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सहचर ई-प का…

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सहचर ई-प का…


सा ह य,कला,अनुवाद और सनेमा क
ई-प का (Peer Review
Journal)

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वृंद क
नै तकता –
सुमन कुमारी

Home 2018 April 5 वृंद क नै तकता – सुमन कुमारी

Posted on April 5, 2018


का शत अंक
by admin

सहचर ई-प का
सहचर ई-प का…
 DONATE
NOW

वृंद अपने समय म दरबारी क व


थे। वृंद दरबारी जीवन और उसके
तौर तरीके से भलीभां त प र चत संपादक
थे। नी त सतसई क ब त सी
सु य म व णत राजनी तक
वचार दरबारी जीवन संबंधी
अनुभव से संबं धत है। इससे
प है क राजनी तक वषय पर
उनक पकड़ गहरी थी। स भवत:
इसका कारण यह हो सकता है क
शाह अजीमु शान के ये श क थे
और वह इ ह हमेशा अपने साथ
रखता था। प है क इ ह
अजीमु शान के दरबार म केवल
दरबारी क व  ही नह । ब क एक
नी त- नपुण श क (गु ) का पछला अंक (मु य पृ )
दजा भी ा त था।

            क ववर वृंद री तकाल के


दरबारी क व थे। क व वभाव
होता है जहां जैसा वातावरण
दे खता है उसी कार से रेणा
लेकर उसपर क वता करता है।
नी त स सई क रचना करते
समय उ ह जब भी जीवन के
जस े पर क वता करने का
मौका मला। उस पर रचना कर
डाली। उनके वा ण य संबंधी
वचार आ थक जीवन से सीधे
जुड़े ए ह। इस पर उ ह ने उस
समय या सोचा-समझा या
परखा उसी का वणन करने का
यास कया।
CATEGORIES

सहचर ई-प का
सहचर ई-प
  भारत म नै तक का रचनेका…
क Select Category
पुरानी पर परा व मान है।
नै तक का लखने का मुख  DONATE
NOW
उ े य भातीय जीवन को अपने

कत पथ से भटकने से रोकना
Search SEARCH
रहा है। इसके लये कभी य
तो कभी पशु-प य या अ य
मा यम से अ य प से
आचार व ध, आचरण स हता
और मयादा के मू य लोग को
RECENT
समझाए गए ह।
COMMENTS

       ाचीन काल म नै तक का


क समृ पर परा सं कृत से
ाकृत (उपदे श माला,
गाहास सई, कथा कोश करण) ARCHIVES
पाली (जा त तथा ध म पद) तथा
अप ंश पा ड़ दोहा, उपदे श
March 2020
रसायन ाकृत पगल) म थी। जो
आगे चलकर ह द म आई।
December 2019
नै तक का जीवन के स चे और
सुलझे अनुभव को वयं म August 2019
समा हत करने म समथ रहा है।
यही कारण है क अनुभव पर April 2019
आधा रत होने के कारण यह धारा
वतमान और भावी समाज क September 2018
पथ दशक रही है। लोक वहार
म नै तक मू य का मह व July 2018
लोको य के मा यम से
April 2018
भलीभां त समझा जा सकता है।
व तुत:   नै तक का व - February 2018
सा ह य म अपना मह वपूण
थान रखता है। December 2017

