
का लोप और सुडागम होने से ‘बृहHपित’ शdद िसZ होता है। ‘यो
बृहतामाकाशादीनां पितः Hवामी पालियता स बृहHपितः’ जो बड़i से भी बड़ा
और बड़े आकाशाjद {|ा‹डi का Hवामी है, इस से उस परमे5र का नाम
‘बृहHपित’ है।
१७- (िव‘लृ aाƒौ) इस धातु से ‘नु’ '"यय होकर ‘िव‘णु’ शdद िसZ gआ है।
‘वेवेि… aा¹ोित चराऽचरं जगत् स िव‘णुः’ चर और अचर’प जगत् मO aापक
होने से परमा"मा का नाम ‘िव‘णु’ है।
१८- ‘उ˜म&हान् ¦मः परा¦मो यHय स उ˜¦मः’ अन3त परा¦मयुž होने से
परमा"मा का नाम ‘उ˜¦म’ है। जो परमा"मा (उ˜¦मः) महापरा¦मयुž
(िम•ः) सब का सुÆत् अिवरोधी है, वह (शम्) सुखकारक, वह (व˜णः)
सवªsम (शम्) सुखHव’प, वह (अय&मा) (शम्) सुख'चारक, वह (इ3¥ः) (शम्)
सकल ऐ5य&दायक, वह (बृहHपितः) सब का अिध¼ाता (शम्) िव‡ा'द और
(िव‘णुः) जो सब मO aापक परमे5र है, वह (नः) हमारा कqयाणकारक
(भवतु) हो।
१९- (वायो ते {|णे नमोऽHतु) (बृह बृिह वृZौ) इन धातुu से ‘{|’ शdद
िसZ gआ है। जो सब के ऊपर िवराजमान, सब से बड़ा, अन3तबलयुž
परमा"मा है, उस {| को हम नमHकार करते ह<। हे परमे5र ! ("वमेव '"यzं
{|ािस) आप ही अ3तया&िम’प से '"यz {| हो ("वामेव '"यzं {|
वjद‘यािम) म< आप ही को '"यz {| क•ँगा, eयijक आप सब जगह मO aाƒ
होके सब को िन"य ही 'ाƒ ह< (ऋतं वjद‘यािम) जो आपकR वेदHथ यथाथ&
आXा है उसी को म< सब के िलए उपदेश और आचरण भी क’ँगा, (स"यं
वjद‘यािम) स"य बोलूँ, स"य मानूं और स"य ही क’ँगा (त3मामवतु) सो आप
मेरी रzा कRिजए
(तyžारमवतु) सो आप मुझ आƒ स"यवžा कR रzा कRिजए jक िजस से आप
कR आXा मO मेरी बुिZ िHथर होकर, िव˜Z कभी न हो। eयijक जो आपकR
आXा है, वही धम& और जो िव˜Z, वही अधम& है। ‘अवतु मामवतु वžारम्’
यह दूसरी वार पाठ अिधकाथ& के िलये है। जैसे ‘किtत् कि€त् 'ित वदित "वं
>ामं ग¸छ ग¸छ’ इसमO दो वार j¦या के उ0ारण से तू शीÎ ही >ाम को जा
ऐसा िसZ होता है। ऐसे ही यहाँ jक आप मेरी अवŸय रzा करो अथा&त् धम& मO
सुिनिtत और अधम& से घृणा सदा क’ँ, ऐसी कृ पा मुझ पर कRिजए। म< आपका
बड़ा उपकार मानूँगा।
(ओ३म् शाि3तः शाि3तः शाि3तः) इस मO तीन वार शाि3तपाठ का यह 'योजन
है jक ि•िवध ताप अथा&त् इस संसार मO तीन 'कार के दुःख ह<-एक
‘आ—याि"मक’ जो आ"मा शरीर मO अिव‡ा, राग, yेष, मूख&ता और °वर पीड़ाjद
होते ह<। दूसरा ‘आिधभौितक’ जो श•ु, aाÎ और सपा&jद से 'ाƒ होता है।
तीसरा ‘आिधदैिवक’ अथा&त् जो अितवृि…, अितशीत, अित उ‘णता, मन और
इि3¥यi कR अशाि3त से होता है। इन तीन 'कार के eलेशi से आप हम लोगi
को दूर करके कqयाणकारक कमŽ मO सदा 'वृs रिखए। eयijक आप ही
कqयाणHव’प, सब संसार के कqयाणकsा& और धा“मक मुमुzुu को कqयाण
के दाता ह<। इसिलए आप Hवयम् अपनी क˜णा से सब जीवi के Æदय मO
'कािशत •िजए jक िजस से सब जीव धम& का आचरण और अधम& को छोड़के
परमान3द को 'ाƒ हi और दुःखi से पृथÀफ़ रह< ।
‘सू‰यर्◌्◌ा आ"मा जगतHतHथुषt’
२०- इस यजुव·द के वचन से जो जगत् नाम 'ाणी, चेतन और जंगम अथा&त्
जो चलते-jफरते ह<, ‘तHथुषः’ अ'ाणी अथा&त् Hथावर जड़ अथा&त् पृिथवी आjद
ह<, उन सब के आ"मा होने और Hव'काश’प सब के 'काश करने से परमे5र
का नाम ‘सू‰य&’ है।
२१, २२- (अत सात"यगमने) इस धातु से ‘आ"मा’ शdद िसZ होता है।
‘योऽतित aा¹ोित स आ"मा’ जो सब जीवाjद जगत् मO िनर3तर aापक हो
रहा है। ‘परtासावा"मा च य आ"म^यो जीवे^यः सूˆमे^यः परोऽितसूˆमः स
परमा"मा’ जो सब जीव आjद से उ"कृ … और जीव, 'कृ ित तथा आकाश से भी
अितसूˆम और सब जीवi का अ3तया&मी आ"मा है, इस से ई5र का नाम
‘परमा"मा’ है। २३- साम•य&वाले का नाम ई5र है। ‘य ई5रे षु समथ·षु परमः
~े¼ः स परमे5रः’ जो ई5रi अथा&त् समथŽ मO समथ&, िजस के तुqय कोई भी
न हो, उस का नाम ‘परमे5र’ है।
२४- (षुञ्◌ा◌् अिभषवे, षूङ् 'ािणगभ&िवमोचने) इन धातुu से ‘सिवता’ शdद
िसZ होता है। ‘अिभषवः 'ािणगभ&िवमोचनं चो"पादनम्। यtराचरं जगत्
सुनोित सूते वो"पादयित स सिवता परमे5रः’ जो सब जगत् कR उ"पिs करता
है, इसिलए परमे5र का नाम ‘सिवता’ है।
२५- (jदवु ¦Rडािविजगीषाaवहार‡ुितHतुितमोदमदHव¹काि3तगितषु) इस
वमातु से ‘देव’ शdद िसZ होता है। (¦Rडा) जो शुZ जगत् को ¦Rडा कराने
(िविजगीषा) वमा“मकi को िजताने कR इ¸छायुž (aवहार) सब चे…ा के
साधनोप- साधनi का दाता (‡ुित) Hवयं'काशHव’प, सब का 'काशक
(Hतुित) 'शंसा के यो•य (मोद) आप आन3दHव’प और दूसरi को आन3द
देनेहारा (मद) मदो3मsi का ताड़नेहारा (Hव¹) सब के शयनाथ& राि• और
'लय का करनेहारा (काि3त) कामना के यो•य और (गित) XानHव’प है,
इसिलये उस परमे5र का नाम ‘देव’ है। अथवा ‘यो दीaित ¦Rडित स देवः’
जो अपने Hव’प मO आन3द से आप ही ¦Rडा करे अथवा jकसी के सहाय के
िवना ¦Rडावत् सहज Hवभाव से सब जगत् को बनाता वा सब ¦Rडाu का
आधार है। ‘िविजगीषते स देवः’ जो सब का जीतनेहारा, Hवयम् अजेय अथा&त्
िजस को कोई भी न जीत सके । ‘aवहारयित स देवः’ जो 3याय और अ3याय’प
aवहारi का जनाने और उपदे…ा।’ ‘यtराचरं जगत् ‡ोतयित’ जो सब का
'काशक। ‘यः Hतूयते स देवः’ जो सब मनु‘यi को 'शंसा के यो•य और िन3दा
के यो•य न हो। ‘यो मोदयित स देवः’ जो Hवयम् आन3दHव’प और दूसरi को
आन3द कराता, िजस को दुःख का लेश भी न हो। ‘यो मा‡ित स देवः’ जो सदा
ह“षत, शोक रिहत और दूसरi को ह“षत करने और दुःखi से पृथÀफ़
रखनेवाला। ‘यः Hवापयित स देवः’ जो 'लय समय अaž मO सब जीवi को
सुलाता। ‘यः कामयते का›यते वा स देवः’ िजस के सब स"य काम और िजस
कR 'ािƒ कR कामना सब िश… करते ह<। ‘यो ग¸छित ग›यते वा स देवः’ जो
सब मO aाƒ और जानने के यो•य है, इस से उस परमे5र का नाम ‘देव’ है।
२६- (कु िब आ¸छादने) इस धातु से ‘कु बेर’ शdद िसZ होता है। ‘यः सव¶ कु ›बित
HवaाÏया¸छादयित स कु बेरो जगदी5रः’ जो अपनी aािƒ से सब का
आ¸छादन करे , इस से उस परमे5र का नाम ‘कु बेर’ है।
२७- (पृथु िवHतारे ) इस धातु से ‘पृिथवी’ शdद िसZ होता है।’ ‘यः पथ&ित सव¶
जगिyHतृणाित तHमात् स पृिथवी’ जो सब िवHतृत जगत् का िवHतार करने
वाला है, इसिलए उस ई5र का नाम ‘पृिथवी’ है।
२८- (जल घातने) इस धातु से ‘जल’ शdद िसZ होता है, ‘जलित घातयित
दु…ान् सघांतयित अažपरमा‹वादीन् तद् {| जलम्’ जो दु…i का ताड़न
और अaž तथा परमाणुu का अ3योऽ3य संयोग वा िवयोग करता है, वह
परमा"मा ‘जल’ संXक कहाता है।
२९- (काशृ दीƒौ) इस धातु से ‘आकाश’ शdद िसZ होता है, ‘यः सव&तः सव¶
जगत् 'काशयित स आकाशः’ जो सब ओर से सब जगत् का 'काशक है,
इसिलए उस परमा"मा का नाम ‘आकाश’ है।
३०,३१,३२- (अद् भzणे) इस धातु से ‘अ–’ शdद िसZ होता है।
अ‡तेऽिs च भूतािन तHमाद–ं तदु¸यते। अहम–महम–महम–म्।
अहम–ादोऽहम–ादोऽहम–ादः।। तैिs० उपिन०।
अsा चराऽचर>हणात्।। यह aासमुिनकृ त शारीरक सू• है।
जो सब को भीतर रखने, सब को >हण करने यो•य, चराऽचर जगत् का >हण
करने वाला है, इस से ई5र के ‘अ–’, ‘अ–ाद’ और ‘अsा’ नाम ह<। और जो
इस मO तीन वार पाठ है सो आदर के िलए है। जैसे गूलर के फल मO कृ िम उ"प–
होके उसी मO रहते और न… हो जाते ह<, वैसे परमे5र के बीच मO सब जगत् कR
अवHथा है।
३३- (वस िनवासे) इस धातु से ‘वसु’ शdद िसZ gआ है। ‘वसि3त भूतािन
यिHम–थवा यः सव·षु वसित स वसुरी5रः’ िजसमO सब आकाशाjद भूत वसते
ह< और जो सब मO वास कर रहा है, इसिलए उस परमे5र का नाम ‘वसु’ है।
३४- (˜jदर् अ~ुिवमोचने) इस धातु से ‘िणच्’ '"यय होने से ‘˜¥’ शdद िसZ
होता है। ‘यो रोदय"य3यायकाWरणो जनान् स ˜¥ः’ जो दु… कम& करनेहारi को
˜लाता है, इससे परमे5र का नाम ‘˜¥’ है।
य3मनसा —यायित तyाचा वदित, यyाचा वदित तत् कम&णा करोित
यत् कम&णा करोित तदिभस›प‡ते।। यह यजुव·द के {ा|ण का वचन है।
जीव िजस का मन से —यान करता उस को वाणी से बोलता, िजस को वाणी से
बोलता उस को कम& से करता, िजस को कम& से करता उसी को 'ाƒ होता है।
इस से eया िसZ gआ jक जो जीव जैसा कम& करता है वैसा ही फल पाता है।
जब दु… कम& करनेवाले जीव ई5र कR 3याय’पी aवHथा से दुःख’प फल
पाते, तब रोते ह< और इसी 'कार ई5र उन को ˜लाता है, इसिलए परमे5र
का नाम ‘˜¥’ है।
३५- आपो नारा इित 'ोžा आपो वै नरसूनवः।
ता यदHयायनं पूव¶ तेन नारायणः Hमृतः।। -मनुन अ० १। ºोक १०।।
जल और जीवi का नाम नारा है, वे अयन अथा&त् िनवासHथान ह<, िजसका
इसिलए सब जीवi मO aापक परमा"मा का नाम ‘नारायण’ है।
३६- (चjद आ§लादे) इस धातु से ‘च3¥’ शdद िसZ होता है। ‘यt3दित
च3दयित वा स च3¥ः’ जो आन3दHव’प और सब को आन3द देनेवाला है,
इसिलए ई5र का नाम ‘च3¥’ है।
३७- (मिग ग"यथ&क) धातु से ‘मंगेरलच्’ इस सू• से ‘मंगल’ शdद िसZ होता
है। ‘यो मंगित मंगयित वा स मंगलः’ जो आप मंगलHव’प और सब जीवi के
मंगल का कारण है, इसिलए उस परमे5र का नाम ‘मंगल’ है।
३८- (बुध अवगमने) इस धातु से ‘बुध’ शdद िसZ होता है। ‘यो बु—यते बो—यते
वा स बुधः’ जो Hवयं बोधHव’प और सब जीवi के बोध का कारण है। इसिलए
उस परमे5र का नाम ‘बुध’ है। ‘बृहHपित’ शdद का अथ& कह jदया ।
३९- (ईशुिचर् पूतीभावे) इस धातु से ‘शु¦’ शdद िसZ gआ है। ‘यः शु¸यित
शोचयित वा स शु¦ः’ जो अ"य3त पिव• और िजसके संग से जीव भी पिव•
हो जाता है, इसिलये ई5र का नाम ‘शु¦’ है।
४०- (चर गितभzणयोः) इस धातु से ‘शनैस्’ अaय उपपद होने से ‘शनैtर’
शdद िसZ gआ है। ‘यः शनैtरित स शनैtरः’ जो सब मO सहज से 'ाƒ धैय&वान्
है, इससे उस परमे5र का नाम ‘शनैtर’ है।
४१- (रह "यागे) इस धातु से ‘राg’ शdद िसZ होता है। ‘यो रहित पWर"यजित
दु…ान् राहयित "याजयित स राgरी5रः’। जो एका3तHव’प िजसके Hव’प मO
दूसरा पदाथ& संयुž नहc, जो दु…i को छोड़ने और अ3य को छु ड़ाने हारा है,
इससे परमे5र का नाम ‘राg’ है।
४२- (jकत िनवासे रोगापनयने च) इस धातु से ‘के तु’ शdद िसZ होता है। ‘यः
के तयित िचjक"सित वा स के तुरी5रः’ जो सब जगत् का िनवासHथान, सब
रोगi से रिहत और मुमुzुu को मुिž समय मO सब रोगi से छु ड़ाता है, इसिलए
उस परमा"मा का नाम ‘के तु’ है।
४३- (यज देवपूजासंगितकरणदानेषु) इस धातु से ‘यX’ शdद िसZ होता है।
‘यXो वै िव‘णुः’ यह {ा|ण >3थ का वचन है। ‘यो यजित िवyिÐWर°यते वा
स यXः’ जो सब जगत् के पदाथŽ को संयुž करता और सब िवyानi का पू°य
है, और {|ा से लेके सब ऋिष मुिनयi का पू°य था, है और होगा, इससे उस
परमा"मा का नाम ‘यX’ है, eयijक वह सव&• aापक है।
४४- (gदानाऽदनयोः, आदाने चे"येके) इस धातु से ‘होता’ शdद िसZ gआ है।
‘यो जुहोित स होता’ जो जीवi को देने यो•य पदाथŽ का दाता और >हण करने
यो•यi का >ाहक है, इससे उस ई5र का नाम ‘होता’ है।
४५- (ब3ध ब3धने) इससे ‘ब3धु’ शdद िसZ होता है। ‘यः HविHमन् चराचरं
जगद् बÑाित ब3धुवZमा&"मनां सुखाय सहायो वा वs&ते स ब3धुः’ िजस ने अपने
मO सब लोकलोका3तरi को िनयमi से बZ कर रeखे और सहोदर के समान
सहायक है, इसी से अपनी-अपनी पWरिध वा िनयम का उqलंघन नहc कर
सकते। जैसे ±ाता भाइयi का सहायकारी होता है, वैसे परमे5र भी पृिथaाjद
लोकi के धारण, रzण और सुख देने से ‘ब3धु’ संXक है।
४६- (पा रzणे) इस धातु से ‘िपता’ शdद िसZ gआ है। ‘यः पाित सवा&न् स
िपता’ जो सब का रzक जैसा िपता अपने स3तानi पर सदा कृ पालु होकर उन
कR उ–ित चाहता है, वैसे ही परमे5र सब जीवi कR उ–ित चाहता है, इस से
उस का नाम ‘िपता’ है।
४७- ‘यः िपत◌ृणां िपता स िपतामहः’ जो िपताu का भी िपता है, इससे उस
परमे5र का नाम ‘िपतामहः’ है।
४८- ‘यः िपतामहानां िपता स 'िपतामहः’ जो िपताu के िपतरi का िपता है
इससे परमे5र का नाम ‘'िपतामह’ है।
४९- ‘यो िममीते मानयित सवा&Åीवान् स माता’ जैसे पूण&कृपायुž जननी
अपने स3तानi का सुख और उ–ित चाहती है, वैसे परमे5र भी सब जीवi कR
बढ़ती चाहता है, इस से परमे5र का नाम ‘माता’ है।
५०- (चर गितभzणयोः) आ पूव&क इस धातु से ‘आचा‰य&’ शdद िसZ होता
है। ‘य आचारं >ाहयित, सवा& िव‡ा बोधयित स आचाय& ई5रः’ जो स"य
आचार का >हण करानेहारा और सब िव‡ाu कR 'ािƒ का हेतु होके सब
िव‡ा 'ाƒ कराता है, इससे परमे5र का नाम ‘आचाय&’ है।
५१- (ग◌ृ शdदे) इस धातु से ‘गु˜’ शdद बना है। ‘यो ध›या&न् शdदान्
गृणा"युपjदशित स गु˜ः’ ‘स पूव·षामिप गु˜ः कालेनानव¸छेदात्’। योग०। जो
स"यधम&'ितपादक, सकल िव‡ायुž वेदi का उपदेश करता, सृि… कR आjद मO
अि«, वायु, आjद"य, Òअगरा और {|ाjद गु˜u का भी गु˜ और िजसका नाश
कभी नहc होता, इसिलए उस परमे5र का नाम ‘गु˜’ है।
५२- (अज गितzेपणयोः, जनी 'ादुभा&वे) इन धातुu से ‘अज’ शdद बनता है।
‘योऽजित सृि… 'ित सवा&न् 'कृ "यादीन् पदाथा&न् 'िzपित, जानाित, जनयित
च कदािच– जायते सोऽजः’ जो सब 'कृ ित के अवयव आकाशाjद भूत
परमाणुu को यथायो•य िमलाता, जानता, शरीर के साथ जीवi का स›ब3ध
करके ज3म देता और Hवयं कभी ज3म नहc लेता, इससे उस ई5र का नाम
‘अज’ है।
५३- (बृह बृिह वृZौ) इन धातुu से ‘{|ा’ शdद िसZ होता है। ‘योऽिखलं
जगि–मा&णेन बह&ित वZ&यित स {|ा’ जो स›पूण& जगत् को रच के बढ़ाता है,
इसिलए परमे5र का नाम ‘{|ा’ है।
५४, ५५, ५६- ‘स"यं Xानमन3तं {|’ यह तैिsरीयोपिनषद् का वचन है।
‘स3तीित स3तHतेषु स"सु साधु त"स"यम्। यœानाित चराऽचरं जगs°Xानम्।
न िव‡तेऽ3तो- ऽविधम&या&दा यHय तदन3तम्। सव·^यो बृहÓवाद् {|’ जो पदाथ&
हi उनको सत् कहते ह<, उनमO साधु होने से परमे5र का नाम ‘स"य’ है। जो
जाननेवाला है, इससे परमे5र का नाम ‘Xान’ है। िजसका अ3त अविध मया&दा
अथा&त् इतना ल›बा, चौड़ा, छोटा, बड़ा है, ऐसा पWरमाण नहc है, इसिलए
परमे5र के नाम ‘स"य’, ‘Xान’ और ‘अन3त’ ह<।
५७- (डु दाञ्◌ा दाने) आ पूव&क इस धातु से ‘आjद’ शdद और नञ्◌ा◌्पूव&क
‘अनाjद’ शdद िसZ होता है। ‘यHमात् पूव¶ नािHत परं चािHत स
आjदWर"यु¸यते।’, ‘न िव‡ते आjदः कारणं यHय सोऽनाjदरी5रः’ िजसके पूव&
कु छ न हो और परे हो, उसको आjद कहते ह<, िजस का आjद कारण कोई भी
नहc है, इसिलए परमे5र का नाम ‘अनाjद’ है।
५८- (टु नjद समृZौ) आ पूव&क इस धातु से ‘आन3द’ शdद बनता है।
‘आन3दि3त सव· मुžा यिHमन् यyा यः सवा&Åीवानान3दयित स आन3दः’ जो
आन3दHव’प, िजस मO सब मुž जीव आन3द को 'ाƒ होते और सब धमा&"मा
जीवi को आन3दयुž करता है, इससे ई5र का नाम ‘आन3द’ है।
५९- (अस भुिव) इस धातु से ‘सत्’ शdद िसZ होता है। ‘यदिHत ि•षु कालेषु
न बाधते त"सद् {|’ जो सदा वs&मान अथा&त् भूत, भिव‘यत्, वs&मान कालi
मO िजसका बाध न हो, उस परमे5र को ‘सत्’ कहते ह<।
६०, ६१- (िचती संXाने) इस धातु से ‘िचत्’ शdद िसZ होता है। ‘यtेतित
चेतयित संXापयित सवा&न् सœनान् योिगनHति0"परं {|’ जो चेतनHव’प
सब जीवi को िचताने और स"याऽस"य का जनानेहारा है, इसिलए उस
परमा"मा का नाम ‘िचत्’ है। इन तीनi शdदi के िवशेषण होने से परमे5र को
‘सि0दान3दHव’प’ कहते ह<।
६२- ‘यो िन"यÔुवोऽचलोऽिवनाशी स िन"यः।’ जो िनtल अिवनाशी है, सो
‘िन"य’ शdदवा¸य ई5र है।
६३- (शु3ध शुZौ) इस से ‘शुZ’ शdद िसZ होता है। ‘यः शु3धित सवा&न्
शोधयित वा स शुZ ई5रः’ जो Hवयं पिव• सब अशुिZयi से पृथÀफ़ और सब
को शुZ करने वाला है, इससे ई5र का नाम ‘शुZ’ है।
६४- (बुध अवगमने) इस धातु से ‘ž’ '"यय होने से ‘बुZ’ शdद िसZ होता है।
‘यो बुZवान् सदैव XाताऽिHत स बुZो जगदी5रः’ जो सदा सब को जाननेहारा
है इससे ई5र का नाम ‘बुZ’ है।
६५- (मु¸लृ मोचने) इस धातु से ‘मुž’ शdद िसZ होता है। ‘यो मु€ित
मोचयित वा मुमुzून् स मुžो जगदी5रः’ जो सव&दा अशुिZयi से अलग और
सब मुमुzुu को eलेश से छु ड़ा देता है, इसिलए परमा"मा का नाम ‘मुž’ है।
६६- ‘अत एव िन"यशुZबुZमुžHवभावो जगदी5रः’ इसी कारण से परमे5र
का Hवभाव िन"यशुZबुZमुž है।
६७- िनर् और आ पूव&क (डु कृञ्◌ा◌् करणे) इस धातु से ‘िनराकार’ शdद िसZ
होता है। ‘िनग&त आकारा"स िनराकारः’ िजस का आकार कोई भी नहc और न
कभी शरीर-धारण करता है, इसिलए परमे5र का नाम ‘िनराकार’ है।
६८- (अÃजू aिž›लzणकाि3तगितषु) इस धातु से ‘अÅन’ शdद और ‘िनर्’
उपसग& के योग से ‘िनरÅन’ शdद िसZ होता है। ‘अÅनं aिž›ल&zणं कु काम
इि3¥यैः 'ािƒtे"यHमा‡ो िनग&तः पृथ•भूतः स िनरÅनः’ जो aिž अथा&त्
आकृ ित, ›ले¸छाचार, दु…कामना और चzुराjद इि3¥यi के िवषयi के पथ से
पृथÀफ़ है, इससे ई5र का नाम ‘िनरÅन’ है।
६९, ७०- (गण संwयाने) इस धातु से ‘गण’ शdद िसZ होता है, इसके आगे
‘ईश’ वा ‘पित’ शdद रखने से ‘गणेश’ और ‘गणपित शdद’ िसZ होते ह<। ‘ये
'कृ "यादयो जडा जीवाt ग‹य3ते संwयाय3ते तेषामीशः Hवामी पितः पालको
वा’ जो 'कृ "याjद जड़ और सब जीव 'wयात पदाथŽ का Hवामी वा पालन
करनेहारा है, इससे उस ई5र का नाम ‘गणेश’ वा ‘गणपित’ है।
७१- ‘यो िव5मी…े स िव5े5रः’ जो संसार का अिध¼ाता है, इससे उस
परमे5र का नाम ‘िव5े5र’ है।
७२- ‘यः कू टेऽनेकिवधaवहारे HवHव’पेणैव ित¼ित स कू टHथः परमे5रः’ जो
सब aवहारi मO aाƒ और सब aवहारi का आधार होके भी jकसी aवहार
मO अपने Hव’प को नहc बदलता, इससे परमे5र का नाम ‘कू टHथ’ है।
७३, ७४- िजतने ‘देव’ शdद के अथ& िलखे ह< उतने ही ‘देवी’ शdद के भी ह<।
परमे5र के तीनi Òलगi मO नाम ह<। जैस-े ‘{| िचितरी5रtेित’। जब ई5र का
िवशेषण होगा तब ‘देव’ जब िचित का होगा तब ‘देवी’, इससे ई5र का नाम
‘देवी’ है।
७५- (शeलृ शžौ) इस धातु से ‘शिž’ शdद बनता है। ‘यः सव¶ जगत् कतु¶
शÕोित स शिžः’ जो सब जगत् के बनाने मO समथ& है, इसिलए उस परमे5र
का नाम ‘शिž’ है।
७६- (ि~ञ्◌ा◌् सेवायाम्) इस धातु से ‘~ी’ शdद िसZ होता है। ‘यः ~ीयते
सेaते सव·ण जगता िवyिÐयªिगिभt स ~ीरी5रः’। िजस का सेवन सब
जगत्, िवyान् और योगीजन करते ह<, उस परमा"मा का नाम ‘~ी’ है।
७७- (लz दश&नांकनयोः) इस धातु से ‘लˆमी’ शdद िसZ होता है। ‘यो लzयित
पŸय"यंकते िच§नयित चराचरं जगदथवा वेदरै ाƒैयªिगिभt यो लˆयते स
लˆमीः सव&ि'ये5रः’ जो सब चराचर जगत् को देखता, िचि§नत अथा&त् दृŸय
बनाता, जैसे शरीर के ने•, नािसकाjद और वृz के प•, पु‘प, फल, मूल,
पृिथवी, जल के कृ ‘ण, रž, 5ेत, मृिsका, पाषाण, च3¥, सूया&jद िच§न
बनाता तथा सब को देखता, सब शोभाu कR शोभा और जो वेदाjदशा¬ वा
धा“मक िवyान् योिगयi का लˆय अथा&त् देखने यो•य है, इससे उस परमे5र
का नाम ‘लˆमी’ है।
७८- (सृ गतौ) इस धातु से ‘सरस्’ उस से मतुप् और ङीप् '"यय होने से
‘सरHवती’ शdद िसZ होता है। ‘सरो िविवधं Xानं िव‡ते यHयां िचतौ सा
सरHवती’ िजस को िविवध िवXान अथा&त् शdद, अथ&, स›ब3ध 'योग का Xान
यथावत् होवे, इससे उस परमे5र का नाम ‘सरHवती’ है।
७९- ‘सवा&ः शžयो िव‡3ते यिHमन् स सव&शिžमानी5रः’ जो अपने काय&
करने मO jकसी अ3य कR सहायता कR इ¸छा नहc करता, अपने ही साम•य& से
अपने सब काम पूरा करता है, इसिलए उस परमा"मा का नाम ‘सव&शिžमान्’
है।
८०- (णीञ्◌ा◌् 'ापणे) इस धातु से ‘3याय’ शdद िसZ होता है।
‘'माणैरथ&परीzणं 3यायः।’ यह वचन 3यायसू•O के ऊपर वा"Hयायनमुिनकृ त
भा‘य का है। ‘पzपातरािह"याचरणं 3यायः’ जो '"यzाjद 'माणi कR परीzा
से स"य-स"य िसZ हो तथा पzपातरिहत धम&’प आचरण है वह 3याय कहाता
है। ‘3यायं कतु¶ शीलमHय स 3यायकारी5रः’ िजस का 3याय अथा&त्
पzपातरिहत धम& करने ही का Hवभाव है, इससे उस ई5र का नाम
‘3यायकारी’ है।
८१- (दय दानगितरzणिहसादानेषु) इस धातु से ‘दया’ शdद िसZ होता है।
‘दयते ददाित जानाित ग¸छित रzित िहनिHत यया सा दया, ब§वी दया
िव‡ते यHय स दयालुः परमे5रः’ जो अभय का दाता, स"याऽस"य सव& िव‡ाu
का जानने, सब सœनi कR रzा करने और दु…i को यथायो•य द‹ड देनेवाला
है, इस से परमा"मा का नाम ‘दयालु’ है।
८२- ‘yयोभा&वो yा^यािमतं सा िyता yीतं वा सैव तदेव वा yैतम्, न िव‡ते
yैतं िyतीये5रभावो यÒस्मHतदyैतम्। अथा&त्
‘सजातीयिवजातीयHवगतभेदशू3यं {|’ दो का होना वा दोनi से युž होना
वह िyता वा yीत अथवा yैत से रिहत है। सजातीय जैसे मनु‘य का सजातीय
दूसरा मनु‘य होता है, िवजातीय जैसे मनु‘य से िभ– जाितवाला वृz,
पाषाणाjद। Hवगत अथा&त् जैसे शरीर मO आँख, नाक, कान आjद अवयवi का
भेद है, वैसे दूसरे Hवजातीय ई5र, िवजातीय ई5र वा अपने आ"मा मO
तÓवा3तर वHतुu से रिहत एक परमे5र है, इस से परमा"मा का नाम ‘अyैत’
है।
८३- ‘ग‹य3ते ये ते गुणा यैग&णयि3त ते गुणाः, यो गुणे^यो िनग&तः स िनगु&ण
ई5रः’ िजतने सÓव, रज, तम, ’प, रस, Hपश&, ग3धाjद जड़ के गुण, अिव‡ा,
अqपXता, राग, yेष और अिव‡ाjद eलेश जीव के गुण ह< उन से जो पृथÀफ़
है। इन मO ‘अशdदमHपश&म’पमaयम्’ इ"याjद उपिनषदi का 'माण है। जो
शdद, Hपश&, ’पाjद गुणरिहत है, इससे परमा"मा का नाम ‘िनगु&ण’ है।
८४- ‘यो गुणैः सह वs&ते स सगुणः’ जो सब का Xान, सव&सुख, पिव•ता, अन3त
बलाjद गुणi से युž है, इसिलए परमे5र का नाम ‘सगुण’ है। जैसे पृिथवी
ग3धाjद गुणi से ‘सगुण’ और इ¸छाjद गुणi से रिहत होने से ‘िनगु&ण’ है, वैसे
जगत् और जीव के गुणi से पृथÀफ़ होने से परमे5र ‘िनगु&ण’ और सव&Xाjद
गुणi से सिहत होने से ‘सगुण’ है। अथा&त् ऐसा कोई भी पदाथ& नहc है जो
सगुणता और िनगु&णता से पृथÀफ़ हो। जैसे चेतन के गुणi से पृथÀफ़ होने से जड़
पदाथ& िनगु&ण और अपने गुणi से सिहत होने सगुण, वैसे ही जड़ के गुणi से
पृथÀफ़ होने से जीव िनगु&ण और इ¸छाjद अपने गुणi से सिहत होने से सगुण।
ऐसे ही परमे5र मO भी समझना चािहए।
८५- ‘अ3तय&3तुं िनय3तुं शीलं यHय सोऽयम3तया&मी’ जो सब 'ाणी और
अ'ािण’प जगत् के भीतर aापक होके सब का िनयम करता है, इसिलए उस
परमे5र का नाम ‘अ3तया&मी’ है।
८६- ‘यो ध›म· राजते स धम&राजः’ जो धम& ही मO 'काशमान और अधम& से
रिहत, धम& ही का 'काश करता है, इसिलए उस परमे5र का नाम ‘ध›म&राज’
है।
८७- (यमु उपरमे) इस धातु से ‘यम’ शdद िसZ होता है। ‘य सवा&न् 'ािणनो
िनय¸छित स यमः’ जो सब 'ािणयi के कम&फल देने कR aवHथा करता और
सब अ3यायi से पृथÀफ़ रहता है, इसिलए परमा"मा का नाम ‘यम’ है।
८८- (भज सेवायाम्) इस धातु से ‘भग’ इससे मतुप् होने से ‘भगवान्’ शdद
िसZ होता है। ‘भगः सकलै5‰य¶ सेवनं वा िव‡ते यHय स भगवान्’ जो सम>
ऐ5य& से युž वा भजने के यो•य है, इसीिलए उस ई5र का नाम ‘भगवान्’ है।
८९- (मन Xाने) इस धातु से ‘मनु’ शdद बनता है। ‘यो म3यते स मनुः’ जो मनु
अथा&त् िवXानशील और मानने यो•य है, इसिलये उस ई5र का नाम ‘मनु’ है।
९०- (प◌ृपालनपूरणयोः) इस धातु से ‘पु˜ष’ शdद िसZ gआ है ‘यः HवaाÏया
चराऽचरं जगत् पृणाित पूरयित वा स पु˜षः’ जो सब जगत् मO पूण& हो रहा है,
इसिलए उस परमे5र का नाम ‘पु˜ष’ है।
९१- (डु भृञ्◌ा◌् धारणपोषणयोः) ‘िव5’ पूव&क इस धातु से ‘िव5›भर’ शdद
िसZ होता है। ‘यो िव5ं िबभ“त धरित पु‘णाित वा स िव5›भरो जगदी5रः’
जो जगत् का धारण और पोषण करता है, इसिलये उस परमे5र का नाम
‘िव5›भर’ है।
९२- (कल संwयाने) इस धातु से ‘काल’ शdद बना है। ‘कलयित संwयाित सवा&न्
पदाथा&न् स कालः’ जो जगत् के सब पदाथ& और जीवi कR संwया करता है,
इसिलए उस परमे5र का नाम ‘काल’ है।
९३- (िश‘लृ िवशेषणे) इस धातु से ‘शेष’ शdद िसZ होता है। ‘यः िश‘यते स
शेषः’ जो उ"पिs और 'लय से शेष अथा&त् बच रहा है, इसिलए उस परमा"मा
का नाम ‘शेष’ है।
९४- (आÊलृ aाƒौ) इस धातु से ‘आƒ’ शdद िसZ होता है। ‘यः सवा&न्
धमा&"मन आ¹ोित वा सवैध&मा&"मिभराÊयते छलाjदरिहतः स आƒः’ जो
स"योप- देशक, सकल िव‡ायुž, सब धमा&"माu को 'ाƒ होता है और
धमा&"माu से 'ाƒ होने यो•य छल-कपटाjद से रिहत है, इसिलये उस
परमा"मा का नाम ‘आƒ’ है।
९५- (डु कृञ्◌ा◌् करणे) ‘शम्’ पूव&क इस धातु से ‘शंकर’ शdद िसZ gआ है। ‘यः
शंकqयाणं सुखं करोित स शंकरः’ जो कqयाण अथा&त् सुख का करनेहारा है,
इससे उस ई5र का नाम ‘शंकर’ है।
९६- ‘महत्’ शdद पूव&क ‘देव’ शdद से ‘महादेव’ िसZ होता है। ‘यो महतां देवः
स महादेवः’ जो महान् देवi का देव अथा&त् िवyानi का भी िवyान्, सूया&jद
पदाथŽ का 'काशक है, इसिलए उस परमा"मा का नाम ‘महादेव’ है।
९७- ('ीञ्◌ा◌् तप&णे का3तौ च) इस धातु से ‘ि'य’ शdद िसZ होता है। ‘यः
पृणाित 'ीयते वा स ि'यः’ जो सब धमा&"माu, मुमुzुu और िश…i को 'स–
करता और सब को कामना के यो•य है, इसिलए उस ई5र का नाम ‘ि'य’ है।
९८- (भू सsायाम्) ‘Hवयं’ पूव&क इस धातु से ‘Hवय›भू’ शdद िसZ होता है।
‘यः Hवयं भवित स Hवय›भूरी5रः’ जो आप से आप ही है, jकसी से कभी उ"प–
नहc gआ, इस से उस परमा"मा का नाम ‘Hवय›भू’ है।
९९- (कु शdदे) इस धातु से ‘किव’ शdद िसZ होता है। ‘यः कौित शdदयित
सवा& िव‡ाः स किवरी5रः’ जो वेद yारा सब िव‡ाu का उपदे…ा और वेsा
है, इसिलए उस परमे5र का नाम ‘किव’ है।
१००- (िशवु कqयाणे) इस धातु से ‘िशव’ शdद िसZ होता है।
‘बgलमेति–दश&नम्।’ इससे िशवु धातु माना जाता है, जो कqयाणHव’प और
कqयाण का करनेहारा है, इसिलए उस परमे5र का नाम ‘िशव’ है। ये सौ नाम
परमे5र के िलखे ह<। पर3तु इन से िभ– परमा"मा के असंwय नाम ह<। eयijक
जैसे परमे5र के अन3त गुण, कम&, Hवभाव ह<, वैसे उस के अन3त नाम भी ह<।
उनमO से '"येक गुण, क›म& और Hवभाव का एक-एक नाम है। इस से ये मेरे
िलखे नाम समु¥ के सामने िव3दुवत् ह<। eयijक वेदाjद शा¬O मO परमा"मा के
असंwय गुण, कम&, Hवभाव aाwयात jकये ह<। उनके पढ़ने पढ़ाने से बोध हो
सकता है। और अ3य पदाथŽ का Xान भी उ3हc को पूरा-पूरा हो सकता है, जो
वेदाjदशा¬O को पढ़ते ह<।
यह jकि€"मा• ई5र के िवषय मO िलखा, अब इस के आगे िशzा के िवषय मO
िलखा जायगा।
इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमकृ ते स"याथ&'काशे
सुभाषािवभूिषत ई5रनामिवषये
'थमः समुqलासः स›पूण&ः।।१।।
अथ िyतीयसमुqलासार›भः
अथ िशzां 'वˆयामः
मातृमान् िपतृमानाचाय&वान् पु˜षो वेद।
यह शतपथ {ा|ण का वचन है। वHतुतः जब तीन उsम िशzक अथा&त् एक
माता, दूसरा िपता और तीसरा आचाय& होवे तभी मनु‘य Xानवान् होता है।
वह कु ल ध3य ! वह स3तान बड़ा भा•यवान् ! िजसके माता और िपता धा“मक
िवyान् हi। िजतना माता से स3तानi को उपदेश और उपकार पgंचता है उतना
jकसी से नहc। जैसे माता स3तानi पर 'ेम, उन का िहत करना चाहती है उतना
अ3य कोई नहc करता । इसीिलए (मातृमान्) अथा&त् ‘'शHता धा“मकR िवदुषी
माता िव‡ते यHय स मातृमान्’ ध3य वह माता है jक जो गभा&धान से लेकर
जब तक पूरी िव‡ा न हो तब तक सुशीलता का उपदेश करे । माता और िपता
को अित उिचत है jक गभा&धान के पूव&, म—य और पtात् मादक ¥a, म‡,
दुग&3ध, ’z, बुिZनाशक पदाथŽ को छोड़ के जो शाि3त, आरो•य, बल, बुिZ,
परा¦म और सुशीलता से स^यता को 'ाƒ करO वैसे घृत, दु•ध, िम…, अ–पान
आjद ~े¼ पदाथŽ का सेवन करO jक िजससे रजस् वी‰य& भी दोषi से रिहत
होकर अ"युsम गुणयुž हो। जैसा ऋतुगमन का िविध अथा&त् रजोदश&न के
पांचवO jदवस से लेके सोलहवO jदवस तक ऋतुदान देने का समय है उन jदनi
मO से 'थम के चार jदन "या°य ह<, रहे १२ jदन, उनमO एकादशी और •योदशी
को छोड़ के बाकR १० राि•यi मO गभा&धान करना उsम है। और रजोदश&न के
jदन से लेके १६वc राि• को पtात् न समागम करना। पुनः जब तक ऋतुदान
का समय पूवªž न आवे तब तक और गभ&िHथित के पtात् एक वष& तक संयुž
न हi। जब दोनi के शरीर मO आरो•य, परHपर 'स–ता, jकसी 'कार का शोक
न हो। जैसा चरक और सु~ुत मO भोजन छादन का िवधान और मनुHमृित मO
¬ी पु˜ष कR 'स–ता कR रीित िलखी है उसी 'कार करO और वत™। गभा&धान
के पtात् ¬ी को बgत सावधानी से भोजन छादन करना चािहए। पtात् एक
वष& पय&3त ¬ी पु˜ष का संग न करे । बुिZ, बल, ’प, आरो•य, परा¦म, शाि3त
आjद गुणकारक ¥ai ही का सेवन ¬ी करते रहै jक जब तक स3तान का ज3म
न हो।
जब ज3म हो तब अ¸छे सुगि3धयुž जल से बालक को Èान, नाड़ीछेदन करके
सुगि3धयुž घृताjद का होम१ और ¬ी के भी Èान भोजन का यथायो•य 'ब3ध
करे jक िजस से बालक और ¬ी का शरीर ¦मशः आरो•य और पु… होता जाय।
ऐसा पदाथ& उस कR माता वा धायी खावे jक िजस से दूध मO भी उsम गुण
'ाƒ हi।

ज3म के पtात् बालक और उसकR माता को दूसरे Hथान जहाँ का वायु शुZ
हो वहां रeखO सुग3ध तथा दश&नीय पदाथ& भी रeखO और उस देश मO ±मण
कराना उिचत है jक जहां का वायु शुZ हो और जैसा उिचत समझO वैसा करO ।
इस 'कार जो ¬ी वा पु˜ष करO गे उनके उsम स3तान, दीघा&यु, बल परा¦म
कR वृिZ होती ही रहेगी jक िजससे सब स3तान उsम बल, परा¦मयुž,
दीघा&यु, धा“मक हi। बालकi को माता सदा उsम िशzा करे , िजससे स3तान
स^य हi और jकसी अंग से कु चे…ा न करने पावO। जब बोलने लगO तब उसकR
माता बालक कR ि◌◌ंज§वा िजस 'कार कोमल होकर Hप… उ0ारण कर सके
वैसा उपाय करे jक जो िजस वण& का Hथान, 'य¢ अथा&त् जैसे ‘प’ इसका ओ¼
Hथान और Hपृ… 'य¢ दोनi ओ¼i को िमलाकर बोलना; ×Hव, दीघ&, Êलुत
अzरi को ठीक-ठीक बोल सकना। मधुर, ग›भीर, सु3दर Hवर, अzर, मा•,
पद, वाeय, संिहता अवसान िभ–-िभ– ~वण होवे। जब वह कु छ-कु छ बोलने
और समझने लगे तब सु3दर वाणी और बड़े, छोटे, मा3य, िपता, माता, राजा,
िवyान् आjद से भाषण, उनसे वs&मान और उनके पास बैठने आjद कR भी
िशzा करO िजस से कहc उन का अयो•य aवहार न हो के सव&• 'ित¼ा gआ
करे । जैसे स3तान िजतेि3¥य, िव‡ाि'य और स"संग मO ˜िच करO वैसा 'य¢
करते रहO। aथ& ¦Rडा, रोदन, हाHय, लड़ाई, हष&, शोक, jकसी पदाथ& मO
लोलुपता, ई‘या&, yेषाjद न करO । उपHथेि3¥य से Hपश& और मद&न से वीय& कR
zीणता, नपुंसकता होती और हHत मO दुग&3ध भी होता है इससे उसका Hपश& न
करO । सदा स"यभाषण शौय&, धैय&, 'स–वदन आjद गुणi कR 'ािƒ िजस 'कार
हो, करावO।
जब पांच-पांच वष& के लड़का लड़कR हi तब देवनागरी अzरi का अ^यास
करावO। अ3य देशीय भाषाu के अzरi का भी। उसके पtात् िजन से अ¸छी
िशzा, िव‡ा, धम&, परमे5र, माता, िपता, आचाय&, िवyान्, अितिथ, राजा,
'जा, कु टु ›ब, ब3धु, भिगनी, भृ"य आjद से कै से-कै से वs&ना इन बातi के म3•,
ºोक, सू•, ग‡, प‡ भी अथ& सिहत क‹ठHथ करावO। िजन से स3तान jकसी
धूत& के बहकाने मO न आवO और जो-जो िव‡ा, धम&िव˜Z ±ाि3तजाल मO िगराने
वाले aवहार ह< उन का भी उपदेश कर दO िजस से भूत 'ेत आjद िम•या बातi
का िव5ास न हो ।
गुरोः 'ेतHय िश‘यHतु िपतृमेधं समाचरन्।
'ेतहारै ः समं त• दशरा•ेण शु¾—यित।। मनु०।।
अथ&-जब गु˜ का 'ाणा3त हो तब मृतकशरीर िजस का नाम 'ेत है उस का दाह
करनेहारा िश‘य 'ेतहार अथा&त् मृतक को उठाने वालi के साथ दशवO jदन शुZ
होता है। और जब उस शरीर का दाह हो चुका तब उस का नाम भूत होता है
अथा&त् वह अमुकनामा पु˜ष था। िजतने उ"प– हi, वs&मान मO आ के न रहO वे
भूतHथ होने से उन का नाम भूत है। ऐसा {|ा से लेके आज पय&3त के िवyानi
का िसZा3त है पर3तु िजस को शंका, कु संग, कु संHकार होता है उस को भय
और शंका’प भूत, 'ेत, शाjकनी, डाjकनी आjद अनेक ±मजाल दुःखदायक
होते ह<। देखो! जब कोई 'ाणी मरता है तब उसका जीव पाप, पु‹य के वश
होकर परमे5र कR aवHथा से सुख दुःख के पफ़ल भोगने के अथ& ज3मा3तर
धारण करता है। eया इस अिवनाशी परमे5र कR aवHथा का कोई भी नाश
कर सकता है?
अXानी लोग वै‡क शा¬ वा पदाथ&िव‡ा के पढ़ने, सुनने और िवचार से रिहत
होकर सि–पात°वराjद शारीWरक और उ3मादाjद मानस रोगi का नाम भूत
'ेताjद धरते ह<। उन का औषधसेवन और प•याjद उिचत aवहार न करके उन
धूत,& पाख‹डी, महामूख&, अनाचारी, HवाथŠ, भंगी, चमार, शू¥, ›ले¸छाjद पर
भी िव5ासी होकर अनेक 'कार से ढiग, छल, कपट और उि¸छ… भोजन,
डोरा, धागा आjद िम•या म3•, य3• बांधते-बंधवाते jफरते ह< । अपने धन का
नाश, स3तान आjद कR दुदश & ा और रोगi को बढ़ा कर दुःख देते jफरते ह<। जब
आंख के अ3वमे और गांठ के पूरे उन दुबु&िZ पापी Hवा“थयi के पास जाकर
पूछते ह< jक-‘महाराज ! इस लड़का, लड़कR, ¬ी और पु˜ष को न जाने eया हो
गया है? ’ तब वे बोलते ह< jक ‘इस के शरीर मO बड़ा भूत, 'ेत, भैरव, शीतला
आjद देवी आ गई है, जब तक तुम इस का उपाय न करोगे तब तक ये न छू टOगे
और 'ाण भी ले लOगे। जो तुम मलीदा वा इतनी भOट दो तो म3• जप पुरtरण
से झाड़ के इन को िनकाल दO। तब वे अ3धे और उन के स›ब3धी बोलते ह< jक
‘महाराज ! चाहे हमारा सव&Hव जाओ पर3तु इन को अ¸छा कर दीिजए।’ तब
तो उन कR बन पड़ती है। वे धूs& कहते ह<-‘अ¸छा लाओ इतनी साम>ी, इतनी
दिzणा, देवता को भOट और >हदान कराओ।’ भफ़ांभफ़, मृदग ं , ढोल, थाली
लेके उसके सामने बजाते गाते और उन मO से एक पाख‹डी उ3मs होके नाच
कू द के कहता है-‘म< इसका 'ाण ही ले लूँगा।’ तब वे अ3धे उस भंगी चमार
आjद नीच के पगi मO पड़ के कहते ह<-‘आप चाहO सो लीिजये इस को बचाइये।’
तब वह धूs& बोलता है म< हनुमान् •ँ, लाओ पÙR िमठाई, तेल, िस3दूर, सवा
मन का रोट और लाल लंगोट। म< देवी वा भैरव •ं, लाओ पांच बोतल म‡,
बीस मुगŠ, पांच बकरे , िमठाई और व¬।’ जब वे कहते ह< jक-‘जो चाहो सो
लो’ तब तो वह पागल बgत नाचने कू दने लगता है पर3तु जो कोई बुिZमान्
उनकR भOट ‘पांच जूता, द‹डा वा चपेटा, लातO मारO ’ तो उसके हनुमान्, देवी
और भैरव झट 'स– होकर भाग जाते ह<। eयijक वह उन का के वल धनाjद
हरण करने के 'योजनाथ& ढiग है।
और जब jकसी >ह>Hत >ह’प °योित“वदाभास के पास जाके वे कहते ह<-‘हे
महाराज! इस को eया है? ’ तब वे कहते ह< jक-‘इस पर सू‰या&jद ¦ू र >ह चढ़े
ह<। जो तुम इन कR शाि3त, पाठ, पूजा, दान कराओ तो इस को सुख हो जाय,
नहc तो बgत पीिड़त होकर मर जाय तो भी आtय& नहc।’
(उsर) किहये °योित“वत् ! जैसी यह पृिथवी जड़ है वैसे ही सूया&jद लोक ह<,
वे ताप और 'काशाjद से िभ– कु छ भी नहc कर सकते। eया ये चेतन ह< जो
¦ोिधत होके दुःख और शा3त होके सुख दे सकO ?
('-) eया जो यह संसार मO राजा 'जा सुखी दुःखी हो रहे ह< यह >हi का
पफ़ल नहc है?
(उsर) नहc, ये सब पाप पु‹यi के पफ़ल ह<।
('-) तो eया °यो◌ाितषशा¬ झूठा है?
(उsर) नहc, जो उसमO अंक, बीज, रे खागिणत िव‡ा है वह सब स0ी, जो
पफ़ल कR लीला है वह सब झूठी है।
('-) eया जो यह ज3मप• है सो िन‘पफ़ल है।
(उsर) हां, वह ज3मप• नहc jक3तु उसका नाम ‘शोकप•’ रखना चािहये
eयijक जब स3तान का ज3म होता है तब सब को आन3द होता है। पर3तु वह
आन3द तब तक होता है jक जब तक ज3मप• बनके >हi का पफ़ल न सुने।
जब पुरोिहत ज3मप• बनाने को कहता है तब उस के माता, िपता पुरोिहत से
कहते ह<-‘महाराज! आप बgत अ¸छा ज3मप• बनाइये’ जो धनाÚ हi तो बgत
सी लाल पीली रे खाu से िच• िविच• और िनध&न हो तो साधारण रीित से
ज3मप• बनाके सुनाने को आता है। तब उसके मां बाप °योितषी जी के सामने
बैठ के कहते ह<-‘इस का ज3मप• अ¸छा तो है? ’ °योितषी कहता है-‘जो है सो
सुना देता •ं। इसके ज3म>ह बgत अ¸छे और िम•>ह भी बgत अ¸छे ह< िजन
का पफ़ल धनाÚ और 'ित¼ावान्, िजस सभा मO जा बैठेगा तो सब के ऊपर
इस का तेज पड़ेगा। शरीर से आरो•य और रा°यमानी होगा।’ इ"याjद बातO
सुनके िपता आjद बोलते ह<-‘वाह वाह °योितषी जी! आप बgत अ¸छे हो।’
°योितषी जी समझते ह< इन बातi से का‰य& िसZ नहc होता। तब °योितषी
बोलता है-‘ये >ह तो बgत अ¸छे ह< पर3तु ये >ह ¦ू र ह< अथा&त् पफ़लाने-
पफ़लाने >ह के योग से ८ वष& मO इस का मृ"युयोग है।’ इस को सुन के माता
िपताjद पु• के ज3म के आन3द को छोड़ के शोकसागर मO डू ब कर °योितषी से
कहते ह< jक ‘महाराज जी! अब हम eया करO ? ’ तब °योितषी जी कहते ह<-
‘उपाय करो’। गृहHथ पूछे ‘eया उपाय करO ।’ °योितषी जी 'Hताव करने लगते
ह< jक ‘ऐसा-ऐसा दान करो। >ह के म3• का जप कराओ और िन"य {ा|णi
को भोजन कराओगे तो अनुमान है jक नव>हi के िवš हट जायOगे।’ अनुमान
शdद इसिलये है jक जो मर जायेगा तो कहOगे हम eया करO परमे5र के ऊपर
कोई नहc है। हम ने तो बgत सा य¢ jकया और तुम ने कराया, उस के कम&
ऐसे ही थे। और जो बच जाय तो कहते है jक देखो-हमारे म3•, देवता और
{ा|णi कR कै सी शिž है? तु›हारे लड़के को बचा jदया। यहां यह बात होनी
चािहये jक जो इनके जप पाठ से कु छ न हो तो दूने ितगुने ˜पये उन धूतŽ से ले
लेने चािहये और बच जाय तो भी ले लेने चािहये eयijक जैसे °योितिषयi ने
कहा jक ‘इस के कम& और परमे5र के िनयम तोड़ने का साम•य& jकसी का नहc
।’ वैसे गृहHथ भी कहO jक ‘यह अपने कम& और परमे5र के िनयम से बचा है,
तु›हारे करने से नहc’ और तीसरे गु˜ आjद भी पु‹य दान करा के आप ले लेते
ह< तो उनको भी वही उsर देना, जो °योितिषयi को jदया था।
अब रह गई शीतला और म3•, त3•, य3• आjद। ये भी ऐसे ही ढiग मचाते
ह<। कोई कहता है jक ‘जो हम म3• पढ़ के डोरा वा य3• बना देवO तो हमारे
देवता और पीर उस म3•, य3• के 'ताप से उस को कोई िवš नहc होने देते।’
उन को वही उsर देना चािहये jक eया तुम मृ"यु, परमे5र के िनयम और
कम&पफ़ल से भी बचा सकोगे? तु›हारे इस 'कार करने से भी jकतने ही लड़के
मर जाते ह< और तु›हारे घर मO भी मर जाते ह< और eया तुम मरण से बच
सकोगे? तब वे कु छ भी नहc कह सकते और वे धूs& जान लेते ह< jक यहां
हमारी दाल नहc गलेगी। इस से इन सब िम•या aवहारi को छोड़ कर
धा“मक, सब देश के उपकारकsा&, िन‘कपटता से सब को िव‡ा पढ़ाने वाले,
उsम िवyान् लोगi का '"युपकार करना जैसा वे जगत् का उपकार करते ह<,
इस काम को कभी न छोड़ना चािहये। और िजतनी लीला रसायन, मारण,
मोहन, उ0ाटन, वशीकरण आjद करना कहते ह< उन को भी महापामर
समझना चािहये।
इ"याjद िम•या बातi का उपदेश बाqयावHथा ही मO स3तानi के Æदय मO डाल
दO jक िजस से Hवस3तान jकसी के ±मजाल मO पड़ के दुःख न पावO और वीय&
कR रzा मO आन3द और नाश करने मO दुःख'ािƒ भी जना देनी चािहये। जैसे-
‘देखो िजस के शरीर मO सुरिzत वीय& रहता है तब उस को आरो•य, बुिZ, बल,
परा¦म बढ़ के बgत सुख कR 'ािƒ होती है। इसके रzण मO यही रीित है jक
िवषयi कR कथा, िवषयी लोगi का संग, िवषयi का —यान, ¬ी का दश&न,
एका3त सेवन, स›भाषण और Hपश& आjद कम& से {|चारी लोग पृथÀफ़ रह
कर उsम िशzा और पूण& िव‡ा को 'ाƒ होवO। िजसके शरीर मO वीय& नहc
होता वह नपुंसक महाकु लzणी और िजस को 'मेह रोग होता है वह दुब&ल,
िनHतेज, िनबु&िZ, उ"साह, साहस, धैय&, बल, परा¦माjद गुणi से रिहत होकर
न… हो जाता है। जो तुम लोग सुिशzा और िव‡ा के >हण, वीय& कR रzा करने
मO इस समय चूकोगे तो पुनः इस ज3म मO तुम को यह अमूqय समय 'ाƒ नहc
हो सके गा। जब तक हम लोग गृहकमŽ के करने वाले जीते ह< तभी तक तुम को
िव‡ा->हण और शरीर का बल बढ़ाना चािहये।’ इसी 'कार कR अ3य-अ3य
िशzा भी माता और िपता करO ।
इसीिलए ‘मातृमान् िपतृमान्’ शdद का >हण उž वचन मO jकया है अथा&त्
ज3म से ५वO वष& तक बालकi को माता, ६ वष& से ८वO वष& तक िपता िशzा
करO और ९वO वष& के आर›भ मO िyज अपने स3तानi का उपनयन करके आचाय&
कु ल मO अथा&त् जहां पूण& िवyान् और पूण& िवदुषी ¬ी िशzा और िव‡ादान
करने वाली हi वहां लड़के और लड़jकयi को भेज दO और शू¥ाjद वण& उपनयन
jकये िवना िव‡ा^यास के िलये गु˜कु ल मO भेज दO।
उ3हc के स3तान िवyान्, स^य और सुिशिzत होते ह<, जो पढ़ाने मO स3तानi
का लाड़न कभी नहc करते jक3तु ताड़ना ही करते रहते ह<। इसमO aाकरण
महाभा‘य का 'माण है-
सामृतैः पािणिभš&ि3त गुरवो न िवषोिzतैः।
लालना~ियणो दोषाHताडना~ियणो गुणाः।।
अथ&-जो माता, िपता और आचाय&, स3तान और िश‘यi का ताड़न करते ह< वे
जानो अपने स3तान और िश‘यi को अपने हाथ से अमृत िपला रहे ह< और जो
स3तानi वा िश‘यi का लाड़न करते ह< वे अपने स3तानi और िश‘यi को िवष
िपला के न… ±… कर देते ह<। eयijक लाड़न से स3तान और िश‘य दोषयुž
तथा ताड़ना से गुणयुž होते ह< और स3तान और िश‘य लोग भी ताड़ना से
'स– और लाड़न से अ'स– सदा रहा करO । पर3तु माता, िपता तथा अ—यापक
लोग ई‘या&, yेष से ताड़न न करO jक3तु ऊपर से भय'दान और भीतर से
कृ पादृि… रeखO।

जैसे अ3य िशzा कR वैसी चोरी, जारी, आलHय, 'माद, मादक ¥a,
िम•याभाषण, िहसा, ¦ू रता, ई‘या&, yेष, मोह आjद दोषi को छोड़ने और
स"याचार के >हण करने कR िशzा करO । eयijक िजस पु˜ष ने िजसके सामने
एक वार चोरी, जारी, िम•याभाषणाjद कम& jकया उस कR 'ित¼ा उस के
सामने मृ"युप‰य&3त नहc होती। जैसी हािन 'ितXा िम•या करने वाले कR होती
है वैसी अ3य jकसी कR नहc। इस से िजस के साथ जैसी 'ितXा करनी उस के
साथ वैसे ही पूरी करनी चािहये अथा&त् जैसे jकसी ने jकसी से कहा jक ‘म< तुम
को वा तुम मुझ से अमुक समय मO िमलूँगा वा िमलना अथवा अमुक वHतु अमुक
समय मO तुम को म< दूग
ँ ा ।’ इस को वैसे ही पूरी करे नहc तो उसकR 'तीित कोई
भी न करे गा, इसिलये सदा स"यभाषण और स"य'ितXायुž सब को होना
चािहये। jकसी को अिभमान करना यो•य नहc, eयijक ‘अिभमानः ि~यं हि3त’
यह िवदुरनीित का वचन है। जो अिभमान अथा&त् अहंकार है वह सब शोभा
और लˆमी का नाश कर देता है, इस वाHते अिभमान करना न चािहये। छल,
कपट वा कृ तšता से अपना ही◌े Æदय दुःिखत होता है तो दूसरे कR eया कथा
कहनी चािहये। छल और कपट उसको कहते ह< जो भीतर और बाहर और दूसरे
को मोह मO डाल और दूसरे कR हािन पर —यान न देकर Hव'योजन िसZ करना।
‘कृ तšता’ उस को कहते ह< jक jकसी के jकए gए उपकार को न मानना।
¦ोधाjद दोष और कटु वचन को छोड़ शा3त और मधुर वचन ही बोले और बgत
बकवाद न करे । िजतना बोलना चािहये उससे 3यून वा अिधक न बोले। बड़i
को मा3य दे, उन के सामने उठ कर जा के उ0ासन पर बैठावे, 'थम ‘नमHते’
करे । उनके सामने उsमासन पर न बैठे। सभा मO वैसे Hथान मO बैठे जैसी अपनी
यो•यता हो और दूसरा कोई न उठावे। िवरोध jकसी से न करे । स›प– होकर
गुणi का >हण और दोषi का "याग रeखO। सœनi का संग और दु…i का "याग,
अपने माता, िपता और आचाय& कR तन, मन और धनाjद उsम-उsम पदाथŽ
से 'ीितपूव&क सेवा करO ।
या3यHमाकँ ◌् सुचWरतािन तािन "वयोपाHयािन नो इतरािण।। यह तैिs०।
इसका यह अिभ'ाय है jक माता िपता आचा‰य& अपने स3तान और िश‘यi को
सदा स"य उपदेश करO और यह भी कहO jक जो-जो हमारे धम&युž कम& ह< उन-
उन का >हण करो और जो-जो दु… कम& हi उनका "याग कर jदया करो। जो-
जो स"य जाने उन-उन का 'काश और 'चार करे । jकसी पाख‹डी दु…ाचारी
मनु‘य पर िव5ास न करO और िजस-िजस उsम कम& के िलये माता, िपता और
आचाय& आXा देवO उस-उस का यथे… पालन करो। जैसे माता, िपता ने धम&,
िव‡ा, अ¸छे आचरण के ºोक ‘िनघ‹टु ’ ‘िन˜ž’ ‘अ…ा—यायी’ अथवा अ3य सू•
वा वेदम3• क‹ठHथ कराये हi उन-उन का पुनः अथ& िव‡ािथयi को िवjदत
करावO। जैसे 'थम समुqलास मO परमे5र का aाwयान jकया है उसी 'कार
मान के उस कR उपासना करO । िजस 'कार आरो•य, िव‡ा और बल 'ाƒ हो
उसी 'कार भोजन छादन और aवहार करO करावO अथा&त् िजतनी zुधा हो
उस से कु छ 3यून भोजन करे । म‡ मांसाjद के सेवन से अलग रहO। अXात
ग›भीर जल मO 'वेश न करO eयijक जलज3तु वा jकसी अ3य पदाथ& से दुःख
और जो तरना न जाने तो डू ब ही जा सकता है। ‘नािवXाते जलाशये’ यह मनु
का वचन। अिवXात जलाशय मO 'िव… होके Èानाjद न करO ।

दृि…पूतं 3यसे"पादं व¬पूतं जलं िपबेत्।


स"यपूतां वदेyाचं मनःपूतं समाचरे त्।। मनु०।।
अथ&-नीचे दृि… कर ऊँचे नीचे Hथान को देख के चले, व¬ से छान कर जल
िपये, स"य से पिव• करके वचन बोले, मन से िवचार के आचरण करे ।
माता श•ुः िपता वैरी येन बालो न पाWठतः।
न शोभते सभाम—ये हंसम—ये वको यथा ।।
यह jकसी किव का वचन है।
वे माता और िपता अपने स3तानi के पूण& वैरी ह< िज3हiने उन को िव‡ा कR
'ािƒ न कराई, वे िवyानi कR सभा मO वैसे ितरHकृ त और कु शोिभत होते ह<
जैसे हंसi के बीच मO बगुला। यही माता, िपता का कs&a कम& परमधम& और
कR“त का काम है जो अपने स3तानi को तन, मन, धन से िव‡ा, धम&, स^यता
और उsम िशzायुž करना।
यह बालिशzा मO थोड़ा सा िलखा, इतने ही◌े से बुिZमान् लोग बgत समझ
लOगे।
इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमकृ ते स"याथ&'काशे सुभाषािवभूिषते
बालिशzािवषये
िyतीयः समुqलासः स›पूण&ः।।२।।
अथ तृतीयसमुqलासार›भः
अथाऽ—ययनाऽ—यापनिविध aाwयाHयामः
अब तीसरे समुqलास मO पढ़ने का 'कार िलखते ह<। स3तानi को उsम िव‡ा,
िशzा, गुण, क›म& और Hवभाव’प आभूषणi का धारण कराना माता, िपता,
आचा‰य& और स›बि3धयi का मुwय कम& है। सोने, चांदी, मािणक, मोती, मूँगा
आjद र¢i से युž आभूषणi के धारण कराने से मनु‘य का आ"मा सुभूिषत
कभी नहc हो सकता। eयijक आभूषणi के धारण करने से के वल देहािभमान,
िवषयासिž और चोर आjद का भय तथा मृ"यु का भी स›भव है। संसार मO
देखने मO आता है jक आभूषणi के योग से बालकाjदकi का मृ"यु दु…i के हाथ
से होता है।
िव‡ािवलासमनसो धृतशीलिशzाः स"यËता रिहतमानमलापहाराः।
संसारदुःखदलनेन सुभूिषता ये ध3या नरा िविहतकम&परोपकाराः।।
िजन पु˜षi का मन िव‡ा के िवलास मO त"पर रहता, सु3दर शील Hवभाव
युž, स"यभाषणाjद िनयम पालनयुž और अिभमान अपिव•ता से रिहत,
अ3य कR मलीनता के नाशक, स"योपदेश, िव‡ादान से संसारी जनi के दुःखi
के दूर करने से सुभूिषत, वेदिविहत कमŽ से पराये उपकार करने मO रहते ह<, वे
नर और नारी ध3य ह<। इसिलये आठ वष& के हi तभी लड़कi को लड़कi कR और
लड़jकयi को लड़jकयi कR शाला मO भेज देवO। जो अ—यापक पु˜ष वा ¬ी
दु…ाचारी हi उन से िशzा न jदलावO, jक3तु जो पूण& िव‡ायुž धा“मक हi वे
ही पढ़ाने और िशzा देने यो•य ह<।
िyज अपने घर मO लड़कi का यXोपवीत और क3याu का भी यथायो•य संHकार
करके यथोž आचा‰य& कु ल अथा&त् अपनी-अपनी पाठशाला मO भेज दO। िव‡ा
पढ़ने का Hथान एका3त देश मO होना चािहये और वे लड़के और लड़jकयi कR
पाठशाला दो कोश एक दूसरे से दूर होनी चािहये। जो वहां अ—यािपका और
अ—यापक पु˜ष वा भृ"य अनुचर हi वे क3याu कR पाठशाला मO सब ¬ी और
पु˜षi कR पाठशाला मO पु˜ष रहO◌ं। ि¬यां◌े◌ं कR पाठशाला मO पांच वष& का
लड़का और पु˜षi कR पाठशाला मO पांच वष& कR लड़कR भी न जाने पावे।
अथा&त् जब तक वे {|चारी वा ब|चाWरणी रहO तब तक ¬ी वा पु˜ष का
दश&न, Hपश&न, एका3तसेवन, भाषण, िवषयकथा, परHपर¦Rडा, िवषय का
—यान और संग इन आठ 'कार के मैथुनi से अलग रहO और अ—यापक लोग उन
को इन बातi से बचावO। िजस से उsम िव‡ा, िशzा, शील, Hवभाव, शरीर
और आ"मा के बलयुž होके आन3द को िन"य बढ़ा सकO ।
पाठशालाu से एक योजन अथा&त् चार कोश दूर >ाम वा नगर रहे। सब को
तुqय व¬, खान-पान, आसन jदये जायO, चाहे वह राजकु मार व राजकु मारी
हो, चाहे दWर¥ के स3तान हi, सब को तपHवी होना चािहये। उन के माता
िपता अपने स3तानi से वा स3तान अपने माता िपताu से न िमल सकO और न
jकसी 'कार का प•-aवहार एक दूसरे से कर सकO , िजस से संसारी िच3ता से
रिहत होकर के वल िव‡ा बढ़ाने कR िच3ता रखO। जब ±मण करने को जायO तब
उनके साथ अ—यापक रह<, िजस से jकसी 'कार कR कु चे…ा न कर सकO और न
आलHय 'माद करO ।
क3यानां स›'दानं च कु माराणां च रzणम्।। मनु॰।।
इसका अिभ'ाय यह है jक इस मO राजिनयम और जाितिनयम होना चािहये
jक पांचवO अथवा आठवO वष& से आगे अपने लड़कi और लड़jकयi को घर मO न
रख सकO । पाठशाला मO अवŸय भेज देवO। जो न भेजे वह द‹डनीय हो। 'थम
लड़कi का यXोपवीत घर मO ही हो और दूसरा पाठशाला मO आचा‰य&कुल मO
हो।
िपता माता वा अ—यापक अपने लड़का लड़jकयi को अथ&सिहत गाय•ी म3•
का उपदेश कर दO। वह म3•-
ओ३म् भूभु&वः Hव: । त"सिवतुव&रे‹यं भगª देवHय धीमिह ।
िधयो यो नः 'चोदयात् ।।
इस म3• मO जो 'थम (ओ३म्) है उस का अथ& 'थमसमुqलास मO कर jदया है,
वहc से जान लेना। अब तीन महाaाÆितयi के अथ& संzेप से िलखते ह<-‘भूWरित
वै 'ाणः’ ‘यः 'ाणयित चराऽचरं जगत् स भूः Hवय›भूरी5रः’ जो सब जगत् के
जीवन का आवमार, 'ाण से भी ि'य और Hवय›भू है उस 'ाण का वाचक होके
‘भूः’ परमे5र का नाम है। ‘भुवWर"यपानः’ ‘यः सव¶ दुःखमपानयित सोऽपानः’
जो सब दुःखi से रिहत, िजस के संग से जीव सब दुःखi से छू ट जाते ह< इसिलये
उस परमे5र का नाम ‘भुवः’ है। ‘HवWरित aानः’ ‘यो िविवधं जगद् aानयित
aा¹ोित स aानः’ । जो नानािवध जगत् मO aापक होके सब का धारण करता
है इसिलये उस परमे5र का नाम ‘Hवः’ है। ये तीनi वचन तैिsरीय आर‹यक
के ह<। (सिवतुः) ‘यः सुनो"यु"पादयित सव¶ जगत् स सिवता तHय’। जो सब जगत्
का उ"पादक और सब ऐ5य& का दाता है । (देवHय) ‘यो दीaित दीaते वा स
देवः’ । जो सव&सुखi का देनेहारा और िजस कR 'ािƒ कR कामना सब करते ह<।
उस परमा"मा का जो (वरे ‹यम्) ‘वsु&मह&म’् Hवीकार करने यो•य अित~े¼
(भग&ः) ‘शुZHव’पम्’ शुZHव’प और पिव• करने वाला चेतन {| Hव’प है
(तत्) उसी परमा"मा के Hव’प को हम लोग (धीमिह) ‘धरे मिह’ धारण करO ।
jकस 'योजन के िलये jक (यः) ‘जगदी5रः’ जो सिवता देव परमा"मा (नः)
‘अHमाकम्’ हमारी (िधयः) ‘बुZीः’ बुिZयi को ('चोदयात्) ‘'ेरयेत्’ 'ेरणा करे
अथा&त् बुरे कामi से छु ड़ा कर अ¸छे कामi मO 'वृs करे ।
‘हे परमे5र! हे सि0दान3दHव’प! हे िन"यशुZबुZमुžHवभाव! हे अज
िनरÅन िन“वकार! हे सवा&3तया&िमन्! हे सवा&धार जग"पते सकलजगदु"पादक!
हे अनादे! िव5›भर सव&aािपन्! हे क˜णामृतवाWरधे! सिवतुदव · Hय तव यदi
भूभु&वः Hवव&रे‹यं भगªऽिHत तyयं धीमिह दधीमिह —यायेम वा कHमै 'योजना-
ये"य•ह। हे भगवन् ! यः सिवता देवः परमे5रो भवा–Hमाकं िधयः 'चोदयात्
स एवाHमाकं पू°य उपासनीय इ…देवो भवतु नातोऽ3यं भवsुqयं भवतोऽिधकं
च कि€त् कदािच3म3यामहे।
हे मनु‘यो! जो सब समथŽ मO समथ& सि0दान3दान3तHव’प, िन"य शुZ, िन"य
बुZ, िन"य मुžHवभाव वाला, कृ पासागर, ठीक-ठीक 3याय का करनेहारा,
ज3ममरणाjद eलेशरिहत, आकाररिहत, सब के घट-घट का जानने वाला, सब
का धता&, िपता, उ"पादक, अ–ाjद से िव5 का पोषण करनेहारा, सकल
ऐ5य&युž जगत् का िनमा&ता, शुZHव’प और जो 'ािƒ कR कामना करने यो•य
है उस परमा"मा का जो शुZ चेतनHव’प है उसी को हम धारण करO । इस
'योजन के िलये jक वह परमे5र हमारे आ"मा और बुिZयi का
अ3तया&मीHव’प हम को दु…ाचार अध›म&युž माग& से हटा के ~े¼ाचार स"य
माग& मO चलावO, उस को छोड़कर दूसरे jकसी वHतु का —यान हम लोग नहc
करO । eयां◌ेjक न कोई उसके तुqय और न अिधक है वही हमारा िपता राजा
3यायाधीश और सब सुखi का देनेहारा है। इस 'कार गाय•ी म3• का उपदेश
करके स3—योपासन कR जो Èान, आचमन, 'ाणायाम आjद j¦या ह< िसखलावO।
'थम Èान इसिलए है jक िजस से शरीर के बाÉ अवयवi कR शुिZ और
आरो•य आjद होते ह<। इस मO 'माण-
अिÐगा&•िण शु—यि3त मनः स"येन शु—यित।
िव‡ातपो^यां भूता"मा बुिZXा&नेन शु—यित।।
यह मनुHमृित का ºोक है।
जल से शरीर के बाहर के अवयव, स"याचरण से मन, िव‡ा और तप अथा&त्
सब 'कार के क… भी सह के धम& ही के अनु¼ान करने से जीवा"मा, Xान अथा&त्
पृिथवी से लेके परमे5र पय&3त पदाथŽ के िववेक से बुिZ दृढ़-िनtय पिव•
होता है। इस से Èान भोजन के पूव& अवŸय करना। दूसरा 'ाणायाम, इसमO
'माण-
'ाणायामादशुिZzये Xानदीिƒरािववेकwयातेः।।
-यह योगशा¬ का सू• है।
जब मनु‘य 'ाणायाम करता है तब 'ितzण उsरोsर काल मO अशुिZ का
नाश और Xान का 'काश होता जाता है। जब तक मुिž न हो तब तक उसके
आ"मा का Xान बराबर बढ़ता जाता है।
दÉ3ते —मायमानानां धातूनां च यथा मलाः।
तथेि3¥याणां दÉ3ते दोषाः 'ाणHय िन>हात्।।
यह मनुHमृित का ºोक है।
जैसे अि« मO तपाने से सुवणा&jद धातुu का मल न… होकर शुZ होते ह< वैसे
'ाणायाम करके मन आjद इि3¥यi के दोष zीण होकर िनम&ल हो जाते ह<।
'ाणायाम कR िविध-
'¸छद&निवधारणा^यां वा 'ाणHय। योगसू•।
जैसे अ"य3त वेग से वमन होकर अ– जल बाहर िनकल जाता है वैसे 'ाण को
बल से बाहर पफ़O क के बाहर ही यथाशिž रोक देवे। जब बाहर िनकालना
चाहे तब मूलेि3¥य को ऊपर खcच के वायु को बाहर पफ़O क दे। जब तक
मूलेि3¥य को ऊपर खcच रeखे तब तक 'ाण बाहर रहता है। इसी 'कार 'ाण
बाहर अिधक ठहर सकता है। जब गभराहट हो तब धीरे -धीरे भीतर वायु को
ले के jफर भी वैसे ही◌े करता जाय िजतना साम•य& और इ¸छा हो और मन मO
(ओ३म्) इस का जप करता जाय इस 'कार करने से आ"मा और मन कR
पिव•ता और िHथरता होती है।
एक ‘बाÉिवषय’ अथा&त् बाहर ही अिधक रोकना। दूसरा ‘आ^य3तर’ अथा&त्
भीतर िजतना 'ाण रोका जाय उतना रोक के । तीसरा ‘Hत›भवृिs’ अथा&त् एक
ही वार जहां का तहां 'ाण को यथाशिž रोक देना। चौथा ‘बाÉा^य3तराzेपी’
अथा&त् जब 'ाण भीतर से बाहर िनकलने लगे तब उससे िव˜Z उस को न
िनकलने देने के िलये बाहर से भीतर ले और जब बाहर से भीतर आने लगे तब
भीतर से बाहर कR ओर 'ाण को धÙा देकर रोकता जाय। ऐसे एक दूसरे के
िव˜Z j¦या करO तो दोनi कR गित ˜क कर 'ाण अपने वश मO होने से मन और
इि3¥याँ भी Hवाधीन होते ह<। बल पु˜षाथ& बढ़ कर बुिZ तीË सूˆम’प हो
जाती है jक जो बgत कWठन और सूˆम िवषय को भी शीÎ >हण करती है।
इस से मनु‘य शरीर मO वी‰य& वृिZ को 'ाƒ होकर िHथर, बल, परा¦म,
िजतेि3¥यता, सब शा¬O को थोड़े ही◌े काल मO समझ कर उपिHथत कर लेगा।
¬ी भी इसी 'कार योगा^यास करे । भोजन, छादन, बैठने, उठने, बोलने,
चालने, बड़े छोटे से यथायो•य aवहार करने का उपदेश करO । स3—योपासन
िजसको {|यX भी कहते ह<। ‘आचमन’ उतने जल को हथेली मO ले के उस के
मूल और म—यदेश मO ओ¼ लगा के करे jक वह जल क‹ठ के नीचे Æदय तक
पgंच,े न उससे अिधक न 3यून। उससे क‹ठHथ कफ और िपs कR िनवृिs थोड़ी
सी होती है। पtात् ‘माज&न’ अथा&त् म—यमा और अनािमका अंगुली के अ>भाग
से ने•jद अंगi पर जल िछड़के , उस से आलHय दूर होता है जो आलHय और
जल 'ाƒ न हो तो न करे । पुनः सम3•क 'ाणायाम, मनसापWर¦मण,
उपHथान, पीछे परमे5र कR Hतुित, 'ाथ&ना और उपासना कR रीित िशखलावे।
पtात् ‘अघमष&ण’ अथा&त् पाप करने कR इ¸छा भी कभी न करे । यह
स3—योपासन एका3त देश मO एका>िचs से करे ।
अपां समीपे िनयतो नै"यकं िविधमािHथतः।
सािव•ीमÊयधीयीत ग"वार‹यं समािहतः।। यह मनुHमृित का वचन है।
जंगल मO अथा&त् एका3त देश मO जा सावधान हो के जल के समीप िHथत हो के
िन"य कम& को करता gआ सािव•ी अथा&त् गाय•ी म3• का उ0ारण अथ&Xान
और उसके अनुसार अपने चाल चलन को करे पर3तु यह ज3म से करना उsम
है। दूसरा देवयX-जो अि«हो• और िवyानi का संग सेवाjदक से होता है।
स3—या और अि«हो• सायं 'ातः दो ही काल मO करे । दो ही रात jदन कR
सि3धवेला ह<, अ3य नहc। 3यून से 3यून एक घ‹टा —यान अवŸय करे । जैसे
समािधHथ होकर योगी लोग परमा"मा का —यान करते ह< वैसे ही स3—योपासन
भी jकया करO । यथा सूयªदय के पtात् और सूया&Hत के पूव& अि«हो• करने का
भी समय है। उसके िलए एक jकसी धातु वा िमÝी कR ऊपर १२ वा १६ अंगुल
चौकोर उतनी ही गिहरी और नीचे ३ वा ४ अंगुल पWरमाण से वेदी इस 'कार
बनावे अथा&त् ऊपर िजतनी चौड़ी हो उसकR चतुथा¶श नीचे चौड़ी रहे। उसमO
च3दन पलाश वा आ¨ाjद के ~े¼ का¼i के टु कड़े उसी वेदी के पWरमाण से बड़े
छोटे करके उस मO रeखे, उसके म—य मO अि« रखके पुनः उस पर सिमधा अथा&त्
पूवªž इ3धन रख दे। एक 'ोzणीपा• ऐसा और तीसरा 'णीतापा• इस 'कार
का और एक इस 'कार कR आ°यHथाली अथा&त् घृत रखने का पा• और चमसा
ऐसा सोने, चांदी वा का¼ का बनवा के 'णीता और 'ोzणी मO जल तथा
घृतपा• मO घृत रख के घृत को तपा लेवे। 'णीता जल रखने और 'ोzणी
इसिलये है jक उस से हाथ धोने को जल लेना सुगम है। पtात् उस घी को
अ¸छे 'कार देख लेवे jफर म3• से होम करO ।
u भूर«ये 'ाणाय Hवाहा। भुववा&यवेऽपानाय Hवाहा। Hवराjद"याय
aानाय Hवाहा। भूभु&वः Hवरि«वा‰वाjद"ये^यः 'ाणापानaाने^यः Hवाहा।।
इ"याjद अि«हो• के '"येक म3• को पढ़ कर एक-एक आgित देवे और जो
अिधक आgित देना हो तो-
िव5ािन देव सिवतदुW& रतािन परासवु । यÐ¥ं त– आ सवु ।।
इस म3• और पूवªž गाय•ी म3• से आgित देवे। ‘u’ ‘भूः’ और ‘'ाणः’ आjद
ये सब नाम परमे5र के ह<। इनके अथ& कह चुके ह<। ‘Hवाहा’ शdद का अथ& यह
है jक जैसा Xान आ"मा मO हो वैसा ही◌े जीभ से बोले, िवपरीत नहc। जैसे
परमे5र ने सब 'ािणयi के सुख के अथ& इस सब जगत् के पदाथ& रचे ह< वैसे
मनु‘यi को भी परोपकार करना चािहये।
('-) होम से eया उपकार होता है?
(उsर) सब लोग जानते ह< jक दुग&3धयुž वायु और जल से रोग, रोग से
'ािणयi को दुःख और सुगि3धत वायु तथा जल से आरो•य और रोग के न…
होने से सुख 'ाƒ होता है।
('-) च3दनाjद िघस के jकसी को लगावे वा घृताjद खाने को देवे तो बड़ा
उपकार हो। अि« मO डाल के aथ& न… करना बुिZमानi का काम नहc।
(उsर) जो तुम पदाथ&िव‡ा जानते तो कभी ऐसी बात न कहते। eयां◌ेjक
jकसी ¥a का अभाव नहc होता। देखो! जहां होम होता है वहां से दूर देश मO
िHथत पु˜ष के नािसका से सुग3ध का >हण होता है वैसे दुग&3ध का भी। इतने
ही से समझ लो jक अि« मO डाला gआ पदाथ& सूˆम हो के पफ़ै ल के वायु के
साथ दूर देश मO जाकर दुग&3ध कR िनवृिs करता है।
('-) जब ऐसा ही है तो के शर, कHतूरी, सुगि3धत पु‘प और अतर आjद के घर
मO रखने से सुगि3धत वायु होकर सुखकारक होगा।
(उsर) उस सुग3ध का वह साम•य& नहc है jक गृहHथ वायु को बाहर िनकाल
कर शुZ वायु को 'वेश करा सके eयijक उस मO भेदक शिž नहc है और अि«
ही का साम•य& है jक उस वायु और दुग&3धयुž पदाथŽ को िछ–-िभ– और
हqका करके बाहर िनकाल कर पिव• वायु को 'वेश करा देता है।
('-) तो म3• पढ़ के होम करने का eया 'योजन है?
(उsर) म3•O मO वह aाwयान है jक िजससे होम करने मO लाभ िवjदत हो जायO
और म3•O कR आवृिs होने से क‹ठHथ रहO। वेदपुHतकi का पठन-पाठन और
रzा भी होवे।
('-) eया इस होम करने के िवना पाप होता है?
(उsर) हां ! eयijक िजस मनु‘य के शरीर से िजतना दुग&3ध उ"प– हो के वायु
और जल को िबगाड़ कर रोगो"पिs का िनिमs होने से 'ािणयi को दुःख 'ाƒ
कराता है उतना ही पाप उस मनु‘य को होता है। इसिलये उस पाप के
िनवारणाथ& उतना सुग3ध वा उससे अिधक वायु और जल मO पफ़ै लाना चािहये।
और िखलाने िपलाने से उसी एक aिž को सुख िवशेष होता है। िजतना घृत
और सुग3धाjद पदाथ& एक मनु‘य खाता है उतने ¥a के होम से लाखi
मनु‘यां◌े◌ं का उपकार होता है पर3तु जो मनु‘य लोग घृताjद उsम पदाथ& न
खावO तो उन के शरीर और आ"मा के बल कR उ–ित न हो सके , इस से अ¸छे
पदाथ& िखलाना िपलाना भी चािहये पर3तु उससे होम अिधक करना उिचत है
इसिलए होम का करना अ"यावŸयक है।
('-) '"येक मनु‘य jकतनी आgित करे और एक-एक आgित का jकतना
पWरमाण है?
(उsर) '"येक मनु‘य को सोलह-सोलह आgित और छः-छः माशे घृताjद एक-
एक आgित का पWरमाण 3यून से 3यून चािहये और जो इससे अिधक करे तो
बgत अ¸छा है। इसीिलये आय&वरिशरोमिण महाशय ऋिष, मह“ष, राजे,
महाराजे लोग बgत सा होम करते और कराते थे। जब तक इस होम करने का
'चार रहा तब तक आया&वs& देश रोगi से रिहत और सुखi से पूWरत था, अब
भी 'चार हो तो वैसा ही हो जाय। ये दो यX अथा&त् {|यX जो पढ़ना-पढ़ाना
स3—योपासन ई5र कR Hतुित, 'ाथ&ना, उपासना करना, दूसरा देवयX जो
अि«हो• से ले के अ5मेध पय&3त यX और िवyानi कR सेवा संग करना पर3तु
{|चय& मO के वल {|यX और अि«हो• का ही◌े करना होता है।
ऋतं च Hवा—याय'वचने च। स"यं च Hवा—याय'वचने च। तपt
Hवा—याय'वचने च। दमt Hवा—याय'वचने च। शमt Hवा—याय'वचने च।
अ«यt Hवा—याय'वचने च। अि«हो•ं च Hवा—याय'वचने च। अितथयt
Hवा—याय'वचने च। मानुषं च Hवा—याय'वचने च। 'जा च Hवा—याय'वचने
च। 'जनt Hवा—याय'वचने च। 'जाितt Hवा—याय'वचने च।
-यह तैिsरीयोपिनषत् का वचन है।
ये पढ़ने पढ़ाने वालi के िनयम ह<। (ऋतं०) यथाथ& आचरण से पढ़O और पढ़ावO,
(स"यं०) स"याचार से स"यिव‡ाu को पढ़O वा पढ़ावO, (तपः०) तपHवी अथा&त्
धमा&नु¼ान करते gए वेदाjद शा¬O को पढ़O और पढ़ावO, (दमः०) बाÉ इि3¥यi
को बुरे आचरणi से रोक के पढ़O और पढ़ाते जायO, (शमः०) अथा&त् मन कR वृिs
को सब 'कार के दोषi से हटा के पढ़ते पढ़ाते जायO, (अ«यः०)
आहवनीयाjद अि« और िव‡ुत् आjद को जान के पढ़ते पढ़ाते जायO, और
(अि«हो•ं०) अि«हो• करते gए पठन और पाठन करO करावO, (अितथयः०)
अितिथयi कR सेवा करते gए पढ़O और पढ़ावO, (मानुषं०) मनु‘यस›ब3धी
aवहारi को यथायो•य करते gए पढ़ते पढ़ाते रह<, ('जा०) अथा&त् स3तान
और रा°य का पालन करते gए पढ़ते पढ़ाते जायO, ('जन०) वीय& कR रzा और
वृिZ करते gए पढ़ते पढ़ाते जायO, ('जाितः०) अथा&त् अपने स3तान और िश‘य
का पालन करते gए पढ़ते पढ़ाते जायO।
यमान् सेवेत सततं न िनयमान् के वलान् बुधः।
यमा3पत"यकु वा&णो िनयमान् के वलान् भजन्।। मनु०।।
यम पांच 'कार के होते ह<-
त•िहसास"याHतेय{|चया&पWर>हा यमाः।। योगसू•।।
अथा&त् (अिहसा) वैर"याग, (स"य) स"य मानना, स"य बोलना और स"य ही
करना, (अHतेय) अथा&त् मन वचन कम& से चोरी"याग, ({|चय&) अथा&त्
उपHथेि3¥य का संयम, (अपWर>ह) अ"य3त लोलुपता Hव"वािभमानरिहत
होना, इन पांच यमi का सेवन सदा करO । के वल िनयमi का सेवन अथा&त-्
शौचस3तोषतपःHवा—याये5र'िणधानािन िनयमाः।। योगसू•।।
(शौच) अथा&त् Èानाjद से पिव•ता (स3तोष) स›यÀफ़ 'स– होकर िन˜‡म
रहना स3तोष नहc jक3तु पु˜षाथ& िजतना हो सके उतना करना, हािन लाभ मO
हष& वा शोक न करना (तप) अथा&त् क…सेवन से भी धम&युž कमŽ का अनु¼ान
(Hवा—याय) पढ़ना पढ़ाना (ई5र'िणधान) ई5र कR भिžिवशेष मO आ"मा को
अ“पत रखना, ये पांच िनयम कहाते ह<। यमi के िवना के वल इन िनयमi का
सेवन न करे jक3तु इन दोनi का सेवन jकया करे । जो यमi का सेवन छोड़ के
के वल िनयमi का सेवन करता है वह उ–ित को नहc 'ाƒ होता jक3तु अधोगित
अथा&त् संसार मO िगरा रहता है।
कामा"मता न 'शHता न चैवेहH"यकामता।
का›यो िह वेदािधगमः कम&योगt वैjदकः।। मनु०।।
अथ&-अ"य3त कामातुरता और िन‘कामता jकसी के िलये भी ~े¼ नहc, eयijक
जो कामना न करे तो वेदi का Xान और वेदिविहत कमा&jद उsम कम& jकसी
से न हो सकO । इसिलये-
Hवा—यायेन Ëतैहªमै¬ैिव‡ेने°यया सुतैः।
महायXैt यXैt {ा|ीयं ि•फ़यते तनुः।। मनु०।।
अथ&-(Hवा—याय) सकल िव‡ा पढ़ते-पढ़ाते (Ëत) {|च‰य& स"यभाषणाjद
िनयम पालने (होम) अि«हो•jद होम, स"य का >हण अस"य का "याग और
स"य िव‡ाu का दान देने (•ैिव‡ेन) वेदHथ कमªपासना Xान िव‡ा के >हण
(इ°यया) पzे‘Þाjद करने (सुतैः) सुस3तानो"पिs (महायXैः) {|, देव, िपतृ,
वै5देव और अितिथयi के सेवन’प प€महायX और (यXैः) अि«…ोमाjद तथा
िशqपिव‡ािवXानाjद यXi के सेवन से इस शरीर को {ा|ी अथा&त् वेद और
परमे5र कR भिž का आधार’प {ा|ण का शरीर बनता है। इतने साधनi के
िवना {ा|णशरीर नहc बन सकता।

इि3¥याणां िवचरतां िवषये‘वपहाWरषु ।


संयमे य¢माित¼ेिyyान् य3तेव वािजनाम्।। मनु॰।।
अथ&-जैसे िवyान् सारिथ घोड़i को िनयम मO रखता है वैसे मन और आ"मा को
खोटे कामi मO ख<चने वाले िवषयi मO िवचरती gई इि3¥यi के िन>ह मO 'य¢
सब 'कार से करO । eयijक-
इि3¥याणां 'संगेन दोषम् ऋ¸छ"यसंशयम् ।
सि–य›य तु ता3येव ततः िसिZ िनय¸छित।। मनु०।।
अथ&-जीवा"मा इि3¥यi के वश होके िनिtत बड़े-बड़े दोषi को 'ाƒ होता है
और जब इि3¥यi को अपने वश मO करता है तभी िसिZ को 'ाƒ होता है।
वेदाH"यागt यXाt िनयमाt तपांिस च।
न िव'दु…भावHय िसिZ ग¸छि3त क“हिचत्।। मनु०।।
जो दु…ाचारी-अिजतेि3¥य पु˜ष ह< उसके वेद, "याग, यX, िनयम और तप तथा
अ3य अ¸छे काम कभी िसिZ को नहc 'ाƒ होते।
वेदोपकरणे चैव Hवा—याये चैव नै"यके ।
नानुरोधोऽH"यन—याये होमम3•ेषु चैव िह।।१।। मनु०।।
नै"यके नाH"यन—यायो {|स•ं िह त"Hमृतम्।
{|ाgितgतं पु‹यम् अन—यायवषßकृ तम्।।२।। मनु०।।
वेद के पढ़ने-पढ़ाने, स3—योपासनाjद प€महायXi के करने और होमम3•O मO
अन—यायिवषयक अनुरोध (आ>ह) नहc है eयijक।।१।। िन"यकम& मO अन—याय
नहc होता। जैसे 5ास'5ास सदा िलये जाते ह< ब3ध नहc jकये जाते वैसे
िन"यकम& 'ितjदन करना चािहये; न jकसी jदन छोड़ना eयijक अन—याय मO
भी अि«हो•jद उsम कम& jकया gआ पु‹य’प होता है। जैसे झूठ बोलने मO
सदा पाप और स"य बोलने मO सदा पु‹य होता है। वैसे ही◌े बुरे कम& करने मO
सदा अन—याय और अ¸छे कम& करने मO सदा Hवा—याय ही होता है।।२।।
अिभवादनशीलHय िन"यं वृZोपसेिवनः।
च"वाWर तHय वZ&3त आयु“व‡ा यशो बलम्।। मनु०।।
जो सदा न¨ सुशील िवyान् और वृZi कR सेवा करता है, उसका आयु, िव‡ा,
कR“त और बल ये चार सदा बढ़ते ह< और जो ऐसा नहc करते उनके आयु आjद
चार नहc बढ़ते।
अिहसयैव भूतानां काय¶ ~ेयोऽनुशासनम्।
वाÀफ़ चैव मधुरा ºˆणा 'यो°या धम&िम¸छता।।१।।
यHय वाàनसे शुZ े स›य•गुƒे च सव&दा।
स वै सव&मवा¹ोित वेदा3तोपगतं पफ़लम्।।२।। मनु०।।
िवyान् और िव‡ाि◌थ&यi को यो•य है jक वैरबुिZ छोड़ के सब मनु‘यi के
कqयाण के माग& का उपदेश करO और उपदे…ा सदा मधुर सुशीलतायुž वाणी
बोले। जो धम& कR उ–ित चाहै वह सदा स"य मO चले और स"य ही◌े का उपदेश
करे ।।१।। िजस मनु‘य के वाणी और मन शुZ तथा सुरिzत सदा रहते ह<, वही
सदा वेदा3त अथा&त् सब वेदi के िसZा3त’प पफ़ल को 'ाƒ होता है।।२।।
स›मानाद् {ा|णो िन"यमुिyजेत िवषाjदव।
अमृतHयेव चाका zेदवमानHय सव&दा।। मनु०।।
वही {ा|ण सम> वेद और परमे5र को जानता है जो 'ित¼ा से िवष के तुqय
सदा डरता है और अपमान कR इ¸छा अमृत के समान jकया करता है।
अनेन •फ़मयोगेन संHकृ ता"मा िyजः शनैः।
गुरौ वसन् सि€नुयाद् {|ािधगिमकं तपः।। मनु०।।
इसी 'कार से कृ तोपनयन िyज {|चारी कु मार और {|चाWरणी क3या धीरे -
धीरे वेदाथ& के Xान’प उsम तप को बढ़ाते चले जायO।
योऽनधी"य िyजो वेदम3य• कु ˜ते ~मम्।
स जीव–ेव शू¥"वमाशु ग¸छित सा3वयः।। मनु०।।
जो वेद को न पढ़ के अ3य• ~म jकया करता है वह अपने पु• पौ• सिहत
शू¥भाव को शीÎ ही 'ाƒ हो जाता है।
वज&ये3मधुमांस€ ग3धं माqयं रसान् ि¬यः।
शुžािन यािन सवा&िण 'ािणनां चैव िहसनम्।।१।।
अ^यंगमÅनं चाˆणो˜पान¸छ•धारणम्।
कामं •फ़ोधं च लोभं च नs&नं गीतवादनम्।।२।।
‡ूतं च जनवादं च पWरवादं तथानृतम्।
¬ीणां च 'ेzणाल›भमुपघातं परHय च।।३।।
एकः शयीत सव&• न रे तः Hक3दये"Âिचत्।
कामािZ Hक3दयन् रे तो िहनिHत Ëतमा"मनः।।४।।
{|चारी और {|चाWरणी म‡, मांस, ग3ध, माला, रस, ¬ी और पु˜ष का
संग, सब खटाई, 'ािणयi कR िहसा।।१।।
अंगi का मद&न, िवना िनिमs उपHथेि3¥य का Hपश&, आंखi मO अÅन, जूते और
छ• का धारण, काम, ¦ोध, लोभ, मोह, भय, शोक, ई‘या&, yेष और नाच गान,
बाजा बजाना।।२।।
‡ूत, िजस jकसी कR कथा, िन3दा, िम•याभाषण, ि¬यi का दश&न, आ~य,
दूसरे कR हािन आjद कु कमŽ को सदा छोड़ देवO।।३।।
सव&• एकाकR सोवे, वी‰य& Hखिलत कभी न करO , जो कामना से वीय&Hखिलत
कर दे तो जानो jक अपने {|च‰य&Ëत का नाश कर jदया।।४।।
वेदमनू¸याचायªऽ3तेवािसनमनुशािHत। स"यं वद। धम¶ चर। Hवा—याया3मा
'मदः। आचा‰या&य ि'यं धनमाÆ"य 'जात3तुं मा aव¸छे"सीः। स"या–
'मjदतaम्। धमा&– 'मjदतaम्। कु शला– 'मjदतaम्।
Hवा—याय'वचना^यां न 'मjदतaम्। देविपतृका‰या&^यां न 'मjदतaम्।।१।।
मातृदवे ो भव। िपतृदव े ो भव। आचा‰य&दव े ो भव। अितिथदेवो भव।
या3यनव‡ािन कमा&िण तािन सेिवतaािन नो इतरािण। या3यHमाकँ ◌्
सुचWरतािन तािन "वयोपाHयािन नो इतरािण।।२।।
ये के चाHम¸छेªयांसो {ा|णाHतेषां "वयासनेन '5िसतaम्। ~Zया देयम्।
अ~Zया देयम्। ि~या देयम्। ि×या देयम्। िभया देयम्। संिवदा देयम्।।३।।
अथ यjद ते कम&िविचjक"सा वा वृsिविचjक"सा वा Hयात् ये त• {ा|णाः
समjदश&नो युžा अयुžा अलूzा धम&कामाः Hयुय&था ते त• वs·रन्। तथा त•
वs·थाः।।४।।
एष आदेश एष उपदेश एषा वेदोपिनषत्। एतदनुशासनम्। एवमुपािसतaम्।
एवमु चैतदुपाHयम्।।५।। तैिsरीय०।।
आचा‰य& अ3तेवासी अथा&त् अपने िश‘य और िश‘याu को इस 'कार उपदेश
करे jक तू सदा स"य बोल, धमा&चार कर, 'मादरिहत होके पढ़ पढ़ा, पूण&
{|च‰य& से समHत िव‡ाu को >हण कर और आचा‰य& के िलये ि'य धन
देकर िववाह करके स3तानो"पिs कर । 'माद से स"य को कभी मत छोड़,
'माद से धम& का "याग मत कर, 'माद से आरो•य और चतुराई को मत छोड़,
'माद से पढ़ने और पढ़ाने को कभी मत छोड़। देव िवyान् और माता िपताjद
कR सेवा मO 'माद मत कर। जैसे िवyान् का स"कार करे उसी 'कार माता,
िपता, आचा‰य& और अितिथ कR सेवा सदा jकया कर। जो अिनि3दत धम&युž
कम& ह< उन स"यभाषणाjद को jकया कर, उन से िभ– िम•याभाषणाjद कभी
मत कर। जो हमारे सुचWर• अथा&त् धम&युž कम& हi उनको >हण कर और जो
हमारे पापाचारण हi उन को कभी मत कर। जो कोई हमारे म—य मO उsम
िवyान् धमा&"मा {ा|ण ह< उ3हc के समीप बैठ और उ3हc का िव5ास jकया
कर, ~Zा से देना, अ~Zा से देना, शोभा से देना, लœा से देना, भय से देना
और 'ितXा से भी देना चािहए। जब कभी तुझ को कम& वा शील तथा उपासना
Xान मO jकसी 'कार का संशय उ"प– हो तो जो वे समदशŠ पzपातरिहत
योगी अयोगी आ¥&िचs धम& कR कामना करने वाले धमा&"मा जन हi जैसे वे
धम&माग& मO वत™ वैसे तू भी उसमO वsा& कर। यही आदेश आXा, यही उपदेश,
यही वेद कR उपिनषत् और यही िशzा है। इसी 'कार वs&ना और अपना चाल
चलन सुधारना चािहए।
अकामHय ि•फ़या कािचद् दृŸयते नेह क“हिचत्।
य‡िZ कु ˜ते jकि€त् तs"कामHय चेि…तम्।। मनु०।।
मनु‘यi को िनtय करना चािहए jक िन‘काम पु˜ष मO ने• का संकोच िवकास
का होना भी सव&था अस›भव है । इस से यह िसZ होता है jक जो-जो कु छ भी
करता है वह-वह चे…ा कामना के िवना नहc है।
आचारः परमो धम&ः ~ु"युžः Hमाs& एव च।
तHमादिHम3सदा युžो िन"यं Hयादा"मवान् िyजः।।१।।
आचारािy¸युतो िव'ो न वेदफलम-ुते।
आचारे ण तु संयुžः स›पूण&फलभा•भवेत्।।२।। मनु०।।
कहने, सुनने, सुनाने, पढ़ने, पढ़ाने का पफ़ल यही है jक जो वेद और वेदानुकूल
Hमृितयi मO 'ितपाjदत धम& का आचरण करना, इसिलये धमा&चार मO सदा युž
रहे।।१।। eयijक जो धमा&चरण से रिहत है वह वेद'ितपाjदत धम&ज3य सुख’प
पफ़ल को 'ाƒ नहc हो सकता और जो िव‡ा पढ़ के धमा&चरण करता है वही
स›पूण& सुख को 'ाƒ होता है।।२।।
योऽवम3येत ते मूले हेतुशा¬~याद् िyजः।
स साधुिभब&िह‘कायª नािHतको वेदिन3दकः।।१।। मनु०।।
जो वेद और वेदानुकूल आƒ पु˜षi के jकये शा¬O का अपमान करता है उस
वेदिन3दक नािHतक को जाित, पङ् िž और देश से बाÉ कर देना चािहये।
eयijक-
~ुितः Hमृितः सदाचारः HवHय च ि'यमा"मनः।
एत0तु“वधं 'ाgः साzाZम&Hय लzणम्।। मनु०।।

~ुित वेद, Hमृित वेदानुकूल आƒोž मनुHमृ"याjद शा¬, स"पु˜षi का आचार


जो सनातन अथा&त् वेदyारा परमे5र'ितपाjदत क›म& और अपने आ"मा मO
ि'य अथा&त् िजस को आ"मा चाहता है जैसे jक स"यभाषण ये चार धम& के
लzण अथा&त् इ3हc मO धमा&धम& का िनtय होता है। जो पzपातरिहत 3याय,
स"य का >हण, अस"य का सव&था पWर"याग’प आचार है उसी का नाम धम&
और इस से िवपरीत जो पzपात सिहत अ3यायाचरण स"य का "याग और
अस"य का >हण ’प कम& है उसी को अधम& कहते ह<।
अथ&कामे‘वसžानां धम&Xानं िवधीयते।
धम¶ िजXासमानानां 'माणं परमं ~ुितः।। मनु०।।
जो पु˜ष (अथ&) सुवणा&jद र¢ और (काम) ¬ीसेवनाjद मO नहc पफ़ं सते ह< उ3हc
को धम& का Xान 'ाƒ होता है जो धम& के Xान कR इ¸छा करO वे वेद yारा धम&
का िनtय करO eयijक धमा&ऽधम& का िनtय िवना वेद के ठीक-ठीक नहc होता।
इस 'कार आचा‰य& अपने िश‘य को उपदेश करे और िवशेषकर राजा इतर
zि•य, वैŸय और उsम शू¥ जनi को भी िव‡ा का अ^यास अवŸय करावO,
eयijक जो {ा|ण ह< वे ही के वल िव‡ा^यास करO और zि•याjद न करO तो
िव‡ा, धम&, रा°य और धनाjद कR वृिZ कभी नहc हो सकती। eयijक {ा|ण
तो के वल पढ़ने पढ़ाने और zि•याjद से जीिवका को 'ाƒ होके जीवन धारण
कर सकते ह<। जीिवका के आधीन और zि•याjद के आXादाता और यथावत्
परीzक द‹डदाता न होने से {ा|णाjद सब वण& पाख‹ड ही मO पफ़ं स जाते ह<
और जब zि•याjद िवyान् होते ह< तब {ा|ण भी अिधक िव‡ा^यास और
धम&पथ मO चलते ह< और उन zि•याjद िवyानi के सामने पाख‹ड, झूठा
aवहार भी नहc कर सकते और जब zि•याjद अिवyान् होते ह< तो वे जैसा
अपने मन मO आता है वैसा ही करते कराते ह<। इसिलये {ा|ण भी अपना
कqयाण चाह< तो zि•याjद को वेदाjद स"यशा¬ का अ^यास अिधक 'य¢ से
करावO। eयijक zि•याjद ही िव‡ा, धम&, रा°य और लˆमी कR वृिZ करने
हारे ह<, वे कभी िभzावृिs नहc करते, इसिलए वे िव‡ा aवहार मO पzपाती
भी नहc हो सकते। और जब सब वणŽ मO िव‡ा सुिशzा होती है तब कोई भी
पाख‹ड’प अधम&युž िम•या aवहार को नहc चला सकता। इससे eया िसZ
gआ jक zि•याjद को िनयम मO चलाने वाले {ा|ण और सं3यासी तथा {ा|ण
और सं3यासी को सुिनयम मO चलाने वाले zि•याjद होते ह<। इसिलये सब वणŽ
के ¬ी पु˜षi मO िव‡ा और धम& का 'चार अवŸय होना चािहये।
अब जो-जो पढ़ना-पढ़ाना हो वह-वह अ¸छी 'कार परीzा करके होना यो•य
है। परीzा पांच 'कार से होती है-
एक-जो-जो ई5र के गुण, कम&, Hवभाव और वेदi से अनुकूल हो वह-वह स"य
और उससे िव˜Z अस"य है।
दूसरी-जो-जो सृि…¦म से अनुकूल वह-वह स"य और जो-जो सृि…¦म से िव˜Z
है वह सब अस"य है। जैसे-कोई कहै ‘िवना माता िपता के योग से लड़का उ"प–
gआ’ ऐसा कथन सृि…¦म से िव˜Z होने से सव&था अस"य है।
तीसरी-‘आƒ’ अथा&त् जो धा“मक िवyान्, स"यवादी, िन‘कपWटयi का संग
उपदेश के अनुकूल है वह-वह >ाÉ और जो-जो िव˜Z वह-वह अ>ाÉ है।
चौथी-अपने आ"मा कR पिव•ता िव‡ा के अनुकूल अथा&त् जैसा अपने को सुख
ि'य और दुःख अि'य है वैसे ही◌े सव&• समझ लेना jक म< भी jकसी को दुःख
वा सुख दूग ँ ा तो वह भी अ'स– और 'स– होगा।
और पांचवc-आठi 'माण अथा&त् '"यz, अनुमान, उपमान, शdद, ऐितÉ,
अथा&पिs, स›भव और अभाव इनमO से '"यz के लzणाjद के जो-जो सू• नीचे
िलखOगे वे-वे सब 3यायशा¬ के 'थम और िyतीय अ—याय के जानो।
इि3¥याथ&सि–कषª"प–ं XानमaपदेŸयमaिभचाWरaवसाया"मकं
'"यzम्। -3याय० अ—याय १। आि§नक १। सू• ४।।
जो ~ो•, "वचा, चzु, िज§वा और Îाण का शdद, Hपश&, ’प, रस और ग3ध
के साथ अaविहत अथा&त् आवरणरिहत स›ब3ध होता है । इि3¥यi के साथ
मन का और मन के साथ आ"मा के संयोग से Xान उ"प– होता है उस को
'"यz कहते ह< पर3तु जो aपदेŸय अथा&त् संXासंXी के स›ब3ध से उ"प– होता
है वह-वह Xान न हो। जैसा jकसी ने jकसी से कहा jक ‘तू जल ले आ’ वह लाके
उस के पास धर के बोला jक ‘यह जल है’ पर3तु वहां ‘जल’ इन दो अzरi कR
संXा लाने वा मंगवाने वाला नहc देख सकता है। jक3तु िजस पदाथ& का नाम
जल है वही '"यz होता है और जो शdद से Xान उ"प– होता है वह शdद-
'माण का िवषय है। ‘अaिभचाWर’ जैसे jकसी ने राि• मO ख›भे को देख के
पु˜ष का िनtय कर िलया, जब jदन मO उसको देखा तो राि• का पु˜षXान
न… होकर Hत›भXान रहा, ऐसे िवनाशी Xान का नाम aिभचारी है।
‘aवसाया"मक’ jकसी ने दूर से नदी कR बालू को देख के कहा jक ‘वहां व¬
सूख रहे ह<, जल है वा और कु छ है’ ‘वह देवदs खड़ा है वा यXदs’ जब तक
एक िनtय न हो तब तक वह '"यz Xान नहc है jक3तु जो अaपदेŸय,
अaिभचाWर और िनtया"मक Xान है उसी को '"यz कहते ह<। दूसरा
अनुमान-
अथ त"पूव&कं ि•िवधमनुमानं पूव&व¸छेषव"सामा3यतो दृ…€।।
-3याय० अ० १। आ० १। सू० ५।।
जो '"यzपूव&क अथा&त् िजसका कोई एक देश वा स›पूण& ¥a jकसी Hथान वा
काल मO '"यz gआ हो उसका दूर देश मO सहचारी एक देश के '"यz होने से
अदृ… अवयवी का Xान होने को अनुमान कहते ह<। जैसे पु• को देख के िपता,
पव&ताjद मO वमूम को देख के अि«, जगत् मO सुख दुःख देख के पूव&ज3म का Xान
होता है। वह अनुमान तीन 'कार का है। एक ‘पूव&वत्’ जैसे बÖलi को देख के
वषा&, िववाह को देख के स3तानो"पिs, पढ़ते gए िव‡ा“थयi को देख के िव‡ा
होने का िनtय होता है, इ"याjद जहां-जहां कारण को देख के काय& का Xान
हो वह ‘पूव&वत्’। दूसरा ‘शेषवत्’ अथा&त् जहां काय& को देख के कारण का Xान
हो । जैसे नदी के 'वाह कR बढ़ती देख के ऊपर gई वषा& का, पु• को देख के
िपता का, सृि… को देख के अनाjद कारण का तथा कsा& ई5र का और पाप
पु‹य के आचरण को देख के सुख दुःख का Xान होता है, इसी को ‘शेषवत्’ कहते
ह<। तीसरा ‘सामा3यतोदृ…’ जो कोई jकसी का काय& कारण न हो पर3तु jकसी
'कार का साध›य& एक दूसरे के साथ हो जैसे कोई भी िवना चले दूसरे Hथान
को नहc जा सकता वैसे ही दूसरi का भी Hथाना3तर मO जाना िवना गमन के
कभी नहc हो सकता। अनुमान शdद का अथ& यही है jक अनु अथा&त् ‘'"यzHय
पtा3मीयते Xायते येन तदनुमानम्’ जो '"यz के पtात् उ"प– हो जैसे धूम
के '"यz देखे िवना अदृ… अि« का Xान कभी नहc हो सकता।
तीसरा उपमान- 'िसZसाध›या&"सा—यसाधनमुपमानम्।। -3याय० अ० १। आ०
१। सू० ६।।
जो 'िसZ '"यz साध›य& से सा—य अथा&त् िसZ करने यो•य Xान कR िसिZ
करने का साधन हो उसको उपमान कहते ह<। ‘उपमीयते येन तदुपमानम्’ जैसे
jकसी ने jकसी भृ"य से कहा jक ‘तू देवदs के सदृश िव‘णुिम• को बुला ला’
वह बोला jक-‘म<ने उसको कभी नहc देखा’ उस के Hवामी ने कहा jक ‘जैसा यह
देवदs है वैसा ही वह िव‘णुिम• है’ वा ‘जैसी यह गाय है वैसा ही गवय अथा&त्
नीलगाय होता है।’ जब वह वहां गया और देवदs के सदृश उस को देख िनtय
कर िलया jक यही िव‘णुिम• है, उसको ले आया। अथवा jकसी जंगल मO िजस
पशु को गाय के तुqय देखा उसको िनtय कर िलया jक इसी का नाम गवय है।
चौथा शdद'माण-
आƒोपदेशः शdदः।। -3याय० अ० १। आ० १। सू० ७।।
जो आƒ अथा&त् पूण& िवyान्, धमा&"मा, परोपकारि'य, स"यवादी, पु˜षाथŠ,
िजतेि3¥य पु˜ष जैसा अपने आ"मा मO जानता हो और िजस से सुख पाया हो
उसी के कथन कR इ¸छा से 'ेWरत सब मनु‘यi के कqयाणाथ& उपदे…ा हो अथा&त्
िजतने पृिथवी से लेके परमे5र पय&3त पदाथŽ का Xान 'ाƒ होकर उपदे…ा
होता है। जो ऐसे पु˜ष और पूण& आƒ परमे5र के उपदेश वेद ह<, उ3हc को
शdद'माण जानो।
पांचवां ऐÒत-
न चतु‘ßवमैितÉाथा&पिsस›भवाभाव'ामा‹यात्।।
-3याय० अ० २। आ० २। सू० १।।
जो इित ह अथा&त् इस 'कार का था उस ने इस 'कार jकया अथा&त् jकसी के
जीवनचWर• का नाम ऐितÉ है।
छठा अथा&पिन-
‘अथा&दाप‡ते सा अथा&पिsः’ के निचदु¸यते ‘स"सु घनेषु वृि…ः, सित कारणे
का‰य¶ भवतीित jकम• 'स°यते, अस"सु घनेषु वृि…रसित कारणे च का‰य¶ न
भवित ।’ जैसे jकसी ने jकसी से कहा jक ‘बÖल के होने से वषा& और कारण के
होने से का‰य& उ"प– होता है’ इस से िवना कहे यह दूसरी बात िसZ होती है
jक िवना बÖल वषा& और िवना कारण का‰य& कभी नहc हो सकता। सातवां
स›भव- ‘स›भवित यिHमन् स स›भवः’ कोई कहे jक ‘माता िपता के िवना
स3तानो"पिs, jकसी ने मृतक िजलाये, पहाड़ उठाये, समु¥ मO प"थर तराये,
च3¥मा के टु कड़े jकये, परमे5र का अवतार gआ, मनु‘य के सcग देखे और
व3—या के पु• और पु•ी का िववाह jकया, इ"याjद सब अस›भव ह<। eयां◌ेjक
ये सब बातO सृि…¦म से िव˜Z ह<। जो बात सृि…¦म के अनुकूल हो वही स›भव
है। आठवां अभाव- ‘न भवि3त यिHमन् सोऽभावः’ जैसे jकसी ने jकसी से कहा
jक ‘हाथी ले आ’ वह वहां हाथी का अभाव देख कर जहां हाथी था वहां से ले
आया। ये आठ 'माण। इन मO से जो शdद मO ऐितÉ और अनुमान मO अथा&पिs,
स›भव और अभाव कR गणना करO तो चार 'माण रह जाते ह<। इन चार 'कार
कR परीzाu से मनु‘य स"यास"य का िनtय कर सकता है अ3यथा नहc।
धम&िवशेष'सूताद् ¥aगुणकम&सामा3यिवशेषसमवायानां पदाथा&नां
साध›य&वैध›या&^यां तÓवXानाि–ः~ेयसम्।। -वै० अ० १। आ० १। सू० ४।।
जब मनु‘य धम& के यथायो•य अनु¼ान करने से पिव• होकर ‘साध›य&’ अथा&त्
जो तुqय धम& है जैसा पृिथवी जड़ और जल भी जड़, ‘वैध›य&’ अथा&त् पृिथवी
कठोर और जल कोमल, इसी 'कार से ¥a, गुण, कम&, सामा3य, िवशेष और
समवाय इन छः पदाथŽ के तÓवXान अथा&त् Hव’पXान से ‘िनः~ेयसम्’ मोz
'ाƒ होता है।
पृिथaापHतेजोवायुराकाशं कालो jदगा"मा मन इित ¥aािण।। -वै० अ० १।
आ० १। सू० ५।।
पृिथवी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, jदशा, आ"मा और मन ये नव ¥a
ह<।
ि•फ़यागुणव"समवाियकारणिमित ¥aलzणम्।।
-वै० अ० १। आ० १। सू० १५।।
‘j¦याt गुणाt िव‡3ते यÒस्मHतत् j¦यागुणवत्’ िजस मO j¦या, गुण और
के वल गुण भी रह< उस को ¥a कहते ह<। उन मO से पृिथवी, जल, तेज, वायु,
मन और आ"मा ये छः ¥a j¦या और गुणवाले ह< तथा आकाश, काल और
jदशा ये तीन j¦यारिहत गुण वाले ह<। (समवािय) ‘समवेतुं’ शीलं यHय तत्
समवािय 'ा•वृिs"वं कारणं समवािय च त"कारणं च समवाियकारणम् ।’
‘लˆयते येन तqलzणम्’ जो िमलने के Hवभावयुž काय& से कारण पूव&कालHथ
हो उसी को ‘¥a’ कहते ह<। िजस से लˆय जाना जाय जैसा आंख से ’प जाना
जाता है उसको ‘लzण’ कहते ह<।
’परसग3धHपश&वती पृिथवी।। -वै० अ० २। आ० १। सू० १।।
’प, रस, ग3ध, Hपश&वाली पृिथवी है। उस मO ’प, रस और Hपश& अि«, जल
और वायु के योग से ह<।
aविHथतः पृिथaां ग3धः।। -वै० अ० २। आ० २। सू० २।।
पृिथवी मO ग3ध गुण Hवाभािवक है। वैसे ही जल मO रस, अि« मO ’प, वायु मO
Hपश& और आकाश मO शdद Hवाभािवक है।
’परसHपश&व"य आपो ¥वाः िÈ•धाः।। -वै० अ० २। आ० १। सू० २।।
’प, रस और Hपश&वान् ¥वीभूत और कोमल जल कहाता है। पर3तु इन मO जल
का रस Hवाभािवक गुण तथा ’प, Hपश& अि« और वायु के योग से ह<। -
अÊसु शीतता।। -वै० अ० २। आ० १। सू० ५।।
और जल मO शीतल"व गुण भी Hवाभािवक है।
तेजो ’पHपश&वत्।। -वै० अ० २। आ० १। सू० ३।।
जो ’प और Hपश&वाला है वह तेज है। पर3तु इस मO ’प Hवाभािवक और Hपश&
वायु योग से है।
Hपश&वान् वायुः।। -वै० अ० २। आ० १। सू० ४।।
Hपश& गुणवाला वायु है पर3तु इस मO भी उ‘णता, शीतता, तेज और जल के
योग से रहते ह<।
त आकाशे न िव‡3ते।। -वै० अ० २। आ० १। सू० ५।।
’प, रस, ग3ध और Hपश& आकाश मO नहc ह<। jक3तु शdद ही आकाश का गुण
है।
िन‘¦मणं 'वेशनिम"याकाशHय Òलगम्।। -वै० अ० २। आ० १। सू० २०।।
िजसमO 'वेश और िनकलना होता है वह आकाश का Òलग है।
का‰या&3तरा'ादुभा&वा0 शdदः Hपश&वतामगुणः।।
-वै० अ० २। आ० १। सू० २५।।
अ3य पृिथवी आjद कायŽ से 'कट न होने से शdद; Hपश&गुणवाले भूिम आjद
का गुण नहc ह< jक3तु शdद आकाश ही का गुण है।
अपरिHम–परं युगपि0रं िz'िमित कालÒलगािन।।
-वै० अ० २। आ० २। सू० ६।।
िजस मO अपर पर (युगपत्) एक वार (िचरम्) िवल›ब (िz'म्) शीÎ इ"याjद
'योग होते ह< उसको ‘काल’ कहते ह<।
िन"ये‘वभावादिन"येषु भावा"कारणे कालाwयेित।।
-वै० अ० २। आ० २। सू० ९।।
जो िन"य पदाथŽ मO न हो और अिन"यi मO हो इसिलये कारण मO ही काल संXा
है।
इत इदिमित यतHतjÖŸयं Òलगम्।। -वै० अ० २। आ० २। सू० १०।।
यहां से वह पूव&, दिzण, पिtम, उsर, ऊपर, नीचे, िजस मO यह aवहार होता
है उसी को ‘jदशा’ कहते ह<।
आjद"यसंयोगाद् भूतपूवा&द ् भिव‘यतो भूता0 'ाची।।
-वै० अ० २। आ० २। सू० १४।।
िजस ओर 'थम आjद"य का संयोग gआ है, होगा, उस को पूव& jदशा कहते ह<।
और जहां अHत हो उस को पिtम कहते ह<। पूवा&िभमुख मनु‘य के दािहनी ओर
दिzण और बाâ ओर उsर jदशा कहाती है।
एतेन jदग3तरालािन aाwयातािन।। -वै० अ० २। आ० २। सू० १६।।
इस से पूव& दिzण के बीच कR jदशा को आ«ेयी, दिzण पिtम के बीच को
नैऋत, पिtम उsर के बीच को वायवी और उsर पूव& के बीच को ऐशानी
jदशा कहते ह<।
इ¸छाyेष'य¢सुखदुःखXाना3या"मनो Òलगिमित।।
-3याय० अ० १। आ० १। सू० १०।।
िजस मO (इ¸छा) राग, (yेष) वैर, ('य¢) पु˜षाथ&, सुख, दुःख, (Xान) जानना,
गुण हi वह जीवा"मा है। वैशेिषक मO इतना िवशेष है-
'ाणाऽपानिनमेषो3मेषजीवनमनोगतीि3¥याि3तव&काराः सुखदुःखे¸छा-
yेष'य¢ाtा"मनो Òलगािन।। -वै० अ० ३। आ० २। सू० ४।।
('ाण) भीतर से वायु को िनकालना (अपान) बाहर से वायु को भीतर लेना
(िनमेष) आंख को नीचे ढांकना (उ3मेष) आंख का ऊपर उठाना (जीवन) 'ाण
का धारण करना (मनः) मनन िवचार अथा&त् Xान (गित) यथे… गमन करना
(इि3¥य) इि3¥यi को िवषयi मO चलाना उन से िवषयi का >हण करना
(अ3त“वकार) zुधा, तृषा, °वर, पीड़ा आjद िवकारi का होना, सुख, दुःख,
इ¸छा, yेष और 'य¢ ये सब आ"मा के Òलग अथा&त् कम& और गुण ह<।
युगप°Xानानु"पिsम&नसो Òलगम्।। -3याय० अ० १। आ० १। सू० १६।।
िजस से एक काल मO दो पदाथŽ का >हण Xान नहc होता उस को मन कहते
ह<। यह ¥a का Hव’प और लzण कहा। अब गुणi का कहते ह<-
’परसग3धHपशा&ः संwयाः पWरमाणािन पृथe"वं संयोगिवभागौ पर"वा- ऽपर"वे
बुZयः सुखदुःखे इ¸छाyेषौ 'य¢ाt गुणाः।। -वै० अ० १। आ० १। सू० ६।।
’प, रस, ग3ध, Hपश&, संwया, पWरमाण, पृथÀफ़"व, संयोग, िवभाग, पर"व,
अपर"व, बुिZ, सुख, दुःख, इ¸छा, yेष, 'य¢, गु˜"व, ¥व"व, Èेह, संHकार,
धम&, अधम& और शdद ये २४ गुण कहाते ह<।
¥aा~‰यगुणवान् संयोगिवभागे‘वकारणमनपेz इित गुणलzणम्।।
-वै० अ० १। आ० १। सू० १६।।
गुण उसको कहते ह< jक जो ¥a के आ~य रहै, अ3य गुण का धारण न करे ,
संयोग और िवभाग मO कारण न हो, अनपेz अथा&त् एक दूसरे कR अपेzा न करे
उसका नाम गुण है।
~ो•ेपलिdधबु&िZिन>ा&Éः 'योगेणाऽिभ°विलत आकाशदेशः शdदः।। -
महाभा‘य।।
िजस कR ~ो•O से 'ािƒ जो बुिZ से >हण करने यो•य और 'योग से 'कािशत
तथा आकाश िजस का देश है वह शdद कहाता है। ने• से िजस का >हण हो
वह ’प, िज§वा से िजस िम…ाjद अनेक 'कार का >हण होता है वह रस,
नािसका से िजस का >हण होता है वह ग3ध, "वचा से िजसका >हण होता है
वह Hपश&, एक िy इ"याjद गणना िजस से होती है वह संwया, िजस से तौल
अथा&त् हqका भारी िवjदत होता है वह पWरमाण, एक दूसरे से अलग होना वह
पृथÀफ़"व, एक दूसरे के साथ िमलना वह संयोग, एक दूसरे से िमले gए के
अनेक टु कड़े होना वह िवभाग, इस से यह पर है वह पर, उस से यह उरे है वह
अपर, िजस से अ¸छे बुरे का Xान होता है वह बुिZ, आन3द का नाम सुख,
eलेश का नाम दुःख, (इ¸छा) राग, (yेष) िवरोध, ('य¢) अनेक 'कार का बल
पु˜षाथ&, (गु˜"व) भारीपन, (¥व"व) िपघल जाना, (Èेह) 'ीित और
िचकनापन, (संHकार) दूसरे के योग से वासना का होना, (धम&) 3यायाचरण
और कWठन"वाjद (अधम&) अ3यायाचरण औेर कWठनता से िव˜Z कोमलता ये
२४ गुण ह<।
उ"zेपणमवzेपणमाकु €नं 'सारणं गमनिमित कमा&िण।।
-वै० अ० १। आ० १। सू० ७।।
‘उ"zेपण’ ऊपर को चे…ा करना ‘अवzेपण’ नीचे को चे…ा करना
‘आकु €न’ संकोच करना ‘'सारण’ पफ़ै लाना ‘गमन’ आना जाना घूमना आjद
इन को कम& कहते ह<। अब कम& का लzण-
एक¥aमगुणं संयोगिवभागे‘वनपेzकारणिमित कम&लzणम्।।
-वै० अ० १। आ० १। सू० १७।।
‘एकं ¥aमा~य आधारो यHय तदेक¥aं न िव‡ते गुणो यHय यिHमन् वा
तदगुणं संयोगेषु िवभागेषु चाऽपेzारिहतं कारणं त"कम&लzणं’ अथवा ‘यत्
j¦यते त"कम&, लˆयते येन तqलzणम्, कम&णो लzणं कम&लzणम्’ एक ¥a के
आि~त गुणi से रिहत संयोग और िवभाग होने मO अपेzा रिहत कारण हो
उसको क›म& कहते ह<।
¥aगुणकम&णां ¥aं कारणं सामा3यम्।। -वै० अ० १। आ० १। सू० १८।।
जो काय& ¥a गुण और कम& का कारण ¥a है। वह सामा3य ¥a है।
¥aाणां ¥aं काय¶ सामा3यम्।। -वै० अ० १। आ० १। सू० २३।।
जो ¥ai का काय& ¥a है वह काय&पन से सब कायŽ मO सामा3य है।
¥a"वं गुण"वं कम&"व€ सामा3यािन िवशेषाt।।
-वै० अ० १। आ० २। सू० ५।।
¥ai मO ¥aपन, गुणi मO गुणपन, कमŽ मO कम&पन ये सब सामा3य और िवशेष
कहाते ह<। eयijक ¥ai मO ¥a"व सामा3य और गुण"व कम&"व से ¥a"व िवशेष
है; इसी 'कार सव&• जानना।
सामा3यं िवशेष इित बु¾—यपेzम्।। -वै० अ० १। आ० २। सू० ३।।
सामा3य और िवशेष बुिZ कR अपेzा से िसZ होते ह<। जैसे-मनु‘य aिžयi मO
मनु‘य"व सामा3य और पशु"वाjद से िवशेष तथा ¬ी"व और पु˜ष"व इनमO
{ा|ण"व zि•य"व वैŸय"व शू¥"व भी िवशेष ह<। {ा|ण aिžयi मO
{ा|ण"व सामा3य और zि•याjद से िवशेष है इसी 'कार सव&• जानो।
इहेदिमित यतः काय&कारणयोः स समवायः।।
-वै० अ० ७। आ० २। सू० २६।।
कारण अथा&त् अवयवi मO अवयवी कायŽ मO j¦या j¦यावान्, गुण गुणी, जाित
aिž का‰य& कारण, अवयव अवयवी, इन का िन"य स›ब3ध होने से समवाय
कहाता है और जो दूसरा ¥ai का परHपर स›ब3ध होता है वह संयोग अथा&त्
अिन"य स›ब3ध है।
¥aगुणयोः सजातीयार›भक"वं साध›य&म्।। -वै० अ० १। आ० १। सू० ९।।
जो ¥a और गुण का समान जातीयक का‰य& का आर›भ होता है उस को
साध›य& कहते ह<। जैसे पृिथवी मO जड़"व धम& और घटाjद कायª"पादक"व
Hवसदृश धम& है वैसे ही जल मO भी जड"व और िहम आjद Hवसदृश काय& का
आर›भ पृिथवी के साथ जल का और जल के साथ पृिथवी का तुqय धम& है।
अथा&त् ‘¥a- गुणयो“वजातीयार›भक"वं वैध›य&म्’ यह िवjदत gआ jक जो ¥a
और गुण का िव˜Z धम& और काय& का आर›भ है उस को वैध›य& कहते ह<। जैसे
पृिथवी मO कWठन"व, शु‘क"व और ग3धवÓव धम& जल से िव˜Z और जल का
¥व"व, कोमलता और रसगुणयुžता पृिथवी से िव˜Z है।
कारणभावा"काय&भावः।। -वै० अ० ४। आ० १। सू० ३।।
कारण के होने ही से का‰य& होता है।
न तु काया&भावा"कारणाभावः।। -वै० अ० १। आ० २। सू० २।।
काय& के अभाव से कारण का अभाव नहc होता।
कारणाऽभावा"काया&ऽभावः।। -वै० अ० १। आ० २। सू० १।।
कारण के न होने से काय& कभी नहc होता।
कारणगुणपूव&कः काय&गुणो दृ…ः।। -वै० अ० २। आ० १। सू० २४।।
जैसे कारण मO गुण होते ह< वैसे ही का‰य& मO होते ह<। पWरमाण दो 'कार का है-
अणुमहjदित तिHमि3वशेषभावािyशेषाभावा0।।
-वै० अ० ७। आ० १। सू० ११।।
(अणु) सूˆम (महत्) बड़ा। जैसे •सरे णु िलzा से छोटा और ãणुक से बड़ा है
तथा पहाड़ पृिथवी से छोटे, वृzi से बड़े ह<।
सjदित यतो ¥aगुणकम&सु सा सsा।। -वै० अ० १। आ० २। सू० ७।।
जो ¥a, गुण, कमŽ के सत् शdद अि3वत रहता है अथा&त् ‘सद् ¥aम्, सद् गुणः,
स"कम&’ सद् ¥a, सद् गुण, सत् कम& अथा&त् वs&मान कालवाची शdद का अ3वय
सब के साथ रहता है।
भावोऽनुवृsेरेव हेतु"वा"सामा3यमेव।। -वै० अ० १। आ० २। सू० ४।।
जो सब के साथ अनुवs&मान होने से सsा’प भाव है सो महासामा3य कहाता
ह।◌ै यह ¦म भाव’प ¥aां◌े का है और जो अभाव है वह पाचं प¦ार का
होता है।
ि•फ़यागुणaपदेशाभावा"'ागसत्।। -वै० अ० ९। आ० १। सू० १।।
j¦या और गुण के िवशेष िनिमs के अभाव से 'ाÀफ़ अथा&त् पूव& (असत्) न था
जैसे घट, व¬jद उ"पिs के पूव& नहc थे इसका नाम ‘'ागभाव’।
दूसरा- सदसत्। -वै० अ० ९। आ० १। सू० २।।
जो होके न रहै जैसे घट उ"प– होके न… हो जाय यह ‘'—वंसाभाव’ कहाता है।
तीसरा-
स0ासत्।। -वै० अ० ९। आ० १। सू० ४।।
जो होवे और न होवे जैसे ‘अगौर5ोऽन5ो गौः’ यह घोड़ा गाय नहc और गाय
घोड़ा नहc अथा&त् घोड़े मO गाय का और गाय मO घोडे़ का अभाव और गाय मO
गाय, घोड़े मO घोड़े का भाव है। यह ‘अ3योऽ3याभाव’ कहाता है। चौथा-
य0ा3यदसदतHतदसत्।। -वै० अ० ९। आ० १। सू० ५।।
जो पूवªž तीनi अभावi से िभ– है उसको ‘अ"य3ताभाव’ कहते ह<। जैसे-‘नर
शृंग’ अथा&त् मनु‘य का सcग ‘खपु‘प’ आकाश का पफ़ू ल और ‘ब3—या पु•’ ब3—या
का पु• इ"याjद। पांचवां-
नािHत घटो गेह इित सतो घटHय गेहसंसग&'ितषेधः।।
-वै० अ० ९। आ० १। सू० १०।।
घर मO घड़ा नहc अथा&त् अ3य• है, घर के साथ घड़े का स›ब3ध नहc है। यह
संसगा&भाव कहाता है । ये पांच अभाव कहाते ह<।
इि3¥यदोषा"संHकारदोषा0ािव‡ा।। -वै० अ० ९। आ० २। सू० १०।।
इि3¥यi और संHकार के दोष से अिव‡ा उ"प– होती है।
त¾दु… ं Xानम्।। -वै० अ० ९। आ० २। सू० ११।।
जो दु… अथा&त् िवपरीत Xान है उस को ‘अिव‡ा’ कहते ह<।
अदु… ं िव‡ा।। -वै० अ० ९। आ० २। सू० १२।।
जो अदु… अथा&त् यथाथ& Xान है उसको ‘िव‡ा’ कहते ह<।।
पृिथaाjद’परसग3धHपशा& ¥aाऽिन"य"वादिन"याt।।
-वै० अ० ७। आ० १। सू० २।।
एतेन िन"येषु िन"य"वमुžम्।। -वै० अ० ७। आ० १। सू० ३।।
जो काय&’प पृिथaाjद पदाथ& और उनमO ’प, रस, ग3ध, Hपश& गुण ह< ये सब
¥ai के अिन"य होने से अिन"य ह< और जो इस से कारण’प पृिथaाjद िन"य
¥ai मO ग3धाjद गुण ह< वे िन"य ह<।
सदकारणवि–"यम्।। -वै० अ० ४। आ० १। सू० १।।
जो िव‡मान हो और िजस का कारण कोई भी न हो वह िन"य है अथा&त-्
‘स"कारणवदिन"यम्’ जो कारण वाले काय&’प ¥a गुण ह< वे अिन"य कहाते
ह<।
अHयेदं काय¶ कारणं संयोिग िवरोिध समवािय चेित लैि◌◌ंगकम्।।
-वै० अ० ९। आ० २। सू० १।।
इसका यह काय& वा कारण है इ"याjद समवािय, संयोिग, एकाथ&समवािय और
िवरोिध यह चार 'कार का लैि◌◌ंगक अथा&त् ÒलगÒलगी के स›ब3ध से Xान
होता है। ‘समवािय’ जैसे आकाश पWरमाण वाला है, ‘संयोिग’ जैसे शरीर "वचा
वाला है इ"याjद का िन"य संयोग है, ‘एकाथ&समवािय’ एक अथ& मO दो का रहना
जैसे काय& ‘’प’ Hपश& काय& का Òलग अथा&त् जनाने वाला है, ‘िवरोिध’ जैसे gई
वृि… होने वाली वृि… का िवरोधी Òलग है।
‘aािƒ’-
िनयतधम&सािह"यमुभयोरे कतरHय aािƒः। िनजशe"युÐविम"याचाया&ः।।
आधेयशिžयोग इित प€िशखः।। -सांwयसू• २९, ३१, ३२।।
जो दोनi सा—य साधन अथा&त् िसZ करने यो•य और िजस से िसZ jकया जाय
उन दोनi अथवा एक, साधनमा• का िनिtत धम& का सहचार है उसी को
aािƒ कहते ह<। जैसे धूम और अि« का सहचार है।।२९।। तथा aाƒ जो धूम
उस कR िनज शिž से उ"प– होता है अथा&त् जब देशा3तर मO दूर धूम जाता है
तब िवना अि«योग के भी धूम Hवयं रहता है। उसी का नाम aािƒ है अथा&त्
अि« के छेदन, भेदन, साम•य& से जलाjद पदाथ& धूम’प 'कट होता है।।३१।।
जैसे महsÓवाjद मO 'कृ "याjद कR aापकता बु¾—याjद मO aाÊयता धम& के
स›ब3ध का नाम aािƒ है जैसे शिž आधेय’प और शिžमान् आधार’प का
स›ब3ध है।।३२।।
इ"याjद शा¬O के 'माणाjद से परीzा करके पढ़े और पढ़ावे। अ3यथा
िव‡ा“थयi को स"य बोध कभी नहc हो सकता। िजस-िजस >3थ को पढ़ावO
उस-उस कR पूवªž 'कार से परीzा करके जो-जो स"य ठहरे वह-वह >3थ
पढ़ावO। जो-जो इन परीzाu से िव˜Z हi उन-उन >3थi को न पढ़O न पढ़ावO।
eयijक-
लzण'माणा^यां वHतुिसिZः।।
लzण जैसा jक ‘ग3धवती पृिथवी’ जो पृिथवी है वह ग3धवाली है। ऐसे लzण
और '"यzाjद 'माण इन से सब स"यास"य और पदाथŽ का िनण&य हो जाता
है। इसके िवना कु छ भी नहc होता।
अथ पठनपाठनिविधः
अब पढ़ने पढ़ाने का 'कार िलखते ह<-'थम पािणिनमुिनकृ तिशzा जो jक
सू•’प है उस कR रीित अथा&त् इस अzर का यह Hथान, यह 'य¢, यह करण
है। जैसे ‘प’ इस का ओ¼ Hथान, Hपृ… 'य¢ और 'ाण तथा जीभ कR j¦या
करनी करण कहाता है। इसी 'कार यथायो•य सब अzरi का उ0ारण माता,
िपता, आचाय& िसखलावO। तदन3तर aाकरण अथा&त् 'थम अ…ा—यायी के सू•O
का पाठ जैसे ‘वृिZरादैच’् jफर पद¸छेद जैसे ‘वृिZः, आत्, ऐच् वा आदैच’् ,
jफर समास ‘आ0 ऐ0 आदैच्’ और अथ& जैसे ‘आदैचां वृिZसंXा j¦यते’ अथा&त्
आ, ऐ, औ कR वृिZ संXा है। ‘तः परो यHमा"स तपरHतादिप परHतपरः’ तकार
िजस से परे और जो तकार से भी परे हो वह तपर कहाता है। इस से eया िसZ
gआ जो आकार से परे त् और त् से परे ऐच् दोनi तपर ह<। तपर का 'योजन
यह है jक ×åHव और Êलुत कR वृिZ संXा न gई। उदाहरण (भागः) यहां ‘भज्’
धातु से ‘घञ्◌ा◌्’ '"यय के परे ‘घ्, ञ्◌ा◌्’ कR इ"संXा होकर लोप हो गया।
पtात् ‘भज् अ’ यहां जकार के पूव& भकारोsर अकार को वृिZसंXक आकार
हो गया है। तो भाज् पुनः ‘ज्’ को ग् हो अकार के साथ िमलके ‘भागः’ ऐसा
'योग gआ।
‘अ—यायः’ यहाँ अिधपूव&क ‘इङ् ’ धातु के ×åHव इ के Hथान मO ‘घञ्◌ा◌्’ '"यय
के परे ‘ऐ’ वृिZ और उस को आय् हो िमल के ‘अ—यायः’।
‘नायकः’ यहाँ ‘नीञ्◌ा◌्’ धातु के दीघ& ईकार के Hथान मO ‘‹वुल्’ '"यय के परे
‘ऐ’ वृिZ और उस को आय् होकर िमलके ‘नायकः’। और ‘Hतावकः’ यहां ‘Hतु’
धातु से ‘‹वुल्’ '"यय होकर ×Hव उकार के Hथान मO ‘औ’ वृिZ, आव् आदेश
होकर अकार मO िमल गया तो ‘Hतावकः’। (कृ ञ्◌ा◌्) धातु से आगे ‘‹वुल्’
'"यय, उस के ‘ण् ल्’ कR इ"संXा होके लोप, ‘वु’ के Hथान मO अक आदेश और
ऋकार के Hथान मO ‘आर्’ वृिZ होकर ‘कारकः’ िसZ gआ। जो-जो सू• आगे-
पीछे के 'योग मO लगO उन का काय& सब बतलाता जाय और िसलेट अथवा
लकड़ी के पÝे पर jदखला-jदखला के क0ा ’प धर के जैसे ‘भज़घञ्◌ा◌्◌़सु’
इस 'कार धर के 'थम धातु के अकार का लोप पtात् çकार का jफर ञ्◌ा◌्
का लोप होकर ‘भज़्èसु’ ऐसा रहा, jफर अ को आकार वृिZ और ज् के Hथान
मO ‘ग्’ होने से ‘भाग़्èसु’ पुनः अकार मO िमल जाने से ‘भाग़सु’ रहा, अब उकार
कR इ"संXा ‘स्’ के Hथान मO ‘˜ँ ’ होकर पुनः उकार कR इ"संXा लोप हो जाने
पtात् ‘भागर्’ ऐसा रहा, अब रे फ के Hथान मO (◌ः) िवसज&नीय होकर ‘भागः’
यह ’प िसZ gआ। िजस-िजस सू• से जो-जो काय& होता है उस-उस को पढ़
पढ़ा के और िलखवा कर का‰य& कराता जाय। इस 'कार पढ़ने पढ़ाने से बgत
शीÎ दृढ़ बोध होता है।
एक बार इसी 'कार अ…ा—यायी पढ़ा के धातुपाठ अथ&सिहत और दश लकारi
के ’प तथा 'j¦या सिहत सू•O के उ"सग& अथा&त् सामा3यसू• जैसे ‘कम&‹यण्’
कम& उपपद लगा हो तो धातुमा• से अण् '"यय हो, जैसे ‘कु ›भकारः’। पtात्
अपवाद सू• जैसे ‘आतोऽनुपसग· कः’ उपसग&िभ– कम& उपपद लगा हो तो
आकारा3त धातु से ‘क’ '"यय होवे अथा&त् जो बgaापक जैसा jक कमªपपद
लगा हो तो सब धातुu से ‘अण्’ 'ाƒ होता है उससे िवशेष अथा&त् अqप िवषय
उसी पूव& सू• के िवषय मO से आकारा3त धातु को ‘क’ '"यय ने >हण कर िलया।
जैसे उ"सग& के िवषय मO अपवाद सू• कR 'वृिs होती है वैसे अपवाद सू• के
िवषय मO उ"सग& सू• कR 'वृिs नहc होती। जैसे च¦वतŠ राजा के रा°य मO
मा‹डिलक और भूिमवालi कR 'वृिs होती है वैसे मा‹डिलक राजाjद के रा°य
मO च¦वतŠ कR 'वृिs नहc होती।
इसी 'कार पािणिन मह“ष ने सहê ºोकi के बीच मO अिखल शdद, अथ& और
स›ब3धi कR िव‡ा 'ितपाjदत कर दी है। धातुपाठ के पtात् उणाjदगण के
पढ़ाने मO सव& सुब3त का िवषय अ¸छी 'कार पढ़ा के , पुनः दूसरी वार शंका,
समाधान वा“तक, काWरका, पWरभाषा कR घटनापूव&क अ…ा—यायी कR
िyतीयानुवृिs पढ़ावे।
तदन3तर महाभा‘य पढ़ावे। अथा&त् जो बुिZमान्, पु˜षाथŠ, िन‘कपटी,
िव‡ावृिZ के चाहने वाले िन"य पढ़O-पढ़ावO तो डेढ़ वष& मO अ…ा—यायी और डेढ़
वष& मO महाभा‘य पढ़ के तीन वष& मO पूण& वैयाकरण होकर वैjदक और लौjकक
शdदां◌े का aाकरण से, पुनः अ3य शा¬O को शीÎ सहज मO पढ़ पढ़ा सकते ह<।
jक3तु जैसा बड़ा पWर~म aाकरण मO होता है वैसा ~म अ3य शा¬O मO करना
नहc पड़ता। और िजतना बोध इनके पढ़ने से तीन वषŽ मO होता है उतना बोध
कु >3थ अथा&त् सारHवत, चि3¥का, कौमुदी, मनोरमाjद के पढ़ने से पचास वषŽ
मO भी नहc हो सकता eयijक जो महाशय मह“ष लोगi ने सहजता से महान्
िवषय अपने >3थi मO 'कािशत jकया है वैसा इन zु¥ाशय मनु‘यi के किqपत
>3थi मO eयां◌ेकर हो सकता है?
मह“ष लोगां◌े का आशय, जहाँ तक हो सके वहाँ तक सुगम और िजस के >हण
मO समय थोड़ा लगे इस 'कार का होता है। और zु¥ाशय लोगi कR मनसा ऐसी
होती है jक जहाँ तक बने वहाँ तक कWठन रचना करनी। िजस को बड़े पWर~म
से पढ़ के अqप लाभ उठा सकO जैसे पहाड़ का खोदना कौड़ी का लाभ होना।
और आष& >3थi का पढ़ना ऐसा है jक जैसा एक गोता लगाना बgमूqय मोितयi
का पाना।
aाकरण को पढ़ के याHकमुिनकृ त िनघ‹टु और िन˜ž छः वा आठ महीने मO
साथ&क पढ़O और पढ़ावO। अ3य नािHतककृ त अमरकोशाjद मO अनेक वष& aथ& न
खोवO।
तदन3तर Òपगलाचाय&कृत छ3दो>3थ िजस से वैjदक लौjकक छ3दi का ि'Xान,
नवीन रचना और ºोक बनाने कR रीित भी यथावत् सीखO। इस >3थ और ºोकi
कR रचना तथा 'Hतार को चार महीने मO सीख पढ़ पढ़ा सकते ह<। और
वृsर¢ाकार आjद अqपबुिZ'किqपत >3थi मO अनेक वष& न खोवO।
त"पtात् मनुHमृित, वाqमीjक रामायण और महाभारत के उ‡ोगपवा&3तग&त
िवदुरनीित आjद अ¸छे-अ¸छे 'करण िजनसे दु… aसन दूर हi और उsमता
स^यता 'ाƒ हो वैसे को काaरीित से अथा&त् पद¸छेद, पदाथªिž, अ3वय,
िवशे‘य िवशेषण और भावाथ& को अ—यापक लोग जनावO और िव‡ाथŠ लोग
जानते जायO। इन को वष& के भीतर पढ़ लO।
तदन3तर पूव&मीमांसा, वैशेिषक, 3याय, योग, सांwय और वेदा3त अथा&त् जहाँ
तक बन सके वहाँ तक ऋिषकृ त aाwयासिहत अथवा उsम िवyानi कR सरल
aाwयायुž छः शा¬O को पढ़O-पढ़ावO पर3तु वेदा3त सू•O के पढ़ने के पूव& ईश,
के न, कठ, '-, मु‹डक, मा‹डू eय, ऐतरे य, तैिsरीय, छा3दो•य और
बृहदार‹यक इन दश उपिनषदi को पढ़ के छः शा¬O के भा‘य वृिsसिहत सू•O
को दो वष& के भीतर पढ़ावO और पढ़ लेवO।
पtात् छः वषŽ के भीतर चारi {ा|ण अथा&त् ऐतरे य, शतपथ, साम और
गोपथ {ा|णi के सिहत चारi वेदi के Hवर, शdद, अथ&, स›ब3ध तथा
j¦यासिहत पढ़ना यो•य है। इसमO 'माण-
Hथाणुरयं भारहारः jकलाभू दधी"य वदO न िवजानाित याऽ◌ेथम्&

