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गणाधीश जो ईश सर्वां गुणांचा।
गणाधीश जो ईश सर्वां गुणांचा।
ु ाांचा।
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वर्र्ेके दे हेबद्
ु चध सोडनि द्यार्ी।
मरे एक त्याचा दज
ु ा शोक र्ाहे।
अकस्मात तोही पढ
ु े जात आहे॥
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पढ
ु ें सर्ु जाईल काांही ि राहे ॥२५॥
िप
ु ेक्षी कदा राम दासासभमािी॥३०॥
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िप
ु ेक्षी कदा राम दासासभमािी॥३५॥
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जिी आपल
ु ें हीत तर्ाां करार्ें॥
रघिायकार्ीण बोलो िको हो।
सख
ु ालाचगां आरण्य सेर्ीत जार्े॥४४॥
जिीां जाणताां मत
ु त होऊनि राहे ॥
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उभा कल्पर्क्ष
ृ ातळीां द:ु ख र्ाहे ।
निजध्यास तो सर्ु तट
ु ोनि गेला।
बळें अांतरीां शोक सांताप ठे ला॥
घरी कामधेि पढ
ु ें ताक मागें ।
पढ
ु े मािर्ा ककां करा कोण केर्ा।
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र्थ
ृ ा र्ाहणें दे हसांसारचचांता॥७८॥
तरा दस्
ु तरा त्या परा सागराते॥
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मिा मत्सरे िाम साांडां िको हो।
दज
ु ी तळणा तसळताांही ि साहे ॥८१॥
करी मळ निमळ
ु घेता भर्ाचे।
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फुकाचे मख
ु ी िाम तें ही र्सेिा॥१००॥
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अहां तागण
ु े र्ाद िािा वर्कारी।
तट
ु े र्ाद सांर्ाद तो हीतकारी॥११०॥
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वर्चारे ति
ु ा तचां च शोधनु ि पाहे॥११४॥
तट
ु े र्ाद सांर्ाद तेथें करार्ा।
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अहल्येसतीलागी आरण्यपांथे।
कुडार्ा पढ
ु े दे र् बांदी तयाांते॥
बळे सोडडताां घार् घालीां निशाणी।
िप
ु ेक्षी कदा दे र् भततासभमािी॥१२४॥
जिाांकारणे दे र् लीलार्तारी।
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करी बाण एक मख
ु ी शब्द एक॥
जि
ु े ठे र्णे मीपणे आकळे िा॥१३८॥
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अवर्द्यागण
ु े मािर्ा उमजेिा।
भ्रमे चक
ु ले हीत ते आकळे िा॥
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गती खांट
ु ती ज्ञािबोधे प्रबोधे॥१५७॥
स्मत
ृ ी र्ेद र्ेदान्तर्ातये वर्चचरे॥
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अहां तागुणे सर्ुही दुःु ख होते।
अहां तागण
ु े िीनत साांडी वर्र्ेकी।
प्रमाणाांतरे बद्
ु चध साांडनि जाते॥१६२॥
मिें दे र् निगण
ु तो ओळखार्ा॥
क्स्रयापर
ु समराढदके मोह त्याांचा॥
करी र्त्त
ृ ी जो सांत तो सांत जाणा।
गुणेर्ीण निगण
ु तो आठर्ार्ा।
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निराभास निगण
ु तें आकळे िा।
जगी दे र् धांड
ु ासळता आढळे िा।
जगी मख्
ु य तो कोण कैसा कळे िा॥१७६॥
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दज
ु ेर्ीण तें ध्याि सर्ोत्तमाचे॥
दज
ु ेर्ीण जो तोचच तो हा स्र्भार्े।
दज
ु ेर्ीण जे खुण स्र्ासमप्रतापे॥१९९॥
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॥ जय जय रघुर्ीर समथु ॥