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काश भारत अपनी गलतियों से सीख लेता....

भारत में रह रहे नेकरिये और उनके जमूरे प्रायः ही अलापा करते हैं कि हिन्द ू वामपंथियों और पाश्चात्य
इतिहासकारों ने भारत के इतिहास के साथ छे ड़छाड़ किया। आर्य - अनार्य की अवधारणा पाश्चात्य
इतिहासकारों की दे न है । जब्कि मराठी बाभन बाल गंगाधर तिलक की पोथी ‘आर्क टिक लैंड ऑफ़ वेदा’ के
अनुसार उनका ऋग्वेद यरू े शिया में गढ़ा गया । कश्मीरी बाभन जवाहर लाल नेहरु की पोथी ‘डिस्कवरी
ऑफ इण्डिया’ के अनस
ु ार उनके परु खे मध्य एशिया से भारत आये थें। गज
ु राती बाभन दयानन्द सरस्वती
स्वतः 1875 तक हिन्द ू शब्द को घटिया मानता रहा और उसने अपने आप को आर्य कहा और आर्य
समाज नामक संस्था बनाया। बंगाली बाभन राजा राम मोहन राय ने ब्रहम समाज नामक संस्था बनाया ।
क्या माना जाय कि तिलक, नेहरू, दयानन्द और राजा राम मोहन राय हिन्द ू विरोधी वामपंथी थें या
पाश्चात्य इतिहासकार थें। कालांतर में ये सभी भी तो हिन्दब
ू ाड़े के सम्मानित सदस्य मान लिये गये थें।
सच्चाई यह है कि 1919 का इण्डिया एक्ट पारित होने तक भारत में रह रहा कोई भी बाभन हिन्द ू बाड़े
की सेहत के प्रति फिक्रमंद नहीं हुआ करता था। पहली बार 1942 में गज
ु राती गाँधी के नेतत्ृ व में
कांग्रेसियों ने ‘भारत छोड़ो’ जैसा नारा लगाया। उसके पहले तक कोई नेक रिया भारत के प्रति भी फिक्रमंद
नहीं हुआ करता था। जब तक मुगलों के साथ छनती थी मुगलों के शासन काल तक भी कोई बाभन
गाय-गोरु के लिए फिक्रमंद नहीं हुआ करता था। बाभनों की बला से। फिक्रमंद हो क्षत्रिय (किसान) जो
गायपुत्रों को हल में जोता करते थें। कुर्मी बाभन केदारनाथ पाण्डे उर्फ महापंड़ित राहुल सांकृत्यायन तो
कहा करते थें कि राजा इक्ष्वाकु से मदद लेकर बाभन ही गाय-गोरु खाना सुरु किये। सवाल उठता है कि
आखिर अचानक ये बाभन कथित हिन्दओ
ु ं और गायों-गोरुओं के प्रति इतने फिक्रमंद क्यों हो गये ? वैसे
तो बाबा साहब डॉ अम्बेडकर दे श के आजाद होने और दे शवासियों के आजाद होने में भी फर्क करते हैं ,
लेकिन सवाल उठता है कि क्या 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ या भारत की सत्ता का
हस्तान्तरण हुआ? सच्चाई यह है कि 15 अगस्त 1947 को अंतिम विदे शियों ने भारत की सत्ता प्रथम
विदे शियों को सौंप दिया । न भारत आजाद हुआ और न भारत के आदिनिवासी। चलिये बाभन यरू े शियाई
है , उन्हें न भारत की फिक्र है न आदिनिवासी भारतीयों की । लेकिन भारत के आदिनिवासी नागों ने भी
तो अपनी अनगिनत गलतियों से कुछ नहीं सीखा।

