निबंध - एक पर्वतीय यात्रा - कक्षा सातवीं

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कक्षा सातवी

निबंध- एक पववतीय यात्रा

यात्रा का अपिा ही आिंद होता है । अगर यह यात्रा ककसी पववतीय प्रदे श की हो तो सोिे पर सुहागा जैसी बात
हो जाती है । मुझे पपछली गर्मवयों की छुट्टियों में ऐसी ही एक यात्रा करिे का सौभाग्य र्मला । हम सब
यमुिोत्री की यात्रा के र्लए गए । मेरे र्लए इस पववतीय यात्रा का क्षण - क्षण मेरे र्लए सदा याद रखिे वाला था
। हम स्कूल के बीस बच्चे अपिे दो अध्यापकों के साथ घम
ू िे जा रहे थे ।

मैदानी इलाके का अनुभव - रात को 10:00 बजे हमारी बस टदल्ली से चली ।सभी सो गए। िींद खुली तो मैंिे
स्वयं को दे हरादि
ू में पाया । सब
ु ह के 5:00 बज चक
ु े थे ।

पहाडी पर बस यात्रा - एक होिल के दालाि में 45 र्मिि बस रुकी । छात्रों िे हाथ - मुंह धोया, तैयार हुए ।
कुछ चाय िाश्ता ककया। तरोताजा होकर सब अपिी-अपिी सीिों पर आ पवराजे । बस ऊंचे- िीचे रास्ते पर
चढ़िे - उतरिे लगी । कभी सांप की तरह सड़क मुड़ जाती थी ।कभी अंग्रेजी के v या u की तरह एकदम मोड़
आता था। जब बस ऊपर चढ़ती थी तो लगता था इंजि को काफी जोर लगािा पड़ रहा है और ढलाि पर ऐसे
लगता था मािो बस वायु में बही जा रही है । खखड़की से िीचे के गहरे खड्ड- खाई टदखते थे तो डर लगता
था ।

यमुना नदी- 3 घंिे चढ़ाई करिे के बाद यमुिा िदी का निमवल जल टदखाई टदया । यमुिा टदल्ली की गंदे
जल वाली यमुिा से बबल्कुल अलग थी । जल हरे रं ग का था । पत्थरों से िकराती हुई उसकी जलधारा सफेद
गुच्छे का रूप धारण कर लेती थी । वातावरण में ठंडक बढ़िी शुरू हो गई ।हिुमाि चट्िी िामक स्थाि पर
पहुंचते-पहुंचते सभी िे स्वेिर, जसी पहि र्लए । यह स्थाि समुद्र से 11000 फुि ऊंचाई पर था । यहां जूि
में भी टदसंबर - जिवरी जैसी ठं ड थी । हम रात को लकड़ी से बिे जजस होिल में ठहरे , वह यमुिा के ककिारे
और पहाड़ों की गोद में था । यमुिा का जल रात की िीरवता को भंग कर रहा था मुझे अनत आिंद आ रहा
था ।

पैदल यात्रा – अगले टदि हमिे आगे की यात्रा शुरु की ।हिुमाि चट्िी से यमुिोत्री तक 13 ककलोमीिर की
पैदल चढ़ाई थी । पैदल यात्रा के र्लए 5 - 6 फुि चौड़ा रास्ता पहाड़ों को कािकर बिाया गया था । यह यात्रा
इतिी रोमांचक थी कक हम सभी उछ्लते - फलांगते पैदल चले । बीच में फूल चट्िी और जािकी चट्िी
िामक स्थाि आये । इि स्थािों पर हमिे चाय - पाि ककया और आधा घंिा पवश्राम ककया । अंनतम 5
ककलोमीिर की चढ़ाई बहुत कटठि थी । यमुिा िदी साथ - साथ बह रही थी । बीच-बीच में भयािक पहाड़ आ
जाते थे । कहीं से रास्ता कफसलिदार भी था । पहाड़ों से बहते झरिे मि मोह लेते थे ।

यमुनोत्री के दर्शन और वापसी - यमुिोत्री में बफव से ढके पहाड़ थे , जजिसे पपघलकर यमुिा का जल बह रहा
था । वहां गंधक का गमव चश्मा था , जजसके जल में िहा कर हम तरोताजा हो गए । वहां यमुिा दे वी का
मंटदर बिा हुआ था । उसके दशवि करके हम वापसी को चले । यह पववतीय यात्रा मुझे सदा याद रहेगी ।

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