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ी वामी समथ पोथी

ी अ कलकोट वामी तो --- महा य ||

ॐ ी अ कलकोट वामी समथास नम: | ॐ नमो ीगजवदना | गणराया गौरीनंदना | व नेशा भवभयहरणा | नमन माझे
सा ागी || १||

नंतर न मली ी सर वती | जग माता भगवती | कु मारी वीणावती | व ादा ी व ाची || २||

नमन तैसे गु वया | सुख नधान सदगु राया | म नी या प व पायां | च शु द जाहली || ३||

थोर ॠ षमुनी संतजन बुधगण आ ण स न | क नी तयांसी नमन | ंथरचना आरं भली ||४||

ी अ कलकोट वामीराया म नी तुम या प व पायां | तो महा य तुमचे गावया | ारंभ आता करतो मी || ५||

नांव गांव खु वाम चे | कवा यां या माता प यांचे | कोणालाच ठाऊक नाही साच | अंदाज मा अनेक
|| ६||

यां या ज मासंबंधाने, आ या यका ल हली एकान | तीच स य मानुनी येकाने | समाधान मानावे || ७ ||

हणे उ र भारती एका ानी | घनदाट कदळ या बन | वामी गटले वा ळांतुनी | लाकु डतो ा या
न म ाने || ८ ||

कु हाडीचा घाव बसून, याचा रा हला कायमचा वण | आगळ ती अवतार खूण | य पाहीली सवानी
|| ९ ||

एका भ ान के ला , वामी तुमची जात कोण | ते हां दल उ र छान | वमुखच समथानी || १० ||

मी यजुवेद ा हण | माझे नांव नृ सहभान | का यप गो राशी मीन | ऐस वामी हणाले ||११ ||

खर खोट दे व जाणे | बर नाही खोलांत शरण | ई वरी करणीची कारण | आपण काय शोधावी || १२ ||

द ा या तु ही नराकार नगुण | नरदे ह तरीही के ला धारण | सकळं भू दे श के ला पावन | आपु या चरण शाने || १३ ||

नंतर वामी नघाले तथून | तीथया ेसी के ले याण | द ा याचे येक ठकाण | य फ नी पा हल || १४ ||

द वा त जेथे नरंतर | तो थोर पवत गरनार | तेथेच गेले अगोदर | नंतर फरले इतर || १५ ||

या ेचे वास संपले | ते हा मंगळवे ासी आले | तेथे थोडे दवस रा हले | दामाजी या गांवात || १६ ||

काही काळ तथे गेला | पु यवंतांना भाव कळला | जनसमुदाय भजन लागला | सा ा कारी यती या || १७ ||

पुढे अ कलकोट ह | वा त ाचे झाले ठकाण | अखेरपयत तथच रा न | अनंत लीला दाख व या || १८ ||
तेजःपुंज शरीर गोमट, सरळ ना सका कान मोठे | आजानुबा कौ पन छोटे | दगंबर असती अनेकदां || १९||

वामी समथ अ कलकोटचे | चवथे अवतार द ा याचे | तीन अवतार यापूव चे | गु च र ी व णले || २० ||

प हले द ा ेय, सरे ीपादव लभ | नृ सहसर वती हे तसरे नांव शुभ | गाणगापूर दशन दे व लभ |
जागृत द ान ते || २१ ||

तेथे होउनी सा ा कार | पहावयासी येती चवथा अवतार | अ कलकोट पु यभू म थोर | जेथे य द वसे
|| २२ ||

अ कलकोट न य रा नी | अगाध गूढ लीला क नी | भ ांसी सा ा कार दे ऊनी | गु त झाले अनेकदा || २३ ||

ना तक होते कोणी यांना | चम कार दाख वले नाना | शेवट कराया मायाचना | लागले वामी चरणांसी || २४ ||

वामी सवसा ी उदार | सा ात द ाचे अवतार | कधी सौ य कधी उ तर | व प दा वल दासांना || २५ ||

यांनी यांची सेवा के ली | यांची कु ळे पावन झाली | ज मोज मीची पाप जळली | पु यराशी मळा या || २६ ||

