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प्रिय ांजलि

कवलयत्री- प्रिय गुप्त

द र्जिलिांग,वेस्ट बांग ि

1
अनुक्रमर्िक

प्रवषय पृष्ठ सांख्य

अनुक्रमर्िक

मैं एक न री।
बेटी की पूक र
म ाँ
एक बूाँद प नी
आज मन कुछ उद स हैं
र् ांदगी
पूछती है किम कक क्य लिखू?ां
िकृ लत
कियुग है स हब,ये कियुग
र् न्दगी
जन्मकदन
"कोरोन "-मह म री
दप्रु वध
"अन्तमिन"
स्वतांत्रत कदवस
क्षम
म ाँ श रदे तुमको नमन
"मैं न री हूाँ"
भ रत प्य र जग से न्य र
लशक्षक
िेम प लिक
अजनबी कौन हो तुम?
हर ओर महकत स वन
कदि
किम
कहन्दी
रक्ष बांधन
झरन

2
र सुनो
बचपन
बेटी की व्यि
जय श्री कृ ष्ि
लमत्र,लमत्रत
मेरी कप्रवत
िकृ लत
हो गयी मैं ,बन-ठन तैय र
मेरी अलभि ष
न कसमें न ही कोई व द ,
िम्हें
क िी घट और िेलमक
अपन पन
इां तज र
उम्मीद हूाँ मैं,हर क म क कहस्स हूाँ
म त -प्रपत
आज.मैं पूरी तरह से आ द होन च हती हुां
दीप विी
मेरी ख्व कहश

3
मैं एक न री

मैं एक नारी ननममल नदी सी कलकल धारा।


एक ककनारे ससुराल तो मायका दज
ू ा ककनारा।।

तीखा स्वाद ससुराल का तो मीठा नमसरी मायका।


दोनों मेरे अपने लेककन दोनों का अलग जायका।।

मायके का आंगन जहां गूंजी मेरी जन्म ककलकारी।


ससुराल का सहन जहां सुनी मैंने बच्चों की ककलकारी।।

एक तरफ ममतामयी मां के आंचल का मैं कहस्सा।


दज
ू ी ओर सास जजसके लाल संग जुडा जीवन का ककस्सा।।

एक तरफ मेरे पपता जजनसे हैं अपनत्व की धाक।


दज
ू ी ओर ससुरजी जजनके सम्मान की मैं साख।।

मायके में मेरी बहनें सहे लीयां थी हमजोली।


ससुराल में मेरी ननदें हैं जैसे माखन नमसरी घोली।।

मायके में पपता ताऊ काका जजनकी नमठी मुस्कान।


ससुराल में पनत दे वर जेठ है तीखे में नमष्ठान।।

मायके में मेरी प्यारी सी भाभी जैसे हो ममता की ननशानी।


ससुराल में दे वरानी जेठानी जैसे ननममल बहता हो पानी।।

मायके में मेरा प्यारा भय्या ऐसी आस जो द:ु ख में मेरी नैया।
ससुराल में मेरे प्राणपप्रय सैंया जो हैं मेरे जीवन नाव खेवैया।।

ससुराल और मायका ननममल गंगा की जैसे हो धारा।


हर नारी को सागर से नमला बनाता हैं गहरा।।

बेटी की पूक र

केवल कुछ पलों की भूख को नमटानें,


जीवन से मेरे दष्ट
ु जखलवाड कर गया।
एक दष्ु कमी मेरे तन को ही नहीं,
मन को भी लहुलूहान कर गया।।

4
मैं बाबुल के बगीया की नचकडया,
इस डाली से उड उस डाली पर जाऊं।
मधुर कलरव सदा करके मैं,सारे जग को सदा हर्ामऊं।।
उस पापी को मेरा चहकना अखर गया।।
वो पातकी मेरे तन को ही नहीं,मन को भी रक्तरं जजत कर गया।।
मैं बेटी बकहन और मां का फजम ननभाती हूं,
जग जननी मातृशपक्त अपना कजम चुकाती हूं।।
मेरे सुनहरे सपनों को एक नराधम तोड गया।
एक बहे नलया मेरे पंख मरोड गया।
एक दष्ु कमी मेरे तन को ही नहीं,मन को भी लहुलूहान कर गया।
कोमल बदन पर कठोर स्पशम सहा,
दया कर तेरी बकहन समान हूं यह भी कहा।
रोई नगडनगडाई पांव पकड कर दी दहु ाई,
सावन भादो के सरीता की तरह नैनों से नीर भी बहा।।
पर मेरा पवलाप कुछ असर ना कर पाया,
नर पपशाच मेरे प्राणों को ननचोड गया,हं सती जखलजखलाती गुडीया को लाश बना गया।
एक दष्ु कमी मेरे तन को ही नहीं मेरे मन को भी ननष्प्राण कर गया।

'म ाँ'

तुमसे ही मैं हूूँ,तू ही मेरी मुस्कान


तू ही मेरी गीता ,तू ही मेरी कुरान।
माूँ! आज आया एक पवचार ,नलखूं तुझपे सब्द हज़ार।
माूँ, मेरी कहम्मत ,मेरा साहस मेरी ताकत हो तुम,
मेरी शान ,मेरा घमंड और मेरा अनभमान हो तुम।
तुने ही सजाया तकदीर मेरी ,तुझसे ही मेरी पहचान ,
बनाया इस कापबल मुझे की छू लू में आसमान ्।
तुझसे से ही, मेरी सभ्यता-संस्कृ नत और ये घर-बार,
मान-सम्मान तुमसे ही मेरी और ये इज़्ज़त -सत्कार।
माूँ ! बस आया आज एक पवचार नलखूं तुझपे सब्द हज़ार।
मेरी तक़्दीर,मेरी मंजज़ल मेरा भपवस्य हो तुम,
जो ज्ञान कदया तुने मुझे ,उसकी हक़दार हो तुम।
कदया जनम तुने ,उस जज़ंदगी की आधार हो तुम,
मेरी ननयनत और मेरा पवधाता हो तुम।
अगर हूूँ मैं तेरी परछाई ,तो मेरी पहचान हो तुम ,

5
माूँ महान हो तुम ,महान हो तुम।

एक बूाँद प नी

पानी की मकहमा धरती पर,है जजसने पहचानी,


उससे बढ़कर और नहीं है ,इस धरती में ज्ञानी।
एक बूूँद पानी न नमलने पर मच जाएगा हाहाकार,
पानी की एक बूूँद पाने रहे गा हर कोई लाचार।
पबना जल के रहे गा जीवन हमारा बेजान,
अब तो मनुज इसकी अहनमयत को पहचान ।
पांच तत्वों में पानी का होता प्रमुख स्थान
गंगा ,सरस्वती नकदयों से तो है भारत दे श की शान।
पानी के नलये हम कर रहे है त्राकह-त्राकह,
कल के नलये हम क्यों खोद रहे है आज ही खाई।
कहना है नसर्म इतनी सी बात
कर लें तू भी ,,पानी की एक बूूँद की इज़्ज़त
वरना रोना पडे गा तुझे और हो जाएगी पानी की ककल्लत।।