काश! भारत ने अपनी गलतियों से सीख लिया होता तो आज भारत के आदिनिवासी


नागों को यूरेशियाई बाभनों का जमूरा न बनना पड़ता। भारत में यूरेशियाई बाभन तो एक फीसदी भी नहीं
है । प्रतापगढ़ वाले राजा मानिक चन्द की कृपा से अंतरित नागों को मिलाकर भी उनकी कुल आबादी मात्र
तीन फीसदी ही है । लेकिन आदिनिवासी नागों की नादानी के कारण ये बाभन भारत के शासक वर्ग
(Governing class) में तब्दील हो चुके हैं। दरअसल, भारत में रह रहे दो तिहाई से ज्यादा बाभन यहीं
के नागों से अंतरित हैं। केवल महाराष्ट्र के चितपावन कहे जाने वाले और केरल के नंबूदरीषाद कहे जाने
वाले बाभन ही यरू े शियाई बाभनों के असली वंशज हैं। बाकी के शुकुल, मिसिर, पांड़,े चौबे, तिवारी, दब
ु े,
अवस्थी, बाजपेई, उपधिया, पाठक, शर्मा, दीक्षित आदि नागों से ही अंतरित बाभन हैं। प्रत्यक्ष या परोक्ष
शंकराचार्य के पद पर नंबूदरीषाद और नेकरिया पलटन के प्रमुख के पद पर चिंतापावन बाभनों का ही
नियंत्रण रहता है । कारण, शंकराचार्य पीठ का संस्थापक आदिशंकर नंबूदरीषाद बाभन था और नेकरिया
पलटन का संस्थापक बलीराम हे डगेवार चितपावन बाभन था। प्रतापगढ़ वाले राजा मानिक चन्द की कृपा
से अंतरित नाग पूरे बाभन नहीं बन पाये , किन्तु अपनी गलती से उन्होंने कुछ सीखा भी नहीं। उसी तरह
हिन्दब
ू ाड़े में घुसने और ताकझाक करने वाले तमाम नाग भी परू े हिन्द ू नहीं बन पाए। किन्तु उन्होंने भी
अपनी गलती से कुछ नहीं सीखा।

कथित गीता के अध्याय- 4 के श्लोक 7 और 8 के साथ रामचरित मानस के अवतार


धारण करने विषयक तथ्यों का विश्लेषण करें तो समझ में आजएगा कि अवतारवाद गढ़ने के पीछे
बाभनों का मकसद क्या रहा होगा। फिर भी भारत के नाग बाभनों के दम
ु छल्ले बने। अपनी इस चूक से
भी भारत ने कुछ नहीं सीखा।