योऽथ&X इ"सकल्◌ा◌ं भ¥म-ुते नाकमेित XानिवधूतपाÊमा ।।
यह िन˜ž मO म3• है
जो वेद को Hवर और पाठमा• पढ़ के अथ& नहc जानता वह जैसा वृz, डाली
पsे, पफ़ल, पफ़ू ल और अ3य पशु धा3य आjद का भार उठाता है वैसे भारवाह
अथा&त् भार को उठाने वाला है। और जो वेद को पढ़ता और उनका यथावत्
अथ& जानता है Xान से पापi को छोड़ पिव• धमा&चरण के 'ताप से वही स›पूण&
आन3द को 'ाƒ होके देहा3त के पtात् सवा&न3द को 'ाƒ होता है।
उत "वः पŸय– ददश& वाचमुत "वः शृ‹व– शृणो"येनाम् ।
उतो "वHमै त3वं१ िव सêे जायेव प"य उशती सुवासाः ।।
- ऋ मं० १०। सू० ७१। मं० ४।।
जो अिवyान् ह< वे सुनते gए नहc सुनते, देखते gए नहc देखते, बोलते gए नहc
बोलते । अथा&त् अिवyान् लोग इस िव‡ा वाणी के रहHय को नहc जान सकते
jक3तु जो शdद अथ& और स›ब3ध का जानने वाला है उस के िलये िव‡ा-जैसे
सु3दर व¬ आभूषण धारण करती अपने पित कR कामना करती gई ¬ी अपना
शरीर और Hव’प का 'काश पित के सामने करती है वैसे िव‡ा िवyान् के
िलये अपने Hव’प का 'काश करती है, अिवyानi के िलये नहc।
ऋचो अzरे परमे aोम3यिHम3देवा अिध िव5े िनषेदःु ।
यHत– वेद jकमृचा कWर‘यित य इsिyदुHत इमे समासते ।।
- ऋ मं० १। सू० १६४ १। मं० ३९ ।।
िजस aापक अिवनाशी सवª"कृ … परमे5र मO सब िवyान् और पृिथवी सूय&
आjद सब लोक िHथत ह< jक िजसमO सब वेदi का मुwय ता"पय& है उस {| को
जो नहc जानता वह ऋ•वेदाjद से eया कु छ सुख को 'ाƒ हो सकता है? नहc-
नहc, jक3तु जो वेदi को पढ़ के धमा&"मा योगी होकर उस {| को जानते ह< वे
सब परमे5र मO िHथत होके मुिž’पी परमान3द को 'ाƒ होते ह<। इसिलए जो
कु छ पढ़ना वा पढ़ाना हो वह अथ&Xान सिहत चािहये।
इस 'कार सब वेदi को पढ़ के आयुव·द अथा&त् जो चरक, सु~ुत आjद ऋिष
मुिन-'णीत वै‡क शा¬ है, उस को अथ&, j¦या, श¬, छेदन, भेदन, लेप,
िचjक"सा, िनदान, औषध, प•य, शारीर, देश, काल और वHतु के गुण
Xानपूव&क ४ वष& के भीतर पढ़O पढ़ावO।
तदन3तर धनुव·द अथा&त् राजस›ब3धी काम करना है इसके दो भेद, एक िनज
राजपु˜षस›ब3धी और दूसरा 'जास›ब3धी होता है। राजकाय& मO सब सेना के
अ—यz श¬¬िव‡ा नाना 'कार के aूहi का अ^यास अथा&त् िजसको आजकल
‘कवायद’ कहते ह<। जो jक श•ुu से लड़ाई के समय मO j¦या करनी होती है
उन को यथावत् सीखO और जो जो 'जा के पालने और वृिZ करने का 'कार है
उन को सीख के 3यायपूव&क सब 'जा को 'स– रeखO दु…i को यथायो•य द‹ड,
~े¼i के पालन का 'कार सब 'कार सीख लO।
इस राजिव‡ा को दो-दो वष& मO सीख कर गा3धव&वेद jक िजस को गानिव‡ा
कहते ह<। उस मO Hवर, राग, रािगणी, समय, ताल, >ाम, तान, वाjद•, नृ"य,
गीत आjद को यथावत् सीखO पर3तु मुwय करके सामवेद का गान
वाjद•वादनपूव&क सीखO और नारदसंिहता आjद जो-जो आष& >3थ ह< उन को
पढ़O पर3तु भड़वे वेŸया और िवषयासिžकारक वैरािगयi के गद&भशdदवत् aथ&
आलाप कभी न करO ।
अथ&वेद jक िजस को िशqपिव‡ा कहते ह< उस को पदाथ& गुण-िवXान
j¦याकौशल, नानािवध पदाथŽ का िनमा&ण, पृिथवी से लेके आकाश पय&3त कR
िव‡ा को यथावत् सीख के अथ& अथा&त् जो ऐ5य& को बढ़ाने वाला है। उस
िव‡ा को सीख के दो वष& मO °योितषशा¬ सूय&िसZा3ताjद िजस मO
बीजगिणत, अंक, भूगोल, खगोल और भूगभ&िव‡ा है इस को यथावत् सीखO।
त"पtात् सब 'कार कR हHतj¦या, य3•कला आjद को सीखO, पर3तु िजतने
>ह, नz•, ज3मप•, रािश, मु•त& आjद के पफ़ल के िवधायक >3थ ह< उन को
झूठ समझ के कभी न पढ़O और पढ़ावO।
ऐसा 'य¢ पढ़ने और पढ़ाने वाले करO jक िजस से तीस व चëतीस वष& के भीतर
सम> िव‡ा उsम िशzा 'ाƒ होके मनु‘य लोग कृ तकृ "य होकर सदा आन3द
मO रह<। िजतनी िव‡ा इस रीित से तीस वा चëतीस वषŽ मO हो सकती है उतनी
अ3य 'कार से शत-वष& मO भी नहc हो सकती। ऋिष'णीत >3थi को इसिलये
पढ़ना चािहये jक वे बड़े िवyान् सब शा¬िवत् और धमा&"मा थे। और अनृिष
अथा&त् जो अqपशा¬ पढ़े ह< और िजन का आ"मा पzपातसिहत है, उनके बनाए
gए >3थ भी वैसे ही ह<। पूव&मीमांसा पर aासमुिनकृ त aाwया, वैशेिषक पर
गोतममुिनकृ त, 3यायसू• पर वा"Hयायनमुिनकृ त भा‘य, पतÅिलमुिनकृ तसू•
पर aासमुिनकृ त भा‘य, किपलमुिनकृ त सांwयसू• पर भागुWरमुिनकृ त भा‘य,
aासमुिनकृ त वेदा3तसू• पर वा"Hयायनमुिनकृ त भा‘य अथवा
बौधायनमुिनकृ त भा‘य वृिs सिहत पढ़O पढ़ावO। इ"याjद सू•O को कqप अंग मO
भी िगनना चािहये।
जैसे ऋ•यजुः साम और अथव& चारi वेद ई5रकृ त ह< वैसे ऐतरे य, शतपथ, साम
और गोपथ चारi {ा|ण, िशzा, कqप, aाकरण, िनघ‹टु , िन˜ž, छ3द और
°योितष छः वेदi के अंग, मीमांसाjद छः शा¬ वेदi के उपांग; आयुव·द, धनुव·द,
गा3धव&वेद और अथ&वेद ये चार वेदi के उपवेद इ"याjद सब ऋिष मुिन के jकये
>3थ ह<। इनमO भी जो जो वेदिव˜Z 'तीत हो उस-उस को छोड़ देना eयijक
वेद ई5रकृ त होने से िन±ा&3त Hवतः'माण अथा&त् वेद का 'माण वेद ही से
होता है । {ा|णाjद सब >3थ परतः 'माण अथा&त् इनका 'माण वेदाधीन है।
वेद कR िवशेष aाwया ‘ऋ•वेदाjदभा‘यभूिमका’ मO देख लीिजये और इस >3थ
मO भी आगे िलखOगे।
अब जो पWर"याग के यो•य >3थ ह< उनका पWरगणन संzेप से jकया जाता है।
aाकरण मO कात3•, सारHवत, चि3¥का, मु•धबोध, कौमुदी, शेखर, मनोरमा
आjद। कोश मO अमरकोशाjद। छ3दो>3थ मO वृsर¢ाकराjद। िशzा मO ‘अथ
िशzां 'वˆयािम पािणनीयं मतं यथा’ इ"याjद। °यौितष मO शीÎबोध,
मु•s&िच3तामिण आjद। काa मO नाियकाभेद, कु वलयान3द, रघुवंश, माघ,
jकराताजु&नीयाjद। मीमांसा मO धम&िस3धु, Ëताका&jद। वैशेिषक मO तक& सं>हाjद।
3याय मO जागदीशी आjद। योग मO हठ'दीिपकाjद। सांwय मO
सांwयतÓवकौमु‡ाjद। वेदा3त मO योगवािस¼ प€दŸयाjद। वै‡क मO
शांग&धराjद। Hमृितयi मO मनुHमृित के 'िzƒ ºोक ये सब कपोलकिqपत िम•या
>3थ ह<।
('-) eया इन >3थi मO कु छ भी स"य नहc?
(उsर) थोड़ा स"य तो है पर3तु इसके साथ बgत सा अस"य भी है। इस से
‘िवषस›पृžा–वत् "या°याः’ जैसे अ"युsम अ– िवष से युž होने से छोड़ने
यो•य होता है वैसे ये >3थ ह<।
('-) जो "या°य >3थi मO स"य है उसका >हण eयi नहc करते?
(उsर) जो-जो उनमO स"य है सो-सो वेदाjद स"य शा¬O का है और िम•या उनके
घर का है। वेदाjद स"य श¬O के Hवीकार मO सब स"य का >हण हो जाता है।
जो कोई इन िम•या >3थi से स"य का >हण करना चाहै तो िम•या भी उस के
गले िलपट जावे। इसिलए ‘अस"यिम~ं स"यं दूरतH"या°यिमित’ अस"य से युž
>3थHथ स"य को भी वैसे छोड़ देना चािहए जैसे िवषयुž अ– को।
('-) तु›हारा मत eया है?
(उsर) वेद अथा&त् जो-जो वेद मO करने और छोड़ने कR िशzा कR है उस-उस
का हम यथावत् करना, छोड़ना मानते ह<। िजसिलये वेद हम को मा3य है
इसिलये हमारा मत वेद है। ऐसा ही मानकर सब मनु‘यi को िवशेष आ‰यŽ
को ऐकम"य होकर रहना चािहये।
('-) जैसा स"यास"य और दूसरे >3थi का परHपर िवरोध है वैसे अ3य शा¬O
मO भी है। जैसा सृि…िवषय मO छः शा¬O का िवरोध है-मीमांसा कम&, वैशेिषक
काल, 3याय परमाणु, योग पु˜षाथ&, सांwय 'कृ ित और वेदा3त {| से सृि… कR
उ"पिs मानता है, eया यह िवरोध नहc है?
(उsर) 'थम तो िवना सांwय और वेदा3त के दूसरे चार शा¬O मO सृि… कR
उ"पिs 'िसZ नहc िलखी और इन मO िवरोध नहc eयijक तुम को
िवरोधािवरोध का Xान नहc। म< तुम से पूछता •ं jक िवरोध jकस Hथल मO
होता है? eया एक िवषय मO अथवा िभ–-िभ– िवषयi मO?
('-) एक िवषय मO अनेकi का परHपर िव˜Z कथन हो तो उस को िवरोध
कहते ह< यहां भी सृि… एक ही िवषय है।
(उsर) eया िव‡ा एक है वा दो? एक है। जो एक है तो aाकरण, वै‡क,
°योितष आjद के िभ–-िभ– िवषय eयi ह<? जैसा एक िव‡ा मO अनेक िव‡ा
के अवयवi का एक दूसरे से िभ– 'ितपादन होता है वैसे ही◌े सृि…िव‡ा के
िभ–-िभ– छः अवयवi का छः शा¬O मO 'ितपादन करने से इन मO कु छ भी
िवरोध नहc। जैसे घड़े के बनाने मO कम&, समय, िमÝी, िवचार, संयोग
िवयोगाjद का पु˜षाथ&, 'कृ ित के गुण और कुं भार कारण ह<। वैसे ही सृि… का
जो कम& कारण है उस कR aाwया मीमांसा मO, समय कR aाwया वैशेिषक मO,
उपादान कारण कR aाwया 3याय मO, पु˜षाथ& कR aाwया योग मO, तÓवi के
अनु¦म से पWरगणन कR aाwया सांwय मO और िनिमsकारण जो परमे5र है
उस कR aाwया वेदा3त- शा¬ मO है। इस से कु छ भी िवरोध नहc। जैसे
वै‡कशा¬ मO िनदान, िचjक"सा, औषिधदान और प•य के 'करण िभ–-िभ–
किथत ह< पर3तु सब का िसZा3त रोग कR िनवृिs है। वैसे ही सृि… के छः कारण
ह<। इन मO से एक-एक कारण कR aाwया एक-एक शा¬कार ने कR है। इसिलए
इनमO कु छ भी िवरोध नहc। इस कR िवशेष aाwया सृि…'करण मO कहOगे। जो
िव‡ा पढ़ने पढ़ाने के िवš ह< उनको छोड़ देवO। जैसा कु संग अथा&त् दु… िवषयी
जनi का संग, दु…aसन जैसा म‡ाjद सेवन और वेŸयागमनाjद बाqयावHथा
मO िववाह अथा&त् प0ीस वषŽ से पूव& पु˜ष और सोलहवO वष& से पूव& ¬ी का
िववाह हो जाना; पूण& {|चय& न होना; राजा, माता, िपता और िवyानi का
'ेम वेदाjद शा¬O के 'चार मO न होना; अितभोजन, अित जागरण करना, पढ़ने
पढ़ाने परीzा लेने वा देने मO आलHय वा कपट करना; सवªपWर िव‡ा का लाभ
न समझना; बल, बुिZ, परा¦म, आरो•य, रा°य, धन कR वृिZ न मानना;
माता, िपता, अितिथ और आचा‰य&, िवyान्, इन को स"यमू“s मान कर सेवा
स"संग न करना; पाखि‹डयi के उपदेश से िव‡ा पढ़ने मO अ~Zा का होना,
लोभ से धनाjद मO 'वृिs होकर िव‡ा मO 'ीित न रखना; इधर उधर aथ&
घूमते रहना इ"याjद िम•या aवहारi मO फ़ं स के {|चय& और िव‡ा के लाभ
से रिहत होकर रोगी और मूख& बने रहते ह<। आजकल के स›'दायी और HवाथŠ
{ा|ण आjद जो दूसरi को िव‡ा स"संग से हटा और अपने जाल मO पफ़ं सा के
उन का तन, मन, धन न… कर देते ह< और चाहते ह< jक जो zि•याjद वण& पढ़
कर िवyान् हो जायOगे तो हमारे पाख‹डजाल से छू ट और हमारे छल को
जानकर हमारा अपमान करO गे इ"याjद िवši को राजा और 'जा दूर करके
अपने लड़कi और लड़jकयi को िवyान् करने के िलये तन, मन, धन से 'य¢
jकया करO ।
('-) eया ¬ी और शू¥ भी वेद पढ़O? जो ये पढ़Oगे तो हम jफर eया करO गे?
और इनके पढ़ने मO 'माण भी नहc ह<। जैसा यह िनषेध है-
¬ीशू¥ौ नाधीयातािमित ~ुतेः।
¬ी और शू¥ न पढ़O यह ~ुित है।
(उsर) सब ¬ी और पु˜ष अथा&त् मनु‘यमा• को पढ़ने का अिधकार है। तुम
कु आ मO पड़ो और यह ~ुित तु›हारी कपोलकqपना से gई है। jकसी 'ामािणक
>3थ कR नहc। और सब मनु‘यi के वेदाjद शा¬ पढ़ने सुनने के अिधकार का
'माण यजुव·द के छdबीसवO अ—याय मO दूसरा म3• है-
यथेमां वाचं कqयाणीमावदािन जने^यः ।
{|राज3या^या¦ शू¥ाय चाया&य च Hवाय चारणाय ।।
परमे5र कहता है jक (यथा) जैसे म< (जने^यः) सब मनु‘यi के िलये (इमाम्)
इस (कqयाणीम्) कqयाण अथा&त् संसार और मुिž के सुख देनेहारी (वाचम्)
ऋ•वेदाjद चारi वेदi कR वाणी का (आ वदािन) उपदेश करता •ं वैसे तुम भी
jकया करो।
यहाँ कोई ऐसा '- करे jक जन शdद से िyजi का >हण करना चािहये eयां◌ेjक
Hमृ"याjद >3थi मO {ा|ण, zि•य, वैŸय ही के वेदi के पढ़ने का अिधकार
िलखा है; ¬ी और शू¥ाjद वणŽ का नहc।
(उsर) ({|राज3या^या¦) इ"याjद देखो परमे5र Hवयं कहता है jक हम ने
{ा|ण, zि•य, (अ‰या&य) वैŸय, (शू¥ाय) शू¥, और (Hवाय) अपने भृ"य वा
ि¬याjद (अरणाय) और अितशू¥ाjद के िलये भी वेदi का 'काश jकया है;
अथा&त् तब मनु‘य वेदi को पढ़ पढ़ा और सुन सुनाकर िवXान को बढ़ा के अ¸छी
बातi का >हण और बुरी बातi का "याग करके दुःखi से छू ट कर आन3द को
'ाƒ हi। किहये! अब तु›हारी बात मानO वा परमे5र कR? परमे5र कR बात
अवŸय माननीय है इतने पर भी जो कोई इस को न मानेगा वह नािHतक
कहावेगा eयijक ‘नािHतको वेदिन3दकः’ वेदां◌े का िन3दक और न मानने वाला
नािHतक कहाता है। eया परमे5र शू¥i का भला करना नहc चाहता? eया
ई5र पzपाती है jक वेदi के पढ़ने सुनने का शू¥i के िलये िनषेध और िyजi
के िलये िविध करे ? जो परमे5र का अिभ'ाय शू¥ाjद के पढ़ाने सुनाने का न
होता तो इनके शरीर मO वाÀफ़ और ~ो• इि3¥य eयi रचता? जैसे परमा"मा
ने पृिथवी, जल, अि«, वायु, च3¥, सूय& और अ–ाjद पदाथ& सब के िलये बनाये
ह< वैसे ही वेद भी सबके िलये 'कािशत jकये ह<। और जहाँ-जहाँ िनषेध jकया
है उस का यह अिभ'ाय है jक िजस को पढ़ने पढ़ाने से कु छ भी न आवे वह
िनबु&िZ और मूख& होने से शू¥ कहाता है। उस का पढ़ना पढ़ाना aथ& है। और
जो ि¬यi के पढ़ने का िनषेध करते हो वह तु›हारी मूख&ता, Hवाथ&ता और
िनबु&िZता का 'भाव है। देखो! वेद मO क3याu के पढ़ने का 'माण-
{|च‰य·ण क3या यवुानं िव3दते पितम् ।।
-अथव&० अ० ३। '० २४। कां० ११। मं० १८।।
जैसे लड़के {|चय& सेवन से पूण& िव‡ा और सुिशzा को 'ाƒ होके युवती,
िवदुषी, अपने अनुकूल ि'य सदृश ि¬यi के साथ िववाह करते ह< वे◌ैसे (क3या)
कु मारी ({|चय·ण) {|चय& सेवन से वेदाjद शा¬O को पढ़ पूण& िव‡ा और
उsम िशzा को 'ाƒ युवती होके पूण& युवावHथा मO अपने सदृश ि'य िवyान्
(युवानम्) और पूण& युवावHथायुž पु˜ष को (िव3दते) 'ाƒ होवे। इसिलये
ि¬यi को भी {|चय& और िव‡ा का >हण अवŸय करना चािहये।
('-) eया ¬ी लोग भी वेदi को पढ़O?
(उsर) अवŸय; देखो ~ौतसू•jद मO-इमं म3•ं प¢ी पठे त्।
अथा&त् ¬ी यX मO इस म3• को पढ़े। जो वेदाjद शा¬O को न पढ़ी होवे तो यX
मO Hवरसिहत म3•O का उ0ारण और संHकृ तभाषण कै से कर सके ? भारतवष&
कR ि¬यi मO भूषण’प गागŠ आjद वेदाjद शा¬O को पढ़ पूण& िवदुषी gई थc
यह शतपथ{ा|ण मO Hप… िलखा है। भला जो पु˜ष िवyान् और ¬ी अिवदुषी
और ¬ी िवदुषी और पु˜ष अिवyान् हो तो िन"य'ित देवासुर-सं>ाम घर मO
मचा रहै jफर सुख कहां? इसिलये जो ¬ी न पढ़े तो क3याu कR पाठशाला
मO अ—यािपका eयiकर हो सकO तथा राजका‰य& 3यायाधीश"वाjद; गृहा~म का
का‰य& जो पित को ¬ी और ¬ी को पित 'स– रखना; घर के सब काम ¬ी के
आधीन रहना िवना िव‡ा के इ"याjद काम अ¸छे 'कार कभी ठीक नहc हो
सकते। देखो! आ‰या&वs& के राजपु˜षi कR ि¬यां धनुव·द अथा&त् युZिव‡ा भी
अ¸छी 'कार जानती थc eयijक जो न जानती होतc तो कै के यी आjद दशरथ
आjद के साथ युZ मO eयiकर जा सकती ? और युZ कर सकती। इसिलये
{ा|णी को सब िव‡ा, zि•या को सब िव‡ा और युZ तथा राजिव‡ािवशेष,
वैŸया को aवहारिव‡ा और शू¥ा को पाकाjद सेवा कR िव‡ा अवŸय पढ़नी
चािहये। जैसे पु˜षi को aाकरण, धम& और अपने aवहार कR िव‡ा 3यून से
3यून अवŸय पढ़नी चािहये। वैसे ि¬यi को भी aाकरण, धम&, वै‡क, गिणत,
िशqपिव‡ा तो अवŸय ही सीखनी चािहये। eयijक इनके सीखे िवना
स"याऽस"य का िनण&य; पित आjद से अनुकूल वs&मान, यथायो•य
स3तानो"पिs, उनका पालन, वZ&न और सुिशzा करना, घर के सब का‰यŽ
को जैसा चािहये वैसा करना कराना वै‡किव‡ा से औषधवत् अ– पान बना
और बनवाना नहc कर सकती। िजससे घर मO रोग कभी न आवे और सब लोग
सदा आनि3दत रह<। िशqपिव‡ा के जाने िवना घर का बनवाना, व¬ आभूषण
आjद का बनाना बनवाना, गिणतिव‡ा के िवना सब का िहसाब समझना
समझाना, वेदाjद शा¬िव‡ा के िवना ई5र और धम& को न जानके अधम& से
कभी नहc बच सके । इसिलये वे ही◌े ध3यवादाह& और कृ तकृ "य ह< jक जो अपने
स3तानi को {|चय&, उsम िशzा और िव‡ा से शरीर और आ"मा के पूण& बल
को बढ़ावO। िजस से वे स3तान मातृ, िपतृ, पित, सासु, 5सुर, राजा, 'जा,
पड़ोसी, इ…िम• और स3तानाjद से यथायो•य धम& से वत™। यही कोश अzय
है। इस को िजतना aय करे उतना ही बढ़ता जाय। अ3य सब कोश aय करने
से घट जाते ह< और दायभागी भी िनज भाग लेते ह<। और िव‡ाकोश का चोर
वा दायभागी कोई भी नहc हो सकता। इस कोश कR रzा और वृिZ करने
वाला िवशेष राजा और 'जा भी ह<।
क3यानां स›'दानं च कु माराणां च रzणम्।। मनु०।।
राजा को यो•य है jक सब क3या और लड़कi को उž समय तक {|चय& मO
रखके िवyान् कराना। जो कोई इस आXा को न माने तो उस के माता िपता
को द‹ड देना अथा&त् राजा कR आXा से आठ वष& के पtात् लड़का वा लड़कR
jकसी के घर मO न रहने पावO jक3तु आचा‰य&कुल मO रह<। जब तक समावs&न का
समय न आवे तब तक िववाह न होने पावे।
सव·षामेव दानानां {|दानं िविश‘यते।
वाय&–गोमहीवासिHतलका€नस“पषाम्।। मनु०।।
संसार मO िजतने दान ह< अथा&त् जल, अ–, गौ, पृिथवी, व¬, ितल, सुवण& और
घृताjद इन सब दानi से वेदिव‡ा का दान अित~े¼ है। इसिलये िजतना बन
सके उतना 'य¢ तन, मन, धन से िव‡ा कR वृिZ मO jकया करO । िजस देश मO
यथायो•य {|चय& िव‡ा और वेदोž धम& का 'चार होता है वही देश
सौभा•यवान् होता है। यह {|चया&~म कR िशzा संzेप से िलखी गई। इसके
आगे चौथे समुqलास मO समावs&न िववाह और गृहा~म कR िशzा िलखी
जायगी।
इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमकृ ते स"याथ&'काशे
सुभाषािवभूिषते िशzािवषये
तृतीयः समुqलासः स›पूण&ः।।३।।
अथ चतुथ&समुqलासार›भः
अथ समावs&निववाहगृहा~मिविध वˆयामः
वेदानधी"य वेदौ वा वेदं वािप यथा•फ़मम्।
अिवÊलुत{|चयª गृहHथा~ममािवशेत्।।१।। मनु०।।
जब यथावत् {|च‰य& आचाया&नुकूल वs&कर, धम& से चारi, तीन वा दो, अथवा
एक वेद को सांगोपांग पढ़ के िजस का {|चय& खि‹डत न gआ हो, वह पु˜ष
वा ¬ी गृहा~म मO 'वेश करे ।।१।।
तं 'तीतं Hवधम·ण {|दायहरं िपतुः।
êि•वणं तqप आसीनमह&ये"'थमं गवा।।२।। मनु०।।
जो Hवधम& अथा&त् यथावत् आचाय& और िश‘य का धम& है उससे युž िपता
जनक वा अ—यापक से {|दाय अथा&त् िव‡ा’प भाग का >हण और माला
का धारण करने वाला अपने पलंग पर बैठे gए आचा‰य& का 'थम गोदान से
स"कार करे । वैसे लzणयुž िव‡ाथŠ को भी क3या का िपता गोदान से स"कृ त
करे ।।२।।
गु˜णानुमतः Èा"वा समावृsो यथािविध।
उyहेत िyजो भाया¶ सवणा¶ लzणाि3वताम्।।३।। मनु०।।
गु˜ कR आXा ले Èान कर गु˜कु ल से अनु¦मपूव&क आ के {ा|ण, zि•य, वैŸय
अपने वणा&नुकूल सु3दर लzणयुž क3या से िववाह करे ।।३।।
असिप‹डा च या मातुरसगो• च या िपतुः।
सा 'शHता िyजातीनां दारकम&िण मैथुने।।४।। मनु०।।
जो क3या माता के कु ल कR छः पीjढ़यi मO न हो और िपता के गो• कR न हो
तो उस क3या से िववाह करना उिचत है।।४।। इसका यह 'योजन है jक-
परोzि'या इव िह देवाः '"यzिyषः।। शतपथ०।।
यह िनिtत बात है jक जैसी परोz पदाथ& मO 'ीित होती है वैसी '"यz मO
नहc। जैसे jकसी ने िम~ी के गुण सुने हi और खाई न हो तो उसका मन उसी
मO लगा रहता है । जैसे jकसी परोz वHतु कR 'शंसा सुनकर िमलने कR उ"कट
इ¸छा होती है, वैसे ही दूरHथ अथा&त् जो अपने गो• वा माता के कु ल मO िनकट
स›ब3ध कR न हो उसी क3या से वर का िववाह होना चािहये।
देखो मनु मO-
•ीिण वषा&‹युदीzेत कु मायृ&तुमती सती।
ऊ—व¶ तु कालादेतHमािy3देत सदृशं पितम्।। मनु०।।
१- उिचत समय से 3यून आयु वाले ¬ी पु˜ष को गभा&धान मO मुिनवर ध3व3तWर जी सु~ुत मO
िनषेध करते ह<-
ऊनषोडशवषा&याम'ाƒः प€िवशितम् ।
य‡ाधsे पुमान् गभ¶ कु िzHथः स िवप‡ते।।१।।
जातो वा न िचरÅीवेœीवेyा दुब&लेि3¥यः।
तHमाद"य3तबालायां गभा&धानं न कारयेत्।।२।।
अथ&-सोलह वष& से 3यून वयवाली ¬ी मO, प0ीस वष& से 3यून आयु वाला पु˜ष जो गभ& को
Hथापन करे तो वह कु िzHथ gआ गभ& िवपिs को 'ाƒ होता अथा&त् पूण& काल तक गभा&शय मO
रह कर उ"प– नहc होता।।१।।
अथवा उ"प– हो तो िचरकाल तक न जीवे वा जीवे तो दुब&लेि3¥य हो। इस कारण से अित
बाqयावHथा वाली ¬ी मO गभ& Hथािपत न करे ।।२।।
ऐसे-ऐसे शा¬ेž िनयम और सृि…¦म को देखने और बुिZ से िवचारने से यही िसZ होता है
jक १६ वष& से 3यून ¬ी और २५ वष& से 3यून आयु वाला पु˜ष कभी गभा&धान करने के यो•य
नहc होता। इन िनयमi से िवपरीत जो करते ह< वे दुःखभागी होते ह<।

काममामरणािs¼ेद ् गृहे क3यतु&म"यिप।


न चैवैनां 'य¸छेsु गुणहीनाय क“हिचत्।। मनु०।।
चाहे लड़का लड़कR मरणपय&3त कु मार रह< पर3तु असदृश अथा&त् परHपर िव˜Z
गुण, कम&, Hवभाव वालi का िववाह कभी न होना चािहये। इस से िसZ gआ
jक न पूवªž समय से 'थम वा असदृशi का िववाह होना यो•य है।
('-) िववाह माता िपता के आधीन होना चािहये वा लड़का लड़कR के आधीन
रहै ?
(उsर) लड़का लड़कR के आधीन िववाह होना उsम है। जो माता िपता िववाह
करना कभी िवचारO तो भी लड़का लड़कR कR 'स–ता के िवना न होना चािहये।
eयijक एक दूसरे कR 'स–ता से िववाह होने मO िवरोध बgत कम होता है और
स3तान उsम होते ह<। अ'स–ता के िववाह मO िन"य eलेश ही रहता है। िववाह
मO मुwय 'योजन वर और क3या का है माता िपता का नहc। eयijक जो उनमO
परHपर 'स–ता रहे तो उ3हc को सुख और िवरोध मO उ3हc को दुःख होता।
और-
स3तु…ो भाय&या भsा& भ•& भा‰या& तथैव च।
यिHम–ेव कु ले िन"यं कqयाणं त• वै Ôुवम्।। मनु०।।
िजस कु ल मO ¬ी से पु˜ष और पु˜ष से ¬ी सदा 'स– रहती है उसी कु ल मO
आन3द लˆमी और कRि◌s& िनवास करती है और जहाँ िवरोध, कलह होता है
वहाँ दुःख, दाWरí और िन3दा िनवास करती है। इसिलये जैसी Hवयंवर कR
रीित आ‰या&वs& मO पर›परा से चली आती है वही िववाह उsम है। जब ¬ी
पु˜ष िववाह करना चाह< तब िव‡ा, िवनय, शील, ’प, आयु, बल, कु ल,
शरीर, का पWरमाणाjद यथायो•य होना चािहये। जब तक इन का मेल नहc
होता तब तक िववाह मO कु छ भी सुख नहc होता और न बाqयावHथा मO िववाह
करने से सुख होता।
युवा सुवासाः पWरवीत आगा"स उ ~ेया3भवित जायमानः ।
तं धीरासः कवय उ–यि3त Hवा—यो मनसा दवे य3तः ।।१।।
-ऋ० मं० ३। सू० ८। मं० ४।।
आ धेनवो धनु य3तामिश5ीः सबदघर्◌्◌ु◌ा◌ा◌ः शशया
अ'दग्◌ुधाः ।
नaानaा युवतयो भव3तीम&हÖेवानामसुर"वमेकम् ।।२।।
-ऋ० मं० ३। सू० ५५। मं० १६।।
पूवŠरहं शरदः श~माणा दोषावHतो ˜षसो जरय3तीः ।
िमनाित ि~य्◌ा◌ं जWरमा तननूामÊयू नु प¢ीवषर्◌्◌ृ◌ाणो
जग›यः◌ु ।।३।।
-ऋ० मं० १। सू० १७९। मं० १।।
जो पु˜ष (पWरवीतः) सब ओर से यXोपवीत, {|च‰य& सेवन से उsम िशzा
और िव‡ा से युž (सुवासाः) सु3दर व¬ धारण jकया gआ {|च‰य&युž
(युवा) पूण& °वान होके िव‡ा>हण कर गृहा~म मO (आगात्) आता है ( स उ)
वही दूसरे िव‡ाज3म मO (जायमानः) 'िसZ होकर (~ेयान्) अितशय
शोभायुž मंगलकारी (भवित) होता है (Hवा—यः) अ¸छे 'कार —यानयुž
(मनसा) िवXान से (देवय3तः) िव‡ावृिZ कR कामनायुž (धीरासः) धैय&युž
(कवयः) िवyान् लोग (तम्) उसी पु˜ष को (उ–यि3त) उ–ितशील करके
'िति¼त करते ह< और जो {|च‰य&धारण, िव‡ा, उsम िशzा का >हण jकये
िवना अथवा बाqयावHथा मO िववाह करते ह< वे ¬ी पु˜ष न… ±… होकर
िवyानi मO 'ित¼ा को 'ाƒ नहc होते।।१।।
जो (अ'दु•धाः) jकसी से दुही न हो उन (धेनवः) गौu के समान (अिश5ीः)
बाqयावHथा से रिहत (सबदुघ & ाः) सब 'कार के उsम aवहारi का पूण&
करनेहारी (शशयाः) कु मारावHथा को उqलंघन करने हारी (नaानaाः)
नवीन-नवीन िशzा और अवHथा से पूण& (भव3तीः) वs&मान (युवतयः) पूण&
युवावHथाHथ ि¬यां (देवानाम्) {|चय&, सुिनयमi से पूण& िवyानi के (एकम्)
अिyतीय (महत्) बड़े (असुर"वम्) 'Xा शा¬िशzायुž 'Xा मO रमण के
भावाथ& को 'ाƒ होती gई त˜ण पितयi को 'ाƒ होके (आधुनय3ताम्) गभ&
धारण करO कभी भूल के भी बाqयावHथा मO पु˜ष का मन से भी —यान न करO
eयijक यही कम& इस लोक और परलोक के सुख का साधन है। बाqयावHथा मO
िववाह से िजतना पु˜ष का नाश उस से अिधक ¬ी का नाश होता है।।२।।
जैसे (नु) शीÎ (श~माणाः) अ"य3त ~म करनेहारे (वृषणः) वीय& सcचने मO
समथ& पूण& युवावHथायुž पु˜ष (प¢ीः) युवावHथाHथ Æदयi को ि'य ि¬यi
को (जग›युः) 'ाƒ होकर पूण& शतवष& वा उससे अिधक वष& आयु को आन3द से
भोगते और पु• पौ•jद से संयुž रहते रह< वैसे ¬ी पु˜ष सदा वत™, जैसे (पूवŠः)
पूव& वs&मान (शरदः) शरद् ऋतुu और (जरय3तीः) वृZावHथा को 'ाƒ कराने
वाली (उषसः) 'ातःकाल कR वेलाu को (दोषाः) रा•ी और (वHतोः) jदन
(तनूनाम्) शरीरi कR (ि~यम्) शोभा को (जWरमा) अितशय वृZपन बल और
शोभा को (िमनाित) दूर कर देता है वैसे (अहम्) म< ¬ी वा पु˜ष (उ) अ¸छे
'कार (अिप) िनtय करके {|च‰य& से िव‡ा िशzा शरीर और आ"मा के बल
और युवावHथा को 'ाƒ हो ही के िववाह क’ँ इस से िव˜Z करना वेदिव˜Z
होने से सुखदायक िववाह कभी नहc होता।।३।।
जब तक इसी 'कार सब ऋिष-मुिन राजा महाराजा आ‰य& लोग {|च‰य& से
िव‡ा पढ़ ही के Hवयंवर िववाह करते थे तब तक इस देश कR सदा उ–ित
होती थी। जब से यह {|च‰य& से िव‡ा का न पढ़ना, बाqयावHथा मO पराधीन
अथा&त् माता िपता के आधीन िववाह होने लगा, तब से ¦मशः आ‰या&वs& देश
कR हािन होती चली आई है। इस से इस दु… काम को छोड़ के सœन लोग
पूवªž 'कार से Hवयंवर िववाह jकया करO । सो िववाह वणा&नु¦म से करO और
वण&aवHथा भी गुण, कम&, Hवभाव के अनुसार होनी चािहये।
('-) eया िजस के माता िपता {ा|ण हi वह {ा|णी {ा|ण होता है और
िजसके माता िपता अ3य वण&Hथ हi उन का स3तान कभी {ा|ण हो सकता
है?
(उsर) हां बgत से हो गये, होते ह< और हiगे भी। जैसे छा3दो•य उपिनषद् मO
जाबाल ऋिष अXातकु ल, महाभारत मO िव5ािम• zि•य वण& और मातंग
ऋिष चा‹डाल कु ल से {ा|ण हो गये थे। अब भी जो उsम िव‡ा Hवभाव
वाला है वही {ा|ण के यो•य और मूख& शू¥ के यो•य होता है और वैसा ही
आगे भी होगा।
('-) भला जो रज वीय& से शरीर gआ है वह बदल कर दूसरे वण& के यो•य कै से
हो सकता है।
(उsर) रज वी‰य& के योग से {ा|ण शरीर नहc होता jक3तु-
Hवा—यायेन जपैहªमै¬ैिव‡ेने°यया सुतैः।
महायXैt यXैt {ा|ीयं ि•फ़यते तनुः।। मनु०।।
इस का अथ& पूव& कर आये ह< अब यहां भी संzेप से करते ह<। (Hवा—यायेन) पढ़ने
पढ़ाने (जपैः) िवचार करने कराने नानािवध होम के अनु¼ान, स›पूण& वेदi को
शdद, अथ&, स›ब3ध, Hवरो0ारणसिहत पढ़ने पढ़ाने (इ°यया) पौण&मासी, इि…
आjद के करने, पूवªž िविधपूव&क (सुतैः) धम& से स3तानो"पिs (महायXैt)
पूवªž {|यX, देवयX, िपतृयX, वै5देवयX और अितिथयX, (यXैt)
अि«…ोमाjद- यX, िवyानi का संग, स"कार, स"यभाषण, परोपकाराjद
स"कम& और स›पूण& िशqपिव‡ाjद पढ़ के दु…ाचार छोड़ ~े¼ाचार मO वs&ने से
(इयम्) यह (तनुः) शरीर ({ा|ी) {ा|ण का (j¦यते) jकया जाता है। eया
इस ºोक को तुम नहc मानते? मानते ह<। jफर eयi रज वीय& के योग से
वण&aवHथा मानते हो? म< अके ला नहc मानता jक3तु बgत से लोग पर›परा
से ऐसा ही मानते ह<।
('-) eया तुम पर›परा का भी ख‹डन करोगे?
(उsर) नहc, पर3तु तु›हारी उलटी समझ को नहc मान के ख‹डन भी करते ह<।
('-) हमारी उलटी और तु›हारी सूधी समझ है इस मO eया 'माण?
(उsर) यही 'माण है jक जो तुम पांच सात पीjढ़यi के वs&मान को सनातन
aवहार मानते हो और हम वेद तथा सृि… के आर›भ से आजपय&3त कR पर›परा
मानते ह<। देखो! िजस का िपता ~े¼ उस का पु• दु… और िजस का पु• ~े¼ उस
का िपता दु… तथा कहc दोनi ~े¼ वा दु… देखने मO आते ह< इसिलये तुम लोग
±म मO पड़े हो। देखो! मनु महाराज ने eया कहा है-
येनाHय िपतरो याता येन याता िपतामहाः।
तेन याया"सतां माग¶ तेन ग¸छ– Wर‘यते।। मनु०।।
िजस माग& से इस के िपता, िपतामह चले हi उस माग& मO स3तान भी चलO पर3तु
(सताम्) जो स"पु˜ष िपता िपतामह हi उ3हc के माग& मO चलO और जो िपता,
िपतामह दु… हi तो उन के माग& मO कभी न चलO। eयijक उsम धमा&"मा पु˜षi
के माग& मO चलने से दुःख कभी नहc होता। इस को तुम मानते हो वा नहc? हां
हां मानते ह<। और देखो जो परमे5र कR 'कािशत वेदोž बात है वही सनातन
और उस के िव˜Z है वह सनातन कभी नहc हो सकती। ऐसा ही सब लोगi को
मानना चािहये वा नहc? अवŸय चािहये।
जो ऐसा न माने उस से कहो jक jकसी का िपता दWर¥ हो उस का पु• धनाÚ
होवे तो eया अपने िपता कR दWर¥ावHथा के अिभमान से धन को पफ़O क देवे?
eया िजस का िपता अ3धा हो उस का पु• भी अपनी आंखi को पफ़ोड़ लेवे?
िजस का िपता कु कमŠ हो eया उस का पु• भी कु कम& को ही◌े करे ? नहc-नहc
jक3तु जो-जो पु˜षi के उsम कम& हi उन का सेवन और दु… कमŽ का "याग
कर देना सब का अ"यावŸयक है। जो कोई रज वी‰य& के योग से वणा&~म-
aवHथा माने और गुण कमŽ के योग से न माने तो उस से पूछना चािहये jक
जो कोई अपने वण& को छोड़ नीच, अ3"यज अथवा कृ tीन, मुसलमान हो गया
हो उस को भी {ा|ण eयi नहc मानते? यहां यही कहोगे jक उस ने {ा|ण
के कम& छोड़ jदये इसिलये वह {ा|ण नहc है। इस से यह भी िसZ होता है जो
{ा|णाjद उsम कम& करते ह< वे ही {ा|णाjद और जो नीच भी उsम वण& के
गुण, कम&, Hवभाव वाला होवे तो उस को भी उsम वण& मO और जो उsम
वण&Hथ होके नीच काम करे तो उसको नीच वण& मO िगनना अवŸय चािहये।
('-)
यह यजुव·द के ३१वO अ—याय का ११वां म3• है। इसका यह अथ& है jक {ा|ण
ई5र के मुख, zि•य बा•, वैŸय ऊ’ और शू¥ पगi से उ"प– gआ है। इसिलये
जैसे मुख न बा• आjद और बा• आjद न मुख होते ह<, इसी 'कार {ा|ण न
zि•याjद और zि•याjद न {ा|ण हो सकते ह<।
(उsर) इस म3• का अथ& जो तुम ने jकया वह ठीक नहc eयijक यहां पु˜ष
अथा&त् िनराकार aापक परमा"मा कR अनुवृिs है। जब वह िनराकार है तो
उसके मुखाjद अंग नहc हो सकते, जो मुखाjद अंग वाला हो वह पु˜ष अथा&त्
aापक नहc और जो aापक नहc वह सव&शिžमान् जगत् का ê…ा, धsा&,
'लयकsा& जीवi के पु‹य पापi कR aवHथा करने हारा, सव&X, अज3मा,
मृ"युरिहत आjद िवशेषणवाला नहc हो सकता।
इसिलये इस का यह अथ& है jक जो (अHय) पूण& aापक परमा"मा कR सृि… मO
मुख के सदृश सब मO मुwय उsम हो वह ({ा|णः) {ा|ण (बा•) ‘बाgवÄ बलं
बाgवÄ वीय&म्’ शतपथ{ा|ण। बल वी‰य& का नाम बाg है वह िजस मO अिधक
हो सो (राज3यः) zि•य (ऊ’) कWट के अधो और जानु के उपWरHथ भाग का
नाम है जो सब पदाथŽ और सब देशi मO ऊ’ के बल से जावे आवे 'वेश करे
वह (वैŸयः) वैŸय और (प¿ाम्) जो पग के अथा&त् नीच अंग के सदृश मूख&"वाjद
गुणवाला हो वह शू¥ है। अ3य• शतपथ {ा|णाjद मO भी इस म3• का ऐसा
ही अथ& jकया है। जैसे-
‘यHमादेते मुwयाHतHमा3मुखतो Éसृ°य3त।’ इ"याjद।
िजस से ये मुwय ह< इस से मुख से उ"प– gए ऐसा कथन संगत होता है। अथा&त्
जैसा मुख सब अंगi मO ~े¼ है वैसे पूण& िव‡ा और उsम गुण, कम&, Hवभाव से
युž होने से मनु‘यजाित मO उsम {ा|ण कहाता है। जब परमे5र के
{ा|णोऽHय मुखमासीद् बा• राज3यः कृ तः ।
ऊ’ तदHय यyश्◌ैयः प¿ा¦शू¥ो अजायत ।।
िनराकार होने से मुखाjद अंग ही नहc ह< तो मुख आjद से उ"प– होना अस›भव
है। जैसा jक व3—या ¬ी आjद के पु• का िववाह होना! और जो मुखाjद अंगi
से {ा|णाjद उ"प– होते तो उपादान कारण के सदृश {ा|णाjद कR आकृ ित
अवŸय होती। जैसे मुख का आकार गोल मोल है वैसे ही◌े उन के शरीर का भी
गोलमोल मुखाकृ ित के समान होना चािहये। zि•यi के शरीर भुजा के सदृश,
वैŸयi के ऊ’ के तुqय और शू¥i के शरीर पग के समान आकार वाले होने
चािहये। ऐसा नहc होता और जो कोई तुम से '- करे गा jक जो जो मुखाjद से
उ"प– gए थे उन कR {ा|णाjद संXा हो पर3तु तु›हारी नहc; eयijक जैसे और
सब लोग गभा&शय से उ"प– होते ह< वैसे तुम भी होते हो। तुम मुखाjद से उ"प–
न होकर {ा|णाjद संXा का अिभमान करते हो इसिलये तु›हारा कहा अथ&
aथ& है और जो हम ने अथ& jकया है वह स0ा है। ऐसा ही अ3य• भी कहा है।
जैसा-
शू¥ो {ा|णतामेित {ा|णtैित शू¥ताम्।
zि•याœातमेव3तु िव‡ाyैŸयाsथैव च।। मनु०।।
जो शू¥कु ल मO उ"प– होके {ा|ण, zि•य और वैŸय के समान गुण, कम&,
Hवभाव वाला हो तो वह शू¥ {ा|ण, zि•य और वैŸय हो जाय, वैसे ही
{ा|ण zि•य और वैŸयकु ल मO उ"प– gआ हो और उस के गुण, कम&, Hवभाव
शू¥ के सदृश हi तो वह शू¥ हो जाय। वैसे zि•य, वैŸय के कु ल मO उ"प– होके
{ा|ण वा शू¥ के समान होने से {ा|ण और शू¥ भी हो जाता है। अथा&त् चारi
वणŽ मO िजस-िजस वण& के सदृश जो-जो पु˜ष वा ¬ी हो वह-वह उसी वण& मO
िगनी जावे।
धम&च‰य&या जघ3यो वण&ः पूव¶ पूव¶ वण&माप‡ते जाितपWरवृsौ।।१।।
अधम&च‰य&या पूवª वणª जघ3यं जघ3यं वण&माप‡ते जाितपWरवृsौ।।२।।
ये आपHत›ब के सू• ह<। धमा&चरण से िनकृ … वण& अपने से उsम-उsम वण& को
'ाƒ होता है और वह उसी वण& मO िगना जावे jक िजस-िजस के यो•य होवे।।१।।
वैसे अधमा&चरण से पूव& अथा&त् उsम वण&वाला मनु‘य अपने से नीचे-नीचे वाले
वण& को 'ाƒ होता है और उसी वण& मO िगना जावे।।२।।
जैसे पु˜ष िजस-िजस वण& के यो•य होता है वैसे ही◌े ि¬यi कR भी aवHथा
समझनी चािहये। इससे eया िसZ gआ jक इस 'कार होने से सब वण& अपने-
अपने गुण, कम&, Hवभावयुž होकर शुZता के साथ रहते ह<। अथा&त् {ा|णकु ल
मO कोई zि•य वैŸय और शू¥ के सदृश न रहे। और zि•य वैŸय तथा शू¥ वण&
भी शुZ रहते ह<। अथा&त् वण&संकरता 'ाƒ न होगी। इस से jकसी वण& कR िन3दा
वा अयो•यता भी न होगी।

और इसी ¦म से अथा&त् {ा|ण वण& का {ा|णी, zि•य वण& का zि•या, वैŸय


वण& का वैŸया और शू¥ वण& का शू¥ा के साथ िववाह होना चािहये। तभी अपने-
अपने वणŽ के कम& और परHपर 'ीित भी यथायो•य रहेगी। इन चारi वणŽ के
कs&a कम& और गुण ये ह<-
अ—यापनम—ययनं यजनं याजनं तथा।
दानं 'ित>हtैव {ा|णानामकqपयत्।।१।।
शमो दमHतपः शौचं zाि3तराज&वमेव च।
Xानं िवXानमािHतeयं {|कम&Hवभावजम्।।२।। भ० गी०।।
{ा|ण के पढ़ना, पढ़ाना, यX करना कराना, दान देना, लेना ये छः कम& ह<
पर3तु ‘'ित>हः '"यवरः’ मनु० अथा&त् 'ित>ह लेना नीच कम& है।।१।। (शमः)
मन से बुरे काम कR इ¸छा भी न करनी और उस को अध›म& मO कभी 'वृs न
होने देना; (दमः) ~ो• और चzु आjद इि3¥यi को अ3यायाचरण से रोक कर
ध›म& मO चलाना, (तपः) सदा {|चारी िजतेि3¥य होके धमा&नु¼ान करना;
(शौच)-
अिÐगा&•िण शु—यि3त मनः स"येन शु—यित।
िव‡ातपो^यां भूता"मा बुिZXा&नेन शु—यित।। मनु०।।
जल से बाहर के अंग, स"याचार से मन, िव‡ा और धमा&नु¼ान से जीवा"मा
और Xान से बुिZ पिव• होती है। भीतर के राग, yेषाjद दोष और बाहर के
मलi को दूर कर शुZ रहना अथा&त् स"यास"य के िववेकपूव&क स"य के >हण
और अस"य के "याग से िनtय पिव• होता है। (zाि3त) अथा&त् िन3दा Hतुित,
सुख दुःख, शीतो‘ण, zुधा तृषा, हािन लाभ, मानापमान आjद हष& शोक, छोड़
के ध›म& मO दृढ़ िनtय रहना। (आज&व) कोमलता, िनरिभमान, सरलता,
सरलHवभाव रखना, कु Wटलताjद दोष छोड़ देना। (Xानम्) सब वेदाjद शा¬O
को सांगोपांग पढ़ने पढ़ाने का साम•य&, िववेक स"य का िनण&य जो वHतु जैसा
हो अथा&त् जड़ को जड़ चेतन को चेतन जानना और मानना। (िवXान) पृिथवी
से लेके परमे5र प‰य&3त पदाथŽ को िवशेषता से जानकर उन से यथायो•य
उपयोग लेना। (आिHतeय) कभी वेद, ई5र, मुिž, पूव& परज3म, धम&, िव‡ा,
स"संग, माता, िपता, आचा‰य& और अितिथयi कR सेवा को न छोड़ना और
िन3दा कभी न करना। ये प3¥ह कम& और गुण {ा|ण वण&Hथ मनु‘यi मO अवŸय
होने चािहए।।२।। zि•य-
'जानां रzणं दानिम°या—ययनमेव च।
िवषये‘व'सिžt zि•यHय समासतः।।१।। मनु०।।
शौय¶ तेजो धृितदा&ˆयं युZ े चाÊयपलायनम्।
दानमी5रभावt zा•ं कम& Hवभावजम्।।२।। भ० गी०।।
3याय से 'जा कR रzा अथा&त् पzपात छोड़ के ~े¼i का स"कार और दु…i का
ितरHकार करना सब 'कार से सब का पालन (दान) िव‡ा, धम& कR 'वृिs
और सुपा•O कR सेवा मO धनाjद पदाथŽ का aय करना (इ°या) अि«हो•jद यX
करना वा कराना (अ—ययन) वेदाjद शा¬O का पढ़ना तथा पढ़ाना और िवषयi
मO न पफ़ं स कर िजतेि3¥य रह के सदा शरीर और आ"मा से बलवान् रहना।।१।।
(शौ‰य&) सैकड़i सहêi से भी युZ करने मO अके ले को भय न होना।
(तेजः) सदा तेजHवी अथा&त् दीनतारिहत 'गqभ दृढ़ रहना। (धृित) धैय&वान्
होना
(दाˆय) राजा और 'जास›ब3धी aवहार और सब शा¬O मO अित चतुर होना।
(युZ)े युZ मO भी दृढ़ िनःशंक रहके उस से कभी न हटना न भागना अथा&त् इस
'कार से लड़ना jक िजस से िनिtत िवजय होवे, आप बचे, जो भागने से वा
श•ुu को धोखा देने से जीत होती हो तो ऐसा ही करना। (दान) दानशीलता
रखना। (ई5रभाव) पzपातरिहत होके सब के साथ यथायो•य वs&ना, िवचार
के देव,े 'ितXा पूरा करना, उस को कभी भंग होने न देना। ये •यारह zि•य
वण& के गुण ह<।।२।। वैŸय-
पशूनां रzणं दानिम°या—ययनमेव च।
विणeपथं कु सीदं च वैŸयHय कृ िषमेव च।। मनु०।।
(पशुरzा) गाय आjद पशुu का पालन-वZ&न करना (दान) िव‡ा धम& कR वृिZ
करने कराने के िलये धनाjद का aय करना (इ°या) अि«हो•jद यXi का करना
(अ—ययन) वेदाjद शा¬O का पढ़ना (विणeपथ) सब 'कार के aापार करना
(कु सीद) एक सैकड़े मO चार, छः, आठ, बारह, सोलह, वा बीस आनi से अिधक
dयाज और मूल से दूना अथा&त् एक ˜पया jदया तो सौ वष& मO भी दो ˜पये से
अिधक न लेना और न देना (कृ िष) खेती करना। ये वैŸय के गुण कम& ह<। शू-ं
एकमेव िह शू¥Hय 'भुः कम& समाjदशत्।
एतेषामेव वणा&नां शु~ूषामनसूयया।। मनु०।।
शू¥ को यो•य है िन3दा, ई‘या&, अिभमान आjद दोषi को छोड़ के {ा|ण,
zि•य और वैŸयi कR सेवा यथावत् करना और उसी से अपना जीवन-यापन
करना यही एक शू¥ का कम& गुण है।।१।।
िव‡ा और धम& के 'चार का अिधकार {ा|ण को देना eयijक वे पूण&
िव‡ावान् और धा“मक होने से उस काम को यथायो•य कर सकते ह<। zि•यi
को रा°य के अिधकार देने से कभी रा°य कR हािन वा िवš नहc होता।
पशुपालनाjद का अिधकार वैŸयi ही को होना यो•य है eयijक वे इस काम को
अ¸छे 'कार कर सकते ह<। शू¥ को सेवा का अिधकार इसिलये है jक वह िव‡ा
रिहत मूख& होने से िवXानस›ब3धी काम कु छ भी नहc कर सकता jक3तु शरीर
के काम सब कर सकता है। इस 'कार वणŽ को अपने-अपने अिधकार मO 'वृs
करना राजा आjद स^य जनi का काम है।
िववाह के लzण
{ा|ो दैवHतथैवाष&ः 'ाजाप"यHतथाऽऽसुरः।
गा3धवª राzसtैव पैशाचtा…मोऽधमः।। मनु०।।

िववाह आठ 'कार का होता है। एक {ा|, दूसरा दैव, तीसरा आष&, चौथा
'ाजाप"य, पांचवां आसुर, छठा गा3धव&, सातवां राzस, आठवां पैशाच। इन
िववाहi कR यह aवHथा है jक-वर क3या दोनi यथावत् {|चय& से पूण& िवyान्
धा“मक और सुशील हi उन का परHपर 'स–ता से िववाह होना ‘{ा|’ कहाता
है। िवHतृतयX करने मO ऋि"वÀफ़ कम& करते gए जामाता को अलंकारयुž
क3या का देना ‘दैव’। वर से कु छ लेके िववाह होना ‘आष&’। दोनi का िववाह
धम& कR वृिZ के अथ& होना ‘'ाजाप"य’ । वर और क3या को कु छ देके िववाह
‘आसुर’। अिनयम, असमय jकसी कारण से वर-क3या का इ¸छापूव&क परHपर
संयोग होना ‘गा3धव&’। लड़ाई करके बला"कार अथा&त् छीन, भफ़पट वा कपट
से क3या का >हण करना ‘राzस’। शयन वा म‡ाjद पी gई पागल क3या से
बला"कार संयोग करना ‘पैशाच’। इन सब िववाहi मO {ा|िववाह सवª"कृ …,
दैव म—यम, आष&, आसुर और गा3धव& िनकृ …, राzस अधम और पैशाच महा±…
है। इसिलये यही िनtय रखना चािहये jक क3या और वर का िववाह के पूव&
एका3त मO मेल न होना चािहए eयijक युवावHथा मO ¬ी पु˜ष का एका3तवास
दूषणकारक है।

पर3तु जब क3या वा वर के िववाह का समय हो तब जब वे समz हi तब उन


अ—यापकi वा क3या के माता िपता आjद भ¥पु˜षi के सामने उन दोनi कR
आपस मO बातचीत, शा¬थ& कराना और जो कु छ गुƒ aवहार पूछO सो भी सभा
मO िलखके एक दूसरे के हाथ मO देकर '-ोsर कर लेवO। जब दोनi का दृढ़ 'ेम
िववाह करने मO हो जाय तब वेदी और म‹डप रचके अनेक सुग3—याjद ¥a
और घृताjद का होम तथा अनेक िवyान् पु˜ष और ि¬यi का यथाथो•य स"कार
करO । पtात् सब के सामने पािण>हणपूव&क िववाह कR िविध को पूरा करO ।

जहां तक बने वहां तक {|चय& के वी‰य& को aथ& न जाने दO eयijक उस वी‰य&


वा रज से जो शरीर उ"प– होता है वह अपूव& उsम स3तान होता है। जब
गभ&िHथित का िनtय हो जाय तब से एक वष& प‰य&3त ¬ी पु˜ष का समागम
कभी न होना चािहये। eयijक ऐसा न होने से स3तान उsम और पुनः दूसरा
स3तान भी वैसा ही होता है। अ3यथा वी‰य& aथ& जाता दोनi कR आयु घट
जाती और अनेक 'कार के रोग होते ह< पर3तु ऊपर से भाषणाjद 'ेमयुž
aवहार दोनi को अवŸय रखना चािहये। पु˜ष वी‰य& कR िHथित और ¬ी गभ&
कR रzा और भोजन छादन इस 'कार का करे jक िजस से पु˜ष का वीय& Hव¹
मO भी न… न हो और गभ& मO बालक का शरीर अ"युsम ’प लाव‹य, पुि…, बल,
परा¦मयुž होकर दशवO महीने मO ज3म होवे। िवशेष उस कR रzा चौथे महीने
से और अितिवशेष आठवO महीने से आगे करनी चािहये। कभी गभ&वती ¬ी
रे चक, ’z, मादक¥a, बुिZ और बलनाशक पदाथŽ के भोजनाjद का सेवन
न करे jक3तु घी, दूध, उsम चावल, गे•,ं मूँग, उद& आjद अ– पान और देशकाल
का भी सेवन युिžपूव&क करे । गभ& मO दो संHकार एक चौथे महीने पुंसवन और
दूसरा आठवO महीने मO सीम3तो–यन िविध के अनुकूल करे । जब स3तान का
ज3म हो तब ¬ी और लड़के के शरीर कR रzा बgत सावधानी से करे अथा&त्
शु‹ठीपाक अथवा सौभा•यशु‹ठीपाक 'थम ही बनवा रeखO। उस समय
सुगि3धयुž उ‘ण जल जो jक jकि€त् उ‘ण रहा हो उसी से ¬ी Èान करे और
बालक को भी Èान करावे। त"पtात् नाड़ीछेदन-बालक कR नािभ के जड़ मO
एक कोमल सूत से बांध चार अंगुल छोड़ के ऊपर से काट डाले। उस को ऐसा
बांधे jक िजस से शरीर से ˜िधर का एक िब3दु भी न जाने पावे। पtात् उस
Hथान को शुZ करके उस के yार के भीतर सुग3धाjदयुž घृताjद का होम करे ।
त"पtात् स3तान के कान मO िपता ‘वेदोऽसीित’ अथा&त् ‘तेरा नाम वेद है’
सुनाकर घी और सहत को लेके सोने कR शलाका से जीभ पर ‘ओ३म्’ अzर
िलख कर मधु और घृत को उसी शलाका से चटवावे।

पtात् उसकR माता को दे देवे। जो दूध पीना चाहै तो उस कR माता िपलावे


जो उस कR माता के दूध न हो तो jकसी ¬ी कR परीzा कर के उसका दूध
िपलावे। पtात् दूसरे शुZ कोठरी वा जहां का वायु शुZ हो उसमO सुगि3धत
घी का होम 'ातः और सायंकाल jकया करे और उसी मO 'सूता ¬ी तथा बालक
को रeखे। उसी 'कार खान-पान का aवहार भी यथायो•य रeखे।
पtात् नामकरणाjद संHकार ‘संHकारिविध’ कR रीित से यथाकाल करता जाय।
ऋतुकालािभगामी Hया"Hवदारिनरतः सदा।
{|चा‰य·व भवित य• त•~मे वसन्।। मनु०।।
जो अपनी ही ¬ी से 'स– और ऋतुगामी होता है वह गृहHथ भी {|चारी के
सदृश है।
स3तु…ो भाय&या भsा& भ•& भाया& तथैव च।
यिHम–ेव कु ले िन"यं कqयाणं त• वै Ôुवम्।।१।।
यjद िह ¬ी न रोचेत पुमांस– 'मोदयेत्।
अ'मोदा"पुनः पुंसः 'जननं न 'वs&ते।।२।।
ि¬यां तु रोचमानायां सव¶ त¥ोचते कु लम्।
तHयां "वरोचमानायां सव&मेव न रोचते।।३।। मनु०।।
िजस कु ल मO भा‰या& से भsा& और पित से प¢ी अ¸छे 'कार 'स– रहती है उसी
कु ल मO सब सौभा•य और ऐ5य& िनवास करते ह<। जहां कलह होता है वहां
दौभा&•य और दाWरí िHथर होता है।।१।। जो ¬ी पित से 'ीित और पित को
'स– नहc करती तो पित के अ'स– होने से काम उ"प– नहc होता।।२।। िजस
¬ी कR 'स–ता मO सब कु ल 'स– होता उसकR अ'स–ता मO सब अ'स–
अथा&त् दुःखदायक हो जाता है।।३।।
िपतृिभ±ा&तृिभtैताः पितिभद·वरै Hतथा।
पू°या भूषियतaाt बgकqयाणमीÊसुिभः।।१।।
य• ना‰य&Hतु पू°य3ते रम3ते त• देवताः।
य•ैताHतु न पू°य3ते सवा&Hत•ऽपफ़लाः ि•फ़याः।।२।।
शोचि3त जामयो य• िवनŸय"याशु त"कु लम्।
न शोचि3त तु य•ैता वZ&ते तिZ सव&दा।।३।।
तHमादेताः सदा पू°या भूषणा¸छादनाशनैः।
भूितकामैन&रैि◌न&"यं स"कारे षू"सवेषु च।।४।। मनु०।।
िपता, भाई, पित और देवर इन को स"कारपूव&क भूषणाjद से 'स– रeखO,
िजन को बgत कqयाण कR इ¸छा हो वे ऐसे करO ।।१।। िजस घर मO ि¬यi का
स"कार होता है उस मO िव‡ायुž पु˜ष होके देवसंXा धरा के आन3द से ¦Rड़ा
करते ह< औेर िजस घर मO ि¬यi का स"कार नहc होता वहां सब j¦या िन‘पफ़ल
हो जाती ह<।।२।। िजस घर वा कु ल मO ¬ी लोग शोकातुर होकर दुःख पाती ह<
वह कु ल शीÎ न… ±… हो जाता है और िजस घर वा कु ल मO ¬ी लोग आन3द
से उ"साह और 'स–ता से भरी gई रहती ह< वह कु ल सव&दा बढ़ता रहता
है।।३।। इसिलए ऐ5य& कR कामना करनेहारे मनु‘यi को यो•य है jक स"कार
और उ"सव के समयi मO भूषण व¬ और भोजनाjद से ि¬यi का िन"य'ित
स"कार करO ।।४।। यह बात सदा —यान मO रखनी चािहये jक ‘पूजा’ शdद का
अथ& स"कार है और jदन रात मO जब-जब 'थम िमलO वा पृथÀफ़ हi तब-तब
'ीितपूव&क ‘नमHते’ एक दूसरे से करO ।
सदा 'Æ…या भाaं गृहकाय·षु दzया।
सुसंHकृ तोपHकरया aये चामुžहHतया।। मनु०।।
¬ी को यो•य है jक अित'स–ता से घर के कामi मO चतुराईयुž सब पदाथŽ
के उsम संHकार, घर कR शुिZ और aय मO अ"य3त उदार न रह< अथा&त् सब
चीजO पिव• और पाक इस 'कार बनावO जो औषध’प होकर शरीर वा आ"मा
मO रोग को न आने देवे। जो-जो aय हो उस का िहसाब यथावत् रखके पित
आjद को सुना jदया करे । घर के नौकर चाकरi से यथायो•य काम लेवे। घर के
jकसी काम को िबगड़ने न देवे।
ि¬यो र¢ा3यथो िव‡ा स"यं शौचं सुभािषतम्।
िविवधािन च िशqपािन समादेयािन सव&तः।। मनु०।।
उsम ¬ी, नाना 'कार के र¢, िव‡ा, स"य, पिव•ता, ~े¼भाषण और नाना
'कार कR िशqपिव‡ा अथा&त् कारीगरी सब देश तथा सब मनु‘यi से >हण
करे ।
स"यं {ूयाि"'यं {ूया– {ूयात् स"यमि'यम्।
ि'यं च नानृतं {ूयादेष धम&ः सनातनः।।१।।
भ¥ं भ¥िमित {ूयाÐ¥िम"येव वा वदेत्।
शु‘कवैरं िववादं च न कु या&त् के निच"सह।।२।। मनु०।।
सदा ि'य स"य दूसरे का िहतकारक बोले अि'य स"य अथा&त् काणे को काणा
न बोले। अनृत अथा&त् झूठ दूसरे को 'स– करने के अथ& न बोले।।१।। सदा भ¥
अथा&त् सब के िहतकारी वचन बोला करे । शु‘कवैर अथा&त् िवना अपराध jकसी
के साथ िवरोध वा िववाद न करे ।।२।। जो-जो दूसरे का िहतकर हो और बुरा
भी माने तथािप कहे िवना न रहै।
पु˜षा बहवो राजन् सततं ि'यवाjदनः।
अि'यHय तु प•यHय वžा ~ोता च दुल&भः।। -उ‡ोगपव&-िवदुरनीित०।।
हे धृतराî ! इस संसार मO दूसरे को िनर3तर 'स– करने के िलये ि'य बोलने
वाले 'शंसक लोग बgत ह< पर3तु सुनने मO अि'य िवjदत हो और वह कqयाण
करनेवाला वचन हो उस का कहने और सुननेवाला पु˜ष दुल&भ है। eयijक
स"पु˜षi को यो•य है jक मुख के सामने दूसरे का दोष कहना और अपना दोष
सुनना, परोz मO दूसरे के गुण सदा कहना। और दु…i कR यही रीित है jक
स›मुख मO गुण कहना और परोz मO दोषi का 'काश करना। जब तक मनु‘य
दूसरे से अपने दोष नहc सुनता वा कहने वाला नहc कहता तब तक मनु‘य
दोषi से छू टकर गुणी नहc हो सकता। कभी jकसी कR िन3दा न करे । जैस-े ‘गुणेषु
दोषारोपणमसूया’ अथा&त् ‘दोषेषु गुणारोपणमÊयसूया,’ ‘गुणेषु गुणारोपणं
दोषेषु दोषारोपणं च Hतुितः’
जो गुणi मO दोष, दोषi मO गुण लगाना वह िन3दा और गुणi मO गुण, दोषi मO
दोषi का कथन करना Hतुित कहाती है। अथा&त् िम•याभाषण का नाम िन3दा
और स"यभाषण का नाम Hतुित है।
बुिZवृिZकरा‹याशु ध3यािन च िहतािन च।
िन"यं शा¬‹यवेzेत िनगमांtैव वैjदकान्।।१।।
यथा यथा िह पु˜षः शा¬ं समिधग¸छित।
तथा तथा िवजानाित िवXानं चाHय रोचते।।२।। मनु०।।
जो शीÎ बुिZ, धन और िहत कR वृिZ करनेहारे शा¬ और वेद ह< उन को िन"य
सुनO और सुनावO। {|च‰या&~म मO पढ़े हi उन को ¬ी पु˜ष िन"य िवचारा और
पढ़ाया करO ।।१।। eयijक जैस-े जैसे मनु‘य शा¬O को यथावत् जानता है वैस-े
वैसे उस िव‡ा का िवXान बढ़ता जाता और उसी मO ˜िच बढ़ती रहती है।।२।।
ऋिषयXं देवयXं भूतयXं च सव&दा।
नृयXं िपतृयXं च यथाशिž न हापयेत्।।१।।
अ—यापनं {|यXः िपतृयXt तÊप&णम्।
होमो दैवो बिलभïतो नृयXोऽितिथपूजनम्।।२।।
Hवा—यायेनाच&येतषŠन् होमैदव
· ान् यथािविध।
िपत◌ृन् ~ाZैt न◌ृन–ैभू&तािन बिलकम&णा।।३।। मनु०।।
दो यX {|चय& मO िलख आये वे अथा&त् एक-वेदाjद शा¬O को पढ़ना पढ़ाना,
स3—योपासन, योगा^यास। दूसरा देवयX-िवyानi का संग, सेवा, पिव•ता,
jदa गुणi का धारण, दातृ"व, िव‡ा कR उ–ित करना है, ये दोनi यX सायं
'ातः करने होते ह<।
सायसांयं गृहिप तना&◌े अि«ः पा्र तः पा्र तः सामै नसHय दाता
।।१।।
पा्र तः पा्र त गृ&हपितना&◌े अि«ः सायसांयं सामै नसHय दाता
।।२।।
-अन कां० १९। अनु० ७। मं० ३। ४।।
तHमादहोरा•Hय संयोगे {ा|णः स3—यामुपासीत।
उ‡3तमHतं या3तम् आjद"यम् अिभ—यायन्।।३।। {ा|णे।।
न ित¼ित तु यः पूवा¶ नोपाHते यHतु पिtमाम्।
स साधुिभब&िह‘काय&ः सव&Hमाद् िyजकम&णः।।४।। मनु०।।
जो स3—या-स3—या काल मO होम होता है वह gत¥a 'ातःकाल तक वायुशुिZ
yारा सुखकारी होता है।।१।। जो अि« मO 'ातः-'ातःकाल मO होम jकया जाता
है वह-वह gत¥a सायंकाल पय&3त वायु के शुिZ yारा बल बुिZ और
आरो•यकारक होता है।।२।। इसिलये jदन और राि• के सि3ध मO अथा&त्
सूयªदय और अHत समय मO परमे5र का —यान और अि«हो• अवŸय करना
चािहये।।३।।
और जो ये दोनi काम सायं और 'ातःकाल मO न करे उस को सœन लोग सब
िyजi के कमŽ से बाहर िनकाल देवO अथा&त् उसे शू¥वत् समझO।।४।।

