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Naasir
Naasir
Naasir
वो रं ग वो आवाज़ वो सज और वो सूरत
सच कहते हो तु म प्यार के क़ाबिल तो वही है
तू ने बं जर ज़मीं को फू ल दिए
मु झ को इक ज़ख़्म-ए-दिल-कुशा ही दे
न शग़्ल-ए-ख़ारा-तराशी न कारोबार-ए-जु नँ ू
मैं कोह-ओ-दश्त में फ़र्याद-ओ-नाला क्या करता
ते रे करम से ऐ अलम-ए-हुस्न-ए-आफ़रीन
दिल बन गया है दोस्त की ख़िल्वत कभी-कभी
जोश-ए-जु नँ [3]
ू में दर्द की तु ग़यानियों[4] के साथ
अश्कों में ढल गई ते री सूरत कभी-कभी
आं ख का तारा आं ख में है
अब ना गिनें गे तारे हम।
-
दे ख महब्बत का दस्तूर
तू मु झसे , मैं तु झसे दरू
4
हम अपना ग़म भूल गये
आज किसे दे खा मजबूर
5
- इश्क़ में जीत हुई या मात
आज की रात न छे ड़ ये बात
रं ग, खु ले सहरा2 की धूप
ज़ु ल्फ़ घने जं गल की रात
जागो-जगन की चीखों से
सूना जं गल गूँज उठा
सूरज सर पर आ पहुँचा
गर्मी है या रोज़े -जज़ा
ओ मे रे मसरूफ ख़ु दा
अपनी दुनिया दे ख ज़रा।
-
कुछ कह के ख़ामोश हो गये हम
किस्सा था दराज़, खो गये हम
6
तू कौन है , ते रा नाम क्या है
क्या सच हज कि ते रे हो गये हम
7
मे रा दिल ख़ूगरे -तूफां है वरना
ये किश्ती बारहा साहिल से गु ज़री।
-
दम घु टने लगा है वज़ए-ग़म से
फिर ज़ोर से क़हक़हा लगाओ
8
खत्म हुआ तारों का राग
जाग मु साफ़िर अब तो जाग
ये नगरी अं धियारी है
इस नगरी से जल्दी भाग।
-
दिल फिर आये हैं बाग़ में गु ल के
बू-ए-गु ल है सु राग़ गु ल के
9
यकबयक आके दिखा दो झमकी
क्यों फिराते हो परे शान मु झे
सु न के आवाज-ए-गु ल कुछ न सु ना
बस उसी दिन से हुए कान मु झे
सु रमई दे स के सपने ले कर
शबनमे -ज़मज़मां -पा आई
दे ख कर भी न दे खने वाले
दिल तु झे दे ख-दे ख डरता है
10
ध्यान की सीढ़ियों पे पिछले पहर
कोई चु पके से पाँ व धरता है
इक तरफ झम
ू कर बहार आई
इक तरफ आशियाँ जलाये गये
आह वो खिलवतों के सरमाये
मज़म-ए-आम में लु टाये गये
शोले में है एक रं ग ते रा
बाक़ी हैं तमाम रं ग मे रे
आं ख खु लते ही छुप गई हर शय
आलमे -बे ख़ुदी में क्या कुछ था
13
कितने मानूस लोग याद आये
सु ब्ह की चांदनी में क्या कुछ था
ते रा मिलना तो खै र मु श्किल था
ते रा ग़म भी जहां ने छीन लिया
आ के मं ज़िल पे आं ख भर आई
सब मज़ा रफ्तगां ने छीन लिया
16
दे ख कैफ़ियते -तूफाने -बहार
बू-ए-गु लरं ग हुआ चाहती है
जब तु झे पहली बार दे खा था
वो भी था मौसमे -तरब कोई
17
न ग़मे -ज़िन्दगी न दर्दे -फ़िराक़
दिल में यूँ ही सी है तलब कोई
बे कैफी-ए-रोज़-ओ-शब मु सलसल
सरमस्ती-ए-इं तज़ार कुछ दे र
तकलीफ-ए-गम-ए-फिराक दायम
तकरीब-ए-विसाल-ए-यार कुछ दे र
ऐ मे रे आहु-ए-रमीदा कभी
दिल के उजड़े हुए खु तन में आ
दिल कि ते रा था अब भी ते रा है
फिर इसी मं ज़िले -कुहन में आ
18
सु बहे -नौरस की आं ख के तारे
चांद मु रझा गया गहन में आ
रे त के फू ल, आग के तारे
ये है फ़सले -मु राद का गहना
21
अव्वलीं क़ुर्ब की सरशारी में
कितने अरमाँ थे जो अब याद नहीं
वो सितारा थी कि शबनम थी कि फू ल
एक सूरत थी अजब याद नहीं
हम तु झे भूल के खु श बै ठे हैं
हम सा बे दर्द कोई क्या होगा
दे ख कर आईन-ए-आबे -रवां
पत्ता-पत्ता लबे -गोया होगा
23
शाम से सोच रहा हँ ू 'नासिर'