दे खें-

“ यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सज


ृ ाम्यहम।। 4/7

परित्राणाय साधन
ू ां विनाशाय च दष्ु कृताम।

धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।।“ 4/8

[1:32 AM, 6/26/2016] +91 90449 35923: अर्थात जब जब भारत में धर्म का पराभव होता है तब
तक धर्म के उत्थान के लिए अपने को सचि
ू त करता हूं साधओ
ु ं के कल्याण के लिए और दष्ु टों के विनाश
के लिए तथा धर्म की स्थापना के लिए हर युग में अवतार लेता रहता हूं समझने की बात यह है कि
केवल भारत के कथित धर्म वर्ण व्यवस्था विशेष के पराभव होने पर ही स्वयंभू शक्तिमान सर्वशक्तिमान
सर्वव्यापी और सर्वज्ञ सष्टि
ृ कर्ता अवतार लेता है वह भी कुछ खास प्रजाति के साधओ
ु ं के कल्याण के लिए
और कुछ खास प्रजाति के दष्ु टों के विनाश के लिए वह खास जाति के दष्ु ट भारत के आदिवासी नागपुर
राक्षस है इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है एक ही तरह की पोस्ट पर एक ही अवतारी त्रेता में
की हत्या कर डालता है और दस
ू रा अवतारी द्वापर में एक दस
ू रे को धर्मराज घोषित कर दे ता है बाली पर
आरोप है कि उसने अपनी अनुदित सुग्रीव की पत्नी रोमा को अपनी पत्नी बना लिया था घायल बाली में
जब धनु आराम से अपनी हत्या का क* पूछा था तब धनवार हमने यही बताया था आखिर यही अपराध
तो युधिष्ठिर ने अपने अनुज अर्जुन की पत्नी द्रोपदी को अपनी पत्नी बनाकर किया था सवाल उठता है
कि एक ही तरह का कृत्य करने पर वाली दष्ु ट और युधिष्ठिर धर्मराज कैसे कहना है इस तरह के
बेतरतीब अवतारी यों को भगवान की मान्यता दे कर नागों ने भीषण गलतियां की अपनी एक भीषण
गलतियों से उन्होंने कुछ भी तो नहीं दिखा अवतार के जिस तरह के क* गीता में बताए गए हैं कमोवेश
उसी तरह के क* रामचरितमानस में भी बताएगा दे खें जब जब होई धर्म की हानि बारही असरु अधम
अभिमानी तब तब प्रभु धर मनोज श्री राम शकल भव सज्जन पीरा विप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज
अवतार अर्थात जब जब एक खास धर्म वर्ण धर्म की हानि होती है अभिमानी और नीच और कमीनी
कमीनी सरु ों का नहीं का प्रभाव पड़ता है तब तब कथक तभी मनष्ु य का रूप धारण कर कभी-कभी
मछली कछुआ सूअर नरसिंह आदि बन कर भी सारे संसार के सज्जनों कमीनों की पीड़ा हरता है खास
धर्म इसलिए क्योंकि बुद्धिज्म के पराभव खान होने पर वह कथित प्रभु मनुष्य बन कर भारत की धरती
पर नहीं उतरा उसने कभी कमरों की पीड़ा को भी नहीं हरा वैसे भी इस तरह के शिक्षकों को मनष्ु य कैसे
कहा जा सकता है मनुष्य तो केवल भगवान तथागत बद्ध
ु थे जिन्होंने हिंसक बन च* अंगुलीमाल को पन
ु ः
मनुष्य बनने की प्रेरणा दी भारत के आदिवासी नागों ने एक हिंसक हत्यारे को मर्यादा पुरुषोत्तम स्वीकार
करके भीषण गलती की किं तु अपनी स्वच्ता की गलती से कुछ भी नहीं सीखें मराठी बाभन बाल गंगाधर
