Professional Documents
Culture Documents
वृंद की नैतिकता - सुमन कुमारी - सहचर ई-पत्रिका…
वृंद की नैतिकता - सुमन कुमारी - सहचर ई-पत्रिका…
DONATE
NOW
DONATE NOW
वृंद क
नै तकता –
सुमन कुमारी
सहचर ई-प का
सहचर ई-प का…
DONATE
NOW
सहचर ई-प का
सहचर ई-प
भारत म नै तक का रचनेका…
क Select Category
पुरानी पर परा व मान है।
नै तक का लखने का मुख DONATE
NOW
उ े य भातीय जीवन को अपने
कत पथ से भटकने से रोकना
Search SEARCH
रहा है। इसके लये कभी य
तो कभी पशु-प य या अ य
मा यम से अ य प से
आचार व ध, आचरण स हता
और मयादा के मू य लोग को
RECENT
समझाए गए ह।
COMMENTS
पं डत जन कौ सम मरम
जानत जे म त धीर।
ा ण वग क े ता को
रेखां कत करते ए क ववर वृंद ने
कहा है क ा ण से हार जाने
पर भी शंसा मलती है। वृंद क
मा यता है क समाज के े
(उ च) कुलीन लोग ही नी तवान
होने चा हये। तप या आ द
कमकांड उ ह को शोभा दे ते ह।
न न शू वण के लोग को नी त
नपुण होना शोभनीय नह । यहाँ
पर वृंद वण- व था को समथन
करते ह-
नी त नपुण राजा न क
अजुगत ना ह सुहाय।
करत तप या सू कौ य
मारयौ रघुराय।।
प है क वृंद ा ण और पं डत
वग को एक ही मानते ह। वह वण-
व था म व ास रखते ह और
सहचर ई-प का
सहचर
शू को तप ई-प का…
या का अ धकारी
नह मानते । यह मा यता
री तकाल म भले ही उ चत रही DONATE
NOW
हो। ले कन आज के संदभ म यह
एकदम अनु चत है य क आज
ऐसा कोई बंधन नह है। कौन या
है और या करेगा।
वण व था म भारतीय
समाज चार वण म वभ था।
येक वण के काय अलग-अलग
थे। परंतु वण- व था ने
कालांतर म ज म पर आधा रत
होकर ज टल प धारण कर
लया। ऐसी दशा म जा तगत
सद यता अप रवतनीय होकर बंद
एवं थर हो गई। जा त व था
मु यत: कम पर आधा रत न
होकर जा त पर आधा रत थी।
इस लये येक सद य को अपनी
जा त के अनुसार ही काय करने
क छू ट थी। इस कार उस समय
खान-पान, वैवा हक संबंध,
वसाय, रहन-सहन इ या द
जीवन संबंधी मह वपूण पहलु
पर तबंध था।
सहचर ई-प का
सहचर ई-प
आकाश म यादा उँचाई तकका…
उठ
जाती है-
DONATE
जात गुनी जात न तहां NOW
आड बर जुत सोइ।
प ंचे चंग आकाश ल जौ गुन
संजुत होइ।।
न न जा तय के लोग
(शू )अपमान से बचने के लये
अपनी जा त छपाते थे और जा त
छपाने के व भ मा यम थे। वृंद
ने इस जा त छपाने क ापक
सम या के लये एक उ म साधन
बताते ए कहा है— ‘ क एकमा
वेश ारा ही जा त और वण छपा
सकते ह। क व के अनुसार जा त
छपाने के लये सरी जा त
अथवा वण का व श नधा रत
व पहन लेना चा हये।’ तब
जाकर इस क से छु मल
पाएगी।
ले कन भारतीय नी त शा और
समाज म सदै व से स जन पु ष
को अ धक मा यता द गई है।
चाहे वह कसी भी वण या जा त
का हो। इसका उदाहरण भ
काल म ए अनेक न न जा त
और वण के संत क वय म दे खा
जा सकता है। जो राजा एवं
ा ण ारा खूब पूजे जाते थे।
क व वृंद ने स जन पु ष के
वषय म बताया है। क स जन
पु ष क पहचान यह है क उसके
साथ गलत वहार करने पर भी
वह सर का भला ही करता है।
जस कार जल को वायु ारा
सहचर ई-प का
सहचर ई-प
वा पन करने पर भी जल वायुका…
को
ही शीतल करता है-
DONATE
अ हत कए हक करै NOW
स जन परम अधीर।
सोखे शीतल करै जैसे नीर
समीर।।
क व वृंद ने जन य के
त अपनी नै तक रचना क है।
वृ का मनु य अपना
वभाव नह छोड़ता है चाहे उसके
साथ कतनी ही भलाई क जाए।
के साथ चाहे जतना
सद् वहार कर। ले कन वह
अपनी नीचता को नह छोड़
सकता ठ क वैसे ही जैसे क
काजल को सौ बार धोने पर भी