  ाचीन काल से ही वण व था October 2017


इस दे श क सं कृ त तथा
सामा जक संघटना का ाण है। July 2017
परंतु यह   व था आज क जा त
व था ब कुल   भ थी। May 2017
वणा म का अथ वण- व था
एवं आ म है। इसे  धम भी कहते February 2017
ह। धम का ता पय यहां नै तक
November 2016
कत या जीवन के ावहा रक
नै तक नयम से है। वण- व था
August 2016
ने समाज के स पूण लोग को चार
वण - ा ण, य, वै य और June 2016
शू म वभा जत कर दया   और
येक वण के लये कुछ नयम
सहचर ई-प का
सहचर ई-प
एवं कत को नधा रत करका…
दए
और येक वग से यह आशा क
जाती थी क वह उन नयम को  DONATE
Visitors
NOW
अपना धम समझकर उसका
पालन करे। पहले यही वण धम
Today: 611 
था। आ म व था का उ े य Yesterday: 479
एवं मह व वैय क था। जब क
This Week: 6664
वण व था म आधारभूत ेरणा
का व प सामा जक था। This Month: 36131
क ववर वृंद ा ण के बारे म
वचार करते ह क इनका Total: 348068
काय सफ पठन-पाठन,
Currently Online: 134
आ या मक वचार, स य क
खोज म लीन रहना  था। जस
कार एक नसंतान ी सूत के
दद को नह जानती, उसी कार
पं डत वग से इतर वग स य को
नह जान सकता था  उदाहरणतः 
न न ल खत पं य को दे खा जा
सकता है-—

पं डत जन कौ सम मरम
जानत जे म त धीर।

कब बांझ न जानईतन सूत


क पीर।।

  ा ण वग क े ता को
रेखां कत करते ए क ववर वृंद ने
कहा है क ा ण से हार जाने
पर भी शंसा मलती है। वृंद क
मा यता है क समाज के े
(उ च) कुलीन लोग ही नी तवान
होने चा हये। तप या आ द
कमकांड उ ह को शोभा दे ते ह।
न न शू वण के लोग को नी त
नपुण होना शोभनीय नह । यहाँ
पर वृंद वण- व था को समथन
करते ह-

नी त नपुण राजा न क
अजुगत ना ह सुहाय।

करत तप या सू कौ य
मारयौ रघुराय।।

प है क वृंद ा ण और पं डत
वग को एक ही मानते ह। वह वण-
व था म व ास रखते ह और
सहचर ई-प का
सहचर
शू को तप ई-प का…
या का अ धकारी
नह मानते । यह मा यता
री तकाल म भले ही उ चत रही  DONATE
NOW
हो। ले कन आज के संदभ म यह
एकदम अनु चत है य क आज

ऐसा कोई बंधन नह है। कौन या
है और या करेगा।

          वण व था म भारतीय
समाज चार वण म वभ था।
येक वण के काय अलग-अलग
थे। परंतु वण- व था ने
कालांतर म ज म पर आधा रत
होकर ज टल प धारण कर
लया। ऐसी दशा म जा तगत
सद यता अप रवतनीय होकर बंद
एवं थर हो गई। जा त व था
मु यत: कम पर आधा रत न
होकर जा त पर आधा रत थी।
इस लये येक सद य को अपनी
जा त के अनुसार ही काय करने
क छू ट थी। इस कार उस समय
खान-पान, वैवा हक संबंध,
वसाय, रहन-सहन   इ या द
जीवन संबंधी मह वपूण पहलु
पर तबंध था।

     येक जा त क अपनी


वशेषता होती है। कुछ जा तयाँ
समाज म राचार और वकृ त
फैलाकर समाज के पतन का
कारण बनती ह।  तो कुछ जा तयाँ
अपने प र म और श ाचार के
ारा समा जक उ थान करने म
अपनी अहम् भू मका नभात ह।
वृंद ने कुछ सू य म अनायास
कुछ ऐसी जा तय और उनके
काय का उ लेख कया है।

     जहाँ बाहरी आंड बर  हो वहाँ


जा तगत े ता नह दे खी जाती।
गुण स प ता से ही मनु य े
बनता है। छोट जा त का मनु य
अपने स ण के आधार पर
दखावा करने वाले उ च कुल के
लोग म उसी कार उठ जाता है,
जस कार छोट डोरी वाली
पतंग से बड़ी डोरी वाली पतंग

सहचर ई-प का
सहचर ई-प
आकाश म यादा उँचाई तकका…
उठ
जाती है-
 DONATE
जात गुनी जात न तहां NOW