आज मन कुछ उद स हैं

घबराहट,बेचन
ै ी और डर का तूफान हैं ,
मन हताश हैं !.........अनहोनी का ख्याल है ,
कुछ ना हो उसका भी पवश्वास हैं ।
ना जाने क्यू? आज मन कुछ उदास हैं ,
जाने क्या चीज़ खो गई मेरी?
सब तो हैं , मेरे पास,
कफर भी, ककस चीज़ की तालाश हैं ?
आज मन कुछ उदास हैं ,
नींद हैं , आूँखो में ....मगर सोने का मन नहीं
उदास तो बहुत हूूँ ...लेककन रोने का मन नही ,
आसूूँओं का तालाब हैं , लेककन
लबों पर एक झूठी मुस्कान है ,
खामोशी से बैठी तो हूूँ
कफर भी, परे शान हैं ।
आज मन कुछ उदास हैं ।

6
लोग तो बहुत हैं ..................
भीड में भी तन्हाई का अहसास हैं ,
ककसी का साथ छूट रहा,और ककसी को पाने की प्यास हैं
हाूँ!! आज मन कुछ उदास हैं ।
कदल में अजब हलचल,
सुन्न सारा आकाश है ।
कदल और कदमाग के बीच,
जज़्बात बेकहसाब हैं ।
क्या करूँ ? आज मन कुछ उदास है ।
बंकदशे बढ़ते जा रही मेरी,
कदलों में हज़ारो सवाल हैं ,
ककसे बोलूं? क्या बोलूं?
ना होश हैं ना हवाश हैं ,
जाना तो ..है ही मुझे,
अफसोस नसफम इतना की,
पाया ना कोई जवाब हैं ।
हां .............आज मन कुछ उदास हैं ।।

र् ांदगी

रख उत्साह जज़ंदगी में आगे बढ़ों ।


र्ासले इतने न अब पैदा करो।
जजन्दगी तो है ,हकीकत पर कटकी,
मत इसे जज्बात में रौंदा करो।
चाूँद-तारों से भरी इस रात में,
उल्लुओं सी सोच मत रक्खा करो।
बुलबुलों से जज़न्दगी की सीख लो,
राग अंनधयारों का मत छे डा करो।
उलझनों का नाम ही हैं जज़न्दगी,
हारकर, थककर न यूूँ बैठा करो।
छोड नशकवे-नगलों की बात को,
कभी गले लग जाआ करो।
खूबसूरत कदल सजा हर जजस्म में,
"रूप" पर इतना न मत इतराया करो।

7
पूछती है किम कक क्य लिखूां?

पूछती है कलम कक क्या नलखूं?


जीत नलखूं या हार नलखूं
अपनी नाराज़गी नलखूं या सारा प्यार नलखू।ं
पल में बीते साल ,या सकदयों लम्बी रात नलखूं
पतझड सावन बरसात नलखूं या ओस की बूूँद की बात नलखू।ं
संग तेरे गुजारे वो खुशनुमा पल नलखूं ,
या तुम्हारे इन्तज़ार की वो घडीयाूँ नलखूं
मुस्कुराता-हूँ सता वो सुहाना सफर नलखूं ,
या यादों में गुजारे हर एक पल नलखू।ं
पूछती है कलम कक क्या नलखूं?
तुम पास नहीं उसकी बैचनी नलखूं या दरू ी का अह्सास नलखू।ं
अपना इज़हार नलखूं या तेरा इन्कार नलखू,ं
जुदाई की वो पीडा या नमलन की वो खुनशयाूँ तमाम नलखू।ं
पूछती है मेरी कलम मुझसे कक क्या नलखू।ं ।

"िकृ लत"

क्यूूँ ना आज प्रकृ नत को याद करें ?


दे ती हैं , इतनी सीख और पवचार क्यूूँ ना उसे.. धन्यवाद् करें ?
चलो ...आज एक नयी प्राथमना करें , त्याग, धैय,म अनुशासन और समपणम से
........... अपने संस्कारों को सीचते चले,
लोभ,मोह ,स्वाथम और क्रोध को छोडते.....
चलो हम प्रकृ नत से कुछ सीखते चले.......
कहती है ये!!
पेडों से सीख, उचाईयों को छूना.....
कनलयों से मुस्कुरा कर जीना।
सीख तू पत्तों से झूमते रहना ,
काूँटे नसखाती हर मुसीबत से उबरना।
टहननयाूँ ही हैं ,...जो बताती दस
ू रों को सहारा दे ना......
प्रकृ नत की सुन्दरता दे ख,
हैं ये जीवन का आधार,

8
हे मानव! पवनती है ये तुझसे;
ना कर दस्
ु कमम, ना बढ़ा पाप,
और ही ना कर जखलवाड।।

कियुग है स हब,ये कियुग

कलयुग है साहब,ये कलयुग,


यहाूँ जान से प्यारी आन है ,
और सच्ची मुस्कान से जयेदा झूठी शान है ।
कलयुग है साहब, ये कलयुग ,
यहाूँ झूठ की कीमत और सच का तमाशा है ;
जजसका कोई मोल नहीं,बस कदखावा है ।
कलयुग है साहब, ये कलयुग ,
बडे ही अजीब कायेदे है ,इनके ,
यहां भूख से जयेदा धमम पर बहस होती है ,
यहां ररश्तों से जयेदा अहम ् की जरूरत होती है ।
कलयुग है साहब ये कलयुग;

र् न्दगी

तेरे नगरने में तेरी हार नहीं ,


तू इन्सान हैं ,,कोई अवतार नहीं ......
नगर, उठ, चल, दौड कफर भाग
क्युंकक
जज़न्दगी संनछप्त हैं ,
इसका कोई सार नही................

