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Agro 5211 Lecture 2&3 Rice धान (चावल)
Agro 5211 Lecture 2&3 Rice धान (चावल)
Tomar,Professor
(Agronomy),CARS,Mahasamund (CG) for BSc Ag.(Hons.) IInd Year
धान (Paddy)
वानस्पतिक नाम : ओराइजा सटाइवा, कु ल: पोऐसी
गेंहू के बाद धान दुतनया की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण अन्न फसल है। धान तवश्व जनसँख्या के आधे से
अतधक तहस्से की भोजन आवश्यकिाएँ पूरी करिा है अर्ाणि मानव कै लोरी का एक प्रमुख स्त्रोि है। धान भारि
में सबसे अतधक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। धान जीवन है क्योंकक यह आजीतवका के स्त्रोि सतहि जीवन के
प्रत्येक क्षेत्र में शातमल है। धान को कू ट कर या
तमललिंग करके उसके तिलके को हटा कर चावल
प्राप्त ककया जािा है तजसे उबालकर खाया
जािा है।
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अवश्य तमलिा है. इस प्रकार हम कह सकिे है कक धान भारि की जान, एतशया की पहचान और जापान का
भगवान है ।
उत्पतत्त (Origin)
धान सिंसार की प्राचीनिम फसलों में से एक है. धान की खेिी की शुरुआि सिंभविः मानव तवकास के
प्रारतम्भक युग में हो चुकी र्ी। इसका उत्पतत्त स्र्ल दतक्षर्-पूवी एतशया महाद्वीप समझा जािा है। तवश्व के
प्राचीनिम ग्रन्र् ऋगवेद में, तवतभन्न स्र्लों पर, इसका उल्लेख तमलिा है। सिंसार में चावल का प्राचीनिम
अवशेष उत्तर प्रदेश के हतस्िनापुर ग्राम की खुदाई से प्राप्त हुआ है जो ईसा से 1000-750 वषण पूवण का है। यूनान
के सम्राट तसकन्दर ने 320 ई.पू. भारि पर आक्रमर् ककया र्ा और लौटिे समय उसके तसपाही अपने सार् धान
के दाने ले गए र्े। इन्ही सब प्रमार्ों के आधार पर अनेक इतिहासकारों एविं पुराित्ववेिाओं ने धान का जन्म
स्र्ान भारि को माना है ।
धान के तलए लैरटन भाषा का ‘ओराइजा’ और अिंग्रेजी का ‘राइस’ ये दोनों नाम ितमल भाषा के ‘अररतस’ शब्द से
उपजे है. अरब के सौदागर अपने सार् अररतस ले गए िो वह अरबी भाषा में ‘अरुज’ बन गया. आगे जाकर
स्पेतनश में ‘आरोज हो गाय. ग्रीक में यही ‘औररजा’ और लैरटन भाषा में ‘ओराइजा’ बन गया.इिालवी में
‘राइसो’, फ्रेंच में ‘ररज’,जमणन में ‘रीइस’,रूसी में ‘रीस’ और अिंग्रेजी भाषा में ‘राइस’बन गया। कौरटल्य (चार्क्य)
ने अपने सिंस्कृ ि ग्रन्र् अर्णशास्त्र में साठ कदन में पकने वाले धान का वर्णन तमलिा है, इसे आजकल साठी कहिे
है। बौद्ध सिंस्कृ ति में भी धान ने महत्वपूर्ण भूतमका तनभाई है। गौिम बुद्ध के तपिा का नाम र्ा शुद्धोदन, यातन
शुद्ध चावल। वट वृक्ष के नीचे िप में लीन गौिम बुद्ध ने एक वन-कानी सुजािा के हार् से खीर खाने के बाद
बोध प्राप्त ककया और बुद्ध कहलाये। बौद्ध धमण के सार् ही धान की खेिी और इसकी सिंकृति भारि के पड़ोसी
देशों िक फै ली अर्ाणि दुतनया को धान भारि की ही देन है।
समस्ि तवश्व में एक सौ से ज्यादा देशों में धान की खेिी की जािी है । दुतनया का अतधकािंश धान (90
प्रतिशि) दतक्षर्-पूवी एतशया में ही उगाया और खाया जािा है ।इस भाग में भी चीन िर्ा भारि तमलकर
सिंसार का लगभग आधे से भी अतधक धान उत्पाकदि करिे है. एक तिहाई उत्पादन इिंडोनेतशया, बिंगलादेश,
र्ाईलैंड,तवयिनाम, मयनमार, कफतलपीन्स,कोररया व जापान में होिा है । इसके अलावा यूरोपीय देशों में
स्पेन,इटली, यूनान और अमेररकी देशों में सिंयुक्त राज्य अमेररका,ब्राजील िर्ा मेककस्को धान के प्रमुख उत्पादक
देश है. भारि में धान की खेिी राजस्र्ान और पिंजाब जैसे शुष्क क्षेत्रों से लेकर असम के भारी वषाण वाले क्षेत्र ,
कश्मीर की घाटी,तहमालय के 300 मीटर िक के ढालों,पतिमी व पूवी समुद्री िटविी क्षेत्रों िर्ा के रल के समुद्र
िल से नीचे के क्षेत्रों में भी की जािी है । ित्तीसगि के सभी तजलों में धान की खेिी बहुिायि में की जािी है.
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तवश्व,भारि एविं ित्तीसगि में धान क्षेत्रफल,उत्पादन एविं उत्पादकिा से सम्बिंतधि आिंकड़े सारर्ी-1 में कदए गए
है ।
सारर्ी-1: धान फसल के क्षेत्र, उत्पादन एविं उपज में प्रर्म िीन देश, भारि के राज्य एविं ित्तीसगि के तजले
ित्तीसगि : क्षेत्र-3.76 (देश में िीसरा स्र्ान), उत्पादन-4.73 (देश में दसवािं स्र्ान), उपज-1256
ककग्रा/हेक्टेयर (देश में सबसे कम). भारि में धान के अिंिगणि 60.1 % क्षेत्र लसिंतचि है. ित्तीसगि में 35.7 %
क्षेत्र लसिंतचि है. तवश्व धान उत्पादन का 21.64 प्रतिशि धान भारि पैदा करिा है.
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जिंगली धान (wild rice) के अतिररक्त खेिी ककये जाने वाले धान दो प्रकार के : ओराइजा
सटाइवा(Oryza sativa L.) और दूसरा ओराइजा ग्लैबरीना (Oryza glaberrima Steud.) होिे है.
ओराइजा ग्लैबरीना की खेिी के वल पतिमी अफ्रीका में होिी है। शेष सिंसार में ओराइजा सटाइवा की खेिी
होिी है. भौगोतलक तविरर् िर्ा पादप रचना के आधार पर ओराइजा सटाइवा को दो बड़े वगों-इिंतडका िर्ा
जैपोतनका में बािंटा गया है। एक िीसरा वगण बाद में इिंडोनेतशया में पाया गया, तजसे जैवोतनका कहिे है. इन वगों
की आकाररकी एविं शरीरकक्रयात्मक लक्षर् सारर्ी-2 में कदए गए है।
3.दाने (grains) गोल पिले,कु ि-कु ि चपटे िोटे,कु ि-कु ि गोल या चौड़े,मोटे
अिंडाकार
5.शुक (Awns) अतधकिर शूकहीन शूकहीन से लेकर लम्बे शूकहीन से लेकर लम्बे
शूकों से युक्त शूकों से युक्त
6.वाह्य पुष्पकवच एविं के वल वाह्य पुष्प कवच पर घने लिंबे रोम (hair) लिंबे रोम
अिंिःपुष्प कवच पर रोम पिले एविं िोटे रोम
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धान का पौधा एक वषीय व सामान्यिया 0.5 से 2 मीटर लम्बा होिा है। गहरे पानी में उगने वाली
ककस्मों के पौधे 5-6 मीटर िक लम्बे
होिे है। धान में बीज अिंकुरर् के बाद
शीघ्र ही मूलािंकुरचोल से मूलािंकुर
(radicle) तनकलिा है और कफर
उससे प्रार्तमक जड़े तनकलिी है। बाद
में इस प्रार्तमक जड़ ििंत्र (primary
root system) का स्र्ान
अपस्र्ातनक जड़ ििंत्र (adventitious
root system) ले लेिा है। इसी
प्रकार पहली पत्ती प्रािंकुरचोल
(coleoptile) से तनकलिी है, जो
बेलनाकार होिी है। ऊपरी भूतम
(upland) के धान के मूलािंकुरचोल
पहले तनकलिा है, जबकक तनचली
भूतम (lowland) में,जहािं पानी जमा
रहिा है, पहले प्रािंकुरचोल
(coleoptile) तनकलिा है। धान का
पररपक्व िना, कल्म (culm) कहलािा है जो कक गािंठों (nodes) और खोखले पवों (hollow internode) का
बना होिा है।
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जा सकिा है। पर्णपटल के आधार में पातल (auricle) का एक जोड़ा उपतस्र्ि रहिा है और पातल के बीच में
जीतभका (ligule) रहिी है। पौधे के सबसे ऊपर वाले पवण पर पुष्पक्रम (inflorescence) पाया जािा है तजसे
पुष्पगुच्ि (panicle) या बाल कहिे है। पुष्पगुच्ि के सार् लगी हुई नीचे की पत्ती को ध्वज पर्ण (flag leaf)
कहिे है। पुष्पगुच्ि के मुख्य अक्ष (main axis) से प्रार्तमक एविं तद्विीयक शाखाएिं तनकलिी है, तजनमें सवृन्ि
(pedicelled) स्पाइकककाएिं (spikelets) लगिी है। स्पाइकककाओं के आधार (base) पर दो सिंकरे व नुकीले
िुष (glume) होिे है जो की नाव के आकार के लेमा (आकार में बड़े) व पेतलया (आकार में िोटे) को पकडे रहिे
है। लेमा का ऊपरी भाग बहुधा शूक (awn) के रूप में समाप्त हो जािा है. धान के पौधे में स्वपरागर् (self
pollination) होिा है।
जलवायु एविं ककस्म के अनुसार धान के पौधे बीज की बुवाई से लेकर पररपक्व (maturity) होने िक 3-
6 माह का समय लेिे है. इस अवतध में वे िीन अवस्र्ाओं वानस्पतिक, प्रजनन एविं पकने की अवस्र्ाओं से
गुजरिे है. धान की प्रजातियों को दो वगों में तवभक्त ककया गया है: अल्प अवतध की ककस्में (short day
varieties)जो 105-120 कदन में पकिी है िर्ा लम्बी अवतध की ककस्में (long day varieties) जो 150 कदन में
पकिी है. उष्र् (tropical) जलवायु में लगाई गई 120 कदन की ककस्म वानस्पतिक अवस्र्ा में 60 कदन, प्रजनन
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अवस्र्ा में 30 कदन और पकने की अवस्र्ा में 30 कदन का समय लेिी है. धान पौधे की वृतद्ध अवस्र्ाओं को अग्र
तचत्र में प्रस्िुि है.
