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Black Lives Metter
Black Lives Metter
ये सवाल जितना जितना छोटा है, इसका जवाब उतना ही विकराल और विराट।
हमे सवाल का जवाब ढूंढने से पहले रंगभेद और विज्ञापन का इतिहास के बारे में चर्चा करना होगा।
रंगभेद का इतिहास कोई नया नही है, हिन्दू वेदों से लेकर सभी धर्म ग्रन्थ इसपर एक कड़ा प्रहार करती है। इसके वावजूद भी सदियों से पूरा विशव इस परेशानी को झेल
रहा है। इसका पीछे का इतिहास कु छ भी हो लेकिन एक समाज के कई इतिहासकार अपनी दलीलों में ये भी लिखते है कि रंगभेद और दासप्रथा एकसामान है। इसके पीछे का
ये भी तर्क दिया जाता है कि मानव सभ्यता के शुरुवात के दिनो मे जब युद्ध होता था तब हारे गये सेना को भोजन बना लिया जाता था। लेकिन जैसे जैसे संस्कृ ति का विकास
हुआ लोग खेती में विश्वास करने लगे तो लोगो ने दास प्रथा की शुरुवात की।
धीरे धीरे एक रंग का समाज आधुनिक हथियारों से लेस भी हो गया और दास प्रथा का झंडा अपने प्रचंड परचम में पहुच गया। लेकिन जब क्रांति का नाद पुरे विश्व भर में फु खा
गया तब हालत तो बदले लेकिन मानसिकता नही। अमेरिका में हाल ही में चल रहे आन्दोलन “ब्लैक लिव्स मेटर” ने पुरे विश्व को उसके उस चेहरे से मिलवाया जो पूरी तरह
से उसके लिए कलंक के सामान है।
पिछले कु छ वर्षों के दौरान पुरे विश्व में फे यरनेस क्रीम की बिक्री असाधारण रूप से बढ़ी है क्योंकि यह क्रीम काले या सांवले व्यक्ति को गोरा बना देने का दावा करती है। यह
देखा गया है कि के वल लड़कियों में गोरा बनने की ललक नहीं है, मर्द भी इसमें पीछे नहीं हैं। इन गोरेपन की क्रीमों को बड़े बड़े अभिनेता प्रचार प्रसार कर रहे हैं। यह और कु छ
नहीं हमारे रंगभेदी रवैये का एक संके त मात्र है।
हम किसी भी तरीके से अके ले विज्ञापन को इस रंगभेद का जिम्मेदार नही मान सकते है। हाँ ये अलग बात है कि रंगभेद वाली मानसिकता को बढ़ाने में कही न कही फे यरनेस
क्रीम के विज्ञापन भी जिम्मेदार है। हम किसी भी तरह से ये भी नही कह सकते है विज्ञापण पर प्रतिबंद लगाने के बाद ये सब बंद हो जायेगा। इससे बढ़िया फे यरनेस क्रीम वाली
कं पनी अपने विज्ञापन में इस बात पर ज्यादा ध्यान दे के इन सब से कोई आहत भी न हो। और विज्ञापन को गोरी त्वचा के विषय को भी हटा के किसी और विषय पर काम
करना चाहिए। विज्ञापन में सभी रंगों के लोगो को सामान भा से दिखाया जाये और यदि कई बदलाव है, जिसपर विज्ञापन से पहले सोचना चाहिए।