5 6298832464596959572 PDF

You might also like

Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 144

@BOOKHOUSE1

@BOOKHOUSE1
एक िदन तुमसे िमला था

@BOOKHOUSE1
© Copyright, Author
All rights reserved. No part of this book
may be reproduced, stored in a retrieval
system, or transmitted, in any form by any
means, electronic, mechanical, magnetic,
optical, chemical, manual, photocopying,
recording or otherwise, without the prior
written consent of its writer.

@BOOKHOUSE1
एक िदन तुमसे िमला था
(चुनी हुई किवतायेँ)

@BOOKHOUSE1
‘’ लखना मेरे लए जीवन जीने क तरक ब है। इतना लख लेने के
बाद अपने लखे को देख म सफ यही कह पाता हूँ िक चलो , इतने
बरस जी लया। यह न होता तो इसका या िवक प होता , अब
सोचना किठन है। लेखन मेरा िनजी उ े य है। “
शरद जोशी

@BOOKHOUSE1
Contents
आपस क बात 9
एक िदन तुमसे िमला था 10
जब यार िकसी से होता है.… 11
ओ िम थला क राजकुमारी 12
भामती… 13
जाओ! भतृह र मत आना… 18
मुझ पर किवता मत लखना.. 21
एक आकां ा… 22
एक िदन 23
सखी! म तुमसे या कहती.. 24
रा ता ख़ुद से िनभाना था 25
सीता! सीता! राम पुकारे… 26
वो जब पायल पहन कर चलती 28
म िदन का मौसम देख कर 29
मने कहा भी नह … 30

@BOOKHOUSE1
तुम चाहो तो बात भी कर सकती हो
तुम मुझको उ ैन घुमाना
जाने कौन से आँ गन को आबाद करेगी
इ क़ के हर सतम पर आह कौन करता है
32
31

34
35
दोबारा ेम म पड़ने वाली लड़िकयाँ 36
एक वाब 37
लौट कर आने वाली ेिमकाएँ 38
हम रच द ेम किवता….. 39
एक तरफ़ है यार उसका 40
देखता हूँ जब कभी म 41
म नह था ेम लायक! 42
भूलकर तुमको जया था! 43
वो हमारी हर बात 44
ेम क िनशािनयाँ 45
जब म तुमसे कहता हूँ 46
भूल जाओ जो िवगत है 48
और अब.. 49
आपक किवता म बस यही इक गलती है 50
सीता! तुम नह असहाय 51

सबसे बड़ी पीड़ा… 52
तुम वो लड़क हो 53
उसने नदी पर लखी किवता 54
बस इतना याद है… 55
बनारस 56
मुह बत शु दो ती से होगी 57
िदल तो चाहे लगना, जान! 58
ग़ैर के संग वो िदखती है 59
मु ी भर यार…. 60
म तु ह भूला नह था…. 61
कोई बात नह करता 62
डीपी म जो लड़क है 63
कौन जस से कह सकँू म मीत अपनी बात 64
मृ तय के वातायन से 66
चाँदनी ओढ़ लेगी आसमानी चुनर 67
अपनी ेम कहानी है 68
मने जब देखा 72
यूँ ही बसर ज़दगी होगी

@BOOKHOUSE1
73
रात का सफ़र ल बा होगा 74
म था तुम थी बात थी 75
उ ैन से पहले 76
इस लये था घड़े का पानी मीठा 77
बादल 78
िवरह से य थत मन म 79
अब हमको िमल लेना चािहये!! 80
ये माना तुम अब नह ि ये 81
सारे लोग उस सूरज को पाने जा रहे ह 82
ठा िपया मनाऊँ म कैसे, 83
कण मौन है 84
रहनुमा बदगुमां हो शायद 85
रात के तीसरे पहर 86
बस एक बार 87
ठे यार मना रह ह हम 88
अंदर अंदर घुटती हो 89
सद िदस बर तनहा चाँद 90
अगर िदल म मोह बत नह है 91


रावण के मन म था रावण 92
हम बस राह का प थर पलटने वाले है 95
अजीब आँ धी व त चला गया 96
जहाँ झुक जाये सर , उसे दर कहते ह 97
हम तुझको उ ैन घुमाया करते थे 98
हाल ए िदल 99
भूल जाता हूँ 100
एक तु हारे 101
पश 102
इंदौर 103
माँ 104
िज़ दगी से मेरी कोई द ु मनी भी नह 105
तेरा आँ सू बहाना ग़ज़ब हो गया 106
दद होगा न आह होगी! 107
पहली बा रश 108
म और वो 109
उसक हर इक बात मुह बत 110
ी राम

@BOOKHOUSE1
111
बु 112
शाबाश अ भषेक 113
उसका िदया ताबीज़ ग़ज़ल 114
अ ेम िववाह 115
ज़ म क ऊपरी सतह पर लखना 116
किवताएँ 117
बात िबगड़ी बात से 118
अंदर अंदर घुटना दख
ु है 120
तेरी याद म यूँ बेसबब खो गया 121
लघु किवतायेँ 122
आपस क बात
ये मेरी किवताओं क दस ू री िकताब है पहला यास “ शायद तु ह पता न
हो “ आये दो साल हो गए.. तब से अब म एक लेखक और इंसान के तौर पे
भी काफ़ बदलाव आए ह जो आपको पढ़कर महसूस भी होगा! डायरी
लखने क आदत तो है नह सो अ धकतर किवताएँ ऑनलाइन ही मौजूद
है.. इस िकताब म उ ह यव थत करने का एक यास भर िकया है! एक
कारण ये भी था िक आजकल कुछ लखने का मन भी नह होता… इन
िदन बहुत लोग को पढ़ा और ये अहसास हुआ िक अपना लखा िकतना
कमतर है.. िकतना कुछ है जो बेहतर तरीक़े से लखा जा चुका है.. इस लये
इस पहले िक अपने लखे से िबलकुल ही नफ़रत हो जाए… उ ह एक जगह
िपरो देता हूँ सुिवधा रहेगी और लोग को एक जवाब भी िमल जाएगा िक
आपक अगली िकताब कब आयेगी!
मुझसे जुड़ने के लये :-
Instagram : @yours_abhishekk
Yourquote : abhishekk nagar

@BOOKHOUSE1
Facebook : abhi.nagar.0408
Mail : abhishek.nagar8@outlook.com
एक िदन तुमसे िमला था
बरस से सोये सरोवर म
अचानक जल िहला था
एक िदन तुमसे िमला था
िदशाहीन नािवक यकायक एक िदन
िकसक ख़ा तर धार के िवपरीत मुड़ा था
आधे आधे दय के टु कड़े समेटे
हौले हौले से कोई र ता जुड़ा था
मन क उस बंजर ज़मीन पर
ेम का पौधा खला था
एक िदन तुमसे िमला था
म कभी कह भी न पाया था जो तुमसे

@BOOKHOUSE1
तुमने आँ ख से वही वादा िकया था
और उसी को ज़दगी कहने लगे िफर
एक पल जो दोन ने संग म जया था
देह से मृत ाय चातक को
िकसी का जल िमला था
एक िदन तुमसे िमला था
जब यार िकसी से होता है.…
सूने से मन के आँ गन म कोई रात रानी जब खलती है
जस दिु नया से छुपते थे अब वो दिु नया हँस कर िमलती है
हर आहट पर यँू च क उठ िदल धक धक धक धक करता है
“ अ छा! सुनो “ ख़ैर जाने दो , िदल कहने से भी डरता है
बात बात बात करना चाहे ये िदल िबलकुल न सोता है
जब बहुत िदन के बाद अचानक यार िकसी से होता है
हर रोज़ म देखँू वाब एक िकतना ख़ुश ख़ुश ये चेहरा है
तुम लाल जोड़े म खड़ी हो बाएँ और मेरे सर पर सेहरा है
हाँ माना ज दी ठीक नह पर अब और रहा नह जाता है
म ख़ुद का नाम भी लेता हूँ तो साथ तु हारा आता है
िदल तु हारी ही बात को अब श द म रोज़ िपरोता है

@BOOKHOUSE1
जब बहुत िदन के बाद अचानक यार िकसी से होता है…
ओ िम थला क राजकुमारी
िकन श द म बयाँ कर हम , कहने से भी डरते ह
ओ िम थला क राजकुमारी , हम बस तुम पर मरते ह
तुम दिु नया क बात करती , म ह ठ को तकता हूँ
जाने या हो गया आजकल , न द म बक बक करता हूँ
तुमको सोचूँ , ज दी सोऊँ , म भी या या करता हूँ
तुम आती हो वाब म सो अब , देर से सोकर उठता हूँ
तुमको स पा जीवन अपना , आज से ण हम करते ह
ओ िम थला क राजकुमारी हम बस तुम पर मरते ह
बात तु हारी गंगा जैसी , श द श द म पटना है
लगता है िक प तु हारा , सीता माँ का गहना है
तुमको लेकर , हाथ पकड़ कर , दरू कह अब बसना है

@BOOKHOUSE1
ह ठ से हम कुछ न बोले , आँ ख से ही कहना है
जतना लखा , सब है तु हारा , लो हम आज यह कहते ह
ओ िम थला क राजकुमारी , हम बस तुम पर मरते ह….
भामती…
है ध य धरा ये भारत भू
सुर नर मुिन जन गुण गाते ह
है ध य सभी वे महापु ष
ख़ुद को जो अमर कर जाते ह
है ध य ध य उस नारी को
जसने भी याग ब लदान िकया
िनज क आहु त देकर के
इ तहास म अपना नाम िकया
थी पवती वो ानी भी
जब धम क ओर झुकाव हुआ
भामती नाम था नारी का

@BOOKHOUSE1
वाच प त से िववाह हुआ
याय मीमांसा धम स य
सारे उनको ही आते थे
वाच प त थे िव ान ऐसे
िक सव कहाते थे
थे अ त धूिन व कम रम
सू पर टीका लखना था
उसे आगे ना पीछे कुछ
ना िदखता था न िदखना था
नव वधु आई है िनज घर म
इसका भी तिनक न यान हुआ
कब ऊषा आई कब िनशा गई
एक पल न मगर यवधान हुआ
काल च चलता ही रहा
कान म श द तरस गए
िदन बीता महीने बीत गए
यौवन के बारह बरस गए
था येय एक था ल य एक
टीका को पूरा करना है
िफर छोड़ छाड़ सांसा रक मोह
जा वन स यासी बनना है
और जस िदन टीका पूण हुआ
तब यान पास म जाता है
सोने के कंगन वाला हाथ

@BOOKHOUSE1
एक िदये क लौ को जलाता है
माथे पर देखा बदी को तो
सहसा मुखर हुआ िफर मौन
सुंदर नारी थी पास खड़ी
बोले हे देवी आप हो कौन
है ध य भाग मेरे िक अब
आप आ ख़र कुछ तो बोले ह
परमे र तप अब पूण हुआ
िक आपने लब तो खोले ह
बोली म भाया आपक हूँ
िव धवत इस घर म लाये थे
हुए बारह वष इस बात को
िक आप मुझ ही से याहे थे
पर इतने बरस तू कहाँ रही
मुझको तो कुछ न िदखता था
ता प और थे मोर पंख
म लखता था बस लखता था
साँझ िदए क लौ को बढ़ाने
तिदन हे नाथ म आती थी
और ात काल क बेला म
िफर उसको ही हटाती थी
इस लए कुछ भी न कहती थी
तप म आपके यवधान न हो
बैठा करती थी यह पास िक
तिनक भी अस मान न हो

@BOOKHOUSE1
वाच प त थे िव मृत अवाक्
मुख से कुछ भी न कहते थे
आँ ख म लािन भरे अ ु
झर झर झर झर झरते थे
बोले हाँ इतना याद मुझे
इक हाथ सं या को आता था
िदन म भोजन क थाल लए
कोई तो हाथ बढ़ाता था
म ख़ुद को कैसे माफ़ क ँ
हाय कैसा म िनम ही हूँ
िकतने ही बरस बबाद िकये
हाँ म ही तु हारा दोषी हूँ
जस िदन यह टीका पूरी होगी
मुझको संसार िबराना है
मने था यह ण लया िक िफर
वन म उस ही ण जाना है
माना म तु हारा दोषी हूँ पर
अब इतना ही कर सकता हूँ
यह टीका है जीवन पूँजी
सो नाम भामती रखता हूँ
मुझको अब चाहे जग भूले
संसार तुझे न भुलाएगा
जब जब सू क बात होगी
बस नाम तेरा ही आएगा
हे नाथ नाथ म ध य हुई

@BOOKHOUSE1
ये भी तो आप ही जािनए
कौन होगा मुझसा कृत कृताथ
ख़ुद को न दोषी मािनए
हालाँिक उनका दोष नह पर
िफर भी ग़लती अगर हुई
शायद यही था िव ध का िवधान
भामती यगु तक अमर हुई
िकतनी सुंदर वो िन ा थी
था िकतना पिव वो याग
था िकतना सुंदर ेम वो
थे िकतने पावन उनके भाग
जाओ! भतृह र मत आना…
राजा भतृह र , उ ैन के महान शासक िव मािद य के बड़े भाई थे । अपने समय म वे बेहद तापी ,
िव ान और यायि य शासक थे जो अपनी प नी पगला से बेहद ेम करते थे । मगर घटना म कुछ
इस तरह से मोड़ लेता है िक वो सब कुछ छोड़ छाड़ कर जंगल म वैरा य ले लेते ह…!!!

