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तुझ इश्क़ में तो मरने को तैयार बहुत हैं


ये जुर्म है तो ऐसे गुनहगार बहुत हैं
इक ज़ख़्म को मैं रेज़ा-ए-अल्मास से चीरा
दिल-ए-पर अभी जर्राहत नौकार बहुत ही

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कु छ अँखड़ियाँ ही उस की नहीं इक बला कि बस
दिल ज़ीनहार देख ख़बरदार बहुत हैं
बेगाना-ख़ू रक़ीब से विस्वास कु छ ना कर
फरमावे टुक ज़बां से तो फिर यार बहुत हैं
कोई तो ज़मज़मा करे मेरा सा दिल-ख़राश
यूं तो क़फ़स में और गिरफ़्तार बहुत हैं

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