तिलक और कश्मीरी बाभन जवाहरलाल नेहरू दोनों यह स्वीकार करते हैं कि यूरेशियाई बाम्हन यूरेशियाई
बाभन भारत के आदिवासी नहीं हो आदि निवासी नहीं है सिंधु घाटी की सभ्यता भारत के आदिवासी
नागौर द्वारा विकसित की गई प्राचीनतम नागरीय नगरीय सभ्यता है तिलक और नेहरु दोनों ने यह नहीं
स्वीकारा है कि यरू े शियाई सुर 52 आक्रमणकारी के रूप में भारत आएं उनकी बातों में दम है अति अल्प
संख्या वाले क* और खानाबदोश सर बड़ी संख्या वाले कमरे और श्रमण नागों को सीधे पराजित भी नहीं
कर सकते थे दरअसल प्राकृतिक आपदाओं के मारे यूरेशियाई सुर प्रारं भ में समद्धि
ृ भारतीय नागों के
रसोइए और चाटुकार बने आज भी छात्रावासों के रसोइयों को मारने के लिए आरक्षित महाराज की उपाधि
से ऐसे ही नहीं पुकारा जाता है मद
ृ भ
ु ाषी रसोईया दे र सबेर सभी का प्रिय बन जाता है तभी उस पर
भरोसा करने लगते हैं भरोसे का फ़ायदा उठाकर कोई भी अपनी मांग बढ़ाने लग सकता है बैठने की
जगह मिलने पर लेटने की जगह बनाना आसान हो जाता है फिर रसोइयों के लिए तो यह क और भी
आसान हो जाता है भारत पर कब्जा जमाने के लिए कुछ इसी तरह के कारनामे यूरेशियाई वाहनों ने किए
सेवा सेवा करके मेवा कैसे पाया जाता है यह ग ुण गुण यूरेशियाई भावनाओं से सीखिए प्राकृतिक झंझावत
को झेलते हुए बादल यरू े शिया से भारत आए परिस्थितियों से समझौता किया समय प्रतिकूल होने पर
नागों को परोक्ष अपरोक्ष अपमानित भी किया बादलों के अपमानित होने और अपमानित करने की एक
प्रतीकात्मक दास्तान महाभारत में उल्लेखित एक किवदं ती के रूप में दे खी जा सकती है दे वयानी
शुक्राचार्य नामक एक बदन की पुत्री है धर्म निष्ठा व्रष परवाह नामक एक नाग राजा की पुत्री है एक बार
शर्मिष्ठा दे वयानी को भिखारी की बेटी कहकर संबोधित करती है और गुस्से में आकर सूखे कुवें में धकेल
दे ती है कालांतर में दे वयानी ययाति नामक एक राजा से प्रतिलोम विवाह करती है और शर्म निष्ठा को
अपनी सेविका बनाती हैं शुक्राचार्य नागराजा वष
ृ भ वर्षा अवश्य परवाह का पुरोहित था अपने पद का
फायदा उठाकर शुक्राचार्य ने वर्ष परवाह के समक्ष भयानक अनर्थ होने का भय दिखलाया महज काल्पनिक
अनर्थ के घर के क* नागराजा वष
ृ परवाने अपनी बेटी राजकुमारी शर्मिष्ठा को दे वयानी की सेविका बना
बन जाने दिया कमाल का है कि भारत के आदिवासी नागों ने अपने परु खों की इस तरह की गलतियों से
कुछ सीखा क्यों नहीं आज भी भारत के आदिवासी नाग काल्पनिक अनर्थ के भय के क* सूअर ब**
गोबर जैसे कथित भगवानों की चाटुकार ई में जट
ु े हुए हैं रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक अंखियों
में इस तरह की तमाम कपोल कल्पित कथाएं यरू े शियाई सुरों के पक्ष में महज माहौल बनाने के लिए
गढ़ी गई हैं रामायण महाभारत जैसे पौधों के रचयिता इस तरह का माहौल बनाने में सफल भी रहे