जाओ! भतृह र मत आना


अपराध पगला का य नह
तुमने भलीभाँ त जाना
जस पर तुमने सव व लुटाया
जसने तुम पर सव व लुटाया
उस “ िव म “ ने िफर या पाया
झूठा लांछन सबने लगाया
िकस िकस को दोषी ठहराना
जाओ! भतृह र मत आना

@BOOKHOUSE1
एक िदन तुमने अमरफल पाया
िद य साधु जो लेकर आया
होगा अमर जसने भी खाया
तुमने उसे पगला को भजवाया
या उसके भा य म था खाना!
जाओ! भतृह र मत आना
नारी का दय ा है माना
जो जतना उतरे उतना जाना
पर जसने भार ेम को जाना
तुमको अपना न पहचाना
िफर उसको या समझाना
जाओ! भतृह र मत आना
माना बात बहुत थी घातक
तुम जस बरखा के थे चातक
उसका ेमी था सेनानायक
ेम नह था जसके लायक़
उसको खोकर यँू पछताना
जाओ! भतृह र मत आना
बात हुई थी ये हैरत क
आई इक िदन राजन तक
या त थी जसक सूरत क
एक िद य फल वो अ पत क
महाराज! आप ही खाना
जाओ! भतृह र मत आना

@BOOKHOUSE1
तुमसे मोह माया न छूटी
सहसा इक िदन तं ा टू टी
सब है बात िम या झूठी
मन म िवरह क िकरण फूटी
जाओ! उ यनी न भुलाना
जाओ! भतृह र मत आना
मुझ पर किवता मत लखना..
रामायण म जो लखा है,
िकतनी तरह से लोग पढ़..
राम पर आ ेप लगा तो
सीता जाकर िकस से लड़े…
का हा राधा ओ’ सतभामा,
सबको ही दोषी ठहराया..
जतना लखा उतने म पर
ेम कहाँ िफर कहो समाया…
श द श द के मतलब है सौ,
पढ़े लख का ये शहर है..
जस पर जतना कम लखा है

@BOOKHOUSE1
उसका उतना ेम अमर है…
जो म िपय के नैन बसूँ तो,
श द म िफर यँू िदखना..
ि ये! तु ह सौगंध है मेरी
मुझ पर किवता मत लखना…
एक आकां ा…
तुम बनो पहली नदी
जो िमले मेरे दय सागर म
पहली बा रश क बूँद
जो छूए त भावनाओं को मेरी
पहला ऐसा पिव र ता
एक ही नाम से हम एक दज
ू े को कह ल
तुम भेजो मुझे अपनी कँु वारी किवताएँ
सारी दिु नया के पढ़ने से पहले…..

@BOOKHOUSE1
एक िदन
एक िदन कोई और भी उठायेगा,
तु हारे साथ पतझड़ क प याँ..
एक िदन कोई िगनायेगा तु ह,
क धे तक आते बाल क ख़ूिबयाँ..
एक िदन तु हारी बात िकसी के,
लौटते रा त का गीत होगी…
एक िदन तु हारी आवाज़ िकसी के लए,
दिु नया का सबसे ख़ूबसूरत संगीत होगी….

@BOOKHOUSE1
सखी! म तुमसे या कहती..
सखी! म तुमसे या कहती
कौन अचानक दय म आया
शु वण अंतस को भाया
अंग अंग यंग लजाया
आँ ख अ ु झरती
सखी म तुमसे या कहती!
मन म अ ेम के कूदे
देह काँपती कुछ न सूझे
नैनन हर पल उनको ढू ँ ढ
दिु नया से अब डरती
सखी! म तुमसे या कहती

@BOOKHOUSE1
रा ता ख़ुद से िनभाना था
रा ता ख़ुद से िनभाना था
उस मोड़ पर ठहर जाना था
म ख़ुद ही नह आता मगर
तु ह तो शादी म बुलाना था
ये देख के उससे मुह बत क
घर के बगल म मयखाना था
मुझे मालूम है ग़लती मेरी है
बस उसको थोड़ा सताना था
बीएचयू से रामनगर के रा ते म
वो कौन थी जसका िठकाना था
उसक मुह बत ख़ुदा क नेमत

@BOOKHOUSE1
मेरी मुह बत झूठा फ़साना था
िकसे ढू ँ ढती हो किवताओं म
िकसे तु हारी जगह आना था
बहुत याद आ रही है तु हारी
ये सब लखना तो बहाना था

सीता! सीता! राम पुकारे…


वन म रहकर दर दर भटके
कौश या के राज दल
ु ारे
कैसी िबपदा आन पड़ी है
सीता! सीता! राम पुकारे
सबक िबगड़ी राम बनाये
राम क िबगड़ी कौन सँवारे
कैसी िबपदा आन पड़ी है
सीता! सीता! राम पुकारे
हाय म त कहाँ गई तु हारी
बोलो लखन तुम यँू आए
वन म िफरते दानव नाना
तुम यँू एकाक छोड़ आए
दय मेरा धक धक करता
कुछ अनथ न हो जाए
सीते मेरी हो सकुशल या
देह से ाण चले जाएँ
सबको खोकर जसको जीता
आज उसी को भी हारे

@BOOKHOUSE1
कैसी िबपदा आन पड़ी है
सीता! सीता! राम पुकारे
हे वनमाली! प े डाली
सीता को देखा है या
सुनता हूँ कोई भी धुन तो
लगता है सीता है या
कोिकल देखो निदयाँ देखो
कैसे अब इठलाती ह
सीता के जाने से इनक
सुंदरता बढ़ जाती है
जाने िकस पर पैर पड़े हो
वन के कंकर राम बुहारे
कैसी िबपदा आन पड़ी है
सीता! सीता! राम पुकारे

@BOOKHOUSE1
वो जब पायल पहन कर चलती
वो जब पायल पहन कर चलती
तो पूरी दिु नया थरकने लगती…
वो जब रंग से खेला करती,
तो इं धनुष आकर उसे देखा करते…
वो जब किवता पढ़ा करती,
तो सारे श द कई िदन तक सो नह पाते…
उस लड़क को जब ेम हुआ
तो उसक पायल उतार दी गई
रंग छीन लए गए और
कोरे कागज पर आँ सुओ ं से लखी
किवताये दी गई….

@BOOKHOUSE1
म िदन का मौसम देख कर
म िदन का मौसम देख कर
बता सकता हूँ यक़ नन
िक तुमने या रंग पहना होगा
आसमान म बादल को
देख कर समझ जाता हूँ म
तु हारा िमज़ाज आज कैसा होगा
वैसे ही जैसे
आज भी तु हारे कॉलेज से
िकसी क र वे ट आने पर
म समझ जाता हूँ
िक तुमने िफर िपछली रात

@BOOKHOUSE1
िकसी को सुनाई थी मेरी किवता…
मने कहा भी नह …
मने कहा भी नह …
तुमने सुना भी नह …
इ क़ अधूरा रह गया.. हमारा…
िमल के िबछड़ते रहे…
िदल यँू तड़पते रहे…
क ती को अपनी न िमला..िकनारा…
ल ज़ के जो मानी है…
मेरी ये जो कहानी है..
तुम से ही… तुम से ही…
आँ ख म ये जो पानी है…
सारी ये जदगानी है….

@BOOKHOUSE1
तुम से ही… तुम से ही….
तुम चाहो तो बात भी कर सकती हो
मेरी टोरी सबसे पहले देखती हो
तुम चाहो तो बात भी कर सकती हो
या तु ह भी मोह बत का रोग लग गया
देख रहा हूँ आजकल “ बशीर ” पढ़ती हो
बहुत नम काग़ज़ पर लखा है हाले िदल
मुझे मालूम है तुम हफ़ हफ़ चूमती हो
जैसे एक बया बनाती है अपना आ शयाँ
िकतने सलीक़े से तुम बाल गूँथती हो
एक ही वाब कई कई बार देखा है मने
िकचन से तु ह पुकार रहा हूँ “ सुनती हो! ”
*बशीर ब

@BOOKHOUSE1
तुम मुझको उ ैन घुमाना
झंझावात के जीवन म
इक सुकून बन जाना
म जब तुमसे िमलने आऊँ
तुम मुझको उ ैन घुमाना
तुम जस पर अ सर लखते हो
मुझे वहाँ ले चलना
कोठी रोड पर घूम रह हो
िकतना सु दर सपना
म तुमसे जो पूछ लूँ िफर यँू
ज त कैसी लगती होगी
तुम िफर अपनी चु पी तोड़ो

@BOOKHOUSE1
धीरे से हाथ पकड़ लो कह दो
िबलकुल तुम सी जाना….
तुम मुझको उ ैन घुमाना
एक किवता याद है मुझको
जसम थी चौपाटी
महाकाल से वो तुमको
सीधे वह ले जाती
िफर एक रोज़ वो पल भी आया
तुमने हाले िदल जो सुनाया
सामने वाला तब शरमाया
और जवाब म कुछ न कह कर
तु हारा झूठा खाना…
तुम मुझको उ ैन घुमाना….

@BOOKHOUSE1
जाने कौन से आँ गन को आबाद करेगी
जाने कौन से आँ गन को आबाद करेगी
वो जस से भी बँधेगी उसे आज़ाद करेगी
म उसे इतनी सारी किवताएँ सुना दँगू ा
िक वो जहाँ भी कुछ पढ़ेगी मुझे याद करेगी
मुझसे माँगते हो अगर मशवरा तो सुन लो
मुह बत बुरी चीज़ है तु ह बबाद करेगी
अजीब लड़क है मुझसे मुह बत नह करती
मगर कहती है शादी मेरी शादी के बाद करेगी

@BOOKHOUSE1
इ क़ के हर सतम पर आह कौन करता है
इ क़ के हर सतम पर आह कौन करता है
दिु नया क शत पर िनबाह कौन करता है
जतनी आसानी से हमने शक त पाई है
सोच कर देखना ऐसे तबाह कौन करता है
तु हारी क़ैद म रहने वाल से र क है मुझे
ये कौन सा गुनाह है ये गुनाह कौन करता है
वो सुनाने वाले ह महिफ़ल म अपनी ग़ज़ल
और म देख रहा हूँ िक वाह कौन करता है

@BOOKHOUSE1
दोबारा ेम म पड़ने वाली लड़िकयाँ
दोबारा ेम म पड़ने वाली लड़िकयाँ
पढ़ने लगती है िवरह के गीत
स ा ेम करने वाले लड़के
भूल जाते ह किवताएँ लखना
िकसी क सतायी हुई लड़िकयाँ
उ ह चाहने वाले लड़क को
समानुपाती क देने लगती ह…
घर से भागी हुई लड़िकयाँ
अपने प त क हर बात म हाँ म हाँ िमलाती है
िबछड़े ेमी से अपनी ेिमका को
िमलाने वाले लड़क के सामने

@BOOKHOUSE1
आगे चलकर ज़दगी हार जाती है!
एक वाब
और तु ह
एक बार को देखते ही मने देख लया था
एक वाब
िक शादी के इ सव िदन
तुम फ़ोन लगा कर कहती हो िक
आज कुछ बाहर का खाएँ ग
और म भी अड़ जाऊँ इस िज़द पर
िक आज कह जाने का मन नह है
मगर जब ऑिफ़स से लौटते व त
म लाऊँ पानीपुरी तु हारे लए
तुमने बना रखी है

