Professional Documents
Culture Documents
Satyarth Prakash Satyarath
Satyarth Prakash Satyarath
Satyarth Prakash Satyarath
ज3म के पtात् बालक और उसकR माता को दूसरे Hथान जहाँ का वायु शुZ
हो वहां रeखO सुग3ध तथा दश&नीय पदाथ& भी रeखO और उस देश मO ±मण
कराना उिचत है jक जहां का वायु शुZ हो और जैसा उिचत समझO वैसा करO ।
इस 'कार जो ¬ी वा पु˜ष करO गे उनके उsम स3तान, दीघा&यु, बल परा¦म
कR वृिZ होती ही रहेगी jक िजससे सब स3तान उsम बल, परा¦मयुž,
दीघा&यु, धा“मक हi। बालकi को माता सदा उsम िशzा करे , िजससे स3तान
स^य हi और jकसी अंग से कु चे…ा न करने पावO। जब बोलने लगO तब उसकR
माता बालक कR ि◌◌ंज§वा िजस 'कार कोमल होकर Hप… उ0ारण कर सके
वैसा उपाय करे jक जो िजस वण& का Hथान, 'य¢ अथा&त् जैसे ‘प’ इसका ओ¼
Hथान और Hपृ… 'य¢ दोनi ओ¼i को िमलाकर बोलना; ×Hव, दीघ&, Êलुत
अzरi को ठीक-ठीक बोल सकना। मधुर, ग›भीर, सु3दर Hवर, अzर, मा•,
पद, वाeय, संिहता अवसान िभ–-िभ– ~वण होवे। जब वह कु छ-कु छ बोलने
और समझने लगे तब सु3दर वाणी और बड़े, छोटे, मा3य, िपता, माता, राजा,
िवyान् आjद से भाषण, उनसे वs&मान और उनके पास बैठने आjद कR भी
िशzा करO िजस से कहc उन का अयो•य aवहार न हो के सव&• 'ित¼ा gआ
करे । जैसे स3तान िजतेि3¥य, िव‡ाि'य और स"संग मO ˜िच करO वैसा 'य¢
करते रहO। aथ& ¦Rडा, रोदन, हाHय, लड़ाई, हष&, शोक, jकसी पदाथ& मO
लोलुपता, ई‘या&, yेषाjद न करO । उपHथेि3¥य से Hपश& और मद&न से वीय& कR
zीणता, नपुंसकता होती और हHत मO दुग&3ध भी होता है इससे उसका Hपश& न
करO । सदा स"यभाषण शौय&, धैय&, 'स–वदन आjद गुणi कR 'ािƒ िजस 'कार
हो, करावO।
जब पांच-पांच वष& के लड़का लड़कR हi तब देवनागरी अzरi का अ^यास
करावO। अ3य देशीय भाषाu के अzरi का भी। उसके पtात् िजन से अ¸छी
िशzा, िव‡ा, धम&, परमे5र, माता, िपता, आचाय&, िवyान्, अितिथ, राजा,
'जा, कु टु ›ब, ब3धु, भिगनी, भृ"य आjद से कै से-कै से वs&ना इन बातi के म3•,
ºोक, सू•, ग‡, प‡ भी अथ& सिहत क‹ठHथ करावO। िजन से स3तान jकसी
धूत& के बहकाने मO न आवO और जो-जो िव‡ा, धम&िव˜Z ±ाि3तजाल मO िगराने
वाले aवहार ह< उन का भी उपदेश कर दO िजस से भूत 'ेत आjद िम•या बातi
का िव5ास न हो ।
गुरोः 'ेतHय िश‘यHतु िपतृमेधं समाचरन्।
'ेतहारै ः समं त• दशरा•ेण शु¾—यित।। मनु०।।
अथ&-जब गु˜ का 'ाणा3त हो तब मृतकशरीर िजस का नाम 'ेत है उस का दाह
करनेहारा िश‘य 'ेतहार अथा&त् मृतक को उठाने वालi के साथ दशवO jदन शुZ
होता है। और जब उस शरीर का दाह हो चुका तब उस का नाम भूत होता है
अथा&त् वह अमुकनामा पु˜ष था। िजतने उ"प– हi, वs&मान मO आ के न रहO वे
भूतHथ होने से उन का नाम भूत है। ऐसा {|ा से लेके आज पय&3त के िवyानi
का िसZा3त है पर3तु िजस को शंका, कु संग, कु संHकार होता है उस को भय
और शंका’प भूत, 'ेत, शाjकनी, डाjकनी आjद अनेक ±मजाल दुःखदायक
होते ह<। देखो! जब कोई 'ाणी मरता है तब उसका जीव पाप, पु‹य के वश
होकर परमे5र कR aवHथा से सुख दुःख के पफ़ल भोगने के अथ& ज3मा3तर
धारण करता है। eया इस अिवनाशी परमे5र कR aवHथा का कोई भी नाश
कर सकता है?
अXानी लोग वै‡क शा¬ वा पदाथ&िव‡ा के पढ़ने, सुनने और िवचार से रिहत
होकर सि–पात°वराjद शारीWरक और उ3मादाjद मानस रोगi का नाम भूत
'ेताjद धरते ह<। उन का औषधसेवन और प•याjद उिचत aवहार न करके उन
धूत,& पाख‹डी, महामूख&, अनाचारी, HवाथŠ, भंगी, चमार, शू¥, ›ले¸छाjद पर
भी िव5ासी होकर अनेक 'कार से ढiग, छल, कपट और उि¸छ… भोजन,
डोरा, धागा आjद िम•या म3•, य3• बांधते-बंधवाते jफरते ह< । अपने धन का
नाश, स3तान आjद कR दुदश & ा और रोगi को बढ़ा कर दुःख देते jफरते ह<। जब
आंख के अ3वमे और गांठ के पूरे उन दुबु&िZ पापी Hवा“थयi के पास जाकर
पूछते ह< jक-‘महाराज ! इस लड़का, लड़कR, ¬ी और पु˜ष को न जाने eया हो
गया है? ’ तब वे बोलते ह< jक ‘इस के शरीर मO बड़ा भूत, 'ेत, भैरव, शीतला
आjद देवी आ गई है, जब तक तुम इस का उपाय न करोगे तब तक ये न छू टOगे
और 'ाण भी ले लOगे। जो तुम मलीदा वा इतनी भOट दो तो म3• जप पुरtरण
से झाड़ के इन को िनकाल दO। तब वे अ3धे और उन के स›ब3धी बोलते ह< jक
‘महाराज ! चाहे हमारा सव&Hव जाओ पर3तु इन को अ¸छा कर दीिजए।’ तब
तो उन कR बन पड़ती है। वे धूs& कहते ह<-‘अ¸छा लाओ इतनी साम>ी, इतनी
दिzणा, देवता को भOट और >हदान कराओ।’ भफ़ांभफ़, मृदग ं , ढोल, थाली
लेके उसके सामने बजाते गाते और उन मO से एक पाख‹डी उ3मs होके नाच
कू द के कहता है-‘म< इसका 'ाण ही ले लूँगा।’ तब वे अ3धे उस भंगी चमार
आjद नीच के पगi मO पड़ के कहते ह<-‘आप चाहO सो लीिजये इस को बचाइये।’
तब वह धूs& बोलता है म< हनुमान् •ँ, लाओ पÙR िमठाई, तेल, िस3दूर, सवा
मन का रोट और लाल लंगोट। म< देवी वा भैरव •ं, लाओ पांच बोतल म‡,
बीस मुगŠ, पांच बकरे , िमठाई और व¬।’ जब वे कहते ह< jक-‘जो चाहो सो
लो’ तब तो वह पागल बgत नाचने कू दने लगता है पर3तु जो कोई बुिZमान्
उनकR भOट ‘पांच जूता, द‹डा वा चपेटा, लातO मारO ’ तो उसके हनुमान्, देवी
और भैरव झट 'स– होकर भाग जाते ह<। eयijक वह उन का के वल धनाjद
हरण करने के 'योजनाथ& ढiग है।
और जब jकसी >ह>Hत >ह’प °योित“वदाभास के पास जाके वे कहते ह<-‘हे
महाराज! इस को eया है? ’ तब वे कहते ह< jक-‘इस पर सू‰या&jद ¦ू र >ह चढ़े
ह<। जो तुम इन कR शाि3त, पाठ, पूजा, दान कराओ तो इस को सुख हो जाय,
नहc तो बgत पीिड़त होकर मर जाय तो भी आtय& नहc।’
(उsर) किहये °योित“वत् ! जैसी यह पृिथवी जड़ है वैसे ही सूया&jद लोक ह<,
वे ताप और 'काशाjद से िभ– कु छ भी नहc कर सकते। eया ये चेतन ह< जो
¦ोिधत होके दुःख और शा3त होके सुख दे सकO ?
('-) eया जो यह संसार मO राजा 'जा सुखी दुःखी हो रहे ह< यह >हi का
पफ़ल नहc है?
(उsर) नहc, ये सब पाप पु‹यi के पफ़ल ह<।
('-) तो eया °यो◌ाितषशा¬ झूठा है?