1.अिंकुरर् (Germination): उतचि नमीं अवशोषर् एविं 10-400 C िापक्रम तमलने पर धान के बीज अिंकुररि
होिे है. जलमग्न तस्र्ति में पहले िना तनकल कर बाहर आने के बाद जड़ों का तवकास होिा है. जवकक सूखी
(non-flooded) तस्र्ति में बीज से जड़ पहले तनकलिी है िर्ा उसके बाद िना तनकलिा है.
2.वानस्पतिक अवस्र्ा (Vegetative phase): पौध अवस्र्ा से लेकर अतधकिम किं शा तनमाणर् की अवस्र्ा िक
वानस्पतिक वृतद्ध अवस्र्ा रहिी है. ककस्म के अनुसार इसकी अवतध पररविणनशील होिी है.यह अवस्र्ा 55-85
कदन के बीच िक चलिी है. बुवाई के लगभग 40 कदन बाद किं शावस्र्ा आिी है. पुष्पगुच्ि तनकलने के पूवण िक
िनों की बिवार होिी रहिी है.
3.प्रजनन अवस्र्ा (Reproductive phase): इस अवस्र्ा में पुष्पगुच्ि तनकलने (panicle initiation) से
लेकर पुष्पन (flowering) व परागर् (pollination) होिा है.पुष्पगुच्ि तनकलने के िुरन्ि पहले की अवस्र्ा
booting stage कहलािी है. जब पुष्पगुच्ि पूरी िरह से बाहर कदखने लगिे है िो इस अवस्र्ा को heading
stage कहिे है. इसके बाद पुष्पन अवस्र्ा 7 कदन िक चलिी है.
4.पकने की अवस्र्ा (Ripening phase): पुष्पन अवस्र्ा से लेकर दानों में दूध भरने (milking), दाना सख्ि
होने (dough stage) से पीले पड़ने िक पकने की अवस्र्ा (ripening phase) चलिी है. ककस्म के अनुसार
यह अवस्र्ा 15-40 कदन की होिी है. वषाण व कम िापक्रम के समय पकने की अवस्र्ा बि जािी है जबकक िेज
धुप व गमण कदनों में फसल शीघ्र पकने लगिी है.
जलवायु (Climate)
धान उष्र् (tropical) िर्ा उपोष्र् (subtropical) जलवायु की फसल है। इसके तलए गमण जलवायु
व अच्िी वार्षणक वषाण की आवश्यकिा होिी है। धान की फसल को पूरे जीवन काल में उच्च िापमान िर्ा
अतधक आद्रणिा के सार् अतधक जल की आवश्यकिा होिी है। फसल की उतचि बिवार के तलए 250-300 C
िर्ा पकने के तलए 200 से 250 C िापक्रम अनुकूल रहिा है। रातत्र का िापमान कम रहे िो अच्िा है, लेककन
वह 150 C से नीचे नहीं तगरना चातहए। अनुकूल िापमान के सार्-सार् धान के उत्पादन में पानी का प्रमुख
योगदान है. धान और पानी का घतनष्ठ सम्बन्ध है. जहािं वषाण अतधक होिी है वहािं पर धान भी अतधक होिा
है.सामान्यिः धान के खेिी 50 से.मी. से लेकर 200 से.मी. से अतधक वषाण वाले क्षेत्रों में की जािी है। फसल
काल में यकद 120 से 150 से.मी., भली भािंति तविररि वषाण हो जाये िो धान की अच्िी उपज प्राप्त होिी है ।
कम वषाण वाले क्षेत्रों (100 सेमी. से कम) में लसिंचाई के साधन होने पर धान की अच्िी उपज ली जा सकिी है।
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सूयण के प्रकाश (sun light) का धान की पैदावार में बहुि महत्त्व है. धान की प्रति हेक्टेयर पैदावार बहुधा उन्हीं
देशों या प्रदेशों में अतधक होिी है जहािं इसकी खेिी धूपदार मौसम (sunny season) में की जािी है, जब सूयण
का प्रकाश प्रचुर मात्रा में रहिा है । अच्िी फसल पैदावार के तलए अतन्िम माह अर्ाणि पकिे समय 220-240
घिंटे के प्रकाश का होना आवश्यक है । कदन की लम्बाई (day length) का धान की देशी, लम्बी अवतध वाली
ककस्मों के तलए तवशेष महत्त्व है िर्ा यह अपने प्रति सिंवेदनशील ककस्मों (photosensitive varieties) के
पुष्पन (flowering) को प्रभातवि करिी है। विणमान में कदन की लम्बाई के प्रति असिंवेदनशील
(photoinsensitive) िर्ा न्यून सिंवेदनशील ककस्मों के आगमन से इस कारक का महत्त्व सापेक्ष रूप से घट
गया है। प्रकाशावतध के अनुसार धान एक अल्प कदन काल का (short day) पौधा है ।
भारिवषण में तवतभन्न क्षेत्रों की जलवायु में तवतवधिा होने के कारर् इसकी खेिी अलग-अलग क्षेत्रों में
तवतभन्न समय पर की जािी है। दतक्षर् भारि एविं सिंसार के उष्र् जलवायु के देशों में धान की खेिी पूरे वषण
होिी है और वहािं लसिंचाई की सुतवधा के अनुसार वषण में 2-3 फसलें िक ले लेिे है।उत्तर पूवी भारि में धान की
फसल को उसकी कटाई के समय के आधार पर िीन समूहों में बािंटा जा सकिा है.
1.शीिकालीन चावल (Winter rice): यह धान की खेिी की सबसे महत्वपूर्ण ऋिु है क्योंकक देश में 84% धान
इसी ऋिु अर्ाणि खरीफ में उगाया जािा है। कटाई के समय के तहसाब से इसे शीिकालीन धान कहिे है. इसकी
खेिी दतक्षर् पतिमी (south-west) मानसून के समय की जािी है। इस ऋिु में फसल की बुवाई जून-जुलाई में
की जािी है िर्ा नवम्बर-कदसम्बर में फसल पक कर िैयार हो जािी है। इस फसल का जीवन चक्र 140 से 160
कदनों में पूरा होिा है। धान की इस फसल को पतिम बिंगाल में अमन (aman), ओतडशा में सरण द, तबहार व
उत्तर प्रदेश में अगहनी के नाम से जाना जािा है।
2.शरदकालीन चावल(Autumn rice):इसकी बुवाई जलवायु के अनुसार तवतभन्न राज्यों में मई से जून में की
जािी है व तसिम्बर-अक्टूबर में कटाई की जािी है। इस ऋिु में 90-110 कदन में िैयार होने वाली ककस्में उगाई
जािी है। इसे खरीफ पूवण धान भी कहिे है। बसिंिकालीन चावल को पतिम बिंगाल में आउस (aus), ओतडशा में
तबयाली िर्ा तबहार में भदाली के नाम से जाना जािा है। इस ऋिु में लगभग 7 % धान की खेिी होिी है।
3.ग्रीष्मकालीन धान (Summer rice): इसे रबी धान भी कहिे है। पतिम बिंगाल व असम में इसे
बोरो(boro), ओतडशा में डलुआ िर्ा तबहार में गरमा धान के नाम से जाना जािा है। इस ऋिु में धान की
बुवाई नवम्बर से कदसम्बर िक की जािी है िर्ा माचण से अप्रैल िक फसल की कटाई होिी है। इस प्रकार के
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धान के अिंिगणि 9 % क्षेत्र आिा है िर्ा इस ऋिु में ज्यादािर शीघ्र िैयार होने वाली ककस्में लगाई जािी है.
ित्तीसगि में खरीफ धान के अलावा लसिंतचि क्षेत्रों में रबी धान की खेिी प्रचतलि है।
धान की खेिी के तलए पानी रोकने की अच्िी क्षमिा वाली तचकनी, मरटयार या मरटयार-दोमट मृदा
सवोत्तम मानी जािी है। धान की खेिी के तलए 6.5 मृदा पी-एच मान वाली मृदाएिं सबसे उपयुक्त पाई गई
है।परन्िु 4 से 7.5 से अतधक पी-एच मान वाली मृदाओं में भी इसकी खेिी की जािी है. ित्तीसगि में मुख्यिः
चार प्रकार की भूतमयाँ यर्ा भाटा, मटासी, डोरसा, एिंव कन्हार पाई जािी है।मटासी भूतम भाटा से अतधक
भारी िर्ा डोरसा भूतम से हल्की होिी है िर्ा धान की खेिी के तलए उपयुक्त होिी है। डोरसा भूतम रिं ग िर्ा
गुर्ों के आधार पर मटासी िर्ा कन्हार भूतम के बीच की श्रेर्ी में आिी है। इसकी जलधारर्ा क्षमिा मटासी
भूतम की िुलना में काफी अतधक होिी है। यह धान की खेिी के तलए सवणर्ा उपयुक्त होिी है। कन्हार भूतम
भारी, गहरी व काली होिी है। इसकी जल धारर् क्षमिा अन्य भूतमयों की अपेक्षा ज्यादा होिी है । अिः यह
धान के बाद रबी फसलों के तलए भी उपयुक्त होिी है।
अच्िी प्रकार से िैयार ककये गये खेि में बीज बोने से खेि में फसल अच्िी प्रकार से स्र्ातपि होिी है
तजससे भरपूर उत्पादन प्राप्त होिा है । धान के खेि की िैयारी शुष्क एिंव आद्रण प्रर्ाली में बोने की तवतध पर
तनभणर करिी है। शुष्क प्रर्ाली में खेि की िैयारी के तलए तपिली फसल काटने के िुरन्ि बाद ही खेि को तमट्टी
पलटने वाले हल से जोि देिे हैं। इसके बाद मानसून आने पर जुिाई करिे हैं। इस प्रकार भूतम की भौतिक दशा
धान के योग्य बन जािी है। गोबर की खाद, कम्पोस्ट या हरी खाद बोआई से पहले प्रारतम्भक जुिाई के समय
खेि में अच्िी िरह तमला देना चातहए ।
ित्तीसगि को धान का कटोरे के रूप में भी जाना जािा है। धान की तवतवध प्रजातियों को लेकर
ित्तीसगि की ख्याति दुतनया भर में है. इिंकदरा गाँधी कृ तष तवश्वतवद्यालय ने अब िक 23,250 से अतधक धान
की देशी प्रजातियों का जनन द्रव्य (germplasm) एकतत्रि कर कफतलपीन्स के बाद दुतनया में दूसरा स्र्ान
हातसल ककया है. इनमें से 1500 प्रजातियाँ ित्तीसगि की है. जमणप्लाज्म को रातिय सिंपति मानिे हुए कृ तष
