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भारत में खेल

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भारत में खेल प्राचीन काल से आधुनिक काल तक परिवर्तन की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरे हैं। कबड्डी, शतरं ज, खो-
खो, कुश्ती, गिल्ली-डंडा, तीरं दाजी आदि परं परागत खेलों के अलावा विभिन्न दे शों के संपर्क में आने से भारत में क्रिकेट,
जड
ू ो, टे निस, बैडमिंटन आदि खेलों का भी खूब प्रचलन हुआ है । भारत के प्रमुख खेल कबड्डी क्रिकेट बैडमिंटन जड
ू ो खो-
खो, शतरं ज आदि हैं।

प्राचीन कालीन खेल

भारत के प्राचीनतंम ग्रंथ रामायण और महाभारत में चौपड़, द्यूतक्रीड़ा, रथदौड़, निशानेबाजी प्रतियोगिता भारत के
प्रसिद्ध खेल खो खो कबड्डी आज का क्रिकेट भी है आदि का उल्लेख मिलता है ।

[छुपाएँ]

अभी प्रोजे क्ट टाइगर लेख प्रतियोगिता जारी है । इसमें प्रतिभागी बनें ।
पूर्वनिर्धारित विषयों में से ले ख बनाएं और पु रस्कार जीतें ।
समय अवधि: 10 अक्टू बर 2019 से 10 जनवरी 2020 तक

कबड्डी
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कबड्डी खे लते हुए बच्चे

कबड्डी एक खे ल है , जो मु ख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में खे ली जाती है । कबड्डी नाम का प्रयोग प्राय:
उत्तर भारत में किया जाता है , इस खे ल को दक्षिण में चेडुगु डु और पूर्व में हु तू तू के नाम से भी जानते हैं । यह
खे ल भारत के पड़ोसी दे श ने पाल, बां ग्लादे श, श्रीलं का और पाकिस्तान में भी उतना ही लोकप्रिय है । तमिल,
कन्नड़ और मलयालम में ये मूल शब्द, (கை-பிடி) "कै" (हाथ), "पिडि" (पकडना) का रूपां तरण है , जिसका
अनु वाद है 'हाथ पकडे रहना'। कबड्डी, बां ग्लादे श का राष्ट् रीय खे ल है । इस मै च

परिचय
नियम
साधारण शब्दों में इसे ज्यादा अं क हासिल करने के लिए दो टीमों के बीच की एक स्पर्धा कहा जा सकता है ।
अं क पाने के लिए एक टीम का रे डर (कबड्डी-कबड्डी बोलने वाला) विपक्षी पाले (कोर्ट) में जाकर वहां मौजूद
खिलाडियों को छन ू े का प्रयास करता है । इस दौरान विपक्षी टीम के स्टापर (रे डर को पकड़ने वाले ) अपने
पाले में आए रे डर को पकड़कर वापस जाने से रोकते हैं और अगर वह इस प्रयास में सफल होते हैं तो उनकी
टीम को इसके बदले एक अं क मिलता है । और अगर रे डर किसी स्टापर को छक ू र अपने पाले में चला जाता है
तो उसकी टीम के एक अं क मिल जाता और जिस स्टापर को उसने छुआ है उसे नियमत: कोर्ट से बाहर जाना
पड़ता है । कबड्डी में 12 खिलाड़ी होते हैं जिसमें से 7 कोर्ट में होते हैं और 5 रिज़र्व होते हैं ।कबड्डी कोर्ट डॉज
बॉल गे म जितना बड़ा होता है ।कोर्ट के बीचोबीच एक लाइन खिं ची होती है जो इसे दो हिस्सों में बांटती है ।
कबड्डी महासं घ के हिसाब से कोर्ट का माप 13 मीटर × 10 मीटर होता है ।

खेलने का तरीका

कबड्डी

भ्द्फ्ग्झ्ग्ब्छ् खिलाडियों के पाले में आने के बाद टॉस जीतने वाली टीम सबसे पहले अपना खिलाड़ी (रे डर)
विपक्षी पाले में भे जती है । यह रे डर कबड्डी-कबड्डी बोलते हुए जाता है और विपक्षी खिलाडियों को छन ू े का
प्रयास करता हैं ।वह अपनी चपलता का उपयोग कर विपक्षी खिलाडियों (स्टापरों) को छन ू े का प्रयास कर
सकता है । इस प्रक्रिया में अगर वह विपक्षी टीम के किसी भी स्टापर को छन ू े में सफल होता है तो उस
स्टापर को मरा हुआ (डे ड) समझ लिया जाता है । ऐसे में उस स्टापर को कोर्ट से बाहर जाना पड़ता है । और
अगर स्टापरों को छन ू े की प्रक्रिया में रे डर अगर स्टापरों की गिरफ्त में आ जाता है तो उसे मरा हुआ (डे ड)
मान लिया जाता है । यह प्रक्रिया दोनों टीमों की ओर से बारी-बारी चलती रहती है ।

इस तरह से हर दल का खिलाड़ी बारी बारी से क् रम बदलते रहते हैं और अं त में जिसके दल में सबसे ज्यादा
सदस्य बचे रह जाते हैं उस दल को विजे ता घोषित कर दिया जाता है ।

खेल की अवधि

यह खे ल आमतौर पर 20-20 मिनट के दो हिस्सों में खे ला जाता है । हर हिस्से में टीमें पाला बदलती हैं और
इसके लिए उन्हें पांच मिनट का ब्रेक मिलता है । हालां कि आयोजक इसके एक हिस्से की अवधि 10 या 15
मिनट की भी कर सकते हैं । हर टीम में 5-6 स्टापर (पकड़ने में माहिर खिलाड़ी) व 4-5 रे डर (छकू र भागने में
माहिर) होते हैं । एक बार में सिर्फ चार स्टापरों को ही कोर्ट पर उतरने की इजाजत होती है । जब भी स्टापर
किसी रे डर को अपने पाले से बाहर जाने से रोकते हैं उन्हें एक अं क मिलता है ले किन अगर रे डर उन्हें छक
ू र
भागने में सफल रहता है तो उसकी टीम को अं क मिल जाता है ।

मै चों का आयोजन आयु और वजन के आधार पर किया जाता है , परं तु आजकल महिलाओं की भी काफी
भागे दारी हो रही है ।

पूरे मै च की निगरानी आठ लोग करते हैं : एक रे फ़री, दो अं पायर, दो लाइं समै न, एक टाइम कीपर , एक स्कोर
कीपर और एक टीवी अं पायर।

पिछले तीन एशियाई खे ल में भी कबड्डी को शामिल करने से जापान और कोरिया जै से दे शों में भी कबड्डी की
लोकप्रियता बढ़ी है । अब आप लोग व्यस्त हो सकता है ।

कबड्डी की प्रमुख प्रतियोगिताएँ


 एशियाई खे लों में कबड्डी
 एशिया कबड्डी कप
 प्रो कबड्डी लीग
 कबड्डी विश्व कप
 महिला कबड्डी विश्व कप
 यूके कबड्डी कप
 विश्व कबड्डी लीग

एशियाई खेलों में कबड्डी


अन्तिम मै च तृ तीय स्थान के लिए मै च
वर्ष स्थान
प्रथम स्थान परिणाम द्वितीय स्थान तृ तीय स्थान परिणाम चतु र्थ स्थान
1990 बीजिं ग भारत बां ग्लादे श पाकिस्तान जापान
1994 हिरोशिमा भारत बां ग्लादे श पाकिस्तान जापान
1998 बैं काक भारत पाकिस्तान बां ग्लादे श श्री लं का
2002 पु सान भारत बां ग्लादे श पाकिस्तान जापान
2006 अद-दौहा भारत 35–23 पाकिस्तान बां ग्लादे श 37–26 इरान
2010 गु आनझाऊ

कबड्डी विश्वकप
कबड्डी का विश्वकप सबसे पहले २००४ में खे ला गया था। उसके बाद २००७, २०१०, २०१२ और २०१६ में हुआ।
अभी तक भारत सभी में विजे ता रहा है ।

वर्ष अंतिम मै च
२००४ भारत ५५ – २७ ईरान
२००७ भारत २९ – १९ ईरान
२०१० भारत ५८ – ५१ पाकिस्तान
२०११ भारत ५९ – २५ कनाडा
२०१२ भारत ५९ – २२ पाकिस्तान
२०१६ भारत ३८-२९ ईरान

शतरं ज
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शतरं ज

एक स्टॉन्टन शतरं ज से ट के भाग (बाएं से दाएं ): एक सफेद


राजा, एक काला हाथी, एक काले रं ग का वजीर या रानी,
एक सफेद प्यादा या सै निक, एक काला घोड़ा और एक
सफेद ऊंट।
सर्वोच्च
वर्ल्ड चे स फेडरे शन
नियंतर् ण निकाय
सबसे पहले खेला
छट् ठी शताब्दी – वर
गया
विशे षताएँ
दोनों ओर 2 खिलाड़ी
कस्मिक खे ल आम तौर पर 10 से 60
दल के सदस्य
मिनट, टू र्नामें ट खे ल दस मिनट से छह
घं टे या अधिक समय के लिए।
बोर्ड गे म
स्थल
सार रणनीति खे ल
ओलंपिक १९००

शतरं ज (चैस) दो खिलाड़ियों के बीच खेला जाने वाला एक बौद्धिक एवं मनोरं जक खेल है । किसी
अज्ञात बद्धि
ु -शिरोमणि ने पाँचवीं-छठी सदी में यह खेल संसार के बद्धि
ु जीवियों को भें ट में दिया।
समझा जाता है कि यह खेल मूलतः भारत का आविष्कार है , जिसका प्राचीन नाम था- 'चतुरंग'; जो
भारत से अरब होते हुए यरू ोप गया और फिर १५/१६वीं सदी में तो परू े संसार में लोकप्रिय और
प्रसिद्ध हो गया। इस खेल की हर चाल को लिख सकने से परू ा खेल कैसे खेला गया इसका विश्लेषण
अन्य भी कर सकते हैं।

शतरं ज एक चौपाट (बोर्ड) के ऊपर दो व्यक्तियों के लिये बना खेल है । चौपाट के ऊपर कुल ६४ खाने
या वर्ग होते है , जिसमें ३२ चौरस काले या अन्य रं ग ओर ३२ चौरस सफेद या अन्य रं ग के होते है ।
खेलने वाले दोनों खिलाड़ी भी सामान्यतः काला और सफेद कहलाते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी के पास एक
राजा, वजीर, दो ऊँट, दो घोडे, दो हाथी और आठ सैनिक होते है । बीच में राजा व वजीर रहता है ।
बाजू में ऊँट, उसके बाजू में घोड़े ओर अंतिम कतार में दो दो हाथी रहते है । उनकी अगली रे खा में
आठ पैदल या सैनिक रहते हैं।

चौपाट रखते समय यह ध्यान दिया जाता है कि दोनो खिलाड़ियों के दायें तरफ का खाना सफेद
होना चाहिये तथा वजीर के स्थान पर काला वजीर काले चौरस में व सफेद वजीर सफेद चौरस में
होना चाहिये। खेल की शरु
ु आत हमेशा सफेद खिलाड़ी से की जाती है ।[1]

खेल की शरु
ु आत
शतरं ज सबसे पु राने व लोकप्रिय पट (बोर्ड) में से एक है , जो दो प्रतिद्वं दीयों द्वारा एक चौकोर पट (बोर्ड) पर
खे ला जाता है , जिसपर विशे ष रूप से बने दो अलग-अलग रं गों के सामन्यात: सफ़ेद व काले मोहरे होते हैं ।
सफ़ेद पहले चलता है , जिसके बाद खे लाडी निर्धारित नियमों के अनु सार एक के बाद एक चालें चलते हैं । इसके
बाद खिलाड़ी विपक्षी के प्रमु ख मोहरें , राजा को शाह-मात (एक ऐसी अवस्था, जिसमें पराजय से बचना
असं भव हो) दे ने का प्रयास कराते हैं । शतरं ज 64 खानों के पट या शतरं जी पर खे ला जाता है , जो रैं क (दर्जा)
कहलाने वाली आठ अनु लंब पं क्तियों व फाइल (कतार) कहलाने वाली आठ आड़ी पं क्तियों में व्यवस्थ lll होता
है । ये खाने दो रं गों, एक हल्का, जै से सफ़ेद, मटमै ला, पीला और दस ू रा गहरा, जै से काला, या हरा से एक के
बाद दस ू रे की स्थिति में बने होते हैं । पट् ट दो प्रतिस्पर्धियों के बीच इस प्रकार रखा जाता है कि प्रत्ये क
खिलाड़ी की ओर दाहिने हाथ के कोने पर हल्के रं ग वाला खाना हो। सफ़ेद हमे शा पहले चलता है । इस
प्रारं भिक कदम के बाद, खिलाड़ी बारी बारी से एक बार में केवल एक चाल चलते हैं (सिवाय जब "केस्लिं ग" में
दो टु कड़े चले जाते हैं )। चाल चल कर या तो एक खाली वर्ग में जाते हैं या एक विरोधी के मोहरे वाले स्थान पर
कब्जा करते हैं और उसे  खे ल से  हटा दे ते हैं । खिलाड़ी कोई भी ऐसी चाल नहीं चल सकते जिससे
उनका राजा हमले में आ जाये । यदि खिलाड़ी के पास कोई वै ध चाल नहीं बची है , तो खे ल खत्म हो गया है ; यह
या तो एक मात है - यदि राजा हमले में है - या एक गतिरोध या शह - यदि राजा हमले में नहीं है ।  हर शतरं ज
का टु कड़ा बढ़ने की अपनी शै ली है ।[2]  

मोहरा राजा वज़ीर/रानी किश्ती फील घोड़ा प्यादा

संख्या 1 1 2 2 2 8

सिम्बल (चिन्ह)

वर्गों की पहचान

बीजगणितीय अंकनपद्धति में वर्गों/वर्गों का नामकरण

बिसात का प्रत्ये क वर्ग एक अक्षर और एक सं ख्या के एक विशिष्ट यु ग्म द्वारा पहचाना जाता है । खड़ी
पं क्तियों|पं क्तियों (फाइल्स) को सफेद के बाएं (अर्थात वज़ीर/रानी वाला हिस्सा) से सफेद के दाएं ए (a) से
ले कर एच (h) तक के अक्षर से सूचित किया जाता है । इसी प्रकार क्षै तिज पं क्तियों (रैं क्स) को बिसात के
निकटतम सफेद हिस्से से शु रू कर 1 से ले कर 8 की सं ख्या से निरूपित करते हैं । इसके बाद बिसात का प्रत्ये क
वर्ग अपने फाइल अक्षर तथा रैं क सं ख्या द्वारा विशिष्ट रूप से पहचाना जाता है । सफेद बादशाह, उदाहरण के
लिए, खे ल की शु रुआत में ई 1 (e1) वर्ग में रहे गा. बी8 (b8) वर्ग में स्थित काला घोड़ा पहली चाल में ए 6 (a6)
अथवा सी6 (c6) पर पहुंचेगा.

प्यादा या सै निक

खेल के शुरू में मोहरे

खे ल की शु रुआत सफेद खिलाड़ी से की जाती है । सामान्यतः वह वजीर या राजा के आगे रखे गया पै दल या
सै निक को दो चौरस आगे चलता है । प्यादा (सै निक) तु रं त अपने सामने के खाली वर्ग पर आगे  चल सकता है
या अपना पहला कदम यह दो वर्ग चल सकता है  यदि दोनों वर्ग खाली हैं । यदि प्रतिद्वं द्वी का टु कड़ा विकर्ण की
तरह इसके सामने एक आसन्न पं क्ति पर है तो प्यादा उस टु कड़े  पर कब्जा कर सकता है । प्यादा दो विशे ष
चाल, "एन पासां त" और "पदोन्नति-चाल " भी चल सकता है । हिन्दी में एक पु रानी कहावत पै दल की इसी
विशे ष चाल पर बनी है - " प्यादा से फर्जी भयो, टे ढो-टे ढो जाय !"[3]

राजा

राजा किसी भी दिशा में एक खाने में जा सकता है , राजा एक विशे ष चाल भी चल सकता है
जो "केस्लिं ग"  कही  जाती है और इसमें हाथी भी शामिल है । अगर राजा को चलने बाध्य किया और किसी भी
तरफ चल नहीं सकता तो मान लीजिये कि खे ल समाप्त हो गया। नहीं चल सकने वाले राजा को खिलाड़ी हाथ
में ले कर बोलता है - 'मात' या 'मैं हार स्वीकार करता हँ 'ू ।

वजीर या रानी

वज़ीर (रानी) हाथी और ऊंट की शक्ति को जोड़ता है और ऊपर-नीचे , दायें -बाएँ तथा टे ढ़ा कितने भी वर्ग
जा सकता है , ले किन यह अन्य टु कड़े पर छलां ग नहीं लगा सकता है । मान लीजिए पै दल सै निक का एक अं क
है तो वजीर का ९ अं क है ।
ऊंट

कैसलिंग के उदाहरण

केवल अपने रं ग वाले चौरस में चल सकता है । याने काला ऊँट काले चौरस में ओर सफेद ऊंट सफेद चौरस
में । सै निक के हिसाब से इसका तीन अं क है ।  ऊंट किसी भी दिशा में टे ढ़ा कितने भी वर्ग चल सकता है , ले किन
अन्य टु कड़े पर छलां ग नहीं सकता है ।

घोड़ा

घोड़ा "L" प्रकार की चाल या डाई घर चलता है  जिसका आकार दो वर्ग लं बा है और एक वर्ग चौड़ा होता
ू रे  टु कड़ो पर छलां ग लगा सकता है । सै निक के हिसाब से इसका तीन अं क है ।
है । घोड़ा ही एक टु कड़ा है  जो दस

हाथी

हाथी किसी भी पं क्ति में दायें बाएँ या ऊपर नीचे कितने भी वर्ग सीधा चल सकता है , ले किन अन्य टु कड़े पर
छलां ग नहीं लगा सकता। राजा के साथ, हाथी भी राजा के "केस्लिं ग" ; के दौरान शामिल है । इसका सै निक के
हिसाब से पांच अं क है ।

अंत कैसे होता है ?

अपनी बारी आने पर अगर खिलाड़ी के पास चाल के लिये कोई चारा नहीं है तो वह अपनी 'मात' या हार
स्वीकार कर ले ता है ।

कैसलिंग

ू री ओर उसके
कैसलिं ग के अं तर्गत बादशाह को किश्ती की ओर दो वर्ग बढ़ाकर और किश्ती को बादशाह के दस
[4]
ठीक बगल में रखकर किया जाता है । कैसलिं ग केवल तभी किया जा सकता है जब निम्नलिखित शर्तें पूरी
हों:

1. बादशाह तथा कैसलिंग में शामिल किश्ती की यह पहली चाल होनी चाहिए;
2. बादशाह तथा किश्ती के बीच कोई मोहरा नहीं होना चाहिए;
3. बादशाह को इस दौरान कोई शह नहीं पड़ा होना चाहिए न ही वे वर्ग दश्ु मन मोहरे के हमले की जद में होने
चाहिए, जिनसे होकर कैसलिंग के दौरान बादशाह को गुजरना है अथवा जिस वर्ग में अंतत: उसे पहुंचना है
(यद्यपि किश्ती के लिए ऐसी बाध्यता नहीं है );
4. बादशाह और किश्ती को एक ही क्षैतिज पंक्ति (रैंक) में होना चाहिए(Schiller 2003:19).[5]

यदि खिलाड़ी ए (A) का प्यादा दो वर्ग आगे बढ़ता है और खिलाड़ी बी (B) का प्यादा सं बंधित खड़ी पं क्ति में
5 वीं क्षै तिज पं क्ति में है तो बी (B) का प्यादा ए (A) के प्यादे को, उसके केवल एक वर्ग चलने पर काट सकता
है । काटने की यह क्रिया केवल इसके ठीक बाद वाली चाल में की जा सकती है । इस उदाहरण में यदि सफेद
प्यादा ए 2 (a2) से ए 4 (a4) तक आता है , तो बी4 (b4) पर स्थित काला प्यादा इसे अं पैसां विधि से काट कर
ए 3 (a3) पर पहुंचेगा.