(उsर) नहc, जो उसमO अंक, बीज, रे खागिणत िव‡ा है वह सब स0ी, जो
पफ़ल कR लीला है वह सब झूठी है।
('-) eया जो यह ज3मप• है सो िन‘पफ़ल है।
(उsर) हां, वह ज3मप• नहc jक3तु उसका नाम ‘शोकप•’ रखना चािहये
eयijक जब स3तान का ज3म होता है तब सब को आन3द होता है। पर3तु वह
आन3द तब तक होता है jक जब तक ज3मप• बनके >हi का पफ़ल न सुने।
जब पुरोिहत ज3मप• बनाने को कहता है तब उस के माता, िपता पुरोिहत से
कहते ह<-‘महाराज! आप बgत अ¸छा ज3मप• बनाइये’ जो धनाÚ हi तो बgत
सी लाल पीली रे खाu से िच• िविच• और िनध&न हो तो साधारण रीित से
ज3मप• बनाके सुनाने को आता है। तब उसके मां बाप °योितषी जी के सामने
बैठ के कहते ह<-‘इस का ज3मप• अ¸छा तो है? ’ °योितषी कहता है-‘जो है सो
सुना देता •ं। इसके ज3म>ह बgत अ¸छे और िम•>ह भी बgत अ¸छे ह< िजन
का पफ़ल धनाÚ और 'ित¼ावान्, िजस सभा मO जा बैठेगा तो सब के ऊपर
इस का तेज पड़ेगा। शरीर से आरो•य और रा°यमानी होगा।’ इ"याjद बातO
सुनके िपता आjद बोलते ह<-‘वाह वाह °योितषी जी! आप बgत अ¸छे हो।’
°योितषी जी समझते ह< इन बातi से का‰य& िसZ नहc होता। तब °योितषी
बोलता है-‘ये >ह तो बgत अ¸छे ह< पर3तु ये >ह ¦ू र ह< अथा&त् पफ़लाने-
पफ़लाने >ह के योग से ८ वष& मO इस का मृ"युयोग है।’ इस को सुन के माता
िपताjद पु• के ज3म के आन3द को छोड़ के शोकसागर मO डू ब कर °योितषी से
कहते ह< jक ‘महाराज जी! अब हम eया करO ? ’ तब °योितषी जी कहते ह<-
‘उपाय करो’। गृहHथ पूछे ‘eया उपाय करO ।’ °योितषी जी 'Hताव करने लगते
ह< jक ‘ऐसा-ऐसा दान करो। >ह के म3• का जप कराओ और िन"य {ा|णi
को भोजन कराओगे तो अनुमान है jक नव>हi के िवš हट जायOगे।’ अनुमान
शdद इसिलये है jक जो मर जायेगा तो कहOगे हम eया करO परमे5र के ऊपर
कोई नहc है। हम ने तो बgत सा य¢ jकया और तुम ने कराया, उस के कम&
ऐसे ही थे। और जो बच जाय तो कहते है jक देखो-हमारे म3•, देवता और
{ा|णi कR कै सी शिž है? तु›हारे लड़के को बचा jदया। यहां यह बात होनी
चािहये jक जो इनके जप पाठ से कु छ न हो तो दूने ितगुने ˜पये उन धूतŽ से ले
लेने चािहये और बच जाय तो भी ले लेने चािहये eयijक जैसे °योितिषयi ने
कहा jक ‘इस के कम& और परमे5र के िनयम तोड़ने का साम•य& jकसी का नहc
।’ वैसे गृहHथ भी कहO jक ‘यह अपने कम& और परमे5र के िनयम से बचा है,
तु›हारे करने से नहc’ और तीसरे गु˜ आjद भी पु‹य दान करा के आप ले लेते
ह< तो उनको भी वही उsर देना, जो °योितिषयi को jदया था।
अब रह गई शीतला और म3•, त3•, य3• आjद। ये भी ऐसे ही ढiग मचाते
ह<। कोई कहता है jक ‘जो हम म3• पढ़ के डोरा वा य3• बना देवO तो हमारे
देवता और पीर उस म3•, य3• के 'ताप से उस को कोई िवš नहc होने देते।’
उन को वही उsर देना चािहये jक eया तुम मृ"यु, परमे5र के िनयम और
कम&पफ़ल से भी बचा सकोगे? तु›हारे इस 'कार करने से भी jकतने ही लड़के
मर जाते ह< और तु›हारे घर मO भी मर जाते ह< और eया तुम मरण से बच
सकोगे? तब वे कु छ भी नहc कह सकते और वे धूs& जान लेते ह< jक यहां
हमारी दाल नहc गलेगी। इस से इन सब िम•या aवहारi को छोड़ कर
धा“मक, सब देश के उपकारकsा&, िन‘कपटता से सब को िव‡ा पढ़ाने वाले,
उsम िवyान् लोगi का '"युपकार करना जैसा वे जगत् का उपकार करते ह<,
इस काम को कभी न छोड़ना चािहये। और िजतनी लीला रसायन, मारण,
मोहन, उ0ाटन, वशीकरण आjद करना कहते ह< उन को भी महापामर
समझना चािहये।
इ"याjद िम•या बातi का उपदेश बाqयावHथा ही मO स3तानi के Æदय मO डाल
दO jक िजस से Hवस3तान jकसी के ±मजाल मO पड़ के दुःख न पावO और वीय&
कR रzा मO आन3द और नाश करने मO दुःख'ािƒ भी जना देनी चािहये। जैसे-
‘देखो िजस के शरीर मO सुरिzत वीय& रहता है तब उस को आरो•य, बुिZ, बल,
परा¦म बढ़ के बgत सुख कR 'ािƒ होती है। इसके रzण मO यही रीित है jक
िवषयi कR कथा, िवषयी लोगi का संग, िवषयi का —यान, ¬ी का दश&न,
एका3त सेवन, स›भाषण और Hपश& आjद कम& से {|चारी लोग पृथÀफ़ रह
कर उsम िशzा और पूण& िव‡ा को 'ाƒ होवO। िजसके शरीर मO वीय& नहc
होता वह नपुंसक महाकु लzणी और िजस को 'मेह रोग होता है वह दुब&ल,
िनHतेज, िनबु&िZ, उ"साह, साहस, धैय&, बल, परा¦माjद गुणi से रिहत होकर
न… हो जाता है। जो तुम लोग सुिशzा और िव‡ा के >हण, वीय& कR रzा करने
मO इस समय चूकोगे तो पुनः इस ज3म मO तुम को यह अमूqय समय 'ाƒ नहc
हो सके गा। जब तक हम लोग गृहकमŽ के करने वाले जीते ह< तभी तक तुम को
िव‡ा->हण और शरीर का बल बढ़ाना चािहये।’ इसी 'कार कR अ3य-अ3य
िशzा भी माता और िपता करO ।
इसीिलए ‘मातृमान् िपतृमान्’ शdद का >हण उž वचन मO jकया है अथा&त्
ज3म से ५वO वष& तक बालकi को माता, ६ वष& से ८वO वष& तक िपता िशzा
करO और ९वO वष& के आर›भ मO िyज अपने स3तानi का उपनयन करके आचाय&
कु ल मO अथा&त् जहां पूण& िवyान् और पूण& िवदुषी ¬ी िशzा और िव‡ादान
करने वाली हi वहां लड़के और लड़jकयi को भेज दO और शू¥ाjद वण& उपनयन
jकये िवना िव‡ा^यास के िलये गु˜कु ल मO भेज दO।
उ3हc के स3तान िवyान्, स^य और सुिशिzत होते ह<, जो पढ़ाने मO स3तानi
का लाड़न कभी नहc करते jक3तु ताड़ना ही करते रहते ह<। इसमO aाकरण