तीसरा ‘िपतृयX’ अथा&त् िजस मO जो देव िवyान्, ऋिष जो पढ़ने-पढ़ाने हारे ,


िपतर माता िपता आjद वृZ Xानी और परमयोिगयi कR सेवा करनी। िपतृयX
के दो भेद ह< एक ~ाZ और दूसरा तप&ण। ~ाZ अथा&त् ‘~त्’ स"य का नाम है
‘~"स"यं दधाित यया j¦यया सा ~Zा ~Zया यि"¦यते त¸ðाZम्’ िजस j¦या
से स"य का >हण jकया जाय उस को ~Zा और जो ~Zा से कम& jकया जाय
उसका नाम ~ाZ है। और ‘तृÊयि3त तप&यि3त येन िपत◌ृन् तsप&णम्’ िजस-
िजस कम& से तृƒ अथा&त् िव‡मान माता िपताjद िपतर 'स– हi और 'स–
jकये जायO उस का नाम तप&ण है। पर3तु यह जीिवतi के िलये है मृतकi के िलये
नहc।
u {|ादयो देवाHतृÊय3ताम्। {|ाjददेवपñयHतृÊय3ताम्।
{|ाjददेवसुताHतृÊय3ताम् । {|ाjददेवगणाHतृÊय3ताम्।। इित देवतप&णम्।।
‘िवyा¦सो िह देवाः।’ यह शतपथ {ा|ण का वचन है। जो िवyान् ह< उ3हc को देव
कहते ह<। जो सांगोपांग चार वेदi के जानने वाले हi उन का नाम {|ा और
जो उन से 3यून पढ़े हi उन का भी नाम देव अथा&त् िवyान् है। उनके सदृश
िवदुषी ¬ी, उनकR {|ाणी और देवी, उनके तुqय पु• और िश‘य तथा उनके
सदृश उन के गण अथा&त् सेवक हi उन कR सेवा करना है उस का नाम ‘~ाZ’
और ‘तप&ण’ है।
अिथष&तप&णम्
u मरी¸यादय ऋषयHतृÊय3ताम्। मरी¸या‡ृिषपñयHतृÊय3ताम्।
मरी¸या‡ृिषसुताHतृÊय3ताम्। मरी¸या‡ृिषगणाHतृÊय3ताम्।। इित
ऋिषतप&णम्।।
जो {|ा के 'पौ• मरीिचवत् िवyान् होकर पढ़ावO और जो उनके सदृश
िव‡ायुž उनकR ि¬यां क3याu को िव‡ादान देवO उनके तुqय पु• और िश‘य
तथा उन के समान उनके सेवक हi, उन का सेवन स"कार करना ऋिषतप&ण है।
अथ िपतृतप&णम्
u सोमसदः िपतरHतृÊय3ताम्। अि«‘वाsाः िपतरHतृÊय3ताम्। ब“हषदः
िपतरHतृÊय3ताम्। सोमपाः िपतरHतृÊय3ताम्। हिवभु&जः िपतरHतृÊय3ताम्।
आ°यपाः
िपतरHतृÊय3ताम्। यमाjद^यो नमः यमादcHतप&यािम। िप•े Hवधा नमः िपतरं
तप&यािम। िपतामहाय Hवधा नमः िपतामहं तप&यािम। मा•े Hवधा नमो मातरं
तप&यािम। िपतामÉै Hवधा नमः िपतामहc तप&यािम। Hवपñयै Hवधा नमः
Hवप¢c
तप&यािम। स›बि3ध^यः Hवधा नमः स›ब3धcHतप&यािम। सगो•े^यः Hवधा नमः
सगो•ंHतप&यािम।। इित िपतृतप&णम्।।
‘ये सोमे जगदी5रे पदाथ&िव‡ायां च सीदि3त से सोमसदः’ जो
परमा"मा और पदाथ& िव‡ा मO िनपुण हi वे सोमसद। ‘यैर«े“व‡ुतो िव‡ा
गृहीता ते अि«‘वाsाः’ जो अि« अथा&त् िव‡ुदाjद पदाथŽ के जानने वाले हi
वे अि«‘वाs। ‘ये ब“हिष उsमे aवहारे सीदि3त ते ब“हषदः’ जो उsम
िव‡ावृिZयुž aवहार मO िHथत हi वे ब“हषद। ‘ये सोममै5य&मोषधीरसं वा
पाि3त िपबि3त वा ते सोमपाः’ जो ऐ5य& के रzक और महौषिध रस का पान
करने से रोगरिहत और अ3य के ऐ5य& के रzक औषधi को देके रोगनाशक हi
वे सोमपा। ‘ये हिवहªतुमsुमह¶ भुÅते भोजयि3त वा ते हिवभु&जः’ जो मादक
और िहसाकारक ¥ai को छोड़ के भोजन करनेहारे हi वे हिवभु&ज। ‘य आ°यं
Xातुं 'ाƒुं वा यो•यं रzि3त वा िपबि3त त आ°यपाः’ जो जानने के यो•य वHतु
के रzक और घृत दु•धाjद खाने और पीनेहारे हi वे आ°यपा। ‘शोभनः कालो
िव‡ते येषा3ते
सुकािलनः’ िजन का अ¸छा धम& करने का सुख’प समय हो वे सुकािलन्। ‘ये
दु…ान् य¸छि3त िनगृòि3त ते यमा 3यायाधीशाः’ जो दु…i को द‹ड और ~े¼i
का पालन करनेहारे 3यायकारी हi वे यम। ‘यः पाित स िपता’ जो स3तानi का
अ– और स"कार से रzक वा जनक हो वह िपता। ‘िपतुः िपता िपतामहः,
िपतामहHय िपता 'िपतामहः’ जो िपता का िपता हो वह िपतामह और जो
िपतामह का िपता हो वह 'िपतामह। ‘या मानयित सा माता’ जो अ– और
स"कारi से स3तानi का मा3य करे वह माता। ‘या िपतुमा&ता सा िपतामही
िपतामहHय माता 'िपतामही’ जो िपता कR माता हो वह िपतामही और
िपतामह कR माता हो वह 'िपतामही। अपनी ¬ी तथा भिगनी स›ब3धी और
एक गो• के तथा अ3य कोई भ¥ पु˜ष वा वृZ हi उन सब को अ"य3त ~Zा से
उsम अ–, व¬, सु3दर यान आjद देकर अ¸छे 'कार जो तृƒ करना अथा&त्
िजस-िजस कम& से उनका आ"मा तृƒ और शरीर HवHथ रहै उस-उस कम& से
'ीितपूव&क उनकR सेवा करनी वह ~ाZ और तÊप&ण कहाता है।
चौथा वै5देव-अथा&त् जब भोजन िसZ हो तब जो कु छ भोजनाथ& बने, उसमO
से खÝा लवणा– और zार को छोड़ के घृत िम…युž अ– लेकर चूqहे से अि«
अलग धर िनóिलिखत म3•O से आgित और भाग करे ।
वै5देवHय िसZHय गृÉेऽ«ौ िविधपूव&कम् ।
आ^यः कु ‰या&Öेवता^यो {ा|णो होमम3वहम्।। मनु०।।
जो कु छ पाकशाला मO भोजनाथ& िसZ हो, उस का jदa गुणi के अथ& उसी
पाकाि« मO िनóिलिखत म3•O से िविधपूव&क होम िन"य करे ।
होम के म3•
ओम् अ«ये Hवाहा। सोमाय Hवाहा। अ«ीषोमा^यां Hवाहा। िव5े^यो
देवे^यः Hवाहा। ध3व3तरये Hवाहा। Σम्ँ◌्3यवन् Hवाहा। अनुम"यै Hवाहा।
'जापतये
Hवाहा। सह ‡ावापृिथवी^यां Hवाहा। िHव…कृ ते Hवाहा।
इन '"येक म3•O से एक-एक बार आgित '°विलत अि« मO छोड़े। पtात् थाली
अथवा भूिम मO पsा रख के पूव& jदशाjद ¦मानुसार यथा¦म इन म3•O से भाग
रeखे-
u सानुगाये3¥ाय नमः। सानुगाय यमाय नमः। सानुगाय व˜णाय नमः।
सानुगाय सोमाय नमः। म˜¿ो नमः। अ¿ो नमः। वनHपित^यो नमः। ि~यै
नमः। भ¥काqयै नमः। {|पतये नमः। वाHतुपतये नमः। िव5े^यो देवे^यो
नमः। jदवाचरे ^यो भूते^यो नमः। नž€ाWर^यो भूते^यो नमः। सवा&"मभूतये
नमः।।
इन भागi को जो कोई अितिथ हो तो उस को िजमा देवे अथवा अि« मO छोड़
देवे। इनके अन3तर लवणा– अथा&त् दाल, भात, शाक, रोटी आjद लेकर छः
भाग भूिम मO धरे । इसमO 'माण-
शुनां च पिततानां च 5पचां पापरोिगणाम्।
वायसानां कृ मीणां च शनकै ि◌न&व&पेद ् भुिव।। मनु०।।
इस 'कार ‘5^यो नमः। पितते^यो नमः। 5प•^यो नमः। पापरोिग^यो
नमः। वायसे^यो नमः। कृ िम^यो नमः।।’ धर कर पtात् jकसी दुःखी बुभुिzत
'ाणी अथवा कु sे, कौवे आjद को दे देवे। यहां नमः शdद का अथ& अ– अथा&त्
कु sे, पापी, चा‹डाल, पापरोगी कौवे और कृ िम अथा&त् चcटी आjद को अ–
देना यह मनुHमृित आjद कR िविध है।
हवन करने का 'योजन यह है jक-पाकशालाHथ वायु का शुZ होना और जो
अXात अदृ… जीवi कR ह"या होती है उस का '"युपकार कर देना। अब पांचवc
अितिथसेवा-अितिथ उस को कहते ह< jक िजस कR कोई ितिथ िनिtत न हो
अथा&त् अकHमात् धा“मक, स"योपदेशक, सब के उपकाराथ& सव&• घूमने वाला,
पूण& िवyान्, परमयोगी, सं3यासी गृहHथ के यहां आवे तो उस को 'थम पा‡,
अघ& और आचमनीय तीन 'कार का जल देकर, पtात् आसन पर स"कारपूव&क
िबठाल कर, खान, पान आjद उsमोsम पदाथŽ से सेवा शु~ूषा कर के , उन
को 'स– करे । पtात् स"संग कर उन से Xान िवXान आjद िजन से धम&, अथ&,
काम और मोz कR 'ािƒ होवे ऐसे-ऐसे उपदेशi का ~वण करे और चाल चलन
भी उनके सदुपदेशानुसार रeखे। समय पाके गृहHथ और राजाjद भी
अितिथवत् स"कार करने यो•य ह<। पर3तु-
पाषि‹डनो िवकम&Hथान् वैडालवृिsकान् शठान्।
हैतुकान् वकवृsct वाàा•ेणािप नाच&येत्।। मनु०।।
(पाष‹डी) अथा&त् वेदिन3दक, वेदिव˜Z आचरण करनेहारे (िवकम&Hथ) जो
वेदिव˜Z कम& का कsा& िम•याभाषणाjद युž, वैडालवृिsक जैसे िवड़ाला
िछप और िHथर होकर ताकता-ताकता भफ़पट से मूषे आjद 'ािणयi को मार
अपना पेट भरता है वैसे जनi का नाम वैडालवृिs, (शठ) अथा&त् हठी, दुरा>ही,
अिभमानी, आप जानO नहc, औरi का कहा मानO नहc, (हैतुक) कु तकõ aथ&
बकने वाले जैसे jक वेदाjद शा¬ और ई5र भी किqपत ह<’ इ"याjद गपोड़ा
हांकने वाले (वकवृिs) जैसे वक एक पैर उठा —यानाविHथत के समान होकर
झट म¸छी के 'ाण हरके अपना Hवाथ& िसZ करता है वैसे आजकल के वैरागी
और खाखी आjद हठी दुरा>ही वेदिवरोवमी ह<, ऐसi का स"कार वाणीमा• से
भी न करना चािहये। eयijक इनका स"कार करने से ये वृिZ को पाकर संसार
को अधम&युž करते ह<। आप तो अवनित के काम करते ही ह< पर3तु साथ मO
सेवक को भी अिव‡ा’पी महासागर मO डु बा देते ह<। इन पांच महायXi का
पफ़ल यह है jक {|यX के करने से िव‡ा, िशzा, धम&, स^यता आjद शुभ
गुणi कR वृिZ। अि«हो• से वायु, वृि…, जल कR शुिZ होकर वृि… yारा संसार
को सुख 'ाƒ होना अथा&त् शुZ वायु का 5ास, Hपश&, खान पान से आरो•य,
बुिZ, बल, परा¦म बढ़ के धम&, अथ&, काम और मोz का अनु¼ान पूरा होना।
इसीिलये इस को देवयX कहते ह<।
िपतृयX से जब माता िपता और Xानी महा"माu कR सेवा करे गा तब उस का
Xान बढ़ेगा। उस से स"यास"य का िनण&य कर स"य का >हण और अस"य का
"याग करके सुखी रहेगा। दूसरा कृ तXता अथा&त् जैसी सेवा माता िपता और
आचाय& ने स3तान और िश‘यi कR कR है उसका बदला देना उिचत ही है।
बिलवै5देव का भी फ़ल जो पूव& कह आये, वही है। जब तक उsम अितिथ
जगत् मO नहc होते तब तक उ–ित भी नहc होती। उनके सब देशi मO घूमने और
स"योपदेश करने से पाख‹ड कR वृिZ नहc होती और सव&• गृहHथi को सहज
से स"य िवXान कR 'ािƒ होती रहती है और मनु‘यमा• मO एक ही◌े धम& िHथर
रहता है। िवना अितिथयi के स3देहिनवृिs नहc होती। स3देहिनवृिs के िवना
दृढ़ िनtय भी नहc होता। िनtय के िवना सुख कहां? -
{ा|े मु•s· बु—येत धमा&थï चानुिच3तयेत्।
कायeलेशाँt त3मूलान् वेदतÓवाथ&मेव च।। मनु०।।
राि• के चौथे 'हर अथवा चार घड़ी रात से उठे । आवŸयक काय& करके धम&
और अथ&, शरीर के रोगi का िनदान और परमा"मा का —यान करे । कभी अधम&
का आचरण न करे । eयijक-
नाधम&tWरतो लोके स‡ः पफ़लित गौWरव।
शनैरावs&मानHतु कsु&मू&लािन कृ 3तित।। मनु०।।
jकया gआ अधम& िन‘पफ़ल कभी नहc होता पर3तु िजस समय अधम& करता है
उसी समय पफ़ल भी नहc होता। इसिलये अXानी लोग अधम& से नहc डरते।
तथािप िनtय जानो jक वह अधमा&चरण धीरे -धीरे तु›हारे सुख के मूलi को
काटता चला जाता है। इस ¦म से-
अधम·णैधते तावsतो भ¥ािण पŸयित।
ततः सप¢ाÅयित समूलHतु िवनŸयित।। मनु०।।
जब अधमा&"मा मनु‘य धम& कR मया&दा छोड़ (जैसे तालाब के ब3ध तोड़ जल
चारi ओर पफ़ै ल जाता है वैसे) िम•याभाषण, कपट, पाख‹ड अथा&त् रzा करने
वाले वेदi का ख‹डन और िव5ासघाताjद कमŽ से पराये पदाथŽ को लेकर
'थम बढ़ता है। पtात् धनाjद ऐ5य& से खान, पान, व¬, आभूषण, यान,
Hथान, मान, 'ित¼ा को 'ाƒ होता है। अ3याय से श•ुu को भी जीतता है,
पtात् शीÎ न… हो जाता है। जैसे जड़ काटा gआ वृz न… हो जाता है वैसे
अधमŠ न… ±… हो जाता है।
स"यधमा&य&वृsेषु शौचे चैवारमेत् सदा।
िश‘यांt िश‘याZम·ण वा•बा•दरसंयतः।। मनु०।।
वेदोž स"य धम& अथा&त् पzपातरिहत होकर स"य के >हण और अस"य के
पWर"याग 3याय’प वेदोž धमा&jद, आय& अथा&त् उsम पु˜षi के गुण, कम&,
Hवभाव और पिव•ता ही मO सदा रमण करे । वाणी, बा•, उदर आjद अंगi का
संयम अथा&त् धम& मO चलाता gआ धम& से िश‘यi को िशzा jकया करे ।
ऋि"वÀफ़पुरोिहताचा‰यÄमा&तुलाितिथसंि~तैः।
बालवृZातुरैवćैXा&ितस›बि3धबा3धवैः।।१।।
मातािपतृ^यां यािमिभ±ा&• पु•ेण भाय&या।
दुिह• दासवग·ण िववादं न समाचरे त्।।२।। मनु०।।
(ऋि"वÀफ़) यX का करनेहारा, (पुरोिहत) सदा उsम चाल चलन कR िशzा
कारक, (आचाय&) िव‡ा पढ़ानेहारा, (मातुल) मामा, (अितिथ) अथा&त् िजस कR
कोई आने जाने कR िनिtत ितिथ न हो (संि~त) अपने आि~त (बाल) बालक
(वृ¾Ô) बुöे (आतुर) पीिड़त (वै‡) आयुव·द का Xाता, (Xाित) Hवगो• वा
Hववण&Hथ, (स›ब3धी) 5शुर आjद, (बा3धव) िम•।।१।। (माता) माता, (िपता)
िपता, (यािम) बिहन, (±ाता) भाई, (पु•) पु•, (भाया&) ¬ी, (दुिहता) पु•ी
और सेवक लोगi से िववाद अथा&त् िव˜Z लड़ाई बखेड़ा कभी न करे ।।२।।
अतपाH"वनधीयानः 'ित>ह˜िच“yजः।
अ›भHयŸमÊलवेनैव सह तैनैव मœित।।२।। मनु०।।
एक (अतपाः) {|च‰य& स"यभाषणाjद तपरिहत, दूसरा (अनधीयानः) िवना
पढ़ा gआ, तीसरा ('ित>ह˜िचः) अ"य3त धमा&थ& दूसरi से दान लेनेवाला, ये
तीनi प"थर कR नौका से समु¥ मO तरने के समान अपने दु… कमŽ के साथ ही
दुःखसागर मO डू बते ह< । वे तो डू बते ही ह< पर3तु दाताu को साथ डु बा लेते ह<।
ि•‘वÊयेतेषु दsं िह िविधनाÊय“जतं धनम्।
दातुभ&व"यनथा&य पर•दातुरेव च।। मनु०।।
जो धम& से 'ाƒ gए धन का उž तीनi को देना है वह दानदाता का नाश इसी
ज3म और लेनेवाले का नाश परज3म मO करता है। जो वे ऐसे हi तो eया हो-
यथा Êलवेनौपलेन िनमœ"युदके तरन्।
तथा िनमœतोऽधHतादXौ दातृ'ती¸छकौ।। मनु०।।
जैसे प"थर कR नौका मO बैठ के जल मO तरने वाला डू ब जाता है वैसे अXानी
दाता और >हीता दोनi अधोगित अथा&त् दुःख को 'ाƒ होते ह<।
पाखि‹डयi के लzण
धम&—वजी सदा लुdधŸछाि÷को लोकद›भकः।
वैडालËितको Xेयो िहêः सवा&िभस3धकः।।१।।
अधोदृि…नÄ‘कृ ितकः Hवाथ&साधनत"परः ।
शठो िम•यािवनीतt वकËतचरो िyजः।।२।। मनु०।।
(धम&—वजी) धम& कु छ भी न करे पर3तु धम& के नाम से लोगi को ठगे (सदा
लुdवमः) सव&दा लोभ से युž (छाि÷कः) कपटी (लोकद›भकः) संसारी मनु‘यi
के सामने अपनी बड़ाई के गपोड़े मारा करे (िहêः) 'ािणयi का घातक, अ3य
से वैरबुिZ रखनेवाला (सवा&िभस3धकः) सब अ¸छे और बुरi से भी मेल रeखे
उस को वैडालËितक अथा&त् िवडाल के समान धूs& और नीच समझो।।१।।
(अधोदृि…ः) कR“त के िलये नीचे दृि… रeखे (नै‘कृ ितकः) ई‘य&क jकसी ने उस
का पैसा भर अपराध jकया हो तो उसका बदला लेने को 'ाण तक त"पर रहै
(Hवाथ&साधनत"परः) चाहै कपट अधम& िव5ासघात eयi न हो; अपना 'योजन
साधने मO चतुर (शठः) चाहै अपनी बातO झूठी eयi न हi पर3तु हठ कभी न
छोड़े (िम•यािवनीतः) भफ़ू ठ मूँठ ऊपर से शील स3तोष और साधुता jदखलावे
उस को (वकËत) बगुले के समान नीच समझो। ऐसे-ऐसे लzणi वाले पाख‹डी
होते ह<, उन का िव5ास व सेवा कभी न करO ।।२।।
धम¶ शनैः सि€नुयाद् वqमीकिमव पुिsकाः।
परलोकसहायाथ¶ सव&लोका3यपीडयन्।।१।।
नामु• िह सहायाथ¶ िपता माता च ित¼तः।
न पु•दारं न Xाितध&म&िHत¼ित के वलः।।२।।
एकः 'जायते ज3तुरेक एव 'लीयते।
एको नु भु žे सुकृतमेक एव च दु‘कृ तम्।।३।।
एकः पापािन कु ˜ते पफ़लं भु žे महाजनः।
भोžारो िव'मु¸य3ते कsा& दोषेण िलÊयते।।४।।
मृतं शरीरमु"सृ°य का¼लो¼समं िzतौ।
िवमुखा बा3धवा याि3त धम&Hतमनुग¸छित।। मनु०।।
¬ी और पु˜ष को चािहये jक जैसे पुिsका अथा&त् दीमक वqमीक अथा&त् बांबी
को बनाती है वैसे सब भूतi को पीड़ा न देकर परलोक अथा&त् परज3म के सुखाथ&
वमीरे -वमीरे धम& का स€य करे ।।१।। eयijक परलोक मO न माता न िपता न
पु• न ¬ी न Xाित सहाय कर सकते ह< jक3तु एक धम& ही सहायक होता है।।२।।
देिखये अके ला ही जीव ज3म और मरण को 'ाƒ होता, एक ही धम& का पफ़ल
सुख और अधम& का जो दुःख ’प पफ़ल उस को भोगता है।।३।। यह भी समझ
लो jक कु टु ›ब मO एक पु˜ष पाप करके पदाथ& लाता है और महाजन अथा&त्
कु टु ›ब उस को भोžा है। भोगनेवाले दोषभागी नहc होते jक3तु अधम& का कsा&
ही दोष का भागी होता है।।४।। जब कोई jकसी का स›ब3धी मर जाता है उस
को मÝी के ढेले के समान भूिम मO छोड़ कर पीठ दे ब3धुवग& िवमुख होकर चले
जाते ह<। कोई उसके साथ जानेवाला नहc होता jक3तु एक धम& ही उस का संगी
होता है।।५।।
तHमाZम¶ सहायाथ¶ िन"यं सि€नुया¸छनैः।
ध›म·ण ही सहायेन तमHतरित दुHतरम्।।१।।
धम&'धानं पु˜षं तपसा हतjकिqवषम्।
परलोकं नय"याशु भाHवतं खशरीWरणम्।।२।। मनु०।।
उस हेतु से परलोक अथा&त् परज3म मO सुख और इस ज3म के सहायताथ& िन"य
धम& का स€य धीरे -धीरे करता जाय eयijक धम& ही के सहाय से बड़े-बड़े
दुHतर दुःखसागर को जीव तर सकता है।।१।। jक3तु जो पु˜ष धम& ही को 'धान
समझता है िजस का धम& के अनु¼ान से कs&a पाप दूर हो गया उस को
'काशHव’प और आकाश िजस का शरीरवत् है उस परलोक अथा&त्
परमदश&नीय परमा"मा को धम& ही शीÎ 'ाƒ कराता है।।२।। इसिलये-
दृढकारी मृदद ु ा&3तः •फ़ू राचारै रसंवसन्।
अिहêो दमदाना^यां जये"Hवग¶ तथा Ëतः।।१।।
वा¸यथा& िनयताः सव· वा मूला वाि•विनःसृताः।
तां तु यः Hतेनयेyाचं स सव&Hतेयकृ –रः।।२।।
आचाराqलभते ÉायुराचारादीिÊसताः 'जाः।
आचाराZनमz‰यमाचारो ह3"यलzणम्।।३।। मनु०।।
सदा दृढ़कारी, कोमल Hवभाव, िजतेि3¥य, िहसक, ¦ू र, दु…ाचारी पु˜षi से
पृथÀफ़ रहनेहारा धमा&"मा मन को जीत और िव‡ाjद दान से सुख को 'ाƒ
होवे।।१।। पर3तु यह भी —यान मO रeखO jक िजस वाणी मO सब अथ& अथा&त्
aवहार िनिtत होते ह< वह वाणी ही उन का मूल और वाणी ही से सब
aवहार िसZ होते ह< उस वाणी को जो चोरता अथा&त् िम•याभाषण करता है
वह सब चोरी आjद पापi का करने वाला है।।२।। इसिलये
िम•याभाषणाjद’प अधम& को छोड़ जो धमा&चार अथा&त् {|चय& िजतेि3¥यता
से पूण& आयु और धमा&चार से उsम 'जा तथा अzय धन को 'ाƒ होता है तथा
जो धमा&चार मO वs&कर दु… लzणi का नाश करता है; उसके आचरण को सदा
jकया करे ।।३।। eयijक-
दुराचारो िह पु˜षो लोके भवित िनि3दतः।
दुःखभागी च सततं aािधतोऽqपायुरेव च।। मनु०।।
जो दु…ाचारी पु˜ष है वह संसार मO सœनi के म—य मO िन3दा को 'ाƒ
दुःखभागी और िनर3तर aािधयुž होकर अqपायु का भी भोगनेहारा होता
है। इसिलये ऐसा 'य¢ करे -
य‡"परवशं कम& तs‡¢ेन वज&येत्।
य‡दा"मवशं तु Hयाss"सेवेत य¢तः।।१।।
सव¶ परवशं दुःखं सव&मा"मवशं सुखम्।
एतिy‡ा"समासेन लzणं सुखदुःखयोः।।२।। मनु०।।
जो-जो पराधीन कम& हो उस-उस का 'य¢ से "याग और जो जो Hवाधीन कम&
हो उस-उस का 'य¢ के साथ सेवन करे ।।१।।
eयijक जो-जो पराधीनता है वह-वह सब दुःख और जो-जो Hवाधीनता है वह-
वह सब सुख यही संzेप से सुख और दुःख के लzण जानना चािहये।।२।।
पर3तु जो एक दूसरे के आधीन काम है वह-वह आवमीनता से ही करना चािहये
जैसा jक ¬ी और पु˜ष का एक दूसरे के आधीन aवहार। अथा&त् ¬ी पु˜ष
का और पु˜ष ¬ी का परHपर ि'याचरण अनुकूल रहना aिभचार वा िवरोध
कभी न करना। पु˜ष कR आXानुकूल घर के काम ¬ी और बाहर के काम पु˜ष
के आधीन रहना, दु… aसन मO पफ़ँ सने से एक दूसरे को रोकना अथा&त् यही
िनtय जानना।
जब िववाह होवे तब ¬ी के हाथ पु˜ष और पु˜ष के हाथ ¬ी िबक चुकR अथा&त्
जो ¬ी और पु˜ष के साथ हाव, भाव, नखिशखा>पय&3त जो कु छ ह< वह वीया&jद
एक दूसरे के आधीन हो जाता है।
¬ी वा पु˜ष 'स–ता के िवना कोई भी aवहार न करO । इन मO बड़े अि'यकारक
aिभचार, वेŸया, परपु˜षगमनाjद काम ह<। इन को छोड़ के अपने पित के
साथ ¬ी और ¬ी के साथ पित सदा 'स– रह<।
जो {ा|णवण&Hथ हi तो पु˜ष लड़कi को पढ़ावे तथा सुिशिzता ¬ी लड़jकयi
को पढ़ावे। नानािवध उपदेश और वžृ "व करके उन को िवyान् करO । ¬ी का
पूजनीय देव पित और पु˜ष कR पूजनीय अथा&त् स"कार करने यो•य देवी ¬ी
है।
जब तक गु˜कु ल मO रह< तब तक माता िपता के समान अ—यापकi को समझO
और अ—यापक अपने स3तानi के समान िश‘यi को समझO। पढ़ानेहारे अ—यापक
और अ—यािपका कै से होने चािहये-
आ"मXानं समार›भिHतितzा धम&िन"यता।
यमथा& नापकष&ि3त स वै पि‹डत उ¸यते।।१।।
िनषेवते 'शHतािन िनि3दतािन न सेवते।
अनािHतकः ~Öधान एत"पि‹डतलzणम्।।२।।
िz'ं िवजानाित िचरं शृणोित, िवXाय चाथ¶ भजते न कामात्।
नास›पृ…ो §युपयु žे पराथ·, त"'Xानं 'थमं पि‹डतHय।।३।।
ना'ाÊयमिभवाÃछि3त न…ं ने¸छि3त शोिचतुम्।
आप"सु च न मुÉि3त नराः पि‹डतबुZयः।।४।।
'वृsवाÀफ़ िच•कथ ऊहवान् 'ितभानवान्।
आशु >3थHय वžा च यः स पि‹डत उ¸यते।।५।।
~ुतं 'Xानुगं यHय 'Xा चैव ~ुतानुगा।
असि›भ–ाय&मया&दः पि‹डताwयां लभेत सः।।६।।
-ये सब महाभारत उ‡ोगपव& िवदुर'जागर के ºोक ह<।
अथ&-िजस को आ"मXान स›यÀफ़ आर›भ अथा&त् जो िनक›मा आलसी कभी न
रहै; सुख दुःख, हािन लाभ, मानापमान, िन3दा Hतुित मO हष& शोक कभी न करे ;
धम& ही मO िन"य िनिtत रहै; िजस के मन को उsम-उsम पदाथ& अथा&त् िवषय
स›ब3धी वHतु आकष&ण न कर सकO वही पि‹डत कहाता है।।१।। सदा धम&युž
कमŽ का सेवन; अधम&युž कामi का "याग; ई5र, वेद, स"याचार कR िन3दा न
करनेहारा; ई5र आjद मO अ"य3त ~Zालु हो; वही पि‹डत का कs&aाकs&a
कम& है।।२।।
जो कWठन िवषय को भी शीÎ जान सके ; बgत कालप‰य&3त शा¬O को पढ़े सुने
और िवचारे ; जो कु छ जाने उस को परोपकार मO 'युž करे ; अपने Hवाथ& के
िलये कोई काम न करे ; िवना पूछे वा िवना यो•य समय जाने दूसरे के अथ& मO
स›मित न दे। वही 'थम 'Xान पि‹डत को होना चािहये।।३।।
जो 'ािƒ के अयो•य कR इ¸छा कभी न करे ; न… gए पदाथ& पर शोक न करे ;
आप"काल मO मोह को न 'ाƒ अथा&त् aाकु ल न हो वही बुिZमान् पि‹डत
है।।४।।
िजस कR वाणी सब िव‡ाu और '-ोsरi के करने मO अितिनपुण; िविच•
शा¬O के 'करणi का वžा; यथायो•य तक& और Hमृितमान्; >3थi के यथाथ&
अथ& का शीÎ वžा हो वही पि‹डत कहाता है।।५।।
िजस कR 'Xा सुने gए स"य अथ& के अनुकूल और िजस का ~वण बुिZ के
अनुसार हो जो कभी आय& अथा&त् ~े¼ धा“मक पु˜षi कR मया&दा का छेदन न
करे वही पि‹डत संXा को 'ाƒ होवे।।६।।
जहां ऐसे-ऐसे ¬ी पु˜ष पढ़ाने वाले होते ह< वहां िव‡ा धम& और उsमाचार
कR वृिZ होकर 'ितjदन आन3द ही बढ़ता रहता है। पढ़ाने मO अयो•य और मूख&
के लzण-
अ~ुतt समु–Zो दWर¥t महामनाः।
अथा¶tाऽकम&णा 'ेÊसुमू&ढ इ"यु¸यते बुधैः।।१।।
अना•तः 'िवशित Éपृ…ो बg भाषते।
अिव5Hते िव5िसित मूढचेता नराधमः।।२।।
-ये ºोक भी महाभारत उ‡ोग पव& िवदुर'जागर के ह<।
अथ&-िजस ने कोई शा¬ न पढ़ा न सुना अतीव घम‹डी, दWर¥ होकर बड़े-बड़े
मनोरथ करनेहारा, िवना कम& से पदाथŽ कR 'ािƒ कR इ¸छा करने वाला हो,
उसी को बुिZमान् लोग मूढ़ कहते ह<।।१।।
जो िवना बुलाये सभा वा jकसी के घर मO 'िव… हो उ0 आसन पर बैठना चाहै;
िवना पूछे सभा मO बgत सा बके ; िव5ास के अयो•य वHतु वा मनु‘य मO िव5ास
करे वही मूढ़ और सब मनु‘यi मO नीच मनु‘य कहाता है।।२ ।।
जहां ऐसे पु˜ष अ—यापक, उपदेशक, गु˜ और माननीय होते ह< वहां अिव‡ा,
अधम&, अस^यता, कलह, िवरोध और पफ़ू ट बढ़ के दुःख ही बढ़ता जाता है।
अब िव‡ा“थयi के लzण-
आलHयं मदमोहौ च चापqयं गोि¼रे व च।
Hतdधता चािभमािन"वं तथाऽ"यािग"वमेव च।
एते वै सƒ दोषाः Hयुः सदा िव‡ा“थनां मताः।।१।।
सुखा“थनः कु तो िव‡ा कु तो िव‡ा“थनः सुखम्।
सुखाथŠ वा "यजेिy‡ां िव‡ाथŠ वा "यजे"सुखम्।।२।।
ये भी िवदुर'जागर के ºोक ह<।
(आलHय) शरीर और बुिZ मO जड़ता, नशा, मोह=jकसी वHतु मO पफ़ं सावट,
चपलता और इधर-उधर कR aथ& कथा करना सुनना, पढ़ते पढ़ाते ˜क जाना,
अिभमानी, अ"यागी होना ये सात दोष िव‡ाि◌थ&यi मO होते ह<।।१।। जो ऐसे
होते ह< उन को िव‡ा कभी नहc आती। सुख भोगने कR इ¸छा करने वाले को
िव‡ा कहां? और िव‡ा पढ़ने वाले को सुख कहां? eयijक िवषयसुखाथŠ
िव‡ा को और िव‡ाथŠ िवषयसुख को छोड़ दे।।२।।
ऐसे jकये िवना िव‡ा कभी नहc हो सकती। और ऐसे को िव‡ा होती है-
स"ये रतानां सततं दा3तानामू—व&रेतसाम्।
{|चय¶ दहे¥ाजन् सव&पापा3युपािसतम्।।१।।
अ5ाल›भं गवाल›भं सं3यासं पलपैि•कम्।
देवरा0 सुतो"पÒs्ा कलौ प€ िववज&येत्।।२।।
न…े मृते 'Ëिजते eलीबे च पितते पतौ।
प€Hवाप"सु नारीणां पितर3यो िवधीयते।।३।।
ये कपोलकिqपत पाराशरी के ºोक ह<।
जो दु… कम&कारी िyज को ~े¼ और ~े¼ कम&कारी शू¥ को नीच मान< तो इस से
परे पzपात, अ3याय, अधम& दूसरा अिधक eया होगा? eया दूध देने वाली वा
न देने वाली गाय गोपालi को पालनीय होती है, वैसे कु ›हार आjद को गधही
पालनीय नहc होती? और यह दृ…ा3त भी िवषम है, eयijक िyज और शू¥
मनु‘य जाित गाय और गधही िभ– जाित ह<। कथि€त् पशु जाित से दृ…ा3त
का एकदेश दा…ा&3त मO िमल भी जावे तो भी इसका आशय अयुž होने से ये
ºोक िवyानi के माननीय कभी नहc हो सकते।।१।।
जब अ5ाल›भ अथा&त् घोड़े को मार के अथवा गाय को मार के होम करना ही
वेदिविहत नहc है तो उसका किलयुग मO िनषेध करना वेदिव˜Z eयi नहc?
जो किलयुग मO इस नीच कम& का िनषेध माना जाय तो •ेता आjद मO िविध आ
जाय तो इस मO ऐसे दु… काम का ~े¼ युग मO होना सव&था अस›भव है। और
सं3यास कR वेदाjद शा¬O मO िविध है उस का िनषेध करना िनमू&ल है। जब मांस
का िनषेध है तो सव&दा ही िनषेध है।
('-) गृहा~म सब से छोटा वा बड़ा है?
(उsर) अपने-अपने कs&aकमŽ मO सब बड़े ह<। पर3तु- यथा नदीनदाः सव·
सागरे याि3त संिHथितम्।
तथैवा~िमणः सव· गृहHथे याि3त संिHथितम्।।१।।
यथा वायुं समाि~"य वs&3ते सव&ज3तवः।
तथा गृहHथमाि~"य वs&3ते सव& आ~माः।।२।।
यHमा"•योऽÊया~िमणो दानेना–ेन चा3वहम्।
गृहHथेनैव धा‰य&3ते तHमाùये¼ा~मो गृही।।३।।
स स3धा‰य&ः 'य¢ेन Hवग&मzयिम¸छता।
सुखं चेह¸े छता िन"यं योऽधायª दुब&लेि3¥यैः।।४।। मनु०।।
जैसे नदी और बड़े-बड़े नद तब तक ±मते ही रहते ह< जब तक समु¥ को 'ाƒ
नहc होते, वैसे गृहHथ ही के आ~य से सब आ~म िHथर रहते ह<।।१।। िवना
इस आ~म के jकसी आ~म का कोई aवहार िसZ नहc होता।।२।। िजस से
{|चारी, वान'Hथ और सं3यासी तीन आ~मi को दान और अ–ाjद देके
'ितjदन गृहHथ ही धारण करता है इससे गृहHथ °ये¼ा~म है, अथा&त् सब
aवहारi मO धुर3धर कहाता है।।३।। इसिलये जो (अzय) मोz और संसार के
सुख कR इ¸छा करता हो वह 'य¢ से गृहा~म का धारण करे । जो गृहा~म
दुब&लेि3¥य अथा&त् भी˜ और िनब&ल पु˜षi से धारण करने के अयो•य है उसको
अ¸छे 'कार धारण करे ।।४।। इसिलये िजतना कु छ aवहार संसार मO है उस
का आधार गृहा~म है। जो यह गृहा~म न होता तो स3तानो"पिs के न होने
से {|चय&, वान'Hथ और सं3यास आ~म कहां से हो सकते? जो कोई गृहा~म
कR िन3दा करता है वही िन3दनीय है और जो 'शंसा करता है वही 'शंसनीय
है। पर3तु तभी गृहा~म मO सुख होता है जब ¬ी पु˜ष दोनi परHपर 'स–,
िवyान्, पु˜षाथŠ और सब 'कार के aवहारi के Xाता हi। इसिलये गृहा~म
के सुख का मुwय कारण {|चय& और पूवªž Hवयंवर िववाह है।
यह संzेप से समावs&न िववाह और गृहा~म के िवषय मO िशzा िलख दी।
इसके आगे वान'Hथ और सं3यास के िवषय मO िलखा जायेगा।
इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमकृ ते स"याथ&'काशे
सुभाषािवभूिषते समावs&निववाहगृहा~मिवषये
चतुथ&ः समुqलासः स›पूण&ः।।४।।
अथ प€मसमुqलासार›भः
अथ वान'Hथसं3यासिविध वˆयामः
{|चया&~मं समाÊय गृही भवेत् गृही भू"वा वनी भवेyनी भू"वा 'Ëजेत्।।
-शत० कां० १४।।
मनु‘यi को उिचत है jक {|च‰या&~म को समाƒ करके गृहHथ होकर वान'Hथ
और वान'Hथ होके सं3यासी होवO अथा&त् अनु¦म से आ~म का िवधान है।
एवं गृहा~मे िHथ"वा िविधव"Èातको िyजः।
वने वसेsु िनयतो यथाविyिजतेि3¥यः।।१।।
गृहHथHतु यदा पŸयेyलीपिलतमा"मनः।
अप"यHयैव चाप"यं तदार‹यं समा~येत्।।२।।
स3"य°य >ा›यमाहारं सव¶ चैव पWर¸छदम्।
पु•ेषु भाया¶ िनःिzÊय वनं ग¸छे"सहैव वा।।३।।
अि«हो•ं समादाय गृÉं चाि«पWर¸छदम्।
>ामादर‹यं िनःसृ"य िनवसेि–यतेि3¥यः।।४।।
मु3य–ैि◌व&िवधैम·—यैः शाकमूलफलेन वा।
एतानेव महायXान् िनव&पेिyिधपूव&कम्।।५।।
इस 'कार Èातक अथा&त् {|च‰य&पूव&क गृहा~म का कsा& िyज अथा&त् {ा|ण
zि•य और वैŸय गृहा~म मO ठहर कर िनिtता"मा और यथावत् इि3¥यi को
जीत के वन मO वसO।।१।।
पर3तु जब गृहHथ िशर के 5ेत के श और "वचा ढीली हो जाय और लड़के का
लड़का भी हो गया हो तब वन मO जाके वसे।।२।।
सब >ाम के आहार और व¬jद सब उsमोsम पदाथŽ को छोड़ पु•O के पास
¬ी को रख वा अपने साथ ले के वन मO िनवास करे ।।३।।
सांगोपांग अि«हो• को ले के >ाम से िनकल दृढेि3¥य होकर अर‹य मO जाके
वसे।।४।।
नाना 'कार के सामा आjद अ–, सु3दर-सु3दर शाक, मूल, पफ़ल, पफ़ू ल,
क3दाjद से पूवªž प€महायXi को करे और उसी से अितिथ सेवा और आप
भी िनवा&ह करO ।।५।।
Hवा—याये िन"ययुžः HयाÖा3तो मै•ः समािहतः।
दाता िन"यमनादाता सव&भूतानुक›पकः।।१।।
अ'य¢ः सुखाथ·षु {|चारी धराशयः।
शरणे‘वममtैव वृzमूलिनके तनः।।२।।
Hवा—याय अथा&त् पढ़ने पढ़ाने मO िन"ययुž, िजता"मा, सब का िम•, इि3¥यi
का िन"य दमनशील, िव‡ाjद का दान देनेहारा और सब पर दयालु, jकसी से
कु छ भी पदाथ& न लेवे इस 'कार सदा वs&मान करे ।।१।।
शरीर के सुख के िलये अित 'य¢ न करे jक3तु {|चारी रहे अथा&त् अपनी ¬ी
साथ हो तथािप उस से िवषयचे…ा कु छ न करे भूिम मO सोवे। अपने आि~त वा
HवकRय पदाथŽ मO ममता न करे । वृz के मूल मO वसे।।२।।
तपः~Zे ये §युपवस3"यर‹ये शा3ता िवyांसो भैzच‰या¶ चर3तः।
सू‰य&yारे ण ते िवरजाः 'याि3त य•ऽमृतः स पु˜षो Éaया"मा।।१।।
-मु‹ड० खं० २। मं० ११।।
जो शा3त िवyान् लोग वन मO तप ध›मा&न¼ ु ान और स"य कR ~Zा करके
िभzाचरण करते gए जंगल मO वसते ह<, वे जहाँ नाशरिहत पूण& पु˜ष हािन
लाभरिहत परमा"मा है; वहां िनम&ल होकर 'ाणyार से उस परमा"मा को 'ाƒ
होके आनि3दत हो जाते ह<।।१।।
अ^यादधािम सिमधम«े Ëतपते "विय ।
Ëत€ ~Zां चोपैमी3धे "वा दीिzतो अहम् ।।१।।
-यजुव·दे अ—याये २०। म3• २४।।
वान'Hथ को उिचत है jक-म< अि« मO होम कर दीिzत होकर Ëत, स"याचरण
और ~Zा को 'ाƒ होऊं-ऐसी इ¸छा करके वान'Hथ हो नाना 'कार कR
तपtया&, स"संग, योगा^यास, सुिवचार से Xान और पिव•ता 'ाƒ करे ।
पtात् जब सं3यास>हण कR इ¸छा हो तब ¬ी को पु•O के पास भेज देवे jफर
सं3यास >हण करे ।
इित संzेपेण वान'Hथिविधः।
;;;
अथ सं3यासिविधः
वनेषु च िवÆ"यैवं तृतीयं भागमायुषः।
चतुथ&मायुषो भागं "यe"वा संगान् पWरËजेत्।। मनु०।।
इस 'कार वनi मO आयु का तीसरा भाग अथा&त् पचासवO वष& से पचहsरवO वष&
पय&3त वान'Hथ होके आयु के चौथे भाग मO संगi को छोड़ के पWरËाट् अथा&त्
सं3यासी हो जावे।
('-) गृहा~म और वान'Hथा~म न करके -सं3यासा~म करे उस को पाप होता
है वा नहc ?
(उsर) होता है और नहc भी होता।
('-) यह दो 'कार कR बात eयi कहते हो?
(उsर) दो 'कार कR नहc, eयijक जो बाqयावHथा मO िवरž हो कर िवषयi
मO पफ़ं से वह महापापी और जो न पफ़ं से वह महापु‹या"मा स"पु˜ष है।
यदहरे व िवरजेsदहरे व 'Ëजेyनाyा गृहाyा {|चया&दव े 'Ëजेत्।।
-ये {ा|ण >3थ के वचन ह<।
िजस jदन वैरा•य 'ाƒ हो उसी jदन घर वा वन से सं3यास >हण कर लेवे।
पहले सं3यास का पz¦म कहा। और इस मO िवकqप अथा&त् वान'Hथ न करे ,
गृहHथा~म ही से सं3यास >हण करे और तृतीय पz है jक जो पूण& िवyान्
िजतेि3¥य िवषय भोग कR कामना से रिहत परोपकार करने कR इ¸छा से युž
पु˜ष हो, वह {|चया&~म ही से सं3यास लेवे । और वेदi मO भी ‘यतयः
{ा|णHय िवजानतःष् इ"याjद पदi से सं3यास का िवधान है। पर3तु-
नािवरतो दुtWरता–ाशा3तो नासमािहतः।
नाशा3तमानसो वािप 'Xानेनैनमा¹ुयात्।। -कठन वqली २। मं० २४।।
जो दुराचार से पृथÀफ़ नहc, िजसको शाि3त नहc, िजस का आ"मा योगी नहc
और िजस का मन शा3त नहc है, वह सं3यास ले के भी 'Xान से परमा"मा को
'ाƒ नहc होता। इसिलए-
य¸छेyाàनसी 'ाXHत‡¸छेद ् Xान आ"मिन।
Xानमा"मिन महित िनय¸छेs‡¸छे¸छा3त आ"मिन।।
-कठन वqली ३। मं० १३।।
सं3यासी बुिZमान् वाणी और मन को अधम& से रोके । उन को Xान और आ"मा
मO लगावे और उस Xान, Hवा"मा को परमा"मा मO लगावे और उस िवXान को
शा3तHव’प आ"मा मO िHथर करे ।
परीˆय लोकान् कम&िचतान् {ा|णो िनव·दमाया–ाH"यकृ तः कृ तेन।
तिyXानाथ¶ स गु˜मेवािभग¸छेत् सिम"पािणः ~ोि•यं {|िन¼म्।।
-मु‹ड० ख‹ड २। मं० १२।।
सब लौjकक भोगi को कम& से सि€त gए देख कर {ा|ण अथा&त् सं3यासी
वैरा•य को 'ाƒ होवे। eयijक अकृ त अथा&त् न jकया gआ परमा"मा कृ त अथा&त्
के वल कम& से 'ाƒ नहc होता। इसिलये कु छ अप&ण के अथ& हाथ मO ले के वेदिवत्
और परमे5र को जानने वाले गु˜ के पास िवXान के िलये जावे। जाके सब
स3देहi कR िनवृिs करे । पर3तु सदा इन का संग छोड़ देवे jक जो-
अिव‡ायाम3तरे वs&मानाः Hवयं धीराः पि‹डत›म3यमानाः।
जघं3यमानाः पWरयि3त मूढा अ3धेनैव नीयमाना यथा3धाः।।१।।
अिव‡ायां बgधा वs&माना वयं कृ ताथा& इ"यिभम3यि3त बालाः।
य"क“मणो न 'वेदयि3त रागाsेनातुराः zीणलोकाúयव3ते।।२।।
-मु‹ड० १। ख‹ड २। मं० ८। ९।।
जो अिव‡ा के भीतर खेल रहे, अपने को धीर और पि‹डत मानते ह<, वे नीच
गित को जानेहारे मूढ़ जैसे अ3धे के पीछे अ3धे दुदश
& ा को 'ाƒ होते ह< वैसे दुःखi
को पाते ह<।।१।। जो बgधा अिव‡ा मO रमण करने वाले बालबुिZ हम कृ ताथ&
ह< ऐसा मानते ह<, िजस को के वल कम&का‹डी लोग राग से मोिहत होकर नहc
जान और जना सकते, वे आतुर होके ज3म मरण’प दुःख मO िगरे रहते ह<।।२।।
इसिलये-
वेदा3तिवXानसुिनिtताथा&ः सं3यासयोगा‡तयः शुZसÓवाः।
ते {|लोके षु परा3तकाले परामृताः पWरमु¸यि3त सव·।।
-मु‹ड० ३ । ख‹ड २। मं० ६।।
जो वेदा3त अथा&त् परमे5र 'ितपादक वेदम3•O के अथ&Xान और आचार मO
अ¸छे 'कार िनिtत सं3यासयोग से शुZा3तःकरण सं3यासी होते ह<, वे
परमे5र मO मुिž सुख को 'ाƒ हो; भोग के पtात् जब मुिž मO सुख कR अविध
पूरी हो जाती है तब वहां से छू ट कर संसार मO आते ह<। मुिž के िवना दुःख
का नाश नहc होता। eयijक-
न सशरीरHय सतः ि'याि'ययोरपहितरH"यशरीरं वाव स3तं न ि'याि'ये
Hपृशतः।। -छा3दोन।।
जो देहधारी है वह सुख दुःख कR 'ािƒ से पृथÀफ़ कभी नहc रह सकता और जो
शरीररिहत जीवा"मा मुिž मO सव&aापक परमे5र के साथ शुZ होकर रहता
है, तब उस को सांसाWरक सुख दुःख 'ाƒ नहc होता। इसिलये-
लोकै षणायाt िवsैषणायाt पु•ैषणायाtो"थायाथ भैzचय¶ चरि3त।।
-शत० कां० १४।।
लोक मO 'ित¼ा वा लाभ धन से भोग वा मा3य पु•jद के मोह से अलग हो के
सं3यासी लोग िभzुक हो कर रात jदन मोz के साधनi मO त"पर रहते ह<।
'ाजाप"यां िन’ÊयेÒष्ट तHयां सव&वेदसं g"वा {ा|णः 'Ëजेत्।।१।।
-यजुव·द{ा|णे।।
'ाजाप"यां िन’Êयेि… सव&वेदसदिzणाम्।
आ"म3य«ी3समारोÊय {ा|णः 'वजेद ् गृहात्।।१।।
यो दÓवा सव&भूते^यः 'Ëज"यभयं गृहात्।
तHय तेजोमया लोका भवि3त {|वाjदनः।।२।। मनु०।।
'जापित अथा&त् परमे5र कR 'ािƒ के अथ& इि… अथा&त् यX करके उस मO
यXोपवीत िशखाjद िच§नi को छोड़ आहवनीयाjद पांच अि«यi को 'ाण,
अपान, aान, उदान और समान इन पांच 'ाणi मO आरोपण करके {ा|ण
{|िवत् घर से िनकल कर सं3यासी हो जावे।।१।। जो सब भूत 'ािणमा• को
अभयदान देकर घर से िनकल के सं3यासी होता है उस {|वादी अथा&त्
परमे5र 'कािशत वेदोž धमा&jद िव‡ाu के उपदेश करने वाले सं3यासी के
िलये 'काशमय अथा&त् मुिž का आन3दHव’प लोक 'ाƒ होता है।।२।।
('-) सं3यािसयi का eया धम& है।
(उsर) धम& तो पzपातरिहत 3यायाचरण, स"य का >हण, अस"य का
पWर"याग, वेदोž ई5र कR आXा का पालन, परोपकार, स"यभाषणाjद लzण
सब आ~िमयi का अथा&त् सब मनु‘यमा• का एक ही है, पर3तु सं3यासी का
िवशेष धम& यह है jक-
दृि…पूतं 3यसे"पादं व¬पूतं जलं िपबेत्।
स"यपूतां वदेyाचं मनःपूतं समाचरे त्।।१।।
•फ़ु ¾—य3तं न 'ित•फ़ु —येदा•फ़ु …ः कु शलं वदेत्।
सƒyारावकRणा¶ च न वाचमनृतां वदेत्।।२।।
अ—या"मरितरासीनो िनरपेzो िनरािमषः।
आ"मनैव सहायेन सुखाथŠ िवचरे jदह।।३।।
eलृƒके शनखŸम~ुः पा•ी द‹डी कु सु›भवान्।
िवचरे ि–यतो िन"यं सव&भूता3यपीडयन्।।४।।
इि3¥याणां िनरोधेन रागyेषzयेण च।
अिहसया च भूतानाममृत"वाय कqपते।।५।।
दूिषतोऽिप चरे Zम¶ य• त•~मे रतः।
समः सव·षु भूतेषु न Òलगं धम&कारणम्।।६।।
पफ़लं कतकवृzHय य‡Êय›बु'सादकम्।
न नाम>हणादेव तHय वाWर 'सीदित।।७।।
'ाणायामा {ा|णHय •योऽिप िविधव"कृ ताः।
aाÆित'णवैयु&žा िवXेयं परमं तपः।।८।।
दÉ3ते —मायमानानां धातूनां िह यथा मलाः।
तथेि3¥याणां दÉ3ते दोषाः 'ाणHय िन>हात्।।९।।
'ाणायामैदह & Ö
े ोषान् धारणािभt jकिqवषम्।
'"याहारे ण संसगा&न् —यानेनानी5रान् गुणान्।।१०।।
उ0ावचेषु भूतेषु दुX·यामकृ ता"मिभः।
—यानयोगेन स›पŸयेद ् गितमHया3तरा"मनः।।११।।
अिहसयेि3¥यासंगैवÄjदकै tैव क›म&िभः।
तपसtरणैtो>ैHसाधय3तीह त"पदम्।।१२।।
यदा भावेन भवित सव&भावेषु िनःHपृहः।
तदा सुखमवा¹ोित 'े"य चेह च शा5तम्।।१३।।
चतु“भरिप चैवैतै“न"यमा~िमिभ“yजैः।
दशलzणको धम&ः सेिवतaः 'य¢तः।।१४।।
धृितः zमा दमोऽHतेयं शौचिमि3¥यिन>हः।
धीि◌व&‡ा स"यम•फ़ोधो दशकं धम&लzणम्।।१५।।
अनेन िविधना सवा¶H"यe"वा संगाÃछनैः शनैः।
सव&y3yिविनमु&žो {|‹येवावित¼ते।।१६।। मनु० अ० ६।।
जब सं3यासी माग& मO चले तब इधर-उधर न देख कर नीचे पृिथवी पर दृि… रख
के चले। सदा व¬ से छान कर जल पीये, िनर3तर स"य ही बोले, सव&दा मन
से िवचार के स"य का >हण कर अस"य को छोड़ देवे।।१।।
जब कहc उपदेश वा संवादाjद मO कोई सं3यासी पर ¦ोध करे अथवा िन3दा
करे तो सं3यासी को उिचत है jक उस पर आप ¦ोध न करे jक3तु सदा उसके
कqयाणाथ& उपदेश ही करे और एक मुख के , दो नािसका के , दो आँख के और
दो कान के िछ¥i मO िबखरी gई वाणी को jकसी कारण िम•या कभी न
बोले।।२।।
अपने आ"मा और परमा"मा मO िHथर अपेzा रिहत म‡ मांसाjद व“जत होकर,
आ"मा ही◌े के सहाय से सुखाथŠ होकर इस संसार मO धम& और िव‡ा के बढ़ाने
मO उपदेश के िलये सदा िवचरता रहै।।३।।
के श, नख, डाढ़ी, मूछ ँ का छेदन करवावे। सु3दर पा•, द‹ड और कु सु›भ आjद
से रं गे gए व¬O को >हण करके िनिtता"मा सब भूतi को पीड़ा न देकर सव&•
िवचरे ।।४।।
इि3¥यi को अधमा&चरण से रोक, राग-yेष को छोड़, सब 'ािणयi से िनवÄर
वs&कर मोz के िलये साम•य& बढ़ाया करे ।।५।।
कोई संसार मO उसको दूिषत वा भूिषत करे तो भी िजस jकसी आ~म मO वs&ता
gआ पु˜ष अथा&त् सं3यासी सब 'ािणयi मO पzपातरिहत होकर Hवयं धमा&"मा
और अ3यi को धमा&"मा करने मO 'य¢ jकया करे । और यह अपने मन मO िनिtत
जाने jक द‹ड, कम‹डलु और काषायव¬ आjद िच§न धारण धम& का कारण
नहc है। सब मनु‘याjद 'ािणयi कR स"योपदेश और िव‡ादान से उ–ित करना
सं3यासी का मुwय कम& है।।६।।
eयijक य‡िप िनम&ली वृz का पफ़ल पीस के गदरे जल मO डालने से जल का
शोधक होता है, तदिप िवना डाले उसके नामकथन वा ~वणमा• से उसका
जल शुZ नहc हो सकता।।७।।
इसिलये {ा|ण अथा&त् {|िवत् सं3यासी को उिचत है jक uकारपूव&क
सƒaाÆितयi से िविधपूव&क 'ाणायाम िजतनी शिž हो उतने करे । पर3तु
तीन से तो 3यून 'ाणायाम कभी न करे , यही सं3यासी का परमतप है।।८।।
eयijक जैसे अि« मO तपाने और गलाने से धातुu के मल न… हो जाते ह<, वैसे
ही◌े 'ाणi के िन>ह से मन आjद इि3¥यi के दोष, भHमीभूत होते ह<।।९।।
इसिलये सं3यासी लोग िन"य'ित 'ाणायामi से आ"मा अ3तःकरण और
इि3¥यi के दोष, धारणाu से पाप, '"याहार से संगदोष, —यान से अनी5र के
गुणi अथा&त् हष& शोक और अिव‡ाjद जीव के दोषi को भHमीभूत करO ।।१०।।
इसी —यानयोग से जो अयोगी अिवyानi के दुःख से जानने यो•य छोटे बड़े
पदाथŽ मO परमा"मा कR aािƒ उसको और अपने आ"मा और अ3तया&मी
परमे5र कR गित को देखे।।११।।
सब भूतi से िनवÄर, इि3¥यi के दु… िवषयi का "याग, वेदोž कम& और अ"यु>
तपtरण से संसार मO मोzपद को पूवªž सं3यासी ही िसZ कर और करा
सकते ह<; अ3य नहc।।१२।।
जब सं3यासी सब भावi मO अथा&त् पदाथŽ मO िनःHपृह कांzारिहत और सब
बाहर भीतर के aवहारi मO भाव से पिव• होता है, तभी इस देह मO और मरण
पाके िनर3तर सुख को 'ाƒ होता है।।१३।।
इसिलये {|चारी, गृहHथ, वान'Hथ और सं3यािसयi को यो•य है jक 'य¢ से
दश लzणयुž िनóिलिखत धम& का सेवन िन"य करO ।।१४।।
पहला लzण-(धृित) सदा धैय& रखना। दूसरा-(zमा) जो jक िन3दा Hतुित
मानापमान हािनलाभ आjद दुःखi मO भी सहनशील रहना। तीसरा-(दम) मन
को सदा धम& मO 'वृs कर अधम& से रोक देना अथा&त् अधम& करने कR इ¸छा भी
न उठे । चौथा-(अHतेय) चोरी-"याग अथा&त् िवना आXा वा छल कपट
िव5ासघात वा jकसी aवहार तथा वेदिव˜Z उपदेश से परपदाथ& का >हण
करना चोरी और उस को छोड़ देना साgकारी कहाती है। पांचवां-(शौच) राग-
yेष पzपात छोड़ के भीतर और जल मृिsका माज&न आjद से बाहर कR
पिव•ता रखनी। छठा-(इि3¥यिन>ह) अधमा&चरणi से रोक के इि3¥यi को धम&
मO ही सदा चलाना। सातवां-(धीः) मादक¥a बुिZनाशक अ3य पदाथ& दु…i का
संग आलHय 'माद आjद को छोड़ के ~े¼ पदाथŽ का सेवन स"पु˜षi का संग
योगा^यास धमा&चरण {|चय& आjद शुभकमŽ से बुिZ का बढ़ाना। आठवां-
(िव‡ा) पृिथवी से लेके परमे5र पय&3त यथाथ&Xान और उन से यथायो•य
उपकार लेना, स"य जैसा आ"मा मO वैसा मन मO, जैसा मन मO वैसा वाणी मO,
जैसा वाणी मO वैसा कम& मO वs&ना िव‡ा, इससे िवपरीत अिव‡ा है। नववां-
(स"य) जो पदाथ& जैसा हो उसको वैसा ही◌े समझना वैसा ही बोलना और
वैसा ही करना भी। तथा दशवां-(अ¦ोध) ¦ोधाjद दोषi को छोड़के शा3"याjद
गुणi का >हण करना धम& का लzण है। इस दश लzणयुž पzपातरिहत
3यायाचरण धम& का सेवन चारi आ~म वाले करO और इसी वेदोž धम& ही मO
आप चलना और दूसरi को समझा कर चलाना सं3यािसयi का िवशेष धम&
है।।१५।।
इसी 'कार से धीरे -धीरे सब संगदोषi को छोड़ हष& शोकाjद सब y3yi से
िवमुž होकर सं3यासी {| ही मO अविHथत होता है। सं3यािसयi का मुwय कम&
यही है jक सब गृहHथाjद आ~मi को सब 'कार से aवहारi का स"य िनtय
करा अधम& aवहारi से छु ड़ा सब संशयi का छेदन कर स"य धम&युž aवहारi
मO 'वृs कराया करO ।।१६।।
('-) सं3यास>हण करना {ा|ण ही का धम& है वा zि•याjद का भी?
(उsर) {ा|ण ही को अिधकार है, eयijक जो सब वणŽ मO पूण& िवyान् धा“मक
परोपकारि'य मनु‘य है उसी का {ा|ण नाम है। िवना पूण& िव‡ा के धम&
परमे5र कR िन¼ा और वैरा•य के सं3यास >हण करने मO संसार का िवशेष
उपकार नहc हो सकता। इसीिलये लोक~ुित है jक {ा|ण को सं3यास का
अिधकार है, अ3य को नहc यह मनु का 'माण भी है-
एष वोऽिभिहतो धमª {ा|णHय चतु“वधः।
पु‹योऽzयपफ़लः 'े"य राजधम¶ िनबोधत।। मनु०।।
यह मनु जी महाराज कहते ह< jक हे ऋिषयो! यह चार 'कार अथा&त् {|च‰य&,
गृहHथ, वान'Hथ और सं3यासा~म करना {ा|ण का धम& है। यहां वs&मान मO
पु‹यHव’प और शरीर छोड़े पtात् मुिž’प अzय आन3द का देने वाला
सं3यास धम& है। इस के आगे राजाu का धम& मुझ से सुनो। इस से यह िसZ
gआ jक सं3यास>हण का अिधकार मुwय करके {ा|ण का है और zि•याjद
का {|चया&~म है।
('-) सं3यास>हण कR आवŸयकता eया है?
(उsर) जैसे शरीर मO िशर कR आवŸयकता है वैसे ही◌े आ~मi मO सं3यासा~म
कR आवŸयकता है। eयijक इसके िवना िव‡ा धम& कभी नहc बढ़ सकते और
दूसरे आ~मi को िव‡ा>हण गृहकृ "य और तपtया&jद का स›ब3ध होने से
अवकाश बgत कम िमलता है। पzपात छोड़ कर वs&ना दूसरे आ~मi को
दु‘कर है। जैसा सं3यासी सव&तोमुž होकर जगत् का उपकार करता है, वैसा
अ3य आ~मी नहc कर सकता। eयijक सं3यासी को स"यिव‡ा से पदाथŽ के
िवXान कR उ–ित का िजतना अवकाश िमलता है उतना अ3य आ~मी को नहc
िमल सकता। पर3तु जो {|चय& से सं3यासी होकर जगत् को स"यिशzा करके
िजतनी उ–ित कर सकता है उतनी गृहHथ वा वान'Hथ आ~म करके
सं3यासा~मी नहc कर सकता।
('-) सं3यास >हण करना ई5र के अिभ'ाय से िव˜Z है eयijक ई5र का
अिभ'ाय मनु‘यi कR बढ़ती करने मO है। जब गृहा~म नहc करे गा तो उस से
स3तान ही न हiगे। जब सं3यासा~म ही मुwय है और सब मनु‘य करO तो मनु‘यi
का मूल¸छेदन हो जायेगा।
(उsर) अ¸छा, िववाह करके भी बgतi के स3तान नहc होते अथवा होकर
शीÎ न… हो जाते ह< jफर वह भी ई5र के अिभ'ाय से िव˜Z करने वाला
gआ। जो तुम कहो jक
‘य¢े कृ ते यjद न िस—यित कोऽ• दोषः।’ यह jकसी किव का वचन है।
(अथ&) जो य¢ करने से भी काय& िसZ न हो तो इस मO eया दोष? अथा&त् कोई
भी नहc। तो हम तुम से पूछते ह< jक गृहा~म से बgत स3तान होकर आपस मO
िव˜Zाचरण कर लड़ मरO तो हािन jकतनी बड़ी होती है। समझ के िवरोध से
लड़ाई बgत होती है। जब सं3यासी एक वेदोž धम& के उपदेश से परHपर 'ीित
उ"प– करावेगा तो लाखi मनु‘यi को बचा देगा। सहêi गृहHथ के समान
मनु‘यi कR बढ़ती करे गा। और सब मनु‘य सं3यास>हण कर ही नहc सकते।
eयijक सब कR िवषयासिž कभी नहc छू ट सके गी। जो-जो सं3यािसयi के
उपदेश से धा“मक मनु‘य हiगे वे सब जानो सं3यासी के पु• तुqय ह<।
('-) सं3यासी लोग कहते ह< jक हम को कु छ कs&a नहc। अ– व¬ लेकर
आन3द मO रहना, अिव‡ा’प संसार से माथाप0ी eयi करना? अपने को {|
मानकर स3तु… रहना। कोई आकर पूछे तो उस को भी वैसा ही◌े उपदेश करना
jक त ◌ू भी ब§¨ ह।◌ै तझु को पाप पु‹य नहc लगता eयोjक शीतो‘ण शरीर,
zुधा तृषा 'ाण और सुख दुःख मन का धम& है। जगत् िम•या और जगत् के
aवहार भी सब किqपत अथा&त् झूठे ह<◌े इसिलये इस मO पफ़ं सना बुिZमानi
का काम नहc। जो कु छ पाप पु‹य होता है वह देह और इि3¥यi का धम& है
आ"मा का नहc। इ"याjद उपदेश करते ह< और आपने कु छ िवलzण सं3यास का
धम& कहा है। अब हम jकस कR बात स0ी और jकस कR झूठी मानO ?
(उsर) eया उन को अ¸छे कम& भी कs&a नहc? देखो-‘वैjदकै tैव कम&िभः’
मनु जी ने वैjदक कम& जो धम&युž स"य कम& ह<, सं3यािसयi को भी अवŸय
करना िलखा है। eया भोजन छादनाjद कम& वे छोड़ सकO गे? जो ये कम& नहc
छू ट सकते तो उsम कम& छोड़ने से वे पितत और पापभागी नहc हiगे? जब
गृहHथi से अ– व¬jद लेते ह< और उन का '"युपकार नहc करते तो eया वे
महापापी नहc हiगे ? जैसे आंख से देखना कान से सुनना न हो तो आंख और
कान का होना aथ& है, वैसे ही जो सं3यासी स"योपदेश और वेदाjद स"यशा¬O
का िवचार, 'चार नहc करते तो वे भी जगत् मO aथ& भार’प ह<। और जो
अिव‡ा ’प संसार से माथाप0ी eयi करना आjद िलखते और कहते ह< वैसे
उपदेश करने वाले ही◌े िम•या’प और पाप के बढ़ाने हारे पापी ह<। जो कु छ
शरीराjद से कम& jकया जाता है वह आ"मा ही का और उस के पफ़ल का भोगने
वाला भी आ"मा है।
जो जीव को {| बतलाते ह< वे अिव‡ा िन¥ा मO सोते ह<। eयijक जीव अqप,
अqपX और {| सव&aापक सव&X है । {| िन"य, शुZ, बुZ, मुžHवभावयुž
है। और जीव कभी बZ कभी मुž रहता है। {| को सव&aापक सव&X होने से
±म वा अिव‡ा कभी नहc हो सकती। और जीव को कभी िव‡ा और कभी
अिव‡ा होती है। {| ज3ममरण दुःख को कभी नहc 'ाƒ होता है और जीव
'ाƒ होता है। इसिलये वह उनका उपदेश िम•या है।
('-) ‘सं3यासी सव&क›म&िवनाशी’ और अि« तथा धातु को Hपश& नहc करते।
यह बात स0ी है वा नहc?
(उsर) नहc। ‘स›यङ् िन"यमाHते यिHमन् यyा स›यङ् 3यHयि3त दुःखािन
कमा&िण येन स सं3यासः, स 'शHतो िव‡ते यHय स सं3यासी’। जो {| और
उसकR आXा मO उपिव… अथा&त् िHथत और िजस से दु… कमŽ का "याग jकया
जाय सं3यास, वह उsम Hवभाव िजस मO हो वह सं3यासी कहाता है। इस मO
सुकम& का कsा& और दु… कमŽ का िवनाश करने वाला सं3यासी कहाता है।
('-) अ—यापन और उपदेश गृहHथ jकया करते ह<, पुनः सं3यासी का eया
'योजन ?
(उsर) स"योपदेश सब आ~मी करO और सुनO पर3तु िजतना अवकाश और
िन‘पzपातता सं3यासी को होती है उतनी गृहHथi को नहc। हाँ ! जो {ा|ण
ह< उनका यही काम है jक पु˜ष पु˜षi को और ¬ी ि¬यi को स"योपदेश और
पढ़ाया करO । िजतना ±मण का अवकाश सं3यासी को िमलता है उतना गृहHथ
{ा|णाjदकi को कभी नहc िमल सकता। जब {ा|ण वेदिव˜Z आचरण करO
तब उनका िनय3ता सं3यासी होता है। इसिलये सं3यास का होना उिचत है।
('-) ‘एकराÒ• वसेद ् >ामे’ इ"याjद वचनi से सं3यासी को एक• एकराि•मा•
रहना अिधक िनवास न करना चािहये।
(उsर) यह बात थोड़े से अंश मO तो अ¸छी है jक एक• वास करने से जगत् का
उपकार अिधक नहc हो सकता और Hथाना3तर का भी अिभमान होता है।
राग, yेष भी अिधक होता है। पर3तु जो िवशेष उपकार एक• रहने से होता
हो तो रहे। जैसे जनक राजा के यहां चार-चार महीने तक प€िशखाjद और
अ3य सं3यासी jकतने ही वषŽ तक िनवास करते थे और ‘एक• न रहना’ यह
बात आजकल के पाख‹डी स›'दािययi ने बनाई है। eयijक जो सं3यासी एक•
अिधक रहेगा तो हमारा पाख‹ड खि‹डत होकर अिधक न बढ़ सके गा।
('-) यतीनां का€नं द‡ाsा›बूलं {|चाWरणाम्।
चौराणामभयं द‡ा"स नरो नरकं Ëजेत्।।
इ"याjद वचनi का अिभ'ाय यह है jक सं3यािसयi को जो सुवण& दान दे तो
दाता नरक को 'ाƒ होवे।
(उsर) यह बात भी वणा&~मिवरोधी स›'दायी और Hवाथ&िस3धु वाले
पौरािणकi कR कqपी gई है, eयijक सं3यािसयi को धन िमलेगा तो वे हमारा
ख‹डन बgत कर सकO गे और हमारी हािन होगी तथा वे हमारे अधीन भी न
रहOगे। और जब िभzाjद aवहार हमारे आधीन रहेगा तो डरते रहOगे। जब मूख&
और Hवा“थयi को दान देने मO अ¸छा समझते ह< तो िवyान् और परोपकारी
सं3यािसयi को देने मO कु छ भी दोष नहc हो सकता। देखो-
िविवधािन च र¢ािन िविवžे षूपपादयेत्।। मनु०।।
नाना 'कार के र¢ सुवणा&jद धन (िविवž) अथा&त् सं3यािसयi को देवO और
वह ºोक भी अनथ&क है। eयijक सं3यासी को सुवण& देने से यजमान नरक को
जावे तो चांदी, मोती, हीरा आjद देने से Hवग& को जायेगा।
('-) यह पि‹डत जी इस का पाठ बोलते समय भूल गये। यह ऐसा है jक
‘यितहHते धनं द‡ात्’ अथा&त् जो सं3यािसयi के हाथ मO धन देता है वह नरक
मO जाता है।
(उsर) यह भी वचन अिवyान् के कपोलकqपना से रचा है। eयijक जो हाथ
मO धन देने से दाता नरक को जाय तो पग पर धरने वा गठरी बांध कर देने से
Hवग& को जायेगा। इसिलए ऐसी कqपना मानने यो•य नहc। हां ! यह बात तो
है jक जो सं3यासी योगzेम से अिधक रeखेगा तो चोराjद से पीिड़त और
मोिहत भी हो जायगा पर3तु जो िवyान् है वह अयुž aवहार कभी न करे गा,
न मोह मO पफ़ं सेगा। eयijक वह 'थम गृहा~म मO अथवा {|चय& मO सब भोग
कर वा सब देख चुका है और जो {|चय& से होता है वह पूण& वैरा•ययुž होने
से कभी कहc नहc पफ़ं सता।
('-) लोग कहते ह< jक ~ाZ मO सं3यासी आवे वा िजमावे तो उस के िपतर
भाग जायO और नरक मO िगरO ।
(उsर) 'थम तो मरे gए िपतरi का आना और jकया gआ ~ाZ मरे gए िपतरi
को पgंचना ही अस›भव, वेद और युिžिव˜Z होने से िम•या है। और जब आते
ही नहc तो भाग कौन जायOगे? जब अपने पाप पु‹य के अनुसार ई5र कR
aवHथा से मरण के पtात् जीव ज3म लेते ह< तो उन का आना कै से हो सकता
है? इसिलये यह भी बात पेटाथŠ पुराणी और वैरािगयi कR िम•या कqपी gई
है। हां यह तो ठीक है jक जहां सं3यासी जायOगे वहां यह मृतक~ाZ करना
वेदाjद शा¬O से िव˜Z होने से पाख‹ड दूर भाग जायगा।
('-) जो {|चय& से सं3यास लेवेगा उस का िनवा&ह कWठनता से होगा और
काम का रोकना भी अित कWठन है। इसिलए गृहा~म वान'Hथ होकर जब वृZ
हो जाय तभी सं3यास लेना अ¸छा है।
(उsर) जो िनवा&ह न कर सके , इि3¥यi को न रोक सके , वह {|चय& से सं3यास
न लेवे। पर3तु जो रोक सके वह eयi न लेवे? िजस पु˜ष ने िवषय के दोष और
वीय&संरzण के गुण जाने ह< वह िवषयासž कभी नहc होता। और उस का
वी‰य& िवचाराि« का इ3धनवत् है अथा&त् उसी मO aय हो जाता है। जैसे वै‡
और औषधi कR आवŸयकता रोगी के िलये होती है वैसी नीरोगी के िलये नहc।
इसी 'कार िजस पु˜ष वा ¬ी को िव‡ा धम&वृिZ और सब संसार का उपकार
करना ही 'योजन हो वह िववाह न करे । जैसे प€िशखाjद पु˜ष और गागŠ
आjद ि¬यां gई थc। इसिलये सं3यासी होना अिधकाWरयi को उिचत है। और
जो अनिधकारी सं3यास >हण करे गा तो आप डू बेगा औरi को भी डु बावेगा।
जैसे ‘स¨ाट् ’ च¦वतŠ राजा होता है वैसे ‘पWरËाट् ’ सं3यासी होता है। '"युत
राजा अपने देश मO वा Hवस›बि3धयi मO स"कार पाता है और सं3यासी सव&•
पूिजत होता है।
िवyÓवं च नृप"वं च नैव तुqयं कदाचन।
Hवदेशे पू°यते राजा िवyान् सव&• पू°यते।।१।।
-यह चाणeय-नीितशा¬ का ºोक है।
िवyान् और राजा कR कभी तुqयता नहc हो सकती, eयijक राजा अपने रा°य
ही मO मान और स"कार पाता है और िवyान् सव&• मान और 'ित¼ा को 'ाƒ
होता है। इसिलये िव‡ा पढ़ने, सुिशzा लेने और बलवान् होने आjद के िलये
{|च‰य&, सब 'कार के उsम aवहार िसZ करने के अथ& गृहHथ; िवचार
—यान और िवXान बढ़ाने तपtया& करने के िलये वान'Hथ; और वेदाjद
स"यशा¬O का 'चार, धम& aवहार का >हण और दु… aवहार के "याग,
स"योपदेश और सब को िनःस3देह करने आjद के िलये सं3यासा~म है। पर3तु
जो इस सं3यास के मुwय धम& स"योपदेशाjद नहc करते वे पितत और
नरकगामी ह< इस से सं3यािसयi को उिचत है jक सदा स"योपदेश
शंकासमाधान, वेदाjद स"यशा¬O का अ—यापन और वेदोž धम& कR वृिZ 'य¢
से करके सब संसार कR उ–ित jकया करO ।
('-) जो सं3यासी से अ3य साधु, वैरागी, गुसाâ, खाखी आjद ह< वे भी
सं3यासा~म मO िगने जायOगे वा नहc ?
(उsर) नहc। eयijक उन मO सं3यास का एक भी लzण नहc। वे वेदिव˜Z माग&
मO 'वृs होकर वेद से अिधक अपने स›'दाय के आचा‰यŽ के वचन मानते और
अपने ही मत कR 'शंसा करते। िम•या 'पंच मO पफ़ं सकर अपने Hवाथ& के िलये
दूसरi को अपने-अपने मत मO पफ़ं साते ह<। सुधार करना तो दूर रहा, उस के
बदले मO संसार को बहका कर अधोगित को 'ाƒ कराते और अपना 'योजन
िसZ करते ह<। इसिलये इन को सं3यासा~म मO नहc िगन सकते jक3तु ये
Hवाथा&~मी तो पÙे ह<। इस मO कु छ स3देह नहc। जो Hवयं धम& मO चलकर सब
संसार को चलाते ह<, जो आप और सब संसार को इस लोक अथा&त् वs&मान
ज3म मO, परलोक अथा&त् दूसरे ज3म मO Hवग& अथा&त् सुख का भोग करते कराते
ह<। वे ही धमा&"मा जन सं3यासी और महा"मा ह<।
यह संzेप मO सं3यासा~म कR िशzा िलखी । अब इस के आगे राज- 'जाधम&
िवषय िलखा जाएगा ।
इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमकृ ते स"याथ&'काशे
सुभाषािवभूिषते वान'Hथसं3यासा~मिवषये
प€मः समुqलासः स›पूण&ः।।५।।
अथ ष¼समुqलासार›भः
अथ राजधमा&न् aाwयाHयामः
राजधमा&न् 'वˆयािम यथावृsो भवे–ृपः।
स›भवt यथा तHय िसिZt परमा यथा।।१।।
{ा|ं 'ाƒेन संHकारं zि•येण यथािविध।
सव&HयाHय यथा3यायं कs&aं पWररzणम्।।२।। मनु०।।
अब मनु जी महाराज ऋिषयi से कहते ह< jक चारi वण& और चारi आ~मi के
aवहार कथन के पtात् राजधमŽ को कहOगे jक िजस 'कार का राजा होना
चािहये और जैसे इस के होने का स›भव तथा जैसे इस को परमिसिZ 'ाƒ
होवे उस को सब 'कार कहते ह<।।१।। jक जैसा परम िवyान् {ा|ण होता है
वैसा िवyान् सुिशिzत होकर zि•य को यो•य है jक इस सब रा°य कR रzा
यथावत् करे ।।२।। उस का 'कार यह है-
•ीिण राजाना िवदथे पु’िण पWर िव5ािन भष्◌ू◌ाथः सदां िस
।।
-¹ मं० ३। सू० ३८। मं० ६।।
ई5र उपदेश करता है jक (राजाना) राजा और 'जा के पु˜ष िमल के (िवदथे)
सुख'ािƒ और िवXानवृिZकारक राजा 'जा के स›ब3ध’प aवहार मO (•ीिण
सदांिस) तीन सभा अथा&त् िव‡ा‰य&सभा, धमा&‰य&सभा, राजा‰य&सभा िनयत
करके (पु’िण) बgत 'कार के (िव5ािन) सम> 'जास›ब3धी मनु‘याjद
'ािणयi को (पWरभूषथः) सब ओर से िव‡ा, Hवात3ûय, धम&, सुिशzा और
धनाjद से अलंकृत करO ।
तं सभा च सिमितt सेना च ।।१।।
-अथव&न कां० १५। अनु० २। व० ९। मं० २।।
स^य सभां मे पािह ये च स^याः सभासदः ।।२।।
-अथव&न कां० १९। अनु० ७। व० ५५। मं० ६।।
(तम्) उस राजधम& को (सभा च) तीनi सभा (सिमितt) सं>ामाjद कR
aवHथा और (सेना च) सेना िमलकर पालन करO ।।१।।
सभासद् और राजा को यो•य है jक राजा सब सभासदi को आXा देवे jक हे
(स^य) सभा के यो•य मुwय सभासद् तू (मे) मेरी (सभाम्) सभा कR धम&युž
aवHथा का (पािह) पालन कर और (ये च ) जो (स^याः) सभा के यो•य
(सभासदः) सभासद ह< वे भी सभा कR aवHथा का पालन jकया करO ।।२।।
इस का अिभ'ाय यह है jक एक को Hवत3• रा°य का अिधकार न देना चािहए
jक3तु राजा जो सभापित तदधीन सभा, सभाधीन राजा, राजा और सभा 'जा
के आधीन और 'जा राजसभा के आधीन रहै। यjद ऐसा न करोगे तो-
राîमेव िवŸया हि3त तHमा¥ाîी िवशं घातुकः।। िवशमेव राîाया‡ां
करोित तHमा¥ाîी िवशमिs न पु… ं पशुं म3यत इित।।१।।
-शत० कां० १३। अनु० २। {ा० ३।।
जो 'जा से Hवत3• Hवाधीन राजवग& रहै तो (राîमेव िवŸया हि3त) रा°य मO
'वेश करके 'जा का नाश jकया करे । िजसिलये अके ला राजा Hवाधीन वा
उ3मs होके (राîी िवशं घातुकः) 'जा का नाशक होता है अथा&त् (िवशमेव
राîाया‡ां करोित) वह राजा 'जा को खाये जाता (अ"य3त पीिड़त करता) है
इसिलये jकसी एक को रा°य मO Hवाधीन न करना चािहये। जैसे िसह वा
मांसाहारी Æ… पु… पशु को मार कर खा लेते ह<, वैसे (राîी िवशमिs) Hवत3•
राजा 'जा का नाश करता है अथा&त् jकसी को अपने से अिधक न होने देता,
~ीमान् को लूट खूंट अ3याय से द‹ड लेके अपना 'योजन पूरा करे गा। इसिलये-
इ3¥ो जयाित न परा जयाता अिधराजो राजसु राजयातै ।
चकृ& "य ईüो व3‡tोपस‡ो नमHयो भवेह ।।
-अथव&न कां० ६। अनु० १०। व० ९८। म० १।।
हे मनु‘यो ! जो (इह) इस मनु‘य के समुदाय मO (इ3¥ः) परम ऐ5य& का कsा&
श•ुu को (जयाित) जीत सके (न पराजयातै) जो श•ुu से परािजत न हो
(राजसु) राजाu मO (अिधराजः) सवªपWर िवराजमान (राजयातै) 'काशमान
हो (चकृ& "यः) सभापित होने को अ"य3त यो•य (ईüः) 'शंसनीय गुण, कम&,
Hवभावयुž (व3‡ः) स"करणीय (चोपस‡ः) समीप जाने और शरण लेने यो•य
(नमHयः) सब का माननीय (भव) होवे उसी को सभापित राजा करO ।
इमं देवाऽ असप¢ँ◌् सुव—वं महते z•य महते °यै‘¯ाय महते
जानरा°याये3¥Hयेि3¥याय ।।१।। -यजुः० अ० ९। म3• ४०।।
हे (देवाः) िवyानो राज'जाजनो तुम (इमम्) इस 'कार के पु˜ष को (महते
z•य) बड़े च¦व“त रा°य (महते °यै‘¯ाय) सब से बड़े होने (महते
जानरा°याय) बड़े-बड़े िवyानi से युž रा°य पालने और (इ3¥Hयेि3¥याय)
परम ऐ5य&युž रा°य और धन के पालन के िलये (असप¢ँ◌्सुव—वम्) स›मित
करके सव&• पzपातरिहत पूण& िव‡ा िवनययुž सब के िम• सभापित राजा
को सवा&धीश मान के सब भूगोल श•ुरिहत करो।। और-
िHथरा वः स3"वायुधा पराणुदे वीळू उत 'ित‘कभे ।
यु‘माकमHतु तिवषी पनीयसी मा म"यर्◌्◌ाHय माियनः ।।
-¹ मं० १। सू० ३९। मं० २।।
ई5र उपदेश करता है jक हे राजपु˜षो ! (वः) तु›हारे (आयुधा) आ«ेयाjद अ¬
और शतšी (तोप) भुशु‹डी (ब3दूक ) धनुष बाण करवाल (तलवार) आjद श¬
श•ुu के (पराणुद)े पराजय करने (उत 'ित‘कभे) और रोकने के िलए (वीळू )
'शंिसत और (िHथरा) दृढ़ (स3तु) हi (यु‘माकम्) और तु›हारी (तिवषी) सेना
(पनीयसी) 'शंसनीय (अHतु) होवे jक िजस से तुम सदा िवजयी होवो पर3तु
(मा म"य&Hय माियनः) जो िनि3दत अ3याय’प काम करता है उस के िलये पूव&
चीजO मत हi अथा&त् जब तक मनु‘य धा“मक रहते ह< तभी तक रा°य बढ़ता
रहता है और जब दु…ाचारी होते ह< तब न… ±… हो जाता है। महािवyानi को
िव‡ासभाऽिधकारी; धा“मक िवyानi को धम&सभाऽिधकारी, 'शंसनीय
धा“मक पु˜षi को राजसभा के सभासद् और जो उन सब मO सवा&◌ेsम गुण,
कम&, Hवभावयुž महान् पु˜ष हो उसको राजसभा का पित’प मान के सब
'कार से उ–ित करO । तीनi सभाu कR स›मित से राजनीित के उsम िनयम
और िनयमi के आधीन सब लोग वत™, सब के िहतकारक कामi मO स›मित करO ।
सव&िहत करने के िलये परत3• और धम&युž कामi मO अथा&त् जो-जो िनज के
काम ह< उन-उन मO Hवत3• रह<। पुनः उस सभापित के गुण कै से होने चािहये-
इ3¥ाऽिनलयमाका&णाम«ेt व˜णHय च।
च3¥िवsेशयोtैव मा• िनÆ&"य शा5तीः।।१।।
तप"याjद"यव0ैष चzूंिष च मनांिस च।
न चैनं भुिव शÕोित किtदÊयिभवीिzतुम्।।२।।
सोऽि«भ&वित वायुt सोऽक& ः सोमः स धम&राट् ।
स कु बेरः स व˜णः स महे3¥ः 'भावतः।।३।।
वह सभेश राजा इ3¥ अथा&त् िव‡ुत् के समान शीÎ ऐ5य&कsा&, वायु के समान
सब के 'ाणवत् ि'य और Æदय कR बात जाननेहारा, यम पzपातरिहत 3याया-
धीश के समान वs&नेवाला, सू‰य& के समान 3याय, धम&, िव‡ा का 'काशक
अ3धकार अथा&त् अिव‡ा अ3याय का िनरोधक; अि« के समान दु…i को भHम
करनेहारा, व˜ण अथा&त् बांधनेवाले के सदृश दु…i को अनेक 'कार से
बांधनेवाला, च3¥ के तुqय ~े¼ पु˜षi को आन3ददाता, धना—यz के समान
कोशi का पूण& करने वाला सभापित होवे।।१।।
जो सूय&वत् 'तापी सब के बाहर और भीतर मनi को अपने तेज से तपानेहारा,
िजस को पृिथवी मO करड़ी दृि… से देखने को कोई भी समथ& न हो।।२।।
और जो अपने 'भाव से अि«, वायु, सू‰य&, सोम, धम&'काशक, धनवZ&क, दु…i
का ब3धनकsा&, बड़े ऐ5य&वाला होवे, वही सभा—यz सभेश होने के यो•य
होवे।।३।। स0ा राजा कौन है-
स राजा पु˜षो द‹डः स नेता शािसता च सः।
चतुणा&मा~माणां च धम&Hय 'ितभूः Hमृतः।।१।।
द‹डः शािHत 'जाः सवा& द‹ड एवािभरzित।
द‹डः सुƒेषु जाग“त द‹डं धम¶ िवदुबु&धाः।।२।।
समीˆय स धृतः स›यÀफ़ सवा& रÅयित 'जाः।
असमीˆय 'णीतHतु िवनाशयित सव&तः।।३।।
दु‘येयुः सव&वणा&t िभ‡ेर3सव&सेतवः।
सव&लोक'कोपt भवेÖ‹डHय िव±मात्।।४।।
य• Ÿयामो लोिहताzो द‹डtरित पापहा।
'जाHत• न मुÉि3त नेता चे"साधु पŸयित।।५।।
तHयाgः स›'णेतारं राजानं स"यवाjदनम्।
समीˆयकाWरणं 'ाXं धम&कामाथ&कोिवदम्।।६।।
तं राजा 'णय3स›यÀफ़ ि•वग·णािभवZ&ते।
कामा"मा िवषमः zु¥ो द‹डेनैव िनह3यते।।७।।
द‹डो िह सुमहsेजो दुध&रtाकृ ता"मिभः।
धमा&िyचिलतं हि3त नृपमेव सबा3धवम्।।८।।
सोऽसहायेन मूढेन लुdधेनाकृ तबुिZना।
न शeयो 3यायतो नेतुं सžे न िवषयेषु च।।९।।
शुिचना स"यस3धेन यथाशा¬नुसाWरणा।
'णेतुं शeयते द‹डः सुसहायेन धीमता।।१०।। मनु०।।
जो द‹ड है वही पु˜ष राजा, वही 3याय का 'चारकsा& और सब का
शासनकsा&, वही चार वण& और आ~मi के धम& का 'ितभू अथा&त् जािमन
है।।१।। वही 'जा का शासनकsा& सब 'जा का रzक, सोते gए 'जाHथ मनु‘यi
मO जागता है इसी िलये बुिZमान् लोग द‹ड ही को धम& कहते ह<।।२।।
जो द‹ड अ¸छे 'कार िवचार से धारण jकया जाय तो वह सब 'जा को
आनि3दत कर देता है और जो िवना िवचारे चलाया जाय तो सब ओर से राजा
का िवनाश कर देता है।।३।।
िवना द‹ड के सब वण& दूिषत और सब मया&दा िछ–-िभ– हो जायO। द‹ड के
यथावत् न होने से सब लोगi का 'कोप हो जावे।।४।।
जहां कृ ‘णवण& रžने• भयंकर पु˜ष के समान पापi का नाश करनेहारा द‹ड
िवचरता है वहां 'जा मोह को 'ाƒ न होके आनि3दत होती है पर3तु जो द‹ड
का चलाने वाला पzपातरिहत िवyान् हो तो।।५।।
जो उस द‹ड का चलाने वाला स"यवादी, िवचार के करनेहारा, बुिZमान्, धम&,
अथ& और काम कR िसिZ करने मO पि‹डत राजा है उसी को उस द‹ड का
चलानेहारा िवyान् लोग कहते ह<।।६।।
जो द‹ड को अ¸छे 'कार राजा चलाता है वह धम&, अथ& और काम कR िसिZ
को बढ़ाता है और जो िवषय मO ल›पट, टेढ़ा, ई‘या& करनेहारा, zु¥ नीचबुिZ
3यायाधीश राजा होता है, वह द‹ड से ही◌े मारा जाता है।।७।।
जब द‹ड बड़ा तेजोमय है उस को अिवyान्, अधमा&"मा धारण नहc कर सकता।
तब वह द‹ड धम& से रिहत कु टु ›बसिहत राजा ही का नाश कर देता है।।८।।
eयijक जो आƒ पु˜षi के सहाय, िव‡ा, सुिशzा से रिहत, िवषयi मO आसž
मूढ़ है वह 3याय से द‹ड को चलाने मO समथ& कभी नहc हो सकता।।९।।
और जो पिव• आ"मा स"याचार और स"पु˜षi का संगी यथावत् नीितशा¬
के अनुकूल चलनेहारा ~े¼ पु˜षां◌े◌ं के सहाय से युž बुिZमान् है वही
3याय’पी द‹ड के चलाने मO समथ& होता है।।१०।।
इसिलये-
सैनाप"यं च रा°यं च द‹डनेतृ"वमेव च।
सव&लोकािधप"यं च वेदशा¬िवदह&ित।।१।।
दशावरा वा पWरष‡ं धम¶ पWरकqपयेत्।
ûयवरा वािप वृsHथा तं धम¶ न िवचालयेत्।।२।।
•ैिव‡ो हैतुकHतकõ नै˜žो धम&पाठकः।
•यtा~िमणः पूव· पWरष"HयाÖशावरा।।३।।
ऋ•वेदिव‡जु“व0 सामवेदिवदेव च।
ûयवरा पWरष°Xेया धम&संशयिनण&ये।।४।।
एकोऽिप वेदिवZम¶ यं aवHयेद ् िyजोsमः।
स िवXेयः परो धमª नाXानामुjदतोऽयुतैः।।५।।
अËतानामम3•णां जाितमा•ेपजीिवनाम्।
सहêशः समेतानां पWरषÓवं न िव‡ते।।६।।
यं वदि3त तमोभूता मूखा& धम&मतिyदः।
त"पापं शतधा भू"वा तyžननुग¸छित।।७।। मनु०।।
सब सेना और सेनापितयi के ऊपर रा°यािधकार, द‹ड देने कR aवHथा के सब
कायŽ का आिधप"य और सब के ऊपर वs&मान सवा&धीश रा°यािधकार इन
चारi अिधकारi मO स›पूण& वेद शा¬O मO 'वीण पूण& िव‡ावाले धमा&"मा
िजतेि3¥य सुशील जनi को Hथािपत करना चािहये अथा&त् मुwय सेनापित,
मुwय रा°यािधकारी, मुwय 3यायाधीश, 'वमान और राजा ये चार सब
िव‡ाu मO पूण& िवyान् होने चािहयO।।१।।
3यून से 3यून दश िवyानi अथवा बgत 3यून हi तो तीन िवyानi कR सभा जैसी
aवHथा करे उस धम& अथा&त् aवHथा का उqलंघन कोई भी न करे ।।२।।
इस सभा मO चारi वेद, हैतुक अथा&त् कारण अकारण का Xाता 3यायशा¬,
िन˜ž, धम&शा¬ आjद के वेsा िवyान् सभासद् हi पर3तु वे {|चारी, गृहHथ
और वान'Hथ हi तब यह सभा jक िजसमO दश िवyानi से 3यून न होने
चािहये।।३।।
और िजस सभा मO ऋ•वेद, यजुव·द, सामवेद के जानने वाले तीन सभासद् होके
aवHथा करO उस सभा कR कR gई aवHथा को भी कोई उqलंघन न करे ।।४।।
यjद एक अके ला सब वेदi का जाननेहारा िyजi मO उsम सं3यासी िजस धम&
कR aवHथा करे वही ~े¼ धम& है eयijक अXािनयi के सहêi लाखi ¦ोड़i
िमल के जो कु छ aवHथा करO उस को कभी न मानना चािहये।।५।।
जो {|चय& स"यभाषणाjद Ëत वेदिव‡ा वा िवचार से रिहत ज3ममा• से
शू¥वत् वs&मान ह< उन सहêi मनु‘यi के िमलने से भी सभा नहc कहाती।।६।।
जो अिव‡ायुž मूख& वेदi के न जाननेवाले मनु‘य िजस धम& को कहO उस को
कभी न मानना चािहये eयijक जो मूखŽ के कहे gए धम& के अनुसार चलते ह<
उनके पीछे सैकड़i 'कार के पाप लग जाते ह<।।७।।
इसिलये तीनi अथा&त् िव‡ासभा, धम&सभा और रा°यसभाu मO मूखŽ को कभी
भरती न करे । jक3तु सदा िवyान् और धा“मक पु˜षi का Hथापन करे । और सब
लोग ऐसे-
•ैिव‡े^य¬यc िव‡ां द‹डनीÒत च शा5तीम्।
आ3वीिzकþ चा"मिव‡ां वाsा&र›भाँt लोकतः।।१।।
इि3¥याणां जये योगं समाित¼ेjÖवािनशम्।
िजतेि3¥यो िह शÕोित वशे Hथापियतुं 'जाः।।२।।
दश कामसमु"थािन तथा…ौ •फ़ोधजािन च।
aसनािन दुर3तािन 'य¢ेन िववज&येत्।।३।।
कामजेषु 'सžो िह aसनेषु महीपितः।
िवयु°यतेऽथ&धमा&^यां •फ़ोधजे‘वा"मनैव तु।।४।।
मृगयाzो jदवाHव¹ः परीवादः ि¬यो मदः।
तौ‰य&ि•कं वृथाÞा च कामजो दशको गणः।।५।।
पैशु3यं साहसं ¥ोह ई‘या&सूयाथ&दष
ू णम्।
वा•द‹डजं च पा˜‘यं •फ़ोधजोऽिप गणोऽ…कः।।६।।
yयोरÊयेतयोमू&लं यं सव· कवयो िवदुः।
तं य¢ेन जयेqलोभं तœावेतावुभौ गणौ।।७।।
पानमzाः ि¬यtैव मृगया च यथा•फ़मम्।
एत"क…तमं िव‡ा0तु‘कं कामजे गणे।।८।।
द‹डHय पातनं चैव वाÀफ़पा˜‘याथ&दष ू णे।
•फ़ोधजेऽिप गणे िव‡ा"क…मेति"•कं सदा।।९।।
सƒकHयाHय वग&Hय सव&•ैवानुÒषगणः।
पूव¶ पूव¶ गु˜तरं िव‡ाãसनमा"मवान्।।१०।।
aसनHय च मृ"योt aसनं क…मु¸यते।
aस3यधोऽधो Ëजित Hवया&"यaसनी मृतः।।११।। मनु०।।
राजा और राजसभा के सभासद् तब हो सकते ह< jक जब वे चारi वेदi कR
कमªपासना Xान िव‡ाu के जाननेवालi से तीनi िव‡ा सनातन द‹डनीित
3यायिव‡ा आ"मिव‡ा अथा&त् परमा"मा के गुण, कम&, Hवभाव ’प को यथावत्
जानने’प {|िव‡ा और लोक से वाता&u का आर›भ (कहना और पूछना)
सीखकर सभासद् वा सभापित हो सकO ।।१।।
सब सभासद् और सभापित इि3¥यi को जीतने अथा&त् अपने वश मO रख के
सदा धम& मO वत™ और अधम& से हठे हठाए रह<। इसिलये रात jदन िनयत समय
मO योगा^यास भी करते रह<, eयijक जो अिजतेि3¥य jक अपनी इि3¥यi (जो
मन, 'ाण और शरीर 'जा है इस) को जीते िवना बाहर कR 'जा को अपने वश
मO Hथापन करने को समथ& कभी नहc हो सकता।।२।।
दृढ़ो"साही होकर जो काम से दश और ¦ोध से आठ दु… aसन jक िजनमO
पफ़ं सा gआ मनु‘य कWठनता से िनकल सके उन को 'य¢ से छोड़ और छु ड़ा
देवे।।३।।
eयijक जो राजा काम से उ"प– gए दश दु… aसनi मO पफ़ं सता है वह अथ&
अथा&त् रा°य धनाjद और धम& से रिहत हो जाता है और जो ¦ोध से उ"प– gए
आठ बुरे aसनi मO पफ़ं सता है वह शरीर से भी रिहत हो जाता है।।४।।
काम से उ"प– gए aसन िगनाते ह<। देखो-मृगया खेलना, (अz) अथा&त् चोपड़
खेलना, जुआ खेलनाjद, jदन मO सोना, कामकथा व दूसरे कR िन3दा jकया
करना, ि¬यi का अित संग, मादक ¥a अथा&त् म‡, अफRम, भांग, गांजा,
चरस आjद का सेवन, गाना, बजाना, नाचना वा नाच कराना सुनना और
देखना; वृथा इधर-उधर घूमते रहना ये दश कामो"प– aसन ह<।।५।।
¦ोध से उ"प– aसनi को िगनाते ह<-‘पैशु3यम्’ अथा&त् चुगली करना, साहस
िवना िवचारे बला"कार से jकसी कR ¬ी से बुरा काम करना, ¥ोह=¥ोह रखना,
‘ई‘या&’ अथा&त् दूसरे कR बड़ाई वा उ–ित देख कर जला करना, ‘असूया’ दोषi
मO गुण, गुणi मO दोषारोपण करना, ‘अथ&दषू ण’ अथा&त् अधम&युž बुरे कामi से
धनाjद का aय करना, वा•द‹ड, कठोर वचन बोलना और पा˜‘यं=िवना
अपराध कड़ा वचन वा िवशेष द‹ड देना ये आठ दुगु&ण ¦ोध से उ"प– होते
ह<।।६।।
िजसे सब िवyान् लोग कामज और ¦ोधजi का मूल जानते ह< jक िजस से ये
सब दुगु&ण मनु‘य को 'ाƒ होते ह< उस लोभ को 'य¢ से छोड़े।।७।।
काम के aसनi मO बड़े दुगु&ण एक म‡ाjद अथा&त् मदकारक ¥ai का सेवन,
दूसरा पासi आjद से जुआ खेलना, तीसरा ि¬यi का िवशेष संग, चौथा मृगया
खेलना चे चार महादु… aसन ह<।।८।।
और ¦ोधजi मO िवना अपराध द‹ड देना, कठोर वचन बोलना और धनाjद का
अ3याय मO खच& करना ये तीन ¦ोध से उ"प– gए बड़े दुःखदायक दोष ह<।।९।।
जो ये सात दुगु&ण दोनi कामज और ¦ोधज दोषi मO िगने ह< इन से पूव&-पूव&
अथा&त् aथ& aय से कठोर वचन, कठोर वचन से अ3याय से द‹ड देना, इस से
मृगया खेलना, इस से ि¬यi का अ"य3त संग, इस से जुआ अथा&त् ‡ूत करना
और इस से भी म‡ाjद सेवन करना बड़ा दु… aसन है।।१०।।
इस मO यह िनtय है jक दु… aसन मO पफ़ं सने से मर जाना अ¸छा है eयijक
जो दु…ाचारी पु˜ष है वह अिधक िजयेगा तो अिधक-अिधक पाप करके नीच-
नीच गित अथा&त् अिधक-अिधक दुःख को 'ाƒ होता जायेगा। और जो jकसी
aसन मO नहc पफ़ं सा वह मर भी जायगा तो भी सुख को 'ाƒ होता जायगा।
इसिलये िवशेष राजा और सब मनु‘यi को उिचत है jक कभी मृगया और
म‡पानाjद दु… कामi मO न पफ़ं सO और दु… aसनi से पृथÀफ़ होकर धम&युž
गुण, कम&, Hवभावi मO सदा वs& के अ¸छे-अ¸छे काम jकया करO ।।११।।
राजसभासद् और म3•ी कै से होने चािहये-
मौलान् शा¬िवदः शूरांqलdधलˆयान् कु लोÿतान्।
सिचवान् सƒ चा…ौ वा 'कु वŠत परीिzतान्।।१।।
अिप यत् सुकरं कम& तदÊयेकेन दु‘करम्।
िवशेषतोऽसहायेन jक3तु रा°यं महोदयम्।।२।।
तैः साZ¶ िच3तयेि–"यं सामा3यं सि3धिव>हम्।
Hथानं समुदयं गुिƒ लdध'शमनािन च।।३।।
तेषां Hवं Hवमिभ'ायमुपल^य पृथÀफ़-पृथÀफ़।
समHताना€ का‰य·षु िवद—यािZतमा"मनः।।४।।
अ3यानिप 'कु वŠत शुचीन् 'XानविHथतान्।
स›यगथ&समाहत&न् अमा"यान् सुपरीिzतान्।।५।।
िनवs·ताHय याविÐWरितकत&aता नृिभः।
तावतोऽति3¥तान् दzान् 'कु वŠत िवचzणान्।।६।।
तेषामथ· िनयुÅीत शूरान् दzान् कु लोÿतान्।
शुचीन् आकरकमा&3ते भी’न् अ3त“नवेशने।।७।।
दूतं चैव 'कु वŠत सव&शा¬िवशारदम्।
Òइगताकारचे…Xं शुिच दzं कु लोÿतम्।।८।।
अनुरžः श्◌ु◌ािचद&zः Hमृितमान् देशकालिवत्।
वपु‘मा3वीतभीवा&•मी दूतो राXः 'शHयते।।९।। मनु०।।
Hवरा°य Hवदेश मO उ"प– gए, वेदाjद शा¬O के जानने वाले, शूरवीर, िजन का
लˆय अथा&त् िवचार िन‘पफ़ल न हो और कु लीन, अ¸छे 'कार सुपरीिzत,
सात वा आठ उsम धा“मक चतुर ‘सिचवान्’ अथा&त् म3•ी करे ।।१।।
eयijक िवशेष सहाय के िवना जो सुगम कम& है वह भी एक के करने मO कWठन
हो जाता है, जब ऐसा है तो महान् रा°यक›म& एक से कै से हो सकता है?
इसिलये एक को राजा और एक कR बुिZ पर रा°य के का‰य& का िनभ&र रखना
बgत ही बुरा काम है।।२।।
इस से सभापित को उिचत है jक िन"य'ित उन रा°यकमŽ मO कु शल िवyान्
मि3•यi के साथ सामा3य करके jकसी से (सि3ध) िम•ता jकसी से (िव>ह)
िवरोध (Hथान) िHथित समय को देख के चुपचाप रहना, अपने रा°य कR रzा
करके बैठे रहना (समुदयम्) जब अपना उदय अथा&त् वृिZ हो तब दु… श•ु पर
चढ़ाई करना (गुिƒम्) मूल राजसेना कोश आjद कR रzा (लdध'शमनािन)
जो-जो देश 'ाƒ हो उस-उस मO शाि3तHथापन उप¥वरिहत करना इन छः गुणi
का िवचार िन"य'ित jकया करे ।।३।।
िवचार से करना jक उस सभासदi का पृथÀफ़-पृथÀफ़ अपना-अपना िवचार
और अिभ'ाय को सुनकर बgपzानुसार कायŽ मO जो काय& अपना और अ3य
का िहतकारक हो वह करने लगना।।४।।
अ3य भी पिव•"मा, बुिZमान्, िनिtतबुिZ, पदाथŽ के सं>ह करने मO
अितचतुर, सुपरीिzत म3•ी करे ।।५।।
िजतने मनु‘यi से का‰य& िसZ हो सके उतने आलHयरिहत बलवान् और बड़े-
बड़े चतुर 'धान पु˜षi को (अिधकारी) अथा&त् नौकर करे ।।६।।
इन के आधीन शूरवीर बलवान् कु लो"प– पिव• भृ"यi को बड़े-बड़े कमŽ मO
और भी˜ डरने वालi को भीतर के कमŽ मO िनयुž करे ।।७।।
जो 'शंिसत कु ल मO उ"प– चतुर, पिव•, हावभाव और चे…ा से भीतर Æदय
और भिव‘यत् मO होने वाली बात को जाननेहारा सब शा¬O मO िवशारद चतुर
है; उस दूत को भी रeखे।।८।।
वह ऐसा हो jक राज काम मO अ"य3त उ"साह 'ीितयुž, िन‘कपटी, पिव•"मा,
चतुर, बgत समय कR बात को भी न भूलने वाला, देश और कालानुकूल
वs&मान का कsा&, सु3दर ’पयुž िनभ&य और बड़ा वžा हो, वही राजा का
दूत होने मO 'शHत है।।९।। jकस-jकस को eया-eया अिधकार देना यो•य है-
अमा"ये द‹ड आयsो द‹डे वैनियकR ि•फ़या।
नृपतौ कोशराîे च दूते सि3धिवपय&यौ।।१।।
दूत एव िह स3धsे िभनÓयेव च संहतान्।
दूतHत"कु ˜ते कम& िभ‡3ते येन वा न वा।।२।।
बु¾—वा च सव¶ तÓवेन परराजिचकR“षतम्।
तथा 'य¢माित¼े‡था"मानं न पीडयेत्।।३।।
धनुदग &ु ¶ महीदुग&मdदुग¶ वाz&मेव वा।
नृदगु ¶ िगWरदुग¶ वा समाि~"य वसे"पुरम्।।४।।
एकः शतं योधयित 'ाकारHथो धनुध&रः।
शतं दशसहêािण तHमाद् दुग¶ िवधीयते।।५।।
त"Hयादायुधस›प–ं धनधा3येन वाहनैः।
{ा|णैः िशिqपिभय&3•ैय&वसेनोदके न च।।६।।
तHय म—ये सुपया&ƒं कारयेद ् गृहमा"मनः।
गुƒं सव&sु&कं शु±ं जलवृzसमि3वतम्।।७।।
तद—याHयोyहेÐाया¶ सवणा¶ लzणाि3वताम्।
कु ले महित स›भूतां Ƈां ’पगुणाि3वताम्।।८।।
पुरोिहतं 'कु वŠत वृणुयादेव िच"व&जम्।
तेऽHय गृÉािण कमा&िण कु ‰यु&वÄतािनकािन च।।९।। मनु०।।
अमा"य को द‹डािधकार, द‹ड मO िवनय j¦या अथा&त् िजस से अ3याय’प द‹ड
न होने पावे, राजा के आधीन कोश और राजका‰य& तथा सभा के आधीन सब
का‰य& और दूत के आधीन jकसी से मेल वा िवरोध करना अिधकार देवे।।१।।
दूत उस को कहते ह< जो पफ़ू ट मO मेल और िमले gए दु…i को पफ़ोड़ तोड़ देवे।
दूत वह कम& करे िजस से श•ुu मO पफ़ू ट पड़े।।२।।
वह सभापित और सब सभासद् वा दूत आjद यथाथ& से दूसरे िवरोधी राजा के
रा°य का अिभ'ाय जान के वैसा य¢ करे jक िजस से अपने को पीड़ा न हो।।३।।
इसिलये सु3दर जंगल, धन धा3ययुž देश मO (धनुदग &ु &म)् धनुधा&री पु˜षi से
गहन (महीदुग&म्) मÝी से jकया gआ (अdदुग&म्) जल से घेरा gआ (वाz&म्)
अथा&त् चारi ओर वन (नृदग ु &म)् चारi ओर सेना रहे (िगWरदुग&म्) अथा&त् चारi
ओर पहाड़i के बीच मO कोट बना के इस के म—य मO नगर बनावे।।४।।
और नगर के चारi ओर ('ाकार) 'कोट बनावे, eयijक उस मO िHथत gआ एक
वीर धनुधा&री श¬युž पु˜ष सौ के साथ और सौ दश हजार के साथ युZ कर
सकते ह< इसिलये अवŸय दुग& का बनाना उिचत है।।५।।
वह दुग& श¬¬, धन, धा3य, वाहन, {ा|ण जो पढ़ाने उपदेश करने हारे हi
(िशqपी) कारीगर, य3•, नाना 'कार कR कला, (यवसेन ) चारा घास और
जल आjद से स›प– अथा&त् पWरपूण& हो।।६।।
उस के म—य मO जल वृz पु‘पाjदक सब 'कार से रिzत सब ऋतुu मO
सुखकारक 5ेतवण& अपने िलये घर िजस मO सब राजका‰य& का िनवा&ह हो वैसा
बनवावे।।७।।
इतना अथा&त् {|चय& से िव‡ा पढ़ के यहां तक राजकाम करके पtात् सौ3दय&
’प गुणयुž Æदय को अिति'य बड़े उsम कु ल मO उ"प– सु3दर लzणयुž
अपने zि•यकु ल कR क3या जो jक अपने सदृश िव‡ाjद गुण कम& Hवभाव मO
हो उस एक ही ¬ी के साथ िववाह करे दूसरी सब ि¬यi को अग›य समझ कर
दृि… से भी न देखे।।८।।
पुरोिहत और ऋि"वज् का Hवीकार इसिलये करे jक वे अि«हो• और पzेि…
आjद सब राजघर के कम& jकया करO और आप सव&दा राजकाय& मO त"पर रहै
अथा&त् यही राजा का स3—योपासनाjद कम& है जो रात jदन राजका‰य& मO 'वृs
रहना और कोई राजकाम िबगड़ने न देना।।९।।
सांव"सWरकमाƒैt राîादाहारयेद ् बिलम्।
Hया0ाóायपरो लोके वs·त िपतृव–ृषु।।१।।
होते ह< इस से िवमुख कभी न हो, jक3तु कभी-कभी श•ु को जीतने के िलये
उन के सामने से िछप जाना उिचत है eयijक िजस 'कार से श•ु को जीत सके
वैसे काम करे । जैसा िसह ¦ोध मO सामने आकर श¬ि« मO शीÎ भHम हो जाता
है वैसे मूख&ता से न… ±… न हो जावO।।५।।
युZ समय मO न इधर-उधर खड़े, न नपुंसक, न हाथ जोड़े gए, न िजस के िशर
के बाल खुल गये हi, न बैठे gए, न ‘म< तेरे शरण •ं’ ऐसे को।।६।।
न सोते gए, न मूछा& को 'ाƒ gए, न न« gए, न आयुध से रिहत, न युZ करते
gu को देखने वालi, न श•ु के साथी।।७।।
न आयुध के 'हार से पीड़ा को 'ाƒ gए, न दुःखी, न अ"य3त घायल, न डरे
gए और न पलायन करते gए पु˜ष को, स"पु˜षi के धम& का Hमरण करते gए,
योZा लोग कभी मारO jक3तु उन को पकड़ के जो अ¸छे हi ब3दीगृह मO रख दे
और भोजन आ¸छादन यथावत् देवे और जो घायल gए हi उन कR औषधाjद
िविधपूव&क करे । न उन को िचड़ावे न दुःख देवे। जो उन के यो•य काम हो
करावे। िवशेष इस पर —यान रeखे jक ¬ी, बालक, वृZ और आतुर तथा
शोकयुž पु˜षi पर श¬ कभी न चलावे। उनके लड़के -बालi को अपने
स3तानवत् पाले और ि¬यi को भी पाले। उन को अपनी माँ बिहन और क3या
के समान समझे, कभी िवषयासिž कR दृि… से भी न देखे। जब रा°य अ¸छे
'कार जम जाय और िजन मO पुनः पुनः युZ करने कR शंका न हो उन को
स"कारपूव&क छोड़ कर अपने-अपने घर व देश को भेज देवे और िजन से
भिव‘यत् काल मO िवš होना स›भव हो उन को सदा कारागार मO रeखे।।८।।
और जो पलायन अथा&त् भागे और डरा gआ भृ"य श•ुu से मारा जाय वह
उस Hवामी के अपराध को 'ाƒ होकर द‹डनीय होवे।।९।।
और जो उस कR 'ित¼ा है िजस से इस लोक और परलोक मO सुख होने वाला
था उस को उस का Hवामी ले लेता है, जो भागा gआ मारा जाय उस को कु छ
भी सुख नहc होता, उस का पु‹यपफ़ल सब न… हो जाता है और उस 'ित¼ा
को वह 'ाƒ हो िजस ने धम& से यथावत् युZ jकया हो।।१०।।
इस aवHथा को कभी न तोड़े jक जो-जो लड़ाई मO िजस-िजस भृ"य वा अ—यz
ने रथ घोड़े, हाथी, छ•, धन-धा3य, गाय आjद पशु और ि¬यां तथा अ3य
'कार के सब ¥a और घी, तेल आjद के कु Êपे जीते हi वही उस-उस का >हण
करे ।।११।।
पर3तु सेनाHथ जन भी उन जीते gए पदाथŽ मO से सोलहवां भाग राजा को देवO
और राजा भी सेनाHथ योZाu को उस धन मO से, जो सब ने िमल के जीता है,
सोलहवां भाग देवे और जो कोई युZ मO मर गया हो उस कR ¬ी और स3तान
को उस का भाग देवे और उस कR ¬ी तथा असमथ& लड़कi का यथावत् पालन
करे । जब उसके लड़के समथ& हो जायO तब उनको यथायो•य अिधकार देवे। जो
कोई अपने रा°य कR रzा, वृिZ, 'ित¼ा, िवजय और आन3दवृिZ कR इ¸छा
रखता हो वह इस मया&दा का उqलंघन कभी न करे ।।१२।।
अलdधं चैव िलÊसेत लdधं रzे"'य¢तः।
रिzतं वZ&ये0ैव वृZ ं पा•ेषु िनःिzपेत्।।१।।२।।
अलdधिम¸छेÖ‹डेन लdधं रzेदवेzया।
रिzतं वZ&येद ् वृ¾—या वृZ ं दानेन िनःिzपेत्।।३।।
अमाययैव वत·त न कथ€न मायया।
बु—येताWर'युžां च मायां िन"यं Hवसंवृतः।।४।।
नाHय िछ¥ं परो िव‡ाि¸छ¥ं िव‡ा"परHय तु।
गूह"े कू म& इवांगािन रzेिyवरमा"मनः।।५।।
वकवि03तयेदथा&न् िसहव0 परा•फ़मेत्।
वृकव0ावलु›पेत शशव0 िविन‘पतेत्।।६।।
एवं िवजयमानHय येऽHय Hयुः पWरपि3थनः।
तानानयेद ् वशं सवा&न् सामाjदिभ˜प•फ़मैः।।७।।८।।
यथोZरित िनदा&ता कzं धा3यं च रzित।
तथा रzे–ृपो राîं ह3या0 पWरपि3थनः।।९।।
मोहाद् राजा Hवराîं यः कष&य"यनवेzया।
सोऽिचराद् भृŸयते रा°याœीिवता0 सबा3धवः।।१०।।
शरीरकष&णा"'ाणाः zीय3ते 'ािणनां यथा।
तथा राXामिप 'ाणाः zीय3ते राîकष&णात्।।११।।
राîHय स >हे िन"यं िवधानिमदमाचरे त्।
सुस गृहीतराîो िह पा“थवः सुखमेधते।।१२।।
yयो¬याणां प€ानां म—ये गुqममिधि¼तम्।
तथा >ामशतानां च कु ‰या&¥ाîHय स >हम्।।१३।।
>ामHयािधपित कु ‰या&Öश>ामपित तथा।
िवशतीशं शतेशं च सहêपितमेव च।।१४।।
>ामदोषा3समु"प–ान् >ािमकः शनकै ः Hवयम्।
शंसेद ् >ामदशेशाय दशेशो िवशतीिशनम्।।१५।।
िवशतीशHतु त"सव¶ शतेशाय िनवेदयेत्।
शंसेद ् >ामशतेशHतु सहêपतये Hवयम्।।१६।।
तेषां >ा›यािण काया&िण पृथÙाया&िण चैव िह।
राXोऽ3यः सिचवः िÈ•धHतािन पŸयेदति3¥तः।।१७।।
नगरे नगरे चैकं कु या&"सवा&थ&िच3तकम्।
उ0ैः Hथानं घोर’पं नz•णािमव >हम्।।१८।।
स ताननुपWर•फ़ामे"सवा&नेव सदा Hवयम्।
तेषां वृsं पWरणये"स›य>ाîेषु त0रै ः।।१९।।
राXो िह रzािधकृ ताः परHवादाियनः शठाः।
भृ"या भवि3त 'ायेण ते^यो रzेjदमाः 'जाः।।२०।।
ये का“यके ^योऽथ&मेव गृòीयुः पापचेतसः।
तेषां सव&Hवमादाय राजा कु या&"'वासनम्।।२१।। मनु०।।
राजा और राजसभा अलdध कR 'ािƒ कR इ¸छा, 'ाƒ कR 'य¢ से रzा करे ,
रिzत को बढ़ावे और बढ़े gए धन को वेदिव‡ा, धम& का 'चार, िव‡ाथŠ,
वेदमागªपदेशक तथा असमथ& अनाथi के पालन मO लगावे।।१।।
इस चार 'कार के पु˜षाथ& के 'योजन को जाने। आलHय छोड़कर इस का
भलीभांित िन"य अनु¼ान करे ।।२।। द‹ड से अ'ाƒ कR 'ािƒ कR इ¸छा, िन"य
देखने से 'ाƒ कR रzा, रिzत को वृिZ अथा&त् dयाजाjद से बढ़ावे और बढ़े gए
धन को पूवªž माग& मO िन"य aय करे ।।३।।
कदािप jकसी के साथ छल से न वत· jक3तु िन‘कपट होकर सब से वsा&व रखे
और िन"य'ित अपनी रzा कर के श•ु के jकये gए छल को जान के िनवृs
करे ।।४।।
कोई श•ु अपने िछ¥ अथा&त् िनब&लता को न जान सके और Hवयं श•ु के िछ¥i
को जानता रहै, जैसे कछु आ अपने अंगi को गुƒ रखता है वैसे श•ु के 'वेश
करने के िछ¥ को गुƒ रeखे।।५।।
जैसे बगुला —यानाविHथत होकर म¸छी पकड़ने को ताकता है वैसे अथ&सं>ह
का िवचार jकया करे , ¥aाjद पदाथ& और बल कR वृिZ कर श•ु को जीतने के
िलये िसह के समान परा¦म करे । चीता के समान िछपकर श•ुu को पकड़े
और समीप आये बलवान् श•ुu से सHसा के समान दूर भाग जाय और पtात्
उन को छल से पकड़े।।६।।
इस 'कार िवजय करने वाले सभापित के रा°य मO जो पWरप3थी अथा&त् डाकू
लुटेरे हi उन को (साम) िमला लेना (दाम) कु छ देकर (भेद) पफ़ोड़ तोड़ करके
वश मO करे ।।७।। और जो इनसे वश मO न हi तो अितकWठन द‹ड से वश मO
करे ।।८।।
जैसे धा3य का िनकालने वाला िछलकi को अलग कर धा3य कR रzा करता
अथा&त् टू टने नहc देता है वैसे राजा डाकू चोरi को मारे और रा°य कR रzा
करे ।।९।।
जो राजा मोह से, अिवचार से अपने रा°य को दुब&ल करता है, वह रा°य और
अपने ब3धुसिहत जीवन से पूव& ही शीÎ न… ±… हो जाता है।।१०।। जैसे
'ािणयi के 'ाण शरीरi के कृ िशत करने से zीण हो जाते ह< वैसे ही◌े 'जाu
को दुब&ल करने से राजाu के 'ाण अथा&त् बलाjद ब3धुसिहत न… हो जाते
ह<।।११।।
इसिलये राजा और राजसभा राजका‰य& कR िसिZ के िलये ऐसा 'य¢ करO jक
िजस से राजका‰य& यथावत् िसZ हi। जो राजा रा°यपालन मO सब 'कार त"पर
रहता है उसको सुख सदा बढ़ता है।।१२।।
इसिलये दो, तीन; पांच और सौ >ामi के बीच मO राजHथान रeखO िजस मO
यथायो•य भृ"य अथा&त् कामदार आjद राजपु˜षi को रखकर सब रा°य के
कायŽ को पूण& करे ।।१३।।
एक-एक >ाम मO एक-एक 'धान पु˜ष को रeखO उ3हc दश >ामi के ऊपर
दूसरा, उ3हc वीश >ामi के ऊपर तीसरा, उ3हc सौ >ामi के ऊपर चौथा और
उ3हc सहê >ामi के ऊपर पांचवां पु˜ष रeखे ।। अथा&त् जैसे आजकल एक
>ाम मO एक पटवारी, उ3हc दश >ामi मO एक थाना और दो थानi पर एक बड़ा
थाना और उन पांच थानi पर एक तहसील और दश तहसीलi पर एक िजला
िनयत jकया है यह वही अपने मनु आjद धम&शा¬ से राजनीित का 'कार
िलया है।।१४।।
इसी 'कार 'ब3ध करे और आXा देवे jक वह एक-एक >ामi का पित >ामi मO
िन"य'ित जो-जो दोष उ"प– हi उन-उन को गुƒता से दश >ाम के पित को
िवjदत कर दे और वह दश >ामािधपित उसी 'कार वीस >ाम के Hवामी को
दश >ामi का वs&मान िन"य'ित जना देवे।।१५।।
और बीस >ामi का अिधपित बीस >ामi के वs&मान शत>ामािधपित को
िन"य'ित िनवेदन करे । वैसे सौ-सौ >ामi के पित आप सहêािधपित अथा&त्
हजार >ामi के Hवामी को सौ-सौ >ामi के वs&मान 'ितjदन जनाया करO । (और
बीस-बीस >ाम के पांच अिधपित सौ-सौ >ाम के अ—यz को) और वे सहê-
सहê के दश अिधपित दशसहê के अिधपित को और वे दश-दश हजार के दश
अिधपित लz>ामi कR राजसभा को 'ितjदन का वs&मान जनाया करO । और
वे सब राजसभा महाराजसभा अथा&त् साव&भौमच¦व“त महाराजसभा मO सब
भूगोल का वs&मान जनाया करO ।।१६।।
और एक-एक दश-दशसहê >ामi पर दो सभापित वैसे करO िजन मO एक
राजसभा मO और दूसरा अ—यz आलHय छोड़कर सब 3यायाधीशाjद राजपु˜षi
के कामi को सदा घूमकर देखते रह<।।१७।।
बड़े-बड़े नगरi मO एक-एक िवचार करने वाली सभा का सु3दर उ0 और िवशाल
जैसा jक च3¥मा है वैसा एक-एक घर बनावO, उस मO बड़े-बड़े िव‡ावृZ jक
िज3हiने िव‡ा से सब 'कार कR परीzा कR हो वे बैठकर िवचार jकया करO ।
िजन िनयमi से राजा और 'जा कR उ–ित हो वैस-े वैसे िनयम और िव‡ा
'कािशत jकया करO ।।१८।।
जो िन"य घूमनेवाला सभापित हो उसके आधीन सब गुƒचर अथा&त् दूतi को
रeखे। जो राजपु˜ष और 'जापु˜षi के साथ िन"य स›ब3ध रखते हi और वे
िभ–-िभ– जाित के रह<, उन से सब राज और राजपु˜षi के सब दोष और गुण
गुƒरीित से जाना करे , िजनका अपराध हो उन को द‹ड और िजन का गुण हो
उनकR 'ित¼ा सदा jकया करे ।।१९।।
राजा िजन को 'जा कR रzा का अिधकार देवे वे धा“मक सुपरीिzत िवyान्
कु लीन हi उनके आधीन 'ायः शठ और परपदाथ& हरनेवाले चोर डाकु u को
भी नौकर रख के उन को दु… कम& से बचाने के िलये राजा के नौकर करके उ3हc
रzा करने वाले िवyानi के Hवाधीन करके उन से इस 'जा कR रzा यथावत्
करे ।।२०।।
जो राजपु˜ष अ3याय से वादी 'ितवादी से गुƒ धन लेके पzपात से अ3याय
करे उन का सव&Hवहरण करके यथायो•य द‹ड देकर ऐसे देश मO रeखे jक जहाँ
से पुनः लौटकर न आ सके eयां◌ेjक यjद उस को द‹ड न jदया जाय तो उस
को देख के अ3य राजपु˜ष भी ऐसे दु… काम करO और द‹ड jदया जाय तो बचे
रह< ।।२१।।
पर3तु िजतने से उन राजपु˜षi का योगzेम भलीभांित हो और वे भलीभांित
धनाÚ भी हi उतना धन वा भूिम राज कR ओर से मािसक वा वा“षक अथवा
एक वार िमला करे और जो वृZ हi उन को भी आधा िमला करे पर3तु यह
—यान मO रeखे jक जब तक वे िजयO तब तक वह जीिवका बनी रहै पtात् नहc,
पर3तु इन के स3तानi का स"कार वा नौकरी उन के गुण के अनुसार अवŸय देवे
और िजस के बालक जब तक समथ& हi उन कR ¬ी जीती हो तो उन सब के
िनवा&हाथ& रा°य कR ओर से यथायो•य धन िमला करे । पर3तु जो उस कR ¬ी
वा लड़के कु कमŠ हो जायO तो कु छ भी न िमले, ऐसी नीित राजा बराबर रeखे।।
िन>हं 'कृ तीनां च कु या&‡ोऽWरबलHय च।
उपसेवेत तं िन"यं सव&य¢ैगु&˜ं यथा।।१५।।
यjद त•िप स›पŸयेÖोषं सं~यकाWरतम्।
सुयुZमेव त•ऽिप िन“वशंeय3! समाचरे त्।।१६।। मनु०।।
जब राजाjद राजपु˜षi को यह बात लˆय मO रखने यो•य है जो (आसन)
िHथरता (यान) श•ु से लड़ने के िलये जाना (सि3ध) उन से मेल कर लेना
(िव>ह) दु… श•ुu से लड़ाई करना (yैध०) दो 'कार कR सेना करके Hविवजय
कर लेना (सं~य) और िनब&लता मO दूसरे 'बल राजा का आ~य लेना ये छः
'कार के कम& यथायो•य का‰य& को िवचार कर उसमO युž करना चािहये।।१।।
राजा जो सि3ध, िव>ह, यान, आसन, yैधीभाव और सं~य दो-दो 'कार के
होते ह< उन को यथावत् जाने।।२।।
(सि3ध) श•ु से मेल अथवा उस से िवपरीतता करे पर3तु वs&मान और
भिव‘यत् मO करने के काम बराबर करता जाय यह दो 'कार का मेल कहाता
है।।३।।
(िव>ह) काय& िसिZ के िलये उिचत व अनुिचत समय मO Hवयं jकया वा िम•
के अपराध करने वाले श•ु के साथ िवरोध दो 'कार से करना चािहये।।४।।
(यान) अकHमात् कोई का‰य& 'ाƒ होने मO एकाकR वा िम• के साथ िमल के
श•ु कR ओर जाना यह दो 'कार का गमन कहाता है।।५।।
Hवयं jकसी 'कार ¦म से zीण हो जाय अथा&त् िनब&ल हो जाय अथवा िम• के
रोकने से अपने Hथान मO बैठ रहना यह दो 'कार का आसन कहाता है।।६।।
का‰य&िसिZ के िलये सेनापित और सेना के दो िवभाग करके िवजय करना दो
'कार का yैध कहाता है।।७।।
एक jकसी अथ& कR िसिZ के िलये jकसी बलवान् राजा वा jकसी महा"मा कR
शरण लेना िजस से श•ु से पीिड़त न हो दो 'कार का आ~य लेना कहाता
है।।८।।
जब यह जान ले jक इस समय युZ करने से थोड़ी पीड़ा 'ाƒ होगी और पtात्
करने से अपनी वृिZ और िवजय अवŸय होगा तब श•ु से मेल कर के उिचत
समय तक धीरज करे ।।९।।
जब अपनी सब 'जा वा सेना अ"य3त 'स– उ–ितशील और ~े¼ जाने, वैसे
अपने को भी समझे तभी श•ु से िव>ह (युZ) कर लेवे।।१०।।
जब अपने बल अथा&त् सेना को हष& और पुि…युž 'स– भाव से जाने और श•ु
का बल अपने से िवपरीत िनब&ल हो जावे तब श•ु कR ओर युZ करने के िलये
जावे।।११।।
जब सेना बल वाहन से zीण हो जाय तब श•ुu को धीरे -धीरे 'य¢ से शा3त
करता gआ अपने Hथान मO बैठा रहै।।१२।।
जब राजा श•ु को अ"य3त बलवान् जाने तब िyगुणा वा दो 'कार कR सेना
करके अपना का‰य& िसZ करे ।।१३।।
जब आप समझ लेवे jक अब शीÎ श•ुu कR चढ़ाई मुझ पर होगी तभी jकसी
धा“मक बलवान् राजा का आ~य शीÎ ले लेवे।।१४।।
जो 'जा और अपनी सेना और श•ु के बल का िन>ह करे अथा&त् रोके उस कR
सेवा सब य¢i से गु˜ Σ ◌ँ◌् सदृश िन"य jकया करे ।।१५।।
िजस का आ~य लेवे उस पु˜ष के कमŽ मO दोष देखे तो वहां भी अ¸छे 'कार
युZ ही को िनःशंक होकर करे ।।१६।।
जो धा“मक राजा हो उस से िवरोध कभी न करे jक3तु उस से सदा मेल रeखे
और जो दु… 'बल हो उसी के जीतने के िलये ये पूव·ž 'योग करना उिचत है।
सवªपायैHतथा कु या&–ीितXः पृिथवीपितः।
यथाHया^यिधका न Hयु“म•ेदासीनश•वः।।१।।
आयÒत सव&काया&णां तदा"वं च िवचारयेत्।
अतीतानां च सव·षां गुणदोषौ च तÓवतः।।२।।
आय"यां गुणदोषXHतदा"वे िz'िनtयः।
अतीते का‰य&शेषXः श•ुिभना&िभभूयते।।३।।
यथैनं नािभस3द—यु“म•ेदासीनश•वः।
तथा सव¶ संिवद—यादेष सामािसको नयः।।४।। मनु०।।
नीित को जानने वाला पृिथवीपित राजा िजस 'कार इस के िम•, उदासीन
(म—यHथ) और श•ु अिधक न हi ऐसे सब उपायi से वs·।।१।।
सब का‰यŽ का वs&मान मO कs&a और भिव‘यत् मO जो-जो करना चािहये और
जो-जो काम कर चुके उन सब के यथाथ&ता से गुण दोषi को िवचारे ।।२।।
पtात् दोषi के िनवारण और गुणi कR िHथरता मO य¢ करे । जो राजा भिव‘यत्
अथा&त् आगे करने वाले कमŽ मO गुण दोषi का Xाता वs&मान मO तुर3त िनtय
का कsा& और jकये gए कायŽ मO शेष कs&a को जानता है वह श•ुu से
परािजत कभी नहc होता।।३।।
सब 'कार से राजपु˜ष िवशेष सभापित राजा ऐसा 'य¢ करे jक िजस 'कार
राजाjद जनi के िम• उदासीन और श•ु को वश मO करके अ3यथा न करावे,
ऐसे मोह मO कभी न पफ़ं से, यही संzेप से िवनय अथा&त् राजनीित कहाती
है।।४।।
कृ "वा िवधानं मूले तु याि•कं च यथािविध ।
उपगृÉाHपदं चैव चारान् स›यि•वधाय च।।१।।
संशो—य ि•िवधं माग¶ षि"वधं च बलं Hवकम्।
सा›पराियककqपेन यायाद् अWरपुरं शनैः।।२।।
श•ुसेिविन िम•े च गूढे युžतरो भवेत्।
गत'"यागते चैव स िह क…तरो Wरपुः।।३।।
द‹डaूहन े त3माग¶ यायाsु शकटेन वा।
वराहमकरा^यां वा सू¸या वा ग˜डेन वा।।४।।
यतt भयमाशंकेsतो िवHतारयेद ् बलम्।
प÷ेन चैव aूहन े िनिवशेत सदा Hवयम्।।५।।
सेनापितबला—यzौ सव&jदzु िनवेशयेत्।
यतt भयमाशंकेत् 'ाचc तां कqपयेjÖशम्।।६।।
गुqमांt Hथापयेदाƒान् कृ तसंXान् सम3ततः।
Hथाने युZ े च कु शलानभी’निवकाWरणः।।७।।
संहतान् योधयेदqपान् कामं िवHतारयेद ् ब•न्।
सू¸या व#ेण चैवैतान् aूहन े aूÉ योधयेत्।।८।।
Hय3दना5ैः समे यु—येदनूपे नौिyपैHतथा।
वृzगुqमावृते चापैरिसचमा&युधैः Hथले।।९।।
'हष&येद ् बलं aूÉ तांt स›यÀफ़ परीzयेत्।
चे…ाtैव िवजानीयादरीन् योधयतामिप।।१०।।
उप˜—याWरमासीत राîं चाHयोपपीडयेत्।
दूषये0ाHय सततं यवसा–ोदके 3धनम्।।११।।
िभ3‡ा0ैव तडागािन 'ाकारपWरखाHतथा।
समवHक3दयेÓवैनं रा•ै िव•सयेsथा।।१२।।
'माणािन च कु वŠत तेषां ध›मा&3यथोjदतान्।
र¢ैt पूजयेदन े ं 'धानपु˜षैः सह।।१३।।
आदानमि'यकरं दान€ ि'यकारकम्।
अभीिÊसतानामथा&नां काले युžं 'शHयते।।१४।। मनु०।।
जब राजा श•ुu के साथ युZ करने को जावे तब अपने रा°य कR रzा का
'ब3ध और या• कR सब साम>ी यथािविध करके सब सेना, यान, वाहन,
श¬¬jद पूण& लेकर सव&• दूतi अथा&त् चारi ओर के समाचारi को देने वाले
पु˜षां◌े को गुƒ Hथापन करΣ ◌ँ◌् श•ुu कR ओर युZ करने को जावे।।१।।
तीन 'कार के माग& अथा&त् एक Hथल (भूिम) मO, दूसरा जल (समु¥ वा नjदयi)
मO, तीसरा आकाशमागŽ को युZ बनाकर भूिममाग& मO रथ, अ5, हाथी, जल
मO नौका और आकाश मO िवमानाjद यानi से जावे और पैदल, रथ, हाथी, घोड़े,
श¬ और अ¬ खानपानाjद साम>ी को यथावत् साथ ले बलयुž पूण& करके
jकसी िनिमs को 'िसZ करके श•ु के नगर के समीप धीरे -धीरे जावे।।२।। जो
भीतर से श•ु से िमला हो और अपने साथ भी ऊपर से िम•ता रeखे, गुƒता
से श•ु को भेद देव,े उस के आने जाने मO उस से बात करने मO अ"य3त सावधानी
रeखे, eयijक भीतर श•ु ऊपर िम• पु˜ष को बड़ा श•ु समझना चािहये।।३।।
सब राजपु˜षi को युZ करने कR िव‡ा िसखावे और आप सीखे तथा अ3य
'जाजनi को िसखावे जो पूव& िशिzत योZा होते ह< वे ही अ¸छे 'कार लड़
लड़ा जानते ह<। जब िशzा करे तब (द‹डaूह) द‹डा के समान सेना को चलावे
(शकट०) जैसा शकट अथा&त् गाड़ी के समान (वराह०) जैसे सुअर एक दूसरे के
पीछे दौड़ते जाते ह< और कभी-कभी सब िमलकर झु‹ड हो जाते ह< वैसे (मकर०)
जैसा मगर पानी मO चलते ह< वैसे सेना को बनावे (सूचीaूह) जैसे सूई का
अ>भाग सूˆम पtात् Hथूल और उस से सू• Hथूल होता है वैसी िशzा से सेना
को बनावे और जैसे (नीलक‹ठ) ऊपर नीचे झपट मारता है इस 'कार सेना को
बनाकर लड़ावे।।४।।
िजधर भय िवjदत हो उसी ओर सेना को पफ़ै लावे, सब सेना के पितयi को
चारi ओर रख के (प÷aूह) अथा&त् प÷ाकार चारi ओर से सेनाu को रखके
म—य मO आप रहै।।५।।
सेनापित और बला—यz अथा&त् आXा का देने और सेना के साथ लड़ने लड़ाने
वाले वीरi को आठi jदशाu मO रeखे, िजस ओर से लड़ाई होती हो उसी ओर
से सब सेना का मुख रeखे पर3तु दूसरी ओर भी पÙा 'ब3ध रeखे नहc तो
पीछे वा पा5& से श•ु कR घात होने का स›भव होता है।।६।।
जो गुqम अथा&त् दृढ़ Hत›भi के तुqय युZिव‡ा से सुिशिzत धा“मक िHथत होने
और युZ करने मO चतुर भयरिहत और िजनके मन मO jकसी 'कार का िवकार
न हो उन को चारi ओर सेना के रeखे।।७।।
जो थोड़े पु˜षi से बgतi के साथ युZ करना हो तो िमलकर लड़ावO और काम
पड़े तो उ3हc को झट पफ़ै ला देवे। जब नगर दुग& वा श•ु कR सेना मO 'िव…
होकर युZ करना हो तो सब ‘सूचीaूह’ अथवा ‘व#aूह’ जैसे दुधारा ख"ग,
दोनi ओर युZ करते जायO और 'िव… भी होते चलO वैसे अनेक 'कार के aूह
अथा&त् सेना को बनाकर लड़ावO जो सामने (शतšी) तोप वा (भुशु‹डी) ब3दूक
छू ट रही हो तो ‘सप&aूह’ अथा&त् सप& के समान सोते सोते चले जायO, जब तोपi
के पास पgंचO तब उनको मार वा पकड़ तोपi का मुख श•ु कR ओर पफ़े र उ3हc
तोपi से वा ब3दूक आjद से उन श•ुu को मारO अथवा वृZ पु˜षi को तोपi के
मुख के सामने घोड़i पर सवार करा दौड़ावO और मारO , बीच मO अ¸छे-अ¸छे
सवार रह<, एक बार धावा कर श•ु कR सेना को िछ–-िभ– कर पकड़ लO अथवा
भगा दO।।८।।
जो समभूिम मO युZ करना हो तो रथ घोड़े और पदाितयi से और जो समु¥ मO
युZ करना हो तो नौका और थोड़े जल मO हािथयi पर, वृz और झाड़ी मO बाण
तथा Hथल बालू मO तलवार और ढाल से युZ करO करावO।।९।।
िजस समय युZ होता हो उस समय लड़ने वालi को उ"सािहत और ह“षत करO ।
जब युZ ब3ध हो जाय तब िजस से शौय& और युZ मO उ"साह हो वैसे वžृ "वi
से सब के िचs को खान-पान, अ¬-श¬ सहाय और औषधाjद से 'स– रeखO।
aूह के िवना लड़ाई न करे न करावे, लड़ती gई अपनी सेना कR चे…ा को देखा
करे jक ठीक-ठीक लड़ती है वा कपट रखती है।।१०।।
jकसी समय उिचत समझे तो श•ु को चारi ओर से घेर कर रोक रeखO और
इसके रा°य को पीिड़त कर श•ु के चारा, अ–, जल और इ3धन को न… दूिषत
कर दे।।११।।
श•ु के तालाब, नगर के 'कोट और खाई को तोड़ पफ़ोड़ दे, राि• मO उन को
(•स) भय देवे और जीतने का उपाय करे ।।१२।।
जीत कर उन के साथ 'माण अथा&त् 'ितXाjद िलखा लेवे और जो उिचत समय
समझे तो उसी के वंशHथ jकसी धा“मक पु˜ष को राजा कर दे और उस से
िलखा लेवे jक तुम को हमारी आXा के अनुकूल अथा&त् जैसी धम&युž राजनीित
है उस के अनुसार चल के 3याय से 'जा का पालन करना होगा ऐसे उपदेश करे
और ऐसे पु˜ष उनके पास रeखे jक िजससे पुनः उप¥व न हो और जो हार
जाय उसका स"कार 'धान पु˜षi के साथ िमलकर र¢ाjद उsम पदाथŽ के
दान से करे और ऐसा न करे jक िजस से उस का योगzेम भी न हो, जो उस
को ब3दीगृह करे तो भी उस का स"कार यथायो•य रeखे िजस से वह हारने के
शोक से रिहत होकर आन3द मO रहे।।१३।।
eयijक संसार मO दूसरे का पदाथ& >हण करना अ'ीित और देना 'ीित का
कारण है और िवशेष करके समय पर उिचत j¦या करना और उस परािजत Σ
 ◌ँ◌् मनोवािÃछत पदाथŽ का देना बgत उsम है और कभी उस को िचड़ावे
नहc, न हंसी और ठ$ा करे , न उस के सामने हमने तुझ को परािजत jकया है
ऐसा भी कहै, jक3तु आप हमारे भाई ह< इ"याjद मा3य 'ित¼ा सदा करे ।।१४।।
िहर‹यभूिमस›'ाÏया पाि◌थ&वो न तथैधते।
यथा िम•ं Ôुवं लd—वा कृ शमÊयायितzमम्।।१।।
धम&Xं च कृ तXं च तु…'कृ ितमेव च।
अनुरžं िHथरार›भं लघुिम•ं 'शHयते।।२।।
'ाXं कु लीनं शूरं च दzं दातारमेव च।
कृ तXं धृितम3त€ क…माgर%र बुधाः।।३।।
आ‰य&ता पु˜षXानं शौ‰य¶ क˜णवेjदता।
Hथौललˆयं च सततमुदासीनगुणोदयः।।४।। मनु०।।
िम• का लzण-यह है-राजा सुवण& और भूिम कR 'ािƒ से वैसा नहc बढ़ता jक
जैसे िनtल 'ेमयुž भिव‘यत् कR बातi को सोचने और काय& िसZ करने वाले
समथ& िम• अथवा दुब&ल िम• को भी 'ाƒ होΣ ◌ँ◌् बढ़ता है।।१।।
धम& को जानने और कृ तX अथा&त् jकये gए उपकार को सदा मानने वाले
'स–Hवभाव अनुरागी िHथरार›भी लघु छोटे भी िम• को 'ाƒ होकर 'शंिसत
होता है।।२।।
सदा इस बात को दृढ़ रeखे jक कभी बुिZमान्, कु लीन, शूरवीर, चतुर, दाता,
jकये gए को जाननेहारे और धैय&वान् पु˜ष को श•ु न बनावे eयijक जो ऐसे
को श•ु बनावेगा वह दुःख पावेगा।।३।।
उदासीन का लzण-िजस मO 'शंिसत गुणयुž अ¸छे बुरे मनु‘यi का Xान,
शूरवीरता क˜णा भी, Hथूल लˆय अथा&त् ऊपर-ऊपर कR बातi को िनर3तर
सुनाया करे वह उदासीन कहाता है।।४।।
एवं सव&िमदं राजा सह स›म3ûय मि3•िभः।
aाया›याÊलु"य म—या§ने भोžु म3तःपुरं िवशेत्।।१।।
पूवªž 'ातःकाल समय उठ शौचाjद स3—योपासन अि«हो• कर वा करा सब
मि3•यi से िवचार कर सभा मO जा सब भृ"य और सेना—यzi के साथ िमल,
उन को ह“षत कर, नाना 'कार कR aूहिशzा अथा&त् कवायद कर करा, सब
घोड़े, हाथी, गाय आjद Hथान श¬ और अ¬ का कोश तथा वै‡ालय, धन के
कोषi को देख सब पर दृि… िन"य'ित देकर जो कु छ उनमO खोट हi उन को
िनकाल, aायामशाला मO जा, aायाम करके भोजन के िलये ‘अ3तःपुर’ अथा&त्
प¢ी आjद के िनवासHथान मO 'वेश करे और भोजन सुपरीिzत, बुिZबल
परा¦मवZ&क, रोगिवनाशक, अनेक 'कार के अ– aÅन पान आjद सुगि3धत
िम…ाjद अनेक रसयुž उsम करे jक िजस से सदा सुखी रहै, इस 'कार सब
रा°य के कायŽ कR उ–ित jकया करे ।।१।।
'जा से कर लेने का 'कार-
प€ाशÐाग आदेयो राXा पशुिहर‹ययोः।
धा3यानाम…मो भागः ष¼ो yादश एव वा।। मनु०।।
जो aापार करने वाले वा िशqपी को सुवण& चांदी का िजतना लाभ हो, उस मO
से पचासवां भाग, चावल आjद अ–i मO छठा, आठवां वा बारहवां भाग िलया
करे , और जो धन लेवे तो भी उस 'कार लेवे jक िजस से jकसान आjद खाने
पीने
राजा भव"यनेनाHतु मु¸य3ते च सभासदः।
एनो ग¸छित कsा&रं िन3दाहª य• िन3‡ते।।१४।। मनु०।।
सभा राजा और राजपु˜ष सब लोग सदाचार और शा¬aवहार हेतुu से
िनóिलिखत अठारह िववादाHपद मागŽ मO िववादयुž कमŽ का िनण&य
'ितjदन jकया करO और जो-जो िनयम शा¬ेž न पावO और उन के होने कR
आवŸयकता जानO तो उsमोsम िनयम बांवमO jक िजससे राजा और 'जा कR
उ–ित हो।।१।।
अठारह माग& ये ह<-उन मO से
१-(ऋणादान) jकसी से ऋण लेने देने का िववाद।
२-(िनzेप) धरावट अथा&त् jकसी ने jकसी के पास पदाथ& धरा हो और मांगे
पर न देना। ३-(अHवािमिव¦य) दूसरे के पदाथ& को दूसरा बेच लेवे।
४-(स›भूय च समु"थानम्) िमल िमला के jकसी पर अ"याचार करना।
५-(दsHयानपकम& च ) jदये gए पदाथ& का न देना।।२।।
६-(वेतनHयैव चादानम्) वेतन अथा&त् jकसी कR ‘नौकरी’ मO से ले लेना वा कम
देना अथवा न देना।
७-('ितXा) 'ितXा से िव˜Z वs&ना।
८-(¦य-िव¦यानुशय) अथा&त् लेन देन मO झगड़ा होना।
९-पशु के Hवामी और पालने वाले का झगड़ा।।३।।
१०-सीमा का िववाद।
११-jकसी को कठोर द‹ड देना।
१२-कठोर वाणी का बोलना।
१३-चोरी डाका मारना।
१४-jकसी काम को बला"कार से करना।
१५-jकसी कR ¬ी वा पु˜ष का aिभचार होना।।४।।
१६-¬ी और पु˜ष के धम& मO aित¦म होना।
१७-िवभाग अथा&त् दायभाग मO वाद उठना।
१८-‡ूत अथा&त् जड़ पदाथ& और समा§वय अथा&त् चेतन को दाव मO धर के
जुआ खेलना। ये अठारह 'कार के परHपर िव˜Z aवहार के Hथान ह<।।५।।
इन aवहारi मO बgत से िववाद करने वाले पु˜षi के 3याय को सनातनधम& के
आ~य करके jकया करे अथा&त् jकसी का पzपात कभी न करे ।।६।।
िजस सभा मO अधम& से घायल होकर धम& उपिHथत होता है जो उसका शqय
अथा&त् तीरवत् धम& के कलंक को िनकालना और अधम& का छेदन करते अथा&त्
धमŠ को मान अधमŠ को द‹ड नहc िमलता उस सभा मO िजतने सभासद् ह< वे
सब घायल के समान समझे जाते ह<।।७।।
धा“मक मनु‘य को यो•य है jक सभा मO कभी 'वेश न करे और जो 'वेश jकया
हो तो स"य ही बोले। जो कोई सभा मO अ3याय होते gए को देखकर मौन रहे
अथवा स"य 3याय के िव˜Z बोले वह महापापी होता है।।८।।
िजस सभा मO अधम& से धम&, अस"य से स"य सब सभासदi के देखते gए मारा
जाता है उस सभा मO सब मृतक के समान ह< जानो उन मO कोई भी नहc
जीता।।९।।
मारा gआ धम& मारने वाले का नाश और रिzत jकया gआ धम& रzक कR रzा
करता है इसिलये धम& का हनन कभी न करना इस डर से jक मारा gआ धम&
कभी हम को न मार डाले।।१०।।
जो सब ऐ5यŽ के देने और सुखi कR वषा& करने वाला धम& है उस का लोप
करता है उसी को िवyान् लोग वृषल अथा&त् शू¥ और नीच जानते ह<। इसिलये
jकसी मनु‘य को धम& का लोप करना उिचत नहc।।११।।
इस संसार मO एक धम& ही सुÆद् है जो मृ"यु के पtात् भी साथ चलता है और
सब पदाथ& वा संगी शरीर के नाश के साथ ही नाश को 'ाƒ होते ह< अथा&त् सब
का संग छू ट जाता है पर3तु धम& का संग कभी नहc छू टता।।१२।।
जब राजसभा मO पzपात से अ3याय jकया जाता है वहां अधम& के चार िवभाग
हो जाते ह< उनमO एक अधम& के कsा&, दूसरा साzी, तीसरा सभासदi और चौथा
पाद अधमŠ सभा के सभापित राजा को 'ाƒ होता है।।१३।।
िजस सभा मO िन3दा के यो•य कR िन3दा, Hतुित के यो•य कR Hतुित, द‹ड के
यो•य को द‹ड और मा3य के यो•य को मा3य होता है वहां राजा और सभासद्
पाप से रिहत और पिव• हो जाते ह< पाप के कsा& ही को पाप 'ाƒ होता
है।।१४।।
अब साzी कै से करने चािहये-
आƒाः सव·षु वण·षु का‰या&ः काय·षु सािzणः।
सव&धम&िवदोऽलुdधा िवपरीतांHतु वज&येत्।।१।।
¬ीणां साˆयं ि¬यः कु यु&ि◌y&जानां सदृशा िyजाः।
शू¥ाt स3तः शू¥ाणाम3"यानाम3"ययोनयः।।२।।
साहसेषु च सव·षु Hतेयस >हणेषु च।
वा•द‹डयोt पा˜‘ये न परीzेत सािzणः।।३।।
बg"वं पWरगृòीयात् सािzyैधे नरािधपः।
समेषु तु गुणो"कृ …ान् गुिणyैधे िyजोsमान्।।४।।
समzदश&ना"साˆयं ~वणा0ैव िस—यित।
त• स"यं {ुव3साzी धमा&था&^यां न हीयते।।५।।
साzी दृ…~ुताद3यिy{ुव–ा‰य&संसjद ।
अवा नरकम^येित 'े"य Hवगा&0 हीयते।।६।।
Hवभावेनैव यद् {ूयुHतद् >ाÉं aावहाWरकम्।
अतो यद3यिy{ूयुध&मा&थ¶ तदपाथ&कम्।।७।।
सभा3तःसािzणः 'ाƒान् िअथ&'ि"यथ&सि–धौ।
'ाि"ववाकोऽनुयुÅीत िविधनाऽनेन सा3"वयन्।।८।।
यद् yयोरनयोव·"थ काय·ऽिHमtेि…तं िमथः।
तद् {ूत सव¶ स"येन यु‘माकं É• सािzता।।९।।
स"यं साˆये {ुव3साzी लोकाना¹ोित पु‘कलान्।
इह चानुsमां कRि◌र्ंत वागेषा {|पूिजता।।१०।।
स"येन पूयते साzी धम&ः स"येन वZ&ते।
तHमा"स"यं िह वžaं सव&वण·षु सािzिभः।।११।।
आ"मैव Éा"मनः साzी गितरा"मा तथा"मनः।
मावमंHथाः Hवमा"मानं नृणां सािzणमुsमम्।।१२।।
यHय िवyान् िह वदतः zे•Xो नािभशंकते।
तHमा– देवाः ~ेयांसं लोके ऽ3यं पु˜षं िवदुः।।१३।।
एकोऽहमHमी"या"मानं यÓवं कqयाणं म3यसे।
िन"यं िHथतHते Ƈेषः पु‹यपापेिzता मुिनः।।१४।। मनु०।।
सब वणŽ मO धा“मक, िवyान्, िन‘कपटी, सब 'कार धम& को जानने वाले,
लोभरिहत, स"यवाjदयi को 3यायaवHथा मO साzी करे इन से िवपरीतi को
कभी न करे ।।१।।
ि¬यi कR साzी ¬ी, िyजi के िyज, शू¥i के शू¥ और अ3"यजi के अ3"यज
साzी हi।।२।।
िजतने बला"कार काम, चोरी, aिभचार, कठोर वचन, द‹डिनपातन ’प
अपराध ह< उन मO साzी कR परीzा न करे और अ"यावŸयक भी न समभफ़े
eयijक ये काम सब गुƒ होते ह<।।३।।
दोनi ओर के सािzयi मO से बgपzानुसार, तुqय सािzयi मO उsम गुणी पु˜ष
कR साzी के अनुकूल और दोनi के साzी उsम गुणी और तुqय हi तो िyजोsम
अथा&त् ऋिष मह“ष और यितयi कR साzी के अनुसार 3याय करे ।।४।।
दो 'कार से साzी होना िसZ होता है एक साzात् देखने और दूसरा सुनने से;
जब सभा मO पूछO तब जो साzी स"य बोलO वे धम&हीन और द‹ड के यो•य न
होवO और जो साzी िम•या बोलO वे यथायो•य द‹डनीय हi।।५।।
जो राजसभा वा jकसी उsम पु˜षi कR सभा मO साzी देखने और सुनने से
िव˜Z बोले तो वह (अवा नरक) अथा&त् िज§वा के छेदन से दुःख’प नरक
को वs&मान समय मO 'ाƒ होवे और मरे पtात् सुख से हीन हो जाय।।६।।
साzी के उस वचन को मानना jक जो Hवभाव ही से aवहार स›ब3धी बोले
और िसखाये gए इस से िभ– जो-जो वचन बोले उस-उस को 3यायाधीश aथ&
समझO।।७।।
जब अथŠ (वादी) और '"यथŠ ('ितवादी) के सामने सभा के समीप 'ाƒ gए
सािzयi को शाि3तपूवक& 3यायाधीश और 'ाि"ववाक अथा&त् वकRल वा
वैWरHटर इस 'कार से पूछO।।८।।
हे सािz लोगो ! इस का‰य& मO इन दोनi के परHपर कमŽ मO जो तुम जानते हो
उस को स"य के साथ बोलो-तु›हारी इस काय& मO साzी है।।९।।
जो साzी स"य बोलता है वह ज3मा3तर मO उsम ज3म और उsम लोका3तरi
मO ज3म को 'ाƒ होके सुख भोगता है। इस ज3म वा परज3म मO उsम कR“s
को 'ाƒ होता है, eयijक जो यह वाणी है वही वेदi मO स"कार और ितरHकार
का कारण िलखी है। जो स"य बोलता है वह 'िति¼त और िम•यावादी िनि3दत
होता है।।१०।।
स"य बोलने से साzी पिव• होता और स"य ही बोलने से धम& बढ़ता है, इस से
सब वणŽ मO सािzयi को स"य ही बोलना यो•य है।।११।।
आ"मा का साzी आ"मा और आ"मा कR गित आ"मा है इसको जान के हे पु˜ष
! तू सब मनु‘यi का उsम साzी अपने आ"मा का अपमान मत कर अथा&त्
स"यभाषण जो jक तेरे आ"मा मन वाणी मO है वह स"य और जो इस से िवपरीत
है वह िम•याभाषण है।।१२।।
िजस बोलते gए पु˜ष का िवyान् zे•X अथा&त् शरीर का जानने हारा आ"मा
भीतर शंकò को 'ाƒ नहc होता उस से िभ– िवyान् लोग jकसी को उsम
पु˜ष नहc जानते।।१३।।
हे कqयाण कR इ¸छा करनेहारे पु˜ष ! जो तू ‘म< अके ला •ं’ ऐसा अपने आ"मा
मO जानकर िम•या बोलता है सो ठीक नहc है jक3तु जो दूसरा तेरे Æदय मO
अ3तया&मी’प से परमे5र पु‹य पाप को देखने वाला मुिन िHथत है उस
परमा"मा से डरकर सदा स"य बोला कर।।१४।।
लोभा3मोहाÐया3मै•"कामा"•फ़ोधाsथैव च।
अXानाद् बालभावा0 साˆयं िवतथमु¸यते।।१।।
एषाम3यतमे Hथाने यः साˆयमनृतं वदेत्।
तHय द‹डिवशेषांHतु 'वˆया›यनुपूव&शः।।२।।
लोभा"सहêं द‹üHतु मोहा"पूव&3तु साहसम्।
भयाद् yौ म—यमौ द‹üौ मै•"पूव¶ चतुगु&णम्।।३।।
कामाÖशगुणं पूव¶ •फ़ोधाsु ि•गुणं परम्।
अXानाद् yे शते पूण· बािलŸया¸छतमेव तु।।४।।
उपHथमुदरं िज§वा हHतौ पादौ च प€मम्।
चzुना&सा च कणï च धनं देहHतथैव च।।५।।
अनुब3धं पWरXाय देशकालौ च तÓवतः।
साराऽपराधौ चालोeय द‹डं द‹üेषु पातयेत्।।६।।
अधम&द‹डनं लोके यशोšं कR“sनाशनम्।
अHव•य&€ पर•िप तHमाs"पWरवज&येत्।।७।।
अद‹üा3द‹डयन् राजा द‹üांtैवाÊयद‹डयन्।
अयशो महद् आ¹ोित नरकं चैव ग¸छित।।८।।
वा•द‹डं 'थमं कु या&िZ•द‹डं तदन3तरम्।
तृतीयं धनद‹डं तु वधद‹डमतः परम्।।९।। मनु०।।
जो लोभ, मोह, भय, िम•ता, काम, ¦ोध, अXान और बालकपन से साzी देवे
वह सब िम•या समझी जावे।।१।।
इनमO से jकसी Hथान मO साzी झूठ बोले उस को वˆयमाण अनेकिवध द‹ड
jदया करे ।।२।।
जो लोभ से झूठी साzी देवे उस से १५।।=)(प3¥ह ˜पये दश आने) द‹ड लेवे,
जो मोह से झूठी साzी देवे उस से ३=) (तीन ˜पये दो आने) द‹ड लेवे, जो
भय से िम•या साzी देवे उस से ६।) (सवा छः ˜पये ) द‹ड लेवे और जो पु˜ष
िम•ता से झूठी साzी देवे उससे १२।।) (साढ़े बारह ˜पये) द‹ड लेवे।।३।।
जो पु˜ष कामना से िम•या साzी देवे उससे २५) (प0ीस ˜पये) द‹ड लेवे, जो
पु˜ष ¦ोध से झूठी साzी देवे उससे ४६।।।=) छयालीस ˜पये चौदह आने)
द‹ड लेवे, जो पु˜ष अXानता से झूठी साzी देवे उससे ३) (तीन ˜पये) द‹ड
लेवे और जो बालकपन से िम•या साzी देवे तो उससे १।।-) (एक ˜पया नौ
आने) द‹ड लेवे।।
४।। द‹ड के उपHथेि3¥य, उदर, िज§वा, हाथ, पग, आंख, नाक, कान, धन और
देह ये दश Hथान ह< jक िजन पर द‹ड jदया जाता है।।५।।
पर3तु जो-जो द‹ड िलखा है और िलखOगे जैसे लोभ के साzी देने मO प3¥ह ˜पये
दश आने द‹ड िलखा है पर3तु जो अ"य3त िनध&न हो तो उस से कम और धनाÚ
हो तो उससे दूना, ितगुना और चौगुना तक भी ले लेवे अथा&त् जैसा देश, जैसा
काल और जैसा पु˜ष हो उस का जैसा अपराध हो वैसा ही द‹ड करे ।।६।।
eयijक इस संसार मO जो अधम& से द‹ड करना है वह पूव& 'ित¼ा वs&मान और
भिव‘यत् मO और परज3म मO होने वाली कR“त का नाश करनेहारा है और
परज3म मO भी दुःखदायक होता है इसिलये अधम&युž द‹ड jकसी पर न
करे ।।७।।
जो राजा द‹डनीयi को न द‹ड और अद‹डनीयi को द‹ड देता है अथा&त् द‹ड
देने यो•य को छोड़ देता और िजस को द‹ड देना न चािहये उस को द‹ड देता
है वह जीता gआ बड़ी िन3दा को और मरे पीछे बड़े दुःख को 'ाƒ होता है
इसिलये जो अपराध करे उस को सदा द‹ड देवे और अनपराधी को द‹ड कभी
न देवे।।८।।
'थम वाणी का द‹ड अथा&त् उस कR ‘िन3दा’ दूसरा ‘िधÀफ़’ द‹ड अथा&त् तुझ
को िधÙार है तूने ऐसा बुरा काम eयi jकया, तीसरा उस से ‘धन लेना’ और
‘वध’ द‹ड अथा&त् उस को कोड़ा या बOत से मारना वा िशर काट देना।।९।।
येन येन यथांगेन Hतेनो नृषु िवचे…ते।
तsदेव हरे दHय '"यादेशाय पा“थवः।।१।।
िपताचा‰य&ः सुÆ3माता भा‰या& पु•ः पुरोिहतः।
नाद‹üो नाम राXोऽिHत यः Hवधम· न ित¼ित।।२।।
काषा&पणं भवेÖ‹üो य•3यः 'ाकृ तो जनः।
त• राजा भवेÖ‹üः सहêिमित धारणा।।३।।
अ…ापा‡3तु शू¥Hय Hतेये भवित jकिqवषम्।
षोडशैव तु वैŸयHय yाÒ•श"zि•यHय च।।४।।
{ा|णHय चतुःषि…ः पूण¶ वािप शतं भवेत्।
िyगुणा वा चतुःषि…HतÖोषगुणिविZ सः।।५।।
ऐ3¥ं Hथानमिभ'ेÊसुय&शtाzयमaयम्।
नोपेzेत zणमिप राजा साहिसकं नरम्।।६।।
वा•दु…ाsHकरा0ैव द‹डेनैव च िहसतः।
साहसHय नरः कsा& िवXेयः पापकृ sमः।।७।।
साहसे वs&मानं तु यो मष&यित पा“थवः।
स िवनाशं Ëज"याशु िवyेषं चािधग¸छित।।८।।
न िम•कारणा¥ाजा िवपुलाyा धनागमात्।
समु"सृजेत् साहिसकान् सव&भूतभयावहान्।।९।।
गु˜ं वा बालवृZौ वा {ा|णं वा बg~ुतम्।
आतताियनमाया3तं ह3यादेवािवचारयन्।।१०।।
नातताियवधे दोषो ह3तुभ&वित कtन।
'काशं वाऽ'काशं वा म3युHत3मृ"युमृ¸छित।।११।।
यHय Hतेनः पुरे नािHत ना3य¬ीगो न दु…वाÀफ़।
न साहिसकद‹डšौ स राजा श•फ़लोकभाÀफ़।।१२।। मनु०।।
चोर िजस 'कार िजस-िजस अं•य से मनु‘यi मO िव˜Z चे…ा करता है उस-उस
अंग को सब मनु‘यi कR िशzा के िलये राजा हरण अथा&त् छेदन कर दे।।१।।
चाहे िपता, आचाय&, िम•, माता, ¬ी, पु• और पुरोिहत eयi न हो जो Hवधम&
मO िHथत नहc रहता वह राजा का अद‹ü नहc होता अथा&त् जब राजा
3यायासन पर बैठ 3याय करे तब jकसी का पzपात न करे jक3तु यथोिचत
द‹ड देवे।।२।।
िजस अपराध मO साधारण मनु‘य पर एक पैसा द‹ड हो उसी अपराध मO राजा
को सहê पैसा द‹ड होवे अथा&त् साधारण मनु‘य से राजा को सहê गुणा द‹ड
होना चािहये। म3•ी अथा&त् राजा के दीवान को आठ सौ गुणा उससे 3यून सात
सौ गुणा और उस से भी 3यून को छः सौ गुणा इसी 'कार उsर-उsर अथा&त्
जो एक छोटे से छोटा भृ"य अथा&त् चपरासी है उस को आठ गुणे द‹ड से कम
न होना चािहये। eयijक यjद 'जापु˜षi से राजपु˜षi को अिधक द‹ड न होवे
तो राजपु˜ष 'जा पु˜षi का नाश कर देवे, जैसे िसह अिधक और बकरी थोड़े
द‹ड से ही वश मO आ जाती है। इसिलये राजा से लेकर छोटे से छोटे भृ"य
प‰य&3त राजपु˜षi को अपराध मO 'जापु˜षi से अिधक द‹ड होना
चािहये।।३।।
वैसे ही◌े जो कु छ िववेकR होकर चोरी करे उस शू¥ को चोरी से आठ गुणा,
वैŸय को सोलह गुणा, zि•य को बsीस गुणा।।४।।
{ा|ण को चौसठ गुणा वा सौ गुणा अथवा एक सौ अ$ाईस गुणा द‹ड होना
चािहये अथा&त् िजतना िजतना Xान और िजतनी 'ित¼ा अिधक हो उस को
अपराध मO उतना ही◌े अिधक द‹ड होना चािहए।।५।।
रा°य का अिधकारी ध›म& और ऐ5य& कR इ¸छा करने वाला राजा बला"कार
काम करने वाले डाकु u को द‹ड देने मO एक zण भी देर न करे ।।६।।
साहिसक पु˜ष का लzण-
जो दु… वचन बोलने, चोरी करने, िवना अपराध के द‹ड देने वाले से भी साहस
बला"कार काम करने वाला है वह अतीव पापी दु… है।।७।।
जो राजा साहस मO वs&मान पु˜ष को न द‹ड देकर सहन करता है वह राजा
शीÎ ही नाश को 'ाƒ होता है और रा°य मO yेष उठता है।।८।।
न िम•ता, न पु‘कल धन कR 'ािƒ से भी जो राजा सब 'ािणयi को दुःख देने
वाले साहिसक मनु‘य को ब3धन छेदन jकये िवना कभी न छोड़े।।९।।
चाहे गु˜ हो, चाहे पु•jद बालक हi, चाहे िपता आjद वृZ, चाहे {ा|ण और
चाहे बgत शा¬O का ~ोता eयi न हो, जो धम& को छोड़ अधम& मO वs&मान,
दूसरे को िवना अपराध मारनेवाले ह< उन को िवना िवचारे मार डालना अथा&त्
मार के पtात् िवचार करना चािहये।।१०।।
दु… पु˜षi के मारने मO ह3ता को पाप नहc होता, चाहे 'िसZ मारे चाहे
अ'िसZ, eयijक ¦ोधी को ¦ोध से मारना जानो ¦ोध से ¦ोध कR लड़ाई
है।।११।।
िजस राजा के रा°य मO न चोर, न पर¬ीगामी, न दु… वचन बोलनेहारा, न
साहिसक डाकू और न द‹डš अथा&त् राजा कR आXा का भंग करने वाला है
वह राजा अतीव ~े¼ है।।१२।।
('-) जो राजा वा राणी अथवा 3यायाधीश वा उसकR ¬ी aिभचाराjद कु कम&
करे तो उस को कौन द‹ड देवे?
(उsर) सभा, अथा&त् उन को तो 'जापु˜षi से भी अिधक द‹ड होना चािहये।
('-) राजाjद उन से द‹ड eयi >हण करO ग? े
(उsर) राजा भी एक पु‹या"मा भा•यशाली मनु‘य है। जब उसी को द‹ड न
jदया जाय और वह द‹ड >हण न करे तो दूसरे मनु‘य द‹ड को eयi मानOग? े
और जब सब 'जा और 'धान रा°यािधकारी और सभा धा“मकता से द‹ड
देना चाहO तो अके ला राजा eया कर सकता है? जो ऐसी aवHथा न हो तो
राजा 'धान और सब समथ& पु˜ष अ3याय मO डू ब कर 3याय धम& को डु बा के
सब 'जा का नाश कर आप भी न… हो जायO, अथा&त् उस ºोक के अथ& का
Hमरण करो jक 3याययुž द‹ड ही◌े का नाम राजा और धम& है जो उस का
लोप करता है उस से नीच पु˜ष दूसरा कौन होगा ?
('-) यह कड़ा द‹ड होना उिचत नहc, eयijक मनु‘य jकसी अंग का
बनानेहारा वा िजलानेवाला नहc है, इसिलये ऐसा द‹ड न देना चािहये ?
(उsर) जो इस को कड़ा द‹ड जानते ह< वे राजनीित को नहc समझते, eयijक
एक पु˜ष को इस 'कार द‹ड होने से सब लोग बुरे काम करने से अलग रहOगे
और बुरे काम को छोड़कर धम&माग& मO िHथत रहOगे। सच पूछो तो यही है jक
एक राई भर भी यह द‹ड सब के भाग मO न आवेगा। और जो सुगम द‹ड jदया
जाय तो दु… काम बgत बढ़कर होने लगO। वह िजस को तुम सुगम द‹ड कहते
हो वह ¦ोड़i गुणा अिधक होने से ¦ोणi गुणा कWठन होता है eयijक जब बgत
मनु‘य दु… कम& करO गे तब थोड़ा-थोड़ा द‹ड भी देना पड़ेगा अथा&त् जैसे एक को
मन भर द‹ड gआ और दूसरे को पाव भर तो पाव भर अिधक एक मन द‹ड
होता है तो '"येक मनु‘य के भाग मO आध पाव बीस सेर द‹ड पड़ा तो ऐसे
सुगम द‹ड को दु… लोग eया समझते ह<? जैसे एक को मन और सहê मनु‘यi
को पाव-पाव द‹ड gआ तो ६। सवा छः मन मनु‘य जाित पर द‹ड होने से
अिधक और यही कड़ा तथा वह एक मन द‹ड 3यून और सुगम होता है। जो
ल›बे माग& मO समु¥ कR खािड़यां वा नदी तथा बड़े नदi मO िजतना ल›बा देश
हो उतना कर Hथापन करे और महासमु¥ मO िनिtत कर Hथापन नहc हो सकता
jक3तु जैसा अनुकूल देखे jक िजस से राजा और बड़े-बड़े नौकाu के समु¥ मO
चलाने वाले दोनi लाभ युž हi वैसी aवHथा करे । पर3तु यह —यान रखना
चािहये jक जो कहते ह< jक 'थम जहाज नहc चलते थे, वे झूठे ह<। और देश-
देशा3तर yीप-yीपा3तरi मO नौका से जानेवाले अपने 'जाHथ पु˜षi कR सव&•
रzा कर उन को jकसी 'कार का दुःख न होने देवे।।३।।
राजा 'ितjदन कमŽ कR समािƒयi को, हाथी, घोड़े आjद वाहनi को, िनयत
लाभ और खरच, ‘आकर’ र¢ाjदकi कR खानO और कोष (खजाने) को देखा
करे ।।४।।
राजा इस 'कार सब aवहारi को यथावत् समाƒ करता कराता gआ सब
पापi को छु ड़ा के परमगित मोz सुख को 'ाƒ होता है।।५।।
('-) संHकृ तिव‡ा मO पूरी-पूरी राजनीित है वा अधूरी?
(उsर) पूरी है, eयijक जो-जो भूगोल मO राजनीित चली और चलेगी वह सब
संHकृ त िव‡ा से ली है। और िजन का '"यz लेख नहc है उनके िलये-
'"यहं लोकदृ…t ै शा¬दृ…t ै हेतुिभः।। मनु०।।
जो-जो िनयम राजा और 'जा के सुखकारक और धम&युž समझO उन-उन
िनयमi को पूण& िवyानi कR राजसभा बांधा करे । पर3तु इस पर िन"य —यान
रeखे jक जहाँ तक बन सके वहां तक बाqयावHथा मO िववाह न करने देवO।
युवावHथा मO भी िवना 'स–ता के िववाह न करना कराना और न करने देना।
{|चय& का यथावत् सेवन करना कराना। aिभचार और बgिववाह को ब3ध
करO jक िजस से शरीर और आ"मा मO पूण& बल सदा रहै। eयijक जो के वल
आ"मा का बल अथा&त् िव‡ा Xान बढ़ाये जायO और शरीर का बल न बढ़ावO तो
एक ही बलवान् पु˜ष Xानी और सैकड़i िवyानi को जीत सकता है। और जो
के वल शरीर ही◌े का बल बढ़ाया जाय, आ"मा का नहc तो भी रा°यपालन कR
उsम aवHथा िवना िव‡ा के कभी नहc हो सकती। िवना aवHथा के सब
आपस मO ही पफ़ू ट-टू ट, िवरोध , लड़ाई-झगड़ा, करके न… ±… हो जायO।
इसिलये सव&दा शरीर और आ"मा के बल को बढ़ाते रहना चािहये। जैसा बल
और बुिZ का नाशक aवहार aिभचार और अितिवषयासिž है वैसा और
कोई नहc है।
िवशेषतः zि•यi को दृढांग और बलयुž होना चािहये eयijक जब वे ही
िवषयासž हiगे तो राजधम& ही न… हो जायगा और इस पर भी —यान रखना
चािहये jक ‘यथा राजा तथा 'जाः’ जैसा राजा है वैसी ही उस कR 'जा होती
है। इसिलये राजा और राजपु˜षi को अित उिचत है jक कभी दु…ाचार न करO
jक3तु सब jदन धम& 3याय से वs&कर सब के सुधार का दृ…ा3त बनO ।
यह संzेप से राजधम& का वण&न यहां jकया है। िवशेष वेद, मनुHमृित के सƒम,
अ…म, नवम अ—याय मO और शु¦नीित तथा िवदुर'जागर और महाभारत
शाि3तपव& के राजधम& और आपZम& आjद पुHतकi मO देख कर पूण& राजनीित
को धारण करके मा‹डिलक अथवा साव&भौम च¦वतŠ रा°य करO और यह समझO
jक-‘वयं 'जापतेः 'जा अभूम’ यह यजुव·द का वचन है। हम 'जापित अथा&त्
परमे5र कR 'जा और परमा"मा हमारा राजा हम उस के jककर भृ"यवत् ह<◌े।
वह कृ पा करके अपनी सृि… मO हम को रा°यािधकारी करे और हमारे हाथ से
अपने स"य 3याय कR 'वृिs करावे।
अब आगे ई5र और वेदिवषय मO िलखा जायगा।
इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमकृ ते स"याथ&'काशे
सुभाषािवभूिषते राजधम&िवषये
ष¼ः समुqलासः स›पूण&ः।।६।।
अथ सƒमसमुqलासार›भः
ऋचो अzरे परमे aोम3यिHम3देवा अिध िव5े िनषेदःु ।
यHत– वेद jकमृचा कWर‘यित य इsिyदुHत इमे समासते ।।१।।
- ऋ० मं० १। सू० १६४। मं० ३९।।
ईशा वाHय िमदँ◌् सव¶ यि"क€ जग"याÅगत् ।
तेन "यžे न भुÅीथा मा गृधः कHय िHवZनम् ।।२।।
-यजु० अ० ४०। मं० १।।
अ ह›भुवं वसुनः पूa&Hपितरहं धनािन सं जयािम श5तः ।
मां हव3ते िपतरं न ज3तवोऽहं दाशुषे िवभजािम भोजनम् ।।३।।
- ऋ० मं० १०। सू० ४८। मं० १।।
अ हिम3¥ो न परा िज•य इZनं न मृ"यवेऽवतHथे कदाचन ।
सोमिम3मा सु3व3तो याचता वसु न मे पूरवः सwये Wरषाथन
।।४।।
- ऋ० मं० १०। सू० ४८। मं० ५।।
अ हं दां गृणते पूa¶ वHवहं {| कृ णवं मÉं वध&नम् ।
अ हं भुवं यजमानHय चोjदताऽय°वनः सािz िव5िHम3भरे
।।५।।
- ऋ० मं० १०। सू० ४९। मं० १।।
(ऋचो अzरे ) इस म3• का अथ& {|च‰या&~म कR िशzा मO िलख चुके ह< अथा&त्
जो सब jदa गुण, कम&, Hवभाव, िव‡ायुž और िजस मO पृिथवी सू‰या&jद
िलोक िHथत ह< और जो आकाश के समान aापक सब देवi का देव परमे5र है
उस को जो मनु‘य न जानते न मानते और उस का —यान नहc करते वे नािHतक
म3दमित सदा दुःखसागर मO डू बे ही रहते ह<। इसिलये सव&दा उसी को जानकर
सब मनु‘य सुखी होते ह<।
('-) वेद मO ई5र अनेक ह< इस बात को तुम मानते हो वा नहc?
(उsर) नहc मानते eयijक चारi वेदi मO ऐसा कहc नहc िलखा िजस से अनेक
ई5र िसZ हi। jक3तु यह तो िलखा है jक ई5र एक है।
('-) वेदi मO जो अनेक देवता िलखे ह< उस का eया अिभ'ाय है?
(उsर) देवता jदa गुणi से युž होने के कारण कहाते ह< जैसी jक िपृिथवी,
पर3तु इस को कहc ई5र वा उपासनीय नहc माना है। देखो ! इसी म3• मO jक
‘िजस मO सब देवता िHथत ह<, वह जानने और उपासना करने यो•य ई5र है।’
यह उनकR भूल है जो देवता शdद से ई5र का >हण करते ह<। परमे5र देवi
का देव होने से महादेव इसीिलये कहाता है jक वही सब जगत् कR उ"पिs,
िHथित, 'लयकsा&, 3यायाधीश, अिध¼ाता है।
जो ‘•यÒस्•शÒत्•शता०’ इ"याjद वेदi मO 'माण ह< इस कR aाwया शतपथ
मO कR है jक तOतीस देव अथा&त् पृिथवी, जल, अि«, वायु, आकाश, च3¥मा,
सू‰य& और नz• सब सृि… के िनवास Hथान होने से आठ वसु। 'ाण, अपान,
aान, उदान, समान, नाग, कू ›म&, कृ कल, देवदs, धनÅय और जीवा"मा ये
•यारह ˜¥ इसिलये कहाते ह< jक जब शरीर को छोड़ते ह< तब रोदन कराने
वाले होते ह<। संव"सर के बारह महीने बारह आjद"य इसिलये ह< jक ये सब कR
आयु को लेते जाते ह<।
िबजली का नाम इ3¥ इस हेतु से है jक परम ऐ5य& का हेतु है। यX को 'जापित
कहने का कारण यह है jक िजस से वायु वृि… जल ओषधी कR शुिZ, िवyानi
का स"कार और नाना 'कार कR िशqपिव‡ा से 'जा का पालन होता है। ये
तOतीस पूवªž गुणi के योग से देव कहाते ह<। इन का Hवामी और सब से बड़ा
होने से परमा"मा चëतीसवां उपाHयदेव शतपथ के चौदहवO का‹ड मO Hप…
िलखा है। इसी 'कार अ3य• भी िलखा है। जो ये इन शा¬O को देखते तो वेदi
मO अनेक ई5र मानने’प ±मजाल मO िगरकर eयi बहकते? ।।१।।
हे मनु‘य! जो कु छ इस संसार मO जगत् है उस सब मO aाƒ होकर जो िनय3ता
है वह ई5र कहाता है। उस से डर कर तू अ3याय से jकसी के धन कR आकांzा
मत कर। उस अ3याय के "याग और 3यायाचरण’प धम& से अपने आ"मा से
आन3द को भोग।।२।।
ई5र सब को उपदेश करता है jक हे मनु‘यो! म< ई5र सब के पूव& िव‡मान
सब जगत् का पित •ं। म< सनातन जग"कारण और सब धनi का िवजय
करनेवाला और दाता •ं। मुझ ही को सब जीव जैसे िपता को स3तान पुकारते
ह< वैसे पुकारO । म< सब को सुख देनेहारे जगत् के िलये नाना 'कार के भोजनi
का िवभाग पालन के िलये करता •ं।।३।।
म< परमै5‰य&वान् सूय& के सदृश सब जगत् का 'काशक •ं। कभी पराजय को
'ाƒ नहc होता और न कभी मृ"यु को 'ाƒ होता •ं। म< ही जगत् ’प धन का
िनमा&ता •ं। सब जगत् कR उ"पिs करने वाले मुझ ही को जानो। हे जीवो !
ऐ5य& 'ािƒ के य¢ करते gए तुम लोग िवXानाjद धन को मुझ से मांगो और
तुम लोग मेरी िम•ता से अलग मत होओ।।४।।
हे मनु‘यो! म< स"यभाषण’प Hतुित करनेवाले मनु‘य को सनातन Xानाjद धन
को देता •ं। म< {| अथा&त् वेद का 'काश करनेहारा और मुझ को वह वेद
यथावत् कहता उस से सब के Xान को म< बढ़ाता; म< स"पु˜ष का 'ेरक यX
करनेहारे को पफ़ल'दाता और इस िव5 मO जो कु छ है उस सब का‰य& का
बनाने और धारण करनेवाला •ं। इसिलये तुम लोग मुझ को छोड़ jकसी दूसरे
को मेरे Hथान मO मत पूजो, मत मानो और मत जानो।।५।।
िहर‹यगभ&ः समवs&ता>े भूतHय जातः पितरे क आसीत् ।
स दाधार पृिथवc ‡ामुतेमां कHमै देवाय हिवषा िवधेम ।।
यह यजुव·द का म3• है-
हे मनु‘यो! जो सृि… के पूव& सब सू‰या&jद तेजवाले लोकi का उ"पिs Hथान,
आधार और जो कु छ उ"प– gआ था, है और होगा उसका Hवामी था, है और
होगा। वह पृिथवी से लेके सू‰य&लोक पय&3त सृि… को बना के धारण कर रहा
है। उस सुखHव’प परमा"मा ही◌े कR भिž जैसे हम करO वैसे तुम लोग भी
करो।
('-) आप ई5र-ई5र कहते हो पर3तु इसकR िसिZ jकस 'कार करते हो?
(उsर) सब '"यzाjद 'माणi से।
('-) ई5र मO '"यzाjद 'माण कभी नहc घट सकते।
(उsर) इि3¥याथ&सि–कषª"प–ं XानमaपदेŸयमaिभचाWर aव- साया"मकं
'"यzम्।। यह गौतम मह“षकृ त 3यायदश&न का सू• है।
जो ~ो•, "वचा, चzु, िज§वा, Îाण और मन का शdद, Hपश&, ’प, रस, ग3ध,
सुख, दुःख, स"यास"य िवषयi के साथ स›ब3ध होने से Xान उ"प– होता है
उसको '"यz कहते ह< पर3तु वह िन±&म हो। अब िवचारना चािहये jक इि3¥यi
और मन से गुणi का '"यz होता है
गुणी का नहc। जैसे चारi "वचा आjद इि3¥यi से Hपश&, ’प, रस और ग3ध का
Xान होने से गुणी जो पृिथवी उस का आ"मायुž मन से '"यz jकया जाता है,
वैसे इस '"यz सृि… मO रचना िवशेष आjद Xानाjद गुणi के '"यz होने से
परमे5र का भी '"यz है। और जब आ"मा मन और मन इि3¥यi को jकसी
िवषय मO लगाता वा चोरी आjद बुरी वा परोपकार आjद अ¸छी बात के करने
का िजस zण मO आर›भ करता है, उस समय जीव कR ‘इ¸छा, Xानाjद उसी
इि¸छत िवषय पर झुक जाते ह<। उसी zण मO आ"मा के भीतर से बुरे काम करने
मO भय, शंका और लœा तथा अ¸छे कामi के करने मO अभय, िनःशंकता और
आन3दो"साह उठता है। वह जीवा"मा कR ओर से नहc jक3तु परमा"मा कR ओर
से है। और जब जीवा"मा शुZ होके परमा"मा का िवचार करने मO त"पर रहता
है उस को उसी समय दोनi '"यz होते ह<। जब परमे5र का '"यz होता है
तो अनुमानाjद से परमे5र के Xान होने मO eया स3देह है? eयijक काय& को
देख के कारण का अनुमान होता है।
('-) ई5र aापक है वा jकसी देशिवशेष मO रहता है?
(उsर) aापक है, eयijक जो एक देश मO रहता तो सवा&3तया&मी सव&X,
सव&िनय3ता, सब का ê…ा, सब का धsा& और 'लयकsा& नहc हो सकता। अ'ाƒ
देश मO कsा& कR j¦या का अस›भव है।
('-) परमे5र दयालु और 3यायकारी है वा नहc?
(उsर) है।
('-) ये दोनi गुण परHपर िव˜Z ह<। जो 3याय करे तो दया और दया करे तो
3याय छू ट जाय। eयijक 3याय उस को कहते ह< jक जो कमŽ के अनुसार न
अिधक न 3यून सुख दुःख पgंचाना और दया उस को कहते ह< जो अपराधी को
िवना द‹ड jदये छोड़ देना।
(उsर) 3याय और दया का नाममा• ही भेद है eयijक जो 3याय से 'योजन
िसZ होता है वही दया से। द‹ड देने का 'योजन है jक मनु‘य अपराध करने
से ब3ध होकर दुःखi को 'ाƒ न हi वही दया कहाती है। जो पराये दुःखi का
छु ड़ाना और जैसा अथ& दया और 3याय का तुम ने jकया है वह ठीक नहc eयijक
िजस ने जैसा िजतना बुरा कम& jकया हो उस को उतना वैसा ही द‹ड देना
चािहये, उसी का नाम 3याय है। और जो अपराधी को द‹ड न jदया जाय तो
दया का नाश हो जाय। eयijक एक अपराधी डाकू को छोड़ देने से सहêi
धमा&"मा पु˜षi को दुःख देना है। जब एक के छोड़ने से सहêi मनु‘यi को दुःख
'ाƒ होता है वह दया jकस 'कार हो सकती है? दया वही है jक उस डाकू
को कारागार मO रखकर पाप करने से बचाना डाकू पर और उस डाकू को मार
देने से अ3य सहêi मनु‘यi पर दया 'कािशत होती है।
('-) jफर दया और 3याय दो शdद eयi gए? eयijक उन दोनां◌े का अथ&
एक ही होता है तो दो शdदi का होना aथ& है। इसिलये एक शdद का रहना
तो अ¸छा था। इस से eया िवjदत होता है jक दया और 3याय का एक 'योजन
नहc है।
(उsर) eया एक अथ& के अनेक नाम और एक नाम के अनेक अथ& नहc होते?
('-) होते ह<।
(उsर) तो पुनः तुम को शंका eयi gई?
('-) संसार मO सुनते ह< इसिलये।
(उsर) संसार मO तो स0ा झूठा दोनi सुनने मO आता है पर3तु उस का िवचार
से िनtय करना अपना काम है।
देखो! ई5र कR पूण& दया तो यह है jक िजस ने सब जीवi के 'योजन िसZ
होने के अथ& जगत् मO सकल पदाथ& उ"प– करके दान दे रeखे ह<। इस से िभ–
दूसरी बड़ी दया कौन सी है? अब 3याय का फल '"यz दीखता है jक सुख
दुःख कR aवHथा अिधक और 3यूनता से फल को 'कािशत कर रही है इन
दोनi का इतना ही भेद है jक जो मन मO सब को सुख होने और दुःख छू टने कR
इ¸छा और j¦या करना है वह दया और बाÉ चे…ा अथा&त् ब3धन छेदनाjद
यथावत् द‹ड देना 3याय कहाता है। दोनi का एक 'योजन यह है jक सब को
पाप और दुःखi से पृथÀफ़ कर देना।
('-) ई5र साकार है वा िनराकार?
(उsर) िनराकार। eयijक जो साकार होता तो aापक नहc हो सकता। जब
aापक न होता तो सव&Xाjद गुण भी ई5र मO न घट सकते। eयijक पWरिमत
वHतु मO गुण, कम&, Hवभाव भी पWरिमत रहते ह< तथा शीतो‘ण, zुधा, तृषा
और रोग, दोष, छेदन, भेदन आjद से रिहत नहc हो सकता। इस से यही
िनिtत है jक ई5र िनराकार है। जो साकार हो तो उसके नाक, कान, आंख
आjद अवयवi का बनानेहारा दूसरा होना चािहये। eयijक जो संयोग से उ"प–
होता है उस को संयुž करनेवाला िनराकार चेतन अवŸय होना चािहये। जो
कोई यहां ऐसा कहै jक ई5र ने Hवे¸छा से आप ही आप अपना शरीर बना
िलया तो भी वही िसZ gआ jक शरीर बनने के पूव& िनराकार था। इसिलए
परमा"मा कभी शरीर धारण नहc करता jक3तु िनराकार होने से सब जगत् को
सूˆम कारणi से Hथूलाकार बना देता है।
('-) ई5र सव&शिžमान् है वा नहc?
(उsर) है। पर3तु जैसा तुम सव&शिžमान् शdद का अथ& जानते हो वैसा नहc।
jक3तु सव&शिžमान् शdद का यही अथ& है jक ई5र अपने काम अथा&त् उ"पिs,
पालन, 'लय आjद और सब जीवi के पु‹य पाप कR यथायो•य aवHथा करने
मO jकि€त् भी jकसी कR सहायता नहc लेता अथा&त् अपने अन3त साम•य& से
ही सब अपना काम पूण& कर लेता है।
('-) हम तो ऐसा मानते ह< jक ई5र चाहै सो करे eयijक उसके ऊपर दूसरा
कोई नहc है।
(उsर) वह eया चाहता है? जो तुम कहो jक सब कु छ चाहता और कर सकता
है तो हम तुम से पूछते ह< jक परमे5र अपने को मार, अनेक ई5र बना, Hवयम्
अिवyान्, चोरी, aिभचाराjद पाप कम& कर और दुःखी भी हो सकता है? जैसे
ये काम ई5र के गुण, कम&, Hवभाव से िव˜Z ह< तो जो तु›हारा कहना jक वह
सब कु छ कर सकता है, यह कभी नहc घट सकता। इसीिलए सव&शिžमान्
शdद का अथ& जो हम ने कहा वही ठीक है।
('-) परमे5र आjद है वा अनाjद?
(उsर) अनाjद अथा&त् िजस का आjद कोई कारण वा समय न हो उस को
अनाjद कहते ह<। इ"याjद सब अथ& 'थम समुqलास मO कर jदया है देख लीिजये।
('-) परमे5र eया चाहता है?
(उsर) सब कR भलाई और सब के िलए सुख चाहता है पर3तु Hवत3•ता के
साथ jकसी को िवना पाप jकये पराधीन नहc करता।
('-) परमे5र कR Hतुित, 'ाथ&ना और उपासना करनी चािहए वा नहc?
(उsर) करनी चािहये।
('-) eया Hतुित आjद करने से ई5र अपना िनयम छोड़ Hतुित, 'ाथ&ना
करनेवाले का पाप छु ड़ा देगा?
(उsर) नहc।
('-) तो jफर Hतुित 'ाथ&ना eयi करना?
(उsर) उनके करने का फल अ3य ही है।
('-) eया है?
(उsर) Hतुित से ई5र मO 'ीित, उस के गुण, कम&, Hवभाव से अपने गुण, कम&,
Hवभाव का सुधारना, 'ाथ&ना से िनरिभमानता, उ"साह और सहाय का
िमलना, उपासना से पर{| से मेल और उसका साzा"कार होना।
('-) इनको Hप… करके समझाओ।
(उsर) जैस-े
स पयर्◌्◌ागा¸छु ¦मकायमËणमÈािवरँ ◌्शुZमपापिवZम् ।
किवम&नीषी पWरभूः Hवय›भूया&थात•यतोऽथा&न् a
दधा¸छा5ती^यः समा^यः ।।१।। -यजु० अ० ४०। मं० ८।।
ई5र कR Hतुित-वह परमा"मा सब मO aापक, शीÎकारी और अन3त बलवान्
जो शुZ, सव&X, सब का अ3तया&मी, सवªपWर िवराजमान, सनातन, HवयंिसZ,
परमे5र अपनी जीव’प सनातन अनाjद 'जा को अपनी सनातन िव‡ा से
यथावत् अथŽ का बोध वेद yारा कराता है। यह सगुण Hतुित अथा&त् िजस-िजस
गुण से सिहत परमे5र कR Hतुित करना वह सगुण; (अकाय) अथा&त् वह कभी
शरीर धारण व ज3म नहc लेता, िजस मO िछ¥ नहc होता, नाड़ी आjद के ब3धन
मO नहc आता और कभी पापाचरण नहc करता, िजस मO eलेश, दुःख, अXान
कभी नहc होता, इ"याjद िजस-िजस राग, yेषाjद गुणi से पृथÀफ़ मानकर
परमे5र कR Hतुित करना है वह िनगु&ण Hतुित है। इस से फल यह है jक जैसे
परमे5र के गुण ह< वैसे गुण, कम&, Hवभाव अपने भी करना। जैसे वह 3यायकारी
है तो आप भी 3यायकारी होवे। और जो के वल भांड के समान परमे5र के
गुणकRत&न करता जाता और अपने चWर• नहc सुधारता उसका Hतुित करना
aथ& है। 'ाथ&ना-
यां मेधां देवगणाः िपतरtोपासते ।
तया माम‡ मेधया«े मेधािवनं कु ˜ Hवाहा ।।१।।
-यजु० अ० ३२। मं० १४।।
तेजोऽिस तजेो मिय िधेह । वी‰यम&िस वीयॄरं् मिय धेिह ।
बलमिस बल◌ं मिय धेिह । ओजेाऽ Hयोजेा मिय धेिह ।
म3युरिस म3युं मिय धेिह । सहोऽिस सहो मिय धेिह ।।२।।
-यजुः अ० १९। मं० ९।।
यœा>तो दूरमुदिै त दव< तदु सुƒHय तथैिवैत ।
दूरंगमं °योितषां °योितरे कं त3मे मनः िशवसंकqपमHतु ।।३।।
येन कमा&‹यपसो मनीिषणो यXे कृ ‹वि3त िवदथेषु धीराः ।
यदपूव¶ यzम3तः 'जानां त3मे मनः िशवसंकqपमHतु ।।४।।
य"'Xानमुत चेतो धृितt यùयोितर3तरमृतं 'जासु ।
यHमा–ऽऋते jक€न कम& j¦यते त3मे मनः िशवसंकqपमHतु
।।५।।
येनेदं भूतं भुवनं भिव‘य"पWरगृहीतममृतेन सव&म् ।
येन यXHतायते सƒ होता त3मे मनः िशवसंकqपमHतु ।।६।।
यिHम–चृ: साम यज¤◌ूिष यिHम3प्ि◌रति¼ता
रथनाभािववाराः ।
यिHमँिtsँ◌्सव&मोत्◌ा◌ं 'जानां त3मे मनः िशवसंकqपमHतु
।।७।।
सुषारिथर5ािनव य3मनु‘या–ेनीयतेऽभीशुिभवा&िजनऽइव ।
Æ"'ित¼ं यदिजरं जिव¼ं त3मे मनः िशवसंकqपमHतु ।।८।।
-यजु० अ० ३४। मं० १। २। ३। ४। ५। ६।।
हे अ«े! अथा&त् 'काशHव’प परमे5र आप कR कृ पा से िजस बुिZ कR उपासना
िवyान्, Xानी और योगी लोग करते ह< उसी बुिZ से युž हम को इसी वs&मान
समय मO आप बुिZमान् कRिजये।।१।।
आप 'काशHव’प ह< कृ पा कर मुझ मO भी 'काश Hथापन कRिजये। आप अन3त
परा¦म युž ह< इसिलये मुझ मO भी कृ पाकटाz से पूण& परा¦म धWरये। आप
अन3त बलयुž ह< इसिलये मुझ मO भी बल धारण कRिजये। आप अन3त
साम•य&युž ह<, मुझ को भी पूण& साम•य& दीिजये। आप दु… काम और दु…i पर
¦ोधकारी ह<, मुझ को भी वैसा ही कRिजये। आप िन3दा, Hतुित और
Hवअपरािधयi का सहन करने वाले ह<, कृ पा से मुझ को भी वैसा ही
कRिजये।।२।।
हे दयािनधे! आप कR कृ पा से जो मेरा मन जागते मO दूर-दूर जाता, jदaगुणयुž
रहता है, और वही सोते gए मेरा मन सुषुिƒ को 'ाƒ होता वा Hव¹ मO दूर-दूर
जाने के समान aवहार करता सब 'काशकi का 'काशक, एक वह मेरा मन
िशवसंकqप अथा&त् अपने और दूसरे 'ािणयi के अथ& कqयाण का संकqप
करनेहारा होवे। jकसी कR हािन करने कR इ¸छायुž कभी न होवे।।३।।
हे सवा&3तया&मी! िजससे कम& करनेहारे धैय&युž िवyान् लोग यX और युZाjद
मO कम& करते ह< जो अपूव& साम•य&युž, पूजनीय और 'जा के भीतर रहनेवाला
है, वह मेरा मन धम& करने कR इ¸छायुž होकर अधम& को सव&था छोड़ देवे।।४।।
जो उ"कृ … Xान और दूसरे को िचतानेहारा िनtया"मकवृिs है और जो 'जाu
मO भीतर 'काशयुž और नाशरिहत है िजसके िवना कोई कु छ भी कम& नहc
कर सकता, वह मेरा मन शुZ गुणi कR इ¸छा करके दु… गुणi से पृथÀफ़
रहै।।५।।
हे जगदी5र! िजससे सब योगी लोग इन सब भूत, भिव‘यत्, वs&मान
aवहारi को जानते, जो नाशरिहत जीवा"मा को परमा"मा के साथ िमलके
सब 'कार ि•कालX करता है, िजस मO Xान और j¦या है, पांच Xानेि3¥य
बुिZ और आ"मायुž रहता है, उस योग’प यX को िजस से बढ़ाते ह<, वह मेरा
मन योग िवXानयुž होकर अिव‡ाjद eलेशi से पृथÀफ़ रहै।।६।।
हे परम िवyन् परमे5र! आप कR कृ पा से मेरे मन मO जैसे रथ के म—य धुरा मO
आरा लगे रहते ह< वैसे ऋ•वेद, यजुव·द, सामवेद और िजस मO अथव&वेद भी
'िति¼त होता है और िजस मO सव&X सव&aापक 'जा का साzी िचs चेतन
िवjदत होता है वह मेरा मन अिव‡ा का अभाव कर िव‡ाि'य सदा रहै।।७।।
हे सव&िनय3ता ई5र! जो मेरा मन रHसी से घोड़i के समान अथवा घोड़i के
िनय3ता सारिथ के तुqय मनु‘यi को अ"य3त इधर-उधर डु लाता है, जो Æदय
मO 'िति¼त गितमान् और अ"य3त वेग वाला है, वह सब इि3¥यi को
अधमा&चरण से रोक के धम&पथ मO सदा चलाया करे । ऐसी कृ पा मुझ पर
कRिजये।।८।।
अ«े नय सुपथा राये अHमान् िव5ािन देव वयुनािन िवyान् ।
युयो—यॄHमœुgराणमेनो भूिय¼ां ते नमऽउिž िवधेम ।।१।।
-यजु० अ० ४०। मं० १६।।
हे सुख के दाता Hव'काशHव’प सब को जाननेहारे परमा"मन्! आप हम को
~े¼ माग& से स›पूण& 'Xानi को 'ाƒ कराइये और जो हम मO कु Wटल
पापाचरण’प माग& है उस से पृथÀफ़ कRिजये। इसीिलये हम लोग न¨तापूव&क
आपकR बgत सी Hतुित करते ह< jक हम को पिव• करO ।।१।।
मा नो महा3तमुत मा नोऽअभ&कं मा न उz3तमुत मा न उिzतम्

मा नो वधीः िपतरं मोत मातरं मा नः ि'याHत3वो ˜¥ रीWरषः
।।१।। -यजु० अ० १६। मं० १५।।
हे ˜¥! (दु…i को पाप के दुःखHव’प फल को देके ˜लाने वाले परमे5र) आप
हमारे छोटे बड़े जन, गभ&, माता, िपता और ि'य ब3धुवग& तथा शरीरi का
हनन करने के िलये 'ेWरत मत कRिजये। ऐसे माग& से हम को चलाइये िजस से
हम आपके द‹डनीय न हi।।१।।
असतो मा सद् गमय, तमसो मा °योितग&मय, मृ"योमा&ऽमृतं गमयेित।।
-शतपथ {ा०।।
हे परमगुरो परमा"मन्! आप हम को असत् माग& से पृथÀफ़ कर स3माग& मO 'ाƒ
कRिजये। अिव‡ा3धकार को छु ड़ा के िव‡ा’प सूय& को 'ाƒ कRिजये और मृ"यु
रोग से पृथÀफ़ करके मोz के आन3द’प अमृत को 'ाƒ कRिजये। अथा&त् िजस-
िजस दोष वा दुगु&ण से परमे5र और अपने को भी पृथÀफ़ मान के परमे5र कR
'ाथ&ना कR जाती है वह िविध िनषेधमुख होने से सगुण, िनगु&ण 'ाथ&ना। जो
मनु‘य िजस बात कR 'ाथ&ना करता है उस को वैसा ही वs&मान करना चािहये
अथा&त् जैसे सवªsम बुिZ कR 'ािƒ के िलये परमे5र कR 'ाथ&ना करे उस के
िलये िजतना अपने से 'य¢ हो सके उतना jकया करे । अथा&त् अपने पु˜षाथ&
के उपरा3त 'ाथ&ना करनी यो•य है।
ऐसी 'ाथ&ना कभी न करनी चािहये और न परमे5र उस को Hवीकार करता है
jक जैसे हे परमे5र! आप मेरे श•ुu का नाश, मुझ को सब से बड़ा, मेरी ही
'ित¼ा और मेरे आधीन सब हो जायँ इ"याjद, eयijक जब दोनi श•ु एक दूसरे
के नाश के िलए 'ाथ&ना करO तो eया परमे5र दोनi का नाश कर दे ? जो कोई
कहै jक िजस का 'ेम अिधक उस कR 'ाथ&ना सफल हो जावे । तब हम कह
सकते ह< jक िजस का 'ेम 3यून हो उसके श•ु का भी 3यून नाश होना चािहये।
ऐसी मूख&ता कR 'ाथ&ना करते-करते कोई ऐसी भी 'ाथ&ना करे गा-हे परमे5र!
आप हम को रोटी बना कर िखलाइये, मकान मO भफ़ाडू ़ लगाइये, व¬ धो
दीिजये और खेती बाड़ी भी कRिजये। इस 'कार जो परमे5र के भरोसे आलसी
होकर बैठे रहते ह< वे महामूख& ह< eयijक जो परमे5र कR पु˜षाथ& करने कR
आXा है उस को जो कोई तोड़ेगा वह सुख कभी न पावेगा। जैस-े
कु व&–ेवेह कमा&िण िजजीिवषे¸छतँ◌्समाः ।।२।। य० अ० ४० । मं०

परमे5र आXा देता है jक मनु‘य सौ वष& पय&3त अथा&त् जब तक जीवे तब तक
कम& करता gआ जीने कR इ¸छा करे , आलसी कभी न हो। देखो! सृि… के बीच
मO िजतने 'ाणी ह< अथवा अ'ाणी ह<, वे सब अपने-अपने कम& और य¢ करते
ही रहते ह<। जैसे िपपीिलका आjद सदा 'य¢ करते, पृिथवी आjद सदा घूमते
और वृz आjद सदा बढ़ते घटते रहते ह< वैसे यह दृ…ा3त मनु‘यi को भी >हण
करना यो•य है। जैसे पु˜षाथ& करते gए पु˜ष का सहाय दूसरा भी करता है वैसे
धम& से पु˜षाथŠ पु˜ष का सहाय ई5र भी करता है। जैसे काम करने वाले पु˜ष
को भृ"य करते ह< और अ3य आलसी को नहc। देखने कR इ¸छा करने और ने•
वाले को jदखलाते ह< अ3धे को नहc। इसी 'कार परमे5र भी सब के उपकार
करने कR 'ाथ&ना मO सहायक होता है हािनकारक कम& मO नहc। जो कोई गुड़
मीठा है ऐसा कहता है उस को गुड़ 'ाƒ वा उस को Hवाद 'ाƒ कभी नहc होता
और जो य¢ करता है उस को शीÎ वा िवल›ब से गुड़ िमल ही जाता है।
अब तीसरी उपासना-
समािधिनधू&तमलHय चेतसो िनवेिशतHया"मिन य"सुखं भवेत्।
न शeयते वण&ियतुं िगरा तदा Hवयं तद3तःकरणेन गृÉते।।१।।
यह उपिनषत् का वचन है।
िजस पु˜ष के समािधयोग से अिव‡ाjद मल न… हो गये ह<, आ"मHथ होकर
परमा"मा मO िचs िजस ने लगाया है उस को जो परमा"मा के योग का सुख
होता है वह वाणी से कहा नहc जा सकता eयijक उस आन3द को जीवा"मा
अपने अ3तःकरण से >हण करता है। उपासना शdद का अथ& समीपHथ होना
है। अ…ांग योग से परमा"मा के समीपHथ होने और उस को सव&aापी,
सवा&3तया&मी’प से '"यz के िलये जो-जो काम करना होता है वह-वह सब
करना चािहये। अथा&त-्
त•ऽिहसास"याऽHतेय{|चया&ऽपWर>हा यमाः।।
इ"याjद सू• पातÅलयोगशा¬ के ह<।
जो उपासना का आर›भ करना चाहै उस के िलये यही आर›भ है jक वह jकसी
से वैर न रeखे, सव&दा सब से 'ीित करे । स"य बोले। िम•या कभी न बोले।
चोरी न करे । स"य aवहार करे । िजतेि3¥य हो। ल›पट न हो और िनरिभमानी
हो। अिभमान कभी न करे । ये पांच 'कार के यम िमल के उपासनायोग का
'थम अंग है।
शौचस3तोषतपःHवा—याये5र'िणधानािन िनयमाः।। -योग सू०।।
राग yेष छोड़ भीतर और जलाjद से बाहर पिव• रहै। धम& से पु˜षाथ& करने
से लाभ मO न 'स–ता और हािन मO न अ'स–ता करे । 'स– होकर आलHय
छोड़ सदा पु˜षाथ& jकया करे । सदा दुःख सुखi का सहन और धम& ही का
अनु¼ान करे , अधम& का नहc। सव&दा स"य शा¬O को पढ़े पढ़ावे। स"पु˜षi का
संग करे और ‘ओ३म्’ इस एक परमा"मा के नाम का अथ& िवचार करे िन"य'ित
जप jकया करे । अपने आ"मा को परमे5र कR आXानुकूल सम“पत कर देवे।
इन पांच 'कार के िनयमi को िमला के उपासनायोग का दूसरा अंग कहाता
है। इसके आगे छः अंग योगशा¬ वा ऋ•वेदाjदभा‘यभूिमका१ मO देख लेवO। जब
उपासना करना चाह< तब एका3त शुZ देश मO जाकर, आसन लगा, 'ाणायाम
कर बाÉ िवषयi से इि3¥यi को रोक, मन को नािभ'देश मO वा Æदय, क‹ठ,
ने•, िशखा अथवा पीठ के म—य हाड़ मO jकसी Hथान पर िHथर कर अपने आ"मा
और परमा"मा का िववेचन करके परमा"मा मO म« हो कर संयमी होवO। जब
इन साधनi को करता है तब उस का आ"मा और अ3तःकरण पिव• होकर स"य
से पूण& हो जाता है। िन"य'ित Xान िवXान बढ़ाकर मुिž तक पgंच जाता है।
जो आठ पहर मO एक घड़ी भर भी इस 'कार —यान करता है वह सदा उ–ित
को 'ाƒ हो जाता है। वहां सव&Xाjद गुणi के साथ परमे5र कR उपासना करनी
सगुण और yेष, ’प, रस, ग3ध, Hपशा&jद गुणi से पृथÀफ़ मान, अितसूˆम
आ"मा के भीतर बाहर aापक परमे5र मO दृढ़ िHथत हो जाना िनगु&णोपासना
कहाती है।
१- ऋ•वेदाjदभा‘यभूिमका के उपासना िवषय मO इनका वण&न है।
इसका फल-जैसे शीत से आतुर पु˜ष का अि« के पास जाने से शीत िनवृs हो
जाता है वैसे परमे5र के समीप 'ाƒ होने से सब दोष दुःख छू ट कर परमे5र
के गुण, कम&, Hवभाव के सदृश जीवा"मा के गुण, कम&, Hवभाव पिव• हो जाते
ह<, इसिलये परमे5र कR Hतुित, 'ाथ&ना और उपासना अवŸय करनी चािहये।
इस से इस का फल पृथÀफ़ होगा पर3तु आ"मा का बल इतना बढ़ेगा, jक पव&त
के समान दुःख 'ाƒ होने पर भी न घबरायेगा और सब को सहन कर सके गा।
eया यह छोटी बात है? और जो परमे5र कR Hतुित, 'ाथ&ना और उपासना
नहc करता वह कृ तš और महामूख& भी होता है। eयijक िजस परमा"मा ने इस
जगत् के सब पदाथ& जीवi को सुख के िलये दे रeखे ह<, उस का गुण भूल जाना,
ई5र ही को न मानना, कृ तšता और मूख&ता है।
('-) जब परमे5र के ~ो• ने•jद इि3¥यां नहc ह< jफर इि3¥यi का काम कै से
कर सकता है?
(उsर)
अपािणपादो जवनो >हीता पŸय"यचzुः स शृणो"यकण&ः ।
स वेिs िव5ं न च तHयािHत वेsा तमाgर(यं पु˜षं पुराणम्।।१।।
यह उपिनषत् का वचन है।
परमे5र के हाथ नहc पर3तु अपनी शिž’प हाथ से सब का रचन, >हण
करता, पग नहc पर3तु aापक होने से सब से अिधक वेगवान्; चzु का गोलक
नहc पर3तु सब को यथावत् देखता; ~ो• नहc तथािप सब कR बातO सुनता,
अ3तःकरण नहc पर3तु सब जगत् को जानता है और उस को अविधसिहत
जाननेवाला कोई भी नहc। उसी को सनातन, सब से ~े¼ सब मO पूण& होने से
पु˜ष कहते ह<। वह इि3¥यi और अ3तःकरण के िवना अपने सब काम अपने
साम•य& से करता है।
('-) उस को बgत से मनु‘य िनि‘¦य और िनगु&ण कहते ह<?
(उsर)
न तHय काय¶ करणं च िव‡ते न त"समtा^यिधकt दृŸयते।
पराHय शिžि◌व&िवधैव ~ूयते HवाभािवकR Xानबलj¦या च।।१।।
यह उपिनषत् का वचन है।
परमा"मा से कोई त¥ूप काय& और उस को करण अथा&त् साधकतम दूसरा
अपेिzत नहc। न कोई उस के तुqय और न अिधक है। सवªsमशिž अथा&त्
िजस मO अन3त Xान, अन3त बल और अन3त j¦या है वह Hवाभािवक अथा&त्
सहज उस मO सुनी जाती है। जो परमे5र िनि‘¦य होता तो जगत् कR उ"पिs,
िHथित, 'लय न कर सकता। इसिलये वह िवभु तथािप चेतन होने से उस मO
j¦या भी है।
('-) जब वह j¦या करता होगा तब अ3तवाली j¦या होती होगी वा अन3त?
(उsर) िजतने देश काल मO j¦या करनी उिचत समझता है उतने ही देश काल
मO j¦या करता है। न अिधक न 3यून, eयijक वह िवyान् है।
('-) परमे5र अपना अ3त जानता है वा नहc?
(उsर) परमा"मा पूण& Xानी है। eयijक Xान उस को कहते ह< jक िजस से °यi
का "यi जाना जाय। अथा&त् जो पदाथ& िजस 'कार का हो उसको उसी 'कार
जानने का नाम Xान है। जब परमे5र अन3त है तो उस को अन3त ही जानना
Xान, उस के िव˜Z अXान अथा&त् अन3त को सा3त और सा3त को अन3त
जानना ±म कहाता है। ‘यथाथ&दश&नं Xानिमित’ िजस का जैसा गुण, कम&,
Hवभाव हो उस पदाथ& को वैसा जानकर मानना ही Xान और िवXान कहाता
है और उस से उलटा अXान। इसिलये-
eलेशकम&िवपाकाशयैरपरामृ…ः पु˜षिवशेष ई5रः।। -योगसू०।।
जो अिव‡ाjद eलेश, कु शल, अकु शल, इ…, अिन… और िम~ फलदायक कमŽ
कR वासना से रिहत है वह सब जीवi से िवशेष ई5र कहाता है।
('-) ई5रािसZेः।।५।।
'माणाभावा– ति"सिZः।।२।।
स›ब3धाभावा–ानुमानम्।।३।। -सांwय सू०।।
'"यz से घट सकते ई5र कR िसिZ नहc होती।।१।।
eयijक जब उस कR िसिZ मO '"यz ही नहc तो अनुमानाjद 'माण नहc घट
सकते।।२।।
और aािƒ स›ब3ध न होने से अनुमान भी नहc हो सकता। पुनः '"यzानुमान
के न होने से शdद'माण आjद भी नहc घट सकते। इस कारण ई5र कR िसिZ
नहc हो सकती।।३।।
(उsर) यहां ई5र कR िसिZ मO '"यz 'माण नहc है और न ई5र जगत् का
उपादान कारण है। और पु˜ष से िवलzण अथा&त् सव&• पूण& होने से परमा"मा
का नाम पु˜ष और शरीर मO शयन करने से जीव का भी नाम पु˜ष है।
eयijक इसी 'करण मO कहा है-
'धानशिžयोगा0े"संगापिsः।।१।।
सsामा•0े"सवÄ5‰य&म्।।२।।
~ुितरिप 'धानका‰य&"वHय।।३।। -सांwय सू०।।
यjद पु˜ष को 'धानशिž का योग हो तो पु˜ष मO संगापिs हो जाय।
अथा&त् जैसे 'कृ ित सूˆम से िमलकर काय&’प मO संगत gई है वैसे परमे5र भी
Hथूल हो जाये। इसिलये परमे5र जगत् का उपादान कारण नहc jक3तु िनिमs
कारण है।।१।।
जो चेतन से जगत् कR उ"पिs हो तो जैसा परमे5र सम>ै5य&युž है वैसा
संसार मO भी सवÄ5य& का योग होना चािहये, सो नहc है। इसिलये परमे5र
जगत् का उपादान कारण नहc jक3तु िनिमs कारण है।।२।।
eयijक उपिनषद् भी 'धान ही को जगत् का उपादान कारण कहती है।।३।।
जैस-े
अजामेकां लोिहतशुeलकृ ‘णां ब§वीः 'जाः सृजमानां Hव’पाः।।
-यह 5ेता5तर उपिनषत् का वचन है ।
जो ज3मरिहत सÓव, रज, तमोगुण’प 'कृ ित है वही Hव’पाकार से बgत
'जा’प हो जाती है अथा&त् 'कृ ित पWरणािमनी होने से अवHथा3तर हो जाती
है और पु˜ष अपWरणामी होने से वह अवHथा3तर होकर दूसरे ’प मO कभी नहc
'ाƒ होता, सदा कू टHथ िन“वकार रहता है और 'कृ ित सृि… मO सिवकार और
'लय मO िन“वकार रहती है। इसीिलये जो कोई किपलाचाय& को अनी5रवादी
कहता है जानो वही अनी5रवादी है, किपलाचाय& नहc तथा मीमांसा का धम&
धमŠ से ई5र। वैशेिषक और 3याय भी ‘आ"म’ शdद से अनी5रवादी नहc।
eयijक सव&X"वाjद धम&युž और ‘अतित सव&• aा¹ोती"या"मा’ जो सव&•
aापक और सव&Xाjद धम&युž सब जीवi का आ"मा है उस को मीमांसा
वैशेिषक और 3याय ई5र मानते ह<।
('-) ई5र अवतार लेता है वा नहc?
(उsर) नहc, eयijक ‘अज एकपात्’, ‘सप‰यर्◌्◌ागा¸छु ¦मकायम्’ ये यजुव·द
के वचन ह<। इ"याjद वचनi से परमे5र ज3म नहc लेता।
('-) यदा यदा िह धम&Hय •लािनभ&वित भारत।
अ^यु"थानमधम&Hय तदा"मानं सृजा›यहम्।। भ० गी०।।
~ीकृ ‘ण जी कहते ह< jक जब-जब धम& का लोप होता है तब-तब म< शरीर
वमारण करता •ं।
(उsर) यह बात वेदिव˜Z होने से 'माण नहc और ऐसा हो सकता है jक
~ीकृ ‘ण धमा&"मा और धम& कR रzा करना चाहते थे jक म< युग-युग मO ज3म
लेके ~े¼i कR रzा और दु…i का नाश क’ं तो कु छ दोष नहc। eयijक
‘परोपकाराय सतां िवभूतयः’ परोपकार के िलए स"पु˜षi का तन, मन, धन
होता है तथािप इस से ~ीकृ ‘ण ई5र नहc हो सकते।
('-) जो ऐसा है तो संसार मO चौबीस ई5र के अवतार होते ह< और इन को
अवतार eयi मानते ह<?
(उsर) वेदाथ& के न जानने, स›'दायी लोगi के बहकाने और अपने आप
अिवyान् होने से ±मजाल मO फं स के ऐसी-ऐसी अ'ामािणक बातO करते और
मानते ह<।
('-) जो ई5र अवतार न लेवे तो कं स रावणाjद दु…i का नाश कै से हो सके ?
(उsर) 'थम तो जो ज3मा है वह अवŸय मृ"यु को 'ाƒ होता है। जो ई5र
अवतार शरीर धारण jकये िवना जगत् कR उ"पिs िHथित, 'लय करता है उस
के सामने कं स और रावणाjद एक कRड़ी के समान भी नहc। वह सव&aापक
होने से कं स रावणाjद के शरीर मO भी पWरपूण& हो रहा है। जब चाहै उसी समय
मम&¸छेदन कर नाश कर सकता है। भला इस अन3त गुण, कम&, Hवभावयुž,
परमा"मा को एक zु¥ जीव के मारने के िलये ज3ममरणयुž कहने वाले को
मूख&पन से अ3य कु छ िवशेष उपमा िमल सकती है? और जो कोई कहे jक
भžजनi के उZार करने के िलये ज3म लेता है तो भी स"य नहc। eयijक जो
भžजन ई5र कR आXानुकूल चलते ह< उन के उZार करने का पूरा साम•य&
ई5र मO है। eया ई5र के पृिथवी, सूय&, च3¥ाjद जगत् को बनाने, धारण और
'लय करने ’प कमŽ से कं स रावणाjद का वध और गोवध&नाjद पव&तi का
उठाना बड़े कम& ह<? जो कोई इस सृि… मO परमे5र के कमŽ का िवचार करे तो
‘न भूतो न भिव‘यित’ ई5र के सदृश कोई न है, न होगा। और युिž से भी
ई5र का ज3म िसZ नहc होता। जैसे कोई अन3त आकाश को कहै jक गभ& मO
आया वा मूठी मO धर िलया, ऐसा कहना कभी सच नहc हो सकता। eयijक
आकाश अन3त और सब मO aापक है। इस से न आकाश बाहर आता और न
भीतर जाता, वैसे ही अन3त सव&aापक परमा"मा के होने से उस का आना
जाना कभी िसZ नहc हो सकता। जाना वा आना वहां हो सकता है जहां न
हो। eया परमे5र गभ& मO aापक नहc था जो कहc से आया? और बाहर नहc
था जो भीतर से िनकला? ऐसा ई5र के िवषय मO कहना और मानना
िव‡ाहीनi के िसवाय कौन कह और मान सके गा। इसिलये परमे5र का जाना-
आना, ज3म-मरण कभी िसZ नहc हो सकता। इसिलये ‘ईसा’ आjद भी ई5र
के अवतार नहc ऐसा समभफ़ लेना। eयijक वे राग, yेष, zुधा, तृषा, भय,
शोक, दुःख, सुख, ज3म, मरण आjद गुणयुž होने से मनु‘य थे।
('-) ई5र अपने भži के पाप zमा करता है वा नहc?
(उsर) नहc। eयijक जो पाप zमा करे तो उस का 3याय न… हो जाये और
सब मनु‘य महापापी हो जायO। eयijक zमा कR बात सुन ही के उन को पाप
करने मO िनभ&यता और उ"साह हो जाये। जैसे राजा अपरािधयi के अपराध को
zमा कर दे तो वे उ"साहपूव&क अिधक-अिधक बड़े-बड़े पाप करO । eयijक राजा
अपना अपराध zमा कर देगा और उन को भी भरोसा हो जाय jक राजा से
हम हाथ जोड़ने आjद चे…ा कर अपने अपराध छु ड़ा लOगे और जो अपराध नहc
करते वे भी अपराध करने से न डर कर पाप करने मO 'वृs हो जायOगे। इसिलये
सब कमŽ का फल यथावत् देना ही ई5र का काम है zमा करना नहc।
('-) जीव Hवत3• है वा परत3•?
(उsर) अपने कs&a कमŽ मO Hवत3• और ई5र कR aवHथा मO परत3• है।
‘Hवत3•ः कsा&’ यह पािणनीय aाकरण का सू• है। जो Hवत3• अथा&त् Hवाधीन
है वही कsा& है।
('-) Hवत3• jकस को कहते ह< ?
(उsर) िजस के आधीन शरीर, 'ाण, इि3¥य और अ3तःकरणाjद हi। जो
Hवत3• न हो तो उस को पाप पु‹य का फल 'ाƒ कभी नहc हो सकता। eयijक
जैसे भृ"य, Hवामी और सेना, सेना—यz कR आXा अथवा 'ेरणा से युZ मO अनेक
पु˜षi को मार के अपराधी नहc होते, वैसे परमे5र कR 'ेरणा और आधीनता
से काम िसZ हi तो जीव को पाप वा पु‹य न लगे। उस फल का भागी 'ेरक
परमे5र होवे। Hवग&-नरक, अथा&त् सुख-दुःख कR 'ािƒ भी परमे5र को होवे।
जैसे jकसी मनु‘य ने श¬िवशेष से jकसी को मार डाला तो वही मारने वाला
पकड़ा जाता है और वही द‹ड पाता है, श¬ नहc। वैसे ही पराधीन जीव पाप
पु‹य का भागी नहc हो सकता। इसिलये अपने साम•या&नुकूल कम& करने मO
जीव Hवत3• पर3तु जब वह पाप कर चुकता है तब ई5र कR aवHथा मO
पराधीन होकर पाप के फल भोगता है। इसिलये कम& करने मO जीव Hवत3•
और पाप के दुःख ’प फल भोगने मO परत3• होता है।
('-) जो परमे5र जीव को न बनाता और साम•य& न देता तो जीव कु छ भी
न कर सकता! इसिलए परमे5र कR 'ेरणा ही से जीव कम& करता है।
(उsर) जीव उ"प– कभी न gआ, अनाjद है। जैसा ई5र और जगत् का
उपादान कारण िन"य है। और जीव का शरीर तथा इि3¥यi के गोलक परमे5र
के बनाये gए ह< पर3तु वे सब जीव के आधीन ह<। जो कोई मन, कम&, वचन से
पाप पु‹य करता है वही भोžा है ई5र नहc। जैसे jकसी कारीगर ने पहाड़ से
लोहा िनकाला, उस लोहे को jकसी aापारी ने िलया, उस कR दुकान से लोहार
ने ले तलवार बनाई, उससे jकसी िसपाही ने तलवार ले ली, jफर उस से jकसी
को मार डाला। अब यहां जैसे वह लोहे को उ"प– करने, उस से लेने, तलवार
बनाने वाले और तलवार को पकड़ कर राजा द‹ड नहc देता jक3तु िजस ने
तलवार से मारा वही द‹ड पाता है। इसी 'कार शरीराjद कR उ"पिs करने
वाला परमे5र उस के कमŽ का भोžा नहc होता, jक3तु जीव को भुगाने वाला
होता है। जो परमे5र कम& कराता होता तो कोई जीव पाप नहc करता, eयijक
परमे5र पिव• और धा“मक होने से jकसी जीव को पाप करने मO 'ेरणा नहc
करता। इसिलए जीव अपने काम करने मO Hवत3• है। जैसे जीव अपने कामi के
करने मO Hवत3• है वैसे ही परमे5र भी अपने कमŽ के करने मO Hवत3• है।
('-) जीव और ई5र का Hव’प, गुण, कम& और Hवभाव कै सा है?
(उsर) दोनi चेतनHव’प ह<। Hवभाव दोनi का पिव•, अिवनाशी और
धा“मकता आjद है। पर3तु परमे5र के सृि… कR उ"पिs, िHथित, 'लय, सब
को िनयम मO रखना, जीवi को पाप पु‹यi के फल देना आjद धम&युž कम& ह<।
और जीव के स3तानो"पिs उन का पालन, िशqपिव‡ा आjद अ¸छे बुरे कम&
ह<। ई5र के िन"यXान, आन3द, अन3त बल आjद गुण ह<। और जीव के -
इ¸छाyेष'य¢सुखदुःखXाना3या"मनो Òलगिमित।। -3याय सू०।
'ाणापानिनमेषो3मेषजीवनमनोगतीि3¥याि3तव&काराः सुखदुःखे इ¸छाyेषौ
'य¢ाtा"मनो Òलगािन।। -वैशेिषक सू•।।
दोनi सू•O मO (इ¸छा) पदाथŽ कR 'ािƒ कR अिभलाषा (yेष) दुःखाjद कR
अिन¸छा, वैर, ('य¢) पु˜षाथ&, बल (सुख) आन3द (दुःख) िवलाप, अ'स–ता
(Xान) िववेक, पिहचानना ये तुqय ह< पर3तु वैशेिषक मO ('ाण) 'ाणवायु को
बाहर िनकालना (अपान) 'ाण को बाहर से भीतर को लेना (िनमेष) आंख को
मcचना (उ3मेष) आंख को खोलना (जीवन) 'ाण का धारण करना (मनः)
िनtय Hमरण और अहंकार करना, (गित) चलना (इि3¥य) सब इि3¥यi को
चलाना (अ3त“वकार) िभ–-िभ– zुधा, तृषा, हष& शोकाjदयुž होना, ये
जीवा"मा के गुण परमा"मा से िभ– ह<। इ3हc से आ"मा कR 'तीित करनी,
eयijक वह Hथूल नहc है।
जब तक आ"मा देह मO होता है तभी तक ये गुण 'कािशत रहते ह< और जब
शरीर छोड़ चला जाता है तब ये गुण शरीर मO नहc रहते। िजस के होने से जो
हi और न होने से न हi वे गुण उसी के होते ह<। जैसे दीप और सूया&jद के न
होने से 'काशाjद का न होना और होने से होना है, वैसे ही जीव और परमा"मा
का िवXान गुणyारा होता है।
('-) परमे5र ि•कालदशŠ है इस से भिव‘यत् कR बातO जानता है। वह जैसा
िनtय करे गा जीव वैसा ही करे गा। इस से जीव Hवत3• नहc और जीव को
ई5र द‹ड भी नहc दे सकता eयijक जैसा ई5र ने अपने Xान से िनिtत
jकया है वैसा ही जीव करता है।
(उsर) ई5र को ि•कालदशŠ कहना मूख&ता का काम है। eयijक जो होकर न
रहै वह भूतकाल और न होके होवे वह भिव‘य"काल कहाता है। eया ई5र को
कोई Xान होके नहc रहता तथा न होके होता है? इसिलये परमे5र का Xान
सदा एकरस, अखि‹डत वत&मान रहता है। भूत, भिव‘यत् जीवi के िलये है।
हां जीवi के कम& कR अपेzा से ि•कालXता ई5र मO है, Hवतः नहc। जैसा
Hवत3•ता से जीव करता है वैसा ही सव&Xता से ई5र जानता है और जैसा
ई5र जानता है वैसा जीव करता है। अथा&त् भूत, भिव‘यत्, वत&मान के Xान
और फल देने मO ई5र Hवत3• और जीव jकि€त् वत&मान और कम& करने मO
Hवत3• है। ई5र का अनाjद Xान होने से जैसा कम& का Xान है वैसा ही द‹ड
देने का भी Xान अनाjद है। दोनi Xान उस के स"य ह<। eया कम&Xान स0ा और
द‹डXान िम•या कभी हो सकता है? इसिलये इस मO कोई भी दोष नहc आता।
('-) जीव शरीर मO िभ– िवभु है वा पWरि¸छ–?
(उsर) पWरि¸छ–। जो िवभु होता तो जा>त्, Hव¹, सुषुिƒ, मरण, ज3म,
संयोग, िवयोग, जाना, आना कभी नहc हो सकता। इसिलए जीव का Hव’प
अqपX, अqप अथा&त् सूˆम है और परमे5र अतीव सूˆमा"सूˆमतर, अन3त
सव&X और सव&aापक Hव’प है। इसीिलये जीव और परमे5र का aाÊय
aापक स›ब3ध है।
('-) िजस जगह मO एक वHतु होती है उस जगह मO दूसरी वHतु नहc रह सकती।
इसीिलये जीव और ई5र का संयोग स›ब3ध हो सकता है aाÊय aापक नहc।
(उsर) यह िनयम समान आकारवाले पदाथŽ मO घट सकता है असमानाकृ ित
मO नहc। जैसे लोहा Hथूल, अि« सूˆम होता है, इस कारण से लोहे मO िव‡ुत,्
अि« aापक होकर एक ही अवकाश मO दोनi रहते ह<, वैसे जीव परमे5र से
Hथूल और परमे5र जीव से सूˆम होने से परमे5र aापक और जीव aाÊय
है। जैसे यह aाÊय aापक स›ब3ध जीव ई5र का है वैसा ही सेa सेवक,
आधाराधेय, Hवामी भृ"य, राजा 'जा और िपता पु• आjद भी स›ब3ध ह<।
('-) {| और जीव जुदे ह< वा एक?
(उsर) अलग-अलग ह<।
('-) जो पृथÀफ़-पृथÀफ़ ह< तो-
'Xानं {|।।१।। अहं {|ािHम।।२।। तÓवमिस।।३।। अयमा"मा
{|।।४।।
वेदi के इन महावाeयi का अथ& eया है?
(उsर) ये वेदवाeय ही नहc ह< jक3तु {ा|ण >3थi के वचन ह< और इन का
नाम महावाeय कहc स"य शा¬O मO नहc िलखा। अथा&त् {| 'कृ … Xान- Hव’प
है। (अहम्) म< ({|) अथा&त् {|Hथ (अिHम) •ं। यहां ता"H•योपािध है; जैसे
‘म€ाः ¦ोशि3त’ मचान पुकारते ह<। मचान जड़ ह<, उनमO पुकारने का साम•य&
नहc, इसिलये म €Hथ मनु‘य पुकारते ह<। इसी 'कार यहां भी जानना। कोई
कहै jक {|Hथ सब पदाथ& ह<; पुनः जीव को {|Hथ कहने मO eया िवशेष है?
इस का उsर यह है jक सब पदाथ& {|Hथ ह< पर3तु जैसा साध›य&युž िनकटHथ
जीव है वैसा अ3य नहc। और जीव को {| का Xान और मुिž मO वह {| के
साzा"स›ब3ध मO रहता है। इसिलये जीव को {| के साथ ता"H•य वा
त"सहचWरतोपािध अथा&त् {| का सहचारी जीव है। इस से जीव और {|
एक नहc। जैसे कोई jकसी से कहै jक म< और यह एक ह< अथा&त् अिवरोधी ह<।
वैसे जो जीव समािधHथ परमे5र मO 'ेमबZ होकर िनम« होता है वह कह
सकता है jक म< और {| एक अथा&त् अिवरोधी एक अवकाशHथ ह<। जो जीव
परमे5र के गुण, कम&, Hवभाव के अनुकूल अपने गुण, कम&, Hवभाव करता है
वही साध›य& से {| के साथ एकता कह सकता है।
('-) अ¸छा तो इस का अथ& कै सा करोगे? (तत्) {| ("वं) तू जीव (अिस)
है। हे जीव! ("वम्) तू (तत्) वह {| (अिस) है।
(उsर) तुम ‘तत्’ शdद से eया लेते हो?
‘{|’।
{|पद कR अनुवृिs कहां से लाये?
‘सदेव सो›येदम> आसीदेकमेवािyतीयं {|।’ इस पूव& वाeय से।
तुम ने इस छा3दो•य उपिनषत् का दश&न भी नहc jकया। जो वह देखी होती
तो वहां {| शdद का पाठ ही नहc है। jक3तु छा3दो•य मO तो-
‘सदेव सो›येदम> आसीदेकमेवािyतीयम्।’
ऐसा पाठ है। वहां {| शdद नहc।
('-) तो आप त¸छdद से eया लेते ह<?
(उsर) स य एषोऽिणमैतदा"›यिमदँ◌् सव¶ त"स"यँ◌् स आ"मा तÓवमिस
5ेतके तो इित।। -छा3दोन।।
वह परमा"मा जानने यो•य है जो यह अ"य3त सूˆम इस सब जगत् और जीव
का आ"मा है। वही स"यHव’प और अपना आ"मा आप ही है। हे 5ेतके तो
ि'यपु•! तदा"मकHतद3तया&मी "वमिस। उस परमा"मा अ3तया&मी से तू युž
है। यही अथ& उपिनषदi से अिव˜Z है। eयijक-
य आ"मिन ित¼–ा"मनोऽ3तरो यमा"मा न वेद यHया"मा शरीरम्।
आ"मनोऽ3तरो यमयित स त आ"मा3तया&›यमृतः।
-यह बृहदार‹यक का वचन है।
मह“ष याXवqeय अपनी ¬ी मै•ेयी से कहते ह< jक हे मै•ेिय! जो परमे5र
आ"मा अथा&त् जीव मO िHथत और जीवा"मा से िभ– है; िजस को मूढ़ जीवा"मा
नहc जानता jक वह परमा"मा मेरे मO aापक है; िजस परमे5र का जीवा"मा
शरीर अथा&त् जैसे शरीर मO जीव रहता है वैसे ही जीव मO परमे5र aापक है
। जीवा"मा से िभ– रहकर जीव के पाप पु‹यi का साzी होकर उन के फल
जीवi को देकर िनयम मO रखता है वही अिवनाशीHव’प तेरा भी अ3तया&मी
आ"मा अथा&त् तेरे भीतर aापक है; उस को तू जान। eया कोई इ"याjद वचनi
का अ3यथा अथ& कर सकता है ?
‘अयमा"मा {|’ अथा&त् समािधदशा मO जब योगी को परमे5र '"यz होता है
तब वह कहता है jक यह जो मेरे मO aापक है वही {| सव&• aापक है
इसिलये जो आजकल के वेदा3ती जीव {| कR एकता करते ह< वे वेदा3तशा¬
को नहc जानते।
('-) अनेन आ"मना जीवेनानु'िवŸय नाम’पे aाकरवािण।। -छांन।।

तत् सृ‘ßवा तदेवानु'ािवशत्।। -तैिनरीय०।।


परमे5र कहता है jक म< जगत् और शरीर को रचकर जगत् मO aापक और
जीव’प होके शरीर मO 'िव… होता gआ नाम और ’प कR aाwया क’ं।।१।।
परमे5र ने उस जगत् और शरीर को बना कर उस मO वही 'िव… gआ। इ"याjद
~ुितयi का अथ& दूसरा कै से कर सकोगे? ।।२।।
(उsर) जो तुम पद, पदाथ& और वाeयाथ& जानते तो ऐसा अनथ& कभी न करते!
eयijक यहां ऐसा समभफ़ो एक 'वेश और दूसरा अनु'वेश अथा&त् पtात् 'वेश
कहाता है। परमे5र शरीर मO 'िव… gए जीवi के साथ अनु'िव… के समान
होकर वेद yारा सब नाम ’प आjद कR िव‡ा को 'कट करता है। और शरीर
मO जीव को 'वेश करा आप जीव के भीतर अनु'िव… हो रहा है। जो तुम अनु
शdद का अथ& जानते तो वैसा िवपरीत अथ& कभी न करते।
('-) ‘सोऽयं देवदsो य उ‘णकाले काŸयां दृ…ः स इदानc 'ावृßसमये मथुरायां
दृŸयते ।’ अथा&त् जो देवदs म<ने उ‘णकाल मO काशी मO देखा था उसी को वषा&
समय मO मथुरा मO देखता •ं। यहां वह काशी देश उ‘णकाल, यह मथुरा देश
और वषा&काल को छोड़ कर शरीरमा• मO लˆय करके देवदs लिzत होता है।
वैसे इस भाग"यागलzणा से ई5र का परोz देश, काल, माया, उपािध और
जीव का यह देश, काल, अिव‡ा और अqपXता उपािध छोड़ चेतनमा• मO
लˆय देने से एक ही {| वHतु दोनi मO लिzत होता है। इस भाग"यागलzणा
अथा&त् कु छ >हण करना और कु छ छोड़ देना जैसा सव&X"वाjद वा¸याथ& ई5र
का और अqपX"वाjद वा¸याथ& जीव का छोड़ कर चेतनमा• लˆयाथ& का >हण
करने से अyैत िसZ होता है। यहां eया कह सकोगे?
(उsर) 'थम तुम जीव और ई5र को िन"य मानते हो वा अिन"य?
('-) इन दोनi को उपािधज3य किqपत होने से अिन"य मानते ह<।
(उsर) उस उपािध को िन"य मानते हो वा अिन"य?
('-) हमारे मत मO-
जीवेशौ च िवशुZािचिyभेदHतु तयोy&योः।
अिव‡ा ति0तोयªगः षडHमाकमनादयः।।१।।
का‰यªपािधरयं जीवः कारणोपािधरी5रः।
का‰य&कारणतां िह"वा पूण&बोधोऽविश‘यते।।२।।
ये ‘संzेपशारीरक’ और ‘शारीरकभा‘य’ मO काWरका ह<।
हम वेदा3ती छः पदाथŽ अथा&त् एक जीव, दूसरा ई5र, तीसरा {|, चौथा
जीव और ई5र का िवशेष भेद, पांचवां अिव‡ा अXान और छठा अिव‡ा और
चेतन का योग इन को अनाjद मानते ह<।।१।। पर3तु एक {| अनाjद, अन3त
और अ3य पांच अनाjद सा3त ह< जैसा jक 'ागभाव होता है। जब तक अXान
रहता है तब तक ये पांच रहते ह< और इन पांच कR आjद िवjदत नहc होती।
इसिलये अनाjद और Xान होने के पtात् न… हो जाते ह< इसिलये सा3त अथा&त्
नाशवाले कहाते ह<।।२।।
(उsर) अिव‡ा के योग के िवना जीव और माया के योग के िवना ई5र तु›हारे
मत मO िसZ नहc हो सकता। इससे ‘ति0तोयªगः’ जो छठा पदाथ& तुमने िगना
है वह नहc रहा। eयijक वह अिव‡ा माया जीव ई5र मO चWरताथ& हो गया
और {| तथा माया और अिव‡ा के योग के िवना ई5र नहc बनता jफर
ई5र को अिव‡ा और {| से पृथÀफ़ िगनना aथ& है। इसिलये दो ही पदाथ&
अथा&त् {| और अिव‡ा तु›हारे मत मO िसZ हो सकते ह<, छः नहc। तथा
आपका 'थम कायªपािध और कारणोपािध से जीव और ई5र का िसZ करना
तब हो सकता jक जब अन3त, िन"य, शुZ, बुZ, मुžHवभाव, सव&aापक {|
मO अXान िसZ करO । जो उसके एक देश मO Hवा~य और Hविवषयक अXान
अनाjद सव&• मानोगे तो सब {| शुZ नहc हो सकता। और जब एक देश मO
अXान मानोगे तो वह पWरि¸छ– होने से इधर-उधर आता जाता रहेगा। जहां-
जहां जायगा वहां-वहां का {| अXानी और िजस-िजस देश को छोड़ता
जायगा उस-उस देश का {| Xानी होता रहेगा तो jकसी देश के {| को
अनाjद शुZ Xानयुž न कह सकोगे और जो अXान कR सीमा मO {| है वह
अXान को जानेगा। बाहर और भीतर के {| के टु कड़े हो जायOगे। जो कहो jक
टु कड़ा हो जाओ, {| कR eया हािन? तो अख‹ड नहc। जो अख‹ड है तो
अXानी नहc। तथा Xान के अभाव वा िवपरीत Xान भी गुण होने से jकसी
¥a के साथ िन"य स›ब3ध से रहेगा। यjद ऐसा है तो समवाय स›ब3ध होने से
अिन"य कभी नहc हो सकता। जैसे शरीर के एक देश मO फोड़ा होने से सव&•
दुःख फै ल जाता है वैसे ही एक देश मO अXान सुख दुःख eलेशi कR उपलिdध
होने से सब {| दुःखाjद के अनुभव से युž होगा और सब {| को शुZ न
कह सकोगे। वैसे ही कायªपािध अथा&त् अ3तःकरण कR उपािध के योग से {|
को जीव मानोगे तो हम पूछते ह< jक {| aापक है वा पWरि¸छ–? जो कहो
aापक उपािध पWरि¸छ– है अथा&त् एकदेशी और पृथÀफ़-पृथÀफ़ है तो
अ3तःकरण चलता jफरता है वा नहc ?
(उsर) चलता jफरता है।
('-) अ3तःकरण के साथ {| भी चलता jफरता है वा िHथर रहता है?
(उsर)-िHथर रहता है।
('-) जब अ3तःकरण िजस-िजस देश को छोड़ता है उस-उस देश का {|
अXानरिहत और िजस-िजस देश को 'ाƒ होता है उस-उस देश का शुZ {|
अXानी होता होगा। वैसे zण मO Xानी और अXानी {| होता रहेगा। इससे
मोz और ब3ध भी zणभंग होगा और जैसे अ3य के देखे का अ3य Hमरण नहc
कर सकता वैसे कल कR देखी सुनी gई वHतु वा बात का Xान नहc रह सकता।
eयijक िजस समय देखा सुना था वह दूसरा देश और दूसरा काल; िजस समय
Hमरण करता वह दूसरा देश और काल है।
जो कहो jक {| एक है तो सव&X eयi नहc? जो कहो jक अ3तःकरण िभ–-
िभ– ह<, इस से वह भी िभ–-िभ– हो जाता होगा तो वह जड़ है। उस मO Xान
नहc हो सकता। जो कहो jक न के वल {| और न के वल अ3तःकरण को Xान
होता है jक3तु अ3तःकरणHथ िचदाभास को Xान होता है तो भी चेतन ही को
अ3तःकरण yारा Xान gआ तो वह ने• yारा अqप अqपX eयi है? इसिलये
कारणोपािध और कायªपािध के योग से {| जीव और ई5र नहc बना सकोगे।
jक3तु ई5र नाम {| का है और {| से िभ– अनाjद, अनु"प– और
अमृतHव’प जीव का नाम जीव है। जो तुम कहो jक जीव िचदाभास का नाम
है तो वह zणभंग होने से न… हो जायगा तो मोz का सुख कौन भोगेगा?
इसिलये {| जीव और जीव {| कभी न gआ, न है और न होगा।
('-) तो ‘सदेव सो›येदम> आसीदेकमेवािyतीयम्’।। -छा3दो•य०।।
अyैतिसिZ कै से होगी? हमारे मत मO तो {| से पृथÀफ़ कोई सजातीय,
िवजातीय और Hवगत अवयवi के भेद न होने से एक {| ही िसZ होता है।
जब जीव दूसरा है तो अyैतिसिZ कै से हो सकती है?
(उsर) इस ±म मO पड़ eयi डरते हो? िवशे‘य िवशेषण िव‡ा का Xान करो
jक उस का eया फल है। जो कहो jक ‘aावs&कं िवशेषणं भवतीित ।’ िवशेषण
भेदकारक होता है तो इतना और भी मानो jक ‘'वs&कं 'काशकमिप िवशेषणं
भवतीित ।’ िवशेषण 'वs&क और 'काशक भी होता है तो समझो jक अyैत
िवशेषण {| का है। इस मO aावs&क धम& यह है jक अyैत वHतु अथा&त् जो
अनेक जीव और तÓव ह< उन से {| को पृथÀफ़ करता है और िवशेषण का
'काशक धम& यह है jक {| के एक होने कR 'वृिs करता है। जैसे-
‘अिHम–गरे ऽिyतीयो धनाÚो देवदsः। अHयां सेनायामिyतीयः शूरवीरो
िव¦मिसहः।’ jकसी ने jकसी से कहा jक इस नगर मO अिyतीय धनाÚ देवदs
और इस सेना मO अिyतीय शूरवीर िव¦मिसह है। इस से eया िसZ gआ jक
देवदs के सदृश इस नगर मO दूसरा धनाÚ और इस सेना मO िव¦मिसह के
समान दूसरा शूरवीर नहc है। 3यून तो ह< और पृिथवी आjद जड़ पदाथ&, प5ाjद
'ाणी और वृzाjद भी ह<, उन का िनषेध नहc हो सकता। वैसे ही {| के सदृश
जीव वा 'कृ ित नहc है, jक3तु 3यून तो ह<। इस से यह िसZ gआ jक {| सदा
एक है और जीव तथा 'कृ ितHथ तÓव अनेक ह<। उन से िभ– कर {| के एक"व
को िसZ करने हारा अyैत वा अिyतीय िवशेषण है। इस से जीव वा 'कृ ित का
और काय&’प जगत् का अभाव और िनषेध नहc हो सकता। jक3तु ये सब ह<,
पर3तु {| के तुqय नहc। इस से न अyैतिसिZ और न yैतिसिZ कR हािन होती
है। घबराहट मO मत पड़ो; सोचो और समभफ़ो।
('-) {| के सत्, िचत्, आन3द और जीव के अिHत, भाित, ि'य’प से एकता
होती है। jफर eयi ख‹डन करते हो?
(उsर) jकि◌ €त् साध›य& िमलने से एकता नहc हो सकती। जैसे पृिथवी जड़,
दृŸय है वैसे जल और अि« आjद भी जड़ और दृŸय ह<; इतने से एकता नहc
होती। इनमO वैध›य& भेदकारक अथा&त् िव˜Z धम& जैसे ग3ध, ’zता, काWठ3य
आjद गुण पृिथवी और रस ¥व"व कोमल"वाjद धम& जल और ’प दाहक"वाjद
धम& अि« के होने से एकता नहc। जैसे मनु‘य और कRड़ी आंख से देखते, मुख से
खाते, पग से चलते ह< तथािप मनु‘य कR आकृ ित दो पग और कRड़ी कR आकृ ित
अनेक पग आjद िभ– होने से एकता नहc होती। वैसे परमे5र के अन3त Xान,
आन3द, बल, j¦या, िन±ा&ि3त"व और aापकता जीव से और जीव के
अqपXान, अqपबल, अqपHव’प, सब ±ाि3त"व और पWरि¸छ–ताjद गुण {|
से िभ– होने से जीव और परमे5र एक नहc। eयijक इनका Hव’प भी
(परमे5र अितसूˆम और जीव उस से कु छ Hथूल होने से) िभ– है।
('-) अथोदरम3तरं कु ˜ते, अथ तHय भयं भवित। िyतीयाyै भयं भवित।। यह
बृहदार‹यक का वचन है। जो {| और जीव मO थोड़ा भी भेद करता है। उसको
भय 'ाƒ होता है, eयijक दूसरे ही से भय होता है।
(उsर) इस का अथ& यह नहc है jक3तु जो जीव परमे5र का िनषेध वा jकसी
एक देश, काल मO पWरि¸छ– परमा"मा को माने वा उस कR आXा और गुण,
कम&, Hवभाव से िव˜Z होवे अथवा jकसी दूसरे मनु‘य से वैर करे उस को भय
'ाƒ होता है। eयijक िyतीय बुिZ अथा&त् ई5र का मुझ से कु छ स›ब3ध नहc
तथा jकसी मनु‘य से कहै jक तुझ को म< कु छ नहc समझता, तू मेरा कु छ भी
नहc कर सकता वा jकसी कR हािन करता और दुःख देता जाय तो उस को उन
से भय होता है। और सब 'कार का अिवरोध हो तो वे एक कहाते ह<। जैसे
संसार मO कहते ह< jक देवदs, यXदs और िव‘णुिम• एक ह< अथा&त् अिव˜Z
ह<। िवरोध न रहने से सुख और िवरोध से दुःख 'ाƒ होता है।
('-) {| और जीव कR सदा एकता अनेकता रहती है वा कभी दोनi िमल के
एक भी होते ह< वा नहc?
(उsर) अभी इस के पूव& कु छ उsर दे jदया है पर3तु साध›य& अ3वयभाव से
एकता होती है। जैसे आकाश से मूs& ¥a जड़"व होने से और कभी पृथÀफ़ न
रहने से एकता और आकाश के िवभु, सूˆम, अ’प, अन3त आjद गुण और मूs&
के पWरि¸छ– दृŸय"व आjद वैध›य& से भेद होता है। अथा&त् जैसे पृिथaाjद ¥a
आकाश से िभ– कभी नहc रहते eयijक अ3वय अथा&त् अवकाश के िवना मूs&
¥a कभी नहc रह सकता और aितरे क अथा&त् Hव’प से िभ– होने से
पृथÀफ़ता है। वैसे {| के aापक होने से जीव और पृिथवी आjद ¥a उस से
अलग नहc रहते और Hव’प से एक भी नहc होते। जैसे घर के बनाने के पूव&
िभ–-िभ– देश मO मÝी, लकड़ी और लोहा आjद पदाथ& आकाश मO ही रहते ह<।
जब घर बन गया तब भी आकाश मO ह< और जब वह न… हो गया अथा&त् उस
घर के सब अवयव िभ–-िभ– देश मO 'ाƒ हो गये; तब भी आकाश मO ह<। अथा&त्
तीन काल मO आकाश से िभ– नहc हो सकते औेर Hव’प से िभ– होने से न
कभी एक थे; ह< और हiगे। इसी 'कार जीव तथा सब संसार के पदाथ& परमे5र
मO aाÊय होने से परमा"मा से तीनi कालi मO िभ– और Hव’प िभ– होने से
एक कभी नहc होते। आजकल के वेदाि3तयi कR दृि… काणे पु˜ष के समान
अ3वय कR ओर पड़ के aितरे कभाव से छू ट िव˜Z हो गई है। कोई भी ऐसा
¥a नहc है jक िजस मO सगुण-िनगु&णता, अ3वय-aितरे क, साध›य&-वैध›य& और
िवशे‘य-िवशेषण भाव न हो।
('-) परमे5र सगुण है वा िनगु&ण ?
(उsर) दोनi 'कार है।
('-) भला एक िमयान मO दो तलवार कभी नहc रह सकती ह<! एक पदाथ& मO
सगुणता और िनगु&णता कै से रह सकती ह<?
(उsर) जैसे जड़ के ’पाjद गुण ह< और चेतन के Xानाjद गुण जड़ मO नहc ह<।
वैसे चेतन मO इ¸छाjद गुण ह< और ’पाjद जड़ के गुण नहc ह<। इसिलये
‘य¾गुणैHसह वs&मानं त"सगुणम्’, गुणे^यो यि–ग&तं पृथ•भूतं ति–गु&णम्’ जो
गुणi से सिहत वह सगुण और जो गुणi से रिहत वह िनगु&ण कहाता है। अपने-
अपने Hवाभािवक गुणi से सिहत और दूसरे िवरोधी के गुणi से रिहत होने से
सब पदाथ&, सगुण और िनगु&ण ह<। कोई भी ऐसा पदाथ& नहc है jक िजस मO के वल
िनगु&णता वा के वल सगुणता हो jक3तु एक ही मO सगुणता और िनगु&णता सदा
रहती है। वैसे ही परमे5र अपने अन3त Xान बलाjद गुणi से सिहत होने से
सगुण ’पाjद जड़ के तथा yेषाjद जीव के गुणi से पृथÀफ़ होने से िनगु&ण कहाता
है।
('-) परमे5र रागी है वा िवरž?
(उsर) दोनi मO नहc। eयijक राग अपने से िभ– उsम पदाथŽ मO होता है, सो
परमे5र से कोई पदाथ& पृथÀफ़ वा उsम नहc है। इसिलए उस मO राग का
स›भव नहc। और जो 'ाƒ को छोड़ देवे उस को िवरž कहते ह<। ई5र aापक
होने से jकसी पदाथ& को छोड़ ही नहc सकता, इसिलये िवरž भी नहc।
('-) ई5र मO इ¸छा है वा नहc।
(उsर) वैसी इ¸छा नहc। eयijक इ¸छा भी अ'ाƒ, उsम और िजस कR 'ािƒ
से सुख िवशेष होवे तो ई5र मO इ¸छा हो सके । न उससे कोई अ'ाƒ पदाथ&,
न कोई उससे उsम और पूण& सुखयुž होने से सुख कR अिभलाषा भी नहc है।
इसिलये ई5र मO इ¸छा का तो स›भव नहc, jक3तु ईzण अथा&त् सब 'कार कR
िव‡ा का दश&न और सब सृि… का करना कहाता है; वह ईzण है। इ"याjद
संिzƒ िवषयi से ही सœन लोग िवHतरण कर लOगे। अब संzेप से ई5र का
िवषय िलखकर वेद का िवषय िलखते ह<-
यHमादृचो अपातzन् यजुय&Hमादपाकषन् ।
सामािन यHय लोमा3यथवा&ि◌◌ंगरसो मुख्◌ा◌ं Hक›भ3तं {ूिह
कतमः िHवदेव सः ।। -अथव&न कां० १०। 'पा० २३। अनु० ४। मं० २०।।
िजस परमा"मा से ऋ•वेद, यजुव·द, सामवेद और अथव&वेद 'कािशत gए ह< वह
कौन सा देव है?
इसका (उsर)-जो सब को उ"प– करके धारण कर रहा है वह परमा"मा है।
Hवय›भूया&थात•यतोऽथा&न् a◌्दधा¸छा5ती^यः समा^यः ।।
-यजु० अ० ४०। मं० ८।।
जो Hवय›भू, सव&aापक, शुZ, सनातन, िनराकार परमे5र है वह सनातन
जीव’प 'जा के कqयाणाथ& यथावत् रीितपूव&क वेद yारा सब िव‡ाu का
उपदेश करता है।
('-) परमे5र को आप िनराकार मानते हो वा साकार?
(उsर) िनराकार मानते ह<।
('-) जब िनराकार है तो वेदिव‡ा का उपदेश िवना मुख के वणª0ारण कै से
हो सका होगा? eयijक वणŽ के उ0ारण मO ताqवाjद Hथान, िज§वा का 'य¢
अवŸय होना चािहये।
(उsर) परमे5र के सव&शिžमान् और सव&aापक होने से जीवi को अपनी
aािƒ से वेदिव‡ा के उपदेश करने मO कु छ भी मुखाjद कR अपेzा नहc है।
eयijक मुख िज§वा से वणª0ारण अपने से िभ– को बोध होने के िलये jकया
जाता है; कु छ अपने िलये नहc। eयijक मुख िज§वा के aापार करे िवना ही
मन मO अनेक aवहारi का िवचार और शdदो0ारण होता रहता है। कानi को
अंगुिलयi से मूँद देखो, सुनो jक िवना मुख िज§वा ताqवाjद Hथानi के कै से-
कै से शdद हो रहे ह<। वैसे जीवi को अ3तया&मी’प से उपदेश jकया है। jक3तु
के वल दूसरे को समझाने के िलये उ0ारण करने कR आवŸयकता है। जब
परमे5र िनराकार सव&aापक है तो अपनी अिखल वेदिव‡ा का उपदेश
जीवHथ Hव’प से जीवा"मा मO 'कािशत कर देता है। jफर वह मनु‘य अपने
मुख से उ0ारण करके दूसरi को सुनाता है। इसिलये ई5र मO यह दोष नहc आ
सकता।
('-) jकन के आ"मा मO कब वेदi का 'काश jकया ?
(उsर) अ«ेवा& ऋ•वेदो जायते वायोय&जुव·दः सूया&"सामवेदः।। -शत०।।
'थम सृि… कR आjद मO परमा"मा ने अि«, वायु, आjद"य तथा Òअगरा इन
ऋिषयi के आ"मा मO एक-एक वेद का 'काश jकया।
('-) यो वै {|ाणं िवदधाित पूव¶ यो वै वेदांt 'िहणोित तHमै।।
यह उपिनषत् का वचन है।
इस वचन से {|ा जी के Æदय मO वेदi का उपदेश jकया है। jफर अ•3याjद
ऋिषयi के आ"मा मO eयi कहा ?
(उsर) {|ा के आ"मा मO अि« आjद के yारा Hथािपत कराया। देखो!
मनु मO eया िलखा है-
अि«वायुरिव^यHतु •यं {| सनातनम्।
दुदोह यXिस¾—यथ&मृ•यजुःसामलzणम्।। मनु०।।
िजस परमा"मा ने आjद सृि… मO मनु‘यi को उ"प– करके अि« आjद चारi
मह“षयi के yारा चारi वेद {|ा को 'ाƒ कराये और उस {|ा ने अि«, वायु,
आjद"य और Òअगरा से ऋग् यजुः साम और अथव&वेद का >हण jकया।
('-) उन चारां◌े ही मO वेदi का 'काश jकया अ3य मO नहc। इस से ई5र
पzपाती होता है।
(उsर) वे ही चार सब जीवi से अिधक पिव•"मा थे। अ3य उन के सदृश नहc
थे। इसिलये पिव• िव‡ा का 'काश उ3हc मO jकया।
('-) jकसी देश-भाषा मO वेदi का 'काश न करके संHकृ त मO eयi jकया?
(उsर) जो jकसी देश-भाषा मO 'काश करता तो ई5र पzपाती हो जाता।
eयijक िजस देश कR भाषा मO 'काश करता उन को सुगमता और िवदेिशयi
को कWठनता वेदi के पढ़ने पढ़ाने कR होती। इसिलये संHकृ त ही मO 'काश jकया;
जो jकसी देश कR भाषा नहc और वेदभाषा अ3य सब भाषाu का कारण है।
उसी मO वेदi का 'काश jकया। जैसे ई5र कR पृिथवी आjद सृि… सब देश और
देशवालi के िलये एक सी और सब िशqपिव‡ा का कारण है। वैसे परमे5र कR
िव‡ा कR भाषा भी एक सी होनी चािहये jक सब देशवालi को पढ़ने पढ़ाने मO
तुqय पWर~म होने से ई5र पzपाती नहc होता। और सब भाषाu का कारण
भी है।
('-) वेद ई5रकृ त ह< अ3यकृ त नहc। इस मO eया 'माण ?
(उsर) जैसा ई5र पिव•, सव&िव‡ािवत्, शुZगुणकम&Hवभाव, 3यायकारी,
दयालु आjद गुण वाला है वैसे िजस पुHतक मO ई5र के गुण, कम&, Hवभाव के
अनुकूल कथन हो वह ई5रकृ त; अ3य नहc। और िजस मO सृि…¦म '"यzाjद
'माण आƒi के और पिव•"मा के aवहार से िव˜Z कथन न हो वह ई5रोž।
जैसा ई5र का िन±&म Xान वैसा िजस पुHतक मO ±ाि3तरिहत Xान का
'ितपादन हो; वह ई5रोž। जैसा परमे5र है और जैसा सृि…¦म रeखा है
वैसा ही ई5र, सृि…, काय&, कारण और जीव का 'ितपादन िजस मO होवे वह
परमे5रोž पुHतक होता है और जो '"यzाjद 'माण िवषयi से अिव˜Z
शुZा"मा के Hवभाव से िव˜Z न हो; इस 'कार के वेद ह<। अ3य बाइबल, कु रान
आjद पुHतकO नहc। इसकR Hप… aाwया बाइबल और कु रान के 'करण मO
तेरहवO और चौदहवO समुqलास मO कR जायगी।
('-) वेद कR ई5र से होने कR आवŸयकता कु छ भी नहc। eयijक मनु‘य लोग
¦मशः Xान बढ़ाते जाकर पtात् पुHतक भी बना लOगे।
(उsर) कभी नहc बना सकते। eयijक िवना कारण के कायª"पिs का होना
अस›भव है। जैसे जंगली मनु‘य सृि… को देख कर भी िवyान् नहc होते और
जब उन को कोई िशzक िमल जाय तो िवyान् हो जाते ह< । और अब भी jकसी
से पढ़े िवना कोई भी िवyान् नहc होता। इस 'कार जो परमा"मा उन आjदसृि…
के ऋिषयi को वेदिव‡ा न पढ़ाता और वे अ3य को न पढ़ाते तो सब लोग
अिवyान् ही रह जाते। जैसे jकसी के बालक को ज3म से एका3त देश, अिवyानi
वा पशुu के संग मO रख देवे तो वह जैसा संग है वैसा ही हो जायेगा। इसका
दृ…ा3त जंगली भील आjद ह<। जब तक आया&वs& देश से िशzा नहc गई थी तब
तक िम~, यूनान और यूरोप देश आjदHथ मनु‘यi मO कु छ भी िव‡ा नहc gई
थी और इं गलै‹ड के कु लु›बस आjद पु˜ष अमेWरका मO जब तक नहc गये थे तब
तक वे भी सहêi, लाखi ¦ोड़i वषŽ से मूख& अथा&त् िव‡ाहीन थे। पुनः सुिशzा
के पाने से िवyान् हो गये ह<; वैसे ही परमा"मा से सृि… कR आjद मO िव‡ा िशzा
कR 'ािƒ से उsरोsर काल मO िवyान् होते आये।
स पूव·षामिप गु˜ः कालेनानव¸छेदात्।। -योग सू०।।
जै◌ेसे वs&मान समय मO हम लोग अ—यापकi से पढ़ ही के िवyान् होते ह< वैसे
परमे5र सृि… के आर›भ मO उ"प– gए अि« आjद ऋिषयi का गु˜ अथा&त्
पढ़ानेहारा है। eयijक जैसे जीव सुषुिƒ और 'लय मO Xानरिहत हो जाते ह<
वैसा परमे5र नहc होता। उस का Xान िन"य है। इसिलये यह िनिtत जानना
चािहये jक िवना िनिमs से नैिमिsक अथ& िसZ कभी नहc होता।
('-) वेद संHकृ तभाषा मO 'कािशत gए और वे अि« आjद ऋिष लोग उस
संHकृ तभाषा को नहc जानते थे jफर वेदi का अथ& उ3हiने कै से जाना?
(उsर) परमे5र ने जनाया। और धमा&"मा योगी मह“ष लोग जब-जब िजस-
िजस के अथ& को जानने कR इ¸छा करके —यानाविHथत हो परमे5र के Hव’प
मO समािधHथ gए तब-तब परमा"मा ने अभी… म3•O के अथ& जनाये । जब बgतi
के आ"माu मO वेदाथ&'काश gआ तब ऋिष मुिनयi ने वह अथ& और ऋिष
मुिनयi के इितहासपूव&क >3थ बनाये। उन का नाम {ा|ण अथा&त् {| जो वेद
उसका aाwयान >3थ होने से {ा|ण नाम gआ। और-
ऋषयो म3•दृ…यः म3•न् स›'ादुः।
िजस-िजस म3•थ& का दश&न िजस-िजस ऋिष को gआ और 'थम ही िजस के
पहले उस म3• का अथ& jकसी ने 'कािशत नहc jकया था; jकया और दूसरi
को पढ़ाया भी। इसिलये अ‡ाविध उस-उस म3• के साथ ऋिष का नाम
Hमरणाथ& िलखा आता है। जो कोई ऋिषयi को म3•कsा& बतलावO उन को
िम•यावादी समझO। वे तो म3•O के अथ&'काशक ह<।
('-) वेद jकन >3थi का नाम है?
(उsर) ऋÀफ़, यजुः, साम और अथव& म3•संिहताu का; अ3य का नहc।
('-) म3•{ा|णयोव·दनामधेयम्।।
इ"याjद का"यायनाjदकृ त 'ितXासू•jद का अथ& eया करोगे?
(उsर) देखो! संिहता पुHतक के आर›भ अ—याय कR समािƒ मO वेद यह सनातन
से शdद िलखा आता है और {ा|ण पुHतक के आर›भ वा अ—याय कR समािƒ
मO कहc नहc िलखा। और िन˜ž मO-
इ"यिप िनगमो भवित। इित {ा|णम्।।
छा3दो{ा|णािन च तिyषयािण।। -यह पािणनीय सू• है।
इस से भी Hप… िवjदत होता है jक वेद म3•भाग और {ा|ण aाwयाभाग ह<।
इस मO जो िवशेष देखना चाह< तो मेरी बनाई ‘ऋ•वेदाjदभा‘यभूिमका’ मO देख
लीिजये। वहां अनेकशः 'माणi से िव˜Z होने से यह का"यायन का वचन नहc
हो सकता ऐसा ही िसZ jकया गया है। eयijक जो मानO तो वेद सनातन कभी
नहc हो सकO eयijक {ा|ण पुHतकi मO बgत से ऋिष मह“ष और राजाjद के
इितहास िलखे ह< और इितहास िजस का हो उस के ज3म के पtात् िलखा जाता
है। वह >3थ भी उस के ज3मे पtात् होता है। वेदi मO jकसी का इितहास नहc
jक3तु िवशेष िजस-िजस शdद से िव‡ा का बोध होवे उस-उस शdद का 'योग
jकया है। jकसी मनु‘य कR संXा वा िवशेष कथा का 'संग वेदi मO नहc।
('-) वेदi कR jकतनी शाखा ह<?
(उsर) एक हजार एक सौ सsाईस।
('-) शाखा eया कहाती ह<?
(उsर) aाwयान को शाखा कहते ह<।
('-) संसार मO िवyान् वेद के अवयवभूत िवभागi को शाखा मानते ह<?
(उsर) तिनक सा िवचार करो तो ठीक। eयijक िजतनी शाखा ह< वे आ5लायन
आjद ऋिषयi के नाम से 'िसZ ह< और म3•संिहता परमे5र के नाम से 'िसZ
ह<। जै◌ेसे चारi वेदi को परमे5रकृ त मानते ह< वैसे आ5लायनी आjद शाखाu
को उस-उस ऋिषकृ त मानते ह< और सब शाखाu मO म3•O कR 'तीक धर के
aाwया करते ह<। जैसे तैिsरीय शाखा मO ‘इषे "वोज· "वेित’ इ"याjद 'तीकO धर
के aाwयान jकया है। और वेदसंिहताu मO jकसी कR 'तीक नहc धरी।
इसिलये परमे5रकृ त चारi वेद मूल वृz और आ5लायनाjद सब शाखा ऋिष
मुिनकृ त ह<; परमे5रकृ त नहc। जो इस िवषय कR िवशेष aाwया देखना चाह<
वे ‘ऋ•वेदाjदभा‘यभूिमका’ मO देख लेवO।
जैसे माता िपता अपने स3तानi पर कृ पादृि… कर उ–ित चाहते ह< वैसे ही
परमा"मा ने सब मनु‘यi पर कृ पा करके वेदi को 'कािशत jकया है। िजस से
मनु‘य अिव‡ा3धकार ±मजाल से छू टकर िव‡ा िवXान’प सूय& को 'ाƒ
होकर अ"यान3द मO रह<। और िव‡ा तथा सुखi कR वृिZ करते जायO।
('-) वेद िन"य ह< वा अिन"य?
(उsर) िन"य ह<। eयijक परमे5र के िन"य होने से उस के Xानाjद गुण भी
िन"य ह<। जो िन"य पदाथ¶ ह< उन के गुण, कम&, Hवभाव िन"य और अिन"य ¥a
के अिन"य होते ह<।
('-) eया यह पुHतक भी िन"य है?
(उsर) नहc। eयijक पुHतक तो प•े और Hयाही का बना है वह िन"य कै से हो
सकता है? jक3तु जो शdद अथ& और स›ब3ध ह< वे िन"य ह< ?
('-) ई5र ने उन ऋिषयi को Xान jदया होगा और उस Xान से लोगi ने वेद
बना िलये हiगे?
(उsर) Xान Xेय के िवना नहc होता। गायûयाjद छ3द ष"जाjद और
उदाsाऽनुदाsाjद Hवर के Xानपूव&क गायûयाjद छ3दi के िनमा&ण करने मO
सव&X के िवना jकसी का साम•य& नहc है jक इस 'कार का सव&Xानयुž शा¬
बना सकO ।
हां! वेद को पढ़ने के पtात् aाकरण, िन˜ž और छ3द आjद >3थ ऋिष
मुिनयi ने िव‡ाu के 'काश के िलये jकये ह<। जो परमा"मा वेदi का 'काश न
करे तो कोई कु छ भी न बना सके । इसिलये वेद परमे5रोž ह<। इ3हc के अनुसार
सब लोगi को चलना चािहये और जो कोई jकसी से पूछे jक तु›हारा eया मत
है तो यही उsर देना jक हमारा मत वेद अथा&त् जो कु छ वेदi मO कहा है हम
उस को मानते ह<।
अब इसके आगे सृि… के िवषय मO िलखOगे। यह संzेप से ई5र और वेदिवषय मO
aाwयान jकया है।।७।।
इित ~ीमÖयान3दसरHतीHवािमकृ ते
स"याथ&'काशे ई5रवेदिवषये सुभाषािवभूिषते
सƒमः समुqलासः स›पूण&ः।।७।।
अथा…मसमुqलासार›भः
अथ सृ‘Þु"पिsिHथित'लयिवषयान् aाwयाHयामः
इयं िवसृि…य&त आ बभूव यjद वा दधे यjद वा न ।
यो अHया—यzः परमे aोम3"सो अंग वेद यjद वा न वेद ।।१।।
-ऋ० मं० १०। सू० १२९। मं० ७।।
तम आसीsमसा गूळम>ेऽ'के तं सिललं सव&मा इदम् ।
तु¸)ेना^विपिहतं यदासीsपसHत3मिहना जायतैकम् ।।२।।
-ऋ० मं०। सू०। मं०।।
िहर‹यगभःर् समवsता&>े भतूHय जातः पितरे क आसीत् ।
स दाधार पृिथवc ‡ामुतमेां कHमै देवाय हिवषा िवधमे ।।३।।
-ऋ०मं० १०। सू० १२९। मं० १।।
पु˜ ष एवेद◌
ँ ् सव¶ य¾भूतं य0 भाÀ‰म् ।
उतामृत"वHयेशानो यद–ेनाितरोहित ।।४।।
-यजुः अ० ३१। मं० २।।
यतो वा इमािन भूतािन जाय3ते येन जातािन जीवि3त।
य"'य3"यिभसंिवशि3त तिyिजXासHव तद् {|।।५।।
-तैिनरीयोपिन०।
हे (अंग) मनु‘य! िजस से यह िविवध सृि… 'कािशत gई है जो धारण और
'लयकsा& है जो इस जगत् का Hवामी है िजस aापक मO यह सब जगत् उ"पिs,
िHथित, 'लय को 'ाƒ होता है सो परमा"मा है। उस को तू जान और दूसरे को
सृि…कsा& मत मान।।१।।
यह सब जगत् सृि… से पहले अ3धकार से आवृत, राि•’प मO जानने के अयो•य,
आकाश’प सब जगत् तथा तु¸छ अथा&त् अन3त परमे5र के स›मुख एकदेशी
आ¸छाjदत था। पtात् परमे5र ने अपने साम•य& से कारण’प से काय&’प
कर jदया।।२।।
हे मनु‘यो! जो सब सूया&jद तेजHवी पदाथŽ का आधार और जो यह जगत् gआ
है और होगा उस का एक अिyतीय पित परमा"मा इस जगत् कR उ"पिs के
पूव& िव‡मान था। और िजस ने पृिथवी से लेके सू‰य&पय&3त जगत् को उ"प–
jकया है उस परमा"मा देव कR 'ेम से भिž jकया करO ।।३।।
हे मनु‘यो! जो सब मO पूण& पु˜ष और जो नाश रिहत कारण और जीव का
Hवामी जो पृिथaाjद जड़ और जीव से अितWरž है; वही पु˜ष इस सब भूत
भिव‘यत् और वत&मानHथ जगत् का बनाने वाला है।।४।।
िजस परमा"मा कR रचना से ये सब पृिथaाjद भूत उ"प– होते ह< िजस से जीते
और िजस मO 'लय को 'ाƒ होते ह<; वह {| है। उस के जानने कR इ¸छा
करो।।५।।
ज3मा‡Hय यतः।। -शारीरक सू० अ० १। सू•० २।।
िजस से इस जगत् का ज3म, िHथित और 'लय होता है; वही {| जानने यो•य
है।
('-) यह जगत् परमे5र से उ"प– gआ है वा अ3य से?
(उsर) िनिमs कारण परमा"मा से उ"प– gआ है पर3तु इसका उपादान कारण
'कृ ित है।
('-) eया 'कृ ित परमे5र ने उ"प– नहc कR?
(उsर) नहc। वह अनाjद है।
('-) अनाjद jकसको कहते और jकतने पदाथ& अनाjद ह<?
(उsर) ई5र, जीव और जगत् का कारण ये तीन अनाjद ह<।
('-) इसमO eया 'माण है।
(उsर)
yा सुपणा& सयजुा सखाया समानं वz्◌ृ◌ा◌ं पWर षHवजाते ।
तयोर3यः िपÊपलं Hवाys्यन-–3यो अिभ चाकशीित।।१।।
-ऋ०मं० १। सू० १६४। मं० २०।।
शा5ती^यः समा^यः ।।२।। -यजुः० अ० ४०। मं० ८।।
(yा) जो {| और जीव दोनi (सुपणा&) चेतनता और पालनाjद गुणi से सदृश
(सयुजा) aाÊय aापक भाव से संयुž (सखाया) परHपर िम•तायुž सनातन
अनाjद ह< और (समानम्) वैसा ही (वृzम्) अनाjद मूल’प कारण और
शाखा’प काय&युž वृz अथा&त् जो Hथूल होकर 'लय मO िछ– िभ– हो जाता
है वह तीसरा अनाjद पदाथ& इन तीनi के गुण, कम& और Hवभाव भी अनाjद ह<
(तयोर3यः) इन जीव और {| मO से एक जो जीव है वह इस वृz’प संसार मO
पापपु‹य’प फलi को (Hवाyिs) अ¸छे 'कार भोžा है और दूसरा परमा"मा
कमŽ के फलi को (अन-न्) न भोžा gआ चारi ओर अथा&त् भीतर बाहर सव&•
'काशमान हो रहा है। जीव से ई5र, ई5र से जीव और दोनi से 'कृ ित िभ–
Hव’प; तीनi अनाjद ह<।।१।।
(शा5ती०) अथा&त् अनाjद सनातन जीव’प 'जा के िलये वेद yारा परमा"मा
ने सब िव‡ाu का बोध jकया है।।२।।
अजामेकां लोिहतशुeलकृ ‘णां ब§वीः 'जाः सृजमानां स’पाः।
अजो Éेको जुषमाणोऽनुशेते जहा"येनां भुžभोगामजोऽ3यः।।
यह उपिनषत् का वचन है।
'कृ ित, जीव और परमा"मा तीनi अज अथा&त् िजन का ज3म कभी नहc होता
और न कभी ज3म लेते अथा&त् ये तीन सब जगत् के कारण ह<। इन का कारण
कोई नहc। इस अनाjद 'कृ ित का भोग अनाjद जीव करता gआ फं सता है और
उस मO परमा"मा न फं सता और न उस का भोग करता है।

