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प्रियांजलि
प्रियांजलि
द र्जिलिांग,वेस्ट बांग ि
1
अनुक्रमर्िक
अनुक्रमर्िक
मैं एक न री।
बेटी की पूक र
म ाँ
एक बूाँद प नी
आज मन कुछ उद स हैं
र् ांदगी
पूछती है किम कक क्य लिखू?ां
िकृ लत
कियुग है स हब,ये कियुग
र् न्दगी
जन्मकदन
"कोरोन "-मह म री
दप्रु वध
"अन्तमिन"
स्वतांत्रत कदवस
क्षम
म ाँ श रदे तुमको नमन
"मैं न री हूाँ"
भ रत प्य र जग से न्य र
लशक्षक
िेम प लिक
अजनबी कौन हो तुम?
हर ओर महकत स वन
कदि
किम
कहन्दी
रक्ष बांधन
झरन
2
र सुनो
बचपन
बेटी की व्यि
जय श्री कृ ष्ि
लमत्र,लमत्रत
मेरी कप्रवत
िकृ लत
हो गयी मैं ,बन-ठन तैय र
मेरी अलभि ष
न कसमें न ही कोई व द ,
िम्हें
क िी घट और िेलमक
अपन पन
इां तज र
उम्मीद हूाँ मैं,हर क म क कहस्स हूाँ
म त -प्रपत
आज.मैं पूरी तरह से आ द होन च हती हुां
दीप विी
मेरी ख्व कहश
3
मैं एक न री
मायके में मेरा प्यारा भय्या ऐसी आस जो द:ु ख में मेरी नैया।
ससुराल में मेरे प्राणपप्रय सैंया जो हैं मेरे जीवन नाव खेवैया।।
बेटी की पूक र
4
मैं बाबुल के बगीया की नचकडया,
इस डाली से उड उस डाली पर जाऊं।
मधुर कलरव सदा करके मैं,सारे जग को सदा हर्ामऊं।।
उस पापी को मेरा चहकना अखर गया।।
वो पातकी मेरे तन को ही नहीं,मन को भी रक्तरं जजत कर गया।।
मैं बेटी बकहन और मां का फजम ननभाती हूं,
जग जननी मातृशपक्त अपना कजम चुकाती हूं।।
मेरे सुनहरे सपनों को एक नराधम तोड गया।
एक बहे नलया मेरे पंख मरोड गया।
एक दष्ु कमी मेरे तन को ही नहीं,मन को भी लहुलूहान कर गया।
कोमल बदन पर कठोर स्पशम सहा,
दया कर तेरी बकहन समान हूं यह भी कहा।
रोई नगडनगडाई पांव पकड कर दी दहु ाई,
सावन भादो के सरीता की तरह नैनों से नीर भी बहा।।
पर मेरा पवलाप कुछ असर ना कर पाया,
नर पपशाच मेरे प्राणों को ननचोड गया,हं सती जखलजखलाती गुडीया को लाश बना गया।
एक दष्ु कमी मेरे तन को ही नहीं मेरे मन को भी ननष्प्राण कर गया।
'म ाँ'
5
माूँ महान हो तुम ,महान हो तुम।
एक बूाँद प नी
आज मन कुछ उद स हैं
घबराहट,बेचन
ै ी और डर का तूफान हैं ,
मन हताश हैं !.........अनहोनी का ख्याल है ,
कुछ ना हो उसका भी पवश्वास हैं ।
ना जाने क्यू? आज मन कुछ उदास हैं ,
जाने क्या चीज़ खो गई मेरी?
सब तो हैं , मेरे पास,
कफर भी, ककस चीज़ की तालाश हैं ?
आज मन कुछ उदास हैं ,
नींद हैं , आूँखो में ....मगर सोने का मन नहीं
उदास तो बहुत हूूँ ...लेककन रोने का मन नही ,
आसूूँओं का तालाब हैं , लेककन
लबों पर एक झूठी मुस्कान है ,
खामोशी से बैठी तो हूूँ
कफर भी, परे शान हैं ।
आज मन कुछ उदास हैं ।
6
लोग तो बहुत हैं ..................