महाभा‘य का 'माण है-
सामृतैः पािणिभš&ि3त गुरवो न िवषोिzतैः।
लालना~ियणो दोषाHताडना~ियणो गुणाः।।
अथ&-जो माता, िपता और आचाय&, स3तान और िश‘यi का ताड़न करते ह< वे
जानो अपने स3तान और िश‘यi को अपने हाथ से अमृत िपला रहे ह< और जो
स3तानi वा िश‘यi का लाड़न करते ह< वे अपने स3तानi और िश‘यi को िवष
िपला के न… ±… कर देते ह<। eयijक लाड़न से स3तान और िश‘य दोषयुž
तथा ताड़ना से गुणयुž होते ह< और स3तान और िश‘य लोग भी ताड़ना से
'स– और लाड़न से अ'स– सदा रहा करO । पर3तु माता, िपता तथा अ—यापक
लोग ई‘या&, yेष से ताड़न न करO jक3तु ऊपर से भय'दान और भीतर से
कृ पादृि… रeखO।
जैसे अ3य िशzा कR वैसी चोरी, जारी, आलHय, 'माद, मादक ¥a,
िम•याभाषण, िहसा, ¦ू रता, ई‘या&, yेष, मोह आjद दोषi को छोड़ने और
स"याचार के >हण करने कR िशzा करO । eयijक िजस पु˜ष ने िजसके सामने
एक वार चोरी, जारी, िम•याभाषणाjद कम& jकया उस कR 'ित¼ा उस के
सामने मृ"युप‰य&3त नहc होती। जैसी हािन 'ितXा िम•या करने वाले कR होती
है वैसी अ3य jकसी कR नहc। इस से िजस के साथ जैसी 'ितXा करनी उस के
साथ वैसे ही पूरी करनी चािहये अथा&त् जैसे jकसी ने jकसी से कहा jक ‘म< तुम
को वा तुम मुझ से अमुक समय मO िमलूँगा वा िमलना अथवा अमुक वHतु अमुक
समय मO तुम को म< दूग
ँ ा ।’ इस को वैसे ही पूरी करे नहc तो उसकR 'तीित कोई
भी न करे गा, इसिलये सदा स"यभाषण और स"य'ितXायुž सब को होना
चािहये। jकसी को अिभमान करना यो•य नहc, eयijक ‘अिभमानः ि~यं हि3त’
यह िवदुरनीित का वचन है। जो अिभमान अथा&त् अहंकार है वह सब शोभा
और लˆमी का नाश कर देता है, इस वाHते अिभमान करना न चािहये। छल,
कपट वा कृ तšता से अपना ही◌े Æदय दुःिखत होता है तो दूसरे कR eया कथा
कहनी चािहये। छल और कपट उसको कहते ह< जो भीतर और बाहर और दूसरे
को मोह मO डाल और दूसरे कR हािन पर —यान न देकर Hव'योजन िसZ करना।
‘कृ तšता’ उस को कहते ह< jक jकसी के jकए gए उपकार को न मानना।
¦ोधाjद दोष और कटु वचन को छोड़ शा3त और मधुर वचन ही बोले और बgत
बकवाद न करे । िजतना बोलना चािहये उससे 3यून वा अिधक न बोले। बड़i
को मा3य दे, उन के सामने उठ कर जा के उ0ासन पर बैठावे, 'थम ‘नमHते’
करे । उनके सामने उsमासन पर न बैठे। सभा मO वैसे Hथान मO बैठे जैसी अपनी
यो•यता हो और दूसरा कोई न उठावे। िवरोध jकसी से न करे । स›प– होकर
गुणi का >हण और दोषi का "याग रeखO। सœनi का संग और दु…i का "याग,
अपने माता, िपता और आचाय& कR तन, मन और धनाjद उsम-उsम पदाथŽ
से 'ीितपूव&क सेवा करO ।
या3यHमाकँ ◌् सुचWरतािन तािन "वयोपाHयािन नो इतरािण।। यह तैिs०।
इसका यह अिभ'ाय है jक माता िपता आचा‰य& अपने स3तान और िश‘यi को
सदा स"य उपदेश करO और यह भी कहO jक जो-जो हमारे धम&युž कम& ह< उन-
उन का >हण करो और जो-जो दु… कम& हi उनका "याग कर jदया करो। जो-
जो स"य जाने उन-उन का 'काश और 'चार करे । jकसी पाख‹डी दु…ाचारी
मनु‘य पर िव5ास न करO और िजस-िजस उsम कम& के िलये माता, िपता और
आचाय& आXा देवO उस-उस का यथे… पालन करो। जैसे माता, िपता ने धम&,
िव‡ा, अ¸छे आचरण के ºोक ‘िनघ‹टु ’ ‘िन˜ž’ ‘अ…ा—यायी’ अथवा अ3य सू•
वा वेदम3• क‹ठHथ कराये हi उन-उन का पुनः अथ& िव‡ािथयi को िवjदत
करावO। जैसे 'थम समुqलास मO परमे5र का aाwयान jकया है उसी 'कार
मान के उस कR उपासना करO । िजस 'कार आरो•य, िव‡ा और बल 'ाƒ हो
उसी 'कार भोजन छादन और aवहार करO करावO अथा&त् िजतनी zुधा हो
उस से कु छ 3यून भोजन करे । म‡ मांसाjद के सेवन से अलग रहO। अXात
ग›भीर जल मO 'वेश न करO eयijक जलज3तु वा jकसी अ3य पदाथ& से दुःख
और जो तरना न जाने तो डू ब ही जा सकता है। ‘नािवXाते जलाशये’ यह मनु
का वचन। अिवXात जलाशय मO 'िव… होके Èानाjद न करO ।
िववाह आठ 'कार का होता है। एक {ा|, दूसरा दैव, तीसरा आष&, चौथा
'ाजाप"य, पांचवां आसुर, छठा गा3धव&, सातवां राzस, आठवां पैशाच। इन
िववाहi कR यह aवHथा है jक-वर क3या दोनi यथावत् {|चय& से पूण& िवyान्
धा“मक और सुशील हi उन का परHपर 'स–ता से िववाह होना ‘{ा|’ कहाता
है। िवHतृतयX करने मO ऋि"वÀफ़ कम& करते gए जामाता को अलंकारयुž
क3या का देना ‘दैव’। वर से कु छ लेके िववाह होना ‘आष&’। दोनi का िववाह
धम& कR वृिZ के अथ& होना ‘'ाजाप"य’ । वर और क3या को कु छ देके िववाह
‘आसुर’। अिनयम, असमय jकसी कारण से वर-क3या का इ¸छापूव&क परHपर
संयोग होना ‘गा3धव&’। लड़ाई करके बला"कार अथा&त् छीन, भफ़पट वा कपट
से क3या का >हण करना ‘राzस’। शयन वा म‡ाjद पी gई पागल क3या से
बला"कार संयोग करना ‘पैशाच’। इन सब िववाहi मO {ा|िववाह सवª"कृ …,
दैव म—यम, आष&, आसुर और गा3धव& िनकृ …, राzस अधम और पैशाच महा±…
है। इसिलये यही िनtय रखना चािहये jक क3या और वर का िववाह के पूव&
एका3त मO मेल न होना चािहए eयijक युवावHथा मO ¬ी पु˜ष का एका3तवास
दूषणकारक है।
('-) eया नाम लेना सव&था िम•या है जो सव&• नामHमरण का बड़ा माहा"›य
िलखा है?
(उsर) नाम लेने कR तु›हारी रीित उsम नहc। िजस 'कार तुम नामHमरण
करते हो वह रीित भफ़ू ठी है
('-) हमारी कै सी रीित है?
(उsर) वेदिव˜Z।
('-) भला अब आप हम को वेदोž नामHमरण कR रीित बतलायO?