@BOOKHOUSE1
मेरी पस दीदा भ डी क स ज़ी..
और म मु कुराते हुए बस ये पूछूँ
“ आज या िकया िदन भर ? “
तुम इतना सा कहो,
“ तु हारा इ तज़ार…!!! “
लौट कर आने वाली ेिमकाएँ
लौट कर आने वाली ेिमकाएँ
कभी अपने ेमी को नह पहचान सक …
सब कुछ भूल जाने क क़सम खाने वाले,
दो ज मिदन याद रखते ह साल म…
स ा ेम करने वाले इ सान से
देह नह आ मा सँवरती है
एक किव क ठु कराई हुई लड़क
तमाम उ किवताओं से नफ़रत करती है

@BOOKHOUSE1
हम रच द ेम किवता…..
ज म ज म तक तृ रह, जब सारे बंधन घुल जाएँ
दोन आपस म खो जाएँ , और िफर रच द ेम किवता
जब कृ ण प से नैन तु हारे अ ु से आ लािवत हो
सुवा सत केश उघड़े छुपे व पर यँू आ छािदत हो
ये रेशम उँ ग लयाँ तु हारी चं किट पर नृ य कर
इन साँस से उन साँस तक रोम रोम उ सािहत हो
तब भर कर तुमको बाह म आग़ोश म अपनी लेकर के
हम दोन अपने ह ठ िमला कर रच द ेम किवता
जब शम हया से ि ये तु हारा अंग अंग सकुचाता हो
सव व समपण भाव रहे यौवन ख़ुद पे इतराता हो
नख से शख तक मोम देह पर त अधर रख दँ ू अपने

@BOOKHOUSE1
आह म मेरा नाम रहे जो ेम सुधा सुलगाता हो
दो देह िमले इक ह बन अि से अि िमल जाए
और चु बन क बौछार से िफर रच द ेम किवता
एक तरफ़ है यार उसका
एक तरफ़ है यार उसका
एक तरफ़ संवेदना है
मेघ तो बरसा करग िनरंतर
एक पल तो पर धरा को तपना है
ज़दगी के धूप वाले रा ते पर
ेम क छाया तले ही चलना है
एक को िनकालने को
दज
ू ा काँटा भेदना है
एक तरफ़ है यार उसका
एक तरफ़ संवेदना है..

@BOOKHOUSE1
देखता हूँ जब कभी म
देखता हूँ जब कभी म
तु ह मुझको देखते हुए
लगता है जैसे जल उठी ह अनेक
दीपमा लकाएँ हर स मंिदर के आँ गन क
और तु हारी नीरव मु कान से
त ण ही हार जाती है
इ कॉन मंिदर क दीवार म छुपी
सारी नृ य करती गोिपयाँ
ना जाने िकतने ज म से हम
करते रहे है ेम इस नगरी म
वो ेम जो दिु नया म सबसे अनूठा है

@BOOKHOUSE1
व न म भी तु ह यँू पश करता हूँ म
जैसे रामघाट पर कोई साधु
अ य देने को ा का पानी छूता है…
म नह था ेम लायक!
म नह था ेम लायक!
स पे सब अ धकार तुमने..
ाण तन मन वार तुमने..
एक शािपत य को तुमने बनाया लोकनायक…
म नह था ेम लायक!!
तुमने जीवन को िदशा दी…
ीत इकतरफा िनभा दी..
पर खोया है मने बहुधा जो भी कुछ पाया अचानक…
म नह था ेम लायक!!!

@BOOKHOUSE1
भूलकर तुमको जया था!
भूलकर तुमको जया था!
याद है िनणय किठन था..
अ ु िवर चत रैन िदन था..
तब िवरह के कालकूट को मने ह ठ से िपया था…
भूलकर तुमको जया था!!
जग यश वी कह रहा था..
श द मेरे पढ़ रहा था.,
जनम अपनी पीड़ा को मने तु हारा वर िदया था…
भूलकर तुमको जया था!!

@BOOKHOUSE1
वो हमारी हर बात
वो हमारी हर बात पर ये कह कर साफ़ बच जाते ह
हम आपके िहसाब से नह सं था को िनयम से चलाते ह
यादातर लोग क आ था को जस बात से ठे स लगती है
िवरोध पर वो इसे हमारी यि गत सम या बताते ह
जनके हाथ म वो आग थी िक बाढ़ का पानी सूखा देते
वो लोग उन हाथ से बाढ़ पर किवता लखवाते ह
वो बन कर समालोचक जब समी ा के लए घर गए
आते ही बोले बिढ़या लेखक है खाना अ छा बनाते ह

@BOOKHOUSE1
ेम क िनशािनयाँ
िकसी स यता क खुदाई
या ाचीन नगर के भ ावेश म
नह िमलेगी तु ह
ेम क कोई भी बची हुई िनशािनयाँ
इंसान इसके हक़दार नह ……
ेम क व तुएँ,
ई र अपने पास रखता है

@BOOKHOUSE1
जब म तुमसे कहता हूँ
जब म तुमसे कहता हूँ
िक सुनो
तुमसे बहुत ेम करता हूँ
तो उसका योजन यह नह
िक एक पल क िनल चु पी का
म अपने किव व से िनवात भर रहा हूँ;
ना ही यह िक,
मेरे पास अब करने को
तुमसे पहले सी बहुत बात न रही…
ये बस मेरी तरफ़ से
पु पांज ल है,

@BOOKHOUSE1
मेरे त तु हारे अनुपम ेम क …
है जवाब उन सवाल का,
जो म दर क दीपमा लकाओं समान
दो आँ ख करती रहती ह….
तु हारी अनवरत बहती बात पर,
सफ़ मेरा एक पूण िवराम है..
ये ऐसे श द है जो िनकले ह,
मेरे असीिमत भावनाओं के ा ड से;
जैसे क गुं जत होती है,
ॐ क विन सृि म कह …
म जब कहता हूँ िक,
ि ये! तुमसे यार करता हूँ;
तो इसका मतलब यह नह
िक मेरे पास ऐसा कहने को
सु दर किवताएँ नह ह…
ये सफ़ एक किवता का
यँू ही कहा गया कोई वा य नह है….
ये मेरी सारी किवताओं का सार
एक वा य म है….!!!

@BOOKHOUSE1
भूल जाओ जो िवगत है
भूल जाओ जो िवगत है
आओ तुमको बाँह म लूँ
ेम मय व छाँह म लूँ
इस चराचर िव म सुख ओ दख
ु दोनो सतत है
भूल जाओ जो िवगत है
ेम से यँू दरू होना
ेम माटी ेम सोना
ेम शि ेम भि ेम ही सारा जगत है
भूल जाओ जो िवगत है

@BOOKHOUSE1
और अब..
और अब..
जबिक भावनाएँ बहुत ही स ती हो गई ह
और श द बेहद ही आसान
अजनबी कब के अपने हो चुके…
और सारे अपने अनजान….
और अब,
जब िक तु ह भी नज़र आती है
मेरे गीत म तु हारी पहचान,
िफर भी ि ये तुमसे अब तक
मुझ पर कोई किवता नह लखी गई …”

@BOOKHOUSE1
आपक किवता म बस यही इक गलती है
आपक किवता म बस यही इक गलती है
आपके साथ मेरी वैचा रक असहम त है
आप हमारी आलोचना कर भी कैसे सकते ह
हमारे यहाँ तो आपक किवता छपती है
मने पूछा आपको इतना अ धकार िकसने िदया
कहने लगे सािह य हमारी पैतृक स प है
कल पता चला मुझे िक आलोचना करने के लए
कम से कम एक बार तारीफ़ भी करनी पड़ती है

@BOOKHOUSE1
सीता! तुम नह असहाय
काट दो वो हाथ कर से
आगे से रावण बढ़ाए
सीता! तुम नह असहाय
यँू सहे आघात ऐसे
बा ल िफर तारा हरग
राम कल ह ग न ह ग
पर रावण आते रहग
मौन कब तक यँू रहोगी
पापी कैसे द डत ह गे
आयेगा ऐसा भी कुसमय
रावण मिहमा म डत ह गे

@BOOKHOUSE1
खुद बनो रणच डी तुम ही
और तुम ही करो याय
सीता तुम नह असहाय!
सबसे बड़ी पीड़ा…
सबसे बड़ी पीड़ा…
सबसे बड़ा दख
ु …
िकसी के जाने पर नह हुआ….
ेम स ब ध ख़ म होने पर भी नह हुआ….
तब हुआ जब जाने वाले को
जाने का अफ़सोस नह हुआ….
तब हुआ जब जाने वाले को
िवगत का अफ़सोस हुआ…
ेम म होने का अफ़सोस हुआ!!!!

@BOOKHOUSE1
तुम वो लड़क हो
तुम वो लड़क हो
जसके लए लखी जाती है किवताएँ
बुने जाते ह वाब
गाई जाती है न म
तारे तोड़ लेने क िह मत हो जाती है
दिु नया से लड़ जाने क ताक़त आ जाती है
तुम इतनी अ छी हो…
िक म बहुत सोचने के बाद भी
लख नह पाता तुम पर कुछ..
ढाल नह पाता तु ह च द ल ज़ म
तुम कहती हो ये सब

@BOOKHOUSE1
बड़ी बड़ी बात ह
और हर बार वही भोली सी शकायत
लेकर बैठ जाती हो
िक आप मुझे “तुम” कहा कर
िक आप मुझे “ आप “ न कहा कर…
उसने नदी पर लखी किवता
उसने नदी पर लखी किवता
वो बहकर समंदर म िमल गई…
उसने फूल पर लखी किवता,
इक रोज़ उन पर ततली बैठ गई…
उसने प पर लखी जब किवता
बेमौसम सारी पतझड़ म िगर गई
जस जस पर उसने लखा
वो सब उसे छोड़ कर चली गई
तुम जानना चाहती थी न िक
तुम पर कोई किवता यँू नह लखी गई…

@BOOKHOUSE1
बस इतना याद है…
बस इतना याद है…
कोई य आया था वाब म ,
बोला मुझसे िक या चािहए
तुमसे असीिमत ेम या
कभी न भूलने वाली मृ त….
मुझे नह याद आ रहा,
िक मने या माँगा था…..

@BOOKHOUSE1
बनारस
स दय क दोपहर बनारस
याद क शाम-ओ-सहर बनारस
जीवन, मृ यु , दिु नयादारी
इन सब से बेख़बर बनारस
घाट पर बसता है मन और
आँ ख है गंगा, नज़र बनारस
कैसे थक सकता है राही
तुम हो और है सफ़र बनारस
इ क़ के दो ही प है स े
एक तुम और एक शहर बनारस

@BOOKHOUSE1
मुह बत शु दो ती से होगी
ख़ म भी िफर इसी से होगी
मुह बत शु दो ती से होगी
जतना चाहे बन सँवर लो
मुह बत मगर सादगी से होगी
या फ़ायदा इ क़ करने का
शादी सभी क कंु डली से होगी
हमारे र ते क चाय मीठी
आँ सुओ ं क चाशनी से होगी
मुझे ये ख़ौफ़ है िक मेरी शादी
उसी के शहर क लड़क से होगी

@BOOKHOUSE1
िदल तो चाहे लगना, जान!
िदल तो चाहे लगना, जान!
या उ ैन या पटना, जान!
सबसे मीठे तीन ल ज़ वो
उस पर तेरा कहना, जान!
चाँदनी रात म मोती िबखरे
ऐसा तेरा हँसना, जान!
इक रात चुरा आधे चाँद को
बना दँ ू तेरा गहना, जान!
आँ ख आँ ख लाख िकताब
आकर तुम भी पढ़ना, जान!
मरते दम तक याद रहेगा

@BOOKHOUSE1
तेरा मुझको कहना,जान!
ग़ैर के संग वो िदखती है
ग़ैर के संग वो िदखती है
िदल पर छुरी चलती है
या तुम अब भी मेरी हो
सारी दिु नया कहती है
जनवरी क सद म आँ ख
सारी रात बरसती है
घाट िकनारे पड़ा रहा म
वो अब बहती रहती है
जस ततली को रहा िकया
अब दिु नया उसे पकड़ती है
म भी अब गुमसुम रहता हूँ

@BOOKHOUSE1
वो भी अब कम हँसती है
मु ी भर यार….
आकाश भर चाहत म…
जब िमलता है समंदर भर दीवानापन…
ततली भर स ाई…
रातरानी क मासूिमयत….
पूणमासी का इंतज़ार….
और जुगनू का ऐतबार…
तब जाकर कह बन पाता है…
मु ी भर यार….

