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गु -िश य संवाद

वामी िववेकानंद
अपनी बात
वामी िववेकानंद ने भारत म उस समय अवतार िलया जब यहाँ िहदू धम क अ त व पर संकट क बादल मँडरा
रह थे। पंिडत-पुरोिहत ने िहदू धम को घोर आंडबरवादी और अंधिव ासपूण बना िदया था। ऐसे म वामी
िववेकानंद ने िहदू धम को एक पूण पहचान दान क । इसक पहले िहदू धम िविभ छोट-छोट सं दाय म बँटा
आ था। तीस वष क आयु म वामी िववेकानंद ने िशकागो, अमे रका म िव धम संसद म िहदू धम का
ितिनिध व िकया और इसे सावभौिमक पहचान िदलवाई।
गु देव रव नाथ टगोर ने एक बार कहा था, “यिद आप भारत को जानना चाहते ह, तो िववेकानंद को पि़ढए।
उनम आप सबकछ सकारा मक ही पाएँगे, नकारा मक कछ भी नहप।’’
रोमां रोलां ने उनक बार म कहा था, “उनक तीय होने क क पना करना भी असंभव ह। वे जहाँ भी गए,
सव थम ए...हर कोई उनम अपने नेता का िद दशन करता। वे ई र क ितिनिध थे तथा सब पर भु व ा
कर लेना ही उनक िविश ता थी। िहमालय देश म एक बार एक अनजान या ी उ ह देख, िठठककर क गया
और आ यपूवक िच ा उठा, “िशव! यह ऐसा आ मानो उस य क आरा य देव ने अपना नाम उनक माथे
पर िलख िदया हो।’’
39 वष क संि जीवनकाल म वामी िववेकानंद जो काम कर गए, वे आने वाली अनेक शता दय तक
पीि़ढय का मागदशन करते रहगे।
वे कवल संत ही नहप थे, एक महान देशभ , खर व ा, ओज वी िवचारक, रचनाधम लेखक और क ण
मावन ेमी भी थे। अमे रका से लौटकर उ ह ने देशवािसय का आ ान करते ए कहा था, “नया भारत िनकल पड़
मोदी क दुकान से, भड़भूजे क भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; िनकल पड़ झाि़डय , जंगल , पहाड़ ,
पवत से।’’
और जनता ने वामीजी क पुकार का उ र िदया। वह गव क साथ िनकल पड़ी। गांधीजी को आजादी क
लड़ाई म जो जन-समथन िमला, वह िववेकानंद क आ ान का ही फल था। इस कार वे भारतीय वतं ता-सं ाम
क भी एक मुख ेरणा- ोत बने।
उनका िव ास था िक पिव भारत वष धम एवं दशन क पु यभूिम ह। यहप बड़-बड़ महा मा तथा ऋिषय
का ज म आ, यही सं यास एवं याग क भूिम ह तथा यहप - कवल यहप आिदकाल से लेकर आज तक मनु य
क िलए जीवन क सव आदश एवं मु का ार खुला आ ह।
उनक कथन - “उठो, जागो, वयं जगकर और को जगाओ। अपने नर-ज म को सफल करो और तब तक
को नहप, जब तक िक ल य ा न हो जाए।’’ - पर अमल करक य अपना ही नहप, सावभौिमक
क याण कर सकता ह। यही उनक ित हमारी स ी ांजिल होगी।
तुत पु तक ‘गु -िश य संवाद’ म वामीजी ने सरल श द म वेद, उपिनष और वेदांत क बार सारभूत
या या क ह और य संवाद क मा यम से अपने िश य क आ या मक िज ासा को शांत करने का यास
िकया ह। उ ह ने अका य तरक ारा वै क ान क सागर को इस पु तक पी गागर म भर िदया ह। एक
अ यंत ेरक और ओजपूण पु तक जो जीवन म दैिवक आशा का संचार करती ह और मनु य को मनु य से जोड़ती
ह।
लंदन म भारतीय योगी
कछ वष से यहाँ अथा इ लड क ब त से लोग क दय म भारतीय दशन तथा िदनोिदन बढ़ने वाले भाव का
िव तार कर रहा ह, परतु आज तक िजन लोग ने इस देश म उस दशन क या या क , उनक िचंतन- णाली और
िश ा-दी ा पूरी तरह पा ा य भाव म रगी रहने क कारण वेदांत-त व क गंभीर रह य क संबंध म वा तव म
लोग को ब त ही थोड़ी जानकारी ई ह; और जो कछ ई भी, वह भी इने-िगने य य तक ही सीिमत ह। ा य
भाव से िशि त-दीि त एवं ा य भाव म पले ए यो य आचायगण वेदांत-शा से िजस गंभीर त व ान क ा
कर लेते ह, उस ान-भंडार को उन शा क अनुवाद से ा करने क अंत ि और साहस ब त म नह होता,
य िक वे अनुवाद- ंथ धानतः श द-शा क िलए ही उपयु होने क कारण सवसामा य क िलए किठन होते
ह।
एक संवाददाता िलखते ह िक उपय कारण से, कछ तो वा तिवक िज ासा क साथ और कछ कौतूहलवश
हो, म वामी िववेकानंद से भट करने गया था; य िक पा या य क िलए तो वे एक कार से िनतांत नवीन ही
तीत होने वाले वेदांत-धम क चारक ह। वे सचमुच एक महान भारतीय योगी ह। युग-युगांतर से सं यासी और
योगीगण िश य परपरा से िजस िव ा का चार करते आ रह ह, उसी क या या करने क िलए वे िनभ क और
िनःसंकोच हो इस पा ा य भूखंड म आये ए ह, एवं उसी उ े य से उ ह ने कल रात को ि ंसेज हॉल म एक
भाषण भी िदया था।
वामी िववेकानंद क िसर पर पगड़ी शोभायमान थी, मुख पर शांित और स ता झलक रही थी; उनक दशन
मा से ही यह प तीत होता था िक इनम कछ िवशेषता ह। मने पूछा, “ वामीजी, या आपक नाम का कछ
अथ ह? यिद हो, तो या आप कपया हम बतायगे?”
वामीजी, अब म िजस ( वामी िववेकानंद) नाम से प रिचत , उसक थम श द का अथ ह सं यासी, अथा
िजसने िविधपूवक संसारा म का प र याग कर सं यासा म को वीकार िकया हो। दूसरा श द (िववेकानंद) एक
उपािध मा ह। संसार याग देने क बाद मने इस नाम को हण िकया ह। सभी सं यासी ऐसा करते ह। इस श द
का अथ ह, िववक अथा सदस चार का आनंद।
मने िफर पूछा, “अ छा, वामीजी, संसार क सार लोग िजस राह पर चलते ह, आपने उसका याग य कर
िदया?”
उ ह ने उ र िदया, “बा यकाल से ही धम और दशनचचा म मेरी िवशेष िच थी। हमार शा का उपदेश ह
िक याग ही मनु य का े तम आदश ह। बाद म ीरामक णदेव नामक एक उ त और महा धमाचाय से मेरी
भट ई। मने देखा िक मेर जीवन का जो सव े आदश ह, उसे उ हने अपने जीवन म उतार िलया ह, इसिलए
उनसे सा ा कार होने क बाद मुझम यह बल इ छा जागृत हो गयी िक वे िजस राह पर चल रह ह, म भी उसी पर
चलू।ँ तब मने सं यास हण करने का िन य कर िलया।”
“तब तो वे एक सं दाय क थापना कर गये ह गे और आप इस समय उनक ही ितिनिध प हगे?”
वामीजी ने काल उ र िदया, “नह -नह , सं दाियकता और क रता क कारण आ या मक संसार म सव
िजस गंभीर यवधान क सृि हो गयी ह, उसको दूर करने क िलए उ ह ने अपना सारा जीवन लगा िदया था।
उ ह ने िकसी सं दाय क थापना नह क । उ ट उससे िनतांत िवपरीत ही िकया ह। जनसाधारण िजससे पूणतया
वतं िचंतन-परायण हो सक, इस ओर उनका पूरा-पूरा यान था और इसक िलए वे ाण क भी बाजी लगाकर
य न करते रह। वे वा तव म एक महा योगी थे।”
न : तब तो इस देश क िकसी समाज या सं दाय जैसे िथयोसोिपफकल सोसायटी, ि यन साइिट स
अथवा अ य िकसी सं दाय क साथ आपका कछ भी संबंध न होगा?
वामीजी ने प और दय पश वर म उ र िदया, “नह , तिनक भी नह । ( वामीजी का मुख ऐसा सरल,
अकपट और स ावपूण ह िक जब वे बोलते ह, तो उनका मुखमंडल बालक क तरह िखल उठता ह)। अपने गु
क उपदेश क आलोक म मने अपने ाचीन शा को जैसा समझा ह, म बस उसी क िश ा देता । अलौिकक
उपाय से ा िकसी अलौिकक िवषय क िश ा देने का दावा म नह करता। मेर उपदेश म िवचारशील य
अपनी ती िवचार-बु से जो कछ भी हणयो य समझे, लोग यिद उतना हण कर ल, तो म अपना म साथक
समझूँगा।”
वे कहते चले, “सभी धम का ल य ह सामा य मानव-बु क हण-यो य थूल भाव से भ , ान अथवा
योग क िश ा देना और वेदांत इन सभी माग क सू म मूल-त व का िव ान- व प ह। म तो इसी िव ान का
चार करता और इस पर जोर देता िक इस िव ान क सहायता से येक य अपने-अपने माग का
अनुकरण कर। म येक य को अपनी-अपनी अिभ ता को ही माण प से हण करने का उपदेश देता ।
और जहाँ म िकसी-िकसी ंथ का माण प से उ ेख करता , वहाँ समझना होगा िक थोड़ा य न करने से ही
वह ंथ ा िकया जा सकता ह तथा इ छा रहने से येक वयं उसे पढ़ ले सकता ह। सबसे बड़ी बात तो यह ह
िक साधारण लोग क िलए सवथा अ य रहने वाले तथा िकसी य को मा यम बनाकर अपने उपदेश का
चार करने वाले अलौिकक महा मा क उपदेश को म कह भी माण प से उप थत नह करता और न तो म
यही दावा करता िक िकसी गु पु तक या ह तिलिखत ंथ से मने कोई गु िव ा सीखी ह। न तो म िकसी
गु -सिमित का सद य और न म उस कार क सिमित से संसार का िकसी कार क याण होने का िव ास ही
रखता । स य वयं काश ह और उसे अँधेर म िछपकर रहने क कोई आव यकता नह , वह तो अनायास ही
िदवालोक को सहन कर सकता ह।”
मने पूछा, “तो, वामीजी, आपक मन म कोई समाज अथवा सिमित िति त करने का संक प नह ह?”
उ र : नह , म कोई भी सिमित या समाज नह खड़ा करना चाहता। म तो कवल उसी आ मा का उपदेश करता ,
जो सब ािणय क दय म गूढ़ भाव से अव थत ह और जो सबक अपनी संपि ह। यिद कछ ढ़चेता पु ष
आ म ान क ा कर उसे अपने दैनंिदन जीवन म उतार ल, तो ाचीन युग क तरह, अभी भी वे सारी दुिनया म
हलचल मचाकर उसका प बदल सकते ह। ाचीन काल म एक-एक ढ़िच महापु ष अपने-अपने समय म
ऐसे ही एक-एक नवीन युग का वतन कर गये ह।
मने िफर पूछा, “ वामीजी, आप या भारत से यहाँ हाल ही म आये ह? ( य िक उनका मुख देखने से ा य
देश क चंड सूय-िकरण क याद आती ह)।
वामीजी ने उ र िदया, “नह , स 1893 म अमे रका क िशकागो शहर म जो धम-महासभा का अिधवेशन आ
था, उसम मने िहदू धम का ितिनिध व िकया था। तब से म संयु रा य अमे रका म मण करते ए धम- चार
क िलए या यान दे रहा । अमे रक जाित िवशेष आ ह क साथ मेर या यान सुन रही ह और मेर साथ परम
िम क तरह यवहार कर रही ह। वहाँ मेरा काय इतना जम गया ह िक मुझे शी ही वहाँ लौट जाना पड़गा।
न : वामीजी, पा ा य धम-मत क िवषय म आपक या राय ह?
उ र : म एक ऐसे दशन का चार कर रहा , जो संसार क सार धम-मत क िभि हो सकता ह। म उन सबक
साथ पूण सहानुभूित रखता , मेरा उपदेश िकसी धम का िवरोधी नह ह। म य गत जीवन क उ ित क ओर
ही िवशेष यान रखता , उसे तेज वी बनाने क चे ा करता । म तो यही िश ा देता िक येक य ई र
का अंश या सा ा ह और सवसाधारण को उनक इसी आ यंत रक भाव क संबंध म सचेत होने क िलए
आवाहन करता । जानकर हो या िबना जाने, व तुतः यही सब धम 0का आदश ह।
न : इस देश म आपका काय िकस कार का होगा?
उ र : म ऐसी आशा करता िक म कछ य य को पूव रीित से िश ा दूँगा और उ ह अपने-अपने ढग से
दूसर क पास उस स य का चार करने क िलए उ सािहत क गा। वे िफर मेर उपदेश को अपनी इ छानुसार चाह
िजतना ही पांत रत कर, कोई हािन नह । म ऐसी कोई िश ा नह दूँगा, िजसे जबरन मान लेना पड़, य िक म
जानता िक अंत म स य क ही जय होती ह।
“म य प से जो सब काय कर रहा , उसक संचालन का भार मेर दो-एक िम पर ह। 22 अ ूबर क
शाम को साढ़ आठ बजे “िपकडली ि ंसेज हॉल” म अं ेज ोता क िलए उ ह ने मेर इस भाषण क योजना क
ह। चार तरफ इस िवषय क घोषणा क जा रही ह। िवषय मेर ारा चा रत वेदांत-दशन का मूलत व ह,
“आ म ान”। उसक बाद अपने उ े य क पूित क िलए जो भी उपाय िदखगे, म उनका अवलंबन करने क िलए
तैयार । लोग क बैठक, खाने म या अ य िकसी थान क सभा म उप थत होना, प का उ र देना अथवा
सा ा ही िवचार-िविनमय करना इ यािद सबकछ करने को म तुत । इस अथिल सा- धान युग म म इस बात
को सबसे पहले ही प कर देना चाहता िक मेरा कोई भी काय अथ- ा क िलए नह ह।”
इसक बाद मने उनसे ( वामीजी से) िवदा ली। आज तक िजतने मनीिषय क साथ मेरी भट ई ह, उनम से
सबसे अिधक मौिलक-भाव-संप क अिधकारी ह, इसम मुझे तिनक भी संदेह नह ।

भारत का जीवन- त
इ लड क िनवासी भारत क “ वाल देश” म धम- चारक को भेजते ह, इस बात को इ लड क जनता अ छी
तरह जानती ह। “सार संसार म पयटन करते ए इस शुभसमाचार का चार करो।” महा मा ईसा क इस वाणी का
वे ऐसी पूणता से पालन करते ह िक इ लड क धान- धान धम-सं दाय म से कोई भी उसक इस आदेश क
अनुसार काय करने म पीछ नह रहता। परतु भारत भी इ लड म धम- चारक भेजता ह, इस बात को यहाँ क
साधारण जनता ायः नह जानती।
सट जॉज रोड, साउथ-वे ट क एक भवन म वामी िववेकानंद कछ समय क िलए वास कर रह ह। दैवयोग से
(यिद “दैव” श द क योग म िकसी को आपि न हो तो) वहाँ पर वामीजी से मेरा सा ा कार हो गया। वे या
काम कर रह थे और इ लड म पधारने का उनका या योजन था, इ यािद िवषय पर वा ालाप करने म उ ह कोई
आपि न रहने क कारण, म वहाँ उप थत होकर उनसे इन िवषय पर वा ालाप करने लगा। पहले मने अपने
अनुरोध क वीकित पर आ य य िकया। उ ह ने कहा, “अमे रका म िनवास करते समय से ही इस कार
संवादप क ितिनिधय से भट करने का मुझे पूरा अ यास हो गया ह। हमार देश म य िप इस कार क रीित नह
ह, िफर भी अ य देश म प चकर सवसाधारण को अपनी बात से प रिचत कराने क िलए उस देश क चार क
चिलत था का अवलंबन न करना यु संगत नह हो सकता। स 1893 म अमे रका क िशकागो नगर म
िव -धम-महासभा का जो अिधवेशन आ था, उसम म िहदूधम का ितिनिध होकर गया था। मैसूर क राजा एवं
अ य कछ स न ने मुझे वहाँ भेजा था। अपने िवचार से म अमे रका म कछ सफलता का दावा भी कर सकता ।
िशकागो शहर क अित र अमे रका क अ या य बड़-बड़ शहर म भी कई बार आमंि त िकया गया। एक लंबे
अरसे म अमे रका म रहा । गत वष ी म ऋतु म म एक बार इ लड आया था और इस वष भी, आप देख ही रह
ह िक म यहाँ आया । अब तक लगभग तीन वष म अमे रका म रहाँ मेरी समझ म अमे रका क स यता ब त
उ कोिट क ह। मने देखा िक अमे रक जाित का िच अनायास ही नूतन भावधारा क साथ प रिचत हो जाता ह।
वह िकसी बात को नयी समझकर ही एकदम याग नह देती, वर पहले उसक वा तिवक गुण-दोष को परखती ह
और िफर उसक या यता अथवा ा ता का िनणय करती ह।”
न : तो या आपक कहने का मतलब यह ह िक इ लड क लोग अ य कार क ह?
उ र : हाँ, इ लड क स यता अमे रका क स यता से पुरानी ह। सिदय से लेकर आज तक िकतने ही नये-नये
िवषय क संयोजन से उसका िवकास आ ह। इसी कार उसम कछ कसं कार भी आ िमले ह। उनको दूर करना
होगा। अभी जो कोई भी आपक बीच िकसी नवीन स य का चार करना चाहगा, उसे तो उन कसं कार क ओर
िवशेष ि रखकर काम करना होगा।
न : लोग ऐसा कहते अव य ह। अ छा, जहाँ तक मुझे मालूम ह अमे रका म आपने िकसी नये धम-सं दाय या
धमगत ित ा नह क ह।
उ र : आपका कहना स य ह। सं दाय क सं या म वृ करना हमारी नीित क िव ह, य िक सं दाय क
सं या दुिनया म आव यकता से कह अिधक ही ह। िफर, सं दाय क संचालन क िलए आदमी भी चािहए। अब
िवचार कर देिखये िक िज ह ने सं यास का अवलंबन कर िलया ह, अथा सांसा रक पद-मयादा, िवषय-संपि ,
नाम यश आिद सभी कछ छोड़ िदया ह, िज ह ने कवल आ या मक ान क अ वेषण को ही अपने जीवन का
एकमा त समझा ह, वे इस कार क काय का भार भला िकस तरह ले सकते ह? और जब वैसे काम अ य
दूसर लोग कर ही रह ह, तो िफर उन काम म हाथ डालना िन योजन ही ह।
न : आपक िश ा या धम क तुलना मक समालोचना करना ह?
उ र : यिद क िक वह “सब कार क धम क सार क िश ा देना ह” तो इससे मेरी िश ा क संबंध म अिधक
प धारणा ही हो सकती ह। धम क गौण अंग को छोड़कर उनम जो मु य भाग ह अथा िजस पर वे िति त
ह, उसी क ओर िवशेष प से ि आकिषत करना मेरा काय ह। म ीरामक णदेव का एक िश य । वे एक
िस महापु ष थे। उनक आचरण और उपदेश ने मुझ पर गंभीर भाव डाला था। ये सं यासी- े कभी िकसी
धम को समालोचना क ि से नह देखते थे, “अमुक-अमुक धम म अमुक-अमुक भाव ठीक नह ह” ऐसी बात
वे कभी नह कहते थे। ब क उनम जो कछ उ म ह, उसी को वे िदखा िदया करते थे, यह दशा देते थे िक िकस
कार उनका अनु ान कर उनक उन भाव को हम अपने जीवन म उतार सकते ह। िकसी धम से िवरोध करना, या
िकसी धम का ितप ी होना, यह उनक िश ा क िनतांत िव ह, य िक उनक िश ा क मूल िभि ही यह थी
िक संपूण जग ेम क बल से प रचािलत हो रहा ह। आप जानते ह िक िहदू धम ने कभी भी िकसी दूसर धम पर
अ याचार नह िकया। हमार देश म सभी सं दाय आपस म ेम रखते ए शांितपूवक साथ-साथ रह सकते ह।
मुसलमान क आगमन क साथ ही भारत म धम क नाम पर ह या, अ याचार आिद का वेश आ ह। उनक आने
क पूव तक भारत का आ या मक वातावरण शांितपूण था। ांत व प देिखये, जैन लोग ई र क अ त व म
िव ास नह करते; इतना ही नह , वे इस आ तकता को ांित कहकर चार भी करते ह, पर तो भी उनक अपने
मतानुसार धमानु ान करने म िकसी ने कभी कोई बाधा खड़ी नह क और आज तक वे भारत म शांितपूवक
िनवास कर रह ह। वा तव म भारत ने ही इस िवषय म शांित और मृदुता पी यथाथ वीरता का प रचय िदया ह।
यु , हठका रता, दुःसाहिसकता, बल आघात करने क श , ये सब धमजग म दुबलता क ही िच ह।
न : आपक बात से टॉ टॉय क याद आती ह। हो सकता ह, य िवशेष क िलए यह मत अनुकरणीय हो
सक, य िप इसम भी मेरा य गत संदेह ह, परतु सम जाित क िलए इस िनयम या आदश का पालन करना
कसे संभव ह?
उ र : जाित क िलए यह आदश उ म काम देगा। देखा जाता ह िक अ य जाितय ारा िविजत होना और
तप ा कालांतर म उ ह जाितय पर धमबल से जय ा करना मानो भारत का कमफल, भारत का भा य रहा
ह। भारत ने अपने मुसलमान िवजेता को धम क बल से जीत ही िलया ह। सभी िशि त मुसलमान सूफ ह।
उनको िहदु से पृथक करना किठन ह। िहदू भाव उनक स यता क नस-नस म समा गया ह। उ ह ने भारत क
स मुख िश ाथ का भाव धारण िकया। मुगल स ाट अकबर भी कायतः एक िहदू ही थे। िफर जब इ लड क बारी
आयेगी, तो उसे भी भारत जीत लेगा। आज इ लड क हाथ म तलवार ह, परतु भाव जग म उसक कोई उपयोिगता
नह , ब क उससे अपकार ही आ करता ह। आप जानते ह िक शोपेनहॉवर ने भारतीय भाव और िचंतन क िवषय
म या कहा ह? उ ह ने ऐसी भिव यवाणी क थी िक “तमोयुग” क बाद यूनानी और लैिटन िव ा का उदय होने से
यूरोप म जैसा महा प रवतन आ था, भारतीय भावरािश का यूरोप म चार होने पर वैसा ही महा प रवतन होगा।
न : कपया मा क िजये; पर अभी तो इसक कोई ल ण नह िदख रह ह।
वामीजी ने गंभीरता से कहा, “भले न िदखते ह , पर यह भी तो िन त प से कहा जा सकता ह िक यूरोप क
उस ाचीन “जागरण” क समय ब त को पहले उसक कछ भी िच नह िदखाई िदये थे और उस जागरण का
आिवभाव हो जाने पर ब त से लोग यह समझ न सक थे िक उसका आगमन हो चुका ह। पर जो लोग समय क
ल ण को अ छी तरह पहचानते ह, वे यह भलीभाँित समझ रह ह िक आजकल अंदर-ही-अंदर एक महा
आंदोलन चल रहा ह। िफलहाल कछ वष से ा य-त वानुसंधान ब त आगे बढ़ गया ह। वतमान समय म यह
िव ान क हाथ म ह और उ ह ने इस िदशा म िजतना काय िकया ह, वह अभी लोग क ि म शु क और नीरस
तीत हो रहा ह। पर धीर-धीर लोग समझगे, उनम ान का काश फलेगा।”
न : तब तो आपक मत म भिव य म भारत ही े िवजेता का थान ा करगा, परतु भारत तो अ य देश म
अपनी भावरािश का चार करने क िलए अिधक धम- चारक नह भेजता। शायद जब तक सारी पृ वी आकार
उसक चरण पर नह िगर जाती, तब तक वह ती ा करता रहगा।
उ र : ाचीन काल म भारत धम चार-काय का एक बल क बना आ था। इ लड क ईसाई मत हण करने
क िलए सैकड़ वष पहले ही बु ने संपूण एिशयाखंड को अपने मत म लाने क िलए सव धम- चारक भेजे थे।
वतमान समय म संसार क िचंतनधारा धीर-धीर भारतीय भावधारा को अपना रही ह। परतु यह तो अभी कवल ारभ
ह। िकसी िवशेष धममत को अपनाने क इ छा न रखनेवान क सं या बढ़ रही ह और यह भाव िशि त समुदाय
क भीतर फलता जा रहा ह। िफलहाल अमे रका म जो जनगणना ई थी, उसम ब त से लोग ने अपने को िकसी
सं दायिवशेष क अंतभूत करने से इनकार कर िदया था। स य तो यह ह िक सार धम एक ही मूल स य क िविभ
काश ह। उ ित तो सभी क होगी, नह तो सभी न हो जाएँग।े िविभ कित वाले मानव-मन उसी एक स य
को िभ -िभ प म देखना चाहते ह और ये धम मानो उसी मूल स य व प क से िविभ ि या क तरह
िनकले ए ह। अतः धम क यह िविभ ता िविभ कित वाले मानव-मन क िलए आव यक ह।
न : अब मूल संग क समीप आ रह ह। वह मूल या क ीयभूत स य या ह?
उ र : मनु य क आ यंत रक श ही वह मूल स य ह। हर एक मनु य, चाह वह िकतनी ही बुरी कित का
य न हो, भगवान का ही काश ह। यह श आवृत रहती ह, जीव क ि से िछपी ई रहती ह। यहाँ पर
मुझे भारतीय गदर क एक घटना याद आती ह। िकसी मुसलमान ने वष से एक मौन तधारी सं यासी पर ाणांतक
आघात िकया। लोग उस आततायी को घसीट लाये और कहा, “ वामीजी, आपक मुख से कवल एक श द क ही
देर ह िक हम इसे मौत क घाट उतार दगे।” तब उस महा मा ने अपने दीघकाल क मौन त को भंगकर अपने
अंितम ास क साथ कहा, “ यार ब ो, तुमने ब त बड़ी गलती क ह। यह य तो सा ा भगवा ह!” कहने
का ता पय यह ह िक सबक पीछ यह एक व िव मान ह। यही जीवन म सीखने क सबसे बड़ी बात ह। उसे िफर
“गॉड” किहये, या अ ाह, िजहोवा या ेम अथवा आ मा, जो कछ भी किहये, वही एक व तु ु तम क ट से
लेकर मह म मानव तक सम त ािणय म ाण प से िवराजमान ह। ब से ढक एक समु क क पना क िजये,
िजसम िविभ आकार वाले ब त से छद ह। येक छद मानो एक-एक आ मा, एक-एक मनु य ह, जो अपनी
बु क श क तारत यानुसार बंधन काटकर, इस ब को फोड़कर, बाहर आने का य न कर रहा ह।
न : मुझे तीत होता ह, ा य और पा ा य दोन जाितय क ल य म एक िवशेष भेद ह। आप लोग सं यास,
एका ता आिद उपाय से ब त उ त य व का गठन करने का य न कर रह ह, जबिक पा ा य देश क हम
लोग समाज क पूणता क िस म लगे ए ह। इसी कारण हम सामािजक तथा राजनीितक सम या को हल
करने म ही अिधक जोर लगा रह ह, य िक हमारी समझ म तो सवसाधारण क क याण पर ही हमारी स यता का
थािय व िनभर करता ह।
वामीजी ने बड़ी ढ़ता और आ ह क साथ उ र िदया, “पर मनु य क साधुता ही सामािजक तथा राजनीितक
सविवध िवषय क सफलता का आधार ह। संसद ारा बनाये गये कानून से ही कोई रा भला या उ त नह हो
जाता। वह उ त तब होता ह, जब वहाँ क मनु य उ त और सुंदर वभाव वाले होते ह। म चीन गया था। िकसी
समय चीनी जाित सव म सुिनयंि त थी, परतु वही मनु य क एक अ यव थत समि सी बनी ई ह। इसका
कारण यह ह िक उसने देश क शासन-काय क िलए ाचीनकाल म िजन उपाय का अवलंबन िकया गया था, उस
शासन- णाली क यथािविध प रचालन म समथ य य का वतमान समय म उस जाित म अभाव हो गया ह। धम
सभी िवषय क जड़ तक प चकर उनक यथाथ व प का अ वेषण करता ह। मूल यिद ठीक रह, तो अंग- यंग
सभी ठीक रहते ह।”
न : “भगवा सभी क भीतर िव मान ह, परतु वे आवृत रहते ह,” अ प एवं यावहा रक जग - काश
क ओर देखते नह रह सकते?
उ र : ब धा लोग एक ही उ े य से कम म वृ होते ह, पर वह समझ नह पाते। यह तो मानना ही पड़गा िक
कानून, सरकार या राजनीित मानव-जीवन का चरम उ े य नह ह। इन सबक पर एक ऐसा चरम ल य ह, जहाँ
प चने पर कानून या िविध का कोई योजन नह रह जाता। यहाँ कह दूँ, “सं यासी श द का अथ ह िविध का
प र याग करने वाला -त वा वेषी अथवा सं यासी श द का अथ “नेितवादी” ानी भी हो सकता ह। परतु
ऐसे श द का योग करते ही एक मा मक धारणा आ उप थित होती ह। सभी महा आचाय एक ही िश ा देते
ह। ईसा मसीह जानते थे िक कानून का ितपालन ही उ ित का मूल नह ह, ब क पिव ता और सच र ता ही
वीयलाभ का एकमा उपाय ह। आपने जब कहा िक ा य देश आ मा क उ तर उ ित क ओर तथा पा ा य
देश सामािजक अव था क उ ित क ओर ि रखता ह, तो आप इस बात को अव य न भूले हगे िक आ मा क
दो प ह। एक तो कट थ चैत य, जोिक आ मा का यथाथ व प ह; और दूसरा आभास चैत य, िजसे हम ऊपरी
ि से आ मा समझते ह।
न : तो या आपका ता पय यह ह िक पा ा यवासी आभास क उ े य से काय कर रह ह और आप ा यजन
कत चैत य क उ े य से?
उ र : मन अपने उ तर िवकास क िलए िविवध सोपान म से अ सर होता ह। वह पहले थूल का अवलंबन
करक धीर-धीर सू म क ओर बढ़ता ह। और भी देिखये, मनु य िकस कार िव -बंधु व क धारणा पर प चता
ह। पहले यह िव -बंधु व का भाव सां दाियक ातृभाव क प म कट होता ह, तब वह संक ण और सीमाब
रहता ह, उसम दूसर से अलगाव क वृि रहती ह। बाद म हम धीर-धीर उदारतर और सू मतर भाव म प चते ह।
न : तो आप यह समझते ह िक हम अं ेज क इतने ि य ये सब सं दाय लु हो जाएँग?े आप शायद जानते
ह गे िक एक ांिससी ने कहा ह िक “इ लड ऐसा देश ह, जहाँ सं दाय तो हजार ह, पर सबक िच एक ही ह।
उ र : इन सं दाय क लोप हो जाने क िवषय म मुझे कछ भी संदेह नह ह। उनका अ त व असार और गौण
िवषय पर िति त ह। उनम जो मु य या सार ह, वही बचा रहगा और उसक बुिनयाद पर एक नये भवन का
िनमाण होगा। आपको वह ाचीन उ याद होगी, “िकसी सं दाय क भीतर ज म लेना अ छा ह, परतु आमरण
उसी म ब रहना अ छा नह ।”
न : या आप कपा कर यह बतलायगे िक इ लड म आपक काय का िव तार कसा हो रहा ह?
उ र : धीर-धीर हो रहा ह। इसका कारण म पहले ही बतला चुका । जहाँ मूल को पकड़कर काय होता ह, वहाँ
यथाथ िव तार या उ ित धीर-धीर ही होती ह। मुझे यह बताने क आव यकता नह िक जैसे भी हो, इन सब भाव
का िव तार होगा ही और हमम से ब त को ऐसा तीत हो रहा ह िक अब इन बात क चार करने का ठीक समय
उप थत हो गया ह।
वामीजी क मुख से मने उनक काय क संबंध म िव तृत िववरण सुना। कई ाचीन धममत क तरह इस मत क
िश ा िबना मू य ही दी जाती ह। जो इस मत का अवलंबन करते ह, उनक वे छापूवक दी ई सहायता से ही इस
काय का िनवाह होता ह।
ा य वेश-भूषा से शोभायमान वामीजी क आकित अतीव मनोहर ह। सं यास क िवषय म लोग क साधारणतः
जो धारणा ह, वामीजी का सरल और स दय यवहार देखकर उसका िबलकल उदय नह होता। वे वभावतः ही
ि यदशन ह। िफर उसक साथ उनक उदार भाव, अं ेजी भाषा पर असाधारण भु व, वा ालाप क अ ुत श
आिद ने तो उनको और भी अिधक ि य बना िदया ह। उनक सं यास- त का अथ ह, नाम-यश, धन-संपि , पद-
मयादा आिद का संपूण प से प र याग कर, आ या मक त व ान क ा क िलए अिवराम चे ा करना।