अनुसिंधान पररषद, नई कदल्ली के अिंिगणि नेशनल ब्यूरो ऑफ़ प्लािंट जेनेरटक्स ररसोसेज के पास सुरतक्षि रखा
गया है.धान की तवतवध प्रजातियों के बीज एकतत्रि करना और उनका सिंग्रहर् िर्ा सू चीकरर् करने में चावल
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अनुसिंधान कें द्र,बरोंडा, रायपुर के ित्कालीन तनदेशक डॉ.आर.एच ररिाररया ने ित्तीसगि एविं मध्यप्रदेश के
गावों से 17000 ककस्में एकतत्रि की र्ी। इसके बाद भी जमण प्लाज्म एकत्रीकरर् का कायण जारी है। इन ककस्मों
के जनन द्रव्य से अनेकों उन्नि ककस्मों का तवकास ककया गया है। प्रदेश की देशी/स्र्ानीय ककस्मों में दुबराज,
जीराफू ल,बादशाह भोग, आकद अपने स्वाद एविं गुर्वत्ता के कारर् आज भी लोकतप्रय है ।देशी ककस्मों की िुलना
में उन्नि ककस्मों के प्रयोग से 15-20 प्रतिशि अतधक उपज प्राप्त होिी है। धान की नवीन बौनी ककस्मों को
आधुतनक िकनीक से लगाने पर 5-7 टन प्रति हेक्टेयर िक उपज प्राप्त की जा सकिी है। इसके अलावा विणमान
उन्नि ककस्मों की अपेक्षा सिंकर धान की खेिी करने से 10-15 कक्विंटल प्रति हैक्टर अतधक उपज ली जा सकिी है ।
क्षेत्र तवशेष की जलवायु, खेिों की तस्र्ति एिंव जल अपलब्धिा आकद के आधार पर धान की अतधक उपज देने
वाली उपयुक्त ककस्मों का चयन करने की सलाह दी जािी है।
1.सम्लेश्वरी : फसल अवतध 105-112 कदन, उपज क्षमिा -30-40 कक्विंटल/हेक्टर . यह शीघ िैयार होने वाली
ककस्म है तजसका पौधा अधण बौना एविं दाना मध्यम पिला, गिंगई तनरोधक एविं झुलसा रोग हेिु सहनशील,
ग्रीष्मकालीन खेिी एविं सीधे बुवाई हेिु उपयुक्त. सूखा सहनशील ककस्म है।
2.इिंकदरा बारानी धन-1 : फसल अवतध 111-115 कदन एविं उपज क्षमिा 30-40 कक्विंटल प्रति हेक्टेयर,
मध्यम पिला दाना, बारानी खेिी में उर्ली तनचली भूतम हेिु उपयुक्त, सूखा के प्रति मध्यम सहनशील,
3 .सहभागी धान: फसल अवतध एविं 110-112 कदन एविं उपज क्षमिा-30-40 लीफ ब्लास्ट के तलये
रोगरोतधिा ।
उपरोक्त के अलावा पुरानी ककस्मों में आकदत्य,अन्नदा, दिंिेश्वरी और पूर्र्णमा की खेिी भी की जा सकिी है ।
B.अलसिंतचि मध्यम से भारी भूतम (तमड-लैण्ड) हेिु उपयुक्त ककस्में
1.इिंकदरा बारानी धान-1: फसल अवतध 111-115 35-45 कक्विंटल/हेक्टर, मध्यम पिला दाना, बारानी खेिी
में उर्ली मध्य भूतम हेिु उपयुक्त, सूखा के प्रति मध्यम सहनशील, िनािेदक, ब्लाइट हेिु सहनशील।
2.सम्लेश्वरी : फसल अवतध 105-112 35-45 कक्विंटल/हेक्टर, अधण बौना, मध्यम पिला दाना, गिंगई तनरोधक
एविं झुलसा रोग एविं सूखा हेिु सहनशील, ग्रीष्मकालीन खेिी सीधे बुवाई हेिु उपयुक्त ।
3. आई.आर.- 64: फसल अवतध 115-120 कदन एविं उपज क्षमिा 40-45 कक्विंटल/हेक्टर, लम्बा पिला
4. चन्द्रहातसनी: फसल अवतध 120-125 कदन एविं 40-45 कक्विंटल/हेक्टर, अधण बौनी, लम्बा पिला
दाना, गिंगई तनरोधक एविं भूरा माहो सहनशील, तनयाणि हेिु उपयुक्त ।
5. इिंकदरा एरोतबक-1: फसल अवतध 115-120 कदन िर्ा उपज क्षमिा 45-50 कक्विंटल/हेक्टर, एरोतबक अवस्र्ा
6.कमाण मासुरी: फसल अवतध 125-130 कदन एविं 45-50 कक्विंटल/हेक्टर अधण बौनी, मध्यम पिला दाना, खाने
7.आईजीके व्ही आर.-1(इिंकदरा राजेश्वरी): फसल अवतध 120-125 एविं उपज क्षमिा 45-50 कक्विंटल/ प्रति
8.आईजीके व्ही आर.-2 (दुगेश्वरी): फसल अवतध 130-135 एविं उपज क्षमिा 45-50 कक्विंटल प्रति हेक्टर,
लम्बा-पिला दाना, झुलसा रोग तनरोधक, शीर् ब्लाइट एविं शीर् रॉट हेिु मध्य तनरोधक, खाने में उपयुक्त ।
9.आईजीके व्हीआर. 1244 (महेश्वरी): फसल अवतध 130-135 कदन एविं उपज क्षमिा 45-50 कक्विंटल प्रति
हेक्टर, लम्बा-पिला दाना, शीर् ब्लाइट एविं गिंगई तनरोधक िर्ा खाने के तलए उपयुक्त है ।
उपरोक्त के अलावा पुरानी ककस्मों में आई आर-36, आई आर-64, महामाया, एविं एम टी यु-1010 की खेिी भी
की जा सकिी है।
C.अलसिंतचि तनचली भूतम (लो-लैण्ड) हेिु उपयुक्त ककस्में
1.चन्द्रहातसनी: फसल अवतध 120-125 कदन एविं 40-45 कक्विंटल दाना उपज /हेक्टर, अधण बौनी, लम्बा
पिला दाना, गिंगई तनरोधक एविं भूरा माहो सहनशील, तनयाणि हेिु उपयुक्त।
2.कमाण मासुरी: फसल अवतध 125-130 कदन एविं 45-50 कक्विंटल दाना उपज /हेक्टर, अधण बौनी, मध्यम
पिला दाना, खाने में उपयुक्त, गिंगई तनरोधक एविं झुलसा रोग हेिु सहनशील।
3. एन.डी.आर. (नरे न्द्र धान)-8002: फसल अवतध 135-140 कदन एविं 50-55 कक्विंटल दाना उपज /हेक्टर
4. जलदूबी : फसल अवतध 135-140 कदन एविं 40-45 कक्विंटल दाना उपज /हेक्टर,ऊँची, मध्यम पिला
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5. स्वर्ाण सब-1: फसल अवतध 140-150 कदन एविं 40-45 कक्विंटल दाना उपज /हेक्टर, सभी गुर् स्वर्ाण के
6. उन्नि सािंबा मासुरी: फसल अवतध 135-140 कदन एविं उपज 40-45 कक्विंटल प्रति हेक्टर , अधण
7. इिंकदरा सुगिंतधि धान-1: फसल अवतध 125-130 कदन एविं उपज क्षमिा 40-45 कक्विंटल प्रति हेक्टर,मध्यम
8. सम्पदा: फसल अवतध 135-140 कदन एविं उपज 40-45 कक्विंटल /हेक्टर, अधणबौना, झुलसा रोग तनरोधक
उपरोक्त के अलावा इिंकदरा राजेश्वरी,दुगेश्वरी,महेश्वरी, अभया,क्रातन्ि, महामाया, स्वर्ाण, एम् टी यु-1001 व
बमलेश्वरी ककस्मे भी लगाई जा सकिी है।
D.लसिंतचि भूतम हेिु उपयुक्त ककस्में
1.समलेश्वरी: फसल अवतध 105-112 कदन, उपज क्षमिा 45-55 कक्विंटल प्रति हेक्टेयर. लम्बा मोटा दाना, पोहा
एविं मुरमुरा के तलए उपयुक्त. जीवार्ु झुलसा रोग तनरोधक ।
2.चन्द्रहातसनी: फसल अवतध 120-125 कदन एविं उपज क्षमिा 45-50 कक्विंटल प्रति हेक्टेयर, अधण बौनी, लम्बा
पिला दाना, गिंगई तनरोधक एविं भूरा माहो सहनशील, तनयाणि हेिु उपयुक्त ।
3.कमाण मासुरी: फसल अवतध 125-130 कदन एविं 50-55 अधण बौनी, मध्यम पिला दाना, खाने में
4.इिंकदरा सुगिंतधि धान-1: फसल अवतध 125-130 कदन एविं 40-45 मध्यम पिला सुगिंतधि दाना, गिंगई कीट
5.एन.डी.आर. (नरे न्द्र धान)-8002: फसल अवतध 135-140 कदन एविं 55-60 कक्विंटल प्रति हेक्टेयर, लीफ
ब्लास्ट के तलये प्रतिरोधी ।
6.जलदूबी : फसल अवतध 135-140 कदन एविं उपज क्षमिा 40-45 कक्विंटल प्रति हेक्टेयर, मध्यम पिला
7.पी.के .व्ही. एच.एम.टी.: फसल अवतध 130-135 कदन िर्ा उपज क्षमिा 40-45 कक्विंटल प्रति हेक्टेयर अधण
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उपरोक्त के अलावा इिंकदरा राजेश्वरी,दुगेश्वरी,महेश्वरी, स्वर्ाण सब-1, उन्नि सािंबा मासुरी आकद ककस्में भी लगाई
जा सकिी है ।
E.तवशेष पररतस्र्तियों के तलये धान की उपयुक्त ककस्में
1.गिंगई प्रभातवि क्षेत्र: सम्लेश्वरी, कमाण मासुरी, चन्द्रहातसनी, जलदूबी, राजेश्वरी,दुगेश्वरी, महेश्वरी,
5.जल तनकास की समस्या वाला बहरा क्षेत्र: स्वर्ाण सब-1, जलदूबी, बम्लेश्वरी आकद ।
औषधीय धान: ित्तीसगि की प्रमुख औषधीय धान की ककस्मों में गठु अन, भेजरी, आल्वा, लाइचा, रे सारी,
भारि में धान की खेिी िीनों मौसम अर्ाणि खरीफ, रबी और जायद में होिी है। अतधकिर क्षेत्र में धान
का उत्पादन खरीफ मौसम में होिा है। खरीफ में जून मध्य से जुलाई प्रर्म सप्ताह िक का समय धान की बोनी
के तलए सबसे उपयुक्त रहिा है। रोपाई हेिु नसणरी में बीज की बोआई लसिंचाई उपलब्ध होने पर जून के प्रर्म
सप्ताह में ही कर देना चातहये । लेही तवतध से धान अिंकुररि कर बुवाई करने से 6-7 कदन का समय बच जािा है
अिः देरी होने पर लेही तवतध से बोनी की जा सकिी है।
अच्िी उपज के तलए खेि और बीज दोनों का महत्वपूर्ण स्र्ान है। चयतनि ककस्मों का प्रमातर्ि बीज
ककसी तवश्वसनीय सिंस्र्ा से प्राप्त करें । बीज में अिंकुरर् 80-90 प्रतिशि होना चातहये और वह रोग रतहि हो।
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बीज की मात्रा बुवाई की तवतध, बीज अिंकुरर् प्रतिशि, पौध अिंिरर् आकद के अनुसार अलग-अलग होिी है.