ई5र और जीव का लzण ई5र िवषय मO कह आये। अब 'कृ ित का लzण


िलखते ह<-
सÓवरजHतमसां सा›यावHथा 'कृ ितः 'कृ तेम&हान् महतोऽहंकारोऽहंकारात्
प€त3मा•‹युभयिमि3¥यं प€त3मा•े^यः Hथूलभूतािन पु˜ष इित
प€िवशितग&णः।। -सा।◌्wयसू•।।
(सÓव) शुZ (रजः) म—य (तमः) जाü अथा&त् जड़ता तीन वHतु िमलकर जो
एक संघात है उस का नाम 'कृ ित है। उस से महsÓव बुिZ, उस से अहंकार,
उस से पांच त3मा• सूˆम भूत और दश इि3¥यां तथा •यारहवां मन, पांच
त3मा•u से पृिथaाjद पांच भूत ये चौबीस और प0ीसवां पु˜ष अथा&त् जीव
और परमे5र ह<। इन मO से 'कृ ित अिवकाWरणी और महsÓव अहंकार तथा
पांच सूˆम भूत 'कृ ित का का‰य& और इि3¥यां मन तथा Hथूलभूतi का कारण
है। पु˜ष न jकसी कR 'कृ ित उपादान कारण और न jकसी का का‰य& है।
('-) सदेव सो›येदम> आसीत्।।१।। असyा इदम> आसीत्।।२।।
आ"मा वा इदम> आसीत्।।३।। {| वा इदम> आसीत्।।४।।
ये उपिनषदi के वचन ह<।
हे 5ेतके तो! यह जगत् सृि… के पूव& सत्। १। असत्। २। आ"मा। ३। और {|’प
था।।४।। पtात्-
तदैzत बgः Hयां 'जायेयेित।।१।।
सोऽकामयत बgः Hयां 'जायेयेित।।२।। -यह तैिsरीयोपिनषत् का वचन है।
वही परमा"मा अपनी इ¸छा से बg’प हो गया है।।१। २।।
सव¶ खिqवदं {| नेह नानािHत jक€न।। -यह भी उपिनषत् का वचन है।
जो यह जगत् है वह सब िनtय करके {| है। उस मO दूसरे नाना 'कार के
पदाथ& कु छ भी नहc jक3तु सब {|’प ह<।
(उsर) eयi इन वचनi का अनथ& करते हो? eयijक उ3हc उपिनषदi मO-
अ–ेन सो›य शुंगेनापो मूलमि3व¸छ अिÐHसो›य शुंगेन तेजोमूलमि3व¸छ
तेजसा सो›य शुंगेन स3मूलमि3व¸छ स3मूलाः सो›येमाः 'जाः सदायतनाः
स"'ित¼ाः।। -छा3दो•य उपिन०।।
हे 5ेतके तो! अ–’प पृिथवी का‰य& से जल’प मूल कारण को तू जान। काय&’प
जल से तेजो’प मूल और तेजो’प काय& से स¥ूप कारण जो िन"य 'कृ ित है उस
को जान। यही स"यHव’प 'कृ ित सब जगत् का मूल घर और िHथित का Hथान
है। यह सब जगत् सृि… के पूव& असत् के सदृश और जीवा"मा, {| और 'कृ ित
मO लीन होकर वs&मान था; अभाव न था और जो (सव¶ खलु०) यह वचन ऐसा
है जैसा jक ‘कहc कR âट कहc का रोड़ा भानमती ने कु नवाँ जोड़ा’ ऐसी लीला
का है। eयijक-
सव¶ खिqवदं {| तœलािनित शा3त उपासीत। -छा3दो•य।।
और-
नेह नानािHत jक€न।। -यह कठवqली का वचन है।।
जैसे शरीर के अंग जब तक शरीर के साथ रहते ह< तब तक काम के और अलग
होने से िनक›मे हो जाते ह<, वैसे ही 'करणHथ वाeय साथ&क और 'करण से
अलग करने वा jकसी अ3य के साथ जोड़ने से अनथ&क हो जाते ह<। सुनो! इस
का अथ& यह है-हे जीव! तू उस {| कR उपासना कर। िजस {| से जगत् कR
उ"पिs, िHथित और जीवन होता है; िजस के बनाने और धारण से यह सब
जगत् िव‡मान gआ है वा {| से सहचWरत है; उस को छोड़कर दूसरे कR
उपासना न करनी। इस चेतनमा• अख‹डैकरस {|Hव’प मO नाना वHतुu
का मेल नहc है jक3तु ये सब पृथÀफ़-पृथÀफ़ Hव’प मO परमे5र के आवमार मO
िHथत ह<।
('-) जगत् के कारण jकतने होते ह<?
(उsर) तीन। एक िनिमs, दूसरा उपादान, तीसरा साधारण। िनिमs कारण
उस को कहते ह< jक िजस के बनाने से कु छ बने, न बनाने से न बने, आप Hवयं
बने नहc; दूसरे को 'कारा3तर बना देवे। दूसरा उपादान कारण उस को कहते
ह< िजस के िवना कु छ न बने; वही अवHथा3तर ’प होके बने िबगड़े भी। तीसरा
साधारण कारण उस को कहते ह< jक जो बनाने मO साधन और साधारण िनिमs
हो। िनिमs कारण दो 'कार के होते ह<। एक-सब सृि… को कारण से बनाने,
धारने और 'लय करने तथा सब कR aवHथा रखने वाला मुwय िनिमs कारण
परमा"मा। दूसरा-परमे5र कR सृि… मO से पदाथŽ को लेकर अनेकिवध
का‰या&3तर बनाने बनाने वाला साधारण िनिमs कारण जीव। उपादान
कारण-'छित, परमाणु िजस को सब संसार के बनाने कR साम>ी कहते ह<। वह
जड़ होने से आपसे आप न बन और न िबगड़ सकती है jक3तु दूसरे के बनाने से
बनती और िबगाड़ने से िबगड़ती है। कहc-कहc जड़ के िनिमs से जड़ भी बन
और िबगड़ भी जाता है। जैसे परमे5र के रिचत बीज पृिथवी मO िगरने और
जल पाने से वृzाकार हो जाते ह< और अि« आjद जड़ के संयोग से िबगड़ भी
जाते ह< पर3तु इनका िनयमपूव&क बनना और वा िबगड़ना परमे5र और जीव
के आधीन है।
जब कोई वHतु बनाई जाती है तब िजन-िजन साधनi से अथा&त् Xान, दश&न,
बल, हाथ और नाना 'कार के साधन और jदशा, काल और आकाश साधारण
कारण। जैसे घड़े को बनाने वाला कु ›हार िनिमs; िमÝी उपादान और द‹ड
च¦ आjद सामा3य िनिमs; jदशा, काल, आकाश, 'काश, आंख, हाथ, Xान,
j¦या आjद िनिमs साधारण और िनिमs कारण भी होते ह<। इन तीन
कारणां◌े के िवना कोई भी वHतु नहc बन सकती और न िबगड़ सकती है।
('-) नवीन वेदा3ती लोग के वल परमे5र ही को जगत् का अिभ–
िनिमsोपादान कारण मानते ह<-
यथोण&नािभः सृजते गृòते च। -यह उपिनषत् का वचन है।
जैसे मकड़ी बाहर से कोई पदाथ& नहc लेती अपने ही मO से त3तु िनकाल जाला
बनाकर आप ही उस मO खेलती है वैसे {| अपने मO से जगत् को बना आप
जगदाकार बन आप ही ¦Rड़ा कर रहा है। सो {| इ¸छा और कामना करता
gआ jक म< बg’प अथा&त् जगदाकार हो जाऊँ; संकqपमा• से सब जग¥ूप बन
गया। eयijक-
आदाव3ते च य–ािHत वs&मानेऽिप तsथा ।।
यह मा‹डू eयोपिनषत् पर काWरका है।
जो 'थम न हो, अ3त मO न रहै, वह वs&मान मO भी नहc है। jक3तु सृि… कR
आjद मO जगत् न था {| था। 'लय के अ3त मO संसार न रहेगा तो वs&मान मO
सब जगत् {| eयi नहc?
(उsर) जो तु›हारे कहने के अनुसार जगत् का उपादान कारण {| होवे तो
वह पWरणामी अवHथा3तरयुž िवकारी हो जावे और उपादान कारण के गुण,
कम&, Hवभाव काय& मO भी आते ह<-
कारणगुणपूव&कः का‰य&गुणो दृ…ः।। -वैशेिषक सू•।।
उपादान कारण के सदृश काय& मO गुण होते ह< तो {| सि0दान3दHव’प; जगत्
का‰य&’प से असत्, जड़ और आन3दरिहत; {| अज और जगत् उ"प– gआ
है। {| अदृŸय और जगत् दृŸय है। {| अख‹ड और जगत् ख‹ड’प है। जो
{| से पृिथaाjद का‰य& उ"प– होवे तो पृिथaाjद काय& के जड़ाjद गुण {|
मO भी होवO अथा&त् जैसे पृिथaाjद जड़ ह< वैसा {| भी जड़ हो जाय और जैसा
परमे5र चेतन है वैसा पृिथaाjद का‰य& भी चेतन होना चािहए। और जो
मकड़ी का दृ…ा3त jदया वह तु›हारे मत का साधक नहc jक3तु बाधक है eयijक
वह जड़’प शरीर त3तु का उपादान और जीवा"मा िनिमs कारण है। और यह
भी परमा"मा कR अ¾भुत रचना का 'भाव है। eयijक अ3य ज3तु के शरीर से
जीव त3तु नहc िनकाल सकता। वैसे ही aापक {| ने अपने भीतर aाÊय
'कृ ित और परमाणु कारण से Hथूल जगत् को बना कर बाहर Hथूल’प कर
आप उसी मO aापक होके होके साzीभूत आन3दमय हो रहा है। और जो
परमा"मा ने ईzण अथा&त् दश&न, िवचार और कामना कR jक म< सब जगत् को
बनाकर 'िसZ होऊं अथा&त् जब जगत् उ"प– होता है तभी जीवi के िवचार,
Xान, —यान, उपदेश, ~वण मO परमे5र 'िसZ और बgत Hथूल पदाथŽ से सह
वs&मान होता है। जब 'लय होता है तब परमे5र और मुžजीवi को छोड़ के
उस को कोई नहc जानता। और जो वह काWरका है वह ±ममूलक है। eयijक
'लय मO जगत् 'िसZ नहc था और सृि… के अ3त अथा&त् 'लय के आर›भ से
जब तक दूसरी वार सृि… न होगी तब तक भी जगत् का कारण सूˆम होकर
अ'िसZ है। eयijक-
तम आसीsमसा गूळम>े ।।१।। ऋ•वेद का वचन है।
आसीjददं तमोभूतम'Xातमलzणम्।
अ'तeय&मिवXेयं 'सुƒिमव सव&तः।।२।।
यह सब जगत् सृि… के पहले 'लय मO अ3धकार से आवृत आ¸छाjदत था। और
'लयार›भ के पtात् भी वैसा ही होता है। उस समय न jकसी के जानने, न
तक& मO लाने और न 'िसZ िच§नi से युž इि3¥यi से जानने यो•य था और न
होगा। jक3तु वs&मान मO जाना जाता है और 'िसZ िच§नi से युž जानने
यो•य होता और यथावत् उपलdध है। पुनः उस काWरकाकार ने वs&मान मO भी
जगत् का अभाव िलखा सो सव&था अ'माण है। eयijक िजस को 'माता 'माणi
से जानता और 'ाƒ होता है वह अ3यथा कभी नहc हो सकता।
('-) जगत् के बनाने मO परमे5र का eया 'योजन है?
(उsर) नहc बनाने मO eया 'योजन है?
('-) जो न बनाता तो आन3द मO बना रहता और जीवi को भी सुख-दुःख
'ाƒ न होता।
(उsर) यह आलसी और दWर¥ लोगi कR बातO ह< पु˜षाथŠ कR नहc और जीवi
को 'लय मO eया सुख वा दुःख है? जो सृि… के सुख दुःख कR तुलना कR जाय
तो सुख कई गुना अिधक होता और बgत से पिव•"मा जीव मुिž के साधन
कर मोz के आन3द को भी 'ाƒ होते ह<। 'लय मO िनक›मे जैसे सुषुिƒ मO पडे़
रहते ह< वैसे रहते ह< और 'लय के पूव& सृि… मO जीवi के jकये पाप पु‹य कमŽ
का फल ई5र कै से दे सकता और जीव eयi कर भोग सकते? जो तुम से कोई
पूछे jक आंख के होने मO eया 'योजन है? तुम यही कहोगे देखना तो जो ई5र
मO जगत् कR रचना करने का िवXान, बल और j¦या है उस का eया 'योजन;
िवना जगत् कR उ"पिs करने के ? दूसरा कु छ भी न कह सकोगे। और परमा"मा
के 3याय, धारण, दया आjद गुण भी तभी साथ&क हो सकते ह< जब जगत् को
बनावे। उस का अन3त साम•य& जगत् कR उ"पिs, िHथित, 'लय और aवHथा
करने ही से सफल है। जैसे ने• का Hवाभािवक गुण देखना है वैसे परमे5र का
Hवाभािवक गुण जगत् कR उ"पिs करके सब जीवi को असंwय पदाथ& देकर
परोपकार करना है।
('-) बीज पहले है वा वृz?
(उsर) बीज। eयijक बीज, हेतु, िनदान, िनिमs और कारण इ"याjद शdद
एकाथ&वाचक ह<। कारण का नाम बीज होने से काय& के 'थम ही होता है।
('-) जब परमे5र सव&शिžमान् है तो वह कारण और जीव को भी उ"प–
कर सकता है। जो नहc कर सकता तो सव&शिžमान् भी नहc रह सकता?
(उsर) सव&शिžमान् का अथ& पूव& िलख आये ह< पर3तु eया सव&शिžमान् वह
कहाता है jक जो अस›भव बात को भी कर सके ? जो कोई अस›भव बात
अथा&त् जैसा कारण के िवना काय& को कर सकता है तो िवना कारण दूसरे ई5र
कR उ"पिs कर और Hवयं मृ"यु को 'ाƒ; जड़, दुःखी, अ3यायकारी, अपिव•
और कु कमŠ आjद हो सकता है वा नहc? जो Hवाभािवक िनयम अथा&त् जैसा
अि« उ‘ण, जल शीतल और पृिथaाjद सब जड़i को िवपरीत गुणवाले ई5र
भी नहc कर सकता। जैसे आप जड़ नहc हो सकता वैसे जड़ को चेतन भी नहc
कर सकता। और ई5र के िनयम स"य और पूरे ह< इसिलये पWरवत&न नहc कर
सकता। इसिलये सव&शिžमान् का अथ& इतना ही है jक परमा"मा िवना jकसी
के सहाय के अपने सब काय& पूण& कर सकता है।
('-) ई5र साकार है वा िनराकार ? जो िनराकार है तो िवना हाथ आjद
साधनi के जगत् को न बना सके गा और जो साकार है तो कोई दोष नहc आता?
(उsर) ई5र िनराकार है। जो साकार अथा&त् शरीरयुž है वह ई5र ही नहc।
eयijक वह पWरिमत शिžयुž, देश काल वHतुu मO पWरि¸छ–, zुधा, तृषा,
छेदन, भेदन, शीतो‘ण, °वर, पीड़ाjद सिहत होवे। उस मO जीव के िवना ई5र
के गुण कभी नहc घट सकते। जैसे तुम और हम साकार अथा&त् शरीरधारी ह<
इस से •सरे णु, अणु, परमाणु और 'कृ ित को अपने वश मO नहc ला सकते और
न उन सूˆम पदाथŽ को पकड़ कर Hथूल बना सकते ह<। वैसे ही Hथूल देहधारी
परमे5र भी उन सूˆम पदाथŽ से Hथूल जगत् नहc बना सकता। जो परमे5र
भौितक इि3¥यगोलक हHत पादाjद अवयवi से रिहत है पर3तु उस कR अन3त
शिž बल परा¦म ह< उन से सब काम करता है। जो जीव और 'कृ ित से कभी
न हो सकते। जब वह 'कृ ित से भी सूˆम और उन मO aापक है तभी उन को
पकड़ कर जगदाकार कर देता है। और सव&गत होने से सब का धारण और 'लय
भी कर सकता है।
('-) जैसे मनु‘याjद के मां बाप साकार ह< उन का स3तान भी साकार होता
है। जो ये िनराकार होते तो इनके लड़के भी िनराकार होते। वैसे परमे5र
िनराकार हो तो उस का बनाया जगत् भी िनराकार होना चािहये।
(उsर) यह तु›हारा '- लड़के के समान है। eयijक हम अभी यह कह चुके ह<
jक परमे5र जगत् का उपादान कारण नहc jक3तु िनिमs कारण है। और जो
Hथूल होता है वह 'कृ ित और परमाणु जगत् का उपादान कारण है। और वे
सव&था िनराकार नहc jक3तु परमे5र से Hथूल और अ3य का‰य& से सूˆम आकार
रखते ह<।
('-) eया कारण के िवना परमे5र काय& को नहc कर सकता?
(उsर) नहc। eयijक िजस का अभाव अथा&त् जो वत&मान नहc है उस का भाव
वत&मान होना सव&था अस›भव है। जैसे कोई गपोड़ा हांक दे jक म<ने व3—या के
पु• और पु•ी का िववाह देखा। वह नर शृंग का धनुष और दोनi खपु‘प कR
माला पिहरे gए थे। मृगतृि‘णका के जल मO Èान करते और ग3धव&नगर मO रहते
थे। वहां बÖल के िवना वषा&; पृिथवी के िवना सब अ–i कR उ"पिs आjद होती
थी। वैसा ही कारण के िवना काय& का होना अस›भव है।
जैसे कोई कहे jक ‘मम मातािपतरौ न Hतोऽहमेवमेव जातः। मम मुखे िज§वा
नािHत वदािम च ।’ अथा&त् मेरे माता-िपता न थे ऐसे ही म< उ"प– gआ •ं। मेरे
मुख मO जीभ नहc है पर3तु बोलता •ं। िबल मO सप& न था िनकल आया। म< कहc
नहc था, ये भी कहc न थे और हम सब जने आये ह<। ऐसी अस›भव बात
'मsगीत अथा&त् पागल लोगi कR है।
('-) जो कारण के िवना काय& नहc होता तो कारण का कारण कौन है ?
(उsर) जो के वल कारण’प ही ह< वे का‰य& jकसी के नहc होते और जो jकसी
का कारण और jकसी का काय& होता है वह दूसरा कहाता है। जैसे पृिथवी घर
आjद का कारण और जल आjद का काय& होता है। पर3तु जो आjदकारण 'कृ ित
है वह अनाjद है।
मूले मूलाभावादमूलं मूलम्।। -सांwय सू०।।
मूल का मूल अथा&त् कारण का कारण नहc होता। इस से अकारण सब का‰यŽ
का कारण होता है। eयijक jकसी का‰य& के आर›भ समय के पूव& तीनi कारण
अवŸय होते ह<। जैसे कपड़े बनाने के पूव& त3तुवाय, ˜ई का सूत और निलका
आjद पूव& वs&मान होने से व¬ बनता है वैसे जगत् कR उ"पिs के पूव& परमे5र,
'कृ ित, काल और आकाश तथा जीवi के अनाjद होने से इस जगत् कR उ"पिs
होती है। यjद इन मO से एक भी न हो तो जगत् भी न हो।
अ– नािHतका आgः-
शू3यं तÓवं भावोऽिप नŸयित वHतुधम&"वािyनाशHय।।१।। -सांwय सू०।।
अभावात् भावो"पिsना&नुपमृ‡ 'ादुभा&वात्।।२।।
ई5रः कारणं पु˜षकमा&फqयदश&नात्।।३।।
अिनिमsतो भावो"पिsः क‹टकतैˆ‹याjददश&नात्।।४।।
सव&मिन"यमु"पिsिवनाशधम&क"वात्।।५।।
सव¶ िन"यं प€भूतिन"य"वात्।।६।।
सव¶ पृथग् भावलzणपृथe"वात्।।७।।
सव&मभावो भावेि‘वतरे तराभाविसZेः।।८।।
-3यायसू०। अ० ४। आि§न० १।।
यहां नािHतक लोग ऐसा कहते ह< jक १-शू3य ही एक पदाथ& है। सृि… के पूव&
शू3य था, अ3त मO शू3य होगा eयijक जो भाव है अथा&त् वs&मान पदाथ& है उस
का अभाव होकर शू3य हो जायेगा।
(उsर) शू3य आकाश, अदृŸय, अवकाश और िव3दु को भी कहते ह<। शू3य जड़
पदाथ&। इस शू3य मO सब पदाथ& अदृŸय रहते ह<। जैसे एक िव3दु से रे खा, रे खाu
से वतु&लाकार होने से भूिम पव&ताjद ई5र कR रचना से बनते ह< और शू3य का
जानने वाला शू3य नहc होता।।१।।
दूसरा नािHतक-अभाव से भाव कR उ"पिs होती है। जैसे बीज का मद&न jकये
िवना अंकुर उ"प– नहc होता और बीज को तोड़ कर देखO तो अंकुर का अभाव
है। जब 'थम अंकुर नहc दीखता था तो अभाव से उ"पिs gई।
(उsर) जो बीज का उपमद&न करता है वह 'थम ही बीज मO था। जो न होता
तो उ"प– कभी नहc होता।।२।।
तीसरा नािHतक-कहता है jक कमŽ का फल पु˜ष के कम& करने से नहc 'ाƒ
होता। jकतने ही कम& िन‘फल दीखने मO आते ह<। इसिलये अनुमान jकया जाता
है jक कमŽ का फल 'ाƒ होना ई5र के आधीन है। िजस कम& का फल ई5र
देना चाहै देता है। िजस कम& का फल देना नहc चाहता नहc देता। इस बात से
कम&फल ई5रावमीन है।
(उsर) जो कम& का फल ई5राधीन हो तो िवना कम& jकये ई5र फल eयi नहc
देता? इसिलये जैसा कम& मनु‘य करता है वैसा ही फल ई5र देता है। इस से
ई5र Hवत3• पु˜ष को कम& का फल नहc दे सकता। jक3तु जैसा कम& जीव
करता है वैसा ही फल ई5र देता है।।३।।
चौथा नािHतक-कहता है jक िवना िनिमs के पदाथŽ कR उ"पिs होती है। जैसा
बबूल आjद वृzi के कांटे तीˆण अिणवाले देखने मO आते ह<। इससे िवjदत होता
है jक जब-जब सृि… का आर›भ होता है तब-तब शरीराjद पदाथ& िवना िनिमs
के होते ह<।
(उsर) िजस से पदाथ& उ"प– होता है वही उस का िनिमs है। िवना क‹टकR
वृz के कांटे उ"प– eयi नहc होते? ।।४।।
पांचवां नािHतक-कहता है jक सब पदाथ& उ"पिs और िवनाश वाले ह< इसिलये
सब अिन"य ह<।
ºोकाध·न 'वˆयािम यदुžं >3थकोWटिभः।
{| स"यं जगि3म•या जीवो {|ैव नापरः।।
यह jकसी >3थ का ºोक है।
नवीन वेदा3तीलोग पांचवO नािHतक कR कोटी मO ह<। eयijक वे ऐसा कहते ह<
jक ¦ोड़i >3थi का यह िसZा3त है-‘{| स"य जगत् िम•या और जीव {| से
िभ– नहc।’
(उsर) जो सब कR िन"यता िन"य है तो सब अिन"य नहc हो सकता।
('-) सब कR िन"यता भी अिन"य है जैसे अि« का¼i को न… कर आप भी न…
हो जाता है।
(उsर) जो यथावत् उपलdध होता है उस का वs&मान मO अिन"य"व और
परमसूˆम कारण को अिन"य कहना कभी नहc हो सकता। जो वेदा3ती लोग
{| से जगत् कR उ"पिs मानते ह< तो {| के स"य होने से उस का काय& अस"य
कभी नहc हो सकता। जो Hव¹ रœू सÊपा&jदवत् किqपत कह< तो भी नहc बन
सकता। eयijक कqपना गुण है, गुण से ¥a और गुण ¥a से पृथÀफ़ नहc रह
सकता। जब कqपना का कsा& िन"य है तो उसकR कqपना भी िन"य होनी
चािहए, नहc तो उस को भी अिन"य मानो। जैसे Hव¹ िवना देखे सुने कभी नहc
आता। जो जागृत अथा&त् वs&मान समय मO स"य पदाथ& ह< उनके साzात् स›ब3ध
से '"यzाjद Xान होने पर संHकार अथा&त् उन का वासना’प Xान आ"मा मO
िHथत होता है; Hव¹ मO उ3हc को '"यz देखता है। जैसे सुषुिƒ होने से बाÉ
पदाथŽ के Xान के अभाव मO भी बाÉ पदाथ& िव‡मान रहते ह< वैसे 'लय मO
भी कारण ¥a वs&मान रहता है। जो संHकार के िवना Hव¹ होवे तो ज3मा3ध
को भी ’प का Hव¹ होवे। इसिलये वहां उन का Xानमा• है और बाहर सब
पदाथ& वs&मान ह<।
('-) जैसे जागृत के पदाथ& Hव¹ और दोनi के सुषुिƒ मO अिन"य हो जाते ह<
वैसे जागृत के पदाथŽ को भी Hव¹ के तुqय मानना चािहये।
(उsर) ऐसा कभी नहc मान सकते eयijक Hव¹ और सुषिƒ मO बाÉ पदाथŽ
का अXानमा• होता है; अभाव नहc। जैसे jकसी के पीछे कR ओर बgत से
पदाथ& अदृ… रहते ह< उनका अभाव नहc होता; वैसे ही Hव¹ और सुषुिƒ कR
बात है। इसिलये जो पूव& कह आये jक {| जीव और जगत् का कारण अनाjद
िन"य ह<, वही स"य है।।५।।
छठा नािHतक-कहता है jक पांच भूतi के िन"य होने से जगत् िन"य है।
(उsर) यह बात स"य नहc। eयijक िजन पदाथŽ का उ"पिs और िवनाश का
कारण देखने मO आता है वे सब िन"य हi तो सब Hथूल जगत् तथा शरीर घट
पटाjद पदाथŽ को उ"प– और िवन… होते देखते ही ह<◌े। इस से काय& को िन"य
नहc मान सकते।।६।।
सातवां नािHतक-कहता है jक सब पृथÀफ़-पृथÀफ़ ह<। कोई एक पदाथ& नहc है।
िजस-िजस पदाथ& को हम देखते ह< jक उन मO दूसरा एक पदाथ& कोई भी नहc
दीखता। अवयवi मO अवयवी, वs&मानकाल, आकाश, परमा"मा और जाित
पृथÀफ़-पृथÀफ़ पदाथ& समूहi मO एक-एक ह<। उनसे पृथÀफ़ कोई पदाथ& नहc हो
सकता। इसिलये सब पृथÀफ़ पदाथ& नहc jक3तु Hव’प से पृथÀफ़-पृथÀफ़ ह< और
पृथÀफ़-पृथÀफ़ पदाथŽ मO एक पदाथ& भी है।।७।।
आठवां नािHतक-कहता है jक सब पदाथŽ मO इतरे तर अभाव कR िसिZ होने से
सब अभाव’प ह< जैसे ‘अन5ो गौः। अगौर5ः’ गाय घोड़ा नहc और घोड़ा गाय
नहc। इसिलये सब को अभाव’प मानना चािहए।
(उsर) सब पदाथŽ मO इतरे तराभाव का योग हो पर3तु ‘गिव गौर5ेऽ5ो
भाव’पो वत&त एव’ गाय मO गाय और घोड़े मO घोड़े का भाव ही है; अभाव
कभी नहc हो सकता। जो पदाथŽ का भाव न हो तो इतरे तराभाव भी jकस मO
कहा जावे? ।।८।।
नववां नािHतक-कहता है jक Hवभाव से जगत् कR उ"पिs होती है। जैसे पानी,
अ– एक• हो सड़ने से कृ िम उ"प– होते ह<। और बीज पृिथवी जल के िमलने
से घास वृzाjद और पाषाणाjद उ"प– होते ह<। जैसे समु¥ वायु के योग से तरं ग
और तरं गi से समु¥फे न; हqदी, चूना और नcबू के रस िमलाने से रोरी बन
जाती है वैसे सब जगत् तÓवi के Hवभाव गुणi से उ"प– gआ है। इसका बनाने
वाला कोई भी नहc।
(उsर) जो Hवभाव से जगत् कR उ"पिs होवे तो िवनाश कभी न होवे और जो
िवनाश भी Hवभाव से मानो तो उ"पिs न होगी। और जो दोनi Hवभाव युगपत्
¥ai मO मानोगे तो उ"पिs और िवनाश कR aवHथा कभी न हो सके गी और
जो िनिमs के होने से उ"पिs और नाश मानोगे तो ‘िनिमs’ से उ"पिs और
िवनाश होने वाले ¥ai से पृथÀफ़ मानना पड़ेगा। जो Hवभाव ही से उ"पिs
और िवनाश होता तो एक समय ही मO उ"पिs और िवनाश का होना स›भव
नहc। जो Hवभाव से उ"प– होता हो तो इस भूगोल के िनकट मO दूसरा भूगोल,
च3¥, सूय& आjद उ"प– eयi नहc होते? और िजस-िजस के योग से जो-जो
उ"प– होता है वह-वह ई5र के उ"प– jकये gए बीज, अ–, जलाjद के संयोग
से घास, वृz और कृ िम आjद उ"प– होते ह<; िवना उन के नहc। जैसे हqदी,
चूना और नीबू का रस दूर-दूर देश से आकर आप नहc िमलते; jकसी के िमलाने
से िमलते ह<। उस मO भी यथायो•य िमलाने से रोरी होती है। अिधक 3यून वा
अ3यथा करने से रोरी नहc बनती। वैसे ही 'कृ ित परमाणुu को Xान और
युिž से परमे5र के िमलाये िव ना जड़ पदाथ& Hवयं कु छ भी काय&िसिZ के
िलये िवशेष पदाथ& नहc बन सकते। इसिलये Hवभावाjद से सृि… नहc होती,
परमे5र कR रचना से होती है।।९।।
('-) इस जगत् का कsा& न था, न है और न होगा jक3तु अनाjद काल से यह
जैसा का वैसा बना है। न कभी इस कR उ"पिs gई; न कभी िवनाश होगा।
(उsर) िवना कsा& के कोई भी j¦या वा j¦याज3य पदाथ& नहc बन सकता।
िजन पृिथवी आjद पदाथŽ मO संयोग िवशेष से रचना दीखती है; वे अनाjद
कभी नहc हो सकते। और जो संयोग से बनता है वह संयोग के पूव& नहc होता
और िवयोग के अ3त मO नहc रहता। जो तुम इस को न मानो तो कWठन से कWठन
पाषाण हीरा और पोलाद आjद तोड़, टु कड़े कर, गला वा भHम कर देखो jक
इन मO परमाणु पृथÀफ़-पृथÀफ़ िमले ह< वा नहc? जो िमले ह< तो वे समय पाकर
अलग-अलग भी अवŸय होते ह<।।१०।।
('-) अनाjद ई5र कोई नहc jक3तु जो योगा^यास से अिणमाjद ऐ5य& को
'ाƒ होकर सव&Xाjद गुणयुž के वल Xानी होता है वही जीव परमे5र कहाता
है।
(उsर) जो अनाjद ई5र जगत् का ê…ा न हो तो साधनi से िसZ होने वाले
जीवi का आधार जीवन’प जगत्, शरीर और इि3¥यi के गोलक कै से बनते?
इनके िवना जीव साधन नहc कर सकता। जब साधन न होते तो िसZ कहां से
होता? जीव चाहै जैसा साधन कर िसZ होवे तो भी ई5र कR जो Hवयं
सनातन अनाjद िसिZ है; िजस मO अन3त िसिZ है; उसके तुqय कोई भी जीव
नहc हो सकता। eयijक जीव का परम अविध तक Xान बढ़े तो भी पWरिमत
Xान और साम•य&वाला होता है। अन3त Xान और साम•य& वाला कभी नहc हो
सकता। देखो! कोई भी आज तक ई5रकृ त सृि…¦म को बदलनेहारा नहc gआ
है और न होगा। जैसा अनाjद िसZ परमे5र ने ने• से देखने और कानi से
सुनने का िनब3ध jकया है इस को कोई भी योगी बदल नहc सकता। जीव ई5र
कभी नहc हो सकता।
('-) कqप कqपा3तर मO ई5र सृि… िवलzण-िवलzण बनाता है अथवा एक
सी?
(उsर) जैसी jक अब है वैसी पहले थी और आगे होगी; भेद नहc करता।
सूया&च3¥मसौ धाता यथापूव&मकqपयत् ।
jदव्◌ा◌ं च पृिथवc चा3तWरzमथो Hवः ।।
-ऋ० मं० १०। सू० १९०। मं० ३।।
(धाता) परमे5र जैसे पूव& कqप मO सूय,& च3¥, िव‡ुत्, पृिथवी, अ3तWरz आjद
बनाता था। वैसे ही अब बनाये ह< और आगे भी वैसे ही बनावेगा।।१।। इसिलये
परमे5र के काम िवना भूल चूक के होने से सदा एक से ही gआ करते ह<। जो
अqपX और िजस का Xान वृिZ zय को 'ाƒ होता है उसी के काम मO भूल
चूक होती है; ई5र के काम मO नहc।
('-) सृि…-िवषय मO वेदाjद शा¬O का अिवरोध है वा िवरोध?
(उsर) अिवरोध है।
('-) जो अिवरोध है तो-
तHमाyा एतHमादा"मन आकाशः स›भूतः। आकाशाyायुः। वायोरि«ः।
अ«ेरापः। अ¿ः पृिथवी। पृिथaा ओषधयः। ओषिध^योऽ–म्। अ–ा¥ेतः।
रे तसः पु˜षः। स वा एष पु˜षोऽ–रसमयः।। -यह तैिsरीय उपिनषत् का वचन है।
उस परमे5र और 'कृ ित से आकाश अवकाश अथा&त् जो कारण’प ¥a सव&•
फै ल रहा था उस को इक$ा करने से अवकाश उ"प– सा होता है। वाHतव मO
आकाश कR उ"पिs नहc होती eयijक िवना आकाश के 'कृ ित और परमाणु
कहां ठहर सकO ?
आकाश के पtात् वायु, वायु के पtात् अि«, अि« के पtात् जल, जल के
पtात् पृिथवी, पृिथवी से ओषिध, ओषिधयi से अ–, अ– से वीय&, वीय& से
पु˜ष अथा&त् शरीर उ"प– होता है। यहां आकाशाjद ¦म से और छा3दो•य मO
अ•3याjद; ऐतरे य मO जलाjद ¦म से सृि… gई। वेदi मO कहc पु˜ष, कहc
िहर‹यगभ& आjद से मीमांसा मO कम&, वैशेिषक काल, 3याय मO परमाणु, योग मO
पु˜षाथ&, सांwय मO 'कृ ित और वेदा3त मO {| से सृि… कR उ"पिs मानी है। अब
jकस को स0ा और jकस को भफ़ू ठा मानO?
(उsर) इस मO सब स0े कोई भफ़ू ठा नहc। भफ़ू ठा वह है जो िवपरीत समझता
है। eयijक परमे5र िनिमs और 'कृ ित जगत् का उपादान कारण है। जब
महा'लय होता है उस के पtात् आकाशाjद ¦म अथा&त् जब आकाश और वायु
का 'लय नहc होता और अ•3याjद का होता है; अ•3याjद-¦म से और जब
िव‡ुत् अि« का भी नाश नहc होता तब जल-¦म से सृि… होती है। अथा&त्
िजस-िजस 'लय मO जहां-जहां तक 'लय होता है; वहां-वहां से सृि… कR उ"पिs
होती है। पु˜ष और िहर‹यगभा&jद 'थम समुqलास मO िलख भी आये ह<; वे सब
नाम परमे5र के ह<। पर3तु िवरोध उस को कहते ह< jक एक काय& मO एक ही
िवषय पर िव˜Z वाद होवे। छः शा¬O मO अिवरोध देखो इस 'कार है- मीमांसा
मO-‘ऐसा कोई भी काय& जगत् मO नहc होता jक िजस के बनाने मO कम&चे…ा न
कR जाय’। वैशेिषक मO-‘समय न लगे िवना बने ही नहc’। 3याय मO-‘उपादान
कारण न होने से कु छ भी नहc बन सकता’। योग मO-‘िव‡ा, Xान, िवचार न
jकया जाय तो नहc बन सकता’। सांwय मO-‘तÓवi का मेल न होने से नहc बन
सकता’। और वेदा3त मO-‘बनाने वाला न बनावे तो कोई भी पदाथ& उ"प– हो
न सके ’। इसिलये सृि… छः कारणi से बनती है उन छः कारणi कR aाwया एक-
एक कR एक-एक शा¬ मO है। इसिलए उनमO िवरोध कु छ भी नहc? जैसे छः
पु˜ष िमल के एक छÊपर उठा कर िभिsयi पर धर< वैसा ही सृि…’प काय& कR
aाwया छः शा¬कारi ने िमलकर पूरी कR है। जैसे पांच अ3धे और एक
म3ददृि… को jकसी ने हाथी का एक-एक देश बतलाया। उन से पूछा jक हाथी
कै सा है? उन मO से एक ने कहा-ख›भे, दूसरे ने कहा-सूप, तीसरे ने कहा-मूसल,
चौथे ने कहा-भफ़ाडू , पांचवO ने कहा-चौतरा और छठे ने कहा- काला-काला
चार ख›भi के ऊपर कु छ भ<सा सा आकार वाला है। इसी 'कार आज कल के
अनाष& नवीन >3थi के पढ़ने और 'ाकृ त भाषा वालi ने ऋिष'णीत >3थ न
पढ़कर, नवीन zु¥बुिZकिqपत संHकृ त और भाषाu के >3थ पढ़कर, एक दूसरे
कR िन3दा मO त"पर होके भफ़ू ठा भफ़गड़ा मचाया है। इन का कथन बुिZमानi
के वा अ3य के मानने यो•य नहc। eयijक जो अ3धi के पीछे अ3धे चलO तो दुःख
eयi न पावO? वैसे ही आज कल के अqप िव‡ायुž, HवाथŠ, इि3¥याराम पु˜षi
कR लीला संसार का नाश करने वाली है।
('-) जब कारण के िवना काय& नहc होता तो कारण का कारण eयi नहc?
(उsर) अरे भोले भाइयो! कु छ अपनी बुिZ को काम मO eयi नहc लाते?
देखो! संसार मO दो ही पदाथ& होते ह<-एक कारण दूसरा काय&। जो कारण है वह
का‰य& नहc और िजस समय का‰य& है वह कारण नहc। जब तक मनु‘य सृि… को
यथावत् नहc समझता तब तक उस को यथावत् Xान 'ाƒ नहc होता-
िन"यायाः सÓवरजHतमसां सा›यावHथायाः 'कृ ते˜"प–ानां परमसूˆमाणां
पृथÀफ़ पृथ•वs&मानानां तÓवपरमाणूनां 'थमः संयोगार›भः संयोगिवशेषाद-
वHथा3तरHय Hथूलाकार'ािƒः सृि…˜¸यते।।
अनाjद िन"य Hव’प सÓव, रजस् और तमो गुणi कR एकावHथा’प 'कृ ित से
उ"प– जो परमसूˆम पृथÀफ़-पृथÀफ़ तÓवावयव िव‡मान ह< उ3हc का 'थम
ही जो संयोग का आर›भ है; संयोग िवशेषi से अवHथा3तर दूसरी-दूसरी
अवHथा को सूˆम से Hथूल-Hथूल बनते बनाते िविच•’प बनी है। इसी से यह
संसग& होने से सृि… कहाती है। भला जो 'थम संयोग मO िमलने और िमलाने
वाला पदाथ& है; जो संयोग का आjद और िवयोग का अ3त अथा&त् िजस का
िवभाग नहc हो सकता उस को कारण और जो संयोग के पीछे बनता और
िवयोग के पtात् वैसा नहc रहता वह का‰य& कहाता है। जो उस कारण का
कारण, काय& का काय&, कsा& का कsा&, साधन का साधन और सा—य का सा—य
कहाता है; वह देखता अ3धा, सुनता बिहरा और जानता gआ मूढ़ है। eया आंख
कR आंख, दीपक का दीपक और सूय& का सूय& कभी हो सकता है। जो िजस से
उ"प– होता है वह कारण और जो उ"प– होता है वह का‰य& और जो कारण
को काय&’प बनानेहारा है वह कsा& कहाता है।
नासतो िव‡ते भावो नाभावो िव‡ते सतः ।
उभयोरिप दृ…ोऽ3तH"वनयोHतÓवjदश&िभः।। भगवÿीता।।
कभी असत् का भाव वs&मान और सत् का अभाव अवs&मान नहc होता। इन
दोनi का िनण&य तÓवदशŠ लोगi ने जाना है। अ3य पzपाती आ>ही मलीना"मा
अिवyान् लोग इस बात को सहज मO कै से जान सकते ह<? eयijक जो मनु‘य,
िवyान्, स"संगी होकर पूरा िवचार नहc करता वह सदा ±मजाल मO पड़ा रहता
है। ध3य वे पु˜ष ह< जो jक सब िव‡ाu के िसZा3तi को जानते ह< और जानने
के िलए पWर~म करते ह<। जानकर औरi को िन‘कपटता से जनाते ह<। इस से
जो कोई कारण के िवना सृि… मानता है वह कु छ भी नहc जानता। जब सृि…
का समय आता है तब परमा"मा उन परमसूˆम पदाथŽ को इक$ा करता है।
उस कR 'थम अवHथा मO जो परमसूˆम 'कृ ित’प कारण से कु छ Hथूल होता
है उस का नाम महsÓव और जो उस से कु छ Hथूल होता है उस का नाम
अहंकार और अहंकार से िभ–-िभ– पांच सूˆमभूत; ~ो•, "वचा, ने•, िज§वा,
Îाण पांच Xानेि3¥यां; वाÀफ़, हHत, पाद, उपHथ, और गुदा ये पांच कम&-
इि3¥यां ह< और •यारहवां मन कु छ Hथूल उ"प– होता है। और उन प€त3मा•u
से अनेक HथूलावHथाu को 'ाƒ होते gए ¦म से पांच Hथूलभूत िजन को हम
लोग '"यz देखते ह< उ"प– होते ह<। उन से नाना 'कार कR ओषिधयां, वृz
आjद; उन से अ–, अ– से वीय& और वीय& से शरीर होता है।
देखो! शरीर मO jकस 'कार कR Xानपूव&क सृि… रची है jक िजस को िवyान्
लोग देखकर आtय& मानते ह<। भीतर हाड़i का जोड़; नािड़यi का ब3धन; मांस
का लेपन; चमड़ी का ढÙन; Êलीहा, यकृ त्, फे फड़ा, पंखा कला का Hथापन;
˜िधरशोधन, 'चालन; िव‡ुत् का Hथापन; जीव का संयोजन; िशरो’प
मूलरचन; लोम, नखाjद का Hथापन; आंख कR अतीव सूˆम िशरा का तारवत्
>3थन; इि3¥यi के मागŽ का 'काशन; जीव के जागृत, Hव¹, सुषुिƒ अवHथा
के भोगने के िलये Hथान िवशेषi का िनमा&ण; सब धातु का िवभागकरण; कला,
कौशल, Hथापनाjद अ¾भुत सृि… को िवना परमे5र के कौन कर सकता है?
इसके िवना नाना 'कार के र¢ धातु से जिड़त भूिम; िविवध 'कार वट वृz
आjद के बीजi मO अित सूˆम रचना, असंwय हWरत, 5ेत, पीत, कृ ‘ण, िच•,
म—य’पi से युž प•; पु‘प, फल, मूलिनमा&ण; िम…, zार, कटु क, कषाय,
ितž, अ›लाjद िविवध रस; सुग3धाjदयुž प•, पु‘प, फल, अ–, क3द, मूलाjद
रचन; अनेकानेक ¦ोड़i भूगोल, सूय&, च3¥ाjद लोकिनमा&ण; धारण; ±ामण;
िनयमi मO रखना आjद परमे5र के िवना कोई भी नहc कर सकता।
जब कोई jकसी पदाथ& को देखता है तो दो 'कार का Xान उ"प– होता है। एक
जैसा वह पदाथ& है और दूसरा उनमO रचना देखकर बनाने वाले का Xान है।
जैसे jकसी पु˜ष ने सु3दर आभूषण जंगल मO पाया। देखा तो िवjदत gआ jक
यह सुवण& का है और jकसी बुिZमान् कारीगर ने बनाया है। इसी 'कार यह
नाना 'कार सृि… मO िविवध रचना बनाने वाले परमे5र को िसZ करती है।
('-) मनु‘य कR सृि… 'थम gई या पृिथवी आjद कR?
(उsर) पृिथवी आjद कR। eयijक पृिथaाjद के िवना मनु‘य कR िHथित और
पालन नहc हो सकता।
('-) सृि… कR आjद मO एक वा अनेक मनु‘य उ"प– jकये थे वा eया?
(उsर) अनेक। eयijक िजन जीवi के कम& ऐ5री सृि… मO उ"प– होने के थे उन
का ज3म सृि… कR आjद मO ई5र देता है। eयijक ‘मनु‘या ऋषयt ये। ततो
मनु‘या अजाय3त’ यह यजुव·द मO िलखा है। इस 'माण से यही िनtय है jक
आjद मO अनेक अथा&त् सैकड़i, सहêi मनु‘य उ"प– gए । और सृि… मO देखने
से भी िनिtत होता है jक मनु‘य अनेक माँ बाप के स3तान ह<।
('-) कभी सृि… का 'ार›भ है वा नहc?
(उsर) नहc। जैसे jदन के पूव& रात और रात के पूव& jदन तथा jदन के पीछे
रात और रात के पीछे jदन बराबर चला आता है, इसी 'कार सृि… के पूव&
'लय और 'लय के पूव& सृि… तथा सृि… के पीछे 'लय और 'लय के आगे सृि…;
अनाjद काल से च¦ चला आता है। इस का आjद वा अ3त नहc jक3तु जैसे jदन
वा रात का आर›भ और अ3त देखने मO आता है उसी 'कार सृि… और 'लय का
आjद अ3त होता रहता है। eयijक जैसे परमा"मा, जीव, जगत् का कारण तीन
Hव’प से अनाjद ह< वैसे जगत् कR उ"पिs, िHथित और 'लय 'वाह से अनाjद
ह<। जैसे नदी का 'वाह वैसा ही दीखता है, कभी सूख जाता, कभी कभी नहc
दीखता jफर बरसात मO दीखता और उ‘णकाल मO नहc दीखता। ऐसे aवहारi
को 'वाह’प जानना चािहए। जैसे परमे5र के गुण, कम&, Hवभाव अनाjद ह<
वैसे ही उसके जगत् कR उ"पिs, िHथित, 'लय करना भी अनाjद ह<। जैसे कभी
ई5र के गुण, कम&, Hवभाव का आर›भ और अ3त नहc इसी 'कार उस के
कs&a कमŽ का भी आर›भ और अ3त नहc।
('-) ई5र ने jक3हc जीवi को मनु‘य ज3म; jक3हc को िसहाjद ¦ू र ज3म;
jक3हc को हWरण, गाय आjद पशु; jक3हc को वृzाjद, कृ िम, कRट, पतंगाjद
ज3म jदये ह<। इस से परमा"मा मO पzपात आता है।
(उsर) पzपात नहc आता। eयijक उन जीवi के पूव& सृि… मO jकये gए
कमा&नुसार aवHथा करने से। जो कम& के िवना ज3म देता तो पzपात आता।
('-) मनु‘यi कR आjद सृि… jकस Hथल मO gई?
(उsर) ि•िव…प अथा&त् िजस को ‘ितdबत’ कहते ह<।
('-) आjद सृि… मO एक जाित थी वा अनेक?
(उsर) एक मनु‘य जाित थी। पtात् ‘िवजानीÉा‰या&3ये च दHयवः’ यह
ऋ•वेद का वचन है। ~े¼i का नाम आय&, िवyान् देव और दु…i के दHयु अथा&त्
डाकू , मूख& नाम होने से आय& और दHयु दो नाम gए। ‘उत शू¥े उताय·’ वेद-
वचन। आयŽ मO पूवªž 'कार से {ा|ण, zि•य, वैŸय और शू¥ चार भेद gए।
िyज िवyानi का नाम आय& और मूखŽ का नाम शू¥ और अनाय& अथा&त् अनाड़ी
नाम gआ।
('-) jफर वे यहाँ कै से आये?
(उsर) जब आय& और दHयुu मO अथा&त् िवyान् जो देव अिवyान् जो असुर,
उन मO सदा लड़ाई बखेड़ा gआ jकया, जब बgत उप¥व होने लगा तब आय&
लोग सब भूगोल मO उsम इस भूिम के ख‹ड को जानकर यहc आकर बसे। इसी
से देश का नाम ‘आया&वs&’ gआ।
('-) आया&वs& कR अविध कहां तक है?
(उsर) आसमु¥ाsु वै पूवा&दासमु¥ाsु पिtमात्।
तयोरे वा3तरं िगयªरा‰या&वs¶ िवदुबु&धाः।।१।।
सरHवतीदृषy"योद·वन‡ोय&द3तरम् ।
तं देविन“मतं देशमाया&वs¶ 'चzते।।२।। मनु०।
उsर मO िहमालय, दिzण मO िव3—याचल, पूव& और पिtम मO समु¥।।१।। तथा
सरHवती पिtम मO अटक नदी, पूव& मO दृषyती जो नेपाल के पूव& भाग पहाड़
से िनकल के बंगाल के आसाम के पूव& और {|ा के पिtम ओर होकर दिzण
के समु¥ मO िमली है िजस को {|पु• कहते ह< और जो उsर के पहाड़i से
िनकल के दिzण के समु¥ कR खाड़ी मO अटक िमली है। िहमालय कR म—यरे खा
से दिzण और पहाड़i के भीतर और रामे5र पय&3त िव3—याचल के भीतर
िजतने देश ह< उन सब को आया&वs& इसिलये कहते ह< jक यह आया&वs& देव
अथा&त् िवyानi ने बसाया और आय&जनi के िनवास करने से आया&वs& कहाया
है।
('-) 'थम इस देश का नाम eया था और इस मO कौन बसते थे?
(उsर) इस के पूव& इस देश का नाम कोई भी नहc था और न कोई आयŽ के पूव&
इस देश मO बसते थे। eयijक आय& लोग सृि… कR आjद मO कु छ काल के पtात्
ितdबत से सूधे इसी देश मO आकर बसे थे।
('-) कोई कहते ह< jक ये लोग ईरान से आये। इसी से इन लोगi का नाम आय&
gआ है। इन के पूव& यहां जंगली लोग बसते थे jक िजन को असुर और राzस
कहते थे। आय& लोग अपने को देवता बतलाते थे और उन का जब सं>ाम gआ
उसका नाम देवासुर सं>ाम कथाu मO ठहराया।
(उsर) यह बात सव&था भफ़ू ठ है। eयijक-
िव जानीÉाया&3ये च दHयवो िबह&‘मते र3धया शासदËतान् ।।
-¹ मं० १। सू० ५१। मं० ८।।
उत शू¥े उताय· ।। -यह भी वेद का 'माण है।
यह िलख चुके ह< jक आय& नाम धा“मक, िवyान्, आƒ पु˜षi का और इन से
िवपरीत जनi का नाम दHयु अथा&त् डाकू , दु…, अधा“मक और अिवyान् है तथा
{ा|ण, zि•य, वैŸय िyजi का नाम आय& और शू¥ का नाम अनाय& अथा&त्
अनाड़ी है। जब वेद ऐसे कहता है तो दूसरे िवदेिशयi के कपोलकिqपत को
बुिZमान् लोग कभी नहc मान सकते और देवासुर सं>ाम मO आया&वsŠय अजु&न
तथा महाराजा दशरथ आjद; िहमालय पहाड़ मO आय& और दHयु ›ले¸छ असुरi
का जो युZ gआ था; उस मO देव अथा&त् आयŽ कR रzा और असुरi के पराजय
करने को सहायक gए थे। इस से यही िसZ होता है jक आया&वs& के बाहर
चारi ओर जो िहमालय के पूव& आ«ेय, दिzण, नैऋत&, पिtम, वायa, उsर,
ईशान देश मO मनु‘य रहते ह< उ3हc का नाम असुर िसZ होता है। eयijक जब-
जब िहमालय 'देशHथ आयŽ पर लड़ने को चढ़ाई करते थे तब-तब यहां के
राजा महाराजा लोग उ3हc उsर आjद देशi मO आयŽ के सहायक होते थे। और
~ीरामच3¥ जी से दिzण मO युZ gआ है। उस का नाम देवासुर सं>ाम नहc है
jक3तु उस को राम-रावण अथवा आय& और राzसi का सं>ाम कहते ह<। jकसी
संHकृ त >3थ मO वा इितहास मO नहc िलखा jक आय& लोग ईरान से आये और
यहां के जंगिलयi को लड़कर, जय पाके , िनकाल के इस देश के राजा gए। पुनः
िवदेिशयi का लेख माननीय कै से हो सकता है? और-
आय&वाचो ›ले¸छवाचः सव· ते दHयवः Hमृताः।।१।।
›ले¸छदेशH"वतः परः।।२।। मनु०।।
जो आ‰या&वs& देश से िभ– देश ह< वे दHयुदश े और ›ले¸छदेश कहाते ह<। इस से
भी यह िसZ होता है jक आया&वs& से िभ– पूव& देश से लेकर ईशान, उsर,
वायa और पिtम देशi मO रहने वालi का नाम दHयु और ›ले¸छ तथा असुर
है और नैऋत&, दिzण तथा आ«ेय jदशाu मO आया&वs& देश से िभ– रहने वाले
मनु‘यi का नाम राzस है। अब भी देख लो! हबशी लोगi का Hव’प भयंकर
जैसा राzसi का वण&न jकया है वैसा ही दीख पड़ता है और आ‰या&वs& कR सूध
पर नीचे रहने वालi का नाम नाग और उस देश का नाम पाताल इसिलये
कहते ह< jक वह देश आ‰या&वsŠय मनु‘यi के पाद अथा&त् पग के तले है और
उन के नागवंशी अथा&त् नाग नाम वाले पु˜ष के वंश के राजा होते थे। उसी कR
उलोपी राजक3या से अजुन& का िववाह gआ था अथा&त् इˆवाकु से लेकर कौरव
पा‹डव तक सव& भूगोल मO आयŽ का रा°य और वेदi का थोड़ा-थोड़ा 'चार
आ‰या&वs& से िभ– देशi मO भी रहा। इस मO यह 'माण है jक {|ा का पु•
िवराट् , िवराट् का मनु, मनु के मरी¸याjद दश इनके Hवाय›भुवाjद सात राजा
और उन के स3तान इˆवाकु आjद राजा जो आ‰या&वs& के 'थम राजा gए
िज3हiने यह आ‰या&वs& बसाया है। अब अभा•योदय से और आ‰यŽ के आलHय,
'माद, परHपर के िवरोध से अ3य देशi के रा°य करने कR तो कथा ही eया
कहनी jक3तु आ‰या&वs& मO भी आ‰यŽ का अख‹ड, Hवत3•, Hवाधीन, िनभ&य
रा°य इस समय नहc है। जो कु छ है सो भी िवदेिशयi के पादा¦ा3त हो रहा है।
कु छ थोड़े राजा Hवत3• ह<। दु*दन जब आता है तब देशवािसयi को अनेक 'कार
का दुःख भोगना पड़ता है। कोई jकतना ही करे पर3तु जो Hवदेशीय रा°य होता
है वह सवªपWर उsम होता है। अथवा मत-मता3तर के आ>हरिहत अपने और
पराये का पzपातशू3य 'जा पर िपता माता के समान कृ पा, 3याय और दया
के साथ िवदेिशयi का रा°य भी पूण& सुखदायक नहc है। पर3तु िभ–-िभ–
भाषा, पृथÀफ़-पृथÀफ़ िशzा, अलग aवहार का िवरोध छू टना अित दु‘कर है।
िवना इसके छू टे परHपर का पूरा उपकार और अिभ'ाय िसZ होना कWठन है।
इसिलये जो कु छ वेदाjद शा¬O मO aवHथा वा इितहास िलखे ह< उसी का मा3य
करना भ¥पु˜षi का काम है।
('-) जगत् कR उ"पिs मO jकतना समय aतीत gआ?
(उsर) एक अब&, छानवO ¦ोड़, कई लाख और कई सहê वष& जगत् कR उ"पिs
और वेदi के 'काश होने मO gए ह<। इस का Hप… aाwयान मेरी बनाई भूिमका१
मO िलखा है देख लीिजये। इ"याjद 'कार सृि… के बनाने और बनने मO ह< और
यह भी है jक सब से सूˆम टु कड़ा अथा&त् जो काटा नहc जाता उस का नाम
परमाणु, साठ परमाणुu के िमले gए का नाम अणु, दो अणु का एक ãणुक
जो Hथूल वायु है, तीन ãणुक का अि«, चार ãणुक का जल, पांच ãणुक कR
पृिथवी अथा&त् तीन ãणुक का •सरे णु और उस का दूना होने से पृिथवी आjद
दृŸय पदाथ& होते ह<। इसी 'कार ¦म से िमला कर भूगोलाjद परमा"मा ने बनाये
ह<।
('-) इस का धारण कौन करता है। कोई कहता है शेष अथा&त् सहê फण वाले
सÊप& के िशर पर पृिथवी है। दूसरा कहता है jक बैल के सcग पर, तीसरा कहता
है jक jकसी पर नहc, चौथा कहता है jक वायु के आधार, पांचवां कहता है सूय&
के आकष&ण से ख<ची gई अपने Wठकाने पर िHथत, छठा कहता है jक पृिथवी
भारी होने से नीचे-नीचे आकाश मO चली जाती है इ"याjद मO jकस बात को
स"य मानO?
(उsर) जो शेष, सÊप& और बैल के सcग पर धरी gई पृिथवी िHथत बतलाता है
उस को पूछना चािहये jक सÊप& और बैल के मां बाप के ज3म समय jकस पर
थी? तथा सÊप& और बैल आjद jकस पर ह<? बैल वाले मुसलमान तो चुप ही
कर जायOगे। पर3तु सÊप& वाले कहOगे jक सÊप& कू म& पर, कू म& जल पर, जल अि«
पर, अि« वायु पर, वायु आकाश मO ठहरा है। उन से पूछना चािहये jक सब
jकस पर ह<? तो अवŸय कहOगे परमे5र पर। जब उन से कोई पूछेगा jक शेष
और बैल jकस का ब0ा है? कहOगे शेष कŸयप क¥ू और बैल गाय का। कŸयप
मरीची,
१- ऋ•वेदाjदभा‘यभूिमका के वेदो"पिs िवषय को देखो ।
मरीची मनु, मनु िवराट् , िवराट् {|ा का पु•, {|ा आjद सृि… का था। जब
शेष का ज3म ही नहc gआ था उसके पहले पांच पीढ़ी हो चुकR ह< तब jकस ने
धारण कR थी? अथा&त् कŸयप के ज3म समय मO पृिथवी jकस पर थी? तो
‘तेरी चुप मेरी भी चुप’ और लड़ने लग जायOगे। इस का स0ा अिभ'ाय यह है
jक जो ‘बाकR’ रहता है उस को शेष कहते ह<। सो jकसी किव ने ‘शेषाधारा
पृिथवी"युžम्’ ऐसा कहा jक शेष के आधार पृिथवी है। दूसरे ने उसके अिभ'ाय
को न समझ कर सÊप& कR िम•या कqपना कर ली। पर3तु िजसिलये परमे5र
उ"पिs और 'लय से बाकR अथा&त् पृथÀफ़ रहता है इसी से उस को ‘शेष’ कहते
ह< और उसी के आधार पृिथवी है-
स"येनोsिभता भूिमः ।। यह ऋ•वेद का वचन है।
(स"य) अथा&त् जो •ैकाqयाबा—य िजसका कभी नाश नहc होता उस परमे5र
ने भूिम, आjद"य और सब लोकi का धारण jकया है।
उzा दाधार पृिथवीमुत ‡ाम् ।। यह भी ऋ•वेद का वचन है।
इसी (उzा) शdद को देख कर jकसी ने बैल का >हण jकया होगा। eयijक उzा
बैल का भी नाम है पर3तु उस मूढ़ को यह िवjदत न gआ jक इतने बड़े भूगोल
के धारण करने का साम•य& बैल मO कहां से आवेगा? इसिलये उzा वषा& yारा
भूगोल के सेचन करने से सू‰य& का नाम है। उस ने अपने आकष&ण से पृिथवी को
धारण jकया है। पर3तु सू‰या&jद का धारण करने वाला िवना परमे5र के दूसरा
कोई भी नहc है।
('-) इतने-इतने बड़े भूगोलi को परमे5र कै से धारण कर सकता होगा?
(उsर) जैसे अन3त आकाश के सामने बड़े-बड़े भूगोल कु छ भी अथा&त् समु¥ के
आगे जल के छोटे कण के तुqय भी नहc ह< वैसे अन3त परमे5र के सामने
असंwयात लोक एक परमाणु के तुqय भी नहc कह सकते। वह बाहर भीतर
सव&• aापक अथा&त् ‘िवभूः 'जासु’ यह यजुव·द का वचन है-वह परमा"मा सब
'जाu मO aापक होकर सब का धारण कर रहा है। जो वह ईसाई मुसलमान
पुरािणयi के कथनानुसार िवभू न होता तो इस सब सृि… का धारण कभी नहc
कर सकता eयijक िवना 'ािƒ के jकसी को कोई धारण नहc कर सकता। कोई
कहै jक ये सब लोक परHपर आकष&ण से धाWरत हiगे पुनः परमे5र के धारण
करने कR eया अपेzा है? उन को यह उsर देना चािहये jक यह सृि… अन3त
है वा सा3त? जो अन3त कह< तो आकार वाली वHतु अन3त कभी नहc हो
सकती और जो सा3त कह< तो उन के पर भाग सीमा अथा&त् िजस के परे कोई
भी दूसरा लोक नहc है वहां jकस के आकष&ण से धारण होगा? जैसे समि…
और aि… अथा&त् जब सब समुदाय का नाम वन रखते ह< तो समि… कहाता है
और एक-एक वृzाjद को िभ–-िभ– गणना करO तो aि… कहाता है। वैसे सब
भूगोलi को समि… िगन कर जगत् कह< तो सब जगत् का धारण और आकष&ण
का कsा& िवना परमे5र के दूसरा कोई भी नहc। इसिलए जो सब जगत् को
रचता है वही-
स दाधार पृिथवीमुत ‡ाम् ।। यह यजुव·द का वचन है।
जो पृिथaाjद 'काशरिहत लोकालोका3तर पदाथ& तथा सू‰या&jद 'काशसिहत
लोक और पदाथŽ का रचन धारण परमा"मा करता है। जो सब मO aापक हो
रहा है, वही सब जगत् का कsा& और धारण करने वाला है।
('-) पृिथaाjद लोक घूमते ह< वा िHथर?
(उsर) घूमते ह<।
('-) jकतने ही लोग कहते ह< jक सू‰य& घूमता है और पृिथवी नहc घूमती।
दूसरे कहते ह< jक पृिथवी घूमती है सू‰य& नहc घूमता। इसमO स"य eया माना
जाय?
(उsर) ये दोनi आधे भफ़ू ठे ह< eयijक वेद मO िलखा है jक-
आयं गौः पृि-र¦मीदसद3मातरं पुरः । िपतर◌ं च 'य3"Hवः।।
-यजुः० अ० ३। मं० ६।।
अथा&त् यह भूगोल जल के सिहत सू‰य& के चारi ओर घूमता जाता है इसिलये
भूिम घूमा करती है।
आ कृ ‘णने रजसा वsमा&नो िनवश्◌े◌ाय–मतृ◌ं म"यर्◌्◌ा◌ं
च।
िहर‹ययेन सिवता रथेना देवो याित भुवनािन पŸयन् ।।
-यजुः० अ० ३३। मं० ४३।।
जो सिवता अथा&त् सू‰य& वषा&jद का कsा&, 'काशHव’प, तेजोमय,
रमणीयHव’प के साथ वs&मान; सब 'ाणी अ'ािणयi मO अमृत’प वृि… वा
jकरण yारा अमृत का 'वेश करा और सब मू“तमान् ¥ai को jदखलाता gआ
सब लोकi के साथ आकष&ण गुण से सह वs&मान; अपनी पWरिध मO घूमता रहता
है jक3तु jकसी लोक के चारi ओर नहc घूमता। वैसे ही एक-एक {|ा‹ड मO
एक सू‰य& 'काशक और दूसरे सब लोकलोका3तर 'काŸय ह<। जैसे-
jदिव सोमो अिध ि~तः।। -अथव&० कां० १४। अनु० १। मं० १।।
जैसे यह च3¥लोक सू‰य& से 'कािशत होता है वैसे ही पृिथaाjद लोक भी सू‰य&
के 'काश ही से 'कािशत होते ह<। पर3तु रात और jदन सव&दा वs&मान रहते
ह< eयijक पृिथaाjद लोक घूम कर िजतना भाग सूय& के सामने आता है उतने
मO jदन और िजतना पृ¼ मO अथा&त् आड़ मO होता जाता है उतने मO रात। अथा&त्
उदय, अHत, स3—या, म—या§न, म—यराि• आjद िजतने कालावयव ह< वे
देशदेशा3तरi मO सदा वs&मान रहते ह< अथा&त् जब आ‰या&वs& मO सूयªदय होता
है उस समय पाताल अथा&त् ‘अमेWरका’ मO अHत होता है और जब आ‰या&वs& मO
अHत होता है तब पाताल देश मO उदय होता है। जब आ‰या&वs& मO म—य jदन
वा म—य रात है उसी समय पाताल देश मO म—य रात और म—य jदन रहता है।
जो लोग कहते ह< jक सूय& घूमता और पृिथवी नहc घूमती वे सब अX ह<। eयijक
जो ऐसा होता तो कई सहê वष& के jदन और रात होते। अथा&त् सूय& का नाम
({Ñः) है। यह पृिथवी से लाखi गुणा बड़ा और ¦ोड़i कोश दूर है। जैसे राई के
सामने पहाड़ घूमे तो बgत देर लगती और राई के घूमने मO बgत समय नहc
लगता वैसे ही पृिथवी के घूमने से यथायो•य jदन रात होते ह<; सूय& के घूमने से
नहc। जो सूय& को िHथर कहते ह< वे भी °योित“व‡ािवत् नहc। eयijक यjद सूय&
न घूमता होता तो एक रािश Hथान से दूसरी रािश अथा&त् Hथान को 'ाƒ न
होता। और गु˜ पदाथ& िवना घूमे आकाश मO िनयत Hथान पर कभी नहc रह
सकता। और जो जैनी कहते ह< jक पृिथवी घूमती नहc jक3तु नीचे-नीचे चली
जाती है और दो सूय& और दो च3¥ के वल ज›बूyीप मO बतलाते ह< वे तो गहरी
भांग के नशे मO िनम« ह<। eयi? जो नीचे-नीचे चली जाती तो चारi ओर वायु
के च¦ न बनने से पृिथवी िछ– िभ– होती और िनó Hथलi मO रहने वालi को
वायु का Hपश& न होता। नीचे वालi को अिधक होता और एक सी वायु कR गित
होती। दो सूय& च3¥ होते तो रात और कृ ‘णपz का होना ही न… ±… होता है।
इसिलये एक भूिम के पास एक च3¥, और अनेक च3¥, अनेक भूिमयi के म—य
मO एक सूय& रहता है।
('-) जब ये जीव और 'कृ ितHथ तÓव अनाjद और ई5र के बनाये नहc ह< तो
ई5र का अिधकार भी इन पर न होना चािहये eयijक सब Hवत3• gए?
(उsर) जैसे राजा और 'जा समकाल मO होते ह< और राजा के आधीन 'जा
होती है वैसे ही परमे5र के आधीन जीव और जड़ पदाथ& ह<। जब परमे5र सब
सृि… का बनाने, जीवi के कम&फलi के देन,े सब का यथावत् रzक और अन3त
साम•य& वाला है तो अqप साम•य& भी और जड़ पदाथ& उसके आधीन eयi न
हi? इसिलए जीव कम& करने मO Hवत3• पर3तु कमŽ के फल भोगने मO ई5र
कR aवHथा से परत3• ह<। वैसे ही सव&शिžमान् सृि…, संहार और पालन सब
िव5 का कsा& है।