जन्मकदन

तुम्हारे जन्मकदन पर यही तमन्ना है हमारी,


दख
ु ों का न हो ननशां जज़ंदगी में तुम्हारी।
चाह रहा है आज मेरा मन
"प्रेरणा" तुम्हें उपहार मैं कुछ दूँ ,ू
कोई बहुमूल्य वस्तु नहीं
अनमट असनमनत प्यार तम्हें दूँ ।ू ।

9
हो पूरी कदल की ख्वाकहश तुम्हारी,
और नमले खुनशयों का जहां तुमको
जब अगर तुम मांगो तारा;
तो भगवान दे दे आसमान सारा
रहें ना कभी कोई कदखाव,
सदा रहे परवाह और लगाव....
'नमत्रता' प्यारा सा भाव रहे
सदा इसमें अहम का अभाव रहे ....
यही है हृदय से दआ
ु यें
'नमत्र कदवस' की हाकदम क शुभकामनाएं

"कोरोन "-मह म री

आयी ये बीमारी अजीब हैं ,


न पास आने दे ता है
न दरु जाने दे ता है
घर में रहने को कहता है
दरू ी बनायें रखने को कहता है
नाम अपना "कोरोना" बतलाता हैं ।
कोरोना ने मचाई तबाही हैं ,
कर रही दनु नया त्राकह -त्राकह ,
र्ैली है वैजश्वक महामारी
साफ-सफाई जजम्मेदारी हमारी हैं ।
डरना नहीं, हराना है
कोरोना को दरु भागना है ,
नमस्ते है संस्कृ नत हमारी
कह रही ये दनु नय सारी।
आयी ये बीमारी गज़ब है ,
सीखा कदया इसने समझदारी बहुत हैं
कोरोना ज़हर है पर कुछ नसखा रहा है
कौन जरूरी क्या गैर जरूरी बता रहा है ।
कोरोना को दरू भगाना है
बाहर जाना,नहीं समझदारी
सोशल कडस्टें नसंग,जजम्मेदारी हमारी है ,
डाक्टर नसों का करो सम्मान

10
यही बचाते मरीजों की जान ।
आया बीमारी ये तो अहसास हुआ पवश्व को,
मोह ,माया,पैसा और झूठी शान,
नहीं बचा सकती ककसी भी इन्सान की जान।।

दप्रु वध

अजीब दपु वधा आ पडी है ,


दो राहें पर हूं खडी
कौन-सी राह में जाऊूँ मैं
इसी सोच में हूूँ पडी।
ककस ओर पावूँ बाढाउं मैं
एक तरफ हैं कंकर-काूँटे,
एक तरफ फुलवारी हैं !!
एक तरफ हैं ग़म के बादल,
एक तरफ खुशहाली हैं !!
खुद को क्या अब समझाऊूँ मैं,
राह कौन- सी अपनाउं मैं।
एक तरफ ये झूठी दनु नया,
एक तरफ सच्चाई हैं !!
एक तरफ है उगता सूरज
एक तरफ परछाई हैं !!
अजीब दपु वधा आ पडी है ,
राह कौन -सी जाऊं मैं
कहीं खों न जाऊूँ इस जाल में
कैसे मंजज़ल पाऊूँ मैं।।

"अन्तमिन"

चुप रहकर जो खुद को ननहारा मैनें,


अपने ही भीतर सबको पा नलया मैनें।
ढू ूँ ढती कफर रही थी जजसे मैं दर-बदर,
अह्सास से ही उसको तराश नलया मैनें।।

11
स्वतांत्रत कदवस

15 अगस्त
आओ यह संकल्प करें ......
15 अगस्त मद है ,जीवन है ,आनन्द है ...
अनुभूनत है स्वछं दता की,
त्याग है बनलदानों की,
समपमण है सामर्थयम की।
कदवस है यह आत्ममंथन की,
क्या खोया क्या पाया की,
सोच है नवननमामण की ,
सृजन और सजमना की।।
यह भूनम तप त्याग मानवता की,
कदवस यह शपक्त की ,
भारत माूँ की भपक्त की।।।
आओ यह संकल्प करें
भपक्त शपक्त का अम्बर तक संचार करें ...
अकहं सा परमोधममः ,वसुधैव कुटु म्बकम से भारत माता का श्ृग
ं ार करें .....
आओ यह संकल्प करें ।।।

क्षम

मांग लो क्षमा,
गुज़रते वक़्त को आज तुम थाम लो,
माूँगकर क्षमा तुम,अपनों को पहचान लो,
मन वचन काया से,या अनभमान में फुलकर
हमने दख
ु ाया कभी,कदल आपका यकद भूलकर।
ककये अपराध हो,गत वर्म में जो कुछ कभी
अपनी सरलता से करना क्षमा कृ पा आप सभी।

म ाँ श रदे तुमको नमन

अपपमत है भावों का सुमन


ज्ञान का आलोक तुझसे
बुपि का उत्थान हैं .......

12
हे जगजननी! हे करणानननध!
जो शरन में तेरी आया,
पा गया उपकार हैं .....
पीर हरती तू जगत के,
तू ही शपक्त, तू ही महान हैं ........
मन सदा ननममल रहे ,
कृ पा तेरी हर पल रहें
दीन-दजु खयों का कल्याण हो,
सदा मन में तृष्णा की श्िा जगे .........
ज्ञान का अनभमान न हो,
साधना का दान दे
रहे जगजीवन सादा हमेशा,
ना कभी कोई लोभ रहें .......
हम अज्ञानी और अल्पबुपि हैं ,
हमारी प्राथमना स्वीकार करो
नचंता सारी हर लो दख
ु का ननवारण करो!
पवश्व का कल्याण करो

"मैं न री हूाँ"

मैं एक बेटी हूूँ,एक पत्नी और मैं ही एक बहू हूूँ।


हाूँ! मैं नारी हूूँ ,
दं ढ
ू ोगे जैसा मुझे , पाओगे वही सुरत,
मैं ही एक रचना हूूँ और मैं ही ममता की मूरत।
मैं एक शपक्त , एक त्यागी और हूूँ मैं ही तुम्हारी जननी!
चाकहये कुछ नही बदलें मैं मुझे, नसफम दे दो इज़्ज़त और सम्मान।
और दो बोल प्यार के बस इतनी!
मैं नारी हूूँ
गौरव हूूँ,आशा हूूँ
गररमा हूूँ ककसी की नश्ंगार हूूँ
ककसी की लज्जा हूूँ।
परं तु मैं अबला नहीं,
ना ही मैं हूूँ लाचारी।
मैं नारी हूूँ, स्त्री हूूँ
मैं एक जन्मदाता हूूँ,कमम की पवधाता हूूँ

13
लोक जनमा मेरे कोख से,
कफर भी मैं उसी कोख में मारी हूूँ।
हाूँ! मैं नारी हूूँ।
मैं ही शृजस्ट ,मैं ही संहार
मैं ही जीवनदाता मैं ही प्रनाहार।
मैं कोई चीज़ या वस्तु नही
ना ही मोल-भाव की दक
ु ान
हूूँ मैं नारी ।ना करो तुम मेरा नाम बदनाम।
ना करो अलोचना, ना करो तृस्सकार
इसके बदले पाओगे नसफम दआ
ु और आभार।
मैं नारी हूूँ,
दग
ु ाम , सरस्वती और काली का अवतार;
ना ककसी से हारी थी, ना मान सकती हार।
युग-युग से नारी तेरी ही कृ पा और बस तेरी ही जय-जयकार।
हाूँ! मैं नारी हूूँ।