समय की सीमा
मोहरे की चाल का उदाहरण: प्रमोशन (बाएं) और रास्ते में (दाएं)

आकस्मिक खे ल आम तौर पर 10 से 60 मिनट, टू र्नामें ट खे ल दस मिनट से छह घं टे या अधिक समय के लिए।

भारत में शतरंज


यह भी दे खें, चतु रं ग

शतरं ज छठी शताब्दी के आसपास भारत से मध्य-पूर्व व यूरोप में फैला, जहां यह शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया
है । ऐसा कोई विश्वसनीय साक्ष्य नहीं है कि शतरं ज छट् ठी शताब्दी के पूर्व आधु नुक खे ल के समान किसी रूप
में विद्यमान था। रूस, चीन, भारत, मध्य एशिया, पाकिस्तान और स्थानों पर पाये गए मोहरे , जो इससे पु राने
समय के बताए गए हैं , अब पहले के कुछ मिलते -जु लते पट् ट खे लों के माने जाते हैं , जो बहुधा पासों और कभी-
कभी 100 या अधिक चौखानों वाले पट् ट का प्रयोग कराते थे ।

शतरं ज उन प्रारम्भिक खे लों में से एक है , जो चार खिलाड़ियों वाले चतु रं ग नामक यु द्ध खे ल के रूप में
विकसित हुआ और यह भारतीय महाकाव्य महाभारत में उल्लिखित एक यु द्ध व्यूह रचना का सं स्कृत नाम है ।
चतु रं ग सातवीं शताब्दी के लगभग पश्चिमोत्तर भारत में फल-फू ल रहा था। इसे आधु निक शतरं ज का
प्राचीनतम पूर्वगामी माना जाता है , क्योंकि इसमें बाद के शतरं ज के सभी रूपों में पायी जाने वाली दो प्रमु ख
विशे षताएँ थी, विभिन्न मोहरों की शक्ति का अलग-अलग होना और जीत का एक मोहरे , यानि आधु निक
शतरं ज के राजा पर निर्भर होना।

रुद्रट विरचित काव्यालं कार में एक श्लोक आया है जिसे शतरं ज के इतिहासकार भारत में शतरं ज के खे ल का
सबसे पु राना उल्ले ख तथा 'घोड़ की चाल' (knight's tour) का सबसे पु राना उदाहरण मानते हैं -

सेना लीलीलीना नाली लीनाना नानालीलीली।

नालीनालीले नालीना लीलीली नानानानाली ॥ १५ ॥

चतु रं ग का विकास कैसे हुआ, यह स्पष्ट नहीं है । कुछ इतिहासकार कहते हैं कि चतु रं ग, जो शायद 64 चौखानों
के पट् ट पर खोला जाता था, क् रमश: शतरं ज (अथवा चतरं ग) में परिवर्तित हो गया, जो उत्तरी
भारत,पाकिस्तान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के दक्षिण भागों में 600 ई के पश्चात लोकप्रिय दो
खिलाड़ियों वाला खे ल था।

एक समय में उच्च वर्गों द्वारा स्वीकार्य एक बौद्धिक मनोरं जन शतरं ज के प्रति रुचि में 20 वीं शताब्दी में बहुत
् हुयी। विश्व भर में इस खे ल का नियं तर् ण फेडरे शन इन्टरने शनल दि एचे स (फिडे ) द्वारा किया जाता है ।
बृ दधि
सभी प्रतियोगिताएं फीडे के क्षे तर् ाधिकार में है और खिलाड़ियों को सं गठन द्वारा निर्धारित नियमों के अनु सार
क् रम दिया जाता है , यह एक खास स्तर की उत्कृष्टता प्राप्त करने वाले खिलाड़ियों को "ग्रैंडमास्टर" की
उपाधि दे ता है । भारत में इस खे ल का नियं तर् ण अखिल भारतीय शतरं ज महासं घ द्वारा किया जाता है , जो
1951 में स्थापित किया गया था।[6]

भारतीय विश्व खिलाड़ी

भूतपूर्व विश्व शतरं ज चैंपियन विश्वनाथन आनंद (बाएं) अपने पूर्ववर्ती व्लादिमीर क्रैमनिकके खिलाफ शतरं ज खेलते
हुये

भारत के पहले प्रमु ख खिलाड़ी मीर सु ल्तान खान ने इस खे ल के अं तराष्ट् रीय स्वरूप को वयस्क होने के बाद ही
सीखा, 1928 में 9 में से 8.5 अं क बनाकर उन्होने अखिल भारतीय प्रतियोगिता जीती। अगले पाँच वर्षों में
सु ल्तान खान ने तीन बार ब्रिटिश प्रतियोगिता जीती और अं तराष्ट् रीय शतरं ज के शिखर के नजदीक पहुंचे।
उन्होने हे स्टिंग्स प्रतियोगिता में क्यूबा के पूर्व विश्व विजे ता जोस राऊल कापाब्लइं का को हराया और भविष्य
के विजे ता मै क्स यूब और उस समय के कई अन्य शक्तिशाली ग्रैंडमास्टरों पर भी विजय पायी। अपने
बोलबाले की अवधि में उन्हें विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक माना जाता था। सु ल्तान ब्रिटिश
दल के लिए 1930 (हैं बर्ग), 1931 (प्राग) और 1933 (फोकस्टोन) ओलं पियाड में भी खे ले।

मै नुएल एरोन ने 1961 में एशियाई स्पारद्धा जीती, जिससे उन्हें अं तर्र्श्तृय मास्टर का दर्जा मिला और वे भारत
के प्रथम आधिकारिक शतरं ज खिताबधारी व इस खे ल के पहले अर्जुन पु रस्कार विजे ता बने । 1979 में बी.
रविकुमार ते हरान में एशियाई जूनियर स्पारद्धा जीतकर भारत के दस ू रे अं तर्र्श्तृय मास्टर बने । इं ग्लैं ड में 1982
की लायड्स बैं क शतरं ज स्पर्धा में प्रवे श करने वाले 17 वर्षीय दिव्यें दु बरुआ ने विश्व के द्वितीय क् रम के
खिलाड़ी विक्टर कोर्च्नोई पर सनसनीखे ज जीत हासिल की।

विश्वनाथन आनं द के विश्व के सर्वोच्च खिलाड़ियों में से एक के रूप में उदय होने के बाद भारत ने अं तर्राष्ट् रीय
स्तर पर काफी उपलब्धियां हासिल की। 1987 में विश्व जूनियर स्पर्धा जीतकर वह शतरं ज के पहले भारतीय
विश्व विजे ता बने । इसके बाद उन्होने विश्व के अधिकां श प्रमु ख खिताब जीते , किन्तु विश्व विजे ता का
खिताब हाथ नहीं आ पाया। 1987 में आनं द भारत के पहले ग्रैंड मास्टर बने । आनं द को 1999 में फीडे
अनु क्रम में विश्व विजे ता गै री कास्पारोव के बाद दसू रा क् रम दिया गया था। विश्वनाथन आनं द पांच बार
(2000, 2007, 2008, 2010 और 2012 में ) विश्व चैं पियन रहे हैं ।[7][8]

इसके पश्चात भारत में और भी ग्रैंडमास्टर हुये हैं , 1991 में दिव्यें दु बरुआ और 1997 में प्रवीण थिप्से , अन्य
भारतीय विश्व विजे ताओं में पी. हरिकृष्ण व महिला खिलाड़ी कोने रु हम्पी और आरती रमास्वामी हैं ।

ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनं द को 1998 और 1999 में प्रतिष्ठित ऑस्कर पु रस्कार के लिए भी नामां कित
किया गया था। आनं द को 1985 में प्राप्त अर्जुन पु रस्कार के अलावा, 1988 में पद्म श्री व 1996 में राजीव
गां धी खे ल रत्न पु रस्कार मिला। सु ब्बारमान विजयलक्ष्मी व कृष्णन शशिकिरण को भी फीडे अनु क्रम में स्थान
मिला है ।[9]

विश्व के कुछ प्रमुख खिलाड़ी


 गैरी कास्पारोव
 विश्वनाथन आनंद
 व्लादिमीर क्रैमनिक
 कोनेरु हम्पी
 नन्दिता बी
 मैग्नस कार्लसन

खो-खो
खो-खो एक भारतीय मैदानी खेल है । इस खेल में मैदान के दोनो ओर दो खभो के अतिरिक्त किसी
अन्य साधन की जरूरत नहीं पड़ती। यह एक अनूठा स्वदे शी खेल है , जो युवाओं में ओज और
स्वस्थ संघर्षशील जोश भरने वाला है । यह खेल पीछा करने वाले और प्रतिरक्षक, दोनों में अत्यधिक
तंदरु
ु स्ती, कौशल, गति और ऊर्जा की माँग करता है । खो-खो किसी भी तरह की सतह पर खेला जा
सकता है ।
परिचय
खो-खो मै दानी खे लों के सबसे प्राचीनतम रूपों में से एक है जिसका उद्भव प्रागै तिहासिक भारत में माना जा
सकता है । मु ख्य रूप से आत्मरक्षा, आक् रमण व प्रत्याक् रमण के कौशल को विकसित करने के लिए इसकी
खोज हुई थी।

खो-खाे का जन्मस्थान बड़ौदा कहा जाता है । यह गु जरात, महाराष्ट् र, मध्य प्रदे श आदि प्रदे शों में अधिक
खे ला जाता है , किंतु भारत के अन्य प्रदे शों में भी इसका प्रचार अब बढ़ रहा है । यह खे ल सरल है और इसमें
कोई खतरा नहीं है । पु रुष और महिलाएँ दोनों समान रूप से इस खे ल को खे ल सकते हैं ।

खो-खो खे ल में न किसी गें द की आवश्यकता होती है , न बल्ले की। इसके लिये केवल १११ फुट लं बे और ५१ फुट
चौड़े मै दान की आवश्यकता होती है । दोनों और दस-दस फुट स्थान छोड़कर चार चार फुट ऊँचे , लकड़ी के दो
खं भे गाड़ दिए जाते हैं और इन खं भों के बीच की दरू ी आठ बराबर भागों में इस प्रकार विभाजित कर दी जाती
है कि दोनों दलों के खिलाड़ी एक दस ू रे की विरुद्ध दिशाओं की ओर मुँ ह करके अपने अपने नियत स्थान पर बै ठ
जाते हैं । प्रत्ये क दल को एक-एक पारी के लिए सात सात मिनट दिए जाते हैं और नियत समय में उस दल को
अपनी पारी समाप्त करनी पड़ती है । दोनों दलों में से एक-एक खिलाड़ी खड़ा होता है , पीछा करने वाले दल का
खिलाड़ी विपक्षी दल के खिलाड़ी को पकड़ने के लिए सीटी बचाते ही दौड़ता है । विपक्षी दल का खिलाड़ी
पं क्ति में बै ठे हुए खिलाड़ियों का चक्कर लगाता है । जब पीछा करने वाला खिलाड़ी उस भागने वाले खिलाड़ी
के निकट आ जाता है , तब वह अपने ही दल के खिलाड़ी के पीछे जाकर 'खो-खो' शब्द का उच्चारण करता है तो
वह उठकर भागने लगता है और पीछा करने वाला खिलाड़ी पहले को छोड़कर दस ू रे का पीछा करने लगता है ।

पहले इस खे ल का कोई व्यवस्थित नियम न था। खे ल की लोकप्रियता के साथ इसके नियम बनते -बिगड़ते रहे ।
१९१४ ई. में पहली बार पूना के डकन जिमखाना ने अने क मै दानी खे लों के नियम लिपिबद्ध किए और उनमें खो-
खो भी था। तब से उसके बनाए नियम के अनु सार, थोड़े स्थानीय हे र-फेर के साथ यह खे ल खे ला जाता है ।

खो-खो की पहली प्रतियोगिता पूना के जिमखाने में १९१८ ई॰ में हुई। फिर सन् १९१९ में बड़ौदा के जिमखाने में
भारतीय स्तर पर प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। तब से समय-समय पर इस खे ल की अखिल भारतीय स्तर
पर प्रतियोगिताएँ होती रहती हैं ।

खेल का मै दान
खो-खो का क् रीड़ा क्षे तर् आयताकार होता है । यह 27 X 16 मीटर होता है । मै दान के अं त में दो मु क्त
आयताकार क्षे तर् होते हैं । आयताकार की भु जा 16 मीटर और दस ू री भु जा 1.50 मी॰ होती है । इन दोनों
आयताकारों के मध्य में दो लकड़ी के स्तम्भ होते हैं । केन्द्रीय गली 24 मी॰ लम्बी और 30 सैं टीमीटर चौड़ी
होती है ।

शब्दावली
 स्तम्भ या पोस्ट:-मध्य लेन के अंत में दो स्तम्भ गाड़े जाते हैं जो भूमि से 1.20 से 1.25 सैंटीमीटर के बीच ऊँचे
होते हैं। स्तम्भ का व्यास 9 -10 सैंटीमीटर होता है । स्तम्भ की परिधि 28.25 - 31.4 सैंटीमीटर होता है ।
 केन्द्रीय गली या लेन:- दोनों स्तम्भों के मध्य में केन्द्रीय गली होती है । यह 24 मी॰ लम्बी और 30 सैंटीमीटर
चौड़ी होती है ।
 क्रॉस लेन:- प्रत्येक आयताकार 16 मी॰ लम्बा और 35 सैंटीमीटर चौड़ा होता है वह केन्द्रीय लेन को समकोण
(90°) पर काटता है । यह स्वयं भी दो सर्द्धकों में विभाजित होता है । इसे क्रॉस-लेन कहते हैं।
 स्तम्भ रे खा:- केन्द्र से गुजरती हुई क्रॉस-लेन और केन्द्रीय लेन के समानांतर रे खा को स्तम्भ रे खा कहते हैं।
 आयताकार:- स्तम्भ रे खा का बाहरी क्षेत्र आयताकार कहलाता है ।
 परिधियाँ:- केन्द्रीय लेन तथा बाहरी सीमा निश्चित करने वाली दोनों आयताकारों की रे खाओं से 7.85 मी॰ दरू
दोनों पार्श्व रे खाओं को परिधियाँ कहते हैं।
 अनुधावक या चेज़र:- वर्गों में बैठे खिलाड़ी अनुधावक कहलाते हैं। विरोधी खिलाड़ियों को पकड़ने या छूने के
लिए भागने वाला अनध
ु ावक या चेज़र सक्रिय अनध
ु ावक कहलाता है
 धावक:- चेज़रों या धावकों के विरोधी खिलाड़ी 'धावक' या 'रनर' कहलाते हैं।
 खो दे ना:- अच्छी 'खो' दे ने के लिए सक्रिय धावक को बैठे हुए धावक को पीछे से हाथ से छूते ही 'खो' शब्द और
ऊँचे तथा स्पष्ट कहना चाहिए। छूने और 'खो' कहने का समय एक साथ होना चाहिए।
 फ़ाऊल:- यदि बैठा हुआ या सक्रिय धावक किसी नियम का उल्लंघन करता है तो वह फ़ाऊल होता है ।
 दिशा ग्रहण करना:- एक स्तम्भ से दस
ू रे स्तम्भ की ओर जाना दिशा ग्रहण करना है ।
 मँह
ु मोड़ना:- जब सक्रिय धावक एक विशेष दिशा की ओर जाते समय अपने कंधे की रे खा 90 के कोण से अधिक
दिशा को मोड़ लेता है तो इसे मँह
ु मोड़ना कहते हैं। यह फाऊल होता है ।
 निवर्तन या पलटना:- किसी विशेष दिशा की ओर जाता हुआ सक्रिय धावक जब विपरीत दिशा में जाता है तो
उसे निवर्तन या पलटना कहा जाता है । यह फाऊल होता है ।
 पांव बाहर:- जब रनर के दोनों पाँव सीमाओं से बाहर भूमि को छू लें तो उसके पाँव बाहर माने जाते हैं उसे आऊट
माना जाता है ।

खेल के नियम
 क्रीड़ा क्षेत्र को आकार में वर्णित अनुसार चिन्हित होना चाहिए।
 दौड़ने या चेज़र बनने का निर्णय टॉस द्वारा किया जाएगा।
 एक धावक (चेज़र) के अतिरिक्त अन्य सभी धावक वर्गों में इस प्रकार बैंठेगे कि दो साथ-साथ बैठे धावकों का
मँह
ु एक ओर नहीं होगा। नौंवा धावक पीछा करने के लिए किसी एक स्तम्भ के पास खड़ा होगा।
 सक्रिय धावक के शरीर का कोई भी भाग केन्द्रीय गली से स्पर्श नहीं करे गा। वह स्तम्भों में अन्दर से केन्द्रीय
रे खा पार नहीं कर सकता।
 'खो' बैठे हुए धावक के पीछे से समीप जा कर ऊँची और स्पष्ट आवाज़ में दे नी चाहिए। बैठा हुआ धावक बिना
'खो' प्राप्त किए नहीं उठ सकता और न ही वह अपनी टाँग या भज ु ा फैला कर स्पर्श प्राप्त करने की कोशिश
करे गा।
 यदि कोई सक्रिय धावक उस वर्ग की केन्द्रीय गली से बाहर चला जाए जिस पर कोई धावक बैठा है या यदि वह
निष्क्रिय धावक की पकड़ छोड़ दे ता है तो सक्रिय धावक उसे खो नहीं दे गा। कोई सक्रिय धावक 'खो' दे ने के लिए
वापिस नहीं आ सकता।
 नियम 4, 5 तथा 6 का उल्लंघन फाऊल होता है । इस पर सक्रिय धावक उस दिशा के विपरीत जाने के लिए
बाध्य किया जाएगा जिस दिशा में वह जा रहा रही थी। निर्णायक की सीटी के संकेत के साथ सक्रिय धावक
सांकेतित दिशा की ओर चल दे गा। यदि इस तरह रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना जाता।
 सक्रिय धावक 'खो' दे ने के पश्चात तुरंत 'खो' पाने वाले धावक का स्थान ग्रहण कर लेगा। खो दे ना और साथ बैठे
धावक के लोना एक साथ होना चाहिए।
 ठीक खो लेने के पश्चात यदि सक्रिय धावक का पहला क़दम सैंटर लेन को छूता हो तो वह फाऊल नहीं है । यदि
केंद्रीय लेन को क्रॉस करे तो वह फाऊल है ।
 दिशा लेने के पश्चात सक्रिय धावक पुन: क्रॉस लाइन में आक्रमण कर सकता है और इस को फाऊल नहीं माना
जाता।
 सक्रिय धावक वह दिशा ग्रहण करे गा जिस ओर इसका मँह
ु मुड़ा हो अर्थात जिस ओर उसने अपने कन्धे की रे खा
को मोड़ा था।
 सक्रिय धावक किसी एक स्तम्भ की ओर दिशा ग्रहण करने के पश्चात स्तम्भ रे खा की उसी दिशा में जाएगा
जब तक वह खो नहीं करता। सक्रिय धावक केन्द्र गली से दस
ू री ओर नहीं जाएगा जब तक कि वह स्तम्भ के
चारों ओर बाहर से न घम
ू ले।
 यदि कोई सक्रिय धावक स्तम्भ छोड़ दे ता है तो वह स्तम्भ छोड़ने वाले स्थान की ओर वाली केन्द्रीय लेन पर
रहते हुए दस
ू रे स्तम्भ की दिशा में जाएगा।
 सक्रिय धावक का मँह
ु सदै व उसके द्वारा ग्रहण की गई दिशा की ओर रहे गा। वह अपने मँह
ु को नहीं मोड़ेगा।
उसे केन्द्रीय लेन के समानांतर कंधे की रे खा मोड़ने की आज्ञा होगी।
 धावक इस प्रकार बैठेंगे कि धावकों के मार्ग में रुकावट न पहुँचे यदि ऐसी रुकावट से कोई रनर आऊट हो जाता है
तो उसे आऊट नहीं माना जाएगा।
 दिशा ग्रहण करने वाले और मँह
ु मोड़ने वाले नियम आयताकार क्षेत्र में लागू न होंगे।
 पारी के दौरान सक्रिय धावक सीमा से बाहर जा सकता है परं तु सीमा से बाहर उसे दिशा लेने और मँह
ु मोड़ने के
नियमों का पालन करना होगा।
 कोई भी रनर बैठे हुए धावक को छू नहीं सकता। यदि वह ऐसा करता है तो उसे चेतावनी दी जाती है । यदि वह
फिर उस हरकत को दोहराता है तो उसे मैदान से बाहर भेज दिया जाता है । अभिप्राय यह कि आऊट दिया जाता
है ।
 यदि रनर के दोनों पैर सीमा से बाहर हों तो वह आऊट हो जाता है ।
 यदि सक्रिय चेज़र बिना किसी नियम का उल्लंघन किए रनर को छू लेता है तो रनर आऊट माना जाएगा।
 सक्रिय धावक नियम 4 से 14 तक के किसी नियम का उल्लंघन नहीं करें गे। इन नियमों का उल्लंघन फाऊल
माना जाता है । यदि ऐसे फाऊल के कारण कोई रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना जाएगा।
 यदि कोई सक्रिय धावक नियम 8 से 14 तक के किसी नियम का उल्लंघन करते है तो अम्पायर तुरंत ही उचित
दिशा लेने और कार्य करने के लिए बाध ्य