इसके आगे िव‡ा, अिव‡ा, ब3ध और मोz िवषय मO िलखा जायेगा। यह


आठवां समुqलास पूरा gआ।
इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमकृ ते स"याथ&'काशे
सुभाषािवभूिषते सृ‘Þु"पिsिHथित'लयिवषये
अ…मः समुqलासः स›पूण&ः।।८।।
अथ नवमसमुqलासार›भः
अथ िव‡ाऽिव‡ाब3धमोzिवषयान् aाwयाHयामः
िव‡ां चािव‡ां च यHतyेदोभयँ◌्सह ।
अिव‡या मृ"युं ती"वा& िव‡यामृतम-ुते ।।
-यजुः० अ० ४०। मं० १४।।
जो मनु‘य िव‡ा और अिव‡ा के Hव’प को साथ ही साथ जानता है वह
अिव‡ा अथा&त् कमªपासना से मृ"यु को तर के िव‡ा अथा&त् यथाथ& Xान से
मोz को 'ाƒ होता है। अिव‡ा का लzण-
अिन"याशुिचदुःखाना"मसु िन"यशुिचसुखा"मwयाितरिव‡ा।।
यह योगसू• का वचन है।
जो अिन"य संसार और देहाjद मO िन"य अथा&त् जो काय& जगत् देखा, सुना जाता
है सदा रहेगा, सदा से है और योगबल से यही देवi का शरीर सदा रहता है
वैसी िवपरीत बुिZ होना अिव‡ा का 'थम भाग है। अशुिच अथा&त् मलमय
Hûयाjद के शरीर और िम•याभाषण, चोरी आjद अपिव• मO पिव• बुिZ।
दूसरा अ"य3त िवषयसेवन’प दुःख मO सुखबुिZ आjद, तीसरा-अना"मा मO
आ"मबुिZ करना अिव‡ा का चौथा भाग है। यह चार 'कार का िवपरीत Xान
अिव‡ा कहाती है। इस के िवपरीत अथा&त् अिन"य मO अिन"य और िन"य मO
िन"य, अपिव• मO अपिव• और पिव• मO पिव•, दुःख मO दुःख, सुख मO सुख,
अना"मा मO अना"मा और आ"मा मO आ"मा का Xान होना िव‡ा है। अथा&त्
‘वेिs यथावsÓवं पदाथ&Hव’पं यया सा िव‡ा। यया तÓवHव’पं न जानाित
±माद3यिHम–3यि–- िtनोित साऽिव‡ा ।’ िजस से पदाथŽ का यथाथ& Hव’प
बोध होवे वह िव‡ा और िजस से तÓवHव’प न जान पड़े अ3य मO अ3य बुिZ
होवे वह अिव‡ा कहाती है। अथा&त् कम& और उपासना अिव‡ा इसिलये है jक
यह बाÉ और अ3तर j¦यािवशेष नाम है; Xानिवशेष नहc। इसी से म3• मO
कहा है jक िवना शुZ कम& और परमे5र कR उपासना के मृ"यु दुःख से पार
कोई नहc होता। अथा&त् पिव• कम&, पिव•ेपासना और पिव• Xान ही से मुिž
और अपिव• िम•याभाषणाjद कम& पाषाणमूû"याjद कR उपासना और
िम•याXान से ब3ध होता है। कोई भी मनु‘य zणमा• भी कम&, उपासना और
Xान से रिहत नहc होता। इसिलये धम&युž स"यभाषणाjद कम& करना और
िम•याभाषणाjद अधम& को छोड़ देना ही मुिž का साधन है।
('-) मुिž jकस को 'ाƒ नहc होती?
(उsर) जो बZ है!
('-) बZ कौन है?
(उsर) जो अधम& अXान मO फं सा gआ जीव है।
('-) ब3ध और मोz Hवभाव से होता है वा िनिमs से?
(उsर) िनिमs से। eयijक जो Hवभाव से होता तो ब3ध और मुिž कR िनवृिs
कभी नहc होती।
('-) न िनरोधो न चो"पिsन& बZो न च साधकः।
न मुमुzुन& वै मुिžWर"येषा परमाथ&ता ।।
यह ºोक मा‹डू eयोपिनषत् पर है।
जीव {| होने से वHतुतः जीव का िनरोध अथा&त् न कभी आवरण मO आया, न
ज3म लेता, न ब3ध है और न साधक अथा&त् न कु छ साधना करनेहारा है। न
छू टने कR इ¸छा करता और न इस कR कभी मुिž है eयijक जब परमाथ& से
ब3ध ही नहc gआ तो मुिž eया?
(उsर) यह नवीन वेदाि3तयi का कहना स"य नहc। eयijक जीव का Hव’प
अqप होने से आवरण मO आता, शरीर के साथ 'कट होने ’प ज3म लेता,
पाप’प कमŽ के फल भोग’प ब3धन मO फं सता, उस के छु ड़ाने का साधन
करता, दुःख से छू टने कR इ¸छा करता और दुःखi से छू ट कर परमान3द
परमे5र को 'ाƒ होकर मुिž को भी भोगता है।
('-) ये सब धम& देह और अ3तःकरण के ह<। जीव के नहc। eयijक जीव तो
पाप पु‹य से रिहत साzीमा• है। शीतो‘णाjद शरीराjद के ध›म& ह<; आ"मा
िनल·प है।
(उsर) देह और अ3तःकरण जड़ ह< उन को शीतो‘ण 'ािƒ और भोग नहc है।
जैसे प"थर को शीत और उ‘ण का भान वा भोग नहc है। जो चेतन मनु‘याjद
'ाणी उसका Hपश& करता है उसी को शीत उ‘ण का भान और भोग होता है।
वैसे 'ाण भी जड़ ह<। न उन को भूख न िपपासा jक3तु 'ाण वाले जीव को zुधा,
तृषा लगती है। वैसे ही मन भी जड़ है। न उस को हष&, न शोक हो सकता है
jक3तु मन से हष&, शोक, दुःख, सुख का भोग जीव करता है। जैसे बिह‘करण
~ो•jद इि3¥यi से अ¸छे बुरे शdदाjद िवषयi का >हण करके जीव सुखी दुःखी
होता है वैसे ही अ3तःकरण अथा&त् मन, बुिZ, िचs, अहंकार से संकqप,
िवकqप, िनtय, Hमरण और अिभमान का करने वाला द‹ड और मा3य का
भागी होता है। जैसे तलवार से मारने वाला द‹डनीय होता है तलवार नहc
होती वैसे ही देहिे 3¥य अ3तःकरण और 'ाण’प साधनi से अ¸छे बुरे कमŽ का
कsा& जीव सुख दुःख का भोžा है। जीव कमŽ का साzी नहc, jक3तु कsा&
भोžा है। कमŽ का साzी तो एक अिyतीय परमा"मा है। जो कम& करने वाला
जीव है वही कमŽ मO िलƒ होता है; वह ई5र साzी नहc।
('-) जीव {| का 'ितिब›ब है। जैसे दÊप&ण के टू टने फू टने से िब›ब कR कु छ
हािन नहc होती, इसी 'कार अ3तःकरण मO {| का 'ितिब›ब जीव तब तक
है jक जब तक वह अ3तःकरणोपािध है। जब अ3तःकरण न… हो गया तब जीव
मुž है।
(उsर) यह बालकपन कR बात है। eयijक 'ितिब›ब साकार का साकार मO
होता है। जैसे मुख और दप&ण आकार वाले ह< और पृथÀफ़ भी ह<; जो पृथÀफ़ न
हो तो भी 'ितिब›ब नहc हो सकता। {| िनराकार, सव&aापक होने से उस
का 'ितिब›ब ही नहc हो सकता।
('-) देखो! ग›भीर Hव¸छ जल मO िनराकार और aापक आकाश का आभास
पड़ता है। इसी 'कार Hव¸छ अ3तःकरण मO परमा"मा का आभास है। इसिलये
इस को िचदाभास कहते ह<।
(उsर) यह बालबुिZ का िम•या 'लाप है। eयijक आकाश दृŸय नहc तो उस
को आंख से कोई भी eयiकर देख सकता है।
('-) यह जो ऊपर को नीला और धूंधलापन दीखता है वह आकाश नीला
दीखता है वा नहc?
(उsर) नहc।
('-) तो वह eया है?
(उsर) अलग-अलग पृिथवी, जल और अि« के •सरे णु दीखते ह<। उस मO जो
नीलता दीखती है वह अिधक जल जो jक वष&ता है सो वही नील; जो धूंधलापन
दीखता है वह पृिथवी से धूली उड़कर वायु मO घूमती है वह दीखती और उसी
का 'ितिब›ब जल वा दÊप&ण मO दीखता है; आकाश का कभी नहc।
('-) जैसे घटाकाश, मठाकाश, मेघाकाश और महदाकाश के भेद aवहार मO
होते ह< वैसे ही {| के {|ा‹ड और अ3तःकरण उपािध के भेद से ई5र और
जीव नाम होता है। जब घटाjद न… हो जाते ह< तब महाकाश ही कहाता है।
(उsर) यह भी बात अिवyानi कR है। eयijक आकाश कभी िछ–-िभ– नहc
होता। aवहार मO भी ‘घड़ा लाओ’ इ"याjद aवहार होते ह<। कोई नहc कहता
jक घड़े का आकाश लाओ। इसिलये यह बात ठीक नहc।
('-) जैसे समु¥ के बीच मO म¸छी, कRड़े और आकाश के बीच मO पzी आjद
घूमते ह< वैसे ही िचदाकाश {| मO सब अ3तःकरण घूमते ह<। वे Hवयं तो जड़ ह<
पर3तु सव&aापक परमा"मा कR सsा से जैसा jक अि« से लोहा; वैसे चेतन हो
रहे ह<। जैसे वे चलते jफरते और आकाश तथा {| िनtल है वैसे जीव को {|
मानने मO कोई दोष नहc आता।
(उsर) यह भी तु›हारा दृ…ा3त स"य नहc eयijक जो सव&aापी {|
अ3तःकरणi मO 'काशमान होकर जीव होता है तो सव&Xाjद गुण उस मO होते
ह< वा नहc? जो कहो jक आवरण होने से सव&Xता नहc होती तो कहो jक {|
आवृs और खि‹डत है वा अखि‹डत? जो कहो jक अखि‹डत है तो बीच मO
कोई पड़दा नहc डाल सकता। जब पड़दा नहc तो सव&Xता eयi नहc? जो
कहो jक अपने Hव’प को भूलकर अ3तःकरण के साथ चलता सा है Hव’प से
नहc? जब Hवयं नहc चलता तो अ3तःकरण िजतना-िजतना पूव& 'ाƒ देश
छोड़ता और आगे-आगे जहां-जहां सरकता जायेगा वहां-वहां का {| ±ा3त;
अXानी होता जायेगा और िजतना-िजतना छू टता जायेगा वहां-वहां Xानी,
पिव• और मुž होता जायेगा। इसी 'कार सव&• सृि… के {| को अ3तःकरण
िबगाड़ा करO गे और ब3ध मुिž भी zण-zण मO gआ करे गी। तु›हारे कहे 'माणे
जो वैसा होता तो jकसी जीव को पूव& देखे सुने का Hमरण न होता eयijक िजस
{| ने देखा वह नहc रहा इसिलये {| जीव, जीव {| एक कभी नहc होता;
सदा पृथÀफ़-पृथÀफ़ ह<।
('-) यह सब अ—यारोपमा• है अथा&त् अ3य वHतु मO अ3य वHतु का Hथापन
करना अ—यारोप कहाता है। वैसे ही {| वHतु मO सब जगत् और इस के aवहार
का अ—यारोप करने से िजXासु को बोध कराना होता है वाHतव मO सब {|
ही है।
('-) अ—यारोप का करने वाला कौन है?
(उsर) जीव।
('-) जीव jकस को कहते हो?
(उsर) अ3तःकरणावि¸छ– चेतन को।
('-) अ3तःकरणावि¸छ– चेतन दूसरा है वा वही {|?
(उsर) वही {| है।
('-) तो eया {| ही ने अपने मO जगत् कR भफ़ू ठी कqपना कर ली?
(उsर) हो, {| कR इससे eया हािन?
('-) जो िम•या कqपना करता है eया वह भफ़ूँ ठा नहc होता?
(उsर) नहc। eयijक जो मन, वाणी से किqपत वा किथत है वह सब भफ़ूं ठा
है।
('-) jफर मन वाणी से भफ़ू ठी कqपना करने और िम•या बोलने वाला {|
किqपत और िम•यावादी gआ वा नहc?
(उsर) हो, हम को इ…ापिs है।
वाह रे भफ़ू ठे ! तुम ने स"यHव’प, स"यकाम, स"यसंकqप परमा"मा को
िम•याचारी कर jदया। eया यह तु›हारी दुग&ित का कारण नहc है? jकस
उपिनषत्, सू• वा वेद मO िलखा है jक परमे5र िम•यासंकqप और िम•यावादी
है? eयijक जैसे jकसी चोर ने कोतवाल को द‹ड jदया अथा&त् ‘उलWट चोर
कोतवाल को द‹डे’ इस कहानी के सदृश तु›हारी बात gई। यह तो बात उिचत
है jक कोतवाल चोर को द‹डे पर3तु यह बात िवपरीत है jक चोर कोतवाल
को द‹ड देवे। वैसे ही तुम िम•या संकqप और िम•यावादी होकर वही अपना
दोष {| मO aथ& लगाते हो। जो {| िम•याXानी, िम•यावादी, िम•याकारी
होवे तो सब अन3त {| वैसा ही हो जाय eयijक वह एकरस है; स"यHव’प,
स"यमानी, स"यवादी और स"यकारी है। ये सब दोष तु›हारे ह<; {| के नहc।
िजस को तुम िव‡ा कहते हो वह अिव‡ा है और तु›हारा अ—यारोप भी िम•या
है eयijक आप {| न होकर अपने को {| और {| को जीव मानना यह
िम•या Xान नहc तो eया है? जो सव&aापक है वह पWरि¸छ– न होने से
अXान और ब3ध मO कभी नहc िगरता eयijक अXान पWरि¸छ– एकदेशी अqप
अqपX जीव मO होता है; सव&X सव&aापी {| मO नहc।
अब मुिž ब3ध का वण&न करते ह<
('-) मुिž jकसको कहते ह<?
(उsर) ‘मु€ि3त पृथ•भवि3त जना यHयां सा मुिžः’ िजस मO छू ट जाना हो उस
का नाम मुिž है।
('-) jकस से छू ट जाना?
(उsर) िजस से छू टने कR इ¸छा सब जीव करते ह<?
('-) jकस से छू टने कR इ¸छा करते ह<?
(उsर) िजस से छू टना चाहते ह<?
('-) jकस से छू टना चाहते ह<।
(उsर) दुःख से।
('-) छू ट कर jकस को 'ाƒ होते और कहां रहते ह<?
(उsर) सुख को 'ाƒ होते और {| मO रहते ह<।
('-) मुिž और ब3ध jकन-jकन बातi से होता है?
(उsर) परमे5र कR आXा पालने, अध›म&, अिव‡ा, कु संग, कु संHकार, बुरे
aसनi से अलग रहने और स"यभाषण, परोपकार, िव‡ा, पzपातरिहत
3याय, धम& कR वृिZ करने; पूवªž 'कार से परमे5र कR Hतुित 'ाथ&ना और
उपासना अथा&त् योगा^यास करने; िव‡ा पढ़ने, पढ़ाने और धम& से पु˜षाथ&
कर Xान कR उ–ित करने; सब से उsम साधनi को करने और जो कु छ करे वह
सब पzपातरिहत 3यायधमा&नुसार ही करे । इ"याjद साधनi से मुिž और इन
से िवपरीत ई5राXाभंग करने आjद काम से ब3ध होता है।
('-) मुिž मO जीव का लय होता है वा िव‡मान रहता है।
(उsर) िव‡मान रहता है।
('-) कहां रहता है?
(उsर) {| मO।
('-) {| कहां है और वह मुž जीव एक Wठकाने रहता है वा Hवे¸छाचारी
होकर सव&• िवचरता है?
(उsर) जो {| सव&• पूण& है उसी मO मुž जीव अaाहतगित अथा&त् उस को
कहc ˜कावट नहc; िवXान, आन3दपूव&क Hवत3• िवचरता है।
('-) मुž जीव का Hथूल शरीर रहता है वा नहc?
(उsर) नहc रहता।
('-) jफर वह सुख और आन3द भोग कै से करता है?
(उsर) उस के स"यसंकqपाjद Hवाभािवक गुण साम•य& सब रहते ह<; भौितक
संग नहc रहता। जैसे-
शृ‹वन् ~ो•ं भवित, Hपश&यन् "व•भवित, पŸयन् चzुभ&वित, रसयन् रसना
भवित, िजÎन् Îाणं भवित, म3वानो मनो भवित, बोधयन् बुिZभ&वित,
चेतयंिts›भव"यहङ् कु वा&णोऽहंeयनरो भवित।। -शतपथ कां० १४।।
मोz मO भौितक शरीर वा इि3¥यi के गोलक जीवा"मा के साथ नहc रहते jक3तु
अपने Hवाभािवक शुZ गुण रहते ह<। जब सुनना चाहता है तब ~ो•, Hपश&
करना चाहता है तब "वचा, देखने के संकqप से चzु, Hवाद के अथ& रसना, ग3ध
के िलये Îाण, संकqप िवकqप करते समय मन, िनtय करने के िलये बुिZ,
Hमरण करने के िलए िचs और अहंकार के अथ& अहंकार’प अपनी Hवशिž से
जीवा"मा मुिž मO हो जाता है और संकqपमा• शरीर होता है जैसे शरीर के
आधार रहकर इि3¥यi के गोलक के yारा जीव Hवकाय& करता है वैसे अपनी
शिž से मुिž मO सब आन3द भोग लेता है।
('-) उस कR शिž कै 'कार कR और jकतनी है?
(उsर) मुwय एक 'कार कR शिž है पर3तु बल, परा¦म, आकष&ण, 'ेरणा,
गित, भीषण, िववेचन, j¦या, उ"साह, Hमरण, िनtय, इ¸छा, 'ेम, yेष,
संयोग, िवभाग, संयोजक, िवभाजक, ~वण, Hपश&न, दश&न, Hवादन और
ग3ध>हण तथा Xान इन २४ चौबीस 'कार के साम•य&युž जीव ह<। इस से
मुिž मO भी आन3द कR 'ािƒ’प भोग करता है। जो मुिž मO जीव का लय
होता तो मुिž का सुख कौन भोगता? और जो जीव के नाश ही को मुिž
समभफ़ते ह< वे तो महामूढ़ ह< eयijक मुिž जीव कR यह है jक दुःखi से छू ट
कर आन3दHव’प, सव&aापक, अन3त, परमे5र मO जीवi का आन3द मO रहना।
देखो वेदा3त शारीरक सू•O मO-
अभावं बादWरराह Éेवम्।
जो बादWर aास जी का िपता है वह मुिž मO जीव का और उस के साथ मन
का भाव मानता है अथा&त् जीव और मन का लय पराशर जी नहc मानते। वैसे
ही-
भावं जैिमिन“वकqपामननात्।
और जैिमिन आचा‰य& मुž पु˜ष का मन के समान सूˆम शरीर, इि3¥यां, 'ाण
आjद को भी िव‡मान मानते ह<। अभाव नहc।
yादशाहवदुभयिवधं बादरायणोऽतः।
aास मुिन मुिž मO भाव और अभाव इन दोनi को मानते ह<। अथा&त् शुZ
साम•य&युž जीव मुिž मO बना रहता है। अपिव•ता, पापाचरण, दुःख,
अXानाjद का अभाव मानते ह<।
यदा प€ावित¼3ते Xानािन मनसा सह।
बुिZt न िवचे…ते तामाgः परमां गितम्।। यह उपिनषत् का वचन है।
जब शुZ मनयुž पांच Xानेि3¥य जीव के साथ रहती ह< और बुिZ का िनtय
िHथर होता है। उस को परमगित अथा&त् मोz कहते ह<।
य आ"मा अपहतपाÊमा िवजरो िवमृ"यु“वशोकोऽिविजघ"सोऽिपपासः
स"यकामः स"यसंकqपः सोऽ3वे…aः स िविजXािसतaः सवा¶t लोकाना¹ोित
सवा¶t कामान् यHतमा"मानमनुिव‡ िवजानातीित।।
स वा एष एतेन दैवेन चzुषा मनसैतान् कामान् पŸयन् रमते।
य एते {|लोके तं वा एतं देवा आ"मानमुपासते तHमाsेषां सव· च लोका आsा
सव· च कामाः स सवा&¦t लोकाना¹ोित सवा&¦t कामा3यHतमा- "मानमनुिव‡
िवजानातीित।।
मघव3म"य¶ वा इदँ◌्शरीरमाsं मृ"युना तदHयाऽमृतHयाऽशरीरHया"मनो-
ऽिध¼ानमाsो वै सशरीरः ि'याि'या^यां न वै सशरीरHय सतः ि'याि'ययो-
रपहितH"यशरीरं वाव स3तं न ि'याि'ये Hपृशतः।। -छा3दो•य।।
जो परमा"मा अपहतपाÊमा सव& पाप, जरा, मृ"यु, शोक, zुधा, िपपासा से
रिहत, स"यकाम, स"यसंकqप है उस कR खोज और उसी कR जानने कR इ¸छा
करनी चािहए। िजस परमा"मा के स›ब3ध से मुž जीव सब लोकi और सब
कामi को 'ाƒ होता है; जो परमा"मा को जान के मोz के साधन और अपने
को शुZ करना जानता है सो यह मुिž को 'ाƒ जीव शुZ jदa ने• और शुZ
मन से कामi को देखता, 'ाƒ होता gआ रमण करता है।
जो ये {|लोक अथा&त् दश&नीय परमा"मा मO िHथत होके मोz सुख को भोगते
ह< और इसी परमा"मा का जो jक सब का अ3तया&मी आ"मा है उस कR उपासना
मुिž कR 'ािƒ करने वाले िवyान् लोग करते ह<। उस से उन को सब लोक और
सब काम 'ाƒ होते ह< अथा&त् जो-जो संकqप करते ह< वह-वह लोक और वह-
वह काम 'ाƒ होता है और वे मुž जीव Hथूल शरीर छोड़कर संकqपमय शरीर
से आकाश मO परमे5र मO िवचरते ह<। eयijक जो शरीर वाले होते ह< वे
सांसाWरक दुःख से रिहत नहc हो सकते।
जैसे इ3¥ से 'जापित ने कहा है jक हे परमपूिजत धनयुž पु˜ष! यह Hथूल
शरीर मरणधमा& है और जैसे िसह के मुख मO बकरी होवे वैसे यह शरीर मृ"यु
के मुख के बीच है सो शरीर इस मरण और शरीर रिहत जीवा"मा का िनवास
Hथान है। इसीिलये यह जीव सुख और दुःख से सदा >Hत रहता है eयijक
शरीर सिहत जीव कR सांसाWरक 'स–ता कR िनवृिs होती ही है और जो शरीर
रिहत मुž जीवा"मा {| मO रहता है उस को सांसाWरक सुख दुःख का Hपश&
भी नहc होता jक3तु सदा आन3द मO रहता है।
('-) जीव मुिž को 'ाƒ होकर पुनः ज3म मरण’प दुःख मO कभी आते ह< वा
नहc? eयijक-
न च पुनरावs&ते न च पुनरावs&s इित।। उपिनषyचनम्।।
अनावृिsः शdदादनावृिsः शdदात्।। शारीरक सू•।।
यद् ग"वा न िनवs&3ते तZाम परमं मम।। भगवÿीता।।
इ"याjद वचनi से िवjदत होता है jक मुिž वही है jक िजससे िनवृs होकर
पुनः संसार मO कभी नहc आता।
(उsर) यह बात ठीक नहc; eयijक वेद मO इस बात का िनषेध jकया है-
कHय नूनं कतमHयामृतानां मनामहे चा˜ देवHय नाम ।
को नो मÉा अjदतये पनु दात्& िपतरं च दृशय्◌े◌ा◌ं मातरं च
।।१।।
अ«ेव&यं 'थमHयामृतानां मनामहे चा˜ देवHय नाम ।
स नो मÉा अjदतये पुनदा&त् िपतरं च दृशेय्◌ा◌ं मातरं च ।।२।।
- ऋ० मं० १ । सू० २४ । मं० १ । २ ।।
इदानीिमव सव&• ना"य3तो¸छेदः।। -सांwयसू•।।
('-) हम लोग jकस का नाम पिव• जानO? कौन नाशरिहत पदाथŽ के म—य
मO वs&मान देव सदा 'काशHव’प है। हम को मुिž का सुख भुगा कर पुनः इस
संसार मO ज3म देता और माता तथा िपता का दश&न कराता है? ।।१।।
(उsर) हम इस Hव'काशHव’प अनाjद सदा मुž परमा"मा का नाम पिव•
जानO जो हम को मुिž मO आन3द भुगा कर पृिथवी मO पुनः माता िपता के
स›ब3ध मO ज3म देकर माता िपता का दश&न कराता है। वही परमा"मा मुिž
कR aवHथा करता सब का Hवामी है।।२।।
जैसे इस समय ब3ध मुž जीव ह< वैसे ही सव&दा रहते ह<, अ"य3त िव¸छेद ब3ध
मुिž का कभी नहc होता jक3तु ब3ध और मुिž सदा नहc रहती।
('-) तद"य3तिवमोzोऽपवग&ः।
दुःखज3म'वृिsदोषिम•याXानानामुsरोsरापाये तदन3तरापायादपवग&ः।।
-3यायसू•।।
जो दुःख का अ"य3त िव¸छेद होता है वही मुिž कहाती है eयijक जब
िम•याXान अिव‡ा, लोभाjद दोष, िवषय, दु…aसनi मO 'वृिs, ज3म और
दुःख का उsर-उsर के छू टने से पूव&-पूव& के िनवृs होने ही से मोz होता है जो
jक सदा बना रहता है।
(उsर) यह आवŸयक नहc है jक अ"य3त शdद अ"य3ताभाव ही का नाम होवे।
जैसे ‘अ"य3तं दुःखम"य3तं सुखं चाHय वs&ते’ बgत दुःख और बgत सुख इस
मनु‘य को है। इस से यही िवjदत होता है jक इस को बgत सुख वा दुःख है।
इसी 'कार यहां भी अ"य3त शdद का अथ& जानना चािहये। ('-) जो मुिž से
भी जीव jफर आता है तो वह jकतने समय तक मुिž मO रहता है?
(उsर) ते {|लोके ह परा3तकाले परामृतात् पWरमु¸यि3त सव·।
यह मु‹डक उपिनषत् का वचन है।
वे मुž जीव मुिž मO 'ाƒ होके {| मO आन3द को तब तक भोग के पुनः
महाकqप के पtात् मुिž सुख को छोड़ के संसार मO आते ह<। इसकR संwया यह
है jक तOतालीस लाख बीस सहê वषŽ कR एक चतुयु&गी, दो सहê चतुयु&िगयi
का एक अहोरा•, ऐसे तीस अहोरा•O का एक महीना, ऐसे बारह महीनi का
एक वष&, ऐसे शत वषŽ का परा3तकाल होता है। इसको गिणत कR रीित से
यथावत् समझ लीिजए। इतना समय मुिž मO सुख भोगने का है।
('-) सब संसार और >3थकारi का यही मत है jक िजस से पुनः ज3म मरण
मO कभी न आवO।
(उsर) यह बात कभी नहc हो सकती eयijक 'थम तो जीव का साम•य&
शरीराjद पदाथ& और साधन पWरिमत ह< पुनः उस का फल अन3त कै से हो सकता
है? अन3त आन3द का भोगने का असीम साम•य&; कम& और साधन जीवi मO
नहc, इसिलये अन3त सुख नहc भोग सकते। िजन के साधन अिन"य ह< उन का
फल िन"य कभी नहc हो सकता। और जो मुिž मO से कोई भी लौट कर जीव
इस संसार मO न आवे तो संसार का उ¸छेद अथा&त् जीव िनŸशेष हो जाने
चािहये।
('-) िजतने जीव मुž होते ह< उतने ई5र नये उ"प– करके संसार मO रख देता
है इसिलये िनŸशेष नहc होते।
(उsर) जो ऐसा होवे तो जीव अिन"य हो जायO eयijक िजस कR उ"पिs होती
है उस का नाश अवŸय होता है jफर तु›हारे मतानुसार मुिž पाकर भी िवन…
हो जायO। मुिž अिन"य हो गई और मुिž के Hथान मO बgत सा भीड़ भड़Ùा हो
जायेगा eयijक वहां आगम अिधक और aय कु छ भी नहc होने से बढ़ती का
पारावार न रहेगा और दुःख के अनुभव के िवना सुख कु छ भी नहc हो सकता।
जैसे कटु न हो तो मधुर eया, जो मधुर न हो तो कटु eया कहावे? eयijक एक
Hवाद के एक रस के िव˜Z होने से दोनi कR परीzा होती है। जैसे कोई मनु‘य
मीठा मधुर ही खाता पीता जाय उस को वैसा सुख नहc होता जैसा सब 'कार
के रसi के भोगने वाले को होता है। और जो ई5र अ3त वाले कमŽ का अन3त
फल देवे तो उस का 3याय न… हो जाय। जो िजतना भार उठा सके उतना उस
पर धरना बुिZमानi का काम है। जैसे एक मन भर उठाने वाले के िशर पर
दश मन धरने से भार धरने वाले कR िन3दा होती है वैसे अqपX अqप साम•य&
वाले जीव पर अन3त सुख का भार धरना ई5र के िलए ठीक नहc। और जो
परमे5र नये जीव उ"प– करता है तो िजस कारण से उ"प– होते ह< वह चुक
जायेगा। eयijक चाह< jकतना ही बड़ा धनकोश हो पर3तु िजस मO aय है और
आय नहc उसका कभी न कभी jदवाला िनकल ही जाता है। इसिलये यही
aवHथा ठीक है jक मुिž मO जाना वहां से पुनः आना ही अ¸छा है। eया थोड़े
से कारागार से ज3मकारागार द‹ड, काले पानी अथवा फांसी को कोई अ¸छा
मानता है? जब वहां से आना ही न हो तो ज3म कारागार से इतना ही अ3तर
है jक वहां मजूरी नहc करनी पड़ती और {| मO लय होना समु¥ मO डू ब मरना
है।
('-) जैसे परमे5र िन"यमुž, पूण& सुखी है वैसे ही जीव भी िन"यमुž और
सुखी रहेगा तो कोई दोष न आवेगा।
(उsर) परमे5र अन3त Hव’प, साम•य&, गुण, कम& Hवभाववाला है इसिलये
वह कभी अिव‡ा और दुःख ब3धन मO नहc िगर सकता। जीव मुž होकर भी
शुZHव’प, अqपX और पWरिमत गुण, कम&, Hवभाव वाला रहता है, परमे5र
के सदृश कभी नहc होता।
('-) जब ऐसी है तो मुिž भी ज3म मरण के सदृश है इसिलये ~म करना
aथ& है।
(उsर) मुिž ज3म मरण के सदृश नहc, eयijक जब तक ३६००० छsीस
सहê वार उ"पिs और 'लय का िजतना समय होता है उतने समय पय&3त
जीवi को मुिž के आन3द मO रहना, दुःख का न होना, eया छोटी बात है? जब
आज खाते पीते हो कल भूख लगने वाली है पुनः इस का उपाय eयi करते हो?
जब zुधा, तृषा, zु¥ धन, रा°य, 'ित¼ा, ¬ी, स3तान आjद के िलये उपाय
करना आवŸयक है तो मुिž के िलये eयi न करना? जैसे मरना अवŸय है तो
भी जीवन का उपाय jकया जाता है वैसे ही मुिž से लौट कर ज3म मO आना है
तथािप उस का उपाय करना अ"यावŸयक है?
('-) मुिž के eया-eया साधन ह<?
(उsर) कु छ साधन तो 'थम िलख आये ह< पर3तु िवशेष उपाय ये ह<। जो मुिž
चाहै वह जीवनमुž अथा&त् िजन िम•याभाषणाjद पाप कमŽ का फल दुःख है;
उन को छोड़ सुख’प फल को देने वाले स"यभाषणाjद धमा&चरण अवŸय करे ।
जो कोई दुःख को छु ड़ाना और सुख को 'ाƒ होना चाहै वह अधम& को छोड़
धम& अवŸय करे । eयijक दुःख का पापाचरण और सुख का धमा&चरण मूल
कारण है। स"पु˜षi के संग से िववेक अथा&त् स"यास"य, धमा&धम& कs&aाकs&a
का िनtय अवŸय करO , पृथÀफ़-पृथÀफ़ जानO। और शरीर अथा&त् जीव प€कोशi
का िववेचन करO । एक ‘अ–मय’ जो "वचा से लेकर अिHथपय&3त का समुदाय
पृिथवीमय है। दूसरा ‘'ाणमय’ िजस मO ‘'ाण’ अथा&त् जो भीतर से बाहर जाता,
‘अपान’ जो बाहर से भीतर आता, ‘समान’ जो नािभHथ होकर सव&• शरीर मO
रस पgंचाता, ‘उदान’ िजस से क‹ठHथ अ– पान ख<चा जाता और बल परा¦म
होता है, ‘aान’ िजस से सब शरीर मO चे…ा आjद कम& जीव करता है। तीसरा
‘मनोमय’ िजस मO मन के साथ अहंकार, वाÀफ़, पाद, पािण, पायु और उपHथ
पांच कम&-इि3¥यां ह<। चौथा ‘िवXानमय’ िजस मO बुिZ, िचs, ~ो•, "वचा,
ने•, िज§वा और नािसका ये पांच Xान-इि3¥याँ िजन से जीव Xानाjद aवहार
करता है। पांचवां ‘आन3दमयकोश’ िजस मO 'ीित 'स–ता, 3यून आन3द,
अिधकान3द, आन3द और आवमार कारण ’प 'कृ ित है। ये पांच कोष कहाते
ह<। इ3हc से जीव सब 'कार के कम&, उपासना और Xानाjद aवहारi को करता
है।
तीन अवHथा-एक ‘जागृत’ दूसरी ‘Hव¹’ और तीसरी ‘सुषुिƒ’ अवHथा कहाती
है।
तीन शरीर ह<-एक ‘Hथूल’ जो यह दीखता है। दूसरा पांच 'ाण, पांच
Xानेि3¥यां, पांच सूˆम भूत और मन तथा बुिZ इन सsरह तÓवi का समुदाय
‘सूˆमशरीर’ कहाता है। यह सूˆम शरीर ज3ममरणाjद मO भी जीव के साथ
रहता है। इस के दो भेद ह<-एक भौितक अथा&त् जो सूˆम भूतi के अंशi से बना
है। दूसरा Hवाभािवक जो जीव के Hवाभािवक गुण ’प ह<। यह दूसरा अभौितक
शरीर मुिž मO भी रहता है। इसी से जीव मुिž मO सुख को भोगता है। तीसरा
कारण िजस मO सुषुिƒ अथा&त् गाढ़ िन¥ा होती है वह 'कृ ित ’प होने से सव&•
िवभु और सब जीवi के िलए एक है। चौथा तुरीय शरीर वह कहाता है िजस
मO समािध से परमा"मा के आन3दHव’प मO म« जीव होते ह<। इसी समािध
संHकारज3य शुZ शरीर का परा¦म मुिž मO भी यथावत् सहायक रहता है।
इन सब कोष, अवHथाu से जीव पृथÀफ़ है, eयijक यह सब को िवjदत है jक
अवHथाu से जीव पृथÀफ़ है। eयijक जब मृ"यु होता है तब सब कोई कहते ह<
jक जीव िनकल गया, यही जीव सब का 'ेरक, सब का धsा&, साzीकsा&,
भोžा कहाता है। जो कोई ऐसा कहे jक जीव कsा& भोžा नहc तो उस को
जानो jक वह अXानी, अिववेकR है। eयijक िवना जीव के जो ये सब जड़ पदाथ&
ह< इन को सुख-दुःख का भोग वा पाप पु‹य कतृ&"व कभी नहc हो सकता। हां,
इन के स›ब3ध से जीव पाप पु‹यi का कsा& और सुख दुःखi का भोžा है। जब
इि3¥यां अथŽ मO मन इि3¥यi और आ"मा मन के साथ संयुž होकर 'ाणi को
'ेरणा करके अ¸छे वा बुरे कमŽ मO लगाता है तभी वह बिहमु&ख हो जाता है।
उसी समय भीतर से आन3द, उ"साह, िनभ&यता और बुरे कमŽ मO भय, शंका,
लœा उ"प– होती है। वह अ3तया&मी परमा"मा कR िशzा है। जो कोई इस
िशzा के अनुकूल वs&ता है वही मुिžज3य सुखi को 'ाƒ होता है। और जो
िवपरीत वs&ता है वह ब3धज3य दुःख भोगता है।
दूसरा साधन ‘वैरा•य’-अथा&त् जो िववेक से स"यास"य को जाना हो उसमO से
स"याचरण का >हण और अस"याचरण का "याग करना िववेक है-जो पृिथवी
से लेकर परमे5र पय&3त पदाथŽ के गुण, कम&, Hवभाव से जानकर उस कR
आXापालन और उपासना मO त"पर होना, उस से िव˜Z न चलना, सृि… से
उपकार लेना िववेक कहाता है।
त"पtात् तीसरा साधन-‘षßक स›पिs’ अथा&त् छः 'कार के कम& करना-एक
‘शम’ िजस से अपने आ"मा और अ3तःकरण को अधमा&चरण से हटाकर
धमा&चरण मO 'वृs रखना। दूसरा ‘दम’ िजस से ~ो•jद इि3¥यi और शरीर को
aिभचाराjद बुरे कमŽ से हटा कर िजतेि3¥य"वाjद शुभ कमŽ मO 'वृs रखना।
तीसरा ‘उपरित’ िजस से दु… कम& करने वाले पु˜षi से सदा दूर रहना। चौथा
‘ितितzा’ चाहे िन3दा, Hतुित, हािन, लाभ jकतना ही eयi न हो पर3तु हष&
शोक को छोड़ मुिž साधनi मO सदा लगे रहना। पांचवां ‘~Zा’ जो वेदाjद स"य
शा¬ और इन के बोध से पूण& आƒ िवyान् स"योपदे…ा महाशयi के वचनi पर
िव5ास करना। छठा ‘समाधान’ िचs कR एका>ता ये छः िमलकर एक
‘साधन’ तीसरा कहाता है।
चौथा ‘मुमुzु"व’ अथा&त् जैसे zुधा तृषातुर को िसवाय अ– जल के दूसरा कु छ
भी अ¸छा नहc लगता वैसे िवना मुिž के साधन और मुिž के दूसरे मO 'ीित
न होना। ये चार साधन और चार अनुब3ध अथा&त् साधनi के पtात् ये कम&
करने होते ह<। इन मO से जो न-इन चार साधनi से युž पु˜ष होता है वही मोz
का अिधकारी होता है।
दूसरा ‘स›ब3ध’ {| कR 'ािƒ ’प मुिž 'ितपा‡ और वेदाjद शा¬
'ितपादक को यथावत् समझ कर अि3वत करना।
तीसरा ‘िवषयी’ सब शा¬O का 'ितपादन िवषय {| उस कR 'ािƒ’प िवषय
वाले पु˜ष का नाम िवषयी है।
चौथा ‘'योजन’ सब दुःखi कR िनवृिs और परमान3द को 'ाƒ होकर मुिž
सुख का होना। ये चार अनुब3ध कहाते ह<।
तदन3तर ‘~वणचतु…य’ एक ‘~वण’ जब कोई िवyान् उपदेश करे तब शा3त,
—यान देकर सुनना, िवशेष {|िव‡ा के सुनने मO अ"य3त —यान देना चािहये
jक यह सब िव‡ाu मO सूˆम िव‡ा है। सुन कर दूसरा ‘मनन’ एका3त देश मO
बैठ के सुने gए का िवचार करना। िजस बात मO शंका हो पुनः पूछना और सुनते
समय भी वžा और ~ोता उिचत समझO तो पूछना और समाधान करना।
तीसरा ‘िनjद—यासन’ जब सुनने और मनन करने से िनस3देह हो जाय तब
समािधHथ हो कर उस बात को देखना समझना jक वह जैसा सुना था िवचारा
था वैसा ही है वा नहc? —यानयोग से देखना। चौथा ‘साzा"कार’ अथा&त् जैसा
पदाथ& का Hव’प गुण और Hवभाव हो वैसा याथात•य जान लेना ही
‘~वणचतु…य’ कहाता है। सदा तमोगुण अथा&त् ¦ोध, मलीनता, आलHय,
'माद आjद; रजोगुण अथा&त् ई‘या&, yेष, काम, अिभमान, िवzेप आjद दोषi
से अलग होके सÓव अथा&त् शा3त 'कृ ित, पिव•ता, िव‡ा, िवचार आjद गुणi
को धारण करे । (मै•ी) सुखी जनi मO िम•ता, (क˜णा) दुःखी जनi पर दया,
(मुjदता) पु‹या"माu से ह“षत होना, (उपेzा) दु…ा"माu मO न 'ीित और न
वैर करना।
िन"य'ित 3यून से 3यून दो घ‹टा पय&3त मुमुzु —यान अवŸय करे िजस
से भीतर के मन आjद पदाथ& साzात् हi।
देखो! अपने चेतनHव’प ह< इसी से XानHव’प और मन के साzी ह< eयijक
जब मन शा3त, च€ल, आनि3दत वा िवषादयुž होता है उस को यथावत्
देखते ह< वैसे ही इि3¥यां 'ाण आjद का Xाता, पूव&द…
ृ का Hमरणकsा& और एक
काल मO अनेक पदाथŽ के वेsा, धारणाकष&णकsा& और सब से पृथÀफ़ ह<। जो
पृथÀफ़ न होते तो Hवत3• कsा& इन के 'ेरक अिध¼ाता कभी नहc हो सकते।
अिव‡ाऽिHमतारागyेषािभिनवेशाः प€ eलेशाः। -योगेशा¬े पादे २। सू० ३।।
इन मO से अिव‡ा का Hव’प कह आये। पृथÀफ़ वs&मान बुिZ को आ"मा से
िभ– न समभफ़ना अिHमता, सुख मO 'ीित राग, दुःख मO अ'ीित yेष और सब
'ािणमा• को यह इ¸छा सदा रहती है jक ‘म< सदा शरीरHथ र•ं, म’ँ नहc’
मृ"यु दुःख से •स अिभिनवेश कहाता है। इन पांच eलेशi को योगा^यास
िवXान से छु ड़ा के {| को 'ाƒ हो के मुिž के परमान3द को भोगना चािहये।
('-) ज3म एक है वा अनेक?
(उsर) अनेक।
('-) जो अनेक हi तो पूव& ज3म और मृ"यु कR बातi का Hमरण eयi नहc?
(उsर) जीव अqपX है ि•कालदशŠ नहc इसिलये Hमरण नहc रहता। और िजस
मन से Xान करता है वह भी एक समय मO दो Xान नहc कर सकता। भला पूव&
ज3म कR बात तो दूर रहने दीिजये, इसी देह मO जब गभ& मO जीव था, शरीर
बना, पtात् ज3मा पांचवO वष& से पूव& तक जो-जो बातO gई ह< उन का Hमरण
eयi नहc कर सकता? और जागृत वा Hव¹ मO बgत सा aवहार '"यz मO
करके जब सुषुिƒ अथा&त् गाढ़ िन¥ा होती है तब जागृत आjद aवहार का
Hमरण eयi नहc कर सकता? और तुम से कोई पूछे jक बारह वष& के पूव&
तेरहवO वष& के पांचवO महीने के नवमे jदन दस बजे पर पहली िमनट मO तुमने
eया jकया था? तु›हारा मुख, हाथ, कान, ने•, शरीर jकस ओर jकस 'कार
का था? और मन मO eया िवचार था? जब इसी शरीर मO ऐसा है तो पूव& ज3म
कR बातi के Hमरण मO शंका करनी के वल लड़कपने कR बात है। और जो Hमरण
नहc होता है इसी से जीव सुखी है। नहc तो सब ज3मi के दुःखi को देख-देख
दुिखत होकर मर जाता। जो कोई पूव& और पीछे ज3म के वs&मान को जानना
चाहै तो भी नहc जान सकता eयijक जीव का Xान और Hव’प अqप है। यह
बात ई5र के जानने यो•य है; जीव के नहc।
('-) जब जीव को पूव& का Xान नहc और ई5र इस को द‹ड देता है तो जीव
का सुधार नहc हो सकता eयijक जब उस को Xान हो jक हमने अमुक काम
jकया था उसी का यह फल है तभी वह पापकमŽ से बच सके ?
(उsर) तुम Xान कै 'कार का मानते हो?
('-) '"यzाjद 'माणi से आठ 'कार का।
(उsर) तो जब तुम ज3म से लेकर समय-समय मO राज, धन, बुिZ, िव‡ा,
दाWरí, िनबु&िZ, मूख&ता आjद सुख-दुःख संसार मO देखकर पूव&ज3म का Xान
eयi नहc करते? जैसे एक अवै‡ और एक वै‡ को कोई रोग हो उस का िनदान
अथा&त् कारण वै‡ जान लेता और अिवyान् नहc जान सकता। उस ने वै‡क
िव‡ा पढ़ी है और दूसरे ने नहc। पर3तु °वराjद रोग होने से अवै‡ भी इतना
जान सकता है jक मुझ से कोई कु प•य हो गया है िजस से मुभफ़े यह रोग gआ
है। वैसे ही जगत् मO िविच• सुख दुःख आjद कR घटती बढ़ती देख के पूव&ज3म
का अनुमान eयi नहc जान लेते ? और जो पूव&ज3म को न मानोगे तो परमे5र
पzपाती हो जाता है eयijक िवना पाप के दाWरíाjद दुःख और िवना पूव&िस
€त पु‹य के रा°य धनाÚता और िनबु&िZता उस को eयi दी? और पूव&ज3म
के पाप पु‹य के अनुसार दुःख सुख के देने से परमे5र 3यायकारी यथावत् रहता
है।
('-) एक ज3म होने से भी परमे5र 3यायकारी हो सकता है। जैसे सवªपWर
राजा जो करे सो 3याय। जैसे माली अपने उपवन मO छोटे और बड़े वृz लगाता
jकसी को काटता उखाड़ता और jकसी कR रzा करता बढ़ाता है। िजस कR जो
वHतु है उसको वह चाहै जैसे रeखे। उस के ऊपर कोई भी दूसरा 3याय करने
वाला नहc जो उस को द‹ड दे सके वा ई5र jकसी से डरे ।
(उsर) परमा"मा िजस िलए 3याय चाहता करता; अ3याय कभी नहc करता
इसीिलये वह पूजनीय और बड़ा है। जो 3यायिव˜Z करे वह ई5र ही नहc।
जैसे माली युिž के िवना माग& वा अHथान मO वृz लगाने, न काटने यो•य को
काटने, अयो•य को बढ़ाने, यो•य को न बढ़ाने से दूिषत होता है इसी 'कार
िवना कारण के करने से ई5र को दोष लगे। परमे5र के ऊपर 3याययुž काम
करना अवŸय है eयijक वह Hवभाव से पिव• और 3यायकारी है। जो उ3मs
के समान काम करे तो जगत् के ~े¼ 3यायाधीश से भी 3यून और अ'िति¼त
होवे। eया इस जगत् मO िवना यो•यता के उsम काम jकये 'ित¼ा और दु…
काम jकये िवना द‹ड देने वाला िन3दनीय अ'िति¼त नहc होता ? इसीिलये
ई5र अ3याय नहc करता इसी से jकसी से नहc डरता।
('-) परमा"मा ने 'थम ही से िजस के िलए िजतना देना िवचारा है उतना
देता और िजतना काम करना है उतना करता है।
(उsर) उस का िवचार जीवi के कमा&नुसार होता है अ3यथा नहc। जो अ3यथा
हो तो वह भी अपराधी अ3यायकारी होवे।
('-) बड़े छोटi को एक सा ही सुख दुःख है। बड़i को बड़ी िच3ता और छोटi
को छोटी। जैसे-jकसी सा•कार का िववाद राजघर मO लाख ˜पये का हो तो
वह अपने घर से पालकR मO बैठ कर कचहरी मO उ‘णकाल मO जाता हो, बाजार
मO हो के उस को जाता देख कर अXानी लोग कहते ह< jक देखो पु‹य पाप का
फल, एक पालकR मO आन3दपूव&क बैठा है और दूसरे िवना जूते पिहरे नीचे से
तÊयमान होते gए पालकR को उठा कर ले जाते ह<। पर3तु बुिZमान् लोग इस
मO यह जानते ह< jक जैसे-जैसे कचहरी िनकट आती जाती है वैसे-वैसे सा•कार
को बड़ा शोक और स3देह बढ़ता जाता और कहारi को आन3द होता जाता है।
जब कचहरी मO पgंचते ह< तब सेठ जी इधर उधर जाने का िवचार करते ह< jक
'ाि"ववाक (वकRल) के पास जाऊँ वा सWरŸतेदार के पास। आज हा’ंगा वा
जीतूँगा न जाने eया होगा? और कहार लोग तमाखू पीते परHपर बातO चीतO
करते gए 'स– होकर आन3द मO सो जाते ह<। जो वह जीत जाय तो कु छ सुख
और हार जाये तो सेठ जी दुःखसागर मO डू ब जाय और वे कहार जैसे के वैसे
रहते ह<। इसी 'कार जब राजा सु3दर कोमल िबछोने मO सोता है तो भी शीÎ
िन¥ा नहc आती और मजूर कं कर प"थर और मÝी ऊँचे नीचे Hथल पर सोता है
उस को भफ़ट ही िन¥ा आती है। ऐसे ही सव&• समभफ़ो।
(उsर) यह समभफ़ अXािनयi कR है। eया jकसी सा•कार से कहO jक तू कहार
बन जा और कहार से कहO jक तू सा•कार बन जा तो सा•कार कभी कहार
बनना नहc और कहार सा•कार बनना चाहते ह<। जो सुख दुःख बराबर होता
तो अपनी-अपनी अवHथा छोड़ नीच और ऊंच बनना दोनi न चाहते। देखो!
एक जीव िवyान्, पु‹या"मा, ~ीमान् राजा कR राणी के गभ& मO आता और
दूसरा महादWर¥ घिसयारी के गभ& मO आता है। एक को गभ& से लेकर सव&था
सुख और दूसरे को सब 'कार दुःख िमलता है। एक जब ज3मता है तब सु3दर
सुगि3धतयुž जलाjद से Èान, युिž से नाड़ी छेदन, दु•धपानाjद यथायो•य
'ाƒ होते ह<। जब वह दूध पीना चाहता है तो उस के साथ िम~ी आjद िमला
कर यथे… िमलता है। उसको 'स– रखने के िलये नौकर चाकर िखलौना सवारी
उsम Hथानi मO लाड़ से आन3द होता है। दूसरे का ज3म जंगल मO होता, Èान
के िलये जल भी नहc िमलता, जब दूध पीना चाहता तब दूध के बदले मO घूंसा
थपेड़ा आjद से पीटा जाता है। अ"य3त आत&Hवर से रोता है। कोई नहc पूछता।
इ"याjद जीवi को िवना पु‹य पाप के सुख दुःख होने से परमे5र पर दोष आता
है। दूसरा जैसे िवना jकये कमŽ के सुख दुःख िमलते ह< तो आगे नरक Hवग& भी
न होना चािहये। eयijक जैसे परमे5र ने इस समय िवना कमŽ के सुख दुःख
jदया है वैसे मरे पीछे भी िजस को चाहेगा उस को Hवग& मO और िजस को चाहे
नरक मO भेज देगा। पुनः सब जीव अधम&युž हो जायOगे, धम& eयi करO ? eयijक
धम& का फल िमलने मO स3देह है। परमे5र के हाथ है, जैसे उस कR 'स–ता
होगी वैसा करे गा तो पापकमŽ मO भय न होकर संसार मO पाप कR वृिZ और
धम& का zय हो जायेगा। इसिलये पूव& ज3म के पु‹य पाप के अनुसार वs&मान
ज3म और वs&मान तथा पूव&ज3म के कमा&नुसार भिव‘यत् ज3म होते ह<।
('-) मनु‘य और अ3य प5ाjद के शरीर मO जीव एक सा है वा िभ–-िभ–
जाित के ?
(उsर) जीव एक से ह< पर3तु पाप पु‹य के योग से मिलन और पिव• होते ह<।
('-) मनु‘य का जीव प5ाjद मO और प5ाjद का मनु‘य के शरीर मO और ¬ी
का पु˜ष के और पु˜ष का ¬ी के शरीर मO जाता आता है वा नहc?
(उsर) हां! जाता आता है। eयijक जब पाप बढ़ जाता पु‹य 3यून होता है तब
मनु‘य का जीव प5ाjद नीच शरीर और जब धम& अिधक तथा अधम& 3यून
होता है तब देव अथा&त् िवyानi का शरीर िमलता और जब पु‹य पाप बराबर
होता है तब साधारण मनु‘य ज3म होता है। इस मO भी पु‹य पाप के उsम,
म—यम और िनकृ … होने से मनु‘याjद मO भी उsम, म—यम, िनकृ … शरीराjद
साम>ी वाले होते ह<। और जब अिधक पाप का फल प5ाjद शरीर मO भोग
िलया है पुनः पाप पु‹य के तुqय रहने से मनु‘य शरीर मO आता है और पु‹य के
फल भोग कर jफर भी म—यHथ मनु‘य के शरीर मO आता है। जब शरीर से
िनकलता है उसी का नाम ‘मृ"यु’ और शरीर के साथ संयोग होने का नाम ‘ज3म’
है। जब शरीर छोड़ता तब यमालय अथा&त् आकाशHथ वायु मO रहता है eयijक
‘यमेन वायुना’ वेद मO िलखा है jक यम नाम वायु का है; पtात् धम&राज अथा&त्
परमे5र उस जीव के पाप पु‹यानुसार ज3म देता है। वह वायु, अ–, जल
अथवा शरीर के िछ¥ yारा दूसरे के शरीर मO ई5र कR 'ेरणा से 'िव… होता
है। जो 'िव… होकर ¦मशः वी‰य& मO जा गभ& मO िHथत हो, शरीर धारण कर,
बाहर आता है। जो ¬ी के शरीर धारण करने यो•य कम& हi तो ¬ी और पु˜ष
के शरीर धारण करने यो•य कम& हi तो पु˜ष के शरीर मO 'वेश करता है। और
नपुंसक गभ& कR िHथित-समय ¬ी पु˜ष के शरीर मO स›ब3ध करके रज वीय& के
बराबर होने से होता है। इसी 'कार नाना 'कार के ज3म मरण मO तब तक
जीव पड़ा रहता है jक जब तक उsम कमªपासना Xान को करके मुिž को
नहc पाता। eयijक उsम कमा&jद करने से मनु‘यi मO उsम ज3म और मुिž मO
महाकqप पय&3त ज3म मरण दुःखi से रिहत होकर आन3द मO रहता है।
('-) मुिž एक ज3म मO होती है वा अनेकi मO ?
(उsर) अनेक ज3मi मO। eयijक-
िभ‡ते Æदय>ि3थिŸछ‡3ते सव&संशयाः।
zीय3ते चाHय कमा&िण तिHम3दृ… े पराऽवरे ।।१।। -मु‹डक।।
जब इस जीव के Æदय कR अिव‡ा अXान’पी गांठ कट जाती, सब संशय
िछ– होते और दु… कम& zय को 'ाƒ होते ह< तभी उस परमा"मा जो jक अपने
आ"मा के भीतर और बाहर aाप रहा है; उस मO िनवास करता है। ('-) मुिž
मO परमे5र मO जीव िमल जाता है वा पृथÀफ़ रहता है ? (उsर) पृथÀफ़ रहता
है। eयijक जो िमल जाय तो मुिž का सुख कौन भोगे और मुिž के िजतने
साधन ह< वे सब िन‘फल हो जावO। वह मुिž तो नहc jक3तु जीव का 'लय
जानना चािहये। जब जीव परमे5र कR आXापालन, उsम कम&, स"संग,
योगा^यास पूवªž सब साधन करता है वही मुिž को पाता है।
स"यं Xानमन3तं {| यो वेद िनिहतं गुहायां परमे aोमन्।
सोऽ-ुते सवा&न् कामान् सह {|णा िवपिtतेित।। -तैिनरीन।।
जो जीवा"मा अपनी बुिZ और आ"मा मO िHथत स"य Xान और अन3त
आन3दHव’प परमा"मा को जानता है वह उस aापक’प {| मO िHथत होके
उस ‘िवपिtत्’ अन3तिव‡ायुž {| के साथ कामi को 'ाƒ होता है। अथा&त्
िजस-िजस आन3द कR कामना करता है उस-उस आन3द को 'ाƒ होता है। यही
मुिž कहाती है।
('-) जैसे शरीर के िवना सांसाWरक सुख नहc भोग सकता वैसे मुिž मO िवना
शरीर आन3द कै से भोग सके गा?
(उsर) इस का समाधान पूव& कह आये ह< और इतना अिधक सुनो-जैसे
सांसाWरक सुख शरीर के आधार से भोगता है वैसे परमे5र के आधार मुिž के
आन3द को जीवा"मा भोगता है। वह मुž जीव अन3त aापक {| मO Hव¸छ3द
घूमता, शुZ Xान से सब सृि… को देखता, अ3य मुži के साथ िमलता,
सृि…िव‡ा को ¦म से देखता gआ सब लोकलोका3तरi मO अथा&त् िजतने ये लोक
दीखते ह<, और नहc दीखते उन सब मO घूमता है। वह सब पदाथŽ को जो jक
उस के Xान के आगे ह< सब को देखता है। िजतना Xान अिधक होता है उसको
उतना ही आन3द अिधक होता है। मुिž मO जीवा"मा िनम&ल होने से पूण& Xानी
होकर उस को सब सि–िहत पदाथŽ का भान यथावत् होता है। यही सुखिवशेष
Hवग& और िवषय तृ‘णा मO फं स कर दुःखिवशेष भोग करना नरक कहाता है।
‘Hवः’ सुख का नाम है। ‘Hवः सुखं ग¸छित यिHमन् स Hवग&ः’ ‘अतो िवपरीतो
दुःखभोगो नरक इित’ जो सांसाWरक सुख है वह सामा3य Hवग& और जो परमे5र
कR 'ािƒ से आन3द है वही िवशेष Hवग& कहाता है। सब जीव Hवभाव से
सुख'ािƒ कR इ¸छा और दुःख का िवयोग होना चाहते ह< पर3तु जब तक धम&
नहc करते और पाप नहc छोड़ते तब तक उन को सुख का िमलना और दुःख
का छू टना न होगा। eयijक िजस का कारण अथा&त् मूल होता है वह न… कभी
नहc होता। जैस-े
िछ–े मूले वृzो नŸयित तथा पापे zीणे दुःखं नŸयित।
जैसे मूल कट जाने से वृz न… हो जाता है वैसे पाप को छोड़ने से दुःख न…
होता है। देखो! मनुHमृित मO पाप और पु‹य कR बgत 'कार कR गित-
मानसं मनसैवायमुपभु žे शुभाऽशुभम्।
वाचा वाचा कृ तं कम& कायेनैव च काियकम्।।१।।
शरीरजैः कम&दोषैया&ित Hथावरतां नरः।
वािचकै ः पिzमृगतां मानसैर3"यजाितताम्।।२।।
यो यदैषां गुणो देहे साकqयेनाितWर¸यते।
स तदा त¾गुण'ायं तं करोित शरीWरणम्।।३।।
सÓवं Xानं तमोऽXानं रागyेषौ रजःHमृतम्।
एतãािƒमदेतेषां सव&भूताि~तं वपुः।।४।।
त• य"'ीितसंयुžं jकि€दा"मिन लzयेत्।
'शा3तिमव शुZाभं सÓवं तदुपधारयेत्।।५।।
यsु दुःखसमायुžम् अ'ीितकरमा"मनः।
त¥जोऽ'ितघं िव‡ात् सततं हाWर देिहनाम्।।६।।
यsु Hया3मोहसंयुžमažं िवषया"मकम्।
अ'तeय&म् अिवXेयं तमHतद् उपधारयेत्।।७।।
•याणामिप चैतेषां गुणानां यः फलोदयः।
अ(यो म—यो जघ3यt तं 'वˆया›यशेषतः।।८।।
वेदा^यासHतपो Xानं शौचिमि3¥यिन>हः।
धम&j¦या"मिच3ता च सािÓवकं गुणलzणम्।।९।।
आर›भ˜िचताऽधै‰य&म् अस"काय&पWर>हः ।
िवषयोपसेवा चाजêं राजसं गुणलzणम्।।१०।।
लोभः Hव¹ोऽधृितः ¦ौय¶ नािHतeयं िभ–वृिsता।
यािच‘णुता 'मादt तामसं गुणलzणम्।।११।।
य"कम& कृ "वा कु व¶t कWर‘यंtैव लœित।
त°Xेयं िवदुषा सव¶ तामसं गुणलzणम्।।१२।।
येनािHम3कम&णा लोके wयाितिम¸छित पु‘कलाम्।
न च शोच"यस›पsौ तिyXेयं तु राजसम्।।१३।।
य"सव·णे¸छित Xातुं य– लœित चाचरन्।
तेन तु‘यित चा"माHय त"सÓवगुणलzणम्।।१४।।
तमसो लzणं कामो रजसH"वथ& उ¸यते।
सÓवHय लzणं धम&ः ~ै‘¯मेषां यथोsरम्।।१५।। मनु० अ० १२।।
अथा&त् मनु‘य इस 'कार अपने ~े¼, म—य और िनकृ … Hवभाव को जानकर
उsम Hवभाव का >हण; म—य और िनकृ … का "याग करे और यह भी िनtय
जाने jक यह जीव मन से िजस शुभ वा अशुभ कम& को करता है उस को मन,
वाणी से jकये को वाणी और शरीर से jकये को शरीर से अथा&त् सुख दुःख को
भोगता है।।१।।
जो नर शरीर से चोरी, पर¬ीगमन, ~े¼i को मारने आjद दु… कम& करता है
उस को Hथावर का ज3म; वाणी से jकये पाप कमŽ से पzी और मृगाjद तथा
मन से jकये दु… कमŽ से चा‹डाल आjद का शरीर िमलता है।।२।।
जो गुण इन जीवi के देह मO अिधकता से वs&ता है वह गुण उस जीव को अपने
सदृश कर देता है।।३।।
जब आ"मा मO Xान हो तब सÓव; जब अXान रहे तब तम; और जब राग yेष
मO आ"मा लगे तब रजोगुण जानना चािहये। ये तीन 'कृ ित के गुण सब संसारHथ
पदाथŽ मO aाƒ हो कर रहते ह<।।४।।
उस का िववेक इस 'कार करना चािहये jक जब आ"मा मO 'स–ता मन 'स–
'शा3त के सदृश शुZभानयुž वs· तब समभफ़ना jक सÓवगुण 'धान और
रजोगुण तथा तमोगुण अ'धान ह<।।५।।
जब आ"मा और मन दुःखसंयुž 'स–तारिहत िवषय मO इधर उधर गमन
आगमन मO लगे तब समभफ़ना jक रजोगुण 'धान, सÓवगुण और तमोगुण
अ'धान है।।६।।
जब मोह अथा&त् सांसाWरक पदाथŽ मO फं सा gआ आ"मा और मन हो, जब आ"मा
और मन मO कु छ िववेक न रहै; िवषयi मO आसž तक& िवतक& रिहत जानने के
यो•य न हो; तब िनtय समभफ़ना चािहये jक इस समय मुभफ़ मO तमोगुण
'धान और सÓवगुण तथा रजोगुण अ'धान है।।७।।
अब जो इन तीनi गुणi का उsम, म—यम और िनकृ … फलोदय होता है उस को
पूण&भाव से कहते ह<।।८।।
जो वेदi का अ^यास, धमा&नु¼ान, Xान कR वृिZ, पिव•ता कR इ¸छा, इि3¥यi
का िन>ह, धम& j¦या और आ"मा का िच3तन होता है यही सÓवगुण का लzण
है।।९।।
जब रजोगुण का उदय, सÓव और तमोगुण का अ3तभा&व होता है तब आर›भ
मO ˜िचता, धैय&-"याग, असत् कमŽ का >हण, िनर3तर िवषयi कR सेवा मO 'ीित
होती है तभी समभफ़ना jक रजोगुण 'धानता से मुभफ़ मO वs& रहा है।।१०।।
जब तमोगुण का उदय और दोनi का अ3तभा&व होता है तब अ"य3त लोभ
अथा&त् सब पापi का मूल बढ़ता, अ"य3त आलHय और िन¥ा, धै‰य& का नाश,
¦ू रता का होना, नािHतeय अथा&त् वेद और ई5र मO ~Zा का न रहना, िभ–-
िभ– अ3तःकरण कR वृिs और एका>ता का अभाव िजस jकसी से याचना
अथा&त् मांगना, 'माद अथा&त् म‡पानाjद दु… aसनi मO फं सना होवे तब
समभफ़ना jक तमोगुण मुझ मO बढ़ कर वs&ता है।।११।।
यह सब तमोगुण का लzण िवyान् को जानने यो•य है तथा जब अपना आ"मा
िजस कम& को करके करता gआ और करने कR इ¸छा से लœा, शंका और भय
को 'ाƒ होवे तब जानो jक मुभफ़ मO 'वृZ तमोगुण है।।१२।।
िजस कम& से इस लोक मO जीवा"मा पु‘कल 'िसिZ चाहता, दWर¥ता होने मO
भी चारण, भाट आjद को दान देना नहc छोड़ता तब समभफ़ना jक मुभफ़ मO
रजोगुण 'बल है।।१३।।
और जब मनु‘य का आ"मा सब से जानने को चाहै, गुण >हण करता जाय,
अ¸छे कमŽ मO लœा न करे और िजस कम& से आ"मा 'स– होवे अथा&त्
धमा&चरण मO ही ˜िच रहे तब समझना jक मुझ मO सÓवगुण 'बल है।।१४।।
तमोगुण का लzण काम, रजोगुण का अथ&सं>ह कR इ¸छा और सÓवगुण का
लzण धम&सेवा करना है पर3तु तमोगुण से रजोगुण और रजोगुण से सÓवगुण
~े¼ है।।१५।।
इसी 'कार सÓव, रज और तमोगुण युž वेग से िजस-िजस 'कार का कम& जीव
करता है उस-उस को उसी-उसी 'कार फल 'ाƒ होता है। जो मुž होते ह< वे
गुणातीत अथा&त् सब गुणi के Hवभावi मO न फं सकर महायोगी होके मुिž का
साधन करO । eयijक-
योगिtsवृिsिनरोधः।।१।।
तदा ¥…ु ः Hव’पेऽवHथानम्।।२।। -ये योगशा¬ पातÅल के सू• ह<।
मनु‘य रजोगुण, तमोगुण युž कमŽ से मन को रोक शुZ सÓवगुणयुž हो
एका> अथा&त् एक परमा"मा और धम&युž कम& इनके अ>भाग मO िचs का
ठहरा रखना िन˜Z अथा&त् सब ओर से मन कR वृिs को रोकना।।१।।
जब िचs एका> और िन˜Z होता है तब सब के ¥…ा ई5र के Hव’प मO
जीवा"मा कR िHथित होती है।।२।। इ"याjद साधन मुिž के िलये करे । और-
अथ ि•िवधदुःखा"य3तिनवृिsर"य3तपु˜षाथ&ः।। यह सांwय का सू• है।
जो आ—याि"मक अथा&त् शरीर स›ब3धी पीड़ा, आिधभौितक जो दूसरे 'ािणयi
से दुःिखत होना, आिधदैिवक जो अितवृि…, अितताप, अितशीत, मन इि3¥यi
कR च €लता से होता है; इस ि•िवध दुःख को छु ड़ा कर मुिž पाना अ"य3त
पु˜षाथ& है।
इसके आगे आचार अनाचार और भˆयाभˆय का िवषय िलखOगे।।९।।
इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमकृ ते स"याथ&'काशे
सुभाषािवभूिषते िव‡ाऽिव‡ाब3धमोzिवषये
नवमः समुqलासः स›पूण&ः।।९।।
अथ दशमसमुqलासार›भः
अथाऽऽचाराऽनाचारभˆयाऽभˆयिवषयान् aाwयाHयामः
अब जो धम&युž कामi का आचरण, सुशीलता, स"पु˜षi का संग और सिy‡ा
के >हण मO ˜िच आjद आचार और इन से िवपरीत अनाचार कहाता है; उस
को िलखते ह<-
िवyिÐः सेिवतः सिÐि◌न&"यमyेषरािगिभः।
Æदयेना^यनुXातो यो धम&Hति–बोधत।।१।।
कामा"मता न 'शHता न चैवेहाH"यकामता।
का›यो िह वेदािधगमः कम&योगt वैjदकः।।२।।
संकqपमूलः कामो वै यXाः संकqपस›भवाः।
Ëतािन यमधमा&t सव· संकqपजाः Hमृताः।।३।।
अकामHय j¦या कािचद् दृŸयते नेह jकह&िचत्।
य‡िZ कु ˜ते jकि€त् तs"कामHय चेि…तम्।।४।।
वेदोऽिखलो धम&मूलं Hमृितशीले च तिyदाम्।
आचारtैव साधूनामा"मनHतुि…रे व च।।५।।
सव&3तु समवेˆयेदं िनिखलं Xानचzुषा।
~ुित'ामा‹यतो िवyान् Hवधम· िनिवशेत वै।।६।।
~ुितHमृ"युjदतं धम&मनुित¼न् िह मानवः।
इह कRि◌s&मवा¹ोित 'े"य चानुsमं सुखम्।।७।।८।।
योऽवम3येत ते मूले हेतुशा¬~याद् िyजः।
स साधुिभब&िह‘कायª नािHतको वेदिन3दकः।।९।।
वेदः Hमृितः सदाचारः HवHय च ि'यमा"मनः।
एत0तुि◌व&धं 'ाgः साzाZम&Hय लzणम्।।१०।।
अथ&कामे‘वसžानां धम&Xानं िवधीयते।
धम¶ िजXासमानानां 'माणं परमं ~ुितः।।११।।
वैjदकै ः कम&िभः पु‹यैि◌न&षेकाjदि◌y&ज3मनाम्।
का‰य&ः शरीरसंHकारः पावनः 'े"य चेह च।।१२।।
के शा3तः षोडशे वष· {ा|णHय िवधीयते।
राज3यब3धोyा&िवशे वैŸयHय ãिधके ततः।।१३।। मनु० अ० २।।
मनु‘यi को सदा इस बात पर —यान रखना चािहये jक िजस का सेवन
रागyेषरिहत िवyान् लोग िन"य करO ; िजस को Æदय अथा&त् आ"मा से स"य
कs&a जानO, वही धम& माननीय और करणीय है।।१।।
eयijक इस संसार मO अ"य3त कामा"मता और िन‘कामता ~े¼ नहc है।
वेदाथ&Xान और वेदोž कम& ये सब कामना ही से िसZ होते ह<।।२।।
जो कोई कहे jक म< िनWर¸छ और िन‘काम •ं वा हो जाऊँ तो वह कभी नहc हो
सकता eयijक सब काम अथा&त् यX, स"यभाषणाjद Ëत, यम िनयम’पी धम&
आjद संकqप ही से बनते ह<।।३।।
eयijक जो-जो हHत, पाद, ने•, मन आjद चलाये जाते ह< वे सब कामना ही से
चलते ह<। जो इ¸छा न हो तो आंख का खोलना और मीचना भी नहc हो
सकता।।४।।
इसिलये स›पूण& वेद, मनुHमृित तथा ऋिष'णीत शा¬, स"पु˜षi का आचार
और िजस-िजस कम& मO अपना आ"मा 'स– रहे अथा&त् भय, शंका, लœा िजस
मO न हi उन कमŽ का सेवन करना उिचत है। देखो! जब कोई िम•याभाषण,
चोरी आjद कR इ¸छा करता है तभी उस के आ"मा मO भय, शंका, लœा अवŸय
उ"प– होती है इसिलये वह कम& करने यो•य नहc।।५।।
मनु‘य स›पूण& शा¬, वेद, स"पु˜षi का आचार, अपने आ"मा के अिव˜Z अ¸छे
'कार िवचार कर Xानने• करके ~ुित-'माण से Hवा"मानुकूल धम& मO 'वेश
करे ।।६।।
eयijक जो मनु‘य वेदोž धम& और जो वेद से अिव˜Z Hमृ"युž धम& का
अनु¼ान करता है वह इस लोक मO कR“त और मरके सवªsम सुख को 'ाƒ होता
है।।७।।
~ुित वेद और Hमृित धम&शा¬ को कहते ह<। इन से सब कs&aाकs&a का
िनtय करना चािहये।।८।।
जो कोई मनु‘य वेद और वेदानुकूल आƒ>3थi का अपमान करे उस को ~े¼
लोग जाितबाÉ कर दO। eयijक जो वेद कR िन3दा करता है वही नािHतक
कहाता है।।९।।
इसिलये वेद, Hमृित, स"पु˜षi का आचार और अपने आ"मा के Xान से अिव˜Z
ि'याचरण, ये चार धम& के लzण अथा&त् इ3हc से धम& लिzत होता है।।१०।।
पर3तु जो ¥ai के लोभ और काम अथा&त् िवषयसेवा मO फं सा gआ नहc होता
उसी को धम& का Xान होता है। जो धम& को जानने कR इ¸छा करO उनके िलये
वेद ही परम 'माण है।।११।।
इसी से सब मनु‘यi को उिचत है jक वेदोž पु‹य’प कमŽ से {ा|ण, zि•य,
वैŸय अपने स3तानi का िनषेकाjद संHकार करO । जो इस ज3म वा परज3म मO
पिव• करने वाला है।।१२।।
{ा|ण के सोलहवO, zि•य के बाईसवO और वैŸय के चौबीसवO वष& मO के शा3त
कम& और मु‹डन हो जाना चािहये अथा&त् इस िविध के पtात् के वल िशखा को
रख के अ3य डाढ़ी मूँछ और िशर के बाल सदा मुंडवाते रहना चािहये अथा&त्
पुनः कभी न रखना और जो शीत'धान देश हो तो कामचार है; चाहै िजतने
के श रeखे और जो अित उ‘ण देश हो तो सब िशखा सिहत छेदन करा देना
चािहये eयijक िशर मO बाल रहने से उ‘णता अिधक होती है और उससे बुिZ
कम हो जाती है। डाढ़ी मूँछ रखने से भोजन पान अ¸छे 'कार नहc होता और
उि¸छ… भी बालi मO रह जाता है।।१३।।
इि3¥याणां िवचरतां िवषये‘वपहाWरषु।
संयमे य¢माित¼ेिyyान् य3तेव वािजनाम्।।१।।
इि3¥याणां 'संगेन दोषमृ¸छ"यसंशयम्।
सि–य›य तु ता3येव ततः िसिZ िनय¸छित।।२।।
न जातु कामः कामानामुपभोगेन शा›यित।
हिवषा कृ ‘णव"म·व भूय एवािभवZ&ते।।३।।
वेदाH"यागt यXाt िनयमाt तपांिस च।
न िव'दु…भावHय िसिZ ग¸छि3त jकह&िचत्।।४।।
वशे कृ "वेि3¥य>ामं संय›य च मनHतथा।
सवा&न् संसाधयेदथा&निz‹वन् योगतHतनुम्।।५।।
~ु"वा Hपृ…वा च दृ‘ßवा च भुe"वा Îा"वा च यो नरः।
न Æ‘यित •लायित वा स िवXेयो िजतेि3¥यः।।६।।
नापृ…ः कHयिचद् {ूया– चा3यायेन पृ¸छतः।
जान–िप िह मेधावी जडवqलोक आचरे त्।।७।।
िवsं ब3धुव&यः कम& िव‡ा भवित प€मी।
एतािन मा3यHथानािन गरीयो य‡दुsरम्।।८।।
अXो भवित वै बालः िपता भवित म3•दः।
अXं िह बालिम"याgः िपते"येव तु म3•दम्।।९।।
न हायनैन& पिलतैन& िवsेन न ब3धुिभः।
ऋषयtj¦रे धम¶ योऽनूचानः स नो महान्।।१०।।
िव'ाणां Xानतो °यै‘¯ं zि•याणां तु वीय&तः।
वैŸयानां धा3यधनतः शू¥ाणामेव ज3मतः।।११।।
न तेन वृZो भवित येनाHय पिलतं िशरः।
यो वै युवाÊयधीयानHतं देवाः Hथिवरं िवदुः।।१२।।
यथा का¼मयो हHती यथा चम&मयो मृगः।
यt िव'ोऽनधीयान¬यHते नाम िब±ित।।१३।।
अिहसयैव भूतानां काय¶ ~ेयोऽनुशासनम्।
वाÀफ़ चैव मधुरा ºˆणा 'यो°या धम&िम¸छता।।१४।। मनु० अ० २।।
मनु‘य का यही मुwय आचार है jक जो इि3¥यां िचs का हरण करने वाले
िवषयi मO 'वृs कराती ह< उन को रोकने मO 'य¢ करे । जैसे घोड़i को सारिथ
रोक कर शुZ माग& मO चलाता है इस 'कार इन को अपने वश मO करके
अधम&माग& से हटा के धम&माग& मO सदा चलाया करे ।।१।।
eयijक इि3¥यi को िवषयासिž और अधम& मO चलाने से मनु‘य िनिtत दोष
को 'ाƒ होता है और जब इन को जीत कर धम& मO चलाता है तभी अभी…
िसिZ को 'ाƒ होता है।।२।।
यह िनtय है jक जैसे अि« मO इ3धन और घी डालने से बढ़ता जाता है वैसे ही
कामi के उपभोग से काम शा3त कभी नहc होता jक3तु बढ़ता ही जाता है।
इसिलये मनु‘य को िवषयासž कभी न होना चािहये।।३।।
जो अिजतेि3¥य पु˜ष है उसको ‘िव'दु…’ कहते ह<। उस के करने से न वेदXान,
न "याग, न यX, न िनयम और न धमा&चरण िसिZ को 'ाƒ होते ह< jक3तु ये
सब िजतेि3¥य धा“मक जन को िसZ होते ह<।।४।।
इसिलये पांच कम& पांच Xानेि3¥य और •यारहवO मन को अपने वश मO करके
युžाहार िवहार योग से शरीर कR रzा करता gआ सब अथŽ को िसZ
करे ।।५।।
िजतेि3¥य उस को कहते ह< जो Hतुित सुन के हष& और िन3दा सुन के शोक;
अ¸छा Hपश& करके सुख और दु… Hपश& से दुःख, सु3दर ’प देख के 'स– और
दु… ’प देख के अ'स–, उsम भोजन करके आनि3दत और िनकृ … भोजन करके
दुःिखत, सुग3ध मO ˜िच और दुग&3ध मO अ˜िच नहc करता है।।६।। कभी िवना
पूछे वा अ3याय से पूछने वाले को jक जो कपट से पूछता हो उस को उsर न
देवे। उन के सामने बुिZमान् जड़ के समान रहO। हां! जो िन‘कपट और िजXासु
हi उन को िवना पूछे भी उपदेश करे ।।७।।
एक धन, दूसरे ब3धु कु टु ›ब कु ल, तीसरी अवHथा, चौथा उsम कम& और पांचवc
~े¼ िव‡ा ये पांच मा3य के Hथान ह<। पर3तु धन से उsम ब3धु, ब3धु से अिधक
अवHथा, अवHथा से ~े¼ कम& और कम& से पिव• िव‡ा वाले उsरोsर अिधक
माननीय ह<।।८।।
eयijक चाहै सौ वष& का भी हो पर3तु जो िव‡ा िवXानरिहत है वह बालक
और जो िव‡ा िवXान का दाता है उस बालक को भी वृZ मानना चािहये।
eयijक सब शा¬ आƒ िवyान् अXानी को बालक और Xानी को िपता कहते
ह<।।९।।
अिधक वषŽ के बीतने, 5ेत बाल के होने, अिधक धन से और बड़े कु टु ›ब के
होने से वृZ नहc होता। jक3तु ऋिष महा"माu का यही िनtय है jक जो
हमारे बीच मO िव‡ा िवXान मO अिधक है; वही वृZ पु˜ष कहाता है।।१०।।
{ा|ण Xान से, zि•य बल से, वैŸय धनधा3य से और शू¥ ज3म अथा&त् अिधक
आयु से वृZ होता है।।११।।
िशर के बाल 5ेत होने से बु+ा नहc होता jक3तु जो युवा िव‡ा पढ़ा gआ है
उसी को िवyान् लोग बड़ा जानते ह<।।१२।।
और जो िव‡ा नहc पढ़ा है वह जैसा का¼ का हाथी; चमड़े का मृग होता है
वैसा अिवyान् मनु‘य जगत् मO नाममा• मनु‘य कहाता है।।१३।।
इसिलये िव‡ा पढ़, िवyान् धमा&"मा होकर िनवÄरता से सब 'ािणयi के कqयाण
का उपदेश करे । और उपदेश मO वाणी मधुर और कोमल बोले। जो स"योपदेश
से धम& कR वृिZ और अधम& का नाश करते ह< वे पु˜ष ध3य ह<।।१४।।
िन"य Èान, व¬, अ–, पान, Hथान सब शुZ रeखे eयijक इन के शुZ होने मO
िचs कR शुिZ और आरो•यता 'ाƒ होकर पु˜षाथ& बढ़ता है। शौच उतना
करना यो•य है jक िजतने से मल दुग&3ध दूर हो जाये।
आचारः परमो धम&ः ~ु"युžः Hमाs& एव च।। मनु०।।
जो स"यभाषणाjद कमŽ का आचरण करना है वही वेद और Hमृित मO कहा gआ
आचार है।
मा नो वधीः िपतरं मोत मातरम् ।
आचा‰य& उपनयमानो {|चाWरणिम¸छते ।।
मातृदव
े ो भव। िपतृदव
े ो भव। आचा‰य&दव
े ो भव। अितिथदेवो भव।।
-तैिनरीन।।
माता, िपता, आचा‰य& और अितिथ कR सेवा करना देवपूजा कहाती है। और
िजस-िजस कम& से जगत् का उपकार हो वह-वह कम& करना और हािनकारक
छोड़ देना ही मनु‘य का मुwय कs&a कम& है। कभी नािHतक, ल›पट,
िव5ासघाती, चोर, िम•यावादी, HवाथŠ, कपटी, छली आjद दु… मनु‘यi का
संग न करे । आƒ जो स"यवादी धमा&"मा परोपकारि'य जन ह< उनका सदा संग
करने ही का नाम ~े¼ाचार है।
('-) आया&वs& देशवािसयi का आया&वs& देश से िभ–-िभ– देशi मO जाने से
आचार न… हो जाता है वा नहc?
(उsर) यह बात िम•या है। eयijक जो बाहर भीतर कR पिव•ता करनी,
स"यभाषणाjद आचरण करना है वह जहाँ कहc करे गा आचार और धम&±…
कभी न होगा। और जो आ‰या&वs& मO रह कर भी दु…ाचार करे गा वही धम& और
आचार±… कहावेगा। जो ऐसा ही होता तो-
मेरोह&रेt yे वष· वष¶ हैमवतं ततः।
¦मेणैव aित¦›य भारतं वष&मासदत्।।१।।
स देशान् िविवधान् पŸयंtीन•णिनषेिवतान् ।।२।।
ये ºोक महाभारत शाि3तपव& मोzधम& मO aास-शुक-संवाद मO ह<।
अथा&त् एक समय aास जी अपने पु• शुक और िश‘य सिहत पाताल अथा&त्
िजस को इस समय ‘अमेWरका’ कहते ह<; उस मO िनवास करते थे। शुकाचा‰य& ने
िपता से एक '- पूछा jक आ"मिव‡ा इतनी ही है वा अिधक ? aास जी ने
जानकर उस बात का '"युsर न jदया eयijक उस बात का उपदेश कर चुके
थे। दूसरे कR साzी के िलये अपने पु• शुक से कहा jक हे पु•! तू िमिथलापुरी
मO जाकर यही '- जनक राजा से कर। वह इस का यथायो•य उsर देगा। िपता
का वचन सुन कर शुकाचा‰य& पाताल से िमिथलापुरी कR ओर चले। 'थम मे˜
अथा&त् िहमालय से ईशान उsर और वायa jदशा मO जो देश बसते ह< उन का
नाम हWरवष& था। अथा&त् हWर कहते ह< ब3दर को, उस देश के मनु‘य अब भी
रžमुख अथा&त् वानर के समान भूरे ने• वाले होते ह<। िजन देशi का नाम इस
समय ‘यूरोप’ है उ3हc को संHकृ त मO ‘हWरवष&’ कहते थे। उन देशi को देखते gए
और िजन को •ण ‘य•दी’ भी कहते ह< उन देशi को देख कर चीन मO आये। चीन
से िहमालय और िहमालय से िमिथलापुरी को आये। और ~ीकृ ‘ण तथा अजु&न
पाताल मO अ5तरी अथा&त् िजस को अि«यान नौका कहते ह<; पर बैठ के पाताल
मO जाके महाराजा युिधि¼र के यX मO उÖालक ऋिष को ले आये थे। धृतराî
का िववाह गा3धार िजस को ‘क3धार’ कहते ह< वहc कR राजपु•ी से gआ। मा¥ी
पा‹डु कR ¬ी ‘ईरान’ के राजा कR क3या थी। और अजु&न का िववाह पाताल मO
िजस को ‘अमेWरका’ कहते ह< वहां के राजा कR लड़कR उलोपी के साथ gआ था।
जो देशदेशा3तर, yीप-yीपा3तर मO न जाते होते तो ये सब बातO eयi कर हो
सकतc ? मनुHमृित मO जो समु¥ मO जाने वाली नौका पर कर लेना िलखा है
वह भी आ‰या&वs& से yीपा3तर मO जाने के कारण है। और जब महाराजा
युिधि¼र ने राजसूय यX jकया था उस मO सब भूगोल के राजाu को बुलाने
को िनम3•ण देने के िलये भीम, अजु&न, नकु ल और सहदेव चारi jदशाu मO
गये थे, जो दोष मानते होते तो कभी न जाते। सो 'थम आ‰या&वs&दश े ीय लोग
aापार, राजका‰य& और ±मण के िलये सब भूगोल मO घूमते थे। और जो
आजकल छू तछात और धम&न… होने कR शंका है वह के वल मूखŽ के बहकाने
और अXान बढ़ने से है।
जो मनु‘य देशदेशा3तर और yीपyीपा3तर मO जाने आने मO शंका नहc करते वे
देशदेशा3तर के अनेकिवध मनु‘यi के समागम, रीित भांित देखने, अपना रा°य
और aवहार बढ़ाने से िनभ&य शूरवीर होने लगते और अ¸छे aवहार का >हण
बुरी बातi के छोड़ने मO त"पर होके बड़े ऐ5य& को 'ाƒ होते ह<। भला जो
महा±… ›ले¸छकु लो"प– वेŸया आjद के समागम से आचार±… धम&हीन नहc
होते jक3तु देशदेशा3तर के उsम पु˜षi के साथ समागम मO छू त और दोष
मानते ह<!!! यह के वल मूख&ता कR बात नहc तो eया है ? हाँ, इतना कारण तो
है jक जो लोग मांसभzण और म‡पान करते ह< उन के शरीर और वी‰या&jद
धातु भी दुग&3धाjद से दूिषत होते ह< इसिलये उनके संग करने से आ‰यŽ को भी
ये कु लzण न लग जायO यह तो ठीक है। पर3तु जब इन से aवहार और
गुण>हण करने मO कोई भी दोष वा पाप नहc है jक3तु इन के म‡पानाjद दोषi
को छोड़ गुणi को >हण करO तो कु छ भी हािन नहc। जब इन के Hपश& और देखने
से भी मूख& जन पाप िगनते ह< इसी से उन से युZ कभी नहc कर सकते eयijक
युZ मO उन को देखना और Hपश& होना अवŸय है। सœन लोगi को राग, yेष
अ3याय िम•याभाषणाjद दोषi को छोड़ िनवÄर 'ीित परोपकार सœनताjद
का धारण करना उsम आचार है। और यह भी समभफ़ लO jक धम& हमारे आ"मा
और कs&a के साथ है। जब हम अ¸छे काम करते ह< तो हम को देशदेशा3तर
और yीपyीपा3तर जाने मO कु छ भी दोष नहc लग सकता। दोष तो पाप के काम
करने मO लगते ह<। हां, इतना अवŸय चािहये jक वेदोž धम& का िनtय और
पाख‹डमत का ख‹डन करना अवŸय सीख लO। िजस से कोई हम को भफ़ू ठा
िनtय न करा सके । eया िवना देशदेशा3तर और yीपyीपा3तर मO रा°य वा
aापार jकये Hवदेश कR उ–ित कभी हो सकती है? जब Hवदेश ही मO Hवदेशी
लोग aवहार करते और परदेशी Hवदेश मO aवहार वा रा°य करO तो िवना
दाWरí और दुःख के दूसरा कु छ भी नहc हो सकता।
पाख‹डी लोग यह समझते ह< jक जो हम इन को िव‡ा पढ़ावOगे और
देशदेशा3तर मO जाने कR आXा देवOगे तो ये बुिZमान् होकर हमारे पाख‹ड-
जाल मO न फं सने से हमारी 'ित¼ा और जीिवका न… हो जावेगी। इसीिलये
भोजन छादन मO बखेड़ा डालते ह< jक वे दूसरे देश मO न जा सकO । हां, इतना
अवŸय चािहये jक म‡, मांस का >हण कदािप भूल कर भी न करO । eया सब
बुिZमानi ने यह िनtय नहc jकया है jक जो राजपु˜षi मO युZ- समय मO भी
चौका लगा कर रसोई बना के खाना अवŸय पराजय का हेतु है ? jक3तु zि•य
लोगi का युZ मO एक हाथ से रोटी खाते, जल पीते जाना और दूसरे हाथ से
श•ुu को घोड़े, हाथी, रथ पर चढ़ वा पैदल होके मारते जाना अपना िवजय
करना ही आचार और परािजत होना अनाचार है। इसी मूढ़ता से इन लोगi ने
चौका लगाते-लगाते िवरोध करते कराते, सब Hवात3ûय, आन3द, धन, रा°य,
िव‡ा और पु˜षाथ& पर चौका लगा कर हाथ पर हाथ धरे बैठे ह< और इ¸छा
करते ह< jक कु छ पदाथ& िमले तो पका कर खावO। पर3तु वैसा न होने पर जानो
सब आया&वs& देश भर मO चौका लगा के सव&था न… कर jदया है। हां! जहां
भोजन करO उस Hथान को धोने, लेपन करने, भफ़ाड़ू लगाने, कू ड़ा कक& ट दूर
करने मO 'य¢ अवŸय करना चािहये न jक मुसलमान वा ईसाइयi के समान
±… पाकशाला करना।
('-) सखरी िनखरी eया है?
(उsर) सखरी जो जल आjद मO अ– पकाये जाते और जो घी दूध मO पकाते ह<
वह िनखरी अथा&त् चोखी। यह भी इन धूतŽ का चलाया gआ पाख‹ड है eयijक
िजस मO घी दूध अिधक लगे उस को खाने मO Hवाद और उदर मO िचकना पदाथ&
अिधक जावे इसिलये यह 'प € रचा है। नहc तो जो अि« वा काल से पका
gआ पदाथ& पÙा और न पका gआ क0ा है। जो पÙा खाना और क0ा न खाना
है यह भी सव&• ठीक नहc। eयijक चणे आjद क0े भी खाये जाते ह<।
('-) िyज अपने हाथ से रसोई बना के खावO वा शू¥ के हाथ कR बनाई खावO?
(उsर) शू¥ के हाथ कR बनाई खावO eयijक {ा|ण, zि•य और वैŸय वण&Hथ
¬ी पु˜ष िव‡ा पढ़ाने, रा°यपालने और पशुपालन खेती और aापार के काम
मO त"पर रह< और शू¥ के पा• मO तथा उस के घर का पका gआ अ– आप"काल
के िवना न खावO। सुनो 'माण-
आया&िधि¼ता वा शू¥ाः संHकsा&रः Hयुः । -यह आपHत›ब का सू• है। आयŽ के घर
मO शू¥ अथा&त् मूख& ¬ी पु˜ष पाकाjद सेवा करO पर3तु वे शरीर व¬ आjद से
पिव• रह<। आयŽ के घर मO जब रसोई बनावO तब मुख बांध के बनावO, eयijक
उनके मुख से उि¸छ… और िनकला gआ 5ास भी अ– मO न पड़े। आठवO jदन
zौर, नख¸छेदन करावO। Èान करके पाक बनाया करO । आयŽ को िखला के आप
खावO।
('-) शू¥ के छु ए gए पके अ– के खाने मO जब दोष लगाते ह< तो उस के हाथ
का बनाया कै से खा सकते ह<?
(उsर) यह बात कपोलकिqपत भफ़ू ठी है। eयijक िज3हiने गुड़, चीनी, घृत,
दूध, िपशान, शाक, फल, मूल खाया उ3हiने जानो सब जगत् भर के हाथ का
बनाया और उि¸छ… खा िलया। eयijक जब शू¥, चमार, भंगी, मुसलमान,
ईसाई आjद लोग खेतi मO से ईख को काटते, छीलते, पीलकर रस िनकालते ह<
तब मलमू•े"सग& करके उ3हc िवना धोये हाथi से छू ते, उठाते, धरते आधा सांठा
चूँस रस पीके आधा उसी मO डाल देते और रस पकाते समय उस रस मO रोटी
भी पकाकर खाते ह<। जब चीनी बनाते ह< तब पुराने जूते jक िजस के तले मO
िव¼ा, मू•, गोबर, धूली लगी रहती है उ3हc जूतi से उस को रगड़ते ह<। दूध मO
अपने घर के उि¸छ… पा•O का जल डालते उसी मO घृताjद रखते और आटा
पीसते समय भी वैसे ही उि¸छ… हाथi से उठाते और पसीना भी आटे मO टपकता
जाता है इ"याjद और फल मूल क3द मO भी ऐसी ही लीला होती है। जब इन
पदाथŽ को खाया तो जानो सब के हाथ का खा िलया।
('-) फल, मूल, क3द और रस इ"याjद अदृ… मO दोष नहc मानते?
(उsर) अ¸छा तो भंगी वा मुसलमान अपने हाथi से दूसरे Hथान मO बनाकर
तुम को आके देवे तो खा लोगे वा नहc? जो कहो jक नहc तो अदृ… मO भी दोष
है। हां! मुसलमान, ईसाई आjद म‡ मांसाहाWरयi के हाथ के खाने मO आयŽ को
भी म‡, मांसाjद खाना पीना अपराध पीछे लग पड़ता है पर3तु आपस मO
आयŽ का एक भोजन होने मO कोई भी दोष नहc दीखता। जब तक एक मत,
एक हािन लाभ, एक सुख दुःख परHपर न मानO तब तक उ–ित होना बgत
कWठन है। पर3तु के वल खाना पीना ही एक होने से सुधार नहc हो सकता jक3तु
जब तक बुरी बातO नहc छोड़ते और अ¸छी बातO नहc करते तब तक बढ़ती के
बदले हािन होती है। िवदेिशयi के आया&वs& मO रा°य होने के कारण आपस कR
फू ट, मतभेद, {|चय& का सेवन न करना; िव‡ा न पढ़ना पढ़ाना वा
बाqयावHथा मO अHवयंवर िववाह, िवषयासिž, िम•याभाषणाjद कु लzण,
वेदिव‡ा का अ'चार आjद कु कम& ह<। जब आपस मO भाई-भाई लड़ते ह< तभी
तीसरा िवदेशी आकर प€ बन बैठता है। eया तुम लोग महाभारत कR बातO
जो पांच सहê वष& के पहले gई थc उन को भी भूल गये ? देखो! महाभारत
युZ मO सब लोग लड़ाई मO सवाWरयi पर खाते पीते थे, आपस कR फू ट से कौरव
पा‹डव और यादवi का स"यानाश हो गया सो तो हो गया पर3तु अब तक भी
वही रोग पीछे लगा है। न जाने यह भयंकर राzस कभी छू टेगा वा आयŽ को
सब सुखi से छु ड़ाकर दुःखसागर मO डु बा मारे गा ? उसी दु… दुयªधन गो•-
ह"यारे , Hवदेशिवनाशक, नीच के दु… माग& मO आय& लोग अब तक भी चल कर
दुःख बढ़ा रहे ह<। परमे5र कृ पा करे jक यह राजरोग हम आयŽ मO से न… हो
जाय।
भˆयाभˆय दो 'कार का होता है। एक धम&शा¬ेž दूसरा वै‡कशा¬ेž।
जैसे धम&शा¬ मO-
अभˆयािण िyजातीनाममे—य'भवािण च।। मनु०।।
िyज अथा&त् {ा|ण, zि•य, वैŸय और शू¥i को मलीन िव¼ा मू•jद के संसग&
से उ"प– gए शाक फल मूलाjद न खाना।
वज&ये3मधुमांसं च।। मनु०।।
जैसे अनेक 'कार के म‡, गांजा, भांग, अफRम आjद-
बुिZ लु›पित यद् ¥aं मदकारी तदु¸यते।।
जो-जो बुिZ का नाश करने वाले पदाथ& ह< उन का सेवन कभी न करO और
िजतने अ– सड़े, िबगड़े दुग&3धाjद से दूिषत, अ¸छे 'कार न बने gए और म‡,
मांसाहारी ›ले¸छ jक िजन का शरीर म‡, मांस के परमाणुu ही से पूWरत है
उनके हाथ का न खावO। िजस मO उपकारक 'ािणयi कR िहसा अथा&त् जैसे एक
गाय के शरीर से दूध, घी, बैल, गाय उ"प– होने से एक पीढ़ी मO चार लाख
पचहsर सहê छः सौ मनु‘यi को सुख पgंचता है वैसे पशुu को न मारO ; न
मारने दO। जैसे jकसी गाय से बीस सेर और jकसी से दो सेर दूध 'ितjदन होवे
उस का म—यभाग •यारह सेर '"येक गाय से दूध होता है। कोई गाय अठारह
और कोई छः महीने दूध देती है, उस का भी म—य भाग बारह महीने gए। अब
'"येक गाय के ज3म भर के दूध से २४९६० (चौबीस सहê नौ सौ साठ) मनु‘य
एक बार मO तृƒ हो सकते ह<। उसके छः बिछयां छः बछड़े होते ह< उन मO से दो
मर जायO तो भी दश रहे।
उनमO से पांच बछिड़यi के ज3म भर के दूध को िमला कर १२४८०० (एक
लाख चौबीस सहê आठ सौ) मनु‘य तृƒ हो सकते ह<। अब रहे पांच बैल, वे
ज3म भर मO ५००० (पांच सहê) मन अ– 3यून से 3यून उ"प– कर सकते ह<।
उस अ– मO से '"येक मनु‘य तीन पाव खावे तो अढ़ाई लाख मनु‘यi कR तृिƒ
होती है। दूध और अ– िमला कर ३७४८०० (तीन लाख चौहsर हजार आठ
सौ) मनु‘य तृƒ होते ह<। दोनi संwया िमला के एक गाय कR एक पीढ़ी मO
४७५६०० (चार लाख पचहsर सहê छः सौ) मनु‘य एक वार पािलत होते
ह< और पीढ़ी परपीढ़ी बढ़ा कर लेखा करO तो असंwयात मनु‘यi का पालन होता
है। इस से िभ– बैलगाड़ी सवारी भार उठाने आjद कमŽ से मनु‘यi के बड़े
उपकारक होते ह< तथा गाय दूध मO अिधक उपकारक होती है पर3तु जैसे बैल
उपकारक होते ह< वैसे भ<से भी ह<। पर3तु गाय के दूध घी से िजतने बुिZवृिZ से
लाभ होते ह< उतने भ<स के दूध से नहc। इससे मुwयोपकारक आयŽ ने गाय को
िगना है। और जो कोई अ3य िवyान् होगा वह भी इसी 'कार समभफ़े गा।
बकरी के दूध से २५९२० (प0ीस सहê नौ सौ बीस) आदिमयi का पालन
होता है वैसे हाथी, घोड़े, ऊंट, भेड़, गदहे आjद से भी बड़े उपकार होते ह<। इन
पशुu को मारने वालi को सब मनु‘यi कR ह"या करने वाले जािनयेगा। देखो!
जब आयŽ का रा°य था तब ये महोपकारक गाय आjद पशु नहc मारे जाते थे
। तभी आ‰या&वs& वा अ3य भूगोल देशi मO बड़े आन3द मO मनु‘याjद 'ाणी वs&ते
थे। eयijक दूध, घी, बैल आjद पशुu कR बgताई होने से अ– रस पु‘कल 'ाƒ
होते थे। जब से िवदेशी मांसाहारी इस देश मO आके गो आjद पशुu के मारने
वाले म‡पानी रा°यािधकारी gए ह< तब से ¦मशः आयŽ के दुःख कR बढ़ती
होती जाती है। eयijक-
न…े मूले नैव फलं न पु‘पम्।
जब वृz का मूल ही काट jदया जाय तो फल फू ल कहां से हi?
('-) जो सभी अिहसक हो जायO तो aाÎाjद पशु इतने बढ़ जायO jक सब गाय
आjद पशुu को मार खायO तु›हारा पु˜षाथ& ही aथ& जाय?
(उsर) यह राजपु˜षi का काम है jक जो हािनकारक पशु वा मनु‘य हi उ3हO
द‹ड देवO और 'ाण भी िवयुž कर दO।
('-) jफर eया उन का मांस फO क दO?
(उsर) चाहO फO क दO, चाहO कु sे आjद मांसाहाWरयi को िखला देवO वा जला देवO
अथवा कोई मांसाहारी खावे तो भी संसार कR कु छ हािन नहc होती jक3तु उस
मनु‘य का Hवभाव मांसाहारी होकर िहसक हो सकता है। िजतना िहसा और
चोरी िव5ासघात, छल, कपट आjद से पदाथŽ को 'ाƒ होकर भोग करना है
वह अभˆय और अिहसा धमा&jद कमŽ से 'ाƒ होकर भोजनाjद करना भˆय
है। िजन पदाथŽ से HवाH•य रोगनाश बुिZबलपरा¦मवृिZ और आयुवृिZ होवे
उन त‹डु लाjद, गोधूम, फल, मूल, क3द, दूध, घी, िम…ाjद पदाथŽ का सेवन
यथायो•य पाक मेल करके यथोिचत समय पर िमताहार भोजन करना सब
भˆय कहाता है। िजतने पदाथ& अपनी 'कृ ित से िव˜Z िवकार करने वाले ह<
िजस-िजस के िलये जो-जो पदाथ& वै‡कशा¬ मO व“जत jकये ह<, उन-उन का
सव&था "याग करना और जो-जो िजस के िलये िविहत ह< उन-उन पदाथŽ का
>हण करना यह भी भˆय है।
('-) एक साथ खाने मO कु छ दोष है वा नहc?
(उsर) दोष है। eयijक एक के साथ दूसरे का Hवभाव और 'कृ ित नहc िमलती।
जैसे कु ¼ी आjद के साथ खाने से अ¸छे मनु‘य का भी ˜िधर िबगड़ जाता है वैसे
दूसरे के साथ खाने मO भी कु छ िबगाड़ ही होता है; सुधार नहc। इसीिलये-
नोि¸छ…ं कHयिचÖ‡ा–ा‡ा0ैव तथा3तरा।
न चैवा"यशनं कु या&– चोि¸छ…ः Âिचद् Ëजेत्।। मनु०।।
न jकसी को अपना भफ़ूँ ठा पदाथ& दे और न jकसी के भोजन के बीच आप खावे।
न अिधक भोजन करे और न भोजन jकये पtात् हाथ मुख धोये िवना कहc
इधर-उधर जाय।
('-) ‘गुरो˜ि¸छ…भोजनम्’ इस वाeय का eया अथ& होगा?
(उsर) इस का यह अथ& है jक गु˜ के भोजन jकये पtात् जो पृथÀफ़ अ– शुZ
िHथत है उस का भोजन करना अथा&त् गु˜ को 'थम भोजन कराके पtात्
िश‘य को भोजन करना चािहये।
('-) जो उि¸छ…मा• का िनषेध है तो मिeखयi का उि¸छ… सहत, बछड़े का
उि¸छ… दूध और एक >ास खाने के पtात् अपना भी उि¸छ… होता है; पुनः
उन को भी न खाना चािहये।
(उsर) सहत कथनमा• ही उि¸छ… होता है पर3तु वह बgत सी औषिधयi का
सार >ाÉ; बछड़ा अपनी मां के बािहर का दूध पीता है भीतर के दूध को नहc
पी सकता, इसिलये उि¸छ… नहc पर3तु बछड़े के िपये पtात् जल से उस कR
मां का Hतन धोकर शुZ पा• मO दोहना चािहये। और अपना उि¸छ… अपने को
िवकारकारक नहc होता। देखो! Hवभाव से यह बात िसZ है jक jकसी का
उि¸छ… कोई भी न खावे। जैसे अपने मुख, नाक, कान, आंख, उपHथ और
गुÉेि3¥यi के मलमू•jद के Hपश& मO घृणा नहc होती वैसे jकसी दूसरे के मल
मू• के Hपश& मO होती है। इस से यह िसZ होता है jक यह aवहार सृि…¦म से
िवपरीत नहc है। इसिलये मनु‘यमा• को उिचत है jक jकसी का उि¸छ…
अथा&त् जूँठा न खायO।
('-) भला ¬ी पु˜ष भी परHपर उि¸छ… न खावO?
(उsर) नहc। eयijक उनके भी शरीरi का Hवभाव िभ–-िभ– है।
('-) कहो जी! मनु‘यमा• के हाथ कR कR gई रसोई उस अ– के खाने मO eया
दोष है? eयijक {ा|ण से लेके चा‹डाल पय&3त के शरीर हाड़, मांस, चमडे़
के ह< और जैसा ˜िधर {ा|ण के शरीर मO वैसा ही चा‹डाल आjद के ; पुनः
मनु‘यमा• के हाथ कR पकR gई रसोई के खाने मO eया दोष है?
(उsर) दोष है। eयijक िजन उsम पदाथŽ के खाने पीने से {ा|ण और
{ा|णी के शरीर मO दुग&3धाjद दोष रिहत रज वीय& उ"प– होता है वैसा
चा‹डाल और चा‹डाली के शरीर मO नहc। eयijक चा‹डाल का शरीर दुग&3ध
के परमाणुu से भरा gआ होता है वैसा {ा|णाjद वणŽ का नहc। इसिलये
{ा|णाjद उsम वणŽ के हाथ का खाना और चा‹डालाjद नीच भंगी चमार
आjद का न खाना। भला जब कोई तुम से पूछेगा jक जैसा चमड़े का शरीर
माता, सास, बिहन, क3या, पु•वधू का है वैसा ही अपनी ¬ी का भी है तो eया
माता आjद ि¬यi के साथ Hव¬ी के समान वतªगे? तब तुम को संकुिचत
होकर चुप ही रहना पड़ेगा। जैसे उsम अ– हाथ और मुख से खाया जाता है
वैसे दुग&3ध भी खाया जा सकता है तो eया मलाjद भी खाओगे? eया ऐसा
भी कोई हो सकता है?
('-) जो गाय के गोबर से चौका लगाते हो तो अपने गोबर से eयi नहc लगाते
? और गोबर के चौके मO जाने से चौका अशुZ eयi नहc होता?
(उsर) गाय के गोबर से वैसा दुग&3ध नहc होता जैसा jक मनु‘य के मल से। यह
िचकना होने से शीÎ नहc उखड़ता न कपड़ा िबगड़ता न मलीन होता है। जैसा
िमÝी से मैल चढ़ता है वैसा सूखे गोबर से नहc होता। मÝी और गोबर से िजस
Hथान का लेपन करते ह< वह देखने मO अितसु3दर होता है। और जहां रसोई
बनती है वहां भोजनाjद करने से घी, िम… और उि¸छ… भी िगरता है। उस से
मeखी, कRड़ी आjद बgत से जीव मिलन Hथान के रहने से आते ह<। जो उस मO
भफ़ाड़ू लेपन से शुिZ 'ितjदन न कR जावे तो जानो पाखाने के समान वह
Hथान हो जाता है। इसिलये 'ितjदन गोबर िमÝी भफ़ाड़ू से सव&था शुZ रखना।
और जो पÙा मकान हो तो जल से धोकर शुZ रखना चािहये। इस से पूवªž
दोषi कR िनवृिs हो जाती है। जैसे िमयां जी के रसोई के Hथान मO कहc कोयला,
कहc राख, कहc लकड़ी, कहc फू टी हांडी, जूंठी रके बी, कहc हाड़ गोड़ पड़े रहते
ह< और मिeखयi का तो eया कहना! वह Hथान ऐसा बुरा लगता है jक जो कोई
~े¼ मनु‘य जाकर बैठे तो उसे वा3त होने का भी स›भव है और उस दुग&3ध
Hथान के समान ही वह Hथान दीखता है। भला जो कोई इन से पूछे jक यjद
गोबर से चौका लगने मO तो तुम दोष िगनते हो पर3तु चूqहे मO क‹डे जलाने,
उस कR आग से तमाखू पीने, घर कR भीित पर लेपन करने आjद से िमयां जी
का भी चौका ±… हो जाता होगा इस मO eया स3देह!
('-) चौके मO बैठ के भोजन करना अ¸छा वा बाहर बैठ के ?
(उsर) जहां पर अ¸छा रमणीय सु3दर Hथान दीखे वहां भोजन करना चािहये।
पर3तु आवŸयक युZाjदकi मO तो घोडे़ आjद यानi पर बैठ के वा खड़े-खड़े भी
खाना पीना अ"य3त उिचत है।
('-) eया अपने ही हाथ का खाना और दूसरे के हाथ का नहc?
(उsर) जो आयŽ मO शुZ रीित से बनावे तो बराबर सब आयŽ के हाथ का खाने
मO कु छ भी हािन नहc। eयijक जो {ा|णाjद वण&Hथ ¬ी पु˜ष रसोई बनाने,
चौका देन,े वs&न भांडे मांजने आjद बखेड़i मO पड़े रह< तो िव‡ाjद शुभगुणi
कR वृिZ कभी नहc हो सके ।
देखो! महाराज युिधि¼र के राजसूय यX मO भूगोल के राजा, ऋिष, मह“ष आये
थे। एक ही पाकशाला से भोजन jकया करते थे। जब से ईसाई, मुसलमान आjद
के मतमता3तर चले; आपस मO वैर िवरोध gआ; उ3हiने म‡पान, गोमांसाjद
का खाना पीना Hवीकार jकया उसी समय से भोजनाjद मO बखेड़ा हो गया।
देखो! काबुल, क3धार, ईरान, अमेWरका, यूरोप आjद देशi के राजाu कR क3या
गा3धारी, मा¥ी, उलोपी आjद के साथ आ‰या&वs&दश े ीय राजा लोग िववाह
आjद aवहार करते थे। शकु िन आjद, कौरव पा‹डवi के साथ खाते पीते थे;
कु छ िवरोध नहc करते थे। eयijक उस समय सव& भूगोल मO वेदोž एक मत
था। उसी मO सब कR िन¼ा थी और एक दूसरे का सुख-दुःख हािन-लाभ आपस
मO अपने समान समभफ़ते थे। तभी भूगोल मO सुख था। अब तो बgत से मत
वाले होने से बgत सा दुःख िवरोध बढ़ गया है। इस का िनवारण करना
बुिZमानi का काम है।
परमा"मा सब के मन मO स"य मत का ऐसा अंकुर डाले jक िजससे िम•या मत
शीÎ ही 'लय को 'ाƒ हi। इस मO सब िवyान् लोग िवचार कर िवरोधभाव
छोड़ के अिव˜Zमत के Hवीकार से सब जने िमल कर सब के आन3द को बढ़ावO।
यह थोड़ा सा आचार अनाचार भˆयाभˆय िवषय मO िलखा।
इस >3थ का पूवा&Z & इसी दशमे समुqलास के साथ पूरा हो गया। इन समुqलासi
मO िवशेष ख‹डन-म‹डन इसिलये नहc िलखा jक जब तक मनु‘य स"यास"य के
िवचार मO कु छ भी साम•य& न बढ़ाते तब तक Hथूल और सूˆम ख‹डनi के
अिभ'ाय को नहc समझ सकते-इसिलये 'थम सब को स"य िशzा का उपदेश
करके अब उsराZ& अथा&त् िजसमO चार समुqलास ह< उन मO िवश्◌े◌ाष ख‹डन-
म‹डन िलखOगे। और पtात् चौदहवO समुqलास के अ3त मO Hवमत भी jदखलाया
जायगा। जो कोई िवशेष ख‹डन म‹डन देखना चाहO वे इन चारi समुqलासi मO
देखO। पर3तु सामा3य करके कहc-कहc दश समुqलासi मO भी कु छ थोड़ा सा
ख‹डन-म‹डन jकया है। इन चौदह समुqलासi को पzपात छोड़ 3यायदृि… से
जो देखेगा उस के आ"मा मO स"य अथ& का 'काश होकर आन3द होगा। और जो
हठ दुरा>ह और ई‘या& से देखे सुनेगा उस को इस >3थ का अिभ'ाय यथाथ&
िवjदत होना बgत कWठन है। इसिलये जो कोई इस को यथावत् न िवचारे गा
वह इस का अिभ'ाय न पाकर गोता खाया करे गा। और िवyानi का यही काम
है jक स"यास"य का िनण&य करके स"य का >हण अस"य का "याग करके परम
आनि3दत होते ह<। वे ही गुण>ाहक पु˜ष िवyान् होकर धम&, अथ&, काम और
मोz’प फलi को 'ाƒ हो कर 'स– रहते ह<।।१०।।
इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमकृ ते स"याथ&'काशे
सुभाषािवभूिषत आचारानाचारभˆयाभˆयिवषये
दशमः समुqलासः स›पूण&ः।।१०।।
समाƒोऽयं पूवा&Zः& ।।
अनुभूिमका (१)
यह िसZ बात है jक पांच सहê वषŽ के पूव& वेदमत से िभ– दूसरा कोई भी
मत न था eयijक वेदोž सब बातO िव‡ा से अिव˜Z ह<। वेदi कR अ'वृिs होने
का कारण महाभारत युZ gआ । इन कR अ'वृिs से अिव‡ाऽ3धकार के भूगोल
मO िवHतृत होने से मनु‘यi कR बुिZ ±मयुž होकर िजस के मन मO जैसा आया
वैसा मत चलाया । इन के चेलi और अ3य सब को परHपर स"याऽस"य के
िवचार करने मO अिधक पWर~म न हो इसिलए यह >3थ बनाया है । जो-जो
इस मO स"य मत का म‹डन और अस"य मत का ख‹डन िलखा है वह सब को
जनाना ही 'योजन समभफ़ा गया है । इस मO जैसी मेरी बुिZ, िजतनी िव‡ा
और िजतना इन चारi मतi के मूल >3थ देखने से बोध gआ है उस को सब के
आगे िनवेjदत कर देना म<ने उsम समभफ़ा है eयijक िवXान गुƒ gए का
पुन“मलना सहज नहc है । पzपात छोड़कर इस को देखने से स"याऽस"य मत
सब को िवjदत हो जायेगा । पtात् सब को अपनी-अपनी समभफ़ के अनुसार
स"यमत का >हण करना और अस"य मत को छोड़ना सहज होगा । इस मेरे
कम& से यjद उपकार न मानO तो िवरोध भी न करO । eयijक मेरा ता"प‰य& jकसी
कR हािन वा िवरोध करने मO नहc jक3तु स"याऽस"य का िनण&य करने कराने का
है। इसी 'कार सब मनु‘यi को 3यायदृि… से वत&ना अित उिचत है । मनु‘यज3म
का होना स"याऽस"य का िनण&य करने कराने के िलये है; न jक वादिववाद
िवरोध करने कराने के िलये। इसी मतामता3तर के िववाद से जगत् मO जो-जो
अिन… फल gए, होते ह< और आगे हiगे उन को पzपातरिहत िवyœन जान
सकते ह<। जब तक इस मनु‘य जाित मO परHपर िम•या मतमता3तर का िव˜Z
वाद न छू टेगा तब तक अ3योऽ3य को आन3द न होगा। यjद हम सब मनु‘य और
िवशेष िवyœन ई‘या& yेष छोड़ स"याऽस"य का िनण&य करके स"य का >हण
और अस"य का "याग करना कराना चाह< तो हमारे िलये यह बात असा—य नहc
है। यह िनtय है jक इन िवyानi के िवरोध ही ने सब को िवरोध-जाल मO फं सा
रखा है। यjद ये लोग अपने 'योजन मO न फं स कर सब के 'योजन को िसZ
करना चाह< तो अभी ऐeयमत हो जायO । इस के होने कR युिž इस कR पू“त मO
िलखOगे । सव&शिžमान् परमा"मा एक मत मO 'वृs होने का उ"साह सब मनु‘यi
के आ"माu मO 'कािशत करे ।
अलमितिवHतरे ण िवपिtyरिशरोमिणषु ।
उsराZ&ः
अथैकादशसमुqलासार›भः
अथाऽऽ‰या&वsŠयमतख‹डनम‹डने िवधाHयामः
अब आ‰य& लोगi के jक जो आ‰या&वs& देश मO वसने वाले ह< उन के मत का
ख‹डन तथा म‹डन का िवधान करO गे। यह आ‰या&वs& देश ऐसा देश है िजसके
सदृश भूगोल मO दूसरा कोई देश नहc है। इसीिलये इस भूिम का नाम सुवण&भूिम
है eयijक यही सुवणा&jद र¢i को उ"प– करती है। इसीिलये सृि… कR आjद मO
आ‰य& लोग इसी देश मO आकर बसे। इसिलए हम सृि…िवषय मO कह आये ह< jक
आ‰य& नाम उsम पु˜षi का है और आ‰यŽ से िभ– मनु‘यi का नाम दHयु है।
िजतने भूगोल मO देश ह< वे सब इसी देश कR 'शंसा करते और आशा रखते ह<
jक पारसमिण प"थर सुना जाता है वह बात तो भफ़ू ठी है पर3तु आ‰या&वs&
देश ही स0ा पारसमिण है jक िजस को लोहे’प दWर¥ िवदेशी छू ते के साथ ही
सुवण& अथा&त् धनाÚ हो जाते ह< ।
एतÖेश'सूतHय सकाशाद् अ>ज3मन ।
Hवं Hवं चWर•ं िशzेरन् पृिथaां सव&मानवा ।। मनु०।।
सृि… से ले के पांच सहê वषŽ से पूव& समय पय&3त आयŽ का साव&भौम च¦वतŠ
अथा&त् भूगोल मO सवªपWर एकमा• रा°य था। अ3य देशi मO मा‹डिलक अथा&त्
छोटे-छोटे राजा रहते थे eयijक कौरव पा‹डव पय&3त यहां के रा°य और
राजशासन मO सब भूगोल के सब राजा और 'जा चले थे eयijक यह मनुHमृित
जो सृि… कR आjद मO gई है उस का 'माण है । इसी आ‰या&वs& देश मO उ"प–
gए {ा|ण अथा&त् िवyानi से भूगोल के मनु‘य {ा|ण, zि•य, वैŸय, शू¥,
दHयु, ›ले¸छ आjद सब अपने-अपने यो•य िव‡ा चWर•O कR िशzा और
िव‡ा^यास करO । और महाराजा युिधि¼र जी के राजसूय यX और महाभारत
युZपय&3त यहां के रा°याधीन सब रा°य थे ।
सुनो! चीन का भगदs, अमेWरका का ब{ुवाहन, यूरोपदेश का िवडालाz
अथा&त् माजा&र के सदृश आंखवाले, यवन िजस को यूनान कह आये और ईरान
का शqय आjद सब राजा राजसूय यX और महाभारत युZ मO सब आXानुसार
आये थे। जब रघुगण राजा थे तब रावण भी यहां के आधीन था। जब रामच3¥
के समय मO िव˜Z हो गया तो उस को रामच3¥ ने द‹ड देकर रा°य से न… कर
उस के भाई िवभीषण को रा°य jदया था ।
Hवाय›भुव राजा से लेकर पा‹डवपय&3त आ‰यŽ का च¦वतŠ रा°य रहा।
त"पtात् आपस के िवरोध से लड़ कर न… हो गये eयijक इस परमा"मा कR
सृि… मO अिभमानी, अ3यायकारी, अिवyान् लोगi का रा°य बgत jदन तक
नहc चलता। और यह संसार कR Hवाभािवक 'वृिs है jक जब बgत सा धन
असंwय 'योजन से अिधक होता है तब आलHय, पु˜षाथ&रिहतता; ई‘या&, yेष,
िवषयासिž और 'माद बढ़ता है। इस से देश मO िव‡ा सुिशzा न… हो कर
दुगु&ण और दु… aसन बढ़ जाते ह<। जैसे jक म‡-मांससेवन, बाqयावHथा मO
िववाह और Hवे¸छाचाराjद दोष बढ़ जाते ह<। और जब युZिवभाग मO
युZिव‡ाकौशल और सेना इतनी बढ़े jक िजस का सामना करने वाला भूगोल
मO दूसरा न हो तब उन लोगi मO पzपात अिभमान बढ़ कर अ3याय बढ़ जाता
है। जब ये दोष हो जाते ह< तब आपस मO िवरोध हो कर अथवा उन से अिधक
दूसरे छोटे कु लi मO से कोई ऐसा समथ& पु˜ष खड़ा होता है jक उन का पराजय
करने मO समथ& होवे। जैसे मुसलमानi कR बादशाही के सामने िशवा जी,
गोिव3दिसह जी ने खड़े होकर मुसलमानi के रा°य को िछ–-िभ– कर jदया।
अथ jकमेतैवा& परे ऽ3ये महाधनुध&राt¦व“तन के िचत् सु‡ुó-
िभूर‡म्◌ुनन्◌े¥‡म्◌ुनकु वलया5यावै ना5वदध्◌्, 5ा5पितशशिव3दg
Wरt3¥ाऽ›बरीष- ननžु शया&ितयया"यनर‹याzसेनादय । अथ
म˜sभरत'भृतयो राजान ।। -मैûयुपिन०
इ"याjद 'माणi से िसZ है jक सृि… से लेकर महाभारतपय&3त च¦वतŠ
साव&भौम राजा आ‰य&कुल मO ही gए थे। अब इनके स3sानi का अभा•योदय
होने से राज±… होकर िवदेिशयi के पादा¦ा3त हो रहे ह<। जैसे यहां सु‡ुó,
भूWर‡ुó, इ3¥‡ुó, कु वलया5, यौवना5, व¾-य5, अ5पित, शशिव3दु,
हWरt3¥, अ›बरीष, ननžु , शया&ित, ययाित, अनर‹य, अzसेन, म˜s और
भरत साव&भौम सब भूिम मO 'िसZ च¦वतŠ राजाu के नाम िलखे ह< वैसे
Hवाय›भुवाjद च¦वतŠ राजाu के नाम Hप… मनुHमृित, महाभारताjद >3थi
मO िलखे ह<। इस को िम•या करना अXानी और पzपाितयi का काम है।
('-) जो आ«ेया¬ आjद िव‡ा िलखी ह< वे स"य ह< वा नहc? और तोप तथा
ब3दूक तो उस समय मO थc वा नहc?
(उsर) यह बात स0ी है। ये श¬ भी थे, eयijक पदाथ&िव‡ा से इन सब बातi
का स›भव है।
('-) eया ये देवताu के म3•O से िसZ होते थे?
(उsर) नहc। ये सब बातO िजन से अ¬ श¬O को िसZ करते थे वे ‘म3•’ अथा&त्
िवचार से िसZ करते और चलाते थे। और जो म3• अथा&त् शdदमय होता है
उस से कोई ¥a उ"प– नहc होता। और जो कोई कहे jक म3• से अि« उ"प–
होता है तो वह म3• के जप करने वाले के Æदय और िज§वा को भHम कर देवे।
मारने जाय श•ु को और मर रहे आप। इसिलये म3• नाम है िवचार का जैसा
‘राजम3•ी’ अथा&त् राजकमŽ का िवचार करने वाला कहाता है, वैसा म3•
अथा&त् िवचार से सब सृि… के पदाथŽ का 'थम Xान और पtात् j¦या करने
से अनेक 'कार के पदाथ& और j¦याकौशल उ"प– होते ह<। जैसे कोई एक लोहे
का बाण वा गोला बनाकर उस मO ऐसे पदाथ& रeखे jक जो अि« के लगाने से
वायु मO धुआं फै लने और सूय& कR jकरण वा वायु के Hपश& होने से अि« जल उठे
इसी का नाम ‘आ«ेया¬’ है। जब दूसरा इस का िनवारण करना चाहै तो उसी
पर ‘वा˜णा¬ छोड़ दे। अथा&त् जैसे श•ु ने श•ु कR सेना पर आ«ेया¬ छोड़कर
न… करना चाहा वैसे ही अपनी सेना कR रzाथ& सेनापित वा˜णा¬ से
आ«ेया¬ का िनवारण करे । वह ऐसे ¥ai के योग से होता है िजस का धुआं
वायु के Hपश& होते ही बÖल होके भफ़ट वष&ने लग जावे; अि« को बुभफ़ा देवे।
ऐसे ही ‘नागपाश’ अथा&त् जो श•ु पर छोड़ने से उस के अंगi को जकड़ के बांध
लेता है। वैसे ही एक ‘मोहना¬’ अथा&त् िजस मO नशे कR चीज डालने से िजस
के धुएं के लगने से सब श•ु कR सेना िन¥ाHथ अथा&त् मू“छत हो जाय। इसी
'कार सब श¬¬ होते थे। और एक तार से वा शीसे से अथवा jकसी और
पदाथ& से िव‡ुत् उ"प– करके श•ुu का नाश करते थे उसको भी ‘आ«ेया¬’
तथा ‘पाशुपता¬’ कहते ह<। ‘तोप’ और ‘ब3दूक’ ये नाम अ3य देशभाषा के ह<।
संHकृ त और आ‰या&वsŠय भाषा के नहc jक3तु िजस को िवदेशी जन तोप कहते
ह< संHकृ त और भाषा मO उस का नाम ‘शतšी’ और िजस को ब3दूक कहते ह< उस
को संHकृ त और आ‰य&भाषा मO ‘भुशु‹डी’ कहते ह<। जो संHकृ त िव‡ा को नहc
पढ़े वे ±म मO पड़ कर कु छ का कु छ िलखते और कु छ का कु छ बकते ह<। उस का
बुिZमान् लोग 'माण नहc कर सकते। और िजतनी िव‡ा भूगोल मO फै ली है
वह सब आ‰या&वs& देश से िम~ वालi, उन से यूनानी, उन से ’म और उन से
यूरोप देश मO, उन से अमेWरका आjद देशi मO फै ली है। अब तक िजतना 'चार
संHकृ त िव‡ा का आ‰या&वs& देश मO है उतना jकसी अ3य देश मO नहc। जो लोग
कहते ह< jक-जम&नी देश मO संHकृ त िव‡ा का बgत 'चार है और िजतना संHकृ त
मोzमूलर साहब पढ़े ह< उतना कोई नहc पढ़ा। यह बात कहनेमा• है eयijक
‘यिHम3देशे ¥ुमो नािHत त•ैर‹डोऽिप ¥ुमायते।’ अथा&त् िजस देश मO कोई वृz
नहc होता उस देश मO एर‹ड ही को बड़ा वृz मान लेते ह<। वैसे ही यूरोप देश
मO संHकृ त िव‡ा का 'चार न होने से जम&न लोगi और मोzमूलर साहब ने
थोड़ा सा पढ़ा वही उस देश के िलये अिधक है। पर3तु आ‰या&वs& देश कR ओर
देखO तो उन कR बgत 3यून गणना है। eयijक म<ने जम&नी देशिनवासी के एक
‘ि'ि3सपल’ के प• से जाना jक जम&नी देश मO संHकृ त िच$ी का अथ& करने वाले
भी बgत कम ह<। और मोzमूलर साहब के संHकृ त सािह"य और थोड़ी सी वेद
कR aाwया देख कर मुभफ़ को िवjदत होता है jक मोzमूलर साहब ने इधर
उधर आ‰या&वsŠय लोगi कR कR gई टीका देख कर कु छ-कु छ यथा तथा िलखा
है। जैसा jक-
युÅि3त {Ñम˜षं चर3तं पWर तHथुषः । रोच3ते रोचना jदिव ।।
इस म3• का अथ& घोड़ा jकया है। इस से तो जो सायणाचा‰य& ने सू‰य& अथ&
jकया है सो अ¸छा है। पर3तु इसका ठीक अथ& परमा"मा है सो मेरी बनाई
‘ऋ•वेदाjदभा‘यभूिमका’ मO देख लीिजये। उस मO इस म3• का अथ& यथाथ&
jकया है। इतने से जान लीिजये jक जम&नी देश और मोzमूलर साहब मO संHकृ त
िव‡ा का jकतना पाि‹ड"य है।
यह िनtय है jक िजतनी िव‡ा और मत भूगोल मO फै ले ह< वे सब आ‰या&वs&
देश ही से 'चWरत gए ह<। देखो! एक गोqडHटकर साहब पैरस अथा&त् .ांस देश
िनवासी अपनी ‘बायिबल इन इि‹डया’ मO िलखते ह< jक सब िव‡ा और
भलाइयi का भ‹डार आ‰या&वs& देश है और सब िव‡ा तथा मत इसी देश से
फै ले ह<। और परमा"मा कR 'ाथ&ना करते ह< jक हे परमे5र! जैसी उ–ित
आ‰या&वs& देश कR पूव&काल मO थी वैसी ही हमारे देश कR कRिजये; िलखते ह<
उस >3थ मO देख लो। तथा ‘दारािशकोह’ बादशाह ने भी यही िनtय jकया था
jक जैसी पूरी िव‡ा संHकृ त मO है वैसी jकसी भाषा मO नहc। वे ऐसा उपिनषदi
के भाषा3तर मO िलखते ह< jक म<ने अबŠ आjद बgत सी भाषा पढ़c पर3तु मेरे
मन का स3देह छू ट कर आन3द न gआ । जब संHकृ त देखा और सुना तब
िनHस3देह हो कर मुभफ़ को बड़ा आन3द gआ है।
देखो काशी के ‘मानमि3दर’ मO िशशुमारच¦ को jक िजस कR पूरी रzा भी नहc
रही है तो भी jकतना उsम है िजस मO अब तक भी खगोल का बgत सा वृsा3त
िवjदत होता है। जो ‘सवाई जयपुराधीश’ उस को संभाल और टू टे फू टे को
बनवाया करO गे तो बgत अ¸छा होगा । पर3तु ऐसे िशरोमिण देश को महाभारत
के युZ ने ऐसा धÙा jदया jक अब तक भी यह अपनी पूव& दशा मO नहc आया
। eयijक जब भाई को भाई मारने लगे तो नाश होने मO eया स3देह?
िवनाशकाले िवपरीतबुिZ । -यह jकसी किव का वचन है। जब नाश होने का
समय िनकट आता है तब उqटी बुिZ होकर उqटे काम करते ह<। कोई उन को
सूधा समभफ़ावे तो उलटा मानO और उलटा समभफ़ावO उस को सूधी मानO। जब
बड़े-बड़े िवyान्, राजा, महाराजा, ऋिष, मह“ष लोग महाभारत युZ मO बgत
से मारे गये और बgत से मर गये तब िव‡ा और वेदोž धम& का 'चार न… हो
चला। ई‘या&, yेष, अिभमान, आपस मO करने लगे। जो बलवान् gआ वह देश
को दाब कर राजा बन बैठा। वैसे ही सव&• आया&वs& देश मO ख‹ड-ब‹ड रा°य
हो गया। पुनः yीपyीपा3तर के रा°य कR aवHथा कौन करे ! जब {ा|ण लोग
िव‡ाहीन gए तब zि•य, वैŸय और शू¥i के अिवyान् होने मO कथा ही eया
कहनी? जो पर›परा से वेदाjद शा¬O का अथ&सिहत पढ़ने का 'चार था वह
भी छू ट गया। के वल जीिवकाथ& पाठमा• {ा|ण लोग पढ़ते रहे सो पाठमा•
भी zि•य आjद को न पढ़ाया। eयijक जब अिवyान् gए गु˜ बन गये तब
छल, कपट, अधम& भी उन मO बढ़ता चला। {ा|णi ने िवचारा jक अपनी
जीिवका का 'ब3ध बांधना चािहये। स›मित करके यही िनtय कर zि•य
आjद को उपदेश करने लगे jक हम ही तु›हारे पू°यदेव ह<। िवना हमारी सेवा
jकये तुम को Hवग& वा मुिž न िमलेगी। jक3तु जो तुम हमारी सेवा न करोगे
तो घोर नरक मO पड़ोगे। जो-जो पूण& िव‡ा वाले धा“मकi का नाम {ा|ण और
पूजनीय वेद और ऋिष मुिनयi के शा¬ मO िलखा था उन को अपने मूख&,
िवषयी, कपटी, ल›पट, अध“मयi पर घटा बैठे। भला वे आƒ िवyानi के लzण
इन मूखŽ मO कब घट सकते ह< ? पर3तु जब zि•याjद यजमान संHकृ त िव‡ा
से अ"य3त रिहत gए तब उनके सामने जो-जो गÊप मारी सो-सो िवचारi ने
सब मान ली। तब इन नाममा• {ा|णi कR बन पड़ी। सब को अपने वचन
जाल मO बांध कर वशीभूत कर िलया और कहने लगे jक-
{|वाeयं जनाद&न ।
अथा&त् जो कु छ {ा|णi के मुख मO से वचन िनकलता है वह जानो साzात्
भगवान् के मुख से िनकला। जब zि•याjद वण& आंख के अ3धे और गांठ के पूरे
अथा&त् भीतर िव‡ा कR आंख फू टी gई और िजन के पास धन पु‘कल है ऐसे-
ऐसे चेले िमले। jफर इन aथ& {ा|ण नाम वालi को िवषयान3द का उपवन
िमल गया। यह भी उन लोगi ने 'िसZ jकया jक जो कु छ पृिथवी मO उsम
पदाथ& ह< वे सब {ा|णi के िलये ह<। अथा&त् जो गुण, कम&, Hवभाव से {ा|णाjद
वण&aवHथा थी उस को न… कर ज3म पर रeखी और मृतकपय&3त का भी दान
यजमानi से लेने लगे। जैसी अपनी इ¸छा gई वैसा करते चले। यहां तक jकया
jक ‘हम भूदव े ह<’ हमारी सेवा के िवना देवलोक jकसी को नहc िमल सकता।
इन से पूछना चािहये jक तुम jकस लोक मO पधारोगे? तु›हारे काम तो घोर
नरक भोगने के ह<; कृ िम, कRट, पतंगाjद बनोगे। तब तो बड़े ¦ोिधत होकर
कहते ह<-हम ‘शाप’ दOगे तो तु›हारा नाश हो जायेगा eयijक िलखा है-‘{|¥ोही
िवनŸयित’ jक जो {ा|णi से ¥ोह करता है उस का नाश हो जाता है। हां! यह
बात तो स0ी है jक जो पूण& वेद और परमा"मा को जानने वाले, धमा&"मा सब
जगत् के उपकारक पु˜षi से कोई yेष करे गा, वह अवŸय न… होगा। पर3तु जो
{ा|ण नहc हi, उन का न {ा|ण नाम और न उन कR सेवा करनी यो•य है।
('-) तो हम कौन ह<?
(उsर) तुम पोप हो।
('-) पोप jकस को कहते ह<?
(उsर) उस कR सूचना ’मन् भाषा मO तो बड़ा और िपता का नाम पोप है
पर3तु अब छल कपट से दूसरे को ठग कर अपना 'योजन साधने वाले को पोप
कहते ह<।
('-) हम तो {ा|ण और साधु ह< eयijक हमारा िपता {ा|ण और माता
{ा|णी तथा हम अमुक साधु के चेले ह<।
(उsर) यह स"य है पर3तु सुनो भाई! माँ बाप {ा|ण होने से और jकसी साधु
के िश‘य होने पर {ा|ण वा साधु नहc हो सकते jक3तु {ा|ण और साधु अपने
उsम गुण, कम&, Hवभाव से होते ह< जो jक परोपकारी हi। सुना है jक जैसे ’म
के ‘पोप’ अपने चेलi को कहते थे jक तुम अपने पाप हमारे सामने कहोगे तो
हम zमा कर दOगे। िवना हमारी सेवा और आXा के कोई भी Hवग& मO नहc जा
सकता। जो तुम Hवग& मO जाना चाहो तो हमारे पास िजतने ˜पये जमा करोगे
उतने ही कR साम>ी Hवग& मO तुम को िमलेगी। ऐसा सुन कर जब कोई आंख के
अ3धे और गांठ के पूरे Hवग& मO जाने कR इ¸छा करके ‘पोप जी’ को यथे… ˜पया
देता था तब वह ‘पोप जी’ ईसा और मWरयम कR मू“s के सामने खड़ा होकर
इस 'कार कR g‹डी िलखकर देता था-‘हे खुदाव3द ईसामसी! अमुक मनु‘य ने
तेरे नाम पर लाख ˜पये Hवग& मO आने के िलये हमारे पास जमा कर jदये ह<।
जब वह Hवग& मO आवे तब तू अपने िपता के Hवग& के रा°य मO प0ीस सहê
˜पयi मO बागबगीचा और मकानात, प0ीस सहê मO सवारी िशकारी और
नौकर चाकर, प0ीस सहê ˜पयां◌े मO खाना पीना कपड़ा लsा और प0ीस
सहê ˜पये इस के इ… िम• भाई ब3धु आjद के िजयाफत Σ◌ँ◌् वाHते jदला
देना।’ jफर उस g‹डी के नीचे पोप जी अपनी सही करके g‹डी उसके हाथ मO
देकर कह देते थे jक ‘जब तू मरे तब इस g‹डी को कबर मO अपने िसराने धर
लेने के िलए अपने कु टु ›ब को कह रखना। jफर तुभफ़े ले जाने के िलये फWरŸते
आवOगे तब तुभफ़े और तेरी g‹डी को Hवग& मO ले जा कर िलखे 'माणे सब चीजO
तुभफ़ को jदला दOगे।’
अब देिखये जानो Hवग& का ठे का पोप जी ने ही ले िलया हो। जब तक यूरोप
देश मO मूख&ता थी तभी तक वहां पोप जी कR लीला चलती थी पर3तु अब िव‡ा
के होने से पोप जी कR भफ़ू ठी लीला बgत नहc चलती jक3तु िनमू&ल भी नहc
gई। वैसे ही आ‰या&वs& देश मO भी जानो पोप जी ने लाखi अवतार लेकर लीला
फै लाई हो। अथा&त् राजा और 'जा को िव‡ा न पढ़ने देना, अ¸छे पु˜षi का
संग न होने देना, रात jदन बहकाने के िसवाय दूसरा कु छ भी काम नहc करना
है। पर3तु यह बात —यान मO रखना jक जो-जो छलकपटाjद कु ि"सत aवहार
करते ह< वे ही पोप कहाते ह<। जो कोई उन मO भी धा“मक िवyान् परोपकारी ह<
वे स0े {ा|ण और साधु ह<।
अब उ3हc छली कपटी HवाथŠ लोगi (मनु‘यi को ठग कर अपना 'योजन िसZ
करने वालi ही का >हण ‘पोप’ शdद से करना और {ा|ण तथा साधु नाम से
उsम पु˜षi का Hवीकार करना यो•य है। देखो! जो कोई भी उsम {ा|ण वा
साधु न होता तो वेदाjद स"यशा¬O के पुHतक Hवरसिहत का पठन-पाठन
मुसलमान, ईसाई आjद के जाल से बचाकर आयŽ को वेदाjद स"यशा¬O मO
'ीितयुž वणा&~मi मO रखना ऐसा कौन कर सकता? िसवाय {ा|ण साधुu
के ! जब यजमान िव‡ाहीन gए और आप कु छ पाठ पूजा पढ़ कर अिभमान मO
आके सब लोगi ने परHपर स›मित करके राजा आjद से कहा jक {ा|ण और
साधु अद‹ü ह<। देखो-‘{ा|णो न ह3तa ’ ‘साधुन& ह3तa ’ ऐसे ऐसे वचन
जो jक स0े {ा|ण और स0े साधुu के िवषय मO थे सो पोपi ने अपने पर घटा
िलये। और भी भफ़ू ठे -भफ़ू ठे वचनयुž >3थ रच कर उन मO ऋिष मुिनयi के
नाम धर के उ3हc के नाम से सुनाते रहे। उन 'िति¼त ऋिष मह“षयi के नाम
से अपने पर से द‹ड कR aवHथा उठवा दी। पुनः यथे…ाचार करने लगे अथा&त्
ऐसे करडे िनयम चलाये jक उन पोपi कR आXा के िवना सोना, उठना, बैठना,
जाना, आना, खाना, पीना, आjद भी नहc कर सकते थे। राजाu को ऐसा
िनtय कराया jक पोप संXक कहने मा• के {ा|ण साधु चाहे सो करO । उन
को कभी द‹ड न देना अथा&त् उन पर मन मO भी द‹ड देने कR इ¸छा न करनी
चािहये। जब ऐसी मूख&ता gई तब जैसी पोपi कR इ¸छा gई वैसा करने कराने
लगे। अथा&त् इस िबगाड़ के मूल महाभारत युZ से पूव& एक सहê वष& से 'वृs
gए थे। eयijक उस समय मO ऋिष मुिन भी थे तथािप कु छ-कु छ आलHय,
'माद, ई‘या&, yेष के अंकुर उगे थे वे बढ़ते-बढ़ते वृZ हो गये। जब स0ा उपदेश
न रहा तब आ‰या&वs& मO अिव‡ा फै लकर परHपर लड़ने भफ़गड़ने लगे। eयijक-
उपदेŸयोपदे…ृ"वात् ति"सिZ ।। इतरथा3धपर›परा।। -सांwयसू०।।
अथा&त् जब उsम-उsम उपदेशक होते ह< तब अ¸छे 'कार धम&, अथ&, काम और
मोz िसZ होते ह<। और जब उsम उपदेशक और ~ोता नहc रहते तब अ3ध
पर›परा चलती है। jफर भी जब स"पु˜ष उ"प– होकर स"योपदेश करते ह<
तभी अ3धपर›परा न… होकर 'काश कR पर›परा चलती है। पुनः वे पोप लोग
अपनी और अपने चरणi कR पूजा कराने लगे और कहने लगे jक इसी मO तु›हारा
कqयाण है। जब ये लोग इन के वश मO हो गये तब 'माद और िवषयासिž मO
िनम« होकर गड़Wरये के समान भफ़ू ठे गु˜ और चेले फं से। िव‡ा, बल, बुिZ,
परा¦म, शूरवीरताjद शुभगुण सब न… होते चले। पtात् जब िवषयासž gए
तो मांस, म‡ का सेवन गुƒ-गुƒ करने लगे। पtात् उ3हc मO से एक ने वाममाग&
खड़ा jकया। ‘िशव उवाच’ ‘पाव&"युवाच’ ‘भैरव उवाच’ इ"याjद नाम िलख कर
उन का त3• नाम धरा। उन मO ऐसी-ऐसी िविच• लीला कR बातO िलखc jक-
म‡ं मांसं च मीनं च मु¥ा मैथुनमेव च।
एते प€ मकारा Hयुमªzदा िह युगे युगे।।१।।
'वृsे भैरवीच¦े सव· वणा& िyजातय ।
िनवृsे भैरवीच¦े सव· वणा& पृथÀफ़ पृथÀफ़।।२।।
पी"वा पी"वा पुन पी"वा याव"पतित भूतले।
पुन˜"थाय वै पी"वा पुनज&3म न िव‡ते।।३।।
मातृयोिन पWर"य°य िवहरे त् सव&योिनषु।।४।।
वेदशा¬पुराणािन सामा3यगिणका इव ।
एकै व शा›भवी मु¥ा गुƒा कु लवधूWरव।।५।।
अथा&त् देखो इन गवग&‹ड पोपi कR लीला जो jक वेदिव˜Z महा अधम& के काम
ह< उ3हc को ~े¼ वामम“गयi ने माना। म‡, मांस, मीन अथा&त् म¸छी, मु¥ा
पूरी कचौरी और बड़े रोटी आjद चव&ण, योिन, पा•धार, मु¥ा और पांचवां
मैथुन अथा&त् पु˜ष सब िशव और ¬ी सब पाव&ती के समान मान कर-
अहं भैरवH"वं भैरवी ÉावयोरHतु संगमः ।।
चाहे कोई पु˜ष वा ¬ी हो इस ऊटपटांग वचन को पढ़ के समागम करने मO वे
वाममागŠ दोष नहc मानते । अथा&त् िजन नीच ि¬यi को छू ना नहc उनको
अितपिव• उ3हiने माना है। जैसे शा¬O मO रजHवला आjद ि¬यi के Hपश& का
िनषेध है उन को वाममा“गयi ने अितपिव• माना है। सुनो इन का ºोक ख‹ड
ब‹ड-
रजHवला पु‘करं तीथ¶ चा‹डाली तु Hवयं काशी । चम&कारी 'याग Hया¥जकR
मथुरा मता ।। अयो—या पुÙसी 'ोžा।। इ"याjद । रजHवला के साथ समागम
करने से जानो पु‘कर का Èान, चा‹डाली से समागम मO काशी कR या•, चमारी
से समागम करने से मानो 'यागÈान, धोबी कR ¬ी के साथ समागम करने मO
मथुरा या• और कं जरी के साथ लीला करने से मानो अयो—या तीथ& कर आये।
म‡ का नाम धरा ‘तीथ&’, मांस का नाम शुिZ और ‘पु‘प’ म¸छी का नाम
‘तृतीया’ और ‘जलतुि›बका’, मु¥ा का नाम ‘चतुथŠ’, मैथुन का नाम ‘प€मी’।
इसिलये ऐसे-ऐसे नाम धरे ह< jक िजस से दूसरा न समभफ़ सके । अपने कौल,
आ¥&वीर, शा›भव और गण आjद नाम रeखे ह<। और जो वाममाग& मत मO नहc
ह<, उनका ‘क‹टक’ ‘िवमुख’, शु‘कपशु’ आjद नाम धरे ह< । और कहते ह< jक जब
भैरवीच¦ हो तब उस मO {ा|ण से लेकर चा‹डालपय&3त का नाम िyज हो
जाता है । और जब भैरवीच¦ से अलग हi तब सब अपने-अपने वण&Hथ हो
जायO। भैरवीच¦ मO वाममागŠ लोग भूिम वा पÝे पर एक िव3दु ि•कोण,
चतु‘कोण, वsु&लाकार बना कर उस पर म‡ का घड़ा रखके उस कR पूजा करते
ह<। jफर ऐसा म3• पढ़ते ह<-‘{|शापं िवमोचथ’ हे म‡! तू {|ा आjद के शाप
से रिहत हो। एक गुƒ Hथान मO jक जहां िसवाय वाममागŠ के दूसरे को नहc
आने देते वहां ¬ी और पु˜ष इक$े होते ह<। वहां एक ¬ी को नंगी कर पूजते
और ¬ी लोग jकसी पु˜ष को नंगा कर पूजती ह<। पुनः कोई jकसी कR ¬ी कोई
अपनी वा दूसरे कR क3या, कोई jकसी कR वा अपनी माता, भिगनी, पु•वधू
आjद आती ह<।
पtात् एक पा• मO म‡ भरके मांस और बड़े आjद एक Hथाली मO धर रखते
ह<। उस म‡ के Êयाले को जो jक उन का आचा‰य& होता है वह हाथ मO लेकर
बोलता है jक-‘भैरवोऽहम्’ ‘िशवोऽहम्’ म< भैरव वा िशव •ं कह कर पी जाता
है। jफर उसी भफ़ू ठे पा• से सब पीते ह<। और जब jकसी कR ¬ी वा वेŸया नंगी
कर अथवा jकसी पु˜ष को नंगा कर हाथ मO तलवार दे के उस का नाम देवी
और पु˜ष का नाम महादेव धरते ह<। उन के उपHथ इि3¥य कR पूजा करते ह<
तब उस देवी वा िशव को म‡ का Êयाला िपला कर उसी भफ़ू ठे पा• से सब
लोग एक-एक Êयाला पीते ह<। jफर उसी 'कार ¦म से पी-पी के उ3मs होकर
चाहO कोई jकसी कR बिहन, क3या वा माता eयi न हो, िजस कR िजस के साथ
इ¸छा हो उस के साथ कु कम& करते ह<। कभी-कभी बgत नशा चढ़ने से जूते,
लात, मुÙामुÙR, के शाके शी, आपस मO लड़ते ह< jकसी-jकसी को वहc वमन होता
है। उन मO जो पgंचा gआ अघोरी अथा&त् सब मO िसZ िगना जाता है; वह वमन
gई चीज को भी खा लेता है। अथा&त् इन के सबसे बडे़ िसZ कR ये बातO ह< jक-
हालां िपबित दीिzतHय मि3दरे सुƒो िनशायां गिणकागृहष े ु। िवराजते
कौलवच¦वतŠ।।
जो दीिzत अथा&त् कलार के घर मO जाके बोतल पर बोतल चढ़ावे। रि‹डयi के
घर मO जाके उन से कु कम& करके सोवे जो इ"याjद कम& िनल&œ, िनःशंक होकर
करे वही वाममा“गयi मO सवªपWर मुwय च¦वतŠ राजा के समान माना जाता
है। अथा&त् जो बड़ा कु कमŠ वही उन मO बड़ा और जो अ¸छे काम करे और बुरे
कामi से डरे वही छोटा। eयijक- पाशबZो भवेœीव पाशमुž सदा िशव ।।
ऐसा त3• मO कहते ह< jक जो लोकलœा, शा¬लœा, कु ललœा, देशलœा
आjद पाशi मO बंधा है वह जीव और जो िनलर्◌्◌ाœ होकर बुरे काम करे वही
सदा िशव है। उ/ीस त3• आjद मO एक 'योग िलखा है jक एक घर मO चारi
ओर आलय हi। उन मO म‡ के बोतल भर के धर देवे। इस आलय से एक बोतल
पी के दूसरे आलय पर जावे। उसमO से पी तीसरे और तीसरे मO से पीके चौथे
आलय मO जावे। खड़ा-खड़ा तब तक म‡ पीवे jक जब तक लकड़ी के समान
पृिथवी मO न िगर पड़े। jफर जब नशा उतरे तब उसी 'कार पीकर िगर पड़े।
पुनः तीसरी वार इसी 'कार पीके िगर के उठे तो उस का पुनज&3म न हो अथा&त्
सच तो यह है jक ऐसे-ऐसे मनु‘यi का पुनः मनु‘यज3म होना ही कWठन है
jक3तु नीच योिन मO पड़ कर बgकालपय&3त पड़ा रहेगा।
वािमयi के त3• >3थi मO यह िनयम है jक एक माता को छोड़ Σ◌ँ◌् jकसी
¬ी को भी न छोड़ना चािहये अथा&त् चाहे क3या हो वा भिगनी आjद eयi न
हो; सब के साथ संगम करना चािहये। इन वामम“गयi मO दश महािव‡ा 'िसZ
ह< उनमO से एक मातंगी िव‡ावाला कहता है jक ‘मातरमिप न "यजेत’् अथा&त्
माता को भी समागम jकये िवना न छोड़ना चािहये। और ¬ी पु˜ष के समागम
समय मO म3• जपते ह< jक हम को िसिZ 'ाƒ हो जायO। ऐसे पागल महामूख&
मनु‘य भी संसार मO बgत 3यून हiगे!!! जो मनु‘य भफ़ूं ठ चलाना चाहता है वह
स"य कR िन3दा अवŸय ही करता है। देखो! वाममागŠ eया कहते ह< ? वेद,
शा¬ और पुराण ये सब सामा3य वेŸयाu के समान ह< और जो यह शा›भवी
वाममाग& कR मु¥ा है वह गुƒ कु ल कR ¬ी के तुqय है। इसीिलये इन लोगi ने
के वल वेद-िव˜Z मत खड़ा jकया है। पtात् इन लोगi का मत बgत चला।
तब धूs&sा करके वेदi के नाम से भी वाममाग& कR थोड़ी-थोड़ी लीला चलाई।
अथा&त्-
सौ•म‹यां सुरां िपबेत् । 'ोिzतं भzये3मांसम्।
वैjदकR िहसा िहसा न भवित।।
न मांसभzणे दोषो न म‡े न च मैथुने।
'वृिsरे षा भूतानां िनवृिsHतु महाफला।। मनु०।।
सौ•मिण यX मO म‡ पीवे। इस का अथ& तो यह है jक सौ•मिण यX मO सोमरस
अथा&त् सोमवqली का रस पीये। 'ोिzत अथा&त् यX मO मांस खाने मO दोष नहc
ऐसी पामरपन कR बातO वाममा“गयi ने चलाई है◌े◌ं। उन से पूछना चािहये
jक जो वैjदकR िहसा िहसा न हो तो तुझ और तेरे कु टु ›ब को मार के होम कर
डालO तो eया िच3ता है ? मांसभzण करने, म‡ पीने, पर¬ीगमन करने आjद
मO दोष नहc है; यह कहना छोकड़पन है। eयijक िवना 'ािणयi के पीड़ा jदये
मांस 'ाƒ नहc होता और िवना अपराध के पीड़ा देना धम& का काम नहc।
म‡पान का तो सव&था िनषेध ही है eयijक अब तक वाममा“गयi के िवना
jकसी >3थ मO नहc िलखा jक3तु सव&• िनषेध है। और िवना िववाह के मैथुन
मO भी दोष है। इस को िनदªष कहनेवाला सदोष है। ऐसे-ऐसे वचन भी ऋिषयi
के >3थ मO डाल के jकतने ही ऋिष मुिनयi के नाम से >3थ बना कर गोमेध,
अ5मेध नाम यX भी कराने लगे थे। अथा&त् इन पशुu को मारके होम करने
से यजमान और पशु को Hवग& कR 'ािƒ होती है; ऐसी 'िसिZ कR। िनtय तो
यह है jक जो {ा|ण>3थi मO अ5मेध, गोमेध, नरमेध आjद शdद ह< उन का
ठीक-ठीक अथ& नहc जाना है eयijक जो जानते तो ऐसा अनथ& eयi करते?
('-) अ5मेध, गोमेध, नरमेध आjद शdदi का अथ& eया है?
(उsर) इन का अथ& तो यह है jक-
रा…ंª वा अ5मेध । अ–ँ◌्िह गौ ।
अि«वा& अ5 । आ°यं मेध ।। शतपथ{ा|णे।।
घोड़े, गाय आjद पशु तथा मनु‘य मार के होम करना कही◌े◌ं नहc िलखा।
के वल वाममा“गयi के >3थां◌े मO ऐसा अनथ& िलखा है। jक3तु यह भी बात
वाममा“गयi ने चलाई। और जहाँ-जहाँ लेख है वहाँ-वहाँ भी वाममा“गयi ने
'zेप jकया है। देखो ! राजा 3याय धम& से 'जा का पालन करे , िव‡ाjद का
देनेहारा और यजमान yारा अि« मO घी आjद का होम करना अ5मेध, अ–,
इि3¥यां, jकरण, पृिथवी आjद को पिव• रखना गोमेध; जब मनु‘य मर जाय
तब उसके शरीर का िविधपूव&क दाह करना नरमेध कहाता है।
('-) यXकsा& कहते है◌े◌ं jक यX करने से यजमान औेर पशु Hवग&गामी तथा
होम करके jफर पशु को जीता करते थे। यह बात स0ी है वा नहc ?
(उsर) नहc। जो Hवग& को जाते हi तो ऐसी बात कहने वाले को मार के होम
कर Hवग& मO पgंचाना चािहये वा उस के ि'य माता, िपता, ¬ी और पु•jद को
मार होम कर Hवग& मO eयi नहc पgंचाते? वा वेदी मO से पुनः eयi नहc िजला
लेते ह<?
('-) जब यX करते है◌े◌ं तब वेदi के म3• पढ़ते ह<। जो वेदi मO न होता तो
कहां◌ँ से पढ़ते?
(उsर) म3• jकसी को कहc पढ़ने से नहc रोकता eयijक वह एक शdद है।
पर3तु उन का अथ& ऐसा नहc है jक पशु को मारके होम करना। जैसे-‘अ«ये
Hवाहा’ इ"याjद म3•O का अथ& अि« मO हिव, पु‘Þाjदकारक घृताjद उsम
पदाथŽ के होम करने से वायु, वृि…, जल शुZ होकर जगत् को सुखकारक होते
ह<। पर3तु इन स"य अथŽ को वे मूढ़ नहc समझते थे eयijक जो Hवाथ&बुिZ होते
ह<। वे के वल अपने Hवाथ& करने के दूसरा कु छ भी नही◌े◌ं जानते; मानते। जब
इन पोपi का ऐसा अनाचार देखा और दूसरा मरे का तप&ण ~ाZाjद करने को
देख कर एक महाभयंकर वेदाjद शा¬O का िन3दक बौZ वा जैन मत 'चिलत
gआ है। सुनते ह< jक एक इसी देश मO गोरखपुर का राजा था। उस से पोपi ने
यX कराया। उस कR ि'य राणी का समागम घोड़े के साथ कराने से उसके मर
जाने पर पtात् वैरा•यवान् होकर अपने पु• को रा°य दे, साधु हो, पोपi कR
पोल िनकालने लगा। इसी कR शाखा’प चारवाक और आभाणक मत भी gआ
था। उ3हiने इस 'कार के ºोक बनाये ह<-
पशुtेि–हत Hवग¶ °योित…ोमे गिम‘यित।
Hविपता यजमानेन त• कथं न िहHयते।।
मृतानािमह ज3तूनां ~ाZं चेsृिƒकारणम्।
ग¸छतािमह ज3तूनां aथ¶ पाथेयकqपनम्।।
जो पशु मार कर अि« मO होम करने से पशु Hवग& को जाता है तो यजमान अपने
िपता आjद को मार के Hवग& मO eयi नहc भेजते। जो मरे gए मनु‘यi कR तृिƒ
के िलये ~ाZ और तÊप&ण होता है तो िवदेश मO जाने वाले मनु‘य को माग& का
खच& खाने पीने के िलये बांधना aथ& है। eयijक जब मृतक को ~ाZ, तप&ण से
अ–, जल पgंचता है तो जीते gए परदेश मO रहने वाले वा माग& मO चलनेहारi
को घर मO रसोई बनी gई का पsल परोस, लोटा भर के उस के नाम पर रखने
से eयi नहc पgँचता? जो जीते gए दूर देश अथवा दश हाथ पर दूर बैठे gए
को jदया gआ नहc पgंचता तो मरे gए के पास jकसी 'कार नहc पgंच सकता।
उन के ऐसे युिžिसZ उपदेशi को मानने लगे और उन का मत बढ़ने लगा। जब
बgत से राजा भूिमये उन के मत मO gए तब पोप जी भी उन कR ओर झुके
eयijक इन को िजधर ग0फा अ¸छा िमले वहc चले जायO। उस के पठनपाठन
यXोपवीताjद और {|च‰या&jद िनयमi को भी नाश jकया। जहां िजतने
पुHतक वेदाjद के पाये न… jकये। आ‰यŽ पर बgत सी राजसsा भी चलाई;
दुःख jदया। जब उन को भय शंका न रही तब अपने मत वाले गृहHथ और
साधुu कR 'ित¼ा और वेदमा“गयi का अपमान और पzपात से द‹ड भी देने
लगे। और आप सुख आराम और घम‹ड मO आ फू लकर jफरने लगे। 'ायः
वेदाथ&Xान से शू3य हो गये थे। इस बात को अनुमान से अढ़ाई सहê वष& aतीत
gए हiगे। बाईस सौ वष& gए jक एक शंकराचाय& ¥िवड़देशो"प– {ा|ण
{|चय& से aाकरणाjद सब शा¬O को पढ़कर सोचने लगे jक अहह! स"य
आिHतक वेद मत का छू टना बड़ी हािन कR बात gई है; इन को jकसी 'कार
हटाना चािहये। शंकराचा‰य& शा¬ तो पढ़े ही थे पर3तु उन कR युिž भी बgत
'बल थी। उ3हiने िवचारा jक इन को jकस 'कार हटावO? िनtय gआ jक
उपदेश और शा¬थ& करने से ये लोग हटOगे। ऐसा िवचार कर उœैन नगरी मO
आये। वहां उस समय सुध3वा राजा था, जो कु छ संHकृ त भी पढ़ा था। वहाँ
जाकर वेद का उपदेश करने लगे और राजा से िमल कर कहा jक आप पि‹डतi
के साथ मेरा शा¬थ& कराइये। इस 'ितXा पर, जो हारे सो जीतने वाले का
मत Hवीकार कर ले। और आप भी जीतने वाले का मत Hवीकार कRिजयेगा।
सुध3वा कR बुिZ मO कु छ िव‡ा का 'काश था। इस से उन के मन मO अ"य3त
पशुता नहc छाई थी। eयijक जो िवyान् होता है वह स"याऽस"य कR परीzा
करके स"य का >हण और अस"य को छोड़ देता है। जब तक सुध3वा राजा को
बड़ा िवyान् उपदेशक नहc िमला था तब तक स3देह मO थे jक इन मO कौन सा
स"य और कौन सा अस"य है। जब शंकराचा‰य& कR यह बात सुनी और बड़ी
'स–ता के साथ बोले jक हम शा¬थ& कराके स"याऽस"य का िनण&य अवŸय
करावOगे। शंकराचा‰य& का पz वेदमत का Hथापन था। शा¬थ& कई jदनi तक
gआ। शंकराचा‰य& का मत था jक अनाjद िसZ परमा"मा ही जगत् का कsा&
है। यह जगत् और जीव झूठा है eयijक उस परमे5र ने अपनी माया से जगत्
बनाया; वही धारण और 'लय कsा& है। और यह जीव और 'प€ Hव¹वत् है।
परमे5र आप ही सब ’प होकर लीला कर रहा है। बgत jदन तक शा¬थ&
होता रहा पर3तु अ3त मO युिž और 'माण से शंकराचा‰य& का मत अखि‹डत
रहा। तब उन पि‹डत और सुध3वा राजा ने वेद मत को Hवीकार कर िलया।
पुनः बड़ा हqला गुqला gआ और सुध3वा राजा ने अ3य अपने इ… िम• राजाu
को िलखकर शंकराचा‰य& से शा¬थ& कराया। पtात् शंकराचा‰य& के सव&•
आया&वs& देश मO घूमने का 'ब3ध सुध3वाjद राजाu ने कर jदया और उन कR
रzा के िलये साथ मO नौकर चाकर भी रख jदये। उसी समय से सब के
यXोपवीत होने लगे और वेदi का पठन-पाठन भी चला। दस वष& के भीतर
सव&• आया&वs& देश मO घूम कर वेदi का म‹डन jकया। वाममाग& का ख‹डन
jकया। उस समय इस देश मO धन बgत था और Hवदेशभिž भी थी। जब वेदमत
का Hथापन हो चुका औेर िव‡ा 'चार करने का िवचार करते ही थे। उतने मO
दो कपटमुिन थे; शंकराचा‰य& उन पर अित 'स– थे। उन दोनi ने अवसर पाकर
शंकराचा‰य& को ऐसी िवषयुž वHतु िखलाई jक उन कR zुधा म3द हो गई।
पtात् शरीर मO फोड़े फु 3सी होकर छः महीने के भीतर शरीर छू ट गया। तब
सब िन˜"साही हो गये और जो िव‡ा का 'चार होने वाला था वह भी न होने
पाया। जो-जो उ3हiने शारीरक भा‘याjद बनाये थे उन का 'चार शंकराचा‰य&
के िश‘य करने लगे। अथा&त् {| स"य जगत् िम•या और जीव {| कR एकता
कथन कR थी उस का उपदेश करने लगे। दिzण मO◌ं शृंगेरी, पूव& मO भूगोवध&न,
उsर मO जोशी और yाWरका मO शारदामठ बांध कर शंकराचाय& के िश‘य मह3त
बन और ~ीमान् होकर आन3द करने लगे eयijक शंकराचा‰य& के पtात् उन
के िश‘यi कR बड़ी 'ित¼ा होने लगी।
शंकराचाय& के तीन सौ वष& के पtात् उœैन नगरी मO िव¦माjद"य राजा कु छ
'तापी gआ। िजस ने सब राजाu के म—य 'वृs gई लड़ाई को िमटा कर
शाि3त Hथापन कR। त"पtात् भतृ&हWर राजा काaाjद शा¬ और अ3य मO भी
कु छ-कु छ िवyान् gआ। उसने वैरा•यवान् होकर रा°य को छोड़ jदया।
िव¦माjद"य के पाँच सौ वष& के पtात् राजा भोज gआ। उसने थोड़ा सा
aाकरण और काaालंकराjद का इतना 'चार jकया jक िजस के रा°य मO
कािलदास बकरी चराने वाला भी रघुवंश काa का कsा& gआ। राजा भोज के
पास जो कोई अ¸छा ºोक बना कर ले जाता था उस को बgत सा धन देते थे
और 'ित¼ा होती थी। उस के पtात् राजाu ~ीमानi ने पढ़ना ही छोड़ jदया।
य‡िप शंकराचा‰य& के पूव& वाममा“गयi के पtात् शैव आjद स›'दायHथ
मतवादी भी gए थे पर3तु उन का बgत बल नहc था। महाराजा िव¦माjद"य
से लेके शैवi का बल बढ़ता आया। शैवi मO पाशुपताjद बgत सी शाखा gई थc;
जैसी वाममा“गयi मO दश महािव‡ाjद कR शाखा ह<। लोगi ने शंकराचाय& को
िशव का अवतार ठहराया। उन के अनुयायी सं3यासी भी शैवमत मO 'वृs हो
गये और वाममा“गयi को भी िमलते रहे। वाममागŠ, देवी जो िशव जी कR प¢ी
है उसके उपासक और शैव महादेव के उपासक gए। ये दोनi ˜¥ाz और भHम
अ‡ाविध धारण करते ह< पर3तु वाममागŠ वेदिवरोधी ह< वैसे शैव नहc ह<।

राजा भोज को कु छ-कु छ वेदi का संHकार था। इन के भोज'ब3ध मO िलखा है


jक-
घÞेकया •फ़ोशदशैकम5 सुकृि•मो ग¸छित चा˜ग"या ।
वायुं ददाित aजनं सुपु‘कलं िवना मनु‘येण चल"यजêम्।।
राजा भोज के रा°य मO और समीप ऐसे-ऐसे िश्ाqपी लोग थे jक िज3हiने घोड़े
के आकार एक यान य3•कलायुž बनाया था jक जो एक क0ी घड़ी मO •यारह
कोश्◌ा और एक घ‹टे मO साढ़े सsाईस कोश्◌ा जाता था। वह भूिम और
अ3तWरz मO भी चलता था। और दूसरा पंखा ऐसा बनाया था jक िवना मनु‘य
के चलाये कलाय3• के बल से िन"य चला करता और पु‘कल वायु देता था। जो
ये दोनi पदाथ& आज तक बने रहते तो यूरोिपयन इतने अिभमान मO न चढ़
जाते।

पिव•्◌ा◌ं ते िवततं {|णHपते 'भुगा&•िण पय·िष िव5तः ।


अतƒतनून& तदामो अ-ुते शृतास इyह3तHत"समाशत ।।१।।
तपो‘पिव•ं िवततं jदवHपदे ।।२।। - ऋ० मं० ९ । सू० ८३ । मं० १ । २
।।
हे {|ा‹ड और वेदi के पालन करने वाले 'भु सव&साम•य&युž सव&शिžमन्!
आपने अपनी aािƒ से संसार के सब अवयवi को aाƒ कर रeखा है। उस
आपका जो aापक पिव• Hव’प है उस को {|चय&, स"यभाषण, शम, दम,
योगा^यास, िजतेि3¥य, स"संगाjद तपt‰या& से रिहत जो अपWरपÂ आ"मा
अ3तःकरणयुž है वह उस तेरे Hव’प को 'ाƒ नहc होता और जो पूवªž तप
से शुZ ह<। वे ही इस तप का आचरण करते gए उस तेरे शुZHव’प को अ¸छे
'कार 'ाƒ होते ह<।।१।।
जो 'काशHव’प परमे5र कR सृि… मO िवHतृत पिव•चरण’प तप करते ह< वे
ही परमा"मा को 'ाƒ होने मO यो•य होते ह<।।२।।

('-) eया नाम लेना सव&था िम•या है जो सव&• नामHमरण का बड़ा माहा"›य
िलखा है?
(उsर) नाम लेने कR तु›हारी रीित उsम नहc। िजस 'कार तुम नामHमरण
करते हो वह रीित भफ़ू ठी है
('-) हमारी कै सी रीित है?
(उsर) वेदिव˜Z।
('-) भला अब आप हम को वेदोž नामHमरण कR रीित बतलायO?
(उsर) नामHमरण इस 'कार करना चािहये- जैसे ‘3यायकारी’ ई5र का एक
नाम है। इस नाम से जो इस का अथ& है jक जैसे पzपात रिहत होकर परमा"मा
सब का यथावत् 3याय करता है वैसे उस को >हण कर 3याययुž aवहार
सव&दा करना; अ3याय कभी न करना। इस 'कार एक नाम से भी मनु‘य का
कqयाण हो सकता है।
सुनो यह है-
अ3ध3तमः 'िवशि3त येऽस›भूितमुपासते ।
ततो भूयऽइव ते तमो यऽउ स›भू"या¤रताः ।।१।।
-यजुः० अ० ४० । मं० ९ ।।
न तHय 'ितमाऽअिHत ।।२।। -यजुः० अ० ३२ । मं० ३ ।।
यyाचान^युjदतं येन वाग^यु‡ते ।
तदेव {| "वं िविZ नेदं यjददमुपासते।।१।।
य3मनसा न मनुते येनाgम&नो मतम् ।
तदेव {| "वं िविZ नेदं यjददमुपासते।।२।।
य0zुषा न पŸयित येन चzूंिष पŸयि3त ।
तदेव {| "वं िविZ नेदं यjददमुपासते।।३।।
य¸ðो•ेण न शृणोित येन ~ो•िमदं ~ुतम् ।
तदेव {| "वं िविZ नेदं यjददमुपासते।।४।।
य"'ाणेन न 'ािणित येन 'ाण 'णीयते ।
तदेव {| "वं िविZ नेदं यjददमुपासते।।५।। के नोपिन०।।
जो अस›भूित अथा&त् अनु"प– अनाjद 'कृ ित कारण कR {| के Hथान मO
उपासना करते ह< वे अ3धकार अथा&त् अXान और दुःखसागर मO डू बते ह<। और
स›भूित जो कारण से उ"प– gए काय&’प पृिथवी आjद भूत पाषाण और
वृzाjद अवयव और मनु‘याjद के शरीर कR उपासना {| के Hथान मO करते ह<
वे उस अ3धकार से भी अिधक अ3धकार अथा&त् महामूख& िचरकाल घोर
दुःख’प नरक मO िगरके महाeलेश भोगते ह<।।१।।
जो सब जगत् मO aापक है उस िनराकार परमा"मा कR 'ितमा पWरमाण नहc
है।।२।।
जो वाणी कR ‘इद3ता’ अथा&त् यह जल है लीिजये, वैसा िवषय नहc। और िजस
के धारण और सsा से वाणी कR 'वृिs होती है उसी को {| जान और
उपासना कर। और जो उससे िभ– है वह उपासनीय नहc।।१।।
जो मन से ‘इयsा’ करके मन मO नहc आता, जो मन को जानता है उसी {|
को तू जान और उसी कR उपासना कर। जो उस से िभ– जीव और अ3तःकरण
है उस कR उपासना {| के Hथान मO मत कर।।२।।
जो आंख से नहc दीख पड़ता और िजस से सब अं◌ाखO देखती ह<, उसी को तू
{| जान और उसी कR उपासना कर। और जो उस से िभ– सूय&, िव‡ुत् और
अि« आjद जड़ पदाथ& ह< उन कR उपासना मत कर।।३।।
जो ~ो• से नहc सुना जाता और िजस से ~ो• सुनता है उसी को तू {| जान
और उसी कR उपासना कर। और उस से िभ– शdदाjद कR उपासना उस के
Hथान मO मत कर।।४।।
जो 'ाणi से चलायमान नहc होता िजस से 'ाण गमन को 'ाƒ होता है उसी
{| को तू जान और उसी कR उपासना कर। जो यह उस से िभ– वायु है उस
कR उपासना मत कर।।५।।

जो-जो >3थ वेद से िव˜Z ह< उन-उन का 'माण करना जानो नािHतक होना
है। सुनो-
नािHतको वेदिन3दक ।।१।।
या वेदबाÉा Hमृतयो याt काt कु दृ…य ।
सवा&Hता िन‘फला 'े"य तमोिन¼ा िह ता Hमृता ।।२।।
उ"प‡3ते ¸यव3ते च या3यतोऽ3यािन कािनिचत्।
ता3यवा&Ùािलकतया िन‘फला3यनृतािन च।।३।। मनु० अ० १२।।
मनु जी कहते ह< jक जो वेदi कR िन3दा अथा&त् अपमान, "याग, िव˜Zाचरण
करता है वह नािHतक कहाता है।।१।।
जो >3थ वेदबाÉ कु ि"सत पु˜षi के बनाये संसार को दुःखसागर मO डु बोने
वाले ह< वे सब िन‘फल, अस"य, अ3धकार’प, इस लोक और परलोक मO
दुःखदायक ह<।।२।।
जो इन वेदi से िव˜Z >3थ उ"प– होते ह< वे आधुिनक होने से शीÎ न… हो
जाते ह<। उन का मानना िन‘फल और भफ़ूं ठा है।।३।।
इसी 'कार {|ा से लेकर जैिमिन मह“षपय&3त का मत है jक वेदिव˜Z को न
मानना jक3तु वेदानुकूल ही का आचरण करना धम& है। eयi? वेद स"य अथ& का
'ितपादक है । छोटे धा“मक िवyानi से लेकर परम िवyान् योिगयi के संग से
सिy‡ा और स"यभाषणाjद परमे5र कR 'ािƒ कR सीjढ़या ह< जैसी ऊपर घर
मO जाने कR िनः~ेणी होती है।
जो स0ी प€ायतन वेदोž और वेदानुकूलोž देवपूजा है वह सुनो-
मा नो वधीः िपतरं मोत मातरम् ।।१।। यजु०।।
आचाय&ऽउपनयमानो {|चाWरणिम¸छते ।।२।।
अितिथगृ&हानुपग¸छेत् ।।३।। अथव&०।।
अचत& पा्रचत& ि'यमधेासो अचत& ।।४।। ऋ•वेद०े ।।
"वमेव '"यzं {|ािस "वामेव '"यzं {| वjद‘यािम।।५।। -तैिनरीयोप०।।
कतम एको देव इित स {| "यjद"याचzते।।६।।
-शतपथ 'पाठ० ५। {ा|ण ७। कि‹डका १०।।
मातृदव
े ो भव िपतृदव
े ो भव आचाय&दव
े ो भव अितिथदेवो भव।।७।।
-तैिनरीयोप०।।
िपतृिभ±ा&तृिभtैता पितिभद·वरै Hतथा ।
पू°या भूषियतaाt बgकqयाणमीÊसुिभ ।।८।।
पू°यो देवव"पितः।।९।। मनुHमृतौ।।
'थम माता मूि◌s&मती पूजनीय देवता, अथा&त् स3तानi को तन, मन, धन से
सेवा करके माता को 'स– रखना, िहसा अथा&त् ताड़ना कभी न करना। दूसरा
िपता स"कs&a देव। उस कR भी माता के समान सेवा करनी।।१।। तीसरा
आचाय& जो िव‡ा का देने वाला है उस कR तन, मन, धन से सेवा करनी।।२।।
चौथा अितिथ जो िवyान्, धाि◌म&क, िन‘कपटी, सब कR उ–ित चाहने वाला
जगत् मO ±मण करता gआ, स"य उपदेश से सब को सुखी करता है उस कR सेवा
करO ।।३।।
पांचवां ¬ी के िलये पित और पु˜ष के िलये Hवप¢ी पूजनीय है।।८।। ये पांच
मूि◌s&मान् देव िजन के संग से मनु‘यदेह कR उ"पिs, पालन, स"यिशzा, िव‡ा
और स"योपदेश कR 'ािƒ होती ह< ये परमे5र को 'ािƒ होने कR सीjढ़यां ह<।

('-) >हi का फल होता है वा नहc?


(उsर) जैसा पोपलीला का है वैसा नहc jक3तु जैसा सू‰य& च3¥मा कR jकरण
yारा उ‘णता शीतलता अथवा ऋतुव"कालच¦ के स›ब3धमा• से अपनी
'कृ ित के अनूकुल 'ितकू ल सुख-दुःख के िनिमs होते ह<।
('-) कु पा• और सुपा• का लzण eया है?
(उsर) जो छली, कपटी, HवाथŠ, िवषयी, काम, ¦ोध, लोभ, मोह से युž,
परहािन करने वाले ल›पटी, िम•यावादी, अिवyान्, कु संगी, आलसी; जो कोई
दाता हो उसके पास बार›बार मांगना, धरना देना, ना jकये पtात् भी हठता
से मांगते ही जाना, स3तोष न होना, जो न दे उस कR िन3दा करना, शाप और
गािल'दानाjद देना। अनेक वार जो सेवा करे और एक वार न करे तो उस का
श•ु बन जाना, ऊपर से साधु का वेश बना लोगi को बहकाकर ठगना और
अपने पास पदाथ& हो तो भी मेरे पास कु छ भी नहc है कहना, सब को फु सला
फु सलू कर Hवाथ& िसZ करना, रात jदन भीख मांगने ही मO 'वृs रहना,
िनम3•ण jदये पर यथे… भंगाjद मादक ¥a खा पीकर बgत सा पराया पदाथ&
खाना, पुनः उ3मs होकर 'मादी होना, स"य-माग& का िवरोध और भफ़ू ठ-
माग& मO अपने 'योजनाथ& चलना, वैसे ही अपने चेलi को के वल अपनी ही सेवा
करने का उपदेश करना, अ3य यो•य पु˜षi कR सेवा करने का नहc, सिy‡ाjद
'वृिs के िवरोधी, जगत् के aवहार अथा&त् ¬ी, पु˜ष, माता, िपता, स3तान,
राजा, 'जा इ…िम•O मO अ'ीित कराना jक ये सब अस"य ह< और जगत् भी
िम•या है। इ"याjद दु… उपदेश करना आjद कु पा•O के लzण ह<। और जो
{|चारी, िजतेि3¥य, वेदाjद िव‡ा के पढ़ने पढ़ाने हारे , सुशील, स"यवादी,
परोपकारि'य, पु˜षाथŠ, उदार, िव‡ा धम& कR िनर3तर उ–ित करनेहारे ,
धमा&"मा, शा3त, िन3दा Hतुित मO हष& शोकरिहत, िनभ&य, उ"साही, योगी,
Xानी, सृि…¦म, वेदाXा, ई5र के गुण, कम&, Hवभावानुकूल वs&मान करनेहारे ,
3याय कR रीित युž, पzपातरिहत, स"योपदेश और स"यशा¬O के पढ़ने
पढ़ानेहारे के परीzक, jकसी कR लqलो पsो न करO , '-i के यथाथ&
समाधानकsा&, अपने आ"मा के तुqय अ3य का भी सुख, दुःख, हािन, लाभ
समभफ़ने वाले, अिव‡ाjद eलेश, हठ, दुरा>हाऽिभमानरिहत, अमृत के समान
अपमान और िवष के समान मान को समभफ़ने वाले, स3तोषी, जो कोई 'ीित
से िजतना देवे उतने ही से 'स–, एक वार आप"काल मO मांगे भी न देने वा
वज&ने पर भी दुःख वा बुरी चे…ा न करना, वहां से भफ़ट लौट जाना, उस कR
िन3दा न करना, सुखी पु˜षi के साथ िम•ता, दुिखयi पर क˜णा, पु‹या"माu
से आन3द और पािपयi से उपेzा अथा&त् रागyेषरिहत रहना, स"यमानी,
स"यवादी, स"यकारी, िन‘कपट, ई‘या&yष े रिहत, ग›भीराशय, स"पु˜ष, धम& से
युž और सव&था दु…ाचार से रिहत अपने तन मन धन को परोपकार करने मO
लगाने वाले, पराये सुख के िलये अपने 'ाणi को भी सिमप&तकsा& इ"याjद
शुभलzणयुž सुपा• होते ह<। पर3तु दुि◌भ&zाjद आप"काल मO अ–, जल, व¬
और औषिध प•य Hथान के अिधकारी सब 'ाणीमा• हो सकते ह<।
('-) दाता jकतने 'कार के होते ह<?
(उsर) तीन 'कार के -उनम, म—यम और िनकृ …। उsम दाता उस को कहते ह<
जो देश काल और पा• को जानकर स"यिव‡ा, धम& कR उ–ित’प परोपकाराथ&
देवे। म—यम वह है जो कRि◌त& वा Hवाथ& के िलए दान करे । नीच वह है jक
अपना वा पराया कु छ उपकार न कर सके jक3तु वेŸयागमनाjद वा भांड भाटi
आjद को देवे, देते समय ितरHकार अपमानाjद कु चे…ा भी करे , पा• कु पा• का
कु छ भी भेद न जाने jक3तु ‘सब अ– बारह पसेरी’ बेचने वालi के समान िववाद
लड़ाई, दूसरे धमा&"मा को दुःख देकर सुखी होने के िलये jदया करे , वह अधम
दाता है। अथा&त् जो परीzापूव&क िवyान् धमा&"माu का स"कार करे वह उsम
और जो कु छ परीzा करे वा न करे पर3तु िजस मO अपनी 'शंसा हो उस को
म—यम और जो अ3धाधु3ध परीzारिहत िन‘फल दान jदया करे वह नीच दाता
कहाता है।
('-) दान के फल यहां होते ह< वा परलोक मO?
(उsर) सव&• होते ह<।
('-) Hवयं होते ह< वा कोई फल देने वाला है?
(उsर) फल देने वाला ई5र है। जैसे कोई चोर डाकू Hवयं ब3दीघर मO जाना
नहc चाहता, राजा उस को अवŸय भेजता है, धमा&"माu के सुख कR रzा
करता, भुगाता, डाकू आjद से बचाकर उन को सुख मO रखता है वैसे ही
परमा"मा सब को पाप पु‹य के दुःख और सुख’प फलi को यथावत् भुगाता
है।

वाममागŠ बड़े भारी अपराधी ह<। जब वे चेला करते ह< तब साधारण को-
दं दुगा&यै नम । भं भैरवाय नम । 1 ×c eली◌े◌ं चामु‹डायै िव0े।।
इ"याjद म3•O का उपदेश कर देते ह< और बंगाले मO िवशेष करके एकाzरी
म3•ेपदेश करते ह<। जैसा-
×c, ~c, eलc।।
इ"याjद और धनाÚi का पूणा&िभषेक करते ह<। ऐसे दश महािव‡ाu के म3•-
×ां ×c 2ूं बगलामुwयै फट् Hवाहा।।
कहc-कहc-
•ं फट् Hवाहा।।
और मारण, मोहन, उ0ाटन, िवyेषण, वशीकरण आjद 'योग करते ह<।
सो म3• से तो कु छ भी नहc होता jक3तु j¦या से सब कु छ करते है◌े◌ं। जब
jकसी को मारने का 'योग करते ह< तब इधर कराने वाले से धन ले के आटे वा
िमÝी का पूतला िजस को मारना चाहते ह< उस का बना लेते ह<! उस कR छाती,
नािभ, क‹ठ मO छु रे 'वेश कर देते ह<। आंख, हाथ, पग मO कRलO ठोकते ह<। उस
के ऊपर भैरव वा दुगा& कR मूि◌s& बना हाथ मO ि•शूल दे उस के Æदय पर लगाते
ह<। एक वेदी बनाकर मांस आjद का होम करने लगते ह< और उधर दूत आjद
भेज के उस को िवष आjद से मारने का उपाय करते ह< जो अपने पुरtरण के
बीच मO उस को मार डाला तो अपने को भैरव देवी कR िसिZ वाले बतलाते
ह<◌े।
‘‘भैरवो भूतनाथt’’ इ"याjद का पाठ करते ह<।
मारय-मारय, उ0ाटय-उ0ाटय, िवyेषय-िवyेषय, िछि3ध-िछि3ध, िभि3ध-
िभि3ध, वशीकु ˜-वशीकु ˜, खादय-खादय, भzय-भzय, •ेटय-•ेटय, नाशय-
नाशय, मम श•ून् वशीकु ˜-वशीकु ˜, gं फट् Hवाहा।।
इ"याjद म3• जपते, म‡ मांसाjद यथे… खाते-पीते, भृकुटी के बीच मO िस3दूर
रे खा देत,े कभी-कभी काली आjद के िलये jकसी आदमी को पकड़ मार होम
कर कु छ-कु छ उस का मांस खाते भी ह<। जो कोई भैरवीच¦ मO जावे, म‡ मांस
न पीवे, न खावे तो उस को मार होम कर देते ह<। उन मO से जो अघोरी होता है
वह मृत मनु‘य का भी मांस खाता है। अजरी बजरी करने वाले िव¼ा मू• भी
खाते-पीते ह<। एक चोलीमाग& और बीजमागŠ भी होते ह<। चोली माग&वाले एक
गुƒ Hथान वा भूिम मO एक Hथान बनाते ह< । वहां सब कR ि¬यां, पु˜ष, लड़का,
लड़कR, बिहन, माता, पु•वधू आjद सब इक$े हो सब लोग िमलिमला कर
मांस खाते, म‡ पीते, एक ¬ी को नंगी कर उस के गुƒ इि3¥य कR पूजा सब
पु˜ष करते ह< और उस का नाम दुगा&दव े ी धरते ह<। एक पु˜ष को नंगा कर उस
के गुƒ इि3¥य कR पूजा सब ि¬यां करती ह<। जब म‡ पी-पी के उ3मs हो जाते
ह< तब सब ि¬यi के छाती के व¬ िजसको चोली कहते ह< एक बड़ी िमÝी कR
नांद मO सब व¬ िमलाकर रखके एक-एक पु˜ष उस मO हाथ डाल के िजस के
हाथ मO िजस का व¬ आवे वह माता, बिहन, क3या और पु•ववमू eयi न हो
उस समय के िलये वह उस कR ¬ी हो जाती है। आपस मO कु कम& करने और
बgत नशा चढ़ने से जूते आjद से लड़ते िभड़ते ह<। जब 'ातःकाल कु छ अ3धेरे
मO अपने-अपने घर को चले जाते ह< तब माता माता, क3या क3या, बिहन बिहन
और पु•वधू पु•वधू हो जाती ह<। और बीजमागŠ ¬ी पु˜ष के समागम कर जल
मO वीय& डाल िमलाकर पीते ह<। ये पामर ऐसे कमŽ को मुिž के साधन मानते
है◌े◌ं। िव‡ा िवचार सœनताjद रिहत होते ह<।

अब इन मO बgत से खाखी लकड़े कR लंगोली लगा धूनी तापते, जटा बढ़ाते,


िसZ का वेश कर लेते ह<। बगुले के समान —यानाविHथत होते ह<। गांजा, भांग
चरस के दम लगाते; लाल ने• कर रखते; सब से चुटकR-चुटकR अ–, िपसान,
कौड़ी, पैसे मांगते, गृहHथi के लड़कi को बहकाकर चेले बना लेते ह<। बgत
करके मजूर लोग उन मO होते ह<। कोई िव‡ा को पढ़ता हो तो उसको पढ़ने नहc
देते jक3तु कहते ह< jक-
पWठतaं तदिप मs&aं द3तकटाकटेित jक कs&aम्।।
स3तi को िव‡ा पढ़ने से eया काम eयijक िव‡ा पढ़ने वाले भी मर जाते ह<
jफर द3त कटाकट eयi करना? साधुu को चार धाम jफर आना, स3तi कR
सेवा करनी, राम जी का भजन करना। जो jकसी ने मूख& अिव‡ा कR मूि◌s& न
देखी हो तो खाखी जी का दश&न कर आवO। उन के पास जो कोई जाता है उन
को ब0ा ब0ी कहते ह< चाहO वे खाखी जी के बाप माँ के समान eयi न हi। जैसे
खाखी जी ह< वैसे ही ’ंखड़, सूंखड़, गोदिड़ये और जमात वाले सुतरे साई और
अकाली, कानफटे, जोगी, औघड़, आjद सब एक से है◌े◌ं।
एक खाखी का चेला ‘~ीगणेशाय नम ’ घोखता-घोखता कु वO पर जल भरने को
गया। वहां पि‹डत बैठा था। वह उस को ‘êीगने साजनमO’ घोखते देखकर
बोला, अरे साधु! अशुZ घोखता है ‘~ीगणेशाय नम ’ ऐसा घोख। उस ने भफ़ट
लोटा भर गु˜ जी के पास जा कहा jक ए ब›मन मेरे घोखने को असुZ कहता
है। ऐसा सुन कर भफ़ट खाखी जी उठा, कू प पर गया और पि‹डत से कहा-तू
मेरे चेले को बहकाता है? तूं गु˜ कR लंडी eया पढ़ा है? देख तूं एक 'कार का
पाठ जानता है हम तीन 'कार का जानते ह<। ‘êीगनेसाज–मO’ ‘êीगनेसा य–मO’
‘~ीगनेसाय नमO’।
(पि‹डत) सुनो साधु जी! िव‡ा कR बात बgत कWठन है। िवना पढ़े नहc आती।
(खाखी) चल बे, सब िवyान् को हम ने रगड़ मारे , गांजे भांग मO घोट एकदम
सब उड़ा jदये। स3तi का घर बड़ा है। तू बाबूडा eया जाने?
(पि‹डत) देखो! जो तुम ने िव‡ा पढ़ी होती तो ऐसे अपशdद eयi बोलते? सब
'कार का तुम को Xान होता।
(खाखी) अबे तू हमारा गु˜ बनता है? तेरा उपदेश हम नहc सुनते। (पि‹डत)
सुनो कहां से? बुिZ ही नहc है। उपदेश सुनने समभफ़ने के िलये िव‡ा चािहये।
(खाखी) जो सब वेद शा¬ पढ़े, स3तi को न माने तो जानो jक वह कु छ भी
नहc पढ़ा।
(पि‹डत) हां! हम स3तi कR सेवा करते ह< पर3तु तु›हारे से gद¶गi कR नहc करते,
eयijक स3त, सœन, िवyान्, धाि◌म&क, परोपकारी पु˜षi को कहते ह<।
(खाखी) देख! हम रात jदन नंगे रहते, धूनी तापते, गांजा चरस के सैकड़i
दम लगाते, तीन-तीन लोटा भांग पीते, गांज,े भांग, धतूरा कR पsी कR भाजी
(शाक) बना खाते, संिखया और अफRम भी चट िनगल जाते, नशा मO गक& रात
jदन बेगम रहते, दुिनया को कु छ नहc समभफ़ते, भीख मांगकर WटÙड़ बना
खाते, रात भर ऐसी खांसी उठती जो पास मO सोवे उस को भी नcद कभी न
आवे, इ"याjद िसिZयां और साधूपन हम मO ह<, jफर तू हमारी िन3दा eयां◌े
करता है? चेत बाबूड़!े जो हम को jदÙ करे गा हम तुम को भHम कर डालOगे।
(पि‹डत) ये सब लzण असाधु मूख& और गवग&‹डi के ह<; साधुu के नहc! सुनो!
‘साÑोित परािण धम&काया&िण स साधु ’ जो धम&युž उsम काम करे , सदा
परोपकार मO 'वृs हो, कोई दुगु&ण िजसमO न हो, िवyान्, स"योपदेश से सब
का उपकार करे उस को ‘साधु’ कहते ह<।
(खाखी) चल बे, तू साधू के कम& eया जाने? स3तi का घर बड़ा है। jकसी स3त
से अटकना नहc, नहc तो देख एक चीमटा उठाकर मारे गा, कपाल फु ड़वा लेगा।
(पि‹डत) अ¸छा खाखी! जाओ अपने आसन पर, हम से बgत गुHसे मत हो।
जानते हो रा°य कै सा है? jकसी को मारोगे तो पकड़े जाओगे, कारावास
भोगोगे, बOत खाओगे वा कोई तुम को भी मार बैठेगा jफर eया करोगे? यह
साधु का लzण नहc।
(खाखी) चल बे चेल!े jकस राzस का मुख jदखलाया। (पि‹डत) तुम ने कभी
jकसी महा"मा का संग नहc jकया है। नहc तो ऐसे जड़, मूख& नहc रहते।
(खाखी) हम आप ही महा"मा ह<। हम को jकसी दूसरे कR गज& नहc।
(पि‹डत) िजन के भा•य न… होते ह< उन कR तु›हारी सी बुिZ और अिभमान
होता है। खाखी चला गया आसन पर और पि‹डत घर को गये। जब स3—या
आतŠ हो गई तब उस खाखी को बुöा समभफ़ बgत से खाखी ‘ड‹डोत-ड‹डोत’
कहते सा…ांग करके बैठे। उस खाखी ने पूछा अबे रामदािसया! तू eया पढ़ा है?
(रामदास) महाराज! म<ने ‘वेÈसु हसरनाम’ पढ़ा है। अबे गोिव3ददािसये! तू eया
पढ़ा है? (गोिव3ददास) मै◌े◌ं ‘रामसतबराज’ पढ़ा •ं; अमुक खाखी जी के पास
से। तब रामदास बोला jक महाराज आप eया पढ़े ह<?
(खाखी) हम गीता पढ़े ह<। (रामदास) jकसके पास? (खाखी) चल बे छोकरे !
हम jकसी को गु˜ नहc करते। देख! हम ‘परागराज’ मO रहते थे हम को अeखर
नहc आता था। जब jकसी ल›बी धोती वाले पि‹डत को देखता था तब गीता
के गोटके मO पूछता था। jक कलंगीवाले अeखर का eया नाम है? ऐसे पूछता-
पूछता अठारा अ—याय गीता रगड़ मारी। गु˜ एक भी नहc jकया। भला ऐसे
िव‡ा के श•ुu को अिव‡ा घर करके ठहरे नहc तो कहां जाय?
ये लोग िवना नशा, 'माद, लड़ना, खाना, सोना, भफ़ांभफ़ पीटना, घ‹टा
घिड़याल शंख बजाना, धूनी िचता रखनी, नहाना, धोना, सब jदशाu मO aथ&
घमूते jफरने के अ3य कु छ भी अ¸छा काम नहc करते। चाहे कोई प"थर को भी
िपघला लेवे, पर3तु इन खािखयi के आ"माu को बोध कराना कWठन है eयijक
बgधा वे शू¥वण& मजूर, jकसान, कहार आjद अपनी मजूरी छोड़ के वल खाख
रमा के वैरागी खाखी आjद हो जाते ह<। उन को िव‡ा वा स"संग आjद का
माहा"›य नहc
जान पड़ सकता। और ऐसी-ऐसी िशzा करते ह< jक ब0े! तूंबे का म3• पढ़ ले-
जल पिवतर सथल पिवतर और पिवतर कु आ।
िशव कहे सुन पाव&ती तूंबा पिवतर gआ।।
भला ऐसे कR यो•यता साधु वा िवyान् होने अथवा जगत् के उपकार करने कR
कभी हो सकती है? खाखी रात jदन लÙड़, छाने (जंगली क‹डे) जलाया करते
ह<। एक महीने मO कई ˜पये कR लकड़ी फूं क देते ह<। जो एक महीने कR लकड़ी
के मूqय से क›बलाjद व¬ ले लO तो शतांश धन से आन3द मO रह<। उन को इतनी
बुिZ कहां से आवे? और अपना नाम उसी धूनी मO तपने ही से तपHवी धर रखा
है। जो इस 'कार तपHवी हो सकO तो जंगली मनु‘य इन से भी अिधक तपHवी
हो जावO। जो जटा बढ़ाने, राख लगाने, ितलक करने से तपHवी हो जाय तो सब
कोई कर सके । ये ऊपर के "यागHव’प और भीतर के महासं>ही होते ह<।
('-) पंजाब देश मO नानक जी ने एक माग& चलाया है। मुसलमान होने से
बचाये। वे साधु भी नहc gए jक3तु गृहHथ बने रहे। देखो! उ3हiने यह म3•
उपदेश jकया है इसी से िवjदत होता है jक उन का आशय अ¸छा था-
u स"यनाम कsा& पु˜ष िनभª िनवÄर अकालमूs& अजोिन सहभं गु˜ 'साद जप
आjदसच जुगाjद सच है भी सच नानक होसी भी सच।।
(ओ३म्) िजस का स"य नाम है वह कsा& पु˜ष भय और वैररिहत अकाल मूि◌s&
जो काल मO और जोिन मO नहc आता; 'काशमान है उसी का जप गु˜ कR कृ पा
से कर। वह परमा"मा आjद मO सच था; जुगi कR आjद मO सच; वs&मान मO सच;
और होगा भी सच ।
(उsर) नानक जी का आशय अ¸छा था। यह सच है jक िजस समय नानक जी
पंजाब मO gए थे उस समय पंजाब संHकृ त िव‡ा से सव&था रिहत मुसलमानi से
पीिड़त था। उस समय उ3हiने लोगi को बचाया। नानक जी के सामने कु छ उन
का स›'दाय वा बgत से िश‘य नहc gए थे। eयijक अिवyानi मO यह चाल है
jक मरे पीछे उन को िसZ बना लेते है◌े◌ं, पtात् बgत सा माहा"›य करके
ई5र के समान मान लेते ह<। हां! नानक जी बड़े धनाÚ और रईस भी नहc थे
पर3तु उन के चेलi ने ‘नानकच3¥ोदय’ और ‘ज3मशाखी’ आjद मO बड़े िसZ और
बड़े-बड़े ऐ5य& वाले थे; िलखा है। नानक जी {|ा आjद से िमले; बड़ी बातचीत
कR, सब ने इन का मा3य jकया। नानक जी के िववाह मO बgत से घोड़े, रथ,
हाथी, सोने, चांदी, मोती, प–ा, आjद र¢i से सजे gए और अमूqय र¢i का
पारावार न था; िलखा है। भला ये गपोड़े नहc तो eया ह<? इस मO इनके चेलi
का दोष है, नानक जी का नहc। इन का गु˜ गोिव3दिसह जी दशमा gआ।
गोिव3दिसह जी शूरवीर gए। जो मुसलमानi ने उनके पु˜षाu को बgत सा
दुःख jदया था। उन से वैर लेना चाहते थे पर3तु इन के पास कु छ साम>ी न थी
और इधर मुसलमानi कR बादशाही '°विलत हो रही थी। इ3हiने एक
पुरtरण करवाया। 'िसिZ कR jक मुभफ़ को देवी ने वर और ख"ग jदया है
jक तुम मुसलमानi से लड़ो; तु›हारा िवजय होगा। बgत से लोग उन के साथी
हो गये और उ3हiने; जैसे वाममाि◌ग&यi ने ‘प€ मकार’ च¦ांjकतi ने ‘प€
संHकार’ चलाये थे वैसे ‘प€ ककार’ चलाये। अथा&त् इनके प€ ककार युZ मO
उपयोगी थे। एक ‘के श’ अथा&त् िजस के रखने से लड़ाई मO लकड़ी और तलवार
से कु छ बचावट हो। दूसरा ‘कं गण’ जो िशर के ऊपर पगड़ी मO अकाली लोग
रखते ह< औेर हाथ मO ‘कड़ा’ िजस से हाथ और िशर बच सकO । तीसरा ‘काछ’
अथा&त् जानु के ऊपर एक जांिघया jक जो दौड़ने और कू दने मO अ¸छा होता है
बgत करके अखाड़मqल और नट भी इस को धारण इसीिलये करते ह< jक िजस
से शरीर का मम&Hथान बचा रहै और अटकाव न हो। चौथा ‘कं गा’ jक िजस से
के श सुधरते ह<। पांचवां ‘काचू’ jक िजस से श•ु से भOट भड़Ùा होने से लड़ाई मO
काम आवे। इसीिलये यह रीित गोिव3दिसह जी ने अपनी बुिZमsा से उस
समय के िलये कR थी।
{ा|समाज और 'ाथ&नासमाज
('-) {ा|समाज और 'ाथ&नासमाज तो अ¸छा है वा नहc?
(उsर) कु छ-कु छ बातO अ¸छी और बgत सी बुरी ह<।
('-) {ा|समाज और 'ाथ&नासमाज सब से अ¸छा है eयijक इस के िनयम
बgत अ¸छे ह<।
(उsर) िनयम सवा¶श मO अ¸छे नहc eयijक वेदिव‡ाहीन लोगi कR कqपना
सव&था स"य eयiकर हो सकती है? जो कु छ {ा|समाज और 'ाथ&नासमािजयi
ने ईसाई मत मO िमलने से थोड़े मनु‘यi को बचाये और कु छ-कु छ पाषाणाjद
मू“sपूजा को हटाया अ3य जाल >3थi के फ3द से भी कु छ बचाये इ"याjद अ¸छी
बातO ह<।
१-पर3तु इन लोगi मO Hवदेशभिž बgत 3यून है। ईसाइयi के आचरण बgत से
ले िलये ह<। खानपान िववाहाjद के िनयम भी बदल jदये ह<।
२-अपने देश कR 'शंसा वा पूव&जi कR बड़ाई करनी तो दूर उस के Hथान मO पेट
भर िन3दा करते ह<। aाwयानi मO ईसाई आjद अंगरे जi कR 'शंसा भरपेट करते
ह<। {|ाjद मह“षयi का नाम भी नहc लेते '"युत ऐसा कहते ह< jक िवना
अंगरे जi के सृि… मO आज पय&3त कोई भी िवyान् नहc gआ। आ‰या&वsŠ लोग
सदा से मूख& चले आये ह<। इन कR उ–ित कभी नहc gई।
३-वेदाjदकi कR 'ित¼ा तो दूर रही पर3तु िन3दा करने से भी पृथÀफ़ नहc
रहते। {ा|समाज के उÖेŸय के पुHतक मO साधुu कR संwया मO ‘ईसा’, ‘मूसा’,
‘मुह›मद’, ‘नानक’ और ‘चैत3य’ िलखे ह<। jकसी ऋिष मह“ष का नाम भी नहc
िलखा। इस से जाना जाता है jक इन लोगi ने िजन का नाम िलखा है उ3हc के
मतानुसारी मत वाले ह<। भला ! जब आ‰या&वs& मO उ"प– gए ह< और इसी देश
का अ– जल खाया िपया, अब भी खाते पीते ह<। अपने माता, िपता,
िपतामहाjद के माग& को छोड़ दूसरे िवदेशी मतi पर अिधक भफ़ु क जाना,
{ा|समाजी और 'ाथ&नासमािजयi का एतÖेशHथ संHकृ त िव‡ा से रिहत
अपने को िवyान् 'कािशत करना, इं गिलश भाषा पढ़के पि‹डतािभमानी
होकर भफ़Wटित एक मत चलाने मO 'वृs होना, मनु‘यi का िHथर और
वृिZकारक काम eयiकर हो सकता है?
४-अंगरे ज, यवन, अ3"यजाjद से भी खाने का भेद नहc रeखा। इ3हiने यही
समझा होगा jक खाने पीने और जाितभेद तोड़ने से हम और हमारा देश सुधर
जायेगा पर3तु ऐसी बातi से सुधार तो कहां है, उqटा िबगाड़ होता है।
५-('-) जाितभेद ई5रकृ त है वा मनु‘यकृ त?
(उsर) ई5रकृ त और मनु‘यकृ त भी जाितभेद है।
('-) कौन से ई5रकृ त और कौन से मनु‘यकृ त?
(उsर) मनु‘य, पशु, पzी, वृz, जलज3तु आjद जाितयां परमे5रकृ त ह<। जैसे
पशुu मO गौ, अ5, हिHत आjद जाितयां, वृzi मO पीपल, वट, आ¨ आjद;
पिzयi मO हंस, काक, वकाjद; जलज3तुu मO म"Hय, मकराjद जाितभेद ह< ।
वैसे मनु‘यi मO {ा|ण, zि•य, वैŸय, शू¥, अ3"यज जाितभेद ह<; ई5रकृ त ह<
पर3तु
मनु‘यi मO {ा|णाjद को सामा3य जाित मO नहc jक3तु सामा3य िवशेषा"मक
जाित मO िगनते ह<। जैसे पूव& वणा&~मaवHथा मO िलख आये वैसे ही गुण, कम&,
Hवभाव से वण&aवHथा माननी अवŸय ह<। इसमO मनु‘यकृ त"व उनके गुण, कम&,
Hवभाव से पूवªžानुसार {ा|ण, zि•य, वैŸय, शू¥ाjद वणŽ कR परीzापूव&क
aवHथा करनी राजा और िवyानi का काम है। भोजनभेद भी ई5रकृ त और
मनु‘यकृ त भी है। जैसे िसह मांसाहारी और अणा&भ<सा घासाjद का आहार करते
ह< यह ई5रकृ त और देशकाल वHतु भेद से भोजनभेद मनु‘यकृ त है। देखो!
यूरोिपयन लोग मुंडे जूते, कोट पतलून पहरते, होटल मO सब के हाथ का खाते
ह< इसीिलए अपनी बढ़ती करते जाते ह<।
(उsर) यह तु›हारी भूल है eयijक मुसलमान अ3"यज लोग सब के हाथ का
खाते ह< पुनः उन कR उ–ित eयi नहc होती? जो यूरोिपयनi मO बाqयावHथा
मO िववाह न करना, लड़का-लड़कR को िव‡ा सुिशzा करना कराना, Hवयंवर
िववाह होना, बुरे-बुरे आदिमयi का उपदेश नहc होता। वे िवyान् होकर िजस
jकसी के पाख‹ड मO नहc फं सते, जो कु छ करते ह< वह सब परHपर िवचार और
सभा से िनिtत करके करते ह<। अपनी Hवजाित कR उ–ित के िलये तन, मन,
धन aय करते ह<। आलHय को छोड़ उ‡ोग jकया करते ह<। देखो ! अपने देश
के बने gए जूते को काया&लय (आjफस) और कचहरी मO जाने देते ह< इस देशी
जूते को नहc। इतने ही मO समझ लेओ jक अपने देश के बने जूतi का भी jकतना
मान 'ित¼ा करते ह<, उतना भी अ3य देशHथ मनु‘यi का नहc करते। देखो !
कु छ सौ वष& से ऊपर इस देश मO आये यूरोिपयनi को gए और आज तक ये लोग
मोटे कपड़े आjद पिहरते ह< जैसा jक Hवदेश मO पिहरते थे पर3तु उ3हiने अपने
देश का चाल चलन नहc छोड़ा और तुम मO से बgत से लोगi ने उनका अनुकरण
कर िलया। इसी से तुम िनबु&िZ और वे बुिZमान् ठहरते ह<। अनुकरण का करना
jकसी बुिZमान् का काम नहc। और जो िजस काम पर रहता है उस को
यथोिचत करता है। आXानुवतŠ बराबर रहते ह<। अपने देशवालi को aापार
आjद मO सहाय देते ह<; इ"याjद गुणi और अ¸छे-अ¸छे कमŽ से उन कR उ–ित
है। मु‹डे जूत,े कोट, पतलून, होटल मO खाने पीने आjद साधारण और बुरे कामi
से नहc बढ़े ह<। और इन मO जाितभेद भी है। देखो ! जब कोई यूरोिपयन चाहै
jकतने बड़े अिधकार पर और 'िति¼त हो jकसी अ3य देश अ3य मत वालi कR
लड़कR वा यूरोिपयन कR लड़कR अ3य देशवाले से िववाह कर लेती है तो उसी
समय उस का िनम3•ण, साथ बैठ कर खाने और िववाह आjद को अ3य लोग
बंध कर देते ह<। यह जाितभेद नहc तो eया है? और तुम भोले भालi को बहकाते
ह< jक हम मO जाितभेद नहc। तुम अपनी मूख&ता से मान भी लेते हो। इसिलये
जो कु छ करना वह सोच-िवचार कर करना चािहये िजसमO पुनः पtाsाप
करना न पड़े।
देखो! वै‡ और औषध कR आवŸयकता रोगी के िलए है; नीरोग के िलये नहc।
िव‡ावान् नीरोग और िव‡ारिहत अिव‡ारोग से >Hत रहता है। उस रोग के
छु ड़ाने के िलये स"य िव‡ा और स"योपदेश है। उन को अिव‡ा से यह रोग है
jक खाने पीने ही मO ध›म& रहता और जाता है। जब jकसी को खाने पीने मO
अनाचार करता देखते ह< तब कहते और जानते ह< jक वह ध›म&±… हो गया।
उस कR बात न सुनते और न उस के पास बैठते, न उस को अपने पास बैठने
देते।
अब किहये jक तु›हारी िव‡ा Hवाथ& के िलये है अथवा परमाथ& के िलये। परमाथ&
तो तभी होता jक जब तु›हारी िव‡ा से उन अXािनयi को लाभ पgंचता। जो
कहो jक वे नहc लेते हम eया करO ? यह तु›हारा दोष है उन का नहc। eयijक
तुम जो अपना आचरण अ¸छा रखते तो तुम से 'ेम कर वे उपकृ त होते, सो
तुम ने सहêi का उपकार-नाश करके अपना ही सुख jकया सो यह तुम को
बड़ा अपराध लगा, eयijक परोपकार करना ध›म& और परहािन करना अध›म&
कहाता है। इसिलए िवyान् को यथायो•य aवहार करके अXािनयi को दु
खसागर से तारने के िलये नौका’प होना चािहये। सव&था मूखŽ के सदृश कम&
न करने चािहए jक3तु िजस मO उन कR और अपनी jदन 'ितjदन उ–ित हो वैसे
कम& करने उिचत ह<।
('-) हम कोई पुHतक ई5र'णीत वा सवा¶श स"य नहc मानते eयijक मनु‘यi
कR बुिZ िन±ा&3त नहc होती, इस से उन के बनाये >3थ सब ±ा3त होते ह<।
इसिलये हम सब से स"य >हण करते और अस"य को छोड़ देते ह<। चाहे स"य
वेद मO, बाइिबल मO वा कु रान मO और अ3य jकसी >3थ मO हो; हम को >ाÉ है;
अस"य jकसी का नहc।
(उsर) िजस बात से तुम स"य>ाही होना चाहते हो उसी बात से अस"य>ाही
भी ठहरते हो eयijक जब सब मनु‘य ±ाि3तरिहत नहc हो सकते तो तुम भी
मनु‘य होने से ±ाि3तसिहत हो। जब ±ाि3तसिहत के वचन सवा¶श मO 'ामािणक
नहc होते तो तु›हारे वचन का भी िव5ास नहc होगा। jफर तु›हारे वचन पर
भी सव&था िव5ास न करना चािहये। जब ऐसा है तो िवषयुž अ– के समान
"याग के यो•य ह<। jफर तु›हारे aाwयान पुHतक बनाये का 'माण jकसी को
भी न करना चािहये। ‘चले तो चौबे जी छdबे जी बनने को, गांठ के दो खोकर
दुबे जी बन गये।’ कु छ तुम सव&X नहc जैसे jक अ3य मनु‘य सव&X नहc ह<।
कदािचत् ±म से अस"य को >हण कर स"य को छोड़ भी देते होगे। इसिलये
सव&X परमा"मा के वचन का सहाय हम अqपXi को अवŸय होना चािहए।
जैसा jक वेद के aाwयान मO िलख आये ह< वैसा तुम को अवŸय ही मानना
चािहए। नहc तो ‘यतो ±…Hततो ±… ’ हो जाना है। जब सव& स"य वेदi से 'ाƒ
होता है, िजन मO अस"य कु छ भी नहc तो उनका >हण करने मO शंका करनी
अपनी और पराई हािनमा• कर लेनी है। इसी बात से तुम को आ‰या&वsŠय
लोग अपने नहc समझते और तुम आ‰या&वs& कR उ–ित के कारण भी नहc हो
सके eयijक तुम सब घर के िभzुक ठहरे । तुम ने समझा है jक इस बात से हम
लोग अपना और पराया उपकार कर सकO गे सो न कर सकोगे। जैसे jकसी के दो
ही माता-िपता सब संसार के लड़कां◌े का पालन करने लगO। सब का पालन
करना तो अस›भव है jक3तु उस बात से अपने लड़कi को भी न… कर बैठO, वैसे
ही आप लोगi कR गित है। भला! वेदाjद स"य शा¬O को माने िवना तुम अपने
वचनi कR स"यता और अस"यता कR परीzा और आया&वs& कR उ–ित भी कभी
कर सकते हो? िजस देश को रोग gआ है उस कR औषिध तु›हारे पास नहc
और यूरोिपयन लोग तु›हारी अपेzा नहc करते और आया&वsŠय लोग तुम को
अ3य मितयi के
सदृश समझते ह<। अब भी समझ कर वेदाjद के मा3य से देशो–ित करने लगो
तो भी अ¸छा है। जो तुम यह कहते हो jक सब स"य परमे5र से 'कािशत
होता है पुनः ऋिषयi के आ"माu मO ई5र से 'कािशत gए स"याथ& वेदi को
eयi नहc मानते? हां ! यही कारण है jक तुम लोग वेद नहc पढ़े और न पढ़ने
कR इ¸छा करते हो। eयiकर तुम को वेदोž Xान हो सके गा?
६-दूसरा जगत् के उपादान कारण के िवना जगत् कR उ"पिs और जीव को भी
उ"प– मानते हो, जैसा ईसाई और मुसलमान आjद मानते ह<। इस का उsर
सृ‘Þु"पिs और जीवे5र कR aाwया मO देख लीिजए। कारण के िवना काय&
का होना सव&था अस›भव और उ"प– वHतु का नाश न होना भी वैसा ही
अस›भव है।
७-एक यह भी तु›हारा दोष है जो पtाsाप और 'ाथ&ना से पापi कR िनवृिs
मानते हो। इसी बात से जगत् मO बgत से पाप बढ़ गये ह<। eयijक पुराणी लोग
तीथा&jद या• से, जैनी लोग भी नवकार म3• जप और तीथा&jद से; ईसाई लोग
ईसा के िव5ास से; मुसलमान लोग ‘तोबाः’ करने से पाप का छू ट जाना िवना
भोग के मानते ह<। इस से पापi से भय न होकर पाप मO 'वृिs बgत हो गई है।
इस बात मO {ा| और 'ाथ&नासमाजी भी पुराणी आjद के समान ह<। जो वेदi
को सुनते तो िवना भोग के पाप पु‹य कR िनवृिs न होने से पापi से डरते और
धम& मO सदा 'वृs रहते। जो भोग के िवना िनवृिs मानO तो ई5र अ3यायकारी
होता है।
८-जो तुम जीव कR अन3त उ–ित मानते हो सो कभी नहc हो सकती eयijक
ससीम जीव के गुण, कम&, Hवभाव का फल भी ससीम होना अवŸय है।
('-) परमे5र दयालु है। ससीम कमŽ का फल अन3त दे देगा।
(उsर) ऐसा करे तो परमे5र का 3याय न… हो जाय और स"कमŽ कR उ–ित
भी कोई न करे गा। eयijक थोड़े से भी स"कम& का अन3त फल परमे5र दे देगा
और पtाsाप वा 'ाथ&ना से पाप चाहO िजतने हi छू ट जायOगे। ऐसी बातi से
धम& कR हािन और पापकमŽ कR वृिZ होती है।
('-) हम Hवाभािवक Xान को वेद से बड़ा मानते ह<; नैिमिsक को नहc।
eयijक जो Hवाभािवक Xान परमे5रदs हम मO न होता तो वेदi को भी कै से
पढ़ पढ़ा, समभफ़ समभफ़ा सकते। इसिलए हम लोगi का मत बgत अ¸छा है।
(उsर) यह तु›हारी बात िनरथ&क है। eयijक जो jकसी का jदया gआ Xान
होता है वह Hवाभािवक नहc होता। जो Hवाभािवक है वह सहज Xान होता है
और न वह बढ़ घट सकता। उस से उ–ित कोई भी नहc कर सकता। eयijक
जंगली मनु‘यi मO भी Hवाभािवक Xान है तो भी वे अपनी उ–ित नहc कर
सकते? और जो नैिमिsक Xान है वही उ–ित का कारण है। देखो! तुम हम
बाqयावHथा मO कs&aाकs&a और धमा&धम& कु छ भी ठीक-ठीक नहc जानते थे।
जब हम िवyानi से पढ़े तभी कs&aाकs&a और धमा&धम& को समझने लगे।
इसिलए Hवाभािवक Xान को सवªपWर मानना ठीक नहc।
९-जो आप लोगi ने पूव& और पुनज&3म नहc माना है वह ईसाई मुसलमानi से
िलया होगा। इस का भी उsर पुनज&3म कR aाwया से समझ लेना। पर3तु
इतना समझो jक जीव शा5त अथा&त् िन"य है और उस के कम& भी 'वाह’प
से
िन"य ह<। कम& और कम&वान् का िन"य स›ब3ध होता है। eया वह जीव कहc
िनक›मा बैठा रहा था? वा रहेगा? और परमे5र भी िनक›मा तु›हारे कहने से
होता है पूवा&पर ज3म न मानने से कृ तहािन और अकृ ता^यागम, नैघृ&‹य और
वैष›य दोष भी ई5र मO आते ह<, eयijक ज3म न हो तो पाप पु‹य के फल-भोग
कR हािन हो जाय। eयijक िजस 'कार दूसरे को सुख, दुःख, हािन, लाभ
पgँचाया होता है वैसा उस का फल िवना शरीर धारण jकये नहc होता। दूसरा
पूव&ज3म के पाप पु‹यi के िवना सुख, दुःख कR 'ािƒ इस ज3म मO eयiकर होवे?
जो पूव&ज3म के पाप पु‹यानुसार न होवे तो परमे5र अ3यायकारी और िवना
भोग jकये नाश के समान कम& का फल हो जावे इसिलए यह भी बात आप
लोगi कR अ¸छी नहc।
१०-और एक यह jक ई5र के िवना jदa गुणवाले पदाथŽ और िवyानi को
भी देव न मानना ठीक नहc eयijक परमे5र महादेव और देव न होता तो सब
देवi का Hवामी होने से महादेव eयi कहाता?
११-एक अि«हो•jद परोपकारक कमŽ को कs&a न समझना अ¸छा नहc।
१२-िÊष मह“षयi के jकये उपकारi को न मानकर ईसा आjद के पीछे भफ़ु क
पड़ना अ¸छा नहc।
१३-और िवना कारणिव‡ा वेदi के अ3य काय&िव‡ाu कR 'वृिs मानना
सव&था अस›भव है।
१४-और जो िव‡ा का िच§न यXोपवीत और िशखा को छोड़ मुसलमान
ईसाइयi के सदृश बन बैठना यह भी aथ& है। जब पतलून आjद व¬ पिहरते
हो और ‘तमगi’ कR इ¸छा करते हो तो eया यXोपवीत आjद का कु छ बड़ा
भार हो गया था?
१५-और {|ा से लेकर पीछे-पीछे आया&वs& मO बgत से िवyान् हो गये ह<। उन
कR 'शंसा न करके यूरोिपयन ही कR Hतुित मO उतर पड़ना पzपात और
खुशामद के िवना eया कहा जाए?
१६-और बीजांकुर के समान जड़चेतन के योग से जीवो"पिs मानना, उ"पिs
के पूव& जीवतÓव का न मानना और उ"प– का न नाश मानना पूवा&पर िव˜Z
है। जो उ"पिs के पूव& चेतन और जड़ वHतु न था तो जीव कहां से आया और
संयोग jकन का gआ? जो इन दोनi को सनातन मानते हो तो ठीक है पर3तु
सृि… के पूव& ई5र के िवना दूसरे jकसी तÓव को न मानना यह आपका पz
aथ& हो जायेगा। इसिलये जो उ–ित करना चाहो तो उस के उÖेŸयानुसार
आचरण करना Hवीकार कRिजये, नहc तो कु छ हाथ न लगेगा। eयijक हम और
आपको अित उिचत है jक िजस देश के पदाथŽ से अपना शरीर बना; अब भी
पालन होता है; आगे होगा; उसकR उ–ित तन, मन, धन से सब जने िमलकर
'ीित से करO ।
('-) आप सब का ख‹डन करते ही आते हो पर3तु अपने-अपने धम& मO सब
अ¸छे ह<। ख‹डन jकसी का न करना चािहए। जो करते हो तो आप
इन से िवशेष eया बतलाते हो। जो बतलाते हो तो eया आप से अिधक वा
तुqय कोई पु˜ष न था? और न है? ऐसा अिभमान करना आप को उिचत नहc,
eयijक परमा"मा कR सृि… मO एक-एक से अिधक, तुqय और 3यून बgत ह<।
jकसी को घम‹ड करना उिचत नहc?
(उsर) धम& सब का एक होता है वा अनेक? जो कहो अनेक होते ह< तो एक
दूसरे के िव˜Z होते ह< वा अिव˜Z? जो कहो jक िव˜Z होते ह< तो एक के
िवना दूसरा धम& नहc हो सकता और जो कहो jक अिव˜Z ह< तो पृथÀफ़-पृथÀफ़
होना aथ& है। इसिलए धम& और अधम& एक ही ह<; अनेक नहc। यही हम िवशेष
कहते ह< jक जैसे सब स›'दायi के उपदेशकi को कोई राजा इक$ा करे । उन
कR सभा करके वा कोई िजXासु होकर 'थम वाममागŠ से पूछे-हे महाराज!
म<ने आज तक न कोई गु˜ और न jकसी धम& का >हण jकया है। किहये ! सब
धमŽ मO से उsम धम& jकस का है? िजस को म< >हण क’ं?
(वाममागŠ) हमारा है। (िजXासु) ये नौ सौ िन3यानवे कै से ह<?
(वाममागŠ) सब झूठे और नरकगामी ह< eयijक ‘कौला"परतरं निह’। इस वचन
के 'माण से हमारे धम& से परे कोई धम& नहc है। (िजXासु) आप का eया धम&
है?
(वाममागŠ) भगवती का मानना, म‡-मांसाjद पंच मकारi का सेवन और
˜¥यामल आjद चौसठ त3•O का मानना इ"याjद, जो तू मुिž कR इ¸छा करता
है तो हमारा चेला हो जा।
(िजXासु) अ¸छा! पर3तु और महा"माu का भी दश&न कर पूछपाछ आऊँगा।
पtात् िजस मO मेरी ~Zा और 'ीित होगी उस का चेला हो जाऊँगा।
(वाममागŠ) अरे ! eयi ±ाि3त मO पड़ा है। ये लोग तुझ को बहका कर अपने जाल
मO फं सा दOगे। jकसी के पास मत जावे। हमारे ही शरणागत हो जा नहc तो
पछतावेगा। देख! हमारे मत मO भोग और मोz दोनi ह<।
(िजXासु) अ¸छा देख तो आऊँ। आगे चलकर ईसाई से पूछा। उसने वाममागŠ
के तुqय सब जवाब सवाल jकये। इतना िवशेष बतलाया ‘सब मनु‘य पापी ह<,
अपने साम•य& से पाप नहc छू टता। िवना ईसा पर िव5ास के पिव• होकर
मुिž को नहc पा सकता। ईसा ने सब के 'ायिts के िलए अपने 'ाण देकर
दया 'कािशत कR है। तू हमारा ही चेला हो जा।’
िजXासु सुनकर मौलवी साहब के पास गया। उन से भी ऐसे ही जवाब सवाल
gए। इतना िवशेष कहा-‘लाशरीक’ खुदा उस के पैग›बर औेर कु रानशरीफ के
िवना माने कोई िनजात नहc पा सकता। जो इस मजहब को नहc मानता वह
दोजखी और काjफर है वािजबुqक"ल है। िजXासु सुनकर वै‘णव के पास गया।
वैसा ही संवाद gआ।
jफर आगे चला तो सब मतवालi ने अपने-अपने को स0ा कहा। सहê से पूछ
उन के परHपर एक दूसरे का िवरोध देख, िवशेष िनtय jकया jक इन मO कोई
गु˜ करने यो•य नहc। eयijक एक-एक कR भफ़ू ठ मO नौ सौ िन3यानवे गवाह
हो गये। जैसे झूठे दुकानदार वा वेŸया और भडु वा आjद अपनी-अपनी वHतु
कR बड़ाई दूसरे कR बुराई करते ह< वैसे ही ये ह<। ऐसा जान-
तिyXानाथ¶ स गु˜मेवािभग¸छेत् ।
सिम"पािण ~ोि•यं {|िन¼म्।।१।।
तHमै स िवyानुपस–ाय स›यe'शा3तिचsाय शमाि3वताय ।
येनाzरं पु˜षं वेद स"यं 'ोवाच तां तÓवतो {|िव‡ाम्।।२।।
उपिनषद्
उस स"य के िवXानाथ& वह सिम"पािण अथा&त् हाथ जोड़ अWरžहHत होकर
वेदिवत् {|िन¼ परमा"मा को जाननेहारे गु˜ के पास जावे। इन पाखि‹डयi
के जाल मO न िगरे ।।१।।
जब ऐसा िजXासु िवyान् के पास जाय, उस शा3तिचs िजतेि3¥य समीप 'ाƒ
िजXासु को यथाथ& {|िव‡ा परमा"मा के गुण, कम&, Hवभाव का उपदेश करे
और िजस-िजस साधन से वह ~ोता धमा&थ&, काम, मोz और परमा"मा को
जान
सके वैसी िशzा jकया करे ।।२।।
जब वह ऐसे पु˜ष के पास जाकर बोला jक महाराज अब इन स›'दायi के
बखेड़i से मेरा िचs ±ा3त हो गया eयijक जो म< इन मO से jकसी एक का चेला
होऊंगा तो नौ सौ िन3यानवे से िवरोधी होना पड़ेगा। िजस के नौ सौ िन3यानवे
श•ु और एक िम• है उस को सुख कभी नहc हो सकता। इसिलए आप मुझ को
उपदेश कRिजये िजस को म< >हण क’ं।
आƒिवyान्- देख! िजस बात मO ये सहê एकमत हi वह वेदमत >ाÉ है और
िजस मO परHपर िवरोध हो वह किqपत, झूठा, अधम&, अ>ाÉ है।
(िजXासु) इसकR परीzा कै से हो?
(आƒ) तू जाकर इन-इन बातi को पूछ। सब कR एक स›मित हो जायगी। तब
वह उन सहê कR म‹डली के बीच मO खड़ा होकर बोला jक सुनो सब लोगो!
स"यभाषण मO धम& है वा िम•या मO? सब एक Hवर होकर बोले jक स"यभाषण
मO धम& और अस"यभाषण मO अधम& है। वैसे ही िव‡ा पढ़ने, {|चय& करने, पूण&
युवावHथा मO िववाह, स"संग, पु˜षाथ&, स"य aवहार, आjद मO धम& और
अिव‡ा >हण, {|चय& न करने, aिभचार करने, कु संग, आलHय, अस"य
aवहार, छल, कपट, िहसा, परहािन करने आjद क›मŽ मO? सब ने एक मत
होके कहा jक िव‡ाjद के >हण मO धम& और अिव‡ाjद के >हण मO अधम&। तब
िजXासु ने सब से कहा jक तुम इसी 'कार सब जने एकमत हो स"य- धम& कR
उ–ित और िम•यामाग& कR हािन eयi नहc करते हो? वे सब बोले-जो हम ऐसा
करO तो हम को कौन पूछे? हमारे चेले हमारी आXा मO न रह<। जीिवका न… हो
जाय। jफर जो हम आन3द कर रहे ह< सो सब हाथ से जाय। इसिलये हम जानते
ह< तो भी अपने-अपने मत का उपदेश और आ>ह करते ही जाते ह< eयijक ‘रोटी
खाइये शÙर से और दुिनया ठिगये मÙर से’ ऐसी बात है। देखो! संसार मO सूधे
स0े मनु‘य को कोई नहc देता और न पूछता। जो कु छ ढiगबाजी और धूs&ता
करता है वही पदाथ& पाता है।
(िजXासु) जो तुम ऐसा पाख‹ड चलाकर अ3य मनु‘यi को ठगते हो तुम को
राजा द‹ड eयi नहc देता?
(मत वाले) हम ने राजा को भी अपना चेला बना िलया है। हम ने पÙा 'ब3ध
jकया है; छू टेगा नहc।
(िजXासु) जब तुम छल से अ3य मतHथ मनु‘यi को ठग उन कR हािन करते हो
परमे5र के सामने eया उsर दोगे? और घोर नरक मO पड़ोगे। थोडे़ जीवन के
िलए इतना बड़ा अपराध करना eयi नहc छोड़ते?
(मत वाले) जब जैसा होगा तब देखा जाएगा। नरक और परमे5र का द‹ड
जब होगा तब होगा अब तो आन3द करते ह<। हम को 'स–ता से धनाjद पदाथ&
देते ह< कु छ बला"कार से नहc लेते jफर राजा द‹ड eयi देव?

(िजXासु) जैसे कोई छोटे बालक को फु सला के धनाjद पदाथ& हर लेता है जैसे
उस को द‹ड िमलता है वैसे तुम को eयi नहc िमलता? eयijक-
अXो भवित वै बाल िपता भवित म3•द ।। -मनुन।।
जो Xानरिहत होता है वह बालक और जो Xान का देने वाला है वह िपता और
वृZ कहाता है। जो बुिZमान् िवyान् है वह तो तु›हारी बातi मO नहc फं सता
jक3तु अXानी लोग जो बालक के सदृश ह< उन को ठगने मO तुम को राजद‹ड
अवŸय होना चिहए।
(मत वाले) जब राजा 'जा सब हमारे मत मO ह< तो हम को द‹ड कौन देने वाला
है? जब ऐसी aवHथा होगी तब इन बातi को छोड़ कर दूसरी aवHथा करO गे।
(िजXासु) जो तुम बैठे-बैठे aथ& माल मारते हो सो िव‡ा^यास कर गृहHथi के
लड़के लड़jकयi को पढ़ाओ तो तु›हारा और गृहHथi का कqयाण हो जाय।
(मत वाले) जब हम बाqयावHथा से लेकर मरण तक के सुखi को छोड़O;
बाqयावHथा से युवावHथा पय&3त िव‡ा पढ़ने मO रह<; पtात् पढ़ाने मO और
उपदेश करने मO ज3म भर पWर~म करO , हम को eया 'योजन? हम को ऐसे ही
लाखi ˜पये िमल जाते ह<, चैन करते ह<। उस को eयi छोड़O?
(िजXासु) इस का पWरणाम तो बुरा है। देखो, तुम को बड़े रोग होते ह<। शीÎ
मर जाते हो। बुिZमानi मO िनि3दत होते हो। jफर भी eयi नहc समझते?
(मत वाले) अरे भाई!
टका धम&…का कम& टका िह परमं पदम् ।
यHय गृहे टका नािHत हा ! टकां टकटकायते।।१।।
आना अंशकला 'ोžा ’Êयोऽसौ भगवान् Hवयम् ।
अतHतं सव& इ¸छि3त ’Êयं िह गुणवsमम्।।२।।
तू लड़का है संसार कR बातO नहc जानता। देख! टका के िवना धम&, टका के िवना
कम&, टका के िवना परमपद नहc होता। िजस के घर मO टका नहc है वह हाय!
टका-टका करता-करता उsम पदाथŽ को टक-टक देखता रहता है jक हाय !
मेरे पास टका होता तो इस उsम पदाथ& को म< भोगता।।१।। eयijक सब कोई
सोलह कलायुž अदृŸय भगवान् का कथन ~वण करते ह< सो तो नहc दीखता,
पर3तु सोलह आने और पैसे कौड़ी’प अंश कलायुž जो ˜पैया है वही साzात्
भगवान् है। इसीिलए सब कोई ˜पयi कR खोज मO लगे रहते ह<, eयijक सब
काम ˜पयi से िसZ होते ह<।।२।।
(िजXासु) ठीक है। तु›हारी भीतर कR लीला बाहर आ गई। तुम ने िजतना यह
पाख‹ड खड़ा jकया है वह सब अपने सुख के िलए jकया है पर3तु इस मO जगत्
का नाश होता है। eयijक जैसा स"योपदेश से संसार को लाभ पgँचता है वैसी
ही अस"योपदेश से हािन होती है। जब तुम को धन का ही 'योजन था तो
नौकरी और aापाराjद कम& करके धन इक$ा eयi नहc कर लेते हो?
(मत वाले) उस मO पWर~म अिधक और हािन भी हो जाती है पर3तु इस हमारी
लीला मO हािन कभी नहc होती jक3तु सव&दा लाभ ही लाभ होता है। देखो!
तुलसीदल डाल के चरणामृत दे, क‹ठी बांध देत,े चेला मूड़ने से ज3मभर को
पशुवत् हो जाता है। jफर चाह< जैसे चलावO; चल सकता है।

(िजXासु) ये लोग तुमको बgत सा धन jकस िलये देते ह<?