@BOOKHOUSE1
म तु ह भूला नह था….
म तु ह भूला नह था….
लौट आने क शपथ पर ,
बढ़ रहा अनजान पथ पर,
तन बदन सब थक चुका पर
ह सला टू टा नह था…
तुम चाहे मानो न मानो,
म तु ह भूला नह था….
वेदना असहाय सी थी,
चेतना कृशकाय सी थी,
लिड़य से मोती िबखर गये
पर धागा टू टा नह था…

@BOOKHOUSE1
याद तुमको न िकया पर,
म तु ह भूला नह था….
कोई बात नह करता
कोई बात नह करता न कोई बात मुझे बताता है
वो एक श स जो रोज़ मेरी ोफ़ाइल पर आता है
दरिमयान म हमारे ख़ामोशी है और कैसी ख़ामोशी
हर ल ज़ ज़ुबान से बाहर िनकलते हुए घबराता है
तुम या जानो िकतनी हैरत होती है ये देखकर िक
कैसे कोई अजनबी लड़का तु ह नाम से बुलाता है
तेरे बाद मेरे अशआर ऐसी छाँव हुए ह िक मेरी जान
इ क़ से झुलसा हर कोई यहाँ पल दो पल िबताता है

@BOOKHOUSE1
डीपी म जो लड़क है
डीपी म जो लड़क है
िकतनी यारी िदखती है
िदन भर खोई खोई सी
अपनी धुन म रहती है
रोज़ रात सोने से पहले
मेरा ल खा पढ़ती है
कब आओगे िमलने को
मुझसे पूछा करती है
वो मुझ म ऐसे है जैसे
उ ैन म ा बहती है

@BOOKHOUSE1
कौन जस से कह सकँू म मीत अपनी बात
कौन जस से कह सकँू म मीत अपनी बात
जा रहे हो बीच पथ म तुम जो साथी
वेदना असीिमत है मन म मेरे , साथी
है अगर ये व न तो मुझको जगा दो
म तु ह कैसे भुला पाउँ गा…… साथी
याद यामल , ेम यामल और यामल रात
कौन जस से कह सकँू म … मीत अपनी बात
तुम िमली मने सुयश इस जग म पाया
म तु हारे िबन था या… भुला भुलाया
जब मने खोजा न था कोई भी जग म
तब तु हारा ेम ….. दय ार आया

@BOOKHOUSE1
धीरे धीरे भर िदया….. तुमने िवगत आघात
कौन जस से कह सकँू म … मीत अपनी बात
याद म ही अब तु हारी रात िदन है
कौन ण ऐसा जो नैनन अ ु िबन है
जानता हूँ म एकाक एक ही पल
इस जगती के सारे दख
ु से किठन है
हाय! कैसी ू र िवपदा ने दी मुझको मात
कौन जस से कह सकँू म … मीत अपनी बात
मृ तय के वातायन से
मृ तय के वातायन से
होती हुई तु हारी छिव
तिदन दय पर द तक देती है
चली जाती है
मेज़ पर रखा
तु हारे नाम लखा ेम गीत
उड़ते उड़ते
बरामदे तक पहुँच गया था कल
इस से मुझे पता चला
तुम कह प म िदशा म हो आजकल
गोरैया कोयल कबूतर झ गुर

@BOOKHOUSE1
कोई कुछ बोलता नह आजकल
जाने या राज़ तुम इनको बता गई हो…
आज भी महीने के बाईस तारीख़ को
कोई आसमानी सूट म िदखता है न
ऐसा लगता है जैसे तुम आ गई हो
चाँदनी ओढ़ लेगी आसमानी चुनर
चाँदनी ओढ़ लेगी आसमानी चुनर
फूल सेमल के राह म मुसकाएँ ग
अपने गीत को सुनते सुनाते हुये
हम िकसी मोड़ पर तुमको िमल जाएँ ग
हम िवगत के ही गम म थे टू टे हुए
ेम आया भी तो समझ पाए कहाँ
होश लौटा तो िफर थी वही दा ताँ
जो िमला मान बैठे उसे हमनवाँ
देह से जो परे… हम िमलग कह
ज़ मी िदल कैसे दोन छुपा पाएँ ग
अपने गीत को सुनते सुनाते हुये

@BOOKHOUSE1
हम िकसी मोड़ पर तुमको िमल जाएँ ग
म समझता हूँ राह किठन है बहुत
कैसा लगता है जब साथी मुड़ जाता है
पर ये सोचो िक द तूर ऐसा ही है
टू ट कर िदल ही अ छे से जुड़ पाता है
आधी आधी मोह बत के हारे हुये
हम मुक मल कहानी बना जाएँ ग
अपने गीत को सुनते सुनाते हुये
हम िकसी मोड़ पर तुमको िमल जाएँ ग

अपनी ेम कहानी है
ीत रहेगी अमर सदा
ये दिु नया आनी जानी है
और इस जग म सबसे सुंदर
अपनी ेम कहानी है
िकसने अपनी ेम कहानी
सूखे प पर लख दी
माया वन म ढू ँ ढ रहा था
सोचो तुम कैसे िमलती
इस यासे चातक के िह से
कब बरखा का पानी है
और इस जग म सबसे सुंदर
अपनी ेम कहानी है
िपछले जनम म मने शायद
बहुत तप या क होगी,

@BOOKHOUSE1
तुमसे एक पल िमलने को ही
िकतनी सिदयाँ जी होगी
तेरी आँ ख का इक आँ सू
सबसे महँगा पानी है
और इस जग म सबसे सुंदर
अपनी ेम कहानी है
ये न सोचो हम तुम आ ख़र
यँू िमलकर न िमल पाए
दोन और थी बेकल आँ ख
हम आ ख़र िकस पथ जाएँ
र ते नाते दिु नया दारी
बात वही पुरानी है
और इस जग म सबसे सुंदर
अपनी ेम कहानी है
मेरी हो तुम मेरी रहोगी
सौ ज म का वादा है
जीते जी मर जाना तुम िबन
हाँ मुझको भी आता है
तुमको ल ज़ म न िपरोऊँ
तो याद मर जानी है
और इस जग म सबसे सुंदर
अपनी ेम कहानी है
इन मोती सम नयन को
यँू अ ु म भगोती हो
धरती पर जल कम हो जाता है

@BOOKHOUSE1
जब जब तुम रोती हो
मेरी ख़ा तर सब से लड़ना ,
ये कैसी नादानी है
और इस जग म सबसे सुंदर
अपनी ेम कहानी है
तेरे मेरे िदल िमलने पर
िकतने ही िदल टू टे थे
एक हम तुम ही स े थे
और सारे नाते झूठे थे
बाहर हँसना अंदर रोना
यँह
ू ी उ िबतानी है
और इस जग म सबसे सुंदर
अपनी ेम कहानी है
सुख के दःु ख के पथ पर चलते
चलते कैसी भूल हुई
तुमको पाने क चाहत म
सारी दिु नया दरू हुई
गीत , किवता , ग़ज़ल तु हारे
ेम क यही िनशानी है
और इस जग म सबसे सुंदर
अपनी ेम कहानी है…
हम दोन ने ये चाहा था,
ेम हमेशा अटल रहे
आज को जी भर के जी ल,
या जाने हम कल न रह

@BOOKHOUSE1
इन गीत म तुमको पा कर ,
दिु नया हुई दीवानी है
और इस जग म सबसे सुंदर
अपनी ेम कहानी है….
मने जब देखा
मने जब देखा उसे एक बार रोते हुए
न म ख़ामोश थी हर अशआर रोते हुए
ख़ुश ख़ुश रहते है व ते सत सब तेरे और,
देखा नह जाता मुझसे िफर घर बार रोते हुए
तीन ही लोग दःु खी ह तेरे जाने से घर म,
एक म , तेरा गम और दरो दीवार रोते हुए
रोज़ मेरे पास से हँसता हुआ जाता है वो,
रोज़ उसे कोई भेजता है मेरे पास रोते हुए
िकतने सारे गम मने देखे ह और देख सकता हूँ
देखा नह जाता मगर मेरा यार रोते हुए

@BOOKHOUSE1
यँू ही बसर ज़दगी होगी
यँू ही बसर ज़दगी होगी
पेन होगा डायरी होगी
उसके गम म आँ सू बहगे
अपने गम म शायरी होगी
एक लड़क मेरी ख़ा तर
सारी दिु नया से लड़ी होगी
मेरे बाद , मेरी दिु नया
िकसक दिु नया रही होगी
मेरे िज़ पर िफ़र से
उसने बात बदली होगी
जसको सूट पस द बहुत था

@BOOKHOUSE1
उसने साड़ी पहनी होगी
अब इ क़ तो होने से रहा
जससे होगी दो ती होगी
रात का सफ़र ल बा होगा
रात का सफ़र ल बा होगा
चाँद भी तनहा तनहा होगा
अ सर अकेले म सोचता हूँ
तुमने वही सूट पहना होगा
मेरी किवता म अ सर तु ह
ख़ुद का चेहरा िदखता होगा
मुझे भुलाने वो एक श स
रोज़ तुमसे िमलता होगा
तुम कैसे उसको देखती होगी
वो कैसे तु ह छूता होगा
कौन तु ह आधी रात को

@BOOKHOUSE1
मेरी ग़ज़ल सुनाता होगा
तु हारे िदए हुए दद से मेरा
यक़ नन पुराना र ता होगा
म था तुम थी बात थी
म था तुम थी बात थी
िकतनी छोटी रात थी
इतने सुंदर चेहरे पर
िकतनी त हा आँ ख थी
िदनभर खुश खुश रहते थे
ऐसी मीठी याद थी
मेरी पहली कमाई हमेशा
तुमसे हुई मुलाकात थी
मुझसे तु हारी धड़कन थी
और तुमसे मेरी साँस थी
इस दिु नया म हमसे अ छी

@BOOKHOUSE1
सफ़ हमारी याद थी
उ ैन से पहले
िदल धड़क उठता है याद जगाती है उ ैन से पहले
कोई मीठी सी याद कान म गुनगुनाती है उ ैन से पहले
त रखकर सावन के महीने म महाकाल को जाती हुई,
पिव दआ
ु सी एक लड़क याद आती है उ ैन से पहले
िकतनी सारी याद आकर ज़ेहन म बैठ जाती है,
टैन अचानक से जब क जाती है उ ैन से पहले
न जाने िकसका खौफ़ है न जाने िकससे डरती है वो
मुझसे िकये सारे वादे भूल जाती है वो उ ैन से पहले

@BOOKHOUSE1
इस लये था घड़े का पानी मीठा
वहशी भँवर क आँ ख िफसली है,
वो गुलशन क इकलौती ततली है
कैसे हो पायेगा िमलन हमारा,
आस पास के सब लोग जंगली है
म खौफ़ खाता हूँ पानी से और,
वो समंदर क एक मछली है
तो इस लये था घड़े का पानी मीठा,
कुएँ से उसक पायल िनकली है
न िमली मोह बत तो कोसने लगे उसे,
तु हारा िहज़ झूठा है तु हारा इ क़ नकली है

@BOOKHOUSE1
बादल
कई िदन पहले से,
बादल को रोक िदया गया था,
बाहर िनकलने से
समंदर से िमलने से
िक बादल को कहा गया था
दिु नया का द तूर िनभाना है
िक उ ह बहुत दरू जाना है,
घर से , समंदर से
बादल अब िनकल चुके ह घर से,
और बरस रहे ह रह रह कर
िकसी को याद कर

@BOOKHOUSE1
काले घेरे आ गए ह उनम
रात को जागते हुए
अधजगे नैन िनहारते हुए
जन ेिमय को आषाढ़ म
घने बादल भगोते है
हक़ क़त म वे बादल
समंदर को याद कर
फूट फूट कर रोते ह!
िवरह से य थत मन म
िवरह से य थत मन म,
एक स धी सी महक उठी है,
मुरझाये मन म
आषाढ़ क कुछ बूँद बरस उठी ह
नए रा त
नए मंिज़ल क ओर
अब िज़ दगी चलने लगी है..
तु हारे चले जाने के
कई साल बाद,
िज़ दगी िफ़र से
ख़ूबसूरत लगने लगी है!!!