(उsर) नामHमरण इस 'कार करना चािहये- जैसे ‘3यायकारी’ ई5र का एक
नाम है। इस नाम से जो इस का अथ& है jक जैसे पzपात रिहत होकर परमा"मा
सब का यथावत् 3याय करता है वैसे उस को >हण कर 3याययुž aवहार
सव&दा करना; अ3याय कभी न करना। इस 'कार एक नाम से भी मनु‘य का
कqयाण हो सकता है।
सुनो यह है-
अ3ध3तमः 'िवशि3त येऽस›भूितमुपासते ।
ततो भूयऽइव ते तमो यऽउ स›भू"या¤रताः ।।१।।
-यजुः० अ० ४० । मं० ९ ।।
न तHय 'ितमाऽअिHत ।।२।। -यजुः० अ० ३२ । मं० ३ ।।
यyाचान^युjदतं येन वाग^यु‡ते ।
तदेव {| "वं िविZ नेदं यjददमुपासते।।१।।
य3मनसा न मनुते येनाgम&नो मतम् ।
तदेव {| "वं िविZ नेदं यjददमुपासते।।२।।
य0zुषा न पŸयित येन चzूंिष पŸयि3त ।
तदेव {| "वं िविZ नेदं यjददमुपासते।।३।।
य¸ðो•ेण न शृणोित येन ~ो•िमदं ~ुतम् ।
तदेव {| "वं िविZ नेदं यjददमुपासते।।४।।
य"'ाणेन न 'ािणित येन 'ाण 'णीयते ।
तदेव {| "वं िविZ नेदं यjददमुपासते।।५।। के नोपिन०।।
जो अस›भूित अथा&त् अनु"प– अनाjद 'कृ ित कारण कR {| के Hथान मO
उपासना करते ह< वे अ3धकार अथा&त् अXान और दुःखसागर मO डू बते ह<। और
स›भूित जो कारण से उ"प– gए काय&’प पृिथवी आjद भूत पाषाण और
वृzाjद अवयव और मनु‘याjद के शरीर कR उपासना {| के Hथान मO करते ह<
वे उस अ3धकार से भी अिधक अ3धकार अथा&त् महामूख& िचरकाल घोर
दुःख’प नरक मO िगरके महाeलेश भोगते ह<।।१।।
जो सब जगत् मO aापक है उस िनराकार परमा"मा कR 'ितमा पWरमाण नहc
है।।२।।
जो वाणी कR ‘इद3ता’ अथा&त् यह जल है लीिजये, वैसा िवषय नहc। और िजस
के धारण और सsा से वाणी कR 'वृिs होती है उसी को {| जान और
उपासना कर। और जो उससे िभ– है वह उपासनीय नहc।।१।।
जो मन से ‘इयsा’ करके मन मO नहc आता, जो मन को जानता है उसी {|
को तू जान और उसी कR उपासना कर। जो उस से िभ– जीव और अ3तःकरण
है उस कR उपासना {| के Hथान मO मत कर।।२।।
जो आंख से नहc दीख पड़ता और िजस से सब अं◌ाखO देखती ह<, उसी को तू
{| जान और उसी कR उपासना कर। और जो उस से िभ– सूय&, िव‡ुत् और
अि« आjद जड़ पदाथ& ह< उन कR उपासना मत कर।।३।।
जो ~ो• से नहc सुना जाता और िजस से ~ो• सुनता है उसी को तू {| जान
और उसी कR उपासना कर। और उस से िभ– शdदाjद कR उपासना उस के
Hथान मO मत कर।।४।।
जो 'ाणi से चलायमान नहc होता िजस से 'ाण गमन को 'ाƒ होता है उसी
{| को तू जान और उसी कR उपासना कर। जो यह उस से िभ– वायु है उस
कR उपासना मत कर।।५।।
जो-जो >3थ वेद से िव˜Z ह< उन-उन का 'माण करना जानो नािHतक होना
है। सुनो-
नािHतको वेदिन3दक ।।१।।
या वेदबाÉा Hमृतयो याt काt कु दृ…य ।
सवा&Hता िन‘फला 'े"य तमोिन¼ा िह ता Hमृता ।।२।।
उ"प‡3ते ¸यव3ते च या3यतोऽ3यािन कािनिचत्।
ता3यवा&Ùािलकतया िन‘फला3यनृतािन च।।३।। मनु० अ० १२।।
मनु जी कहते ह< jक जो वेदi कR िन3दा अथा&त् अपमान, "याग, िव˜Zाचरण
करता है वह नािHतक कहाता है।।१।।
जो >3थ वेदबाÉ कु ि"सत पु˜षi के बनाये संसार को दुःखसागर मO डु बोने
वाले ह< वे सब िन‘फल, अस"य, अ3धकार’प, इस लोक और परलोक मO
दुःखदायक ह<।।२।।
जो इन वेदi से िव˜Z >3थ उ"प– होते ह< वे आधुिनक होने से शीÎ न… हो
जाते ह<। उन का मानना िन‘फल और भफ़ूं ठा है।।३।।
इसी 'कार {|ा से लेकर जैिमिन मह“षपय&3त का मत है jक वेदिव˜Z को न
मानना jक3तु वेदानुकूल ही का आचरण करना धम& है। eयi? वेद स"य अथ& का
'ितपादक है । छोटे धा“मक िवyानi से लेकर परम िवyान् योिगयi के संग से
सिy‡ा और स"यभाषणाjद परमे5र कR 'ािƒ कR सीjढ़या ह< जैसी ऊपर घर
मO जाने कR िनः~ेणी होती है।
जो स0ी प€ायतन वेदोž और वेदानुकूलोž देवपूजा है वह सुनो-
मा नो वधीः िपतरं मोत मातरम् ।।१।। यजु०।।
आचाय&ऽउपनयमानो {|चाWरणिम¸छते ।।२।।
अितिथगृ&हानुपग¸छेत् ।।३।। अथव&०।।
अचत& पा्रचत& ि'यमधेासो अचत& ।।४।। ऋ•वेद०े ।।
"वमेव '"यzं {|ािस "वामेव '"यzं {| वjद‘यािम।।५।। -तैिनरीयोप०।।
कतम एको देव इित स {| "यjद"याचzते।।६।।
-शतपथ 'पाठ० ५। {ा|ण ७। कि‹डका १०।।
मातृदव
े ो भव िपतृदव
े ो भव आचाय&दव
े ो भव अितिथदेवो भव।।७।।
-तैिनरीयोप०।।
िपतृिभ±ा&तृिभtैता पितिभद·वरै Hतथा ।
पू°या भूषियतaाt बgकqयाणमीÊसुिभ ।।८।।
पू°यो देवव"पितः।।९।। मनुHमृतौ।।
'थम माता मूि◌s&मती पूजनीय देवता, अथा&त् स3तानi को तन, मन, धन से
सेवा करके माता को 'स– रखना, िहसा अथा&त् ताड़ना कभी न करना। दूसरा
िपता स"कs&a देव। उस कR भी माता के समान सेवा करनी।।१।। तीसरा
आचाय& जो िव‡ा का देने वाला है उस कR तन, मन, धन से सेवा करनी।।२।।
चौथा अितिथ जो िवyान्, धाि◌म&क, िन‘कपटी, सब कR उ–ित चाहने वाला
जगत् मO ±मण करता gआ, स"य उपदेश से सब को सुखी करता है उस कR सेवा
करO ।।३।।
पांचवां ¬ी के िलये पित और पु˜ष के िलये Hवप¢ी पूजनीय है।।८।। ये पांच
मूि◌s&मान् देव िजन के संग से मनु‘यदेह कR उ"पिs, पालन, स"यिशzा, िव‡ा
और स"योपदेश कR 'ािƒ होती ह< ये परमे5र को 'ािƒ होने कR सीjढ़यां ह<।
वाममागŠ बड़े भारी अपराधी ह<। जब वे चेला करते ह< तब साधारण को-
दं दुगा&यै नम । भं भैरवाय नम । 1 ×c eली◌े◌ं चामु‹डायै िव0े।।
इ"याjद म3•O का उपदेश कर देते ह< और बंगाले मO िवशेष करके एकाzरी
म3•ेपदेश करते ह<। जैसा-
×c, ~c, eलc।।
इ"याjद और धनाÚi का पूणा&िभषेक करते ह<। ऐसे दश महािव‡ाu के म3•-
×ां ×c 2ूं बगलामुwयै फट् Hवाहा।।
कहc-कहc-
•ं फट् Hवाहा।।
और मारण, मोहन, उ0ाटन, िवyेषण, वशीकरण आjद 'योग करते ह<।
सो म3• से तो कु छ भी नहc होता jक3तु j¦या से सब कु छ करते है◌े◌ं। जब
jकसी को मारने का 'योग करते ह< तब इधर कराने वाले से धन ले के आटे वा
िमÝी का पूतला िजस को मारना चाहते ह< उस का बना लेते ह<! उस कR छाती,
नािभ, क‹ठ मO छु रे 'वेश कर देते ह<। आंख, हाथ, पग मO कRलO ठोकते ह<। उस
के ऊपर भैरव वा दुगा& कR मूि◌s& बना हाथ मO ि•शूल दे उस के Æदय पर लगाते
ह<। एक वेदी बनाकर मांस आjद का होम करने लगते ह< और उधर दूत आjद
भेज के उस को िवष आjद से मारने का उपाय करते ह< जो अपने पुरtरण के
बीच मO उस को मार डाला तो अपने को भैरव देवी कR िसिZ वाले बतलाते
ह<◌े।
‘‘भैरवो भूतनाथt’’ इ"याjद का पाठ करते ह<।
मारय-मारय, उ0ाटय-उ0ाटय, िवyेषय-िवyेषय, िछि3ध-िछि3ध, िभि3ध-
िभि3ध, वशीकु ˜-वशीकु ˜, खादय-खादय, भzय-भzय, •ेटय-•ेटय, नाशय-
नाशय, मम श•ून् वशीकु ˜-वशीकु ˜, gं फट् Hवाहा।।
इ"याjद म3• जपते, म‡ मांसाjद यथे… खाते-पीते, भृकुटी के बीच मO िस3दूर
रे खा देत,े कभी-कभी काली आjद के िलये jकसी आदमी को पकड़ मार होम
कर कु छ-कु छ उस का मांस खाते भी ह<। जो कोई भैरवीच¦ मO जावे, म‡ मांस
न पीवे, न खावे तो उस को मार होम कर देते ह<। उन मO से जो अघोरी होता है
वह मृत मनु‘य का भी मांस खाता है। अजरी बजरी करने वाले िव¼ा मू• भी
खाते-पीते ह<। एक चोलीमाग& और बीजमागŠ भी होते ह<। चोली माग&वाले एक
गुƒ Hथान वा भूिम मO एक Hथान बनाते ह< । वहां सब कR ि¬यां, पु˜ष, लड़का,
लड़कR, बिहन, माता, पु•वधू आjद सब इक$े हो सब लोग िमलिमला कर
मांस खाते, म‡ पीते, एक ¬ी को नंगी कर उस के गुƒ इि3¥य कR पूजा सब
पु˜ष करते ह< और उस का नाम दुगा&दव े ी धरते ह<। एक पु˜ष को नंगा कर उस
के गुƒ इि3¥य कR पूजा सब ि¬यां करती ह<। जब म‡ पी-पी के उ3मs हो जाते
ह< तब सब ि¬यi के छाती के व¬ िजसको चोली कहते ह< एक बड़ी िमÝी कR
नांद मO सब व¬ िमलाकर रखके एक-एक पु˜ष उस मO हाथ डाल के िजस के
हाथ मO िजस का व¬ आवे वह माता, बिहन, क3या और पु•ववमू eयi न हो
उस समय के िलये वह उस कR ¬ी हो जाती है। आपस मO कु कम& करने और
बgत नशा चढ़ने से जूते आjद से लड़ते िभड़ते ह<। जब 'ातःकाल कु छ अ3धेरे
मO अपने-अपने घर को चले जाते ह< तब माता माता, क3या क3या, बिहन बिहन
और पु•वधू पु•वधू हो जाती ह<। और बीजमागŠ ¬ी पु˜ष के समागम कर जल
मO वीय& डाल िमलाकर पीते ह<। ये पामर ऐसे कमŽ को मुिž के साधन मानते
है◌े◌ं। िव‡ा िवचार सœनताjद रिहत होते ह<।
देखो! तु›हारे सामने पाख‹ड मत बढ़ते जाते ह<, ईसाई, मुसलमान तक होते
जाते ह<। तिनक भी तुम से अपने घर कR रzा और दूसरi का िमलाना नहc बन
सकता। बने तो तब जब तुम करना चाहो! जब लi वs&मान और भिव‘यत् मO
सं3यासी उ–ितशील नहc होते तब लi आ‰या&वs& और अ3य देशHथ मनु‘यi कR
वृिZ नहc होती। जब वृिZ के कारण वेदाjद स"यशा¬O का पठनपाठन,
{|च‰य& आjद आ~मi के यथावत् अनु¼ान स"योपदेश होते ह< तभी देशो–ित
होती है। चेत रeखो! बgत सी पाख‹ड कR बातO तुम को सचमुच दीख पड़ती
ह<। जैसे कोई साधु, दुकानदार पु•jद देने कR िसिZयां बतलाता है। तब उस के
पास बgत ¬ी जाती ह< और हाथ जोड़कर पु• मांगती ह<। और बाबा जी सब
को पु• होने का आशीवा&द देता है। उन मO से िजस-िजस के पु• होता है वह-
वह समझती ह< jक बाबा जी के वचन से ऐसा gआ। जब उन से कोई पूछे jक
सूअरी, कु sी, गधी और कु eकु टी आjद के क0े ब0े jकस बाबा जी के वचन से
होते ह<? तब कु छ भी उsर न दे सकO गी! जो कोई कहे jक म< लड़के को जीता
रख सकता •ं तो आप ही eयi मर जाता है?