(मत वाले) धम&, Hवग& और मुिž के अथ&।
(िजXासु) जब तुम ही मुž नहc और न मुिž का Hव’प वा साधन जानते हो
तो तु›हारी सेवा करने वालi को eया िमलेगा?
(मत वाले) eया इस लोक मO िमलता है? नहc, jक3तु मरकर पtात् परलोक
मO िमलता है। िजतना ये लोग हम को देते ह< और सेवा करते ह< वह सब इन
लोगi को परलोक मO िमल जाता है।
(िजXासु) इन को तो jदया gआ िमल जाता है वा नहc। तुम लेने वालi को eया
िमलेगा? नरक वा अ3य कु छ?
(मत वाले) हम भजन करा करते ह<। इस का सुख हम को िमलेगा।
(िजXासु) तु›हारा भजन तो टका ही के िलये है। वे सब टके यहc पड़े रहOगे और
िजस मांसिप‹ड को यहां पालते हो वह भी भHम होकर यहc रह जायेगा। जो
तुम परमे5र का भजन करते होते तो तु›हारा आ"मा भी पिव• होता।
(मत वाले) eया हम अशुZ ह<?
(िजXासु) भीतर के बड़े मैले हो। (मत वाले) तुमने कै से जाना ?
(िजXासु) तु›हारे चाल चलन aवहार से। (मत वाले) महा"माu का aवहार
हाथी के दांत के समान होता है। जैसे हाथी के दांत खाने के िभ– और jदखलाने
के िभ– होते ह<। वैसे ही भीतर से हम पिव• ह< और बाहर से लीलामा• करते
ह<।
(िजXासु) जो तुम भीतर से शुZ होते तो तु›हारे बाहर के काम भी शुZ होते
इसिलए भीतर भी मैले हो।
(मत वाले) हम चाह< जैसे हi पर3तु हमारे चेले तो अ¸छे ह<।
(िजXासु) जैसे तुम गु˜ हो वैसे तु›हारे चेले भी हiगे।
(मत वाले) एक मत कभी नहc हो सकता eयijक मनु‘यi के गुण, कम&, Hवभाव
िभ–-िभ– ह<।
(िजXासु) जो बाqयावHथा मO एक सी िशzा हो, स"यभाषणाjद धम& का >हण
और िम•याभाषणाjद अधम& का "याग करO तो एकमत अवŸय हो जायO और दो
मत अथा&त् धमा&"मा और अधमा&"मा सदा रहते ह< वे तो रह<। पर3तु धमा&"मा
अिधक होने और अधमŠ 3यून होने से संसार मO सुख बढ़ता है और जब अधमŠ
अिधक होते ह< तब दुःख। जब सब िवyान् एक सा उपदेश करO तो एकमत होने
मO कु छ भी िवल›ब न हो।
(मत वाले) आजकल किलयुग है सतयुग कR बात मत चाहो।
(िजXासु) किलयुग नाम काल का है। काल िनि‘¦य होने से कु छ धमा&धम& के
करने मO साधक बाधक नहc, jक3तु तुम ही किलयुग कR मू“sयां बन रहे हो।
जो मनु‘य ही स"ययुग किलयुग न हi तो कोई भी संसार मO धमा&"मा नहc
होता। ये सब संग के गुण दोष ह<; Hवाभािवक नहc। इतना कहकर आƒ के पास
गया। उन से कहा jक महाराज! तुम ने मेरा उZार jकया, नहc तो म< भी jकसी
के जाल मO फं सकर न…-±… हो जाता। अब म< भी इन पाखि‹डयi का ख‹डन
और वेदोž स"य मत का म‹डन jकया क’ँगा।
(आƒ) यही सब मनु‘यi का िवशेष िवyान् और सं3यािसयi का काम है jक
सब मनु‘यi को स"य का म‹डन और अस"य ख‹डन पढ़ा सुना के स"योपदेश से
उपकार पgंचाना चािहये।
('-) जो {|चारी सं3यासी ह< वे तो ठीक ह<?
(उsर) ये आ~म तो ठीक ह< पर3तु आजकल इन मO भी बgत सी गड़बड़ है।
jकतने ही नाम {|चारी रखते ह< और झूठ-मूठ जटा बढ़ाकर िसZाई करते
और जप पुरtरणाjद मO फं से रहते ह<, िव‡ा पढ़ने का नाम नहc लेते jक िजस
हेतु से {|चारी नाम होता है उस {| अथा&त् वेद पढ़ने मO पWर~म कु छ भी
नहc करते। वे {|चारी बकरी के गले के Hतन के सदृश िनरथ&क ह<। और जो
वैसे सं3यासी िव‡ाहीन, द‹ड कम‹डलु से िभzामा• करते jफरते ह<, जो कु छ
भी वेदमाग& कR उ–ित नहc करते। छोटी अवHथा मO सं3यास लेकर घूमा करते
ह< और िव‡ा^यास को छोड़ देते ह<। ऐसे {|चारी और सं3यासी इधर उधर
जल, Hथल, पाषाणाjद मूि◌s&यi का दश&न, पूजन करते jफरते, िव‡ा जानकर
भी मौन हो रहते। एका3त देश मO यथे… खा पीकर सोते पड़े रहते ह< और ई‘या&
yेष मO फं सकर िन3दा कु चे…ा करके िनवा&ह करते । काषाय व¬ और द‹ड
>हणमा• से अपने को कृ तकृ "य समझते और सवª"कृ … जानकर उsम काम
नहc करते, वैसे सं3यासी भी जगत् मO aथ& वास करते ह<। और जो सब जगत्
का िहत साधते ह<, वे ठीक ह<।

पुनः (लोकै षणा) लोक मO 'ित¼ा (िवsैषणा) धन बढ़ाने मO त"पर होकर


िवषयभोग (पु•ैषणा) पु•वत् िश‘यi पर मोिहत होना, इन तीन एषणाu का
"याग करना उिचत है। जब एषणा ही नहc छू टी पुनः सं3यास eयiकर हो सकता
है? अथा&त् पzपातरिहत वेदमागªपदेश से जगत् के कqयाण करने मO अिहन&श
'वृs रहना सं3यािसयi का मुwय काम है। जब अपने-अपने अिधकार कमŽ को
नहc करते पुनः सं3यासाjद नाम धराना aथ& है। नहc तो जैसे गृहHथ aवहार
और Hवाथ& मO पWर~म करते ह<, उनसे अिधक पWर~म परोपकार करने मO
सं3यासी भी त"पर रह< तभी सब आ~म उ–ित पर रह<।

देखो! तु›हारे सामने पाख‹ड मत बढ़ते जाते ह<, ईसाई, मुसलमान तक होते
जाते ह<। तिनक भी तुम से अपने घर कR रzा और दूसरi का िमलाना नहc बन
सकता। बने तो तब जब तुम करना चाहो! जब लi वs&मान और भिव‘यत् मO
सं3यासी उ–ितशील नहc होते तब लi आ‰या&वs& और अ3य देशHथ मनु‘यi कR
वृिZ नहc होती। जब वृिZ के कारण वेदाjद स"यशा¬O का पठनपाठन,
{|च‰य& आjद आ~मi के यथावत् अनु¼ान स"योपदेश होते ह< तभी देशो–ित
होती है। चेत रeखो! बgत सी पाख‹ड कR बातO तुम को सचमुच दीख पड़ती
ह<। जैसे कोई साधु, दुकानदार पु•jद देने कR िसिZयां बतलाता है। तब उस के
पास बgत ¬ी जाती ह< और हाथ जोड़कर पु• मांगती ह<। और बाबा जी सब
को पु• होने का आशीवा&द देता है। उन मO से िजस-िजस के पु• होता है वह-
वह समझती ह< jक बाबा जी के वचन से ऐसा gआ। जब उन से कोई पूछे jक
सूअरी, कु sी, गधी और कु eकु टी आjद के क0े ब0े jकस बाबा जी के वचन से
होते ह<? तब कु छ भी उsर न दे सकO गी! जो कोई कहे jक म< लड़के को जीता
रख सकता •ं तो आप ही eयi मर जाता है?
jकतने ही धूs& लोग ऐसी माया रचते ह< jक बड़े-बड़े बुिZमान् भी धोखा खा
जाते ह<, जैसे धनसारी के ठग। ये लोग पांच सात िमल के दूर-दूर देश मO जाते
ह<। जो शरीर से डौलडाल मO अ¸छा होता है उस को िसZ बना लेते ह<। िजस
नगर वा >ाम मO धनाÚ होते ह< उस के समीप जंगल मO उस िसZ को बैठाते
ह<। उसके साधक नगर मO जाके अजान बनके िजस jकसी को पूछते ह<-‘तुम ने
ऐसे महा"मा को यहां कहc देखा वा नहc? वे ऐसा सुनकर पूछते ह< jक वह
महा"मा कौन और कै सा है?
साधक कहता है-बड़ा िसZ पु˜ष है। मन कR बातO बतला देता है। जो मुख से
कहता है वह हो जाता है। बड़ा योगीराज है, उसके दश&न के िलए हम अपने
घर yार छोड़कर देखते jफरते ह<। म<ने jकसी से सुना था jक वे महा"मा इधर
कR ओर आये ह<।
गृहHथ कहता है-जब वह महा"मा तुम को िमले तो हम को भी कहना। दश&न
करO गे और मन कR बातO पूछOगे। इसी 'कार jदन भर नगर मO jफरते और '"येक
को उस िसZ कR बात कहकर राि• को इक$े िसZ साधक होकर खाते पीते
और सो रहते ह<। jफर भी 'ातःकाल नगर वा >ाम मO जाके उसी 'कार दो तीन
jदन कहकर jफर चारi साधक jकसी एक-एक धनाÚ से बोलते ह< jक वह
महा"मा िमल गये। तुम को दश&न करना हो तो चलो। वे जब तै‰यार होते ह<
तब साधक उन से पूछते ह< jक तुम eया बात पूछना चाहते हो? हम से कहो।
कोई पु• कR इ¸छा करता, कोई धन कR, कोई रोग-िनवारण कR और कोई श•ु
के जीतने कR। उन को वे साधक ले जाते ह<। िसZ साधकi ने जैसा संकेत jकया
होता है अथा&त् िजस को धन कR इ¸छा हो उस को दािहनी, और िजस को पु•
कR इ¸छा हो उसको स›मुख, और िजस को रोग-िनवारण कR इ¸छा हो उस
को बाâ ओर और िजस को श•ु जीतने कR इ¸छा हो उस को पीछे से ले जा के
सामने वाले के बीच मO बैठाते ह<। जब नमHकार करते ह< उसी समय वह िसZ
अपनी िसZाई कR भफ़पट से उ0 Hवर से बोलता है-‘eया यहां हमारे पास पु•
रeखे ह< जो तू पु• कR इ¸छा करके आया है? इसी 'कार धन कR इ¸छा वाले
से ‘eया यहां थैिलयां रeखी ह< जो धन कR इ¸छा करके आया है? ‘फकRरi के
पास धन कहां धरा है? ’ रोगवाले से ‘eया हम वै‡ ह< जो तू रोग छु ड़ाने कR
इ¸छा से आया? हम वै‡ नहc जो तेरा रोग छु ड़ावO; जा jकसी वै‡ के पास’
पर3तु जब उस का िपता रोगी हो तो उस का साधक अंगूठा; जो माता रोगी
हो तो तज&नी; जो भाई रोगी हो म—यमा, जो ¬ी रोगी हो तो अनािमका; जो
क3या रोगी हो तो किनि¼का अंगुली चला देता है। उस को देख वह िसZ कहता
है jक तेरा िपता रोगी है। तेरी माता, तेरा भाई, तेरी ¬ी, और तेरी क3या
रोगी है। तब तो वे चारi के चारi बड़े मोिहत हो जाते ह<। साधक लोग उन से
कहते ह<-देखो! हम ने कहा था वैसे ही ह< वा नहc?
गृहHथ कहते ह<-हां जैसा तुमने कहा था वैसे ही ह<। तुम ने हमारा बड़ा उपकार
jकया और हमारा भी बड़ा भा•योदय था जो ऐसे महा"मा िमले। िजस के दश&न
करके हम कृ ताथ& gए।
साधक कहता है-सुनो भाई! ये महा"मा मनोगामी ह<। यहां बgत jदन रहने
वाले नहc। जो कु छ इन का आशीवा&द लेना हो तो अपनी-अपनी साम•य& के
अनुकूल इन कR तन, मन, धन से सेवा करो, eयijक ‘सेवा से मेवा िमलती है।’
जो jकसी पर 'स– हो गये तो जाने eया वर दे दO। ‘स3तi कR गित अपार है।’
गृहHथ ऐसे लqलो-पsो कR बातO सुनकर बड़े हष& से उनकR 'शंसा करते gए
घर कR ओर जाते ह<। साधक भी उनके साथ ही चले जाते ह< eयijक माग& मO
कोई उन का पाख‹ड खोल न देवे। उन धनाÚi का जो कोई िम• िमला उस
से 'शंसा करते ह<। इसी 'कार जो-जो साधकi के साथ जाते ह< उन-उन का
वृsा3त सब कह देते ह<। जब नगर मO हqला मचता है jक अमुक ठौर एक बड़े
भारी िसZ आये ह<; चलो उन के पास। जब मेला का मेला जाकर बgत से लोग
पूछने लगते ह< jक महाराज! मेरे मन का वृsा3त किहये। तब तो aवHथा के
िबगड़ जाने से चुपचाप होकर मौन साध जाता है और कहता है jक हम को
बgत मत सताओ। तब तो भफ़ट उसके साधक भी कहने लग जाते ह< जो तुम
इन को बgत सताओगे तो चले जायOगे और जो कोई बड़ा धनाÚ होता है वह
साधक को अलग बुला कर पूछता है jक हमारे मन कR बात कहला दो तो हम
सच मानO। साधक ने पूछा jक eया बात है? धनाÚ ने उस से कह दी। तब उस
को उसी 'कार के संकेत से ले जा के बैठाल देता है। उसे िसZ ने समझ के झट
कह jदया, तब तो सब मेला भर ने सुन ली jक अहो ! बड़े ही िसZ पु˜ष ह<।
कोई िमठाई, कोई पैसा, कोई ˜पया, कोई अशफõ, कोई कपड़ा और कोई सीधा
साम>ी भOट करता है। jफर जब तक मानता बgत सी रही तब तक यथे… लूट
करते ह< और jक3हc-jक3हc दो एक आंख के अ3धे गांठ के पूरi को पु• होने का
आशीवा&द वा राख उठा के दे देता है और उस से सहêi ˜पये लेकर कह देता
है jक तेरी स0ी भिž होगी तो तेरा पु• हो जायगा। इस 'कार के बgत से ठग
होते ह< िजन को िवyान् ही परीzा कर सकते ह< और कोई नहc। इसिलए वेदाjद
िव‡ा का पढ़ना, स"संग करना होता है िजस से कोई उस को ठगाई मO न फं सा
सके । औरi को भी बचा सके eयijक मनु‘य का ने• िव‡ा ही है। िवना िव‡ा
िशzा के Xान नहc होता। जो बाqयावHथा से उsम िशzा पाते ह< वे ही मनु‘य
और िवyान् होते ह<। िजन को कु संग है वे दु… पापी महामूख& हो कर बड़े दुःख
पाते ह<। इसीिलये Xान को िवशेष कहा है jक जो जानता है वही मानता है।
न वेिs यो यHय गुण'कष¶ स तHय िन3दां सततं करोित ।
यथा jकराती कWरकु ›भजाता मुžा पWर"य°य िबभ“त गुÅा ।।
यह jकसी किव का ºोक है।
जो िजस का गुण नहc जानता वह उस कR िन3दा िनर3तर करता है। जैसे जंगली
भील गजमुžाu को छोड़ गुÅा का हार पिहन लेता है वैसे ही जो पु˜ष
िवyान्, Xानी, धा“मक स"पु˜षi का संगी, योगी, पु˜षाथŠ, िजतेि3¥य सुशील
होता है वही धमा&थ&, काम, मोz को 'ाƒ होकर इस ज3म और परज3म मO सदा
आन3द मO रहता है। यह आया&वs&िनवासी लोगi के मत िवषय मO संzेप से
िलखा है। इस के आगे जो थोड़ा सा आय&राजाu का इितहास िमला है इस को
सब सœनi को जनाने के िलये 'कािशत jकया जाता है। अब आया&वs&दश े ीय
राजवंश jक िजस मO ~ीमान् महाराज ‘युिधि¼र’ से लेके महाराज ‘यशपाल’
पय&3त gए ह< उस इितहास को िलखते ह<। और ~ीमान् महाराज ‘Hवाय›भुव
मनु जी’ से लेके महाराजा ‘युिधि¼र’ पय&3त का इितहास महाभारताjद मO
िलखा ही है और इस से सœन लोगi को इधर के कु छ इितहास का वs&मान
िवjदत होगा। य‡िप यह िवषय िव‡ाथŠ सि›मिलत ‘हWरt3¥चि3¥का’ और
‘मोहनचि3¥का’ जो jक पािzकप• ~ीनाथyारे से िनकलता था जो राजपूताना
देश मेवाड़ राज उदयपुर, िचतौड़गढ़ मO सब को िवjदत है; यह उस से हम ने
अनुवाद jकया है। यjद ऐसे ही हमारे आय& सœन लोग इितहास और िव‡ा
पुHतकi का खोज कर 'काश करO गे तो देश को बड़ा ही लाभ पgंचेगा। उस प•
स›पादक महाशय ने अपने िम• से एक 'ाचीन पुHतक जो jक संवत् िव¦म के
१७८२ (स•ह सौ बयासी) का िलखा gआ था, उस से >हण कर अपने संवत्
१९३९ माग&शीष& शुeलपz १९-२० jकरण अथा&त् दो पािzक-प•O मO छापा है
सो िनó िलखे 'माणे जािनये।
आ‰या&वs&दश
े ीय राजवंशावली
इ3¥'Hथ मO आय& लोगi ने ~ीम3महाराज ‘यशपाल’ पय&3त रा°य jकया। िजन
मO ~ीम3महाराजे ‘युिधि¼र’ से महाराजे ‘यशपाल’ तक वंश अथा&त् पीढ़ी
अनुमान १२४ (एक सौ चौबीस राजा); वष& ४१५७, मास ९, jदन १४, समय
मO gए ह<।
इनका dयौरा-
राजा- आय&राजा शक-१२४ वष&-४१५७ मास-९ jदन-१४
~ीम3महाराजे युिधि¼र वंश अनुमान पीढ़ी ३०, वष& १७७०, मास ११, jदन
१० इनका िवHतार-

आय&राजा वष& मास jदन


१ राजा युिधि¼र ३६ ८ २५
२ राजा परीिzत ६० ० ०
३ राजा जनमेजय ८४ ७ २३
४ राजा अ5मेध ८२ ८ २२
५ िyतीयराम ८८ २ ८
६ छ•मल ८१ ११ २७
७ िच•रथ ७५ ३ १८
८ दु…शैqय ७५ १० २४
९ राजा उ>सेन ७८ ७ २१
१० राजा शूरसेन ७८ ७ २१
११ भुवनपित ६९ ५ ५
१२ रणजीत ६५ १० ४
१३ ऋzक ६४ ७ ४
१४ सुखदेव ६२ ० २४
१५ नरहWरदेव ५१ १० २
१६ सुिचरथ ४२ ११ २
१७ शूरसेन (दूसरा) ५८ १० ८
१८ पव&तसेन ५५ ८ १०
१९ मेधावी ५२ १० १०
२० सोनचीर ५० ८ २१
२१ भीमदेव ४७ ९ २०
२२ नृहWरदेव ४५ ११ २३
२३ पूण&मल ४४ ८ ७
२४ करदवी ४४ १० ८
२५ अलंिमक ५० ११ ८
२६ उदयपाल ३८ ९ ०
२७ दुवनमल ४० १० २६
२८ दमात ३२ ० ०
२९ भीमपाल ५८ ५ ८
३० zेमक ४८ ११ २१
राजा zेमक के 'धान िव~वा ने zेमक राजा को मार कर रा°य jकया। पीढ़ी
१४, वष& ५००, मास ३, jदन १७
इनका िवHतार-
आय&राजा वष& मास jदन
१ िव~वा १७ ३ २९
२ पुरसेनी ४२ ८ २१
३ वीरसेनी ५२ १० ७
४ अनंगशायी ४७ ८ २३
५ हWरिजत ३५ ९ १७
६ परमसेनी ४४ २ २३
७ सुखपाताल ३० २ २१
८ क¥ुत ४२ ९ २४
९ सœ ३२ २ १४
१० अमरचूड़ २७ ३ १६
११ अमीपाल २२ ११ २५
१२ दशरथ २५ ४ १२
१३ वीरसाल ३१ ८ ११
१४ वीरसालसेन ४७ ० १४
राजा वीरसालसेन को वीरमहा 'धान ने मार कर रा°य jकया। वंश १६, वष&
४४५, मास ५, jदन ३, इनका िवHतार-
आय&राजा वष& मास jदन
१ राजा वीरमहा ३५ १० ८
२ अिजतिसह २७ ७ १९
३ सव&दs २८ ३ १०
४ भुवनपित १५ ४ १०
५ वीरसेन २१ २ १३
६ महीपाल ४० ८ ७
७ श•ुशाल २६ ४ ३
८ संघराज १७ २ १०
९ तेजपाल २८ ११ १०
१० मािणकच3द ३७ ७ २१
११ कामसेनी ४२ ५ १०
१२ श•ुमद&न ८ ११ १३
१३ जीवनलोक २८ ९ १७
१४ हWरराव २६ १० २९
१५ वीरसेन (दूसरा) ३५ २ २०
१६ आjद"यके तु २३ ११ १३
राजा आjद"यके तु मगधदेश के राजा को ‘ध3धर’ नामक राजा 'याग के ने मार
कर रा°य jकया। वंशपीढ़ी ९, वष& ३७४, मास ११, jदन २६ इनका िवHतार-
आय&राजा वष& मास jदन
१ राजा ध3धर ४२ ७ २४
२ मिहष& ४१ २ २९
३ सनर0ी ५० १० १९
४ महायुZ ३० ३ ८
५ दुरनाथ २८ ५ २५
६ जीवनराज ४५ २ ५
७ ˜¥सेन ४७ ४ २८
८ आरीलक ५२ १० ८
९ राजपाल ३६ ० ०
राजा राजपाल को साम3त महा3पाल ने मार कर रा°य jकया। पीढ़ी १, वष&
१४, मास ०, jदन ० इनका िवHतार नहc है।
राजा महा3पाल के रा°य पर राजा िव¦माjद"य ने ‘अवि3तका’ (उœैन) से
चढ़ाई करके राजा महा3पाल को मार के रा°य jकया। पीढ़ी १, वष& ९३, मास
०, jदन ० इन का िवHतार नहc है।
राजा िव¦माjद"य को शािलवाहन का उमराव समु¥पाल योगी पैठण के ने
मार कर रा°य jकया। पीढ़ी १६, वष& ३७२, मास ४, jदन २७ इन का
िवHतार-
आय&राजा वष& मास jदन
१ समु¥पाल ५४ २ २०
२ च3¥पाल ३६ ५ ४
३ सहायपाल ११ ४ ११
४ देवपाल २७ १ २८
५ नरिसहपाल १८ ० २०
६ सामपाल २७ १ १७
७ रघुपाल २२ ३ २५
८ गोिव3दपाल २७ १ १७
९ अमृतपाल ३६ १० १३
१० बलीपाल १२ ५ २७
११ महीपाल १३ ८ ४
१२ हरीपाल १४ ८ ४
१३ सीसपाल१ ११ १० १३
१४ मदनपाल १७ १० १९
१५ कम&पाल १६ २ २
१६ िव¦मपाल २४ ११ १३
राजा िव¦मपाल ने पिtम jदशा का राजा (मलुखच3द बोहरा था) इन पर
चढ़ाई करके मैदान मO लड़ाई कR इस लड़ाई मO मलुखच3द ने िव¦मपाल को
मार कर इ3¥'Hथ का रा°य jकया। पीढ़ी १०, वष& १९१, मास १, jदन १६
इनका िवHतार-
आय&राजा वष& मास jदन
१ मलुखच3द ५४ २ २०
२ िव¦मच3द १२ ७ १२
३ अमीनच3द२ १० ० ५
४ रामच3द १३ ११ ८
५ हरीच3द १४ ९ २४
६ कqयाणच3द १० ५ ४
७ भीमच3द १६ २ ९
८ लोवच3द २६ ३ २२
९ गोिव3दच3द ३१ ७ १२
१० रानी प÷ावती३ १ ० ०
रानी प÷ावती मर गई। इसके पु• भी कोई नहc था। इसिलये सब मु"सjÖयi
ने सलाह करके हWर'ेम वैरागी को गÖी पर बैठा के मु"सÖी रा°य करने लगे।
पीढ़ी

१- jकसी इितहास मO भीमपाल भी िलखा है।


२- इनका नाम कहc मानकच3द भी िलखा है।
३- यह प÷ावती गोिव3दच3द कR रानी थी।

४, वष& ५०, मास ०, jदन २१ हWर'ेम का िवHतार-


आय&राजा वष& मास jदन
१ हWर'ेम ७ ५ १६
२ गोिव3द'ेम २० २ ८
३ गोपाल'ेम १५ ७ २८
४ महाबाg ६ ८ २९
राजा महाबाg रा°य छोड़ के वन मO तपtया& करने लगे। यह बंगाल के राजा
आवमीसेन ने सुन के इ3¥'Hथ मO आके आप रा°य करने लगे। पीढ़ी १२, वष&
१५१, मास ११, jदन २ इनका िवHतार-
आय&राजा वष& मास jदन
१ राजा आधीसेन १८ ५ २१
२ िवलावलसेन १२ ४ २
३ के शवसेन १५ ७ १२
४ माधवसेन १२ ४ २
५ मयूरसेन २० ११ २७
६ भीमसेन ५ १० ९
७ कqयाणसेन ४ ८ २१
८ हरीसेन १२ ० २५
९ zेमसेन ८ ११ १५
१० नारायणसेन २ २ २९
११ लˆमीसेन २६ १० ०
१२ दामोदरसेन ११ ५ ९
राजा दामोदरसेन ने अपने उमराव को बgत दुःख jदया। इसिलए राजा के
उमराव दीपिसह ने सेना िमला के राजा के साथ लड़ाई कR। उस लड़ाई मO
राजा को मार कर दीपिसह आप रा°य करने लगे। पीढ़ी ६, वष& १०७, मास
६, jदन २२ इन का िवHतार-
आय&राजा वष& मास jदन
१ दीपिसह १७ १ २६
२ राजिसह १४ ५ ०
३ रणिसह ९ ८ ११
४ नरिसह ४५ ० १५
५ हWरिसह १३ २ २९
६ जीवनिसह ८ ० १
राजा जीवनिसह ने कु छ कारण के िलये अपनी सब सेना उsर jदशा को भेज
दी। यह खबर पृ•वीराज च§वाण वैराट के राजा सुनकर जीवनिसह के ऊपर
चढ़ाई करके आये और लड़ाई मO जीवनिसह को मार कर इ3¥'Hथ का रा°य
jकया। पीढ़ी ५, वष& ८६, मास ०, jदन २० इनका िवHतार-
आय&राजा वष& मास jदन
१ पृिथवीराज १२ २ १९
२ अभयपाल १४ ५ १७
३ दुज&नपाल ११ ४ १४
४ उदयपाल ११ ७ ३
५ यशपाल ३६ ४ २७
राजा यशपाल के ऊपर सुलतान शाहबुÖीन गौरी गढ़ गजनी से चढ़ाई करके
आया और राजा यशपाल को 'याग के jकले मO संवत् १२४९ साल मO पकड़
कर कै द jकया। पtात् ‘इ3¥'Hथ’ अथा&त् jदqली का रा°य आप (सुलतान
शहाबुÖीन) करने लगा। पीढ़ी ५३, वष& ७४५, मास १, jदन १७ इन का
िवHतार बgत इितहास पुHतकi मO िलखा है, इसिलए यहां नहc िलखा।

इसके आगे बौZ जैनमत िवषय मO िलखा जायेगा।

इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमकृ ते स"याथ&'काशे


सुभाषािवभूिषत आया&वsŠयमतख‹डनम‹डनिवषय
एकादश समुqलास स›पूण& ।।११।।
अथ yादशसमुqलासार›भः
अथ
नािHतकमता3तग&तचारवाकबौZजैनमतख‹डनम‹डनिवषयान्
aाwयाHयामः
कोई एक बृहHपित नामा पु˜ष gआ था जो वेद, ई5र और यXाjद उsम कमŽ
को भी नहc मानता था। उन का मत-
यावœीवं सुखं जीवे–ािHत मृ"योरगोचर ।
भHमीभूतHय देहHय पुनरागमनं कु त ।।
कोई मनु‘याjद 'ाणी मृ"यु के अगोचर नहc है अथा&त् सब को मरना है इसिलये
जब तक शरीर मO जीव रहै तब तक सुख से रहै। जो कोई कहे jक धमा&चरण से
क… होता है जो धम& को छोड़े तो पुनज&3म मO बड़ा दुःख पावO। उस को ‘चारवाक’
उsर देता है jक अरे भोले भाई! जो मरे के पtात् शरीर भHम हो जाता है jक
िजस ने खाया िपया है वह पुनः संसार मO न आवेगा। इसिलये जैसे हो सके वैसे
आन3द मO रहो। लोक मO नीित से चलो, ऐ5‰य& को बढ़ाओ और उस से इि¸छत
भोग करो। यही लोक समभफ़ो; परलोक कु छ नहc। देखो! पृिथवी, जल, अि«,
वायु इन चार भूतi के पWरणाम से यह शरीर बना है। इस मO इन के योग से
चैत3य उ"प– होता है। जैसे मादक ¥a खाने पीने से मद (नशा) उ"प– होता
है इसी 'कार जीव शरीर के साथ उ"प– होकर शरीर के नाश के साथ आप ही
न… हो जाता है। jफर jकस को पाप पु‹य का फल होगा?
त0ैत3यिविश…देह एव आ"मा देहाितWरž आ"मिन 'माणाभावात्।।
इस शरीर मO चारi भूतi के संयोग से जीवा"मा उ"प– होकर उ3हc के िवयोग
के साथ ही न… हो जाता है eयijक मरे पीछे कोई भी जीव '"यz नहc होता।
हम एक '"यz ही को मानते ह< eयijक '"यz के िबना अनुमानाjद होते ही
नहc। इसिलये मुwय '"यz के सामने अनुमानाjद गौण होने से उस का >हण
नहc करते। सु3दर ¬ी के आÒलगन से आन3द का करना पु˜षाथ& का फल है।
(उsर) ये पृिथaाjद भूत जड़ ह<। उन से चेतन कR उ"पिs कभी नहc हो सकती।
जैसे अब माता-िपता के संयोग से देह कR उ"पिs होती है वैसे ही आjद सृि…
मO मनु‘याjद शरीरi कR आकृ ित परमे5र कsा& के िवना कभी नहc हो सकती।
मद के समान चेतन कR उ"पिs और िवनाश नहc होता, eयijक मद चेतन को
होता है जड़ को नहc। पदाथ& न… अथा&त् अदृ… होते ह< पर3तु अभाव jकसी का
नहc होता। इसी 'कार अदृŸय होने से जीव का भी अभाव न मानना चािहये।
जब जीवा"मा सदेह होता है तभी उस कR 'कटता होती है। जब शरीर को छोड़
देता है तब यह शरीर जो मृ"यु को 'ाƒ gआ है वह जैसा चेतनयुž पूव& था
वैसा नहc हो सकता। यही बात बृहदार‹यक मO कही है-
नाहं मोहं {वीिम अनुि¸छिsधमा&यमा"मेित।।
याXवqeय कहते ह< jक हे मै•ेिय! म< मोह से बात नहc करता jक3तु आ"मा
अिवनाशी है िजस के योग से शरीर चे…ा करता है। जब जीव शरीर से पृथÀफ़
हो जाता है तब शरीर मO Xान कु छ भी नहc रहता। जो देह से पृथÀफ़ आ"मा
न हो तो िजस के संयोग से चेतनता और िवयोग से जड़ता होती है, वह देह से
पृथÀफ़ है। जैसे आँख सब को देखती है पर3तु अपने को नहc। इसी 'कार '"यz
का करने वाला अपने को ऐि3¥य '"यz नहc कर सकता। जैसे अपनी आँख से
सब घट पटाjद पदाथ& देखता है वैसे आँख को अपने Xान से देखता है। जो ¥…ा
है वह ¥…ा ही रहता है दृŸय कभी नहc होता। जैसे िवना आधार आधेय, कारण
के िवना का‰य&, अवयवी के िवना अवयव और कsा& के िवना कम& नहc रह
सकते वैसे कsा& के िवना '"यz कै से हो सकता है? जो सु3दर ¬ी के साथ
समागम करने ही को पु˜षाथ& का फल मानो तो zिणक सुख और उस से दुःख
भी होता है वह भी पु˜षाथ& ही का फल होगा। जब ऐसा है तो Hवग& कR हािन
होने से दुःख भोगना पड़ेगा। जो कहो दुःख के छु ड़ाने और सुख के बढ़ाने मO य¢
करना चािहये तो मुिž सुख कR हािन हो जाती है इसिलए वह पु˜षाथ& का
फल नहc।
(चारवाक) जो दुःख संयुž सुख का "याग करते ह< वे मू4& ह<। जैसे धा3याथŠ
धा3य का >हण और बुस का "याग करता है वैसे इस संसार मO बुिZमान् सुख
का >हण और दुःख का "याग करO । eयijक इस लोक के उपिHथत सुख को छोड़
के अनुपिHथत Hवग& के सुख कR इ¸छा कर धूत& किथत वेदोž अि«हो•jद कम&
उपासना और Xानका‹ड का अनु¼ान परलोक के िलये करते ह< वे अXानी ह<।
जो परलोक है ही नहc तो उसकR आशा करना मूख&ता का काम है। eयijक-
अि«हो•ं •यो वेदाि¬द‹डं भHमगु‹ठनम् ।
बुिZपौ˜षहीनानां जीिवके ित बृहHपित ।।
चारवाकमत'चारक ‘बृहHपित’ कहता है jक अि«हो•, तीन वेद, तीन द‹ड
और भHम का लगाना बुिZ और पु˜षाथ& रिहत पु˜षi ने जीिवका बना ली है।
jक3तु कांटे लगने आjद से उ"प– gए दुःख का नाम नरक; लोकिसZ राजा
परमे5र और देह का नाश होना मोz अ3य कु छ भी नहc है।
(उsर) िवषय’पी सुखमा• को पु˜षाथ& का फल मानकर िवषय दुःख-
िनवारणमा• मO कृ तकृ "यता और Hवग& मानना मूख&ता है। अि«हो•jद यXi से
वायु, वृि…, जल कR शुिZ yारा आरो•यता का होना उस से धम&, अथ&, काम
और मोz कR िसिZ होती है उस को न जानकर वेद ई5र और वेदोž धम& कR
िन3दा करना धूतŽ का काम है। जो ि•द‹ड और भHमधारण का ख‹डन है सो
ठीक है। यjद क‹टकाjद से उ"प– ही दुःख का नाम नरक हो तो उस से अिधक
महारोगाjद नरक eयi नहc? य‡िप राजा को ऐ5य&वान् और 'जापालन मO
समथ& होने से ~े¼ मानO तो ठीक है पर3तु जो अ3यायकारी पापी राजा हो उस
को भी परमे5रवत् मानते हो तो तु›हारे जैसा कोई भी मूख& नहc। शरीर का
िव¸छेद होना मा• मोz है तो गदहे, कु sे आjद और तुम मO eया भेद रहा।
jक3तु आकृ ित ही मा• िभ– रही। चारवाक-
अि«˜‘णो जलं शीतं समHपश&Hतथाऽिनल ।
के नेदं िचि•तं तHमात् HवभावाsदaविHथित ।।१।।
न Hवगª नाऽपवगª वा नैवा"मा पारलौjकक ।
नैव वणा&~मादीनां j¦याt फलदाियका ।।२।।
पशुtेि–हत Hवग¶ °योित…ोमे गिम‘यित ।
Hविपता यजमानेन त• कHमा– िहHयते।।३।।
मृतानामिप ज3तूनां ~ाZं चेsृिƒकारणम् ।
ग¸छतािमह ज3तूनां aथ¶ पाथेयकqपनम्।।४।।
Hवग&िHथता यदा तृÒप्त ग¸छेयुHत• दानत ।
'ासादHयोपWरHथानाम• कHमा– दीयते।।५।।
यावœीवे"सुखं जीवेदण ृ ं कृ "वा घृतं िपबेत् ।
भHमीभूतHय देहHय पुनरागमनं कु त ।।६।।
यjद ग¸छे"परं लोकं देहादेष िविनग&त ।
कHमाद् भूयो न चायाित ब3धुÈेहसमाकु ल ।।७।।
ततt जीवनोपायो {ा|णै“विहतिH"वह ।
मृतानां 'ेतकाया&िण न "व3यिy‡ते Âिचत्।।८।।
•यो वेदHय कsा&रो भ‹डधूत&िनशाचरा ।
जफ& रीतुफ&री"याjद पि‹डतानां वच Hमृतम्।।९।।
अ5Hया• िह िश-3तु प¢ी>ाÉं 'कR“sतम् ।
भ‹डैHतy"परं चैव >ाÉजातं 'कR“sतम्।।१०।।
मांसानां खादनं तyि–शाचरसमीWरतम्।।११।।
चारवाक जगत् कR उ"पिs Hवभाव से मानते ह<। जो-जो Hवाभािवक गुण ह<
उस-उस से ¥a संयुž होकर सब पदाथ& बनते ह<। कोई जगत् का कsा&
नहc।।१।।
न कोई Hवग&, न कोई नरक और न कोई परलोक मO जाने वाला आ"मा है और
न वणा&~म कR j¦या फलदायक है।।२।।
जो यX मO पशु को मार होम करने से वह Hवग& को जाता हो तो यजमान अपने
िपताjद को मार होम करके Hवग& को eयi नहc भेजता? ।।३।।
जो मरे gए जीवi को ~ाZ और तप&ण तृिƒकारक होता है तो परदेश मO जाने
वाले माग& मO िनवा&हाथ& अ–, व¬ और धनाjद को eयi ले जाते ह<? eयijक
जैसे मृतक के नाम से अप&ण jकया gआ पदाथ& Hवग& मO पgंचता है तो परदेश मO
जाने वालi के िलये उनके स›ब3धी भी घर मO उन के नाम से अप&ण करके
देशा3तर मO पgंचा देवO। जो यह नहc पgंचता तो Hवग& मO वह eयiकर पgँच
सकता है? ।।४।।
जो म"य&लोक मO दान करने से Hवग&वासी तृƒ होते ह< तो नीचे देने से घर के
ऊपर िHथत पु˜ष तृƒ eयi नहc होता? ।।५।।
इसिलये जब तक जीवे तब तक सुख से जीवे। जो घर मO पदाथ& न हi तो ऋण
लेके आन3द करे । ऋण देना नहc पड़ेगा eयijक िजस शरीर मO जीव ने खाया
िपया है उन दोनi का पुनरागमन न होगा jफर jकस से कौन मांगेगा और कौन
देवेगा।।६।।
जो लोग कहते ह< jक मृ"युसमय जीव शरीर से िनकल के परलोक को जाता है;
यह बात िम•या है eयijक जो ऐसा होता तो कु टु ›ब के मोह से बZ होकर पुनः
घर मO eयi नहc आ जाता? ।।७।।
इसिलये यह सब {ा|णi ने अपनी जीिवका का उपाय jकया है। जो
दशगा•jद मृतकj¦या करते ह< यह सब उनकR जीिवका कR लीला है।।८।।
वेद के बनानेहारे भांड, धूs& और िनशाचर अथा&त् राzस ये तीन ह<। ‘जफ& री’
‘तुफ&री’ इ"याjद पि‹डतi के धूs&तायुž वचन ह<।।९।।
देखो धूsŽ कR रचना! घोड़े के Òलग को ¬ी >हण करे ; उस के साथ समागम
यजमान कR ¬ी से कराना; क3या से ठ$ा आjद िलखना धूsŽ के िवना नहc हो
सकता।।१०।।
और जो मांस का खाना िलखा है वह वेदभाग राzस का बनाया है।।११।।
(उsर) िवना चेतन परमे5र के िनमा&ण jकये जड़ पदाथ& Hवयम् आपस मO
Hवभाव से िनयमपूव&क िमलकर उ"प– नहc हो सकते। इस वाHते सृि… का कsा&
अवŸय होना चािहए। जो Hवभाव से ही होते हi तो िyतीय सूय&, च3¥, पृिथवी
और नz•jद लोक आप से आप eयi नहc बन जाते ह<।।१।।
Hवग& सुख भोग और नरक दुःख भोग का नाम है। जो जीवा"मा न होता तो सुख
दुःख का भोžा कौन हो सके ? जैसे इस समय सुख दुःख का भोžा जीव है वैसे
परज3म मO भी होता है। eया स"यभाषण और परोपकाराjद j¦या भी
वणा&~िमयi कR िन‘फल हiगी? कभी नहc।।२।।
पशु मार के होम करना वेदाjद स"यशा¬O मO कहc नहc िलखा और मृतकi का
~ाZ, तप&ण करना कपोलकिqपत है eयijक यह वेदाjद स"यशा¬O के िव˜Z
होने से भागवताjद पुराणमतवालi का मत है इसिलये इस बात का ख‹डन
अख‹डनीय है।।३-५।।
जो वHतु है उस का अभाव कभी नहc होता। िव‡मान जीव का अभाव नहc
हो सकता। देह भHम हो जाता है; जीव नहc। जीव तो दूसरे शरीर मO जाता है
इसिलये जो कोई ऋणाjद कर िवराने पदाथŽ से इस लोक मO भोग कर नहc
देते ह<। वे िनtय पापी होकर दूसरे ज3म मO दुःख’पी नरक भोगते ह<, इस मO
कु छ भी स3देह नहc।।६।।
देह से िनकल कर जीव Hथाना3तर और शरीरा3तर को 'ाƒ होता है और उस
को पूव&ज3म तथा कु टु ›बाjद का Xान कु छ भी नहc रहता इसिलये पुनः कु टु ›ब
मO नहc आ सकता।।७।।
हां! {ा|णi ने 'ेतकम& अपनी जीिवकाथ& बना िलया है पर3तु वेदोž न होने
से ख‹डनीय है।।८।।
अब किहये! जो चारवाक आjद ने वेदाjद स"यशा¬ देखे सुने वा पढे़ होते तो
वेदi कR िन3दा कभी न करते jक वेद भांड धूs& और िनशाचरवत् पु˜षi ने
बनाये ह< ऐसा वचन कभी न िनकालते। हां! भांड धूs& िनशाचरवत् महीधराjद
टीकाकार gए ह<। उन कR धूs&sा है; वेदi कR नहc। पर3तु शोक है चारवाक,
आभाणक, बौZ और जैिनयi पर jक इ3हiने मूल चार वेदi कR संिहताu को
भी न सुना, न देखा और न jकसी िवyान् से पढ़ा, इसीिलये न…-±… बुिZ
होकर ऊटपटांग वेदi कR िन3दा करने लगे। दु… वाममा“गयi कR 'माणशू3य
कपोलकिqपत ±… टीकाu को देख कर वेदi से िवरोधी हो कर अिव‡ा’पी
अगाध समु¥ मO जा िगरे ।।९।।
भला! िवचारना चािहये jक ¬ी से अ5 के Òलग का >हण कराके उस से
समागम कराना और यजमान कR क3या से हाँसी ठ$ा आjद करना िसवाय
वाममागŠ लोगi से अ3य मनु‘यi का काम नहc है। िवना इन महापापी
वाममा“गयi के ±…, वेदाथ& से िवपरीत, अशुZ aाwयान कौन करता? अ"य3त
शोक तो इन चारवाक आjद पर है जो jक िवना िवचारे वेदi कR िन3दा करने
पर त"पर gए। तिनक तो अपनी बुिZ से काम लेते। eया करO िवचारे उन मO
िव‡ा ही नहc थी जो स"यास"य का िवचार कर स"य का म‹डन और अस"य
का ख‹डन करते।।१०।।
और जो मांस खाना है यह भी उ3हc वाममागŠ टीकाकारi कR लीला है।
इसिलये उन को राzस कहना उिचत है पर3तु वेदi मO कहc मांस का खाना
नहc िलखा। इसिलये िम•या बातi का पाप उन टीकाकारi को और िज3हiने
वेदi के जाने सुने िवना मनमानी िन3दा कR है; िनःस3देह उन को लगेगा। सच
तो यह है jक िज3हiने वेदi का िवरोध jकया और करते ह< और करO गे वे अवŸय
अिव‡ा’पी अ3धकार मO पड़ के सुख के बदले दा˜ण दुःख िजतना पावO उतना
ही 3यून है। इसिलये मनु‘यमा• को वेदानुकूल चलना समुिचत है।।११।।
जो वाममा“गयi ने िम•या कपोलकqपना करके वेदi के नाम से अपना 'योजन
िसZ करना अथा&त् यथे… म‡पान, मांस खाने और पर¬ीगमन करने आjद
दु… कामi कR 'वृिs होने के अथ& वेदi को कलंक लगाया। इ3हc बातi को देख
कर चारवाक, बौZ तथा जैन लोग वेदi कR िन3दा करने लगे । और पृथÀफ़ एक
वेदिव˜Z अनी5रवादी अथा&त् नािHतक मत चला िलया। जो चारवाकाjद
वेदi का मूलाथ& िवचारते तो भफ़ू ठी टीकाu को देख कर स"य वेदोž मत से
eयi हाथ धो बैठते? eया करO िवचारे ‘िवनाशकाले िवपरीतबुिZ ’। जब न…
±… होने का समय आता है तब मनु‘य कR उलटी बुिZ हो जाती है। अब जो
चारवाकाjदकi मO भेद है सो िलखते ह<। ये चारवाकाjद बgत सी बातi मO एक
ह< पर3तु चारवाक देह कR उ"पिs के साथ जीवो"पिs और उस के नाश के साथ
ही जीव का भी नाश मानता है। पुनज&3म और परलोक को नहc मानता। एक
'"यz 'माण के िवना अनुमानाjद 'माणi को भी नहc मानता। चारवाक शdद
का अथ&-जो बोलने मO ‘'गqभ’ और िवशेषाथ& ‘वैति‹डक’ होता है। यह चारवाक
का मत संzेप से दशा& jदया।
आिHतक और नािHतक का संवाद
इस के आगे आिHतक, नािHतक के संवाद के '-ोsर यहां िलखते ह<।
(नािHतक) ई5र कR इ¸छा से कु छ नहc होता जो कु छ होता है वह कम& से।
(आिHतक) जो सब कम& से होता है तो कम& jकस से होता है? जो कहो jक जीव
आjद से होता है तो िजन ~ो•jद साधनi से कम& जीव करता है वे jकन से gए?
जो कहो jक अनाjदकाल और Hवभाव से होते ह< तो अनाjद का
छू टना अस›भव होकर तु›हारे मत मO मुिž का अभाव होगा। जो कहो jक
'ागभाववत् अनाjद सा3त ह< तो िवना य¢ के सब कम& िनवृs हो जायOगे। यjद
ई5र फल'दाता न हो तो पाप के फल दुःख को जीव अपनी इ¸छा से कभी
नहc भोगेगा। जैसे चोर आjद चोरी का फल द‹ड अपनी इ¸छा से नहc भोगते
jक3तु रा°यaवHथा से भोगते ह< वैसे ही परमे5र के भुगाने से जीव पाप और
पु‹य के फलi को भोगते ह< अ3यथा कम&संकर हो जायOगे अ3य के कम& अ3य को
भोगने पड़Oगे।
(नािHतक) ई5र अj¦य है eयijक जो कम& करता होता तो कम& का फल भी
भोगना पड़ता। इसिलये जैसे हम के वली 'ाƒ मुži को अj¦य मानते ह< वैसे
तुम भी मानो।
(आिHतक) ई5र अj¦य नहc jक3तु सj¦य है। जब चेतन है तो कsा& eयi नहc?
और जो कsा& है तो वह j¦या से पृथÀफ़ कभी नहc हो सकता। eयijक जो
िनिमs से ई5र बने तो अिन"य और पराधीन हो जाय eयijक ई5र बने के
'थम जीव था पtात् jकसी िनिमs से ई5र बना तो jफर भी जीव हो
जायेगा। अपने जीव"व Hवभाव को कभी नहc छोड़ सकता eयijक अन3तकाल
से जीव है और अन3तकाल तक रहेगा। इसिलए इस अनाjद HवतःिसZ ई5र
को मानना यो•य है। देखो! जैसे वs&मान समय मO जीव पाप पु‹य करता, सुख
दुःख भोगता है वैसे ई5र कभी नहc होता। जो ई5र j¦यावान् न होता तो
इस जगत् को कै से बना सकता? जो कमŽ को 'ागभाववत् अनाjद सा3त मानते
हो तो कम& समवाय स›ब3ध से नहc रहेगा। जो समवाय स›ब3ध से नहc वह
संयोगज होके अिन"य होता है। जो मुिž मO j¦या ही न मानते हो तो वे मुž
जीव Xान वाले होते ह< वा नहc? जो कहो होते ह< तो अ3तःj¦या वाले gए।
eया मुिž मO पाषाणवत् जड़ हो जाते; एक Wठकाने पड़े रहते और कु छ भी चे…ा
नहc करते तो मुिž eया gई jक3तु अ3धकार और ब3धन मO पड़ गये।
(नािHतक) ई5र aापक नहc है जो aापक होता तो सब वHतु चेतन eयi नहc
होती? और {ा|ण, zि•य, वैŸय, शू¥ आjद कR उsम, म—यम, िनकृ … अवHथा
eयi gई? eयijक सब मO ई5र एक सा aाƒ है तो छु टाई-बड़ाई न होनी
चािहये।
(आिHतक) aाÊय और aापक एक नहc होते jक3तु aाÊय एकदेशी और
aापक सव&दश े ी होता है। जैसे आकाश सब मO aापक है और भूगोल और
घटपटाjद सब aाÊय एकदेशी ह<। जैसे पृिथवी आकाश एक नहc वैसे ई5र
और जगत् एक नहc। जैसे सब घट पटाjद मO आकाश aापक है और घटपटाjद
आकाश नहc, वैसे परमे5र चेतन सब मO है ओैर सब चेतन नहc होता। जैसे
आकाश सब मO बराबर है पृ•वी आjद के अवयव बराबर नहc वैसे परमे5र के
बराबर कोई नहc। जैसे िवyान्, अिवyान् और धमा&"मा, अधमा&"मा बराबर
नहc होते वैसे िव‡ाjद स¾गुण और स"यभाषणाjद कम& सुशीलताjद Hवभाव
के 3यूनािधक होने से {ा|ण, zि•य, वैŸय, शू¥ और अ3"यज बड़े छोटे माने
जाते ह<। वणŽ कR aाwया जैसी ‘चतुथ&समुqलास’ मO िलख आये ह< वहाँ देख लो।
(नािHतक) ई5र ने जगत् का अिधपित"व और जगत् ’प ऐ5य& jकस कारण
Hवीकार jकया?
(आिHतक) ई5र ने कभी अिधपित"व न छोड़ा था; न >हण jकया है jक3तु
अिधपित"व और जगत् ’प ऐ5य& ई5र ही मO है। न कभी उस से अलग हो
सकता है तो >हण eया करे गा? eयijक अ'ाƒ का >हण होता है। aाÊय से
aापक और aापक से aाÊय पृथÀफ़ कभी नहc हो सकता। इसिलये सदैव
Hवािम"व और अन3त ऐ5य& अनाjद काल से ई5र मO है। इस का >हण और
"याग जीवi मO घट सकता है; ई5र मO नहc।
(नािHतक) जो ई5र कR रचना से सृि… होती तो माता, िपताjद का eया काम
?
(आिHतक) ऐ5री सृि… का ई5र कsा& है; जैवी सृि… का नहc। जो जीवi के
कs&a कम& ह< उन को ई5र नहc करता jक3तु जीव ही करता है। जैसे वृz,
फल, ओषिध, अ–ाjद ई5र ने उ"प– jकया है। उस को लेकर मनु‘य न पीसO,
न कू टO, न रोटी आjद पदाथ& बनावO और न खावO तो eया ई5र उस के बदले इन
कामi को कभी करे गा ? और जो न करO तो जीव का जीवन भी न हो सके ।
इसिलए आjदसृि… मO जीव के शरीरi और सांचi को बनाना ई5राधीन; पtात्
उन से पु•jद कR उ"पिs करना जीव का कs&a काम है।
(नािHतक) जब परमा"मा शा5त, अनाjद, िचदान3द, XानHव’प है तो जगत्
के 'प€ और दुःख मO eयi पड़ा? आन3द छोड़ दुःख का >हण ऐसा काम कोई
साधारण मनु‘य भी नहc करता; ई5र ने ऐसा eयi jकया?
(आिHतक) परमा"मा jकसी 'प€ और दुःख मO नहc िगरता, न अपने आन3द
को छोड़ता है eयijक 'प€ और दुःख मO िगरना जो एकदेशी हो उस का हो
सकता है; सव&दश े ी का नहc। जो अनाjद, िचदान3द, XानHव’प परमा"मा
जगत् को न बनावे तो अ3य कौन बना सके ? जगत् बनाने का जीव मO साम•य&
नहc और जड़ मO Hवयं बनने का भी साम•य& नहc। इससे यह िसZ gआ jक
परमा"मा ही जगत् को बनाता और सदा आन3द मO रहता है। जैसे परमा"मा
परमाणुu से सृि… करता है वैसे माता िपता’प िनिमsकारण से भी उ"पिs
का 'ब3ध िनयम उसी ने jकया है।
(नािHतक) ई5र मुिž’प सुख को छोड़ जगत् का सृि…करण धारण और 'लय
करने के बखेड़े मO eयi पड़ा ?
(आिHतक) ई5र सदा मुž होने से अन3तHव’प गुण, कम&, Hवभावयुž
परमा"मा है वह इस jकि€"मा• जगत् को बनाता, धरता और 'लय करता
gआ भी ब3ध मO नहc पड़ता eयijक ब3ध और मोz सापेzता से है। जैसे मुिž
कR अपेzा से ब3ध और ब3ध कR अपेzा से मुिž होती है। जो कभी बZ नहc
था वह मुž eयiकर कहा जा सकता है? और जो एकदेशी जीव ह< वे ही बZ
और मुž सदा gआ करते ह<। अन3त, सव&दश े ी, सव&aापक ई5र ब3धन वा
नैिमिsक मुिž के च¦ मO कभी नहc पड़ता। इसिलये वह परमा"मा सदैव मुž
कहाता है।
(नािHतक) जीव कमŽ के फल ऐसे ही भोग सकते ह< जैसे भांग पीने के मद को
Hवयमेव भोगता है। इस मO ई5र का काम नहc।
(आिHतक) जैसे िवना राजा के डाकू , ल›पट, चोराjद दु… मनु‘य Hवयं
फांसी वा कारागृह मO नहc जाते; न वे जाना चाहते ह< jक3तु राज कR
3यायaवHथानुसार बला"कार से पकड़ाकर यथोिचत राजा द‹ड देता है। इसी
'कार जीव को भी ई5र 3यायaवHथा से Hव-Hव कमा&नुसार यथायो•य द‹ड
देता है। eयijक कोई भी जीव अपने दु… कमŽ के फल भोगना नहc चाहता
इसिलये अवŸय परमा"मा 3यायाधीश होना चािहये।
(नािHतक) जगत् मO एक ई5र नहc jक3तु िजतने मुž जीव ह< वे सब ई5र ह<।
(आिHतक) यह कथन सव&था aथ& है eयijक जो 'थम बZ होकर मुž हो तो
पुनः ब3ध मO अवŸय पड़े eयijक वे Hवाभािवक सदैव मुž नहc। जब बgत से
ई5र ह< तो जैसे जीव अनेक होने से लड़ते िभड़ते jफरते ह< वैसे ई5र भी लड़ा
िभड़ा करO गे।
(नािHतक) हे मूढ़! जगत् का कsा& कोई नहc jक3तु जगत् HवयंिसZ है।
(आिHतक) यह jकतनी बड़ी भूल है! भला िवना कsा& के कोई कम&, कम& के
िवना कोई का‰य& जगत् मO होता दीखता है! यह ऐसी बात है jक जैसे गे•ं के
खेत मO HवयंिसZ िपसान, रोटी बन के पेट मO चली जाती हो। कपास, सूत,
कपड़ा, अंगखा&, दुपÝा, धोती, पगड़ी आjद बनके कभी नहc आते। जब ऐसा
नहc तो ई5र कsा& के िवना यह िविवध जगत् और नाना 'कार कR रचना
िवशेष कै से बन सकती? जो हठधम& से HवयंिसZ जगत् को मानो तो HवयंिसZ
उपरोž व¬jदकi को कsा& के िवना '"यz कर jदखलाओ। जब ऐसा िसZ
नहc कर सकते पुनः तु›हारे 'माणशू3य कथन को कौन बुिZमान् मान सकता
है?
(नािHतक) ई5र िवरž है वा मोिहत? जो िवरž है तो जगत् के 'प€ मO eयi
पड़ा? जो मोिहत है तो जगत् के बनाने को समथ& नहc हो सके गा।
(आिHतक) परमे5र मO वैरा•य वा मोह कभी नहc घट सकता eयijक जो
सव&aापक है वह jकस को छोड़े औेर jकस को >हण करे । ई5र से उsम वा
उस को अ'ाƒ कोई पदाथ& नहc है इसिलये jकसी मO मोह भी नहc होता। वैरा•य
और मोह का होना जीव मO घटता है; ई5र मO नहc।
(नािHतक) जो ई5र को जगत् का कsा& और जीवi के कमŽ के फलi का दाता
मानोगे तो ई5र 'प€ी होकर दुःखी हो जायेगा।
(आिHतक) भला! अनेकिवध कमŽ का कsा& और 'ािणयi को फलi का दाता
धा“मक 3यायाधीश िवyान् कमŽ मO नहc फं सता न 'प€ी होता है तो परमे5र
अन3त साम•य& वाला 'प€ी और दुःखी eयiकर होगा?

जगत् का कारण अनाjद है eयijक वे परमाणु आjद तÓवHव’प अकतृ&क ह<


पर3तु उन मO िनयमपूव&क बनने वा िबगड़ने का साम•य& कु छ भी नहc। eयijक
जब एक परमाणु ¥a jकसी का नाम है और Hवभाव से पृथÀफ़-पृथÀफ़ ’प
और जड़ ह< वे अपने आप यथायो•य नहc बन सकते, इसिलये इन का बनाने
वाला चेतन अवŸय है और वह बनाने वाला XानHव’प है। देखो! पृिथवी
सूया&jद सब लोकi को िनयम मO रखना अन3त, अनाjद, चेतन परमा"मा का
काम है। िजन मO संयोग रचना िवशेष दीखता है वह Hथूल जगत् अनाjद कभी
नहc हो सकता। जो काय& जगत् को िन"य मानोगे तो उस का कारण कोई न
होगा jक3तु वही काय&कारण’प हो जायगा। जो ऐसा कहोगे तो अपना का‰य&
और कारण आप ही होने से अ3यो3या~य और आ"मा~य दोष आवेगा। जैसे
अपने क3धे पर आप चढ़ना और अपना िपता पु• आप नहc हो सकता। इसिलये
जगत् का कsा& अवŸय ही मानना है।
('-) जो ई5र को जगत् का कsा& मानते हो तो ई5र का कsा& कौन है?
(उsर) कsा& का कsा& और कारण का कारण कोई भी नहc हो सकता eयijक
'थम कsा& और कारण के होने से ही का‰य& होता है। िजस मO संयोग िवयोग
नहc होता जो 'थम संयोग िवयोग का कारण है उस का कsा& वा कारण jकसी
'कार नहc हो सकता। इस कR िवशेष aाwया आठवO समुqलास मO सृि… कR
aाwया मO िलखी है; देख लेना।
('-) जैसे धा3य का िछलका उतारने वा अि« के संयोग होने से वह बीज पुनः
नहc उगता इसी 'कार मुिž मO गया gआ जीव पुनः ज3ममरण’प संसार मO
नहc आता।
(उsर) जीव और कम& का स›ब3ध िछलके और बीज के समान नहc है jक3तु
इन का समवाय स›ब3ध है। इस से अनाjद काल से जीव और उस मO कम& और
कतृ&"वशिž का स›ब3ध है। जो उस मO कम& करने कR शिž का भी अभाव
मानोगे तो सब जीव पाषाणवत् हो जायOगे और मुिž को भोगने का ही साम•य&
नहc रहेगा। जैसे अनाjद काल का कम&-ब3धन छू ट कर जीव मुž होता है तो
तु›हारी िन"य मुिž से भी छू ट कर ब3धन मO पड़ेगा। eयijक जैसे कम&’प मुिž
के साधनi से भी छू ट कर जीव का मुž होना मानते हो वैसे ही िन"य मुिž से
भी छू ट के ब3धन मO पड़ेगा। साधनi से िसZ gआ पदाथ& िन"य कभी नहc हो
सकता और जो साधन िसZ के िबना मुिž मानोगे तो कमŽ के िबना ही ब3ध
'ाƒ हो सके गा। जैसे व¬O मO मैल लगता और धोने से छू ट जाता है पुनः मैल
लग जाता है। वैसे िम•या"वाjद हेतुu से राग, yेषाjद के आ~य से जीव को
कम&’प मल लगता है और जो स›य•Xान दश&न चाWर• से िनम&ल होता है। और
मल लगने के कारणi से मलi का लगना मानते हो तो मुž जीव संसारी और
संसारी जीव का मुž होना अवŸय मानना पड़ेगा। eयijक जैसे िनिमsi से
मिलनता छू टती है वैसे िनिमsi से मिलनता लग भी जायेगी। इसिलये जीव
को ब3ध और मुिž 'वाह’प से अनाjद मानो; अनाjद अन3तता से नहc।
('-) जीव िनम&ल कभी नहc था jक3तु मलसिहत है।
(उsर) जो कभी िनम&ल नहc था तो िनम&ल भी कभी नहc हो सके गा। जैसे शुZ
व¬ मO पीछे से लगे gए मैल को धोने से छु ड़ा देते ह<। उस के Hवाभािवक 5ेत
वण& को नहc छु ड़ा सकते। मैल jफर भी व¬ मO लग जाता है। इसी 'कार मुिž
मO भी लगेगा।
('-) जीव पूवªपा“जत कम& ही से Hवयं शरीर धारण कर लेता है। ई5र का
मानना aथ& है।
(उsर) जो के वल कम& ही शरीर धारण मO िनिमs हो; ई5र कारण न हो तो
वह जीव बुरा ज3म jक जहां बgत दुःख हो उस को धारण कभी न करे jक3तु
सदा अ¸छे-अ¸छे ज3म धारण jकया करे । जो कहो jक कम& 'ितब3धक है तो
भी जैसे चोर आप से आके ब3दीगृह मO नहc जाता और Hवयं फांसी भी नहc
खाता jक3तु राजा देता है। इसी 'कार जीव को शरीर धारण कराने और उस
के कमा&नुसार फल देने वाले परमे5र को तुम भी मानो।
('-) मद (नशा) के समान कम&फल Hवयं 'ाƒ होता है। फल देने मO दूसरे कR
आवŸयकता नहc।
(उsर) जो ऐसा हो तो जैसे मदपान करने वालi को मद कम चढ़ता; अन^यासी
को बgत चढ़ता है। वैसे िन"य बgत पाप, पु‹य करने वालi को 3यून और कभी-
कभी थोड़ा-थोड़ा पाप, पु‹य करने वालi को अिधक फल होना चािहए और
छोटे कम& वालi को अिधक फल होवे।
('-) िजस का जैसा Hवभाव होता है उस को वैसा ही फल gआ करता है।
(उsर) जो Hवभाव से है तो उस का छू टना वा िमलना नहc हो सकता। हां!
जैसे शुZ व¬ मO िनिमsi से मल लगता है उस के छु ड़ाने के िनिमsi से छू ट
भी जाता है; ऐसा मानना ठीक है।
('-) संयोग के िवना कम& पWरणाम को 'ाƒ नहc होता। जैसे दूध और खटाई
के संयोग के िवना दही नहc होता। इसी 'कार जीव और कम& के योग से कम&
का पWरणाम होता है।
(उsर) जैसे दूध और खटाई को िमलाने वाला तीसरा होता है वैसे ही जीवi
को कमŽ के फल के साथ िमलाने वाला तीसरा ई5र होना चािहये। eयijक
जड़ पदाथ& Hवयं िनयम से संयुž नहc होते और जीव भी अqपX होने से Hवयम्
अपने कम&फल को 'ाƒ नहc हो सकते। इस से यह िसZ gआ jक िवना
ई5रHथािपत सृि…¦म के कम&फलaवHथा नहc हो सकती।
('-) जो कम& से मुž होता है वही ई5र कहाता है।
(उsर) जब अनाjद काल से जीव के साथ कम& लगे ह< उन से जीव मुž कभी
नहc हो सकO गे।
('-) कम& का ब3ध साjद है।
(उsर) जो साjद है तो कम& का योग अनाjद नहc और संयोग के आjद मO जीव
िन‘कम& होगा और जो िन‘कम& को कम& लग गया तो मुži को भी लग जायगा
और कम& कsा& का समवाय अथा&त् िन"य स›ब3ध होता है यह कभी नहc
छू टता, इसिलये जैसा ९वO समुqलास मO िलख आये ह< वैसा ही मानना ठीक है।
जीव चाहै जैसा अपना Xान और साम•य& बढ़ावे तो भी उस मO पWरिमत Xान
और ससीम साम•य& रहेगा। ई5र के समान कभी नहc हो सकता। हां! िजतना
साम•य& बढ़ना उिचत है उतना योग से बढ़ा सकता है।

जैसे एक ह‹डे मO चुड़ते चावलi मO से एक चावल कR परीzा करने से क0े वा


पÙे ह< सब चावल िवjदत हो जाते ह<। ऐसे ही इस थोड़े से लेख से सœन लोग
बgत सी बातO समभफ़ लOगे। बुिZमानi के सामने बgत िलखना आवŸयक नहc।
eयijक jद•दश&नवत् स›पूण& आशय को बुिZमान् लोग जान ही लेते ह<।

इसके आगे ईसाइयi के मत के िवषय मO िलखा जायेगा।


इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमिन“मते स"याथ&'काशे
सुभाषािवभूिषते नािHतकमता3तग&तचावा&क
मतख‹डनम‹डनिवषये
yादश समुqलास स›पूण& ।।१२।।
अनुभूिमका (३)
जो यह बाइबल का मत है jक वह के वल ईसाइयi का है सो नहc jक3तु इससे
य•दी आjद भी गृहीत होते ह<। जो यहां तेरहवO समुqलास मO ईसाई मत के
िवषय मO िलखा है इसका यही अिभ'ाय है jक आजकल बाइबल के मत मO
ईसाई मुwय हो रहे ह< और य•दी आjद गौण ह<। मुwय के >हण से गौण का
>हण हो जाता है, इससे य•jदयi का भी >हण समभफ़ लीिजये। इनका जो
िवषय यहां िलखा है सो के वल बाइबल मO से jक िजसको ईसाई और य•दी
आjद सब मानते ह< और इसी पुHतक को अपने धम& का मूल कारण समझते ह<।
इस पुHतक के भाषा3तर बgत से gए ह< जो jक इनके मत मO बड़े-बडे़ पादरी ह<
उ3हc ने jकये ह<। उनमO से देवनागरी व संHकृ त भाषा3तर देख कर मुझको
बाइबल मO बgत सी शंका gई ह<। उनमO से कु छ थोड़ी सी इस १३ तेरहवO
समुqलास मO सब के िवचाराथ& िलखी ह<। यह लेख के वल स"य कR वृिZ औेर
अस"य के ×ास होने के िलये है न jक jकसी को दुःख देने वा हािन करने अथवा
िम•या दोष लगाने के अथ& ही। इसका अिभ'ाय उsर लेख मO सब कोई समझ
लOगे jक यह पुHतक कै सा है और इनका मत भी कै सा है? इस लेख से यही
'योजन है jक सब मनु‘यमा• को देखना, सुनना, िलखना आjद करना सहज
होगा और पzी, 'ितपzी होके िवचार कर ईसाई मत का आ3दोलन सब कोई
कर सकO गे। इससे एक यह 'योजन िसZ होगा jक मनु‘यi को धम&िवषयक Xान
बढ़ कर यथायो•य स"याऽस"य मत और कs&aाकs&a कम& स›ब3धी िवषय
िवjदत होकर स"य और कs&a कम& का Hवीकार, अस"य और अकs&a कम&
का पWर"याग करना सहजता से हो सके गा। सब मनु‘यi को उिचत है jक सब
के मतिवषयक पुHतकi को देख समझ कर कु छ स›मित वा अस›मित देवO वा
िलखO; नहc तो सुना करO । eयijक जैसे पढ़ने से पि‹डत होता है वैसे सुनने से
बg~ुत होता है। यjद ~ोता दूसरे को नहc समझा सके तथािप आप Hवयं तो
समझ ही जाता है। जो कोई पzपात’प याना’ढ़ होके देखते ह< उनको न अपने
और न पराये गुण, दोष िवjदत हो सकते ह<। मनु‘य का आ"मा यथायो•य
स"याऽस"य के िनण&य करने का साम•य& रखता है। िजतना अपना पWठत वा ~ुत
है उतना िनtय कर सकता है। यjद एक मत वाले दूसरे मतवाले के िवषयi
को जानO और अ3य न जानO तो यथावत् संवाद नहc हो सकता, jक3तु अXानी
jकसी ±म’प बाड़े मO िगर जाते ह<। ऐसा न हो इसिलये इस >3थ मO, 'चWरत
सब मतi का िवषय थोड़ा-थोड़ा िलखा है। इतने ही से शेष िवषयi मO अनुमान
कर सकता है jक वे स0े ह< वा भफ़ू ठे ? जो-जो सव&मा3य स"य िवषय ह< वे तो
सब मO एक से ह<। भफ़गड़ा झूठे िवषयi मO होता है। अथवा एक स0ा और दूसरा
झूठा हो तो भी कु छ थोड़ा सा िववाद चलता है। यjद वादी 'ितवादी
स"याऽस"य िनtय के िलये वाद 'ितवाद करO तो अवŸय िनtय हो जाये।
अब म< इस १३वO समुqलास मO ईसाई मत िवषयक थोड़ा सा िलख कर सब के
स›मुख Hथािपत करता •ं; िवचाWरये jक कै सा है।
अलमितलेखेन िवचzणवरे षु।
अथ •योदशसमुqलासार›भः
अथ कृ tीनमतिवषयं aाwयाHयामः
अब इसके आगे ईसाइयi के मत िवषय मO िलखते ह< िजससे सब को िवjदत हो
जाय jक इनका मत िनदªष और इनकR बाइबल पुHतक ई5रकृ त है वा नहc?
'थम बाइबल के तौरे त का िवषय िलखा जाता है-
१-आर›भ मO ई5र ने आकाश और पृिथवी को सृजा।। और पृिथवी बेडौल और
सूनी थी और गिहराव पर अि3धयारा था और ई5र का आ"मा जल के ऊपर
डोलता था।। -तौरे त उ"पिs पुHतक पव& १। आय० १।२ ।।
(समीzक) आर›भ jकसको कहते हो?
(ईसाई) सृि… के 'थमो"पिs को।
(समीzक) eया यही सृि… 'थम gई; इसके पूव& कभी नहc gई थी?
(ईसाई) हम नहc जानते gई थी वा नहc; ई5र जाने।
(समीzक) जब नहc जानते तो इस पुHतक पर िव5ास eयi jकया jक िजससे
स3देह का िनवारण नहc हो सकता और इसी के भरोसे लोगi को उपदेश कर
इस स3देह के भरे gए मत मO eयi फं साते हो? और िनःस3देह सव&शंकािनवारक
वेदमत को Hवीकार eयi नहc करते? जब तुम ई5र कR सृि… का हाल नहc
जानते तो ई5र को कै से जानते होगे? आकाश jकसको मानते हो?
(ईसाई) पोल और ऊपर को।
(समीzक) पोल कR उ"पिs jकस 'कार gई eयijक यह िवभु पदाथ& और अित
सूˆम है और ऊपर नीचे एक सा है। जब आकाश नहc सृजा था तब पोल और
अवकाश था वा नहc? जो नहc था तो ई5र, जगत् का कारण और जीव कहां
रहते थे? िवना अवकाश के कोई पदाथ& िHथत नहc हो सकता इसिलये तु›हारी
बाइबल का कथन युž नहc। ई5र बेडौल, उसका Xान कम& बेडौल होता है
वा सब डौल वाला?
(ईसाई) डौल वाला होता है।
(समीzक) तो यहां ई5र कR बनाई पृिथवी बेडौल थी ऐसा eयi िलखा?
(ईसाई) बेडौल का अथ& यह है jक ऊंची नीची थी; बराबर नहc थी।
(समीzक) jफर बराबर jकसने कR? और eया अब भी ऊंची नीची नहc है?
इसिलये ई5र का काम बेडौल नहc हो सकता eयijक वह सव&X है, उसके काम
मO न भूल, न चूक कभी हो सकती है। और बाइबल मO ई5र कR सृि… बेडौल
िलखी इसिलये यह पुHतक ई5रकृ त नहc हो सकता। 'थम ई5र का आ"मा
eया पदाथ& है?
(ईसाई) चेतन।
(समीzक) वह साकार है वा िनराकार तथा aापक है वा एकदेशी।
(ईसाई) िनराकार, चेतन और aापक है पर3तु jकसी एक सनाई पव&त, चौथा
आसमान आjद Hथानi मO िवशेष करके रहता है।
(समीzक) जो िनराकार है तो उसको jकसने देखा? और aापक का जल पर
डोलना कभी नहc हो सकता। भला! जब ई5र का आ"मा जल पर डोलता था
तब ई5र कहां था? इससे यही िसZ होता है jक ई5र का शरीर कहc अ3य•
िHथत होगा अथवा अपने कु छ आ"मा के एक टु कड़े को जल पर डु लाया होगा।
जो ऐसा है तो िवभु और सव&X कभी नहc हो सकता। जो िवभु नहc तो जगत्
कR रचना, धारण, पालन और जीवi के कमŽ कR aवHथा वा 'लय कभी नहc
कर सकता eयijक िजस पदाथ& का Hव’प एकदेशी है उसके गुण, कम&, Hवभाव
भी एकदेशी होते ह<, जो ऐसा है तो वह ई5र नहc हो सकता eयijक ई5र
सव&aापक, अन3त गुण, कम&, Hवभावयुž सि0दान3दHव’प, िन"य, शुZ,
बुZ, मुžHवभाव, अनाjद, अन3ताjद लzणयुž वेदi मO कहा है। उसी को
मानो तभी तु›हारा कqयाण होगा, अ3यथा नहc।।१।।
२-और ई5र ने कहा jक उिजयाला होवे और उिजयाला हो गया।। और ई5र
ने उिजयाले को देखा jक अ¸छा है।। -तौरे त उ"पिs पव&० १। आ० ३। ४ ।।
(समीzक) eया ई5र कR बात जड़’प उिजयाले ने सुन ली? जो सुनी हो तो
इस समय भी सू‰य& और दीप अि« का 'काश हमारी तु›हारी बात eयi नहc
सुनता? 'काश जड़ होता है वह कभी jकसी कR बात नहc सुन सकता। eया
जब ई5र ने उिजयाले को देखा तभी जाना jक उिजयाला अ¸छा है? पहले
नहc जानता था? जो जानता होता तो देख कर अ¸छा eयi कहता? जो नहc
जानता था तो वह ई5र ही नहc। इसीिलए तु›हारी बाइबल ई5रोž और
उसमO कहा gआ ई5र सव&X नहc है।।२।।
३-और ई5र ने कहा jक पािनयi के म—य मO आकाश होवे और पािनयi को
पािनयi से िवभाग करे ।। तब ई5र ने आकाश को बनाया और आकाश के नीचे
के पािनयi को आकाश के ऊपर के पािनयi से िवभाग jकया और ऐसा हो
गया।। और ई5र ने आकाश को Hवग& कहा और सांभफ़ और िबहान दूसरा jदन
gआ।। -तौरे त उ"पिs पव&० १। आ० ६। ७। ८।।
(समीzक) eया आकाश और जल ने भी ई5र कR बात सुन ली? और जो जल
के बीच मO आकाश न होता तो जल रहता ही कहां? 'थम आयत मO आकाश
को सृजा था पुनः आकाश का बनाना aथ& gआ। जो आकाश को Hवग& कहा तो
वह सव&aापक है इसिलये सव&• Hवग& gआ jफर ऊपर को Hवग& है यह कहना
aथ& है। जब सू‰य& उ"प– ही नहc gआ था तो पुनः jदन और रात कहां से हो
गई? ऐसी ही अस›भव बातO आगे कR आयतi मO भरी ह<।।३।।
४-तब ई5र ने कहा jक हम आदम को अपने Hव’प मO अपने समान बनावO।।
तब ई5र ने आदम को अपने Hव’प मO उ"प– jकया, उसने उसे ई5र के Hव’प
मO उ"प– jकया, उसने उ3हO नर और नारी बनाया।। और ई5र ने उ3हO आशीष
jदया।। -तौरे त उ"पिs पव&० १। आ० २६। २७। २८ ।।
(समीzक) यjद आदम को ई5र ने अपने Hव’प मO बनाया तो ई5र का Hव’प
पिव• XानHव’प, आन3दमय आjद लzणयुž है उसके सदृश आदम eयi नहc
gआ? जो नहc gआ तो उसके Hव’प मO नहc बना और आदम को उ"प– jकया
तो ई5र ने अपने Hव’प ही कR उ"पिs वाला jकया पुनः वह अिन"य eयi
नहc? और आदम को उ"प– कहां से jकया?
(ईसाई) मÝी से बनाया।
(समीzक) मÝी कहां से बनाई?
(ईसाई) अपनी कु दरत अथा&त् साम•य& से।
(समीzक) ई5र का साम•य& अनाjद है वा नवीन?
(ईसाई) अनाjद है।
(समीzक) जब अनाjद है तो जगत् का कारण सनातन gआ। jफर अभाव से
भाव eयi मानते हो?
(ईसाई) सृि… के पूव& ई5र के िवना कोई वHतु नहc था।
(समीzक) जो नहc था तो यह जगत् कहां से बना? और ई5र का साम•य&
¥a है वा गुण? जो ¥a है तो ई5र से िभ– दूसरा पदाथ& था और जो गुण है
तो गुण से ¥a कभी नहc बन सकता जैसे ’प से अि« और रस से जल नहc
बन सकता। और जो ई5र से जगत् बना होता तो ई5र के सदृश गुण, कम&,
Hवभाव वाला होता। उसके गुण, कम&, Hवभाव के सदृश न होने से यही िनtय
है jक ई5र से नहc बना jक3तु जगत् के कारण अथा&त् परमाणु आjद नाम वाले
जड़ से बना है। जैसी jक जगत् कR उ"पिs वेदाjद शा¬O मO िलखी है वैसी ही
मान लो िजससे ई5र जगत् को बनाता है। जो आदम के भीतर का Hव’प जीव
और बाहर का मनु‘य के सदृश है तो वैसा ई5र का Hव’प eयi नहc? eयijक
जब आदम ई5र के सदृश बना तो ई5र आदम के सदृश अवŸय होना
चािहये।।४।।
५-तब परमे5र ई5र ने भूिम कR धूल से आदम को बनाया और उसके नथुनi
मO जीवन का 5ास फूं का और आदम जीवता 'ाण gआ।। और परमे5र ई5र
ने अदन मO पूव& कR ओर एक बारी लगाई और उस आदम को िजसे उसने बनाया
था उसमO रeखा।। और उस बारी के म—य मO जीवन का पेड़ और भले बुरे के
Xान का पेड़ भूिम से उगाया।। -तौरे त उ"पिs पव&० २। आ० ७। ८। ९ ।।
(समीzक) जब ई5र ने अदन मO बाड़ी बनाकर उसमO आदम को रeखा तब
ई5र नहc जानता था jक इसको पुनः यहाँ से िनकालना पड़ेगा? और जब
ई5र ने आदम को धूली से बनाया तो ई5र का Hव’प नहc gआ, और जो है
तो ई5र भी धूली से बना होगा? जब उसके नथुनi मO ई5र ने 5ास फूं का तो
वह 5ास ई5र का Hव’प था वा िभ–? जो िभ– था तो आदम ई5र के
Hव’प मO नहc बना। जो एक है तो आदम और ई5र एक से gए। और जो एक
से ह< तो आदम के सदृश ज3म, मरण, वृिZ, zय, zुधा, तृषा आjद दोष ई5र
मO आये, jफर वह ई5र eयiकर हो सकता है? इसिलए यह तौरे त कR बात
ठीक नहc िवjदत होती और यह पुHतक भी ई5रकृ त नहc है।।५।।
६-और परमे5र ई5र ने आदम को बड़ी नcद मO डाला और वह सो गया। तब
उसने उसकR पसिलयi मO से एक पसली िनकाली और संित मांस भर jदया।।
और परमे5र ई5र ने आदम कR उस पसली से एक नारी बनाई और उसे आदम
के पास लाया। -तौरे त उ"पिs पव&० २।। आ० २१। २२ ।।
(समीzक) जो ई5र ने आदम को धूली से बनाया तो उसकR ¬ी को धूली से
eयi नहc बनाया? और जो नारी को ह/ी से बनाया तो आदम को ह/ी
से eयi नहc बनाया? और जैसे नर से िनकलने से नारी नाम gआ तो नारी से
नर नाम भी होना चािहए। और उनमO परHपर 'ेम भी रहै, जैसे ¬ी के साथ
पु˜ष 'ेम करै वैसे पु˜ष के साथ ¬ी भी 'ेम करे । देखो िवyान् लोगो! ई5र
कR कै सी पदाथ&िव‡ा अथा&त् ‘jफलासफR’ चलकती है! जो आदम कR एक पसली
िनकाल कर नारी बनाई तो सब मनु‘यi कR एक पसली कम eयi नहc होती?
और ¬ी के शरीर मO एक पसली होनी चािहये eयijक वह एक पसली से बनी
है। eया िजस साम>ी से सब जगत् बनाया उस साम>ी से ¬ी का शरीर नहc
बन सकता था? इसिलए यह बाइबल का सृि…¦म सृि…िव‡ा से िव˜Z है।।६।।
७-अब सÊप& भूिम के हर एक पशु से िजसे परमे5र ई5र ने बनाया था; धूत&
था। और उसने ¬ी से कहा, eया िनtय ई5र ने कहा है jक तुम इस बारी के
हर एक पेड़ से फल न खाना।। और ¬ी ने सÊप& से कहा jक हम तो इस बारी
के पेड़i का फल खाते ह<।। पर3तु उस पेड़ का फल जो बारी के बीच मO है ई5र
ने कहा है jक तुम उससे न खाना और न छू ना; न हो jक मर जाओ।। तब सÊप&
ने ¬ी से कहा jक तुम िनtय न मरोगे।। eयijक ई5र जानता है jक िजस jदन
तुम उHसे खाओगे तु›हारी आँखO खुल जायOगी और तुम भले और बुरे कR
पिहचान मO ई5र के समान हो जाओगे।। और जब ¬ी ने देखा वह पेड़ खाने
मO सुHवाद और दृि… मO सु3दर और बुिZ देने के यो•य है तो उसके फल मO से
िलया और खाया और अपने पित को भी jदया और उसने खाया।। तब उन
दोनi कR आखO खुल गâ और वे जान गये jक हम नंगे ह< सो उ3हiने गूलर के
पsi को िमला के िसया और अपने िलये ओढ़ना बनाया। तब परमे5र ई5र
ने सÊप& से कहा jक जो तू ने यह jकया है इस कारण तू सारे ढोर और हर एक
वन के पशु से अिधक êािपत होगा। तू अपने पेट के बल चलेगा और अपने
जीवन भर धूल खाया करे गा।। और म< तुझ मO और ¬ी मO और तेरे वंश और
उसके वंश मO वैर डालूंगा।। वह तेरे िसर को कु चलेगा और तू उसकR एड़ी को
काटेगा।। और उसने ¬ी को कहा jक म< तेरी पीड़ा और गभ&- धारण को बgत
बढ़ाऊंगा। तू पीड़ा से बालक जनेगी और तेरी इ¸छा तेरे पित पर होगी और
वह तुझ पर 'भुता करे गा।। और उसने आदम से कहा jक तूने जो अपनी प¢ी
का शdद माना है और िजस पेड़ का फल म<ने तुझे खाने से वजा& था तूने खाया
है। इस कारण भूिम तेरे िलये êािपत है। अपने जीवन भर तू उHसे पीड़ा के
साथ खायेगा।। और वह कांटे और ऊंटकटारे तेरे िलये उगायेगी और तू खेत का
सागपात खायेगा।।
-तौरे त उ"पिs० पव&० ३। आ० १। २। ३। ४। ५। ६। ७। १४। १५। १६। १७। १८।।
(समीzक) जो ईसाइयi का ई5र सव&X होता तो इस धूत& सÊप& अथा&त् शैतान
को eयi बनाता? और जो बनाया तो वही ई5र अपराध का भागी है eयijक
जो वह उसको दु… न बनाता तो वह दु…ता eयi करता? और वह पूव& ज3म
नहc मानता तो िवना अपराध उसको पापी eयi बनाया? और सच पूछो तो
वह सÊप& नहc था jक3तु मनु‘य था। eयijक जो मनु‘य न होता तो मनु‘य कR
भाषा eयiकर बोल सकता? और जो आप भफ़ू ठा और दूसरे को भफ़ू ठ मO चलावे
उसको शैतान कहना चािहये सो यहां शैतान स"यवादी और इससे उसने उस
¬ी को नहc बहकाया jक3तु सच कहा और ई5र ने आदम और हÀवा से झूठ
कहा jक इसके खाने से तुम मर जाओगे। जब वह पेड़ Xानदाता और अमर
करने वाला था तो उसके फल खाने से eयi वजा&? और जो वजा& तो वह ई5र
झूठा और बहकाने वाला ठहरा। eयijक उस वृz के फल मनु‘यi को Xान और
सुखकारक थे; अXान और मृ"युकारक नहc। जब ई5र ने फल खाने से वजा& तो
उस वृz कR उ"पिs jकसिलये कR थी? जो अपने िलए कR तो eया आप अXानी
और मृ"युधम&वाला था? और दूसरi के िलये बनाया तो फल खाने मO अपराध
कु छ भी न gआ। और आजकल कोई भी वृz Xानकारक और मृ"युिनवारक
देखने मO नहc आता। eया ई5र ने उसका बीज भी न… कर jदया? ऐसी बातi
से मनु‘य छली कपटी होता है तो ई5र वैसा eयi नहc gआ? eयijक जो कोई
दूसरे से छल कपट करे गा वह छली कपटी eयi न होगा? और जो इन तीनi
को शाप jदया वह िवना अपराध से है। पुनः वह ई5र अ3यायकारी भी gआ
और यह शाप ई5र को होना चािहये eयijक वह झूठ बोला और उनको
बहकाया। यह ‘jफलासफR’ देखो! eया िवना पीड़ा के गभ&धारण और बालक
का ज3म हो सकता था? और िवना ~म के कोई अपनी जीिवका कर सकता
है? eया 'थम कांटे आjद के वृz न थे? और जब शाक पात खाना सब मनु‘यi
को ई5र के कहने से उिचत gआ तो जो उsर मO मांस खाना बाइबल मO िलखा
वह झूठा eयi नहc? और जो वह स0ा हो तो यह झूठा है। जब आदम का कु छ
भी अपराध िसZ नहc होता तो ईसाई लोग सब मनु‘यi को आदम के अपराध
से स3तान होने पर अपराधी eयi कहते ह<? भला ऐसा पुHतक और ऐसा ई5र
कभी बुिZमानi के मानने यो•य हो सकता है? ।।७।।
८-और परमे5र ई5र ने कहा jक देखो! आदम भले बुरे के जानने मO हम मO से
एक कR नाâ gआ और अब ऐसा न होवे jक वह अपना हाथ डाले और जीवन
के पेड़ मO से भी लेकर खावे और अमर हो जाय।। सो उसने आदम को िनकाल
jदया और अदन कR बारी कR पूव& ओर करोबीम ठहराये और चमकते gए ख"ग
को जो चारi ओर घूमता था; िजसते जीवन के पेड़ के माग& कR रखवाली करO ।।
-तौरे त उ"पिs पव&० ३। आ० २२। २४।।
(समीzक) भला! ई5र को ऐसी ई‘या& और ±म eयi gआ jक Xान मO हमारे
तुqय gआ? eया यह बुरी बात gई? यह शंका ही eयi पड़ी? eयijक ई5र के
तुqय कभी कोई नहc हो सकता। पर3तु इस लेख से यह भी िसZ हो सकता है
jक वह ई5र नहc था jक3तु मनु‘य िवशेष था। बाइबल मO जहां कहc ई5र कR
बात आती है वहां मनु‘य के तुqय ही िलखी आती है। अब देखो! आदम के Xान
कR बढ़ती मO ई5र jकतना दुःखी gआ और jफर अमर वृz के फल खाने मO
jकतनी ई‘या& कR। और 'थम जब उसको बारी मO रeखा तब उसको भिव‘यत्
का Xान नहc था jक इसको पुनः िनकालना पड़ेगा, इसिलये ईसाइयi का ई5र
सव&X नहc था। और चमकते ख"ग का पिहरा रeखा यह भी मनु‘य का काम
है; ई5र का नहc।।८।।
९-और jकतने jदनi के पीछे यi gआ jक काइन भूिम के फलi मO से परमे5र
के िलये भOट लाया।। और हािबल भी अपनी झुंड मO से पिहलौठी और मोटी-
मोटी भेड़ लाया और परमे5र ने हािबल का और उसकR भOट का आदर jकया।।
पर3तु कािबल का और उसकR भOट का आदर न jकया इसिलये कािबल अित
कु िपत gआ और अपना मुंह फु लाया।। तब परमे5र ने कािबल से कहा jक तू
eयi ¦ु Z है और तेरा मुंह eयi फू ल गया।।
-तौरे त उ"पिs पव&० ४। आ० ३। ४। ५। ६।।
(समीzक) यjद ई5र मांसाहारी न होता तो भेड़ कR भOट और हािबल का
स"कार और काइन का तथा उसकR भOट का ितरHकार eयi करता? और ऐसा
झगड़ा लगाने और हािबल के मृ"यु का कारण भी ई5र ही gआ और जैसे आपस
मO मनु‘य लोग एक दूसरे से बातO करते ह< वैसी ही ईसाइयi के ई5र कR बातO
ह<। बगीचे मO आना जाना उसका बनाना भी मनु‘यi का कम& है। इससे िवjदत
होता है jक यह बाइबल मनु‘यi कR बनाई है; ई5र कR नहc।।९।।
१०-जब परमे5र ने कािबल से कहा तेरा भाई हािबल कहां है और वह बोला
म< नहc जानता। eया म< अपने भाई का रखवाला •ँ। तब उसने कहा तूने eया
jकया? तेरे भाई के लो• का शdद भूिम से मुझे पुकारता है।। और अब तू पृिथवी
से êािपत है। -तौरे त उ"पिs पव&० ४। आ० ९। १०। ११।।
(समीzक) eया ई5र काइन से पूछे िवना हािबल का हाल नहc जानता था
और लो• का शdद भूिम से कभी jकसी को पुकार सकता है? ये सब बातO
अिवyानi कR ह<, इसीिलये यह पुHतक न ई5र और न िवyान् का बनाया हो
सकता है।।१०।।
११-और हनूक मतूिसलह कR उ"पिs के पीछे तीन सौ वष& लi ई5र के साथ-
साथ चलता था।। -तौरे त उ"पिs पव&० ५। आ० २२।।
(समीzक) भला! ईसाइयi का ई5र मनु‘य न होता तो हनूक के साथ-साथ
eयi चलता? इससे जो वेदोž िनराकार aापक ई5र है उसी को ईसाई लोग
मानO तो उनका कqयाण होवे।।११।।
१२-और यi gआ jक जब आदमी पृिथवी पर बढ़ने लगे और उनसे बेWटयां
उ"प– gâ।। तो ई5र के पु•O ने आदम कR पुि•यi को देखा jक वे सु3दरी ह<
और उनमO से िज3हO उ3हiने चाहा उ3हO aाहा।। और उन jदनi मO पृिथवी पर
दानव थे और उसके पीछे भी जब ई5र के पु• आदम कR पुि•यi से िमले तो
उनसे बालक उ"प– gए जो बलवान् gए जो आगे से नामी थे।। और ई5र ने
देखा jक आदम कR दु…ता पृिथवी पर बgत gई और उनके मन कR िच3ता और
भावना 'ितjदन के वल बुरी होती है।। तब आदमी को पृिथवी पर उ"प– करने
से परमे5र पछताया और उसे अित शोक gआ।। तब परमे5र ने कहा jक
आदमी को िजसे म<ने उ"प– jकया; आदमी से लेके पशुन लi और रO गवैयi को
और आकाश के पिzयi को पृिथवी पर से न… क’ंगा eयijक उ3हO बनाने से म<
पछताता •ँ।।
-तौन पव&० ६। आ० १। २। ३। ४। ५। ६।।
(समीzक) ईसाइयi से पूछना चािहये jक ई5र के बेटे कौन ह<? और ई5र कR
¬ी, सास, 5सुर, साला, और स›ब3धी कौन ह<? eयijक अब तो आदम कR
बेWटयi के साथ िववाह होने से ई5र उनका स›ब3धी gआ और जो उनसे उ"प–
होते ह< वे पु• और 'पौ• gए। eया ऐसी बात ई5र और ई5र के पुHतक कR
हो सकती है? jक3तु यह िसZ होता है jक उन जंगली मनु‘यi ने यह पुHतक
बनाया है। वह ई5र ही नहc जो सव&X न हो; न भिव‘यत् कR बात जाने; वह
जीव है। eया जब सृि… कR थी तब आगे मनु‘य दु… हiगे ऐसा नहc जानता था?
और पछताना अित शोकाjद होना भूल से काम करके पीछे पtाsाप करना
आjद
ईसाइयi के ई5र मO घट सकता है; वेदोž ई5र मO नहc। और इससे यह भी
िसZ हो सकता है jक ईसाइयi का ई5र पूण& िवyान् योगी भी नहc था, नहc
तो शाि3त और िवXान से अित शोकाjद से पृथÀफ़ हो सकता था। भला पशु
पzी भी दु… हो गये! यjद वह ई5र सव&X होता तो ऐसा िवषादी eयi होता?
इसिलये न यह ई5र और न यह ई5रकृ त पुHतक हो सकता है। जैसे वेदोž
परमे5र सब पाप, eलेश, दुःख, शोकाjद से रिहत ‘सि0दान3दHव’प’ है
उसको ईसाई लोग मानते वा अब भी मानO तो अपने मनु‘यज3म को सफल कर
सकO ।।१२।।
१३-उस नाव कR ल›बाई तीन सौ हाथ और चौड़ाई पचास हाथ और ऊँचाई
तीस हाथ कR होवे।। तू नाव मO जाना तू और तेरे बेटे और तेरी प¢ी और तेरे
बेटi कR पि¢यां तेरे साथ।। और सारे शरीरi मO से जीवता ज3तु दो-दो अपने
साथ नाव मO लेना िजसतO वे तेरे साथ जीते रहO वे नर और नारी होवO।। पंछी मO
से उसके भांित-भांित के और ढोर मO से उसके भांित-भांित के और पृिथवी के
हर एक रO गवैये मO से भाँित-भाँित के हर एक मO से दो-दो तुभफ़ पास आवO
िजसते जीते रहO।। और तू अपने िलये खाने को सब साम>ी अपने पास इक$ा
कर वह तु›हारे और उनके िलये भोजन होगा।। सो ई5र कR सारी आXा के
समान नूह ने jकया।।
-तौरे त उ"पिs पव&० ६। आ० १५। १८। १९। २०। २१। २२।।
(समीzक) भला कोई भी िवyान् ऐसी िव‡ा से िव˜Z अस›भव बात के वžा
को ई5र मान सकता है? eयijक इतनी बड़ी चौड़ी ऊंची नाव मO हाथी, हथनी,
ऊंट, ऊंटनी आjद ¦ोड़i ज3तु और उनके खाने पीने कR चीजO वे सब कु टु ›ब के
भी समा सकते ह<? यह इसीिलये मनु‘यकृ त पुHतक है। िजसने यह लेख jकया
है वह िवyान् भी नहc था।।१३।।
१४-और नूह ने परमे5र के िलए एक वेदी बनाई और सारे पिव• पशु और
हर एक पिव• पंिछयi मO से िलये और होम कR भOट उस वेदी पर चढ़ाई।। और
परमे5र ने सुग3ध सूंघा और परमे5र ने अपने मन मO कहा jक आदमी के िलये
म< पृिथवी को jफर कभी êाप न दूग ँ ा इस कारण jक आदमी के मन कR भावना
उसकR लड़काई से बुरी है और िजस रीित से म<ने सारे जीवधाWरयi को मारा
jफर कभी न मा’ंगा।। -तौरे त उ"पिs पव&० ८। आ० २०। २१ ।।
(समीzक) वेदी के बनाने, होम करने के लेख से यही िसZ होता है jक ये बातO
वेदi से बाइबल मO गई ह<। eया परमे5र के नाक भी है jक िजससे सुग3ध सूँघा?
eया यह ईसाइयi का ई5र मनु‘यवत् अqपX नहc है jक कभी êाप देता है
और कभी पछताता है। कभी कहता है êाप न दूग ं ा। पहले jदया था और jफर
भी देगा। 'थम सब को मार डाला और अब कहता है jक कभी न मा’ंगा!!! ये
बातO सब लड़के पन कR ह<, ई5र कR नहc, और न jकसी िवyान् कR eयijक
िवyान् कR भी बात और 'ितXा िHथर होती है।।१४।।
१५-और ई5र ने नूह को और उसके बेटi को आशीष jदया और उ3हO कहा jक
हर एक जीता चलता ज3तु तु›हारे भोजन के िलये होगा।। म<ने हरी तरकारी
के समान सारी वHतु तु›हO jदâ के वल मांस उनके जीव अथा&त् उसके लो• समेत
मत खाना।। -तौरे त उ"पिs पव&० ९। आ० १। २। ३। ४।।
(समीzक) eया एक को 'ाणक… देकर दूसरi को आन3द कराने से दयाहीन
ईसाइयi का ई5र नहc है? जो माता िपता एक लड़के को मरवा कर
दूसरे को िखलावO तो महापापी नहc हi? इसी 'कार यह बात है eयijक ई5र
के िलये सब 'ाणी पु•वत् ह<। ऐसा न होने से इनका ई5र कसाईवत् काम
करता है और सब मनु‘यi को िहसक भी इसी ने बनाये ह<। इसिलये ईसाइयi
का ई5र िनद&य होने से पापी eयi नहc।।१५।।
१६-और सारी पृिथवी पर एक ही बोली और एक ही भाषा थी।। jफर उ3हiने
कहा jक आओ हम एक नगर और एक गु›मट िजसकR चोटी Hवग& लi पgंचे
अपने िलए बनावO और अपना नाम करO । न हो jक हम सारी पृिथवी पर िछ–-
िभ– हो जायO।। तब परमे5र उस नगर और उस गु›मट को िजसे आदम के
स3तान बनाते थे; देखने को उतरा।। तब परमे5र ने कहा jक देखो! ये लोग
एक ही ह< और उन सब कR एक ही बोली है। अब वे ऐसा-ऐसा कु छ करने लगे
सो वे िजस पर मन लगावOगे उससे अलग न jकये जायOगे।। आओ हम उतरO और
वहां उनकR भाषा को गड़बड़ावO िजसते एक दूसरे कR बोली न समझO।। तब
परमे5र ने उ3हO वहां से सारी पृिथवी पर िछ–-िभ– jकया और वे उस नगर
के बनाने से अलग रहे।। -तौन उ० पव&० ११। आ० १। ४। ५। ६। ७। ८।।
(समीzक) जब सारी पृिथवी पर एक भाषा और बोली होगी उस समय सब
मनु‘यi को परHपर अ"य3त आन3द 'ाƒ gआ होगा पर3तु eया jकया जाय,
यह ईसाइयi के ई‘य&क ई5र ने सबकR भाषा गड़बड़ा के सब का स"यानाश
jकया। उसने यह बड़ा अपराध jकया। eया यह शैतान के काम से भी बुरा काम
नहc है? और इससे यह भी िवjदत होता है jक ईसाइयi का ई5र सनाई पहाड़
आjद पर रहता था और जीवi कR उ–ित भी नहc चाहता था। यह िवना एक
अिवyान् के ई5र कR बात और यह ई5रोž पुHतक eयi कर हो सकता है?
।।१६।।
१७-तब उसने अपनी प¢ी सरी से कहा jक देख म< जानता •ं तू देखने मO सु3दर
¬ी है।। इसिलये यi होगा jक जब िमêी तुझे देखO तब वे कहOगे jक यह उसकR
प¢ी है और मुझे मार डालOगे पर3तु तुझे जीती रखOगे।। तू किहयो jक म< उसकR
बिहन •ं िजसते तेरे कारण मेरा भला होय और मेरा 'ाण तेरे हेतु से जीता
रहै।। -तौन उ० पव&० १२। आ० ११। १२। १३।।
(समीzक) अब देिखये! जो अिबरहाम बड़ा पैग›बर ईसाई और मुसलमानi का
बजता है और उसके कम& िम•याभाषणाjद बुरे ह< भला! िजनके ऐसे पैग›बर हi
उनको िव‡ा वा कqयाण का माग& कै से िमल सके ? ।।१७।।
१८-और ई5र ने अ{ाहम से कहा-तू और तेरे पीछे तेरा वंश उनकR पीjढ़यi
मO मेरे िनयम को माने।। तुम मेरा िनयम जो मुझ से और तुम से और तेरे पीछे
तेरे वंश से है िजसे तुम मानोगे सो यह है jक तुम मO से हर एक पु˜ष का खतनः
jकया जाय।। और तुम अपने शरीर कR खलड़ी काटो और वह मेरे और तु›हारे
म—य मO िनयम का िच§न होगा। और तु›हारी पीjढ़यi मO हर एक आठ jदन के
पु˜ष का खतनः jकया जाय। जो घर मO उ"प– होय अथवा जो jकसी परदेशी
से; जो तेरे वंश का न हो; ’पे से मोल िलया जाय।। जो तेरे घर मO उ"प– gआ
हो और तेरे ’पे से मोल िलया गया हो; अवŸय उसका खतनः jकया जाय और
मेरा िनयम तु›हारे मांस मO सव&दा िनयम के िलये होगा।। और जो अखतनः
बालक िजसकR खलड़ी का खतनः न gआ हो सो 'ाणी अपने लोग से कट जाय
jक उसने मेरा िनयम तोड़ा है।। -तौन उ० पव&० १७। आ० ९। १०। ११। १२।
१३। १४।।

(समीzक) अब देिखये ई5र कR अ3यथा आXा। jक जो यह खतनः करना


ई5र को इ… होता तो उस चमडे़ को आjद सृि… मO बनाता ही नहc और जो
यह बनाया गया है वह रzाथ& है; जैसा आंख के ऊपर का चमड़ा। eयijक वह
गुƒHथान अित कोमल है। जो उस पर चमड़ा न हो तो एक कRड़ी के भी काटने
और थोड़ी सी चोट लगने से बgत सा दुःख होवे और यह लघुशंका के पtात्
कु छ मू•ंश कपड़i मO न लगे इ"याjद बातi के िलये है। इसका काटना बुरा है
और अब ईसाई लोग इस आXा को eयi नहc करते? यह आXा सदा के िलये
है। इसके न करने से ईसा कR गवाही जो jक aवHथा के पुHतक का एक िव3दु
भी भफ़ू ठा नहc है; िम•या हो गई। इसका सोच िवचार ईसाई कु छ भी नहc
करते।।१८।।
१९-तब उस से बात करने से रह गया और अिबरहाम के पास से ई5र ऊपर
जाता रहा।। -तौन उ० पव&० १७। आ० २२।।
(समीzक) इससे यह िसZ होता है jक ई5र मनु‘य वा पिzवत् था जो ऊपर
से नीचे और नीचे से ऊपर आता जाता रहता था। यह कोई इ3¥जाली पु˜षवत्
िवjदत होता है।।१९।।
२०-jफर ई5र उसे ममरे के बलूतi मO jदखाई jदया और वह jदन को घाम के
समय मO अपने त›बू के yार पर बैठा था।। और उसने अपनी आंखO उठाâ और
eया देखा jक तीन मनु‘य उसके पास खड़े ह< और उ3हO देख के वह त›बू के yार
पर से उनकR भOट को दौड़ा और भूिम लi द‹डवत् jकई।। और कहा हे मेरे
Hवामी! यjद म<ने अब आप कR दृि… मO अनु>ह पाया है तो म< आपकR िवनती
करता •ं jक अपने दास के पास से चले न जाइये।। इ¸छा होय तो थोड़ा जल
लाया जाय और अपने चरण धोइये और पेड़ तले िव~ाम कRिजये।। और म< एक
कौर रोटी लाऊं और आप तृƒ •िजये। उसके पीछे आगे बjढ़ये। eयijक आप
इसीिलये दास के पास आये ह<।। तब वे बोले jक जैसा तू ने कहा तैसा कर।।
और अिबरहाम त›बू मO सरः पास उतावली से गया और उसे कहा jक फु रती
कर और तीन नपुआ चोखा िपसान ले के गूँध और उसके फु लके पका।। और
अिबरहाम भफ़ुं ड कR ओर दौड़ा गया और एक अ¸छा कोमल बछड़ा ले के दास
को jदया। उसने भी उसे िसZ करने मO चटक jकया।। और उसने मeखन और
दूध और वह बछड़ा जो पकाया था; िलया और उनके आगे धरा और आप उनके
पास पेड़ तले खड़ा रहा और उ3हiने खाया।। -तौन पव&० १८। आ० १। २। ३। ४।
५। ६। ७। ८।।
(समीzक) अब देिखये सœन लोगो! िजनका ई5र बछड़े का मांस खावे उसके
उपासक गाय, बछड़े आjद पशुu को eयi छोड़O? िजसको कु छ दया नहc और
मांस के खाने मO आतुर रहे वह िवना िहसक मनु‘य के ई5र कभी हो सकता
है? और ई5र के साथ दो मनु‘य न जाने कौन थे? इससे िवjदत होता है jक
जंगली मनु‘यi कR एक म‹डली थी। उनका जो 'धान मनु‘य था। उसका नाम
बाइबल मO ई5र रeखा होगा। इ3हc बातi से बुिZमान् लोग इनके पुHतक को
ई5रकृ त नहc मान सकते और न ऐसे को ई5र समझते ह<।।२०।।
२१-और परमे5र ने अिबहराम से कहा jक सरः eयi यह कहके मुसकु राई jक
जो म< बुjढ़या •ं सचमुच बालक जनूँगी।। eया परमे5र के िलये कोई बात
असा—य है।। -तौन पव&० १८। आ० १३। १४।।

(समीzक) अब देिखये jक eया-eया ईसाइयi के ई5र कR लीला! jक जो लड़के


वा ि¬यi के समान िचढ़ता और ताना मारता है!!! ।।२१।।
२२-तब परमे5र ने समूद और अमूरः पर ग3धक और आग परमे5र कR ओर
से Hवग& से वषा&या।। और उन नगरi को और सारे चौगान को और नगरi के
सारे िनवािसयi को और जो कु छ भूिम पर उगता था; उलट jदया।। -तौन उ"प०
पव&० १९। आ० २४। २५।।
(समीzक) अब यह भी लीला बाइबल के ई5र कR देिखये jक िजसको बालक
आjद पर भी कु छ दया न आई! eया वे सब ही अपराधी थे जो सब को भूिम
उलटा के दबा मारा? यह बात 3याय, दया और िववेक से िव˜Z है। िजनका
ई5र ऐसा काम करे उनके उपासक eयi न करO ? ।।२२।।
२३-आओ हम अपने िपता को दाख रस िपलावO और हम उसके साथ शयन करO
jक हम अपने िपता से वंश जुगावO।। तब उ3हiने उस रात अपने िपता को दाख
रस िपलाया और पिहलोठी गई और अपने िपता के साथ शयन jकया।। हम
उसे आज रात भी दाख रस िपलावO तू जाके शयन कर।। सो लूत कR दोनi
बेWटयां अपने िपता से ग“भणी gâ।। -तौन उ"प० पव&० १९। आ० ३२। ३३। ३४।
३६।।
(समीzक) देिखये िपता पु•ी भी िजस म‡पान के नशे मO कु कम& करने से न
बच सके ऐसे दु… म‡ को जो ईसाई आjद पीते ह< उनकR बुराई का eया
पारावार है? इसिलये सœन लोगi को म‡ के पीने का नाम भी न लेना
चािहये।।२३।।
२४-और अपने कहने के समान परमे5र ने सरः से भOट jकया और अपने वचन
के समान परमे5र ने सरः के िवषय मO jकया।। और सरः ग“भणी gई।। -तौन
उ"प० पव&० २१। आ० १। २।।
(समीzक) अब िवचाWरये jक सरः से भOट कर गभ&वती कR यह काम कै से gआ!
eया िवना परमे5र और सरः के तीसरा कोई गभ&Hथापन का कारण दीखता
है? ऐसा िवjदत होता है jक सरः परमे5र कR कृ पा से गभ&वती gई!!!।।२४।।
२५-तब अिबहराम ने बड़े तड़के उठ के रोटी और एक पखाल मO जल िलया
और हािजरः के क3धे पर धर jदया और लड़के को भी उसे सëप के उसे िवदा
jकया।। उसने उस लड़के को एक भफ़ाड़ी के तले डाल jदया।। और वह उसके
स›मुख बैठ के िचqला-िचqला रोई।। तब ई5र ने उस बालक का शdद सुना।।
-तौन उ"प० पव&० २१। आ० १४। १५। १६। १७।।
(समीzक) अब देिखये! ईसाइयi के ई5र कR लीला jक 'थम तो सरः का
पzपात करके हािजरः को वहां से िनकलवा दी और िचqला-िचqला रोई
हािजरः और शdद सुना लड़के का। यह कै सी अ¾भुत बात है? यह ऐसा gआ
होगा jक ई5र को ±म gआ होगा jक यह बालक ही रोता है। भला यह ई5र
और ई5र कR पुHतक कR बात कभी हो सकती है? िवना साधारण मनु‘य के
वचन के इस पुHतक मO थोड़ी सी बात स"य के सब असार भरा है।।२५।।
२६-और इन बातi के पीछे यi gआ jक ई5र ने अिबरहाम कR परीzा jकई,
और उसे कहा हे अिबरहाम! तू अपने बेटे का अपने इकलौते इजहाक को िजसे
तू Êयार करता है; ले। उसे होम कR भOट के िलए चढ़ा।। और अपने बेटे इजहाक
को बांध के उस वेदी मO लकिड़यi पर धरा।। और अिबरहाम ने छु री लेके अपने
बेटे का घात करने के िलये हाथ बढ़ाया।। तब परमे5र के दूत ने Hवग& पर से
उसे पुकारा jक अिबरहाम अिबरहाम।। अपना हाथ लड़के पर मत बढ़ा, उसे
कु छ मत कर, eयijक अब म< जानता •ं jक तू ई5र से डरता है।।
-तौन उ"प० पव&० २२। आ० १। २। ९। १०। ११। १२।।
(समीzक) अब Hप… हो गया jक यह बाइबल का ई5र अqपX है सव&X नहc।
और अिबरहाम भी एक भोला मनु‘य था, नहc तो ऐसी चे…ा eयi करता? और
जो बाइबल का ई5र सव&X होता तो उसकR भिव‘यत् ~Zा को भी सव&Xता
से जान लेता। इससे िनिtत होता है jक ईसाइयi का ई5र सव&X नहc।।२६।।
२७-सो आप हमारी समािधन मO से चुन के एक मO अपने मृतक को गािड़ये िजस
तO आप अपने मृतक को गाड़O। -तौन उ"प० पव&० २३। आ० ६।।
(समीzक) मुदŽ के गाड़ने से संसार को बड़ी हािन होती है eयijक वह सड़ के
वायु को दुग&3धमय कर रोग फै ला देता है।
('-) देखो! िजससे 'ीित हो उसको जलाना अ¸छी बात नहc और गाड़ना
जैसा jक उसको सुला देना है इसिलए गाड़ना अ¸छा है।
(उsर) जो मृतक से 'ीित करते हो तो अपने घर मO eयi नहc रखते? और
गाड़ते भी eयi हो? िजस जीवा"मा से 'ीित थी वह िनकल गया, अब दुग&3धमय
मÝी से eया 'ीित? और जो 'ीित करते हो तो उसको पृिथवी मO eयi गाड़ते
हो eयijक jकसी से कोई कहे jक तुझ को भूिम मO गाड़ देवO तो वह सुन कर
'स– कभी नहc होता। उसके मुख आंख और शरीर पर धूल, प"थर, âट, चूना
डालना, छाती पर प"थर रखना कौन सा 'ीित का काम है? और स3दूक मO
डाल के गाड़ने से बgत दुग&3ध होकर पृिथवी से िनकल वायु को िबगाड़ कर
दा˜ण रोगो"पिs करता है। दूसरा एक मुद· के िलए कम से कम ६ हाथ ल›बी
और ४ हाथ चौड़ी भूिम चािहए। इसी िहसाब से सौ, हजार वा लाख अथवा
¦ोड़i मनु‘यi के िलए jकतनी भूिम aथ& ˜क जाती है। न वह खेत, न बगीचा,
और न वसने के काम कR रहती है। इसिलये सब से बुरा गाड़ना है, उससे कु छ
थोड़ा बुरा जल मO डालना, eयijक उसको जलज3तु उसी समय चीर फाड़ के
खा लेते ह< पर3तु जो कु छ हाड़ वा मल जल मO रहेगा वह सड़ कर जगत् को
दुःखदायक होगा। उससे कु छ एक थोड़ा बुरा जंगल मO छोड़ना है eयijक उसको
मांसाहारी पशु पzी लूंच खायOगे तथािप जो उसके हाड़, हाड़ कR मœा और
मल सड़ कर िजतना दुग&3ध करे गा उतना जगत् का अनुपकार होगा; और जो
जलाना है वह सवªsम है eयijक उसके सब पदाथ& अणु होकर वायु मO उड़
जायOगे।
('-) जलाने से भी दुग&3ध होता है।
(उsर) जो अिविध से जलावे तो थोड़ा सा होता है पर3तु गाड़ने आjद से बgत
कम होता है। और जो िविधपूव&क जैसा jक वेद मO िलखा है-वेदी मुद· के तीन
हाथ गिहरी, साढ़े तीन हाथ चौड़ी, पांच हाथ ल›बी, तले मO डेढ़ हाथ बीता
अथा&त् चढ़ा उतार खोद कर शरीर के बराबर घी उसमO एक सेर मO रsी भर
कHतूरी, मासा भर के शर डाल 3यून से 3यून आध मन च3दन अिधक चाहO
िजतना ले, अगर-तगर कपूर आjद और पलाश आjद कR लकिड़यi को वेदी मO
जमा, उस पर मुदा& रख के पुनः चारi ओर ऊपर वेदी के मुख से एक-एक बीता
तक भर के उस घी कR आgित देकर जलाना िलखा है। उस 'कार से दाह करO
तो कु छ भी दुग&3ध न हो jक3तु इसी का नाम अ3"येि…, नरमेध, पु˜षमेध यX
है। और जो दWर¥ हो तो बीस सेर से कम घी िचता मO न डालO, चाहे वह भीख
मांगने वा जाित वाले के देने अथवा राज से िमलने से 'ाƒ हो पर3तु उसी
'कार दाह करे । और जो घृताjद jकसी 'कार न िमल सके तथािप गाड़ने आjद
से के वल लकड़ी से भी मृतक का जलाना उsम है eयijक एक िव5ा भर भूिम
मO अथवा एक वेदी मO लाखi ¦ोड़i मृतक जल सकते ह<। भूिम भी गाड़ने के
समान अिधक नहc िबगड़ती और कबर के देखने से भय भी होता है। इससे
गाड़ना आjद सव&था िनिषZ है।।२७।।
२८-परमे5र मेरे Hवामी अिबरहाम का ई5र ध3य है िजसने मेरे Hवामी को
अपनी दया और अपनी स0ाई िवना न छोड़ा। माग& मO परमे5र ने मेरे Hवामी
के भाइयi के घर कR ओर मेरी अगुआई jकई।। -तौन उ"प० पव&० २४। आ० २७।।
(समीzक) eया वह अिबरहाम ही का ई5र था? और जैसे आजकल िबगारी
वा अगवे लोग अगुआई अथा&त् आगे-आगे चलकर माग& jदखलाते ह< तथा ई5र
ने भी jकया तो आजकल माग& eयi नहc jदखलाता? और मनु‘यi से बातO eयi
नहc करता? इसिलए ऐसी बातO ई5र वा ई5र के पुHतक कR कभी नहc हो
सकतc jक3तु जंगली मनु‘य कR ह<।।२८।।
२९-इसमअऐल के बेटi के नाम ये ह<-इसमअऐल का पिहलौठा नबीत और
कRदार और अदिबएल और िमबसाम।। और िमसमाअ और दूमः और मHसा।।
हदर और तैमा इतूर, नफRस और jकjदमः।।
-तौन उ"प० पव&० २५। आ० १३। १४। १५।।
(समीzक) यह इसमअऐल अिबरहाम से उसकR हािजरः दासी का पु• gआ
था।।२९।।
३०-म< तेरे िपता कR ˜िच के समान Hवाjदत भोजन बनाऊंगी।। और तू अपने
िपता के पास ले जाइयो िजसतO वह खाय और अपने मरने से आगे तुझे आशीष
देवे।। और Wरबकः ने घर मO से अपने जेठे बेटे एसौ का अ¸छा पिहरावा िलया।।
और बकरी के मेói का चमड़ा उसके हाथi और गले कR िचकनाई पर लपेटा।।
तब यअकू ब अपने िपता से बोला jक म< आपका पिहलौठा एसौ •ं। आपके कहने
के समान म<ने jकया है, उठ बैWठये और मेरे अहेर के मांस मO से खाइये िजसतO
आप का 'ाण मुझे आशीष दे।। -तौन उ"प० पव&० २७। आ० ९। १०। १५। १६।
१९।।
(समीzक) देिखये! ऐसे भफ़ू ठ कपट से आशीवा&द ले के पtात् िसZ और
पैग›बर बनते ह< eया यह आtय& कR बात नहc है? और ऐसे ईसाइयi के अगुआ
gए ह< पुनः इनके मत कR गड़बड़ मO eया 3यूनता हो? ।।३०।।
३१-और यअकू ब िबहान को तड़के उठा और उस प"थर को िजसे उसने अपना
तjकया jकया था ख›भा खड़ा jकया और उस पर तेल डाला।। और उस Hथान
का नाम बैतएल रeखा।। और यह प"थर जो म<ने ख›भा खड़ा jकया ई5र का
घर होगा।। -तौन उ"प० पव&० २८। आ० १८। १९। २२।।
(समीzक) अब देिखये जंगिलयi के काम। इ3हiने प"थर पूजे और पुजवाये और
इसको मुसलमान लोग ‘बैतएलमुकÖस’ कहते ह<। eया यही प"थर ई5र का
घर और उसी प"थरमा• मO ई5र रहता था? वाह-वाह जी! eया कहना है
ईसाई लोगो! महाबु"परHत तो तु›हc हो।।३१।।
३२-और ई5र ने राहेल को Hमरण jकया और ई5र ने उसकR सुनी और उसकR
कोख को खोला।। और वह ग“भणी gई और बेटा जनी और बोली jक ई5र ने
मेरी िन3दा दूर jकई।। -तौन उ"प० पव&० ३०। आ० २२। २३।।
(समीzक) वाह ईसाइयi के ई5र! eया बड़ा डाžर है! ि¬यi कR कोख खोलने
को कौन से श¬ वा औषध थे िजनसे खोली, ये सब बातO अ3धाधु3ध कR
ह<।।३२।।
३३-पर3तु ई5र अरामी लावन कने Hव¹ मO रात को आया और उसे कहा jक
चौकस रह तू यअकू ब को भला बुरा मत कहना।। eयijक तू अपने िपता के घर
का िनपट अिभलाषी है तूने jकसिलये मेरे देवi को चुराया है।।
-तौन उ"प० पव&० ३१। आ० २४। ३०।।
(समीzक) यह हम नमूना िलखते ह<, हजारi मनु‘यi को Hव¹ मO आया, बातO
jकâ, जागृत साzात् िमला, खाया, िपया, आया, गया आjद बाइबल मO िलखा
है पर3तु अब न जाने वह है वा नहc? eयijक अब jकसी को Hव¹ वा जागृत मO
भी ई5र नहc िमलता और यह भी िवjदत gआ jक ये जंगली लोग पाषाणाjद
मू“तयi को देव मानकर पूजते थे पर3तु ईसाइयi का ई5र भी प"थर ही को
देव मानता है, नहc तो देवi का चुराना कै से घटे? ।।३३।।
३४-और यअकू ब अपने माग& चला गया और ई5र के दूत उसे आ िमले।। और
यअकू ब ने उ3हO देख के कहा jक यह ई5र कR सेना है।। -तौनउ"पन पव&० ३२।
आ० १। २।।
(समीzक) अब ईसाइयi का ई5र मनु‘य होने मO कु छ भी सि3द•ध नहc रहा,
eयijक सेना भी रखता है। जब सेना gई तब श¬ भी हiगे और जहाँ तहाँ
चढ़ाई करके लड़ाई भी करता होगा, नहc तो सेना रखने का eया 'योजन है?
।।३४।।
३५-और यअकू ब अके ला रह गया और वहां पौ फटे लi एक जन उससे मqलयुZ
करता रहा। और जब उसने देखा jक वह उस पर 'बल न gआ तो उसकR जांघ
को भीतर से छू आ। तब यअकू ब के जांघ कR नस उसके संग मqलयुZ करने मO
चढ़ गई।। तब वह बोला jक मुझे जाने दे eयijक पौ फटती है और वह बोला
म< तुझे जाने न देऊंगा जब लi तू मुझे आशीष न देवे।। तब उसने उससे कहा
jक तेरा नाम eया ? और वह बोला jक यअकू ब।। तब उसने कहा jक तेरा
नाम आगे को यअकू ब न होगा पर3तु इसराएल, eयijक तूने ई5र के आगे और
मनु‘यi के आगे राजा कR नाâ मqलयुZ jकया और जीता।। तब यअकू ब ने यह
किहके उससे पूछा jक अपना नाम बताइये और वह बोला jक तू मेरा नाम eयi
पूछता है और उसने उसे वहां आशीष jदया।। और यअकू ब ने उस Hथान का
नाम फनूएल रeखा eयijक म<ने ई5र को '"यz देखा और मेरा 'ाण बचा है।।
और जब वह फनूएल से पार चला तो सूय& कR °योित उस पर पड़ी और वह
अपनी जाँघ से लँगड़ाता था।। इसिलये इसरायल के वंश उस जांघ कR नस को
जो चढ़ गई थी आज लi नहc खाते eयijक उसने यअकू ब के जांघ कR नस को
जो चढ़ गई थी; छू आ था।।
-तौन उ"प० पव&० ३२। आ० २४। २५। २६। २७। २८। २९। ३०। ३१। ३२।।
(समीzक) जब ईसाइयi का ई5र अखाड़मqल है तभी तो सरः और राखल
पर पु• होने कR कृ पा कR। भला यह कभी ई5र हो सकता है? अब देखो लीला!
jक एक जना नाम पूछे तो दूसरा अपना नाम ही न बतावे? और ई5र ने उसकR
नाड़ी को चढ़ा तो दी और जीत गया पर3तु जो डाeटर होता तो जांघ
कR नाड़ी को अ¸छी भी करता। और ऐसे ई5र कR भिž से जैसा jक यअकू ब
लंगड़ाता रहा तो अ3य भž भी लंगड़ाते हiगे। जब ई5र को '"यz देखा और
मqलयुZ jकया यह बात िवना शरीर वाले के कै से हो सकती है? यह के वल
लड़कपन कR लीला है।।३५।।
३६-ई5र का मुंह देखा।। -तौनउ"पन पव&० ३३। आ० १०।।
(समीzक) जब ई5र के मुंह है और भी सब अवयव हiगे और वह ज3म मरण
वाला भी होगा।।३६।।
३७-और य•दाह का पिहलौठा एर परमे5र कR दृि… मO दु… था सो परमे5र
ने उसे मार डाला। तब य•दाह ने ओनान को कहा jक अपने भाई कR प¢ी पास
जा और उससे dयाह कर अपने भाई के िलए वंश चला।। और ओनान ने जाना
jक यह वंश मेरा न होगा और यi gआ jक जब वह अपने भाई कR प¢ी पास
गया तो वी‰य& को भूिम पर िगरा jदया।। और उसका वह का‰य& परमे5र कR
दृि… मO बुरा था इसिलये उसने उसे भी मार डाला।।
-तौनउ"पन पव&० ३८। आ० ७। ८। ९। १०।।
(समीzक) अब देख लीिजये! ये मनु‘यi के काम ह< jक ई5र के ? जब उसके
साथ िनयोग gआ तो उसको eयi मार डाला? उसकR बुिZ शुZ eयi न कर
दी? और वेदोž िनयोग भी 'थम सव&• चलता था। यह िनtय gआ jक
िनयोग कR बातO सब देशi मO चलती थc।।३७।।
तौरे त या• कR पुHतक
३८-जब मूसा सयाना gआ और अपने भाइयi मO से एक इबरानी को देखा jक
िमêी उसे मार रहा है।। तब उसने इधर-उधर दृि… jकई देखा jक कोई नहc
तब उसने उस िमêी को मार डाला और बालू मO उसे िछपा jदया।। जब वह
दूसरे jदन बाहर गया तो देखा, दो इबरानी आपस मO झगड़ रहे ह< तब उसने
उस अंधेरी को कहा jक तू अपने परोसी को eयi मारता है।। तब उसने कहा
jक jकसने तुझे हम पर अ—यz अथवा 3यायी ठहराया, eया तू चाहता है jक
िजस रीित से िमêी को मार डाला मुझे भी मार डाले।। तब मूसा डरा औेर
भाग िनकला।।
-तौन या० प० २। आ० ११। १२। १३। १४। १५।।
(समीzक) अब देिखये! जो बाइबल का मुwय िसZकsा& मत का आचाय& मूसा
jक िजसका चWर• ¦ोधाjद दुगु&णi से युž, मनु‘य कR ह"या करने वाला और
चोरवत् राजद‹ड से बचनेहारा अथा&त् जब बात को िछपाता था तो झूठ बोलने
वाला भी अवŸय होगा, ऐसे को भी जो ई5र िमला वह पैग›बर बना उसने
य•दी आjद का मत चलाया वह भी मूसा ही के सदृश gआ। इसिलये ईसाइयi
के जो मूल पु˜षा gए ह< वे सब मूसा से आjद लेकर के जंगली अवHथा मO थे,
िव‡ावHथा मO नहc, इ"याjद।।३८।।
३९-जब परमे5र ने देखा jक वह देखने को एक अलंग jफरा तो ई5र ने
भफ़ाड़ी के म—य मO से उसे पुकार के कहा jक हे मूसा हे मूसा! तब वह बोला म<
यहां •ं।। तब उसने कहा jक इधर पास मत आ, अपने पाu से जूता उतार,
eयijक यह Hथान िजस पर तू खड़ा है; पिव• भूिम है।
-तौन या० पु० प० ३। आ० ४। ५।।

(समीzक) देिखये! ऐसे मनु‘य जो jक मनु‘य को मार के बालू मO गाड़ने वाले


से इनके ई5र कR िम•ता और उसको पैग›बर मानते ह<। और देखो जब तु›हारे
ई5र ने मूसा से कहा jक पिव• Hथान मO जूती न ले जानी चािहए। तुम ईसाई
इस आXा के िव˜Z eयi चलते हो? ।।
('-) हम जूती के Hथान मO टोपी उतार लेते ह<।
(उsर) यह दूसरा अपराध तुमने jकया eयijक टोपी उतारना न ई5र ने कहा
न तु›हारे पुHतक मO िलखा है। और उतारने यो•य को नहc उतारते, जो नहc
उतारना चािहये उसको उतारते हो, दोनi 'कार तु›हारे पुHतक से िव˜Z ह<।
('-) हमारे यूरोप देश मO शीत अिधक है इसिलये हम लोग जूती नहc उतारते।
(उsर) eया िशर मO शीत नहc लगता? जो यही है तो यूरोप देश मO जाओ तब
ऐसा ही करना। पर3तु जब हमारे घर मO वा िबछौने मO आया करो तब तो जूती
उतार jदया करो और जो न उतारोगे तो तुम अपने बाइबल पुHतक के िव˜Z
चलते हो; ऐसा तुम को न करना चािहये।।३९।।
४०-तब ई5र ने उसे कहा jक तेरे हाथ मO यह eया है और वह बोला jक छड़ी।।
तब उसने कहा jक उसे भूिम पर डाल दे और उसने भूिम पर डाल jदया और
वह सÊप& बन गई और मूसा उसके आगे से भागा।। तब परमे5र ने मूसा से कहा
jक अपना हाथ बढ़ा और उसकR पूंछ पकड़ ले, तब उसने अपना हाथ बढ़ाया
और उसे पकड़ िलया और वह उसके हाथ मO छड़ी हो गई।। तब परमे5र ने
उसे कहा jक jफर तू अपना हाथ अपनी गोद मO कर और उसने अपना हाथ
अपनी गोद मO jकया जब उसने उसे िनकाला तो देखा jक उसका हाथ िहम के
समान कोढ़ी था।। और उसने कहा jक अपना हाथ jफर अपनी गोद मO कर।
उसने jफर अपने हाथ को अपनी गोद मO jकया और अपनी गोद से उसे िनकाला
तो देखा jक जैसी उसकR सारी देह थी वह वैसा jफर हो गया।। तू नील नदी
का जल लेके सूखी पर ढािलयो और वह जल जो तू नदी से िनकालेगा सो सूखी
पर लो• हो जायेगा।। -तौन या० प० ४। आ० २। ३। ४। ६। ७। ९।।
(समीzक) अब देिखये! कै से बाजीगर का खेल, िखलाड़ी ई5र, उसका सेवक
मूसा और इन बातi को मानने हारे कै से ह<? eया आजकल बाजीगर लोग इससे
कम करामात करते ह<? यह ई5र eया, यह तो बड़ा िखलाड़ी है। इन बातi को
िवyान् eयi कर मानOग? े और हर एक बार म< परमे5र •ं और अिबरहाम,
इजहाक और याकू ब का ई5र •ं इ"याjद हर एक से अपने मुख से 'शंसा करता
jफरता है, यह बात उsम जन कR नहc हो सकती jक3तु द›भी मनु‘य कR हो
सकती है।।४०।।
४१-और फसह मेóा मारो।। और एक मूठी जूफा लेओ और उसे उस लो• मO
जो बासन मO है बोर के , ऊपर कR चौखट के और yार कR दोनi ओर उससे छापो
और तुम मO से कोई िबहान लi अपने घर के yार से बाहर न जावे।। eयijक
परमे5र िमê के मारने के िलये आर-पार जायेगा और जब वह ऊपर कR
चौखट पर और yार कR दोनi ओर लो• को देखे तब परमे5र yार से बीत
जायेगा और नाशक तु›हारे घरi मO जाने न देगा jक मारे ।। -तौन या० प० १२।
आ० २१। २२। २३।।

(समीzक) भला यह जो टोने टामन करने वाले के समान है वह ई5र सव&X


कभी हो सकता है? जब लो• का छापा देखे तभी इसरायल कु ल का घर जाने,
अ3यथा नहc। यह काम zु¥ बुिZ वाले मनु‘य के सदृश है। इससे यह िवjदत
होता है jक ये बातO jकसी जंगली मनु‘य कR िलखी ह<।।४१।।
४२-और यi gआ jक परमे5र ने आधी रात को िमê के देश मO सारे पिहलौठे
जो jफरऊन के पिहलौठे से लेके जो अपने िसहासन पर बैठता था उस ब3धुआ
के पिहलौठे लi जो ब3दीगृह मO था पशुन के पिहलौठi समेत नाश jकये। और
रात को jफरऊन उठा, वह और उसके सब सेवक और सारे िमêी उठे और िमê
मO बड़ा िवलाप था eयijक कोई घर न रहा िजस मO एक न मरा।। -तौन या०
प० १२। आ० २९। ३०।।
(समीzक) वाह! अ¸छा आधी रात को डाकू के समान िनद&यी होकर ईसाइयi
के ई5र ने लड़के बाले, वृZ और पशु तक भी िवना अपराध मार jदये और
कु छ भी दया न आई और िमê मO बड़ा िवलाप होता रहा तो भी ईसाइयi के
ई5र के िचs से िन¼ु रता न… न gई! ऐसा काम ई5र का तो eया jक3तु jकसी
साधारण मनु‘य के भी करने का नहc है। यह आtय& नहc, eयijक िलखा है
‘मांसाहाWरणः कु तो दया’ जब ईसाइयi का ई5र मांसाहारी है तो उसको दया
करने से eया काम है? ।।४२।।
४३-परमे5र तु›हारे िलये युZ करे गा।। इसराएल के स3तान से कह jक वे आगे
बढO◌़।। पर3तु तू अपनी छड़ी उठा और समु¥ पर अपना हाथ बढ़ा और उसे दो
भाग कर और इसराएल के स3तान समु¥ के बीचi बीच से सूखी भूिम मO होकर
चले जायOगे।। -तौन या० प० १४। आ० १४। १५। १६।।
(समीzक) eयi जी! आगे तो ई5र भेड़i के पीछे गड़Wरये के समान इêायेल
कु ल के पीछे-पीछे डोला करता था। अब न जाने कहां अ3तधा&न हो गया? नहc
तो समु¥ के बीच मO से चारi ओर कR रे लगािड़यi कR सड़क बनवा लेते िजससे
सब संसार का उपकार होता और नाव आjद बनाने का ~म छू ट जाता। पर3तु
eया jकया जाय, ईसाइयi का ई5र न जाने कहाँ िछप रहा है? इ"याjद बgत
सी मूसा के साथ अस›भव लीला बाइबल के ई5र ने कR ह< पर3तु यह िवjदत
gआ jक जैसा ईसाइयi का ई5र है वैसे ही उसके सेवक और ऐसी ही उसकR
बनाई पुHतक है। ऐसी पुHतक और ऐसा ई5र हम लोगi से दूर रहै तभी अ¸छा
है।।४३।।
४४-eयijक म< परमे5र तेरा ई5र °विलत सव&शिžमान् •ं। िपतरi के अपराध
का द‹ड उनके पु•O को जो मेरा वैर रखते ह< उनकR तीसरी और चौथी पीढ़ी लi
देवैया •ं।। -तौन या० प० २०। आ० ५।।
(समीzक) भला यह jकस घर का 3याय है jक जो िपता के अपराध से चार
पीढ़ी तक द‹ड देना अ¸छा समझना। eया अ¸छे िपता के दु… और दु… के अ¸छे
स3तान नहc होते? जो ऐसा है तो चौथी पीढ़ी तक द‹ड कै से दे सके गा? और
जो पांचवc पीढ़ी से आगे दु… होगा उसको द‹ड न दे सके गा। िवना अपराध
jकसी को द‹ड देना अ3यायकारी कR बात है।।४४।।
४५-िव~ाम के jदन को उसे पिव• रखने के िलये Hमरण कर।। छः jदन लi तू
पWर~म कर।। पर3तु सातवां jदन परमे5र तेरे ई5र का िव~ाम है।। परमे5र
ने िव~ाम jदन को आशीष jदई।। -तौन या० प० २०। आ० ८। ९। १०। ११।।

(समीzक) eया रिववार एक ही पिव• और छः jदन अपिव• ह<? और eया


परमे5र ने छः jदन तक कड़ा पWर~म jकया था jक िजससे थक के सातवO jदन
सो गया? और जो रिववार को आशीवा&द jदया तो सोमवार आjद छः jदन को
eया jदया? अथा&त् शाप jदया होगा। ऐसा काम िवyान् का भी नहc तो ई5र
का eयi कर हो सकता है? भला रिववार मO eया गुण और सोमवार आjद ने
eया दोष jकया था jक िजससे एक को पिव• तथा वर jदया और अ3यi को
ऐसे ही अपिव• कर jदये।।४५।।
४६-अपने परोसी पर झूठी साzी मत दे।। अपने परोसी कR ¬ी और उसके
दास उसकR दासी और उसके बैल और उसके गदहे और jकसी वHतु का जो तेरे
परोसी कR है; लालच मत कर।। -तौन या० प० २०। आ० १६। १७।।
(समीzक) वाह! तभी तो ईसाई लोग परदेिशयi के माल पर ऐसे झुकते ह< jक
जानो Êयासा जल पर, भूखा अ– पर। जैसी यह के वल मतलब िस3धु और
पzपात कR बात है ऐसा ही ईसाइयi का ई5र अवŸय होगा। यjद कोई कहे
jक हम सब मनु‘य मा• को परोसी मानते ह< तो िसवाय मनु‘य के अ3य कौन
¬ी और दासी आjद वाले ह< jक िजनको अपरोसी िगनO? इसिलये ये बातO
HवाथŠ मनु‘यi कR ह<; ई5र कR नहc।।४६।।
४७-जो कोई jकसी मनु‘य को मारे और वह मर जाये वह िनtय घात jकया
जाय।। और वह मनु‘य घात मO न लगा हो पर3तु ई5र ने उसके हाथ मO सëप
jदया हो तब म< तुझे भागने का Hथान बता दूग
ँ ा।।
-तौन या० प० २१। आ० १२। १३।।
(समीzक) जो यह ई5र का 3याय स0ा है तो मूसा एक आदमी को मार गाड़
कर भाग गया था उसको यह द‹ड eयi न gआ? जो कहो ई5र ने मूसा को
मारने के िनिमs सëपा था तो ई5र पzपाती gआ eयijक उस मूसा का राजा
से 3याय eयi न होने jदया? ।।४७।।
४८-और कु शल का बिलदान बैलi से परमे5र के िलए चढ़ाया।। और मूसा ने
आधा लो• लेके पा•O मO रeखा और आधा लो• वेदी पर िछड़का।। और मूसा ने
उस लो• को लेके लोगi पर िछड़का और कहा jक यह लो• उस िनयम का है
िजसे परमे5र ने इन बातi के कारण तु›हारे साथ jकया है।। और परमे5र ने
मूसा से कहा jक पहाड़ पर मुझ पास आ और वहां रह और म< तुझे प"थर कR
पWटयां और aवHथा और आXा मैने िलखी है; दूग ं ा।।
-तौन या० प० २२। आ० ५। ६। ८। १२।।
(समीzक) अब देिखये! ये सब जंगली लोगi कR बातO ह< वा नहc? और परमे5र
बैलi का बिलदान लेता और वेदी पर लो• िछड़कना यह कै सी जंगलीपन और
अस^यता कR बात है? जब ईसाइयi का खुदा भी बैलi का बिलदान लेवे तो
उसके भž बैल गाय के बिलदान कR 'सादी से पेट eयi न भरO ? और जगत् कR
हािन eयi न करO ? ऐसी-ऐसी बुरी बातO बाइबल मO भरी ह<। इसी के कु संHकारi
से वेदi मO भी ऐसा झूठा दोष लगाना चाहते ह< पर3तु वेदi मO ऐसी बातi का
नाम भी नहc। और यह भी िनtय gआ jक ईसाइयi का ई5र एक पहाड़ी
मनु‘य था, पहाड़ पर रहता था। जब वह खुदा Hयाही, लेखनी, कागज, नहc
बना जानता और न उसको 'ाƒ था इसीिलये प"थर कR पWटयi पर िलख-िलख
देता था और इ3हc जंगिलयi के सामने ई5र भी बन बैठा था।।४८।।
४९-और बोला jक तू मेरा ’प नहc देख सकता eयijक मुझे देख के कोई मनु‘य
न जीयेगा।। और परमे5र ने कहा jक देख एक Hथान मेरे पास है और तू उस
टीले पर खड़ा रह।। और यi होगा jक जब मेरा िवभव चल िनकलेगा तो म<
तुझे पहाड़ के दरार मO रeखूँगा और जब लi जा िनकलूं तुझे अपने हाथ से
ढांपूंगा।। और अपना हाथ उठा लूंगा और तू मेरा पीछा देखेगा पर3तु मेरा ’प
jदखाई न देगा।। -तौन या० प० ३३। आ० २०। २१। २२। २३।।
(समीzक) अब देिखये! ईसाइयi का ई5र के वल मनु‘यवत् शरीर- धारी और
मूसा से कै सा 'प€ रच के आप Hवयम् ई5र बन गया। जो पीछा देखेगा, ’प
न देखेगा तो हाथ से उसको ढांप jदया भी न होगा। जब खुदा ने अपने हाथ से
मूसा को ढांपा होगा तब eया उसके हाथ का ’प उसने न देखा होगा? ।।४९।।
लैa aवHथा कR पुHतक तौ०
५०-और परमे5र ने मूसा को बुलाया और म‹डली के त›बू मO से यह वचन
उसे कहा।। jक इसराएल के स3तानi से बोल और उ3हO कह यjद कोई तु›मO से
परमे5र के िलये भOट लावे तो तुम ढोर मO से अथा&त् गाय बैल और भेड़ बकरी
मO से अपनी भOट लाओ।। -तौन लैa aवHथा कR पुHतक, प० १। आ० १। २।।
(समीzक) अब िवचाWरये! ईसाइयi का परमे5र गाय बैल आjद कR भOट लेने
वाला जो jक अपने िलये बिलदान कराने के िलये उपदेश करता है। वह बैल
गाय आjद पशुu के लो• मांस का Êयासा भूखा है वा नहc? इसी से वह
अिहसक और ई5र कोWट मO िगना कभी नहc जा सकता jक3तु मांसाहारी
'प€ी मनु‘य के सदृश है।।५०।।
५१-और वह उस बैल को परमे5र के आगे बिल करे और हा’न के बेटे याजक
लो• को िनकट लावO और लो• को यXवेदी के चारi ओर जो म‹डली के त›बू
के yार पर है; िछड़कO ।। तब वह उस भOट के बिलदान कR खाल िनकाले और
उसे टु कड़ा-टु कड़ा करे ।। और हा’न के बेटे याजक यXवेदी पर आग रeखO और
उस पर लकड़ी चुनO।। और हा’न के बेटे याजक उसके टु कड़i को और िसर और
िचकनाई को उन लकिड़यi पर जो यXवेदी कR आग पर ह<; िविध से धरO ।।
िजसतO बिलदान कR भOट होवे जो आग से परमे5र के सुग3ध के िलये भOट jकया
गया।। -तौन लै० aवHथा कR पुHतक, प० १। आ० ५। ६। ७। ८। ९।।
(समीzक) तिनक िवचाWरये! jक बैल को परमे5र के आगे उसके भž मारO
और वह मरवावे और लो• को चारi ओर िछड़कO , अि« मO होम करO , ई5र
सुग3ध लेवे, भला यह कसाई के घर से कु छ कमती लीला है? इसी से न बाइबल
ई5रकृ त और न वह जंगली मनु‘य के सदृश लीलाधारी ई5र हो सकता
है।।५१।।
५२-jफर परमे5र मूसा से यह कह के बोला।। यjद वह अिभषेक jकया gआ
याजक लोगi के पाप के समान पाप करे तो वह अपने पाप के कारण जो उसने
jकया है अपने पाप कR भOट के िलए िनसखोट एक बिछया को परमे5र के िलये
लावे।। और बिछया के िशर पर अपना हाथ रeखे और बिछया को परमे5र के
आगे बिल करे ।। -तौन लै० a० प० ४। आ० १। ३। ४।।

(समीzक) अब देिखये पापi के छु ड़ाने के 'ायिts ! Hवयं पाप करO , गाय आjद
उsम पशुu कR ह"या करO और परमे5र करवावे। ध3य ह< ईसाई लोग jक ऐसी
बातi के करने करानेहारे को भी ई5र मान कर अपनी मुिž आjद कR आशा
करते ह<!!! ।।५२।।
५३-जब कोई अ—यz पाप करे । तब वह बकरी का िनसखोट नर मेóा अपनी
भOट के िलये लावे।। और उसे परमे5र के आगे बिल करे यह पाप कR भOट है।।
-तौन लै० प० ४। आ० २२। २३। २४।।
(समीzक) वाह जी? वाह? यjद ऐसा है तो इनके अ—यz अथा&त् 3यायाधीश
तथा सेनापित आjद पाप करने से eयi डरते हiगे? आप तो यथे… पाप करO
और 'ायिts के बदले मO गाय, बिछया, बकरे आjद के 'ाण लेवO। तभी तो
ईसाई लोग jकसी पशु वा पzी के 'ाण लेने मO शंjकत नहc होते। सुनो ईसाई
लोगो! अब तो इस जंगली मत को छोड़ के सुस^य धम&मय वेदमत को Hवीकार
करो jक िजससे तु›हारा कqयाण हो।।५३।।
५४-और यjद उसे भेड़ लाने कR पूंजी न हो तो वह अपने jकये gए अपराध के
िलए दो Òपडु jकयाँ और कपोत के दो ब0े परमे5र के िलये लावे।। और उसका
िसर उसके गले के पास से मरोड़ डाले पर3तु अलग न करे ।। उसके jकये gए
पाप का 'ायिts करे और उसके िलये zमा jकया जायगा।। पर यjद उसे दो
Òपडु jकयाँ और कपोत के दो ब0े लाने कR पूंजी न हो तो सेर भर चोखा िपसान
का दशवाँ िहHसा पाप कR भOट के िलये लावे· उस पर तेल न डाले।। और वह
zमा jकया जायेगा।। -तौन लै० प० ५। आ० ७। ८। १०। ११। १३।।
(समीzक) अब सुिनये! ईसाइयi मO पाप करने से कोई धनाÚ न डरता होगा
और न दWर¥ भी, eयijक इनके ई5र ने पापi का 'ायिts करना सहज कर
रeखा है। एक यह बात ईसाइयi कR बाइबल मO बड़ी अ¾भुत है jक िवना क…
jकये पाप से छू ट जाय। eयijक एक तो पाप jकया और दूसरे जीवi कR िहसा
कR और खूब आन3द से मांस खाया और पाप भी छू ट गया। भला! कपोत के
ब0े का गला मरोड़ने से वह बgत देर तक तड़फता होगा तब भी ईसाइयi को
दया नहc आती। दया eयiकर आवे! इनके ई5र का उपदेश ही िहसा करने का
है। और जब सब पापi का ऐसा 'ायिts है तो ईसा के िव5ास से पाप छू ट
जाता है यह बड़ा आड›बर eयi करते ह<।।५४।।
५५-सो उसी बिलदान कR खाल उसी याजक कR होगी िजसने उसे चढ़ाया।।
· इस ई5र को ध3य है jक िजसने बछड़ा, भेड़ी और बकरी का ब0ा, कपोत और िपसान (आटे)
तक लेने का िनयम jकया । अ¾भुत बात तो यह है jक कपोत के ब0े ‘‘गरदन मरोड़वा के ’’ लेता
था अथा&त् गद&न तोड़ने का पWर~म न करना पड़े । इन सब बातi के देखने से िवjदत होता है
jक जंगिलयi मO कोई चतुर पु˜ष था वह पहाड़ पर जा बैठा और अपने को ई5र 'िसZ jकया
। जंगली अXानी थे, उ3हiने उसी को ई5र Hवीकार कर िलया । अपनी युिžयi से वह पहाड़
पर ही खाने के िलए पशु, पzी और अ–ाjद मंगा िलया करता था और मौज करता था । उसके
दूत फWरŸते काम jकया करते थे । सœन लोग िवचारO jक कहां तो बाइबल मO बछड़ा, भेड़ी,
बकरी का ब0ा, कपोत और ‘‘अ¸छे’’ िपसान का खाने वाला ई5र और कहां सव&aापक, सव&X,
अज3मा, िनराकार, सव&शिžमान् और 3यायकारी इ"याjद उsम गुणयुž वेदोž ई5र ?

