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बंगाल विभाजन. WPS
बंगाल विभाजन. WPS
पर चर्चा करें ।
ब्रिटिश सरकार ने सर्वप्रथम 3 दिसंबर, 1903 को बंगाल(आज का पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, असम,
बांग्लादे श, उड़ीसा) के विभाजन का प्रस्ताव यह तर्क दे कर लाया कि यहां कि विशाल आबादी के कारण
प्रशासनिक व्यवस्था सुचारु तरीके से नहीं चल पा रही है और इसके कुशल संचालन के लिए बंगाल का
विभाजन करना जरूरी है । हालांकि, सभी जानते थे कि इसका उद्देश्य तो दरअसल कांग्रेस को नियंत्रित कर
रहे बंगाल में राष्ट्रवादीयो का दमन करना था, क्योंकि इसका प्रभाव दे शव्यापी हो रहा था। हमेशा से ही
अंग्रेजों का उदे श्य फूट डालो राज करो की नीति ही रहा था ऎसे मे उन्होनें विभाजन का आधार धार्मिक
बहुलता को बनाया -
थी।
पर्वी
ू बंगाल में मस्लि
ु म बहुसंख्यक थे। यहां 3 करोड़ 10 लाख की आबादी थी, जिनमें मस्लि
ु म1
अतः इस प्रकार 16 अक्टूबर, 1905 को लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल के विभाजन की औपचारिक घोषणा हो
गई। बंगाल का विभाजन पश्चिमी बंगाल (हिंद ू बहुलता) और पूर्वी बंगाल (मुस्लिम बहुलता) के मे हो गया।
जिस उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने बंगाल को तोड़ना चाहा था फ़िलहाल तो उसका विपरीत ही हुआ कांग्रेस को
कमजोर करने के बजाय कर्जन के कृत्य ने गरमपंथी और क्रांतिकारी नेताओं को औपनिवेशिक शासन से
सीधा टक्कर लेने का अवसर दिया। जिस सांप्रदायिकता के आधार पर वह हिंद ू - मुस्लिम मे मतभेद पेदा
करना चाहता था उन्ही सब ने एकजुट होकर विभाजन के विरुद्घ प्रदर्शन किया। अतः यह बिल्कुल सत्य है
कि स्वदे शी (बंग - भंग) आंदोलन बंगाल के विभाजन की ही उपज है क्योंकि भारतीयों के राज्य का उनकी
इच्छा के बिना ही टुकड़े - टुकड़े कर दिए गए ये उनके लिए किसी अपमान से कम नहीं था यही कारण था कि
विभाजन के अगले दिन ही लोगो में एक क्रांति की ज्वाला फूट गयी और सुरेंद्र नाथ बनर्जी द्वारा कलकत्ता
बंगाल में शोक दिवस के रूप में मनाया गया, घरों में चूल्हे नहीं जले, लोगों ने उपवास किए, जत्थे के जत्थे
गंगा स्नान के लिए गए, विभाजित प्रांतों के लोगों ने एकता के प्रतीक के रूप में एक दस
ू रे के हाथो ने रखी
बंधी, हड़तालें की गयी और सड़कों पर 'वंदे - मातरम' का नारा लगाते हुए प्रदर्शन किए गये।
7 अगस्त को टाउनहाल में आयोजित एक अन्य विशाल सभा में बहिष्कार हे तु एक औपचारिक प्रस्ताव
पास किया गया, जो स्वदे शी आंदोलन की शुरुआत का घोतक था। प्रारं भ में इसका लक्ष्य विभाजन को
का हर तरह से विरोध और असहयोग करना तथा स्वराज ही इनके मुख्य धेय बन गए।
समि
ु त सरकार ने स्वदे शी आंदोलन की 4 प्रमुख प्रवर्तियां बतायी है -
1. नरमपंथी
त्याग स्वदे शी उधोगो का संरक्षण और विकास, स्वावलंबन, विदे शी बहिष्कार पर ज़ोर दिया। इस
3. क्रांतिकारी या आतंकवादी प्रवर्ति जिसके नेता वरीन्द्र कुमार घोष और भूपेंद्रनाथ दत्त थे
4. राजनीतिक गरमपंथी
इस आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि उदारवादी और उग्रवादी कार्यक्रम साथ साथ चले।
हालांकि बंगाल में स्वदे शी की विचारधारा का विकास 1870 के दशक में ही हो चुका था ऐसे में बंग -
भंग की सल
ु गती हुयी चिंगारी मे स्वदे शी आंदोलन ने एक राजनीतिक अस्त्र के रूप में काम किया।
भारतीय समाज का प्रत्येक वर्ग इस आंदोलन से किसी ना किसी रूप में जड़
ु गया।
के भीतर 500 से अधिक विरोध सभाएं आयोजित की गई, राष्ट्रीय समाचार पत्रों, पुस्तिकाओं व पर्चों
"बड़ी भारी राष्ट्रीय विपत्ति" शीर्षक सम्पादकीय मे सरकार को सीधा चेतावनी दी दे श इस अन्याय
को चुप चाप सहन नहीं करे गा अतः इसके विरोध में तीव्र आंदोलन चलाया जाएगा। 1911 मे
इंडियन एसोसिएशन ने अपनी रिपोर्ट में बताता कि 1903—1905 के बीच बंगाल में 20,000 से
विदे शी माल के बहिष्कार के कार्यक्रम का स्वागत सारे बंगाल के साथ - साथ पूरे दे श में किया गया -