चांद किस शहर में उतरा होगा।
-
कुछ तो एहसास-ए-ज़ियाँ था पहले
दिल का ये हाल कहाँ था पहले
हर ख़राबा ये सदा दे ता है
मैं भी आबाद मकाँ था पहले
24
चढ़ते सूरज की अदा को पहचान
डू बते दिन की निदा ग़ौर से सु न
हर-नफ़स दाम-ए-गिरफ़्तारी है
नौ-गिरफ़्तार-ए-बला ग़ौर से सु न
है यही साअत-ए-ईजाब-ओ-क़बूल
सु ब्ह की लौ को ज़रा ग़ौर से सु न
बर्ग-ए-आवारा भी इक मु तरिब है
ताइर-ए-नग़मा-सरा ग़ौर से सु न
रं ग मिन्नत-कश-ए-आवाज़ नहीं
कल भी है एक नवा ग़ौर से सु न
ख़ामु शी हासिल-ए-मौसीक़ी है
नग़्मा है नग़्मा-नु मा ग़ौर से सु न
27
लहू रो के सींचा है हम ने चमन को
हर इक फू ल का माजरा जानते हैं
29
आज तक याद है वो शाम-ए-जु दाई मु झ को
न कर ख़याल-ए-तलाफ़ी कि मे रा ज़ख़्म-ए-वफ़ा
वो ज़ख़्म है जिसे अच्छा न कर सके तू भी
-
किसी कली ने भी दे खा न आँ ख भर के मु झे
गु ज़र गई जरस-ए-गु ल उदास कर के मु झे
फिर आज आई थी इक मौज-ए-हवा-ए-तरब
सु ना गई है फ़साने इधर उधर के मु झे
-
महरूम-ए-ख़्वाब दीदा-ए-है राँ न था कभी
ते रा ये रं ग ऐ शब-ए-हिज्राँ न था कभी
31
चमक चमक के रह गयीं नजूमो-गु ल की मं ज़िलें
मैं दर्द की कहानियां सु ना सु ना के रह गया
बस अब तो एक ही धु न है कि नींद आ जाये
वो दिन कहां कि उठाये शबे -फ़िराक़ के नाज़
जो घर उजड़ गए उन का न रं ज कर प्यारे
वो चारा कर कि ये गु लशन उजाड़ सा न लगे
रज़्म-गाह-ए-जहाँ बन गई जा-ए-अमन-ओ-अमाँ
है यही वक़्त की रागनी सो रहो सो रहो
34
कैसे सु नसान हैं आसमाँ चु प खड़े हैं मकाँ
है फ़ज़ा अजनबी अजनबी सो रहो सो रहो
Diwaan-
रात ढल रही है
नाव चल रही है
आज तो ये धरती
खूं उगल रही है
ख्वाहिशों की डाली
हाथ मल रही है
जाहिलों की खे ती
फू ल फल रही है ।
-
दे स सब्ज़ झीलों का
ये सफ़र है मीलों का
35
किश्तियों की लाशों पर
जमघटा है चीलों का
रं ग उड़ता जाता है
शहर की फसीलों का
दे ख कर चलो 'नासिर'
दश्त है ये फीलों का।
-
कब तक बै ठे हाथ मलें
चल साथी कहीं और चलें
जु ग जु ग जियें मे रे साथी
जलने वाले और जलें
ते री याद से लड़ता हँ ू
दे ख तो मे रा पागलपन।
-
तू है या ते रा साया है
भे स जु दाई ने बदला है
उस बस्ती से आती है
आवाज़ें ज़ं जीरों की
मे री रात का चराग़
37
मे री नींद भी है तू
दोस्तों के दरमियाँ
वज्ह-ए-दोस्ती है तू
38
मैं क्यूँ फिरता हँ ू तन्हा मारा-मारा
ये बस्ती चै न से क्यों सो रही है
39
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
40
आज तु झे क्यूँ चु प सी लगी है
कुछ तो बता क्या बात हुई है
आज तो जै से सारी दुनिया
हम दोनों को दे ख रही है
तू है और बे -ख़्वाब दरीचे
मैं हँ ू और सु नसान कली है
अब तो आँ ख लगा ले 'नासिर'
दे ख तो कितनी रात गई है ।
-
प्यारे दे स की प्यारी मिट् टी
सोने पर है भारी मिट् टी
ते रे वादे मे रे दावे
हो गये बारी बारी मिट् टी
आज दे खा है तु झ को दे र के ब'अद
आज का दिन गु ज़र न जाए कहीं
जी जलाता हँ ू और सोचता हँ ू
राएगाँ ये हुनर न जाए कहीं
ते रे साथ गई वो रौनक़
अब इस शहर में क्या रक्खा है
43
अगले वक़्तों की यादगारों को
आसमां क्यों मिटाये जाता है
हम से पहले ज़मीन-ए-शहर-ए-वफ़ा,
ख़ाक थी, कमियां हमीं से हुई !