और समHत भोजन कR भOट जो त3दूर मO पकाई जावO और सब जो कड़ाही मO


अथवा तवे पर सो उसी याजक कR होगी।। -तौन लै० प० ७। आ० ८। ९।।
(समीzक) हम जानते थे jक यहाँ देवी के भोपे और मि3दरi के पुजाWरयi कR
पोपलीला िविच• है पर3तु ईसाइयi के ई5र और उनके पुजाWरयi कR
पोपलीला इससे सहêगुणी बढ़कर है। eयijक चाम के दाम और भोजन के
पदाथ& खाने को आवO jफर ईसाइयi के याजकi ने खूब मौज उड़ाई होगी? और
अब भी उड़ाते हiगे। भला कोई मनु‘य एक लड़के को मरवावे और दूसरे लड़के
को उसका मांस िखलावे ऐसा कभी हो सकता है? वैसे ही ई5र के सब मनु‘य
और पशु, पzी आjद सब जीव पु•वत् ह<। परमे5र ऐसा काम कभी नहc कर
सकता। इसी से यह बाइबल ई5रकृ त और इसमO िलखा ई5र और इसके मानने
वाले धम&X कभी नहc हो सकते। ऐसे ही सब बातO लैa aवHथा आjद पुHतकi
मO भरी ह<; कहाँ तक िगनावO।।५५।।
िगनती कR पुHतक
५६-सो गदही ने परमे5र के दूत को अपने हाथ मO तलवार खcचे gए माग& मO
खड़ा देखा तब गदही माग& से अलग खेत मO jफर गई, उसे माग& मO jफरने के
िलये बलआम ने गदही को लाठी से मारा। तब परमे5र ने गदही का मुंह खोला
और उसने बलआम से कहा jक म<ने तेरा eया jकया है jक तूने मुझे अब तीन
बार मारा।। -तौन िग० प० २२। आ० २३। २८।।
(समीzक) 'थम तो गदहे तक ई5र के दूतi को देखते थे और आज कल िबशप
पादरी आjद ~े¼ वा अ~े¼ मनु‘यi को भी खुदा वा उसके दूत नहc दीखते ह<।
eया आजकल परमे5र और उसके दूत ह< वा नहc? यjद ह< तो eया बड़ी नcद
मO सोते ह<? वा रोगी अथवा अ3य भूगोल मO चले गये? वा jकसी अ3य ध3धे मO
लग गये? वा अब ईसाइयi से ˜… हो गये? अथवा मर गये? िवjदत नहc होता
jक eया gआ? अनुमान तो ऐसा होता है jक जो अब नहc ह<, नहc दीखते तो
तब भी नहc थे और न दीखते हiगे। jक3तु ये के वल मनमाने गपोड़े उड़ाये
ह<।।५६।।
५७-सो अब लड़कi मO से हर एक बेटे को और हर एक ¬ी को जो पु˜ष से
संयुž gई हो 'ाण से मारो।। पर3तु वे बेWटयां जो पु˜ष से संयुž नहc gई ह<
उ3हO अपने िलये जीती रeखो।। -तौन िगनती प० ३१। आ० १७। १८।।
(समीzक) वाह जी ! मूसा पैग›बर और तु›हारा ई5र ध3य है jक जो ¬ी,
बालक, वृZ और पशु कR ह"या करने से भी अलग न रहे। और इससे Hप…
िनिtत होता है jक मूसा िवषयी था। eयijक जो िवषयी न होता तो
अzतयोिन अथा&त् पु˜षi से समागम न कR gई क3याu को अपने िलये eयi
मंगवाता वा उनको ऐसी िनद&यी वा िवषयीपन कR आXा eयi देता? ।।५७।।
समुएल कR दूसरी पुHतक
५८-और उसी रात ऐसा gआ jक परमे5र का वचन यह कह के नातन को
पgंचा।। jक जा और मेरे सेवक दाऊद से कह jक परमे5र यi कहता है jक eया
मेरे िनवास के िलए तू एक घर बनवायेगा।। eयijक जब से इसराएल के स3तान
को िमê से िनकाल लाया म<ने तो आज के jदन लi घर मO वास न jकया पर3तु
त›बू मO और डेरे मO jफरा jकया।। -तौन समुएल कR दूसरी पु० प० ७। आ० ४। ५।
६।।
(समीzक) अब कु छ स3देह न रहा jक ईसाइयi का ई5र मनु‘यवत् देहधारी
नहc है और उलहना देता है jक म<ने बgत पWर~म jकया, इधर उधर डोलता
jफरा, अब दाऊद घर बनादे तो उसमO आराम क’ं। eयi ईसाइयi को ऐसे
ई5र और ऐसे पुHतक को मानने मO लœा नहc आती? पर3तु eया करO िबचारे
फं स ही गये। अब िनकलने के िलए बड़ा पु˜षाथ& करना उिचत है।।५८।।
राजाu कR पुHतक
५९-और बाबेल के राजा नबुखुदनजर के रा°य के उ–ीसवO बरस के पांचवO मास
सातवc ितिथ मO बाबुल के राजा का एक सेवक नबूसर अÖान जो िनज सेना
का 'धान अ—यz था, य’सलम मO आया।। और उसने परमे5र का मि3दर
और राजा का भवन और य’सलम के सारे घर और हर एक बड़े घर को जला
jदया।। और कसjदयi कR सारी सेना ने जो उस िनज सेना के अ—यz के साथ
थी य’सलम कR भीतi को चारi ओर से ढा jदया।।
-तौन रा० पु० २। प० २५। आ० ८। ९। १०।।
(समीzक) eया jकया जाय? ईसाइयi के ई5र ने तो अपने आराम के िलये
दाऊद आjद से घर बनवाया था। उसमO आराम करता होगा, पर3तु नबूसर
अÖान ने ई5र के घर को न…-±… कर jदया और ई5र वा उसके दूतi कR सेना
कु छ भी न कर सकR। 'थम तो इनका ई5र बड़ी-बड़ी लड़ाइयां मारता था
और िवजयी होता था पर3तु अब अपना घर जला तुड़वा बैठा। न जाने चुपचाप
eयi बैठा रहा? और न जाने उसके दूत jकधर भाग गये? ऐसे समय पर कोई
भी काम न आया और ई5र का परा¦म भी न जाने कहाँ उड़ गया? यjद यह
बात स0ी हो तो जो जो िवजय कR बातO 'थम िलखc सो-सो सब aथ& हो गâ।
eया िमê के लड़के लड़jकयi के मारने मO ही शूरवीर बना था? अब शूरवीरi
के सामने चुपचाप हो बैठा? यह तो ईसाइयi के ई5र ने अपनी िन3दा और
अ'ित¼ा करा ली। ऐसी ही हजारi इस पुHतक मO िनक›मी कहािनयां भरी
ह<।।५९।।
जबूर का दूसरा भाग
काल के समाचार कR पहली पुHतक
६०-सो परमे5र ने इसराएल पर मरी भेजी और इसराएल मO से सsर सहê
पु˜ष िगर गये।। -जबूर २। काल० पु० प० २१। आ० १४।।
(समीzक) अब देिखये इसराएल के ईसाइयi के ई5र कR लीला! िजस
इसराएल कु ल को बgत से वर jदये थे और रात jदन िजनके पालन मO डोलता
था अब भफ़ट ¦ोिधत होकर मरी डाल के सsर सहê मनु‘यi को मार डाला।
जो यह jकसी किव ने िलखा है स"य है jक-
zणे ˜…ः zणे तु…ो ˜…Hतु…ः zणे zणे ।
अaविHथतिचsHय 'सादोऽिप भयंकरः ।।
जैसे कोई मनु‘य zण मO 'स–, zण मO अ'स– होता है, अथा&त् zण-zण
मO 'स– अ'स– होवे उसकR 'स–ता भी भयदायक होती है वैसी लीला
ईसाइयi के ई5र कR है।।६०।।
ऐयूब कR पुHतक
६१-और एक jदन ऐसा gआ jक परमे5र के आगे ई5र के पु• आ खड़े gए
और शैतान भी उनके म—य मO परमे5र के आगे आ खड़ा gआ।। और परमे5र
ने शैतान से कहा jक तू कहां से आता है? तब शैतान ने उsर दे के परमे5र से
कहा jक पृिथवी पर घूमते और इधर उधर से jफरते चला आता •ं।। तब
परमे5र ने शैतान से पूछा jक तूने मेरे दास ऐयूब को जांचा है jक उसके समान
पृिथवी मO कोई नहc है वह िसZ और खरा जन ई5र से डरता और पाप से
अलग रहता है और अब लi अपनी स0ाई को धर रeखा है और तूने मुझे उसे
अकारण नाश करने को उभारा है।। तब शैतान ने उsर दे के परमे5र से कहा
jक चाम के िलये चाम हां जो मनु‘य का है सो अपने 'ाण के िलये देगा।। पर3तु
अब अपना हाथ बढ़ा और उसके हाड़ मांस को छू तब वह िनःस3देह तुझे तेरे
सामने "यागेगा।। तब परमे5र ने शैतान से कहा jक देख वह तेरे हाथ मO है,
के वल उसके 'ाण को बचा।। तब शैतान परमे5र के आगे से चला गया और
ऐयूब को िसर से तलवे लi बुरे फोड़i से मारा।।
-जबूर ऐयू० प० २। आ० १। २। ३। ४। ५। ६। ७।।
(समीzक) अब देिखये ईसाइयi के ई5र का साम•य& ! jक शैतान उसके सामने
उसके भži को दुःख देता है। न शैतान को द‹ड, न अपने भži को बचा सकता
है और न दूतi मO से कोई उसका सामना कर सकता है। एक शैतान ने सब को
भयभीत कर रeखा है। और ईसाइयi का ई5र भी सव&X नहc है। जो सव&X
होता तो ऐयूब कR परीzा शैतान से eयi कराता? ।।६१।।
उपदेश कR पुHतक
६२-हां! अ3तःकरण ने बुिZ और Xान बgत देखा है।। और म<ने बुिZ और
बौड़ाहपन और मूढ़ता जा–े को मन लगाया। म<ने जान िलया jक यह भी मन
का झंझट है।। eयijक अिधक बुिZ मO बड़ा शोक है और जो Xान मO बढ़ता है
सो दुःख मO बढ़ता है।। -जन उ० प० १। आ० १६। १७। १८।।
(समीzक) अब देिखये ! जो बुिZ और Xान पया&यवाची ह< उनको दो मानते
ह<। और बुिZ वृिZ मO शोक और दुःख मानना िवना अिवyानi के ऐसा लेख
कौन कर सकता है? इसिलये यह बाइबल ई5र कR बनाई तो eया jकसी
िवyान् कR भी बनाई नहc है।।६२।।
यह थोड़ा सा तौरे त जबूर के िवषय मO िलखा। इसके आगे कु छ मsीरिचत आjद
इÅील के िवषय मO िलखा जाता है jक िजसको ईसाई लोग बgत 'माणभूत
मानते ह<। िजसका नाम इÅील रeखा है उसकR परीzा थोड़ी सी िलखते ह< jक
यह कै सी है।
मsी रिचत इÅील
६३-यीशु 4ी… का ज3म इस रीित से gआ-उसकR माता मWरयम कR यूसफ से
मंगनी gई थी पर उनके इक$े होने के पिहले ही वह देख पड़ी jक पिव• आ"मा
से गभ&वती है।। देखो परमे5र के एक दूत ने Hव¹ मO उसे दश&न दे कहा, हे दाऊद
के स3तान यूसफ ! तू अपनी ¬ी मWरयम को यहां लाने से मत डर eयijक
उसको जो गभ& रहा है सो पिव• आ"मा से है।।
-इं न प० १। आ० १८। २०।।
(समीzक) इन बातi को कोई िवyान् नहc मान सकता jक जो '"यzाjद 'माण
और सृि…¦म से िव˜Z ह<। इन बातi का मानना मूख& मनु‘य जंगिलयi का काम
है; स^य िवyानi का नहc। भला ! जो परमे5र का िनयम है उसको कोई तोड़
सकता है? जो परमे5र भी िनयम को उलटा पलटा करे तो उसकR आXा को
कोई न माने और वह भी सव&X और िन±&म न रहै। ऐसे तो िजस-िजस
कु माWरका के गभ& रह जाय तब सब कोई ऐसे कह सकते ह< jक इसमO गभ& का
रहना ई5र कR ओर से है और झूठ मूठ कह दे jक परमे5र के दूत ने मुझ को
Hव¹ मO कह jदया है jक यह गभ& परमा"मा कR ओर से है। जैसा यह अस›भव
'प€ रचा है वैसा ही सू‰य& से कु 3ती का गभ&वती होना भी पुराणi मO अस›भव
िलखा है। ऐसी-ऐसी बातi को आंख के अ3धे और गांठ के पूरे लोग मान कर
±मजाल मO िगरते ह<। यह ऐसी बात gई होगी jक jकसी पु˜ष के साथ समागम
होने से गभ&वती मWरयम gई होगी। उसने वा jकसी दूसरे ने ऐसी अस›भव
बात उड़ा दी होगी jक इस मO गभ& ई5र कR ओर से है।।६३।।
६४-तब आ"मा यीशु को जंगल मO ले गया jक शैतान से उसकR परीzा कR
जाय।। वह चालीस jदन और चालीस रात उपवास करके पीछे भूखा gआ।।
तब परीzा करनेहारे ने कहा jक जो तू ई5र का पु• है तो कह दे jक ये प"थर
रोWटयां बन जावO।। -इं न मsी प० ४। आ० १। २। ३।।
(समीzक) इससे Hप… िसZ होता है jक ईसाइयi का ई5र सव&X नहc। eयijक
जो सव&X होता तो उसकR परीzा शैतान से eयi कराता? Hवयं जान लेता।
भला ! jकसी ईसाई को आज कल चालीस रात चालीस jदन भूखा रeखO तो
कभी बच सके गा? और इससे यह भी िसZ gआ jक न वह ई5र का बेटा और
न कु छ उसमO करामात अथा&त् िसिZ थी। नहc तो शैतान के सामने प"थर कR
रोWटयां eयi न बना देता? और आप भूखा eयi रहता? और िसZा3त यह है
jक जो परमे5र ने प"थर बनाये ह< उनको रोटी कोई भी नहc बना सकता और
ई5र भी पूव&कृत िनयम को उलटा नहc कर सकता eयijक वह सव&X और
उसके सब काम िबना भूल चूक के ह<।।६४।।
६५-उसने उनसे कहा मेरे पीछे आओ म< तुमको मनु‘यi के मछु वे बनाऊंगा।। वे
तुर3त जालi को छोड़ के उसके पीछे हो िलये। -इं न मsी प० ४। आ० १९। २०।।
(समीzक) िवjदत होता है jक इसी पाप अथा&त् जो तौरे त मO दश आXाu मO
िलखा है jक ‘स3तान लोग अपने माता िपता कR सेवा और मा3य करO िजससे
उनकR उमर बढ़े’ सो ईसा ने न अपने माता िपता कR सेवा कR और दूसरi को
भी माता िपता कR सेवा से छु ड़ाये, इसी अपराध से िचरं जीवी न रहा। और
यह भी िवjदत gआ jक ईसा ने मनु‘यi के फं साने के िलये एक मत चलाया है
jक जाल मO म¸छी के समान मनु‘यi को Hवमत जाल मO फं साकर अपना
'योजन साधO। जब ईसा ही ऐसा था तो आज कल के पादरी लोग अपने जाल
मO मनु‘यi को फं सावO तो eया आtय& है? eयijक जैसे बड़ी-बड़ी और बgत
मि¸छयi को जाल मO फं साने वाले कR 'ित¼ा और जीिवका अ¸छी होती है,
ऐसे ही जो बgतi को अपने मत मO फं सा ले उसकR अिधक 'ित¼ा और जीिवका
होती है। इसी से ये लोग िज3हiने वेद और शा¬O को न पढ़ा न सुना उन िबचारे
भोले मनु‘यi को अपने जाल मO फं सा के उस के मां बाप कु टु ›ब आjद से पृथÀफ़
कर देते ह<। इससे सब िवyान् आयŽ को उिचत है jक Hवयम् इनके ±मजाल से
बच कर अ3य अपने भोले भाइयi को बचाने मO त"पर रह<।।६५।।
६६-तब यीशु सारे गालील देश मO उनकR सभाu मO उपदेश करता gआ और
रा°य का सुसमाचार 'चार करता gआ और लोगi मO हर एक रोग और हर
एक aािध को चंगा करता gआ jफरा jकया।। सब रोिगयi को जो नाना 'कार
के रोगi और पीड़ाu से दुःखी थे और भूत>Hतi और मृगी वाले अZा&ि◌◌ंगयi
को उसके पास लाये और उसने उ3हO चंगा jकया।। -इं न मsी प० ४। आ० २३।
२४।।
(समीzक) जैसे आजकल पोपलीला िनकालने म3• पुरtरण आशीवा&द ताबीज
और भHम कR चुटुकR देने से भूतi को िनकालना रोगi को छु ड़ाना स0ा हो तो
वह इÅील कR बात भी स0ी होवे। इस कारण भोले मनु‘यi के ±म मO फं साने
के िलये ये बातO ह<। जो ईसाई लोग ईसा कR बातi को मानते ह< तो यहां के देवी
भोपi कR बातO eयi नहc मानते? eयijक वे बातO इ3हc के सदृश ह<।।६६।।
६७-ध3य वे जो मन मO दीन ह< eयijक Hवग& का रा°य उ3हc का है।। eयijक म<
तुमसे सच कहता •ँ jक जब लi आकाश और पृिथवी टल न जायO तब लi
aवHथा से एक मा• अथवा एक िब3दु िबना पूरा gए नहc टलेगा।। इसिलये
इन अित छोटी आXाu मO से एक को लोप करे और लोगi को वैसे ही िसखावे
वह Hवग& के रा°य मO सब से छोटा कहावेगा।। -इं न मsी प० ५। आ० ३। १८।
१९।।
(समीzक) जो Hवग& एक है तो राजा भी एक होना चािहये। इसिलये िजतने
दीन ह< वे सब Hवग& को जावOगे तो Hवग& मO रा°य का अिधकार jकसको होगा।
अथा&त् परHपर लड़ाई-िभड़ाई करO गे और रा°यaवHथा ख‹ड-ब‹ड हो जायेगी।
और दीन के कहने से जो कं गले लोगे, तब तो ठीक नहc। जो िनरिभमानी लोगे
तो भी ठीक नहc; eयijक दीन और िनर् अिभमान का एकाथ& नहc। jक3तु जो
मन मO दीन होता है उसको स3तोष कभी नहc होता इसिलये यह बात ठीक
नहc। जब आकाश पृिथवी टल जायO तब aवHथा भी टल जायेगी ऐसी अिन"य
aवHथा मनु‘यi कR होती है; सव&X ई5र कR नहc। और यह एक 'लोभन और
भयमा• jदया है jक जो इन आXाu को न मानेगा वह Hवग& मO सब से छोटा
िगना जायेगा।।६७।।
६८-हमारी jदन भर कR रोटी आज हमO दे।। अपने िलए पृिथवी पर धन का
संचय मत करो।। -इं न म० प० ६। आ० ११। १९।।
(समीzक) इससे िवjदत होता है jक िजस समय ईसा का ज3म gआ है उस
समय लोग जंगली और दWर¥ थे तथा ईसा भी वैसा ही दWर¥ था। इसी से तो
jदन भर कR रोटी कR 'ािƒ के िलये ई5र कR 'ाथ&ना करता और िसखलाता
है। जब ऐसा है तो ईसाई लोग धन संचय eयi करते ह<? उनको चािहये jक
ईसा के वचन से िव˜Z न चल कर सब दान पु‹य करके दीन हो जायO।।६८।।
६९-हर एक जो मुझ से हे 'भु हे 'भु कहता है Hवग& के रा°य मO 'वेश नहc
करे गा।। -इं न म० प० ७। आ० २१।।
(समीzक) अब िवचाWरये! बडे-़ बड़े पादरी िबशप साहेब और कृ tीन लोग जो
यह ईसा का वचन स"य है ऐसा समझO तो ईसा को 'भु अथा&त् ई5र कभी न
कहO। यjद इस बात को न मानOगे तो पाप से कभी नहc बच सकO गे।।६९।।
७०-उस jदन मO बgतेरे मुझ से कहOगे।। तब म< उनसे खोल के क•ँगा म<ने तुम
को कभी नहc जाना। हे कु क›म& करनेहारो! मुझ से दूर होओ।।
-इं न म० प० ७। आ० २२। २३।।
(समीzक) देिखये! ईसा जंगली मनु‘यi को िव5ास कराने के िलए Hवग& मO
3यायाधीश बनना चाहता था। यह के वल भोले मनु‘यi को 'लोभन देने कR
बात है।।७०।।
७१-और देखो एक कोढ़ी ने आ उसको 'णाम कर कहा हे 'भु ! जो आप चाहO
तो मुझे शुZ कर सकते ह<।। यीशु ने हाथ बढ़ा उसे छू के कहा म< तो चाहता •ँ
शुZ हो जा और उसका कोढ़ तुर3त शुZ हो गया।।
-इं न म० प० ८। आ० २। ३।।
(समीzक) ये सब बातO भोले मनु‘यi के फं साने कR ह<। eयijक जब ईसाई लोग
इन िव‡ा सृि…¦मिव˜Z बातi को स"य मानते ह< तो शु¦ाचा‰य&, ध3व3तWर,
कŸयप आjद कR बातO जो पुराण और भारत मO अनेक दै"यi कR मरी gई सेना
को िजला दी। बृहHपित के पु• कच को टु कड़ा-टु कड़ा कर जानवर मि¸छयi को
िखला jदया, jफर भी शु¦ाचा‰य& ने जीता कर jदया। पtात् कच को मार कर
शु¦ाचा‰य& को िखला jदया jफर उसको पेट मO जीता कर बाहर िनकाला। आप
मर गया उसको कच ने जीता jकया। कŸयप ऋिष ने मनु‘यसिहत वृz को
तzक से भHम gए पीछे पुनः वृz और मनु‘य को िजला jदया। ध3व3तWर ने
लाखi मुद· िजलाये। लाखi कोढ़ी आjद रोिगयi को चंगा jकया। लाखi अ3वमे
और बिहरi को आंख और कान jदये इ"याjद कथा को िम•या eयi कहते ह<?
जो उž बातO िम•या ह< तो ईसा कR बातO िम•या eयi नहc? जो दूसरे कR बातi
को िम•या और अपनी झूठी को स0ी कहते ह< तो हठी eयi नहc। इसिलये
ईसाइयi कR बातO के वल हठ और लड़कi के समान ह<।।७१।।
७२-तब दो भूत>Hत मनु‘य कबरHथान मO से िनकलते gए उससे आ िमले। जो
यहां लi अित'च‹ड थे jक उस माग& से कोई नहc जा सकता था।। और देखो
उ3हiने िचqला के कहा हे यीशु ई5र पु• ! आपको हम से eया काम, eया आप
समय के आगे हमO पीड़ा देने को यहां आये ह<।। सो भूतi ने उससे िवनती कर
कहा जो आप हमO िनकालते ह< तो सूअरi के भफ़ु ‹ड मO पैठने दीिजये।। उसने
उनसे कहा जाओ और वे िनकल के सूअरi के भफ़ु ‹ड मO पैठे।। और देखो सूअरi
का सारा झु‹ड कड़ाड़े पर से समु¥ मO दौड़ गया और पानी मO डू ब मरा।।
-इं न म० प० ८। आ० २८। २९। ३१। ३२।।
(समीzक) भला! यहां तिनक िवचार करO तो ये बातO सब झूठी ह<, eयijक मरा
gआ मनु‘य कबरHथान से कभी नहc िनकल सकता। वे jकसी पर न जाते न
संवाद करते ह<। ये सब बातO अXानी लोगi कR ह<। जो jक महा जंगली ह< वे
ऐसी बातi पर िव5ास लाते ह<। और उन सूअरi कR ह"या कराई। सूअरवालi
कR हािन करने का पाप ईसा को gआ होगा। और ईसाई लोग ईसा को पाप
zमा और पिव• करने वाला मानते ह< तो उन भूतi को पिव• eयi न कर
सका? और सूअर वालi कR हािन eयi न भर दी? eया आजकल के सुिशिzत
ईसाई अं>ेज लोग इन गपोड़i को भी मानते हiगे? यjद मानते ह< तो ±मजाल
मO पड़े ह<।।७२।।
७३-देखो ! लोग एक अधा¶गी को जो खटोले पर पड़ा था उस पास लाये और
यीशु ने उनका िव5ास देख के उस अधा¶गी से कहा हे पु• ! ढाढस कर, तेरे
पाप zमा jकये गये ह<।। म< ध“मयi को नहc पर3तु पािपयi को पtाsाप के
िलये बुलाने आया •ँ।। -इं न म० प० ९। आ० २। १३।।
(समीzक) यह भी बात वैसी ही अस›भव है जैसी पूव& िलख आये ह< और जो
पाप zमा करने कR बात है वह के वल भोले लोगi को 'लोभन देकर फं साना
है। जैसे दूसरे के िपये म‡, भांग अफRम खाये का नशा दूसरे को नहc 'ाƒ हो
सकता वैसे ही jकसी का jकया gआ पाप jकसी के पास नहc जाता jक3तु जो
करता है वही भोगता है, यही ई5र का 3याय है। यjद दूसरे का jकया पाप-
पु‹य दूसरे को 'ाƒ होवे अथवा 3यायावमीश Hवयं ले लेवO वा कsा&u ही को
यथायो•य फल ई5र न देवे तो वह अ3यायकारी हो जावे। देखो ! धम& ही
कqयाणकारक है; ईसा वा अ3य कोई नहc। और धमा&"माu के िलये ईसा कR
कु छ आवŸयकता भी नहc और न पािपयi के िलये eयijक पाप jकसी का नहc
छू ट सकता।।७३।।
७४-यीशु ने अपने बारह िश‘यi को अपने पास बुला के उ3हO अशुZ भूतi पर
अिधकार jदया jक उ3हO िनकालO और हर एक रोग और हर एक aािध को
चंगा करO ।। बोलनेहारे तो तुम नहc हो पर3तु तु›हारे िपता का आ"मा तुम मO
बोलता है।। मत समझो jक म< पृिथवी पर िमलाप करवाने को नहc पर3तु ख"ग
चलवाने आया •ँ।। म< मनु‘य को उसके िपता से और बेटी को उसकR मां से और
पतो• को उसकR सास से अलग करने आया •ँ।। मनु‘य के घर ही के लोग उसके
वैरी हiगे।। -इं न म० प० १०। आ० १। २०। ३४। ३५। ३६।।
(समीzक) ये वे ही िश‘य ह< िजन मO से एक ३०) ˜पये के लोभ पर ईसा को
पकड़ावेगा और अ3य बदल कर अलग-अलग भागOगे। भला ! ये बातO जब िव‡ा
ही से िव˜Z ह< jक भूतi का आना वा िनकालना, िवना ओषिध वा प•य के
aािधयi का छू टना सृि…¦म से अस›भव है। इसिलए ऐसी-ऐसी बातi का
मानना अXािनयi का काम है। यjद जीव बोलनेहारे नहc, ई5र बोलनेहारा है
तो जीव eया काम करते ह<? और स"य वा िम•याभाषण का फल सुख वा दुःख
को ई5र ही भोगता होगा, यह भी एक िम•या बात है। और जैसा ईसा फू ट
कराने और लड़ाने को आया था वही आज कल कलह लोगi मO चल रहा है। यह
कै सी बड़ी बुरी बात है jक फू ट कराने से सव&था मनु‘यi को दुःख होता है और
ईसाइयi ने इसी को गु˜म3• समझ िलया होगा। eयijक एक दूसरे कR फू ट
ईसा ही अ¸छी मानता था तो ये eयi नहc मानते हiगे? यह ईसा ही का काम
होगा jक घर के लोगi के श•ु घर के लोगi को बनाना, यह ~े¼ पु˜ष का काम
नहc।।७४।।
७५-तब यीशु ने उनसे कहा तु›हारे पास jकतनी रोWटयां ह<। उ3हiने कहा सात
और छोटी मछिलयां।। तब उसने लोगi को भूिम पर बैठने कR आXा दी।। और
उसने उन सात रोWटयi को और मछिलयi को ध3य मान के तोड़ा और अपने
िश‘यi को jदया और िश‘यi ने लोगi को jदया।। सो सब खा के तृƒ gए और
जो टु कड़े बच रहे उनके सात टोकरे भरे उठाये।। िज3हiने खाया सो ि¬यi और
बालकi को छोड़ चार सहê पु˜ष थे।।
-इं न म० प० १५। आ० ३४। ३५। ३६। ३७। ३८।।
(समीzक) अब देिखये ! eया यह आजकल के झूठे िसZi इ3¥जाली आjद के
समान छल कR बात नहc है? उन रोWटयi मO अ3य रोWटयां कहां से आ गâ?
यjद ईसा मO ऐसी िसिZयां होतc तो आप भूखा gआ गूलर के फल खाने को
eयi भटका करता था? अपने िलये िमÝी पानी और प"थर आjद से मोहनभोग,
रोWटयां eयi न बना लc? ये सब बातO लड़कi के खेलपन कR ह<। जैसे jकतने ही
साधु वैरागी ऐसे छल कR बातO करके भोले मनु‘यi को ठगते ह< वैसे ही ये भी
ह<।।७५।।
७६-और तब वह हर एक मनु‘य को उसके का‰य& के अनुसार फल देगा।। -इं न
म० प० १६। आ० २७।।
(समीzक) जब कमा&नुसार फल jदया जायेगा तो ईसाइयi का पाप zमा होने
का उपदेश करना aथ& है और वह स0ा हो तो यह झूठा होवे। यjद कोई कहे
jक zमा करने के यो•य zमा jकये जाते और zमा न करने के यो•य zमा नहc
jकये जाते ह< यह भी ठीक नहc। eयijक सब कमŽ के फल यथायो•य देने ही से
3याय और पूरी दया होती है।।७६।।
७७-हे अिव5ासी और हठीले लोगो।। म< तुमसे स"य कहता •ँ यjद तुमको राई
के एक दाने के तुqय िव5ास होय तो तुम इस पहाड़ से जो कहोगे jक यहाँ से
वहां चला जा, वह जायेगा और कोई काम तुम से असा—य नहc होगा।।
-इं न म० प० १७। आ० १७। २०।।
(समीzक) अब जो ईसाई लोग उपदेश करते jफरते ह< jक ‘आओ हमारे मत मO
zमा कराओ मुिž पाओ’ आjद, वह सब िम•या है। eयijक जो ईसा मO पाप
छु ड़ाने िव5ास जमाने और पिव• करने का साम•य& होता तो अपने िश‘यi के
आ"माu को िन‘पाप, िव5ासी, पिव• eयi न कर देता? जो ईसा के साथ-
साथ घूमते थे जब उ3हc को शुZ, िव5ासी और कqयाण न कर सका तो वह
मरे पर न जाने कहां है? इस समय jकसी को पिव• नहc कर सके गा। जब ईसा
के चेले राई भर िव5ास से रिहत थे और उ3हc ने यह इÅील पुHतक बनाई है
तब इसका 'माण नहc हो सकता। eयijक जो अिव5ासी, अपिव•"मा, अधमŠ
मनु‘यi का लेख होता है उस पर िव5ास करना कqयाण कR इ¸छा करने वाले
मनु‘य का काम नहc। और इसी से यह भी िसZ हो सकता है jक जो ईसा का
यह वचन स0ा है तो jकसी ईसाई मO एक राई के दाने के समान िव5ास अथा&त्
ईमान नहc है जो कोई कहे jक हम मO पूरा वा थोड़ा िव5ास है तो उससे कहना
jक आप इस पहाड़ को माग& मO से हटा देवO। यjद उनके हटाने से हट जाये तो
भी पूरा िव5ास नहc jक3तु एक राई के दाने के बराबर है और जो न हटा सके
तो समझो एक छcटा भी िव5ास, ईमान अथा&त् धम& का ईसाइयi मO नहc है।
यjद कोई कहे jक यहां अिभमान आjद दोषi का नाम पहाड़ है तो भी ठीक
नहc, eयijक जो ऐसा हो तो मुद,· अ3धे, कोढ़ी, भूत>Hतi को चंगा करना भी
आलसी, अXानी, िवषयी और ±ा3तi को बोध करके सचेत कु शल jकया होगा।
जो ऐसा मानO तो भी ठीक नहc, eयijक जो ऐसा होता तो Hविश‘यi को ऐसा
eयi न कर सकता? इसिलए अस›भव बात कहना ईसा कR अXानता का
'काश करता है। भला ! जो कु छ भी ईसा मO िव‡ा होती तो ऐसी अटाटू ट
जंगलीपन कR बात eयi कह देता? तथािप ‘य• देशे ¥ुमो नािHत त•ैर‹डोऽिप
¥ुमायते।’ िजस देश मO कोई भी वृz न हो तो उस देश मO एर‹ड का वृz ही सब
से बड़ा और अ¸छा िगना जाता है वैसे महाजंगली देश मO ईसा का भी होना
ठीक था। पर आजकल ईसा कR eया गणना हो सकती है।।७७।।
७८-म< तु›हO सच कहता •ँ जो तुम मन न jफराओ और बालकi के समान न हो
जाओ तो Hवग& के रा°य मO 'वेश करने न पाओगे।।
-इं न म० प० १८। आ० ३।।
(समीzक) जब अपनी ही इ¸छा से मन का jफराना Hवग& का कारण और न
jफराना नरक का कारण है तो कोई jकसी का पाप पु‹य कभी नहc ले सकता
ऐसा िसZ होता है। और बालक के समान होने के लेख से िवjदत होता है jक
ईसा कR बातO िव‡ा और सृि…¦म से बgत सी िव˜Z थc। और यह भी उसके
मन मO था jक लोग मेरी बातi को बालक के समान मान लO। पूछO गाछO कु छ भी
नहc, आंख मीच के मान लेवO। बgत से ईसाइयi कR बालबुिZवत् चे…ा है। नहc
तो ऐसी युिž, िव‡ा से िव˜Z बातO eयi मानते? और यह भी िसZ gआ जो
ईसा आप िव‡ाहीन बालबुिZ न होता तो अ3य को बालवत् बनने का उपदेश
eयi करता? eयijक जो जैसा होता है वह दूसरे को भी अपने सदृश बनाना
चाहता ही है।।७८।।
७९-म< तुम से सच कहता •ँ, धनवान् को Hवग& के रा°य मO 'वेश करना कWठन
होगा।। jफर भी म< तुम से कहता •ं jक ई5र के रा°य मO धनवान् के 'वेश
करने से ऊँट का सूई के नाके मO से जाना सहज है।।
-इं न म० प० १९। आ० २३। २४।।
(समीzक) इससे यह िसZ होता है jक ईसा दWर¥ था। धनवान् लोग उस कR
'ित¼ा नहc करते हiगे, इसिलये यह िलखा होगा। पर3तु यह बात सच नहc
eयijक धनाÚi और दWर¥i मO अ¸छे बुरे होते ह<। जो कोई अ¸छा काम करे
वह अ¸छा और बुरा करे वह बुरा फल पाता है। और इससे यह भी िसZ होता
है jक ईसा ई5र का रा°य jकसी एक देश मO मानता था; सव&• नहc। जब ऐसा
हो तो वह ई5र ही नहc, जो ई5र है उसका रा°य सव&• है। पुनः उसमO 'वेश
करे गा वा न करे गा यह कहना के वल अिव‡ा कR बात है। और इससे यह भी
आया jक िजतने ईसाई धनाढ् ◌्य ह< eया वे सब नरक ही मO जायOगे? और दWर¥
सब Hवग& मO जायOगे? भला तिनक सा िवचार तो ईसामसीह करते jक िजतनी
साम>ी धनाढ् ◌्यi के पास होती है उतनी दWर¥i के पास नहc। यjद धनाढ् ◌्य
लोग िववेक से धम&माग& मO aय करO तो दWर¥ नीच गित मO पड़े रहO और
धनाढ् ◌्य उsम गित को 'ाƒ हो सकते ह<।।७९।।
८०-यीशु ने उनसे कहा म< तुम से सच कहता •ँ jक नई सृि… मO जब
मनु‘य का पु• अपने ऐ5य& के िसहासन पर बैठेगा तब तुम भी जो मेरे पीछे
हो िलये हो; बारह िसहासनi पर बैठ के इêाएल के बारह कु लi का 3याय
करोगे।। िजस jकसी ने मेरे नाम के िलये घरi वा भाइयi वा बिहनi वा िपता
वा माता वा ¬ी वा लड़कi वा भूिम को "यागा है सो सौ गुणा पावेगा और
अन3त जीवन का अिधकारी होगा।। -इं न म० प० १९। आ० २८। २९।।
(समीzक) अब देिखये ईसा के भीतर कR लीला! मेरे जाल से मरे पीछे भी लोग
न िनकल जायO और िजसने ३०) ˜पये के लोभ से अपने गु˜ को पकड़ा, मरवाया
वैसे पापी भी इसके पास िसहासन पर बैठOगे और इêाएल के कु ल का पzपात
से 3याय ही न jकया जायेगा jक3तु उनके सब गुनाह माफ और अ3य कु लi का
3याय करO गे। अनुमान होता है इसी से ईसाई लोग ईसाइयi का बgत पzपात
कर jकसी गोरे ने काले को मार jदया हो तो भी बgधा पzपात से िनरपराधी
कर छोड़ देते ह<। ऐसा ही ईसा के Hवग& का भी 3याय होगा और इससे बड़ा दोष
आता है eयijक एक सृि… कR आjद मO मरा और एक ‘कयामत’ कR रात के
िनकट मरा। एक तो आjद से अ3त तक आशा ही मO पड़ा रहा jक कब 3याय
होगा ? और दूसरे का उसी समय 3याय हो गया। यह jकतना बड़ा अ3याय है
और जो नरक मO जायगा सो अन3त काल तक नरक भोगे और जो Hवग& मO
जायेगा वह सदा Hवग& भोगेगा यह भी बड़ा अ3याय है। eयijक अ3त वाले
साधन और कमŽ का फल भी अ3त वाला होना चािहये। और तुqय पाप व पु‹य
दो जीवi का भी नहc हो सकता। इसीिलये तारत›य से अिधक 3यून सुख दुःख
वाले अनेक Hवग& और नरक हi तभी सुख दुःख भोग सकते ह<। सो ईसाइयi के
पुHतक मO कहc aवHथा नहc। इसिलये यह पुHतक ई5रकृ त वा ईसा ई5र का
बेटा कभी नहc हो सकता। यह बड़े अनथ& कR बात है jक कदािप jकसी के मां
बाप सौ सौ नहc हो सकते jक3तु एक कR एक मां और एक ही बाप होता है।
अनुमान है jक मुसलमानi ने एक को ७२ ि¬याँ बिहŸत मO िमलती ह<; िलखा
है।।८०।।
८१-भोर को जब वह नगर को jफर जाता था तब उसको भूख लगी।। और
माग& मO एक गूलर का वृz देख के वह उस के पास आया पर3तु उस मO और कु छ
न पाया के वल पsे। और उसको कहा तुझ मO jफर कभी फल न लगOगे। इस पर
गूलर का पेड़ तुर3त सूख गया।। -इं न म० प० २१। आ० १८। १९।।
(समीzक) सब पादरी लोग ईसाई कहते ह< jक वह बड़ा शा3त zमाि3वत और
¦ोधाjद दोषरिहत था। पर3तु इस बात को देख ¦ोधी, ऋतु का Xानरिहत
ईसा था और वह जंगली मनु‘यपन के Hवभावयुž वs&ता था। भला ! जो वृz
जड़ पदाथ& है। उसका eया अपराध था jक उसको शाप jदया और वह सूख
गया। उसके शाप से तो न सूखा होगा jक3तु कोई ऐसी औषिध डालने से सूख
गया हो तो आtय& नहc।।८१।।
८२-उन jदनi के eलेश के पीछे तुर3त सूय& अि3धयारा हो जायगा और चांद
अपनी °योित न देगा! तारे आकाश से िगर पडO◌़गे और आकाश कR सेना िडग
जायेगी।। -इं न म० प० २४। आ० २९।।
(समीzक) वाह जी ईसा! तारi को jकस िव‡ा से िगर पड़ना आपने जाना और
आकाश कR सेना कौन सी है जो िडग जायेगी? जो कभी ईसा थोड़ी
भी िव‡ा पढ़ता तो अवŸय जान लेता jक ये तारे सब भूगोल ह< eयiकर िगरO गे।
इससे िवjदत होता है jक ईसा बढ़ई के कु ल मO उ"प– gआ था। सदा लकड़े
चीरना, छीलना, काटना और जोड़ना करता रहा होगा। जब तरं ग उठी jक म<
भी इस जंगली देश मO पैग›बर हो सकूं गा; बातO करने लगा। jकतनी बातO उस
के मुख से अ¸छी भी िनकलc और बgत सी बुरी। वहां के लोग जंगली थे; मान
बैठे। जैसा आज कल यूरोप देश उ–ित युž है वैसा पूव& होता तो ईसा कR
िसZाई कु छ भी न चलती। अब कु छ िव‡ा gए पtात् भी aवहार के पेच और
हठ से इस पोल मत को न छोड़ कर सव&था स"य वेदमाग& कR ओर नहc झुकते;
यही इनमO 3यूनता है।।८२।।
८३-आकाश और पृिथवी टल जायOगे पर3तु मेरी बातO कभी न टलOगी।।
-इं न म० प० २४। आ० ३५।।
(समीzक) यह भी बात अिव‡ा और मूख&ता कR है। भला ! आकाश िहल कर
कहाँ जायगा? जब आकाश अित सूˆम होने से ने• से दीखता ही नहc तो इसका
िहलना कौन देख सकता है? और अपने मुख से अपनी बड़ाई करना अ¸छे
मनु‘यi का काम नहc।।८३।।
८४-तब वह उनसे जो बाâ ओर ह< कहेगा हे êािपत लोगो ! मेरे पास से उस
अन3त आग मO जाओ जो शैतान और उसके दूतi के िलये तैयार कR गई है।। -
इं न म० प० २५। आ० ४१।।
(समीzक) भला यह jकतनी बड़ी पzपात कR बात है! जो अपने िश‘य ह<
उनको Hवग& और जो दूसरे ह< उनको अन3त आग मO िगराना। पर3तु जब आकाश
ही न रहेगा िलखा तो अन3त आग नरक बिहŸत कहाँ रहेगी? जो शैतान और
उसके दूतi को ई5र न बनाता तो इतनी नरक कR तैयारी eयi करनी पड़ती?
और एक शैतान ही ई5र के भय से न डरा तो वह ई5र ही eया है? eयijक
उसी का दूत होकर बागी हो गया और ई5र उसको 'थम ही पकड़ कर
ब3दीगृह मO न डाल सका, न मार सका, पुनः उसकR ई5रता eया? िजसने ईसा
को भी चालीस jदन दुःख jदया। ईसा भी उसका कु छ न कर सका तो ई5र का
बेटा होना aथ& gआ। इसिलये ईसा ई5र का न बेटा और न बाइबल का ई5र,
ई5र हो सकता है।।८४।।
८५-तब बारह िश‘यi मO से एक िय•दा इHकWरयोती नाम एक िश‘य 'धान
याजकi के पास गया।। और कहा जो म< यीशु को आप लोगi के हाथ पकड़वाऊं
तो आप लोग मुझे eया दOगे ? उ3हiने उसे तीस ˜पये देने को ठहराया।। -इं न
म० प० २६।। आ० १४। १५।।
(समीzक) अब देिखये! ईसा कR सब करामात और ई5रता यहां खुल गई।
eयijक जो उसका 'धान िश‘य था वह भी उसके साzात् संग से पिव•"मा न
gआ तो औरi को वह मरे पीछे पिव•"मा eया कर सके गा ? और उसके
िव5ासी लोग उसके भरोसे मO jकतने ठगाये जाते ह< eयijक िजसने साzात्
स›ब3ध मO िश‘य का कु छ कqयाण न jकया वह मरे पीछे jकसी का कqयाण
eया कर सके गा।।८५।।
८६-जब वे खाते थे तब यीशु ने रोटी लेके ध3यवाद jकया और उसे तोड़ के
िश‘यi को jदया और कहा लेओ खाओ यह मेरा देह है।। और उसने कटोरा ले
के ध3य माना और उनको देके कहा तुम इससे पीओ।। eयijक यह मेरा लो•
अथा&त् नये िनयम का लो• है।। -इं न म० प० २६। आ० २६। २७। २८।।
(समीzक) भला यह ऐसी बात कोई भी स^य करे गा? िवना अिवyान् जंगली
मनु‘य के , िश‘यi से खाने कR चीज को अपने मांस और पीने कR चीजi को
लो• नहc कह सकता। और इसी बात को आजकल के ईसाई लोग 'भु-भोजन
कहते ह< अथा&त् खाने पीने कR चीजi मO ईसा के मांस और लो• कR भावना कर
खाते पीते ह<; यह jकतनी बुरी बात है? िज3हiने अपने गु˜ के मांस लो• को
भी खाने पीने कR भावना से न छोड़ा तो और को कै से छोड़ सकते ह<? ।।८६।।
८७-और वह िपतर को और जबदी के दोनi पु•O को अपने संग ले गया और
शोक करने और बgत उदास होने लगा।। तब उसने उनसे कहा, मेरा मन यहां
लi अित उदास है jक म< मरने पर •ँ।। और थोड़ा आगे बढ़ के वह मुंह के बल
िगरा और 'ाथ&ना कR, हे मेरे िपता ! जो हो सके तो यह कटोरा मेरे पास से
टल जाय।। -इं न म० प० २६। आ० ३७। ३८। ३९।।
(समीzक) देखो ! जो वह के वल मनु‘य न होता, ई5र का बेटा और
ि•कालदशŠ और िवyान् होता तो ऐसी अयो•य चे…ा न करता। इससे Hप…
िवjदत होता है jक यह 'प€ ईसा ने अथवा उसके चेलi ने झूठमूठ बनाया है
jक ई5र का बेटा भूत भिव‘यत् का वेsा और पाप zमा का कsा& है। इससे
समभफ़ना चािहये यह के वल साधारण सूधा स0ा अिवyान् था, न िवyान्, न
योगी, न िसZ था।।८७।।
८८-वह बोलता ही था jक देखो िय•दा जो बाहर िश‘यi मO से एक था; आ
पgंचा। और लोगi के 'धान याजकi और 'ाचीनi कR ओर से बgत लोग ख"ग
और लाWठयां िलये उसके संग।। यीशु के पकड़वानेहारे ने उ3हO यह पता jदया
था िजसको म< चूमूं उसको पकड़ो।। और वह तुर3त यीशु पास आ बोला, हे गु˜
! 'णाम और उसको चूमा।। तब उ3हiने यीशु पर हाथ डाल के उसे पकड़ा।।
तब सब िश‘य उसे छोड़ के भागे।। अ3त मO दो भफ़ू ठ साzी आके बोले, इसने
कहा jक म< ई5र का मि3दर ढहा सकता •ँ और तीन jदन मO jफर बना सकता
•ं।। तब महायाजक ने खड़ा हो यीशु से कहा तू कु छ उsर नहc देता है ये लोग
तेरे िव˜Z eया साzी देते ह<।। पर3तु यीशु चुप रहा इस पर महायाजक ने
उससे कहा म< तुझे जीवते ई5र कR j¦या देता •ँ। हम से कह तू ई5र का पु•
4ी… है jक नहc।। यीशु उससे बोला तू तो कह चुका।। तब महायाजक ने अपने
व¬ फाड़ के कहा यह ई5र कR िन3दा कर चुका है अब हमO सािzयi का और
eया 'योजन? देखो तुमने अभी उसके मुख से ई5र कR िन3दा सुनी है।। तुम
eया िवचार करते हो? तब उ3हiने उsर jदया वह वध के यो•य है।। तब उ3हiने
उसके मुंह पर थूंका और उसे घूंसे मारे । औरi ने थपेड़े मार के कहा-हे 4ी… !
हमसे भिव‘यyाणी बोल jकसने तुझे मारा।। िपतर बाहर अंगने मO बैठा था
और एक दासी उसके पास आके बोली तू भी यीशु गालीली के संग था।। उसने
सबi के सामने मुकर के कहा म< नहc जानता तू eया कहती है।। जब वह बाहर
डेवढ़ी मO गया तो दूसरी दासी ने उसे देख के जो लोग वहां थे उनसे कहा यह
भी यीशु नासरी के संग था।। उसने j¦या खाके jफर मुकरा jक म< उस मनु‘य
को नहc जानता •ँ।। तब वह िधÙार देने और j¦या खाने लगा jक म< उस
मनु‘य को नहc जानता •ँ।।
-इं न म० प० २६। आ० ४७। ४८। ४९। ५०। ६१। ६२। ६३। ६४। ६५। ६६।
६७। ६८। ६९। ७०। ७१। ७२। ७४।।

(समीzक) अब देख लीिजये jक िजसका इतना भी साम•य& वा 'ताप नहc था


jक अपने चेले का भी दृढ़ िव5ास करा सके । और वे चेले चाहे 'ाण भी eयi न
जाते तो भी अपने गु˜ को लोभ से न पकड़ाते, न मुकरते, न िम•याभाषण
करते, न झूठी j¦या खाते। और ईसा भी कु छ करामाती नहc था, जैसा तौरे त
मO िलखा है jक-लूत के घर पर पाgनi को बgत से मारने को चढ़ आये थे। वहां
ई5र के दो दूत थे उ3हiने उ3हc को अ3धा कर jदया। य‡िप वह भी बात
अस›भव है तथािप ईसा मO तो इतना भी साम•य& न था और आज कल jकतना
भड़वा उसके नाम पर ईसाइयi ने बढ़ा रeखा है। भला ! ऐसी दुदश & ा से मरने
से आप Hवयं जूझ वा समािध चढ़ा अथवा jकसी 'कार से 'ाण छोड़ता तो
अ¸छा था पर3तु वह बुिZ िवना िव‡ा के कहां से उपिHथत हो? वह ईसा यह
भी कहता है jक-।।८८।।
८९-म< अभी अपने िपता से िवनती नहc करता •ँ और वह मेरे पास Hवग&दत ू i
कR बारह सेनाu से अिधक पgँचा न देगा? -इं न म० प० २६। आ० ५३।।
(समीzक) धमकाता जाता, अपनी और अपने िपता कR बड़ाई भी करता जाता
पर कु छ भी नहc कर सकता। देखो आtय& कR बात ! जब महायाजक ने पूछा
था jक ये लोग तेरे िव˜Z साzी देते ह< इसका उsर दे तो ईसा चुप रहा। यह
भी ईसा ने अ¸छा न jकया eयijक जो सच था वह वहां अवŸय कह देता तो
भी अ¸छा होता। ऐसी बgत सी अपने घम‹ड कR बातO करनी उिचत न थc और
िज3हiने ईसा पर झूठा दोष लगाकर मारा उनको भी उिचत न था। eयijक
ईसा का उस 'कार का अपराध नहc था जैसा उसके िवषय मO उ3हiने jकया।
पर3तु वे भी तो जंगली थे। 3याय कR बातi को eया समझO? यjद ईसा झूठ-मूठ
ई5र का बेटा न बनता और वे उसके साथ ऐसी बुराई न वs&ते तो दोनi के
िलये उsम काम था। पर3तु इतनी िव‡ा, ध›मा&"मता और 3यायशीलता कहां
से लावO? ।।८९।।
९०-यीशु अ—यz के आगे खड़ा gआ और अ—यz ने उससे पूछा eया तू य•jदयi
का राजा है? यीशु ने उनसे कहा आप ही तो कहते ह<।। जब 'धान याजक और
'ाचीन लोग उस पर दोष लगाते थे तब उसने कु छ उsर नहc jदया।। तब
िपलात ने उससे कहा eया तू नहc सुनता jक ये लोग तेरे िव˜Z jकतनी साzी
देते ह<।। पर3तु उसने एक बात का भी उसको उsर न jदया। यहां लi jक अ—यz
ने बgत अच›भा jकया।। िपलात ने उनसे कहा तो म< यीशु से जो 4ी… कहावता
है eया क’ं।। सभi ने उससे कहा वह ¦ू श पर चढ़ाया जावे।। और यीशु को
कोड़े मार के ¦ू श पर चढ़ाया जाने को सëप jदया।। तब अ—यz के योZाu ने
यीशु को भवन मO ले जा के सारी पलटन उस पास इक$ी कR।। और उ3हiने
उसका व¬ उतार के उसे लाल बाना पिहराया।। और कांटi का मुकुट गूँथ के
उसके िशर पर रeखा और उसके दािहने हाथ मO नक& ट jदया।। और उसके आगे
घुटने टेक के यह कह के उससे ठ$ा jकया हे य•jदयi के राजा 'णाम।। और
उ3हiने उस पर थूका और उस नक& ट को ले उसके िशर पर मारा।। जब वे उससे
ठ$ा कर चुके तब उससे वह बागा उतार के उसी का व¬ पिहरा के उसे ¦ू श
पर चढ़ाने को ले गये।। जब वे एक Hथान पर जो गलगथा था अथा&त् खोपड़ी
का Hथान कहाता है; पgँचे।। तब उ3हiने िसरके मO िपs िमला के उसे पीने को
jदया पर3तु उसने चीख के पीना न चाहा।। तब उ3हiने उसको ¦ू श पर
चढ़ाया।। और उ3हiने
उसका दोषप• उसके िशर के ऊपर लगाया।। तब दो डाकू एक दािहनी ओर
और दूसरा बाâ ओर उसके संग ¦ू शi पर चढ़ाये गये।। जो लोग उधर से आते
जाते थे उ3हiने अपने िशर िहला के और यह कह के उसकR िन3दा कR।। हे
मि3दर के ढहानेहारे अपने को बचा, जो तू ई5र का पु• है तो ¦ू श पर से उतर
आ।। इसी रीित से 'धान याजकi ने भी अ—यापकi और 'ाचीनi के संिगयi ने
ठ$ा कर कहा।। उसने औरi को बचाया अपने को बचा नहc सकता है, जो वह
इêाएल का राजा है तो ¦ू श पर से अब उतर आवे और हम उसका िव5ास
करO गे।। वह ई5र पर भरोसा रखता है, यjद ई5र उसे चाहता है तो उसको
बचावे eयijक उसने कहा म< ई5र का पु• •ँ।। जो डाकू उसके संग चढ़ाये गये
उ3हiने भी इसी रीित से उसकR िन3दा कR।। दो 'हर से तीसरे 'हर लi सारे
देश मO अ3धकार हो गया।। तीसरे 'हर के िनकट यीशु ने बड़े शdद से पुकार के
कहा ‘एली एली लामा सबžनी’ अथा&त् हे मेरे ई5र! हे मेरे ई5र! तूने eयi
मुझे "यागा है।। जो लोग वहां खडे़ थे उनमO से jकतनi ने यह सुनके कहा, वह
एलीयाह को बुलाता है।। उनमO से एक ने तुर3त दौड़ के इHपंज लेके िसरके मO
िभगोया और नल पर रख के उसे पीने को jदया।। तब यीशु ने jफर बडे़ शdद
से पुकार के 'ाण "यागा।। -इं न म० प० २७। आ० ११। १२। १३। १४। २२। २३।
२४। २६। २७। २८।२९। ३०।
३१। ३३। ३४। ३५। ३७। ३८। ३८। ३९। ४०। ४१। ४२। ४३। ४४। ४५। ४६।
४७। ४८। ५०।।
(समीzक) सव&था यीशु के साथ उन दु…i ने बुरा काम jकया। पर3तु यीशु का
भी दोष है। eयijक ई5र का न कोई पु• न वह jकसी का बाप है। eयijक वह
jकसी का बाप होवे तो jकसी का 5सुर, Ÿयाला स›ब3धी आjद भी होवे। और
जब अ—यz ने पूछा था तब जैसा सच था; उsर देना था। और यह ठीक है jक
जो-जो आtय&-क›म& 'थम jकये gए स0े होते तो अब भी ¦ू श पर से उतर कर
सब को अपने िश‘य बना लेता। और जो वह ई5र का पु• होता तो ई5र भी
उसको बचा लेता। जो वह ि•कालदशŠ होता तो िसक· मO िपs िमले gए को
चीख के eयi छोड़ता। वह पहले ही से जानता होता। और जो वह करामाती
होता तो पुकार-पुकार के 'ाण eयi "यागता? इससे जानना चािहये jक चाहे
कोई jकतनी भी चतुराई करे पर3तु अ3त मO सच-सच और झूठ-झूठ हो जाता
है। इससे यह भी िसZ gआ jक यीशु एक उस समय के जंगली मनु‘यi मO से
कु छ अ¸छा था। न वह करामाती, न वह ई5र का पु• और न िवyान् था।
eयijक जो ऐसा होता तो ऐसा वह दुःख eयi भोगता? ।।९०।।९१-और देखो,
बड़ा भुâडोल gआ jक परमे5र का एक दूत उतरा और आ के कबर के yार पर
से प"थर लुढ़का के उस पर बैठा।। वह यहां नहc है, जैसे उसने कहा वैसे जी
उठा है।। जब वे उसके िश‘यi को स3देश देने को जाती थc, देखो यीशु उनसे
आ िमला, कहा कqयाण हो और उ3हiने िनकट आ, उसके पांव पकड़ के उसको
'णाम jकया।। तब यीशु ने कहा मत डरो, जाके मेरे भाइयi से कह दो वे
गालील को जावO और वहां वे मुझे देखOगे।। •यारह िश‘य गालील मO उस पव&त
पर गये जो यीशु ने उ3हO बताया था।। और उ3हiने उसे देख के उसको 'णाम
jकया पर jकतनi का स3देह gआ।। यीशु ने उनके पास आ उनसे कहा, Hवग& मO
और पृिथवी पर समHत अिधकार मुझको jदया गया है।। और देखो म< जगत्
के अ3त लi सब jदन तु›हारे संग •ँ।। -इं न म० प० २८। आ० २। ६। ९। १०।
१६। १७। १८। २०।।
(समीzक) यह बात भी मानने यो•य नहc, eयijक सृि…¦म और िव‡ािव˜Z
है। 'थम ई5र के पास दूतi का होना, उनको जहां-तहां भेजना, ऊपर से
उतरना, eया तहसीलदारी, कलेeटरी के समान ई5र को बना jदया? eया
उसी शरीर से Hवग& को गया और जी उठा? eयijक उन ि¬यi ने उसके पग
पकड़ के 'णाम jकया तो eया वही शरीर था? और वह तीन jदन लi सड़ eयi
न गया? और अपने मुख से सब का अिधकारी बनना के वल द›भ कR बात है।
िश‘यi से िमलना और उनसे सब बातO करनी अस›भव ह<। eयijक जो ये बातO
सच हi तो आजकल भी कोई eयi नहc जी उठते? और उसी शरीर से Hवग& को
eयi नहc जाते? यह मsीरिचs इÅील का िवषय हो चुका। अब माक& रिचत
इÅील के िवषय मO िलखा जाता है।।९१।।
माक& रिचत इÅील
९२-यह eया बढ़ई नहc है। -इं नमाक& प० ६। आ० ३।।
(समीzक) असल मO यूसफ बढ़ई था, इसिलये ईसा भी बढ़ई था। jकतने ही वष&
तक बढ़ई का काम करता था। पtात् पैग›बर बनता-बनता ई5र का बेटा ही
बन गया और जंगली लोगi ने बना िलया तभी बड़ी कारीगरी चलाई। काट
कू ट फू ट फाट करना उसका काम है।।९२।।
लूका रिचत इÅील
९३-यीशु ने उससे कहा तू मुझे उsम eयi कहता है, कोई उsम नहc है, के वल
एक अथा&त् ई5र।। -इं न लू० प० १८। आ० १९।।
(समीzक) जब ईसा ही एक अिyतीय ई5र कहाता है तो ईसाइयi ने
पिव•"मा िपता और पु• तीन कहां से बना िलये? ।।९३।।
९४-तब उसे हेरोद के पास भेजा।। हेरोद यीशु को देख के अित आनि3दत gआ
eयijक वह उसको बgत jदनi से देखने चाहता था इसिलये jक उसके िवषय
मO बgत सी बातO सुनी थc और उसका कु छ आtय& क›म& देखने कR उसको आशा
gई।। उसने उससे बgत बातO पूछc पर3तु उसने उसे कु छ उsर न jदया।।
-इं न लू० प० २३। आ० ७। ८। ९।।
(समीzक) यह बात मsीरिचत मO नहc है इसिलए ये साzी िबगड़ गये। eयijक
साzी एक से होने चािहयO और जो ईसा चतुर और करामाती होता तो उsर
देता और करामात भी jदखलाता। इससे िवjदत होता है jक ईसा मO िव‡ा और
करामात कु छ भी न थी।।९४।।
योहन रिचत सुसमाचार
९५-आjद मO वचन था और वचन ई5र के संग था और वचन ई5र था।। वह
आjद मO ई5र के संग था।। सब कु छ उसके yारा सृजा गया और जो सृजा गया
है कु छ भी उस िबना नहc सृजा गया। उसमO जीवन था और वह जीवन मनु‘यi
का उिजयाला था।। -यो०प० १। आ० १। २। ३। ४।।

(समीzक) आjद मO वचन िवना वžा के नहc हो सकता और जो वचन ई5र


के संग था तो यह कहना aथ& gआ। और वचन ई5र कभी नहc हो सकता
eयijक जब वह आjद मO ई5र के संग था तो पूव& वचन वा ई5र था; यह नहc
घट सकता। वचन के yारा सृि… कभी नहc हो सकती जब तक उसका कारण
न हो। और वचन के िवना भी चुपचाप रह कर कsा& सृि… कर सकता है। जीवन
jकस मO वा eया था, इस वचन से जीव अनाjद मानोगे, जो अनाjद है तो आदम
के नथुनi मO 5ास फूं कना झूठा gआ और eया जीवन मनु‘यi ही का उिजयाला
है; प5ाjद का नहc? ।।९५।।
९६-और िबयारी के समय मO जब शैतान िशमोन के पु• िय•दा इHकWरयोती
के मन मO उसे पकड़वाने का मत डाल चुका था।। -यो० प० १३। आ० २।।
(समीzक) यह बात सच नहc। eयijक जब कोई ईसाइयi से पूछेगा jक शैतान
सब को बहकाता है तो शैतान को कौन बहकाता है? जो कहो शैतान आप से
आप बहकता है तो मनु‘य भी आप से आप बहक सकते ह< पुनः शैतान का eया
काम? और यjद शैतान का बनाने और बहकाने वाला परमे5र है तो वही
शैतान का शैतान ईसाइयi का ई5र ठहरा। परमे5र ही ने सब को उसके yारा
बहकाया। भला ऐसे काम ई5र के हो सकते ह<? सच तो यही है jक यह पुHतक
ईसाइयi का और ईसा ई5र का बेटा िज3हiने बनाये वे शैतान हi तो हi jक3तु
न यह ई5रकृ त पुHतक, न इसमO कहा ई5र और न ईसा ई5र का बेटा हो
सकता है।।९६।।
९७-तु›हारा मन aाकु ल न होवे। ई5र पर िव5ास करो और मुझ पर िव5ास
करो।। मेरे िपता के घर मO बgत से रहने के Hथान ह<। नहc तो म< तुम से कहता
म< तु›हारे िलये Hथान तैयार करने जाता •ँ।। और जो म< जाके तु›हारे िलये
Hथान तैयार क’ं तो jफर आके तु›हO अपने यहां ले जाऊंगा jक जहां म< र•ं तहां
तुम भी रहो।। यीशु ने उससे कहा म< ही माग& और स"य और जीवन •ँ। िवना
मेरे yारा से कोई िपता के पास नहc पgँचता है।। जो तुम मुझे जानते तो मेरे
िपता को भी जानते।। -यो० प० १४। आ० १। २। ३। ६। ७।।
(समीzक) अब देिखये ! ये ईसा के वचन eया पोपलीला से कमती ह<? जो ऐसा
'पंच न रचता तो उसके मत मO कौन फं सता? eया ईसा ने अपने िपता को ठे के
मO ले िलया है? और जो वह ईसा के वŸय है तो पराधीन होने से वह ई5र ही
नहc। eयijक ई5र jकसी कR िसफाWरश नहc सुनता। eया ईसा के पहले कोई
भी ई5र को नहc 'ाƒ gआ होगा? ऐसा Hथान आjद का 'लोभन देता और
जो अपने मुख से आप माग&, स"य और जीवन बनता है वह सब 'कार से द›भी
कहाता है। इससे यह बात स"य कभी नहc हो सकती।।९७।।
९८-म< तुमसे सच-सच कहता •ँ जो मुझ पर िव5ास करे । जो काम म< करता
•ँ उ3हO वह भी करे गा और इनसे बड़े काम करे गा।।
-यो० प० १४। आ० १२।।
(समीzक) अब देिखये ! जो ईसाई लोग ईसा पर पूरा िव5ास रखते ह< वैसे ही
मुद· िजलाने आjद का काम eयi नहc कर सकते? और जो िव5ास से भी आtय&
काम नहc कर सकते तो ईसा ने भी आtय& कम& नहc jकये थे
ऐसा िनिtत जानना चािहये। eयijक Hवयम् ईसा ही कहता है jक तुम भी
आtय& काम करोगे तो भी इस समय ईसाई एक भी नहc कर सकता तो jकसकR
िहये कR आंख फू ट गई है वह ईसा को मुद· िजलाने आjद काम का कsा& मान
लेवे।।९८।।
९९-जो अyैत स"य ई5र है।। -यो०प० १७। आ० ३।।
(समीzक) जब अyैत एक ई5र है तो ईसाइयi का तीन कहना सव&था िम•या
है।।९९।।
इसी 'कार बgत Wठकाने इÅील मO अ3यथा बातO भरी ह<।
योहन के 'कािशत वाeय
अब योहन कR अ¾भुत बातO सुनो-
१००-और अपने-अपने िशर पर सोने के मुकुट jदये gए थे।। और सात
अि«दीपक िसहासन के आगे जलते थे जो ई5र के सातi आ"मा ह<। और
िसहासन के आगे कांच का समु¥ है और िसहासन के आस-पास चार 'ाणी ह<
जो आगे और पीछे ने•O से भरे ह<।। -यो० '० प० ४। आ० ४। ५। ६।।
(समीzक) अब देिखये ! एक नगर के तुqय ईसाइयi का Hवग& है। और इनका
ई5र भी दीपक के समान अि« है और सोने का मुकुटाjद आभूषण धारण करना
और आगे पीछे ने•O का होना अस›भािवत है। इन बातi को कौन मान सकता
है? और वहां िसहाjद चार पशु भी िलखे ह<।।१००।।
१०१-और म<ने िसहासन पर बैठने हारे के दािहने हाथ मO एक पुHतक देखा जो
भीतर और पीठ पर िलखा gआ था और सात छापi से उस पर छाप दी gई
थी।। यह पुHतक खोलने और उसकR छापO तोड़ने यो•य कौन है।। और न Hवग&
मO और न पृिथवी पर न पृिथवी के नीचे कोई वह पुHतक खोल अथवा उसे देख
सकता था।। और म< बgत रोने लगा इसिलए jक पुHतक खोलने और पढ़ने
अथवा उसे देखने यो•य कोई नहc िमला।। -यो० '० पव&० ५। आ० १। २। ३।
४।।
(समीzक) अब देिखये ! ईसाइयi के Hवग& मO िसहासनi और मनु‘यi का ठाठ
और पुHतक कई छापi से बंध jकया gआ िजसको खोलने आjद कम& करने वाला
Hवग& और पृिथवी पर कोई नहc िमला। योहन का रोना और पtात् एक 'ाचीन
ने कहा jक वही ईसा खोलने वाला है। 'योजन यह है jक िजसका िववाह
उसका गीत! देखो! ईसा ही के ऊपर सब माहा"›य झुकाये जाते ह< पर3तु ये
बातO के वल कथनमा• ह<।।१०१।।
१०२-और म<ने दृि… कR और देखो िसहासन के चारi 'ािणयi के बीच मO और
'ाचीनi के बीच मO एक मेóा जैसा बंध jकया gआ खड़ा है िजसके सात सcग
और सात ने• ह< जो सारी पृिथवी मO भेजे gए ई5र के सातi आ"मा ह<।।
-यो० '० प० ५। आ० ६।।
(समीzक) अब देिखये इस योहन के Hव¹ का मनोaापार ! उस Hवग& के बीच
मO सब ईसाई और चार पशु तथा ईसा भी है और कोई नहc! यह बड़ी अ¾भुत
बात gई jक यहां तो ईसा के दो ने• थे और सcग का नाम भी न था और Hवग&
मO जाके सात सcग और सात ने• वाला gआ ! और वे सातi ई5र के आ"मा
ईसा के सcग और ने• बन गए थे ! हाय ! ऐसी बातi को ईसाइयi
ने eयi मान िलया? भला कु छ तो बुिZ काम मO लाते।।१०२।।
१०३-और जब उसने पुHतक िलया तब चारi 'ाणी और चौबीसi 'ाचीन मेóे
के आगे िगर पड़े और हर एक के पास वीणा थी और धूप से भरे gए सोने के
िपयाले जो पिव• लोगi कR 'ाथ&नाएं ह<।। -यो० '० प० ५। आ० ८।।
(समीzक) भला जब ईसा Hवग& मO न होगा तब ये िबचारे धूप, दीप, नैवे‡,
आ“त आjद पूजा jकसकR करते हiगे? और यहां 'ोटेHटOट ईसाई लोग बु"परHती
(मू“तपूजा) का ख‹डन करते ह< और इनका Hवग& बु"परHती का घर बन रहा
है।।१०३।।
१०४-और जब मेóे ने छापi मO से एक को खोला तब म<ने दृि… कR चारi
'ािणयi मO से एक को जैसे मेघ गज&ने के शdद को यह कहते gए सुना jक आ
और देख।। और म<ने दृि… कR और देखो एक 5ेत घोड़ा है और जो उस पर बैठा
है उस पास धनुष् है और उसे मुकुट jदया गया और वह जय करता gआ और
जय करने को िनकला।। और जब उसने दूसरी छाप खोली।। दूसरा घोड़ा जो
लाल था िनकला उसको jदया गया jक पृिथवी पर से मेल उठा देवे।। और जब
उसने तीसरी छाप खोली; देखो एक काला घोड़ा है।। और जब उसने चौथी
छाप खोली।। और देखो एक पीला सा घोड़ा है और जो उस पर बैठा है उसका
नाम मृ"यु है; इ"याjद।। -यो० '० प० ६। आ० १। २। ३। ४। ५। ७। ८।।
(समीzक) अब देिखये यह पुराणi से भी अिधक िम•या लीला है वा नहc?
भला! पुHतकi के ब3धनi के छापे के भीतर घोड़ा सवार eयiकर रह सके हiगे?
यह Hव¹े का बरड़ाना िज3हiने इसको भी स"य माना है। उनमO अिव‡ा िजतनी
कहO उतनी ही थोड़ी है।।१०४।।
१०५-और वे बड़े शdद से पुकारते थे jक हे Hवामी पिव• और स"य! कब लi
तू 3याय नहc करता है और पृिथवी के िनवािसयi से हमारे लो• का पलटा नहc
लेता है।। और हर एक को उजला व¬ jदया गया और उनसे कहा गया jक जब
लi तु›हारे संगी दास भी और तु›हारे भाई जो तु›हारी नाâ बंध jकये जाने पर
ह< न पूरे हi तब लi और थोड़ी बेर िव~ाम करो।। -यो० '० प० ६। आ० १०।
११।।
(समीzक) जो कोई ईसाई हiगे वे दौड़े सुपुद& होकर ऐसे 3याय कराने के िलये
रोया करO गे। जो वेदमाग& का Hवीकार करे गा उसके 3याय होने मO कु छ भी देर
न होगी। ईसाइयi से पूछना चािहये eया ई5र कR कचहरी आजकल ब3द है?
और 3याय का काम भी नहc होता? 3यायाधीश िनक›मे बैठे ह<? तो कु छ भी
ठीक-ठीक उsर न दे सकO गे। और ई5र को भी बहका कर और इनका ई5र
बहक भी जाता है eयijक इनके कहने से भफ़ट इनके श•ु से पलटा लेने लगता
है। और दंिशले Hवभाव वाले ह< jक मरे पीछे Hववैर िलया करते ह<, शाि3त कु छ
भी नहc। और जहां शाि3त नहc वहां दुःख का eया पारावार होगा।।१०५।।
१०६-और जैसे बड़ी बयार से िहलाए जाने पर गूलर के वृz से उसके क0े
गूलर झड़ते ह<, तैसे आकाश के तारे पृिथवी पर िगर पड़े।। और आकाश प• कR
नाâ जो लपेटा जाता है अलग हो गया।। -यो० '० प० ६। आ० १३। १४।।
(समीzक) अब देिखये! योहन भिव‘यyžा ने जब िव‡ा नहc है तभी तो ऐसी
अ‹ड ब‹ड कथा गाई। भला! तारे सब भूगोल ह< एक पृिथवी पर कै से
िगर सकते ह<? और सूया&jद का आकष&ण उनको इधर-उधर eयi आने जाने
देगा? और eया आकाश को चटाई के समान समझता है? यह आकाश साकार
पदाथ& नहc है िजस को कोई लपेटे वा इक$ा कर सके । इसिलये योहन आjद
सब जंगली मनु‘य थे। उनको इन बातi कR eया खबर? ।।१०६।।
१०७-म<ने उनकR संwया सुनी, इêाएल के स3तानi के समHत कु ल मO से एक
लाख चवालीस सहê पर छाप दी गई।। िय•दा के कु ल मO से बारह सहê पर
छाप दी गई।। -यो० '० प० ७। आ० ४। ५।।
(समीzक) eया जो बाइबल मO ई5र िलखा है वह इêाएल आjद कु लi का
Hवामी है वा सब संसार का? ऐसा न होता तो उ3हc जंगिलयi का साथ eयi
देता? और उ3हc का सहाय करता था। दूसरे का नाम िनशान भी नहc लेता।
इससे वह ई5र नहc। और इêाएल कु लाjद के मनु‘यi पर छाप लगाना
अqपXता अथवा योहन कR िम•या कqपना है।।१०७।।
१०८-इस कारण वे ई5र के िसहासन के आगे ह< और उसके मि3दर मO रात
और jदन उसकR सेवा करते ह<।। -यो० '० प० ७। आ० १५।।
(समीzक) eया यह महाबु"परHती नहc है? अथवा उनका ई5र देह- धारी
मनु‘य तुqय एकदेशी नहc है? और ईसाइयi का ई5र रात मO सोता भी नहc
है । यjद सोता है तो रात मO पूजा eयiकर करते हiगे? तथा उसकR नcद भी
उड़ जाती होगी और जो रात jदन जागता होगा तो िविzƒ वा अित रोगी
होगा।।१०८।।
१०९-और दूसरा दूत आके वेदी के िनकट खड़ा gआ िजस पास सोने कR
धूपदानी थी और उसको बgत धूप jदया गया।। और धूप का धुंआ पिव• लोगi
कR 'ाथ&नाu के संग दूत के हाथ मO से ई5र के आगे चढ़ गया।। और दूत ने वह
धूपदानी लेके उसमO वेदी कR आग भर के उसे पृिथवी पर डाला और शdद और
गज&न और िबजिलयाँ और भुâडोल gए।। -यो० '० प० ८। आ० ३। ४। ५।।
(समीzक) अब देिखये ! Hवग& तक वेदी, धूप, दीप, नैवे‡, तुरही के शdद होते
ह<, eया वैरािगयi के मि3दर से ईसाइयi का Hवग& कम है? कु छ धूम- धाम
अिधक ही है।।१०९।।
११०-पिहले दूत ने तुरही फूं कR और लो• से िमले gए ओले और आग gए और
वे पृिथवी पर डाले गये और पृिथवी कR एक ितहाई जल गई।। -यो० '० प०
८। आ० ७।।
(समीzक) वाह रे ईसाइयi के भिव‘यyžा! ई5र, ई5र के दूत, तुरही का
शdद और 'लय कR लीला के वल लड़कi ही का खेल दीखता है।।११०।।
१११-और पांचवO दूत ने तुरही फूं कR और म<ने एक तारे को देखा जो Hवग& मO से
पृिथवी पर िगरा gआ था और अथाह कु ‹ड के कू प कR कुं जी उसको दी गई।।
और उसने अथाह कु ‹ड का कू प खोला और कू प मO से बड़ी भ$ी के धुंए कR नाâ
धुंआ उठा।। और उस धुंए मO से Wटि/यां पृिथवी पर िनकल गâ और जैसा
पृिथवी के बीछु u को अिधकार होता है तैसा उ3हO अिधकार jदया गया।। और
उनसे कहा गया jक उन मनु‘यi को िजनके माथे पर ई5र कR छाप नहc है।।
पांच मास उ3हO पीड़ा दी जाय।। -यो० '० प० ९। आ० १। २। ३। ४। ५।।
(समीzक) eया तुरही का शdद सुनकर तारे उ3हc दूतi पर और उसी Hवग& मO
िगरे हiगे? यहां तो नहc िगरे । भला वह कू प वा Wटि/यां भी 'लय के िलये
ई5र ने पाली हiगी और छाप को देख बांच भी लेती हां◌ेगी jक छाप वालi
को मत काटो? यह के वल भोले मनु‘यi को डरा के ईसाई बना लेने का धोखा
देना है jक जो तुम ईसाई न होगे तो तुमको Wटि/यां काटOगी पर3तु ऐसी बातO
िव‡ाहीन देश मO चल सकती ह< आ‰या&वs& मO नहc। eया वह 'लय कR बात हो
सकती है।।१११।।
११२-और घुड़चढ़i कR सेनाu कR संwया बीस करोड़ थी।।
-यो० '० प० ९। आ० १६।।
(समीzक) भला ! इतने घोड़े Hवग& मO कहां ठहरते, कहां चरते और कहां रहते
और jकतनी लीद करते थे? और उसका दुग&3ध भी Hवग& मO jकतना gआ होगा?
बस ऐसे Hवग&, ऐसे ई5र और ऐसे मत के िलये हम सब आ‰यŽ ने ितलाÅिल
दे दी है। ऐसा बखेड़ा ईसाइयi के िशर पर से भी सव&शिžमान् कR कृ पा से दूर
हो जाय तो बgत अ¸छा हो।।११२।।
११३-और म<ने दूसरे परा¦मी दूत को Hवग& से उतरते देखा जो मेघ को ओढ़े
था और उसके िसर पर मेघधनुष् था और उसका मुंह सू‰य& कR नाâ और उसके
पांव आग के ख›भi के ऐसे थे।। और उसने अपना दािहना पांव समु¥ पर और
बायां पृिथवी पर रeखा।। -यो० '० प० १०। आ० १। २।।
(समीzक) अब देिखये इन दूतi कR कथा ! जो पुराणi वा भाटi कR कथाu से
भी बढ़ कर है।।११३।।
११४-और लोगi के समान एक नक& ट मुझे jदया गया और कहा गया jक उठ!
ई5र के मि3दर को और वेदी को और उसमO के भजन करनेहारi को नाप।। -
यो० '० प० ११। आ० १।।
(समीzक) यहां तो eया पर3तु ईसाइयi के तो Hवग& मO भी मि3दर बनाये और
नापे जाते ह<। अ¸छा है, उनका जैसा Hवग& वैसी ही बातO ह<। इसीिलए यहां
'भुभोजन मO ईसा के शरीरावयव मांस लो• कR भावना करके खाते पीते ह<
और िगजा& मO भी ¦ू श आjद का आकार बनाना आjद भी बुतपरHती है।।११४।।
११५-और Hवग& मO ई5र का मि3दर खोला गया और उसके िनयम का स3दूक
उसके मि3दर मO jदखाई jदया।। -यो० '० प० ११। आ० १९।।
(समीzक) Hवग& मO जो मि3दर है सो हर समय ब3द रहता होगा। कभी-कभी
खोला जाता होगा। eया परमे5र का भी कोई मि3दर हो सकता है? जो
वेदोž परमा"मा सव&aापक है उसका कोई भी मि3दर नहc हो सकता। हां !
ईसाइयi का जो परमे5र आकारवाला है उसका चाहे Hवग& मO हो चाहे भूिम
मO। और जैसी लीला टं टन् पूं पूं कR यहां होती है वैसी ही ईसाइयi के Hवग& मO
भी। और िनयम का स3दूक भी कभी-कभी ईसाई लोग देखते हiगे। उससे न
जाने eया 'योजन िसZ करते हiगे? सच तो यह है jक ये सब बातO मनु‘यi को
लुभाने कR ह<।।११५।।
११६-और एक बड़ा आtय& Hवग& मO jदखाई jदया अथा&त् एक ¬ी जो सू‰य&
पिहने है और चांद उसके पांवi तले है और उसके िसर पर बारह तारi का मुकुट
है।। और वह गभ&वती होके िचqलाती है eयijक 'सव कR पीड़ा उसे लगी और
वह जनने को पीिड़त है।। और दूसरा आtय& Hवग& मO jदखाई jदया और देखो
एक बड़ा लाल अजगर है िजसके सात िसर और दस सcग ह< और उसके िसरi
पर सात राजमुकुट ह<।। और उसकR पूंछ ने आकाश के तारi कR एक ितहाई को
खcच के उ3हO पृिथवी पर डाला।। -यो० '० प० १२। आ० १। २। ३। ४।।
(समीzक) अब देिखये ल›बे चौड़े गपोड़े ! इनके Hवग& मO भी िवचारी ¬ी
िचqलाती है। उसका दुःख कोई नहc सुनता, न िमटा सकता है। और उस अजगर
कR पूंछ jकतनी बड़ी थी िजसने एक ितहाई तारi को पृिथवी पर डाला? भला!
पृिथवी तो छोटी है और तारे भी बडे़-बड़े लोक ह<। इस पृिथवी पर एक भी नहc
समा सकता। jक3तु यहां यही अनुमान करना चािहये jक ये तारi कR ितहाई
इस बात के िलखने वाले के घर पर िगरे हiगे और िजस अजगर कR पूंछ इतनी
बड़ी थी िजससे सब तारi कR ितहाई लपेट कर भूिम पर िगरा दी वह अजगर
भी उसी के घर मO रहता होगा।।११६।।
११७-और Hवग& मO युZ gआ मीखायेल और उसके दूत अजगर से लडे़ और
अजगर और उसके दूत लड़े।। -यो० '० प० १२। आ० ७।।
(समीzक) जो कोई ईसाइयi के Hवग& मO जाता होगा वह भी लड़ाई मO दुःख
पाता होगा। ऐसे Hवग& कR यहc से आशा छोड़ हाथ जोड़ बैठ रहो। जहां
शाि3तभंग और उप¥व मचा रहे वह ईसाइयi के यो•य है।।११७।।
११८-और वह बड़ा अजगर िगराया गया। हां ! वह 'ाचीन सांप जो jदयाबल
और शैतान कहावता है जो सारे संसार का भरमानेहारा है।।
-यो० '० प० १२। आ० ९।।
(समीzक) eया जब वह शैतान Hवग& मO था तब लोगi को नहc भरमाता था?
और उसको ज3म भर ब3दीगृह मO िघरा अथवा मार eयi न डाला? उसको
पृिथवी पर eयi डाल jदया? जो सब संसार का भरमाने वाला शैतान है तो
शैतान को भरमाने वाला कौन है? यjद शैतान Hवयं भमा& है तो शैतान के िवना
भरमनेहारे भम™◌ेगे और जो भरमानेहारा परमे5र है तो वह ई5र ही नहc
ठहरा। िवjदत तो यह होता है jक ईसाइयi का ई5र भी शैतान से डरता होगा
eयijक जो शैतान से 'बल है तो ई5र ने उसको अपराध करते समय ही द‹ड
eयi न jदया ? जगत् मO शैतान का िजतना राज है उसके सामने सहêांश भी
ईसाइयi के ई5र का राज नहc। इसीिलये ईसाइयi का ई5र उसे हटा नहc
सकता होगा। इससे यह िसZ gआ jक जैसा इस समय के रा°यािधकारी ईसाई
डाकू चोर आjद को शीÎ द‹ड देते ह< वैसा भी ईसाइयi का ई5र नहc । पुनः
कौन ऐसा िनबु&िZ मनु‘य है जो वैjदक मत को छोड़ पोकल ईसाई मत Hवीकार
करे ? ।।११८।।
११९-हाय पृिथवी और समु¥ के िनवािसयो! eयijक शैतान तुम पास उतरा
है।। -यो० '० प० १२। आ० १२।।
(समीzक) eया वह ई5र वहc का रzक और Hवामी है? पृिथवी के मनु‘याjद
'ािणयi का रzक और Hवामी नहc है? यjद भूिम का भी राजा है तो शैतान
को eयi न मार सका? ई5र देखता रहता है और शैतान बहकाता jफरता है
तो भी उसको वज&ता नहc।। िवjदत तो यह होता है jक एक अ¸छा ई5र और
एक समथ& दु… दूसरा ई5र हो रहा है।।११९।।

१२०-और बयालीस मास लi युZ करने का अिधकार उसे jदया गया।। और


उसने ई5र के िव˜Z िन3दा करने को अपना मुंह खोला jक उसके नाम कR
और उसके त›बू कR और Hवग& मO वास करनेहारi कR िन3दा करे ।। और उसको
यह jदया गया jक पिव• लोगi से युZ करे और उन पर जय करे और हर एक
कु ल और भाषा और देश पर उसको अिधकार jदया गया।।
-यो० '० प० १३। आ० ५। ६। ७।।
(समीzक) भला ! जो पृिथवी के लोगi को बहकाने के िलये शैतान और पशु
आjद को भेजे और पिव• मनु‘यi से युZ करावे वह काम डाकु u के सरदार
के समान है वा नहc। ऐसा काम ई5र वा ई5र के भži का नहc हो
सकता।।१२०।।
१२१-और म<ने दृि… कR और देखो मेóा िसयोन पव&त पर खड़ा है और उसके
संग एक लाख चवालीस सहê जन थे िजनके माथे पर उसका नाम और उसके
िपता का नाम िलखा है।। -यो० '० प० १४। आ० १।।
(समीzक) अब देिखये ! जहां ईसा का बाप रहता था वहc उसी िसयोन पहाड़
पर उसका लड़का भी रहता था। पर3तु एक लाख चवालीस सहê मनु‘यi कR
गणना eयiकर कR? एक लाख चवालीस सहê ही Hवग& के वासी gए। शेष
करोड़i ईसाइयi के िशर पर न मोहर लगी? eया ये सब नरक मO गये? ईसाइयi
को चािहये jक िसयोन पव&त पर जाके देखO jक ईसा का उž बाप और उनकR
सेना वहां है वा नहc? जो हi तो यह लेख ठीक है; नहc तो िम•या। यjद कहc
से वहां आया है तो कहां से आया? जो कहो Hवग& से; तो eया वे पzी ह< jक
इतनी बड़ी सेना और आप ऊपर नीचे उड़ कर आया जाया करO ? यjद वह आया
जाया करता है तो एक िजले के 3यायाधीश के समान gआ। और वह एक दो
या तीन हो तो नहc बन सके गा jक3तु 3यून एक-एक भूगोल मO एक-एक ई5र
चािहए। eयijक एक दो तीन अनेक {|ा‹डi का 3याय करने और सव&• युगपत्
घूमने मO समथ& कभी नहc हो सकते।।१२१।।
१२२-आ"मा कहता है हां jक वे अपने पWर~म से िव~ाम करO गे पर3तु उनके
का‰य& उनके संग हो लेते ह<।। -यो० '० प० १४। आ० १३।।
(समीzक) देिखये ! ईसाइयi का ई5र तो कहता है उनके कम& उन के संग रहOगे
अथा&त् कमा&नुसार फल सब को jदये जायOगे और ये लोग कहते ह< jक ईसा पापi
को ले लेगा और zमा भी jकये जायOगे। यहां बुिZमान् िवचारO jक ई5र का
वचन स0ा वा ईसाइयi का ? एक बात मO दोनi तो स0े हो ही नहc सकते।
इनमO से एक झूठा अवŸय होगा। हम को eया ! चाहे ईसाइयi का ई5र झूठा
हो वा ईसाई लोग।।१२२।।
१२३-और उसे ई5र के कोप के बडे़ रस के कु ‹ड मO डाला। और रस के कु ‹ड
का रëदन नगर के बाहर jकया गया और रस के कु ‹ड मO से घोड़i के लगाम तक
लो• एक सौ कोश तक बह िनकला।।
-यो० '० प० १४। आ० १९। २०।।
(समीzक) अब देिखये ! इनके गपोड़े पुराणi से भी बढ़कर ह< वा नहc?
ईसाइयi का ई5र कोप करते समय बgत दुःिखत हो जाता होगा और उसके
कोप
के कु ‹ड भरे ह< eया उसका कोप जल है? वा अ3य ¥िवत पदाथ& है jक िजससे
कु ‹ड भरे ह<? और सौ कोश तक ˜िधर का बहना अस›भव है eयijक ˜िधर
वायु लगने से भफ़ट जम जाता है पुनः eयi कर बह सकता है? इसिलये ऐसी
बातO िम•या होती ह<।।१२३।।
१२४-और देखो Hवग& मO साzी के त›बू का मि3दर खोला गया।। -यो० '० प०
१५। आ० ५।।
(समीzक) जो ईसाइयi का ई5र सव&X होता तो सािzयi का eया काम?
eयijक वह Hवयं सब कु छ जानता होता। इससे सव&था यही िनtय होता है jक
इनका ई5र सव&X नहc jक3तु मनु‘यवत् अqपX है। वह ई5रता का eया काम
कर सकता है? निह निह निह, और इसी 'करण मO दूतi कR बड़ी-बड़ी अस›भव
बातO िलखी ह< उनको स"य कोई नहc मान सकता। कहां तक िलखO इस 'करण
मO सव&था ऐसी ही बातO भरी ह<।।१२४।।
१२५-और ई5र ने उसके कु कमŽ को Hमरण jकया है।। जैसा उसने तु›हO jदया
है तैसा उसको भर देओ और उसके कमŽ के अनुसार दूना उसे दे देओ।।
-यो० '० प० १८। आ० ५। ६।।
(समीzक) देखो! '"यz ईसाइयi का ई5र अ3यायकारी है। eयijक 3याय उसी
को कहते ह< jक िजसने जैसा वा िजतना कम& jकया उसको वैसा और उतना ही
फल देना। उससे अिधक 3यून देना अ3याय है। जो अ3यायकारी कR उपासना
करते ह< वे अ3यायकारी eयi न हi।।१२५।।
१२६-eयijक मेóे का िववाह आ पgंचा है और उसकR ¬ी ने अपने को तैयार
jकया है।। -यो० '० प० १९। आ० ७।।
(समीzक) अब सुिनये! ईसाइयi के Hवग& मO िववाह भी होते ह<! eयijक ईसा
का िववाह ई5र ने वहc jकया। पूछना चािहये jक उसके 5सुर, सासू, सालाjद
कौन थे और लड़के बाले jकतने gए? और वीय& के नाश होने से बल, बुिZ,
परा¦म आयु आjद के भी 3यून होने से अब तक ईसा ने वहां शरीर "याग jकया
होगा eयijक संयोगज3य पदाथ& का िवयोग अवŸय होता है। अब तक ईसाइयi
ने उसके िव5ास मO धोखा खाया और न जाने कब तक धोखे मO रहOगे।।१२६।।
१२७-और उसने अजगर को अथा&त् 'ाचीन सांप को जो jदयाबल और शैतान
है पकड़ के उसे सहê वष& लi बांध रeखा।। और उसको अथाह कु ‹ड मO डाला
और ब3द करके उसे छाप दी िजसतO वह जब लi सहê वष& पूरे न हi तब लi
jफर देशi के लोगi को न भरमावे।। -यो० '० प० २०। आ० २। ३।।
(समीzक) देखो ! म’ं म’ं करके शैतान को पकड़ा और सहê वष& तक ब3ध
jकया; jफर भी छू टेगा। eया jफर न भरमावेगा? ऐसे दु… को तो ब3दीगृह मO
ही रखना वा मारे िवना छोड़ना ही नहc। पर3तु यह शैतान का होना ईसाइयi
का ±ममा• है वाHतव मO कु छ भी नहc। के वल लोगi को डरा के अपने जाल मO
लाने का उपाय रचा है। जैसे jकसी धूs& ने jक3हc भोले मनु‘य से कहा jक चलो
! तुमको देवता का दश&न कराऊं। jकसी एका3त देश मO ले जाके एक मनु‘य को
चतुभु&ज बना कर रeखा। भफ़ाड़ी मO खड़ा करके कहा jक आंख मीच लो। जब
म< क•ं तब खोलना और jफर जब क•ँ तभी मीच लो । जो न मीचेगा वह अ3धा
हो जायेगा। वैसी इन मत वालi कR बातO ह< jक जो हमारा मजहब न मानेगा
वह शैतान का बहकाया gआ है। जब वह सामने आया तब कहा-देखो! और
पुनः शीÎ कहा jक मीच लो। जब jफर भफ़ाड़ी मO िछप गया तब कहा-खोलो!
देखा नारायण को, सब ने दश&न jकया ! वैसी लीला मजहिबयi कR है। इसिलये
इनकR माया मO jकसी को न फं सना चािहये।।१२७।।
१२८-िजसके स›मुख से पृिथवी और आकाश भाग गये और उनके िलये जगह
न िमली।। और म<ने eया छोटे eया बड़े सब मृतकi को ई5र के आगे खड़े देखा
और पुHतक खोले गये और दूसरा पुHतक अथा&त् जीवन का पुHतक खोला गया
और पुHतकi मO िलखी gई बातi से मृतकi का िवचार उनके कमŽ के अनुसार
jकया गया।। -यो० '० प० २०। आ० ११। १२।।
(समीzक) यह देखो लड़कपन कR बात! भला पृिथवी और आकाश कै से भाग
सकO गे? और वे jकस पर ठहरO गे? िजनके सामने से भगे। और उसका िसहासन
और वह कहाँ ठहरा? और मुद· परमे5र के सामने खड़े jकये गये तो परमे5र
भी बैठा वा खड़ा होगा? eया यहां कR कचहरी और दूकान के समान ई5र का
aवहार है जो jक पुHतक लेखानुसार होता है? और सब जीवi का हाल ई5र
ने िलखा वा उसके गुमाŸतi ने? ऐसी-ऐसी बातi से अनी5र को ई5र और
ई5र को अनी5र ईसाई आjद मत वालi ने बना jदया।।१२८।।
१२९-उनमO से एक मेरे पास आया और मेरे संग बोला jक आ म< दुलिहन को
अथा&त् मेóे कR ¬ी को तुझे jदखाऊंगा।। -यो० '० प० २१। आ० ९।।
(समीzक) भला! ईसा ने Hवग& मO दुलिहन अथा&त् ¬ी अ¸छी पाई, मौज करता
होगा। जो जो ईसाई वहां जाते हiगे उनको भी ि¬यां िमलती हiगी और लड़के
बाले होते हiगे औेर बgत भीड़ के हो जाने के कारण रोगो"पिs होकर मरते
भी हiगे। ऐसे Hवग& को दूर से हाथ ही जोड़ना अ¸छा है।।१२९।।
१३०-और उसने उस नल से नगर को नापा jक साढ़े सात सौ कोश का है।
उसकR ल›बाई और चौड़ाई और ऊँचाई एक समान है।। और उसने उसकR भीत
को मनु‘य के अथा&त् दूत के नाप से नापा jक एक सौ चवालीस हाथ कR है।।
और उसकR भीत कR जुड़ाई सू‰य&का3त कR थी और नगर िनम&ल सोने का था
जो िनम&ल कांच के समान था।। और नगर कR भीत कR नेवO हर एक बgमूqय
प"थर से सँवारी gई थc। पिहली नेव सू‰य&का3त कR थी; दूसरी नीलमिण कR;
तीसरी लालड़ी कR, चौथी मरकत कR।। पांचवc गोमेदक कR, छठवc मािणeय
कR, सातवc पीतमिण कR, आठवc पेरोज कR, नवc पुखराज कR, दशवc
लहसिनये कR, •यारहवc धू¨का3त कR, बारहवc मटŠष कR।। और बारह फाटक
बारह मोती थे, एक-एक मोती से एक-एक फाटक बना था और नगर कR सड़क
Hव¸छ कांच के ऐसे िनम&ल सोने कR थी।। -यो० '० प० २१। आ० १६। १७।
१८। १९। २०। २१।।
(समीzक) सुनो ईसाइयi के Hवग& का वण&न! यjद ईसाई मरते जाते और ज3मते
जाते ह< तो इतने बड़े शहर मO कै से समा सकO गे? eयijक उसमO मनु‘यi का आगम
होता है और उससे िनकलते नहc और जो यह बgमूqय र¢i कR बनी gई नगरी
मानी है और सव& सोने कR है इ"याjद लेख के वल भोले-भोले मनु‘यi को बहका
कर फं साने कR लीला है। भला ल›बाई चौड़ाई तो उस नगर कR िलखी सो हो
सकती पर3तु ऊँचाई साढ़े सात सौ कोश eयiकर हो सकती है? यह सव&था
िम•या कपोलकqपना कR बात है और इतने बड़े मोती कहां से आये हiगे। इस
लेख के िलखने वाले के घर के घड़े मO से। यह गपोड़ा पुराण का भी बाप
है।।१३०।।
१३१-और कोई अपिव• वHतु अथवा िघिनत कम& करनेहारा अथवा झूठ पर
चलने हारा उसमO jकसी रीित से 'वेश न करे गा।। -यो० '० प० २१। आ० २७।।
(समीzक) जो ऐसी बात है तो ईसाई लोग eयां◌े कहते ह< jक पापी लोग भी
Hवग& मO ईसाई होने से जा सकते ह<। यह बात ठीक नहc है। यjद ऐसा है तो
योह–ा Hव¹े कR िम•या बातi का करनेहारा Hवग& मO 'वेश कभी न कर सका
होगा और ईसा भी Hवग& मO न गया होगा eयijक जब अके ला पापी Hवग& को
'ाƒ नहc हो सकता तो जो अनेक पािपयi के पाप के भार से युž है वह eयiकर
Hवग&वासी हो सकता है।।१३१।।
१३२-और अब कोई ~ाप न होगा और ई5र का और मेóे का िसहासन उसमO
होगा और उसके दास उसकR सेवा करO गे।। और ई5र उसका मुंह देखOगे और
उसका नाम उनके माथे पर होगा।। और वहां रात न होगी और उ3हO दीपक का
अथवा सू‰य& कR °योित का 'योजन नहc eयijक परमे5र ई5र उ3हO °योित
देगा, वे सव&दा रा°य करO गे।। -यो० '० प० २२। आ० ३। ४। ५।।
(समीzक) देिखये यही ईसाइयi का Hवग&वास ! eया ई5र और ईसा िसहासन
पर िनर3तर बैठे रहOगे? और उनके दास उनके सामने सदा मुंह देखा करO गे। अब
यह तो किहये तु›हारे ई5र का मुंह यूरोिपयन के सदृश गोरा वा अ.Rका वालi
के सदृश काला अथवा अ3य देश वालi के समान है? यह तु›हारा Hवग& भी
ब3धन है eयijक जहां छोटाई बड़ाई है और उसी एक नगर मO रहना अवŸय है
तो वहां दुःख eयi न होता होगा जो मुख वाला है वह ई5र सव&X सव·5र
कभी नहc हो सकता।।१३२।।
१३३-देख ! म< शीÎ आता •ँ और मेरा 'ितफल मेरे साथ है िजसतO हर एक को
जैसा उसका काय& ठहरे गा वैसा फल देऊंगा।। -यो० '० प० २२। आ० १२।।
(समीzक) जब यही बात है jक कमा&नुसार फल पाते ह< तो पापi कR zमा कभी
नहc होती और जो zमा होती है तो इÅील कR बातO झूठc। यjद कोई कहे jक
zमा करना भी इÅील मO िलखा है तो पूवा&पर िव˜Z अथा&त् ‘हqफदरोगी’ gई
तो भफ़ू ठ है। इसका मानना छोड़ देओ। अब कहां तक िलखO इनकR बाइबल मO
लाखi बातO ख‹डनीय ह<। यह तो थोड़ा सा िच§न मा• ईसाइयi कR बाइबल
पुHतक का jदखलाया है। इतने ही से बुिZमान् लोग बgत समझ लOगे। थोड़ी
सी बातi को छोड़ शेष सब भफ़ू ठ भरा है। जैसे झूठ के संग से स"य भी शुZ
नहc रहता वैसा ही बाइबल पुHतक भी माननीय नहc हो सकता jक3तु वह
स"य तो वेदi के Hवीकार मO गृहीत होता ही है।।१३३।।
इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमिन“मते स"याथ&'काशे
सुभाषािवभूिषते कृ tीनमतिवषये •योदश समुqलास स›पूण& ।।१३।।
अनुभूिमका (४)
जो यह १४ चौदहवां समुqलास मुसलमानi के मतिवषय मO िलखा है सो के वल
कु रान के अिभ'ाय से। अ3य >3थ के मत से नहc eयijक मुसलमान कु रान पर
ही पूरा-पूरा िव5ास रखते ह< य‡िप jफरके होने के कारण jकसी शdद अथ&
आjद िवषय मO िव˜Z बात है तथािप कु रान पर सब ऐकम"य ह<। जो कु रान
अबŠ भाषा मO है उस पर मौलिवयi ने उदू& मO अथ& िलखा है, उस अथ& का
देवनागरी अzर और आ‰य&भाषा3तर करा के पtात् अबŠ के बड़े-बड़े िवyानi
से शुZ करवा के िलखा गया है। यjद कोई कहे jक यह अथ& ठीक नहc है तो उस
को उिचत है jक मौलवी साहबां◌े के तजु&मi का पहले ख‹डन करे पtात् इस
िवषय पर िलखे। eयijक यह लेख के वल मनु‘यi कR उ–ित और स"यास"य के
िनण&य के िलये है। सब मतi के िवषयi का थोड़ा-थोड़ा Xान होवे, इससे मनु‘यi
को परHपर िवचार करने का समय िमले और एक दूसरे के दोषi का ख‹डन
कर गुणi का >हण करO । न jकसी अ3य मत पर न इस मत पर झूठ मूठ बुराई
या भलाई लगाने का 'योजन है jक3तु जो-जो भलाई है वही भलाई और जो
बुराई है वही बुराई सब को िवjदत होवे। न कोई jकसी पर झूठ चला सके और
न स"य को रोक सके और स"यास"य िवषय 'कािशत jकये पर भी िजस कR
इ¸छा हो वह न माने वा माने। jकसी पर बला"कार नहc jकया जाता। और
यही सœनi कR रीित है jक अपने वा पराये दोषi को दोष और गुणi को गुण
जानकर गुणi का >हण और दोषi का "याग करO । और हWठयi का हठ दुरा>ह
3यून करO करावO, eयijक पzपात से eया-eया अनथ& जगत् मO न gए और न
होते ह<। सच तो यह है jक इस अिनिtत zणभंग जीवन मO पराई हािन करके
लाभ से Hवयं Wरž रहना और अ3य को रखना मनु‘यपन से बिहः है। इसमO जो
कु छ िव˜Z िलखा गया हो उस को सœन लोग िवjदत कर दOगे त"पtात् जो
उिचत होगा तो माना जायेगा eयijक यह लेख हठ, दुरा>ह, ई‘या&, yेष, वाद-
िववाद और िवरोध घटाने के िलये jकया गया है न jक इन को बढ़ाने के अथ&।
eयijक एक दूसरे कR हािन करने से पृथÀफ़ रह परHपर को लाभ पgँचाना
हमारा मुwय कम& है। अब यह १४ चौदहवO समुqलास मO मुसलमानi का
मतिवषय सब सœनi के सामने िनवेदन करता •ँ। िवचार कर इ… का >हण
अिन… का पWर"याग कRिजये।
अलमितिवHतरे ण बुिZमy‰य·षु।
इ"यनुभूिमका।।
अथ चतुदश
& समुqलासार›भः
अथ यवनमतिवषयं aाwयाHयामः
इसके आगे मुसलमानi के मतिवषय मO िलखOग-े
१-आर›भ साथ नाम अqलाह के zमा करने वाला दयालु।।
-मंिजल १। िसपारा १। सूरत १।।
(समीzक) मुसलमान लोग ऐसा कहते ह< jक यह कु रान खुदा का कहा है पर3तु
इस वचन से िवjदत होता है jक इस को बनाने वाला कोई दूसरा है eयijक जो
परमे5र का बनाया होता तो ष्आर›भ साथ नाम अqलाह के ष् ऐसा न कहता
jक3तु ष्आर›भ वाHते उपदेश मनु‘यi के ष् ऐसा कहता। यjद मनु‘यi को िशzा
करता है jक तुम ऐसा कहो तो भी ठीक नहc। eयijक इस से पाप का आर›भ
भी खुदा के नाम से होकर उसका नाम भी दूिषत हो जाएगा। जो वह zमा
और दया करनेहारा है तो उसने अपनी सृि… मO मनु‘यi के सुखाथ& अ3य 'ािणयi
को मार, दा˜ण पीड़ा jदला कर, मरवा के मांस खाने कR आXा eयi दी? eया
वे 'ाणी अनपराधी और परमे5र के बनाये gए नहc ह<? और यह भी कहना
था jक ‘परमे5र के नाम पर अ¸छी बातi का आर›भष् बुरी बातi का नहc।
इस कथन मO गोलमाल है। eया चोरी, जारी, िम•याभाषणाjद अधम& का भी
आर›भ परमे5र के नाम पर jकया जाय? इसी से देख लो कसाई आjद
मुसलमान, गाय आjद के गले काटने मO भी ‘िबिHमqलाह’ इस वचन को पढ़ते
ह<। जो यही इसका पूवªž अथ& है तो बुराइयi का आर›भ भी परमे5र के नाम
पर मुसलमान करते ह< और मुसलमानi का ‘खुदा’ दयालु भी न रहेगा eयijक
उस कR दया उन पशुu पर न रही। और जो मुसलमान लोग इस का अथ& नहc
जानते तो इस वचन का 'कट होना aथ& है। यjद मुसलमान लोग इस का अथ&
और करते ह< तो सूधा अथ& eया है ? इ"याjद।।१।।
२-सब Hतुित परमे5र के वाHते ह< जो परवरjदगार अथा&त् पालन करनेहारा है
सब संसार का।। zमा करने वाला दयालु है ।।
-मंन १। िस० १। सूरतुqफाितहा आयत १। २।।
(समीzक) जो कु रान का खुदा संसार का पालन करने हारा होता और सब पर
zमा और दया करता होता तो अ3य मत वाले और पशु आjद को भी
मुसलमानi के हाथ से मरवाने का geम न देता । जो zमा करनेहारा है तो
eया पािपयi पर भी zमा करे गा ? और जो वैसा है तो आगे िलखOगे jक
‘काjफरi को कतल करोष् अथा&त् जो कु रान और पैग›बर को न मानO वे काjफर
ह< ऐसा eयi कहता ? इसिलये कु रान ई5रकृ त नहc दीखता।।२।।
३-मािलक jदन 3याय का।। तुभफ़ ही को हम भिž करते ह< और तुभफ़ ही से
सहाय चाहते ह<।। jदखा हम को सीधा राHता।।
-मंन१। िस० १। सू० १। आ० ३। ४। ५।।
(समीzक) eया खुदा िन"य 3याय नहc करता ? jकसी एक jदन 3याय करता
है ? इस से तो अ3धेर िवjदत होता है! उसी कR भिž करना और उसी से सहाय
चाहना तो ठीक पर3तु eया बुरी बात का भी सहाय चाहना ? और सूधा माग&
एक मुसलमानi ही का है वा दूसरे का भी ? सूधे माग& को मुसलमान eयi नहc
>हण करते ? eया सूधा राHता बुराई कR ओर का तो नहc चाहते? यjद भलाई
सब कR एक है तो jफर मुसलमानi ही मO िवशेष कु छ न रहा और जो दूसरi कR
भलाई नहc मानते तो पzपाती ह<।।३।।
४-jदखा उन लोगi का राHता jक िजन पर तूने िनआमत कR।। और उनका माग&
मत jदखा jक िजन के ऊपर तू ने गजब अथा&त् अ"य3त ¦ोध कR दृि… कR और
न गुमराहi का माग& हमको jदखा।। -मंन १। िस० १। सू० १। आ० ६। ७।।
(समीzक) जब मुसलमान लोग पूव&ज3म और पूव&कृत पाप पु‹य नहc मानते
तो jक3हc पर िनआमत अथा&त् पफ़जल वा दया करने और jक3हc पर न करने
से खुदा पzपाती हो जायगा। eयijक िवना पाप-पु‹य सुख-दुःख देना के वल
अ3याय कR बात है। और िवना कारण jकसी पर दया और jकसी पर ¦ोधदृि…
करना भी Hवभाव से बिहः है eयijक िवना भलाई बुराई के वह दया अथवा
¦ोध नहc कर सकता और जब उनके पूव& संिचत पु‹य पाप ही नहc तो jकसी
पर दया और jकसी पर ¦ोध करना नहc हो सकता। और इस सूरत कR WटÊपन
पर यह ‘सूर अqलाह साहेब ने मनु‘यi के मुख से कहलाई jक सदा इस 'कार
से कहा करO ।ष् जो यह बात है तो ‘अिलफ बे’ आjद अzर भी खुदा ही ने पढ़ाये
हiगे, जो कहो jक नहc तो िवना अzर Xान के इस सूरः को कै से पढ़ सके ?
eया क‹ठ ही से बुलाये और बोलते गये ? जो ऐसा है तो सब कु रान ही क‹ठ
से पढ़ाया होगा। इस से ऐसा समभफ़ना चािहये jक िजस पुHतक मO पzपात
कR बातO पाई जायO वह पुHतक ई5रकृ त नहc हो सकता। जैसा jक अरबी भाषा
मO उतारने से अरब वालi को इस का पढ़ना सुगम, अ3य भाषा बोलने वालi
को कWठन होता है। इसी से खुदा मO पzपात आता है। और जैसे परमे5र ने
सृि…Hथ सब देशHथ मनु‘यi पर 3यायदृि… से सब देशभाषाu से िवलzण
संHकृ त भाषा jक जो सब देशवालi के िलये एक से पWर~म से िवjदत होती है
उसी मO वेदi का 'काश jकया है, यह करता तो कु छ भी दोष नहc होता।।४।।
५-यह पुHतक jक िजस मO स3देह नहc; परहेजगारi को माग& jदखलाती है।। जो
jक ईमान लाते ह< साथ गैब (परोz) के , नमाज पढ़ते, और उस वHतु से जो हम
ने दी खच& करते ह<।। और वे लोग जो उस jकताब पर ईमान लाते ह< जो रखते
ह< तेरी ओर वा तुभफ़ से पिहले उतारी गई, और िव5ास कयामत पर रखते
ह<।। ये लोग अपने मािलक कR िशzा पर ह< और ये ही छु टकारा पाने वाले ह<।।
िनtय जो काjफर gए उन पर तेरा डराना न डराना समान है। वे ईमान न
लावOगे।। अqलाह ने उन के jदलi, कानi पर मोहर कर दी और उन कR आंखi
पर पदा& है और उन के वाHते बड़ा अ-जाब है।। -मंन १। िस०१। सूरत २। आ०
१। २। ३। ४। ५। ६। ७।।
(समीzक) eया अपने ही मुख से अपनी jकताब कR 'शंसा करना खुदा कR
द›भ कR बात नहc? जब ‘परहे-जगार’ अथा&त् धा“मक लोग ह< वे तो Hवतः स0े
माग& पर ह< और जो भफ़ू ठे माग& पर ह< उन को यह कु रान माग& ही नहc jदखला
सकता, jफर jकस काम का रहा? ।।१।। eया पाप पु‹य और पु˜षाथ& के िवना
खुदा अपने ही खजाने से खच& करने को देता है ? जो देता है तो सब को eयi
नहc देता? और मुसलमान लोग पWर~म eयi करते ह<? ।।२।। और जो बाइबल
इÅील आjद पर िव5ास करना यो•य है तो मुसलमान इÅील आjद पर ईमान
जैसा कु रान पर है वैसा eयi नहc लाते? और जो लाते ह< तो कु रान१ का होना
jकसिलये? जो कहO jक कु रान मO अिधक बातO ह< तो पहली jकताब मO िलखना
खुदा भूल गया होगा! और जो नहc भूला तो कु रान का बनाना िन‘'योजन है।
और हम देखते ह< तो बाइबल और कु रान कR बातO कोई-कोई न िमलती हiगी
नहc तो सब िमलती ह<। एक ही पुHतक जैसा jक वेद है eयi न बनाया? कयामत
पर ही िव5ास रखना चािहये; अ3य पर नहc? ।।३।। eया जो ईसाई और
मुसलमान ही खुदा कR िशzा पर ह< उन मO कोई भी पापी नहc है? eया ईसाई
और मुसलमान अधमŠ ह< वे भी छु टकारा पावO और दूसरे धमा&"मा भी न पावO
तो बड़े अ3याय और अ3धेर कR बात नहc है? ।।४।। और eया जो लोग
मुसलमानी मत को न मानO उ3हc को काjफर कहना वह एकतफõ िडगरी नहc
है? ।।५ ।। जो परमे5र ही ने उनके अ3तःकरण और कानi पर मोहर लगाई
और उसी से वे पाप करते ह< तो उन का कु छ भी दोष नहc। यह दोष खुदा ही
का है jफर उन पर सुख-दुःख वा पाप-पु‹य नहc हो सकता पुनः उन को सजा
जजा eयi करता है? eयijक उ3हiने पाप वा पु‹य Hवत3•ता से नहc
jकया।।५।।
६-उनके jदलi मO रोग है, अqलाह ने उन का रोग बढ़ा jदया।।
-मंन १। िस० १। सू० २। आ० १०।।
(समीzक) भला िवना अपराध खुदा ने उन का रोग बढ़ाया, दया न आई, उन
िबचारi को बड़ा दुःख gआ होगा! eया यह शैतान से बढ़कर शैतानपन का
काम नहc है? jकसी के मन पर मोहर लगाना, jकसी का रोग बढ़ाना, यह खुदा
का काम नहc हो सकता eयijक रोग का बढ़ना अपने पापi से है।।६।।
७-िजस ने तु›हारे वाHते पृिथवी िबछौना और आसमान कR छत को बनाया।।
-मंन१। िस०१। सू०२। आ० २२।।
(समीzक) भला आसमान छत jकसी कR हो सकती है? यह अिव‡ा कR बात
है। आकाश को छत के समान मानना हंसी कR बात है। यjद jकसी 'कार कR
पृिथवी को आसमान मानते हi तो उनकR घर कR बात है।।७ ।।
८-जो तुम उस वHतु से स3देह मO हो जो हम ने अपने पैग›बर के ऊपर उतारी
तो उस कै सी एक सूरत ले आओ और अपने साzी अपने लोगi को पुकारो
अqलाह के िवना जो तुम स0े हो।। जो तुम और कभी न करोगे तो उस आग से
डरो jक िजस का इ3धन मनु‘य है, और काjफरi के वाHते प"थर तैयार jकये
गये ह<।। -मंन१। िस०१। सू०२। आ०२३। २४।।
(समीzक) भला यह कोई बात है jक उस के सदृश कोई सूरत न बने? eया
अकबर बादशाह के समय मO मौलवी -फै जी ने िवना नुकते का कु रान नहc बना
िलया था? वह कौन सी दो-जख कR आग है? eया इस आग से न डरना चािहये
? इस का भ्।◌ी इ3धन जो कु छ पड़े सब है। जैसे कु रान मO िलखा है jक काjफरi
के वाHते दोजख कR आग तैयार कR गई है तो वैसे पुराणi मO िलखा है
१- वाHतव मO यह शdद ‘‘6्◌ाफ़ु रआन’’ है पर3तु भाषा मO लोगi के बोलने मO 6्◌ाफ़ु रान आता
है इसिलये ऐसा ही िलखा है ।
jक ›ले¸छi के िलये घोर नरक बना है! अब किहये jकस कR बात स0ी मानी
जाय ? अपने-अपने वचन से दोनi Hवग&गामी और दूसरे के मत से दोनi
नरकगामी होते ह<। इसिलए इन सब का भफ़गड़ा भफ़ू ठा है jक3तु जो धा“मक
ह< वे सुख और जो पापी ह< वे सब मतi मO दुःख पावOगे।।८।।
९-और आन3द का स3देशा दे उन लोगां◌े को jक ईमान लाए और काम jकए
अ¸छे। यह jक उन के वाHते बिहŸतO ह< िजन के नीचे से चलती ह< नहरO । जब
उन मO से मेवi के भोजन jदये जावOगे तब कहOगे jक यह वो वHतु ह< जो हम
पिहले इस से jदये गये थे------ और उन के िलये पिव• बीिवयाँ सदैव वहाँ◌ं
रहने वाली ह<।। -मंन १। िस० १। सू० २। आ० २५।।
(समीzक) भला! यह कु रान का बिहŸत संसार से कौन सी उsम बात वाला
है ? eयijक जो पदाथ& संसार मO ह< वे ही मुसलमानi के Hवग& मO ह< और इतना
िवशेष है jक यहाँ जैसे पु˜ष ज3मते मरते और आते जाते ह< उसी 'कार Hवग&
मO नहc। jक3तु यहाँ कR ि¬याँ सदा नहc रहतc और वहाँ बीिवयाँ अथा&त् उsम
ि¬याँ सदा काल रहती ह< तो जब तक कयामत कR रात न आवेगी तब तक उन
िबचाWरयi के jदन कै से कटते हiगे ? हां जो खुदा कR उन पर कृ पा होती होगी!
और खुदा ही के आ~य समय काटती हiगी तो ठीक है। eयijक यह मुसलमानi
का Hवग& गोकु िलये गुसाँइयi के गोलोक और मि3दर के सदृश दीखता है eयijक
वहाँ ि¬यi का मा3य बgत, पु˜षi का नहc। वैसे ही खुदा के घर मO ि¬यi का
मा3य अिधक और उन पर खुदा का 'ेम भी बgत है उन पु˜षi पर नहc। eयijक
बीिवयi को खुदा ने बिहŸत मO सदा रeखा और पु˜षi को नहc। वे बीिवयां
िवना खुदा कR मजŠ Hवग& मO कै से ठहर सकतc ? जो यह बात ऐसी ही हो तो
खुदा ि¬यi मO फं स जाय!।।९।।
१०-आदम को सारे नाम िसखाये। jफर फWरŸतi के सामने करके कहा जो तुम
स0े हो मुभफ़े उन के नाम बताओ।। कहा हे आदम! उन को उन के नाम बता
दे। तब उस ने बता jदये तो खुदा ने फWरŸतi से कहा jक eया म<ने तुम से नहc
कहा था jक िनtय म< पृिथवी और आसमान कR िछपी वHतुu को और 'कट
िछपे कमŽ को जानता •ँ ।। -मंन १। िस० १। सू० २। आ० ३०। ३१।।
(समीzक) भला ऐसे फWरŸतi को धोखा देकर अपनी बड़ाई करना खुदा का
काम हो सकता है ? यह तो एक द›भ कR बात है। इस को कोई िवyान् नहc
मान सकता और न ऐसा अिभमान करता। eया ऐसी बातi से ही खुदा अपनी
िसZाई जमाना चाहता है ? हाँ! जंगली लोगi मO कोई कै सा ही पाख‹ड चला
लेवे चल सकता है; स^य जनi मO नहc ।।१०।।
११-जब हमने फWरŸतi से कहा jक बाबा आदम को द‹डवत् करो, देखा सभi
ने द‹डवत् jकया पर3तु शैतान ने न माना और अिभमान jकया eयijक वो भी
एक काjफर था।। -मंन १। िस० १। सू० २। आ० ३४।।
(समीzक) इस से खुदा सव&X नहc अथा&त् भूत, भिव‘यत् और वs&मान कR पूरी
बातO नहc जानता। जो जानता हो तो शैतान को पैदा ही eयi jकया ? और
खुदा मO कु छ तेज भी नहc है eयijक शैतान ने खुदा का geम ही न माना और
खुदा उस का कु छ भी न कर सका। और देिखये! एक शैतान काjफर ने खुदा का
भी छÙा छु ड़ा jदया तो मुसलमानi के कथनानुसार िभ– जहाँ ¦ोड़i काjफर
ह< वहाँ मुसलमानi के खुदा और मुसलमानi कR eया चल सकती है? कभी-
कभी खुदा भी jकसी का रोग बढ़ा देता, jकसी को गुमराह कर देता है। खुदा
ने ये बातO शैतान से सीखी हiगी और शैतान ने खुदा से। eयijक िवना खुदा के
शैतान का उHताद और कोई नहc हो सकता।।११।।
१२-हमने कहा jक ओ आदम! तू और तेरी जो’ बिहŸत मO रह कर आन3द मO
जहाँ चाहो खाओ पर3तु मत समीप जाओ उस वृz के jक पापी हो जाओगे।।
शैतान ने उन को िडगाया और उन को बिहŸत के आन3द से खो jदया। तब हम
ने कहा jक उतरो तु›हारे मO कोई परHपर श•ु है। तु›हारा Wठकाना पृिथवी है
और एक समय तक लाभ है।। आदम अपने मािलक कR कु छ बातO सीखकर
पृिथवी पर आ गया।। -मंन १। िस० १। सू० २। आ० ३५। ३६। ३७।।
(समीzक) अब देिखये खुदा कR अqपXता! अभी तो Hवग& मO रहने का आशीवा&द
jदया और पुनः थोड़ी देर मO कहा jक िनकलो। जो भिव‘यत् बातi को जानता
होता तो वर ही eयi देता? और बहकाने वाले शैतान को द‹ड देने से असमथ&
भी दीख पड़ता है। और वह वृz jकस के िलये उ"प– jकया था? eया अपने
िलये वा दूसरे के िलये ? जो अपने िलये jकया तो उस को eया ज’रत थी?
और जो दूसरे के िलये तो eयi रोका? इसिलये ऐसी बातO न खुदा कR और न
उसके बनाये पुHतक मO हो सकती ह<। आदम साहेब खुदा से jकतनी बातO सीख
आये? और जब पृिथवी पर आदम साहेब आये तब jकस 'कार आये? eया वह
बिहŸत पहाड़ पर है वा आकाश पर? उस से कै से उतर आये? अथवा पzी के
तुqय आये अथवा जैसे ऊपर से प"थर िगर पड़े? इस मO यह िवjदत होता है
jक जब आदम साहेब मÝी से बनाये गये तो इन के Hवग& मO भी मÝी होगी। और
िजतने वहाँ और ह< वे भी वैसे ही फWरŸते आjद हiगे, eयijक मÝी के शरीर
िवना इि3¥य भोग नहc हो सकता। जब पा“थव शरीर है तो मृ"यु भी अवŸय
होना चािहये। यjद मृ"यु होता है तो वे वहाँ से कहां जाते ह<? और मृ"यु नहc
होता तो उन का ज3म भी नहc gआ। जब ज3म है तो मृ"यु अवŸय ही है। यjद
ऐसा है तो कु रान मO िलखा है jक बीिबयां सदैव बिहŸत मO रहती ह< सो भफ़ू ठा
हो जायगा eयijक उन का भी मृ"यु अवŸय होगा। जब ऐसा है तो बिहŸत मO
जाने वालi का भी मृ"यु अवŸय ही होगा।।१२।।
१३-उस jदन से डरो जब कोई जीव jकसी जीव से कु छ भरोसा न रeखेगा। न
उस कR िसफाWरश Hवीकार कR जावेगी, न उस से बदला िलया जावेगा और न
वे सहाय पावOगे।। -मंन १। िस० १। सू० २। आ० ४८।।
(समीzक०) eया वs&मान jदनi मO न डरO ? बुराई करने मO सब jदन डरना
चािहये। जब िसफाWरश न मानी जावेगी तो jफर पैग›बर कR गवाही वा
िसफाWरश से खुदा Hवग& देगा यह बात eयiकर सच हो सके गी? eया खुदा
बिहŸत वालi ही का सहायक है; दोजखवालi का नहc? यjद ऐसा है तो खुदा
पzपाती है।।१३।।
१४-हमने मूसा को jकताब और मौिजजे jदये।।
-मंन १। िस० १। सू० २। आ० ५३।।
(समीzक) जो मूसा को jकताब दी तो कु रान का होना िनरथ&क है। और उस
को आtय&शिž दी यह बाइबल और कु रान मO भी िलखा है पर3तु यह बात
मानने यो•य नहc। eयijक जो ऐसा होता तो अब भी होता, जो अब नहc तो
पहले भी न था। जैसे HवाथŠ लोग आज कल भी अिवyानi के सामने िवyान्
बन जाते ह< वैसे उस समय भी कपट jकया होगा। eयijक खुदा और उस के
सेवक अब भी िव‡मान ह< पुनः इस समय खुदा आtय&शिž eयi नहc देता?
और नहc कर सकते? जो मूसा को jकताब दी थी तो पुनः कु रान का देना eया
आवŸयक था? eयijक जो भलाई बुराई करने न करने का उपदेश सव&• एक
सा हो तो पुनः िभ–-िभ– पुHतक करने से पुन˜ž दोष होता है। eया मूसा जी
आjद को दी gई पुHतकi मO खुदा भूल गया था? ।।१४।।
१५-और कहो jक zमा मांगते ह< हम zमा करO गे तु›हारे पाप और अिधक
भलाई करने वालi के ।। -मंन १। िस० १। सू० २। आ० ५२।।
(समीzक) भला यह खुदा का उपदेश सब को पापी बनाने वाला है वा नहc?
eयijक जब पाप zमा होने का आ~य मनु‘यi को िमलता है तब पापi से कोई
भी नहc डरता। इसिलये ऐसा कहने वाला खुदा और यह खुदा का बनाया gआ
पुHतक नहc हो सकता eयijक वह 3यायकारी है, अ3याय कभी नहc करता और
पाप zमा करने मO अ3यायकारी हो जाता है jक3तु यथापराध द‹ड ही देने मO
3यायकारी हो सकता है।।१५।।
१६-जब मूसा ने अपनी कौम के िलये पानी मांगा, हम ने कहा jक अपना असा
(द‹ड) प"थर पर मार। उस मO से बारह चŸमे बह िनकले।।
-मंन १। िस० १। सू० २। आ० ६०।।
(समीzक) अब देिखये! इन अस›भव बातi के तुqय दूसरा कोई कहेगा? एक
प"थर कR िशला मO ड‹डा मारने से बारह भफ़रनi का िनकलना सव&था
अस›भव है। हां! उस प"थर को भीतर से पोलाकर उस मO पानी भर बाहर िछ¥
करने से स›भव है; अ3यथा नहc।।१६।।
१७-हम ने उन को कहा jक तुम िनि3दत ब3दर हो जाओ यह एक भय jदया
जो उन के सामने और पीछे थे उन को और िशzा ईमानदारi को।।
-मंन १। िस० १। सू० २। आ० ६५। ६६।।
(समीzक) जो खुदा ने िनि3दत ब3दर हो जाना के वल भय देने के िलए कहा
था तो उस का कहना िम•या gआ वा छल jकया। जो ऐसी बातO करता और
िजस मO ऐसी बातO ह< वह न खुदा और न यह पुHतक खुदा का बनाया हो सकता
है।।१७।।
१८-इस तरह खुदा मुदŽ को िजलाता है और तुम को अपनी िनशािनयाँ
jदखलाता है jक तुम समभफ़ो।। -मंन १। िस० १। सू० २। आ० ७३।।
(समीzक) eया मुदŽ को खुदा िजलाता था तो अब eयi नहc िजलाता? eया
कयामत कR रात तक कबरi मO पड़े रहOग? े आजकल दौड़ासुपुद& ह<? eया इतनी
ही ई5र कR िनशािनयां ह<? पृिथवी, सूय&, च3¥ाjद िनशािनयां नहc ह<? eया
संसार मO जो िविवध रचना िवशेष '"यz दीखती ह< ये िनशािनयां कम ह<◌े?
।।१८।।
१९-वे सदैव काल बिहŸत अथा&त् वैकु‹ठ मO वास करने वाले ह<।। -मंन १। िस०
१। सू० २। आ० ८२।।
(समीzक) कोई भी जीव अन3त पाप पु‹य करने का साम•य& नहc रखता
इसिलये सदैव Hवग& नरक मO नहc रह सकते। और जो खुदा ऐसा करे तो वह
अ3यायकारी और अिवyान् हो जावे। कयामत कR रात 3याय होगा तो मनु‘यi
के पाप पु‹य बराबर होना उिचत है। जो अन3त नहc है उस का फल अन3त
कै से हो सकता है? और सृि… gए सात आठ हजार वषŽ से इधर ही बतलाते ह<।
eया इस के पूव& खुदा िनक›मा बैठा था? और कयामत के पीछे भी िनक›मा
रहेगा? ये बातO सब लड़कi के समान ह< eयijक परमे5र के काम सदैव वs&मान
रहते ह< और िजतने िजस के पाप पु‹य ह< उतना ही उसको फल देता है इसिलये
कु रान कR यह बात स0ी नहc।।१९।।
२०-जब हम ने तुम से 'ितXा कराई न बहाना लो• अपने आपस के और jकसी
अपने आपस को घरi से न िनकालना, jफर 'ितXा कR तुम ने, इस के तुम ही
साzी हो।। jफर तुम वे लोग हो jक अपने आपस को मार डालते हो, एक jफरके
को आप मO से घरi उन के से िनकाल देते हो। -मंन १। िस० १। सू० २। आ० ८४।
८५।।
(समीzक) भला! 'ितXा करानी और करनी अqपXi कR बात है वा परमा"मा
कR जब परमे5र सव&X है तो ऐसी कड़ाकू ट संसारी मनु‘य के समान eयi
करे गा? भला यह कौन सी भली बात है jक आपस का लो• न बहाना, अपने
मत वालi को घर से न िनकालना, अथा&त् दूसरे मत वालi का लो• बहाना,
और घर से िनकाल देना? यह िम•या मूख&ता और पzपात कR बात है। eया
परमे5र 'थम ही से नहc जानता था jक ये 'ितXा से िव˜Z करO ग? े इस से
िवjदत होता है jक मुसलमानi का खुदा भी ईसाइयi कR बgत सी उपमा रखता
है और यह कु रान Hवत3• नहc बन सकता eयijक इसमO से थोड़ी सी बातi को
छोड़कर बाकR सब बातO बायिबल कR ह<।।२०।।
२१-ये वे लोग ह< jक िज3हiने आखरत के बदले िज3दगी यहाँ कR मोल ले ली।
उन से पाप कभी हलका न jकया जावेगा और न उन को सहायता दी जावेगी।।
-मंन १। िस० १। सू० २। आ० ८६।।
(समीzक) भला ऐसी ई‘या& yेष कR बातO कभी ई5र कR ओर से हो सकती ह<?
िजन लोगi के पाप हलके jकये जायOगे वा िजन को सहायता दी जावेगी वे कौन
ह<? यjद वे पापी ह< और पापi का द‹ड jदये िवना हलके jकये जावOगे तो अ3याय
होगा। जो सजा देकर हलके jकये जावOगे तो िजन का बयान इस आयत मO है ये
भी सजा पाके हलके हो सकते ह<। और द‹ड देकर भी हलके न jकये जावOगे तो
भी अ3याय होगा। जो पापi से हलके jकये जाने वालi से 'योजन धमा&"माu
का है तो उन के पाप तो आप ही हलके ह<; खुदा eया करे गा? इस से यह लेख
िवyान् का नहc। और वाHतव मO धमा&"माu को सुख और अिध›म&यi को दुःख
उन के कमŽ के अनुसार सदैव देना चािहये।।२१।।
२२-िनtय हम ने मूसा को jकताब दी और उस के पीछे हम पैग›बर को लाये
और मWरयम के पु• ईसा को 'कट मौिजजे अथा&त् दैवीशिž और साम•य& jदये
उस को साथ ’हqकु ¾स१ के । जब तु›हारे पास उस वHतु सिहत पैग›बर आया
jक िजस को तु›हारा जी चाहता नहc; jफर तुम ने अिभमान jकया। एक मत
को भफ़ु ठलाया और एक को मार डालते हो।।
-मंन १। िस० १। सू० २। आ० ८७।।
१- ’हqकु ¾स कहते ह< जबरईल को जो jक हरदम मसीह के साथ रहता था ।
(समीzक) जब कु रान मO साzी है jक मूसा को jकताब दी तो उस का मानना
मुसलमानi को आवŸयक gआ और जो-जो उस पुHतक मO दोष ह< वे भी
मुसलमानi के मत मO आ िगरे और ‘मौिजजे’ अथा&त् दैवी शिž कR बातO सब
अ3यथा ह< भोले भाले मनु‘यi को बहकाने के िलये झूंठ मूंठ चला ली ह< eयijक
सृि…¦म और िव‡ा से िव˜Z सब बातO झूंठी ही होती ह< जो उस समय
‘‘मौिजजे’’ थे तो इस समय eयi नहc। जो इस समय भी नहc तो उस समय भी
न थे इस मO कु छ भी स3देह नहc।।२२।।
२३-और इस से पिहले काjफरi पर िवजय चाहते थे जो कु छ पिहचाना था
जब उन के पास वह आया भफ़ट काjफर हो गये। काjफरi पर लानत है अqलाह
कR।। -मंन १। िस० १। सू० २। आ० ८९।।
(समीzक) eया जैसे तुम अ3य मत वालi को काjफर कहते हो वैसे वे तुम को
काjफर नहc कहते ह<? और उन के मत के ई5र कR ओर से िधÙार देते ह< jफर
कहो कौन स0ा और कौन भफ़ू ठा? जो िवचार कर देखते ह< तो सब मत वालi
मO भफ़ू ठ पाया जाता है जो सच है सो सब मO एक सा है, ये सब लड़ाइयां मूख&ता
कR ह<।।२३।।
२४-आन3द का स3देशा ईमानदारi को।। अqलाह, फWरŸतi, पैग›बरi
िजबरईल और मीकाईल का जो श•ु है अqलाह भी ऐसे काjफरi का श•ु है।।
-मंन १। िस० १। सू० २। आ० ९७।९८।।
(समीzक) जब मुसलमान कहते ह< jक ‘खुदा लाशरीक’ है jफर यह फौज कR
फौज ‘शरीक’ कहां से कर दी? eया जो औरi का श•ु वह खुदा का भी श•ु है।
यjद ऐसा है तो ठीक नहc eयijक ई5र jकसी का श•ु नहc हो सकता।।२४।।
२५-और अqलाह खास करता है िजस को चाहता है साथ दया अपनी के ।। -
मंन १। िस० १। सू० २। आ० १०३।।
(समीzक) eया जो मुwय और दया करने के यो•य न हो उस को भी 'धान
बनाता और उस पर दया करता है? जो ऐसा है तो खुदा बड़ा गड़बिड़या है
eयijक jफर अ¸छा काम कौन करे गा? और बुरे कम& को कौन छोड़ेगा? eयijक
खुदा कR 'स–ता पर िनभ&र करते ह<, कम&फल पर नहc, इस से सब को अनाHथा
होकर कमª¸छेद'संग होगा।।२५।।
२६-ऐसा न हो jक काjफर लोग ई‘या& करके तुम को ईमान से फे र देवO eयijक
उन मO से ईमान वालi के बgत से दोHत ह<।।
-मंन १। िस० १। सू० २। आ० १०१।।
(समीzक) अब देिखये! खुदा ही उन को िचताता है jक तु›हारे ईमान को
काjफर लोग न िडगा देवO। eया वह सव&X नहc है? ऐसी बातO खुदा कR नहc हो
सकती ह<।।२६।।
२७-तुम िजधर मुह
ं करो उधर ही मुंह अqलाह का है।। -मंन १। िस० १। सू० २।
आ० ११५।।
(समीzक) जो यह बात स0ी है तो मुसलमान ‘jकबले’ कR ओर मुंह eयi करते
ह<? जो कहO jक हम को jकबले कR ओर मुंह करने का geम है तो यह भी geम
है jक चाहO िजधर कR ओर मुख करो। eया एक बात स0ी और दूसरी बात
भफ़ू ठी होगी? और जो अqलाह का मुख है तो वह सब ओर हो ही नहc सकता।
eयijक एक मुख एक ओर रहेगा, सब ओर eयiकर रह सके गा? इसिलए यह
संगत नहc।।२७।।
२८-जो आसमान और भूिम का उ"प– करने वाला है। जब वो कु छ करना
चाहता है यह नहc jक उस को करना पड़ता है jक3तु उसे कहता है jक हो जा!
बस हो जाता है।। -मंन १। िस० १। सू० २। आ० ११७।।
(समीzक) भला खुदा ने geम jदया jक हो जा तो geम jकस ने सुना? और
jकस को सुनाया? और कौन बन गया? jकस कारण से बनाया? जब यह िलखते
ह< jक सृि… के पूव& िसवाय खुदा के कोई भी दूसरा वHतु न था तो यह संसार
कहां से आया? िवना कारण के कोई भी का‰य& नहc होता तो इतना बड़ा जगत्
कारण के िवना कहां से gआ? यह बात के वल लड़कपन कR है।
(पूव&पzी) नहc नहc, खुदा कR इ¸छा से ।
(उsरपzी) eया तु›हारी इ¸छा से एक मeखी कR टांग भी बन जा सकती है?
जो कहते हो jक खुदा कR इ¸छा से यह सब कु छ जगत् बन गया।
(पूव&पzी) खुदा सव&शिžमान् है इसिलये जो चाहे सो कर लेता है।
(उsरपzी) सव&शिžमान् का eया अथ& है?
(पूव&पzी) जो चाहे सो कर सके ।
(उsरपzी) eया खुदा दूसरा खुदा भी बना सकता है? अपने आप मर सकता
है? मूख& रोगी और अXानी भी बन सकता है?
(पूव&पzी) ऐसा कभी नहc बन सकता।
(उsरपzी) इसिलये परमे5र अपने और दूसरi के गुण, कम&, Hवभाव के िव˜Z
कु छ भी नहc कर सकता। जैसे संसार मO jकसी वHतु के बनने बनाने मO तीन
पदाथ& 'थम अवŸय होते ह<-एक बनानेवाला जैसे कु ›हार, दूसरी घड़ा बनने
वाली िमÝी और तीसरा उस का साधन िजस से घड़ा बनाया जाता है। जैसे
कु ›हार, िमÝी और साधन से घड़ा बनता है और बनने वाले घड़े के पूव& कु ›हार,
िमÝी और साधन होते ह< वैसे ही जगत् के बनने से पूव& परमे5र जगत् का
कारण 'कृ ित और उन के गुण, कम&, Hवभाव अनाjद ह<। इसिलये यह कु रान
कR बात सव&था अस›भव है ।।२८।।
२९-जब हमने लोगi के िलये काबे को पिव• Hथान सुख देने वाला बनाया तुम
नमाज के िलये इबराहीम के Hथान को पकड़ो।।
-मंन १। िस० १। सू० २। आ० १२५।।
(समीzक) eया काबे के पहले पिव• Hथान खुदा ने कोई भी न बनाया था?
जो बनाया था तो काबे के बनाने कR कु छ आवŸयकता न थी जो नहc बनाया
था तो िवचारे पूवª"प–i को पिव• Hथान के िवना ही रeखा था? पहले ई5र
को पिव• Hथान बनाने का Hमरण न gआ होगा।।२९।।
३०-वो कौन मनु‘य ह< जो इबराहीम के दीन से jफर जावO पर3तु िजस ने अपनी
जान को मूख& बनाया और िनtय हम ने दुिनया मO उसी को पस3द jकया और
िनtय आखरत मO वो ही नेक ह<।। -मंन १। िस० १। सू० २। आ० १३०।।
(समीzक) यह कै से स›भव है jक जो इबराहीम के दीन को नहc मानते वे सब
मूख& ह<। इबराहीम को ही खुदा ने पस3द jकया इस का eया कारण है? यjद
धमा&"मा होने के कारण से jकया तो धमा&"मा और भी बgत हो सकते ह<। यjद
िवना धमा&"मा होने के ही पस3द jकया तो अ3याय gआ। हाँ! यह तो ठीक है
jक जो धमा&"मा है वही ई5र को ि'य होता है; अधमŠ नहc।।३०।।
३१-िनtय हम तेरे मुख को आसमान मO jफरता देखते ह< अवŸय हम तुभफ़े
उस jकबले को फे रO गे jक पस3द करे उस को बस अपना मुख मिHजदुqहराम कR
ओर फे र, जहाँ कहc तुम हो अपना मुख उस कR ओर फे र लो।।
-मंन १। िस० २। सू० २। आ० १४४।।
(समीzक) eया यह छोटी बु"परHती है? नहc बड़ी।
(पूव&पzी) हम मुसलमान लोग बु"परHत नहc ह< jक3तु बुि"शकन अथा&त् मूsŽ
को तोड़नेहारे ह< eयijक हम jकबले को खुदा नहc समभफ़ते।
(उsरपzी) िजन को तुम बु"परHत समभफ़ते हो वे भी उन-उन मूsŽ को ई5र
नहc समभफ़ते jक3तु उन के सामने परमे5र कR भिž करते ह<। यjद बुतi के
तोड़नेहारे हो तो उस मिHजद jकबले बड़े बुत् को eयi न तोड़ा?
(पूव&पzी) वाह जी! हमारे तो jकबले कR ओर मुख फे रने का कु रान मO geम है
और इन को वेद मO नहc है jफर वे बु"परHत eयi नहc? और हम eयi? eयijक
हम को खुदा का geम बजा लाना अवŸय है।
(उsरपzी) जैसे तु›हारे िलये कु रान मO geम है वैसे उन के िलये पुराण मO आXा
है। जैसे तुम कु रान को खुदा का कलाम समभफ़ते हो वैसे पुराणी भी पुराणi
को खुदा के अवतार aास जी का वचन समभफ़ते ह<। तुम मO और इन मO
बु"परHती का कु छ िभ–भाव नहc है '"युत तुम बड़े बु"परHत और ये छोटे ह<।
eयijक जब तक कोई मनु‘य अपने घर मO से 'िव… gई िबqली को िनकालने
लगे तब तक उस के घर मO ऊंट 'िव… हो जाय वैसे ही मुह›मद साहेब ने छोटे
बुत् को मुसलमानi के मत से िनकाला पर3तु बड़ा बुत् जो jक पहाड़ सदृश मÙे
कR मिHजद है वह सब मुसलमानi के मत मO 'िव… करा दी; eया यह छोटी
बु"परHती है? हां! जो हम वैjदक ह< वैसे ही तुम लोग भी वैjदक हो जाओ तो
बु"परHती आjद बुराइयi से बच सको; अ3यथा नहc। तुम को जब तक अपनी
बड़ी बु"परHती को न िनकाल दो तब तक दूसरे छोटे बु"परHतi के ख‹डन से
लिœत होके िनवृs रहना चािहये और अपने को बु"परHती से पृथÀफ़ करके
पिव• करना चािहये।।३१।।
३२-जो लोग अqलाह के माग& मO मारे जाते ह< उन के िलये यह मत कहो jक ये
मृतक ह< jक3तु वे जीिवत ह<।। -मंन १। िस० २। सू० २। आ० १५४।।
(समीzक) भला ई5र के माग& मO मरने मारने कR eया आवŸयकता है? यह
eयi नहc कहते हो jक यह बात अपने मतलब िसZ करने के िलये है jक यह
लोभ दOगे तो लोग खूब लड़Oगे, अपना िवजय होगा, मारने से न डरO गे, लूट मार
कराने से ऐ5य& 'ाƒ होगा; पtात् िवषयान3द करO गे इ"याjद Hव'योजन के
िलये यह िवपरीत aवहार jकया है।।३२।।
३३-और यह jक अqलाह कठोर दुःख देने वाला है।। शैतान के पीछे मत चलो
िनtय वो तु›हारा '"यz श•ु है।। उसके िवना और कु छ नहc jक बुराई और
िनल&œता कR आXा दे और यह jक तुम कहो अqलाह पर जो नहc जानते।। -
मंन १। िस० २। सू० २। आ० १६८। १६९। १७०।।
(समीzक) eया कठोर दुःख देने वाला दयालु खुदा पािपयi पु‹या"माu पर है
अथवा मुसलमानi पर दयालु और अ3य पर दयाहीन है? जो ऐसा है तो वह
ई5र ही नहc हो सकता। और पzपाती नहc है तो जो मनु‘य कहc धम& करे गा
उस पर ई5र दयालु और जो अधम& करे गा उस पर द‹डदाता होगा तो jफर
बीच मO मुह›मद साहेब और कु रान को मानना आवŸयक न रहा। और जो सब
को बुराई कराने वाला मनु‘यमा• का श•ु शैतान है उस को खुदा ने उ"प– ही
eयi jकया? eया वह भिव‘यत् कR बात नहc जानता था? जो कहो jक जानता
था पर3तु परीzा के िलये बनाया तो भी नहc बन सकता eयijक परीzा करना
अqपX का काम है; सव&X तो सब जीवi के अ¸छे बुरे कमŽ को सदा से ठीक-
ठीक जानता है। और शैतान सब को बहकाता है तो शैतान को jकसने
बहकाया? जो कहो jक शैतान आप से आप बहकता है तो अ3य भी आप से
आप बहक सकते ह<; बीच मO शैतान का eया काम? और जो खुदा ही ने शैतान
को बहकाया तो खुदा शैतान का भी शैतान ठहरे गा। ऐसी बात ई5र कR नहc
हो सकती। और जो कोई बहकाता है वह कु संग तथा अिव‡ा से ±ा3त होता
है।।३३।।
३४-तुम पर मुदा&र, लो• और गोŸत सूअर का हराम है और अqलाह के िवना
िजस पर कु छ पुकारा जावे।। -मंन १। िस० २। सू० २। आ० १७३।।
(समीzक) यहां िवचारना चािहये jक मुदा& चाहे आप से आप मरे वा jकसी के
मारने से दोनi बराबर ह<। हां! इन मO कु छ भेद भी है तथािप मृतकपन मO कु छ
भेद नहc। और जब एक सूअर का िनषेध jकया तो eया मनु‘य का मांस खाना
उिचत है? eया यह बात अ¸छी हो सकती है jक परमे5र के नाम पर श•ु
आjद को अ"य3त दुःख देके 'ाणह"या करनी? इस से ई5र का नाम कलंjकत
हो जाता है। हां! ई5र ने िवना पूव&ज3म के अपराध के मुसलमानi के हाथ से
दा˜ण दुःख eयi jदलाया? eया उन पर दयालु नहc है? उन को पु•वत् नहc
मानता? िजस वHतु से अिधक उपकार होवे उन गाय आjद के मारने का िनषेध
न करना जानो ह"या करा कर खुदा जगत् का हािनकारक है । Òहसा’प पाप
से कलंjकत भी हो जाता है। ऐसी बातO खुदा और खुदा के पुHतक कR कभी नहc
हो सकतc।।३४।।
३५-रोजे कR रात तु›हारे िलये हलाल कR गई jक मदनो"सव करना अपनी
बीिबयi से। वे तु›हारे वाHते पदा& ह< और तुम उन के िलये पदा& हो। अqलाह ने
जाना jक तुम चोरी करते हो अथा&त् aिभचार, बस jफर अqलाह ने zमा
jकया तुम को बस उन से िमलो और ढू ंढो जो अqलाह ने तु›हारे िलये िलख
jदया है अथा&त् स3तान, खाओ पीयो यहां तक jक 'कट हो तु›हारे िलये काले
तागे से सुपेद तागा वा रात से जब jदन िनकले।। -मंन १। िस० २। सू० २। आ०
१८७।।
(समीzक) यहां यह िनिtत होता है jक जब मुसलमानi का मत चला वा
उसके पहले jकसी ने jकसी पौरािणक को पूछा होगा jक चा3¥ायण Ëत जो
एक महीने भर का होता है उस कR िविध eया है? वह शा¬िविध जो jक
म—या§न मO-चं¥ कR कला घटने बढ़ने के अनुसार >ासi को घटाना बढ़ाना और
म—या§न jदन मO खाना िलखा है उस को न जानकर कहा होगा jक च3¥मा का
दश&न करके खाना, उस को इन मुसलमान लोगi ने इस 'कार का कर िलया।
पर3तु Ëत मO ¬ी समागम का "याग है वह एक बात खुदा ने बढ़कर कह दी jक
तुम ि¬यi का भी समागम भले ही jकया करो और रात मO चाहे अनेक बार
खाओ। भला यह Ëत eया gआ? jदन को न खाया रात को खाते रहे। यह
सृि…¦म से िवपरीत है jक jदन मO न खाना रात मO खाना।।३५।।
३६-अqलाह के माग& मO लड़ो उन से जो तुम से लड़ते ह<।। मार डालो तुम उन
को जहाँ पाओ, कतल से कु . बुरा है।। यहां तक उन से लड़ो jक कु . न रहे
और होवे दीन अqलाह का।। उ3हiने िजतनी िजयादती करी तुम पर उतनी ही
तुम उन के साथ करो।। -मंन १। िस० २। सू० २। आ० १९०। १९१। १९२। १९३।।
(समीzक) जो कु रान मO ऐसी बातO न होतc तो मुसलमान लोग इतना बड़ा
अपराध जो jक अ3य मत वालi पर jकया है; न करते। और िवना अपरािधयi
को मारना उन पर बड़ा पाप है। जो मुसलमान के मत का >हण न करना है
उस को कु . कहते ह< अथा&त् कु . से कतल को मुसलमान लोग अ¸छा मानते
ह<। अथा&त् जो हमारे दीन को न मानेगा उस को हम कतल करO गे सो करते ही
आये। मजहब पर लड़ते-लड़ते आप ही रा°य आjद से न… हो गये। और उन का
मन अ3य मत वालi पर अित कठोर रहता है। eया चोरी का बदला चोरी है?
jक िजतना अपराध हमारा चोर आjद चोरी करO eया हम भी चोरी करO ? यह
सव&था अ3याय कR बात है। eया कोई अXानी हम को गािलयां दे eया हम भी
उस को गाली देव? O यह बात न ई5र कR और न ई5र के भž िवyान् कR
और न ई5रोž पुHतक कR हो सकती है। यह तो के वल HवाथŠ Xानरिहत
मनु‘य कR है।।३६।।
३७-अqलाह भफ़गड़ा करने वाले को िम• नहc रखता।। ऐ लोगो जो ईमान
लाये हो इHलाम मO 'वेश करो।। -मंन १। िस० २। सू० २। आ० २०५। २०८।।
(समीzक) जो भफ़गड़ा करने वाले को खुदा िम• नहc समभफ़ता तो eयi आप
ही मुसलमानi को भफ़गड़ा करने मO 'ेरणा करता? और भफ़गड़ालू मुसलमानi
से िम•ता eयi करता है? eया मुसलमानi के मत मO िमलने ही से खुदा राजी
है तो वह मुसलमानi ही का पzपाती है; सब संसार का ई5र नहc। इस से
यहां यह िवjदत होता है jक न कु रान ई5रकृ त और न इस मO कहा gआ ई5र
हो सकता है।।३७।।
३८-खुदा िजसको चाहे अन3त Wरजक देवे।।
-मंन १। िस० २। सू० २। आ० २१२।।
(समीzक) eया िवना पाप पु‹य के खुदा ऐसे ही Wरजक देता है? jफर भलाई
बुराई का करना एक सा ही gआ। eयijक सुख दुःख 'ाƒ होना उस कR इ¸छा
पर है। इस से धम& से िवमुख होकर मुसलमान लोग यथे…ाचार करते ह< और
कोई कोई इस कु रानोž पर िव5ास न करके धमा&"मा भी होते ह<।।३८।।
३९-'- करते ह< तुभफ़ से रजHवला को कह वो अपिव• ह<। पृथÀफ़ रहो ऋतु
समय मO उन के समीप मत जाओ जब तक jक वे पिव• न हi। जब नहा लेवO
उन के पास उस Hथान से जाओ खुदा ने आXा दी।। तु›हारी बीिवयां तु›हारे
िलये खेितयां ह< बस जाओ िजस तरह चाहो अपने खेत मO।। तुम को अqलाह
लगब (बेकार, aथ&) शपथ मO नहc पकड़ता।।
-मंन १। िस० २। सू० २। आ० २२२। २२३। २२४।।
(समीzक) जो यह रजHवला का Hपश& संग न करना िलखा है वह अ¸छी बात
है। पर3तु जो यह ि¬यi को खेती के तुqय िलखा और जैसा िजस तरह से चाहो
जाओ यह मनु‘यi को िवषयी करने का कारण है। जो खुदा बेकार शपथ पर
नहc पकड़ता तो सब भफ़ू ठ बोलOगे शपथ तोडO◌़गे। इस से खुदा भफ़ू ठ का
'वs&क होगा।।३९।।
४०-वो कौन मनु‘य है जो अqलाह को उधार देवे। अ¸छा बस अqलाह िyगुण
करे उस को उस के वाHते।। -मंन १। िस० २। सू० २। आ० २४५।।
(समीzक) भला खुदा को कज& उधार१ लेने से eया 'योजन? िजस ने सारे
संसार को बनाया वह मनु‘य से कज& लेता है? कदािप नहc। ऐसा तो िवना
समभफ़े कहा जा सकता है। eया उस का -πजाना खाली हो गया था? eया
वह g‹डी पुिड़या aापाराjद मO म« होने से टोटे मO फं स गया था जो उधार
लेने लगा? और एक का दो-दो देना Hवीकार करता है, eया यह सा•कारi का
काम है? jक3तु ऐसा काम तो jदवािलयi वा खच& अिवमक करने वाले और
आय 3यून होने वालi को करना पड़ता है; ई5र को नहc।।४०।।
४१-उनमO से कोई ईमान न लाया और कोई काjफर gआ, जो अqलाह चाहता
न लड़ते, जो चाहता है अqलाह करता है।।
-मंन १। िस० ३। सू० २। आ० २४९।।
(समीzक) eया िजतनी लड़ाई होती है वह ई5र ही कR इ¸छा से। eया वह
अधम& करना चाहे तो कर सकता है? जो ऐसी बात है तो वह खुदा ही नहc,
eयijक भले मनु‘यi का यह कम& नहc jक शाि3तभंग करके लड़ाई करावO। इस
से िवjदत होता है jक यह कु रान न ई5र का बनाया और न jकसी धा“मक
िवyान् का रिचत है।।४१।।
४२-जो कु छ आसमान और पृिथवी पर है सब उसी के िलये है? चाहे उस कR
कु रसी ने आसमान और पृिथवी को समा िलया है।।
-मंन १। िस० ३। सू० २। आ० २५५।।
(समीzक) जो आकाश भूिम मO पदाथ& ह< वे सब जीवi के िलये परमा"मा ने
उ"प– jकये ह<, अपने िलये नहc eयijक वह पूण&काम है, उस को jकसी पदाथ&
कR अपेzा नहc। जब उस कR कु सŠ है तो वह एकदेशी है। जो एकदेशी होता है
वह ई5र नहc कहाता eयijक ई5र तो aापक है।।४२।।
४३-अqलाह सूय& को पूव& से लाता है बस तू पिtम से ले आ, बस जो काjफर
था हैरान gआ था, िनtय अqलाह पािपयi को माग& नहc jदखलाता।। -मंन १।
िस० ३। सू० २। आ० २५८।।
(समीzक) देिखये यह अिव‡ा कR बात! सू‰य& न पूव& से पिtम और न पिtम
से पूव& कभी आता जाता है, वह तो अपनी पWरिध मO घूमता रहता है। इस से
िनिtत जाना जाता है jक कु रान के कता& को खगोल और न भूगोल िव‡ा
आती थी। जो पािपयi को माग& नहc बतलाता तो पु‹या"माu के िलये भी
मुसलमानi के खुदा कR आवŸयकता नहc। eयijक धमा&"मा तो धम&माग& मO ही
होते ह<। माग& तो धम& से भूले gए मनु‘यi को बतलाना होता है। सो कs&a के
न करने से कु रान
१- इसी आयत के भा‘य मO तफसीरgसैनी मO िलखा है jक एक मनु‘य मुह›मद साहब के पास
आया । उसने कहा jक ऐ रसूलqलाह खुदा कज& eयi मांगता है ? उ3हiने उsर jदया jक तुम
को बिहŸत मO ले जाने के िलये । उस ने कहा जो आप जमानत लO तो म< दूं । मुह›मद साहब ने
उसकR जमानत ले ली । खुदा का भरोसा न gआ, उस के दूत का gआ ।
के कsा& कR बड़ी भूल है।।४३।।
४४-कहा चार जानवरi से ले उन कR सूरत पिहचान रख। jफर हर पहाड़ पर
उन मO से एक-एक टु कड़ा रख दे। jफर उन को बुला, दौड़ते तेरे पास चले
आवOगे।। -मंन १। िस० ३। सू० २। आ० २६०।।
(समीzक) वाह-वाह देखो जी! मुसलमानi का खुदा भानमती के समान खेल
कर रहा है! eया ऐसी ही बातi से खुदा कR खुदाई है। बुिZमान् लोग ऐसे खुदा
को ितलाÅिल देकर दूर रहOगे और मूख& लोग फसOगे? इस से खुदा कR बड़ाई के
बदले बुराई उस के पqले पड़ेगी।।४४।।
४५-िजस को चाहे नीित देता है।। -मंन १। िस० ३। सू० २। आ० २६१।।
(समीzक) जब िजस को चाहता है उस को नीित देता है तो िजस को नहc
चाहता है उस को अनीित देता होगा। यह बात ई5रता कR नहc jक3तु जो
पzपात छोड़ सब को नीित का उपदेश करता है वही ई5र और आƒ हो सकता
है; अ3य नहc।।४५।।
४६-जो लोग dयाज खाते ह< वे कबरi से नहc खड़े हiगे।। -मंन १। िस० ३। सू०
२। आ० २७५।।
(समीzक) eया वे कबरi मO ही पड़े रहOगे और जो पड़े रहOगे तो कब तक ? ऐसी
अस›भव बात ई5र के पुHतक कR तो नहc हो सकती jक3तु बालबुिZयi कR
तो हो सकती है ।।४६।।
४७-वह jक िजस को चाहेगा zमा करे गा िजस को चाहे द‹ड देगा eयijक वह
सब वHतु पर बलवान् है।। -मंन १। िस० ३। सू० २। आ० २६९।।
(समीzक) eया zमा के यो•य पर zमा न करना, अयो•य पर zमा करना
गवरग‹ड राजा के तुqय यह कम& नहc है? यjद ई5र िजस को चाहता पापी
वा पु‹या"मा बनाता है तो जीव को पाप-पु‹य न लगना चािहये और जब ई5र
ने उस को वैसा ही jकया तो जीव को दुःख-सुख भी होना न चािहये। जैसे
सेनापित कR आXा से jकसी भृ"य ने jकसी को मारा वा रzा कR उस का
फलभागी वह नहc होता वैसे वे भी नहc।।४७।।
४८-कह इस से अ¸छी और eया परहेजगारi को खबर दूं jक अqलाह कR ओर
से बिहŸतO ह< िजन मO नहरO चलती ह< उ3हc मO सदैव रहने वाली शुZ बीिबयां ह<
अqलाह कR 'स–ता से। अqलाह उन को देखने वाला है साथ ब3दi के ।।
-मंन १। िस० ३। सू० ३। आ० १५।।
(समीzक) भला यह Hवग& है jकवा वेŸयावन? इस को ई5र कहना वा ¬ैण?
कोई भी बुिZमान् ऐसी बातO िजस मO हi उस को परमे5र का jकया पुHतक
मान सकता है? यह पzपात eयi करता है। जो बीिबयां बिहŸत मO सदा रहती
ह< वे यहां ज3म पाके वहाँ गई ह< वा वहc उ"प– gई ह<। यjद यहां ज3म पाकर
वहाँ गई ह< और जो कयामत कR रात से पहले ही वहाँ बीिबयi को बुला िलया
तो उन के खािव3दi को eयi न बुला िलया। और कयामत कR रात मO सब का
3याय होगा इस िनयम को eयi तोड़ा । यjद वहc ज3मी ह< तो कयामत तक वे
eयiकर िनवा&ह करती ह<। जो उन के िलये पु˜ष भी ह< तो यहां से बिहŸत मO
जाने वाले मुसलमानi को खुदा बीिबयां कहां से देगा? और जैसे बीिबयां
बिहŸत मO सदा रहने वाली बनाâ वैसे पु˜षi को वहाँ सदा रहने वाले eयi
नहc बनाया। इसिलये मुसलमानi का खुदा अ3यायकारी, बे समभफ़ है।।४८।।
४९-िनtय अqलाह कR ओर से दीन इसलाम है।।
-मंन १। िस० ३। सू० ३। आ० १९।।
(समीzक) eया अqलाह मुसलमानi ही का है औरi का नहc? eया तेरह सौ
वषŽ के पूव& ई5रीय मत था ही नहc? इसी से यह कु रान ई5र का बनाया तो
नहc jक3तु jकसी पzपाती का बनाया है।।४९।।
५०-'"येक जीव को पूरा jदया जावेगा जो कु छ उस ने कमाया और वे न
अ3याय jकये जावOगे।। कह या अqलाह तू ही मुqक का मािलक है िजस को चाहे
देता है, िजस से चाहे छीनता है, िजस को चाहे 'ित¼ा देता है, िजस को चाहे
अ'ित¼ा देता है, सब कु छ तेरे ही हाथ मO है, '"येक वHतु पर तू ही बलवान्
है।। रात को jदन मO और jदन को रात मO पैठाता है और मृतक को जीिवत से
जीिवत को मृतक से िनकालता है और िजस को चाहे अन3त अ– देता है।।
मुसलमानi को उिचत है jक काि़पफ़रi को िम• न बनावO िसवाय मुसलमानi
के जो कोई यह करे बस वह अqलाह कR ओर से नहc।। कह जो तुम चाहते हो
अqलाह को तो पz करो मेरा। अqलाह चाहेगा तुम को और तु›हारे पाप zमा
करे गा; िनtय ही क˜णामय है।। -मंन १। िस० ३। सू० ३। आ० २५। २६।
२७। २८। २९।।
(समीzक) जब '"येक जीव को कमŽ का पूरा-पूरा फल jदया जावेगा तो zमा
नहc jकया जायगा। और जो zमा jकया जायगा तो पूरा फल नहc jदया
जायगा और अ3याय होगा जब िवना उsम कमŽ के रा°य 'ित¼ा देगा तो भी
अ3यायी हो जायगा और िवना पाप के रा°य और 'ित¼ा छीन लेगा तो भी
अ3यायकारी हो जायगा। भला! जीिवत से मृतक और मृतक से जीिवत कभी
हो सकता है? eयijक ई5र कR aवHथा अछे‡-अभे‡ है। कभी अदल-बदल
नहc हो सकती। अब देिखये पzपात कR बातO jक जो मुसलमान के मजहब मO
नहc ह< उन को काjफर ठहराना। उन मO ~े¼i से भी िम•ता न रखने और
मुसलमानi मO दु…i से भी िम•ता रखने के िलये उपदेश करना ई5र को
ई5रता से बिहः कर देता है। इस से यह कु रान, कु रान का खुदा और मुसलमान
लोग के वल पzपात अिव‡ा के भरे gए ह<। इसीिलये मुसलमान लोग अ3धेरे
मO ह<। और देिखये मुह›मद साहेब कR लीला jक जो तुम मेरा पz करोगे तो
खुदा तु›हारा पz करे गा और जो तुम पzपात’प पाप करोगे उस कR zमा
भी करे गा। इस से िसZ होता है jक मुह›मद साहेब का अ3तःकरण शुZ नहc
था। इसीिलये अपने मतलब िसZ करने के िलये मुह›मद साहेब ने कु रान
बनाया वा बनवाया ऐसा िवjदत होता है।।५०।।
५१-िजस समय कहा फWरŸतi ने jक ऐ म‰य&म तुभफ़ को अqलाह ने पस3द
jकया और पिव• jकया ऊपर जगत् कR ि¬यi के ।।
-मंन १। िस० ३। सू० ३। आ० ४५।।
(समीzक) भला जब आज कल खुदा के फWरŸते और खुदा jकसी से बातO करने
को नहc आते तो 'थम कै से आये हiगे? जो कहो jक पहले के मनु‘य पु‹या"मा
थे अब के नहc तो यह बात िम•या है। jक3तु िजस समय ईसाई और मुसलमानi
का मत चला था उस समय उन देशi मO जंगली और िव‡ाहीन मनु‘य अिधक
थे इसी िलये ऐसे िव‡ा-िव˜Z मत चल गये। अब िवyान् अिधक ह< इसिलये
नहc चल सकता। jक3तु जो-जो ऐसे पोकल मजहब ह< वे भी अHत होते जाते
ह<; वृिZ कR तो कथा ही eया है।।५१।।
५२-उस को कहता है jक हो बस हो जाता है।। काjफरi ने धोखा jदया, ई5र
ने धोखा jदया, ई5र बgत मकर करने वाला है।।
-मंन १। िस० ३। सू० ३। आ० ५३। ५४।।
(समीzक) जब मुसलमान लोग खुदा के िसवाय दूसरी चीज नहc मानते तो
खुदा ने jकस से कहा? और उस के कहने से कौन हो गया? इस का उsर
मुसलमान सात ज3म मO भी नहc दे सकO गे। eयijक िवना उपादान कारण के
काय& कभी नहc हो सकता। िवना कारण के काय& कहना जानो अपने माँ बाप
के िवना मेरा शरीर हो गया ऐसी बात है। जो धोखा देता और मकर अथा&त्
छल और द›भ करता है वह ई5र तो कभी नहc हो सकता jक3तु उsम मनु‘य
भी ऐसा काम नहc करता।।५२।।
५३-eया तुम को यह बgत न होगा jक अqलाह तुम को तीन हजार फWरŸतi
के साथ सहाय देवे।। -मंन १। िस० ४। सू० ३। आ० १२४।।
(समीzक) जो मुसलमानi को तीन हजार फWरŸतi के साथ सहाय देता था तो
अब मुसलमानi कR बादशाही बgत सी न… हो गई और होती जाती है eयi
सहाय नहc देता? इसिलये यह बात के वल लोभ देके मूखŽ को फं साने के िलये
महा अ3याय कR है।।५३।।
५४-और काjफरi पर हम को सहाय कर।। अqलाह तु›हारा उsम सहायक
और कारसाज है।। जो तुम अqलाह के माग& मO मारे जाओ वा मर जाओ, अqलाह
कR दया बgत अ¸छी है।। -मंन १। िस० ४। सू० ३। आ० १४७। १५०। १५८।।
(समीzक) अब देिखये मुसलमानi कR भूल jक जो अपने मत से िभ– ह< उन के
मारने के िलये खुदा कR 'ाथ&ना करते ह<। eया परमे5र भोला है जो इन कR
बात मान लेवे? यjद मुसलमानi का कारसाज अqलाह ही है तो jफर
मुसलमानi के काय& न… eयi होते ह<? और खुदा भी मुसलमानi के साथ मोह
से फं सा gआ दीख पड़ता है, जो ऐसा पzपाती खुदा है तो धमा&"मा पु˜षi का
उपासनीय कभी नहc हो सकता।।५४।।
५५-और अqलाह तुम को परोzX नहc करता पर3तु अपने पैग›बरi से िजस
को चाहे पस3द करे । बस अqलाह और उस के रसूल के साथ ईमान लाओ।।
-मंन १। िस० ४। सू० ३। आ० १७९।।
(समीzक) जब मुसलमान लोग िसवाय खुदा के jकसी के साथ ईमान नहc लाते
और न jकसी को खुदा का साभफ़R मानते ह< तो पैग›बर साहेब को eयi ईमान
मO खुदा के साथ शरीक jकया? अqलाह ने पैग›बर के साथ ईमान लाना िलखा,
इसी से पैग›बर भी शरीक हो गया, पुनः लाशरीक का कहना ठीक न gआ ।
यjद इस का अथ& यह समझा जाय jक मुह›मद साहेब के पैग›बर होने पर
िव5ास लाना चािहये तो यह '- होता है jक मुह›मद साहब के होने कR eया
आवŸयकता है? यjद खुदा उन को पैग›बर jकये िवना अपना अभी… काय& नहc
कर सकता तो अवŸय असमथ& gआ।।५५।।
५६-ऐ ईमानवालो! स3तोष करो परHपर थामे रeखो और लड़ाई मO लगे रहो।
अqलाह से डरो jक तुम छु टकारा पाओ।।
-मंन १। िस० ४। सू० ३। आ० १८६।।