तिड़का एिंव तबयासी तवतध हेिु 100-120, किार बोनी में 90-100, लेही पद्धति में 30-40 िर्ा रोपा पद्धति
में 30-40 ककलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की आवश्यकिा होिी है।
बाजार से ख़रीदे गए उन्नि ककस्म के बीज प्रायः उपचाररि रहिे है. अपना बीज उपयोग ककये जाने की
तस्र्ति में बोआई पूवण बीज को उपचाररि करना आवश्यक है। सबसे पहले बीज को नमक के घोल में डालें। इसके
तलए 10 तलटर पानी में 1.6 ककलो सामान्य नमक का घोल बनाकर उसमें बीज डालकर तहलाया जािा है।
भारी एिंव स्वस्र् बीज नीचे बैठ जाएँगे और हल्के बीज ऊपर िैरने लगेंगे। हल्के बीज तनकालकर अलग कर दें
िर्ा नीचे बैठे भारी बीजों को तनकालकर साफ पानी से दो-िीन बार धोकर उन्हें िाया में सुखाएिं । बीज की
फफूँ द एिंव जीवार्ु जतनि रोगों से सुरक्षा हेिु बीजों को 2 ग्राम र्ायरम व 2 ग्राम बातवस्टीन प्रति ककलो ग्राम
बीज की दर से उपचाररि कर बोआई करें । बैक्टीररयल रोगों की रोकर्ाम के तलये बीजों को 0.02 प्रतिशि
सट्रेप्टोसाइतक्लन के घोल में डु बाकर उपचाररि करना भी लाभप्रद रहिा है।
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धान की खेिी अतधकिर नीचे स्िर वाली भूतमयों (low lands) में की जािी है, जहािं वषाण ऋिु में
पानी इकठ्ठा हो जािा है. कहीं कहीं ऊिंची भूतम (uplands) में भी धान उगाया जािा है, लेककन इसका क्षेत्रफल
कम (16 %) है. ऊिंची भूतम में धान की खेिी करने पर खेि में पानी भरा रखने की कोई व्यवस्र्ा नहीं होिी और
फसल अतधकािंशिः वषाण के जल या लसिंचाई पर तनभणर करिी है. ऊिंची भूतम में बुवाई मानसून के शुरू में बीज को
तिडक कर या पिंतक्तयों में की जािी है. ककसी भी तवतध का उपयोग जलवायु, मृदा, श्रतमकों की उपलब्धिा,
लसिंचाई सुतवधा, ककसानों की आर्र्णक तस्र्ति, परम्पराएिं, फसल चक्र आकद पर तनभणर करिा है । सामान्यिौर पर
भारि में धान की खेिी को तनम्नानुसार वगीकृ ि ककया जा सकिा है। धान उत्पादक क्षेत्रों में धान की खेिी
मुख्यिः दो प्रकार से की जािी है:1,धान की सीधी बुवाई िर्ा 2.रोपाई द्वारा धान की खेिी
धान की सीधी बोआई सामान्य िरीके से खेि िैयार कर अर्वा लेवकर्षणि या पिंककल (puddled) खेिों
में की जािी है । भारि में सीधे बीज बोआई की तनम्न तवतधयािं प्रचतलि है ।
प्रदेश में लगभग 80 प्रतिशि क्षेत्र में धान की बुवाई तिटकवाँ तवतध से की जािी है। इसमें वषाण आरिं भ
होने पर जुिाई कर खेि में धान के बीज (100-120 ककग्रा.बीज/हेक्टेयर) को तिड़क कर देशी हल अर्वा हल्का
पाटा चलाकर बीजों को ढँक कदया जािा है। जब फसल करीब 30-35 कदन की हो जािी है िर्ा खेिों में 8-10
से.मी. पानी भर जािा है, िब खड़ी फसल में देशी हल चलाकार तबयासी (खड़ी फसल में हल चलाने की कक्रया)
करिे हैं। तबयासी करने के बाद चलाई समान रूप से करना चातहए। खेि में जुिाई के बाद उपचाररि बीज की
बोनी करें िर्ा दिारी हल चलाकर तमट्टी में हल्के से तमला दें तजससे बीज अतधक गहराई पर न जावे एिंव
अिंकुरर् भी अच्िी और एक सार् हो सके । स्फु र और पोटॉश की पूरी मात्रा िर्ा नत्रजन की 20 प्रतिशि मात्रा
बोने के समय डालें। नत्रजन की बाकी 40 प्रतिशि मात्रा तबयासी के समय, 20 प्रतिशि तबयासी के 20-25 कदन
एिंव शेष 20 प्रतिशि मात्रा तबयासी के 40-50 कदन बाद डालें। पानी उपलब्ध होने पर बुवाई के 30-40 कदनों
के अिंदर तबयासी करना चातहए िर्ा चलाई तबयासी के बाद 3 कदन के अिंदर सिंपन्न करें । तबयासी करने के तलए
सँकरे फाल वाले देशी हल या लोतहया हल का उपयोग करें िाकक तबयासी करिे समय धान के पौधों को कम-से
कम क्षति पहुँचे।
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धान की खड़ी फसल में तबयासी करने से धान के बहुि से पौधे मर जािे हैं, तजससे प्रति इकाई पौधों की
सिंख्या कम रह जािी है। जबकक अतधकिम उत्पादन के तलए तबयासी के बाद खेि में पौधों की सिंख्या 150-200
प्रति वगणमीटर रहना चातहए। इसके तलए बोए जाने वाले रकबे के 1/20 वें भाग में तिगुना बीज बोये। चलाई
करिे समय यहाँ से अतिररक्त पौधों को उखाड़कर खेि के ररक्त स्र्ानों में रोपें तजससे प्रति वगणमीटर क्षेत्र में
कम-से-कम 150-200 पौधे स्र्ातपि हो सकें । ऐसा करने से प्रति वगणमीटर में कम-से-कम 350-400 किं से प्राप्त
हो सकिे हैं।
तिटकवाँ-तबयासी तवतध में पौधों के अतधक मर जाने से उत्पादन में कमीं आ जािी है., इसतलए अतधक
उपज प्राप्त करने के तलए धान की पिंतक्तयों में बुवाई करना चातहए । इस तवतध में सीड तड्रल अर्वा देशी हल के
पीिे पोर लगाकर पिंतक्तयों में बुवाई की जािी है । खेि में अच्िी बिर (ओल) की तस्र्ति में यिंत्रों द्वारा किार
बुवाई आसानी से की जा सकिी है। सबसे पहले खेि की अकरस (सूखे खेि) जुिाई की जािी है। कफर वषाण होने
के बाद 2-3 बार जुिाई करिे हैं। िैयार समिल खेि में टै्रक्टर चतलि सीड तड्रल, इिंकदरा सीड तड्रल, नारी हल,
भोरमदेव या देशी हल के पीिे 20-22 से.मी. की दूरी पर किारों में बीज की बुवाई की जािी है ।बीज बोने की
गहराई 4-5 सेमी. से अतधक न हो। बुवाई के समय सुझाई गई उवणरकों की मात्रा देवें एिंव सीड तड्रल में दानेदार
उवणरकों का ही उपयोग करें ।नत्रजन की 20-30 प्रतिशि मात्रा बोिे समय िर्ा 30 प्रतिशि मात्रा किं से आिे
समय (बोने के 30-40कदन बाद) एिंव शेष 40 प्रतिशि मात्रा गभोट के 20 कदन पहले (बुवाई के 60-70कदनों
बाद) डालना चातहए। स्फु र व पोटॉश की पूरी मात्रा बुवाई के समय किारों में डालें।किार बुवाई तवतध में नींदा
तनयिंत्रर् पर तवशेष ध्यान कदया जाना चातहए। बुवाई के 5 कदनों के अिंदर अिंकुरर् पूवण नींदानाशी (प्री इमरजेंस
हरबीसाइड) का प्रयोग करें । बुवाई के 20-25 कदनों बाद किारों के बीच तनदाई यिंत्र से या मजदूरों द्वारा की
जानी चातहए। बुवाई के 30-35 कदनों के अिंदर 2,4-डी सोतडयम साल्ट 80 डब्ल्यू. पी 0.5 कक.ग्रा. का तिड़काव
किारों के मध्य करें । चौड़ी पत्ती वाले नींदा के तनयिंत्रर् के तलए इर्ाक्सी सल्फु रान 15 ग्राम सकक्रय ित्व
साहलोफाफ बुटाईल 100-120 ग्राम सकक्रय ित्व प्रति हेक्टेयर या फे नाक्सीप्राप-पी-इर्ाइल 90 ग्राम सकक्रय
ित्व प्रतिहेक्टेयर तिड़काव करें ।
लगािार वषाण होने अर्वा बुवाई में तवलम्ब होने से बिर बोनी एिंव रोपर्ी(नसणरी) की िैयारी करने का
समय न तमल सके िो लेही तवतध अपनाई जा सकिी है।इसमें रोपा तवतध की िरह ही खेि की मचाई की जािी
है िर्ा अिंकुररि बीज खेि में तिड़क देिे है। लेही बोनी के तलए प्रस्िातवि समय से 3-4 कदन पूवण से ही बीज
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अिंकुररि करने का कायण शुरू कर दें। तनधाणररि बीज मात्रा को रातत्र में 8-10 घन्टे तभगोना चातहए। कफर इन
भीगे हुये बीजों का पानी तनर्ार का इन बीजों को पक्के फशण पर रखकर बोरे से ठीक से ढँक देना चातहये।लगभग
24-30 घिंटे में बीज अिंकुररि हो जायेगें। अब बोरों को हटाकर बीज को िाया में फै लाकर सुखाएँ। इन अिंकुररि
बीजों का प्रयोग 4-5 कदन िक कर सकिे हैं।बुवाई के समय खेि में पानी अतधक न रखें अन्यर्ा बोये गये
अिंकुररि बीजों के सड़ने की सिंभावना रहिी है। खेि में पानी के तनकास की व्यवस्र्ा करें िर्ा यह ध्यान रखें कक
यर्ासिंभव खेि न सूखें।
गहराई (3-4 सेमी.) में ही पड़े। ज्यादा गहरा बोने पर अिंकुरर् िर्ा कल्लों की सिंख्या कम होगी इससे धान की
पैदावार में कमी आ जाएगी। सीधी बुवाई जीरो रटलेज धान में खरपिवारों की अतधक समस्या आिी है क्योंकक
लेव न होने से इनका अिंकुरर् सामान्य की अपेक्षा ज्यादा होिा है। बुवाई के पिाि 48 घिंटे के अन्दर
पेन्डीमीतर्तलन (स्टाम्प) की एक लीटर प्रति/हे. सकक्रय ित्व की दर से 600 से 800 लीटर पानी में तिड़काव
समान रूप से पूरे खेि में करना चातहए। तिड़काव करिे समय तमट्टी में पयाणप्त नमी रहनी चातहये । यह दवा
खरपिवारों के जमने के पूवण ही उन्हें मार देिी है। बाद में यकद चौड़ी पत्ती के खरपिवारों को नष्ट करने के तलए
2, 4–डी 80% सोतडयम साल्ट 625 ग्राम प्रति हेक्टेयर के तहसाब से प्रयोग करना चातहए। खड़ी फसल में बाद
में उगने वाले खरपिवार तनराई करके तनकाल देना चातहए वैसे तनचले खेिों (lowland) में जल भराव के
कारर् खरपिवार कम आिे है।
प्रत्यक्ष सीधी बुवाई के लाभ
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धान की नसणरी उगाने में होने वाला खचण बच जािा है। इस तवतध में जीरो रटल मशीन द्वारा 20-25
ककग्रा. बीज प्रति/हे. बुवाई के तलए पयाणप्त होिा है।
खेि को जल भराव कर लेव के तलए भारी वषाण या लसिंचाई जल की जरूरि नहीं पड़िी है। नम खेि में
बुवाई हो जािी है।
धान की लेव और रोपनी का खचण बच जािा है।
समय से धान की खेिी शुरू हो जािी है और समय से खेि खाली होने से रबी फसल की बुवाई सामतयक
हो जािी है तजससे उपज तअधक तमलिी है।
लेव करने से खराब हुई भूतम की भौतिक दशा के कारर् रबी फसल की उपज घटने की पररतस्र्ति नहीं
आिी है। रबी फसल की उपज अतधक तमलिी है।
(e) एरोतबक धान : एरोतबक धान, तमट्टी को वाियुक्त (aerated) अवस्र्ा में बनायें रखने की क्षमिा पर
आधाररि एक वगीकरर् है. जब पानी भरिा है, िो वायुकोष्ठ (pore space) गायब हो जािे है और जब हवा
भारिी है, िो पानी गायब हो जािा है। इस पद्धति में सम्पूर्ण फसल अवतध के अतधकािंश तहस्से में मृदा को
वाियुक्त तस्र्ि में बनाये रखा जािा है। एरोतबक धान की खेिी के तलए र्ोड़ी ढलुवािं (slopy) भूतम या पूरी
िरह से समिल भूतम का भी उपयोग ककया जा सकिा है। एरोतबक धान की खेिी पर तवस्िृि चचाण अगले
व्यख्यान में की जाएगी.