भीड में भी तन्हाई का अहसास हैं ,
ककसी का साथ छूट रहा,और ककसी को पाने की प्यास हैं
हाूँ!! आज मन कुछ उदास हैं ।
कदल में अजब हलचल,
सुन्न सारा आकाश है ।
कदल और कदमाग के बीच,
जज़्बात बेकहसाब हैं ।
क्या करूँ ? आज मन कुछ उदास है ।
बंकदशे बढ़ते जा रही मेरी,
कदलों में हज़ारो सवाल हैं ,
ककसे बोलूं? क्या बोलूं?
ना होश हैं ना हवाश हैं ,
जाना तो ..है ही मुझे,
अफसोस नसफम इतना की,
पाया ना कोई जवाब हैं ।
हां .............आज मन कुछ उदास हैं ।।
र् ांदगी
7
पूछती है किम कक क्य लिखूां?
"िकृ लत"
8
हे मानव! पवनती है ये तुझसे;
ना कर दस्
ु कमम, ना बढ़ा पाप,
और ही ना कर जखलवाड।।
र् न्दगी
जन्मकदन
9
हो पूरी कदल की ख्वाकहश तुम्हारी,
और नमले खुनशयों का जहां तुमको
जब अगर तुम मांगो तारा;
तो भगवान दे दे आसमान सारा
रहें ना कभी कोई कदखाव,
सदा रहे परवाह और लगाव....
'नमत्रता' प्यारा सा भाव रहे
सदा इसमें अहम का अभाव रहे ....
यही है हृदय से दआ
ु यें
'नमत्र कदवस' की हाकदम क शुभकामनाएं
"कोरोन "-मह म री
10
यही बचाते मरीजों की जान ।
आया बीमारी ये तो अहसास हुआ पवश्व को,
मोह ,माया,पैसा और झूठी शान,
नहीं बचा सकती ककसी भी इन्सान की जान।।
दप्रु वध
"अन्तमिन"
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स्वतांत्रत कदवस
15 अगस्त
आओ यह संकल्प करें ......
15 अगस्त मद है ,जीवन है ,आनन्द है ...
अनुभूनत है स्वछं दता की,
त्याग है बनलदानों की,
समपमण है सामर्थयम की।
कदवस है यह आत्ममंथन की,
क्या खोया क्या पाया की,
सोच है नवननमामण की ,
सृजन और सजमना की।।
यह भूनम तप त्याग मानवता की,
कदवस यह शपक्त की ,
भारत माूँ की भपक्त की।।।
आओ यह संकल्प करें
भपक्त शपक्त का अम्बर तक संचार करें ...
अकहं सा परमोधममः ,वसुधैव कुटु म्बकम से भारत माता का श्ृग
ं ार करें .....
आओ यह संकल्प करें ।।।
क्षम
मांग लो क्षमा,
गुज़रते वक़्त को आज तुम थाम लो,
माूँगकर क्षमा तुम,अपनों को पहचान लो,
मन वचन काया से,या अनभमान में फुलकर
हमने दख
ु ाया कभी,कदल आपका यकद भूलकर।
ककये अपराध हो,गत वर्म में जो कुछ कभी
अपनी सरलता से करना क्षमा कृ पा आप सभी।
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हे जगजननी! हे करणानननध!
जो शरन में तेरी आया,
पा गया उपकार हैं .....
पीर हरती तू जगत के,
तू ही शपक्त, तू ही महान हैं ........
मन सदा ननममल रहे ,
कृ पा तेरी हर पल रहें
दीन-दजु खयों का कल्याण हो,
सदा मन में तृष्णा की श्िा जगे .........
ज्ञान का अनभमान न हो,
साधना का दान दे
रहे जगजीवन सादा हमेशा,
ना कभी कोई लोभ रहें .......
हम अज्ञानी और अल्पबुपि हैं ,
हमारी प्राथमना स्वीकार करो
नचंता सारी हर लो दख
ु का ननवारण करो!
पवश्व का कल्याण करो
"मैं न री हूाँ"
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लोक जनमा मेरे कोख से,
कफर भी मैं उसी कोख में मारी हूूँ।
हाूँ! मैं नारी हूूँ।
मैं ही शृजस्ट ,मैं ही संहार
मैं ही जीवनदाता मैं ही प्रनाहार।
मैं कोई चीज़ या वस्तु नही
ना ही मोल-भाव की दक
ु ान
हूूँ मैं नारी ।ना करो तुम मेरा नाम बदनाम।
ना करो अलोचना, ना करो तृस्सकार
इसके बदले पाओगे नसफम दआ
ु और आभार।
मैं नारी हूूँ,
दग
ु ाम , सरस्वती और काली का अवतार;
ना ककसी से हारी थी, ना मान सकती हार।
युग-युग से नारी तेरी ही कृ पा और बस तेरी ही जय-जयकार।
हाूँ! मैं नारी हूूँ।
भ रत प्य र जग से न्य र
लशक्षक
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चरणों में उनके जीवन अपमण
ना रखता वो कोई ख्वाइश बडी
बस नशष्य की सफलता ही हैं खुनशयों की लडी।
कडी धूप में जो दे वृक्ष सी छाया
ऐसी हैं इनके ज्ञान की माया।।
िेम प लिक
15
................