(समीzक) यह कु रान का खुदा और पैग›बर दोनi लड़ाईबाज थे। जो लड़ाई


कR आXा देता है वह शाि3तभंग करने वाला होता है। eया नाम मा• खुदा से
डरने से छु टकारा पाया जाता है? वा अधम&युž लड़ाई आjद से डरने से? जो
'थम पz है तो डरना न डरना बराबर और जो िyतीय पz है तो ठीक
है।।५६।।
५७-ये अqलाह कR हदO ह< जो अqलाह और उनके रसूल का कहा मानेगा वह
बिहŸत मO पgँचेगा िजन मO नहरO चलती ह< और यही बड़ा 'योजन है।। जो
अqलाह कR और उस के रसूल कR आXा भंग करे गा और उस कR हदi से बाहर
हो जायगा वो सदैव रहने वाली आग मO जलाया जावेगा और उस के िलये
खराब करने वाला दुःख है।। -मंन १। िस० ४। सू० ४। आ० १३। १४।।
(समीzक) खुदा ही ने मुह›मद साहेब पैग›बर को अपना शरीक कर िलया है
और खुद कु रान ही मO◌ं िलखा है। और देखो! खुदा पैग›बर साहेब के साथ कै सा
फं सा है jक िजस ने बिहŸत मO रसूल का साभफ़ा कर jदया है। jकसी एक बात
मO भी मुसलमानi का खुदा Hवत3• नहc तो लाशरीक कहना aथ& है। ऐसी-
ऐसी बातO ई5रोž पुHतक मO नहc हो सकतc।।५७।।
५८-और एक •सरे णु कR बराबर भी अqलाह अ3याय नहc करता । और जो
भलाई होवे उस का दुगुण करे गा उस को।।
-मंन १। िस० ५। सू० ४। आ० ४०।।
(समीzक) जो एक •सरे णु के बराबर भी खुदा अ3याय नहc करता तो पु‹य
को िyगुण eयi देता? और मुसलमानi का पzपात eयi करता है? वाHतव मO
िyगुण वा 3यून फल कमŽ का देवे तो खुदा अ3यायी हो जावे।।५८।।
५९-जब तेरे पास से बाहर िनकलते ह< तो तेरे कहने के िसवाय (िवपरीत)
शोचते ह<। अqलाह उन कR सलाह को िलखता है।। अqलाह ने उन कR कमाई
वHतु के कारण से उन को उलटा jकया। eया तुम चाहते हो jक अqलाह के
गुमराह jकये gए को माग& पर लाओ? बस िजस को अqलाह गुमराह करे उसको
कदािप माग& न पावेगा।। -मंन १। िस० ५। सू० ४। आ० ८१-८८।।
(समीzक) जो अqलाह बातi को िलख बहीखाता बनाता जाता है तो सव&X
नहc। जो सव&X है तो िलखने का eया काम? और जो मुसलमान कहते ह< jक
शैतान ही सब को बहकाने से दु… gआ है तो जब खुदा ही जीवi को गुमराह
करता है तो खुदा और शैतान मO eया भेद रहा? हां! इतना भेद कह सकते ह<
jक खुदा बड़ा शैतान, वह छोटा शैतान। eयijक मुसलमानi ही का कौल है jक
जो बहकाता है वही शैतान है तो इस 'ितXा से खुदा को भी शैतान बना
jदया।।५९।।
६०-और अपने हाथi को न रोकO तो उन को पकड़ लो और जहाँ पाओ मार
डालो।। मुसलमान को मुसलमान का मारना यो•य नहc। जो कोई अनजाने से
मार डाले बस एक गद&न मुसलमान का छोड़ना है और खून बहा उन लोगi कR
ओर सëपी gई जो उस कौम से होवO, और तु›हारे िलये दान कर देवO, जो दुŸमन
कR कौम से।। और जो कोई मुसलमान को जान कर मार डाले वह सदैव काल
दोजख मO रहेगा, उस पर अqलाह का ¦ोध और लानत है।। -मंन १। िस० ५।
सू० ४। आ० ९१। ९२। ९३।।
(समीzक) अब देिखये महा पzपात कR बात jक जो मुसलमान न हो उस को
जहाँ पाओ मार डालो और मुसलमानi को न मारना। भूल से मुसलमानi के
मारने मO 'ायिts और अ3य को मारने से बिहŸत िमलेगा ऐसे उपदेश को कु ए
मO डालना चािहये। ऐसे-ऐसे पुHतक ऐसे-ऐसे पैग›बर ऐसे-ऐसे खुदा और ऐसे-
ऐसे मत से िसवाय हािन के लाभ कु छ भी नहc। ऐसi का न होना अ¸छा और
ऐसे 'ामाjदक मतi से बुिZमानi को अलग रह कर वेदोž सब बातi को
मानना चािहये eयijक उस मO अस"य jकि€3मा• भी नहc है। और जो
मुसलमान को मारे उस को दोजख िमले और दूसरे मत वाले कहते ह< jक
मुसलमान को मारे तो Hवग& िमले। अब कहो इन दोनi मतi मO से jकस को मानO
jकस को छोड़O? jक3तु ऐसे मूढ़ 'किqपत मतi को छोड़ कर वेदोž मत
Hवीकार करने यो•य सब मनु‘यi के िलये है jक िजस मO आ‰य& माग& अथा&त् ~े¼
पु˜षi के माग& मO चलना और दHयु अथा&त् दु…i के माग& से अलग रहना िलखा
है; सवªsम है।।६०।।
६१-और िशzा 'कट होने के पीछे िजस ने रसूल से िवरोध jकया और
मुसलमानi से िव˜Z पz jकया; अवŸय हम उनको दोजख मO भेजOगे।।
-मंन १। िस० ५। सू० ४। आ० ११५।।
(समीzक) अब देिखये खुदा और रसूल कR पzपात कR बातO! मुह›मद साहेब
आjद समभफ़ते थे jक जो खुदा के नाम से ऐसी हम न िलखOगे तो अपना मजहब
न बढ़ेगा और पदाथ& न िमलOगे, आन3द भोग न होगा। इसी से िवjदत होता है
jक वे अपने मतलब करने मO पूरे थे और अ3य के 'योजन िबगाड़ने मO। इस से
ये अनाƒ थे। इन कR बात का 'माण आƒ िवyानi के सामने कभी नहc हो
सकता।।६१।।
६२-जो अqलाह फWरŸतi jकताबi रसूलi और कयामत के साथ कु . करे िनtय
वह गुमराह है।। िनtय जो लोग ईमान लाये jफर काjफर gए jफर-jफर ईमान
लाये पुनः jफर गये और कु . मO अिधक बढ़े। अqलाह उन को कभी zमा न
करे गा और न माग& jदखलावेगा।। -मंन १। िस० ५। सू० ४। आ० १३६। १३७।।
(समीzक) eया अब भी खुदा लाशरीक रह सकता है? eया लाशरीक कहते
जाना और उस के साथ बgत से शरीक भी मानते जाना यह परHपर िव˜Z
बात नहc है? eया तीन बार zमा के पtात् खुदा zमा नहc करता? और तीन
वार कु . करने पर राHता jदखलाता है? वा चौथी बार से आगे नहc
jदखलाता? यjद चार-चार बार भी कु . सब लोग करO तो कु . बgत ही बढ़
जाये।।६२।।
६३-िनtय अqलाह बुरे लोगi और काjफरi को जमा करे गा दोजख मO।। िनtय
बुरे लोग धोखा देते ह< अqलाह को और उन को वह धोखा देता है।। ऐ ईमान
वालो! मुसलमानi को छोड़ काjफरi को िम• मत बनाओ।।
-मंन १। िस० ५। सू० ४। आ० १४०। १४२। १४४।।
(समीzक) मुसलमानi के बिहŸत और अ3य लोगi के दोज़ख मO जाने का eया
'माण? वाह जी वाह! जो बुरे लोगi के धोखे मO आता और अ3य को धोखा
देता है ऐसा खुदा हम से अलग रहे jक3तु जो धोखेबाज ह< उन से जाकर मेल
करे और वे उस से मेल करO । eयijक-
‘यादृशी शीतलादेवी तादृश खरवाहन ।ष्
जैसे को तैसा िमले तभी िनवा&ह होता है। िजस का खुदा धोखेबाज है उस के
उपासक लोग धोखेबाज eयi न हi? eया दु… मुसलमान हो उस से िम•ता
और अ3य ~े¼ मुसलमान िभ– से श•ुता करना jकसी को उिचत हो सकती
है? ।।६३।।
६४-ऐ लोगो! िनtय तु›हारे पास स"य के साथ खुदा कR ओर से पैग›बर आया।
बस तुम उन पर ईमान लाओ।। अqलाह माबूद अके ला है।।
-मंन १। िस० ६। सू० ४। आ० १७०। १७१।।
(समीzक) eया जब पैग›बरi पर ईमान लाना िलखा तो ईमान मO पैग›बर
खुदा का शरीक अथा&त् साभफ़R gआ वा नहc। जब अqलाह एकदेशी है, aापक
नहc, तभी तो उस के पास से पैग›बर आते जाते ह< तो वह ई5र भी नहc हो
सकता। कहc सव&दश े ी िलखते ह<, कहc एकदेशी। इस से िवjदत होता है jक
कु रान एक का बनाया नहc jक3तु बgतi ने बनाया है।।६४।।
६५-तुम पर हराम jकया गया मुदा&र, लो•, सूअर का मांस िजस पर अqलाह
के िवना कु छ और पढ़ा जावे, गला घोटे, लाठी मारे , ऊपर से िगर पड़े, सcग
मारे और दर3दे का खाया gआ।। -मंन २। िस० ६। सू० ५। आ० ३।।
(समीzक) eया इतने ही पदाथ& हराम ह<? अ3य बgत से पशु तथा ित‰य&Àफ़
जीव कRड़ी आjद मुसलमानi को हलाल हiगे? इस वाHते यह मनु‘यi कR
कqपना है; ई5र कR नहc। इस से इस का 'माण भी नहc।।६५।।
६६-और अqलाह को अ¸छा उधार दो अवŸय म< तु›हारी बुराई दूर क’ंगा
और तु›हO बिहŸतi मO भेजूंगा।। -मंन २। िस० ६। सू० ५। आ० १२।।
(समीzक) वाह जी! मुसलमानi के खुदा के घर मO कु छ भी धन िवशेष नहc
रहा होगा। जो िवशेष होता तो उधार eयi मांगता? और उन को eयi बहकाता
jक तु›हारी बुराई छु ड़ा के तुम को Hवग& मO भेजूंगा? यहां िवjदत होता है jक
खुदा के नाम से मुह›मद साहेब ने अपना मतलब साधा है।।६६।।
६७-िजस को चाहता है zमा करता है िजस को चाहे दुःख देता है।। जो कु छ
jकसी को भी न jदया वह तु›हO jदया।।
-मंन २। िस० ६। सू० ५। आ० १८। २०।।
(समीzक) जैसे शैतान िजस को चाहता पापी बनाता वैसे ही मुसलमानi का
खुदा भी शैतान का काम करता है ! जो ऐसा है तो jफर बिहŸत और दोजख मO
खुदा जावे eयijक वह पाप पु‹य करने वाला gआ, जीव पराधीन है। जैसी सेना
सेनापित के आवमीन रzा करती और jकसी को मारती है, उस कR भलाई
बुराई
सेनापित को होती है; सेना पर नहc।।६७।।
६८-आXा मानो अqलाह कR और आXा मानो रसूल कR।।
-मंन २। िस० ७। सू० ५। आ० ९२।।
(समीzक) देिखये! यह बात खुदा के शरीक होने कR है। jफर खुदा को
‘लाशरीक’ मानना aथ& है।।६८।।
६९-अqलाह ने माफ jकया जो हो चुका और जो कोई jफर करे गा अqलाह उस
से बदला लेगा।। -मंन २। िस० ७। सू० ५। आ० ९५।।
(समीzक) jकये gए पापi का zमा करना जानो पापi को करने कR आXा देके
बढ़ाना है। पाप zमा करने कR बात िजस पुHतक मO हो वह न ई5र और न
jकसी िवyान् का बनाया है jक3तु पापवZ&क है। हां ! आगामी पाप छु ड़वाने के
िलये jकसी से 'ाथ&ना और Hवयं छोड़ने के िलये पु˜षाथ& पtाsाप करना
उिचत है पर3तु के वल पtाsाप करता रहे, छोड़े नहc, तो भी कु छ नहc हो
सकता।।६९।।
७०-और उस मनु‘य से अिधक पापी कौन है जो अqलाह पर भफ़ू ठ बांध लेता
है और कहता है jक मेरी ओर वही कR गई पर3तु वही उस कR ओर नहc कR
गई और जो कहता है jक म< भी उता’ँगा jक जैसे अqलाह उतारता है।।
-मंन २। िस० ७। सू० ६। आ० ९३।।
(समीzक) इस बात से िसZ होता है jक जब मुह›मद साहेब कहते थे jक मेरे
पास खुदा कR ओर से आयतO आती ह< तब jकसी दूसरे ने भी मुह›मद साहेब के
तुqय लीला रची होगी jक मेरे पास भी आयतO उतरती ह<, मुभफ़ को भी पैग›बर
मानो। इस को हटाने औार अपनी 'ित¼ा बढ़ाने के िलये मुह›मद साहेब ने यह
उपाय jकया होगा।।७०।।
७१-अवŸय हम ने तुम को उ"प– jकया, jफर तु›हारी सूरतO बनाâ। jफर हम
ने फWरŸतi से कहा jक आदम को िसजदा करो, बस उ3हiने िसजदा jकया पर3तु
शैतान िसजदा करने वालi मO से न gआ।। कहा जब म<ने तुभफ़े आXा दी jफर
jकस ने रोका jक तूने िसजदा न jकया, कहा म< उस से अ¸छा •ँ, तूने मुझ को
आग से और उस को िमÝी से उ"प– jकया।। कहा बस उस मO से उतर, यह तेरे
यो•य नहc है jक तू उस मO अिभमान करे ।। कहा उस jदन तक ढील दे jक कबरi
मO से उठाये जावO।। कहा िनtय तू ढील jदये गयi से है।। कहा बस इस कR
कसम है jक तूने मुभफ़ को गुमराह jकया, अवŸय म< उन के िलये तेरे सीधे माग&
पर बैठंू गा।। और 'ायः तू उन को ध3यवाद करने वाला न पावेगा।। कहा उस
से दुदश
& ा के साथ िनकल, अवŸय जो कोई उन मO से तेरा पz करे गा तुम सब
से दोजख को भ’ंगा।।
-मंन २। िस० ८। सू० ७। आ० ११। १२। १३। १४। १५। १६। १७।।
(समीzक) अब —यान देकर सुनो खुदा और शैतान के भफ़गड़े को। एक फWरŸता,
जैसा jक चपरासी हो, था। वह भी खुदा से न दबा और खुदा उस के आ"मा को
पिव• भी न कर सका। jफर ऐसे बागी को जो पापी बना कर गदर करने वाला
था उस को खुदा ने छोड़ jदया। खुदा कR यह बड़ी भूल है। शैतान तो सब को
बहकाने वाला और खुदा शैतान को बहकाने वाला होने से यह िसZ होता है
jक शैतान का भी शैतान खुदा है। eयijक शैतान '"यz कहता है jक तूने मुभफ़े
गुमराह jकया। इस से खुदा मO पिव•ता भी नहc पाई जाती और सब बुराइयi
का चलाने वाला मूल कारण खुदा gआ। ऐसा खुदा मुसलमानi ही का हो सकता
है, अ3य ~े¼ िवyानi का नहc। और फWरŸतां◌े से मनु‘यवत् वाता&लाप करने
से देहधारी, अqपX, 3यायरिहत मुसलमानi का खुदा है। इसी से िवyान् लोग
इसलाम के मज़हब को पस3द नहc करते।।७१।।
७२-िनtय तु›हारा मािलक अqलाह है िजस ने आसमानi और पृिथवी को छः
jदन मO उ"प– jकया। jफर करार पकड़ा अश& पर।। दीनता से अपने मािलक
को पुकारो।। -मंन २। िस० ८। सू० ७। आ० ५४। ५६।।
(समीzक) भला! जो छः jदन मO जगत् को बनावे, (अश&) अथा&त् ऊपर के
आकाश मO िसहासन पर आराम करे वह ई5र सव&शिžमान् और aापक कभी
हो सकता है? इस के न होने से वह खुदा भी नहc कहा सकता। eया तु›हारा
खुदा बिधर है जो पुकारने से सुनता है? ये सब बातO अनी5रकृ त ह<। इस से
कु रान ई5रकृ त नहc हो सकता। यjद छः jदनi मO जगत् बनाया, सातवO jदन
अश& पर आराम jकया तो थक भी गया होगा और अब तक सोता है वा जागा
है? यjद जागता है तो अब कु छ काम करता है वा िनक›मा सैल सपÝा और
ऐश करता jफरता है।।७२।।
७३-मत jफरो पृिथवी पर भफ़गड़ा करते।। -मंन २। िस० ८। सू० ७। आ० ७४।।
(समीzक) यह बात तो अ¸छी है पर3तु इस से िवपरीत दूसरे Hथानi मO िजहाद
करना काjफरi को मारना भी िलखा है। अब कहो यह पूवा&पर िव˜Z नहc है?
इस से यह िवjदत होता है jक जब मुह›मद साहेब िनब&ल gए हiगे तब उ3हiने
यह उपाय रचा होगा और जब सबल gए हiगे तब भफ़गड़ा मचाया होगा।
इसी से ये बातO परHपर िव˜Z होने से दोनi स"य नहc ह<।।७३।।
७४-बस एक ही बार अपना असा डाल jदया और वह अजगर था '"यz।।
-मंन २। िस० ९। सू० ७। आ० १०७।।
(समीzक) अब इस के िलखने से िवjदत होता है jक ऐसी भफ़ू ठी बातi को
खुदा और मुह›मद साहेब भी मानते थे। जो ऐसा है तो ये दोनi िवyान् नहc थे
eयijक जैसे आंख से देखने को और कान से सुनने को अ3यथा कोई नहc कर
सकता। इसी से ये इ3¥जाल कR बातO ह<।।७४।।
७५-बस हम ने उन पर मेह का तूफान भेजा! टीढ़ी, िचचड़ी और म<ढक और
लो•।। बस उन से हम ने बदला िलया और उन को डु बो jदया दWरयाव मO।।
और हम ने बनी इसराईल को दWरयाव से पार उतार jदया।। िनtय वह दीन
भफ़ू ठा है jक िजस मO वे ह< और उन का का‰य& भी भफ़ू ठा है।।
-मंन २। िस० ९। सू० ७। आ० १३३। १३६। १३७। १३९।।
(समीzक) अब देिखये! जैसा कोई पाख‹डी jकसी को डरावे jक हम तुभफ़ पर
सपŽ को काटने के िलये भेजOगे। ऐसी ही यह भी बात है। भला! जो ऐसा
पzपाती jक एक जाित को डु बा दे और दूसरी को पार उतारे वह अधमŠ खुदा
eयi नहc। जो दूसरे मतi को jक िजन मO हजारi ¦ोड़i मनु‘य हi भफ़ू ठा
बतलावे और अपने को स0ा, उस से परे भफ़ू ठा दूसरा मत कौन हो सकता है?
eयijक jकसी मत मO सब मनु‘य बुरे और भले नहc हो सकते। यह इकतफõ
िडगरी करना महामूखŽ का मत है। eया तौरे त जबूर का दीन, जो jक उन का
था; भफ़ू ठा हो गया? वा उन का कोई अ3य मजहब था jक िजस को भफ़ू ठा
कहा और जो वह अ3य मजहब था तो कौन सा था कहो jक िजस का नाम
कु रान मO हो।।७५।।
७६-बस तू मुभफ़ को अलबsा देख सके गा, जब 'काश jकया उस के मािलक
ने पहाड़ कR ओर उस को परमाणु-परमाणु jकया। िगर पड़ा मूसा बेहोश।।
-मंन २। िस० ९। सू० ७। आ० १४३।।
(समीzक) जो देखने मO आता है वह aापक नहc हो सकता। और ऐसे चम"कार
करता jफरता था तो खुदा इस समय ऐसा चम"कार jकसी को eयi नहc
jदखलाता? सव&था िव‡ा िव˜Z होने से यह बात मानने यो•य नहc।।७६।।
७७-और अपने मािलक को दीनता डर से मन मO याद कर, धीमी आवाज से
सुबह को और शाम को।। -मंन २। िस० ९। सू० ७। आ० २०५।।
(समीzक) कहc-कहc कु रान मO िलखा है jक बड़ी आवाज से अपने मािलक को
पुकार और कहc-कहc धीरे -धीरे मन मO ई5र का Hमरण कर। अब किहये! कौन
सी बात स0ी? और कौन सी भफ़ू ठी? जो एक दूसरी बात से िवरोध करती है
वह बात 'मs गीत के समान होती है। यjद कोई बात ±म से िव˜Z िनकल
जाय उस को मान ले तो कु छ िच3ता नहc।।७७।।
७८-'- करते ह< तुभफ़ को लूटi से कह लूटO वाHते अqलाह के और रसूल के
और डरो अqलाह से।। -मंन २। िस० ९। सू० ८। आ० १।।
(समीzक) जो लूट मचावO, डाकू के कम& करO करावO और खुदा तथा पैग›बर और
ईमानदार भी बनO, यह बड़े आtय& कR बात है और अqलाह का डर बतलाते
और डाकाjद बुरे काम भी करते जायO और ‘उsम मत हमारा है’ कहते लœा
भी नहc। हठ छोड़ के स"य वेदमत का >हण न करO इस से अिधक कोई बुराई
दूसरी होगी? ।।७८।।
७९-और काटे जड़ काjफरi कR।। म< तुम को सहाय दूग ं ा। साथ सहê फWरŸतi
के पीछे पीछे आने वाले।। अवŸय म< काjफरi के jदलi मO भय डालूंगा। बस
मारो ऊपर गद&नi के मारो उन मO से '"येक पोरी (सि3ध) पर।। -मंन २। िस०
९। सू० ८। आ० ७। ९। १२।।
(समीzक) वाह जी वाह! कै सा खुदा और कै से पैग›बर दयाहीन। जो मुसलमानी
मत से िभ– काjफरi कR जड़ कटवावे। और खुदा आXा देवे उन कR गद&न पर
मारो और हाथ पग के जोड़i को काटने का सहाय और स›मित देवे ऐसा खुदा
लंकेश से eया कु छ कम है? यह सब 'प€ कु रान के कsा& का है, खुदा का नहc।
यjद खुदा का हो तो ऐसा खुदा हम से दूर और हम उस से दूर रहO।।७९।।
८०-अqलाह मुसलमानi के साथ है।। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो पुकारना
Hवीकार करो वाHते अqलाह के और वाHते रसूल के ।। ऐ लोगो जो ईमान लाये
हो मत चोरी करो अqलाह कR रसूल कR और मत चोरी करो अमानत अपनी
कR।। और मकर करता था अqलाह और अqलाह भला मकर करने वालi का
है।। -मंन २। िस० ९। सू० ८। आ० १९। २०। २९। ३०।।
(समीzक) eया अqलाह मुसलमानi का पzपाती है, जो ऐसा है तो अधम&
करता है। नहc तो ई5र सब सृि… भर का है। eया खुदा िबना पुकारे नहc सुन
सकता। बिधर है? और उस के साथ रसूल को शरीक करना बgत बुरी बात
नहc है? अqलाह का कौन सा ख़जाना भरा है जो चोरी करे गा? eया रसूल
और अपने अमानत कR चोरी छोड़कर अ3य सब कR चोरी jकया करे ? ऐसा
उपदेश अिवyान् और अध“मयi का हो सकता है? भला! जो मकर करता और
जो मकर करने वालi का संगी है वह खुदा कपटी, छली और अधमŠ eयi नहc
? इसिलये यह कु रान खुदा का बनाया gआ नहc है। jकसी कपटी छली का
बनाया होगा। नहc तो ऐसी अ3यथा बातO िलिखत eयi होतc? ।।८०।।
८१-और लड़ो उन से यहां तक jक न रहे jफतना अथा&त् बल काjफरi का और
होवे दीन तमाम वाHते अqलाह के ।। और जानो तुम यह jक जो कु छ तुम लूटो
jकसी वHतु से िनtय वाHते अqलाह के है पाँचवाँ िहHसा उस का और वाHते
रसूल के ।। -मंन २। िस० ९। सू० ८। आ० ३९। ४१।।
(समीzक) ऐसे अ3याय से लड़ने लड़ाने वाला मुसलमानi के खुदा से िभ–
शाि3तभंगकता& दूसरा कौन होगा? अब देिखये यह मजहब jक अqलाह और
रसूल के वाHते सब जगत् को लूटना लुटवाना लुटेरi का काम नहc है? और लूट
के माल मO खुदा का िहHसेदार बनना जानो डाकू बनना है और ऐसे लुटेरi का
पzपाती बनना खुदा अपनी खुदाई मO बÝा लगाता है। बड़े आtय& कR बात है
jक ऐसा पुHतक, ऐसा खुदा और ऐसा पैग›बर संसार मO ऐसी उपािध और
शाि3तभंग करके मनु‘यi को दुःख देने के िलये कहां से आया? जो ऐसे-ऐसे मत
जगत् मO 'चिलत न होते तो सब जगत् आन3द मO बना रहता।।८१।।
८२-और कभी देखे तू जब काjफरi को फWरŸते कdज करते ह<, मारते ह<, मुख
उन के और पीठO उन कR और कहते चखो अजाब जलने का।। हम ने उन के पाप
से उन को मारा और हम ने jफराओन कR कौम को डु बा jदया ।। और तैयारी
करो वाHते उन के जो कु छ तुम कर सको।।
-मंन २। िस० ९। सू० ८। आ० ५०। ५४। ६०।।
(समीzक) eयi जी! आजकल ’स ने ’म आjद और इं •लै‹ड ने िम~ कR दुदश & ा
कर डाली; फWरŸते कहां सो गये? और अपने सेवकi के श•ुu को खुदा पूव&
मारता डु बाता था यह बात स0ी हो तो आजकल भी ऐसा करे िजस से ऐसा
नहc होता इसिलये यह बात मानने यो•य नहc? अब देिखये ! यह कै सी बुरी
आXा है jक जो कु छ तुम कर सको वह िभ– मत वालi के िलये दुःखदायक कम&
करो। ऐसी आXा िवyान् और धा“मक दयालु कR नहc हो सकती। jफर िलखते
ह< jक खुदा दयालु और 3यायकारी है। ऐसी बातi से मुसलमानi के खुदा से
3याय और दयाjद स¾गुण दूर बसते ह<।।८२।।
८३-ऐ नबी jकफायत है तुभफ़ को अqलाह और उन को िज3हiने मुसलमानi
से तेरा पz jकया।। ऐ नबी रगबत अथा&त् चाह चHका दे मुसलमानi को ऊपर
लड़ाई के , जो हi तुम मO से २० आदमी स3तोष करने वाले तो पराजय करO दो
सौ का।। बस खाओ उस वHतु से jक लूटा है तुमने हलाल पिव• और डरो
अqलाह से वह zमा करने वाला दयालु है।। -मंन २। िस० १०। सू० ८। आ० ६४।
६५। ६९।।
(समीzक) भला यह कौन सी 3याय, िवysा और धम& कR बात है jक जो अपना
पz करे और चाहO अ3याय भी करे उसी का पz और लाभ पgँचावे? और जो
'जा मO शाि3तभंग करके लड़ाई करे करावे और लूट मार के पदाथŽ को हलाल
बतलावे और jफर उसी का नाम zमावान् दयालु िलखे यह बात खुदा कR तो
eया jक3तु jकसी भले आदमी कR भी नहc हो सकती। ऐसी-ऐसी बातi से कु रान
ई5रवाeय कभी नहc हो सकता।।८३।।
८४-सदा रहOगे बीच उस के , अqलाह समीप है उस के पु‹य बड़ा।। ऐ लोगो!
जो ईमान लाये हो मत पकड़ो बापi अपने को और भाइयi अपने को िम• जो
दोHत रखO कु . को ऊपर ईमान के ।। jफर उतारी अqलाह ने तसqली अपनी
ऊपर रसूल अपने के और ऊपर मुसलमानi के और उतारे लŸकर नहc देखा तुम
ने उन को और अजाब jकया उन लोगi को और यही सजा है काjफरi को।।
jफर-jफर आवेगा अqलाह पीछे उस के ऊपर।। और लड़ाई करो उन लोगi से
जो ईमान नहc लाते।। -मंन २। िस० १०। सू० ९। आ० २२। २३। २६। २७।।
(समीzक) भला जो बिहŸतवालi के समीप अqलाह रहता है तो सव&aापक
eयiकर हो सकता है? जो सव&aापक नहc तो सृि…कsा& और 3यायाधीश नहc
हो सकता। और अपने माँ, बाप, भाई और िम• को छु ड़वाना के वल अ3याय
कR बात है। हां! जो वे बुरा उपदेश करO ; न मानना पर3तु उन कR सेवा सदा
करनी चािहये। जो पहले खुदा मुसलमानi पर बड़ा स3तोषी था; और उनके
सहाय के िलए लŸकर उतारता था सच हो तो अब ऐसा eयi नहc करता? और
जो 'थम काjफरi को द‹ड देता और पुनः उसके ऊपर आता था तो अब कहाँ
गया? eया िवना लड़ाई के ईमान खुदा नहc बना सकता? ऐसे खुदा को हमारी
ओर से सदा ितलाÅिल है, खुदा eया है एक िखलाड़ी है? ।।८४।।
८५-और हम बाट देखने वाले ह< वाHते तु›हारे यह jक पgँचावO तुम को अqलाह
अजाब अपने पास से वा हमारे हाथi से।।
-मंन २। िस० १०। सू० ९। आ० ५२।।
(समीzक) eया मुसलमान ही ई5र कR पुिलस बन गये ह< jक अपने हाथ वा
मुसलमानi के हाथ से अ3य jकसी मत वालi को पकड़ा देता है? eया दूसरे
¦ोड़i मनु‘य ई5र को अि'य ह<? मुसलमानi मO पापी भी ि'य ह<? यjद ऐसा
है तो अ3धेर नगरी गवरग‹ड राजा कR सी aवHथा दीखती है। आtय& है jक
जो बुिZमान् मुसलमान ह< वे भी इस िनमू&ल अयुž मत को मानते ह<।।८५।।
८६-'ितXा कR है अqलाह ने ईमान वालi से और ईमानवािलयi से बिहŸतO
चलती ह< नीचे उन के से नहरO सदैव रहने वाली बीच उस के और घर पिव•
बीच बिहŸतi अदन के और 'स–ता अqलाह कR ओर बड़ी है और यह jक वह
है मुराद पाना बड़ा।। बस ठ$ा करते ह< उन से, ठ$ा jकया अqलाह ने उन से।।
-मंन २। िस० १०। सू० ९। आ० ७३। ८०।।
(समीzक) यह खुदा के नाम से ¬ी पु˜षi को अपने मतलब के िलये लोभ देना
है। eयijक जो ऐसा 'लोभन न देते तो कोई मुह›मद साहेब के जाल मO न
फं सता। ऐसे ही अ3य मत वाले भी jकया करते ह<। मनु‘य लोग तो आपस मO
ठ$ा jकया ही करते ह< पर3तु खुदा को jकसी से ठ$ा करना उिचत नहc है। यह
कु रान eया है बड़ा खेल है।।८६।।
८७-पर3तु रसूल और जो लोग jक साथ उसके ईमान लाये िजहाद jकया उ3हiने
साथ धन अपने के तथा जानi अपनी के और इ3हc लोगi के िलये भलाई है ।।
और मोहर रeखी अqलाह ने ऊपर jदलi उन के , बस वे नहc जानते।।
-मंन २। िस० १०। सू० ९। आ० ८८। ९३।।
(समीzक) अब देिखये मतलबिस3धु कR बात! jक वे ही भले ह< जो मुह›मद
साहेब के साथ ईमान लाये और जो नहc लाये वे बुरे ह<! eया यह बात पzपात
और अिव‡ा से भरी gई नहc है? जब खुदा ने मोहर ही लगा दी तो उन का
अपराध पाप करने मO कोई भी नहc jक3तु खुदा ही का अपराध है eयijक उन
िबचारi को भलाई से jदलi पर मोहर लगा के रोक jदये; यह jकतना बड़ा
अ3याय है!!! ।।८७।।
८८-ले माल उनके से खैरात jक पिव• करे तू उन को अथा&त् बाहरी और शुZ
करे तू उन को साथ उन के अथा&त् गुƒ मO।। िनtय अqलाह ने मोल ली ह<
मुसलमानi से जानO उन कR और माल उन के बदले, jक वाHते उन के बिहŸत
है। लडO◌ग़ े बीच माग& अqलाह के बस मारO गे और मर जावOगे।। -मंन २। िस०
११। सू० ९। आ० १०३। १११।।
(समीzक) वाह जी वाह मुह›मद साहेब! आपने तो गोकु िलये गुसांइयi कR
बराबरी कर ली eयijक उन का माल लेना और उन को पिव• करना यही बात
तो गुसांइयi कR है। वाह खुदा जी! आपने अ¸छी सौदागरी लगाई jक
मुसलमानi के हाथ से अ3य गरीबi के 'ाण लेना ही लाभ समभफ़ा और उन
अनाथi को मरवा कर उन िनद&यी मनु‘यi को Hवग& देने से दया और 3याय से
मुसलमानi का खुदा हाथ धो बैठा और अपनी खुदाई मO बÝा लगा के बुिZमान्
धा“मकi मO घृिणत हो गया।।८८।।
८९-ऐ लोगो जो ईमान लाये हो लड़ो उन लोगi से jक पास तु›हारे ह< काjफरi
से और चािहये jक पावO बीच तु›हारे दृढ़ता।। eया नहc देखते यह jक वे बलाu
मO डाले जाते ह< बीच हर वष& के एक बार वा दो बार। jफर वे नहc तोबा करते
और न वे िशzा पकड़ते ह<।। -मंन २। िस० ११। सू० ९। आ० १२३। १२६।।
(समीzक) देिखये! ये भी एक िव5ासघात कR बातO खुदा मुसलमानi को
िसखलाता है jक चाहO पड़ोसी हो वा jकसी के नौकर हi जब अवसर पावO तभी
लड़ाई वा घात करO । ऐसी बातO मुसलमानi से बgत बन गई ह< इसी कु रान के
लेख से। अब तो मुसलमान समभफ़ के इन कु रानोž बुराइयi को छोड़ दO तो
बgत अ¸छा है।।८९।।
९०-िनtय परवरjदगार तु›हारा अqलाह है िजस ने पैदा jकया आसमानi और
पृिथवी को बीच छः jदन के । jफर करार पकड़ा ऊपर अश& के , तदबीर करता
है काम कR।। -मंन ३। िस० ११। सू० १०। आ० ३।।
(समीzक) आसमान आकाश एक और िबना बना अनाjद है। उस का बनाना
िलखने से िनtय gआ jक वह कु रानकsा& पदाथ&िव‡ा को नहc जानता था?
eया परमे5र के सामने छः jदन तक बनाना पड़ता है? तो जो ‘हो मेरे geम
से और हो गया’ जब कु रान मO ऐसा िलखा है jफर छः jदन कभी नहc लग
सकते।। इससे छः jदन लगना भफ़ू ठ है। जो वह aापक होता तो ऊपर अश& के
eयi ठहरता? और जब काम कR तदबीर करता है तो ठीक तु›हारा खुदा
मनु‘य के समान है eयijक जो सव&X है वह बैठा-बैठा eया तदबीर करे गा? इस
से िवjदत होता है jक ई5र को न जानने वाले जंगली लोगi ने यह पुHतक
बनाया होगा।।९०।।
९१-िशzा और दया वाHते मुसलमानi के ।। -मंन ३। िस० ११। सू० १०। आ०
५७।।
(समीzक) eया यह खुदा मुसलमानi ही का है? दूसरi का नहc? और पzपाती
है जो मुसलमानi ही पर दया करे अ3य मनु‘यi पर नहc। यjद मुसलमान
ईमानदारi को कहते ह< तो उन के िलये िशzा कR आवŸयकता ही नहc और
मुसलमानi से िभ–i को उपदेश नहc करता तो खुदा कR िव‡ा ही aथ&
है।।९१।।
९२-परीzा लेवे तुम को, कौन तुम मO से अ¸छा है कमŽ मO। जो कहे तू! अवŸय
उठाये जाओगे तुम पीछे मृ"यु के ।। -मंन ३। िस० १२। सू० ११। आ० ७।।
(समीzक) जब कमŽ कR परीzा करता है तो सव&X ही नहc। और जो मृ"यु
पीछे उठाता है तो दो◌ैड़ा सुपुद& रखता है और अपने िनयम जो jक मरे gए न
जीवO उस को तोड़ता है। यह खुदा को बÝा लगता है।।९२।।
९३-और कहा गया ऐ पृिथवी अपना पानी िनगल जा और ऐ आसमान बस
कर और पानी सूख गया।। और ऐ कौम यह है jक िनशानी ऊंटनी अqलाह कR
वाHते तु›हारे , बस छोड़ दो उस को बीच पृिथवी अqलाह के खाती jफरे ।। -मंन
३। िस० १२। सू० ११। आ० ४४। ६४।।
(समीzक) eया लड़के पन कR बात है! पृिथवी और आकाश कभी बात सुन
सकते ह<? वाह जी वाह! खुदा के ऊंटनी भी है तो ऊंट भी होगा? तो हाथी
घोडे,़ गवमे आjद भी हiगे? और खुदा का ऊंटनी से खेत िखलाना eया अ¸छी
बात है? eया ऊंटनी पर चढ़ता भी है? जो ऐसी बातO ह< तो नवाबी कR सी
घसड़पसड़ खुदा के घर मO भी gई।।९३।।
९४-और सदैव रहने वाले बीच उस के जब तक jक रहO आसमान और पृिथवी।।
और जो लोग सुभागी gए बस बिहŸत के सदा रहने वाले ह<; जब तक रहO
आसमान और पृिथवी।। -मंन ३। िस० १२। सू० ११। आ० १०७। १०८।।
(समीzक) जब दोजख और बिहŸत मO कयामत के पtात् सब लोग जायOगे jफर
आसमान और पृिथवी jकस िलए रहेगी? और जब दोज़ख और बिहŸत के रहने
कR आसमान पृिथवी के रहने तक अविध gई तो सदा रहOगे बिहŸत वा दोजख
मO, यह बात भफ़ू ठी gई। ऐसा कथन अिवyानi का होता है; ई5र वा िवyानi
का नहc।।९४।।
९५-जब यूसुफ ने अपने बाप से कहा jक ऐ बाप मेरे म<ने एक Hव¹ मO देखा।। -
मंन ३। िस० १२। सू० १२। आ० ४ से ५९ तक।।
(समीzक) इस 'करण मO िपता पु• का संवाद’प jकHसा कहानी भरी है
इसिलये कु रान ई5र का बनाया नहc। jकसी मनु‘य ने मनु‘यi का इितहास
िलख jदया है।।९५।।
९६-अqलाह वह है jक िजस ने खड़ा jकया आसमानi को िवना ख›भे के देखते
हो तुम उस को। jफर ठहरा ऊपर अश& के । आXा वत&ने वाला jकया सूरज और
चांद को।। और वही है िजस ने िबछाया पृिथवी को।। उतारा आसमान से पानी
बस बहे नाले साथ अ3दाजे अपने के ।। अqलाह खोलता है भोजन को वाHते
िजस को चाहे और तंग करता है।।
-मंन ३। िस० १३। सू० १३। आ० २। ३। १७। २६।।
(समीzक) मुसलमानi का खुदा पदाथ&िव‡ा कु छ भी नहc जानता था। जो
जानता तो गु˜"व न होने से आसमान को ख›भे लगाने कR कथा कहानी कु छ
भी न िलखता। यjद खुदा अश&’प एक Hथान मO रहता है तो वह सव&शिžमान्
और सव&aापक नहc हो सकता । और जो खुदा मेघिव‡ा जानता तो आकाश
से पानी उतारा िलखा पुनः यह eयi न िलखा jक पृिथवी से पानी ऊपर
चढ़ाया। इससे िनtय gआ jक कु रान का बनाने वाला मेघ कR िव‡ा को भी
नहc जानता था। और जो िवना अ¸छे बुरे कामi के सुख दुःख देता है तो
पzपाती अ3यायकारी िनरzर भÝ है।।९६।।
९७-कह िनtय अqलाह गुमराह करता है िजस को चाहता है और माग&
jदखलाता है तफ& अपनी उस मनु‘य को ˜जू करता है।।
-मंन ३। िस० १३। सू० १३। आ० २७।।
(समीzक) जब अqलाह गुमराह करता है तो खुदा और शैतान मO eया भेद
gआ? जब jक शैतान दूसरi को गुमराह अथा&त् बहकाने से बुरा कहाता है तो
खुदा भी वैसा ही काम करने से बुरा शैतान eयi नहc? और बहकाने के पाप
से दोजखी eयi नहc होना चािहये? ।।९७।।
९८-इसी 'कार उतारा हम ने इस कु रान को अबŠ मO, जो पz करे गा तू उन
कR इ¸छा का पीछे इस के आई तेरे पास िव‡ा से।। बस िसवाय इस के नहc
jक ऊपर तेरे पैगाम पgँचाना है और ऊपर हमारे है िहसाब लेना।। -मंन ३।
िस० १३। सू० १३। आ० ३७। ४०।।
(समीzक) कु रान jकधर कR ओर से उतारा? eया खुदा ऊपर रहता है? जो
यह बात स0 है तो वह एकदेशी होने से ई5र ही नहc हो सकता eयijक ई5र
सब Wठकाने एकरस aापक है। पैगाम पgँचाना हqकारे का काम है और हqकारे
कR आवŸयकता उसी को होती है जो मनु‘यवत् एकदेशी हो। और िहसाब लेना
देना भी मनु‘य का काम है; ई5र का नहc eयijक वह सव&X है। यह िनtय
होता है jक jकसी अqपX मनु‘य का बनाया कु रान है।।९८।।
९९-और jकया सूय& च3¥ को सदैव jफरने वाला।। िनtय आदमी अवŸय
अ3याय और पाप करने वाला है।। -मंन ३। िस० १३। सू० १४। आ० ३३। ३४।।
(समीzक) eया च3¥, सूय& सदा jफरते और पृिथवी नहc jफरती? जो पृिथवी
नहc jफरे तो कई वषŽ का jदन रात होवे। और जो मनु‘य िनtय अ3याय और
पाप करने वाला है तो कु रान से िशzा करना aथ& है। eयijक िजन का Hवभाव
पाप ही करने का है तो उन मO पु‹या"मता कभी न होगी और संसार मO पु‹या"मा
और पापा"मा सदा दीखते ह<। इसिलये ऐसी बात ई5रकृ त पुHतक कR नहc हो
सकती।।९९।।
१००-बस जब ठीक क’ँ म< उस को और फूं क दूं बीच उसके ’ह अपनी से। बस
िगर पड़ो वाHते उस के िसजदा करते gए।। कहा ऐ रब मेरे, इस कारण jक
गुमराह jकया तू ने मुभफ़ को अवŸय जीनत दूग ं ा म< वाHते उन के बीच पृिथवी
के और गुमराह क’ंगा।। -मंन ३। िस० १४। सू० १५। आ० २९। से ३९। तक।।
(समीzक) जो खुदा ने अपनी ’ह आदम साहेब मO डाली तो वह भी खुदा gआ
और जो वह खुदा न था तो िसजदा अथा&त् नमHकाराjद भिž करने मO अपना
शरीक eयi jकया? जब शैतान को गुमराह करने वाला खुदा ही है तो वह
शैतान का भी शैतान बड़ा भाई गु˜ eयi नहc? eयijक तुम लोग बहकाने वाले
को शैतान मानते हो तो खुदा ने भी शैतान को बहकाया और '"यz शैतान ने
कहा jक म< बहकाऊंगा। jफर भी उस को द‹ड देकर कै द eयi न jकया? और
मार eयi न डाला? ।।१००।।
१०१-और िनtय भेजे हम ने बीच हर उ›मत के पैग›बर।। जब चाहते ह< हम
उस को, यह कहते ह< हम उस को हो! बस हो जाती है।।
-मंन ३। िस० १४। सू० १६। आ० ३५।४०।।
(समीzक) जो सब कौमi पर पैग›बर भेजे ह< तो सब लोग जो jक पैग›बर कR
राय पर चलते ह< वे काjफर eयi? eया दूसरे पैग›बर का मा3य नहc िसवाय
तु›हारे पैग›बर के ? यह सव&था पzपात कR बात है। जो सब देश मO पैग›बर
भेजे तो आ‰या&वत& मO कौन सा भेजा? इसिलये यह बात मानने यो•य नहc। जब
खुदा चाहता है और कहता है jक पृिथवी हो जा, वह जड़ कभी नहc सुन सकती।
खुदा का geम eयiकर बजा सके गा? और िसवाय खुदा के दूसरी चीज नहc
मानते तो सुना jकस ने? और हो कौन गया? ये सब अिव‡ा कR बातO ह<। ऐसी
बातi को अनजान लोग मानते ह<।।१०१।।
१०न-और िनयत करते ह< वाHते अqलाह के बेWटयां-पिव•ता है उस को- और
वाHते उनके ह< जो कु छ चाहO।। कसम अqलाह कR अवŸय भेजे हम ने पैग›बर।।
-मंन ३। िस० १४। सू० १६। आ० ५७। ६३।।
(समीzक) अqलाह बेWटयi से eया करे गा? बेWटयां तो jकसी मनु‘य को
चािहये, eयi बेटे िनयत नहc jकये जाते और बेWटयां िनयत कR जाती ह<? इस
का eया कारण है? बताइये? कसम खाना भफ़ू ठi का काम है, खुदा कR बात
नहc। eयijक बgधा संसार मO ऐसा देखने मO आता है jक जो भफ़ू ठा होता है
वही कसम खाता है। स0ा सौग3ध eयi खावे? ।।१०२।।
१०३-ये लोग वे ह< jक मोहर रeखी अqलाह ने ऊपर jदलi उन के और कानi
उन के और आंखi उन कR के और ये लोग वे ह< बेखबर।। और पूरा jदया जावेगा
हर जीव को जो कु छ jकया है और वे अ3याय न jकये जावOगे।। -मंन ३। िस०
१४। सू० १६। आ० १०८-१११।।
(समीzक)-जब खुदा ही ने मोहर लगा दी तो वे िबचारे िवना अपराध मारे
गये eयijक उन को पराधीन कर jदया। यह jकतना बड़ा अपराध है? और
jफर कहते ह< jक िजस ने िजतना jकया है उतना ही उस को jदया जायगा;
3यूनािधक नहc। भला! उ3हiने Hवत3•ता से पाप jकये ही नहc jक3तु खुदा के
कराने से jकये। पुनः उन का अपराध ही न gआ। उन को फल न िमलना
चािहये। इस का फल खुदा को िमलना उिचत है। और जो पूरा jदया जाता है
तो zमा jकस बात कR जाती है? जो zमा कR जाती है तो 3याय उड़ जाता है।
ऐसा गड़बड़ा—याय ई5र का कभी नहc हो सकता jक3तु िनबु&िZ छोकरi का
होता है।।१०३।।
१०४-और jकया हमने दोजख को वाHते काjफरi के घेरने वाला Hथान।। और
हर आदमी को लगा jदया हम ने उस को अमलनामा उस का बीच गद&न उस
कR के और िनकालOगे हम वाHते उस के jदन कयामत के एक jकताब jक देखेगा
उस को खुला gआ।। और बgत मारे हम ने कु रनून से पीछे नूह के ।। -मंन ४।
िस० १५। सू० १७। आ० ८-१३। १७।।
(समीzक) यjद काjफर वे ही ह< jक जो कु रान, पैग›बर और कु रान के कहे
खुदा, सातवO आसमान और नमाज आjद को न मानO और उ3हc के िलये दोजख
होवे तो यह बात के वल पzपात कR ठहरे eयijक कु रान ही के मानने वाले सब
अ¸छे और अ3य के मानने वाले सब बुरे कभी हो सकते ह<? यह बड़ी लड़कपन
कR बात है jक '"येक कR गद&न मO कम&पुHतक! हम तो jकसी एक कR भी गद&न
मO नहc देखते। यjद इस का 'योजन कमŽ का फल देना है तो jफर मनु‘यi के
jदलi, ने•O आjद पर मोहर रखना और पापi का zमा करना eया खेल मचाया
है? कयामत कR रात को jकताब िनकालेगा खुदा तो आज कल वह jकताब
कहां है? eया सा•कार कR बही समान िलखता रहता है? यहां यह िवचारना
चािहये jक जो पूव&ज3म नहc तो जीवi के कम& ही नहc हो सकते jफर कम& कR
रे खा eया िलखी? जो िवना कम& के िलखा तो उन पर अ3याय jकया eयijक
िवना अ¸छे बुरे क›मŽ के उन को दुःख-सुख eयi jदया? जो कहो jक खुदा कR
मरजी, तो भी उसने अ3याय jकया। अ3याय उस को कहते ह< jक िवना बुरे भले
कम& jकये दुःख सुख’प फल 3यूनािधक देना और उस समय खुदा ही jकताब
बांचेगा वा कोई सWरŸतेदार सुनावेगा? जो खुदा ही ने दीघ&काल स›ब3धी जीवi
को िवना अपराध मारा तो वह अ3यायकारी हो गया। जो अ3यायकारी होता
है वह खुदा ही नहc हो सकता।।१०४।।
१०५-और jदया हमने समूद को ऊंटनी 'माण।। और बहका िजस को बहका
सके ।। िजस jदन बुलावOगे हम सब लोगi को साथ पेशवाu उन के बस जो कोई
jदया गया अमलनामा उस का बीच दिहने हाथ उस के ।।
-मंन ४। िस० १५। सू० १७। आ० ५९। ६४। ७१।।
(समीzक) वाह जी! िजतनी खुदा कR साtय& िनशानी ह< उन मO से एक ऊंटनी
भी खुदा के होने मO 'माण अथवा परीzा मO साधक है। यjद खुदा ने शैतान को
बहकाने का geम jदया तो खुदा ही शैतान का सरदार और सब पाप कराने
वाला ठहरा। ऐसे को खुदा कहना के वल कम समभफ़ कR बात है। जब कयामत
कR रात अथा&त् 'लय ही मO 3याय करने कराने के िलये पैग›बर और उन के
उपदेश मानने वालi को खुदा बुलावेगा तो जब तक 'लय न होगा तब तक सब
दौरा सुपुद& रहे और दौरा सुपुद& सब को दुःखदायक है जब तक 3याय न jकया
जाय। इसिलये शीÎ 3याय करना 3यायाधीश का उsम काम है। यह तो
पोपांबाई का 3याय ठहरा। जैसे कोई 3यायाधीश कहे jक जब तक पचास वष&
तक के चोर और सा•कार इक$े न हi तब तक उन को द‹ड वा 'ित¼ा न करनी
चािहये। वैसा ही यह gआ jक एक तो पचास वष& तक दौरा सुपुद& रहा और एक
आज ही पकड़ा गया। ऐसा 3याय का काम नहc हो सकता। 3याय तो वेद और
मनुHमृित का देखो िजस मO zण मा• िवल›ब नहc होता और अपने-अपने
कमा&नुसार द‹ड वा 'ित¼ा सदा पाते रहते ह<। दूसरा पैग›बरi को गवाही के
तुqय रखने से ई5र कR सव&Xता कR हािन है। भला ! ऐसा पुHतक ई5रकृ त
और ऐसे पुHतक का उपदेश करने वाला ई5र कभी हो सकता है? कभी
नहc।।१०५।।१०६-ये लोग वाHते उन के ह< बाग हमेशह रहने के , चलती ह<
नीचे उन के से नहरO , गहना पिहराये जावOगे बीच उस के कं गन सोने के से और
पोशाक पिहनOगे व¬ हWरत लािह कR से और ताफते कR से तjकये jकये gए
बीच उस के ऊपर तख़तi के । अ¸छा है पु‹य और अ¸छी है बिहŸत लाभ उठाने
कR।।
-मंन ४। िस० १५। सू० १८। आ० ३१।।
(समीzक) वाह जी वाह! eया कु रान का Hवग& है िजस मO बाग, गहने, कपड़े,
गÖी, तjकये आन3द के िलये ह<। भला! कोई बुिZमान् यहां िवचार करे तो यहां
से वहाँ मुसलमानi के बिहŸत मO अिधक कु छ भी नहc है िसवा अ3याय के , वह
यह jक कम& उन के अ3त वाले और फल उन का अन3त। और जो मीठा िन"य
खावे तो थोड़े jदन मO िवष के समान 'तीत होता है। जब सदा वे सुख भोगOगे
तो उन को सुख ही दुःख’प हो जायगा। इसिलये महाकqप पय&3त मुिžसुख
भोग के पुनज&3म पाना ही स"य िसZा3त है।।१०६।।
१०७-और यह बिHतयां ह< jक मारा हम ने उन को जब अ3याय jकया उ3हiने
और हम ने उन के मारने कR 'ितXा Hथापन कR।।
-मंन ४। िस० १५। सू० १८। आ० ५९।।
(समीzक) भला! सब बHती भर पापी कभी हो सकती है? और पीछे से 'ितXा
करने से ई5र सव&X नहc रहा eयijक जब उन का अ3याय देखा तो 'ितXा
कR, पिहले नहc जानता था। इस से दयाहीन भी ठहरा।।१०७।।
१०८-और वह जो लड़का, बस थे माँ बाप उस के ईमान वाले, बस डरे हम
यह jक पकड़े उन को सरकशी मO और कु . मO।। यहां तक jक पgँचा जगह डू बने
सू‰य& कR, पाया उसको डू बता था बीच चŸमे कRचड़ के ।। कहा उन ने
ऐजुलकरनैन! िनtय याजूज माजूज jफसाद करने वाले ह< बीच पृिथवी के ।। -
मंन ४। िस० १६। सू० १८। आ० ८०। ८६। ९४।।
(समीzक) भला! यह खुदा कR jकतनी बेसमभफ़ है! शंका से डरा jक लड़के के
माँ बाप कहc मेरे माग& से बहका कर उलटे न कर jदये जावO। यह कभी ई5र
कR बात नहc हो सकती। अब आगे कR अिव‡ा कR बात देिखये jक इस jकताब
का बनाने वाला सू‰य& को एक भफ़Rल मO राि• को डू बा जानता है, jफर
'ातःकाल िनकलता है। भला! सू‰य& तो पृिथवी से बgत बड़ा है। वह नदी वा
भफ़Rल वा समु¥ मO कै से डू ब सके गा? इस से यह िवjदत gआ jक कु रान के
बनाने वाले को भूगोल खगोल कR िव‡ा नहc थी। जो होती तो ऐसी
िव‡ािव˜Z बात eयi िलख देता । और इस पुHतक को मानने वालi को भी
िव‡ा नहc है। जो होती तो ऐसी िम•या बातi से युž पुHतक को eयi मानते?
अब देिखये खुदा का अ3याय! आप ही पृिथवी को बनाने वाला राजा
3यायाधीश है औार याजूज माजूज को पृिथवी मO फसाद भी करने देता है। यह
ई5रता कR बात से िव˜Z है। इस से ऐसी पुHतक को जंगली लोग माना करते
ह<; िवyान् नहc।।१०८।।
१०९-और याद करो बीच jकताब के मय&म को, जब जा पड़ी लोगi अपने से
मकान पूवŠ मO।। बस पड़ा उन से इधर पदा&, बस भेजा हम ने ’ह अपनी को
अथा&त् फWरŸता, बस सूरत पकड़ी वाHते उस के आदमी पु… कR।। कहने लगी
िनtय म< शरण पकड़ती •ँ रहमान कR तुभफ़ से, जो है तू परहेजगार।। कहने
लगा िसवाय इस के नहc jक म< भेजा gआ •ं मािलक तेरे के से, ताjक दे जाऊं
म< तुभफ़ को लड़का पिव•।। कहा कै से होगा वाHते मेरे लड़का नहc हाथ लगाया
मुभफ़ को आदमी ने, नहc म< बुरा काम करने वाली।। बस िगभ&त हो गई साथ
उस के और जा पड़ी साथ उस के मकान दूर अथा&त् जंगल मO।।
-मंन ४। िस० १६। सू० १९। आ० १६। १७। १८। १९। २०-२३।।
(समीzक) अब बुिZमान् िवचार लO jक फWरŸते सब खुदा कR ’ह ह< तो खुदा
से अलग पदाथ& नहc हो सकते। दूसरा यह अ3याय jक वह मय&म कु मारी के
लड़का होना। jकसी का संग करना नहc चाहती थी पर3तु खुदा के geम से
फWरŸते ने उस को गभ&वती jकया। यह 3याय से िव˜Z बात है। यहां अ3य भी
अस^यता कR बातO बgत िलखी ह< उन को िलखना उिचत नहc
समभफ़ा।।१०९।।
११०-eया नहc देखा तू ने यह jक भेजा हम ने शैतानi को ऊपर काjफरi के
बहकाते ह< उन को बहकाने कर।। -मंन ४। िस० १६। सू० १९। आ० ८३।।
(समीzक) जब खुदा ही शैतानi को बहकाने के िलये भेजता है तो बहकने वालi
का कु छ दोष नहc हो सकता और न उन को द‹ड हो सकता और न शैतानi
को। eयijक यह खुदा के geम से सब होता है। इस का फल खुदा को होना
चािहये। जो स0ा 3यायकारी है तो उस का फल दोजख आप ही भोगे और जो
3याय को छोड़ के अ3याय को करे तो अ3यायकारी gआ। अ3यायकारी ही पापी
कहाता है।।११०।।

१११-और िनtय zमा करने वाला •ँ वाHते उस मनु‘य के तोबाः कR और


ईमान लाया और कम& jकये अ¸छे, jफर माग& पाया।।
-मंन ४। िस० १६। सू० २०। आ० ८२।।
(समीzक) जो तोबाः से पाप zमा करने कR बात कु रान मO है यह सब को पापी
कराने वाली है eयijक पािपयi को इस से पाप करने का साहस बgत बढ़ जाता
है। इस से यह पुHतक और इस का बनाने वाला पािपयi को पाप करने मO
हौसला बढ़ाने वाले ह<। इस से यह पुHतक परमे5रकृ त और इस मO कहा gआ
परमे5र भी नहc हो सकता।।१११।।
११२-और jकये हम ने बीच पृिथवी के पहाड़ ऐसा न हो jक िहल जावे।। -मंन
४। िस० १७। सू० २१। आ० ३०।।
(समीzक) यjद कु रान का बनाने वाला पृिथवी का घूमना आjद जानता तो
यह बात कभी नहc कहता jक पहाड़i के धरने से पृिथवी नहc िहलती। शंका
gई jक जो पहाड़ नहc धरता तो िहल जाती! इतने कहने पर भी भूक›प मO eयi
िडग जाती है? ।।११२।।
११३-और िशzा दी हम ने उस औरत को और रzा कR उस ने अपने गुÉ अंगi
कR। बस फूं क jदया हम ने बीच उस के ’ह अपनी को।।
-मंन ४। िस० १७। सू० २१। आ० ९१।।
(समीzक) ऐसी अºील बातO खुदा कR पुHतक मO खुदा कR eया और स^य मनु‘य
कR भी नहc होतc। जब jक मनु‘यi मO ऐसी बातi का िलखना अ¸छा नहc तो
परमे5र के सामने eयiकर अ¸छा हो सकता है? ऐसी-ऐसी बातi से कु रान
दूिषत होता है। यjद अ¸छी बात होती तो अित 'शंसा होती; जैसे वेदi
कR।।११३।।
११४-eया नहc देखा तूने jक अqलाह को िसजदा करते ह< जो कोई बीच
आसमानi और पृिथवी के ह<, सूय& और च3¥ तारे और पहाड़, वृz और जानवर।।
पिहनाये जावOगे बीच उस के कं गन सोने और मोती के और पिहनावा उन का
बीच उसके रे शमी है।। और पिव• रख घर मेरे को वाHते िगद& jफरने वालi के
और खड़े रहने वालi के ।। jफर चािहये jक दूर करO मैल अपने और पूरी करO भOटO
अपनी और चारi ओर jफरO घर कदीम के ।। ताjक नाम अqलाह का याद करO ।।
-मंन ४। िस० १७। सू० २२। आ० १८। २३। २६। २८। ३३।।
(समीzक) भला! जो जड़ वHतु ह<, परमे5र को जान ही नहc सकते, jफर वे
उस कR भिž eयiकर कर सकते ह<? इस से यह पुHतक ई5रकृ त तो कभी नहc
हो सकता jक3तु jकसी ±ा3त का बनाया gआ दीखता है। वाह! बड़ा अ¸छा
Hवग& है जहाँ सोने मोती के गहने और रे शमी कपड़े पिहरने को िमलO। यह
बिहŸत यहां के राजाu के घर से अिधक नहc दीख पड़ता। और जब परमे5र
का घर है तो वह उसी घर मO रहता भी होगा jफर बु"परHती eयi न gई? और
दूसरे बु"परHतi का ख‹डन eयi करते ह<? जब खुदा भOट लेता, अपने घर कR
पWर¦मा करने कR आXा देता है और पशुu को मरवा के िखलाता है तो यह
खुदा मि3दर वाले और भैरव, दुगा& के सदृश gआ और महाबु"परHती का चलाने
वाला gआ eयijक मू“तयi से मिHजद बड़ा बुत् है। इस से खुदा और मुसलमान
बड़े बु"परHत और पुराणी तथा जैनी छोटे बु"परHत ह<।।११४।।

११५-jफर िनtय तुम jदन कयामत के उठाये जाओगे।। -मंन ४। िस० १८। सू०
२३। आ० १६।।
(समीzक) कयामत तक मुद· कबरi मO रहOगे वा jकसी अ3य जगह? जो उ3हc
मO रहOगे तो सड़े gए दुग&3ध’प शरीर मO रहकर पु‹या"मा भी दुःख भोग करO गे?
यह 3याय अ3याय है। और दुग&3ध अिधक होकर रोगो"पिs करने से खुदा और
मुसलमान पापभागी हiगे।।११५।।
११६-उस jदन कR गवाही देवOगे ऊपर उन के जबानO उन कR और हाथ उन के
और पांव उन के साथ उस वHतु के jक थे करते।। अqलाह नूर है आसमानi का
और पृिथवी का, नूर उस के jक मािन3द ताक कR है बीच उस के दीप हो और
दीप बीच कं दील शीशi के ह<, वह कं दील मानो jक तारा है चमकता, रोशन
jकया जाता है दीपक वृz मुबाWरक जैतून के से, न पूव& कR ओर है न पिtम
कR, समीप है तेल उस का रोशन हो जावे जो न लगे ऊपर रोशनी के माग&
jदखाता है अqलाह नूर अपने के िजस को चाहता है।।
-मंन ४। िस० १८। सू० २४। आ० २४। ३५।।
(समीzक) हाथ पग आjद जड़ होने से गवाही कभी नहc दे सकते यह बात
सृि…¦म से िव˜Z होने से िम•या है। eया खुदा आगी िबजुली है? जैसा jक
दृ…ा3त देते ह< ऐसा दृ…ा3त ई5र मO नहc घट सकता। हां! jकसी साकार वHतु
मO घट सकता है।।११६।।
११७-और अqलाह ने उ"प– jकया हर जानवर को पानी से बस कोई उन मO
से वह है jक जो चलता है पेट अपने के ।। और जो कोई आXा पालन करे अqलाह
कR रसूल उस के कR।। कह आXा पालन करे खुदा कR रसूल उस के कR और
आXा पालन करो रसूल कR ताjक दया jकये जाओ।।
-मंन ४। िस० १८। सू० २४। आ० ४५। ५२। ५६।।
(समीzक) यह कौन सी jफलासफR है jक िजन जानवरi के शरीर मO सब तÓव
दीखते ह< और कहना jक के वल पानी से उ"प– jकये। यह के वल अिव‡ा कR
बात है। जब अqलाह के साथ पैग›बर कR आXा पालन करना होता है तो खुदा
का शरीक हो गया वा नहc? यjद ऐसा है तो eयi खुदा को लाशरीक कु रान मO
िलखा और कहते हो? ।।११७।।
११८-और िजस jदन jक फट जावेगा आसमान साथ बदली के और उतारे
जावOगे फWरŸते।। बस मत कहा मान काjफरi का और भफ़गड़ा कर उन से साथ
भफ़गड़ा बढ़ा ।। और बदल डालता है अqलाह बुराइयi उन कR को भलाइयi
से।। और जो कोई तोबाः करे और कम& करे अ¸छे बस िनtय आता है तरफ
अqलाह
कR।। -मंन ४। िस० १९। सू० २५। आ० २५-५२। ७०। ७१।।
(समीzक) यह बात कभी सच नहc हो सकती है jक आकाश बÖलi के साथ
फट जावे। यjद आकाश कोई मू&ि◌s&मान् पदाथ& हो तो फट सकता है। यह
मुसलमानi का कु रान शाि3त भंग कर गदर भफ़गड़ा मचाने वाला है। इसीिलये
धा“मक िवyान् लोग इस को नहc मानते। यह भी अ¸छा 3याय है jक जो पाप
और पु‹य का अदला बदला हो जाय। eया यह ितल और उड़द कR सी बात है
जो पलटा हो जावे? जो तोबा करने से पाप छू टे और ई5र िमले तो कोई भी
पाप करने से न डरे । इसिलये ये सब बातO िव‡ा से िव˜Z ह<।।११८।।

११९-वही कR हम ने तरफ मूसा कR यह jक ले चल रात को ब3दi मेरे को,


िनtय तुम पीछा jकये जाओगे।। बस भेजे लोग jफरोन ने बीच नगरi के जमा
करने वाले।। और वह पु˜ष jक िजसने पैदा jकया मुभफ़ को है, बस वही माग&
jदखलाता है।। और वह जो िखलाता है मुभफ़ को िपलाता है मुभफ़ को।। और
उस पु˜ष कR आशा रखता •ँ म< यह jक zमा करे वाHते मेरे अपराध मेरा jदन
कयामत के ।। -मंन ५। िस० १९। सू० २६। आ० ५२। ५३। ७८। ७९। ८२।।
(समीzक) जब खुदा ने मूसा कR ओर बही भेजी पुनः दाऊद, ईसा और मुह›मद
साहेब कR ओर jकताब eयi भेजी? eयijक परमे5र कR बात सदा एक सी और
बेभूल होती है और उस के पीछे कु रान तक पुHतकi का भेजना पहली पुHतक
को अपूण& भूलयुž माना जायगा। यjद ये तीन पुHतक स0े ह< तो यह कु रान
भफ़ू ठा होगा। चारi का जो jक परHपर 'ायः िवरोध रखते ह< उन का सव&था
स"य होना नहc हो सकता। यjद खुदा ने ’ह अथा&त् जीव पैदा jकये ह< तो वे
मर भी जायOगे अथा&त् उन का कभी नाश कभी अभाव भी होगा? जो परमे5र
ही मनु‘याjद 'ािणयi को िखलाता िपलाता है तो jकसी को रोग होना न
चािहये और सब को तुqय भोजन देना चािहये । पzपात से एक को उsम और
दूसरे को िनकृ … जैसा jक राजा और कं गले को ~े¼ िनकृ … भोजन िमलता है;
न होना चािहये। जब परमे5र ही िखलाने िपलाने और प•य कराने वाला है
तो रोग ही न होने चािहये पर3तु मुसलमान आjद को भी रोग होते ह<। यjद
खुदा ही रोग छु ड़ा कर आराम करने वाला है तो मुसलमानi के शरीरi मO रोग
न रहना चािहये। यjद रहता है तो खुदा पूरा वै‡ नहc है यjद पूरा वै‡ है तो
मुसलमानi के शरीरi मO रोग eयi रहते ह<? यjद वही मारता और िजलाता है
तो उसी खुदा को पाप पु‹य लगता होगा। यjद ज3म ज3मा3तर के कमा&नुसार
aवHथा करता है तो उस को कु छ भी अपराध नहc। यjद वह पाप zमा और
3याय कयामत कR रात मO करता है तो खुदा पाप बढ़ाने वाला होकर पापयुž
होगा। यjद zमा नहc करता तो यह कु रान कR बात भफ़ू ठी होने से बच नहc
सकती है।।११९।।
१२०-नहc तू पर3तु आदमी मािन3द हमारी बस ले आ कु छ िनशानी जो है तू
स0i से।। कहा यह ऊंटनी है वाHते उस के पानी पीना है एक बार।। -मंन ५।
िस० १९। सू० २६। आ० १५४। १५५।।
(समीzक) भला! इस बात को कोई मान सकता है jक प"थर से ऊंटनी िनकले!
वे लोग जंगली थे jक िज3हiने इस बात को मान िलया। और ऊंटनी कR िनशानी
देनी के वल जंगली aवहार है; ई5रकृ त नहc। यjद यह jकताब ई5रकृ त होती
तो ऐसी aथ& बातO इस मO न होतc।।१२०।।
१२१-ऐ मूसा बात यह है jक िनtय म< अqलाह •ँ गािलब।। और डाल दे असा
अपना, बस जब jक देखा उस को िहलता था मानो jक वह सांप है---ऐ मूसा
मत डर, िनtय नहc डरते समीप मेरे पैग›बर।। अqलाह नहc कोई माबूद
पर3तु वह मािलक अश& बड़े का।। यह jक मत सरकशी करो ऊपर मेरे और चले
आओ मेरे पास मुसलमान होकर।।
-मंन ५। िस० १९। सू० २७। आ० ९। १०। २६। ३१।।
(समीzक) और भी देिखये अपने मुख आप अqलाह बड़ा जबरदHत बनता है।
अपने मुख से अपनी 'शंसा करना ~े¼ पु˜ष का भी काम नहc; खुदा का eयiकर
हो सकता है? तभी तो इ3¥जाल का लटका jदखला जंगली मनु‘यi को वश
कर आप जंगलHथ खुदा बन बैठा। ऐसी बात ई5र के पुHतक मO कभी नहc हो
सकती। यjद वह बड़े अश& अथा&त् सातवO आसमान का मािलक है तो वह
एकदेशी होने से ई5र ही नहc हो सकता है। यjद सरकशी करना बुरा है तो
खुदा और मुह›मद साहेब ने अपनी Hतुित से पुHतक eयi भर jदये? मुह›मद
साहेब ने अनेकi को मारे इस से सरकशी gई वा नहc? यह कु रान पुन˜ž और
पूवा&पर िव˜Z बातi से भरा gआ है।।१२१।।
१२२-और देखेगा तू पहाड़i को अनुमान करता है तू उन को जमे gए और वे
चले जाते ह< मािन3द चलने बादलi कR, कारीगरी अqलाह कR िजसने दृढ़ jकया
हर वHतु को, िनtय वह खबरदार है उस वHतु के jक करते हो।। -मंन ५। िस०
२०। सू० २७। आ० ८७। ८८।।
(समीzक) बÖलi के समान पहाड़ का चलना कु रान बनाने वालi के देश मO
होता होगा; अ3य• नहc। और खुदा कR -πबरदारी तो शैतान बाजी को न
पकड़ने और न द‹ड देने से ही िवjदत होती है jक िजस ने एक बाजी को भी
अब तक न पकड़ पाया; न द‹ड jदया। इस से अिधक असावधानी eया
होगी।।१२२।।
१२३-बस मु… मारा उस को मूसा ने, बस पूरी कR आयु उस कR।। कहा ऐ रब
मेरे, िनtय म<ने अ3याय jकया जान अपनी को, बस zमा कर मुभफ़ को, बस
zमा कर jदया उस को, िनtय वह zमा करने वाला दयालु है।। और मािलक
तेरा उ"प– करता है, जो कु छ चाहता है और पस3द करता है।।
-मंन ५। िस० २०। सू० २८। आ० १५। १६। ६८।।
(समीzक) अब अ3य भी देिखये मुसलमान और ईसाइयi के पैग›बर और खुदा
jक मूसा पैग›बर मनु‘य कR ह"या jकया करे और खुदा zमा jकया करे । ये
दोनi अ3यायकारी ह< वा नहc? eया अपनी इ¸छा ही से जैसा चाहता है वैसी
उ"पिs करता है? eया उस ने अपनी इ¸छा ही से एक को राजा दूसरे को
कं गाल और एक को िवyान् दूसरे को मूखा&jद jकया है? यjद ऐसा है तो न
कु रान स"य और न अ3यायकारी होने से यह खुदा ही हो सकता है।।१२३।।
१२४-और आXा दी हम ने मनु‘य को साथ मा बाप के भलाई करना और जो
भफ़गड़ा करO तुभफ़ से दोनi यह jक शरीक लावे तू साथ मेरे उस वHतु को, jक
नहc वाHते तेरे साथ उस के Xान, बस मत कहा मान उन दोनi का, तफ& मेरी
है।। और अवŸय भेजा हम ने नूह को तफ& कौम उस के jक बस रहा बीच उन के
हजार वष& पर3तु पचास वष& कम।। -मंन ५। िस० २०। सू० २९। आ० ८। १४।।
(समीzक) माता-िपता कR सेवा करना अ¸छा ही है जो खुदा के साथ शरीक
करने के िलये कहे तो उन का कहना न मानना यह भी ठीक है पर3तु यjद माता
िपता िम•याभाषणाjद करने कR आXा देवO तो eया मान लेना चािहये?
इसिलये यह बात आवमी अ¸छी और आधी बुरी है। eया नूह आjद पैग›बरi
ही को खुदा संसार मO भेजता है तो अ3य जीवi को कौन भेजता है? यjद सब
को वही भेजता है तो सभी पैग›बर eयi नहc? और जो 'थम मनु‘यi कR
हजार वष& कR आयु होती थी तो अब eयi नहc होती? इसिलये यह बात ठीक
नहc।।१२४।।
१२५-अqलाह पिहली बार करता है उ"पिs, jफर दूसरी बार करे गा उस को,
jफर उसी कR ओर फे रे जाओगे।। और िजस jदन वषा& अथा&त् खड़ी होगी
कयामत िनराश हiगे पापी।। बस जो लोग jक ईमान लाये और काम jकये
अ¸छे बस वे बीच बाग के Òसगार jकये जावOगे।। और जो भेज दO हम एक बाव,
बस देखO उसी खेती को पीली gई।। इसी 'कार मोहर रखता है अqलाह ऊपर
jदलi उन लोगi के jक नहc जानते।। -मंन ५। िस० २१। सू० ३०। आ० ११। १२।
१५। ५१। ५९।।
(समीzक) यjद अqलाह दो बार उ"पिs करता है तीसरी बार नहc तो उ"पिs
कR आjद और दूसरी बार के अ3त मO िनक›मा बैठा रहता होगा? और एक
तथा दो बार उ"पिs के पtात् उस का साम•य& िनक›मा और aथ& हो जायगा।
यjद 3याय करने के jदन पापी लोग िनराश हi तो अ¸छी बात है पर3तु इस
का 'योजन यह तो कहc नहc है jक मुसलमानi के िसवाय सब पापी समभफ़
कर िनराश jकये जायO? eयijक कु रान मO कई Hथानi मO पािपयi से औरi का
ही 'योजन है। यjद बगीचे मO रखना और शृंगार पिहराना ही मुसलमानi का
Hवग& है तो इस संसार के तुqय gआ और वहाँ माली और सुनार भी हiगे अथवा
खुदा ही माली और सुनार आjद का काम करता होगा। यjद jकसी को कम
गहना िमलता होगा तो चोरी भी होती होगी और बिहŸत से चोरी करने वालi
को दोजख मO भी डालता होगा। यjद ऐसा होता होगा तो सदा बिहŸत मO रहOगे
यह बात भफ़ू ठ हो जायगी। जो jकसानi कR खेती पर भी खुदा कR दृि… है सो
यह िव‡ा खेती करने के अनुभव ही से होती है। और यjद माना जाय jक खुदा
ने अपनी िव‡ा से सब बात जान ली है तो ऐसा भय देना अपना घम‹ड 'िसZ
करना है। यjद अqलाह ने जीवi के jदलi पर मोहर लगा पाप कराया तो उस
पाप का भागी वही होवे जीव नहc हो सकते। जैसे जय पराजय सेनाधीश का
होता है वैसे यह सब पाप खुदा ही को 'ाƒ होवे।।१२५।।
१२६-ये आयतO ह< jकताब िहeमत वाले कR।। उ"प– jकया आसमानi को िबना
सुतून अथा&त् ख›भे के देखते हो तुम उस को और डाले बीच पृिथवी के पहाड़
ऐसा न हो jक िहल जावे।। eया नहc देखा तूने यह jक अqलाह 'वेश कराता
है jदन को बीच रात के ।। eया नहc देखा jक jकिŸतयां चलती ह< बीच द‰या&
के साथ िनआमतi अqलाह के , ताjक jदखलावे तुम को िनशािनयां अपनी।।
-मंन ५। िस० २१। सू० ३१। आ० २। १०। २९। ३१।।
(समीzक) वाह जी वाह! िहeमतवाली jकताब ! jक िजस मO सव&था िव‡ा से
िव˜Z आकाश कR उ"पिs और उस मO ख›भे लगाने कR शंका और पृिथवी को
िHथर रखने के िलये पहाड़ रखना। थोड़ी सी िव‡ा वाला भी ऐसा लेख कभी
नहc करता और न मानता और िहeमत देखो jक जहाँ jदन है वहाँ रात नहc
और जहाँ रात है वहाँ jदन नहc। उस को एक दूसरे मO 'वेश कराना िलखता है
यह बड़े अिवyानi कR बात है। इसिलये यह कु रान िव‡ा कR पुHतक नहc हो
सकती। eया यह िव‡ािव˜Z बात नहc है jक नौका मनु‘य और j¦या
कौशलाjद से चलती ह< वा खुदा कR कृ पा से? यjद लोहे वा प"थरi कR नौका
बना कर समु¥ मO चलावO तो खुदा कR िनशानी डू ब जाय वा नहc? इसिलये यह
पुHतक न िवyान् और न ई5र का बनाया gआ हो सकता है।।१२६।।
१२७-तदबीर करता है काम कR आसमान से तफ& पृिथवी कR jफर चढ़ जाता
है तफ& उस कR बीच एक jदन के jक है अविध उसकR सहê वष& उन वषŽ से
jक िगनते हो तुम।। यह है जानने वाला गैब का और '"यz का गािलब दयालु।।
jफर पु… jकया उस को और फूं का बीच ’ह अपनी से।। कह कdज करे गा तुम
को फWरŸता मौत का वह जो िनयत jकया गया है साथ तु›हारे ।। और जो चाहते
हम अवŸय देते हम हर एक जीव को िशzा उस कR, पर3तु िसZ gई बात मेरी
ओर से jक अवŸय भ’ँगा म< दोजख को िजनi से और आदिमयi से इक$े।। -
मंन ५। िस० २१। सू० ३२। आ० ५। ६। ९। ११। १३।।
(समीzक) अब ठीक िसZ हो गया jक मुसलमानi का खुदा मनु‘यवत् एकदेशी
है। eयijक जो aापक होता तो एकदेश से 'ब3ध करना और उतरना चढ़ना
नहc हो सकता। यjद खुदा फWरŸते को भेजता है तो भी आप एकदेशी हो गया।
आप आसमान पर टंगा बैठा है और फWरŸतi को दौड़ाता है। यjद फWरŸते Wर5त
लेकर कोई मामला िबगाड़ दO वा jकसी मुद· को छोड़ जायO तो खुदा को eया
मालूम हो सकता है? मालूम तो उस को हो jक जो सव&X तथा सव&aापक हो,
सो तो है ही नहc; होता तो फWरŸतi के भेजने तथा कई लोगi कR कई 'कार
से परीzा लेने का eया काम था? और एक हजार वषŽ मO तथा आने जाने
'ब3ध करने से सव&शिžमान् भी नहc। यjद मौत का फWरŸता है तो उस फWरŸते
का मारने वाला कौन सा मृ"यु है? यjद वह िन"य है तो अमरपन मO खुदा के
बराबर शरीक gआ। एक फWरŸता एक समय मO दोजख भरने के िलये जीवi को
िशzा नहc कर सकता और उन को िवना पाप jकये अपनी मजŠ से दोजख भर
के उन को दुःख देकर तमाशा देखता है तो वह खुदा पापी अ3यायकारी और
दयाहीन है! ऐसी बातO िजस पुHतक मO हi न वह िवyान् और ई5रकृ त और जो
दया 3यायहीन है वह ई5र भी कभी नहc हो सकता।।१२७।।
१२८-कह jक कभी न लाभ देगा भागना तुम को जो भागो तुम मृ"यु वा क"ल
से।। ऐ बीिबयो नबी कR! जो कोई आवे तुम मO से िनल&œता '"यz के , दुगुणा
jकया जायेगा वाHते उसके अजाब और है यह ऊपर अqलाह के सहल।।
-मंन ५। िस० २१। सू० ३३। आ० १५। ३०।।
(समीzक) यह मुह›मद साहेब ने इसिलये िलखा िलखवाया होगा jक लड़ाई
मO कोई न भागे, हमारा िवजय होवे, मरने से भी न डरे , ऐ5य& बढ़े, मजहब
बढ़ा लेवO? और यjद बीबी िनल&œता से न आवे तो eया पैग›बर साहेब िनल&œ
हो कर आवO? बीिबयi पर अजाब हो और पैग›बर साहेब पर अजाब न होवे।
यह jकस घर का 3याय है? ।।१२८।।
१२९-और अटकR रहो बीच घरi अपने के , आXा पालन करो अqलाह और
रसूल कR; िसवाय इसके नहc।। बस जब अदा कर ली जैद ने हािजत उस से,
dयाह jदया हम ने तुभफ़ से उस को ताjक न होवे ऊपर ईमान वालi के तंगी
बीच बीिबयi से ले पालकi उन के के , जब अदा कर लO उन से हािजत और है
आXा खुदा कR कR गई।। नहc है ऊपर नबी के कु छ तंगी बीच उस वHतु के ।।
नहc है मुह›मद बाप jकसी मद& का।। और हलाल कR ¬ी ईमानवाली जो देवे
िबना महर के जान अपनी वाHते नबी के ।। ढील देवे तू िजस को चाहे उन मO से
और जगह देवे तफ& अपनी िजस को चाहे, नहc पाप ऊपर तेरे।। ऐ लोगो! जो
ईमान लाये हो मत 'वेश करो घरi मO पैग›बर के ।।
-मंन ५। िस० २२। सू० ३३। आ० ३३। ३६। ३७। ४०। ५०। ५१। ५२।।

(समीzक) यह बड़े अ3याय कR बात है jक ¬ी घर मO कै द के समान रहे और


पु˜ष खुqले रहO। eया ि¬यi का िचs शुZ वायु, शुZ देश मO ±मण करना,
सृि… के अनेक पदाथ& देखना नहc चाहता होगा? इसी अपराध से मुसलमानi
के लड़के िवशेषकर सयलानी और िवषयी होते ह<। अqलाह और रसूल कR एक
अिव˜Z आXा है वा िभ–-िभ– िव˜Z? यjद एक है तो दोनi कR आXा पालन
करो कहना aथ& है और जो िभ–-िभ– िव˜Z है तो एक स0ी और दूसरी
भफ़ू ठी? एक खुदा दूसरा शैतान हो जायगा? और शरीक भी होगा? वाह कु रान
का खुदा और पैग›बर तथा कु रान को! िजस को दूसरे का मतलब न… कर
अपना मतलब िसZ करना इ… हो ऐसी लीला अवŸय रचता है। इस से यह भी
िसZ gआ jक मुह›मद साहेब बड़े िवषयी थे। यjद न होते तो (लेपालक) बेटे
कR ¬ी को जो पु• कR ¬ी थी; अपनी ¬ी eयi कर लेते? और jफर ऐसी बातO
करने वाले का खुदा भी पzपाती बना और अ3याय को 3याय ठहराया। मनु‘यi
मO जो जंगली भी होगा वह भी बेटे कR ¬ी को छोड़ता है और यह jकतनी बड़ी
अ3याय कR बात है jक नबी को िवषयासिž कR लीला करने मO कु छ भी अटकाव
नहc होना! यjद नबी jकसी का बाप न था तो जैद (लेपालक) बेटा jकस का
था? और eयi िलखा? यह उसी मतलब कR बात है jक िजस से बेटे कR ¬ी
को भी घर मO डालने से पैग›बर साहेब न बचे, अ3य से eयiकर बचे हiगे? ऐसी
चतुराई से भी बुरी बात मO िन3दा होना कभी नहc छू ट सकता। eया जो कोई
पराई ¬ी भी नबी से 'स– होकर िनकाह करना चाहे तो भी हलाल है? और
यह महा अधम& कR बात है jक नबी तो िजस ¬ी को चाहे छोड़ देवे और मुह›मद
साहेब कR ¬ी लोग यjद पैग›बर अपराधी भी हो तो कभी न छोड़ सकO ! जैसे
पैग›बर के घरi मO अ3य कोई aिभचार दृि… से 'वेश न करO तो वैसे पैग›बर
साहेब भी jकसी के घर मO 'वेश न करO । eया नबी िजस jकसी के घर मO चाहO
िनशंक 'वेश करO और माननीय भी रहO? भला! कौन ऐसा Æदय का अ3धा है
jक जो इस कु रान को ई5रकृ त और मुह›मद साहेब को पैग›बर और कु रानोž
ई5र को परमे5र मान सके । बड़े आtय& कR बात है jक ऐसे युिžशू3य
धम&िव˜Z बातi से युž इस मत को अब& देशिनवासी आjद मनु‘यi ने मान
िलया!।।१२९।।
१३०-नहc यो•य वाHते तु›हारे यह jक दुःख दो रसूल को, यह jक िनकाह करो
बीिबयi उस कR को पीछे उस के कभी, िनtय यह है समीप अqलाह के बड़ा
पाप।। िनtय जो लोग jक दुःख देते ह< अqलाह को और रसूल उस के को,
लानत कR है उन को अqलाह ने।। और वे लोग jक दुःख देते ह< मुसलमानi को
और मुसलमान औरतi को िवना इस के , बुरा jकया है उ3हiने बस िनtय
उठाया उ3हiने बोहतान अथा&त् भफ़ू ठ और '"यz पाप।। लानत मारे , जहाँ
पाये जावO पकड़े जावO कतल jकये जावO खूब मारा जाना।। ऐ रब हमारे , दे उन
को िyगुणा अजाब से और लानत से बड़ी लानत कर।।
-मंन ५। िस० २२। सू० ३३। आ० ५३। ५४। ५५। ६१। ६८।।
(समीzक) वाह! eया खुदा अपनी खुदाई को धम& के साथ jदखला रहा है? जैसे
रसूल को दुःख देने का िनषेध करना तो ठीक है पर3तु दूसरे को दुःख देने मO
रसूल को भी रोकना यो•य था सi eयi न रोका? eया jकसी के दुःख देने से
अqलाह भी दुःखी हो जाता है? यjद ऐसा है तो वह ई5र ही नहc हो सकता।
eया अqलाह और रसूल को दुःख देने का िनषेध करने से यह नहc िसZ होता
jक अqलाह और रसूल िजस को चाहO दुःख देवO? अ3य सब को दुःख देना
चािहये? जैसे मुसलमानi और मुसलमानi कR ि¬यi को दुःख देना बुरा है तो
इन से अ3य मनु‘यi को दुःख देना भी अवŸय बुरा है।। जो ऐसा न माने तो उस
कR यह बात भी पzपात कR है। वाह गदर मचाने वाले खुदा और नबी! जैसे ये
िनद&यी संसार मO ह< वैसे और बgत थोड़े हiगे। जैसा यह jक अ3य लोग जहाँ
पाये जावO, मारे जावO पकड़े जावO, िलखा है वैसी ही मुसलमानi पर कोई आXा
देवे तो मुसलमानi को यह बात बुरी लगेगी वा नहc? वाह eया Òहसक पैग›बर
आjद ह< jक जो परमे5र से 'ाथ&ना करके अपने से दूसरi को दुगुण दुःख देने के
िलये 'ाथ&ना करना िलखा है। यह भी पzपात मतलबिस3धुपन और महा अधम&
कR बात है। इसी से अब तक भी मुसलमान लोगi मO से बgत से शठ लोग ऐसा
ही कम& करने मO नहc डरते। यह ठीक है jक सुिशzा के िवना मनु‘य पशु के
समान रहता है।।१३०।।
१३१-और अqलाह वह पु˜ष है jक भेजता है हवाu को बस उठाती ह< बादलi
को, बस हांक लेते ह< तफ& शहर मुद· कR, बस जीिवत jकया हम ने साथ उस के
पृिथवी को पीछे मृ"यु उस कR के , इसी 'कार कबरi मO से िनकालना है।। िजस
ने उतारा बीच घर सदा रहने के दया अपनी से, नहc लगती हम को बीच उस
के मेहनत और नहc लगती बीच उस के माँदगी।।
-मंन ५। िस० २२। सू० ३५। आ० ९। ३५।।
(समीzक) वाह eया jफलासफR खुदा कR है। भेजता है वायु को, वह उठाता
jफरता है बÖलi को! और खुदा उस से मुदŽ को िजलाता jफरता है! यह बात
ई5र स›ब3धी कभी नहc हो सकती, eयijक ई5र का काम िनर3तर एक सा
होता रहता है। जो घर हiगे वे िवना बनावट के नहc हो सकते और जो बनावट
का है वह सदा नहc रह सकता। िजस के शरीर है वह पWर~म के िवना दुःखी
होता और शरीर वाला रोगी gए िवना कभी नहc बचता। जो एक ¬ी से
समागम करता है वह िवना रोग के नहc बचता तो जो बgत ि¬यi से
िवषयभोग करता है उस कR eया ही दुदश & ा होती होगी? इसिलये मुसलमानi
का रहना बिहŸत मO भी सुखदायक सदा नहc हो सकता।।१३१।।
१३२-कसम है कु रान दृढ़ कR।। िनtय तू भेजे gu से है।। ऊपर माग& सीधे के ।।
उतारा है गािलब दयावान् ने।।
-मंन ५। िस० २३। सू० ३६। आ० २। ३। ४। ५।।
(समीzक) अब देिखये! यह कु रान खुदा का बनाया होता तो वह इस कR सौग3द
eयi खाता? यjद नबी खुदा का भेजा होता तो (लेपालक) बेटे कR ¬ी पर
मोिहत eयi होता? यह कथनमा• है jक कु रान के मानने वाले सीधे माग& पर
ह<। eयijक सीधा माग& वही होता है िजस मO स"य मानना, स"य बोलना, स"य
करना, पzपात रिहत 3याय ध›म& का आचरण करना आjद ह< और इन से
िवपरीत का "याग करना। सो न कु रान मO न मुसलमानi मO और न इन के खुदा
मO ऐसा Hवभाव है। यjद सब पर 'बल पैग›बर मुह›मद साहेब होते तो सब से
अिधक िव‡ावान् और शुभगुणयुž eयi न होते? इसिलये जैसे कूं जड़ी अपने
बेरi को खÝा नहc बतलाती वैसी यह बात भी है।।१३२।।
१३३-और फूं का जावेगा बीच सूर के बस नागहां व कबरi मO से तफ& मािलक
अपने कR दौडO◌़गे।। और गवाही दOगे पांव उन के साथ उस वHतु के थे कमाते।।
िसवाय इसके नहc jक आXा उस कR जब चाहे उ"प– करना jकसी वHतु को
यह jक कहता वाHते उस के jक ‘हो जा’, बस हो जाता है।।
-मंन ५। िस० २३। सू० ३६। आ० ५१। ६६। ८२।।
(समीzक) अब सुिनये ऊटपटांग बातO! पग कभी गवाही दे सकते ह<? खुदा के
िसवाय उस समय कौन था िजस को आXा दी? jकस ने सुनी? और कौन बन
गया? यjद न थी तो यह बात भफ़ू ठी और जो थी तो वह बात-जो िसवाय खुदा
के कु छ चीज नहc थी और खुदा ने सब कु छ बना jदया-वह भफ़ू ठी।।१३३।।
१३४-jफराया जावेगा उनके ऊपर िपयाला शराब शुZ का।। सफे द मजा देने
वाली वाHते पीने वालi के ।। समीप उन के बैठी हiगी नीचे आंख रखने वािलयाँ,
सु3दर आंखi वािलयां।। मानो jक वे अ‹डे ह< िछपाये gए।। eया बस हम नहc
मरO गे।। और अवŸय लूत िनtय पैग›बरi से था।। जब jक मुिž दी हम ने उस
को और लोगi उस के को सब को।। पर3तु एक बुjढ़या पीछे रहने वालi मO है।।
jफर मारा हम ने औरi को।।
-मंन ६। िस० २३। सू० ३७। आ० ४५। ४६। ४८। ४९। ५६। १२७। १२८। १२९।।
(समीzक) eयi जी! यहां तो मुसलमान लोग शराब को बुरा बतलाते ह< पर3तु
इन के Hवग& मO तो नjदयां कR नjदयां बहती ह<। इतना अ¸छा है jक यहां तो
jकसी 'कार म‡ पीना छु ड़ाया पर3तु यहां के बदले वहाँ उन के Hवग& मO बड़ी
खराबी है! मारे ि¬यi के वहाँ jकसी का िचs िHथर नहc रहता होगा! और
बड़े-बड़े रोग भी होते हiगे! यjद शरीर वाले हiगे तो अवŸय मरO गे और जो
शरीर वाले न हiगे तो भोग िवलास ही न कर सकO गे। jफर उन के Hवग& मO जाना
aथ& है। यjद लूत को पैग›बर मानते हो तो जो बाइबल मO िलखा है jक उस से
उस कR लड़jकयi ने समागम करके दो लड़के पैदा jकये इस बात को भी मानते
हो वा नहc? जो मानते हो तो ऐसे को पैग›बर मानना aथ& है। और जो ऐसे
और ऐसे के Òसगयi को खुदा मुिž देता है तो वह खुदा भी वैसा ही है। eयijक
बुjढ़या कR कहानी कहने वाला और पzपात से दूसरi को मारने वाला खुदा
कभी नहc हो सकता। ऐसा खुदा मुसलमानi ही के घर मO रह सकता है; अ3य•
नहc।।१३४।।
१३५-बिहŸतO ह< सदा रहने कR खुले gए ह< दर उन के वाHते उन के ।। तjकये
jकये gए बीच उन के मंगावOगे बीच इस के मेवे और पीने कR वHतु।। और समीप
हiगी उनके , नीचे रखने वािलयां दृि… और दूसरi से समायु।। बस िसजदा jकया
फWरŸतi ने सब ने।। पर3तु शैतान ने न माना अिभमान jकया और था काjफरi
से।। ऐ शैतान jकस वHतु ने रोका तुभफ़ को यह jक िसजदा करे वाHते उस वHतु
के jक बनाया म<ने साथ दोनi हाथ अपने के , eया अिभमान jकया तूने वा था
तू बड़े अिधकार वालi से ।। कहा jक म< अ¸छा •ँ उस वHतु से, उ"प– jकया
तूने मुभफ़ को आग से, उस को मÝी से।। कहा बस िनकल इन आसमानi मO से,
बस िनtय तू चलाया गया है।। िनtय ऊपर तेरे लानत है मेरी jदन जजा
तक।। कहा ऐ मािलक मेरे, ढील दे उस jदन तक jक उठाये जावOगे मुद।· । कहा
jक बस िनtय तू ढील jदये गयi से है ।। उस jदन समय Xात तक।। कहा jक
बस कसम है 'ित¼ा तेरी कR, अवŸय गुमराह क’ंगा उन को म< इक$े।।
-मंन ६। िस० २३। सू० ३८। आ० ४९। ५०। ५१। ५२। ७०। ७१। ७३। ७५। ७६।
७८। ८०। ८१।।
(समीzक) यjद वहाँ जैसे jक कु रान मO बाग बगीचे नहरO मकानाjद िलखे ह<
वैसे ह< तो वे न सदा से थे न सदा रह सकते ह<। eयijक जो संयोग से पदाथ&
होता है वह संयोग के पूव& न था, अवŸयभावी िवयोग के अ3त मO न रहेगा। जब
वह बिहŸत ही न रहेगा तो उस मO रहने वाले सदा eयiकर रह सकते ह< ?
eयijक िलखा है jक गÖी, तjकये, मेवे और पीने के पदाथ& वहाँ िमलOगे। इससे
यह िसZ होता है jक िजस समय मुसलमानi का मजहब चला उस समय अब&
देश िवशेष धनाÚ न था। इसीिलये मुह›मद साहेब ने तjकये आjद कR कथा
सुना कर गरीबi को अपने मत मO फं सा िलया। और जहाँ ि¬यां ह<। वहाँ िनर3तर
सुख कहां? वे ि¬यां वहाँ कहां से आई ह<? अथवा बिहŸत कR रहने वाली ह<?
यjद आई ह< तो जावOगी और जो वहc कR रहने वाली ह< तो कयामत के पूव& eया
करती थc? eया िनक›मी अपनी उमर को बहा रही थc? अब देिखये खुदा
का तेज jक िजस का geम अ3य सब फWरŸतi ने माना और आदम साहेब को
नमHकार jकया और शैतान ने न माना! खुदा ने शैतान से पूछा कहा jक म<ने
उस को अपने दोनi हाथi से बनाया, तू अिभमान मत कर। इस से िसZ होता
है jक कु रान का खुदा दो हाथ वाला मनु‘य था। इसिलए वह aापक वा
सव&शिžमान् कभी नहc हो सकता। और शैतान ने स"य कहा jक म< आदम से
उsम •ँ, इस पर खुदा ने गुHसा eयi jकया? eया आसमान ही मO खुदा का घर
है; पृिथवी मO नहc? तो काबे को खुदा का घर 'थम eयi िलखा? भला!
परमे5र अपने मO से वा सृि… मO से अलग कै से िनकाल सकता है? और वह सृि…
सब परमे5र कR है। इस से Hप… िवjदत gआ jक कु रान का खुदा बिहŸत का
िज›मेदार था। खुदा ने उस को लानत िधÙार jदया और कै द कर िलया और
शैतान ने कहा jक हे मािलक! मुभफ़ को कयामत तक छोड़ दे। खुदा ने खुशामद
से कयामत के jदन तक छोड़ jदया। जब शैतान छू टा तो खुदा से कहता है jक
अब म< खूब बहकाऊंगा और गदर मचाऊंगा। तब खुदा ने कहा jक िजतनi को
तू बहकावेगा म< उन को दोजख मO डाल दूग ं ा और तुभफ़ को भी। अब सœन
लोगो िवचाWरये! jक शैतान को बहकाने वाला खुदा है वा आप से वह बहका?
यjद खुदा ने बहकाया तो वह शैतान का शैतान ठहरा। यjद शैतान Hवयं बहका
तो अ3य जीव भी Hवयं बहकO गे; शैतान कR ज’रत नहc। और िजस से इस
शैतान बागी को खुदा ने खुला छोड़ jदया, इस से िवjदत gआ jक वह भी
शैतान का शरीक अधम& कराने मO gआ। यjद Hवयं चोरी करा के द‹ड देवे तो
उस के अ3याय का कु छ भी पारावार नहc।।१३५।।
१३६-अqलाह zमा करता है पाप सारे , िनtय वह है zमा करने वाला
दयालु।। और पृिथवी सारी मूठी मO है उस कR jदन कयामत के और आसमान
लपेटे gए ह< बीच दािहने हाथ उसके के ।। और चमक जावेगी पृिथवी साथ
'काश मािलक अपने के और रeखे जावOगे कम&प• और लाया जावेगा पैग›बरi
को और गवाहi को और फै सला jकया जावेगा।। -मंन ६। िस० २४। सू० ३९।
आ० ५३। ६७। ६९।।
(समीzक) यjद सम> पापi को खुदा zमा करता है तो जानो सब संसार
को पापी बनाता है और दयाहीन है eयijक एक दु… पर दया और zमा करने
से वह अिधक दु…ता करे गा और अ3य बgत धमा&"माu को दुःख पgँचावेगा।
यjद jकि€त् भी अपराध zमा jकया जावे तो अपराध ही अपराध जगत् मO
छा जावे। eया परमे5र अि«वत् 'काश वाला है? और कम&प• कहां जमा
रहते ह<? और कौन िलखता है? यjद पैग›बरi और गवाहi के भरोसे खुदा 3याय
करता है तो वह असव&X और असमथ& है । यjद वह अ3याय नहc करता 3याय
ही करता है तो कमŽ के अनुसार करता होगा। वे कम& पूवा&पर वs&मान ज3मi
के हो सकते ह< तो jफर zमा करना, jदलi पर ताला लगाना और िशzा न
करना, शैतान से बहकवाना, दौरा सुपुद& रखना के वल अ3याय है।।१३६।।
१३७-उतारना jकताब का अqलाह गािलब जानने वाले कR ओर से है।। zमा
करने वाला पापi का और Hवीकार करने वाला तोबाः का।।
-मंन ६। िस० २४। सू० ४०। आ० १। २। ३।।
(समीzक) यह बात इसिलये है jक भोले लोग अqलाह के नाम से इस पुHतक
को मान लेवO jक िजस मO थोड़ा सा स"य छोड़ अस"य भरा है और वह स"य भी
अस"य के साथ िमलकर िबगड़ा सा है। इसीिलये कु रान और कु रान का खुदा
और इस को मानने वाले पाप बढ़ाने हारे और पाप करने कराने वाले ह<। eयijक
पाप का zमा करना अ"य3त अधम& है। jक3तु इसी से मुसलमान लोग पाप और
उप¥व करने मO कम डरते ह<।।१३७।।
१३८-बस िनयत jकया उस को सात आसमान बीच दो jदन के , और डाल
jदया बीच हम ने उस के काम उस का।। यहां तक jक जब जावOगे उस के पास
साzी दOगे ऊपर उन के कान उन के और आंखO उन कR और चमड़े उन के कम&
से।। और कहOगे वाHते चमड़े अपने के eयi साzी दी तू ने ऊपर हमारे , कहOगे
jक बुलाया है हम को अqलाह ने िजस ने बुलाया हर वHतु को।। अवŸय िजलाने
वाला है मुदŽ को।। -मंन ६। िस० २४। सू० ४१। आ० १२। २०। २१। ३९।।
(समीzक) वाह जी वाह मुसलमानो ! तु›हारा खुदा िजस को तुम सव&शिžमान्
मानते हो वह सात आसमानi को दो jदन मO बना सका? और जो सव&शिžमान्
है वह zणमा• मO सब को बना सकता है। भला कान, आंख और चमड़े को
ई5र ने जड़ बनाया है वे साzी कै से दे सकO गे? यjद साzी jदलावे तो उस ने
'थम जड़ eयi बनाये? और अपना पूवा&पर काम िनयमिव˜Z eयi jकया?
एक इस से भी बढ़ कर िम•या बात यह jक जब जीवi पर साzी दी तब वे
जीव अपने-अपने चमड़े से पूछने लगे jक तूने हमारे पर साzी eयi दी? चमड़ा
बोलेगा खुदा ने jदलायी म< eया क’ं! भला यह बात कभी हो सकती है? जैसे
कोई कहे jक ब3—या के पु• का मुख म<ने देखा, यjद पु• है तो ब3—या eयi? जो
ब3—या है तो उस के पु• ही होना अस›भव है। इसी 'कार कR यह भी िम•या
बात है। यjद वह मुदŽ को िजलाता है तो 'थम मारा ही eयi? eया आप भी
मुदा& हो सकता है वा नहc? यjद नहc हो सकता तो मुदप · न को बुरा eयi
समभफ़ता है? और कयामत कR रात तक मृतक जीव jकस मुसलमान के घर
मO रहOगे? और दौरासुपुद& खुदा ने िवना अपराध eयi रeखा? शीÎ 3याय eयi
न jकया? ऐसी-ऐसी बातi से ई5रता मO बÝा लगता है।।१३८।।
१३९-वाHते उस के कुं िजयां ह< आसमानi कR और पृिथवी कR, खोलता
है भोजन िजस के वाHते चाहता है और तंग करता है।। उ"प– करता है जो
कु छ चाहता है और देता है िजस को चाहे बेWटयां और देता है िजस को चाहे
बेटे।। वा िमला देता है उन को बेटे और बेWटयाँ और कर देता है िजस को चाहे
बाँभफ़।। और नहc है शिž jकसी आदमी को jक बात करे उस से अqलाह
पर3तु जी मO डालने कर वा पीछे परदे१ के से वा भेजे फWरŸते पैगाम लाने
वाला।।
-मंन ६। िस० २५। सू० ४२। आ० १०। १२।४७। ४८। ४९।।
(समीzक) खुदा के पास कु िÅयi का भ‹डार भरा होगा। eयijक सब Wठकाने
के ताले खोलने होते हiगे! यह लड़कपन कR बात है। eया िजस को चाहता है
उस को िवना पु‹य कम& के ऐ5य& देता है? और िवना पाप के तंग करता है?
यjद ऐसा है तो वह बड़ा अ3यायकारी है। अब देिखये कु रान बनाने वाले कR
चतुराई! jक िजस से ¬ीजन भी मोिहत हो के फसO। यjद जो कु छ चाहता है
उ"प– करता है तो दूसरे खुदा को भी उ"प– कर सकता है वा नहc? यjद नहc
कर सकता तो सव&शिžमsा यहां पर अटक गई। भला मनु‘यi को तो िजस को
चाहे बेटे बेWटयां खुदा देता है पर3तु मुरगे, म¸छी, सूअर आjद िजन के बgत
बेटा बेWटयां होती ह< कौन देता है? और ¬ी पु˜ष के समागम िवना eयi नहc
देता? jकसी को अपनी इ¸छा से बांभफ़ रख के दुःख eयi देता है? वाह! eया
खुदा तेजHवी है jक उस के सामने कोई बात ही नहc कर सकता! पर3तु उसने
पहले कहा है jक पदा& डाल के बात कर सकता है वा फWरŸते लोग खुदा से बात
करते ह< अथवा पैग›बर। जो ऐसी बात है तो फWरŸते और पैग›बर खूब अपना
मतलब करते हiगे! यjद कोई कहे खुदा सव&X सव&aापक है तो परदे से बात
करना अथवा डाक के तुqय खबर मंगा के जानना िलखना aथ& है। और जो
ऐसा ही है तो वह खुदा ही नहc jक3तु कोई चालाक मनु‘य होगा। इसिलये यह
कु रान ई5रकृ त कभी नहc हो सकता।।१३९।।
१४०-और जब आया ईसा साथ 'माण '"यz के ।। -मंन ६। िस० २५। सू० ४३।
आ० ६३।।
(समीzक) यjद ईसा भी भेजा gआ खुदा का है तो उस के उपदेश से िव˜Z
कु रान खुदा ने eयi बनाया? और कु रान से िव˜Z इÅील eयi कR? इसीिलये
ये jकताबO ई5रकृ त नहc ह<।।१४०।।
१४१-पकड़ो उस को बस घसीटो उस को बीचi बीच दोजख के ।। इसी 'कार
रहOगे और aाह दOगे उन को साथ गोWरयi अ¸छी आंखi वािलयi के ।।
-मंन ६। िस० २५। सू० ४४। आ० ४७। ५४।।
(समीzक) वाह! eया खुदा 3यायकारी होकर 'ािणयi को पकड़ाता और
घसीटवाता है? जब मुसलमानi का खुदा ही ऐसा है तो उस के उपासक
मुसलमान अनाथ िनब&लi को पकड़O घसीटO तो इस मO eया आtय& है? और वह
संसारी मनु‘यi
१- इस आयत के भा‘य ‘तफसीरgसैनी’ मO िलखा है jक मुह›मद साहेब दो परदi मO थे और
खुदा कR आवाज सुनी। एक पदा& जरी का था दूसरा 5ेत मोितयi का और दोनi परदi के बीच
मO सsर वष& चलने यो•य माग& था ? बुिZमान् लोग इस बात को िवचारO jक यह खुदा है वा
परदे कR ओट बात करने वाली ¬ी ? इन लोगi ने तो ई5र ही कR दुदश & ा कर डाली। कहां वेद
तथा उपिनषदाjद स93थi मO 'ितपjदत शुZ परमा"मा और कहां कु रानोž परदे कR ओट से
बात करने वाला खुदा! सच तो यह है jक अरब के अिवyान् लोग थे, उsम बात लाते jकस के
घर से।

के समान िववाह भी कराता है, जानो jक मुसलमानi का पुरोिहत ही


है।।१४१।।
१४२-बस जब तुम िमलो उन लोगi से jक काjफर gए बस मारो गद&नO उन
कR यहां तक jक जब चूर कर दो उन को बस दृढ़ करो कै द करना।। और बgत
बिHतयां ह< jक वे बgत कWठन थc शिž मO बHती तेरी से, िजस ने िनकाल jदया
तुभफ़ को मारा हम ने उन को, बस न कोई gआ सहाय देने वाला उन का।।
तारीफ उस बिहŸत कR jक 'ितXा jकये गये ह< परहेजगार, बीच उस के नहरO
ह< िबन िबगड़े पानी कR, और नहरO ह< दूध कR jक नहc बदला मजा उन का,
और नहरO ह< शराब कR मजा देने वाली वाHते पीने वालi के और नहरO ह< शहद
साफ jकये गये कR और वाHते उन के बीच उस के मेवे ह< '"येक 'कार से दान
मािलक उन के से।। -मंन ६। िस० २६। सू० ४७। आ० ४। १३। १५।।
(समीzक) इसी से यह कु रान खुदा और मुसलमान गदर मचाने, सब को दुःख
देने और अपना मतलब साधने वाले दयाहीन ह<। जैसा यहां िलखा है वैसा ही
दूसरा कोई दूसरे मत वाला मुसलमानi पर करे तो मुसलमानi को वैसा ही
दुःख जैसा jक अ3य को देते ह< हो वा नहc? और खुदा बड़ा पzपाती है jक
िज3हiने मुह›मद साहेब को िनकाल jदया उनको खुदा ने मारा। भला! िजसमO
शुZ पानी, दूध, म‡ और शहद कR नहरO ह< वह संसार से अिधक हो सकता है?
और दूध कR नहरO कभी हो सकती ह<? eयijक वह थोड़े समय मO िबगड़ जाता
है! इसीिलये बुिZमान् लोग कु रान के मत को नहc मानते।।१४२।।
१४३-जब jक िहलाई जावेगी पृिथवी िहलाये जाने कर।। और उड़ाये जावOगे
पहाड़ उड़ाये जाने कर।। बस हो जावOगे भुनगे टु कड़े-टु कड़े।। बस साहब दाहनी
ओर वाले eया ह< साहब दाहनी ओर के ।। और बाâ ओर वाले eया ह< बाâ ओर
के ।। ऊपर पलंग सोने के तारi से बुने gए ह<।। तjकये jकये gए ह< ऊपर उनके
आमने-सामने।। और jफरO गे ऊपर उनके लड़के सदा रहने वाले।। साथ
आबखोरi के और आफताबi के और Êयालi के शराब साफ से ।। नहc माथा
दुखाये जावOगे उस से और न िव˜Z बोलOगे।। और मेवे उस jकHम से jक पस3द
करO ।। और गोŸत जानवर पिzयi के उस jकHम से jक पस3द करO ।। और वाHते
उन के औरतO ह< अ¸छी आंखi वाली।। मािन3द मोितयi िछपाये gu कR।। और
िबछौने बड़े।। िनtय हम ने उ"प– jकया है औरतi को एक 'कार का उ"प–
करना है।। बस jकया है हम ने उन को कु मारी।। सुहागवािलयां बराबर अवHथा
वािलयां।। बस भरने वाले हो उस से पेटi को।। बस कसम खाता •ँ म< साथ
िगरने तारi के ।।
-मंन ७। िस० २७। सू० ५६। आ० ४। ५। ६। ८। ९। १५। १६। १७। १८। १९।
२०। २१। २२। २३। ३३। ३४। ३५। ३६। ३७। ३८। ५३।।
(समीzक) अब देिखये कु रान बनाने वाले कR लीला को! भला पृिथवी तो
िहलती ही रहती है उस समय भी िहलती रहेगी। इस से यह िसZ होता है jक
कु रान बनाने वाला पृिथवी को िHथर जानता था! भला पहाड़i को eया
पzीवत् उड़ा देगा? यjद भुनगे हो जावOगे तो भी सूˆम शरीरधारी रहOगे तो
jफर उन का दूसरा ज3म eयi नहc? वाह जी ! जो खुदा शरीरधारी न होता
तो उस के दािहनी ओर और बाâ ओर कै से खड़े हो सकते? जब वहाँ पलंग सोने
के तारi से बुने gए ह< तो बढ़ई सुनार भी वहाँ रहते हiगे और खटमल काटते
हiगे जो उन को राि• मO सोने भी नहc देते हiगे। eया वे तjकये लगाकर िनक›मे
बिहŸत मO बैठे ही रहते ह< वा कु छ काम jकया करते ह<? यjद बैठे ही रहते हiगे
तो उन को अ– पचन न होने से वे रोगी होकर शीÎ मर भी जाते हiगे? और
जो काम jकया करते हiगे तो जैसे मेहनत मजदूरी यहां करते ह< वैसे ही वहाँ
पWर~म करके िनवा&ह करते हiगे jफर यहां से वहाँ बिहŸत मO िवशेष eया है?
कु छ भी नहc। यjद वहाँ लड़के सदा रहते ह< तो उन के माँ बाप भी रहते हiगे
और सासू 5सुर भी रहते हiगे तब तो बड़ा भारी शहर बसता होगा jफर मल
मू•jद के बढ़ने से रोग भी बgत से होते हiगे eयijक जब मेवे खावOग,े िगलासi
मO पानी पीवOगे और Êयालi से म‡ पीवOगे न उन का िसर दूखेगा और न कोई
िव˜Z बोलेगा यथे… मेवा खावOगे और जानवरi तथा पिzयi के मांस भी
खावOगे तो अनेक 'कार के दुःख, पzी, जानवर वहाँ हiगे, ह"या होगी और
हाड़ जहाँ तहां िबखरे रहOगे और कसाइयi कR दुकानO भी हiगी। वाह eया कहना
इनके बिहŸत कR 'शंसा jक वह अरब देश से भी बढ़ कर दीखती है!!! और जो
म‡ मांस पी खा के उ3मs होते ह< इसी िलये अ¸छी-अ¸छी ि¬यां और लëडे
भी वहाँ अवŸय रहने चािहये नहc तो ऐसे नशेबाजi के िशर मO गरमी चढ़ के
'मs हो जावO। अवŸय बgत ¬ी पु˜षi के बैठने सोने के िलये िबछौने बड़े-बड़े
चािहये। जब खुदा कु माWरयi को बिहŸत मO उ"प– करता है तभी तो कु मारे
लड़कi को भी उ"प– करता है। भला! कु माWरयi का तो िववाह जो यहां से
उ›मीदवार हो कर गये ह< उन के साथ खुदा ने िलखा पर उन सदा रहने वाले
लड़कi का भी jक3हc कु माWरयi के साथ िववाह न िलखा तो eया वे भी उ3हc
उ›मीदवारi के साथ कु मारीवत् दे jदये जावOगे? इस कR aवHथा कु छ भी न
िलखी। यह खुदा मO बड़ी भूल eयi gई? यjद बराबर अवHथा वाली सुहािगन
ि¬याँ पितयi को पा के बिहŸत मO रहती ह< तो ठीक नहc gआ eयijक ि¬यi
से पु˜ष का आयु दूना ढाई गुना चािहये, यह तो मुसलमानi के बिहŸत कR
कथा है। और नरक वाले िसहोड़ अथा&त् थोर के वृzi को खा के पेट भरO गे तो
क‹टक वृz भी दोजख मO हiगे तो कांटे भी लगते हiगे और गम& पानी पीयOगे
इ"याjद दुःख दोजख मO पावOगे।। कसम का खाना 'ायः भफ़ू ठi का काम है; स0i
का नहc। यjद खुदा ही कसम खाता है तो वह भी भफ़ू ठ से अलग नहc हो
सकता।।१४३।।
१४४-िनtय अqलाह िम• रखता है उन लोगi को jक लड़ते ह< बीच माग&
उसके के ।। -मंन ७। िस० २८। सू० ६१। आ० ४।।
(समीzक) वाह ठीक है! ऐसी-ऐसी बातi का उपदेश करके िवचारे अब&
देशवािसयi को सब से लड़ा के श•ु बनाकर परHपर दुःख jदलाया और मजहब
का भफ़‹डा खड़ा करके लड़ाई फै लावे ऐसे को कोई बुिZमान् ई5र कभी नहc
मान सकते।। जो मनु‘य जाित मO िवरोध बढ़ावे वही सब को दुःखदाता होता
है।।१४४।।
१४५-ऐ नबी eयi हराम करता है उस वHतु को jक हलाल jकया है खुदा ने
तेरे िलये, चाहता है तू 'स–ता बीिबयi अपनी कR, और अqलाह zमा करने
वाला दयालु है।। जqदी है मािलक उस का जो वह तुम को छोड़ दे तो यह है
jक उस को तुम से अ¸छी मुसलमान और ईमान वािलयां बीिबयां बदल दे सेवा
करने वािलयां तोबाः करने वािलयां भिž करने वािलयां रोजा रखने वािलयां
पु˜ष देखी gâ और िबन देखी gâ।। -मंन ७। िस० २८। सू० ६६। आ० १। ५।।
(समीzक) —यान देकर देखना चािहये jक खुदा eया gआ मुह›मद साहेब के
घर का भीतरी और बाहरी 'ब3ध करने वाला भृ"य ठहरा !! 'थम आयत पर
दो कहािनयां ह< एक तो यह jक मुह›मद साहेब को शहद का शब&त ि'य था।
उन कR कई बीिबयां थc उन मO से एक के घर पीने मO देर लगी तो दूसWरयi को
असÉ 'तीत gआ उन के कहने सुनने के पीछे मुह›मद साहेब सौग3ध खा गये
jक हम न पीवOगे। दूसरी यह jक उनकR कई बीिबयi मO से एक कR बारी थी।
उसके यहां रा•ी को गये तो वह न थी; अपने बाप के यहां गई थी। मुह›मद
साहेब ने एक लëडी अथा&त् दासी को बुला कर पिव• jकया। जब बीबी को इस
कR खबर िमली तो अ'स– हो गई। तब मुह›मद साहेब ने सौग3ध खाई jक म<
ऐसा न क’ँगा। और बीबी से भी कह jदया तुम jकसी से यह बात मत कहना।
बीबी ने Hवीकार jकया jक न क•ँगी। jफर उ3हiने दूसरी बीबी से जा कहा।
इस पर यह आयत खुदा ने उतारी ‘िजस वHतु को हम ने तेरे पर हलाल jकया
उस को तू हराम eयi करता है? ’ बुिZमान् लोग िवचारO jक भला कहc खुदा
भी jकसी के घर का िनमटेरा करता jफरता है? और मुह›मद साहेब के तो
आचरण इन बातi से 'कट ही ह< eयijक जो अनेक ि¬यi को रeखे वह ई5र
का भž वा पैग›बर कै से हो सके ? और जो एक ¬ी का पzपात से अपमान
करे और दूसरी का मा3य करे वह पzपाती होकर अधमŠ eयi नहc और जो
बgत सी ि¬यi से भी स3तु… न होकर बाँjदयi के साथ फं से उस कR लœा,
भय और धम& कहां से रहे? jकसी ने कहा है jक-
‘कामातुराणां न भयं न लœा’।।
जो कामी मनु‘य ह< उन को अधम& से भय वा लœा नहc होती। और इन का
खुदा भी मुह›मद साहेब कR ि¬यi और पैग›बर के भफ़गड़े का फै सला करने
मO जानो सरपंच बना है। अब बुिZमान् लोग िवचार लO jक यह कु रान िवyान्
वा ई5रकृ त है वा jकसी अिवyान् मतलबिस3धु का बनाया? Hप… िवjदत हो
जाएगा और दूसरी आयत से 'तीत होता है jक मुह›मद साहेब से उन कR कोई
बीबी अ'स– हो गई होगी, उस पर खुदा ने यह आयत उतार कर उस को
धमकाया होगा jक यjद तू गड़बड़ करे गी और मुह›मद साहेब तुभफ़े छोड़ दOगे
तो उन को उन का खुदा तुभफ़ से अ¸छी बीिबयां देगा jक जो पु˜ष से न िमली
हi। िजस मनु‘य को तिनक सी बुिZ है वह िवचार ले सकता है jक ये खुदा
वुदा के काम ह< वा अपना 'योजन िसिZ के ! ऐसी-ऐसी बातi से ठीक िसZ है
jक खुदा कोई नहc कहता था के वल देशकाल देखकर अपने 'योजन िसZ होने
के िलए खुदा कR तफ& से मुह›मद साहेब कह देते थे। जो लोग खुदा ही कR तफ&
लगाते ह< उन को हम सब eया, सब बुिZमान् यही कहOगे jक खुदा eया ठहरा
मानो मुह›मद साहेब के िलये बीिबयां लाने वाला नाई ठहरा!!! ।।१४५।।
१४६-ऐ नबी भफ़गड़ा कर काjफरi और गुƒ श•ुu से और सwती कर ऊपर
उन के ।। -मंन ७। िस० २८। सू० ६६। आ० ९।।
(समीzक) देिखये मुसलमानi के खुदा कR लीला! अ3य मत वालi से लड़ने के
िलये पैग›बर और मुसलमानi को उचकाता है इसीिलये मुसलमान लोग उप¥व
करने मO 'वृs रहते ह<। परमा"मा मुसलमानi पर कृ पादृि… करे िजस से ये लोग
उप¥व करना छोड़ के सब से िम•ता से वs™।।१४६।।१४७-फट जावेगा
आसमान, बस वह उस jदन सुHत होगा।। और फWरŸते हiगे ऊपर jकनारi उस
के के ; और उठावOगे तwत मािलक तेरे का ऊपर अपने उस jदन आठ जन।। उस
jदन सामने लाये जाओगे तुम, न िछपी रहेगी कोई बात िछपी gई ।। बस जो
कोई jदया गया कम&प• अपना बीच दािहने हाथ अपने के , बस कहेगा लो पढ़ो
कम&प• मेरा।। और जो कोई jदया गया कम&प• बीच बांये हाथ अपने के , बस
कहेगा हाथ न jदया गया होता म< कम&प• अपना।।
-मंन ७। िस० २९। सू० ६९। आ० १६। १७। १८। १९। २५।।
(समीzक) वाह eया jफलासफR और 3याय कR बात है! भला आकाश भी कभी
फट सकता है? eया वह व¬ के समान है जो फट जावे? यjद ऊपर के लोक
को आसमान कहते ह< तो यह बात िव‡ा से िव˜Z है। अब कु रान का खुदा
शरीरधारी होने मO कु छ संjद•ध न रहा । eयijक तwत पर बैठना, आठ कहारi
से उठवाना िवना मू“तमान् के कु छ भी नहc हो सकता? और सामने वा पीछे
भी आना-जाना मू“तमान् ही का हो सकता है। जब वह मू“तमान् है तो एकदेशी
होने से सव&X, सव&aापक, सव&शिžमान् नहc हो सकता और सब जीवi के सब
कमŽ को कभी नहc जान सकता। यह बडे़ आtय& कR बात है jक पु‹या"माu
के दािहने हाथ मO प• देना, बचवाना, बिहŸत मO भेजना और पापा"माu के
बायO हाथ मO कम&प• का देना, नरक मO भेजना, कम&प• बांच के 3याय करना!
भला यह aवहार सव&X का हो सकता है? कदािप नहc। यह सब लीला
लड़के पन कR है।।१४७।।
१४८-चढ़ते ह< फWरŸते और ’ह तफ& उस कR वह अजाब होगा बीच उस jदन
के jक है पWरमाण उस का पचास हजार वष&।। जब jक िनकलOगे कबरi मO से
दौड़ते gए मानो jक वह बुतi के Hथानi कR ओर दौड़ते ह<।
-मंन ७। िस० २९। सू० ७०। आ० ४। ४३।।
(समीzक) यjद पचास हजार वष& jदन का पWरमाण है तो पचास हजार वष&
कR राि• eयi नहc? यjद उतनी बड़ी राि• नहc है तो उतना बड़ा jदन कभी
नहc हो सकता। eया पचास हजार वषŽ तक खुदा फWरŸते और कम&प• वाले
खड़े वा बैठे अथवा जागते ही रहOगे? यjद ऐसा है तो सब रोगी हो कर पुनः
मर ही जायOगे। eया कबरi से िनकल कर खुदा कR कचहरी कR ओर दौड़Oगे?
उन के पास स›मन कबरi मO eयiकर पgँचOगे? और उन िबचारi को जो jक
पु‹या"मा वा पापा"मा ह<। इतने समय तक सभी को कबरi मO दौरे सुपुद& कै द
eयi रeखा? और आजकल खुदा कR कचहरी ब3ध होगी और खुदा तथा फWरŸते
िनक›मे बैठे हiगे? अथवा eया काम करते हiगे। अपने-अपने Hथानi मO बैठे
इधर-उधर घूमते, सोते, नाच तमाशा देखते व ऐश आराम करते हiगे । ऐसा
अ3धेर jकसी के रा°य मO न होगा। ऐसी-ऐसी बातi को िसवाय जंगिलयi के
दूसरा कौन मानेगा? ।।१४८।।
१४९-िनtय उ"प– jकया तुम को कई 'कार से।। eया नहc देखा तुम ने कै से
उ"प– jकया अqलाह ने सात आसमानi को ऊपर तले।। और jकया चांद को
बीच उन के 'काशक और jकया सूय& को दीपक।।
-मंन ७। िस० २९। सू० ७१। आ० १४। १५। १६।।
(समीzक) यjद जीवi को खुदा ने उ"प– jकया है तो वे िन"य अमर कभी नहc
रह सकते? jफर बिहŸत मO सदा eयiकर रह सकO गे? जो उ"प– होता है वह
वHतु अवŸय न… हो जाता है। आसमान को ऊपर तले कै से बना सकता है?
eयijक वह िनराकार और िवभु पदाथ& है। यjद दूसरी चीज का नाम आकाश
रखते हो तो भी उस का आकाश नाम रखना aथ& है। यjद ऊपर तले आसमानi
को बनाया है तो उन सब के बीच मO चांद सू‰य& कभी नहc रह सकते। जो बीच
मO रeखा जाय तो एक ऊपर और एक नीचे का पदाथ& 'कािशत हो दूसरे से
लेकर सब मO अ3धकार रहना चािहये। ऐसा नहc दीखता, इस िलये यह बात
सव&था िम•या है।।१४९।।
१५०-यह jक मसिजदO वाHते अqलाह के ह<, बस मत पुकारो साथ अqलाह के
jकसी को।। -मंन ७। िस० २९। सू० ७२। आ० १८।।
(समीzक) यjद यह बात स"य है तो मुसलमान लोग ‘लाइलाह इिqललाः
मुह›मदर& सूलqलाः’ इस कलमे मO खुदा के साथ मुह›मद साहेब को eयi पुकारते
ह<? यह बात कु रान से िव˜Z है और जो िव˜Z नहc करते तो इस कु रान कR
बात को भफ़ू ठ करते ह<। जब मसिजदO खुदा के घर ह< तो मुसलमान महाबु"परHत
gए। eयijक जैसे पुराणी, जैनी छोटी सी मू“s को ई5र का घर मानने से
बु"परHत ठहरते ह<; ये लोग eयi नहc? ।।१५०।।
१५१-इक$ा jकया जावेगा सूय& और चांद।।
-मंन ७। िस० २९। सू० ७५। आ० ९।।
(समीzक) भला सू‰य& चांद कभी इक$े हो सकते ह< ? देिखये! यह jकतनी
बेसमझ कR बात है । और सू‰य& च3¥ ही के इक$े करने मO eया 'योजन था?
अ3य सब लोकi को इक$े न करने मO eया युिž है? ऐसी-ऐसी अस›भव बातO
परमे5रकृ त कभी हो सकती ह<? िबना अिवyानi के अ3य jकसी कR भी नहc
होतc।।१४९।।
१५२-और jफरO गे ऊपर उनके लड़के सदा रहने वाले, जब देखेगा तू उन को,
अनुमान करे गा तू उन को मोती िबखरे gए।। और पहनाये जावOगे कं गन चाँदी
के और िपलावेगा उन को रब उन का शराब पिव•।।
-मंन ७। िस० २९। सू० ७६। आ० १९। २१।।
(समीzक) eयi जी मोती के वण& से लड़के jकस िलये वहाँ रeखे जाते ह<? eया
जवान लोग सेवा वा ¬ी जन उनको तृƒ नहc कर सकतc? eया आtय& है jक
जो यह महा बुरा कम& लड़कi के साथ दु… जन करते ह< उस का मूल यही कु रान
का वचन हो ! और बिहŸत मO Hवामी सेवकभाव होने से Hवामी को आन3द और
सेवक को पWर~म होने से दुःख तथा पzपात eयi है? और जब खुदा ही उनको
म‡ िपलावेगा तो वह भी उन का सेवकवत् ठहरे गा, jफर खुदा कR बड़ाई
eयiकर रह सके गी? और वहाँ बिहŸत मO ¬ी पु˜ष का समागम और गभ&िHथित
और लड़के बाले भी होते ह< वा नहc? यjद नहc होते तो उन का िवषयसेवन
करना aथ& gआ और जो होते ह< तो वे जीव कहां से आये? और िवना खुदा कR
सेवा के बिहŸत मO eयi ज3मे? यjद ज3मे तो उन को िबना ईमान लाने और
खुदा कR भिž करने से बिहŸत मु0त िमल गया। jक3हc िबचारi को ईमान
लाने और jक3हc को िवना धम& के सुख िमल जाय इस से दूसरा बड़ा अ3याय
कौन सा होगा? ।।१५२।।
१५३-बदला jदये जावOगे कमा&नुसार।। और Êयाले ह< भरे gए ।। िजस jदन खड़े
हiगे ’ह और फWरŸते सफ बांध कर।।
-मंन ७। िस० ३०। सू० ७८। आ० २६। ३४। ३८।।
(समीzक) यjद कमा&नुसार फल jदया जाता तो सदा बिहŸत मO रहने वाले •रO
फWरŸते और मोती के सदृश लड़कi को कौन कम& के अनुसार सदा के िलये
बिहŸत िमला? जब Êयाले भर-भर शराब पीयOगे तो मHत हो कर eयi न
लड़Oग?े ’ह नाम यहां एक फWरŸते का है जो सब फWरŸतi से बड़ा है! eया
खुदा ’ह तथा अ3य फWरŸतi को पंिžबZ खड़े कर के पलटन बांधेगा? eया
पलटन से सब जीवi को सजा jदलावेगा? और खुदा उस समय खड़ा होगा वा
बैठा? यjद कयामत तक खुदा अपनी सब पलटन एक• करके शैतान को पकड़
ले तो उस का रा°य िन‘क‹टक हो जाय। इस का नाम खुदाई है।।१५३।।
१५४-जब jक सूय& लपेटा जावे।। और जब jक तारे गदले हो जावO।। और जब
jक पहाड़ चलाये जावO।। और जब आसमान कR खाल उतारी जावे।।
-मंन ७। िस० ३०। सू० ८१। आ० १। २। ३। ११।।
(समीzक) यह बड़ी बेसमभफ़ कR बात है jक गोल सूय&लोक लपेटा जावेगा?
और तारे गदले eयiकर हो सकO गे? और पहाड़ जड़ होने से कै से चलOगे? और
आकाश को eया पशु समभफ़ा jक उस कR खाल िनकाली जावेगी? यह बड़ी
बेसमभफ़ और जंगलीपन कR बात है।।१५४।।
१५५-और जब jक आसमान फट जावे।। और जब तारे भफ़ड़ जावO।। और जब
दया& चीरे जावO।। और जब कबरO िजला कर उठाई जावO।।
-मंन ७। िस० ३०। सू० ८२। आ० १। २। ३। ४।।
(समीzक) वाह जी कु रान के बनाने वाले jफलासफर! आकाश को eयiकर
फाड़ सके गा? और तारi को कै से भफ़ाड़ सके गा? और दया& eया लकड़ी है जो
चीर डालेगा? और कबरO eया मुरदे ह< जो िजला सके गा? ये सब बातO लड़कi
के सदृश ह<।।१५५।।
१५६-कसम है आसमान बुजŽ वाले कR।। jक3तु वह कु रान है बड़ा।। बीच लौह
महफू ज के (अथा&त् सुरिzत तwती पर िलखा gआ) ।।
-मंन ७। िस० ३०। सू० ८५। आ० १। २१। २२।।
(समीzक) इस कु रान के बनाने वाले ने भूगोल खगोल कु छ भी नहc पढ़ा था।
नहc तो आकाश को jकले के समान बुजŽ वाला eयi कहता? यjद मेषाjद
रािशयi को बुज& कहता है तो अ3य बुज& eयi नहc? इसिलये ये बुज& नहc ह<
jक3तु सब तारे लोक ह<। eया वह कु रान खुदा के पास है? यjद यह कु रान उस
का jकया है तो वह भी िव‡ा और युिž से िव˜Z अिव‡ा से अिधक भरा
होगा।।१५६।।
१५७-िनtय वे मकर करते ह< एक मकर।। और म< भी मकर करता •ँ एक
मकर।। -मंन ७। िस० ३०। सू० ८६। आ० १६।१७।।
(समीzक) मकर कहते ह< ठगपन को, eया खुदा भी ठग है? और eया चोरी का
जवाब चोरी और भफ़ू ठ का जवाब भफ़ू ठ है? eया कोई चोर भले आदमी के
घर मO चोरी करे तो eया भले आदमी को चािहए jक उस के घर मO जा के चोरी
करे ! वाह! वाह जी!! कु रान के बनाने वाले।।१५७।।
१५८-और जब आवेगा मािलक तेरा और फWरŸते पंिž बांध के ।। और लाया
जावेगा उस jदन दोजख को।। -मंन ७। िस० ३०। सू० ८९। आ० २१। २२।।
(समीzक) कहो जी! जैसे कोटवाल वा सेना—यz अपनी सेना को लेकर पंिž
बांध jफरा करे वैसा ही इन का खुदा है? eया दोजख को घड़ा सा समभफ़ा है
jक िजस को उठा के जहाँ चाहे वहाँ ले जावे! यjद इतना छोटा सा है तो असंwय
कै दी उस मO कै से समा सकO गे? ।।१५८।।

१५९-बस कहा था वाHते उन के पैग›बर खुदा के ने, रzा करो ऊंटनी खुदा कR
को, और पानी िपलाना उस के को।। बस भफ़ु ठलाया उस को, बस पांव काटे
उस के , बस मरी डाली ऊपर उन के , रब उन के ने।। -मंन ७। िस० ३०। सू० ९१।
आ० १३। १४।।
(समीzक) eया खुदा भी ऊंटनी पर चढ़ के सैल jकया करता है? नहc तो jकस
िलये रeखी? और िवना कयामत के अपना िनयम तोड़ उन पर मरी रोग eयi
डाला? यjद डाला तो उन को द‹ड jकया, jफर कयामत कR रात मO 3याय और
उस रात का होना भफ़ू ठ समभफ़ा जायगा? jफर इस ऊंटनी के लेख से यह
अनुमान होता है jक अरब देश मO ऊंट, ऊंटनी के िसवाय दूसरी सवारी कम
होती है। इस से िसZ होता है jक jकसी अरब देशी ने कु रान बनाया है।।१५९।।
१६०-यi जो न ˜के गा अवŸय घसीटOगे उस को हम साथ बालi माथे के ।। वह
माथा jक भफ़ू ठा है और अपराधी।। हम बुलावOगे फWरŸते दोजख के को।। -मंन
७। िस० ३०। सू० ९६। आ० १५। १६। १८।।
(समीzक) इस नीच चपरािसयi के काम घसीटने से भी खुदा न बचा। भला
माथा भी कभी भफ़ू ठा और अपराधी हो सकता है? िसवाय जीव के , भला यह
कभी खुदा हो सकता है jक जैसे जेलखाने के दरोगा को बुलावा भेजे।।१६०।।
१६१-िनtय उतारा हम ने कु रान को बीच रात -कदर के ।। और eया जाने तू
eया है रात -कदर कR? ।। उतरते ह< फWरŸते और पिव•"मा बीच उस के , साथ
आXा मािलक अपने के वाHते हर काम के ।।
-मंन ७। िस० ३०। सू० ९७। आ० १। २। ४।।
(समीzक) यjद एक ही रात मO कु रान उतारा तो वह आयत अथा&त् उस समय
मO उतरी और धीरे -धीरे उतारा यह बात स"य eयiकर हो सके गी? और रा•ी
अ3धेरी है इस मO eया पूछना है? हम िलख आये ह< ऊपर नीचे कु छ भी नहc हो
सकता और यहां िलखते ह< jक फWरŸते और पिव•"मा खुदा के geम से संसार
का 'ब3ध करने के िलये आते ह<। इस से Hप… gआ jक खुदा मनु‘यवत् एकदेशी
है। अब तक देखा था jक खुदा फWरŸते और पैग›बर तीन कR कथा है । अब एक
पिव•"मा चौथा िनकल पड़ा! अब न जाने यह चौथा पिव•"मा eया है? यह
तो ईसाइयi के मत अथा&त् िपता पु• और पिव•"मा तीन के मानने से चौथा
भी बढ़ गया। यjद कहो jक हम इन तीनi को खुदा नहc मानते, ऐसा भी हो,
पर3तु जब पिव•"मा पृथÀफ़ है तो खुदा फWरŸते और पैग›बर को पिव•"मा
कहना चािहये वा नहc? यjद पिव•"मा है तो एक ही का नाम पिव•"मा eयi?
और घोड़े आjद जानवर, रात jदन और कु रान आjद कR खुदा कसमO खाता है।
कसमO खाना भले लोगi का काम नहc।।१६१।।
अब इस कु रान के िवषय को िलख के बुिZमानi के स›मुख Hथािपत करता •ँ
jक यह पुHतक कै सा है? मुभफ़ से पूछो तो यह jकताब न ई5र, न िवyान् कR
बनाई और न िव‡ा कR हो सकती है। यह तो बgत थोड़ा सा दोष 'कट jकया
इसिलये jक लोग धोखे मO पड़कर अपना ज3म aथ& न गमावO। जो कु छ इस मO
थोड़ा सा स"य है वह वेदाjद िव‡ा पुHतकi के अनुकूल होने से जैसे मुभफ़ को
>ाÉ है वैसे अ3य भी मजहब के हठ और पzपातरिहत िवyानi और बुिZमानi
को >ाÉ है । इस के िवना जो कु छ इस मO है सब अिव‡ा ±मजाल और मनु‘य
के आ"मा को पशुवत् बनाकर शाि3तभंग करा के उप¥व मचा मनु‘यi मO िव¥ोह
फै ला परHपर दुःखो–ित करने वाला िवषय है। और पुन˜ž दोष का तो कु रान
जानो भ‹डार ही है। परमा"मा सब मनु‘यi पर कृ पा करे jक सब से सब 'ीित
परHपर मेल और एक दूसरे के सुख कR उ–ित करने मO 'वृs हi। जैसे म< अपना
वा दूसरे मतमता3तरi का दोष पzपात रिहत होकर 'कािशत करता •ँ। इसी
'कार यjद सब िवyान् लोग करO तो eया कWठनता है jक परHपर का िवरोध
छू ट, मेल होकर आन3द मO एकमत होके स"य कR 'ािƒ िसZ हो। यह थोड़ा सा
कु रान के िवषय मO िलखा। इस को बुिZमान् धा“मक लोग >3थकार के
अिभ'ाय को समभफ़, लाभ लेवO। यjद कहc ±म से अ3यथा िलखा गया हो तो
उस को शुZ कर लेवO। अब एक बात यह शेष है jक बgत से मुसलमान ऐसा
कहा करते और िलखा वा छपवाया करते ह< jक हमारे मजहब कR बात अथव&वेद
मO िलखी है। इस का यह उsर है jक अथव&वेद मO इस बात का नाम िनशान भी
नहc है।
('-) eया तुम ने सब अथव&वेद देखा है ? यjद देखा है तो अqलोपिनषद् देखो।
यह साzात् उसमO िलखी है। jफर eयi कहते हो jक अथव&वेद मO मुसलमानi
का नाम िनशान भी नहc है।
अथाqलोपिनषदं aाwयाHयामः
अHमांqलां इqले िम•व˜णा jदaािन धsे।
इqलqले व˜णो राजा पुनÖ&द ु ।
ह या िम•े इqलां इqलqले इqलां व˜णो िम•HतेजHकाम ।।१।।
होतारिम3¥ो होतारिम3¥ महासुWर3¥ा ।
अqलो °ये¼ ं ~े¼ ं परमं पूण¶ {|ाणं अqलाम्।।२।।
अqलोरसूलमहामदरकबरHय अqलो अqलाम्।।३।।
आदqलाबूकमेककम्।। अqलाबूक िनखातकम्।।४।।
अqलो यXेन gतg"वा। अqला सूय&च3¥सव&नz• ।।५।।
अqला ऋषीणां सव&jदaाँ इ3¥ाय पूव¶ माया परमम3तWरzा ।।६।।
अqल पृिथaा अ3तWरzं िव5’पम्।।७।।
इqलां कबर इqलां कबर इqलाँ इqलqलेित इqलqला ।।८।।
ओम् अqला इqलqला अनाjदHव’पाय अथव&णा Ÿयामा gं ×c
जनानपशूनिसZान् जलचरान् अदृ… ं कु ˜ कु ˜ फट् ।।९।।
असुरसंहाWरणी gं ×c अqलोरसूलमहमदरकबरHय अqलो अqलाम्
इqलqलेित इqलqला ।।१०।।
इ"यqलोपिनषत् समाƒा।।
जो इस मO '"यz मुह›मद साहब रसूल िलखा है इस से िसZ होता है jक
मुसलमानi का मत वेदमूलक है।
(उsर) यjद तुम ने अथव&वेद न देखा हो तो हमारे पास आओ आjद से पू“s
तक देखो । अथवा िजस jकसी अथव&वेदी के पास बीस का‹डयुž म3•संिहता
अथव&वेद को देख लो। कहc तु›हारे पैग›बर साहब का नाम वा मत का िनशान
न देखोगे। और जो यह अqलोपिनषद् है वह न अथव&वेद मO, न उस के गोपथ
{ा|ण वा jकसी शाखा मO है। यह तो अकबरशाह के समय मO अनुमान है jक
jकसी ने बनाई है। इस का बनाने वाला कु छ अबŠ और कु छ संHकृ त भी पढ़ा
gआ दीखता है eयijक इस मO अरबी और संHकृ त के पद िलखे gए दीखते ह<।
देखो! (अHमाqलां इqले िम•व˜णा jदaािन धsे) इ"याjद मO जो jक दश अंक
मO िलखा है, जैस-े इस मO (अHमाqलां और इqले) अबŠ और (िम•व˜णा jदaािन
धsे) यह संHकृ त पद िलखे ह< वैसे ही सव&• देखने मO आने से jकसी संHकृ त और
अबŠ के पढ़े gए ने बनाई है। यjद इस का अथ& देखा जाता है तो यह कृ ि•म
अयुž वेद और aाकरण रीित से िव˜Z है। जैसी यह उपिनषद् बनाई है, वैसी
बgत सी उपिनषदO मतमता3तर वाले पzपाितयi ने बना ली ह<। जैसी jक
Hवरोपिनषद्, नृिसहतापनी, रामतापनी, गोपालतापनी बgत सी बना ली ह<।
('-) आज तक jकसी ने ऐसा नहc कहा अब तुम कहते हो। हम तु›हारी बात
कै से मानO?
(उsर) तु›हारे मानने वा न मानने से हमारी बात भफ़ू ठ नहc हो सकती है।
िजस 'कार से म<ने इस को अयुž ठहराई है उसी 'कार से जब तुम अथव&वेद,
गोपथ वा इस कR शाखाu से 'ाचीन िलिखत पुHतकi मO जैसे का तैसा लेख
jदखलाओ और अथ&संगित से भी शुZ करो तब तो स'माण हो सकता है।
('-) देखो! हमारा मत कै सा अ¸छा है jक िजस मO सब 'कार का सुख और
अ3त मO मुिž होती है ।
(उsर)-ऐसे ही अपने-अपने मत वाले सब कहते ह< jक हमारा ही मत अ¸छा
है, बाकR सब बुरे। िवना हमारे मत के दूसरे मत मO मुिž नहc हो सकती।
अब हम तु›हारी बात को स0ी मानO वा उन कR? हम तो यही मानते ह< jक
स"यभाषण, अÒहसा, दया आjद शुभ गुण सब मतi मO अ¸छे ह< और बाकR वाद,
िववाद, ई‘या&, yेष, िम•याभाषणाjद कम& सब मतi मO बुरे ह<। यjद तुम को
स"य मत >हण कR इ¸छा हो तो वैjदक मत को >हण करो।
इसके आगे Hवम3तaाम3तa का 'काश संzेप से िलखा जायगा।
इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमकृ ते स"याथ&'काशे
सुभाषािवभूिषते यवनमतिवषये
चतुदश& समुqलासः स›पूण&ः।।१४।।
ओ३म्
Hवम3तaाम3तa'काशः
सव&त3• िसZा3त अथा&त् सा¨ा°य साव&जिनक धम& िजस को सदा से सब मानते
आये, मानते ह< और मानOगे भी। इसीिलये उस को सनातन िन"य धम& कहते ह<
jक िजस का िवरोधी कोई भी न हो सके । यjद अिव‡ायुž जन अथवा jकसी
मत वाले के ±माये gए जन िजस को अ3यथा जानO वा मानO उस का Hवीकार
कोई भी बुिZमान् नहc करते jक3तु िजस को आƒ अथा&त् स"यमानी,
स"यवादी, स"यकारी, परोपकारी, परोपकारक; पzपातरिहत िवyान् मानते
ह< वही सब को म3तa और िजस को नहc मानते वह अम3तa होने से 'माण
के यो•य नहc होता। अब जो वेदाjद स"यशा¬ और {|ा से ले कर जैिमिनमुिन
पय&3तi के माने gए ई5राjद पदाथ& ह< िजन को म< भी मानता •ँ; सब सœन
महाशयi के सामने 'कािशत करता •ँ।
म< अपना म3तa उसी को जानता •ँ jक जो तीन काल मO सब को एक सा
मानने यो•य है। मेरा कोई नवीन कqपना वा मतमता3तर चलाने का लेशमा•
भी अिभ'ाय नहc है jक3तु जो स"य है उस को मानना, मनवाना और जो
अस"य है उस को छोड़ना और छु ड़वाना मुभफ़ को अभी… है। यjद म< पzपात
करता तो आ‰या&वs& मO 'चWरत मतi मO से jकसी एक मत का आ>ही होता
jक3तु जो-जो आ‰या&वs& वा अ3य देशi मO अधम&युž चाल चलन है उस का
Hवीकार और जो धम&युž बातO ह< उन का "याग नहc करता, न करना चाहता
•ँ eयijक ऐसा करना मनु‘यधम& से बिहः है।
मनु‘य उसी को कहना jक-मननशील हो कर Hवा"मवत् अ3यi के सुख-दु ख
और हािन-लाभ को समभफ़े । अ3यायकारी बलवान् से भी न डरे और धमा&"मा
िनब&ल से भी डरता रहे। इतना ही नहc jक3तु अपने सव& साम•य& से धमा&"माu-
jक चाहे वे महा अनाथ, िनब&ल और गुणरिहत eयi न हi-उन कR रzा, उ–ित,
ि'याचरण और अधमŠ चाहे च¦वsŠ सनाथ, महाबलवान् और गुणवान् भी
हो तथािप उस का नाश, अवनित और अि'याचरण सदा jकया करे अथा&त्
जहाँ तक हो सके वहाँ तक अ3यायकाWरयi के बल कR हािन और 3यायकाWरयi
के बल कR उ–ित सव&था jकया करे । इस काम मO चाहे उस को jकतना ही दा˜ण
दु ख 'ाƒ हो, चाहे 'ाण भी भले ही जावO पर3तु इस मनु‘यपन’प धम& से
पृथÀफ़ कभी न होवे। इस मO ~ीमान् महाराजा भतृ&हWर जी आjद ने ºोक कहे
ह< उन का िलखना उपयुž समभफ़ कर िलखता •ँ-
िन3द3तु नीितिनपुणा यjद वा Hतुव3तु,
लˆमी समािवशतु ग¸छतु वा यथे…म् ।
अ‡ैव वा मरणम् अHतु युगा3तरे वा,
3या‰या"पथ 'िवचलि3त पदं न धीरा ।।१।। -भतृ&हWरः।।

न जातु कामा– भया– लोभाZम¶ "यजेœीिवतHयािप हेतो ।


धमª िन"य सुखदु खे "विन"ये जीवो िन"यो हेतुरHय "विन"य ।।२।।
-महाभारते ºो० ११, १२।।
एक एव सुÆZमª िनधनेऽÊयनुयाित य ।
शरीरे ण समं नाशं सव&म3यिZ ग¸छित।।३।। मनु०।।
स"यमेव जयते नानृतं स"येन प3था िवततो देवयान ।
येनाऽऽ¦म3"यृषयो Éाƒकामा य• त"स"यHय परमं िनधानम्।।४।।
न िह स"या"परो धमª नानृता"पातकं परम्।
न िह स"या"परं Xानं तHमात् स"यं समाचरे त्।।५।। -उपिनषjद।।
इ3हc महाशयi के ºोकi के अिभ'ाय के अनुकूल सब को िनtय रखना यो•य
है। अब म< िजन-िजन पदाथŽ को जैसा-जैसा मानता •ँ उन-उन का वण&न संzेप
से यहाँ करता •ँ jक िजन का िवशेष aाwयान इस >3थ मO अपने-अपने 'करण
मO कर jदया है। इन मO से-
१-'थम ‘ई5र’ jक िजस के {| परमा"माjद नाम ह<, जो सि0दान3दाjद
लzणयुž है, िजस के गुण, कम&, Hवाभाव पिव• ह<। जो सव&X िनराकार,
सव&aापक, अज3मा, अन3त, सव&शिžमान्, दयालु, 3यायकारी, सब सृि… का
कsा&, धsा&, हsा&, सब जीवi को कमा&नुसार स"य 3याय से फलदाता आjद
लzणयुž है; उसी को परमे5र मानता •ँ।
२-चारi ‘वेदi’ (िव‡ा धम&युž ई5र'णीत संिहता म3•भाग) को िन±ा&3त
Hवतः'माण मानता •ँ। वे Hवयं 'माण’प ह< jक िजन के 'माण होने मO jकसी
अ3य >3थ कR अपेzा नहc। जैसे सू‰य& वा 'दीप अपने Hव’प के Hवतः'काशक
और पृिथaाjद के भी 'काशक होते ह< वैसे चारi वेद ह<। और चारi वेदi के
{ा|ण, छः अंग, छः उपांग, चार उपवेद और ११२७ (•यारह सौ सsाईस)
वेदi कR शाखा जो jक वेदi के aाwयान ’प {|ाjद मह“षयi के बनाये >3थ
ह< उन को परतः'माण अथा&त् वेदi के अनुकूल होने से 'माण और जो इन मO
वेदिव˜Z वचन ह< उनका अ'माण करता •ँ।
३-जो पzपातरिहत, 3यायाचरण स"यभाषणाjद युž ई5राXा, वेदi से
अिव˜Z है उस को ‘धम&’ और जो पzपातसिहत अ3यायाचरण
िम•याभाषणाjद ई5राXाभंग, वेदिव˜Z है उस को ‘अधम&’ मानता •ँ।
४-जो इ¸छा, yेष, सुख, दुःख और Xानाjद गुणयुž अqपX िन"य है उसी को
‘जीव’ मानता •ँ।
५-जीव और ई5र Hव’प और वैध›य& से िभ– और aाÊयaापक और
सावम›य& से अिभ– है अथा&त् जैसे आकाश से मू“sमान् ¥a कभी िभ– न था,
न है, न होगा और न कभी एक था, न है, न होगा इसी 'कार परमे5र और
जीव को aाÊय-aापक, उपाHय-उपासक और िपता-पु• आjद स›ब3धयुž
मानता •ँ।
६-‘अनाjद पदाथ&’ तीन ह<। एक ई5र, िyतीय जीव, तीसरा 'कृ ित अथा&त्
जगत् का कारण, इ3हc को िन"य भी कहते ह<। जो िन"य पदाथ& ह< उन के गुण,
कम&, Hवभाव भी िन"य ह<।
७-‘'वाह से अनाjद’ जो संयोग से ¥a, गुण, कम& उ"प– होते ह< वे िवयोग के
पtात् नहc रहते पर3तु िजस से 'थम संयोग होता है वह साम•य& उन मO
अनाjद है और उस से पुनरिप संयोग होगा तथा िवयोग भी, इन तीनi को
'वाह से अनाjद मानता •ँ।
८-‘सृि…’ उस को कहते ह< जो पृथÀफ़ ¥ai का Xान युिžपूव&क मेल होकर नाना
’प बनना।
९-‘सृि… का 'योजन’ यही है jक िजस मO ई5र के सृि…िनिमs गुण, कम&,
Hवभाव का साफqय होना। जैसे jकसी ने jकसी से पूछा jक ने• jकस िलये ह<?
उस ने कहा देखने के िलये। वैसे ही सृि… करने के ई5र के साम•य& कR सफलता
सृि… करने मO है और जीवi के कमŽ का यथावत् भोग कराना आjद भी।
१०-‘सृि… सकतृ&क’ है। इस का कsा& पूवªž ई5र है। eयijक सृि… कR रचना
देखने और जड़ पदाथ& मO अपने आप यथायो•य बीजाjद Hव’प बनने का
साम•य& न होने से सृि… का ‘कsा&’ अवŸय है।
११-‘ब3ध’ सिनिमsक अथा&त् अिव‡ा िनिमs से है। जो-जो पाप कम&
ई5रिभ–ोपासना अXानाjद सब दुःख फल करने वाले ह< इसी िलये यह ‘ब3ध’
है jक िजस कR इ¸छा नहc और भोगना पड़ता है।
१२-‘मुिž’ अथा&त् सव& दुःखi से छू टकर ब3धरिहत सव&aापक ई5र और उस
कR सृि… मO Hवे¸छा से िवचरना, िनयत समय पय&3त मुिž के आन3द को भोग
के पुनः संसार मO आना।
१३-‘मुिž के साधन’ ई5रोपासना अथा&त् योगा^यास, धमा&नु¼ान, {|चय&
से िव‡ा 'ािƒ, आƒ िवyानi का संग, स"यिव‡ा, सुिवचार और पु˜षाथ& आjद
ह<।
१४-‘अथ&’ वह है jक जो धम& ही से 'ाƒ jकया जाय और जो अधम& से िसZ
होता है उस को ‘अनथ&’ कहते ह<।
१५-‘काम’ वह है जो धम& और अथ& से 'ाƒ jकया जाय। १६-‘वणा&~म’ गुण
कमŽ कR यो•यता से मानता •ँ।
१७-‘राजा’ उसी को कहते ह< जो शुभ गुण, कम&, Hवभाव से 'काशमान,
पzपातरिहत 3यायधम& का सेवी, 'जाu मO िपतृवत् वs· और उन को पु•वत्
मान के उन कR उ–ित और सुख बढ़ाने मO सदा य¢ jकया करे ।
१८-‘'जा’ उस को कहते ह< jक जो पिव• गुण, कम&, Hवभाव को धारण कर के
पzपातरिहत 3याय धम& के सेवन से राजा और 'जा कR उ–ित चाहती gई
राजिव¥ोहरिहत राजा के साथ पु•वत् वs·।
१९-जो सदा िवचार कर अस"य को छोड़ स"य का >हण करे , अ3यायकाWरयi
को हठावे और 3यायकाWरयi को बढ़ावे, अपने आ"मा के समान सब का सुख
चाहे सो ‘3यायकारी’ है; उस को म< भी ठीक मानता •ँ।
२०-‘देव’ िवyानi को और अिवyानi को ‘असुर’ पािपयi को ‘राzस’
अनाचाWरयi को ‘िपशाच’ मानता •ँ।
२१-उ3हc िवyानi, माता, िपता, आचा‰य&, अितिथ, 3यायकारी राजा और
धमा&"मा जन, पितËता ¬ी और ¬ीËत पित का स"कार करना ‘देवपूजा’
कहाती है। इस से िवपरीत अदेवपूजा, इन कR मू“तयi को पू°य और इतर
पाषाणाjद जड़ मू“तयi को सव&था अपू°य समभफ़ता •ँ।
२२-‘िशzा’ िजस से िव‡ा, स^यता, धमा&"मता, िजतेि3¥यताjद कR बढ़ती
होवे और अिव‡ाjद दोष छू टO उस को िशzा कहते ह<।
२३-‘पुराण’ जो {|ाjद के बनाये ऐतरे याjद {ा|ण पुHतक ह< उ3हc को पुराण,
इितहास, कqप, गाथा और नाराशंसी नाम से मानता •ँ।
२४-‘तीथ&’ िजस से दुःखसागर से पार उतरO jक जो स"यभाषण, िव‡ा, स"संग,
यमाjद, योगा^यास, पु˜षाथ&, िव‡ादानाjद शुभ कम& है उसी को तीथ& समझता
•ँ; इतर जलHथलाjद को नहc।
२५-‘पु˜षाथ& 'ारdध से बड़ा’ इसिलये है jक िजस से सि€त 'ारdध बनते िजस
के सुधरने से सब सुधरते और िजस के िबगड़ने से सब िबगड़ते ह< इसी से 'ारdध
कR अपेzा पु˜षाथ& बड़ा है।
२६-‘मनु‘य’ को सब से यथायो•य Hवा"मवत् सुख, दुःख, हािन, लाभ मO वs&ना
~े¼; अ3यथा वs&ना बुरा समभफ़ता •ँ।
२७-‘संHकार’ उनको कहते ह< jक िजस से शरीर, मन और आ"मा उsम होवे।
वह िनषेकाjद Ÿमशाना3त सोलह 'कार का है। इस को कs&a समभफ़ता •ँ
और दाह के पtात् मृतक के िलये कु छ भी न करना चािहये।
२८-‘यX’ उस को कहते ह< jक िजस मO िवyानi का स"कार यथायो•य िशqप
अथा&त् रसायन जो jक पदाथ&िव‡ा उस से उपयोग और िव‡ाjद शुभगुणi का
दान, अि«हो•jद िजन से वायु, वृि…, जल, ओषिध कR पिव•ता करके सब
जीवi को सुख पgँचाना है; उस को उsम समभफ़ता •ँ।
२९-जैसे ‘आ‰य&’ ~े¼ और ‘दHयु’ दु… मनु‘यi को कहते ह< वैसे ही म< भी मानता
•ँ।
३०-‘आ‰या&वs&’ देश इस भूिम का नाम इसिलये है jक इस मO आjद सृि… से
आ‰य& लोग िनवास करते ह< पर3तु इस कR अविध उsर मO िहमालय, दिzण मO
िव3—याचल, पिtम मO अटक और पूव& मO {|पु• नदी है। इन चारi के बीच मO
िजतना 'देश है उस को ‘आ‰या&वs&’ कहते और जो इस मO सदा रहते ह< उन को
भी आय& कहते ह<।
३१-जो सांगोपांग वेदिव‡ाu का अ—यापक स"याचार का >हण और
िम•याचार का "याग करावे वह ‘आचाय&’ कहाता है।
३२-‘िश‘य’ उस को कहते ह< jक जो स"य िशzा और िव‡ा को >हण करने
यो•य धमा&"मा, िव‡ा>हण कR इ¸छा और आचा‰य& का ि'य करने वाला है।
३३-‘गु˜’ माता िपता और जो स"य का >हण करावे और अस"य को छु ड़ावे
वह भी ‘गु˜’ कहाता है।
३४-‘पुरोिहत’ जो यजमान का िहतकारी स"योपदे…ा होवे।
३५-‘उपा—याय’ जो वेदi का एकदेश वा अंगi को पढ़ाता हो।
३६-‘िश…ाचार’ जो धमा&चरणपूव&क {|चय& से िव‡ा>हण कर '"यzाjद
'माणi से स"यास"य का िनण&य करके स"य का >हण अस"य का पWर"याग
करना है यही िश…ाचार और जो इस को करता है वह ‘िश…’ कहाता है।
३७-'"यzाjद आठ ‘'माणi’ को भी मानता •ँ।
३८-‘आƒ’ जो यथाथ&वžा, धमा&"मा, सब के सुख के िलये 'य¢ करता है उसी
को आƒ कहता •ँ।
३९-‘परीzा’ पांच 'कार कR है। इस मO से 'थम जो ई5र उस के गुण, कम&,
Hवभाव और वेदिव‡ा, दूसरी '"यzाjद आठ 'माण, तीसरी सृि…- ¦म, चौथी
आƒi का aवहार और पांचवc अपने आ"मा कR पिव•ता, िव‡ा, इन पांच
परीzाu से स"याऽस"य का िनण&य कर के स"य का >हण अस"य का पWर"याग
करना चािहये।
४०-‘परोपकार’ िजस से सब मनु‘यi के दुराचार दुःख छू टO, ~े¼ाचार और सुख
बढ़े उस के करने को परोपकार कहता •ँ।
४१-‘Hवत3•’ ‘परत3•’ जीव अपने कामi मO Hवत3• और कम&फल भोगने मO
ई5र कR aवHथा से परत3• वैसे ही ई5र अपने स"याचार आjद काम करने
मO Hवत3• है।
४२-‘Hवग&’ नाम सुख िवशेष भोग और उस कR साम>ी कR 'ािƒ का है।
४३-‘नरक’ जो दुःख िवशेष भोग और उस कR सा¨गी को 'ाƒ होना है।
४४-‘ज3म’ जो शरीर धारण कर 'कट होना सो पूव&, पर और म—य भेद से
तीनi 'कार का मानता •ँ।
४५-शरीर के संयोग का नाम ‘ज3म’ और िवयोग मा• को ‘मृ"यु’ कहते ह<।
४६-‘िववाह’ जो िनयमपूव&क 'िसिZ से अपनी इ¸छा कर के पािण>हण करना
वह ‘िववाह’ कहाता है।
४७-‘िनयोग’ िववाह के पtात् पित वा प¢ी के मर जाने आjद िवयोग मO
अथवा नपुंसक"वाjद िHथर रोगi मO ¬ी वा पु˜ष आप"काल मO Hववण& वा अपने
से उsम वण&Hथ ¬ी वा पु˜ष के साथ स3तानो"पिs करना।
४८-‘Hतुित’ गुणकRs&न ~वण और Xान होना, इस का फल 'ीित आjद होते
ह<।
४९-‘'ाथ&ना’ अपने साम•य& के उपरा3त ई5र के स›ब3ध से जो िवXान आjद
'ाƒ होते ह< उन के िलये ई5र से याचना करना और इस का फल िनरिभमान
आjद होता है।
५०-‘उपासना’ जैसे ई5र के गुण, कम&, Hवभाव पिव• ह< वैसे अपने करना,
ई5र को सव&aापक, अपने को aाÊय जान के ई5र के समीप हम और हमारे
समीप ई5र है ऐसा िनtय योगा^यास से साzात् करना उपासना कहाती है,
इस का फल Xान कR उ–ित आjद है।
५१-‘सगुणिनगु&णHतुित'ाथ&नोपासना’ जो-जो गुण परमे5र मO ह< उन से युž
और जो जो गुण नहc ह< उन से पृथक् मान कर 'शंसा करना सगुणिनगु&ण Hतुित,
शुभ गुणi के >हण कR ई5र से इ¸छा और दोष छु ड़ाने के िलये परमा"मा का
सहाय चाहना सगुणिनगु&ण 'ाथ&ना और सब गुणi से सिहत सब दोषi से रिहत
परमे5र को मान कर अपने आ"मा को उस के और उस कR आXा के अप&ण कर
देना सगुणिनगु&णोपासना कहाती है। ये संzेप से HविसZा3त jदखला jदये ह<।
इनकR िवशेष aाwया इसी ‘स"याथ&'काश’ के 'करण-'करण मO है तथा
ऋ•वेदाjदभा‘यभूिमका आjद >3थi मO भी िलखी है अथा&त् जो-जो बात सब
के सामने माननीय है उस को मानता अथा&त् जैसे स"य बोलना सब के सामने
अ¸छा और िम•या बोलना बुरा है ऐसे िसZा3तi को Hवीकार करता •ँ। और
जो मतमता3तर के परHपर िव˜Z भफ़गड़े ह< उन को म< 'स– नहc करता
eयijक इ3हc मत वालi ने अपने मतi का 'चार कर मनु‘यi को फं सा के परHपर
श•ु बना jदये ह<। इस बात को काट सव& स"य का 'चार कर सब को ऐeयमत
मO करा yेष छु ड़ा परHपर मO दृढ़ 'ीितयुž करा के सब से सब को सुख लाभ
पgँचाने के िलये मेरा 'य¢ और अिभ'ाय है।
सव&शिžमान् परमा"मा कR कृ पा सहाय और आƒजनi कR सहानुभूित से ‘यह
िसZा3त सव&• भूगोल मO शीÎ 'वृs हो जावे’ िजस से सब लोग सहज से
ध›मा&थ& काम, मोz कR िसिZ करके सदा उ–त और आनि3दत होते रहO। यही
मेरा मुwय 'योजन है।।
अलमितिवHतरे ण बुिZमy‰य·षु ।
ओम् श–ो िम• शं व˜ण श–ो भव"व‰य&मा ।
श– इ3¥ो बृहHपित श–ो िव‘णु˜˜¦म ।।
नमो {|णे नमHते वायो "वमेव '"यzं {|ािस ।
"वामेव '"यzं {|ावाjदषम् । ऋतमवाjदषम् । स"यमवाjदषम् ।
त3मामवीत् तyžारमावीत् । आवी3माम् । आवीyžारम् ।
ओ३म् शाि3त शाि3त शाि3त ।।
इित ~ीम"परमहंसपWरËाजकाचा‰या&णां परमिवदुषां
~ीिवरजान3दसरHवतीHवािमनां िश‘येण
~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमना िवरिचत Hवम3तaाम3तaिसZा3तसमि3वत
सु'माणयुž सुभाषािवभूिषत स"याथ&'काशोऽयं >3थ स›पू“तमगमत्।।

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