आड बर जुत सोइ। 
प ंचे चंग आकाश ल जौ गुन
संजुत होइ।।

वृंद क मा यता है क गुणी


का आदर होता है चाहे वह कसी
भी जा त का ही य न हो।

          न न जा तय के लोग
(शू )अपमान से बचने के लये
अपनी जा त छपाते थे और जा त
छपाने के व भ मा यम थे। वृंद
ने इस जा त छपाने क ापक
सम या के लये एक उ म साधन
बताते ए कहा है— ‘ क एकमा
वेश ारा ही जा त और वण छपा
सकते ह। क व के अनुसार जा त
छपाने के लये सरी जा त
अथवा वण का व श नधा रत
व पहन लेना चा हये।’ तब
जाकर इस क से छु मल
पाएगी।

एक भेष के आसरे जा त वरन


छप जात।

य हाथी के पाम म सबको


पांव समात।।

ले कन भारतीय नी त शा और
समाज म सदै व से स जन पु ष
को अ धक मा यता द गई है।
चाहे वह कसी भी वण या जा त
का हो। इसका उदाहरण भ
काल म ए अनेक न न जा त
और वण के संत क वय म  दे खा
जा सकता है। जो राजा एवं
ा ण ारा खूब पूजे जाते थे।
क व वृंद ने स जन पु ष के
वषय म बताया है। क स जन
पु ष क पहचान यह है क उसके
साथ गलत वहार करने पर भी
वह सर का भला ही करता है।
जस कार जल को वायु ारा

सहचर ई-प का
सहचर ई-प
वा पन करने पर भी जल वायुका…
को
ही शीतल करता है-
 DONATE
अ हत कए हक करै NOW
स जन परम अधीर। 
सोखे शीतल करै जैसे नीर
समीर।।

जो उपकार करते ह (अथात्


स जन पु ष) उन उपकारी
स जन पु ष से कभी वमुख
नह होना चा हये या उनके
उपकार को भूलना नह चा हये।
उसी तरह जैसे मोर जस तालाब
का पानी पीता है, उसको पीठ
नह दखाता-

तनस वमुख न जयै जे


उपकार समेत।

मोर ताल जल पान कर जैसे


पीठन दे त।। 

क व वृंद ने जन य के
त अपनी नै तक रचना क है।
वृ का मनु य अपना
वभाव नह छोड़ता है चाहे उसके
साथ कतनी ही भलाई क जाए।
के साथ चाहे जतना
सद् वहार कर। ले कन वह
अपनी नीचता को नह छोड़
सकता ठ क वैसे ही जैसे क
काजल को सौ बार धोने पर भी
 उसे सफेद नह कया जा सकता।

न छाड़ ता कैसे ं सुख


दे त।

धोए सौ बार कै काजर होत


न सेत।।

  के मल जाने से भलाई
नह होती ब क उसके मलते ही
बुराई पैदा हो जाती है और वह
ख दे ती है।  जैसे शरीर म कांटा
चुभ जाने से वह कसकता  है और
पीड़ा दे ता रहता है। ठ क बुराई भी
उसी कार अपनी बुरी कसक
छोड़ जाती है-
सहचर ई-प का
सहचर ई-प म का…
यौ न हन भलौ उपजत
मलै अहेत।
 DONATE
य कांटो ग ड़ दे ह म अटक NOW
खटक ख दे त।। 
वृंद ने ेम पर अपने वचार व
नै तक दे ते ए  लखा है।- ेम
करने पर उसे नभाना चा हये
अ यथा कभी कसी से ेम का
संबंध न करो और य द कया है,
तो उसे तोड़ना नह चा हये,
य क जैसे र सी क टू ट जाने
पर उसे फर जोड़ने से गांठ पड़
जाती है वैसे ही र त भी कभी न
सुलझने वाली गाढ़े लग जाती ह-