सितम-ए-नरवा तु झी से हुआ,
ते रे हक़ में दुआ हमीं से हुई !
साई-तजदीद-ए-दोस्ती "नसीर",
आज क्या, खता हमीं से हुई
-
दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
46
तु म तो यारो अभी से उठ बै ठे
शहर में रात जागती है अभी
आरज़ू है कि मे रा क़िस्सा-ए-शौक़
आज मे रे सिवा कहे कोई
मु झ से आँ ख मिलाये कौन
मैं ते रा आईना हँ ू
आज तो वो भी कुछ ख़ामोश सा था
मैं ने भी उस से कोई बात न की
फू ल को फू ल का निशां जानो
चांद को चांद से इधर दे खो
जल्व-ए-रं ग भी है इक आवाज़
शाख़ से फू ल तोड़ कर दे खो
झठ
ू ी उम्मीद का फ़रे ब न खाओ
रात काली है किस क़दर दे खो
49
मैं इसी ग़म में घु लता जाता हँ ू
क्या मु झे छोड़ जाये गा तू भी
आ भी जा मे रे दिल के सद्रनशी
कब से खाली पड़ी है यर कुर्सी
दे र तक उसकी ते ज़ आं खों से
रौशनी सी रही दरख़्तों में
दश्त भी दे खे चमन भी दे खा
कुछ अजब आबो-हवा है दिल में
रं ज भी दे खे खु शी भी दे खी
आज कुछ दर्द नया है दिल में
ग़म-गु सार-ए-सफ़र-ए-राह-ए-वफ़ा
मिज़ा-ए-आबला-पा होती है
जब निकलती है निगार-ए-शब-ए-गु ल
मुँ ह पे शबनम की रिदा होती है
ये भी है एक तरह की मोहब्बत
मैं तु झ से तू मु झ से जु दा है
आज तो मे रा दिल कहता है
तू इस वक़्त अकेला होगा
इस धरती की रौनक है
मे रे कांटे ते रे फू ल
इन प्यासों पर मे रा सलाम
जिनकी ख़ाक से निकले फू ल
मिट् टी ही से निकले थे
मिट् टी हो गये सारे फू ल
55
मिट् टी की ख़ु शबू ले ने
कल गगन से उतरे फू ल
गोरे -गोरे नं गे पै र
झिलमिल झिलमिल करते फू ल
जै सा बदन वै सा ही लिबास
जै से मिट् टी वै से फू ल
56
सु ब्ह-दम दे खा तो सारा बाग़ था गु ल की तरफ़
शम्अ' के ताबूत पर रोया न परवाना कोई
58
जब भी नये सफ़र पर जाता हँ ू 'नासिर'
पिछले सफ़र के साथी ध्यान में आते हैं ।
-
तिरी निगाह के जाद ू बिखरते जाते हैं
जो ज़ख़्म दिल को मिले थे वो भरते जाते हैं
ू आपके, एक एक से मगर
कहता सु लक
मतलूब इं तकाम नहीं आपसे मु झे
61
नये प्याले सही ते रे दौर में साक़ी
ये दौर मे री शराब-ए-कोहन को तरसे गा
64
उदास फिरता हँ ू मैं जिस की धु न में बरसों से
यूँही सी है वो ख़ु शी बात वो ज़रा सी है
65
ये ठिठु री हुई लम्बी रातें कुछ पूछती हैं
ये ख़ामु शी आवाज़-नु मा कुछ कहती है
न तं ग कर दिल-ए-महज़ूँ को ऐ ग़म-ए-दुनिया
ख़ु दाई-भर में यही ग़म-गु सार अपना है
दीवानगी-ए-शौक़ को ये धु न है इन दिनों
घर भी हो और बे -दर-ओ-दीवार सा भी हो
71
मे री बे कसी का न ग़म करो मगर अपना फायदा सोच लो
तु म्हें जिसकी छां व अज़ीज़ है मैं उसी दरख़्त का हँ ू समर
जो पाया है वो ते रा है
जो खोया वो भी ते रा था
मे रे हाथ भी सु लग रहे थे
ते रा माथा भी जलता था
ते रे घर के दरवाज़े पर
75
सूरज नं गे पां व खड़ा था
दीवारों से आं च आती थी
मटकों में पानी जलता था