तिलक ने परू े दे श खासकर बम्बई प्रांत में इसका प्रचार किया। अजीत सिंह और लाला लाजपत राय
ने पंजाब और उत्तर भारत मे इस आंदोलन को पहुँचाया, सैय्याद है दर रज़ा ने दिल्ली में इसका
नेतत्ृ व किया। चिदं बरम पिल्लै ने मद्रास प्रेसीडेंसी मे इसका नेतत्ृ व किया जहां वीपीन चन्द्र पाल ने
स्वदे शी आंदोलन के दौरान कई समितियों द्वारा जनसमूह की लामबंदी की गयी इनमे सबसे प्रमुख
'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' था जिसमें मुख्य भूमिका स्कूल और कॉलेज के छात्रों की थी, छात्र नई
राष्ट्रीय भावना से ओत प्रोत थे, ये विरोध सभाओं में बड़ी संख्या में ऊपस्थित होते थे, "वंदे -
मातरम" का गान गाते और वन्दे मातरम द्वारा ही परस्पर अभिवादन करते, विदे शी कपड़ों की
दक
ु ानों पर धरना दे ते, विदे शी कपड़ों की होली जलाते और कई बार इन्होंने उग्रतापूर्ण कार्य भी किए
जिसके लिए सरकार ने इनके विरुद्घ दमनकारी नीतियां अपनायी - स्वदे शी सभाओं को बलपूर्वक
तितर बितर किया गया, उग्रवादी छात्रों पर राजद्रोह का अभियोग चलाया गया, स्वयंसेवकों को
गिरफतार किया गया, छात्रों को डराने के उद्देश से उनको स्कूल, कॉलेज, छात्रवति
ृ व सरकारी
नौकरियों से वंचित करने की धमकी दी गयी, यहां तक कि वन्दे मातरम का नारा लगाना भी अवैध
4. विदे शी वस्तओ
ु को खरीदने वाले का सामाजिक बहिष्कार
डॉक्टरों, वकीलों, अध्यापकों, सिपाहियों व व्यापारियों ने ऐसे लोगों को अपनी सेवाए दे नी बंद कर दी
और यहां तक कि मजदरू ों, नाई, धोबियों तक ने ऐसे लोगों का बहिष्कार किया। ये दे शद्रोही (विदे शी
माल के व्यापारी) सरकार से दमन तेज करने का अनरु ोध करते ऐसी स्थिति में क्रोध, आक्रोश और
घण
ृ ा और बढ़ गयी परिणामस्वरूप आंदोलन ने एक अघोषित युद्ध का रूप धारण कर लिया
बहिष्कार आन्दोलन की दस
ू री मुख्य विशेषता आर्थिक स्वदे शी और रचनात्मक कार्यक्रमों को लागू
करना था। रचनात्मक कार्यो द्वारा खुद को अर्थिक व सामाजिक पुनरुत्थान कर आत्मनिर्भर
बनना। इसके अंतर्गत आत्मनिर्भरता के लिए तकनीकी व साथ ही स्वदे शी शिक्षा को अपनाने पर
जोर दिया गया, औद्योगिक अनुसंधान का संगठन, स्वदे शी वस्तुओ की बिक्री को बढ़ावा,
पारम्परिक दे शी दस्तकारी को संरक्षण, कृषि क्षेत्र मे नयी तकनीक को अपनाना स्वदे शी बेंक, बीमा
दे श को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अरविंद घोष ने "निष्क्रिय प्रतिरोध" की पद्धति का सूत्रपात किया
यह
एक ऐसा राजनीतिक अस्त्र था जहां सरकार भारतीयों के प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष सहयोग पर निर्भर है
यदि यह सहायता सरकार से वापिस ले ली जाए तो भारत से अँग्रेजी राज खुद ही समाप्त हो जाएगा।
इन सबका प्रभाव यह हुआ कि विदे शी वस्तुओ का आयात बहुत हद तक काम हो गया - उदा :-1904
मे जहां अँग्रेजी कपड़े की 500 गांठें बेची गयी थी वह 1905 तक घट के 125 ही रह गयी थी, अँग्रेजी
बढ़कर 77,000 मन हो गयी थी। अतः इस बायकाट आंदोलन का प्रभाव विशेषकर अँग्रेजी सूती
कपड़े, नमक, बट
ू , जत
ु े व सिगरे ट की बिक्री पर पड़ा। परिणामस्वरुप स्वदे शी को बढ़ावा दे ने के लिए
- स्वदे शी बाजारों का विस्तार हुआ, व्यापरियों ने भारतीय औद्योगिक विकास में प्रवेश किया,
उद्योग, रे शम बुनाई और अन्य पारं परिक दस्तकारी मे एक नवजीवन का संचार हुआ अनेक फैक्ट्री
खोली गई, दे शी व तकनीकी शिक्षा के बढ़ावा के लिए राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान एवं विश्वविद्यालयों
की स्थापना की गयी।
स्वदे शी आंदोलन के दौरान जितने भी आंदोलन अपनाए गये उनमे सबसे अधिक सफल और
लोकप्रिय बहिष्कार आंदोलन हुआ। काफी समय तक आंदोलन मे जोश रहा लेकिन खुद नरमपंथी -
गरमपंथी के आपसी मनमुटाव और धीरे धीरे मस्लि
ु मों के अलगाव के कारण आन्दोलन शिथिल
पड़ने लगा। हालांकि अंततः 1911 मे बंगाल विभाजन रद्द कर दिया गया था लेकिन अब इसका कोई
मस्लि
ु म को ना केवल क्षेत्र के आधार पर बल्कि दिलों से भी अलग कर दिया था इसका सबसे बड़ा
सन्दर्भ सूची :-