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दनकर - एक िज द लड़क

( दनकर घर म दा ख़ल होते हुए, पीछे बाबूजी आते ह|)

दनकर :-

बाबूजी ये उपदेश आप अपने उन मूख भ तजन को दजीए| आपक ये गप और उसक स चाई-


स य क बात|स य परम धम , मेहनत ह ई वर है| हूँ! फालतू क बात| आपका आ म और उसका
भ डार, एक ह च टे-ब टे के ह दोनो| आपके गठडे, पाक और यं | उसका अचार, मसाला, साबुन और
तेल, सबके सब गए गुजरे|

(टेबल पर क ब वभाग क त ी पलटाकर एश े बना देता है|)

कमल , अभी तक मुसीबत आयी नह ं है न! हं? अ छा हुआ नह ं आयी| फालतू झंझट है साल ! और
नह ं तो या! एकदम भंकस! या ध धा है यह? उसे देखते ह मेरा सर भनकता ह, सच कहता हू|ँ
ख़ून खौलने लगता ह| पूरा बदन तपने लगता है|

या अ धकार था उसे यहाँ आकर यह सब गुड़़गोबर एक करने का? कसने दया उसे यह अ धकार?

कमल ! बाबूजी चाह जो करते, उ होने हमे जनम तो दया है| ले कन इसने! यह, कौन है यह? मेर
प नी बनकर, सर झुका कर आयी इस घर म और दूसर बाबूजी बन बैठ ! कमल ! माँ! अभी मेर
गृह थी चौपट हो गयी| कहाँ रह है मेर गृह थी? मेर प नी कहाँ है?

कमल ! वो तो मा मशीन है हसाब करनेवाल | रात- दन हसाब,योजना,प ाचार उस बोगस धंदे के!
बोगस नह ं तो और या? यह या ध धा है? कबाड़खाना कह ं का| रात-रात जाग कर धंदे के बारे म
सोचती रहती है| मेर बीबी और दो कौडी़ के धंदे को लेकर रात गुजार दे?

मेरे साथवाल क शा दयाँ हुई| दो-दो ब च के बाप बने ह वे! और म? मेर बीवी तो बजनेस करती है
न! (Recall memory से) पाँव भार तो इसके भी हुए थे लेक न इसे ब चा चाह ए ह न था! बजनेस
जो करना था| उसम ब चे का या काम?

लेक न कमल /माँ,मैने सब छोड़ दया है| बहुत हो गया यह गृह थी का ध धा! वह स चाई, वे आदश!
साला नभाने दो उसे इसी के साथ गृह थी! जताने दो पूरे गाँव म सब| उन मवाल यापा रय के
साथ कॉ टॅ ट करते रहने दो| कमल /माँ, बाज़ार म वो सब मेर ओर देखकर भ द हँसी हँसते ह,
मजाक उडाते ह मेरा! भ द बात करते ह| य , पता है? / (पता है न यूँ!)

बस बहुत हो गया बाबूजी, नह ं चाह ए मुझे ऐसी प नी| जो है उसे लौटाया जाए, ऐसा उपाय चाह ए
बस| और अगर वो इतनी ह महान है फर उसक त वीर टांग दजीए न तु हार इन बुवाओं म| मेरे
गले य मढ़ दया उसे? ऐसे बोगस धंदे के लए कोई बीवी नह ं लाता घर याह के! गृह थी बसाने
के लए, अपने लए, अपनी बात मनवाने के लए क जाती है शाद !

आपने भी तो क शाद | हमार माता ी से याह रचाया| इस बात का ढंढोरा पीटते रहते हो क एक
लोटा और क बल के सहारे आपने इतनी बड़ी गृह थी नभाद | सच बात तो ये है क-इसमे आपक
अकेले क कोई ह मत नह ं थी| माँ ने आपक हर बात मानी| आपक प नी, प नी बनकर रह तब
जाकर आप गृह थी नभा पाए|

बाबूजी आप हम इ तेमाल करते रहे य क आपने हम जनम दया था| और वह भी यह कर रह है|


और हम ह क सब के सब बल के बकरे बनते चले गए| य ? कसल ए? आप कम से कम पैसे तो
लाते थे| हमारे शौक पूरे करते थे| यह या ला रह है? हँ? कमल , शर .... माँ बता दो| अरे बोलो ना|

कमल ! तेर शाद होने क एक आस थी, ले कन अब तो वो भी ख़ म! तेर शाद के लए रखे सारे


पैसे खच कर डाले तेर उस भाभी ने| अपने उस फालतू से योग के लए, बोगस धंदे के लए| और
शर तू! तू भी उसक िज द का बकरा बना पडा है| तेर कूल म देने के लए फ़ स नह ं है उसके
पास, तेरा नाम तक ख़ा रज कए जाने क नौबत आ चुक है|

माँ! आए दन दरवाजे पर लेनदार खडे़ हो जाते ह| ऐसी बेइ जती तो आपने कभी नह होने द इस
घर क | पहले चौल क बड़ी-बड़ी औरते आपके पास आती थी, उधार माँगते| कह तीज- यौहार, कह
नामकरण, कह गोद-भरायी र म! सबसे पहले आपको ह बुलाते थे न! और अब? अब कोई पूछता भी
है आपको?

और म? मने गृह थी ह कब बसायी? ( नराश होकार) म तो बड़ा बेवकूफ़ बन गया| हाँ, ले कन अब


नह ं| बहुत हो गया| अब बस, और नह |ं अब वह अपनी गग ह अपनी गृह थी| वह बीवी! वह सच
है| गग!

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