ते रे आं गन के पिछवाड़े
सब्ज़ दरख़्तों का रमना था
आं गन की दीवार का साया
चादर बन कर फैल गया था
मैं और तू जब घर से चले थे
मौसम कितना बदल गया था
ते रे घर के दरवाज़े पर
सूरज नं गे पां व खड़ा था
दीवारों से आं च आती थी
मटकों में पानी जलता था
ते रे आं गन के पिछवाड़े
सब्ज़ दरख़्तों का रमना था
आं गन की दीवार का साया
चादर बन कर फैल गया था
76
ते री आहट सु नते ही मैं
कच्ची नींद से चौंक उट् ठा था
मैं और तू जब घर से चले थे
मौसम कितना बदल गया था
ते री अक्स की है रानी से
बहता चश्मा ठहर गया था
ते री ख़मोशी की शह पाकर
मैं कितना बातें करता था
पे ड़ भी पत्थर, फू ल भी पत्थर
पत्ता पत्ता पत्थर का था
ते रे साये की लहरों को
मे रा साया काट रहा था
78
गर्द ने ख़ै मा तान लिया था
धूप का शीशा धुं धला-सा था
दे ख के ते रे दे स की रचना
मैं ने सफ़र मौक़ू फ़ किया था
79
एक तवील सफ़र का झोंका
मु झको दरू लिए जाता था।
-
तू जब दोबारा आया था
मैं तिरा रस्ता दे ख रहा था
ते री एक सदा सु नते ही
मैं घबरा कर जाग उठता था
आं ख खु ली तो तु झे न पाकर
मैं कितना बै चैन हुआ था
एक पे ड़ के हाथ थे खाली
80
इक टहनी पर दिया जला था
दे ख के दो चलते सायों को
मैं तो अचानक सहम गया था
एक के उलटे पै र थे ले किन
वो ते ज़ी से भाग रहा था
आग की महलसरा के अं दर
सोने का बाज़ार खु ला था
ते रे ध्यान की कश्ती ले कर
मैं ने दरिया पर किया था
दे ख के जोबन की फुलवारी
सूरजमु खी का फू ल खिला था
82
माथे पर सोने का झम ू र
चिं गारी की तरह उड़ता था
दे र के मु रझाये पे ड़ों को
ख़ु शबू ने आबाद किया था
ते रे शहर का इस्टे शन भी
मे रे दिल की तरह सूना था
मे री प्यासी तनहाई पर
आं खों का दरिया हं सता था
रे ल चली तो एक मु साफ़िर
मिरे सामने आ बै ठा था
सचमु च ते रे जै सी आं खें
वै सा ही हं सता चे हरा था
किस दे वी की है ये मूरत
कौन यहां पूजा करता था
ये कांटे और ते रा दामन
मैं अपना दुख भूल गया था
84
कितनी बातें की थीं ले किन
एक बात से जी डरता था
ते रे हाथ की चाय तो पी थी
दिल का रं ज तो दिल में रहा था
चलते हुए आँ धी आई थी
रस्ते में बादल बरसा था
रं ज तो है ले किन ये खु शी है
अब के सफ़र तिरे साथ किया था।
-
पवन हरी, जं गल भी हरा था
वो जं गल कितना गहरा था
खोशों के अं दर खोशे थे
फू ल के अं दर फू ल खिला था
85
जन्नत तो दे खी नहीं ले किन
जन्नत का नक़्शा दे खा था।
-
तनहाई का दुख गहरा था
मैं दरिया-दरिया रोता था
सु ख गई जब सु ख की डाली
तनहाई का फू ल खिला था
86
रस कहीं, रूप कहीं, रं ग कहीं
एक जाद ू है ख़यालात का चांद
-
आँ खों में हैं दुख भरे फ़साने
रोने के फिर आ गये ज़माने
दे ख ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-दोस्त
बाज़ी जीत के हारे हम
आँ ख का तारा आँ ख में है
अब न गिनें गे तारे हम
-
ख़त्म हुआ तारों का राग