कबहऊं ी त न जो रयो जो र
तो रयो न ह।

य तोर जोर ब र गांठ पड़ती


गुन मा ह।।

े समपण है उसम  भेदभाव या



अंतर नह रखना चा हये। य क
जहाँ दल से दल नह मलते ह।
वहाँ हार ही हार होती रहत ह-

अंतर त नक न र खये जहां


ी त वहार।

उर स उर लाग न तहं जहां


रह त है हार।।

े बंधन के समान और कोई



बंधन नह है जैसे काट को छे द
कर दे ने वाली श रखने वाला
भंवरा ेमवश कमल क
पंखु ड़य म कैद हो जाता है और
उसे कोई हा न नह प ंचाता और
वह ात: होते ही कमल  क कैद
से मु हो जाता है। वैसे ही ेम
य के दय क मधुर अनुभू त
है-

जैसो बंधन ेम क तैसी ब ध


न और।

काट ह भेदे कमल को छे द न


नकरे भोर।। 

सहचर ई-प का
सहचर
ेम म द वानेई-प
मन को रोकनेका…
का
साम य कुल क लाज या मयादा
नह है। जैसे कमल के डंटल के  DONATE
NOW
धागे से हाथी को कौन बांध

सकता है । वैसे ही ेम को बाधा
नह जा सकता। कुल क मयादा
के संबंध म वृंद ने पा रवा रक
संबंध के बारे म काश डालते
ए कहा है क कुल क मयादा
कोई नह छोड़ता।चाहे उसे उसम
कतनी ही हा न उठानी पड़े। उसी
कार जैसे हाथी ारा एक
महाजन को मार दे ने पर भी सरा
महाजन आकर हाथी पर सवार हो
जाता है-

कुल मारग छोड़े न कोउ हो ह


वृ कै हा न।

एक गज मारत सरौ चढ़त


महावत आ न।।

वृंद का लोकनी त म व ास था
और वह स सई म जन हत के
प धर तीत होते ह। जसम
भला हो, वही काम करनेल म वह
भलाई मानते ह । चाहे कोई हजार
नाम धरे और  अजुन को छल-बल
ारा यु जीतने वाला बताएँ।
लोग उसे  ऐसा न करने का लाख
परामश  ही य न द-

जाम हत सो क जये कोऊ


कह हजार।

छल बल सा धकै बजय करी


पारथ भारथ बार।।

क व कहता है क  सदै व मन क
करनी चा हए कसी के कहने
सुनने म नह आना चा हए। 
सबक बात सुननी चा हये,
ले कन जो बात समाज, जन हत
म ह , उसका नणय अपनी बु
से करना चा हये अथात् कभी
प पातपूण वहार नह करना
चा हये। नबल से कभी भी
मनी, श ुता और वाद- ववाद
नह करना चा हये। य क
सहचर ई-प का
सहचर ई-प
जीतने पर ताज का…
नह बंधता परं तु
हारने पर न दा   ज र ही होती
है-  DONATE
NOW

नबल जा न क जै नह कब ं 
बैर ववाद।

जीते कछु सोभा नह हारे


न दा बाद।।

वृंद ने कहते ह क बलवान होने


पर भी यादा  लोग का वरोध
नह करना चा हये। बलवान पु ष
को श का योग सोच
समझकर प र थ त अनुकूल ही
करना चा हये। वृंद श ु के बारे म
भी अपने वचार करते ह
और कहते ह क श ु को छोटा
नह   समझना चा हये। छोटे होने
पर भी पूरी तैयारी या पूरे ह थयार
के साथ चढ़ाई याआ मण करना
चा हये। चाहे उनके योग क
स भावना कम  ही य न हो-