भारत और इ लड
यह लंदन क मौसम (मई, जून और जुलाई महीने लंदन क “मौसम का समय” ह) का समय ह। वामी
िववेकानंद क मत और दशन क ित ब त से लोग आक हो गये ह। वे उन लोग क स मुख व ृताएँ देते ह,
उनको अपने मत और दशन क िश ा देते ह। ब त से अं ेज यह सोचते ह िक ांस क छोट-छोट य न को
छोड़कर धम- चार (िमशनरी-काय) का एकािधकार इ लड को ही ा ह। अतएव म दि ण बेल ेिवया म
वामीजी क अ थायी िनवास थान पर यह पूछने क उ े य से गया िक भारतवष इ लड को संभवतः और या
संदेश दे सकता ह; य िक वैसे तो हम आज तक िभ -िभ पर िवषय पर भारतवष क इ लड क िव
िशकायत ही सुनते आये ह, उदाहरणाथ होमचाज (भारत पर राजस ा होने क कारण ितवष जो धन इ लड को
भेजा जाता था), एक ही य क हाथ म याय और शासन का संचालन रहना तथा सूडान एवं अ य देश पर
यु -आ मण क आय- यय क मीमांसा आिद।
वामीजी थरता क साथ बोले, “भारत का यहाँ धम- चारक भेजना कोई नयी बात नह ह। जब बौ -धम
नवीन उ साह से अ युिदत हो रहा था, जब भारत क पास अपने चार ओर क देश को िश ा देने क िलए कछ था,
उस समय स ाट अशोक चार ओर धम- चारक भेजा करते थे।”
न : अ छा, या यह पूछा जा सकता ह िक भारत ने उस तरह धम- चारक भेजना य बंद कर िदया था और
अब िफर से य वैसा कर रहा ह?
उ र : धम- चारक भेजना बंद करने का कारण यह था िक भारत धीर-धीर वाथपर हो गया, यह रह य भूल गया
िक य और जाितयाँ पर पर आदान- दान क णाली से ही जीिवत रहती और उ ित करती ह। भारत ने सवदा
संसार को एक ही संदेश सुनाया ह। भारत का संदेश आ या मक रहा ह, अनंत युग से भारत का एकािधकार
आ यंत रक भावरा य म ही रहा ह। सू म िव ान, दशन, याय, ये ही भारत क िवशेष े ह। व तुतः मेरा इ लड
म धम चार-काय क िलए आगमन तो इ लड क भारत गमन का ही फल व प ह। इ लड भारत पर िवजय ा
करक उस पर शासन कर रहा ह और अपने भौितक िव ान का उपयोग अपने एवं भारतीय क िहत क िलए कर
रहा ह। मौट तौर पर इसका उ र देते समय मुझे एक सं कत तथा एक अं ेजी वा य याद आ रहा ह। जब कोई मर
जाता ह, तो आप लोग कहते ह, “उसने आ मा का प र याग कर िदया” और हम लोग कहते ह, “उसने शरीर
याग िदया।” वैसे ही, आप लोग कहते ह िक मनु य क आ मा ह। इससे यही अिधक तीत होता ह िक आप लोग
शरीर को ही मनु य क धान व तु मानते ह। परतु हम लोग कहते ह िक मनु य आ म- व प ह, उसक एक देह
ह। अव य ये सब जातीय िचंतन-तरग क छोट-छोट ऊपरी बुलबुले ह, पर इससे यह प हो जाता ह िक आपक
जातीय भावधारा िकस ओर जा रही ह। म आपको शोपेनहावर क भिव यवाणी क याद िदला दूँ। उ ह ने कहा ह
िक तमोयुग का अंत होने पर यूनानी और लैिटन िव ा का उदय होने से यूरोप म जैसा महा प रवतन उप थत आ
था, भारतीय दशन यूरोप म अ छी तरह प रिचत हो जाने पर िफर से वैसा होगा। ा य त व का अ वेषण बल
वेग से अ सर हो रहा ह। स या वेिषय क स मुख नूतन भावधारा का ार उ मु हो रहा ह।
न : तो या आप यह कहना चाहते ह िक अंत म भारत अपने िवजेता को जीत लेगा?
उ र : हाँ, भावरा य म अव य ऐसा होगा। अभी इ लड क हाथ म तलवार ह, वह अभी जड़-जग का भु ह,
जैसे िक अं ेज क आगमन से पहले हमार मुसलमान-िवजेता थे, परतु स ाट अकबर तो वा तव म एक िहदू ही
बन गये थे। िशि त मुसलमान अथा सूिफय को िहदु से सहज ही पृथक नह िकया जा सकता। सूफ लोग
गोमांस-भ ण नह करते और ब त से िवषय म हमार आचार- यवहार का अनुसरण करते ह। हमारी िवचारधारा
उनक िवचारधारा क नस-नस म समा गयी ह।
न : आपक मत म या बल तापशाली अं ेज क भी वही दशा होगी, जैसी मुसलमान क ई थी? आज तो
वैसी संभावना ब त दूर मालूम होती ह।
उ र : नह , आपको िजतनी दूर मालूम हो रह ह, वा तव म उतनी दूर नह ह। धािमक िवषय म अं ेज और
िहदु म ब त सा य ह। और दूसर धम-सं दाय क साथ भी िहदु का ऐ य ह, इनक यथे माण ह। जब
िकसी अं ेज शासनकता या िकसी िसिवल सवट को भारतीय सािह य और िवशेषकर भारतीय दशन का थोड़ा सा
भी ान हो जाता ह, तो देखा जाता ह िक वह ान ही िहदु क ित उसक सहानुभूित का कारण बन जाता ह।
इस कार क सहानुभूित िदनोिदन बढ़ रही ह। पर अभी भी कछ लोग भारतीय भाव को अ यंत संक ण, यहाँ तक
िक कभी-कभी अव ापूण ि से देखते ह।
न : हाँ, यह तो अ ान का प रचायक ह। आप एक बात बतायगे, धम- चार क िलए पहले इ लड न आकर
आप अमे रका य गये?
उ र : कवल संयोगवश। िव -महामेले क समय िव -धम-स मेलन लंदन म न होकर िशकागो म आ था,
इसिलए मुझे वहाँ जाना पड़ा। परतु उस महास मेलन का अिधवेशन तो वा तव म लंदन म ही होना उिचत था। मैसूर
क महाराजा तथा अ य कितपय स न ने मुझे िहदू-धम क ितिनिध क प म वहाँ भेजा था। म वहाँ तीन वष
रहा, कवल गत वष ी मकाल म व ृता देने यहाँ आया था और इस गरमी म भी आया आ । अमे रक लोग
एक बड़ी जाित ह; उनका भिव य बड़ा उ ल ह। उनक ित मेरी िवशेष ा ह; उनम मुझे कई स दय िम
िमले। अं ेज क तुलना म उनक कसं कार कम ह, वे िकसी भी नवीन भाव क परख करने क िलए अिधक
तुत रहते ह, उसक नवीनता क बावजूद भी उसका आदर करने क िलए तैयार रहते ह। िफर वे बड़ अितथ-
परायण भी ह। लोग का िव ास-पा होने क िलए वहाँ अपे ाकत कम समय लगता ह। मेर समान आप भी
अमे रका क शहर-शहर म घूमकर व ृता दे सकते ह, सब जगह आपको िम िमलते रहगे। बो टन, यूयॉक,
िफलाड फया, बा टमोर, वािशंगटन, डसमोिनस, मेसूिफस आिद अनेक थान म म गया था।
न : और येक थान म अपने ब त से िश य भी कर िलए ह गे?
उ र : हाँ, िश य िकये ह; पर िकसी नये सं दाय क थापना नह क ह। वह मेर काय क अंतगत नह ह। समाज
या सिमितयाँ तो संसार म पहले से ही ब त सी ह। इसक अित र , सं दाय गठन करने पर उसक यव था क
िलए यो य य य क आव कता होती ह। िफर धन भी आव क होता ह, मता भी और यो य संचालनकता भी।
ब धा िभ सं दाय वाले अिधकार हिथयाने क िलए कोिशश करते ह, और कभी-कभी तो आपस म लड़ाई भी कर
बैठते ह।
न : तो या आपक धम- चार का सं ेप म यही मतलब ह िक आप कवल िविभ धम क पार प रक
तुलना मक आलोचना कर उसी का चार करना चाहते ह?
उ र : म तो धम क दाशिनक त व का ही चार करना चाहता । धमिवषयक बा अनु ान का जो सार-त व
ह, उसी का म चार करना चाहता । सभी धम म एक मुख और एक गौण भाग होता ह। उन गौण भाग को
छोड़ देने पर जो बचा रहता ह, वही सार धम क न व ह और वही उन सबक साधारण संपि ह। सभी धम क
अंतराल म वही एक व िव मान ह, हम िफर उसे िजस नाम से पुकार, चाह गॉड कह या अ ाह, िजहोवा या
आ मा या ेम; वही एक त व सम त ािणय म ाण प से िवराजमान ह। िनक तम ाणी से लेकर उ क तम
अिभ य मनु य तक सभी उसी त व क काश ह। म तो कवल इस अिध ान प एक व क ओर ही सब
सं दाय क ि िवशेष प से आक करना चाहता । परतु इस पा ा य भूिम म और कवल पा ा य ही
य , सव ही लोग गौण िवषय क ओर अिधक यान देते ह। धम क बा अनु ान का अवलंबन करक लोग
दूसर को भी अपने ही घेर म लाना चाहते ह और इसक िलए आपस म िववाद-झगड़ा करते ह और एक-दूसर को
मार तक डालते ह। यह देखते ए िक भगव -भ और मानव- ेम ही जीवन क सार व तु ह, ये कलह-िववाद
और कछ नही तो कम-से-कम बड़ िविच कह जा सकते ह।
न : मेरी समझ म एक िहदू कभी भी दूसर धमावलंिबय पर अ याचार नह कर सकता।
उ र : आज तक तो उसने नह िकया। इस संसार म िजतनी जाितयाँ ह, उनम िहदू ही सबसे अिधक परधमसिह णु
ह। िहदू को गंभीर धमभावाप देखकर लोग सोचते ह िक वह ई र म िव ासहीन ना तक पर अ याचार करगा।
पर यह बात गलत ह, य िक आप देिखये, जैन लोग ई र म िव ास को मा मक बतलाते ह, परतु आज तक
िकसी भी िहदू ने िकसी जैन पर अ याचार नह िकया ह। भारत म मुसलमान ने सबसे पहले दूसर धमवाल क
िव तलवार ख ची थी।
न : इ लड म इस “मूल एक ववाद” का सार कसा हो रहा ह? यहाँ तो आज हजार सं दाय िव मान ह।
उ र : वाधीन िचंतन और ान क वृ होने पर धीर-धीर इन सं दाय का लोप हो जाएगा। ये सब सं दाय गौण
िवषय पर िति त ह, इसिलए वे दीघकाल तक थायी नह रह सकते। उन सं दाय का उ े य अब िस हो
गया ह। वह उ े य था, उन सं दाय क अंतगत य य क धारणानुसार संक ण ातृभाव क ित ा करना।
अब हम धीर-धीर यि य क इन छोट-छोट समूह को अलग करने वाली दीवार को तोड़कर िव -बंधु व क
भावना पर प च सकते ह। इ लड म यह काया बड़ी धीमी गित से िस हो रहा ह। इसका कारण संभवतः यह ह
िक अभी भी उपयु समय उप थत नह आ ह। परतु िफर भी धीर-धीर यह भाव सा रत हो रहा ह। म इस बात
क ओर आपक ि आकिषत करना चाहता िक इ लड भी भारत म यही काय कर रहा ह। भारत म जो जाित-
भेद ह, वह भारत क उ ित क राह पर रोड़ डाल रहा ह। उससे संक णता और भेद-बु आती ह, िविभ
सं दाय म आपस म पाथ य क दीवार खड़ी हो जाती ह। पर िवचार क उ ित क साथ वह न - हो जाएगा।
न : परतु कछ अं ेज जो भारत क ित कोई कम सहानुभूित नह रखते और जो उसक इितहास से िबलकल
अप रिचत नह ह, वे तो जाित-भेद को मु यतया क याणकारी ही समझते ह। लोग तो अनायास ही अिधक-से-
अिधक पा ा य-भावाप हो सकते ह। आप भी तो हमार ब त से आदश को जड़वादा मक कहकर िनंदा करते
ह।
उ र : हाँ, यह सच ह। कोई भी बु मान पु ष भारत को इ लड बनाना नह चाहता। शरीर क भीतर अव थत
िवचार से यह शरीर गिठत आ ह। अतः सम जाित जातीय िवचारधारा का िवकास मा ह। इसिलए भारत को
पा ा य-भावाप करना एक असंभव बात ह, और उसक िलए य न करना भी िनबु ता का काय ह। िचरकाल
से ही भारत म सामािजक उ ित क उपादान प प से िव मान रह ह। जब कभी शांितपूण रा य- यव था
थािपत होती थी, तभी उसक अ त व का प रचय ा आ ह। उपिनषद क समय से लेकर वतमान काल तक
क हमार सार बड़-बड़ आचाय ने इस जाित-भेद क बाधा को तोड़ने क कोिशश क ह। अव य, उ ह ने मूल
जाित-िवभाग का नाश नह चाहा; उ ह ने कवल उसक िवकत और अवनत प को ही हटाने का यास िकया था।
ाचीन जाित-िवभाग म ब त सुंदर सामािजक यव था थी। वतमान जाित-भेद क भीतर आप जो कछ अ छा देख
रह ह, वह उसी ाचीन जाित-िवभाग से ा आ ह। बु ने जाित-िवभाग को िफर से उसक पुराने मौिलक
व प म िति त करने क चे ा क थी। जब-जब भारत क जागृित ई ह, तब-तब उस िवकत जाित-भेद को
तोड़ने क बल य न िकये गये ह। परतु यह काय िचरकाल हम ही करना पड़गा। हम को ाचीन भारत क
प रणित और मिवकास- व प नये भारत का गठन करना होगा; जो कोई वैदेिशक भाव हम इस काय म सहायता
देगा, वह िफर चाह जहाँ से िमले, उसे हण कर हम अपना बना लेना होगा। दूसरा कोई हमार िलए इस काय को
नह कर दे सकता। सारी उ ित य या जाित क भीतर से होनी चािहए। इ लड बस इतना ही कर सकता ह। वह
भारत को उसक इस आ मो ार क साधना म सहायता प चा सकता ह, इससे अिधक कछ नह । मेर मत से यिद
दूसरा कोई बलपूवक भारत क गदन पकड़कर उसक उ ित करना चाह, तो उससे कोई लाभ नह होगा। गुलाम
क मनोवृि से िकये ए सव म काय क फल से भी अवनित ही आ करती ह।
न : या कभी आपने इिडयन नेशनल कां ेस क आंदोलन क ओर भी यान िदया ह?
उ र : म यह नह कह सकता िक उधर मने कोई िवशेष यान िदया ह। मेरा कम े दूसरा ह। परतु मेरा िव ास
ह, उस आंदोलन से भिव य म िवशेष शुभ फल क ा क संभावना ह, और उसक िस क िलए म हािदक
ाथना करता । उसक ारा भारत क िविभ छोटी-छोटी जाितय से एक बृह रा गिठत हो रहा ह। मुझे
कभी-कभी ऐसा मालूम होता ह िक भारत क िविभ जाितय म जो पर पर िभ ता ह वह यूरोप क िविभ देश
क आपसी िभ ता से कोई कम नह ह। अतीत म यूरोप क िभ -िभ जाितय ने भारतीय वािण यािधकार क िलए
बड़ा य न िकया ह, और इस भारतीय वािण य ने संसार क स यता क िव तार म एक बल श क प म
काय िकया ह। भारतीय वािण यािधकार क ा मानव-जाित क इितहास म एक कार से भा यच म प रवतन
लाने वाली घटना कही जा सकती ह। हम देखते ह िक डच, पुतगाली, ांसीसी और अं ेज म से उस अिधकार
क ा क िलए कोिशश करते रह। यह भी कहा जा सकता ह िक वेिनसवािसय ने ा य देश म वािण यािधकार
म ित त होने क कारण, सुदूर पा ा य देश म इस ित-पूित क जो चे ा क , उसी से अमे रका का
आिव कार आ ह।
न : इसक प रणित कहाँ होगी?
उ र : अव य इसका अंत भारत म सा यभाव क थापना म होगा; सार भारतीय क िलए य गत समान
अिधकार क ा म, िजसे हम जातं ता मक भाव कहते ह, इसक प रणित होगी। ान मु ी भर िशि त
य य क एकािधकार संपि न रहगा; वह समाज म उ तर से धीर-धीर िन नतम तर तक िव तृत होगा।
जनसाधारण म िश ा का सार िकया जा रहा ह, भिव य म िश ा सबक िलए अिनवाय कर दी जाएगी। भारतीय
जनता म जो अथाह कायकारी श िव मान ह, उसे काम म लाना होगा। भारत क दय म महा श िनिहत ह,
उसको जगाना ह।
न : िबना बल यु -साम यवा ए या कभी कोई जाित बड़ी बनी ह?
उ र : वामीजी ने ण मा क िलए भी इत तः न करते ए तुरत उ र िदया, “हाँ, चीन इसका उदाहरण ह। मने
चीन और जापान म भी मण िकया ह। आज चीन क दशा एक िबखर ए दल क समान ह; पर जब वह उ ित
क िशखर पर था, तब उसक जैसी सुंदर और सु ंखलाब समाज- यव था थी, वैसी आज तक दुिनया म और
कह देखी न गयी। आज हम िजन उपाय और णािलय को आधुिनक समझते ह, उनम से अिधकांश तो चीन म
सैकड़ य , हजार वष तक चिलत थे। उदाहरण क िलए बड़ी-बड़ी नौक रय क िलए होने वाली ितयोिगता-
परी ा को ही लीिजए।”
न : अ छा, चीन क ऐसी िव ंखल दशा य हो गयी?
उ र : इसिलए िक चीन अपनी सामािजक णाली क अनु प यो य य य का िनमाण न कर सका। आप लोग
म यह कहावत िस ही ह िक “पािलयामट क िवधान-बल से मनु य को स ुणी नह बनाया जा सकता।”
चीिनय ने यह बात पहले ही अनुभव कर ली थी। इसिलए राजनीित क अपे ा धमनीित क अिधक उपका रता ह,
य िक धम-िवषय क मूल तक प चता ह और मनु य क चे ा क िभि को लेकर रहता ह।
न : आप भारत क िजस जागृित क िवषय म कह रह ह, भारत या उस संबंध म सचेत ह?
उ र : संपूण सचेत ह। दुिनया शायद मु यतः कां ेस-आंदोलन और समाज-सुधार- े म ही जागरण अनुभव कर
रही ह; पर धम क े म भी यह जागरण उतना ही स य ह, भले ही वह अपे ाकत धीर-धीर हो रहा ह।
न : पा ा य और ा य देश क आदश म इतना अंतर ह। हमारा आदश सामािजक अव था क पूणता ा
करना ह। हम लोग इ ह सम या क समाधान म लगे ए ह; जबिक दूसरी ओर ा यिनवासी सू म त व क
यान म अपनी सारी श लगा रह ह। यहाँ पािलयामट इस पर िवचार-िविनमय कर रही ह िक सूडान क लड़ाई ं
म भारतीय सैिनक का यय-भार िकसक िसर लादा जाए। र णशील दल क सभी िश संवाद प ने सरकार क
इस अनुिचत िनणय क िवरोध म बल आवाज उठायी ह, परतु आप लोग शायद सोचते ह गे िक यह िवषय
िबलकल यान देने यो य नह ह।
वामीजी सामने पड़ ए अखबार को लेकर र णशील दल क प से उ ृत िकये ए अंश पर नजर दौड़ाते
ए बोले, “पर वहाँ पर आपने िबलकल गलत समझा ह। इस िवषय म मेरी सहानुभूित वाभािवक ही अपने देश क
साथ ह। िफर भी यहाँ मुझे एक ाचीन सं कत कहावत याद आती ह, “िव ते क रिण िकमंकशे िववादः” अथा
“हाथी को तो बेच डाला, अब अंकश को लेकर झगड़ा य ?” भारत तो िचरकाल से ही देता आ रहा ह।
राजनीित का िववाद बड़ा िविच होता ह। राजनीित म धम का वेश कराने क िलए अनेक युग लगगे।”
न : तो भी, उस काय क िलए अभी से य न तो करना चािहए?
उ र : हाँ, संसार क सबसे बड़ शासन-यं , इस िवशाल लंदन नगरी क दय म, िकसी भाव का बीजारोपण कर
देना िवशेष आव यक ह। म ब धा इसक काय णाली का पयवे ण िकया करता , देखा करता , कसे तेज और
कसी पूणता क साथ सबसे सू म नस तक इसका भाव- वाह प च रहा ह। इसका भाव-िव तार, इसक चार ओर
श -संचालन करने क णाली कसी अ ुत ह। इसको देखने से सम सा ा य क बृह ा तथा इसक काय क
मह ा को समझने म सहायता िमलती ह। अ या य िवषय क िव तार क साथ-साथ यह शासन-यं क भाव का भी
िव तार िकया करता ह। इस महा यं क अंत तल म कछ भाव का वेश कर देना बड़ा आव यक ह, िजससे
सबसे दूरवत देश तक उनका सार हो सक।
वामीजी क आकित िवशेष वपूण ह। उनका लंबा-चौड़ा सुंदर सुडौल शरीर ा य देश क आकषक वेश-भूषा
से और भी सुंदर िदखायी देता ह। उनका य व बड़ा भावशाली ह। ज म से वे बंगाली ह तथा कलक ा
िव िव ालय क ेजुएट ह। उनक व ृताश असाधारण ह। िबना िकसी संि नोट आिद क ही वे िकसी भी
िवषय पर डढ़-ड़ढ़ घंट तक धारा वाह व ृता दे सकते ह, एक श द क िलए भी उनको कह पर कना नह
पड़ता।
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इ लड म भारतीय धम- चारक
वामीजी यिद अपने देश म होते, तो शायद िकसी पेड़ क नीचे यह िकसी मंिदर क अहाते म ही पड़ रहते; वे
अपने देश क पोशाक पहनते और उनका िसर मुँडा आ होता। परतु लंदन म वे ऐसा कछ नह करते। अतः म जब
वामीजी से िमलने गया, तो देखा िक वे अ य य य क ही तरह िनवास कर रह ह। वेश-भूषा भी अ या य लोग
क ही समान थ । हाँ, इतनी िवशेषता अव य ह िक गे ए रग का एक लंबा सा चोगा पहनते ह। वे हसते ए बोले,
“लंदन क सड़क पर गरीब क जो छोट-छोट लड़क घूमते-िफरते ह, वे मेर पहनावे को िबलकल ही पसंद नह
करते, िवशेषकर साफा पहनने पर तो कहना ही या! उस पोशाक म मुझे देखकर वे जो कछ कहते ह, वह बतलाने
लायक नह ह।”
मने इन भारतीय योगी से ाथना क िक वे अपने नाम क अ र का धीर-धीर उ ारण कर।
न : आप या ऐसा समझते ह िक आजकल असार और गौण िवषय म ही लोग क ि अिधक रहती ह?
उ र : मुझे तो ऐसा तीत होता ह। अनु त जाितय एवं पा ा य देश क स य जाितय क अंतगत अ प िशि त
म भी यह भाव देखा जाता ह। आपक न से यह सूिचत होता ह िक िशि त और धनी य य का भाव अलग ह
और सचमुच वैसा ह भी। धनी लोग या तो भोग ऐ य म डबे ए ह अथवा अिधक धन बटोरने क िचंता म ह तथा
सांसा रक कम म य त अिधकांश लोग यही समझते ह िक धम िम या और यथ क चीज ह और वे सचमुच
ऐसा अनुभव भी करते ह। यिद कोई धम चिलत ह, तो वह ह देश- ेम और लोकाचार। लोग िग रजाघर को तभी
जाते ह, जब या तो िववाह होता ह, या िकसी क अं येि ि या।
न : आपक चार का फल या यह होगा िक लोग िग रजाघर म अिधक जाने लगगे?
उ र : म तो ऐसा नह समझता; य िक बा अनु ान या मतवाद क साथ मेरा कछ भी संबंध नह ह। धम ही
सबकछ ह और सबक भीतर ह, बस यही िदखाना मेरा जीवन- त ह और यहाँ इ लड म कौन सा भाव चल रहा
ह? भाव-गित को देखकर तो ऐसा मालूम होता ह िक समाजवाद या और िकसी कार का लोकतं , चाह आप
उसको िकसी भी नाम से पुकार, शी चिलत होगा। लोग अव य अपनी सांसा रक ज रत क चीज क आकां ा
िमटाना चाहगे िक उनक काम पहले से कम हो जाएँ, खाने-पीने को अ छी तरह िमले, अ याचार और लड़ाई आिद
संसार म िब कल बंद हो जाए। अ छा, एक बात पूछता , यिद यहाँ क अथवा अ य कोई भी स यता, धम पर,
मनु य क साधुता पर िति त न हो, तो उसक िटकने क िन तता या? यह आप प ा जान ल िक धम सब
िवषय क जड़ तक प चता ह। यिद वह ठीक रह, तो सभी कछ ठीक रहगा।
न : परतु धम का सार जो दाशिनक भाव ह, उसे तो लोग क बु म वेश कराना सहज न होगा, य िक
लोग हमेशा िजन िवचार और भाव का अवलंबन करते ए जीवन यतीत करते ह, उनसे धम का सार-भाव तो
ब त दूर ह।
उ र : सभी धम म हम यह पाते ह िक लोग पहली अव था म िन नतर स य का अवलंबन करते ह; िफर उसी क
बल से तदपे ा उ तर स य म प चते ह। इसिलए यह कहना िक हम अस य से स य म प चते ह, गलत ह। सारी
सृि क अंतराल म एक व िव मान ह, परतु मनु य का मन िनतांत िभ -िभ कार का होता ह। “एक स ा
ब धा वदंित”, “यथाथ व तु एक ही ह, ानी उसी का िभ -िभ कार से वणन करते ह।” मेर कहने का ता पय
यह ह िक लोग संक णतर स य से यापकतर स य क ओर अ सर होते ह। इसिलए अिवकिसत अथवा िन न
कोिट क धम भी िम या नह ह, वे भी स य ह; हाँ, उनम स य क धारणा या अनुभूित अपे ाकत अ प या
िनक ह, बस इतना ही। लोग क ान का िवकास धीर-धीर िन य सनातन स य व प क िवकत उपासना
ह। धम क और भी िजतने प ह, उनम भी िकसी-न-िकसी अंश म स य वतमान ह। िकसी भी धमिवशेष म स य
पूण प से वतमान नह ह।
न : या म पूछ सकता िक आप इ लड म िजस धम का चार करने क िलए आये ह, वह या आप ही क
ारा वितत िकया गया ह?
उ र : कदािप नह । म तो ीरामक ण देव नामक एक भारतीय महापु ष का िश य । हमार देश क कई
महापु ष क तरह वे कोई िवशेष पंिडत तो न थे, पर एक अितशय पिव ा मा थे; उनका जीवन और उनक उपदेश
वेदांत-दशन क भाव से िवशेष प से रगे ए थे। मने “वेदांत-दशन” श द का योग िकया ह, पर उसे “धम” भी
कहा जा सकता ह, य िक वा तव म वह “धम” भी ह और “दशन” भी। हाल ही म “नाइटी थ सचुरी” नामक
प क एक अंक म ा यापक मै समूलर ने मेर गु देव क िवषय म जो िववरण कािशत िकया ह, उसे आप
कपया पि़ढये। स 1836 म बंगाल क गली नामक िजले म ीरामक ण देव का ज म आ था और स 1886 म
उ ह ने देह छोड़ दी। कशवचं सेन तथा अ या य य य पर उनका बल भाव पड़ा था। शरीर और मन क
संयम का अ यास कर उ ह ने आ या मक िवषय म गंभीर अंत ि ा कर ली थी। उनक मुख का भाव
साधारण मनु य क भाँित न था। उस पर बालक क तरह कमनीयता, गंभीर न ता, अ ुत शांित और माधुय का
भाव खेला करता था। उनक ीमुख क दशन करने पर कोई भी बरबस ही उनक ओर आक ए िबना नह रहता
था।
न : तब तो मालूम होता ह, आपक उपदेश का मूल वेद ही ह।
उ र : हाँ, “वेदांत” श द का अथ ह वेद का अंितम भाग, वह वेद का तीसरा भाग ह। उसको उपिनष भी कहा
जाता ह। पहले क भाग म जो सब भाव बीजाकार म ह, उ ह क उ र भाग म अथा उपिनषद म प रप ता ई
ह। वेद क सबसे ाचीन भाग का नाम ह संिहता। उसक भाषा अ यंत ाचीन युग क सं कत ह। कवल या क-
कत िन नामक अित ाचीन सं कत-कोष क सहायता से ही उसका अथ समझ म आ सकता ह।
न : हम अं ेज तो ब क ऐसा समझते ह िक भारत को हमसे ब त-कछ िश ा लेनी ह; परतु हमको भी भारत से
कछ सीखना ह, इस संबंध म हमारी साधारण जनता अ ान म ही ह।
उ र : हाँ, यह बात स य ह। परतु िव ान लोग इस बात को अ छी तरह जानते ह िक भारत से कहाँ तक िश ा
िमल सकती ह, और वह िश ा िकतनी मह वपूण ह। आप मै समूलर, मोिनयर िविलय स, सर िविलयम हटर
अथवा जमनी क ा य पंिडत को कभी भी भारतीय सू मत व-िव ान क अव ा करते नह पायगे।
वामीजी 39 न िव टो रया ीट म व ृता िदया करते ह। कोई भी आकर सुन सकता ह। आने म िकसी को
िकसी कार क रोक-टोक नह ह। और ाचीन े रतगण क युग क तरह यह नयी िश ा िबना मू य दी जाती ह।
इस भारतीय धम- चारक क देह क गठन असाधारण प से सुंदर ह। अं ेजी भाषा पर उनका पूरा-पूरा भु व ह,
यह कहना िनतांत स य होगा।
—सी.एस.बी.
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मदुर म एक घंटा
न : म जहाँ तक जानता , “जग िम या ह” इस मत क या या िन निलिखत कार से होती ह-
(1) अनंत क तुलना म न र नाम- प का थािय व इतना ु और अ प ह िक वह नह सा ह;
(2) दो लय का म यवत थित-काल भी अनंत क तुलना म ऐसा ही ह।
(3) जैसे शु म रजत- ान अथवा र ु म सप- ान म क दशा म स य ह और यह ान मन क िकसी
अव था िवशेष पर िनभर रहता ह, वैसे ही वतमान म इस जग क भी एक आपात- तीयमान स यता ह और यह
स यता- ान भी मन क अव था-िवशेष पर िनभर रहता ह, िकतु परमाथतः (अंितम स य क प म) वह िम या ह;
(4) वं या-पु या शश- ‘ं ग िजस कार िम या ह, यह जग भी उसी कार एक िम या क पना मा ह।
इन भाव म से अ ैत दशन क अनुसार “जग िम या” का ता पय िकससे ह?
उ र : अ ैतवािदय म अनेक भेद ह। परतु उनम से येक ने उपयु मत म से िकसी-न-िकसी एक क सहार
अ ैतवाद को समझा ह। पर आचाय शंकर ने तृतीय मतानुसार िश ा दी ह। वे कहते ह िक यह जग हमार
स मुख िजस प म ितभािसत हो रहा ह, वह हमार वतमान ान क अव था म यावहा रक प से स य ह; परतु
जब मनु य का ान उ भूिम म प चता ह, तब यह िब कल अंतिहत हो जाता ह। आप अँधेर म एक ठठ को
देखकर उसे भूत समझ बैठते ह। उस समय क िलए आपका भूत- ान स य ह, य िक यथाथ भूत आपक मन म
जो िवकार उ प करता और उसका जो फल होता, ठीक वही फल इससे भी हो रहा ह। आप य ही समझ लगे
िक वह कवल एक ठठ ह, य ही आपका भूत- ान चला जाएगा। ठठ- ान और भूत- ान दोन एक साथ नह
ठहर सकते; उसम से जब एक रहता ह, तब दूसरा नह रहता।
न : आचाय शंकर ने कछ ंथ म या चतुथ मत को भी वीकार नह िकया गया ह?
उ र : नह । आचाय शंकर क “जग िम या” उपदेश का मम ठीक-ठीक हण करने म असमथ होने क कारण
कोई कोई य वैसी अितशयो कर बैठ ह। उ ह ने अपने ंथ म उस चतुथ प का समथन िकया ह। थम
और तीय प का हण िकसी-िकसी ेणी क अ ैतवािदय ने िकया ह, पर आचाय शंकर ने उनक मत का
अनुमोदन कभी नह िकया।
न : इस आपात- तीयमान स यता का या कारण ह?
उ र : ठठ म भूत का म होता ह, उसका कारण या होता ह? यथाथ म जग सवदा एक प ही ह, आपका मन
ही उसम अनेकानेक अव था-वैिच य क सृि कर रहा ह।
न : “वेद अनािद अनंत ह” इस कथन का या ता पय ह? यह बात या वैिदक मं क िवषय म ह? और यिद
वेद-मं म िनिहत स य को ल य करक ही वेद को अनािद अनंत कहा जाता हो, तो िफर या याय, यािमित,
रसायन आिद शा भी अनािद अनंत न ह गे; य िक उनम भी तो सनातन स य िव मान ह?
उ र : एक समय ऐसा था, जब वेद इस अथ म अनािद-अनंत समझे जाते थे िक “उनक अंतगत आ या मक
स य अप रवतनशील और सनातन ह, कवल मनु य क सम अिभ य मा ए ह”। ऐसा मालूम होता ह िक
उ रकाल म अथ ान सिहत वैिदक मं का ही ाधा य हो गया, िजससे लोग इन मं को ही ई र सूत मानकर
िव ास करने लगे। और भी आगे चलकर, मं क अथ से यह मालूम होने लगा िक उनम ब त से ऐसे मं ह, तो
ई र सूत नह माने जा सकते, य िक वे मानव-जाित क िलए ािणय को पीड़ा प चाने क हतु अशु कम का
िवधान करते ह। और उनम से कछ मं म तो हा या पद कथाएँ भी विणत ह। “वेद अनािद अनंत ह” इस बात
का ता पय यही ह िक उनक ारा मनु य क िलए िजस िविध या स य का काश िकया गया ह, वह िन य और
अप रणामी ह। याय, यािमित, रसायन भूत शा भी मनु य क िलए िन य, अप रणामी िनयम या स य का
काश करते ह और इस ि से वे भी अनािद अनंत ह। परतु ऐसा कोई स य या िविध नह ह, जो वेद म न हो। म
आप सबको चुनौती देता िक आप एक ऐसा स य तो िदखा द, िजसक या या वेद म न हो।
न : अ ैतवाद क ि म मु का व प कसा ह? मेर पूछने का ता पय यह ह िक या उनक मत से
मु दशा म भी ान रहता ह? अ ैतवािदय क मु और बौ का िनवाण, इनम या कछ भेद ह?
उ र : मु म भी एक कार का ान रहता ह, िजसे हम “तुरीय ान या ानातीत अव था कहते ह। उस ान क
साथ हमार वतमान ान का ब त भेद ह। यह कहना िक मु क अव था म िकसी कार का ान नह रहता,
यु -िव ह। काश क तरह ान क भी तीन अव थाएँ होती ह, मृदु या मंद, म यिवध या म यम और
अिधमा या ती । जब काश परमाणु का पंदन अितशय बल होता ह, तब काश इतना ती हो जाता ह िक
उसक उ लता से आँख चकाच ध हो जाती ह और िजस कार अित ीण काश म कछ नह िदखायी देता,
उसी कार इसम भी कछ नह िदखायी देता। ऐसा ही ान क िवषय म भी ह। बौ लोग चाह जो कह, पर उनक
िनवाण म भी इस कार का ान िव मान ह। हमारी मु क या या अ तक-भावा मक ह और बौ क
िनवाण क ना तक-भाव ोतक।
न : उपािध या अव था क अतीत होते ए भी जग क सृि क िलए उपािध या अव था िवशेष का
आ य य लेता ह?
उ र : आपका यह न ही अयौ क ह, यायशा क िबलकल िव ह। वाणी या मन का िवषय नह
ह। जो व तु देश-काल-िनिम से पर ह, उसको मानव-बु कभी अपना िवषय नह कर सकती। जहाँ तक देश-
काल-िनिम का रा य ह, बस वह तक यु या अनुसंधान का अिधकार ह। जब ऐसा ह, तब िजस िवषय क
मनु य-बु ारा धारणा होना असंभव ह, उसक संबंध म जानने क इ छा यथ क चे ा मा ह।
न : ऐसा देखने म आता ह िक कई लोग कहते ह िक पुराण क ऊपरी अथ क पीछ गु अथ िव मान ह। वे
कहते ह िक पुराण म उन गु भाव का ही पक क सहायता से वणन िकया गया ह। िफर कोई-कोई ऐसा कहते
ह िक पुराण म कछ भी ऐितहािसक स य नह ह, उ तम आदश को समझाने क िलए पुराणकता ने कछ
का पिनक च र क सृि कर ली ह। ांत क िलए िव णुपुराण, रामायण या महाभारत क बात लीिजये। अब
न यह ह िक या वा तव म उनम कछ ऐितहािसक स य ह, या वे कवल दाशिनक स य क पक-वणन मा
ह, अथवा मानव-जाित क च र को िनयिमत करने क िलए उ तम आदश क ांत ह, अथवा िम टन, होमर
आिद किवय क कितय क तरह वे भी कवल उ भावा मक का य मा ह?
उ र : कछ-न-कछ ऐितहािसक स य येक पुराण क िभि ह। पुराण का ल य ह, िविभ भाव म से परम
स य क िश ा देना और यिद उनम कह कछ ऐितहािसक स य न भी हो, तो भी वे िजस उ तम स य का उपदेश
देते ह, उसक ि से वे हमार िलए उ माण व प ह। ांत क िलए रामायण को ही लीिजये, उसको एक
अनु ंघनीय माण- ंथ क प म वीकार करने क िलए रामचं जैसे िकसी य क ऐितहािसक स यता को
भी अव य वीकार करना होगा, ऐसी कोई बात नह । रामायण या महाभारत म िजस धम क मिहमा गायी गई ह,
वह राम या क ण क अ त व-ना त व क अपे ा नह रखती। इसिलए इनक अ त व म िव ासी न होने पर भी
रामायण और महाभारत ने मानव-जाित को िजन महा त व का उपदेश िदया ह, उनक संबंध म इन ंथ का उ
ामा य वीकत िकया जा सकता ह। हमारा दशन अपनी स यता क िलए िकसी य िवशेष पर िनभर नह
करता। देिखये, क ण ने संसार को कोई नयी या मौिलक िश ा नह दी। वैसे ही, रामायणकार ने भी कभी कोई ऐसी
बात नह कही, जो हमार वेदािद शा म िबलकल उपिद न हो। यह एक िवशेष यान देने क बात ह िक
ईसाई-धम ईसा क िबना, इ लाम-धम मुह मद क िबना और बौ -धम बु क िबना नह ठहर सकता, परतु िहदू-
धम ही एकमा ऐसा ह, तो िकसी य िवशेष पर िबलकल पर िनभर नह करता। और यिद इस बात का िवचार
करना हो िक पुराण म विणत दाशिनक स य कहाँ तक ामा य ह, तो इसक िलए यह सब चचा करने क कोई
आव यकता नह िक उसम विणत य वा तव म थे अथवा वे कवल का पिनक च र मा ह। पुराण का
उ े य था मानव-जाित को िश ा देना और िजन ऋिषय ने उनक रचना क , उ ह ने कछ ऐसे ऐितहािसक च र
ढढ, िजन पर वे अपनी इ छानुसार सार अ छ अथवा बुर गुण का आरोप कर सकते थे, और इस कार वे मानव-
जाित क प रचालन क िलए धम का िवधान कर गये। यह या आव यक ह िक रामायण म विणत दस मुँह वाले
रावण का अ त व मानना ही पड़गा? दस मुँह वाला कोई रहा हो या न रहा हो, हम तो बस उस स य का िवशेष
प से अ ययन और िवचार करना ह, िजसक िश ा उस च र क सहार दी गयी ह। आज आप क ण का और
भी आकषक वणन कर सकते ह और यह वणन आपक आदश क उ ता क अनु प होगा, परतु पुराण म विणत
महो दाशिनक स य सवदा एक ही प होते ह।
न : यिद कोई य िस हो जाए, तो या उसे अपने पूव-ज म क घटनाएँ याद आ सकती ह? पूव-ज म
का उसका थूल म त क, िजसम उसक पूवानुभूित क सं कार संिचत थे, अब नह रहा। इस ज म म उसे एक
नया म त क िमला ह। अतः ऐसी थित म यह कसे संभव ह िक उसका वतमान म त क उस यं ारा गृहीत
सं कार को मरण म लाये, जो अभी वतमान म नह ह?
वामीजी : िस श द से आपका या ता पय ह?
संवाददाता : िजसने अपनी “गु ” श य का “िवकास” िकया हो।
वामीजी : म यह नह समझ सकता िक “गु ” श य का “िवकास” कसे होगा? आपका मतलब म समझ
सकता , पर म चाहता िक िजन श द का यवहार िकया जाए, उनक अथ िबलकल प और सीधे ह । जहाँ
पर जो श द उिचत हो, वहाँ पर बस उसी का यवहार करना चािहये। आप कह सकते ह िक “गु ” या
“अ य ” श “ य ” या “िनरावृत” होती ह। िजनक अ य श य हो गयी ह, वे अपने पूव-ज म
क घटना का मरण कर सकते ह; य िक मरने क बाद जो सू म या िलंग शरीर रहता ह, वही उनक वतमान
म त क का बीज व प ह।
न : अिहदू को िहदू धमावलंबी करना िहदू-धम क मूल भाव का िवरोध तो नह ह? और एक चांडाल यिद शा
क या या कर तो या ा ण उसे सुन सकते ह?
उ र : अिहदू को िहदू बनाने म िहदू-धम क कोई आपि नह ह। कोई भी य , वह चाह शु हो या चांडाल,
ा ण क भी स मुख दशनशा क या या कर सकता ह। सबसे नीच य से भी, चाह वह िजस जाित या
धम का हो, स य क िश ा ली जा सकती ह।
अपने इस मत क माण म वामीजी ने ब त से सं कत ोक उ ृत िकये। इतने म वा ालाप बंद हो गया,
य िक वामीजी का मंिदर म जाने का िनिद समय हो चुका था। उ ह ने उप थत स न से िवदा ली और
देवता-दशन क िलए मंिदर चले गये।