जाग मु साफ़िर अब तो जाग
ये नगरी अँ धियारी है
इस नगरी से जल्दी भाग
-
रौनकें थीं जहाँ में क्या-क्या कुछ
लोग थे रफ़्तगाँ में क्या-क्या कुछ
87
क्या कहँ ू अब तु म्हें खिज़ाँ वालो
जल गया आशियाँ में क्या-क्या कुछ
अहल-ए-दर्द ही आख़िर
ख़ु शियाँ आम करें गे
दीवानगी-ए-शौक़ को ये धु न है इन दिनों
घर भी हो और बे -दर-ओ-दीवार सा भी हो
88
जु ज़ दिल कोई मकान नहीं दहर में जहाँ
रहज़न का ख़ौफ़ भी न रहे दर खु ला भी हो
बै ठा है एक शख़्स मे रे पास दे र से
कोई भला-सा हो तो हमें दे खता भी हो
89
ते रे फ़िराक़ की रातें कभी न भूलेंगी
मज़े मिले इन्हीं रातों में उम्र भर के मु झे
फिर आज आई थी इक मौज-ए-हवा-ए-तरब
सु ना गई है फ़साने इधर-उधर के मु झे
-
कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलें
आये हैं इस गली में तो पत्थर ही ले चलें
90
कपड़े बदल कर बाल बना कर कहाँ चले हो किस के लिये
रात बहुत काली है "नासिर" घर में रहो तो बे हतर है
-
नीयत-ए-शौक़ भर न जाये कहीं
तू भी दिल से उतर न जाये कहीं
आज दे खा है तु झे दे र के बाद
आज का दिन गु ज़र न जाये कहीं
जी जलाता हँ ू और ये सोचता हँ ू
राये गाँ ये हुनर न जाये कहीं
वो सितारा थी कि शबनम थी कि फू ल
इक सूरत थी अजब याद नहीं
ये हक़ीक़त है कि अहबाब को हम
याद ही कब थे कि अब याद नहीं
91
राह-ए-हयात में कुछ मर्हले तो दे ख लिये
ये और बात ते री आरज़ू न रास आई
जै से चाँद की ठं डी लौ
जै से किरणों कि कन मन
जै से जल-परियों का ताज
जै से पायल की छन छन
-
फिक् र-ए-तामीर-ए-आशियाँ भी है
खौफ-ए-बे माहरी-ए-खिजाँ भी है
ओस भी है कहीं-कहीं लरज़ाँ
बज़्म-ए-अं जुमन धु आँ-धु आँ भी है
93
हर नफ्स शौक भी है मं जिल का
हर कदम याद-ए-रफ्तु गाँ भी है
94
अपनी धु न में रहता हँ ू 54
अब उन से और तक़ाज़ा-ए-बादा क्या 68
करता
अव्वलीं चाँद ने क्या बात सु झाई मु झ 33
को
अहले -दिल आं ख जिधर खोलें गे 45
आँ खों में हैं दुख भरे फ़साने 99
आं ख में हैं दुख भरे फ़साने 9
आज तु झे क्यूँ चु प सी लगी है 46
आज तो बे सबब उदास है जी 55
आराइश-ए-ख़याल भी हो दिलकुशा भी 101
हो
आराइश-ए-ख़याल भी हो दिल-कुशा भी 79
हो
आह फिर नग़मा बना चाहती है 19
इन सहमे हुए शहरों की फ़ज़ा कुछ 75
कहती है
इश्क़ जब जमजमा-पै रा होगा 26
इश्क़ में जीत हुई या मात 6
इस दुनिया में अपना क्या है 49
इस से पहले कि बिछड़ जाएँ हम 1
उदासियों का समां महफ़िलों में छोड़ गई 29
एक नगर मैं ऐसा दे खा दिन भी जहां 68
अं धेर
ऐ हमसु ख़न वफ़ा का तक़ाज़ा है अब यही 80
ऐसा कोई सपना जागे 41
ओ मे रे मसरूफ ख़ु दा 7
क़फ़स को चमन से सिवा जानते हैं 31
कब तक बै ठे हाथ मलें 41
कब तलक मु द्दआ' कहे कोई 53
कभी कभी तो जज़्बे -इश्क़ मात खा के रह 36
गया
करता उसे बे करार कुछ दे र 20
कल जिन्हें ज़िन्दगी थी रास बहुत 49
