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जािनए, ा ा है , प रभाषा और अथ छठा सुख हो राज म सीरा॥

m-hindi.webdunia.com/health-care/जािनए- ा - ा-है -प रभाषा-और-अथ-114111900030_1.html स म सुख दे श म वासा।

थ रहना सबसे बड़ा सुख है । कहावत भी है - 'पहला सुख िनरोगी काया'। कोई आदमी तभी अपने जीवन का पूरा आन उठा अ म सुख हों पंिडत पासा॥
सकता है , जब वह शारी रक और मानिसक प से थ रहे । थ शरीर म ही थम िनवास करता है । इसिलए मानिसक
नौवां सुख हों िम घनेरे।
ा के िलए भी शारी रक ा अिनवाय है । ऋिषयों ने कहा है 'शरीरमा ं खलु धमसाधनम्' अथात् यह शरीर ही धम का े
साधन है । यिद हम धम म िव ास रखते ह और यं को धािमक कहते ह, तो अपने शरीर को थ रखना हमारा पहला कत है । ऐसे नर निहं जग ब तेरे॥
यिद शरीर थ नहीं है , तो जीवन भार प हो जाता है ।

यजुवद म िनर र कमरत रहते ए सौ वष तक जीने का आदे श िदया गया है - 'कुव ेवेह कमािण िजजीिवषे छतं समाः' अथात् 'हे आयुवद के िस ंथ सु ुत संिहता म ऋिष ने िलखा है -
मनु ! इस संसार म कम करते ए सौ वष तक जीने की इ ा कर।'
समदोषाः समाि समधातुमलि यः।
वेदों म ई र से ाथना की गई है -
स ा े यमनः थ इ िभधीयते॥
'प ेम् शरदः शतम्, जीवेम् शरदः शतम्,
अथात् िजसके तीनों दोष (वात, िप एवं कफ) समान हों, जठराि सम (न अिधक ती ,न अित म ) हो, शरीर को धारण करने वाली
ुणुयाम् शरदः शतम्, वाम् शरदः सात धातुएं (रस, र , मां स, मेद, अ थ, म ा और वीय) उिचत अनुपात म हों, मल-मू की ि याएं भली कार होती हों और दसों
इ यां (आं ख, कान, नाक, चा, रसना, हाथ, पैर, िज ा, गुदा और उप थ), मन और सबकी ामी आ ा भी स हो, तो ऐसे
शतम्, अदीनः ाम् शरदः को थ कहा जाता है ।

शतम्, भूय शरदः शतात्'

अथात् 'हम सौ वष तक दे ख, िजएं , सुन, बोल और आ िनभर रह। (ई र की कृपा से) हम सौ वष से अिधक भी वैसे ही रह।'

एक िवदे शी िव ान् डॉ. बेनेिड ज ने कहा है - 'उ म ा वह अनमोल र है , िजसका मू तब ात होता है , जब वह


खो जाता है ।'

एक शायर के श ों म- 'क े -सेहत मरीज से पूछो, त दु ी हजार िनयामत है ।'

उठता है िक ा ा है अथात् िकस को हम थ कह सकते ह? साधारण प से यह माना जाता है िक िकसी कार


का शारी रक और मानिसक रोग न होना ही ा है । यह एक नकारा क प रभाषा है और स के िनकट भी है , पर ु पूरी तरह
स नहीं। वा व म ा का सीधा स ंध ि याशीलता से है । जो शरीर और मन से पूरी तरह ि याशील है , उसे ही पूण
थ कहा जा सकता है । कोई रोग हो जाने पर ि याशीलता म कमी आती है , इसिलए ा भी भािवत होता है ।

चिलत िचिक ा प ितयों म ा की कोई सवमा प रभाषा नहीं दी गई है । ऐलोपैथी और हो ोपैथी के िचिक क िकसी भी
कार के रोग के अभाव को ही ा मानते ह।

वे रोग को या उसके अभाव को तो माप सकते ह, पर ु ा को मापने का उनके पास कोई पैमाना नहीं है । रोग के अभाव को
मापने के िलए उ ोंने कुछ पैमाने बना रखे ह, जैसे दय की धड़कन, र चाप, ल ाई या उ के अनुसार वजन, खून म हीमो ोिबन
की मा ा आिद। इनम से एक भी बात अनुभव ारा िनधा रत सीमाओं से कम या अिधक होने पर वे को रोगी घोिषत कर दे ते ह
और अपने िहसाब से उसकी िचिक ा भी शु कर दे ते ह।

पहला सुख िनरोगी काया।

दू जा सुख घर होवै माया॥

तीजा सुख कुलव ी नारी।

चौथा सुख सुत आ ाकारी॥

पंचम सुख भाई बलवीरा।

ो ी

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