इतनी मोहक अनभव्यपक्त से, मधुमास राग बन जाएगा
हो कोई भी मौसम लेककन,ये काव्य प्रेमऋतु लायेगा.
इस दृग की सीमाओं में पप्रये,बस तेरा ही एहसास रहे
तेरे जीवन की बनगया में,जीवन भर पप्रय मधुमास रहे |
तेरे जीवन की बनगया में,जीवन भर पप्रय मधुमास रहे |
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हर ओर महकत स वन
कदि
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कदल की बात को कदल में रहने दो।
किम
कहन्दी
रक्षाबंधन जजसका अगर हम शाजब्दक अथम दे खें तो रक्षा का अथम है सुरक्षा ता उत्सव के रूप
में इस कदन मनाई जाती व बंधन है ररश्ता ननभाने का संकल्प. अपने भाई या बहन के प्रनत
प्रेम और उसका खयाल रखना ही इस त्यौहार का आधार है . यह पूरे पररवार को एक साथ
जोडता है ।।
रक्ष बांधन
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ररश्ते कई है दनु नया में,
ये ररश्ता कभी ना छूटा।।
हो खटास ककतनी भी मन में
सब नमट जाए बस कुछ क्षण में,
तोड के सारी दःु ख की गाूँठें,
जोडे मन से मन के तार।
राखी न धागा न कतरन,
सच्चे प्यार का सच्चा बंधन,
माथे पर चमके चावल रोली और चंदन।
ररश्तों में न करना
ररश्तों का व्यापार
रह जाएगा ये अधूरा
भाई-बहन का प्यार।।
झरन
र सुनो
बचपन
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कहां गई बचपन की नादाननयाूँ,
भाई से लडना,करना शैताननयाूँ
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बेटी की व्यि
जय श्री कृ ष्ि
21
बेबस सी इस राधा को,
तुम धीर बांधने आ जाना।
एक आस तुम से है मोहन,
तुम रास रचाने आ जाना।
हूं कदवानी तेरी मोहन
दशमन अपनी दे जाना।
कृ ष्ण की प्रेम बसुररयाूँ सुन भई कदवानी
जब-जब कन्हा मुरली बजाये दौडे आये
राधा-रानी ।।
लमत्र,लमत्रत
सच्चा नमत्र!
जजसे कहते हम 'नमत्रता' है अनमोल रत्न
नही तोल सकता जजसे कोई धन।
ऐसी होती है नमत्रता! मैं ये नही कहती की रक्त सम्बन्धी से या ककसी भी और सम्बन्धी से
ऐसी अंतरं गता नही हो सकती, ककन्तु ऐसे गहरे और आत्मीय ररश्तेदारों को भी तो हम
‘नमत्रवत’ ही कहते हैं , अक्सर सुना होगा कहते हुए, है तो मेरा फलां ररश्तेदार लेककन हम दोनों
में बहुत गहरी दोस्ती है .