क़हर से दे ख न हर आन मु झे 11
कहीं उजड़ी उजड़ी सी मं ज़िलें कहीं टूटे 82
फू टे से बामो-दर
कारवाँ सु स्त राहबर ख़ामोश 58
कितना काम करें गे 101
किसके जल्वों की धूप बरसी है 13
किसी कली ने भी दे खा न आँ ख भर के 34
मु झे
किसी कली ने भी दे खा न आँ ख भर के 103
मु झे
किसी का दर्द हो दिल बे -क़रार अपना है 76
किसे दे खें कहाँ दे खा न जाये 108
किसे दे खें कहां दे खा न जाये 24
किस्से हैं ख़ामोशी में निहां और तरह के 77
कुंज-कुंज नग़माज़न बसन्त आ गई 46
95
कुछ कह के ख़ामोश हो गये हम 7
कुछ तो एहसास-ए-ज़ियाँ था पहले 27
कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले 69
चलें
कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले 103
चलें
कोई और है , नहीं तू नहीं, मे रे रूबरू कोई 81
और है
कोई जिये या कोई मरे 5
कोई सूरत-आश्ना अपना न बे गाना कोई 65
कौन इस राह से गु ज़रता है 12
क्या ज़माना था कि हम रोज़ मिला करते 67
थे
क्या दिन मु झे इश्क़ ने दिखाये 19
क्या लगे आं ख कि फिर दिल में समाया 66
कोई
क्यों ग़मे -रफ्तगां करे कोई 17
खत्म हुआ तारों का राग 10
ख़त्म हुआ तारों का राग 100
ख़याल-ए-तर्क -ए-तमन्ना न कर सके तू 34
भी
ख़ामोशी उं गलियां चटखा रही है 4
ख़्वाब में रात हम ने क्या दे खा 2
गए दिनों का सु राग़ ले कर किधर से आया 84
किधर गया वो
ग़म है या ख़ु शी है तू 43
ग़म-फ़ुर्सती-ए-ख़्वाब-ए-तरब याद रहे गी 30
गर्द ने ख़ै मा तान लिया था 90
गली गली आबाद थी जिन से कहाँ गए 30
वो लोग
गली गली मिरी याद बिछी है प्यारे रस्ता 82
दे ख के चल
गा रहा था कोई दरख़्तों में 59
गिरिफ़्ता-दिल हैं बहुत आज ते रे दीवाने 33
गु ल नहीं, मैं नहीं, पियाला नहीं 56
चं द घरानों ने मिल जु लकर 47
चमन दर चमन वी रमक अब कहां 9
चराग़ बनके वही झिलमिलाए शामे - 83
फ़िराक़
चांद अभी थककर सोया था 94
चांद निकला तो हमने वहशत में 8
चे हरा अफ़रोज़ हुई पहली झड़ी, 83
हमनफसो शु क्र करो
छुप जाती हैं आईना दिखाकर ते री यादें 65
जन्नत माहीगीरों की 42
जब ज़रा ते ज़ हवा होती है 60
जब तक न लहू दीद-ए-अं जुम से टपक ले 66
जब तलक दम रहा है आं खों में 12
जब रात गए तिरी याद आई सौ तरह से 1
जी को बहलाया
जब से दे खा है तिरे हाथ का चांद 99
जब से दे खा है ते रे हाथ का चांद 8
ज़बाँ सु ख़न को सु ख़न बाँकपन को 70
तरसे गा
ज़बाँ सु ख़न को सु ख़न बाँकपन को 106
96
तरसे गा
जबीं पे धूप सी आँ खों में कुछ हया सी है 74
ज़मीं चल रही है कि सु ब्हे -ज़वाले -जमां है 85
जल्वा-सामां है रं गो-बू हमसे 48
ज़िन्दगी को न बना दें वो सज़ा मे रे बाद 108
ज़िन्दगी भर वफ़ा हमीं से हुई, 52
जु र्म-ए-उम्मीद की सज़ा ही दे 3
ू ा
जो गु फ्तनी नहीं वो बात भी सु ना दं ग 77
ठहरा था वो गु ल-अज़ार कुछ दे र 23
तनहाई का दुख गहरा था 98