भ रत प्य र जग से न्य र

ऊूँचा रहे नतरं गा हमारा।।


राम भव्व मजन्दर का सपना,हो गया साकार,
वर्ो की तपस्या के बाद नमला यह अनुपम उपहार।।
नमला हर कहन्द ू को उसका अनधकार,
सालों से चलते संघर्म को आज नमला उसका पररणाम।।
अब होगी जय-जयकार
हुई जीत प्रभु श्ीराम की, बनी सबसे बडी सरकार ।
अब पधारूँ ग
् े अयोध्यापनत श्ीराम ।।

लशक्षक

जज़ंदगी के हर अूँधेरे में,


रौशनी कदखाते हैं आप
ऐसे गुर वर को शत शत नमन
कडी धूप में जो दे वृक्ष सी छाया
ऐसी हैं इनके ज्ञान की माया

14
चरणों में उनके जीवन अपमण
ना रखता वो कोई ख्वाइश बडी
बस नशष्य की सफलता ही हैं खुनशयों की लडी।
कडी धूप में जो दे वृक्ष सी छाया
ऐसी हैं इनके ज्ञान की माया।।

िेम प लिक

नाजुक धागा प्रेम का, नाजुक मन से थाम


भला भला ही सोचना, भला नमले पररणाम।
थक कर सूरज जब ढलता है
तेरा प्यार भी रं ग बदलता है
सुख -दःु ख जीवन में आता है
उगता है और ढल जाता है
ना रकना कभी थक हार के तू
उग रोज़ नए अवतार में तू
एक कदन ऐसा भी आएगा
जब तू मंजजल पा जायेगा
हूूँ साथ सदा पवश्वाश तू कर
ओ प्रेम पनथक तू आगे बढ़ ……….
जब ननशा पहर आ जाता है
नीले गगन में चाूँद मुस्काता है
तब प्यार तेरा आगोश में ले
कदन भर की थकन नमटाता है
चलता हूूँ तेरे संग सांसो में
बहता हूूँ लहू संग नस -नस में
बरसुंगा सदा अमृत बन कर
ओ प्रेम-पनथक तू आगे बढ़।
दःु ख का पतझड सुख का बसंत ,
कष्टों की गमम बयार बहे |
पर तेरे प्यार की खुशबू से,
इस मन में सदा मधुमास रहे ।
तेरे प्यार की खुशबू से,
इस मन में सदा मधुमास रहे

15
................
इतनी मोहक अनभव्यपक्त से, मधुमास राग बन जाएगा
हो कोई भी मौसम लेककन,ये काव्य प्रेमऋतु लायेगा.
इस दृग की सीमाओं में पप्रये,बस तेरा ही एहसास रहे
तेरे जीवन की बनगया में,जीवन भर पप्रय मधुमास रहे |
तेरे जीवन की बनगया में,जीवन भर पप्रय मधुमास रहे |

अजनबी कौन हो तुम?

अजनबी कौन हो तुम?


कोई सवाल हो? या मेरे सारे सवालों का जवाब हो तुम,
कदल में तुम कदमाग में तुम,
अनदे खा,अनचाहा ख्वाब हो तुम,
या पूरे होते अरमान हो तुम,,
जवाब दो कौन हो तुम?
राग हो तुम, आवाज़ हो तुम,
हो कफर भी अंजान हो तुम,
छुपे हैं जाने ककतने राज़ तुम्हारे चेहरे मेँ
लगता हैं जैसे कोई नकाब हो तुम
कभी लगता हैं रौशनी का
जलता हुआ माहताब हो तुम,

जवाब तो दो.......कौन हो तुम?


कभी लगता हैं , मैं जो नलख रही हूूँ
उसके अल्फाज़ हो तुम।
चेहरे से हम तुम अंजान हैं ,
कफर भी ना जाने कैसे?
रूह की रूह से पहचान हैं ,
बढ़ा रहे बेचनै नयाूँ मेरी ,
कुछ तो समझाओ
क्या बात हैं ?
है रान कर रही खामोनशयां तेरी,
ना जाने ,ककस जवाब का इं तजार हैं !
क्यूूँ मौन हो तुम??
जवाब दो कौन हो तुम

16
हर ओर महकत स वन

झूम -झूम तरवर सब डोले,


चहक-चहक पंनछ सब बोलें;
कानों में सुन्दर रस घोले
काली जब कोयनलयाूँ बोलें।
पबजली सुना रही हैं गीत,
बादल का सुन्दर संगीत;
यादों से सजा ये मनभावन हैं .......
हर ओर महकता सावन हैं ।
कजरी गाते सब नर-'नारी
तीज की धूम मची जब भारी
घर-घर मेँ खुशहाली छाई
खुनशयाूँ जो रौनक लाई।
तीज व्रत जो पावन हैं
हर ओर महकता सावन हैं ।
भाई-बहन की प्रीत आपार,
जब-जब आये ये त्यौहार,
ये पपवत्र रे शमी डोर
कभी ना हो ये कमजोर,
रक्षा-बंधन का सावन हैं ,,
हर ओर महकता सावन है ।।

कदि

कदल की बात को कदल में रहने दो


वक़्त है ये ना ठहरे गा इसे गुज़रने दो
खामोशी से कर लो बातें मुझसे कुछ आज,
पबन बोले भी सुन लो इस कदल की आवाज़।
कदल है मेरा उडता पंछी इस उडने दो
कदल की बात को कदल में रहने दो
तुम आते हो फूल जखलकर मुस्काते हैं
दे खो ककतनी हसीन ये मुलाकातें हैं ,
बार बार ना नमल कर भी मुझसे नमला करो,
मेरे नलये ये चाहत बढ़ने दो खुद से खुद को जुडने दो।

17
कदल की बात को कदल में रहने दो।

किम

कलम शपक्त की मत कम आूँको, तख्त पलट ये दे ती है ,


क्रांनत-ज्वाल इसकी समाज को, अपने में भर लेती हैं ,
मात्र जखलौना कलम न समझें, स्याही को नछटकाने का,
नलखी इबारत इसकी मन में, नाव भाव की खेती है ।

कहन्दी

कहं दी को पुनः समृि बनाना,हम सब की जजम्मेदारी है ,


कहं दी है पहचान कहन्द की,इसमें ही शान हमारी है ।
कहन्दी के प्रनत हम सबको, जगाना होगा स्वानभमान।
ताकक पूरे पवश्व में बन सके, हमारी भार्ा की पहचान।

रक्षाबंधन जजसका अगर हम शाजब्दक अथम दे खें तो रक्षा का अथम है सुरक्षा ता उत्सव के रूप
में इस कदन मनाई जाती व बंधन है ररश्ता ननभाने का संकल्प. अपने भाई या बहन के प्रनत
प्रेम और उसका खयाल रखना ही इस त्यौहार का आधार है . यह पूरे पररवार को एक साथ
जोडता है ।।