[1:36 AM, 6/26/2016] +91 90449 35923: दनि


ु या भर के श्रमण इतिहास बनाते तो है लेकिन
इतिहास लिखते नहीं बाभन इतिहास बनाते नहीं लेकिन इतिहास लिखते ज़रूर है दख
ु द यह है कि भारत
का जो इतिहास भारत में पढ़ाया जाता है वह भारत का वास्तविक इतिहास इतिहास ना होकर गढा हुआ
इतिहास है दरअसल इतिहास बनाने वाले भारत के श्रमण अपना इतिहास परू ी तरह बोल च* हैं लेकिन
यरू े शियाई सुरों को अपना इतिहास भूगोल सब कुछ याद है छठी शताब्दी ईसापूर्व में दनि
ु या भर में एक
क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ जिस तरह 21 वीं सदी की शरु
ु आत संचार क्रांति से शरू
ु हुई उसी तरह उस
समय कृषि क्रांति हुई थी उस क्रांति का भारत पर विशेष प्रभाव पड़ा लोहे की खोज के साथ भारत के
छोटा नागपुर और आसपास के क्षेत्रों में फलों में लोहे के फाल का प्रयोग हुआ लोगों के रहन-सहन और
सोच विचार में क्रांतिकारी परिवर्तन आया कोशल काशी मदद और वैशाली जैसे महाजनपद विकसित होने
कपिलवस्तु के राजा राजकुमार सिद्धार्थ सिंहासन छोड़कर सन्यासी बन गए थे मदद की पहाड़ियों पर 6
साल की साधना के बाद विश्व में प्रथम बद्ध
ु ू हो गए थे उन्होंने दनि
ु या को चुंबकत्व मैग्नेशियम
मैग्नेशियम के सिद्धांत से परिचित कराया यही क** था कि दनि
ु या के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट
आइंस्टाइन को कहना पड़ा मैंने जो खोजा वह अद्भत
ु है लेकिन उतना अद्भत
ु नहीं है जितना बुद्ध ने खोजा
था आइंस्टीन आइंस्टीन के कथन में भी दम है तब संचार क्रांति नहीं हुई थी प्रिंटिग
ं मशीन और कागज
भी नहीं बनाया जा सके भगवान तथागत बुद्ध के नेटवर्क से ही अशोक का जीवन दर्शन जन जन तक
पहुंचाया जिन्होंने भगवान बुद्ध को समय तरीके से नहीं जाना है वह समझते हैं कि भगवान बद्ध
ु केवल
दख
ु की बात करते थे जबकि ऐसा नहीं है उन्होंने दख
ु को स्वीकार इसीलिए दख
ु मुक्ति का मार्ग मुक्ति
का मार्ग नहीं जा सकता इसे स्वीकार नहीं किया ब्रह्मांड ब्रह्मांड बिंद ु पर
[12:45 AM, 8/9/2016] +91 90449 35923: उन्होंने दख
ु को स्वीकारा इसीलिए दख
ु मुक्ति
का मार्ग भी खोज सके दख
ु को नकार कर दख
ु मुक्ति का मार्ग नहीं खोजा जा सकता है जिसने दख
ु को
स्वीकार नहीं किया वह दख
ु मुक्ति का मार्ग अष्टांगिक मार्ग भी नहीं खोज पाया दरअसल ब्रह्मांड द्विध्रुव
है द्विध्रुवीय है यही चुंबकत्व मैग्नेट इंजन का सिद्धांत है जिस तरह ब्रह्मांड में प्रत्येक बिंद ु पर उत्तरी
और दक्षिणी ध्रुव नॉर्थ एंड साउथ पोल है उसी तरह प्रत्येक बिंद ु पर सुख और दख
ु है सुख की कल्पना के
साथ ही दख
ु भी हाजिर हो जाता है जिस तरह 12 वाले च* मैग्नेट का अस्तित्व नहीं है उसी तरह केवल
सुख वाले जीवन का अर्थ तो नहीं है निरपेक्ष सुख बिल्कुल मग
ृ मरीचिका जैसा है जिस तरह रे गिस्तान में
मर्द को पानी नहीं मिलता उसी तरह दख
ु सुख मिश्रित संसार में निरपेक्ष सुख नहीं मिल सकता भगवान
बद्ध
ु दखु को स्वीकारने के बाद कहीं रुकते नहीं आगे बढ़ते हैं और दख
ु मक्ति
ु का मार्ग भी बताते हैं
संवादहीनता के क*** हमें असलियत का पता नहीं चलता दनि
ु या में जिस किसी को भी आप सुखी
समझते हो उस पर संवाद करके दे खिए वह निरपेक्ष सुखी नहीं है उसी तरह आप जिसे दख
ु ी समझते हैं
वह निरपेक्ष दख
ु ी नहीं है बोधिसत्व भारत में जन्मे बोधि प्राप्त कर भारत में ही सम्यक संबद्ध
ु हुए और
भारत में ही 45 वर्षों तक सारिका किए जन जन को अत दीपो भव का उपदे श दिए उस काल में जो
भारत में जन्मा वह भारत भगवान तथागत का दर्शन कर धन्य हो गया दनि
ु यां भर के लोग कथित
दे वता भी भारत में जन्म लेना चाहते हैं भगवान तथागत के चरण रज का स्पर्श चाहते दे खिए

[12:46 AM, 8/9/2016] +91 90449 35923: गायंति दे वा किल गीतकानि धनयश तू यह भारत भूमि
भागे स्वर्गा पवार घास पद हे तु भत
ू े भवंति भल
ू े मनज
ु ा सरू त वात