तन्हा इश्क के ख़्वाब न बु न 107
तन्हा ऐश के ख़्वाब न बु न 8
तारे गिनवाए या सहर दिखलाए 9
तिरी निगाह के जाद ू बिखरते जाते हैं 67
तिरे आने का धोका सा रहा है 45
तिरे ख़याल से लो दे उठी है तन्हाई 39
तिरे मिलने को बे कल हो गये हैं 14
तु झ बिन घर कितना सूना था 99
तु म आ गए हो तो क्यूँ इं तिज़ार-ए-शाम 72
करें
तू असीर-ए-बज़्म है हम-सु ख़न तु झे 84
ज़ौक़-ए-नाला-ए-नय नहीं
तू जब दोबारा आया था 91
तू जब मे रे घर आया था 86
तू है दिलों की रोशनी तू है सहर का 73
बांकपन
तू है या ते रा साया है 42
ते री ज़ु ल्फ़ों के बिखरने का सबब है कोई 31
ते री मजबूरियां दुरुस्त मगर 44
ते रे ख़याल से लौ दे उठी है तनहाई 105
ते रे मिलने को बे कल हो गये हैं 105
थोड़ी दे र को जी बहला था 95
दफ़अ'तन दिल में किसी याद ने ली 71
अं गड़ाई
दम घु टने लगा है वज़ए-ग़म से 9
दम होंटो पर आ के रुका था 93
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला 83
गया
दयार-ए-दिल की रात में चिराग़ सा जला 102
गया
दर्द कांटा है उसकी चु भन फू ल है 46
दिन का फू ल अभी जागा था 88
दिन ढला रात फिर आ गई सो रहो सो 39
रहो
दिल के लिए दर्द भी रोज़ क्या चाहिए 76
दिल धड़कने का सबब याद आया 16
दिल फिर आये हैं बाग़ में गु ल के 10
दिल भी अजब आलम है नज़र भर के तो 65
दे खो
दिल में आओ अजीब घर है ये 51
दिल में इक लहर सी उठी है अभी 53
97
दिल में और तो क्या रक्खा है 50
दुख की लहर ने छे ड़ा होगा 62
दे ख महब्बत का दस्तूर 5
दे स सब्ज़ झीलों का 41
दौर-ए-फ़लक जब दोहराता है मौसम-ए- 31
गु ल की रातों को
धुं आ-सा है जो ये आकाश के किनारे पर 74
धूप थी और बादल छाया था 92
धूप निकली दिन सु हाने हो गए 52
न आं खें ही बरसीं न तु म ही मिले 14
नये कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल 82
बनाऊँ किस के लिये
नये दे स का रं ग नया था 94
नसीब-ए-इश्क़ दिल-ए-बे -क़रार भी तो 38
नहीं
नाज़े -बे गानगी में क्या कुछ था 15
नासिर' क्या कहता फिरता है कुछ न 81
सु नो तो बे हतर है
नासिर" क्या कहता फिरता है कुछ न 104
सु नो तो बे हतर है
नित नयी सोच में लगे रहना 22
नीयत-ए-शौक़ भर न जाए कहीं 48
नीयत-ए-शौक़ भर न जाये कहीं 104
पत्थर का वो शहर भी क्या था 89
पर्दे में हर आवाज़ के शामिल तो वही है 1
पल-पल कांटा-सा चु भता था 97
पवन हरी, जं गल भी हरा था 98
पहुँचे गोर किनारे हम 100
पहुंचे गोर किनारे हम 5
पिछले पहर का सन्नाटा था 89
प्यारे दे स की प्यारी मिट् टी 47
फिक् र-ए-तामीर-ए-आशियाँ भी है 107
फ़िक् र-ए-तामीर-ए-आशियाँ भी है 21
फिर नई फ़स्ल के उनवां चमके 45
फिर लहू बोल रहा है दिल में 59
फिर सावन रुत की पवन चली तु म याद 66
आये
फू ल ख़ु शबू से जु दा है अब के 49
बदली न उसकी रूह किसी इं क़लाब में 71
बने -बनाए हुए रास्तों पे जा निकले 69