स पु षाची करणी अगाध | वाणी गूढ न ववाद | झा या वण कृ पा साद | अथ याचा समजेना || २७ ||

वाम चे बोलणे थोड | जणूं काय कठ ण कोड | अथ काढावे ततुके थोडे | यात भ व य असे भरलेल || २८ ||

जाणणारे तेच जा णती | घेती यां या संकेताची चती | याचा तोच उमजे च | इतरां अथबोध होईना || २९ ||

कोणाकोणाला पा का दध या | कोणाला वा ह या लाखो या | कोणा या म तक मा र या | पायांत या वाहाणाही || ३०


||

या या या या भा या माण | वामीनी दले भरपूर दे ण | कोणा पु कोणा सोनेनाणे | कोणा जीवनदानही


दल यांनी || ३१ ||

अनेकां या ाधी के या र | अनेकांना दाख वले चम कार | अनेकांना श ा घोर | के या यांनी अनेकदा
|| ३२ ||

सव सा ी अंत ानी | पूण ानी | हणूनच ह ा या ठकाणी | दशन दधल भ ाना || ३३ ||

न सांगता सव जा णले | याच याला यो य उ र दल | लो या नी मृ दय वल | :खी क ी जीवांसाठ || ३४ ||

दयेचा अथांग सागर | भ ांसाठ परम उदार | अनेकांचा के ला उ दार | स पदे श द ा दे ऊनी || ३५ ||

वामीराया द ा ेया | तुम या कृ पेची असावी छाया | हीच ाथना तुम या पायां | मागणे नाही आणखी
|| ३६ ||

मजवरी होता कृ पा ी | द मय भासेल सव सृ ी | सुखसंप ीची होईल वृ ी | सकल स द लाभती || ३७ ||


ऐसी दा माझे मनी | उपजली आहे आतां हणुन | मठ घातली तव चरण | धाव पाव समथा तूं || ३८ ||

तुमची करावी कै सी सेवा | हे मज ठाऊक नाही दे वा | ओळखुनी मा या भो या भावा | वरदह त ठे वा म तक || ३९

संसार ताप पोळल भारी, र करा ही :खे सारी | तुम यावीण माझा कै वारी | अ य कोणी दसेना
|| ४० ||

तुमचे पाय माझी काशी | पंढरपूर सव तीथ तशी | आहेत तुम या चरणांपाशी | मग या ेस जाऊ कशाला
|| ४१ ||

अ क कोटचे समथ वामी | रंगून जातां यांचे नाम | हा व णू शवधामी | सव भ प चते || ४२ ||

वामी समथाची मू त आठवावी | यांचे पायी ढ दा ठे वावी | आणी आपली भावना असावी | मनोभाव ऐसी क || ४३
||

पाठ श आहेत अ कलकोट वामी | उगीच कशास यावे मी | काह च पडणार नाही कमी | समथा या दासासी || ४४ ||

भा यवान ते जे लागले भजनी | वाद ववाद के ले पं डतांनी | मग एकमुखान सवानी | मा य के ली थोर यो यता || ४५ ||

वेदांताचा अथ ला वला | पं डतांचा ताठा जर वला | भा वक भ ांना दधला | धीर अनेक संकट || ४६ ||

वामी तुमचे च र आगळ | अत य अलौ कक जगावेगळे | यांत ेमाचे सागर सांठले | ध य ध य यांना उमजल ते ||
४७ ||

बाळ पा चोळ पा द सवानी | लहान मो ा अ धका यांनी | गरीबांपासून ीमंतांनी | सेवा के ली यथाश
|| ४८ ||

जे जे तुम या भजन लागले | यांचे यांचे क याण झाल | हव हव ते सार मळाले | ी समथ कृ पेन
|| ४९ ||

पुढे संप या लीला संपले खेळ | ताटातुट ची आली वेळ | वामी हणजे पर के वळ | पर यांत मळाल || ५० ||

शके अठराश ब धा यनाम संव संरी | चै व योदशी मंगळवारी | पु य घ टका तस या हरी | वामी गेले नजधामा ||
५१ ||