मै च सम्बन्धी नियम
 प्रत्येक टीम में खिलाड़ियों की संख्या 9 होती है और 8 खिलाड़ी अतिरिक्त होते हैं।
 प्रत्येक पारी में नौ-नौ मिनट छूने तथा दौड़ने का काम बारी-बारी से होता है । प्रत्येक मैच में 4 पारियाँ होती है । दो
पारियों छूने की और 2 पारियाँ दौड़ने की होती हैं।
 रनर खेलने के क्रमानुसार स्कोर के पास अपने नाम दर्ज कराएंगे। पारी के आरम्भ में पहले तीन खिलाड़ी सीमा
के अन्दर होंगे। इन तीनों के आऊट होने के पश्चात तीन और खिलाड़ी 'खो' दे ने से पहले अन्दर आ जाएंगे। जो
इस अवधि में प्रवेश न कर सकेंगे उन्हें आऊट घोषित किया जाएगा। अपनी बारी के बिना प्रविष्ट होने वाला
खिलाड़ी भी आऊट घोषित किया जाएगा। यह प्रक्रिया पारी के अंत तक जारी रहे गी। तीसरे रनर को निकालने
वाला सक्रिय धावक नए प्रविष्ट होने वाले रनर का पीछा नहीं करे गा, वह 'खो' दे गा। प्रत्येक टीम खेल के मैदान
के केवल एक पक्ष से ही अपने रनर प्रविष्ट करे गी।
 धावक तथा प्रत्येक रनर समय से पहले भी अपनी पारी समाप्त कर सकते हैं। केवल धावक या रनर टीम के
कप्तान के अनुरोध पर ही अम्पायर खेल रोक कर पारी समाप्ति की घोषणा करे गा। एक पारी के बाद 5 मिनट
तथा दो पारियों के बीच 9 मिनट का ब्रेक होगा।
 धावक पक्ष को प्रत्येक रनर के आऊट होने पर एक अंक मिलेगा। सभी रनरों के समय से पहले आऊट हो जाने
पर उनके विरुद्ध एक 'लोना' दे दिया जाता है । इसके पश्चात वह टीम उसी क्रम से अपने रनर भेजेगी। लोना
प्राप्त करने के लिए कोई अतिरिक्त अंक नहीं दिया जाता है । पारी का समय समाप्त होने तक इसी ढं ग से खेल
जारी रहे गी। पारी के दौरान रनरों के क्रम में परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
 नॉक आऊट पद्धति में मैच के अंत में अधिक अंक प्राप्त करने वाली टीम को विजयी घोषित किया जाएगा। यदि
अंक बराबर हों तो एक और पारी खेली जाएगी। यदि फिर भी अंक बराबर रहें तो टाई ब्रेकर नियम का प्रयोग
किया जाएगा। इस स्थिति में यह ज़रुरी नहीं कि टीमों में वहीं खिलाड़ी हों।
 लीग प्रणाली में विजेता टीम को 2 अंक प्राप्त होगें । पराजित टीम को शन्
ू य अंक तथा बराबर रहने की दशा में
प्रत्येक टीम को एक एक अंक दिया जाएगा। यदि लीग प्रणाली में लीग अंक बराबर हो तो टीम अथवा टीमें
पर्चियों द्वारा पुन: मैच खेलेंगी। ऐसे मैच नॉक-आऊट प्रणाली के आधार पर खेलें जाएंगे।
 यदि किसी कारणवश मैच पूरा नहीं होता है तो यह किसी अन्य समय खेला जाएगा और पिछले अंक नहीं गिने
जाएंगे। मैच शुरू से ही खेला जाएगा।
 यदि किसी एक टीम के अंक दस
ू री टीम से 12 या उससे अधिक हो जाएं तो पहली टीम दस
ू री टीम को धावक के
रूप में पीछा करने को कह सकती है । यदि दस
ू री टीम इस बार अधिक अंक प्राप्त कर ले तो भी उसका धावक
बनने का अधिकार बना रहता है ।

मै च के लिए अधिकारी
मै च की व्यवस्था के लिए निम्नलिखित अधिकारी नियु क्त किए जाते हैं ।

 अम्पायर (दो)
 रै फरी (एक)
 टाइम-कीपर (एक)
 स्कोरर (एक)

अम्पायर

अम्पायर लॉबी से बाहर खड़ा होगा और केन्द्रीय गली द्वारा विभाजित अपने स्थान से खे ल की दे ख रे ख
ू रे अर्द्धक के अम्पायर की सहायता कर
करे गा। वह अपने अर्द्धक में सभी निर्णय दे गा। वह निर्णय दे ने में दस
सकता है ।

रै फरी

रै फरी के कर्त्तव्य इस प्रकार हैं ।

 वह अम्पायरों की उनके कर्त्तव्य पालन में सहायता करे गा और उनमें मतभेद होने की दिशा में अपना फैसला
दे गा।
 वह खेल में बाधा पहुँचाने वाले, असभ्य व्यवहार करने वाले नियमों का उल्लंघन करने वाले खिलाड़ियों को दण्ड
दे ता है ।
 वह नियमों की व्याख्या सम्बन्धी प्रश्नों पर अपना निर्णय दे ता है ।

टाइम-कीपर

टाइप-कीपर का काम समय का रिकार्ड रखना है । वह सीटी बजाकर पारी के आरम्भ या समाप्ति का सं केत दे ता
है ।

स्कोरर

स्कोरर इस बात का ध्यान रखता है कि खिलाड़ी निश्चित क् रम से मै दान में उतरते हैं । वह आऊट हुए रनरों का
रिकार्ड रखता है । प्रत्ये क पारी के अं त में वह स्कोर शीट पर अं क दर्ज करता है और धावकों का स्कोर तै यार
करता है । मै च के अं त में वह परिणाम तै यार करता है और रै फरी को सु नाने के लिए दे ता है ।

खो-खो स्पर्धाएँ
भारत में खो-खो की मु ख्य स्पर्धाएँ हैं :

 राष्ट्रीय स्पर्धा
 राष्ट्रीय कुमार स्पर्धा
 राष्ट्रीय निम्नस्तरीय कुमार स्पर्धा
 आंतरशालेय (उच्च्माध्यमिक) स्पर्धा
 आंतरशालेय (माध्यमिक) स्पर्धा
 आंतरशालेय प्राथमिक स्पर्धा
 राष्ट्रीय महिला स्पर्धा
 आंतर्विद्यापीठ स्पर्धा

धनुर्विद्या
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

(तीरं दाजी से अनुप्रेषित)

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किसी निश्चित लक्ष्य पर धनष


ु की सहायता से बाण चलाने की कला को धनर्वि
ु द्या (Archery) कहते
हैं। विधिवत ् युद्ध का यह सबसे प्राचीन तरीका माना जाता है । धनर्वि
ु द्या का जन्मस्थान अनुमान
का विषय है , लेकिन ऐतिहासिक सूत्रों से सिद्ध होता है कि इसका प्रयोग पूर्व दे शों में बहुत प्राचीन
काल में होता था। संभवत: भारत से ही यह विद्या ईरान होते हुए यूनान और अरब दे शों में पहुँची
थी।

इतिहास
भारतीय सै न्य विज्ञान का नाम धनु र्वे द होना सिद्ध करता है कि वै दिककाल से ही प्राचीन भारत में धनु र्विद्या
प्रतिष्ठित थी। सं हिताओं और ब्राह्मणों में वज्र के साथ ही धनु ष बाण का भी उल्ले ख मिलता है । कौशीतकि
ब्राह्मण में लिखा है कि धनु र्धर की यात्रा धनु ष के कारण सकुशल और निरापद होती है । जो धनु र्धर
शास्त्रोक्त विधि से बाण का प्रयोग करता है , वह बड़ा यशस्वी होता है । भीष्म ने छह हाथ लं बे धनु ष का
प्रयोग किया था। रघु वं श में राम और लक्ष्मण के धनु षों के टं कार का वर्णन और अभिज्ञानशाकुंतलम् में दुष्यं त
के यु द्धकौशल का वर्णन सिद्ध करता है कि कालिदास को धनु र्विद्या की अच्छी जानकारी थी। भारत के
पु राणकालीन इतिहास में धनु र्विद्या के प्रताप से अर्जित विजयों के लिए राम और अर्जुन का नाम सदा आदर
से लिया जाएगा। विलसन महोदय का कथन सच है कि हिं दुओं ने बहुत ही परिश्रम और अध्यवसाय पूर्वक
धनु र्विद्या का विकास किया था और वे घोड़े पर सवार होकर बाण चलाने से सिद्धहस्त थे ।

धनु षबाण की एक विशे षता यह थी कि इसका उपयोग चतु रं गिणी से ना के चारों अं ग कर सकते थे । भारत में
धनु ष की डोरी जहाँ कान तक खींची जाती थी वहाँ यूनान में सीने तक ही खींची जाती थी।

अग्निपु राण में धनु र्विद्या की तकनीकी बारीकियों का विस्तारपूर्वक वर्णन है । बाएँ हाथ में धनु ष और दाएँ हाथ
में बाण ले कर, बाण के पं खदार सिरे को डोरी पर रखकर ऐसा लपे टना चाहिए कि धनु ष की डोरी और दं ड के बीच
बहुत थोड़ा अवकाश रह जाए। फिर डोरी को कान तक सीधी रे खा से अधिक खींचना चाहिए। बाण छोड़ते
समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। किसी वस्तु विशे ष पर बाण का लक्ष्य करते समय त्रिकोणात्मक स्थिति
में खड़े रहना चाहिए। धनु र्विज्ञान में इसके अतिरिक्त अन्य स्थितियों का भी उल्ले ख है , जो निम्नलिखित हैं  :

 (क) समपद या खड़ी स्थिति, में पैर, हथेली, पिंडली और हाथ के अँगठ
ू े एक दस
ू रे से घने सटे रहते हें ।
 (ख) वैशाख स्थिति में पंजों के बल खड़ा रहा जाता है , जाँघे स्थिर रहती हैं और दोनों पैरों के बीच थोड़ी दरू ी रहती
है ।
 (ग) मंडल में वत्ृ ताकार या अर्धवत्ृ ताकार स्थिति में खड़ा रहा जाता है । इस स्थिति में वैशाख स्थिति की अपेक्षा
पैरों में अधिक अंतर रहता है ।
 (घ) आलीढ़ स्थिति में दाईं जाँघ और घुटने को स्थिर रखकर बाएँ पैर को पीछे खींच लिया जाता है ।
 (ङ) प्रत्यालीढ़ उपर्युक्त स्थिति से विपरीत स्थिति है ।
 (च) स्थानम ् में अंगलि
ु यों के बराबर स्थान घेरा जाता है , अधिक नहीं।
 (छ) निश्चल स्थिति में बाएँ घुटने को सीधा रखा जाता है और दाएँ घुटने को मुड़ा हुआ।
 (ज) विकट स्थिति में दायाँ पैर सीधा रहता है ।
 (झ) संपुट में दोनो टाँगें उठी हुई और घुटने मुड़े होते हैं।
 (ञ) स्वस्तिक स्थिति में दोनों टाँगें सीधी फैली होती हैं और पैर के पंजे बाहर की ओर निकले होते हैं।

बाण चलाते समय धनु ष को लगभग खड़ी स्थिति में पकड़ते हैं , जै सा आज भी होता है और तदनु सार ही अं ग
को ऊपरी या निचला

तीर यदि टागें ट के केंद्र से नीचे बे घता है , तो लक्ष्यविं दु टार्गे ट की ओर और वह यदि केद्र से ऊपर पड़ता है ,
तो लक्ष्यविं दु धनु र्धारी की ओर खिसकना चाहिए। धनु ष के सिरों पर सींग या लकड़ी से अधिक मजबूत और
टिकाऊ किसी अन्य पदार्थ को जड़कर, सिरों को दृढ़ बनाया जात हा है । डोरी को मजबूती से चढ़ाने के लिए
सिरों पर खाँचा होता है । बाण को छोड़ने से पहले उस प्रत्यं चा पर रखकर साधने के लिए बाण पर भी खाँचा
बना रहता है । प्रत्यं चा खींचते समय धनु ष की पीठ उत्तल और पे ट अवतल होता है । धनु ष के मध्यभाग में , जो
दृढ़ होता है और मोड़ा नहीं जा सकता, धनु ष की मूठ होती है । मूठ के ठीक ऊपर एक ओर अस्थि, सीग या
हाथीदाँ त की बाणपट्टिका जड़ी होती है । बाण को पीछे की ओर तानने पर पट्टिका पर बाण फिसलता है और
बाण को छोड़ने से पहले इसी पर उसका सिरा स्थिर होता है । प्रत्यं चा के दोनों सिरों पर फंदे होते हैं , जिनसे
वह दोनों सिरों पर दृढ़ता से आबद्ध होती है । निर्मुक्त धनु ष को मोड़कर, फंदे को ऊपर सरकाकर, ऊपरी खाँचे में
गिराने की क्रिया को धनु ष कसना कहते हैं । धनु ष को प्राय: इतनी लं बी डोरी से कसते हैं कि कसने की ऊँचाई,
यानी डोरी से मूठ के भीतरी भाग तक की दरू ी, धनु र्धर के खु ले अँ गठ ू े सहित मु ट्ठी के बराबर हो। धनु र्धर के

डीलडौल पर निर्भर यह दरी छह और सात इं च के बीच होती है । जिस समय धनु ष का उपयोग नहीं करना होता
है उस समय इसकी विपरीत क्रिया करके धनु ष को ढीला कर दे ते हैं और इस प्रकार उपयोग के समय ही धनु ष
तनाव की स्थिति में रहता है ।

नीतिप्रकाशिका में धनु ष की निम्नलिखित चालों का वर्णन है  :

1. लक्ष्यप्रतिसंधान, 2. आकर्षण, 3. विकर्षण, 4. पर्याकर्षण, 5. अनक


ु र्षण, 6. मंडलीकरण, 7. परू ण,

8. स्थारण, 9. धूनन, 10. भ्रामण, 11. आसन्नपात, 12. दरू पात, 13. पष्ृ ठपात तथा 14. मध्यमपात।

परशु राम इस धरती पर ऐसे महापु रुष हुए हैं जिनकी धनु र्विद्या की कोई पौराणिक मिसाल नहीं है । पितामह
भीष्म, द्रोणाचार्य और खु द कर्ण ने भी परशु राम से ही धनु र्विद्या की शिक्षा ली थी। बे शक इस मामले में कर्ण
थोड़े अभागे रहे थे । क्योंकि अं त में परशु राम ने उनसे ब्रह्मास्त्र ज्ञान वापस ले लिया था।

शास्त्रों के अनु सार चार वे द हैं और तरह चार उपवे द हैं । इन उपवे दों में पहला आयु र्वे द है । दस ू रा शिल्प वे द है ।
तीसरा गं धर्व वे द और चौथा धनु र्वे द है । इस धनु र्वे द में धनु र्विद्या का सारा रहस्य मौजूद है । ये अलग बात है कि
अब ये धनु र्वे द अपने मूल स्वरुप में कहीं नहीं है । ले किन इसका मतलब ये नहीं है कि धनु र्वे द इस दे श से खत्म
हो गई है ।

क्रिकेट

२०१६ आईसीसी विश्व ट् वेन्टी २० फाइनल के दौरान इडे न


गार्डेंस,भारत।
सर्वोच्च नियंतर् ण
अं तरराष्ट् रीय क्रिकेट परिषद
निकाय
"The Gentleman's game"
उपनाम
"सज्जनों का खे ल"
सबसे पहले खेला
१६वीं शताब्दी
गया
विशे षताएँ
प्रत्ये क दल में ११ खिलाड़ी
दल के सदस्य स्थानापन्न खिलाड़ी केवल क्षे तर् रक्षण
के लिए
मिश्रित लिंग एकल लिं ग खे ल
वर्गीकरण दलीय खे ल, बल्ले और गें द का

क्रिकेट बाल, क्रिकेट बै ट,


उपकरण
व़ि केट: स्टं प, गु ल्ली
स्थल क्रिकेट मै दान
ओलंपिक १९००

क्रिकेट एक बल्ले और गें द का दलीय खेल है जिसकी शुरुआत दक्षिणी इंग्लैंड में हुई थी। इसका
सबसे प्राचीन निश्चित संदर्भ १५९८ में मिलता है , अब यह १०० से अधिक दे शों में खेला जाता है । [1]
क्रिकेट के कई प्रारूप हैं, इसका उच्चतम स्तर टे स्ट क्रिकेट है , जिसमें वर्तमान प्रमख
ु राष्ट्रीय टीमें
भारत, ऑस्ट्रे लिया, दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैण्ड, श्रीलंका, वेस्टइंडीज, न्यज
ू ीलैण्ड, पाकिस्तान, ज़िम्बाब्वे ,
बांग्लादे श अफ़ग़ानिस्तान और आयरलैण्ड हैं।[2] अप्रैल 2018 में , आईसीसी ने घोषणा की कि वह 1
जनवरी 2019 से अपने सभी 120 सदस्यों को ट्वेन्टी-२० अंतरराष्ट्रीय की मान्यता प्रदान क्रिकेट के
बल्ले से गें द को खेलता है । इसी बीच गें दबाज की टीम के अन्य सदस्य मैदान में क्षेत्ररक्षक के रूप
में अलग-अलग स्थितियों में खड़े रहते हैं, ये खिलाड़ी बल्लेबाज को दौड़ बनाने से रोकने के लिए गें द
को पकड़ने का प्रयास करते हैं और यदि सम्भव हो तो उसे आउट करने की कोशिश करते हैं।
abhinethri बल्लेबाज यदि आउट नहीं होता है तो वो विकेटों के बीच में भाग कर दस
ू रे बल्लेबाज
("गैर स्ट्राइकर") से अपनी स्थिति को बदल सकता है , जो पिच के दस
ू री ओर खड़ा होता है । इस
प्रकार एक बार स्थिति बदल लेने से एक रन बन जाता है । यदि बल्लेबाज गें द को मैदान की
सीमारे खा तक हिट कर दे ता है तो भी रन बन जाते हैं। स्कोर किए गए रनों की संख्या और आउट
होने वाले खिलाड़ियों की संख्या मैच के परिणाम को निर्धारित करने वाले मुख्य कारक हैं।

यह कई बातों पर निर्भर करता है कि क्रिकेट के खेल को ख़त्म होने में कितना समय लगेगा।
पेशव
े र क्रिकेट में यह सीमा हर पक्ष के लिए २० ओवरों से लेकर ५ दिन खेलने तक की हो सकती
है । खेल की अवधि के आधार पर विभिन्न नियम हैं जो खेल में जीत, हार, अनिर्णीत (ड्रा), या बराबरी
(टाई) का निर्धारण करते हैं।

क्रिकेट मुख्यतः एक बाहरी खेल है और कुछ मुकाबले कृत्रिम प्रकाश (फ्लड लाइट्स) में भी खेले जाते
हैं। उदाहरण के लिए, गरमी के मौसम में इसे संयक्
ु त राजशाही (UK), ऑस्ट्रे लिया, न्यज
ू ीलैंड और
दक्षिण अफ्रीका में खेला जाता है जबकि वेस्ट इंडीज, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादे श में
ज्यादातर मानसून के बाद सर्दियों में खेला जाता है ।