भारतेतर देश एवं भारत क िविभ सम याएँ


एक प ितिनिध िचंगलपुट टशन पर वामीजी से टन म िमले और उनक साथ म ास तक आये। गाड़ी म उन
दोन क बीच िन निलिखत वा ालाप आ-
न : वामीजी आप अमे रका य गये थे?
उ र : यह एक किठन न ह। सं ेप म इस न का उ र देना मु कल ह। अभी म इस न का कवल
आंिशक उ र दे सकता । भारत म मने सव मण िकया था, मने देखा िक भारत- मण तो काफ हो गया, अब
दूसर देश को भी देखना चािहए। म जापान होते ए अमे रका गया था।
न : आपने जापान म या देखा? आज जापान िजस तरह उ ित क माग पर अ सर हो रहा ह, आपक समझ म
या उनका अनुसरण करना भारत क िलए संभव ह?
उ र : जब तक भारत क तीस करोड़ लोग िमलकर एक रा नह बन जाते, तब तक कोई संभावना नह ह।
जापािनय क समान वदेश-िहतैषी और कला-िनपुण जाित संसार म दूसरी नह िदखती। जापािनय म और भी एक
िवशेषता ह, यूरोप और अ य थान म एक ओर जैसे कला-कौश य क उ ित ह, वैसे ही दूसरी ओर वहाँ गंदगी
भी ह, परतु जापािनय म जैसे कला का स दय ह, वैसे ही उनम साफ-सफाई भी ह। मेरी हािदक इ छा ह िक हमार
देश क नवयुवक जीवन म कम-से-कम एक बार जापान घूम-िफर आय। वहाँ जाना कोई िवशेष किठन नह ह।
जापािनय क िलए िहदु क येक व तु महा ह और भारत को वे तीथ थल समझते ह। िसंहल क बौ -धम
से जापान का बौ धम िबलकल पृथक ह। जापान का बौ -धम वेदांत से िभ नह ह। िसंहल का बौ -धम
ना तकता क दोष से दूिषत ह, परतु जापान का बौ -धम आ तक ह।
न : जापान अक मा ही कसे इतना उ त हो गया? इसका या रह य ह?
उ र : जापािनय का आ मिव ास और वदेश- ेम। जब भारत म ऐसे य य का ज म होगा, जो ज मभूिम क
िलए सव व बिलदान करने क िलए त पर रहगे, िजनक मन और मुँह एक ह गे अथा जो िन कपट और लगन क
प ह गे, तब भारत पुनः सब िवषय म े पदवी ा करगा। मनु य ही देश का िनमाण करते ह। कवल
भूखंड म या रखा ह? सामािजक तथा राजनीितक िवषय म जब तुम जापािनय क समान स े ह गे, तब तुम भी
जापािनय क तरह बड़ हो जाओगे। जापानी लोग अपने देश क िलए सबकछ िनछावर करने को तैयार रहते ह।
इसीिलए वे बड़ बन गये ह और तुम लोग? तुम लोग तो कािमनी-कचन क िलए सव व यागने को तुत हो!
न : आपक इ छा या ऐसी ह िक भारत जापान क समान हो जाए?
उ र : नह , कभी नह । भारत तो भारत ही रहगा। भारत कसे जापान अथवा अ य िकसी दूसर रा क समान हो
सकता ह? जैसे संगीत म एक मु य वर होता ह और अ य वर उसक अनुगत होते ह, वैसे ही येक जाित का
एक-एक मु य भाव आ करता ह और अ या य भाव उसी क अनुगत होते ह। भारत का मु य भाव ह धम।
समाज-सं कार कहो अथवा और कछ, सभी इस देश म गौण ह। अतः भारत जापान क समान नह हो सकता।
कहावत ह िक जब दय खुलता ह तब भाव ोत उमड़ आता ह। भारत का दय भी खुलेगा, तब अ या म- ोत
वािहत होने लगेगा। भारत तो भारत ही ह। हम जापािनय क समान नह ह। हम िहदू ह। भारत का वातावरण ही
एक अलौिकक शांित दान करता ह। म यहाँ अिवराम कम कर रहा , पर इसी क बीच मुझे िव ाम भी िमल रहा
ह। भारत म कवल धम-काय क अनु ान से ही शांित िमल सकती ह। यहाँ सांसा रक काय म फसने से अंत म
मृ यु होती ह, मधुमेह रोग से।
न : अ छा वामीजी, जापान क बात छोड़ दीिजये। आपका अमे रका का थम अनुभव कसा रहा?
उ र : वह आरभ से अंत तक ब त अ छा रहा। िमशन रय और “िगरजाघर क औरत ” को छोड़कर शेष सब
अमे रकावाले बड़ अितिथपरायण, सुंदर वभाव वाले और स दय ह।
न : वामीजी, “िगरजाघर क औरत ” का या मतलब?
उ र : अमे रक याँ जब िववाह करने क िलए याकल हो जाती ह, तब वे समु क िकनार ान क थान म
घूमती रहती ह। अमे रका म समु तट क अ छ वा य द थान म नहाने क िलए अ छी यव था रहती ह। धनी
लोग जलवायु-प रवतन क िलए कभी-कभी वहाँ पर आकर ठहरते ह। इन थान म धनी लोग क लड़क-लड़िकय
को आमोद- मोद करने का मौका िमलता ह। ब त का तो वही पर भावी िववाह िन त हो जाता ह। और वहाँ क
लड़िकयाँ िकसी पु ष को पकड़ने क िलए िजतने कौशल कर सकती ह, करती ह। जब सारी चे ाएँ िवफल हो
जाती ह, तब वे चच म शािमल हो जाती ह। तब उनको वहाँ ओ ड मेड” कहते ह। उनम से कोई-कोई तो चच क
बेहद क र भगितन बन जाती ह। वे भयंकर मतांध होती ह। वे पुरोिहत क आधीन रहती ह, पुरोिहत क साथ
िमलकर वे संसार को नरक म प रणत करती ह और धम को खेल-तमाशे क व तु बना डालती ह। इ ह छोड़,
अमे रक लोग ब त अ छ ह। मुझ पर उन लोग का बड़ा यार था, और मेरा भी उन पर बड़ा ेम ह। मुझे ऐसा
तीत होता था, मानो म उ ह म से एक ।
न : आपक राय म, िशकागो क धम-महासभा से या फल आ ह?
उ र : मेरी धारणा ह, उस महासभा का उ े य था, संसार क स मुख सार अ-ईसाई धम को हीन ठहराना। परतु
फल िवपरीत ही हो गया। अ-ईसाई धम ही धान और ईसाई धम हीन ठहर गया। इसिलए ईसाइय क ि म उस
सभा का उ े य असफल रहा। अभी िफर से पै रस म और एक धम-महासभा बुलाने क बात चल रही ह, परतु
रोमन कथिलक लोग, जो िशकागो धम-महासभा क संचालक थे, अब कोिशश म लगे ए ह िक पै रस म वह धम-
महासभा न हो सक। पर िशकागो सभा भारत और भारतीय िवचार-धारा क िलए बड़ी यश वी सािबत ई। इससे
िव को वेदांत क िस ांत ारा आ लािवत करने म सहायता िमली। अब सारी दुिनया वेदांत क धारा म बह
रही ह। िन य ही िशकागो-सभा क इस प रणाम से अमे रकावासी बड़ स ह, हाँ, क र पुरोिहत और
“िगरजाघर क औरत ” को छोड़कर।
न : वामीजी, इ लड म आपक चार-काय क सफलता कसी मालूम हो रही ह?
उ र : ब त आाशापूण ह। कछ वष म ही अिधकांश अं ेज वेदांती हो जाऐंगे। अमे रका क अपे ा इ लड का
मुझे अिधक भरोसा ह। अमे रका वाल को तो देख ही रह हो, वे सभी िवषय म एक हो-ह ा मचाते ह, यह
उनका वभाव ह। लेिकन अं ेज हो-ह ा नह मचाते। वेदांत को िबना समझे ईसाई अपने यू ट टामट को भी नह
समझ सकते। वेदांत ही संसार क सार धम क यु -संगत या या ह। वेदांत को छोड़ देने पर सभी धम कसं कार
मा ह; और वेदांत को हण करने से सब ही धम हो जाता ह।
न : आपने अं ेज क च र म कौन सा िवशेष गुण पाया?
उ र : िकसी िवषय म िव ास होते ही अं ेज त काल उसे काम म लाने का य न करते ह। उनक कायश
असाधारण ह। अं ेज पु ष या ी क अपे ा उ त नर-नारी संसार म अ य नह िदखते इसीिलए उन पर मेरा
इतना िव ास ह। हाँ, पहले उनक म त क म कछ िव कराना किठन अव य ह। ब त य न करने क बाद,
लगातार उसम लगे रहने से तब कह उनक म त क म कोई भाव घुसता ह, पर एक बार घुस गया, तो िफर वह
आसानी से नह िनकलता। इ लड म िकसी भी िमशनरी अथवा अ य िकसी भी य ने मेर िव कछ नह
कहा, िकसी ने भी मेरी िकसी कार िनंदा करने क कोिशश नह क । मुझे यह देख बड़ा आ य आ िक वहाँ क
मेर अिधकांश िम चच ऑफ इ लड क सद य ह। वे इ लड क अित िन न ेणी क ह। कोई भी िश अं ेज
उनक साथ संपक नह रखता। यहाँ (भारत) क तरह इ लड म भी जाित-िवभाग अ यंत कड़ा ह और चच ऑफ
इ लड क अंतभु सार अं ेज िश ेणी क होते ह। भले ही आपका उनक साथ मतभेद हो, पर इससे आपक
साथ उनक िम ता म कोई बाधा उप थत नह होती। इसिलए म अपने वदेशवािसय को यह सलाह देना चाहता
िक अब, जब मने िमशन रय का व प जान िलया ह, तो बेहतर यही ह िक इन गाली-गलौज करने वाले
िमशन रय क ओर तिनक भी यान नह देना चािहए। आिखर हम ने तो उनको िसर पर चढ़ाया ह। अब उनक
पूरी उपे ा ही करनी चािहए।
न : वामीजी, आप कपा करक अमे रका और इ लड क समाज-सुधारक क काय णाली क िवषय म कछ
बतायगे?
उ र : सार समाज-सुधारक, कम-से-कम उनक नेता लोग तो अब अपने सा यवाद आिद क कोई धम-िभि
िनकालने क चे ा कर रह ह और वह धम-िभि वेदांत म ही पायी जाती ह। उनक अनेक नेता ने, जो मेरी
व ृता सुनने आया करते थे, मुझसे कहा ह िक नये ढग से समाज का गठन करने क िलए वेदांत को ही िभि
बनाना होगा।
न : भारत क सवसाधारण जनता क संबंध म आपक या राय ह?
उ र : हम ब त ही गरीब ह। हमारी सवसाधारण जनता लौिकक िव ा म बडी अजान ह। परतु वे लोग बड़ अ छ
ह; य िक यहाँ गरीबी अपराध नह मानी गयी ह। ये लोग कभी दुदमनीय नह होते। अमे रका और इ लड म मेरी
पोशाक से िचढ़कर लोग ने कई बार मुझे घेर िलया था। परतु भारत म िकसी क वेश-भूषा से उ ेिजत होकर लोग
उसे मारने क िलए दौड़ ह , ऐसी बात तो मने कभी नह सुनी। अ या य बात म भी हमारी जनता यूरोप क जनता से
कई गुनी स य ह।
न : भारतीय जनसाधारण क उ ित क िलए आपक मत म या करना उ म ह?
उ र : उनको लौिकक िव ा िसखानी होगी। हमार पूवज जो णाली िदखा गये ह, उसी का अनुसरण करना होगा,
अथा उ -उ आदश को धीर-धीर जनता म वेश कराना होगा। धीर-धीर उनको उठाओ, धीर-धीर उनको
समता क धरातल पर ले आओ। लौिकक िव ा को भी धम क मा यम से िसखाना होगा।
न : परतु वामीजी, आप या ऐसा समझते ह िक यह काम सहज होगा?
उ र : नह , इस काम को धीर-धीर करना होगा, परतु यिद मुझे वाथ यागी युवक का एक अ छा दल िमल जाए,
जो मेर साथ काम करने को तैयार हो, तो यह काम कल ही िस हो सकता ह। इसक िलए उ साह और वाथ-
याग क मा ा पर ही काय-िस क शी ता अथवा िवलंब िनभर ह।
न : परतु यिद उनक वतमान हीन दशा का कारण उनक िपछले कम माने जाएँ, तो वामीजी, आप कसे समझते
ह िक अनायास ही उनका िनवारण हो जाएगा, और उनक सहायता भी आप िकस कार करगे?
उ र : कमवाद ही मनु य क वतं ता क शा त घोषणा ह। यिद यह स य हो िक हम अपने कम ारा अपने
को हीन दशा म ला सकते ह, तो कम ारा अपनी अव था को उ त बनाना भी अव य हमार अधीन ह। िफर,
जनता कवल अपने कम ारा इस हीन दशा को ा ई हो, ऐसा नह ह। अतः उनक उ ित क िलए उनको
और भी सुिवधा देनी चािहए। म सभी जाितय को बराबर करने को नह कहता। जाित-िवभाग तो अित उ म
यव था ह। हम इस जाित-िवभाग- णाली का ही अनुसरण करना चाहते ह। पर यह जाित-िवभाग वा तव म या
ह, इस बात का पता शायद लाख म एकाध को भी न हो। संसार म ऐसा कोई भी देश नह ह, जहाँ जाित न हो।
भारत म, हम जाित-िवभाग म से होकर उससे अतीत भूिम म जाएा करते ह। जाित-िवभाग इसी मूल त व पर
िति त ह। भारत म इस जाित-िवभाग- णाली का उ े य ह सबको ा ण बनाना, ा ण ही मानव-जाित का
आदश ह। यिद भारत का इितहास पढ़ो, तो देखोगे, यहाँ िचरकाल से िन न जाित को उ त करने क य न होते रह
ह। अनेक जाितय को उ त िकया भी गया ह, और भी ब त सी भिव य म ह गी, यहाँ तक अंत म सभी ा ण हो
जाएँग।े यही हमारी काय णाली ह। िकसी को नीचे नह लाना ह, वर सबको ऊपर उठाना ह और यह काम
िवशेषकर ा ण को ही करना होगा, य िक येक सामंतशाही अथवा िवशेष अिधकार- ा वग का यह कत य
ह िक वह वयं अपनी क खोद ले और िजतना शी वह ऐसा कर, उतना ही सबक िलए अ छा ह। इसम
िबलकल देरी नह करनी चािहए। यूरोप या अमे रका क जाित-िवभाग से भारत का जाित-िवभाग कई गुना अ छा ह।
पर हाँ, म यह नह कहना चाहता िक भारतीय जाित-िवभाग संपूण अ छा ह। यिद यहाँ जाित-िवभाग न होता, तो
तुम कहाँ होते? जाित-िवभाग क न होने से तु हारी िव ा या अ या य गुण आिद कहाँ होते? जाित-िवभाग न होता,
तो यूरोप िनवािसय क पढ़ने क िलए ये शा आिद िफर कहाँ रहते। मुसलमान ने तो इन सबका वंस कर डाला
होता। भारतीय समाज या कभी भी थितशील रहा? वह तो सदा गितशील ह। कभी-कभी, जैसे िवदेिशय क
चढ़ाई क समय, यह गित मंद रही ह और दूसर समय वह िफर वेगवती हो गयी ह। म अपने देशवािसय से यही
कहता । म उनको गाली नह देता, उनक िनंदा नह करता। म उनक अतीत क ओर देखता और मुझे दीख
पड़ता ह िक िजन प र थितय म से होकर उनको आना पड़ा, उन प र थितय म अ य कोई भी जाित उनक
अपे ा महा काय नह कर सकती थी। म उनसे कहता िक तुमने अतीत म ब त अ छा काय िकया ह, अब
उससे और भी उ म काय करने का य न करो।
न : वामीजी, जाित-िवभाग क साथ कमकांड क संबंध पर आपका या मत ह?
उ र : जाित-िवभाग- णाली िनरतर बदल रही ह और ि याकांड भी साथ-ही-साथ िनरतर बदल रहा ह। कवल
मूल त व म कोई प रवतन नह होता। हमारा धम या ह? यह जानना हो, तो वेद को पढ़ना होगा। वेद को
छोड़कर अ य सार शा युग क साथ बदलते रहते ह। वेद का अनुशासन िचरकाल क िलए ह। अ य शा का
माण कछ िनिद समय क िलए ही रहता ह। जैसे, एक मृित एक युग क िलए और दूसरी दूसर युग क िलए।
बड़-बड़ महापु ष, अवतार आिद सदैव आते रहते ह और उस-उस युग क िलए कत य का िनदश कर जाते ह।
कछ महापु ष िन न जाित क उ ित क िलए य न कर गये ह। माधवाचाय जैसे कोई-कोई महापु ष य को
वेद पढ़ने का अिधकार दे गये ह। जाित-िवभाग कभी िमट नह सकता, पर हाँ, उसको बीच-बीच म नये ढाँचे म
ढाल लेना होगा। हमारी ाचीन समाज-प ित क भीतर ऐसी जीवनी-श िव मान ह, िजससे हजार कार क
नयी णािलयाँ गिठत हो सकती ह। जाित-िवभाग को िमटाने क इ छा कोरा पागलपन ह। पुरातन का ही नया प
या िवकास, यही नूतन काय णाली ह।
न : या िहदु क िलए समाज-सुधार क कोई आव कता नह ह?
उ र : अव य ह। ाचीन काल म बड़-बड़ महापु ष समाज क उ ित क िलए नयी-नयी प ितय का
आिव कार करते थे और राजा लोग िवधान बनाकर उनको चिलत कर देते थे। ाचीन काल म इसी भाँित भारतीय
समाज क उ ित करने क िलए एक ऐसी श क आव यकता ह, िजसक परामश को सब कोई मा यता द।
अब िहदू राजा नह रह, अब तो लोग को वयं ही अपने सुधार, अपनी उ ित आिद क चे ा करनी होगी। अतः
हम तब तक ठहरना होगा, जब तक लोग िशि त होकर अपनी आव यकता को समझने नह लगते और अपनी
सम या को आप ही हल करने क िलए तैयार व समथ नह हो जाते। इससे अिधक दुःख क बात और नह हो
सकती िक िकसी सुधार क समय सुधार क प म ब त थोड़ ही लोग िमलते ह। इसिलए कछ का पिनक सुधार
म, जो कभी काय म प रणत न ह गे, यथ ही श का य न कर, हम चािहए िक हम एकदम जड़ से ही
ितकार का य न कर, एक ऐसे समाज क सृि कर, जो अपने िवधान आप ही बना ले। मतलब यह ह िक
इसक िलए लोग को िश ा देनी होगी, इससे वे वयं ही अपनी सम या को हल कर लगे। अ यथा ये सार सुधार
आकाश-कसुम ही रह जाएँग।े आप ही अपनी उ ित करना, यही नयी णाली ह। इसे काय म लाने म देर लगेगी,
िवशेषकर भारतवष म, य िक ाचीन काल म यहाँ बराबर ही राजा का शासन होता रहा।
न : या आप समझते ह िक िहदू-समाज यूरोप क समाज क रीित-नीित अपनाकर कतक य हो सकता ह?
उ र : नह , पूरी तरह नह। म तो यह कहता िक यूनान क िवचारधारा यूरोपीय जाितय क बिहमुखी श म
कट हो रही ह, उसक साथ िहदू धम का योग होने पर वह भारत क िलए एक आदश समाज होगा। उदाहरण क
िलए देिखये, वृथा श - य न कर और कछ का पिनक यथ िवषय पर िदन-रात बकवास न कर अं ेज से यह
िश ा लेनी चािहए िक आ ा पाते ही त काल नेता का आदेश िकस तरह पालन िकया जाए, िकस तरह ई याहीनता,
अद य अ यवसाय और अनंत आ मिव ास अपने म लाया जाए। एक अं ेज यिद िकसी को अपना नेता वीकार
कर लेता ह, तो िफर सभी अव था म वह उसक आ ाधीन रहता ह। यहाँ भारत म सब कोई नेता बनना चाहते
ह, आ ा पालन करने वाला कोई नह ह। आदेश देने क पहले येक को चािहए िक वह आदेश का पालन करना
सीखे। हमारी ई या का अंत नह ह। और जो िजतना ही हीनश होता ह, वह उतना ही ई यापरायण होता ह। जब
तक हम िहदू इस ई या- ेष का याग न करगे, जब तक आ ा पालन क िश ा नह लगे, तब तक हमम संगठन
क श नह आ सकती। तब तक हम ऐसे ही िबखर ए रहगे और कछ भी न कर सकगे। भारत को यूरोप से
बा कित पर जय पाने क िश ा लेनी ह। ऐसा होने पर िफर िहदू-यूरोिपयन का कछ भेद-भाव न रहगा, उभय-
कितजयी एक आदश मनु य-समाज का िनमाण होगा। हम मनु य व क एक पहलू का और वे लोग दूसर पहलू
का िवकास कर रह ह। आव यकता ह इन दोन क िमलन क । मु , जो िक हमार धम का मूलमं ह, उसका
यथाथ अथ ही ह भौितक, मानिसक और आ या मक वाधीनता।
न : वामीजी, धम क साथ ि याकांड का या संबंध ह?
उ र : ि याकांड धम का ाथिमक िव ालय या िशशु-शाला ह। संसार क वतमान दशा म उसक िनतांत
आव कता ह। परतु लोग को नये-नये अनुठान देने ह गे। इस काय क िज मेदारी कछ िचंतनशील य य को
लेने चािहए। पुराने ि याकांड को बदलकर नय का वतन करना होगा।
न : देखता , तब तो आप ि याकांड को िबलकल ही हटा देना चाहते ह?
उ र : नह , मेरा मूलमं गठन ह, िवनाश नह । वतमान ि याकांड से नये ि याकांड क रचना करनी होगी। यह
मेरा ढ़ िव ास ह िक सभी िवषय म उ ित क अनंत श ह। एक परमाणु क पीछ सम िव क श ह।
िहदू-जाित क इितहास म आज तक िवनाश क चे ा कभी नह ई, सदैव गठन क ही य न होते रह। यहाँ कवल
एक ही सं दाय ने िवनाश क चे ा क थी, िजसका प रणाम यह आ िक वह भारत से िनकाल िदया गया, वह था
बौ -सं दाय। हमार यहाँ शंकर, रामानुज, चैत य आिद अनेक सुधारक ए ह; से सभी उ कोिट क सुधारक थे।
उ ह ने सवदा गठन का ही काय िकया और देश व काल क अनुसार समाज क रचना क । यही हमारी काय णाली
क सनातन िवशेषता ह। हमार आधुिनक सुधारक यूरोप क वंसा मक सुधार का अनुकरण करना चाहते ह। इससे न
कभी कछ लाभ आ और न होगा। आधुिनक समाज-सुधारक म एकमा राजा राममोहन राय ही रचना मक सुधार
करने वाल म से थे। िहदू-जाित सदा से वेदांत क आदश को काय म प रणत करने क कोिशश करती आयी ह।
बुरी या अ छी सभी अव था म वेदांत क इस आदश को काय प म प रणत करने क ाणपण से चे ा ही
भारत-जीवन का सम इितहास ह। जब कभी िकसी ऐसे सुधारक सं दाय या धम का उ थान आ, जो वेदांत क
आदश को मानने को तैयार न था, तो उसका त काल ही नाश हो गया।
न : आपक भारत क िलए काय णाली कसी ह?
उ र : म अपने संक प को काय म प रणत करने क िलए दो िश ा-क थािपत करना चाहता । उनम से एक
होगा म ास म और दूसरा कलक े म। यिद मेर संक प क िवषय म पूछो, तो उसका सं ेप म यह उ र ह, वेदांत
क आदश को येक य क जीवन म प रणत करने का य न, चाह वह य साधु असाधु, ानी हो या
अ ानी, ा ण हो अथवा चांडाल।
अब प ितिनिध ने भारत क राजनीितक सम या क बार म कछ न िकये, परतु उनक उ र िमलने क पहले
ही गाड़ी म ास क एगमोर टशन क लेटफॉम पर आ प ची। वामीजी क ीमुख से इतना ही सुनने को िमला िक
वे भारत और इ लड क सम या को राजनीित क साथ िमलाने क घोर िवरोधी ह।
इसक प ा प ितिनिध ने िवदा ली।
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पा ा य देश म िहदू सं यासी
िपछले कई स ाह से म ास क िहदू जनता परम उ सुकता क साथ जग यात िहदू यित े वामी
िववेकानंद क आगमन क ती ा कर रही ह। सभी क अधर पर उ ह का नाम खेल रहा ह। म ास क कल,
कॉलेज, हाईकोट, समु -तट, रा ते-गिलयाँ, बाजार आिद थान म सैकड़ िज ासु पर पर पूछ रह ह, वामीजी
कब पधार रह ह? िव िव ालय क परी ा देने क िलए हजार िव ाथ देहात से यहाँ आये ए ह। परी ा क बाद
घर लौट आने क िलए माता-िपता का आ ह होते ए भी वामीजी क दशन क िलए वे अभी तक यह क ए ह
और हो टल का खच बढ़ा रह ह। थोड़ ही िदन म वामीजी हमार बीच आ प चगे। म ास ेिसडसी क बाहर
वामीजी क जैसी अ यथना ई ह, कसल कनन म, जहाँ ये ठहराये जाएँगे, िहदू जनता क यय से जो सब तोरण
और बंदनवार सजाये जा रह ह तथा नगर क माननीय यायमूितक सु म यम अ यर जैसे िति त िहदू स न इस
काय म जैसी िदलच पी ले रह ह, यह सब देखकर तो इसम संदेह नह होता िक वामीजी का यहाँ बड़ा भ य
वागत होगा।
म ास ने ही वामीजी क उ ितभा को सबसे पहले पहचानकर िशकागो-धमसभा म भाग लेने क िलए उनक
सारी यव था क थी। वही म ास अब िफर से उन महापु ष का, िज ह ने अपनी मातृभूिम क गौरव क वृ क
िलए इतना िकया, वागत करने का अवसर और गौरव ा करगा। िन संदेह, वामीजी एक महापु ष ह। चार वष
पहले जब वे यहाँ पधार थे, उस समय वा तव म वे एक अ ात य थे। सट थोमे म एक अप रिचत बंगले म वे
लगभग दो मास रह और उस बीच जो-जो उनक पास जाते, उनक साथ वे धमिवषयक वा ालाप करते और उ ह
िश ा दान करते। उनसे भािवत होकर कछ िशि त बु मान युवक उ ह िदन कहा करते थे िक इनक भीतर
कछ ऐसी अलौिकक श ह, जो अव य इ ह असाधारण े पद पर आ ढ़ करगी तथा िव -नेतृ व ा
करने क यो यता दान करगी। लोग उस समय इन युवक को “गुमराह अनुरागी”, “ वाबी सुधारक” कहकर
इनसे घृणा करते थे। वे ही नवयुवक आज “अपने वामीजी” को, वे वामीजी को इसी तरह पुकारना पसंद करते
ह, यूरोप तथा अमे रका से इतनी याित ा करक लौट ए देखकर परम संतोष का अनुभव कर रह ह। वामीजी
क चार का िवषय मु यतः आ या मकता ह। उनका ढ़ िव ास ह िक आ या मकता क जननी, इस भारतभूिम
का भिव य परम उ ल ह। उनक यह ढ़ धारणा ह िक वे वेदांत क िनज उदा स य का ितपादन करते ह,
उनका िदनोिदन पा ा य देश म अिधकािधक सार होगा तथा उनक ित लोग क ा बढ़गी। उनका मूलमं
ह, “सहायता, न िक िवरोध”, “दूसर क भाव को आ मसा करना, न िक िवनाश”, “सम वय और शांित, न िक
कलह”। दूसर धमावल बय का वामीजी से चाह जो भी मतभेद रह, पर ऐसा कोई िबरला ही होगा जो इस बात
को वीकार न कर िक वामीजी ने पा ा य देश को िहदू-धम क े ता िदखाकर उनक आँख खोल दी ह, और
इस कार उ ह ने अपने देश क अ तीय सेवा क ह। िचरकाल तक लोग इस बात को मरण रखगे िक वे ही
सव थम िहदू-सं यासी थे, िज ह ने समु -पार जाने का साहस िकया और पा ा य देश को वह संदेश सुनाया,
िजसे वे धम-सम वय का संदेश मानते ह।
“म ास टाइ स” प क एक ितिनिध ने वामीजी िववेकानंद से अमे रका म उनक धम चार-काय क सफलता
क संबंध म जानकारी ा करने क िलए भट क । वामी िववेकानंद ने ितिनिध का बड़ी स नता से वागत
िकया और उ ह अपने पास क एक कस पर थान हण करने क िलए कहा। वामीजी िववेकानंद गे आ व
धारण िकये ए थे; उनक आकित धीर, थर, शांत और मिहमा यंजक थी। उ ह देखने से ऐसा तीत आ, मानो
वे िकसी भी न का उ र देने को तुत ह।
ितिनिध ने वामीजी से पूछा, “ वामीजी, या म आपक बा य-जीवन क संबंध म कछ जान सकता ?”
वामीजी बोले, “कलक े म जब म िव ालय म अ ययन करता था, तभी से मेरी कित धम वण थी। उस
समय से ही मेरा वभाव था िक सभी िवषय क परी ा करक िफर उ ह हण करना, कवल श द से म कभी
तृ नह होता था। इसक थोड़ िदन बाद ही ीरामक णदेव क साथ मेरी भट ई। उनक आ य म म दीघ काल
तक रहा और उनसे धमत व क िश ा ा क । अपने गु देव क देह- याग क बाद म भारत-प र मण क िलए
िनकला और कलक े म एक छोटा सा मठ थािपत िकया गया। मण करते ए म म ास आया और मैस क
वग य राजा तथा रामनद क राजा से मुझे सहायता ा ई।”
न : आप पा ा य देश म िहदू-धम का चार करने य गये थे?
उ र : मुझे पा ा य देश क िवषय म जानकारी ा करने क इ छा ई थी। मेर मत से, हमार रा क अवनित
का मूल कारण ह, दूसर रा से मेल-जोल न रखना। यही हमारी अवनित का मु य कारण ह। पा ा य देश क
साथ पर पर भाव-िविनमय करने का अवसर हम कभी नह िमला। हम िचरकाल से कप-मंडक बने ए ह।
न : आपने पा ा य देश क ब त से थान म मण िकया होगा?
उ र : मने यूरोप क ब त से थान म मण िकया ह। म जमनी और ांस भी गया था, पर मेरा कम े मु यतः
इ लड और अमे रका ही रहा। पहले तो म कछ किठनाई म पड़ गया था, य िक भारतवष से जो लोग वहाँ गये थे,
ायः उन सभी ने भारतीय क िव प का अवलंबन िकया था। पर यह मेरा िचरतन िव ास ह िक भारतवासी
सार संसार म सबसे अिधक नीितपरायण और धािमक ह इसिलए िहदू क साथ इस िवषय म अ य िकसी क तुलना
करना िबलकल भूल ह। सवसाधारण क सामने जब म िहदू-जाित क े व का चार करने लगा, तो पहले-पहल
ब त से लोग ने मेरी भयंकर िनंदा करनी शु कर दी, यहाँ तक िक वे मेर िव नाना कार क अफवाह
फलाते भी नह िहचिकचाये। वे कहा करते थे िक वह ( वामी िववेकानंद) तो एक पाखंडी ह, धूत ह। उसक ब त
सी +ि याँ ह और बाल-ब े तो ढर-क-ढर ह। पर इन धम चारक (िमशन रय ) क संबंध म मेरी अिभ ता
िजतनी अिधक होगी गयी, उतनी ही मेरी आँख इस संबंध म खुल गय िक धम क नाम पर कहाँ तक अधम हो
सकता ह। इ लड म इस कार िमशन रय का उप व िबलकल नह था। वहाँ क िमशन रय म से कोई मेर साथ
लड़ने नह आया। िम टर लुंड नामक एक पादरी पीठ पीछ मेरी िनंदा करने अमे रका गया था, पर उसक बात पर
िकसी ने कान न िदया। म अमे रका म लोग का बड़ा ही ि यपा हो गया था। जब म इ लड वापस आया, तो मने
सोचा िक यह िमशनरी मेर िव कछ चार करगा; परतु “ थ” नामक संवादप ने उसका मुँह बंद कर िदया।
इ लड क सामािजक णाली भारत क जाित-िवभाग से भी अिधक कठोर ह। चच ऑफ इ लड क सभी चारक
खानदानी लोग ह; पर िमशन रय म से अिधकांश वैसे नह ह। चच ऑफ इ लड वाल ने मेर साथ ब त ही
सहानुभूित कट क । चच ऑफ इ लड क लगभग तीस चारक धम-िवषयक सभी कार क िववादा पद जिटल
िवषय म मेर साथ संपूण प से एकमत ह। य िप इ लड क िमशनरी या पादरी लोग उन िवषय म मेर साथ
मतभेद रखते थे, िफर भी उ ह ने पीठ पीछ मेरी िनंदा नह क । इससे मुझे आनंद भी आ और िव मय भी। जाित-
िवभाग और वंश-परपरागत िश ा का यही गुण ह।
न : पा ा य देश म धम चार का काय कहाँ तक सफल रहा?
उ र : अमे रका क ब त से लोग ने मेर ित सहानुभूित कट क , वे सं या म इ लड से ब त अिधक थे।
िन नजातीय िमशन रय क आ ेप ने वहाँ मेर काय म सहायता ही प चायी। जब म अमे रका प चा, उस समय मेर
पास कोई िवशेष य नह था। भारतवािसय ने मुझे माग- यय मा िदया था। वह कछ ही िदन म खच हो गया,
इसिलए यहाँ (भारत) क भाँित वहाँ (अमे रका म) भी साधारण जनता क दया पर िनभर रहना पड़ा। अमे रकावासी
बड़ अितिथ-परायण ह। अमे रका क एक-ितहाई लोग ईसाई ह। शेष लोग को कोई धम नह ह, अथा वे िकसी
िवशेष सं दाय म शािमल नह ह; परतु उ ह म िवशेष धािमक लोग देखने म आते ह। मेरी समझ म इ लड म जो
कछ काय आ ह, वह प ा ह। यिद म कल मर जाऊ और काय चलाने क िलए वहाँ िकसी सं यासी को न भेज
सक, तो भी वहाँ काय चलता रहगा। अं ेज बड़ा भला आदमी होता ह, उसे बा यकाल से ही अपने सम त भाव
को दबा रखने क िश ा दी जाती ह। वह कछ मोटी बु वाला होता ह, ांसीसी या अमे रक क समान वह चट
से िकसी िवषय को नह समझ सकता। पर वह बड़ा ढ़कम होता ह। अमे रक जाित क आयु अभी इतनी अिधक
नह ई ह, िजससे िक वह याग क मिहमा समझ सक। इ लड युग से िवलािसता और ऐ य का भोग कर रहा ह,
इसिलए वहाँ अब अनेक लोग याग क िलए तुत ह। जब म पहली बार इ लड गया और वहाँ व ृता देना ारभ
िकया, तो मेरी क ा म कवल पचीस-तीस िव ाथ आते थे। जब म वहाँ से अमे रका चला गया, तब भी वहाँ वैसी
ही ास चलती रही। बाद म अमे रका से पुनः जब म इ लड आया, तब एक-एक हजार ोतागण उप थत रहते
थे। अमे रका म उससे भी अिधक ोता उप थत रहते थे, य िक म अमे रका म तीन वष रहा और इ लड म बस
एक ही वष। इ लड म एक सं यासी को रख आया और वैसे ही अमे रका म भी। दूसर देश म भी इसी कार
चार-काय क िलए सं यासी भेजने क मेरी इ छा ह।
अं ेज लोग बड़ ढ़कम ह। यिद उनम िकसी भाव का वेश करा िदया जाए, अथा यिद वे उस भाव को
वा तव म अपना ल, तो िन त जान, वह यथ न जाएगा। हमार देश क लोग ने अब वेद को ितलांजिल दे दी ह;
उनका सारा धम और दशन अब रसोईघर म घुस आया ह। “छआछत-वाद” ही भारत का वतमान धम ह, इस धम
को अं ेज कभी भी न लगे। पर हमार पूवपु ष क उदा िवचार को दाशिनक तथा आ या मक जग म उनक
ारा आिव कत अपूव त व को संसार क येक जाित आदरपूवक हण करगी।
चच ऑफ इ लड क बड़-बड़ नेता लोग भी कहते थे िक आपक चे ा से हमारी बाइिबल क भीतर वेदांत क
भाव िव हो गये ह। आधुिनक िहदू-धम हमार ाचीन धम का एक अवनत प मा ह। पा ा य देश म
आजकल जो सब दाशिनक ंथ िलखे जा रह ह, उनम ऐसा एक भी न होगा, िजसम हमार वेदांत-धम का कछ-न-
कछ संग न हो। हबट पसर क ंथ तक म भी ऐसा ही ह। अब तो दशन क रा य म अ ैतवाद का ही भु व
ह। सभी अब उसी क बात करते ह। परतु यूरोप क लोग उसम भी अपनी मौिलकता िदखाना चाहते ह। इधर िहदु
क ित वे अ यंत घृणा दिशत करते ह, और उधर िहदु ारा चा रत स य को हण करना भी नह छोड़ते।
ोफसर मै समूलर तो पूण वेदांती ह। उ ह ने वेदांत क िलए ब त-कछ िकया ह। वे पुनज मवाद म िव ास करते
ह।”
न : भारत क पुन ार क िलए आप या करना चाहते ह?
उ र : मेरी समझ म देश क जनसाधारण क अवहलना करना ही हमारा महा रा ीय पाप ह और वह हमारी
अवनित का एक कारण ह। जब तक भारत क साधारण जनता उ म प से िशि त नह हो जाती, जब तक उसे
खाने-पीने को अ छी तरह नह िमलता, जब तक उसक अ छी तरह देख-भाल नह होती, तब तक िकतना ही
राजनीितक आंदोलन य न हो, उससे कछ फल न होगा। ये बेचार गरीब हमारी िश ा क िलए (राज-कर क प
म) पैसा देते ह, हमारी धािमक िस क िलए (अपने शारी रक) प र म से बड़-बड़ मंिदर खड़ करते ह, पर
इसक बदले उनको िचरकाल ठोकर क िसवाय और या िमला ह? वा तव म वे हमार गुलाम ही बन गये ह। यिद
हम भारत का पुन ार चाहते ह, तो हम अव य ही उनक िलए काय करना होगा। युवक को धम चारक क प
म िशि त करने क िलए म पहले दो क ीय िश ालय अथा मठ थािपत करना चाहता । उनम से एक तो म ास
म होगा और दूसरा कलक े म। कलक े का मठ थािपत करने क िलए आव यक धन ा हो गया ह। मेर
उ े य को सफल करने क िलए अं ेज लोग ही पैसा देने को तैयार ह।
मेरी आशा, मेरा िव ास नवीन पीढ़ी क नवयुवक पर ह। उ ह म से म अपने किमय का सं ह क गा। वे
िसंहिव म से देश क यथाथ उ ित संबंधी सारी सम या का समाधान करगे। वतमान काल म अनु ेय आदश को
मने एक िनिद प म य कर िदया ह और उसको काया वत करने क िलए मने अपना जीवन समिपत कर
िदया ह। यिद मुझे इसम सफलता न िमले, तो मेर बाद मुझसे कोई े य भिव य म ज म हण कर उसे काय
म प रणत करगा। म उसक िलए जी जान से य न करक ही संतु र गा। मेरी राय म वतमान भारत क सम या
क समाधान का एकमा उपाय यही ह िक सवसाधारण को उनक अिधकार दे िदये जाएँ। संसार म भारत का धम
ही सबसे े ह, िफर भी हम िचरकाल से जनसाधारण को कछ िनःसार चीज देकर ही भुलाते आ रह ह। सामने
अनंत वाह बह रहा ह, िफर भी हम उ ह नाली का पानी ही िपला रह ह। देिखये न, म ास का ेजुएट एक िन न
जाित क य को पश तक न करगा, परतु अपनी िश ा क सहायता क िलए उससे (राज-कर क प म अथवा
अ य िकसी कार से) धन लेने को तैयार ह! म सव थम धम चारक क िश ा क िलए पूव दो िश ालय
थािपत चाहता , वे सवसाधारण को धािमक और लौिकक दोन कार क िश ा दान करगे। वे एक क से
दूसर क का िव तार करगे और इस कार हम धीर-धीर सम भारत म फल जाएँगे। आ मिव ास लाना ही हमारा
धान कत य ह; यहाँ तक िक भगवान म िव ासी होने से पहले सबको अपने म िव ास लाना होगा। पर यह
दुःख क बात ह िक हम भारतवासी िदनोिदन इस आ मिव ास को खो रह ह इसीिलए म सुधारक क िव
इतना कहा करता । क र लोग क भाव य िप अप और अ ौढ़ होते ह, पर उनम आ मिव ास अिधक ह
और इसीिलए उनक मन म तेज भी अिधक ह। परतु यहाँ क सुधारक तो यूरोिपयन क हाथ क कठपुतली बनकर
उनक अहकार क पोषक ही हो रह ह। अ या य देश क तुलना म हमार देश क साधारण जनता देवतु य ह। भारत
ही एक ऐसा देश ह, जहाँ द र ता को पाप नह माना जाता। भारत क िन न जाित वाले भी मानिसक और शारी रक
दोन ि से सुंदर ह, पर उनक ित हमारी सतत घृणा क कारण वे आ मिव ास खो बैठ ह। वे समझते ह िक वे
गुलाम होकर ही संसार म आये ह। उ ह उनक अिधकार दे दो, बस देखोगे, वे अपने पैर पर उठ खड़ ह गे।
जनसाधारण को इस कार अिधकार दान करना अमे रक स यता का मह व ह। एक आयरलड-िनवासी क बात
मन म लाइये, जो अभी जहाज से आया ह, उसक कमर झुक ई ह, एक लकटी क सहार टककर चल रहा ह,
भूख से अधमरा, िचथड़ क एक गठरी कधे पर िलए ए। पर अमे रका म कछ ही महीने रहने क बाद उसे
देिखये। उसक श बदल जाती ह और अब तो वह िनडर होकर तनकर चलता ह। कारण, वह ऐसे देश म आ
गया ह, जहाँ सभी पर पर भाई-भाई ह और सबको समान अिधकार ा ह।
िव ास करना होगा िक आ मा अिवनाशी ह, अनंत और सवश मान ह। मेरा िव ास ह िक गु से सा ा
संपक रखते ए, गु -गृह म िनवास करने से ही यथाथ िश ा क ा होती ह। गु से सा ा संपक ए िबना
िश ा नह हो सकती। हमार वतमान िव िव ालय क ही बात लीिजये। उनका आरभ पचास ए वष हो गये, पर
फल या िमला ह? वे एक भी मौिलक-भाव-संप य उ प नह कर सक। वे परी ा लेने वाली सं थाएँ मा
ह। साधारण जनता क जागृित और उसक क याण क िलए वाथ- याग क मनोवृि का हमम थोड़ा भी िवकास
नह आ ह।
न : ीमती बेसट और िथयोसोफ क िवषय म आपका या मत ह?
उ र : ीमती बेसट एक बड़ी अ छी मिहला ह। उ ह ने मुझे अपने लंदन क व ृता-गृह म भाषण देने क िलए
आमंि त िकया था। म य गत प से उनक संबंध म कछ िवशेष नह जानता। पर यह सच ह िक हमार धम क
िवषय म उनका ान ब त ही अ प ह। उ ह ने इधर-उधर से थोड़ी-ब त जानकारी ा कर ली ह, संपूण प से
िहदू-धम का अ ययन नह िकया। पर उसक ढ़ता और िन कपटता को उनक श ु तक सराहगे। इ लड म वे
सव े व ा मानी जाती ह। वे एक सं यािसन ह। पर म “महा मा”, “कथुिम” आिद म िव ास नह करता। वे
िथयोसॉिफकल सोसायटी क साथ अपना संबंध छोड़ द, अपने पैर पर खड़ी ह और िजसे स य समझती ह ,
उसका चार कर।
समाज-सुधार क िवषय म बात करने पर वामीजी ने िवधवा-िववाह क िवषय म अपना मत इस कार कट
िकया, “मने आज तक ऐसा कोई रा नह देखा, िजसक उ ित या िनयित उसक िवधवा को ा पितय क
सं या पर िनभर हो।”
प ितिनिध जानते थे िक और भी ब त से लोग वामीजी से िमलने क िलए नीचे ती ा कर रह ह, इसिलए
उ ह ने वामीजी को उनक इस क क िलए ध यवाद देकर उनसे िवदा ली।
यहाँ पर यह भी कह देना आव यक ह िक वामीजी क साथ ीमती जे.एच. सेिवअर, ी. टी.जी. ह रसन
(कोलंबो क एक बौ स न) और ी जे.जे. गुडिवन भी ह। ी और ीमती सेिवअर वामीजी क साथ इस देश
म िहमालय म िनवास करने क इ छा से आये ह। वामीजी क िजन पा ा य िश य क भारत म िनवास करने क
इ छा होगी, उनक िलए िहमालय म आ म बनाने का संक प उनक मन म ह। बीस साल तक वे ( ी और ीमती
सेिवअर) िकसी िवशेष धम-सं दाय क अनुयायी नह बने थे। िविभ सं दाय क चारक से धम क बार म वे जो
कछ सुनते थे, उससे उनक तृ नह होती थी। पर वामीजी क कछ भाषण सुनते ही उनको ऐसा लगने लगा िक
उ ह अब ऐसे धम क ा हो गयी ह, िजससे उनका दय और बु दोन ही तृ हो गये ह। उसक बाद वे
व जरलड, जमनी और इटली आिद थान म वामीजी क साथ मण करते ए अब भारत म आये ह। ी
गुडिवन इ लड म एक संवादप क संचालक थे। चौदह महीने पहले यूयॉक म वामीजी से उनक थम भट ई
थी। धीर-धीर वे भी वामीजी क िश य हो गये और प का काम उ ह ने छोड़ िदया। अब उ ह ने वामीजी क सेवा
म ही तन-मन अिपत कर िदया ह और उनक साथ िनरतर रहकर उनक सब भाषण को शी िलिप (शॉटहड) म
िलखा करते ह। वे सब कार से वामीजी क स े िश य ह और कहा करते ह, “आशा करता िक म आमरण
वामीजी क साथ र गा।”
q
िहदू धम का पुन थान
हाल ही म “ बु भारत” क एक ितिनिध कछ िवषय म वामी िववेकानंद का मतामत जानने क िलए उनसे
िमलने आये थे। उ ह ने उन आचाय े से पूछा, “ वामीजी, आपक मतानुसार आपक धम- चार का िवशेष व
या ह?”
न सुनते ही वामीजी ने उ र िदया, “आ मण, पर हाँ, कवल आ या मक अथ म। अ या य समाज और
सं दाय ने कवल भारत म ही चार िकया ह, परतु बु देव क बाद हम ही पहले-पहल भारत क सीमा को
लांघकर सम संसार म धम चार क लहर फलाने का य न कर रह ह।”
न : और आपक मत म, आपक ारा वितत इस धमिवषयक आंदोलन से भारत का कौन सा उ े य सािधत
होगा?
उ र : इससे िहदू-धम क सवसामा य मूलत व पर काश पड़गा और वे त व सम जाित क स मुख जीिवत प
म पुनः थािपत ह गे। वतमान काल म िहदू कहने से भारत क तीन सं दाय समझे जाते ह। पहला सनातनी, दूसरा,
मुसलमान क समय क सुधारक सं दाय और तीसरा, वतमानकाली समाज-सुधारक सं दाय। आजकल उ र से
दि ण तक संपूण भारत म कवल एक ही िवषय म सार िहदु का एकमत िदखायी पड़ता ह, और वह ह, गोमांस
भ ण का िनषेध।
न : या वेद क ित िव ास क िवषय म सभी एकमत नह ह?
उ र : िबलकल नह । बस इसी को हम पुनः बु कराना चाहते ह। भारत आज तक बु देव क भाव को
अपना नह सका। बु देव क वाणी सुनकर ाचीन भारत कवल मं मु ध जैसा चिकत रह गया था, नवीन बल से
संजीिवत नह आ था।
न : वतमान काल म आप बौ -धम क भाव को भारत म िकन िवषय म देख रह ह?
उ र : बौ -धम का भाव भारत म सव ही प िदखायी देता ह। एक बात तुम देखोगे, भारत कभी भी िकसी
ा व तु को न नह होने देता; हो सकता ह िक उसे अपनाने म, उसे अपने र -मांस क साथ एक कर लेने म
कछ समय लगता हो। बु देव ने य म ाणी-िहसा का पूण िनषेध िकया था; भारत आज तक उस िश ा को याग
नह सका। बु देव ने कहा, “गोह या मत करो”, अब देखो, गोह या हमार िलए असंभव हो गयी ह।
न : वामीजी, आपने पहले िजन तीन सं दाय क नाम बताये ह, उनम से आप अपने को िकस सं दाय क
अंतगत मानते ह?
उ र : म तो उ सभी सं दाय क अंतगत । हम ही ठीक सनातनी िहदू ह।
यह कहते ही वामीजी का मुखमुंडल बड़ा गंभीर हो गया और वे बड़ आवेग-भर वर म बोले, “िकतु छआछत-
मािगय क साथ हमारा कोई भी संबंध नह । छआछत िहदू-धम नह ह, उसक बात हमार िकसी भी शा + म नह
ह, वह तो एक कसं कार मा ह, िजसका अनुमोदन कोई भी ाचीन आचार नह करता। वह सदा से रा ीय
अ युदय क माग म रोड़ डालता रहा ह।”
न : तब तो असल म आप रा ीय अ युथान को ही चाहते ह?
उ र : अव य। अ छा, या तुम यह बता सकते हो िक भारत अ य सब आय जाितय से िपछड़ा आ य रह?
भारत क बु या कछ कम ह? या यहाँ कला-कौशल नह ह? उसका िश प, उसका गिणत, उसक
दशनशा आिद का िवचार करने पर या तुम िकसी िवषय म उसे कम कह सकते हो? आव यक इतना ही ह िक
वह मोह-िन ा से, सैकड़ सिदय क दीघ िन ा से जाग जाए और संसार क सम जाितय क बीच उसका जो
यथाथ काय ह, उसे हण कर ले।
न : परतु वामीजी, बात यह ह िक भारत तो िचरकाल से ही गंभीर अंत ि संप ह। अब उसे कमकशल
बनाने क चे ा करने से उसक जो एकमा धम-िनिध ह, उससे वंिचत होने क या आशंका नह ह?
उ र : नह , तिनक भी नह । अतीत क इितहास से तीत होता ह िक भारत म आ या मकता या अंतज वन का
तथा पा ा य म कमकशलता अथा बिहज वन का ही िवकास होता रहा ह। आज तक ये दोन िवपरीत माग से
उ ित क ओर अ सर हो रह थे; पर अब इन दोन क स मलन का समय आ गया ह। ीरामक णदेव गंभीर
अंत ि परायण थे; परतु बिहजग म भी उनक समान कम-त पर और कौन ह? रह य यह पर ह। मानव-जीवन
सागर क समान गंभीर हो, पर साथ-ही-साथ वह आकाश क भाँित िव तृत भी हो।
वामीजी कहते चले, “यह एक आ य क बात ह िक कभी-कभी, जब बा प र थितयाँ संक णता क
पोशक एवं उ ित क ितकल रही ह, तब आ या मक जीवन का बड़ी गहराई क साथ िवकास आ ह। पर इन दो
िवपरीत भाव का एक अव थान एक आक मक घटना मा ह, अिनवाय नह । यिद हम भारत म अपने को
सुधार तो दुिनया भी सुधर जाएगी; य िक मूलतः या हम सब एक नह ह?
न : वामीजी, आपक अंितम बात मन म एक और न उठाती ह। इस बु िहदू-धम म ीरामक णदेव का
थान कहाँ पर ह?
उ र : वामीजी बोले, “इस िवषय क मीमांसा करना मेरा काय नह ह। मने कभी भी िकसी य िवशेष का
चार नह िकया। म इतना ही कह सकता िक मेरा वयं का जीवन इस महा मा क ित गंभीर ा और भ
से प रचािलत हो रहा ह; पर मेरा यह भाव दूसर लोग कहाँ तक हण करगे, यह तो उ ह पर िनभर ह। ई री
श - ोत संसार म िचरकाल िकसी एक ही िनिद जीवन- णाली से वािहत नह होता, चाह वह जीवन िकतना
ही महा य न हो। येक युग म नये िसर से पुनः इस श क ा करनी होगी। कारण, हम सब भी या
व प नह ह?
न : ध यवाद। मुझे आपसे बस एक न और पूछना ह। आपने अपने देशवािसय क िलए अपने चार-काय
का उ े य तथा योजन बतला िदया ह। इसी तरह या आप उसे सा य करने क काय णाली क िवषय म भी
कछ बतलाने क कपा करगे?
उ र : हमारी काय णाली का वणन सहज ह। वह और कछ नह , कवल रा ीय जीवन-आदश को िफर से
थािपत करना ह। बु देव ने याग का चार िकया, भारत ने सुना और छह शता दयाँ बीतने क पहले ही वह
अपने सव गौरव-िशखर पर आ ढ़ हो गया। यही रह य ह। “ याग” और “सेवा” ही भारत क रा ीय आदश
ह, इन दो बात म भारत को उ त करो। ऐसा होने पर सबकछ अपने आप ही उ त हो जाएगा। इस देश म
आ या मकता का झंडा िकतना ही ऊचा य ने िकया जाए, वह पया नह होता। बस इसी पर भारत का उ ार
िनभर ह।”
q
संवाद वेदांत रह य
न : गु िकसे कहते ह?
उ र : जो तु हार भूत-भिव य को बता सक, वे ही तु हार गु ह। देखो न, मेर गु देव ने मेरा भूत-भिव य बता
िदया था।
न : भ -लाभ िकस कार होता ह?
उ र : भ तो तु हार भीतर ही ह, कवल उसक ऊपर काम-कांचन का एक आवरण सा पड़ा आ ह। उस
आवरण को हटाने से ही भीतर क वह भ वयमेव कट हो जाएगी।
न : आप कहा करते ह, “अपने पैर पर खड़ हो जाओ”। तो इस वा य म “अपने” श द से आपका ल य
िकससे ह?
उ र : अव य परमा मा पर िनभर रहने क िलए कहना ही मेरा उ े य ह। िफर भी, इस “क े अह” पर िनभरता
का अ यास भी हम धीर-धीर स े ल य पर प चा देगा; य िक जीवा मा भी तो आिखर परमा मा क माियक
अिभ य क अित र और कछ नह ह।
न : यिद सचमुच एक ही व तु स य हो, तो िफर यह ैत-बोध जो सदा-सवदा सबको हो रहा ह, कहाँ से
आया?
उ र : जब िकसी िवषय का थम अनुभव होता ह, तो ठीक उसी समय कभी ैत-बोध नह होता। इि य क
साथ िवषय का संयोग होने क प ा जब हम उस ान को बु म ले जाते ह, तभी ैत का बोध होता ह। यिद
िवषयानुभूित क समय ैत-बोध रहता, तो ेय से संपूण वतं प म तथा ाता भी ेय से वतं प म
अव थान कर सकता।
न : चा र य क सभी पहलु का सामंज यपूवक िवकास करने का सव म उपाय कौन सा ह?
उ र : िजनका च र उस प से गिठत आ हो, उनका संग करना ही इसका सव क उपाय ह।
न : वेद क िवषय म हमारी धारणा िकस कार क होनी चािहए?
उ र : वेद ही एकमा माण ह, पर हाँ, वेद क जो अंश यु -िवरोधी ह, वे वेद कहलाने लायक नह ह।
पुराणािद अ या य शा वह तक ा ह, तहाँ तक वे वेद से अिवरोधी ह। उसे वेद से ही उ ूत समझना चािहए।
न : यह जो स य, ेता, ापर और किल नामक चार युग का वणन शा म पाया जाता ह, वह या योितष
शा क गणना क अनुसार िस ह अथवा कवल का पिनक ही ह?
उ र : वेद म तो कह ऐसे चतुयग का उ ेख नह ह। यह पौरािणक युग क क पना मा ह।
न : श द और भाव क बीच या सचमुच कोई िन य संबंध ह? अथवा िकसी भी श द ारा कोई भी भाव
समझाया जा सकता ह? या लोग ने अपनी इ छा क अनुसार िकसी भी श द क साथ िकसी भी भाव का संबंध
जोड़ िदया ह?
उ र : इस िवषय म अनेक तक िकये जा सकते ह, िकसी थर िस ांत पर प चना बड़ा किठन ह। मालूम होता
ह िक श द और अथ क बीच कछ संबंध अव य ह, पर वह संबंध िन य ह इसका या माण? देखो न, एक ही
भाव को समझाने क िलए िभ -िभ भाषा म िकतने ही िभ -िभ श द िव मान ह। हाँ, कोई सू म संबंध हो
सकता ह, िजसे हम अब भी नह पकड़ पा रह ह।
न : भारत म काय णाली कसी होनी चािहए?
उ र : पहले तो, ऐसी िश ा देनी चािहए, िजससे सब लोग काम करना सीख और उनका शरीर सबल हो। ऐसे
कवल बारह नर-कसरी संसार पर िवजय ा कर सकते ह; परतु लाख-लाख भेड़ ारा यह नह होने का। और
दूसर, िकसी य प आदश क अनुकरण क िश ा नह देनी चािहए, चाह वह आदश िकतना ही बड़ा य न
हो।
इसक प ा वामीजी ने कछ िहदू- तीक क अवनित का वणन िकया। उ ह ने ानमाग और भ माग का
भेद समझाया। वा तव म ानमाग आय का था और इसिलए उसम अिधकारी-िवचार क इतने कड़ िनयम थे।
भ माग क उ पि दि णा य से, अनाय-जाित से ई ह, इसिलए उसम अिधकार-िवचार नह ह।
न : भारत क इस पुन थान क काय म रामक ण िमशन का कौन सा थान ह?
उ र : इस मठ से च र वान य िनकलकर सार संसार को आ या मकता क बाढ़ से लािवत कर दगे। इसक
साथ-साथ दूसर िवषय म भी उ ित होती रहगी। इस तरह ा ण, ि य और वै य जाित का अ युदय होगा।
शू -जाित और अिधक नह रहगी, वे लोग आज जो काम कर रह ह, वे सब यं क सहायता से िकये जाएँग।े
भारत का वतमान अभाव ह, ि य-श ।
न : या मनु य को दूसर ज म म पशु आिद हीन योिन क ा हो सकती ह?
उ र : हाँ, पुनज म काम पर िनभर रहता ह। यिद मनु य पशु क समान आचरण कर, तो वह पशु-योिन म िखंच
जाता ह।
न : मनु य िफर पशु-योिन को कसे ा हो सकता ह, यह बात समझ म नह आती। मिवकास क
िनयमानुसार जब उसने एक बार मानव-देह ा कर ली ह, तो िफर से वह पशु-योिन को िकस कार ा हो
सकता ह?
उ र : य , पशु-योिन से जब मनु य हो सकता ह, तो मनु य-योिन से पशु य न होगा? स ा तो वा तव म एक
ही ह, मूल म तो सब एक ही ह।
एक समय (स 1898 म) इस कार क नो र-काल म वामीजी ने मूित-पूजा क उ पि बौ -युग म मानी
थी। उ ह ने कहा थाः पहले बौ चै य, िफर तूप, और त प ा बु का मंिदर िनिमत आ। इसक साथ ही
िहदू-देवता क मंिदर खड़ ए।
न : या किडिलनी नाम क कोई वा तिवक व तु इस थूल शरीर क भीतर ह?
उ र : ीरामक णदेव कहते थे, “योगी िज ह प कहते ह, वा तव म वे मनु य क शरीर म नह ह। योगा यास
से उनक उ पि होती ह।”
न : या मूित-पूजा ारा मु लाभ हो सकता ह?
उ र : मूित-पूजा से सा ा मु क ा नह हो सकती, िफर भी वह मु - ा म गौण कारण व प ह,
सहायक ह। मूित-पूजा ही अ ैत- ान क उपल ध क िलए मन को तैयार कर देती ह और कवल इस अ ैत-
ान क ा से ही मनु य मु हो सकता ह।
न : हमार च र का सव आदश या होना चािहए?
उ र : याग।
न : आप कहते ह िक बौ धम ने अपनी वसीयत क प म भारत म घोर अवनित छोड़ी, तो यह कसे आ?
उ र : बौ ने येक भारतवासी को सं यासी या सं यािसन बनाने का य न िकया था। परतु सब लोग तो वैसे
नह हो सकते। इस तरह िकसी भी य क साधु बन जाने से सं यासी-सं यािसिनय म मशः याग का भाव
घटता गया। और भी एक कारण था, धम क नाम पर ित बत तथा अ या य देश क बबर आचार का अनुकरण
करना। वे इन सब थान म धम- चार हतु गये और इस कार उनक भीतर उन लोग क दूिषत आचार वेश कर
गये। अंत म उ ह ने भारत म इन सब आचार को चिलत कर िदया।
न : माया या अनािद और अनंत ह?
उ र : समि - प से अनािद-अनंत अव य ह, पर यि - प से शांत ह।
न : माया या ह?
उ र : वा तव म व तु कवल एक ही ह, चाह उसको चैत य कहो या जड़। पर उनम से एक को छोड़कर दूसर
का िवचार करना कवल किठन ही नह , असंभव ह। इसी को माया या अ ान कहते ह।
न : मु या ह?
उ र : मु का अथ ह पूण वाधीनता, भले और बुर दोन बंधन से मु हो जाना। लोह क ंखला भी ंखला
ही ह, और सोने क ंखला भी ंखला ह। ीरामक णदेव कहते थे, पैर म काँटा चुभने पर उसे िनकालने क िलए
एक दूसर काँट क आव यकता होती ह। काँटा िनकल जाने पर दोन काँट फक िदये जाते ह। इसी तरह स - वृि
ारा अस - वृि य का दमन करना पड़ता ह, परतु बाद म स वृि य पर भी िवजय ा करनी पड़ती ह।
न : भगव कपा िबना या मु लाभ हो सकता ह?
उ र : मु क साथ ई र का कोई संबंध नह ह। मु तो पहले से ही हमार भीतर िव मान ह।
न : हमार भीतर िजसे “म” या “अह” कहा जाता ह, वह आ मा देह आिद से उ प नह ह। इसका या
माण ह?
उ र : अना मा क भाँित “म” या “अह” भी देह-मन आिद से ही उ प होता ह। कत “म” या आ मा क
अ त व का एकमा माण ह य उपल ध।
न : स ा ानी और स ा भ िकसे कह सकते ह?
उ र : िजसक दय म अथाह ेम ह और जो य जीवन क सभी अव था म अ ैत-त व का सा ा कार
करता ह, वही स ा ानी और स ा भ ह। स ा भ वह ह, जो परमा मा क साथ जीवा मा क अिभ प
से उपल ध कर यथाथ ान-संप हो गया ह, जो सबसे ेम करता ह और िजसका दय सबक िलए दन करता
ह। ान और भ म से िकसी एक का प लेकर जो दूसर क िनंदा करता ह, वह न तो ानी ह, न भ , वह तो
ढ गी और धूत ह।
न : ई र क अ त व क सेवा करने क या आव यकता ह?
उ र : यिद तुम एक बार ई र क अ त व को मान लेते हो, तो उनक सेवा करने क यथे कारण पाओगे। सभी
शा क मतानुसार भगव सेवा का अथ ह “ मरण”। यिद तुम ई र क अ त व म िव ास रखते हो, तो तु हार
जीवन म पग-पग पर उनको मरण करने का हतु सामने आयेगा।
न : या मायावाद अ ैतवाद से कछ पृथक ह?
उ र : नह , दोन एक ही ह। मायावाद को छोड़ अ ैतवाद क और कोई भी या या संभव नह ह।
न : ई र तो अनंत ह, वे िफर मनु य- प धारण कर इतने छोट िकस कार हो सकते ह?
उ र : यह स य ह िक ई र अनंत ह। परतु तुम लोग अनंत का जो अथ सोचते हो, वह अथ ठीक नह ह। अनंत
कहने से तुम एक बड़ी कांड जड़-स ा समझ बैठते हो। इसी समझ क कारण तुम म म पड़ गये हो। जब तुम
यह कहते हो िक भगवान मनु य- प धारण नह कर सकते, तो इसका अथ तुम ऐसा समझते हो िक एक कांड
जड़-पदाथ को इतना छोटा नह िकया जा सकता। परतु ई र इस अथ म अनंत नह ह। उनका अनंत व चैत य का
अनंत व ह। इसिलए मानव क आकार म अपने को अिभ य करने पर भी उनक व प को कछ भी ित नह
प चती।
न : कोई-कोई कहते ह िक पहले िस बन जाओ, िफर तु ह कम करने का ठीक-ठीक अिधकार होगा, परतु
कोई कहते ह िक शु से ही कम करना उिचत ह। इन दो िविभ मत का सामंज य िकस कार हो सकता ह?
उ र : तुम दो अलग-अलग बात को एक म िमला दे रह हो, इसिलए म म पड़ गये हो। कम का अथ ह मानव-
जाित क सेवा अथवा धम- चार-काय। यथाथ चार-काय म अव य ही िस -पु ष क अित र और िकसी का
अिधकार नह ह, परतु सेवा म तो सभी का अिधकार ह; इतना ही नह , जब तक हम दूसर से सेवा ले रह ह, तब
तक हम दूसर क सेवा करने को बा य भी ह।
न : आप कहते ह िक सबकछ मंगल क िलए ही ह, परतु देखने म आता ह िक संसार सब ओर अमंगल और
दुःख-क से िघरा ह। तो िफर आपक मत क साथ इस य दीखने वाले यापार का सामंज य िकस कार हो
सकता ह?
उ र : आप यिद पहले अमंगल क अ त व को मािणत कर सक, तभी म इस न का उ र दे सकगा, परतु
वैदांितक मतो अमंगल का अ त व ही वीकार नह करता। सुख से रिहत अनंत-दुःख कह हो, तो उसे अव य
कत अमंगल कहा जा सकता ह। पर यिद सामियक दुःख-क दय क कोमलता और मह ा क वृ कर
मनु य को अनंत-सुख क ओर अ सर कर दे, तो िफर उसे अमंगल नह कहा जा सकता, ब क उसे तो परम
मंगल कहा जा सकता ह। तब तक हम यह अनुसंधान नह कर लेते िक िकसी व तु का अंितम िचरतन प रणाम
या होता ह, तब तक हम उसे अमंगल नह कह सकते।
भूत और िपशाच क उपासना िहदू-धम का अंग नह ह। मानव-जाित मो ित क माग पर चल रही ह, परतु
सब लोग एक ही कार क थित म नह प च सक ह, इसिलए पािथव जीवन म कोई-कोई लोग अ या य
य य क अपे ा अिधक महा और पिव देखे जाते ह। येक मनु य क िलए उसक अपने वतमान उ ित-
े क भीतर वयं को उ त बनाने क िलए अवसर िव मान ह। हम अपना नाश नह कर सकते, हम अपने भीतर
क जीवनी-श को न या दुबल नह कर सकते, परतु उस श को िविभ िदशा म प रचािलत करने क िलए
हम वतं ह।
न : पािथव जड़व तु क स यता या हमार मन क कवल क पना नह ह?
उ र : मेर मत म बा जग क अव य एक स ा ह, हमार मन क िवचार क बाहर भी उसका एक अ त व ह।
चैत य मिवकास- प महा िवधान का अनुवत होकर यह सम िव उ ित क पथ पर अ सर हो रहा ह।
चैत य का यह मिवकास जड़ क मिवकास से पृथक ह। जड़ का म-िवकास चैत य क िवकास- णाली का
सूचक या तीक व प ह, िकतु उसक ारा इस णाली क या या नह हो सकती। वतमान पािथव प र थित म
ब रहने क कारण हम अभी तक अखंड य व को ा नह कर सक ह। जब तक हम उस उ तर भूिम म
नह प च जाते, जहाँ हम अपनी अंतरा मा क परम ल ण को कट करने क उपयु यं बन जाते ह, तब तक
कत य व क ा नह कर सकते।
न : ईसा मसीह क पास एक ज मांध िशशु को ले जाकर उनसे पूछा गया था िक िशशु अपने िकये ए पाप क
फल से अंधा आ ह अथवा अपने माता-िपता क पाप क फल से, इस सम या क मीमांसा आप िकस कार
करगे?
उ र : इस सम या म पाप क बात को ले आने का कोई भी योजन नह दीख पड़ता। तो भी मेरा ढ़ िव ास ह
िक िशशु क यह अंधता उसक पूवज म-कत िकसी कम का ही फल होगी। मेर मत म, पूवज म को वीकार करने
पर ही ऐसी सम या क मीमांसा हो सकती ह।
न : मृ यु क प ा हमारी आ मा या आनंद क अव था को ा करती ह?
उ र : मृ यु तो कवल अव था प रवतन मा ह। देश-काल आपक ही भीतर िव मान ह, आप देश-काल क
अंतगत नह ह। बस इतना जानने से ही यथे होगा िक हम, इहलोक म या परलोक म, अपने जीवन को िजतना
पिव और महा बनायगे, उतना ही हम उन भगवान क िनकट होते जाएँगे, जो सार आ या मक स दय और अनंत
आनंद क क व प ह।
न : या वेदांत का भाव इ लाम धम पर भी कछ पड़ा था?
उ र : वेदांत-मत क आ या मक उदारता ने इ लाम धम पर अपना िवशेष भाव डाला था। भारत का इ लाम
धम संसार क अ या य देश क इ लाम धम क अपे ा पूण प से िभ ह। जब दूसर देश क मुसलमान यहाँ
आकर भारतीय मुसलमान को फसलाते ह िक तुम िवधिमय क साथ िमल-जुलकर कसे रहते हो, तभी अिशि त
क र मुसलमान उ ेिजत होकर दंगा-फसाद मचाते ह।
न : या वेदांत जाित-भेद मानता ह?
उ र : जाित-भेद वेदांत-धम का िवरोधी ह। जाित-भेद एक सामािजक था मा ह और हमार बड़-बड़ आचाय ने
उसे तोड़ने क य न िकये। बौ -धम से लेकर सभी सं दाय ने जाित-भेद क िव चार िकया ह, परतु ऐसा
चार िजतना ही बढ़ता गया, जाित-भेद क ंखला उतनी ही ढ़ होती गयी। जाित-भेद क उ पि राजनीितक
यव था से ई ह। वह तो वंश-परपरागत यवसायी सं दाय का समवाय मा ह। िकसी कार क उपदेश क
अपे ा यूरोप क साथ यापार-वािण य क ितयोिगता ने जाित-भेद को अिधक मा ा म तोड़ा ह।
न : वेद क िवशेषता िकस बात म ह?
उ र : वेद क एक िवशेषता यह ह िक सार शा - ंथ म एकमा वेद ही बारबार कहते ह िक वेद क भी अतीत
हो जाना चािहए। वेद कहते ह िक वे कवल अिस य य क िलए िलखे गये ह, इसिलए िस ाव था म तो
वेद क सीमा क पर जाना पड़गा।
न : आपक मत म येक जीवा मा या िन य स य ह?
उ र : जीव-स ा कछ सं कार या बु -वृि य क समि व प ह, और इन बु -वृि य का ित ण
प रवतन होता रहता ह। इसिलए यह जीवा मा अनंत काल क िलए कभी स य नह हो सकती। इस माियक जग -
पंच क भीतर ही उसक स यता ह। जीवा मा तो िवचार और मृित क समि ह, वह िन य स य कसे हो सकती
ह?
न : भारत म बौ -धम का लोप य आ?
उ र : वा तव म भारत म बौ -धम का लोप नह आ। वह बस एक िवरा सामािजक आंदोलन मा था। बु
क पहले, य क नाम से तथा अ य िविभ कारण से ब त ािण-िहसा होती थी और लोग ब त म पान एवं
आिमष-आहार करते थे। बु क उपदेश क फल से म पान और जीव-ह या का भारत से ायः लोप सा हो गया
ह।

