Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 2

SUCCESS MANTRA POINT

सदं ेश भेजकर हमें और भी दख ु ी कर क्तदय । हम क्तवरह की आग मे


और भी जलने लगीं हैं। ऐसे समय में कोई अपने रक्षक को
पक ु रत है परन्तु हम रे जो रक्षक हैं वहीं आज हम रे दुःु ख क
उधौ, तुम हौ अतत बड़भागी। क रण हैं। हे उद्धव, अब हम धीरज कयाँू धरें, कै से धरें . जब हम री
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नातहन मन अनरु ागी। आश क एकम त्र क्ततनक भी डूब गय । प्रेम की मय थद है क्तक
पुरइतन पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी। प्रेम के बदले प्रेम ही क्तदय ज ए पर श्री कृ ष्ण ने हम रे स थ छल
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरर, बूँद न ताकौं लागी। क्तकय है उन्होने मय थद क उल्लंघन क्तकय है।
प्रीतत-नदी में पाँव न बोरयौ, दृति न रूप परागी।
'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी। हमारैं हरर हाररल की लकरी।
अथथ - इन पंक्तियों में गोक्तपय ाँ उद्धव से व्यंग्य करती हैं, कहती हैं मन क्रम बचन नदिं -नदिं न उर, यह दृढ़ करर पकरी।
क्तक तमु बहुत ही भ ग्यश ली हो जो कृ ष्ण के प स रहकर भी जागत सोवत स्वप्न तदवस - तनतस, कान्ह- कान्ह जक री।
उनके प्रेम और स्नेह से वंक्तित हो। तमु कमल के उस पत्ते के सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सम न हो जो रहत तो जल में है परन्तु जल में डूबने से बि सु तौ ब्यातध हमकौं लै आए, देखी सनु ी न करी।
रहत है। क्तजस प्रक र तेल की गगरी को जल में क्तभगोने पर यह तौ 'सूर' ततनतहिं लै सौपौं, तजनके मन चकरी ।।
भी उसपर प नी की एक भी बाँदू नहीं ठहर प ती,ठीक उसी प्रक र अथथ - इन पंक्तियों में गोक्तपय ाँ कहती हैं क्तक कृ ष्ण उनके क्तलए
तमु श्री कृ ष्ण रूपी प्रेम की नदी के स थ रहते हुए भी उसमें स्न न ह ररल की लकड़ी हैं। क्तजस तरह ह ररल पक्षी लकड़ी के टुकड़े
करने की ब त तो दरू तमु पर तो श्रीकृ ष्ण प्रेम की एक छींट भी को अपने जीवन क सह र म नत है उसी प्रक र श्री कृ ष्ण भी
नहीं पड़ी। तमु ने कभी प्रीक्तत रूपी नदी में पैर नही डुबोए। तमु बहुत गोक्तपयों के जीने क आध र हैं। उन्होंने मन कमथ और विन से
क्तवद्यव न हो इसक्तलए कृ ष्ण के प्रेम में नही रंगे परन्तु हम भोली- नन्द ब ब के पत्रु कृ ष्ण को अपन म न है। गोक्तपय ाँ कहती हैं
भ ली गोक्तपक एाँ हैं इसक्तलए हम उनके प्रक्तत ठीक उस तरह क्तक ज गते हुए, सोते हुए क्तदन में, र त में, स्वप्न में हम र रोम-रोम
आकक्तषतथ हैं जैसे िीक्तटय ाँ गड़ु के प्रक्तत आकक्तषतथ होती हैं। हमें कृ ष्ण न म जपत रह है। उन्हें उद्धव क सन्देश कड़वी ककड़ी के
उनके प्रेम में लीन हैं। सम न लगत है। हमें कृ ष्ण के प्रेम क रोग लग िक ु है अब हम
आपके कहने पर योग क रोग नहीं लग सकतीं कयोंक्तक हमने तो
मन की मन ही माँझ रही। इसके ब रे में न कभी सनु , न देख और न कभी इसको भोग ही
कतहए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही। है। आप जो यह योग सन्देश ल यें हैं वो उन्हें ज कर सौपें क्तजनक
अवतध असार आस आवन की,तन मन तबथा सही। मन िंिल हो िाँक्तू क हम र मन पहले ही कहीं और लग िक ु है।
अब इन जोग सँदेसतन सुतन-सुतन,तबरतहतन तबरह दही।
चाहतत हुतीं गहु ारर तजततहिं तैं, उर तैं धार बही । हरर हैं राजनीतत पतढ़ आए।
'सूरदास'अब धीर धरतहिं क्यौं,मरजादा न लही।। समुझी बात कहत मधुकर के , समाचार सब पाए।
अथथ - इन पंक्तियों में गोक्तपय ाँ उद्धव से कहती हैं क्तक उनकी मन इक अतत चतुर हुते पतहलैं हीं , अब गुरु ग्रिंथ पढाए।
की ब त मन में ही रह गयी। वे कृ ष्ण से बहुत कुछ कहन ि हती बढ़ी बतु ि जानी जो उनकी , जोग-सँदेस पठाए।
थीं परन्तु अब वे नही कह प एगं ी। वे उद्धव को अपने सन्देश देने ऊधौ भले लोग आगे के , पर तहत डोलत धाए।
क उक्तित प त्र नही समझती हैं और कहती हैं क्तक उन्हें ब तें क्तसर्थ अब अपने मन फे र पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
कृ ष्ण से कहनी हैं, क्तकसी और को कहकर संदेश नहीं भेज ते क्यौं अनीतत करैं आपुन ,जे और अनीतत छुड़ाए।
सकती। वे कहतीं हैं क्तक इतने समय से कृ ष्ण के लौट कर आने राज धरम तौ यहै ' सूर', जो प्रजा न जातहिं सताए।।
की आश को हम आध र म न कर तन मन, हर प्रक र से क्तवरह अथथ - गोक्तपय ाँ कहतीं हैं क्तक श्री कृ ष्ण ने र जनीक्तत पढ़ ली है।
की ये व्यथ सह रहीं थीं ये सोिकर क्तक वे आएाँगे तो हम रे स रे गोक्तपय ाँ ब त करती हुई व्यग्ं यपवू थक कहती हैं क्तक वे तो पहले से
दख
ु दरू हो ज एाँगे। परन्तु श्री कृ ष्ण ने हम रे क्तलए ज्ञ न-योग क ही बहुत ि ल क थे पर अब उन्होंने बड़े-बड़े ग्रन्थ पढ़ क्तलए हैं