@BOOKHOUSE1
अब हमको िमल लेना चािहये!!
खुल चुक ह अब,
बादल क आँ ख..
और टपक पड़ ह कुछ आँ सू,
पहली बा रश बनकर…
धुध
ं ला गई है,तु हारी त वीर
मृ तय के कोहरे म..
और लखी जा चुक है
सारी किवताएँ ,
तु ह याद कर के…
कुछ और आगे
ख़ूबसूरत सा

@BOOKHOUSE1
लखने के लये,
तु हारा चेहरा िदखना चािहये
अब हमको िमल लेना चािहये!!
ये माना तुम अब नह ि ये
श द म वेदना कही ि ये
ये माना तुम अब नह ि ये
तुम आई थी जाने के लये
कुछ व न िदखाने के लये
कुछ वाब सजाने के लये
िनत अ ु धारा बही ि ये
ये माना तुम अब नह ि ये
तुम जैसी भी हो आ जाना
जब जब तुम चाहो आ जाना
ारे से जब िनकलो आ जाना
हाँ हाँ म गलत तुम सही ि ये

@BOOKHOUSE1
ये माना तुम अब नह ि ये
सारे लोग उस सूरज को पाने जा रहे ह
सारे लोग उस सूरज को पाने जा रहे ह
हम पँख जला बैठे सो वापस आ रहे ह
हम जानते ह स ी मोह बत क क मत,
सो अपनी लैला को मजनू से िमला रहे ह
उसक याद , उसक बात , बीते ल हात
एक स ती ज़दगी िकतनी महँगी बीता रहे ह
सोचा था उसक खा तर ज़माना भूलगे पर,
ज़माने क खा तर अब उसको भुला रहे ह

@BOOKHOUSE1
ठा िपया मनाऊँ म कैसे,
ठा िपया मनाऊँ म कैसे,
चाँद नैनन म था जनसे,
अ ु बहे िदन रैन इनसे
िनत िनत नैन िनहा ँ म कैसे
ठा िपया मनाऊँ म कैसे,
लो मरोड़ो ये कलाइयाँ,
यँू न मुँह मोड़ो ओ सैयां
दय दशा िदखाऊँ म कैसे
ठा िपया मनाऊँ म कैसे…

@BOOKHOUSE1
कण मौन है
शूरवीर कौन है,
पा डव के अ हास म
कण मौन है
कंु ती म य थ है
अजुन सश है
बािक पा डव गौण है
कण मौन है
गु ओं का ये सं ाम है,
इस तरफ परशुराम है
सामने गु ौण है
इस लये कण मौन है

@BOOKHOUSE1
रहनुमा बदगुमां हो शायद
रहनुमा बदगुमां हो शायद
आसमां धुँआ धुँआ हो शायद
तुझसे िबछड़ कर ज़दा रहना
स े रक़ ब क दआ
ु हो शायद
माहे फरवरी म ऐसी सद ,
गैर ने उसको छुआ हो शायद
िफर से उसने कंगन पहन,
िफर से इ क़ हुआ हो शायद

@BOOKHOUSE1
रात के तीसरे पहर
रात के तीसरे पहर
जब भी बात करते ह हम
मेरी एक ही शकायत रहती है
िक वो यादा नह बोलता!
मगर जब भी म सुनाऊँ
कोई शे’र , कोई किवता
उसका पस दीदा गाना
या सुनाता ही चला जाऊँ
मेरा बीता हुआ अफ़साना
वो अचानक बोल उठता है
” वो ही तीन ल ज़ “

@BOOKHOUSE1
एक एक ल ज़ उसका
कान म िम ी है घोलता,
और मेरी वही शकायत
िक वो यादा नह बोलता!
बस एक बार
बस एक बार,
मुझे कर लेने दो
तुमसे मोह बत
छूने तो दो मुझे,
देह से परे
तु हारी आ मा
एक बार अपने
अवचेतन म
मुझे चैत य कर
स प दो
खुद को

@BOOKHOUSE1
मेरे दय ार पर
तब शायद
तु ह ये एहसास हो
िक मोह बत
इतनी बुरी भी न थी
मोह बत
एक बार तो क जा सकती थी …
ठे यार मना रह ह हम
ठे यार मना रह ह हम,
िज़ दगी ऐसे िबता रहे ह हम
आज भी घर म अनाज नह बचा,
ब को कहानी सुना रहे ह हम
शोहरत का नशा भी िकतना अजीब है,
दो त को एहसान िगना रहे ह हम
मोह बत अपनी िबरादरी म करना,
ये ही ब को सीखा रहे ह हम
एक ही चीज़ सखाई नह जाती,
एक ही चीज़ सीखा रहे ह हम
जसको हमारा नाम तक न मालूम,

@BOOKHOUSE1
उस पर िज़ दगी लुटा रहे है हम
या कर मगर ये ज़हर भी तो मीठा है,
सो र ता र ता उसे भुला रहे ह हम
अंदर अंदर घुटती हो
अंदर अंदर घुटती हो,
खुद ही िकतना सहती हो
जाने या है उस िदल म,
न लखती हो न कहती हो
मेरा न बर याद नह है ?
तुम भी िकतनी झूठी हो
ऊपर ऊपर खुश रहती हो
भीतर भीतर रोती हो
मेरी ईद उसी िदन होती है,
जस िदन खुल कर हँसती हो
म हो गया हूँ तुम सा अब,

@BOOKHOUSE1
और तुम अब मेरे जैसी हो
सद िदस बर तनहा चाँद
सद िदस बर तनहा चाँद
ग लय ग लय भटका चाँद
अपना दाग छुपाकर बोला
मुझसे अ छा तेरा चाँद
सारे तारे खो कर बैठा
पूनम िकतना तनहा चाँद
ख़ु क प पर ओस िबछी थी
शब भर िकतना रोया चाँद
सबको शबनम बाँटता िफरता,
ख़ुद म िकतना यासा चाँद
एक अमावस छु ी लेकर

@BOOKHOUSE1
मेरी ग़ज़ल पढ़ता चाँद
जाने िकसके िह से आया,
अबके सावन मेरा चाँद…
अगर िदल म मोह बत नह है
अगर िदल म मोह बत नह है
दो ती क भी ज रत नह है
सौ दो सौ क भीड़ संभलती नह ,
म कहता हूँ िक तू हुकूमत नह है
म तेरे हर फैसले मंजूर करता हूँ
तू एक आलोचना से सहमत नह है
कहाँ अब यार , इ क़ , और वो िक से
साँस लेने तक क फुरसत नह है
तुम जब बुलाओगे वो ज र आयेगा
वो जब बुलाये कहना फुरसत नह है.. .

@BOOKHOUSE1
रावण के मन म था रावण
एक बार वग क अ सरा
र भा जसका सौ दय खरा
िपय से िमलने को जाती थी
देखो कैसे बलखाती थी
सहसा अचानक बात हुई
िकसी के आने क आहट हुई
देखा तो सामने था रावण
जससे काँपे सुर नर मुिन जन
र ता रोके था खड़ा हुआ
र भा को अच भा बड़ा हुआ
हाथ जोड़ उ ह णाम िकया

@BOOKHOUSE1
रावण का पूण स मान िकया
रावण के मन म था रावण
देख प रंग िबगड़ा यँू मन
बोला सुंदरी मेरे साथ चलो
बन दासी मेरे साथ रहो
रावण क दासी कहाओगी
हर ओर स पाओगी
र भा बोली मुझे मा कर
इस अबला पर कुछ दया कर
राजन आपका भाई कुबेर
पु उनका जो नलकुबेर
उनसे िमलने का वादा है
व कुल क ही मयादा है
म पु वधु आपक ही हूँ
माता सुलोचना सी ही हूँ
कृपया कर मुझको जाने दे
आँ च मयादा पर न आने दे
रावण ने उस पर जोर िकया
कर शील भंग और छोड़ िदया
बेबस र भा यँू पहुँची जब
सुन नलकुबेर ने िफर यह सब
रावण को तब ही ाप िदया
पापी को उसका पाप िदया
सुनकर ाप सृि धूजी

@BOOKHOUSE1
एक ोधाि तब ही गूज
सुन रावण गर तूने अब
ं ी

पर नारी शील हरा जो अब


इ छा िव गर पश िकया
सती व का जो तूने हरण िकया
य लंका म तू उसे लाएगा
बस तभी काल छा जाएगा
रावण यह सुनकर सहम गया
मन का था जो सारा वहम गया
सीता को इस लये छू न सका
लंका के अंदर रख न सका
जब मन म भय छा जाता है
संयम मन म आ जाता है
संयम मन म आ जाता है…

@BOOKHOUSE1
हम बस राह का प थर पलटने वाले है
हम बस राह का प थर पलटने वाले है
वो और ह ग जो दिु नया बदलने वाले है
आज सगार बस काजल लगा है नैन म
वो आफ़ताब से यादा चमकने वाले है
िज़ े वफ़ा जो छड़ा वो सरकने यँू लगे
जानता हूँ यार हौले से खसकने वाले है
जतनी थी मोह बत सब पीस ली है मने
वो अब मेरी ग़ज़ल म महकने वाले है

@BOOKHOUSE1
अजीब आँ धी व त चला गया
अजीब आँ धी व त चला गया
एक जुगनू सूरज जला गया
अफ़सोस उसके जाने का नह ,
वो व त से पहले चला गया
एक सरा लये म कबसे खड़ा था,
वो आया मुझे ख़ुद से िमला गया
ओस दर ओस इ क़ प पर था,
आँ धी लये वो पूरा शज़र िहला गया

@BOOKHOUSE1
जहाँ झुक जाये सर , उसे दर कहते ह
जहाँ झुक जाये सर , उसे दर कहते ह
माँ जहाँ रहती है हम उसे घर कहते ह
सीधा सा सवाल मेरा इ क़ है या नह
वो मगर जवाब म अगर मगर पर कहते ह
अज़ीब श स है धुँआ रोज़ फंू कते ह
और आबो हवा को ज़हर कहते है
कहते है म ही पहला हमसफ़र हूँ उनका
और िकतने ही लोग उ ह हमसफ़र कहते ह

@BOOKHOUSE1
हम तुझको उ ैन घुमाया करते थे
हम िकतने ही वाब सजाया करते थे
हम तुझको उ ैन घुमाया करते थे
हमसे सारी दिु नया हँस कर िमलती थी
हम जब तुझसे िमलने आया करते थे
तारे गु से से िटम िटम िटम करते थे
हम छत पे जब चाँद बुलाया करते थे
हम पर िकतनी शोख़ी सी आ जाती थी
हम बस तेरा झूठा खाया करते थे
िफर हमने भी बाहर जाना छोड़ िदया था
हम बस तेरे वाब म आया करते थे

@BOOKHOUSE1
हाल ए िदल
सद रात,
आसमां पे चाँद,
और तु हारी याद..
इतना ऊपर चढ़ा नह जाएगा…
हाल ए िदल हमारा,
यक नन बताना है मगर,
हमसे लखा नह जाएगा..
तुमसे पढ़ा नह जाएगा…

@BOOKHOUSE1
भूल जाता हूँ
म तु ह याद करने का बहाना भूल जाता हूँ
इतना याद करता हूँ िक भुलाना भूल जाता हूँ
िकतनी सारी बात बतानी होती है मुझे,
िकतनी सारी बात म बताना भूल जाता हूँ
िकतनी बार हथेली पर लखा है तेरा नाम,
िकतनी बार म नाम छुपाना भूल जाता हूँ
हर एक एहसास से मुझे मोह बत है तेर,े
हर बार एक एहसास म जताना भूल जाता हूँ…

@BOOKHOUSE1
एक तु हारे
एक तु हारे
ना होने से
यँू तो कोई
कमी नह है
मगर
तुम जो
होते अगर
तो ज दगी
और खूबसूरत होती…

@BOOKHOUSE1
पश
उस व त,
जब सभी को
मेरे तन का
पश चािहए था
उस व त ि ये
तुमने मेरी
आ मा को
छुआ था…

@BOOKHOUSE1
इंदौर
बे ट ड क बथडे टीट
“बफ़ ” मूवी का पहला शो
िबजली के िबल क आ खरी तारीख,
वा षक समारोह क फाइनल रहसल
खडू स ोफेसर का असाइनमट,
मौसी के लड़के क शादी,
भारत पािक तान का व ड कप मैच
िकतने सारे काम थे,
सारे काम छोड़ आया था,
तुझसे पहली बार,
जब म इंदौर िमलने आया था…

@BOOKHOUSE1
माँ
समय से खाना खा लेना,
रोज़ जाने से पहले,
और आने के बाद
फ़ोन लगाना,
बाहर का कुछ मत खाना,
अगले संडे कैसे भी हो
घर आ जाना…
पहली बार जब
दरू हुआ था तुमसे
रात भर तु ह खोजती हुई
मेरी आँ ख कहाँ सोई थी