jकतने ही धूs& लोग ऐसी माया रचते ह< jक बड़े-बड़े बुिZमान् भी धोखा खा
जाते ह<, जैसे धनसारी के ठग। ये लोग पांच सात िमल के दूर-दूर देश मO जाते
ह<। जो शरीर से डौलडाल मO अ¸छा होता है उस को िसZ बना लेते ह<। िजस
नगर वा >ाम मO धनाÚ होते ह< उस के समीप जंगल मO उस िसZ को बैठाते
ह<। उसके साधक नगर मO जाके अजान बनके िजस jकसी को पूछते ह<-‘तुम ने
ऐसे महा"मा को यहां कहc देखा वा नहc? वे ऐसा सुनकर पूछते ह< jक वह
महा"मा कौन और कै सा है?
साधक कहता है-बड़ा िसZ पु˜ष है। मन कR बातO बतला देता है। जो मुख से
कहता है वह हो जाता है। बड़ा योगीराज है, उसके दश&न के िलए हम अपने
घर yार छोड़कर देखते jफरते ह<। म<ने jकसी से सुना था jक वे महा"मा इधर
कR ओर आये ह<।
गृहHथ कहता है-जब वह महा"मा तुम को िमले तो हम को भी कहना। दश&न
करO गे और मन कR बातO पूछOगे। इसी 'कार jदन भर नगर मO jफरते और '"येक
को उस िसZ कR बात कहकर राि• को इक$े िसZ साधक होकर खाते पीते
और सो रहते ह<। jफर भी 'ातःकाल नगर वा >ाम मO जाके उसी 'कार दो तीन
jदन कहकर jफर चारi साधक jकसी एक-एक धनाÚ से बोलते ह< jक वह
महा"मा िमल गये। तुम को दश&न करना हो तो चलो। वे जब तै‰यार होते ह<
तब साधक उन से पूछते ह< jक तुम eया बात पूछना चाहते हो? हम से कहो।
कोई पु• कR इ¸छा करता, कोई धन कR, कोई रोग-िनवारण कR और कोई श•ु
के जीतने कR। उन को वे साधक ले जाते ह<। िसZ साधकi ने जैसा संकेत jकया
होता है अथा&त् िजस को धन कR इ¸छा हो उस को दािहनी, और िजस को पु•
कR इ¸छा हो उसको स›मुख, और िजस को रोग-िनवारण कR इ¸छा हो उस
को बाâ ओर और िजस को श•ु जीतने कR इ¸छा हो उस को पीछे से ले जा के
सामने वाले के बीच मO बैठाते ह<। जब नमHकार करते ह< उसी समय वह िसZ
अपनी िसZाई कR भफ़पट से उ0 Hवर से बोलता है-‘eया यहां हमारे पास पु•
रeखे ह< जो तू पु• कR इ¸छा करके आया है? इसी 'कार धन कR इ¸छा वाले
से ‘eया यहां थैिलयां रeखी ह< जो धन कR इ¸छा करके आया है? ‘फकRरi के
पास धन कहां धरा है? ’ रोगवाले से ‘eया हम वै‡ ह< जो तू रोग छु ड़ाने कR
इ¸छा से आया? हम वै‡ नहc जो तेरा रोग छु ड़ावO; जा jकसी वै‡ के पास’
पर3तु जब उस का िपता रोगी हो तो उस का साधक अंगूठा; जो माता रोगी
हो तो तज&नी; जो भाई रोगी हो म—यमा, जो ¬ी रोगी हो तो अनािमका; जो
क3या रोगी हो तो किनि¼का अंगुली चला देता है। उस को देख वह िसZ कहता
है jक तेरा िपता रोगी है। तेरी माता, तेरा भाई, तेरी ¬ी, और तेरी क3या
रोगी है। तब तो वे चारi के चारi बड़े मोिहत हो जाते ह<। साधक लोग उन से
कहते ह<-देखो! हम ने कहा था वैसे ही ह< वा नहc?
गृहHथ कहते ह<-हां जैसा तुमने कहा था वैसे ही ह<। तुम ने हमारा बड़ा उपकार
jकया और हमारा भी बड़ा भा•योदय था जो ऐसे महा"मा िमले। िजस के दश&न
करके हम कृ ताथ& gए।
साधक कहता है-सुनो भाई! ये महा"मा मनोगामी ह<। यहां बgत jदन रहने
वाले नहc। जो कु छ इन का आशीवा&द लेना हो तो अपनी-अपनी साम•य& के
अनुकूल इन कR तन, मन, धन से सेवा करो, eयijक ‘सेवा से मेवा िमलती है।’
जो jकसी पर 'स– हो गये तो जाने eया वर दे दO। ‘स3तi कR गित अपार है।’
गृहHथ ऐसे लqलो-पsो कR बातO सुनकर बड़े हष& से उनकR 'शंसा करते gए
घर कR ओर जाते ह<। साधक भी उनके साथ ही चले जाते ह< eयijक माग& मO
कोई उन का पाख‹ड खोल न देवे। उन धनाÚi का जो कोई िम• िमला उस
से 'शंसा करते ह<। इसी 'कार जो-जो साधकi के साथ जाते ह< उन-उन का
वृsा3त सब कह देते ह<। जब नगर मO हqला मचता है jक अमुक ठौर एक बड़े
भारी िसZ आये ह<; चलो उन के पास। जब मेला का मेला जाकर बgत से लोग
पूछने लगते ह< jक महाराज! मेरे मन का वृsा3त किहये। तब तो aवHथा के
िबगड़ जाने से चुपचाप होकर मौन साध जाता है और कहता है jक हम को
बgत मत सताओ। तब तो भफ़ट उसके साधक भी कहने लग जाते ह< जो तुम
इन को बgत सताओगे तो चले जायOगे और जो कोई बड़ा धनाÚ होता है वह
साधक को अलग बुला कर पूछता है jक हमारे मन कR बात कहला दो तो हम
सच मानO। साधक ने पूछा jक eया बात है? धनाÚ ने उस से कह दी। तब उस
को उसी 'कार के संकेत से ले जा के बैठाल देता है। उसे िसZ ने समझ के झट
कह jदया, तब तो सब मेला भर ने सुन ली jक अहो ! बड़े ही िसZ पु˜ष ह<।
कोई िमठाई, कोई पैसा, कोई ˜पया, कोई अशफõ, कोई कपड़ा और कोई सीधा
साम>ी भOट करता है। jफर जब तक मानता बgत सी रही तब तक यथे… लूट
करते ह< और jक3हc-jक3हc दो एक आंख के अ3धे गांठ के पूरi को पु• होने का
आशीवा&द वा राख उठा के दे देता है और उस से सहêi ˜पये लेकर कह देता
है jक तेरी स0ी भिž होगी तो तेरा पु• हो जायगा। इस 'कार के बgत से ठग
होते ह< िजन को िवyान् ही परीzा कर सकते ह< और कोई नहc। इसिलए वेदाjद
िव‡ा का पढ़ना, स"संग करना होता है िजस से कोई उस को ठगाई मO न फं सा
सके । औरi को भी बचा सके eयijक मनु‘य का ने• िव‡ा ही है। िवना िव‡ा
िशzा के Xान नहc होता। जो बाqयावHथा से उsम िशzा पाते ह< वे ही मनु‘य
और िवyान् होते ह<। िजन को कु संग है वे दु… पापी महामूख& हो कर बड़े दुःख
पाते ह<। इसीिलये Xान को िवशेष कहा है jक जो जानता है वही मानता है।
न वेिs यो यHय गुण'कष¶ स तHय िन3दां सततं करोित ।
यथा jकराती कWरकु ›भजाता मुžा पWर"य°य िबभ“त गुÅा ।।