मुख्य रूप से इसका प्रशासन दब


ु ई में स्थित अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के द्वारा किया
जाता है , जो इसके सदस्य राष्ट्रों के घरे लू नियंत्रित निकायों के माध्यम से विश्व भर में खेल का
आयोजन करती है । आईसीसी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले जाने वाले परू
ु ष और महिला क्रिकेट दोनों
का नियंत्रण करती है । हालांकि पुरूष, महिला क्रिकेट नहीं खेल सकते हैं पर नियमों के अनुसार
महिलाएं पुरुषों की टीम में खेल सकती हैं।

मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप, आस्ट्रे लिया, यूनाइटे ड किंगडम, आयरलैंड, दक्षिणी अफ्रीका और
वेस्टइंडीज में क्रिकेट का पालन किया जाता है ।[3] नियम संहिता के रूप में होते हैं जो, क्रिकेट के
कानून कहलाते हैं[4] और इनका अनुरक्षण लंदन में स्थित मेरीलेबोन क्रिकेट क्लब (एम सी सी) के
द्वारा किया जाता है । इसमें आई सी सी और अन्य घरे लू बोर्डों का परामर्श भी शामिल होता है ।

क्रिकेट मक
ु ाबला दो दलों (टीमों) या पक्षों के बीच खेला जाता है । हर टीम में ग्यारह खिलाड़ी होते हैं।
इसका मैदान कई आकार और आकृतियों का हो सकता है । मैदान घास का होता है और इसे
ग्राउं ड्समैन के द्वारा तैयार किया जाता है , जिसके कार्य में उर्वरण, कटाई, रोलिंग और सतह को
समतल करना शामिल होता है । मैदान का व्यास 140–160 गज़ (130–150 मी॰) सामान्य होता है ।
मैदान की परिधि को सीमा कहा जाता है और इसे कभी कभी रं ग दिया जाता है या कभी कभी एक
रस्सी के द्वारा मैदान की बाहरी सीमा को चिह्नित किया जाता है । मैदान गोल, चौकोर या अंडाकार
हो सकता है , क्रिकेट का सबसे प्रसिद्ध मैदान है ओवल। प्रत्येक टीम का उद्देश्य होता है दस
ू री टीम से
अधिक रन बनाना और दस
ू री टीम के सभी खिलाड़ियों को आउट करना। क्रिकेट में खेल को ज्यादा
रन बना कर भी जीता जा सकता है , चाहे दस
ू री टीम को पूरी तरह से आउट न किया गया हो।
दस
ू रे रूप में खेल को जीतने के लिए अधिक रन बनाना और दस
ू री टीम को आउट करना जरुरी
होता है , अन्यथा मुकाबला बिना किसी नतीजे के समाप्त हो जाता है । खेल शुरू होने से पहले दोनों
टीमों के कप्तान एक सिक्के को उछाल करके निर्धारित करते हैं कि कौन सी टीम पहले बल्लेबाजी
या गें दबाजी करे गी। टॉस जीतने वाला कप्तान पिच औसम की वर्तमान और प्रत्याशित स्थिति के
अनुसार अपना फैसला लेता है ।

नियम और गेमप्ले
पिच

मु ख्य आकर्षण मै दान के विशे ष रूप से तै यार किए गए क्षे तर् में होता है (आमतौर पर केन्द्र में ) जो "पिच"
कहलाता है । पिच के दोनों और 22 गज़ (20 मी॰) विकेट लगाए जाते हैं । ये गें दबाजी उर्फ क्षे तर् रक्षण पक्ष के
लिए लक्ष्य होते हैं और बल्ले बाजी पक्ष के द्वारा इनका बचाव किया जाता है जो रन बनाने की कोशिश में होते
हैं । मूलतः एक रन तब बनता है जब एक बल्ले बाज गें द को अपने बल्ले से मारने के बाद पिच के बीच भागता
है , हालाँ कि नीचे बताये गए विवरण के अनु सार रन बनाने के कई और तरीके हैं ।[5] यदि बल्ले बाज और रन बनाने
का प्रयास नहीं करता है तो गें द "डे ड" हो जाती है और गें दबाज के पास वापिस गें दबाजी के लिए आ जाती है ।
[6]
गें दबाजी पक्ष विभिन्न तरीकों से बल्ले बाजों को आउट करने की कोशिश करता है [7] जब तक बल्ले बाजी पक्ष
"आल आउट" न हो जाए। इसके बाद गें दबाजी वाला पक्ष बल्ले बाजी करता है और बल्ले बाजी वाला पक्ष
गें दबाजी के लिए "मै दान" में आ जाता है ।[8] पे शेवर मै चों में , खे ल के दौरान मै दान पर १५ लोग होते हैं । इनमें
से दो अं पायर होते हैं जो मै दान में होने वाली गतिविधियों को नियं त्रित करते हैं । दो बल्ले बाज होते हैं , उनमें
से एक स्ट् राइकर होता है जो गें द का सामना करता है और और दस ू रा नॉन स्ट् राइकर कहा जाता है ।
बल्ले बाजों की भूमिका रन बनने के साथ और ओवर पूरे होने के साथ बदलती रहती है । क्षे तर् रक्षण टीम के सभी
११ खिलाड़ी एक साथ मै दान पर होते हैं । उनमें से एक गें दबाज होता है , दस ू रा विकेटकीपर और अन्य नौ
क्षे तर् रक्षक कहलाते हैं । विकेटकीपर (या कीपर) हमे शा एक विशे षज्ञ होता है ले किन गें दबाजी पिच विकेटों के
बीच की लम्बाई[9] होती है और चौड़ी होती है । यह एक समतल सतह है , इस पर बहुत ही कम घास होती है जो
खे ल के साथ कम हो सकती है । पिच की "हालत" मै च और टीम की रणनीति पर प्रभाव डालती है , पिच की
वर्तमान और प्रत्याशित स्थिति टीम की रणनीति को निर्धारित करती है ।

क्रिकेट पिच के आयाम

प्रत्ये क विकेट में तीन लकड़ी के स्टं प होते हैं जिन्हें एक सीधी रे खा में रखा जाता है इनके ऊपर दो लकड़ी के
बे ल्स ([रखे जाते हैं ; बे ल्स सहित विकेट की कुल ऊंचाई है और तीनों स्टाम्पों की कुल चौड़ाई है .
चार लाइनें , जिन्हें क् रीज के रूप में जाना जाता है , पिच पर विकेट के चारों और पें ट की जाती हैं , ये बल्ले बाज
के "सु रक्षित क्षे तर् " और गें दबाज की सीमा को निर्धारित करती हैं । ये "पोप्पिं ग" (या बल्ले बाजी) क् रीज या
बालिं ग क् रीज या दो "रिटर्न" क् रीज कहलाती हैं ।

स्टं प को गें दबाजी क् रीज की लाइन में रखा जाता है और इन्हें एक दस ू रे से थोड़ी दरू ी पर रखा जाता है । बीच
वाली स्टं प को बिल्कुल केन्द्र पर गें दबाजी क् रीज की लम्बाई में रखा जाता है पोप्पिं ग क् रीज की लम्बाई
समान होती है , यह गें दबाजी की क् रीज के समां तर होती है और विकेट के सामने होती है । रिटर्न क् रीज बाकी
दोनों के लम्बवत होती है ; ये दोनों पोप्पिं ग क् रीज के अं त से जु ड़ी होती हैं और इन्हें गें दबाजी की क् रीज के अं त
तक कम से कम इसकी लम्बाई में चित्रित किया जाता है ।

गें दबाजी करते समय गें दबाज का पिछला पै र उसकी "डिलीवरी स्ट् राइड" में दो रिटर्न क् रीजों के बीच में होना
चाहिए, जबकि उसका अगला पै र पोप्पिं ग क् रीज के ऊपर या उसके पीछे पढ़ना चाहिए। अगर गें दबाज इस
नियम को तोड़ता है , तो अं पायर "नो बाल" घोषित कर दे ता है ।

बल्ले बाज के लिए पोप्पिं ग क् रीज का महत्त्व यह है कि यह उसके सु रक्षित क्षे तर् की सीमा को निर्धारित करता
है जब वह "अपने इस क्षे तर् से बाहर" होता है तो उसका विकेट उखाड़ दिए जाने पर वह स्टं प या रन आउट हो
सकता है (नीचे Dismissals दे खें)|

पिच की स्थिरता भिन्न हो सकती है जिसके कारण गें दबाज को मिलने वाला उछाल, स्पिन और गति अलग
अलग हो सकती है । सख्त पिच पर बल्ले बाजी करना आसान होता है , क्यों की इस पर उछाल ऊँचा ले किन
समान होता है । सूखी पिच बल्ले बाजी के लिए खराब मानी जाती है क्यों की इस पर दरारें आ जाती हैं और जब
ऐसा होता है तो स्पिनर एक अहम भूमिका अदा कर सकता है । नम पिच या घास से ढकी पिचें (जो "हरी" पिचें
कहलाती हैं ) अच्छे ते ज गें दबाज को अतिरिक्त उछाल दे ने में मदद करती है । इस तरह की पिच पूरे मे च के
दौरान ते ज गें दबाज की मदद करती है ले किन जै से जै से मे च आगे बढ़ता है ये बल्ले बाजी के लिए और भी
बे हतर होती जाती है ।

बल्ला(bat)और गें द( ball)


ू रे अं त पर
इस खे ल का सार है कि एक गें दबाज अपनी ओर की पिच से बल्ले बाज की तरफ़ गें द डालता है जो दस
बल्ला ले कर उसे "स्ट् राइक" करने के लिए तै यार रहता है ।

बल्ला लकड़ी से बना होता है इसका आकर ब्ले ड के जै सा होता है और शीर्ष पर बे लनाकार हें डल होता है । ब्ले ड
की चौडाई से अधिक नहीं होनी चाहिए और बल्ले की कुल लम्बाई से अधिक नहीं होनी चाहिए

गें द एक सख्त चमड़े का गोला होती है जिसकी परिधि गें द की कठोरता जिसे से अधिक गति से फेंका जा सकता
है , वो एक विचारणीय मु द्दा है और बल्ले बाज सु रक्षात्मक कपड़े पहनता है जिसमें शामिल है पे ड (जो घु टनों
और पाँ व के आगे वाले भाग की रक्षा के लिए पहने जाते हैं ), बल्ले बाजी के दस्ताने हाथों के लिए, हे लमे ट सर
के लिए और एक बॉक्स जो पतलून के अन्दर पहना जाता है और क् रोच क्षे तर् को सु रक्षित करता है । कुछ
बल्ले बाज अपनी शर्ट और पतलून के अन्दर अतिरिक्त पे डिंग पहनते हैं जै से थाई पे ड, आर्म पे ड, रिब सं रक्षक
और कंधे के पै ड

अंपायर और स्कोरर

मै दान पर खे ल को दो अं पायर नियं त्रित करते हैं , उनमें से एक विकेट के पीछे गें दबाज की तरफ़ खड़ा रहता है
और दस ू रा "स्क्वे यर ले ग" की स्थिति में जो स्ट् राइकिंग बल्ले बाज से कुछ गज पीछे होता है । जब गें दबाज गें द
डालता है तो विकेट वाला अम्पायर गें दबाज और नॉन स्ट् राइकर के बीच रहता है । यदि खे ल की स्थिति पर
कुछ सं देह होता है तो अम्पायर परामर्श करता है और यदि आवश्यक होता है तो वो खिलाड़ियों को फ़ील्ड से
बहार ले जाकर मै च को स्थगित कर सकता है , जै से बारिश होने पर या रोशनी कम होने पर|

मै दान से बहार और टी वी पर प्रसारित होने वाले मै चों में अक्सर एक तीसरा अं पायर होता है जो विडियो
साक्ष्य की सहायता से विशे ष स्थितियों में फ़ैसला ले सकता है । टे स्ट मै चों और दो आईसीसी के पूर्ण सदस्यों
के बीच खे ले जाने वाले सीमित ओवरों के अं तरराष्ट् रीय खे ल में तीसरा अं पायर जरुरी होता है । इन मै चों में
एक मै च रे फरी भी होता है जिसका काम है यह सु निश्चित करना होता है कि खे ल क्रिकेट के नियमों के तहत
खे ल की भावना से खे ला जाये |

मै दान के बाहर दो अधिकारिक स्कोरर रनों और आउट होने वाले खिलाड़ियों का रिकॉर्ड रखते हैं , प्रत्ये क
अधिकारी एक टीम से होता है । स्कोरर अं पायर के हाथ के सं केतों द्वारा निर्देशित होते हैं । उदाहरण के लिए,
अं पायर एक तर्जनी अं गुली उठा कर बताता है कि बल्ले बाज आउट हो गया है ; और यदि बल्ले बाज ने छ: रन
बनाए हैं तो वो दोनों हाथों को ऊपर उठाता है । स्कोरर क्रिकेट के नियमों के अनु सार सभी रनों, विकेटों और
ओवरों का रिकॉर्ड रखते हैं । व्यवहार में , वे अतिरिक्त डे टा भी सं चित करते हैं जै से गें दबाजी विश्ले षण और रन
की दरें |

पारियां

बल्लेबाज को गें दबाजी करता हुआ एक गें दबाज। मैदान के मध्य स्थित पट्टी क्रिकेट पिच है । पिच के प्रत्येक किनारे पर
लकड़ी के तीन स्टम्पों व दो गुल्लियों के समह
ू को व़िकेट कहा जाता है तथा सफेद रे खाएं क्रीज़ कहलाती हैं।

पारी (हमे शा बहुवचन रूप में प्रयु क्त होती है ) बल्ले बाजी पक्ष के सामूहिक प्रदर्शन के लिए एक शब्द है । [10]
सिद्धां त के तौर में , बल्ले बाजी पक्ष के सभी ग्यारह सदस्य बारी बारी से बल्ले बाजी करते हैं , ले किन कई कारणों
से "पारी" इससे पहले भी ख़त्म हो सकती है (नीचे दे खें)|

खे ले जा रहे मै च के प्रकार के अनु सार हर टीम की एक या दो परियां होती हैं । "पारी" शब्द का उपयोग कभी
कभी एक बल्ले बाज के व्यक्तिगत योगदान को बताने के लिए भी किया जाता है । ("जै से उसने एक अच्छी
पारी खे ली" आदि)

गें दबाज का मु ख्य उद्दे श्य क्षे तर् रक्षकों की सहायता से बल्ले बाज को आउट करना होता है । एक बल्ले बाज जब
बर्खास्त कर दिया जाता है तब कहा जाता है कि वह "आउट" हो गया है अर्थात उसे मै दान छोड़ कर जाना
होगा और उसकी टीम का अगला बल्ले बाज अब बल्ले बाजी करने आएगा| जब दस बल्ले बाज बर्खास्त (अर्थात
आउट) हो जाते हैं तो पूरी टीम बर्खास्त हो जाती है और पारी समाप्त हो जाती है । अं तिम बल्ले बाज, जो
आउट नहीं हुआ है , वह अब बल्ले बाजी नहीं कर सकता क्योंकि हमे शा दो बल्ले बाजों को एक साथ मै दान में
रहना होता है । यह बल्ले बाज "नॉट आउट" कहलाता है ।

यदि दस बल्ले बाजों के आउट होने से पहले ही एक पारी समाप्त हो जाए तो दो बल्ले बाज "नॉट आउट"
कहलाते हैं । एक पारी तीन कारणों से जल्दी ख़त्म हो सकती है : यदि बल्ले बाजी पक्ष का कप्तान घोषित कर दे
की परी समाप्त हो गई है (जो एक सामरिक निर्णय होता है ), या बल्ले बाजी पक्ष ने अपना लक्ष्य प्राप्त कर
लिया हो और खे ल को जीत लिया हो, या खे ल ख़राब मौसम या समय ख़त्म हो जाने के कारण समाप्त कर दिया
जाये | सीमित ओवरों के क्रिकेट में , जब अं तिम ओवर किया जा रहा हो तब भी दो बल्ले बाज बचे हो सकते हैं ।

ओवर

ओवर या षटक ६ गें दों का समु च्चय या समूह होता है । यह शब्द इस तरह से आया है क्योंकि अं पायर कहता है
"ओवर" यानि पूरा। जब ६ गें दें डाली जा चु की होती हैं , तब दस ू रा गें दबाज दस
ू रे छोर पर आ जाता है और
क्षे तर् रक्षक भी अपना स्थान बदल ले ते हैं । एक गें दबाज लगातार दो ओवर नहीं डाल सकता है , हालां कि एक
गें दबाज छोर को बिना बदले उसी छोर से कई ओवर डाल सकता है । बल्ले बाज साइड या छोर को बदल नहीं
सकते हैं , इसलिए जो नॉन स्ट् राइकर था वह स्ट् राइकर बन जाता है और स्ट् राइकर अब नॉन स्ट् राइकर बन
जाता है । अं पायर भी अपनी स्थिति को बदलते हैं ताकि जो अं पायर स्क्वे यर ले ग की स्थिति में था वह विकेट
के पीछे चला जाता है और इसका विपरीत भी होता है ।

टीम संरचना

एक टीम में ११ खिलाड़ी होते हैं । प्राथमिक कुशलता के आधार पर एक खिलाड़ी को बल्ले बाज या गें दबाज के
रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है । एक अच्छी तरह से सं तुलित टीम में आमतौर पर पाँच या छह विशे षज्ञ
बल्ले बाज और चार या पाँच विशे षज्ञ गें दबाज होते हैं । टीम में हमे शा एक विशे षज्ञ विकेट रक्षक होता है क्योंकि
यह क्षे तर् रक्षण स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण होती है । प्रत्ये क टीम का ने तृत्व कप्तान करता है जो सामरिक
निर्णय ले ने के लिए जिम्मे दार होता है , जै से बल्ले बाजी क् रम का निर्धारण करना, क्षे तर् रक्षकों के स्थान
निर्धारित करना और गें दबाजों की बारी तय करना। एक खिलाड़ी जो बल्ले बाजी और गें दबाजी दोनों का
विशे षज्ञ होता है हरफनमौला कहलाता है । जो बल्ले बाज और विकेट कीपर दोनों का काम करता है वह "विकेट
कीपर/बल्ले बाज" कहलाता है , कभी कभी उसे हरफनमौला भी कहा जाता है , वास्तव में हरफनमौला खिलाड़ी
कम ही दे खने को मिलते हैं क्योंकि अधिकां श खिलाड़ी बल्ले बाजी या गें दबाजी में से किसी एक पर ही ध्यान
केंद्रित करते हैं ।

क्षे तर् रक्षण

क्रिकेट में क्षेत्ररक्षण की स्थिति एक दायें हाथ के बल्लेबाज के लिए।

क्षे तर् रक्षण के पक्ष के सभी ग्यारह खिलाड़ी मै दान में एक साथ रहते हैं । उनमें से एक विकेट कीपर उर्फ "कीपर"
होता है जो स्ट् राइकर बल्ले बाज के द्वारा बचाए जाने वाले विकेट के पीछे खड़ा रहता है । विकेट कीपिं ग
सामान्यत: एक विशे षज्ञ ही कर सकता है , उसका मु ख्य कम उन गें दों को पकड़ना होता है जो बल्ले बाज हिट
नहीं करता है । जिससे की बल्ले बाज बाई के रन ना ले सके। वह विशे ष दस्ताने पहनता हैं , (क्षे तर् रक्षकों में
केवल उसी को ऐसा करने की अनु मति होती है ) साथ ही अपने नीचले टां गों को कवर करने के लिए पै ड भी
पहनता है । चूँकि वह सीधे स्ट् राइकर के पीछे खड़ा रहता है , अत: उसके पास इस बात की बहुत अधिक
सं भावना होती है कि वो बल्ले बाज के बल्ले के किनारे से छू कर निकलती हुई बॉल को कैच करके बल्ले बाज को
आउट कर सके। केवल वही एक ऐसा खिलाड़ी है जो बल्ले बाज को स्टम्पड आउट कर सकता है ।

वर्तमान गें दबाज के अलावा शे ष ९ क्षे तर् रक्षक कप्तान के द्वारा मै दान में चु ने हुए स्थानों पर तै नात रहते हैं ।

ये स्थान तय नहीं होते हैं ले किन ये विशे ष और कभी कभी अच्छे नामों से जाने जाते हैं जै से "स्लिप", "थर्ड
मे न", "सिली मिड ऑन" और "लाँ ग ले ग"| हमे शा कुछ असु रक्षित क्षे तर् रहते हैं ।

