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Le-2. फसलों के त्योहार WB
Le-2. फसलों के त्योहार WB
फ़सलों के त्योहार
पाठ आधाररत प्रश्न
(iv) पोंगल बिाते समय मटके के मुाँह के ऊपर क्या बााँधा जाता है ? [क ]
2 सही कथि के सामिे सही (✔) तथा गलत कथि के सामिे गलत (X) का निशाि लगाइए।
(i) जििरी के मध्य में भारत के लगभग सभी प्रांतों में फ़सलों से जुड़े त्योहार मिाए जाते हैं । (✔)
(iii) पोंगल बिािे के नलए मटके को छााँह में रखा जाता है । (x)
(iv) गुजरात में मकर-संक्ांनत के कदि पतंगों से र्ााँद ढक-सा जाता है । (x)
(v) मकर-संक्ांनत के कदि पािी में नतल डालकर स्िाि ककया जाता है । (✔)
पुरािे, खखर्ड़ी, प्रकृ नत, िार्ते-गाते, पखक्षयों, पतंगों, त्योहार, िए, ईंट के
(i) गुरुजी, विमला कदद्दा, आिंद जी ि खिलनमट भैया ईंट के र्ल्हे पर खखर्ड़ी बिाते ।
(iv) गुजरात में पतंगों के वबिा मकर-संक्ांनत का जश्न अधरा मािा जाता है ।
(v) घुघुनतया (कुमाऊाँ का त्योहार) में बच्र्े माला से पकिाि तोड़कर पखक्षयों को खखलाते हैं ।
4. िीर्े बाईं ओर कुछ फ़सली त्योहारों के िाम कदए गए हैं और दाईं ओर उिसे संबंनधत िस्तुओं के। प्रत्येक
त्योहार से जुड़ी सही िस्तु का नमलाि कीखजए।
सरहुल के कदि विशेष रूप से ‘साल' के पेड़ की पजा की जाती है । यही समय है जब साल के पेड़ों में फल
अपिे कािों में लगते हैं और मौसम बहुत ही खुशिुमा हो जाता है । स्त्री-पुरुष दोिों ही ढोल-मंजीरे लेकर
रातभर िार्ते-गाते हैं । र्ारों ओर फैली हुई छोटी-छोटी घाकटयााँ, लंबे-लंबे साल के िृक्षों का जंगल और िहीं
आस-पास बसे छोटे -छोटे गााँि। नलपे-पुते, करीिे से बुहारे और सजाए गए अपिे घरों के सामिे लोग एक
पंवक्त में कमर में बााँहें डालकर िृत्य करते हैं । अगले कदि िे िृत्य करते हुए घर-घर जाते हैं और फलों के
पौधे लगाते हैं ।
(i) सरहुल में िार्िे-गािे के दौराि कौि-कौि से िाद्-यंत्र प्रयोग में लाए जाते हैं ?
ज) सरहुल में िार्िे-गािे के दौराि ढोल-मंजीरे जैसे िाद्-यंत्र प्रयोग में लाए जाते हैं |
(iii) सरहुल में घरों के सामिे लोग ककस प्रकार से िृत्य करते हैं ?
ज) अपिे घरों के सामिे लोग एक पंवक्त में कमर में बााँहें डालकर िृत्य करते हैं ।
ज) ‘साल' के पेड़ की पजा की जाती है और घर-घर के सामिे फलों के पौधे लगाते हुए पौधा-रोपण को
बढ़ािा दे ते हैं ।
ज) सरहुल में र्ंदे में मुगाच, र्ािल और नमश्री र्ीजें मााँगी जाती हैं |
4. पोंगल के कदि घरों में कौि-कौि सी फ़सलें काटकर लाई जाती हैं ?
ज) पोंगल के कदि खरीफ़ की फ़सलें र्ािल,अरहर, मसर आकद कटकर घरों में पहुाँर्ती हैं |
ज) खखर्ड़ी के त्योहार के कदि केले के पत्तों पर नतल, गुड़, र्ािल आकद के छोटे -छोटे ढे र रखा गया था |
ज) मार्च-अप्रैल में आकदिासी सरहुल मािते हैं | यही समय है जब साल के पेड़ों में फल आिे लगते हैं और
मौसम बड़ा खुशिुमा हो जाता है |
ज) तनमलिाडु में इस कदि िए धाि से र्ािल निकालते हैं , नमट्टी का िया मटका लाकर उसके र्ारों ओर
हल्दी लगाकर िए र्ािल, दध और गुड़ डालकर धप में रखकर उफाि आिे तक रखकर पोंगल मिाया
जाता है |
1. खेती और फ़सलों से जुड़े कौि-कौि से त्योहार ककि-ककि प्रांतों में मिाए जाते हैं ?