रक्ष बांधन

आया राखी का त्योहार


लेकर भाई बहन का प्यार ।।
लेकर भाई बहन का प्यार
लाया खुनशयाूँ साथ हजार ।।
आया खुनशयों का त्यौहार,
मौसम भी मदमस्त हुआ है ,
रोना-धोना पस्त हुआ है ,
संग-साथ लाया है अपने
सावन की मधुररमा बहार!
भाई-बहन का प्यार अनूठा,
अमर सदा जो कभी न टू टा,

18
ररश्ते कई है दनु नया में,
ये ररश्ता कभी ना छूटा।।
हो खटास ककतनी भी मन में
सब नमट जाए बस कुछ क्षण में,
तोड के सारी दःु ख की गाूँठें,
जोडे मन से मन के तार।
राखी न धागा न कतरन,
सच्चे प्यार का सच्चा बंधन,
माथे पर चमके चावल रोली और चंदन।
ररश्तों में न करना
ररश्तों का व्यापार
रह जाएगा ये अधूरा
भाई-बहन का प्यार।।

झरन

झर-झर बहता झरना प्रीत का


पजल्लवत मन का द्वार
नससकी पप्रत का कदल के पार।
मधुर लय में बहता
प्रीत के ककस्से गुनगुनाता
बरसी स्नेह की बदरी
हुआ प्रीत में पवभोर
पजल्ल्वत तन मन के तार।।

र सुनो

बेहतर से बेहतर की तलाश करो,


नमल जाए नदी तो समंदर की तलाश करो,
टू ट जाते हैं शीशे पत्थरों की चोट से,
तोड से पत्थर ऐसे शीशे की तलाश करो।

बचपन

न कसमें और न ही कोई वादा,


न ही ज्यादा पाने का है इरादा

19
कहां गई बचपन की नादाननयाूँ,
भाई से लडना,करना शैताननयाूँ

कदल ढू ं ढता कफर वही बचपना,


जीवंत हो जाए कफर से सपना

वही आंगन और मां का आंचल,


गोदी में सुला के लगाती काजल

पापा की डांट, बहनों से दं गल,


कभी रोना तो कभी गाना मंगल

छुपते छुपाते घर से जाना ननकल,


खट्टे नमट्ठे बेर खाने जाना जंगल

बाररश की बूूँदों में है भीग जाना


कागज की वो कजश्तयां चलाना

कदल ढू ं ढता हैं वो बचपन के पल,


था ननष्ठु र सा चंचल हसीं बचपन

अकेले में याद आए, उदास मन,


वो धुध
ं ला सा अपना लडकपन

स्कूलों में नशक्षकों की वो सख्ती,


वो खेलकूद और दोस्तों से मस्ती

पढाई नलखाई तो थी लगती सजा,


गुड्डे - गुड्डी का खेल दे ता था मज़ा

जजन ककरदारों के थे अक्सर जानी


याद आ जाती है दादी और नानी
कहां गई वो रात और वो सपना,
कदल ढू ं ढता हैं कफर वही बचपना

20
बेटी की व्यि

केवल कुछ पलों की भूख को नमटानें,


जीवन से मेरे दष्ट
ु जखलवाड कर गया।
एक दष्ु कमी मेरे तन को ही नहीं,
मन को भी लहुलूहान कर गया।।
मैं बाबुल के बगीया की नचकडया,
इस डाली से उड उस डाली पर जाऊं।
मधुर कलरव सदा करके मैं,सारे जग को सदा हर्ामऊं।।
उस पापी को मेरा चहकना अखर गया।।
वो पातकी मेरे तन को ही नहीं,मन को भी रक्तरं जजत कर गया।।
मैं बेटी बकहन और मां का फजम ननभाती हूं,
जग जननी मातृशपक्त अपना कजम चुकाती हूं।।
मेरे सुनहरे सपनों को एक नराधम तोड गया।
एक बहे नलया मेरे पंख मरोड गया।
एक दष्ु कमी मेरे तन को ही नहीं,मन को भी लहुलूहान कर गया।
कोमल बदन पर कठोर स्पशम सहा,
दया कर तेरी बहन समान हूं यह भी कहा।
रोई नगडनगडाई पांव पकड कर दी दहु ाई,
सावन भादो के सरीता की तरह नैनों से नीर भी बहा।।
पर मेरा पवलाप कुछ असर ना कर पाया,
नर पपशाच मेरे प्राणों को ननचोड गया,हं सती जखलजखलाती गुडीया को लाश बना गया।
एक दष्ु कमी मेरे तन को ही नहीं मेरे मन को भी ननष्प्राण कर गया।

जय श्री कृ ष्ि

राधे -कृ ष्ण की जय-जयकार,


पबन कृ ष्ण राधे का हाल बेहाल।
कानन-कानन भटक रही हैं ,
तेरे दशमन को तरस गयी है ।
गौए चराने आ जाना,
हूं कदवानी तेरी मोहन
एक झलक अपनी कदखा जाना।
राधे के तो हाल बुरे हैं ,
आूँखो के आसूूँ सुख गये है ।

21
बेबस सी इस राधा को,
तुम धीर बांधने आ जाना।
एक आस तुम से है मोहन,
तुम रास रचाने आ जाना।
हूं कदवानी तेरी मोहन
दशमन अपनी दे जाना।
कृ ष्ण की प्रेम बसुररयाूँ सुन भई कदवानी
जब-जब कन्हा मुरली बजाये दौडे आये
राधा-रानी ।।

लमत्र,लमत्रत

सच्चा नमत्र!
जजसे कहते हम 'नमत्रता' है अनमोल रत्न
नही तोल सकता जजसे कोई धन।
ऐसी होती है नमत्रता! मैं ये नही कहती की रक्त सम्बन्धी से या ककसी भी और सम्बन्धी से
ऐसी अंतरं गता नही हो सकती, ककन्तु ऐसे गहरे और आत्मीय ररश्तेदारों को भी तो हम
‘नमत्रवत’ ही कहते हैं , अक्सर सुना होगा कहते हुए, है तो मेरा फलां ररश्तेदार लेककन हम दोनों
में बहुत गहरी दोस्ती है .
नमत्र के नलये कुबामन होता है जीवन सारा
हर मुजश्कल में बनता हैं वो सहारा।
सच्ची नमत्रता जजसके पास है ;
उसके पास दौलत की भरमार है ;
नही जीत न ही कोई हार है ,
नमत्र के कदल में तो बस प्यार ही प्यार।।

मेरी कप्रवत

बहुत कदनों बाद मन में आया,


मैंनें सोचा की एक कपवता नलखु।ं
अगले ही क्षण मन नें प्रश्न उठाया,
की ककसके बारे में मैं क्या नलखु।ं ।

22
िकृ लत

पंछी की परवाज़ नलखुं,मन की मैं आवाज नलखु।ं


सुन्दरता पर नाज नलखुं,मन वीणा का साज नलखुं।।
तेरा मैं अंदाज नलखुं,वाणी का आगाज नलखु।ं
आप हो सरताज नलखु,ं मेरी भावना आज नलखु।ं ।