कप्तान क्षे तर् रक्षण पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण सदस्य होता है क्योंकि वह सभी रणनीतियां निर्धारित करता है ,
जै से किसे गें दबाजी करनी चाहिए (और कैसे ); और वह "क्षे तर् की से टिंग" के लिए भी जिम्मे दार होता है ।

क्रिकेट के सभी रूपों में , यदि एक मै च के दौरान एक क्षे तर् रक्षक घायल या बीमार हो जाता है तो उसके स्थान
पर किसी और को प्रतिस्थापित किया जा सकता है । प्रतिस्थापित खिलाड़ी गें दबाज़ी, कप्तानी या विकेट
कीपिं ग नहीं कर सकता ह| यदि घायल खिलाड़ी ठीक होकर वापस मै दान में आ जाए तो अतिरिक्त खिलाड़ी को
मै दान छोड़ना होता है ।

गें दबाजी

गें दबाज अक्सर दौड़ कर गें द डालने के लिए आते हैं , हालाँ कि कुछ गें दबाज एक या दो कदम ही दौड़ कर आते
हैं और गें द डाल दे ते हैं । एक ते ज गें दबाज को सं वेग की जरुरत होती है जिसके कारण वह ते जी से और दरू ी से
दौड़ कर आता है ।
एक आदर्श गें दबाजी एक्शन

ते ज गें दबाज बहुत ते जी से गें द को डाल सकता है और कभी कभी वह बल्ले बाज को आउट करने के लिए बहुत
ही ते ज गति की गें द डालता है जिससे बल्ले बाज पर तीव्रता से प्रतिक्रिया करने का दबाव बन जाता है ।
अन्य ते ज गें दबाज गति के साथ साथ किस्मत पर भी भरोसा करते हैं । कई ते ज गें दबाज गें द को इस तरह से
डालते हैं कि वह हवा में "झल ू ती हुई" या "घूमती हुई" आती है ।

इस प्रकार की डिलीवरी बल्ले बाज को धोखा दे सकती है जिसके कारण उसके शॉट खे लने की टाइमिं ग ग़लत
हो जाती हैं , जिससे गें द बल्ले के बाहरी किनारे को छत
ू ी हुई निकलती है और उसे विकेट कीपर या स्लिप क्षे तर्
रक्षक के द्वारा केच किया जा सकता है ।

गें दबाजों में एक अन्य प्रकार है "स्पिनर" जो धीमी गति से स्पिन करती हुई गें द डालता है और बल्ले बाज को
धोखा दे ने की कोशिश करता है । एक स्पिनर अक्सर “विकेट ले ने के लिए” गें द को थोड़ा ऊपर से डालता है
और बल्ले बाज को ग़लत शॉट खे लने के लिए उकसाता है । बल्ले बाज को इस तरह की गें दों से बहुत अधिक
सावधान रहना होता है क्योंकि यह गें द अक्सर बहुत ऊँची और घूर्णन करती हुई आती है और वो उस तरह से
व्यवाहर नहीं करती है जै सा कि बल्ले बाज ने सोचा होता है और वो आउट हो सकता है ।

ते ज़ गें दबाज़ और स्पिनर के मध्य होते हैं "मध्यमगति के गें दबाज़" जो अपनी सटीक गें दबाजी से रनों की गति
को कम करने पर भरोसा करते हैं और बल्ले बाजों का ध्यान भं ग करते हैं ।

सभी गें दबाजों को उनकी गति और शै ली के अनु सार वर्गीकृत किया जाता है । ज्यादा क्रिकेट शब्दावली के
अनु सार वर्गीकरण (classifications) बहुत भ्रमित कर सकते हैं । इस प्रकार से एक गें दबाज को एल एफ में
वर्गीकृत किया जा सकता है जिसका अर्थ है बाएं हाथ का ते ज गें दबाज या एल बी जी में वर्गीकृत किया जा
सकता है जिसका अर्थ है दायें हाथ का स्पिन गें दबाज जो "ले ग ब्रेक" या "गूगली" डाल सकता है ।

गें दबाजी के दौरान कोहनी को किसी भी कोण पर रखा जा सकता है या मोड़ा जा सकता है ले किन इस दौरान
उसे सीधा नहीं किया जा सकता है । यदि कोहनी अवै ध रूप से सीधी हो जाती है तो स्क्वे र ले ग अम्पायर इसे
नो बॉल (no-ball) घोषित कर सकता है । वर्तमान नियमों के अनु सार एक गें दबाज अपनी भु जा को १५ डिग्री
या उससे कम तक सीधा कर सकता है ।

बल्ले बाजी

सचिन तें दल
ु कर एक सौ अंतरराष्ट्रीय शतक बनाने वाले खिलाड़ी है ं

डब्लू जी ग्रेस (W G Grace)१८८३ में "गार्ड लेते हुए".उनका पेड और बल्ला आजकल प्रयक्
ु त होने वाले बल्ले और पेड के
काफी समान हैं। दस्तानों को कुछ विकसित किया गया है । अधिकांश आधुनिक खिलाड़ी ग्रेस को उपलब्ध उपकरणों की
तल
ु ना में अधिक सुरक्षात्मक उपकरणों का उपयोग करते हैं। जैसे हे लमेट और भुजा गार्ड.

किसी भी एक समय पर, मै दान में दो बल्ले बाज होते हैं । एक स्ट् राइकर छोर पर रह कर विकेट की रक्षा करता
है और सं भव हो तो रन बनाता है । उसका साथी, जो नॉन स्ट् राइकर होता है वो उस छोर पर होता है जहाँ से
गें दबाजी की जाती है ।

बल्ले बाज बल्ले बाजी क् रम (batting order) में आते हैं , यह क् रम कप्तान के द्वारा निर्धारित किया जाता है ,
पहले दो बल्ले बाज "ओपनर" कहलाते हैं । उन्हें सामान्यत: सबसे खतरनाक गें दबाजी का सामना करना पड़ता
है , क्योंकि उस समय ते ज गें दबाज नई गें द का उपयोग करते हैं । शीर्ष बल्ले बाजी के लिए आम तौर पर टीम में
सबसे अधिक सक्षम बल्ले बाज को भे जा जाता है और गै र बल्ले बाजों को अं त में भे जा जाता है । पहले से
निर्धारित किया गया बल्ले बाजी क् रम अनिवार्य नहीं है और जब भी एक विकेट गिर जाता है तो कोई भी
खिलाड़ी जिसने बल्ले बाजी नहीं की है उसे भे जा जा सकता है ।

अगर एक बल्ले बाज मै दान छोड़ के जाता है (आम तौर पर चोट के कारण) और वापस नहीं लौट पता है तो वह
वास्तव में "नॉट आउट" होता है और उसका बहार जाना आउट नहीं माना जाता है , परन्तु उसे बर्खास्त कर
दिया जाता है क्योंकि उसकी पारी समाप्त हो चु की होती है । प्रतिस्थापित बल्ले बाज को अनु मति नहीं होती
है ।

एक कुशल बल्ले बाज सु रक्षात्मक और आक् रामक दोनों रूपों में कई प्रकार के "शॉट" या 'स्ट् रोक' लगा सकता
है । मु ख्य काम है गें द को बल्ले की समतल सतह से हिट करना। यदि गें द बल्ले के किनारे को छत ू ी है तो यह
"बाहरी किनारा" कहलाता है । बल्ले बाज हमे शा ही गें द को जोर से हिट करने की कोशिश नहीं करता है , एक
अच्छा खिलाड़ी एक हल्के चतु र स्ट् रोक से या केवल अपनी कलाई को हल्के से घु मा कर रन बना सकता है ।
ले किन वह गें द को क्षे तर् रक्षकों से दरू हिट करता है ताकि उसे रन बनाने का समय मिल सके।

क्रिकेट में कई प्रकार के शॉट खे ले जाते हैं । बल्ले बाज के द्वारा लगाये गए स्ट् रोक को गें द के स्विं ग या उसकी
दिशा के अनु सार कई नाम दिए जा सकते हैं जै से "कट (cut)” "ड्राइव","हुक" या "पु ल".

ध्यान दें कि बल्ले बाज को हर शॉट को नहीं खे लना होता है , यदि उसे लगता है कि गें द विकेट से नहीं टकराएगी
तो वह गें द को विकेट कीपर तक जाने के लिए "छोड़" सकता है । इसके साथ ही, वह जब अपने बल्ले से गें द
को हिट करता है तो उसे रन ले ने का प्रयास नहीं करना होता है । वह जानबूझकर अपने पै र का प्रयोग करके
गें द को रोक सकता है और उसे अपनी टां ग से दरू कर सकता है ले किन यह एल बी डबल्यू नियम के अनु सार
जोखिम भरा हो सकता है ।

यदि एक घायल बल्ले बाज बल्ले बाजी करने के लिए फिट हो जाता है ले किन भाग नहीं सकता हो तो अं पायर
और क्षे तर् रक्षण टीम का कप्तान बल्ले बाजी पक्ष के एक अन्य सदस्य को दोड़ने (runner) की अनु मति दे सकता
है । यदि सं भव हो तो, इस धावक को अपने साथ बल्ला रखना होता है । इस धावक का एक मात्र काम होता है
घायल बल्ले बाज के स्थान पर दोड़ना.इस धावक को वो सभी उपकरण पहनने और उठाने होते हैं जो एक
बल्ले बाज ने पहने हैं । दोनों बल्ले बाजों के लिए धावक रखना सं भव है ।

रन

वह दिशा जिसमें दायें हाथ का बल्लेबाज, भिन्न क्रिकेट शॉट खेलते समय गें द को भेजता है । एक बाएँ हाथ के बल्लेबाज
का चित्र इसका दर्पण प्रतिबिम्ब होता है ।

स्ट् राइकर बल्ले बाज की प्राथमिकता होती है गें द को विकेट पर टकराने से रोकना. और दस ू री प्राथमिकता
होती है बल्ले से गें द को हिट कर के रन (runs) बनाना ताकि इससे पहले कि क्षे तर् रक्षण पक्ष की ओर से गें द
वापस आए, उसे और उसके सहयोगी को रन बनाने का समय मिल जाए. एक रन रजिस्टर करने के लिए, दोनों
धावकों को अपने बल्ले से या शरीर के किसी भाग से क् रीज के पीछे की भूमि को छुना होता है । (बल्ले बाज
दोड़ते समय बल्ला लिए होते हैं ) प्रत्ये क रन स्कोर में जु ड़ जाता है ।

एक ही हिट पर एक से अधिक रन बनाये जा सकते हैं , एक हिट में एक से तीन रन आम हैं , मै दान का आकार
इस प्रकार का होता है कि सामान्यत: चार या अधिक रन बनाना कठिन होता है । इसकी क्षतिपूर्ति करने के
लिए, यदि गें द मै दान की सीमा की भूमि को छतू ी है तो इसे चार रन गिना जाता है । और यदि गें द सीमा को
हवा में पार करके निकल जाती है तो इसे छ: रन गिना जाता है । यदि गें द सीमा पार चली जाती है तो
बल्ले बाज को भागने की जरुरत नहीं होती है ।

पाँच रन बहुत ही असामान्य हैं और आमतौर पर यह क्षे तर् रक्षक के द्वारा वापस फेंकी गई गें द, "ओवर थ्रो" पर
निर्भर करता है । यदि स्ट् राइकर विषम सं ख्या में रन बनाता है तो बल्ले बाजों का स्थान आपस में बदल जाता है
और नॉन स्ट् राइकर अब स्ट् राइकर बन जाता है । केवल स्ट् राइकर ही व्यक्तिगत रूप से रन बनता है ले किन
सभी रन टीम के कुल स्कोर में जोड़े जाते हैं ।

रन ले ने का फ़ैसला बल्ले बाज, जिसको गें द की दिशा और गति का ज्ञान होता है , उसके द्वारा किया जाता है और
इसको वह "हाँ ", "ना" या "रुको" कहके बताता है ।

रन ले ने में बहुत जोखिम होता है क्योंकि यदि एक क्षे तर् रक्षक विकेट को गिरा दे ता है , जब नजदीकी बल्ले बाज
अपनी क् रीज से बाहर होता है तो (यानि उसके शरीर का कोई भाग या बल्ला पोप्पिं ग क् रीज के सं पर्क में नहीं
है ) बल्ले बाज रन आउट (run out) कहलाता है ।

एक टीम के स्कोर को उसके द्वारा बनाये गए रनों की सं ख्या और आउट हुए बल्ले बाजो की सं ख्या से प्रदर्शित
किया जाता है । उदाहरण के लिए, यदि पाँच बल्ले बाज आउट हो गए हैं और टीम ने २२४ रन बनाये हैं तो कहा
जाता है कि उन्होंने ५ विकेट की हानि पर २२४ रन बनाये हैं (इसे साधारणत: २२४ पर ५ और २२४/५ के रूप
में लिखा जाता है , ऑस्ट् रेलिया में , ५ पर २२४ और ५/२२४)।

अतिरिक्त

क्षे तर् रक्षण पक्ष की और से की गई त्रुटियों के कारण बल्ले बाजी पक्ष को जो रन प्राप्त होते हैं वे अतिरिक्त
(extras) कहलाते हैं । (ऑस्ट् रेलिया में "सनड्रिज" कहलाते हैं )। यह चार प्रकार से प्राप्त किये जा सकते हैं :

1. नो बॉल एक ऐसी अतिरिक्त बॉल होती है जो गें दबाज के द्वारा किसी नियम का उल्लंघन करने पर दं ड के रूप
में डाली जाती है ; (अ) अनुपयुक्त भुजा एक्शन के कारण; (ब) पोप्पिंग क्रिज पर ओवर स्टे प्पिंग के कारण; (स)
यदि उसका पैर रिटर्न क्रिज के बाहर हो; इस के लिए गें दबाज को फ़िर से गें द डालनी होती है । वर्तमान नियमों के
अनुसार खेल के ट्वें टी 20 (Twenty20) और ओ डी आई (ODI) प्रारूपों में फ़िर से डाली गई गें द फ्री हिट होती है ,
अर्थात इस गें द पर बल्लेबाज रन आउट के अलावा किसी और प्रकार से आउट नहीं हो सकता है ।

वाइड – दं ड के रूप में दी गई एक अतिरिक्त गें द होती है जो तब दी जाती है जब गें दबाज ऐसी गें द डालता है
जो बल्ले बाज की पहुँच से बाहर हो।

1. बाई बल्लेबाज को मिलने वाला अतिरिक्त रन है जब बल्लेबाज गें द को मिस कर दे ता है और यह पीछे विकेट
कीपर के पास से होकर निकल जाती है जिससे बल्लेबाज को परं परागत तरीके से रन लेने का समय मिल जाता
है (ध्यान दें कि एक अच्छे विकेट कीपर की निशानी है कि वह कम से कम बाईज दे ।
2. लेग बाई – अतिरिक्त दिया जाने वाला रन, जब गें द बल्लेबाज के शरीर को हिट करती है लेकिन बल्ले को नहीं
और यह क्षेत्ररक्षकों से दरू जाकर बल्लेबाज को परं परागत तरीके से रन लेने का समय भी दे ती है ।

जब कोई गें दबाज एक वाइड या नो बॉल डालता है , तो उसकी टीम को दं ड भु गतना पड़ता है क्योंकि उन्हें एक
अतिरिक्त गें द डालनी पड़ती है जिससे बल्ले बाजी पक्ष को अतिरिक्त रन बनने का मौका मिल जाता है ।
बल्ले बाज को भाग कर रन ले ना ही होता है ताकि वह बाईज और ले ग बाईज का दावा कर सके। (सिवाय इसके
जब गें द चार रन के लिए सीमा पार चली जाती है ) ले किन ये रन केवल टीम के कुल स्कोर में जु ड़ते हैं ,
स्ट् राइकर के व्यक्तिगत स्कोर में नहीं।

व़ि केट पतन

ऑस्ट्रे लिया के डॉन ब्रैडमैन के पास 99.94 का रिकॉर्ड टे स्ट बल्लेबाजी औसत था
एक बल्ले बाज दस तरीके से आउट हो सकता है और कुछ तरीके इतने असामान्य हैं कि खे ल के पूरे इतिहास में
इसके बहुत कम उदाहरण मिलते हैं । आउट होने के सबसे सामान्य प्रकार हैं "बोल्ड", "केच", "एल बी डबल्यू",
"रन आउट", "स्टं पड" और "हिट विकेट".असामान्य तरीके हैं "गें द का दो बार हिट करना", "मै दान को बाधित
करना", "गें द को हें डल करना" और "समय समाप्त".

इससे पहले कि अं पायर बल्ले बाज के आउट होने की घोषणा करें सामान्यत: क्षे तर् रक्षण पक्ष का कोई सदस्य
(आमतौर पर गें दबाज) "अपील" करता है । यह "हाउज़ दे ट?" बोल कर या चिल्ला कर किया जाता है । इसका
मतलब है "हाउ इस दे ट?" यदि अं पायर अपील से सहमत हैं , तो वह तर्जनी अं गुली उठा कर कहता है
"आउट!"अन्यथा वह सिर हिला कर कहता है "नॉट आउट".अपील उस समय ते ज आवाज में की जाती है जब
आउट होने की परिस्थिति स्पष्ट न हो। यह एल बी डबल्यू की स्थिति में हमे शा होता है और अक्सर रन आउट
और स्टं प की स्थिति में होता है ।

1. बोल्ड (Bowled); यदि गें दबाज गें द से विकेट पर हिट करता है जिससे की कम से कम एक विकेट गिर जाए और
बेल अपने स्थान से हट जाए (ध्यान दें की यदि गें द विकेट पर लगती है पर बेल अपने स्थान से नहीं हटती है तो
वो नॉट आउट होता है )[11]
2. केच (Caught);यदि बल्लेबाज ने बल्ले से या हाथ से गें द को हिट किया और इसे क्षेत्र रक्षण टीम के किसी
सदस्य ने केच कर लिया हो। [12]
3. लेग बिफोर विकेट (Leg before wicket)(एल बी डब्ल्यू); यह जटिल है लेकिन इसका मूल अर्थ यह होता है कि
यदि गें द ने पहले बल्लेबाज की टांग को न छुआ होता तो वो आउट हो जाता[13]
4. रन आउट (Run out) – क्षेत्ररक्षण पक्ष के एक सदस्य ने गें द से विकेट को तोड़ दिया या गिरा दिया जब
बल्लेबाज अपनी क्रीज़ पर नहीं था; यह सामान्यत: तब होता है जब बल्लेबाज रन लेने की कोशिश कर रहा होता
है और सटीक थ्रो के द्वारा गें द से विकेट तोड़ दिया जाता है ।[14]
5. स्टं पड (Stumped)– यह उसी के समान है लेकिन इसमें विकेट को विकेट कीपर तोड़ता है जब बल्लेबाज गें द को
मिस कर के रन लेने के लिए अपनी क्रीज़ से बाहर चला जाता है ; कीपर को गें द को हाथ में लेकर विकेट को
तोड़ना होता है । (यदि कीपर गें द को विकेट पर फेंकता है तो यह रन आउट होता है )[15]
6. हिट विकेट (Hit wicket); बल्लेबाज हिट विकेट से आउट हो जाता है जब बल्लेबाज गें द को हिट करते समय या
रन लेने की कोशिश करते समय अपने बल्ले, कपड़े, या किसी अन्य उपकरण से एक या दोनों बेलों को गिरा
दे ता है ।[16]
7. दो बार गें द को मारना (Hit the ball twice)–यह बहुत ही असामान्य है और यह खेल के जोखिम को ध्यान में
रखते हुए और क्षेत्ररक्षकों की सुरक्षा के लिए शुरू किया गया है । बल्लेबाज कानूनी रूप से एक बार गें द को खेल
लेने के बाद सिर्फ इसे विकेट पर टकराने से रोकने के लिए दब
ु ारा हिट कर सकता है ।[17]
8. क्षेत्र बाधित (Obstructed the field) ; एक और असामान्य बर्खास्तगी जिसमें एक बल्लेबाज जानबूझकर एक
क्षेत्ररक्षक के रास्ते में आ जाए.[18]
9. गें द को पकड़ना (Handled the ball); एक बल्लेबाज जानबझ
ू कर अपने विकेट को सरु क्षित करने के लिए हाथ
का प्रयोग नहीं कर सकता है । (ध्यान दें कि अक्सर गें द बल्लेबाज के हाथ को छूती है लेकिन यदि यह जान बझ