धान की रोपर् तवतध अतधक वषाण और लसिंतचि क्षेत्रों में अपनाई जािी है. धान रोपाई की पारिं पररक
पद्धति के अलावा आजकल दोहरी रोपाई व चावल सघनीकरर् पद्धति भी अपनाई जा रही है तजनका तववरर्
अग्र प्रस्िुि है.
अतधक उपज िर्ा वषाण जल के अतधकिम उपयोग के तलए आवश्यक है कक धान की पौध मानसून शुरू
होने से पूवण ही िैयार कर ली जाए । वषाण तनभणर क्षेत्रों में मानसून आने पर ही पौधशाला िैयार कर मुख्य खेि
को मचाकर रोपाई जािी है । लसिंचाई की तनतिि व्यवस्र्ा अर्वा पयाणप्त वषाण वाले क्षेत्रों में यह पद्धति अपनाई
जािी है। रोपा तवतध में तनम्न चरर्ों का पालन करना होिा है:
धान की पौधशाला उपजाऊ िर्ा जलतनकास युक्त ऐसे खेि में िैयार करना चातहए जो कक लसिंचाई
स्त्रोि के पास हो । एक हैक्टेयर में रोपाई करने के तलए लगभग 500 से 600 वगण मीटर अर्वा रोपाई वाले
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कु ल क्षेत्र के लगभग 1/10 भाग में पौध रोपर्ी डालनी चातहए । एक हैक्टेयर क्षेत्र में रोपाई करने के तलए धान
की बारीक चावल वाली ककस्मों का 30 ककग्रा., मध्यम दाने वाली ककस्मों का 40 ककग्रा. और मोटे दाने वाली
ककस्मों का 50 ककग्रा. बीज की पौध िैयार करने की आवश्यकिा होिी है । धान की मध्यम-देर से िैयार होने
वाली ककस्मों की पौधशाला में जून के प्रर्म सप्ताह िक बुवाई कर देना चातहए ।शीघ्र िैयार होने वाली ककस्मों
की बुवाई 15-20 जून के आस-पास की जा सकिी है । पौधशाला में बुवाई से पूवण 100 ककग्रा. नत्रजन, 50
ककग्रा. फॉस्फोरस व 25 ककग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चातहए । बुवाई के 10-15 कदन
बाद 5 ककग्रा. लजिंक सल्फे ट को 20 ककग्रा. यूररया या 2.5 ककग्रा. बुझे हुए चूने के सार् 1000 लीटर पानी में
घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से नसणरी में तिड़काव करने से पौधे स्वस्र् रहिे है िर्ा खैरा रोग से बचाव
होिा है । अन्य कीट-रोगों से पौधों की सुरक्षा के तलए आवश्यक उपाय करें ।
जलवायु िर्ा उपलब्ध साधनों के अनुसार धान की रोपर्ी िैयार करने की अनेक तवतधयाँ है, तजनका तववरर्
अग्र प्रस्िुि है:
इस तवतध से पौध िैयार करने के तलए खेि में पानी भर कर 2-3 बार जुिाई करें तजससे तमट्टी लेह्युक्त
हो जाए िर्ा खरपिवार नष्ट हो जायें ।अतन्िम जुिाई के बाद पाटा चलाकर खेि को समिल कर तलया जािा है
। एक कदन बाद जब तमट्टी की सिह पर पानी न रहे िब खेि को 1.25 मीटर चौड़ी िर्ा 8 मीटर लम्बी
क्याररयों में बाँट तलया जािा है तजससे समस्ि सस्य कक्रयायें आसानी से की जा सकें । प्रत्येक क्यारी में बीज दर
(प्रति 10 वगण मीटर क्षेत्र) मोटे दाने वाली ककस्मों में 800 ग्राम िर्ा बारीक दानों वाली ककस्मों में 600 ग्राम
रखना चातहए । बीज व मृदा जतनि रोगों से बचाव के तलए ट्राइकोडमाण या स्यूडोमोनास फ्लोररसेन्स की 4 ग्राम
मात्रा प्रति ककग्रा. बीज की दर से शोतधि कर बोआई करना चातहए । इस तवतध में बीज अिंकुररि कर बोये जािे
है। इसके तलए बीजों को साफ़ पानी में 24 घिंटे िक तभगोिे है। पानी के ऊपर िैरने वाले बीजों को अलग कर
कदया जािा है। भींगे बीजों को पानी से तनकालकर फशण पर इकट्ठा रख करके बोरे या कपड़े से ढक देिे है िाकक
गमी पाकर बीज जल्दी अिंकुररि हो जाए। लगभग 36 घिंटे में बीज अिंकुररि हो जािे है. अिंकुररि बीज को लेव की
गई (puddled) क्याररयों में तमट्टी के ऊपर तिटक कर बो कदया जािा है । बीज बुवाई से पहले प्रति 10 वगण
मीटर क्षेत्र की दर से 225 ग्राम यूररया िर्ा 500 ग्राम लसिंगल सुपर फॉस्फे ट अच्िी प्रकार से तमला देना चातहए
। बोने के 4-5 कदन िक तचतड़यों की रखवाली आवश्यक है। वषाण के कारर् यकद बीज पानी में डू ब जाये िो
अनावश्यक पानी को क्याररयों से तनकाल देना चातहए । बीज अिंकुररि हो जाने पर आवश्यकिानुसार
पौधशाला की लसिंचाई करिे रहना चातहए । पौधे 20-30 कदन के बाद रोपाई योग्य हो जािे है।
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लसिंचाई सुतवधा न होने पर, लेककन तनतिि वषाण होने वाले क्षेत्रों िर्ा ऐसे अतधक वषाण वाले क्षेत्रों में,
जहािं बीजों के पानी में बह जाने की सिंभावना रहिी है, वहािं शुष्क तवतध द्वारा पौध िैयार की जािी है । इसमें
पौधशाला की भूतम की 3-4 बार जुिाई या हैरो चलाकर तमट्टी को भुरभुरा कर तलया जािा है । खेि को समिल
करके भीगी तवतध में बिाये गये आकार के अनुसार 20 से.मी. ऊँची क्याररयाँ बना ली जािी है िर्ा मेंड़ के
स्र्ान पर 30 से.मी. चौड़ी नाली बना ली जािी है िाकक लसिंचाई व जल तनकास की उतचि व्यवस्र्ा की जा सकें
। इन क्याररयों में तबना अिंकुररि ककये बीज 10-10 सेमी. की दूरी पर बनी किारों में 2 से.मी. गहराई पर
बोया जािा है । बीज दर , खाद आकद सभी कक्रयाएिं भीगी तवतध के अनुसार की जािी है ।
पौध रोपर्ी िैयार करने के डेपोग तवतध भारि में कफतलपीन्स से आई.भारि में इस तवतध का प्रयोग
आिंध्र प्रदेश में ककया जािा है। इस तवतध की तवशेषिा यह है कक पौध को बगैर तमट्टी के माध्यम से र्ोड़ी सी
जगह में िैयार ककया जािा है। एक हेक्टेयर में रोपाई करने के तलए 25-30 वगण मीटर क्षेत्र की आवश्यकिा
होिी है। उन्नि ककस्मों के बीजों को 24-36 घिंटे तभगोकर अिंकुररि करने के उपरान्ि पॉलीर्ीन की शीट अर्वा
सीमेंट के फशण पर लगभग आधा से.मी. मोटी बीज की परि तबिाकर उसमें प्रतिकदन हल्का पानी तिडकिे रहिे
है। प्रति वगण मीटर बीज शैय्या (seedbed) के तलए 3 ककग्रा. बीज की आवश्यकिा होिी है.पौध को िैयार होने
में ककसी भी खाद एविं उवणरक की आवश्यकिा नहीं पड़िी क्योंकक वे बीज में सिंतचि खाद्य पदार्ण को ही उपयोग
में लेिे है।इस तवतध में 11 से 14 कदन में पौध िैयार हो जािी है. पौध िैयार हो जाने पर िोटे-िोटे पौधों को
रोपने के तलए सावधानी से अलग कर तलया जािा है। िैयार खेि में एक स्र्ान पर 2-3 पौधे रोप जाने चातहए.