आ मा और ई र
ोता म से एक य ने पूछा, “यिद ईसाई-धम चारक लोग को नरका न का डर न िदखाय, तो उनक
उपदेश को कोई नह मानेगा?”
उ र : यिद ऐसा ही हो, तो न मानना ही अ छा ह। भय िदखाकर िजससे धम-कम कराना होता ह, उसक ारा
असल म कोई धमाचरण होता ही नह । लोग को उनक आसुरी कित क िवषय म कछ न सुनाकर उनम जो
देवभाव िनिहत ह, उसी क बार म उपदेश देना अ छा ह।
न : भु (ईसा मसीह) ने जो बताया िक “ वगरा य इस संसार का नह ह”, इसका या अथ ह?
उ र : उनक कहने का ता पय यह था िक वगरा य हमार भीतर ही िव मान ह। य दी लोग क ऐसी धारणा थी
िक इसी पृ वी म कह वगरा य नामक कोई रा य थािपत होगा पर ईसा मसीह क धारणा इस कार नह थी।
न : या आप यह िव ास करते ह िक हम सब पहले पशु थे और अब मनु य बन गये ह?
उ र : मेरा िव ास ह िक मिवकास क िनयमानुसार उ तर ाणी िन नतर जीव से ही आये ह।
न : आप ऐसे िकसी य को जानते ह, िजसे अपने िपछले ज म का मरण ह?
उ र : ऐसे कई य य क साथ मेरी भट ई ह, िज ह ने मुझे बतलाया ह उ ह अपने िपछले ज म का मरण ह।
वे ऐसी एक अव था म प च गये ह, िजसम उनक पूव-ज म क मृित का उदय आ ह।
न : ईसा क सूली पर िव होने क बात पर या आप िव ास करते ह?
उ र : ईसा तो ई रावतार थे, लोग उनक ह या नह कर सक। उ ह ने िजसे सूली पर चढ़ाया था, वह तो एक
छाया मा थी, मृगतृ णा जैसी एक ांित मा थी।
न : यिद उनम इस कार क एक छाया-शरीर-का िनमाण करने क श थी, तो या यही सबसे े
अलौिकक यापार नह ह?
उ र : अलौिकक चम कार को तो म हमेशा ही स य क ा म सबसे बड़ा िव न मानता । बु क िश य ने
एक समय उनसे इस कार क चम कार िदखाने वाले िकसी य क बात कही थी। वह य पश िकये िबना
ही एक पा को ब त ऊचे थान से ले आया था। परतु वह पा जब बु देव को िदखाया गया, तो देखते ही
उ ह ने उसे पदाघात से चूर-चूर कर िदया और इस कार क अलौिकक ि या पर धम क न व डालने का
िनषेध करते ए िश य से कहा, “सनातन त व म स य क खोज करनी होगी।” उ ह ने अपने िश य को
आ यंत रक यथाथ ानलोक क , आ मत व, आ म- योित क िश ा दी थी। और इस आ म- योित क आलोक म
अ सर होना ही एकमा िनिव न माग ह। चम कार आिद तो धम-माग म िव न प ह। उ ह अपने सामने से दूर कर
देना चािहए।
न : या आप िव ास करते ह िक ईसा ने शैलोपदेश िदया था?
उ र : हाँ, म िव ास करता िक ईसा ने शैलोपदेश िदया था, परतु इस िवषय म दूसर क समान म भी ंथ क
ामा य पर ही िनभर । और म यह भी जानता िक कवल ंथ क माण म पूण आ था नह रखी जा सकती।
तो भी यह स य ह िक उस शैलेपदोश को अपने जीवन का माग- दशक बनाने म हमार िलए िकसी कार क
आपि क संभावना नह ह। जो कछ आ या मक ि से हमार िलए क याण द तीत हो, उसको हम हण
करना होगा। बु देव ने ईसा से पाँच सौ वष पहले उपदेश िदया था। उनक सार वचन ेम और शुभ कामना से भर
ए ह। उनक ीमुख से कभी भी िकसी क ित अिभशाप का उ ारण नह आ। उनक जीवन भर म कभी भी
िकसी क ित अशुभ िवचार का संग नह सुना गया। जरतु या क यूिशयस क मुख से भी कभी अिभशाप क
श द नह िनकले।
न : आ मा क िफर से देह-धारण क िवषय म िहदू-मत िकस कार का ह?
उ र : वै ािनक का श या जड़-सात य अथवा नैरतय का मतवाद िजस िभि पर िति त ह, पुनदहधारण का
िस ांत भी उसी िभि पर थािपत ह। इस मतवाद का वतन सव थम हमार देश क एक दाशिनक ने ही िकया
था। ाचीन ऋिष “सृि ” पर िव ास नह करते थे। “सृि ” कहने से ता पय िनकलता ह, “कछ नह ” से
“कछ” का होना, “अभाव” से “भाव” क उ पि । यह असंभव ह। िजस कार काल का आिद नह ह, उसी
कार सृि का भी नह ह। ई र और सृि मानो दो समानांतर रखा क समान ह, उनका न आिद ह, न अंत, वे
िन य पृथक ह। सृि क बार म हमारा मत यह ह, “वह थी, ह, और रहगी”। पा ा य देशवािसय को भारत से
एक बात सीखनी ह, वह ह परधम-सिह णुता। कोई भी धम बुरा नह ह, य िक सब धम का सार एक ही ह।
न : आप या यहाँ (अमे रका म) िहदू-धम क ि याकलाप, अनु ान आिद को चलाना चाहते ह?
उ र : म तो कवल दाशिनक त व का चार कर रहा ।
न : या आपको ऐसा नह मालूम होता िक यिद भावी नरक का डर मनु य क सामने से हटा िदया जाए, तो
िकसी भी प म उसे काबू म रखना असंभव हो जाएगा?
उ र : नह , ब क म तो यह समझता िक भय क अपे ा दय म ेम और आशा का संचार होने से वह
अिधक अ छा हो सकगा।
योग, वैरा य, तप या, ेम
न : या योग शरीर को पूण वा य और जीवनी-श दान करने म सहायक होता ह?
उ र : हाँ, सहायक ह। यह रोग को दूर रखता ह। वयं अपने शरीर को मन से बिहव तु समझना किठन ह, अतः
दूसर क शरीर क संबंध म यह बड़ा कारगर ह। फल और दूध योिगय क िलए सव म आहार ह।
न : या वैरा य क साथ ही आनंद-लाभ होता ह?
उ र : वैरा य का थम सोपान बड़ा क दायक होता ह। जब वैरा य प ा हो जाता ह, तब िनरितशय आनंद-
लाभ होता ह।
न : तप या या ह?
उ र : तप या ि िवध ह, शरीर क , वाणी क और मन क । थम ह लोकसेवा, तीय ह स य बोलना और
तृतीय ह मन को जीतना और उसक एका ता।
न : हम यह य नह अनुभव होता िक एक ही चैत य, च टी और पूण व ा ऋिष दोन म वास कर रहा ह?
उ र : इस सृि क एक व का ान होने म कवल समय क बात रहती ह।
न : स यक ान या पूण व ा क पूव या धम चार करना संभव ह?
उ र : नह , भु से मेरी ाथना ह िक मेर गु देव क तथा मेर सभी सं यासी िश य को स यक ान हो जाए,
िजससे वे धम चार क यो य बन सक।
न : गीता म ीक ण ने ई र को िद य ऐ य से यु िवरा व प य िकया ह, वह या ीक ण क प
म िनिहत अ य िद य उपािधय क िबना गोिपय से उनक संबंध म य ेम भाव क काश से े तर ह?
उ र : जो ेम ि य य क ित भगव ाव से रिहत हो, वह िद य ऐ य क काश क अपे ा िन य ही
हीनतर ह। यिद ऐसा न होता, तो कवल हाड़-मांस क शरीर से ेम करने वाले सभी लोग मो ा कर लेत।े
गु , अवतार, योग, जप, सेवा
न : वेदांत क ल य तक कसे प चा जा सकता ह?
उ र : वण, मनन और िनिद यासन ारा। िकसी स ु से ही वेदांत वण करना चािहए। चाह कोई िविध-
पूवक िश य न आ हो, पर अगर वह यथाथ मुमु ु ह और स ु क श द का वण करता ह, तो उसक मु
हो जाती ह।
न : स ु कौन ह?
उ र : स ु वह ह, िजसे गु -परपरा से आ या मक श ा ई ह। आ या म गु का काय बड़ा किठन ह।
दूसर क पाप को वयं अपने ऊपर लेना पड़ता ह। इस काय म कम समु त य य क पतन क पूरी आशंका
रहती ह। यिद शारी रक पीड़ा मा हो, तो उसे अपने को भा यवान समझना चािहए।
न : या आ या म गु िज ासु को सुपा नह बना सकता?
उ र : कोई अवतार बना सकता ह, साधारण गु नह ।
न : या मो का कोई सरल माग नह ह?
उ र : “पेम को पंथ कपाण क धारा”, यही िनयम यहाँ भी लागू ह। कवल उन लोग क िलए आसान ह, िज ह
अवतार क संपक म आने का सौभा य ा आ हो। ीरामक णदेव कहा करते थे, “िजसका यह अंितम ज म ह,
वह िकसी न िकसी कार से मेर िनकट आयेगा।”
न : या मु क िलए योग सुगम माग नह ह?
उ र : (मजाक म) आपने खूब कहा, समझा! योग सुगम माग! यिद आपका मन िनमल न होगा और योग-माग पर
आ ढ़ ह गे तो आपको कछ अलौिकक िस याँ िमल जाएंगी, परतु वे आपक आ या मक उ ित म कावट
िस ह गी।। इसिलए मन क िनमलता या िचि शु थम आव यक व तु ह।
न : इस िचि शु का उपाय या ह?
उ र : स कम। स कम दो कार क ह; करणा मक और अकरणा मक। “चोरी मत करो” यह अकरणा मक
िनदश ह, “परोपकार करो” यह करणा मक ह।
न : परोपकार उ अव था म य न िकया जाए, य िक िन न अव था म वैसा करने से साधक भवबंधन म
पड़ सकता ह?
उ र : थम अव था म ही परिहत क कम करने चािहए। आरभ म िजसे कामना रहती ह, वह ांत होता ह और
बंधन म पड़ता ह, अ य लोग नह । परोपकार करते-करते वह िबलकल वाभािवक बन जाएगा।
न : वामीजी! कल रात आपने कहा था, “तुमम सबकछ ह”। तब यिद म िव णु जैसा बनना चा , तो या मुझे
कवल “िव णु” भाव का ही िचंतन करना चािहए अथवा िव णु प का भी यान करना चािहए?
उ र : साम य क अनुसार इनम से िकसी माग का अनुसरण िकया जा सकता ह।
न : आ मानुभूित का साधन या ह?
उ र : गु ही आ मानुभूित का साधन ह। “गु िबन होइ िक ान।”
न : कछ लोग का कहना ह िक यान-साधना क िलए िकसी पूजा-गृह म बैठने क आव यकता नह ह। यह
कहाँ तक ठीक ह?
उ र : िज ह ने भु क िव मानता का य ान ा कर िलया ह, उनक िलए इसक आव यकता नह ह,
लेिकन और क िलए ह। िकतु साधक को सगुण क उपासना से ऊपर उठकर िनगुण क उपासना क
ओर अ सर होना चािहए, य िक सगुण या साकार उपासना से मो नह िमल सकता। ई र क साकार प क
दशन से आपको सांसा रक समृ ा हो सकती ह। जो माता क भ करता ह, वह इस दुिनया म सफल होता
ह, जो िपता क पूजा करता ह, वह वग जाता ह, िकतु जो साधु क पूजा करता ह, वह ान तथा भ लाभ करता
ह।
न : “ णिमह स न संगितरका”, “स संग का एक ण भी मनु य को इस भवलोक क पर ले जाता ह”, इस
वचन का या अथ ह?
उ र : स े साधु क संपक म आने पर स पा मु ाव था ा कर लेता ह। स े साधु िवरले होते ह, िकतु
उनका भाव इतना होता ह िक एक महा लेखक ने िलखा ह, “पाखंड क अ त व से िस होता ह िक दु ता
से स नता अिधक भावशाली ह।” इसिलए दु जन स न होने का ढ ग करते ह। िकतु अवतार कपाल-मोचन
होते ह, अथा वे लोग क भा य रखा पलट सकते ह। वे सार िव को िहला सकते ह। उपासना का सबसे
कम संकटाक ण और सव म माग मनु य क उपासना करना ह। िजसे मानव म का दशन आ ह, उसने
िव यापी का सा ा कार कर िलया। िविभ प र थितय क अनुसार सं य त जीवन तथा गृह थ जीवन
दोन ही ेय कर ह। कवल ान आव यक व तु ह।
न : यान कहाँ लगाना चािहए, शरीर क भीतर या बाहर? मन को भीतर समेटना चािहए अथवा बा देश म
थािपत करना चािहए?
उ र : हम भीतर यान लगाने का य न करना चािहए। मन को भीतर या बाहर रखने का सवाल ब त दूर का ह।
मन क तर पर प चने म लंबा समय लगेगा। अभी तो हमारा संघष शरीर से ह। जब आसन िस हो जाता ह,
तभी मन से संघष आरभ होता ह। आसन िस हो जाने पर अंग- यंग िन ल हो जाता ह और साधक चाह
िजतने समय तक थर बैठा रह सकता ह।
न : कभी-कभी जप म थकान मालूम होने लगती ह। तब या उसक जगह वा याय करना चािहए या उसी पर
आ ढ़ रहना चािहए?
उ र : दो कारण से जप म थकान मालूम होती ह। कभी-कभी म त क थक जाता ह और कभी-कभी आल य क
प रणाम व प ऐसा होता ह। यिद थम कारण ह, तो उस समय कछ ण तब जप छोड़ देना चािहए, य िक
हठपूवक जप म लगे रहने से िव म या िवि ाव था आिद आ जाती ह, परतु यिद तीय कारण ह, तो मन को
बला जप म लगाना चािहए।
न : कभी-कभी जप करते समय पहले आनंद क अनुभूित होती ह, लेिकन तब आनंद क कारण जप म मन नह
लगता। ऐसी थित म या जप जारी रखना चािहए?
उ र : हाँ, आनंद आ या मक साधना म बाधक ह। उसे रसा वादन कहते ह। उससे ऊपर उठना चािहए।
न : जब मन इधर-उधर भागता रह, तब भी या देर तक जप करते रहना ठीक ह?
उ र : हाँ, अगर िकसी बदमाश घोड़ क पीठ पर कोई अपना आसन जमाये रखे, तो वह उस घोड़ का वश म कर
लेता ह।
न : आपने अपने “भ योग” म िलखा ह िक यिद कोई कमजोर आदमी योगा यास का य न करता ह, तो घोर
िति या होती ह। तब या िकया जाए?
उ र : यिद आ म ान क यास म मर जाना पड़ तो भय िकस बात का! िव ाजन तथा अ य ब त सी व तु क
िलए मरने मे मनु य को भय नह होता, िफर धम क िलए मरने म आप भयभीत य ह ?
न : या जीव-सेवा मा से मु िमल सकती ह?
उ र : जीव-सेवा य प से मु दान नह कर सकती, िकतु उससे िच शु होती ह और इस कार
परो प से वह मु का कारण बनती ह। िकतु यिद आप समुिचत प से िकसी काय क करने क इ छा रखते
ह, तो सं ित उसे ही सव व समिझये। िकसी भी पंथ म खतरा ह िन ा क भाव का। िन ा का होना आव यक ह,
अ यथा िवकास न होगा। वतमान समय म कम पर जोर देना आव यक हो गया ह।
न : कम म हमारी भावना या होनी चािहए, परोपकारमूलक क णा या कोई और भावना?
उ र : क णाज य परोपकार उ म ह, परतु िशव ान से सव जीव क सेवा उससे े ह।
न : ाथना क उपादेयता या ह?
उ र : सोयी ई श ाथना से आसानी से जाग उठती ह। और यिद ाथना बु पूवक क जाए, तो सभी
इ छाएं पूरी हो सकती ह; िकतु बु पूवक न क जाए, तो दस म से एकाध क पूित होती ह। परतु इस तरह क
ाथना वाथपूण होती ह, अतः या य ह।
न : नर पधारी अवतार क पहचान या ह?
उ र : जो मनु य क ललाट-रखा को बदल सक, वह भगवान ह। कोई भी साधु, चाह वह िकतना भी प चा आ
य न हो, अनुपम पद क िलए दावा नह कर सकता। मुझे कोई ऐसा य नह िदखायी पड़ता िजसने
ीरामक ण क भगव - व प का सा ा कार कर िलया हो। हम लोग को कभी-कभी इसक धुंधली तीित मा हो
जाती ह, ब ! उ ह भगवान क प म जान लेने और साथ ही संसार से आस रखने म पर पर संगित नह ह।
न : अ ैतवादी सृि -त व क िवषय म या कहते ह?
उ र : अ ैतवादी कहते ह िक यह सारा सृि -त व तथा इस संसार म जो कछ भी ह, सब माया क इस आपात-
तीयमान पंच क अंतगत ह। वा तव म इस सब का कोई अ त व नह ह। परतु जब तक हम ब ह, तब तक
हम यह य-जग देखना पड़गा। इस य-जग म घटनाएं कछ िनिद म क अनुसार घटती रहती ह। परतु
उसक पर न कोई िनयम ह, न म। वहाँ संपूण मु , संपूण वाधीनता ह।
न : अ ैतवाद या ैतवादी का िवरोधी ह?
उ र : उपिनषद णालीब प से िलिखत न होने क कारण जब कभी दाशिनक ने िकसी णालीब
दशनशा क रचना करनी चाही ह, तब उ ह ने इन उपिनषद म से अपने अिभ ाय अनुकल ामािणक वा य को
हण िकया ह। इसी कारण सभी दशनकार ने उपिनषद को माण- प से हण िकया ह, अ यथा उनक दशन को
िकसी कार का आधार ही नह रह जाता। तो भी हम देखते ह िक उपिनषद म सब कार क िविभ िचंतन-
णािलयां िव मान ह। हमारा यह िस ांत ह िक अ ैतवाद ैतवाद का िवरोधी नह ह। हम तो कहते ह िक
चरम ान म प चने क िलए तीन सोपान ह, उनम से ैतवाद एक ह। धम म सवदा तीन सोपान देखने म आते ह।
थम, ैतवाद। उसक बाद मनु य अपे ाकत उ तर अव था म उप थत होता ह, वह ह िविश ा ैतवाद। और
अंत म उसे यह अनुभव होता ह िक वह सम त िव - ांड क साथ अिभ ह। यही चरम-दशा अ ैतवाद ह।
इसीिलए इन तीन म पर पर िवरोध नह ह, ब क वे आपस म एक-दूसर क सहायक या पूरक ह।
न : माया या अ ान क अ त व का या कारण ह?
उ र : कायकारण-संघात क सीमा क बाहर “ य ” का न नह पूछा जा सकता। माया-रा य क भीतर ही
“ य ” का न पूछा जा सकता ह। हम कहते ह िक यिद यायशा क अनुसार तकसंतग प म यह न पूछा
जा सक, तभी हम उसका उ र दगे। उसक पहले उसका उ र देने का हम अिधकार नह ह।
न : सगुण ई र या माया क अंतगत ह?
उ र : हाँ, पर यह सगुण-ई र माया पी आवरण क भीतर से प र यमान उस िनगुण- क अित र और
कछ नह ह। माया या कित क अधीन होने पर वही िनगुण- जीवा मा कहलाता ह और मायाधीश या कित क
िनयंता क प म वही ई र या सगुण- कहलाता ह। कोई य सूय को देखने क िलए ऊपर क ओर या ा
कर, तो जब तक वह असल सूय क िनकट नह प चता, तब तक वह सूय को मशः अिधकािधक बड़ा ही
देखता जाएगा। वह िजतना ही आगे बढ़गा, उसे ऐसा मालूम होगा िक वह िभ -िभ सूय को देख रहा ह, परतु
वा तव म वह उसी एक सूय को देख रहा ह, इसम संदेह नह । इसी कार, हम जो कछ देख रह ह, सभी उस
िनगुण- स ा क िविभ प मा ह, इसिलए उस ि से ये सब स य ह। इनम से कोई भी िम या नह ह,
परतु यह कहा जा सकता ह िक ये िन नतर सोपान मा ह।
न : उस पूण िनरपे स ा को जानने क िवशेष णाली कौन सी ह?
उ र : हमार मत म दो णािलयाँ ह। उनम से एक तो अ तभाव- ोतक या वृि -माग ह और दूसरी ना तभाव-
ोतक या िनवृि -माग ह। थमो माग से सवसाधारण लोग चलते ह, इसी पथ से हम पेम ारा उस पूण-व तु
को ा करने क चे ा कर रह ह। यिद ेम क प रिध अनंत गुनी बढ़ा दी जाए, तो हम उसी सावजनीन ेम म
प च जाएँग।े दूसर पथ म “नेित” “नेित” अथा “यह नह ” “यह नह ” इस कार क साधना करनी पड़ती ह।
इस साधना म िच क जो कोई तरग मन को बिहम खी बनाने क चे ा करती ह, उसका िनवारण करना पड़ता
ह। अंत म मन ही मानो मर जाता ह, तब स य वयं कािशत हो जाता ह। हम इसी को समािध या ानातीत
अव था या पूण- ानाव था कहते ह।
न : तब तो यह िवषयी ( ाता या ा) को िवषय ( ेय या य) म डबा देने क अव था ई?
उ र : िवषयी को िवषय म नह वर िवषय को िवषयी म डबा देने क । वा तव म यह जग िवलीन हो जाता ह,
कवल “म” रह जाता , एकमा “म” ही वतमान रहता ह।
न : हमार कछ जमन-दाशिनक का मत ह िक भारतीय भ वाद संभवतः पा ा य भाव का ही फल ह?
उ र : इस िवषय म म उनसे सहमत नह । इस कार का अनुमान एक ण क िलए भी नह िटक सकता।
भारतीय भ पा ा य देश क भ क समान नह ह। भ क संबंध म हमारी मु य धारणा यह ह िक उसम
भय का भाव िबलकल ही नह रहता, रहता ह कवल भगवान क ित ेम। दूसरी बात यह ह िक ऐसा अनुमान
िबलकल अनाव यक ह। भ क बात हमारी ाचीनतम उपिनषद तक म िव मान ह और ये उपिनषद ईसाइय
क बाइिबल से ब त ाचीन ह। संिहता म भी भ का बीज देखने म आता ह। िफर “भ ” श द भी कोई
पा ा य श द नह ह। वेद-मं म “ ा” श द का जो उ ेख ह, उसी से मशः भ वाद का उ व आ
था।
न : ईसाई-धम क संबंध म भारतवािसय क या धारणा ह?
उ र : बड़ी अ छी धारणा ह। वेदांत सभी को हण करता ह। दूसर देश क तुलना म भारत म हमारी धम-िश ा
का एक िवशेष व ह। मान लीिजये, मेर एक लड़का ह। म उसे धममत क िश ा नह दूँगा, म उसे ाणायाम
िसखाऊगा, मन को एका करना िसखाऊगा और थोड़ी ब त सामा य ाथना क िश ा दूँगा; परतु वैसी ाथना
नह , जैसी आप समझते ह, वर इस कार क ाथना, “िज ह ने इस िव - ांड क सृि क ह, म उनका
यान करता , वे मेर मन को ानलोक से आलोिकत कर।” इस कार उसक धम-िश ा रहगी। इसक बाद वह
िविभ मतावलंबी दाशिनक एवं आचाय क मत सुनता रहगा। उनम से िजनका मत वह अपने िलए सबसे अिधक
उपयु समझेगा, उ ह को गु - प से हण करगा और वह वयं उनका िश य बन जाएगा। वह उनसे ाथना
करगा, “आप िजस दशन का चार कर रह ह, वह सव क ह, अतएव आप कपा करक मुझे उसक िश ा
दीिजये।”
“हमारी मूल बात यह ह िक आपका मत मेर िलए तथा मेरा मत आपक िलए उपयोगी नह हो सकता। येक
का साधन-पथ िभ -िभ होता ह। यह भी हो सकता ह िक मेरी लड़क का साधन-माग एक कार का हो, मेर
लड़क का साधन-माग दूसर कार का और मेरा इन दोन से िबलकल िभ कार का। अतः येक य का
इ या िनवािचत पथ िभ -िभ हो सकता ह और सब लोग अपने-अपने साधन-माग क बात गु रखते ह।
अपने साधन-पथ क िवषय म कवल म जानता और मेर गु , िकसी तीसर य को यह नह बताया जाता;
य िक हम दूसर से वृथा िववाद करना नह चाहते। िफर इसे दूसर क पास कट करने से उनका कोई लाभ नह
होता; य िक येक को ही अपना-अपना माग चुन लेना पड़ता ह। इसीिलए सवसाधारण को कवल
सवसाधारणोपयोगी दशन और साधना- णाली का ही उपदेश िदया जा सकता ह। एक ांत लीिजये, अव य उसे
सुनकर आप हसगे। मान लीिजये, एक पैर पर खड़ रहने से शायद मेर उ ित म कछ सहायता होती हो, परतु इसी
कारण यिद म सभी को एक पैर पर खड़ होने का उपदेश देने लगूं, तो या यह हसी क बात न होगी? हो सकता ह
िक म ैतवादी होऊ और मेरी ी अ ैतवादी। मेरा कोई लड़का इ छा कर तो ईसा, बु या मुह मद का
उपासक बन सकता ह, वे उसक इ ह। हाँ, यह अव य ह िक उसे अपने जाितगत सामािजक िनयम का पालन
करना पड़गा।”
न : या सब िहदु का जाित-िवभाग म िव ास ह?
उ र : उ ह बा य होकर जाितगत िनयम मानने पड़ते ह। उनका भले ही उनम िव ास न हो, पर तो भी वे
सामािजक िनयम का उ ंघन नह कर सकते।
न : इस ाणायाम और एका ता का अ यास या सब लोग करते ह?
उ र : हाँ, कोई-कोई लोग ब त थोड़ा करते ह, धमशा क आदेश का उ ंघन न करने क िलए िजतना करना
पड़ता ह, बस उतना ही करते ह। भारत क मंिदर यहाँ क िग रजाघर क समान नह ह। चाह तो कल ही सार मंिदर
गायब हो जाएं, तो भी लोग को उनका अभाव महसूस नह होगा। वग क इ छा से, पु क इ छा से अथवा इसी
कार क और िकसी कामना से लोग मंिदर बनवाते ह। हो सकता ह, िकसी एक बड़ भारी मंिदर क ित ा कर
उसम पूजा क िलए दो-चार पुरोिहत को भी िनयु कर िदया, पर मुझे वहाँ जाने क कछ भी आव यकता नह ह
य िक मेरा जो कछ पूजा-पाठ ह, वह मेर घर म ही होता ह। येक घर म एक अलग कमरा होता ह, िजसे
“ठाकर-घर” या “पूजा-गृह” कहते ह। दी ा- हण क बाद येक बालक या बािलका का यह कत य हो जाता ह
िक वह पहले ान कर िफर पूजा-सं या-वंदनािद। उसक इस पूजा या उपासना का अथ ह, ाणायाम, यान तथा
िकसी मं िवशेष का जप। और एक बात क ओर िवशेष यान देना पड़ता ह; वह ह साधना क समय शरीर को
हमेशा सीधा रखना। हमारा िव ास ह िक मन क बल से शरीर को व थ और सबल रखा जा सकता ह। एक
य इस कार पूजा आिद करक चला जाता ह, िफर दूसरा आकर वहाँ बैठकर अपना पूजा-पाठ आिद करने
लगता ह। सभी िन त ध भाव से अपनी-अपनी पूजा करक चले जाते ह। कभी-कभी एक ही कमर म तीन-चार
य बैठकर उपासना करते ह, परतु उनम से हरक क उपासना- णाली िभ -िभ हो सकती ह। इस कार क
पूजा ितिदन कम-से-कम दो बार करनी पड़ती ह।
न : आपने िजस अ ैत-अव था क बार म कहा ह, यह या कवल एक आदश ह, अथवा वा तव म िकसी ने
यह अव था ा भी क ह?
उ र : हम तो उस अव था को य का ही िवषय जानते ह। हम कहते ह िक यह अव था य उपल ध
करने का ही िवषय ह। यिद वह कवल थोड़ी बात हो तब तो उसका कछ भी मू य नह । उस त व क उपल ध
करने क िलए वेद म तीन उपाय बतलाये गये ह, वण, मनन और िनज यासन। इस आ मत व क िवषय म पहले
वण करना होगा। वण करने क बाद इस िवषय पर िवचार करना होगा, आँख मूंदकर िव ास न कर, अ छी
तरह िवचार करक समझ-बूझकर उस पर िव ास करना होगा। इस कार अपने स य व प पर िवचार करक
उसक िनरतर यान म िनयु होना होगा, तब उसका सा ा कार होगा। यह य ानुभूित ही यथाथ धम ह। कवल
िकसी मतवाद को वीकार कर लेना धम का अंग नह ह। हम तो कहते ह िक यह समािध या ानातीत अव था ही
धम ह।
न : यिद आप कभी इस समािध-अव था को ा कर ल, तो या आप उसका वणन भी कर सकगे?
उ र : नह ; परतु समािध-अव था या पूण- ान क अव था ा ई ह या नह इस बात को हम जीवन क ऊपर
उसक फलाफल को देखकर जान सकते ह। एक मूख य जब सोकर उठता ह, तो वह पहले जैसा मूख था,
अब भी वैसा ही मूख रहता ह, शायद पहले से और भी खराब हो सकता ह। परतु जब कोई य समािध म थत
होता ह, तो वहाँ से उ थान क बाद वह एक त व , साधु, महापु ष हो जाता ह। इसी से प ह िक ये दोन
अव थाएं िकतनी िभ -िभ ह।
न : आप लोग “ऐ ल बॉडी” (सू म शरीर) को या कहते ह?
उ र : हम उसे िलंग-शरीर कहते ह। जब इस देह का नाश होता ह, तब दूसर शरीर का हण िकस कार होता
ह? जड़-भूत को छोड़कर श नह रह सकती। इसिलए िस ांत यह ह िक देह- याग होने क प ा भी सू म-
भूत का कछ अंश हमार साथ रह जाता ह। अंत र यां इस सू म-भूत क सहायता से और एक नूतन देह तैयार कर
लेती ह, य िक येक ही अपनी-अपनी देह बना रहा ह, मन ही शरीर को तैयार करता ह। यिद म साधु बनूं तो मेरा
म त क साधु क म त क म प रणत हो जाएगा। योगी कहते ह िक वे इसी जीवन म अपने शरीर को देवशरीर म
प रणत कर सकते ह।
“योगी अनेक चम कार िदखाते ह। ढर कोर मतवाद क अपे ा अ प अ यास का मू य ब त अिधक ह।
अतएव मुझे यह कहने का अिधकार नह ह िक अमुक-अमुक बात घटती मने नह देखी इसिलए वे िम या ह।
योिगय क ंथ म िलखा ह िक अ यास ारा सब कार क बड़ अ ुत फल क ा हो सकती ह। िनयिमत
प से अ यास करने पर अ प काल म थोड़-ब त फल क ा हो जाती ह, िजससे यह जाना जा सकता ह िक
इसम कछ कपट या धोखा-धड़ी नह ह और इन सब शा म िजन अलौिकक बात का उ ेख ह, उनक
या या योगी वै ािनक रीित से करते ह। अब न यह ह िक संसार क सभी जाितय म इस कार क अलौिकक
काय का िववरण कसे िलिपब िकया गया? जो य कहता ह िक ये सब िनयम िम या ह, अतः इनक
या या करने क कोई आव यकता नह ह उसे यु वादी िवचारक नह कहा जा सकता। जब तक आप उन बात
को मा मक मािणत नह कर सकते, तब तब उ ह अ वीकार करने का अिधकार आपको नह ह। आपको यह
मािणत करना होगा िक इन सबका कोई आधार नह ह, तभी उनको अ वीकार करने का अिधकार आपको होगा।
परतु आप लोग ने तो ऐसा िकया नह । दूसरी ओर योगी कहते ह िक ये सब यापार वा तव म अ ुत नह ह और
वे इस बात का दावा करते ह िक ऐसी ि याएं वे अभी भी कर सकते ह। भारत म आज भी अनेक अ ुत घटनाएं
होती रहती ह, परतु उनम से कोई भी िकसी अ ाकितक श ारा नह घटती। इस िवषय पर अनेक ंथ िव मान
ह। जो हो, इस िदशा म और कछ न आ हो, तो भी वै ािनक प से मन वत व क आलोचना करने क य न
का सारा ेय योिगय को ही देना चािहए।”
न : योगी या- या चम कार िदखा सकते ह, इसक उदाहरण आप दे सकते ह?
उ र : योिगय का कथन ह िक अ य िकसी िव ान क चचा करने क िलए िजतने िव ास क आव यकता होती
ह, योग-िव ा क िनिम उससे अिधक िव ास क ज रत नह । िकसी िवषय को वीकार करने क बाद एक भ
य उसक स यता क परी ा क िलए िजतना िव ास करता ह, उससे अिधक िव ास करने को योगी लोग
नह कहते। योगी का आदश अितशय उ ह। मन क श से जो सब काय हो सकते ह, उनम से िन नतर कछ
काय को मने य देखा ह, अतः म इस पर अिव ास नह कर सकता िक उ तर काय भी मन क श ारा
हो सकते ह। योगी का आदश ह, सव ता और सवश म ा क ा कर उनक सहायता से शा त शांित और
ेम का अिधकारी हो जाना। म एक योगी को जानता िज ह एक बड़ िवषैले सप ने काट िलया था। सपदंश होते
ही वे बेहोश हो जमीन पर िगर पड़। सं या क समय वे होश म आये। उनसे जब पूछा गया िक या आ था। तो वे
बोले, “मेर ि यतम क पास से एक दूत आया था”। इन महा मा क सारी घृणा, ोध और िहसा का भाव पूण प
से द ध हो चुका ह। कोई भी चीज उ ह बदला लेने क िलए वृ नह कर सकती। वे सवदा अनंत ेम व प ह
और ेम क श से सवश मान हो गये ह। बस ऐसा य ही यथाथ योगी ह, और सब श य का िवकास,
अनेक कार क चम कार िदखलाना, गौण मा ह। यह सब ा कर लेना योगी का ल य नह ह। योगी कहते ह
िक योगी क अित र अ य सब मानो गुलाम ह, खाने-पीने क गुलाम, अपनी ी क गुलाम, अपने लड़क ब
क गुलाम, पये-पैसे क गुलाम, वदेशवािसय क गुलाम, नाम-यश क गुलाम, जलवायु क गुलाम, इस संसार क
हजार िवषय क गुलाम। जो मनु य इन बंधन म से िकसी म भी नह फसे, वे ही यथाथ मनु य ह, यथाथ योगी ह।
“इहव तैिजतः सग येषां सा ये थतं मनः।
िनद ष िह समं त मा िण ते थताः।।
“िजनका मन सा यभाव म अव थत ह, उ ह ने यही संसार पर जय ा कर ली ह। िनद ष और
समभावाप ह, इसिलए वे म अव थत ह।”
न : या योगी जाित-भेद को िवशेष आव यक समझते ह?
उ र : नह , जाित-िवभाग तो उन लोग को, िजनका मन अभी अप रप ह, िश ा दान करने का एक िव ालय
मा ह।
न : इन समािध-त व क साथ भारत क गरम जलवायु का तो कछ संबंध नह ह?
उ र : म तो ऐसा नह समझता। कारण, समु -धरातल से पं ह हजार फ ट ऊचाई पर सुमे क समान जलवायु
वाले िहमालय म ही तो योगिव ा का उ व आ था।
न : ठडी जलवायु म या योग म िस ा हो सकती ह?
उ र : हाँ, अव य हो सकती ह और संसार म इसक ा िजतनी संभव ह, उतना संभव और कछ भी नह ह।
हम कहते ह, आप लोग, आप म से येक, ज म से ही वेदांितक ह। आप अपने जीवन क येक मु त म संसार
क येक व तु क साथ अपने एक व क घोषणा कर रह ह। जब कभी आपका दय सार संसार क क याण क
िलए उ मुख होता ह, तभी आप अनजाने म स े वेदांतवादी हो जाते ह। आप नीितपरायण ह, पर यह नह जानते
िक आप यो नीितपरायण हो रह ह। एकमा वेदांत-दशन ही नीित व का िव ेषण कर मनु य को ानपूवक
नीितपरायण होने क िश ा देता ह। वह सब धम का सार व प ह।
न : आपक मत म या हम पा ा य म ऐसा कछ असामािजक भाव ह, िजसक कारण हम इस तरह ब वादी
और भेदपरायण बन रह ह और िजसक अभाव क कारण ा य देश क लोग हमसे अिधक सहानुभूितसंप ह।
उ र : मेर मत म, पा ा य-जाित अिधक िनदय वभाव क ह और ा य देश क लोग सब भूत क ित अिधक
दया-संप ह। परतु इसका कारण यही ह िक आपक स यता ब त ही आधुिनक ह। िकसी क वभाव को दयालु
बनाने क िलए समय क आव यकता होती ह। आप म श काफ ह, परतु िजस मा ा म श का संचय हो रहा
ह, उस मा ा म दय का िवकास नह हो पा रहा ह। िवशेषकर मनःसंयम का अ यास ब त ही अ प प रमाण म
आ ह। आपको साधु और शांत- कित बनने म ब त समय लगेगा। पर भारतवािसय क येक र -िबंदु म यह
भाव वािहत हो रहा ह। यिद म भारत क िकसी गाँव म जाकर वहाँ क लोग को राजनीित क िश ा देना चा , तो
वे उसे नह समझगे। परतु यिद म उ ह वेदांत का उपदेश दूं, तो वे कहगे, हाँ, वामीजी, अब हम आपक बात
समझ रह ह, आप ठीक ही कह रह ह। आज भी भारत म सव यह वैरा य या अनास का भाव देखने म आता
ह। आज हमारा ब त पतन हो गया ह, परतु अभी भी वैरा य का भाव इतना अिधक ह िक राजा भी अपने रा य
को यागकर, साथ म कछ भी ने लेता आ देश म सव पयटन करगा।
“कह -कह पर गांव क एक साधारण लड़क भी अपने चरखे से सूत कातते समय कहती ह, मुझे ैतवाद का
उपदेश मत सुनाओ, मेरा चरखा तक “सोऽह” “सोऽह” कह रहा ह। इन लोग क पास जाकर उनसे वा ालाप
क िजये और उनसे पूिछये िक जब तुम इस कार “सोऽह” कहते हो, तो िफर उस प थर को णाम य करते हो?
इसक उ र म वे कहगे, “आपक ि म तो धम एक मतवाद मा ह, पर हम तो धम का अथ या ानुभूित ही
समझते ह।” उनम से कोई शायद कहगा, “म तो तभी यथाथ वेदांतवादी होऊगा, जब सारा संसार मेर सामने से
अंतिहत हो जाएगा, जब म स य क दशन कर लूंगा। जब तक म उस थित म नह प चता, तब तक मुझम और
एक साधारण अ य म कोई अंतर नह ह। यही कारण ह िक म तर-मूित क उपासना कर रहा , मंिदर म
जाता , िजससे मुझे या ानुभूित हो जाए। मने वेदांत का वण िकया तो ह, पर म अब इस वेदांत- ितपा
आ मत व को देखना चाहता , उसका य अनुभव कर लेना चाहता ।”
“वा वैखरी श दझरी शा या यानकौशल ।
वैदु यं िवदुषां त भु ये न तु मु ये।।”
“धारा वाह प से मनोरम वा य क योजना, शा क या या करने क नाना कार क कौशल, ये कवल
पंिडत क आमोद क िलए ही ह, इनक ारा मु लाभ क कोई संभावना नह ह।” क सा ा कार से ही हम
उस मु क ा होती ह।”
न : आ या मक िवषय म जब सवसाधारण क िलए इस कार क वाधीनता ह, तो या इस वाधीनता क
साथ जाित-भेद का मानना मेल खाता ह?
उ र : कदािप नह । लोग कहते ह िक जाित-भेद नह रहना चािहए, इतना ही नह , ब क जो लोग िभ -िभ
जाितय क अंतगत ह, वे भी कहते ह िक जाित-िवभाग कोई ब त उ तर क चीज नह ह। पर साथ ही वे यह
भी कहते ह िक यिद तुम इससे अ छी कोई अ य व तु हम दो, तो हम इसे छोड़ दगे। वे पूछते ह िक तुम इनक
बदले हम या दोगे? जाित-भेद कहाँ नह ह बोलो? आप भी तो अपने देश म इसी कार क एक जाित-िवभाग क
सृि करने का य न कर रह ह। जब कोई य कछ अथ सं ह कर लेता ह, तो वह कहने लगता ह िक म भी
तु हार चार सौ धिनक म से एक । कवल हम लोग एक थायी जाित-िवभाग का िनमाण करने म सफल ए ह।
अ य देशवाले इस कार क थायी जाित-िवभाग क थापना क िलए य न कर रह ह, िकतु वे सफल नह हो पा
रह ह। यह सच ह िक हमार समाज म काफ कसं कार और बुरी बात ह, पर या आपक देश क कसं कार तथा
बुरी बात को हमार देश म चिलत कर देने से ही सब ठीक जो जाएगा? जाित-भेद क कारण ही तो आज भी हमार
देश क तीस करोड़ लोग को खने क िलए रोटी का एक टकड़ा िमल रहा ह। हाँ, यह सच ह िक रीित-नीित क
ि से इसम अपूणता ह। पर यिद यह जाित-िवभाग न होता, तो आज आपको एक भी सं कत ंथ पढ़ने क िलए
न िमलता। इसी जाित-िवभाग क ारा ऐसी मजबूल दीवाल क सृि ई थी, जो शत-शत बाहरी चढ़ाइय क
बावजूद भी नह िगरी। आज भी यह योजन िमटा नह ह, इसिलए अभी तक जाित-िवभाग बना आ ह। सात सौ
वष पहले जाित-िवभाग जैसा था, आज भी वैसा नह ह। उस पर िजतने ही आघात होते गये वह उतना ही ढ़ होता
गया। या आप यह नह जानते िक कवल भारत ही एक ऐसा रा ह, जो दूसर रा पर िवजय ा करने अपनी
सीमा से बाहर कभी नह गया? महा स ाट अशोक ये िवशेष प से कह गये थे िक उनक कोई भी उ रािधकारी
पर-रा -िवजय क िलए य न न कर। यिद कोई अ य जाित हमार यहाँ चारक भेजना चाहती ह, तो भेज,े पर वह
हमारी वा तिवक सहायता ही कर, रा ीय संपि व प हमारा जो धम-भाव ह, उसे ित न प चाये। ये सब
िविभ जाितयां िहदू-जाित पर िवजय ा करने क िलए य आय ? या िहदु ने अ य जाितय का कछ
अिन िकया था? ब क जहाँ तक संभव था, उ ह ने संसार का उपकार ही िकया था। उ ह ने संसार को िव ान,
दशन और धम क िश ा दी, तथा संसार क अनेक अस य जाितय को स य बनाया। परतु उसक बदले म उनको
या िमला? र पात! अ याचार! और दु “कािफर” यह शुभनाम! वतमान काल म भी पा ा य य य ारा
िलिखत भारत संबंधी ंथ को पढ़कर देिखये तथा वहाँ (भारत म) मण करने क िलए जो लोग गये थे, उनक
ारा िलिखत आ याियका को पि़ढये। आप देखगे, उ ह ने भी िहदु को “िहदन” कहकर गािलयाँ दी ह। म
पूछता , भारतवािसय ने ऐसा कौन सा अिन िकया ह, िजसक ितशोध म उनक ित इस कार क लांछनपूण
बात कही जाती ह ?
न : स यता क िवषय म वेदांत क या धारणा ह?
उ र : आप दाशिनक लोग ह, आप यह नह मानते िक पये क थैली पास रहने से ही मनु य-मनु य म कछ भेद
उ प हो जाता ह। इन सब कल-कारखान और जड़-िव ान का मू य या ह? उनसे तो बस एक ही लाभ होता
आ देखने म आता ह, वे सव ान का िव तार करते ह। आप अभाव अथवा दा र य क सम या को हल नह
कर सक, ब क आपने तो अभाव क मा ा और बढ़ा दी ह। यं क सहायता से “दा र य-सम या” का भी
समाधान नह हो सकता। उनक ारा जीवन-सं ाम और भी ती हो जाता ह, ितयोिगता और भी बढ़ जाती ह।
जड़- कित का या कोई वतं मू य ह? कोई य यिद तार क मा यम से िबजली का वाह भेज सकता ह तो
आप उसी समय उसका मारक बनाने क िलए उ त हो जाते ह। य ? या कित वयं यह काय लाख बार
िन य नह करती? कित म सबकछ पहले से ही िव मान नह ह? आपको उसक ा ई भी, तो उससे या
लाभ? वह तो पहले से ही वहाँ वतमान ह। उसका एकमा मू य यही ह िक वह हम भीतर से उ त बनाता ह। यह
जग मानो एक यायाम-शाला क स श ह, इसम जीवा मागण अपने-अपने कम ारा अपनी-अपनी उ ित कर
रह ह और इसी उ ित फल व प हम देव व प या व प हो जाते ह। अतः िकस िवषय म भगवान का
िकतना काश ह, यह जानकर ही उस िवषय का मू य या सार िनधा रत करना चािहए। स यता का अथ ह मनु य
म इसी ई र व क अिभ य ।
न : या बौ म भी िकसी कार का जाित-िवभाग ह?
उ र : बौ म कभी कोई जाित-िवभाग नह था और भारत म बौ क सं या भी ब त थोड़ी ह। बु एक
सुधारक थे। िफर भी मने बौ देश म देखा ह, वहाँ जाित-िवभाग क सृि करने क ब त य न होते रह ह, पर
उसम सफलता नह िमली। बौ का जाित-िवभाग वा तव म नह -जैसा ही ह परतु मन-ही-मन वे वयं को उ
जाित मानकर गव करते ह।
“बु एक वेदांतवादी सं यासी थे। उ ह ने एक नये सं दाय क थापना क थी, जैसे िक आजकल नये-नये
सं दाय थािपत होते ह। जो सब भाव आजकल बौ -धम क नाम से चिलत ह, वे वा तव म बु क अपने
नह थे। वे तो उनसे भी ब त ाचीन थे। बु एक महापु ष थे, उ ह ने इन भाव म श का संचार कर िदया था।
बौ -धम का सामािजक भाव ही उसक नवीनता ह। ा ण और ि य ही सदा से हमार आचाय रह ह।
उपिनषद म से अिघकांश तो ि य ारा ही रचे गये ह और वेद का कमकांड भाग ा ण ारा। सम भारत
म हमार जो बड़-बड़ आचाय हो गये ह, उनम से अिघकांश ि य थे, और उनक उपदेश भी बड़ उदार और
सावजनीन ह; परतु कवल दो ा ण आचाय को छोड़कर शेष सब ा ण-आचाय अनुदारभावसंप थे। भगवान
क अवतार क प म पूजे जाने वाले राम, क ण, बु , ये सभी ि य थे।”
न : वेदांत य व और नीित क या या िकस कार करता ह?
उ र : वह पूण ही यथाथ अिवभा य य व ह, माया ारा उसने पृथक-पृथक य क आकार धारण
िकये ह। कवल ऊपर से ही इस इकाई का बोध हो रहा ह, पर वा तव म वह सदैव वही पूण प ह। वा तव म
स ा एक ही ह, पर माया क कारण वह िविभ प म तीत हो रही ह। यह सम त भेद-बोध माया म ह। पर इस
माया क भीतर भी सवदा उसी एक क ओर लौट जाने क चे ा चली ई ह। येक जाित क नीित क भीतर यही
चे ा अिभ य ई ह। य िक यह तो जीवा मा का वभावगत योजन ह। वह इस कार क चे ा ारा उसी
एक व क ा क िलए य न कर रहा ह, और एक व-लाभ क इस चे ा को ही हम नीित कहते ह। इसीिलए
हम सवदा नीितपरायण होना चािहए।
न : िकतु नीितशा का अिधकांश भाग या िविभ य य क पार प रक संबंध को ही लेकर नह ह?
उ र : अिधकांश भाग ही य , संपूण नीितशा इ ह संबंध को लेकर ह। पूण कभी भी माया क सीमा क
भीतर नह आ सकता।
न : आपने कहा िक “म” ही वह पूण , म आपसे पूछने वाला था िक इस “म” या “अह” म कोई ान
रहता ह या नह ?
उ र : यह “अह” या “म” उसी पूण का काश- व प ह और इस अिभ य दशा म उसम जो काश-
श काय कर रही ह, उसी को हम “ ान” कहते ह। इसिलए उस पूण- क ान व प म “ ान” श द का
योग ठीक-नह ह, य िक वह पूणाव था तो इस सापे - ान क पर ह।?
न : यह सापे - ान या क अंतगत ह?
उ र : हाँ, एक ि से सापे - ान को पूण- ान क अंतगत कहा जा सकता ह। िजस कार सोने क मुहर भुनाने
पर छोट-छोट िस म बदली जा सकती ह, उसी कार इस पूण-अव था से सब कार क ान क उ पि क
जा सकती ह। इस पूण-अव था को अितचेतन, ानातीत या पूण- ान क अव था कहते ह, चेतन और अचेतन
दोन उसक अंतगत ह। जो य इस पूण- ानाव था को ा कर लेता ह, उसम यह सापे साधारण ान भी
पूण प से िव मान रहता ह। जब वह ान क इस दूसरी अव था अथा हमारी प रिचत सापे ानाव था का
अनुभव करना चाहता ह, तो उसे एक सीढ़ी नीचे उतर आना पड़ता ह। यह सापे - ान एक िन नतर अव था ह,
कवल माया क भीतर ही इस कार का ान हो सकता ह।
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जीवन-उ े य
इन दोन ि य म कछ स य अव य ह, िकतु दोन ही दल भीतर क असली बात नह देखते।
येक मनु य म एक भाव िव मान रहता ह; बा मनु य उसी भाव का काश मा अथा भाषा मा रहता ह।
इसी कार येक जाित म एक जातीय भाव ह। यह भाव जग क िलए काय करता ह, वह संसार क थित क
िलए आव यक ह। िजस िदन वह आव यकता भी चली जाएगी, उसी िदन उस जाित अथवा य का नाश हो
जाएगा। इतने दुःख-दा र य म भी बाहर का उ पात सहकर हम भारतवासी बचे ह, इसका अथ यही ह िक हमारा
एक रा ीय भाव ह, जो इस समय भी जग क िलए आव यक ह। यूरोिपयन म भी उसी कार रा ीय भाव ह,
िजसक न होने से संसार का काम नह चलेगा। इसीिलए वे आज इतने बल ह। िबलकल श हीन हो जाने से
या मनु य बच सकता ह? रा तो य य क कवल समि ह। एकदम श हीन अथवा िन कम होने से या
रा बचा रहगा? हजार वष क नाना कार क िवपि य से रा य नह मरा? यिद हमारी रीितनीित इतनी
खराब होती, तो हम लोग इतने िदन म न य नह हो गये? िवदेशी िवजेता क चे ा म या कसर रही ह?
तब भी सार िहदू मरकर न य नह हो गये? अ या य अस य देश म भी तो ऐसा ही आ ह। भारतीय देश ऐसे
मानवजन-िवहीन य नह हो गये िक िवदेशी उसी समय यहाँ आकर खेती-बाड़ी करने लगते, जैसा िक
आ िलया, अमे रका तथा अ का आिद म आ तथा हो रहा ह? तब ह िवदेशी, तुम अपने को िजतना बलवान
समझते हो, वह कवल क पना ही ह; भारत म भी बल ह, सार ह, इसे पहले समझ लो। और यह भी समझो िक
अब हमार पास जग क स यता-भंडार म जोड़ने क िलए कछ ह, इसीिलए हम बचे ह। इसे तुम लोग भी अ छी
तरह समझ लो जो भीतर बाहर से साहब बने बैठ हो तथा यह कहकर रोते-िच ाते घूमते हो “हम लोग नरपशु ह,
ह यूरोपवासी, तु ह हमारा उ ार करो।” यह कहते ए हसन- सैन कर रह हो िक ईसा आकर भारत म बैठ ह।
अजी, यहाँ ईसा भी नह आये, िजहोवा भी नह आये और न आयगे ही। वे इस समय अपना घर संभाल रह ह,
हमार देश म आने का उ ह अवसर नह ह। इस देश म वे ही बूढ़ िशवजी बैठ ह, यहाँ कालीमाई बिल खाती ह और
बंसीधारी बंसी बजाते ह। यह बूढ़ िशवजी सांड़ पर वार होकर भारतवष से एक ओर सुमा ा, बोिनयो, सेिलिवस,
आ टिलया, अमे रका क िकनार तक डम बजाते ए एक समय घूमे थे, दूसरी ओर ित बत, चीन, जापान,
साइबे रया पय त बूढ़ िशवजी ने अपने बैल को चराया था और अब भी चराते ह। ये महाबली ह िजनक पूजा चीन,
जापान म भी होती ह िजसे ईसा क मां “मेरी” समझकर ईसाई भी पूजा करते ह। यह जो िहमालय पहाड़ ह उसक
उ र म कलाश ह, वहाँ बूढ़ िशवजी का धान अ ा ह। उस कलाश को दस िसर और बीस हाथ वाला रावण भी
नह िहला सका, िफर उसे िहलाना या पादरी-सादरी का काम ह? वे बूढ़ िशवजी डम बजायगे, महाकाली बिल
खायगी और ीक णजी बंसी बजायगे, यही इस देश म हमेशा होगा। यिद तु ह अ छा नह लगता तो हट जाओ।
तुम दो चार लोग क िलए या सार देश को अपना हाड़ जलाना होगा? इतनी बड़ी दुिनया तो पड़ी ही ह, कह
दूसरी जगह जाकर य नह चरते? ऐसा तो कर ही नह सकोगे, साहस कहाँ ह? इस बूढ़ िशवजी का अ खायगे,
नमक-हरामी करगे और ईसा क जय मनायगे। िध ार ह ऐसे लोग को, जो साहब क सामने जाकर िगड़िगड़ाते ह
िक हम अित नीच ह, हम ब त ु ह, हमारा सबकछ खराब ह। पर हाँ, यह बात तु हार िलए ठीक हो सकती ह,
तुम लोग अव य स यवादी हो, पर तुम “अपने” भीतर सार देश को य जोड़ लेते हो, अर भले मानसो, वह िकस
देश क भ ता ह?
ा य का उ े य और धम
पहले यह समझना होगा िक ऐसा कोई गुण नह ह िजस पर िकसी रा िवशेष का एकािधकार हो, तब िजस
कार एक य म िकसी गुण क धानता होती ह, वैसा ही रा क संबंध म भी होता ह।
हमार देश म मो ा क इ छा धान ह, पा ा य देश म धम क धानता ह। हम मु चाहते ह, वे धम
चाहते ह। यहाँ “धम” श द का यवहार मीमांसक क अथ म आ ह। धम या ह? धम वह ह जो इस लोक और
परलोक म सुख-भोग क वृि दे। धम ि यामूलक होता ह। वह मनु य को रात-िदन सुख क पीछ दौड़ाता ह तथा
सुख क िलए काम कराता ह।
मो िकसे कहते ह? मो वह ह जो यह िसखाता ह िक इस लोक का सुख भी गुलामी ह तथा परलोक का भी
सुख वही ह। इस कित क िनयम क बाहर न तो यह लोक ह और न परलोक ही। यह तो ऐसी ही आ जैसे लोह
क जंजीर क थान पर सोने क जंजीर हो। िफर दूसरी बात यह ह िक सुख कित क िनयमानुसार नाशवान ह, वह
अंत तक नह ठहरगा। अतएव मु क ही चे ा करनी चािहए तथा मनु य को कित क बंधन क पर जाना
चािहए, दास व म रहने से काम नह चलेगा। यह मो -माग कवल भारतवष म ह, अ य नह । इसिलए जो आपने
सुना ह िक मु पु ष भारतवष म ही ह, अ य नह , वह ठीक ही ह। परतु साथ ही साथ यह भी ठीक ह िक आगे
चलकर कभी दूसर देश म भी ऐसे लोग ह गे और हमार िलए यह आनंद का िवषय ह।

