Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 4

मृतव सा दोष शा त

जस रमणीक स तान- सवके एक प , एक मास


अथवा एक वषके बाद न हो जाती है, उसी नारीको
मृतव सा कहा जाता है । यथा-
गभसंजातमा ण े प े मासे च व सरे।
पु ो यते वषादौ य याः सा मृतव सका ॥ -
ीद ा ये त
नारी के मृतव सा दोष उ प होने से साधना-रह य वत्
ता क के ारा उसक शा त करानी होती है। जस-
तस ारा कमानु ान करानेपर फल ा तक
आशा नह है, पर तु यवायभागी होना होगा । मृतव सा
दोषक शा तके लए इस पसे या करायगे :-
अगहन अथवा ये मासक पू णमा त थम गृहलेपन-
पूवक एक. नूतन कलसी गंगाजलसे पूण कर उ गृहम
ा पत करेगा। कलसीको शाखा, प लव और नवर न
ारा सुशो भत कर वणमु ा दान करते ए षट् कोण
म डलम सं ा पत करेगा। बादम एका च से इस
कलसीके ऊपर दे वीक पूजा करेगा। बादम पु प, धूप,
द प, नैवे मधु माष आ द ब ल ारा भ -स हत
ा ी, माहे री, कौमारी,. वै णवी, वाराही, इ ाणी इन छ
मातृका क षट् कोणम पूजा करेगा। उसके बाद णव
(ॐ) उ ारणपूवक द ध और अ ारा सात प ड.
तुत करेगा। छ मातृका गण को छ प ड दान कर
स तम प डको प व ान पर न पे करेगा। उसके
बाद अपने गृहम लौटकर बा लका और कु मारीगणको
ी तपूवक भोजन कराकर द णा दान कराएगा। इन
सब कु मा रय के स तु होनेसे ही दे वता स होते।ह ।
उसके बाद नद म कलसी वसजन कर आ मीय के
नकट शुभ ाथना करेगा। न न ल खत म का उ ारण
करके जप एवं पूजा द करना होगा । यथा-
"ॐ परमं परमा मने अमुक गभ द घजी वसुतं कु
कु वाहा ।"
पूजाके अ त म समा हत च से संक पानुयायी न द
सं याम इस म का जप करेगा।
तवष मदं कु या घजी वसुतं लभेत् ।
स योग मदं यातं ना यथा शंकरो दतम् ।।-
ीद ा ये त
तवष इस कार एक बार दे वताचना करनेसे मृतव सा
रमधीका पु द घजीवी होता है । यह स योग शंकरो
है, इस लए कोई भी अ व ास नह करता है ।
गुही वा शुभन े वपामाग य मूलकम् ।
गही वा ल णामूलं एकवणगवां पयः ।
पौ वा सा व ते गभः द घजी वसुतो भवेत् ॥ -
ीद ा ये त
शुभन म अपामागक मूल और ल णामूलका उ ोलन
कर एकवणा गायके धके साम पेषण कर पान करेगा।
इससे य को गभ 'रहता है और वह गभ पु
द घजीवी होता है । इस औषधके सेवन के पूव
पूव म का जप करते ए पुर रण कर लेना होगा ।
मृतव सादोष शा तके लए उपयु साधकके नकटसे
कवचा द सं ह कर सकने पर वशेष लाभ होता है।
भारतवष म इस स यका य ब तसे य ने कया
है।

You might also like