इस तवतध द्वारा पौध उगाने में श्रम और समय दोनों ही की बचि होिी है।
मशीन अर्ाणि राइस ट्रान्सप्लान्टर द्वारा रोपाई के तलए प्रयुक्त नसणरी में एक पौधे की जड़े दूसरे पौधे
को जकड़े रहिी है,फलिः एक चटाई (mat) का तनमाणर् हो जािा है जो मशीन द्वारा रोपाई करने में सहायक
तसद्ध होिी है। इस तवतध में उपचाररि एविं अिंकुररि बीजों को तमट्टी व वमीकम्पोस्ट के तमश्रर् (4:1 अनुपाि) से
िैयार क्याररयों में उगाया जािा है। एक एकड़ में रोपाई हेिु 20 मीटर लम्बा x 1.2 मीटर चौड़ा एविं 10-15
से.मी. ऊिंची क्यारी (एक हेक्टेयर के तलए 50-60 वगण मीटर क्षेत्र की नसणरी) िैयार की जािी है. अब क्यारी पर
100 माइक्रोन मोटाई वाली पॉतलर्ीन शीट(1.2 मीटर चौड़ी) को क्यारी के आकार के अनुसार काट कर तबिा
दी जािी है िाकक पौधों की जड़े तमट्टी में न जाने पाये । पॉतलर्ीन शीट पर जगह-जगह िेद कर देना चातहए
िाकक पॉतलर्ीन क्यारी की तमट्टी से अच्िी िरह तचपक जाये और तमट्टी की सिह से पौधों को ऑक्सीजन व
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नमीं प्राप्त होिी रहें। पॉतलर्ीन शीट के ऊपर भुरभुरी तमट्टी व वमीकम्पोस्ट या गोबर की खाद के तमश्रर् को
आधे इन्च की परि के रूप में एक समान फै लाकर लकड़ी या लोहे के पाटे से समिल करना आवश्यक है। अब
औसिन 10 ककग्रा, बीज (सिंकर धान का 8 ककग्रा.) अिंकुररि कर प्रति 1.2 मीटर x 20 मीटर लम्बी क्यारी (बेड)
क्यारी पर इस प्रकार से फै लाना चातहए िाकक 1 वगण इन्च में करीब 3-4 बीज जरुर रहे। इसके ऊपर तमट्टी व
खाद का तमश्रर् (0.5 से.मी.) की एक परि डाल देना चातहए। बीज ढकने के िुरिंि बाद फव्वारे से हल्की लसिंचाई
करें परन्िु पानी जमा न होने पाए। इस प्रकार 3-4 घिंटे के अिंिराल पर (3-4 कदनों िक) पानी देना उतचि होिा
है। िीन-चार कदनों के बाद बीजों की जड़ें एक-दूसरे को जकड़ ले िब क्याररयों के बराबर बनाई गई नाली को
पानी से भर देना चातहए िाकक नमीं देर िक बरकरार रहे। लसिंचाई की कक्रया िब िक दुहरािे रहें जब िक की
पौध 15-18 कदनों की हो जाए। इस प्रकार पौधों की जड़े एक-दूसरे को अच्िी िरह से जकड़ लेिी है और यह
एक चटाई (मैट) का रूप ले लेिी है। सामान्यिौर पर मैट नसणरी के अिंिगणि उगाई गई पौधों के तलए पोषक ित्वों
की पूिी तमट्टी के तमश्रर् से ही हो जािी है लेककन पौधों की उतचि बिवार के तलए 1.5 ककग्रा. डी.ए.पी. (60
वगण मीटर क्षेत्र) देना लाभकारी होिा है। पौधों में पीलापन कदखाई देने पर 0.5 प्रतिशि लजिंक सल्फे ट (21 %)
+ 2.5 प्रतिशि यूररया को 1.2 लीटर पानी में घोलकर पूरे बेड पर तिडकाव करना चातहए ।
व्यवसातयक पौध (नसणरी) िैयार करने के तलए पॉतलर्ीन शीट को िीन बार पौध उगाने के तलए प्रयोग में लाना
चातहए। एक एकड़ क्षेत्र (4000 वगण मीटर) की राइस मैट नसणरी करीब 150 एकड़ क्षेत्र में रोपनी के तलए पयाणप्त
होिी है। पौध उत्पादन के अतिररक्त राइस ट्रान्सप्लान्टर को भी सेवा प्रदािा (custom hiring) के रूप में
व्यवसाय के रूप में इस्िेमाल ककया जा सकिा है।
2. रोपाई हेिु खेि की िैयारी : पौध रोपर् से 8-10 पूवण खेिों में पानी भर देना वािंिनीय है। खेि में 3-5
सेमी. पानी भरा होने पर ट्रेक्टर में के ज व्हील लगाकर कल्टीवेटर या देशी हल से लेह (पडललिंग) ककया जािा है
।यकद खेि में हरी खाद लगाई गई हो िो रोपाई के 8-10 कदन पूवण हरी खाद को तमट्टी में हल चलाकर अच्िी
िरह से तमला देना चातहए । धान की पौध को रोपने से पूवण खेि में अच्िी प्रकार से कीचड़ मचाने (puddling)
से मृदा से पानी का ररसाव कम हो जािा है तजससे पानी की बचि होिी है सार् ही खेि में खरपिवार व कीड़े-
मकोड़े नष्ट हो जािे है । इस कक्रया से पौधों में कल्ले (tillers) अतधक सिंख्या में बनिे है । मचाई के बाद खेि में
पाटा चलाकार समिल कर लें। इसी समय उवणरकों की अनुशिंतषि आधार मात्रा भी डालना चातहए ।
3.पौध की उम्र (Age of seedling): रोपाई के तलए पौधों की उपयुक्त अवस्र्ा या उम्र धान की ककस्म पर
तनभणर करिी है.सामान्यिौर पर अल्पकालीन व मध्यम अवतध की बौनी ककस्में 20 से 25 कदन (4-5 पत्ती
अवस्र्ा) की अवस्र्ा िर्ा देशी व दीधणकालीन ककस्में 25-30 कदन बाद रोप देना चातहए ।
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4.पौध रोपर् (Transplanting): अगेिी रोपाई से अतधक उपज प्राप्त होिी है। उत्तरी भारि के मैदानों में 15
जुलाई के बाद रोपाई करने से उपज में कमीं आिी है. खेि मचाई के दूसरे कदन रोपाई करना अच्िा रहिा है।
यकद रोपाई के समय खेिों में पानी अतधक भरा हो िो अतिररक्त पानी की तनकासी करें। रोपा लगािे समय एक
स्र्ान (तहल)पर 2 से 3 पौधों की रोपाई करें । पौधे सदैव सीधे एिंव 3-4 सेमी. गहराई पर ही लगाए। अतधक
गहराई पर पौध लगाने से किं शे (tiller) कम बनिे है । किारों व पौधों के बीच की दूरी 20 x 15 से.मी. (देर से
िैयार होने वाली ककस्मों ) और 20 x 10 सेमी. (शीघ्र व मध्यम समय में िैयार होने वाली ककस्में) रखना
चातहए। प्रत्येक 3 से 4 मीटर के बाद लगभग 30 सेमी. का रास्िा सस्य कायण हेिु रखना चातहए । रोपाई के
बाद यकद कु ि पौधे मर जािे है िो ररक्त स्र्ानों पर नई पौध जल्दी लगा देना चातहए तजससे प्रति इकाई क्षेत्र में
उतचि पौध सिंख्या स्र्ातपि हो सकें ।अतधकिम उपज के तलए प्रति वगण मीटर क्षेत्र में धान के 500 बालीयुक्त
पौधे होना आवश्यक पाया गया है ।
चावल सघनीकरर् पद्धति (श्री) में कम दूरी पर कम उम्र का पौधा रोपा जािा है तजसमें उवणरक एिंव
जल का न्यूनिम एिंव सक्षम उपयोग करिे हुए प्रति इकाई अतधकिम उत्पादन लेने की रर्नीति अपनाई जािी
है। इस पद्धति में धान के पौधे से अतधक किं शे तनकलिे हैं िर्ा दाने पुष्ट होिे हैं। चावल सघनीकरर् पद्धति (श्री)
का तवस्िृि व्योरा अगले व्यख्यान में कदया जायेगा ।
पूवी उत्तर प्रदेश एविं पतिमी तबहार के एग्रो क्लाइमेरटक जोन में धान की फसल को जुलाई के प्रारम्भ
से अक्टूबर के मध्य िक लगभग 100 कदनों िक अत्यतधक नम अवस्र्ा का सामना करना पड़िा है। इन क्षेत्रों में
धान की खेिी उपरहान (अपलैन्ड) या तनचले खेिों (लो लैन्ड) में की जािी है। उपरहार खेिों में 'मानसून आने के
बाद लम्बी अवतध िक अवषाण की तस्र्ति में धान की फसल को जल की कमी का सामना करना पड़िा है, वहीं
दूसरी िरफ तनचले खेिों में बहुि अतधक वषाण हो जाने पर खेिों में आवश्यकिा से अतधक पानी, जल तनकास
समुतचि न होने से इकट्ठा हो जािा है तजससे रोपाई में तवलम्ब हो जािा है। इन दोनों ही तस्र्तियों में धान के
पौधों में कम कल्ले तनकलिे है, बिवार अच्िी नहीं होिी है तजससे धान की पैदावार अन्ि में बहुि कम हो जािी
है। अिः मौसम के बदलिे पररवेश में एविं जल की कमी को देखिे हुये "डवल ट्रान्सप्लाटटिंग" या "सन्डा रोपाई"
तवतध उपयोगी रहिी हैं। इस पद्यति में "क्लोनल कल्ले" जो कक पूवण रोपे गये पौधे (मदर प्लािंट) से कल्लों को
अलग करके उनकी दुबारा रोपाई की जािी है। इस िरह रोपे गये धान के पौधों में जल की अतधकिा एविं कमीं
दोनों ही तस्र्तियों की तवपरीि तस्र्तियों एविं अतधक िापक्रम को भी सहने की क्षमिा बि जािी है । इस तवतध
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में पहली रोपाई 3 सप्ताह की अवतध के पौधे (सीडललिंग) की सामान्य दूरी (लाइन से लाइन 20 से.मी., पौधे से
पौधे की 10 से.मी.) पर करें एविं दूसरी रोपाई पुनः पहले रोपे गये धान के 3 सप्ताह बाद करें । दूसरी रोपाई घनी
(लाईन से लाइणन 10 से.मी. पौधे की 10 से.मी.) करनी चातहये। अतधक अवतध के पौधे/कल्ले की रोपाई करने से
उपज में तगरावट आ जािी है।
पारिं पररक िरीके से धान की रोपाई करने में के वल खेि मचाने (puddling) एविं पौध रोपनी में ही कु ल खचण
का एविं लसिंचाई का करीब 1/3 भाग खचण हो जािा है तजससे खेिी की लागि में बिोत्तरी एविं लाभािंश में कमीं
आ रही है। इस पररतस्र्ति से तनबटने के तलए राइस मैट नसणरी उगाकर 15-18 कदन पुरानी पौध (seedlings)
को स्वचातलि या मानव द्वारा चातलि राइस ट्रान्सप्लान्टर द्वारा तबना मचाये हुए (unpuddled)परन्िु नम
खेि में उतचि दूरी पर रोपर् ककया जािा है। राइस मैट नसणरी द्वारा िैयार ककये गए धान के पौधों को रखने के
तलए एक ‘ट्रे’ नुमा लोहे की बनी आकृ ति होिी है जो कक मशीन से जुडी होिी है। परिं परागि िरीके से एक
श्रतमक द्वारा कदन-भर (8 घिंटे) में लगभग 500 वगण मीटर क्षेत्र में रोपर् ककया जािा है जबकक मशीन द्वारा
चातलि ‘राइस ट्रान्सप्लान्टर’ से लगभग 1-1.5 हेक्टेयर भूतम में एक श्रतमक द्वारा रोपाई की जा सकिी है.