नमत्र के नलये कुबामन होता है जीवन सारा
हर मुजश्कल में बनता हैं वो सहारा।
सच्ची नमत्रता जजसके पास है ;
उसके पास दौलत की भरमार है ;
नही जीत न ही कोई हार है ,
नमत्र के कदल में तो बस प्यार ही प्यार।।
मेरी कप्रवत
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िकृ लत
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चली मनाने पपयाजी का त्यौहार,
ननजमल-ननराहार रह माूँगुगी
उनका स्वस्र्थय और सुख-आपर,
मधुर रहें ये ररश्ता हमारा नमलें सदा पवश्वास और प्यार,
मन मेरा नाचे झूम-झूम होके बेशुमार,
सजखयों संग मनाऊं मैं
ये पावन तीज का त्यौहार,
हो गयी मैं बन-ठन तैयार
चली मनाने पपयाजी का त्यौहार ।।
मेरी अलभि ष
24
सेवा काज करूं जागुं तभी से।।
मेरी सदा यह हैं अनभलार्ा।
करबि सबके समक्ष रहुं मैं,
ना बोलुं नमर्थय सत्य कहुं मैं।
रहुं भटकता चाहे कदशा चहुं मैं,
परमाथम द:ु ख लाख सहुं मैं।।
मेरी सदा यह हैं अनभलार्ा।
मुस्कान होंठों पर रह पाए,
आंसु ना ककसी के बह जाए।
नाम जगत मैं मेरा रह पाए,
"प्राण ये भले ही जाए।।
मेरी सदा यह हैं अनभलार्ा।
न कसमें न ही कोई व द ,
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वो खेलकूद और दोस्तों से मस्ती।
सोचना पढ़ाई ही तो है सजा,
वो खेलना गुड्डे से दे ता था मज़ा।।
आंखों में मासुनमयत की झलक,
वो कुछ नया जाननें की ललक।
नशकायत करने की वो आदत,
सुनने की क्षमता ना एक पलक।।
ना ही रहे वो अब सब ककस्से,
ना ही रही वो बचपन की कहानी।
जजनके ककरदारों में अक्सर ही,
याद आ जाती है दादी व नानी।।
लडाई झगडे में समझना माकहर,
नहीं है कोई भी सानी अपना।
कहां गई वो रात और वो सपना,
कदल ढू ं ढता हैं कफर वही बचपना।।
िम्हें
क िी घट और िेलमक
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नसतारों को मुस्कराहट आती तो होगी।
तुम लाख नछपाओ दनु नया से मगर,
अकेले में तुम्हें हमारी याद आती तो होगी
मेरी पप्रय,
क्यूं न हम तुम
नमल के भीग जाएूँ
प्यार की इस बरसात में धुल जाएं
आये ककतनी भी आंनधयां राह में,
मगर ऐसे जकडो की हम एक दज
ू े में खो जाएूँ।
अपन पन
इां तज र
प्रतीक्षा सी रहती है ,
इक अनकहा सा इं तजार होता है , हालातों में जहाूँ।
सब कुछ मुजश्कल, अननजित और दश्व
ु ार होता है ।।
जीवन जब अनमना सा, केवल जीने का व्यापार होता है ।
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कल्पनाओं में मन की ,कहीं कोई चमत्कार होता है ।।
कभी सोचते हैं हम कहीं से, आकर कोई हमदम कर दे गा सबकुछ ,
पबल्कुल ठीक और उत्तम,प्राथमनाओं और दआ
ु ओं में, यही इज़हार होता है ।
मनचाही खुनशयाूँ पाने को, कदल सबका बेकरार होता है ।
हर मन की परतों में कहीं दबा,यही इं तज़ार होता है ।।
कक दआ
ु एं कब असर लाती हैं ,और मन्नतों का ननसार होता है ,
सुख में-दख
ु में हर कहीं,कुछ प्रतीक्षा सी रहती है
इक अनकहा सा इं तजार होता है ...!
28
म त -प्रपत
29
मनचाही खुनशयाूँ पाने को,
कदल तो सबका बेकरार होता है ।
हर शख्स और हर मन की
परतो में दबा यही इं तज़ार होता है ।।
दआ
ु एं कब असर लाती हैं ,
और मन्नतों का ननसार होता है ,
सुख-दख
ु में होती है आहट
इक अनकहा सा इं तजार होता है ...!