[12:57 AM, 8/9/2016] +91 90449 35923: किं तु भारत के अधिकांश लोग स्वर्गवासी होना चाहते हैं
अप्सराओं का स्पर्श चाहते हैं गंधर्वों का स्पर्श चाहते हैं सवाल उठता है कि भारत अपनी गलतियों से कब
से खेलेगा 26 मई 2014 को भारत की 16 वीं लोकसभा का आरं भ हुआ कुल वोटों का 21 वी सदी और
पढ़े वोटों का 31302 समर्थन पाकर ने करिया पलटन के सहयोग से नरें द्र दामोदर मोदी की पार्टी सत्ता
पर काबिज हुई भाटी बिरादरी वाले गज
ु राती नरें द्र मोदी के नेतत्ृ व में स्वयंभू राष्ट्रवादियों की सरकार बनी
भारत का मीडिया कहता है कि यह प्रचंड बहुमत वाली सरकार है अब यह कहने का कोई मतलब नहीं
रह जाता कि गांधी डिवीजन के लिए निर्धारित पास मार्क थ्री थ्री पीस दी से भी दो पीस भी कम मत
मोदी जी की पार्टी के पक्ष में पड़े कोई छह महीने कोई साल भर तो कोई कुछ और ज्यादा सवि
ु धानस
ु ार
सभी लोग मोदी जी को भ्रष्टाचार समाप्त करने और अच्छे दिन लाने के लिए समय दे ना चाह रहे हैं
भारत के संप्रभु जनों ने मोदी जी को 5 साल परू े 1826 दिन का समय दिया है तो मैं कौन होता हूं जो
1826 दिन में से एक भी दिन कम करूं मोदी जी को परू ा हक है कि वह अपने हिंद ू बड़े को परू े 1826
दिन अपना चेहरा दिखाएं और हिंद ू बड़े को पूरा हक है कि वह उनके साथ भी दे खें 180000000 संप्रभु
जनों और मोदी जी का सम्मान करते हुए बीच में कुछ एक शिष्टाचार टिप्पणी के अलावा मैं भी
अनावश्यक कोई दखल नहीं करूंगा यह बात अलग है कि राष्ट्र की गरिमा की कीमत पर स्वर्गवासी
धनुआ राम उर्फ पुष्यमित्र सुंग का आवास बनाना ने कार्यो की प्राथमिकता में है अब नहीं करिए धनु हां
राम और पष्ु य मित्र संघ के वंशज हैं उसके उत्तराधिकारी भी हैं तो वह अपने परु खे का ध्यान दो रखेंगे
ही भारत के आदि निवासी नाग भगवान तथागत बद्ध
ु के वंशज हैं वह भी तो अपने पुरखों का सम्मान
करते ही हैं सवाल उठता है कि यह अपने परु खों को छोड़ कर कभी कभी धनु हाराम के पीछे क्यों भाग
खड़े होते हैं ने करियो के अच्छे दिन तो कश्मीरी बाभन जवाहर लाल नेहरू के शासनकाल में ही आ गए
थे तब ने करियो ने गुजराती गांधी को आगे कर के नागौर के हिस्से का सम्मान भी मार लिया था और
अब गज
ु राती मोदी को आगे करके नागों का हिस्सा मारा जा रहा है ठगा जा रहा है भारत के आदिवासी
नाग तब गांधी के बहकावे में आ गए थे अब मोदी की लफ्फाजी में गुमराह हो रहे हैं सवाल उठता है कि
आखिर नाग अपनी बार-बार की गलतियों से कब सीखेंगे दै निक जागरण में 23 मई 2015 को प्रकाशित
एक खबर को चिप रे ट एक महत्वपर्ण
ू फैसले में केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ माओवादी होना कोई
अपराध नहीं है और उसे आधार बनाकर पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकती है न्यायमूर्ति ए
मोहम्मद मुस्ताक ने शुक्रवार को श्याम बालाकृष्णन की याचिका पर अपने फैसले में कहा कि हालांकि
माओवादियों की विचारधारा हमारी संवैधानिक राजनीति के अनक
ु ू ल नहीं है फिर भी माओवादी होना कोई
अपराध नहीं है केरल पुलिस ने माओवादी होने के संदेह में बालाकृष्णन को गिरफ्तार कर लिया था
अदालत ने उसे रिहा करने के साथ ही राज्य सरकार के 2 महीने के भीतर एक लाख रुपए मुआवजा और
₹10000 अदालती खर्च दे ने का फैसला सुनाया हलाकि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही
का अनुरोध ठुकरा दिया गया फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस ने किसी दं डनीय अपराध में शामिल
होने को लेकर संतुष्ट हुए बिना ही बालाकृष्णन को गिरफ्तार कर उसकी स्वतंत्रता का हनन किया यह
पहला मौका है जब भारत की किसी अदालत ने चेयरमैन माओ के खिलाफ खामखा भोंकने वाले ने
कलियों को आइना दिखाया ने करिए जिसके पीछे पड़ जाते हैं भौंक भौंक कर उसकी छवि इतनी बख
ु ार
बना दे ते हैं कि पूरा भारत