@BOOKHOUSE1
मुझे पता है माँ,
उस िदन हॉ टल से
घर लौटते हुए
तुम पूरे रा ते रोई थी…
िज़ दगी से मेरी कोई द ु मनी भी नह
िज़ दगी से मेरी कोई द ु मनी भी नह ,
तु हारे िबन िज़ दगी इतनी बुरी भी नह
जसके िबछड़ने का एक मु त से गम है
वो चीज़ तो हम कभी िमली भी नह
उनका ये कहना िक िदन रात याद करते है
हम तो मगर आती एक िहचक भी नह
वो जससे िमलने म मील दरू तक आया,
वो मगर अपनी खड़क तक िनकली भी नह

@BOOKHOUSE1
तेरा आँ सू बहाना ग़ज़ब हो गया
तेरा आँ सू बहाना ग़ज़ब हो गया,
मेरा शकवा वही पे ख़तम हो गया,
भीगी पलक पे उतरी जो तेरी हँसी,
उन आँ ख का आँ सू शहद हो गया
तूने मुझ से बनाई है जब से दरू ी,
पूरे उ ैन म कायम अमन हो गया
कैसा द तूर िनकला है दिु नया म आज,
संग माँ बाप रहना वज़न हो गया…

@BOOKHOUSE1
दद होगा न आह होगी!
दद होगा न आह होगी!
मेरे हर शेर पर वाह होगी
एक तु हारी शादी के पीछे
चार िज़ दिगयाँ तबाह होगी
कैसे िकसी से इ क़ होगा,
कैसे िकसी से िनबाह होगी
सारे र ते झूठे ह ग,
बात रख रखाव होगी
मुझे तुम से दरू करने को,
उसी दो त क सलाह होगी

@BOOKHOUSE1
पहली बा रश
िम ी क स धी खुशबू
जो छू जाती थी
अ तमन को
अनिगनत याद
जनसे महक उठती थी
सारी दीवार घर क
मृ तयाँ जो वा प बन कर उड़ गई थी
िफर से लबालब भर गई
मुझको उसक दो आँ ख ने बताया
कल शाम
उ ैन क पहली बा रश थ ….

@BOOKHOUSE1
म और वो
मुझे किवता पसंद है,
उसे हॉलीवुड मूवीज..
म गुनगुनाता हूँ गुलज़ार को,
वो अं ेजी गाने सुनती ह..
वो घूमती है, खुली आसमां सी आज़ाद,
म खोया रहता हूँ, खुद म अकेला,
िबलकुल अलग है, मुझसे,
वो हर बात म,
कहा था, हमेशा रहगे साथ…
िपछले बरस सुना है,
शादी हो गयी उसक ..

@BOOKHOUSE1
आजकल वो,
गुलज़ार को पढ़ती है
हदी गाने भी सुनती है,
जब अकेले होती है… खुद म,
और… म … आजकल …
बाहर यादा रहता हूँ,
और,सुन लेता हूँ कुछ अं ेजी गान
ज ह वो अ सर गुनगुनाती थी….

उसक हर इक बात मुह बत


उसक हर इक बात मुह बत
संग गुज़रे ल हात मुह बत
जो बोले वो बात ग़ज़ल है
जो उमड़ ज बात मुह बत
सारे र ते नाते झूठे
उसका दो पल साथ मुह बत
दिु नया जैसे जून दोपहरी
सावन क बरसात मुह बत

@BOOKHOUSE1
ी राम
चले जात ह धम क र ा के लए
गु के पद च ह पर
छोड़ देते ह रा य स ा और देश
माता क आ ा पालन के लए
जनके म तक पर था राजयोग
वन वन घूम कर सहते ह प नी िवयोग
पु का ज म और िपता के आ ख़री दशन
नह कर पाते ह
िपता िवयोग
प नी िवयोग
पु िवयोग सहना

@BOOKHOUSE1
बहुत आसान है ी राम को ग़लत कहना
वैसे ही
जैसे बहुत किठन है
ी राम बनना!!!

बु
होने वाली यशोधरा को ,
मुह े क छत पर तकता छोड़ कर
चुपचाप ज़दगी को समझने के लए
कई आँ ख म सावन छोड़ जाते ह
मने देखा है
मेरे गाँव के िकतने ही लड़के
सूने घर के सपन क ख़ा तर
बु हो जाते ह…

@BOOKHOUSE1
शाबाश अ भषेक
सब टू ट कर हो जाते ह उदास अ भषेक ,
तू ख़ूब मु कुरा रहा है शाबाश अ भषेक!
िफर से आयी वही बात अ भषेक ,
छूट गया उसका भी साथ अ भषेक
िदन तो हो जाएगा द तर म दफ़न,
कैसे मगर काटेगा तू रात अ भषेक
एक र ता अधूरा, था इ क़ अधूरा,
रह गयी अधूरी मुलाक़ात अ भषेक
तू लखता है सोच के िकसी और को ,
कोई और समझता है ज बात अ भषेक

@BOOKHOUSE1
उसका िदया ताबीज़ ग़ज़ल
उसका िदया ताबीज़ ग़ज़ल
फूल जैसी चीज़ ग़ज़ल
नह मानती कोई बंधन,
एक मासूम नाचीज़ ग़ज़ल
मेरी सबसे सुंदर बेटी,
ब से खा रज़ ग़ज़ल

@BOOKHOUSE1
अ ेम िववाह
जसे कभी देखा ही नह ,
जसे कभी िमली भी नह ..
ेम म पड़े घाट को छोड़ आती है,
िफर एक गहरे समंदर म समा जाती है…
दद से मगर कभी एक आह नह भरती..
मेरे इलाक़े क निदयाँ ेम िववाह नह करती…

@BOOKHOUSE1
ज़ म क ऊपरी सतह पर लखना
ज़ म क ऊपरी सतह पर लखना
आसान नह है िवरह पर लखना
सब लखगे बेवफ़ाओं पर मगर,
तुम बेवफ़ाई क वजह पर लखना
लखो उसको एक कोरी च ी
और नाम आँ सुओ ं क जगह पर लखना
रात के िक़ से भटकाएँ ग रहबर ,
तुम लखना मगर सुबह पर लखना

@BOOKHOUSE1
किवताएँ
अनकहा अनसुना कहकर किवताएँ
उड़ चली उसके शहर किवताएँ
पहली बार मु कुरायी द ु हन
मेरी लखी पढ़कर किवताएँ
िदल के सारे रा ते बंद है,
याद बनी है जम कर किवताएँ
आँ ख म एक चेहरा रहा
िनकली आँ सू बनकर किवताएँ

@BOOKHOUSE1
बात िबगड़ी बात से
कुछ ल ह क याद से,
बात िबगड़ी बात से
मेरी एक त वीर िगरी,
मेहद
ं ी वाले हाथ से
आँ सू बनकर शे’र िगरे,
इक लड़क क आँ ख से
चाँद है िकतना बेवफ़ा,
पूछो तनहा रात से
सीखा मने भरोसा करना,
उसके झूठे वाद से

@BOOKHOUSE1
जाने िकसक चीख़ सुनी,
अब डरता हूँ बारात से
अंदर अंदर घुटना दख
ु है
अंदर अंदर घुटना दख
ु है
ऊपर ऊपर हँसना दख
ु है
पढ़ लेते थे जो आँ ख को
उनको दख
ु न िदखना दख
ु है
जो हँसता था बहुत जयादा
सोचो उसको िकतना दख
ु है

उनका ग़ु सा सर आँ ख पर
उनका कुछ न कहना दख
ु है
िकसको लखना िकसको पढ़ना
सबका अपना अपना दख
ु है

@BOOKHOUSE1
तेरी याद म यँू बेसबब खो गया
तेरी याद म यँू बेसबब खो गया
ओढ़कर व न म जाने कब सो गया
ज़दगी के उजाले णक ही रहे
ेम राह म दीपक जलाता रहा
तेरी मेरी कहानी ग़ज़ल सी रही
िदल के कमरे म याद सजाता रहा
िफर न लौटा कोई तुझम जो खो गया
ओढ़कर व न म जाने कब सो गया
ेम के वन म हम तुम भटकते रहे
सारा वनवास िवरह म ही हारा गया
दिु नया जैसे थी कौरव र चत च यूह

@BOOKHOUSE1
ेम अ भम यु था िनरीह मारा गया
मुझको ढू ँ ढ कोई म कहाँ खो गया
ओढ़कर व न म जाने कब सो गया

लघु किवतायेँ
जॉब क मस िफ़यत म उलझ गये ह ऐसे िक
मुलाक़ात का व नह न फ़ोन कर सकते ह
अब जबिक न व है न इ क़ ह न बचे ह हम
माँ ने इजाज़त दी है िक मुह बत कर सकते ह
·
न hii करते ह …. न hello करते ह..
वो लोग जो मुझको follow करते ह
आजकल शािगद दो ल ज़ सीखते ही
अपने उ ताद को unfollow करते ह
·
राज कुमारी लगती हो ,
जान हमारी लगती हो ,
इतनी DP यँू ही बदलना
तुम सबम यारी लगती हो….
·
दरू परदेस का साथी इ क़ म चुन लेना चािहए
इसी बहाने एकाध शहर भी घूम लेना चािहए
ये भी कोई बात हुई िक मरहम ढू ँ ढते िफर रहे हो
उसका हाथ जला है जानाँ तु ह चूम लेना चािहए
·
या बताएँ राज़ हम उनको बता सकते नह

@BOOKHOUSE1
आने वाले कल को माज़ी से िमला सकते नह
हर शायरी के बाद पूछा जाता है वो कौन थी
हम नई मुह बत को पुराने शेर सुना सकते नह ..
·
मोह बत क भेजी हुई कोई िनशािनयाँ नह देखी
िकरदार म ऐसे डू बे िक हमने कहािनयाँ नह देखी
मने कहा आपके आँ ख ज़ु फ़ कान िकतने सुंदर ह
वो बोले िक आपने मेरी कान क बा लयाँ नह देखी
·
आप या जानो होती है
मुझको िकतनी ही मु कल
इतनी किवता आपके पास
मेरे पास एक ही िदल
·
मयख़ाने से आने वाले सीधे चल रहे थे
और तुझसे िमलकर आने वाला झूमता हुआ पकड़ा गया
िदनभर तुझसे झगड़ने वाला एक शायर कल रात
तेरी त वीर अपने ह ठ से चूमता हुआ पकड़ा गया
·
ये दिु नया ऐसी ही है , राह म काँट बोती है..
रोज़ कोई िम थला क बेटी , अपने नैन भगोती है..
वही लोग है वही सोच है, आज भी उनके अंतस म..
सीता क पीड़ा से छलनी , आज भी कोसी रोती है…
·
तभी समझ जाना चािहए था,

@BOOKHOUSE1
िमलन रहेगा आधा…
जस िदन बोली तुम का हा हो,
म हूँ तु हारी राधा…!!!
·
मेरी किवता म िज़ है जनका
उनक याद म न जाने कौन ह ग
िकसी का दस
ू रा इ क़ कभी न बनना
दरिमयान म हमेशा ढाई लोग ह ग…
·
ख़त के ऊपर नाम लखा था अ र उखड़े उखड़े थे
दोन ही बाहर ख़ुश िदखते अंदर उजड़े उजड़े थे
महाकाल के भीतर हमने जो त वीर खचवाई थी
ख़त को खोला अंदर देखा दो िदल टु कड़े टु कड़े थे…
·
ेम न लब से कहा जाये न ये बात जो िबकती है
उसके चाहने वाल तुमको ये भी बात न िदखती है
मेरा लखा कोई न पढ़ता म बस उस पर लखता हूँ
उसक ग़ज़ल महिफ़ल लूट वो बस मुझ पर लखती है
·
उसको ये मालूम कहाँ था ,
साथ म तार का मेला होगा…
सूरज ये सोच कर ज दी िनकला,
घर पर चाँद अकेला होगा…
·
…या हो सकता है,

@BOOKHOUSE1
हम दोन का ेम म होना
सृि क इतनी सुंदर घटना हो,
िक ऊपर वाला नह चाहता
िक हम सफ़ एक बार ेम कर…
·
दोन क़रीब थे दोन ही पराये
दोन ने ख़ुद ही से वादे िनभाये
उसने भी मेरे हाथ नह रोके,
मने भी हाथ आगे नह बढ़ाये
·
संगमरमर से भी यादा हसीन
उस से बनी मूरत है..
तु ह या पता ि ये!
तु हारे िवरह पर लखी किवता
तुमसे यादा ख़ूबसूरत है….
·
दिु नया बहुत मु कल म है
ये कौन तु हारे िदल म है
एक शायर क सारी ग़ज़ल
मेहद
ं ीवाली हथेली के तल म है
·
दोबारा मुह बत हो, या अब चाहे ना हो,
तस ी हुई िक, तुम अब खफा नह हो..
अब के बरस मुक र से अजीब मुकाम पाया,