यह jकसी किव का ºोक है।
जो िजस का गुण नहc जानता वह उस कR िन3दा िनर3तर करता है। जैसे जंगली
भील गजमुžाu को छोड़ गुÅा का हार पिहन लेता है वैसे ही जो पु˜ष
िवyान्, Xानी, धा“मक स"पु˜षi का संगी, योगी, पु˜षाथŠ, िजतेि3¥य सुशील
होता है वही धमा&थ&, काम, मोz को 'ाƒ होकर इस ज3म और परज3म मO सदा
आन3द मO रहता है। यह आया&वs&िनवासी लोगi के मत िवषय मO संzेप से
िलखा है। इस के आगे जो थोड़ा सा आय&राजाu का इितहास िमला है इस को
सब सœनi को जनाने के िलये 'कािशत jकया जाता है। अब आया&वs&दश े ीय
राजवंश jक िजस मO ~ीमान् महाराज ‘युिधि¼र’ से लेके महाराज ‘यशपाल’
पय&3त gए ह< उस इितहास को िलखते ह<। और ~ीमान् महाराज ‘Hवाय›भुव
मनु जी’ से लेके महाराजा ‘युिधि¼र’ पय&3त का इितहास महाभारताjद मO
िलखा ही है और इस से सœन लोगi को इधर के कु छ इितहास का वs&मान
िवjदत होगा। य‡िप यह िवषय िव‡ाथŠ सि›मिलत ‘हWरt3¥चि3¥का’ और
‘मोहनचि3¥का’ जो jक पािzकप• ~ीनाथyारे से िनकलता था जो राजपूताना
देश मेवाड़ राज उदयपुर, िचतौड़गढ़ मO सब को िवjदत है; यह उस से हम ने
अनुवाद jकया है। यjद ऐसे ही हमारे आय& सœन लोग इितहास और िव‡ा
पुHतकi का खोज कर 'काश करO गे तो देश को बड़ा ही लाभ पgंचेगा। उस प•
स›पादक महाशय ने अपने िम• से एक 'ाचीन पुHतक जो jक संवत् िव¦म के
१७८२ (स•ह सौ बयासी) का िलखा gआ था, उस से >हण कर अपने संवत्
१९३९ माग&शीष& शुeलपz १९-२० jकरण अथा&त् दो पािzक-प•O मO छापा है
सो िनó िलखे 'माणे जािनये।
आ‰या&वs&दश
े ीय राजवंशावली
इ3¥'Hथ मO आय& लोगi ने ~ीम3महाराज ‘यशपाल’ पय&3त रा°य jकया। िजन
मO ~ीम3महाराजे ‘युिधि¼र’ से महाराजे ‘यशपाल’ तक वंश अथा&त् पीढ़ी
अनुमान १२४ (एक सौ चौबीस राजा); वष& ४१५७, मास ९, jदन १४, समय
मO gए ह<।
इनका dयौरा-
राजा- आय&राजा शक-१२४ वष&-४१५७ मास-९ jदन-१४
~ीम3महाराजे युिधि¼र वंश अनुमान पीढ़ी ३०, वष& १७७०, मास ११, jदन
१० इनका िवHतार-
(समीzक) अब देिखये पापi के छु ड़ाने के 'ायिts ! Hवयं पाप करO , गाय आjद
उsम पशुu कR ह"या करO और परमे5र करवावे। ध3य ह< ईसाई लोग jक ऐसी
बातi के करने करानेहारे को भी ई5र मान कर अपनी मुिž आjद कR आशा
करते ह<!!! ।।५२।।
५३-जब कोई अ—यz पाप करे । तब वह बकरी का िनसखोट नर मेóा अपनी
भOट के िलये लावे।। और उसे परमे5र के आगे बिल करे यह पाप कR भOट है।।
-तौन लै० प० ४। आ० २२। २३। २४।।
(समीzक) वाह जी? वाह? यjद ऐसा है तो इनके अ—यz अथा&त् 3यायाधीश
तथा सेनापित आjद पाप करने से eयi डरते हiगे? आप तो यथे… पाप करO
और 'ायिts के बदले मO गाय, बिछया, बकरे आjद के 'ाण लेवO। तभी तो
ईसाई लोग jकसी पशु वा पzी के 'ाण लेने मO शंjकत नहc होते। सुनो ईसाई
लोगो! अब तो इस जंगली मत को छोड़ के सुस^य धम&मय वेदमत को Hवीकार
करो jक िजससे तु›हारा कqयाण हो।।५३।।
५४-और यjद उसे भेड़ लाने कR पूंजी न हो तो वह अपने jकये gए अपराध के
िलए दो Òपडु jकयाँ और कपोत के दो ब0े परमे5र के िलये लावे।। और उसका
िसर उसके गले के पास से मरोड़ डाले पर3तु अलग न करे ।। उसके jकये gए
पाप का 'ायिts करे और उसके िलये zमा jकया जायगा।। पर यjद उसे दो
Òपडु jकयाँ और कपोत के दो ब0े लाने कR पूंजी न हो तो सेर भर चोखा िपसान
का दशवाँ िहHसा पाप कR भOट के िलये लावे· उस पर तेल न डाले।। और वह
zमा jकया जायेगा।। -तौन लै० प० ५। आ० ७। ८। १०। ११। १३।।
(समीzक) अब सुिनये! ईसाइयi मO पाप करने से कोई धनाÚ न डरता होगा
और न दWर¥ भी, eयijक इनके ई5र ने पापi का 'ायिts करना सहज कर
रeखा है। एक यह बात ईसाइयi कR बाइबल मO बड़ी अ¾भुत है jक िवना क…
jकये पाप से छू ट जाय। eयijक एक तो पाप jकया और दूसरे जीवi कR िहसा
कR और खूब आन3द से मांस खाया और पाप भी छू ट गया। भला! कपोत के
ब0े का गला मरोड़ने से वह बgत देर तक तड़फता होगा तब भी ईसाइयi को
दया नहc आती। दया eयiकर आवे! इनके ई5र का उपदेश ही िहसा करने का
है। और जब सब पापi का ऐसा 'ायिts है तो ईसा के िव5ास से पाप छू ट
जाता है यह बड़ा आड›बर eयi करते ह<।।५४।।
५५-सो उसी बिलदान कR खाल उसी याजक कR होगी िजसने उसे चढ़ाया।।
· इस ई5र को ध3य है jक िजसने बछड़ा, भेड़ी और बकरी का ब0ा, कपोत और िपसान (आटे)
तक लेने का िनयम jकया । अ¾भुत बात तो यह है jक कपोत के ब0े ‘‘गरदन मरोड़वा के ’’ लेता
था अथा&त् गद&न तोड़ने का पWर~म न करना पड़े । इन सब बातi के देखने से िवjदत होता है
jक जंगिलयi मO कोई चतुर पु˜ष था वह पहाड़ पर जा बैठा और अपने को ई5र 'िसZ jकया
। जंगली अXानी थे, उ3हiने उसी को ई5र Hवीकार कर िलया । अपनी युिžयi से वह पहाड़
पर ही खाने के िलए पशु, पzी और अ–ाjद मंगा िलया करता था और मौज करता था । उसके
दूत फWरŸते काम jकया करते थे । सœन लोग िवचारO jक कहां तो बाइबल मO बछड़ा, भेड़ी,
बकरी का ब0ा, कपोत और ‘‘अ¸छे’’ िपसान का खाने वाला ई5र और कहां सव&aापक, सव&X,
अज3मा, िनराकार, सव&शिžमान् और 3यायकारी इ"याjद उsम गुणयुž वेदोž ई5र ?
११५-jफर िनtय तुम jदन कयामत के उठाये जाओगे।। -मंन ४। िस० १८। सू०
२३। आ० १६।।
(समीzक) कयामत तक मुद· कबरi मO रहOगे वा jकसी अ3य जगह? जो उ3हc
मO रहOगे तो सड़े gए दुग&3ध’प शरीर मO रहकर पु‹या"मा भी दुःख भोग करO गे?