इस पावन धरा पर
नारी रूप में जन्मी हूं
शपक्त प्रेम त्याग ममता
इन्ही सब में ढली हूं
मां की गोद बाबा के कंधे
पर बैठ कर चली हूं
पररवार के सम्मान को
नसर पर उठाये चली हूं
समाजजक व्यवहार में
भाई का आदम श सीखी हूं
मुजश्कल घडी या खुशी में
आदशम की माला पहनी हूं
जीवन संगनी बन कर में
पनत का सम्मान करती हूं
अनभमान पररवार पर है
सब त्याग कर के आयी हूं
मां तो मां दग
ु ाम और सीता
स्वरूप नारी का पायी हूं
शुर से लेकर अन्त तक के
ररश्तोको ननभाती आयी हूं
गवम है सनातन संपदा पर
सभ्यता प्रेम की लायी हूं
30
करने का एक नजररया हूं मैं।
उम्मीद हूूँ मैं,
एक ककरण हूूँ,
एक आस हूूँ,एक अनुमान और एक पवश्वास हूूँ।
उम्मीद हूूँ मैं,
कभी धूप तो कभी छाूँव हूूँ मैं,
कभी मरहम तो कभी घाव हूूँ मैं।
हाूँ! उम्मीद हूूँ मैं,
जजन्दगी मैं कुछ करने की चाहत हूूँ मैं,
ककसी के काम आने की हसरत हूं मैं,
आत्मपवश्वास की पहचान हूूँ मैं,
ना टू टे जो हौसला कभी,
वो ढाल हूूँ मैं।
हाूँ! उम्मीद हूूँ मैं,
गगन से ऊूँची उडान हूं मैं,मंजज़ल का पता हूूँ;
महज़ तारा ना समझो मुझे; तपता सूरज हूं मैं।
हाूँ!! उम्मीद हूूँ मैं,
कहनी है ,! नसफम इतनी सी बात गर उम्मीदों का दामन थम रहे तो;
छोडना ना कभी इसका हाथ,
छोड दे गी ये दनु नया तुझे;
लेककन,कभी ना छोडें गी उम्मीद तेरा साथ।
हाूँ ! उम्मीद है ये।।
31
इस पपंजरे से में
आज छूटना चाहती हुं
जो कदन रात आज है
कल भी तो यही थे
में और तुम ' हम थे
कही कुछ भी जुदा ना था
हर वक्त हर दम थे
एक डायरी की तरह
तुम्हारी हुआ करती थी
जजदं गी हम दोनो की
रोशन हुआ करती थी
पर अब ना तुम्हारी डायरी है
ना ही में तुम्हारे पास हूं
इस डायरी को
जब छोडा था मेरे पास
इसका हर पन्ना खाली था
पबलकुल मेरी तरह इस डायरी का हर पन्ना मैने
भर कदया नलख नलख कर
आज भी सहे ज कर रखे है
उन लम्हो को जो जजए थे हमने
रोज नलख रही हूं नये पन्नो को
तुम नही हो तो क्या हुआ
जब नही थे मेरे ' तब थे
तुम्हारे एहसास तो रहे गे
भूल जाना मेरी कफतरत नही
सफर है जारी रहे गा ही
पन्ने भरते रहे गे अन्त तक
दीप विी
32
हर पल जीते अपनों के नलए,
कभी परकहत जी कर कदखलाएं।
हर कदन रौशन करते हैं घर को,
दीप सा रौशन हो कर कदखलाएं।।
आओ सब नमल दीप जलाएं।
भेद-भाव की प्राचीर गीरा कर,
सोहादम भाव से कदम बढ़ाएं।
सेवा संकल्प लेकर ननज मन में,
द्वे र् दनू नयां से हम दरू भगाएं।।
आओ हम सब दीप जलाएं।
अहम वहम मन से नमटा कर,
पवश्वास की लौ आज लगाएं।
ननज स्वाथम को ननत्य ननवारे ,
परमाथम के पथ चल कदखलाएं।।
आओ हम सब दीप जलाएं।
अधमम,अत्याचार को छोड कर,
दया धमम को हम सब अपनाएं।
सत्य सनातन ध्वज लहरा कर,
राम राज कफर धरा पर लाएं।।
आओ हम सब दीप जलाएं।
चारों कदशा से तमस नमटा कर,
अवनी पर हम आलोक फैलाएं।
अपने पराए का भेद भूला कर,
सब को हम अब गले लगाएं।।
आओ हम सब दीप जलाएं।
एक दज
ू े के हम बनें सहायक,
करनें को सहायता हाथ बढ़ाएं।
बने सदा ही हम सुखदायक,
"पप्रया"प्रेम का हम रस बरसाएं।।
आओ नमल कर दीप जलाएं।
यह उत्सव जगमग दीपों का,
आओ हम सब दीप जलाएं।
अन्तरतम के अंधकार को,
हम सब नमल कर दरू भगाएं।।
33
आओ हम सब दीप जलाएं।
आओ हम सब दीप जलाएं।।
34
मेरे प्यार का चचाम हो गली गली।
"पप्रया"पप्रय नमलन का मौसम हो,
जखल जाए कदल की कली कली।।
35