धमानु ान से िच शु
पहले ही कह चुका िक “धम” कायमूलक ह। धािमक य का ल ण ह, सदा कमशीलता। इतना ही या,
अनेक मीमांसक का मत ह िक वेद क िजस संग म काय करने क िलए नह कहा गया ह, वह संग वेद का अंग
ही नह ह।
“आ नाय य ि याथ वा आनथ य अतदथाना ।”
“ कार का यान करने से सब काम क िस होती ह, ह रनाम का जप करने से सब पाप का नाश होता
ह”, “शरणागत होने पर सब पाप का नाश होता ह” शा क ये सारी बात स य अव य ह, िकतु देखा जाता ह
िक लाख मनु य कार का जप करते ह, ह रनाम म मतवाले होते ह, रात-िदन “ भु जो कर” ही कहते ह, पर
उ ह िमलता या ह? तब समझना होगा िक िकसका जप यथाथ ह? िकसक मुँह म ह रनाम व वत अमोघ ह?
कौन सचमुच शरण म जा सकता ह? कम करक ही िजसक िच शु होती ह, वही पु ष धािमक ह।
येक जीवन श - काश का एक-एक क ह। पूव कम-फल से वह श संिचत ई ह, उसी को लेकर हम
लोग जनमे ह। जब तक वह श काय प म कािशत नह होती, तब तक कहो तो कौन थर रहगा, कौन भोग
का नाश करगा? तब दुःखभोग क अपे ा या सुखभोग अ छा नह ? ककम क अपे ा या सुकम अ छा नह ?
पू यवाद ीराम साद ने कहा ह, “अ छी और बुरी दो बात ह, उनम से अ छी बात करना ही उिचत ह।”

िहदू- ांत
तीन वतमान जाितय क तुलना क िजये, िजनका इितहास आप थोड़ा ब त जानते ह, वे ह ांसीसी, अं ेज और
िहदू। राजनीितक वाधीनता ांसीसी जातीय च र का मे दंड ह। ांसीसी जा सब अ याचार को शांत भाव से
सहन करती ह। कर क भार से पीड़ा दीिजये, िफर भी चूं तक न करगी। सार देश को जबरद ती सेना म भत कर
डािलये, पर कोई आपि न क जाएगी। िकतु जब कोई उनक वाधीनता म ह त ेप करता ह, तब सारी जाित
पागल क तरह ितघात करने लगती ह। कोई य िकसी क ऊपर जबरद ती अपना म नह चला सकता,
यही ांसीिसय क च र का मूलमं ह। “ ानी, मूख, धनी, द र , उ वंशीय, नीच वंशज, सभी को रा य क
शासन और सामािजक वाधीनता म समान अिधकार ह।” इसक ऊपर हाथ डालने वाले को ही इसका फल भोगना
होगा।
अं ेज क च र म यवसायबु तथा आदान- दान क धानता ह। अं ेज क असल बात ह समान भाग,
यायिवभाग। अं ेज, राजा और कलीन जाित क अिधकार को नतम तक होकर वीकार कर लेते ह, परतु यिद गांठ
म से पैसा बाहर करना हो तो वे िहसाब मांगते ह। राजा ह तो अ छी बात ह, उसका लोग आदर करगे; िकतु यिद
राजा पया चाह तो उनक आव यकता और योजन क संबंध म िहसाब-िकताब समझा-बुझा जाएगा, तब कह
देने क बारी आयेगी। राजा म बलपूवक पया इक ा करने क इ छा से वहाँ िव लव खड़ा कर िदया, उन लोग
ने राजा को मार डाला।
िहदू कहते ह िक राजनीितक और सामािजक वाधीनता ब त अ छी चीज ह, िकतु वा तिवक चीज पारमािथक
वाधीनता अथा मु ह। यही जातीय जीवन का उ े य ह। वैिदक, जैन, बौ , ैत, िविश ा ैत और
अ ैत सभी इस संबंध म एकमत ह। इसम हाथ न लगाना, नह तो सवनाश हो जाएगा। इसे छोड़कर और चाह जो
कछ करो, िहदू चुप रहगे। लाठी मारो, काला कहो, सव व छीन लो, इससे आता-जाता कछ नह । िकतु उस
दरवाजे को छोड़ दो। यही देखो, वतमानकाल म पठान लोग आते-जाते थे, कोई थर होकर रा य नह कर सका,
य िक िहदु क धम पर वे बराबर आघात करते रह। परतु मुगल ने इस थान पर आघात नह िकया। िहदू ही तो
मुगल क िसंहासन क आधार थे। जहाँगीर, शाहजहाँ, दारा िशकोह आिद सभी क माताएं िहदू थ । और देखो य ही
खूसट औरगजेब ने जैसे ही पुनः इसी थान पर आघात िकया वैसे ही इतना बड़ा मुगल रा य व न क तरह हवा
हो गया। अं ेज का यह सु ढ़ िसंहासन िकस चीज क ऊपर िति त ह, कारण यही ह िक िकसी भी अव था म
अं ेज उस धम म ह त ेप नह करते। पादरी-पुंगव ने थोड़ा-ब त हाथ डालकर ही तो स 1857 म हगामा
उप थत िकया था। अं ेज जब तक इसको अ छी तरह समझते तथा इसका पालन करते रहगे तब तक उनक िलए
“त त ताज अचल राजधानी”। िव ब दश अं ेज भी इस बात को समझते ह। लॉड रॉब स क “भारतवष म 41
वष” नामक पु तक पढ़ देिखये।
अब आप समझ सकते ह िक उस रा सी का ाण पखे कहाँ ह? वह धम म ह। उसका नाश कोई नह कर
सका, इसीिलए इतनी आपद-िवपद को झेलते ए भी रा अभी तक बचा ह। अ छा, एक भारतीय िव ा ने पूछा
िक इसी रा क ाण को धम म रखने क या आव यकता ह? इसे सामािजक या राजनीितक वतं ता म य न
रखा जाए, जैसा िक दूसर रा म होता ह। ऐसी बात कहना तो बड़ा सरल ह। यिद तक करने क िलए यह मान ल
िक धम-कम सब िम या ह, झूठ ह, तो या होगा, इस पर िवचार क िजये। अ न तो एक ही होती ह, पर काश
िविभ होता ह। उसी एक महाश का ांसीिसय म राजनीितक वाधीनता क प म, अं ेज म वािण य-
िव तार क प म, और िहदु क दय म मु -लाभ क इ छा क प म िवकास आ ह। िकतु इसी महाश
क ेरणा से कई शता दय से नाना कार क सुख-दुःख को झेलते ए ांसीसी और अं ेजी च र गिठत आ ह
और उसी क ेरणा से लाख शता दय क आवतन म िहदु क जातीय (अथा रा ीय) च र का िवकास आ
ह। अब म जानना चाहता िक लाख वष क हमार वभाव को छोड़ना सरल ह अथवा दो सौ, पांच सौ वष क
आपक िवदेशी वभाव को छोड़ना? अं ेज धम ाण य नह हो जाते, वे मारकाट छोड़कर शांत-िश होकर य
नह बैठते?
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भारत क जातीय जीवन क ित ा
वा तिवक बात यह ह िक जो नदी, पहाड़ से एक हजार कोस नीचे उतर आयी हो, वह या िफर पहाड़ पर
जाएगी या जा सकगी? यिद वह जाने क चे ा भी कर तो प रणाम यही होगा िक इधर-उधर जाकर वह सूख
जाएगी। वह नदी चाह जैसी हो, समु मे जाएगी ही, चाह दो िदन पहले या दो िदन बाद, दो अ छी जगह म होकर
अथवा दो गंदी जगह से गुजरकर। यिद हमार इस दस हजार वष क जातीय जीवन म भूल ई ह तो इस समय अब
तो और कोई उपाय ह ही नह । इस समय यिद नये च र का गठन करने लगे तो मरने क िसवा और कोई चारा
नह ।
िकतु यिद कोई ऐसा सोचे िक यह आपादम तक भूल ह, तो मा करना यह िनबु य क बात ह। पहले देश-
िवदेश म जाओ, अनेक देश क अव था को अ छी तरह परखो, अपनी आँख से देखो, दूसर क आँख से नह ,
िफर यिद म त क हो तो उन पर िवचार करो, िफर अपने शा और पुराने सािह य को पढ़ो और सम त भारत क
देश-देशांतर को अ छी तरह देखो, बु मान- ानी क ि से देखो, दज क बेवकफ क नजर से नह , तब देख
पाओगे िक रा ठीक िजंदा ह, ाण क धड़कन चल रही ह, ऊपर कवल राख क परत जम गई ह। और देखोगे
िक इस देश का ाण धम ह, भाषा धम ह तथा भाव धम ह। आपक राजनीित, समाजनीित, रा ते क सफाई,
लेगिनवारण, दुिभ -पीि़डत को अ दान आिद यह सब िचरकाल से इस देश म जैसे आ ह, वैसी ही होगा,
अथा धम क ारा यिद होगा तो होगा, अ यथा नह । आपक रोने-िचलाने का कछ भी असर न होगा।

मनु य बिनये
मेर िम ो! पहले मनु य बिनये, तब आप देखगे िक वे सब बाक चीज धड़धड़ाते वयं आपका अनुसरण करगी।
आवारा क जैसे पर पर क घृिणत ेष भाव को छोि़डये और सदु े य, सदुपाय, स साहस एवं स ीय का
अवलंबन क िजये। मनु य योिन म यिद ज मे हो तो एक िनशानी रख जाइये।
तुलसी आयो जग म, जग हसे तुम रोये।
ऐसी करनी कर चलो, आप हसे जग रोये।।
ऐसा हो, तभी तो तुम मनु य हो, अ यथा तुम कसे मनु य हो?