मल्लाह या कहार नलखुं,नाव की पतवार नलखु।ं


गंगा का पवहार नलखुं,नतथम का ननहार नलखु।ं ।
ननममल जल की धार नलखु,ं नदीया का कीनार नलखु।ं
तीथामटन का सार नलखुं,आर या मैं पार नलखु।ं ।

शीतल सी बयार नलखु,ं मौसम बसंत बहार नलखु।ं


पावस की फुहार नलखुं,बुन्दों की बौछार नलखु।ं ।
सारं ग की भरमार नलखुं,ननममल जल की धार नलखुं।
पपीहे की पूकार नलखुं,इन्दर की हूंकार नलखु।ं ।
अवनी का श्ृगार नलखुं,फूलों की बहार नलखु।ं
हररनतमा का सार नलखुं,नमट्टी का खुमार नलखु।ं ।
मौसम पूरे चार नलखुं,या पाले की मार नलखु।ं
कृ र्क का पररवार नलखुं,अन्न की पैदावार नलखु।ं ।
ममतामयी का प्यार नलखु,ं बाबुल का दल
ु ार नलखु।ं
राखी का त्योंहार नलखुं,मायके का आभार नलखु।ं ।
पप्रयतम का प्यार नलखुं,सुन्दर सा पररवार नलखु।ं
जीवन सार नलखुं,जीवन का आधार नलखु।ं ।

हो गयी मैं ,बन-ठन तैय र

चली मनाने पपयाजी का त्यौहार,


हाथों में मेहंदी रचाकर
रखुग
ूँ ी उनके हाथों में हाथ.....
करूँ गी सोलह श्ृग
ं ार
इतराउं गी साजन के साथ.........
हैं ,ये पूजन गौरी -शंकर की
सजाऊ अपने मजन्दर,घर-द्वार.......
हो गयी मैं बन-ठन तैयार

23
चली मनाने पपयाजी का त्यौहार,
ननजमल-ननराहार रह माूँगुगी
उनका स्वस्र्थय और सुख-आपर,
मधुर रहें ये ररश्ता हमारा नमलें सदा पवश्वास और प्यार,
मन मेरा नाचे झूम-झूम होके बेशुमार,
सजखयों संग मनाऊं मैं
ये पावन तीज का त्यौहार,
हो गयी मैं बन-ठन तैयार
चली मनाने पपयाजी का त्यौहार ।।

मेरी अलभि ष

परकहत परायण काज करूं,


चुनौनतयों से कभी ना डरूं।
भूल कर भी ना क्रोध करूं,
मन में हमेशां मैं धैयम धरूं।।
मेरी सदा यह हैं अनभलार्ा।
बनुं सहायक मैं सभी की,
रहे ह्रदय में नेह मीठी भार्ा।
मानव मात्र का हो कल्याण,
मन में रखुं सदा यह आशा।।
मेरी सदा यह हैं अनभलार्ा।
ना मैं सोचुं ना करूं बुरा मैं,
करूं भलाई का काम पूरा मैं।
पूण्य पूरूर्ाथम करूं हमेशां मैं,
ना छोडु ं कभी काम अधुरा मैं।।
मेरी सदा यह हैं अनभलार्ा।
मन वचन और मेरे कमम से,
कष्ट नहीं पहुंचे मेरे धमम से।
झुके कभी ना शीश शमम से,
सीखुं हमेशा मैं ननज ममम से।।
मेरी सदा यह हैं अनभलार्ा।
स्नेह लुटाऊं आज अभी से,
पाऊं आशीर् मैं सदा सभी से।
मन में ठाना है मैंनें कभी से,

24
सेवा काज करूं जागुं तभी से।।
मेरी सदा यह हैं अनभलार्ा।
करबि सबके समक्ष रहुं मैं,
ना बोलुं नमर्थय सत्य कहुं मैं।
रहुं भटकता चाहे कदशा चहुं मैं,
परमाथम द:ु ख लाख सहुं मैं।।
मेरी सदा यह हैं अनभलार्ा।
मुस्कान होंठों पर रह पाए,
आंसु ना ककसी के बह जाए।
नाम जगत मैं मेरा रह पाए,
"प्राण ये भले ही जाए।।
मेरी सदा यह हैं अनभलार्ा।

न कसमें न ही कोई व द ,

ना ही ज्यादा पाने का इरादा।


कहां गई वो बचपन की नादानी,
भाई से लडना करना शैतानी।।
कदल ढू ं ढता कफर वही बचपना,
कफर से बच्चे बनें हैं ये सपना।
वही आंगन और मां का आंचल,
गोदी में सुला लगाती काजल।।
पापा की डांट बहनों से दं गल,
कभी रोना कभी गाना मंगल।
छुपते छुपाते घर से ननकल,
खट्टे बेर खाने को जाना जंगल।।
बारीश में भीग भीग कर भी,
कागज की वो कजश्तयां बनाना।
जब डांट की बारी आते ही,
दस
ू रे के कहस्से की डांट खाना।।
कदल ढू ं ढता हैं वही बचपन के पल,
था ननष्ठु र चंचल अपना बचपन।
अकेले में याद बहुत आता हैं ,
वो धुध
ं ला सा अपना लडकपन।।
स्कूलों में नशक्षक की सख्ती,

25
वो खेलकूद और दोस्तों से मस्ती।
सोचना पढ़ाई ही तो है सजा,
वो खेलना गुड्डे से दे ता था मज़ा।।
आंखों में मासुनमयत की झलक,
वो कुछ नया जाननें की ललक।
नशकायत करने की वो आदत,
सुनने की क्षमता ना एक पलक।।
ना ही रहे वो अब सब ककस्से,
ना ही रही वो बचपन की कहानी।
जजनके ककरदारों में अक्सर ही,
याद आ जाती है दादी व नानी।।
लडाई झगडे में समझना माकहर,
नहीं है कोई भी सानी अपना।
कहां गई वो रात और वो सपना,
कदल ढू ं ढता हैं कफर वही बचपना।।

िम्हें

वो लम्हें जो मेरी जज़ंदगी के अनमोल पल बन गये,


वो लम्हें जो मेरे गुज़रे हुये कल बन गये,
काश इन लम्हों को मैं कफर से जी पाती,
वो लम्हें जो मेरी नम आूँखो के जल बन गये।

इस सर्र की शुरआत हमने साथ की थी,


जान से प्यारे यारों के साथ ककतनी सारी बात की थी,
जज़ंदगी के उन पलों को भी हमने साथ जजया था,
जजन पलों ने खुशी और गम दोनो से मुलाकात की थी.
वो लम्हें जो अब लौट के नहीं आ सकते,
वो लम्हें जहाूँ हम चाह के भी नहीं जा सकते.