छोटे अ र पै चढ़ स ज सुमट
स त तान।

लीजै ससा आखेट पर नाहर


को समान।।

वृंद के वा ण य संबंधी वचार


सीधे  आ थक जीवन से जुड़े ह।
आजी वका अजन करने म काय
को हेय नह समझना चा हये। वृंद
ने आ थक पहलू पर अपने वचार
रखते ए कहा है क वै या
शीतवंती और संकोची वृ क
हो तो उसक जी वका का नवाह
नह हो सकता। इस लये जस
ापार या धंधे म जीवन का
नवाह हो। उसे अपनाने म संकोच
नह करना चा हये। वृंद क
मा यता है क काम कोई छोटा या
बुरा नह होता। मनु य क सोच
छोट -बड़ी होती है-

जासे नबहै जी वका क रये सो


अ यास।

सहचर ई-प का
सहचर ई-प वै का…
या पातै शीला तो कैसे पूरे
आस।।
 DONATE
मेहनत करना और अपने धंधे को NOW
े समझना; सफलता क कुंजी 
है। कसी काम-धंधे को छोड़कर
सरे काय क उ मीद करना
उ चत नह है। जब तक काम न
मल जाये तब तक पहले वाले
काय को छोड़ने क मूखता करना
थ है। काय के मह व को
दे खकर य न करना चा हये।
कसी काय को करना ही है तो
पूण सोच-समझकर करना
चा हये क अमुक काय करने म
हम सफलता मलेगी, जसम पूण
या आं शक सफलता न मले,
ऐसा काय थ है। यहां वृंद क
मा यता है क काय के त पूरी
लगन होनी चा हये, जसम
सफलता ही हा सल हो-

य क जै ऐसो जतन जाते


काज न होय।

परबत पै खोदै कुंवा कैसे


नकसै तोय।।

सामा जक वकास अथवा


मानवीय हत क भावना स प
सा ह य म जब य या परो
प से नै तक सम वय होता है तो
वह सा ह य मानवीय जीवन को
कह अ धक था य व दान
करता है। तभी तो वृंद कहते ह क
य द कसी अ य के बल पर कोई
य़भई काय कया जाता है तो
सफलता मा छलवा है
वा ता वकता नह ।  हमारे दे श म
आ द काल से लेकर आज तक
व भ भाषा के सा ह य म
रचना होती आई है। जसका
माण व पटल पर हमारे
स मुख है। जसे न तो नकारे जा
सकता है और न ही अनदे खा
कया जा सकता है।

    अंततः .ही कहा जा सकता  है


क री तकाल म धम का इतना
सहचर ई-प का
सहचर
भाव नह थाई-प
क समाज म का…
फैले
अंध व ास, वाथपरता और
नै तक बलता र करने वाले  DONATE
NOW
भ क व कबीर, तुलसी के
समान तभावान व का

नमाण होता। फर भी नै तक
क वय ने इस दशा म सू य के
मा यम से समाज के नै तक
वकास का काय कया है।
री तकाल म वृंद एकमा ऐसे
क व ए ह ज ह ने 714 सू य
क स सई का नमाण करके
समाज को एक नयी दशा दान
क है।

  उपरो अ ययन से प होता


है क वृंद ारा र चत का म
अभ सामा जक मू य
मानव जीवन के सवागांण उ यन
म सहायक है। इनक उपयो गता
तभी स होगी जब उनका सही
मू यांकन कया जाए और
वतमान समय के लये उपयोगी
बनाया जाए।

संदभ ंथ सूची:-

1 जनादन राव चलेर, वृंद और


उनका सा ह य,

2 जनादन राव चलेर, वृंद


ंथावली

3 डॉ. नग , ह द सा ह य का
इ तहास

4 आचाय रामचं शु ल, ह द
सा ह य का इ तहास

सुमन कुमारी 

Posted in तेरहवाँ अंक,


शोधाथ

सहचर ई-प का
सहचर ई-प का…
 भारतीय वतं ता आंदोलन म
अं ेजी और भाषाई प का रता  DONATE
NOW
क भू मका – नृ सह बेहेरा /
दोश रथ

वातं यो र वैचा रक व ल लत
नबंध म भारत बोध –
ोमकांत म 

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