पा ा य जाित क गुण
मेर िम ो! एक बात और समझो। हम अव य ही अ या य जाितय से ब त कछ सीखना ह। जो मनु य कहता ह
िक हम कछ नह सीखना ह, समझ लो िक वह मृ यु क राह पर ह। जो जाित कहती ह िक हम सव ह, उसक
अवनित क िदन ब त िनकट ह। “िजतने िदन जीता र , उतने िदन सीखूं”! िफर भी इतना देखो िक चीज को अपने
सांचे म ढाल लेना ह। अपने असल त व को सदा बचाकर िफर बाक चीज सीखनी ह गी। खाना तो सब देश म
एक ही ह, पर हम पैर समेटकर बैठकर खाते ह और यूरोपीय पैर लटकाकर बैठ ए खाते ह। अब मान लो िक म
उ ह क तरह पका खाना खाता , तो या मुझे भी उ ह क तरह टांग लटकाकर बैठना पड़गा? ऐसा होने से तो
िन य ही मेरी टांग यम क गृह क ओर थान करगी। इस ती ण वेदनाबोध से जो ाण जाएगा, उसका या
होगा? इसिलए हम उनका भोजन पैर समेटकर ही खाना होगा। इसी कार जो कछ भी िवदेशी बात सीखनी ह गी,
उ ह अपनी बनाकर, पैर समेटकर, अपने रा ीय च र क र ा कर, तब सीखनी ह गी। म जानता िक या
कपड़ा मनु य हो जाता ह अथवा मनु य कपड़ा पहनता ह? श मान पु ष चाह जैसी पोशाक य न पहने, लोग
उसका आदर करगे, पर मेर जैसे अहमक को धोबी क गठरी कधे पर लेकर िफरने से भी कोई नह पूछता।
अब भूिमका ब त बड़ी हो गयी। पर इसे आरभ से दोन जाितय क तुलना करना सरल हो जाएगा। वे भी अ छ
ह और हम भी अ छ ह। “काको बंदौ, काको िनंदौ, दोन प ा भारी।” हाँ, यह अव य ह िक भले क भी ेिणयां
ह।
हमार िवचार से तीन चीज से मनु य का संगठन होता ह, शरीर, मन और आ मा। पहले शरीर क बात लीिजये,
जो सबसे बाहरी चीज ह।
पहले देिखये, शरीर-शरीर म िकतना भेद ह, नाक, मुँह, गढ़न, लंबाई-चौड़ाई, रग, कश आिद म िकतनी
िविभ ताएं ह।

वणभेद का कारण
आधुिनक पंिडत का िवचार ह िक रग क िभ ता वणसंकरता से उप थत होती ह। गम देश और ठड देश क
भेद से कछ िभ ता ज र होती ह; िकतु काले और गौर का असली कारण पैतृक ह। ब त ठड देश म भी काले
रग क जाितयां देखी जाती ह एवं अ यंत उ ण देश म भी खूब गोरी जाित बसती ह। कनाडा िनवासी अमे रका क
आिदम मनु य और उ री ुव देश क िनवािसय ए क मो इ यािद का रग खूब काला ह, िफर महािवषुव -रखा पर
थत ीप म भी गोर रग क आिदम जाितय का वास ह, बोिनयो, सेिलिब इ यािद ीप समूह इसक उदाहरण
ह।

मौिलकता का अभाव
यह संसार ह, न तेरा, न मेरा। या कोई िकसी क ती ा करता ह? वे दस ने से देखते ह और दो सौ हाथ से
कड़ी मेहनत कर रह ह। और हम लोग कहते ह, “गोसाईजी ने पोथी म जो नह िलखा, वह कभी नह क गा”,
करने क श भी चली गयी ह। अ क िबना हाहाकार मच रहा ह। पर दोष िकसका? इसक ितकार क चे ा
तो कछ ह नह, खाली ची कार हो रहा ह। बस। घर क कोसे से बाहर िनकलो तो सही, दुिनया या ह, अ छी तरह
से देखो न। अपने आप बु आयेगी। देवासुर का िक सा तो आप जानते ही ह। देवता आ तक थे, उ ह आ मा म
िव ास था, ई र और परलोक म िव ास करते थे। असुर का कहना था िक इहलोक, पृ वी का भोग करो, इस
शरीर को सुखी रखो। इस समय यह बात नह हो रही िक देवता अ छ या असुर अ छ। पर देखता िक पुराण म
विणत असुर ही तो मनु य क तरह क थे, देवता तो अनेक अंश म हीन थे। अब यिद यह समझो िक तुम देवता
क तथा पा ा य देशवासी असुर क संतान ह, तो ा य और पा ा य का अथ अ छी तरह समझ पाओगे।

शरीर शु
पहले शरीर क ही बात लो। बा और आ यंत रक शु क पिव ता ह। िम ी, जल आिद ारा शरीर शु
होता ह, अ छी बात ह। दुिनया क ऐसी कोई जाित नह ह िजसका शरीर िहदु क स श साफ हो। िहदु क
अित र और िकसी भी जाित क लोग जलशौचािद नह करते। चीिनय ने पा ा य को कागज- यवहार करना
िसखाया ह, कछ तो बचाव आ। ान पूिछये तो नह क बराबर ह। अब भारत म आने क कारण अं ेज ने अपने
देश म ान करने क था चलायी ह। तो भी जो िव ाथ िवलायत से पढ़कर लौट ह, उनसे पूिछये िक वहाँ ान
करने म िकतना क ह। जो लोग ान करते ह, अथा स ाह म एक िदन वह भी, वे उसी िदन भीतर पहनने का
कपड़ा (गंजी, अधबिहयां आिद) बदलते ह। अव य ही अब कछ अमीर लोग िन य ान करते ह। अमे रक कछ
अिधक करते ह। जमनी वाले कभी-कभार, ांसीसी आिद तो क मनकाले भी नह ! पेन, इटली आिद गरम देश
ह, वे लोग तो और भी नह करते, ढर सारा लहसुन खाकर िदन-रात पसीने से लथपथ रहते ह, पर सात ज म
जल पश भी नह होता। उनक शरीर क दुगध से भूत क भी चौदह पुरखे भाग जाएंगे, भूत तो ब े ह! उनक ान
कर या अथ ह? मुँह, िसर, हाथ धोना, जो अंग बाहर िदखलायी पड़ते ह। और या! पै रस, पै रस स यता क
राजधानी, रग ढग भोग-िवलास का भू वग पे रस, िव ा-िश प का क पे रस, उसी पे रस म एक बार मेर एक बड़
धनी िम बुलाकर ले गये। एक ासाद क समान होटल म उ ह ने मुझे ठहराया। राजा जैसा खाना िमलता था,
िकतु ान का नाम भी नह था। दो िदन चुपचाप सहा, िफर नह सहा गया। तब िम से कहना पड़ा, भाई! तु हारा
यह राजभोग तु ह ही मुबारक हो। अब जान बचे तो लाख पाऊ, यह भीषण गम , और ान करने का कोई
िठकाना ही नह ; पागल क े जैसी मेरी दशा हो रही ह।” तब मेर िम ब त दुःखी होकर नाराजगी से बोले, “ऐसे
होटल म नह रहगे, चलो अ छी जगह खोज ल।”
बारह धान होटल देखे गये, पर ान करने का बंध कह नह था, अलग ान करने क थान थे, जहाँ एक
बार चार-पांच पया देकर ान िकया जा सकता था। ह र बोल ह र! उसी िदन शाम को मने एक अखबार म पढ़ा
िक एक बुि़ढया ान करने क िलए हौज म बैठी और वह मर गयी! अब देखो, जीवन म थम बार ही बुि़ढया क
अंग का जल से पश होते ही बुि़ढया पहाड़ खा गई! इस बात म कोई अितशयो नह ह। सवाले तो सवथा
असल ले छ ह, ित बत से ही ले छता आरभ हो जाती ह। अमे रका क येक िनवास-गृह म अव य ही
ानागार और नल रहता ह।
िकतु अंतर देिखये, हम िकसिलए ान करते ह, अधम क भय से, पा ा य लोग व छता क िलए हाथ-मुँह
धोते ह। िसफ ऊपर पानी उड़ल लेने से ही हमारा काम चल जाता ह िफर चाह तेल ही िचप-िचप कर तथा मैल भी
लगी रह। और देखा, दि णा य भाई लोग ान करक इतना लंबा-चौड़ा ितलक लगाते ह िक उसे झांवे से भी
िघसकर साफ करना भी जरा टढ़ी खीर ह। हमार ान करने क था बड़ी सरल ह, कह भी डबक मार लेने से
काम चल जाता ह, िकतु पा ा य देश म ऐसा नह ह। उ ह एक गांठ कपड़ा ही खोलना पड़ता ह, िफर उनक
(कपड़ क) बंधन का तो कहना ही या? हम शरीर िदखलाने म कोई ल ा नह ह, उनक िलए यह ह। िफर भी,
पु ष पु ष म िकिचत भी संकोच नह ह, बाप बेट क सामने िनव हो जाए तो कोई दोष नह , पर य क सामने
िसर से पैर तक कपड़ा पहनना ही होगा।
“बिहराचार” अथा साफ-सुथरा रहना अ या य आचार क तरह कभी कभी अ याचार या अनाचार हो जाता ह।
यूरोिपयन कहते ह िक शरीर-संबंधी सब काय ब त गु प से करने चािहए, बात ब त ठीक ह। शौच आिद क
बात दूर रह, लोग क सामने थूकना भी ब त अिश ता ह। खाकर सबक सामने मुँह धोना बड़ी ल ा क बात ह
य िक तब क ा भी करना पड़ता ह। लोकल ा क भय से खा-पीकर चुपचाप मुँह प छकर बैठ जाइये, इसका
प रणाम दांत का सवनाश ह। यह ह स यता क भय से अनाचार। दूसरी ओर हम लोग रा ते म बैठकर दुिनया क
लोग क सामने मुँह धोते ह, दांत साफ करते ह, क ा करते ह, यह अ याचार ह। अव य ही ये सब काम आड़ म
करने चािहए, िकतु न करना भी अनुिचत ह।
िफर, देश-भेद क कारण जो काय अिनवाय ह, उ ह समाज सह लेता ह। हमार जैसे गरम देश म भोजन करने क
समय हम आधा घड़ा पानी पी डालते ह, िफर हम न डकार तो या कर? िकतु पा ा य देश म डकारना ब त
अस य काम ह। पर खाते खाते जेब से माल िनकालकर यिद नाक साफ क जाए, तो कोई हज नह । िकतु हमार
देश म यह बड़ी घृिणत बात ह। ठड देश म बीच बीच म नाक साफ िकये िबना बैठा ही नह जा सकता।
हम लोग मैले से अ यंत घृणा करते ए भी ब धा मैले रहते ह। हमको मैले से इतनी घृणा ह िक िजसने मैला
छआ उसे ान करना पड़गा। इसी भय से दरवाजे पर मैले तूपाकित को हम सड़ने देते ह। िसफ यान इस बात
का रहता ह िक हम उसे छते तो नह । पर इधर जो नरक-कड का वास होता ह उसका या? एक अनाचार क भय
से दूसरा महा घोर अनाचार! एक पाप क बचने क िलए दूसर गु र पाप करते ह। जो अपने घर म कड़ का ढर
रखता ह, वह अव य ही पापी ह, इसम संदेह ही या ह। उसका दंड भोगने क िलए उसे न तो दूसरा ज म ही लेने
क आव यकता होगी और न ब त देर तक ठहरना ही पड़गा।

आहार क तुलना
हम लोग जैसा सफाई से रसोई पकाना कह भी नह ह। परतु िवलायती भोजन-प ित क तरह हमार तरीका
साफ नह ह। हमारी रसोइन ान करती ह, कपड़ा बदलती ह, बतन-भांड़ा, चू हा-चौका सब धो-मांजकर साफ
करती ह; नाक, मुँह या शरीर म हाथ छ जाने से उसी समय हाथ धोकर तभी खा पदाथ म हाथ लगाती ह।
िवलायती रसोइन क तो चौदह पुरख ने भी कभी ान नह िकया होगा। पकाते पकाते चखती ह और िफर उसी
चमचे को हडी म डबोती ह। वमन क नकल करते करते माल िनकालकर फ करक िसनकती ह और िफर उसी
हाथ से मैदा सानती ह। पैखाने से आकर, शौच म कागज का यवहार करक हाथ धोने का नाम भी नह , बस उसी
हाथ से भोजन पकाने लग जाती ह। िकतु वह पहनती ह चमचमाते सफद व और टोपी। एक खूब बड़ लकड़ी क
नांद म नंगे होकर ढर सार मैदे पर नाचते ह, मैदा साना जा रहा ह ना। गम का मौसम, सार शरीर का पसीना पैर से
होकर झरझर बहकर उसी मैदे म जाता ह। िफर जब उसक रोटी तैयार ई, तब दूध क झाग जैसे साफ तौिलये पर
चीनी क बतन म स त होकर साफ च र िबछ ए टबल पर, साफ कपड़ पहने ए, कहनी तक हाथ म सफद
द ताना चढ़ाये ए नौकर लाकर सामने रख देता ह। कह कोई चीज हाथ से छनी न पड़, इसीिलए कहनी तक
द ताना होता ह।
हम लोग क यहाँ ान िकये ए ा ण-रसोइया, साफ-सुथर बतन म साफ-सुथरी हडी म शु होकर पकाते
ह और गोबर से िलपी ई जमीन पर अ - यंजन से भरी थाली रखते ह; ा ण-रसोइये क कपड़ से खुरचने पर
मैल िनकल आएगी। ऐसा भी हो सकता ह िक कले का प ा फटा होने से िम ी, मैला, गोबर तथा तरकारी का रस
एकाकार होकर एक अपूव आ वाद उप थत कर।
हम लोग अ छी तरह से ान करक, तेल से सना कपड़ा पहनते ह और यूरोप म मैले शरीर पर िबना ान िकये
खूब साफ-सुथरी पोशाक पहनी जाती ह। इसे ही अ छी तरह समझो, यह पर जमीन-आसमान का अंतर ह, िहदु
क वह जो अंत ि ह, वह सब काम क ह। िहदू गुदड़ी म कोहनूर रखते ह, िवलायतवाले सोने क बॉ स म
िम ी का ढला रखते ह। िहदु का शरीर साफ होने से ही काम चल जाता ह, कपड़ा चाह जैसा ही य न हो।
िवलायतवाल का कपड़ा साफ होने से ही काम चलता ह, चाह शरीर पर मैला ही य न रह। िहदु का घर- ार
धो प छकर साफ रहता ह, उसक बाहर चाह नरक-कड ही य न हो। िवलायतवाल क फश पर झकझकाती
कापट (एक कार क दरी) पड़ी रहती ह, मैला सब ढका रहने से ही काम चल जाता ह। िहदु का पनाला रा ते
पर रहता ह, दुगध से कोई अंतर नही पड़ता। िवलायतवाल का पनाला रा ते क नीचे रहता ह, जो आं र
(टाइफायड) का घर ह। िहदू भीतर साफ रखते ह। िवलायती बाहर साफ रखते ह।
चािहए या? साफ शरीर पर साफ कपड़ पहनना। मुँह धोना, दांत मांजना, सब चािहए, पर गोपन म। घर साफ
चािहए। रा ता घाट भी साफ हो। साफ रसोइन, साफ हाथ से भोजन पक, साफ सुथर मनोरम थान म साफ िकये
ए बतन म खाना चािहए। “आचारः परमो धमः”।
आचार पहला धम ह, आचार क पहली बात ह सब कार से साफ-सुथरा रहना। आचार से या कभी धम
होता ह? अनाचारी का दुःख नह देखते हो, देखकर भी नह सीखते हो? इतनी महामारी, हजा, मले रया होता ह,
इसम िकसका दोष ह? हमारा ही दोष ह, हम महा अनाचारी ह।
आचार शु होने से मन शु होता ह, मन शु होने से आ मासंबंधी अचला मृित होती ह, इस शा वा या
को हमार देश क सभी सं दाय ने माना ह। िफर भी शंकराचाय क मत से आहार श द का अथ “इि य” और
रामानुजाचाय क मत से “भो य य” ह। सववादी-सम त िस ांत यही ह िक दोन ही अथ ठीक ह। िवशु
आहार न होने से सब इ यां ठीक ठीक काम कसे करगी? खराब आहार से सब इ य क हण-श का हास
और िवपयय हो जाता ह, यह बात सब को िविदत ह। अजीण दोष से एक चीज को दूसरी समझकर म होता ह
और आहार क अभाव से ि आिद श य का हास होता ह, यह भी सब जानते ह। इसी तरह कोई िवशेष भोजन
िकसी िवशेष शारी रक एवं मानिसक अव था को उप थत करता ह, यह भी कई बार िस हो चुका ह। हमार
समाज म खा -अखा क बार म जो इतनी माथाप ी ह, उसक जड़ म भी यही त व ह, य िप हम अनेक िवषय
मु य व तु को भूलकर िसफ िछलक को ही लेकर ब त कछ उछलकद मचाते ह।
रामानुजाचाय ने खा पदाथ क संबंध म तीन दोष से बचने क िलए कहा ह। जाित-दोष, अथा जो दोष खा
पदाथ का जाितगत हो, जैसे याज, लहसुन आिद उ ेजक पदाथ खाने से मन म अ थरता आती ह अथा बु
होती ह। आ य-दोष य िवशेष क पश से आता ह। दु लोग का अ खाने से ही दु बु होगी ही
और भले आदमी का अ खाने से स ु इ यािद। िनिम -दोष, अथा मैला, दूिषत, कड़, कशयु अ खाने
से भी मन अपिव होता ह। इनम से जाित-दोष और िनिम -दोष से बचने क चे ा सभी कर सकते ह, िकतु
आ य-दोष से बचना सबक िलए सहज नह ह। इसी आ य-दोष से बचने क िलए ही हमार देश म छआछत का
िवचार ह। तथािप अनेक थान पर इसका उ टा अथ लगाया जाता ह और असली अिभ ाय न समझने से यह एक
िकभूतिकमाकार (अथा अजीबोगरीब एवं क सत) कसं कार भी हो गया ह। यहाँ लोकाचार को छोड़कर
लोकमा य महापु ष क ही आचार हणीय ह। ीचैत यदेव आिद जग ु क जीवन-च र को पढ़कर देिखये,
वे लोग इस संबंध म या यवहार कर गये ह। जाित-दोष से दूिषत अ क संबंध म भारतवष जैसा िश ा- थल
पृ वी पर इस समय और कह नह ह। सम त संसार म हमार देश क स श पिव य का आहार करने वाला
और दूसरा कोई भी देश नह ह। िनिम -दोष क संबंध म इस समय बड़ी भयानक अव था उप थत हो गयी ह।
हलवाइय क दुकान, बाजार म खाना, आिद सब िकतना महा अपिव ह, देखते ही हो। अनेक कार क िनिम -
दोष से दूिषत वहाँ क कपड़ और सामि यां होती ह। इसका फल यही ह, यही जो घर घर म अजीण होता ह वह
इसी हलवाई क दुकान और बाजार म खाने का फल ह। यह जो पेशाब क बीमारी का कोप ह, वह भी हलवाई
क दुकान का फल ह। गांव क लोग को तो अजीण और पेशाब क इतनी बीमारी नह होती। इसका धान कारण
ह पूरी, कचौड़ी आिद “िवषल ” का अभाव। इस बात को आगे चलकर अ छी तरह क गा।

खा पदाथ
तली ई चीज असली जहर ह। हलवाई क दुकान यम का घर ह। घी-तेल गरम देश म िजतना कम खाया जाए,
उतनी ही अ छा ह। घी क अपे ा म खन ज दी हजम होता ह। मैदे म कछ भी नह ह, देखने ही म सफद ह।
सम त गे का भाग िजसम हो वही आटा सुखा ह। हमार बंगाल देश क िलए अभी भी दूर क छोट छोट गांव म
जो सम त आहार का बंदोब त ह, वही शंसनीय ह। िकस ाचीन बंगाली किव ने पूरी-कचौड़ी का वणन िकया
ह? यह पूरी-कचौड़ी तो प म से आयी ह, वहाँ भी लोग कभी-कभार ही उ ह खाते ह, हर रोज “प रसोई”
खानेवाल को तो मने नह देखा ह। मथुरा क क तीबाज चौबेजी पूरी-ल पसंद करते ह, दो ही चार वष म चौबे
हाजमे का सवनाश होता ह, और चौबेजी चूरण खा-खाकर मरते ह।
गरीब को भोजन नह जुटता, इसिलए वे भूखे ही मरते ह और धनी अखा खाकर अनाहार मरते ह। पेट म
अंटसंट भरने क अपे ा उपवास ही अ छा ह। हलवाई क दुकान म खाने क व तु म खा (अथा पुि कर)
कछ भी नह ह, वहाँ तो एकदम उ टा ह, िवष, िवष, िवष। पहले लोग कभी-कभार इस पाप को खाते थे; इस
समय तो शहर क लोग, िवशेषकर वे परदेशी जो शहर म वास करते ह, उनका िन य भोजन यही ह। इनसे अजीण
होकर यिद अकाल मृ यु हो जाए, तो इसम आ य ही या ह? भूख लग जाने पर भी इस कचौरी-जलेबी को नाले
म फककर एक पैसे क लाई मोल लेकर खाइये। िकफायत भी होगी और कछ खाया ऐसा भी होगा। भात, दाल,
आट क रोटी, मछली, तरकारी और दूध यथे भोजन ह, िकतु दाल दि िणय जैसे खाना उिचत ह अथा दाल का
िसफ पानी ही लेना और बाक सब गाय को दे देना चािहए। यिद पैसा हो तो मांस भी खा सकते हो, िकतु िभ -
िभ कार क प मी मसाल को िबना िमलाये मांस खाना चािहय। मसाला खाने क चीज नह ह, कवल आदत
क ही कारण हम उसे खाते ह। दाल ब त पुि कर खा ह। िकतु ब त देर म हजम होती ह। हरी मटर क दाल
ब त ही ज द हजम होती ह और खाने म भी ब त वािद होती ह। पे रस राजधानी म हरी मटर का, “सूप” ब त
िव यात ह। क ी मटर क दाल को खूब पकाकर िफर उसे पीसकर जल म घोल दो। िफर एक दूध छानने क
छ ी क तरह क तार क चलनी से छान लेने से ही भूसी वगैरह िनकल जाएगी। इसक बाद ह दी, िमच, धिनया,
जीरा, काली िमच तथा और जो चीज डालनी ह , उ ह डालकर छ क लेने से उ म, वािद सुपा य दाल बन
जाती ह। यिद मांसाहारी उसम मछली या बकर का िसर डाल दे तो वह वािद हो जाएगी।
देश म पेशाब क बीमारी क जो इतनी धूम ह, उसका अिधकांश कारण अजीण ही ह; यह दो चार आदिमय को
अिधक मानिसक तनाव से होती ह; बाक सब को बदहजमी से। खाने का अथ या पेट भरना ही ह? िजतना हजम
हो जाए, उतना ही खाना चािहए। त द का लटकना बदहजमी का पहला िच ह। सूख जाना या मोटा होना दोन ही
बदहजमी से ह। पैर का मांस लोह क तरह स त होना चािहए। पेशाब म चीनी या सफदी िदखलायी पड़ते ही
भौच होकर मत बैठ जाओ। वह सब हमार देश म कछ भी नह ह। उसे िकसी िगनती म ही मत लाना। भोजन
क ओर खूब यान दो िजससे अजीण न हो। जहाँ तक संभव हो, खुली हवा म रहो। खूब घूमो और प र म करो।
जैसे हो, छ ी लेकर बि का म क तीथया ा करो। ह र ार से पैदल 100 कोस चलकर पहाड़ चढ़कर
बि का म एक बार जाने और लौटने से ही वह पेशाब क बीमारी न जाने कहाँ भाग जाएगी। डॉ टर-फॉ टर को
पास मत फटकने दो। उनम से अिधकांश ऐसे ह िक “अ छा तो कर नह सकगा, खराब कर दूँगा िकतना दोगे,
बोलो”। हो सक तो दवा िबलकल मत खाओ। रोग से यिद एक आना मरते ह, तो औषिध खाकर पं ह आना मरते
ह। हो सक तो हर साल दुगापूजा क छ ी म पैदल घर जाओ। धनी होना और आलिसय का बादशाह बनना इस
देश म एक ही बात समझी जा रही ह। िजसको पकड़कर चलाना पड़, िखलाना पड़, वह तो जीिवत रोगी ह,
हतभा य ह। जो पूरी क परत को छीलकर खाते ह, वे तो मानो मर गये ह। जो एक सांस म दस कोस पैदल नह
चल सकता, वह आदमी नह , कचुआ ह। यिद रोग अकाल मृ यु बुला दे, तो कोई या करगा?
और िफर, वह जो पावरोटी ह वह भी िवष ही ह, उसको िबलकल मत छना। खमीर िमलाने से मैदा कछ का
कछ हो जाता ह। कोई खमीरदार चीज मत खाना। इस संबंध म हम लोग क शा म जो सब कार क खमीरदार
चीज क खाने का िनषेध ह, वह िबलकल ठीक ह। शा म जो कोई मीठी चीज ख ी हो जाए, उसे “सू ”
कहते ह। दही को छोड़कर इन सभी चीज क खाने का िनषेध ह। दही ब त ही उपादेय तथा अ छी चीज ह। यिद
पावरोटी खाना ही पड़ तो उसे दुबारा आग पर खूब सककर िफर खाओ। अशु जल और अशु भोजन रोग का
घर ह। अमे रका म इस समय जल-शु क बड़ी धूम ह। िफ टर जल क िदन अब लद गये। िफ टर तो जल को
िसफ छान देता ह, िकतु जो सब क टाणु रोग क जड़ ह। जैसे िक हजे और लेग क क टाणु तो य क य बने
रहते ह; यादातर तो वयं िफ टर इन सब क टाणु क ज मभूिम बन जाता ह। कलक े म जब पहले पहल
िफ टर िकये ए जल का चार आ तो कहते ह िक उस समय चार-पांच वष तक हजा इ यािद कछ नह आ।
इसक बाद िफर वही हालत हो गयी। अथा वह िफ टर ही वयं हजे क बीज का घर हो गया। िफ टर म तो
ितपाई पर तीन घड़ रखकर पानी साफ िकया जाता ह वह उ म ह। िकतु दो तीन िदन क बाद बालू और कोयले को
बदल देना चािहए या तपा लेना चािहए। और वह जो थोड़ी-सी िफटकरी डालकर गंगा तीर थ ाम म पानी को
साफ करने का ढग ह, वह सबसे अ छा ह। िफटकरी का चूण यथाश िम ी, मैला और रोग क बीज को धीर-
धीर नीचे बैठा देता ह। गंगाजल घड़ म भरकर थोड़ा िफटकरी का चूरा डालकर िमला करक जो हम यवहार म
लाते ह, वह तु हार िवलायती िफ टर-िम टर क चौदह पुरख क भी िसर म झा मारता ह, तथा नल क पानी क
बाप को भी दो सौ बार लानत देता ह, से कह अ छा ह। परतु जल को उबाल कर लेने से िनडर होकर यवहार
िकया जा सकता ह। िफटकरी से साफ िकये ए पानी को उबालकर ठडा करक यवहार म लाओ, िफ टर-िव टर
को नाले म फक दो। इस समय अमे रका म बड़ यं क सहायता से जल को भाप बना देते ह, िफर उसी भाप से
जल बनता ह। इसक बाद एक यं ारा उसक भीतर िवशु वायु िमलाते ह, वह वायु जल क भाप क समय
िनकल जाती ह। यह जल अ यंत शु ह। इस समय अमे रका क येक घर म इसी का चार ह।
हमार देश म िजनक पास दो पैसे ह, वे अपने बाल-ब को रोज पूरी-कचौरी, ल तथा िमठाई िखलायगे ही ।
भात रोटी िखलाना उनक िलए अपमान ह। इससे बाल-ब े ल ड़, तुंदैले असली जानवर नह ह गे तो और या
ह गे? इतनी बलवान अं ेज जाित भी तली ई पूरी-िमठाई आिद से डरती ह। ये लोग तो बफ ले देश म रहते ह।
िदन रात कसरत करते ह। हम लोग तो अ नकड म रहते ह, एक जगह से उठकर दूसरी जगह जाना नह चाहते
और खाना चाहते ह, पूरी-कचौरी, िमठाई, घी म और तेल मे तली ई। पुराने जमाने म गाँव क जम दार सहज म
दस कोस घूम आते थे, दो कौड़ी “कई” मछिलयां कांट समेत चबा जाते थे और सौ वष जीत रहते थे। उनक
लड़क-ब े कलक े आकर आँख पर च मा लगाते ह, पूरी-कचौरी खाते ह, रात-िदन गाड़ी पर सवार रहते ह और
पेशाब क बीमारी होने से मरते ह; कलकितया होने का यही फल ह। और सवनाश करते ह ये मन स डॉ टर और
वै । वे सव ह, औषिध क भाव से सबकछ कर सकते ह। पेट म थोड़ी गम ई तो देदी एक दवा। ये िनक मे
वै यह भी नह कहते िक दवा छोड़कर दो कोस टहल आओ।
मने नाना देश देखे ह, नाना कार क भोजन भी िकये ह। तो भी हम लोग क भात, दाल, रसेदार तरकारी,
मसालेदार सूखी स जी, कड़वी स जी, कले क फल क भुनी ई सूखी स जी आिद क िलए पुनज म लेना भी कोई
बड़ी बात नह ह। दांत रहने पर भी तुम लोग दांत का मह व नह समझते, अफसोस तो यही ह। खाने म या अं ेज
क नकल करनी होगी, उतना पया कहाँ ह? इस समय हमार बंगाल देश क िलए यथाथ उपयोगी भोजन ह पूव
बंगाल का भोजन। वह उपादेय, पुि कर और स ता ह, िजतना हो सक उसी क नकल करो। िजतना प म
(बंगाल) क ओर बढ़ोगे, उतना ही खराब ह। अंत म आधे सांथाली, बीरभूम, बांकड़ा िजल म भोजन ह, उड़द क
दाल तथा मछली क (ख ी) चटनी। तुम कलक े क लोग, वह जो एक सवनाशी मैदे क िपंड को िम ी वाले
(मैल)े हाथ से सानने वाले हलवाई क दुकान क प म सवनाशी फदा खोलकर बैठ हो, उसक मोिहनी-श क
फर म पड़कर बीरभूम, बांकड़ा ने लाई को दामोदर म बहा िदया ह, उड़द क दाल उन लोग क ग म फक दी
ह और पो ता से दीवाल को लीप िदया ह। ढाका और िव मपुरवाले भी “ढाई” मछली, कछए आिद को जल म
बहाकर स य” हो गये ह। वयं तो स यानाश ए ही हो, अब सार देश को न कर रह हो, यही तो हो तुम बड़
स य शहर क लोग। लानत ह तुमको! वे लोग भी इतने अहमक ह िक कलक े क गंदी चीज खाकर सं हणी और
पेिचश क बीमारी से मरते ह। तब भी चूं नह करते िक ये सब चीज हजम नह हो रह । उ ट कहगे िक हवा म ही
नमी ह और वह खारी ह!! िकसी कार उन सब लोग को शह रया बनना ही पड़गा।

पा ा य लोग का आहार
खाने-पीने क संबंध म मोटी बात तो तुम लोग ने सुनी। इस समय पा ा य देशवासी या खाते ह और उनक
आहार म मशः कसा प रवतन आ ह, वह भी अब हम देखगे।
गरीबी क अव था सभी देश का खा िवशेषकर अनाज ही रहता ह। साग-तरकारी, मछली-मांस भोग-िवलास
म शािमल ह और चटनी क तरह यव त होते ह। िजस देश म िजस अ क पैदावार अिधक होती ह, वहाँ क
गरीब का वही भोजन ह, दूसरी सब चीज ासंिगक ह। िजस कार बंगाल, उड़ीसा, म ास और मलाबार क िकनार
पर भात ही धान खा ह, उसक साथ कभी कभी दाल, तरकारी, मछली, मांस आिद चटनी क तरह खाया जाता
ह।
भारतवष क अ या य सब देश म संप लोग का भोजन गे क रोटी और भात ह। सवसाधारण लोग नाना
कार क अ , बाजरा, म आ, ार, मकई आिद क रोिटयां खाते ह।
साग-तरकारी-दाल, मछली-मांस आिद को सार भारतवष म इसी रोटी या भात को वािद बनाने क िलए
यवहार म आते ह, इसीिलए उनका नाम यंजन पड़ा ह। यहाँ तक िक पंजाब, राजपूताना और दि णा य म संप
मांसाहारी लोग भी, यहाँ तक िक राजे भी यिद िन य नाना कार क मांस का भोजन करते ह, िफर भी उनका धान
खा रोटी या भात ही ह। जो य आध सेर मांस रोज खाता ह, वह अव य ही उसक साथ एक सेर रोटी खाता
ह।
पा ा य देश म गरीब देश तथा धनी देश म गरीब लोग का धान भोजन रोटी और आलू ही ह। मांस तो
चटनी क तरह कभी कभी िमल जाता ह। पेन, पुतगाल, इटली आिद उ ण धान देश म अंगूर अिधक मा ा म
उ प होता ह और अंगूरी-शराब बड़ी स ती िमलती ह। उन शराब म नशा नह होता (अथा जब तक कोई पीपा-
भर न पी ले तब तक उसे नशा न होगा, उतना कोई पी भी नह सकता) और वह ब त पुि कर खा ह। इसीिलए
उन देश क गरीब लोग मछली-मांस क जगह इसी अंगूर क रस से मजबूत होते ह। स, वीडन, नॉव भृित
उ री देश म गरीब लोग का धान आहार ह “राई” नामक अ क रोटी और सुखाई ई मछली का एक-आध
टकड़ा तथा आलू। यूरोप क धनी लोग और अमे रका क आबालवृ विनता दूसर ही तरह का खाना खाते ह।
अथा उनका खा मछली-मांस ही ह, रोटी-भात तो चटनी क तरह खाते ह। यिद कह िक अमे रका म रोटी नह
खाई जाती, तो भी ठीक ह। मछली परोसी गई तो मछली ही तथा मांस परोसा गया तो मांस ही खाया जाता ह, भात
रोटी क साथ नह इसिलए हर बार थाली बदलनी पड़ती ह। यिद दस खाने क चीज ह, तो दस बार थाल बदलनी
होगी। जैसे मान लो, हमार देश म पहले िसफ सू (बंगाल क िस तरकारी) परोसा गया, िफर थाली को
बदलकर िसफ दाल परोसी गयी, िफर थाली बदलकर िसफ रसदार तरकारी परोसी गयी, िफर थाली बदलकर
थोड़ा-सा भात या दो पू रयां इ यािद। उसका लाभ यही ह िक ब त सी चीज थोड़ी-थोड़ी खायी जाती ह, पेट म
बोझा भी कम होता ह। ांसीिसय का रवाज ह, सबेर कॉफ क साथ एक-दो टकड़ा रोटी और म खन खाना।
म यम ेणी क लोग दोपहर म मछली-मांस आिद खाते ह। रात म पूरा भोजन होता ह। इटली, पेन भृित देश म
रहने वाली जाितय का भोजन ांसीिसय जैसा ही ह। जमनी वाले मागत पांच-छह बार खाते ह, येक बार मांस
ज र रहता ह। अं ेज तीन बार खाते ह, सबेर थोड़ा-सा, िकतु बीच-बीच म कॉफ या चाय पीते रहते ह। अमे रक
लोग तीन बार अ छा खाने खाते ह, िजसम मांस अिधक रहता ह। िफर भी इन सभी देश म “िडनर” नामक भोजन
ही धान होता ह। अमीर क यहाँ ांसीसी रसोइया रहता ह और ांसीसी प ित से खाना बनाया जाता ह। पहले
एक-आध नमक न मछली या मछली का अंडा या कोई चटनी या तरकारी खाते ह। इसक खाने से भूख बढ़ती ह।
इसक बाद शोरबा, इसक बाद आजकल एक फल खाने का फशन हो गया ह। इसक बाद मछली, मछली क बार
मांस क एक तरकारी, िफर भुना आ मांस, साथ म क ी स जी, इसक बाद जंगली मांस, जैसे िक िहरन, प ी
आिद; इसक अनंतर िम ा , अंत म आइ म - मधुरण समापये । धनी लोग क यहाँ हर बार थाली बदलने क
साथ ही शराब भी बदली जाती ह। शेरी, ेरट, शिपयन आिद शराब दी जाती ह, बीच बीच म शराब क थोड़ी
क फ भी होती ह। थाल बदलने क साथ ही कांटा च मच भी बदला जाता ह। भोजन क अंत म िबना दूध क
“कॉफ ” पीते ह, बीच बीच म छोट-छोट िगलास म शराब पी जाती ह और धू पान होता ह। भोजन क कार क
साथ ही साथ शराब क िविभ ता से बड़ और छोट क पहचान होती ह। इनक िडनर म इतना अिधक खच होता ह
िक एक बार भी वैसा िखलाने से हमार यहाँ क िकसी म यम ेणी क मनु य का तो िदवािलया ही िनकल सकता
ह। ये लोग खाने म इतनी धूम-धाम रखते ह।
आय लोग प थी मारकर एक पीढ़ पर बैठते थे और टकने क िलए उनक पीछ एक पीढ़ा रखा जाता था। एक
छोटी चौक पर थाल रखकर, एक थाल म ही सबकछ खा लेते थे। यह रवाज इस समय भी पंजाब, राजपूताना,
महारा और गुजरात म मौजूद ह। बंगाली, उि़डया, तेलंगी और मलबारी जमीन पर ही बैठकर भोजन करते ह।
मैसूर क महाराज भी जमीन पर बैठकर भात दाल खाते ह। मुसलमान च र िबछाकर खाते ह। बम , जापानी आिद
व ासन म बैठकर जमीन पर थाल रखकर खाते ह। चीनी लोग मेज पर खाते ह, कस पर बैठते ह, लकड़ी क
पतली डिडय तथा चममच क सहायता से खाते ह रोमन तथा यूनानी काऊच म लेट ए मेज पर से हाथ से खाया
करते थे। पहले यूरोिपयन लोग कस पर बैठकर और टबल पर साम ी रखकर हाथ से खाते थे, पर अब नाना
कार क कांट-च मच से खाते ह।
चीिनय का भोजन सचमुच एक कसरत ह, हमार देश म जैसे पानवाली दो िब कल अलग लोह क पतर से हाथ
क कौशल से कची का काम लेती ह, उसी कार चीनी लोग भी दो डिडय को दाएं हाथ क दो उगिलय तथा
हथेली म द तापूवक िचमट क तरह करक शाकािद मुख म डालते ह। िफर दोन को एक कर एक कटोरी-भर
भात मुँह क पास लाकर इन दो डिडय से िनिमत बेलचे क सहार उस भात को ठल-ठलकर मुँह भरते ह।
कहते ह िक सब जाितय क आिदम पु ष थम अव था म जो पाते थे, वही खाते थे। एक जानवर को मारकर
उसे एक महीने तक खाते थे। सड़ जाने पर भी नह छोड़ते थे। धीर-धीर लोग स य हो गये। खेती-बाड़ी सीखी।
जंगली जानवर क तरह एक िदन खूब खाकर चार पांच िदन अनशन क था उठ गयी, रोज भोजन िमलने लगा
िफर भी बासी और सड़ी व तु का खाना नह छटा। पहले सड़ी-गली चीज आव यक भोजन थी, पर अब वे
चटनी अचार क प म नैिमि क भोजन हो गयी ह।
ए कम जाित बफ म रहती ह। वहाँ अनाज िबलकल नह पैदा होता; वहाँ रोज का खाना मछली और मांस ही
ह। बस दस-पं ह िदन म अ िच होने से एक टकड़ा सड़ा मांस खाकर अ िच चली जाती ह।
यूरोिपयन इस समय भी जंगली जानवर और पि य का मांस िबना सड़ाये नह खाते। ताजा िमलने पर भी उसे
तब तक लटकाकर रख देते ह, जब तक सड़कर बदबू न िनकलने लगे। कलक े म िहरण का सड़ा मांस य ही
आता ह य ही िबक जाता ह। सड़ी ई भटक मछली वाद क िलए िस ह। अं ेज क पनीर िजतनी सड़गी,
उसम िजतने क ड़ िकलिबल करगे, वह उतनी ही वािद होगी। भागते ए पनीर क क ड़ को भी झपटकर मुख म
डालते ह, वह या ब त ही सु वादु होता ह? दि णी ा ण का याज, लहसुन क िबना खाना ही नह होता।
िनरािमष होकर भी याज लहसुन क िलए तरसते ह। शा कार ने यह रा ता भी बंद कर िदया ह। याज, लहसुन,
पालतू सूअर तथा पालतू मुग का मांस खाने से एक कार का पाप होता ह, और इसक सजा ह, जाितनाश (अथा
जाित से बिह कार)। िज ह ने यह बात मानी, उ ह ने डर से याज और लहसुन खाना छोड़ िदया, पर उससे भी बुरी
धयु ह ग खाना आरभ िकया। पहाड़ी क र िहदु ने याज-लहसुन क जगह पर एक कार क लहसुन जैसी
गंध वाली घास खाना आरभ िकया। इन दोन का िनषेध तो शा म कह नह ह!

