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मीरा बाई
मीरा बाई
मीरा बाई
मीराबाई (1498-1573) सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं। उनकी कविता कृष्ण भक्ति के
रं ग में रं ग कर और गहरी हो जाती है ।[1] मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है । मीरा
कृष्ण की भक्त हैं।
जीवन परिचय
वे विरक्त हो गई और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगी। पति
के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजद
ू कृष्णभक्तों के
सामने कृष्णजी की मर्ति
ू के आगे नाचती रहती थी। मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज
परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष दे कर मारने की कोशिश की। घर वालों के
इस प्रकार के व्यवहार से परे शान होकर वह द्वारका और वन्ृ दावन गई। वह जहाँ जाती थी, वहाँ लोगों का
सम्मान मिलता था। लोग उन्हे दे वी के जैसा प्यार और सम्मान दे ते थे। मीरा का समय बहुत बड़ी
राजनैतिक उथल-पुथल का समय रहा है । बाबर का हिंदस् ु तान पर हमला और प्रसिद्ध खानवा का यद्ध
ु उसी
समय हुआ था। इस सभी परिस्तिथियों के बीच मीरा का रहस्यवाद और भक्ति की निर्गुण मिश्रित सगुण
पद्धत्ति सवर्मान्य बनी।
मीरा बाई भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मानी जाती है । मीरा बाई ने जीवनभर भगवान कृष्ण की
भक्ति की और कहा जाता है कि उनकी मत्ृ यु भी भगवान की मर्ति ू में समा कर हुई थी। मीरा बाई की
जयंती पर कोई ऐतिहासिक रिकॉर्ड तो नहीं हैं, लेकिन हिंद ू चंद्र कैलेंडर के अनस
ु ार, शरद पर्णि
ू मा के दिन को
मीराबाई की जयंती के रूप में मनाया जाता है । मीरा बाई के जीवन से जड़
ु ी कई बातों के को आज भी
रहस्य माना जाता है । गीताप्रेस गोरखपरु की पस्
ु तक भक्त-चरितांक के अनस
ु ार मीरा बाई के जीवन और
मत्ृ यु से जड़
ु ी कुछ बातें बताई गई हैं।
मीराबाई जोधपरु , राजस्थान के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थीं। मीराबाई मेड़ता महाराज के छोटे
भाई रतन सिंह की एकमात्र संतान थीं। मीरा जब केवल दो वर्ष की थीं, उनकी माता की मत्ृ यु हो
गई। इसलिए इनके दादा राव दद
ू ा उन्हें मेड़ता ले आए और अपनी दे ख-रे ख में उनका पालन-पोषण
किया। मीराबाई का जन्म 1498 के लगभग हुआ था।
भोजराज से विवाह
विवाह योग्य होने पर मीराबाई के घर वाले उनका विवाह करना चाहते थें, लेकिन मीराबाई श्रीकृष्ण को पति
मानने के कारण किसी और से विवाह नहीं करना चाहती थी। मीराबाई की इच्छा के विरुद्ध जाकर उनका
विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ कर दिया गया।
मीरा की कृष्ण भक्ति
पति की मत्ृ यु के बाद मीरा की भक्ति दिनों-दिन बढ़ती गई। मीरा मंदिरों में जाकर श्रीकृष्ण की मर्ति
ू के
सामने घंटो तक नाचती रहती थीं। मीराबाई की कृष्ण भक्ति उनके पति के परिवार को अच्छा नहीं लगा।
उनके परिजनों ने मीरा को कई बार विष दे कर मारने की भी कोशिश की। लेकिन श्रीकृष्ण की कृपा से
मीराबाई को कुछ नहीं हुआ।
विवाह के कुछ साल बाद ही मीराबाई के पति भोजराज की मत्ृ यु हो गई। पति की मौत के बाद मीरा को भी
भोजराज के साथ सती करने का प्रयास किया गया, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। इसके बाद मीरा
वंद
ृ ावन और फिर द्वारिका चली गई। वहां जाकर मीरा ने कृष्ण भक्ति की और जोगन बनकर साधु-संतों के
साथ रहने लगीं।
कहते हैं कि जीवनभर मीराबाई की भक्ति करने के कारण उनकी मत्ृ यु श्रीकृष्ण की भक्ति करते हुए ही हुई
थीं। मान्यताओं के अनस
ु ार वर्ष 1547 में द्वारका में वो कृष्ण भक्ति करते-करते श्रीकृष्ण की मर्ति
ू में समां
गईं थी।
मान्यता, वंद
ृ ावन की गोपी थीं मीरा