@BOOKHOUSE1
सबसे इस बात पे लड़ा, िक तुम बेवफा नह हो
·
ेम म असफ़ल होने पर ,
ेम के दौरान पाये हुए तोहफ़े लौटाना…
सारे संसार के ेम का अपमान है….
·
सब ख़ाली है जेब , झोले ! ऐ दिु नया ,
तू मुझको बस मु ी भर सुख दे सकती थी
म भी आ ख़र िकतना िवरह पर लखता
एक लड़क मुझको िकतना दःु ख दे सकती थी
·
एक तू थी बेख़बर मगर पूरे शहर म,
तेरी मेरी मुह बत का पैगाम था
जस िदन चली तेरे घर क ओर हवा
मेरी हर पतंग पर तेरा ही नाम था..
·
दिु नया भर का परदा आँ ख
भीतर िकतनी तनहा आँ ख
इतने मीठे लब के ऊपर ,
खारे पानी का झरना आँ ख
·
एक प ाताप सा मन म
अंदर ही अंदर रहा,
आ ख़री व त म िकतना बोला
उसने मुँह से कुछ न कहा…

@BOOKHOUSE1
·
शहर घूमता था मुलाक़ात िकया करता था
पहले म कैसी यारी बात िकया करता था
रात से सुबह हो जाती थी तब फ़ोन कटता था
म िकतनी िकतनी शब जगराते िकया करता था
·
चाँदनी से जाने उदासी का सबब
ये ज़ुरत अँधेरी रात नह करती
मुझे या हक़ जो पूछ सकँू तुमसे
यँू अब तुम मुझसे बात नह करती
·
जो तु ह पढ़ना हो वो लख देता हूँ
तुम एक का कहो म दो लख देता हूँ
जैसा लख कर तुम शायर बने हो
ऐसी किवता म िदन म सौ लख देता हूँ…
·
काश िक इक रोज़ ऐसी भी मोह बत हो
हम दोन इक दज
ू े को िबलकुल न बदल..
तुम सुनना भी न चाहो अपने हु न क तारीफ़
और म सुनाता ही रहूँ बशीर ब क ग़ज़ल…
·
उनको रझाने पढ़ डाली हमने
ग़ा लब मीर बशीर क ग़ज़ल…
वो महिफ़ल म आते ही बोले
आज कुछ अपना लखा सुनाइये..!!!

@BOOKHOUSE1
·
जाने या हुआ था उसको
लखा चुभ गया था उसको
म तुमको भी भूल जाऊँगा
जैसे भूल गया था उसको
·
दो ही शायर अ छे ह , दोन महँगे िबकते ह
दोन है मशहूर बहुत , दोन हर सूं िदखते ह
दोन को दोन का लखा बेहद अ छा लगता है
दोन को मालूम नह है दोन उसी पर लखते ह
·
हालाँिक तेरे इ क़ पर कम ल खा गया,
जतना ल खा गया ग़ज़ब ल खा गया..
21वी सदी का सबसे ख़ूबसूरत शेर,
मेरी ऊँगली से तेरे लब पर ल खा गया!!
·
चाँद को समझा िदया है ओवरटाइम करने का,
सूरज को कानो कान ख़बर नह होगी!
तुम जस रात आओगी मुझसे िमलने,
उस रात क िफ़र कभी सहर नह होगी!
·
िकतनी को शश बाद रौशनी आई थी
तार ने भी ख़ूब ठसक लगाई थी
एक अमावस चाँद जो ठा था
तु ह मनाकर उसको लाई थी…

@BOOKHOUSE1
·
मोह बत म वो जो सही रहते ह
इस दिु नया के िफर नह रहते ह
यँू िकया इनकार उसने मंिदर जाने से,
य जाऊँ जब मेरे भगवान यह रहते ह!
·
म िकसी िदन चुपके से
इज़हारे मोह बत लख दँगू ा,
मने देखा है ,
वो मेरा सारा लखा लाइक करती है!!
·
िकसी और क ज़ािनब नज़र उठती ही न थी,
िदल ओ िदमाग पर सफ उसक हुकूमत थी
वो भी बेवफ़ा िनकली ये सच है मगर िफर भी
तमाम बेवफाओं म वो सबसे ख़ूबसूरत थी…
·
5 बार,घड़ा भरने आई थी वो
मेरे घर के सामने
जसके घर म,कुल िमलाकर
बस दो ही घड़े थे!!!
·
किवताएँ
गाँव क वो ेिमकाएँ ह
जो ग़ज़ल क तरह
कभी शहर नह गई…

@BOOKHOUSE1
·
मुझको आ खर सब पता है,
िकस िदन कब कब या हुआ था
सुपरमून के इक िदन पहले,
तुमने यार से चाँद छुआ था!!
·
तु हारी याद के पतझड़ के बाद,
चाहे िकतने ही आँ सुओ ं के सावन आए..
मगर मेरे मन का वस त हमेशा तुम ही रहे!!
·
जन सतार को
अपनी रोशनाई म भुला देता है..
एक अमावस वही चाँद,
सतार से मुँह छुपा लेता है…!!!
·
व ते सत अपने आँ सू छुपा लेता है,
समंदर से िबछड़ कर,
बादल बहुत दरू जाकर रोता है!!!
·
कुछ इस लये भी क तयाँ,
िकनार पर नह आती…
तूफ़ान म माँझी,
उनका िकतना याल रखता था!!!!
·
अपना इ क़ 16108 िह स म बाँट िदया,
वो इ क़ जो सफ़ उसी का हो भी सकता था

@BOOKHOUSE1
राधा ने न जाने य िदल से नह पुकारा,
एक आवाज़ पे का हा क भी सकता था…
·
िदल का मुझको या करना ,
िदल तु ह मुबारक़
मगर वो ह ठ के नीचे जो तल है
वो मेरा है
·
बेबसी , ज़माना , वफ़ा, मोह बत
न जाने या या कहा था उसने
मुझे मगर िबछड़ने वाले का
सफ िबछड़ना याद रहा…
·
एक ही तरह के लोग थे सारे,
एक ही तरह क बात थी..
एक ही तरह का ेम था सबका,
एक ही तरह क याद थी…
·
एक मु त से तराशी हुई िकसी कारीगर क ,
वो संगमरमर क सबसे हसीन मूरत है!
द ू धया रौशनी म कभी ताज़महल देखा है?
मेरा यार उस से भी यादा ख़ूबसूरत है…
·
जहाँ ठहर ह उसी को कह िदया मंिज़ल,
ये नए दौर के राही ह, बढ़ता कोई नह

@BOOKHOUSE1
कुछ िदन से नए शायर क ब ती म हूँ,
सो अब हम सब लखते ह, पढ़ता कोई नह
·
चुप रहूँ तो लोग संजीदा समझते ह,
यादा हँसु तो चेहरे पर उदासी आती है
जनके शेर पर तुम ता लयाँ पीटते हो,
म जो उनको सुन लूँ तो हँसी आती ह…
·
ध य है काशी िव नाथ ,
बसे गंगा के घाट,
पर बड़भागी तुम ा,
छुआ महाकाल ललाट
·
थोड़ा ही भरे थे िक छलक गये हम
सारी मोह बत एक ही िदन म कर ली
आ खरी मुलाकात पे बेहद हस लगी वो,
उ भर के लये वो सूरत आँ ख म भर ली
·
तेरे िबना जो जीवन बीता,वो ही उमर बस खलती है..
अब म तनहा कह न जाता,तेरी याद संग चलती है..
िमलने तुझसे जब म बनारस,होकर याग से आता हूँ..
ा बेतवा यमुना गंगा,अपने िमलन पर जलती है..
·
वाब म आकर वो चुपके से यँू मेर,े
आँ ख, न द, िब तर तक महका देती है..

@BOOKHOUSE1
चुपके से पकड़ती है उँ ग लयाँ वो मेरी और,
अपनी तारीफ म ग़ज़ल लखवा लेती है…
·
हर एक सतम तेरा गँवारा नह हो पायेगा..
तुझसे जो िबछड़ा िफ़र गुज़ारा नह हो पायेगा..
अबक बार जो मुझे देखो तुम ही करीब आ जाना
,हर बार मुझसे महिफ़ल म इशारा नह हो पायेगा..
·
एक रात लखा मुझे उसने
वो आ ख़री ख़त
” मुझे अब कभी ख़त न लखना…”
िफ़र तमाम उ उसने
मेरे जवाब का इंतज़ार िकया…..
·
तेरे बाद िदल पर िकसी क रहमत न हुई,
तेरा ही बुरा चाहूँ कभी ऐसी हसरत न हुई
अजीब श स था आगाज़ ए सफ़र छोड़ गया
अजीब श स हूँ मुझे उससे नफ़रत न हुई
·
चाँद फ़लक पर पूरा तो नह होगा,
सबका इ क़ अधूरा तो नह होगा
उसे छोड़कर अ सर ये ख़याल आता है,
मेरे बाद उसके साथ बुरा तो नह होगा
·
जो थे यार वो ख़ुदा हो गए,
बािक बचे गुमशुदा हो गए…

@BOOKHOUSE1
कुछ देर एक दस
ू रे को देखकर,
वो उ भर के लये जुदा हो गए…
·
जो न हो तुम अंदर से िदल के,
य स त इतना हर दफ़ा बना जाए,
सौ तरीके है उसे छोड़ कर जाने के,
या ज री है हर बार बेवफ़ा बना जाए…
·
लहज़ा जसका िकमाम सा है,
और बात उस से भी ख़ूबसूरत
सबसे ख़ूबसूरत है यार मेरा,
और याद उस से भी ख़ूबसूरत…
·
परदेस म न जाने या सतम हुआ,
वो श स अब घर के बाहर भी नह िनकलता…
·
यँू तेरे बग़ैर ज़दगी का हर बरस जया हमन,
तेरे िह से का इ क़ , सबसे िकया हमने
परदेस म भी जो कोई िमला तेरे शहर का,
घुमा िफरा कर इक तेरा ही हाल पूछा हमने
·
सद िदस बर म ये सौगात तेरी थी
म था और सारी रात याद तेरी थी
पूरी रात दो त ने क कॉलेज क बात,
याद बस वही रही जनम बात तेरी थी

@BOOKHOUSE1
·
पहले शहर िफर ग लय िफर पड़ोसी क बात करता हूँ,
िकतने एह तयातन तेरे शहर वाल से म तेरी बात करता हूँ…
·
जो हर िकसी का ख़ुमार हो किवता नह लखी जाती,
जब दोन ही को यार हो किवता नह लखी जाती
मुझे यँू छे ड़ छे ड़ कर रोज़ रोज़ तंग न िकया करो
जब सामने िदल ए बहार हो किवता नह लखी जाती…
·
वो चाहता है मुझसे िमलना मगर,
ये िज़द है िक उसक अना भी रहे
हर बार जाता है वो र ता तोड़कर
और चाहता है रा ता बना भी रहे….
·
अपना कहती है मुझे मोह बत नह करती
वो अब भी मेरी है पर मोह बत नह करती
कोई कल कह रहा था उसने भी चाहा था िकसीको
उसके बाद अब वो िकसी से मोह बत नह करती…
·
िबछड़ते व त तुम खामोश ही रहना
आवाज़ गर दी तो म लौट आऊँगा
जाते हो तो पूरी मोह बत ले जाना
थोड़ी भी बच गयी तो म लौट आऊँगा
·
कभी कभी तो मेरी ग़ज़ल से आती है
वो खुशबू जो तु हारी ज़ु फ़ से आती है