[1:11 AM, 8/9/2016] +91 90449 35923: उससे नफरत करने लगता है इसे एक उदाहरण से समझा
जा सकता है ने करियो ने जिस किसी को भी राक्षस या असुर घोषित किया उसकी छवि इतनी खूंखार
बना दी कि उसके वंशज भी उससे नफरत करने लगे भगवान तथागत बुद्ध को ही ले लीजिए भारत के
आदिवासी नाग रावण के रूप में बुध का ही पुतला फूंकते हैं आज राक्षस या असुर शब्द एक प्रजाति के
रूप में जाने जाते हैं इस तरह राक्षस शब्द की आड़ में मानव संघार को जायज ठहरा दिया गया और
हत्यारों को अवतार वादी अवतारी बताकर मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया गया किसी ने भी कभी इस तरह
की अफवाहों का सत्यापन नहीं किया आज 21 वीं सदी का आधनि
ु क भारत भी इस तरह की गभ कथाओं
का समर्थन करता है केरल हाई कोर्ट के फैसले के आलोक में महाभारत और रामायण की कथाओं का
विश्लेषण भी किया जाना चाहिए दरअसल जिस तरह भारत में चेयरमैन माओ की छवि वितरित की गई
उसी तरह भगवान तथागत बद्ध
ु की थी छवि कृत की गई तथागत की छवि दिक्कत दिक्कत होने पर ही
उनके अनय
ु ायियों ने उनसे दरू ी बना ली नतीजा आज अपने ही घर में बेगाने हो गए और स्वर्गवासी
विष्णु की अप्रमाणित फोटो कापियां अवतार भी धड़ल्ले से स्वीकार कर ली जा रही है जहां तक चेयरमैन
माओ त्से माओ त्से तंग
ु और माओवाद का सवाल है दनि
ु या के सर्वोच्च सर्वोत्कृष्ट अर्थशास्त्री महान
समाज शास्त्री थे और माओवाद माओं के आर्थिक सिद्धांत के क* ही चीन आत्मनिर्भर और आर्थिक
शक्ति बना है चीन ने अपने मानव संसाधन का भरपरू उपयोग किया ने करियो के दाताराम दास मलूका
कह गए सबके दाता राम ने तो परू े भारत को ही काहिल बना ड* ने कार्यो की मात्र 2 पतियों रामायण
और महाभारत पढ़ लीजिए सच्चाई सामने आ जाएगी भारत को माओवादियों से ज्यादा अवतार वादियो ने
लहूलुहान किया है दख
ु द तो यह है कि इतना सब होने पर भी भारत ने अपनी गलतियों से कुछ भी नहीं
सीखा भारत के आदिवासी नागों को चेयरमैन माओ त्से तंग
ु का शक्र
ु गजु ार होना चाहिए की उन्होंने नागों
के महान पुरखा भगवान तथागत बद्ध
ु को वह सम्मान दिया जो स्वच्छ भारत के नाम नहीं द पाए
दरअसल ने करिए ना उसे जाना ही इसीलिए करते हैं ऊं की माने ने कार्यो के सबसे बड़े शत्रु तथागत बुद्ध
को मिटने से बचाया दरअसल नहीं करिए अपने सजातीय भाई चाणक्य की बात मानते हैं जो कहता है
कि शत्रु के शत्रु को मित्र बनाओ और शत्रु के मित्र को शत्रु बुद्धा ने करियो के शत्रु हैं तो बुद्ध के मित्र मां
अधिकारियों के शत्रु होता है ही हो गए 14 मई 2015 को भारत के प्रधानमंत्री नरें द्र दामोदर मोदी चीन
की 3 दिन की यात्रा पर गए शुक्र है कि अपनी जापान यात्रा पर की गई गलती को मोदी ने नहीं बढ़ाया
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिं ग के शहर शियान में दक्षिण शान मंदिर जाकर मोदी ने भगवान बद्ध
ु के 10
बल धारी 10 पारमिता के स्वामी रूप की पूजा की और मंदिर परिषद परिसर में बोधि वक्ष
ृ रोपण भगवा
बुद्ध की यह मूर्ति उनकी दर्ल