कर नहीं किया गया है तो नॉट आउट होता है ; हालाँकि वह इसे अपने हाथ में पकड़ सकता है )[19]
10. टाइम आउट (Timed out); यदि एक बल्लेबाज के आउट हो जाने के दो मिनट के अन्दर अगला बल्लेबाज
मैदान पर न आए[20]

अधिकां श मामलों में स्ट् राइकर ही आउट होता है । यदि गै र स्ट् राइकर आउट है तो वह रन आउट होता है ,
ले किन वह मै दान को बाधित कर के, बॉल को पकड़ कर या समय समाप्त होने पर भी आउट हो सकता है ।
एक बल्ले बाज बिना आउट हुए भी मै दान को छोड़ सकता है । अगर उसे चोट लग जाए या वह घायल हो जाए
तो वह अस्थायी रूप से जा सकता है , उसे अगले बल्ले बाज के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाता है । इसे
रिटायर्ड हर्ट (retired hurt) या रिटायर्ड बीमार (retired ill)के रूप में दर्ज किया जाता है । रिटायर्ड बल्ले बाज
नॉट आउट होता है और बाद में फ़िर से आ सकता है । एक अछत ू ा बल्ले बाज, रिटायर हो सकता है उसे रिटायर
आउट (retired out)कहा जाता है ; जिसका श्रेय किसी भी खिलाड़ी को नहीं जाता है । बल्ले बाज नो बॉल पर
बोल्ड, केच, ले ग बिफोर विकेट , स्टं प्डया हिट विकेट आउट नहीं हो सकता है । वो वाइड बॉलपर बोल्ड, केच,
ले ग बिफोर विकेट , या बॉल को दो बार हिट करने पर आउट हो सकता है । इनमें से कुछ प्रकार के आउट
गें दबाज के द्वारा बिना गें द डाले ही हो सकते हैं । नॉन-स्ट् राइकर बल्ले बाज भी रन आउट (run out by the
bowler) हो सकता है यदि वह गें दबाज के द्वारा गें द डालने से पहले क् रीज को छोड़ दे और एक बल्ले बाज
क्षे तर् रक्षण बाधित करने पर या रिटायर आउट होने पर किसी भी समय आउट हो सकता है । समय समाप्त ,
बिना डिलीवरी के होने वाली बर्खास्तगी है । आउट होने के किसी भी तरीके में , केवल एक ही बल्ले बाज एक गें द
पर आउट हो सकता है ।

पारी समाप्त

एक पारी समाप्त होती है जब:

1. ग्यारह में से १० बल्लेबाज आउट हो जाते हैं; इस स्थिति में टीम "आल आउट" कहलाती है ।
2. यदि टीम में केवल एक ही ऐसा बल्लेबाज बचा है जो बल्लेबाजी कर सकता है , बाकि बचे हुए एक या अधिक
खिलाड़ी चोट, बीमारी या अनप
ु स्थिति के कारण उपलब्ध नहीं हैं तो भी टीम "ऑल आउट" कहलाती है ।
3. बल्लेबाजी करने वाली टीम को अंत में उस स्कोर तक पहुंचना होता है जो मैच को जीतने के लिए जरुरी है ।
4. ओवर की पूर्व निर्धारित संख्या में ही गें दें डाली जाती हैं, (एक दिवसीय मैच में सामान्यत: ५० ओवर और ट्वें टी
20 में सामान्यत:२० ओवर)

एक कप्तान अपनी टीम की पारी को समाप्त घोषित (declares) कर सकता है जब उसके कम से कम दो


बल्ले बाज नॉट आउट हों, (यह एक दिवसीय के मै च में लागु नहीं होता है ।)

परिणाम

दोनों टीमों के द्वारा बनाये गए रनों की सं ख्या का अन्तर है ।) यदि बाद में खे लने वाली टीम जीतने के लिए
पर्याप्त रन बना ले ती है तो कहा जाता है कि वह n विकेटों से जीत गई। जहां n बचे हुए विकेटों की सं ख्या है ।
उदहारण के लिए यदि कोई टीम केवल ६ विकेट खो कर विरोधी टीम के स्कोर को पार कर ले ती है तो कहा
जाता है कि वह "चार विकेट से मै च जीत गई है "

दो पारी के मै च में एक टीम का पहली और दस ू री पारी का कुल स्कोर दुसरे पक्ष की पहली परी के कुल स्कोर से
भी कम हो सकता है । तब कहा जाता है कि टीम एक पारी और n रनों से जीत गई है और उसे फ़िर से
बल्ले बाजी करने की कोई जरुरत नहीं है : n दोनों टीमों कुल स्कोर के बीच का अं तर है ।

यदि अं त में बल्ले बाजी करने वाली टीम ऑल आउट हो जाती है और दोनों साइडों ने समान रन बनाये हैं , तो
मै च टाई (tie) हो जाता है ; यह नतीजा काफी दुर्लभ होता है । खे ल के परं परागत स्वरूप में , किसी भी पक्ष के
जीतने से पहले यदि समय ख़त्म हो जाता है तो खे ल को ड्रा (draw) घोषित कर दिया जाता है ।

अगर मै च में हर पक्ष के लिए केवल एक पारी है तो हर पारी के लिए की अधिकतम गें दों की सं ख्या अक्सर
निश्चित कर दी जाती है । इस तरह के मै च "सीमित ओवरों के मै च" या "एक दिवसीय मै च" कहलाते हैं और
विकेटों की सं ख्या को ध्यान में न रखते हुए अधिक रन बनाने वाली टीम जीत जाती है । जिससे ड्रा नहीं हो
सकता है । यदि इस प्रकार का मै च अस्थायी रूप से ख़राब मौसम के कारण बाधित हो जाता है तो एक जटिल
गणितीय सूतर् जो डकवर्थ -लु ईस पद्धति कहलाती है उसके मध्यम से एक नया लक्ष्य स्कोर फ़िर से आकलित
किया जाता है । एक दिवसीय मै च को भी "परिणाम रहित " घोषित किया जा सकता है यदि किसी एक टीम के
द्वारा पूर्व निर्धारित ओवर डाले जा चु के हैं और किसी परिस्थिती जै से गीले मौसम के कारण आगे खे ल को नहीं
खे ला जा सकता है ।

मै च के प्रकार
व्यापक अर्थों में क्रिकेट एक बहु आयामी खे ल है , इसे खे ल के पै मानों के आधार पर मे जर क्रिकेट (major
cricket) और माइनर क्रिकेट में विभाजित किया जा सकता है । एक और अधिक उचित विभाजन, विशे ष रूप
से मे जर क्रिकेट के शब्दों में , मै चों के बीच किया जाता है , जिसमें कुल दो पारियां होती हैं , प्रत्ये क टीम को
एक पारी खे लनी होती है । इसे पूर्व में प्रथम श्रेणी क्रिकेट (first-class cricket) के रूप में जाना जाता था,
इसकी अवधि तीन से पाँच दिन होती है , (ऐसे मै चों के उदाहरण भी मिलते हैं जिनमें समय की कोई सीमा नहीं
रही है ); बाद में इन्हें सीमित ओवरों के क्रिकेट (limited overs cricket) के रूप में जाना जाने लगा क्योंकि
प्रत्ये क टीम प्रारूपिक रूप से सीमित ५० ओवर में गें दें डालती है , इसकी पूर्व निर्धारित अवधि केवल १ दिन
होती है । (एक मे च की अवधि को ख़राब मौसम जै से किसी कारण से भी बढाया जा सकता है ।)

आमतौर पर, दो पारी के मै च में प्रति दिन कम से कम ६ घं टे खे लने के समय (playing time) के रूप में दिए
जाते हैं । सीमित ओवरों के मै च अक्सर ६ घं टे या अधिक में समाप्त हो जाते हैं । पे य के लिए सं क्षिप्त
अनौपचारिक अन्तराल के आलावा आम तौर पर भोजन और चाय के लिए औपचारिक अं तराल होते हैं ।
पारियों के बीच एक छोटा अन्तराल भी होता है । ऐतिहासिक रूप से , क्रिकेट का एक रूप जो सिं गल विकेट
(single wicket) के नाम से जाना जाता था, बे हद सफल रहा था और 18 वीं और 19 वीं सदी में इन स्पर्धाओं में
से अधिकां श को मु ख्य क्रिकेट का दर्जा दिया गया था। इस रूप में , हालां कि प्रत्ये क टीम में १ से ६ खिलाड़ी
होते थे और एक समय में केवल एक बल्ले बाज होता था, उसे अपनी पारी की समाप्ति तक हर गें द का सामना
करना होता था। सीमित ओवरों के क्रिकेट की शु रुआत के बाद से सिं गल विकेट क्रिकेट को कभी कभी ही
खे ला गया है ।

टे स्ट क्रिकेट

टे स्ट क्रिकेट (Test cricket) प्रथम श्रेणी क्रिकेट के सर्वोच्च मानक है । एक टे स्ट मै च उन दे शों का
प्रतिनिधित्व करने वाली टीमों के बीच एक अं तर्राष्ट् रीय स्थिरता है जो आईसीसी के पूर्ण सदस्य हैं ।

जनवरी 2005 में दक्षिण अफ् रीका और इं ग्लैं ड के बीच

एक टे स्ट मैच (Test match). काली पतलन


ू पहने हुए परू
ु ष अंपायर हैं (umpires). टे स्ट क्रिकेट, प्रथम श्रेणी क्रिकेट
(first-class cricket) और क्लब क्रिकेट (club cricket) में टीमें पारं परिक सफेद यूनिफॉर्म और लाल क्रिकेट की गें द
(cricket ball) का उपयोग करती हैं, जबकि व्यावसायिक सीमित ओवरों (limited overs) के क्रिकेट में टीमें सामान्यत:
बहुल रं गों की यूनिफॉर्म और सफ़ेद गें दों का इस्तेमाल करती हैं।

हालां कि शब्द "टे स्ट मै च" का प्रयोग काफी समय तक नहीं किया गया, ऐसा माना जाता है कि 1876-77 में
ऑस्ट् रेलियाई मौसम (1876-77 Australian season) में ऑस्ट् रेलिया और इं ग्लैं ड के बीच इसकी शु रुआत हुई।
इसके बाद आठ अन्य राष्ट् रीय दलों ने टे स्ट दर्जा हासिल किया: दक्षिण अफ् रीका (1889), वे स्ट इं डीज
(1928), न्यूजीलैं ड (1929), भारत (1932), पाकिस्तान (Pakistan)(1952), श्रीलं का (Sri Lanka)(1982),
जिम्बाब्वे (1992) और बं गलादे श (2000)। बाद में २००६ में जिम्बाब्वे को टे स्ट दर्जे से निलं बित कर दिया गया,
क्योंकि यह दस ू री टीमों से स्पर्धा नहीं कर पा रही थी। और अभी तक यह निलं बित है ।[21]

वे ल्श खिलाड़ी इं ग्लैं ड के लिए खे लने के लिए पात्र हैं , यह इं ग्लैं ड और वे ल्स की टीम के बीच प्रभावी है ।
वे स्ट इं डीज टीम में कई राज्यों के खिलाड़ी हैं , कैरे बियन, विशे षकर बारबाडोस, गु याना, जमै का, त्रिनिडाड और
टोबै गोसे और लीवर्ड द्वीप और विं ड वार्ड द्वीप से खिलाड़ी इसमें शामिल हैं ।
दो टीमों के बीच आमतौर पर टे स्ट मै चों को मकान के एक समूह में खे ला जाता है जिसे "श्रख ृं ला" कहा जाता
है । मै च ५ दिनों तक चल सकते हैं , सामान्य रूप से एक श्रखृं ला में ३ से ५ मै च हो सकते हैं । टे स्ट मै च जो दिए
गए समय में ख़त्म नहीं होते हैं वह ड्रा हो जाते हैं ।

1882 के बाद से इं ग्लैं ड और ऑस्ट् रेलिया के बीच टे स्ट श्रखृं ला एक ट् रॉफी के लिए खे ली जाती है जिसे दी
एशे स (The Ashes) के नाम से जाना जाता है । कुछ अन्य श्रख ृं लाओं में भी व्यक्तिगत ट् रॉफियां है : उदाहरण
के लिए, विस्डे न ट् रॉफी (Wisden Trophy) जिसके लिए इं ग्लैं ड और वे स्ट इं डीज के बीच स्पर्धा होती है ; फ् रैं क
वोरे ल्ल ट् रॉफी (Frank Worrell Trophy) जिसके लिए ऑस्ट् रेलिया और वे स्ट इं डीज के बीच स्पर्धा होती है ।

सीमित ओवर

एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय

सीमित ओवरों के क्रिकेट (Limited overs cricket) को कभी कभी एक दिवसीय अं तर्राष्ट् रीय के नाम से भी
जाना जाता है क्योंकि हर मै च के लिए एक दिन का समय ही निर्धारित किया जाता है ।

ट्वेन्टी-२० अंतरराष्ट्रीय

व्यवहार में , कभी कभी मै च दस ू रे दिन भी जारी रहते हैं यदि वे ख़राब मौसम के कारण बाधित हो जायें या
स्थगित कर दिए जायें . एक सीमित ओवरों के मै च का मु ख्य उद्दे श्य है परिणाम उत्पन्न करना और इसलिए एक
परं परागत ड्रा सम्भव नहीं होता है ; ले किन कई बार परिणाम घोषित नहीं हो पता जब स्कोर टाई हो जाए या
ख़राब मौसम के कारण इसे बीच में ही रोकना पड़े .प्रत्ये क टीम केवल एक ही पारी खे लती है और एक सीमित
सं ख्या में ओवरों का सामना करती है । आमतौर पर, सीमा है 40 या 50 ओवर, ट् वेन्टी ट् वेन्टी क्रिकेट में
प्रत्ये क टीम को केवल 20 ओवरों का सामना करना होता है । एक सीमित ओवरों अं तर्राष्ट् रीय (Limited
Overs international) के दौरान मानक सीमित ओवरों के क्रिकेट की शु रुआत इं ग्लैं ड में 1963 के मौसम में
हुई, जब प्रथम श्रेणी के काउंटी क्लबों द्वारा एक नोक आउट कप पर स्पर्धा हुई। 1969 में एक राष्ट् रीय लीग
प्रतियोगिता की स्थापना की गई थी। इसके पीछे अवधारणा थी कि अन्य मु ख्य क्रिकेट दे शों को शामिल
किया जाए और पहला सीमित ओवरों का अं तर्राष्ट् रीय मै च १९७१ में खे ला गया। 1975 में , प्रथम क्रिकेट
वर्ल्ड कप इं ग्लैं ड में हुआ। सीमित ओवरों के क्रिकेट में कई बदलाव लाये गए जिसमें बहुल रं गों के किट का
उपयोग और एक सफ़ेद गें द से फ्लड लिट मै च शामिल हैं ।

ट् वेंटी २० सीमित ओवर का नया रूप है जिसका उद्दे श्य है कि मै च ३ घं टे में ख़त्म हो जाए, सामान्यत: इसे
शाम के समय में खे ला जाता है । मूल विचार, जब अवधारणा इं ग्लैं ड में 2003 में पे श की गई, यह था कि
कर्मचारियों को शाम के समय में मनोरं जन उपलब्ध कराया जा सके। यह व्यावसायिक रूप से सफल हुआ और
इसे अं तर्राष्ट् रीय स्तर पर अपनाया गया है । पहली ट् वेंटी 20 विश्व चै म्पियनशिप (Twenty20 World
Championship) 2007 में आयोजित किया गई। अगली ट् वेंटी 20 विश्व चै म्पियनशिप इं ग्लैं ड में 2009 में
आयोजित की जाये गी

राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं

प्रथम श्रेणी क्रिकेट (First-class cricket) में टे स्ट क्रिकेट शामिल है ले किन इस शब्द का उपयोग
सामान्यत: पूर्ण आइ सी सी सदस्यता वाले दे शों में उच्चतम स्तर के घरे लु क्रिकेट के लिए किया जाता है ।
हालां कि इसके अपवाद हैं । प्रथम श्रेणी क्रिकेट 18 काउंटी क्लबों के द्वारा इं ग्लैं ड के बहुत से भाग में खे ला
जाता है जो काउंटी चै म्पियनशिप (County Championship) में हिस्सा ले ते हैं । काउंटी चैं पियन (champion
county) की अवधारणा 18 वीं शताब्दी के बाद से ही अस्तित्व में है , ले किन सरकारी प्रतियोगिता 1890 तक
स्थापित नहीं की गई थी। यॉर्क शायर काउंटी क्रिकेट क्लब (Yorkshire County Cricket Club) सबसे सफल
क्लब रहा है जिसके पास 30 आधिकारिक शीर्षक हैं ।
ऑस्ट् रेलिया ने अपनी राष्ट् रीय प्रथम श्रेणी चै म्पियनशिप की स्थापना 1892-93 में की जब शे फील्ड शील्ड
(Sheffield Shield) शु रू की गई थी। ऑस्ट् रेलिया में , प्रथम श्रेणी की टीमें विभिन्न राज्यों का
प्रतिनिधित्व करती हैं । न्यू साउथ वे ल्स (New South Wales) ने 2008 तक ४५ के साथ सबसे ज्यादा खिताब
जीते हैं ।

राष्ट् रीय चैं पियनशिप ट् राफियां कई स्थानों पर स्थापित है रणजी ट् रॉफी (Ranji Trophy) (भारत), प्लु नकेट
शील्ड (Plunket Shield) (न्यूजीलैं ड), क्यु री कप (Currie Cup) (दक्षिण अफ् रीका) और शै ल शील्ड (Shell
Shield) (वे स्ट इं डीज)। इनमें से कुछ प्रतियोगिताओं का अद्यतन किया गया है और हाल के वर्षों में नए नाम
दिए गए हैं ।

घरे लू सीमित ओवरों की प्रतियोगिताये इं ग्लैं ड के जिले ट कप (Gillette Cup) नोक आउट के साथ १९६३ में
शु रू हुई। आमतौर पर दे श नोक आउट और लीग दोनों प्रारूपों में मौसमी सीमित ओवरों की
प्रतियोगिताओं को करते हैं । हाल के वर्षों में , राष्ट् रीय ट् वेंटी 20 प्रतियोगिताये शु रू हुई हैं । ये सामान्यतया
नोक आउट रूप में शु रू की गई हैं ले किन कुछ मिनी लीग के रूप में भी हैं ।

बैडमिंटन
बै डमिं टन

डै निश बै डमिं टन खिलाड़ी पीटर गे ड


सर्वोच्च नियंतर् ण निकाय विश्व बै डमिं टन सं घ
सबसे पहले खेला गया अठ् ठारहवीं शताब्दी
विशे षताएँ
अनु बंध नहीं
दल के सदस्य एकल, यु गल, मिश्रित

मिश्रित लिंग महिला, पु रुष


वर्गीकरण रै केट से खे ले जाने वाले खे ल
उपकरण शटलकॉक
ओलंपिक 1992 से

बैडमिंटन रै केट से खेला जानेवाला एक खेल है , जो दो विरोधी खिलाडियों (एकल) या दो विरोधी जोड़ों
(युगल) द्वारा नेट से विभाजित एक आयताकार कोर्ट में आमने -सामने खेला जाता है खिलाड़ी अपने
रै केट से शटलकॉक को मारकर के अपने विरोधी पक्ष के कोर्ट के आधे हिस्से में गिराकर प्वाइंट्स
प्राप्त करते हैं। एक रै ली तब समाप्त हो जाती है जब शटलकॉक मैदान पर गिर जाता है । प्रत्येक
पक्ष शटलकॉक के उस पार जाने से पहले उस पर सिर्फ़ एक बार वार कर सकता है ।

शटलकॉक (या शटल) चिड़ियों के पंखों से बना प्रक्षेप्य है , जिसकी अनोखी उड़ान भरने की क्षमता के
कारण यह अधिकांश रै केट खेलों की गें दों की तल
ु ना में अलग तरह से उड़ा करती है । खासतौर पर,
पंख कहीं ज़्यादा ऊंचाई तक खिंची जा सकती हैं , जिस कारण गें द की तल
ु ना में शटलकॉक कहीं
अधिक तेज़ी से अवत्वरण करता है । अन्य रै केट के खेलों की तुलना में शटलकॉक की शीर्ष गति
बहुत अधिक होती है । चंकि ू शटलकॉक की उड़ान हवा से प्रभावित होती है , इसीलिए बैडमिंटन
प्रतिस्पर्धा इनडोर में ही खेलना अच्छा होता है । कभी-कभी मनोरं जन के लिए बगीचे या समद्र
ु तट
पर भी खल
ु े में बैडमिंटन खेला जाता है ।