ANOOP SIR ~ 7905849750 WWW.SUCCESSMANTRAPOINT.COM ANOOPSIR99@GMAIL.COM Page 1


SUCCESS MANTRA POINT

क्तजससे उनकी बक्तु द्ध बढ़ गई है तभी तो हम रे ब रे में सब कुछ • आगे के - पहले के


ज नते हुए भी उन्होंने हम रे प स उद्धव से योग क सन्देश भेज • पर क्तहत - दसू रों के कल्य ण के क्तलए
है। उद्धव जी क इसमे कोई दोष नहीं है, ये भले लोग हैं जो दसू रों • डोलत ध ए - घमू ते-क्तर्रते थे
के कल्य ण करने में आनन्द क अनभु व करते हैं। गोक्तपय ाँ उद्धव • प इहैं - प लेंगी।
से कहती हैं की आप ज कर कक्तहएग क्तक यह ाँ से मथरु ज ते
वि श्रीकृ ष्ण हम र मन भी अपने स थ ले गए थे, उसे वे व पस
कर दें। वे अत्य ि ररयों को दंड देने क क म करने मथरु गए हैं
परन्तु वे स्वयं अत्य ि र करते हैं। आप उनसे कक्तहएग क्तक एक
र ज को हमेश ि क्तहए की वो प्रज की क्तहत क ख्य ल रखे।
उन्हें क्तकसी प्रक र क कष्ट नहीं पहुिाँ ने दे, यही र जधमथ है।

कतठन शब्दों के अथथ

• बड़भ गी - भ ग्यव न
• अपरस - अछूत
• तग - ध ग
• परु इन प त - कमल क पत्त
• म हाँ - में
• प ऊाँ - पैर
• बोरयौ - डुबोय
• पर गी - मग्ु ध होन
• अध र - आध र
• आवन - आगमन
• क्तबरक्तहक्तन - क्तवयोग में जीने व ली।
• हुतीं - थीं
• जीतक्तहं तैं - जह ाँ से
• उत - उधर
• मरज द - मय थद
• न लही - नहीं रही
• जक री - रटती रहती हैं
• सु - वह
• ब्य क्तध - रोग
• करी - भोग
• क्ततनक्तहं - उनको
• मन िकरी - क्तजनक मन क्तस्थर नही रहत ।
• मधक ु र - भौंर
• हुते - थे
• पठ ए - भेज

ANOOP SIR ~ 7905849750 WWW.SUCCESSMANTRAPOINT.COM ANOOPSIR99@GMAIL.COM Page 2

You might also like