ु भतम मूर्तियों में से एक है मोदी ने राष्ट्रपति शी चिनफिं ग के साथ वाइल्ड
गज
ू पगोड़ा दे खा दोनों नेता भगवान तथागत की पज
ू ा की है इसके बाद वह टे राकोटा वारियर्स मेमोरियल
गए वहां चीन के शहीद सेनानियों की 2225 साल परु ानी मूर्तियां हैं जिन्हें चीन के पहले शासक इंतिहान
ने बनवाया था बौद्ध मंदिर का निर्माण 652 ईसवी में चीन के राजवंश ने करवाया था ध्यान रहे कि टिंग
राजवंश के सहयोग से ही व्हे नसांग भारत की यात्रा किए थे वह इंसान ने यह यात्रा बद्ध
ु के दर्शन का
अध्ययन करने के लिए की थी एक तरफ चेयरमैन माओ का दे श चीन है जिसने 1363 वर्षों से भारत की
धरोहर को संजो कर रखा है तो दस
ू री तरफ भारत को रसातल में पहुंचाने वाला मलयाली बाभन आदि
शंकर था जिसने स्तप
ू ों को विकृत कर व्यापार किया भगवान तथागत बद्ध
ु को कलंकित किया जिसका
आचरण निंदनीय है चेयरमैन माओ का या मलयाली बामन आदि शंकर निश्चित रूप से कहा जा सकता
है कि कृत्य धन बाभन आदि शंकर ने जिस थाली में खाना उसी में छे द किया ध्यान रहे मलयाली बाभन
आदि शंकर बुद्ध विहार में रहकर पड़ा था उसे प्रच्छन्न बौद्ध भी कहा जाता है यही नहीं भारत का सर्वोच्च
नागरिक सम्मान भारत रत्न का मेडल पीपल के पत्ते पर बना है पीपल बोधि वक्ष
ृ है उसी वक्ष
ृ के नीचे
बोधिसत्व सम्यक संबुद्ध हुए थे समझ लीजिए इस सम्मान का असली हकदार कौन है निश्चित रूप से
जिसका चित्र निर्मल हो बरगद के वक्ष
ृ के नीचे ध्यान रख बोधिसत्व को ग्वाल पुत्री नागकन्या सुजाता ने
खीर खिलाया था आज भारत की अधिकांश महिलाएं बरगद की पूजा करने जाया करती हैं अधिकांश लोग
शिवलिंग का जलाभिषेक करने का मन लेकर जाते हैं सवाल उठता है कि बद्ध
ु को बद्ध
ु के रुप में या
उनके लिए निर्धारित प्रतीकों के रूप में स्वीकार ने से ने करियो की नानी क्यों मरती है चलिए 52 घोर
राष्ट्रवादी है और उसका राष्ट्र यूरेशिया है वह भारत से क्यों प्यार करें लेकिन नाग तो भारत के असली
वाशिंदे हैं बोधिसत्व बाबा साहे ब डॉ अंबेडकर ने भी 21 अगस्त 1917 को ऐसा ही कहा था सवाल उठता
है कि भारत के आदिवासी नाग कब सुधरें गे अपनी गलतियों से कब सबक सीखेंगे भारत के दश्ु मन चीन
या पाकिस्तान में नहीं भारत में रहते हैं भारत के दश्ु मन भारत वासियों की विकृत मानसिकता में रहते हैं
भारत रत्न बद्ध
ु से नफरत करने वाला भारत का हितैषी कैसे हो सकता है जितना ही चाहते हैं वह अपने
क्रोध को जीतने अपनी नफरत को दे ते हैं भगवान बुद्ध के उपदे श अप्प दीपो भव का अनग
ु मन करें अपना
दीपक स्वयं बने चीन की धार्मिक जनगणना के आंकड़े प्रत्यक्ष कर दे खिए परू ा विश्व ही बुद्धू में होने जा
रहा है विश्व को बद्ध
ु ू में तर्क संगत और बद्धि
ु मान बनाने में अपना योगदान करके भारत अपनी गलती
सुधारे प्रायश्चित करें ने कार्यो के भी हित में है कि वह अपनी हठधर्मी छोड़कर भारत को आर्थिक
सामाजिक सांस्कृतिक महाशक्ति बनाने में अपना योगदान करें असली राष्ट्रवादी बने

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