रोपाई के 12 घिंटे पहले राइस मेट नसणरी बेड की लसिंचाई बिंद कर दें िाकक नसणरी को अच्िी िरह से उठाया
एविं उतचि आकर में काटा जा सकें । राइस ट्रान्सप्लान्टर में बने ट्रे के आकार के अनुसार नसणरी को 60 x 20
से.मी. के आकार में चाकू से काट लें और ट्रान्सप्लान्टर की ट्रे में रख दें। रोपनी के पूवण खेि को कल्टीवेटर द्वारा
जोिकर पाटा चलाकर खेि को समिल कर लेना आवश्यक है। एक एकड़ खेि में मशीन से रोपाई हेिु उपयुणक्त
आकार के लगभग 200 टुकड़ों की आवश्यकिा पड़िी है। रोपर् हेिु खेि मचाने (puddling) की जरुरि नहीं है।
रोपर् से 12-24 घिंटे पूवण खेि में लसिंचाई करें िाकक तमट्टी नरम (soft) हो जाये। इसके बाद नम तमट्टी या 1
से.मी. खड़े पानी में मशीन द्वारा रोपर्ी की जािी है। रोपनी के बाद एक कदन के अिंिराल पर पािंच कदनों िक
हल्की लसिंचाई करिे रहें िाकक खेि में पौधे अच्िी िरह व्यवतस्र्ि हो जायें। इस दौरान खेि में पानी जमा न
होने दें. रोपर् के बाद सभी शस्य कक्रयाएिं जैसे खाद प्रबिंधन, लसिंचाई, खरपिवार तनयिंत्रर् आकद परिं परागि
िरीके से रोतपि धान की िरह ही करें .मशीन द्वारा धान की रोपाई के अनेक फायदे है:
सिंसाधनों का समुतचि उपयोग (मशीन द्वारा धान की रोपाई करने से 20 श्रतमक प्रति हेक्टेयर की बचि
तजसका श्रम मूल्य करीब 2000 रूपये से अतधक होिा है।
पानी एविं उवणरकों की बचि होिी है।
वषाण में देरी की तस्र्ति में भी समय पर रोपाई (12-18 कदन की पौध उपयुक्त) सिंभव है।
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एक समान पिंतक्त से पिंतक्त एविं पौध से पौध की दूरी बनाये रखी जा सकिी है।इससे 30-35 पौधे प्रति
वगण मीटर एविं एक जगह पर 2-3 पौध की रोपाई होिी है।
परिं परागि िरीके से रोपी गई धान के बराबर उपज प्राप्त होिी है।
नसणरी से पौध उखाड़ने से लेकर रोपर् िक पौधों को लगने वाले आघाि (ट्रािंसप्लािंटेशन शॉक) में कमीं,
कम समय में कल्ले फू टना एविं एक समय पर धान का पकना इस तवतध की प्रमुख लाभ है।
तमट्टी की उवणरा शतक्त एविं सिंरचना को बरकरार रखने में सहायक है।
धान की खेिी की लागि में कमीं एविं लाभािंश में बिोत्तरी होिी है।
चटाई युक्त पौधशाला (राइस मैट नसणरी) िकनीक द्वारा धान की पौध िैयार कर अन्य ककसानों को
बेचकर िर्ा राइस ट्रािंस्प्लान्टर को ककराये पर चलाकर अतिररक्त रोजगार एविं लाभ अर्जणि ककया जा
सकिा है।
खाद एिंव उवणरक (Manure and Fertilizer)
धान फसल में खाद एिंव उवणरकों की सही मात्रा का तनधाणरर् करने के तलए खेि की तमट्टी का परीक्षर्
कराना आवश्यक है। सिंिुतलि मात्रा में पोषक ित्वों की आपूर्िण रासायतनक उवणरकों िर्ा जैतवक खादों दोनों ही
साधनों से करने पर भूतम की उवणरा शतक्त रटकाऊ बनी रहिी है सार् ही धान की उपज में भी आशािीि
बिोत्तरी होिी है। तमट्टी परीक्षर् की सुतवधा न होने की तस्र्ति में धान की ककस्मों की अवतध के अनुसार पोषक
ित्वों की मात्रा तनम्नानुसार देना चातहए ।
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धान के पौधे नाइट्रोजन को अमोतनकल रूप ग्रहर् करिे है इसतलए इसमें नाइट्रेट उवणरकों का प्रयोग न
कर अमोतनकल उवणरकों यर्ा यूररया िर्ा अमोतनयम सल्फे ट का प्रयोग करना चातहए । फॉस्फोरस को सुपर
फॉस्फे ट िर्ा पोटाश को पोटैतशयम सल्फे ट के माध्यम से देना लाभप्रद रहिा है । अलसिंतचि अवस्र्ा में जल
उपलब्धिा के अनुसार उवणरकों की सिंस्िुि मात्रा को 20-30 प्रतिशि िक कम ककया जा सकिा है। यकद हरी
खाद एिंव जैतवक उवणरकों का उपयोग ककया गया है िो 20-25 प्रतिशि नत्रजन का उपयोग कम ककया जा
सकिा है। स्फु र व पोटाश की पूर्ण मात्रा बुवाई या रोपाई के समय देना चातहए। यकद बुवाई, तबयासी या रोपाई
के समय आधार खाद के रूप में स्फु र व पोटाश नहीं डाला गया हो या तसफाररश की गई मात्रा की आधी ही
डाली गई है िो पूरी उवणरक की मात्रा या शेष आधी तबयासी या रोपाई के 20-30 कदन के अिंदर (खेि में 3-5
सेमी. जल होने पर) देना चातहए। धान के खेि में नत्रजन तवभातजि मात्रा (तनम्न सारर्ी अनुसार) में देना
चातहए।इससे नत्रजन का अच्िी िरह से उपयोग हो जािा है िर्ा उपज में बिोत्तरी होिी है ।
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िैयारी या तबयासी के समय देना लाभकारी पाया गया है। धान की खड़ी फसल में भी जस्िे का तिड़काव ककया
जा सकिा है। एक ककलो लजिंक सल्फे ट को 190 लीटर पानी में घोलें। इसके बाद 500 ग्राम चूने को 10 लीटर
पानी में तमलाकर 15 तमनट िक पानी को तस्र्र होने पर ऊपर के साफ पानी को लजिंक सल्फे ट के घोल में
तमलाकर तिड़काव करें ।
रोपा तवतध से लगाये गये धान में हरी खाद का प्रयोग आसानी से ककया जा सकिा है। इसके तलये सनई,
ढेे़चा आकद का 25 ककग्रा. बीज प्रति हे. की दर से रोपाई के एक माह पूवण मुख्य खेि में बोना चातहए। रोपाई से
पहले खेि में मचौआ (puddling) करिे समय हरी खाद की खड़ी फसल को तमट्टी में अच्िी िरह तमला दें। हरी
खाद के प्रयोग से 50-60 ककग्रा. प्रति हे. उवणरकों की बचि की जा सकिी है।
धान में जैतवक उवणरक जैसे नील हररि काई, एजोस्पाइररलम एिंव पी. एस. बी. कल्चर आकद का प्रयोग
लाभकारी होिा है। धान की रोपाई अर्वा तबयासी और चलाई के 5-6 कदन बाद 5-8 सेमी. खड़े एिंव तस्र्र
पानी में 10 कक.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से नील हररि काई के कल्चर का तिड़काव करें । खेि का पानी बहकर
बाहर न जाये,इसका प्रबिंध कल्चर तिड़काव के पहले ही कर लें।
धान के खेिों में मुख्यिः सािंवा, मोर्ा, दूब, कनकउआ, करगा (जिंगली धान) आकद खरपिवार बहुधा
उग आिे है जो कक फसल के सार् पोषक ित्वों, नमी, प्रकाश, एिंव स्र्ान हेिु प्रतिस्पधाण कर फसल को कमजोर
कर देिे हैं तजससे धान उत्पादन व गुर्वत्ता पर तवपरीि प्रभाव पड़िा है। ऊँची भूतम वाले धान (तबयासी और
किार बोनी) में 30-90 प्रतिशि, तनचली एिंव जलमग्न भूतम(लेही में) 30-50 प्रतिशि िर्ा रोपा पद्धति में 15-
20 प्रतिशि उपज में क्षति खरपिवारों द्वारा होिी है। समय पर नींदा तनयिंत्रर् से धान की पैदावार में बढोत्तरी
की जा सकिी है। धान उगाने की तवतभन्न तवतधयों के अनुसार तनम्नानुसार खरपिवार तनयिंत्रर् ककया जाना
चातहए।
नसणरी : बिर तस्र्ति में र्रहा डालने के 3-4 कदन के अिंदर ब्यूटाक्लोर या र्ायोबेनकापण 1-1.5 कक./हे. या
आक्साडायणतजल 70-100 ग्राम/हे. या तप्ररटलाक्लोर + सेफनर 500 ग्राम/हे. सकक्रय ित्व का तिड़काव करें ।
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किार बोनी : अकसर जुिाई करें । वषाण होने पर वषाण के 5-6 कदन बाद कफर जुिाई करें िर्ा बिर (ओल) आने
पर किार में धान की बुवाई करें । बुवाई के 3-4 कदन के अिंदर ब्यूटाक्लोर या पेण्डीमेर्ीतलन या र्ायाबेनकाबण 1-
1.5 ककग्रा/हे. सकक्रय ित्व का तिड़काव करें । बुआई के 30-35 कदन बाद किारों के बीच पिले हल द्वारा जुिाई
करें या हार् से तनदािंई करें। धान का अिंकुरर् होने के 14-20 कदन में यकद सािंवा िर्ा सकरी पत्ती वाले
खरपिवारों का प्रकोप अतधक हो िो कफनाक्साप्राप या कफनाक्साप्राप या साहलोफास 80 ग्राम/हे. िर्ा चौडी
पत्ती वाले खरपिवारों के तनयिंत्रर् के तलये इर्ॉक्सीसल्फयूरान 15 ग्राम/हे. सकक्रय ित्व का उपयोग ककया जा
सकिा है।
तबयासी तवतध : इस पद्धति में धान की बुवाई दो पररतस्र्तियों में की जािी है (1) वषाण पूरी जमीन िैयार कर
सूखे खेि में ही धान का तिड़काव कर हल द्वारा जमीन में तमलाया जािा है। (2) वषाण आरिं भ होने पर जमीन की
िैयारी कर बिर की तस्र्ति में बीज की बुवाई की जािी है। अिः जब बुवाई सूखी भूतम में की जािी है िब प्रर्म
वषाण के 3-4 कदन के अिंदर ब्यूटाक्लोर या र्ायोबेनकापण 1-1.5 कक./हे. या तप्रटीलाक्लोर $ सेफनर 500-700