आहार-संबंधी िविध-िनषेध का ता पय
सभी धम म खाने-पीने क संबंध म एक िविध-िनषेध ह। कवल ईसाई धम म कछ नह ह। जैन और बौ
मछली-मांस नह खाते। जैन लोग जमीन क नीचे पैदा होने वाली चीज जैसे आलू, मूली आिद भी नह खाते, य िक
खोदने से क ड़ मरगे। रात को भी नह खाते, य िक अंधकार म कह क ड़ ही खाने म न आ जाएं।
य दी लोग उस मछली को नह खाते िजसम “श क” नह होता और सूअर भी नह खाते। जो जानवर शफ
(अथा िजसक पैर दो भाग म बंट नह होते) और जो जुगाली नह करता, उसे भी नह खाते। किठनाई वाली बात
तो यह ह िक दूध या दूध से बनी ई कोई चीज यिद रसोई म चली जाए और यिद उस समय कह मछली या मांस
पकता हो तो उस पकवान का ही फक देना होगा। इसीिलए क र य दी लोग िकसी दूसरी जाित क मनु य क हाथ
का पकाया नह खाते। िफर िहदु क तरह य दी भी यथ ही मांस नह खाते। जैसे बंगाल और पंजाब म मांस को
“महा साद” कहते ह, उसी तरह य दी लोग महा साद अथात िनयमानुसार बिलदान न होने से मांस नह खाते ह।
इसी कारण िहदु क तरह य दी लोग को भी िकसी भी दुकान से मांस खरीदने का अिधकार नह ह। मुसलमान
भी य दी लोग क अनेक िनयम मानते ह, पर इतना परहज नह करते। बस दूध, मांस और मछली एक साथ नह
खाते। छआछत होने से ही सवनाश हो जाता ह, इसे वे नह मानते। िहदु और य िदय म भोजन संबंधी अनेक
कार का सौसा य ह। िफर भी, य दी जंगली सूअर नह खाते, पर िहदू खाते ह। पंजाब क िहदू-मुसलमान म
इसीिलए भयंकर वैमन य ह। इसीिलए जंगली सूअर िहदु का आव यक खा हो गया ह। राजपूत म जंगली
सूअर का िशकार करक खाना एक धम िवशेष माना जाता ह। दि ण म ा ण छोड़कर अ या य जाितय म
मामूली सूअर का खाना भी जाएज ह। िहदू जंगली मुगा-मुग खाते ह, पर पालतू मुगा-मुग नह खाते। पूव -बंगाल
से लेकर नेपाल और क मीर समेत िहमालय तक एक ही था ह। मनु क बतायी ई खाने क था आज तब उस
अंचल म अिधकतर िव मान ह।
िकतु बंगाली, िबहारी, यागी (यु देशीय) और नेपािलय क अपे ा कमाऊ से लेकर का मीर तक मनु क
िनयम का िवशेष चार ह। जैसे बंगाली मुग या उसका अंडा नह खाते, िकतु हस का अंडा खाते ह, वैसा ही
नेपाली भी करते ह। िकतु कमाऊ म यह भी जायज नह ह। क मीर जंगली हस क अंड को बड़ मजे से खाते ह,
पर घरलू हस क अंड नह खाते। िहमालय को छोड़कर भारतवष क अ य सभी ांत म जो लोग बकर का मांस
खाते ह वे मुग भी खाते ह।
इन िविध-िनषेध म अिधकांश वा य क िलए ही ह, इसम संदेह नह । िकतु सब जगह समान नह हो सकता।
घरलू मुग कछ भी खा लेती ह और ब त गंदी रहती ह, इसीिलए उसे खाने का िनषेध िकया ह। पर जंगली जानवर
या खाते ह, कहो, कौन उसे देखने जाता ह? इसक अलावा जंगली जानवर को रोग कम होता ह।
पेट म अ ल क अिधकता होने पर दूध िकसी तरह पचता ही नह , यहाँ तक िक एक ही दम म एक िगलास दूध
पी लेने से कभी कभी तुर त मृ यु भी घटी ह। जैसे ब े माता का दूध पीते ह वैसे ही ठहर ठहरकर दूध पीने से वह
ज दी हजम होता ह, नह तो ब त देर लगती ह। दूध ब त देर म हजम होने वाली चीज ह, मांस क साथ म तो वह
और भी देर म हजम होता ह। इसीिलए य िदय ने इसका िनषेध िकया ह। नासमझ माताएं छोट ब को जबरद ती
लगातार दूध िपलाती ह और दो चार महीने क बाद िसर पर हाथ रखकर रोती ह। आजकल डॉ टर लोग नौजवान
आदिमय क िलए भी एक पाव दूध आध घंट म धीर-धीर पीने का परामश देते ह। छोट ब क िलए फ िडग
बोतल क िसवा कोई दूसरा रा ता ही नह ह। मां काम म लगी रहती ह, दाई रोते ए ब े को जबरद ती पकड़कर
चमचे म दूध भर भरकर ज दी ज दी दूध िपलाती ह! नतीजा यह होता ह िक दुबले-पतले ब े बढ़ते नह । उसी दूध
से उनका अंत होता ह। िजनम इस कार क भयंकर खाने क ढग से बचने क श होती ह, वे ही व थ और
बिल होते ह।
पुराने सूितगृह और इस कार दूध िपलाना इ यािद, इस पर भी जो ब े बच जाते वे सब एक कार से आजीवन
व थ और बलवान रहते थे। माता ष ी का सा ा वरपु न होने पर या उस जमाने म एक भी ब ा बचा
रहता। वह ताप-सेक, दागना-फोड़ना इ यािद से बचकर िनकलना ज ा और ब ा क िलए बड़ी ही दुःसा य बात
थी। तुलसी चौरा पर ह रलूट क बहाने ब ा और मां ायः इसिलए बच िनकलते थे, य िक वे सा ा यमराज क
दूत, िचिक सक क प े नह पड़ते थे।

चाल-चलन
हमार देश क अपे ा यूरोप और अमे रका म मलमू क याग करने क बार म भी बड़ी ल ा ह; हम लोग
िनरािमषभोजी ह, इसीिलए ब त सा साग-पात खाते ह। हमारा देश भी ब त गरम ह, एक सांस म एक लोटा जल
पीने को चािहए। भारत क प मी ांत क कषक एक बार एक सेर स ू खाते ह, और िफर जब यास लगती ह,
तो कआँ का कआँ साफ कर देते ह। गम म हम लोग यास को पानी िपलाने क िलए याऊ खोल देते ह। इ ह
कारण से लोग ब त बार लघुशंका करने क िलए बा य हो जाते ह य िक दूसरा कोई उपाय ही नह ह। गोशाला
और घोड़ क अ तबल क तुलना बाघ-िसंह क िपंजड़ से क िजये, क े क तुलना बकर से क िजये। पा ा य देश
का आहार मांसमय ह, इसीिलए अ प होता ह। िफर देश ठडा ह, कह सकते ह िक जल पीते ही नह । समृ जन
छोट िगलास म थोड़ी शराब पीते ह। ांसीिसय जल को पसंद नह करते, उसे वे मढक का रस कहते ह, भला वह
कभी िपया जाता ह? कवल अमेकावासी उसे अिधक प रमाण म पीते ह, य िक ी मकाल मं वहाँ अ यंत गम
पड़ती ह। यूयॉक कलक े क अपे ा अिधक गरम ह। जमन लोग भी ब त “बीयर” पीते ह, पर भोजन क साथ
नह ।
इ लड और अमे रका म य क सामने मलमू का नाम भी नह िलया जा सकता। िछपकर पाखाना जाना
पड़ता ह। पेट क गम या और िकसी कार क बीमारी क बात य क सामने नह कही जा सक । हाँ, बूि़ढय
तथा प रिचत म बात अलग ह। यां मलमू को रोककर चाह मर जाएं, पर पु ष क सामने उसका नाम भी न
लगी।
ांस म इतना नह ह। य और पु ष क पेशाबखाने और पाखाने ायः पास पास ही होते ह। यां एक
ार से जाती ह और पु ष दूसर ार से। ब त जगह म तो ार भी एक ही ह, कवल थान अलग अलग ह।
रा ते म दोन ओर बीच बीच म पेशाबखाने ह वहाँ कवल पीठ आड़ म रहती ह। यां देखती ह, उसम ल ा नह
समझी जाती, हम लोग क तरह। अव य ही यां ऐसे खुले थान म नह जात । जमनी वाल म तो और भी
कम। य क सामने अं ेज और अमे रक बातचीत म भी ब त सावधान रहते ह। वहाँ पैर का नाम तक लेना
अस यता ह। हम लोग क तरह ांसीसी वाचाल होते ह। जमन और सी सबक सामने अ ील बात करते ह।
परतु णय- ेम क बात बेरोक सबक सामने, यहाँ तक िक मां, लड़क, भाई, बहन, बाप म, चलती ह। बाप
अपनी बेटी क णयी (भिव य पित) क बार म नाना कार क बात ठ ा करक वयं अपनी क या से पूछता ह।
ांसीसी क याएं उसे सुनकर मुँह नीचा कर लेती ह। अं ेज क याएं लजा जाती ह, िकतु अमे रक क याएं चटपट
जवाब देती ह। िवलायत म चुंबन और आिलंगन तक म कोई दोष नह समझा जाता, वह अ ील भी नह समझा
जाता। स य समाज म इनक बार म बात क जा सकती ह। अमे रक प रवार आ मीय पु ष घर क युवती क या से
हाथ िमलाने क बदले चुंबन करता ह। हमार देश म ेम- णय का नाम भी बड़ क सामने नह िलया जा सकता।
इनक पास ब त पया ह। अिधक साफ और ब त सुंदर व न पहनने वाला झट छोटा आदमी समझ िलया
जाता ह और वह समाज म स मिलत होने क यो य नह समझा जाता। धनी-आदिमय को िदन म दो-तीन बार
बना-ठना कमीज-कॉलर आिद बदलना पड़ता ह। गरीब इतना नह कर सकते। ऊपर क व म एक दाग या
िसलवट रहने से बड़ी मु कल होती ह। नाखून क कोने, हाथ या मुँह म जरा भी मैल रहने से मु कल होती ह।
चाह गम म सड़कर मरो या और कछ भी हो, िकतु घर क बाहर िनकलते समय द ताना पहनना अिनवाय ह।
अ यथा रा ते म हाथ मैला हो जाएगा और उस मैले हाथ को िकसी ी क हाथ म रखकर स भाषण करना
अस यता ह। स य समाज म थूकने, क ा करने, दांत को ितनक से साफ करने इ यािद से त णा चंडाल व
ा समझो!
q
पा ा य देशवािसय का धम
इनका धम श पूजा ह, वह आधा वामाचार का कार ह; उसम पंचम-कार क अंितम अंग छोड़ िदए गए ह।
“वामे वामा...दि णे पानपा ं...अ े य तं मरीचसिहतं शूकर यो णमांसं...कौलो धमः परमगहनो योगीनाम यग यः”
कट म, सवसाधारण प म, श पूजा, वामाचार ह,, मातृभाव भी यथे ह। यूरोप म ोट टट तो नग य ह, धम
तो कथोिलक ही ह। उस धम म िजहोवा, ईसा और ि मूित आिद अंतधान ह, “मां! जा त होकर बैठी ह, ईसा को
गोद म िलये मां! लाख थान म, लाख िक म से, लाख प म, अ ािलका म, िवराट मंिदर म, रा ते म,
पणकटीर म ह, “मां” “मां” “मां”। बादशाह पुकारता ह, “मां”, जंगबहादुर सेनापित पुकारता ह “मां”, हाथ म
झंडा िलये सैिनक पुकारता ह, “मां”। जहाज पर म ाह पुकारता ह, “मां”, जीणव पहने मछआ पुकारता ह,
“मां”, रा ते क एक कोने म िभखारी पुकारता ह, “मां”, “ध य मेरी” िदन-रात यही विन उठती ह।
और िफर ी-पूजा ह। यह श -पूजा कवल कामवासनामयी नह ह, िकतु जो श -पूजा कमारी-स सवा-पूजा
क प म हमार देश म काशी, कालीघाट भृित तीथ- थान म होती ह;, वा तिवक, य , क पना नह ” वही
श -पूजा ह। िकतु हम लोग क पूजा इन तीथ- थान म ही होती ह। और कवल उसी ण भर क िलए, पर इन
लोग क पूजा िदन रात बारह महीने चलती ह। पहले +ि य का आसन होता ह। कपड़ा, गहना, भोजन, उ
थान, आदर और खाितर पहले य क । यह तो िकसी भी ी क पूजा ह, जानी-अनजानी क पूजा ह, उ
कल क और पवती युवितय क तो बात ही या ह। इस श पूजा को पहले पहल यूरोप म मूर लोग ने आरभ
िकया था, मूर मुसलमान अरब क िमि त जाित क ह। िजस समय उन लोग ने पेन को जीता था, उस समय
उ ह ने आठ शता दय तक रा य िकया था। उसी समय यह श -पूजा ारभ ई थी। उ ह क ारा यूरोपीय
स यता का उ मेष आ और श पूजा का आिवभाव। कछ समय क अनंतर मूर लोग इस श पूजा को भूल गये,
इसिलए वे श हीन और ीहीन हो गये। वे थान युत होकर अ का क एक कोने म अस याव था म रहने लगे।
और उस श का संचार आ यूरोप म; मुसलमान को छोड़कर “मां” ईसाइय क घर जा िवराजी।
यह यूरोप या ह? य एिशया, अ का और अमे रका क काले, भूर, पीले और लाल िनवासी यूरोप-िनवािसय
क पैर पर िगरते ह? य किलयुग म यूरोप-एकािधपित ही ह?

ांस - पे रस
इस यूरोप को समझना हो तो हम पा ा य महानता तथा गौरव क क ांस को समझना होगा इस समय पृ वी
का आिधप य यूरोप क हाथ म ह और यूरोप का महाक पे रस ह। पा ा य स यता, रीित-नीित, काश-अंधकार,
अ छा-बुरा सबक अंितम प रपुि का भाव इसी पे रस नगरी से ादुभूत होता ह।
यह पे रस नगरी एक महासमु ह। मिण, मोती, मूंगा आिद भी यहाँ यथे ह और साथ ही मगर, घि़डयाल भी
यहाँ ब त ह। यह ांस ही यूरोप का कम े ह। यह सुंदर देश ह, चीन क कछ अंश को छोड़कर इतना सुंदर
थान और कह नह ह। न तो ब त गरम और न ब त ठडा, ब त उपजाऊ, न यहाँ अिधक पानी बरसता ह और न
ही कम पानी बरसने क िशकायत ह। वह िनमल आकाश, मीठी धूप, वन थली क शोभा, छोट छोट पहाड़, ए म
और ओक भृित पेड़ का बा य, छोटी छोटी निदयां, छोट छोट झरने, पृ वीतल पर और कहाँ ह? जल का वह
प, थल क मोहकता, वायु क वह उ म ता, आकाश का वह आनंद और कहाँ िमलेगा? कित सुंदर ह, मनु य
भी स दयि य ह। बूढ़-ब ,े ी-पु ष, धनी-द र , उनका घर- ार, खेल-मैदान, आिद सभी साफ-सुथर और
सजा-धजाकर िच व सुंदर िकये ए रहते ह। िसफ जापान को छोड़कर यह भाव और कह नह ह। वह इ पुरी क
गृह, अ ािलका का समूह, नंदनवन क स श उ ान, उपवन, झाि़डयां और कषक क खेत, सभी म एक प,
एक सुंदर छटा देखने का य न ह और वे अपने इस य न म सफल भी ए ह। यह ांस ाचीन समय से गौल,
रोमन, ांक आिद जाितय क संघष-भूिम रहा ह। इसी ांक जाित ने रोमन शालमॅ ने ने यूरोप म ईसाई धम का
तलवार क बल पर चार िकया। इस ांक जाित ारा ही एिशया को यूरोप का प रचय आ, इसीिलए आज भी
हम यूरोपवािसय को ांक , िफरगी, लांक , िफिलंग आिद नाम से संबोिधत करते ह।
पा ा य स यता का आिदक ाचीन यूनान डब गया, रोम क च वत राजा बबर क आ मण-तरग म बह
गये, यूरोप का काश बुझ गया। इधर एिशया म भी एक अित बबर जाित का ादुभाव आ, िजसे अरब जाित
कहते ह। वह अरब-तरग बड़ वेग से पृ वी को आ छािदत करने लगी। महाबली पारसी जाित अरब क पैर क
नीचे दब गयी। उसे मुसलमान धम धारण करना पड़ा। इसक प रणाम व प मुसलमान धम ने एक दूसरा ही प
धारण िकया, वह अरबी धम पारसी स यता म स मिलत हो गया।
अरब क तलवार क साथ पारसी स यता धीर-धीर फलने लगी। वह पारसी स यता ाचीन यूनान और भारतवष
से ही ली ई थी। पूव और प म दोन ओर से बड़ वेग क साथ मुसलमान-तरग ने यूरोप क ऊपर आघात िकया,
साथ ही साथ बबर अंधकारपूण यूरोप म ान पी काश फलने लगा। ाचीन यूनािनय क िव ा, बु , िश प
आिद ने बबरा ांत इटली म वेश िकया। धरा-राजधानी रोम क मृत शरीर म ाण पंदन होने लगा, उस पंदन ने
लोरस नगरी म बल प धारण िकया, ाचीन इटली नव-जीवन धारण करक संजीिवत होने लगा, इसी को
पुनजागरण अथा रनेसस कहते ह। िकतु वह पुनजागरण इटली का था। यूरोप क दूसर अंश का उस समय थम
ज म आ। ईसा क उस सोलहव शता दी म जब भारतवष म अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ भृित मुगल स ाट
ने महाबलशाली सा ा य बनाये, उसी यूरोप का ज म आ।
इटली वाले ाचीन जाित क थे, एक बार जंभाई लेकर िफर करवट बदलकर सो गये। उस समय कई कारण से
भारतवष भी कछ कछ जाग रहा था। अकबर से लेकर तीन पीढ़ी तक क मुगल रा य म िव ा, बु , िश प आिद
का यथे आदर आ था। िकतु अ यंत वृ जाित होने क कारण वह अनेक कारण से िफर करवट बदलकर सो
गयी।
यूरोप म, इटली क पुनज म ने बलवान, अिभनव ांक जाित को या कर िलया। चार ओर से स यता क
सब धारा ने आकर लोरस नगरी म एकि त हो नवीन प धारण िकया। िकतु इटली-िनवािसय म उस साम य-
धारण करने क श नह थी। भारतवष क तरह वह उ मेष उसी थान पर समा हो जाता, िकतु यूरोप क
सौभा य से इस नवीन ांक जाित ने आदरपूवक उस तरग आदरपूवक उस तेज को हण िकया। नवीन र वाली
नवीन जाित ने उस तरग म बड़ साहस क साथ अपनी नौका छोड़ दी। उस ोत का वेग मशः बढ़ने लगा। वहाँ
एक धारा सैकड़ धारा म िवभ होकर बढ़ने लगी। यूरोप क अ या य जाितयां लोलुप हो मड़ काटकर उस
जल को अपने अपने देश म ले गयी और उसम अपनी जीवनश स मिलत कर उसक वेग और िव तार को और
भी अिधक बढ़ा िदया। वह तरग िफर भारतवष म आकर टकरायी। वह तरग लहरी जापान क िकनार पर जा प ची
और जापान उस जल को पान करक म हो गया। एिशया म जापान ही नवीन जाित ह।
यह पे रस नगरी यूरोपीय स यता क गंगोतरी ह। यह िवरा नगरी मृ युलोक क अमरावती, सदानंद नगरी ह।
पे रस का भोगिवलास और आनंद न लंदन म ह, न बिलन म और न यूरोप क िकसी दूसर शहर म। लंदन, यूयॉक
म धन ह, बिलन म िव ा, बु यथे ह, िकतु न तो वहाँ ांस क िम ी ह और सव प र वहाँ ांस क िनवासी
नह ह। धन हो, िव ा-बु हो, ाकितक स दय भी हो, िकतु वे मनु य कहाँ ह? ाचीन यूनािनय क मृ यु क
बाद इस अ ुत ांसीसी च र का ज म आ ह। सदा आनंद और उ साह से भर ए, पर बड़ ह क और िफर भी
ब त गंभीर, सब काम म उ ेिजत िकतु बाधा पड़ने से ही िन सािहत। िकतु वह नैरा य ांस क मुँह पर ब त देर
तक नह ठहरता, िफर नवीन उ साह और िव ास से वह चमक उठता ह।
पे रस का िव िव ालय यूरोप का आदश िव िव ालय ह। दुिनया क िजतनी वै ािनक सं थाएं ह वे सब ांस
क वै ािनक सं था क नकल ह। यही पे रस औपिनवेश-सा ा य का गु ह। सभी भाषा म अभी उस
ांसीसी भाषा क ही यु -संबंधी श द का यवहार होता ह। ांसीिसय क रचना क नकल सभी यूरोपीय
भाषा म ई ह। यह पे रस नगरी ही दशन, िव ान और िश प क खान ह। सभी थान म इ ह क नकल ई ह।
ांसीसी ही असल म शहरी ह, बाक देशवासी तो देहाती ह। जाितयां ामीण ह। ये लोग जो करते ह, उसी क
पचीस-पचास वष पीछ जमन और अं ेज नकल करते ह, चाह वह िव ा संबंधी हो, चाह िश प-संबंधी हो अथवा
सामािजक नीित संबंधी ही य न हो। यह ांसीसी स यता कॉटलड प ची, वहाँ क राजा इ लड क भी शासक
ए, तब इस ांसीसी स यता ने इ लड को जगाकर छोड़ा। कॉटलड क टअट खानदान क शासन क समय म
ही इ लड म रॉयल सोसाइटी आिद सं थाएं थािपत ई।
पुनः ांस ही वाधीनता का उ म थान ह। इस पे रस महानगरी से ही जा-श ने बड़ वेग से उठकर यूरोप
क जड़ को िहला िदया। उसी िदन से यूरोप ने नया प धारण िकया। वह एगािलते िलबत ातेिनते क वह विन
अब ांस से चली गई ह, ांस अब दूसर भाव , दूसर उ े य का अनुसरण कर रहा ह, िकतु यूरोप क अ या य
जाितय म इस समय भी ांसीसी िव लव का यह भाव गूंज रहा ह।
कॉटलड क एक िस वै ािनक ने उस िदन मुझसे कहा था िक पे रस पृ वी का क ह। जो देश िजस
प रमाण म पे रस क साथ अपना संबंध थािपत कर सकगा, वह उसी प रमाण म उ त होगा। अव य ही इस बात
म कछ अितरिजत स य ह, िकतु यह बात भी स य ह िक यिद िकसी को िकसी नवीन भाव का संसार म चार
करना हो तो उसक िलए पे रस ही उपयु थान ह। हम सुनते ह, पे रस नगरी महा क सत, वे यापूण और
नरककड ह अव य ही यह बात अं ेज लोग कहते िफरते ह। एवं अ य देश क िजन सब लोग क पास पैसा ह तथा
िजनक िलए िज ोप थ छोड़कर अ य भोग जीवन म असंभव ह, वे अव य ही पे रस को िवलासमय िज ोप थ
क उपकरण व प देखते ह।
िकतु लंदन, बिलन, िवयना, यूयॉक आिद भी तो वारविनतापूण भोग म उ ोगपूण ह। िकतु अंतर ह िक दूसर
देश क इि य-चचा पशुव ह, पर पे रस, स य पे रस क मैल भी सोने क प से ढक ह। अ या य शहर क
पैशािचक भोग क साथ पे रस क िवलासि यता क तुलना करना, मानो क चड़ म लोटते ए सूअर क उपमा
नाचते ए मोर से देना ह।
कहो तो सही, भोग-िवलास क इ छा िकस जाित म नह ह? यिद ऐसा नह ह तो दुिनया म िजसक पास दो पैसा
ह, वह य पे रस क ही ओर दौड़ता ह? राजा, बादशाह चुपचाप अपना नाम बदलकर उस िवलासकड म ान
कर पिव होने य जाते ह, इ छा सभी देश म ह, उ ोग क ुिट भी िकसी देश म कम नह देखी जाती। िकतु
भेद कवल इतना ही ह िक पे रसवाले िस ह त हो गये ह, भोग करना जानते ह, िवलासि यता क स म ेणी म
प च चुक ह।
इतने पर भी अिधकतर नाच-तमाशा िवदेिशय क िलए ही वहाँ होता ह। ांसीसी बड़ सावधान होते ह, वे
िफजूल खच नह करते। यह घोर िवलास, ये सब होटल और भोजन आिद क दुकान, िजनम एक बार खाने से ही
सव वांत हो सकता ह, वे सब िवदेशी अहमक धिनय क िलए ही ह। ांसीसी बड़ स य ह, आदर स मान काफ
ह, स कार खूब करते ह, सब पैसा बाहर िनकाल लेते ह और िफर मटक मटककर हसते ह।
इसक अलावा एक तमाशा यह ह िक अमे रकावाल , जमनीवाल और अं ेज का समाज खुला ह, िवदेशी झट
से सबकछ देख सुन लेता ह। दो चार िदन क ही बातचीत म अमे रकावाले अपने घर म दस िदन रहने क िलए
िनमं ण देते ह। जमनीवाले भी ऐसे ही ह, िकतु अं ेज जरा देरी से करते ह। ांसीिसय का रवाज इस संबंध म
ब त िभ ह; प रवार म अ यंत प रिचत ए िबना वे लोग आकर रहने का कभी िनमं ण नह देते। िकतु जब कभी
िवदेिशय को इस कार क सुिवधा िमलती ह, ांसीसी प रवार को उ ह देखने और समझने का मौका िमलता ह,
तब एक दूसरी ही धारणा हो जाती ह। कहो तो, मछआ बाजार देखकर अनेक िवदेशीय जो हमार जातीय च र क
संबंध म धारणा करते ह, वह िकतना अहमकपन ह? वही बात पे रस क भी ह। अिववािहत लड़िकयां वहाँ भी
हमार ही देश क तरह सुरि त ह, वे अकसर समाज म िमल नह सकती। िववाह क बाद वे अपने वामी क साथ
समाज म िमलती जुलती ह। हमारी तरह िववाह क बातचीत माता-िपता ही तय करते ह। ये लोग मौज-पसंद ह,
इनका कोई भी बड़ा सामािजक काम नतक क नाच क िबना पूरा नह हो सकता। जैसे हम लोग क िववाह तथा
पूजा म सव नतक का आगमन होता ह। अं ेज मुँह लटकाये रहते ह। इसिलए वे सदा िनरानंद ही रहते ह। उनक
ि म नाच ब त अ ील चीज ह, पर िथयेटर म नाच होने म कोई दोष नह इस संबंध म यह बात भी सदा यान
म रखनी चािहए िक इनक नाच चाह हमारी ि म िकतने ही अ ील य न जंचे, पर वे उससे िचर प रिचत ह।
(अित अ प व म) सव न न नाच होता ह, िकतु वह िकसी िगनती म नह आता। िकतु अं ेज, अमे रक इसे
देखना भी नह छोड़ते और घर लौटकर गािलयां देने म भी कसर नह छोड़ते।

सं दाय क मूलिभि
जो प रणामवाद भारत क ायः सभी सं दाय क मूल िभि ह, उसने इस समय यूरोपीय बिहिव ान म वेश
िकया ह। भारत क िसवाय अ य सभी देश क धम का यही मत था िक सम त संसार टकड़ा-टकड़ा अलग ह।
ई र भी अलग ह, कित अलग ह, मनु य अलग ह, इसी कार पशु, प ी, क ट, पतंग, पेड़, प ा, िम ी प थर,
धातु आिद सब अलग अलग ह। भगवान ने इसी कार सब अलग अलग करक सृि क ह।
ान का अथ ह, ब क भीतर एक को देखना, जो व तुएं अलग अलग ह, िजनम आपाततः अंतर का बोध होता
ह, उनम एक ऐ य देखना। िजस संबंध ारा मनु य इस एक व को देख पाता ह, उस संबंध को “िनयम” कहते
ह; उसी का नाम ाकितक िनयम ह।
हम पहले ही कह आये ह िक हमारी िव ा, बु और िचंतन सभी आ या मक ह, सभी का िवकास धम क
भीतर ह और पा ा य म ये सार िवकास बाहर, शरीर और समाज म ह। भारतवष क िचंतनशील मनीषी मशः
समझ पाये िक इन चीज को अलग अलग मानना भूल ह। अलग होते ए भी उन सक म एक संबंध ह। िम ी,
प थर, पेड़, प ा, जीव, जंतु, मनु य, देवता, यहाँ तक िक वयं ई र, इन म ऐ य ह। अ ैतवादी इसक चरम
सीमा पर प च गये। उ ह ने कहा यह सबकछ उसी एक का िवकास ह। सचमुच यह अ या म और अिधभूत जग
एक ही ह, उसी का नाम ह और जो अलग अलग मालूम पड़ता ह वह भूल ह, उसका नाम उ ह ने िदया,
“माया”, “अिव ा” अथा अ ान यही ान क चरम सीमा ह।
भारतवष क बात छोड़ दो, यिद िवदेश म इस बात को इस समय कोई न समझ सक, नही तो उसे पंिडत कसे
कह? मु ा यह ह िक इनक अिधकांश पंिडत ही अब इसे समझ गए ह, पर अपने ही तरीक से, जड़ िव ान ारा।
वह एक कसे अनेक हो गया, यह बात न तो हम लोग ही समझ सकते ह और न वे लोग ही। हम लोग ने भी यह
िस ांत बना िलया ह िक वह िवषय-बु क पर ह, और उन लोग ने भी वैसा ही िकया ह। वह जो “एक” ह,
वह िकस िकस कार का आ ह, िकस िकस कार का जाित व, य व पा रहा ह, यह समझ म आता ह एवं
इसी खोज का नाम िव ान ह।
आिदम अव था म मनु य तीर, धनुष या जाल आिद ारा पशु, प ी या मछली मारकर खाता था। मशः उसने
खेतीबाड़ी करना और पशुपालन करना सीखा। जंगली जानवर को अपने वश म लाकर अपना काम कराने लगा।
अथवा समयानुसार आहार क िलए भी जानवर पालने लगा। गाय, घोड़ा, सूअर, हाथी, ऊट, भेड़, बकरी, मुग
आिद मनु य क घर म पाले जाने लगे। इनम से क ा मनु य का आिदम दो त ह।

किषजीिवता
इसक बाद खेतीबाड़ी आरभ ई। जो फल-मूल, साग-स जी, चावल, मनु य खाता ह, उन चीज क आिदम
जंगली अव था िभ कार क थी। उस मनु य क य न से, जंगली फल, जंगली घास, नाना कार क सुखा
ब ह तथा उपादेय प म प रणत ए। कित म अपने आप िदन-रात अदल-बदल तो हो ही रहा ह। नाना जाितय
क वृ लताएं, पशु-पि य क शरीर-संसग से, देश-काल क प रवतन से, नयी नयी जाितय क सृि हो रही ह।
िकतु मनु य क सृि क पूव पय त कित धीर धीर त -लता , जीव-ज तु म प रवतन ला रही थी, पर मनु य
क सृि होते ही उसने खूब गित से प रवतन आरभ कर िदया। ज दी ज दी मनु य एक देश क पेड़-पौध और
जीव-ज तु को दूसर देश म ले जाने लगा और उनक पर पर िम ण से कई कार क नये जीव-ज तु, पेड़-पौध
क जाितयां मनु य ारा उ प होने लगी।

िववाह का आिद त व
आिदम अव था म िववाह प ित नह थी। धीर धीर वैवािहक संबंध थािपत आ। पहले सब समाज म
वैवािहक संबंध माता क ऊपर िनभर रहता था। िपता का कोई िन य नह था। माता क नाम क अनुसार बाल-ब
का नाम होता था। ब क पालन-पोषण क िलए सारी संपि य क हाथ म रहती थी। मशः धन-स पि
पु ष क हाथ म चली से यां भी उसी क हाथ म चली गय । पु ष ने कहा, “िजस कार यह धन-धा य मेरा ह,
मने खेतीबाड़ी, लूटमार करक इसे अिजत िकया ह, इसम यिद कोई िह सा लेना चाह, तो म िवरोध क गा, उसी
कार उसने कहा, “ये यां भी हमारी ह, यिद इन पर कोई हाथ डालेगा, तो िवरोध होगा।” इस कार वतमान
िववाह प ित का सू पात आ। यां भी लोट-कटोरी एवं गुलाम क तरह पु ष क अिधकार म हो गय ।
ाचीन रीित थी िक एक दल का पु ष दूसर दल क ी क साथ याह करता था। यह िववाह भी जबरद ती य
को छीन लाकर होता था। मशः यह आपस क छीना-झपटी प ित बदल गयी और वयंवर क था चिलत
ई, िकतु सब िवषय का थोड़ा थोड़ा आभास रहता ह। इस समय भी, ायः सभी देश म हम देखते ह िक वर क
ऊपर एक कार का आ मण करने क नकल क जाती ह। बंगाल और यूरोप म वर क ऊपर चावल फक कर
आघात िकया जाता ह। प मांचल म क या क सिखयां बाराितय पर गाली गाकर आ मण करती ह।

किषजीवी देवता
समाज क सृि होने लगी। देशभेद से ही समाज क सृि ई। समु क िकनार जो लोग रहते थे, वे अिधकांश
मछली पकड़कर अपना जीवन िनवाह करते थे। जो समतल जमीन पर रहते थे, वे खेतीबाड़ी करते थे, जो पवत पर
रहते थे, वे भेड़ चराते लगे। जो बालू क मैदान म रहते थे, वे बकरी और ऊट चराने लगे। िकतने ही दल जंगल म
रहकर िशकार करक खाने लगे। िज ह ने समतल जमीन पाकर खेतीबाड़ी करना सीखा, वे पेट क ाला से ब त
कछ िन ंत होकर िवचार करने का अवकाश पाकर अिधकतर स य होने लगे। िकतु स यता आने क साथ शरीर
दुबल होने लगा। िजनका शरीर िदन-रात खुली हवा म रहता, आहार मांस धान रहता, उनम एवं जो घर म वास
करते, िजनका आहार श य धान होता, इन दोन म अनेक पाथ य होने लगे। िशका रय , वाल तथा मछआर क
आहार म टोटका पड़ते ही डाक अथवा खतरनाक लुटर होकर उ ह ने समतलवािसय को लूटना आरभ कर िकया।
समतल-िनवासी आ मर ा क िलए आपस म दल बांधने लगे और इस कार छोट-छोट रा य क सृि होने लगी।
देवता का भोजन अनाज होता था, वे स य होते थे तथा ाम, नगर अथवा उ ान म वास करते थे और बुने
ए कपड़ पहनते थे; असुर का वास पहाड़, पवत, म भूिम या समु -तट पर होता था, उनका आहार व य पशु,
व य फलमूल एवं प रधान छाल होती थी; तथा व य-व तु अथवा भेड़, बकरी, गाय आिद क िविनमय म जो
धान-चावल देवता से िमलता था। देवता शरीर- म नह सह सकते थे, वे दुबल थे। असुर का शरीर उपवास-
क , क सहने म िवल ण पट था।

उ पि का रह य
असुर को भोजन का अभाव होते ही वे लोग दल बांधकर पहाड़ से या समु क िकनार से आकर गांव-नगर को
लूटने आने लगे थे। वे कभी कभी धन-धा य क लोभ से देवता पर आ मण करने लगे। यिद ब त से देवता
एकि त न हो सकते थे, तो उनक असुर क हाथ से म यु हो जाती थी। और देवता क बु बल होकर कई
तरह क अ -श तैयार करने लगे। ा , ग ड़ा , वै णवा , शैवा , ये सब देवता क अ थे। असुर
क अ तो साधारण थे, पर असुर स य होना नह जानते थे। वे खेतीबाड़ी नह कर सकते थे और न बु+ का
ही योग कर सकते थे।
िवजयी असुर यिद िविजत देवता क “ वग” म रा य करना चाहते थे तो वे देवता क बु -कौशल से
थोड़ ही िदन म देवता क दास होकर पड़ रहते थे। अ यथा असुर लूट कर वहाँ से हट कर अपने थान को चले
जाते। देवतागण जब एकि त होकर, असुर को भगाते थे, तब, या तो उ ह समु म भगाते थे, नही तो पहाड़ म,
अ यथा जंगल म भगा देते थे। मशः दोन ओर ही दल बढ़ने लगे। लाख लाख देवता एक होने लगे और
लाख लाख असुर इक होने लगे। अब महासंघष, मेल-िमलाप, जीत-हार होने लगी। इस तरह हर कार क
मनु य क िमलने-जुलने से वतमान समाज, वतमान सम त था क सृि होने लगी। नानािवध नूतन भाव क
सृि होने लगी, नाना कार क िव ा क आलोचना आरभ ई। एक दल क लोग हाथ से या बु ारा
भोगोपयोगी व तुएं तैयार करने लगे, दूसरा दल उन सब चीज क र ा करने लगा। सब िमलकर आपस म उन सब
चीज का िविनमय करने लगे और बीच म से एक उ ताद दल इस थान क चीज को उस थान पर ले जाने क
वेतन व प, सब चीज का अिधकांश वयं हड़प करने लगा। एक जन खेती करता, एक जन पहरा देता, एक जन
ढलाई करक ले जाता और एक जन खरीदता। िजन लागं ने खेतीबाड़ी क उ ह कछ नह िमला, िजन लोग ने पहरा
िदया उन लोग ने जु म करक पहले ही कछ भाग ले िलया; अिधकांश ढलाई करने वाले यवसायी लोग ले गये।
पहरदार का नाम आ राजा, ढलाई करने वाल का नाम आ सौदागर। इन दो दल ने काम तो िकया नह ,
कामचोर होकर भी ऊपर ऊपर क मलाई मारने लगे। जो व तु क तैयारी करने लगा, वह पेट पर हाथ मारता
आ “हाय भगवा ” पुकारने लगा।
q
ा य और पा ा य स यताएँ
जंबू ीप क सारी स यता का उ व समतल े म बड़ी बड़ी निदय क िकनार, यांगिच यांग, गंगा, िसंधु और
यू टीज क िकनार अित उवरा भूिम म आ। इस सारी स यता क आिद िभि खेतीबाड़ी ह। यह सारी स यता
देवता- धान ह और यूरोप क सारी स यता का उ पि थान या तो पहाड़ ह अथवा समु मय देश, डाक एवं
जलद यु ही इस स यता क िभि ह, इनम आसुरी भाव अिधक ह।
वतमान काल म जहाँ तक समझ म आता ह, जंबू ीप क म यभाग और अरब क म भूिम म असुर का धान
अ ा था। इन थान से इक होकर असुरकल क चरवाह और िशका रय ने स य देवता का पीछा करक
उ ह दुिनया म फला िदया ह।
यूरोप खंड क आिदम िनवािसय क एक जाित अव य पहले थी, पवत गुहा म वास करती थी, उसम जो
लोग कछ बु मान थे वे िछछले तालाब क जल म खूंट गाड़कर, मचान बांधकर उसी मचान पर घर- ार िनमाण
करक वास करते थे। चकमक प थर क तीर , बछ क फाल, चकमक क छरी तथा क हाड़ी से सक काम चलाते
थे।
ीक
मशः जंबु ीप का नर ोत यूरोप पर पड़ने लगा। कह -कह अपे ाकत स य जाितय का अ युदय आ; स
देश क िकसी-िकसी जाित क भाषा भारत क दि णी भाषा से िमलती ह।
िकतु ये सब जाितयां बबर थी, अ यंत बबर अव था म रह । एिशया-माइनर से स य लोग का एक दल
समीपवत ीप म उिदत आ। उसने यूरोप क िनकटवत थान पर अिधकार िकया और अपनी बु तथा
ाचीन िम क सहायता से एक अपूव स यता क सृि क । उन लोग को हम यवन कहते ह और यूरोपीय उ ह
ीक नाम से पुकारते ह।