यह 3याय अ3याय है। और दुग&3ध अिधक होकर रोगो"पिs करने से खुदा और
मुसलमान पापभागी हiगे।।११५।।
११६-उस jदन कR गवाही देवOगे ऊपर उन के जबानO उन कR और हाथ उन के
और पांव उन के साथ उस वHतु के jक थे करते।। अqलाह नूर है आसमानi का
और पृिथवी का, नूर उस के jक मािन3द ताक कR है बीच उस के दीप हो और
दीप बीच कं दील शीशi के ह<, वह कं दील मानो jक तारा है चमकता, रोशन
jकया जाता है दीपक वृz मुबाWरक जैतून के से, न पूव& कR ओर है न पिtम
कR, समीप है तेल उस का रोशन हो जावे जो न लगे ऊपर रोशनी के माग&
jदखाता है अqलाह नूर अपने के िजस को चाहता है।।
-मंन ४। िस० १८। सू० २४। आ० २४। ३५।।
(समीzक) हाथ पग आjद जड़ होने से गवाही कभी नहc दे सकते यह बात
सृि…¦म से िव˜Z होने से िम•या है। eया खुदा आगी िबजुली है? जैसा jक
दृ…ा3त देते ह< ऐसा दृ…ा3त ई5र मO नहc घट सकता। हां! jकसी साकार वHतु
मO घट सकता है।।११६।।
११७-और अqलाह ने उ"प– jकया हर जानवर को पानी से बस कोई उन मO
से वह है jक जो चलता है पेट अपने के ।। और जो कोई आXा पालन करे अqलाह
कR रसूल उस के कR।। कह आXा पालन करे खुदा कR रसूल उस के कR और
आXा पालन करो रसूल कR ताjक दया jकये जाओ।।
-मंन ४। िस० १८। सू० २४। आ० ४५। ५२। ५६।।
(समीzक) यह कौन सी jफलासफR है jक िजन जानवरi के शरीर मO सब तÓव
दीखते ह< और कहना jक के वल पानी से उ"प– jकये। यह के वल अिव‡ा कR
बात है। जब अqलाह के साथ पैग›बर कR आXा पालन करना होता है तो खुदा
का शरीक हो गया वा नहc? यjद ऐसा है तो eयi खुदा को लाशरीक कु रान मO
िलखा और कहते हो? ।।११७।।
११८-और िजस jदन jक फट जावेगा आसमान साथ बदली के और उतारे
जावOगे फWरŸते।। बस मत कहा मान काjफरi का और भफ़गड़ा कर उन से साथ
भफ़गड़ा बढ़ा ।। और बदल डालता है अqलाह बुराइयi उन कR को भलाइयi
से।। और जो कोई तोबाः करे और कम& करे अ¸छे बस िनtय आता है तरफ
अqलाह
कR।। -मंन ४। िस० १९। सू० २५। आ० २५-५२। ७०। ७१।।
(समीzक) यह बात कभी सच नहc हो सकती है jक आकाश बÖलi के साथ
फट जावे। यjद आकाश कोई मू&ि◌s&मान् पदाथ& हो तो फट सकता है। यह
मुसलमानi का कु रान शाि3त भंग कर गदर भफ़गड़ा मचाने वाला है। इसीिलये
धा“मक िवyान् लोग इस को नहc मानते। यह भी अ¸छा 3याय है jक जो पाप
और पु‹य का अदला बदला हो जाय। eया यह ितल और उड़द कR सी बात है
जो पलटा हो जावे? जो तोबा करने से पाप छू टे और ई5र िमले तो कोई भी
पाप करने से न डरे । इसिलये ये सब बातO िव‡ा से िव˜Z ह<।।११८।।
१५९-बस कहा था वाHते उन के पैग›बर खुदा के ने, रzा करो ऊंटनी खुदा कR
को, और पानी िपलाना उस के को।। बस भफ़ु ठलाया उस को, बस पांव काटे
उस के , बस मरी डाली ऊपर उन के , रब उन के ने।। -मंन ७। िस० ३०। सू० ९१।
आ० १३। १४।।
(समीzक) eया खुदा भी ऊंटनी पर चढ़ के सैल jकया करता है? नहc तो jकस
िलये रeखी? और िवना कयामत के अपना िनयम तोड़ उन पर मरी रोग eयi
डाला? यjद डाला तो उन को द‹ड jकया, jफर कयामत कR रात मO 3याय और
उस रात का होना भफ़ू ठ समभफ़ा जायगा? jफर इस ऊंटनी के लेख से यह
अनुमान होता है jक अरब देश मO ऊंट, ऊंटनी के िसवाय दूसरी सवारी कम
होती है। इस से िसZ होता है jक jकसी अरब देशी ने कु रान बनाया है।।१५९।।
१६०-यi जो न ˜के गा अवŸय घसीटOगे उस को हम साथ बालi माथे के ।। वह
माथा jक भफ़ू ठा है और अपराधी।। हम बुलावOगे फWरŸते दोजख के को।। -मंन
७। िस० ३०। सू० ९६। आ० १५। १६। १८।।
(समीzक) इस नीच चपरािसयi के काम घसीटने से भी खुदा न बचा। भला
माथा भी कभी भफ़ू ठा और अपराधी हो सकता है? िसवाय जीव के , भला यह
कभी खुदा हो सकता है jक जैसे जेलखाने के दरोगा को बुलावा भेजे।।१६०।।
१६१-िनtय उतारा हम ने कु रान को बीच रात -कदर के ।। और eया जाने तू
eया है रात -कदर कR? ।। उतरते ह< फWरŸते और पिव•"मा बीच उस के , साथ
आXा मािलक अपने के वाHते हर काम के ।।
-मंन ७। िस० ३०। सू० ९७। आ० १। २। ४।।
(समीzक) यjद एक ही रात मO कु रान उतारा तो वह आयत अथा&त् उस समय
मO उतरी और धीरे -धीरे उतारा यह बात स"य eयiकर हो सके गी? और रा•ी
अ3धेरी है इस मO eया पूछना है? हम िलख आये ह< ऊपर नीचे कु छ भी नहc हो
सकता और यहां िलखते ह< jक फWरŸते और पिव•"मा खुदा के geम से संसार
का 'ब3ध करने के िलये आते ह<। इस से Hप… gआ jक खुदा मनु‘यवत् एकदेशी
है। अब तक देखा था jक खुदा फWरŸते और पैग›बर तीन कR कथा है । अब एक
पिव•"मा चौथा िनकल पड़ा! अब न जाने यह चौथा पिव•"मा eया है? यह
तो ईसाइयi के मत अथा&त् िपता पु• और पिव•"मा तीन के मानने से चौथा
भी बढ़ गया। यjद कहो jक हम इन तीनi को खुदा नहc मानते, ऐसा भी हो,
पर3तु जब पिव•"मा पृथÀफ़ है तो खुदा फWरŸते और पैग›बर को पिव•"मा
कहना चािहये वा नहc? यjद पिव•"मा है तो एक ही का नाम पिव•"मा eयi?
