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फ़्रीडरिक मैक्स मल

ू ि

जन्म- 6 दिसम्बि, 1823, जममनी; मत्ृ यु- 28 अक्टूबि, 1900, इंग्लैण्ड)


प्रससद्ध जममन संस्कृतवेत्ता, प्राच्य ववद्या ववशािि, लेखक तथा भाषाशास्री था।

वह ब्रिदटश 'ईस्ट इण्ण्डया कम्पनी' में कममचािी था।

जन्म से जममन होने के बावजि


ू भी मैक्स मल
ू ि ने अपने जीवन का अधधकांश
समय इंग्लैण्ड में व्यतीत ककया था। उसका संबंध अनेक यूिोपीय तथा एसशयाई
संस्थाओं से था।

मैक्स मल
ू ि ने 'भाितीय िशमन' पि कई िचनाएँ की थीं। अंततम दिनों वह बौद्ध
िशमन में अधधक रुधच िखने लगा था तथा जापान में समले अनेक बौद्ध िाशमतनक
ग्रंथों की गवेषणा में ित्तधचत्त था।

जन्म तथा सशक्षा


जममन संस्कृतवेत्ता एवं भाषाशास्री मैक्स मल
ू ि का जन्म जममनी के 'िे सो'नामक
नगि में 6 दिसम्बि, 1823 ई. को हुआ था।

उसके वपता प्रससद्ध जममन कवव ववल्हे म मल


ू ि (1794-1827) थे, ण्जन्हें हजममन
मुक्तक प्रगीतों की ववसशष्ट शैली 'किल-हे लते नक' प्रगीतों के कािण काफी
ख्यातत समली थी।

जब मैक्स मल
ू ि मार चाि वषम का ही था, तभी उसके वपता का िे हान्त हो गया।
उसने 1841 ई. में 'लाइपससंग ववश्वववद्यालय' से मैदिक पास ककया था।

सन 1846 में मैक्स मूलि इंग्लैण्ड पहुँचा, जहाँ बुन्सेन तथा प्रोफेसि एच. एच.
ववल्सन ने उसे ऋग्वेि के संपािन कायम में पयामप्त सहायता पहुँचाई। सन 1848
में ऑक्सफोडम यतू नवससमटी प्रेस में ऋग्वेि का मद्र
ु ण आिं भ होने के कािण मैक्स
मल
ू ि को ऑक्सफोडम को ही अपना तनवास स्थान बनाना पडा। बाि में मैक्स
मूलि को 1850 में वहीं आधुतनक भाषाओं का टे लि प्राध्यापक तनयुक्त ककया
गया औि किि 'क्राइस्ट चचम कॉलेज' का मान्य सिस्य (िेलो) बनाया गया। वह
'आल सोल्स कॉलेज' का भी सिस्य िहा।

इस बीच मैक्स मल
ू ि के कई लेख प्रकासशत हुए, जो बाि में 'धचप्स फ्रॉम ए
जममन वकमशाप' शीषमक से संग्रह रूप में प्रकासशत हुए। सन 1859 में इसकी
पुस्तक 'दहस्िी आव एंशेंट संस्कृत सलटिे चि' प्रकासशत हुई। मैक्स मूलि का
प्रधान लक्ष्य ऑक्सफोडम में संस्कृतववभाग का संस्कृत आचायम बनना था, ककंतु
सन 1860 में उक्त स्थान के रिक्त होने पि मैक्स मल
ू ि का चन
ु ाव ससिम
इससलए नहीं हो पाया कक वह वविे शी था औि उसका संबंध 'सलबिल' िल के
लोगों से था। उस स्थान पि मैक्स मूलि को न लेकि सि मोतनयि ववसलयम्स की
तनयण्ु क्त की गई। इस घटना से मैक्स मल
ू ि को काफी धक्का पहुँचा।
लेककन 1868 में इसकी पतू तम हो गई औि वह वहीं तल
ु नात्मक भाषाशास्र का
आचायम बनाया गया।

व्याख्यान
मैक्स मल
ू ि ने सन 1861 तथा 1863 में 'िॉयल इंस्टीट्यश
ू न' के समक्ष भाषा
ववज्ञान संबंधी कई व्याख्यान दिए, जो 'लेक्चसम ऑन सायंस ऑव लैंग्वेजज' के
नाम से प्रकासशत हुए। यद्यवप इन व्याख्यानों के तनष्कषम तथा तकम पद्धतत का
ण्टटनी जैसे भाषाशाण्स्रयों ने काफी वविोध ककया, तथावप मैक्स मल
ू ि के इन
व्याख्यानों का भाषा वैज्ञातनक प्रगतत के इततहास में अत्यधधक महत्व है ।

मैक्स मूलि ने भाषा ववज्ञान को 'भौततक ववज्ञान' की कोदट में माना है , जबकक
यह वस्तुत: ऐततहाससक या सामाण्जक ववज्ञान की एक ववधा है । मैक्स मूलि ने
भाषाशास्री के सलये संस्कृत के अध्ययन की आवश्यकता को इतना महत्व दिया
कक उनके शब्िों में संस्कृत-ज्ञान-शन्
ू य तल
ु नात्मक भाषाशास्री उस ज्योततषी के
समान है , जो गणणत नहीं जानता।

मैक्स मल
ू ि ने यिू ोपीय भाषाओं का तल
ु नात्मक अध्ययन भी प्रस्तत
ु ककया।
मैक्स मल
ू ि का एक अन्य वप्रय ववषय धममववज्ञान पिु ाण-कथा-ववज्ञान है । इस
अध्ययन ने उसे तुलनात्मक धमम की ओि भी प्रेरित ककया।

सन 1873 में उसने 'इंिोडक्शन टू ि ण्जतनयस ऑव िे सलजन्स' प्रकासशत की।


इसी वषम इस ववषय से संबंधधत व्याख्यान िे ने के सलये वह वैस्ट समतनंस्टि एबे
में आमंब्ररत ककया गया।

1888 से 1892 तक इस ववषय पि उसकी अन्य पुस्तक चाि भागों में प्रकासशत
हुई, जो धगिडम लेक्चसम के रूप में दिए गए भाषण हैं।
महत्वपूणम कायम
मैक्स मूलि का सवामधधक महत्वपूणम कायम 51 ण्जल्िों में 'सैक्रेड बुक्स ऑफ दि
ईस्ट' (पूवम के धासममक-पववर-ग्रंथ) का संपािन है । यह कायम 1875 में आिं भ
ककया गया था, तथा तीन ण्जल्िों के अततरिक्त समग्र कायम मैक्स मूलि के
जीवनकाल में ही प्रकासशत हो चक
ु ा था।

मैक्स मूलि ने 'भाितीय िशमन' पि भी िचनाएँ की थीं। अंततम दिनों वह बौद्ध


िशमन में अधधक रुधच िखने लगा था तथा जापान में समले अनेक बौद्ध िाशमतनक
ग्रंथों की गवेषणा में ित्तधचत्त था।

तनधन

मैक्स मूलि का संबंध अनेक यूिोपीय तथा एसशयाई संस्थाओं से था। वह


बोडसलयन लाइिेिी का क्यूिेटि तथा यूतनवससमटी प्रेस का डेलीगेट था।

28 अक्टूबि, 1900 को मैक्स मल


ू ि का तनधन ऑक्सफोडम, इंग्लैण्ड में हुआ।
उसकी मत्ृ यु के बाि वषम 1903 में उसकी िुटकि िचनाओं का संग्रह प्रकासशत
हुआ था।

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