क िी घट और िेलमक

तू हैं मुझसे दरु ना लागे मेरा जजया,


तेरे पबन अधूरा हूूँ आ जाओ मेरे पप्रय।
चाूँद पर काली घटा छाती तो होगी,

26
नसतारों को मुस्कराहट आती तो होगी।
तुम लाख नछपाओ दनु नया से मगर,
अकेले में तुम्हें हमारी याद आती तो होगी
मेरी पप्रय,
क्यूं न हम तुम
नमल के भीग जाएूँ
प्यार की इस बरसात में धुल जाएं
आये ककतनी भी आंनधयां राह में,
मगर ऐसे जकडो की हम एक दज
ू े में खो जाएूँ।

अपन पन

सहानुभूनत वो नहीं जो ककसी को,


बेचारा समझ कर दी जाती है ।
ये है एक अनोखी आदत जो ,
तुम्हे भीड में अलग कदखाती है ।।
ककसी को अपना समझ कर,
कदल से उसे सहर्म दी जाती हैं ।
यह तो दे ने वाले की बस ,
भलमनसाहत कहलाती हैं ।।
समझते हो जो ककसी का ददम ,
तो उसका साथ ना छोडना।
बंधन बांधना ऐसे की कफर,
अपने व्यवहार से ना तोडना।
रूठे को भी मनाकर तुम,
बस प्यार का बंधन जोडना।
दस
ू रो के खानतर तुम अपनों से ,
कभी भी मुूँह ना मोडना।।

इां तज र

प्रतीक्षा सी रहती है ,
इक अनकहा सा इं तजार होता है , हालातों में जहाूँ।
सब कुछ मुजश्कल, अननजित और दश्व
ु ार होता है ।।
जीवन जब अनमना सा, केवल जीने का व्यापार होता है ।

27
कल्पनाओं में मन की ,कहीं कोई चमत्कार होता है ।।
कभी सोचते हैं हम कहीं से, आकर कोई हमदम कर दे गा सबकुछ ,
पबल्कुल ठीक और उत्तम,प्राथमनाओं और दआ
ु ओं में, यही इज़हार होता है ।
मनचाही खुनशयाूँ पाने को, कदल सबका बेकरार होता है ।
हर मन की परतों में कहीं दबा,यही इं तज़ार होता है ।।
कक दआ
ु एं कब असर लाती हैं ,और मन्नतों का ननसार होता है ,
सुख में-दख
ु में हर कहीं,कुछ प्रतीक्षा सी रहती है
इक अनकहा सा इं तजार होता है ...!

उम्मीद हाँू मैं,हर क म क कहस्स हाँू


मंजज़ल तक पहुूँचाने का ककस्सा हूूँ मैं,
जीने का एक जररया हूूँ मैं, गम के दररया से पार
करने का एक नजररया हूं मैं।
उम्मीद हूूँ मैं,
एक ककरण हूूँ,
एक आस हूूँ,एक अनुमान और एक पवश्वास हूूँ।
उम्मीद हूूँ मैं,
कभी धूप तो कभी छाूँव हूूँ मैं,
कभी मरहम तो कभी घाव हूूँ मैं।
हाूँ! उम्मीद हूूँ मैं,
जजन्दगी मैं कुछ करने की चाहत हूूँ मैं,
ककसी के काम आने की हसरत हूं मैं,
आत्मपवश्वास की पहचान हूूँ मैं,
ना टू टे जो हौसला कभी,
वो ढाल हूूँ मैं।
हाूँ! उम्मीद हूूँ मैं,
गगन से ऊूँची उडान हूं मैं,मंजज़ल का पता हूूँ;
महज़ तारा ना समझो मुझे; तपता सूरज हूं मैं।
हाूँ!! उम्मीद हूूँ मैं,
कहनी है ,! नसफम इतनी सी बात गर उम्मीदों का दामन थम रहे तो;
छोडना ना कभी इसका हाथ,
छोड दे गी ये दनु नया तुझे;
लेककन,कभी ना छोडें गी उम्मीद तेरा साथ।

हाूँ ! उम्मीद है ये।।

28
म त -प्रपत

माता-पपता सा संसार में कोई नहीं हैं


मेरे हसीं में छुपी उनकी हसीं हैं ,
नसर्म कहने को वो मेरे जन्मदाता
लेककन उन्होनें ही तकदीर मेरी नलखी हैं ।

मेरे माता -पपता मेरे रक्षक,हैं मेरे भगवान


इनके पबना रहना मुजश्कल, ना ही जीना आसान।
पपता ने दी सुख -सुपवधा,माता ने कदया संस्कार,
जजस घर में न रहें वो घर है बेकार।
हमारा जीवन सावरा उन्होनें ,
हर कठोर पररजस्थनत से लड कर,
हमारा र्जम भी हैं बनता रखें ,
हमेशा उनका हाथ पकड कर।।
भारत प्यारा जग से न्यारा,
ऊूँचा रहे नतरं गा हमारा।।
राम भव्व मजन्दर का सपना,हो गया साकार,
वर्ो की तपस्या के बाद नमला यह अनुपम उपहार।।
नमला हर कहन्द ू को उसका अनधकार,सालों से चलते
संघर्म को आज नमला उसका पररणाम।।
अब होगी जय-जयकार
हुई जीत प्रभु श्ीराम की, बनी सबसे बडी सरकार ।
अब पधारूँ ग
् े अयोध्यापनत श्ीराम ।।
प्रतीक्षा हमेशा रहती है ,
इक अनकहा सा इं तजार होता है ,
हालातो में जहां सब कुछ
अननजित और दश्व
ु ार होता है ।।
मन हो जब अनमना सा
केवल जीने का व्यापार होता है ।
कल्पनाओं में मन की
कभी कहीं कोई चमत्कार होता है ।
सोचते हैं आकर कर दे गा
सब दर
ु स्त ऐसा आभास होता है

29
मनचाही खुनशयाूँ पाने को,
कदल तो सबका बेकरार होता है ।
हर शख्स और हर मन की
परतो में दबा यही इं तज़ार होता है ।।
दआ
ु एं कब असर लाती हैं ,
और मन्नतों का ननसार होता है ,
सुख-दख
ु में होती है आहट
इक अनकहा सा इं तजार होता है ...!
इस पावन धरा पर
नारी रूप में जन्मी हूं
शपक्त प्रेम त्याग ममता
इन्ही सब में ढली हूं
मां की गोद बाबा के कंधे
पर बैठ कर चली हूं
पररवार के सम्मान को
नसर पर उठाये चली हूं
समाजजक व्यवहार में
भाई का आदम श सीखी हूं
मुजश्कल घडी या खुशी में
आदशम की माला पहनी हूं
जीवन संगनी बन कर में
पनत का सम्मान करती हूं
अनभमान पररवार पर है
सब त्याग कर के आयी हूं
मां तो मां दग
ु ाम और सीता
स्वरूप नारी का पायी हूं
शुर से लेकर अन्त तक के
ररश्तोको ननभाती आयी हूं
गवम है सनातन संपदा पर
सभ्यता प्रेम की लायी हूं