और घोड़े आjद जानवर, रात jदन और कु रान आjद कR खुदा कसमO खाता है।
कसमO खाना भले लोगi का काम नहc।।१६१।।
अब इस कु रान के िवषय को िलख के बुिZमानi के स›मुख Hथािपत करता •ँ
jक यह पुHतक कै सा है? मुभफ़ से पूछो तो यह jकताब न ई5र, न िवyान् कR
बनाई और न िव‡ा कR हो सकती है। यह तो बgत थोड़ा सा दोष 'कट jकया
इसिलये jक लोग धोखे मO पड़कर अपना ज3म aथ& न गमावO। जो कु छ इस मO
थोड़ा सा स"य है वह वेदाjद िव‡ा पुHतकi के अनुकूल होने से जैसे मुभफ़ को
>ाÉ है वैसे अ3य भी मजहब के हठ और पzपातरिहत िवyानi और बुिZमानi
को >ाÉ है । इस के िवना जो कु छ इस मO है सब अिव‡ा ±मजाल और मनु‘य
के आ"मा को पशुवत् बनाकर शाि3तभंग करा के उप¥व मचा मनु‘यi मO िव¥ोह
फै ला परHपर दुःखो–ित करने वाला िवषय है। और पुन˜ž दोष का तो कु रान
जानो भ‹डार ही है। परमा"मा सब मनु‘यi पर कृ पा करे jक सब से सब 'ीित
परHपर मेल और एक दूसरे के सुख कR उ–ित करने मO 'वृs हi। जैसे म< अपना
वा दूसरे मतमता3तरi का दोष पzपात रिहत होकर 'कािशत करता •ँ। इसी
'कार यjद सब िवyान् लोग करO तो eया कWठनता है jक परHपर का िवरोध
छू ट, मेल होकर आन3द मO एकमत होके स"य कR 'ािƒ िसZ हो। यह थोड़ा सा
कु रान के िवषय मO िलखा। इस को बुिZमान् धा“मक लोग >3थकार के
अिभ'ाय को समभफ़, लाभ लेवO। यjद कहc ±म से अ3यथा िलखा गया हो तो
उस को शुZ कर लेवO। अब एक बात यह शेष है jक बgत से मुसलमान ऐसा
कहा करते और िलखा वा छपवाया करते ह< jक हमारे मजहब कR बात अथव&वेद
मO िलखी है। इस का यह उsर है jक अथव&वेद मO इस बात का नाम िनशान भी
नहc है।
('-) eया तुम ने सब अथव&वेद देखा है ? यjद देखा है तो अqलोपिनषद् देखो।
यह साzात् उसमO िलखी है। jफर eयi कहते हो jक अथव&वेद मO मुसलमानi
का नाम िनशान भी नहc है।
अथाqलोपिनषदं aाwयाHयामः
अHमांqलां इqले िम•व˜णा jदaािन धsे।
इqलqले व˜णो राजा पुनÖ&द ु ।
ह या िम•े इqलां इqलqले इqलां व˜णो िम•HतेजHकाम ।।१।।
होतारिम3¥ो होतारिम3¥ महासुWर3¥ा ।
अqलो °ये¼ ं ~े¼ ं परमं पूण¶ {|ाणं अqलाम्।।२।।
अqलोरसूलमहामदरकबरHय अqलो अqलाम्।।३।।
आदqलाबूकमेककम्।। अqलाबूक िनखातकम्।।४।।
अqलो यXेन gतg"वा। अqला सूय&च3¥सव&नz• ।।५।।
अqला ऋषीणां सव&jदaाँ इ3¥ाय पूव¶ माया परमम3तWरzा ।।६।।
अqल पृिथaा अ3तWरzं िव5’पम्।।७।।
इqलां कबर इqलां कबर इqलाँ इqलqलेित इqलqला ।।८।।
ओम् अqला इqलqला अनाjदHव’पाय अथव&णा Ÿयामा gं ×c
जनानपशूनिसZान् जलचरान् अदृ… ं कु ˜ कु ˜ फट् ।।९।।
असुरसंहाWरणी gं ×c अqलोरसूलमहमदरकबरHय अqलो अqलाम्
इqलqलेित इqलqला ।।१०।।
इ"यqलोपिनषत् समाƒा।।
जो इस मO '"यz मुह›मद साहब रसूल िलखा है इस से िसZ होता है jक
मुसलमानi का मत वेदमूलक है।
(उsर) यjद तुम ने अथव&वेद न देखा हो तो हमारे पास आओ आjद से पू“s
तक देखो । अथवा िजस jकसी अथव&वेदी के पास बीस का‹डयुž म3•संिहता
अथव&वेद को देख लो। कहc तु›हारे पैग›बर साहब का नाम वा मत का िनशान
न देखोगे। और जो यह अqलोपिनषद् है वह न अथव&वेद मO, न उस के गोपथ
{ा|ण वा jकसी शाखा मO है। यह तो अकबरशाह के समय मO अनुमान है jक
jकसी ने बनाई है। इस का बनाने वाला कु छ अबŠ और कु छ संHकृ त भी पढ़ा
gआ दीखता है eयijक इस मO अरबी और संHकृ त के पद िलखे gए दीखते ह<।
देखो! (अHमाqलां इqले िम•व˜णा jदaािन धsे) इ"याjद मO जो jक दश अंक
मO िलखा है, जैस-े इस मO (अHमाqलां और इqले) अबŠ और (िम•व˜णा jदaािन
धsे) यह संHकृ त पद िलखे ह< वैसे ही सव&• देखने मO आने से jकसी संHकृ त और
अबŠ के पढ़े gए ने बनाई है। यjद इस का अथ& देखा जाता है तो यह कृ ि•म
अयुž वेद और aाकरण रीित से िव˜Z है। जैसी यह उपिनषद् बनाई है, वैसी
बgत सी उपिनषदO मतमता3तर वाले पzपाितयi ने बना ली ह<। जैसी jक
Hवरोपिनषद्, नृिसहतापनी, रामतापनी, गोपालतापनी बgत सी बना ली ह<।
('-) आज तक jकसी ने ऐसा नहc कहा अब तुम कहते हो। हम तु›हारी बात
कै से मानO?
(उsर) तु›हारे मानने वा न मानने से हमारी बात भफ़ू ठ नहc हो सकती है।
िजस 'कार से म<ने इस को अयुž ठहराई है उसी 'कार से जब तुम अथव&वेद,
गोपथ वा इस कR शाखाu से 'ाचीन िलिखत पुHतकi मO जैसे का तैसा लेख
jदखलाओ और अथ&संगित से भी शुZ करो तब तो स'माण हो सकता है।
('-) देखो! हमारा मत कै सा अ¸छा है jक िजस मO सब 'कार का सुख और
अ3त मO मुिž होती है ।
(उsर)-ऐसे ही अपने-अपने मत वाले सब कहते ह< jक हमारा ही मत अ¸छा
है, बाकR सब बुरे। िवना हमारे मत के दूसरे मत मO मुिž नहc हो सकती।
अब हम तु›हारी बात को स0ी मानO वा उन कR? हम तो यही मानते ह< jक
स"यभाषण, अÒहसा, दया आjद शुभ गुण सब मतi मO अ¸छे ह< और बाकR वाद,
िववाद, ई‘या&, yेष, िम•याभाषणाjद कम& सब मतi मO बुरे ह<। यjद तुम को
स"य मत >हण कR इ¸छा हो तो वैjदक मत को >हण करो।
इसके आगे Hवम3तaाम3तa का 'काश संzेप से िलखा जायगा।
इित ~ीमÖयान3दसरHवतीHवािमकृ ते स"याथ&'काशे
सुभाषािवभूिषते यवनमतिवषये
चतुदश& समुqलासः स›पूण&ः।।१४।।
ओ३म्
Hवम3तaाम3तa'काशः
सव&त3• िसZा3त अथा&त् सा¨ा°य साव&जिनक धम& िजस को सदा से सब मानते
आये, मानते ह< और मानOगे भी। इसीिलये उस को सनातन िन"य धम& कहते ह<
jक िजस का िवरोधी कोई भी न हो सके । यjद अिव‡ायुž जन अथवा jकसी
मत वाले के ±माये gए जन िजस को अ3यथा जानO वा मानO उस का Hवीकार
कोई भी बुिZमान् नहc करते jक3तु िजस को आƒ अथा&त् स"यमानी,
स"यवादी, स"यकारी, परोपकारी, परोपकारक; पzपातरिहत िवyान् मानते
ह< वही सब को म3तa और िजस को नहc मानते वह अम3तa होने से 'माण
के यो•य नहc होता। अब जो वेदाjद स"यशा¬ और {|ा से ले कर जैिमिनमुिन
पय&3तi के माने gए ई5राjद पदाथ& ह< िजन को म< भी मानता •ँ; सब सœन
महाशयi के सामने 'कािशत करता •ँ।
म< अपना म3तa उसी को जानता •ँ jक जो तीन काल मO सब को एक सा
मानने यो•य है। मेरा कोई नवीन कqपना वा मतमता3तर चलाने का लेशमा•
भी अिभ'ाय नहc है jक3तु जो स"य है उस को मानना, मनवाना और जो
अस"य है उस को छोड़ना और छु ड़वाना मुभफ़ को अभी… है। यjद म< पzपात
करता तो आ‰या&वs& मO 'चWरत मतi मO से jकसी एक मत का आ>ही होता
jक3तु जो-जो आ‰या&वs& वा अ3य देशi मO अधम&युž चाल चलन है उस का
Hवीकार और जो धम&युž बातO ह< उन का "याग नहc करता, न करना चाहता
•ँ eयijक ऐसा करना मनु‘यधम& से बिहः है।
मनु‘य उसी को कहना jक-मननशील हो कर Hवा"मवत् अ3यi के सुख-दु ख
और हािन-लाभ को समभफ़े । अ3यायकारी बलवान् से भी न डरे और धमा&"मा
िनब&ल से भी डरता रहे। इतना ही नहc jक3तु अपने सव& साम•य& से धमा&"माu-
jक चाहे वे महा अनाथ, िनब&ल और गुणरिहत eयi न हi-उन कR रzा, उ–ित,
ि'याचरण और अधमŠ चाहे च¦वsŠ सनाथ, महाबलवान् और गुणवान् भी
हो तथािप उस का नाश, अवनित और अि'याचरण सदा jकया करे अथा&त्
जहाँ तक हो सके वहाँ तक अ3यायकाWरयi के बल कR हािन और 3यायकाWरयi
के बल कR उ–ित सव&था jकया करे । इस काम मO चाहे उस को jकतना ही दा˜ण
दु ख 'ाƒ हो, चाहे 'ाण भी भले ही जावO पर3तु इस मनु‘यपन’प धम& से
पृथÀफ़ कभी न होवे। इस मO ~ीमान् महाराजा भतृ&हWर जी आjद ने ºोक कहे
ह< उन का िलखना उपयुž समभफ़ कर िलखता •ँ-
िन3द3तु नीितिनपुणा यjद वा Hतुव3तु,
लˆमी समािवशतु ग¸छतु वा यथे…म् ।
अ‡ैव वा मरणम् अHतु युगा3तरे वा,
3या‰या"पथ 'िवचलि3त पदं न धीरा ।।१।। -भतृ&हWरः।।