@BOOKHOUSE1
पूछा जो सबसे उ दा शराब का राज़ मने
वो बोली ये छू कर मेरे लब से आती है…
·
हर तरफ़ उसी को ढू ंढ़ता हूँ म,
जो मेरी ओर नज़र नह लेती
कल से तिबयत ख़राब है मेरी
वो ही खैर ख़बर नह लेती …
·
शब भर रहा आँ ख म तेरा ही चेहरा
शब भर िफर न द इ ह अ छी न लगी
तेरे हु न क बारीिकय पे जो लखा मने
लोग क वाह वाह िफर मुझे अ छी न लगी
·
आँ ख म आँ सूओ ं क लक र आ जाती है
न जाने पलक तले हर रात कौन आ जाता है
िकतनी को शश करके म तु ह भूल पाता हूँ
और िफर एक रात तु हारा फ़ोन आ जाता है…
·
िवरह के िकतने ही गीत मन से िनकलने लगते है
बीते िदन क जब कह कोई ताल छे ड़ देता है
िकतनी ही रात सरहाने नमक न कर सोता हूँ
हर सुबह िफर कोई िज़ े भोपाल छे ड़ देता है…
·
न जाने या हुआ मकान म खड़िकयाँ नह बची,
बुज़ुग क ज़बान म मीठी झड़िकयाँ नह बची,

@BOOKHOUSE1
िकतने ही जवां िदल इस लये भी परदेस चले गए,
गाँव के पनघट पर अब कोई लड़िकयाँ नह बची…
·
द ु हन सा घर को सजाया तो होगा
दीप चौखट पर िफर लगाया तो होगा
तेरी रंगोली म जो हाथ रंग भर देते थे
इस दीवाली उनका ख़याल आया तो होगा
·
सारी रात क बात तेरी
दो त मेरे थे िकतने सारे
भोर हुई और सो गए सब
एक चाँद और िकतने तारे
·
जुदा होते ही मरने का खौफ़ िदखात ह
जो साथ रहकर एक पल भी नह जीते
वो यार के लब को चूम भी लेते है और
ये भी कहते ह हम उनका झूठा नह पीते
·
व ते मुफ़ लसी
एक ै ट लया था मने..
कल माँ आई थी,
उसे घर बना गई…
·
िम ी हूँ िम ी सा मुझको िम ी म िमल जाना है
मुझम भीगी बाती रख दो बन दीपक जल जाना है

@BOOKHOUSE1
लड़ू ँ तिमर से सकल गगन म बन काश म छा जाऊँ
मुझ म अपने दोष सरा दो दीपो सव खल जाना है
·
ज म से ह तलक इक ठंडक सी पहुच
ं ी,
ऐसा लगा िक माथे पावन च दन छू लया।
एह तयाते सफ़र ज़ री था िक पूरे िदन महकँू ,
मने घर से िनकलते हुये उसका बदन छू लया।।
·
द रया समंदर को अपना दख
ु ड़ा सुनाती है
,सारे िकनारे सुनते ह बेसबब मज़े लेते ह।
ये मशवरा है मेरा घर क बात घर म रखना,
कोई सहानुभू त नह रखता सब मज़े लेते ह।।
·
अपने सीने से लगा कर के सारी याद तेरी,
म तमाम शहर म यँू सुबहो शाम घूमता था..
तुझसे कॉपी लेना तो एक बहाना था कूल म,
म घर आकर तेरा लखा हफ़ हफ़ चूमता था..
·
उसका जीवन ध य ध य हो गया,
जस पर महाकाल क कृपा हो गई…
एक छोटी सी नदी बहते ही बहते,
उसके चरण को छू कर ा हो गई…
·
मेरा इ क़ था तुमसे और,
मेरा शहर थी तुम..

@BOOKHOUSE1
तीन गवाह थे यार के,
इ क़ , शहर और तुम..
·
तुम ेत वण क चादर हो , म हूँ इक रंगरेज़ ि ये
तुम नागफनी का पौधा हो , म ज म से लबरेज़ ि ये
तुम कृ णप सा अंधकार , म र मरथी सा तेज़ ि ये,
तुम कोहनी िटकाकर बैठी हो , म तीन पैर क मेज़ ि ये
·
िफर वो ही तु हारी याद,
िफर वो ही आँ ख नम,
िफर वो ही बा रश का महीना,
िफर वो ही अकेले हम …
·
जस चाँद को देखकर करीब आ जाते थे हम
आज क रात परदेस से वही चाँद देखा मने
चाँद आजकल तुमसे यादा करीब है मेरे …
·
िदन भर क मेहनत , साहूकार को देकर
सो गया वो, एक खूबसूरत वािहश को लए,
वाब म आज िफर रोिटयाँ आएगी !
·
तुमसे जलकर चाँद बादल म जा छुपा,
जब तुम सामने हो चाँद क या ज रत हो
बादल ततली झरने पंछी सब देख लए
तुम इस जहाँ म सबसे खूबसूरत हो…

@BOOKHOUSE1
·
मुझे पता था एक िदन चले जाओगे,
ये साथ िज़ दगी भर का नह …
मगर जस तरह से तुम चले गये,
िबछड़ने का वो भी तरीका नह …
·
नह म तुमसे ख़फ़ा नह हूँ,
म ये र ता चाहता ही नह हूँ,
अब न वो तुम रही, न तु हारी बात
ऐसा लगता है म तु ह जानता ही नह हूँ…
·
राधा कृ ण के जैसा साथ हम दोन का,
एक हाथ म कलम दस
ू रे म हाथ हम दोन का,
िकतने बरस बाद अब यहाँ आकर िमल है हम,
िकतने बरस बाद आया ल हात हम दोन का…
·
म परशुराम सा चंड ोध
तुम जनक सी मृदभ
ु ाषी ि ये
म िद ी पुणे बगलोर
तुम अयो या मथुरा काशी ि ये
म सािहर का पल दो पल हूँ
तुम अमृता का इ तज़ार ि ये
म सोमवार से शु वार हूँ
तुम शिनवार रिववार ि ये
·

@BOOKHOUSE1
या बताऊँ म अपनी,
मेरी बेबसी भी कम नह है
उन पर लखी जो किवता,
वो बोले ये हम नह है…
·
िकतने ही लोग ह
जो लखते ह
िकसी श स पर,
िकतने ही लोग ह,
ज ह लखते लखते
कोई श स िमल जाता है
·
एक छुअन से जो टू ट गया ,
वो हार कैसा था
न आह हुई न दद हुआ,
वो हार कैसा था
द ू रय क एक आँ धी ने
आ शयाँ उड़ा िदया
कैसी थी वो मोह बत
वो यार कैसा था…
·
शराब का नशा अपनी जगह है
मगर िफर भी,
हुआ जो मुक़ाबला
तो तेरी आँ ख जीत जायेगी…

@BOOKHOUSE1
·
म इस उ मीद म भरी गम म खड़ा हूँ
यादा तपन हो तो बादल बरसते है..
मोह बत करने का बस यही एक सला है
मोह बत करने वाले उ भर तरसते है…
·
कभी बहुत तरसाती है,
कभी जम के बरसती है!
तेरे शहर क बा रश भी ,
इ क़ तुझी सा करती है….
·
ब े कहाँ अब शहर से बार बार आते ह,
गाँव म बहुत उदास उदास से यौहार आते ह!!!
·
ल ज़ ल ज़ लखता रहा , सुना नह पाया!
म अपना लखा कभी , समझा नह पाया!!
·
शायद तुमको ये भी पता हो
िबन तु हारे न जीना है
शायद तुमको ये भी पता हो
आँ सू आँ सू ही पीना है
क े िनकले सारे र ते
धागे बन कर टू ट गए
अबके बरस उनको सीना है
शायद तु ह पता न हो

@BOOKHOUSE1
·
राह म जसके लये आँ ख िबछा दी है
वो एक लड़क जो िबलकुल हवा सी है
कैसे होगी इ क़ क बात उससे िक िकसी ने
पहले ही मेरी सारी ग़ज़ल उसे सुना दी है
·
इ ज़ाम मुह बत के सर आया है ,
िकसका लफाफा आज घर आया है
उसक शादी के काड के साथ साथ,
ततली का टू टा हुआ पर आया है…
·
एक एक ल ज़ महकता है याद से तु हारी,
ये कलम अभी अभी तु ह छू कर गई है!
तुम कहती हो बहुत सुंदर है मेरी किवता,
म कहता हूँ ये िबलकुल तुम पर गई है!!
·
हर मुलाकात पर अगली मुलाकात के वादे
हर एहसास म मेरी िफ , बात म मेरी बात
आज कल बहुत शकायत करने लगी हो
लगता है तुम भी मुझसे मुह बत करने लगी हो
·
एक बार जो देख ले उसके ख़सार का तल
तमाम शब चाँद िफर अपनी चाँदनी न पहने
वो एक रंग बस उसी पे फ़ ता है िक कह दो
कोई भी आज के बाद सूट आसमानी न पहने

@BOOKHOUSE1
·
लखा था िक,
थरथराये ह ठ
छलकते नैन
फैला हुआ काजल
िदल क धड़कने,याद भी काँप रही थी. .
िबछड़ते व त
जब अलिवदा कहा उसने
साँसे भी काँप रही थी…
·
एक मु त के बाद िमली है डायरी,
एक मु त के बाद कोई बात आई,
एक मु त के बाद हुई है बा रश,
एक मु त के बाद तुम याद आई. .
·
चाँद पलक सतारे आँ सू
िकतनी रात जाग आँ सू
ख़त के आगे मेरा नाम है
मेरे नाम के आगे आँ सू
·
मेरी मस िफ़यत को अब,
वो शायद पहचान जाती है!!
बहुत झझकते हुए
नानी मुझे छुि य म बुलाती है….
·
िदल ही जानता है िकस हाल गुज़रे

@BOOKHOUSE1
कैसे तेरे बग़ैर ये चार साल गुज़रे
बैरागढ़ आते ही कलेजा बैठ जाता है
िफर वही दआ
ु िक ज द भोपाल गुज़रे
·
अपना तो सारा िदन ही द तर म गुज़र जाता है ,
काम के मारे तेरे इ क़ से या ख़ाक बेहाल ह ग
कभी कभी तो मन म अ सर ये सवाल आता है
जस जसको तूने छोड़ा था वो अब िकस हाल ह गे
·
द ु मन िफर भी नेक था ,
कर ली दआ
ु सलाम
दो त जो ठा एक बार ,
आया कभी न काम
·
आपक अदाओं को चत चोर बो लए
इस शाम को मुह बत का दौर बो लए
बोला जो हमने िक बेहद इ क़ है आपसे
मु कुराके कहा अ छी बात है और बो लए
·
मौसमी फूल का हसीन बाग़ हम दोन
थोड़ी जली थोड़ी बुझी आग हम दोन
जब जब ज़दगी दरू तक याह रात थी,
बनते ह एक दस
ू रे का चराग हम दोन
·
पुनीत पावन ेम पूरवा रहा है तुमको सू चत हो

@BOOKHOUSE1
मुिदत मन मेघमय मु का रहा है तुमको सू चत हो
सहज सुंदर सुलोचन साँवरा सलोना सा वो
िदल के ार द तक पा रहा है तुमको सू चत हो
·
“शहर पहुँच कर खा लेना” माँ स ज़ी पूरी रखती है “
एक पुराने ड बे म , दो ल ू और इमरती है “ ….
म चुप चाप सा रहता हूँ माँ तू यँू ये न समझती है …
जस िदन म घर से जाता हूँ भूख कहाँ िफर लगती है…
·
इ क़ मुह बत यार क बात
स ी झूठी यार क बात
दिु नयाभर क दिु नयादारी
झूठा इ क़ और स ी यारी
सूरज हूँ जो डू ब रहा हूँ
म अब सब से ऊब रहा हूँ…..
·
म ना भूखा रह जाऊँ सो
वो भूखी रह जाती थी..
जस िदन खाना अ छा बनता
माँ कम रोटी खाती थी…
·
गोिपय ने बस इतना ही कहा था झूठे वादे करता है
गुमसुम वो सब काम तभी से आधे आधे करता है
बँसी भूला पनघट भूला , भूल गया सबके ही नाम

@BOOKHOUSE1
सब कहते है ‘का हा’ िदन भर ‘राधे राधे’ करता है
·
एक तेरी याद तेरी बात और जीवन बीता ज़ाता है
िदल है जैसे सौत का बेटा सब कुछ सहता जाता है
मेरे उसके इ क़ क गवाही चाँद को देना होती है
चाँद क क़सम खाती है वो चाँद भी घटता जाता है
·
चाँदनी को ताकते सब खड़े थे और
बादल म वो मेरे साथ रह गई
उसने भी हटा लया ख से पदा
अपनी भी दो त म बात रह गई

@BOOKHOUSE1
अ भषेक नागर क अ य का शत िकताब :-

इ क़ शहर और तुम
शायद तु ह पता न हो
ल ेक

@BOOKHOUSE1

You might also like