उम्मीद हूूँ मैं,हर काम का कहस्सा हूूँ


मंजज़ल तक पहुूँचाने का ककस्सा हूूँ मैं,
जीने का एक जररया हूूँ मैं, गम के दररया से पार

30
करने का एक नजररया हूं मैं।
उम्मीद हूूँ मैं,
एक ककरण हूूँ,
एक आस हूूँ,एक अनुमान और एक पवश्वास हूूँ।
उम्मीद हूूँ मैं,
कभी धूप तो कभी छाूँव हूूँ मैं,
कभी मरहम तो कभी घाव हूूँ मैं।
हाूँ! उम्मीद हूूँ मैं,
जजन्दगी मैं कुछ करने की चाहत हूूँ मैं,
ककसी के काम आने की हसरत हूं मैं,
आत्मपवश्वास की पहचान हूूँ मैं,
ना टू टे जो हौसला कभी,
वो ढाल हूूँ मैं।
हाूँ! उम्मीद हूूँ मैं,
गगन से ऊूँची उडान हूं मैं,मंजज़ल का पता हूूँ;
महज़ तारा ना समझो मुझे; तपता सूरज हूं मैं।
हाूँ!! उम्मीद हूूँ मैं,
कहनी है ,! नसफम इतनी सी बात गर उम्मीदों का दामन थम रहे तो;
छोडना ना कभी इसका हाथ,
छोड दे गी ये दनु नया तुझे;
लेककन,कभी ना छोडें गी उम्मीद तेरा साथ।
हाूँ ! उम्मीद है ये।।

आज.मैं पूरी तरह से आ द होन च हती हुां

आसमान को छूना चाहती हुं


में हर गली में घूमना चाहती हुं
बहुत हुआ घर का काम
अब कुछ पल में आराम चाहती हुं
छत पर बेठ कर घंटो
तारों को नगनना चाहती हुं
बन कर पंछी
आज फुदकना चाहती हुं
बहुत हो गयी डांट
हर वक्त ककसी का साथ

31
इस पपंजरे से में
आज छूटना चाहती हुं
जो कदन रात आज है
कल भी तो यही थे
में और तुम ' हम थे
कही कुछ भी जुदा ना था
हर वक्त हर दम थे
एक डायरी की तरह
तुम्हारी हुआ करती थी
जजदं गी हम दोनो की
रोशन हुआ करती थी
पर अब ना तुम्हारी डायरी है
ना ही में तुम्हारे पास हूं
इस डायरी को
जब छोडा था मेरे पास
इसका हर पन्ना खाली था
पबलकुल मेरी तरह इस डायरी का हर पन्ना मैने
भर कदया नलख नलख कर
आज भी सहे ज कर रखे है
उन लम्हो को जो जजए थे हमने
रोज नलख रही हूं नये पन्नो को
तुम नही हो तो क्या हुआ
जब नही थे मेरे ' तब थे
तुम्हारे एहसास तो रहे गे
भूल जाना मेरी कफतरत नही
सफर है जारी रहे गा ही
पन्ने भरते रहे गे अन्त तक

दीप विी

यह उत्सव जगमग दीपों का,


आओ हम सब दीप जलाएं।
अन्तरतम के अंधकार को,
हम सब नमल कर दरू भगाएं।।
आओ हम सब दीप जलाएं।

32
हर पल जीते अपनों के नलए,
कभी परकहत जी कर कदखलाएं।
हर कदन रौशन करते हैं घर को,
दीप सा रौशन हो कर कदखलाएं।।
आओ सब नमल दीप जलाएं।
भेद-भाव की प्राचीर गीरा कर,
सोहादम भाव से कदम बढ़ाएं।
सेवा संकल्प लेकर ननज मन में,
द्वे र् दनू नयां से हम दरू भगाएं।।
आओ हम सब दीप जलाएं।
अहम वहम मन से नमटा कर,
पवश्वास की लौ आज लगाएं।
ननज स्वाथम को ननत्य ननवारे ,
परमाथम के पथ चल कदखलाएं।।
आओ हम सब दीप जलाएं।
अधमम,अत्याचार को छोड कर,
दया धमम को हम सब अपनाएं।
सत्य सनातन ध्वज लहरा कर,
राम राज कफर धरा पर लाएं।।
आओ हम सब दीप जलाएं।
चारों कदशा से तमस नमटा कर,
अवनी पर हम आलोक फैलाएं।
अपने पराए का भेद भूला कर,
सब को हम अब गले लगाएं।।
आओ हम सब दीप जलाएं।
एक दज
ू े के हम बनें सहायक,
करनें को सहायता हाथ बढ़ाएं।
बने सदा ही हम सुखदायक,
"पप्रया"प्रेम का हम रस बरसाएं।।
आओ नमल कर दीप जलाएं।
यह उत्सव जगमग दीपों का,
आओ हम सब दीप जलाएं।
अन्तरतम के अंधकार को,
हम सब नमल कर दरू भगाएं।।

33
आओ हम सब दीप जलाएं।
आओ हम सब दीप जलाएं।।

मेरी ख्व कहश

तुम जरूरत हो,ख्वाकहश हो,


आदत हो या हो मेरी कमजोरी ।
जो भी हो इस बदले अंदाज का,
राज हो तुम करते हो सीनाजोरी।।
कदल पर दस्तक दे कर भी तुम,
बसे हो मेरे कदल में चोरी चोरी।
आते हो सपनों में तुम मेरे रोज,
जैसे चांद हो तुम मैं हूं चकोरी।।
इस मुस्कान के पपछे नाम हो तुम,
मेरा इं तजार और ख्वाब हो तुम।
हर पल तेरी याद में मैं गुमसुम,
अब छे ड दो प्यारा सा तरन्नुम।।
तुम्हारी बेकरारी को इन सांसों में,
मैं महसूस हमेशा ही करती हूं।
कदल रोता है जान तेरी ही याद में,
सच में मैं तुम पर ही मरती हूं।।
यादें सजा कर तेरी ही कदल में,
अश्कों से आंखें रोज मैं भरती हूं।
कदले ददम का अहसास रोज मैं,
घुट घुट कर सनम करती हूं।।
तुम क्या जानो संगकदल सनम,
मैं तेरे ही दीदार को तरसती हूं।
सपनों में तेरी याद में रातों को,
हरजाई हमेशां मैं ननखरती हूं।।
काश वो पल आए दीदार का,
जब एक झलक नमले यार का।
कहूं अपने कदले की हर बात,
इज़हार करूं मैं अपने प्यार का।।
आहत कदल को राहत नमल जाए,

34
मेरे प्यार का चचाम हो गली गली।
"पप्रया"पप्रय नमलन का मौसम हो,
जखल जाए कदल की कली कली।।

35

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