ग्राम/हे. सकक्रय ित्व का तिड़काव भूतम में नमी रहिे करें । बिर तस्र्ति में बुवाई ककये गये धान में बोने के 3-4
कदन के अिंदर उपरोक्त शाकनातशयों में से ककसी एक तिड़काव करें । चलाई करिे समय खरपिवारो को जमीन में
दबा दें। आवश्यकिानुसार तबयासी से 25-30 कदन बाद एक बार हार् से लनिंदाई कर सकिे हैं।
रोपा तवतध : अच्िी मचाई िर्ा खेि में पानी रखना खरपिवार प्रकोप कम करने में सहायक होिा है। रोपा
लगाने के 6-7 कदन के अिंदर एनीलोफॉस 400-600 तम.ली. प्रति हेक्टेयर या ब्यूटाक्लोर या र्ायोबेनकापण या
पेण्डीमेर्ालीन 1-1.5 कक./हे. सकक्रय ित्व का प्रयोग करे । धान अिंकुरर् होने के 14-20 कदन मिं यकद सािंवा िर्ा
सकरी पत्ती वाले खरपिवारों के तनयिंत्रर् के तलये इर्ाक्सीसल्फयूरान 15 ग्राम/हे. या क्लोररम्यूरान $
मेटासल्फयूरान 4 ग्राम/हे. सकक्रय ित्व का तिड़काव करें ।
लेही पद्धति : लेही पद्धति में तजस िरह से रोपा लगाने के पहले भूतमकी िैयारी की जािी है, उसी िरह इस
पद्धति में भी खेि की मचाई करे । भूतम में बहुि हल्का पानी रखे व अिंकुररि बीज का तिड़काव करे । लेही डालने
के 8-10 कदन बाद ब्यूटाक्लोर या र्ायोबेनकापण 1-1.4 कक./हे.या एनीलोफॉस 400-600 तम.ली./हे. या 20
बाद क्लोररम्यूरान + मेटासल्फयूरान 4 ग्राम/हे. सकक्रय ित्व का तिड़काव करें । लेही डालने के 30से 35 कदन
बाद तबयासी करना उत्तम होिा है िर्ा तबयासी के 3 कदन के अिंदर चलाई अवश्य करें ।
करगा तनयिंत्रर् (Wild rice) : करगा एक प्रकार का धान से तमलिा जुलिा जिंगली धान (खरपिवार) होिा है
।इससे बचने के तलए प्रमातर्ि बीजों का उपयोग करे । करगा प्रभातवि खेिों में बैंगनी पत्ती वाली ककस्मों के
धान (श्यामला) की खेिी लगािार दो या िीन वषण करे । खेि में करगा िँटाई या तनराई कम-से-कम 2-3 बार
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करे । खेिों के पास गड्िों अर्वा िालाबों में लगे पसहर धान (जिंगली) के पाधों का उन्मूलन करना भी आवश्यक
होिा है।
धान फसल को अतधक पानी की आवश्यकिा होिी है। धान की फसल में वषाण न होने या कम होने पर
जब मृदा में नमी सिंिृप्त अवस्र्ा(saturation point) से कम होने लगे (तमट्टी में हल्की दरार पड़ने लगे) िो
लसिंचाई करना आवश्यक रहिा है। परिं परागि िरीके से रोतपि धान की फसल में पहले िो मृदा को सिंिृप्त करने
और कफर लेवकषणर् (puddling) करने के तलए 200 से.मी. पानी की आवश्यकिा होिी है. बाद में रोपाई से
पकने िक 80-120 से.मी. पानी की आवश्यकिा पड़िी है । धान में किं सा तवकास (tillering),गभोट(panicle
initiation) , फू ल आने (flowering) और दाना बनने (grain filling) की अवस्र्ा के समय खेि में पानी की
कमीं होने से उत्पादन में भारी कमीं आ जािी है। धान के खेिों में तभन्न-तभन्न पररतस्र्ियों में तनम्न ढिंग से लसिंचाई
का प्रबिंध ककया जािा है।
अलसिंतचि पररतस्र्ति में तिटकवाँ या किार तवतध से धान की बोनी करने के बाद जब पौधे बिकर
लगभग 5 से.मी. हो जाये, िब खेि में हल्का (1-3 सेमी.) जल स्िर रखें । पौधे जैसे-जैसे बििे हैं पानी
का स्िर 5-7 सेमी. िक बिाना चातहए ।
रोपा तवतध में रोपा लगाने के समय मचौआ (puddle) ककये गये खेि में 1-2 सेमी.से अतधक पानी न
रखें िर्ा रोपा लगाने के बाद मचाया हुआ खेि सूखने न पाये। रोपाई के बाद एक सप्ताह िक खेि में
पानी का स्िर 2-3 से.मी. रखने से रोतपि पौधे जल्दी स्र्ातपि हो जािे है। धान की बातलयािं बनिे
समय, फू ल तनकलिे समय और दाने बनिे समय खेि में 5 - 7 सेंटीमीटर पानी होना चातहए।
अनुसिंधानों द्वारा यह तसद्ध हो चुका है कक हर िीन कदन के अिंिर से 3 कदनों के तलये धान के खेि से
पानी तनकालकर कफर भरिे रहने (continuous flooding and intermittent drainage) से उिनी ही
उपज तमलिी है तजिनी 5-7 से.मी. पानी सिि खेि में भरा रखने से तमलिी है । पानी की कमीं वाले
क्षेत्रों में फसल अवतध के दौरान मृदा को सिि जल सिंिृप्त (continuous saturation) अवस्र्ा में रखने
से जल की वचि होिी है िर्ा उत्पादन भी अच्िा प्राप्त होिा है।
देशी (ऊँची) ककस्म की धान में किं से फू टने की अवस्र्ा (tillering) पूर्ण होने से लेकर गभोट की अवस्र्ा
(panicle initiation stage) िक उर्ला जल स्िर 5-7 सेमी. रखें। बातलयाँ तनकलने के बाद खेि में
उर्ला जल स्िर या खेि को पूर्ण रूप से गीली या सिंिृप्त अवस्र्ा में रखा जा सकिा है। गभोट की
अवस्र्ा से दाना भरने की अवस्र्ा िक भूतम में पानी की कमी नहीं होनी चातहये। नमीं की कमीं होने
पर लसिंचाई करना आवश्यक है ।
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धान के प्रमुख कीट: धान के मुख्य खरीफ मौसम में गमण व नम वािावरर् रहिा है जो कक कीट-पििंगों की वृतद्ध
एविं प्रजनन के तलए बहुि उपयुक्त रहिा है। भारि में साधारर्िया िना िेदक (stem borer), तपरटका या
गाल मक्खी (gaal midge), िने का फु दका (brown plant hopper), गिंधी कीट rice bug) फसल को हातन
पहुँचाने वाले मुख्य कीट है. इसके अलावा फौजी कीट (army worm), कटुआ कीट (cut worm),तमली बग
(mealy bug), पत्ती मोड़क (leaf folder), तिप्स आकद धान के गौर् रूप से हातन पहुँचाने वाले कीट है. धान
की अतधक उपज के तलए समयानुसार कीट तनयिंत्रर् के आवश्यक उपाय अपनाये जाने चातहए।
धान के प्रमुख रोग (Diseases): धान के प्रमुख रोगों में प्रध्विंश रोग (blast), भूरी तचत्ती (brown spot),
िना तवगलन (stem rot), आभासी किं ड (false smut), पर्णच्िद अिंगमारी (sheath blight),जीवार्ु पर्ण
अिंगमारी (bacterial leaf blight), टुिंग्रो वायरस, खैरा रोग (लजिंक की कमीं से) आकद प्रमुख है। इन रोगों से
फसल की सुरक्षा के आवश्यक उपाय जैसे बुवाई पूवण बीज उपचार िर्ा खड़ी फसल में फफूिं दनाशी दवाइयों का
समयानुसार तिडकाव करना चातहए।
कटाई एविं मड़ाई (Harvesting and Threshing)
धान की तवतभन्न ककस्में लगभग 100-150 कदन में पक जािी हैं। सामान्यिौर पर बातलयाँ तनकलने के
एक माह पिाि् धान की लगभग सभी ककस्में पक जािी है। जब दाने सख्ि हो जाएिं अर्ाणि दािंि से काटने पर
हल्की कट की आवाज आने पर िो कटाई कर लेना चातहए। इस समय दानों में लगभग 20-24 प्रतिशि नमीं
होिी है । जब दाने सख्ि पड़ने लगे िो खेि में पानी नहीं रहना चातहए िाकक फसल जल्दी पाक जाए और
अगली फसल के तलए खेि जल्दी िैयार ककया जा सकें । दाने अतधक पक जाने पर झड़ने लगिे है और उनकी
गुर्वत्ता में दोष आ जािा है। कटाई हँतसये या शतक्तचातलि यिंत्रों द्वारा की जािी है। धान के बिंडलों को
खतलयान में सूखने के तलए फै ला देिे हैं और बैलों या ट्रैक्टर द्वारा मड़ाई (threshing) करिे हैं। ित्पिाि् पिंखे
की सहायिा से ओसाई (winowing) की जािी है। धान की मड़ाई और ओसाई का कायण शतक्तचतलि िेशर
अर्वा पैर से चलाया जाने वाला जापानी पैडी िेसर से भी ककया जािा है। आजकल किं बाइन हावेस्टर के प्रयोग
से कटाई,मड़ाई और ओसाई का कायण एक सार् सिंपन्न हो जािा है।
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धान की तवतभन्न ककस्मों की उपज बुवाई की तवतध िर्ा सस्य प्रबिंधन पर तनभणर करिी है. सामान्य िौर
पर धान की देशी ककस्मों से 25-30 कक्विंटल प्रति हेक्टेयर िर्ा धान की बौनी ककस्मों से 50-80 कक्विंटल प्रति
हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकिी है। धान को अच्िी िरह धूप में मानक नमीं स्िर (12-13 %) िक सुखाया
जाना उनके सुरतक्षि भण्डारर् के तलए आवश्यक है. सुरतक्षि भण्डारर् के तलए धान/चावल को बोरों में भरकर
ऐसे पक्के भिंडार गृह में रखना चातहए हो ऊँचाई पर बना हो, जहािं हवा का प्रवेश न हो िर्ा नमीं व चूहों से
सुरतक्षि हो ।
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