सन ् 1992 से, पांच प्रकार के आयोजनों के साथ बैडमिंटन एक ओलम्पिक खेल रहा है : परु
ु षों और
महिलाओं के एकल, परु
ु षों और महिलाओं के युगल और मिश्रित युगल, जिसमें प्रत्येक जोड़ी में एक
पुरूष और एक महिला होती है । खेल के उच्च स्तर पर, खेल उत्कृष्ट शारीरिक फिटनेस की मांग
करता है : खिलाड़ियों को एरोबिक क्षमता, दक्षता, शक्ति, गति और दरू
ु स्तता की आवश्यकता होती है ।
यह एक तकनीकी खेल भी है , इसमें अच्छे संचालन समन्वय और परिष्कृत रै केट जुम्बिशों के
विकास की ज़रुरत होती है ।

बैटलडोर और शटलकॉक. 1854, जॉन लीच के पुरालेख से उद्धृत[1]

बै डमिं टन की शु रुआत 19 वीं सदी के मध्य में ब्रिटिश भारत में मानी जा सकती है , उस समय तै नात ब्रिटिश
सै निक अधिकारियों द्वारा इसका सृ जन किया गया था।[2] प्रारं भिक तस्वीरों में अं गर् े ज़ बल्ले और शटलकॉक के
अं गर् े ज़ों के पारं परिक खे ल में ने ट को जोड़ते दिखायी दे ते हैं । ब्रिटिश छावनी शहर पूना में यह खे ल खासतौर
पर लोकप्रिय रहा, इसीलिए इस खे ल को पूनाई के नाम से भी जाना जाता है ।[2][3] शु रू में , हवा या गीले
मौसम में उच्च वर्ग ऊन के गोले से खे लना पसं द करते थे , ले किन अं ततः शटलकॉक ने बाज़ी मार ली। इस
खे ल को से वानिवृ त्ति के बाद वापस लौटने वाले अधिकारी इं ग्लैं ड ले गए, जहां इसे विकसित किया गया और
नियम बनाये गए।[2][3]

सन् 1860 के आस-पास, लं दन के एक खिलौना व्यापारी इसहाक स्प्राट ने बै डमिं टन बै टलडोर- एक नया खे ल
नामक एक पु स्तिका प्रकाशित की, ले किन दुर्भाग्य की बात है कि उसकी कोई प्रति नहीं बच पायी.[4]

नया खे ल निश्चित रूप से सन् 1873 में ग्लूस्टरशायर स्थित ब्यूफोर्ट के ड्यूक के स्वामित्ववाले बै डमिं टन
हाउस में शु रू किया गया था। उस समय तक, इसे "बै डमिं टन का खे ल" नाम से जाना जाता था और बाद में इस
खे ल का आधिकारिक नाम बै डमिं टन बन गया।[5]

सन् 1887 तक, ब्रिटिश भारत में जारी नियमों के ही तहत इं ग्लैं ड में यह खे ल खे ला जाता रहा। बाथ बै डमिं टन
क्लब ने नियमों का मानकीकरण किया और खे ल को अं गर् े ज़ी विचारों के अनु सार ढाला गया। 1887 में बु नियादी
नियम बनाये गए।[5] सन् 1893 में , इं ग्लैं ड बै डमिं टन एसोसिएशन ने आज के नियमों जै से ही, इन विनियमों के
अनु सार नियमों का पहला से ट प्रकाशित किया और उसी साल 13 सितम्बर को इं ग्लैं ड के पोर्ट्समाउथ स्थित
6 वै वर्ली ग्रोव के "डनबर" नामक भवन में आधिकारिक तौर पर बै डमिं टन की शु रूआत की। [6] 1899 में ,
उन्होंने ऑल इं ग्लैं ड ओपन बै डमिं टन चै म्पियनशिप भी शु रू की, जो विश्व की पहली बै डमिं टन प्रतियोगिता
बनी।

अं तर्राष्ट् रीय बै डमिं टन महासं घ (IBF) (जो अब विश्व बै डमिं टन सं घ के नाम से जाना जाता है ) सन् 1934 में
स्थापित किया गया; कनाडा, डे न्मार्क , इं ग्लैं ड, फ् रांस, नीदरलैं ड, आयरलैं ड, न्यूजीलैं ड, स्कॉटलैं ड और वे ल्स
इसके सं स्थापक बने । भारत सन् 1936 में एक सहयोगी के रूप में शामिल हुआ। बीडब्ल्यु एफ अब अं तर्राष्ट् रीय
बै डमिं टन खे ल को नियं त्रित करता है और खे ल को दुनिया भर में विकसित करता है ।
हालां कि इसके नियम इं ग्लैं ड में बने , ले किन यूरोप में प्रतिस्पर्धी बै डमिं टन पर पारं परिक रूप से डे न्मार्क का
दबदबा है । इं डोने शिया, दक्षिण कोरिया और मले शिया उन दे शों में हैं जो लगातार पिछले कुछ दशकों से विश्व
स्तर के खिलाड़ी पै दा कर रहे हैं और अं तर्राष्ट् रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हावी हैं ; इनमें चीन भी शामिल
है , हाल के वर्षों में जिसका सबसे अधिक दबदबा रहा है ।

नियम
निम्नलिखित सूचना नियम का एक सरलीकृत सारां श है , पूरी प्रतिलिपि नहीं है । बीडब्ल्यु एफ सं विधि
प्रकाशन नियम का निश्चित स्रोत है ,[7] हालां कि नियम के अं कीय वितरण के रे खाचित्र की ख़राब
प्रतिकृतियां हैं ।

खेल के कोर्ट का आयाम

बैडमिंटन कोर्ट, इसोमेट्रिक दे खें

कोर्ट आयताकार होता है और ने ट द्वारा दो हिस्सों में विभाजित किया जाता है । आम तौर पर कोर्ट एकल और
यु गल दोनों खे ल के लिए चिह्नित किये जाते हैं , हालां कि नियम सिर्फ एकल के लिए कोर्ट को चिह्नित करने की
अनु मति दे ता है । यु गल कोर्ट एकल कोर्ट से अधिक चौड़े होते हैं , ले किन दोनों की लं बाई एक समान होती हैं ।
अपवाद, जो अक्सर नए खिलाड़ियों को भ्रम में डाल दे ता है कि यु गल कोर्ट की सर्व-लं बाई आयाम छोटा
होता है ।

कोर्ट की पूरी चौड़ाई 6.1 मीटर (20 फुट) और एकल की चौड़ाई इससे कम 5.18 मीटर (17 फुट) होती है । कोर्ट
की पूरी लं बाई 13.4 मीटर (44 फुट) होती है । सर्विस कोर्ट एक मध्य रे खा द्वारा कोर्ट की चौडाई को विभाजित
करके चिन्हित होते हैं । ने ट से 1.98 मीटर (6 फुट 6 इं च) की दरू ी पर शॉर्ट सर्विस रे खा द्वारा और बाहरी ओर
तथा पिछली सीमाओं द्वारा यह चिह्नित होता है । यु गल में , सर्विस कोर्ट एक लं बी सर्विस रे खा द्वारा भी
चिह्नित होती है , जो पिछली सीमा से 0.78 मीटर (2 फुट 6 इं च) की दरू ी पर होती है ।

ने ट किनारों पर 1.55 मीटर (5 फीट 1 इं च) और बीच में 1.524 मीटर (5 फीट) ऊंचा होता है । ने ट के खम्बे
यु गल पार्श्वरे खाओं पर खड़े होते हैं , तब भी जब एकल खे ला जाता है ।

बै डमिं टन के नियमों में कोर्ट के ऊपर की छत की न्यूनतम ऊंचाई का कोई उल्ले ख नहीं है । फिर भी, ऐसा
बै डमिं टन कोर्ट अच्छा नहीं माना जाये गा अगर ऊंचा सर्व छत को छू जाय।

उपकरण नियम

नियम निर्दिष्ट करता है कि कौन-सा उपकरण इस्ते माल किया जा सकता है । विशे ष रूप से , रै केट और
शटलकॉक के डिजाइन और आकार को ले कर नियम सीमाबद्ध हैं । सही गति के लिए शटलकॉक के परीक्षण का
भी नियम में प्रावधान हैं :

3.1 : शटलकॉक की जांच के लिए फुल अं डरहै ण्ड स्ट् रोक का उपयोग करें जो शटलकॉक को पिछली बाउंड्री
रे खा तक ले जाता है । शटलकॉक को एक ऊपरी कोण पर और समानां तर दिशा में साइड लाइन की ओर मारना
चाहिए।

3.2 : सही गति का एक शटलकॉक अन्य पिछली बाउं ड्री लाइन से कम से कम 530 मिमी और 990 मिमी से
ज़्यादा दरू नहीं गिरे गा।

स्कोरिं ग प्रणाली और सर्विस

मुख्य लेख: en:Scoring system development of badminton


बु नियादी बातें

हर खे ल 21 प्वाइं ट पर खे ला जाता है , जहां खिलाड़ी एक रै ली जीत कर एक प्वाइं ट स्कोर करता है (यह उस


पु रानी व्यवस्था से अलग है , जिसमें खिलाड़ी सिर्फ अपने सर्व जीतकर ही अं क पा सकते थे )। तीन खे ल में
सर्वोत्तम का एक मै च होता है ।

रै ली के आरं भ में , सर्वर और रिसीवर अपने -अपने सर्विस कोर्ट में एक-दस ू रे के तिरछे खड़े होते हैं (दे खें कोर्ट के
आयाम)। सर्वर शटलकॉक को इस तरह हिट करता है कि यह रिसीवर के सर्विस कोर्ट में जाकर गिरे . यह टे निस
के समान है , सिवाय इसके कि बै डमिं टन सर्व कमर की ऊंचाई के नीचे से हिट किया जाना चाहिए और रै केट
शाफ्ट अधोमु खी होना चाहिए, शटलकॉक को बाउंस करने की अनु मति नहीं है और बै डमिं टन में खिलाड़ियों
को अपने सर्व कोर्टों के अं दर खड़े रहना पड़ता है , जबकि ऐसा टे निस में नहीं होता है ।

् यों को मिल जाया करता है (पु रानी


जब सर्विं ग पक्ष एक रै ली हार जाता है , तब सर्व प्रतिद्वं द्वी या प्रतिद्वं दवि
व्यवस्था के विपरीत, यु गल में "से कंड सर्व" नहीं होता है )।

एकल में , सर्वर का स्कोर सम होता है तब वह अपने दाहिने सर्विस कोर्ट में और जब उसका स्कोर विषम होता है
तब वह अपने बाएं सर्विस कोर्ट में खड़ा होता है ।

यु गल में , अगर सर्विं ग पक्ष एक रै ली जीत जाता है , तो वही खिलाड़ी सर्व करना जारी रखता है , ले किन उसे
सर्विस कोर्ट बदलना पड़ता है ताकि वह बारी-बारी से हरे क प्रतिद्वं द्वी के लिए कार्य करता है । अगर विरोधी
रै ली जीत जाते हैं और उनका नया स्कोर सम है , तब दाहिने सर्विस कोर्ट का खिलाड़ी सर्व करता है ; अगर विषम
है तो बाएं सर्विस कोर्ट का खिलाडी सर्व करता है । पिछली रै ली के आरं भ में उनकी जगह के आधार पर ही
खिलाडियों के सर्विस कोर्ट निर्धारित होते हैं , न कि रै ली के अं त में जहां वे खड़े थे । इस प्रणाली का एक
परिणाम यह है कि हर बार एक साइड को सर्विस का मौका मिलता है , ऐसे खिलाड़ी को सर्वर बनने का अवसर
मिलता है जिसने पिछली बार सर्व नहीं किया था।

विवरण

जब सर्वर सर्व करता है , तब शटलकॉक विरोधियों के कोर्ट में शार्ट सर्विस लाइन के पार जाना चाहिए वरना इसे
चूक मान लिया जाएगा.

अगर स्कोर 20-ऑल तक पहुंच चु का है , तो खे ल जारी रहता है जबतक कि एक पक्ष दो अं क (जै से कि 24-22)
की बढ़त नहीं ले ले ता, अधिकतम 30 अं क तक ऐसा ही चलता रह सकता है (30-29 जीत का स्कोर है )।

मै च के आरं भ में , एक सिक्का उछाला जाता है । इसमें जीतने वाले यह तय कर सकते हैं कि वे पहले सर्व करें गे
या रिसीव करें गे , या वे कोर्ट के किस छोर से पहले खे लना चाहें गे . उनके विरोधियों को बचे हुए का ही चयन
करना पड़ता है । कम औपचारिक से टिंग्स में , सिक्का उछालने के बजाय अक्सर ही एक शटलकॉक को हिट
करके ऊपर हवा में उड़ाया जाता है , कॉर्क का सिरा जिस ओर इं गित करता है वो पक्ष सर्व करे गा।

बाद के खे ल में , पिछले खे ल के विजे ता पहले सर्व करते हैं । इन्हें रबर्स भी कहा जा सकता है । अगर एक टीम
एक खे ल जीत जाती है तो वे एक बार फिर खे लते हैं और अगर वह एक बार फिर से जीत जाती है तो वह उस
मै च को ही जीत ले ती हैं , ले किन यदि वह हार गयी तो उन्हें मै च में जीत-हार के लिए एक और मै च खे लना
पड़ता है । किसी भी यु गल खे ल की पहली रै ली के लिए, सर्विं ग जोड़ी फैसला कर सकती है कि कौन पहले सर्व
करे गा और रिसीविं ग जोड़ी फैसला कर सकती है कि कौन पहले रिसीव करे गा। दस ू रे खे ल की शु रुआत में
खिलाड़ियों को अपना छोर बदलना होता है ; अगर मै च तीसरे खे ल तक पहुंचता है , तब गे म के आरं भ में और
फिर जब अग्रणी जोड़ी का स्कोर 11 अं क तक पहुंचता है तब, उन्हें दो बार अपने छोर बदलने पड़ते हैं ।

सर्वर और रिसीवर को सीमा रे खा छुए बिना अपने सर्विस कोर्ट में रहना पड़ता है , जब तक कि सर्वर शटलकॉक
को स्ट् राइक नहीं करता. अन्य दो खिलाड़ी अपनी इच्छा अनु सार कहीं भी खड़े रह सकते हैं , तब तक जब तक
कि वे विरोधी सर्वर या रिसीवर की नज़र से दरू हैं ।

गलतियां (फॉल्ट)
खिलाड़ी शटलकॉक को स्ट् राइक करके और उसे विरोधी पक्ष के कोर्ट की सीमा के अं दर गिराकर एक रै ली जीते
जाते हैं (एकल: साइड ट् रामलाइं स बाहर हैं , ले किन पिछली ट् राम अं दर. यु गल: साइड ट् रामलाइं स अं दर हैं ,
ले किन पिछली ट् रामलाइन बाहर (सिर्फ सर्विस के लिए))। खिलाड़ी तब भी एक रै ली जीत जाता है जब
विरोधी कोई गलती करता है । बै डमिं टन में सबसे आम गलती या फॉल्ट है जब खिलाड़ी शटलकॉक को वापस
भे जने और विरोधी कोर्ट में गिराने में विफल होता है , ले किन और भी अन्य तरीके से खिलाड़ियों से गलती हो
सकती है ।

कई गलतियां विशे ष रूप से सर्विस से सं बंधित हैं । सर्विं ग खिलाड़ी की गलती होगी अगर सं पर्क के समय
शटलकॉक उसकी कमर से ऊपर हो (उसकी निचली पसली के पास), या सं घात के वक़्त उसके रै केट का सिर
अधोमु खी न हो। यह विशे ष नियम 2006 में सं शोधित हुआ: पहले , सर्वर के रै केट को इस हद तक अधोमु खी
होना होता था कि रै केट के सिर को उस हाथ से नीचे रहना जरूरी था जिससे रै केट को पकड़ा गया है ; और अब,
समस्तर के नीचे कोई भी कोण स्वीकार्य है ।

न तो सर्वर और न ही रिसीवर एक पै र उठा सकते हैं जब तक कि सर्वर शटलकॉक को स्ट् रक न करे . सर्वर को
शु रू में शटलकॉक के आधार (कॉर्क ) पर भी हिट करना होगा, हालां कि वह बाद में उसी स्ट् रोक के एक भाग के
रूप में पं खवाले हिस्से पर भी हिट कर सकता है । एस-सर्व या सीडे क सर्व के नाम से ख्यात एक अत्यं त
प्रभावी सर्विस शै ली को प्रतिबं धित करने के लिए यह क़ानून बनाया गया। इस शै ली के जरिए सर्वर
शटलकॉक की उड़ान में अव्यवस्थित स्पिन पै दा किया करते थे ।[8]

ने ट के पार वापस भे जने के पहले हर पक्ष शटलकॉक को सिर्फ एक ही बार स्ट् राइक कर सकता है ; ले किन एक
एकल स्ट् रोक सं चलन के दौरान कोई खिलाड़ी शटलकॉक को दो बार सं पर्क कर सकता है (कुछ तिरछे शॉट् स में
होता है )। बहरहाल, कोई खिलाड़ी शटलकॉक को एक बार हिट करने के बाद फिर किसी नयी चाल के साथ उसे
हिट नहीं कर सकता, या वह शटलकॉक को थाम या स्लिं ग नहीं कर सकता है ।

अगर शटलकॉक छत को हिट करता है तो यह फॉल्ट होगा।

ले ट्स

अगर ले ट्स होता है तो रै ली बं द कर दी जाती है और स्कोर में बगै र कोई परिवर्तन के फिर से खे ली जाती है ।
कुछ अनपे क्षित बाधा के कारण ले ट्स हो सकते हैं , मसलन शटलकॉक के कोर्ट में गिर जाने पर (सं लग्न कोर्ट के
खिलाड़ियों द्वारा हिट कर दिया गया हो) या छोटे हॉल के ऊपरी भाग से शटल छू जाए तो इसे ले ट्स कहा जा
सकता है ।

जब सर्व किया गया तब अगर रिसीवर तै यार नहीं है , उसे ले ट्स कहा जाएगा; फिर भी, अगर रिसीवर
शटलकॉक वापस करने का प्रयास करता है , तो मान लिया जाएगा कि वह तै यार हो गया।

अगर शटलकॉक टे प को हिट करता है तो वह ले ट्स नहीं होगा (सर्विस के वक़्त भी)|

उपकरण

रै केट

बै डमिं टन रै केट हलके होते हैं , अच्छे किस्म के रै केट का वजन तार सहित 79 और 91 ग्राम के बीच होता है ।[9]
[10]
ये कई अलग सामग्रियों कार्बन फाइबर मिश्रण (ग्रैफाइट प्रबलित प्लास्टिक) से ले कर ठोस इस्पात
तक, विभिन्न तरह के पदार्थों के सं वर्धन से बनाये जा सकते हैं । कार्बन फाइबर वजन अनु पात में एक उत्कृष्ट
शक्ति प्रदान करता है , जो कठोर है और गतिज ऊर्जा का स्थानां तरण बहुत बढ़िया दे ता है । कार्बन फाइबर
मिश्रण से पहले , रै केट हलके धातु ओं जै से एल्यूमिनियम में बनता था। इससे पहले रै केट लकड़ी के बनते थे ।
सस्ते रै केट अब भी अक्सर इस्पात जै से धातु के बनते हैं , ले किन अत्यधिक मात्रा में लकड़ी लगने और इसकी
कीमत के कारण अब सामान्य बाजार के लिए लकड़ी के रै केट नहीं बनते हैं । आजकल, अधिक से अधिक
टिकाऊपन दे ने के लिए नै नो मै टेरिअल जै से फुल्ले रेने और कार्बन नै नोट्यूब को भी रै केट बनाने में शामिल
किया जा रहा हैं ।

रै केट डिजाइन में बहुत सारी विविधताएं हैं , हालां कि नियमन रै केट का साइज और उसके आकार की सीमा तय
कर दी गयी है । अलग-अलग खिलाड़ियों के खे ल के अं दाज़ के लिए विभिन्न तरह के रै केट होते हैं । पारं परिक
ऊपरी हिस्सा अं डाकार वाले रै केट अभी भी उपलब्ध हैं , ले किन एक सममात्रिक आकार का रै केट ते ज़ी से आम
हो रहा है । वे ज़्यादातर खिलाड़ियों में बहुत लोकप्रिय हैं ।

तार

बै डमिं टन तार पतले होते हैं , बहुत अच्छे प्रदर्शन वाले तार 0.65 से 0.73 मिमी मोटाई की रें ज में होते हैं ।
मोटा तार अधिक टिकाऊ होता है , ले किन ज़्यादातर खिलाड़ी पतले तार पसं द करते हैं । तार का कसाव
आमतौर पर 80 से 130 N (18-36 lbf) में होता है । पे शेवर के बजाए शौकिया खिलाडी आमतौर पर तार कम
कसाव में रखते हैं , ख़ास तौर से 18 और 25 पौंड-बल (110 न्यू.) के बीच होता है । पे शेवर के तार का कसाव
लगभग 25 और 36 पौंड-बल (160 न्यू.) के बीच.