ज) उत्तर प्रदे श, वबहार, मध्य प्रदे श में मकर-संक्ांनत या नतल संक्ांनत, असम में बीह, केरल में ओणम,
तनमलिाडु में पोंगल, पंजाब में लोहड़ी, िारखंड में सरहुल, गुजरात में पतंग का पिच सभी खेती और फ़सलों
से जुड़े त्योहार हैं |
2. मकर संक्ांनत के कदि ककस प्रांत में पतंगों को सिाचनधक महत्ि कदया जाता है और ककस प्रकार?
ज) गुजरात में संक्ांनत के कदि पतंगों को सिाचनधक महत्ि कदया जाता है |इस कदि ककसी भी धमच, जानत
या आयु के लोग भी पतंग उड़ाता है |आसमाि की ओर िजर उठायें तो विविध आकार, रं ग-रूप की हजारों-
लाखों पतंगें सयच को ढक लेते हैं |
(v) फ़रमाइशी= विशेष रूप से अिुरोध ककया गया (vi) कड़ाहा=िृत्ताकार बड़ा बतचि
(iii) खखर्ड़ी में अइसि ठाड़ हम पकहले कब्बो िा दे ख िी सारा दे ह किकिा दे ता!
3. नमलते-जुलते अथच िाले शब्दों को समािाथी अथिा पयाचयिार्ी शब्द कहते हैं ; जैसे-सरज, सयच,
आकदत्य, कदिकर आकद। रे खांककत शब्दों के स्थाि पर उिके पयाचयशब्द का प्रयोग करते हुए िाक्यों को पुिः
नलखखए।
(ii) सामिे केले के कुछ पत्ते कतार में रखे हैं । ज) पंवक्त, क्म
डु बकी, खुशिुमा, प्रकृ नत, जश्न, पंवक्त, मजा, सफ़ेद, आशीिाचदी, कहम्मत, प्रांत, ढं ग, उम्मीद
5 एक से अनधक अथच दे िे िाले शब्दों को अिेकाथी शब्द कहते हैं ; जैसे-किक शब्द के सोिा, धतरा,
गेहाँ आकद कई अथच हैं । िीर्े कदए गए शब्दों के अलग-अलग अथच नलखखए।
6. कदए गए गद्ांश में से संज्ञा के भेदों के आधार पर संज्ञा शब्दों को छााँटकर नलखखए।
में हम जो खखर्ड़ी मिाते थे उसकी अलग ही मस्ती हुआ करती थी। छुट्टी का कदि, िाि में बैठकर गंगा
दीकी सैर और कफर टाप पर बाल में दौड़ते हुए पतंग उड़ािा या उड़ािे की कोनशश करिा। ककतिा मजा
आता था। इधर हम पतंग उड़ाते थे और िहीं थोड़ी दर पर गुरुजी, विमला कदद्दा, आिंद जी, खिलनमट भैया
सब नमलकर ईंट से बिे र्ल्हे पर बड़े -बड़े कड़ाहों में खखर्ड़ी बिाते थे। हम भी बीर्-बीर् में अपिी पतंगों
को सस्तािे का मौका दे ते हुए मटर और प्याज छीलिे बैठ जाते। िैसी खखर्ड़ी कफर दब
ु ारा खािे को िहीं
नमली। िाकई, ढं ग कैसा भी हो, पर है ये खुनशयों का त्योहार।
पाठ के आस-पास
िीर्े दी गई िगच पहे ली में दे श के विनभन्ि प्रांतों में मिाए जािे िाले फ़सली त्योहारों के िाम कदए गए हैं ।
उन्हें पहर्ािकर उि पर घेरा लगाइए। साथ ही प्रत्येक को उससे संबंनधत प्रांत के सामिे नलखखए।