यूरोपीय जाितय क सृि


इसक बाद इटली म रोमन नामक एक दूसरी बबर जाित इ कन नाम क अ य एक स य जाित को हराकर
उनक िव ा-बु का सं ह कर वयं स य ई। मशः रोमन ने चतुिदक अिधकार िकया। यूरोप खंड क
दि ण-प म भाग क सम त अस य लोग उनक जा बनी, कवल उ र क वन-जंगल म जंगली बबर जाितयां
ही वाधीन रह । काल क भाव से रोमन लोग ऐ य और िवलासपरता से दुबल होने लगे, उसी समय िफर
जंबू ीप क असुर सेना ने यूरोप क ऊपर चढ़ाई क । असुर क मार खाकर उ र यूरोपीय बबर जाितयां रोमन
सा ा य क ऊपर टट पड़ी। रोम का नाश हो गया। जंबू ीप क ताड़ना से यूरोप क बबर जाित तथा यूरोप क
बबर जाित तथा यूरोप क वंसाविश रोमन- ीक लोग से िमलकर एक अिभनव जाित क सृि ई। इसी समय
य दी जाित रोम ारा िविजत तथा िवताि़डत होकर पूर यूरोप म फल पड़ी। नवीन ईसाई धम भी यूरोप म फल
गया। ये सब िविभ जाितयां, मत, पथ और नाना कार क असुरकल महामाया क कठाली म, िदन-रात क
लड़ाई तथा मारकाट पी आग क ारा गलकर िमलने लगे। इससे ही यूरोपीय जाितय क सृि ई।
िहदु क काले रग से, उ र क दूध जैसे सफद रग, काले, भूर, लाल अथवा सफद कश, काली आँख, भूरी
आँख, नीली आँख, िब कल िहदु क तरह नाक, मुँह और आँख तथा चपट मुँहवाले चीनी लोग, इन सब
आकितय से यु एक बबर, अितबबर यूरोपीय जाित क सृि हो गयी। कछ िदन तक वे आपस म ही मारकाट
करते रह, उ र क िनवासी जलद यु क प म मौका पाते ही अपे ाकत स य लोग का उ छद करने लगे।
बीच म से ईसाई धम क दो गु , इटली का पोप ( ांसीसी) तथा इतालवी भाषा म िजसे “पाप” कहते ह, तथा
प म कॉ सट टनोपल क पे ीयाक, ये दोन पशु ाय बबर सेना पर, उनक राजा-रानी सभी पर भुस ा चलाने
लगे।
इस ओर अरब क म भूिम से मुलसमानी धम का उदय आ, जंगली पशु क तु य अरब ने एक महापु ष क
ेरणा से अद य तेज और अनाहत बल से पृ वी क ऊपर आघात िकया। प म-पूव क दो ांत से उस तरग ने
यूरोप म वेश िकया, उस ोत-मुख ारा भारत और ाचीन ीक क िव ा-बु यूरोप म वेश करने लगी।

हमारी स यता शांिति य ह


हमारी कहानी या ह? आय लोग शांिति य थे, शांित से खेतीबाड़ी करक अनाज पैदा करते। अपने प रवार का
पालन पोषण कर पाने म ही स थे। उसम फरसत काफ थी, इसीिलए िचंतनशील तथा स य होने का अवकाश
अिधक था। हमार जनक राजा अपने हाथ से हल चलाते थे और उस समय क सव े आ मिव भी वही थे। यहाँ
आिदकाल से ही ऋिष-मुिनय और योिगय आिद का अ युदय था। वे लोग आरभ से ही जानते थे िक संसार िम या
ह। लड़ाई करो या लूटपाट ही करो, भोग मानकर जो खोज रह हो, वह तो शांित म ह, और शांित ह शारी रक भोग
क िवसजन म; िहतकर भोग तो मननशीलता, बु चचा म ह, शरीर क सुख-भोग म नह । जंगल को आबाद
करना उनका काम था।
इसक बाद, सव थम उस प र कत भूिम म िनिमत ई य क वेदी और उस िनमल आकाश म उठने लगा य
का धुआं। उस हवा म वेदमं ित विनत होने लगे और गाय, बैल आिद पशु िनःशंक चरने लगे। तलवार िव ा
और धम क पैर क नीचे रही। उसका एकमा काम था धमर ा करना, मनु य और गाय आिद पशु का प र ाण
करना। वीर का नाम पड़ा आप - ाता, ि य।
हल, तलवार आिद सब का अिधपित र क आ, धम। वही राजा का राजा, जग क सो जाने पर भी वह
सदा जाग क रहता ह। धम क आ य म सभी वाधीन रह ह।
पा ा य देश म इस समय एक साथ ही ल मी और सर वती दोन क कपा ह। कवल भोग क व तुएं होने से
ही वे शांत नह होते वर सभी काम म कछ सुंदरता देखना चाहते ह। खान-पान, घर- ार, सभी म थोड़ी सुंदरता
देखना चाहते ह।
जब धन था तो हमार देश म भी एक िदन यही भाव था। इस समय एक तो दा र य ह तदोप र हम लोग
“इतोन ततो ः” होते जा रह ह। जो रा ीय गुण थे, वे िमटते चले जा रह ह और पा ा य देश से भी कछ
नह पा रह ह। चलने-िफरने, उठने-बैठने एवं बातचीत म एक कार क पारप रक िविध थी, वह तो िमट गयी ह,
िकतु पा ा य रग-ढग लेने का भी साम य नह ह। पूजा-पाठ आिद जो कछ था, उसे तो हम लोग जल म वािहत
िकये दे रह ह, पर समयोपयोगी एक नवीन कार का कछ अभी भी बन नह पा रहा ह। हम इस समय म य रखा
क दुदशा म पड़ ह, भिव य बंगाल अभी भी अपने पैर पर खड़ा नह आ ह। यहा िश प क िवशेष दुदशा ई
ह। पहले वृ ाएं घर ार म मांगिलक िच कारी िकया करती थी, दीवार को रग-िबरगा रगाती थ , कले क प
को मनोहारी शैली म काटती थ , खाने-पीने क चीज को भी नाना िश प चातुरी से सजाती थ , वह सब या तो
चू ह म चला गया ह या शी ाितशी ही जा रहा ह। नयी चीज अव य सीखनी ह गी, करनी ह गी, पर या पुरानी
चीज को जल म डबाकर? नयी बात तो तुमने खाक सीख ह, कवल बात बनाना जानते हो! काम क िव ा तुमने
कौन सी सीखी ह? आज भी दूरदराज क गांव म पुरानी लकड़ी का काम और ईट का काम देख आओ। कलक े
क बढ़ई एक जोड़ा दरवाजा तक नह तैयार कर सकते। दरवाजा ह िक ट र, पता ही नह चलता! बढ़ईपना तो
अब कवल अं ेजी औजार को खरीदने म ही रह गया ह! यही अव था सब िवषय म हो गयी ह। हमारा जो कछ
था वह सब तो जा रहा ह और िवदेश से भी सीखी ह कवल बकवास! खाली िकताब और िकताब ही तो पढ़ रह
हो! हमार देश म बंगाली और िवलायत म आय रश (आयरलड वाले) दोन ही एक ही वभाववाली जाितयां ह।
खाली बकबक कर रही ह। व ृता झाड़ने म ये दोन जाितयां खूब िनपुण ह, िकतु काम करने म एक कौड़ी भी
नह , उ ट िदन-रात आपस म ही लड़ते-झगड़ते मरते िफरते ह!
साफ-सफाई, साज-स ा म इस देश (पा ा य) का ऐसा अ यास ह िक अित गरीब पय त आदमी क भी इस
ओर नजर रहती ह। नजर तो रखनी ही पड़ती ह, कारण, साफ-सुथरा कपड़ा-ल ा न पहनने से कोई उ ह कामकाज
ही न देगा। नौकर, नौकरानी, रसोइन आिद सबका कपड़ा िदन-रात लकालक रहता ह। घर- ार झाड़-बुहार कर,
िघस-प छकर साफ-सुथरा िकया रहता ह। इन पर धान अनुशासन यह ह िक जहाँ-तहाँ कोई चीज कभी नह
फकगे। रसोइघर झकाझक, कड़ा-करकट जो कछ फकना ह तो उसे पा म फकते ह, िफर उस थान से दूर ले
जाकर फकगे। न आंगन म और न रा ते म ही फकते ह।
िजनक पास धन ह, उनका घर तो देखने लायक होता ह, रात-िदन सब झकाझक रहता ह। तदोप र, देश-िवदेश
क नाना कार क कारीगरी क चीज को एकि त करते ह। इस समय हम उनक तरह कारीगरी क चीज एकि त
करने क आव यकता नह ह, िकतु जो चीज न हो रही ह, उनक िलए तो थोड़ा य न करना पड़गा, ठीक ह न?
उन जैसी िच कला अथवा मूितिश प क िवधाएं अिजत करने म हम अभी भी देर ह। इन दोन काम म हम
िचरकाल से अनाड़ी ह। हमार ठाकर, देवता सब कसे ह, देखो न, यह तो जग ाथजी को ही देखने से पता लग
जाता ह! ब त य न करने पर, उन (यूरोिपय ) क नकल करने पर कह एक-आध रिव वमा बन जाता ह! ऐसे
लोग क अपे ा देशी चलिच बनाने वाला िच कार बेहतर ह, उनक काम म झकाझक रग तो ह।
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वामी िववेकानंद : संि जीवनी
वामी िववेकानंद ने प र ाजक क प म वदेश सिहत भारतीय उपमहा ीप क यापक या ा क । भारतीय
उपमहा ीप क या ा क अंत म जब वे क याकमारी प चे तो ब त यिथत थे। देश भर क या ा म उ ह सैकड़
लोग से िमलने का अवसर िमला। यहाँ क गरीबी, भेदभाव, ऊच-नीच, धम क नाम पर आडबर, जाितवाद,
जमपदारी था क बुराइय आिद को देख-अनुभव कर वे सदमे जैसी अव था म थे।
वे क याकमारी क शांत समु तट पर अशांत खड़ थे। तभी उनक नजर समु क गभ म थत एक िशलाखंड
(यही िशलाखंड बाद म ’िववेकान द िशला’ नाम से मश र आ) पर पड़ी। वे खतरनाक जलचर से भर सागर को
तैरकर पार करते ए उस िशलाखंड पर प चे और िचंतन म डब गए। अनेक िवचार उनक मन-म त क म डब-
उतरा रह थे। ’वे कसे भारतीय जा क दुख को दूर कर? कसे भूख क भूख शांत कर? कसे बेरोजगार को
रोजगार क अवसर द।’
यहप पर िचंतन क दौरान उ ह याद आया िक उनक िम उ ह िशकागो (संयु रा य अमे रका) म होने वाली
िव धम महासभा म भारत क ितिनिध क प म भेजना चाहते ह। वहाँ जाने से या होगा? या भारत म
संप ता आ जाएगी? िफर उ ह ने सोचा िक वे अमे रक जनसमाज क बीच भारत का ाचीन ान िवतरण करगे
और उसक बदले म िव ान और ौ ोिगक भारत ले आएंग।े उ ह ने यह भी सोचा िक अमे रका म यिद उनका
अिभयान सफल रहा तो इससे प म क लोग क मन म भारत क ित ा बढ़गी और भारतवािसय म भी
आ मिव ास क वृ होगी।
अंततोग वा उ ह ने िशकागो जाने का िन य कर िलया। उनक इस िन य से उनक िम और शुभ-िचंतक क
बीच हष क लहर दौड़ गई। खेतड़ी नरश ने उनक या ा क िलए धन क यव था क ।
31 मई, 1893 को एस.एस. पेिनंसुलर नामक जलयान म सवार होकर बंबई से वामीजी क या ा आरभ ई।
उनका भगवा प रधान, पगड़ी और आकषक य व अनेक लोग को उनक ओर आकिषत करता था। लेिकन
जहाज का भीतरी माहौल िववेकानंद को नहप भाता था। सूटकस, बॉ स, बटए तथा कपड़ क देखभाल का काम
उ ह ब त झंझट भरा लगता था। लेिकन धीर-धीर उ ह ने वयं को उस माहौल म ढाल िलया।
जहाज का पहला पड़ाव ीलंका क राजधानी कोलंबो म पड़ा। यहाँ िववेकानंद ने हीनयान बौ क मठ देखे।
िसंगापुर क माग म उ ह मलय जाित क समु ी डाक क पुराने अ देखने को िमले। हांगकांग क य त
बंदरगाह म उ ह चीन देश क थम झलक िमली। इसक बाद कटन, नागासाक , ओसाका, योटो और टोिकयो
देखते ए वे थल-माग से याकोहामा आए।
जापानी लोग क उ ित और कला- ेम ने उ ह बेहद भािवत िकया। वाधीन जापान ने कछ ही वष म
पा ा य देश से ित पधा करते ए अ ुत उ ित क थी। ऐसी उ ित वे भारत क भी चाहते थे।
जापान से जहाज ारा वे पं ह जुलाई को कनाडा क वकवर बंदरगाह पर उतर। वहाँ से टन ारा िशकागो
प चे।
िशकागो का आधुिनक प रवेश, आिथक संप ता, कल-कारखाने - वामीजी को सबकछ नया-नया सा लग रहा
था। उ ह सब देखकर ब त खुशी ई; लेिकन य ही भारत क याद आई उनका िदल बोिझल सा हो गया।
िफर वे सूचना क पर प चे और धम स मेलन क बार म जानकारी माँगी। जो स मेलन जुलाई म होना था उसे
िसतंबर क थम स ाह तक क िलए थिगत कर िदया गया था। और वहाँ का ितिनिध व हािसल करने क िलए
िकसी िति त सं था का माण-प आव यक था। दूसर, उ ह बताया गया िक ितिनिधय क िलए नामांकन प
भरने का समय भी अब िनकल चुका ह। यह सब वामीजी क िलए बड़ा अ यािशत था।
भारत से रवाना होते समय न तो खेतड़ी नरश ने न उनक अ य िम ने धम महासभा क िववरण, िनयम आिद
जानने क कोिशश क । उ ह ने सोचा िक इन युवा सं यासी का य व ही यथे ह और उ ह अलग से िकसी
माण-प क आव यकता न होगी।
िफर स मेलन क जुलाई से िसतंबर तक टल जाने क कारण उनक जेब भी शी ही ह क होने लगी। िसतंबर
तक िशकागो म रहकर अपना खच चला पाने क िलए उनक पास पैसे नहप थे। उ ह िकसी ने बताया िक बो टन
कम महगा ह। उ ह ने बो टन जाने का िनणय िकया। उनक आकषक य व से भािवत होकर एक थानीय
धना य मिहला कट सेनबोन ने उनसे अपने यहाँ आित य वीकार करने का िनमं ण िदया। वामीजी ने भी खच
बचाने क ि से यह आमं ण सहष वीकार कर िलया।
यहाँ अनेक िति त लोग से उनका प रचय आ। हावड िव िव ालय क ीक भाषा क ोफसर जे.एच.
राइट वामीजी से पहली ही भट म इतने भािवत ए िक उ ह धम महासभा म ितिनिध क प म थान िदलाने
का सारा भार उ ह ने अपने ऊपर ले िलया। इसे दैवी- यव था किहए या वामीजी क ितभा का चम कार िक एक
असंभव सा काम संभव हो गया था। ो. राइट ने धमसभा क अ य को प िलखा था िक “ये एक इतने बड़
िव ान ह िक हमार सम त ा यापक को एक करने पर भी इनक बराबरी नहप कर सकगे।’’
प लेकर िनयत ितिथ को वामी िववेकानंद िशकागो प चे लेिकन दुभा य से चयन सिमित का पता खो बैठ।
वह रात उ ह ने मालगाड़ी क एक िड बे म िबताई। सुबह जॉज ड यू. हल नाम क एक मिहला ने उनक सहायता
क । उ ह भोजन कराया और धम महासभा क अ य डॉ. जे.एच. बैरोन से िमलवाया। वहाँ उ ह िहदू धम क
ितिनिध क प म वीकार कर िलया गया।

धम महासभा
11 िसतंबर, 1893 का िदन भारतवािसय क िलए एक ऐितहािसक िदन कहा जाएगा। इस िदन वामी िववेकानंद
ने िहदू धम क परचम को िव क सव थान पर फहराया था।
सवर दस बजे सभा क काररवाई आरभ ई। इसम ईसाई, िहदू, जैन, बौ , कन यूिशयन, िशंतो, इ लाम तथा
पारसी आिद धम क िव ान ने भाग िलया और अपने-अपने िवचार कट िकए।
िशकागो क आट पैलेस का हॉल सात हजार िति त नाग रक से खचाखच भरा था। मंच पर बीच म रोमन
कथिलक चच क सव धमािधकारी कािडनल िगब स बैठ थे। उनक दािहनी तथा बायप ओर कलक ा
समाज क तापचं मजुमदार, बंबई क नागरकर, िसंहली बौ धम क धमपाल, जैनधम क गांधी तथा
िथयोसॉिफकल सोसाइटी क च वतब और एनी बेसट आिद िव ान बैठ थे। उ हप क साथ वामी िववेकानंद बैठ
थे।
ितिनिधगण एक-एक कर उठते और अपना िलिखत भाषण पढ़कर बैठ जाते। वामी िववेकानंद तो िबना तैयारी
क गए थे। इतनी भीड़ क बीच म सावजिनक प से भाषण देने का उनका यह पहला अनुभव था, अतः िदल जोर
से धड़क भी रहा था। कई बार बुलाए जाने पर भी वे अपनी बारी थिगत करते गए। आिखरकार वे उठ ही। उ ह
उठना ही पड़ा।
मन ही मन देवी सर वती को णाम कर वे बोले - “अमे रकावासी बहनो और भाइयो!’’
इतना सुनना था िक हजार ोता अपनी किसय से उठ खड़ ए और तािलयाँ बजाकर उनका वागत करने लगे।
वे एकमा ऐसे व ा थे िज ह ने औपचा रक श द क थान पर इन आ मीय श द ारा संबोधन िकया था।
ोता क इस हलचल को शांत होने म पूर दो िमनट लगे। इसक बाद िहदू धम क अ य सभी धम क ित
सिह णुता क िवषय म सं ेप म बोलने क बाद वे वापस अपनी जगह पर जा बैठ।
उनक छोट िकतु सारगिभत भाषण क अगले िदन क थानीय अखबार म भूिम-भू र शंसा क गई। धम
महासभा क िव ान िवभाग क सभापित मरिवन मेरी ेल क श द म - “इसक (महासभा) एक सबसे बड़ी देन
यह ह िक इसने ईसाई जग को और िवशेषकर अमे रक जनता को यह समझा िदया िक ईसाई धम क तुलना म
उससे भी अिधक स माननीय दूसर धम ह, जो दाशिनक िचंतन क गहराई म, आ या मक िन ा म, वाधीन
िवचारधारा क तेज म, मानवीय सहानुभूित क िवशालता म ईसाई धम को भी पीछ छोड़ जाते ह और साथ ही नैितक
स दय और कायकशलता म भी उससे िबंदु मा भी यून नहप ह।’’
एक य दी िव ान ने वामीजी का या यान सुनने क बाद कहा - “मुझे जीवन म पहली बार अनुभव आ िक
मेरा य दी धम स य ह।’’
कवल वामीजी ई र क बार म बोले, जोिक सभी धम क चरम ल य तथा सार सव व ह; जबिक अ य सभी
व ा ने अपने ही आदश अथवा सं दाय को े ठहराने क बार म तक िदए।
यह धमसभा स ह िदन तक चली। और वामी िववेकानंद अकसर सबसे आिखर म या यान देते थे। उनका
या यान सुनने क िलए ोतागण आिखर ण तक अपनी किसय से िचपक रहते थे। अखबार उनक खबर से
भर रहते थे। िशकागो क सड़क पर उनक आदमकद िच टाँग िदए गए थे। लोग उ ह ा से नम कार करक
आगे िनकलते थे।
जहाँ एक ओर शंसक क भीड़ थी तो कछ क र ईसाई उनक सफलता से िचढ़ भी गए थे। वे तरह-तरह से
वामीजी को बदनाम और परशान करने लगे। लेिकन साँच को आँच नहप। वामीजी भी इस िनंदािवष क दु भाव
से साफ बचे रह।
धम महासभा क अंितम िदन 27 िसतंबर को इसका उपसंहार करते ए वामीजी ने कहा - “ईसाई को िहदू या
बौ नहप हो जाना चािहए, और न िहदू अथवा बौ को ईसाई ही। पर हाँ, येक को चािहए िक वह दूसर क
सार-भाग को आ मसात करक पुि -लाभ कर और अपने वैिश य क र ा करते ए अपनी िनजी वृ क िनयम
क अनुसार िवकिसत हो। इस धम महासभा ने जग क सम यिद कछ दिशत िकया ह, तो वह यह ह : इसने यह
िस कर िदया ह िक शु ता, पिव ता और दयाशीलता िकसी सं दाय-िवशेष क बपौती नहप ह, और येक
धम ने े एवं उ तच र नर-ना रय को ज म िदया ह। अब इन य माण क बावजूद यिद कोई ऐसा व न
देखे िक अ य सार धम न हो जाएँगे और कवल उसका धम ही जीिवत रहगा, तो मुझे उस पर अपने अंत दय से
दया आती ह और म उसे प कह देता िक शी ही, सार ितरोध क बावजूद, येक धम क पताका पर यह
िलखा होगा - ’यु नहप - सहायता; िवनाश नहप - हण; मतभेद और कलह नहप - िमलन और शांितय।’’
िववेकानंद क इन श द का बड़ा मह वपूण प रणाम आ। उ ह ने वेदांत क सावभौिमक वाणी का चार िकया
था िजसक फल व प आय धम, आय जाित और आय भूिम संसार क ि म पूजनीय हो गई। िहदू जाित पद
दिलत ह पर घृिणत नहप; दीन-दुखी होने पर भी ब मू य पारमािथक संपि क अिधका रणी ह और धम क े म
जग ु होने क यो य ह। अनेक शता दय क बाद िववेकांनद ने िहदू जाित को अपनी मयादा का बोध कराया,
िहदू धम को घृणा और अपमान क पंक से उबारकर, उसे िव -सभा म अित उ आसन पर िति त िकया।
इसक बाद वामीजी आहवा िसटी, डस माइस, मे फस, इिडयानापॉिलस, िमिनयापॉिलस, ड ायट, बफलो,
हाटफोड, बॉ टन, कि ज, यूयॉक, बा टीमोर, वािशंगटन तथा अ य अनेक नगर म या यान देने गए। इन तूफानी
दौर क चलते उ ह ’तूफानी िहदू’ क सं ा दी गई। वामी िववेकानंद नकली ईसाई धम और अनेक ईसाई नेता
क धािमक िम याचार क ित िवशेष कठोर थे। ऐसे लोग पर वामीजी व क समान टट पड़ते थे। इस कारण
उ ह िवरोध का सामना भी करना पड़ता था। लेिकन वे मानवता क ेमी थे। वे मानव को ही ई र क सव
अिभ य मानते थे और वही ई र िव म सव सताए जा रह थे। इस कार अमे रका म उनका दोहरा िमशन
था। भारतीय जनता क पुन थान हतु वे अमे रक धन, िव ान तथा ौ ोिगक क सहायता लेना चाहते थे और
बदले म अमे रक भौितक गित को साथक बनाने क िलए उ ह आ मा का अनंत ान देना चाहते थे।

यूरोप म धम- चार


दो वष अमे रका म िबताकर वामीजी अग त, 1895 म ांस क राजधानी पे रस प चे। वहाँ क िति त लोग
से िमले। धम-चचा ई।
लंदन म उनका वागत क. मूलर ने िकया जो अमे रका म भी उनसे िमल चुक थप। यह वही देश था िजसने
भारत को गुलाम बना रखा था। उ ह ने भारत क दुदशा क िलए कम-से-कम आंिशक प से िवदेशी शासन को भी
िज मेदार ठहराया। ि िटश शासक क ि म भारतवष अंधिव ास म डबा आ एक अंधकारमय देश था। अतः
वे सोच रह थे िक अं ेज लोग या उ ह धैयपूवक सुन सकगे?
लेिकन यहाँ भी शी ही वामीजी क या यान क धूम मचने लगी। समाचार-प म उनक भू र-भू र शंसा
होने लगी। एक अखबार म छपा - “लंदन क ग यमा य प रवार क मिहला को, किसय क अभाव म, ठीक
भारतीय िश य क तरह जमीन पर पालथी मारकर बैठ या यान सुनते ए देखना वा तव म एक दुलभ तबीथ
था। वामीजी ने अं ेज जाित क दय म भारत क ित ेम और सहनुभूित का जो उ ेक कर िदया ह, वह भारतवष
क िलए िवशेष प से लाभकारी होगा।’’

पुनः अमे रका म


लंदन म अभी तीन महीने ए थे िक अमे रक िश य ने अनुरोध करक उ ह पुनः अमे रका बुलवा िलया।
6 िसतंबर को वे पुनः अमे रका प चे। फरवरी, स 1896 म उ ह ने यूयॉक म ’वेदांत सिमित’ क थापना क ।
बाद म उ ह ने ड ायल एवं बो टन आिद नगर म भी इसी कार क सिमितय का गठन करक उनक संचालन का
भार अपने िश य को स प िदया।
इसी बीच लंदन से बुलावा आने पर वे अपैल, 1896 म लंदन प चे। उ ह सहयोग देने क िलए भारत से गु भाई
सारदानंद भी लंदन आ प चे थे।
यहाँ आयरलड म ज मी मागरट नामक एक िशि त मिहला वामीजी क िश या बनप जो बाद म भारत चली
आइऔ और भिगनी िनवेिदता क नाम से सुप रिचत इऔ।
लंदन म वामी िववेकानंद और सारदानंद क तूफानी या यान आरभ हो गए। एक सभा म वामीजी का
या यान समा हो जाने पर पक बाल वाले एक िस दाशिनक ने उनसे कहा - “आपका या यान बड़ा ही
सुंदर रहा ह महाशय। परतु आपने कोई नई बात तो कही नहप ह।’’
वामीजी ने अिवलंब उ र िदया - “महाशय! जो स य ह, वही मने आप लोग को बताया ह और स य उतना ही
ाचीन ह िजतने िक ये पवत, उतना ही ाचीन ह िजतनी िक यह मानवता, उतना ही ाचीन ह िजतना िक यह
ांड और उतना ही ाचीन ह िजतने िक परमे र। यिद म उसी स य को ऐसी भाषा म तुत कर सका जो
आपक िवचारश को े रत करता ह, और आपक िचंतन क अनु प जीवन यापन म सहायक होता ह, तो या
मेरा बोलना साथक नहप आ?’’ वामीजी क इन वा य का जोर क तािलय क साथ वागत आ।
ऑ सफोड म वामीजी क भट महान जमन सं कत एवं भारतिव मै समूलर से ई। मै समूलर का भारत ेम
देखकर वामीजी अिभभूत हो उठ। यहाँ गुडिवन, हन रयेटा मूलर, टडब, ी एवं ीमती सेिवयर आिद लोग उनक
अंतरग संपक म आए और जीवन भर उनक अन य िश य बने रह।
लंदन वास क दौरान ही उ ह क ल िव िव ालय क दशन क ा यापक सु िस ा यिव पाल डॉयसन का
प िमला। उ ह ने वामीजी को जमनी आने का आमं ण िदया था। वे उनक आमं ण को टाल नहप सक।
डॉयसन ने वामीजी को क ल नगरी का मण करवाया और वेदांत आिद िवषय पर गंभीर चचा ई। कछ िदन
वहाँ रहकर वामीजी हॉलड म ए सटरडम होते ए वापस लंदन आ गए।
लंदन म वामीजी पुनः य त हो गए। इसी बीच भारत से वामी अभेदानंद भी लंदन आ गए। 27 अग त, 1996
को लू सबेरी ेयर क एक ब म वामी अभेदानंद का पहला या यान आ। उसे सुनकर वामीजी ने कहा
- “अब यिद म इस लोक से िवदा भी हो जाऊ तो मेरा संदेश इन ि य ह ठ से उ ा रत होता रहगा और जग
सुनेगा।’’
इसी कार वामी सारदानंद यूयॉक म वामी िववेकानंद क काम को आगे बढ़ा रह थे और उनक सफलता क
चच अखबार म छपते रहते थे।
इ लड म धम- वतन क काय से वामीजी सवथा संतु थे तो भी उ ह ने अमे रका क समान वहाँ कोई संगिठत
काय आरभ नहप िकया। उनक त कालीन प एवं वा ालाप से ऐसा लगता था िक वे इस संसार से ऊब रह थे।
य िप जागितक ि से वे तब सफलता क िशखर पर प च चुक थे, परतु वे अब ानुभूित से ा होने वाली
शांित क िलए याकलता का अनुभव कर रह थे। उ ह लग रहा था िक इस जग म अब उनका काय समा हो
चुका ह।

वदेश वापसी
लगभग तीन वष िवदेश म िबताकर 16 िदसंबर, 1896 को वामी िववेकानंद लंदन से वदेश क िलए रवाना
ए। उनक साथ गुडिवन और सेिवयर दंपित आिद लोग भी थे।
ये तीन वष सत या ा और या यान म बीते थे। जहाज क दो स ाह क या ा क दौरान वामीजी ने िव ाम
का आनंद िलया और अपनी भावी योजना क बार म अपने िश य से िवचार-िवमश िकया।
15 जनवरी, 1896 को ातः जहाज ने कोलंबो समु तट का पश िकया। वहाँ कसा तबीथ उप थत होगा,
िकसी ने क पना नहप क थी। जैसे ही वामीजी क बंदरगाह पर कदम पड़, हजार लोग ने जय विन क साथ
उनका वागत िकया। िति त नाग रक ने एक बड़ी शोभाया ा का आयोजन िकया, उ ह मानप भी दान िकया
गया।
ीलंका क कडी, अनुराधापुरम, जाफना आिद थान पर वामीजी ने दस िदन िबताए और वेदांत दशन, सनातन
धम आिद िवषय पर ओज वी या यान िदए। यहाँ से वे रामे र , ि चराप ी और कभकोणम होते ए म ास
प चे। यहाँ भी हजार क भीड़ उनक वागत को उमड़ पड़ी। यहाँ उ ह ने पाँच या यान िदए और नौ िदन िबताए।
वामीजी क ओज वी वाणी ने भारतवािसय क जीवन म उथल-पुथल मचा दी। िनभबक जन-जागरण ने
संगिठत हो रा वाद को नई िदशा दी। उ ह ने भिव य क भारत म अपना-अपना थान हण करने को आम जनता
का आ ान िकया - “नया भारत िनकल पड़ मोदी क दुकान से, भड़भूजे क भाड़ से, कारखाने से, हार से, बाजार
से, िनकल पड़ झािडय , जंगल , पहाड़ , पवत से।’’
जनता ने वामीजी क पुकार का उ र िदया। वह गव क साथ िनकल आयी। गांधीजी को आजादी क लड़ाई म
जो जन-समथन िमला, वह िववेकानंद क आ ान का ही फल था। व तुतः वामी िववेकानंद भारत क वाधीनता
आंदोलन क एक मुख ेरणा- ोत थे।
म ास से, 20 फरवरी, 1897 को वामीजी कलक ा प चे। यहाँ उनका अभूतपूव सावजिनक अिभनंदन िकया
गया। यहाँ लोग का आ ान करते ए उ ह ने कहा - “अगले पचास वष क िलए रा ही हमारा एकमा देवता
हो। सव थम िवरा क पूजा करनी होगी, सेवा नहप, पूजा। ये मनु य, ये पशु, ये ही तु हार ई र ह, और तु हार
थम उपा य तु हार देशवासी ही ह।’’

रामक ण िमशन क थापना


संगठन क श ने वामीजी को मोिहत कर िलया था, इसका य भाव वे प मी देश म देख चुक थे।
अतः धम- चार और जनसेवा काय क िव तार क िलए उ ह ने 1 मई, 1897 को ’रामक ण िमशन’ क थापना
क।
इसक कछ िदन बाद ही िववेकानंद उ र भारत क या ा पर िनकल पड़। लखनऊ म उनका हािदक वागत
आ। कछ िदन उ ह ने अ मोड़ा म िबताए। इसक बाद पंजाब, क मीर, िसयालकोट, लाहौर और देहरादून होते ए
िद ी, अलवर, िकशनगढ़, अजमेर, जोधपुर, इदौर और खंडवा भी गए।
इस तूफानी दौर से वामी क वा य पर िवपरीत भाव पड़ रहा था, लेिकन वे सत या ारत रह। माच, 1898
म कलक ा म लेग फलने का समाचार सुनकर वामीजी वहाँ लौटकर लेग-िनवारण क काय म जुट गए। लेग
शांत हो गया तो वे अपने कछ िश य क साथ नैनीताल क या ा पर गए। िहमालय े म एक मठ क थापना
करना इस या ा का उ े य था।
सेिवयर दंपित क धन से माच, 1899 म अ मोड़ा िजले म ’मायावती’ नामक अ ैत आ म (मठ) क थापना
ई। िम. सेिवयर को उसका अ य बनाया गया। व जरलड म ए स पवतमाला का प रदशन करने क बाद से
ही वामीजी क मन म िहमालय क िनजनता म एक ऐसा मठ थािपत करने क इ छा घर कर गई थी, जहाँ कवल
शु अ ैत क ही िश ा एवं साधना होगी। ी और ीमती सेिवयर ने वामीजी क इस िवचार को पाियत करने
का संक प िलया और 65,000 फ ट क ऊचाई पर थत मायावती म अ ैत आ म क थापना ई।

पुनः िवदेश या ा
अमे रका म अभेदानंद वामी धम- चार म लगे थे। वे और अ य अनेक िश य वामी िववेकानंद को वहाँ आने
क िलए प िलखते रहते थे। इधर उ र भारत क सघन या ा ने उनक शरीर को जजर करक रख िदया था।
िचिक सक ने उ ह पूर िव ाम क सलाह दी थी। लेिकन अंततः प म क बुलावे पर वे एक बार पुनः अमे रका
जाने क िलए उ त हो उठ।
20 जून, 1899 को कलक ा से उनक या ा आरभ ई। जहाज म उनक साथ वामी तुरीयानंद और भिगनी
िनवेिदता भी थे। अग त क म य म वे अमे रका प चे। यहाँ यूयॉक, यू जसब, लॉस एंिज स, पैसाडना, िशकागो,
ड ायट और किलफोिनया म अनेक या यान िदए। उ ह ने वामी तुरीयानंद को किलफोिनया म आ म क
थापना क िलए भी े रत िकया।
मानव क यथा क ित वे िकतने संवेदनशील थे। 12 िदसंबर, 1899 क िदन उ ह ने अपने एक अमे रक िम
को िलखा - “अनेक वष पूव म िहमालय म गया था, इस िन य क साथ िक िफर वापस नहप लौटगा। इधर मुझे
समाचार िमला िक मेरी बहन ने आ मह या कर ली ह। िफर मेर दुबल दय ने मुझे उस शांित क आशा से दूर फक
िदया! िफर उसी दुबल दय ने, िज ह म यार करता , उनक िलए िभ ा माँगने मुझे भारत से दूर फक िदया और
आज म अमे रका म ! शांित का म यासा ; िकतु यार क कारण मेर दय ने मुझे उसे पाने न िदया। संघष और
यातनाएँ, यातनाएँ और संघष! खैर, मेर भा य म जो िलखा ह, वही होने दो, और िजतना शी वह समा हो जाए,
उतना ही अ छा ह।’’
अमे रका म िफर उ ह ऊब होने लगी थी। वे वदेश लौटने को य थे। 20 जुलाई, 1900 को वे अपने चार
िम क साथ पे रस आ गए। यहाँ से िवएना, हगरी, सिबया, मािनया और बुलगे रया मण करते ए िम क
राजधानी कािहरा प चे। यहाँ उ ह पूवाभास आ िक ी सेिवयर को कछ आ ह। इसक बाद वे भारत लौटने क
िलए आतुर हो उठ और जो भी पहला जहाज िमला, उसी से अकले बंबई क या ा क ।
बंबई बंदरगाह पर उतरकर उ ह ने त काल कलक ा क ओर थान िकया। मठ म उ ह सूचना िमली िक ी
सेिवयर का िनधन हो चुका ह। इस बात का पूवाभास उ ह िम म िमल चुका था। कछ ण वे शोक म डब गए।
बाद म अपनी यथा को उ ह ने एक प म कट िकया था - “इस कार दो अं ेज महानुभाव (एक -सेिवयर,
दूसर - गुडिवन) ने हमार िलए - िहदु क िलए आ मोसग िकया। इसी को शहीद होना कहते ह। उनक ारा
थािपत आ म क िकनार से जो नदी बहती ह, उसी क तट पर िहदू रीित से उनका अंितम सं कार िकया गया...।’’

महासमािध
िववेकानंद क ओज वी और सारगिभत या यान क िस िव भर म ह। यदिशय क अनुसार जीवन क
अंितम िदन भी उ ह ने अपने ‘ यान’ करने क िदनचया को नहप बदला और ातः दो तीन घंट यान िकया। उ ह
दमा और शकरा क अित र अ य शारी रक यािधय ने घेर रखा था। उ ह ने कहा भी था, ‘ये बीमा रयाँ मुझे
चालीस वष क आयु भी पार नहप करने दगी।’
4 जुलाई, 1902 को (महासमािध क िदन) िववेकानंद पूववत सुबह ज दी उठ, बेलूर मठ क पूजा घर म पूजा
करने गये और बाद म 3 घंट तक योग भी िकया। उ ह ने छा को शु -यजुवद, सं कत और योग साधना क
िवषय म पढ़ाया, बाद म अपने सहिश य क साथ चचा क और रामक ण मठ म वैिदक महािव ालय बनाने पर
िवचार-िवमश िकया। सायं 7 बजे िववेकानंद अपने क म गए और अपने िश य को शांित भंग करने क िलए मना
िकया और राि 9 बजे योग उ ह ने महासमािध ले ली। उ ह ने अपनी भिव यवाणी को सही सािबत िकया िक वे 40
साल से यादा नहप िजयगे। बेलूर क गंगा नदी म उनक शव को चंदन क लकि़डय से अ न दे दी गई।
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वामी िववेकानंद : मह वपूण ितिथयाँ
12 जनवरी, 1863 : कोलकाता म ज म
स 1879 : ैिसडसी कॉलेज म वेश
स 1880 : जनरल एसबली इ टी यूशन म वेश
नवंबर, 1881 : ीरामक ण परमहस से थम भट
स 1882-1886 : ीरामक ण परमहस से संब
स 1884 : ातक परी ा उ ीण; िपता का वगवास
स 1885 : ीरामक ण परमहस क अंितम बीमारी
16 अग त, स 1886 : ीरामक ण परमहस का िनधन
स 1886 : वराह नगर मठ क थापना
जनवरी, 1887 : वराह नगर मठ म सं यास क औपचा रक ित ा
स 1890-1893 : प र ाजक क प म भारत मण
24 िदसंबर, 1892 : क याकमारी म
13 फरवरी, 1893 : थम सावजिनक या यान, िसंकदराबाद म
31 मई, 1893 : मुंबई से अमे रका रवाना
25 जुलाई, 1893 : वकवर, कनाडा प चे
30 जुलाई, 1893 : िशकागो आगमन
अग त, 1893 : हावड िव िव ालय क ो. जॉन राइट से भट
11 िसतंबर, 1893 : धम महासभा, िशकागो म थम या यान
27 िसतंबर, 1893 : धम महासभा, िशकागो म अंितम या यान
16 मई, 1894 : हावड िव िव ालय म संभाषण
नवंबर, 1894 : यूयॉक म वेदांत सिमित क थापना
जनवरी, 1895 : यूयॉक म धम-क ा का संचालन आरभ
अग त, 1895 : पे रस म
अ टब, 1895 : लंदन म या यान
6 िदसंबर, 1895 : वापस यूयॉक
22-25 माच, 1896 : हावड िव िव ालय म या यान
15 अपैल, 1896 : वापस लंदन
मई-जुलाई, 1896 : लंदन म धािमक-क ाएँ
28 मई, 1896 : ऑ सफोड म मै समुलर से भट
30 िदसंबर, 1896 : नेप स से भारत क ओर रवाना
15 जनवरी, 1897 : कोलंबो, ीलंका आगमन
6-15 फरवरी, 1897 : म ास म
19 फरवरी, 1897 : कलक ा आगमन
1 मई, 1897 : रामक ण िमशन क थापना
मई-िदसंबर, 1897 : उ र भारत क या ा
जनवरी, 1898 : कलक ा वापसी
19 माच, 1899 : मायावती म अ ैत आ म क थापना
20 जून, 1899 : प मी देश क दूसरी या ा
31 जुलाई, 1899 : लंदन आगमन
28 अग त, 1899 : यूयॉक आगमन
22 फरवरी, 1900 : सैन ांिससको म
14 अपैल, 1900 : सैन ांिससक म वेदांत सिमित क थापना
जून, 1900 : यूयॉक म अंितम क ा
26 जुलाई, 1900 : यूरोप रवाना
24 अ टबर, 1900 : िवयेना, हगरी, क तु तूिनया, ीस, िम आिद देश क या ा
26 नवंबर, 1900 : भारत को रवाना
9 िदसंबर, 1900 : बेलूर मठ आगमन
जनवरी, 1901 : मायावती क या ा
माच-मई, 1901 : पूवब बंगाल और असम क तीथ या ा
जनवरी-फरवरी, 1902 : बोध गया और वाराणसी क या ा
माच, 1902 : बेलूर मठ म वापसी
4 जुलाई, 1902 : महासमािध
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