अक्सर यह तर्क दिया जाता है , तार का कसाव नियं तर् ण को उन्नत बनाता है , जबकि कम कसाव शक्ति में
् करता है ।[11] इसके लिए जो यु क्ति दी जाती है वह आमतौर कच्चे यां त्रिक तर्क के तौर पर लागू होते हैं ,
वृ दधि
जै से कि कम कसाववाले तार का आधार अधिक उछाल दे ने वाला होता है और इसलिए अधिक शक्ति प्रदान
करता है । दरअसल यह गलत है , वास्तव में , एक उच्च कसाववाले तार के कारण शटल रै केट से फिसल सकता
है और इसीलिए शॉट ठीक से मार पाना मु श्किल होता है । एक विकल्प यह सु झाता है कि ताकत के लिए
सर्वोत्तम कसाव खिलाड़ी पर निर्भर करता है :[10] सर्वाधिक ताकत के लिए उच्च कसाव से खिलाड़ी अपने रै केट
को अधिक ते ज़ी से और अधिक सटीक तौर पर लहरा सकता है । किसी भी विचार के लिए न तो कड़े यां त्रिक
विश्ले षण की जरुरत है और न ही इसके या दस ू रे के पक्ष में स्पष्ट सबूत हैं । एक खिलाड़ी के लिए सबसे
प्रभावी तरीका है कि एक अच्छे कसाववाले तार का वह प्रयोग करे .

ग्रिप

पकड़ या ग्रिप की पसं द खिलाड़ी को अपने रै केट के मु ट्ठे की मोटाई में वृ दधि
् और पकड़ के लिए
आरामदायक सतह के चु नाव करने की अनु मति दे ती है । अं तिम परत चढ़ाने से पहले खिलाड़ी एक या अने क
ग्रिप के साथ रै केट का मु ट्ठा तै यार कर सकता है ।

खिलाडी ग्रिप की विभिन्न प्रकार की सामग्री के बीच चु नाव कर सकते हैं । ज़्यादातर [PU] सिं थेटिक ग्रिप
या टॉवे लिंग ग्रिप का ही चलन है । ग्रिप की पसं द निजी प्राथमिकता का मामला है । अक्सर खिलाडियों के
लिए पसीना एक समस्या है ; इस मामले में , ग्रिप या हाथ में एक ड्राइं ग एजें ट लगाया जा सकता है ,
ू रे किस्म का ग्रिप मै टेरिअल चु न सकता है या ग्रिप को
स्वे टबैं ड्स का इस्ते माल हो सकता है , खिलाड़ी दस
बार-बार बदल सकता है ।

मु ख्य प्रकार के दो ग्रिप हैं : रिप्ले समें ट ग्रिप और ओवरग्रिप्स . रिप्ले समें ट ग्रिप मोटा होता है और अक्सर
इसका इस्ते माल मु ट्ठे की माप में वृ दधि ् में किया जाता है । ओवरग्रिप्स पतले (1 मिमी से कम) होते हैं और
अक्सर इसका इस्ते माल अं तिम परत के रूप में किया जाता है । बहरहाल, बहुत सारे खिलाडी अं तिम परत के
रूप में रिप्ले समें ट ग्रिप का उपयोग करना पसं द करते हैं । टॉवे लिंग ग्रिप हमे शा रिप्ले समें ट ग्रिप होते हैं ।
रिप्ले समें ट ग्रिप चिपकने वाला होता है , जबकि ओवरग्रिप्स टे प के शु रू में चिपकने वाले केवल छोटे पै च होते
हैं और कसाव के आधार पर इसे लगाया जाना चाहिए; ओवरग्रिप्स उन खिलाड़ियों के लिए और अधिक
सु विधाजनक हैं जो अक्सर ग्रिप बार-बार बदलते हैं , क्योंकि बगै र खराब हुए वे अं तर्निहित सामग्री को
जल्दी-जल्दी बदल दे सकते हैं ।

शटलकॉक

मुख्य लेख: शटलकॉक


शटलकॉक (अक्सर सं क्षेप में शटल और सामान्यतः चिड़िया रूप में भी जाना जाता है ) एक खु ला शं कु आकार
का ऊंचा उड़ने वाला प्रक्षे प्य है : कॉर्क के आधार में सोलह अतिव्यापी अं तःस्थापित पं खों से शं कु बनाया जाता
है । कॉर्क को महीन चमड़े या सिं थेटिक सामग्री से ढं क दिया जाता है ।

चूंकि पं खों के शटल आसानी से टू ट जाते हैं , इसीलिए अक्सर शौकिया खिलाड़ियों द्वारा अपनी लागत को कम
करने के लिए सिं थेटिक शटल का इस्ते माल किया जाता है । ये नायलॉन शटल या तो प्राकृतिक कॉर्क या
कृत्रिम फोम बे स और प्लास्टिक के घे रे से बनाये जाते हैं ।

इसके अतिरिक्त, नायलॉन शटलकॉक तीन किस्मों के होते हैं , हरे क किस्म अलग तरह के तापमान के लिए होते
हैं । ये तीन किस्म के होए हैं ; हरा (धीमी गति जो आपको एक अतिरिक्त 40% समय/शॉट लं बाई दे गा), नीला
(मध्यम गति) और लाल (ते ज़ गति) के लिए। इसलिए कॉर्क के चारों तरफ चिपकी रं गीन पट् टी रं ग और गति
की ओर सं केत करती है । ठं डे तापमान में ते ज़ शटल का उपयोग किया जाता है और गर्म मौसम में धीमें को
चु ना जाता है ।

कल

एकल कोर्ट यु गल कोर्ट की तु लना में सं करा होता है , ले किन लं बाई में एक समान, सर्व में एकल और यु गल में
बै क बॉक्स बाहर होता है । क्योंकि पूरे कोर्ट को कवर करने के लिए एक व्यक्ति जरूरी होता है , एकल रणनीति
विरोधी को जितना सं भव हो सके उतना चलने के लिए बाध्य करने पर आधारित होती है ; इसका मतलब यह है
कि एकल स्ट् रोक आमतौर पर कोर्ट के कोने से जु ड़ा होता है । ड्राप्सशॉर्ट और ने टशॉर्ट के साथ लिफ्ट और
क्लियर के सं योजन से खिलाड़ी कोर्ट की पूरी लं बाई का फायदा उठाता है । यु गल की तु लना में एकल में स्मै श
कम ही दे खने में आता है , क्योंकि खिलाड़ी स्मै श करने की आदर्श स्थिति में कम ही होते हैं और अगर स्मै श
वापस लौट कर आता है तो स्मै श करने वाले को अक्सर चोट लग जाती है ।

एकल में , खिलाड़ी ज़्यादातर फोरहैं ड हाई सर्व के साथ रै ली की शु रूआत करे गा। लगातार लो सर्व या तो
फोरहैं ड या फिर बै कहैं ड का भी उपयोग होता है । फ्लिक सर्व कम ही होता है और ड्राइव सर्व तो विरल ही है ।

उच्च स्तर के खे ल में , एकल में उल्ले खनीय फिटने स की जररत होती है । यु गल के बहुत ही अक् रामकता के
विपरीत, एकल धै र्यवान स्थितिजन्य दां व का खे ल है ।

मिश्रित यु गल

मिश्रित यु गल में सामने की ओर महिला और पीछे की ओर पु रूष के साथ दोनों जोड़ी आक् रामकता को
बरकरार रखने की कोशिश करती है । इसका कारण यह है पु रुष खिलाड़ियों जो काफी मजबूत होते हैं और
इसलिए वे जो स्मै श करते हैं वह बहुत ही शक्तिशाली होता हैं । नतीजतन, मिश्रित यु गल में रणनीतिक
जागरूकता और सूक्ष्मतर स्थितिजन्य खे ल की बहुत ज़रुरत होती है । चालाक विरोधी महिला को पीछे की
तरफ और पु रुष को आगे की ओर आने के लिए मजबूर करते हुए उनकी आदर्श स्थिति को बदलने की कोशिश
करे गा। इस खतरे से बचने के लिए, मिश्रित खिलाड़ी को अपने शॉट का चु नाव करने में चौकन्ना और
व्यवस्थित होना होगा। [12]

उच्च स्तर के खे ल में , सं रचना आमतौर पर लचीली होती है : चोटी की महिला खिलाड़ी रियरकोर्ट से पूरी ताकत
के साथ खे लने में सक्षम होती है और जब इसकी ज़रुरत हो तो वह खु शी-खु शी ऐसा कर ले गी. बहरहाल, जब
मौका मिलता है , महिला को समाने की तरफ रखकर जोड़ी फिर से मानक मिश्रित आक् रामक स्थिति में
जाएगी.

बाएं हाथ का एकल

बाएं हाथ के खिलाड़ी को दाहिने हाथ के खिलाड़ी के खिलाफ एक स्वाभाविक लाभ मिल जाता है । ऐसा
इसलिए कि दुनिया में ज़्यादातर दाहिने हाथ के खिलाड़ी हैं (आप उनके साथ खे लने के आदी नहीं हैं )। अगर
आप बाएं हाथ से खे लते हैं , फोरहैं ड और बै कहैं ड बदल जाता है , इसलिए आपके दाहिने ओर के कोर्ट में एक
शॉट (दाहिने हाथ के खिलाड़ी का बैं कहैं ड) का परिणाम आपके खिलाफ एक बहुत ही शक्तिशाली स्मै श होगा।
इस कारण बाएं हाथ के खिलाडि़यों का झुकाव उनके फोरहैं ड की तरफ अधिक से अधिक शॉट डालने का होगा
और फलस्वरूप उनका बैं कहैं ड पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं होता है । इसलिए, बाएं हाथ के खिलाड़ी की मु ख्य
कमजोरी उसका बै कहैं ड होता है । यह जानने के बाद, बाएं हाथ के एक खिलाड़ी को अपने ज़्यादातर शॉट् स कोर्ट
के बाएं ओर खे लने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि दाहिने हाथ के व्यक्ति का फोरहैं ड होने के
बावजूद, शोट की वापसी भी आपके फोरहैं ड की ओर होगी (एक समानां तर शॉट की तु लना में एक क् रॉस-कोर्ट
शॉट को खे लना बहुत मु श्किल होता है ।) यह सु निश्चित करे गा कि आप स्मै शिंग जारी रख सकते हैं । यह कहा
जाता है कि बाएं हाथवालों के स्मै शेस बे हतर होते हैं । यह आं शिक रूप से सही है क्योंकि बाएं हाथ का
खिलाड़ी दुर्लभ कोण बनाने में सक्षम होता है (एक हलके कोण वाले शॉट के बजाय कोर्ट की बायीं ओर एक
सामानां तर शॉट) और इसलिए भी कि शटलकॉक पर पं ख इस तरह लगे हुए होते हैं जो बाएं हाथ के खिलाड़ी
की मदद करते हैं (बाएं हाथ के खिलाड़ी के फोरहैं ड से किये स्लाइस से शटलकॉक की गति ज़्यादा हो जाती है ,
इस कारण कहीं अधिक शक्तिशाली स्मै श बनता है )। हालां कि, एक बाएं हाथ का खिलाड़ी खु द उलझन में पड़
जाएगा, जब वह एक समकक्ष साथी के साथ खे ल रहा हो।

बाएं हाथ/दाहिने हाथ की यु गल जोड़ी

उन्नत स्तर के खे ल में बाएं हाथ/दाहिने हाथ की यु गल जोड़ी बहुत ही आम है । इसकी वजह यह है कि इन्हें
दाहिने हाथ/दाहिने हाथ या बाएं हाथ/बाएं हाथ की यु गल जोड़ी पर एक विशिष्ट लाभ प्राप्त होता है । सबसे
उल्ले खनीय लाभ यह है कि कोर्ट का कोई भी साइड कमजोर नहीं होता है । इससे विरोधी टीम को यह सोचने में
अधिक समय लगता है कि कौन-सी साइड बै कहैं ड है और शटलकॉक को वहां भे जना है , क्योंकि एक सामान्य
दाहिनी/दाहिनी जोड़ी के विरूद्ध आप आमतौर पर लगभग हमे शा कोर्ट के आपकी दाहिनी ओर ही भे जते हैं ,
जबकि LH/RH (बायीं/दाहिनी) जोड़ी रै ली के दौरान अपने कमजोर पक्ष में परिवर्तन कर लिया करती है । बाएं
हाथ के खिलाड़ी को स्मै श करने में भी एक अन्य लाभ मिलता है । चिड़िया के पं ख के शटलकॉक में एक
प्राकृतिक स्पिन होता है , इसलिए जब बाएं हाथ से शटलकॉक को हलके से तिरछे शॉट लगाते हैं तब आप
प्राकृतिक स्पिन का लाभ उठाते हुए उसे ड्रैग करके ते ज़ स्मै श करते हैं । जब एक दाहिने हाथ का खिलाड़ी
अपने बै कहैं ड से शॉट को स्लाइस करता है तब एक ही प्रभाव पड़ता है । इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण
टै न बून हे ओंग हैं , जो एक बाएं हाथ के खिलाड़ी हैं , जिनके नाम 421 किमी/घं टा का विश्व रिकॉर्ड है ।

शासकीय निकाय
विश्व बै डमिं टन सं घ (बीडब्ल्यु एफ) खे ल का अं तर्राष्ट् रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त शासकीय निकाय है ।
बीडब्ल्यु एफ के साथ जु ड़े पांच क्षे तर् ीय परिसं घ हैं :

 एशिया: बैडमिंटन एशिया परिसंघ (BAC)


 अफ्रीका: अफ्रीका का बैडमिंटन परिसंघ (BCA)
 अमेरिका: बैडमिंटन पैन एम (उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका एक ही परिसंघ के हैं; BPA)
 यूरोप: बैडमिंटन यूरोप (BE)
 ओसेनिया: बैडमिंटन ओसेनिया (BO)

प्रतियोगिताएं

आदमियों के यग
ु ल मैच.ब्लू लाइन बैडमिंटन कोर्ट के लिए होते हैं। दस
ू रे रं ग की लाइनों का प्रयोग अन्य खेल निरूपित
करने के लिए प्रयोग किया जाता है - यह जटिलता बहु-प्रयोग स्पोर्ट्स हॉल्स में आम बात है ।

बीडब्ल्यु एफ थॉमस कप, प्रीमियर मै न्स इवें ट और उबर कप, सहित महिलाओं के लिए भी इसी तरह की कई
अं तर्राष्ट् रीय प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है । ये प्रतियोगिताएं हर दो साल में एक बार होती हैं । 50
से भी ज़्यादा राष्ट् रीय टीमें महाद्वीपीय परिसं घ के फाइनल में स्थान पाने के लिए क्वालिफाइं ग टू र्नामें ट में
् की
भाग ले ती हैं । अं तिम टू र्नामें ट में 12 टीमें शामिल होती है , वर्ष 2004 के बाद आठ टीमों से इसमें वृ दधि
गयी है ।

सु दिरमान कप, की शु रुआत 1989 में हुई, यह मिक्स्ड टीम इवें ट हर दो साल में एक बार आयोजित होती है ।
प्रत्ये क दे श प्रदर्शन के आधार पर सात ग्रुप में विभाजित होता है । टू र्नामें ट जीतने के लिए, किसी दे श को
सभी पांच शाखाओं (पु रुषों के एकल और यु गल, महिला एकल और यु गल और मिश्रित यु गल) में अच्छा
प्रदर्शन करना होता है । फुटबॉल एसोसिएशन (सॉकर) की तरह, हर ग्रुप में सं वर्धन और निर्वासन प्रणाली
इसकी एक खासियत है ।

1972 और 1988 के ग्रीष्मकालीन ओलं पिक में बै डमिं टन व्यक्तिगत स्पर्धा एक प्रदर्शन इवें ट था। 1992 के
बार्सिलोना ओलं पिक में यह एक ग्रीष्मकालीन ओलं पिक खे ल बन गया। विश्व के 32 सर्वोच्च स्थान प्राप्त
बै डमिं टन खिलाड़ियों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया और प्रत्ये क दे श ने तीन खिलाड़ियों को इसमें भाग
ले ने के लिए भे जा। विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में विश्व के केवल 64 सर्वोच्च स्थान प्राप्त खिलाड़ी और
प्रत्ये क दे श से अधिकतम तीन इसमें भाग ले सकते हैं ।

बीडब्ल्यु एफ विश्व कनिष्ठ बै डमिं टन प्रतियोगिता १९ वर्ष से कम आयु के खिलाड़ियों के लिये आयोजित की
जाती है । ये सभी पहले स्तर की प्रतियोगिताएँ हैं ।

2007 के शु रू में , बीडब्ल्यु एफ ने भी एक नए प्रतियोगिता सं रचना की शु रुआत की: बीडबल्यु एफ सु पर सीरीज


इस स्तर दो के टू र्नामें ट में 32 खिलाडियों (पिछली सीमा से आधा) के साथ दुनिया भर में 12 ओपन टू र्नामें ट
आयोजित किये जायें गे . खिलाड़ी जो अं क प्राप्त करें गे , उससे यह तय होगा कि साल के अं त में वे सु पर सीरीज
फाइनल में खे ल सकेंगे या नहीं।[13][14]

पे बतावसन स्तर के टू र्नामें ट में ग्रैंड प्रिक्स गोल्ड और ग्रैंड प्रिक्स इवें ट शामिल होंगे । शीर्ष खिलाड़ी वर्ल्ड
रै किंग प्वाइं ट प्राप्त कर सकते हैं और जो उन्हें बीडब्ल्यु एफ सु पर सीरीज ओपन टू र्नामें ट में खे लने के लिए
सक्षम कर सकता है । इनमें क्षे तर् ीय प्रतियोगिताएं एशिया का (एशियाई बै डमिं टन प्रतियोगिता) और यूरोप
का (यूरोपीय बै डमिं टन प्रतियोगिता) शामिल हैं , जो पै न अमे रिका बै डमिं टन प्रतियोगिता के साथ ही साथ
दुनिया के बे हतरीन खिलाड़ियों को पै दा करता है ।

चौथे स्तर का टू र्नामें ट, जो इं टरने शनल चै लेंज, अं तर्राष्ट् रीय सीरीज और फ्यूचर सीरीज के रूप में जाना जाता
है , जूनियर खिलाड़ियों को भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करता है ।[15]

कीर्तिमान
बै डमिं टन में सबसे शक्तिशाली स्ट् रोक स्मै श है , जो ते ज़ी से नीचे की तरफ विरोधियों के मिड कोर्ट में मारा
जाता है । स्मै श किये गए शटलकॉक की अधिकतम गति दस ू रे किसी अन्य रै केट खे ल के प्रक्षे प्य से कहीं
अधिक होती है । खिलाड़ी के रै केट से छटू ने के तत्काल बाद इस गति की रिकॉर्डिं ग को शटलकॉक की प्रारं भिक
गति से मापा जाता है ।

2009 जापान ओपन में पु रुष यु गल में मले शिया के खिलाड़ी टै न बून योंग ने 421 किमी/प्रति घं टे (262 मील
प्रति घं टे) की गति का आधिकारिक विश्व कीर्तिमान बनाया था।[16]

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