बोलता बोलता आला अंतकाळ | कृ तीत झाली चल बचल | णात पाप या झा या अचल | नजानंद झाले
नम न || ५२ ||

वचनपूत साठ नणयानंतर | पांचवा दवस श नवार | वामी गटले नलेगांवाबाहेर | दल दशन भाऊसाहेबांसी || ५३ ||

ऐसा यती द दगंबर | संपवूनी आपूला अवतार | नजधामा गेला नरंतर | भ झाले पोरके || ५४ ||

बातमी जे हा सव पसरली | जनता शोकाकु ल झाली | सव भ मंडळ हळहळली | अ पाणीही सुचेना


|| ५५ ||
गावोगांवीची भ मंडळ | अ कलकोट गोळा झाली | समथाची समाधी पा हली | आप या सा ू नयनांनी

|| ५६ ||

चवथा अवतार संपला | तरीही चैत य प तथेच रा हला | अ कलकोट पु यभूमीला | े वा ा त जाहल
|| ५७ ||

अजूनही जे येती समाधीदशना | यां या ाधी आणी ववंचना | संकटे आणी :खे नाना | वामी र करतात || ५८ ||

याचे असती असं य दाखले | अनेकांनी अनुभवले | हणूनी महाराजांची पाऊले | आपणही वं ं या || ५९ ||

न होउनी यांचे चरण | कळकळने क ं या वनवणी | वाम ना यावी क णा हणूनी | ाथना यांना क ं या || ६० ||

जयजय द ा अवधूता | अ कलकोट वामी समथा | सदगु दगंबरा भगवंता | दया करी गा मजवरी
|| ६१ ||

अनेकां या संकट आला धावून | आता माझी ाथना ऐकू न | समथराया दे ई दशन | र लोटु नको मला
|| ६२ ||

वहारी मी जगतो जीवन | अनेक पाप घडती हातून | तव नामाच होते व मरण | मा याची असावी
|| ६३ ||

सदगु राया कृ पा करावी | तुमची सेवा न य घडावी | ऐसी बु द मजला ावी | पापे सव पळावी || ६४ ||

सुखाच हावे जीवन ऐ हक | धनदौलत मळावी, मळावे पु पौ सुख | गृहसौ य आणी वाहनसुख |
अंती सदग त लाभावी || ६५ ||

तु ही य कै व य ठे वा | हणुनी याचना करत दे वा | उदार मनाने वर ावा | आणी तथा तु हणावे


|| ६६ ||

तुमची होतां कृ पा पूण | जीवन माझ होईल ध य | हणुनी आल तव पायी शरण | द राया दयाघना
|| ६७ ||

मी एक मानव सामा य | तुमची सेवा न य घडावी हणून | या पोथीच क रत वाचन | दान ा तुम या कृ पेचे || ६८ ||

वेडीवाकु डी माझी सेवा | वीकारावी वामी दे वा | वरदह त न य म तक ठे वा | हीच अंती वनंती || ६९ ||

शके अठराशे न ा व वष | चै मास शु लप ी | शुभ रामनवमी दवशी || पोथी पूण झाली ही || ७० ||

वाम चे च ठे ऊनी पु ांत | कवा वाम या एखा ा मठांत | बसुनी ही पोथी वाचावी मनांत |
इ ा सफल होईल || ७१ ||

मा णक भू , साई शरडी र | आणी अ कलकोट् चे दगंबर | एकाच त वाचे तीन अ व कार | भेद यांत नसे मुळ || ७२
||
एकाची क रतां भ | तघांनाही पावते ती | ऐसी ठे ऊनी आपली वृ ी | पोथी न य वाचावी || ७३ ||

या पोथीचे क रतां न य पठण | य वामी होतील स | करतील सव मनोरथ पूण |


स य स य वाचा ही || ७४ ||

ॐ ी अ कलकोट वामी समथापणम तु || शुभं भवतु || ॐ शां त:शां त:शां त: || (ओवी सं या ७४ )

म लदमाधवकृ त

|| " ी अ कलकोट वामी तो ---माहा य स ूण " ||

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