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Miir Ki Galatiyan
Miir Ki Galatiyan
Miir Ki Galatiyan
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काफ़िया ग़लत है
काफ़िया ग़लत है
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बुरक़ा में क्या छु पें वे होवें जिंहों की ये ताब
रुख़सार तेरे प्यारे हैं आफ़ताब महताब
काफ़िया ग़लत है
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काफ़िया ग़लत है
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काम मेरा भी तिरे ग़म में कहूं हो जाएगीगा
जब ये कहता हूँ तो कहता है कि हूँ हो जाएगीगा
ख़ून कम कर अब कि कु श्तों के तो पुश्ते लग गए
क़तल करते करते तेरे तीं जुनूँ हो जाएगीगा
इस शिकार अंदाज़ ख़ूनीं का नहीं आया मिज़ाज
वर्ना आहूए हरम सैद-ए-ज़बूँ हो जाएगीगा
बज़्म-ए-इशरत में मिला मत हम निगों बख़्तों के तीं
जूं हुबाब बादा-ए-साग़र सर-निगूँ हो जाएगीगा
ता-कु जा ग़ुंचा-सिफ़त रुकना चमन में दहर के
कब गिरफ़्ता-दिल मरे सीने में ख़ूँ हो जाएगीगा
क्या कहूं मैं मीरास आशिक़ सितम महबूब को
तौर पर उस के किसू दिन कोई ख़ूँ हो जाएगीगा
काफ़िया ग़लत है
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काफ़िया ग़लत है
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लने लगे हो दैर देर? देखिए किया है क्या नहीं
तुम तो करो हो साहबी बंदे में कु छ रहा नहीं
बोई गिल और रंग-ए-गुल दोनों हैं दिलकश ए नसीम
लेक बक़दर यक निगाह? देखिए तो वफ़ा नहीं
शिकवा करूँ हूँ बख़्त का इतने ग़ज़ब ना हो बुताँ
मुझको ख़ुदा-न-ख़्वास्ता तुमसे तो कु छ गिला नहीं
नाले किया ना कर सुना नौहे मरे पे अंदलीब
बात में बात ऐब है मैंने तुझे कहा नहीं
ख़ाब ख़ुश सह्र से शोख़? तुझको सबा जगा गई
मुझपे अबस है बेदिमाग़? मैंने तो कु छ कहा नहीं
चशम सफ़ै द-ओ-अश्क-ए-सुर्ख़ आह-ए-दिल हज़ीं है याँ
शीशा नहीं है मै नहीं अब्र नहीं हुआ नहीं
एक फ़क़त है सादगी तिस-पे बला-ए-जाँ है तो
इशवा करिश्मा कु छ नहीं आन नहीं अदा नहीं
आब-ओ-हूए मुल्क इशक़? तजुर्बा की है में बहुत
करके दवए दर्द-ए-दिल कोई भी फिर जिया नहीं
होवे ज़माना कु छ से कु छ छोटे है दिल लगा मिरा
शोख़ किसी ही आन मैं तुझसे तो मैं जुदा नहीं
नाज़-ए-बुताँ उठा चुका देर को मीरध तर्क कर
काबे में जाके बैठ मियां तेरे मगर ख़ुदा नहीं