बर्फ गिरती रहे आग जलती रहे 44
बसा हुआ है ख़यालों में कोई पै करे -नाज़ 36
बे गानावार उनसे मु लाक़ात हो तो हो 30
बे मिन्नते -ख़िज़्रे-राह रहना 16
बे हिजाबाना अं जुमन में आ 21
महरूम-ए-ख़्वाब दीदा-ए-है राँ न था 35
कभी
मायूस न हो उदास राही 6
मु झको और कहीं जाना था 91
मु द्दत हुई कि सै रे-चमन को तरस गये 32
98
मु मकिन नहीं मता-ए-सु ख़न मु झ से छीन 66
ले
मु मकिन नहीं मता-ए-सु ख़न मु झ से छीन 103
ले
मु सलसल बे कली दिल को रही है 44
मैं इस शहर में क्यों आया था 96
मैं जब ते रे घर पहुंचा था 87
मैं तिरे शहर से फिर गु ज़रा था 95
मैं ने जब लिखना सीखा था 86
मैं हँ ू रात का एक बजा है 61
मौसमे-गुलज़ारे-हस्ती इन दिनों क्या है न पूछ 64
याद आता है रोज़ो-शब कोई 20
यास में जब कभी आं स ू निकला 22
यूँ तिरे हुस्न की तस्वीर ग़ज़ल में आए 70
ये कह रहा है दयारे तरब का नज़्ज़ारा 35
ये ख़्वाबे -सब्ज़ है या रुत वही पलट आई 68
ये भी क्या शाम-ए-मु लाक़ात आई 101
ये भी क्या शामे -मु लाक़ात आई 11
ये रं गे-खूं हैं गु लों पर निखार अगर है भी 73
ये रात तु म्हारी है चमकते रहो तारो 32
ये शब ये ख़यालो-ख़्वाब ते रे 15
ये सितम और कि हम फू ल कहें ख़ारों को 2
रं ग दिखलाती है क्या क्या उम्र की 33
रफ्तार भी
रं ग बरसात ने भरे कुछ तो 10
रं ग सु ब्हो के राग शामों के 16
रक़म करें गे तिरा नाम इं तसाबों में 78
रह-ए-जु नँ ू में ख़ु दा का हवाला क्या करता 3
रह-नवर्द-ए-बयाबान-ए-ग़म सब्र कर 79
सब्र कर
रात ढल रही है 40
रोते रोते कौन हं सा था 97
रौनकें थीं जहाँ में क्या-क्या कुछ 100
लबे -मोजिज़-बयां ने छीन लिया 17
वा हुआ फिर दरे -मै खान-ए-गु ल 25
वो इस अदा से जो आए तो क्यूँ भला न 37
लगे
वो दिल नवाज़ है ले किन नज़र-शनास 106
नहीं
वो दिल-नवाज़ है ले किन नज़र-शनास 1
नहीं
वो साहिलों पे गाने वाले क्या हुए 75
शबनम-आलूद पलक याद आई 13
शहर सु नसान है किधर जाएँ 44
शहर-दर-शहर घर जलाये गये 12
शिकवा बतर्ज़े -आम नहीं आपसे मु झे 69
शु आ-ए-हुस्न तिरे हुस्न को छुपाती थी 70
शोला-सा पे चो-ताब में दे खा 47
शौक़ क्या क्या दिखाये जाता है 50
सदा-ए-रफ्तगां फिर दिल से गु ज़री 8
99
सफ़र-ए-मं ज़िल-ए-शब याद नहीं 104
सफ़र-ए-मं ज़िल-ए-शब याद नहीं 25
सर में जब इश्क़ का सौदा न रहा 18
सरे -मक़तल भी सदा दी हमने 51
साज़-ए-हस्ती की सदा ग़ौर से सु न 28
सारी रात जगाती है 42
सु नाता है कोई भूली कहानी 57
सु ब्ह का तारा उभरकर रह गया 43
सो गई शहर की हरे क गली 56
हं सते गाते रोते फू ल 63
हम जिस पे ड़ की छां व में बै ठा करते थे 67
हर अदा आबे -रवां की लहर है 8
हासिल-ए-इश्क़ तिरा हुस्न-ए-पशीमाँ ही 30
सही
हुस्न कहता है इक नज़र दे खो 55
हुस्न को दिल में छुपा कर दे खो 18
होती है ते रे नाम से वहशत कभी-कभी 4
100