उसे सफेद नह कया जा सकता।
के मल जाने से भलाई
नह होती ब क उसके मलते ही
बुराई पैदा हो जाती है और वह
ख दे ती है। जैसे शरीर म कांटा
चुभ जाने से वह कसकता है और
पीड़ा दे ता रहता है। ठ क बुराई भी
उसी कार अपनी बुरी कसक
छोड़ जाती है-
सहचर ई-प का
सहचर ई-प म का…
यौ न हन भलौ उपजत
मलै अहेत।
DONATE
य कांटो ग ड़ दे ह म अटक NOW
खटक ख दे त।।
वृंद ने ेम पर अपने वचार व
नै तक दे ते ए लखा है।- ेम
करने पर उसे नभाना चा हये
अ यथा कभी कसी से ेम का
संबंध न करो और य द कया है,
तो उसे तोड़ना नह चा हये,
य क जैसे र सी क टू ट जाने
पर उसे फर जोड़ने से गांठ पड़
जाती है वैसे ही र त भी कभी न
सुलझने वाली गाढ़े लग जाती ह-
कबहऊं ी त न जो रयो जो र
तो रयो न ह।
सहचर ई-प का
सहचर
ेम म द वानेई-प
मन को रोकनेका…
का
साम य कुल क लाज या मयादा
नह है। जैसे कमल के डंटल के DONATE
NOW
धागे से हाथी को कौन बांध
सकता है । वैसे ही ेम को बाधा
नह जा सकता। कुल क मयादा
के संबंध म वृंद ने पा रवा रक
संबंध के बारे म काश डालते
ए कहा है क कुल क मयादा
कोई नह छोड़ता।चाहे उसे उसम
कतनी ही हा न उठानी पड़े। उसी
कार जैसे हाथी ारा एक
महाजन को मार दे ने पर भी सरा
महाजन आकर हाथी पर सवार हो
जाता है-
वृंद का लोकनी त म व ास था
और वह स सई म जन हत के
प धर तीत होते ह। जसम
भला हो, वही काम करनेल म वह
भलाई मानते ह । चाहे कोई हजार
नाम धरे और अजुन को छल-बल
ारा यु जीतने वाला बताएँ।
लोग उसे ऐसा न करने का लाख
परामश ही य न द-
क व कहता है क सदै व मन क
करनी चा हए कसी के कहने
सुनने म नह आना चा हए।
सबक बात सुननी चा हये,
ले कन जो बात समाज, जन हत
म ह , उसका नणय अपनी बु
से करना चा हये अथात् कभी
प पातपूण वहार नह करना
चा हये। नबल से कभी भी
मनी, श ुता और वाद- ववाद
नह करना चा हये। य क
सहचर ई-प का
सहचर ई-प
जीतने पर ताज का…
नह बंधता परं तु
हारने पर न दा ज र ही होती
है- DONATE
NOW
नबल जा न क जै नह कब ं
बैर ववाद।
छोटे अ र पै चढ़ स ज सुमट
स त तान।
सहचर ई-प का
सहचर ई-प वै का…
या पातै शीला तो कैसे पूरे
आस।।
DONATE
मेहनत करना और अपने धंधे को NOW
े समझना; सफलता क कुंजी
है। कसी काम-धंधे को छोड़कर
सरे काय क उ मीद करना
उ चत नह है। जब तक काम न
मल जाये तब तक पहले वाले
काय को छोड़ने क मूखता करना
थ है। काय के मह व को
दे खकर य न करना चा हये।
कसी काय को करना ही है तो
पूण सोच-समझकर करना
चा हये क अमुक काय करने म
हम सफलता मलेगी, जसम पूण
या आं शक सफलता न मले,
ऐसा काय थ है। यहां वृंद क
मा यता है क काय के त पूरी
लगन होनी चा हये, जसम
सफलता ही हा सल हो-
संदभ ंथ सूची:-
3 डॉ. नग , ह द सा ह य का
इ तहास
4 आचाय रामचं शु ल, ह द
सा ह य का इ तहास
सुमन कुमारी
सहचर ई-प का
सहचर ई-प का…
भारतीय वतं ता आंदोलन म
अं ेजी और भाषाई प का रता DONATE
NOW
क भू मका – नृ सह बेहेरा /
दोश रथ
वातं यो र वैचा रक व ल लत
नबंध म भारत बोध –
ोमकांत म
Leave a Reply
Comment
Name *
Email *
Website
POST COMMENT
Notify me of follow-up
comments by email.
Notify me of new
posts by email.
सहचर ई-प का
सहचर ई-प का…
DONATE
होम NOW
अनु म णका
संपादक य
वलंत वषय
बात -बात म
शोधाथ
अनुभू त
जरा हट के
तजुमा
समी ा
सनेमा/फैशन
संपादक य समूह
का शत अंक
Proudly powered by
WordPress. | Theme:
Charitize by
eVisionThemes